UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 1 जीवित ऊतक : कोशिकीय संरचना (Living Tissues: Cellular Structure)
UP Board Class 11 Home Science Chapter 1 जीवित ऊतक : कोशिकीय संरचना
UP Board Class 11 Home Science Chapter 1 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
जीवित कोशिका की रचना का चित्र बनाकर उसके प्रत्येक भाग के कार्य का वर्णन कीजिए।
अथवा “कोशिका मानव शरीर की इकाई है।” स्पष्ट कीजिए। एक जीवित कोशिका का चित्र बनाइए · तथा इसके भागों के नाम व कार्य बताइए। अथवा जीवित प्राणी कोशिका की बनावट को चित्र सहित समझाइए।
उत्तर:
“कोशिका मानव शरीर की इकाई है’ (Cell is a Unit of Human Body):
सभी जीवों का शरीर कोशिका (cell) या कोशिकाओं (cells) से मिलकर बना है। मनुष्य एक बहुकोशिकीय प्राणी है, जिसके शरीर में असंख्य कोशिकाएँ होती हैं। प्रत्येक कोशिका जीवद्रव्य (protoplasm) का एक पिण्ड है तथा सभी कोशिकाएँ अपने-अपने जैविक कार्य (vital activities) स्वयं करती हैं। अत: शरीर को बनाने वाली ये कोशिकाएँ जीवित संरचनाएँ कहलाती हैं। इस प्रकार, कोशिका शरीर की संरचनात्मक तथा कार्यात्मक इकाई है। कोशिकाओं का आकार सूक्ष्म होता है तथा इन्हें केवल सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है।
अनेक सूक्ष्म कोशिकाएँ मिलकर एक विशेष कार्य को करने के लिए समूह के रूप में व्यवस्थित रहती हैं। इन समूहों को ऊतक (tissue) कहते हैं। किसी अंग (organ) को बनाने में एक से अधिक प्रकार के ऊतक मिलकर (सम्मिलित रूप में) व्यवस्थित होते हैं तथा कोई कार्य करने में एक-दूसरे की सहायता करते हैं। दूसरी ओर, विभिन्न अंग मिलकर एक अंग-तन्त्र या संस्थान (organ system) तथा अनेक अंग-तन्त्र मिलकर शरीर (body) बनाते हैं।
एक-एक कोशिका की जैव सक्रियता से ही सम्पूर्ण अंग-तन्त्र एक विशेष कार्य को करने में सक्षम होता है। अतः स्पष्ट है कि कोशिका मानव शरीर की इकाई है।
प्राणी कोशिका (Animal Cell):
प्राणियों के शरीर में विद्यमान कोशिकाएँ आकार में अत्यन्त सूक्ष्म होती हैं; अतः ये केवल सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखी जा सकती हैं। मनुष्यों के शरीर में विद्यमान कोशिकाओं का आकार 0 : 0001 मिमी से 0.0001 मिमी तक होता है। कार्य के अनुसार कोशिकाओं का आकार भिन्न-भिन्न हो सकता है, फिर भी ये प्रायः गोल होती हैं। अन्य कोशिकाओं की उपस्थिति तथा उनके दबाव के कारण वे बहुभुजी हो जाती हैं।
एक सामान्य जन्तु कोशिका, जैसा कि अब तक के अध्ययनों से ज्ञात है, सामान्यतः एक दोहरी कला से घिरे जीवद्रव्य (protoplasm) का एक पिण्ड है। जीवद्रव्य में अनेक घटक या कोशिकांग (organelle) होते हैं, जिनमें सबसे अधिक व्यवस्थित तथा स्पष्ट संरचना केन्द्रक (nucleus) है। केन्द्रक के अतिरिक्त शेष जीवद्रव्य को आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा साइटोसोम (cytosome) नाम दिया गया है तथा इसके तरल भाग को कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) कहा जाता है। कोशिकाद्रव्य के दो भाग किए जा सकते हैं-
एक्टोप्लास्ट या कोशिका कला (Ectoplast or Plasmalemma):
यह एक इकाई कला है, जो प्रोटीन तथा वसा की बनी होती है और विभिन्न पदार्थों के कोशिका के अन्दर आने-जाने का नियमन करती है। इसमें अनेक छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। अनेक पोषक पदार्थ कोशिका कला में बनी थैलियों में अन्दर धंसते रहते हैं। इन थैलियों को पिनोसाइटिक आशय (pinocytic vesicles) कहते हैं।
मीजोप्लास्ट (Mesoplast):
कोशिका कला के अन्दर शेष कोशिकाद्रव्य को मीजोप्लास्ट कहते हैं। इनके अनेक भाग हैं, जो एक समांगी व अविरत हायलोप्लाज्म (hyaloplasm) में रहते हैं। इस द्रव्य में पड़ी हुई वस्तुओं को ही कोशिकीय अन्तर्वस्तुएँ कहते हैं।
कोशिका की आन्तरिक संरचना तथा कार्य (Internal Structure and Functions of a Cell):
सक्ष्मदर्शी द्वारा देखने पर प्राणि कोशिका के जो भाग दिखाई देते हैं, उनकी संरचना तथा कार्यों का विवरण निम्नवर्णित है-
अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic reticulum):
यह अनेक झिल्लियों से बना विभिन्न प्रकार की संरचनाएँ बनाने वाला जाल है। इसमें तीन प्रकार की संरचनाएँ दिखाई पड़ती हैं
- वेसिकल्स (vesicles): ये अण्डाकार थैलियाँ हैं।
- सिस्टर्नी (cisternae): ये भी थैलियाँ ही होती हैं, किन्तु ये लम्बी, चपटी, शाखाविहीन तथा एक-दूसरे के समानान्तर होती हैं।
- नलिकाएँ (tubules): ये नलिकाएँ वेसिकल्स एवं सिस्टर्नी इत्यादि को आपस में जोड़ती हैं और जालिका का निर्माण करती हैं।
कोशिका के इस भाग को कोशिका का परिवहन तन्त्र माना जा सकता है। यह कोशिका द्रव्य में कंकाल का निर्माण करता है। यह विभिन्न प्रकार के पदार्थों का कोशिकाद्रव्य में संवहन करता है। यही भाग विभिन्न प्रकार की रासायनिक अभिक्रियाओं के लिए आधार प्रदान करता है। प्रोटीन संश्लेषण का कार्य इसी आधार पर होता है।
माइटोकॉण्ड्यिा (Mitochondria):
ये जीवित कलाओं की दोहरी परत के द्वारा बने हुए अण्डाकार या शलाका के आकार के कोशिकांग हैं। इनके अन्दर विभिन्न प्रकार के पदार्थ, विशेषकर श्वसन सम्बन्धी एंजाइम्स आदि होते हैं। ये सूक्ष्म रचनाएँ हैं। माइटोकॉण्ड्रिया श्वसन केन्द्र है। ऊर्जा के सिक्के, ATP यहीं पर बनते हैं। इसीलिए इन्हें ऊर्जा केन्द्र कहते हैं।
गॉल्जीकाय (Golgi body):
यह कुछ झिल्लियों की एक सामूहिक संरचना है। अनेक झिल्लियों के बने थैले जैसे आकार, प्रमुखत: तीन प्रकार के होते हैं-
- एक के ऊपर एक तहों के रूप में फँसे हुए चपटे आकार सिस्टर्नी (cisternae),
- सिस्टर्नी के किनारों पर टूटकर अलग होने वाली अनेक छोटी-छोटी पुटिकाएँ (vesicles) तथा
- चौड़ी थैली के आकार की ही गोल रिक्तिकाएँ (vacuoles)
कोशिका के इस भाग का मुख्य कार्य कुछ पदार्थों का स्रावण (secretion) करना है। इसके अतिरिक्त इस भाग द्वारा ही कुछ सरल पदार्थों को जोड़कर जटिल पदार्थों का भी निर्माण किया जाता है।
तारककाय या सेण्ट्रोसोम (Centrosome):
केन्द्रक के निकट मिलने वाली यह संरचना एक या दो या अधिक स्थानों पर कुछ छड़ों के समान इकट्ठे हुए कणों से बनती है। ये तारककेन्द्र या सेण्ट्रिओल्स (centrioles) कहलाते हैं। इनको चारों ओर से घेरे हुए जीवद्रव्य की आकृति किरणों (rays) के रूप में पूरे तारककाय की रचना करती है। तारककाय कोशिका विभाजन के समय अधिक स्पष्ट दिखाई देता है तथा दो भागों में बँटकर तर्क के दोनों ध्रुवों पर चला जाता है। इनका कार्य कोशिका विभाजन से सम्बन्धित होता है।
राइबोसोम्स (Ribosomes):
ये अति सूक्ष्म कण की तरह की संरचनाएँ हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के आर०एन०ए० अणुओं (RNA mols.) का संग्रह होता है। ये मुख्य रूप से प्रोटीन्स के संश्लेषण का कार्य करते हैं।
माइक्रोसोम्स (Microsomes):
ये विभिन्न आकार की सूक्ष्म संरचनाएँ हैं, जो अन्तःप्रद्रव्यी जालिका के विभिन्न भागों (पुटिकाओं, सिस्टर्नी आदि) के अलग हो जाने से बनती हैं। इन अलग हुए भागों में अनेक राइबोसोम्स भी लगे रहते हैं। इस प्रकार ये हायलोप्लाज्म में स्वतन्त्र रूप में पड़े रहते हैं। इनका मुख्य कार्य अनेक प्रकार के पदार्थों का संग्रह करना तथा उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाना होता है।
लाइसोसोम्स (Lysosomes):
ये माइटोकॉण्ड्रिया से कुछ छोटी (0. 21 μ से 0 .80 μ), लगभग गोल, थैले जैसी रचनाएँ हैं, जो कुछ जन्तुओं में देखी गई हैं। इनकी कला एक इकाई कला होती है। इन संरचनाओं में विभिन्न प्रकार के पाचक एंजाइम्स भरे रहते हैं। ये एंजाइम्स प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, DNA, RNA इत्यादि के बड़े अणुओं को तोड़कर छोटे अणुओं में बदल देते हैं।
रिक्तिकाएँ (Vacuoles): ये झिल्ली से ढकी हुई ऐसी संरचनाएँ हैं, जिनमें जल में घुले हुए अनेक पदार्थ जैसे लवण तथा शर्कराएँ आदि रहते हैं। इस घोल को सेल सैप (cell sap) कहा जाता है। ये जन्तु कोशिका में कम तथा छोटे आकार की पायी जाती हैं। इनकी उपस्थिति से जल का आदान-प्रदान होता रहता है और कोशिका में जल की मात्रा का नियमन होता है।
अन्य सूक्ष्म संरचनाएँ (Other micro structures): उपरिवर्णित आकारों के अतिरिक्त भी, अन्य अनेक प्रकार के छोटे-छोटे आकार कोशिकाओं में मिलते हैं। ये अन्त:प्रद्रव्यी जालिका आदि से पुटिकाओं के रूप में टूटकर अलग हो जाने से बनते हैं। इनके द्वारा विभिन्न प्रकार के विशिष्ट कार्य किए जाते हैं।
केन्द्रक (Nucleus): यह एक अधिक घना कोशिकांग है। इसमें क्रोमेटिन (chromatin) नामक पदार्थ के सूत्र होते हैं, जो सामान्य अवस्था में जाल के रूप में रहते हैं। इसके चारों ओर एक दोहरी झिल्ली होती है, जिसे केन्द्रक कला (nuclear membrane) कहते हैं। क्रोमेटिन जाल के अतिरिक्त केन्द्रक में केन्द्रक रस (nuclear sap) तथा एक या अधिक केन्द्रिक (nucleolus) होते हैं। प्राणी कोशिका में केन्द्रक प्राय: कोशिका के मध्य में स्थित होता है।
कोशिका का यह भाग पूरी कोशिका पर नियन्त्रण रखता है। कोशिका का यही भाग उसके विभिन्न भागों के कार्यों का नियमन करता है तथा सन्तति कोशिकाओं में लक्षणों की आनुवंशिकी भी इसके द्वारा ही होती है।
प्रश्न 2.
मानव शरीर में पायी जाने वाली विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं का सामान्य परिचय दीजिए। अथवा हमारे शरीर में कितने प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं? प्रत्येक प्रकार की कोशिका का चित्र सहित सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
प्राणि शरीर की समस्त कोशिकाओं की आन्तरिक रचना समान होती है, परन्तु इन कोशिकाओं की बाहरी आकृति अथवा स्वरूप में पर्याप्त अन्तर एवं विविधता देखी जा सकती है। शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों एवं भागों में विद्यमान कोशिकाओं का आकार एवं बाहरी रूप भिन्न-भिन्न होता है। यही कारण है कि हमारे शरीर में गोल, चपटी, लम्बी तथा बेलनाकार कोशिकाएँ देखी जा सकती हैं। वास्तव में प्राणि-शरीर में विद्यमान कोशिकाओं में न केवल आकार की भिन्नता पायी जाती है बल्कि उनके द्वारा सम्पन्न होने वाले कार्य भी भिन्न-भिन्न होते हैं। शरीर की कोशिकाओं की आकृति की भिन्नता तथा इनके द्वारा सम्पन्न होने वाले कार्यों की भिन्नता को ध्यान में रखते हुए शरीरशास्त्र के अन्तर्गत मुख्य रूप से छह प्रकार की कोशिकाओं का उल्लेख किया जाता है।
कोशिकाओं के इन विभिन्न प्रकारों का संक्षिप्त परिचय निम्नवर्णित है-
आच्छादक कोशिकाएँ या उपकला कोशिकाएँ (Epithelium cells):
शरीर के प्रायः सभी भागों में पायी जाने वाली एक प्रकार की कोशिकाओं को आच्छादक या उपकला कोशिका (epithelial cells) कहते हैं। इन कोशिकाओं का आकार चपटा होता है तथा सामान्य रूप से इन कोशिकाओं द्वारा कुछ महीन झिल्लियाँ बनती हैं। इस प्रकार से बनने वाली झिल्लियाँ शरीर के आवरण का कार्य करती हैं। इन झिल्लियों से निर्मित आवरण शरीर के अंगों की रक्षा भी करते हैं। आच्छादक कोशिकाओं का एक विशिष्ट गुण यह होता है कि इन कोशिकाओं में रिक्त स्थान नहीं होता। रिक्त स्थान न होने के कारण आच्छादक कोशिकाओं में अन्तःकोशीय पदार्थ भी नहीं पाया जाता।
पेशी कोशिकाएँ (Muscular cells):
द्वितीय प्रकार की शरीर-कोशिकाओं को पेशी कोशिकाएँ (muscular cells) कहते हैं। इन कोशिकाओं से क्रमश: पेशी ऊतक तथा शरीर की सभी मांसपेशियों का निर्माण होता है। पेशी कोशिकाएँ लम्बे तथा पतले आकार की होती हैं। पेशी कोशिकाएँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं, जिन्हें क्रमशः ऐच्छिक पेशी कोशिकाएँ तथा अनैच्छिक पेशी कोशिकाएँ कहा जाता है। इनके अतिरिक्त हृदय में एक भिन्न प्रकार की पेशियाँ भी पायी जाती हैं और उन्हें हृद पेशी के नाम से जाना जाता है।
रक्त कोशिकाएँ (Blood cells):
शरीर में रक्त का निर्माण करने वाली कोशिकाओं को रक्त कोशिकाएँ (blood cells) कहते हैं। प्राणी शरीर में ये कोशिकाएँ भी दो प्रकार की पायी जाती हैं। एक प्रकार की रक्त कोशिकाओं को श्वेत रक्त कोशिकाएँ तथा दूसरे प्रकार की रक्त कोशिकाओं को लाल रक्त कोशिकाएँ कहते हैं। दोनों प्रकार की रक्त कोशिकाओं का आकार भी भिन्न-भिन्न होता है तथा उनके कार्य भी भिन्न-भिन्न होते हैं। सामान्य रूप से श्वेत रक्त कोशिकाओं का कोई निश्चित आकार नहीं होता, ये अनियमित, गोल आकार की किन्तु लिजबिजी-सी होती हैं।
ये रक्त कोशिकाएँ मुख्य रूप से शरीर को सुरक्षा प्रदान करने का कार्य करती हैं। जहाँ तक लाल रक्त कोशिकाओं का प्रश्न है, उनका आकार गोल टिकिया के समान होता है। इन कोशिकाओं का आकार उभयावतल (biconcave) होता है; अर्थात् ये कोशिकाएँ दोनों ओर मध्य से कुछ पिचकी हुई होती हैं। लाल रक्त कोशिकाओं का मुख्य कार्य शरीर में ऑक्सीजन का परिवहन करना है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि रक्त में श्वेत एवं लाल रक्त कोशिकाओं का अनुपात भिन्न होता है। सामान्य रूप से लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या, श्वेत कोशिकाओं की तुलना में बहुत अधिक होती है।
अस्थि कोशिकाएँ (Bone cells):
शरीर की अस्थियों का निर्माण करने वाली कोशिकाएँ, अस्थि कोशिकाएँ (bone cells) कहलाती हैं। इन कोशिकाओं का आकार अनियमित होता है। इन कोशिकाओं की रचना कुछ इस प्रकार होती है कि इन कोशिकाओं का केन्द्रक अन्य कोशिकाओं के केन्द्रक की तुलना में बड़ा होता है। इन कोशिकाओं के चारों ओर कुछ अत्यधिक सूक्ष्म रेशे भी पाए जाते हैं। ये सूक्ष्म रेशे वास्तव में रक्त कोशिकाओं तथा तन्त्रिकाओं द्वारा घिरे रहते हैं।
संयोजक कोशिकाएँ (Connective cells):
शरीर के किन्हीं दो भागों को आपस में जोड़ने का कार्य करने वाली कोशिकाओं को संयोजक कोशिकाएँ (connective cells) कहा जाता है। इन कोशिकाओं का आकार भी अनियमित ही होता है। इन कोशिकाओं की रचना कुछ इस प्रकार की होती है कि उनके बीच रिक्त स्थान अपेक्षाकृत रूप से अधिक होता है। इसी कारण इन कोशिकाओं में अन्त:कोशीय पदार्थ भी सामान्य से अधिक विद्यमान होता है। इस प्रकार की कोशिकाओं से बने ऊतकों में सामान्य रूप से कुछ महीन झिल्लियाँ बनती हैं।
तन्त्रिका कोशिकाएँ (Nerve cells):
तन्त्रिका या स्नायु कोशिकाएँ (nervous cells) सम्पूर्ण शरीर में पायी जाती हैं। ये कोशिकाएँ कुछ लम्बे तथा तिकोने आकार की होती हैं। इन्हीं कोशिकाओं से शरीर के सम्पूर्ण तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण होता है। तन्त्रिका तन्त्र की सम्पूर्ण शरीर में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। तन्त्रिका तन्त्र द्वारा ही सम्पूर्ण शरीर की गतिविधियों का परिचालन एवं नियन्त्रण होता है। इन महत्त्वपूर्ण कार्यों के पीछे तन्त्रिका कोशिकाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका निहित रहती है।
प्रश्न 3.
‘ऊतक’ शब्द से क्या तात्पर्य है? ये कितने प्रकार के होते हैं? ऊतकों की संरचना तथा कार्य का विवरण दीजिए।
अथवा ऊतक से क्या तात्पर्य है? निम्नलिखित ऊतक शरीर में कहाँ पाए जाते हैं-
(क) उपकला ऊतक (एपीथीलियम),
(ख) तन्त्रिका ऊतक।
इन ऊतकों की रचना एवं कार्य लिखिए। अथवा ऊतक कितने प्रकार के होते हैं? ऊतक के कार्य लिखिए।
उत्तर:
ऊतक (Tissues):
जीवित प्राणियों के शरीर की इकाई को कोशिका कहते हैं। कोशिकाएँ शरीर की इकाई होते हुए भी शरीर के अंगों के निर्माण में प्रत्यक्ष रूप से योगदान नहीं देतीं। अंगों के निर्माण के लिए शरीर में एक अन्य संरचना की आवश्यकता होती है। यह संरचना कोशिकाओं के समूहीकरण से बनती है तथा इसे ऊतक (tissue) कहते हैं। स्पष्ट है कि ऊतकों का निर्माण कोशिकाओं से होता है। इस प्रकार ऊतक अनेक कोशिकाओं के व्यवस्थित समूह का नाम है। सामान्य रूप से एक ही प्रकार की अनेक कोशिकाएँ परस्पर सम्बद्ध होकर एक विशिष्ट संरचना का निर्माण करती हैं तथा शरीर-रचना विज्ञान के अन्तर्गत इसी संरचना को ऊतक कहते हैं। सभी प्राणियों के शरीर में विभिन्न प्रकार के ऊतक पाए जाते हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार के ऊतकों की रचना तथा कार्यों में पर्याप्त अन्तर देखा जा सकता है। ऊतकों से शरीर के अंगों का निर्माण होता है। इस प्रकार शरीर में ऊतकों का विशेष महत्त्व है।
ऊतकों के प्रकार (Kinds of Tissues):
मानव शरीर में निम्नलिखित चार प्रकार के ऊतक पाए जाते हैं-
- उपकला ऊतक (epithelial tissues);
- संयोजी ऊतक (connective tissues);
- पेशी ऊतक (muscular tissues);
- तन्त्रिका ऊतक (nervous tissues)
1. उपकला ऊतक (Epithelial tissues):
उपकला ऊतक सदैव महीन परतों के रूप में पाए जाते हैं। ये परतें शरीर के अंगों पर बाहरी अथवा भीतरी रक्षक आवरण बनाती हैं। ये ऊतक दो प्रकार के होते हैं-
A. सामान्य उपकला (Simple epithelium): ये केवल एक स्तर के रूप में होते हैं। कोशिकाओं के आकार एवं कार्य के आधार पर ये कई प्रकार के हो सकते हैं; यथा
- शल्की उपकला (squamous epithelium): इस प्रकार के ऊतकों की कोशिकाएँ चौड़ी, चपटी तथा परस्पर सटी रहती हैं। इनका प्रमुख कार्य रक्षात्मक होता है।
- स्तम्भी उपकला (columnar epithelium): इस प्रकार के ऊतकों की कोशिकाएँ लम्बी तथा परस्पर सटी होती हैं। आहार नाल के अधिकांश भाग की दीवार का भीतरी स्तर इसी प्रकार के ऊतकों का बना होता है। ये पचे हुए तरल खाद्य पदार्थों का अवशोषण करते हैं।
- घनाकार उपकला (cuboidal epithelium): इस प्रकार के ऊतकों की कोशिकाएँ घनाकार होती हैं। ये ऊतक मूत्र व जनन नलिकाओं, जनन ग्रन्थियों आदि में पाए जाते हैं। जनन ग्रन्थियों में ये ऊतक जनन उपकला कहलाते हैं।
- ग्रन्थिल उपकला (glandular epithelium): शरीर में स्थित विभिन्न प्रकार की ग्रन्थियाँ इस प्रकार के उपकला ऊतकों की बनी होती हैं। इनमें कोशिकाएँ किसी-न-किसी स्रावी पदार्थ का स्त्रावण करती हैं।
- रोमाभि उपकला (ciliated epithelium): इस प्रकार के ऊतकों की प्रत्येक कोशिका के स्वतन्त्र किनारे पर अनेक रोमाभिकाएँ (cilia) लगी रहती हैं। ये ऊतक श्वास नली, अण्डवाहिनी, मूत्रवाहिनी आदि का भीतरी स्तर बनाते हैं।
- तत्रिका-संवेदी उपकला (neuro-sensory epithelium): इनकी कोशिकाओं के स्वतन्त्र सिरे पर संवेदी रोम होते हैं। संवेदी रोम संवेदनाओं को ग्रहण करने का कार्य करते हैं। ये अन्त:कर्ण की उपकला, घ्राण अंगों की श्लेष्मिक कला तथा आँखों की रेटिना में पाए जाते हैं।
B. स्तरित उपकला (Stratified epithelium):
यह कई स्तरों की बनी होती है। सबसे भीतरी स्तर की कोशिकाएँ निरन्तर विभाजित होकर नए स्तर बनाती रहती हैं। इस स्तर को जनक स्तर
(germinative layer) कहते हैं। इससे बने स्तर बाहर की ओर खिसकते रहते हैं। सबसे बाहर का स्तर घर्षण के कारण मृत होकर अलग होता रहता है; जैसे-त्वचा की ऐपिडर्मिस, ग्रास नली, नासा गुहाओं, योनि आदि में।
2. संयोजी ऊतक (Connective tissues):
इस प्रकार के ऊतक शरीर में सबसे अधिक होते हैं। ये सभी अंगों के भीतर तथा दो अंगों के बीच में पाए जाते हैं। इन ऊतकों का प्रमुख कार्य अंगों को सहारा प्रदान करना, अंगों को ढककर इनकी रक्षा करना तथा इन्हें परस्पर बाँधे रखना होता है। इन ऊतकों की कोशिकाएँ एक आधारभूत पदार्थ या मैट्रिक्स (matrix) स्रावित करती हैं और स्वयं भी इसी में धंसी रहती हैं। संयोजी ऊतक निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
A. सामान्य संयोजी ऊतक (General connective tissues):इस प्रकार के ऊतकों में मैट्रिक्स तरल या अर्द्ध-तरल जैली के रूप में होता है। ये ऊतक कई प्रकार के होते हैं; जैसे
वर्णक ऊतक (pigmented tissues): ये ऊतक त्वचा की डर्मिस में मिलते हैं। इनमें वर्णक कोशिकाएँ होती हैं, जिन्हें क्रोमेटोफोर्स (chromatophores) भी कहते हैं। इनके कोशिका द्रव्य में अनेक रंगीन कणिकाएँ होती हैं। इन ऊतकों में इलास्टिन तन्तु तथा लिम्फोसाइट्स भी पाए जाते हैं।
वसामय ऊतक (adipose tissues): ये ऊतक त्वचा के नीचे पाए जाते हैं। ये पीत अस्थि मज्जा के चारों ओर तथा रक्त वाहिनियों के आस-पासभी पाए जाते हैं। इनमें बड़ी-बड़ी गोल वसा कोशिकाएँ होती हैं, जो वसा गोलकों से भरी होती हैं।
अन्तराली संयोजी ऊतक (interstitial connective tissues): ये ऊतक शरीर के सभी आन्तरिक अंगों के चारों ओर पाए जाते हैं। इनकामैट्रिक्स जैली के समान पारदर्शक तथा चिपचिपा होता है। इनमें दो प्रकार के तन्तु श्वेत कोलेजन तन्तु (white collagen fibres) तथा पीले इलास्टिनतन्तु (yellow elastin fibres) पाए जाते हैं। श्वेत कोलेजन तन्तु लहरदार गुच्छों में पाए जाते हैं जबकि पीले इलास्टिन तन्तु अकेले इधर-उधर बिखरेरहते हैं। मैट्रिक्स में तन्तुओं के अतिरिक्त कई प्रकार की कोशिकाएँ; जैसे फाइब्रोब्लास्ट, हिस्टियोसाइट्स, प्लाज्मा कोशिकाएँ, मास्ट कोशिकाएँआदि भी पायी जाती हैं।
B. तन्तमय संयोजी ऊतक (Fibrous connective tissues): इनमें मैट्रिक्स की मात्रा कम तथा तन्तुओं की संख्या अधिक होती है। इनमें दो प्रकार के तन्तु होते हैं-एक श्वेत तथा लोचरहित होते हैं, जिनके ऊतक कड़े तथा मजबूत होते हैं तथा दूसरे पीले, शाखित एवं लचीले होते हैं। ये ऊतक कण्डरा (tendon), स्नायु (ligaments) तथा पेशियों के आवरण बनाते हैं।
C. कंकाल संयोजी ऊतक (Skeletal connective tissues): सभी कशेरुकी जन्तुओं में कंकाल का निर्माण कंकाल ऊतक करते है । ये दो प्रकार के होता है –
उपास्थि (cartilage): उच्च श्रेणी के कशेरुकी जन्तुओं में उपास्थि की मात्रा अस्थि से कम होती है। इसमें मैट्रिक्स, कॉण्ड्रिन नामक अर्द्ध-ठोस प्रोटीन से बना होता है। इसमेंबहुत-से छोटे-छोटे गड्ढे या गर्तिकाएँ होती हैं, जिनमें एक तरल. पदार्थ भरा रहता है। प्रत्येक गर्तिका में कॉण्ड्रियोब्लास्ट नामक कोशिका होती है। उपास्थि पेरीकॉण्ड्रियम (perichondrium) नामक झिल्ली से ढकी रहती है। इसमें रक्त वाहिनियाँ प्रवेश कर उपास्थि को पोषक पदार्थ प्रदान करती हैं। नाक, कान के पिन्ना आदि को उपास्थि ही सहारा देती है।
अस्थि (bone): इन ऊतकों में मैट्रिक्स, ओसीन नामक प्रोटीन से बना होता है। इसमें कैल्सियम और मैग्नीशियम के कण जमा होने से यह कठोरहो जाती है। अस्थि की गुहा को मज्जा गुहा कहते हैं। इसमें वसामय ऊतक भरा रहता है, जिसे अस्थि मज्जा (bone marrow) कहते हैं। अस्थि केमध्य भाग में पीली अस्थि मज्जा तथा सिरों पर लाल अस्थि मज्जा होती है। लाल अस्थि मज्जा में लाल रुधिर कणिकाओं का निर्माण होता है। मज्जा गुहाको घेरे हुए अन्तराच्छद नामक स्तर होता है। इसकी कोशिकाएँ (osteoblasts), ओसीन (ossein) स्रावित करती हैं, जो संकेन्द्रीय धारियों के रूप मेंएकत्र होती रहती हैं और मैट्रिक्स बनाती हैं। इन धारियों को पटलिकाएँ कहते हैं। इनमें गर्तिकाएँ होती हैं। गर्तिका में अस्थि कोशिका होती है। अस्थि के आवरण को अस्थिच्छद कहते हैं, जिसमें अनेक महीन तन्त्रिकाएँ और रुधिर वाहिनियाँ होती हैं। मैट्रिक्स में रुधिर वाहिनियों के प्रवेश हेतु नलिकाएँ बन जाती हैं, जिन्हें हैवर्सियन नलिकाएँ (haversian canals) कहते हैं। प्रत्येक हैवर्सियन नलिका 8-15 संकेन्द्रीय पटलिकाओं द्वारा घिरी रहती है। इस पूरी रचना को हैवर्सियन तन्त्र कहते हैं।
D. तरल संयोजी ऊतक (Fluid connective tissues): रुधिर तथा लसीका तरल ऊतकों के उदाहरण हैं। इनमें मैट्रिक्स तरल अवस्था में होता है और प्लाज्मा (plasma) कहलाता है। यह सदैव एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर वाहिनियों और केशिकाओं के अन्दर बहता है। इन ऊतकों में तन्तुओं का अभाव होता है; कोशिकाएँ प्लाज्मा का स्राव नहीं करती हैं। इनमें कई प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं।
3. पेशी ऊतक (Muscular tissues):
पेशी कोशिकाओं के समूहीकरण से पेशी ऊतकों का निर्माण होता है। शरीर की मांसपेशियों का निर्माण इन्हीं ऊतकों से होता है। पेशी ऊतक सम्पूर्ण शरीर में पाए जाते हैं। ये त्वचा के नीचे तथा अस्थियों के ऊपर पाए जाते हैं। पेशी ऊतक ही मांसपेशियों के माध्यम से विभिन्न शारीरिक क्रियाओं एवं गतियों को सम्पन्न कराते हैं। पेशी ऊतक भी तीन प्रकार के होते हैं, जिनका संक्षिप्त परिचय निम्नवर्णित है-
A. रेखित या ऐच्छिक पेशी ऊतक (Striped or Voluntary muscular tissues): एक विशेष प्रकार की मांसपेशियों का निर्माण करने वाले ऊतक, रेखित या ऐच्छिक ऊतक (striped or voluntary tissues) कहलाते हैं। इस प्रकार के तन्तु लम्बे, अशाखित तथा बेलनाकार होते हैं। इस प्रकार के ऊतक शरीर के उन समस्त भागों में पाए जाते हैं, जो गति करते हैं।
B. अरेखित या अनैच्छिक पेशी ऊतक (Unstriped or Involuntary muscular tissues): द्वितीय प्रकार के पेशी ऊतकों को अरेखित या अनैच्छिक पेशी ऊतक (unstriped or involuntary muscular tissues) कहते हैं। इस प्रकार के पेशी ऊतक शरीर के उन भागों या अंगों में पाए जाते हैं, जिनकी गति या क्रिया स्वत: होती रहती है। इस प्रकार अनैच्छिक पेशी ऊतक मुख्य रूप से आहार नाल, रक्त वाहिनियों की भित्ति, मूत्राशय, पित्ताशय तथा जनन वाहिनियों में पाए जाते हैं।
C. हृद-पेशी ऊतक (Cardiac muscular tissues): तृतीय प्रकार के पेशी ऊतकों को हृद-पेशी ऊतक (cardiac muscular tissues) कहते हैं। इस प्रकार के पेशी ऊतक केवल हृदय की मांसपेशियों का निर्माण करते हैं। इन ऊतकों में ऐच्छिक तथा अनैच्छिक दोनों प्रकार के ऊतकों के गुण समन्वित रहते हैं।
4. तन्त्रिका ऊतक (Nervous tissues):
ये ऊतक विभिन्न प्रकार के ऊतकों के मध्य स्थित होते हैं। इनकी कोशिकाएँ तन्त्रिका कोशिकाएँ या न्यूरॉन्स (neurons) कहलाती हैं। इन कोशिकाओं का निर्माण गर्भावस्था में ही हो जाता है तथा ये एक बार नष्ट होने पर दोबारा निर्मित नहीं होती हैं; अर्थात् इनका पुनरुद्भवन (regeneration) सम्भव नहीं है।
मस्तिष्क, सुषुम्ना, तन्त्रिकाएँ आदि इसी प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने हुए हैं। ये कोशिकाएँ मिलकर तन्त्रिका तन्तुओं (nerve fibres) का निर्माण करती हैं। ये कोशिकाएँ विशेष आकार व संरचना की होती हैं—प्रत्येक तन्त्रिका कोशिका में एक मुख्य जीवद्रव्यी भाग होता है, इसी में केन्द्रक (nucleus) रहता है। कोशिका में अनेक छोटी-बड़ी शाखाएँ होती हैं। इनमें से एक बड़ी शाखा तन्त्रिकाक्ष (axon) बनाती है, जो वास्तव में तन्तु का निर्माण करती है। शेष छोटी शाखाएँ वृक्षिकाएँ (dendrons) कहलाती हैं; जो अन्य कोशिकाओं की ऐसी ही शाखाओं की और छोटी शाखाओं, जिन्हें वृक्षिकान्त (dendrites) कहते हैं, के साथ युग्मों (synapses) का निर्माण करती हैं। इस प्रकार ये कोशिकाएँ तन्त्रिका ऊतक का भाग हैं। ये ऊतक शरीर में संवेदनाओं को एक स्थान पर ग्रहण कर दूसरे स्थान तक लाने-ले जाने अर्थात् ग्रहण करने तथा संचालन का कार्य करते हैं।
UP Board Class 11 Home Science Chapter 1 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
जीवद्रव्य के भौतिक एवं जैविक गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जीवद्रव्य के गुण
कोशिकीय रचना के सन्दर्भ में जीवद्रव्य के गुणों का अध्ययन करना भी आवश्यक है। जीवद्रव्य कोशिका-झिल्ली द्वारा घिरा रहता है। यह अर्द्ध-पारदर्शक जैली के समान गाढ़ा, चिपचिपा तथा रंगहीन पदार्थ होता है। वास्तव में कोशिका का जीवन उसके इसी भाग पर निर्भर रहता है। जीवद्रव्य के भौतिक एवं जैविक गुणों का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है
(अ) भौतिक गुण:
- जीवद्रव्य चिपचिपा, पारभासी तथा जैली की तरह अर्द्ध-तरल है। यह जल में अविलेय है, किन्तु इसकी अत्यधिक मात्रा को अवशोषित कर सकता है। यह जल से भारी है। अनेक प्रकार के ठोस, तरल (बूंदों के रूप में) तथा गैस इत्यादि इसमें तैरते रहते हैं।
- जीवद्रव्य अत्यधिक प्रत्यास्थ होता है और अपने सामान्य स्वरूप से 25 गुना अधिक फैल सकता है। इसी कारण यह तुरन्त अपनी सामान्य स्थिति को लौट सकता है।
- जीवद्रव्य की श्यानता बदलती रहती है; यहाँ तक कि यह एक ही कोशिका के अन्दर अलग-अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न तथा एक ही स्थान पर भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में अलग-अलग होती है।
- यह तरल से जैल अवस्था या इसके विपरीत बदलता रहता है।
- यह स्कन्दित होकर संकुचित हो सकता है। यह कार्य विभिन्न प्रकार के भौतिक परिवर्तनों के कारण हो सकता है, जैसे-ताप परिवर्तन, विद्युत प्रवाह, pH परिवर्तन आदि।
- जीवद्रव्य पर प्रकाश पुंज डालने से इसके कण किरणों को इधर-उधर छितरा देते हैं (टिण्डल . घटना); अतः प्रकाश का मार्ग तथा ये कण हमें दिखाई दे जाते हैं।
- जीवद्रव्य, कोशिका के अन्दर इधर-उधर घूमता रहता है (प्रवाही गति)। यदि यह गति एक ही बड़ी रिक्तिका (vacuole) के चारों ओर हो तो घूर्णन (rotation), किन्तु जब अनेक रिक्तिकाओं के चारों ओर हो तो परिसंचरण (circulation) कहलाती है।
(ब) जैविक गुण:
रासायनिक संरचना तथा इसकी भौतिक प्रकृति के कारण जीवद्रव्य में अनेक विशेष लक्षण होते हैं .. जो जीवन को प्रदर्शित करते हैं। ये प्रमुख लक्षण हैं-गति या चलन, पोषण, उपापचय, श्वसन, उत्सर्जन, उत्तेजनशीलता, वृद्धि, जनन आदि।
प्रश्न 2.
वनस्पति तथा जन्तु (प्राणी) कोशिकाओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वनस्पति तथा जन्तु (प्राणी) कोशिकाओं में अन्तर .
वनस्पति कोशिकाओं तथा जन्तु (प्राणी) कोशिकाओं में विद्यमान अन्तर का. विवरण चित्र सहित अग्रवत् है-
प्रश्न 3.
ऊतकों का शरीर में क्या महत्त्व है? अथवा ऊतक कितने प्रकार के होते हैं? ऊतकों के कार्य लिखिए। अथवा टिप्पणी लिखिए-ऊतक एवं उनकी उपयोगिता।
उत्तर:
ऊतकों के प्रकार एवं कार्य या महत्त्व
अनेक कोशिकाओं के व्यवस्थित समूह को ऊतक (tissues) कहते हैं। मानव शरीर में चार प्रकार के ऊतक पाए जाते हैं। ये प्रकार हैं क्रमश:
(i) उपकला ऊतक,
(ii) संयोजी ऊतक,
(iii) पेशी ऊतक तथा
(iv) तन्त्रिका ऊतक। शरीर में ऊतकों के महत्त्व अथवा कार्यों का विवरण निम्नलिखित है-
- कोशिकाएँ अति सूक्ष्म आकार की होती हैं, वे शरीर की आवश्यकता के अनुसार कार्य नहीं कर पातीं। इन कार्यों को ऊतक ही सफलतापूर्वक करते हैं।
- ऊतकों की उपस्थिति के कारण श्रम का विभाजन होता है; अर्थात् विभिन्न ऊतक अपने-अपने विशिष्ट कार्यों को सम्पादित करते हैं।
- ऊतक ही मिलकर अंग बनाते हैं तथा उसको एक बड़े तथा विशिष्ट कार्य को करने में सहायता प्रदान करते हैं।
- विभिन्न अंगों के मध्य कुछ ऊतक संयोजन का कार्य करते हैं। जैसे-रुधिर तथा लसीका विभिन्न प्रकार के पदार्थों को एक अंग से दूसरे अंग में पहुँचाने अथवा लाने-ले जाने का विशिष्ट कार्य करते हैं।
- कुछ ऊतक शरीर की बाहरी वातावरण आदि से सुरक्षा करते हैं अथवा सुरक्षा करने में सहयोग देते हैं। जैसे—उपकला ऊतक शरीर पर विशिष्ट आवरण बनाते हैं; तन्त्रिका ऊतक बाह्य आघातों की सूचना मस्तिष्क को देते हैं तथा उसके नियमन कार्य के रूप में उन अंगों को कार्यवाही करने के लिए प्रेरित करते हैं, जो सुरक्षा करने के योग्य हैं।
- अनेक ऊतक शरीर का विशिष्ट स्वरूप बनाने में सहायता करते हैं; जैसे-कंकालीय ऊतक (skeletal tissues), पेशी ऊतक (muscular tissues) आदि। स्पष्ट है कि ऊतकों द्वारा विभिन्न कार्य सम्पादित किए जाते हैं तथा शरीर में इनका विशेष महत्त्व है।
प्रश्न 4.
शरीर-रचना के सन्दर्भ में अंग (organ) का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अंग का अर्थ
अंग शरीर के उन भागों को कहा जाता है, जो अपने आकार एवं गुणों के कारण स्पष्ट रूप से पहचाने जा सकते हैं। अंगों का निर्माण ऊतकों से होता है। हम कह सकते हैं कि जब किसी एक ही प्रकार के कुछ ऊतक परस्पर सम्बद्ध होकर शरीर के किसी ऐसे भाग की रचना करते हैं, जो अपने विशेष आकार तथा गुणों के कारण शरीर के अन्य भागों से अलग पहचाना जाता है, तो शरीर के उस भाग को शरीर के एक अंग (organ) के रूप में जाना जाता है। शरीर के सभी अंगों का अपना-अपना महत्त्व होता है तथा उनके द्वारा विशिष्ट कार्य किया जाता है। उदाहरणार्थ-आँख एक अंग है, जिसका अपना विशिष्ट आकार है तथा उसके द्वारा देखने का कार्य किया जाता है। इसी प्रकार हृदय, यकृत तथा गुर्दे आदि भी विभिन्न अंग हैं तथा ये अपने-अपने कार्य करते हैं। उँगली, हाथ, बाँह, पैर तथा टाँग आदि को भी विशेष अंग ही माना जाएगा।
प्रश्न 5.
शरीर-रचना के सन्दर्भ में तन्त्र या संस्थान (system) का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तन्त्र अथवा संस्थान का अर्थ
हमारा शरीर विभिन्न व्यवस्थित कार्य सम्पन्न करता है। विशिष्ट कार्यों को व्यवस्थित ढंग से कोई एक अंग सम्पन्न नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए पाचन-क्रिया को केवल मुँह या आमाशय पूरा नहीं कर सकता है। इसी प्रकार श्वसन या रक्त परिसंचरण की क्रिया को शरीर का कोई एक अंग सम्पन्न नहीं कर सकता। इन व्यवस्थित क्रियाओं को पूरा करने के लिए शरीर के विभिन्न अंगों को परस्पर सहयोग से कार्य करना पड़ता है। इस प्रकार, किसी विशिष्ट प्रक्रिया को पूरा करने के लिए या शरीर के किसी विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के लिए शरीर के अनेक अंग परस्पर सम्बद्ध होकर कार्य करते हैं तथा इन सभी अंगों की व्यवस्था को ही शरीर-रचना विज्ञान में तन्त्र या संस्थान (system) कहते हैं।
उदाहरणार्थ- श्वसन क्रिया को सम्पन्न करने के लिए नासिका, श्वास नलिका, श्वसनी तथा फेफड़े आदि अंग परस्पर सम्बद्ध होकर श्वसन तन्त्र के रूप में कार्य करते हैं। इसी प्रकार पाचन क्रिया को सम्पन्न करने के लिए आहार नाल के विभिन्न अंग तथा कुछ अन्य ग्रन्थियाँ परस्पर सम्बद्ध होकर पाचन तन्त्र के रूप में कार्य करते हैं। इस प्रकार से परस्पर सम्बद्ध होकर कार्य करने वाले अंगों की व्यवस्था को ही तन्त्र या संस्थान कहते हैं। हमारे शरीर में विभिन्न तन्त्र हैं, जो अपने-अपने कार्यों को सफलतापूर्वक करते रहते हैं। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि शरीर के विभिन्न तन्त्र आपस में सम्बद्ध रहते हैं तथा पारस्परिक सहयोग से सम्पूर्ण शरीर को चलाते हैं। हमारे शरीर के मुख्य तन्त्र या संस्थान निम्नलिखित हैं-
- कंकाल या अस्थि तन्त्र (Skeletal system);
- पेशी तन्त्र (Muscular system);
- पाचन तन्त्र (Digestive system);
- श्वसन तन्त्र (Respiratory system);
- रुधिर-परिसंचरण तन्त्र (Circulatory system);
- उत्सर्जन तन्त्र (Excretory system);
- तन्त्रिका तन्त्र (Nervous system);
- प्रजनन तन्त्र (Reproductive system);
- अन्तःस्रावी तन्त्र (Endocrine system)।
UP Board Class 11 Home Science Chapter 1 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
कोशिका से क्या आशय है?
उत्तर:
कोशिका प्राणियों के शरीर की सबसे छोटी संरचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई को कहते हैं।
प्रश्न 2.
शरीर की सबसे छोटी संरचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई को क्या कहते हैं?
उत्तर:
शरीर की सबसे छोटी संरचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई को कोशिका (cell) कहते हैं।
प्रश्न 3.
प्राणियों के शरीर में पायी जाने वाली कोशिकाओं को हम कैसे देख सकते हैं?
उत्तर:
प्राणियों के शरीर में पायी जाने वाली कोशिकाओं को हम सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देख सकते हैं।
प्रश्न 4.
क्लोरोफिल नामक पदार्थ किस वर्ग की कोशिकाओं में पाया जाता है?
उत्तर:
क्लोरोफिल नामक पदार्थ वनस्पति कोशिकाओं में पाया जाता है। .
प्रश्न 5.
कोशिका के सन्दर्भ में जीवद्रव्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कोशिका का मुख्य भाग जीवद्रव्य कहलाता है। यह अर्द्ध-पारदर्शक जैली के समान गाढ़ा, चिपचिपा तथा रंगहीन पदार्थ होता है। .
प्रश्न 6.
हमारे शरीर में कितने प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं?
उत्तर:
हमारे शरीर में छह प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं-
- आच्छादक कोशिकाएँ या उपकला कोशिकाएँ,
- पेशी कोशिकाएँ,
- रक्त कोशिकाएँ,
- अस्थि कोशिकाएँ,
- संयोजक कोशिकाएँ,
- तन्त्रिका कोशिकाएँ।
प्रश्न 7.
स्नायु तन्त्र की कोशिका का नाम लिखिए।
उत्तर:
स्नायु तन्त्र की कोशिका का नाम है-तन्त्रिका कोशिका अथवा स्नायु कोशिका (nervous cell)
प्रश्न 8.
जन्तु तथा पादप कोशिका में क्या समानता होती है? ‘
उत्तर:
जन्तु तथा पादप कोशिकाओं में मुख्य समानता यह है कि इन दोनों में केन्द्रक तथा जीवद्रव्य पाए जाते हैं।
प्रश्न 9.
एक ही प्रकार की अनेक कोशिकाओं के समूहीकरण से बनने वाली संरचना को क्या कहते हैं?
उत्तर:
ऊतक या तन्तु (tissue)
प्रश्न 10.
मानव शरीर में कितने प्रकार के ऊतक पाए जाते हैं? अथवा कार्य के आधार पर मानव ऊतकों के प्रकार दीजिए।
उत्तर:
मानव शरीर में कार्यों के आधार पर चार प्रकार के ऊतक पाए जाते हैं-
- उपकला ऊतक,
- संयोजी ऊतक,
- पेशी ऊतक,
- तन्त्रिका ऊतक।
प्रश्न 11.
पेशी ऊतक कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
पेशी ऊतक तीन प्रकार के होते हैं-
- रेखित या ऐच्छिक पेशी ऊतक,
- अरेखित या – अनैच्छिक पेशी ऊतक तथा
- हृद-पेशी ऊतक।
प्रश्न 12.
अनेक ऊतकों के परस्पर सम्बद्ध होने से बनने वाली संरचना को क्या कहते हैं?
उत्तर:
अनेक ऊतकों के परस्पर सम्बद्ध होने से बनने वाली संरचना को अंग (organ) कहते हैं जैसे-हृदय, यकृत, गुर्दे, हाथ, पैर, बाँह आदि।
प्रश्न 13.
शरीर के तन्त्र अथवा संस्थान से क्या आशय है?
उत्तर:
शरीर के किसी विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के लिए, शरीर को परस्पर सहयोग प्रदान करने वाले अनेक अंगों की व्यवस्था को तन्त्र अथवा संस्थान कहते हैं जैसे कि पाचन तन्त्र अथवा श्वसन तन्त्र।
प्रश्न 14.
मानव शरीर के मुख्य तन्त्र या संस्थान बताएँ।
उत्तर:
मानव शरीर के मुख्य तन्त्र या संस्थान हैं—पाचन तन्त्र, कंकाल तन्त्र, रक्त परिसंचरण तन्त्र, उत्सर्जन तन्त्र तथा प्रजनन तन्त्र।
UP Board Class 11 Home Science Chapter 1 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए
प्रश्न 1.
कोशिका के विषय में सत्य है-
(क) यह जीवित संरचना है
(ख) इन्हें केवल सूक्ष्मदर्शी यन्त्र द्वारा ही देखा जा सकता है
(ग) यह शरीर की संरचनात्मक तथा कार्यात्मक इकाई है
(घ) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं।
प्रश्न 2.
मानव शरीर की संरचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई है –
(क) ऊतक
(ख) कोशिका
(ग) अंग
(घ) तन्त्र या संस्थान।
उत्तर:
(ख) कोशिका।
प्रश्न 3.
वनस्पति तथा जन्तु कोशिकाओं में समान रूप से पाए जाते हैं –
(क) क्लोरोफिल नामक पदार्थ
(ख) ग्लाइकोजन
(ग) स्टार्च
(घ) केन्द्रक तथा जीवद्रव्य।
उत्तर:
(घ) केन्द्रक तथा जीवद्रव्य।
प्रश्न 4.
जन्तु कोशिकाओं के अन्तर्गत नहीं पाया जाता
(क) जीवद्रव्य
(ख) कोशिका भित्ति
(ग) माइटोकॉण्ड्रिया
(घ) केन्द्रका
उत्तर:
(ख) कोशिका भित्ति।
प्रश्न 5.
आच्छादक कोशिकाएँ पायी जाती हैं(क) शरीर की हड्डियों में
(ख) शरीर की पेशियों में
(ग) शरीर के रक्त में
(घ) शरीर की झिल्लियों में।
उत्तर:
(घ) शरीर की झिल्लियों में।
प्रश्न 6.
अस्थि कोशिकाओं का आकार होता है –
(क) गोल
(ख) पतला-लम्बा
(ग) चपटा
(घ) अनियमित।
उत्तर:
(घ) अनियमित।
प्रश्न 7.
अनेक कोशिकाओं के मिलने से बनने वाली रचना है –
(क) शरीर
(ख) तन्त्र
(ग) ऊतक
(घ) अंग।
उत्तर:
(ग) ऊतक।
प्रश्न 8.
ऊतकों का निर्माण होता है- .
(क) अपने आप से
(ख) पोषण से
(ग) कोशिकाओं के मिलने से
(घ) आकस्मिक रूप से।
उत्तर:
(ग) कोशिकाओं के मिलने से।
प्रश्न 9.
ऊतकों के परस्पर सम्बद्ध होने से बनने वाली संरचना को कहते हैं –
(क) हाथ
(ख) पैर
(ग) तन्त्र
(घ) अंग।
उत्तर:
(घ) अंग।
प्रश्न 10.
कुछ अंगों के व्यवस्थित ढंग से कार्य करने के परिणामस्वरूप विकसित होने वाली संरचना
को कहते हैं
(क) शरीर
(ख) स्नायविक रचना
(ग) तन्त्र या संस्थान
(घ) जीवित प्राणी।
उत्तर:
(ग) तन्त्र या संस्थान।