UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 16 समाजशास्त्र : एक परिचय (Sociology: An Introduction)
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 16 समाजशास्त्र : एक परिचय
UP Board Class 11 Home Science Chapter 16 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
समाजशास्त्र (Sociology) से आप क्या समझती हैं? इसकी विभिन्न परिभाषाएँ (Definitions) लिखिए तथा अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
समाजशास्त्र से तात्पर्य (Meaning of Sociology) –
परिचय-किसी भी विषय का व्यवस्थित अध्ययन करने से पूर्व, उस विषय की एक स्पष्ट एवं निश्चित परिभाषा निर्धारित कर लेनी चाहिए। समाजशास्त्र के अध्ययन के लिए भी इसके अर्थ एवं परिभाषा को जान लेना परम आवश्यक है। समाजशास्त्र एक नवविकसित विज्ञान है; अतः इसका अर्थ क्रमश: स्पष्ट एवं सुनिश्चित हो रहा है। यही कारण है कि इस विषय के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों में अभी तक मतैक्य नहीं है, परन्तु फिर भी अब लगभग समान रूप से यह स्वीकार किया जाने लगा है कि समाजशास्त्र वह विज्ञान है, जो मानवीय सम्बन्धों, सम्बन्धों के प्रकार, स्वरूप, क्रियाओं एवं घटनाओं का समाज के सन्दर्भ में वैज्ञानिक अध्ययन करता है।
समाजशास्त्र की विभिन्न परिभाषाएँ (Definitions of Sociology) –
समाजशास्त्र की विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं –
- रॉस के अनुसार-“समाजशास्त्र, सामाजिक तथ्यों का ज्ञान है।”
- गिडिंग्स के अनुसार -“विकास क्रम में सामूहिक रूप से लगे हुए भौतिक, जैविक तथा मानसिक कारणों द्वारा हुए समाज के जन्म, विकास, ढाँचे और क्रियाओं का वर्णन समाजशास्त्र है।”
- मैकाइवर और पेज के अनुसार-“समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के विषय में है। सामाजिक सम्बन्धों के इस जाल को हम ‘समाज’ कहते हैं।”
- जिन्सबर्ग के अनुसार-“समाजशास्त्र को समाज के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”
- एबल के अनुसार-“समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों, उनके प्रकारों, उनके स्वरूपों, जो कुछ उनको प्रभावित करता है और जिसको वे प्रभावित करते हैं, उनका वैज्ञानिक अध्ययन है।” ।
- मैक्स वेबर के अनुसार-“समाजशास्त्र वह विज्ञान है जोकि सामाजिक क्रियाओं की अर्थपूर्ण व्याख्या करते हुए समझाने की कोशिश करता है।”
- बेनेट और ट्यूमिन के अनुसार-“समाजशास्त्र सामाजिक जीवन के ढाँचे और कार्यों का विज्ञान है।”
- ऑगबर्न तथा निमकॉफ के अनुसार-“समाजशास्त्र सामाजिक जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन है।”
- ग्रीन के अनुसार-“समाजशास्त्र संश्लेषणात्मक और सामान्यीकरण करने वाला वह विज्ञान है, जो मनुष्यों और सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है।”
- दुर्थीम के अनुसार-“समाजशास्त्र सामूहिक प्रतिनिधियों का विज्ञान है।”
समाजशास्त्र की परिभाषाओं की सामान्य विवेचना (General Discussion of Definitions of Sociology) –
समाजशास्त्र की उपर्युक्त विभिन्न परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि समाजशास्त्र की परिभाषाओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –
(क) प्रथम भाग के अन्तर्गत उन समाजशास्त्रियों की परिभाषाएँ आती हैं, जो समाजशास्त्र की परिधि में मानव का सम्पूर्ण जीवन ले आते हैं।
(ख) दूसरे वर्ग के अन्तर्गत वे परिभाषाएँ आती हैं जिनमें विद्वान समाजशास्त्र को मानवीय सम्बन्धों के विशेष पक्ष तक ही सीमित रखना चाहते हैं।
यदि उपर्युक्त दोनों भागों या वर्गों की परिभाषाओं का अध्ययन करें तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वास्तव में समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है, जिसमें हम सामाजिक. जीवन, सामाजिक सम्बन्धों, कार्यों तथा समाज के स्वरूप का व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं।
प्रश्न 2.
समाजशास्त्र (Sociology) के विषय-क्षेत्र (Scope) की विवेचना कीजिए।
उत्तरः
समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र (Scope of Sociology) –
विषय-क्षेत्र का तात्पर्य एक ऐसी सम्भावित सीमा से होता है जिसके अन्तर्गत ही किसी ज्ञान को विकसित किया जाता है। यद्यपि सभी विद्वान यह मानते हैं कि समाजशास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन होना चाहिए, तथापि इसी प्रश्न को लेकर समाजशास्त्र के अध्ययन-क्षेत्र के विषय में विद्वानों में मतभेद रहा है। इस विवाद ने मुख्य रूप से दो सम्प्रदायों को जन्म दिया है। एक सम्प्रदाय को हम विशेषात्मक अथवा स्वरूपात्मक सम्प्रदाय (Specialistic or Formal School) कहते हैं, जिसके अनुसार समाजशास्त्र एक विशेष सामाजिक विज्ञान है।
दूसरा सम्प्रदाय समाजशास्त्र के विषय-क्षेत्र को व्यापक बनाने के पक्ष में है, इसे हम समन्वयात्मक सम्प्रदाय (Synthetic School) कहते हैं। इसके अनुसार, समाजशास्त्र सामान्य विज्ञान है, जिसमें सभी प्रकार के सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाना चाहिए। इन दोनों सम्प्रदायों का दृष्टिकोण समझने से समाजशास्त्र के विषय-क्षेत्र को सरलतापूर्वक समझा जा सकता है जो निम्न प्रकार है –
(1) विशेषात्मक सम्प्रदाय (Specialistic School) –
इस विचारधारा के प्रमुख समर्थक जॉर्ज सिमेल, वीरकान्त, वॉन वीज, मैक्स वेबर, रॉस, पार्क, बर्गेज तथा टानीज आदि हैं। इन विद्वानों के अनुसार समाजशास्त्र एक विशेष विज्ञान के रूप में है; अतः समाजशास्त्र के विषय-क्षेत्र के सम्बन्ध में इस सम्प्रदाय के मानने वाले निम्नलिखित विशेषताएँ बतलाते हैं –
- इस सम्प्रदाय के समर्थकों के अनुसार समाजशास्त्र का क्षेत्र सामाजिक सम्बन्धों के स्वरूपों का अध्ययन करना होना चाहिए।
- समाज के विभिन्न पक्षों का अध्ययन विभिन्न सामाजिक विज्ञान; जैसे राजनीतिशास्त्र, इतिहास,अर्थशास्त्र आदि करते हैं; अतः समाजशास्त्र में इनके अध्ययन की आवश्यकता नहीं।
- समाजशास्त्र का एक विशिष्ट निश्चित क्षेत्र होना चाहिए।
- समाजशास्त्र एक स्वतन्त्र विज्ञान है।
- समाजशास्त्र एक विश्लेषणात्मक विज्ञान है।
समाजशास्त्र के विशेषात्मक सम्प्रदाय के विचारों को समझने के लिए प्रमुख समाजशास्त्रियों की विचारधाराएँ – इस सम्प्रदाय के प्रमुख विद्वानों के विचार इस प्रकार हैं –
(अ) जॉर्ज सिमेल के विचार-स्वरूपात्मक सम्प्रदाय के प्रमुख समर्थक जॉर्ज सिमेल (George Simmel) ही हैं। जॉर्ज सिमेल ने स्पष्ट किया है कि समाजशास्त्र का सम्बन्ध सामाजिक सम्बन्धों के स्वरूपों के अध्ययन से है। समाजशास्त्र विशिष्ट विज्ञान है तथा वह केवल सामाजिक सम्बन्धों के स्वरूपों का ही अध्ययन करता है। उसके अनुसार सामाजिक सम्बन्धों की अन्तर्वस्तु का अध्ययन अन्य विशिष्ट सामाजिक विज्ञानों के अन्तर्गत किया जाता है। सिमेल ने मुख्य रूप से प्रतिस्पर्धा, प्रभुत्व, अनुकरण, श्रम-विभाजन तथा अधीनता आदि सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन किया है। सिमेल के अनुसार समाजशास्त्र को अन्तर्वस्तु से कोई वास्ता नहीं, उसे तो केवल सामाजिक सम्बन्धों के स्वरूप का अध्ययन करना है।
(ब) वीरकान्त के विचार-जर्मन समाजशास्त्री वीरकान्त के अनुसार, समाजशास्त्र का कार्य समाज के उन तत्त्वों का अन्वेषण करना है, जिनकी उत्पत्ति सामाजिक सम्बन्धों के कारण होती है; उदाहरण के लिए—प्रेम, द्वेष, लज्जा, सहकारिता आदि। ये वे तत्त्व हैं, जिनसे मानसिक एकता उत्पन्न होती है। अन्य शब्दों में, ये सम्बन्धित व्यक्तियों को एक-दूसरे से बाँधते हैं। समाजशास्त्र में इन मूल तत्त्वों या सम्बन्धों का ही अध्ययन किया जाता है। इनके अनुसार व्यक्तियों और व्यक्ति-समूहों को बाँधने वाले मानसिक बन्धनों या तत्त्वों का अध्ययन समाजशास्त्र का विषय है। इस प्रकार समाजशास्त्र का मुख्य कार्य मनुष्यों के मध्य सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने वाले तत्त्वों का अध्ययन करना है।
(स) मैक्स वेबर के विचार-मैक्स वेबर (Max Weber) के अनुसार, समाजशास्त्र सामाजिक क्रिया को समझने और व्याख्या करने में सहायक होता है। उनके अनुसार सामाजिक व्यवहार दो व्यक्तियों के मध्य तब होता है जबकि वे एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं और परस्पर कोई व्यवहार या अन्त:क्रिया करते हैं। इस पर भी यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक व्यवहार सामाजिक व्यवहार ही हो। उदाहरण के लिए-दो व्यक्ति साइकिल से टकरा जाते हैं, इस प्रकार का टकराना भौतिक घटना है, परन्तु उन व्यक्तियों में से एक का दूसरे की चोट के लिए खेद व्यक्त करना और क्षमा माँगना एक सामाजिक क्रिया है। इस प्रकार वेबर के अनुसार समाजशास्त्र का कार्य सामाजिक क्रिया की व्याख्या करना है।
विशेषात्मक सम्प्रदाय की आलोचना-विशेषात्मक सम्प्रदाय की फ्रेंच तथा ब्रिटिश समाजशास्त्रियों ने निम्नलिखित आलोचना की है –
- समाजशास्त्र, सामाजिक सम्बन्धों के सूक्ष्म तथा अमूर्त स्वरूपों के अध्ययन तक सीमित नहीं है।
- इस सम्प्रदाय के समर्थकों के अनुसार स्वरूप और अन्तर्वस्तु एक-दूसरे से अलग हैं, परन्तु यथार्थ में सामाजिक सम्बन्धों में स्वरूप और अन्तर्वस्तु को अलग नहीं किया जा सकता।
- इस सम्प्रदाय के समर्थकों का यह कहना सत्य प्रतीत नहीं होता कि समाजशास्त्र से ही सामाजिक सम्बन्धों के रूपों का अध्ययन किया जाता है।
- यह विचारधारा समाज के सदस्यों को कम महत्त्व देती है।
- इस सम्प्रदाय ने समाजशास्त्र के क्षेत्र को अत्यधिक संकुचित कर दिया है।
(2) समन्वयात्मक सम्प्रदाय (Synthetic School) –
इस सम्प्रदाय के प्रमुख समर्थक फ्रेंच तथा ब्रिटिश समाजशास्त्री हैं। इस सम्प्रदाय के अनुसार समाजशास्त्र को अपना क्षेत्र सीमित व संकुचित न बनाकर विस्तृत तथा व्यापक बनाना चाहिए। इस. सम्प्रदाय के मुख्य समर्थक हैं-दुर्थीम, हॉबहाउस, सोरोकिन, जिन्सबर्ग तथा मोटवानी।
इस सम्प्रदाय के समर्थकों के अनुसार समाजशास्त्र ‘विज्ञानों का विज्ञान’ है। सभी विज्ञान उसके क्षेत्र में आ जाते हैं और वह सभी को अपने में समन्वित करता है। सामाजिक जीवन के समस्त भाग परस्पर सम्बन्धित हैं, इस कारण किसी एक पक्ष का अध्ययन करने से सम्पूर्ण बात को हम नहीं समझ सकते। ऐसी दशा में आवश्यक है कि हम समाजशास्त्र के अन्तर्गत सम्पूर्ण सामाजिक जीवन का व्यवस्थित अध्ययन करें। केवल सूक्ष्म सिद्धान्तों का अध्ययन करने से काम नहीं चलेगा। मोटवानी के अनुसार—“समाजशास्त्र जीवन को पूरी तरह और एक समग्र रूप में देखने का प्रयास करता है।” इस प्रकार समाजशास्त्र के क्षेत्र के अन्दर समाज के सामाजिक सम्बन्धों का सामान्य अध्ययन होना चाहिए।
समाजशास्त्र के इस सम्प्रदाय के विचारों को समझने के लिए प्रमुख समाजशास्त्रियों की विचारधाराएँ –
इस सम्प्रदाय के प्रमुख समर्थक दुर्थीम हैं जिन्होंने समाजशास्त्र को तीन भागों में विभाजित किया है –
- सामाजिक रचनाशास्त्र-इसके अन्तर्गत वे समस्त विषय आ जाते हैं जिनका आधार भौगोलिक होता है; जैसे-जनसंख्या का घनत्व और उसका वितरण।
- सामाजिक क्रियाशास्त्र सामाजिक क्रियाशास्त्र में उन प्रक्रियाओं और व्यवस्थाओं का अध्ययन किया जाता है, जो समाज के अस्तित्व और सत्ता को बनाए रखने में सहायक होती हैं। ये प्रक्रियाएँ धार्मिक व राजनीतिक होती हैं।
- सामान्य समाजशास्त्र-इसके अन्तर्गत विभिन्न सामाजिक विज्ञानों के सामान्य सिद्धान्त तथा नियमों की खोज की जाती है, किसी विशेष पक्ष पर बल नहीं दिया जाता।
दुर्थीम के अनुसार प्रत्येक समाज में कुछ विचार, धारणाएँ एवं भावनाएँ होती हैं, जिनका पालन सम्बन्धित समाज के अधिकांश सदस्य करते हैं। ये विचार एवं धारणाएँ सम्बन्धित समाज के सामाजिक जीवन का सामूहिक प्रतिनिधित्व करती हैं। दुर्थीम के अनुसार समाजशास्त्र का कार्य इसी सामूहिक प्रतिनिधित्व का अध्ययन करना है। इस स्थिति में स्पष्ट है कि समाजशास्त्र को एक सामान्य विज्ञान होना चाहिए।
समन्वयात्मक सम्प्रदाय की आलोचना–समाजशास्त्र के समन्वयात्मक सम्प्रदाय की भी विभिन्न आधारों पर आलोचना की गई है। सामान्य रूप से कहा जाता है कि यदि समन्वयात्मक सम्प्रदाय के विचारों को मान लिया जाए तो उस स्थिति में समाजशास्त्र का महत्त्व ही समाप्त हो जाएगा। समाजशास्त्र उन्हीं तथ्यों का दोबारा अध्ययन करेगा, जिनका अध्ययन पहले ही विभिन्न विज्ञानों द्वारा हो चुका होगा। इसके अतिरिक्त, समाजशास्त्र को सामान्य विज्ञान स्वीकार कर लेने से इसका क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत हो जाएगा, जिसका व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक अध्ययन कर पाना कठिन हो जाएगा।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि समाजशास्त्र की विषय-वस्तु के समुचित अध्ययन के लिए समन्वयात्मक तथा विशेषात्मक दोनों दृष्टिकोणों के समन्वय की आवश्यकता है। केवल एक ही दृष्टिकोण को अपनाने से हमारी समस्याओं का हल नहीं हो पाएगा। अन्य शब्दों में, समाजशास्त्र के पूर्ण अध्ययन के लिए विशिष्ट व सामान्य दोनों पक्षों का अध्ययन आवश्यक है। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो समाजशास्त्र को एक जटिल विज्ञान के रूप में परिणत कर देंगे। यथार्थ में विशेषात्मक और समन्वयात्मक विचारधाराएँ एक-दूसरे की विरोधी नहीं वरन् पूरक हैं।
प्रश्न 3.
गृहविज्ञान विषय में समाजशास्त्रीय ज्ञान का समावेश होना क्यों आवश्यक है? विस्तारपूर्वक लिखिए।
अथवा
गृहविज्ञान की छात्राओं के लिए समाजशास्त्रीय ज्ञान का क्या महत्त्व है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
मुख्य रूप से बालिकाओं को पढ़ाया जाने वाला गृहविज्ञान (Home Science) विषय अपने आप में कोई स्वतन्त्र विषय नहीं है। गृहविज्ञान का संगठन विभिन्न सामाजिक एवं भौतिक विज्ञानों के कुछ ऐसे अंशों के समन्वय से हुआ है, जिनका ज्ञान घर तथा सामाजिक परिवेश के सामान्य क्रिया-कलापों में भाग लेने तथा पारिवारिक जीवन की दैनिक समस्याओं के समाधान हेतु आवश्यक है। इस स्थिति में गृहविज्ञान के अन्तर्गत विभिन्न विषयों का व्यावहारिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है। अन्य विषयों के साथ-साथ गृहविज्ञान के अन्तर्गत समाजशास्त्र का, विशेष रूप से पारिवारिक समाजशास्त्र का भी अध्ययन किया जाता है। गृहविज्ञान के दृष्टिकोण से समाजशास्त्रीय ज्ञान का विशेष महत्त्व है।
गृहविज्ञान के लिए समाजशास्त्रीय ज्ञान का महत्त्व (Importance of Sociological Knowledge to Home Science) –
गृहविज्ञान एक व्यावहारिक विज्ञान है, जिसके अध्ययन का उद्देश्य व्यक्ति एवं परिवार के जीवन को अधिक उन्नत, समृद्ध, सरल एवं विभिन्न प्रकार की समस्याओं से मुक्त बनाना है। व्यक्ति एवं परिवार का जीवन समाज में ही व्यतीत होता है। अतः समाज एवं समस्त सामाजिक परिस्थितियों का व्यक्ति एवं परिवार के जीवन पर प्रभाव पड़ना नितान्त अनिवार्य है।
सामाजिक मान्यताएँ, प्रथाएँ तथा समस्याएँ निश्चित रूप से व्यक्ति एवं परिवार के जीवन को प्रभावित करती हैं। इस स्थिति में इन समाजशास्त्रीय तथ्यों की समुचित जानकारी आवश्यक है। इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ही गृहविज्ञान के अन्तर्गत समाजशास्त्रीय ज्ञान का समावेश किया जाता है। अब प्रश्न उठता है कि समाजशास्त्रीय ज्ञान का गृहविज्ञान के सन्दर्भ में क्या महत्त्व है? अध्ययन की सुविधा के लिए इस महत्त्व को दो वर्गों में बाँटा जा सकता हैप्रथम वर्ग में गृह के सन्दर्भ में समाजशास्त्रीय ज्ञान के महत्त्व का वर्णन किया जाएगा तथा द्वितीय वर्ग में समाज के सन्दर्भ में समाजशास्त्रीय ज्ञान के महत्त्व को स्पष्ट किया जाएगा।
(1) गृह के सन्दर्भ में समाजशास्त्रीय ज्ञान का महत्त्व –
(i) समाजशास्त्र उत्तम पारिवारिक जीवन-यापन में सहायक है-समाजशास्त्र के अन्तर्गत विवाह एवं परिवार से सम्बन्धित सम्पूर्ण तथ्यों का सैद्धान्तिक अध्ययन किया जाता है। विवाह के नियमों, उद्देश्यों तथा समस्याओं आदि का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। इसी प्रकार ‘परिवार’ नामकं सामाजिक संस्था का भी विस्तृत अध्ययन समाजशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है। समाजशास्त्र से प्राप्त होने वाली यह सम्पूर्ण जानकारी उत्तम पारिवारिक जीवन यापन करने में सहायक सिद्ध होती है। पारिवारिक जीवन के संचालन में स्त्री अर्थात् गृहिणी की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। आज की छात्राएँ ही भावी गृहिणियाँ हैं, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए गृहविज्ञान विषय में समाजशास्त्रीय ज्ञान का समुचित समावेश किया जाता है।
(ii) सामाजिक स्थिति के निर्धारण में सहायक-समाजशास्त्र ही ‘सामाजिक स्थिति’ के आधारों, वर्गों तथा सम्बद्ध भूमिकाओं का अध्ययन करता है। सामान्य रूप से पारम्परिक समाजों में व्यक्ति की स्थिति उसके परिवार के सन्दर्भ में ही निर्धारित होती है। इससे भिन्न, आधुनिक समाजों में व्यक्ति के व्यक्तिगत गुणों, क्षमताओं एवं उपलब्धियों के आधार पर ही उसकी सामाजिक स्थिति निर्धारित की जाती है। गृहविज्ञान के अन्तर्गत जब इन समाजशास्त्रीय तथ्यों का अध्ययन कर लिया जाता है तो गृहिणियाँ अपनी तथा अपने परिवार की सामाजिक स्थिति के प्रति जागरूक रहती हैं। वे अपनी सामाजिक स्थिति को उन्नत बनाने के लिए भी आवश्यक प्रयास कर सकती हैं।
(iii) स्त्रियों के लिए समाजशास्त्रीय ज्ञान का महत्त्व-परिवार में स्त्रियों का क्या स्थान है? स्त्रियों के पारिवारिक अधिकार क्या हैं? पारिवारिक सम्पत्ति में स्त्रियों का क्या अधिकार है? स्त्रियों के शोषण एवं उत्पीड़न के क्या कारण हैं तथा उन पर रोक लगाने वाले कानून कौन-कौन से हैं? इस प्रकार के अनेक तथ्यों की व्यवस्थित जानकारी समाजशास्त्र से प्राप्त होती है। यदि गृहविज्ञान के अन्तर्गत इन उपयोगी समाजशास्त्रीय तथ्यों का समावेश कर दिया जाता है तो आज की छात्राएँ अपने भावी गृहस्थ जीवन में लाभान्वित होती हैं। वे अनेक प्रकार के शोषण से बच जाती हैं तथा अपने अधिकारों की माँग कर सकती हैं। इस दृष्टिकोण से कहा जा सकता है कि स्त्रियों के लिए समाजशास्त्रीय ज्ञान का विशेष महत्त्व है।
(2) समाज के सन्दर्भ में समाजशास्त्रीय ज्ञान का महत्त्व –
आधुनिक युग में स्त्रियों का कार्य-क्षेत्र परिवार तक ही सीमित नहीं रह गया है। अब स्त्रियाँ विस्तृत समाज में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जीवन के प्रायः सभी क्षेत्रों में स्त्रियाँ पुरुषों के समान ही भूमिका निभाती हैं। इस स्थिति में अनिवार्य है कि स्त्रियों को सामाजिक विषयों की समुचित जानकारी हो। यही कारण है कि गृहविज्ञान में समाजशास्त्रीय ज्ञान का समावेश किया जाता है। समाज के सन्दर्भ में समाजशास्त्रीय ज्ञान के महत्त्व का संक्षिप्त विवरण अग्रलिखित है –
(i) सामाजिक नियोजन के लिए उपयोगी-वर्तमान युग नियोजन का युग है। सामाजिक प्रगति एवं विकास के लिए प्रत्येक क्षेत्र में नियोजन की आवश्यकता अनुभव की जा रही है। इस सामाजिक नियोजन में स्त्रियों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उदाहरण के लिए-मातृत्व एवं बाल-कल्याण, पिछड़े वर्गों का कल्याण, विकलांगों का पुनर्वास, विस्थापितों का पुनर्वास, श्रमिकों का कल्याण, जन-स्वास्थ्य तथा जनशिक्षा एवं जनसंख्या नियन्त्रण आदि अनेक ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें नियोजन की अत्यधिक आवश्यकता है तथा इन क्षेत्रों में स्त्रियों द्वारा भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए गृहविज्ञान के अन्तर्गत सम्बद्ध समाजशास्त्रीय ज्ञान को सम्मिलित किया जाता है।
(ii) सामाजिक समस्याओं के समाधान में सहायक-प्रत्येक गृहिणी अपने परिवार तथा समाज से सम्बद्ध समस्याओं से किसी-न-किसी रूप में अवश्य ही प्रभावित होती है। सामाजिक समस्याओं का समुचित समाधान एवं निराकरण तभी सम्भव है जबकि समाज की महिलाएँ भी इस दिशा में प्रयास करें। सामाजिक समस्याओं के वास्तविक स्वरूप, उनके कारणों तथा निवारण के उपायों का व्यवस्थित अध्ययन समाजशास्त्र के अन्तर्गत ही किया जाता है।
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही समाजशास्त्रीय ज्ञान का समावेश गृहविज्ञान विषय में किया जाता है। इस रूप में सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करने के उपरान्त छात्राएँ अपने भावी जीवन में सामाजिक समस्याओं के समाधान एवं उन्मूलन में उल्लेखनीय योगदान दे सकती हैं। हमारे समाज की कुछ उल्लेखनीय सामाजिक समस्याएँ हैं—दहेज प्रथा, छुआछूत, जाति प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह तथा बेमेल विवाह आदि। इसी प्रकार बालक-बालिका भेद तथा लड़कियों का तिरस्कार भी एक गम्भीर सामाजिक समस्या है। इन समस्याओं से मुक्ति के लिए समाजशास्त्रीय ज्ञान आवश्यक है।
(iii) सामाजिक सहिष्णुता की वृद्धि में सहायक-पारम्परिक रूप से ही भारतीय समाज अनेक प्रकार की भिन्नताओं से युक्त रहा है। हमारे समाज में धर्म, जाति, प्रजाति तथा भाषा आदि के दृष्टिकोण से पर्याप्त विविधता है। इस प्रकार की विविधता के परिणामस्वरूप हमारे समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार के विरोध भी विकसित होते रहते हैं जो सामाजिक तनाव को भी जन्म दे सकते हैं तथा सामाजिक दूरी को भी बढ़ावा देते हैं।
समाजशास्त्र का अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि वास्तव में हमारे समाज एवं संस्कृति में, विविधता में एकता है। बाहरी रूप से दिखाई देने वाली भिन्नता के पीछे एक मौलिक एकता निहित है। इसके साथ-साथ समाजशास्त्रीय ज्ञान से स्पष्ट होता है कि सामाजिक भिन्नता का आशय ऊँच-नीच या भेदभाव नहीं है। इस प्रकार के समाजशास्त्रीय ज्ञान को प्राप्त करके छात्र-छात्राओं में सामाजिक सहिष्णुता का विकास होता है।
उपर्युक्त विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि गृहविज्ञान की छात्राओं को समाजशास्त्रीय ज्ञान प्रदान करना नितान्त आवश्यक है। यह ज्ञान उनके, उनके परिवार के तथा सम्पूर्ण समाज के जीवन को उन्नत एवं समस्यामुक्त बनाने में सहायक हो सकता है।
UP Board Class 11 Home Science Chapter 16 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
समाजशास्त्र की प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
समाजशास्त्र की प्रकृति समाजशास्त्र एक विज्ञान है। एक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र की विशेषताओं का उल्लेख करके हम समाजशास्त्र की प्रकृति को स्पष्ट कर सकते हैं। सर्वप्रथम हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है। समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों का व्यवस्थित अध्ययन करता है। इस प्रकार समाजशास्त्र प्राकृतिक विज्ञानों से भिन्न है। समाजशास्त्र की प्रकृति को स्पष्ट करने वाला दूसरा तथ्य यह है कि समाजशास्त्र आदर्शात्मक विज्ञान नहीं है, यह एक तथ्यात्मक विज्ञान है।
समाजशास्त्र क्या है?’ का अध्ययन करता है, न कि ‘क्या होना चाहिए’ का। समाजशास्त्र अमूर्त सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करने के कारण एक अमूर्त विज्ञान है। समाजशास्त्र एक व्यावहारिक विज्ञान है; अर्थात् यह विशुद्ध विज्ञान । नहीं है। समाजशास्त्र की एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता यह है कि यह विज्ञान एक सामान्य विज्ञान है; अर्थात् यह विशिष्ट विज्ञान नहीं है।
प्रश्न 2.
गृहविज्ञान के अन्तर्गत समाजशास्त्रीय अध्ययन क्यों किया जाता है?
उत्तरः
गृहविज्ञान के अन्तर्गत समाजशास्त्रीय अध्ययन –
गृहविज्ञान एक व्यावहारिक महत्त्व का विज्ञान है। गृहविज्ञान के अन्तर्गत उन समस्त विषयों का अध्ययन किया जाता है, जो उत्तम जीवन के लिए उपयोगी होते हैं। जहाँ तक समाजशास्त्र के अध्ययन का प्रश्न है, यह अध्ययन अनिवार्य रूप से उत्तम जीवन व्यतीत करने में सहायक होता है। समाजशास्त्र का ज्ञान उत्तम पारिवारिक जीवनयापन में सहायक होता है। इसके ज्ञान से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति की समुचित जानकारी प्राप्त की जा सकती है। समाजशास्त्र का ज्ञान महिलाओं को उनके पारिवारिक एवं सामाजिक अधिकारों की उचित जानकारी प्रदान करता है।
इस दृष्टिकोण से गृहविज्ञान के अन्तर्गत समाजशास्त्र का अध्ययन करना आवश्यक माना जाता है। इसके अतिरिक्त समाजशास्त्र के अध्ययन से बालिकाओं को विभिन्न सामाजिक समस्याओं के विषय में तटस्थ ज्ञान की प्राप्ति होती है तथा इस ज्ञान से सामाजिक सहिष्णुता में भी वृद्धि होती है। इस दृष्टिकोण से भी गृहविज्ञान के अन्तर्गत समाजशास्त्र का अध्ययन किया जाता है।
UP Board Class 11 Home Science Chapter 16 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
समाज की इकाई क्या है?
उत्तरः
‘परिवार’ समाज की इकाई है।
प्रश्न 2.
समाजशास्त्र की मैकाइवर तथा पेज द्वारा प्रतिपादित परिभाषा लिखिए।
उत्तरः
“समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के विषय में है। सामाजिक सम्बन्धों के इस जाल को हम समाज कहते हैं।”
प्रश्न 3.
समाजशास्त्र के क्षेत्र सम्बन्धी दो प्रमुख सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं?
उत्तरः
समाजशास्त्र के क्षेत्र सम्बन्धी दो मुख्य सम्प्रदाय हैं –
- विशेषात्मक अथवा स्वरूपात्मक सम्प्रदाय तथा
- समन्वयात्मक सम्प्रदाय।
प्रश्न 4.
समाजशास्त्र के विशेषात्मक सम्प्रदाय के मुख्य समर्थक कौन हैं?
उत्तरः
समाजशास्त्र के विशेषात्मक सम्प्रदाय के मुख्य समर्थक हैं—जॉर्ज सिमेल, वीरकान्त, वॉन वीज, मैक्स वेबर, रॉस, पार्क, बर्गेज तथा टानीज।
प्रश्न 5.
समाजशास्त्र के समन्वयात्मक सम्प्रदाय के प्रमुख समर्थक कौन हैं?
उत्तरः
समाजशास्त्र के समन्वयात्मक सम्प्रदाय के प्रमुख समर्थक हैं—दुर्थीम, हॉबहाउस, सोरोकिन, जिन्सबर्ग तथा मोटवानी।
प्रश्न 6.
गृहविज्ञान के अध्ययन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तरः
गृहविज्ञान के अध्ययन का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति एवं परिवार के जीवन को अधिक उन्नत, समृद्ध, सरल एवं विभिन्न प्रकार की समस्याओं से मुक्त बनाना है।
प्रश्न 7.
पारिवारिक जीवन के लिए समाजशास्त्र का ज्ञान क्यों महत्त्वपूर्ण माना जाता है?
उत्तरः
पारिवारिक जीवन के लिए समाजशास्त्र का ज्ञान उत्तम जीवन यापन करने में सहायक सिद्ध होता है।
प्रश्न 8.
स्त्रियों के लिए समाजशास्त्र का ज्ञान क्यों उपयोगी माना जाता है?
उत्तरः
समाजशास्त्र का ज्ञान स्त्रियों को उनके पारिवारिक अधिकारों से अवगत कराने के कारण उपयोगी माना जाता है।
प्रश्न 9.
व्यक्ति का समाज के प्रति क्या कर्त्तव्य होता है?
उत्तरः
व्यक्ति का समाज के प्रति कर्त्तव्य है—विवाह करना, परिवार स्थापित करना तथा सम्पूर्ण समाज की सुख-समृद्धि में आवश्यक योगदान प्रदान करना।
UP Board Class 11 Home Science Chapter 16 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए –
1. मनुष्य –
(क) एकान्तप्रिय प्राणी है
(ख) सामाजिक प्राणी है
(ग) असामाजिक प्राणी है
(घ) बुद्धिहीन प्राणी है।
उत्तरः
(ख) सामाजिक प्राणी है।
2. समाज की इकाई है –
(क) स्कूल
(ख) परिवार
(ग) समुदाय
(घ) घर।
उत्तरः
(ख) परिवार।
3. “समाजशास्त्र सामाजिक जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन है।” यह कथन किसका है –
(क) मैकाइवर तथा पेज
(ख) ऑगबर्न तथा निमकॉफ
(ग) ग्रीन
(घ) दुर्थीम।
उत्तरः
(ख) ऑगबर्न तथा निमकॉफ।
4. समाजशास्त्र के स्वरूपात्मक सम्प्रदाय के मुख्य समर्थक हैं
(क) जॉर्ज सिमेल
(ख) दुर्थीम
(ग) सोरोकिन
(घ) मोटवानी।
उत्तरः
(क) जॉर्ज सिमेल।
5. समाजशास्त्र के समन्वयात्मक सम्प्रदाय के मुख्य समर्थक हैं –
(क) दुर्थीम
(ख) जॉर्ज सिमेल
(ग) मैक्स वेबर
(घ) वीरकान्त।
उत्तरः
(क) दुर्थीम।
6. गृह के सन्दर्भ में समाजशास्त्रीय ज्ञान का महत्त्व है –
(क) उत्तम पारिवारिक जीवन-यापन में सहायक
(ख) सामाजिक स्थिति के निर्धारण में सहायक
(ग) स्त्रियों के लिए उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण
(घ) उपर्युक्त सभी महत्त्व।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी महत्त्व।
7. समाज के सन्दर्भ में समाजशास्त्रीय ज्ञान का महत्त्व है –
(क) सामाजिक नियोजन के लिए उपयोगी
(ख) सामाजिक समस्याओं के समाधान में सहायक
(ग) सामाजिक सहिष्णुता की वृद्धि में सहायक
(घ) उपर्युक्त सभी महत्त्व।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी महत्त्व।