UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 7
Chapter Name Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण)
Number of Questions Solved 28
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म अल्पकाल व दीर्घकाल में उत्पादन व कीमत का निर्धारण | किस प्रकार करती है ? सचित्र व्याख्या कीजिए। [2008]
या
अपूर्ण बाजार में किसी फर्म की सामान्य लाभ, असामान्य लाभ तथा हानि की स्थिति में सन्तुलन को दर्शाने वाले चित्र बनाइए तथा व्याख्या कीजिए। [2006]
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत प्रत्येक उत्पादक अथवा विक्रेता का अपना अलग व स्वतन्त्र क्षेत्र होता है। अपने क्षेत्र में वह कुछ सीमा तक मनचाही कीमत प्राप्त कर सकता है। इसमें बाजार कई भागों में बँटा रहता है जिन पर विभिन्न विक्रेताओं का प्रभुत्व होता हैं। प्रत्येक विक्रेता का उद्देश्य एकाधिकारी की भाँति अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है।

अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत निर्धारण में माँग और पूर्ति की शक्तियों का समुचित ध्यान रखा जाता है। इनमें कीमत-निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर सीमान्त लागत तथा सीमान्त आय दोनों ही बराबर होती हैं।

अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादन में तब तक परिवर्तन करती रहेगी जब तक MC = MR नहीं हो जाता। यदि सीमान्त आय सीमान्त लागत से अधिक है तो फर्म अपने उत्पादन को बढ़ाकर लाभ को अधिकतम करेगी और यदि सीमान्त आय सीमान्त लागत से कम है तो फर्म अपने उत्पादन को कम करके लाभ को अधिकतम करेगी। अतः फर्म का सन्तुलन बिन्दु वहाँ निश्चित होगा जहाँ सीमान्त आय और सीमान्त लागत बराबर होती हैं। इस बिन्दु पर फर्म का लाभ अधिकतम होता है और उसमें विस्तार व संकुचन की प्रवृत्ति नहीं होती है।

अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म की औसत आय व सीमान्त आय रेखाएँ एक माँग के रूप में बाएँ से दाएँ नीचे की ओर गिरती हुई होती हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि फर्म द्वारा एक रूप वस्तु का उत्पादन नहीं किया जाता। प्रत्येक फर्म यद्यपि एकाधिकारी नहीं होती, परन्तु एकाधिकारी प्रवृत्ति रखती है। प्रत्येक फर्म वस्तु की कीमत अपने ढंग से निर्धारित करती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म उद्योग से कीमत ग्रहण नहीं करती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आय औसत आय से कम होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि एक अतिरिक्त इकाई को बेचने के लिए फर्म को वस्तु की कीमत में थोड़ी-सी कमी करनी पड़ती है। इसलिए फर्म की औसत आय सीमान्त आय से अधिक होती है।

1. अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत अल्पकाल में मूल्य व उत्पादन-निर्धारण – अल्पकाल में यह सम्भव हो सकता है कि फर्म अपने उत्पादन का समायोजन माँग के अनुसार न कर सके। इसलिए अल्पकाल में फर्म की कीमत-निर्धारण की स्थिति माँग के अनुरूप होती है। यदि वस्तु की माँग अधिक होती है और वस्तु का निकट-स्थानापन्न नहीं होता तो फर्म वस्तु की कीमत ऊँची निर्धारित करने की स्थिति में होगी। इसके विपरीत, यदि वस्तु की माँग कम होती है तो मुल्य-निर्धारण नीची कीमत पर होगा। यदि माँग अत्यधिक कमजोर है तो कीमत और भी अधिक नीची निर्धारित होगी। इस प्रकार फर्म तीन स्थितियों में पायी जा सकती है
(अ) असामान्य लाभ या लाभ अर्जित करने की स्थिति,
(ब) शून्य लाभ या सामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति तथा
(स) हानि की स्थिति।

उपर्युक्त तीनों स्थितियों की हम निम्नलिखित व्याख्या कर सकते हैं
(अ) असामान्य लाभ या लाभ अर्जित करने की स्थिति – यदि किसी फर्म द्वारा उत्पादित वस्तु की माँग बाजारों में अधिक है और उसकी स्थानापन्न वस्तुएँ नहीं हैं तो फर्म वस्तु की ऊंची कीमत निर्धारित करेगी। अल्पकाल में अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म असामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति में होती है। ऐसी स्थिति में फर्म की औसत आय उसकी औसत लागत से अधिक होती है। कोई भी फर्म ऐसे बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में होती हैं जहाँ पर सीमान्त लागते तथा सीमान्त आय बराबर होती हैं।

रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, OX-अक्ष पर उत्पादन MR की मात्रा तथा OY-अक्ष पर कीमत और लागत दिखायी गयी है। फर्म E बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में है, क्योंकि इस बिन्दु पर फर्म की उत्पादन की मात्रा फर्म द्वारा असामान्य लाभ या सीमान्त आय और सीमान्त लागत (MR = MC) बराबर हैं। सन्तुलन लाभ की स्थिति उत्पादन OS तथा कीमत PO है।।
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(ब) शून्य या सामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति – फर्म में सामान्य लाभ की स्थिति उस समय होती है जब वस्तु की माँग कम होती है तथा फर्म ऊंची कीमत निश्चित करने की स्थिति में नहीं होती। ऐसी स्थिति में फर्म की औसत आय (AR) उसकी औसत लागत (AC) के बराबर होती है, जिसके कारण फर्म न तो लाभ प्राप्त करती है और न हानि ही अर्थात् फर्म सन्तुलन की स्थिति औसत आय में होती है।

रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, OX-अक्ष पर उत्पादन की मात्रा तथा OY-अक्ष पर कीमत व लागत दिखायी गयी है। फर्म E बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में है, क्योंकि यहाँ पर उसकी सामान्य आय और सीमान्त लागत (MR = MC) बराबर हैं। फर्म को औसत आय : और औसत लागत भी बराबर (AR = AC) हैं। इसलिए फर्म केवल सामान्य लाभ अथवा शून्य लाभ प्राप्त कर रही है।
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(स) हानि की स्थिति – जब वस्तु की माँग इतनी अधिक कम हो लाभ की स्थिति कि फर्म को अपनी वस्तु को विवश होकर कम कीमत पर बेचना पड़े हैं। तब फर्म हानि की स्थिति में होती है। इस स्थिति में फर्म की औसत आय औसत लागत से कम होती है। इसलिए फर्म हानि उठाती है।

रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, Ox-अक्ष पर उत्पादन तथा OY-अक्ष पर कीमत और लागत दिखायी गयी हैं। फर्म E। बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में है, क्योंकि यहाँ पर उसकी सीमान्त हैं आय और सीमान्त लागत (MR = MC) बराबर हैं। क्योंकि फर्म की । औसत लागत उसकी औसत आय से अधिक है, इसलिए फर्म को हानि हो रही है।
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2. अपूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में कीमत व उत्पादन-निर्धारण – दीर्घकाल में फर्म स्थिर सन्तुलन की स्थिति में होती है। अतः दीर्घकाल में फर्म केवल सामान्य लाभ अर्जित करती है। यदि दीर्घकाल में कुछ फर्मे अथवा उद्योग असामान्य लाभ अर्जित करते हैं तो ऊँचे लाभ से आकर्षित होकर अन्य फर्ने उद्योग में प्रवेश करने लगती हैं, जिसके कारण उस वस्तु के निकट-स्थानापन्न का उत्पादन प्रारम्भ हो जाता है। लाभ गिरकर सामान्य स्तर पर आ जाता है। प्रतियोगिता के कारण असामान्य लाभ समाप्त हो जाएगा और प्रत्येक फर्म केवल सामान्य लाभ ही अर्जित करेगी।

रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, Ox-अक्ष पर उत्पादन ४ व बिक्री की मात्रा तथा OY-अक्ष पर कीमत दिखायी गयी है। इस चित्र में AR तथा MR क्रमशः औसत आय तथा सीमान्त आय वक्र हैं तथा AC और MC क्रमशः औसत लागत व सीमान्त लागत वक्र हैं। E फर्म का सन्तुलन बिन्दु है जिस पर सीमान्त आय और सीमान्त लागत है (MR = MC) बराबर हैं। OS सन्तुलन उत्पादन तथा ON कीमत है। फर्म – की औसत आय व सीमान्त लागत भी बराबर हैं। अत: फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त हो रहा है।
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प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता को स्पष्ट कीजिए। इस प्रतियोगिता में अल्पकाल में मूल्य-निर्धारण कैसे होता है? [2007]
या
अपूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में फर्म के सन्तुलन की दशाओं का सचित्र वर्णन कीजिए। [2007]
या
अपूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में एक फर्म मूल्य तथा उत्पादन का निर्धारण किस प्रकार करती है? [2007 ]
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता के अर्थ के लिए इसी अध्याय के लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 में अपूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ तथा अपूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में मूल्य-निर्धारण के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न सं० 1 में ‘अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत अल्पकाल में मूल्य व उत्पादन-निर्धारण’ शीर्षक देखिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
अपूर्ण प्रतियोगिता से आप क्या समझते हैं ? अपूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताओं की विवेचना कीजिए। [ 2011, 16]
या
अपूर्ण प्रतियोगी बाजार को परिभाषित कीजिए। [2012]
या
अपूर्ण प्रतियोगिता की मुख्य विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। [2014]
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ
वास्तविक जीवन में न तो पूर्ण प्रतियोगिता की दशाएँ पायी जाती हैं और न एकाधिकार की। प्रायः इन दोनों के बीच की अवस्थाएँ मिलती हैं, जिसे अपूर्ण प्रतियोगिता कहते हैं। अपूर्ण प्रतियोगिता से अभिप्राय पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार के बीच की किसी अवस्था से होता है। अपूर्ण प्रतियोगिता का स्वरूप अंशतः प्रतियोगिता तथा अंशतः एकाधिकारी होता है।

फेयर चाइल्ड के शब्दों में, “यदि बाजार उचित प्रकार से संगठित नहीं होता, यदि क्रेता और विक्रेता एक-दूसरे के सम्पर्क में आने में कठिनाई का अनुभव करते हैं और वे दूसरे के द्वारा क्रय की गयी वस्तुओं और उनके द्वारा दिये गये मूल्यों की तुलना करने में असमर्थ रहते हैं तो ऐसी स्थिति को अपूर्ण प्रतियोगिता कहते हैं।

जे० के० मेहता के शब्दों में, “यह बात भली-भाँति स्पष्ट हो गयी है कि विनिमय की प्रत्येक स्थिति वह स्थिति है जिसको आंशिक एकाधिकार की स्थिति कहते हैं और यदि आंशिक एकाधिकार को दूसरी ओर से देखा जाए तो यह अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति है। प्रत्येक स्थिति में प्रतियोगिता तत्त्व तथा एकाधिकार तत्त्व दोनों का मिश्रण है।”

अपूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएँ

  1.  अपूर्ण प्रतियोगिता में क्रेताओं, विक्रेताओं एवं फर्मों की संख्या पूर्ण प्रतियोगिता की अपेक्षा कम होती है।
  2.  अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत प्रतियोगिता तो होती है, किन्तु वह इतनी अपूर्ण तथा दुर्बल होती है कि माँग और पूर्ति की शक्तियों को कार्य करने का पूर्ण अवसर नहीं मिलता।
  3. क्रेताओं और विक्रेताओं को बाजार की स्थिति का पूर्ण ज्ञान नहीं होता है। परिणामस्वरूप बाजार में कीमतें भिन्न-भिन्न होती हैं।
  4. प्रत्येक विक्रेता को कुछ सीमा तक अपनी वस्तु की मनचाही कीमत वसूल करने की स्वतन्त्रता रहती है।
  5. अपूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु-विभेद होता है। प्रत्येक फर्म अपनी वस्तु की बाजार माँग में अलग पहचान बनाने का प्रयत्न करती है।
  6.  अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों को बाजार में प्रवेश करने व छोड़ने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। अर्थात् बाजार में फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश व बहिर्गमन होता है।
  7. फर्म के माँग वक्र या औसत आगम वक्र (AR) का ढाल ऋणात्मक होता है और फर्म का सीमान्त आगम वक्र (MR) इसके औसत आगम वक्र से नीचा होता है।
  8.  दीर्घकाल में वस्तु का मूल्य सीमान्त आगम (MR) तथा ओसत आगम (AR) के बराबर होता है।
  9. अपूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु की बिक्री बढ़ाने हेतु विज्ञापन में प्रचार आदि का आश्रय लिया जाता है।
  10.  व्यावहारिक जीवन में बाजार में अपूर्ण प्रतियोगिता की ही स्थिति पायी जाती है।
  11. अपूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु का बाजार संगठित नहीं होता।

प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता क्या है ? इसके अन्तर्गत मूल्य-निर्धारण कैसे होता है ?
या
अपूर्ण प्रतियोगिता क्या है? इसकी दशाओं का वर्णन कीजिए तथा इसके अन्तर्गत कीमत-निर्धारण को समझाइए।
उत्तर:
(संकेत – अपूर्ण प्रतियोगिता के अर्थ एवं दशाओं के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 का आरम्भिक भाग देखें। )

अपूर्ण प्रतियोगिता में कीमत या मूल्य-निर्धारण
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत प्रत्येक उत्पादक अथवा विक्रेता का अपना अलग एवं स्वतन्त्र क्षेत्र होता है और वह अपने क्षेत्र में कुछ सीमा तक मनमानी कीमत वसूल कर सकता है। अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक विक्रेता का उद्देश्य एकाधिकारी की भाँति ही अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है; अत: वस्तु की कीमत का निर्धारण ठीक उसी प्रकार होता है जिस प्रकार एकाधिकार की अवस्था में। | अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जिस पर उत्पादन-इकाई की सीमान्त लागत तथा सीमान्त आय दोनों ही बराबर होती हैं। अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए प्रत्येक उत्पादक उत्पादन को तब तक बढ़ाता रहता है जब तक कि उसकी सीमान्त आय सीमान्त लागत से अधिक रहती है, जब ये दोनों बराबर हो जाती हैं तो उसके बाद वह उत्पादन नहीं बढ़ाता। अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत विक्रेता कीमत का निर्धारण करते समय माँग और पूर्ति की शक्तियों का समुचित ध्यान रखता है; अत: अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में कीमत का निर्धारण माँग और पूर्ति दोनों की पारस्परिक क्रियाओं द्वारा होता है।

अपूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादक का पूर्ति पर तो पूर्ण नियन्त्रण होता है, किन्तु माँग पर कोई प्रत्यक्ष नियन्त्रण नहीं होता; अतः अपूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेता माँग की मूल्य सापेक्षता को ध्यान में रखकर कीमत का निर्धारण करता है। यदि वस्तु की मॉग मूल्ये सापेक्ष है तो विक्रेता उसकी कम कीमत निश्चित करेगा, क्योंकि मूल्य सापेक्ष वस्तुओं की कीमत में थोड़ी-सी भी कमी हो जाने पर उनकी माँग बहुत अधिक बढ़ जाती है; अत: कीमत कम निर्धारित होने के कारण यद्यपि प्रति इकाई लाभ तो कम हो जाता है, परन्तु माँग के बढ़ जाने के कारण कुल लाभ की मात्रा अधिक हो जाती है। इसके विपरीत, यदि वस्तु की माँग निरपेक्ष है तो कीमत में बहुत कमी होने पर भी उसकी माँग में विशेष वृद्धि नहीं होती और कीमत में वृद्धि होने पर माँग में कोई विशेष कमी नहीं होती।

अतः ऐसी वस्तुओं की कीमतें ऊँची ही निश्चित की जाती हैं, क्योंकि कीमतें चाहे कुछ भी हों, लोग उन्हें अवश्य खरीदेंगे। पूर्ति पक्ष के सम्बन्ध में यह विचार करना पड़ता है कि वस्तु के उत्पादन में प्रतिफल का कौन-सा नियम लागू हो रहा है ? यदि वस्तु का उत्पादन वृद्धिमान प्रतिफल नियम के अन्तर्गत हो रहा है तब वस्तु की कम कीमत निश्चित की जाएगी, इसके विपरीत, यदि उत्पादन ह्रासमान प्रतिफल नियम के अन्तर्गत हो रहा है तब वह वस्तु की कीमत जितनी अधिक वसूल कर सकता है, करेगा। आनुपातिक प्रतिफल नियम के अन्तर्गत उत्पादित वस्तु की कीमत उसकी माँग के अनुसार निर्धारित की जाएगी अर्थात् माँग के बढ़ने पर कीमत अधिक तथा माँग के घटने पर कम होगी। । संक्षेप में हम कह सकते हैं कि विक्रेता अपनी वस्तु की कीमत को निश्चित करते समय प्रत्येक कीमत पर अपने कुल लाभ का अनुमान लगाता है और वही कीमत निश्चित करता है जिस पर कि उसे अधिकतम कुल निवल लाभ अथवा आय प्राप्त होती हैं।

प्रश्न 3
पूर्ण एवं अपूर्ण प्रतियोगिता में अन्तर (भेद) कीजिए। इनमें से कौन व्यावहारिक है ? [2006,10,11]
या
पूर्ण एवं अपूर्ण प्रतियोगी बाजार की विशेषताओं की तुलना कीजिए। [2013]
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता तथा अपूर्ण प्रतियोगिता में अन्तर (भेद) 

क०स० पूर्ण प्रतियोगिता अपूर्ण प्रतियोगिता
1. पूर्ण प्रतियोगिता में क्रेताओं व विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या पूर्ण प्रतियोगिता की अपेक्षा कम होती हैं। इसमें एकाधिकारी प्रतियोगिता, ‘अल्पाधिकार’ तथा ‘द्वयाधिकारी की स्थितियाँ सम्मिलित होती हैं।
2. पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म के द्वारा उत्पादित तथा बेची जाने वाली वस्तुओं में एकरूपता होती है। अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत वस्तु-विभेद पाया जाता है। प्रत्येक फर्म बाजार में अपनी वस्तु की अलग पहचान बनाने का प्रयास करती है।
3. पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश व बहिर्गमन होता है। अपूर्ण प्रतियोगिता में भी फमों का स्वतन्त्र प्रवेश व बहिर्गमन होता है।
4. पूर्ण प्रतियोगिताओं में क्रेताओं और विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है तथा उनमे परम्पर सम्पर्क होता है। अपूर्ण प्रतियोगिता में क्रेताओं और विक्रेताओं की बाजार का सम्पूर्ण ज्ञान नहीं होता है।
5. पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में वस्तु की कीमत का निर्धारण उद्योग द्वारा माँग और पूर्ति की शक्तियों के सन्तुलन से होता है। इस कीमत को उद्योग में कार्य कर रही फमें दिया हुआ मान लेती हैं। अपूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेता कीमत निर्धारित करते समय माँग व पूर्ति की शक्तियों का ध्यान रखता है, परन्तु प्रत्येक फर्म या विक्रेता का अपना अलग स्वतन्त्र क्षेत्र होता है।
6. पूर्ण प्रतियोगिता में औसत आय तथा सीमान्त आय बराबर होती हैं। औसत आय तथा सीमान्त आय वक्र एक सीधी पड़ी रेखा होती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में औसत आय सीमान्त आय से अधिक होती है। औसत आय वक्र तथा सीमान्त आय वक्र बाएँ से दाएँ नीचे को गिरता हुआ होता है।
7. पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म अल्पकाल में लाभ, सामान्य लाभ व हानि अर्जित करती है तथा दीर्घकाल में फर्म को मात्र सामान्य लाभ ही प्राप्त होता है। अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म अल्पकाल में लाभ, सामान्य लाभ व हानि की स्थिति में हो सकती है। तथा दीर्घकाल में फर्म को केवल सामान्य लाभ ही अर्जित हो पाता है।
8. पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म विज्ञापन व प्रचार आदि में प्रायः बिक्री लागते वहन नहीं करती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म वस्तु की बिक्री बढ़ाने के लिए विज्ञापन व प्रचार व्यय करती है।
9. पूर्ण प्रतियोगिता एक काल्पनिक दशा है। वास्तविक जीवन में यह नहीं पायी जाती है। अतः पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति केवल सैद्धान्तिक है। अपूर्ण प्रतियोगिता व्यावहारिक जीवन में पायी जाती है। अतः यह सैद्धान्तिक न होकर व्यावहारिक है।

प्रश्न 4
अपर्ण प्रतिस्पर्धा में औसत वक्र तथा सीमान्त आय वक्र का रूप कैसा होता है ? इस प्रतिस्पर्धा में सन्तुलन बिन्दु कैसे निर्धारित किया जाता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतिस्पर्धा में औसत आय वक्र तथा सीमान्त आय वक्र का रूप – अपूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में औसत आय और सीमान्त आय रेखाएँ अलग-अलग होती हैं तथा बाएँ से दाएँ नीचे की ओर गिरती हुई होती हैं। अतः स्पष्ट है कि फर्म का उत्पादन बढ़ने पर 14औसत आय (AR) और सीमान्त आय (MR) दोनों ही गिरती हैं, किन्तु सीमान्त आय औसत आय की अपेक्षा तेजी से गिरती है। इसका कारण यह होता है कि विक्रेताओं की संख्या पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में अपेक्षाकृत कम होने से विक्रेता कीमत को प्रभावित कर सकने की स्थिति में होता है अर्थात् वे कीमत में कमी करके वस्तु की बिक्री को बढ़ा सकते हैं।
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अपूर्ण प्रतिस्पर्धा में सन्तुलन बिन्दु का निर्धारण – अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में आय वक्र अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत-निर्धारण में माँग और पूर्ति की शक्तियों का समुचित ध्यान रखा जाता है। इनमें कीमत-निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर सीमान्त लागत तथा सीमान्त आय दोनों ही बराबर होती हैं।
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अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादन में जब तक परिवर्तन करती रहेगी तब तक MR = MC अर्थात् सीमान्त आय = सीमान्त लागत नहीं हो जाता। यदि सीमान्त आय, सीमान्त लागत से अधिक है तो फर्म अपने उत्पादन को बढ़ाकर लाभ को अधिकतम करेगी और यदि सीमान्त आय, सीमान्त लागत से उत्पादन की मात्रा कम है तो फर्म अपने उत्पादन को कम करके लाभ को फर्म द्वारा असामान्य लाभ की स्थिति अधिकतम करेगी। अतः फर्म को सन्तुलन बिन्दु वहाँ निश्चित होगा जहाँ सीमान्त आय और सीमान्त लागत बराबर होती हैं। इस बिन्दु पर फर्म का लाभ अधिकतम होता है और उससे विस्तार व संकुचन की प्रवृत्ति नहीं होती है।

प्रश्न 5
अपूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म के दीर्घकालीन साम्य को समझाइए। [2009]
उत्तर:
दीर्घकाल में अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होता है। इसके विपरीत पूर्ण प्रतियोगिता में लाभ अथवा हानि की स्थिति भी हो सकती है। यही कारण है कि दीर्घकाल में सामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति पूर्ण प्रतियोगिता की अपेक्षा अपूर्ण प्रतियोगिता में पहले आती है।
संलग्न चित्र में,
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition 7
E = सन्तुलन बिन्दु
LM = औसत आय
LM = औसत लागत
(… औसत लाभ = औसत आय)
अत: लाभ की मात्रा शून्य (सामान्य लाभ) है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
नीचे दिये गये रेखाचित्र में दी गयी वक्र रेखाओं के नाम लिखिए तथा यह भी लिखिए कि वक्र रेखाओं की ऐसी प्रवृत्ति फर्म की हानि दर्शाती है अथवा लाभ।
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उत्तर:
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उपर्युक्त रेखाचित्र की स्थिति में फर्म लाभ की स्थिति को दर्शाती है।

प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म को मात्र सामान्य लाभ दर्शाने वाले चित्र को अपनी उत्तर-पुस्तिका में विभिन्न वक्रों के नाम सहित बनाइए।
उत्तर:
फर्म द्वारा सामान्य लाभ का चित्र
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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आय का औसत आय से कम होने का क्या कारण है?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आय का औसत आय से कम होने का मुख्य कारण यह है कि एक अतिरिक्त इकाई को बेचने के लिए फर्म को वस्तु की कीमत में थोड़ी-सी कमी करनी पड़ती है। इसलिए फर्म की औसत आय सीमान्त आय से अधिक होती है।

प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म को कब हानि उठानी पड़ती है ?
उत्तर:
जब वस्तु की माँग इस सीमा तक कम हो जाती है कि फर्म को अपनी वस्तु को विवश होकर लागत से कम कीमत पर बेचना पड़े, तब फर्म हानि की स्थिति में होती है अर्थात् इस स्थिति में फर्म की औसत आय उसकी औसत लागत से कम होती है। इसलिए फर्म को हानि उठानी पड़ती है।

प्रश्न 3
अपूर्ण प्रतियोगिता की चार विशेषताएँ बताइए। [2006, 09]
या
अपूर्ण प्रतियोगिता की दो प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। [2013, 15]
उत्तर:

  1.  विक्रेताओं की अपेक्षाकृत कम संख्या,
  2.  वस्तु-विभेद पाया जाना,
  3. बाजार का अपूर्ण ज्ञान,
  4. पूर्ण गतिशील न होना।

प्रश्न 4
अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में उत्पादक कब असामान्य लाभ प्राप्त करता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादक केवल उस दशा में असामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति में होता है जब उसकी औसत आय उसकी औसत लागत से अधिक हो।

प्रश्न 5:
अपूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में वस्तु का मूल्य किस स्थिति में निर्धारित होता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में वस्तु का मूल्य सीमान्त आय व सीमान्त लागत की सन्तुलन की स्थिति में निर्धारित होता है। यहाँ फर्म केवल सामान्य लाभ अर्थात् शून्य लाभ की स्थिति में होती है।

प्रश्न 6
अधिकतम बिक्री करने के लिए उत्पादक को क्या करना पड़ता है ?
उत्तर:
उत्पादक को वस्तुओं की अधिकतम बिक्री करने के लिए विज्ञापन व प्रचार आदि पर व्यय करना पड़ता है।

प्रश्न 7
अपूर्ण प्रतियोगिता का स्वरूप कैसा होता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता का स्वरूप अंशत: पूर्ण प्रतियोगिता तथा अंशत: एकाधिकारी होता है।

प्रश्न 8
अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार में औसत ओगम वक्र का ढाल किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में औसत आगम वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर गिरता हुआ होता है।

प्रश्न 9
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत-निर्धारण किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत-निर्धारण में माँग एवं पूर्ति की शक्तियों का समुचित ध्यान रखा जाता है। इस प्रकार कीमत-निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर सीमान्त लागत तथा सीमान्त आय दोनों ही बराबर हों।

प्रश्न 10
अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आगम रेखा का ढाल कैसा होता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आगम रेखा का ढाल बाएँ से दाएँ नीचे की ओर होता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
अपूर्ण प्रतियोगिता है
(क) काल्पनिक
(ख) व्यावहारिक
(ग) काल्पनिक-व्यावहारिक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) व्यावहारिक।

प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता में औसत और सीमान्त आगम के वक्र गिरते हुए होते हैं [2010]
(क) नीचे की ओर
(ख) ऊपर की ओर
(ग) बीच में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) नीचे की ओर।।

प्रश्न 3
अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में दीर्घकाल में विक्रेता केवल प्राप्त करता है
(क) हानि :
(ख) सामान्य लाभ
(ग) अधिकतम लाभ
(घ) शून्य लाभ
उत्तर:
(ख) सामान्य लाभ।

प्रश्न 4
अपूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेताओं की संख्या होती है
(क) शून्य
(ख) कम
(ग) अधिक
(घ) ये सभी
उत्तर:
(ख) कम।

प्रश्न 5
अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादन में परिवर्तन करती रहती है, जब तक
(क) सीमान्त लागत = सीमान्त आय
(ख) सीमान्त आय, सीमान्त लागत से अधिक
(ग) सीमान्त आय, सीमान्त लागत से कम
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(क) सीमान्त लागत = सीमान्त आय।

प्रश्न 6
वस्तु (उत्पाद) विभेद’ एक आधारभूत विशेषता है [2012, 13]
या
वस्तु-विभेद किस बाजार में पाया जाता है? [2015]
(क) पूर्ण प्रतियोगिता की
(ख) अपूर्ण प्रतियोगिता की
(ग) एकाधिकार की
(घ) इनमें से किसी की नहीं
उत्तर:
(ख) अपूर्ण प्रतियोगिता की।

प्रश्न 7
किसी फर्म के अधिकतम लाभ के लिए प्रथम आवश्यकता है
(क) सीमान्त आगम = औसत आगम
(ख) सीमान्त लागत = औसत लागत
(ग) सीमान्त लागते = सीमान्त आगम
(घ) औसत लागत = औसत आगम।
उत्तर:
(ग) सीमान्त लागत = सीमान्त आगम।

प्रश्न 8
कोई फर्म सन्तुलन की स्थिति प्राप्त करती है जब [2013]
(क) सीमान्त आगम एवं सीमान्त लागत बराबर हों।
(ख) सीमान्त आगम सीमान्त लागत से अधिक हो।
(ग) सीमान्त आगम सीमान्त लागत से कम हो।
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) सीमान्त आगम एवं सीमान्त लागत बराबर हों।।

प्रश्न 9
अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म की औसत आय रेखा होती है [2010]
(क) गिरती हुई रेखा
(ख) उठती हुई रेखा
(ग) क्षैतिज रेखो।
(घ) ऊर्ध्व रेखा।
उत्तर:
(क) गिरती हुई रेखा।

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UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 5

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Model Paper Paper 5
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 5

पूर्णाक : 70
समय : 3 घण्टे 15 मिनट

निर्देश: प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
नोट:

    • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
    • आवश्यकतानुसार अपने उत्तरों की पुष्टि नामांकित रेखाचित्रों द्वारा कीजिए।
    • सभी प्रश्नों के निर्धारित अंक उनके सम्मुख

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए।
(क) जब दो पारितन्त्र एक-दूसरे की सीमा को काटते हैं, तो निर्मित भाग कहलाता है [1]
(A) आवासीय
(B) निकेत
(C) इकोटोन
(D) इकोटाइप

(ख) निम्नलिखित में से कौन-सी एक प्लाज्मिड का अभिलक्षण नहीं है? [1]
(A) वृत्तीय संरचना
(B) स्थानान्तरण योग्य
(C) एकल रज्जुकीय
(D) स्वतन्त्र प्रतिकृतियन

(ग) एन्ट्रमी पुटक में निम्नलिखित में से कौन-सी अकोशिकीय होती है? [1]
(A) ग्रेन्युलोसा (कणिकीय)
(B) थीका इण्टर्ना (अन्तर प्रोवरक)
(C) स्ट्रोमा (पीठिका)
(D) जोना पेल्यूसिडा (पारदर्शी अण्डावरण)

(घ) निम्नलिखित में से कौन-सा एक जैव-उर्वरक नहीं है? [1]
(A) राइजोबियम
(B) नॉस्टॉक
(C) कवकमूल
(D) एग्रोबैक्टीरियम

प्रश्न 2.
(क) बैक क्रॉस क्या है?
(ख) क्रोमैटिन का वह भाग, जो हल्का अभिरंजित होता है, क्या कहलाता है? [1]
(ग) ल्यूकीमिया किसे कहते हैं? [1]
(घ) DNA से शीघ्रतापूर्वक पुंज निर्माण विधि का नाम बताइए। [1]
(ङ) अगर समुद्री मछली को अलवण जल की जलजीवशाला में रखा जाता है तो क्या वह मछली जीवित रह पायगी? क्यों और क्यों नहीं? [1]

प्रश्न 3.
(क) पर्यावरणीय प्रदूषण किसे कहते हैं? समझाइए। [2]
(ख) ZIFT एवं GIFT में अन्तर लिखिए। [2]
(ग) इडियोग्राम या कैरियोग्राम क्या होता है? [2]
(घ) HIV की रोगजनकता पर टिप्पणी लिखिए। [2]
(ङ) समर्थ कोशिका क्या होती है? इसके निर्माण में CaCI, का क्या योगदान होता है? [1+1]

प्रश्न 4.
(क) यह किस वैज्ञानिक ने बताया था कि DNA एक आनुवंशिक पदार्थ है? इसके पक्ष में किसी एक प्रयोग को समझाइए। [1+2]
(ख) PCR में प्रयुक्त किन्हीं तीन एन्जाइम तथा उनके स्रोत के नाम लिखिए। [1 x 3]
(ग) तापमान के आधार पर विश्व में पाई जाने वाली वनस्पतियों पर प्रकाश डालिए। [3]
(घ) अंग प्रत्यारोपण क्या है? इसके सफल क्रियान्वयन के दो उपाय बताइए। [1+2]

प्रश्न 5.
(क) जीनीय सन्तुलन क्रियाविधि क्या है? समझाइए। [3]
(ख) बायोपाइरेसी के बारे में आप क्या जानते हैं? [3]
(ग) विद्यालयों में यौन शिक्षा की क्यों आवश्यकता है? कारण सहित स्पष्ट करें। [3]
(घ) ऊर्जा के पिरामिड की विशेषताएँ बताइए। [3]

प्रश्न 6.
(क) रूपान्तरण व परागमन पर टिप्पणी लिखिए। [1 1/2+1 1/2]
(ख) जनसंख्या विस्फोट किसे कहते हैं? इसके क्या परिणाम हो रहे हैं? [3]
(ग) स्तम्भ कोशिका पर टिप्पणी कीजिए। इसके क्या उपयोग हैं? [1+2]
(घ) नीगरॉइड्स और मोन्गोलॉइड्स पर टिप्पणी कीजिए। [3]

प्रश्न 7.
चिकित्सीय सगर्भता समापने क्या है? इसकी आवश्यकता एवं दुरुपयोग को विस्तारपूर्वक समझाइए। [1+2+2]
अथवा
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी करें [1+2+2]

  1. रेड डाटा बुक
  2. प्रचालक
  3. बहुजीनी वंशागति

प्रश्न 8.
मानव के आर्थिक महत्त्व के किन्हीं तीन कीटों के जन्तु वैज्ञानिक नाम लिखिए तथा इनके द्वारा उत्पादित पदार्थों की उपयोगिता बताइए। [5]
अथवा
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी करें [1 x 5]

  1. ऊतक संवर्धन
  2. पादप प्रजनन
  3. संयुक्त वन प्रबन्धन
  4. जैव-प्रबलीकरण
  5. निकेत

प्रश्न 9.
परागण क्या होता है? इसके प्रकार बताते हुए पर-परागण की विभिन्न युक्तियाँ बताइए। [1+2+2]
अथवा
पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रिया को विस्तार से समझाइए। [5]

Answers

उत्तर 1.
(क) (C)
(ख) (C)
(ग) (A)
(घ) (D)

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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 19 Development of Indian Population

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 19 Development of Indian Population (भारतीय जनशक्ति का विकास) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 19 Development of Indian Population (भारतीय जनशक्ति का विकास).

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Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 19
Chapter Name Development of Indian Population (भारतीय जनशक्ति का विकास)
Number of Questions Solved 69
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 19 Development of Indian Population (भारतीय जनशक्ति का विकास)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
जनसंख्या घनत्व क्या है? भारत में जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले कारकों/तत्त्वों का विश्लेषण कीजिए। [2011, 13, 16]
उत्तर:
जनसंख्या के घनत्व से अभिप्राय मनुष्य-भूमि अनुपात से है, अर्थात् देश के कुल भूमि के क्षेत्रफल को कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफले आता है, उसे देश की जनसंख्या का घनत्व कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, “किसी देश के प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों की औसत संख्या को ही जनसंख्या का घनत्व कहते हैं।”

जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले तत्त्व
किसी स्थान-विशेष पर जनसंख्या का घनत्व निम्नलिखित मुख्य तत्त्वों द्वारा प्रभावित होता है

1. जलवायु – जनसंख्या का घनत्व जलवायु पर निर्भर करता है। जिस क्षेत्र यो स्थान की जलवायु उत्तम और स्वास्थ्यवर्द्धक होती है, वहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। इसके विपरीत, यदि किसी स्थान की जलवायु अधिक गर्म या अधिक ठण्डी होती है तो ऐसे स्थान पर जनसंख्या का घनत्व कम होता है।

2. वर्षा – जिन स्थानों पर वर्षा न तो बहुत अधिक होती है और न ही बहुत कम, उन स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। इसके विपरीत, जिन स्थानों पर अत्यधिक वर्षा होती है या बहुत कम वर्षा होती है, उन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व भी कम पाया जाता है। यही कारण है कि राजस्थान में वर्षा कम होने के कारण तथा असम में अधिक वर्षा होने के कारण जनसंख्या का घनत्व कम है।

3. भूमि की बनावट व उर्वरा-शक्ति – मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा पर्वतीय तथा पठारी क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व कम होता है, क्योंकि ऊँची-नीची भूमि होने के कारण कृषि कार्य करने तथा उद्योगों को स्थापित करने में कठिनाई होती है। इसके विपरीत, मैदानी भागों में मिट्टी समतल व अधिक उपजाऊ होती है इसलिए इन स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में गंगा-यमुना के मैदानी भाग में जनसंख्या का घनत्व अधिक है।

4. सिंचाई की सुविधाएँ – जिन क्षेत्रों में वर्षा की कमी को सिंचाई के साधनों द्वारा पूरा कर लिया जाता है या ज़िन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती हैं, उन क्षेत्रों में भी जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है।

5. यातायात एवं संवहन/संचार के साधन – जिन क्षेत्रों में यातायात तथा संवहन/संचार के साधन विकसित होते हैं, उन क्षेत्रों में भी जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है, क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में उद्योग तथा व्यापार की सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र आदि राज्यों में यातायात एवं संवहन/संचार के साधनों के कारण ही जनसंख्या का घनत्व अधिक है।

6. औद्योगिक विकास – औद्योगिक स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। इसका प्रमुख कारण श्रमिकों को रोजगार तथा व्यापारियों को व्यापार आदि की सुविधाएँ सरलता से मिल जाना है। जमशेदपुर, कानपुर, अहमदाबाद, मुम्बई आदि स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व इसी कारण अधिक है।

7. खनिज पदार्थ या खनिज सम्पत्ति – जिन क्षेत्रों में खनिज भण्डार अधिक मात्रा में होते हैं, वहाँ पर भी जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है; क्योंकि इन स्थानों पर आधारित अनेक उद्योग-धन्धों में इन्हें व्यवसाय मिल जाता है। बिहार व पश्चिम बंगाल में जनसंख्या का घनत्व अधिक होने का यही कारण है।

8. राजधानी – देश अथवा प्रदेश की राजधानी में भी जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है, क्योंकि इन स्थानों पर सचिवालय, संसद व विधानसभा भवन, राष्ट्रपति भवन, संसद-सदस्य निवास, विधायक निवास आदि के साथ-साथ अनेक कार्यालय, संस्थाएँ तथा व्यापार एवं वाणिज्य के केन्द्र होते हैं। दिल्ली, लखनऊ, चण्डीगढ़ आदि स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होने का प्रमुख कारण राजधानी होना ही है।

9. ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थान – ऐतिहासिक तथा धार्मिक महत्त्व के स्थानों पर भी जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। आगरा व दिल्ली ऐतिहासिक महत्त्व के स्थान हैं और मथुरा, काशी, हरिद्वार आदि धार्मिक स्थल। इसी कारण से इन स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक है।

10. शान्ति एवं सुरक्षा – जिन क्षेत्रों में शान्ति एवं सुरक्षा की व्यवस्था होती है, उन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है, क्योंकि ऐसे स्थानों पर लोग अपने जीवन और सम्पत्ति को सुरक्षित समझते हैं। इसके विपरीत, जो स्थान सीमा के समीप होते हैं, सुरक्षा व शान्ति की दृष्टि से वे अशान्त क्षेत्र माने जाते हैं; अत: वहाँ जनसंख्या का घनत्व कम होता है। पंजाब तथा असम के सीमान्त क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व कम होने का प्रमुख कारण यही है।

11. अप्रवास एवं उत्प्रवास – अप्रवास तथा उत्प्रवास का भी जनसंख्या के घनत्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। देश के विभाजन के समय दिल्ली में जनसंख्या का घनत्व बढ़ गया। इसका प्रमुख कारण पाकिस्तान से आये हुए शरणार्थियों का अप्रवास था। भारत में रीति-रिवाज, भाषा एवं धर्म तथा संस्कृति में विभिन्नताएँ पायी जाती हैं। फलस्वरूप जनसंख्या के घनत्व में भिन्नता पायी जाती है।

12. शिक्षा के केन्द्र – जिन स्थानों पर शिक्षा के केन्द्र स्थापित होंगे, वहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक होगा। रुड़की, इलाहाबाद, वाराणसी आदि शिक्षा के केन्द्र हैं, इसी कारण ऐसे स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक पाया जाता है।

13. व्यापारिक केन्द्र – जो स्थान व्यापारिक महत्त्व के होते हैं, वहाँ पर भी जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, कानपुर आदि व्यापारिक केन्द्र हैं, इसी कारण इन स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक है।

प्रश्न 2
भारत में जनसंख्या-वृद्धि के कारणों एवं जनसंख्या-वृद्धि को रोकने के उपाय बताइए। [2008, 10, 11, 12]
या
“भारत में जनसंख्या की समस्या विस्फोटक है।” विवेचना कीजिए। इसे हल करने के लिए आप क्या सुझाव देंगे? [2008, 12]
या
भारत में जनाधिक्य की समस्या हल करने के लिए सुझाव दीजिए। [2013]
उत्तर:
भारत में तीव्र गति से जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्नलिखित हैं

1. जन्म-दर एवं मृत्यु-दर के मध्य अन्तराल का बढ़ना – भारत में 1921 ई० से पूर्व तक जन्म-दर तथा मृत्यु-दर के बीच का अन्तर बहुत कम रहा। 1921 ई० के बाद से यह अन्तर बढ़ने लगा। पिछले तीस वर्षों से जन्म-दर जिस गति से घटी है उसकी अपेक्षा मृत्यु-दर कहीं अधिक घटी है, जिससे दोनों दरों में अन्तर बढ़ गया है। स्वास्थ्य सुविधाओं के बढ़ जाने के कारण मृत्यु-देर में कमी आयी। 1921 ई० में जन्म-दर 46.4 प्रति हजार थी और मृत्यु-दर 36.3 प्रति हजार; जबकि 2011 ई० में जन्म-दर 23 प्रति हजार तथा मृत्यु-दर 9 प्रति हजार है। इससे स्पष्ट हो कि मृत्यु-दर में तेजी से कमी हुई है।

2. विवाह की औसत आयु – जन्म का सीधा सम्बन्ध विवाह से होता है। भारत में लड़कियों का विवाह कम आयु में हो जाया करता है, जिससे वे कम आयु में ही माँ बन जाती हैं। शारदा ऐक्ट के द्वारा लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष थी, जो अब 18 वर्ष कर दी गयी है। विकसित देशों में लड़कियों के विवाह की औसत आयु 22-25 वर्ष है।

3. प्रजनन दर – विकसित देशों की अपेक्षा भारत में प्रजनन दर ऊँची है जिसका मुख्य कारण विवाह की अनिवार्यता, न्यूनतम आयु का कम होना, गर्भ निरोधक उपायों का सीमित उपयोग, साक्षरता में कमी, जीवन-स्तर की निम्नता, परम्परागत जीवन-दर्शन तथा 80% जनसंख्या का ग्रामीण होना है। कर्म आयु में विवाहित स्त्री कम आयु में ही माँ बन जाती है। इस प्रकार अपनी जीवन-अवधि में एक स्त्री 6 से 7 बच्चों तक की माँ बन जाती है। विकसित देशों में यह संख्या 2 से 3 तक ही है।

4. प्रचलित अन्धविश्वास – वंश चलाने एवं श्राद्ध कर्म हेतु पुत्र की कामना करना तथा अन्य धार्मिक अन्धविश्वासों के कारण परिवार में बच्चों की संख्या अधिक हो जाती है।

5. वृद्धावस्था की सुरक्षा – वृद्धावस्था में सन्तान उनकी देख-रेख करेगी; यह धारणा भी जनसंख्या वृद्धि में सहायक होती है।

6. ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े परिवारों का होना – भारत कृषि-प्रधान देश है। बड़ा परिवार कृषि के कामों में बाधक न होकर सहायक सिद्ध होता है। ग्रामीण स्त्रियों के कार्य इस प्रकार के होते हैं कि कार्य करने के साथ-साथ वे बच्चों की देख-रेख भी कर लेती हैं। इसी से अधिक बच्चों को जन्म देना उन्हें बाधक प्रतीत नहीं होता है।

7. अधिकांश लोगों का घर पर रहना – भारत में समस्त जनसंख्या का केवल 33% कार्यशील है। कुल कार्यशील जनसंख्या का लगभग 70% कृषि एवं सम्बन्धित कार्यों में संलग्न होने के कारण अधिकांश लोग घर पर ही रहते हैं, जिसके कारण जनसंख्या में वृद्धि होती है।

8. शरणार्थियों का आगमन – देश की स्वतन्त्रता के पश्चात् पाकिस्तान तथा बांग्लादेश से आने वाले लाखों-करोड़ों शरणार्थियों के कारण भी देश में जनसंख्या में वृद्धि हुई है।

9. परिवार नियोजन के प्रति अज्ञानता – ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के अशिक्षित होने के कारण परिवार के आकार के सम्बन्ध में उदासीनता पायी जाती है। परिणामस्वरूप परिवार नियोजन के साधन देश में लोकप्रिय नहीं हो पा रहे हैं। परिवार नियोजन के उपायों के प्रति संकोच, लज्जा तथा निराधार शंकाओं के कारण दम्पती बच्चों को जन्म देते रहते हैं।

जनसंख्या-वृद्धि को रोकने के उपाय
जनसंख्या की समस्या के समाधान के लिए हमें एक साथ कई उपाय करने पड़ेंगे। जन्म-दर को कम करने के लिए तत्कालीन एवं दीर्घकालीन उपाय किये जाने चाहिए। तत्कालीन उपायों में निरोध, नसबन्दी, लूप, ऑपरेशन आदि के लिए लोगों को प्रेरित करना तथा दीर्घकालीन उपायों में विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि, बाल-विवाह पर रोक, मनोरंजन के साधनों में वृद्धि, आत्म-संयम वे ब्रह्मचर्य के पालन के लिए लोगों को प्रेरित करना आदि हैं। इन उपायों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

1. जन्म-दर में कमी करना – जनसंख्या-वृद्धि को सीमित करने के लिए यह आवश्यक है कि मृत्यु-दरे के साथ-साथ जन्म-दर में भी गिरावट लायी जाए। वर्ष 1951-60 में जन्म-दर 41.7% थी, जो 2011 ई० में 23% हो गयी। जन्म-दर में और अधिक कमी लायी जानी चाहिए।

2. साक्षरता तथा शिक्षा का प्रसार आवश्यक – शिक्षा के माध्यम से ही जन-साधारण में जनसंख्या-वृद्धि के विषय में जागरूकता लायी जा सकेगी। विकसित देशों में जनसंख्या-वृद्धि की समस्या न होने का प्रमुख कारण उनकी शत-प्रतिशत साक्षरता है। भारत में केवल केरल में ही साक्षरता अन्य प्रदेशों की अपेक्षा अधिक है।

3. स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल – जनसंख्या-वृद्धि के परिप्रेक्ष्य में स्त्री-शिक्षा का विशेष महत्त्व है। केरल में स्त्रियों की साक्षरता प्रतिशत 91.98 है, जबकि उत्तर प्रदेश में 59.26 है। इसी कारण से उत्तर प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि की दर भी उच्च है। अत: जनसंख्या-वृद्धि पर नियन्त्रण हेतु स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल देने की आवश्यकता है।

4. विवाह सम्बन्धी कानूनों का सख्ती से पालन – यद्यपि विवाह की न्यूनतम आयु कानूनी तौर पर निर्धारित है। बाल-विवाह वर्जित है, फिर भी ये बुराइयाँ समाज में यथावत् बनी हुई हैं। इनका सख्ती से पालन किया जाना भी आवश्यक है। इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाया जा सकता है।

5. मनोरंजन के साधनों में वृद्धि – विशेष रूप से ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में मनोरंजन के साधनों में वृद्धि की जानी चाहिए। इनमें सिनेमा, सार्वजनिक दूरदर्शन की व्यवस्था, शिक्षाप्रद छोटी-छोटी फिल्मों का प्रदर्शन, अखाड़े, खेल-कूद प्रतियोगिताएँ आदि मुख्य हैं। मनोरंजन के साधनों में वृद्धि होने से जनसंख्या-वृद्धि पर भी नियन्त्रण लगेगा।

6. आत्म-संयम/नैतिक शिक्षा का प्रसार – नैतिकतापूर्ण संयमित जीवन जनसंख्या को सीमित रखने का आदर्श उपाय है। अत: इस बात को समुचित प्रचार किया जाना चाहिए कि शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य अच्छी कार्यक्षमता, सुखद पारिवारिक जीवन तथा देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए संयमी जीवन बिताना उपयोगी है। इससे न केवल जन्म-दर कम होगी, वरन् अनेक सामाजिक समस्याओं; जैसे–चोरी, डकैती, व्यभिचार आदि; में भी कमी आएगी।

7. परिवार नियोजन का प्रचार तथा सम्बद्ध सुविधाओं को उपलब्ध कराना – परिवार तथा देश के कल्याण के लिए परिवार नियोजन के महत्त्व को देखते हुए 1977 ई० से इसे परिवार-कल्याण का नाम दिया गया है। परिवार-कल्याण के द्वारा दम्पति अपने बच्चों की संख्या सीमित रखने तथा दो बच्चों के जन्म के मध्य पर्याप्त समयान्तर रखते हैं। ग्रामीण जनता तक परिवार कल्याण कार्यक्रमों का लाभ पहुंचाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार नियोजन का प्रचार तथा सुविधाओं को उपलब्ध कराने की अधिक आवश्यकता है। परिवार कल्याण कार्यक्रम को ‘जन-अभियान’ बनाया जाना चाहिए।

8. विज्ञापन व संवहन/संचार के साधनों का उपयोग – जनसंख्या वृद्धि के कारणों, परिणामों एवं जनसंख्या को नियन्त्रित करने के उपायों का विज्ञापन एवं प्रचार रेडियो, दूरदर्शन व चलचित्रों के माध्यम से ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों में करने की आवश्यकता है। इसके माध्यम से भी जनसंख्या को सीमित करने में सहायता मिलेगी।

9. सीमित परिवारों को पुरस्कृत करना – जिन दम्पतियों के एक या दो ही बच्चे हैं, उन्हें पुरस्कृत किया जाना चाहिए। इससे अन्य व्यक्तियों को भी सीमित परिवार की प्रेरणा मिलेगी।

10. जनमानस में जनसंख्या के प्रति अनुकूल चेतना का विकास करना – जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए हमें जनमानस में अनुकूल चेतना का विकास करना होगा, जिससे आज के बालक-बालिकाएँ जो कल वयस्क नागरिक बनेंगे, वे यह निर्णय करने में सक्षम हो सकें कि उनके परिवार का आकार क्या होना चाहिए।

संक्षेप में, देश के तरुण वर्ग को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि जनसंख्या-वृद्धि की समस्या का हल उनके अपने ही हाथों में है। जागरूक एवं सक्रिय बनकर ही वे अपने वर्तमान और भविष्य को सुखद बना सकते हैं। जन-जन में जनसंख्या के प्रति अनुकूल चेतना का विकास होने पर ही हम जनसंख्या-वृद्धि पर नियन्त्रण पाने में सफल हो सकते हैं।

प्रश्न 3
परिवार-नियोजन देश के लिए अत्यन्त आवश्यक है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
या
भारत जैसे विकासशील देश के सन्दर्भ में परिवार-नियोजन के महत्त्व पर प्रकाश डालिए। निरन्तर प्रयत्नों के होते हुए भी भारत में परिवार-नियोजन कार्यक्रम सफल क्यों नहीं हो पा रहा है? समझाइए।
या
परिवार-कल्याण कार्यक्रम की अवधारणा की विवेचना कीजिए। [2011]
उत्तर:
परिवार-नियोजन या परिवार-कल्याण कार्यक्रम
सन् 1952 ई० में जनगणना आयुक्त ने परिवार नियोजन की आवश्यकता और महत्त्व को स्वीकार किया तथा परिवार नियोजन को अपनाने पर विशेष महत्त्व दिया था। भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना में जनसंख्या को नियन्त्रित करने का कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया, जिसे ‘परिवार-नियोजन’ का नाम दिया गया। सन् 1977 ई० में जनता पार्टी की सरकार ने परिवार नियोजन’ का नाम बदलकर ‘परिवार-कल्याण’ कार्यक्रम रखा।

श्रीमती इन्दिरा गांधी के अनुसार, “हमारी परिस्थितियों में परिवार नियोजन का अर्थ माँ और बच्चे का बेहतर स्वास्थ्य तथा पूरे परिवार के लिए अधिक अवसर है।”
परिवार नियोजन की आवश्यकता – भारत में विश्व की जनसंख्या का 17.5 प्रतिशत भाग निवास करता है, जबकि दुनिया के कुल भू-भाग का मात्र 2.4 प्रतिशत ही भारत में है। भारत की जनसंख्या में प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ अस्सी लाख की वृद्धि हो जाती है। 1951 ई० में भारत की जनसंख्या 36.11 करोड़ थी, 2011 की जनगणना के अनुसार, 121 करोड़ हो चुकी है। तेजी के साथ बढ़ती हुई जनसंख्या विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है, जिसके कारण देश की प्रगति आशा के अनुकूल नहीं हो पा रही है। अतः देश के आर्थिक विकास की दर में तेजी लाने के लिए परिवार नियोजन एक आवश्यकता ही नहीं, अपितु परम आवश्यकता है, कम-से-कम भारत के लिए। अतः परिवार नियोजन भारत जैसे विकासशील देश के लिए निम्नलिखित कारणों से परमावश्यक है

1. पूँजी-निर्माण की गति में वृद्धि हेतु – बढ़ती हुई जनसंख्या बचतों की दर व पूँजी-निर्माण की गति में कमी लाती है; अत: इस बात की आवश्यकता है कि जनसंख्या-वृद्धि में कमी करके बचतों को बढ़ाया जाये, जिससे पूँजी निर्माण में वृद्धि हो सके।

2. खाद्यान्नों के अभाव की पूर्ति हेतु – खाद्यान्नों का मन्द गति से बढ़ता हुआ उत्पादन तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या की पूर्ति नहीं कर पाता, जिससे खाद्यान्नों की कमी बनी रहती है। अत: खाद्यान्नों के अभाव को दूर करने के लिए यह उचित है कि बढ़ती हुई जनसंख्या को परिवार नियोजन के माध्यम से रोका जाए।

3. भुगतान-सन्तुलन की समस्या के हल हेतु – बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए जब खाद्यान्नों एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं का आयात किया जाता है तो भुगतान-सन्तुलन की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अत: इससे बचने का एक मात्र रास्ता है कि परिवार नियोजन को अपनाकर जनसंख्या की वृद्धि को रोका जाए।

4. बेरोजगारी की समस्या के हल हेतु – बढ़ती हुई जनसंख्या बेरोजगारी में प्रति वर्ष वृद्धि करती जा रही है; अत: इसमें कमी करने के लिए परिवार नियोजन को अपनाया जाना चाहिए।

5. मूल्य-स्तर में वृद्धि को कम करने हेतु – जनसंख्या-वृद्धि से वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है, जब कि उत्पादन उस अनुपात में नहीं बढ़ता है। इससे मूल्य-स्तर बढ़ जाता है; अतः बढ़ती हुई जनसंख्या में कमी करने के लिए परिवार नियोजने अपनाकर मूल्य-स्तर में वृद्धि को रोका जा सकता है।

6. उत्पादन तकनीक में सुधार हेतु – जनसंख्या में वृद्धि व बेरोजगारी होने से श्रम प्रधान उत्पादन तकनीकें अपनायी जाती हैं तथा पूँजी-प्रधान आधुनिक उत्पादन तकनीकों को त्याग दिया जाता है; अत: उन्नत उत्पादन तकनीकों को अपनाने के लिए यह उचित होगा कि परिवार नियोजन को अपनाकर जनसंख्या वृद्धि को रोका जाए।

7. कृषि पर भार में कमी करने हेतु – जनसंख्या की वृद्धि कृषि पर भार को बढ़ा देती है। कृषि की औसत उत्पादकता में वृद्धि के लिए जनसंख्या-वृद्धि को रोका जाना आवश्यक है।

8. सामाजिक-कल्याण में वृद्धि हेतु – जनसंख्या-वृद्धि देश के आर्थिक विकास की गति को धीमा कर देती है। परिवार-कल्याण, शिक्षा, परिवहन व अन्य स्वास्थ्य सेवाएँ लोगों को उचित रूप में नहीं मिल पाती हैं; अतः इनमें सुधार करने व जन-कल्याण में वृद्धि करने के लिए उचित है कि परिवार नियोजन प्रणाली को अपनाया जाए।
उपर्युक्त आधार पर हमें कह सकते हैं कि भारत की आर्थिक प्रगति के लिए परिवार नियोजन एक आवश्यक कदम है।

परिवार नियोजन का महत्त्व
परिवार नियोजन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कहा था, “कहा जाता है कि समृद्धि एक बढ़िया गर्भ-निरोधक है, किन्तु विकास का प्रभाव कम हो जाता है जब तक कि हम जन्म-दर में कमी न लाएँ। परिवार नियोजन विकास का आधार है, निवेश है और मानव पूँजी के संगठन में एक अनिवार्य प्रयास है। शिक्षा, उत्पादन और आय की बेहतर क्षमताएँ तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि तभी सम्भव है जब जनसंख्या-वृद्धि पर अंकुश लगाया जा सके

भारत जैसे विकासशील देश के सन्दर्भ में परिवार नियोजन का निम्नलिखित महत्त्व है

  1.  यह देश के आर्थिक विकास का आधार है।
  2. इसके द्वारा ही नागरिकों का जीवन-स्तर ऊँचा हो सकता है।
  3.  इसके माध्यम से ही प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि सम्भव है, जिससे निर्धनता की समस्या हल होगी।
  4. सभी व्यक्तियों को ‘खाद्यान्न’ या सन्तुलित आहार इसके माध्यम से ही सुलभ हो सकता है।
  5. कृषि पर जनसंख्या की निर्भरता भी परिवार नियोजन से ही कम हो सकती है। इससे कृषि की उत्पादन क्षमता भी बढ़ेगी।
  6. यह बेरोजगारी समाप्त करने की अचूक औषध है।
  7. इसके माध्यम से ही महँगाई को नियन्त्रित किया जा सकता है।
  8. माँ के स्वास्थ्य को ठीक बनाए रखने के लिए भी परिवार नियोजन का महत्त्व है।
  9. सभी को शिक्षा-दीक्षा व मनोरंजन के अवसर प्राप्त करने में यह अप्रत्यक्ष रूप से सहायक होता है।
  10.  इसके द्वारा ही तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या के आवास की समस्या को हल किया जा सकता है।
  11. बढ़ते हुए अपराधों, नगरीकरण के दोषों तथा प्रदूषण से बचने के लिए भी इसका महत्त्व अधिक है।
  12.  परिवार नियोजन शिशुओं के प्रति स्नेह उत्पन्न करता है तथा अच्छे माता-पिता व अच्छे समाज का निर्माण करता है।
  13. परिवार नियोजन के द्वारा प्रदूषण की समस्या, पारिस्थितिकी के असन्तुलन की समस्या, जन-जीवन के कल्याण एवं सुरक्षा की समस्या आदि को भी हल किया जा सकता है।

परिवार नियोजन कार्यक्रम की असफलता
यद्यपि भारत सरकार ने इस कार्यक्रम को पूर्ण प्राथमिकता के साथ लागू किया है, तथापि इस कार्यक्रम को अभी तक वांछित सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है। केवल 23% दम्पती ही अभी तक इस कार्यक्रम के दायरे में लाये जा सके हैं। शेष 77% दम्पतियों ने अभी तक इस कार्यक्रम को नहीं अपनाया है। जूनियर हक्सले के शब्दों में, “जनसंख्या के सम्बन्ध में भारत की स्थिति अत्यन्त संकटपूर्ण है। यदि वह अपनी जनसंख्या की समस्या को हल करने में असफल रहता है तो वह एक बड़ा आर्थिक एवं सामाजिक विनाश उत्पन्न कर लेगा। यदि वह सफल होता है तो न केवल उसे एशिया का नेतृत्व प्राप्त होगा, वरन् वह सम्पूर्ण विश्व की आशा का केन्द्र बन जाएगा।

इस कार्यक्रम की आंशिक सफलता के कारण निम्नलिखित हैं

  1.  अशिक्षा एवं जन-सहयोग का अभाव।
  2. अन्धविश्वास एवं धार्मिक अवरोध।
  3. जन-आन्दोलन का स्वरूप प्राप्त करने में असफल।
  4.  शहरों तक ही सीमित, ग्रामीण क्षेत्रों में आंशिक रूप से सफल।
  5. यौन शिक्षा का अभाव।

निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि आज के छात्र जो कल के कर्णधार हैं, जनसंख्या की वृद्धि से उत्पन्न होने वाली समस्याओं के बारे में गम्भीरता से सोचें और विचारों तथा बड़े होने पर उनके समाधान में सहयोग देने का दृढ़ निश्चय अभी से कर लें, तब ही इस समस्या का सार्थक समाधान सम्भव होगा।

प्रश्न 4
नयी राष्ट्रीय जनसंख्या-नीति, 2000 पर एक लेख लिखिए। [2007, 10]
या
भारत की जनसंख्या-नीति पर प्रकाश डालिए। [2008, 11]
या
राष्ट्रीय जनसंख्या-नीति, 2000 की मुख्य विशेषताएँ बताइए। [2007, 10]
या
भारत की जनसंख्या-नीति, 2000 पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2014]
उत्तर:
केन्द्र सरकार ने नयी जनसंख्या-नीति की घोषणा 15 फरवरी, 2000 ई० को की थी। राष्ट्रीय जनसंख्या-नीति, 2000 ई० का निर्धारण तीन मुख्य उद्देश्यों या लक्ष्यों को सामने रखकर किया गया; जो निम्नलिखित हैं,

1. नयी नीति का तात्कालिक उद्देश्य है – छोटे परिवार अर्थात् प्रति दम्पती 2 बच्चों के मानक को प्रोत्साहन देना। इसके लिए वांछित क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में गर्भनिरोधकों, स्वास्थ्य सुरक्षा ढाँचा व स्वास्थ्यकर्मियों की आपूर्ति करने के साथ-साथ प्रोत्साहन पुरस्कारों की योजना भी है।

2. मध्यकालीन उद्देश्य के अन्तर्गत परिवार नियोजन के उपायों को प्रभावी बनाकर 2010 ई० तक कुल प्रजननता दर को 2: 1 के प्रतिस्थापना स्तर तक लाना है तथा 2010 ई० तक देश की जनसंख्या को 110 करोड़ पर सीमित करना है।

3. दीर्घकालीन उद्देश्य के अन्तर्गत 2045 ई० तक स्थिर जनसंख्या को ऐसे स्तर पर स्थिर बनाने की बात कही गयी है जो आर्थिक वृद्धि, सामाजिक विकास तथा पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि के अनुरूप हो।

नयी जनसंख्या नीति में राज्यों की निर्भय सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए लोकसभा की संरचना को 2001 ई० के पश्चात् 25 वर्ष आगे तक अपरिवर्तित रखने की घोषणा की गयी है। इसका अर्थ है कि लोकसभा में निर्वाचित सीटों की संख्या अब 2026 ई० तक 543 ही बनी रहेगी तथा प्रत्येक राज्य में सीटों की संख्या भी तब तक यथावत् रहेगी।

15 फरवरी, 2000 ई० को केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल द्वारा अनुमोदित नयी जनसंख्या नीति की घोषणा करते हुए केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री ने बताया कि छोटे परिवार (प्रति दम्पती 2 बच्चे) का मानक अपनाने के लिए प्रोत्साहन एवं प्रेरणा प्रदान करने हेतु इसमें 16 उपायों को सम्मिलित किया गया है, जो निम्नलिखित हैं

  1.  केन्द्र सरकार उन पंचायतों और जिला पंचायतों को पुरस्कृत करेगी जो अपने क्षेत्र में रहने वाले लोगों को जनसंख्या नियन्त्रण के उपायों को अधिकाधिक अपनाने के लिए प्रेरित करेंगे।
  2.  नयी नीति के अन्तर्गत बाल-विवाह निरोधक अधिनियम तथा प्रसव पूर्व लिंग-परीक्षण निरोधक अधिनियम को कड़ाई के साथ लागू किया जाएगा।
  3. गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले उन परिवारों को पाँच हजार रुपये की स्वास्थ्य बीमा की सुविधा दी जाएगी जिनके मात्र दो बच्चे होंगे और दो बच्चों के जन्म के बाद उन्होंने बन्ध्याकरण करा लिया होगा।
  4. ऐसे लोगों को पुरस्कृत किया जाएगा, जो निर्धारित आयु में विवाह करने के पश्चात् पहले बच्चे को तब तक जन्म न दें जब तक माँ की उम्र 21 वर्ष की न हो और छोटे परिवारों के सिद्धान्त में विश्वास रखते हुए दो बच्चों को जन्म देने के पश्चात् बन्ध्याकरण करा लें।
  5. ग्रामीण क्षेत्रों में एम्बुलेन्स की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए उदार शर्तों पर ऋण एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
  6. गर्भपात सुविधा योजना को और सुदृढ़ किया जाएगा।
  7. अशासकीय स्वयंसेवी संस्थाओं को इस कार्य से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
  8.  लड़कियों की विवाह की न्यूनतम आयु को 18 वर्ष से बढ़ाकर 20 वर्ष से भी अधिक किया जाएगा।
  9.  ऐसी सुविधाएँ जुटाने के प्रयास किए जाएँगे जिससे तीन-चौथाई से अधिक (80%) प्रसवों के लिए प्रशिक्षित कर्मियों, नियमित डिस्पेन्सरियों, अस्पतालों व चिकित्सा संस्थानों का प्रयोग किया जा सके।
  10.  शिशु मृत्यु-दर (1,000 जीवित जन्मे शिशुओं पर) को 30% से कम किया जाएगा।
  11.  मातृ मृत्यु-दर को एक लाख जीवित जन्मों के लिए 100 से भी कम करने के प्रयास किए जाएँगे।
  12.  भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का प्रजनन और बाल-स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उपयोग किया जाएगा।
  13. एड्स के बारे में सूचना उपलब्ध कराना तथा संक्रामक रोगों पर नियन्त्रण के प्रयास करना।
  14. प्राथमिक शिक्षा की उपलब्धता को नि:शुल्क और अनिवार्य करना।
  15. जन्म और मृत्यु के साथ ही विवाह और गर्भ के पंजीकरण को भी अनिवार्य किया गया है।
  16. जनसंख्या नीति के कार्यान्वयन पर निगरानी रखने के लिए प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में जनसंख्या पर एक राष्ट्रीय आयोग नियुक्त करना, जिससे जनसंख्या नियन्त्रण की समस्याओं का तत्काल समाधान किया जा सके।

नयी जनसंख्या नीति के कार्यान्वयन एवं समीक्षा के लिए 11 मई, 2000 ई० को प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय 100 सदस्यीय राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन किया गया। केन्द्रीय परिवार-कल्याण मन्त्री व अन्य कुछ सम्बन्धित केन्द्रीय मन्त्रियों के अतिरिक्त सभी राज्यों व केन्द्रशासित क्षेत्रों के मुख्यमन्त्री इस आयोग के सदस्य बनाये गये। जाने-माने जनसंख्याशास्त्रियों, जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों व गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों को भी इसमें सम्मिलित किया गया। योजना आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष के०सी० पन्त को इस आयोग का भी उपाध्यक्ष बनाया गया था।

सरकार ने जनसंख्या नियन्त्रण की आधार-संरचना को उन्नत करने के उद्देश्य से ₹3,000 करोड़ का अतिरिक्त प्रावधान किया है, जिससे गर्भ-निरोध की अभी तक पूरी न हो सकी जरूरतों को पूरा किया जा सके।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
भारतीय जनसंख्या का विभिन्न आधारों पर वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
भारत में जनसंख्या का वितरण समान नहीं है। सन् 2011 के आँकड़ों के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ थी। भारत की जनसंख्या का विभिन्न आधारों पर वितरण निम्नलिखित है

1. जनसंख्या घनत्व के आधार पर – देश में जनसंख्या का घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी था: परन्तु विभिन्न राज्यों में जनसंख्या का घनत्व समान नहीं है। राज्यों में सर्वाधिक घनत्व बिहार का (1102 व्यक्ति) तथा सबसे कम अरुणाचल प्रदेश का (17 व्यक्ति) है। इसी प्रकार केन्द्रशासित क्षेत्रों में सर्वाधिक घनत्व दिल्ली में ( 11,297 व्यक्ति) तथा सबसे कम अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में ( 46 व्यक्ति) था।

2. स्त्री-पुरुष के आधार पर – 2011 के आँकड़ों के अनुसार कुल जनसंख्या 121 करोड़ रही, जिसमें पुरुष जनसंख्या 62.37 करोड़ (51.73 प्रतिशत) तथा स्त्री जनसंख्या 58.64 करोड़ (48.27 प्रतिशत) थी। स्त्री-पुरुष अनुपात 940 रहा। राज्यों में प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाओं की सर्वाधिक संख्या केरल (1,084) तथा सबसे कम हरियाणा में (877) रही।

3. साक्षरता के आधार पर – पूरे देश के लिए साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत थी, जिसमें पुरुषों की साक्षरता 82.14 प्रतिशत तथा महिलाओं की 65.46 प्रतिशत थी। सर्वाधिक साक्षरता केरल में 93.91 प्रतिशत तथा सबसे कम बिहार में 63.82 प्रतिशत थी। महिलाओं में सर्वाधिक साक्षरता केरल में 91.98 प्रतिशत तथा सबसे कम राजस्थान में 52.66 प्रतिशत थी।

4. जनसंख्या के आधार पर – देश में सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश है। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 19.95 करोड़ तथा सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य सिक्किम है, जिसकी जनसंख्या 6.07 लाख है। सर्वाधिक जनसंख्या वाला केन्द्रशासित क्षेत्र दिल्ली है। दिल्ली की जनसंख्या 167.53 लाख तथा सबसे कम जनसंख्या वाला केन्द्रशासित राज्य लक्षद्वीप है जहाँ की जनसंख्या 64.42 हजार है।

5. जनसंख्या-वृद्धि दर –  वर्ष 2001 की जनगणना की तुलना में 2011 में जनसंख्या में कुल 18.14 करोड़ व्यक्तियों की वृद्धि हुई। इस प्रकार वर्ष 2001-11 के दशक में जनसंख्या में 17.64 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वर्ष 2001-11 के दशक में जनसंख्या में वार्षिक घातांकी वृद्धि दर 1.64 प्रतिशत रही। राज्यों में सर्वाधिक दशक वृद्धि दर दादर नगर हवेली में 55.50 प्रतिशत रही, जबकि न्यूनतम केरल में 0.47 प्रतिशत रही।

प्रश्न 2
जनसंख्या-विस्फोट के परिणामों पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए। [2009]
या
भारत की सबसे कठिन समस्या उसकी तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या है।” विवेचना कीजिए।
या
सन् 1951 से भारत में मुख्य जनांकीय प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए। [2011]
या
जनसंख्या विस्फोट क्या है? जनसंख्या विस्फोट के परिणाम लिखिए। [2016]
उत्तर:
तीव्र गति से जनसंख्या का बढ़ना, जनसंख्या विस्फोट कहलाता है। विश्व में चीन के बाद भारत ही सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। भारत की वर्तमान जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग छठवाँ हिस्सा है, जबकि भारत के पास विश्व के कुल भू-भाग का केवल 2.4 प्रतिशत भाग है। भारत की जनगणना आँकड़ों के अनुसार, सन् 1901 में भारत की जनसंख्या 23.84 करोड़ थी जो 1941 में बढ़कर 31.87 करोड़, 1951 में 36.11 करोड़, 1961 में 43.92 करोड़, 1971 में 54.82 करोड़, 1981 में 68.33 करोड़, 1991 में 84.64 करोड़, 2001 में 102.7 करोड़ तथा वर्तमान में भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ के ऊपर हो चुकी है। भारत में जनसंख्या वृद्धि के विगत दशकों के आँकड़े लें तो हमें ज्ञात होगा कि जनसंख्या वृद्धि दर 1921 ई० तक तो बहुत कम थी, परन्तु उसके उपरान्त वृद्धि-दर तेजी से बढ़ी है। वर्ष 1961-71 के मध्य वृद्धि दर 2.22 प्रतिशत प्रति वर्ष थी जो 1971-81 में 2.20 प्रतिशत प्रति वर्ष रही । भारत में इस समय जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि-दर लगभग 1.64 प्रतिशत प्रति वर्ष है। भारत की जनसंख्या 1.80 करोड़ वार्षिक वृद्धि की दर से बढ़ रही है अर्थात् हम भारत में प्रति वर्ष एक ऑस्ट्रेलिया एवं प्रति दस वर्षों में एक उत्तर प्रदेश को जन्म देते जा रहे हैं।

पिछले दो दशकों से समस्त विश्व में यह अनुभव किया जाने लगा है कि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में अनेक समस्याएँ सामने आ रही हैं। इसका प्रभाव विकास योजनाओं पर भी पड़ रहा है, क्योंकि विकास से उपलब्ध लाभों का वितरण अत्यधिक जनसंख्या में होने से प्रति व्यक्ति पर्याप्त सुविधाएँ नहीं मिल पा रही हैं, जिसके कारण देश की प्रगति अपेक्षित गति से नहीं हो पा रही हैं। यही कारण है। कि भारत जैसे विकासशील देशों के लिए अतिशय जनसंख्या अभिशाप मानी जाती है, क्योंकि इसके कारण ऐसी विकट समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं जो विकास के प्रयासों तथा परिणामों को मटियामेट कर देती हैं।

भारत में जनसंख्या-वृद्धि से उत्पन्न होने वाली प्रमुख समस्याएँ (परिणाम) निम्नलिखित हैं|

  1.  खाद्य सामग्री की आपूर्ति की समस्या!
  2. वस्त्र आपूर्ति की समस्या
  3. आवास समस्या।
  4. शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था की समस्या।
  5. स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाओं की समस्या।
  6. रोजगार की समस्या।
  7. यातायात सुविधाओं की समस्या।
  8. प्रदूषण की समस्या।
  9. पारिस्थितिकी के असन्तुलन की समस्या।
  10. जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने की समस्या।
  11.  जन-जीवन के कल्याण एवं सुरक्षा की समस्या।
  12.  गरीबी में वृद्धि व निम्न प्रति व्यक्ति आय की समस्या आदि।

अत: संक्षेप में हम कह सकते हैं कि भारत में आज जो भी महत्त्वपूर्ण समस्याएँ; जैसे-अपराध, भ्रष्टाचार, हिंसा, बेरोजगारी, अपहरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास आदि हैं, उनको मूल कारण भारत में तीव्रगति से बढ़ती जनसंख्या है।

प्रश्न 3
परिवार-नियोजन कार्यक्रम और प्रभावी कैसे हो सकता है? इस सम्बन्ध में अपने सुझाव प्रस्तुत करें। [2009, 10]
या
भारत में परिवार-कल्याण कार्यक्रम की सफलता के लिए दो/चार सुझाव दीजिए। [2011, 12]
उत्तर:
भारत की पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के अनुसार, “मृत्यु-दर में गिरावट संगठित सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के परिणामस्वरूप आती है। जन्म-दर में गिरावट शिक्षा-प्रसार तथा जीवन-स्तर में सुधार का परिणाम होती है। हम कह सकते हैं कि मृत्यु-देर में गिरावट समाज की

व्यक्ति के प्रति दायित्व के कारण तथा जन्म-दर में गिरावट व्यक्ति की समाज के प्रति दायित्व के कारण आती हैं। मानव-जाति का प्रारम्भ शिशु से होता है। जो व्यक्ति शिशु की परवाह करता है, वह मानव-जाति की परवाह करता है।”
उपर्युक्त विचार से यह स्पष्ट होता है कि परिवार नियोजन को प्रभावी बनाने में मनुष्य का सहयोग या दायित्व महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित हैं

  1. परिवार कल्याण कार्यक्रम का प्रचार एवं प्रसार पूरे देश में किया जाना चाहिए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, क्योंकि भारत की 75% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में ही निवास करती है।
  2. परिवार कल्याण कार्यक्रम को ‘जन-अभियान’ बनाया जाना चाहिए।
  3. ‘सेक्स शिक्षा’ को हेय दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए, वरन् परिवार-कल्याण कार्यक्रम एवं सेक्स शिक्षा को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  4. परिवार-कल्याण कार्यक्रम के साधन आधुनिक बाजारवाद से लिप्त नहीं होने चाहिए, वरन् आयुर्वेद, होम्योपैथी आदि से सम्बन्धित गर्भनिरोधक होने चाहिए जो सस्ते, प्रयोग में आसान तथा बिना किसी अनुचित प्रभाव वाले हों।
  5.  प्रौढ़ शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार भी होना चाहिए।
  6. परिवार नियोजन की शिक्षा सभी व्यक्तियों को दी जानी चाहिए, जिससे वे नियोजित परिवार के महत्त्व को समझ सकें।
  7. परिवार नियोजन कार्यक्रम को राष्ट्रीय महत्त्व को समझा जाना चाहिए।
  8. उन डॉक्टरों को विशेष सुविधाएँ दी जानी चाहिए जो इस कार्यक्रम को लागू करने और सफल बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर काम करने को तैयार हैं।
  9. परिवार नियोजन कार्यक्रम में स्वैच्छिक संगठनों का सहयोग लिया जाना चाहिए, उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए तथा इन संगठनों के कर्मचारियों को भी उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
  10.  शिक्षाविदों तथा जन-माध्यम में लगे व्यक्तियों का कर्तव्य है कि वे ऐसे व्यक्तियों के प्रति. जो परिवार नियोजन के विचार से असहमत हैं और इसके बारे में भ्रामक प्रचार करते हैं, की कड़ी छानबीन करें तथा उन्हें गलत प्रचार करने से रोकें।।
  11.  अधिक-से-अधिक जनसंख्या को शिक्षित करके कट्टर धार्मिक विचारधारा को मानने वाले लोगों के कारण जो अवरोध उत्पन्न हो रहे हैं, उन्हें समाप्त किया जाना चाहिए।
  12.  गर्भ निरोधक औषधियाँ या अन्य उपकरण नि:शुल्क या कम मूल्य पर सरकार द्वारा वितरित की जानी चाहिए।
  13.  अधिक-से-अधिक परिवार कल्याण केन्द्र ग्रामीण क्षेत्रों तथा औद्योगिक क्षेत्रों में स्थापित किए जाने चाहिए।
  14. चलचित्र, नाटक, रेडियो, टेलीविजन आदि के माध्यम से परिवार नियोजन कार्यक्रम का प्रसार किया जाना चाहिए।
  15. स्त्री-पुरुषों को दीर्घकालीन प्रतिरक्षा प्रदान करने के लिए सम्बन्धित शोध-संस्थानों को अधिक प्रभावशाली तथा सुरक्षित तरीके खोज निकालने चाहिए।
  16. परिवार नियोजन से सम्बन्धित साधनों से दम्पती न केवल इसमें सक्षम हों कि वे गर्भ से बच सकें, बल्कि वे इच्छानुसार शिक्षा भी प्राप्त कर सकें।

प्रश्न 4
परिवार-कल्याण कार्यक्रम के सम्बन्ध में सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गये हैं ? [2006]
उत्तर:
स्वाधीनता के बहुत पहले ही हमने यह अनुभव कर लिया था कि गरीबी से तब तक नहीं निपटा जा सकता जब तक कि परिवार का आकार सीमित न हो। भारत परिवार नियोजन को सरकारी नीति के रूप में अपनाने वाला पहला देश है। जनसंख्या नियन्त्रण हमारी योजनाओं का एक अभिन्न अंग है। सरकार द्वारा किये गये प्रयासों के कारण जन्म-दर, जो सन् 1951 में 40.8 प्रति हजार से अधिक थी, वह 2011 में घटकर 23 प्रति हजार तक आ गयी है। हमारा लक्ष्य औसत राष्ट्रीय जन्म दर को घटाकर 21 प्रति हजार से भी कम करना है। सन् 1951 के जनगणना आयुक्त ने परिवार नियोजन की आवश्यकता पर बल दिया था। इसलिए प्रथम तथा द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं में सरकार ने कुछ अप्रत्यक्ष प्रयास किये, लेकिन इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। सन् 1961 ई० की जनगणना में हुई जनसंख्या-वृद्धि से सरकार अत्यधिक चिन्तित हुई। अत: 1966 ई० में इसके लिए एक पृथक् स्वतन्त्र विभाग खोला गया।
पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा सरकार जनसंख्या नियन्त्रित करने तथा परिवार कल्याण के लिए निम्नलिखित प्रयास किये हैं

1. परिवार-कल्याण मन्त्रालय की स्थापना – परिवार-कल्याण कार्यक्रमों के उचित संचालन के लिए परिवार कल्याण मन्त्रालय स्थापित किया गया है। यह मन्त्रालय परिवार कल्याण सम्बन्धी कार्यों एवं नीतियों के साथ-साथ इस बात का भी निर्धारण करता है कि परिवार कल्याण कार्यक्रम के अन्तर्गत हमने कितनी सफलता प्राप्त की है।

2. परिवार-कल्याण केन्द्र की स्थापना – जनता को परिवार-कल्याण सम्बन्धी सुविधाएँ उपलब्ध कराने हेतु देश के प्रत्येक भाग में यहाँ तक कि ब्लॉक-स्तर पर परिवार-कल्याण केन्द्रों की स्थापना की गयी है, जिससे जनसाधारण को नियोजन सम्बन्धी सामग्रियाँ; जैसे – ओषधि, निरोध आदि नि:शुल्क वितरित की जाती हैं तथा नसबन्दी कराने की भी सुविधा उपलब्ध रहती है।

3. पुरस्कार एवं दण्ड को प्रावधान – परिवार नियोजन कार्यक्रमों को सफल बनाने हेतु पुरस्कार एवं दण्ड के प्रावधान की व्यवस्था भी की गयी है। इसके अन्तर्गत जिसके तीन या अधिक बच्चे हैं, उनकी बहुत-सी सुविधाओं को समाप्त कर दिया गया है। ऑपरेशन कराने वालों तथा प्रेरकों को कुछ नकद रुपये भी प्रोत्साहन राशि के रूप में दिये जाते हैं। जिन दम्पतियों के दो या दो से कम बच्चे हैं, उन्हें सरकार एक विशेष वार्षिक वेतन वृद्धि दे रही है जिसका लाभ उन्हें सेवाकाल तथा उसके बाद भी मिलती रहता है।

4. अनुकूल जनमत तैयार करना – परिवार नियोजन के प्रचार व प्रसार के लिए समय-समय पर परिवार-कल्याण सप्ताह तथा ऑपरेशन शिविरों का भी प्रबन्ध किया जाता है। स्वास्थ्य शिक्षकों की नियुक्तियाँ भी की गयी हैं। ये गाँवों में घर-घर जाकर परिवार-कल्याण की शिक्षा देते हैं। परिवार नियोजन के प्रति जनमत तैयार करने के उद्देश्य से बड़े पैमाने पर रेडियो, समाचार-पत्रों, चलचित्रों आदि के माध्यम से प्रचार किया जाता हैं।

5. गर्भपात को वैधानिक मान्यता – हमारे देश में अप्रैल,स सन् 1972 से ‘Medical Termination of Pregnancy Act’ जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में लागू किया गया है। इस कानून के द्वारा गर्भपात को वैधानिक मान्यता प्राप्त हो गयी है।

6. विवाह की आयु में वृद्धि – वैवाहिक आयु की सीमा को बढ़ाकर लड़कियों के लिए 18 वर्ष तथा लड़कों के लिए 21 वर्ष कर दिया गया है।

7. जनसंख्या-शिक्षा – सरकार ने यह अनुभव किया है कि जनसंख्या सम्बन्धी नीतियों एवं कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने हेतु शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सन् 1970 में राष्ट्रीय स्तर पर एक जनसंख्या शिक्षा कोष्ठ’ तथा प्रशिक्षण संस्थाओं के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ की शाखा ‘यूनाइटेड नेशन्स फण्ड फॉर पॉपुलेशन एक्टीविटीज’ के सहयोग से भारत सरकार ने जनसंख्या शिक्षा कार्यक्रम को देश में कार्यान्वित करने के लिए कदम उठाया।

प्रश्न 5
भारत में परिवार-कल्याण कार्यक्रमों के मार्ग में आने वाली बाधाओं को समझाइए। [2009]
उत्तर:
भारत परिवार नियोजन को सरकारी नीति के रूप में अपनाने वाला संसार का पहला देश है। जनसंख्या-नियन्त्रण हमारी विकास योजनाओं का अभिन्न अंग-पूर्णतया स्वैच्छिक है। परिवार-कल्याण कार्यक्रम के मार्ग में अनेक बाधाएँ हैं, जिससे यह कार्यक्रम पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पा रहा है। इस कार्यक्रम की प्रमुख बाधाएँ अग्रलिखित हैं

1. कार्यक्रम जन-अभियान न बन पाना – परिवार-कल्याण कार्यक्रम 50 वर्षों के पश्चात् भी जन-अभियान नहीं बन पाया है। इसका मूल कारण हमारे देश की जटिल सामाजिक व्यवस्था के द्वारा ‘सेक्स शिक्षा’ को हेय दृष्टि से देखना रहा है।

2. कार्यक्रम का पूरा दायित्व महिलाओं पर – परिवार कल्याण कार्यक्रम का पूरा दायित्व महिलाओं पर डाल दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप इस कार्यक्रम की कमर टूट गयी है। गर्भाधान रोकने के सबसे अधिक उपाय महिलाओं के हैं, जबकि पुरुषों के लिए मात्र एक गर्भ निरोधक है, उसे भी एड्स जैसे रोगों से बचाव के माध्यम के रूप में ही प्रचारित किया जा रहा है।

3. भारतीय समाज का पुरुष-प्रधान होना – परिवार-कल्याण कार्यक्रम के अन्तर्गत महिला नसबन्दी की दर तो 35 प्रतिशत तक पहुँच गयी है, परन्तु पुरुष नसबन्दी की दर 3 प्रतिशत से भी कम है। इसका प्रमुख कारण भारतीय समाज का पुरुष-प्रधान होना है, जो परिवार कल्याण कार्यक्रम में बाधक है।

4. अशिक्षा एवं अन्धविश्वास – हमारे देश में अधिकांश व्यक्ति अशिक्षित हैं। इस कारण वे परिवार के आकार के सम्बन्ध में उदासीन रहते हैं। भारत में 26 प्रतिशत तथा उत्तर प्रदेश में 31 प्रतिशत व्यक्ति अशिक्षित हैं। लाखों दम्पतियों, जिनमें से अधिकांश अशिक्षित हैं, को परिवार नियोजन के प्रति सहमत करना कठिन है। सन्तान ईश्वर की देन है और आने वाली सन्तान को नहीं रोका जाना चाहिए, यह धारणा तथा शिक्षा की कमी परिवार नियोजन के विकास में सर्वाधिक बाधक है।

5. आर्थिक व धार्मिक दृष्टि से पुत्र का महत्त्व – धार्मिक दृष्टि से यह समझा जाता है कि पुत्र का जन्म होना अनिवार्य है तथा पुत्र के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं होता। इसलिए परिवार में कई लड़कियाँ होने पर भी पुत्र की अभिलाषा बनी ही रहती है। अधिक आर्थिक समृद्धि अधिक पुत्र सन्तति से ही मिल सकती है, यह धारणा भी परिवार कल्याण कार्यक्रम में बाधक है।

6. राष्ट्रीय भावना की कमी या राजनीतिक कारण – प्रजातन्त्रात्मक सरकार होने के कारण भारत का नागरिक-नेतृत्व किसी भी कार्यक्रम पर राष्ट्रीय दृष्टिकोण से विचार न करके अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण से विचार करता है तथा अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति करता है। यह मनोवृत्ति भी इस कार्यक्रम में बाधक बनती है।

7. धार्मिक मान्यताएँ – भारत में विभिन्न धर्मों व सम्प्रदायों के व्यक्ति निवास करते हैं। कुछ धर्मावलम्बी इस कार्यक्रम में अपना सहयोग नहीं दे रहे हैं। उनका कहना है कि हमारा धर्म इन कार्यक्रमों को अपनाने की अनुमति नहीं देता है।

8. परिवार-नियोजन की विधियाँ – भारत में परिवार नियोजन की सरल एवं प्रभावी विधियों का अभाव है। भारत में अभी तक केवल एक ही विधि सफल रही है-बन्ध्याकरण। इसलिए उत्तम व श्रेष्ठ तथा सरल विधि का न होना भी परिवार नियोजन कार्यक्रम में बाधक है।

प्रश्न 6
‘जनसंख्या शिक्षा क्या है ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
जनसंख्या शिक्षा वह शिक्षा है जो मनुष्य को विश्व, देश तथा राज्य की जनसंख्या के सभी पक्षों का ज्ञान दे। जनसंख्या और इसकी समस्याओं के प्रति ऐसी अवधारणाओं तथा व्यवहार का विकास करने में सहायक हो, जो व्यक्ति और राष्ट्र के लिए हितकारी हों।
दूसरे शब्दों में, “जनसंख्या शिक्षा एक शैक्षिक प्रयास है, जिसके द्वारा विभिन्न वर्गों, विशेषकर छात्र-छात्राओं को विश्व के परिप्रेक्ष्य में देश, प्रदेश तथा क्षेत्र की जनसंख्या-स्थिति, जनांकिकी के प्रमुख तत्त्वों, जनसंख्या और पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्ध, जनसंख्या-वृद्धि का आर्थिक एवं सामाजिक विकास पर प्रभाव आदि का बोध कराया जा सकेगा। साथ ही जनसंख्या-वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं और जनसाधारण के जीवन-स्तर पर पड़ने वाले प्रभावों के विषय में भी जागरूक कराया जा सकेगा।

जनसंख्या शिक्षा न तो परिवार नियोजन सम्बन्धी कार्यक्रम है, न यौन शिक्षा और न कोई प्रचार या विशिष्ट दीक्षा सम्बन्धी कार्यक्रम। जनसंख्या शिक्षा का स्वरूप अति व्यापक है, जनसंख्या शिक्षा एक, सतत प्रक्रिया है। यह एक बार में ही अपना उद्देश्य पूरा कर समाप्त हो जाने वाली नहीं है। यह एक व्यापक विद्या है, जिसकी उपादेयता वर्तमान में भी है और भविष्य में भी रहेगी, क्योंकि इसका उद्देश्य मानव-कल्याण है।
जनसंख्या शिक्षा मानव जनसंख्या का वह अध्ययन है जिसका सम्बन्ध पर्यावरण से है तथा जिसके द्वारा पर्यावरण को प्रभावित किये बिना मानव-जीवन में गुणात्मक सुधार लाया जा सकता है।
विडरमैन ने लिखा है, “जनसंख्या शिक्षा एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा विद्यार्थी जनसंख्या प्रक्रिया की प्रवृत्ति एवं अर्थ, जनसंख्या की विशेषताओं, जनसंख्या परिवर्तन के कारण एवं परिणाम तथा इन परिवर्तनों के अपने परिवार, अपने समाज तथा विश्व पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है।’

प्रश्न 7
जनसंख्या शिक्षा के उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत सरकार ने जनसंख्या सम्बन्धी नीतियों एवं कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने के लिए 1970 ई० में राष्ट्रीय स्तर पर एक ‘जनसंख्या शिक्षा कोष्ठ’ स्थापित किया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की शाखा ‘यूनाइटेड नेशन्स फण्ड फॉर पॉपुलेशन एक्टीविटीज’ के सहयोग से जनसंख्या शिक्षा कार्यक्रम को देश में कार्यान्वित करने के लिए कदम उठाया, जिसके निम्नलिखित उद्देश्य हैं

  1.  जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए हमें जनसाधारण में ऐसी चेतना का विकास करना है। जो व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र के लिए हितकारी हो।
  2. जनसंख्या शिक्षा माध्यम के द्वारा हमें छात्र-छात्राओं को इस योग्य बनाना है कि जो भविष्य में यह निर्णय लेने में सक्षम हों कि उनके परिवार का क्या आकार होना चाहिए।
  3. जनसंख्या शिक्षा के द्वारा राष्ट्र के समस्त निवासियों, विशेष रूप से छात्र-छात्राओं को विश्व के परिप्रेक्ष्य में अपने देश, राज्य एवं क्षेत्र की जनसंख्या स्थिति के सम्बन्ध में जानकारी देना है।
  4. जनसंख्या शिक्षा के माध्यम से जनसाधारण को जनसंख्या में होने वाली वृद्धि के कारणों एवं कुप्रभावों को भी बताना है।
  5.  जनसंख्या शिक्षा के द्वारा जनसंख्या के सिद्धान्तों का ज्ञान तथा उन सिद्धान्तों का परिपालन्। करना भी बताया जाता है।
  6. जनसाधारण को यह बताना कि प्राकृतिक साधनों एवं जनसंख्या का घनिष्ठ सम्बन्ध है और यदि जनसंख्या और प्राकृतिक संसाधनों का सन्तुलन ठीक है तो यह हमारे सुख का आधार हो सकता है।
  7. जनसंख्या शिक्षा माध्यम के द्वारा मानव अधिकारों का ज्ञान कराना तथा व्यक्तियों में प्रेम और सहानुभूति की भावना का विकास करना।

प्रश्न 8
जनसंख्या शिक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
यह आशंका प्रकट की जाती है कि विश्व की जनसंख्या, जो 1980 ई० में 4 अरब के करीब थी, सन् 2000 तक 6 अरब की संख्या को पार कर चुकी थी। दूसरे शब्दों में, आने वाले दो दशकों में आज पृथ्वी पर जितने लोग रहते हैं उसका आधा हिस्सा उसमें और जुड़ जाएगा, यानि जनसंख्या डेढ़ गुना अधिक हो जाएगी। इस वृद्धि में 90% जनसंख्या की वृद्धि विकासशील देशों में होगी, जो कि पहले से ही भूमि, भोजन, पानी, आवास, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य की समस्याओं से ग्रस्त हैं। इन सब कारणों से आज जनसंख्या शिक्षा का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है। यदि विकासशील देशों को भोजन, आवास, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य की समस्याओं का निवारण करना है तो इन सबका एकमात्र उपाय जनसंख्या शिक्षा है, क्योंकि जनसंख्या शिक्षा के माध्यम से जन्म-दर में गिरावट आएगी तथा जनसंख्या को नियन्त्रित करने में सफलता मिलेगी। उपर्युक्त सभी समस्याओं, विशेष रूप से बेरोजगारी, निर्धनता, भोजन व आवास तथा शिक्षा और स्वास्थ्य की समस्याओं से तब तक सुचारु रूप से नहीं निपटा जा सकता, जब तक कि परिवार का आकार सीमित न हो जिससे हर शिशु को संसाधनों तथा अवसरों का उचित अंश मिल सके। यह सब जनसंख्या शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार द्वारा ही सम्भव है।

प्रश्न 9
नगरीकरण का आर्थिक विकास से क्या सम्बन्ध है? नगरों में जनसंख्या-वृद्धि के क्या कारण हैं?
उत्तर:
किसी भी देश के नगरीकरण में प्रगति उस देश के विकास की गति को सूचित करती है। यही कारण है जिसकी वजह से कहा जाता है कि नगरीकरण व आर्थिक विकास का घनिष्ठ सम्बन्ध है। जिस देश में नगरीकरण का अनुपात जितना अधिक होगा वह देश उतना ही अधिक विकसित होगा।
भारत की सन् 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या की 30 प्रतिशत नगरों में रहती है तथा शेष 70 प्रतिशत गाँवों में। वर्ष 1991 में यह अनुपात 26 : 74 था।
नगरों में जनसंख्या वृद्धि के कारण निम्नलिखित हैं

  1.  उद्योगीकरण एवं नवीन उद्योगों का विकास,
  2. देश-विभाजन,
  3. गाँवों की सुरक्षा में कमी,
  4.  नगरों में चिकित्सा, शिक्षा, मनोरंजन प्रशिक्षण व रोजगार की सुविधाओं व क्षमता का होना तथा
  5. जमींदारों की शहरों में बसने की प्रवृत्ति आदि।

भारत में भी नगरों में रहने वाली जनसंख्या का प्रतिशत बढ़ा है, जो वर्तमान में 30 प्रतिशत है, जबकि चेक गणराज्य, स्लोवाकिया में 66 प्रतिशत, रूस और अमेरिका में 77 प्रतिशत, जापान में 79 प्रतिशत, कनाडा में 77 प्रतिशत, ऑस्ट्रेलिया में 85 प्रतिशत व ब्रिटेन में 89 प्रतिशत व्यक्ति शहरों में रहते हैं।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में जिन चार महानगरों की आबादी सबसे अधिक है, वे हैं-मुम्बई 1 करोड़ 24 लाख, दिल्ली 1 करोड़ 10 लाख, बंगलुरु 84 लाख व हैदराबाद 68 लाख।।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
भारत में तीव्र जनसंख्या-वृद्धि के किन्हीं चार प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालिए। [2016]
उत्तर:
जनसंख्या-वृद्धि को रोकने के उपाय
जनसंख्या की समस्या के समाधान के लिए हमें एक साथ कई उपाय करने पड़ेंगे। जन्म-दर को कम करने के लिए तत्कालीन एवं दीर्घकालीन उपाय किये जाने चाहिए। तत्कालीन उपायों में निरोध, नसबन्दी, लूप, ऑपरेशन आदि के लिए लोगों को प्रेरित करना तथा दीर्घकालीन उपायों में विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि, बाल-विवाह पर रोक, मनोरंजन के साधनों में वृद्धि, आत्म-संयम वे ब्रह्मचर्य के पालन के लिए लोगों को प्रेरित करना आदि हैं। इन उपायों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

1. जन्म-दर में कमी करना – जनसंख्या-वृद्धि को सीमित करने के लिए यह आवश्यक है कि मृत्यु-दरे के साथ-साथ जन्म-दर में भी गिरावट लायी जाए। वर्ष 1951-60 में जन्म-दर 41.7% थी, जो 2011 ई० में 23% हो गयी। जन्म-दर में और अधिक कमी लायी जानी चाहिए।

2. साक्षरता तथा शिक्षा का प्रसार आवश्यक – शिक्षा के माध्यम से ही जन-साधारण में जनसंख्या-वृद्धि के विषय में जागरूकता लायी जा सकेगी। विकसित देशों में जनसंख्या-वृद्धि की समस्या न होने का प्रमुख कारण उनकी शत-प्रतिशत साक्षरता है। भारत में केवल केरल में ही साक्षरता अन्य प्रदेशों की अपेक्षा अधिक है।

3. स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल – जनसंख्या-वृद्धि के परिप्रेक्ष्य में स्त्री-शिक्षा का विशेष महत्त्व है। केरल में स्त्रियों की साक्षरता प्रतिशत 91.98 है, जबकि उत्तर प्रदेश में 59.26 है। इसी कारण से उत्तर प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि की दर भी उच्च है। अत: जनसंख्या-वृद्धि पर नियन्त्रण हेतु स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल देने की आवश्यकता है।

4. विवाह सम्बन्धी कानूनों का सख्ती से पालन – यद्यपि विवाह की न्यूनतम आयु कानूनी तौर पर निर्धारित है। बाल-विवाह वर्जित है, फिर भी ये बुराइयाँ समाज में यथावत् बनी हुई हैं। इनका सख्ती से पालन किया जाना भी आवश्यक है। इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाया जा सकता है।

प्रश्न 2
जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले चार प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए। [2016]
उत्तर:
किसी स्थान-विशेष पर जनसंख्या का घनत्व निम्नलिखित मुख्य तत्त्वों द्वारा प्रभावित होता है

1. जलवायु – जनसंख्या का घनत्व जलवायु पर निर्भर करता है। जिस क्षेत्र यो स्थान की जलवायु उत्तम और स्वास्थ्यवर्द्धक होती है, वहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। इसके विपरीत, यदि किसी स्थान की जलवायु अधिक गर्म या अधिक ठण्डी होती है तो ऐसे स्थान पर जनसंख्या का घनत्व कम होता है।

2. वर्षा – जिन स्थानों पर वर्षा न तो बहुत अधिक होती है और न ही बहुत कम, उन स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। इसके विपरीत, जिन स्थानों पर अत्यधिक वर्षा होती है या बहुत कम वर्षा होती है, उन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व भी कम पाया जाता है। यही कारण है कि राजस्थान में वर्षा कम होने के कारण तथा असम में अधिक वर्षा होने के कारण जनसंख्या का घनत्व कम है।

3. भूमि की बनावट व उर्वरा-शक्ति – मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा पर्वतीय तथा पठारी क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व कम होता है, क्योंकि ऊँची-नीची भूमि होने के कारण कृषि कार्य करने तथा उद्योगों को स्थापित करने में कठिनाई होती है। इसके विपरीत, मैदानी भागों में मिट्टी समतल व अधिक उपजाऊ होती है इसलिए इन स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में गंगा-यमुना के मैदानी भाग में जनसंख्या का घनत्व अधिक है।

4. सिंचाई की सुविधाएँ – जिन क्षेत्रों में वर्षा की कमी को सिंचाई के साधनों द्वारा पूरा कर लिया जाता है या ज़िन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती हैं, उन क्षेत्रों में भी जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है।

प्रश्न 3
भारत में जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए कोई चार उपाय बताइए। [2010, 12, 14]
उत्तर:
जनसंख्या की समस्या के समाधान के लिए हमें एक साथ कई उपाय करने पड़ेंगे। जन्म-दर को कम करने के लिए तत्कालीन एवं दीर्घकालीन उपाय किये जाने चाहिए। तत्कालीन उपायों में निरोध, नसबन्दी, लूप, ऑपरेशन आदि के लिए लोगों को प्रेरित करना तथा दीर्घकालीन उपायों में विवाह की न्यूनतम आयु में वृद्धि, बाल-विवाह पर रोक, मनोरंजन के साधनों में वृद्धि, आत्म-संयम वे ब्रह्मचर्य के पालन के लिए लोगों को प्रेरित करना आदि हैं। इन उपायों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

1. जन्म-दर में कमी करना – जनसंख्या-वृद्धि को सीमित करने के लिए यह आवश्यक है कि मृत्यु-दरे के साथ-साथ जन्म-दर में भी गिरावट लायी जाए। वर्ष 1951-60 में जन्म-दर 41.7% थी, जो 2011 ई० में 23% हो गयी। जन्म-दर में और अधिक कमी लायी जानी चाहिए।

2. साक्षरता तथा शिक्षा का प्रसार आवश्यक – शिक्षा के माध्यम से ही जन-साधारण में जनसंख्या-वृद्धि के विषय में जागरूकता लायी जा सकेगी। विकसित देशों में जनसंख्या-वृद्धि की समस्या न होने का प्रमुख कारण उनकी शत-प्रतिशत साक्षरता है। भारत में केवल केरल में ही साक्षरता अन्य प्रदेशों की अपेक्षा अधिक है।

3. स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल – जनसंख्या-वृद्धि के परिप्रेक्ष्य में स्त्री-शिक्षा का विशेष महत्त्व है। केरल में स्त्रियों की साक्षरता प्रतिशत 91.98 है, जबकि उत्तर प्रदेश में 59.26 है। इसी कारण से उत्तर प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि की दर भी उच्च है। अत: जनसंख्या-वृद्धि पर नियन्त्रण हेतु स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल देने की आवश्यकता है।

4. विवाह सम्बन्धी कानूनों का सख्ती से पालन – यद्यपि विवाह की न्यूनतम आयु कानूनी तौर पर निर्धारित है। बाल-विवाह वर्जित है, फिर भी ये बुराइयाँ समाज में यथावत् बनी हुई हैं। इनका सख्ती से पालन किया जाना भी आवश्यक है। इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाया जा सकता है।

5. मनोरंजन के साधनों में वृद्धि – विशेष रूप से ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में मनोरंजन के साधनों में वृद्धि की जानी चाहिए। इनमें सिनेमा, सार्वजनिक दूरदर्शन की व्यवस्था, शिक्षाप्रद छोटी-छोटी फिल्मों का प्रदर्शन, अखाड़े, खेल-कूद प्रतियोगिताएँ आदि मुख्य हैं। मनोरंजन के साधनों में वृद्धि होने से जनसंख्या-वृद्धि पर भी नियन्त्रण लगेगा।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
जनसंख्या के घनत्व की परिभाषा अपने शब्दों में दीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या के घनत्व से अभिप्राय मनुष्य-भूमि अनुपात से है अर्थात् “किसी देश के प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या को जनसंख्या का घनत्व कहते हैं।”

प्रश्न 2
परिवार-कल्याण कार्यक्रम के मार्ग में उत्पन्न होने वाली चार बाधाएँ लिखिए।
उत्तर:
परिवार-कल्याण कार्यक्रम के मार्ग में निम्नलिखित चार बाधाएँ उत्पन्न होती हैं

  1. अशिक्षा एवं अन्धविश्वास,
  2. राष्ट्रीय भावना की कमी,
  3. परिवार-कल्याण कार्यक्रम का जन अभियान न बन पाना तथा
  4. भारतीय समाज का पुरुष-प्रधान होना।

प्रश्न 3
जन्म-दर से आप क्या समझते हैं? भारत में जन्म-दर के नवीनतम आँकड़े दीजिए।
उत्तर:
जन्म-दर से अर्थ एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के पीछे बच्चों के जन्म से है। वर्ष 2011 में यह 23 प्रति हजार हो गयी। यह दर अन्य देशों की तुलना में अत्यधिक ऊँची है।

प्रश्न 4
मृत्यु-दर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मृत्यु-दर से अर्थ एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के पीछे मृत्युओं की संख्या से है। भारत में इस दर में भी अत्यधिक कमी हुई है। वर्ष 2011 में यह 9 प्रति हजार है। यह अन्य देशों की तुलना में ऊँची है।

प्रश्न 5
जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न होने वाली दो समस्याओं को लिखिए। [2008, 13]
या
भारत में जनसंख्या-वृद्धि के कोई दो दुष्प्रभाव लिखिए। [2015]
उत्तर:
(1) खाद्य-सामग्री की आपूर्ति की समस्या।
(2) आवास की समस्या।

प्रश्न 6
जनसंख्या का घनत्व किस प्रकार ज्ञात किया जाता है?
उत्तर:
देश के कुलं भूमि क्षेत्रफल को कुल जनसंख्या से भाग देने पर जनसंख्या का घनत्व ज्ञात किया जाता है।

प्रश्न 7
परिवार नियोजन के दो लाभ बताइए। [2009]
उत्तर:
(1) देश के आर्थिक विकास का आधार।
(2) बेरोजगारी कम करने की अचूक औषधि।

प्रश्न 8
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या कितनी है? [2011, 15]
उत्तर:
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 102.7 करोड़ है।

प्रश्न 9
वर्ष 1951 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या कितनी थी?
उत्तर:
वर्ष 1951 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 36.11 करोड़ थी।

प्रश्न 10
वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार पुरुष जनसंख्या तथा स्त्री जनसंख्या बताइए।
उत्तर:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 62.37 करोड़ पुरुष एवं 58.64 करोड़ स्त्री जनसंख्या है।

प्रश्न 11
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पुरुष-स्त्री प्रतिशत बताइए।
उत्तर:
2011 की जनगणना के अनुसार पुरुष 51.73 प्रतिशत तथा स्त्री 48.27 प्रतिशत है।

प्रश्न 12
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में जनसंख्या का घनत्व कितना है?
उत्तर:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में जनसंख्या का घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है।

प्रश्न 13
किस राज्य में जनसंख्या का घनत्व सर्वाधिक है? [2008, 11,14]
उत्तर:
सर्वाधिक जनसंख्या का घनत्व बिहार में (1,102 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी) है।

प्रश्न 14
किस राज्य में जनसंख्या का घनत्व सबसे कम है? [2009]
उत्तर:
सवसे कम जनसंख्या का घनत्व अरुणाचल प्रदेश में (17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी) है।

प्रश्न 15
केन्द्रशासित क्षेत्रों में सर्वाधिक जनसंख्या का घनत्व किसका है?
उत्तर:
केन्द्रशासित क्षेत्रों में सर्वाधिक जनसंख्या का घनत्व दिल्ली में (11, 297 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी) है।

प्रश्न 16
केन्द्रशासित क्षेत्रों में सबसे कम जनसंख्या का घनत्व किसका है?
उत्तर:
केन्द्रशासित क्षेत्रों में सबसे कम जनसंख्या का घनत्व अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में (46 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी) है।

प्रश्न 17
2011 की जनगणना के आधार पर भारत में साक्षरता-दर क्या थी?
उत्तर:
वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर भारत की साक्षरता-दर 74.04 प्रतिशत थी।

प्रश्न 18
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पुरुष साक्षरता-दर क्या थी?
उत्तर:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पुरुषों में साक्षरता दर 82.14 प्रतिशत थी।

प्रश्न 19
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार स्त्री की साक्षरता दर क्या थी?
उत्तर:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार स्त्री साक्षरता दर 65.46 प्रतिशत थी।

प्रश्न 20
भारत के किस राज्य में साक्षरता का प्रतिशत सबसे अधिक है? [2014]
या
भारत में सर्वाधिक साक्षरता वाला राज्य कौन-सा है? [2014]
उत्तर:
सर्वाधिक साक्षरता दर केरल में (93.91) प्रतिशत है।

प्रश्न 21
सबसे कम साक्षरता दर किस राज्य में है?
उत्तर:
सबसे कम साक्षरता दर बिहार राज्य में (63.82 प्रतिशत) है।

प्रश्न 22
देश में सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य कौन-सा है? [2013, 15, 16]
या
भारत के किस राज्य में जनसंख्या सर्वाधिक है?  [2015]
उत्तर:
उत्तर प्रदेश देश में सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है।

प्रश्न 23
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की जनसंख्या कितनी थी?
उत्तर:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की जनसंख्या (19.95) करोड़ थी।

प्रश्न 24
भारत में सर्वप्रथम नियमित रूप से जनगणना कब प्रारम्भ हुई? [2007, 08]
उत्तर:
भारत में 1881 ई० में सर्वप्रथम नियमित रूप में अखिल भारतीय जनगणना सम्पन्न हुई।
या
भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम प्रथम पंचवर्षीय योजना में 1952 से आरम्भ किया गया था।

प्रश्न 25
भारत में अन्तिम जनगणना कब हुई तथा अगली जनगणना कब होगी?
उत्तर:
भारत में अन्तिम जनगणना सन् 2011 में हुई तथा अगली जनगणना वर्ष 2021 में होगी।

प्रश्न 26
जनसंख्या विस्फोट का क्या अर्थ है? [2011, 15]
उत्तर:
तीव्र गति से जनसंख्या का बढ़ना, जनसंख्या विस्फोट कहलाता है।

प्रश्न 27
जनसंख्या के घनत्व का सूत्र लिखिए। [2014, 15, 16]
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 19 Development of Indian Population 1
प्रश्न 28
तीव्र जनसंख्या वृद्धि के किन्हीं चार दुष्परिणामों का उल्लेख कीजिए। [2008, 13, 16]
उत्तर:
(1) यह आर्थिक प्रगति में बाधक है।
(2) इससे खाद्य एवं बेरोजगारी की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
(3) प्रति व्यक्ति उत्पादकता में कमी आती है।
(4) उपभोग व्यय बढ़ जाने के कारण बचत एवं पूँजी निर्माण की दर कम होती है।

प्रश्न 29
परिवार कल्याण कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु चार सुझाव दीजिए। [2008]
उत्तर:

  1. कमजोर वर्गों को इस अभियान का केन्द्रबिन्दु बनाया जाए।
  2.  गहन परिवार जिला कार्यक्रमों का संचालन किया जाए।
  3. शिक्षा का प्रसार किया जाए।
  4.  बन्ध्यकरण के लिए विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
भारत का विश्व में जनसंख्या की दृष्टि से स्थान है
(क) पहला
(ख) दूसरा
(ग) तीसरा
(घ) चौथा
उतर:
(ख) दूसरा।

प्रश्न 2
भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम है
(क) सफल
(ख) असफल
(ग) सन्तोषजनक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) असफल।

प्रश्न 3
जनसंख्या घनत्व का अभिप्राय है
(क) देश में घनी जनसंख्या वाला क्षेत्र
(ख) देश की सम्पूर्ण जनसंख्या
(ग) प्रति वर्ग किलोमीटर निवास करने वालों की औसत संख्या
(घ) उत्पादन कार्य में लगी हुई जनसंख्या
उत्तर:
(ग) प्रति वर्ग किलोमीटर निवास करने वालों की औसत संख्या।

प्रश्न 4
वर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या थी
(क) 43.92 करोड़
(ख) 54.82 करोड़
(ग) 68.33 करोड़
(घ) 84.63 करोड़
उत्तर:
(घ) 84.63 करोड़।

प्रश्न 5
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में स्त्री-पुरुष अनुपात (प्रति हजार पुरुषों पर महिलाएँ है
(क) 930
(ख) 934
(ग) 927
(घ) 940
उत्तर:
(घ) 940.

प्रश्न 6
भारत का सबसे अधिक साक्षरता वाला राज्य है
(क) महाराष्ट्र
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) केरल
(घ) बिहार
उत्तर:
(ग) केरल।

प्रश्न 7
भारत में जनसंख्या का ( 2011 के अनुसार) प्रति वर्ग किलोमीटर घनत्व है
(क) 274
(ख) 382
(ग) 300
(घ) 364
उत्तर:
(ख) 382.

प्रश्न 8
भारत में विश्व की कितने प्रतिशत आबादी निवास करती है?
(क) 17.5%
(ख) 20.6%
(ग) 12.4%
(घ) 18.8%
उत्तर:
(क) 17.5%.

प्रश्न 9
उत्तर प्रदेश में भारत की जनसंख्या निवास करती है
(क) 20.6%
(ख) 12.4%
(ग) 16.6%
(घ) 18.8%
उत्तर:
(ग) 16.6%.

प्रश्न 10
देश के किस महानगर में सबसे अधिक जनसंख्या है ?
(क) दिल्ली
(ख) मुम्बई
(ग) कोलकाता
(घ) चेन्नई
उत्तर:
(ख) मुम्बई।।

प्रश्न 11
नयी जनसंख्या नीति में किस वर्ष तक जनसंख्या को स्थिर करने का लक्ष्य रखा गया है?
(क) 2015 ई० तक
(ख) 2025 ई० तक
(ग) 2035 ई० तक
(घ) 2045 ई० तक
उत्तर:
(घ) 2045 ई० तक।

प्रश्न 12
जनसंख्या का घनत्व दर्शाता है [2014]
(क) पूँजी-भूमि अनुपात
(ख) भूमि-उत्पाद अनुपात
(ग) भूमि-श्रम अनुपात
(घ) व्यक्ति- भूमि अनुपात
उत्तर:
(घ) व्यक्ति-भूमि अनुपात।।

प्रश्न 13
भारत के जनसंख्या इतिहास में महान विभाजन वर्ष है [2002]
(क) 1901
(ख) 1921
(ग) 1931
(घ) 1951
उत्तर:
(ख) 1921

प्रश्न 14
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन 2011 की जनगणना के अनुसार सही है?
(क) भारत में लिंगानुपात घट रहा है।
(ख) भारत में लिंगानुपात स्थिर रहा है।
(ग) भारत में लिंगानुपात बढ़ा है।
(घ) भारत में लिंगानुपात के बारे में सूचना उपलब्ध नहीं है।
उत्तर:
(ग) भारत में लिंगानुपात बढ़ा है।

प्रश्न 15
निम्न में से किस दशक में जनसंख्या की वृद्धि दर अधिकतम रही?
(क) 1961-1971
(ख) 1971-1981
(ग) 1981-1991
(घ) 1991-2001
उत्तर:
(क) 1961-1971

प्रश्न 16
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा किस वर्ष की गयी थी? [2007, 08, 10, 11, 14, 15, 16]
(क) 1999
(ख) 2000
(ग) 2001
(घ) 2002
उत्तर:
(ख) 2000

प्रश्न 17
सन् 2001 की जनसंख्या के अनुसार 1991-2001 के मध्य जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि कितनी थी ? [2008]
(क) 2.5%
(ख) 2.2%
(ग) 2.1%
(घ) 1.9%
उत्तर:
(क) 2.5%

प्रश्न 18
भारत में परिवार-नियोजन कार्यक्रम किस वर्ष प्रारम्भ किया गया था? [2018, 14]
(क) 1949 में
(ख) 1952 में
(ग) 1972 से
(घ) 1977 से
उत्तर:
(ख) 1952 में।

प्रश्न 19
निम्नलिखित में से किस वर्ष में राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन हुआ? [2010]
(क) 1998
(ख) 2000
(ग) 2001
(घ) 2002
उत्तर:
(ख) 2000

प्रश्न 20
राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का पदेन अध्यक्ष होता है [2012, 14]
(क) भारत का राष्ट्रपति
(ख) भारत का उपराष्ट्रपति
(ग) भारत का प्रधानमंत्री
(घ) भारत का स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मन्त्री
उत्तर:
(घ) भारत का स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मन्त्री।

प्रश्न 21
भारत के किस राज्य में लिंगानुपात सर्वाधिक है? [2013, 16]
(क) केरल
(ख) पंजाब
(ग) राजस्थान
(घ) हिमाचल प्रदेश
उत्तर:
(क) केरल।

प्रश्न 22
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर कितनी है? [2014]
(क) 1.00%
(ख) 1.50%
(ग) 1.64%
(घ) 1.92%
उत्तर:
(ग) 1.64%.

प्रश्न 23
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कितनी जनसंख्या है? [2014, 15]
(क) 100 करोड़
(ख) 105 करोड़
(ग) 121 करोड़
(घ) 122 करोड़
उत्तर:
(ग) 121 करोड़।

प्रश्न 24
भारत में जनगणना की जाती है, प्रत्येक [2015]
(क) 5 वर्ष में
(ख) 8 वर्ष में
(ग) 10 वर्ष में
(घ) 20 वर्ष में
उत्तर:
(ग) 10 वर्ष में।

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UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 12 Tribals in India: Problems and Solution

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter Chapter 12
Chapter Name Tribals in India: Problems and Solution
(भारत में जनजातियाँ-समस्याएँ एवं समाधान)
Number of Questions Solved 22
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 12 Tribals in India: Problems and Solution (भारत में जनजातियाँ-समस्याएँ एवं समाधान)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
अनुसूचित जनजातियों से आप क्या समझते हैं? भारत की अनुसूचित जनजातियों की प्रमुख समस्याओं की विवेचना कीजिए। [2007, 12, 13, 14, 16]
या
भारत में जनजातियों की प्रमुख समस्याओं की विवेचना कीजिए। उनकी दशा में सुधार लाने के लिए दो उपाय लिखिए। [2014]
या
भारत में जनजातियों की प्रमुख समस्याओं की विवेचना कीजिए तथा उनके समाधान हेतु आवश्यक उपाय सुझाइए। [2014, 15]
उत्तर :
आदिवासी अथवा जनजाति का अर्थ
आदिवासी को जिन अन्य नामों से जाना जाता है, उनमें वन जाति, वनवासी पहाड़ी, आदिम जाति तथा अनुसूचित जनजाति प्रमुख हैं। अनुसूचित जनजातियों में केवल उन जनजातियों को सम्मिलित किया जाता है, जिनको संविधान की अनुसूची में सम्मिलित किया गया है। आदिवासी शब्द को मानवशास्त्र की भाषा में एक सामाजिक समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो उसे अन्य जातियों से अलग करती है। इस समूह को एक विशिष्ट नाम होता है तथा इसमें रहने वाले आदिवासियों में सामान्य संस्कृति पायी जाती है। यह समूह एक पृथक् भौगोलिक क्षेत्र (सामान्यतः जंगलों, पहाड़ों या बीहड़ क्षेत्रों) में निवास करता है। प्रमुख विद्वानों ने इसे निम्नलिखित रूप में परिभाषित करने का प्रयास किया है

  1. गिलिन एवं गिलिन के अनुसार, “स्थानीय आदिवासियों के किसी भी ऐसे संग्रह को हम जनजाति कहते हैं, जो एक सामान्य क्षेत्र में निवास करता हो, एक सामान्य भाषा बोलता हो तथा सामान्य संस्कृति के अनुसार व्यवहार करता हो।”
  2. बो आस के अनुसार, “जनजाति से हमारा तात्पर्य आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर व्यक्तियों के ऐसे समूह से है, जो सामान्य भाषा बोलता हो तथा बाह्य आक्रमणों से अपनी रक्षा करने के लिए संगठित हो।’
  3. जैकब्स तथा स्टर्न के अनुसार, “एक ऐसा ग्रामीण समुदाय या ग्रामीण समुदायों का ऐसा समूह, जिसकी सामान्य भूमि हो, सामान्य संस्कृति हो, सामान्य भाषा हो और जिस समुदाय के व्यक्तियों का जीवन आर्थिक दृष्टि से एक-दूसरे के साथ ओत-प्रोत हो, जनजाति कहलाता है।”

जनजातियों अथवा आदिवासियों की प्रमुख समस्याएँ
अधिकांश जनजातियों की मूलभूत समस्याएँ अन्य पिछड़ी जातियों के समान ही हैं, परन्तु कुछ की अपनी विशिष्ट समस्याएँ भी हैं, क्योंकि अधिकांश जनजातियाँ सुदूर, ग्रामीण, दुर्गम पहाड़ी या जंगलों (वनों) में रहती हैं। अनुसूचित जनजातियों की समस्याएँ भी सामान्य जनजातियों से मिलतीजुलती हैं। वर्तमान समय में भी उन्हें यातायात, आधुनिक सुख-सुविधा, संचार, आर्थिक विकास, शिक्षा आदि अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जनजातियों में पायी जाने वाली प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

(1) सामाजिक समस्याएँ
भारतीय जनजातीय समाज में निम्नलिखित समस्याएँ प्रमुख रूप से पायी जाती हैं –

  1. जनजातीय लोगों में मद्यपान का प्रचलन दीर्घकाल से विद्यमान है। अत: मद्यपान से न केवल उनमें स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं, वरन् आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण पारिवारिक कलह भी बढ़ गये हैं।
  2. सामाजिक संगठन की समरूपता, श्रम-विभाजन से समाप्त हो चुकी है, जिसके कारण जनजातियों का सामाजिक संगठन कमजोर हुआ है।
  3. जनजातियों में गोत्रीय विवादों जैसी जटिलता पायी जाती है।
  4. जनजातियों में बाल-विवाह पाये जाते हैं।
  5. जनजातियों में भौतिकवादी विश्व की चमक से वेश्यावृत्ति एवं विवाहेत्तर यौन सम्बन्ध की समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं।
  6. जनजातियों में पाये जाने वाले युवागृहों में शिथिलता आ गयी है और उनकी उपादेयता कम हो गयी है।
  7. वधू-मूल्य के कारण मौद्रिक अर्थव्यवस्था में बहुत अधिक वृद्धि हुई है, जिससे जनजातियों में विवाहों में धन का अत्यन्त महत्त्व हो गया है।

(2) आर्थिक समस्याएँ
वर्तमान समय में भूमि तथा वन कानून भारतीय जनजातियों के लिए बहुत कठोर है। उन्हें आजीविका के लिए वनों के प्रयोग की स्वतन्त्रता नहीं है। ठेकेदार, वन अधिकारी तथा साहूकार आदि इनका शोषण करते हैं। इस कारण जनजातियों की परम्परागत अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी है तथा आर्थिक रूप से ये बहुत पिछड़ गये हैं। अधिकांश आदिवासी आधुनिक समय में भी गरीबी की रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। आदिवासी उपयोजना, बीस सूत्री कार्यक्रम, केन्द्रीय सहायता तथा विशेष योजनाओं के बावजूद भी आदिवासियों की आय में गिरावट आ रही है। गरीबी दूर करने की आई० आर० डी० पी० योजना में छोटे तथा सीमान्त आदिवासी किसानों को सरकार तराजू पकड़ा रही है। अशिक्षा तथा शहरी सभ्यता से दूर, जंगलों में निवास करने वाले आदिवासियों का आर्थिक शोषण कोई नयी बात नहीं है। वनों से प्राप्त नैसर्गिक सम्पदा के लिए व्यापारी, ठेकेदार तथा बिचौलियों द्वारा भारी शोषण किया जाता है। वनोत्पन्न पदार्थों; जैसे- चिरौंजी, घी, शहद तथा महँगी वस्तुओं; का उचित मूल्य आदिवासियों को नहीं मिल पाता।

(3) औद्योगीकरण के कारण उत्पन्न समस्याएँ
औद्योगीकरण के नाम पर जो ढाँचा खड़ा किया जा रहा है, उससे सम्पूर्ण देश में बेदखल लोगों की एक लम्बी माँग खड़ी हो गयी है। चाहे कोयले की खाने हों या पन-बिजली, बाँध या अन्य भारी कारखाने तथा उद्योग हों; कुल मिलाकर उनका लाभ कुछ वर्ग विशेष के लोगों को ही प्राप्त होता है। जिस गरीब आदिवासी की जमीन से कोयला निकाला जाता है तथा विकास के लिए जिस निर्माण की बुनियाद रखी जाती है, उसमें आदिवासियों की भूमिका केवल ढाँचे के निर्माण तक ही सीमित रहती है। उसके बाद वे सड़कों पर आ जाते हैं। आदिवासी परिवार की महिलाएँ नवनिर्मित तथा अन्य कॉलोनियों में नौकरानियों के रूप में अपने आपको प्रतिस्थापित करती हैं। औद्योगीकरण का अभिशाप इनके जीवन को बहुत दयनीय बनाता जा रहा है। औद्योगीकरण के कारण इन क्षेत्रों ‘ में अग्रलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं –

  1. जल प्रदूषण
  2. अनैतिक कार्यों में वृद्धि
  3. बेरोजगारी तथा गरीबी
  4. भारी संयन्त्र के आसपास के आदिवासियों के साथ सामाजिक तथा व्यावसायिक भेदभावपूर्ण व्यवहार
  5. आदिवासियों के जीवन में हस्तक्षेप
  6. भविष्य में पुन: बेदखली
  7. भूमि से वंचित होना
  8. शहरी अपराध; जैसे-डकैती, जुए की प्रवृत्ति में वृद्धि आदि।

(4) धार्मिक समस्याएँ
जनजातियों में धर्म, जादू-टोने आदि का विशेष महत्त्व है। प्रायः बीमार व्यक्ति का इलाज टोनेटोटके से किया जाता है। परन्तु बाह्य प्रभावों एवं सामाजिक संगठनों की सक्रियता के कारण अब जादू-टोने का महत्त्व कम हो गया है। आदिवासियों में धर्मान्तरण की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा आदि अनेक पूर्वोत्तर राज्यों की 70% आदिवासी जनसंख्या धर्मान्तरण करके ईसाई धर्म स्वीकार कर चुकी है। आदिवासियों के आर्थिक एवं सामाजिक विकास की भूमिका के सन्दर्भ में संसद को धर्मान्तर जैसे विषयों से जूझना पड़ता है।

(5) राजनीतिक समस्याएँ
आदिवासियों में राजनीतिक जागरूकता प्रायः शून्य के बराबर थी परन्तु स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् विभिन्न स्तरों पर आरक्षण, प्राथमिकता, प्रजातान्त्रिक अधिकारों के अन्तर्गत चुनने एवं चुने जाने के अधिकार मिलने से वे भी शासन के भागीदार बन गये हैं। परिणामस्वरूप वे अपनी सामाजिक व आर्थिक समस्याओं के प्रति जागरूक हो गये हैं। परन्तु इसके साथ ही अनेक जनजातियों में विद्रोह, संघर्ष एवं अलगाववादी विचारधारा का जन्म हुआ है। अनेक आदिवासी क्षेत्रों में आर्थिक, औद्योगिक तथा सामाजिक विकास के लिए अलग राज्यों की माँग होने लगी है। बिहार में नवनिर्मित झारखण्ड तथा मध्य प्रदेश में नवनिर्मित छत्तीसगढ़ राजनीतिक अलगाववादी प्रवृत्तियों के ही परिणाम कहे जा सकते हैं।

(6) अशिक्षा एवं निरक्षरता की समस्याएँ
जनजातियों की प्रमुख समस्याएँ अशिक्षा तथा निरक्षरता से सम्बन्धित हैं। इनमें निरक्षरता का प्रतिशत आज भी अन्य जातियों की तुलना में काफी अधिक है। अशिक्षा के कारण ही जनजातीय समाज अनेक कुरीतियों, अन्धविश्वासों एवं गलत परम्पराओं में फंसे हुए हैं। अशिक्षा के कारण ही आदिवासी लोग राष्ट्रीय धारा तथा वैज्ञानिक उन्नति से अलग पड़े हुए हैं।

(7) विस्थापन की समस्या
आदिवासी क्षेत्रों में भारी संयन्त्रों की स्थापना आदिवासियों के समक्ष विस्थापित होने की समस्या उत्पन्न कर देती है। उपलब्ध स्रोतों के अनुसार विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान भारत में 199 कल-कारखानों की स्थापना से 17 लाख ग्रामीण जनता को अपनी भूमि से विस्थापित होना पड़ा है, जिनमें आदिवासियों की जनसंख्या लगभग 8 लाख 10 हजार थी। अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत सरकार की छठी रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के विभिन्न राज्यों में स्थापित 17 परियोजनाओं के कारण 43,328 आदिवासी परिवार अपनी जमीन से बेदखल किये जा चुके हैं।

(8) हत्या एवं यौन शोषण की समस्याएँ
तेंदूपत्ता उद्योग के लिए ठेकेदार, बिचौलियों तथा दलालों द्वारा गरीब तथा असहाय युवतियों का यौन शोषण करने के मामले प्रकाश में आये हैं।

(9) आवागमन तथा संचार की समस्याएँ
अधिकांश जनजातियाँ दुर्गम भौगोलिक स्थानों में रहती हैं; अत: उनका सम्पर्क आधुनिक समाज से बहुत कम हो पाता है। आधुनिक संचार एवं यातायात के साधनों का विकास बहुत कम हुआ है। इस प्रकार की वातावरण न होने के कारण जनजातियाँ विकसित नहीं हो पाती हैं।

(10) स्वास्थ्य तथा जनसंख्या की समस्याएँ
अधिकांश जनजातियों को स्वास्थ्य-सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं, जब कि तराई, जंगलों आदि में अनेक प्रकार की बीमारियाँ पायी जाती हैं। सरकार ने कुछ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खोले भी हैं, परन्तु वहाँ पर्याप्त चिकित्सकीय सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। सफाई की कमी के कारण मलेरिया, पोलिये, चेचक, हैजा आदि बीमारियाँ बढ़ती रहती हैं। स्वास्थ्य की समुचित सुविधाएँ न होने से मृत्यु-दर बहुत अधिक है। इसके साथ ही कुछ जनजातियों; जैसे–भील, गोंड में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है और कोरवा एवं टोडा जनजातियों की जनसंख्या कम होती जा रही है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि आदिवासी अनेक प्रकार की समस्याओं से ग्रसित हैं। स्वतन्त्रता- प्राप्ति के 70 वर्षों के पश्चात् भी इनकी समस्याओं का कोई ठोस हल नहीं निकाला जा सका है। वर्तमान समय में भी ये अनेक प्रकार के शोषण, अत्याचार तथा उत्पीड़न के शिकार हैं।

[नोट – सरकार द्वारा सुधार के लिए किये उपायों के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 का उत्तर देखें।

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प्रश्न 2.
भारत में जनजातियाँ मुख्यतः किन भागों में पाई जाती हैं? इनकी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार की ओर से क्या उपाय किए जा रहे हैं ? (2007)
उत्तर :
जनजातीय जनसंख्या निवास

आज जनजातियाँ भारत की समस्त जनसंख्या का लगभग 8 प्रतिशत हैं। भारतीय संविधान में 560 जनजातियों का उल्लेख है, जो विभिन्न राज्यों के ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में रहती हैं।

भारतीय संघ के कुछ राज्यों में जनजाति जनसंख्या अधिक है और कुछ राज्यों में कम। झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में जनजातीय जनसंख्या सर्वाधिक है। इसके बाद ओडिशा, बिहार, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, पं० बंगाल, आन्ध्र प्रदेश तथा असम राज्य आते हैं। उत्तराखण्ड, केरल एवं तमिलनाडु में जनजाति जनसंख्या अपेक्षाकृत कम है।

प्रतिशत की दृष्टि से मणिपुर, मेघालय, नागालैण्डे, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम ऐसे राज्य हैं, जिनकी समस्त जनसंख्या में जनजाति जनसंख्या अनुपात 20 प्रतिशत से अधिक है।

सरकार की ओर से किए जा रहे उपाय

आन्ध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान के कुछ क्षेत्र अनुच्छेद 244 और संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अन्तर्गत ‘अनुसूचित क्षेत्र (Scheduled Areas) घोषित किये गये हैं। इन राज्यों के राज्यपाल अनुसूचित क्षेत्रों की रिपोर्ट प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को देते हैं। असम, मेघालय और मिजोरम का प्रशासन संविधान की छठी अनुसूची के उपबन्धों के आधार पर किया जाता है। इसे अनुसूची के अनुसार उन्हें स्वायत्तशासी’ (Autonomous) जिलों में बाँटा गया है। इस प्रकार के 8 जिले हैं-असम के उत्तरी कछार, पहाड़ी जिले तथा मिकिर पहाड़ी जिले, मेघालय के संयुक्त खासी जयन्तिया, जोवाई और गारो पहाड़ी जिले तथा मिजोरम के चकमा, लाखेर और पावी जिले। प्रत्येक स्वायत्तशासी जिले में एक जिला परिषद् होती है जिसमें अधिकतम 30 सदस्य होते हैं। इनमें चार मनोनीत हो सकते हैं और शेष का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जाता है। इस परिषद् को कुछ प्रशासनिक, विधायी और न्यायिक अधिकार प्रदान किये गये हैं।

जनजातियों के कल्याण हेतु दो राज्यों की स्थापना – वर्ष 2000 ई० में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों का विभाजन कर क्रमश: छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड और झारखण्ड की स्थापना की गई है। इनमें से छत्तीसगढ़ और झारखण्ड राज्य की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य इन क्षेत्रों में रहने वाली जनजातियों का विकास ही रहा है।

पृथक जनजाति राष्ट्रीय आयोग की स्थापना – अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु 65वें संवैधानिक संशोधन (1990) के द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की गयी थी, लेकिन कुछ ही वर्ष बाद यह अनुभव किया गया कि भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से जनजातियाँ अनुसूचित जातियों से भिन्न हैं तथा उनकी समस्याएँ भी भिन्न हैं। अतः 85वें संवैधानिक संशोधन (2003) ई० के आधार पर वर्ष 1990 में स्थापित आयोग के स्थान पर पृथक् ‘जनजाति राष्ट्रीय आयोग’ स्थापित किया गया है। इस प्रकार के आयोग की स्थापना सही दिशा में एक कदम है।

प्रश्न 3.
सरकार द्वारा आदिवासियों की समस्याओं के समाधान के लिए उठाए गए कदमों की व्याख्या कीजिए। [2012, 16]
उत्तर :
आदिवासियों (अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं का समाधान

आदिवासियों (अनुसूचित जनजातियों) की समस्याओं के समाधान हेतु सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं। इन्हें संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ इनकी समस्याओं के समाधान हेतु निम्नलिखित उपाय भी किए गए हैं –

  1. लोकसभा तथा राज्य विधानमण्डलों में इनके लिए स्थानों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
  2. शासकीय सेवाओं में आरक्षण की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  3. जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन हेतु कल्याण व सलाहकार अभिकरणों की स्थापना की गई है।
  4. संवैधानिक संरक्षणों के क्रियान्वयन की जाँच हेतु संसदीय समिति का गठन किया गया है।
  5. सभी राज्यों में कल्याण विभागों की स्थापना की गई है, जो कि जनजातीय कल्याण कार्यों की देख-रेख करते हैं।
  6. अनुसूचित जनजातियों के बीच कार्य कर रहे गैर-सरकारी स्वैच्छिक संगठनों को अनुदान प्रदान किया जाता है।
  7. अनुसूचित जनजातियों को शिक्षण व प्रशिक्षण हेतु विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं। सरकार ने शिक्षा का विकास करने के उद्देश्य से आदिवासियों को निःशुल्क शिक्षा, छात्रवृत्ति तथा छात्रावास की सुविधाएँ प्रदान की हैं।
  8. पंचवर्षीय योजनाओं में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु विशेष प्रावधान किए गए हैं।
  9. कुछ राज्यों में भारतीय जनजातीय विपणन विकास संघ की स्थापना भी की गई है जिससे उनका आर्थिक शोषण कम किया जा सके।
  10. अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं और बच्चों के हित सुरक्षित करने के लिए। केन्द्रीय कल्याण राज्यमंत्री की अध्यक्षता में सलाहकार बोर्ड की स्थापना की गई है।
  11. संविधान की पाँचवीं अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्र वाले तथा राष्ट्रपति के निर्देश पर अनुसूचित आदिम जातियों वाले राज्यों में आदिम जाति के लिए सलाहकार परिषदों की स्थापना की व्यवस्था है। आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा राजस्थान में ऐसी परिषदों की स्थापना की जा चुकी है। ये परिषदें आदिवासियों के कल्याण सम्बन्धी विषयों पर राज्यपालों को परामर्श देती हैं।
  12. वन से प्राप्त उत्पादों के विपणन के सम्बन्ध में सहकारी समितियों की स्थापना की गई है। मध्य प्रदेश में नई तेंदू पत्ता नीति के चलते ठेकेदारों के आदमी आदिवासियों का शोषण नहीं कर पाएँगे क्योंकि तेंदू पत्ता एकत्र कराने का कार्य सहकारिता के अन्तर्गत आ गया है।
  13. राष्ट्रीय आदिवासी नीति 2006-21 जुलाई, 2006 को केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय आदिवासी नीति का मसौदा जारी किया गया जिसके अन्तर्गत आदिवासियों से सम्बन्धित 23 मुद्दे प्रमुख हैं-आदिवासियों की जमीन छीनने, उनके विस्थापन व पुनर्वास, शिक्षा, सफाई, राज्यों के पेशा कानून को केन्द्रीय कानून के समान बनाना, लैंगिक भेदभाव को दूर करना, उनकी संस्कृति की सुरक्षा करने आदि पर बल तथा जंगल की जमीन पर आदिवासियों के अधिकार को भी शामिल किया गया है।
  14. विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में आदिवासियों के विकास तथा कल्याण से सम्बन्धित अनेक कार्यक्रमों तथा योजनाओं को स्थान दिया गया है। आदिवासी उपयोजना कार्यक्रम का लक्ष्य है-गरीबी को दूर करना। बीस सूत्री कार्यक्रमों में सर्वोच्च स्थान ‘गरीबी के विरुद्ध संघर्ष को दिया गया था। छठी योजनाकाल में पूरे देश में 27,59,379 आदिवासियों को गरीबी की। रेखा से ऊपर उठाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
  15. केन्द्र तथा राज्य सरकारों के द्वारा अनुसूचित जनजातियों के लिए बनाए गए संवैधानिक तथा कानूनी सुरक्षा उपायों को लागू किया जा रहा है तथा इसके प्रभावशाली क्रियान्वयन पर भी अधिक जोर दिया जा रहा है।
  16. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की दृष्टि से सरकार द्वारा समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम आदि को आदिवासी क्षेत्रों में लागू किया गया है।

आदिवासियों (अनुसूचित जनजातियों) की समस्याओं के उपर्युक्त उपाय कारगर सिद्ध हुए हैं, परन्तु इस दिशा में अभी बहुत कार्य किया जाना शेष है। इन्हें देश की मुख्य धारा में जोड़ने हेतु इनका सामाजिक-आर्थिक उत्थान किया जाना आवश्यक है। सरकार और जनसामान्य के मिश्रित प्रयासों से ही हमें आदिवासियों को उनकी समस्याओं से मुक्ति दिला सकते हैं और उनके अच्छे जीवनयापन के लिए पृष्ठभूमि तैयार कर सकते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द)

प्रश्न 1.
भारत में जनजातियों की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। [2016]
या
अनुसूचित जनजातियों की विशेषताएँ लिखिए। [2010, 14]
या
भारत में निवास करने वाली जनजातियों के चार प्रमुख लक्षण बताइए। [2016]
उत्तर :
जनजाति के लक्षण (विशेषताएँ)
जनजाति के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) इस प्रकार हैं

  1. सामान्य भू-भाग – एक जनजाति एक निश्चित भू-भाग में ही निवास करती है।
  2. विस्तृत आकार – एक जनजाति में कई परिवारों, वंश और गोत्र का संकलन होता है।
  3. एक नाम – प्रत्येक जनजाति का कोई नाम अवश्य होता है जिसके द्वारा वह पहचानी जाती है। मुंडा, कोल, भील, भोटिया, गारो, सन्थाल, मीणा, मुरिया, गोंड, खासी, कोरवा, बैगा, नागा और गरासिया लोहार; हमारे प्रदेश भारतीय संघ के विविध राज्यों के क्षेत्रों से जुड़ी कुछ प्रमुख जनजातियों के नाम हैं।
  4. सामान्य भाषा – एक जनजाति के लोग अपने विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए जनजाति की अपनी एक सामान्य भाषा का प्रयोग करते हैं। वर्तमान समय में बाहरी जगत् के साथ सम्पर्क के कारण कई जनजातियाँ द्वि-भाषी हो गयी हैं।
  5. अन्तर्विवाह – एक जनजाति के सदस्य अपनी ही जनजाति में विवाह करते हैं।
  6. सामान्य संस्कृति – एक जनजाति के सभी सदस्यों की एक सामान्य संस्कृति होती है, उनके रीति-रिवाजों, प्रथाओं, लोकाचारों, नियमों, कला, धर्म, जादू, संगीत, नृत्य, खान-पान, भाषा, रहन-सहन, विचारों, विश्वासों और मूल्यों आदि में समानता पायी जाती है। सामान्य संस्कृति या एकसमान संस्कृति जनजाति का सबसे प्रमुख लक्षण है।
  7. सामान्य निषेध – सामान्य संस्कृति से ही जुड़ी हुई बात यह है कि एक जनजाति खान-पान, विवाह, परिवार और व्यवसाय आदि से सम्बन्धित कुछ समान निषेधों का पालन करती है।
  8. सामाजिक संगठन – सामान्यत: प्रत्येक जनजाति का अपना एक निजी सामाजिक संगठन होता है। संगठन का प्रमुख अधिकांशतया एक वंशानुगत मुखिया होता है, कहीं-कहीं मुखिया की सहायता के लिए वयोवृद्ध लोगों की एक परिषद्’ भी होती है। यह संगठन परम्पराओं का पालन कराने, नियन्त्रण बनाये रखने और नियमों का उल्लंघन करने वालों को दण्डित करने का कार्य करता है। इस दृष्टि से कुछ अध्ययनकर्ता इसे राजनीतिक संगठन का नाम देते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में अनुसूचित जनजातियों की चार समस्याओं का वर्णन कीजिए। [2011]
या
भारत में अनुसूचित जनजातियों की कोई दो समस्याएँ तथा उनके समाधान के निवारण हेतु सुझाव भी दीजिए। [2016]
या
अनुसूचित जातियों के आरक्षण के दो आधार बताइए। [2012]
या
भारत में आदिवासियों की दो मुख्य समस्याएँ लिखिए तथा उनके समाधान के उपाय भी बताइए। [2014]
उत्तर :
जनजातियों की दो प्रमुख समस्याएँ तथा सुझाव निम्नलिखित हैं –

1. आर्थिक शोषण – आधुनिक समय में जनजाति के लोगों को जमींदारों, व्यापारियों, साहूकारों, सरकारी कर्मचारियों के सम्पर्क में आना पड़ता है। वनों की कटाई की जा चुकी है। शहरीकरण ने इन पर सीधा प्रभाव डाला है। सभी लोग इनका आर्थिक शोषण करते रहे हैं। इनकी पैदावार को कम दामों में खरीदा जाता है। इन्हें मजदूरी भी सही प्राप्त नहीं हो पाती है। आर्थिक शोषण से बचाव के लिए कानूनों का सख्ती से पालन कराया जाना चाहिए तथा जनजातीय लोगों को न्यूनतम मजदूरी हर हालत में दिलाई जानी चाहिए। श्रम संघों का विकास अनिवार्य रूप से होना चाहिए।

2. शिक्षा की समस्या – अब भी जनजातीय लोगों में शिक्षा के प्रति कोई लगाव पैदा नहीं हो पाया है और उनके बच्चे शिक्षा की उपादेयता से पूर्णतः अनभिज्ञ हैं। शिक्षा उनके लिए बेमानी। हो जाती है। गरीबी के कारण वे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। अतः शिक्षा के प्रति जागरूक न होना उनकी अनेक समस्याओं का मूल कारण है। जनजातियों में शिक्षा के प्रसार के लिए सरकार को विभिन्न प्रकार की सरकारी सहायता की घोषणा करनी चाहिए। शिक्षा को उनकी सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से जोड़ना चाहिए तथा शिक्षा का स्वरूप ऐसा हो जो उनकी सांस्कृतिक धरोहर को बचा सके। जनजाति के लोगों को आर्थिक सहायता सभी स्तरों पर करके उनके जीवन के स्तर को सुधारने की आवश्यकता है। अनुसूचित जनजातियों (आदिवासियों) की दो अन्य समस्या निम्नवत् हैं

3. धार्मिक समस्या – जनजातियों में धर्म, जादू-टोने आदि का विशेष महत्त्व है। प्रायः बीमार व्यक्ति का इलाज टोने-टोटके से किया जाता है, परन्तु बाह्य प्रभावों एवं सामाजिक संगठनों की सक्रियता के कारण अब जादू-टोने का महत्त्व कम हो गया है। हालांकि, आदिवासियों में धर्मान्तरण की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। देश के पूर्वोत्तर राज्यों मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा आदि में 70% अदिवासी जनसंख्या ईसाई धर्म अपना चुकी है।

4. आवागमन तथा संचार की समस्या  अधिकांश जनजातियों के दुर्गम भौगोलिक स्थानों में रहने के कारण उनका सम्पर्क आधुनिक समाज से बहुत कम हो जाता है। वहीं, ऐसे स्थानों पर आधुनिक संचार एवं यातायात के साधनों का विकास बहुत कम हो हुआ है।। अत: वातावरण न होने के कारण जनजातियाँ विकसित नहीं हो पाती हैं।

[नोट – समाधान के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न (150 शब्द) संख्या 1 का उत्तर देखें।]

प्रश्न 3
अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं के चार कारण बताइए।
उत्तर :
भारतीय जनजातियों में व्याप्त समस्याओं में से चार मूल कारण निम्नवत् हैं

1. निर्धनता, अज्ञानता तथा विकास से वंचित रहना – जनजातीय लोगों की निर्धनता और अज्ञानता के कारण समाज के सम्पन्न वर्ग, व्यापारी वर्ग, नौकरशाह और राजनीतिज्ञ उनका मनमाना शोषण करते हैं। भारत सरकार और राज्य सरकारों ने जनजातियों के विकास के लिए करोड़ों रुपये की धनराशि स्वीकृत की है, लेकिन इस धनराशि का उपयोग उनके विकास कार्यों के लिए नहीं किया जाता। अज्ञानता ने जनजातियों में विभिन्न अन्धविश्वासों को जन्म दिया तथा इसका लाभ उठाकर समाज के अन्य वर्गों ने उनका शोषण किया।

2. पृथक और दूर-दराज क्षेत्रों में निवास – भारत की लगभग सभी जनजातियाँ पहाड़ों, जंगलों और दूर-दराज क्षेत्रों में निवास करती हैं, जहाँ उनका अन्य लोगों से सम्पर्क नहीं हो पाता। पृथक् एवं दुर्गम निवास के कारण वे अधिकतर प्रकृति पर ही निर्भर करती हैं। साधनों के अभाव के कारण वे ज्ञान-विज्ञान और भौतिक विकास की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाये।

3. स्थानान्तरित खेती और वन उपज के उपयोग और उपभोग पर रोक – ब्रिटिश शासन से पूर्व सभी जनजातियाँ राजनीतिक दृष्टि से स्वायत्त इकाइयाँ थीं। वे अपनी भूमि तथा जंगलों की स्वामी थीं। किन्तु अंग्रेजों ने सम्पूर्ण देश पर एकसमान राजनीतिक व्यवस्था लागू की, जिससे जनजातियों के अधिकार सीमित कर दिये गये तथा उनके द्वारा की जाने वाली स्थानान्तरित खेती एवं वन उपयोग और उपभोग पर रोक लगा दी गयी। स्वतन्त्रता-प्राप्ति और लोकतन्त्रीय व्यवस्था के बाद भी इस स्थिति में कोई परिवर्तन नजर नहीं आया। जनजातियाँ अपने आपको नयी व्यवस्था के अनुरूप ढालने में असफल रहीं।

4. ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्म-परिवर्तन – ब्रिटिश शासन काल में ही ईसाई मिशनरियों ने आदिवासी क्षेत्रों में प्रवेश कर लिया था तथा उनकी निर्धनता एवं अज्ञानता का लाभ उठाते हुए कल्याण के नाम पर उनको ईसाई बनाना आरम्भ कर दिया। यह नया वर्ग अपने परम्परागत समाज से कट गया तथा इन दोनों के बीच टकराव की स्थिति जन्म लेने लगी। यह सांस्कृतिक विघटन की स्थिति थी।

प्रश्न 4.
जनजातियों की समस्याओं के समाधान हेतु किये गये संवैधानिक प्रावधानों का विवरण दीजिए।
उत्तर :
जनजातियों की समस्याओं के समाधान हेतु निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 335 के अनुसार, सार्वजनिक सेवाओं और सरकारी नौकरियों में देश की जनजातियों के लिए स्थान सुरक्षित रखने का आश्वासन दिया गया है। अनुच्छेद 325 में कहा गया है कि किसी को भी धर्म, प्रजाति, जाति एवं लिंग के आधार पर मताधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा। आदिवासियों के जन-प्रतिनिधियों के लिए लोकसभा व राज्य विधानसभाओं में अनुच्छेद 330 व 332 के अनुसार स्थान सुरक्षित कर दिये गये हैं। इन आरक्षित स्थानों पर जनजातियों एवं अनुसूचित जातियों के अतिरिक्त अन्य कोई चुनाव नहीं लड़ सकता। अनुच्छेद 338 में राष्ट्रपति द्वारा इनके लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति की  व्यवस्था की गयी है। अनुच्छेद 342 व 344 में राज्यपालों को भारतीयों के सन्दर्भ में विशेष अधिकार प्रदान किये गये हैं। इसी प्रकार संविधान के अनुच्छेद 47 में राज्य का यह दायित्व माना गया है कि वह जनजातियों की शिक्षा की उन्नति और आर्थिक हितों की सुरक्षा की ओर विशेष ध्यान दे। इसी प्रकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 में असम के अतिरिक्त ओडिशा, बिहार, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में जनजातियों के कल्याण हेतु पृथक् मन्त्रालय स्थापित करने का प्रावधान किया गया है। इसी तरह से अनुच्छेद 224 (2) के अन्तर्गत असम की जनजातियों के लिए जिला और प्रादेशिक परिषदें स्थापित करने का प्रावधान किया गया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
भारत की अनुसूचित जनजातियों के उत्थान के लिए कोई चार सुझाव बताइए। [2015]
उत्तर :
अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं के समाधान हेतु सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं। इन्हें संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ इनकी समस्याओं के समाधान हेतु निम्नलिखित उपाय भी किए गए हैं।

  1. लोकसभा तथा राज्य विधानमण्डलों में इनके लिए स्थानों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
  2. शासकीय सेवाओं में आरक्षण की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  3. जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन हेतु कल्याण व सलाहकार अभिकरणों की स्थापना की गई है।
  4. संवैधानिक संरक्षणों के क्रियान्वयन की जाँच हेतु संसदीय समिति का गठन किया गया है।

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प्रश्न 2.
भारत की जनजातियों की चार प्रमुख समस्याओं का उल्लेख कीजिए। [2009, 12]
उत्तर :
भारत की जनजातियों की चार प्रमुख समस्याएँ हैं –

  1. विकास को लाभ जनजातियों तक न पहुँच पाना।
  2. ईसाई मिशनरियों द्वारा प्रलोभन देकर धर्मान्तरण कराना।
  3. प्रशासनिक व्यवस्था द्वारा दखलंदाजी।
  4. दूर-दराज और दुर्गम वे पहाड़ी क्षेत्रों में निवास का होना।

प्रश्न 3.
भारत की आदिवासी जातियों की किन्हीं दो आर्थिक समस्याओं का उल्लेख कीजिए। [2009]
उत्तर :
भारत की आदिवासियों जातियों की दो आर्थिक समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

  1. बैंकों तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों से कर्ज का न मिल जाना।
  2. खेती की पैदावार तथा वनोत्पादों का इन जातियों को बाजार में सही मूल्य की प्राप्ति न हो पाना।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
जनजाति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
भारत के दुर्गम स्थानों व जंगलों में निवास करने वाले विभिन्न आदिवासी समूहों को ही जनजाति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
जनजातियों के उत्थान के लिए प्रयास करने वाले तीन प्रमुख व्यक्तियों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर

  1. महात्मा गाँधी
  2. ज्योतिबा फुले तथा
  3. ठक्कर बापा।

प्रश्न 3.
जनजाति के पाँच प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) क्या हैं? [2007, 10]
या
जनजातियों की कोई दो विशेषताएँ बताइए। [2014]
उत्तर :

  1. सामान्य भू-भाग
  2. विस्तृत आकार
  3. एक नाम
  4. सामान्य भाषा तथा
  5. सामान्य संस्कृति।

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प्रश्न 4.
जनजातियों के हितार्थ कार्य करने वाली तीन प्रमुख संस्थाओं के नाम बताइए।
उत्तर :

  1. रामकृष्ण मिशन
  2. भारतीय आदिम संघ, नयी दिल्ली तथा
  3. आन्ध्र प्रदेश आदिम जाति सेवक संघ, हैदराबाद।

प्रश्न 5.
अनुसूचित जनजाति की किन्हीं दो समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

  1. अशिक्षा तथा निरक्षरता की समस्या तथा
  2. आर्थिक विकास की समस्या।

प्रश्न 6.
भारत में कौन-से राज्य में सर्वाधिक आदिवासी पाये जाते हैं? या भारत के एक आदिवासी बहुल राज्य का नाम बताइए।
उत्तर :
छत्तीसगढ़ राज्य में सर्वाधिक आदिवासी पाये जाते हैं।

प्रश्न 7.
उत्तराखण्ड में पायी जाने वाली दो प्रमुख जनजातियों के नाम बताइए। [2007, 10, 12]
या
भारत की किसी एक जनजाति का नाम बताइए। [2007]
उत्तर :

  1. थारु तथा
  2. भोटिया।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
भील जनजाति प्रमुख रूप से कौन-से राज्य में पायी जाती है?
(क) राजस्थान में
(ख) मध्य प्रदेश में
(ग) बिहार में
(घ) असम में

प्रश्न 2.
आदिम जातियों के लिए सलाहकार परिषदों की स्थापना कौन करता है?
(क) राज्यपाल
(ख) राष्ट्रपति
(ग) प्रधानमन्त्री
(घ) मुख्यमन्त्री

प्रश्न 3.
अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं का व्यापक अध्ययन किया है –
(क) अमर्त्यसेन ने।
(ख) मार्शल ने
(ग) एस० सी० दूबे ने।
(घ) प्रधानमन्त्री ने

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सी जाति अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आती है? [2015]
(क) जाटव
(ख) मीणा
(ग) कुर्मी
(घ) डोम

प्रश्न 5.
भारत में निम्नलिखित में से किस राज्य में जनजातीय जनसंख्या का प्रतिशत सबसे अधिक [2016]
(क) उत्तर प्रदेश
(ख) केरल
(ग) मिजोरम
(घ) तमिलनाडु

उत्तर :

  1. (क) राजस्थान में
  2. (ख) राष्ट्रपति
  3. (ग) एस० सी० दूबे ने
  4. (ख) मीणा
  5. (ग) मिजोरम

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UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 23 Intelligence and Intelligence Tests

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 23 Intelligence and Intelligence Tests (बुद्धि तथा बुद्धि परीक्षण) are part of UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 23 Intelligence and Intelligence Tests (बुद्धि तथा बुद्धि परीक्षण).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Pedagogy
Chapter Chapter 23
Chapter Name Intelligence and Intelligence Tests
(बुद्धि तथा बुद्धि परीक्षण)
Number of Questions Solved 57
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 23 Intelligence and Intelligence Tests (बुद्धि तथा बुद्धि परीक्षण)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
बुद्धि से आप क्या समझते हैं ? बुद्धि की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2007, 11, 14]
उत्तर :
बुद्धि का स्वरूप एवं परिभाषा बुद्धि के स्वरूप के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों की भिन्न-भिन्न धारणाएँ हैं। प्रत्येक विद्वान ने अपनी धारणा के अनुसार ही बुद्धि को परिभाषित किया है। यहाँ पर हम कुछ विद्वानों द्वारा प्रतिपादित परिभाषाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं

  1. वुडवर्थ Woodworth) के अनुसार, “बुद्धि कार्य करने की एक विधि है।”
  2. टरमन (Turman) के अनुसार, “बुद्धि, अमूर्त विचारों के विषय में सोचने की योग्यता है।”
  3. बकिंघम (Buckingham) के अनुसार, “बुद्धि सीखने की योग्यता है।’
  4. रायबर्न (Ryhurm) के अनुसार, “बुद्धि वह शक्ति है, जो हमको समस्याओं का समाधान करने और अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने की योग्यता प्रदान करती है।”
  5. क्रूज (Cruz) के अनुसार, “बुद्धि नवीन और विभिन्न परिस्थितियों में भली प्रकार से समायोजन की योग्यता है।”
  6. रेक्स नाइट (Rex Knight) के अनुसार, “बुद्धि वह मानसिक योग्यता है, जिसके द्वारा हम किसी उद्देश्य की पूर्ति या किसी समस्या का समाधान करने के लिए सम्बन्धित वस्तुओं एवं विचारों को सीखते हैं।”

बुद्धि की विशेषताएँ
बुद्धि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. बुद्धि व्यक्ति में जन्मजात होती है।
  2. बुद्धि द्वारा व्यक्ति अतीत के अनुभवों से लाभ उठाता है।
  3. बुद्धि द्वारा व्यक्ति परिस्थिति को समझता है।
  4. बुद्धि व्यक्ति के नवीन परिस्थितियों से समायोजन करने में सहायक होती है।
  5. बुद्धि व्यक्ति को अमूर्त चिन्तन करने की योग्यता प्रदान करती है।
  6. बुद्धि व्यक्ति को विभिन्न क्रियाएँ सीखने में सहायता देती है।
  7. बुद्धि व्यक्ति के आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकास करती है।
  8. बुद्धि जटिल समस्याओं को हल करने तथा उन्हें सरल बनाने में सहायक होती है।
  9. बुद्धि ही सत्य और असत्य, नैतिक और अनैतिक कार्यों में अन्तर करने की योग्यता देती है।
  10. बुद्धि का विकास जन्म से किशोरावस्था के मध्यकाल तक होता है।
  11. बालक तथा बालिकाओं की बुद्धि में कोई विशेष अन्तर नहीं होता है।

प्रश्न 2
बुद्धि-परीक्षण से आप क्या समझते हैं ? बुद्धि-परीक्षणों के मुख्य प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
या
बुद्धि-परीक्षण क्या है ? बुद्धि का परीक्षण कैसे होता है ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। [2008]
या
बुद्धि-परीक्षण से क्या तात्पर्य है? इसकी कोई एक परिभाषा दीजिए। [2010]
या
बुद्धि-परीक्षण के प्रकार बताइए तथा किसी एक बुद्धि-परीक्षण का वर्णन कीजिए। [2011]
उत्तर :
बुद्धि-परीक्षण का अर्थ
बुद्धि के वास्तविक स्वरूप को निर्धारित करने का प्रयास बुद्धि सम्बन्धी परीक्षण के आधार पर किया जाता है। प्राचीनकाल में बुद्धि और ज्ञान में कोई अन्तर नहीं समझा जाता था, किन्तु बाद में लोग इस भिन्नता से परिचित हुए और परीक्षा के माध्यम से बुद्धि का मापन करने लगे। इस प्रकार हम कह सकते हैं। कि जिन व्यवस्थित परीक्षणों के माध्यम से बुद्धि की परीक्षा एवं मापन का कार्य किया जाता है, उन्हें बुद्धि-परीक्षण कहा जाता है। बुद्धि-परीक्षण द्वारा मापी जाने वाली बौद्धिक योग्यताओं के अन्तर्गत तर्क, कल्पना, स्मृति, विश्लेषण एवं संश्लेषण की क्षमता आदि को सम्मिलित किया जाता है। बुद्धि-परीक्षण को निम्न प्रकार परिभाषित कर सकते हैं

“बुद्धि-परीक्षण, वे मनोवैज्ञानिक परीक्षण हैं जो मानव-व्यक्तित्व के सर्वप्रमुख तत्त्व एवं उसकी प्रधान मानसिक योग्यता ‘बुद्धि का अध्ययन तथा मापन करते हैं।”

बुद्धि-परीक्षणों के प्रकार
बुद्धि के मापन हेतु जितनी भी बुद्धि-परीक्षाओं का प्रयोग किया जाता है, उनमें निहित क्रियाओं के आधार पर बुद्धि-परीभणों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
(A) शाब्दिक परीक्षण
(B) अशाब्दिक परीक्षण

(A) शाब्दिक परीक्षण

ये बुद्धि-परीक्षण शब्द अथवा भाषायुक्त होते हैं। इस प्रकार के परीक्षणों में प्रश्नों के उत्तर भाषा के माध्यम से लिखित रूप में दिये जाते हैं। इन परीक्षणों को व्यक्तिगत तथा सामूहिक दो उपवर्गों में बाँटा जा सकता है। इस भाँति शाब्दिक बुद्धि-परीक्षण दो प्रकार के होते हैं

1. शाब्दिक व्यक्ति बुद्धि-परीक्षण :
शाब्दिक व्यक्ति बुद्धि-परीक्षणों के प्रकार बुद्धि-परीक्षण ऐसे बुद्धि परीक्षण हैं जिनमें भाषा का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग करके किसी एक व्यक्ति की बुद्धि-परीक्षा ली जाती है।
उदाहरणार्थ :
बिने-साइमन बुद्धि परीक्षण।

2. शाब्दिक समूह बुद्धि-परीक्षण :
इस परीक्षण में किसी एक व्यक्ति की नहीं, अपितु समूह की बुद्धि-परीक्षा ली जाती है। इस प्रकार के परीक्षणों के अन्तर्गत भी भाषागत प्रश्न-उत्तर होते हैं।
उदाहरणार्थ :
आर्मी एल्फा और बीटा परीक्षण।

(B) अशाब्दिक परीक्षण
इन बुद्धि-परीक्षणों के पदों में भाषा का कम-से-कम प्रयोग किया जाता है तथा चित्रों, गुटकों या रेखाओं के द्वारा काम कराया जाता है। व्यक्तिगत तथा सामूहिक आधार पर ये परीक्षण भी दो उपवर्गों में बाँटे जा सकते हैं

1. अशाब्दिक व्यक्ति बुद्धि-परीक्षण :
अशाब्दिक व्यक्ति बुद्धि-परीक्षण में भाषा सम्बन्धी योग्यता की कम-से-कम आवश्यकता पड़ती है। ये परीक्षण प्रायः अशिक्षित (बे-पढ़े-लिखे) लोगों पर लागू किये जाते हैं, जिनके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के क्रियात्मक परीक्षण आयोजित किये जाते हैं और भाँति-भाँति के यान्त्रिक कार्य कराये जाते हैं। उदाहरणार्थ-घड़ी के पुर्जे खोलना-बाँधना।

2. अशाब्दिक समूह बुद्धि-परीक्षण :
अशाब्दिक समूह बुद्धि-परीक्षण, ऊपर वर्णित व्यक्ति परीक्षण से मिलते-जुलते हैं। समय, धन एवं शक्ति के अपव्यय को रोकने के लिए एक समूह को एक
साथ परीक्षण दे दिया जाता है।

प्रश्न 3
व्यक्तिगत तथा सामूहिक बुद्धि-परीक्षणों का सामान्य परिचय दीजिए तथा इनके गुण-दोषों का भी उल्लेख कीजिए।
या
बुद्धि के व्यक्तिगत और सामूहिक परीक्षणों की तुलनात्मक विवेचना कीजिए। [2014]
या
व्यक्तिगत तथा सामूहिक बुद्धि-परीक्षण से आप क्या समझते हैं? [2011]
उत्तर :
व्यक्तिगत तथा सामूहिक बुद्धि-परीक्षण
यदि मनोवैज्ञानिक परीक्षण को प्रशासन की विधि के आधार पर देखा जाए तो बुद्धि – परीक्षणों को प्रशासन दो प्रकार से सम्भव है – प्रथम, व्यक्तिगत रूप से परीक्षा लेकर; एवं द्वितीय, सामूहिक रूप से परीक्षा संचालित करके। इसी दृष्टि से बुद्धि-परीक्षणों के दो भाग किये जा सकते हैं

(A) व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण तथा
(B) सामूहिक बुद्धि-परीक्षण। अब हम बारी-बारी से इन दोनों के परिचय एवं गुण-दोषों का वर्णन करेंगे।

(A)  व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण
व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण उन परीक्षणों को कहा जाता है जिनमें एक बार में एक ही व्यक्ति अपनी बुद्धि की परीक्षा दे सकता है। ये परीक्षण लम्बे तथा गहन अध्ययन के लिए प्रयोग किये जाते हैं। व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण दो प्रकार के होते हैं

1. शाब्दिक रीक्षण :
शाब्दिक व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण में भाषा का प्रयोग किया जाता है तथा परीक्षार्थी को लिखकर कुछ प्रश्नों के उत्तर देने पड़ते हैं।

2. क्रियात्मक परीक्षण :
इने बुद्धि-परीक्षणों में परीक्षार्थी को कुछ स्थूल वस्तुएँ या उपकरण प्रदान किये जाते हैं तथा उससे कुछ सुनिश्चित एवं विशेष प्रकार की क्रियाएँ करने को कहा जाता है। उन्हीं क्रियाओं के आधार पर उनकी बुद्धि का मापन होता है।

व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण के गुण-दोष
व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण के गुण-दोष निम्न प्रकार वर्णित हैं

गुण :

  1. व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण छोटे बालकों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं। छोटे बालकों की चंचल प्रवृत्ति के कारण उनका ध्यान जल्दी भंग होने लगता है। परीक्षण की ओर ध्यान केन्द्रित करने के लिए व्यक्तिगत परीक्षा लाभकारी है।
  2. इन परीक्षणों में परीक्षार्थी परीक्षक के व्यक्तिगत सम्पर्क में रहता है। उसकी बुद्धि का मूल्यांकन करने में उसके व्यवहार से भी सहायता ली जा सकती है और अधिक विश्वसनीय सूचनाएँ प्राप्त हो सकती हैं।
  3. परीक्षा प्रारम्भ होने से पूर्व परीक्षार्थी से भाव सम्बन्ध स्थापित करके उसकी मनोदशा को परीक्षण के प्रति केन्द्रित किया जा सकता है। इससे वह उत्साहित होकर परीक्षा देता है।
  4. आदेश/निर्देश सम्बन्धी कठिनाई का तत्काल निराकरण किया जाना सम्भव है।
  5. इन परीक्षणों का निदानात्मक महत्त्व अधिक होता है; अत: इसके माध्यम से व्यक्तिगत निर्देशन कार्य को सुगम बनाया जा सकता है।

दोष :

  1. व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षा केवल विशेषज्ञ परीक्षणकर्ता द्वारा सम्भव होती है।
  2. इसके माध्यम से सामूहिक बुद्धि का अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
  3. समय तथा धन दोनों की अधिक आवश्यकता पड़ती है।
  4. प्रयोग की जाने वाली सामग्री अपेक्षाकृत काफी महँगी पड़ती है। अतः ये परीक्षण बहुत खर्चीले हैं।
  5. विभिन्न परीक्षार्थियों की परीक्षा भिन्न-भिन्न समय पर लेने के कारण परिस्थितियों में बदलाव आ जाता है। सभी परीक्षार्थियों की परीक्षा के प्रति एकसमान रुचि नहीं रहतीजिसकी वजह से परीक्षण की वस्तुनिष्ठता कम हो जाती है।

(B) सामूहिक बुद्धि-परीक्षण
व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण की परिसीमाओं के कारण कुछ समय बाद एक ऐसी पद्धति की माँग की जाने लगी जिसमें कम समय में ही अधिक व्यक्तियों की बुद्धि-परीक्षा सम्पन्न हो सके। जब द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका ने युद्ध में प्रवेश किया तो लाखों की संख्या में कुशल सैनिकों तथा सैन्य अधिकारियों की आवश्यकता पड़ी। इस स्थिति में टरमन तथा थॉर्नडाइक आदि मनोवैज्ञानिकों ने प्रयास करके दो प्रकार के सामूहिक परीक्षण तैयार किये-आर्मी एल्फा तथा आर्मी बीटा। इन परीक्षणों की मदद से बहुत कम समय में बड़ी संख्या में सैनिकों तथा सैन्य अधिकारियों का चयन सम्भव हो सका। इस प्रकार, सामूहिक बुद्धि-परीक्षण वे परीक्षण हैं, जिनकी सहायता से एक साथ एक समय में बड़े समूह की बुद्धि-परीक्षा ली जा सके। ये भी दो प्रकार के हैं

1. शाब्दिक परीक्षण :
शाब्दिक सामूहिक परीक्षणों में भाषा का प्रयोग होता है; अतः ये शिक्षित व्यक्तियों पर ही लागू हो सकते हैं।

2. अशाब्दिक परीक्षण :
अशाब्दिक सामूहिक परीक्षणों में आकृतियों तथा चित्रों का प्रयोग किया जाता है। ये अनपढ़, अर्द्ध-शिक्षित या विदेशी लोगों के लिए होते हैं।

सामूहिक बुद्धि-परीक्षण के गुण-दोष
सामूहिक बुद्धि-परीक्षण के गुण-दोष निम्न प्रकार हैं

गुण :

  1. सामूहिक बुद्धि-परीक्षण में यह जरूरी नहीं होता कि परीक्षक विशेषज्ञ या विशेष रूप से प्रशिक्षित व्यक्ति हो।
  2. समय तथा धन दोनों की काफी बचत होती है।
  3. जाँचे का कार्य तो आजकल मशीनों द्वारा होने लगा है।
  4. विभिन्न स्थानों पर एक साथ एक ही प्रकार की परीक्षा का संचालन सम्भव है। परीक्षार्थियों का तुलनात्मक मूल्यांकने भी सुविधापूर्वक किया जा सकता है।
  5. ये परीक्षण अधिक वस्तुनिष्ठ हैं, क्योंकि एक ही परीक्षक पूरे समूह को एकसमान आदेश देता है, जिसके परिणामतः भाव सम्बन्ध की स्थापना तथा परीक्षार्थियों की परीक्षा में रुचि सम्बन्धी भेद उत्पन्न नहीं होता।
  6. शैक्षणिक तथा व्यावसायिक निर्देशन में सामूहिक परीक्षणों से बड़ा लाभ पहुँचा है।

दोष :

  1. सामूहिका बुद्धि-परीक्षण में परीक्षक परीक्षार्थी की मनोदशा से परिचित नहीं हो पाता। अतः व्यक्तिगत सम्पर्क व भाव सम्बन्ध की स्थापना का अभाव रहता है।
  2. परीक्षार्थी आदेश भली प्रकार नहीं समझ पाते जिसकी वजह से अधिक गलतियाँ होती हैं।
  3. यह ज्ञात नहीं हो पाता कि परीक्षार्थी अभ्यास से, रटकर या सोच-समझकर, कैसे परीक्षण पदों को हल कर रहे हैं।
  4. इन परीक्षणों का निदान तथा उपचार में सापेक्षिक दृष्टि से कम महत्त्व होता है।
  5. परीक्षण अपेक्षाकृत कम विश्वसनीय, कम प्रामाणिक तथा बालक के लिए बहुत कम उपयोगी सिद्ध होते हैं।

प्रश्न 4
बुद्धि-लब्धि से आप क्या समझते हैं? इसे कैसे ज्ञात करेंगे ?
या
मानसिक आयु’ और ‘बुद्धि-लब्धि किसे कहते हैं ? मानसिक आयु और बुद्धि-लब्धि ज्ञात करने के उदाहरण दीजिए।
या
बुद्धि-लब्धि क्या है? इसे कैसे निकाला जाता है। शिक्षा में इसकी क्या उपयोगिता है? [2016]
उत्तर :
बुद्धि-लब्धि
बालक की वास्तविक आयु और मानसिक आयु के आनुपातिक स्वरूप को ‘बुद्धि-लब्धि’ कहा जाता है। बुद्धि-लब्धि की यह अवधारणा सर्वप्रथम मनोवैज्ञानिक एम० एल० टरमन (M. L.Turman) द्वारा प्रस्तुत की गयी थी, जिसकी गणना के अन्तर्गत व्यक्ति की मानसिक आयु में वास्तविक आयु से भाग देकर उसे 100 से गुणा कर दिया जाता है। इसके लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है।
बुद्धि-लब्धि = मानसिक आयु / वास्तविक आयु  x 100
उदाहरणस्वरूप, यदि किसी बालक की वास्तविक आयु 5 वर्ष है और उसकी मानसिक आयु 7 वर्ष है तो उसकी बुद्धि-लब्धि इस प्रकार निकाली जाएगी।I.Q. = [latex]\frac { M.A }{ C.A } [/latex] x 100
= [latex]\frac { 7 }{ 5 } [/latex] x 100 = 140
बालक की बुद्धि-लब्धि 140 होगी।

बुद्धि-लब्धि का मापन
बुद्धि-परीक्षण के माध्यम से ‘बुद्धि-लब्धि’ (Intelligence Quotient Or I.O.) का मापन किया जाता है। अपने संशोधित स्केल (1908) में बिने ने बुद्धि-मापन के लिए मानसिक आयु की अवधारणा प्रस्तुत की थी, जिसके आधार पर टरमन ने 1916 ई० में बुद्धि-लब्धि का विचार प्रस्तुत किया। आजकल मनोवैज्ञानिक लोग बुद्धि मापन के लिए बुद्धि-लब्धि का प्रयोग करते हैं। बुद्धि-लब्धि वास्तविक आयु और मानसिक आयु का पारस्परिक अनुपात है। अतः सर्वप्रथम वास्तविक आयु और मानसिक आयु के निर्धारण का तरीका समझना आवश्यक है।

वास्तविक आयु :
वास्तविक आयु से अभिप्राय व्यक्ति की यथार्थ आयु से है, जिसका निर्धारण जन्मतिथि के आधार पर किया जाता है।

मानसिक आयु :
मानसिक आयु निर्धारित करने के लिए पहले व्यक्ति की वास्तविक आयु पर ध्यान देना होगा। माना किसी बालक की वास्तविक आयु 9वर्ष है और वह 9 वर्ष के लिए निर्धारित प्रश्नों को सही-सही हल कर देता है तो उसकी मानसिक आयु 9 वर्ष ही मानी जाएगी और इस दृष्टि से वह बालक सामान्य बुद्धि का बालक कहा जाएगा। किन्तु यदि वह 9वर्ष तथा 10 वर्ष के लिए निर्धारित प्रश्नों को सही-सही हल कर देता है तो उसकी मानसिक आयु 10 वर्ष समझी जाएगी और इस दृष्टि से बालक तीव्र बुद्धि का कहा जाएगा।

इस भाँति, यदि वही बालक 8 वर्ष के लिए निर्धारित सभी प्रश्नों को तो हल कर दे, किन्तु 9व के लिए निर्धारित किसी प्रश्न को हल न कर पाये तो उसकी मानसिक आयु 8 वर्ष होगी और इस आधार पर उसे मन्दबुद्धि कां बालक कहा जाएगा। व्यावहारिक रूप में आमतौर पर यह देखा जाता है कि कोई बालक किसी आयु-स्तर के सभी प्रश्नों का तो उत्तर सही-सही दे देता है। इसके अलावा कुछ दूसरे आयु-स्तर के कुछ प्रश्नों को भी हल कर लेता है। ऐसे मामलों में गणना हेतु बिने-साइमन स्केल में 2 वर्ष से 5 वर्ष तक के प्रत्येक परीक्षण-पद के लिए 1 महीना, 5 वर्ष से औसत प्रौढ़ तक के प्रत्येक परीक्षण-पद के लिए 2 माह और प्रौढ़ 1, 2 और 3 के हर एक परीक्षण-पद हेतु क्रमशः 4, 5 और 6 महीने की मानसिक आयु प्रदान करने का निर्देश दिया गया है।

बुद्धि-लब्धि के आधार पर वर्गीकरण
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निष्कर्षत :
बुद्धि-लब्धि मानसिक योग्यता का मात्रात्मक व तुलनात्मक रूप प्रस्तुत करती है। 5 वर्ष, की आयु से लेकर 14 वर्ष की आयु तक बुद्धि-लब्धि ज्यादातर स्थिर रहती है। वस्तुत: मानसिक आयु में वास्तविक आयु के साथ-साथ वृद्धि होती है, किन्तु 14 वर्ष के आसपास यह प्राय: रुक जाती है। परिवेश में परिवर्तन लेकर बुद्धि-लब्धि में परिवर्तन करना सम्भव है। गैरेट का मत है कि अच्छा या बुरा परिवेश होने से बुद्धि-लब्धि में 20 पाइण्ट तक वृद्धि या कमी पायी जाती है। यह सामाजिक अथवा आर्थिक स्तर के साथ-साथ घट-बढ़ सकती है। यह भी उल्लेखनीय है कि बुद्धि-लब्धि कभी शून्य नहीं होती, क्योंकि कोई भी व्यक्ति पूर्णरूप से बुद्धिहीन नहीं होता।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
बुद्धि एवं ज्ञान में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2007, 12, 14, 15)
उत्तर :
बुद्धि और ज्ञान में निम्नलिखित अन्तर हैं।

  1. बुद्धि जन्मजात और वंश-परम्परा से प्राप्त शक्ति है, जबकि ज्ञान वातावरण के द्वारा अर्जित शक्ति
  2. बेलार्ड के अनुसार, “बुद्धि वह मानसिक योग्यता है, जिसका मापन ज्ञान, रुचि और आदतरूपी साधनों के द्वारा किया जा सकता है।
  3. बुद्धि प्राप्त ज्ञान का जीवन में प्रयोग करना है, जब कि ज्ञान किसी तथ्य की जानकारी प्राप्त करना
  4. तीव्र बुद्धिज्ञान के विकास में अधिक योग देती है, परन्तु अधिक ज्ञान बुद्धि के विकास में अधिक योग नहीं देता।
  5. ज्ञान का विकास सरलता से किया जा सकता है, परन्तु बुद्धि का नहीं।
  6. रॉस के अनुसार, “बुद्धि लक्ष्य है और ज्ञान उस तक पहुँचने का केवल साधन है।”
  7. एडम्स (Adams) के अनुसार, व्यावहारिक जीवन में उपयोग में लाने योग्य ज्ञान अथवा विचार ही बुद्धि है।”
  8. विभिन्न समस्याओं को हल करने में बुद्धि का योग ज्ञान की तुलना में अधिक रहता है।
  9. एक व्यक्ति श्रम में विद्वान् या ज्ञानवान हो सकता है, परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वह बुद्धिमान भी हो। इसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह ज्ञानवान भी हो।
  10. ज्ञान का बुद्धि से घनिष्ठ सम्बन्ध है। यदि बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, तो ज्ञान भी नष्ट हो जाता है।

प्रश्न 2
बुद्धि के एक खण्डीय सिद्धान्त तथा दो खण्डों के सिद्धान्त का सामान्य परिचय दीजिए।
या
बुद्धि के द्वि-कारक सिद्धान्त की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
या
बुद्धि के द्वि-खण्ड (तत्त्व) सिद्धान्त के बारे में लिखिए। [2008, 13]
उत्तर :
1.एक-खण्डीय सिद्धान्त :
एक-खण्डीय सिद्धान्त के प्रमुख प्रतिपादक, बिने (Binet), टरमन (Turman) तथा स्टर्न (Stern) हैं। इनके अनुसार बुद्धि एक अखण्ड और अविभाज्य है। हमारी विभिन्न मानसिक योग्यताएँ एक इकाई के रूप में कार्य करती हैं, परन्तु यह सिद्धान्त अब अमान्य हो चुका है।

2. दो खण्डों का सिद्धान्त :
इस सिद्धान्त के प्रतिपादक स्पीयरमैन (Spearman) हैं, उनके अनुसार बुद्धि के दो तत्त्व हैं – सामान्य योग्यता और विशिष्ट योग्यता। स्पीयरमैन सामान्य योग्यता को विशिष्ट योग्यता से अधिक महत्त्वपूर्ण मानता है। उसके अनुसार इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं।

  1. सामान्य योग्यता जन्मजात होती है।
  2. सामान्य योग्यता एक मानसिक शक्ति है।
  3. इसका उपयोग मानसिक कार्यों में होता है।
  4. सामान्य योग्यता प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न मात्रा में पायी जाती है।
  5. सामान्य योग्यता किस व्यक्ति में कितनी है, इसका पता अन्तर्दृष्टि (Insight) द्वारा किये जाने वाले कार्यों में किया जा सकता है।
  6. सामान्य योग्यता का तत्त्व शक्ति में सर्वदा एकसमान है।
  7. जिन व्यक्तियों में जितनी सामान्य योग्यता पायी जाती है, उतना ही वह व्यक्ति सफल माना जाता

विशिष्ट योग्यता का सम्बन्ध व्यक्ति के विशिष्ट कार्यों से होता है। विशिष्ट योग्यता की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं।

  1. विशिष्ट योग्यता भी व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न मात्रा में पायी जाती है।
  2. विशिष्ट योग्यता को प्रयास द्वारा अर्जित किया जा सकता है।
  3. विशिष्ट योग्यता परस्पर एक-दूसरे से भिन्न होती है।
  4. विशिष्ट योग्यताएँ अनेक होती हैं।
  5. जिस व्यक्ति में जिस विशेष योग्यता की प्रधानता होती है, वह उसी में निपुणता प्राप्त करता है।

प्रश्न 3
बुद्धि की व्याख्या करने वाले बहुखण्ड सिद्धान्त का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
बुद्धि के बहुखण्ड सिद्धान्त के प्रतिपादक कैली (Kelley) और थर्स्टन (Thurstone) हैं। कैली के अनुसार बुद्धि निम्नलिखित खण्डों या योग्यताओं का समूह होती है।

  1. सामाजिक योग्यता (Social ability)
  2. गामक योग्यता (Motor ability)
  3. सांख्यिकीय योग्यता (Numerical ability)
  4. रुचि (Interest)
  5. सर्जनात्मक योग्यता (Productive ability)
  6. शाब्दिक योग्यता (Verbal ability)
  7. स्थान सम्बन्धी विचार की योग्यता (Ability deal with spatial relations)
  8. यान्त्रिक योग्यता (Mechanical ability)
  9. शारीरिक योग्यता (Physical ability)।

थस्टन ने भी बुद्धि को 13 मानसिक योग्यताओं का समूह माना है, जिसमें प्रमुख योग्यताएँ निम्नलिखित हैं

  1. आगमनात्मक योग्यता (Inductive ability)
  2. निगमनात्मक योग्यता (Deductive ability)
  3. प्रत्यक्षीकरण की योग्यता (Perceptical ability)
  4. सांख्यिकी योग्यता (Numerical ability)
  5. स्थान सम्बन्धी योग्यता (Spatial ability)
  6. शाब्दिक योग्यता (Verbal ability)
  7. समस्या समाधान योग्यता (Problem solving ability)
  8. स्मृति (Memory)।

वर्तमान में बुद्धि का बहुखण्ड सिद्धान्त अमान्य हो चुका है।

प्रश्न 4
शिक्षा में बुद्धि-परीक्षणों की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए। [2015]
उत्तर :
बुद्धि-परीक्षण मानव जीवन के लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हुए हैं। शाब्दिक एवं अशाब्दिक सभी प्रकार के बुद्धि परीक्षणों के लाभों या उपयोगिता के कुछ मुख्य बिन्दुओं पर अग्र प्रकार से प्रकाश डाला जा सकता है।

1. बुद्धि-परीक्षण एवं शैक्षिक निर्देशन :
बालकों की शैक्षिक निर्देशन प्रदान करने में बुद्धि-परीक्षण अपनी विशिष्ट भूमिका निभाता है। बुद्धि-परीक्षण की सहायता से शिक्षार्थी की बुद्धि-लब्धि का मापन किया जाता है, जिसके आधार पर सामान्य, मन्द बुद्धि, पिछड़े तथा प्रतिभाशाली बालकों के मध्य विभेदीकरण हो जाता है। परीक्षण के परिणामों के आधार पर निर्देशन प्रदान किया जाता है। इसी से उनकी समस्याओं का निदान व उपचार करना सम्भव हो पाता है।

2. बुद्धि-परीक्षण एवं व्यावसायिक निर्देशन :
व्यक्ति के बौद्धिक स्तर तथा उसकी मानसिक योग्यताओं के अनुकूल व्यवसाय तलाश करने तथा नियुक्ति के सम्बन्ध में बुद्धि-परीक्षण सहायक सिद्ध होता है। व्यावसायिक निर्देशन से जुड़े दो पहलुओं–प्रथम, व्यक्ति विश्लेषण जिसमें व्यक्ति की बुद्धि, योग्यता, रुचि तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी जानकारियाँ आती हैं; तथा द्वितीय, व्यवसाय विश्लेषण जिसमें विशेष व्यवसाय के लिए विशेष गुणों की आवश्यकता का ज्ञान आवश्यक है–में बुद्धि-परीक्षण उपयोगी है।

3. नियुक्ति :
विभिन्न सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थान व्यक्ति को रोजगार प्रदान करने में बौद्धिक स्तर का मूल्यांकन करते हैं। आजकल विभिन्न व्यवसायों से सम्बन्धित नियुक्ति से पूर्व की प्रायः सभी प्रतियोगिताओं में बुद्धि-परीक्षण लागू होते हैं।

4. वर्गीकरण :
शिक्षक अपने शिक्षण को अधिक उपयोगी एवं प्रभावशाली बनाने के लिए कक्षा के छात्रों को विभिन्न वर्गों; यथा-प्रखर बुद्धि, मन्द बुद्धि तथा औसत बुद्धि में विभाजित कर पढ़ाना चाहता । है। अलग वर्ग के लिए अलग एवं विशिष्ट शिक्षण विधि आवश्यक होती है। इन वर्गीकरणों के आधार बुद्धि-परीक्षण होते हैं।

5. शोध :
आजकल मनोवैज्ञानिक तथा शैक्षिक शोध-कार्यों में विषय-पात्रों के बौद्धिक स्तर तथा मानसिक योग्यता का सापन करना एक आम बात है। इसके लिए बुद्धि-परीक्षण काम में आते हैं।

प्रश्न 5
शाब्दिक एवं अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
शाब्दिक एवं अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों में अन्तर
शाब्दिक एवं अशाब्दिक बुद्धि-परीक्षणों में मुख्य अन्तर निम्नलिखित तालिका में वर्णित हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 23 Intelligence and Intelligence Tests image 2

प्रश्न 6
व्यक्तिगत एवं सामूहिक बुद्धि-परीक्षणों में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2009, 10, 11,13]
उत्तर :
व्यक्तिगत एवं सामूहिक बुद्धि-परीक्षणों में मुख्य अन्तर निम्नलिखित तालिका में वर्णित हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 23 Intelligence and Intelligence Tests image 3

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
बुद्धि के मुख्य प्रकारों का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
गैरेट (Garret) तथा थॉर्नडाइक (Thorndike) के अनुसार बुद्धि तीन प्रकार की होती हैं।

1. मूर्त बुद्धि :
विभिन्न वस्तुओं को समझने तथा अनुकूल क्रिया करने में मूर्त (Concrete) बुद्धि का प्रयोग होता है। जिनमें यह बुद्धि होती है, वे यन्त्रों तथा मशीनों में विशेष रुचि लेते हैं। यह बुद्धि गामक (Motor) बुद्धि भी कहलाती है।

2. अमूर्त बुद्धि :
अमूर्त (Abstract) बुद्धि का कार्य सूक्ष्म तथा अमूर्त प्रश्नों को चिन्तन तथा मनन के द्वारा हल करना होता है। इस बुद्धि का सम्बन्ध पुस्तकीय ज्ञान से होता है। दार्शनिकों, कवियों तथा साहित्यकारों में यह बुद्धि विशेष रूप से पायी जाती है।

3. सामाजिक बुद्धि :
सामाजिक बुद्धि का तात्पर्य व्यक्ति की उस योग्यता से है, जो उसमें सामाजिक समायोजन की क्षमता उत्पन्न करती है। जिस व्यक्ति में यह बुद्धि होती है, वह मिलनसार तथा सामाजिक कार्यों में विशेष रुचि लेता है। राजनीतिज्ञों, कूटनीतिज्ञों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं में यह बुद्धि विशेष रूप से पायी जाती है।

प्रश्न 2
बुद्धि-परीक्षणों की विश्वसनीयता से क्या आशय है ?
उत्तर :
यदि बुद्धि-परीक्षण किसी व्यक्ति-विशेष की बुद्धि का एकरूपता से मापन करता है तो उसे विश्वसनीय (Reliable) कहा जाएगा। अनास्टेसी का कथन है कि “विश्वसनीयता से तात्पर्य स्थायित्व अथवा स्थिरता से है। उदाहरण के लिए, माना ‘स्टेनफोर्ड बिने बुद्धि परीक्षण द्वारा एक बालक ‘राजन’ की बुद्धि का मापन किया गया, जिसके परिणामस्वरूप उसकी बुद्धि-लब्धि 108 आती है। कुछ समय के पश्चात् साधारण परिस्थितियों में स्टेनफोर्ड बिने बुद्धि-परीक्षण’ द्वारा राजन की बुद्धि को पुनः मापन किया गया, जिसका परिणाम वही बुद्धि-लब्धि 108 निकला।

तीन-चार-पाँच बार जब परीक्षण द्वारा राजन की बुद्धि मापी गयी तो उसकी बुद्धि-लब्धि 108 ही प्राप्त हुई। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि ‘स्टेनफोर्ड बिने बुद्धि-परीक्षण पूर्णरूप से विश्वसनीय बुद्धि-परीक्षण है। एक विश्वसनीय बुद्धि-परीक्षण में वस्तुनिष्ठता तथा व्यापकता का गुण अनिवार्य रूप से होना चाहिए। एक बुद्धि-परीक्षण उस समय वस्तुनिष्ठ कहा जाएगा, जब कि वह परीक्षक के व्यक्तिगत विचारों से प्रभावित न हो और उसकी व्यापकता से अभिप्राय है कि वह बुद्धि के सभी पक्षों का मूल्यांकन करेगा। एक बुद्धि-परीक्षण में विश्वसनीयता का गुण उसे प्रामाणिक बनाने में सहायता देता है।

प्रश्न 3
आकृति-फलक परीक्षण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
आकृति-फलक परीक्षण एक अशाब्दिक बुद्धि :
परीक्षण है। इस परीक्षण को सामान्य रूप से मन्द बुद्धि बालकों के बुद्धि-परीक्षण के लिए अपनाया जाता है। ऐसा ही एक परीक्षण सेग्युइन ने तैयार किया था। इस परीक्षण में लकड़ी का एक पटल होता है, जिसमें कि विभिन्न आकार के दस टुकड़े काटकर अलग कर दिये जाते हैं। परीक्षार्थी के सम्मुख छिद्रमुक्त पटल तथा ये दस टुकड़े रख दिये जाते हैं। अब परीक्षार्थी से इन टुकड़ों को बोर्ड में कटे हुए उपयुक्त स्थानों में फिट करने के लिए कहा जाता है। इस प्रकार के तीन प्रशास किये जाते हैं। जिस प्रयास में परीक्षार्थी को सबसे कम समय लगता है, उसी को आंधार मानकर फलॉक प्रदान कर बुद्धि का निर्धारण किया जाता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
बुद्धि की एक संक्षिप्त परिभाषा लिखिए। [2012]
उत्तर :
“बुद्धि अमूर्त विचारों के विषय में सोचने की योग्यता है।” [टरमन]

प्रश्न 2
बुद्धि के मुख्य प्रकार कौन-कौन-से हैं ? या : थॉर्नडाइक ने बुद्धि के तीन भाग किये हैं, वे कौन-से हैं? [2015]
उत्तर :
गैरेट तथा थॉर्नडाइक ने बुद्धि के तीन प्रकार निर्धारित किये हैं

  1. मूर्त बुद्धि
  2. अमूर्त बुद्धि तथा
  3. सामाजिक बुद्धि

प्रश्न 3
बुद्धि की व्याख्या के लिए कौन-कौन-से सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये हैं ?
उत्तर :

  1. एक खण्डीय सिद्धान्त
  2. दो खण्डों का सिद्धान्त
  3. बहुखण्ड को सिद्धान्त तथा
  4. त्रा सिद्धान्त।

प्रश्न 4
सामान्य एवं विशिष्ट कारक बुद्धि सिद्धान्त का प्रतिपादन किसने किया है?
उत्तर :
सामान्य एवं विशिष्ट कारक बुद्धि सिद्धान्त (दो खण्ड का सिद्धान्त) स्पीयरमैन ने प्रस्तुत किया हैं।

प्रश्न 5
विश्वसनीयता और वैधता किस प्रकार के परीक्षण की मुख्य विशेषताएँ हैं?
उत्तर :
विश्वसनीयता और वैधता मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की मुख्य विशेषताएँ हैं।

प्रश्न 6
बुद्धि-परीक्षण से क्या आशय है ?
उत्तर :
बुद्धि परीक्षण, वे मनोवैज्ञानिक परीक्षण हैं जो मानव-व्यक्तित्व के सर्वप्रमुख तत्त्व एवं उसकी प्रधान मानसिक योग्यता बुद्धि का अध्ययन तथा मापन करते हैं।

प्रश्न 7
प्रथम विश्व युद्ध के समय किस प्रकार के बुद्धि-परीक्षण का जन्म हुआ?
उत्तर :
प्रथम विश्व युद्ध के समय मुख्य रूप से शाब्दिक समूह-बुद्धि-परीक्षणों का जन्म हुआ। इनके उदाहरण हैं – आर्मी एल्फा और बीटा परीक्षण।

प्रश्न 8
बुद्धि-परीक्षणों में निहित क्रियाओं के आधार पर उनके मुख्य वर्ग कौन-से हैं?
उत्तर :
बुद्धि-परीक्षणों में निहित क्रियाओं के आधार पर उनके मुख्य वर्ग हैं

  1. शाब्दिक परीक्षण तथा अशाब्दिक या क्रियात्मक परीक्षण।

प्रश्न 9
बुद्धि-लब्धि को ज्ञात करने का सूत्र क्या है? [2007, 08, 11, 14]
या
बुद्धि-लब्धि का सूत्र लिखिए। [2008, 11, 13]
उत्तर :
बुद्धि-लब्धि को ज्ञात करने का सूत्र
बुद्धि-लब्धि = मानसिक आयु / मानसिक आयु x 100

प्रश्न 10
“बुद्धि चार तत्त्वों का समूह है।” किसने कहा है? [2014]
उत्तर :
वुडवर्थ ने।

प्रश्न 11
बुद्धि-लब्धि सूत्र के निर्माता कौन हैं। [2015]
उत्तर :
बुद्धि-लब्धि सूत्र के निर्माता टरमन हैं।

प्रश्न 12
बुद्धि की प्रमुख विशेषता क्या होती है? [2014]
उत्तर :
बुद्धि से व्यक्ति अतीत के अनुभवों से लाभ उठाता है। वर्तमान परिस्थिति को समझता है तथा नवीन परिस्थितियों से समायोजन करता है।

प्रष्टग 13
मन्दबुद्धि बालक की बुद्धि-लब्धि लिखिए। [2016]
उत्तर :
अत्यन्त मन्द बालक की बुद्धिलब्धि 70 से 79 होती है तथा मन्द सामान्य बालक की बुद्धिलब्धि 80 से 85 होती है।

प्रश्न 14
बुद्धि क्या है? [2016]
उत्तर :
बुद्धि व्यक्ति की सम्पूर्ण शक्तियों का योग या सार्वभौमिक योग्यता है, जिसके द्वारा वह उद्देश्यपूर्ण कार्य करता है, तर्कपूर्ण ढंग से सोचता है तथा प्रभावी ढंग से वातावरण के साथ सम्पर्क स्थापित करता है।

प्रश्न 15
किसने कहा है कि बुद्धि सात प्राथमिक योग्यताओं का समूह है? [2016]
उत्तर :
लुईस थर्स्टन।

प्रश्न 16
बुद्धि-लब्धि क्या है? [2008, 13]
उत्तर :
बालक की वास्तविक आयु और मानसिक आयु के आनुपातिक स्वरूप को बुद्धि-लब्धि कहा जाता है।

प्रश्न 17
“अमूर्त चिन्तन की योग्यता ही बुद्धि हैं।” यह परिभाषा किस मनोवैज्ञानिक द्वारा परिपादित है?
उत्तर :
यह परिभाषा टरमन द्वारा प्रतिपादित है।

प्रश्न 18
मानसिक आयु कैसे ज्ञात की जाती है?
उत्तर :
मानसिक आयु विभिन्न परीक्षणों द्वारा ज्ञात की जाती है।

प्रश्न 19
भारतीय शिक्षाशास्त्री भाटिया द्वारा तैयार किए गए बुद्धि परीक्षण किस वर्ग के बुद्धि परीक्षण है?
उत्तर :
अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण।

प्रश्न 20
आर्मी एल्फा और बीटा परीक्षण किस वर्ग का परीक्षण है?
उत्तर :
आर्मी एल्फा और बीटा परीक्षण सामूहिक शाब्दिक बुद्धि परीक्षण है।

प्रश्न 21
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य

  1. प्रत्येक व्यक्ति में जन्मजात रूप में बुद्धि विद्यमान होती है।
  2. बुद्धि और ज्ञान में कोई अन्तर नहीं है।
  3. बुद्धि के बहुखण्ड सिद्धान्त का प्रतिपादन स्पीयरमैन ने किया है।
  4. मानसिक आयु और बुद्धि-लब्धि पर्यायवाची हैं।

उत्तर :

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. असत्य
  4. असत्य

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गए विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1
“बुद्धि पहचानने तथा सीखने की शक्ति है।” यह किसका कथन है ?
(क) स्टर्न का
(ख) बिनेट का
(ग) माल्टने का
(घ) टरमन का
उत्तर :
(ग) माल्टन का

प्रश्न 2
“बुद्धि अमूर्त वस्तुओं के विषय में सोचने की योग्यता है।” यह परिभाषा किसकी है?
(क) थॉर्नडाइक की
(ख) मैक्डूगल की
(ग) बकिंघम की
(घ) टरमन की
उत्तर :
(घ) टरमन की

प्रश्न 3
बुद्धि की प्रमुख विशेषता
(क) बुद्ध जन्मजात होती है
(ख) बुद्धि अर्जित होती है
(ग) बुद्धि सामाजिक होती है
(घ) बुद्धि व्यक्तिगत होती है
उत्तर :
(क) बुद्धि जन्मजात होती है

प्रश्न 4
वुडवर्थ के अनुसार बुद्धि में कितने तत्त्व होते हैं ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर :
(ग) चार

प्रग 5
किस मनोवैज्ञानिक ने बुद्धि को सात प्रमुख योग्यताओं का समूह बताया है ?
(क) स्पीयरमैन ने
(ख) थर्स्टन ने
(ग) थॉर्नडाइक ने
(घ) टरमन ने
उत्तर :
(ख) थर्स्टन ने

प्रश्न 6
“बुद्धि-परीक्षा, किस प्रकार का कार्य अथवा समस्या होती है, जिसकी सहायता से एक व्यक्ति की मानसिक योग्यता का मापन किया जाता है।” यह कथन किसका है ?
(क) टरमन का
(ख) ड्रेवर का
(ग) बिने का
(घ) रोर्शा का
उत्तर :
(ख) ड्रेवर का

प्रश्न 7
एक समय में एक ही व्यक्ति को दिया जाने वाला बुद्धि परीक्षण कहलाता है।
(क) सामूहिक बुद्धि परीक्षण
(ख) क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण
(ग) सामाजिक बुद्धि परीक्षण
(घ) वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण
उत्तर :
(घ) वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण

प्रश्न 8
सन 1910 में किसने गणित की बुद्धि-परीक्षा सम्पादित की ?
(क) बिने ने
(ख) टरमन ने
(ग) कैटेल ने
(घ) कोर्टिस ने
उत्तर :
(घ) कोर्टिस ने

प्रश्न 9
सामूहिक बुद्धि-परीक्षा का आरम्भ सर्वप्रथम किस देश में हुआ ?
(क) भारत में
(ख) अमेरिका में
(ग) जर्मनी में
(घ) ब्रिटेन में
उत्तर :
(ख) अमेरिका में

प्रश्न 10
प्रथम बिने-साइमन बुद्धि-परीक्षण की शुरुआत हुई थी, सन्
(क) 1906 ई० में
(ख) 1904 ई० में
(ग) 1907 ई० में
(घ) 1905 ई० में
उत्तर :
(घ) 1905 ई० में

प्रश्न 11
बुद्धि लब्धि (I.Q.) =
UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 23 Intelligence and Intelligence Tests image 4
उत्तर :
UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 23 Intelligence and Intelligence Tests image 5

प्रश्न 12
70-80 बुद्धि-लब्धि वाला व्यक्ति कहलाता है [2007]
(क)।प्रखर
(ख) प्रतिभाशाली
(ग) सामान्य
(घ) दुर्बल बुद्धि
उत्तर :
(घ) दुर्बल बुद्धि

प्रश्न 13
सामान्य बुद्धि के बालक की बुद्धि-लब्धि होती है [2007, 13]
(क) 80 से 90
(ख) 90 से 110
(ग) 70 से 80
(घ) 110 से 120
उत्तर :
(ख) 90 से 110

प्रश्न 14
“बुद्धि कार्य करने की एक विधि है” यह किसकी परिभाषा है ? [2014]
(क) वुडवर्थ
(ख) टरमन
(ग) थॉर्नडाइक
(घ) बिने
उत्तर :
(क) वुडवर्थ

प्रश्न 15
उत्कृष्ट बुद्धि के बालक की बुद्धि-लब्धि होती है [2009]
(क) 80 से 90
(ख) 90 से 110
(ग) 70 से 80
(घ) 110 से 120
उत्तर :
(घ) 110 से 120

प्रश्न 16
प्रतिभाशाली (Genius) बालक की बुद्धि-लब्धि होती है [2014]
(क) 90 से 110
(ख) 110 से 120
(ग) 120 से 140
(घ) 140 से अधिक
उत्तर :
(घ) 140 से अधिक

प्रश्न 17
एक बालक की मानसिक आयु (M.A.) 12 वर्ष है तथा उसकी शारीरिक आयु (C.A.) 16 वर्ष है, तो उसकी बुद्धि-लब्धि (I.d.) होगी (2009)
(क) 80
(ख) 75
(ग) 100
(घ) 133
उत्तर :
(ख) 75

प्रश्न 18
एक बालक की मानसिक आयु (M.A.) 15 वर्ष है तथा उसकी वास्तविक आयु (C.T:) 12 वर्ष है, तो उसकी बुद्धि-लब्धि (1.0.) होगी [2011]
(क) 100
(ख) 125
(ग) 150
(घ) 175
उत्तर :
(ख) 125

प्रश्न 19
आर्मी एल्फा और बीटा परीक्षा किस प्रकार के परीक्षण थे?
(क) शाब्दिक व्यक्ति बुद्धि परीक्षण
(ख) शाब्दिक समूह बुद्धि परीक्षण
(ग) क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ख) शाब्दिक समूह बुद्धि परीक्षण

प्रश्न 20
अशाब्दिक समूह बुद्धि परीक्षण उपयोगी होते हैं
(क) अनपढ़ व्यक्तियों के लिए
(ख) बच्चों के परीक्षण के लिए
(ग) मानसिक रूप से पिछड़े बच्चों के लिए
(घ) इन सभी के लिए
उत्तर :
(घ) इन सभी के लिए

प्रश्न 21
जिन परीक्षणों में लकड़ी के गुटकों, कार्ड बोर्ड या ठोस वस्तुओं को हाथों से बर्ताव करना पड़ता है, उन्हें कहते हैं
(क) सामूहिक परीक्षण
(ख) मिश्रित परीक्षण
(ग) कार्यात्मक परीक्षण
(घ) व्यक्तिगत परीक्षण
उत्तर :
(ग) कार्यात्मक परीक्षण

प्रश्न 23
बुद्धि-लब्धि के विषय में सत्य कथन है
(क) यह मानसिक आयु तथा वास्तविक आयु के बीच अनुपात है।
(ख) यह बुद्धि की मात्रा नहीं है।
(ग) यह बुद्धि की क्षमता है, जो समय-समय पर परिवर्तित हो सकती है।
(घ) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं।
उत्तर :
(घ) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं।

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