UP Board Solutions for Class 11 Geography: Indian Physical Environment Chapter 3 Drainage System

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Indian Physical Environment Chapter 3 Drainage System (अपवाह तंत्र)

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर |

प्रश्न 1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए.
(i) निम्नलिखित में से कौन-सी नदी बंगाल का शोक के नाम से जानी जाती थी?
(क) गंडक
(ख) कोसी
(ग) सोन
(घ) दामोदर
उत्तर-(घ) दामोदर।।

(ii) निम्नलिखित में से किस नदी की द्रोणी भारत में सबसे बड़ी है?
(क) सिन्धु
(ख) ब्रह्मपुत्र
(ग) गंगा
(घ) कृष्णा
उत्तर-(ग) गंगा।

(iii) निम्नलिखित में से कौन-सी नदी पंचनद में शामिल नहीं है?
(क) रावी |
(ख) सिन्धु
(ग) चेनाब
(घ) झेलम
उत्तर-(ख) सिन्धु।

(iv) निम्नलिखित में से कौन-सी नदी पंचनद भ्रंश घाटी में बहती है?
(क) सोन
(ख) यमुना ।
(ग) नर्मदा
(घ) लूनी
उत्तर-(ग) गर्मदा।।

(v) निम्नलिखित में से कौन-सा स्थान अलकनन्दा व भागीरथी का संगम स्थल है?
(क) विष्णुप्रयाग
(ख) रुद्रप्रयाग
(ग) कर्णप्रयाग
(घ) देवप्रयाग
उत्तर-(घ) देवप्रयाग।

प्रश्न 2. निम्न में अन्तर स्पष्ट करें
(i) नदी द्रोणी और जल-संभर,
(ii) वृक्षाकार और जालीनुमा अपवाह प्रारूप,
(iii) अपकेन्द्रीय और अभिकेन्द्रीय अपवाह प्रारूप,
(iv) डेल्टा और ज्वारनदमुख।
उत्तर-
(i) नदी द्रोणी और जल-संभर में अन्तर-बड़ी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र को नदी द्रोणी कहते हैं, जबकि छोटी नदियों व नालों द्वारा अपवाहित क्षेत्र जल-संभर कहलाता है। वास्तव में नदी द्रोणी का आकार बड़ा होता है तथा जल-संभर का आकार छोटा।

(ii) वृक्षाकार और जालीनुमा अपवाह प्रारूप में अन्तर–वृक्षाकार अपवाह क्षेत्र में नदी अपवाह प्रतिरूप वृक्षाकार आकृति में होता है। इस प्रकार के नदी अपवाह में एक मुख्य नदी धारा से विभिन्न शाखाओं में उपधाराएँ प्रवाहित होती हैं। जालीनुमा अपवाह प्रारूप में प्राथमिक सहायक नदियाँ समानान्तर एवं गौण शाखाएँ समकोण पर काटती हुई प्रवाहित होती हैं।

(iii) अपकेन्द्रीय और अभिकेन्द्रीय अपवाह प्रारूप में अन्तर-जब किसी उच्च भाग से नदियों का प्रवाह चारों ओर हो तो उसे अपकेन्द्रीय या अरीय अपवाह प्रारूप कहते हैं। ऐसी प्रणालियाँ किसी ज्वालामुखी पर्वत पर गुम्बद पर या उच्च टीले पर विकसित होती हैं।

जब किसी भू-भाग में ऐसा क्षेत्र पाया जाए जो चारों ओर से ऊँचा हो किम्तु बीच में निचला हो तो नदियाँ चारों ओर से बहकर मध्य भाग की ओर आती हैं अर्थात् नदियाँ किसी झील या दलदल में समाप्त हो जाती हैं। इस प्रकार की नदी प्रणाली को अभिकेन्द्रीय अपवाह कहा जाता है। रेगिस्तानी क्षेत्रों में जहाँ अन्त:स्थानीय अपवाह मिलता है, ऐसी अपवाह प्रणाली देखने को मिलती है। तिब्बत का पठार की तथा लद्दाख में भी ऐसी प्रणालियाँ दृष्टिगोचर होती हैं।

(iv) डेल्टा और ज्वारनदमुख में अन्तर–डेल्टा काँप मिट्टी का विशाल निक्षेप है। इसकी आकृतित्रिभुजाकार, पंजाकार या पंखाकार होती है। इसका निर्माण नदी के निचले मार्ग में वहाँ होता है जहाँ दाब नाममात्र का होता है। यह नदी की वृद्धावस्था में बनता है। अतः नदी अपने साथ बहाकर लाई गई अवसाद को ढोने में असमर्थ रहती है तथा विभिन्न शाखाओं में विभक्त होकर अवसाद का निक्षेप करने लगती है। इस प्रकार समुद्री मुहाने पर मिट्टी तथा बालू के महीन कणों से त्रिभुजाकार रूप में निर्मित अवसाद डेल्टा कहलाता है। ज्वारनदमुख के निर्माण में नदियाँ अपने साथ लाए हुए अवसाद को मुहाने पर जमा नहीं करतीं, बल्कि अवसाद को समुद्र में अन्दर तक ले जाती हैं। नदी में इस प्रकार बना मुहाना ज्वारनदमुख या एस्च्युरी कहलाता है। नर्मदा नदी इसी प्रकार की मुहाने का निर्माण करती है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
(i) भारत में नदियों को आपस में जोड़ने के सामाजिक-आर्थिक लाभ क्या हैं?
उत्तर-भारत में नदियाँ प्रतिक्र्ष जल की विशाल मात्रा का वहन करती हैं, किन्तु समय वे स्थान की दृष्टि से इसका वितरण समान नहीं है। इसी कारण वर्षा ऋतु में अधिकांश जल व्यर्थ बह जाता है अथवा बाढ़ की समस्या उत्पन्न करता है। जब देश के एक भाग में बाढ़ आती है तो दूसरे भाग में सूखा उत्पन्न हो जाता है। वास्तव में जले प्रबन्धन द्वारा इस समस्या को समाप्त किया जा सकता है। यह तभी सम्भव है जब जल आधिक्य क्षमता वाली नदियों को अल्प जल क्षमता वाली नदियों से जोड़ दिया जाए। उदाहरण के लिए-हिमालय नदियों को प्रायद्वीपीय नदियों से जोड़ने की योजना बनाई जा सकती है; जैसे–गंगा-कावेरी योजना। इस योजना से आर्थिक क्षति समाप्त होगी तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि होकर आर्थिक-सामाजिक समृद्धि आएगी।

(ii) प्रायद्वीपीय नदी के तीन लक्षण लिखें।
उत्तर–प्रायद्वीपीय नदियों के तीन लक्षण निम्नलिखित हैं
(i) प्रायद्वीपीय नदियाँ वर्षा जल पर आश्रित रहती हैं। |
(ii) ये नदियाँ सदानीरा नहीं हैं।
(iii) प्रायद्वीपीय नदियाँ प्रौढ़ हैं तथा इनकी घाटियाँ सन्तुलित एवं उथली हैं।

प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125 शब्दों से अधिक में न दें
(i) उत्तर भारतीय नदियों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ क्या हैं? ये प्रायद्वीपीय नदियों से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर- उत्तर भारतीय नदियों की प्रायद्वीपीय नदियों से भिन्नता
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(ii) मान लीजिए आप हिमालय के गिरिपद के साथ-साथ हरिद्वार से सिलीगुड़ी तक यात्रा कर रहे हैं। इस मार्ग में आने वाली मुख्य नदियों के नाम बताएँ। इनमें से किसी एक नदी की विशेषताओं का भी वर्णन करें।
उत्तर-हरिद्वार उत्तरी भारत में गंगा नदी के किनारे स्थित है, जबकि सिलीगुड़ी पश्चिम बंगाल में स्थित है। हिमालय के गिरिपद के साथ हरिद्वार से सिलीगुड़ी तक की यात्रा करने पर हमें उत्तरी भारत की अधिकांश सभी नदियों तथा उन नदियों को भी पार करना होगा जो हिमालय से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। इन नदियों के नाम हैं-गंगा, यमुना, रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी एवं महानदी।

गंगा नदी की विशेषताएँ

गंगा नदी उत्तरी भारत ही नहीं, विश्व की सर्वप्रमुख नदी मानी जाती है। इस पवित्र मानी जाने वाली नदी की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. गंगा अपनी द्रोणी और सांस्कृतिक महत्त्व दोनों के दृष्टिकोण से भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है।
  2. यह नदी उत्तराखण्ड राज्य में उत्तरकाशी जिले में गोमुख के निकट गंगोत्री हिमनद से 3,900 मीटर | की ऊँचाई से निकलती है। यहाँ इसे भागीरथी कहते हैं।
  3. देव प्रयाग में भागीरथी में अलकनन्दा नदी मिलती है, इसके बाद यह गंगा कहलाती है।
  4. गंगा नदी हरिद्वार से मैदान में प्रवेश करते हुए उत्तराखण्ड में 110 किमी उत्तर प्रदेश में 1,450 किमी, बिहार में 445 किमी और पश्चिम बंगाल में 520 किमी की दूरी तय कर अन्त में बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
  5. गंगा द्रोणी केवल भारत में लगभग 8.6 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैली हुई है। यह भारत का सबसे बड़ा अपवाह तन्त्र बनाती है जिसमें उत्तर में हिमालय से निकलने वाली नदियाँ तथा दक्षिण प्रायद्वीप से निकलने वाली अनित्यवाही नदियाँ भी सम्मिलित हैं।
  6. यमुना, सोना, रामगंगा, घाघरा, गोमती, गंडक, कोसी, महानन्दा, चम्बल आदि इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर ॥

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. बड़ी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र को क्या कहते हैं?
(क) जल-संभर
(ख) नदी द्रोणी
(ग) जल-संकर
(घ) ये सभी
उत्तर-(ख) नदी द्रोणी।।

प्रश्न 2. डेल्टा नदी की ……….: में बनता है। |
(क) वृद्धावस्था
(ख) प्रौढ़ावस्था ।
(ग) यौवनावस्था
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(क) वृद्धावस्था।

प्रश्न 3. प्रायद्वीपीय नदियाँ…… जल पर आश्रित रहती हैं।
(क) नलकूप
(ख) वर्षा
(ग) कुएँ
(घ) ये सभी
उत्तर-(ख) वर्षा।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. नदी अपवाह प्रतिरूप किसे कहते हैं?
उत्तर–नदी एवं उसकी सहायक नदियों के विन्यास से विकसित प्राकृतिक अपवाह नदी उपवाह तन्त्र या प्रतिरूप कहा जाता है।

प्रश्न 2. अपवाह द्रोणी किसे कहते हैं?
उत्तर—विशाल नदियों के जल संभर (Water Shed) को नदी द्रोणी या अपवाह द्रोणी कहा जाता है।

प्रश्न 3. सिन्धु नदी का उद्गम स्थल कहाँ है? इसकी पाँच सहायक नदियों के नाम बताइए।
उत्तर–सिन्धु नदी हिमालय पर तिब्बत के क्षेत्र में मानसरोवर झील के निकट निकलती है। सतलुज, रावी, व्यास, चेनाब तथा झेलम इसकी पाँच प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।

प्रश्न 4. डेल्टा किसे कहते हैं?
उत्तर-समुद्री मुहाने पर नदी की निक्षेपण क्रिया द्वारा मिट्टी एवं बालू के महीन कणों से निर्मित अवसाद की त्रिभुजाकार आकृति ‘डेल्टा’ कहलाती है।

प्रश्न 5. ज्वारनदमुख से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-जिन नदियों के मुहानों पर ज्वार-भाटा अधिक सक्रिय रहते हैं, वे नदियों द्वारा निक्षेपित पदार्थों को अपने साथ बहाकर ले जाते हैं जिससे नदियाँ डेलटाओं की रचना नहीं कर पातीं। ऐसी नदियों के मुहाने ‘ज्वारनदमुख’ (एस्चुअरी) कहलाते हैं।

प्रश्न 6. नदियाँ प्रदूषित क्यों हैं?
उत्तर-नदियाँ औद्योगिक कूड़ा-करकट, शमशान घाट की राख एवं त्योहारों पर फूल एवं अन्य सामग्री के जल में विसर्जन, बड़े पैमाने पर स्नान और कपड़े धोने तथा नगरीय बस्तियों की गन्दगी को नदी में डालने से प्रदूषित होती हैं।

प्रश्न 7. गंगा नदी कहाँ से निकलती है?
उत्तर-गंगा नदी उत्तराखण्ड राज्य में हिमालय के गंगोत्री नाम की हिमानी से निकलती है।

प्रश्न 8. बंगाल की खाड़ी में गिरते समय ब्रह्मपुत्र किस नाम से पुकारी जाती है?
उत्तर-मेघना।।

प्रश्न 9. सिन्धु नदी का कितना भाग भारत में स्थित है?
उत्तर-33 प्रतिशत भाग (जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब)।

प्रश्न 10. गंगा नदी की कुल लम्बाई किलनी है?
उत्तर-2,830 किमी से अधिक।

प्रश्न11. सिन्धु नदी की कुल लम्बाई कितनी है?
उत्तर-2,900 किमी।।

प्रश्न 12. गंगा कार्य योजना क्यों बनाई गई?
उत्तर-गंगा का प्रदूषण कम करने के लिए।

प्रश्न 13. जल प्रवृत्ति किसे कहते हैं?
उत्तर–किसी नदी में जल के वस्तुनिष्ठ प्रवाह के प्रतिरूप को इसकी प्रवृत्ति कहते हैं।

प्रश्न 14. पश्चिम की ओर प्रवाहित छोटी नदियों के नाम लिखिए।
उत्तर-माही, साबरमती, कालिंदी, भरतपूझा, पेरियार, शरावती तथा ढाढर।

प्रश्न 15. घाघरा नदी का उद्गम एवं सहायक नदियों के नाम लिखिए।
उत्तर–घाघरा नदी मापचाचूँगों हिमनद से निकलती है। इसकी सहायक नदियों में तिला, सेती व बेरी मुख्य हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. सहायक नदी तथा जल वितरिका में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-सहायक नदी तथा जल वितरिका में निम्नलिखित अन्तर हैं
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प्रश्न 2. डेल्टा तथा ज्वारनदमुख में चार अन्तर बताइए।
उत्तर-डेल्टा तथा ज्वारनदमुख में निम्नलिखित अन्तर हैं
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प्रश्न 3. राजस्थान में प्रवाहित नदी क्रम का वर्णन कीजिए।
उत्तर-राजस्थान शुष्क प्रदेश है। यहाँ पर लूनी नदी तन्त्र ही महत्त्वपूर्ण है। अरावली के पश्चिम में लूनी राजस्थान का सबसे बड़ा नदी तन्त्र है। यह पुष्कर के समीप दो धाराओं (सरस्वती और साबरमती) के रूप में उत्पन्न होती है, जो गोविन्दगढ़ के निकट परस्पर मिल जाती है और लूनी कहलाती है। तलवाड़ा तक यह पश्चिम दिशा में बहती है और तत्पश्चात् दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती हुई कच्छ के रन में जा मिलती है। यह सम्पूर्ण नदी तन्त्र अल्पकालिक है।

प्रश्न 4. भारत के दक्षिण-पश्चिम की ओर प्रवाहित छोटी नदी प्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-भारत के दक्षिण-पश्चिम की ओर प्रवाहित नदियों में अरब सागर की ओर बहने वाली नदियों का जलमार्ग छोटा है। शेतरूनीजी एक ऐसी ही नदी है जो अमरावती जिले में डलकाहवा से निकलती है। भद्रा नदी राजकोट जिले के अनियाली गाँव के निकट से निकलती है। ढाढर नदी पंचमहल जिले के घंटार गाँव से निकलती है। साबरमती और माही गुजरात की दो प्रसिद्ध नदियाँ हैं। महाराष्ट्र में नासिक जिले में त्रिबंक पहाड़ियों से वैतरणा नदी निकलती है। कालिंदी नदी बेलगाँव जिले से निकलकर करवाड़ की खाड़ी में गिरती है। शरावती पश्चिम की ओर बहने वाली कर्नाटक की एक अन्य महत्त्वपूर्ण नदी है। यह नदी कर्नाटक के शिमोगा जिले से निकलती है। इसका जलग्रहण क्षेत्र 2,209 वर्ग किमी है। गोवा में ऐसी ही दो नदियाँ हैं। इनमें एक का नाम मांडवी और दूसरी जुआरी है। केरल में सबसे बड़ी नदी भरतपूझा अन्नामलाई पहाड़ियों से निकलती है। पेरियार केरल की दूसरी बड़ी नदी है। केरल की अन्य महत्त्वपूर्ण नदी पांबा है जो वेबनाद झील में गिरती है।

प्रश्न 5. नदियों की बहाव प्रवृत्ति से आप क्या समझते हैं? गंगा नदी की बहाव प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
उत्तर-नदी में बहने वाले जल की मात्रा को सामान्य नदी की बहाव प्रवृत्ति कहते हैं, किन्तु वास्तव में एक नदी के चैनल में वर्षपर्यन्त जल प्रवाह का प्रारूप नदी बहाव प्रवृत्ति (River regime) कहलाता है। गंगा नदी में न्यूनतम जल प्रवाह जनवरी से जून की अवधि में होता है, जबकि अधिकतम प्रवाह अगस्त या सितम्बर में होता है। सितम्बर के बाद प्रवाह में लगातार कमी होती जाती है। इस प्रकार गंगा नदी का जल प्रवाह वर्षा ऋतु या मानसून पर निर्भर है। गंगा द्रोणी के पूर्वी या पश्चिमी भागों की जल बहाव प्रवृत्ति में चौंकाने वाले अन्तर नजर आते हैं। बर्फ पिघलने के कारण गंगा नदी का प्रवाह मानसून आने से पहले भी काफी बड़ा होता है। फरक्का में गंगा नदी का औसत अधिकतम जल प्रवाह लगभग 55,000 क्यूसेक्स है, जबकि न्यूनतम औसत केवल 1,300 क्यूसेक्स है।

प्रश्न 6. भारत की नदियाँ किस प्रकार देश के लिए वरदान हैं?
उत्तर-नदियाँ जल का स्थायी स्रोत मानी जाती हैं, इसलिए नदियों को जीवन रेखा कहा गया है। भारत की नदियाँ वास्तव में जीवन रेखा ही हैं। इस सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण तर्क निम्नलिखित हैं
1. नदियाँ देश का आधारभूत आर्थिक संसाधन एवं सामाजिक व सांस्कृतिक विकास को आधार हैं।
सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ और सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराएँ नदियों या जल से सम्बद्ध | होती हैं।
2. नदियाँ पेयजल, कृषि की सिंचाई के लिए जल, उद्योगों में उत्पादन के लिए जल और परिवहन के लिए जलमार्ग उपलब्ध कराती हैं।
3. नदियों के जल को बाँध के रूप में बदलकर जल विद्युत का उत्पादन किया जाता है जो वर्तमान आर्थिक विकास का आधार है।

प्रश्न 7. कावेरी नदी द्रोणी की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-कावेरी नदी कर्नाटक के कुर्ग जिले की 1,341 मीटर ऊँची ब्रह्मगिरि पहाड़ियों से निकलती है। इस नदी में वर्ष भर जल प्रवाह बना रहता है क्योंकि इसके प्रवाह क्षेत्र में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से वर्षा होती रहती है। कावेरी नदी द्रोणी का 3 प्रतिशत क्षेत्र केरल, 41 प्रतिशत कर्नाटक तथा 56 प्रतिशत तमिलनाडु में स्थित है। इस नदी की लम्बाई 800 किलोमीटर है और यह 81,155 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपवाहित करती है। कावेरी नदी की सहायक नदियों में काबीनी, भवानी और अमरावती मुख्य हैं।

प्रश्न 8. गोदावरी दक्षिणी भारत की गंगा कहलाती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–गंगा भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह नदी भारत में धार्मिक आस्था का आधार मानी जाती है। इसके समरूप दक्षिण भारत में भी गोदावरी नदी को गंगा के समतुल्य माना जाता है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  1. उत्तरी भारत में गंगा के समान ही गोदावरी नदी भी दक्षिणी भारत की सबसे लम्बी नदी है और इस नदी के प्रति भी पवित्र गंगा के समान ही जनसामान्य में श्रद्धा पाई जाती है।
  2. दक्षिणी भारत में गोदावरी नदी पर भी गंगा के समान धार्मिक आयोजन होते हैं।
  3. गोदावरी नदी की लम्बाई 1,456 किलोमीटर है जो दक्षिणी भारत की अन्य नदियों से अधिक है। | इसीलिए इसे दक्षिणी भारत की गंगा कहा जाता है।
  4. वेनगंगा, पूर्णा, प्रवरा तथा ईन्द्रावती गोदावरी की सहायक नदियाँ हैं। इसका अपवाह क्षेत्र 3,12,812 वर्ग किमी है। अत: इसके विशाल आकार, विस्तार व पवित्रता आदि के कारण इसे दक्षिणी भारत की गंगा कहा जाना उपयुक्त है।

प्रश्न 9. क्या कारण है कि पश्चिमी तट की नदियाँ भारी मात्रा में अवसाद बहाकर लाती हैं, किन्तु डेल्टा का निर्माण नहीं करतीं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-पश्चिमी तट पर बहने वाली प्रमुख नदियाँ नर्मदा तथा ताप्ती हैं। इसके अतिरिक्त अनेक छोटी-छोटी नदियाँ भी पश्चिमी घाट से निकलकर पश्चिमी तटीय मैदान में बहती हुई अरब सागर में गिरती हैं। यद्यपि ये नदियाँ पश्चिमी घाट से पर्याप्त मात्रा में तलछट बहाकर लाती हैं, परन्तु ये डेल्टा नहीं बनाती हैं। इसके निम्नलिखित कारण हैं–

  1. ये नदियाँ संकीर्ण मैदान में प्रवाहित होती हैं, अत: इनका वेग अधिक होता है। इसलिए अवसाद निक्षेप की आदर्श दशाएँ नहीं बनती हैं।
  2. इन नदियों के मार्ग की ढाल प्रवणता अधिक होने के कारण ये तीव्र वेग से बहती हैं जिससे इनके मुहाने पर तलछट का निक्षेप नहीं हो पाता है।

प्रश्न 10. हिमालय के तीन प्रमुख नदी तन्त्रों के नाम, इनके स्रोत तथा प्रमुख सहायक नदियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर–हिमालय के तीन प्रमुख नदी तन्त्र निम्नलिखित हैं|

  1. गंगा नदी तन्त्र–इसका उद्गम गंगोत्री हिमानी है। गंगा की सहायक नदियों में–यमुना, सोना, घाघरा, गंडक, कोसी, रामगंगा आदि हैं।
  2. ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र—यह नदी मानसरोवर झील (तिब्बत हिमालय) से निकलती है। इसकी सहायक नदियों में लोहित तथा दिहांग प्रमुख हैं।
  3. सिन्धु नदी तन्त्र–सिन्धु नदी भी मानसरोवर झील के निकट से निकलती है। सतलुज, जास्करे, झेलम, चेनाब, रावी, व्यास तथा गिलगित आदि इस नदी तन्त्र की प्रमुख नदियाँ हैं।

प्रश्न 11. प्रायद्वीपीय अपवाह तन्त्र की विवेचना कीजिए तथा इसके उदविकास की मुख्य घटनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-प्रायद्वीपीय अपवाह-तन्त्र
प्रायद्वीपीय अपवाह-तन्त्र हिमालयी अपवाह तन्त्र से पुराना है। यह तथ्य नदियों की प्रौढ़ावस्था और नदी घाटियों के चौड़ा व उथला होने से प्रमाणित होता है। नर्मदा और ताप्ती को छोड़कर अधिकतर प्रायद्वीप नदियाँ पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं। प्रायद्वीपीय नदियों की विशेषता है कि ये एक सुनिश्चित मार्ग पर चलती हैं, विसर्प नहीं बनातीं और ये बारहमासी नहीं हैं। यद्यपि भ्रंश घाटियों में बहने वाली नर्मदा और ताप्ती इसका अपवाद हैं।

प्रायद्वीपीय अपवाह-तन्त्र का उदविकास

प्रायद्वीपीय अपवाह-तन्त्र के उविकास एवं स्वरूप निर्धारण में निम्नलिखित तीन भूगर्भिक घटनाएँ। महत्त्वपूर्ण हैं
1. आरम्भिक टर्शियरी काल की अवधि में प्रायद्वीपीय पश्चिमी पार्श्व का अवतलन या धंसाव जिससे यह समुद्र तल से नीचे चला गया। इससे मूल जल-संभर के दोनों ओर नदियों की सामान्यत
सममित योजना में असन्तुलन उत्पन्न हो गया।

2. हिमालय में होने वाले प्रोत्थान के कारण प्रायद्वीप खण्ड के उत्तरी भाग का अवतलन हुआ और परिणामस्वरूप भ्रंश द्रोणियों का निर्माण हुआ। नर्मदा और ताप्ती इन्हीं भ्रंश घाटियों में बह रही हैं। इसलिए इन नदियों में जलोढ़ व डेल्टा निक्षेप की कमी पाई जाती है।

3. इसी काल में प्रायद्वीपीय खण्ड उत्तर-पश्चिम दिशा से दक्षिण-पूर्व दिशा में झुक गया। परिणामस्वरूप इसका अपवाह बंगाल की खाड़ी की ओर उन्मुख हो गया।

प्रश्न 12. प्रायद्वीपीय नदी तन्त्र की मुख्य नदी द्रोणियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर–प्रायद्वीपीय अपवाह में अनेक नदी द्रोणी हैं। इनमें प्रमुख नदी तन्त्रों का विवरण इस प्रकार है
1. गोदावरी नदी तन्त्र–प्रायद्वीपीय खण्ड में गोदावरी सबसे बड़ी नदी तन्त्र है। इसे दक्षिण की गंगा कहते हैं। गोदावरी नदी महाराष्ट्र में नासिक जिले से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरती है। यह 1,465 किमी लम्बी नदी है। इसका जलग्रहण क्षेत्र 3.13 लाख वर्ग किमी है। इसकी सहायक नदियों में पेनगंगा, इन्द्रावती, प्राणहिता और मंजरा हैं।

2. महानदी नदी तन्त्र-महानदी छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में सिहावा के निकट निकलती है और उड़ीसा में प्रवाहित होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। यह नदी 851 किलोमीटर लम्बी है और
इसका जलग्रहण क्षेत्र लगभग 1.42 लाख वर्ग किमी है।

3. कृष्णा नदी तन्त्र-कृष्णा पूर्व दिशा में बहने वाली दूसरी बड़ी प्रायद्वीपीय नदी है, जो सह्याद्रि में महाबलेश्वर के निकट निकलती है। इसकी लम्बाई 1,401 किमी है। कोयना, तुंगभद्रा और भीमा
इसकी प्रमुख सहायक नदिया हैं।

4. कावेरी नदी तन्त्र-कावेरी नदी कर्नाटक के कोगाड़ जिले में ब्रह्मगिरि पहाड़ियों से निकलती है। इसकी लम्बाई 800 किमी है। यह 81,155 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपवाहित करती है।
काबीनी, भावानी और अमरावती इसकी मुख्य सहायक नदियाँ हैं।

5. नर्मदा नदी तन्त्र—यह नदी कर्नाटक पठार के पश्चिमी पार्श्व से लगभग 1,057 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। लगभग 1,312 किमी की दूरी में बहने के बाद यह भड़ौच के दक्षिण में अरब
सागर में मिलती है और 27 किमी लम्बी ज्वारनदमुख बनाती है।

6. ताप्ती नदी तन्त्र-ताप्ती पश्चिमी दिशा में बहने वाली प्रायद्वीप की एक अन्य महत्त्वपूर्ण नदी है। यह मध्य प्रदेश में बेतूल जिले में मुलताई से निकलती है। यह 724 किमी लम्बी है और 65,145 वर्ग किमी क्षेत्र को अपवाहित करती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत के अपवाहं-तन्त्र के स्वरूप का विवरण दीजिए तथा उत्तरी भारत के पश्चिमी नदी तन्त्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर–किसी भी देश अथवा प्रदेश की छोटी-बड़ी सभी नदियों, नालों एवं सरिताओं आदि की समग्र अपवाह प्रणाली को अपवाह-तन्त्र की संज्ञा दी जाती है। किसी भी क्षेत्र का अपवाह-तन्त्र उस क्षेत्र की भौतिक संरचना, भू-भाग के ढाल, जल-प्रवाह का वेग एवं आकार आदि तथ्यों पर निर्भर करता है। भारत एक विशाल देश है जिसकी धरातलीय संरचना एवं भूस्वरूप में सर्वत्र अनेक विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। इसका प्रभाव यहाँ के अपवाह-तन्त्र पर भी पड़ा है। यही कारण है कि भारत में अपवाह-तन्त्र के अनेक स्वरूप देखने को मिलते हैं।

भारत के अपवाह-तन्त्र

उद्गम के आधार पर भारत की नदियों के अपवाह-तन्त्र को दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता हैं-
1. उत्तरी भारत या बृहत् मैदान का अपवाह-तन्त्र
(i) सिन्धु नदी अपवाह-तन्त्र, |
(ii) गंगा नदी अपवाह-तन्त्र तथा हि-तन्त्र तथा
(iii) ब्रह्मपुत्र नदी अपवाह-तन्त्र।

2. प्रायद्वीपीय भारत का अपवाह-तन्त्र–
(क) पश्चिमोगामी अपवाह-तन्त्र
(i) नर्मदा नदी अपवाह-तन्त्र,
(ii) ताप्ती नदी अपवाह-तन्त्र,
(ख) पूर्वगामी अपवाह तन्त्र
(iii) महानदी अपवाह-तन्त्र,
(iv) दामोदर नदी अपवाह-तन्त्र,
(v) गोदावरी नदी अपवाह-तन्त्र,
(vi) कृष्णा नदी अपवाह-तन्त्र,
(vii) कावेरी नदी अपवाह-तन्त्र।
उत्तरी भारत के पश्चिमी नदी तन्त्र में सिन्धु एवं सतलज नदियाँ महत्त्वपूर्ण हैं। इनका विवरण अग्र प्रकार है–

सिन्धु नदी–सिन्धु नदी तिब्बत के पठार के निकलकर 2,880 किमी की दूरी तक प्रवाहित होती हुई अरब सागर से मिल जाती है। हमारे देश में यह नदी मात्र 709 किमी की दूरी तय करती है। इसकी मुख्य सहायक नदियाँ सतलुज, व्यास, झेलम, चिनाब तथा रावी हैं। भारत-विभाजन के फलस्वरूप सिन्धु नदी तन्त्र के मुख्य भाग पाकिस्तान में चले गए। सिन्धु की सहायक नदियों में सतलुज नदी भारत में सबसे अधिक जल प्रदान करती है।

सतलुज नदी–नदी कैलास पर्वत से निकलकर लगभग 1,440 किमी की दूरी में प्रवाहित होती हुई सिन्धु नदी में मिल जाती है। झेलम कश्मीर राज्य की प्रमुख नदी है। पर्वतीय प्रदेश से मैदान की ओर मुड़ने पर इसका जल प्रवाह मन्द हो जाता है। कश्मीर की प्रसिद्ध हरी-भरी सुखद घाटी झेलम नदी के मोड़ के समीप स्थित है। नदियों ने इस मैदान को बहुत ही उपजाऊ बना दिया है। इस भाग में नहरी सिंचाई की सघनतम जाल पाया जाता है।

प्रश्न 2. भारत के पूर्वी नदी तन्त्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर-भारत के पूर्वी विशाल नदी-तन्त्र को निम्नलिखित उप-तन्त्रों में विभाजित किया जा सकता है
1. गंगा नदी तन्त्र-गंगा भारत की प्रसिद्ध एवं धार्मिक महत्त्व वाली नदी है जो हिमालय के गंगोत्री
या गोमुख हिमानी से निकलती है। हरिद्वार से गंगा नदी की मैदानी यात्रा आरम्भ होती है तथा इसकी गति भी मन्द पड़ जाती है। मैदानी भाग में इसकी चौड़ाई अधिक है। प्रयाग (इलाहाबाद) में यमुना व अदृश्य सरस्वती नदियाँ इसमें आकर मिलती हैं तथा इससे आगे इसके ढाल में कमी आनी
आरम्भ हो जाती है। डेल्टा के समीप गंगा नदी का ढाल बहुत ही मन्द हो जाता है। गंगा नदी का डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है। गंगा भारत की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है जिसकी लम्बाई 2,510 किमी है। इसके तट पर हरिद्वार, कानपुर, प्रयाग (इलाहाबाद), वाराणसी, पटना एवं कोलकाता जैसे बड़े नगर स्थित हैं। गंगा नदी का अपवाह क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा अपवाह
क्षेत्र है। गोमती, सोन, घाघरा, गंडक एवं कोसी इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।

2. यमुना नदी तन्त्र-यमुना नदी हिमालय पर्वत के यमुनोत्री हिमानी से निकलकर गंगा नदी के समानान्तर प्रवाहित होती हुई प्रयाग में गंगा नदी से मिल जाती है। प्रयाग तक इसकी लम्बाई 1,375 किमी है। दिल्ली, मथुरा एवं आगरा यमुना नदी के किनारे स्थित महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक नगर हैं। सिन्धु, बेतवा, केन एवं चम्बल इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। ये सभी दक्षिण के उत्तर
की ओर प्रवाहित होती हुई यमुना नदी से मिल जाती हैं।

3. ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र-ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत में स्थित मानसरोवर झील के निकट कैलास पर्वत श्रेणी से निकलती है। यह नदी दक्षिणी तिब्बत में बढ़ती हुई पूर्वी हिमालय के नामचबरवा शिखर के समीप अचानक दक्षिणे की ओर मुड़कर भारत में प्रवेश करती है। तिब्बत में इसे सांगपो नदी के नाम से जाना जाता है। असम में इसे दिहांग कहा जाता है। दिहांग तथा लोहित इसकी सहायक नदियाँ हैं जो विपरीत दिशाओं से आकर इसमें मिल जाती हैं। ब्रह्मपुत्र नदी असम राज्य में प्रवाहित होती हुई गंगा नदी से मिल जाती है। बंगाल की खाड़ी से लेकर डिब्रूगढ़ तक इसमें नावें एवं जलयान चल सकते हैं। गोहाटी एवं डिब्रूगढ़ ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे पर स्थित प्रमुख नगर हैं। यह नदी अपनी बाढ़ों तथा प्रवाह मार्ग में परिवर्तन के लिए विख्यात है। इसकी बाढ़ों से प्रतिवर्ष धन-जन की बहुत अधिक हानि होती है। ब्रह्मपुत्र नदी की कुल लम्बाई 2,880 किमी है।

प्रश्न 3. हिमालय से निकलने वाली नदियों की तुलना प्रायद्वीपीय भारत की नदियों से कीजिए।
उत्तर-हिमालय से निकलने वाली नदियों की प्रायद्वीपीय
भारत की नदियों से तुलना
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UP Board Solutions for Class 11 Geography: Indian Physical Environment Chapter 2 Structure and Physiography

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Indian Physical Environment Chapter 2 Structure and Physiography (संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान)

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. नीचे दिए गए प्रश्नों के सही उत्तर का चयन करें|
(i) करेवा भू-आकृति कहाँ पाई जाती है?
(क) उत्तरी-पूर्वी हिमालय
(ख) पूर्वी हिमालय
(ग) हिमाचल-उत्तरांचल हिमालय
(घ) कश्मीर हिमालय
उत्तर-(घ) कश्मीर हिमालय। |

(ii) निम्नलिखित में से किस राज्य में ‘लोकताक’ झील स्थित है?
(क) केरल
(ख) मणिपुर
(ग) उत्तरांचल (उत्तराखण्ड)
(घ) राजस्थान
उत्तर-(ख) मणिपुर।

(iii) अण्डमान और निकोबार को कौन-सा जल क्षेत्र अलग करता है?
(क) 11° चैनल ।
(ख) 10° चैनल
(ग) मन्नार की खाड़ी।
(घ) अण्डमान सागर
उत्तर-(ख) 10° चैनल। |

(iv) डोडाबेटा चोटी निम्नलिखित में से कौन-सी पहाडी श्रृंखला में स्थित है?
(क) नीलगिरि
(ख) काडमम
(ग) अनामलाई
(घ) नल्लामाला
उत्तर-(क) नीलगिरि।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30 शब्दों में दीजिए
(i) यदि एक व्यक्ति को लक्षद्वीप जाना हो तो वह कौन-से तटीय मैदान से होकर जाएगा और क्यों?
उत्तर-यदि किसी व्यक्ति को लक्षद्वीप जाना हो तो उसे पश्चिमी तटीय मैदान होकर जाना होगा, क्योंकि यही उसके लिए निकटतम दूरी वाला मार्ग होगा। यह द्वीप केरल तट से 280 किलोमीटर दूर है।

(ii) भारत में ठण्डा मरुस्थल कहाँ स्थित है? इस क्षेत्र की मुख्य श्रेणियों के नाम बताएँ।
उत्तरं-भारत में उत्तरी-पश्चिमी यो कश्मीर हिमालय क्षेत्र ठण्डा मरुस्थल कहलाता है। यहाँ वर्षभर तापमान निम्न रहने के कारण सम्पूर्ण क्षेत्र हिमाच्छादित रहता है, इसलिए यह निर्जन क्षेत्र ठण्डा मरुस्थल कहलाता है। वास्तव में यह क्षेत्र वृहत् हिमालय और कराकोरम श्रेणियों के बीच स्थित है। इस क्षेत्र में कराकोरम, जास्कर और लद्दाख श्रेणियाँ हैं। |

(iii) पश्चिमी तटीय मैदान पर कोई डेल्टा क्यों नहीं है?
उत्तर-पश्चिमी तट पर बहने वाली प्रमुख नदियाँ नर्मदा तथा ताप्ती हैं। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक छोटी-छोटी नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलकर अरब सागर में गिरती हैं। ये नदियाँ डेल्टा नहीं बनातीं। इसके निम्नलिखित कारण हैं

  1. ये नदियाँ सँकरे मैदान में बहकर आती हैं। इनका वेग अधिक होने के कारण ये नदियाँ तेज गति से बहती हैं।
  2. इन नदियों के मार्ग की ढाल प्रवणता अधिक होने के कारण ये तीव्र वेग से बहती हैं, जिससे इनके | मुहाने पर तलछट का निक्षेप न होने के कारण डेल्टा का निर्माण नहीं होता है।

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए
(i). अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूहों का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर- अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह ।
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(ii) नदी घाटी मैदान में पाए जाने वाली महत्त्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ कौन-सी हैं? इनका विवरण
उत्तर-नदी घाटी मैदानों का निर्माण नदियों द्वारा लाए गए अवसाद से हुआ है। ये मैदान दो प्रकार के होते हैं–खादर एवं बांगर। खादर मैदान नवीन जलोढ़ मृदा से तथा बांगर पुराने जलोढ़ से बने हैं। नदी घाटी मैदानों की उत्तरी सीमा पर्वतीय है, जिन्हें गिरिपाद मैदान कहते हैं, जो महीन मलबे और मोटे कंकड़ों से बने हैं। इन्हें भाबर कहते हैं। इनके दक्षिण में तराई के मैदान हैं। यहाँ नदियों का विस्तार अधिक हो जाता है तथा कहीं-कहीं दलदले बन जाते हैं। नदी घाटी मैदानों में बाढ़कृत मैदान पेनीप्लेन, ऊँचे टीले, गर्त, विसर्प, गोखुर झील, बालू रोधिका आदि प्रमुख स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं जो नदी की प्रौढ़ावस्था में बनने वाली अपरदनी और निक्षेपण स्थलाकृतियाँ हैं।

(iii) यदि आप बद्रीनाथ सुन्दरवन डेल्टा तक गंगा नदी के साथ-साथ चलते हैं तो आपके रास्ते में कौन-सी मुख्य स्थलाकृतियाँ आएँगी?’
उत्तर-बद्रीनाथ उत्तराखण्ड राज्य के मध्य हिमालय में चमोली जिले की फूलों की घाटी के समीप स्थित है। यदि हम बद्रीनाथ से गंगा के साथ-साथ सुन्दरवन डेल्टा के लिए चलें तो हमें कई प्रकार की भू-आकृतियों से होकर जाना होगा। पर्वतीय क्षेत्र में ऊँची-ऊँची चोटियाँ, गहरी घाटियों व तीव्र ढाल वाले क्षेत्रों को पार करना पड़ेगा। इस मार्ग में गॉर्ज, V-आकार की घाटी और तीव्र ढाल मुख्य स्थलाकृतियाँ हमें मिलेंगी। हरिद्वार के पास हमारा पर्वतीय मार्ग समाप्त हो जाएगा और मैदानी मार्ग आरम्भ हो जाएगा। यहाँ पर तराई अथवा भाबर क्षेत्र से गुजरना पड़ेगा। इसके पश्चात् समतल मैदान पार करना होगा। इस मैदान में धरातल प्राय: समतल मिलेगा, कोई भी ऊँची श्रेणी नहीं मिलेगी। गंगा के टेढ़े विसर्पो और झीलों के साथ हम सुन्दरवन डेल्टा पर पहुंचेंगे। यह डेल्टा गंगा नदी द्वारा निर्मित है। यहाँ गंगा विभिन्न शाखाओं में विभक्त होकर इस डेल्टा का निर्माण करती है। यह डेल्टा 150 मीटर ऊँचा है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. हिमालय पर्वत की सर्वोच्च चोटी है
(क) एवरेस्ट
(ख) कंचनजंगा
(ग) K-2
(घ) नन्दादेवी
उत्तर-(क) एवरेस्ट।

प्रश्न 2. गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है
(क) चम्बल
(ख) यमुना
(ग) बेतवा
(घ) नर्मदा
उत्तर-(ख) यमुना।।

प्रश्न 3. नन्दा देवी शिखर किस पर्वत से सम्बन्धित है?
(क) नीलगिरि
(ख) सतपुड़ा
(ग) हिमालय
(घ) मैकाले
उत्तर-(ग) हिमालय।।

प्रश्न 4. भारत का सर्वोच्च शिखर कौन-सा है?
(क) गॉडविन ऑस्टिन
(ख) कंचनजंगा
(ग) नन्दा देवी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(ख) कंचनजंगा।

प्रश्न 5. नाथूला दर्रा किस राज्य में स्थित है?
(क) अरुणाचल प्रदेश में ।
(ख) असोम में
(ग) सिक्किम में
(घ) मणिपुर में
उत्तर-(ग) सिक्किम में।

प्रश्न 6. शिवालिक पर्वत स्थित है
(क) उत्तरी भारत में
(ख) दक्षिणी भारत में
(ग) पूर्वी भारत में
(घ) पश्चिमी भारत में
उत्तर—(क) उत्तरी भारत में। ||

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. सर्वोच्च हिमालय किसे कहते हैं?
उत्तर–हिमालय पर्वत की सबसे उत्तरी पर्वत श्रृंखला सर्वोच्च हिमालय के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न 2. भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित दरों के नाम बताइए।
उत्तर–भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित दरों के नाम निम्नलिखित हैं— (1) खैबर, (2) गोमल, (3) बोलन, (4) टोची, (5) कुर्रम।

प्रश्न 3. बोमडिला दर्रा भारत के किस पूर्वांचल राज्य में है?
उत्तर–बोमडिला दर्रा भारत के अरुणाचल प्रदेश नामक राज्य में स्थित है।

प्रश्न 4. हिमालय के दो प्रमुख दरों के नाम लिखिए।
उत्तर–हिमालय के दो प्रमुख दरों के नाम निम्नलिखित हैं (1) थांगला एवं (2) लिपुलेख।।

प्रश्न 5. हिमालय पर्वतमाला की तीन समानान्तर पर्वत-श्रृंखलाओं के नाम लिखिए।
उत्तर–हिमालय पर्वतमाला की तीन समानान्तर पर्वत-शृंखलाओं के नाम निम्नलिखित हैं–
1. महान् या बृहद् हिमालय अथवा हिमाद्रि हिमालय,
2. लघु हिमालय,
3. बाह्य हिमालय या शिवालिक हिमालय।

प्रश्न 6. हिमालय को भारत का प्रहरी क्यों कहा जाता है?
उत्तर–हिमालय पर्वत भारत की उत्तरी सीमा पर एक अभेद्य दीवार के रूप में सन्तरी की भाँति अडिग खड़ा है, जिस कारण हिमालय को भारत का प्रहरी कहा जाता है।

प्रश्न 7. मध्यवर्ती उच्च भूमि को किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर-मध्यवर्ती उच्च भूमि के उत्तर-पश्चिमी भाग को ‘मालवा कां पठार’, दक्षिणी उत्तर प्रदेश के भू-भाग को ‘बुन्देलखण्ड’ व ‘बघेलखण्ड’ तथा दक्षिणी बिहार में सम्मिलित भू-भाग को ‘छोटा नागपुर’ पठार के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 8, शिवालिक किसे कहते हैं? ।
उत्तर–हिमालय की दक्षिणतम श्रेणी को शिवालिक कहते हैं।

प्रश्न 9. पूर्वांचल किसे कहते हैं?
उत्तर- भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित पर्वत-श्रेणियाँ पूर्वांचल के नाम से प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 10. लघु हिमालय किसे कहते हैं? इसकी दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-महान् हिमालय के दक्षिण में स्थित पर्वतश्रेणी लघु या मध्य हिमालय कहलाती है। इसे ‘हिमाचल हिमालय’ कहा जाता है।

प्रश्न 11. हिमालय की तीन प्रमुख श्रेणियों के नाम लिखिए।
उत्तर-(1) महान् या हिमाद्रि हिमालय, (2) लघु या मध्य हिमालय, (3) बाह्य या शिवालिक हिमालय।

प्रश्न 12. हिमालय को नवीन वलित पर्वत कहने के तीन कारण बताइए।
उत्तर-हिमालय को नवीन वलित पर्वत कहा जाता है, इसके तीन प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  1. इस पर्वत का निर्माण अवसादी पदार्थ में वलन प्रक्रिया के द्वारा हुआ है।
  2. यह भूभाग वैज्ञानिक युग की नवीनतम उच्च पर्वत-शृंखला है।
  3. हिमालय पर्वत की युवा श्रेणियों में वर्तमान में भी उत्थान हो रहा है।

प्रश्न 13. कश्मीर हिमालय की प्रमुख विशेषता बताइए।
उत्तर-कश्मीर हिमालय का उत्तरी-पूर्वी भाग जो बृहत् हिमालय और कराकोरम श्रेणियों के बीच स्थित है, एक ठण्डा मरुस्थल है। हिमालय के इसी भाग में बृहत् हिमालये और पीरपंजाल के बीच विश्वप्रसिद्ध कश्मीर घाटी और डल झील स्थित हैं।

प्रश्न 14. करेवा क्या हैं?
उत्तर-करेवा झील के अवसाद हैं। इनका निर्माण कश्मीर हिमालय में चिकनी मिट्टी और दूसरे हिमोढ़ पर्वतों से हुआ है।

प्रश्न 15. पर्यटन की दृष्टि से कश्मीर हिमालय का क्या महत्त्व है?
उत्तर-कश्मीर और उत्तर-पश्चिमी हिमालय विलक्षण सौन्दर्य एवं खूबसूरत दृश्य स्थलों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ कई प्रसिद्ध तीर्थस्थल; जैसे-वैष्णोदेवी, अमरनाथ गुफा और चरार-ए-शरीफ भी पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 16. जलोढ़ मैदान का विस्तार बताइए।
उत्तर–जलोढ़ मैदान उत्तरी भारत में सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा बहाकर लाए गए जलोढ़ निक्षेप से बना है। इसकी पूर्व से पश्चिमी लम्बाई, 3,200 किलोमीटर है तथा अधिकतम चौड़ाई 150 से 300 किमी है। इस मैदान में जलोढ़ का निक्षेप अधिकतम 1,000 से 2,000 मीटर गहरा है।।

प्रश्न 17, पामीर ग्रन्थि कहाँ स्थिति है? इससे निकली उत्तरी-पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्वी पर्वत श्रेणियों केनाम बताइए।
उत्तर–पामीर ग्रन्थि भारत के उत्तर में मध्य एशिया में स्थित है। इससे निकलने वाली उत्तरी-पूर्वी पर्वत श्रेणी तियानशान तथा दक्षिण-पूर्वी श्रेणी कराकोरम है।

प्रश्न 18. कराकोरम के दक्षिण में स्थित दो समानान्तर पर्वत श्रेणियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर-लद्दाख तथा जास्कर श्रेणियाँ कराकोरम के दक्षिण में स्थित समानान्तर श्रेणियाँ हैं।

प्रश्न 19. हिमालय की किन्हीं चार ऊँची चोटियों के नाम बताइए।
उत्तर-माउण्ट एवरेस्ट (सबसे ऊँची चोटी), कंचनजंगा, नन्दादेवी तथा धौलगिरि (उत्तराखण्ङ)।

प्रश्न 20. भारत का कौन-सा भौतिक भाग सबसे अधिक उपजाऊ है और क्यों?
उत्तर-भारत के उत्तरी विशाल मैदान सबसे अधिक उपजाऊ हैं। इसका कारण यह है कि यहाँ की जलोढ़ मिट्टी बहुत ही उपजाऊ है और सिंचाई की अच्छी सुविधाएँ एवं आदर्श जलवायु उपलब्ध है।

प्रश्न 21. उत्तरी मैदानों को कौन-कौन से नदी-तन्त्रों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर-(1) पश्चिम में सिन्धु नदी तन्त्र। (2) पूर्व में गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र।

प्रश्न 22. तराई प्रदेश कहाँ स्थित है? इसकी दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर–तराई प्रदेश भाबर के दक्षिण में स्थित है।
विशेषताएँ–(1) यह प्रदेश दलदली है। (2) यह घने वनों से ढका था किन्तु वर्तमान में यहाँ कृषि भूमि का विकास हो रहा है।

प्रश्न 23. पश्चिमी तटीय मैदानों को कौन-कौन से भागों में बाँटा जाता है?
उत्तर-कोंकण (उत्तरी भाग), कन्नड़ (मध्य भाग) तथा मालाबार (दक्षिण भाग)। प्रश्न 24. पूर्वी तटीय मैदानों के उत्तरी तथा दक्षिणी भागों को किस-किस नाम से पुकारा जाता है? उत्तर-क्रमशः उत्तरी सरकार तथा कोरोमण्डल तट।

प्रश्न 25. भारत के पाँच भौतिक विभाग कौन-से हैं?
उत्तर–भारत के पाँच भौतिक विभाग हैं-(1) उत्तर के विशाल पर्वत, (2) उत्तर भारत के मैदान, (3) प्रायद्वीपीय पठार, (4) तटीय मैदान, (5) द्वीप समूह।

प्रश्न 26. पूर्वांचल बनाने वाली पाँच प्रमुख पहाड़ी श्रेणियों के नाम लिखिए।
उत्तर-पूर्वांचल बनाने वाली पाँच प्रमुख पहाड़ी श्रेणियाँ हैं-गारो, खासी, जयन्तिया, नागा तथा मिजो।

प्रश्न 27. भारत का कौन-सा भू-भाग प्राचीनतम है?
उत्तर-भारत का प्राचीनतम भू-भाग दक्षिण का पठार है। यह कठोर आग्नेय तथा रूपान्तरित शैलों से बना है। यह भाग प्राचीनतम गोण्डवानालैण्ड का भाग है।

प्रश्न 28. भारत के नवीन और प्राचीनतम पर्वतों का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर–नवीन या युवापर्वत–हिमालय।। प्राचीनतम पर्वत-अरावली।

प्रश्न 29. हिमालय के चार प्रमुख दरों के नाम लिखिए।
उत्तर-हिमालय में अनेक महत्त्वपूर्ण दरें हैं। कश्मीर में कराकोरम, हिमालय में शिपकीला, सिक्किम में नाथुला तथा अरुणाचल प्रदेश में बोमडिला दर्रा स्थित है।

प्रश्न 30. दून क्या है?
उत्तर-पर्वतीय क्षेत्र में अनुदैर्घ्य विस्तार में पाई जाने वाली समतल संरचनात्मक घाटियाँ दून कहलाती हैं। जैसे-देहरादून की घाटी।

प्रश्न 31. पश्चिमी घाट के दो दरों के नाम बताइए।
उत्तर-पश्चिमी घाट के दो दरों के नाम हैं-(1) भोरघाट तथा (2) थालघाट।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत के उत्तरी विशाल मैदान का निर्माण किस प्रकार हुआ ? ।
उत्तर-भारत का उत्तरी मैदान हिमालय तथा दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार के मध्य स्थित है। यह मैदान हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार से निकलकर उत्तर की ओर बहने वाली नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टियों से बना है। इन महीन मिट्टियों को जलोढ़क’ कहते हैं। उत्तरी मैदान जलोढ़कों द्वारा निर्मित एक समतल उपजाऊ भू-भाग है। प्राचीनकाल में इस मैदान के स्थान पर एक विशाल गर्त था। हिमालय पर्वतों के निर्माण के बाद हिमालय से निकलकर बहने वाली नदियों ने उस गर्त में गाद भरने शुरू किये। अनाच्छादन के कारकों ने हिमालय का अपरदन किया तथा भारी मात्रा में अवसाद उस गर्त में एकत्रित होते गये। क्रमशः वह गर्त अवसादों से पट गया तथा उत्तरी मैदान की रचना हुई।

प्रश्न 2, पश्चिमी तटीय मैदान की भौगोलिक स्थिति एवं विस्तार तथा उसकी तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या भारत के पश्चिमी तटीय भाग के दोनों नामों को स्थिति सहित लिखिए।
उत्तर-पश्चिमी तटीय मैदान एक सँकरी पट्टी के रूप में विस्तृत हैं। प्रायद्वीप के पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक इस मैदान का विस्तार है। इसकी औसत चौड़ाई 64 किमी है, जबकि नर्मदा एवं ताप्ती नदियों के मुहाने के निकट ये 80 किमी तक चौड़े हैं। इस मैदान के उत्तरी भाग को कोंकण तथा दक्षिणी भाग को मालाबार कहते हैं। यहाँ सघन जनसंख्या पायी जाती है। इनकी स्थिति का विवरण निम्नलिखित है|

1. कोंकण का मैदान इस मैदान का विस्तार दमन से लेकर गोआ तक 500 किमी की लम्बाई में | है। इस मैदान की चौड़ाई 50 से 60 किमी के बीच है तथा मुम्बई के निकट सबसे अधिक है।

2. मालाबार का तटीय मैदान–इस मैदान का विस्तार मंगलोर से लेकर कन्याकुमारी तक 500 किमी की लम्बाई में है। इस पर लैगून नामक छोटी-छोटी तटीय झीलें पायी जाती हैं। पश्चिमी तटीय मैदानों की प्रमुख तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • ये मैदान एक सँकरी पट्टी के रूप में विस्तृत हैं। गुजरात में ये अधिकतम चौड़े हैं तथा दक्षिण की
    ओर सँकरे हैं।
  • इस तट पर अनेक ज्वारनदमुख स्थित हैं जिनमें नर्मदा और ताप्ती के ज्वारनदमुख (एस्चुरी) मुख्य हैं।
  • दक्षिण में केरल में अनेक लैगून या पश्चजल स्थित हैं। उनके मुख पर बालूमिति या रोधिकाएँ स्थित हैं।

प्रश्न 3. पूर्वी तटीय मैदान की स्थिति, विस्तार तथा उसकी तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी किनारे पर बंगाल की खाड़ी के तट तक तथा पूर्वी घाट के मध्य प० बंगाल से लेकैर दक्षिण में कन्याकुमारी तक पूर्वी तटीय मैदानों का विस्तार है। तमिलनाडु में यह मैदान 100 से 120 किमी चौड़ा है। गोदावरी के डेल्टा के उत्तर में यह सँकरा है। कहीं-कहीं इसकी चौड़ाई 32 किमी तक है। इसकी तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • यह मैदान पश्चिमी तटीय मैदान से अधिक चौड़ा है। नदियों के डेल्टाओं के निकट विशेष रूप से यह अधिक चौड़ा है।
  • नदी डेल्टाओं के मैंदान अत्यधिक उर्वर तथा सघन आबाद हैं। महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी यहाँ बहने वाली नदियाँ हैं।
  • डेल्टाओं में नदियों से अनेक नहरें निकाली गयी हैं, जो सिंचाई के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। यहाँ अनेक लैगून झीलें भी मिलती हैं, जिनमें ओडिशा की चिल्का, आन्ध्र प्रदेश की कोलेरू तथा तमिलनाडु की पुलीकट झीलें उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 4. उत्तरी पर्वत प्राचीर तथा प्रायद्वीपीय पठार में क्या अन्तर है?
उत्तर-उत्तरी पर्वत प्राचीर तथा प्रायद्वीपीय पठार में निम्नलिखित अन्तर हैं
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प्रश्न 5. हिमालय की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए। |
या हिमालय का निर्माण किस प्रकार हुआ ?
उत्तर-उच्चावच से तात्पर्य किसी भू-भाग के ऊँचे व नीचे धरातल से है। सभी प्रकार के पहाड़ी, पठारी वे मैदानी तथा मरुस्थलीय क्षेत्र मिलकर किसी क्षेत्र के उच्चावच का निर्माण करते हैं। उच्चावच की दृष्टि से भारत में अनेक विभिन्नताएँ मिलती हैं। इनका मूल कारण अनेक शक्तियों और संचलनों का परिणाम है, जो लाखों वर्ष पूर्व घटित हुई थीं। इसकी उत्पत्ति भूवैज्ञानिक अतीत के अध्ययन से स्पष्ट की जा सकती है। आज से 25 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप विषुवत रेखा के दक्षिण में स्थित प्राचीन गोण्डवानालैण्ड का एक भाग था। अंगारालैण्ड नामक एक अन्य प्राचीन भूखण्ड विषुवत रेखा के उत्तर में स्थित था। दोनों प्राचीन भूखण्डों के मध्य टेथिस नामक एक सँकरा, लम्बा, उथला सागर था। इन भूखण्डों की नदियाँ टेथिस में अवसाद जमा करती रहीं, जिससे कालान्तर में टेथिस सागर पट गया। पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण दोनों भूखण्ड टूटे। गोण्डवानालैण्ड से भारत का प्रायद्वीप अलग हो गया तथा भूखण्डों के टूटे हुए भाग विस्थापित होने लगे। आन्तरिक हलचलों से टेथिस सागर के अवसादों की परतों में भिंचाव हुआ और उसमें विशाल मोड़ पड़ गये। इस प्रकार हिमालय पर्वत-श्रृंखला की रचना हुई। इसी कारण हिमालय को वलित पर्वत कहा जाता है।

हिमालय की उत्पत्ति के बाद भारतीय प्रायद्वीप और हिमालय के मध्य एक खाई या गर्त शेष रह गया। हिमालय से उतरने वाली नदियों ने स्थल को अपरदन करके अवसादों के उस गर्त को क्रमश: भरना शुरू किया जिससे विशाल उत्तरी मैदान की रचना हुई। इस प्रकार भारतीय उपमहाद्वीप की भू-आकृतिक इकाइयाँ अस्तित्व में आयीं।।

प्रश्न 6. भारत के समुद्रतटीय मैदानों के आर्थिक महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर–प्रायद्वीपीय पठार के दोनों ओर पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली सँकरी पट्टी के रूप में जो मैदान फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहते हैं। ये क्रमश: पश्चिमी तथा पूर्वी समुद्रतटीय मैदान कहलाते हैं। इनका आर्थिक महत्त्व अग्रवत् है

1. पश्चिमी तटीय मैदान–प्रायद्वीप के पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक इस मैदान का विस्तार है। नर्मदा तथा ताप्ती यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं। नदियों के मुहानों पर बालू जम जाने से यहाँ लैगून निर्मित होते हैं। इनमें मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। उपयुक्त जलवायु तथा उत्तम मिट्टी के कारण यहाँ चावल, आम, केला, सुपारी, काजू, इलायची, गरम मसाले, नारियल आदि की फसलें उगायी जाती हैं। सागर तट पर नमक बनाने तथा मछलियाँ पकड़ने का व्यवसाय भी पर्याप्त रूप में विकसित हुआ है। भारत के प्रमुख पत्तन इन्हीं मैदानों में स्थित हैं। काण्दला, मुम्बई (न्हावाशेवा) व कोचीन इस तट के प्रमुख बन्दरगाह हैं।

2. पूर्वी तटीय मैदान–प्रायद्वीपीय पठारों के पूर्वी किनारों पर बंगाल की खाड़ी के तट तक तथा पूर्वी घाट के मध्य प० बंगाल से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक पूर्वी तटीय मैदानों का विस्तार है। इस मैदान में महानदी, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के डेल्टा विकसित हुए हैं। डेल्टाओं में नदियों से अनेक नहरें निकाली गयी हैं, जो सिंचाई का महत्त्वपूर्ण साधन हैं। यह तटीय मैदान उपजाऊ है तथा कहीं-कहीं पर काँप मिट्टी से ढका है। यह मैदान कृषि की दृष्टि से बड़ा अनुकूल है। चावल, गन्ना, तम्बाकू व जूट इस मैदान की मुख्य उपज हैं।

प्रश्न 7. भारत के पश्चिमी तथा पूर्वी तटीय मैदानों में दो मुख्य अन्तर लिखिए।
या भारत के पूर्वी व पश्चिमी तटीय मैदानों की तुलना कीजिए।
उत्तर–प्रायद्वीपीय पठार के दोनों ओर पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली पट्टी के रूप में जो मैदान फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहते हैं। इन मैदानों को दो क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है-पूर्वी तटीय मैदान एवं पश्चिमी तटीय मैदान। इन दोनों मैदानों में दो मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं

  • आकार-पश्चिमी तटीय मैदान एक सँकरी पट्टी के रूप में विस्तृत हैं। इनकी औसत चौड़ाई 64 किमी है तथा नर्मदा एवं ताप्ती के मुहाने के निकट ये 80 किमी चौड़े हैं, जबकि पूर्वी तटीय मैदान | अपेक्षाकृत अधिक चौड़े हैं। इनकी औसत चौड़ाई 161 से 483 किमी है।।
  • विस्तार–पश्चिमी तटीय मैदान प्रायद्वीप के पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक फैले हैं, जबकि पूर्वी तटीय मैदान प्रायद्वीपीय पठारों के पूर्वी किनारों पर बंगाल की खाड़ी के तट तक तथा पूर्वी घाट के मध्य पश्चिमी बंगाल से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक विस्तृत हैं।

प्रश्न 8. हिमालय को नवीन वलित पर्वत क्यों कहते हैं?
उत्तर-हिमालय पर्वत भारत और तिब्बत (चीन) के मध्य एक अवरोध के रूप में स्थित है। यह एक नवीन वलित पर्वतश्रेणी है, जो अब भी क्रमशः ऊँची उठ रही है।

हिमालय पर्वत की उत्पत्ति के सम्बन्ध में भू-वैज्ञानिकों का मत है कि आज जहाँ हिमालय है, वहाँ पहले कभी टेथिस नामक महासागर लहराता था। टेनिस महासागर भारत और म्यांमार (बर्मा) की वर्तमान सीमा से लेकर पश्चिमी एशिया के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ था (वर्तमान में भूमध्यसागर इसी का अवशॆष है)। इस महासागर के उत्तर में अंगारालैण्ड तथा दक्षिण में गोंडवानालैण्ड कठोर स्थलखण्ड स्थित थे। इन स्थलखण्डों से नदियाँ प्रतिवर्ष भारी अवसाद बहाकर टेथिस सागर में जमा करती चली गईं। कालान्तर में भूगर्भ की आन्तरिक परिवर्तनकारी शक्तियों के फलस्वरूप ये दोनों कठोर स्थलखण्ड एक-दूसरे की ओर खिसके, जिससे टेथिस की अवसाद में वलन पने आरम्भ हो गए। कालान्तर में इस अवसाद ने वलित पर्वत का रूप धारण कर लिया, जो आज हिमालय के नाम से जाना जाता है। हिमालय की उत्पत्ति आज से लगभग 7 करोड़ वर्ष पूर्व मैसोजोइक (मध्य-जीव) महाकल्प से आरम्भ होकर अब से 20 लाख वर्ष पूर्व प्लीस्टोसीन युग तक चलती रही। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में आज भी आन्तरिक परिवर्तनकारी शक्तियाँ क्रियाशील हैं, इसी कारण हिमालय आज भी ऊँचा उठ रहा है। इसीलिए हिमालय को नवीन वलित पर्वत कहा जाता है।

प्रश्न 9. पश्चिमी हिमालय और पूर्वी हिमालय का सचित्र तुलनात्मक वर्णन कीजिए।
उत्तर- पश्चिमी और पूर्वी हिमालय की तुलना
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प्रश्न 10. भारत के दो प्राकृतिक विभागों के नाम लिखिए तथा संक्षेप में उनकी स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-भारत के दो प्राकृतिक भाग तथा उनकी स्थिति इस प्रकार है–

1. उत्तर में विशाल पर्वतों की प्राचीर अथवा हिमालय पर्वतीय प्रदेश–भारत के उत्तर में लगभग 2,500 किमी की लम्बाई तथा 150 से 400 किमी की चौड़ाई में हिमालय पर्वतीय प्रदेश का विस्तार है। यह विशाल पर्वतों की प्राचीर पूर्व से पश्चिम दिशा में चाप के आकार में फैली हुई है। इस पर्वतीय प्रदेश का विस्तार लगभग 5 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल में विस्तृत है।

2. उत्तरी मैदान अथवा उत्तर का विशाल मैदान–हिमालय पर्वत के दक्षिण तथा दकन पठार के उत्तर में गंगा, सतलज, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों की काँप मिट्टी द्वारा निर्मित उपजाऊ एवं समतल मैदान को उत्तर को विशाल मैदान कहते हैं। इसका क्षेत्रफल लगभग 7 लाख वर्ग किमी है। इसे जलोढ़ मैदान’ के नाम से भी पुकारते हैं। इस मैदान की लम्बाई पूर्व से पश्चिमी
लगभग 2,414 किमी तथा चौड़ाई पूर्व में 145 किमी तथा पश्चिम में 480 किमी है।।

प्रश्न 11. कश्मीर भारत का स्विट्जरलैण्ड कहलाता है, क्यों?
उत्तर-कश्मीर स्विट्जरलैण्ड की भाँति अद्वितीय प्राकृतिक एवं नैसर्गिक सौन्दर्य रखने वाला प्रदेश है। स्विट्जरलैण्ड को ‘यूरोप का स्वर्ग’ कहकर पुकारा जाता है; अत: कश्मीर ‘भारत का स्विट्जरलैण्ड’ तथा ‘भारत का स्वर्ग’ भी कहलाता है। इस सन्दर्भ में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किए जा सकते हैं

  • स्विट्जरलैण्ड अपनी सुन्दर दृश्यावलियों एवं पर्वतीय ढालों के लिए प्रसिद्ध है, ठीक उसी प्रकार कश्मीर प्राकृतिक एवं नैसर्गिक सौन्दर्य की विशिष्टता रखने वाला प्रदेश है।
  • स्विट्जरलैण्ड के पर्वतीय ढाल हिम से ढके रहते हैं, ठीक उसी प्रकार कश्मीर के पर्वतीय ढाल भी वर्षभर हिम से आच्छादित रहते हैं।
  • स्विट्जरलैण्ड बर्फ के खेलों के लिए यूरोप में ही नहीं, अपितु विश्वभर में प्रसिद्ध है, ठीक उसी | प्रकार कश्मीर में भी बर्फ के खेलों (स्कीइंग) का आनन्द उठाया जा सकता है।
  • स्विट्जरलैण्ड की घाटी हरे-भरे वृक्षों, उत्तम जलवायु तथा अनूठे सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध है, ठीक उसी प्रकार कश्मीर घाटी अँगूठी में जड़े नगीने के समान सौन्दर्य की खान है। यही कारण है कि इसकी तुलना स्विट्जरलैण्ड के साथ की जाती है।

प्रश्न 12. पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट में अन्तर
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प्रश्न 13. पूर्वांचल में कौन-कौन सी श्रृंखलाएँ सम्मिलित हैं?
उत्तर–भारत की पूर्वी सीमा पर विस्तृत पर्वतों को पूर्वांचल कहा जाता है। ये पर्वत श्रृंखलाएँ हिमालय की भाँति विशाल नहीं हैं तथा न ही अधिक ऊँची हैं। ये मध्यम ऊँचाई की पर्वतश्रेणियाँ हैं। इन पर्वतश्रेणियों में उत्तर की ओर पटकोई, बुम एवं नाग पहाड़ियाँ तथा दक्षिण की ओर मिजो पहाड़ियाँ (लुशाई पहाड़ियाँ) सम्मिलित हैं। मध्य में ये पहाड़ियाँ पश्चिम की ओर मुड़ जाती हैं तथा मेघालय राज्य में भारत-बांग्लादेश की सीमा के साथ विस्तृत हैं। यहाँ इन पहाड़ियों को पश्चिम से पूर्व की ओर गारो, खासी और जयन्तिया के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

प्रश्न 14. भारत की त्रिस्तरीय भू-आकृति में क्या-क्या समानताएँ पाई जाती हैं?
उत्तर–भारत की त्रिस्तरीय भू-आकृति में निम्नलिखित समानताएँ पाई जाती हैं

  • भारत के प्रायद्वीपीय पठार पर युवा स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं जो हिमालय पर्वत क्षेत्र की विशेषता | है। दूसरी ओर हिमालय पर भी घर्षित धरातल मिलते हैं जो प्रायद्वीपीय पठार की विशेषता है।
  • प्रायद्वीपीय पठार तथा हिमालय पर्वतमाला के निर्माण की प्रक्रिया में समानता दिखाई देती है। | हिमालय पर्वत के उत्थान के समय प्रायद्वीपीय पठार का एक भाग तथा अरावली पहाड़ियाँ भी। प्रभावित हुई हैं।
  • उत्तरी मैदान के निर्माण में हिमालय की तलछट तथा प्रायद्वीपीय पठार की तलछट दोनों का योगदान रहा है।

प्रश्न 15. दोआब से आप क्या समझते हैं? भारतीय उपमहाद्वीप से पाँच उदाहरणं दीजिए।
उत्तर-दो नदियों का मध्य भाग दोआब कहलाता है। भारतीय उपमहाद्वीप में निम्नलिखित दोआब स्थित हैं

  1. गंगा-यमुना दोआबे,
  2. व्यास एवं सतलज के बीच का विस्ट-जालंधर दोआब,
  3. व्यास एवं रावी के मध्य का बारी दोआब,
  4. रावी एवं चेनाब के मध्य का रेचना दोआब,
  5. चेनाब एवं झेलम के मध्य का छाज दोआब।

प्रश्न 16. विशाल मैदान के विशिष्ट भौतिक लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर–हिमालय के दक्षिण से विशाल मैदान का विस्तार आरम्भ हो जाता है। इस मैदान की उत्पत्ति नूतन काल में हुई है। यह मैदान रोचक भू-लक्षणों से युक्त है। इसकी उत्तरी सीमा पर गिरिपाद मैदान स्थित है जो महीन मलबे और मोटे कंकड़ों से बना है, जिन्हें भाबर कहते हैं। इस मैदान के दक्षिण में तराई का मैदान मिलता है। इस मैदान के प्राचीन जलोढ़कों को बांगर तथा नवीन जलोढ़कों को खादर कहते हैं। विशाल मैदान में कहीं-कहीं गर्त भी पाए जाते हैं। पटना के निकट के गर्त को जिल्ला तथा मोकाम के निकट के गर्त को ‘ढाल’ कहते हैं। इस मैदान में जलोढ़ झीलें हैं जिनका स्थानीय नाम ‘बिल’ हैं।

प्रश्न 17 दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-सिक्किम और दार्जिलिंग हिमालय अपने रमणीय सौन्दर्य वनस्पतिजात और प्राणिजात के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ तेज बहाव वाली तिस्ता नदी बहती है और कंचनजंगा जैसी ऊँची चोटियाँ एवं गहरी घाटियाँ स्थित हैं। इन पर्वतों के उच्च शिखरों पर लेपचा जनजाति और दक्षिणी में मिश्रित जनसंख्या है, जिसमें नेपाली, बंगाली तथा मध्य भारत की जनजातियाँ निवास करती हैं। हिमालय का यह भाग चाय उत्पादन के लिए आदर्श दशाएँ रखता है। इसलिए यहाँ चाय बागानों का पर्याप्त विकास हुआ है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत को प्रमुख भू-आकृतिक विभागों में बाँटिए और भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का वर्णन कीजिए।
या भारत को भौतिक विभागों में विभाजित कीजिए तथा उनमें से किन्हीं एक का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) स्थिति का विस्तार, (ख) प्राकृतिक स्वरूप।
या भारत को उच्चावच के आधार पर भौतिक विभागों में विभाजित कीजिए तथा उनमें से किसी एक की स्थिति, विस्तार एवं भौतिक स्वरूप का वर्णन कीजिए।
या भारत को विभिन्न भौतिक विभागों में बाँटिए और पूर्वी तथा पश्चिमी मैदानों की
विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर – भारत का प्राकृतिक स्वरूप (बनावट)।
भारत एक विशाल देश है। भू-आकृतिक संरचना की दृष्टि से भारत में अनेक विषमताएँ एवं विभिन्नताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। भारत का 29.3% भाग पर्वतीय, पहाड़ी एवं ऊबड़-खाबड़; 27.7% भाग पठारी तथा 43% भाग मैदानी है। भारत में अन्य देशों की अपेक्षा मैदानी क्षेत्रों का विस्तार अधिक है (विश्व का औसत 41%)। देश में एक ओर नवीन मोड़दार पर्वत-श्रृंखलाएँ हैं, तो दूसरी ओर विस्तृत तटीय मैदान, कहीं नदियों द्वारा समतल उपजाऊ मैदान हैं तो कहीं प्राचीनतम कठोर चट्टानों द्वारा निर्मित कटा-फटा पठारी भाग है। इस प्रकार जम्मू से कन्याकुमारी तक भारत को उच्चावच अथवा भू-आकृतिक संरचना के अनुसार निम्नलिखित पाँच भागों में विभाजित किया जा सकता है

  1. उत्तरीय पर्वतीय प्रदेश,
  2. उत्तरी भारत का विशाल मैदान,
  3. दक्षिण का पठार,
  4. समुद्रतटीय मैदान एवं द्वीप समूह,
  5. थार का मरुस्थल।

इनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
1. उत्तरी पर्वतीय प्रदेश-भारत के उत्तर में लगभग 2,500 किमी की लम्बाई तथा पूर्व में 150 किमी तथा पश्चिम में 400 किमी की चौड़ाई में उत्तरी अथवा हिमालय पर्वतीय प्रदेश का विस्तार है। यह पर्वत-श्रृंखला पूर्व से पश्चिम तक चाप के आकार में फैली हुई है। इस पर्वतीय प्रदेश का विस्तार लगभग 5 लाख वर्ग किमी है। यह मोड़दार पर्वतमाला तीन समानान्तर श्रेणियों-(i) महान् हिमालय (हिमाद्रि हिमालय), (ii) लघु हिमालय, (iii) बाह्य हिमालय (शिवालिक हिमालय) में विस्तृत है। महान् हिमालय की औसत ऊँचाई 6,000 मीटर से अधिक होने के कारण ये श्रेणियाँ सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं। विश्व की सर्वोच्च पर्वत-श्रेणी माउण्ट एवरेस्ट इसी हिमालय पर्वतमाला में स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई 8,848 मीटर है। हिमालय पर्वत उत्तरी भारत की अधिकांश नदियों का उद्गम स्थल तथा हरे-भरे वनों का भण्डार है। यहाँ बहने वाली नदियाँ तीव्रगामी तथा अपनी युवावस्था में हैं। ये उत्तरी मैदानों में बहती हुई अरब सागर या बंगाल की खाड़ी में गिर जाती हैं। इनसे भारतीय उपमहाद्वीप की तीन प्रमुख नदियाँ सिन्धु, सतलुज तथा ब्रह्मपुत्र हिमालय के उस पार से निकलती हैं।

हिमालय अपनी सुन्दर और रमणीक घाटियों के लिए विश्वविख्यात है, जिनमें कश्मीर घाटी, दून घाटी, कुल्लू और काँगड़ा घाटी पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं।
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2. उत्तरी भारत का विशाल मैदान-उत्तरी भारत अथवा गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान हिमालय पर्वत के दक्षिण में और दक्षिणी पठार के उत्तर में भारत का ही नहीं वरन् विश्व का सबसे अधिक उपजाऊ और घनी जनसंख्या वाला मैदान है। इसका क्षेत्रफल लगभग 7 लाख वर्ग किमी से अधिक है। इस मैदान की पश्चिम से पूरब की लम्बाई 2,414 किलोमीटर तथा उत्तर-दक्षिण की चौड़ाई 150 से 500 किलोमीटर है। इस मैदान का ढाल लगभग 25 सेण्टीमीटर प्रति किलोमीटर है। अरावली पर्वत-श्रेणी को छोड़कर इसका कोई भी भाग समुद्र तल से 150 मीटर से ऊँचा नहीं है।

यह मैदान सिन्धु, सतलुज, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और उनकी अनेक सहायक नदियों द्वारा लाई गयी मिट्टी से बना है; अत: यह बहुत ही उपजाऊ है। इस मैदान के बीच में अरावली पर्वत आ जाने के कारण सिन्धु और उसकी नदियाँ पश्चिम में तथा गंगा और उसकी सहायक नदियाँ तथा ब्रह्मपुत्र पूर्व में बहती हैं। पश्चिमी मैदान का ढाल उत्तर से दक्षिण की ओर है और पूर्वी मैदान का ढाल उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है। इस मैदान में गहराई नहीं पायी जाती। सम्पूर्ण गंगा का मैदान बाँगर तथा खादर से निर्मित है। यहाँ देश की 45% जनसंख्या निवास करती है। प्रति वर्ष नदियाँ इस मैदान में उपजाऊ काँप मिट्टी अपने साथ लाकर बिछाती रहती हैं।

3. दक्षिण का पठार (प्रायद्वीपीय पठार)–भारत के दक्षिण में प्राचीन ग्रेनाइट तथा बेसाल्ट की
कठोर शैलों से बना दकन का पठार है, जिसे दक्षिण का पठार भी कहते हैं। यह राजस्थान से लेकर कुमारी अन्तरीप तक और पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व की ओर पश्चिम बंगाल तक विस्तृत है। इसको आकार त्रिभुजाकार है एवं आधार उत्तर की ओर तथा शीर्ष दक्षिण की ओर है। पठार के उत्तर में अरावली, विन्ध्याचल और सतपुड़ा की पहाड़ियाँ हैं, पश्चिम में ऊँचे पश्चिमी घाट और पूरब में निम्न पूर्वी घाट और दक्षिण में नीलगिरि पर्वत हैं।

इसके पश्चिमी भाग पर ज्वालामुखी द्वारा निर्मित लावा के निक्षेप हैं, जो काली मिट्टी के उपजाऊ क्षेत्र हैं। इस पठारी क्षेत्र पर अधिकांश नदियों ने गहरी घाटियाँ बना ली हैं। इस पठार की औसत ऊँचाई 500 से 750 मीटर है। इसका धरातल बहुत ही विषम है। इस पठारी भाग का क्षेत्रफल लगभग 16 लाख वर्ग किमी है। दकन का पठारी क्षेत्र खनिज पदार्थों का विशाल भण्डार है। इस पठार पर बहुमूल्य मानसूनी वन सम्पदा पायी जाती है। सागौन एवं चन्दन की बहुमूल्य लकड़ी इसी पठारी भाग में मिलती है। यह कृषि-उपजों का भण्डार तथा उद्योग-धन्धों का महत्त्वपूर्ण केन्द्र भी हैं।

इस पठार पर बहने वाली अधिकांश नदियाँ दक्षिण-पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी ऐसी ही नदियाँ हैं। नर्मदा और ताप्ती नदियाँ भ्रंश घाटी में होकर बहती हैं तथा अरब सागर में गिरती हैं। अरब सागर में गिरने वाली अन्य नदियाँ बहुत छोटी तथा तीव्रगामी हैं।

4. समुद्रतटीय मैदान एवं द्वीप समूह–दकन के पठार के दोनों ओर पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली पट्टी के रूप में जो मैदान फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहते हैं। इन मैदानों का निर्माण सागर की लहरों तथा नदियों ने अपनी निक्षेप क्रियाओं द्वारा लाये गये अवसाद से किया है। इस मैदानी क्षेत्र को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है

(i) पश्चिमी तटीय मैदान–यह मैदान पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक फैला हुआ है। इसकी औसत चौड़ाई 64 किलोमीटर है। इसमें बहने वाली नदियाँ अत्यन्त तीव्रगामी हैं। इसके दक्षिणी मार्ग में नावों के लिए अनेक अनूप (Lagoons) पाये जाते हैं। नया मंगलोर, कोचीन इन्हीं अनू” पर स्थित हैं। यहाँ चावल, केला, गन्ना व रबड़ खूब पैदा होता है। कांदला, मुम्बई व कोचीन इस तट पर स्थित अन्य प्रमुख बन्दरगाह हैं।

(ii) पूर्वी तटीय मैदान–पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा यह मैदान अधिक चौड़ा है। इसकी औसत चौड़ाई 161 से 483 किलोमीटर है। यह उत्तर में गंगा के मुहाने से दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक फैला हुआ है। कोलकाता, मद्रास (चेन्नई) व विशाखापत्तनम् इसे तट के प्रमुख बन्दरगाह हैं।

द्वीप समूह–भारत के मुख्य स्थल भाग के पश्चात् सागरों के बीच में जो आकृतियाँ स्थित हैं वे द्वीपसमूह के रूप में जानी जाती हैं। ये भारत का अभिन्न अंग हैं। छोटे-बड़े मिलाकर कुल 247 द्वीप हैं, जो स्थिति अनुसार निम्नलिखित दो भागों में बँटे हुए हैं

(i) अरब सागरीय द्वीप-ये द्वीप अरब सागर के मुख्य स्थल (केरल तट) के पश्चिम में स्थित हैं। इन द्वीपों की आकृति घोड़े की नाल या अँगूठी के समान है। इनका निर्माण अल्पजीवी सूक्ष्म प्रवाल जीवों के अवशेषों के जमाव से हुआ है। इसलिए इन्हें प्रवालद्वीप वलय (एटॉल) कहते हैं। इनमें लक्षद्वीप, मिनीकोय एवं अमीनदीवी प्रमुख हैं। इन द्वीपों पर नारियल के वृक्ष बहुत अधिक उगाये जाते हैं। इन द्वीपों की संख्या.43 है तथा लक्षद्वीप का क्षेत्रफल मात्र 32 वर्ग किलोमीटर है। कवरत्ति यहाँ की राजधानी है।

(ii) बंगाल की खाड़ी के द्वीप-बंगाल की खाड़ी में भी भारत के अनेक द्वीप हैं। इन्हें अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह के नाम से पुकारते हैं। ये द्वीप बड़े भी हैं और संख्या में भी अधिक हैं। ये जल में डूबी हुई पहाड़ियों की श्रृंखला पर स्थित हैं। इन द्वीपों में से कुछ की उत्पत्ति ज्वालामुखी के उद्गार से हुई है। भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी इन्हीं द्वीपों में एक बैरन द्वीप पर स्थित है। इनका विस्तार 590 किमी की लम्बाई तथा अधिकतम 50 किमी की चौड़ाई में अर्द्ध-चन्द्राकार रूप में बना हुआ है। ये द्वीप यहाँ एक समूह के रूप में पाये जाते हैं, जो एक-दूसरे से संकीर्ण खाड़ी द्वारा पृथक् होते हैं। इनकी कुल संख्या 204 है तथा पोर्ट ब्लेयर यहाँ की राजधानी है।।

5. थार का मरुस्थल-राजस्थान का उत्तर-पश्चिमी भाग रेगिस्तानी है जिसे ‘थार का मरुस्थल कहा जाता है। इस मरुस्थल का कुछ भाग पाकिस्तान में भी है। इस भाग में प्रतिदिन धूल व रेतभरी तेज हवाएँ चलती हैं, जो जगह-जगह रेत के टीले बना देती हैं। यहाँ 10 सेमी से भी कम वर्षा होती है, इसलिए यह भाग वर्ष भर शुष्क बना रहता है और पूरे भाग में पानी की कमी रहती है। अत: यहाँ ज्वार-बाजरा जैसी कम पानी वाली फसलें अधिक उगाई जाती हैं। यह मरुस्थलीय भाग 644 किमी लम्बा व लगभग 161 किमी चौड़ा है। इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 1,04,000 वर्ग किमी है तथा इसका विस्तार हरियाणा, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात राज्यों में है। इस प्रदेश में अत्यन्त विरल जनसंख्या निवास करती है। लूनी इस मरुस्थलीय प्रदेश की मुख्य मौसमी नदी है। यहाँ पर साँभर, डिंडवाना, लूनकरनसर, कुचामन तथा डेगाना खारे पानी की प्रमुख झीलें हैं, जिनसे नमक बनाया जाता है। कुछ भागों में ग्रेनाइट, नीस तथा शिस्ट चट्टानों की नंगी सतह दिखलायी पड़ती हैं। खनिज पदार्थों में ताँबा, जिप्सम पत्थर तथा मुल्तानी मिट्टी यहाँ मुख्यतः मिलती हैं। राजस्थान में झुंझुनू जिले के खेतड़ी नगर के पास ताँबे की अनेक खाने हैं। यहाँ ऊँट यातायात का प्रमुख साधन है, जिसे रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है। मरुस्थलीय संरचना एवं जलवायु की विषमताओं के कारण यह क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। पूर्व की ओर इन्दिरा गांधी नहर के बन जाने से धीरे-धीरे सम्बद्ध क्षेत्रों में विकास हो रहा है।

प्रश्न 2. भारत के उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत की बनावट कैसी है? इस प्रदेश का भौगोलिक वर्णन कीजिए।
या हिमालय पर्वत से भारत को क्या लाभ हैं? स्पष्ट कीजिए।
या हिमालय के कोई दो महत्त्व लिखिए।
या हिमालय पर्वतों की तीन समान्तर शृंखलाओं के नाम लिखिए और प्रत्येक की एक-एक विशेषता लिखिए।
या भारत के हिमालय पर्वतीय प्रदेश का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) स्थिति एवं विस्तार, (ख) धरातलीय संरचना, (ग) जल-प्रवाह।
उत्तर-हिमालय पर्वत की संरचना
भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत चाप के आकार में तथा पश्चिम में सिन्धु नदी के मोड़ से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक 2,500 किमी की लम्बाई में चन्द्राकार रूप में फैले हैं। इसकी औसत चौड़ाई 150 से 400 किमी के बीच है। हिमालय; भारत और तिब्बत (चीन) के मध्य एक अवरोध के रूप में स्थित है। मुख्य हिमालय में विश्व की सर्वोच्च पर्वत-चोटियाँ पायी जाती हैं, जिनकी औसत ऊँचाई 6,000 मीटर से भी अधिक है। एशिया महाद्वीप में 97 ऐसी ज्ञात चोटियाँ हैं, जिनकी ऊँचाई 7,500 मीटर से अधिक है। इनमें से 95 चोटियाँ भारत के इसी पर्वतीय प्रदेश में स्थित हैं। हिमालय की ये पर्वत-श्रेणियाँ सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं, इसलिए इस पर्वतमाला का नाम हिमालय रखा गया है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5 लाख वर्ग किमी है। भौगोलिक दृष्टि से हिमालय पर्वतीय प्रदेश को अग्रलिखित उपविभागों में बाँटा जा । सकता है

1. महान् या बृहद् हिमालय–हिमालय की यह पर्वत-श्रेणी सबसे ऊँची है, जिन्हें हिमाद्रि या वृहत्तर हिमालय भी कहा जाता है। इस पर्वत-श्रेणी की औसत ऊँचाई 6,000 मीटर से अधिक होने के कारण यह वर्षभर बर्फ से आच्छादित रहती है। इस पर्वत-श्रेणी की लम्बाई सिन्धु नदी के मोड़ से अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक 2,500 किमी तथा औसत चौड़ाई 25 किमी है। इस क्षेत्र में गंगोत्री, जेमू तथा मिलाम जैसे विशाल हिमनद (Glaciers) पाये जाते हैं, जिनकी लम्बाई 20 किमी से भी अधिक है। माउण्ट एवरेस्ट, कंचनजंगा, मकालू, धौलागिरि, नंगा पर्वत, गॉडविन-ऑस्टिन, त्रिशूल, बदरीनाथ, नीलकण्ठ, केदारनाथ आदि इस क्षेत्र के प्रमुख पर्वत-शिखर हैं। इन पर्वत-श्रेणियों का निर्माण ग्रेनाइट, नीस, शिस्ट आदि कठोर और प्राचीन शैलों से हुआ है। माउण्ट एवरेस्ट (नेपाल देश में स्थित) विश्व की सर्वोच्च पर्वत-श्रेणी है, जिसकी ऊँचाई 8,848 मीटर है। महान् हिमालय में अनेक दरें पाये जाते हैं जिनमें शिपकीला, थांगला, नीति, लिपुलेख, बुर्जिल, माना, नाथुला तथा जैलेपला आदि मुख्य हैं। इन्हीं दरों के मार्ग द्वारा भारत की सीमा के पार जाया जा सकता है। महान् हिमालय की पूर्वी सीमा पर ब्रह्मपुत्र तथा पश्चिमी सीमा पर सिन्धु नदियाँ गहरी एवं सँकरी घाटियों से होकर प्रवाहित होती हैं। बृहद् हिमालय और श्रेणियों के मध्य दो प्रमुख घाटियाँ हैं—काठमाण्डू की घाटी (नेपाल) और कश्मीर की घाटी (भारत)।

2. लघु या मध्य हिमालय—यह पर्वत-श्रेणी महान् हिमालय के दक्षिण में उसके समानान्तर फैली हुई है, जो 80 से 100 किमी तक चौड़ी है। इस श्रेणी की औसत ऊँचाई 2,000 से 3,500 मीटर तक है तथा अधिकतम ऊँचाई 4,500 मीटर तक पायी जाती है। इस भाग में नदियाँ ‘वी’ (V) आकार की घाटियाँ तथा गहरी कन्दराएँ बनाकर बहती हैं, जिनकी गहराई 1,000 मीटर तक है। महान् और लघु हिमालय के मध्य कश्मीर, काठमाण्डू, काँगड़ा एवं कुल्लू की घाटियाँ महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। शीत-ऋतु में तीन-चार महीने यहाँ हिमपात होता है। ग्रीष्म-ऋतु में ये पर्वतीय क्षेत्र उत्तम एवं स्वास्थ्यवर्द्धक जलवायु तथा मनमोहक प्राकृतिक सुषमा के कारण पर्यटन के केन्द्र बन जाते हैं। कश्मीर की जास्कर और पीर पंजाल इसकी महत्त्वपूर्ण श्रेणियाँ हैं, जो अनेक भुजाओं वाली हैं। इस श्रेणी की ऊँचाई 4,000 मीटर है। चकरौता, शिमला, मसूरी, नैनीताल, रानीखेत, दार्जिलिंग आदि स्वास्थ्यवर्द्धक पर्वतीय नगर लघु हिमालय में ही स्थित हैं, जहाँ प्रति वर्ष लाखों पर्यटक सैर के लिए जाते हैं। इस श्रेणी के उत्तरी ढाल मन्द हैं, जब कि दक्षिणी ढाल तीव्र। इस पर्वतीय क्षेत्र में उपयोगी कोणधारी वृक्ष तथा ढालों पर घास उगती है। घास के इन मैदानों को कश्मीर में मर्ग (गुलमर्ग, खिलनमर्ग, सोनमर्ग) तथा उत्तराखण्ड में बुग्याल और पयार (गढ़वाल एवं कुमाऊँ हिमालय) के नाम से पुकारते हैं। इस भाग की संरचना में अवसादी
शैलों की प्रधानता है, जिनमें अधिकांश चूने की चट्टानें विस्तृत क्षेत्र में फैली हैं।

3. उप-हिमालय या शिवालिक श्रेणियाँ अथवा बाह्य हिमालय–हिमालय की सबसे निचली तथा दक्षिणी पर्वत-श्रेणियाँ इसके अन्तर्गत आती हैं, जिन्हें बाह्य हिमालय या शिवालिक श्रेणियों के नाम से भी पुकारते हैं। यह हिमालय का नवनिर्मित भाग है, जो पंजाब में पोतवार बेसिन के दक्षिण से आरम्भ होकर पूर्व में कोसी नदी अर्थात् 87° देशान्तर तक विस्तृत है। इन पर्वत-श्रेणियों का निर्माण-काल बीस लाख वर्ष से दो करोड़ वर्ष के मध्य माना जाता है। शिवालिक श्रेणियों का निर्माण नदियों द्वारा लायी गयी अवसाद में मोड़ पड़ने से हुआ है, इसलिए इन पर अपरदन की क्रियाओं का विशेष प्रभाव पड़ा है। तिस्ता और रायडॉक के निकट 50 किमी की चौड़ाई में इन पहाड़ियों का लोप हो जाता है। इनकी औसत चौड़ाई पश्चिम में 50 किमी और पूरब में 15 किमी है। ये पर्वत औसत रूप से 600 से 1,500 मीटर तक ऊँचे हैं। इस क्षेत्र में अनेक उपजाऊ तथा समतल विस्तृत घाटियाँ हैं, जिन्हें दून और द्वार कहते हैं, जैसे-देहरादून, पूर्वादून, कोठड़ीदून, : पाटलीदून, हरिद्वार, कोटद्वार आदि।

भौगोलिक महत्त्व/लाभ

हिमालय पर्वत ने हमारे देश के भौतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक स्वरूप का निर्माण किया है। इनके भौगोलिक महत्त्व/लाभ का वर्णन निम्नलिखित है

  1. ये पर्वत साइबेरिया और मध्यवर्ती एशिया की ओर से आने वाली बर्फीली, तूफानी और शुष्क हवाओं से भारत की रक्षा करते हैं।
  2. हिमालय की ऊँची-ऊँची हिमाच्छादित चोटियाँ उत्तरी भारत के तापमान एवं आर्द्रता (वर्षा) को प्रभावित करती हैं। इसी के फलस्वरूप हिमालय में हिम नदियाँ, सदावाहिनी नदियाँ प्रारम्भ होती हैं, जो उत्तरी मैदान को उपजाऊ बनाती हैं।
  3. हिमालय के हिमाच्छादित शिखरों और नैसर्गिक दृश्यों के कारण इन पर्वतों का पर्यटकों के लिए महत्त्व बढ़ गया है।
  4. हिमालय की घाटी में जैसे ही वृक्षों की सीमा समाप्त होती है, वहाँ छोटे-छोटे चरागाह पाये जाते हैं. जिन्हें मर्ग कहते हैं; जैसे—गुलमर्ग, सोनमर्ग आदि। यहाँ कश्मीरी गड़रिये भेड़-बकरियाँ चराते हैं।
  5. हिमालय पर्वत से निकलने वाली सदावाहिनी नदियाँ अपने प्रवाह-मार्ग में प्राकृतिक जल-प्रपातों की रचना करती हैं। ये जल-प्रपात जल-विद्युत शक्ति के उत्पादन में सहायक सिद्ध हुए हैं।
  6. शीत ऋतु में उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश से ठण्डी एवं बर्फीली पवनें दक्षिण की ओर चला करती हैं। हिमालय पर्वतमाला इन पर्वतों के मार्ग में बाधा बनकर भारत को ठण्ड से बचाती है।
  7. हिमालय पर्वत पर पर्याप्त मात्रा में कोयला, पेट्रोल तथा अन्य खनिज पदार्थ प्राप्त होने की | सम्भावना व्यक्त की गयी है, जिससे इसका आर्थिक महत्त्व और अधिक बढ़ गया है।
  8. हिमालय पर्वतमाला भारत के उत्तर में पहरेदार की भाँति एक अभेद्य दीवार के रूप में खड़ी है, जो । आक्रमणकारियों से भारत की रक्षा करती है।
  9. हिमालय की कश्मीर घाटी को फलों का स्वर्ग कहा जाता है। यहाँ सेब, अखरोट, आड़, खुबानी, अंगूर व नाशपाती आदि फल उगाये जाते हैं। पर्वतीय ढालों पर चाय, सीढ़ीदार खेतों में चावल व आलू की खेती भी की जाती है।
  10.  हिमालय पर्वत के दोनों ढालों पर उपयोगी वनों का बाहुल्य है। इन वनों से विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चे माल, उपयोगी इमारती लकड़ियाँ आदि प्राप्त होती हैं।
  11. हिमालय पर्वतमाला से अनेक जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं, जो अनेक रोगों की चिकित्सा में काम आती हैं। इसके अतिरिक्त हिमालय के वनों से शहद, आँवला, बेंत, गोंद, लाख, कत्था, बिरोजा आदि प्राप्त होते हैं, जो मानव की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। हिमालय के अनेक पर्वतीय नगर ग्रीष्म-ऋतु में पर्यटकों के भ्रमण के लिए आकर्षण के केन्द्र बन जाते हैं।

प्रश्न 3. दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठार की भौगोलिक रचना तथा आर्थिक महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
या भारत के दक्षिणी पठारी भाग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए
(क) स्थिति,
(ख) विस्तार,
(ग) खनिज सम्पदा।
या भारत के दक्षिणी पठारी भाग के किन्हीं तीन खनिज संसाधनों का वर्णन कीजिए।
या भारत के दक्षिणी पठारी भाग की छ: विशेषताएँ बताइए।
या भारत के दक्षिणी पठारी भाग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(अ) धरातल,
(ब) जल-प्रवाह प्रणाली,
(स) भौगोलिक महत्त्व।
या दकन के पठार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर- दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार की भौगोलिक रचना (धरातल)
भारत के दक्षिण में प्राचीन ग्रेनाइट तथा बेसाल्ट की कठोर शैलों से निर्मित द्रकन (दक्षिण) का पठार है। यह विशाल प्रायद्वीपीय पठार प्राचीन गोण्डवानालैण्ड का ही एक अंग है, जो भारतीय उपमहाद्वीप का, सबसे प्राचीन भूभाग है। यह पठारी प्रदेश 16 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल में विस्तृत है। इसकी आकृति । त्रिभुजाकार है। इसके उत्तर में गंगा-सतलुज-ब्रह्मपुत्र का मैदान, पूर्व में पूर्वी तटीय मैदान एवं बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिन्द महासागर तथा पश्चिम में पश्चिमी तटीय मैदान एवं अरब सागर स्थित है। इस पठार पर अनेक पर्वत विस्तृत हैं, जो मौसमी क्रियाओं; अर्थात् अपक्षय; द्वारा प्रभावित हैं। इस भौतिक प्रदेश में सबसे अधिक धरातलीय विषमताएँ मिलती हैं। समुद्र-तल से इस पठार की औसत ऊँचाई 500 से 700 मीटर है।

इस पठारी प्रदेश का विस्तार उत्तर में राजस्थान से लेकर दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक 1,700 किमी की लम्बाई तथा पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में पश्चिम बंगाल तक 1,400 किमी की चौड़ाई में है। प्राकृतिक दृष्टिकोण से इसकी उत्तरी सीमा अरावली, कैमूर तथा राजमहल की पहाड़ियों द्वारा निर्धारित होती है। यहाँ मौसमी क्रियाओं द्वारा चट्टानों को अपक्षरण होता रहता है। नर्मदा नदी की घाटी सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र को दो असमान भागों में विभाजित कर देती है। उत्तर की ओर के भाग को मालवा का पठार तथा दक्षिणी भाग को दकन ट्रैप या प्रायद्वीपीय पठार के नाम से पुकारते हैं। इस प्रदेश में निम्नलिखित स्थलाकृतिक विशिष्टताएँ पायी जाती हैं

1. मालवा का पठार-मालवा का पठार ज्वालामुखी से प्राप्त लावे द्वारा निर्मित हुआ है, जिससे यह समतल हो गया है। इस पठार पर बेतवा, माही, पार्वती, काली-सिन्धु एवं चम्बल नदियाँ प्रवाहित होती हैं। चम्बल एवं उसकी सहायक नदियों ने इस पठार के उत्तरी भाग को बीहड़ तथा ऊबड़-खाबड़ गहरे खड्डों में परिवर्तित कर दिया है, जिससे अधिकांश भूमि खेती के अयोग्य हो। गयी है। शेष भूमि समतल और उपजाऊ है। इस पठार का ढाल पूर्व तथा उत्तर-पूर्व की ओर है। विन्ध्याचले की पर्वत-श्रृंखलाएँ यहीं पर स्थित हैं।

2. विन्ध्याचल श्रेणी–प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर-पश्चिमी भाग पर विन्ध्याचल श्रेणी का विस्तार है। इस श्रेणी के उत्तर-पश्चिम (राजस्थान) में अरावली श्रेणी स्थित है। यह श्रेणी अत्यधिक अपरदन के कारण निचली पहाड़ियों के रूप में दृष्टिगोचर होती है। विन्ध्याचल श्रेणी के दक्षिण में नर्मदा की घाटी स्थित है। नर्मदा घाटी के दक्षिण में सतपुड़ा श्रेणी का विस्तार है, जो महानदी और गोदावरी के बीच स्थित है।

3. बुन्देलखण्ड एवं बघेलखण्ड का पठार—यह पठार मालवा पठार के उत्तर-पूर्व में स्थित है। यमुना एवं चम्बल नदियों ने इस पठार को काट-छाँटकर बीहड़ खड्डों का निर्माण किया है, जिससे यह असमतल तथा अनुपजाऊ हो गया है। इस पठार पर नीस, ग्रेनाइट, बालुका-पत्थर की चट्टानें तथा पहाड़ियाँ मिलती हैं।

4. छोटा नागपुर का पठार—यह पठार एक सुस्पष्ट पठारी इकाई है। इसके उत्तर व पूर्व में गंगा का मैदान है। इसका पश्चिमी मध्यवर्ती भाग 100 मीटर ऊँचा है, जिसे ‘पाट क्षेत्र’ कहते हैं। झारखण्ड राज्य के गया, हजारीबाग तथा राँची जिलों में यह पठार विस्तृत है। महानदी, सोन, स्वर्ण-रेखा एवं दामोदर इस पठार की प्रमुख नदियाँ हैं। यहाँ ग्रेनाइट एवं नीस की-शैलें पायी जाती हैं। यह पठार खनिज पदार्थों में बहुत धनी है। इसकी औसत ऊँचाई 400 मीटर है।

5. मेघालय का पठार-उत्तर-पूर्व में इस पठार को मिकिर की पहाड़ियों के नाम से पुकारते हैं। | इसका उत्तरी ढाल खड़ा है, जिसमें ब्रह्मपुत्र तथा उसकी सहायक नदियाँ प्रवाहित होती हैं। इसी
पठार में गारो, खासी तथा जयन्तिया की पहाड़ियाँ विस्तृत हैं।

6. दकन का पठार—यह महाराष्ट्र पठार के नाम से भी जाना जाता है। इसका क्षेत्रफल 5 लाख वर्ग किमी है। इसका विस्तार मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, पश्चिमी तमिलनाडु एवं आन्ध्र प्रदेश राज्यों पर है। यह पठार बेसाल्ट शैलों से निर्मित है तथा खनिज पदार्थों में धनी है। यह पठार दो भागों में विभाजित है-तेलंगाना एवं दकन का पठार।।

7. प्रायद्वीपीय पठार की प्रमुख पर्वत-श्रेणियाँ-यह पठारी प्रदेश अनाच्छादन की क्रियाओं से प्रभावित है। यहाँ विन्ध्याचल, सतपुड़ा एवं अरावली की पहाड़ियाँ प्रमुख हैं। इनकी औसत ऊँचाई 300 से 900 मीटर तक है। .

8. पश्चिमी घाट–इन्हें सह्याद्रि की पहाड़ियों के नाम से भी पुकारा जाता है। ये पश्चिमी.तंट के समीप उसके समानान्तर विस्तृत हैं। इनकी औसत चौड़ाई 50 किमी है। इनका विस्तार मुम्बई के उत्तर से दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक लगभग 1,600 किमी है। थाकेघाट, भोरघाट व पालघाट यहाँ के प्रमुख दरें हैं। इस श्रेणी के उत्तर-पूर्व में पालनी तथा दक्षिण में इलायची की पहाड़ियाँ हैं।
अनाईमुडी इसका सर्वोच्च शिखर (2,695 मीटर) है।

9. पूर्वी घाट–इस श्रेणी का विस्तार महानदी के दक्षिण में उत्तर-पूर्व दिशा से दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर नीलगिरि की पहाड़ियों तक 1,300 किमी की लम्बाई में है। इनकी औसत ऊँचाई 615 मीटर तथा औसत चौड़ाई उत्तर में 190 किमी तथा दक्षिण में 75 किमी है। इन घाटों को काटकर महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियाँ पश्चिमी भागों से पूर्व की ओर बहती हुई उपजाऊ मैदान में डेल्टा बनाती हैं।

जल-प्रवाह प्रणाली

दक्षिण पठारी भाग की जल प्रवाह प्रणाली में नर्मदा, ताप्ती, महानदी, कृष्णा, कावेरी, पेन्नार आदि नदियों का योगदान है। इनमें नर्मदा व ताप्ती पश्चिम की ओर बहकर अरब सागर में गिरती हैं। नर्मदा अमरकण्टक की पहाड़ियों से निकलती है तथा ताप्ती मध्य प्रदेश के बैतूल जिले से निकलती है। यह दोनों नदियाँ सतपुड़ा के दक्षिण में सँकरी तथा गैहरी भ्रंश घाटियों से होकर बहती हैं।

महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी तथा पेन्नार नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। साबरमती व माही नदियाँ कच्छ की खाड़ी में गिरती हैं।

भौगोलिक महत्त्व

प्रायद्वीपीय पठार के भौगोलिक-आर्थिक महत्त्व का वर्णन निम्नलिखित है
1. प्राचीन आग्नेय कायान्तरित शैलों से निर्मित होने के कारण यह भू-भाग खनिज सम्पन्न है। मध्य प्रदेश में मैंगनीज, संगमरमर, चूना-पत्थर, बिहार व उड़ीसा (ओडिशा) में लोहा व कोयला, | कर्नाटक में सोना, आन्ध्र प्रदेश में कोयला, हीरा आदि आर्थिक महत्त्व के खनिज उपलब्ध होते हैं।

2. लावा की मिट्टी कपास व गन्ने की खेती के लिए अत्युत्तम है। पहाड़ी क्षेत्रों में लैटेराइट मिट्टियाँ चाय, कहवा तथा रबड़ के लिए उपयुक्त हैं। गर्म मसाले, काजू, केला अन्य महत्त्वपूर्ण उपजें हैं।

3. वनों में चन्दन, साल, सागौन, शीशम आदि बहुमूल्य लकड़ी तथा लाख, बीड़ी बनाने के लिए तेन्दू व टिमरु वृक्ष के पत्ते, हरड़, बहेड़ा, आँवला, चिरौंजी, अग्नि व रोशा घास आदि आर्थिक महत्त्व की गौण वन-उपजे प्राप्त होती हैं।

4. पठारी धरातल पर प्रवाहित होने वाली नदियों के प्रपाती मार्ग में अनेक स्थानों पर जल-विद्युत शक्ति के विकास की सम्भावनाएँ उपलब्ध हैं। कठोर चट्टानी धरातल होने के कारण वर्षा के जल को एकत्रित करने के लिए जलाशय में बाँध की सुविधाएँ प्राप्त हैं।

5. सामान्यतः प्रायद्वीपीय पठार की जलवायु उष्ण है, किन्तु उटकमण्ड, पंचमढ़ी, महाबलेश्वर आदि * सुरम्य एवं स्वास्थ्यवर्द्धक स्थल पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र हैं।

6. विषम धरातल होने के कारण यहाँ आवागमन के साधनों का समुचित विकास नहीं हो सका है। उत्तरी मैदान की तुलना में यहाँ कृषि भी अधिक विकसित नहीं है। चम्बल व अन्य नदियों के बीहड़ लम्बी अवधि तक डाकुओं व असामाजिक तत्वों के शरणस्थल रहे हैं। विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा पर्वत प्राचीन काल से ही उत्तर एवं दक्षिण भारत के मध्य प्राकृतिक व सांस्कृतिक अवरोध रहे हैं; अतएव दक्षिणी भारत में उत्तर भारत से सर्वथा भिन्न संस्कृति विकसित हुई है।

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UP Board Solutions for Class 11 Geography: Indian Physical Environment Chapter 1 India Location

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Indian Physical Environment Chapter 1 India Location (भारत: स्थिति)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 Geography. Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Geography: Indian Physical Environment Chapter 1 भारत: स्थिति

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से उपयुक्त उत्तर का चयन कीजिए
(i) निम्नलिखित में से कौन-सा अक्षांशीय विस्तार भारत की सम्पूर्ण भूमि के विस्तार के सन्दर्भ में प्रासंगिक है?
(क) 8°41′ उ० से 37°7′ उ०
(ख) 8° 4′ उ० से 35°6′ उ०
(ग) 8° 4′ उ० से 37°6′ उ०
(घ) 6°45′ उ० से 37°6′ उ०
उत्तर – (ग) 8° 4′ उ० से 37°6′ उ०।

(ii) निम्नलिखित में से किस देश की भारत के साथ सबसे लम्बी स्थलीय सीमा है?
(क) बाँग्लादेश
(ख) पाकिस्तान
(ग) चीन
(घ) म्यांमार
उत्तर – (क) बाँग्लादेश।

(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा देश क्षेत्रफल में भारत से बड़ा है?
(क) चीन
(ख) फ्रांस
(ग) मिस्र
(घ) ईरान
उत्तर – (क) चीन। |

(iv) निम्नलिखित याम्योत्तर में से कौन-सा भारत का मानक याम्योत्तर है?
(क) 69° 30′ पूर्व
(ख) 75° 30′ पूर्व
(ग) 82° 30′ पूर्व
(घ) 90° 30′ पूर्व
उत्तर – (ग) 82° 30′ पूर्व।

(v) अगर आप एक सीधी रेखा में राजस्थान से नागालैण्ड की यात्रा करें तो निम्नलिखित नदियों में से किस एक को आप पार नहीं करेंगे? |
(क) यमुना
(ख) सिन्धु
(ग) ब्रह्मपुत्र
(घ) गंगा
उत्तर – (ख) सिन्धु।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों का लगभग 30 शब्दों में उत्तर दें
(i) क्या भारत को एक से अधिक मानक समय की आवश्यकता है? यदि हाँ, तो आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
उत्तर – वास्तव में भारत को एक से अधिक मानक समय की आवश्यकता नहीं है। यदि एक से अधिक मानक समय होगा तो स्थानीय समय निर्धारण में कठिनाइयाँ आएँगी। एक से अधिक मानक समय की आवश्यकता केवल उन देशों को होती है जिनका पूर्व-पश्चिम विस्तार अधिक होता है। जैसे—संयुक्त राज्य अमेरिका में है, जहाँ लगभग छह समय कटिबन्ध पाए जाते हैं।

(ii) भारत की लम्बी तटरेखा के क्या प्रभाव हैं?
उत्तर – भारत की सम्पूर्ण तटरेखा द्वीप समूहों सहित 7,516.6 किलोमीटर है। देश की बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के रूप में लम्बी तटरेखा समुद्री यातायात और पर्यावरणीय दृष्टि से लाभदायक है। लम्बी तटरेखा जहाँ एक ओर सस्ता जल यातायात प्रदान करती है वहीं यह समुद्री संसाधन प्रदान करने और स्थानीय जलवायु की दृष्टि से भी लाभप्रद होती है।

(iii) भारत का देशान्तरीय फैलाव इसके लिए किस प्रकार लाभप्रद है?
उत्तर – भारत का देशान्तरीय फैलाव पूर्व में अरुणाचल प्रदेश तक 68°07′ पूर्वी देशान्तर से 97°5′ पूर्वी देशान्तर (गुजरात तक) है अर्थात् कुल देशान्तरीय विस्तार केवल 28°55′ है। इतने कम देशान्तरीय विस्तार के कारण ही भारत की एक मानक समय रेखा (82°30′ पूर्व) है। यह देशान्तर रेखा देश के मध्य से गुजरती है, इसलिए इस रेखा को देश को मानक समय माना जाता है। वास्तव में, यदि देश का देशान्तरथ विस्तार बहुत अधिक होता तब हमें कई मानक कटिबन्धों की आवश्यकता होती। अत: देश का वर्तमान देशान्तरीय फैलाव मानक समय की दृष्टि से लाभप्रद है।।

(iv) जबकि पूर्व में, उदाहरणतः नागालैण्ड में, सूर्य पहले उदय होता है और पहले ही अस्त होता है, फिर कोहिमा और नई दिल्ली में घड़ियाँ एक ही समय क्यों दिखाती हैं?
उत्तर – यह सत्य है कि भारत के पूर्व में सूर्य पहले उदय होता है और पहले ही अस्त होता है, किन्तु देश की घड़ियाँ समय एक ही दिखाती हैं, क्योंकि घड़ियों के समय का निर्धारण केन्द्रीय देशान्तर या 8230′ पूर्व मानक याम्योत्तर द्वारा होता है। यही कारण है कि कोहिमा और नई दिल्ली में घड़ियाँ एक ही समय दिखाती हैं।

प्रश्न 3. परिशिष्ट-1 पर आधारित क्रियाकलाप
(i) एक ग्राफ पेपर पर मध्य प्रदेश, कर्नाटक, मेघालय, गोवा, केरल तथा हरियाणा के जिलों की संख्या को आलेखित कीजिए। क्या जिलों की संख्या का राज्यों के क्षेत्रफल से कोई सम्बन्ध हैं?
UP Board Solutions for Class 11 Geography Indian Physical Environment Chapter 1 India Location (भारत स्थिति) img 1
उत्तर – 
UP Board Solutions for Class 11 Geography Indian Physical Environment Chapter 1 India Location (भारत स्थिति) img 2
ग्राफ (चित्र 1.1) से स्पष्ट है कि राज्यों के क्षेत्रफल एवं जिलों की संख्याओं में धनात्मक सम्बन्ध है। अर्थात् जिस राज्य को क्षेत्रफल अधिक है उसमें जिलों की संख्या भी अधिक है तथा जिस राज्य का क्षेत्रफल कम है उसमें जिले भी कम हैं। मध्य प्रदेश तथा गोवा इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

(ii) उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, त्रिपुरा, राजस्थान तथा जम्मू और कश्मीर में से कौन-सा राज्य सर्वाधिक घनत्व वाला और कौन-सा एक न्यूनतम जनसंख्या घनत्व वाला राज्य है?
उत्तर – सर्वाधिक घनत्व वाला राज्य (904 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी) पश्चिम बंगाल तथा सबसे कम घनत्न वाला राज्य (13 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी) अरुणाचल प्रदेश है।

(iii) राज्य के क्षेत्रफल व जिलों की संख्या के बीच सम्बन्ध को ढूंढिए।
उत्तर – राज्य के क्षेत्रफल व जिलों की संख्या के बीच सामान्यत: धनात्मक सम्बन्ध पाया जाता है। यदि राज्य का क्षेत्रफल अधिक होता है तो जिलों की संख्या भी अधिक पाई जाती है। |

(iv) तटीय सीमाओं से संलग्न राज्यों की पहचान कीजिए।
उत्तर – तटीय सीमाओं पर स्थित राज्य निम्नलिखित हैंअरब सागर की ओर-गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक एवं केरल। बंगाल की खाड़ी की ओर-तमिलनाडु, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा तथा प० बंगाल।

(v) पश्चिम से पूर्व की ओर स्थलीय सीमा वाले राज्यों का क्रम तैयार कीजिए।
उत्तर – पश्चिम से पूर्व की ओर स्थित स्थलीय सीमा वाले राज्य क्रमश: इस प्रकार हैं–जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, प० बंगाल तथा अरुणाचल प्रदेश।

प्रश्न 4. परिशिष्ट II पर आधारित क्रियाकलाप
(i) उन केन्द्रशासित क्षेत्रों की सूची बनाइए जिनकी स्थिति तटवर्ती है।
(ii) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली तथा अण्डमान व निकोबार द्वीप समूह के क्षेत्रफल और जनसंख्या में अन्तर की व्याख्या आप किस प्रकार करेंगे?
(iii) एक ग्राफ पेपर पर दण्ड आरेख द्वारा केन्द्रशासित प्रदेशों के क्षेत्रफल व जनसंख्या को आलेखित कीजिए।
उत्तर – अध्यापक की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत किस महाद्वीप में स्थित है?
(क) यूरोप में
(ख) अफ्रीका में
(ग) एशिया में
(घ) ऑस्ट्रेलिया में
उत्तर – (ग) एशिया में।

प्रश्न 2. भारत किस कटिबन्ध में स्थित है?
(क) उपोष्ण
(ख) उष्ण ।
(ग) शीतोष्ण
(घ) शीत
उत्तर – (क) उपोष्ण।।

प्रश्न 3. भारत की वह नदी जो ज्वारनदमुख बनाती है–
(क) ताप्ती
(ख) महानदी
(ग) गोदावरी
(घ) लूनी
उत्तर – (क) ताप्ती।

प्रश्न 4. ‘शिपकी-ला दर्रा भारत को जोड़ता है
(क) पाकिस्तान से
(ख) चीन से
(ग) भूटान से
(घ) नेपाल से
उत्तर – (ख) चीन से।

प्रश्न 5. भारत के दक्षिण में स्थित देश का नाम है
(क) श्रीलंका
(ख) नेपाल
(ग) चीन
(घ) म्यांमार
उत्तर – (क) श्रीलंका।।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. उन देशों के नाम लिखिए जिनकी सीमाएँ भारत की उत्तरी सीमा से मिलती हैं।
उत्तर–भारत की उत्तरी सीमा से मिलने वाले देशों के नाम इस प्रकार हैं–(1) चीन, (2) अफगानिस्तान, (3) पाकिस्तान, (4) नेपाल, (5) भूटान।

प्रश्न 2. भारत के उन राज्यों के नाम लिखिए जो बांग्लादेश की सीमा बनाते हैं।
उत्तर–भारत के राज्य जिनकी सीमाएँ बांग्लादेश से मिलती हैं, उनके नाम हैं-पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा तथा मिजोरम।

प्रश्न 3. भारतीय उपमहाद्वीप के हिमालय पर्वत को पार करने में सहायक चार दरों के नाम लिखिए।
उत्तर–हिमालय पर्वत को पार करने में सहायक चार दरें हैं-(1) काराकोरम, (2) शिपकीला, (3) नाथुला, (4) बोमडिला।।

प्रश्न 4. उत्तरी-पूर्वी पर्वतीय राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर-(1) अरुणाचल प्रदेश, (2) असम, (3) नागालैण्ड, (4) मणिपुर, (5) मिजोरम, (6) त्रिपुरा, (7) मेघालय।।

प्रश्न 5. भारत के अक्षांशीय एवं वेशान्तरीय विस्तार को लिखिए।
उत्तर–भारत हिन्द महासागर के शीर्ष पर स्थित एक विशाल देश है। इसका क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी है। भारत 8°4′ उत्तर से 37°6′ उत्तरी अक्षांश और 68°7′ से 97°25′ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है।

प्रश्न 6. भारत की सीमाओं पर स्थित पडोसी देशों के नाम लिखिए।
उत्तर–भारत की पूर्वी सीमा बांग्लादेश तथा म्यांमार से, पश्चिमी सीमा पाकिस्तान व अफगानिस्तान से, उत्तरी सीमा चीन, नेपाल और भूटान से तथा दक्षिण में श्रीलंका से मिलती है।

प्रश्न 7. क्षेत्रफल में भारत से बड़े छः देशों के नाम बताइए।
उत्तर-भारत का विश्व में क्षेत्रफल की दृष्टि से सातवाँ स्थान है। इससे बड़े छः अन्य देश हैं-(1) रूस, (2) संयुक्त राज्य अमेरिका, (3) कनाडा, (4) चीन, (5) ब्राजील, (6) आस्ट्रेलिया।

प्रश्न 8. भारत-पाकिस्तान अन्तर्राष्ट्रीय सीमा-रेखा का वर्णन कीजिए।
उत्तर-भारत और पाकिस्तान के बीच निर्धारित कृत्रिम सीमा रेखा 1,120 किमी लम्बी है। यह सीमा-रेखा प्राकृतिक नहीं है। भारत के गुजरात, राजस्थान, पंजाब एवं जम्मू-कश्मीर राज्यों की सीमाएँ पाकिस्तान को भारत से पृथक् करती हैं।

प्रश्न 9. भारत के मध्य से कौन-सी देशान्तर एवं अक्षांश रेखाएँ गुजरती हैं?
उत्तर-82°30′ पूर्वी देशान्तर रेखा उत्तर-दक्षिण में तथा 23°30′ उत्तरी अक्षांश (कर्क रेखा) भारत के मुध्य से गुजरती है।

प्रश्न 10. भारत की तट रेखा की कुल लम्बाई कितनी है?
उत्तर-भारत की तट रेखा की कुल लम्बाई 7,516.6 किमी है।

प्रश्न 11. भारत का कुल क्षेत्रफल कितना है?
उत्तर–भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है।

प्रश्न 12. क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में सातवाँ स्थान है।

प्रश्न 13. भारत किस गोलार्द्ध में स्थित है?
उत्तर-भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है।

प्रश्न 14. भारत का दक्षिणतम बिन्दु (सिरा) कौन-सा है तथा कहाँ स्थित है?
उत्तर-भारत का दक्षिणतम बिन्दु इन्दिरा प्वॉइण्ट है जो निकोबार द्वीपसमूह के दक्षिण में स्थित है।

प्रश्न 15. भारत के सुदूरवर्ती पूर्वी राज्य का नाम बताइए।
उत्तर–भारत के सुदूरवर्ती पूर्वी राज्य का नाम अरुणाचल प्रदेश है।

प्रश्न 16. भारत का कौन-सा पश्चिमी राज्य कच्छ क्षेत्र में स्थित है?
उत्तर-भारत का पश्चिमी राज्य गुजरात कच्छ क्षेत्र में स्थित है।

प्रश्न 17. भारत का पूर्व-पश्चिम विस्तार कितने देशान्तरों के बीच फैला है?
उत्तर–भारत का पूर्व-पश्चिम विस्तार लगभग 30 देशान्तरों के बीच फैला है।

प्रश्न 18. भारत किस महासागर के शीर्ष पर स्थित है?
उत्तर–भारत हिन्द महासागर के शीर्ष पर स्थित हैं।

प्रश्न 19. भारत के उत्तर में स्थित किन्हीं दो देशों के नाम लिखिए।
उत्तर-(1) चीन तथा (2) नेपाल।।

प्रश्न 20. भारत का कौन-सा राज्य क्षेत्रफल एवं जनसंख्या में प्रथम स्थान रखता है?
उत्तर-राजस्थान क्षेत्रफल एवं उत्तर प्रदेश जनसंख्या में देश में प्रथम स्थान रखता है।

प्रश्न 21. भारत के दक्षिण में कौन-से दो द्वीपीय देश स्थित हैं?
उत्तर–भारत के दक्षिण में मालदीव व श्रीलंका दो द्वीपीय देश स्थित हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत का अक्षांशीय विस्तार बताइए। इसके प्रभाव को समझाइए।
उत्तर–भारत का अक्षांशीय विस्तार भूमध्य रेखा के उत्तर में 8°4′ उत्तरी से 37°6′ उत्तरी अक्षांशों के मध्य है। इस देश का उत्तर-दक्षिण विस्तार 3,200 किलोमीटर है। इस विस्तृत भाग पर अक्षांशों के प्रभाव को निम्नांकित तथ्यों में स्पष्ट किया जा सकता है|
(i) अक्षांशीय विस्तार के कारण भारत के दक्षिणी भागों में सूर्यातप की मात्रा उत्तरी भागों की अपेक्षा अधिक है।
(ii) भारत के दक्षिणी भाग की अपेक्षा उत्तरी भाग में रात और दिन की अवधि का अन्तर बढ़ता जाता
(iii) ऐसा देखा गया है कि भारत के सुदूर दक्षिण भाग में जब दिन और रात का अन्तर केवल 45 मिनट होता है तो उत्तर को जाते हुए यह अन्तर सुदूर उत्तरी क्षेत्रों में पाँच घण्टे तक हो जाता है।
(iv) प्रायद्वीपीय भारत, जो भूमध्य रेखा के अधिक निकट है, की जलवायु गर्म रहती है तथा यहाँ शीत ऋतु नहीं होती है, जबकि भूमध्य रेखा से दूर उत्तरी भारत की जलवायु विषम रहती है, यहाँ गर्मियों | में अधिक गर्मी और सर्दियों में अधिक सर्दी होती है।

प्रश्न 2. भारत के देशान्तरीय विस्तार के प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–भारत के देशान्तरीय विस्तार का प्रभाव उसके पूर्व-पश्चिम विस्तार से व्यापक महत्त्व रखता है। अपने इसी विस्तार के कारण इसके पड़ोसी देशों की दूरी का निर्धारण होता है। देशान्तरीय विस्तार के कारण भारत के पूर्व में स्थित देश; जैसे–म्यांमार, थाईलैण्ड, सिंगापुर, मलेशिया व वियतनाम तथा पश्चिम में स्थित देश; जैसे-पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक आदि भारत के निकट स्थित हैं। इसीलिए इन देशों से भारत के आर्थिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्ध प्राचीनकाल से रहे हैं। अपने विस्तृत पूर्वी-पश्चिमी विस्तार के कारण भारत जहाँ पूर्व की ओर चीन, जापान व ऑस्ट्रेलिया के निकट है, वहीं पश्चिम की ओर अफ्रीकी और यूरोपीय देशों से भी इसकी निकटता है। इस प्रकार भारत अपने देशान्तरीय विस्तार के कारण सुगमता से विश्व के सभी देशों के साथ व्यापारिक व सांस्कृतिक सम्बन्ध स्थापित कर सकता है।

प्रश्न 3. पूर्वी गोलार्द्ध में भारत की स्थिति केन्द्रीय है, क्यों?
उत्तर-पूर्वी गोलार्द्ध का देशान्तरीयं विस्तार 0° से 180° पूर्व है। इसकी मध्य स्थिति 90° पूर्वी देशान्तर रेखा पर है, जबकि 87°30′ पूर्वी देशान्तर भारत की केन्द्रीय मध्याह्न रेखा है। यह भारत से ही होकर गुजरती है। इसी प्रकार भारत का अक्षांशीय विस्तार 8°4′ उत्तर से आरम्भ होता है, जो विषुवत् रेखा के अति निकट है। इसी आधार पर कहा जा सकता है कि पूर्वी गोलार्द्ध में भारत की स्थिति लगभग केन्द्रीय है। केन्द्रीय स्थिति होने के कारण ही भारत के विदेशों से व्यापारिक एवं वाणिज्यिक सम्बन्ध बहुत प्रगाढ़ हुए हैं। इस प्रकार भारत पश्चिमी औद्योगिक देशों को पूर्वी खेतिहर देशों से मिलाने के लिए एक कड़ी का कार्य करता है।

प्रश्न 4. भारत को उपमहाद्वीप क्यों कहा जाता है?
उत्तर-भारतीय उपमहाद्वीप एक सुस्पष्ट भौगोलिक इकाई है, जो एशिया महाद्वीप के उच्चावच स्वरूप को देखते ही स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आती है। यहाँ एक विशिष्ट संस्कृति का विकास हुआ है। भारत सहित उसके पड़ोसी देशों–पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका एवं मालदीव की भौगोलिक स्थिति, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति, मिट्टी तथा जनसंख्या विशेषताओं में विभिन्नताएँ एवं विविधताएँ होते हुए भी एकरूपता दिखाई देती है। इसी कारण इसे उपमहाद्वीप कहा जाता है। एशिया महाद्वीप में भारतीय उपमहाद्वीप की स्थिति वास्तव में एशिया से पृथक् दिखाई देती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत का भौगोलिक वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए
(क) स्थिति एवं विस्तार,
(ख) भू-आकृति (उच्चावच)।
उत्तर- (क) भारत की स्थिति एवं विस्तार
हिन्द महासागर के शीर्ष पर स्थित भारत एक विशाल देश है। इसका क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी (2.43%) है। भारत 894 से 37°6′ उत्तरी अक्षांशों और 687′ से 9725 पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। निकोबार द्वीप समूह में स्थित इन्दिरा प्वॉइण्ट’ भारत का दक्षिणतम बिन्दु है। मुख्य स्थल पर कन्याकुमारी भारत का सबसे दक्षिण में स्थित बिन्दु है जबकि जम्मू-कश्मीर राज्य में स्थित ‘इन्दिरा कोल’ सबसे उत्तरी बिन्दु। 26 दिसम्बर, 2009 में सूनामी के कारण भारत के सबसे दक्षिणी बिन्दु ‘इन्दिरा प्वॉइण्ट’ ने जल समाधि ले ली। 82°30′ पूर्वी देशान्तर रेखा भारत की प्रामाणिक देशान्तर रेखा है, जो इलाहाबाद से होकर गुजरती है। कर्क वृत्त (23°30′ उत्तरी अक्षांश) देश के लगभग मध्य में होकर गुजरती है; अत: क्षेत्र का उत्तरी भाग उपोष्ण (सम-शीतोष्ण) कटिबन्ध में तथा दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है। भारतीय मानक समय रेखा भारत के पाँच राज्यों-उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आन्ध्र प्रदेश से गुजरती है। भारत का दक्षिणी भाग, जिसमें प्रायद्वीपीय भारत सम्मिलित है, उष्ण कटिबन्ध में आता है। उत्तरी भाग, जिसमें मुख्यतः उत्तर का पर्वतीय मैदानी भाग है, उपोष्ण कटिबन्ध में आता है। तीन ओर से सागरों से घिरा होने के कारण यहाँ विशिष्ट मानसूनी जलवायु पायी जाती है, जो देश के समूचे अर्थतन्त्र को प्रभावित करती है। भारत यूरोप से ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिणी और पूर्वी एशियाई देशों के व्यापारिक मार्गों पर स्थित है। इसलिए प्राचीन काल से ही यहाँ विदेशी व्यापार उन्नत रहा है।

भारतीय उपमहाद्वीप एक सुस्पष्ट भौगोलिक इकाई है जिसमें एक विशिष्ट संस्कृति का विकास हुआ है। इस महाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान, केन्द्र में भारत, उत्तर में नेपाल, उत्तर-पूर्व में भूटान तथा पूर्व में बांग्लादेश सम्मिलित हैं। हिन्द महासागर में स्थित द्वीपीय देश श्रीलंका और मालदीव हमारे दक्षिणी पड़ोसी देश हैं। इन प्रदेशों की भौगोलिक स्थिति, जलवायु, प्राकृतिक मिट्टी तथा जनसंख्या की विशेषताओं में विभिन्नताएँ तथा विविधताएँ होते हुए भी उनमें एकात्मकता दिखाई पड़ती है। इसीलिए इसे उपमहाद्वीप कहा जाता है।

भारत विषुवत रेखा के उत्तर में स्थित है। इस कारण यह उत्तरी गोलार्द्ध में आता है। प्रधान मध्याह्न रेखा (ग्रीनविच रेखा) के पूर्व में स्थित होने के कारण भारत पूर्वी गोलार्द्ध में आता है। हम जानते हैं कि मध्याह्न रेखा की मध्य स्थिति 90° पूर्वी देशान्तर है, जो भारत से ही होकर गुजरती है। 82°30 पूर्वी

मध्याह्न रेखा भारत की मानक मध्याह्न रेखा है। इससे पूर्वी गोलार्द्ध में भारत की केन्द्रीयं स्थिति स्पष्ट हो जाती है।

भारत एशिया महाद्वीप के दक्षिण मध्य प्रायद्वीप में स्थित है। एशिया संसार में सबसे बड़ा तथा सबसे अधिक जनसंख्या वाला महाद्वीप है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण ही भारत को प्राचीन काल से ही आर्थिक लाभ प्राप्त हुए हैं।

(ख) भारत का उच्चावच अथवा प्राकृतिक स्वरूप (बनावट)
उच्चावच से तात्पर्य किसी भू-भाग के ऊँचे व नीचे धरातल से है। सभी प्रकार के पहाड़ी, पठारी व मैदानी तथा मरुस्थलीय क्षेत्र मिलकर किसी क्षेत्र के उच्चावच का निर्माण करते हैं। उच्चावच की दृष्टि से भारत में अनेक विभिन्नताएँ मिलती हैं। इनका मूल कारण अनेक शक्तियों और संचालनों का परिणाम है, जो लाखों वर्ष पूर्व घटित हुई थीं। इसकी उत्पत्ति भूवैज्ञानिक अतीत के अध्ययन से स्पष्ट की जा सकती है। आज से 25 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप विषुवत् रेखा के दक्षिण में स्थित प्राचीन गोण्डवानालैण्ड का एक भाग था। अंगारालैण्ड नामक एक अन्य प्राचीन भूखण्ड विषुवत् रेखा के उत्तर में स्थित था। दोनों प्राचीन भूखण्डों के मध्य टेथिस नामक एक सँकरा, लम्बा, उथला सागर था। इन भूखण्डों की नदियाँ टेथिस में अवसाद जमा करती रहीं, जिससे कालान्तर में टेथिस सागर पट गया। पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण दोनों भूखण्ड टूटे। गोण्डवानालैण्ड से भारत का प्रायद्वीप अलग हो गया तथा भूखण्डों के टूटे हुए भाग विस्थापित होने लगे। आन्तरिक हलचलों से टेथिस सागर के अवसादों की परतों में भिंचाव हुआ और उसमें विशाल मोड़ पड़ गए। इस प्रकार हिमालय पर्वत-श्रृंखला की रचना हुई। इसी कारण हिमालय को वलित पर्वत कहा जाता है।

हिमालय की उत्पत्ति के बाद भारतीय प्रायद्वीप और हिमालय के मध्य एक खाई या गर्त शेष रह गया। हिमालय से निकलने वाली नदियों ने स्थल का अपरदन करके अवसादों के उस गर्त को क्रमश: भरना शुरू किया जिससे विशाल उत्तरी मैदान की रचना हुई। इस प्रकार भारतीय उपमहाद्वीप की भू-आकृतिक इकाइयाँ अस्तित्व में आयीं।

भारत एक विशाल देश है। भू-आकृतिक संरचना की दृष्टि से भारत में अनेक विषमताएँ एवं विभिन्नताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। भारत का 29.3% भाग पर्वतीय, पहाड़ी एवं ऊबड़-खाबड़, 27.7% भाग पठारी तथा 43% भाग मैदानी है। भारत में अन्य देशों की अपेक्षा मैदानी क्षेत्रों का विस्तार अधिक है (विश्व का औसत 41%)। देश में एक ओर नवीन मोड़दार पर्वत-श्रृंखलाएँ हैं तो दूसरी ओर क्स्तृित तटीय मैदान, कहीं नदियों द्वारा निर्मित समतल उपजाऊ मैदान हैं तो कहीं प्राचीनतम कठोर चट्टानों द्वारा निर्मित कटा-फटी पठारी भाग है।

प्रश्न 2. भारत की भौगोलिक स्थिति के दो महत्त्वपूर्ण प्रभाव बताइए।
उत्तर-भारत की भौगोलिक स्थिति की अमिट छाप इसके समग्र प्रतिरूप पर पाई जाती है। चाहे जलवायु की बात हो या व्यापार की, उद्योग की बात हो या कृषि की, राजनीति की बात हो या धर्म की; सभी क्षेत्रों में इसकी भौगोलिक स्थिति का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है; यथा—
1. भौगोलिक स्थिति का जलवायु पर प्रभाव-
हिन्द महासागर में भारत का प्रायद्वीपीय भाग लगभग 1,600 किमी तक प्रवेश कर गया है, जिसके कारण अरब सागर और बंगाल की खाड़ी अपना समकारी प्रभाव सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय भारत की जलवायु पर डालते हैं और उत्तरी भारत की जलवायु को भी प्रभावित करते हैं। हिन्द महासागर और हिमालय पर्वत का ही प्रभाव है कि भारत का लगभग दो-तिहाई भाग उपोष्ण कटिबन्ध में स्थित होते हुए भी भारत उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु का देश कहलाता है। हिमालय पर्वत भारत की जाड़ों में उत्तर से आने वाली अत्यन्त शीतल एवं बर्फीली पवनों से रक्षा करता है और गर्मियों में मानसूनी पवनों को रोककर पर्वतीय ढालों पर वर्षा कराता है।

2. हिन्द महासागर का व्यापार पर प्रभाव-
हिन्द महासागर ने न केवल भारत की जलवायु को ही प्रभावित किया है, वरन् तटीय व विदेशी व्यापार को भी प्रभावित किया है। हिन्द महासागर को तीन । महाद्वीप-अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया-घेरे हुए हैं तथा इसके तटों पर संसार की लगभग एक-चौथाई जनसंख्या निवास करती है। इस महासागर के शीर्ष पर स्थित होने से भारत इस जनसंख्या से सीधा व्यापारिक सम्पर्क कर सकता है। हिन्द महासागर से होकर संसार का प्रसिद्ध समुद्री मार्ग स्वेज नहर गुजरता है, जिसका लाभ भारत को ठीक उसी प्रकार प्राप्त है जैसे कोई नगर किसी व्यस्त सड़क मार्ग का लाभ उठाता है। स्वेज नहर मार्ग द्वारा भारत पश्चिम में यूरोप और उत्तरी अमेरिकी देशों से जुड़ा है। इसी प्रकार पूरबे में मलक्का जलडमरूमध्य द्वारा यह
जापान, चीन, दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों और ऑस्ट्रेलिया से जुड़ा है।

प्रश्न 3. हिन्द महासागर के शीर्ष पर भारत की केन्द्रीय स्थिति किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर-पूर्वी गोलार्द्ध में भारत की स्थिति लगभग केन्द्रीय है। अपनी केन्द्रीय स्थिति के कारण ही प्राचीन काल में भारत के पश्चिम में अरब देशों से तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया एवं सुदूरपूर्व के देशों के साथ सांस्कृतिक, व्यापारिक एवं वाणिज्यिक सम्बन्ध स्थापित हो गए थे। हिन्द महासागर के शीर्ष पर भारत की स्थिति पूर्वी गोलार्द्ध में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। पश्चिम से पूर्व तथा पूर्व से पश्चिम जाने वाले महत्त्वपूर्ण जलमार्ग तथ वायुमार्ग भारत से होकर गुजरते हैं। इसकी केन्द्रीय स्थिति का महत्त्व इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है

  1. केन्द्रीय स्थिति के कारण भारत अन्तर्राष्ट्रीय जलमार्गों का केन्द्र हैं। पूर्व से पश्चिम तथा पश्चिम से | पूर्व जाने वाले सभी जलयान भारत से ही होकर गुजरते हैं (देखिए चित्र 1.2)।
  2. भारत हिन्द महासागर द्वारा अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों से जुड़ा हुआ है। इसकी केन्द्रीय स्थिति विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने में बहुत सहायक रही है।
  3. केन्द्रीय स्थिति के फलस्वरूप ही भारत पूर्व और पश्चिम के लिए अन्तर्राष्ट्रीय वायुमार्गों का संगम
    स्थल है। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्क स्थापित करने में भारत को बड़ी सहायता मिली है।
  4. भारत के समीपवर्ती अधिकांश दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश औद्योगिक दृष्टि से बहुत पिछड़े हुए हैं। अतः भारत के विनिर्मित माल आसानी से इन देशों में बिक जाते हैं।
  5. प्रायद्वीपीय भारत तीन ओर से समुद्र द्वारा घिरा है। इसकी तट रेखा सपाट एवं विशाल है। अत: इसके पत्तन वर्षभर सभी देशों के जल परिवहन के लिए खुले रहते हैं।
  6. सन् 1865 ई० से स्वेज नहर जलमार्ग के खुल जाने से पश्चिमी देशों के बीच भारत की दूरी लगभग 7,000 किमी कम हो गई है। अत: भारत पूर्व एवं पश्चिम को जोड़ने वाली एक कड़ी के रूप में कार्य करता है।

प्रश्न 4. भारत की सीमाओं का वर्णन कीजिए। भारत के समीपवर्ती देशों से सम्पर्क स्थापित करने में भौगोलिक कठिनाइयों को बताइए।
उत्तर- भारत की सीमाओं का वर्णन इस प्रकार है
1. चीन से लगने वाली उत्तरी सीमा–भारत की उत्तरी सीमा चीन, नेपाल तथा भूटान देशों से मिलती है। यहाँ हिमालय पर्वतमाला एक प्राकृतिक सीमारेखा के रूप में कार्य करता है। भारत चीन के मध्य की सीमा को मैकमोहन रेखा कहते हैं जो सिक्किम राज्य से म्यांमार की सीमा तक 4,248 किमी लम्बी है। सामरिक दृष्टि से यह सीमारेखा बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।

2. पाकिस्तान से लगने वाली पश्चिमी सीमा-भारत की पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से मिलती है, जो अप्राकृतिक है तथा जिसकी लम्बाई 1,120 किमी है। भारत के अनुसार, राजस्थान, पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर राज्यों की सीमाएँ पाकिस्तान को पृथक् करती हैं।

3. बांग्लादेश तथा म्यांमार से लगने वाली सीमा-पूर्व की ओर भारत की सीमा बांग्लादेश से मिलती है, जो अप्राकृतिक है। इसके सीमान्त पर पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्य स्थित हैं। म्यांमार और भारत के मध्य हिमालय की अराकानयोमा पर्वत-श्रेणी है। इस सीमान्त पर अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, मणिपुर तथा मिजोरम राज्य स्थित हैं।

UP Board Solutions for Class 11 Geography Indian Physical Environment Chapter 1 India Location (भारत स्थिति) img 3

4. भारत की तटरेखा–भारत की तटरेखा पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लेकर हिन्द महासागर के शीर्ष से होती हुई पश्चिम में कच्छ की खाड़ी (अरब सागर) तक विस्तृत है। अरब सागर में लक्षद्वीप मिनीकॉय एवं अमीनदीवी द्वीपसमूह तथा बंगाल की खाड़ी में अण्डमान-निकोबार द्वीपसमूह स्थित हैं। इस क्षेत्र में भारत की सीमा पाक जलडमरूमध्य द्वारा श्रीलंका से मिलती है। समीपवर्ती देशों से सम्पर्क स्थापित करने में भारत की भौगोलिक कठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं
(i) भारत का उत्तरी भाग अत्यन्त ही दुर्गम है; अत: हिमालय पर्वतमाला के कारण केवल कुछ दर्रा मार्गों द्वारा ही इसे पार किया जा सकता है।
(ii) भारत की उत्तरी सीमा पर पाकिस्तान एवं चीन हैं। इन दोनों ही देशों से सामरिक खतरों के कारण इस संवेदनशील क्षेत्र में सम्पर्क स्थापित करना कठिन है।
(iii) विदेश नीति के कारण भी दुर्गम सीमान्त क्षेत्रों में सम्पर्क स्थापित करना कठिन है।

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UP Board Solutions for Class 8 Sports and Fitness Chapter 3 खेल एवं हमारा भोजन

UP Board Solutions for Class 8 Sports and Fitness Chapter 3 खेल एवं हमारा भोजन

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Question 1.
सन्तुलित भोजन किसे कहते हैं ?
Solution:
हमारे शरीर की वृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए हमारे भोजन में वे सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में होने चाहिए जिनकी आवश्यकता हमारे शरीर को है। कोई भी पोषक तत्व न अधिक हो न कम। हमारे भोजन में पोषक तत्त्व, विटामिन्स एवं खनिज के साथ पर्याप्त मात्रा में रेशे युक्त खाद्य तणि जल भी होना चाहिए। इस प्रकार के (UPBoardSolutions.com) आहार को संतुलित आहार’ कहते हैं।

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Question 2.
भोजन के प्रमुख कार्य क्या है ?
Solution:
भोजन के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

  1. भोजन शरीर को शक्ति प्रदान करता है।
  2. भोजन के द्वारा शरीर का निर्माण और मरम्मत का कार्य होता है। |
  3. भोजन के द्वारा रोगों से सुरक्षा होती है।
  4. भोज्य तत्वों से एन्जाइम तथा हार्मोन्स बनता है जो शरीर के लिए लाभकारी होता है।

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Question 3.
कुपोषण से आप क्या समझते हैं ? विटामिन्स की कमी से होने वाले रोगों के नाम लिखिए ?
Solution:
शरीर में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी या अधिकता कुपोषण है जिसके कारण बच्चे कई बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। शरीर में विभिन्न प्रकार के विटामिन्स की कमी के कारण रतौंधी, बेरी-बेरी, स्कर्वी, रिकेट्स, आदि रोग होते हैं। |

Question 4.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिएउत्तर-
(क) शरीर में आवश्यक ___ तत्वों की कमी या अधिकता ही कुपोषण है।
(ख) भोजने हमारे शरीर को ___ प्रदान करता है।
(ग) भोजन के द्वारा शरीर का निर्माण तथा ____ का कार्य होता. है। |
(घ) प्रोटीन की कमी से _____ एवं ____ रोग होते हैं।
Solution:
(क) शरीर में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी या अधिकता ही कुपोषण है।
(ख) भोजने हमारे शरीर (UPBoardSolutions.com) को शक्ति प्रदान करता है।
(ग) भोजन के द्वारा शरीर का निर्माण तथा मरम्मत का कार्य होता. है।
(घ) प्रोटीन की कमी से क्वॉशियोरकर एवं मेरास्मस रोग होते हैं।

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प्रोजेक्ट वर्क : नोट- विद्यार्थी स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 8 Sports and Fitness Chapter 2 हमारा स्वास्थ्य

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Question 1.
अच्छे स्वास्थ्य के लक्षण क्या हैं? |
Solution:
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार- शारीरिक, मानसिक, सामाजिक (UPBoardSolutions.com) एवं संवेगात्मक रूप से विकार रहित व्यक्ति को स्वस्थ व्यक्ति माना गया है।

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Question 2.
बाजार की खुली हुई वस्तुओं को खाने से हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
Solution:
बाजार की खुली हुई खाने की वस्तुएँ न खाएँ। ये वस्तुएँ धूल जमने एवं मक्खियों के बैठने से दूषित हो जाती है। जिसे खाने से हम अनेक तरह की बीमारियों से पीड़ित हो जाते हैं। जैसेउल्टी आना, दस्त होना आदि।

Question 3.
गंदे स्थानों पर नंगे पैर क्यों नहीं घूमना चाहिए ?
Solution:
गन्दे स्थानों पर नंगे पैर घुमने से सूक्ष्म रोगाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं जो हमारे शरीर में रोग पैदा करते हैं।

Question 4.
पोलियो जैसी खतरनाक बीमारी से बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए ?
Solution:
पोलियो जैसी खतरनाक बीमारी को समूल नष्ट करने के लिए (UPBoardSolutions.com) समय-समय पर बच्चों को पोलियों की खुराक-निश्चित रूप से पिलवाएँ।

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Question 5.
कृमि संक्रमण रोकने के लिए हमें क्या उपाय करना चाहिए।
Solution:
कृमि नियंत्रण के लिए एल्बेंडजॉल की दवा दी जाती है। कृमि नियंत्रण की दवाई खाने के साथ-साथ कृमि संक्रमण को रोकने के लिए नाखून छोटे रखें, हमेशा साफ पानी पिएँ, सब्जियों एवं फलों को साफ पानी से धोएँ, खुले में शौच न करें एवं पैरों में जूते व चप्पल पहनें।

यह भी जानिए : नोट- विद्यार्थी स्वयं करें।

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