UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 24 नवजात शिशु की देखभाल तथा सामान्य व्याधियाँ (जन्म से एक वर्ष)

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 24 नवजात शिशु की देखभाल तथा सामान्य व्याधियाँ (जन्म से एक वर्ष) (Care of the Newly Born Child and Common Ailments (up to one year))

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 24 नवजात शिशु की देखभाल तथा सामान्य व्याधियाँ (जन्म से एक वर्ष)

UP Board Class 11 Home Science Chapter 24 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एक नवजात शिशु की देखभाल आप कैसे करेंगी? विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। अथवा नवजात शिशु की परिचर्या किस प्रकार की जाती है? शिशु के उचित विकास के लिए किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए? विस्तारपूर्वक लिखिए। अथवा नवजात शिशु की देखभाल के बारे में लिखिए।
उत्तरः
जन्म के समय नवजात शिशु बहुत कोमल तथा अशक्त दशा में गर्भ से बाहर आता है। ‘ प्रसूता भी बहुत कमजोर तथा निढाल अवस्था में होती है। तब शिशु का पालन-पोषण दूसरे व्यक्तियों के ऊपर निर्भर होता है। शिशु और माता की देखभाल पूरी तरह से नर्स पर ही निर्भर होती है। शिशु जन्म लेते समय निष्क्रिय अवस्था में होता है। पूर्णतया गर्भ त्यागने के पश्चात् वह कुछ क्रियाशील होता है। इस स्थिति में नवजात शिशु को तुरन्त परिचर्या की आवश्यकता होती है।

जन्म के समय शिशु की परिचर्या (Care of Newly Born Child).
1. फेफड़े का श्वसन – जन्म से पूर्व, शिशु गर्भ में एक झिल्लीनुमा थैली में होता है। शिशु के चारों ओर तरल पदार्थ भरा रहता है। शिशु जब तक गर्भ में रहता है, तब तक उसको साँस नहीं लेनी पड़ती और न ही भोजन करना पड़ता है, इसलिए उसके श्वसन अंग और पाचन संस्थान अक्रियाशील होते हैं। इनके साथ-साथ उत्सर्जन अंग भी क्रिया नहीं करते। परन्तु जैसे ही शिशु गर्भ से बाहर आता है, उसका वातावरण बदल जाता है। बाहर आकर उसे श्वसन क्रिया की आवश्यकता होती है।

शिशु गर्भ से बाहर आते ही रोना आरम्भ कर देता है, जिसके कारण उसके फेफड़े फैल जाते हैं और श्वसन क्रिया होने लगती है। यदि नवजात शिशु स्वयं नहीं रोता तो उसे रुलाना आवश्यक होता है, जिससे श्वसन क्रिया होनी आरम्भ हो जाए और बच्चे का जीवन सुरक्षित रहे। यदि किसी कारण से नवजात शिशु की प्राकृतिक श्वसन-क्रिया तुरन्त प्रारम्भ नहीं होती. तो उसका जीवन खतरे में पड़ सकता है।

2. गर्भनाल को काटना – शिशु के जन्म के समय उसकी नाभि से एक लम्बी नली जुड़ी रहती है, जिसको नाल या गर्भनाल कहते हैं। इसकी लम्बाई लगभग 45 से 60 सेमी तक होती है। शिशु गर्भावस्था में पोषक तत्त्व इसी नाल के माध्यम से माता के रक्त से प्राप्त करता है। जन्म के पश्चात् इसकी आवश्यकता नहीं होती, फिर शिशु अपना भोजन बाहर से स्वयं लेने लगता है। रक्त का संचरण स्वयं होने लगता है; अतः शिशु को माता के शरीर से अलग करना आवश्यक होता है।

इसके लिए शिशु के शरीर से लगभग 10 सेमी छोड़कर गर्भनाल को दो स्थानों पर कसकर बाँध दिया जाता है। इसके बाद इन दोनों बन्धनों के बीच में से गर्भनाल को किसी नि:संक्रमित कैंची से सावधानीपूर्वक काट दिया जाता है। इस प्रकार शिशु माता के शरीर से अलग हो जाता है। कटे स्थान पर डिटोल लगा देना चाहिए। फिर यह कुछ दिनों में सूखकर गिर जाता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि गर्भनाल को उस समय काटना चाहिए जब उसमें होने वाला स्पन्दन रुक जाए।

3. शिशु का वजन – जन्म के उपरान्त ही शिशु का वजन अवश्य लेना चाहिए। शिशु के वजन को निर्धारित चार्ट में लिख लेना चाहिए। इससे शिशु की वृद्धि का व्यवस्थित अध्ययन करने में सहायता मिलती है। सामान्य रूप से नवजात शिशु का वजन लगभग 3 किग्रा होता है।

4. स्नान-जन्म के समय शिशु के शरीर पर श्वेत रंग का मोम जैसा एक चिकना पदार्थ लगा रहता है, जो गर्भ में शिशु की रक्षा करता है।
सबसे पहले साफ रुई से शरीर पर लगे सफेद पदार्थ को छुड़ा देना चाहिए, फिर जैतून के तेल की मालिश करनी चाहिए। इसके पश्चात् अच्छे साबुन से शिशु को स्नान कराना चाहिए। स्नान कराते समय यह ध्यान रहे कि शिशु की नाभि गीली न होने पाए, क्योंकि नाल के गीला होने से संक्रमण की आशंका रहती है। स्नान कराने के पश्चात् शिशु को सूखे तौलिए से पोंछ देना चाहिए।

5. अंगों की स्वच्छता-शिशु की सामान्य स्वच्छता के साथ उसके कुछ विशेष अंगों की सफाई पर भी ध्यान देना चाहिए, जो इस प्रकार हैं –

  • कान – जन्म लेने वाले शिशु की शारीरिक सफाई के अन्तर्गत कानों की सफाई का भी विशेष महत्त्व है। नवजात शिशु के कानों में काफी मात्रा में म्यूकस जमा रहता है। इसे साफ करने के लिए किसी नर्म कपड़े की पतली-सी बत्ती बनाई जाती है तथा उसे शिशु के कान में घुमाया जाता है, इससे काफी सफाई हो जाती है।
  • आँख-शिशु की आँखों की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इनकी थोड़ी-सी असावधानी होने पर शिशु की आँखों में एक रोग, जिसको रोएँ कहते हैं, हो जाता है। इस रोग में नेत्र सूज जाते हैं और शिशु नेत्रविहीन तक हो सकता है। नवजात शिशु की आँखों की सफाई हल्के बोरिक लोशन से करनी चाहिए। कभी-कभी नवजात शिशु की आँखों से पीले रंग का गन्दला पदार्थ निकलता है। इसे नियमित रूप से साफ करते रहना चाहिए।
  • नाक-शिशु को स्नान कराते समय ही उसकी नाक को साफ रुई से अन्दर व बाहर से साफ कर देना चाहिए। प्राय: नवजात शिशु की नाक में भी काफी मात्रा में म्यूकस जमा रहता है। इसे साफ करने के लिए नर्म कपड़े की पतली-सी बत्ती बनाकर उसे धीरे-धीरे नाक में घुमाया जाता है। इससे यदि बच्चे को छींक आ जाए तो नाक के अन्दर की अच्छी सफाई हो जाती है।
  • गला-शिशु के गले में कुछ श्लेष्म एकत्र हो जाता है; अत: उसकी सफाई के लिए उँगली पर साफ कपड़ा लपेटकर बोरिक लोशन में भिगोकर गले में चारों ओर धीरे-धीरे घुमा देना चाहिए।
  • मल-मूत्र अंग-शिशु के मल-मूत्र अंगों की सफाई भी आवश्यक है। विशेषतया कन्या शिशु के मल-मूत्र अंगों को रुई से बोरिक लोशन में भिगोकर साफ कर देना चाहिए। स्नान कराने के पश्चात् शिशु के शरीर को कपड़े से पोंछकर बेबी पाउडर लगा देना चाहिए।

6. निद्राव बिस्तर-आरम्भ में शिशु दिन में 20-22 घण्टे तक सोता रहता है। वह भूख लगने या मूत्र त्यागने के समय ही रोता है। शिशु को स्नान कराने के पश्चात् पहले से तैयार किए गए पालने में लिटाना चाहिए। पालने में नर्म गद्दी बिछा देनी चाहिए। गद्दी के ऊपर रबड़ का टुकड़ा भी बिछा देना चाहिए, जिससे मूत्र त्याग करने पर गद्दी खराब न हो। इस रबड़ की चादर पर एक सफेद चादर बिछाना भी आवश्यक है और सिर के नीचे नर्म तकिया लगा देना चाहिए। फिर शिशु को लिटाकर उसके शरीर को किसी चादर से ढक देना चाहिए तथा मुँह खुला होना आवश्यक है। इस प्रकार का बिस्तर मिलने पर बच्चा सो जाता है।

7. आहार-शिशु को आरम्भ में प्रति चार या पाँच घण्टे के पश्चात् पानी के साथ शहद या. ग्लूकोज मिलाकर चम्मच से पिलाना चाहिए। इस मिश्रण को रुई की बत्ती से भी शिशु को पिलाया जा सकता है। रुई की बत्ती का एक सिरा बच्चे के मुँह में लगा देना चाहिए, जिससे वह अपनी आवश्यकतानुसार उस मिश्रण को चूस लेगा। शिशु के जन्म के 8 या 10 घण्टे पश्चात् माता का दूध साधारणतया पिला दिया जाता है।

आरम्भ में माता के दूध के स्थान पर एक पीला व प्रोटीनयुक्त तरल पदार्थ निकलता है, जिसको कोलस्ट्रम के नाम से पुकारते हैं। इसको पीने से शिशु की पाचन-क्रिया बढ़ जाती है तथा इसे ग्रहण करने से शिशु में कुछ रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास होता है। शिशु को कोलस्ट्रम अवश्य देना चाहिए। यह द्रव कुछ पतला होता है, परन्तु धीरे-धीरे यह कुछ गाढ़ा होता चला जाता है। फिर यह दूध का रूप धारण कर लेता है। शिशु को स्तनपान कराने से पूर्व, स्तनों और हाथों को भली प्रकार धो लेना चाहिए। दूध पिलाते समय बच्चे की श्वसन क्रिया का भी ध्यान रखना चाहिए।

आरम्भ में बच्चे को 5 या 6 घण्टे के अन्तर से दूध पिलाना चाहिए, इसके पश्चात् फिर धीरे-धीरे समय बढ़ाकर लगभग 8 घण्टे के अन्तर से दूध पिलाने का अभ्यास डालना चाहिए।
यदि माता बच्चे को किसी कारण से दूध पिलाने में असमर्थ हो तो बोतल का दूध पिलाना चाहिए। बोतल के दूध को पिलाने से पहले दूध को पानी मिलाकर हल्का कर लेना चाहिए। लेटकर दूध कभी नहीं पिलाना चाहिए। इससे बच्चे का कान बह निकलता है।

8. अन्य देखभाल – नवजात शिशु को गोद में लेते समय सावधानी बरतनी चाहिए। शिशु को बिस्तर से गोद में उठाते समय उसके सिर और पीठ को सहारा मिलना चाहिए। इसी प्रकार बच्चे को लिटाते समय सहारा देना आवश्यक है। बच्चे को कन्धे या बाँहों के सहारे कभी नहीं उठाना चाहिए। यदि बाँहों को पकड़कर उठाया जाएगा तो उसकी हँसली की हड्डी उतरने का भय रहता है। शिशु को कन्धे से लगाते समय भी सिर और कमर पर हाथ लगाना आवश्यक है। नवजात शिशु पूर्ण विकसित होता है।

वह जन्म से थोड़े समय बाद ही रक्त-संचालन, श्वसन, पाचन, मूत्र विसर्जन आदि सभी क्रियाएँ करने लगता है। एक पूर्ण शिशु की लम्बाई 40 सेमी से 50 सेमी होती है, यह लम्बाई माता-पिता तथा जलवायु पर निर्भर होती है। उसका भार लगभग 3 से 4 किग्रा तक होता है। खोपड़ी पर बाल होते हैं, परन्तु कुछ शिशुओं की खोपड़ी पर अधिक बाल नहीं होते। शिशु के जन्म के बाद उसके हाथ-पैर चलमे चाहिए। यदि बच्चे का कोई अंग गति न करता हो तो तुरन्त डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

प्रश्न 2.
नवजात शिशु के आहार एवं पोषण-व्यवस्था का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तरः
नवजात शिशु स्वयं अपना आहार नहीं ग्रहण कर सकता; अत: उसके पोषण के लिए आहार की व्यवस्था भी उसकी देख-रेख करने वाले व्यक्तियों द्वारा ही की जाती है। प्रकृति ने जन्म लेने वाले शिशु के पोषण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए उसके उपयुक्त आहार की भी व्यवस्था कर दी है। नवजात शिशु का यह प्रकृति-प्रदत्त आहार है-माँ का दूध। प्रसव के साथ-साथ माँ के स्तनों में दूध का उत्पादन भी प्रारम्भ हो जाता है।

सामान्य रूप से प्रसव के उपरान्त कुछ समय के लिए प्रसूता अत्यधिक दुर्बल तथा थकी हुई होती है। इस दशा में वह नवजात शिशु को दूध नहीं पिला सकती। इस स्थिति में नवजात शिशु को पोषण प्रदान करने के लिए शहद चटाया जा सकता है।

आरम्भ में माता के दूध के स्थान पर एक पीला व प्रोटीनयुक्त तरल पदार्थ निकलता है, जिसको कोलस्ट्रम के नाम से पुकारते हैं। इसको पीने से शिशु की पाचन-क्रिया बढ़ जाती है तथा इसे ग्रहण करने से शिशु कुछ रोगों से भी बच जाता है। शिशु को कोलस्ट्रम अवश्य देना चाहिए। यह द्रव कुछ पतला होता है, परन्तु धीरे-धीरे यह कुछ गाढ़ा होता चला जाता है। फिर यह दूध का रूप धारण कर लेता है। शिशु को पानी पिलाते रहना चाहिए। पानी पीने से शिशु के गुर्दे भी कार्य करने लगते हैं। शिशु को स्तनपान कराने से पूर्व, स्तनों और हाथों को भली प्रकार धो लेना चाहिए। दूध पिलाते समय बच्चे की श्वसन क्रिया का भी ध्यान रखना चाहिए।

आरम्भ में बच्चे को 5 या 6 घण्टे के अन्तर से दूध पिलाना चाहिए, इसके पश्चात् फिर धीरे-धीरे समय बढ़ाकर लगभग 8 घण्टे के अन्तर से दूध पिलाने का अभ्यास डालना चाहिए।

नवजात शिशु के लिए माँ के दूध के महत्त्व तथा सम्बन्धित तथ्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है –
1. शिशु के लिए माँ के दूध का महत्त्व – माता का दूध नवजात शिशु के लिए एक सर्वोत्तम भोजन या आहार है। यह प्रकृति की एक अद्भुत देन है कि शिशु के जन्म से पहले ही माता के स्तनों में दूध आ जाता है।
माता के दूध में लगभग सभी पोषक तत्त्व; जैसे कार्बोज, प्रोटीन, वसा, जल, खनिज तथा विटामिन्स उपस्थित रहते हैं। जिस समय शिशु जन्म लेता है तो माता का दूध पतला होता है ताकि बच्चा उसे आसानी से पचा सके, क्योंकि इस समय शिशु के पाचन अंग पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते हैं।

शिशु की आयु के बढ़ने के साथ-साथ माता का दूध भी गाढ़ा होता चला जाता है तथा उसमें पोषक तत्त्वों की मात्रा भी बढ़ जाती है। माता के दूध द्वारा शिशु के शरीर में किसी भी प्रकार के संक्रामक रोगों के जीवाणु प्रवेश नहीं कर पाते; अत: शिशु का शरीर विभिन्न संक्रामक रोगों से बचा रहता है। इस प्रकार माता का दूध, उसके स्तनों से प्राप्त करके शिशु अपनी भूख मिटाता है तथा अपनी आहार सम्बन्धी आवश्यकता को पूरा करता है। बच्चे के स्वास्थ्य के लिए स्तनपान विशेष रूप से लाभदायक होता है। प्रकृति ही माता के स्तनों में दूध का निर्माण करती है। दूध का यह निर्माण बच्चे को पिलाने के लिए ही होता है; अत: शरीर की स्वाभाविक क्रिया के रूप में माता को बच्चे को स्तनपान अवश्य ही कराना चाहिए। स्तनपान से माँ एवं बच्चे दोनों को एक विशेष प्रकार का सन्तोष एवं स्वास्थ्य-सुख प्राप्त होता है।

2. स्तनपान कराने की सही विधि – जिस समय माता का प्रथम प्रसव होता है तो उसे स्तनपान कराने का तरीका सीखना पड़ता है। शिशु को भी इस क्रिया के लिए बार-बार प्रयास एवं अभ्यास करना पड़ता है। प्रारम्भ में माता कमजोर होती है; अत: कुछ दिन लेटकर ही शिशु को दूध पिलाती है। इसके बाद धीरे-धीरे बैठकर दूध पिलाना प्रारम्भ कर देती है।

जब माता बैठने लगती है तो शिशु को जिस ओर स्तनपान कराना है उस ओर की बाँह पर शिशु का सिर रखना चाहिए तथा उसका शरीर अग्रबाहु पर रखना चाहिए। शिशु का सिर कुछ ऊँचा रखना चाहिए जिससे उसका मुख स्तन पर पहुँच जाए।

दूध पिलाने से पूर्व, हाथों को भली-भाँति धोकर, रुई के फाहे से स्तन मुख को स्वच्छ करके शिशु के मुख में देना चाहिए। स्तन मुख को हाथ से पीछे की तरफ सँभाले रखना चाहिए नहीं तो शिशु की नाक दबेगी।

3. शिशु को डकार दिलवाना-बच्चे को दूध पिलाते समय कभी-कभी वायु भी प्रवेश कर जाती है। इस वायु विकार से बचने का सर्वोत्तम उपाय है-शिशु को डकार दिलवाना।
बच्चे को दूध पिलाने के पश्चात् कन्धे से लगाकर उसकी पीठ को अत्यन्त हल्के-हल्के हाथ से थपथपा देना चाहिए या नीचे से ऊपर की ओर को उसकी पीठ को धीरे-धीरे सहलाया जाना चाहिए जब तक कि बच्चे को डकार न आ जाए। यदि बच्चा अधिक भूखा हो तो उसे स्तनपान कराते समय एक स्तन से दूध पिलाने के उपरान्त भी एक बार डकार दिलवा देनी चाहिए। डकार दिलवाने के उपरान्त ही दूसरे स्तन से दूध पिलाना चाहिए। यदि बच्चे को ठीक ढंग से डकार दिलवा दी जाए तो बच्चे द्वारा दूध निकालने या उल्टी करने की प्रायः आशंका नहीं रहती।

4.स्तनपान के लिए वर्जित परिस्थितियाँ-शिशु के लिए माँ का दूध ही सर्वोत्तम आहार होता है, परन्तु कुछ परिस्थितियों में शिशु को स्तनपान न कराना ही हितकर होता है। इस प्रकार की मुख्य परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं

  • जब माता लम्बी अवधि से बुखार से पीड़ित हो।
  • यदि माता सिफलिस या किसी अन्य भयंकर संक्रामक रोग से पीड़ित हो।
  • माता को रक्तस्राव होने पर।
  • अधिक चिड़चिड़े व क्रोधी स्वभाव की माता को भी बच्चे को स्तनपान नहीं कराना चाहिए।
  • यदि माता पुनः गर्भधारण कर ले तो उस दशा में पहले शिशु को स्तनपान नहीं कराना चाहिए। इस स्थिति में यदि माता स्तनपान कराती है तो गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

5. शिशु को ऊपरी दूध पिलाना – कुछ असामान्य परिस्थितियों में शिशु को माँ का दूध पिलाना या तो सम्भव नहीं होता अथवा अहितकर होता है। ऐसी परिस्थितियों में शिशु के पोषण के लिए उसे माँ के दूध के अतिरिक्त कोई अन्य दूध देने की व्यवस्था की जाती है। शिशु को गाय, भैंस तथा बकरी का दूध दिया जा सकता है। नवजात शिशु को गाय-भैंस आदि का दूध देने के लिए, उसमें कुछ मात्रा में उबला हुआ पानी मिलाकर पतला किया जाता है। पानी मिला दूध शिशु को पचाना सरल होता है। इसके अतिरिक्त शिशु को सूखा अर्थात् पाउडर दूध भी दिया जा सकता है। इस दूध को दूध का पूरा पानी सुखाकर तैयार किया जाता है। यह दूध भिन्न-भिन्न कम्पनियों द्वारा उत्पादित किया जाता है; जैसे- ग्लैक्सो, ऑस्टर मिल्क, ड्यूमैक्स, बेबी फूड, हॉर्लिक्स, नैसले, अमूल आदि। इन डिब्बों के ऊपर आयु के अनुसार दूध की मात्रा व बनाने की विधि लिखी रहती है।

पाश्चात्य देशों में आधुनिक नवीन वैज्ञानिक रीतियों से यह सूखा दूध तैयार किया जाता है। इसमें सभी पौष्टिक तत्त्व स्वास्थ्य रक्षा के दृष्टिकोण से रखे जाते हैं। डिब्बों में भरने से पूर्व इनकी जाँच कर ली जाती है। इसे गर्म पानी में घोलकर प्रयोग किया जाता है। जिन माताओं का अपना दूध पर्याप्त नहीं होता, वे बच्चों को यह दूध पिला सकती हैं; परन्तु आजकल अनेक आधुनिक महिलाएँ कुछ अन्य कारणों से भी स्तनपान कराना पसन्द नहीं करतीं, यह उचित प्रवृत्ति नहीं है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि नवजात एवं छोटे शिशुओं को केवल विशेष परिस्थितियों में ही ऊपरी दूध दिया जाना चाहिए। शिशु को ऊपरी दूध देते समय बोतल एवं निप्पल की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस विषय में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है –

बोतल की स्वच्छता-बच्चे के दूध पीने वाली बोतल की स्वच्छता निम्न प्रकार से की जानी आवश्यक है –

  • सर्वप्रथम बोतल को ठण्डे जल से तथा बाद में साबुन व गर्म जल से धोना चाहिए।
  • कम-से-कम एक बार बोतल को गर्म पानी में डालकर अवश्य उबालना चाहिए। इसके लिए बोतल को गरम पानी में न डालकर ठण्डे पानी में ही रखकर पानी को उबालना चाहिए।
  • बोतल में लगे दूध की सफाई के लिए ब्रुश डालकर बोतल को साफ करना चाहिए।
  • बोतल को जहाँ तक हो सके उचित स्थान पर ढककर रखना चाहिए।

निप्पल की स्वच्छता – बोतल के ऊपर लगी निप्पल की स्वच्छता निम्न प्रकार से रखनी चाहिए

  • दूध निप्पल के अन्दर न जम सके, इसके लिए उसे प्रयोग में लाने के पश्चात् धो लेना चाहिए।
  • निप्पल को उबालना नहीं चाहिए नहीं तो उसकी रबड़ खराब हो जाएगी। उसे खौलते पानी से बुश द्वारा साफ कर देना चाहिए।
  • निप्पल को जार अथवा प्लेट से ढककर रखना चाहिए।
    यदि शिशु के दूध की बोतल तथा निप्पल की स्वच्छता का समुचित ध्यान नहीं रखा जाता तो शिशु के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है तथा वह कुछ संक्रामक रोगों का शिकार हो सकता है।

प्रश्न 3.
पूरक आहार से क्या आशय है? मुख्य पूरक भोज्य पदार्थों का उल्लेख कीजिए तथा पूरक आहार देने में आवश्यक सावधानियों को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
शैशवावस्था में शिशु का मुख्य आहार दूध होता है। यह दूध यदि माँ का हो तो सर्वोत्तम है, नहीं तो गाय, भैंस या बकरी का दूध विधिवत् दिया जा सकता है, परन्तु जैसे-जैसे शिशु बढ़ता है वैसे-वैसे उसकी आहार सम्बन्धी आवश्यकताएँ भी बढ़ती जाती हैं, तब दूध अपर्याप्त होने लगता है। इसके अतिरिक्त कुछ तत्त्व जो कि दूध में कम मात्रा में पाए जाते हैं वे भी अलग से दिए जाने अनिवार्य हैं। शिशु को दूध के अतिरिक्त दिए जाने वाले भोज्य-पदार्थों को ‘पूरक भोज्य-पदार्थ’ (Supplementary food) कहा जाता है। सामान्य रूप से चार-पाँच माह के शिशु को पूरक आहार दिया जाना प्रारम्भ कर दिया जाता है।

शिशु के मुख्य पूरक-भोज्य-पदार्थ –
शिशु को दिए जाने वाले मुख्य पूरक भोज्य-पदार्थ निम्नलिखित हैं –

1. विटामिन ‘D’ युक्त भोज्य-पदार्थ – दूध में विटामिन ‘D’ की कमी होती है। अत: शिशु के पूरक आहार में ऐसे भोज्य-पदार्थ का भी न्यून मात्रा में समावेश होना चाहिए जो कि विटामिन ‘D’ से युक्त हो। इसके लिए शिशु को बहुत कम मात्रा में मछली के लिवर का तेल दिया जा सकता है।

2. फलों का रस-दूध में विटामिन ‘C’ का प्रायः अभाव ही होता है। इस कमी को पूरा करने के लिए शिशु के पूरक आहार में फलों के रस का समावेश होना चाहिए। मुख्य रूप से मुसम्बी, नारंगी तथा सन्तरे एवं टमाटर का रस शिशु को दिया जा सकता है। शिशु को फलों का रस देने से दूध में विद्यमान प्रोटीन का पाचन तथा कैल्सियम का शोषण सरलता से हो जाता है।

3. अण्डे का पीला भाग-आयरन अर्थात् लौह खनिज तथा थायमिन की आवश्यक अतिरिक्त मात्रा की पूर्ति के लिए बच्चे को अण्डे का पीला भाग भी पूरक भोज्य-पदार्थ के रूप में दिया जा सकता है। भारत में अण्डे का प्रचलन पश्चिमी देशों की तुलना में कम है।

4. कुचली एवं छनी हुई सब्जी एवं फल-जब शिशु चार-पाँच माह का हो जाए तो उसे विभिन्न सब्जियाँ उबालकर तथा कुचलकर एवं छानकर दी जा सकती हैं। इससे शिशु को लौह खनिज, विटामिन ‘C’ तथा सेलुलोस प्राप्त हो जाता है तथा सामान्य रूप से कब्ज की शिकायत भी नहीं रहती।

5. पूर्व पकाया हुआ अनाज आहार-पाँच-छह माह के शिशु को पूरक आहार के रूप में पकाया हुआ अनाज भी दिया जा सकता है। यह शारीरिक वृद्धि के लिए सहायक होता है। इसमें पका हुआ दलिया, सूजी की खीर तथा कॉर्न फ्लेक्स आदि सम्मिलित किए जा सकते हैं। अब इस वर्ग के कुछ तैयार शिशु आहार बाजार में डिब्बाबन्द अवस्था में भी उपलब्ध हैं। ये भिन्न-भिन्न स्वाद एवं गुणों वाले हैं। सैरेलैक्स एक ऐसा ही शिशु पूरक-आहार है।

पूरक आहार देने में ध्यान रखने योग्य बातें –
शिशु को दूध के साथ-साथ दिए जाने वाले पूरक आहार के नियोजन एवं देने में मुख्य रूप से निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी आवश्यक हैं –

  • प्रारम्भ में केवल एक ही भोज्य-पदार्थ पूरक आहार के रूप में देना प्रारम्भ करना चाहिए। जब शिशु इसे सही रूप में ग्रहण करना शुरू कर दे तभी दूसरे भोज्य-पदार्थ का समावेश करना चाहिए।
  • जब कोई भोज्य-पदार्थ पूरक आहार के रूप में अपनाया जाए तो प्रारम्भ में इसकी अल्प मात्रा ही शिशु को दी जानी चाहिए तथा क्रमश: धीरे-धीरे इसकी मात्रा बढ़ाई जानी चाहिए।
  • सामान्य रूप से पूरक आहार में दिए गए अनाज भी तरल रूप में ही होने चाहिए। इसे शिशु के लिए ग्रहण करना सरल होता है। –
  • शिशु को कोई भी पूरक भोज्य पदार्थ अधिक मात्रा में नहीं देना चाहिए और न ही उसे खाने के लिए बाध्य करना चाहिए।
  • यदि ऐसा प्रतीत हो कि किसी पूरक भोज्य-पदार्थ में शिशु की रुचि नहीं है तथा वह अरुचि निरन्तर बनी रहती है तो वह भोज्य-पदार्थ शिशु को नहीं दिया जाना चाहिए तथा उसके स्थान पर कोई अन्य पूरक भोज्य पदार्थ देना ही उचित रहता है।
  • यदि चाहे तो पूरक आहार के भोज्य-पदार्थों में अल्प मात्रा में नमक भी मिलाया जा सकता है।
  • शिशु को अर्द्ध-ठोस पदार्थ तभी देने चाहिए जब उन्हें थोड़ा-बहुत चबाने की क्षमता आ जाए। अन्यथा तरल भोज्य-पदार्थ ही देना उत्तम रहते हैं।
  • पूरक आहार के रूप में कोई से दो भोज्य-पदार्थ मिलाकर भी दिए जा सकते हैं। इससे शिशु की पूरक आहार के प्रति अधिक रुचि बनी रहती है। उदाहरणस्वरूप शिशु को दूध-अण्डा या सूप-क्रीम दी जा सकती है।

प्रश्न 4.
स्तनपान छुड़ाने से क्या आशय है? स्तनपान छुड़ाने में आवश्यक सावधानियों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
शिशु का मुख्य एवं आदर्श आहार माँ का दूध ही है, परन्तु केवल एक सीमित अवधि तक ही शिशु को माँ का दूध उपलब्ध होता है। शिशु को स्तनपान की आदत हो जाती है। अतः एक समय पर शिशु के स्तनपान की आदत को छुड़ाना आवश्यक हो जाता है।

शिशु को माता के दूध से अलग करना ‘स्तन-त्याग’ या ‘स्तनपान छुड़ाना’ कहलाता है। जब शिशु की अवस्था 6 माह से 9 माह के बीच हो तो माता को स्तनपान छुड़ाने का प्रयास प्रारम्भ कर देना चाहिए। इस अवधि में धीरे-धीरे शिशु को ऊपर का दूध तथा अन्य खाद्य पदार्थ देने चाहिए। शिशु को गिलास अथवा प्याले से तरल पदार्थ पिलाने का अभ्यास डालना चाहिए। इससे बच्चे की पाचन क्रिया में वृद्धि होती है। माता को शिशु को अपना दूध पिलाना धीरे-धीरे कम करते जाना चाहिए। प्राकृतिक रूप से भी जैसे-जैसे शिशु के दाँत निकलने शुरू होते हैं, वैसे-वैसे माता की दूध पिलाने की क्षमता भी कम होती जाती है। इससे शुरू से ही शिशु को बोतल से पानी पिलाने का अभ्यास कराना चाहिए, जिससे आगे चलकर दूध पिलाने में भी सुगमता हो।

दूध छुड़ाने के समय माता को अपने भोजन में भी परिवर्तन कर देना चाहिए। उसे दूध, दलिया, चिकनाई आदि का सेवन कम कर देना चाहिए। इससे दूध कम बनेगा। इसके साथ ही स्तन पर कपड़े की पट्टी थोड़ी कसकर बाँध लेने से दूध सूखने में सहायता मिलती है।

शिशु को माता के स्तनों से दूर करना इतना सरल नहीं होता। शिशु काफी कठिनाई से माता का दूध छोड़ता है। कभी-कभी शिशु दूध छोड़ते समय बहुत परेशान होते हैं, रोते हैं, ऊपर का दूध नहीं पीते तथा उनकी नींद भी कम हो जाती है। इससे माता को बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। माता को बड़े धैर्य एवं शान्ति से दूध छुड़ाने का प्रयत्न करना चाहिए। ऊपर का दूध बोतल में भरकर अथवा चम्मच से पिलाना चाहिए। चम्मच में दूध भरकर स्तनों के समीप ले जाकर बच्चे को पिलाना चाहिए, जिससे उसे लगे कि वह माता का दूध पी रहा है।

स्तनपान छुड़ाने में सावधानियाँ –
प्रारम्भ में स्तनपान छुड़ाते समय शिशु को ऊपर का दूध एक बार, फिर दो बार तथा धीरे-धीरे क्रमशः बढ़ाते रहना चाहिए। सामान्य रूप से 9 माह की आयु होने पर स्तनपान छुड़ा देना चाहिए। स्तनपान छुड़ाने में निम्नलिखित सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए –

  • माता का दूध धीरे-धीरे छुड़ाना चाहिए, एकदम नहीं। दूध छुड़ाने के समय बच्चे को दिन में एक-दो बार फलों का रस, मुलायम हरी
  • सब्जी का पानी, केला आदि मसलकर देने का अभ्यास करना चाहिए।
  • शिशु को दिन में एक-दो बार निप्पल वाली बोतल से ऊपर का दूध देना चाहिए।
  • गर्मी की ऋतु में यथासम्भव स्तनपान नहीं छुड़ाना चाहिए, क्योंकि इस ऋतु में पाचन शक्ति क्षीण होती है। इस स्थिति में शिशु ऊपरी दूध को पचाने में असमर्थ होगा।
  • माँ का दूध छुड़ाने के पश्चात् शिशु के आहार में फल, हरी सब्जी, मछली, अण्डे की जर्दी आदि होनी चाहिए।
  • ऊपरी दूध से प्राय: बच्चों को कब्ज हो जाता है, इसलिए बच्चों को फलों का रस, भुना हुआ सेब आदि अवश्य देना चाहिए।
  • दूध छुड़ाने के पश्चात् बच्चे बहुत चिड़चिड़े व जिद्दी हो जाते हैं। अतः उनके आहार के प्रति बहुत सावधान रहना चाहिए तथा उन्हें प्यार से उचित आहार देते रहना चाहिए।
  • आरम्भ से बच्चों को पेय-पदार्थ पहले चम्मच से पिलाने चाहिए, फिर धीरे-धीरे छोटे गिलास से पीने की आदत डालनी चाहिए।

प्रश्न 5.
शिशु के दाँत निकलने की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।आवश्यक सावधानियों तथा दाँतों की सुरक्षा के उपाय भी बताइए।
उत्तरः
शिशु के मुँह में जन्म के समय दाँत नहीं होते। पाचन क्रिया तथा स्वास्थ्य व सुन्दरता के लिए मुँह में दाँतों का होना आवश्यक है। दाँतों का निकलना बच्चे के जीवन में एक विशेष महत्त्व रखता है। दाँत निकलते समय शिशु को कुछ परेशानियाँ भी होती हैं तथा इस काल में उसकी अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है।
मनुष्य के दाँत दो प्रकार के होते हैं-अस्थायी दाँत तथा स्थायी दाँत। शैशवावस्था में केवल अस्थायी दाँत ही निकलते हैं।

अस्थायी दाँत –
इन दाँतों को ‘दूध के दाँत’ के नाम से भी पुकारते हैं। ये दाँत शिशु अवस्था में ही निकलते हैं। शिशु के दाँत 6 से 9 मास की आय में निकलने प्रारम्भ होते हैं। इन दाँतों की संख्या 3 वर्ष तक लगभग 20 हो जाती है। ये दाँत जबड़े की अस्थियों में दबे हुए बच्चे के जन्म से ही रहते हैं। सर्वप्रथम नीचे के जबड़े में मध्य के दो दाँत 6-7 मास की आयु के बीच बाहर निकल आते हैं। इसके पश्चात् लगभग 8-12 मास की आयु में ऊपर के चार छेदक दाँत निकल आते हैं।

बच्चे के एक वर्ष की आयु में 6 दाँत निकल आते हैं। इसके बाद दाँत निकलने बन्द हो जाते हैं। फिर कुछ समय बाद दाँत निकलने प्रारम्भ होते हैं। दो वर्ष के अन्त तक ऊपर तथा नीचे के चार कीले निकल आते हैं। तीन वर्ष की आयु तक चार दाढ़े भी बाहर निकल आती हैं। इस प्रकार पूरे दाँतों की संख्या 20 हो जाती है।

शिशुओं में दाँत निकलने का समय अलग-अलग होता है। कुछ बच्चों में दाँत 4 मास की आयु में ही निकलने लगते हैं। ये दाँत ठीक नहीं होते। इन दाँतों के ऊपर इनेमल का अभाव होता है। कुछ बच्चों में दाँत तब निकलते हैं, जब वे चलने लगते हैं। दाँतों का देरी से या जल्दी से निकलना कोई दोष की बात नहीं होती। कुछ बच्चों के दाँत बिना कष्ट के ही निकल आते हैं, जबकि कुछ बच्चों को अधिक कष्ट होता है।

दाँत निकलने के लक्षण –
दाँत निकलते समय शिशु को विभिन्न परेशानियाँ होती हैं। वास्तव में ये दाँत निकलने के लक्षण ही होते हैं। अधिकतर दाँत निकलते समय बच्चों को दस्त आने लगते हैं। कभी-कभी ज्वर भी होने लगता है। बच्चे प्राय: चिड़चिड़े हो जाते हैं तथा रोया करते हैं। वे दूध पीना बन्द कर देते हैं और अस्वस्थ दिखाई देते हैं तथा काटने का प्रयत्न करते हैं।

दाँत निकलते समय सावधानियाँ –

  • समय-समय पर शहद में सुहागा मिलाकर शिशु को चटाना चाहिए, इससे दाँत आसानी से निकल आते हैं तथा बच्चे का हाज़मा भी ठीक रहता है।
  • अधिक दस्त या ज्वर होने पर बच्चे को डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
  • इस काल में बच्चे के सामने जो भी वस्तु आती है, उसी को मुँह से काटने की चेष्टा करता है। इसलिए इस बात की सावधानी बरतनी चाहिए कि वह क्या चबाता है। वस्तु के साथ बच्चे के शरीर में रोग के कीटाणु पहुँचने का भय रहता है।

दाँतों की सुरक्षा

  • स्थायी दाँतों का स्वस्थ होना प्राथमिक दाँतों पर ही निर्भर रहता है। इसलिए प्राथमिक दाँतों की सुरक्षा तथा स्वास्थ्य के विषय में सावधानी रखनी चाहिए।
  • बच्चे के दूध में विटामिन्स, कैल्सियम तथा फॉस्फोरस उपयुक्त मात्रा में घुले होने चाहिए, जिसके होने से दाँत स्वस्थ तथा पुष्ट बनते हैं।
  • बच्चे को भोजन के बाद गाजर या सेब खाने के लिए देना चाहिए। इनसे दाँतों की सफाई होती है।
  • सुबह, शाम तथा प्रत्येक वस्तु खाने के पश्चात् दाँतों को साफ कर देना चाहिए।
  • लगभग 6 या 7 माह के बच्चे को कड़ा सिका हुआ डबलरोटी का टुकड़ा देना चाहिए। इससे दाँतों या मसूड़ों का व्यायाम होता है।

प्रश्न 6.
‘टीकाकरण’ से क्या आशय है? शिशु को लगाए जाने वाले मुख्य टीकों का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तरः
नवजात शिशु को निरन्तर देखभाल की आवश्यकता होती है। जहाँ एक ओर शिशु के आहार, शारीरिक स्वच्छता तथा वस्त्र एवं विश्राम आदि का ध्यान रखना आवश्यक होता है, वहीं दूसरी ओर नवजात शिश को विभिन्न संक्रामक रोगों से भी बचाना आवश्यक होता है। इन संक्रामक रोगों से बचाने के लिए आधुनिक चिकित्साशास्त्र ने विभिन्न दवाएँ खोज ली हैं, जो बच्चों को टीकों के माध्यम से दे दी जाती हैं या पिला दी जाती हैं। इस प्रक्रिया को टीकाकरण कहते हैं।

इन दवाओं से शिशु के शरीर में सम्बन्धित रोगों से बचने के लिए रोग-प्रतिरोध क्षमता का विकास हो जाता है तथा शिशु द्वारा रोगग्रस्त होने की आशंका प्रायः समाप्त हो जाती है। इस प्रकार से विकसित हुई रोग-प्रतिरोध क्षमता को अर्जित रोग प्रतिरोध क्षमता कहते हैं। आजकल सरकार टीकाकरण पर विशेष बल दे रही है। आशा है टीकाकरण के व्यापक अभियान से हम संक्रामक रोगों पर नियन्त्रण प्राप्त कर लेंगे।
अब प्रायः सभी संक्रामक रोगों से बचाव के टीके विकसित कर लिए गए हैं। मुख्य टीकों का सामान्य विवरण निम्नवर्णित है –

1. टी०बी० से बचने का टीका – तपेदिक या टी०बी० एक अति भयंकर रोग है। इस रोग से बचने के लिए लगाए जाने वाले टीके को बी०सी०जी० का टीका कहते हैं। नवजात शिशु को लगाए जाने वाले विभिन्न टीकों में सर्वप्रथम यही रोग-निरोधक टीका लगाया जाता है। सामान्य रूप से जन्म के उपरान्त 24 घण्टे की अवधि में नवजात शिशु को यह टीका अवश्य ही लगा दिया जाना चाहिए। बी०सी०जी० का यह टीका सामान्य रूप से दायीं बाँह के ऊपरी हिस्से में ही लगाया जाता है। बाँह में जिस स्थान पर यह टीका लगाया जाता है, उस स्थान पर बाद में एक गाँठ-सी बन जाती है। बाद में यह गाँठ अपने-आप धीरे-धीरे सूख जाती है, परन्तु इसका निशान हमेशा बना रहता है। यह टीका लगाने से बच्चे को बहुत दर्द होता है।

2. चेचक का टीका – नवजात शिशु को चेचक के रोग से बचाने के लिए ‘चेचक का टीका’ भी लगवाने का प्रावधान है। हमारे देश में अब चेचक नामक रोग पर नियन्त्रण पा लिया गया है। अत: इस रोग के टीके को प्राथमिकता नहीं दी जाती। सामान्य रूप से जन्म से 14 दिन बाद तक ही चेचक का टीका लगवा लेना चाहिए। यदि इस अवधि में यह टीका न लगवाया जा सके तो तीन माह के अन्दर अवश्य लगवा लेना चाहिए। यह टीका सामान्य रूप से शिशु की बाँह में ही लगाया जाता है। आजकल कुछ लोग बच्चों को, विशेष रूप से लड़कियों को, यह टीका कूल्हे पर लगवाया करते हैं। इसका कारण यह है कि इस टीके का पक्का निशान पड़ जाता है तथा बाँह पर निशान अच्छा नहीं लगता है।

चेचक का टीका जिस स्थान पर लगाया जाता है, वह स्थान पहले लाल हो जाता है तथा फिर सूजने लगता है। उस स्थान पर बाद में सफेद रंग का एक प्रकार का छाला-सा बन जाता है। इस छाले में पानी जैसा तरल पदार्थ भरा रहता है। धीरे-धीरे यह छाला सखने लगता है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि छाला छिलना नहीं चाहिए। छिल जाने पर बहुत दर्द होता है। यह टीका ठीक-ठीक ढंग से सूख जाए तो अपने-आप सूखी त्वचा उतर जाती है। इस समय टीके के स्थान पर गोले का तेल लगाया जा सकता है। चेचक के टीके को लगवाने के बाद उसका फूलना अनिवार्य होता है। यदि किसी कारणवश यह टीका न फूले तो पुनः टीका लगवाने की राय दी जाती है।

3. पोलियो का टीका तथा ट्रिपिल वेक्सीनेशन-पोलियो एक ऐसा रोग है, जो केवल बच्चों को ही हुआ करता है। इस रोग से बचने के लिए भी टीके की खोज हो चुकी है। पोलियो का टीका सुई आदि से नहीं लगाया जाता; अर्थात् इस दवा को सीधे रक्त में नहीं मिलाया जाता। यह टीका द्रव के रूप में होता है तथा बच्चे को पिलाया जाता है।

पोलियो के इस दवारूपी टीका देने के अवसर पर ही एक अन्य टीका (डी०पी०टी०) भी बच्चे को दिया जाता है जिसे ट्रिपिल वेक्सीनेशन कहते हैं। यह टीका काली खाँसी, टिटेनस तथा डिफ्थीरिया नामक संक्रामक रोगों के लिए होता है। यह टीका सुई के माध्यम से दिया जाता है।

पोलियो की दवा सामान्य रूप से जन्म के उपरान्त प्रथम माह में ही पहली बार दे देनी चाहिए, परन्तु इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चेचक के टीके तथा पोलियो ड्रॉप्स के बीच कम-से-कम 15 दिन का अन्तर अवश्य होना चाहिए। पोलियो की दवा कुल मिलाकर तीन बार दी जाती है। प्रथम खुराक, जन्म के बाद लगभग एक माह के अन्दर ही दे दी जाती है। दूसरी खुराक एक माह के अन्तर से दी जाती है। इसके 1-1(1/2) माह बाद तीसरी खुराक भी दी जाती है। इसके बाद जब बच्चा 1 – 1(1/2) वर्ष का होता है तब एक और खुराक दी जाती है। इस खुराक का उद्देश्य रोग-निरोधक क्षमता में वृद्धि करना होता है।

पोलियो के टीके के समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा स्वस्थ हो, उसे दस्त या ज्वर न हो। इस सामान्य व्यवस्था के अतिरिक्त अब भारत सरकार ने देश से पोलियो के पूर्ण उन्मूलन के लिए एक अलग से विस्तृत योजना प्रारम्भ की है, जिसे पल्स पोलियो के नाम से जाना जाता है। इस योजना के अन्तर्गत प्रतिवर्ष देश के पाँच वर्ष तक की आयु वाले समस्त बच्चों को पोलियो से बचाव की दो या तीन खुराक पिलाई जाती हैं। आशा है शीघ्र ही देश से पोलियो नामक रोग का पूर्ण उन्मूलन हो जाएगा।

4. हैजे का टीका – हैजे का टीका नवजात शिशु को नहीं लगाया जाता। सामान्य रूप से यह टीका 1/2 – 2 वर्ष की आयु के बच्चे को प्रथम बार लगाया जाता है। सामान्य रूप से यह टीका गर्मी के मौसम में लगाना लाभदायक माना जाता है। प्रथम बार हैजे का टीका दो या तीन खुराकों में दो-दो सप्ताह के अन्तर से लगाया जाता है। इसके बाद यह टीका प्रतिवर्ष एक बार गर्मियों में लगाया जाता है। इन टीकों का उद्देश्य रोग-निरोधकता बढ़ाना होता है। हैजे का टीका लगवाने से काफी पीड़ा होती है तथा ज्वर भी हो जाता है जोकि अपने-आप एक-दो दिन में ठीक हो जाता है।

5. टाइफॉइड का टीका – टाइफॉइड का टीका भी हैजे के ही समान 11 या 2 वर्ष की आयु के बच्चे को लगाया जाता है। इस टीके में टाइफॉइड तथा पेराटाइफॉइड से बचने की दवा एक-साथ मिली रहती है। कभी-कभी इसी में हैजे की दवा मिली रहती है। टाइफॉइड का मुख्य टीका भी दो-तीन किस्तों में दो-दो सप्ताह के अन्तर से लगाया जाता है। इसके बाद प्रतिवर्ष साधारण टीका लगवाना चाहिए। इस टीके से भी काफी पीड़ा होती है तथा हल्का ज्वर भी हो जाता है जो एक-दो दिन तक रहता है।

6. खसरे का टीका – शैशवावस्था में होने वाला एक मुख्य रोग खसरा भी है। अब खसरे से बचाव का टीका भी खोज लिया गया है। खसरे का टीका सामान्य रूप से 9 माह की आयु में लगाया जाता है।

7.हेपेटाइटिस बी का टीका – हेपेटाइटिस ‘बी’ एक घातक रोग है। इस रोग से बचाव का प्रथम टीका तो जन्म के उपरान्त शीघ्र ही लगा दिया जाता है। इसके उपरान्त दूसरी खुराक 6 सप्ताह की आयु में, तीसरी खुराक 6 से 9 माह की आयु में चौथी खुराक 10 वर्ष की आयु में दी जाती है।

8. एम०एम०आर० का टीका-शैशवावस्था में लगाया जाने वाला एक टीका एम०एम०आर० का भी है। यह टीका तीन भिन्न-भिन्न रोगों से बचाव के लिए लगाया जाता है। ये रोग हैं क्रमश: मीज़ल्स, मम्प्स (कर्णफेर) तथा रुबेला। यह टीका सामान्य रूप से 15 से 18 माह की आयु-अवधि में लगाया जाता है।

प्रश्न 7.
शैशवावस्था में होने वाले सामान्य रोग या व्याधियाँ कौन-कौन-सी हैं? इस अवस्था में प्रायः होने वाले दस्त तथा अतिसार के लक्षणों, कारणों तथा बचाव एवं उपचार के उपायों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
शैशवावस्था में शिशु अबोध होता है। वह अपने खान-पान एवं क्रियाकलाप को नियमित नहीं कर सकता। शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अल्प-विकसित ही होती है। शिशु अपने आप को सर्दी-गर्मी से भी नहीं बचा सकता। इस अवस्था में बच्चे घुटनों के बल चलने लगते हैं तथा मिट्टी में खेलना तथा जो भी वस्तु दिखाई दे, उसे मुँह में डाल लेना उनकी सामान्य प्रवृत्ति होती है। शिशु की इस प्रकार की गतिविधियों के कारण वह प्राय: किसी-न-किसी रोग से ग्रस्त रहता है। शैशवावस्था में शिशु की पाचन-क्षमता भी अधिक विकसित नहीं होती। अतः खान-पान में थोड़ी-सी भी लापरवाही हो जाने के कारण शिशु रोगग्रस्त हो जाता है।

शैशवावस्था में पाचन-तन्त्र सम्बन्धी रोग अधिक होते हैं। शिशुओं में होने वाले पाचन-तन्त्र सम्बन्धी मुख्य रोग हैं-दस्त, अतिसार, कब्ज, चुनचुने तथा जिगर का बढ़ जाना। इनके अतिरिक्त शैशवावस्था में सूखा रोग, आँख दुखना तथा ज्वर होना भी सामान्य रोग हैं। शैशवावस्था में होने वाले इन सभी रोगों से बचाव के लिए कुछ सावधानियाँ आवश्यक होती हैं। रोग हो जाने पर भी ठीक समय पर उचित उपचार से रोग को नियन्त्रित किया जा सकता है। माताओं को शैशवावस्था में होने वाले रोगों की समुचित जानकारी होनी चाहिए। शैशवावस्था में होने वाले मुख्य रोगों का सामान्य विवरण निम्नवर्णित है –

दस्त
शैशवावस्था में होने वाला पाचन सम्बन्धी एक सामान्य रोग दस्त है। यह रोग प्रायः सभी बच्चों को शैशवावस्था में अनेक बार हुआ करता है। शिशुओं को प्रायः दस्तों की शिकायत रहती है तथा बच्चा कोई भी आहार हजम नहीं कर पाता है। जो भी खाता है, वही पतले पानी की तरह शरीर से मल के साथ बाहर निकालता रहता है।
लक्षण – बच्चों में होने वाले दस्तों के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं –

  • शौच में दही जैसी सफेद रंग की फिटक दिखाई देती है।
  • कभी-कभी झागदार शौच दिखाई पड़ती है।
  • कभी-कभी राख जैसे रंग के दस्त दिखाई देते हैं।
  • दस्त हरे रंग के भी होते हैं।

कारण – छोटे बच्चों में दस्त होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

  • बच्चा यदि अधिक दूध पी लेता है। .
  • यदि बच्चे की माँ कोई हानिकारक, अपाच्य वस्तु खा लेती है।
  • दूध यदि अत्यन्त गाढ़ा होता है।
  • दूध में यदि चीनी अधिक मात्रा में डाल दी जाती है।
  • किसी प्रकार के बाहरी संक्रमण के परिणामस्वरूप भी दस्त हो सकते हैं। यह संक्रमण दूध की बोतल, निप्पल या किसी अन्य बर्तन तथा खिलौनों आदि के माध्यम से हो सकता है।

बचाव के उपाय – शिशुओं को दस्तों से बचाने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए –

  • बच्चे को दूध में उबला पानी मिलाकर देना चाहिए।
  • बकरी, गाय तथा माँ का दूध ही श्रेष्ठ रहता है।
  • माता को दलिया का प्रयोग करना चाहिए।
  • यदि ऊपरी दूध या अन्य आहार दिया जाता है तो दूध एवं आहार-सामग्री के साथ-साथ प्रयोग होने वाले समस्त बर्तनों की पूर्ण सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  • बच्चों के खिलौने आदि को भी साफ रखना चाहिए। इससे खिलौनों द्वारा होने वाले संक्रमण से बचा जा सकता है।

उपचार – दस्त हो जाने पर निम्नलिखित उपचार किए जा सकते हैं –

  • दस्त होने पर ऊपरी दूध बन्द कर देना चाहिए। यदि ऊपरी दूध देना अनिवार्य हो तो दूध पतला करके देना चाहिए।
  • बच्चे को ठोस आहार बिल्कुल नहीं देना चाहिए।
  • कोई अच्छी बाल घुट्टी पानी में मिलाकर देनी चाहिए।
  • यदि ठण्ड के कारण दस्त हुए हों तो बच्चे को अल्प मात्रा में जायफल घिसकर दिया जा सकता है।
  • दस्त अधिक होने पर शरीर से पानी की अधिक मात्रा निकल जाती है। अत: पानी की कमी को पूरा करने के लिए बच्चे को अच्छी प्रकार से उबला हुआ पानी ठण्डा करके अवश्य देना चाहिए। इस पानी में चीनी तथा नमक या कोई जीवन-रक्षक घोल मिलाकर देना चाहिए।
  • यदि शीघ्र दस्त नहीं रुकते तो अच्छे डॉक्टर से अवश्य परामर्श लेना चाहिए।

अतिसार –
अतिसार भी पाचन सम्बन्धी रोग है। शिशु अधिकतर इस रोग से पीड़ित होते हैं। इस रोग के लक्षण, कारण व उपचार निम्नलिखित हैं –
लक्षण –

  • दिन में लगभग 10-15 बार दस्त आते हैं। ये दस्त बदबूदार, पतले अथवा आँवयुक्त भी हो सकते हैं।
  • शिशु को हल्का बुखार आ जाता है।
  • दस्त हरे रंग के होते हैं।
  • शिशु को उल्टी भी हो जाती है।

कारण – अतिसार रोग शिशु के शरीर में निम्नलिखित कारणों से होता है –

  • शिशु को ठण्ड लग जाती है।
  • दूध में शक्कर अधिक मात्रा में डालने से यह रोग हो जाता है।
  • बाहरी संक्रमण के परिणामस्वरूप भी अतिसार हो सकता है। यह संक्रमण जल, दूध, बर्तनों अथवा खिलौने से हो सकता है। मक्खियाँ भी इस रोग की वाहक होती हैं।

उपचार – अतिसार रोग से बचने के लिए शिशु का निम्नलिखित उपचार करना चाहिए –

  • शिशु को कम दूध देना चाहिए।
  • माता को पानी का सेवन अधिक करना चाहिए।
  • ठण्डी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

यदि साधारण उपचार से लाभ न हो तो चिकित्सक को अवश्य दिखाएँ। इस रोग में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे के शरीर में पानी की कमी न हो जाए। शरीर में सामान्य से कम मात्रा में जल रह जाना निर्जलीकरण कहलाता है। इस स्थिति में बच्चा कमजोर हो जाता है। उसका गला सूखने लगता है, त्वचा सूखी तथा झुरींदार हो जाती है। मूत्र त्यागने की दर भी घट जाती है। निर्जलीकरण घातक भी हो सकता है। सामान्य रूप से शिशु को अतिसार या वमन से कोई खतरा नहीं होता, परन्तु प्रबल निर्जलीकरण से उसकी मृत्यु तक हो सकती है। इसके उपचार के लिए लगभग एक बड़ा गिलास पानी उबालकर ठण्डा करके रख लें। उसमें चार-पाँच चम्मच चीनी तथा आधा चम्मच नमक मिला लें। इस पानी की थोड़ी-थोड़ी मात्रा थोड़े-थोड़े समय बाद बच्चे को पिलाते रहें। इससे डीहाइड्रेशन (निर्जलीकरण) नहीं होता। आजकल ‘जीवन-रक्षक घोल’ के पैकेट बाजार में उपलब्ध हैं। इस पैकेट में विभिन्न लवण सन्तुलित मात्रा में विद्यमान होते हैं। दस्त एवं उल्टियाँ होने पर यह घोल पिलाने से निर्जलीकरण से बचा जा सकता है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 24 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
शिशु के लिए स्तनपान क्यों आवश्यक है?
अथवा
नवजात शिशु के लिए उत्तम आहार क्या है? अपने उत्तर के कारण बताइए।
अथवा
नवजात शिशु का क्या आहार होना चाहिए?
अथवा
माँ का दूध बच्चों के लिए क्यों अच्छा माना गया है? इस पर प्रकाश डालिए।
अथवा
शिशु को स्तनपान कराने से क्या लाभ हैं?
उत्तरः
शिशु के लिए स्तनपान की अनिवार्यता –
माता का दूध बच्चे के लिए एक सर्वोत्तम भोजन या आहार है। यह प्रकृति की एक अद्भुत देन है कि शिशु के जन्म से पहले ही माता के स्तनों में दूध आ जाता है।
माता के दूध में लगभग सभी पोषक तत्त्व जैसे कार्बोज, प्रोटीन, वसा, जल, खनिज तथा विटामिन्स उपस्थित रहते हैं। जिस समय शिशु जन्म लेता है तो माता का दूध पतला होता है ताकि बच्चा उसे आसानी से पचा सके क्योंकि इस समय शिशु के पाचन अंग पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते हैं।

शिशु की आयु के बढ़ने के साथ-साथ माता का दूध भी गाढ़ा होता चला जाता है तथा उसमें पोषक तत्त्वों की मात्रा भी बढ़ जाती है। माता के दूध द्वारा शिशु के शरीर में किसी भी प्रकार के संक्रामक रोगों के जीवाणु प्रवेश नहीं कर पाते; अत: शिशु का शरीर विभिन्न संक्रामक रोगों से बचा रहता है। इस प्रकार माता के स्तनों से दूध प्राप्त करके शिशु अपनी भूख मिटाता है तथा अपनी आहार सम्बन्धी आवश्यकता को पूरा करता है। बच्चे के स्वास्थ्य के लिए स्तनपान विशेष रूप से लाभदायक होता है।

प्रकृति ही माता के स्तनों में दूध का निर्माण करती है। दूध का यह निर्माण बच्चे को पिलाने के लिए ही होता है। अत: शरीर की स्वाभाविक क्रिया के रूप में माता को बच्चे को स्तनपान अनिवार्य रूप से कराना चाहिए। स्तनपान से माँ एवं बच्चे दोनों को एक विशेष प्रकार का सन्तोष एवं स्वास्थ्य-सुख प्राप्त होता है। इन समस्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि नवजात शिशु के लिए माँ का दूध ही सर्वोत्तम आहार है।

प्रश्न 2.
शिशु के विकास के लिए पौष्टिक आहार का क्या महत्त्व है?
उत्तरः
शैशवावस्था में आहार एवं पोषण –
पोषण के दृष्टिकोण से शैशवावस्था का विशेष महत्त्व है। शैशवावस्था में शारीरिक विकास एवं वृद्धि की दर सर्वाधिक होती है। शिशु की आवश्यक देखभाल के अन्तर्गत शिशु के आहार एवं पोषण का ध्यान रखना अत्यधिक आवश्यक होता है। इस अवस्था में होने वाले पोषण का प्रभाव शिशु के सम्पूर्ण शारीरिक एवं मानसिक विकास पर पड़ता है। शैशवावस्था में सुपोषण से शिशु की रोग-प्रतिरोध क्षमता का समुचित विकास होता है।

इसके विपरीत यदि शैशवावस्था में पोषण की उचित व्यवस्था नहीं होती तो शिशु के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है तथा वह विभिन्न अभावजनित रोगों का शिकार हो सकता है। शिशु के आहार में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, इमल्सीकृत वसा, विटामिन तथा खनिज की समुचित मात्रा का समावेश होना चाहिए। शिशु को स्टार्चयुक्त भोज्य पदार्थ अधिक नहीं देने चाहिए। शिशु का आहार सुपाच्य होना चाहिए। इस प्रकार स्पष्ट है कि शिशु के विकास के लिए पौष्टिक आहार का विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 3.
शिशु को नियमित रूप से मल-मूत्र त्याग की आदत कैसे डाली जा सकती है? अथवा “शिशु में नियमित शौच की आदत डालना आवश्यक है।” क्यों?
उत्तरः
शिशु को नियमित रूप से मल-मूत्र त्यागने की आदत डालना –
जन्म के समय से शिशु द्वारा मल-मूत्र विसर्जन की क्रिया स्वतः होती रहती है। इस काल में इन क्रियाओं पर किसी प्रकार का नियन्त्रण नहीं होता, परन्तु कुछ समय उपरान्त शिशु इन क्रियाओं को नियन्त्रित करने की शक्ति अर्जित कर लेता है। इस अवस्था में आकर शिशु को मल-मूत्र विसर्जन की नियमित आदत डालने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।

शिशु को बचपन से ठीक समय पर मल-त्याग की आदत डालनी चाहिए। शिशु को दो मास की आयु से 2 वर्ष की आयु तक जो भी आदत पड़ जाती है, वह जीवन के लम्बे समय तक ही बनी रहती है; अत: इसी अवस्था में शिशु को उचित समय पर मल-त्याग की आदत डाली जा सकती है। इससे बच्चे और माता दोनों को सुविधा रहती है।

शिशु को नियमित समय पर मूत्र-त्याग की आदत डालने से वस्त्र गन्दे होने से बच जाते हैं। बालक को बिस्तर पर लिटाने से पहले मूत्र-त्याग अवश्य करा देना चाहिए। यदि बच्चा रात्रि में रोता है तो उसे बिस्तर से उठाकर मल-मूत्र त्याग के लिए बिठाना चाहिए। सोने से पहले बच्चे को दूध, चाय नहीं देनी चाहिए। जब शिशु छह से आठ माह का हो जाए, तब उसे छोटे कमोड या पॉट पर बैठने की आदत डालनी चाहिए। धीरे-धीरे बच्चा कमोड पर बैठने तथा मल-त्यागने में सह-सम्बन्ध विकसित कर लेता है। इससे मल-त्यागने की आदत नियमित हो जाती है।

प्रश्न 4.
बच्चों के लिए वस्त्र बनवाते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है?
अथवा
टिप्पणी लिखिए – मौसम के अनुसार बच्चों के वस्त्र।
अथवा
शिशु के वस्त्रों का चयन किस प्रकार करना चाहिए?
उत्तरः
बच्चों के लिए वस्त्र बनवाना –
बच्चों का शरीर बहुत कोमल होता है तथा उनका शारीरिक विकास बहुत तीव्र गति से होता है। अत: बच्चों के लिए वस्त्र बनवाते समय निम्नलिखित बातों को अवश्य ही ध्यान में रखना चाहिए –

  • बच्चों के वस्त्र ढीले-ढाले सिलवाने चाहिए। तंग वस्त्र जल्दी फट जाते हैं।
  • बच्चों के लिए ऐसे वस्त्र बनवाने चाहिए जिनको आसानी से धोया जा सके।
  • गर्मी के मौसम में हल्के, सफेद तथा मुलायम वस्त्र सिलवाने चाहिए।
  • सर्दी के मौसम में ऊनी वस्त्र बनाकर बच्चों को पहनाने चाहिए।
  • बच्चों के लिए ऐसे वस्त्र बनवाने चाहिए जो सिकुड़े नहीं।
  • बच्चों के लिए अधिक कीमती वस्त्र नहीं सिलवाने चाहिए।
  • वस्त्र सिलवाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उनका गला पर्याप्त खुला रहे जिससे वस्त्र आसानी से पहनाया जा सके।
  • गर्मी की ऋतु में अधिकतर आधी बाँहों के वस्त्र तथा सर्दी की ऋतु में पूरी बाँहों वाले वस्त्र बनवाने चाहिए।

प्रश्न 5.
बच्चों में होने वाली कब्ज के लक्षणों, कारणों तथा उपचार के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
कब्ज –
कब्ज भी पाचन सम्बन्धी रोग है। इस रोग की दशा में शिशु की नियमित मल-त्याग की क्रिया अस्त-व्यस्त हो जाती है। जब शिशु को भोजन नहीं पचता है और खुश्की हो जाती है तो उसके शरीर में कब्ज हो जाता है।

लक्षण – कब्ज के निम्नलिखित लक्षण हैं –

  • शिशु का मल सख्त हो जाता है।
  • मल त्याग में कठिनाई होती है।
  • शिशु नियमित रूप से शौच नहीं जाता है।
  • शिशु को सूखी उल्टी आती है तथा पेट में ऐंठन या दर्द होता है।

कारण – कब्ज के निम्नलिखित कारण हैं –

  • अधिक गाढ़ा दूध पीना।
  • पाचन सम्बन्धी विकार।
  • गर्म वस्तुएँ खाने से भी कब्ज हो जाता है।
  • आवश्यकता से कम मात्रा में आहार मिलने पर।
  • बच्चे के आहार में तरल पदार्थों की कमी होने पर।
  • यदि बच्चे की शारीरिक क्रियाएँ सामान्य से बहुत कम हों तो भी कब्ज हो सकता है।

उपचार – कब्ज से बचने के निम्नलिखित उपाय हैं –

  • शिशु को अधिकतर माता का दूध ही देना चाहिए। यह सुपाच्य होता है।
  • यदि गाय या भैंस का दूध दिया जाए तो उस दूध में उबला हुआ पानी मिलाकर देना चाहिए। बच्चों को भैंस के दूध के स्थान पर बकरी का दूध भी दिया जा सकता है।
  • अगर हो सके तो ऊपरी दूध में अंजीर का शर्बत मिलाकर देना चाहिए।
  • शिशु को घुट्टी, ग्राइपवाटर, ऑस्टोकैल्सियम तथा मिल्क ऑफ मैग्नेशिया देना चाहिए।
  • कब्ज अधिक गम्भीर होने पर बच्चे के मलद्वार में ग्लिसरीन या साबुन की बत्ती लगाई जा सकती है।

प्रश्न 6.
बच्चों में होने वाले चुनचुनों के लक्षण, कारण तथा उपचार के उपाय बताइए।
उत्तरः
चुनचुने –
छोटे बच्चों के पेट में छोटे-छोटे पतले कीड़े हो जाते हैं जिन्हें चुनचुने कहते हैं। इनकी पहचान, कारण व उपचार निम्नलिखित हैं –

लक्षण – बच्चे के पेट में चुनचुने हो जाने के निम्नलिखित लक्षण हैं –

  • बच्चे के पेट में ऐंठन होती है।
  • बच्चा हर समय व्याकुल रहता है।
  • बच्चे का जी मिचलाता है तथा स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है।
  • शिशु का चेहरा नीला, पीला पड़ जाता है।
  • शिशु का वजन घटना शुरू हो जाता है।
  • चुनचुने होने पर बच्चे को मल-त्याग में कठिनाई होती है।

कारण – जब शिशु ऐसे दूध का सेवन करता है जिसमें किसी प्रकार की गन्दगी होती है तो गन्दगी के साथ कीड़ों के अण्डे प्रवेश कर जाते हैं, जिससे उसकी आँतों में चुनचुने पड़ जाते हैं। चूसनी आदि से भी ये कीड़े या कीड़ों के अण्डे पेट में पहुँच जाते हैं।

उपचार – बच्चे के शरीर से चुनचुने नष्ट हो जाएँ, इसके लिए निम्नलिखित उपचार आवश्यक हैं –

  • शिशु को स्वच्छ दूध (गन्दगीरहित) पीने के लिए देना चाहिए। दूध सदैव पकाकर देना चाहिए। कच्चा दूध नहीं देना चाहिए।
  • शिशु के मलद्वार पर रात्रि के समय मिट्टी का तेल लगा देना चाहिए।
  • शिशु के पोतड़ों को निःसंक्रामकों द्वारा धोना चाहिए।
  • शिशु के कपड़ों को गर्म पानी में उबालकर धोना चाहिए।
  • बच्चे को चीनी या अन्य मीठे पदार्थ कम खिलाए जाने चाहिए।

प्रश्न 7.
बच्चों में होने वाले जिगर सम्बन्धी विकार का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तरः
जिगर –
आजकल शिशुओं के शरीर में जिगर बढ़ने की शिकायत देखी गई है जिससे उनका पेट ढोल की तरह फूल जाता है। इस रोग के लक्षण, कारण व उपचार निम्नलिखित हैं –

लक्षण – बच्चों में जिगर रोग के लक्षण निम्नलिखित हैं –

  • शिशु का चेहरा पीला पड़ जाता है।
  • पेट अनावश्यक रूप से फूल जाता है।
  • शौच बार-बार जाता है। दस्त कुछ झागदार तथा अधिक मात्रा में होता है।
  • पेट में बदहजमी हो जाती है तथा भूख नहीं लगती है।

कारण – जिगर का प्रमुख कारण बच्चे द्वारा अधिक अन्न ग्रहण करना होता है।

उपचार—जिस बच्चे का जिगर बढ़ गया हो उसका निम्नलिखित उपचार करना चाहिए –

  • शिशु को दूध में गर्म पानी मिलाकर देना चाहिए।
  • लिवर एक्सट्रेक्ट के इंजेक्शन लगवाने चाहिए।
  • लिवर टॉनिक जैसे ‘लिव फिफ्टी टू’ पीने के लिए देना चाहिए।

प्रश्न 8.
बच्चों में होने वाले सूखा रोग (अस्थि-विकृति) का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तरः
सूखा रोग –
पोषक तत्त्वों की न्यूनता के परिणामस्वरूप बच्चों में होने वाला एक सामान्य रोग सूखा रोग (Rickets) या अस्थि विकृति भी है। यह रोग विटामिन ‘D’ की कमी के कारण होता है। विटामिन ‘D’ की कमी के कारण शरीर में कैल्सियम तथा फॉस्फोरस नामक खनिजों का उचित अवशोषण नहीं हो पाता। इस स्थिति में शरीर की अस्थियाँ कमजोर होने लगती हैं तथा परिणामस्वरूप वे टेढ़ी, झुकी हुई अथवा विकारयुक्त हो जाती हैं। इसी स्थिति को ‘अस्थि विकृति’ या ‘सूखा रोग’ कहा जाता है। इस रोग में बच्चों की मांसपेशियाँ भी कमजोर हो जाती हैं तथा उनका समुचित विकास नहीं हो पाता। बच्चों का पेट बढ़ जाता है तथा आगे को निकला हुआ-सा प्रतीत होता है। रोग के बढ़ जाने पर बच्चे की पसलियों में हड्डी और उपास्थि के जोड़ों के स्थान पर गोल उभार दिखाई देने लगता है। इसे रिकेटी रोजरी (Rickety Rosary) कहते हैं। इस रोग से ग्रस्त बालक का स्वभाव चिड़चिड़ा-सा हो जाता है और वह प्रायः थका-थका-सा, परेशान, दुःखी तथा अप्रसन्न-सा दिखाई देता है।

उपचार – सूखा रोग या रिकेट नामक रोग के उपचार के लिए बच्चे को विटामिन ‘D’ की अतिरिक्त मात्रा देनी होती है। विटामिन ‘D’ युक्त आहार अधिक देना चाहिए। बच्चे को काफी समय तक धूप एवं सूर्य के प्रकाश में रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त बच्चे का आहार सन्तुलित, पौष्टिक एवं कैल्सियम, खनिज की अतिरिक्त मात्रा से युक्त होना चाहिए।

प्रश्न 9.
टिप्पणी लिखिए-‘आँखें दुखना’।
उत्तरः
आँखें दुखना –
यह रोग बच्चों को संसर्ग व गर्मी के कारण हो जाता है। आँखों की नियमित रूप से सफाई न होने पर, धूल-मिट्टी या गन्दगी पड़ जाने पर भी आँखें दुखने लगती हैं। यह रोग छूत से भी लग सकता है। बच्चों की आँखें दुखने के लक्षण तथा उपचार निम्नलिखित हैं –

लक्षण – आँखों से पानी आना, आँख सूज जाना तथा खुजली होना। आँखों का लाल हो जाना तथा आँखों से पीले रंग का चिपचिपा पदार्थ निकलना भी एक लक्षण है।

उपचार –

  • गर्म पानी में बोरिक एसिड डालकर आँखों को रुई से धोना चाहिए।
  • गुलाबी फिटकरी वाला गुलाब जल आँखों में दिन में तीन बार डालना चाहिए।
  • डॉक्टर से चिकित्सा करानी चाहिए।
  • तेज प्रकाश से बचना चाहिए।

प्रश्न 10.
टिप्पणी लिखिए – ‘बच्चों में ऐंठन’।
उत्तरः
बच्चों में ऐंठन –
आजकल छोटे-छोटे बच्चों का शरीर अचानक ऐंठने लगता है तथा अचानक ही दर्द होने लगता है, इसे ऐंठन कहते हैं। इस रोग के लक्षण तथा उपचार निम्नलिखित हैं –

लक्षण –

  • बच्चे का चेहरा पीला पड़ जाता है।
  • मांसपेशियाँ खिंचने लगती हैं।
  • शरीर ऐंठ जाता है।
  • दर्द होता है।

उपचार –

  • बच्चे के वस्त्र ढीले कर देने चाहिए।
  • बच्चे को गर्म रखना चाहिए।
  • डॉक्टर से चिकित्सा करानी चाहिए।

प्रश्न 11.
टिप्पणी लिखिए–’बच्चों में ज्वर’।
उत्तरः
बच्चों में ज्वर –
मानव शरीर का सामान्य तापक्रम 98. 4°F होता है। यदि किसी कारणवश व्यक्ति के शरीर का तापक्रम इससे अधिक हो जाए तो उस अवस्था को ज्वर की अवस्था कहा जाता है। ज्वर कम अवधि तक भी रह सकता है तथा अधिक अवधि तक भी रह सकता है।

कारण – ज्वर विभिन्न कारणों से हो सकता है। कमजोरी, सर्दी-जुकाम, टॉन्सिल, सन्तुलित आहार का अभाव, किसी प्रकार का संक्रमण ज्वर के मुख्य कारण होते हैं। इसके अतिरिक्त भी विभिन्न कारणों से ज्वर हो सकता है। कुछ गम्भीर रोगों के लक्षणस्वरूप भी ज्वर हो सकता है जैसे कि तपेदिक या गुर्दे का संक्रमण।

लक्षण – ज्वर का प्रमुख लक्षण शरीर का तापक्रम बढ़ जाना है। इसे थर्मामीटर द्वारा सही-सही मापा जा सकता है। इसके अतिरिक्त सुस्ती, निढाल रहना, चेहरा लाल होना, बदन में दर्द होना, बार-बार प्यास लगना तथा बेचैनी होना आदि भी ज्वर के लक्षण होते हैं।

उपचार – ज्वर के उपचार के लिए सर्वप्रथम उसके प्रकार एवं तीव्रता पर ध्यान दिया जाता है। ज्वर के कारणों को ज्ञात करके ही उपचार किया जा सकता है। तीव्र ज्वर की स्थिति में बच्चे के माथे पर ठण्डे पानी की भीगी पट्टियाँ रखनी चाहिए। बच्चे को हर प्रकार से आराम पहुँचाना चाहिए तथा डॉक्टर से परामर्श लेकर औषधि देनी चाहिए।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 24 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
शिशु के जन्म के उपरान्त सर्वप्रथम कौन-सी क्रिया सर्वाधिक आवश्यक होती है?
उत्तरः
शिशु के जन्म के उपरान्त सर्वाधिक आवश्यक क्रिया होती है-फेफड़ों के द्वारा श्वसन क्रिया।

प्रश्न 2.
नवजात शिशु को माँ के शरीर से अलग करने के लिए क्या किया जाता है?
उत्तरः
नवजात शिशु को माँ के शरीर से अलग करने के लिए गर्भनाल को काटना पड़ता है।

प्रश्न 3.
गर्भनाल को काटने में क्या सावधानी अति आवश्यक है?
उत्तरः
गर्भनाल काटने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कैंची भली-भाँति निसंक्रमित होनी चाहिए।

प्रश्न 4.
नवजात शिशु के शरीर के किन अंगों की तुरन्त सफाई की जाती है?
उत्तरः
नवजात शिशु के कान, आँख, नाक, गले तथा मल-मूत्र विसर्जन के अंगों की समुचित एवं तुरन्त सफाई आवश्यक होती है।

प्रश्न 5.
शिशु का मुख्य आहार क्या होता है?
उत्तरः
शिशु का मुख्य आहार माँ का दूध होता है।

प्रश्न 6.
माँ के दूध से शिशु को क्या लाभ होता है?
उत्तरः
माँ के दूध से शिशु को सभी आवश्यक -पोषक तत्त्व उपलब्ध हो जाते हैं, इससे किसी प्रकार के संक्रमण की आशंका नहीं होती। यह सुपाच्य तथा विशेष तुष्टिदायक होता है।

प्रश्न 7.
प्रसव के उपरान्त प्रारम्भ में माँ के स्तनों से जो स्राव प्राप्त होता है, उसे क्या कहते हैं? यह शिशु को पिलाना चाहिए या नहीं?
उत्तरः
प्रसव के उपरान्त प्रारम्भ में जो दूध होता है, उसे कोलस्ट्रम कहते हैं। इसे ग्रहण करने से शिशु की पाचन क्रिया तथा रोग प्रतिरोध क्षमता का विकास होता है। नवजात शिशु को कोलस्ट्रम अवश्य पिलाना चाहिए।

प्रश्न 8.
शिशु को ऊपरी दूध पिलाने में मुख्य सावधानी क्या आवश्यक होती है?
उत्तरः
शिशु को ऊपरी दूध पिलाने में हर प्रकार की सफाई आवश्यक होती है।

प्रश्न 9.
शिशु को दूध पिलाने के उपरान्त डकार दिलवाना क्यों आवश्यक होता है?
उत्तरः
शिशु को दूध पिलाने के उपरान्त डकार दिलवाने से उल्टी करने या दूध निकालने की प्रायः आशंका नहीं रहती है।

प्रश्न 10.
शैशवावस्था में ध्यान रखने वाली प्रमुख बात क्या है?
उत्तरः
शैशवावस्था में शिशु के पोषण एवं संरक्षण का ध्यान रखना प्रमुख बात है।

प्रश्न 11.
पूरक आहार किसे कहते हैं? उत्तर-शिशु को दूध के अतिरिक्त दिए जाने वाला आहार पूरक आहार कहलाता है।

प्रश्न 12.
शिशु को दूध के अतिरिक्त दिए जाने वाले मुख्य पूरक आहारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
शिशु को दूध के अतिरिक्त दिए जाने वाले मुख्य पूरक आहार हैं-कॉड लिवर ऑयल, सन्तरे का रस, दलिया, हरी सब्जियाँ एवं फल तथा अण्डे का पीला भाग।

प्रश्न 13.
स्तनपान छुड़ाने से आप क्या समझती हैं?
उत्तरः
शिशु को माता के दूध से अलग करना तथा उसके स्थान पर अन्य कोई दूध एवं आहार देने की आदत डालना ही स्तनपान छुड़ाना कहलाता है।

प्रश्न 14.
शिशु को प्रथम वर्ष में कौन-कौन से टीके लगवाना आवश्यक होता है?
उत्तरः
शिशु को प्रथम वर्ष में लगाए जाने वाले मुख्य टीके हैं—टी०बी० से बचाव का टीका या बी०सी०जी० का टीका, पोलियो का टीका तथा ट्रिपिल वेक्सीनेशन खसरे का टीका तथा हेपेटाइटिस ‘बी’ का टीका। .

प्रश्न 15.
पोलियो से बचाव के लिए सरकार द्वारा कौन-सी योजना चलाई गई?
उत्तरः
पोलियो से बचाव के लिए सरकार ने ‘पल्स पोलियो’ नामक व्यापक योजना चलाई है।

प्रश्न 16.
‘ट्रिपिल वेक्सीनेशन’ किन रोगों से बचाव करता है?
उत्तरः
ट्रिपिल वेक्सीनेशन से काली खाँसी, टिटेनस तथा डिफ्थीरिया नामक रोगों से बचाव होता है।

प्रश्न 17.
शिशुओं को प्रायः होने वाले पाचन सम्बन्धी मुख्य रोगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
शिशुओं को प्राय: होने वाले पाचन सम्बन्धी मुख्य रोग हैं-दस्त, अतिसार, कब्ज, चुनचुने तथा जिगर बढ़ जाना।

प्रश्न 18.
किस तत्त्व की कमी से रिकेट्स नामक रोग हो जाता है?
उत्तरः
विटामिन ‘D’ की कमी से रिकेट्स नामक रोग हो जाता है।

प्रश्न 19.
शिशु के वस्त्रों का चुनाव करते समय आप किन बातों का ध्यान रखेंगी?
उत्तरः
शिशु के वस्त्र सूती, नरम तथा ढीले-ढाले एवं अच्छे रंग के होने चाहिए।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 24 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए –
1. जन्म के उपरान्त नवजात शिशु के लिए सर्वप्रथम अनिवार्य होता है –
(क) उसका वजन लेना
(ख) उसे स्नान कराना
(ग) मल-मूत्र त्याग कराना
(घ) फेफड़ों से श्वसन-क्रिया कराना।
उत्तरः
(घ) फेफड़ों से श्वसन-क्रिया कराना।

2. नवजात शिशु की परिचर्या के अन्तर्गत आवश्यक है –
(क) फेफड़ों से श्वसन कराना
(ख) गर्भनाल को काटना
(ग) शिशु के अंगों की सफाई करना
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी।

3. शिशु की गर्भनाल को काटना चाहिए –
(क) जन्म से एक घण्टे उपरान्त
(ख) जन्म के तुरन्त उपरान्त
(ग) जब गर्भनाल में स्पन्दन रुक जाए
(घ) चाहे जब।
उत्तरः
(ग) जब गर्भनाल में स्पन्दन रुक जाए।

4. नवजात शिशु का आहार होना चाहिए –
(क) शहद
(ख) आसुत जल
(ग) माँ का दूध
(घ) ग्लूकोजा
उत्तरः
(ग) माँ का दूध।

5. माँ का दूध नवजात शिशु के लिए उत्तम है, क्योंकि –
(क) यह सस्ता होता है
(ख) इससे शिशु का स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है
(ग) इससे माँ का वजन कम होता है
(घ) यह आसानी से उपलब्ध है।
उत्तरः
(ख) इससे शिशु का स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है।

6. अपरिपक्व शिशु वे कहलाते हैं, जिनका वजन इनसे कम होता है –
(क) 2 किग्रा से
(ख) 3 किग्रा से
(ग) 4 किग्रा से
(घ) 5 किग्रा से।
उत्तरः
(क) 2 किग्रा से।

7. जन्म के समय परिपक्व शिशु का औसत भार होता है –
(क) 1.5 किग्रा
(ख) 2 किग्रा
(ग) 3 किग्रा से 3.5 किग्रा
(घ) 5 किग्रा।
उत्तरः
(ग) 3 किग्रा से 3.5 किग्रा।

8. नवजात शिशु के कपड़े होने चाहिए –
(क) ऊनी
(ख) मुलायम सूती
(ग) टेरीकाट के
(घ) रेशमी।
उत्तरः
(ख) मुलायम सूती।

9. किन परिस्थितियों में शिशु को स्तनपान नहीं कराना चाहिए –
(क) यदि माँ दीर्घ अवधि के ज्वर से पीड़ित हो
(ख) यदि माँ किसी भयंकर संक्रामक रोग से पीड़ित हो
(ग) यदि माँ को अधिक रक्त-स्राव हो रहा हो
(घ) उपर्युक्त सभी परिस्थितियों में।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी परिस्थितियों में।

10. शिशु को ऊपरी दूध देते समय ध्यान रखना चाहिए –
(क) दूध गाढ़ा न हो
(ख) दूध अधिक गर्म न हो
(ग) बोतल एवं निप्पल पूर्ण रूप से स्वच्छ हों
(घ) उपर्युक्त सभी बातें।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी बातें।

11. चार-पाँच माह के शिशु को दूध के अतिरिक्त दिया जाने वाला आहार कहलाता है –
(क) पौष्टिक आहार
(ख) गरिष्ठ आहार
(ग) पूरक आहार
(घ) दूध एवं अनाज से बने भोज्य पदार्थ।
उत्तरः
(ग) पूरक आहार।

12. शिशु के आहार में समावेश नहीं होना चाहिए –
(क) खनिज लवण-युक्त आहार
(ख) प्रोटीन-युक्त आहार
(ग) स्टार्च-युक्त आहार
(घ) विटामिन-युक्त आहार।
उत्तरः
(ग) स्टार्च-युक्त आहार।

13. शिशु के आहार में विटामिन ‘D’ की कमी को पूरा करने के लिए दूध में मिलाया जाना चाहिए –
(क) ग्लूकोज
(ख) शहद
(ग) कॉड लिवर ऑयल
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तरः
(ग) कॉड लिवर ऑयल।

14. शिशु को स्तनपान कराने का महत्त्व है –
(क) सन्तुलित आहार प्राप्त होता है
(ख) संक्रमण से बचाव होता है
(ग) माँ का दुलार प्राप्त होता है
(घ) ये सभी महत्त्व।
उत्तरः
(घ) ये सभी महत्त्व।

15. कौन-सा तत्त्व दूध से नहीं प्राप्त होता है –
(क) प्रोटीन
(ख) विटामिन ‘C’
(ग) वसा
(घ) कार्बोहाइड्रेट।
उत्तरः
(ख) विटामिन ‘C’।

16. शिशु के दाँतों को स्वस्थ रखने के लिए किस पोषक तत्त्व की आवश्यकता होती है –
(क) लोहा
(ख) विटामिन
(ग) कैल्सियम
(घ) प्रोटीन।
उत्तरः
(ग) कैल्सियम।

17. शिशुओं को विभिन्न टीके लगाए जाते हैं
(क) वजन बढ़ाने के लिए
(ख) विभिन्न रोगों से बचाव के लिए
(ग) सुन्दर एवं स्वस्थ बनाने के लिए
(घ) शारीरिक वृद्धि एवं विकास के लिए।
उत्तरः
(ख) विभिन्न रोगों से बचाव के लिए।

18. बी०सी०जी० का टीका किस रोग से बचाव करता है –
(क) चेचक
(ख) डिफ्थीरिया
(ग) तपेदिक या टी०बी०
(घ) टाइफॉइड।
उत्तरः
(ग) तपेदिक या टी०बी०।

19. दस्त एवं अतिसार की दशा में अति आवश्यक है –
(क) पौष्टिक आहार देना
(ख) विभिन्न औषधियाँ देना
(ग) लू से बचाव करना
(घ) निर्जलीकरण से बचाव करना।
उत्तरः
(घ) निर्जलीकरण से बचाव करना।

20. डी०पी०टी० का टीका किन रोगों की रोकथाम के लिए लगाया जाता है –
(क) प्लेग, रेबीज़ और कुष्ठरोग
(ख) तपेदिक, मलेरिया और काली खाँसी
(ग) डिफ्थीरिया, कर्णफेर और चेचक
(घ) काली खाँसी, डिफ्थीरिया और टिटेनस।
उत्तरः
(घ) काली खाँसी, डिफ्थीरिया और टिटेनस।

21. बालक में अच्छी आदतें डालने का सही समय है –
(क) किशोरावस्था
(ख) कभी नहीं
(ग) जीवन के प्रथम पाँच वर्ष
(घ) जब भी सुविधा हो।
उत्तरः
(ग) जीवन के प्रथम पाँच वर्ष।

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UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 18 मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के साधन के रूप में परिवार

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 18 मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के साधन के रूप में परिवार (Family as a Means for Satisfying Human Needs)

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 18 मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के साधन के रूप में परिवार

UP Board Class 11 Home Science Chapter 18 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एक सामाजिक संस्था के रूप में परिवार का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। परिवार की मुख्य विशेषताओं का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
‘परिवार’ मानव समाज की सबसे प्राचीनतम तथा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संस्था है। परिवार वह सामाजिक संस्था है, जहाँ मनुष्य शिशु के रूप में जन्म लेता है तथा विभिन्न प्रकार के आश्रय, संरक्षण एवं सहयोग द्वारा अपनी असहाय अवस्था को गुजारता है। इस शारीरिक संरक्षण के अतिरिक्त, परिवार व्यक्ति के समाजीकरण की भी प्रमुख संस्था है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में भी परिवार का योगदान असीमित होता है। यही नहीं बल्कि वृद्धावस्था की असहाय स्थिति में भी व्यक्ति परिवार में ही आश्रय प्राप्त करता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि परिवार वह सामाजिक संस्था है, जिसका सदस्य प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी स्थिति में अवश्य होता है तथा सामान्य रूप से परिवार पर किसी-न-किसी प्रकार से आश्रित भी होता है।

परिवार की परिभाषाएँ (Definitions of Family) –
प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, बच्चा हो या बूढ़ा, ‘परिवार’ से भली-भाँति परिचित रहता है। परन्तु परिवार का यह परिचय एक सामान्य परिचय होता है। समाजशास्त्रीय अध्ययन के लिए सुनिश्चित तथा वैज्ञानिक परिभाषा प्रस्तुत करना अनिवार्य है। विभिन्न विद्वानों ने ‘परिवार’ की सामान्य विशेषताओं को दृष्टिगत रखते हुए कुछ आपस में मिलती-जुलती परिभाषाएँ प्रस्तुत की हैं, जो निम्नवर्णित हैं –

1. मैकाइवर एवं पेज द्वारा प्रतिपादित परिभाषा – मैकाइवर एवं पेज ने परिवार की संक्षिप्त परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है – “परिवार पर्याप्त निश्चित यौन सम्बन्धों द्वारा प्रतिपादित एक ऐसा समूह है, जो बच्चों को पैदा करने तथा लालन-पालन करने की व्यवस्था करता है।”

2. डी० एन० मजूमदार द्वारा प्रतिपादित परिभाषा – “परिवार उन व्यक्तियों का एक समूह है, जो एक छत के नीचे रहते हैं, मूल और रक्त सम्बन्धी सूत्रों से सम्बन्धित होते हैं तथा स्थान, रुचि और कृतज्ञता की अन्योन्याश्रितता के आधार पर सम्बन्धों की जागरूकता रखते हैं।”

3. ऑगबर्न एवं निमकॉफ द्वारा प्रतिपादित परिभाषा – “बच्चों सहित अथवा बच्चों रहित एक पति-पत्नी के या किसी एक पुरुष या एक स्त्री के अकेले ही बच्चों सहित एक थोड़े-बहुत स्थायी संघ को परिवार कहते हैं।”

उपर्युक्त परिभाषाओं द्वारा ‘परिवार’ नामक सामाजिक संस्था का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि परिवार एक लगभग स्थायी सामाजिक संगठन है, जिसकी नींव स्त्री-पुरुष के यौन सम्बन्धों के नियोजन पर होती है तथा बच्चों का जन्म, लालन-पालन एवं समाजीकरण आदि मुख्य कार्य होते हैं।

परिवार की विशेषताएँ (Characteristics of Family) –
उपर्युक्त विवरण के आधार पर ‘परिवार’ की निम्नलिखित मुख्य विशेषताओं का वर्णन किया जा सकता है –

  • परिवार समाज की प्राचीनतम सामाजिक संस्था है।
  • परिवार विश्व की एक सार्वभौमिक सामाजिक संस्था है; अर्थात् यह संस्था सब कहीं पायी जाती है।
  • परिवार नामक सामाजिक संस्था विवाह पर आधारित है।
  • परिवार नामक सामाजिक संस्था में भावात्मक सम्बन्धों का विशेष महत्त्व है।
  • परिवार नामक सामाजिक संस्था का आकार सीमित होता है।
  • प्रत्येक परिवार का एक सामान्य निवास स्थान होता है।
  • प्रत्येक परिवार का एक विशिष्ट नाम होता है।
  • परिवार एक प्रबल नियन्त्रणकारी सामाजिक संस्था है।
  • परिवार की सामाजिक संगठन में केन्द्रीय एवं महत्त्वपूर्ण स्थिति होती है।
  • परिवार के सदस्यों के असीमित कर्त्तव्य होते हैं।
  • परिवार कुछ निश्चित सामाजिक नियमों पर आधारित होता है।

प्रश्न 2.
मनुष्य की आवश्यकताओं को कितने वर्गों में बाँटा जा सकता है? इन आवश्यकताओं की पूर्ति में परिवार की क्या भूमिका है?
अथवा
परिवार में मनुष्य की कौन-कौन सी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है? किन्हीं दो का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
अथवा
मानवीय आवश्यकताओं की परिवार में होने वाली पूर्ति का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
मानवीय आवश्यकताएँ परिवार द्वारा किस प्रकार पूर्ण होती हैं?
उत्तरः
परिवार द्वारा मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करना (Fulfilment of Human needs by Family) –
व्यक्ति के जीवन में परिवार का बहुत महत्त्व है। इसी के द्वारा वह अपने जन्म से लेकर मरण तक की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इसलिए परिवार का सदस्य बने बिना, मनुष्य के सुचारु जीवन एवं विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। परिवार द्वारा मनुष्य की शारीरिक, सामाजिक, आध्यात्मिक एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति की प्रक्रिया को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है –

(1) शारीरिक व भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति –
(अ) आहार एवं पोषण-भोजन की पूर्ति परिवार द्वारा सुव्यवस्थित तथा सुचारु रूप से की जाती है। परिवार अपने सभी सदस्यों के लिए, भले ही वे रोगी, वृद्ध, अपाहिज क्यों न हों, अटूट प्रेम, श्रद्धा एवं स्नेह से ओतप्रोत होकर भोजन की व्यवस्था करता है। परिवार द्वारा आयोजित सन्तुलित आहार-व्यवस्था से ही व्यक्ति का समुचित पोषण होता है।

(ब) शारीरिक सुरक्षा-परिवार द्वारा अपने सदस्यों के लिए उपयुक्त वस्त्रों की व्यवस्था की जाती है। परिवार के किसी सदस्य को यदि शारीरिक सुरक्षा अथवा सहायता की आवश्यकता होती है तो सारे सदस्य मिलकर उसकी सहायता को तैयार हो जाते हैं।

(स) मनोरंजन-दिन भर के परिश्रम के बाद मनोरंजन की आवश्यकता होती है। इससे मनुष्य की सारी थकान दूर हो जाती है। हारा-थका पिता जब अपने बच्चों की बातों को सुनता है तो उसका मन प्रसन्न हो जाता है। परिवार में अनेक उत्सव होते रहते हैं, इनके द्वारा भी मनोरंजन होता है। परिवार के विभिन्न सदस्यों के मध्य होने वाले हास-परिहास से भी व्यक्ति का भरपूर स्वस्थ मनोरंजन होता रहता है।

(द) बालकों का पालन-पोषण-नवजात शिशु की असहायावस्था में परिवार ही उसकी सारी आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए पालन-पोषण करता है।

(2) सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति –
(अ) मनुष्यों के मध्य रहना-कोई मनुष्य एकान्तवासी होना नहीं चाहता। यदि मनुष्य को कुछ समय के लिए एकान्त में रखा जाए तो वह व्यथित हो उठता है। परिवार ही इस आवश्यकता की सन्तुष्टि करता है।

(ब) आत्म-प्रदर्शन-बच्चे अध्ययन तथा अन्य सामाजिक कार्यों में विशिष्ट स्थान प्राप्त कर अपने परिवार के सदस्यों से प्रशंसा, प्रोत्साहन और उत्साह ग्रहण करते हैं।
(स) शिशु रक्षा-परिवार शिशु के विकास तथा रक्षा के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करता है।

(3) मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति –
मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, जो केवल शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति से पूर्ण सन्तुष्ट नहीं हो पाता। मनुष्य के लिए मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं का भी विशेष महत्त्व है। मनुष्य को प्रेम, स्नेह, सहानुभूति तथा आत्म-गौरव आदि की भी लालसा होती है। इन समस्त मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति सर्वोत्तम ढंग से परिवार में ही होती है।

(4) आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति –
परिवार के वृद्ध सदस्यों से अनेक धार्मिक व सांस्कृतिक उपाख्यानों को श्रवण कर व्यक्ति अपने चरित्र को परिमार्जित तथा आदर्शमय बनाने की प्रेरणा ग्रहण करता है। परिवार में ही मनुष्य नैतिकता का सच्चा पाठ पढ़ता है और सभ्य नागरिक बनकर समाज में प्रतिष्ठित होता है।

प्रश्न 3.
परिवार की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों की चर्चा करते हुए, विकासवादी सिद्धान्त की समालोचना कीजिए।
उत्तरः
परिवार की उत्पत्ति के सिद्धान्त (Theories of Origin of Family) –
मानव समाज के विकास की प्रारम्भिक अवस्था में भी किसी-न-किसी रूप में “परिवार’ नामक संस्था का अस्तित्व था तथा आज परिवार एक सुविकसित एवं सुनियोजित संस्था के रूप में उपस्थित है। परन्तु, फिर भी परिवार की उत्पत्ति के विषय में प्रश्न उठता ही है। इस विषय में मैकाइवर एवं पेज का प्रस्तुत कथन उल्लेखनीय है – “परिवार की इस अर्थ में कोई उत्पत्ति नहीं है और न ही मानव जीवन में कोई ऐसी अवस्था थी जबकि परिवार अनुपस्थित था या कोई दूसरी ऐसी अवस्था थी, जिसमें से यह निकला है।”

परिवार की इस पृथ्वी पर.उत्पत्ति किस प्रकार हुई है तथा वह अपनी वर्तमान अवस्था में कैसे पहुँचा है? इस सम्बन्ध में समाजशास्त्रियों (sociologists) ने निम्नलिखित सिद्धान्त बताए हैं –

  • पितृ-सत्तात्मक सिद्धान्त
  • लिंग साम्यवाद का सिद्धान्त
  • विकासवादी सिद्धान्त
  • एक विवाह का सिद्धान्त तथा
  • मातृ-सत्तात्मक सिद्धान्त।

उपर्युक्त सिद्धान्तों में विकासवादी सिद्धान्त का अधिक महत्त्व है। विकासवादी सिद्धान्त का विस्तृत विवरण निम्नवर्णित है –

परिवार की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विकासवादी सिद्धान्त –
सर्वप्रथम इस सिद्धान्त का प्रस्तुतीकरण बैकोफेन (Bechofen) द्वारा किया गया। बाद में इस सिद्धान्त का समर्थन स्पेन्सर, टायलर, मेकलेनन आदि ने किया। प्रमुख भूमिका इस सिद्धान्त के सम्बन्ध में बैकोफेन ने प्रस्तुत की, जिसका विवरण निम्नलिखित है –

1. प्रारम्भ में मनुष्य के जीवन के अन्तर्गत पति-पत्नी के सम्बन्ध बहुत ढीले थे। केवल माँ और बच्चों के सम्बन्ध कुछ मजबूत थे, लेकिन इस बात का पता नहीं था कि उन बच्चों का वास्तविक पिता कौन है। सभी समूह बनाकर रहते थे। यह परिवार का सबसे प्रारम्भिक रूप था।

2. इसके बाद परिवार का स्वरूप कुछ और स्पष्ट हुआ। उस समय लोगों को खाने-पीने की वस्तुएँ कठोर परिश्रम के बाद मिलती थीं और यह काम लड़कियाँ नहीं कर सकती थीं। इसलिए उनके पैदा होते ही उन्हें मार दिया जाता था। इस प्रकार समाज में लड़कियों की संख्या बहुत कम हो गई। परिणामस्वरूप एक स्त्री के अनेक पति होते थे। इस प्रकार इस स्तर पर बहुपति-विवाही परिवार का जन्म हुआ।

3. इसके बाद धीरे-धीरे कृषि स्तर आया और खाने-पीने की सामग्री काफी मात्रा में उपलब्ध होने लगी। लड़कियों को मारने की प्रथा बन्द हो गई और समाज में उनकी संख्या एवं अनुपात बदल गया और अब पुरुषों के लिए एक से अधिक पत्नियाँ रखना आसान हो गया। इस प्रकार बहु-पत्नी विवाही परिवार का जन्म हुआ।

4. समय एवं अनुभव के साथ लोगों के ज्ञान में वृद्धि हुई। वे सभ्य होते गए और बहु-विवाह के दोष स्पष्ट होते गए। साथ ही सामाजिक जीवन में समानता का विचार पनपा और स्त्रियों ने अपने समान अधिकारों और सामाजिक न्याय की माँग की। इन सबके फलस्वरूप एक पुरुष का विवाह एक ही स्त्री से होना प्रारम्भ हो गया और एक-विवाही परिवार का जन्म हुआ। यही परिवार का आधुनिक रूप है।

लुईस मार्गन ने परिवार के उद्विकास में पाँच स्तरों का उल्लेख किया है –

  • रक्त सम्बन्धी परिवार-इस प्रकार के परिवार मानव जीवन के प्रारम्भिक काल में पाए जाते थे। इनमें यौन सम्बन्ध स्थापित करने के विषय में कोई भी प्रतिबन्ध न था और भाइयों तथा बहनों तक में बिना संकोच इस प्रकार के सम्बन्ध स्थापित हुआ करते थे।
  • समूह परिवार—यह परिवार के विकास की दूसरी अवस्था है। इस स्तर में एक परिवार के सब भाइयों का विवाह दूसरे परिवार की बहनों के साथ हुआ करता था, जिसमें प्रत्येक पुरुष सभी स्त्रियों का पति होता था और प्रत्येक स्त्री सभी पुरुषों की पत्नी होती थी और इसलिए वे आपस में यौन सम्बन्ध भी स्थापित कर सकते थे।
  • स्डेस्मियन परिवार इस तीसरी अवस्था में एक पुरुष का विवाह तो एक ही स्त्री के साथ होता था, परन्तु उसी परिवार में ब्याही हुई सभी स्त्रियों से यौन सम्बन्ध स्थापित करने की स्वतन्त्रता प्रत्येक पुरुष को रहती थी।
  • पितृसत्तात्मक परिवार इस चौथी अवस्था में परिवारों में पुरुष ही सर्वशक्तिमान होता था। इस कारण वह अपनी इच्छानुसार एकाधिक स्त्रियों से विवाह करता था और उनके साथ यौन सम्बन्ध रखता था।
  • एकविवाही परिवार – यह परिवार के क्रम में अन्तिम और आधुनिक अवस्था है, इसमें एक पुरुष का एक ही स्त्री से विवाह और यौन सम्बन्ध होता है।

विकासवादी सिद्धान्त की आलोचना –
परिवार के विकासवादी सिद्धान्त के उपर्युक्त मतों की आलोचना निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है –

  • वैज्ञानिक आधार पर यह स्वीकार करना कठिन है कि प्रत्येक समाज में परिवार की उत्पत्ति व विकास एक ही तरह से या कुछ निश्चित स्तरों में से गुजरा हुआ है, बल्कि यह सम्भव भी नहीं; क्योंकि प्रत्येक समाज की भौगोलिक, सामाजिक या सांस्कृतिक परिस्थितियाँ अलग-अलग होती हैं तो फिर प्रत्येक समाज में परिवार की उत्पत्ति एक ही ढंग से कैसे हो सकती है?
  • विकासवादी सिद्धान्त के समर्थकों की यह कल्पना भी गलत है कि यौन साम्यवाद की स्थिति कभी थी। वास्तव में अभी तक किसी ऐसी आदिवासी जाति का पता नहीं लग सका है, जिसमें यौन .. साम्यवाद या कामाचार की अवस्था पायी जाती हो या पायी गई हो।
  • विकासवादी लेखकों ने जो कुछ भी कहा है वह सब उनकी कल्पनाओं या सैद्धान्तिक आधार पर आधारित है, वास्तविक रूप में नहीं। अत: काल्पनिक सिद्धान्त वैज्ञानिक सत्य नहीं हो सकता।

उपर्युक्त आलोचना के आधार पर इस सिद्धान्त को भी अप्रामाणिक ही माना जाता है।

प्रश्न 4.
मातृसत्तात्मक परिवार से आप क्या समझती हैं?
अथवा
पितृसत्तात्मक परिवार से आप क्या समझती हैं?
अथवा
अन्तर स्पष्ट कीजिए-पितृसत्तात्मक परिवार और मातृसत्तात्मक परिवार।
उत्तरः
मातृसत्तात्मक और पितृसत्तात्मक परिवार –
परिवार के वर्गीकरण का एक आधार सत्ता सम्पन्नता भी है। इस आधार के अन्तर्गत यह विचार मुख्य होता है कि परिवार में सत्ता पुरुष के हाथ में हो या स्त्री के हाथ में। इस आधार पर दो प्रकार के परिवार माने गए हैं, जिन्हें क्रमश: मातृसत्तात्मक तथा पितृसत्तात्मक परिवार कहा जाता है। इन दोनों प्रकार के परिवारों का सामान्य परिचय तथा अन्तर निम्नवर्णित है

(अ) मातृसत्तात्मक परिवार-कुछ समाजों में परिवार का संगठन इस प्रकार का होता है कि उनमें स्त्रियाँ पुरुषों की अपेक्षा अधिक सत्ता-सम्पन्न होती हैं तथा परिवार की सभी नीतियाँ और सभी अधिकार स्त्रियों के पक्ष में होते हैं। इन परिवारों को मातृसत्तात्मक परिवार (matriarchal family) कहा जाता है। मातृसत्तात्मक परिवार की मुख्य विशेषताएँ निम्नवर्णित हैं –

  • वंश का नाम माँ के नाम से चलता है। वंश का नाम पिता से उसके पुत्रों को हस्तान्तरित नहीं होता बल्कि माता से उसकी पुत्रियों को होता है।
  • सम्पत्ति का उत्तराधिकार भी पिता द्वारा पुत्र को न प्राप्त होकर माता से उसकी पुत्री अथवा पुत्रियों को प्राप्त होता है। पुरुष को यदि उत्तराधिकार में कुछ मिल सकता है तो वह मातृपक्ष की ओर से ही सम्भव है।
  • सामान्य रूप से मातृसत्तात्मक परिवार मातृस्थानीय या मातृवंशीय परिवार ही होते हैं।

(ब)पितृसत्तात्मक परिवार-जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है; इस प्रकार के परिवारों में पुरुष ही परिवार में अधिक सत्ता-सम्पन्न होता है तथा वही परिवार का मुखिया होता है। वंश का नाम पिता या पुरुष के नाम से ही चलता है तथा पिता के उपरान्त पुत्र ही वंश के मुख्य उत्तराधिकारी होते हैं। पितृसत्तात्मक परिवार की मुख्य विशेषताएँ निम्नवर्णित हैं

  • परिवार के सन्दर्भ में समस्त सामाजिक एवं पारिवारिक पद तथा उपाधियाँ पुत्र को प्राप्त होती हैं। सामान्य रूप से पिता के उपरान्त बड़े पुत्र को सत्ता प्राप्त होती है।
  • इस प्रकार के परिवारों में पारिवारिक सम्पत्ति का अधिकार पिता से पुत्रों में हस्तान्तरित होता है। माता के परिवार की सम्पत्ति पर पुत्रों का अधिकार नहीं होता।
  • पितृसत्तात्मक परिवार में सभी बच्चों को पिता के वंश का नाम मिलता है, न कि माता के वंश का।
  • पितृसत्तात्मक परिवार पितृस्थानीय होते हैं; अर्थात् सभी बच्चे अपने पिता के स्थान पर रहते हैं।

अन्तर – उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि मातृसत्तात्मक तथा पितृसत्तात्मक परिवारों में मुख्य अन्तर सत्ता के केन्द्रण से सम्बन्धित है। मातृसत्तात्मक परिवारों में पारिवारिक सत्ता स्त्री (माता) के हाथ में होती है, जबकि पितृसत्तात्मक परिवार में यह सत्ता पुरुष (पिता) के हाथ में होती है। इस अन्तर के कारण वंश का नाम, सम्पत्ति का हस्तान्तरण आदि भी मातृसत्तात्मक परिवार में माता से पुत्रियों में तथा पितृसत्तात्मक परिवार में पिता से पुत्रों में होता है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 18 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि परिवार समाज की प्राचीनतम संस्था है?
उत्तरः
परिवार-प्राचीनतम सामाजिक संस्था –
परिवार एक सामाजिक संस्था है, जिसके गठन का आधार स्त्री-पुरुष के यौन सम्बन्ध तथा बच्चों का जन्म एवं पालन-पोषण है। परिवार के ये दोनों आधार उतने ही प्राचीन हैं जितना कि मनुष्य का अस्तित्व। जब से मनुष्य की सृष्टि हुई है, तब से इस पृथ्वी पर किसी-न-किसी रूप में परिवार का अस्तित्व रहा है। यह अलग बात है कि प्राचीन परिवार का स्वरूप वर्तमान परिवार के स्वरूप से नितान्त भिन्न रहा हो। सभ्यता के विकास के साथ-साथ परिवार के स्वरूप में अत्यधिक परिवर्तन हुआ है, परन्तु प्राचीनता के दृष्टिकोण से परिवार समाज की प्राचीनतम संस्था है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना अनिवार्य है कि मानव समाज में परिवार का अस्तित्व उस समय भी था, जब ‘विवाह’ नामक संस्था अस्तित्व में नहीं आई थी।

प्रश्न 2.
विवाह-प्रणाली के आधार पर परिवार के प्रकारों या स्वरूपों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार के गठन में विवाह द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है। विवाह-प्रणाली की भिन्नता के आधार पर परिवार के अग्रलिखित प्रकार या स्वरूप हैं –

  • एक विवाही-परिवार-एक स्त्री तथा एक पुरुष के परस्पर विवाह के आधार पर गठित परिवार को एकविवाही परिवार कहा जाता है।
  • बहुपत्नी परिवार-यदि एक पुरुष एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करके परिवार गठित करता है तो उस परिवार को बहुपत्नी परिवार कहा जाता है।
  • बहुपति परिवार-यदि एक स्त्री तथा एक से अधिक पुरुषों से विवाह करके परिवार को गठित करती हैं तो उस परिवार को बहुपति परिवार कहते हैं। हमारे देश में खस तथा टोडा जनजातियों में बहुपति परिवार पाए जाते हैं।

प्रश्न 3.
परिवार के मुख्य शारीरिक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
परिवार के शारीरिक कार्य –

  • काम-इच्छा की पूर्ति-परिवार का प्रथम कार्य स्त्री-पुरुष की काम-इच्छा की पूर्ति करना है। व्यक्ति परिवार के बाहर भी अपनी काम-इच्छा की पूर्ति कर सकता है, परन्तु उसका यह कृत्य पूर्णतया असामाजिक माना जाता है। विवाह के द्वारा समाज; स्त्री-पुरुष के यौन सम्बन्धों को सामाजिक स्वीकृति प्रदान करता है। इस प्रकार परिवार में स्त्री-पुरुष अपनी काम-इच्छाओं की पूर्ति स्वतन्त्रतापूर्वक करते हैं।
  • सन्तानोत्पत्ति-सन्तान की कामना करना प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिए स्वाभाविक है। परिवार मनुष्य की इस जन्मजात इच्छा को पूरी करता है। पति-पत्नी के यौन सम्बन्धों की स्थापना के पश्चात् उत्पन्न होने वाली सन्तान को ही सामाजिक एवं वैधानिक मान्यता प्राप्त होती है।
  • सन्तान का लालन-पालन-जन्म के समय शिशु पूर्णतया अबोध एवं असहाय होता है। उसके लालन-पालन और भरण-पोषण का कार्य परिवार के द्वारा ही होता है। यदि परिवार द्वारा बालक की उपेक्षा की जाए तो उसकी मृत्यु तक हो सकती है। परिवार का कार्य केवल प्रजनन अथवा सन्तानोपत्ति ही नहीं है अपितु सन्तान का लालन-पालन करना भी है।
  • भोजन की व्यवस्था-परिवार अपने सदस्यों के लिए भोजन की व्यवस्था करता है जो कि सभी की एक मौलिक एवं आधारभूत आवश्यकता है।
  • जीवन की सुरक्षा-परिवार के सदस्य परस्पर मिलकर रहते हैं और एक-दूसरे की सुरक्षा तथा रोग-निवारण में योगदान करते हैं। परिवार का प्रत्येक सदस्य परिवार में अपने को हर प्रकार से सुरक्षित अनुभव करता है।
  • वस्त्रों आदि की व्यवस्था परिवार अपने सदस्यों के लिए वस्त्रों तथा अन्य आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था करता है।
  • निवास की व्यवस्था परिवार के सदस्य भली प्रकार सुरक्षित जीवन व्यतीत कर सकें, इसके लिए परिवार ही निवास स्थान या घर की भी व्यवस्था करता है।

प्रश्न 4.
परिवार के मुख्य सामाजिक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार के मुख्य सामाजिक कार्य –
1. बालक का समाजीकरण-परिवार का प्रमुख तथा महत्त्वपूर्ण कार्य बालक का समाजीकरण करना है। जन्म के उपरान्त बालक में कुछ ऐसी प्रवृत्तियाँ भी पायी जाती हैं, जो समाज-सम्मत नहीं होती। परिवार के वातावरण द्वारा ही इन प्रवृत्तियों का शोधन तथा मार्गान्तरीकरण होता है, जिससे मानव शिशु क्रमश: एक प्राणी से सामाजिक प्राणी बनता है। परिवार ही बालक को सामाजिकता का प्रथम पाठ पढ़ाता है। अन्य लोगों से व्यवहार करना, उठने-बैठने तथा बातचीत करने का शिष्टाचार आदि बालक परिवार से ही सीखता है। परिवार समाजीकरण की सभी अवस्थाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2. सामाजिक विरासत का प्रसार करना-परिवार सामाजिक विरासत (social heritage) का प्रसार तथा हस्तान्तरण करता है। परिवार ही जनरीतियाँ, कानून, विश्वास, रूढ़ियाँ, नैतिक नियम, शिक्षा आदि को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्रदान करता है तथा उनका संग्रह और विस्तार करता है।

3. सदस्यों को सामाजिक स्थिति प्रदान करना-परिवार की स्थिति के अनुसार उसके सदस्यों को समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। परिवार की सामाजिक स्थिति के अनुसार ही यह निश्चित किया जाता है कि उसके सदस्यों को किन लोगों में उठना-बैठना चाहिए। वैवाहिक सम्बन्धों की स्थापना भी इसी आधार . पर की जाती है।

4. सदस्यों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना-परिवार अपने सदस्यों को सामाजिक अपमान, दिवालियापन आदि से सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करता है। परिवार ही एक ऐसा संगठन है, जो व्यक्ति के सामाजिक सम्मान की सुरक्षा के प्रति चिन्तित रहता है तथा यथासम्भव सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है।

5. जीवन-साथी के चुनाव में सहायता-परिवार अपने सदस्यों के विवाह सम्बन्ध स्थापित करने या जीवन-साथी के चुनाव में योगदान करता है। इस प्रकार परिवार एक अन्य परिवार को जन्म देने में सहायक होता है।

6. सामाजिक नियन्त्रण में सहायक-सामाजिक नियन्त्रण के प्रथा, कानून जनमत, प्रचार, नेतृत्व, शिक्षा संस्थाएँ तथा रीति-रिवाज आदि अनेक अभिकरण हैं, परन्तु इन सब में परिवार का विशिष्ट स्थान है। यथार्थ में परिवार ही एक ऐसी संस्था है, जो व्यक्ति को इन सब को मानने के लिए बाध्य करता है। व्यक्ति को भले-बुरे का ज्ञान कराने में परिवार विशेष सहायक होता है। यह केवल अपने तक ही व्यक्ति को नियन्त्रित नहीं करता वरन् बाह्य जगत में भी व्यक्ति पर नियन्त्रण रखता है। अन्य शब्दों में, पारिवारिक नियन्त्रण व्यक्ति को समाज तथा समूह में नियन्त्रित रहने की आदत डाल देता है। परिवार की प्रतिष्ठा और मान-मर्यादा की रक्षा के लिए उनका सदस्य कोई भी अनुचित कार्य नहीं करता है।

परिवार के सामाजिक कार्यों के उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि वास्तव में व्यक्ति को सामाजिक प्राणी बनाने में परिवार का सर्वाधिक योगदान होता है। परिवार ही व्यक्ति को उसकी सामाजिक पहचान प्रदान करता है तथा समाज के अनुरूप व्यक्तित्व प्रदान करता है। इसीलिए परिवार को व्यक्ति के समाजीकरण की प्रथम संस्था कहा जाता है।

प्रश्न 5.
परिवार के मुख्य आर्थिक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार के मुख्य आर्थिक कार्य –
परिवार द्वारा निम्नलिखित आर्थिक कार्य सम्पन्न होते हैं –

  • श्रम-विभाजन-परिवार के अधिकांश कार्य श्रम-विभाजन पर आधारित रहते हैं। परिवार का प्रत्येक सदस्य अपनी योग्यता एवं क्षमता तथा लिंग और आयु के आधार पर अपना-अपना कार्य करता है। पिता द्वारा प्राय: धनोपार्जन होता है तथा माता घर के खाने-पीने एवं सफाई आदि का प्रबन्ध करती है। पुत्र शाक-सब्जी तथा बाजार से सौदा आदि लाते हैं, बेटियाँ माँ के कार्यों में हाथ बँटाती हैं। इस प्रकार प्रत्येक सदस्य का कुछ-न-कुछ कार्य निश्चित रहता है।
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण–परिवार में बालक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करता है। पिता यदि दुकानदार, लुहार या बढ़ई है तो बालक उसके साथ रहकर उसके व्यवसाय में दक्षता प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार परिवार व्यावसायिक प्रशिक्षण का कार्य करता है।
  • उत्पादन की प्रेरणा-परिवार अपने सदस्यों को आर्थिक उत्पादन की प्रेरणा प्रदान करता है। प्रत्येक सदस्य परिवार की दशा को सुधारने के लिए कुछ-न-कुछ आर्थिक उत्पादन की चेष्टा करता है।
  • आर्थिक क्रिया का केन्द्र प्राचीनकाल से ही परिवार विभिन्न आर्थिक क्रियाओं का केन्द्र रहा है। सर्वप्रथम आर्थिक क्रियाओं का प्रारम्भ परिवार में ही हुआ और वहीं से उसका प्रसार समाज के विभिन्न क्षेत्रों में हुआ।
  • उत्तराधिकार का निश्चय-परिवार में सम्पत्ति के उत्तराधिकार का भी निश्चय होता है। यह विभाजन किस प्रकार हो, इसका निश्चय परिवार में होता है।

प्रश्न 6.
परिवार के मुख्य धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार के धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्य –
परिवार वह स्थल है, जहाँ अनेक धार्मिक एवं आध्यात्मिक विषयों की पृष्ठभूमि तैयार होती है। परिवार के समस्त सदस्य सामान्य रीति से ईश्वर की उपासना करते हैं। छोटे-छोटे बालक अपने माता-पिता अथवा दादा-दादी से कहानियाँ सुनकर ईश्वर और धर्म तथा अध्यात्म सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करते हैं। माता-पिता के धार्मिक आचरण बालकों को प्रभावित करते हैं और वे अनुकरण द्वारा अनेक धार्मिक क्रियाएँ सीख जाते हैं। धार्मिक उत्सवों द्वारा भी बालकों को धर्म का ज्ञान प्राप्त होता है।

परिवार संस्कृति के विकास का महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। परिवार में रहकर बालक सामाजिक संस्कृति . से परिचित होता है। परिवार का सांस्कृतिक वातावरण बालक को समाज की संस्कृति का ज्ञान कराता है। बालक अनुकरण द्वारा भाषा और अच्छी बातें सीखते हैं और उन्हें अपने जीवन का अंग बनाते हैं। रीति-रिवाज, परम्पराओं तथा प्रथाओं को सुरक्षित रखने के साथ-साथ परिवार बालकों को उनका ज्ञान भी कराता है। परिवार ही सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।

प्रश्न 7.
परिवार के मुख्य शैक्षिक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार के मुख्य शैक्षिक कार्य ऑगस्त कॉम्ट के शब्दों में, “परिवार सामाजिक जीवन की अमर पाठशाला है।” पेस्तालॉजी के अनुसार, “परिवार शिक्षा का सबसे उत्तम स्थान और बालक का प्रथम विद्यालय है।” फ्रोबेल भी लिखते हैं – “माताएँ आदर्श अध्यापिकाएँ हैं और घर द्वारा दी जाने वाली अनौपचारिक शिक्षा सबसे अधिक प्रभावशाली और प्राकृतिक है।” वास्तव में परिवार में बालक अपने माता-पिता तथा बड़ों का अनुकरण करके अनेक बातें सीखता है तथा अपना बौद्धिक विकास करता है। प्राचीन समाजों में शिक्षा संस्थाओं का कार्य भी परिवार ही करते थे तथा आज भी अनौपचारिक शिक्षा प्रदान करने में परिवार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। परिवार के विस्तृत सहयोग से ही विद्यालय की शिक्षा सुचारु रूप से चल पाती है।

प्रश्न 8.
परिवार के मुख्य मनोरंजनात्मक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार के मनोरंजनात्मक कार्य –
मनुष्य के जीवन में मनोरंजन का भी अपना महत्त्व है। दिन भर परिश्रम करने के पश्चात् मनुष्य के लिए मनोरंजन करना आवश्यक हो जाता है। मनोरंजन से शरीर की थकावट दूर होती है तथा शरीर में स्फूर्ति आती है। परिवार मनोरंजन का प्रमुख केन्द्र है। थका हुआ व्यक्ति घर में अपने बाल-बच्चों के बीच बैठकर आनन्द और स्फूर्ति का अनुभव करता है। छोटे बालक अपने बाबा तथा दादी से कहानियाँ तथा मनोरंजक चुटकुले सुनकर अपना मनोरंजन करते हैं। परिवार में मनाए जाने वाले उत्सव भी मनोरंजन के उद्देश्य को पूरा करते हैं।

प्रश्न 9.
परिवार के मुख्य मनोवैज्ञानिक कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार के मनोवैज्ञानिक कार्य –
परिवार द्वारा किए जाने वाले मुख्य मनोवैज्ञानिक कार्य निम्नलिखित हैं –

  • परिवार बालकों को मानसिक सुरक्षा प्रदान करता है।
  • परिवार बालकों का संवेगात्मक विकास उचित दिशा में करता है।
  • परिवार में अनेक मूलप्रवृत्तियों की सन्तुष्टि होती है। काम, वात्सल्य, सहानुभूति तथा प्रेम इसके उदाहरण हैं।
  • अनेक मानसिक प्रक्रियाएँ; जैसे जिज्ञासा, निरीक्षण, प्रत्यक्षीकरण, तर्क तथा विचार आदि का विकास परिवार में ही होता है।

प्रश्न 10.
स्पष्ट कीजिए कि बालक के समाजीकरण में परिवार की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
अथवा
“परिवार समाजीकरण की प्रथम संस्था है।” इस कथन का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तरः
परिवार द्वारा बालक का समाजीकरण –
परिवार का एक प्रमुख तथा महत्त्वपूर्ण कार्य बालक का समाजीकरण करना है। परिवार के वातावरण के द्वारा ही बालक की तमाम प्रवृत्तियों का शोधन तथा मार्गान्तरीकरण होता है, जिससे वह एक प्राणी से सामाजिक प्राणी बनता है। परिवार ही बालक को सामाजिकता का प्रथम पाठ पढ़ाता है। अन्य लोगों से व्यवहार करना, उठने-बैठने तथा बातचीत करने का शिष्टाचार आदि बालक परिवार से ही सीखता है। परिवार समाजीकरण की सभी अवस्थाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परिवार में ही रहकर बालक भाषा का प्रारम्भिक ज्ञान प्राप्त करता है, सामाजिक सद्गुणों को अपनाता है तथा नियन्त्रित जीवन व्यतीत करना सीखता है। इन सभी कारणों से परिवार को समाजीकरण की प्रथम संस्था माना जाता है।

प्रश्न 11.
टिप्पणी लिखिए-सामाजिक-नियन्त्रण में परिवार की भूमिका।
उत्तरः
सामाजिक नियन्त्रण के अनेक अभिकरण हैं; यथा-  प्रथा, कानून, जनमत, प्रचार, नेतृत्व, शिक्षा संस्थाएँ तथा रीति-रिवाज आदि। परन्तु इन सब में परिवार का विशिष्ट स्थान है। यथार्थ में परिवार ही एक ऐसी संस्था है, जो व्यक्ति को इन सबको मानने के लिए बाध्य करती है। व्यक्ति को भले-बुरे का ज्ञान कराने में परिवार विशेष सहायक होता है। यह केवल अपने तक ही व्यक्ति को नियन्त्रित नहीं करता वरन् बाह्य जीवन में भी व्यक्ति पर नियन्त्रण रखता है। अन्य शब्दों में, पारिवारिक नियन्त्रण व्यक्ति को समाज तथा समूह में नियन्त्रण सहने की आदत डाल देता है। परिवार की प्रतिष्ठा और मान-मर्यादा की रक्षा के लिए उसका सदस्य कोई भी अनुचित कार्य नहीं करता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक-नियन्त्रण में परिवार द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 18 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
परिवार की मैकाइवर एवं पेज द्वारा प्रतिपादित परिभाषा लिखिए।
उत्तरः
“परिवार पर्याप्त निश्चित यौन सम्बन्धों द्वारा प्रतिपादित एक ऐसा समूह है, जो बच्चों को पैदा करने तथा लालन-पालन की व्यवस्था करता है।’ (-मैकाइवर एवं पेज )

प्रश्न 2.
एक सामाजिक संस्था के रूप में परिवार की प्रमुख विशेषता का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार मानव-समाज की प्राचीनतम सामाजिक संस्था है।

प्रश्न 3.
परिवार की चार मुख्य विशेषताओं (लक्षण) का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः

  1. यह प्राचीनतम सामाजिक संस्था है।
  2. यह मानव जगत की सार्वभौमिक सामाजिक संस्था है।
  3. यह विवाह पर आधारित संस्था है।
  4. इस संस्था की सदस्य-संख्या सीमित होती है।

प्रश्न 4.
परिवार की उत्पत्ति सम्बन्धी एक मुख्य सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
परिवार की उत्पत्ति सम्बन्धी एक मुख्य सिद्धान्त है-विकासवादी सिद्धान्त।

प्रश्न 5.
परिवार में पुरुष को मुखिया क्यों माना जाता है?
उत्तरः
पितृसत्तात्मक समाजों में परिवार के पुरुषों को अधिक अधिकार, कर्त्तव्य तथा सत्ता प्राप्त होती है। इस स्थिति में पारम्परिक रूप में वयोवृद्ध पुरुष को ही परिवार का मुखिया मान लिया जाता है।

प्रश्न 6.
बालक की प्रथम पाठशाला किसे माना जाता है?
उत्तरः
परिवार को बालक की प्रथम पाठशाला माना जाता है।

प्रश्न 7.
बालक के समाजीकरण में सर्वाधिक योगदान किसका होता है?
उत्तरः
बालक के समाजीकरण में सर्वाधिक योगदान परिवार का होता है।

प्रश्न 8.
बच्चे की प्रथम समाजीकरण संस्था क्या है?
उत्तरः
बच्चे की प्रथम समाजीकरण संस्था ‘परिवार’ है।

प्रश्न 9.
पारिवारिक मूल्यों से आप क्या समझती हैं?
उत्तरः
परिवार द्वारा जिन बातों को महत्त्वपूर्ण माना जाता है तथा अर्जित करने का लक्ष्य निर्धारित किया जाता है, उन्हें पारिवारिक मूल्य कहा जाता है।।

प्रश्न 10.
समाज की इकाई क्या है?
उत्तरः
समाज की इकाई परिवार है।

प्रश्न 11.
बच्चों में अच्छे गुणों का निर्माण कहाँ से प्रारम्भ होता है?
उत्तरः
बच्चों में अच्छे गुणों का निर्माण परिवार से प्रारम्भ होता है।

प्रश्न 12.
भावात्मक सुरक्षा सुखी परिवार के लिए क्यों आवश्यक है?
उत्तरः
यदि परिवार से समुचित भावात्मक सुरक्षा हो तो परिवार के सभी सदस्यों के व्यक्तित्व का विकास सामान्य तथा सन्तुलित रूप से होता है। इस स्थिति में सभी सदस्य जीवन के सभी पक्षों में उत्साहपूर्वक कार्य एवं प्रगति करते हैं तथा परिवार की सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 18 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए –
1. परिवार का गठन होता है –
(क) सामाजिक सम्बन्धों के आधार पर
(ख) वित्तीय हितों के आधार पर
(ग) विवाह नामक संस्था के आधार पर
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तरः
(ग) विवाह नामक संस्था के आधार पर।

2. परिवार के लक्षण हैं –
(क) सदस्यों का रक्त सम्बन्ध से जुड़े होना
(ख) सदस्यों का एक ही गाँव का होना
(ग) सदस्यों का आपस में मित्र होना
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तरः
(क) सदस्यों का रक्त सम्बन्ध से जुड़े होना।

3. समाज की इकाई है –
(क) स्कूल
(ख) परिवार
(ग) समुदाय
(घ) घर।
उत्तरः
(ख) परिवार।

4. परिवार के मुख्य शारीरिक कार्य हैं
(क) काम-इच्छा की पूर्ति एवं सन्तानोत्पत्ति
(ख) बच्चों का पालन-पोषण
(ग) जीवन की सुरक्षा तथा भोजन की व्यवस्था
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी।

5. परिवार द्वारा किए जाने वाले आर्थिक कार्य हैं –
(क) व्यावसायिक प्रशिक्षण
(ख) उत्पादन की प्रेरणा
(ग) उत्तराधिकार का निश्चय
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी।

6. पारिवारिक उद्देश्यों की उपलब्धि का पूर्ण उत्तरदायित्व होता है –
(क) केवल गृहिणी का
(ख) केवल घर के मुखिया का
(ग) परिवार के सभी सदस्यों का
(घ) इन सभी का।
उत्तरः
(ग) परिवार के सभी सदस्यों का।

7. बालक के समाजीकरण की प्रथम संस्था है
(क) राज्य
(ख) समाज
(ग) परिवार
(घ) समुदाय।
उत्तरः
(ग) परिवार।

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UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 20 बालक-बालिका सम्बन्ध

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UP Board Class 11 Home Science Chapter 20 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बालक-बालिका सम्बन्धों एवं मेल-मिलाप पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तरः
छह वर्ष की अवस्था के लगभग लड़के-लड़की बिना भेदभाव के एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं। जब बालक तथा बालिकाएँ 7 से 12 वर्ष की आयु में आ जाते हैं तो बहुत कुछ आपस में समझने लगते हैं। उनको अपनी शारीरिक तथा सामाजिक स्थिति का ज्ञान होने लगता है। समाज में 12 वर्ष की अवस्था तक बालक तथा बालिकाएँ एक साथ खेल सकते हैं, पढ़ सकते हैं तथा घूम सकते हैं।

13 से 18 वर्ष की आयु में दोनों ही पक्ष एक-दूसरे को आकर्षित करने का प्रयत्न करते हैं। 18 वर्ष की अवस्था में यह काम-चेतना अपने प्रबलतम रूप में लड़के व लड़कियों में आ जाती है, सामाजिक बन्धन उन्हें बुरे लगने लगते हैं।

कक्षा 8 तक के लड़के और लड़कियाँ एक साथ पढ़ सकते हैं, लेकिन इण्टरमीडिएट कक्षाओं में एक साथ शिक्षा देना अधिक उचित नहीं है। इस अवस्था में उनका मानसिक एवं संवेगात्मक ज्ञान अपरिपक्व होता है। वे भावनाओं की तीव्रता से शीघ्र प्रभावित हो जाते हैं और अनुचित कार्य कर बैठते हैं। वे अपना हित-अहित नहीं समझते हैं।

डिग्री कक्षाओं में पहुँचकर विद्यार्थियों के अनुभव परिपक्व होने लगते हैं। इस स्तर पर छात्र-छात्राओं का तार्किक पक्ष भी काफी विकसित हो जाता है। उनमें उत्तरदायित्व की भावना भी आ जाती है। इस कारण इस स्तर पर यदि लड़का-लड़की मैत्री सम्बन्ध स्थापित करें तो कोई हानि नहीं है।

सह-शिक्षा से वे एक-दूसरे को भली-भाँति समझ लेते हैं। परिचय प्राप्त कर लेने से लड़के-लड़की का वैवाहिक जीवन बहुत सुखपूर्वक बीतता है, क्योंकि वे एक-दूसरे के आदर्शों से परिचित हो जाते हैं। बहुत-से गरीब घराने की लड़कियों की शादी सम्पन्न घराने में हो जाती है क्योंकि लड़के सुन्दर एवं शिक्षित लड़कियों के इच्छुक होते हैं। इस प्रकार लड़कियों के माता-पिता दहेज के चक्रव्यूह से बच जाते हैं।

बालक-बालिका सम्बन्धों का उपर्युक्त विवरण एक पारम्परिक मान्यता से जुड़ा हुआ है। वर्तमान सामाजिक, पारिवारिक तथा व्यावसायिक परिस्थितियाँ बड़ी तेजी से बदल रही हैं तथा इन परिवर्तित परिस्थितियों में बालक-बालिका सम्बन्धों के प्रारूप को भी पुनः निर्धारित करना अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण विचारणीय तथ्य है।

प्रश्न 2.
भारत में लड़के-लड़कियों के स्वतन्त्रतापूर्ण सम्बन्धों पर लगे प्रतिबन्धों के विषय में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तरः
भारत में लड़के-लड़कियों के स्वतन्त्रतापूर्ण सम्बन्धों पर प्रतिबन्ध –
भारतीय आदर्शों एवं परम्पराओं में आस्था रखने वाले विद्वानों के मतानुसार यदि लड़के और लड़कियाँ आपस में मिलते-जुलते हैं तो उनके विकास में बाधा उत्पन्न होती है। इसी कारण से बाल्यकाल में सह-शिक्षा के बाद अधिकतर लड़के-लड़कियों के विद्यालय अलग कर दिए जाते थे। परिवार के बाहर भी उनको मेल-मिलाप के अवसर बहुत कम दिए जाते थे। यद्यपि आजकल पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित होकर भारतीय समाज में तरुणावस्था के लड़के-लड़कियों में स्वतन्त्रतापूर्ण सम्बन्धों का प्रचलन बढ़ रहा है, तथापि आदर्श भारतीय समाज में यह आलोचना का विषय बना हुआ है।

किशोरावस्था के लड़के-लड़कियों के विवाह आदि तय करने में माता-पिता का मुख्य हाथ होने से प्रायः सुविधा ही रहती है और किशोरों को अपनी अनुभवहीनता में की गई त्रुटियों से बचाव रहता है। किन्तु कभी-कभी कुछ अवस्थाओं में व्यक्ति के स्वभाव एवं इच्छाओं का सामाजिक बन्धनों के कारण अत्यधिक दमन करना पड़ता है, जिसका परिणाम अधिकतर हानिकारक सिद्ध होता है। वास्तव में किशोरों के मेल-मिलाप में पूर्ण स्वतन्त्रता अथवा कठोर नियन्त्रण दोनों ही उनके विकास में बाधक होते हैं।

प्रश्न 3.
अपने समाज में लड़के-लड़कियों में पाए जाने वाले सामाजिक भेद के विषय में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तरः
लड़के-लड़कियों में पाए जाने वाले सामाजिक भेद –
स्त्री तथा पुरुष में शारीरिक भेद के अतिरिक्त उनके आचरण, स्वभाव और व्यवहार में अन्तर पाया जाता है। यह सम्भव हो सकता है कि यह अन्तर शरीर रचना और पारिवारिक व सामाजिक परिस्थितियों के अन्तर के कारण हो। यह भी देखने में आता है कि सामान्यत: बालिकाएँ स्वभाव की कोमल, विनम्र, सहनशील तथा करुणामयी होती हैं और दूसरी तरफ बालक स्वभाव के कठोर होते हैं।

मनोवैज्ञानिक इस बालक-बालिका के अन्तर को उनके पारिवारिक और सामाजिक पर्यावरण के कारण मानते हैं। परिवार में सभी सदस्यों की बालक-बालिका के प्रति एक-सी भावना नहीं होती। बालिकाओं के प्रति प्रारम्भ से ही कुछ भिन्न भावना रहती है, उनको पराया धन समझा जाता है, उनको घर में गृहस्थी का कार्य करना पड़ता है। इसलिए बालिकाएँ स्वभाव से ही सहनशील और विनम्र होती हैं। बालकों को बाबा-दादी तथा अन्य सदस्य सिर पर चढ़ाकर रखते हैं और उनकी प्रत्येक इच्छा को पूरा किया जाता है। इसलिए वे क्रोधी, जिद्दी तथा कठोर स्वभाव के होते हैं।

अत: अन्त में हम इस निष्कर्ष पर पहँचते हैं कि बालक-बालिका, एक ही सृष्टि की रचना होते हुए भी, भिन्न हैं। दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं, जिनमें स्वाभाविक अन्तर होता है। यह अन्तर कुछ तो शारीरिक रचना के कारण होता है और कुछ पारिवारिक और सामाजिक परिस्थितियों के कारण होता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना अनिवार्य है कि वर्तमान युग में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ बदल रही हैं। इस परिवर्तन के परिणामस्वरूप लड़कियों की शिक्षा एवं विकास को भी क्रमश: महत्त्व दिया जाने लगा है। वह दिन दूर नहीं जब हमारे समाज में लड़के-लड़कियों के प्रति समान दृष्टिकोण अपनाया जाने लगेगा।

प्रश्न 4.
किशोरावस्था में बालक और बालिका की एक-दूसरे के प्रति कैसी भावना होती है?
उत्तरः
किशोरावस्था में बालक और बालिका की एक-दूसरे के प्रति भावना –
छह वर्ष तक के लड़के-लड़कियों के सम्बन्ध में लिंग-भेद का कोई आधार नहीं होता। वे अनजान रहकर एक-दूसरे से प्रेम करते हैं, एक-दूसरे के मित्र बन जाते हैं। जब लड़के-लड़कियाँ 6 से 12 वर्ष के बीच की उम्र के होते हैं तो बहुत कुछ समझने लगते हैं। उनको यह ज्ञान हो जाता है कि उनकी शारीरिक रचना में क्या अन्तर है। हमारे समाज में लड़के को अधिक महत्त्व दिया जाता है, क्योंकि उससे यह आशा की जाती है कि वह बड़ा होकर कुटुम्ब की सेवा करेगा और लड़की कुछ दिनों बाद पराये घर की हो जाएगी। लड़कियाँ समझती हैं कि उनका स्थान लड़कों की अपेक्षा नीचा है। यह ऊँच-नीच की भावना 6-7 वर्ष की आयु के बाद बच्चों में आने लगती है; अत: वे एक-दूसरे से अलग रहने का प्रयत्न करते हैं।

यह विरोध की भावना उस समय तक चलती है, जब तक उनके शरीर में तरुणाई के लक्षण प्रकट नहीं होते हैं। जब उनके शरीर में तरुणाई के लक्षण प्रकट होने लगते हैं तो उनका यह विरोध समाप्त हो जाता है। घृणा प्रेम में बदल जाती है। इस अवस्था (13 से 17 वर्ष) में लड़कियों के शरीर में कुछ परिवर्तन हो जाता है और सौन्दर्य बढ़ जाता है। लड़के भी अपने को अधिक आकर्षक बनाने का प्रयत्न करते हैं। इस समय वे एक-दूसरे के सम्पर्क में लज्जा अनुभव करते हैं। यह अवस्था करीब 16-17 वर्ष की उम्र तक रहती है।

17-18 वर्ष की अवस्था में लड़के-लड़कियों में काम-चेतना अत्यन्त प्रबल रूप धारण करती है। वे एक-दूसरे को अधिक-से-अधिक आकर्षित करने का प्रयत्न करते हैं और प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं। इस समय वे सामाजिक बन्धनों की चिन्ता तक नहीं करते। वे समाज से घृणा करते हैं और समाज से पृथक होकर प्रेमी अथवा प्रेमिका के साथ निर्जन स्थान में अधिक-से-अधिक समय तक रहना पसन्द करते हैं। एक के अभाव में दूसरा प्राण तक दे देता है। आचार्य चतुरसेन शास्त्री के शब्दों में, “जब दो भिन्न लिंगी एक-दूसरे को देखते हैं, संकेत करते हैं, छिपकर प्रेम करते हैं, भेंट देते हैं या परस्पर स्पर्श करते हैं तो उन्हें चामत्कारिक आनन्द प्राप्त होता है।”

लड़के और लड़कियों के सम्बन्ध की यह अवस्था बड़ी नाजुक होती है। वे कभी-कभी पथभ्रष्ट भी हो जाते हैं। वे पढ़ाई-लिखाई, माता-पिता, धन-सम्पत्ति और मान-मर्यादा की परवाह नहीं करते। प्रेमी-प्रेमिकाओं का घर से भाग जाना, इधर-उधर की ठोकरें खाना साधारण-सी बात है। इसके अतिरिक्त, वे भ्रूण हत्याओं, शारीरिक रोगों, नैतिक और चारित्रिक पतन आदि के लिए उत्तरदायी हो जाते हैं। अज्ञान और भावुकता में वे अपना और समाज दोनों का अहित करते हैं।

विभिन्न अध्ययनों द्वारा यह सिद्ध हो गया है कि बालक और बालिका के परस्पर मिलने-जुलने में जितना बड़ा बन्धन होगा, ‘मिलन भावना’ उतनी ही तीव्र होगी। इसलिए बालक-बालिकाओं के सम्बन्धों को स्वाभाविक रूप से विकसित होने देने के लिए उन्हें परस्पर मिलने-जुलने की कुछ हद तक स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए। सम्पर्क और स्वतन्त्रता को उच्छंखलता की सीमा तक पहुँचने से रोकने के लिए संयम का अंकुश बड़े-बुजुर्गों के हाथ में होना चाहिए।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 20 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बालक-बालिका सम्बन्धों के अध्ययन का मूल आधार क्या है?
उत्तरः
बालक-बालिका सम्बन्धों के अध्ययन का मूल आधार लिंग-भेद है।

प्रश्न 2.
सामान्य रूप से किस अवस्था में लड़के-लड़कियाँ अपने अलग-अलग समूह बनाने लगते हैं?
उत्तरः
सामान्य रूप से किशोरावस्था प्रारम्भ होते ही लड़के-लड़कियाँ अपने अलग-अलग समूह बनाने लगते हैं।

प्रश्न 3.
बालिकाओं के लिए पढ़ाई क्यों जरूरी है?
अथवा
बालिकाओं को शिक्षित करना क्यों आवश्यक है?
उत्तरः
आज की बालिकाएँ ही भावी गृहिणियाँ एवं माताएँ हैं; अतः उत्तम गृह-व्यवस्था तथा बच्चों के उत्तम पालन-पोषण के लिए बालिकाओं की पढ़ाई जरूरी है। वैसे, जिस प्रकार लड़कों के लिए पढ़ाई आवश्यक है, वैसे ही लड़कियों के लिए भी पढ़ाई आवश्यक है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 20 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए –
1. किशोरावस्था में बालक-बालिका सम्बन्ध होने चाहिए –
(क) अत्यधिक घनिष्ठ
(ख) सीमित एवं स्वाभाविक
(ग) कोई सम्बन्ध नहीं होने चाहिए
(घ) विरोधपूर्ण सम्बन्ध।
उत्तरः
(ख) सीमित एवं स्वाभाविक।

2. मानसिक एवं संवेगात्मक ज्ञान किस अवस्था तक अपरिपक्व माना गया है –
(क) किशोरावस्था
(ख) युवावस्था
(ग) प्रौढ़ावस्था
(घ) वृद्धावस्था।
उत्तरः
(क) किशोरावस्था।

3. किशोरावस्था की मुख्य समस्या क्या है –
(क) मकान
(ख) नौकरी
(ग) अनुशासन
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तरः
(ग) अनुशासन।

UP Board Solutions for Class 11 Home Science 

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 21 गृहस्थ परिवार का आय-व्यय लेखा

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 21 गृहस्थ परिवार का आय-व्यय लेखा (Budget of Family)

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 21 गृहस्थ परिवार का आय-व्यय लेखा

UP Board Class 11 Home Science Chapter 21 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पारिवारिक आय-व्यय से क्या तात्पर्य है?
उत्तरः
पारिवारिक आवश्यकताओं की सुचारु पूर्ति ही गृह-अर्थव्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मुख्य रूप से दो कारक आवश्यक हैं जिन्हें क्रमश: “पारिवारिक आय’ तथा ‘पारिवारिक व्यय’ कहा जाता है। पारिवारिक आय-व्यय का सन्तुलन ही उत्तम गृह-अर्थव्यवस्था की मुख्य शर्त है। ‘पारिवारिक आय’ तथा ‘पारिवारिक व्यय’ का अर्थ एवं सामान्य परिचय निम्नवर्णित है –

पारिवारिक आय का अर्थ (Meaning of Family Income) –
गृह – अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक महत्त्व पारिवारिक आय का होता है। पारिवारिक आय से आशय उस धनराशि से है, जो किसी परिवार द्वारा एक निश्चित अवधि में अर्जित की जाती है। आय अर्जित करने के लिए कुछ-न-कुछ प्रयास करने पड़ते हैं। व्यापक अर्थ में पारिवारिक आय में आर्थिक प्रयासों के बदले में मिलने वाली धनराशि के अतिरिक्त उन सुविधाओं को भी सम्मिलित किया जाता है, जो इन प्रयासों के बदले में उपलब्ध होती हैं। उदाहरण के लिए किसी सरकारी कार्यालय में नौकरी करने वाले व्यक्ति को प्रतिमाह एक निश्चित वेतन मिलता है तथा इसके साथ-साथ नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा, आवास सुविधा तथा बच्चों की निःशुल्क शिक्षा की सुविधा भी उपलब्ध होती है। इस स्थिति में सम्बन्धित व्यक्ति को मिलने वाला वेतन तथा अन्य समस्त सुविधाएँ सम्मिलित रूप से व्यक्ति की आय मानी जाती हैं।

प्रो० ग्रास एवं केण्डाल ने पारिवारिक आय की परिभाषा इन शब्दों में प्रतिपादित की है – “पारिवारिक आय मुद्रा, वस्तुओं, सेवाओं तथा सन्तोष का वह प्रवाह है, जो परिवार के अधिकार में उसकी आवश्यकताओं और इच्छाओं को पूर्ण करने तथा उत्तरदायित्वों के निर्वाह हेतु आता है।”

उपर्युक्त कथन के आधार पर कहा जा सकता है कि परिवार के मुखिया एवं अन्य सदस्यों द्वारा अर्जित की जाने वाली धनराशि पारिवारिक आय का मुख्य रूप है। यह धनराशि भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रयासों द्वारा अर्जित की जा सकती है; जैसे—नौकरी, व्यवसाय, उद्योग-धन्धे, कृषि, पशुपालन आदि। धनराशि के अतिरिक्त परिवार को उपलब्ध होने वाली विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ भी पारिवारिक आय का ही भाग मानी जाती हैं। इस प्रकार की सुविधाएँ अनेक हो सकती हैं; जैसे – फर्नीचरयुक्त निःशुल्क आवास सुविधा, वाहन सम्बन्धी सुविधा, नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा तथा बच्चों की नि:शुल्क शिक्षा सुविधा।

पारिवारिक व्यय का अर्थ (Meaning of Family Expenses) –
अर्थव्यवस्था के दो मुख्य तत्त्व माने गए हैं-आय तथा व्यय। परिवार के सन्दर्भ में भी आय तथा व्यय का समान रूप से महत्त्व है। आय के रूप में धन अर्जित करने का मुख्य उद्देश्य भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यय का अधिकार प्राप्त करना ही है। पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जिस धन को व्यय किया जाता है, उसे ही ‘पारिवारिक व्यय’ कहा जाता है।

आय के ही समान व्यय का भी निश्चित लेखा-जोखा रखने के लिए इसे एक निश्चित अवधि के सन्दर्भ में आँका जाता है। सामान्य रूप से, परिवार के लिए मासिक अथवा वार्षिक अवधि में होने वाले व्यय को ही पारिवारिक व्यय के रूप में स्वीकार किया जाता है। व्यय वास्तव में आवश्यकताओं की पूर्ति का एक साधन है। आवश्यकताएँ असंख्य हो सकती हैं, किन्तु सभी आवश्यकताओं की पूर्ति सम्भव नहीं है क्योंकि प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति के लिए कम या अधिक मात्रा में धन की आवश्यकता होती है, परन्तु धन एक सीमित साधन है। धन की उपलब्धता आय पर निर्भर करती है; अत: व्यय का निर्धारण आय के सन्दर्भ में ही होता है।

पारिवारिक व्यय को हम इस प्रकार भी परिभाषित कर सकते हैं – “किसी निश्चित अवधि में सम्बन्धित परिवार द्वारा अर्जित आय के उस अंश को पारिवारिक व्यय माना जा सकता है, जो परिवार के सदस्यों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यय हुआ है।”

पारिवारिक आवश्यकताएँ अनेक प्रकार की होती हैं; अत: उनकी पूर्ति के लिए किए जाने वाले व्यय को भी भिन्न-भिन्न वर्गों अथवा प्रकारों में बाँटा जा सकता है। पारिवारिक व्यय के मुख्य वर्ग या प्रकार हैं – निश्चित व्यय, अर्द्ध-निश्चित व्यय, अन्य व्यय तथा आकस्मिक व्यय। निश्चित व्यय प्रतिमाह समान रहते हैं; जैसे कि मकान का किराया। अर्द्ध-निश्चित व्यय ऐसे व्ययों को कहा जाता है, जिनमें प्रतिमाह एक निश्चित सीमा तक ही परिवर्तन होता है। जैसे कि परिवार के सदस्यों के वस्त्रों पर होने वाला व्यय। अन्य व्यय की श्रेणी में उन खर्चों को सम्मिलित किया जाता है जो व्यक्ति की आय एवं सुविधा पर निर्भर करते हैं। ये खर्चे अनिवार्य एवं निश्चित नहीं होते।

सुविधा न होने पर इस वर्ग के खर्चों को बिल्कुल घटाया जा सकता है तथा आय के बढ़ जाने तथा सुविधाओं के उपलब्ध हो जाने की स्थिति में जितना चाहे बढ़ाया जा सकता है। मनोरंजन तथा विलासिता सम्बन्धी आवश्यकताओं पर किए जाने वाले व्यय इसी श्रेणी के हैं। आकस्मिक व्यय में उन पारिवारिक खर्चों को सम्मिलित किया जाता है, जिनका कोई पूर्व-ज्ञान नहीं होता। ये खर्चे योजनाबद्ध नहीं हुआ करते। आकस्मिक व्यय साधारण भी हो सकते हैं तथा बहुत अधिक भी, जिससे सम्पूर्ण गृह-अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। उदाहरण के लिए किसी निकट सम्बन्धी के विवाह के अवसर पर होने वाला आकस्मिक व्यय, साधारण व्यय कहला सकता है, परन्तु परिवार के किसी सदस्य के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने पर होने वाला आकस्मिक व्यय बहुत अधिक भी हो सकता है।

उपर्युक्त विवरण द्वारा पारिवारिक व्यय के अर्थ एवं विभिन्न प्रकारों का सामान्य परिचय प्राप्त हो जाता है। परिवार के प्रत्येक सदस्य, विशेष रूप से परिवार के मुखिया तथा गृहिणी को इन समस्त पारिवारिक खर्चों के प्रति सचेत रहना चाहिए तथा पर्याप्त सूझ-बूझपूर्वक सभी खर्चों का नियोजन करना चाहिए।

प्रश्न 2.
पारिवारिक बजट का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। पारिवारिक बजट के लाभ एवं उपयोगिता भी स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पारिवारिक बजट से क्या तात्पर्य है?
अथवा
परिवार के सफलतापूर्वक संचालन के लिए बजट की क्या उपयोगिता है?
अथवा
पारिवारिक बजट को परिभाषित कीजिए। पारिवारिक बजट के लाभों का वर्णन कीजिए।
उत्तरः
परिवार एक ऐसा केन्द्र है, जहाँ जीवनयापन के समस्त उपाय किए जाते हैं। घर पर ही आहार, वस्त्र, मनोरंजन तथा आवश्यकता पड़ने पर चिकित्सा आदि की व्यवस्था की जाती है। इन समस्त पारिवारिक गतिविधियों को पूरा करने के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। धन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए आय की व्यवस्था की जाती है। सामान्य रूप से आय सीमित होती है। इस स्थिति में आय तथा व्यय में सन्तुलन बनाए रखना आवश्यक होता है। आय तथा व्यय को नियोजित करने के उपाय को ही ‘बजट’ कहा जाता है। गृह-व्यवस्था के लिए ‘पारिवारिक बजट’ का विशेष महत्त्व होता है।

पारिवारिक बजट का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Family Budget) –
पारिवारिक अर्थव्यवस्था के दो मुख्य तत्त्व होते हैं – पारिवारिक आय तथा पारिवारिक व्यय। पारिवारिक अर्थव्यवस्था को सफल बनाने के लिए पारिवारिक आय तथा पारिवारिक व्यय को नियोजित करना आवश्यक होता है। इस नियोजन के लिए पारिवारिक आय तथा व्यय के विवरण को लिखित रूप दिया जाता है। आय-व्यय का यह लिखित रूप ही ‘पारिवारिक बजट’ कहलाता है। पारिवारिक बजट में परिवार की आय को ध्यान में रखते हुए समस्त सम्भावित खर्चों को नियोजित रूप से लिख लिया जाता है। पारिवारिक आय-व्यय का यह विवरण-प्रपत्र एक निश्चित अवधि के लिए होता है। यह अवधि सामान्य रूप से एक माह या एक वर्ष हुआ करती है।

पारिवारिक बजट को इन शब्दों में परिभाषित कर सकते हैं – “पारिवारिक बजट किसी परिवार का निश्चित अवधि में होने वाले आय-व्यय का प्रपत्र होता है।”
पारिवारिक बजट में आगामी माह या आगामी वर्ष में होने वाले आय-व्यय का अनुमानित प्रारूप भी होता है।

पारिवारिक बजट की उपयोगिता (Utility of Family Budget) –
पारिवारिक बजट से परिवार, अर्थशास्त्रियों, राजनीतिज्ञों तथा समाज-सुधारकों सभी को लाभ पहुँचता है। पारिवारिक बजट के लाभों का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है –

1. परिवार के लिए बजट का महत्त्व एवं लाभ-परिवार की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए प्रत्येक परिवार द्वारा बजट अवश्य बनाना चाहिए। बजट बनाकर व्यय करने से आय तथा व्यय में सन्तुलन बना रहता है। बजट बनाकर विभिन्न आवश्यक वस्तुओं पर होने वाले व्यय को निर्धारित कर सकते हैं। इससे ज्ञात होता रहता है कि किस वस्तु पर होने वाले व्यय को आवश्यकता पड़ने पर घटाया जा सकता है तथा किस प्रकार से सभी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है। यदि बिना बजट के ही व्यय करते रहते हैं तो कुछ अनावश्यक वस्तुओं पर अपेक्षाकृत अधिक व्यय हो सकता है। इससे कुछ अपेक्षाकृत आवश्यक कार्य करने के लिए धन नहीं बच पाता तथा समय आने पर कठिनाई उठानी पड़ती है; अत: बजट बनाकर ही व्यय करना चाहिए। पारिवारिक बजट बनाने तथा उसके अनुसार व्यय करने से परिवार को निम्नलिखित लाभ होते हैं –

  • बजट बनाने से विभिन्न मदों पर किया जाने वाला व्यय इन मदों की आवश्यकता तथा महत्त्व को ध्यान में रखकर हो सकता है।
  • बजट बनाने से योजनाबद्ध कार्य करने की क्षमता का विकास होता है। सामान्य से अलग, विशेष अवसरों पर इस क्षमता से सहायता मिलती है और अपव्यय से बचा जा सकता है।
  • बजट बनाने से गृहिणी भविष्य के लिए कुछ-न-कुछ बचत करने का तरीका निकाल लेती है। वैसे भी योजनाबद्ध कार्य करने से कुछ-न-कुछ बचाया जा सकता है।
  • अपनी आय के अनुसार परिवार की समस्त आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करते हुए बजट के अनुसार व्यय करने से उचित और अनुकूल जीवनयापन का अभ्यास हो जाता है। इस तरह अपव्यय नहीं होता और ऋण लेने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है।।
  • पारिवारिक व्यय का उचित लेखा रखने में भी बजट से सहायता मिलती है तथा हिसाब-किताब की आदत पड़ जाती है।
  • बजट बनाने से फिजूलखर्ची पर आवश्यक तथा निश्चित नियन्त्रण हो जाता है।
  • पारिवारिक बजट बनाकर व्यय करने से परिवार में सुख-शान्ति एवं व्यवस्था बनी रहती है। इससे पारिवारिक समृद्धि में भी वृद्धि होती है।

2. अर्थशास्त्रियों को लाभ – अर्थशास्त्री पारिवारिक बजटों के अध्ययन से किसी समाज या राष्ट्र के जीवन-स्तर के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। यदि उनका आर्थिक एवं सामाजिक स्तर गिरता दिखाई देता है तो वे उसे सुधारने के लिए प्रयत्नशील हो सकते हैं। पारिवारिक बजट जनता की आय, मनुष्यों की कर देने की क्षमता तथा सरकार को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष कर लगाने के सम्बन्ध में भी ज्ञान देता है। पारिवारिक बजट का अध्ययन महत्त्वपूर्ण आर्थिक नियमों के अनुसन्धान में भी सहायक होता है।

3. राजनीतिज्ञों को लाभ – पारिवारिक बजट समाज का आर्थिक नक्शा प्रदान करता है और इस आर्थिक नक्शे में देश का या समाज का राजनीतिक नक्शा खिंचा मिलता है। जिस प्रकार की लोगों की आर्थिक दशा होगी, उसी के आधार पर वे अपनी राजनीतिक विचारधारा का निर्माण करेंगे। राजनीतिज्ञ इस प्रकार से देश की राजनीतिक स्थिति का अध्ययन कर उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने की दिशा में प्रयत्नशील हो सकते हैं। राजनीतिज्ञ जन सामान्य की करदान क्षमता देखकर अपनी नीति निर्धारित करते हैं।

4. समाज-सुधारकों को लाभ – समाज-सुधारक इसके अध्ययन से यह जान सकते हैं कि जनता अपनी आय का सदुपयोग करती है अथवा दुरुपयोग। यदि जनता का धन बुरी आदतों की सन्तुष्टि में अधिक व्यय होता है तो समाज-सुधारक इसके विरुद्ध प्रचार करके जनता की बुरी आदतों पर नियन्त्रण कर सकते हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि पारिवारिक बजट समाज के सभी वर्गों के लिए लाभप्रद एवं उपयोगी हो सकता है। इसका समुचित विवेचन परिवार, समाज और देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है। गृहिणियों के लिए ‘पारिवारिक बजट’ का सर्वाधिक महत्त्व एवं उपयोग है क्योंकि गृहिणियाँ ही गृह-अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

प्रश्न 3.
पारिवारिक बजट के विषय में ऐंजिल्स द्वारा प्रतिपादित नियम का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तरः
पारिवारिक बजट के विषय में ऐंजिल्स का नियम (Engil’s Rule on Family Budget) –
पारिवारिक बजट अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण विषय है; अत: समय-समय पर विभिन्न समाज-वैज्ञानिकों एवं अर्थशास्त्रियों ने इस विषय में अपने-अपने विचार तथा नियम प्रस्तुत किए हैं। इन विद्वानों में जर्मनी के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ० अर्नेस्ट ऐंजिल्स का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। ऐंजिल्स ने समाज के विभिन्न वर्गों से सम्बन्धित परिवारों की गृह-अर्थव्यवस्था का विस्तृत अध्ययन किया तथा 1857 ई० में निष्कर्षस्वरूप एक नियम प्रस्तुत किया, जिसे पारिवारिक बजट सम्बन्धी ‘ऐंजिल्स का नियम’ कहा जाता है।

अर्थशास्त्री ऐंजिल्स ने सामाजिक व्यवस्था को तीन वर्गों अर्थात् उच्च (धनी), मध्यम तथा निम्न वर्ग में विभाजित किया। इस वर्गीकरण का आधार केवल पारिवारिक आय को ही स्वीकार किया गया था। अपने अध्ययनों के आधार पर उन्होंने स्पष्ट किया कि पारिवारिक आय के बढ़ने के साथ-साथ परिवार द्वारा भोजन एवं खाद्य-सामग्री पर किए जाने वाले व्ययों का प्रतिशत घटता जाता है तथा शिक्षा, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन या विलासिता की मदों पर होने वाले व्ययों का प्रतिशत बढ़ता जाता है। जहाँ तक वस्त्र, गृह, प्रकाश एवं ईंधन जैसी मदों का प्रश्न है, इन पर होने वाले व्ययों का प्रतिशत प्रायः स्थिर ही रहता है। ऐंजिल्स के इन निष्कर्षों को निम्नांकित तालिका के माध्यम से स्पष्ट किया गया है –
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 21 गृहस्थ परिवार का आय-व्यय लेखा 1

ऐंजिल्स ने पारिवारिक बजट सम्बन्धी अपने नियम के निष्कर्षों को निम्नांकित रेखाचित्र के माध्यम से भी दर्शाया है –
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 21 गृहस्थ परिवार का आय-व्यय लेखा 2
ऐंजिल्स ने पारिवारिक बजट के सैद्धान्तिक स्पष्टीकरण के साथ-साथ उसके व्यावहारिक स्वरूप को भी प्रस्तुत किया। उसने समाज के तीनों वर्गों-उच्च, मध्यम और निम्न के प्रतिनिधियों के रूप में डॉक्टर, अध्यापक और श्रमिक को चुना और उनकी तत्कालीन मासिक आय क्रमशः ₹ 3200, ₹ 1600 और ₹ 400 स्वीकार की। आय के इन स्वरूपों को स्वीकार करके ऐंजिल्स ने समाज के मुख्य वर्गों के पारिवारिक बजट के प्रारूप को निम्नांकित तालिका में प्रस्तुत किया –
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 21 गृहस्थ परिवार का आय-व्यय लेखा 3

ऐंजिल्स के पारिवारिक बजट सम्बन्धी नियम की आलोचना –
एक समय था जब विश्व के सभी देशों में पारिवारिक बजट के विषय में ऐंजिल्स के नियम को विशेष महत्त्वपूर्ण माना जाता था, परन्तु वर्तमान परिस्थितियों में इस नियम को केवल ऐतिहासिक महत्त्व ही प्राप्त है। अब सैद्धान्तिक और व्यावहारिक रूप में इस नियम को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता है। इस नियम की निम्नलिखित आलोचनाएँ प्रस्तुत की गई हैं –

  • भोजन व्यय के सन्दर्भ में-आलोचकों का मत है कि ऐंजिल्स द्वारा अपने बजट में अध्यापक तथा डॉक्टर के भोजन के लिए किए गए धन का प्रावधान बहुत अधिक है।
  • आवास व्यय के सन्दर्भ में-आधुनिक परिस्थितियों में आवास समस्या गम्भीर है। अध्यापक तथा डॉक्टर के लिए निर्धारित किया गया धन कम प्रतीत होता है। आय के 12% भाग को व्यय करके ये वर्ग अपनी प्रतिष्ठा के अनुकूल आवास प्राप्त नहीं कर सकते।
  • शिक्षा, स्वास्थ्य तथा मनोरंजन व्यय के सन्दर्भ में-ऐंजिल्स ने अपने नियम में मध्यम तथा उच्च वर्ग के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन के मद में जो व्यय का प्रावधान किया है, वह बहुत अधिक प्रतीत होता है।
  • ईंधन, जल तथा प्रकाश के व्यय के सन्दर्भ में ऐंजिल्स ने अपने नियम में स्वीकार किया है कि ईंधन, जल एवं प्रकाश आदि पर होने वाले व्यय का प्रतिशत भाग सदैव स्थिर रहता है। यह मान्यता उचित नहीं है। व्यवहार में देखा गया है कि आय के बढ़ने के साथ-साथ इन मदों पर होने वाले व्यय के प्रतिशत मान में भी कुछ-न-कुछ वृद्धि अवश्य ही होती है।
  • बचत की अवहेलना सम्बन्धी आलोचना-ऐंजिल्स द्वारा प्रतिपादित बजट सम्बन्धी नियम में कहीं भी पारिवारिक बचत का उल्लेख नहीं है। आधुनिक मान्यताओं के अनुसार समाज के प्रत्येक वर्ग के पारिवारिक बजट में अनिवार्य रूप से नियमित बचत का प्रावधान होना चाहिए। एंजिल्स द्वारा पारिवारिक बचत की अवहेलना की कटु आलोचना हुई है।

प्रश्न 4.
ऐंजिल्स के सिद्धान्त के आधार पर एक मध्यम वर्ग के परिवार के बजट की रूपरेखा बनाइए।
अथवा
एक ऐसे परिवार के लिए व्यावहारिक बजट का प्रारूप प्रस्तुत कीजिए, जिसकी मासिक आय ₹ 12000 प्रतिमाह है तथा परिवार में पति-पत्नी के अतिरिक्त दो छोटे बच्चे हैं।
उत्तरः
पारिवारिक बजट का व्यावहारिक प्रारूप (Practical Structure of Family Budget) –
पारिवारिक बजट का सैद्धान्तिक अध्ययन करने के साथ-साथ उसका व्यावहारिक पक्ष जानना भी आवश्यक है। यहाँ एक ऐसे परिवार के पारिवारिक बजट का प्रारूप प्रस्तुत किया जा रहा है, जिसकी मासिक आय ₹ 12,000 है तथा परिवार में पति-पत्नी के अतिरिक्त दो छोटे बच्चे भी हैं

गृहस्वामी का नाम – सुभाष चन्द्र शर्मा
घर का पता – 2, तिलक रोड, मेरठ।
परिवार की सदस्य संख्या – 4 (पुरुष 1, स्त्री 1, बच्चे 2)
मासिक आय – ₹ 12000
बजट की अवधि – 1-4-2018 से 31-4-2018
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 21 गृहस्थ परिवार का आय-व्यय लेखा 4
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 21 गृहस्थ परिवार का आय-व्यय लेखा 5
नोट – उपर्युक्त बजट का प्रारूप एक प्रतिदर्श बजट है। इस आधार पर ₹ 15000, ₹ 18000 या ₹ 20,000 आदि आय वाले परिवारों के लिए भी बजट बनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त परिवार की परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न मदों पर होने वाले व्यय में भी अन्तर किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
मितव्ययिता का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके आवश्यक तत्त्व बताइए।
अथवा
गृहिणी किन-किन उपायों से गृहस्थी के व्यय में मितव्ययिता कर सकती है?
अथवा
टिप्पणी लिखिए-मितव्ययिता।
उत्तरः
मितव्ययिता का अर्थ (Meaning of Economy) –
परिवार व्यय का केन्द्र है। इस कारण से यहाँ प्रतिदिन किसी-न-किसी प्रकार का व्यय करना पड़ता है। परिवार के सदस्य जो कमाते हैं उसके अधिकांश भाग को वे अपनी और अपने आश्रितों की विविध प्रकार की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करने के लिए व्यय करते हैं; किन्तु पैसा खर्च करने वाले के समक्ष यह लक्ष्य आवश्यक रूप से रहता है कि वह धन को किस प्रकार से व्यय करे कि उसकी अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाए। जो व्यक्ति धन को व्यय करने की उचित रीतियाँ जानते हैं, वे आर्थिक संकट का सामना नहीं करते; किन्तु इसके विपरीत जो धन को व्यय करने के उचित तरीकों से अनभिज्ञ हैं, वे सदैव आर्थिक संकट से ग्रस्त रहते हैं और धनाभाव से पीड़ित रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों को अनेक बार गम्भीर आर्थिक संकट का भी सामना करना पड़ जाता है तथा परिणामस्वरूप घर-परिवार कलह का केन्द्र बन जाता है।

पारिवारिक अर्थव्यवस्था को सुचारु बनाए रखने तथा पारिवारिक सुख-समृद्धि को बनाए रखने के लिए पारिवारिक व्यय को मितव्ययितापूर्ण बनाना आवश्यक होता है। मितव्ययिता से हमारा अभिप्राय यह है कि कोई व्यक्ति कम खर्च करके भी अधिकतम सन्तोष प्राप्त कर ले। मितव्ययिता का उद्देश्य अपव्यय या फिजूलखर्ची से बचना है। इसका अर्थ कंजूसी करना नहीं है क्योंकि कंजूसी की स्थिति तो दुःख प्रदान करने वाली होती है। किन्तु इसका यह अर्थ अवश्य है कि जिस वस्तु पर 5 रुपये खर्च करने से ही हम सुख-सन्तोष की प्राप्ति कर सकते हैं, उस पर अनावश्यक रूप से 6 रुपये खर्च न करें।

मितव्ययिता के तत्त्व (Elements of Economy) –
मितव्ययितापूर्वक व्यय करने के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है –
1. वस्तुएँ खरीदने का उचित स्थानं-आजकल प्रत्येक वस्तु के खरीदने के अनेक स्थान होते हैं और उपभोक्ताओं को इनमें से किसी भी स्थान से इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति हो सकती है। कुशल तथा मर्मज्ञ उपभोक्ताओं को यह ज्ञात होता है कि कौन-सी वस्तु किस स्थान से प्राप्त हो सकती है। कहने का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक वस्तु की प्राप्ति का एक निश्चित स्थान होता है और इसकी जानकारी समय तथा धन की बचत कराती है।

2. खरीदारी के सिद्धान्त-पैन्सन नामक अर्थशास्त्री ने धन को व्यय करने के सम्बन्ध में वस्तुओं के मूल्य के सम्बन्ध में कुछ सुझाव दिए हैं। ये सुझाव निम्नलिखित हैं

(i) अपनी आवश्यकताओं का पूर्ण ज्ञान-एक सफल खरीदार को अपनी आवश्यकताओं का पूर्ण ज्ञान अवश्य होना चाहिए। बाजार में पहुँचने पर जो भी वस्तु अच्छी लगे, उसे अपनी आवश्यकता के अभाव में भी खरीद लेना अपव्यय है। आवश्यकता न होने पर सस्ती वस्तु का खरीदना भी महँगा एवं अनुचित ही है क्योंकि वह घर में व्यर्थ पड़ी रहेगी। अत: केवल वे ही वस्तुएँ खरीदी जानी चाहिए, जिनकी हमें आवश्यकता है। ऐसा करने पर कम धन व्यय करके अधिकतम सन्तोष प्राप्त किया जा सकता है।

(ii) आवश्यकताओं की तीव्रता का ज्ञान-खरीदार को यह भी पता होना चाहिए कि उसे किस आवश्यकता की तत्काल पूर्ति करनी है तथा किसकी बाद में पूर्ति की जा सकती है। जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं का उचित रूप से क्रम निर्धारण कर लेते हैं, वे कम खर्च से ही अधिक सन्तोष प्राप्त कर सकते हैं।

(iii) वस्तु के गुणों का ज्ञान-खरीदार को माल के जाँचने की योग्यता भी होनी चाहिए। मोल-भाव तो कर लिया, किन्तु यह न देखा कि वस्तु अच्छी भी है या नहीं, तो खरीदार धोखा खा सकता है। क्योंकि कभी-कभी सस्ती वस्तु बिल्कुल बेकार सिद्ध हो सकती है; अत: वस्तु के गुणों को देखकर ही उसे खरीदना चाहिए।

(iv) सस्ती वस्तुओं के प्राप्ति स्थान का ज्ञान-खरीदार को यह भी पता होना चाहिए कि सस्ती वस्तु किस दुकान से या किस स्थान से प्राप्त हो सकती है। दूर जाने से बचने के लिए कुछ लोग अपने परिचितों की दुकानों से ही सौदा लेते हैं, भले ही वहाँ उनसे कुछ अधिक मूल्य ले लिया जाए। मोल-भाव करके तथा सस्ती वस्तु की प्राप्ति के स्थान का पता लगाने से भी बचत हो जाती है।

(v) मोल-भाव करने की योग्यता-कुशल खरीदार को सौदा करना भी आना चाहिए। कभी-कभी दुकानदार दो रुपये की वस्तु का मूल्य तीन-चार रुपये तक बता देता है और यदि उनसे ठीक प्रकार से मोल-भाव न किया जाए तो खरीदार को पर्याप्त नुकसान हो सकता है। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि छोटी-छोटी बातों पर दुकानदार से व्यर्थ का विवाद किया जाए। कुछ दुकानें ऐसी भी होती हैं, जहाँ वस्तुओं का गलत मूल्य नहीं बताया जाता और अनुभव से खरीदार यह बात जान सकता है।

3. अपव्यय से बचना-मितव्ययिता के लिए आवश्यक है कि हर प्रकार के अपव्यय या फिजूलखर्ची से बचा जाए। यह फिजूलखर्ची वस्तुओं के क्रय से सम्बन्धित भी हो सकती है तथा वस्तुओं या सुविधाओं के अनावश्यक उपभोग से सम्बन्धित भी। घर पर आवश्यकता न होने पर बिजली, पानी तथा ईंधन का प्रयोग नियन्त्रित करना चाहिए। इससे सम्बन्धित बिल कम आते हैं। इसी प्रकार खाद्य-सामग्री या पकवान उतने ही तैयार करने चाहिए जितने कि खाने के काम आ जाएँ। अधिक बनाने से बाद में वे फेंकने पड़ते हैं तथा उनकी लागत व्यर्थ जाती है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 21 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पारिवारिक बजट बनाने के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
पारिवारिक बजट बनाने के उद्देश्य पारिवारिक बजट बनाने के उद्देश्यों को हम निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं –

  • परिवार के सदस्यों की संख्या तथा आमदनी का ज्ञान प्राप्त करना।
  • परिवार के सभी प्रकार के खर्चों का क्रमिक ज्ञान प्राप्त करना।
  • परिवार की आवश्यकताओं और रहन-सहन के स्तर का ध्यान रखना।
  • बजट के खर्चे का इस प्रकार ध्यान रखना आवश्यक है कि आकस्मिक दुर्घटनाओं का सामना आसानी से किया जा सके।
  • गृह-अर्थव्यवस्था में नियमित बचत का प्रावधान रखना।

प्रश्न 2.
टिप्पणी लिखिए-पारिवारिक बजट के प्रकार।
उत्तरः
पारिवारिक बजट के प्रकार –
पारिवारिक बजट के तीन तत्त्व होते हैं-आय, व्यय तथा बचत। इन तत्त्वों के आधार पर पारिवारिक बजट के तीन प्रकार निर्धारित किए जाते हैं। प्रथम प्रकार है –

  • सन्तुलित बजट-इस बजट में पारिवारिक आय के बराबर ही पारिवारिक व्यय का प्रावधान होता है। दूसरा प्रकार है।
  • घाटे का बजट-इस बजट में आय की अपेक्षा अधिक व्यय का प्रावधान होता है तथा तीसरा प्रकार है।
  • बचत का बजट-इस बजट में पारिवारिक आय की तुलना में कम व्यय का प्रावधान होता है। गृह-अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में बचत के बजट को सर्वोत्तम बजट माना जाता है।

प्रश्न 3.
पारिवारिक बचत से क्या आशय है? पारिवारिक बचत के मुख्य लाभों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
बजट में बचत का प्रावधान करना क्यों आवश्यक है?
उत्तरः
पारिवारिक बचत का अर्थ तथा उसके लाभ –
वर्तमान पारिवारिक आय में से परिवार की वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यय करने के उपरान्त जो धनराशि बच जाती है, उसे ‘पारिवारिक बचत’ कहा जाता है। इस प्रकार से की गई बचत को उचित ढंग से विनियोजित कर देने से अधिक लाभ होता है। यही कारण है कि पारिवारिक बजट तैयार करते समय उसमें अनिवार्य रूप से बचत का प्रावधान रखा जाता है। .
नियमित पारिवारिक बचत से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं –

1. भविष्य की विपत्तियों को सहन करने की सामर्थ्य प्राप्त होती है – मनुष्य को धन जीवन में बीमारी, बेरोजगारी, व्यापारिक हानि, भूचाल, बाढ़ आदि विपत्तियाँ सहन करने की सामर्थ्य प्रदान करता है। इसीलिए नियमित पारिवारिक बचत को आवश्यक माना जाता है।

2. पारिवारिक उत्तरदायित्व निभाने की योग्यता उत्पन्न होती है – पारिवारिक उत्तरदायित्व निभाने की योग्यता का आधार बचत ही है। मनुष्य को भविष्य में बच्चों की शिक्षा, विवाह तथा सामाजिक रीति-रिवाजों पर धन व्यय करना पड़ता है, जिनमें बचत विशेष रूप से सहायक होती है।

3. वृद्धावस्था के लिए सुरक्षा – बचत द्वारा एकत्र किया हुआ धन वृद्धावस्था में काम आता है, इसलिए बचत करने पर मनुष्य वृद्धावस्था में सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकता है।

4. आश्रितों के पालन-पोषण की व्यवस्था – बचत करते रहने पर मृत्यु के बाद आश्रित परिवार का भरण-पोषण कुछ समय तक ठीक-ठीक होता रहता है, वे एकदम अनाथ होकर भटकते नहीं फिरते हैं।

5. आय वृद्धि – बचत द्वारा आय में वृद्धि होती है। बचाया हुआ धन किसी को उधार देकर या बैंक में जमा करके ब्याज कमाया जा सकता है, जिससे आय और पूँजी बढ़ती है। इसलिए बचत करना सभी प्रकार से लाभकारी है।

6. सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि – नियमित रूप से की गई बचत परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा की वृद्धि में सहायक होती है। कुछ ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं, जब परिवार की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त व्यय करना पड़ता है। यह व्यय पारिवारिक बचत से ही सम्भव हो पाता है।

7. राष्ट्रीय योजनाओं के संचालन में सहायक – नियमित पारिवारिक बचत न केवल परिवार के लिए आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है वरन् यह राष्ट्रीय प्रगति एवं समृद्धि के दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है। देश के परिवारों द्वारा की गई नियमित अल्प बचतों को राष्ट्रीय बचत योजनाओं में विनियोजित किया जाता है, जिससे सरकार को पर्याप्त धन प्राप्त होता है और उसके द्वारा अनेक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय परियोजनाओं का संचालन किया जाता है।

प्रश्न 4.
स्पष्ट कीजिए कि स्त्री घर पर रहकर भीगृह-अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बना सकती है।
अथवा
गृह-अर्थव्यवस्था में गृहिणी के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
गृह-अर्थव्यवस्था में गृहिणी का योगदान
आधुनिक युग में विभिन्न परिस्थितियों तथा सुविधाओं के कारण नगरों में अनेक स्त्रियाँ घर के कार्यों के अतिरिक्त घर से बाहर भी अनेक प्रकार के कार्य करने लगी हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त आय प्राप्त होती है, परन्तु कुछ लोग इस बात के विरुद्ध भी हैं। उनका कहना है कि स्त्रियों को घर पर रहकर ही गृह-प्रबन्ध को सुचारु रूप से देखना चाहिए। इस वर्ग के लोगों का विचार है कि उत्तम गृह-प्रबन्ध करके भी स्त्रियाँ पारिवारिक आय को बढ़ाने में सहयोग दे सकती हैं। ऐसी स्थिति में स्त्रियाँ हर वस्तु को सँभालकर व्यय करती हैं तथा किसी वस्तु को नष्ट नहीं होने देतीं।

इसके अतिरिक्त, घर पर रहने वाली स्त्रियाँ घर के सभी कार्य स्वयं कर सकती हैं, जिससे अन्यथा लगाए जाने वाले नौकर या महरी का खर्च बच जाता है। घर से बाहर जाने वाली स्त्रियों को अपने छोटे बच्चों की देखभाल के लिए आया आदि की व्यवस्था करनी पड़ती है। यदि स्त्री घर पर ही है तो यह खर्च भी बच जाता है। यदि स्त्री स्वयं पढ़ी-लिखी है तो वह अपने छोटे बच्चों को स्वयं ही पढ़ा-लिखा सकती है। इससे बच्चों के ट्यूशन आदि पर होने वाला व्यय बच जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि स्त्री घर पर रहकर भी अच्छे ढंग से गृह-प्रबन्ध एवं व्यवस्था करके पारिवारिक आय को बढ़ाने में कुछ सीमा तक सहयोग दे सकती है। वैसे आज के युग में पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ नौकरी आदि करके ही पारिवारिक आय को बढ़ाने में सहयोग देना अधिक पसन्द करती हैं।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 21 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गृह-अर्थव्यवस्था से क्या आशय है?
उत्तरः
गृह-अर्थव्यवस्था वह व्यवस्था है, जिसके अन्तर्गत घर-परिवार के आय-व्यय को अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों के आधार पर सुनियोजित किया जाता है तथा इस नियोजन के द्वारा परिवार को अधिक-से-अधिक सन्तोष प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 2.
गृह-अर्थव्यवस्था के लिए सर्वाधिक आवश्यक कारक क्या है?
उत्तरः
गृह-अर्थव्यवस्था के लिए सर्वाधिक आवश्यक कारक धन अथवा आय है।

प्रश्न 3.
सुचारु गृह-अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक योगदान परिवार के किस सदस्य का होता है?
उत्तरः
सुचारु गृह-अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक योगदान गृहिणी का होता है।

प्रश्न 4.
उत्तम अथवा सफल गृह-अर्थव्यवस्था की दो प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तरः
उत्तम अथवा सफल गृह-अर्थव्यवस्था की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं –

  1. परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं की प्राथमिकता का निर्धारण तथा
  2. नियमित बचत का प्रावधान।

प्रश्न 5.
स्वरोजगार एवं रोजगार में क्या अन्तर है?
उत्तरः
जब कोई व्यक्ति मुक्त रूप से अपनी योग्यता एवं कुशलता के आधार पर धन उपार्जन के उपाय करता है तो उसे स्वरोजगार कहा जाता है, जैसे प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाला चिकित्सक, लेखक, नक्शानवीस, कलाकार, गायक आदि। इससे भिन्न जब कोई व्यक्ति किसी संस्थान, कार्यालय या औद्योगिक व्यावसायिक केन्द्र के लिए निर्धारित वेतन तथा कार्य सम्बन्धी निर्धारित शर्तों पर कार्य करता है तो उसे रोजगार कहते हैं।

प्रश्न 6.
आय-व्यय को सन्तुलित रखने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तरः
आय-व्यय को सन्तुलित रखने के लिए पारिवारिक बजट बनाना चाहिए तथा उसका पालन करना चाहिए।

प्रश्न 7.
पारिवारिक बजट बनाने का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
उत्तरः
पारिवारिक बजट बनाने का प्रमुख उद्देश्य गृह-अर्थव्यवस्था को सुचारु बनाना है।

प्रश्न 8.
परिवार में आय-व्यय का लेखा रखने का लाभ लिखिए।
उत्तरः
परिवार में आय-व्यय का लेखा रखने से परिवार का व्यय नियन्त्रित रहता है तथा गृह-अर्थव्यवस्था नहीं बिगड़ती।

प्रश्न 9.
पारिवारिक बजट की सर्वाधिक उपयोगिता किसके लिए है?
उत्तर
पारिवारिक बजट की सर्वाधिक उपयोगिता गृहिणियों के लिए है।

प्रश्न 10.
पारिवारिक बजट के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तरः
पारिवारिक बजट के मुख्य प्रकार हैं –

  • घाटे का बजट
  • सन्तुलित बजट तथा
  • बचत का बजट।

प्रश्न 11.
किस प्रकार के पारिवारिक बजट को सर्वोत्तम माना जाता है?
उत्तरः
बचत के पारिवारिक बजट को सर्वोत्तम माना जाता है।

प्रश्न 12.
पारिवारिक बजट बनाने में उत्पन्न होने वाली मुख्य बाधाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
पारिवारिक बजट बनाने में उत्पन्न होने वाली मुख्य बाधाएँ हैं –

  • ज्ञान की न्यूनता या अशिक्षा
  • बजट के प्रति उदासीनता तथा
  • विभिन्न सामाजिक प्रचलन एवं प्रथाएँ।

प्रश्न 13.
मितव्ययिता से क्या आशय है?
उत्तरः
मितव्ययिता का अर्थ है अपव्यय से बचना। यह कंजूसी नहीं है।

प्रश्न 14.
पारिवारिक बचत से क्या आशय है?
उत्तरः
वर्तमान पारिवारिक आय में से परिवार की वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यय करने के उपरान्त जो धनराशि बच जाती है, उसे ‘पारिवारिक बचत’ कहा जाता है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 21 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए

1. अच्छी अर्थव्यवस्था निर्भर करती है –
(क) कम खर्च अधिक आय पर
(ख) आय के अनुसार बजट बनाकर बचत करते हुए खर्च करने पर
(ग) आय से अधिक खर्च करने पर
(घ) अधिक आय पर।
उत्तरः
(ख) आय के अनुसार बजट बनाकर बचत करते हुए खर्च करने पर।

2. आय का वह भाग, जिसका उपयोग आवश्यकताओं की पूर्ति में होता है, कहलाता है –
(क) आय
(ख) व्यय
(ग) बचत
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तरः
(ख) व्यय।

3. आय का वह भाग, जो वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के पश्चात् शेष बचता है तथा जिसे –
भविष्य के लिए उत्पादक कार्यों में लगा दिया जाता है, कहलाता है –
(क) नि:संचय
(ख) बचत
(ग) आय
(घ) व्यय।
उत्तरः
(ख) बचत।

4. बचत का मुख्य प्रयोजन है –
(क) भविष्य के आवश्यक एवं आकस्मिक व्यय के लिए
(ख) मनोरंजन के लिए
(ग) विलासात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए
(घ) सुख प्राप्ति के लिए।
उत्तरः
(क) भविष्य के आवश्यक एवं आकस्मिक व्यय के लिए।

5. बजट का अर्थ है –
(क) खर्चों की सूची
(ख) आय-व्यय का ब्योरा
(ग) खरीदारी
(घ) बचत।
उत्तरः
(ख) आय-व्यय का ब्योरा।

6. बजट उल्लेख करता है –
(क) परिवार की कुल आय का
(ख) परिवार के कुल व्यय का
(ग) परिवार की कुल बचत का
(घ) उपर्युक्त सभी का।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी का।

7. बजट में निम्नलिखित में से किसके लिए व्यवस्था अवश्य करनी चाहिए –
(क) पुस्तकें
(ख) त्योहार
(ग) बचत
(घ) मनोरंजन।
उत्तरः
(ग) बचत।

8. पारिवारिक बजट अनावश्यक व्यय को –
(क) प्रोत्साहन देता है
(ख) नियन्त्रित करता है
(ग) सहायता प्रदान करता है
(घ) स्वीकृति प्रदान करता है।
उत्तरः
(ख) नियन्त्रित करता है।

9. आय-व्यय में सन्तुलन बनाए रखने के लिए निम्नलिखित बनाना जरूरी है –
(क) समय-सारणी
(ख) बजट
(ग) मीनू
(घ) चार्ट।
उत्तरः
(ख) बजट।

10. आय-व्यय में सन्तुलन हेतु निम्नलिखित में से कौन-सा साधन उपयुक्त होगा –
(क) वार्षिक बजट
(ख) मासिक बजट
(ग) साप्ताहिक बजट
(घ) दैनिक बजट।
उत्तरः
(ख) मासिक बजट।

UP Board Solutions for Class 11 Home Science

UP Board Solutions for Class 10 English Grammar Translation

UP Board Solutions for Class 10 English Grammar Translation are part of UP Board Solutions for Class 10 English. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 English Grammar Translation.

Board UP Board
Class Class 10
Subject English
Chapter English Grammar
Chapter Name Translation
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 10 English Grammar Translation

Exercise 1

  1. Mohan is not lazy.
  2. These horses are not black.
  3. The clerk is not in the office.
  4. Is he your friend ?
  5. He was not an honest businessman.
  6. They were not punctual of time.
  7. Were the mangoes not sour ?
  8. Where was your bicycle ?
  9. Was he not your brother ?
  10. Were they not poor ?
  11. Will they be happy ?
  12. We shall not be (UPBoardSolutions.com) present.
  13. Sohan was not at home.
  14. Will they be present ?
  15. Where were you yesterday ?
  16. Kavita and Jyoti were sisters.
  17. Delhi is the capital of India.
  18. Shivani is a good girl.
  19. He was not in the class.
  20. Were you with him ?

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Exercise 2

  1. Arvind has a ball.
  2. Nirmala has two sons.
  3. He has two pencils.
  4. We have a television.
  5. You have a white dog.
  6. A butterfly has two wings.
  7. Today you have fever.
  8. We had a beautiful house.
  9. The old man had three sons.
  10. He had a bicycle.
  11. We had much work.
  12. I had a handkerchief.
  13. You had an umbrella.
  14. Sushma had books.
  15. We have many clothes.
  16. I have headache.
  17. She has food in the evening.
  18. I take bath daily.
  19. I have toothache.
  20. He has a spotted cow.

Exercise 3

  1. I have no house, or I do not have a house.
  2. Have you a science book ? or Do you have a science book ?
  3. Has a cow four feet ? or Does a cow have four feet ?
  4. Why has he grey hair ? or Why does he have grey hair ?
  5. Have you a ticket ? or Do you have a ticket ?
  6. We had no leave yesterday, or We (UPBoardSolutions.com) did not have leave yesterday.
  7. Have you Rs 1,000 in your bag ? or Do you have Rs 1,000 in your bag ?
  8. I do not have good memory, or I have no good memory.
  9. Have you a good garden in your house ? or Do you have a good garden in your house ?
  10. He had no friend, or He did not have any friend.

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Exercise 4

  1. It is the month of January.
  2. It is clear sky. Or Sky is clear.
  3. It was dark night today.
  4. That time it was 12 o’clock.
  5. It was raining outside.
  6. Now it is difficult to catch the train.
  7. It is not easy to learn music.
  8. It is not blowing today.
  9. Is it cold today?
  10. Is it pleasant ?
  11. Did it not rain yesterday ?
  12. This is my book.
  13. Is it Tuesday today ?
  14. This is spring.
  15. It is noon now.

Exercise 5

  1. There are two windows in our room.
  2. There are fish in this tank.
  3. There was a lion in this forest.
  4. There were very beautiful flowers in the garden.
  5. There is no temple in our colony.
  6. There is no basket in the house.
  7. Are there twenty rupees in your pocket ?
  8. There are five fingers (UPBoardSolutions.com) in a hand.
  9. Were there books on this table ?
  10. There lived a singer in this village.
  11. There is a well in our village.
  12. There is no one in the room.
  13. There was water in the tap.
  14. Are there no clouds in the sky ?
  15. There was no dog on the road in the night.

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Exercise 6

  1. How many windows are there in this room ?
  2. How many days are there in a week ?
  3. How many umbrellas do you have ?
  4. How many pens does he have ?
  5. How many doctors are there in this hospital ?
  6. How much milk is there in this glass ?
  7. How many pockets are there in your pant ?
  8. How many schools are there in your village ?
  9. How much sugar do you need now ?
  10. How many cups do you need now ?
  11. How much food does he need now ?
  12. How much ink do you need now ?
  13. How much milk do you have ?
  14. How many rupees do you need ?
  15. How many students went on picnic ?

Exercise 7

  1. This is a boy. The boy is my friend.
  2. The sun rises in the east and sets in the west.
  3. The Himalayas is the highest (UPBoardSolutions.com) mountain.
  4. The cow is a useful animal.
  5. Santosh Singh is the richest person of this city.
  6. My father is a teacher.
  7. The sun give us light.
  8. The Ramayana is our religious book.
  9. Today I bought a shawl. The shawl is pure woolen.
  10. The poor are miserable.
  11. The rich are fortunate.
  12. Is there a clock on the wall ?
  13. I have a bat and a ball.
  14. The camel is the animal of desert.
  15. Hindus call the earth Mother.

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Exercise 8

  1. Bring my book.
  2. Never tell a lie.
  3. Please help my brother.
  4. Obey your parents.
  5. Don’t go in this room.
  6. Now stop writing.
  7. Sit on the grass in the lawn.
  8. Switch off the light (UPBoardSolutions.com) of the room.
  9. Have mercy on animals.
  10. Always eat fresh food.
  11. Write a letter to your friend.
  12. Don’t walk on the busy road.
  13. Respect your teachers.
  14. Never quarrel with anybody.
  15. Keep your clothes clean.

Exercise 9

  1. Let us play chess.
  2. Let him go there.
  3. Let the students enter the room.
  4. Let us see football match.
  5. Let me take rest now.
  6. Let the patient sleep.
  7. Let us sit in this garden.
  8. Let the monkey drink the water.
  9. Let us laugh loudly.
  10. Let him learn his lesson.
  11. Let the police follow (UPBoardSolutions.com) the thieves.
  12. Let us not play in sunlight.
  13. Let the child not weep.
  14. Let all love.
  15. Let us serve our country.

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Exercise 10

  1. They go to school daily.
  2. Sh. Nitin Jain teaches us mathematics.
  3. Some children run on the road.
  4. He always speaks the truth.
  5. Dogs bark at night.
  6. The sun rises in the east.
  7. They live in a hostel in Meerut.
  8. Ravi plays with him.
  9. You know him well.
  10. Two and three make five.

Exercise 11

  1. Ramesh never tells a lie.
  2. Good boys do not make a noise in the class.
  3. You do not do your work.
  4. He does not come to me daily.
  5. His sister does not wash (UPBoardSolutions.com) clothes.
  6. Your watch does not show correct time.
  7. I do not read novels.
  8. I do not tease him.
  9. He does not take food in the night.
  10. We do not abuse anybody.

Exercise 12

  1. Do you sleep in day ?
  2. When does he get up in the morning ?
  3. What do they do at this time ?
  4. Where do you live ?
  5. Do you know those people ?
  6. Do the boys make noise in the class ?
  7. Does this road not lead to market ?
  8. Do you read newspaper daily ?
  9. Do you obey your parents ?
  10. What does he want ?

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Exercise 13

  1. He came to me yesterday.
  2. The child broke the mirror.
  3. I borrowed him Rs 100.
  4. We used to play (or played) (UPBoardSolutions.com) hockey in this field.
  5. He used to smoke.
  6. He resigned from his post.
  7. Gandhiji was the supporter of Hindu-Muslim unity.
  8. My brother did read in this school.
  9. Shivani sang a song yesterday.
  10. Our team won the match. .

Exercise 14

  1. Raman did not take bath in the river.
  2. You did not give me your books.
  3. I did not go to office yesterday.
  4. Our team did not score four goals in hockey match.
  5. Subhash did not deposit the fee of this month.
  6. The doctor did not try his best to save the patient.
  7. He did not do his work at right time.
  8. I never quarreled with any one.
  9. They did not stay there.
  10. You did not help us.

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Exercise 15

  1. Did Rajan’s mother go to Agra ?
  2. Did Neelima not clean the room ?
  3. Why did he not complete his (UPBoardSolutions.com) homework ?
  4. When did Poonam go to Dehradun ?
  5. Where did Himanshu see me ?
  6. Why did Pushpa not go to her sister ?
  7. When did your brother buy television ?
  8. Who tore this book ?
  9. Who did not take tea ?
  10. Did Shalini stand first in the class ?

Exercise 16

  1. She will go to temple tomorrow.
  2. The servant will wash the clothes.
  3. They will go to market.
  4. Kavita will read her book.
  5. The Prime Minister will (UPBoardSolutions.com) make a speech tomorrow.
  6. Vaishali will teach her sister.
  7. Tomorrow the school will remain closed.
  8. You will surely get punishment.
  9. We shall succeed.
  10. You will complete your work.

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Exercise 17

  1. Nita will not sing a song.
  2. You will not swim in the river.
  3. We shall not hear the story.
  4. She will not cook food.
  5. The gardener will not water the plants.
  6. It will not rain tomorrow.
  7. He will not vacate the house.
  8. The advocate will not attend the court today.
  9. I shall not pardon him.
  10. We shall not go there.

Exercise 18

  1. Will Mohan write an essay ?
  2. Will you obey me ?
  3. What will they do tomorrow ?
  4. Who will not call him ?
  5. Where will you play ? ‘
  6. When will the gardener water (UPBoardSolutions.com) the plants ?
  7. Will you buy books ?
  8. Will the patient go to the doctor ?
  9. Will the child not drink milk ?
  10. Will Rakesh teach his brother ?

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Exercise 19

  1. I am feeling hungry.
  2. We are playing in the field.
  3. The peon is ringing the bell.
  4. The farmer is ploughing his field.
  5. The peacock is dancing in the forest.
  6. He is learning his lesson.
  7. He is teaching his younger brother.
  8. Anil is helping the old man.
  9. The doctor is examining the patients.
  10. The tailor is sewing clothes.

Exercise 20

  1. The boys are not swimming in the river.
  2. You are not reading the book.
  3. They are not playing on flute.
  4. He is not suffering from fever.
  5. Suman is not singing (UPBoardSolutions.com) song.
  6. Lata is not cooking food.
  7. Pankaj is not laughing.
  8. We are not playing hockey.
  9. They are not bathing.
  10. The cow is not giving milk.

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Exercise 21

  1. When are they going to Mumbai ?
  2. Are you eating an apple ?
  3. Why are you laughing ?
  4. Why are the children making a noise ?
  5. Is Deepak going to his village ?
  6. Is the sun rising ?
  7. Is the lion roaring in the forest ?
  8. When are you coming to Chennai ?
  9. Why is he going to market ?
  10. Why is his brother not searching for a job ?

Exercise 22

  1. The students were studying in the class.
  2. He was going to village on foot.
  3. My brother was reading newspaper.
  4. Your sister was cooking food.
  5. The carpenter was doing his work.
  6. The children were playing.
  7. Juhi was laughing.
  8. They were swimming in (UPBoardSolutions.com) the river.
  9. The gardener was plucking flowers.
  10. The poets were writing poems.

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Exercise 23

  1. Sudha was not drinking tea.
  2. Ashu and Tanu were not reading.
  3. You were not buying apples.
  4. The girls were not dancing.
  5. I was not doing my work.
  6. The children were not playing.
  7. They were not washing their clothes.
  8. The tailor were not sewing our clothes.
  9. The duck was not swimming in the water.
  10. The grandmother was not telling me story.

Exercise 24

  1. Were the teachers teaching the children ?
  2. Was the gardener plucking flowers ?
  3. Why was the farmer not (UPBoardSolutions.com) watering his fields ?
  4. Was he beating Arvind ?
  5. Whom were you teaching yesterday ?
  6. Why was he calling me yesterday ?
  7. Were you coming to market in the morning ?
  8. Why was she writing letter to her father ?
  9. When was he bathing in the Ganga ?
  10. Who was running on the road ?

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Exercise 25

  1. They will be going to Kolkata tomorrow.
  2. The gardener will be watering the plants.
  3. The teachers will be teaching in the class.
  4. The children will be going to see the fair.
  5. Ankur will be playing here this time tomorrow.
  6. The carpenter will be making table.
  7. The scientists will be working (UPBoardSolutions.com) in the laboratory.
  8. The doctors will be giving medicine to the patient.
  9. Nisha will be cooking food.
  10. The servant will be washing clothes.

Exercise 26

  1. Kapil will not be eating apple.
  2. His sister will not be cooking food.
  3. The milkman will not be milking the cow.
  4. The girls will not be going to school.
  5. We shall not be playing cards tomorrow.
  6. The lion will not be roaring in the forest.
  7. The dog will not be drinking water.
  8. The peon will not be ringing the bell.
  9. Umesh wall not be buying vegetables from the market.
  10. The washer man will not be washing clothes this time.

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Exercise 27

  1. Will the children be making noise ?
  2. What will Gita be writing this time ?
  3. Where will Rajendra be reading this time ?
  4. With whom will they be going to bank ?
  5. Will you be learning your lesson this time ?
  6. Will she be cooking food ?
  7. Will the teachers be teaching children this time ?
  8. My brother will be coming from office.
  9. The players will not be playing hockey this time.
  10. They will be reading with him.

Exercise 28

  1. He has sold his house.
  2. Ravi has bought a cow.
  3. Shivani has passed in the examination.
  4. He has crossed the river.
  5. The train has started from the station.
  6. You have helped him.
  7. Rama’s father has gone (UPBoardSolutions.com) to office.
  8. He has given up his studies.
  9. The convict has escaped from the jail.
  10. They have listened to me attentively.

Exercise 29

  1. Mahima has not drink milk.
  2. The mother has not bathed her child.
  3. They have not played cricket.
  4. You have not fulfilled your promise.
  5. He has not seen the Red fort yet.
  6. The dacoits have not looted the villagers.
  7. The teacher has not beaten the boy.
  8. The master has not given (UPBoardSolutions.com) me salary.
  9. The carpenter has not completed his work.
  10. I have not learnt my lesson yet.

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Exercise 30

  1. Has your father gone to Allahabad ?
  2. Has he deceived you ?
  3. Has Sudhir always helped you ?
  4. Has Sudha written a letter ?
  5. Have the boys caught the thief ?
  6. Why have you put out the lamp ?
  7. Why has Himanshu not returned from school yet ?
  8. Have you lost your purse ?
  9. Has the train not started ?
  10. Why have you not learnt your lesson ?

Exercise 31

  1. He had reached home before it started raining.
  2. I had written the letter before my younger brother came.
  3. He went to see the cinema after he had completed his work.
  4. Anuj drank milk after Sudhir had gone.
  5. Usha had taken food before it became evening.
  6. I had solved all sums before the bell rang.
  7. The thief had run away before (UPBoardSolutions.com) the police came.
  8. He had gone to school before you came.
  9. He had cleaned his teeth before he took bath.
  10. He slept after he had eaten food.

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Exercise 32

  1. Mamta had not slept before I came.
  2. The travellers had not completed their journey before the sun set.
  3. Mohan did not go to school after it had rained.
  4. The players had reached the playground before the sun rose.
  5. Sandhya did not sing a song after Arvind had gone.
  6. The lion had not roared before the hunter reached the forest.
  7. Nita had not slept before she learnt her lesson.
  8. The peon had not rung the bell before you reached the school.
  9. He had not read the book before he slept.
  10. She did not sit after she had sung the song.

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Exercise 33

  1. Had you bought the ticket before the train arrived ?
  2. Where had you gone before I reached the school ?
  3. Why did you not do this work after we had gone?
  4. Had the thieves run away before the police reached ?
  5. Why did he weep after I had gone ?
  6. Did the patient die after the doctor had gone ?
  7. Had the students not reached school before it started raining ?
  8. Had you never seen Agra before ?
  9. Had the birds not flown before the sun rose ?
  10. Where had the students gone before the teacher came ?

Exercise 34

  1. She will have completed her homework soon.
  2. The students will have completed the match by 5 o’clock.
  3. The uncle will have returned from America by 10th May.
  4. It will have stopped raining before you go to school.
  5. He will have read the complete novel before he sleeps.
  6. The child will have drunk milk before he sleeps.
  7. The thieves will have run away before (UPBoardSolutions.com) the police comes.
  8. The gardener will have plucked the flowers before the sun rises.
  9. I shall have written the essay before you come.
  10. He will have taken exercise before he takes bath.

Exercise 35

  1. He will not have come before 2 o’clock.
  2. I shall not have reached home before the sun sets.
  3. She will not have eaten food before the moon rises.
  4. We shall not have decorated the house before Diwali.
  5. He will not have brought shoes before marriage.
  6. The servant will not have cleaned the room before the guests come.
  7. I shall not have changed clothes before the father comes.
  8. I shall not have solved the paper before the time is over.
  9. We shall not have eaten food before the guests go.
  10. You will not have completed this work before 2 o’clock.

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Exercise 36

  1. Will you have eaten the mango before you eat food ?
  2. Will you have reached the station before the train starts ?
  3. Will the Fowler have caught the birds before it is evening ?
  4. Will all the prisoners have been released before 15th August ?
  5. Will the teacher have gone from the class before the bell rings ?
  6. Will you have awaken before the dogs bark ?
  7. Will the children have reached home before it is dark ?
  8. Will the mother have cooked food by 8 o’clock ?
  9. Will she have danced before you reach ?
  10. Will he have drunk coffee before I reach ?

Exercise 37

  1. The children have been playing since morning.
  2. We have been playing cricket for one week.
  3. You have been going to school for three days.
  4. His younger sister has been making noise for one hour.
  5. Kusum has been writing letter for half an hour.
  6. Usha has been cooking food since 6 o’clock.
  7. Mahima has been studying for (UPBoardSolutions.com) two hours.
  8. The teachers have been teaching english since evening.
  9. Sudhir has been working since 8 a.m.
  10. The washer man has been washing clothes since morning.

Exercise 38

  1. Sandhya has not been singing song for one hour.
  2. I have not been playing for two hours.
  3. Rekha has not been sleeping since night.
  4. Anil has not been solving sums since morning.
  5. Ajay has not been doing work since yesterday.
  6. Prabhat has not been living in this city for two months.
  7. He has not been coming here for one month.
  8. I have not been going to his house since Tuesday.
  9. The child has not been weeping for several hours.
  10. We have not been reading newspaper for several days.

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Exercise 39

  1. Has his sister been studying for three hours ?
  2. What has he been playing since morning ?
  3. Have the teachers been teaching students history for one hour ?
  4. Has the washer man been washing clothes since 10 o’clock ?
  5. Has the woodcutter not been cutting wood since Sunday ?
  6. Why has Neeta not been learning her lesson since morning ?
  7. Has the child been weeping for two hours ?
  8. Has the watchman been keeping watch since night ?
  9. Has Ashu not been playing ball for one hour ?
  10. Why have they been quarreling for two hours ?

Exercise 40

  1. You had been taking rest since morning.
  2. The patient had been taking medicine since yesterday.
  3. The teachers had been teaching English for two months.
  4. The washer man had been washing clothes for several hours.
  5. Vikrant had been studying since morning.
  6. They had been helping us for several years.
  7. The farmer had been watering the field for two hours.
  8. It had been raining for four days.
  9. The watchman had been sleeping since 2 o’clock.
  10. The children had been playing cricket for one hour.

Exercise 41

  1. They had not been living in this house for four years.
  2. We had not been taking rest since morning.
  3. Police had not been searching the thieves for two days.
  4. The teachers had not been teaching the students for one week.
  5. The children had not been playing for two hours.
  6. Kapil Dev had not been bowling for one hour.
  7. He had not been working for six months.
  8. The patient had not been taking treatment for ten days.
  9. The mother had not been cooking food for one hour.
  10. The stars had not been shining since mid-night.

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Exercise 42

  1. Had you been writing an essay since 2 o’clock ?
  2. Had the minister been making a speech for one hour ?
  3. Had the child been sleeping since 5 p.m ?
  4. For how many years had they been living there ?
  5. Had it been snowing in Mussorie (UPBoardSolutions.com) since night ?
  6. Had she been ill since Wednesday ?
  7. Had Sohan not been playing for two hours ?
  8. Had the doctor not been giving medicine to the patients since morning ?
  9. Why had he not been going to school for two days ?
  10. Had he been ill for one week ?

Exercise 43

  1. Priya will have been singing song for two hours.
  2. Your brother will have been living in this city for a long time.
  3. The farmer will have been ploughing the field since morning.
  4. The teacher will have been teaching him since 5 p.m.
  5. He will have been waiting for you since 2 o’clock.
  6. The laborers will have been going on strike since Wednesday.
  7. The children will be playing in the park since evening.
  8. The gardener will have been watering the plants since 5 o’clock in the morning.
  9. Manjul will have been reciting the poem for two hours.
  10. She will have been writing a letter for half an hour.

Exercise 44

  1. The peon will not have been ringing the bell since 2 o’clock.
  2. They will not have been playing for three hours.
  3. Pradeep will not have been playing on flute for two hours.
  4. Shreenath will not have been bowling for half an hour.
  5. The old man will not have been lying under this tree since evening.
  6. The hunter will not have been chasing the deer since morning.
  7. This watchman will not have been watching the whole night.
  8. The cow will not have been grazing since morning.
  9. Ashu will not have been watching TV for two hours.
  10. His brother will not have been taking examination for two years.

Exercise 45

  1. Will the girls have been singing song for one hour ?
  2. Will Sharmila have been weeping since morning ?
  3. Will your father have been working since morning ?
  4. Will you have been talking with him for two hours ?
  5. Why will the washerman not have been washing clothes for one month ?
  6. Where will Manoj have been going for several days ?
  7. What will the teacher have been teaching since yesterday ?
  8. Why will Pankaj not have been eating food for two weeks ?
  9. Will Anju not have been dancing for one hour ?
  10. Will you have been learning your lesson since morning ?

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Exercise 46

  1. Mr. Lai comes to dinner today.
  2. Rita goes to Delhi on Wednesday.
  3. Harit takes C.P.M.T. (UPBoardSolutions.com) examination this year.
  4. If you call me, I will come.
  5. I go to Lucknow tonight.
  6. The meeting starts at 8 p.m.
  7. The train will start when the guard whistles.
  8. Mr. Das retires in June.
  9. If you do not take exercise, you will not be healthy.
  10. The aeroplane takes off at 6 a.m.
  11. Ravi gets prize for his essay.
  12. American President comes to India this year on the Republic Day.

Exercise 47

  1. I smell something burning.
  2. Do you see anyone behind the wall ?
  3. These oranges do not taste sweet.
  4. I hear someone coming.
  5. This cloth feels rough.
  6. You look ill to me.
  7. This flower smells sweet.
  8. The paper looks thin.
  9. I see a snake in the garden.
  10. Do you hear bird singing ?
  11. I feel much cold today.
  12. The milk tastes more sweet to me.
  13. Do you smell this pickle good ?
  14. Do I not look healthy to you ?
  15. These grapes taste sour.

Exercise 48

  1. This book looks to be old.
  2. Meena does not appear to be a clever girl.
  3. This student seems to be very weak in mathematics.
  4. Ramu seems to be a wise student.
  5. These vegetables look to be fresh.
  6. The teacher seems to be angry today.
  7. You seem to be a naughty girl.
  8. Why does he look to be sad ?
  9. Do I seem to be sick ?
  10. Do the horses seem to be hungry ?

Exercise 49

  1. He is helped by you.
  2. This field is not ploughed.
  3. Am I given tea?
  4. When are you taught ?
  5. Sweets are given us by the mother.
  6. The boys are not fined.
  7. Father is served by us.
  8. The birds are not killed (UPBoardSolutions.com) by the hunter.
  9. Are the thieves arrested by the police ?
  10. Whom are the prizes given ?

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Exercise 50

  1. A letter was not written by him.
  2. Were you sent there ?
  3. The dogs were not killed.
  4. Where were the children sent yesterday ?
  5. The horse was not run fast.
  6. The food was cooked by the mother.
  7. When was the gun fired by the hunter ?
  8. Was this novel read by you ?
  9. Match was not won by our team.
  10. All the books were lost.

Exercise 51

  1. A book will be read by me.
  2. Will a song be sung by Sudha.
  3. Little children will not be beaten.
  4. When will these mangoes be plucked ?
  5. I shall be helped by him.
  6. Why will they not be given their salary ?
  7. Will the criminals be arrested ?
  8. Now the kites will not be flown.
  9. He will not be heard.
  10. When will you be called ?

Exercise 52

  1. The room is being cleaned.
  2. The clothes are being washed by the washerman.
  3. The lesson is not being learnt by me.
  4. Are the flowers being plucked ?
  5. When is the medicine being (UPBoardSolutions.com) given to the patient ?
  6. Where is he being sent ?
  7. I am being loved by the mother.
  8. He is not being sent to Barely.
  9. How is this work being done ?
  10. Are the animals being killed ?

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Exercise 53

  1. A story was being told to the children.
  2. Were the goods being bought by you ?
  3. Where was the song being sung ?
  4. The guests were being welcomed.
  5. Why were you being scolded yesterday ?
  6. The doctor was not being called.
  7. He was being sent to office.
  8. When was the lecture being given ?
  9. The breakfast was being taken by father.
  10. We were being helped.

Exercise 54

  1. The letters have been sent.
  2. These lessons have not been taught.
  3. Has the mango been eaten ?
  4. When have the plants been watered ?
  5. These birds have not been killed.
  6. Why has the door not been shut ?
  7. When has the fee been deposited ?
  8. The prizes have been distributed to (UPBoardSolutions.com) the students by the principal.
  9. The clothes have been made dirty by the boys.
  10. Have the shoes been polished ?

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Exercise 55

  1. The paper had been solved by all the students.
  2. Why had the room not been cleaned till evening ?
  3. The fee had been returned to the students.
  4. The plants had not been watered.
  5. Had the food been eaten by him ?
  6. The bell had been rung before the principle arrived.
  7. All the doors of the house had been opened.
  8. Why had all lights been switched off ?
  9. Had my message been sent you ?
  10. The prizes had not been distributed to the boys.

Exercise 56

  1. This work will have been done by Sita.
  2. This song will not have been sung by Meera.
  3. Will you have been beaten by the teacher ?
  4. When will this work have been completed (UPBoardSolutions.com) by them ?
  5. He will have been helped by you.
  6. The birds will not have been killed.
  7. Will he have been called here ?
  8. When will the sweater have been knitted by the mother ?
  9. Milk will have been drunk by the patients.
  10. Grammar will not have been taught to us by the end of this month.

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Exercise 57

  1. If my father had money, he would buy this house.
  2. If he had met me, I would have helped him.
  3. I wish I could become an engineer.
  4. If you obey your elders, they will love you.
  5. If I were powerful, I should kill him.
  6. If it rains, we shall not go to Delhi.
  7. If he had given me money, I would have given him milk.
  8. If you pass, I shall give you sweets to eat.
  9. If you have read the magazine, please return it.
  10. If you go, I shall accompany you.

Exercise 58

  1. The elder brother told me that 15th August is the Independence Day.
  2. The teacher said that the sun rises in the east.
  3. Amma says that Ashu is a very intelligent boy.
  4. He knows that the incident was true.
  5. I thought that he had read the story.
  6. That man gave me more (UPBoardSolutions.com) money than he gave to his relatives.
  7. He likes you more than he likes me.
  8. He ordered me to work as if he were my officer.
  9. They said that walking in the morning is useful for health.
  10. His brother said that he would send him to America to study.

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Exercise 59

  1. It is good exercise to swim.
  2. It is sin to tell a lie.
  3. He is about to sleep.
  4. To proceed was dangerous.
  5. To retreat is difficult.
  6. It is harmful for health to smoke.
  7. To walk in open air is useful.
  8. God has given us (UPBoardSolutions.com) eyes to see.
  9. He went to market to buy goods.
  10. To find faults with others is easy.
  11. He is to go there.
  12. I was to play cricket.
  13. They will have to come here.
  14. I like to read novels.
  15. He does not like to drink milk.

Exercise 60

  1. Ramesh is fond of playing tennis.
  2. Stop writing.
  3. Sleeping in the day is harmful for health.
  4. Stealing is sin.
  5. Seeing is believing.
  6. His habit is helping others.
  7. He hates gambling.
  8. He was rewarded for speaking truth.
  9. Drinking is bad habit.
  10. He was fined for absenting himself.
  11. Your coming late is not good.
  12. Now stop talking.
  13. Sleeping in the class is bad.
  14. Meeting good people is good.
  15. We started running slowly.

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Exercise 61

  1. Having learnt his lesson he slept.
  2. We heard him singing song.
  3. Deceived by his friends he became hopeless.
  4. Seeing the police, the thieves ran away.
  5. Being happy with his hard work, the master rewarded him.
  6. Having taken food he went for walking.
  7. We met a boy carrying a basket of fruits.
  8. This is my walking stick.
  9. Seeing the dog he ran away.
  10. Being tired he laid down.
  11. Seeing the rising sun is good.
  12. Weeping the child slept.
  13. Calling the father I bade (UPBoardSolutions.com) him good morning.
  14. He came into the room laughing.
  15. Having taken food he went to office.

Exercise 62

  1. Your friend, the neighbor is coming.
  2. Ramesh goes to school.
  3. He with his friends has gone for walking.
  4. Every one of these children has failed.
  5. Maths and English are taught here.
  6. Neither you came here nor your brother.
  7. In the accident every man, woman and child died.
  8. Does he play ball ?
  9. Neither you took food nor he.
  10. Either Ashu or Tanu has broken the chair.
  11. The boys as well as teachers went on picnic.
  12. Is every player happy on victory?
  13. She with her two children drowned in the river.
  14. Every soldier of India is ready for sacrifice.
  15. Neither he nor his brothers are clever.

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Exercise 63

  1. We know that your father is a gentleman.
  2. Do you know where Arvind works ?
  3. This is the thing that he had told the previous day.
  4. It is true that he is a doctor.
  5. I can’t say how long I shall work.
  6. I don’t know whether she passed (UPBoardSolutions.com) this year or failed.
  7. Whatever you said is untrue.
  8. It is true that you regard elders.
  9. I can’t say whether the teachers will come to school today or not.
  10. We hope that this year the crop will be good.

Exercise 64

  1. He got punishment in the school today because he had not completed his work.
  2. If he wants he may come.
  3. You are taller than Vijay.
  4. Although he is rich yet he is miser.
  5. As soon as we reached home, it began to rain.
  6. If you make a promise, fulfill it.
  7. The examination had started when he reached school.
  8. He is now richer than me.
  9. If you work hard, you will surely be selected.
  10. Walk carefully lest you should fall down.

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Exercise 65

  1. The boy whom you met in the school is our monitor.
  2. The team which had come from Delhi lost the match.
  3. This is the place where bus accident happened.
  4. This is the book which he had lost.
  5. The incident which you had told me was very interesting.
  6. God helps those who help themselves.
  7. Try to avoid the boys who abuse others.
  8. This is the handkerchief which I bought (UPBoardSolutions.com) from the market yesterday.
  9. Avoid the people who tell a lie.
  10. The students who work hard always succeed in the examination.

Exercise 66

  1. She went home and began to weep.
  2. He went to market and bought a TV.
  3. It is 5 o’clock but he has not come from school.
  4. He is not only a teacher but also a poet.
  5. You are intelligent yet you do not work.
  6. He is right but you are wrong.
  7. He is rich as well as kind.
  8. Neither he came here nor he sent his son.
  9. He completed his work and went home.
  10. He fell ill because he was not careful of his health.
  11. I went to Delhi and saw the Red fort there.
  12. Radha went on the stage and sang a song.
  13. I bought the ticket but did not see the circus.
  14. He is either poor or miser.
  15. You did not work hard so you did not succeed.

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Exercise 67

  1. The sun was about to set when all children came home.
  2. The teacher was about to go when I asked pardon.
  3. The child was about to drown when some people saw him.
  4. The patient was about to die when the doctor came.
  5. I was about to lock the door (UPBoardSolutions.com) when some one rang the bell.
  6. It was about to rain when the principal announced holiday.
  7. The crop was about to ripe when hail stones began to fall.
  8. The dust storm was about to come when we closed all doors.
  9. She fell ill when her examination was about to start.
  10. I reached the station when the train was about to start.

Exercise 68

  1. Instead of Mahima, Himanshu was sent to market.
  2. We drink milk instead of tea.
  3. Garima began to play instead of reading.
  4. I learnt essay also besides grammar.
  5. Shashikant sold house also besides the garden.
  6. We went to Mussorie also besides Dehradun.
  7. Shivani knows dancing also besides singing.
  8. The mother gave me tea instead of milk.
  9. The mother gave me some biscuits also besides milk.
  10. Can you read Urdu also besides English.

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Exercise 69

  1. The teachers should be just to students.
  2. I opened the lock with his key.
  3. We should not be cruel with the children.
  4. He lives away from his children.
  5. I pasted the book with the gum.
  6. The officer is pleased with his (UPBoardSolutions.com) employees.
  7. He made pudding with milk.
  8. We should not be rude to our teachers.
  9. He fell from the bicycle.
  10. Prashant goes on foot from home to station.

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