UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 18 तिकोनी और लम्बी पट्टियाँ तथा उनका प्रयोग

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These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 18 तिकोनी और लम्बी पट्टियाँ तथा उनका प्रयोग.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
मरहम-पट्टी ( ड्रेसिंग ) से क्या अभिप्राय है? प्राथमिक चिकित्सा में पट्टियाँ बाँधने के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर:
मरहम-पट्टी का अर्थ एवं प्रकार

प्राथमिक चिकित्सा में सर्वाधिक आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण कार्य है-दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की मरहम-पट्टी करना। किसी भी प्रकार की चोट लग जाने या घाव हो जाने पर रोगी की मरहम-पट्टी की जाती है। मरहम-पट्टी के अन्तर्गत चोट या घाव को किसी नि:संक्रामक घोल से साफ करके उस पर मरहम (UPBoardSolutions.com) लगाकर पट्टी बाँधी जाती है। चोट एवं घाव के अतिरिक्त कुछ अन्य दशाओं में भी मरहम-पट्टी की जाती है। सैद्धान्तिक रूप से मरहम-पट्टी के निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं

(1) सूखी मरहम-पट्टी,
(2) गीली मरहम-पट्टी।

(1) सूखी मरहम-पट्टी:
इसका प्रयोग घाव की रक्षा करने, उसके भरने तथा उस पर दबाव डालने के लिए किया जाता है। सामान्यतः ये पट्टियाँ जालीदार महीन कपड़े की बनी होती हैं तथा नि:संक्रमित अवस्था में प्लास्टिक पेपर में बन्द रहती हैं। आकस्मिक दुर्घटना के समय इनके उपलब्ध होने तक इनके स्थान पर स्वच्छ फलालेन कपड़े के टुकड़े, रूमाल अथवा कागज का उपयोग किया जा सकता है।

(2) गीली मरहम-पट्टी:
ये दो प्रकार की होती हैं

(क) ठण्डी पट्टी:
यह पीड़ा, सूजन तथा आन्तरिक रक्तस्राव को कम करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है। ये स्वच्छ कपड़े, रूमाल अथवा फलालेन के कपड़े की चार तह करके ठण्डे पानी में भिगोकर प्रभावित अंगों पर रखी जाती हैं। इन्हें गीला एवं ठण्डा बनाए रखने के लिए समय-समय पर बदलते रहना चाहिए।

(ख) गर्म पट्टी:
इनका उपयोग गुम चोट की पीड़ा को कम करने, फोड़ों को पकाने तथा सूजन को कम करने के लिए किया जाता है। ठण्डी पट्टी के समान इसे भी कपड़े की चार तह करके (UPBoardSolutions.com) बनाया जाता है. तथा गर्म पानी में भिगोकर प्रभावित अंग पर रखा जाता है। प्रभावित अंग को लगातार गर्मी प्रदान करने के लिए पट्टी को बार-बार बदलते रहना चाहिए।

प्राथमिक चिकित्सा में पट्टियों के उद्देश्य एवं महत्त्व

प्राथमिक चिकित्सा में पट्टियों का अपना विशेष महत्त्व है। इसकी पुष्टि के लिए पट्टियों को प्रयोग करने में निम्नलिखित उद्देश्यों का अवलोकन करना आवश्यक है

  1. पट्टियों के प्रयोग करने का एक उद्देश्य घाव को बढ़ने अथवा फैलने से रोकना होता है, जिससे कि चोटग्रस्त अंग अधिक गम्भीर न हो सके।
  2.  पट्टियाँ प्रायः नि:संक्रमित होती हैं; अत: इनका प्रयोग कर घाव को ढकने से घाव वायु में उपस्थित हानिकारक जीवाणु के संक्रमण से सुरक्षित हो जाता है।
  3. चोटग्रस्त अंग पर औषधि एवं खपच्चियों को यथास्थान बनाए रखने के लिए पट्टियों का प्रयोग किया जाता है। दवा लगाकर पट्टी बाँध देने पर दवा के पुछ जाने या अरु जाने की आशंका नहीं रहती।
  4. घायल अंग अथवा अंगों को सहारा देने के लिए झोल के रूप में पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।
  5.  घाव पर उचित मात्रा में दबाव डालने के लिए पट्टियों का प्रयोग करते हैं। इससे सूजन या तो कम हो जाती है या फिर बढ़ती नहीं है।
  6. चोट अथवा घाव आदि को फिर से चोट या धक्का लगने से बचाने के लिए प्रायः पट्टियों का उपयोग किया जाता है।
  7.  रक्तस्त्राव को कम करने के लिए अथवा बन्द करने के लिए घायल अंग पर कसकर पट्टियाँ बाँधी जाती हैं।
  8.  पट्टियाँ बाँधने से क्षतिग्रस्त धमनियों एवं पेशियों को आराम मिलता है तथा दर्द में कमी आती है।
  9. रोगियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए भी पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 2:
लुढ़की अथवा लम्बी पट्टियों का प्रयोग कब किया जाता है? भुजा एवं टाँग के चोटग्रस्त होने पर लम्बी पट्टियाँ किस प्रकार बाँधी जाती हैं?
उत्तर:
लम्बी पट्टियों का प्रयोग:
ये प्राय: 5 मीटर लम्बी होती हैं; परन्तु सीने एवं सिर पर बाँधने के लिए ये 8 मीटर तक लम्बी हो सकती हैं। भिन्न अंगों के लिए इनकी चौड़ाई भिन्न होती है। इन्हें मशीन अथवा हाथ द्वारा लपेटा जा सकता है। इनके प्रयोग करने के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. घाव अथवी चोट पर रुई, औषधि एवं खपच्चियों को यथास्थान बनाए रखने के लिए।
  2. घायल अंगों को सहारा देने के लिए।
  3.  सूजन कम करने तथा घाव पर उचित दबाव डालने के लिए।
  4. रक्त-स्राव रोकने के लिए तथा रक्त-प्रवाह की दिशा को बदलने के लिए।

(क) भुजा अथवा अग्रबाहु पर लम्बी पट्टियाँ बाँधने की विधियाँ

(i) अँगूठे की पट्टी बाँधना:
अँगूठे की पट्टी बाँधने के लिए लगभग 2.5 सेन्टीमीटर चौड़ी तथा 1.5 मीटर लम्बी पट्टी की आवश्यकता होती है। इसे बाँधने के लिए कलाई के पृष्ठ तल पर एक सिरा रखकर दो लपेट लगाते हैं। पट्टी को छोटी उँगली की ओर लपेटते हुए हथेली पर से अंगूठे के नाखून की ओर एक फेरा अँगूठे के चारों (UPBoardSolutions.com) ओर लगाते हैं; अत: यह पट्टी अँगूठे के बाहरी किनारों की ओर होगी। अब अँगूठे के चारों ओर इसे लपेटते हुए अंगूठे के भीतरी किनारे की ओर लाया जाता है और इसी प्रकार और चक्कर लगाए जाते हैं। प्रत्येक चक्कर में पहली पट्टी की चौड़ाई का लगभग 1/3 भाग ढक दिया जाता है। इस प्रकार लपेटी गई पट्टी जब कलाई के पास पहुँच जाती है, तब कलाई पर पट्टी के दो चक्कर लगाकर या तो पहले छोर के साथ गाँठ बाँध दी जाती है। अथवा सेफ्टी पिन की सहायता से पट्टी को जोड़ दिया जाता है।
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(ii) उँगली की पट्टी बाँधना:
यह पट्टी भी 2.5 सेन्टीमीटर चौड़ी तथा 1.5 मीटर लम्बी होती है। इसे । भी कलाई के पृष्ठ भाग से प्रारम्भ करना चाहिए और 1-2 लपेट देने के बाद उँगली के नाखून तक ले जाना चाहिए। अँगूठे की तरह ही क्रमशः आगे से पीछे की ओर पट्टी को लपेटते हुए जब पट्टी हथेली पर पहुँच जाए तो अँगूठे की ओर ले जाकर कलाई के चारों ओर लपेटकर पहले छोर से बाँध देते हैं अथवा सेफ्टी पिन की सहायता से पट्टी को जोड़ देते हैं।

(iii) हथेली की पट्टी बाँधना:
इसके लिए लगभग 5 सेन्टीमीटर चौड़ी पट्टी की आवश्यकता होती है। घायल व्यक्ति की हथेली को नीचे रखकर प्राथमिक चिकित्सक को उसके सामने खड़ा होना चाहिए। अब पट्टी के सिरे को छोटी उँगली के पास रखकर अँगूठे की ओर ले जाते हैं तथा उँगलियों के चारों ओर दो-तीन बार लपेट (UPBoardSolutions.com) देते हैं। इसके बाद पट्टी को अँगूठे और हथेली के कोण । से निकालकर हथेली के पृष्ठ भाग की ओर ले । जाते हैं जहाँ से कलाई की ओर ले जाकर कलाई पर एक चक्कर लगाकर वापस लौटा लेते हैं। इस बार यह चक्कर छोटी अँगली की ओर जाएगा।
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छोटी उँगली के नाखून से नीचे तक तथा उँगलियों के नीचे से निकाल लिया जाता है। इस प्रकार, क्रमशः उँगलियों से कलाई की ओर तथा कलाई से अँगूठे की ओर (UPBoardSolutions.com) आवश्यकतानुसार कुछ चक्कर लगाए जाते हैं। हर बार पट्टी के पिछले चक्कर का कुछ भाग ढक देने से पट्टी के खुलने का भय नहीं रहता है। अन्तिम रूप में पट्टी को कलाई पर ही पहले सिरे के साथ बाँध दिया जाता है अथवा सेफ्टी पिन के साथ जोड़ दिया जाता है।

(iv) अग्रबाहु की पट्टी बाँधना:
यह पट्टी लगभग 5-7 सेन्टीमीटर चौड़ी होती है। इसके सिरे को अँगूठे के सिरे की ओर रखा जाता है तथा कलाई के भीतर की।
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ओर से बाहर की ओर लाया जाता है। अब इस पट्टी को । अँगूठे की ओर से छोटी उँगली की ओर उसके प्रथम जोड़। पर लम्बी पट्टी बाँधना तक लाया जाता है और हथेली की ओर से लेते हुए अँगूठे। और उँगलियों के स्थान से हथेली के पृष्ठ भाग पर लाया जाता है। इस प्रकार दो-तीन चक्कर लगाए जाते हैं। बाद में कलाई पर सीधे दो-तीन चक्कर लगाकर कोहनी की तरफ लपेटते हुए, ध्यान रहे कि हर बार पिछली पट्टी इससे ढकती रहे, जब कोहनी के पास पहुँच जायें तो पट्टी के सिरे कों एक या दो लपेट देकर सेफ्टी पिन की सहायता से जोड़ देते हैं। बड़ी झोली में अग्रबाहू डालकर सहारा दिया जाता है।

(ख) टाँग पर पट्टी बाँधने की विधियाँ:

(i) घटने तथा कोहनी पर पट्टी बाँधना:
घटने। अथवा भुजा की कोहनी पर लगभग 7 सेन्टीमीटर चौड़ी पट्टी बाँधी जाती है। पहले पट्टी के खुले सिरों को जोड़ में भीतरी सतह पर रखकर एक-दो चक्कर लगाने (UPBoardSolutions.com) चाहिए। उसके उपरान्त क्रमशः जोड़ के ऊपर-नीचे लटके हुए ‘8’ की आकृति एक के बाद एक कई बार बनानी चाहिए। जब जोड़ पूरा ढक जाए तो पट्टी को सेफ्टी पिन से अटका देना चाहिए। यदि चोट बाँह में हो, तो उसे झोली में लटका देना चित्र चाहिए।
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(ii) तलुए तथा एड़ी पर पट्टी बाँधना:
दोनों स्थानों पर लगभग 7 सेन्टीमीटर चौड़ी पट्टी प्रयोग में लाई जाती है। पैर को सुविधाजनक स्थिति में रखकर पट्टी को टखने के जोड़ पर इस प्रकार रखा जाता है। कि इसका खुला सिरा टखने पर रहे और फिर टखने के जोड़ पर दो लपेट इस प्रकार लगाए जाते हैं कि जोड़ पूरी । तरह ढक जाए। (UPBoardSolutions.com) इसके बाद पट्टी को पैर के ऊपर से ले जाकर छोटी उँगली के सिरे तक ले जाते हैं और यहाँ से पैर के ऊपर एक सीधा चक्कर लगा देते हैं। अब शेष चक्कर ‘8’ का अंक बनातेहुए लगाते हैं। इस प्रकार पुरा तलुओ। ढक दिया जाता है। अब या तो पहले सिरे के साथ गाँठ बाँध दी जाती है अथवा सेफ्टी पिन द्वारा पट्टी को जोड़ दिया जाता है।
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एड़ी पर पट्टी बाँधते समय पट्टी को टखने के जोड़ के ऊपर से बाँधना आरम्भ करते हैं। एक-दो लपेट एड़ी पर देने के पश्चात् पट्टी तलुए तक पहुँचाते हैं। तलुए के नीचे से निकालकर छोटी उँगली की दिशा में पहले चक्कर की तरह पट्टी एड़ी पर से तिरछी ली जाती है तथा तीन-चार बार लपेट देकर एड़ी
टखने को पूरी तरह ढक देते हैं।

(iii) ट्राँग की पट्टी बाँधना:
अग्रबाहु की तरह टाँग की पट्टी भी 5-7 सेन्टीमीटर चौड़ी होती है। इसके बाँधने का ढंग भी बिल्कुल अग्रबाहु के समान होता है।

प्रश्न 3:
भुजा एवं टाँगों पर बाँधी जाने वाली तिकोनी पट्टियों की विभिन्न विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
तिकोनी पट्टियों के प्रयोग से कुछ विशिष्ट अंगों को आवश्यकतानुसार बाँधकर प्रभावित स्थान को ढकने, पीड़ा कम करने तथा उपयुक्त दबाव डालना आदि महत्त्वपूर्ण कार्य किए जा सकते हैं। तिकोनी पट्टियों को भुजा एवं टाँग पर निम्नलिखित प्रकार से बाँधा जा सकता है

(क) भुजा पर तिकोनी पट्टी बाँधना

(i) हाथ की पट्टी बाँधना:
तिकोनी पट्टी को फैलाकर उसके आधार वाले भाग को लगभग चार सेन्टीमीटर अन्दर की ओर मोड़ दिया जाता है। घायल हाथ को पट्टी के मध्यम भाग में इस प्रकार रखा जाता है कि उँगली पट्टी के शीर्ष की ओर रहे। शीर्ष को मोड़कर कलाई तक ले जाते हैं। पट्टी के आधारीय दोनों सिरों को दोनों हाथों से पकड़कर एक-दूसरे की विपरीत दिशा में खींचकर लपेटते हैं। तथा कलाई पर ‘रीफ’ गाँठ बाँध देते हैं। यदि आवश्यकता हो, तो चोटग्रस्त हाथ को सँकरी झोली द्वारा लटका देते हैं।
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(ii) कोहनी की पट्टी बाँधना:
कोहनी पर बाँधने के लिए एक छोटी पट्टी को फैलाकर उसके आधारीय भाग को हाथ की पट्टी के अनुसार थोड़ा-सा अन्दर की ओर मोड़ लेते हैं। अब कोहनी को समकोण पर मोड़कर पट्टी को इस प्रकार रखा जाता है कि उसका शीर्ष कन्धे की ओर रहे और आधारीय भाग आगे की ओर अग्रबाहु पर। रहे। (UPBoardSolutions.com) अब आधारीय दोनों सिरों को दोनों हाथ से पकड़कर कोहनी के ऊपरी भाग से एक-दूसरे के विपरीत दिशा में लपेटकर ‘रीफ गाँठ बाँध दी जाती है। शीर्ष का बचा हुआ भाग गाँठ के ऊपर लाकर सेफ्टी पिन द्वारा पट्टी से जोड़ दिया जाता है। भुजा को आराम देने के लिए बड़ी झोली में डाल दिया जाता है।
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(iii) कन्धे की पट्टी बाँधना:
इस कार्य के लिए तिकोनी पट्टी के आधारीय भाग को अन्दर की ओर मोड़ते हैं। प्राथमिक चिकित्सक चोटग्रस्त व्यक्ति के घायल कन्धे की ओर खड़ा होकर पट्टी को इस प्रकार रखे कि पट्टी को शीर्ष भाग गर्दन के पास कन्धे पर रहे तथा आधार को मध्य भाग कोहनी से ऊपर रहे। अब पट्टी के दोनों आधारीय सिरों को दोनों हाथों में पकड़कर बाँह के नीचे से विपरीत दिशा में घुमाकर सामने की ओर ‘रीफ’ गाँठ लगा देते हैं। हाथ को कोहनी पर समकोण की दिशा में रखकर झोली में डाल देते हैं।
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(ख) टाँग की पट्टी बाँधना

(i) पैर की पट्टी बाँधना:
इसे भी हाथ के समान ही बाँधा जाता है। पट्टी के आधारीय भाग को थोड़ा-सा अन्दर की ओर मोड़ लिया जाता है।
चित्र 18.8-कन्धे की पट्टी बाँधना, घायल पैर को पट्टी के ऊपर इस प्रकार रखा जाता है कि उँगली शीर्ष की ओर रहे। एड़ी आधार से थोड़ी अन्दर रहनी चाहिए। शीर्ष को मोड़कर पैर के ऊपर लाया जाता है तथा आधारीय जोड़ के पास से ऊपर के भाग पर । दोनों सिरों को विपरीत दिशा में घुमाकर (UPBoardSolutions.com) चारों ओर लपेट देते हैं। अब दोनों सिरों में आगे की ओर ‘रीफ’ गाँठ बाँध देते हैं। शीर्ष के शेष भाग को पट्टी के ऊपर से खींचकर गाँठ को ढकते हुए मोड़कर आगे की ओर सेफ्टी पिन की सहायता से जोड़ दिया जाता है।
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(ii) घुटने की पट्टी बाँधना:
पट्टी के आधारीय भाग को अन्य पट्टियों की तरह मोड़कर घुटने पर इस प्रकार रखा जाता है कि शीर्ष का भाग घुटने के ऊपर कमर की ओर सामने रहे तथा आधारीय भाग घुटने के नीचे रहे। आधारीय दोनों सिरों को दोनों हाथों में पकड़कर टाँग के चारों ओर लपेटना चाहिए तथा लपेटते हुए घुटने के (UPBoardSolutions.com) ऊपर ले जाकर आगे की ओर ‘रीफ’ गाँठं के द्वारा बाँधा जाता है। इस प्रकार शीर्ष पट्टी के नीचे की ओर से निकला रहता है जिसे खींचकर तथा मोड़कर सेफ्टी पिन की सहायता से घुटने से जोड़ दिया जाता है।
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(iii) जाँघ तथा कूल्हे की पट्टी बाँधना:
जाँघ पर बाँधने के लिएदो तिकोनी पट्टियों की आवश्यकता होती है। एक पट्टी का आधारीय भाग अन्य पट्टियों की तरह अन्दर की ओर मोड़ दिया जाता है। इसी भाग को जाँघ के ऊपर इस प्रकार रखा जाता है कि पट्टी का शीर्ष कूल्हे की ओर कमर पर रहे। दोनों आधारीय सिरों को दोनों हाथों में पकड़कर एक-दूसरे के विपरीत दिशा में जाँघ के ऊपर लपेटकर सामने की ओर ‘रीफ’ गाँठ के द्वारा बाँधा जाता है। दूसरी (UPBoardSolutions.com) पट्टी को सँकरी बनाकर कमर पर इस प्रकार बाँधा जाता है कि पहली पट्टी का शीर्ष इसके नीचे दब जाए। सँकरी पट्टी का सिरा ‘रीफ’ गाँठ के द्वारा उचित स्थान पर बाँधा जाता है। अब पहली पट्टी के शीर्ष को ऊपर की ओर थोड़ा खींचकर गाँठ.. के ऊपर से ढकते हुए नीचे की ओर मोड़कर सेफ्टी पिन की सहायता से पट्टी के साथ जोड़ दिया जाता है।
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प्रश्न 4:
सिर पर बाँधते समय तिकोनी वलम्बी पट्टियों का प्रयोग किस प्रकार करेंगी?
उत्तर:
मस्तिष्क एवं अनेक नाड़ियाँ सिर में सुरक्षित रूप में स्थित होती हैं। सिर मानव शरीर का अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। सिर में लगने वाली छोटी-सी चोट भी उपयुक्त देख-रेख न होने पर घातक सिद्ध हो सकती है। इसलिए प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक को सिर पर पट्टी बाँधने की भली प्रकार से जानकारी होनी अति आवश्यक है। सिर में चोट लगने पर तिकोनी व लम्बी दोनों प्रकार की पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

(1) सिर की तिकोनी पट्टी बाँधना:
सिर पर चोट लगने पर घायल भाग पर रुई व औषधि यथास्थान रखने के लिए तथा घाव को भली-भाँति ढकने के लिए तिकोनी पट्टी का प्रयोग किया जाता है। पट्टी बाँधते समय निम्नलिखित नियम अपनाएँ

  •  पट्टी के आधारीय भाग को थोड़ा-सा अन्दर की ओर मोड़ लें। अब पट्टी को सिर पर इस प्रकार रखें कि आधारे का मुड़ा हुआ भाग भौंहों के निकट हो तथा सिरा पीछे की ओर रहे।

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  •  पट्टी के दोनों सिरों को कान के ऊपर से सिर के पीछे की ओर ले जाकर तथा फिर वापस लपेटकर सामने की ओर माथे पर लाना चाहिए। माथे के बीच में दोनों सिरों को लेकर रीफ’ गाँठ द्वारा बाँधे। द्वारा बॉधे।
  • पट्टी के शीर्ष-भाग को थोड़ा खींचकर मोड़ दें तथा इसे शेष पट्टी से सेफ्टी पिन द्वारा जोड़ दें।
  • प्राथमिक चिकित्सक को पट्टी बाँधते समय घायल व्यक्ति को किसी कुर्सी अथवा स्टूल पर बैठाना चाहिए।

(2) सिर पर लम्बी पट्टी बाँधना:
सिर के लिए लगभग पाँच सेन्टीमीटर चौड़ी व सात से आठ मीटर लम्बी दो पट्टियों की आवश्यकता होती है। दोनों पट्टियों के सिरे बाँधकर गाँठ को । रोगी के माथे के मध्य में रखते हैं। प्राथमिक चिकित्सक को रोगी के पीछे खड़े होकर दोनों । पट्टियों को विपरीत दिशा में लपेटते हुए दोनों हाथों से कानों के ऊपर सिर के पीछे ले जाकर मोड़ देना चाहिए। अब दाएँ हाथ की पट्टी को मोड़कर सिर के बीच से सामने माथे की ओर लाते हैं।
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बाएँ हाथ की पट्टी को बाएँ कान के ऊपर से ले जाकर माथे के मध्य में ले आते हैं। जो पट्टी दाएँ हाथ से माथे पर लाई गई थी उसके ऊपर से बाएँ हाथ की पट्टी को बाँधते हुए दाएँ कान की ओर ले जाते हैं। इस प्रकार, दाहिने हाथ की पट्टी के लपेट सिर पर, एक बार बाईं तथा दूसरी बार दाईं ओर लपेटते जाते हैं। इस क्रिया को बार-बार दोहराने से पूरा सिर ढक जाता है। अन्त में दोनों पट्टियों के सिरों को एक-दूसरे (UPBoardSolutions.com) पर मोड़ देकर सिर के पीछे से माथे की ओर विपरीत दिशा में लाते हैं और यहीं पर गाँठ के द्वारा अथवा सेफ्टी पिन की सहायता से बाँध देते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
पट्टियाँ बाँधने के सामान्य नियम कौन-से हैं?
उत्तर:
पट्टियाँ प्रयोग करते समय प्राथमिक चिकित्सक को निम्नलिखित नियमों का अनुसरण करना चाहिए

  1. घाव एवं घायल व्यक्ति का ध्यानपूर्वक निरीक्षण कर प्राथमिक चिकित्सक को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि पूरी पट्टी बाँधी जानी है या आधी अथवा चौड़ी या सँकरी, उसी के अनुसार पट्टियों का प्रयोग करना चाहिए।
  2.  प्रट्टियाँ स्वच्छ एवं कीटाणुरहित होनी चाहिए।
  3.  पट्टियों को आवश्यकतानुसार कसकर बाँधना चाहिए, क्योंकि ढीली पट्टी का कोई विशेष लाभ नहीं होता और यहं खुल भी सकती है।
  4. पट्टी की गाँठ सदैव सुविधाजनक स्थान पर लगानी चाहिए। पट्टी की गाँठ कभी भी घाव के ऊपर नहीं लगाई जाती है।
  5.  पट्टी बाँधने के बाद प्रायः ‘रीफ’ गाँठ लगानी चाहिए।
  6.  पट्टी को कसकर सफाई एवं विधिपूर्वक लपेटना चाहिए।

प्रश्न 2:
‘रीफ’ गाँठ किस प्रकार लगाई जाती है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा के लिए पट्टियाँ बाँधते समय मुख्य रूप से रीफ गाँठ ही बाँधी जाती है। रीफ गाँठ बाँधने के लिए पट्टी के दोनों सिरों को दोनों हाथों में पकड़ लेते हैं। बाएँ हाथ के सिरे को दाएँ हाथ के सिरे पर रख दिया जाता है तथा उसे इस इस प्रकार लपेटा जाता है कि दाएँ हाथ का सिरा बाएँ (UPBoardSolutions.com) हाथ में आ जाए। अब दाएँ हाथ के टुकड़े के। सिरे को बाएँ हाथ में रखा जाता है और पहले की तरह घुमाकर नीचे से । निकाल लिया जाता है। अब दोनों सिरों को दो विपरीत दिशाओं में खींच देने से गाँठ भली-भाँति कस जाएगी।
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प्रश्न 3:
तिकोनी पट्टी कैसे तैयार की जाती है? इसे किस-किस प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है?
उत्तर:
तिकोनी पट्टी बनाने के लिए मारकीन अथवा अन्य किसी मजबूत कपड़े का 1×1 मीटर आकार का टुकड़ा लिया जाता है। इसके एक सिरे को सामने वाले दूसरे सिरे से मिलाकर तथा दोहरा करके त्रिभुज की तरह बना लिया जाता है। अब मुड़े हुए स्थान से काटने पर दो तिकोनी पट्टियाँ प्राप्त (UPBoardSolutions.com) होती हैं। इनके किनारों को थोड़ा-सा मोड़कर तुरपन कर दी जाती है। तिकोनी पट्टियों को आवश्यकतानुसार निम्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है

(1) पूरी खुली पट्टी:
यह पीठ, छाती तथा सिर पर बाँधने में प्रयुक्त होती है। इसका प्रयोग सम्पूर्ण रूप में किया जाता है।

(2) चौड़ी पट्टी:
यह शीर्ष को आधार पर उलट कर तथा पट्टी को दोहरा करके प्रयोग में लाई जाती है। यह झोल डालने या खपच्च बाँधने के काम आती है।
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(3) संकरी पट्टी:
इसे बनाने के लिए दो बार मुड़े शीर्ष-भाग को पुनः तीसरी बार आधार पर रखकर मोड़ देते हैं। अधिक सँकरी करने के लिए इसे पुन: मोड़ा जा सकता है। इसका प्रयोग भी चौड़ी पट्टी के समान किया जाता है।

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प्रश्न 4:
तिकोनी पट्टी का प्रयोग कब-कब किया जाता है?
उत्तर:
तिकोनी पट्टियों का प्राथमिक चिकित्सा में अत्यधिक महत्त्व है। इनका प्रयोग निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है

  1. चोटग्रस्त अंग एवं घाव को ढकने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है। इससे प्रभावित भाग वायु में उपस्थित धूल के कणों एवं जीवाणुओं से सुरक्षित हो जाते हैं।
  2. इनकी सहायता से खपच्चियों, औषधि व रुई आदि को घायल अंग पर यथास्थान बनाए रखा जा सकता है।
  3.  घायल अंग पर उपयुक्त दबाव डालने के लिए तिकोनी पट्टियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं। ऐसा करने से पीड़ित व्यक्ति का दर्द एवं रक्तस्राव कम होता है।
  4.  तिकोनी पट्टियों की झोली बनाई जाती है जो कि चोटग्रस्त अंग को सहारा देने के काम आती है।

प्रश्न 5:
रोलर पट्टी का प्रयोग कब किया जाता है?
उत्तर:
लम्बी या रोलर पट्टियाँ हाथ से या मशीन से रोलर के रूप में लपेटी जाती हैं। इनकी चौड़ाई भिन्न-भिन्न होती है। ये प्रमुखत: रुई को बाँधने तथा औषधि, खपच्चियों आदि को यथास्थान रखने के
प्रयोग में लाई जाती है। इसके अतिरिक्त ये सूजन कम करने, घाव पर दबाव डालने, रक्त स्राव रोकने, टूटे अंग पर प्लास्टर चढ़ाने आदि के लिए भी अत्यन्त उपयोगी हैं।

प्रश्न 6:
तिकोनी पट्टी से बड़ी झोली एवं सैन्ट जॉन झओली किस प्रकार बनाई जाती है?
उत्तर:

(1) बड़ी झोली:
तिकोनी पट्टी को खुली अवस्था में चोटग्रस्त व्यक्ति के वक्षस्थल पर इस प्रकार रखते हैं कि पट्टी के आधार को एक सिरा स्वस्थ कन्धे पर रहे तथा दूसरा नीचे लटकता रहे। बाँह की समको ३२ ड देते हैं। अब नीचे लटकने वाले सिरे को मोड़कर घायल व्यक्ति के कन्धे पर लाया जाता है और दोनों सिरों को हँसली की हड्डी के पास के गड्ढे में ‘रीफ’ गाँठ लगाकर बाँध देते हैं। पट्टी के शीर्ष भाग को अन्दर की ओर भली-भाँति मोड़कर सेफ्टी पिन लगा दी जाती है।

(2) सैन्ट जॉन झोली:
यह हॅसली की हड्डी टूट जाने पर बाँधी जाती है। जिस ओर की हॅसली की इड्डी टूटी हुई हो उस ओर बगल में पैड लगा दिया जाता है। अब घायल अंग की ओर के हाथ को व-स्थल पर मोड़कर इस प्रकार रख दिया जाता है कि वह स्वस्थ कंधे को छूता रहे। पट्ट को खुली हुई अवस्था में इस प्रकार (UPBoardSolutions.com) फैलाते हैं कि पूरे अग्रबाहु को ढकते हुए इसके आधार को एक सिरा स्वस्थ कंधे पर रहे। दूसरा नीचे लटका हुआ सिरा पीठ की ओर से घुमाकर स्वस्थ कंधे पर लाया जाता है। इस प्रकार दोनों आधारीय सिरों को इसी कंधे पर हँसली की हड्डी के ऊपरी गर्त में ‘रीफ’ गाँठ द्वारा बाँध दिया जाता है। कोहनी पर पट्टी के शीर्ष-भाग के सिरे को मोड़कर सेफ्टी पिन से जोड़ दिया जाता है।
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प्रश्न 7:
कान पर पट्टी किस प्रकार बाँधी जाती है?
उत्तर:
विधि-इसके लिए 6 सेमी चौड़ी तथा 5 मीटर लम्बी पट्टी की आवश्यकता होती है। इसमें । पट्टी को सिर और माथे पर दो बार लपेट देते हैं। पट्टी को घायल कानों के नीचे से निकालकर सामने माथे की ओर लाते हुए सिर के पीछे ले जाते हैं। दूसरा चक्कर पहले चक्कर का – भाग दबाते हुए (UPBoardSolutions.com) कान के ऊपर लगाते हैं और पट्टी को माथे की ओर लाकर स्वस्थ कान की ओर झुकाव देते हुए सिर के पीछे ले जाते हैं। इसी प्रकार सारे कान को ढक देते हैं। जब पूरा कान ढक जाए, तो एक चक्कर माथे और सिर के चारों ओर लाकर माथे पर पट्टी लाकर सेफ्टी पिन लगा देनी चाहिए।

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प्रश्न 8:
जबड़े की पट्टी किस प्रकार बाँधी जाती है?
उत्तर:
विधि-जबड़े की पट्टी दो प्रकार से बाँधी जाती है ।
(क) एक पट्टी द्वारा,
(ख) दो पट्टियों द्वारा

(क) एक पट्टी द्वारा:
एक पट्टी को सँकरा मोड़ लेते हैं। इस पट्टी का बीच का भाग हड्डी के नीचे रखकर दोनों सिरों को गालों के ऊपर से लाकर सिर के ऊपर ले जाते हैं और दोनों सिरों में सिर के ऊपर आधी रीफ गाँठ बाँधकर धीरे-धीरे कसते हैं। अब इस पट्टी के दो हिस्से हो जाएँगे। एक हिस्से को धीरे-धीरे माथे पर तथा दूसरे हिस्से को सिर के पीछे वाले भाग पर लाया जाता है। पट्टी के सिरों को हाथों में ध्यान से पकड़े रहना चाहिए, (UPBoardSolutions.com) जिससे पट्टी ढीली न होने पाए। इन सिरों को कानों से बाहर निकालते हुए कानों के ऊपरी भाग पर धीरे-धीरे खींचकर तथा सिरे के बीच में लाकर एक रीफ गाँठ द्वारा बाँध दिया जाता है।

(ख) दो पट्टियों द्वारा:
दो पट्टियाँ लेकर सँकरी मोड़ लेते हैं। पहले एक पट्टी ठुड्डी के नीचे से तथा गालों के ऊपर से ले जाकर सिर के ऊपर बाँध दी जाती है। अब दूसरी पट्टी ठुड्डी पर से तथा दोनों कानों के नीचे से ले जाकर गर्दन के पीछे ‘रीफ’ गाँठ द्वारा बाँध देते हैं। अब दोनों पट्टियों के बचे हुए सिरों को एक-दूसरे से रीफ गाँठ द्वारा बाँध देते हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
पट्टियाँ कितने प्रकार की होती हैं? नाम लिखिए।
उत्तर:
पट्टियाँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं
(1) तिकोनी पट्टियाँ तथा
(2) लम्बी पट्टियाँ।

प्रश्न 2:
तिकोनी पट्टी का प्रयोग कब-कब किया जाता है?
उत्तर:
चोटग्रस्त अंग एवं घाव को ढकने तथा घायल अंगों को सहारा देने के लिए तिकोनी पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3:
लम्बी पट्टियों का प्रयोग कब किया जाता है?
उत्तर:

  1. घाव तथा चोट पर खपच्चियाँ, रुई एवं औषधि को रोकने तथा घायल अंगों को सहारा देने के लिए।
  2.  सूजन को कम करने तथा घाव पर दबाव डालकर रक्तस्राव को रोकने के लिए भी लम्बी पट्टी को प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 4:
लम्बी पट्टी बाँधते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:

  1.  पट्टियाँ स्वच्छ एवं कीटाणुरहित हों।
  2. पट्टियों को आवश्यकतानुसार कसकर बाँधे तथा गाँठ सुविधाजनक स्थान पर लगाएँ।
  3.  सही आकार की पट्टी का चुनाव करें।

प्रश्न 5:
पट्टियाँ बाँधते समय मुख्य रूप से किस गांठ को अपनाया जाता है ?
उत्तर:
पट्टियाँ बाँधते समय मुख्य रूप से रीफ गांठ को अपनाया जाता है।

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प्रश्न 6:
‘रीफ’ गाँठ बाँधने से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
‘रीफ’ गाँठ बाँधने से निम्नलिखित लाभ हैं

  1.  यह अपने आप न तो खुलती है और न ही खिसकती है।
  2.  आवश्यकता पड़ने पर इसे सहज ही खोला जा सकता है।

प्रश्न 7:
पट्टियाँ बाँधने के दो मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पट्टियाँ प्रयोग करने के दो मुख्य उद्देश्य हैं

  1. औषधि, खपच्चियों एवं रुई को घायल अंग पर स्थिर रखना।
  2.  घाव को वायु में उपस्थित धूल के कणों एवं जीवाणुओं से सुरक्षित रखना।

प्रश्न 8:
तिकोनी पट्टी के लिए प्रायः कौन-सा कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है?
उत्तर:
तिकोनी पट्टी के लिए प्राय: मारकीन नामक कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 9:
लम्बी पट्टियाँ बनाने के लिए कौन-सा कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है?
उत्तर:
लम्बी पट्टियाँ सामान्यतः जाली वाले सफेद कपड़े से बनाई जाती हैं। इस कपड़े को गौज कहते हैं।

प्रश्न 10:
घायल अंगों को सहारा देने के लिए आप किस प्रकार की पट्टियों का प्रयोग करेंगी?
उत्तर:
घायल अंगों को सहारा देने के लिए तिकोनी पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11:
सबसे अच्छी पट्टी कौन-सी है?
उत्तर:
कीटाणुरहित स्वच्छ पट्टी सर्वोत्तम होती है।

प्रश्न 12:
आपातकाल में पट्टियाँ न उपलब्ध होने पर आप क्या करेंगी?
उत्तर:
आपातकाल में पट्टियों के स्थान पर किसी स्वच्छ कपड़े का टुकड़ा, रूमाल अथवा स्वच्छ कागज प्रयोग कर घाव को ढककर बाँध देना चाहिए।

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प्रश्न 13:
गरम सेंक वाली पट्टी से क्या लाभ है?
उत्तर:
यह घाव की पीड़ा को कम करने के लिए की जाती है।

प्रश्न 14:
गीली मरहम-पट्टी क्यों की जाती है?
उत्तर:
यह सूजन कम करने के लिए की जाती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) हँसली की हड्डी टूट जाने पर बाँधी जाती है
(क) बड़ी झोली,
(ख) सैन्ट जॉन झोली,
(ग) कॉलर-कफ झोली,
(घ) सँकरी झोली।

(2) पट्टियों को कसकर नहीं बथना चाहिए, क्योंकि
(क) इससे रक्त प्रवाह रुक सकता है,
(ख) इससे रक्तस्राव बन्द हो सकता है,
(ग) रोगी को अधिक दर्द होता है,
(घ) यह अशोभनीय पट्टी है।

(3) आन्तरिक रक्तस्त्राव को रोकने के लिए प्रयोग की जाती है
(क) सूखी पट्टी,
(ख) गरम सेंक वाली पट्टी,
(ग) ठण्डी सेंक वाली पट्टी,
(घ) कोई भी पट्टी।

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(4) बाह्य रक्तस्राव को रोकने के लिए प्रयोग की जाती हैं
(क) तिकोनी पट्टियाँ,
(ख) लम्बी पट्टियाँ,
(ग) गरम सेंक वाली पट्टियाँ,
(घ) कोई भी पट्टी।

(5) कोहनी के जोड़ पर बाँधते समय पट्टी
(क) आठ (8) का अंक बनाती है,
(ख) साधारण चक्राकार होती है,
(ग) अनियमित चक्र बनाती है,
(घ) ढीली-ढाली होती है।

(6) सिर पर लम्बी पट्टी बाँधने के लिए पट्टियों की आवश्यकता पड़ेगी
(क) एक पट्टी की,
(ख) दो पट्टी की,
(ग) तीन पट्टियों की,
(घ) चार पट्टियों की।

(7) तिकोनी पट्टी बाँधी जाती है
(क) अँगूठा, उँगली तथा कलाई पर,
(ख) छाती, पीठ तथा सिर पर,
(ग) सिर, टाँग और उँगलियों पर,
(घ) कहीं भी।

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(8) सैन्ट जॉन झोली का काम है
(क) एक हाथ के सिरे को दूसरे हाथ के सिरे पर रखना,
(ख) एक हाथ को सहारा देना,
(ग) दोनों हाथों को सहारा देना,
(घ) उपर्युक्त सभी।

उत्तर:
(1) (ख) सैन्ट जॉन झोली,
(2) (क) इससे रक्त प्रवाह रुक सकता है,
(3) (ग) ठण्डी सेंक वाली पट्टी,
(4) (ख) लम्बी पट्टियाँ,
(5) (क) आठ (8) का अंक बनाती है,
(6) (ख) दो पट्टी की,
(7) (ख) छाती, पीठ तथा सिर पर,
(8) (ख) एक हाथ को सहारा देना।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘संसाधन के रूप में लोग’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी देश के लोग उस देश के लिए बहुमूल्य संसाधन होते हैं, यदि वे स्वस्थ्य, शिक्षित एवं कुशल हों, क्योंकि मानवीय संसाधन के बिना आर्थिक क्रियाएँ संभव नहीं हैं। मानव, श्रमिक, प्रबन्धक एवं उद्यमी के रूप में समस्त आर्थिक क्रियाओं का संपादन करता है। इसे मानव संसाधन भी कहते हैं।

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प्रश्न 2.
मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूँजी जैसे अन्य संसाधनों से कैसे भिन्न है?
उत्तर:
मानवीय संसाधन अन्य संसाधनों से इस प्रकार भिन्न है

  1. मानवीय संसाधन उत्पादन का एक अत्याज्य (Indispensable) साधन है।
  2. मानवीय संसाधन श्रम, प्रबंध एवं उद्यमी के रूप में कार्य करता है।
  3.  मानवीय संसाधन उत्पादन को एक जीवित, क्रियाशील एवं भावुक साधन है।
  4.  मानवीय संसाधन कार्य कराता है और अन्य साधनों को कार्यशील करता है।

प्रश्न 3.
मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है?
उत्तर:
मानव पूंजी (मानव संसाधन) निर्माण में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। शिक्षा एवं कौशल किसी व्यक्ति की आय को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक हैं। किसी बच्चे की शिक्षा और प्रशिक्षण पर किए गए निवेश के बदले में वह भविष्य में अपेक्षाकृत अधिक आय एवं समाज में बेहतर योगदान के रूप में उच्च प्रतिफल दे सकता है। शिक्षित लोग अपने बच्चों की शिक्षा पर अधिक निवेश (UPBoardSolutions.com) करते पाए जाते हैं।

इसका कारण यह है कि उन्होंने स्वयं के लिए शिक्षा का महत्त्व जान लिया है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह शिक्षा ही है जो एक व्यक्ति को उसके सामने उपलब्ध आर्थिक अवसरों का बेहतर उपयोग करने में सहायता करती है। शिक्षा श्रम की गुणवत्ता में वृद्धि करती है और कुल उत्पादकता में वृद्धि करने में सहायता करती है। कुल उत्पादकता देश के विकास में योगदान देती है।

प्रश्न 4.
मानव पूंजी निर्माण में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर:
मानव पूंजी निर्माण अथवा मानव संसाधन विकास में स्वास्थ्य की प्रमुख भूमिका है, जिसे हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं

  1. किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य अपनी क्षमता एवं बीमारी से लड़ने की योग्यता को पहचानने में सहायता करता है।
  2. केवल एक पूर्णतः स्वस्थ व्यक्ति ही अपने काम के साथ न्याय कर सकता है। इस प्रकार यह किसी व्यक्ति के कामकाजी जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
  3. एक अस्वस्थ व्यक्ति अपने परिवार, संगठन एवं देश के लिए दायित्व है। कोई भी संगठन ऐसे व्यक्ति को काम पर नहीं रखेगा जो खराव स्वास्थ्य के कारण पूरी दक्षता से काम न कर सके।
  4.  स्वास्थ्य न केवल किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाता है अपितु मानव संसाधन विकास में वर्धन करता है जिस पर देश के कई क्षेत्रक निर्भर करते हैं।

प्रश्न 5.
किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर:
स्वास्थ्य मानव को स्वस्थ, सक्रिय, शक्तिशाली एवं कार्य कुशल बनाता है। यह सही कहा गया है कि एक स्वस्थ शरीर में एक स्वस्थ दिमाग होता है। अच्छा स्वास्थ्य एवं मानसिक जागरुकता एक मूल्यवान परिसंपत्ति है जो मानवीय संसाधन को देश के लिए एक संपत्ति बनाती है। स्वास्थ्य जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। स्वास्थ्य का अर्थ जीवित रहना मात्र ही नहीं है।

स्वास्थ्य में शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं सामाजिक सुदृढ़ता शामिल हैं। स्वास्थ्य में परिवार कल्याण, जनसंख्या नियंत्रण, दवा नियंत्रण, प्रतिरक्षण एवं खाद्य मिलावट निवारण आदि बहुत से क्रियाकलाप शामिल हैं यदि कोई व्यक्ति अस्वस्थ है तो वह ठीक से काम नहीं कर (UPBoardSolutions.com) सकता। चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में एक अस्वस्थ मजदूर अपनी उत्पादकता और अपने देश की उत्पादकता को कम करता है। इसलिए किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता

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प्रश्न 6.
प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में किस तरह की विभिन्न आर्थिक क्रियाएँ संचालित की जाती
उत्तर:
प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में पृथक्-पृथक संचालित की जाने वाली प्रमुख क्रियाएँ इस प्रकार हैं|

  1.  प्राथमिक क्षेत्र–कृषि, वन एवं मत्स्य पालन, खनन तथा उत्खनन ।
  2. द्वितीयक क्षेत्र—उत्पादन, विद्युत-गैस एवं जल की आपूर्ति, निर्माण, व्यापार, होटल तथा जलपानगृह
  3.  तृतीयक क्षेत्र- परिवहन, भण्डार, संचार, वित्तीय, बीमा, वास्तविक संपत्ति तथा व्यावसायिक सेवाएँ, सामाजिक एवं व्यक्तिगत् सेवाएँ।।

प्रश्न 7.
आर्थिक और गैर आर्थिक क्रियाओं में क्या अन्तर है?
उत्तर:
आर्थिक क्रियाएँ-वह क्रियाएँ जो जीविका कमाने के लिए और आर्थिक उद्देश्य से की जाती हैं, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। यह क्रियाएँ उत्पादन, विनियम एवं वस्तुओं और सेवाओं के वितरण से संबंधित होती हैं। लोगों का व्यवसाय, पेशे और रोज़गार में होना आर्थिक क्रियाएँ हैं। इन क्रियाओं का (UPBoardSolutions.com) मूल्यांकन मुद्रा में किया जाता है। गैर-आर्थिक क्रियाएँ-वह क्रियाएँ जो भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए की जाती हैं। और जिनका कोई आर्थिक उद्देश्य नहीं होता, गैर-आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। यह क्रियाएँ सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षिक एवं सार्वजनिक हित से संबंधित हो सकती हैं।

प्रश्न 8.
महिलाएँ क्यों निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित होती हैं?
उत्तर:
महिलाएँ निम्न कारणों से निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित होती हैं

  1.  ज्ञान व जानकारी के अभाव में महिलाएं असंगठित क्षेत्रों में कार्य करती हैं जो उन्हें कम मजदूरी देते हैं। उन्हें अपने
    कानूनी अधिकारों की जानकारी भी नहीं है।
  2.  महिलाओं को शारीरिक रूप से कमजोर माना जाता है इसलिए उन्हें प्रायः कम वेतन दिया जाता है।
  3. बाजार में किसी व्यक्ति की आय निर्धारण में शिक्षा महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक है।
  4. भारत में महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा कम शिक्षित होती हैं। उनके पास बहुत कम शिक्षा एवं निम्न कौशल स्तर हैं। इसलिए उन्हें पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है।
  5.  महिलाएँ भौतिक एवं भावनात्मक रूप से कमजोर होती हैं।
  6. महिलाएँ खतरनाक कार्यों (hazardous work) के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं।
  7.  महिलाओं के कार्यों पर सामाजिक प्रतिबंध होता है।
  8. महिलाएँ दूर स्थित, पहाड़ी एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों में कार्य नहीं कर सकती।

प्रश्न 9.
‘बेरोजगारी’ शब्द की आप कैसे व्याख्या करेंगे?
उत्तर:
वह स्थिति जिसके अन्तर्गत कुशल व्यक्ति प्रचलित कीमतों पर कार्य करने के इच्छुक होते हैं किन्तु कार्य नहीं प्राप्त कर पाते, तो ऐसी स्थिति बेरोजगारी कहलाती है, यह स्थिति विकसित देशों की अपेक्षा विकासशील देशों में अधिक देखने को मिलती है।

प्रश्न 10.
प्रच्छन्न एवं मौसमी बेरोजगारी में क्या अन्तर है?
उत्तर:
प्रच्छत्र एवं मौसमी बेरोजगारी में अंतर इस प्रकार है
प्रच्छन्न बेरोजगारी–इस बेरोजगारी में लोग नियोजित प्रतीत होते हैं जबकि वास्तव में वे उत्पादकता में कोई योगदान नहीं कर रहे होते हैं। ऐसा प्रायः किसी क्रिया से जुड़े परिवारों के सदस्यों के साथ होता है। जिस काम में पाँच लोगों की आवश्यकता होती है (UPBoardSolutions.com) किन्तु उसमें आठ लोग लगे हुए हैं, जहाँ 3 लोग अतिरिक्त हैं। यदि इन 3 लोगों को हटा लिया जाए तो भी उत्पादकता कम नहीं होगी। यही बचे 3 लोग प्रच्छन्न बेरोजगारी में शामिल हैं।

मौसमी बेरोजगारी-वर्ष के कुछ महीनों के दौरान जब लोग रोजगार नहीं खोज पाते, तो ऐसी स्थिति मौसमी बेरोजगारी कहलाती है। भारत में कृषि कोई पूर्णकालिक रोजगार नहीं है। यह मौसमी है। इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि में पाई जाती है। कुछ व्यस्त मौसम होते हैं जब बिजाई, कटाई, निराई और गहाई की जाती है। कुछ विशेष महीनों में कृषि पर आश्रित लोगों को अधिक काम नहीं मिल पाता।

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प्रश्न 11.
शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक विशेष समस्या क्यों है?
उत्तर:
शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक कठिन चुनौती के रूप में उपस्थित हुई है। मैट्रिक, स्नातक, स्नातकोत्तर डिग्रीधारक अनेक युवा रोजगार पाने में असमर्थ हैं। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मैट्रिक की अपेक्षा स्नातक एवं स्नातकोत्तर डिग्रीधारकों में बेरोजगारी अधिक तेजी से बढ़ी है। (UPBoardSolutions.com) एक विरोधाभासी जनशक्ति-स्थिति सामने आती है क्योंकि कुछ वर्गों में अतिशेष जनशक्ति अन्य क्षेत्रों में जनशक्ति की कमी के साथ-साथ विद्यमान है। एक ओर तकनीकी अर्हता प्राप्त लोगों में बेरोजगारी व्याप्त है जबकि दूसरी ओर आर्थिक संवृद्धि के लिए जरूरी तकनीकी कौशल की कमी है।

उपरोक्त के प्रकाश में हम कह सकते हैं कि शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक विशेष समस्या है। । अधिकांश शिक्षित बेरोज़गारी शिक्षित मानवशक्ति के विनाश को प्रदर्शित करती हैं। बेरोजगारी सदैव बुरी है किन्तु यह हमारी शिक्षित युवाओं की स्थिति में एक अभिशाप है। हम अपने कुशल दिमाग का उपयोग करने योग्य नहीं होते।

प्रश्न 12.
आपके विचार से भारत किस क्षेत्र में रोजगार के सर्वाधिक अवसर सृजित कर सकता है?
उत्तर:
सेवा क्षेत्र भारत में सर्वाधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध करा सकता है। भूमि की अपनी एक निर्धारित सीमा है जिसे बदला नहीं जा सकता है अतः कृषि क्षेत्र में हम अधिक रोजगार के अवसर की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। कृषि में पहले से ही छिपी बेरोजगारी विद्यमान है जबकि दूसरी ओर उद्योग स्थापित करने में बड़े पैमाने पर संसाधन की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति हम सरलता से नहीं कर सकते हैं।(UPBoardSolutions.com) भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है और जिसे उचित शिक्षा, पेशेवर गुणवत्ता एवं कुशल श्रमशक्ति की आवश्यकता है। कुशल लोगों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर माँग होती है। अतः हम कह सकते। हैं कि भारत में सेवा क्षेत्र में रोजगार की असीम सम्भावनायें हैं।

प्रश्न-13.
क्या आप शिक्षा प्रणाली में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए कुछ उपाय सुझा सकते हैं?
उत्तर:
शिक्षा प्रणाली में निम्नलिखित सुधार करके हम शिक्षित बेरोजगारी को दूर कर सकते हैं

  1. शिक्षा द्वारा लोगों को स्वावलंबी एवं उद्यमी बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
  2. शिक्षा के लिए योजना बनाई जानी चाहिए एवं इसकी भावी संभावनाओं को ध्यान में रखकर इसे क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
  3. रोजगार के अधिक अवसर पैदा किए जाने चाहिए।
  4.  केवल किताबी ज्ञान देने की अपेक्षा अधिक तकनीकी शिक्षा दी जाए।
  5. शिक्षा को अधिक कार्योन्मुखी बनाया जाना चाहिए। एक किसान के बेटे को साधारण स्नातक की शिक्षा देने की अपेक्षा इस बात का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि खेत में उत्पादन कैसे बढ़ाया जा सकता है।
  6.  हमारी शिक्षा प्रणाली को रोज़गारोन्मुख (Job oriented) एवं आवश्यकतानुसार होना चाहिए। उच्च स्तर तक सामान्य शिक्षा होनी चाहिए। इसके पश्चात् विभिन्न शैक्षिक शाखाएँ प्रशिक्षण के साथ प्रारंभ करनी चाहिए।

प्रश्न 14.
क्या आप कुछ ऐसे गाँवों की कल्पना कर सकते हैं जहाँ पहले रोज़गार का कोई अवसर नहीं था, लेकिन बाद में बहुतायत में हो गया?
उत्तर:
निश्चय ही हम ऐसे गाँवों की कल्पना कर सकते हैं, क्योंकि हमने अपने गाँव के वयोवृद्ध लोगों से आर्थिक रूप से पिछड़े गाँवों के बारे में काफी कुछ सुना है। लोगों ने बताया है कि देश की स्वतंत्रता के समय गाँव में मूलभूत सुविधाओं जैसे-अस्पताल, स्कूल, सड़क, बाजार, पानी, बिजली, यातायात का अभाव था। लेकिन स्वतंत्रता के बाद सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के माध्यम से गाँवों में आवश्यक सेवाओं का विस्तार हुआ। गाँव के लोगों ने पंचायत का ध्यान इन सभी समस्याओं की ओर आकृष्ट किया। पंचायत ने एक स्कूल खोला जिसमें कई लोगों को रोजगार मिला। (UPBoardSolutions.com) जल्द ही गाँव के बच्चे वहाँ पढ़ने लगे और वहाँ कई प्रकार की तकनीकों का विकास हुआ। अब गाँव वालों के पास बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ एवं पानी, बिजली की भी उचित आपूर्ति उपलब्ध थी। सरकार ने भी जीवन स्तर को सुधारने के लिए विशेष प्रयास किए थे। कृषि एवं गैर कृषि क्रियाएँ भी अब आधुनिक तरीकों से की जाती हैं।

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प्रश्न 15.
किस पूँजी को आप सबसे अच्छा मानते हैं-भूमि, श्रम, भौतिक पूँजी और मानव पूँजी? क्यों?
उत्तर:
जिस तरह जल, भूमि, वन, खनिज आदि हमारे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है उसी प्रकार मानव संसाधन भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है। मानव राष्ट्रीय उत्पादन का उपभोक्ता मात्र नहीं है बल्कि वे राष्ट्रीय संपत्तियों के उत्पादक भी हैं। वास्तव में मानव संसाधनों जैसे-भूमि, जल, वन, खनिज की तुलना में इसलिए श्रेष्ठ है। भूमि, पूँजी, जल एवं अन्य प्राकृतिक संसाधन स्वयं उपयोगी नहीं है, वह मानव ही है जो इसे उपयोग करता है या उपयोग के योग्य बनाता है। यदि हम लोगों में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करें तो जनसंख्या (UPBoardSolutions.com) के बड़े भाग को परिसंपत्ति में बदला जा सकता है। हम जापान का उदाहरण सामने रखते हैं। जापान के पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे। इस देश ने अपने लोगों पर निवेश किया विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में। अंततः इन लोगों ने अपने संसाधनों का दक्षतापूर्ण उपयोग करने के बाद नई तकनीक विकसित करते हुए अपने देश को समृद्ध एवं विकसित बना दिया है।

इस प्रकार मानव-पूँजी अन्य सभी संसाधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है। मानवीय पूँजी को किसी भी सीमा तक बढ़ाया जा सकता है और इसके प्रतिफल को कई बार गुणा किया जा सकता है। भौतिक पूँजी का निर्माण, प्रबंध एवं नियंत्रण मानवीय पूँजी द्वारा किया जाता है। मानवे पूँजी केवल स्वयं के लिए ही कार्य नहीं करती बल्कि अन्य साधनों को भी क्रियाशील बनाती है। मानवीय पूँजी उत्पादन का एक अत्याज्य साधन है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बेरोजगारी को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
बेरोजगारी वह स्थिति है जिसके अंतर्गत कुशल व्यक्ति प्रचलित कीमतों पर कार्य करने के इच्छुक होते हैं लेकिन कार्य नहीं प्राप्त कर पाते।

प्रश्न 2.
महिलाओं एवं पुरुषों के बीच विभेद को कम करने के लिए सरकार द्वारा किए गए चार उपाय बताइए।
उत्तर:
सरकार द्वारा सामज से लिंग-भेद मिटाने के लिए भिन्न उपाय किए गए हैं-

  1.  विधवा का पुनर्विवाह,
  2.  सती प्रथा से सुरक्षा,
  3. बाल अवस्था में विवाह पर रोक,
  4. लिंग के आधार पर सभी विभेद को रोकना।

प्रश्न 3.
चा गैर-आर्थिक क्रियाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वह क्रियाएँ जो भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए की जाती हैं, गैर-आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं, जैसे

  1.  परिवार के सदस्यों के लिए खाना बनाना,
  2. माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को पढ़ाना।
  3. गरीब बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था,
  4.  गरीब लोगों के लिए मुफ्त चिकित्सा व्यवस्था।

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प्रश्न 4.
‘रोजगार से क्या आशय है?’
उत्तर:
रोजगार से अभिप्राय किसी अनुबंध के अंतर्गत दूसरे व्यक्तियों के लिए कार्य करना और उसके बदले पारितोषिक प्रा करना है। इसमें सभी प्रकार की सेवाएँ शामिल हैं। कर्मचारी कुछ निवेश नहीं करते और न ही व्यवसाय में उनका कोई जोखिम होता है।

प्रश्न 5.
व्यवसाय झा अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
वस्तुओं और सेवाओं का लाभ के उद्देश्य से किया गया विक्रय, विनिमय का हस्तांतरण व्यवसाय कहलाता है।
वसाय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. व्यवसाय का उद्देश्य लाभ कमाना है।
  2. व्यवसाय वस्तुओं एवं सेवाओं के विक्रय, विनियम एवं हस्तांतरण से संबंधित है।
  3. व्यवसाय वस्तुओं एवं सेवाओं में व्यापार करता है।
  4. व्यवसाय एक निरंतर क्रिया है।
  5.  व्यवसाय में जोखिम का तत्व होता है।

प्रश्न 6.
प्राथमिक क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रकृति द्वारा प्रदत वस्तु को एकत्र करने या उपलब्ध कराने से जुड़ी क्रियाओं को प्राथमिक क्षेत्र में शामिल किया जाता है।
उदाहरणतः कृषि, वानिकी, पशुपालन, मुर्गीपालन, मत्स्य पालन एवं खनन आदि।

प्रश्न 7.
द्वितीय क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
वे क्रियाएँ जो कच्चे माल या प्राथमिक उत्पाद को और अधिक उपयोगी वस्तुओं में बदलती हैं उन्हें द्वितीयक क्षेत्र के अन्तर्गत शामिल किया जाता है।
उदाहरणतः उद्योग, विद्युत, बाँध, जल आदि।

प्रश्न 8.
तृतीयक क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
इस क्षेत्र में वे क्रियाएँ आती हैं जो आधुनिक कारखानों को चलाने या प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों क्षेत्रों की क्रियाएँको सहारा देने के लिए तथा विभिन्न प्रकार की सेवाएँ शामिल हैं।
उदाहरणतः बैंकिंग, परिवहन, व्यापार, शिक्षा, बीमा आदि।

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प्रश्न 9.
भारत में सभी राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएँ एक समान नहीं हैं। व्याख्या करें।
उत्तर:
भारत में अनेक स्थान हैं जिनमें मौलिक स्वास्थ्य सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं। केवल चार राज्यों जैसे कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र में देश के कुल 181 मेडिकल कॉलेजों में से 81 मेडिकल कॉलेज हैं। दूसरी तरफ बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में निम्न स्वास्थ्य सूचक हैं तथा यहाँ बहुत ही कम मेडिकल कॉलेज हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बाजार क्रियाएँ किस तरह गैर-बाजार क्रियाओं से भिन्न हैं?
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

प्रश्न 2.
भौतिक पूँजी और मानव पूंजी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

प्रश्न 3.
अल्प रोजगार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब कोई व्यक्ति पूर्ण समय का कार्य प्राप्त नहीं कर पाता तो यह अल्प रोजगार कहलाता है। यदि कार्य में परिवर्तन से किसी व्यक्ति की आय एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है तो भी उसकी अल्प रोज़गार में गणना की जाती है। अल्प रोजगारी की समुस्या भी ढंकी-छुपी बेरोज़गारी से संबंधित है, जहाँ (UPBoardSolutions.com) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य या नकारात्मक हो जाती है। स्व रोज़गार से संबंधित लोगों में अल्प रोज़गार अधिक होता है। आकस्मिक रोज़गार वाले लोगों में भी यह अधिक पाया जाता है। कृषि एवं इसकी सहायक क्रियाओं में अल्प रोज़गार का दबाव अधिक महसूस किया जाना है। लगभग इस क्षेत्र में 36.3% अल्प रोज़गारी है।

प्रश्न 4.
प्रौढ़ साक्षरता दर किसे कहते हैं?
उत्तर:
15 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के लोगों की दर एवं प्रतिशत जो अपने दैनिक जीवन में छोटे और सरल वाक्य पढ़, लिख और समझ सकते हैं, वह साक्षर कहे जाते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि साक्षर व्यक्ति अवश्य कुछ निश्चित कथन पढ़ने एवं लिखने योग्य होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति हस्ताक्षर करने योग्य है किंतु सरल वाक्यों को पढ़ने एवं लिखने योग्य नहीं है तो वह साक्षर नहीं है।इसी प्रकार केवल पढ़ने की योग्यता या केवल लिखने की योग्यता किसी व्यक्ति को साक्षर नहीं। बनाती है। साक्षरता निःसंदेह लोगों की गुणवत्ता का प्रतीक है।

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प्रश्न 5.
जनसंख्या किसी अर्थव्यवस्था के लिए दायित्व नहीं अपितु एक परिसंपत्ति है; इसे सिद्ध करने के लिए उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कुछ लोग यह मानते हैं कि जनसंख्या एक दायित्व है न कि एक परिसंपत्ति। किन्तु यह सच नहीं है। लोगों को एक परिसंपत्ति बनाया जा सकता है यदि हम उनमें शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करें। जिस प्रकार भूमि, जल, वन, खनिज आदि हमारे बहुमूल्य प्राकृतिक (UPBoardSolutions.com) संसाधन हैं उसी प्रकार मनुष्य भी एक बहुमूल्य संसाधन है। लोग राष्ट्रीय परिसंपत्तियों के उपभोक्ता मात्र नहीं हैं अपितु वे राष्ट्रीय संपत्तियों के उत्पादक भी हैं।
वास्तव में मानव संसाधन अन्य संसाधनों जैसे कि भूमि तथा पूँजी की अपेक्षाकृत श्रेष्ठ हैं क्योंकि वे भूमि एवं पूँजी का प्रयोग करते हैं। भूमि एवं पूँजी स्वयं उपयोगी नहीं हो सकते। हम जापान का उदाहरण दे सकते हैं। इस देश ने मानव संसाधन में ही निवेश किया है क्योंकि इसके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं था। लोगों ने अन्य संसाधनों जैसे कि भूमि एवं पूँजी का दक्षतापूर्ण प्रयोग किया है। लोगों द्वारा विकसित दक्षता एवं तकनीक ने जापान को एक धनी एवं विकसित देश बना दिया।

प्रश्न 6.
यह सिद्ध करने के लिए एक उदाहरण दीजिए कि मानव पूँजी में निवेश समृद्धशाली प्रतिफल देता है।
उत्तर:
लोगों में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करने से जनसंख्या के एक बड़े भाग को परिसंपत्ति में बदला जा सकता है। हमें जापान का उदाहरण सामने रखते हैं। जापान के पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे।
इस देश ने अपने लोगों पर निवेश किया विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में।
अंततः इन लोगों ने अपने संसाधनों का दक्षतापूर्ण उपयोग करने के बाद नई तकनीक विकसित करते हुए अपने देश को समृद्ध एवं विकसित बना दिया है। इस प्रकार मानव-पूँजी अन्य सभी संसाधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 7.
बेरोजगारी के प्रमुख परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बेरोजगारी के प्रमुख परिणाम इस प्रकार हैं

  1.  किसी अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोजगारी का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बेरोजगारी में वृद्धि मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था की सूचक है।
  2. बेरोजगार युवा धोखेबाजी, चोरी, कत्ल एवं आतंकवाद जैसी समाजविरोधी गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं।
  3. किसी व्यक्ति के साथ-साथ समाज की जीवन गुणवत्ता पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है जो अंततः स्वास्थ्य स्तर में गिरावट एवं स्कूल प्रणाली में बढ़ती गिरावट का कारण बनती है।
  4.  बेरोजगारी जनशक्ति संसाधन की बर्बादी का कारण बनती है। जो लोग देश के लिए एक परिसंपत्ति होते हैं वे देश के लिए दायित्व बन जाती हैं।
  5.  बेरोजगारी आर्थिक बोझ में वृद्धि करने की कोशिश करती है। बेरोजगारों की कार्यरत जनसंख्या पर निर्भरता बढ़ जाती है।

प्रश्न 8.
भारत में लोगों की जीवन प्रत्याशी बढाने के लिए क्या प्रयास किए गए हैं?
उत्तर:
भारत में लोगों की जीवन प्रत्याशा बढ़ाने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए थे

  1. बच्चों की संक्रमण से रक्षा, जच्चा-बच्चा देख-रेख एवं पोषण के कारण शिशु मृत्युदर में कमी आई है। शिशु मृत्युदर जो सन् 1951 में 147 थी वह कम हो कर 2001 में 63 रह गई।
  2.  जनसंख्या के अल्प-सुविधा प्राप्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण एवं पोषण सेवाओं में सुधार। शिशु मृत्यु दर जो 1951 में 25 प्रति हजार थी वह 2001 में घट कर 8.1 प्रति हजार हो गई।
  3. जीवन प्रत्याशी 2011 में बढ़कर 64 वर्ष से अधिक हो गई है। आयु में वृद्धि होना आत्मविश्वास के साथ जीवन की उच्च गुणवत्ता का सूचक है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि लोग किस प्रकार संपत्ति के रूप में संसाधन होते हैं?
उत्तर:
किसी देश के लोग उस देश के लिए वास्तविक एवं बहुमूल्य संपत्ति होते हैं। इसे निम्नलिखित आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है–

  1. मानव साधन की गुणवत्ता लोगों के आर्थिक एवं सामाजिक स्तर का चिन्ह या पहचान है। इस प्रकार मानव विकास को वृद्धि की आवश्यकता है।
  2. स्वस्थ, शिक्षित, कुशल एवं अनुभवी लोग राष्ट्र की संपत्ति होते हैं जबकि अस्वस्थ, अशिक्षित, अकुशल एवं अनुभवहीन लोग एक बोझ हैं।
  3. मानवीय संसाधन सभी आर्थिक क्रियाओं का अत्याज्य साधन है। सभी उत्पादित क्रियाओं को भूमि, श्रम, पूँजी, संगठन एवं उद्यम जो उत्पादन के साधन हैं और उसकी आवश्यकता होती है।
  4. इन साधनों में से श्रम, संगठन एवं उद्यम मानवीय संसाधन हैं। इसके बिना उत्पादित क्रियाएँ संभव नहीं हैं।
  5. मानवीय साधन उत्पादन का केवल आवश्यक तत्व ही नहीं बल्कि यह अन्य उत्पादन के साधनों को भी कार्यशील बनाता है।

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प्रश्न 2.
संगठित क्षेत्र में महिला रोजगार वृद्धि हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
उत्तर:
संगठित क्षेत्र में महिला रोजगार बढ़ाने के लिए किए जाने वाले प्रमुख प्रयास

  1. महिलाओं की शिक्षा, प्रशिक्षण एवं घर से बाहर कार्य करने के संबंध में पारंपरिक विचार को परिवर्तित करने के लिए समाज में सार्वजनिक चेतना का विकास किया जाना चाहिए।
  2. महिलाओं के कार्य के दौरान उनके बच्चों की देख-रेख के लिए शिशुपालन केन्द्र (creches) की व्यवस्था होनी चाहिए।
  3. महिलाओं को अधिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए।
  4. नियुक्तिकर्ताओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए कि महिलाओं को रोज़गार प्रदान करें।
  5. महिलाओं के कार्य के लिए आवासीय स्थान प्रदान करना चाहिए। कार्य करने वाली महिलाओं के लिए छात्रावास बनाए जाने चाहिए।

प्रश्न 3.
महिलाओं द्वारा किए जाने वाले गैर-भुगतान कार्य को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
महिलाओं द्वारा संपादित गैर भुगतान कार्य निम्नलिखित हैं

  1.  कल्याण क्रियाएँ-मानवीय रूप से कल्याण के लिए दी गई सेवाएँ एवं पिछड़े लोगों को ऊपर उठाने के लिए | किए गए कार्यों का भुगतान नहीं किया जाता।
  2.  सांस्कृतिक क्रियाएँ–सांस्कृतिक क्रियाओं में महिलाओं के योगदान जैसे-नृत्य, नाटक, गीत आदि से उनको कोई कमाई नहीं होती।
  3. धार्मिक क्रियाएँ–कीर्तन, भजन, धार्मिक गान, भगवती जागरण आदि सेवाएँ गैर भुगतान होती हैं।
  4. मनोवैज्ञानिक एवं आवश्यकताओं की संतुष्टि की क्रियाएँ-उपरोक्त क्रियाओं के अतिरिक्त अन्य सेवाएँ जो निजी, भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक खुशी की संतुष्टि के उद्देश्य से की जाती हैं वह भी भुगतान प्राप्त नहीं करती।
  5. घरेलू क्रियाएँ-महिलाओं को घरेलू सेवाएँ प्रदान करने की आवश्यकता होती है जैसे-खाना बनाना, सफाई, धुलाई, कपड़े धोना आदि। जिनके लिए उन्हें भुगतान नहीं किया जाता है। उन्हें सब कार्य उनके उत्तरदायित्व पर करने होते हैं।
  6. दान क्रियाएँ-पड़ोसियों, कमज़ोरों एवं गरीब लोगों को दान के रूप में सेवाएँ प्रदान करने का भी भुगतान नहीं किया जाता।
  7. सामाजिक सेवाएँ समाज के लाभ के लिए प्रदान की गई सेवाएँ जैसे-गरीबों को शिक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा एवं सफाई के लिए भी भुगतान प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 4.
“मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण निवेश है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिक्षा मानव पूँजी निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि जनसंख्या शिक्षित नहीं होगी तो वह उत्तरदायित्व में बदल जाएगी। उचित शिक्षा प्रदान करके हम किसी बच्चे को अच्छी तरह विकसित एवं कोई भी काम करने योग्य बना सकते हैं। इस प्रकार शिक्षा श्रम की गुणवत्ता में सुधार करती हैं। इससे सकल उत्पादकता में वृद्धि होती है जो अर्थव्यवस्था की विकास दर में वृद्धि (UPBoardSolutions.com) करती है।
बदले में यह व्यक्ति को वेतन एवं अन्य विकल्प प्रदान करती है।
मानव संसाधन विकास में शिक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। शिक्षा एवं कौशल किसी व्यक्ति की आय को निर्धारित करने वाले मुख्य कारक हैं। किसी बच्चे की शिक्षा और प्रशिक्षण पर किए गए निवेश के बदले में वह भविष्य में अपेक्षाकृत अधिक आय एवं समाज में बेहतर योगदान
के रूप में उच्च प्रतिफल दे सकता है। शिक्षित लोग अपने बच्चों की शिक्षा पर अधिक निवेश करते पाए जाते हैं। इसका कारण यह है कि उन्होंने स्वयं के लिए शिक्षा का महत्त्व जान लिया है।

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प्रश्न 5.
भारत में बच्चों में शिक्षा के प्रसार हेतु सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
उत्तर:
भारत में बच्चों में शिक्षा के प्रसार हेतु सरकार ने निम्न कदम उठाए हैं-

  1. हमारे संविधान में प्रावधान है कि राज्य सरकारें 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को सार्वभौमिक निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराएगी। हमारी केन्द्र सरकार ने वर्ष 2010 तक 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देने के लिए “सर्व शिक्षा अभियान के नाम से एक योजना प्रारंभ की है।
  2.  लड़कियों की शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है।
  3.  प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय जैसे विशेष स्कूल खोले गए हैं।
  4. उच्च विद्यालय के छात्रों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से व्यावसायिक पाठ्यक्रम विकसित किए गए हैं।
  5. स्कूल उपलब्ध कराने के साथ ही यह लोगों को उनके बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करने एवं बीच में पढ़ाई छोड़ने को हतोत्साहित करने हेतु कुछ गैर-पारंपरिक उपाय कर रही है।
  6. उपस्थिति को प्रोत्साहित करने व बच्चों को स्कूल में बनाए रखने और उनके पोषण स्तर को बनाए रखने के लिए दोपहर की भोजन योजना लागू की गई है।
  7. कामकाजी वयस्कों एवं खानाबदोश परिवारों के बच्चों के लिए रात्रि स्कूल एवं मोबाइल स्कूल उपलब्ध कराए गए हैं।
  8. दसवीं पंचवर्षीय योजना ने इस योजना के अंत तक 18 से 23 वर्ष तक की आयु समूह के युवाओं में उच्चतर शिक्षा हेतु नामांकन वर्तमान 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 9 प्रतिशत करने का प्रयास किया।
  9. यह योजना दूरस्थ शिक्षा, अनौपचारिक, दूरस्थ एवं सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षण संस्थानों के अभिसरण पर भी केंद्रित हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 6 किसान और काश्तकार

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 6 किसान और काश्तकार

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 6 किसान और काश्तकार.

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैंड की ग्रामीण जनता खुले खेत की व्यवस्था को किस दृष्टि से देखती थी। संक्षेप में व्याख्या करें।
इस व्यवस्था को-

  1. एक संपन्न किसान,
  2. एक मजदूर,
  3. एक खेतिहर स्त्री।

की दृष्टि से देखने का प्रयास करें।
उत्तर:
(1) एक संपन्न किसान की दृष्टि में – 16वीं शताब्दी में जब ऊन की कीमतें बढ़ीं तो संपन्न किंसानों ने साझा भूमि की सबसे अच्छी चरागाहों की निजी पशुओं के बाड़बंदी शुरू कर दी। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था
कि भेड़ी को अच्छा चारा मिल सके। उन्होंने गरीब लोगों को भी बाहर खदेड़ना शुरू कर दिया और उन्हें साझा भूमि पर पशु चराने से भी मना कर दिया। बाद में 18वीं सदी के मध्य (UPBoardSolutions.com) में इस बाड़बंदी को कानूनी मान्यता देने के लिए ब्रिटिश संसद ने 4,000 से अधिक अधिनियम पारित किए।

(2) एक मजदूर की दृष्टि में – गरीब मजदूरों के जीवित बने रहने के लिए साझा भूमि बहुत आवश्यक थी। यहाँ वे अपनी गायें, भेड़े आदि चराते थे और आग जलाने के लिए जलावन तथा खाने के लिए कंद-मूल एवं फल इकट्ठा करते थे। वे नदियों तथा तालाबों में मछलियाँ पकड़ते थे, और साझा वनों में खरगोश का शिकार करते थे।

(3) एक खेतिहर स्त्री की दृष्टि में – खेतिहर महिला प्रायः खुले खेतों पर अपने परिवार के सदस्यों के साथ कार्य करती थी। साझी भूमि से वह घरेलू कार्यों के लिए ईंधन एकत्रित करती थी तथा चरागाहों में पशुओं को चराने में सहयोग करती थी। इस प्रकार खुले खेतों के अतिरिक्त साझी भूमि ही उसके आर्थिक विकास का एकमात्र साधन थी। वे अपने पशुओं को चराने, फल और जलावन एकत्र करने के लिए साझा भूमि का प्रयोग करते थे। यद्यपि खुले खेतों के गायब हो जाने से इन सभी क्रियाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। जब (UPBoardSolutions.com) खुली खेत प्रणाली समाप्त होना प्रारंभ हुई, वनों से जलाने के लिए जलावन एकत्र करना या साझा भूमि पर पशु चराना अब संभव नहीं था। वे कंद-मूल एवं फल इकट्ठा नहीं कर सकते थे या मांस के लिए छोटे जानवरों का शिकार नहीं कर सकते थे।

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प्रश्न 2.
इंग्लैण्ड में हुए बाड़बंदी आंदोलन के कारणों की संक्षेप में व्याख्या करें।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में बाड़बंदी आंदोलन को प्रोत्साहित करने वाले सभी कारण अंततः लाभ कमाने के उद्देश्य से प्रेरित थे।
इनमें से कुछ कारक इस प्रकार थे-

  1. पौष्टिक चारा फसलों की कृषि के लिए-ऊन के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए पौष्टिक चारा फसलों की तथा पशुओं की नस्ल सुधारने की आवश्यकता थी। इसलिए अपने पशुओं को गाँव के अन्य पशुओं से अलग रखने तथा पौष्टिक चारा फसलों के उत्पादन के लिए भी संपन्न किसानों ने अपने खेतों की बाड़ाबंदी आरंभ कर दी।
  2. अनाज की माँग में वृद्धि-18वीं सदी के अंतिम दशकों में बाड़ाबंदी आंदोलन तेजी से सारे इंग्लैण्ड में फैल गया। इसका मूल कारण दुनिया के सभी भागों में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण अनाज की बढ़ती हुई माँग थी। किसानों ने अपनी भूमियों की बाड़ाबंदी आरंभ (UPBoardSolutions.com) कर दी जिससे उनमें अधिक-से-अधिक अनाज उगाना संभव हो सके।
  3. ऊन के मूल्यों में वृद्धि-16वीं सदी के आरंभ से ही ऊन के मूल्यों में होने वाली वृद्धि ने इंग्लैण्ड के किसानों को अधिक-से-अधिक भेड़ों को पालने के लिए प्रोत्साहित किया।
  4. साझा भूमि पर अधिकार संपन्न किसान अपनी भूमि का विस्तार करना चाहते थे जिससे वे अधिक निजी चरागाह बना सकें। इसके लिए उन्होंने साझा भूमियों को काटकर उस पर बाड़ाबंदी आरंभ कर दी।

प्रश्न 3.
इंग्लैण्ड के गरीब किसान थेसिंग मशीन का विरोध क्यों कर रहे थे?
उत्तर:
इंग्लैण्ड के गरीब किसान श्रेसिंग मशीन का विरोध इसलिए कर रहे थे, क्योंकि-

  1. इसने फसल की कटाई के समय कामगारों के लिए रोजगार के अवसर कम कर दिए। इससे पहले मजदूर खेतो ंमें विभिन्न काम करते हुए जमींदार के साथ बने रहते थे। बाद में, उन्हें केवल फसल कटाई के समय ही काम पर रखा जाने लगा।
  2. अधिकतर मजदूर आजीविका के साधन गवाँ कर बेरोजगार हो गए। इसलिए वे औद्योगिक मशीनों का विरोध कर रहे थे।
  3. फ्रांस के विरुद्ध युद्ध समाप्त होने पर गाँवों में वापस लौटे सैनिकों के लिए रोजगार की आवश्यकता थी परन्तु मशीनीकरण ने रोजगार के अवसर सीमित कर दिए थे।

प्रश्न 4.
कैप्टन स्विंग कौन था? यह नाम किस बात का प्रतीक था और वह किन वर्गों का प्रतिनिधित्व करता था?
उत्तर:
कैप्टन स्विंग एक मिथकीय नाम था जिसका प्रयोग धमकी भरे खतों में श्रेसिंग मशीनों और जमींदारों द्वारा मजदूरों को काम देने में आनाकानी के ग्रामीण अंग्रेज विरोध के दौरान किया जाता था। कैप्टन स्विंग के नाम ने जमींदारों को चौकन्ना कर दिया। उन्हें यह खतरा सताने लगा कि कहीं (UPBoardSolutions.com) हथियारबंद गिरोह रात में उन पर भी हमला न बोल दें और इस कारण बहुत सारे जमींदारों ने अपनी मशीनें खुद ही तोड़ डालीं। कैप्टन स्विंग, सम्पन्न किसानों के विरुद्ध मजदूरों तथा बेरोजगारों के उग्र विचारों का प्रतीक था। वह भूमिहीन मजदूरों तथा बेरोजगारों के एक बड़े समूह का प्रतिनिधित्व करता था।

प्रश्न 5.
अमेरिका पर नए अप्रवासियों के पश्चिमी प्रसार को क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अमेरिका पर नए अप्रवासियों के पश्चिमी प्रसार के प्रभाव-

  1. वनों के कटाव तथा घास भूमियों के विनाश ने अमेरिका के पर्यावरण संतुलन को नष्ट कर दिया जिसके कारण देश के दक्षिण-पश्चिमी भागों में धूलभरी आँधियाँ चलने लगीं तथा वर्षा की मात्रा में कमी आने लगी।
  2. नए प्रवासियों के पश्चिमी प्रसार के क्रम में बड़ी संख्या में वनों और घास भूमियों को कृषि क्षेत्रों में बदल दिया गया।
  3. इन क्षेत्रों में रहने वाले मूल निवासियों को (UPBoardSolutions.com) पश्चिमी तथा दक्षिणी भागों की ओर विस्थापित कर दिया गया।
  4. श्वेत आबादी तथा कृषि के पश्चिमी विस्तार के कारण शीघ्र ही अमेरिका विश्व का प्रमुख गेहूँ उत्पादक देश बन गया।

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प्रश्न 6.
अमेरिका में फसल काटने वाली मशीन के फायदे-नुकसान क्या-क्या थे?
उत्तर:
अमेरिका में फसल काटने वाली मशीनों के लाभ-

  1. गेहूं के उत्पादन में तीव्र वृद्धि संभव-फसल काटने की नई मशीनों के प्रयोग से ही गेहूं का बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हो सका जिसके कारण शीघ्र ही अमेरिका विश्व का प्रमुख गेहूँ उत्पादक देश बन गया।
  2. समय की बचत-सन् 1831 में अमेरिका में साइरस मैककार्मिक नामक व्यक्ति ने फसल काटने की एक मशीन बनाई जिससे 15 दिन में 500 एकड़ (UPBoardSolutions.com) भूमि पर कटाई संभव थी।
  3. बड़े फार्मों पर कृषि संभव–कटाई की नई-नई मशीनों के फलस्वरूप ही विशाल आकार के खेतों पर कृषि कार्य संभव हो सका। नई मशीनों की सहायता से 4 आदमी मिलकर एक सीजन में 3,000 से 4,000 एकड़ भूमि पर फसल का उत्पादन कर सकते थे।
    अमेरिका में फसल काटने वाली मशीन से हानि-

    1. निर्धन किसानों के लिए अभिशाप-अनेक छोटे किसानों ने भी बैंकों के ऋण की सहायता से इन मशीनों को खरीदा परंतु अचानक गेहूँ की माँग में कमी ने इन किसानों को बर्बाद कर दिया।
    2. बेरोजगारी में वृद्धि–फसल कटाई की नई-नई मशीनों के कारण मजदूरों की माँग में तेजी से कमी आई जिसके कारण भूमिहीन मजदूरों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट उपस्थित हो गया।

प्रश्न 7.
अमेरिका में गेहूं की खेती में आए उछाल और बाद में पैदा हुए पर्यावरण संकट से हम क्या सबक ले सकते हैं?
उत्तर:
अमेरिका में गेहूं की खेती में आए तेज उछाल के चलते कृषि के अंतर्गत और अधिक क्षेत्रों को शामिल करने के उद्देश्य से बड़े पैमाने पर वन एवं घास भूमियों को साफ किया गया। एक व्यापक प्रयास के चलते अमेरिका शीघ्र ही विश्व का अग्रणी गेहूँ उत्पादक देश बन गया। लेकिन इसके (UPBoardSolutions.com) फलस्वरूप पश्चिम एवं दक्षिण अमेरिका में एक नया पर्यावरण संकट उत्पन्न हो गया जिससे सारा क्षेत्र धूल भरी आँधियों से ढंक गया और यह प्राकृतिक आपदा बड़ी संख्या में मनुष्य एवं पशुओं की मृत्यु का कारण बनी।

इस घटना से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि हमें अपने आर्थिक हितों के लिए पर्यावरण का अनियंत्रित और अवैज्ञानिक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। हमें मानव विकास के ऐसे रास्ते तलाश ने चाहिए जिससे पर्यावरण को क्षति पहुँचाए बिना मानव विकास को उच्च स्तर पर स्थापित किया जा सके।

प्रश्न 8.
अंग्रेज अफीम की खेती करने के लिए भारतीय किसानों पर क्यों दबाव डाल रहे थे?
उत्तर:
अंग्रेज निम्नलिखित कारणों से अफीम की खेती के लिए भारतीय किसानों पर दबाव डाल रहे थे-

  1. भारत के अनेक क्षेत्रों की जलवायु अफीम की खेती के लिए उपयुक्त थी।
  2. इंग्लैण्ड में चाय अत्यधिक लोकप्रिय हो गई। किन्तु इंग्लैण्ड के पास धन देने के अतिरिक्त ऐसी कोई वस्तु नहीं थी जो वे चाय के बदले में चीन में बेच सकें। किन्तु ऐसा करने से इंग्लैण्ड अपने खजाने को हानि पहुँचा रहा था। यह देश के खजाने को हानि पहुँचा कर (UPBoardSolutions.com) इसकी संपत्ति को कम कर रहा था। इसलिए व्यापारियों ने इस घाटे को रोकने के तरीके सोचे। उन्होंने एक ऐसी वस्तु खोज निकाली जिसे वे चीन में बेच सकते थे और चीनियों को उसे खरीदने के लिए मना सकते थे।
  3. अफीम ऐसी वस्तु थी। इसलिए अंग्रेज अफीम की खेती करने के लिए भारतीय किसानों पर दबाव डाल रहे थे।
  4. अंग्रेजों को चीन से चाय खरीदने के लिए उसको मूल्य चाँदी के सिक्कों में चुकाना पड़ता था परंतु अंग्रेज इस चाँदी को बचाने के लिए भारतीय अफीम को चीन में बेचते थे। अफीम से प्राप्त आय से ही वह वहाँ से चाय खरीदते थे और उसे यूरोप में बेचकर दोहरा लाभ कमाते थे।

प्रश्न 9.
भारतीय किसान अफीम की खेती के प्रति क्यों उदासीन थे?
उत्तर:
भारतीय किसान निम्नलिखित कारणों से अफीम की खेती करने के प्रति उदासीन थे-

  1. जिन किसानों के पास अपनी भूमि नहीं थी। वे जमींदारों से भूमि पट्टे पर लेकर खेती करते थे। इसके लिए उन्हें किराया देना पड़ता। गाँव के निकट स्थित अच्छी भूमि के लिए जमींदार बहुत अधिक किराया वसूल करते थे।
  2. अफीम की खेती गाँवों के निकट स्थित सबसे उपजाऊ भूमि पर उगानी पड़ती थी। भूमि में अत्यधिक खाद भी डालनी पड़ती थी। किसान ऐसी भूमि पर प्रायः दालें उगाया करते थे। यदि वे इस भूमि पर अफीम उगाते, तो दालों को घटिया भूमि पर उगाना पड़ता। परिणामस्वरूप दालों का उत्पादन बहुत ही कम होता।
  3. अफीम की खेती करना एक कठिन प्रक्रिया थी। इसका पौधा नाजुक होता था इसलिए फसल को अच्छी तरह पोषण करने के लिए बहुत अधिक (UPBoardSolutions.com) समय लग जाता था। परिणामस्वरूप उनके पास अन्य फसलों की देखभाल करने के लिए समय नहीं बच पाता था।
  4. सरकार किसानों को उनके द्वारा उगाई गई अफीम का बहुत ही कम मूल्य देती थी। इतनी कम कीमत पर अफीम की खेती करने में किसानों को लाभ की बजाय हानि उठानी पड़ती थी। अफीम को बेचने से होने वाला लाभ अंग्रेजों की जेब में जाता था।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अमेरिका के आदिम जनजातीय समुदाय के लोग किस तरह से जीवन-यापन करते थे?
उत्तर:
महान् खोजकर्ता कोलंबस द्वारा अमेरिका की खोज करने से पहले इस भू-भाग पर अनेक आदिम जनजातियाँ निवास करती थीं, जिन्हें भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता था। 15वीं शताब्दी में यूरोपीय लोगों के अमेरिका में आगमन पर मूल जनजातीय समुदाय अमेरिका के पश्चिमी (UPBoardSolutions.com) और दक्षिणी भागों में पीछे हटने लगी। जनजातीय समुदाय के लोग मक्का, फलियों, तंबाकू और कुम्हड़े की कृषि करते थे। इस समुदाय के कुछ लोग शिकार करके, खाद्य पदार्थों का संकलन करके तथा मछलियाँ पकड़कर अपना भरण-पोषण और जीवन-यापन करते थे।

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प्रश्न 2.
यूरोपीय लोग अमेरिका की तरफ क्यूँ आकृष्ट हुए?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों को अमेरिका में अनेक संभावनाएँ नजर आती थीं। अमेरिका में कृषि भूमि विस्तार, वन उत्पादों का निर्यात एवं खनिज संपदा को दोहन आदि के कारण यूरोपीय लोग अमेरिका की ओर आकर्षित हुए।

प्रश्न 3.
चीन में अफीम के व्यापार की शुरुआत किस देश ने की थी?
उत्तर:
पुर्तगाल ने चीन में अफीम व्यापार की शुरुआत की थी।

प्रश्न 4.
अंग्रेज व्यापारी चीन को चाय का मूल्य किस रूप में चुकाते थे?
उत्तर:
अंग्रेज व्यापारी चाय के बदले चाँदी के सिक्के (बुलियन) का भुगतान करते थे।

प्रश्न 5.
1750 से 1900 ई. के मध्य इंग्लैण्ड की जनसंख्या कितने गुना बढ़ी थी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड की जनसंख्या में 1750 से 1900 ई० की अवधि के बीच चार गुना की वृद्धि हुई।

प्रश्न 6.
वे दो फसलें कौन-सी हैं जिनसे मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है?
उत्तर:
मृदा में नाइट्रोजन की वृद्धि करने वाली दो फसलें शलजम और तिपतिया घास है।

प्रश्न 7.
इंग्लैण्ड के किस भाग में सघन कृषि की जाती थी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड के मध्य भाग में सघन कृषि की जाती थी।

प्रश्न 8.
निर्धन किसानों को साझा भूमि से प्राप्त होने वाले दो लाभ बताइए।
उत्तर:

  1. पशुओं के लिए चरागाह की प्राप्ति।
  2. जलावन के लिए लकड़ी की प्राप्ति।

प्रश्न 9.
खलिहान जलने की पहली घटना इंग्लैण्ड के किस भाग में घटित हुई?
उत्तर:
खलिहान जलने की प्रथम घटना इंग्लैण्ड के उत्तर-पश्चिम भाग में घटित हुई।

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प्रश्न 10.
विश्व के किस देश को ‘रोटी की टोकरी’ कहा जाता था?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका को रोटी की टोकरी’ कहा जाता था।

प्रश्न 11.
त्रिकोणीय व्यापार में शामिल देश कौन-से थे?
उत्तर:
भारत, चीन और इंग्लैण्ड त्रिकोणीय व्यापार में शामिल देश थे।

प्रश्न 12.
अंग्रेज सरकार के सरकारी आय का प्रमुख स्रोत क्या था?
उत्तर:
भू-राजस्व अंग्रेज सरकार के सरकारी आय को प्रमुख स्रोत था।

प्रश्न 13.
18वीं सदी के अंत तक अमेरिका के कितने भू-भाग पर वन थे?
उत्तर:
18वीं सदी के अंत तक अमेरिका की 80 करोड़ एकड़ भूमि पर वन थे।

प्रश्न 14.
1830 ई. से पहले फसल की कटाई के लिए किस औजार का प्रयोग होता था?
उत्तर:
1830 ई. से पहले फसल काटने के लिए हंसिए का प्रयोग होता था।

प्रश्न 15.
प्लासी का युद्ध कब हुआ था?
उत्तर:
प्लासी का युद्ध 1757 ई. में हुआ था।

प्रश्न 16.
फसल काटने की पहली मशीन किसने बनायी थी?
उत्तर:
साइरस मैक्कॉर्मिक ने सन् 1831 ई. में प्रथम फसल काटने की मशीन बनाई थी।

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प्रश्न 17.
रेतीला तूफान या काला तूफान क्या है?
उत्तर:
अमेरिका में गेहूं की खेती का विस्तार 1930 ई. के दशक में भयानक रेतीले तूफानों का कारण बना। 1930 ई. के दशक में दक्षिण अमेरिकी मैदानों में आने वाली तबाही फैलाने वाले भयानक रेतीले तूफानों को ‘काला तूफान कहा गया।

प्रश्न 18.
रेतीले तूफानों के परिणाम बताइए।
उत्तर:
रेतीले तूफानों के आने से प्रभावित क्षेत्र में अँधेरा छा जाता था और ऊपर से रेत गिरता था जिससे लोग अन्धे हो जाते थे और लोगों का दम घुटने लगता था। पशु बड़ी संख्या में दम घुटने से मारे जाते थे। ट्रैक्टर और मशीने रेत के ढेरों में फंसकर इतने बेकार हो गए थे कि उनकी मरम्मत कर पाना संभव नहीं था।

प्रश्न 19.
19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में अमेरिका में गेहूँ उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि के लिए उत्तरदायी कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अमेरिका में 19वीं शताब्दी में गेहूं उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि के लिए निम्न कारण उत्तरदायी थे-

  1. गेहूं की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि होना।
  2. अमेरिका की नगरीय जनसंख्या में तेजी से वृद्धि।
  3. निर्यात बाजार को बढ़ावा देना।

प्रश्न 20.
इंग्लैण्ड के किसान 1660 ई. के दशक में किस फसल की खेती करने लगे थे?
उत्तर:
इस अवधि में इंग्लैण्ड के कई हिस्सों में किसान शलजम और तिपतिया घास की खेती करने लगे थे। उन्हें शीघ्र ही यह एहसास हो गया कि इन दोनों फसलों की खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। साथ ही शलजम को पशु बड़े चाव से खाते थे।

प्रश्न 21.
इंग्लैण्ड के ग्रामीण लोगों ने खुले खेतों और कॉमन्स जमीनों का प्रयोग किस प्रकार किया?
उत्तर:
ऐसी सामूहिक भूमि जिस पर सभी ग्रामीणों का अधिकार होता था। यहाँ वे अपने मवेशी और भेड़ बकरियाँ चराते थे। इस भू-भाग पर वे लकड़ियाँ और कंद-मूल फल एकत्रित करते थे। वे लोग जंगल में शिकार करते तथा नदियों एवं तालाबों से मछली पकड़ने का कार्य करते थे। निर्धन वर्ग के लिए यह (UPBoardSolutions.com) सामूहिक भूमि जीवन-यापन का आधारभूत साधन थी। इस भू-भाग के माध्यम से वे लोग अपनी आय बढ़ाते तथा पशुपालन करते थे।

प्रश्न 22.
खुले खेतों और कॉमन्स भूमि का आवंटन किस तरह किया जाता था?
उत्तर:
18वीं सदी के अंतिम वर्षों में इंग्लैण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत खुलापन पाया जाता था। जमीन भू-स्वामियों की निजी संपत्ति नहीं होती है और इस भूमि की बाड़ाबंदी भी नहीं की गयी थी। किसान अपने गाँवों के निकटवर्ती क्षेत्रों में कृषि कार्य करते थे। प्रत्येक वर्ष के आरंभ में एक सभा बुलाई जाती थी जिसमें गाँव के प्रत्येक व्यक्ति की भूमि के टुकड़े बाँट दिए जाते थे।

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प्रश्न 23.
बंगाल और बिहार के किसानों के लिए औपनिवेशिक सरकार द्वारा आरंभ, की गयी पेशगी प्रणाली क्या थी?
उत्तर:
बंगाल व बिहार को औपनिवेशिक सरकार द्वारा अफीम की खेती करने के लिए अग्रिम धन की अदायगी की जाती थी, जिसे पेशगी कहते थे। इस पेशगी की एवज में उन्हें अफीम की खेती करने को विवश किया जाता था। इस तरह इस क्षेत्र के किसान फसल एजेंटों के अधीन हो गए।

प्रश्न 24.
अंग्रेजों द्वारा चीन में अफीम के व्यापार को चीन के लोगों पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
अंग्रेजों द्वारा चीन में अफीम का व्यापार विस्तार करने से चीन के लोग अफीम के आदी हो गए। यह अफीम की लत चीन के समाज के सभी वर्गों जैसे-दुकानदार, सरकारी कर्मचारी, सैनिक, उच्च वर्ग और भिखारियों तक में फैल गयी। 1839 ई० में कैंटन के विशेष आयुक्त लिन जेशू के अनुसार चीन (UPBoardSolutions.com) में 40 लाख लोग अफीम का सेवन कर रहे थे। कैंटन में रहने वाले एक अंग्रेज डॉक्टर के अनुसार उस समय चीन में लगभग 1 करोड़ 20 लाख व्यक्ति अफीम के नशे के आदी थे।

प्रश्न 25.
भारत में अफीम के उत्पादन में वृद्धि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1767 ईo से पहले भारत से मात्र 500 पेटी अफीम निर्यात की जाती थी। अगले चार वर्ष के अंदर यह मात्रा बढ़कर 1,500 पेटी हो गयी। 1870 ई0 तक प्रतिवर्ष भारत से 50,000 पेटी अफीम निर्यात की जाने लगी। इस प्रकार जैसे-जैसे भारत से अफीम का निर्यात चीन में बढ़ता गया वैसे-वैसे, भारत में अफीम के उत्पादन में वृद्धि होती गयी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कृषि मशीनों के विकास को किसानों पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:

  1. नवीन कृषि मशीनें कृषकों के लिए अभिशाप सिद्ध हुईं। अनेक किसानों ने इस आशा के साथ कृषि मशीनों को खरीदा कि गेहूँ के मूल्यों में तेजी बनी रहेगी। इन किसानों को बैंक सरलता पूर्वक ऋण दे देते थे। लेकिन इस ऋण को चुकाना उन किसानों के लिए कठिन होता था। बैंक ऋण समय पर न चुका पाने की स्थिति में किसान अपनी जमीनें गंवा बैठे। ऐसे में जीविकाविहीन किसानों को नए सिरे से रोजगार की तलाश करनी पड़ती थी।
  2. इस समयावधि में निर्धन किसानों को सरलता से रोजगार नहीं मिल पाता था। बिजली से चलने वाली मशीनों के प्रचलन में आने से मजदूरों की माँग (UPBoardSolutions.com) अत्यधिक घट गयी थी।
  3. प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं की माँग घटने लगी, लेकिन उत्पादन ज्यादा होने से बाजार गेहूँ से पट गया। फलस्वरूप गेहूं का मूल्य गिरने लगा। गेहूं का निर्यात लगभग बंद हो गया। ज्यादातर किसानों के सम्मुख ऋणग्रस्तता का संकट उपस्थित हो गया। इस मंदी का प्रभाव समाज के सभी वर्गों पर पड़ा। 1930 ई. की विश्वव्यापी मंदी के लिए कृषि मंदी को महत्त्वपूर्ण कारण माना जाता है।

प्रश्न 2.
चीन के लोगों को अफीम का आदी कैसे बनाया गया?
उत्तर:
चीन के लोग अफीम के आदी हो गए थे, इस बात से वहाँ के लोग चिंतित थे। चीन के शासकों ने औषधीय उपयोग के अतिरिक्त अफीम के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। किन्तु 18वीं सदी के मध्य में पश्चिम के व्यापारियों ने अफीम का अवैध व्यापार करना आरंभ कर दिया। चीन के दक्षिण-पूर्वी बंदरगाहों पर अफीम जहाजों से उतारी जाती थी, और वहाँ से स्थानीय एजेंटों के माध्यम से देश के आंतरिक हिस्सों में इसे पहुँचाया जाता था। 1820 ई0 के दशक की शुरुआत में प्रतिवर्ष लगभग 10,000 क्रेट अवैध रूप से चीन (UPBoardSolutions.com) में मँगवाए जाते थे। 15 वर्ष बाद प्रतिवर्ष अफीम के लगभग 35,000 क्रेट उतारे जाने लगे थे। शीघ्र ही चीन के लगभग सभी वर्ग के लोग अफीम का सेवन करने लगे। संपन्न तो संपन्न भिखारी भी चीन में अफीम के बिना नहीं रह सकते थे। सन् 1839 तक चीन में अफीम का सेवन करने वालों की संख्या बहुत बढ़ गयी थी।

प्रश्न 3.
विशाल मैदानों का पूरा क्षेत्र ‘रेत का कटोरा’ कैसे बन गया?
उत्तर:
अमेरिका में 19वीं सदी की शुरुआत में गेहूं का उत्पादन अत्यधिक बढ़ गया था। ऐसे में किसानों ने लापरवाही से जमीन के यथासंभव हिस्से से समस्त वनस्पति को साफ कर डाली। ट्रैक्टरों की मदद से इस जमीन की मिट्टी को पलट डाला गया और मिट्टी को धूल में बदल दिया। 1930 ई0 के दशक में यह समस्त क्षेत्र विशालकाय रेत के कटोरे में रूपान्तरित हो गया था। इसके पश्चात् अमेरिका के दक्षिणी मैदानों में (UPBoardSolutions.com) भयानक रेतीले तूफान आने लगे। ये तूफान 7,000 से 8,000 फुट की ऊँचाई तक के ऊपरी क्षेत्र आवृत करते हुए गतिशील होते थे। इस तरह अमेरिका का विशाल कृषि क्षेत्र के रूप में परिवर्तित होने का स्वप्न दुःस्वप्न में बदल गया।

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प्रश्न 4.
त्रिकोण व्यापार का अर्थ और विकास स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
18वीं सदी में भारत, चीन और ब्रिटेन के बीच व्यापार को त्रिकोणीय व्यापार की संख्या दी गयी है। अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी चीन से चाय और रेशम खरीद कर उसे इंग्लैण्ड में बेचती थी। जैसे-जैसे चाय लोकप्रिय पदार्थ बन गयी, चाय का व्यापार और महत्त्वपूर्ण बन गया। इस समय तक इंग्लैण्ड कोई भी ऐसी वस्तु नहीं बनाता था जिसे चीन में बेचा जा सके। ऐसी स्थिति में पश्चिमी व्यापारी चाय का व्यापार करने के लिए पैसे का प्रबन्ध नहीं कर सकते थे। वे चाय की खरीद केवल चाँदी के सिक्के (बुलियन) देकर ही कर सकते थे। इसका आशय था कि इंग्लैण्ड का खजाना एक दिन रिक्त हो जाएगा। अंततः अंग्रेजों ने यह निश्चित किया कि अफीम भारत में उगायी जाए और इसे चीन में बेचकर लाभार्जन किया जाए।

प्रश्न 5.
फसल कटाई के यंत्रों में हुए क्रान्तिकारी परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
फसल कटाई के यंत्रों में निम्नलिखित क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए-

  1. अमेरिका में 1830 ई0 के दशक से पूर्व फसल की कटाई के लिए हंसिए का प्रयोग किया जाता था।
  2. खेतों के बड़े आकार के कारण हंसिए की सहायता से फसलों को काटने के लिए बड़ी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता होती थी। इस कार्य में (UPBoardSolutions.com) अत्यधिक पूँजी एवं श्रम की आवश्यकता होती थी। इसलिए किसानों को फसल की कटाई के लिए मशीनों की आवश्यकता हुई।
  3. साइरस मैक्कॉर्मिक नामक व्यक्ति ने 1831 ई0 में एक ऐसी मशीन का आविष्कार किया जो एक साथ 16 मजदूरों के बराबर कटाई कर सकती थी।
  4. 20वीं शताब्दी के आरंभ में ज्यादातर किसान गेहूँ की कटाई के लिए कंबाइंड हार्वेस्टरों का प्रयोग करने लगे। इस मशीन से 15 दिन में 500 एकड़ भूमि पर गेहूं की कटाई की जा सकती थी।

प्रश्न 6.
भारत के अफीम व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत अंग्रेजों द्वारा चीन ले जाकर बेची जाने वाली अफीम का प्रमुख स्रोत था। बंगाल विजय के बाद अंग्रेजों ने अपने कब्जे वाली भूमि पर अफीम की खेती शुरू की। जैसे-जैसे चीन में अफीम की माँग बढ़ती गयी वैसे-वैसे बंगाल के बंदरगाहों से अफीम का निर्यात बढ़ता गया। 1767 ई० से पहले भारत से केवल 500 पेटी (लगभग 2 मन) अफीम का निर्यात होता था, लेकिन 1870 ई0 तक यह निर्यात बढ़कर प्रतिवर्ष 50,000 पेटी हो गया।

प्रश्न 7.
बंगाल के अफीम व्यापार को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने क्या किया?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने 1773 ई0 तक बंगाल में अफीम के व्यापार पर अधिकार कर लिया। ब्रिटिश सरकार के अलावा किसी को अफीम का व्यापार करने की अनुमति नहीं थी। ब्रिटिश सरकार अफीम को सस्ती दरों पर उत्पादित करके इसे कलकत्ता (कोलकाता) स्थित अफीम एजेंटों को ऊँचे दामों पर बेचना चाहती थी जो समुद्री जहाज के माध्यम से इसे चीन भेज सकें। अफीम पैदा करने वाले किसानों को दिया (UPBoardSolutions.com) जाने वाला मूल्य इतना कम होता था कि अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत में किसान बेहतर कीमत की माँग करने लगे थे और पेशगी लेने से मना करने लगे थे।

बनारस के आस-पास के क्षेत्रों में अफीम पैदा करने वाले किसानों ने अफीम की खेती बंद करने का फैसला किया। इसकी अपेक्षा वे अब गन्ने और आलू की खेती करने लगे थे। बहुत से किसानों ने अपनी फसलों को घुमंतू व्यापारियों (पैकारों) को बेच डाला था जो किसानों को बेहतर दाम देते थे। इस स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए सरकार ने रियासतों में तैनात अपने एजेंटों को इन व्यापारियों की अफीम जब्त करने और फसलों को नष्ट करने के आदेश दिए। जब तक अफीम का उत्पादन जारी रहा तब तक ब्रिटिश सरकार, किसानों और स्थानीय व्यापारियों के मध्य यह टकराव चलता रहा।

प्रश्न 8.
भारतीय किसान अफीम की खेती करने को कैसे तैयार हो गए?
उत्तर:

  1. अंग्रेजों ने भारतीय किसानों से अफीम की खेती करवाने के लिए उन्हें अग्रिम धन का भुगतान किया जिसे पेशगी कहते थे। इसका आशय यह है कि अंग्रेजों ने अग्रिम धन भुगतान का प्रलोभन देकर किसानों को अपने जाल में फैंसाया।
  2. उस समय बंगाल और बिहार में किसानों का एक बड़ा वर्ग आर्थिक संकट से गुजर रहा था, ऐसे में पेशगी में दिए धन ने उन्हें कमजोर बनाया।
  3. 1790 ई0 के दशक में सरकार ने गाँव के मुखिया के माध्यम से किसानों को अफीम उगाने के लिए अग्रिम धनराशि (एडवांस) देनी आरंभ कर दी। इससे किसानों की ऋणग्रस्तता में कमी आई परंतु अग्रिम धनराशि लेने के पश्चात् किसान किसी अन्य व्यापारी को अपनी (UPBoardSolutions.com) अफीम नहीं बेच सकते थे।
  4. एक बार फसल को बोने के उपरांत किसान का उसे फसल पर कोई अधिकार नहीं होता था। इस व्यवस्था का सबसे बुरा पक्ष यह था कि फसल के दाम भी एजेंटों द्वारा निर्धारित किए जाते थे जोकि सामान्यतः बाजार भाव से बहुत कम होते थे।

प्रश्न 9.
नवीन कृषि मशीनों से किसानों को क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
नवीन कृषि मशीनों के उपयोग से किसानों को निम्नलिखित लाभ हुए-

  1. नवीन कृषि मशीनों के उपयोग से किसानों का काफी समय बचा। उदाहरण के लिए, 4 आदमी मिलकर एक सीजन में 3,000 से 4,000 एकड़ भूमि में फसल का उत्पादन करते थे।
  2. इन मशीनों से जमीन के बड़े टुकड़ों पर फसल काटने, ढूँठ निकालने, घाट हटाने और भूमि को दोबारा खेती के लिए तैयार करने का काम बहुत आसान हो गया था।
  3. मशीनों के उपयोग से गेहूं के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई जिससे बड़े किसानों को बहुत अधिक लाभ हुआ।

प्रश्न 10.
कृषि में जुताई के यंत्रों ने क्या परिवर्तन किए?
उत्तर:
कृषि में जुताई के यंत्रों के प्रयोग से निम्नलिखित परिवर्तन आए-

  1. अमेरिकी किसान पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ने के क्रम में जब पश्चिमी प्रेयरी के मध्य में पहुँचे तो उनके हल बेकार हो गए जिनका उपयोग वे पूर्वी तटीय प्रदेशों में करते आ रहे थे।
  2. प्रेयरी का प्रदेश घनी घासों से पूरी तरह ढंका हुआ था। इन घासों की जड़े अत्यन्त कठोर थीं। मिट्टी से इन घास की जड़ों को बाहर निकालने के लिए दूसरे प्रकार के हलों का विकास करना पड़ा। इनमें से कुछ हल 12 फुट तक लंबे थे। इन हलों का अग्रभाग छोटे-छोटे पहियों पर टिका हुआ था। इन हलों को खीचने के लिए अधिक शक्ति की आवश्यकता थी, अतः इन्हें 6 (UPBoardSolutions.com) बैल या घोड़े खींचते थे।
  3. 20वीं शताब्दी के आगमन के साथ ही विशाल मैदानों के किसान अपने खेतों को तैयार करने के लिए ट्रैक्टरों तथा डिस्क हलों का प्रयोग करने लगे। इसके पश्चात् कृषि का पूरी तरह यंत्रीकरण हो गया।

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प्रश्न 11.
किस प्रकार अमेरिका में अप्रवासियों का पश्चिम की ओर प्रसार होने के कारण अमेरिकी इण्डियनों को पूरी तरह विनाश हो गया?
उत्तर:
सन् 1775 से 1783 ई0 तक अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम चला। संयुक्त राज्य अमेरिका के गठन के बाद पूर्वी तट से देखने पर अमेरिका पूरी तरह संभावनाओं से भरपूर दिखता था। 1783 ई० तक सात लाख के लगभग श्वेत पश्चिम की ओर दरों के रास्ते अपलेशियन पठारी क्षेत्र में जाकर बस चुके थे। अमेरिका में अप्रवासियों के पश्चिम की ओर प्रसार होने के कारण अमेरिकी इंडियनों का पूरी तरह विनाश हो गया जिन्हें पहले मिसीसिपी नदी के पार और बाद में और भी पश्चिम की ओर खदेड़ दिया गया।

उन्होंने वापसी के लिए संघर्ष किया किन्तु हरा दिए गए। बहुत-सी लड़ाइयाँ लड़ी गईं जिनमें इंडियन लोगों की हत्या किया गया। उनके गाँवों को जला दिया गया और पशुओं को मार डाला गया। | उन्होंने जंगल साफ करके बनाई गई जगहों पर लकड़ी के केबिन बना लिए। फिर उन्होंने बड़े क्षेत्र में जंगलों को साफ करके खेतों के चारों ओर बाड़े लगा दीं इसके बाद इस जमीन की जुताई की और इस जमीन पर उन्होंने मक्का और गेहूँ बो दिया।

प्रश्न 12.
निर्धन लोग बाड़बंद आंदोलन से किस प्रकार प्रभावित हुए?
उत्तर:
बाड़बंद आंदोलन निर्धन लोगों के लिए अभिशाप सिद्ध हुआ क्योंकि-

  1. गरीबों को जमीन से विस्थापित कर दिया गया।
  2. अब उन्हें प्रत्येक चीज को पाने के लिए उसका मूल्य चुकाना पड़ता था।
  3. उनके पारंपरिक अधिकार छीन लिए गए।
  4. उन्हें काम की खोज करनी पड़ी।
  5. गरीब अब न तो जंगल से जलावन की लकड़ी बटोर सकते थे और न ही साझा जमीन पर अपने पशुओं को चरा सकते थे।
  6. वे न तो सेब या कंद-मूल बीन सकते थे और न ही गोश्त के लिए छोटे जानवरों का शिकार कर सकते थे।

प्रश्न 13.
पाठ्य-पुस्तक की पृष्ठ संख्या 129 का ध्यानपूर्वक अवलोकन कीजिए तथा इस चित्र के विश्लेषण पर आधारित निम्न प्रश्नों का उत्तर दीजिए-
UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 6 किसान और काश्तकार
(क) उपर्युक्त चित्र में किस दृश्य को प्रदर्शित किया गया है?
(ख) चित्र में प्रदर्शित घटना कब घटी और इसके क्या कारण थे?
उत्तर:
(क) उपर्युक्त चित्र में काले रेतीले तूफान को दिखाया गया है। 1830 ई0 के दशक में दक्षिण अमेरिका के मैदानों में आने वाले रेतीले तूफानों को ‘काला तूफान’ कहते थे।
(ख) अमेरिका में गेहूं की खेती के लिए वनों का अंधाधुंध विनाश 1930 ई० के दशक में रेतीले तूफानों के लिए उत्तरदायी थे। 19वीं सदी की शुरुआत में महत्त्वाकांक्षी किसानों ने लापरवाही से जमीन के हर संभव हिस्से से सारी वनस्पति साफ कर डाली। ट्रैक्टरों की सहायता से इस जमीन की (UPBoardSolutions.com) मिट्टी को पलट डाला और मिट्टी को धूल में बदल दिया। परिणामतः 1930 के देशक में यह सारा क्षेत्र विशालकाय रेत के कटोरे में बदल गया था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
बाड़बंदी से क्या आशय है? 18वीं सदी में इंग्लैण्ड में जमीन की बाड़बंदी क्यों की गयी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में बाड़बंदी से 18वीं सदी में आशय उस भूमि से था जिसमें भूमि के एक टुकड़े को चारों ओर से बाड़ के माध्यम से घेरा गया हो और जिसके चारों ओर बाड़ लगाई गयी हो। ऐसा करने से एक की भूमि दूसरे से पृथक् हो जाती थी।
जमीन को अन्न के उत्पादन को बढ़ाने के लिए घेरा गया था ताकि इंग्लैण्ड की बढ़ती हुई जनसंख्या का भरण-पोषण किया जा सके जो कि 1750 और 1950 के बीच के समय में चार गुना बढ़कर 1750 में 70 लाख की जनसंख्या से बढ़कर 1850 में 2 करोड़ दस लाख एवं 1900 ई० में 3 करोड़ हो गई थी। इसने जनसंख्या का पेट भरने के लिए अनाज की माँग में वृद्धि कर दी।

ब्रिटेन में औद्योगीकरण के कारण शहरी जनसंख्या में वृद्धि हो गई। ग्रामीण क्षेत्रों से लोग काम की खोज में शहरों में प्रवास कर गए। जिंदा रहने के लिए उन्हें बाजार से अनाज खरीदना पड़ता था जिससे बाजारों का विस्तार हुआ और अंततः अनाज की कीमतें बढ़ गईं।
अठारहवीं सदी के अंत तक फ्रांस का इंग्लैण्ड के साथ युद्ध छिड़ चुका था। इसने यूरोप से आयात किए जाने वाले अनाज एवं व्यापार में व्यवधान डाला। अनाज के दाम बढ़ गए जिसने जमींदारों को बाड़बंदी के लिए प्रोत्साहित किया। लंबे समय के लिए जमीन में निवेश करने एवं भूमि की उर्वरता (UPBoardSolutions.com) को बनाए रखने के लिए अदल-बदल कर फसल बोने की योजना बनाने के लिए बाड़बंद करना जरूरी था। इसलिए संसद ने बाड़बंदी अधिनियम पारित किया।

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प्रश्न 2.
चीन के अफीम व्यापार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
18वीं सदी के अंत तक इंग्लैण्ड में चीन की चाय व रेशम की माँग में अत्यधिक वृद्धि हो गयी थी। इंग्लैण्ड की ईस्ट इंडिया कंपनी चीन से इन वस्तुओं को खरीदकर इंग्लैण्ड में बेचा करती थी। इंग्लैण्ड में चाय की लोकप्रियता बढ़ने के साथसाथ इंग्लैण्ड में इसकी माँग तेजी से बढ़ी। 1785 ई0 के आसपास इंग्लैण्ड में 1.5 करोड़ पौंड चाय का आयात किया जा रहा था।

1830 ई0 तक आते-आते यह आँकड़ा 3 करोड़ पौंड को पार कर चुका था। वास्तव में, इस समय तक ईस्ट इंडिया कंपनी के मुनाफे का एक बहुत बड़ा हिस्सा चाय के व्यापार से पैदा होने लगा था। ईस्ट इंडिया कंपनी की मुख्य समस्या यह थी कि उसके पास चाय के आयात के बदले (UPBoardSolutions.com) चीन को निर्यात करने के लिए कुछ नहीं था। अंग्रेजों को चीनी और चाय का मूल्य सोनेचाँदी में चुकाना पड़ता था। फलस्वरूप इंग्लैण्ड के सोने-चाँदी के भंडार समा; हो रहे थे। वे चाय के बदले में चीन को कोई चीज भेज कर अपने व्यापार को बनाए रखना चाहते थे। यह वस्तु अफीम के रूप में सामने आई।

चीन में सबसे पहले पुर्तगालियों ने अफीम भेजनी शुरू की थी। इसका प्रयोग मुख्यतः कुछ औषधियों में होता था। परंतु चीनी सरकार को भय था कि लोगों को धीरे-धीरे अफीम खाने की लत लग जाएगी। अतः चीनी सम्राट ने अफीम के उत्पादन तथा बिक्री पर रोक लगा दी थी। अब अंग्रेजों ने चीन में अफीम का अवैध व्यापार करने की योजना बनाई ताकि चाय पर खर्च होने वाली राशि को पूरा किया जा सके। अतः भारत में बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के पश्चात् अंग्रेजी सरकार ने वहाँ के किसानों को अफीम उगाने के लिए विवश किया। भारत में पैदा होने वाली अफीम को अंग्रेज अवैध रूप से चीन भेजने लगे।

पश्चिम के व्यापारी चीन के दक्षिण-पूर्वी बंदरगाहों पर अफीम लाते थे और वहाँ से स्थानीय एजेंटों के जरिए देश के आंतरिक हिस्सों में भेज देते थे। 1820 ई० के आस-पास अफीम के लगभग 10,000 क्रेट अवैध रूप से चीन में लाए जा रहे थे। 15 साल बाद गैरकानूनी ढंग से लाए जाने वाली इस अफीम की मात्रा 35,000 क्रेट का आँकड़ा पार कर चुकी थी। इस अवैध व्यापार के कारण शीघ्र ही चीनी जनता (UPBoardSolutions.com) अफीम की लत का शिकार होने लगी। चीन विश्व में अफीम का नशा करने वालों के देश के रूप में जाना जाने लगा। कैंटन शहर के निवासी एक अंग्रेज डॉक्टर के अनुसार चीन के लगभग 1 करोड़, 20 लाख लोगों को अफीम के नशे ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था।

प्रश्न 3.
संयुक्त राज्य अमेरिका में गेहूं के उत्पादन में तेजी से हुई वृद्धि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
19वीं सदी के अंत में संयुक्त राज्य अमेरिका के गेहूँ उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई तथा इसका वैश्विक निर्यात भी बढ़ा। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विश्व बाजार में तेजी आई। रूसी गेहूँ की आपूर्ति बंद कर दी गई और अमेरिका को यूरोप के गेहूँ की आपूर्ति करनी पड़ी। अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन ने किसानों को गेहूं का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। 1910 ई० में अमेरिका की 4.5 करोड़ एकड़ जमीन (UPBoardSolutions.com) पर गेहूं की खेती की जा रही थी। नौ वर्ष के बाद गेहूं उत्पाद का क्षेत्रफल लगभग 65 प्रतिशत से बढ़कर 7.4 करोड़ एकड़ हो गया था।

माँग बढ़ने के साथ गेहूँ के दामों में भी उछाल आ रहा था। इससे उत्साहित होकर किसान गेहूँ उगाने की तरफ झुकने लगे। रेलवे के प्रसार से खाद्यान्नों को गेहूँ उत्पादक क्षेत्रों से निर्यात के लिए पूर्वी तट पर ले जाना आसान हो गया था। अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन ने किसानों से वक्त की पुकार सुनने का आह्वान किया‘खूब गेहूं उपजाओ। गेहूँ ही हमें जंग जिताएगा।”

1910 ई0 में अमेरिका की 4.5 करोड़ एकड़ जमीन पर गेहूं की खेती की जा रही थी। नौ साल बाद 1919 ई. में गेहूँ। उत्पादन का क्षेत्रफल बढ़कर 7.4 करोड़ एकड़ यानी लगभग 65 प्रतिशत ज्यादा हो गया था। इसमें से ज्यादातर वृद्धि विशाल मैदानों (ग्रेट प्लेस) में हुई थी।

प्रश्न 4.
औपनिवेशिक सरकार द्वारा आरंभ की गयी पेशगी प्रणाली का निर्धन किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा।
उत्तर:
बंगाल और बिहार में निर्धन किसानों की बहुत बड़ी जनसंख्या थी जिनके पास रोटी-कपड़ा खरीदने तथा जमींदार को लगान देने के लिए पैसों की कमी थी। 1780 ई० से ऐसे किसानों को यह जानकारी प्राप्त हुई कि गाँव का मुखिया किसानों को अफीम की खेती के लिए अग्रिम धन (पेशगी) देता है। (UPBoardSolutions.com) जब किसानों को ऋण देने की पेशकश की गयी तो उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया क्योंकि इससे उनकी तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरी करने के बाद ऋण चुका पाने की आशा बलवती हो गयी।
किसानों के सामने प्रस्तुत पेशगी प्रणाली के निम्नलिखित परिणाम हुए-

  1. उसके पास इस जमीन पर कोई दूसरी फसल उगाने का विकल्प भी नहीं था और इस फसल को सरकारी एजेंट को छोड़कर कहीं और बेचने की आजादी भी नहीं थी।
  2. उसे उसकी फसल की कम कीमत स्वीकार करनी पड़ती थी।
  3. ऋण वास्तव में किसानों को मुखिया के बंधुआ और उसके जरिए सरकार का बंधुआ बना देते थे।
  4. ऋण लेने के बाद किसान को निर्धारित क्षेत्र में अफीम बोनी पड़ती थी और पूरी फसल को एजेंटों के हवाले करना पड़ता था।

प्रश्न 5.
‘कैप्टन स्विंग आन्दोलन’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कैप्टन स्विंग आन्दोलन – मजदूरों के बढ़ते असन्तोष ने धीरे-धीरे आंदोलन का रूप धारण कर लिया। शुरुआत में यह आन्दोलन रात में किसानों के बाड़ों तथा खलिहानों में आग लगाने तक सीमित था। ईस्ट कैण्ड के मजदूरों ने 28 अगस्त, 1830 ई0 को एक श्रेसिंग मशीन को तोड़ डाला। इस घटना के बाद इंग्लैण्ड के पूर्वी तथा दक्षिणी भागों में श्रेसिंग मशीनों को तोड़ने की घटनाएँ बढ़ने लगीं। इस आंदोलन में लगभग 387 श्रेसिंग मशीनों को तोड़ा गया। किसानों को धमकी भरे पत्र भेजे गए जिनमें उनसे कहा जाता था कि वे अपनी मशीनों को स्वयं ही तोड़ दें अन्यथा आंदोलनकारी उन्हें नष्ट कर देंगे। इन पत्रों पर प्रायः ‘कैप्टन स्विंग’ नामक व्यक्ति के हस्ताक्षर होते थे। आंदोलनकारियों के संभावित आक्रमण से बचने के लिए अनेक लोगों ने अपनी मशीनों को स्वयं ही तोड़ दिया।

आंदोलन का दमन-कैप्टन स्विंग आन्दोलन के बढ़ते प्रभाव से इंग्लैण्ड की सरकार चिंतित हो उठी। सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए सख्त कार्यवाही की। जिन लोगों पर भी सरकार को शक था उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तार किए गए लोगों में से 1976 लोगों पर मुकदमा (UPBoardSolutions.com) चलाया गया जिनमें से 9 लोगों को फाँसी दी गई, 505 लोगों को देश निकाला दिया गया तथा अन्य लोगों को कठोर सजाएँ दी गईं परंतु ‘कैप्टन स्विंग’ सदा सरकार के लिए एक रहस्य ही बना रहा।

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प्रश्न 6.
पश्चिमी अमेरिका में कृषि भूमि विस्तार और रेतीले तूफान का अन्तर्सम्बन्ध प्रकट कीजिए।
उत्तर:
कृषि भूमियों के विस्तार से पूर्व अमेरिका का अधिकांश भाग वनों एवं घास भूमियों से ढका हुआ था। मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इन वनों एवं घास भूमियों को साफ करके गेहूं के खेतों में बदल दिया। इन क्षेत्रों में गेहूँ। के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई जिसके कारण अमेरिका के विशाल मैदानों को ‘रोटी का कटोरा’ कहा जाने लगा। गेहूं की खेती का विस्तार 1930 ई0 के दशक में भयानक रेतीले तूफानों का कारण बना। अमेरिका के दक्षिणी मैदानों पर भयानक रेतीले तूफान आने लगे। इन्हें काले तूफान के नाम से (UPBoardSolutions.com) जाना जाने लगा। काले रेतीले तूफान 7,000 से 8,000 फुट ऊँचे होते थे। ये गंदे पानी की भीमकाय लहरों की तरह प्रकट होते थे। 1930 ई0 के दशक में ऐसे तूफान प्रतिदिन एवं प्रतिवर्ष आते थे।

जैसे ही आसमान में अंधेरा होता और रेत गिरता, रेत के कारण लोग अंधे हो जाते तथा उनका दम घुटने लगती। पशु दम घुटने के कारण मारे जाते, उनके फेफड़ों में रेत और कीचड़ भर जाता। रेत से खेतों की मेड़े (खेतों को एक-दूसरे खेत से अलग करने के लिए) गुम हो जातीं, खेत रेत से पट जाते तथा यह रेत नदी की सतह पर इस तरह जम जाती थी कि मछलियाँ साँस न ले पाने के कारण मर जाती थीं। मैदानों में चारों ओर पक्षियों और पशुओं की हड्डयाँ बिखरी दिखाई देती थीं। ट्रैक्टर और मशीनें अब रेत के ढेरों में फंस कर (UPBoardSolutions.com) इतने बेकार हो गए थे कि उनकी मरम्मत भी नहीं की जा सकती थी। वर्षा में प्रतिवर्ष कमी होती गयी और लोगों को सूखे का सामना करना पड़ा। इस तरह रोटी का कटोरा शीघ्र ही धूल के कटोरे में परिवर्तित हो गया।

ये समस्त मौसमी परिवर्तन वनस्पति आवरण के समाप्त होने का परिणाम थे। किसानों ने अधिक-से-अधिक कृषि-क्षेत्र प्राप्त करने के लालच में वनस्पति के आवरण को बुरी तरह नष्ट कर दिया था। मिट्टी को उलट-पुलट दिया गया था और उसमें फैंसी घास को जड़ों से उखाड़ दिया गया था।

प्रश्न 7.
इंग्लैण्ड में कृषि क्षेत्र में घटित प्रमुख परिवर्तनों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में कृषि क्षेत्र में घटित प्रमुख परिवर्तन इस प्रकार हैं-
(1) कृषि क्षेत्र में नवीन तकनीक का प्रयोग – निजी भूमियों की बाड़ाबंदी ने उनके विस्तार की भावना को भी प्रोत्साहित किया। किसान अपनी भूमियों को अधिक-से-अधिक बढ़ाना चाहते थे। इसका अन्य क्रारण यह भी था कि इस काल में जनसंख्या में वृद्धि के कारण गेहूँ की माँग भी तेजी से बढ़ रही थी। खेतों के आकार में वृद्धि के कारण मजदूरों की आवश्यकता भी बढ़ी। मजदूरों की कमी को दूर करने के लिए उन्होंने नई-नई मशीनों का कृषि में उपयोग करना आरंभ कर दिया। इन मशीनों में ट्रैक्टरों तथा श्रेसिंग मशीनों की उल्लेखनीय भूमिका थी।

पहले गेहूं की खेती को काटने तथा उससे गेहूँ निकालने में बड़ी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता होती थी परंतु श्रेसिंग मशीनों के उपयोग ने मजदूरों की कमी की इस समस्या को दूर कर दिया। इन मशीनों के उपयोग से जहाँ किसान ज्यादा-से-ज्यादा भूमि पर खेती करने में सफल हुए वहीं (UPBoardSolutions.com) मजदूरों के रोजगार में कमी हुई। गरीब और मजदूर लोग काम की तलाश में गाँव-गाँव भटकने लगे। अनेक ीग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने लगे जबकि कुछ लोगों ने मशीनों के उपयोग के विरुद्ध आवाज उठानी आरंभ कर दी।

(2) सरल उर्वरक तकनीकों का प्रयोग – इंग्लैण्ड में खेतों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए 19वीं सदी के मध्य तक शलजम तथा तिपतिया घास की कृषि की जाती थी। कृषि कार्य हेतु खेतों को निरंतर उपयोग में लाने से उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ती थी, इसीलिए भूमि नाइट्रोजन और उर्वरता बढ़ाने के लिए शलजम व तिपतिया घास का उपयोग किया गया। पशु भी इन्हें रुचिपूर्वक खाते थे। इस तरह किसानों को दोहरा लाभ होता था। एक ओर भूमि की उर्वरता बढ़ती साथ ही पशुओं को भी पोषण ५ मिलता था। बाड़ाबंदी आन्दोलन के उपरान्त किसान अपनी निजी भूमियों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए आसान तरीकों का इस्तेमाल करने लगे।

(3) कृषि का प्रारंभिक स्वरूप – 18वीं सदी के मध्य तक इंग्लैण्ड में कृषि का मूल स्वरूप पूर्ववत् बना रहा। भूमि पर भूस्वामियों का निजी स्वामित्व नहीं था और न ही खेतों की बाड़ाबंदी की गयी थी। किसान अपने गाँव के आसपास की जमीन पर फसल उगाते थे। साल की शुरुआत में एक सभा बुलाई जाती थी जिसमें गाँव के हर व्यक्ति को जमीन के टुकड़े आबंटित कर दिए जाते थे। जमीन के ये टुकड़े (UPBoardSolutions.com) समान रूप से उपजाऊ नहीं होते थे और कई जगह बिखरे होते थे। कोशिश यह होती थी कि हर किसान को अच्छी और खराब, दोनों तरह की जमीन मिले।

खेती की इस जमीन के परे साझा जमीन होती थी। इस साझा जमीन पर सभी गाँव वालों का हक होता था। यहाँ वे अपने पशु चराते थे, जलावन की लकड़ियाँ और कंदमूल फल आदि । इकट्ठा करते थे। यह साझा भूमि गरीब व्यक्तियों की अनेक प्रकार से सहायता करती थी। किसी प्राकृतिक संकट के कारण फसल न होने की स्थिति में भी यह भूमि उन्हें तथा उनके पशुओं को जीवित रखने में सहायक होती थी।

(4) बाड़ाबंदी – इंग्लैण्ड के कुछ भागों में साझी भूमि की इस परंपरा में 16वीं सदी के उत्तरार्द्ध में परिवर्तन आरंभ हो । गए। इसे काल में विश्व बाजार में ऊन की माँग में वृद्धि आरंभ हुई जिससे उसकी कीमतें बहुत तेजी से बढ़ीं। ऊन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए भेड़ों की गुणवत्ता में सुधार, उचित सफाई व्यवस्था तथा अच्छे चारे की आवश्यकता पर बल दिया जाने लगा। इन्हीं मूलभूत कारणों ने किसानों को निजी खेतों एवं चरागाहों की स्थापना के लिए प्रेरित किया।

किसानों ने साझी भूमि की संकल्पना को त्यागकर साझा भूमि को काट-छाँट कर घेरना आरंभ कर दिया और इस निजी भूमि को चारों ओर से बाड़ लगाकर सुरक्षित करने लगे। इस व्यवस्था को ‘बाड़ाबंदी’ के नाम से जाना जाता है। 1750 ई० के बाद खेतों के चारों ओर बाड़ लगाने की यह परंपरा बहुत तेजी से इंग्लैण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में फैलने लगी जिसके कारण इसे ‘बाड़ाबंदी आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। 1750 ई0 से 1850 ई० के मध्य लगभग 60 लाख एकड़ भूमि पर बाड़े लगाई गईं।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

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( मासिक आन्तरिक मूल्यांकन एवं प्रोजेक्ट कार्य )

शिक्षार्थी भारत के गीत, नृत्य, पर्व और निश्चित मौसम में प्रमुख प्रकार के भोजन की पहचान, साथ ही क्या एक क्षेत्र की दूसरे क्षेत्र से कुछ समानता है? इसकी पहचान करें। शिक्षार्थी द्वारा अपने विद्यालय क्षेत्र के आस-पास की वनस्पति एवं पशुजगत से पदार्थों/सूचनाओं को एकत्र करना। इसमें उन (UPBoardSolutions.com) प्रजातियों की सूची बनाना, जिनका अस्तित्व खतरे में है एवं उनको सुरक्षित करने से सम्बन्धित प्रयासों की सूचना सूचीबद्ध करना।

पोस्टर

नदी-प्रदूषण।
वनों का क्षरण एवं पारिस्थितिकीय असंतुलन।
नोट-कोई समान गतिविधि भी चुनी जा सकती है।

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प्रोजेक्ट कार्य-1

विषय – भारत के राष्ट्रीय गीत एवं राष्ट्रगान का राष्ट्र-प्रेम बढ़ाने में योगदान। )
उद्देश्य – राष्ट्र-गीत और राष्ट्र-गान का उद्देश्य देशवासियों को देश के प्रति सम्मान, एकता, समर्पण के लिए तैयार करना राष्ट्रगान भारत के राष्ट्रीय गान के रचयिता विश्व (UPBoardSolutions.com) कवि रवीन्द्र नाथ ठाकुर हैं। यह गान 52 सेकेण्ड में गाया जाता है और जब तक गाया जाये सभी को सावधान की स्थिति में खड़े रहना चाहिये। यह राष्ट्रगान निम्न प्रकार है

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राष्ट्रीय गीत

बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित ‘वन्दे मातरम्’ हमारा राष्ट्रीय गीत है जिसे ‘जन-गण-मन’ के समान ही राष्ट्रीयगान का दर्जा प्राप्त है। इसका प्रथम पद निम्न प्रकार है

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निष्कर्ष- इस प्रोजेक्ट में राष्ट्रगान के अंतर्गत् भारत के विशाल भू-भाग, विभिन्न जातियों, प्रदेशों, नदियों का वर्णन किया गया है जबकि राष्ट्रीय गीत में भारत माता का मनोरम वर्णन किया गया है।

प्रोजेक्ट कार्य-2

विषय – देशभक्ति के गीत का राष्ट्र-प्रेम बढ़ाने में भूमिका।
उद्देश्य – देशभक्ति का गीत देशवासियों में देश-प्रेम व देश की एकता-अखण्डता को बनाए रखने की ऊर्जा का संचार करता है।

देशभक्ति गीत

सप्ताह में कम-से-कम दो बार प्रसिद्ध शायर इकबाल का निम्नलिखित गीत सामूहिक प्रार्थना-सभा में छात्रों द्वारा मिलकर गाया जाना चाहिये

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निष्कर्ष- किसी भी व्यक्ति के लिए उसका देश सर्वोपरि स्थान रखता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर मुहम्मद इकबाल ने भारत के प्रति अपने प्रेम को प्रदर्शित करने वाली ये कविता लिखी थी।

प्रोजेक्ट कार्य-3

विषय – भारत के प्रमुख लोक-नृत्यों का वर्णन कीजिए।
उद्देश्य – देश के विभिन्न भागों की संस्कृति की जानकारी हासिल करना।

भारत के लोक-नृत्य भारत के लोक-नृत्य निम्नलिखित हैं

  1. कालबेलिया-राजस्थान की कालेबिया जनजाति की महिलाओं का लोक-नृत्य है।
  2. बिदेशिया-भिखारी ठाकुर द्वारा रचित यह लोक-नृत्य उत्तर प्रदेश तथा बिहार के भोजपुरी समाज में प्रचलित है।
  3.  छऊ-बिहार, पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा (ओडिशा) के आदिवासियों द्वारा किये जाने वाला एक युद्धनृत्य है जो प्रमुखतः पुरुषों द्वारा किया जाता है।
  4. भांगड़ा-पंजाब का यह उत्साह भरा लोक-नृत्य मुख्यतः पुरुषों द्वारा ढोल की ताल-लय पर किया जाता है।
  5. गरबा-गुजरात में नवरात्रि के पर्व पर किये जाने वाला यह लोक-नृत्य मिट्टी के घड़े के ऊपर दीपक रखकर उसके चारों ओर घेरा बनाकर किया जाता है। (UPBoardSolutions.com) महिलाओं के सिर पर मिट्टी के पात्र में दीपक भी रखा जाता है।
  6. बिहु-असम का यह लोक-नृत्य कचारी तथा कछारी जनजातियों में प्रचलित है और वर्ष में तीन बार आयोजित किया जाता है।
  7.  घूमर-राजस्थान में महिलाओं द्वारा होली तथा नवरात्रि में किये जाने वाला विशिष्ट लोक-नृत्य है।
  8. रउफ-जम्मू-कश्मीर के इस ग्रामीण लोक-नृत्य में महिलाएँ पंक्तियों में एक-दूसरे के सामने खड़े होकर तथा गले में बाँहें डालकर नृत्य करती हैं।

निष्कर्ष- भारत के अलग-अलग भागों में उन भागों की सांस्कृतिक विशेषता के अनुरूप नृत्यों का प्रचलन है। इन नृत्यों की शैली में हमें पर्याप्त भिन्नता देखने को मिलती है। इन नृत्यों के माध्यम से हमें लोक-संस्कृति को समझने में सहायता मिलती है तथा हम अपनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से भी जुड़े रहते हैं।

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प्रोजेक्ट कार्य-4

विषय- प्रकाश पर्व दीपावली की उपयोगिता।
उद्देश्य- इस पर्व का प्रमुख निहितार्थ क्या है?

दीपावली का त्यौहार भगवान राम के 14 वर्ष का वनवास काटकर अपने राज्य अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। राम के वापस लौटने पर अयोध्यावासियों ने दीपावली मनाई थी। दीपावली को प्रकाश-उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस अवसर पर लक्ष्मी जी घर आती हैं। भगवान राम ने असुरों के राजा रावण को मारकर लोगों की असुरों से रक्षा (UPBoardSolutions.com) की थी। इसे बुराई पर अच्छाई का, असत्य पर सत्य की जीत भी कहते हैं। इस अवसर पर घर-द्वार आदि की सफाई की जाती है। ऐसा विश्वास है कि स्वच्छता रखने से घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है। दीपावली के दिन सूर्यास्त के बाद धन की देवी लक्ष्मी और बुद्धि के देवता गणेश की विशेष रूप से पूजा की जाती है।

निष्कर्ष- यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय और धन की देवी लक्ष्मी के आगमन की कामना के साथ मनाई जाती है।

प्रोजेक्ट कार्य-5

विषय-मकर संक्रान्ति के धार्मिक और भौगोलिक महत्त्व को ज्ञात कीजिए।
उद्देश्य-इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य बच्चों को इस पर्व के धार्मिक एवं भौगोलिक महत्त्व को स्पष्ट करना है।

मकर संक्रान्ति हिन्दू धर्म के प्रमुख त्यौहारों में शामिल है। यह त्यौहार सूर्य के उत्तरायण होने पर मनाया जाता है। प्रायः यह त्यौहार प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन कभी-कभार यह 13 और 15 जनवरी को भी मनाया जाती है। मकर संक्रान्ति का सीधा सम्बन्ध पृथ्वी और सूर्य की स्थिति से है। जब सूर्य मकर रेखा पर आता है तब मकर संक्रान्ति मनायी जाती है। ज्योतिष की दृष्टि से इस दिन (UPBoardSolutions.com) सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है और सूर्य के उत्तरायण की गति आरंभ होती है।

भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में मकर संक्रान्ति के पर्व को अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रान्ति कहा जाता है और तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है, वहीं असम (असोम) में इसे बिहू के रूप में मनाया जाता है। इस तरह देश के प्रत्येक प्रांत में इसे मनाने का तरीका अलग-अलग है।
इस पर्व के पकवान भी अलग-अलग होते हैं, किन्तु दाल और चावल की खिचड़ी इस पर्व की पहचान बन गयी है। इसके अतिरिक्त तिल व गुड़ का भी इस मकर संक्रान्ति में विशेष महत्त्व है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दान आदि देते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए गए दान से सूर्य देवता प्रसन्न होते हैं। इस अवसर पर पतंग उड़ाने की परंपरा रही है।

निष्कर्ष- मकर संक्रान्ति से दिन की अवधि बढ़ने लगती है। यह शीत ऋतु के क्रमिक समापन का आरंभ है। क्रमशः मौसम गर्म होता चला जाता है क्योंकि उत्तरायण होना शुरू हो जाता है। इस अवसर पर लोगों के खान-पान में भी परिवर्तन आता है।

प्रोजेक्ट कार्य-6

विषय-हम होली क्यों मनाते हैं, स्पष्ट कीजिए।
उद्देश्य-होली के त्योहार से हमें क्या सीख मिलती है? इसे ज्ञात कीजिए।

बहुत साल पहले हिरण्यकश्यप नाम के दुष्ट भाई की एक दुष्ट बहन होलिका थी, जो अपने भाई के पुत्र प्रहलाद को अपनी गोद में बैठाकर जलाना चाहती थी। प्रहलाद भगवान विष्णु के भक्त थे जिन्होंने होलिका की आग से प्रहलाद को बचाया। होलिका उस आग में जलकर मर गयी। तभी से हिन्दू धर्म के लोग बुरी शक्तियों पर अच्छाई की जीत के रूप में होली का त्योहार हर्षोल्लासपूर्वक मनाते हैं। रंगों के इस उत्सव (UPBoardSolutions.com) में लोग एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाते हैं। प्रतिवर्ष यह त्योहार चैत्र महीने के पहले दिन मनाया जाता है। होली का यह उत्सव फाल्गुन मास के अंतिम दिन होलिका दहन की शाम से शुरू होता है।

निष्कर्ष- होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इससे यह सन्देश मिलता है कि सत्य की हमेशा जीत होती है। बुरी शक्तियाँ कुछ समय के लिए हमें भले ही सबल लगें किन्तु अंततः उनकी पराजय होती है।

प्रोजेक्ट कार्य-7

विषय- निश्चित मौसम के अनुसार भोजन की पहचान कीजिए।
उद्देश्य- इससे हमें यह ज्ञात होगा कि खाद्य-पदार्थों का मौसम के अनुरूप सेवन व्यक्ति को किस प्रकार स्वस्थ रखता है।

प्रायः भारतीय व्यंजन में चावल, दाल, रोटी, सब्जी सामान्य रूप से प्रचलित है, किन्तु फिर यदि हम मौसम के अनुरूप देखें तो सर्दी के मौसम में हमें हल्दी, अनार, तिल, दालचीनी, गाजर, हरी मिर्च, मीट-अण्डा-चिकन-मछली, शहद, खट्टे फल, बादाम, लहसुन, लौंग, प्याज, ड्राई फूट, मूंगफली, अमरूद, बाजरा, मेथी का साग, गुड़ आदि का सेवन करना चाहिए। इसके साथ मसालेदार और गरिष्ठ भोजन सर्दियों में (UPBoardSolutions.com) सरलता से पच जाता है।

गर्मी का मौसम आते ही कई तरह की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें जैसे-डिहाडेशन, भूख न लगना, अत्यधिक पसीना आना आदि शुरू हो जाती है। इस कारण गर्मियों के मौसम में अपने आपको सन-स्ट्रोक (लू) से बचाना व शरीर के तापमान को नियंत्रित रखना एक चुनौती होती है। शरीर में नमी के स्तर को बनाए रखने के लिए हमें अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए। गर्मी में हमें दही सेवन करना चाहिए। इसके अलावा खीरा, तरबूज, नारियल पानी, गन्ने का रस, फालूदा, लौकी, करेला, तोरी, कद्द, टिंडा, परमल, भिंडी, चौलाई का सेवन करना लाभकारी होता है। गर्मियों में मसालों का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। तैलीय पदार्थों का भी सेवन कम-से-कम (UPBoardSolutions.com) करना चाहिए क्योंकि अधिक तैलीय पदार्थ का सेवन शरीर में गर्मी पैदा करता है और कई तरह की शारीरिक समस्यायें उत्पन्न होती हैं। गर्मियों में जंक-फूड के सेवन से फूड-प्वाइजनिंग का खतरा रहता है अतः इससे बचना चाहिए। चाय और काफी का भी गर्मियों में सेवन कम करना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति शरीर में गर्मी अनुभव करता है। पपीता, अनन्नास जैसे गर्म फलों का सेवन गर्मी में नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष- उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सर्दी के मौसम में ऐसे फल या भोजन लेने की सलाह दी जाती है जो शरीर को गर्म रखे जबकि गर्मी में अधिक पानी वाले फल तथा (UPBoardSolutions.com) शीतल तासीर वाले भोजन को करने की सलाह दी जाती

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प्रोजेक्ट कार्य-8

विषय-एक क्षेत्र के भोजन की दूसरे क्षेत्र के भोजन से समानता ज्ञात कीजिए।
उद्देश्य-विभिन्न क्षेत्रों की भोजन सम्बन्धी आदतों को ज्ञात करना और उसमें अंतर करना।

उत्तर भारत का खाना विश्व भर में प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में दम-आलू, रोगन-जोश, आलू-पराठा, खीर, सरसों का साग, पराठा, फालुदा, लस्सी, छाछ, हलवा-पुरी, तंदूरी चिकन, चिकन रसा, चिकन मसाला, मटन मसाला, मटन रोस्ट, चिकन टिक्का, कबाब बिरयानी, मशरूम की सब्जी, दाल-मखानी, राजमा, छोले, कढ़ी, पकौड़ा, शाही-पनीर, खोया पनीर, फिरिनी, जलेबी, मालपुआ, समोसे आदि उत्तर (UPBoardSolutions.com) भारत में प्रचलित प्रमुख आहार व्यंजन हैं। दक्षिण भारत में प्रचलित भोजनों में पेरुगु पुरी, इडली, डोसा, सांभर, पोंगल, चावल, नारियल, इमली, मीन कोजहमनु, पोलि, इड्डीअपम, रस्म, पारुपु डोसा, पुटू, आपम, इडी आपम, अवीयल, पेड़ी, चिकन स्टू, पायसम, सादया, पेरूगु पुरी, पाचहि पुलुसु, बदाम हलवा, बिरयानी आदि दक्षिण भारत के प्रमुख व्यंजन हैं।

निष्कर्ष- उत्तर और दक्षिण भारतीय भोजन में समानता यह है कि दोनों क्षेत्रों में शाकाहारी और मांसाहारी व्यंजन प्रचलित हैं। क्षेत्रवार अंतर भी है जैसे-उत्तर भारत में चावल और गेहूं दोनों पर्याप्त मात्रा में पैदा होते हैं अतः उत्तर भारतीय खाद्य पदार्थों में गेहूं और चावल दोनों से बने भोज्य पदार्थ पाए जाते हैं जबकि दक्षिण भारत में चावल का उत्पादन अधिक होने से चावल से बने भोज्य पदार्थों की बहुलता है। ऐसे में यदि नामों के अंतर को छोड़ दिया जाए | तो उत्तर और दक्षिण भारत के भोजन में काफी हद तक समानता है।

प्रोजेक्ट कार्य-9

विषय-विद्यार्थी द्वारा अपने विद्यालय क्षेत्र के आस-पास की वनस्पति एवं पशु जगत के पदार्थों/सूचनाओं को एकत्र करना।
उद्देश्य-इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य विद्यार्थी को अपने पर्यावरण, वनस्पति एवं पशु सम्बन्धी ज्ञान को परखना है।

मेरा विद्यालय ग्रामीण अंचल में स्थित है। विद्यालय के चतुर्दिक प्रकृति की मनोरम छटा विद्यमान है। विद्यालय परिसर और उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में आम, जामुन, इमली, पपीता, नीम, पीपल, बरगद, शीशम, सागौन आदि के वृक्ष हैं।
हमारे परिवेश में मानव अधिवास वाले क्षेत्र में गाय, बैल, घोड़े, गधे, बकरी, सुअर, कुत्ते, बिल्ली, भैंस, नीलगाय, सियार, भेड़िया, लोमड़ी, खरगोश आदि पाए जाते हैं। हिंसक वन्य (UPBoardSolutions.com) जीव हमारे क्षेत्र में इसलिए नहीं पाए जाते क्योंकि इस क्षेत्र में वनों को अभाव है। वृक्षों एवं पशुओं का संरक्षण पर्यावरण को सन्तुलित बनाए रखने के लिए आवश्यक है। अतः हमें अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए तथा उसमें भी फलदार वृक्ष अधिक लगाने चाहिए जिससे हमें आवश्यकता अनुसार लकड़ी एवं साथ-ही-साथ फल भी प्राप्त होंगे।

निष्कर्ष-विद्यार्थी को अपने पर्यावरण के प्रति जागरूक रहना चाहिए। उसे अपने आसपास पाए जाने वाली वनस्पतियों और पशु जगत का यथासंभव संरक्षण का प्रयास करना चाहिए। वनस्पतियाँ जहाँ हमारे भरण-पोषण के काम आती। हैं तथा इससे लकड़ियाँ भी प्राप्त होती हैं वहीं पालतू पशुओं से हमें दूध, मांस तथा खाल प्राप्त होती है।

प्रोजेक्ट कार्य-10

विषय-ऐसी जैव और वनस्पतियों की सूची बनाना जिनका अस्तित्व खतरे में है।
उद्देश्य-विलुप्ति की कगार पर खड़ी प्रजातियों के विलुप्ति के कारण जानना और उनके संरक्षण का प्रयास करना।

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

निष्कर्ष- लुप्तप्राय वनस्पतियों एवं पशुओं की सूची बनाने से हमें यह ज्ञात होगा कि बदलते पर्यावरण एवं मानवीय क्रियाकलापों का वनस्पति एवं पशु-जगत के अस्तित्व पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। कोई भी प्रजाति तभी विलुप्त होती है जब जीवन या अस्तित्व सम्बन्धी परिस्थितियाँ उसके विपरीत हो जाती हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 4 वन्य-समाज और उपनिवेशवाद

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 4 वन्य-समाज और उपनिवेशवाद

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर 

प्रश्न-1.
औपनिवेशिक काल के वन प्रबंधन में आए परिवर्तनों ने इन समूहों को कैसे प्रभावित किया :

  1. झूम खेती करने वालों को।
  2. घुमन्तू और घरवाही समुदायों को।
  3. लकड़ी और वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को।
  4. बागान मालिकों को।
  5. शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों को।

उत्तर:
(1) झूम खेती करने वालों को झूम कृषि पद्धति में वनों के कुछ भागों को बारी-बारी से काटा जाता है और जलाया जाता था। मानसून की पहली बारिश के बाद इस राख में बीज बो दिए जाते हैं और अक्टूबर-नवम्बर तक फसल काटी जाती है। इन खेतों पर दो-एक वर्ष कृषि करने के बाद इन भूखण्डों को 12 से 18 वर्ष के लिए परती छोड़ दिया जाता था। इन भूखण्डों में मिश्रित फसलें उगायी जाती थीं जैसे मध्य भारत और अफ्रीका में ज्वार-बाजरा, ब्राजील में कसावा और लैटिन अमेरिका के अन्य भागों में मक्का व फलियाँ।

औपनिवेशिक काल में यूरोपीय वन रक्षकों की नजर में यह तरीका वनों के लिए नुकसानदेह था। उन्होंने महसूस किया कि जहाँ कुछेक सालों के अंतर पर खेती की जा रही हो ऐसी जमीन पर रेलवे के लिए इमारती लकड़ी वाले पेड़ नहीं उगाए जा सकते। साथ ही, वनों को जलाते समय बाकी बेशकीमती पेड़ों के भी फैलती लपटों की चपेट में आ जाने का खतरा बना रहता है। झूम खेती के कारण सरकार के लिए लगान (UPBoardSolutions.com) का हिसाब रखना भी मुश्किल था। इसलिए सरकार ने झूम खेती पर रोक लगाने का फैसला किया। इसके परिणामस्वरूप अनेक समुदायों को जंगलों में उनके घरों से जबरन विस्थापित कर दिया गया। कुछ को अपना पेशा बदलना पड़ा तो कुछ और ने छोटे-बड़े विद्रोहों के जरिए प्रतिरोध किया।

(2) घुमंतू और चरवाहा समुदायों को उनके दैनिक जीवन पर नए वन कानूनों का बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। वन प्रबंधन द्वारा लाए गए बदलावों के कारण नोमड एवं चरवाहा समुदाय के लोग वनों में पशु नहीं चरा सकते थे, कंदमूल व फल एकत्र नहीं कर सकते थे और शिकार तथा मछली नहीं पकड़ सकते थे। यह सब गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। इसके फलस्वरूप उन्हें लकड़ी चोरी करने को मजबूर होना पड़ता और यदि पकड़े जाते तो उन्हें वन रक्षकों को घूस देनी पड़ती। इनमें से कुछ समुदायों को अपराधी कबीले भी कहा जाता था।

(3) लकड़ी और वन-उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को-19वीं सदी की शुरुआत में इंग्लैण्ड के बलूत वन लुप्त होने लगे थे जिससे शाही नौ सेना के लिए लकड़ी की आपूर्ति में कमी आयी। 1820 ई. तक अंग्रेज खोजी दस्ते भारत की वन संपदा का अन्वेषण करने के लिए भेजे गए। एक दशक के भीतर बड़ी संख्या में पेड़ों को काट डाला गया और अत्यधिक मात्रा में भारत से लकड़ी का निर्यात किया (UPBoardSolutions.com) गया। लकड़ी निर्यात व्यापार पूरी तरह से सरकारी अधिनियम के अंतर्गत संचालित किया जाता था। ब्रिटिश प्रशासन ने यूरोपीय कंपनियों को विशेष अधिकार दिए कि वे ही कुछ निश्चित क्षेत्रों में वन्य उत्पादों में व्यापार कर सकेंगे। लकड़ी/वन्य उत्पादों का व्यापार करने वाली कुछ कंपनियों के लिए फायदेमंद साबित हुआ। वे अपने फायदे के लिए अंधाधुंध वन काटने में लग गए।

(4) बागान मालिकों को भारत में औपनिवेशिक काल में लागू की गयी विभिन्न वन नीतियों का बागान मालिकों पर उचित प्रभाव पड़ा। इस काल में वैज्ञानिक वानिकी के नाम पर बड़े पैमाने पर जंगलों को साफ करके उस पर बागानी कृषि आरंभ की गयी। इन बागानों के मालिक अंग्रेज होते थे, जो भारत में चाय, कहवा, रबड़ आदि के बागानों को लगाते थे। इन बागानों में श्रमिकों की पूर्ति प्रायः वन क्षेत्रों को काटने से बेरोजगार हुए वन निवासियों द्वारा की जाती थी। बागान के मालिकों ने मजदूरों को लंबे समय तक और वह भी कम मजदूरी पर काम करवा कर बहुत लाभ कमाया। नए वन्य कानूनों के कारण मजदूर इसका विरोध भी नहीं कर सकते थे क्योंकि यही उनकी आजीविका कमाने का एकमात्र जरिया था।

(5) शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज अफसरों को औपनिवेशिक भारत में बनाए गए वन कानूनों ने वनवासियों के जीवन पर व्यापक प्रभाव डाला। पहले जंगल के निकटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोग हिरन, तीतर जैसे छोटे-मोटे शिकार करके अपना जीवन यापन करते थे। किन्तु शिकार की यह प्रथा अब गैर कानूनी हो गयी थी। शिकार करते हुए पकड़े जाने पर अवैध शिकार करने वालों को दण्डित किया जाने लगा। (UPBoardSolutions.com) जहाँ एक ओर वन कानूनों ने लोगों को शिकार के परंपरागत अधिकार से वंचित किया, वहीं बड़े जानवरों का आखेट एक खेल बन गया। औपनिवेशिक शासन के दौरान शिकार का चलन इस पैमाने तक बढ़ा कि कई प्रजातियाँ लगभग पूरी तरह लुप्त हो गईं। अंग्रेजों की नजर में बड़े जानवर जंगली, बर्बर और आदि समाज के प्रतीक-चिह्न थे।

उनका मानना था कि खतरनाक जानवरों को मार कर वे हिंदुस्तान को सभ्य बनाएँगे। बाघ, भेड़िए और दूसरे बड़े जानवरों के शिकार पर यह कह कर इनाम दिए गए कि इनसे किसानों को खतरा है। 1875 से 1925 ई० के बीच इनाम के लालच में 80,000 से ज्यादा बाघ, 1,50,000 तेंदुए और 2,00,000 भेड़िये मार गिराए गए। धीरे-धीरे बाघ के शिकार को एक खेल की ट्रॉफी के रूप में देखा जाने लगा। अकेले जॉर्ज यूल नामक अंग्रेज अफसर ने 400 बाघों की हत्या ? की थी। प्रारंभ में वन के कुछ इलाके शिकार के लिए ही आरक्षित थे। सरगुजा के महाराज ने सन् 1957 तक अकेले ही 1,157 बाघों और 2,000 तेंदुओं का शिकार किया था।

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प्रश्न 2.
बस्तर और जावा के औपनिवेशिक वन प्रबन्धन में क्या समानताएँ हैं?
उत्तर:
बस्तर में वन प्रबन्धन का उत्तरदायित्व अंग्रेजों के और जावा में डचों के हाथ में था। लेकिन अंग्रेज व डच दोनों सरकारों के उद्देश्य समान थे।
दोनों ही सरकारें अपनी जरूरतों के लिए लकड़ी चाहती थीं और उन्होंने अपने एकाधिकार के लिए काम किया। दोनों ने ही ग्रामीणों को घुमंतू खेती करने से रोका। दोनों ही (UPBoardSolutions.com) औपनिवेशिक सरकारों ने स्थानीय समुदायों को विस्थापित करके वन्य उत्पादों का पूर्ण उपयोग कर उनको पारंपरिक आजीविका कमाने से रोका।

बस्तर के लोगों को आरक्षित वनों में इस शर्त पर रहने दिया या कि वे लकड़ी का काम करने वाली कंपनियों के लिए काम मुफ्त में किया करेंगे। इसी प्रकार के काम की माँग जावा में बेल्डाँगडिएन्स्टेन प्रणाली के अंतर्गत पेड़ काटने और लकड़ी ढोने के लिए ग्रामीणों से की गई। जब दोनों स्थानों पर जंगली समुदायों को अपनी जमीन छोड़नी पड़ी तो विद्रोह हुआ जिन्हें अंततः कुचल दिया गया। जिस प्रकार 1770 ई० में आवा में कलंग विद्रोह को दबा दिया गया उसी प्रकार 1910 ई० में बस्तर का विद्रोह भी अंग्रेजों द्वारा कुचल दिया गया।

प्रश्न 3.
सन् 1880 से 1920 ई0 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के वनाच्छादित क्षेत्र में 97 लाख हेक्टेयर की गिरावट आयी। पहले के 10.86 करोड़ हेक्टेयर से घटकर यह क्षेत्र 9.89 (UPBoardSolutions.com) करोड़ हेक्टेयर रह गया था। इस गिरावट में निम्नलिखित कारकों की भूमिका बताएँ-

  1. रेलवे
  2. जहाज निर्माण
  3. कृषि-विस्तार
  4. व्यावसायिक खेती
  5. चाय-कॉफी के बागान
  6. आदिवासी और किसान

उत्तर:
(1) रेलवे – 1850 ई0 के दशक में रेल लाइनों के प्रसार ने लकड़ी के लिए एक नयी माँग को जन्म दिया। शाही सेना के आवागमन तथा औपनिवेशिक व्यापार हेतु रेलवे लाइनों की अनिवार्यता अनुभव की गयी। रेल इंजनों को चलाने के लिए ईंधन के तौर पर और रेल की पटरियों को जोड़े रखने के लिए स्लीपरों के रूप में लकड़ी की बड़े पैमाने पर आवश्यकता थी। एक मील लम्बी रेल की पटरी के लिए 1760 से 2000 स्लीपरों की आवश्यकता पड़ती थी। भारत में 1860 ई0 के दशक में रेल लाइनों का जाल तेजी से (UPBoardSolutions.com) फैला। जैसे-जैसे रेलवे पटरियों का भारत में विस्तार हुआ, अधिकाधिक मात्रा में पेड़ काटे गए। 1850 ई0 के दशक में अकेले मद्रास प्रेसीडेंसी में स्लीपरों के लिए 35,000 पेड़ सालाना काटे जाते थे। आवश्यक संख्या में आपूर्ति के लिए सरकार ने निजी ठेके दिए। इन ठेकेदारों ने बिना सोचे-समझे पेड़ काटना शुरू कर दिया और रेल लाइनों के इर्द-गिर्द जंगल तेजी से गायब होने लगे।

(2) जहाज निर्माण – 19वीं सदी के प्रारंभ तक इग्लैण्ड में बलूत के जंगल समाप्त होने लगे थे। इससे इग्लैण्ड की शाही जलसेना के लिए लकड़ी की आपूर्ति की समस्या उत्पन्न हो गयी क्योंकि समुद्री जहाजों के अभाव में शाही सत्ता को बनाए रखना संभव नहीं था। इसलिए, 1820 ई0 तक अंग्रेजी खोजी दस्ते भारत की वन-संपदा का अन्वेषण करने के लिए भेजे गए। एक दशक के अंदर बड़ी संख्या में पेड़ों को काट डाला गया और बहुत अधिक मात्रा में लकड़ी का भारत से निर्यात किया गया।

(3) कृषि विस्तार – 19वीं सदी की शुरुआत में औपनिवेशिक सरकार ने वनों को अनुत्पादक समझा। उनकी दृष्टि में इस व्यर्थ के वियावान पर कृषि करके उससे राजस्व और कृषि उत्पाद प्राप्त किया जा सकता है और इस तरह राज्य की अन्य की वृद्धि की जा सकती है। इसी सोच का परिणाम था कि 1880 से 1920 ई0 के बीच कृषि योग्य जमीन के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई। उन्नीसवीं सदी में बढ़ती (UPBoardSolutions.com) शहरी जनसंख्या के लिए वाणिज्यिक फसलों जैसे-जूट, चीनी, गेहूं एवं कपास की माँग बढ़ गई और औद्योगिक उत्पादन के लिए कच्चे माल की जरूरत पड़ी। इसलिए अंग्रेजों ने सीधे तौर पर वाणिज्यिक फसलों को बढ़ावा दिया। इस प्रकार भूमि को जुताई के अंतर्गत लाने के लिए वनों को काट दिया गया।

(4) व्यावसायिक कृषि – 19वीं शताब्दी में यूरोप की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई। इसलिए यूरोपीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए औपनिवेशिक सरकार ने भारतीय किसानों को व्यावसायिक कृषि फसलों यथा-गन्ना, पटसन, कपास आदि का उत्पादन करने हेतु प्रोत्साहित किया। इस कार्य हेतु अतिरिक्त भूमि प्राप्त करने के लिए वनों को बड़े पैमाने पर साफ किया गया।

(5) चाय-कॉफी के बागान – औपनिवेशिक सरकार ने यूरोपीय बाजार में चाय-कॉफी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए भारत में इनकी कृषि को प्रश्रय दिया। उत्तर-पूर्वी (UPBoardSolutions.com) और दक्षिणी भारत के ढलानों पर वनों को काटकर चाय और कॉफी के बागानों के लिए भूमि प्राप्त की गयी।

(6) आदिवासी और किसान – आदिवासी सामान्यतः घुमंतू खेती करते थे जिसमें वनों के हिस्सों को बारी-बारी से काटा एवं जलाया जाता है। मानसून की पहली बरसात के बाद रखि में बीज बो दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया वनों के लिए हानिकारक थी। इसमें हमेशा जंगल की आग का खतरा बना रहता था।

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प्रश्न 4.
युद्धों से जंगल क्यों प्रभावित होते हैं?
उत्तर:
युद्ध से वनों पर निम्न प्रभाव पड़ता है-

  1. जावा में जापानियों के कब्जा करने से पहले, डचों ने ‘भस्म कर भागो नीति अपनाई जिसके तहत आरा-मशीनों और सागौन के विशाल लट्ठों के ढेर जला दिए गए जिससे वे जापानियों के हाथ न लगें। इसके बाद जापानियों ने वन्य-ग्रामवासियों को जंगल काटने के लिए बाध्य करके वनों का अपने युद्ध कारखानों के लिए निर्ममता से दोहन किया। बहुत से गाँव वालों ने इस अवसर का लाभ (UPBoardSolutions.com) उठाकर जंगल में अपनी खेती का विस्तार किया। युद्ध के बाद इंडोनेशियाई वन सेवा के लिए इन जमीनों को वापस हासिल कर पाना कठिन था।
  2. भारत में वन विभाग ने ब्रिटेन की लड़ाई की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अंधा-धुंध वन काटे। इस अंधा धुंध विनाश एवं राष्ट्रीय लड़ाई की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वनों की कटाई वनों को प्रभावित करती है क्योंकि वे बहुत तेजी से खत्म होते हैं जबकि ये दोबारा पैदा होने में बहुत समय लेते हैं।
  3. स्थल सेना को अनेक आवश्यकताओं के लिए बड़े पैमाने पर लकड़ियों की आवश्यकता होती है।
  4. नौसेना की आवश्यकताओं की पूर्ति (UPBoardSolutions.com) के लिए बनने वाले जहाजों के लिए बड़े पैमाने पर लकड़ी की आवश्यकता होती है जिसे जंगलों को काट कर पूरा किया जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ब्लैन्डाँगडिएन्स्टेन व्यवस्था क्या थी?
उत्तर:
डच लोगों ने जावा में कुछ गाँवों को इस शर्त पर मुक्त कर दिया कि वे सामूहिक रूप से पेड़ काटने तथा लकड़ी ढोने के लिए भैंसे उपलब्ध कराने का काम निःशुल्क में किया करेंगे। इसी व्यवस्था को ब्लैन्डाँगडिएन्स्टेन व्यवस्था कहते थे।

प्रश्न 2.
भारतीय वन अधिनियम कब लागू हुआ?
उत्तर:
1865 ई० में।

प्रश्न 3.
भारतीय वन सेवा की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
भारतीय वन सेवा की स्थापना सन् 1864 ई० में हुई।

प्रश्न 4.
बस्तर में निवास करने वाले प्रमुख आदिवासी समुदाय के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. मरिया समुदाय,
  2. मुरिया, गोंड समुदाय,
  3. धुरवा समुदाय,
  4. भतरा समुदाय,
  5. हलबा समुदाय।

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प्रश्न 5.
मद्रास प्रेसीडेन्सी के किन्हीं तीन घुमन्तू समुदायों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. कोरावा समुदाय,
  2. कराचा समुदाय,
  3. मेरुकुला समुदाय।

प्रश्न 6.
इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना कब और कहाँ हुई?
उत्तर:
इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना 1906 ई० में देहरादून (उत्तराखण्ड) में हुई।

प्रश्न 7.
‘लेटेक्स’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
रबड़ के वृक्ष से प्राप्त तरल पदार्थ को लेटेक्स कहते हैं। इसका उपयोग प्राकृतिक रबड़ बनाने में किया जाता है।

प्रश्न 8.
1890 ई0 तक भारत में रेल लाइनों का विस्तार कितना था?
उत्तर:
लगभग 25,500 किमी।

प्रश्न 9.
1948 ई० में भारत में रेल लाइनों की लंबाई क्या थी?
उत्तर:
7,65,000 किमी।

प्रश्न 10.
एक औसत कद के पेड़ से कितने स्लीपर बन सकते हैं?
उत्तर:
3 से 5 स्लीपर।

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प्रश्न 11.
भारत के प्रथम वन महानिदेशक का नाम बताइए।
उत्तर:
डायट्रिच बैंडिस।

प्रश्न 12.
सन् 1600 में भारत के कितने भाग पर खेती की जाती थी?
उत्तर:
छठे भाग पर।

प्रश्न 13.
1880 से 1920 ई० के मध्य कृषि भूमि के क्षेत्रफल में कितनी वृद्धि हुई?
उत्तर:
इस काल में कृषि भूमि में 67 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई।

प्रश्न 14.
एक मील लंबी पटरी बिछाने के लिए कितने स्लीपरों की आवश्यकता पड़ती है?
उत्तर:
लगभग 1,760 से 2,000 स्लीपरों की।

प्रश्न 15.
गुंडा धूर कौन था?
उत्तर:
गुंडा धूर नेथानगर गाँव का एक आंदोलनकारी था जिसने अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत में सक्रिय भाग लिया। इस आंदोलन को दबाने में अंग्रेजों को तीन माह का समय लगा किन्तु गुंडा धूर अंग्रेजों की पकड़ में कभी नहीं आया।

प्रश्न 16.
वन ग्राम किसे कहते थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार ने 1905 ई० में जंगल के दो-तिहाई हिस्से को आरक्षित कर दिया लेकिन कुछ गाँवों को आरक्षित वनों में इस शर्त पर रहने दिया गया कि वे वन (UPBoardSolutions.com) विभाग के लिए पेड़ों की कटाई और ढुलाई का काम मुफ्त करेंगे और जंगल को आग से बचाए रखेंगे। बाद में इन्हीं गाँवों को वन ग्राम कहा जाने लगा।

प्रश्न 17.
देवसारी या दांड किसे कहते हैं?
उत्तर:
यह बस्तर के सीमावर्ती गाँव के लोगों द्वारा दिया जाने वाला एक शुल्क था। यदि एक गाँव के लोग दूसरे गाँव के जंगल से लकड़ी लेना चाहते थे तो उन्हें एक छोटा-सा शुल्क अदा करना पड़ता था। इसे ही देवसारी या दांड कहते थे।

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प्रश्न 18.
सुरोन्तिको सामिन ने कौन-सा आंदोलन चलाया?
उत्तर:
जावा द्वीप के निवासी सुरोन्तिको सामिन ने जैलों के राजकीय मालिकाने का विरोध किया। उसका तर्क था कि चूंकि हवा, पानी, जमीन और लकड़ी राज्य की बनायी हुई नहीं है इसलिए उन पर राज्य का अधिकार अनुचित है। शीघ्र ही यह विचार एक व्यापक आंदोलन में परिणत हो गया।

प्रश्न 19.
वन अधिनियम के प्रभावस्वरूप गाँव वालों को क्या दिक्कतें हुईं?
उत्तर:
वन अधिनियम के बाद घर के लिए लकड़ी काटनी, पशुओं को चराना, कंद-मूल, फल इकट्ठा करना आदि रोजमर्रा की गतिविधियाँ गैरकानूनी बन गई। जलावनी लकड़ी एकत्र करने वाली औरतें विशेष तौर से परेशान रहने लगीं।

प्रश्न 20.
1700 से 1995 ई० के बीच कितने वनों की कटाई हुई?
उत्तर:
1700 से 1995 ई0 की अवधि में 139 लाख वर्ग किमी जंगल अर्थात् विश्व के कुल क्षेत्रफल का 9.3 प्रतिशत भाग औद्योगिक उपयोग, कृषि, चरागाहों व ईंधन की लकड़ी के लिए साफ किया गया।

प्रश्न 21.
अंग्रेजों के विरुद्ध होने वाले वन विद्रोह के नाम बताइए।
उत्तर:
भारत और विश्व में स्थित वन समुदायों ने वन कानूनों के माध्यम से अपने ऊपर थोपे गए कानूनों के विरुद्ध आवाज उठाई। संथाल परगना में सिद्ध और कानू, छोटा नागपुर में बिरसा मुंडा और आंध्र प्रदेश में अल्लूरी सीताराम राजू को आज भी लोकगीतों एवं कथाओं के माध्यम से स्मरण किया जाता है?

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बस्तर विद्रोह की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
बस्तर विद्रोह की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. कांगेर वनों में रहने वाली धुरवा जनजाति ने इस विद्रोह का आरंभ किया। लेकिन यह एक संगठित विद्रोह नहीं था।
  2. इस विद्रोह का कोई मान्य नेता नहीं था परंतु इस विद्रोह पर सर्वाधिक प्रभाव नेथानगर गाँव के निवासी गुंडा धूर का था।
  3. 1910 में आंदोलनकारियों ने आम की टहनी, मिट्टी के ढेले, मिर्च तथा तीरों को गाँव-गाँव पहुँचा कर अपने विचारों का प्रसार आरंभ किया।
  4. इस आंदोलन पर हुए खर्चे में सभी गाँवों ने कुछ-न-कुछ मदद अवश्य की थी।
  5. आंदोलनकारियों ने जगदलपुर और उसके आस-पास के क्षेत्रों में ब्रिटिश अफसरों और व्यापारियों के घरों, स्कूलों, पुलिस थानों तथा अन्य सरकारी भवनों को जला दिया। बाजारों को लूट लिया गया।

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प्रश्न 2.
भारतीय वन अधिनियम, 1865 पर संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
इस अधिनियम के लागू होने के बाद इसमें दो बार पहले 1878 और फिर 1927 ई० में संशोधन किए गए। 1878 ई० वाले अधिनियम में वनों को तीन श्रेणियों-आरक्षित, सुरक्षित व ग्रामीण में बाँटा गया। सबसे अच्छे वनों को ‘आरक्षित वन कहा गया। गाँव वाले इन वनों से अपने (UPBoardSolutions.com) उपयोग के लिए कुछ भी नहीं ले सकते थे। वे घर बनाने या ईंधन के लिए सुरक्षित या ग्रामीण वनों से ही लकड़ी ले सकते थे। वर्तमान में भारत के कुल वन क्षेत्र का 54.4% आरक्षित वन, 29.2% सुरक्षित वन तथा 16.4% ग्रामीण वन (अवर्गीकृत वन) हैं।

प्रश्न 3.
जावा के कलांग इतने बहुमूल्य क्यों थे?
उत्तर:
जावा के कलांग कुशल वन काटने वाले और भ्रमणशील कृषि करने वाले थे। उनकी दक्षता के बिना सागौन की कटाई करके राजाओं के महल बनाना कठिन होता था। जब अठारहवीं शताब्दी में डचों ने वनों पर नियंत्रण प्राप्त किया तो उन्होंने कलांगों को अपने अधीन करके उनसे काम लेने का प्रयास किया। 1770 ई० में कलांगों ने जोआना में एक डच किले पर आक्रमण करके विरोध जताने (UPBoardSolutions.com) की कोशिश की किन्तु इसे विद्रोह को दबा दिया गया। वे इतने बहुमूल्य थे कि जब 1755 ई० में जावा की माताराम रियासत का विभाजन हुआ तो 6,000 कलांग परिवारों को दोनों राज्यों ने आपस में आधा-आधा बाँट लिया।

प्रश्न 4.
वन निवासियों के लिए वनोत्पाद किस प्रकार लाभदायक थे?
उत्तर:
वनवासियों के लिए वनोत्पादों का महत्त्व निम्न प्रकार से है-

  1. सूखे हुए कुम्हड़े के खोल का प्रयोग आसानी से ले जाए जा सकने वाली पानी की बोतल के रूप में किया जा सकता है।
  2. जंगलों में लगभग सब कुछ उपलब्ध है—पत्तों को जोड़-जोड़ कर ‘खाओं-फेंको’ किस्म के पत्तल और दोने बनाए जा सकते हैं।
  3. सियादी की लताओं से रस्सी बनायी जा सकती हैं।
  4. सेमूर (सूती रेशम) की काँटेदार छाल पर सब्जियाँ छीली जा सकती हैं।
  5. महुए के पेड़ से खाना पकाने और रोशनी के लिए तेल निकाला जा सकता है।
  6. फल और कंद अत्यंत पोषक खाद्य हैं, विशेषकर मॉनसून के दौरान जबकि फसल कट कर घर नहीं पहुँची हो।
  7. जड़ी-बूटियों का प्रयोग दवा के रूप में किया जाता है।
  8. लकड़ी का प्रयोग हल और जूए जैसे खेती के औजार बनाने में किया जाता है।
  9. बाँस से बेहतरीन बाड़े बनायी जा सकती हैं और इसका उपयोग छतरी तथा टोकरी बनाने के लिए भी किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
औपनिवेशिक सरकार द्वारा घुमन्तू कृषि पर प्रतिबन्ध लगाने के क्या कारण थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार द्वारा घुमंतू कृषि पर प्रतिबन्ध लगाने के प्रमुख कारण इस प्रकार थे-

  1. घुमंतू खेती में सरकार के लिए कर की गणना कर पाना कठिन था। इसलिए सरकार ने घुमंतू खेती को प्रतिबंधित कर दिया।
  2. औपनिवेशिक सरकार घुमंतू खेती को वनों के लिए हानिकारक मानती थी।
  3. वे भूमि को रेलवे के लिए लकड़ी पैदा करने के लिए तैयार करना चाहते थे न कि खेती के लिए।
  4. उन्हें डर था कि जलाने की प्रक्रिया खतरनाक साबित हो सकती है क्योंकि यह उनकी बहुमूल्य लकड़ी को भी जला सकती है।

प्रश्न 6.
‘अपराधी कबीले’ कौन थे?
उत्तर:
नोमड एवं चरवाहा समुदाय के लोगों को अपराधी कबीले कहा जाता था जिन्हें लकड़ी चुराते हुए पकड़ा जाता था। वन प्रबंधन द्वारा लाए गए बदलावों के कारण नोमड एवं चरवाहा समुदाय लकड़ी काटने, अपने पशुओं को चराने, कंद-मूल एकत्र करने, शिकार एवं मछली पकड़ने से (UPBoardSolutions.com) वंचित हो गए। ये सभी गैरकानूनी घोषित कर दिए गए। इसके परिणामस्वरूप अब ये लोग वनों से लकड़ी चुराने पर बाध्य हो गए। उन्हें शिकार करने, लकड़ी एकत्र करने और अपने पशु चराने देने के लिए वन-रक्षकों को घूस देनी पड़ती थी।

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प्रश्न 7.
वैज्ञानिक वानिकी पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इसके अन्तर्गत विविध प्रजाति वाले प्राकृतिक वनों को काट डाला गया तथा इनके स्थान पर सीधी पंक्ति में एक ही प्रजाति के वृक्ष लगा दिए गए। इसे बागान कहा गया। वन विभाग के अधिकारियों ने वनों का सर्वेक्षण कर विभिन्न किस्म के पेड़ों वाले क्षेत्रों का आकलन किया तथा वन प्रबन्धन की योजनाएँ बनायीं। उन्होंने यह भी निर्धारित किया कि बागान का कितना क्षेत्र प्रतिवर्ष काटा जाए तथा कटाई के बाद रिक्त हुई भूमि पर पुनः वृक्ष लगाए जाएँ जिससे कुछ वर्ष बाद उन्हें दोबारा काटा जा सके।

प्रश्न 8.
घुमंतू कृषि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
घुमंतू (झूम) कृषि एशिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका की एक पारंपरिक कृषि पद्धति है। इस तरह की कृषि में वनों के हिस्सों को बारी-बारी से काटा और जलाया जाता है। मानसून की पहली बरसात के बाद राख में बीज बो दिए जाते हैं और अक्टूबर-नवम्बर में फसल काट ली जाती है। इन भूखण्डों पर दो-एक साल खेती करने के बाद इन्हें 12 से 18 साल तक के लिए परती छोड़ दिया जाता है जिससे वहाँ फिर (UPBoardSolutions.com) से जंगल पनप जाएँ। इन भूखंडों में मिश्रित फसलें उगायी जाती हैं। इसके कई स्थानीय नाम हैं जैसे-दक्षिण-पूर्व एशिया में लादिंग, मध्य अमेरिका में मिलपा, अफ्रीका में चितमने या तावी व श्रीलंका में चेना। हिंदुस्तान में घुमंतू खेती के लिए धया, पेंदा, बेवर, नेवड़, झूम, पोडू, खंदाद और कुमरी ऐसे ही कुछ स्थानीय नाम हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जावा ( इंडोनेशिया) में वनों पर नियंत्रण पाने के लिए डचों ने कौन-सी नीति अपनायी?
उत्तर:
वर्तमान में जावा (डोनेशिया) एक चावल उत्पादक द्वीप के रूप में जाना जाता है। लेकिन पहले यह हरे-भरे जंगलों से आवृत्त था। डचों ने यहाँ वन प्रबन्धन व्यवस्था की शुरुआत की। अंग्रेजों की भाँति डचों को भी समुद्री जहाज बनाने के लिए लकड़ियों की आवश्यकता थी। सन् 1600 में जावा की अनुमानित जनसंख्या 34 लाख थी और जावा निवासी घुमंतू कृषि करते थे। जब अठारहवीं शताब्दी में डचों ने वनों (UPBoardSolutions.com) पर नियंत्रण प्राप्त किया तो उन्होंने कलांगों को अपने अधीन करके उनसे काम लेने का प्रयास किया। 1770 ई0 में कलांगों ने जोआना में एक डच किले पर आक्रमण करके विरोध जताने की कोशिश की किन्तु इस विद्रोह को दबा दिया गया।

उन्नीसवीं सदी में डचों ने जावा में वनं कानून लागू किया जिसने ग्रामीणों की वनों में पहुँच पर प्रतिबंध लगा दिया। अब वनों को केवल कुछ विशिष्ट उद्देश्यों के लिए ही काटा जा सकता था जैसे कि नदी के लिए नाव बनाने, घर बनाने और वह भी कुछ विशेष वनों से तथा वह भी कड़ी निगरानी में। ग्रामीणों को पशु चराने, बिना परमिट के लकड़ी ढोने, जंगल की सड़कों पर घोड़ा-गाड़ी या पशुओं पर यात्रा करने पर दंडित किया जाता था। 1882 ई0 में अकेले जावा से दो लाख अस्सी हजार रेलवे स्लीपरों का निर्यात किया गया (UPBoardSolutions.com) था। इचों ने पहले जंगलों में खेती की, जमीन पर कर लगा दिया और फिर कुछ गाँवों को इस कर से इस शर्त पर मुक्त कर दिया कि वे सामूहिक रूप से पेड़ काटने और लकड़ी ढोने के लिए भैंसे उपलब्ध कराने का काम मुफ्त में किया करेंगे। इसे ब्लैन्डाँगडिएन्स्टेन प्रणाली के नाम से जाना जाता था।

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प्रश्न 2.
वन विनाश के प्रमुख कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वन का तेजी से काटा जाना या लुप्त होना वन विनाश कहलाता है। मानव प्राचीन काल से ही प्राकृतिक संसाधनों की प्राप्ति हेतु वनों पर निर्भर रहा है। वनों से उसे लकड़ी, जलावन, पशुचारण, शिकार तथा दुर्लभ जड़ी-बूटियों की प्राप्ति होती है। औपनिवेशिक शासनकाल में भारत में तेजी से वनों की कटाई और लकड़ी का निर्यात आरंभ हुआ।
वन विनाश के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

(1) व्यावसायिक वानिकी का आरंभ-भारत में अंग्रेज शासक 19वीं शताब्दी के मध्य में यह बात अच्छी तरह समझ गए कि यदि व्यापारियों और स्थानीय निवासियों द्वारा इसी तरह पेड़ों को काटा जाता रहा तो वन शीघ्र ही समाप्त हो जाएंगे। वनों की अंधाधुंध कटाई के स्थान पर एक व्यवस्थित प्रणाली की आवश्यकता महसूस की। अतः ब्रिटिश सरकार ने डायट्रिच बैंडिस नामक एक जर्मन वन विशेषज्ञ को भारत का पहला वन महानिदेशक नियुक्त किया गया।

बैंडिस ने 1864 ई0 में भारतीय वन सेवा की स्थापना की और 1865 ई० के भारतीय वन अधिनियम को सूत्रबद्ध करने में सहयोग दिया। इम्पीरियल फ़ॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना 1906 ई0 में देहरादून में हुई। यहाँ जिस पद्धति की शिक्षा दी जाती थी उसे वैज्ञानिक वानिकी’ (साइंटिफ़िक फ़ॉरेस्ट्री) कहा गया। आज पारिस्थितिकी विशेषज्ञों सहित ज्यादातर लोग मानते हैं कि यह पद्धति (UPBoardSolutions.com) कतई वैज्ञानिक नहीं है।
वैज्ञानिक वानिकी के नाम पर विविध प्रजाति वाले प्राकृतिक वनों को काट डाला गया। इनकी जगह सीधी पंक्ति में एक ही किस्म के पेड़ लगा दिए गए। इसे बागान कहा जाता है। वन विभाग के अधिकारियों ने वनों का सर्वेक्षण किया, विभिन्न किस्म के पेड़ों वाले क्षेत्र की नाप-जोख की और वन-प्रबंधन के लिए योजनाएँ बनायीं। उन्होंने यह भी तय किया कि बागान का कितना क्षेत्र प्रतिवर्ष काटा जाएगा।

(2) बागानी कृषि को प्रोत्साहन-यूरोप में चाय, कॉफी और रबड़ की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए इन वस्तुओं के बागान बने और इनके लिए भी प्राकृतिक वनों का एक भारी हिस्सा साफ किया गया। औपनिवेशिक सरकार ने वनों को अपने कब्जे में लेकर उनके विशाल हिस्सों को बहुत ही सस्ती दरों पर यूरोपीय बागानी मालिकों को सौंप दिया। इन इलाकों की बाड़ाबंदी करके वनों को (UPBoardSolutions.com) साफ कर दिया गया और चाय-कॉफी की खेती की जाने लगी। पश्चिमी बंगाल, असोम, केरल, कर्नाटक में बड़े पैमाने पर वनों को काटा गया।

(3) कृषि भूमि का विस्तार–आधुनिक काल में भारत की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई। जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ खाद्य पदार्थों की माँग में भी तीव्र वृद्धि हुई। जिसकी पूर्ति के लिए सीमावर्ती वनों को साफ करके कृषि क्षेत्रों का विस्तार किया गया।
औपनिवेशिक शासन काल में स्थिति और बिगड़ गई क्योंकि भारतीय कृषि को भारतीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ यूरोपीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी बाध्य होना पड़ा।

19वीं शताब्दी तक कृषि ही राजस्व का प्रमुख स्रोत थी तथा वनों का, महत्त्व मानव समाज के लिए गौण था अतः कृषि क्षेत्रों को बढ़ाने के अत्यधिक प्रयास किए गए। सन् 1880 से 1920 के मध्य मात्र 40 वर्षों में ही कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई।
मध्यकाल में कृषि का स्वरूप खाद्यान फसलों के उत्पादन तक ही सीमित था परंतु ब्रिटिश शासन में यूरोपीय उद्योगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए व्यवसायिक कृषि का प्रचलन आरंभ हुआ। पटसन, नील, कपास तथा गन्ना जैसी फसलों के उत्पादन को अधिक प्रोत्साहित किया गया जिसके कारण कृषि क्षेत्रों की वृद्धि की आवश्यकता पड़ी और अधिक से अधिक पेड़ काट कर भूमि प्राप्त करने के प्रयास किए गए।

(4) सैन्य आवश्यकता की पूर्ति–औपनिवेशिक काल में देश के विभिन्न भागों में सैनिक क्षेत्रों की स्थापना की गयी जिनके निर्माण के लिए बड़ी संख्या में पेड़ों को काटा गया। 19वीं सदी के आरंभ तक ब्रिटेन में ओक के वन प्रायः लुप्त होने लगे थे जिसके कारण सेना के लिए समुद्री जहाजों का निर्माण कार्य बाधित होने लगा था। ब्रिटिश सेना जो मुख्यतः एक समुद्री सेना ही थी उसके सम्मुख अस्तित्व को प्रश्न (UPBoardSolutions.com) उपस्थित होने लगा। अतः ब्रिटिश नौसेना की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बड़ी मात्रा में कीमती भारतीय लकड़ी का विदेशों में निर्यात किया गया।

(5) रेल लाइनों का विकास-भारत में 1860 ई0 के दशक में रेलवे का विकास आरंभ हुआ। भारतीय कच्चे माल को बंदरगाहों तक पहुँचाने के लिए तथा भारत में ब्रिटिश शासन को मजबूती प्रदान करने के लिए सेना को देश के विभिन्न भागों में तेजी से पहुँचाने के लिए अंग्रेजों ने रेलवे के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। मात्र 30 वर्षों में ही (1860-1890) भारत । में 25,500 किमी रेलवे लाइनों का विस्तार किया गया। 1946 ई0 तक इन रेल लाइनों की लंबाई बढ़कर 7,65,000 किमी हो गई।

रेल की लाइन बिछाने के लिए रेल की दोनों पटरियों को जोड़ने के लिए उनके नीचे लकड़ी के स्लीपरों (लकड़ी के लगभग 10 फुट लंबे तथा 10 इंच x 5 इंच मोटे लट्टे) को बिछाया जाता था। एक मील लंबी रेल की पटरी बिछाने के लिए 1,760 से 2,000 तक स्लीपर की जरूरत होती थी। एक (UPBoardSolutions.com) औसत कद के पेड़ से 3 से 5 स्लीपर तक बन सकते हैं। हिसाब लगाइए कि भारत में 7,65,000 किमी लंबी रेल लाइनों को बिछाने के लिए कितनी बड़ी मात्रा में पेड़ों को काटा गया होगा।

प्रश्न 3.
वनों से मानव को क्या लाभ होते हैं?
उत्तर:
वनों से मनुष्य को होने वाले लाभों का विवरण इस प्रकार है-

  1. इनसे हमें इमारती लकड़ी, रंग, पशु-पक्षी, फल-फूल, मसाले, दवाइयाँ, औद्योगिक लकड़ी, जलाऊ लकड़ी, चारा तथा अन्य अनेक उत्पाद प्राप्त होते हैं।
  2. वन वन्य जीवन को प्राकृतिक पर्यावरण प्रदान करते हैं।
  3. वन पर्यावरण को स्थिरता प्रदान करते हैं तथा पारितंत्र को संतुलित बनाने में सहायता करते हैं।
  4. वन स्थानीय जलवायु को सुधारते हैं।
  5. ये मृदा अपरदन को नियंत्रित करते हैं।
  6. ये नदी प्रवाह को नियमित करते हैं।
  7. ये विभिन्न उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करते हैं।
  8. कई समुदायों को ये वन आजीविका प्रदान करते हैं।
  9. ये मनोरंजन के अवसर प्रदान करते हैं?
  10. वायु की शक्ति को कम करते हैं और वायु के तापमान को प्रभावित करते हैं।
  11. वनों से भारी मात्रा में पत्तियाँ, कोपलें और शाखाएँ मिलती हैं जिनके विघटित होने पर मृदा को ह्युमस प्राप्त होती है जिससे वह उपजाऊ हो जाती है।

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प्रश्न 4.
वन-विनाश और औपनिवेशिक वन कानूनों का भारतीयों के जन-जीवन पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
वनों की तेजी से कटाई तथा औपनिवेशिक सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों ने वनों में रहने वाली जनजातियों एवं वनों के सीमान्त क्षेत्रों में बसे ग्रामीण लोगों के जीवन को निम्न रूप से प्रभावित किया-
(i) व्यवसाय परिवर्तन-भारत में प्राचीन काल से वन उत्पादों का व्यापार बड़े पैमाने पर होता रहा है। घुमंतू समुदायों द्वारा वन उत्पादों जैसे बाँस, मसाले, गोंद, राल, खाल, सींग, हाथी दांत और रेशम के कोर्म आदि की बिक्री एक सामान्य प्रक्रिया थी परंतु औपनिवेशिक शासन में यह व्यवसाय पूरी तरह अंग्रेजों के नियंत्रण में चला गया। इस कारण अधिकांश घुमंतू कबीले अपने परंपरागत व्यवसाय को छोड़ने (UPBoardSolutions.com) के लिए बाध्य हुए। अब ये लोग नवीन व्यवसायों जैसे फैक्ट्रियों, खदानों अथवा बागानों में कार्य करने लगे। इन क्षेत्रों में काम करने से उनका जीवन और अधिक कठिन हो गया। उनकी जिंदगी की तुलना पिंजरे में बंद पक्षी से की जा सकती थी।

(ii) शिकार पर प्रतिबन्ध–ब्रिटिश सरकार ने वनों और सीमांत क्षेत्रों में शिकार पर पूर्ण पाबंदी लगा दी थी और विभिन्न वन कानूनों के द्वारा इसे गैर कानूनी घोषित किया गया। प्राचीन काल से ही वनवासी अपने भोजन के लिए छोटे-मोटे वन्य जीवों पर आश्रित थे परंतु वन कानूनों ने उनकी पारंपरिक प्रथा को गैर कानूनी बना दिया। शिकार करने का हक केवल राजाओं और अंग्रेजों तक ही सीमित रहा। उन्होंने बड़े पैमाने पर वन्य जीवों का शिकार किया। केवल 1875 से 1925 ई0 के बीच के 50 सालों में ही लगभग 80,000 बाघ, 1,50,000 तेंदुए और 2,00,000 भेड़ियों का शिकार किया गया। जॉर्ज मूल नामक एक अंग्रेज अफसर ने इस काल में 400 बाघों का शिकार किया था।

(iii) वनों का आरक्षण-नए वन कानूनों ने ग्रामवासियों की समस्याओं को बढ़ा दिया क्योंकि ग्रामवासी अपनी अधिकांश दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों पर आश्रित थे जबकि नए कानून के अनुसार आरक्षित वनों में लकड़ी काटना, कंदमूल, फल इकट्ठा करना तथा पशुचारण आदि गैर कानूनी घोषित किया गया।

(iv) स्थानान्तरित कृषि पर प्रतिबन्ध–स्थानान्तरित कृषि (घुमंतू कृषि) कृषि के सबसे पुराने स्वरूपों में से एक है। इस कृषि प्रणाली में जंगल के कुछ भागों को बारी-बारी से काटा जाता है। यूरोपीय वन रक्षक स्थानान्तरित कृषि के विरुद्ध थे क्योंकि निरंतर खेतों को बदलने के कारण उस क्षेत्र में कीमती इमारती लकड़ी के पेड़ों (जो 20 से 30 वर्षों में कटने लायक होते हैं) को लगाना कठिन था क्योंकि वन साफ करने की प्रक्रिया में लगाई जाने वाली आग से वृक्षों के जलने का खतरा बना रहता था। खेतों के निरंतर (UPBoardSolutions.com) परिवर्तन से भू-राजस्व का निर्धारण एक दुष्कर कार्य था।
उपर्युक्त कारणों से सरकार ने लोगों को वनों से बाहर निकलने के लिए बाध्य किया जिसके कारण इन जनजातियों ने विद्रोह किए और उनमें असफल होने पर अपने मूल निवास से विस्थापित कर दिए गए अथवा व्यवसाय को छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा।

प्रश्न 5.
अंग्रेजों की वन नीतियों के प्रति बस्तर वासियों की प्रतिक्रिया और उसका परिणाम बताइए।
उत्तर:
1905 ई0 में औपनिवेशिक सरकार ने भारत के दो तिहाई वनों को आरक्षित करने और घुमंतू खेती, शिकार और वन्य उत्पादों के संग्रहण पर रोक लगा दी। मूलतः वनों पर जीवन-यापन करने वाले बस्तर-वासी सरकार के इस निर्णय से चिंतित हो उठे। काँगेर वन के धुरवा सम्प्रदाय के लोगों ने सबसे पहले सरकार की वन नीतियों का विरोध कर क्रान्ति की शुरुआत की।

1910 ई० में आम की टहनियाँ, मिट्टी का एक ढेला, लाल मिर्च और तीर गाँव-गाँव भेजे जाने लगे। प्रत्येक ग्रामीण ने क्रांति के खर्च में कुछ-न-कुछ योगदान दिया। बाजारों को लूटा गया, अधिकारियों व व्यापारियों के घरों, स्कूलों व पुलिस थानों को लूटा वे जलाया गया और अनाज का (UPBoardSolutions.com) पुनर्वितरण किया गया। जिन पर हमले हुए उनमें से अधिकतर लोग औपनिवेशिक राज्य और इसके दमनकारी कानूनों से किसी-न-किसी तरह जुड़े हुए थे। अंग्रेजों ने इसका कड़ा

प्रत्युत्तर दिया और विद्रोह को दबाने के लिए सैनिक टुकड़ियाँ भेजीं। अंग्रेज फौज ने आदिवासियों के तंबुओं को घेरकर उन पर गोलियाँ चला दीं। जिन लोगों ने बगावत में भाग लिया था उन्हें पीटा गया और सजा दी गई। अधिकांश गाँव खाली हो गए क्योंकि लोग भाग कर जंगलों में चले गए थे। यद्यपि वे विद्रोह के मुखिया गुंडा धूर को कभी नहीं पकड़ सके। विद्रोहियों की सबसे बड़ी जीत यह रही कि आरक्षण का काम कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया और आरक्षित क्षेत्र को भी 1910 ई० से पहले की योजना से लगभग आधा कर दिया गया।

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