UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 1

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Model Paper Paper 1
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 1

पूर्णाक : 70
समय : 3 : घण्टे 15 मिनट

निर्देश प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
नोट

• सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
• आवश्यकतानुसार अपने उत्तरों की पुष्टि नामांकित रेखाचित्रों द्वारा कीजिए।
• सभी प्रश्नों के निर्धारित अंक उनके सम्मुख अंकित हैं।

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए। [1]
(क)अगुणित कोशिका है
(A) टेपीटम
(B) पराग मातृ कोशिका
(C) पराग कण
(D) पराग कोष

(ख) मनुष्य में सन्तान का लिंग निर्धारण होता है। [1]
(A) माँ के लिंग गुणसूत्र से
(B) अण्डाणु के माप से
(C) शुक्राणु के माप से
(D) पिता के लिंग गुणसूत्र से

(ग) निम्नलिखित में कौन वायु प्रदूषक गैस है और अम्लीय वर्षा बनाती है? [1]
(A) सल्फर डाई ऑक्साइड
(B) ऑक्सीजन
(C) नाइट्रोजन
(D) हाइड्रोजन

(घ) जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग होता है? [1]
(A) चिकित्सा में
(B) कृषि क्षेत्र में
(C) इन दोनों में
(D) इनमें से किसी में नहीं।

प्रश्न 2.
(क) एक आवृतबीजी पुष्प के उन अंगों के नाम लिखिए जहाँ नर . एवं मादा युग्मकोभिद् का विकास होता है [1]
(ख) उस एन्जाइम का नाम लिखिए जो DNA अणु को खण्डों में तोड़ देता है। [1]
(ग) उन कोशिकाओं को नाम लिखिए जो विकसित हो रहे शुक्राणुओं को पोषण प्रदान करती है [1]
(घ) एक खाद्य श्रृंखला में सर्वाधिक संख्या किसकी होती है? [1]
(ङ) क्लाइनफेल्टर एवं टर्नर सिण्ड्रोम में गुणसूत्रों की संख्या लिखिए [1]

प्रश्न 3.
(क) वाट्सन तथा ‘क्रिक द्वारा प्रस्तुत DNA के द्विकुण्डलित मॉडल का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए। [2]
(ख) जैव विकास किसे कहते हैं?
(ग) आर्किड पौधा आम के पेड़ की शाखा पर उग रहा है। आर्किड और आम के पेड़ के बीच पारस्परिक क्रिया को आप कैसे स्पष्ट करेंगे? [2]
(घ) एक स्थलीय पारितन्त्र में अपघटन चक्र का आरेखीय निरूपण कीजिए। [2]
(ङ) मौन (मधुमक्खी) पालन का हमारे जीवन में क्या महत्व है?

प्रश्न 4.
(क) एक संकर क्रॉस का प्रयोग करते हुए प्रभाविता नियम की व्याख्या कीजिए। [3]
(ख) कायिक प्रवर्धन से आप क्या समझते हैं? कोई दो उपयुक्त उदाहरण दीजिए। [2 + 4]
(ग) निम्नलिखित में विभेद कीजिए [1/2 +1/2]

  1. सहज जन्मजात और उपार्जित प्रतिरक्षा
  2. सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा

(घ) वाहित मल हमारे लिए किस प्रकारे हानिप्रद है? [3]

प्रश्न 5.
(क) टिप्पणी लिखिए। [1/2 +1/2].

  1. PCR
  2. प्रतिबन्ध एन्जाइम

(ख) निम्नलिखित में अन्तर कीजिए [1/2 + 1/2]

  1. उत्पादक एवं उपभोक्ता
  2. प्रभाविता एवं अप्रभाविता

(ग) हमारे समाज में लडकियाँ पैदा होने पर, दोष केवल महिलाओं को दिया जाता है? बताइए कि यह क्यों सही नहीं है? [3]
(घ) जैव-प्रौद्योगिकी का कृषि क्षेत्र में क्या उपयोग है? [3]

प्रश्न 6.
(क) मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए। [3]
(ख) उस संवर्धन में जहाँ ई० कोलाई वृद्धि कर रहा हो लैक्टोज डालने पर लैक ओपेरॉन उत्प्रेरित होता है पर कभी संवर्धन में लैक्टोज डालने पर लैक ओपेरॉन कार्य करना बन्द कर देता है, क्यों? स्पष्ट कीजिए।[3]
(ग) जैव प्रबलीकरण का क्या अर्थ है? विवेचना कीजिए। [3]
(घ) क्या सुकेन्द्री कोशिकाओं में प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज मिलते हैं? स्पष्ट कीजिए। [3]

प्रश्न 7.
मनुष्य के नर जनन तन्त्र का वर्णन कीजिए। इसमें शुक्राणु कहाँ संचित रहते हैं? [4+1]
अथवा
जनन क्या है? जन्तुओं में जनन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए। [1+4]

प्रश्न 8.
जैव विकास के पक्ष में शारीरिक (तुलनात्मक शरीर रचना) से प्राप्त प्रमाणों का वर्णन कीजिए। [5]
अथवा
आनुवंशिक कूट क्या हैं? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [1+4]

प्रश्न 9.
पारिस्थितिक पिरामिड को परिभाषितं करें तथा जीव भार तथा ऊर्जा के पिरामिडों की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए। [1+2+2]
अथवा
जल प्रदूषण से क्या तात्पर्य है? जल प्रदूषण के कारणों तथा मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव की विवेचना कीजिए। [1+2+2]

Answers

उत्तर 1.
(क) (C)
(ख) (D)
(ग) (A)
(घ) (C)

उत्तर 2.
(क) नर युग्मकोभिद (पराग कण) → परागकोष (लघुबीजाणुधानी)
मादा युग्मकोद्भिद (भ्रूणकोष) → अण्डाशय (बीजाण्ड)
(ख) प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज एवं एक्सोन्यूक्लिएज।
(ग) सली या अवलम्बन कोशिकाएँ
(घ) उत्पादक
(ङ) क्लाइनफेल्टर सिण्ड्रोम-46 से अधिक
(44 + XXY, 44 + XXXY, आदि)
टर्नर सिण्ड्रोम-45 (44 + XO)

उत्त्तर 3.
(क) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 63 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 देखें।
(ख) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 69 पर जैव विकास’ को देखें।

(ग) सहभोजिता दो जीवों के मध्य होने वाली ऐसी पारस्परिक क्रिया है। जिसमें एक प्रजाति को तो लाभ होता है, जबकि दूसरी प्रजाति अप्रभावित रहती है अर्थात् उसे न तो कोई लाभ होता है और न कोई हानि; उदाहरण-अधिपादप एवं आम का वृक्ष।। अधिपादप पादप (Epiphytic plants) पादप जगत में अधिपादप वे पादप हैं, जो स्वपोषी हैं, परन्तु दूसरे पादपों पर उगते हैं। ऑर्किड इसका प्रमुख उदाहरण है। अधिपादप पादप स्थान परजीवी (Space parasite) हैं। ये दूसरे पादपों पर उगते हैं, परन्तु अपना भोजन स्वयं बनाते हैं और उस पादप को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाते हैं। ये पादप अपनी आर्द्रताग्राही लटकने वाली जड़ों (Hygroscopic roots) की मदद से वायुमण्डल से नमी का अवशोषण (Absorption) करते हैं। .

(घ)
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(ङ) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 104 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 देखें।

उत्तर 4.
(क) प्रभाविता का नियम इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 48 पर लघु उत्तरीय-I का प्रश्न संख्या 3 देखें।’ एकसंकर संकरण इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 50 पर लघु उत्तरीय-II का प्रश्न संख्या 1 देखें।
(ख) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 10 पर लघु उत्तरीय-I का प्रश्न संख्या 1 देखें।
(ग)

  1. इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 89 पर लघु उत्तरीय-II काप्रश्न संख्या 5 देखें।
  2. इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 87 पर लघु उत्तरीय-I का प्रश्न संख्या 14 देखें।

(घ) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 113 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 देखें।

उत्तर 5.
(क)

  1. इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 120 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 देखें।
  2. इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 117 पर लघु उत्तरीय-II का प्रश्न संख्या 2 देखें।

(ख)

  1. इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 147 पर लघु उत्तरीय-I का प्रश्न संख्या 2 देखें।
  2. इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 48 परं लघु उत्तरीय-I का प्रश्न संख्या 4 देखें।

(ग) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 51 पर लघु उत्तरीय-II का प्रश्न संख्या 5 देखें।
(घ) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 128 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 देखें।

उत्तर 6.
(क) प्लाज्मोडियम नामक परजीवी मलेरिया का रोगजनक या परजीवी है। इसका संक्रमण मादा एनॉफिलीज मच्छर के काटने से होता है। प्लाज्मोडियम का जीवन चक्र के लिए पृष्ठ संख्या 188 पर देखें।
(ख) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 67 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 7 देखें।
(ग)इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 101 पर लघु उत्तरीय-I का प्रश्न संख्या 7 देखें।

(घ) नहीं, प्रायः सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं में प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम नहीं होते हैं। क्योंकि सुकेन्द्रकीय जीवों में, DNA मिथाइलेज नामक एन्जाइम द्वारा मिथाइलीकृत हो जाता है। यह प्रक्रम DNA को प्रतिबन्धन एन्जाइमों से बचाता है। ये एन्जाइम केवल प्राक्केन्द्रकीय जीवों की कोशिका में पाए जाते हैं एवं विषाणु को संक्रमण होने पर उसके DNA को नष्ट कर प्रतिरक्षा तन्त्र की भूमिका निभाते हैं। हालाँकि यीस्ट में प्रतिबन्धन न्यूक्लिएज एन्जाइम पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त DNA द्विगुणन में प्रयुक्त DNA गायरेज़ एन्जाइम भी कुछ सीमा तक प्रतिबन्धन न्यूक्लिएज की भाँति व्यवहार करता है।

उत्तर 7.
इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 33 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 देखें। मानव में शुक्राणु स्खलन से पूर्व शुक्राशय में संचित रहते हैं।
अथवा
वह प्रक्रिया, जिसके द्वारा जीवधारी अपने जैसे जीव उत्पन्न करते हैं अथवा वह प्रक्रिया, जिसके फलस्वरूप अपने वंश व प्रजाति की निरन्तरता को बनाए रखने के लिए माता-पिता द्वारी सन्तान का जन्म होता है, जनन (Reproduction) कहलाती है। यह एक आवश्यक जैव प्रक्रिया है। जन्तुओं में जनन सामान्यतया दो प्रकार से होता है।

  1. अलैगिक जनन
  2. लैंगिक जनन

जन्तुओं में अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction in Animals) जन्तुओं में ‘अलैंगिक जनने बहुत आम नहीं होता है। यह सिर्फ निम्न स्तर के जन्तुओं जैसे में ही देखने को मिलता है। उच्च जन्तुओं में लैंगिक जनन ही मुख्य जनन होता है तथा अलैंगिक जनन मुख्यतया पुनरुद्भवन तक ही सीमित होता है। जन्तुओं में अलैंगिक जनन की विधियाँ निम्नलिखित हैं।
1. विखण्डन (Fission) इस विधि से प्रायः एककोशिकीय जन्तु प्रजनन करते हैं। एककोशिकीय जन्तुओं में कोशिका विभाजन या विखण्डन (Cell division) द्वारा नए जन्तु की उत्पत्ति होती है। विखण्डन की कुछ प्रमुख विधियाँ निम्न हैं।

  • द्विविखण्डन (Binary fission) कुछ प्रोटोजोआ (Protozoa) की कोशिकाएँ विभाजन द्वारा सामान्यतया दो बराबर भागों में विभक्त हो जाती हैं; उदाहरण-अमीबा, पैरामीशियम, आदि। इस प्रक्रिया में पहले केन्द्रक का विभाजन होता है, तत्पश्चात् कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) का विभाजन होता है, जिससे प्रत्येक कोशिका दो सन्तति कोशिकाओं में बँट जाती है।
  • बहुविखण्डन (Multiple fission) कुछ एककोशिकीय जन्तुओं में कोशिकाद्रव्य विभाजित होकर अनेक विखण्ड बना लेते हैं। अनुकूल परिस्थितियों में कोशिका आवरण फटने पर ये विखण्ड मुक्त होकर स्वतन्त्र जीवों के रूप में विकसित हो जाते हैं; उदाहरण- प्लाज्मोडियम।

2. बीजाणुजनन (Sporulation) इस विधि में एककोशिकीय जीव की केन्द्रक कला (Nuclear membrane) कभी-कभी टूट जाती है, जिससे उसमें उपस्थित क्रोमैटिन कण कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) में बिखर जाते हैं। यह क्रोमैटिन कण कोशिकाद्रव्ये के साथ मिलकर बीजाणु (Spores) बनाते हैं, जिससे प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवों के चारों ओर एक कठोर आवरण (Cyst wall) बन जाता है। यह आवरण अनुकूल परिस्थितियों में फट जाता है और बीजाणु मुक्त होकर नए जीव का निर्माण करते हैं। इस प्रकार का अलैगिक जनन मुख्यतया अमीबा में होती है।

3. खण्डन (Fragmentation) सरल संरचना वाले बहुकोशिकीय जन्तुओं में जनन की खण्डन विधि कार्य करती है; उदाहरण-हाइड्रा। इस विधि में जन्त का शरीर सामान्य रूप से विकसित होकर छोटे-छोटे टुकड़ों में खण्डित हो जाता है। तत्पश्चात् प्रत्येक टुकड़ा वृद्धि कर नए जीव की उत्पत्ति करता है।

4.मुकुलन (Budding) इस विधि में शरीर पर एक छोटा-सा उभार बाहर की ओर निकलने लगता है, जिसे मुकुल (Bud) कहते हैं। यह मुकुल धीरे-धीरे बड़ा हो जाता है और जनक जीव से अलग हो जाता है; उदाहरण-हाइड्रा, जिसमें नियमित विभाजन के कारण एक स्थान पर उभार विकसित हो जाता है। यही उभार वृद्धि करता हुआ नए जीव में बदल जाता है तथा पूर्ण विकसित होकर जनक से अलग होकर स्वतन्त्र जीव बने जाता है।

5. पुनरुदभवन (Regeneration) किसी जन्तु के किसी भी भाग को काटकर सामान्यतया नए जन्तु की उत्पत्ति को पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) कहते हैं; उदाहरण-हाइड्रा तथा प्लेनेरिया, आदि जीवों को यदि अनेक टुकड़ों में काट दिया जाए, तो प्रत्येक भाग वृद्धि एवं विभाजन द्वारा विकसित होकर पूर्ण जीव का निर्माण करता है। जन्तुओं में लैंगिक जनन (Sexual Reproduction in Animals) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 13 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 देखें।

उत्तर 8.
इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 77 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 देखें।
अथवा
इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 65 पर दीर्घ उत्तरीयप्रश्न संख्या 5 देखें।

उत्तर 9.
इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 153 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 4 देखें।
अथवा
इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 174 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ” संख्या 2 देखें।

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UP Board Class 12 Chemistry Model Papers Paper 1

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समय : 3 घण्टे 15 मिनट
पूर्णांक : 70

निर्देश प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
नोट

  • इस प्रश्न-पत्र में कुल सात प्रश्न हैं।
  • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न के प्रारम्भ में स्पष्ट उल्लेख है, कि उसके कितने खण्ड करने हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न के अंक उसके सम्मुख अंकित हैं।
  • प्रथम प्रश्न से प्रारम्भ कीजिए और अन्त तक करते जाइए। जो प्रश्न न आता हो, उस पर समय नष्ट न करें।
  • यदि रफ कार्य के लिए स्थान अपेक्षित है, तो उत्तर-पुस्तिका के बाएँ पृष्ठ पर कीजिए और फिर काट (x) दीजिए। उस पृष्ठ पर कोई हल न कीजिए।
  • रचना के प्रश्नों के हल में रचना रेखाएँ न मिटाइए। यदि पूछा गया हो तो रचना के पद अवश्य लिखिए।
  • प्रश्न संख्या 1 के अतिरिक्त सभी प्रश्नों के हल के क्रियापद स्पष्ट रूप से लिखिए। प्रश्नों के हल को उत्तर-पुस्तिका के दोनों ओर लिखिए।
  • जिन प्रश्नों के हल में चित्र खींचना आवश्यक है, उनमें स्वच्छ एवं स्पष्ट चित्र अवश्य खींचिए। चित्र के बिना हल अशुद्ध तथा अपूर्ण माना जाएगा।

इस प्रश्न के प्रत्येक खण्ड में चार विकल्प दिए गए हैं, सही विकल्प चुनकर उसे अपनी उत्तरपुस्तिका में लिखिए।

प्रश्न 1.
(क) जलीय विलयने में क्षारीय प्रबलता का सही क्रम है।
(a) CH3NH2>(CH3)2NH>(CH3)3N>C6H5NH2
(b) (CH3)3 N>(CH3)2 NH>CH3NH2
(c) (CH3)2NH>(CH3)3NH>CH3NH2
(d) (CH3)2NH>CH3NH2 >(CH33N>C6H NHA

(ख) ऐल्किल हैलाइडों की क्रियाशीलता को घटता हुआ क्रम है।
(a) RI > RCl>RBr
(b) RBr > RCI > RI
(c) RI > RBr > RCI
(d) RCI > RBr > RI

(ग) स्टार्च के जल-अपघटन से बनता है।
(a) ग्लूकोस
(b) फ्रक्टोस
(c) सुक्रोस
(d) माल्टोस

(घ) विलयन जिसमें प्रति लीटर 2.54 ग्राम CuSO4, उपस्थित है, की तुल्यांकी चालकता 91.0 ओम-1 सेमी2 तुल्यांक-1 है। इसकी चालकता होगी
(a) 29 × 10-3 ओम-1 सेमी1
(b) 18 × 10-2 ओम-1 सेमी-1
(c) 24 × 10-3 ओम-1 सेमी-1
(d) 36 × 10-3 ओम-1 सेमी-1

(ङ) संचालित वाहनों के टायर निर्मित होते हैं।
(a) निओप्रीन से
(b) ब्यूना-S से
(c) ब्यूना-N से
(d) प्राकृतिक रबड़ से

(च) nA + mB → उत्पाद, वेग = k [A]n[B]m उपरोक्त अभिक्रिया की कोटि होगी।
(a) n – m
(b) n + m
(c) [latex]\frac { n }{ m } [/latex]
(d) [latex]\frac { m }{ n } [/latex]

प्रश्न 2.
(क) प्रति परासरण क्या है? इसका उपयोग लिखिए। [2]
(ख) 24°C पर एक शर्करा विलयन का परासरण दाब 2.5 वायुमण्डल है। विलयन की सान्द्रता ग्राम मोल प्रति लीटर में ज्ञात कीजिए। [2]
(ग) एक संकुल यौगिक को जब सिल्वर नाइट्रेट के साथ अभिक्रिया कराते हैं, तो सिल्वर क्लोराइड का अवक्षेप प्राप्त होता है। इसके विलयन की मोलर चालकता कुल दो आयनों के संगत होती है। यौगिक का नाम तथा संरचना सूत्र दीजिए।
(घ) थायोसल्फ्यूरिक अम्ल तथा डाइथायोनिक अम्ल की संरचना लिखिए। [2]

प्रश्न 3.
(क) एक fcc संरचना वाले धातु की परमाणवीय त्रिज्या 500 पिकोमी है। इसकी मात्रक कोष्ठिका के किनारे की लम्बाई क्या होगी? [2]
(ख) परमाण्विक कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों को भरते समय 3d-कक्षक, 4s-कक्षक से पहले भरी जाती है, परन्तु परमाणु के आयनने के दौरान इसकी बिल्कुल विपरीत होता है। स्पष्ट कीजिए। क्यों? [2]
(ग) थर्मोप्लास्टिक तथा थर्मोसेटिंग बहुलक में क्या अन्तर है? दोनों का एक-एक उदाहरण दीजिए। [2]
(घ) मॉलिश परीक्षण क्या है? यह किस प्रकार किया जाता है? [2]

प्रश्न 4.
(क) ऐमीनो अम्लों की उभयधर्मी प्रकृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। [3]
(ख) मेथिल ऐमीन अमोनिया से अधिक क्षारकीय है। समझाइए क्यों? [3]
(ग) (i) एन्जाइम की क्रियाविधि को दो पदों में समझाइए।
(ii) रासायनिक समीकरण को पूर्ण कीजिए।
UP Board Class 12 Chemistry Model Papers Paper 1 image 1
(घ) (i) M2+ आयन (Z = 27) के लिए “चक्रण-मात्र चुम्बकीय आघूर्ण की गणना कीजिए।
(ii) दो लैन्थेनॉइड तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखकर उनकी ऑक्सीजन अवस्थाएँ भी लिखिए। [3]

प्रश्न 5.
(क)(i) अयस्क तथा खनिजों में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2]
(ii) द्रवस्नेहीं सॉल द्रवविरोधी सॉल की अपेक्षा अधिक स्थायी क्यों होते हैं? [2]
(ख) ऐल्किल हैलाइडों में (C-X) आबन्ध की प्रकृति तथा प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं की क्रियाविधि उदाहरण सहित समझाइए। [4]
(ग) (i) ठोस उत्प्रेरकों को चूर्ण रूप में क्यों प्रयुक्त किया जाता है? [2]
(ii) समांगी तथा विषमांगी उत्प्रेरण को उदाहरण द्वारा समझाइए। [2]
(घ) 0.2 ग्राम ऐसीटिक अम्ल के 20.0 ग्राम बेन्जीन में बने विलयन का हिमांक 0.45°C घट जाता है। बेन्जीन में ऐसीटिक अम्ल के द्विलकीकरण की मात्रा की गणना कीजिए।
(बेन्जीन के लिए, Kf = 5.12 केल्विन मोल’ किग्रा) [4]

प्रश्न 6.
(क) (i) पुराने मकान की खिड़कियों के शीशे नीचे से मोटे तथा दूधिया हो जाते हैं, क्यों?
(ii) अक्रिस्टलीय ठोस को परिभाषित कीजिए तथा इसके दो उदाहरण दीजिए।
(iii) 1.00 ग्राम द्रव्यमान के NaCl के घनीय आदर्श क्रिस्टल में कितने इकाई सेल उपस्थित हैं ? [Na = 23, Cl = 355] [5]
अथवा
(i) अणुसंख्य गुणों द्वारा मापन करने पर कुछ विलेय के मोलर द्रव्यमान असामान्य क्यों प्राप्त होते हैं? वाण्ट हॉफ गुणक के आधार पर इसकी व्याख्या कीजिए। [2]
(ii) एक यौगिक के 4,18 ग्राम को 240 ग्राम जल में घोलने पर एक वायुमण्डल दाब पर विलयन का क्वथनांक 100,56°C है। यौगिक के अणुभार की गणना कीजिए।(100 ग्राम जल का आण्विक उन्नयन स्थिरांक K=531 है।) [3]

(ख) (i) कुछ प्राथमिक ऐल्कोहॉलों का ऑक्सीकरण करने पर एस्टर का निर्माण होता है, क्यों? [2]
(ii) एस्टरीकरण की अभिक्रिया लिखिए।
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अथवा
(i) निम्नलिखित से ऐसीटोन के निर्माण के लिए रासायनिक समीकरण दीजिए। [2]
(a) द्वितीयक ऐल्कोहॉल से (b) कार्बोक्सिलिक अम्ल से
(ii) स्टीफन अभिक्रिया को समीकरण लिखिए।
(iii) जब साइक्लोहेक्सेन कार्बोल्डिहाइड निम्नलिखित से अभिक्रिया करता है, तो बनने वाला उत्पाद होगा।
(a) PhMgBr तथा H3O+
(b) टॉलेन अभिकर्मक

प्रश्न 7.
(क) (i) ग्रिग्नार्ड अभिकर्मक का उपयोग करते समय नमी के थोड़े अंशों से भी बचना क्यों आवश्यक है? [2]
(ii) निम्नलिखित अभिक्रिया को पूर्ण कीजिए।
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अथवा
(i) यौगिक ‘A’ क्षारीय KMnO4 के साथ यौगिक ‘B’ के ऑक्सीकरण द्वारा बनाया गया। यौगिक ‘A’ लीथियम ऐलुमिनियम हाइड्राइड के साथ अपचयन पर वापस यौगिक ‘B’ में परिवर्तित हो जाता है। जब यौगिक ‘A’ को H2SO4 की उपस्थिति में, यौगिक ‘B’ के साथ गर्म करते हैं, तो यह फलों की सुगन्ध वाले यौगिक C को उत्पन्न करता है। यौगिक ‘A’, ‘B’ तथा ‘C’ किस परिवार से सम्बन्धित है?
(ii) निम्नलिखित में कैसे विभेद करेंगे?
फॉर्मिक अम्ल और ऐसीटिक अम्ल [2]

(ख) (i) डेटॉल में पूतिरोधी गुण किस रसायन के कारण होता है? [1]
(ii) ऐस्प्रिन औषधि हृदयाघात से बचाती है। स्पष्ट कीजिए। [2]
अथवा
ऐस्प्रिन एक दर्द में आराम देने वाली ज्वररोधी औषधि है किन्तु दिल के दौरे अर्थात् हृदयाघात रोकने में उपयोग की जा सकती है। समझाइए। [2]
(iii) साबुन की निर्मलन (शोधन) क्रिया मिसेल सिद्धान्त के आधार पर चित्र की सहायता से समझाइए। [2]
अथवा
(i) निम्न घनत्व पॉलिथीन (LDPE) किस प्रकार बनाया जाता है? इसके दो उपयोग लिखिए। [2]
(ii) निम्नलिखित बहुलकों को बनाने वाले एकलकों के नाम लिखिए।
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Solutions

उत्तर 1.
(क) (d) +I प्रभाव, संयुग्मी अम्ल के स्थायित्व तथा त्रिविम बाधकता के कारण विभिन्न मेथिल ऐमीनो की क्षारीय प्रबलता का क्रम 20>1″> 3 ऐमीन होता है। अतः सही क्रम निम्न हैं
(CH3)2NH > CH3NH2 > (CH3)3N > C6H5NH2

(ख) (c) R-I आबन्ध की वियोजन ऊर्जा सबसे कम होती है, अतः यह सबसे दुर्बल प्रकृति का होता है। वियोजन ऊर्जा का क्रम
R – Cl > R – Br > R – I है।
अतः क्रियाशीलता का क्रम RI > RBr > RCI है।
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(ङ) (b) स्टाइरीन ब्यूटाड़ाइन रबड़ (SBR या ब्यूना -S) का उपयोग संचालित वाहनों के टायर, ट्यूब, आदि बनाने में किया जाता है।
(च) (b) वेग नियम में निहित सभी अभिकारकों की सान्द्रताओं की घातों के योग को उस अभिक्रिया की कोटि कहते हैं।
अतः दी गयी अभिक्रिया की कोटि = n + m होगी

उत्तर 2.
(क) यदि परासरण दाब से अधिक दाब विलयन पर लगाया जाता है, तो विलायक के अणु विलयन (अधिक सान्द्रता) से शुद्ध विलायक (कम सान्द्रता) की ओर प्रवाहित होने लगता है।
चूँकि यह प्रक्रिया, परासरण की क्रिया के विपरीत दिशा में होती है, इसलिए यह क्रिया व्युत्क्रम परासरण कहलाती है। इस प्रक्रम का प्रयोग समुद्री जल प्राप्त करने के लिए तथा घरों में शुद्ध पेयजल प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

(ख) दिया है, π = 2.5 वायुमण्डल
T = 24 + 273 = 297 केल्विन
S = 0.0821ली वायुमण्डल डिग्री-1 मोल-1
हम जानते हैं, परासरण दाब, π = CST
या C = [latex]\frac { \pi }{ ST } [/latex] = [latex]\frac { 2.5 }{ 0.0821\times 297 } [/latex] = 0.1025 ग्राम-मोल ली-1
अतः शर्करा विलयन की सान्द्रता 01025 ग्राम मोल ली है।

(ग) AgNO3 के साथ सफेद अवक्षेप का निर्माण दर्शाता है, कि कम से कम एक Cl आयन समन्वये मंडल के बाहर उपस्थित है। पुनः केवल दो आयन विलयन में प्राप्त होते हैं अतः केवल एक Cl समन्वय मंडल के बाहर होगा, अतः संकुल का सूत्र [Co(H2O)4Cl2] Cl है तथा इसका नाम टेट्रापेक्वाडाइक्लोरोकोबाल्ट (III) क्लोराइड है।
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उत्तर 3.
(क) fee संरचना के लिए, r = [latex]\frac { a }{ 2\sqrt { 2 } } [/latex], a = r × 2√2,
a = 500 × 2√2,
a = 500 × 2 × 1.414
a = 1414 पिकोमी

(ख) n + l नियम कक्षकों में (n + l) मानों के बढ़ते क्रम में इलेक्ट्रॉन भरे जाते हैं अर्थात् उच्च (n+l) मान की अपेक्षाकृत निम्न (n+l) मान वाली कक्षक पहले भरी जाती है।
उदाहरण 3d = n + l = 3 +2 = 5;
4s = n + l = 4 + 0 = 4
अतः इलेक्ट्रॉन 4s-कक्षक में प्रवेश करेगा।
परमाणु के आयनन के लिए आयनन एन्थैल्पी उत्तरदायी है। 4s इलेक्ट्रॉन नाभिक से ढीले बँधे होते हैं, जिस कारण 3d की अपेक्षा 4s से इलेक्ट्रॉन पहले हट जाता है।
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(घ) मॉलिश परीक्षण यह कार्बोहाइड्रेट की उपस्थित के विषय में पता लगाने के लिए प्रयुक्त होता है। पदार्थ के जलीय विलयन (2 मिली) में 2 मिली मॉलिश अभिकर्मक (α- नैफ्थॉल का एथिल ऐल्कोहॉल में 10% विलयन) डालो, फिर परखनली को बिना हिलाए बहुत सावधानी से परखनली की दीवार के सहारे बूंद-बूंद करके H2SO4 डालने पर दो पतों के बीच में लाल या भूरे रंग का छल्ला बनता है, जो कुछ समय बाद बैंगनी रंग का हो जाता है, तो काबोहाइड्रेट निश्चित है।

उत्तर 4.
(क) ऐमीनो अम्ल, क्षारीय प्रकृति का ऐमीनो (-NH2) समूह तथा अम्लीय प्रकृति का कार्बोक्सिल (-COOH) समूह रखते हैं। जलीय माध्यम में -NH2 समूह एक प्रोटॉन ग्रहण करता है तथा –COOH समूह एक प्रोटॉन मुक्त करता है। जिसके फलस्वरूप एक द्विध्रुवीय आयतन बनती है, जिसे ज्विटर आयन कहते हैं। इस रूप में ऐमीनो अम्ले, अम्ल तथा क्षार दोनों के समान व्यवहार करता है। अतः ये प्रकृति में उभयधर्मी होते हैं।
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(ख) अमोनिया में इलेक्ट्रॉन युग्म रखने वाला नाइट्रोजन परमा तीन हाइड्रोजन परमाणुओं से जुड़ा होता है, जबकि मेथिल ऐमीन में यह एक ऐल्किल समूह भी जुड़ा होता है। ऐल्किल समूह के धनात्मक प्रेरणिक प्रभाव के द्वारा नाइट्रोजन परमाणु के इलेक्ट्रॉन घनत्व में वृद्धि हो जाती है। परिणामस्वरूप मेथिल ऐमीन अमोनिया की तुलना में अधिक सरलता से इलेक्ट्रॉन युग्म का दान कर सकती है। यही कारण है कि मेथिल ऐमीन अमोनिया से अधिक क्षारकीय होती है।
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(ग) (i) एन्जाइम की क्रियाविधि निम्न दो पदों में सम्पन्न होती है।
पद I  एन्जाइम (E) तथा अभिकारक (S) से मध्यवर्ती संकुल को निर्माण
E+ S →[ES]
पद II  [ES] → EP (एन्जाइम उत्पाद जटिल)
EP → E + P (उत्पाद)
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यहाँ A = NH3 + Cu2O तथा 200°C व उच्चदाब
B = NaNO2/HCl वे 0-5°C

(घ) (i) 27M = [Ar] 3d74s2
M2+ = [Ar] 3d74s0
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अतः d-कक्षक में इलेक्ट्रॉन भरने पर तीन अयुग्मित इलेक्ट्रॉन प्राप्त होते हैं, अतः n = 3
चुम्बकीय आघूर्ण (µ) = [latex]\sqrt { n(n+2) }[/latex] BM
µ = [latex]\sqrt { 3(3+2) }[/latex] = √15 = 3.87 BM

(ii) लैन्थेनम (57Lu) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (Xe] 5d1, 6s2 है। यह अपने यौगिकों में + 2 और + 3 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ दर्शाता है। सीरियम Ce का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 4f1,5d16s2 है।
इसकी ऑक्सीकरण अवस्था + 1 एवं + 2 हैं।

उत्तर 5.
(क) (i) खनिज अधिकांश धातुएँ प्रकृति में अपने यौगिकों के रूप में अन्य अशुद्धियों के साथ चट्टानों की ऊपरी सतह में पायी जाती हैं, जिन्हें खनिज (Mineral) कहते हैं।
अयस्क वे खनिज जिनसे धातुओं का निष्कर्षण सरल तथा आर्थिक रूप से लाभदायक हो, अयस्क कहलाते हैं। सभी अयस्क खनिज होते हैं। उदाहरण बॉक्साइट (Al2O3 . 2H2O) आदि।
(ii) द्रवस्नेही सॉल अत्यधिक जलयोजित होते हैं तथा जलयोजन के कारण ये अत्यधिक स्थिर होते हैं और सरलता से स्कन्दित नहीं होते हैं। इसके विपरीत द्रवविरोधी सॉल सरलता से स्कन्दित हो जाते हैं, जिसके कारण ये कम स्थायी होते हैं।

(ख) C-X आबन्ध की प्रकृति हैलोऐल्केन में C–X आबन्ध का निर्माण कार्बन के sp3-संकरित कक्षक तथा हैलोजन के np- अपूर्ण कक्षक के अतित्र्यापन द्वारा होता है। चूंकि कार्बन की तुलना में हैलोजन परमाणु अधिक विद्युतऋणात्मक होता है अतः C.-X आबन्ध ध्रुवीय होता है, जिस कारण इनकी क्रियाशीलता उच्च होती है।
C–X आबन्ध की प्रबलता वियोजन ऊर्जा पर निर्भर करती है। इनकी आबन्ध वियोजन ऊर्जा का क्रम C-F>C-Cl>C-Br>C-I होता है।
अत: C-I आबन्ध सबसे दुर्बल प्रकृति का होता है।
जिस कारण नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं में ऐल्किल हैलाइडों, (R-X) की क्रियाशीलता का क्रम इस प्रकार है।
R-I > R—Br > R-Cl > R-F अर्थात् R-I की क्रियाशीलता सबसे अधिक है।
अधिक क्रियाशीलता के कारण ऐल्किल हैलाइड (आयोडाइड) प्रकाश में रखने पर आयोडीन में अपघटित होने के कारण बैंगनी या भूरे रंग के हो जाते हैं।
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नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ
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(ग) (i) सामान्यतया ठोस उत्प्रेरकों को चूर्ण रूप में प्रयुक्त किया जाता है, क्योंकि उत्प्रेरक के जितने अधिक टुकड़े होंगे, उतनी ही अधिक मुक्त संयोजकताएँ बढ़ेगी, अर्थात् पृष्ठ क्षेत्रफल बढ़ेगा। इसके फलस्वरूप प्रत्येक की कार्य क्षमता बढ़ती हैं।
(ii) समांगी उत्प्रेरण जब किसी रासायनिक अभिक्रिया में उत्प्रेरक व अभिकारक समान प्रावस्था में होते हैं, तो उत्प्रेरण समांगी उत्प्रेरण कहलाता है।
उदाहरण CH3COOCH3 (aq) + H2O (l) [latex]\underrightarrow { HCl(aq) } [/latex] CH3COOH (aq) + CH3OH (aq)
विषमांगी उत्प्रेरण जब किसी रासायनिक अभिक्रिया में उत्प्रेरक व अभिकारक भिन्न-भिन्न प्रावस्थाओं में होते हैं, तो उत्प्रेरण विषमांगी उत्प्रेरण कहलाता हैं।
N2(g) + 3H2(g) [latex]\underrightarrow { Fe(s) } [/latex] 2NH3 (g)
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उत्तर 6.
(क) (i) पुराने मकानों में लगी खिड़कियों के शीशे नीचे से मोटे तथा दूधिया हो जाते हैं, क्योंकि काँच एक छद्म ठोस है तथा गुरुत्व के प्रभाव में मन्द गति से नीचे की ओर बहने लगता है।
(ii) वे ठोस जिनमें अवयवी कणों की कोई निश्चित एवं नियमित व्यवस्था नहीं होती है अर्थात् अवयवी कणों की लघु परासी व्यवस्था पायी जाती है, अक्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं।
जैसे-काँच, रबड़ प्लास्टिक, आदि।

(iii) 1 ग्राम में अणुओं या इकाई सूत्रों की संख्या .
= [latex]\frac { 1 }{ 58.5 } [/latex] × 6.023 × 1023
= 1.029 × 1022
जहाँ, NaCl का सूत्रभार = 23+35.5 = 58.5
इकाई सेल में 4 Na+ आर्यन और 4 Cl आयन होते हैं।
इकाई सेल = [latex]\frac { { 1029\times 10 }^{ 22 } }{ 4 }[/latex]
= 2.57 × 1021 इकाई सेल
अथवा

(i) कुछ यौगिक (विलेय) विलायकों में घोलने पर अपघटित अथवा संगुणित हो जाते हैं। उदाहरण एथेनॉइक अम्ल के अणुओं का बेन्जीन में हाइड्रोजन आबन्ध बनने के कारण द्वितयन हो जाता है जबकि जल में ये आयन में अपघटित हो जाते हैं। इसके कारण विलयन में रासायनिक स्पीशीज की संख्या, विलयन में मिलाये गये विलेय की रासायनिक स्पीशीज की संख्या की अपेक्षा घट या बढ़ जाती है। चूंकि अणुसंख्य गुणों का मान विलेय के कणों की संख्या पर निर्भर करता है। अतः अणुसंख्य गुणों द्वारा मापन करने पर विलेय का मोलर द्रव्यमान इसके सामान्य मान की अपेक्षा कम या अधिक हो सकता है। इसे ही विलेय का असामान्य मोलर द्रव्यमान कहते हैं। वाण्ट हॉफ ने वियोजन और संयोजन की सीमा के निर्धारण के लिए एक गुणक, i प्रतिपादित किया, जिसे वाण्ट हॉफ गुणक भी कहते हैं।
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(ii) प्रश्नानुसार,
यौगिक का भार, w = 4.18 ग्राम
जल का भार, W =240 ग्राम
क्वथनांक में उन्नयन, ΔTb = 100.65 – 100 = 0.65
यौगिक का अणुभार (m) =
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Kb = जल का आण्विक उन्नयन स्थिरांक = 5.31
w = यौगिक (विलेय) पदार्थ की मात्रा = 418 ग्राम
W = विलायक (जल) की मात्रा = 240 ग्राम
ΔTb = क्वथनांक में उन्नयन = 065
मान रखने पर, m = [latex]\frac { 1000\times 4.18\times 5.31 }{ 0.65\times 240 } [/latex] = 142.28

(ख) (i) कुछ प्राथमिक ऐल्कोहॉल ऑक्सीकरण पर एस्टर बनाते हैं। ऐसा हेमीऐसीटेल बनने के कारण होता है, जो एस्टर में ऑक्सीकृत हो जाता है।
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(ii) जब कार्बोक्सिलिक अम्ल सान्द्र H2SO4 की उपस्थिति में ऐल्कोहॉल से क्रिया करता है, तो एस्टर का निर्माण होता है। यह अभिक्रिया एस्टरीकरण कहलाती है।
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उत्तर 7.
(क) (i) ग्रिग्नार्ड अभिकर्मक एक ध्रुवीय अणु (R-MgX) है। अतः ग्रिग्नार्ड अभिकर्मक अत्यन्त क्रियाशील होते हैं तथा जल (प्रोटॉन का एक उत्तम स्रोत) के साथ क्रिया कर हाइड्रोकार्बनों को देते हैं।
RMgX + H2O → RH + Mg(OH)X
अतः प्रिग्नार्ड अभिकर्मक का उपयोग करते समय नमी के अंशों से बचना चाहिए।
(ii) (a) A = R-CN, B = R-CH2-NH2.(अपचयन)
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(ख) (i) डेटॉल में पूतिरोधी गुण क्लोरोजाइलिनॉल के कारण होता है।
(ii) ऐस्प्रिने रक्त स्कन्दनरोधी होती है। इसका उपयोग हृदयाघात को रोकने के लिए भी किया जाता है, क्योंकि यह रक्त स्कन्दन को कम करती है तथा रक्त को तरल करती है। जिससे रक्त सुचारू रूप से शरीर में प्रवाहित होता रहता है और हम हृदयाघात से बच जाते हैं।
(iii) साबुन दीर्घ श्रृंखला वाले वसा अम्लों के सोडियम अथवा पोटैशियम लवण (RCOONa अथवा RC00K) होते हैं। इन्हें जेल में घोलने पर ये आयनित हो जाते हैं।
RCO0Na [latex]\rightleftharpoons[/latex] RCOO + Na+
पुनः RCOO दो भाग, लम्बी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला R (जलविरोधी) तथा कार्बोक्सिल समूह COO (जलस्नेही) से मिलकर बना होता है।
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अथवा
(i) 350 से 570 K ताप पर एवं 1000 से 2000 वायुमण्डलीय दाब पर ऑक्सीजन या परॉक्साइड की थोड़ी-सी मात्रा की उपस्थिति में एथीन का बहुलकीकरण कराने पर निम्न घनत्व पॉलिथीन प्राप्त होती है।
यह बहुलकीकरण मुक्त मूलक क्रियाविधि द्वारा सम्पन्न होता है, जिसमें हाइड्रोजन परमाणु का निष्कासन होता है।
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इसका उपयोग विद्युत वाहक तारों के विद्युत अवरोधन करने के लिए तथा लचीले पाइप, खिलौने, बोतल, आदि को बनाने में किया जाता है।
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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 14 Tax

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 14 Tax (कर) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 14 Tax (कर).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 14
Chapter Name Tax (कर)
Number of Questions Solved 49
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 14 Tax (कर)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
कर क्या है ? एक अच्छी कर-प्रणाली के गुण बताइए। [2009, 10, 14, 15]
उत्तर:
कर का अर्थ – कर एक अनिवार्य अंशदान है जो करदाता सरकार को देता है, करदातों को कर के बदले में प्रत्यक्ष लाभ का कोई आश्वासन नहीं दिया जाता है। करों का उपयोग सार्वजनिक हित में किया जाता है।

कर की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
डॉ० डाल्टन के अनुसार, “कर किसी सार्वजनिक सत्ता द्वारा लगाया हुआ एक अनिवार्य अंशदान है, चाहे इसके बदले में करदाता को उसकी सेवाएँ प्रदान की गयी हों अथवा नहीं। यह कर किसी कानूनी अपराध की संज्ञा के रूप में नहीं लगाया जाता है।”
प्रो० टेलर के शब्दों में, “वे अनिवार्य भुगतान जो सरकार को बिना किसी प्रत्यक्ष लाभ की आशा में करदाता द्वारा दिये जाते हैं, कर हैं।’
फिण्डले शिराज के अनुसार, “कर सरकारी अधिकारियों द्वारा वसूल किये जाने वाले वे अनिवार्य अंशदान हैं जो सार्वजनिक व्यय को पूरा करने के लिए वसूल किये जाते हैं और जिनका किसी विशेष लाभ से कोई सम्बन्ध नहीं होता।”

कर के लक्ष्ण अथ्वा विशेषताएँ
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कर में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं

  1.  कर एक अनिवार्य अंशदान या भुगतान है जिसका भुगतान करदाता को अवश्य करना पड़ता है।
  2. सरकार द्वारा कर से प्राप्त आय का प्रयोग सार्वजनिक हित के लिए किया जाता है।
  3. सरकार करदाता को कर के बदले में प्रत्यक्ष लाभ प्रदान करने का कोई आश्वासने नहीं देती है। अर्थात् यह आवश्यक नहीं कि करदाता को उसी अनुपात से लाभ हो, जिस अनुपात में उसने कर दिये हैं।
  4.  करों के भुगतान में करदाता को त्याग करना पड़ता है।
  5. सरकार सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने हेतु अतिरिक्त करारोपण कर सकती है; जैसे-शराब, अफीम आदि मादक पदार्थों पर रोक लगाने हेतु।
  6.  सरकार समाज में धन के समान वितरण हेतु करारोपण में वृद्धि एवं कमी कर सकती है।

एक अच्छी कर-प्रणाली के गुण विशेषताएँ
एक अच्छी कर-प्रणाली में निम्नलिखित गुण होने चाहिए

  1.  कर-प्रणाली सरल एवं सुविधाजनक होनी चाहिए, जिससे करदाता को कर का भुगतान करने में मानसिक कष्ट न हो।
  2.  एक अच्छी कर-प्रणाली अधिकतम सामाजिक लाभ के सिद्धान्त पर आधारित होती है।
  3.  कर-प्रणाली प्रगतिशील होनी चाहिए! अर्थात् कर-प्रणाली ऐसी हो जिससे कर का भार धनी वर्ग पर अधिक व निर्धन वर्ग पर कम पड़े।
  4. एक अच्छी कर-प्रणाली में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के करों का समावेश होता है।
  5. एक अच्छी कर-प्रणाली में लोच का गुण पाया जाता है। अर्थात् आवश्यकतानुसार करों की मात्रा में वृद्धि व कमी की जा सके।
  6.  कर-प्रणाली मितव्ययी होनी चाहिए।
  7.  एक अच्छी कर-प्रणाली विलासिता एवं मादक वस्तुओं के उपभोग को हतोत्साहित करती है।
  8. बचत एवं पूँजी-निर्माण को प्रोत्साहित करना अच्छी कर-प्रणाली का गुण है।
  9. एक अच्छी कर-प्रणाली आर्थिक विकास को गति प्रदान करती है।
  10.  एक अच्छी कर-प्रणाली में उत्पादकता का गुण होता है।
  11.  एक अच्छी कर-प्रणाली में करों का भार समाज पर कम पड़ता है।
  12.  कर-प्रणाली में निश्चितता का गुण भी होना चाहिए।

अत: एक अच्छी कर-प्रणाली के लिए आवश्यक है कि उसमें करारोपण के आधारभूत सिद्धान्तों; जैसे- समानता, निश्चितता, मितव्ययिता, सुविधा, लोच, उत्पादकता आदि गुणों का होना आवश्यक है।

प्रश्न 2
प्रत्यक्ष करों से आप क्या समझते हैं ? प्रत्यक्ष करों के गुण और दोषों की विवेचना कीजिए। [2007, 10, 11, 12, 13, 16]
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर
जब किसी कर का करापात (Impact of Tax) और करों का भार (Tax Incidence) एक ही व्यक्ति पर पड़ता है, तो वह करे प्रत्यक्ष कर कहलाता है।
प्रत्यक्ष कर जिस व्यक्ति पर लगाए जाते हैं, उसका भुगतान उसी व्यक्ति द्वारा किया जाता है। करदाता उसका भार दूसरों पर नहीं टाल (Shift) सकता है।

  1. प्रो० जॉन स्टुअर्ट मिल के अनुसार, “प्रत्यक्ष कर उन्हीं व्यक्तियों से लिया जाता है जिनसे उन्हें लेने का सरकार का उद्देश्य है।”
  2.  प्रो० डाल्टन के अनुसार, “प्रत्यक्ष कर का भुगतान वास्तव में वही व्यक्ति करता है जिस पर यह वैधानिक रूप से लगाया जाता है।”
  3.  प्रो० जे० के० मेहता के अनुसार, “प्रत्यक्ष कर वह है जो पूर्णरूपेण उस व्यक्ति द्वारा चुकाया जाता है जिस पर वह लगाया जाता है।”

प्रत्यक्ष कर के उदाहरण, आय कर, उत्तराधिकार कर, निगम कर, मृत्यु कर, उपहार कर, कृषि आय-कर आदि।

प्रत्यक्ष करों के गुण (लाभ)
प्रत्यक्ष करों के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं

  1. न्यायपूर्ण – प्रत्यक्ष कर न्यायपूर्ण होते हैं, क्योंकि ये कर व्यक्तियों की करदान क्षमता के आधार पर लगाये जाते हैं। इन करों का भार धनी वर्ग पर अधिक तथा निर्धनों पर कम पड़ती है। प्रत्यक्ष कर की दरें बहुधा प्रगतिशील होती हैं।
  2.  मितव्ययिता – प्रत्यक्ष करों में मितव्ययिता पायी जाती है, क्योंकि इन करों को वसूल करने में राज्य को अधिक व्यय नहीं करना पड़ता है।
  3. निश्चितता – प्रत्यक्ष करों में निश्चितता का गुण भी पाया जाता है, क्योंकि इन करों के सम्बन्ध में करदाता को पूर्ण जानकारी रहती है।
  4. लोचता – प्रत्यक्ष कर लोचदार होते हैं। सरकार इन करों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर सकती है।
  5.  नागरिक चेतना – प्रत्यक्ष कर नागरिक स्वयं जमा करता है तथा स्वयं ही उसका भार वहन करता है। इस कारण वह यह जानने का प्रयास करता है कि दिये गये कर का उपयोग सार्वजनिक हित के कार्यों में हो रहा है अथवा नहीं। इस प्रकार कर का भुगतान करने के पश्चात् व्यक्ति में आदर्श नागरिकता एवं कर्तव्यपरायणता की भावना जागृत होती है।
  6. उत्पादकता – प्रत्यक्ष कर उत्पादक होते हैं। करों की मात्रा में थोड़ी-सी वृद्धि से ही अधिक आय प्राप्त हो जाती है जिसका उपयोग देश के आर्थिक विकास में किया जा सकता है।
  7. समानता – प्रत्यक्ष कर प्रगतिशील होते हैं। ये कर धनी व्यक्तियों पर अधिक मात्रा में तथा निर्धन वर्ग पर कम मात्रा में लगाये जाते हैं। इस प्रकार प्रत्यक्ष कर आर्थिक असमानता समाप्त कर समाज में समानता लाने का प्रयास करते हैं।

प्रत्यक्ष करों के दोष (हानियाँ)
प्रत्यक्ष करों के दोष निम्नलिखित हैं

1. करों की चोरी – प्रत्यक्ष करों में सबसे बड़ा अवगुण यह है कि व्यक्ति इन करों का भुगतान ईमानदारी के साथ नहीं करते हैं। समाज में अधिक आय प्राप्त करने वाले वर्ग एवं व्यापारी वर्ग झूठे हिसाब-किताब बनाकर व अपनी आय कम प्रदर्शित करके करों से बचने का प्रयास करते हैं।

2. असुविधाजनक – प्रत्यक्ष कर असुविधाजनक व कष्टप्रद होते हैं। करदाता को आय-व्यय का विवरण तैयार कर अधिकारी के सम्मुख रखना पड़ता है तथा उसे पूर्ण रूप से सन्तुष्ट करना पड़ता है। कर अधिकारी के सन्तुष्ट न होने पर करदाता को पर्याप्त असुविधा होती है।

3. बेईमानी को प्रोत्साहन – प्रत्यक्ष कर का भार सच्चे व ईमानदार व्यक्तियों पर अधिक पड़ता है, क्योंकि बेईमान व्यक्ति झूठे हिसाब-किताब व रिश्वत द्वारा इन करों से बच जाते हैं। अन्य व्यक्ति भी इन करों से बचने का मार्ग ढूंढ़ने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार इन करों से बेईमानी व भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिलता है।

4. करों की मनमानी दरें – प्रत्यक्ष करों की दरें सरकार स्वेच्छापूर्वक निर्धारित करती है। इन करों के निर्धारण में किसी प्रकार का वैधानिक आधार नहीं होता है। राज्य या सरकार द्वारा कभी-कभी उच्च करारोपण से उद्योग-धन्धे बन्द हो जाते हैं तथा उच्च करों की दर से प्रभावित होकर लोग अपनी आय में वृद्धि करना तथा उत्पादन कार्य बन्द कर देते हैं।

5. प्रत्यक्ष कर निर्धन वर्ग पर नहीं लगाये जा सकते – प्रत्यक्ष कर सभी नागरिकों के ऊपर नहीं लगाये जाते हैं। एक निश्चित सीमा से कम आय वाले लोग इन करों से मुक्त रहते हैं। नैतिक दृष्टि से यह उचित नहीं है। इस कर के कारण समाज धनी वर्ग एवं निर्धन वर्ग में विभक्त हो जाता है। कुछ समय पश्चात् इन वर्गों में संघर्ष प्रारम्भ हो जाता है।

6. सीमित क्षेत्र – प्रत्यक्ष कर कुछ व्यक्तियों से लिया जाता है। इस प्रकार आय के लिए समाज के कुछ थोड़े-से व्यक्तियों ( धनी वर्ग) पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

7. अफसरशाही – प्रत्यक्ष करों के सम्बन्ध में अधिकांश निर्णय अधिकारियों द्वारा लिये जाते हैं। निर्णय करने में अधिकारीगण भ्रष्ट तरीके अपनाते हैं, जिससे समाज में अफसरशाही का बोलबाला रहता है।

8. अपर्याप्त आय – प्रत्यक्ष करों से प्राप्त आय अधिकांशत: बहुत कम होती है। फलतः सार्वजनिक आय का थोड़ा-सा ही अंश इन करों से प्राप्त होता है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रत्यक्ष करों के उपर्युक्त दोष प्रशासनिक कार्य-प्रणाली के कारण हैं, सिद्धान्तों के कारण नहीं। अत: इन दोषों के बावजूद ये कर अत्यधिक लाभदायक माने जाते हैं।

प्रश्न 3
अप्रत्यक्ष करों से आप क्या समझते हैं? इनके गुण एवं दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परोक्ष कर या अप्रत्यक्ष कर
अप्रत्यक्ष कर वे कर होते हैं जिनका करापात एक व्यक्ति पर तथा कराघात का भुगतान या कर भार दूसरे व्यक्ति पर पड़ता है अर्थात् सरकार द्वारा कर जिस व्यक्ति पर लगाया जाता है, वह कर के भार को दूसरे व्यक्ति के ऊपर टाल देता है।
परोक्ष करों की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं।

  1.  प्रो० डाल्टन के अनुसार, “परोक्ष कर एक व्यक्ति पर लगाया जाता है, किन्तु उसका भुगतान पूर्णतयों या आंशिक रूप से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है।’
  2.  प्रो० जे० एस० मिल के अनुसार, “परोक्ष कर एक ऐसे व्यक्ति से इस आशा से लिया जाता है कि वह इसे किसी दूसरे व्यक्ति से वसूल कर अपनी क्षतिपूर्ति कर लेगा।’

अप्रत्यक्ष करों के उदाहरण – बिक्री कर, आयात-निर्यात कर, उत्पादन कर, मनोरंजन कर आदि।
अप्रत्यक्ष करों के गुण (लाभ) अप्रत्यक्ष करों के गुण निम्नलिखित हैं।

1. सुविधाजनक – अप्रत्यक्ष कर सुविधाजनक होते हैं, क्योंकि करदाता को कर का भुगतान करते समय इस बात का आभास नहीं होता कि वह कर का भुगतान कर रहा है। कर वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य में ही सम्मिलित रहते हैं; अत: करदाता को इनका भार अनुभव नहीं होता है। सरकार के लिए भी ये सुविधाजनक रहते हैं, क्योंकि सरकार इन करों को उत्पादकों या व्यापारियों से प्रत्यक्ष रूप से सरलतापूर्वक प्राप्त कर लेती है।

2. करवंचन कठिन होता है – अप्रत्यक्ष करों की करदाता चोरी नहीं कर पाता है, क्योंकि ये कर वस्तुओं के मूल्य में सम्मिलित होते हैं। जब कोई उपभोक्ता वस्तुएँ खरीदता है तो उसे ये कर आवश्यक रूप से देने पड़ते हैं। ये कर उत्पादकों एवं व्यापारियों द्वारा राजकोष में जमा किये जाते हैं।

3. न्यायपूर्ण – ये कर न्यायपूर्ण होते हैं, क्योंकि समाज का प्रत्येक व्यक्ति इन करों का भुगतान करता है। जो व्यक्ति अधिक वस्तुओं एवं सेवाओं का उपयोग करता है उसे अधिक कर देने पड़ते हैं। तथा जो व्यक्ति वस्तुओं एवं सेवाओं का कम प्रयोग करता है उसे कम करों का भुगतान करना पड़ता है। इस प्रकार ये कर प्रत्यक्ष करों की अपेक्षा श्रेष्ठ माने जाते हैं।

4. सामाजिक हित की दृष्टि से उत्तम – अप्रत्यक्ष कर सामाजिक लाभ की दृष्टि से उत्तम होते हैं, क्योंकि सरकार करों की मात्रा में वृद्धि करके इस प्रकार की उपभोग वस्तुओं के प्रयोग को हतोत्साहित कर सकती है जिनका समाज पर कुप्रभाव पड़ता है; जैसे – शराब, गाँजा, अफीम आदि मादक पदार्थों पर उच्च कर लगाकर इनके उपयोग को कम किया जा सकता है।

5. लोचदार – अप्रत्यक्ष करों की प्रकृति लोचदार होती है, आवश्यक वस्तुओं पर कर में थोड़ी-सी वृद्धि करके सरकार अपनी आय में वृद्धि कर सकती है।

6. विस्तृत आधार – अप्रत्यक्ष करों का आधार विस्तृत होता है, क्योंकि सरकार को अनेक स्रोतों से आय प्राप्त होती है। सरकार अनेक मदों पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कर लगाकर, अधिक आय प्राप्त करने में सफल रहती है।

अप्रत्यक्ष करों के दोष (हानियाँ)
अप्रत्यक्ष करों के दोष निम्नलिखित हैं

1. कर-भार परिवर्तन से हानि – अप्रत्यक्ष करों में कर का भार एक-दूसरे पर टालने का प्रयास किया जाता है, जिसके कारण अन्तिम व्यक्ति पर इन करों का भार अधिक पड़ता है। उदाहरण के लिए – बिक्री कर फर्म देती है, फर्म इसका भार थोक व्यापारियों पर टाल देती है, थोक व्यापारी फुटकर व्यापारी पर तथा फुटकर व्यापारी मूल्य वृद्धि करके उपभोक्ताओं पर टाल देता है। इस प्रक्रिया से वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि हो जाती है जिसका प्रभाव निर्धन उपभोक्ताओं पर अधिक पड़ता है।

2. मितव्ययिता का अभाव – इन करों को वसूल करने में सरकार को अधिक व्यय करना पड़ता है। इस कारण ये मितव्ययी नहीं होते हैं।
3. न्यायसंगत नहीं – अप्रत्यक्ष कर प्रायः वस्तुओं एवं सेवाओं के उपभोग पर लगाये जाते हैं। इसलिए इनका भार निर्धन वर्ग पर अधिक पड़ता है।

4. ये कर अनिश्चित होते हैं – परोक्ष करों से होने वाली आय अनिश्चित होती है, क्योंकि अप्रत्यक्ष कर वस्तुओं की बिक्री की मात्रा पर निर्भर होते हैं। उपभोक्ताओं की माँग का पूर्वानुमान लगाना कठिन होता है; अत: यह कहा जा सकता है कि अप्रत्यक्ष कर अनिश्चित होते हैं।

5. करों की चोरी का प्रयास – अप्रत्यक्ष करों की चोरी का प्रयास किया जाता है। उदाहरण के लिए-सरकार बिक्री कर लगाती है। विक्रेता वस्तुओं की बिक्री का झूठा लेखा-जोखा रखता है तथा बिक्री कर को राजकोष में जमा नहीं करता है, जबकि उपभोक्ताओं से वसूल कर लिया जाता है।

6. नागरिकता की भावना का अभाव – करदाताओं को अप्रत्यक्ष करों का भुगतान करते समय कर भार अनुभव नहीं होता है। अतः उन्हें इस विषय में किसी प्रकार की रुचि नहीं होती है कि कर का उपभोग जनहित की दृष्टि से हो रहा है अथवा नहीं। अत: ये कर करदाताओं में उत्तम नागरिकता की भावना जागृत करने में असमर्थ रहते हैं।

7. प्रभावपूर्ण माँग में कमी – अप्रत्यक्ष करों की दरों में वृद्धि करने से वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिनके कारण वस्तुओं की माँग में कमी आती है। माँग में इस कमी का प्रभाव उत्पादन एवं राष्ट्रीय आय दोनों पर पड़ता है जिससे राष्ट्र के आर्थिक विकास में बाधा पड़ती है।।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
“प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर एक-दूसरे के पूरक होते हैं। इस कथन की विवेचना कीजिए। [2007, 11]
उत्तर:
प्रत्यक्ष एवं परोक्ष (अप्रत्यक्ष) करों का सम्बन्ध–प्रत्यक्ष एवं परोक्ष करों के विषय में विचारकों में मत-भिन्नता है। कुछ विचारक प्रत्यक्ष करों का समर्थन करते हैं तो कुछ परोक्ष करों का। हम इस विवाद में न पड़कर कि प्रत्यक्ष कर की अपेक्षा परोक्ष कर उत्तम हैं या परोक्ष कर की अपेक्षा प्रत्यक्ष कर श्रेष्ठ हैं, यह कह सकते हैं कि ये कर एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में इन दोनों प्रकार के करों में समन्वय होना नितान्त आवश्यक है।

प्रो० डाल्टन के अनुसार, “इस विचार के पक्ष में कि परोक्ष करों की तुलना में प्रत्यक्ष कर अधिक अच्छे हैं, कुछ व्यावहारिक बातों को छोड़कर कोई सैद्धान्तिक आधार नहीं है। आधुनिक समुदायों में अधिकांश प्रत्यक्ष करों का भुगतान निर्धनों की अपेक्षा धनिकों द्वारा अधिक होता है और अप्रत्यक्ष करों के सम्बन्ध में स्थिति इसके विपरीत है। यदि प्रत्यक्ष कर को सब व्यक्तियों पर समान व्यक्तिगत कर तक सीमित कर दिया जाए तथा केवल धनी व्यक्तियों द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं तक परोक्ष करारोपण सीमित कर दिया जाए तो स्थिति पूर्णतः बदल जाएगी।”

प्रत्यक्ष करों व अप्रत्यक्ष करों के सम्बन्ध में ग्लैडस्टन ने लिखा है कि “मैं प्रत्यक्ष और परोक्ष करों के विषय में इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं सोच सकता कि मैं उनको दो आकर्षक बहनों के समान मान लें जो लन्दन के सुन्दर संसार से आयी हैं। दोनों ही विपुल भाग्यशाली हैं, दोनों के माता-पिता एक हैं, मेरा विश्वास है कि दोनों के माता-पिता आवश्यकता’ व ‘आविष्कार हैं। इन दोनों में अन्तर केवल इतना हो सकता है जितना कि दो बहनों में होता है।”

प्रत्यक्ष कर व परोक्ष कर एक-दूसरे के पूरक हैं। प्रत्यक्ष करों के दोषों को परोक्ष करों के द्वारा तथा परोक्ष करों के दोषों को प्रत्यक्ष करों द्वारा दूर किया जा सकता है। प्रो० डी० मार्को का मत है कि “प्रत्यक्ष व परोक्ष कर एक-दूसरे के पूरक हैं तथा प्रत्यक्ष करारोपण द्वारा उत्पन्न घर्षणात्मक प्रभाव को परोक्ष करों द्वारा दूर किया जा सकता है। मार्को का विचार है कि प्रत्यक्ष करों के भुगतान में करदाता को तीव्र मानसिक कष्ट होता है, क्योंकि प्रत्यक्ष कर के रूप में जो धनराशि करदाता द्वारा दी जाती है उसका करदाता को प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त नहीं होता है, इसलिए वह करों की चोरी करने का प्रयास करता है, परन्तु अप्रत्यक्ष करों से कोई भी नहीं बच सकता है।

उसे इन करों का भुगतान अवश्य ही करना पड़ेगा। इस प्रकार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर एक-दूसरे के विरोधी न होकर पूरक हैं। प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के करों का उद्देश्य सरकार को आय प्राप्त कराना है। अतः सरकार को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों प्रकार के करों से आय प्राप्त करनी चाहिए। दोनों प्रकार के करों द्वारा सरकार की आय का प्रवाह निरन्तर बना रहता है जिसके माध्यम से राष्ट्र का आर्थिक विकास एवं जन-कल्याणकारी कार्य सम्पन्न किये जाते हैं।
उपर्युक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि दोनों प्रकार के करों का उद्देश्य एवं कार्य समान हैं; अतः हम इन्हें एक-दूसरे के विरोधी न कहकर पूरक कह सकते हैं।

प्रश्न 2
प्रत्यक्ष कर एवं अप्रत्यक्ष कर क्या है? इसमें अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2010, 11, 18]
या
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों की तुलनात्मक व्याख्या कीजिए। [2012]
या
प्रत्यक्ष कर एवं अप्रत्यक्ष कर में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2014, 15, 18]
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर – प्रो० डाल्टन के अनुसार, “प्रत्यक्ष कर का भुगतान वास्तव में वही व्यक्ति करता है जिस पर यह वैधानिक रूप से लगाया जाता है।”
प्रत्यक्ष कर जिस व्यक्ति पर लगाया जाता है उसका भुगतान उसी व्यक्ति द्वारा किया जाता है। करदाता उसका भार दूसरों पर नहीं टाल सकता है।

अप्रत्यक्ष कर –
प्रो० डाल्टन के अनुसार, “अप्रत्यक्ष कर एक व्यक्ति पर लगाया जाता है, किन्तु उसका भुगतान पूर्णतया या आंशिक रूप से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है।”

अप्रत्यक्ष कर वे कर होते हैं जिनका कराधान एक व्यक्ति पर तथा कराधान का भुगतान या कर-भार दूसरे व्यक्ति पर पड़ता है अर्थात् कर जिस व्यक्ति पर लगाया जाता है वह कर के भार को दूसरे व्यक्ति के ऊपर ल देता है।
प्रत्यक्ष एवं परोक्ष करों में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 14 Tax (कर) 1

प्रश्न 3
कर के सिद्धान्तों को समझाइए।
उत्तर:
कर के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

  1. समानता का सिद्धान्त – कर इस प्रकार लगाए जाने चाहिए कि सभी करदाताओं पर कर का भार समान रूप से पड़े; अर्थात् धनी वर्ग पर कर अधिक तथा निर्धन वर्ग पर कम कर लगाये जाने चाहिए।
  2. सुविधा का सिद्धान्त – कर इस प्रकार के होने चाहिए कि करदाता के लिए सुविधाजनक हों। कर देने की पद्धति एवं समय इस प्रकार निर्धारित किया जाए जिसमें करदाता को सुविधा हो।
  3. मितव्ययिता का सिद्धान्त – करों का निर्धारण इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि करों को वसूल करते समय कम-से-कम खर्च हो तथा करों की प्राप्ति अधिक-से-अधिक हो। उपभोग जनहित की दृष्टि से हो रहा है अथवा नहीं। अत: ये कर करदाताओं में उत्तम नागरिकता की भावना जागृत करने में असमर्थ रहते हैं।
  4. निश्चितता का सिद्धान्त – कर अधिनियम में कर सम्बन्धी सभी बातें निश्चित व स्पष्ट रूप से वर्णित होनी चाहिए।
  5.  पर्याप्तता का सिद्धान्त – करों का निर्धारण इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि करों से सरकार को पर्याप्त आय प्राप्त हो सके।
  6.  लोच का सिद्धान्त – कर-प्रणाली इस प्रकार की होनी चाहिए, जिसमें लोच का गुण विद्यमान हो अर्थात् सरकार आवश्यकतानुसार करों की मात्रा में वृद्धि कर सके।
  7.  सरलता का सिद्धान्त – कर-प्रणाली इस प्रकार की होनी चाहिए जिसे करदाता सरलतापूर्वक समझ सके।
  8.  उत्पादकता का सिद्धान्त – कर-प्रणाली इस प्रकार की होनी चाहिए कि सरकार को वर्तमान में पर्याप्त आय प्राप्त हो सके तथा भविष्य के लिए आय का स्रोत बना रहे।
  9. विविधता का सिद्धान्त – कर-प्रणाली इस प्रकार की होनी चाहिए कि उसमें विविधता हो अर्थात् कर अनेक प्रकार के होने चाहिए जिससे देश का प्रत्येक नागरिक जनहित के कार्यों में सहयोग दे सके।

प्रश्न 4
कर की परिभाषा दीजिए एवं एक अच्छी कर-प्रणाली की विशेषताएँ लिखिए। [2008, 14, 16]
या
एक अच्छी कर प्रणाली की क्या-क्या विशेषताएँ होती हैं? लिखिए। [2016]
उत्तर:
एक अच्छी कर-प्रणाली में निम्नलिखित गुण होने चाहिए

  1.  कर – प्रणाली सरल एवं सुविधाजनक होनी चाहिए, जिससे करदाता को कर का भुगतान करने में मानसिक कष्ट न हो।
  2. एक अच्छी कर – प्रणाली अधिकतम सामाजिक लाभ के सिद्धान्त पर आधारित होती है।
  3.  कर – प्रणाली प्रगतिशील होनी चाहिए! अर्थात् कर-प्रणाली ऐसी हो जिससे कर का भार धनी वर्ग पर अधिक व निर्धन वर्ग पर कम पड़े।
  4.  एक अच्छी कर – प्रणाली में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के करों का समावेश होता है।
  5.  एक अच्छी कर – प्रणाली में लोच का गुण पाया जाता है। अर्थात् आवश्यकतानुसार करों की मात्रा में वृद्धि व कमी की जा सके।
  6.  कर – प्रणाली मितव्ययी होनी चाहिए।
  7. एक अच्छी कर – प्रणाली विलासिता एवं मादक वस्तुओं के उपभोग को हतोत्साहित करती है।
  8.  बचत एवं पूँजी – निर्माण को प्रोत्साहित करना अच्छी कर-प्रणाली का गुण है।
  9.  एक अच्छी कर – प्रणाली आर्थिक विकास को गति प्रदान करती है।
  10.  एक अच्छी कर – प्रणाली में उत्पादकता का गुण होता है।
  11. एक अच्छी कर – प्रणाली में करों का भार समाज पर कम पड़ता है।
  12.  कर – प्रणाली में निश्चितता का गुण भी होना चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
प्रगतिशील कर प्रणाली की किन्हीं चार सुविधाओं का उल्लेख कीजिए। [2013]
उत्तर:
प्रगतिशील कर प्रणाली की चार सुविधाएँ निम्नवत् हैं

  1.  चूंकि प्रगतिशील कर प्रणाली आय पर निर्भर करती है, इसलिए अधिक आय वाले व्यक्ति को अधिक तथा कम आय वाले व्यक्ति को कम कर देना पड़ता है।
  2. चूंकि प्रगतिशील कर प्रणाली द्वारा कम आय वाले लोगों छूट प्रदान की जाती है इसलिए अनेक लोग इस प्रणाली का समर्थन करते हैं; क्योंकि अधिकांश लोग इसी श्रेणी से सम्बन्धित होते हैं।
  3.  यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य उच्च आय वर्ग से निम्न आय वर्ग में आ जाता है तो उसे इन करों से मुक्ति मिल जाती है अर्थात् उसे कर नहीं देना पड़ता है।
  4.  यह कर प्रणाली आय की असमानता को कम करने की सहायता प्रदान करती है।

प्रश्न 2
कर लगाने के उद्देश्यों को बताइए।
उत्तर:
कर निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लगाये जाते हैं

  1. देश की आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा की व्यवस्था करने के लिए करों के माध्यम से धन एकत्रित किया जाता है।
  2. समाज में धन के वितरण की असमानताओं को कम करने के लिए कर लगाये जाते हैं।
  3.  कुछ वस्तुओं का प्रयोग समाज के लिए हानिकारक होता है; अत: इस प्रकार की वस्तुओं के उपभोग को हतोत्साहित करने के लिए भी सरकार इन वस्तुओं पर अधिक कर लगाती है; जैसे – मादक पदार्थ एवं विलासिता की वस्तुएँ।
  4. जन कल्याणकारी कार्यों के लिए भी सरकार कर लगाती है; जैसे–शिक्षा, चिकित्सा, यातायात, स्वास्थ्य आदि सुविधाएँ प्रदान करने के लिए सरकार को धन की आवश्यकता होती है जिसे करों के द्वारा प्राप्त किया जाता है।
  5.  आयात एवं निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए भी सरकार को विभिन्न वस्तुओं पर कर लगाना पड़ता है।
  6. वस्तुओं के मूल्यों में स्थिरता बनाए रखने के लिए भी कर लगाने पड़ते हैं।
  7. बचतों को प्रोत्साहित करने के लिए भी सरकार कर लगाती है। बचत की विभिन्न योजनान्तर्गत करों में छूट प्रदान की जाती है जिससे प्रेरित होकर नागरिक बचत करते हैं।

प्रश्न 3
कर के लक्षण अथवा विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कर में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं

  1.  कर एक अनिवार्य अंशदान या भुगतान है जिसका भुगतान करदाता को अवश्य करना पड़ता है।
  2.  सरकार द्वारा कर से प्राप्त आय का प्रयोग सार्वजनिक हित के लिए किया जाता है।
  3.  सरकार करदाता को कर के बदले में प्रत्यक्ष लाभ प्रदान करने का कोई आश्वासने नहीं देती है। अर्थात् यह आवश्यक नहीं कि करदाता को उसी अनुपात से लाभ हो, जिस अनुपात में उसने कर दिये हैं।
  4. करों के भुगतान में करदाता को त्याग करना पड़ता है।
  5.  सरकार सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने हेतु अतिरिक्त करारोपण कर सकती है; जैसे-शराब, अफीम आदि मादक पदार्थों पर रोक लगाने हेतु।
  6. सरकार समाज में धन के समान वितरण हेतु करारोपण में वृद्धि एवं कमी कर सकती है।

प्रश्न 4
आनुपातिक कर-प्रणाली किसे कहते हैं ? तालिका द्वारा स्पष्ट कीजिए। [2010, 14]
उत्तर:
आनुपातिक कर-प्रणाली वह कर-प्रणाली है जिसमें कर की दरें समान रहती हैं अर्थात् आय-वृद्धि के साथ-साथ कर की दरों में वृद्धि नहीं होती है। सभी करदाता समान दर से कर देते हैं, किन्तु कर की कुल धनराशि में उसी अनुपात में वृद्धि होती है जिस अनुपात में आय में वृद्धि होती है।
आनुपातिक कर-प्रणाली का तालिका द्वारा स्पष्टीकरण
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प्रश्न 5
प्रगतिशील कर-प्रणाली या आरोही कर की दर को तालिका द्वारा स्पष्ट कीजिए। [2010, 14]
या
प्रगतिशील (वर्धमान) कर से आप क्या समझते हैं? [2014, 15]
या
प्रतिगायी कर का अर्थ लिखिए। [2016]
उत्तर:
प्रगतिशील कर-प्रणाली वह कर – प्रणाली है जिसमें आय की वृद्धि के साथ-साथ करों की दरें बढ़ती जाती हैं अर्थात् आय-वृद्धि के साथ कर की प्रतिशत दरों में वृद्धि होती है तथा कर की कुल राशि में भी वृद्धि होती जाती है।

प्रो० टेलर
के शब्दों में, “प्रगतिशील करारोपण में जैसे-जैसे कर योग्य आय बढ़ती जाती है, कर की प्रभावपूर्ण दरों में वृद्धि होती जाती है।”
प्रगतिशील कर-प्रणाली का तालिका द्वारा स्पष्टीकरण
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प्रश्न 6
अवरोही कर-प्रणाली किसे कहते हैं ? तालिका द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अवरोही कर-प्रणाली वह कर-प्रणाली है जिसमें आय-वृद्धि के साथ-साथ कर की दरें कम होती जाती हैं।
अवरोही कर-प्रणाली का तालिका द्वारा स्पष्टीकरण कर
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प्रश्न 7
ह्रासमान आरोही कर प्रणाली को समझाइए।
उत्तर:
ह्रासमान आरोही कर-प्रणाली वह प्रणाली होती है, जिसमें आय-वृद्धि के साथ कर की दरों में मन्द गति से वृद्धि होती है तथा कुछ समय पश्चात् कर की दरें क्रमशः गिरने लगती हैं।
ह्रासमान आरोही कर-प्रणाली का तालिका द्वारा स्पष्टीकरण
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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
‘कर’ का अर्थ बताइए। [2007, 11, 12, 13, 15]
उत्तर:
कर किसी सार्वजनिक सत्ता द्वारा लगाया हुआ एक अनिवार्य अंशदान है चाहे इसके बदले में करदाता को उसकी सेवाएँ प्रदान की गयी हों अथवा नहीं, करों का उपयोग सार्वजनिक हित में किया जाता है।

प्रश्न 2
प्रत्यक्ष कर की एक परिभाषा लिखिए। [2009, 10, 13, 16]
उत्तर:
जब किसी कर का करापात और करों का भार एक ही व्यक्ति पर पड़ता है। वह कर प्रत्यक्ष कर कहलाता है।

प्रश्न 3
प्रत्यक्ष करों के दो गुण लिखिए। [ 2009,11]
उत्तर:
प्रत्यक्ष करों के दो गुण हैं

  1. प्रत्यक्ष करों में निश्चितता होती है तथा
  2.  प्रत्यक्ष कर मितव्ययी होते हैं।

प्रश्न 4
प्रत्यक्ष करों की दो हानियाँ लिखिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष करों की दो हानियाँ है

  1.  प्रत्यक्ष कर में करदाता को मानसिक व शारीरिक दोनों प्रकार के कष्ट होते हैं तथा
  2.  करवंचन या कर की चोरी

प्रश्न 5
अप्रत्यक्ष कर की परिभाषा लिखिए। [2012, 13, 14, 16]
उत्तर:
अप्रत्यक्ष कर एक व्यक्ति पर लगाया जाता है, किन्तु उसका भुगतान पूर्णतया या आंशिक रूप से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 6
परोक्ष (अप्रत्यक्ष करों के दो गुण लिखिए। [2011, 13]
उत्तर:
परोक्ष करों के दो गुण हैं

  1.  परोक्ष कर सुविधाजनक होते हैं क्योंकि करदाता को इस कर के भार का अनुभव नहीं होता तथा
  2.  कर-प्रणाली का विस्तृत आधार होता है।

प्रश्न 7
परोक्ष करों की दो हानियाँ लिखिए।
या
अप्रत्यक्ष करों के किन्हीं दो दोषों का उल्लेख कीजिए। [2006]
उत्तर:
परोक्ष करों की दो हानियाँ (दोष) हैं

  1. परोक्ष कर न्यायसंगत नहीं होते तथा
  2.  समाज में असमानता उत्पन्न करने में सहायक हैं।

प्रश्न 8
आयकर किस प्रकार का कर है ?
उत्तर:
आयकर प्रत्यक्ष कर है।

प्रश्न 9
प्रत्यक्ष कर के दो उदाहरण दीजिए। [2015]
या
किन्हीं दो प्रत्यक्ष करों के नाम लिखिए। [2014, 15]
उत्तर:
(1) आयकर तथा
(2) सम्पत्ति कर।

प्रश्न 10
परोक्ष (अप्रत्यक्ष) कर के दो उदाहरण दीजिए।
या
किन्हीं दो अप्रत्यक्ष करों के नाम लिखिए। [2009,14,15]
उत्तर:
(1) बिक्री कर तथा
(2) मनोरंजन कर।

प्रश्न 11
कर की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(1) कर एक अनिवार्य अंशदान है तथा
(2) कर की आय सार्वजनिक हित के कार्यों में व्यय की जाती है।

प्रश्न 12
भारत में करों से अपेक्षाकृत कम आय प्राप्त होती है। दो कारण बताइए।
उत्तर:
(1) लोग करों की चोरी करते हैं तथा
(2) बड़े राजनेता करों का भुगतान नहीं करते।

प्रश्न 13:
‘कर’ तथा ‘फीस’ में अन्तर बताइए। [2012]
उत्तर:
कर किसी सत्ता द्वारा लगाया हुआ एक अनिवार्य अंशदान है, चाहे इसके बदले में करदाता को उसकी सेवाएँ प्रदान की गयी हों अथवा नहीं, जबकि फीस किसी संस्था या व्यक्ति को दिया गया कर अंशदान है जो उसे उसकी सेवाओं के बदले में दिया जाता है।

प्रश्न 14
किस कर प्रणाली के अन्तर्गत आय बढ़ने के साथ कर की दर बढ़ती है? [2008]
उत्तर:
प्रगतिशील कर प्रणाली।

प्रश्न 15
आनुपातिक कर किसे कहते हैं ? [2010, 16]
उत्तर:
जब विभिन्न आय वाले व्यक्तियों व संस्थाओं पर एक ही अनुपात में कर लगाये जाते हैं, तो उन्हें ‘आनुपातिक कर’ कहते हैं।

प्रश्न 16
आरोही कर किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब कर की मात्रा में आय की वृद्धि के साथ-साथ वृद्धि होती जाती है, तो ऐसे कर को ‘आरोही कर’ कहते हैं।

प्रश्न 17
अवरोही कर किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब अधिक आय वालों की अपेक्षा कम आय वालों से अनुपात में अधिक कर लिया जाता है, तो इसे ‘अवरोही कर’ कहते हैं।

प्रश्न 18
प्रगतिशील करों के दो गुण लिखिए।
उत्तर:
(1) प्रगतिशील कर न्यायसंगत होते हैं।
(2) आय की असमानता को कम करने में सहायक होते हैं।

प्रश्न 19
करारोपण के किन्हीं दो उददेश्यों को बताइए। [2007]
उत्तर:
(1) देश की आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा हेतु धन की व्यवस्था करने के लिए।
(2) आय की असमानता कम करने के लिए।

प्रश्न 20
उस कर का नाम लिखिए जिसकी दर, आधार बढ़ने पर भी स्थिर रहती है। [2013]
उत्तर:
आनुपातिक कर।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
कर एक भुगतान है
(क) अनिवार्य
(ख) ऐच्छिक
(ग) अनिवार्य-ऐच्छिक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) अनिवार्य।

प्रश्न 2
निम्न में से कौन-सा कर प्रत्यक्ष कर है ?
(क) बिक्री कर
(ख) उत्पादन शुल्क
(ग) सम्पत्ति कर
(घ) मनोरंजन कर
उत्तर:
(ग) सम्पत्ति कर।

प्रश्न 3
निम्न में से कौन-सा कर अप्रत्यक्ष कर है ?
(क) आयकर
(ख) निगम कर
(ग) सम्पत्ति कर
(घ) व्यापार कर
उत्तर:
(घ) व्यापार कर।

प्रश्न 4
जो कर प्रत्यक्ष रूप से व्यक्तियों की आय पर लगाये जाते हैं, उन्हें कहते हैं
(क) अप्रत्यक्ष कर
(ख) प्रत्यक्ष कर
(ग) प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) प्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 5
निम्न में से कौन-सा कर प्रत्यक्ष कर है?
(क) बिक्री कर
(ख) पूँजी लाभ कर
(ग) उत्पादन शुल्क
(घ) मनोरंजन कर
उत्तर:
(ख) पूँजी लाभ कर।

प्रश्न 6
निम्नलिखित में से कौन-सा कर प्रत्यक्ष कर है? [2010, 16]
(क) बिक्री कर
(ख) उत्पादन शुल्क
(ग) आयकर
(घ) मनोरंजन कर।
उत्तर:
(ग) आयकर।

प्रश्न 7
निम्नलिखित में से कौन-सा कर किसी अन्य पर हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता है? [2006]
(क) उत्पादक शुल्क
(ख) व्यापार कर
(ग) केन्द्रीय बिक्री कर
(घ) आयकर
उत्तर:
(घ) आयकर।

प्रश्न 8
निम्नलिखित में से कौन-सा अप्रत्यक्ष कर नहीं है? [2006, 10]
(क) आय कर
(ख) निगम कर
(ग) सम्पत्ति कर
(घ) आबकारी शुल्क
उत्तर:
(क) आय कर।

प्रश्न 9
कौन-सा कर प्रत्यक्ष कर नहीं है? [2006]
(क) आय कर
(ख) निगम कर
(ग) सम्पत्ति कर
(घ) आबकारी शुल्क
उत्तर:
(घ) आबकारी शुल्क।

प्रश्न 10
निम्नलिखित में से कौन-सा प्रत्यक्ष कर है? [2006]
(क) उपहार कर
(ख) सेवा शुल्क
(ग) उत्पाद शुल्क
(घ) मनोरंजन कर
उत्तर:
(क) उपहार कर।

प्रश्न 11
निम्नलिखित में से कौन-सा कर प्रत्यक्ष कर नहीं है? [2008]
(क) आय कर
(ख) निगम कर
(ग) सम्पत्ति कर
(घ) मनोरंजन कर
उत्तर:
(घ) मनोरंजन कर।

प्रश्न 12
कौन-सा कर आय की असमानता दूर करने में सहायक है?
(क) आनुपातिक
(ख)प्रगतिशील
(ग) प्रतिगामी
(घ) अधोगामी
उत्तर:
(ख) प्रगतिशील।

प्रश्न 13
यदि किसी कर की दर, आधार बढ़ने के साथ बढ़ती है, तो उस कर को कहते हैं [2013]
(क) प्रत्यक्ष कर
(ख) अप्रत्यक्ष कर
(ग) प्रगतिशील कर
(घ) प्रतिगामी कर
उत्तर:
(ग) प्रगतिशील कर।

प्रश्न 14
निम्न में से कौन-सा प्रत्यक्ष कर है? [2014, 15, 16]
(क) सेवा कर
(ख) आय कर
(ग) बिक्री कर
(घ) मनोरंजन कर ।
उत्तर:
(ख) आय कर

प्रश्न 15
आय कर है
(क) एक अप्रत्यक्ष कर
(ख) एक आनुपातिक कर
(ग) एक प्रतिगामी कर
(घ) एक प्रगतिशील कर
उत्तर:
(घ) एक प्रगतिशील कर।

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UP Board Solutions for Class 12 History Chapter 8 Expansion of British Company: Imperialistic Policy

UP Board Solutions for Class 12 History Chapter 8 Expansion of British Company: Imperialistic Policy (अंग्रेजी कम्पनी का विस्तार- साम्राज्यवादी नीति) are the part of UP Board Solutions for Class 12 History. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 History Chapter 8 Expansion of British Company: Imperialistic Policy (अंग्रेजी कम्पनी का विस्तार- साम्राज्यवादी नीति).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject History
Chapter Chapter 8
Chapter Name Expansion of British Company:
Imperialistic Policy
(अंग्रेजी कम्पनी का विस्तार-
साम्राज्यवादी नीति)
Number of Questions Solved 17
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 History Chapter 8 Expansion of British Company: Imperialistic Policy (अंग्रेजी कम्पनी का विस्तार- साम्राज्यवादी नीति)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लॉर्ड कार्नवालिस के स्थायी बन्दोबस्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उतर:
कार्नवालिस ने भारत आकर यहाँ के कृषकों की स्थिति का आकलन किया तथा स्थायी बन्दोबस्त की स्थापना की। यह स्थायी बन्दोबस्त ब्रिटिश राज्य के अन्त तक रहा। इस प्रबन्ध के द्वारा भारत की भूमि जमींदारों की मान ली गई तथा उन्हें कृषकों से एक निश्चित धनराशि प्राप्त करने का अधिकार दिया गया। वह धनराशि कृषकों को भी मालूम थी तथा यदि कोई जमींदार कृषक से अधिक धन वसूल करना चाहता तो कृषक को अदालत में जाकर न्याय प्राप्त करने का अधिकार था। जमींदारों को एक निश्चित धनराशि प्रतिवर्ष कर के रूप में सरकार को देनी पड़ती थी। इस प्रकार सरकार की आय निश्चित एवं स्थायी हो गई। उसमें कमी अथवा वृद्धि नहीं की जा सकती थी। जमींदारों को अपनी भूमि विक्रय करने का भी अधिकार प्रदान किया गया। अतः जब तक जमींदार निश्चित लगान को देते रहेंगे उनकी भूमि को जब्त नहीं किया जाएगा। जमींदार किसान को पट्टा देंगे जिसमें उसके लगान की मात्रा लिखी होगी तथा उससे अधिक धन वसूल करने का अधिकार जमींदार को नहीं होगा।

प्रश्न 2.
लॉर्ड वेलेजली की सहायक संधि क्या थी? इसके गुणों का वर्णन कीजिए।
उतर:
कम्पनी को सर्वोच्च शक्ति बनाने के उद्देश्य से लॉर्ड वेलेजली ने एक नई नीति को प्रतिपादित किया जो सहायक संधि के नाम से जानी जाती है। सहायक संधि की प्रमुख शर्ते निम्न प्रकार थीं

  • सहायक सन्धि स्वीकार करने वाला देशी राज्य अपनी विदेश नीति को कम्पनी के सुपुर्द कर देगा।
  • वह बिना कम्पनी की अनुमति के किसी अन्य राज्य से युद्ध, सन्धि या मैत्री नहीं कर सकेगा।
  • इस सन्धि को स्वीकार करने वाले देशी राजाओं के यहाँ एक अंग्रेजी सेना रहती थी, जिसका व्यय राजा को उठाना होता था।
  • देशी राजाओं को अपने दरबार में एक ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखना होता था।
  • यदि सहायक सन्धि स्वीकार करने वाले देशी राजाओं के मध्य झगड़ा हो जाता है, तो अंग्रेज मध्यस्थता कर जो भी निर्णय देंगे वह देशी राजाओं को स्वीकार करना पड़ेगा।
  • कम्पनी उपर्युक्त शर्तों के बदले सहायक सन्धि स्वीकार करने वाले राज्य की बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा की गारन्टी लेती थी तथा देशी शासकों को आश्वासन देती थी कि वह उन राज्यों के आन्तरिक शासन में हस्तक्षेप नहीं करेगी।

इस प्रकार सहायक सन्धि द्वारा राज्यों की विदेश नीति पर कम्पनी का सीधा नियन्त्रण स्थापित हो गया। यह वेलेजली की साम्राज्यवादी पिपासा को शान्त करने का अचूक अस्त्र बन गया।

सहायक सन्धि के गुण- सहायक सन्धि अंग्रेजों के लिए बड़ी लाभकारी सिद्ध हुई। उन्हें इस सन्धि से निम्नलिखित लाभ हुए

  • कम्पनी के साधनों में वृद्धि
  • कम्पनी के सैन्य व्यय में कमी
  • कम्पनी के राज्य की बाह्य आक्रमण से सुरक्षा
  • फ्रांसीसी प्रभाव का अन्त
  • कम्पनी के प्रदेशों में शान्ति
  • वेलेजली के साम्राज्यवादी उद्देश्यों की पूर्ति

प्रश्न 3.
पिण्डारियों के दमन का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उतर:
लॉर्ड हेस्टिग्स के समय में पिण्डारियों ने भीषण उपद्रव मचा रखा था। कम्पनी के अधीन क्षेत्रों में पिण्डारियों की लूटमार से अंग्रेज चिन्तित हो उठे। अत: गर्वनर जनरल लॉर्ड हेस्टिग्स ने पिण्डारियों को समूल नष्ट करने का निश्चय किया और एक विशाल सेना तैयार की। उसने अपनी सेना को दो भागों में विभक्तकर पिण्डारियों को चारों ओर से घेर लिया। असंख्य पिण्डारियों को मौत के घाट उतार दिया गया तथा अनेक प्राणरक्षा हेतु पलायन कर गए। उनके सभी दल बिखर गए। पिण्डारियों के नेता अमीर खाँ ने अधीनता स्वीकार कर ली तथा करीम खाँ ने गोरखपुर जिले में छोटी सी जागीर लेकर अपने आप को अलग कर लिया। वासिल मुहम्मद को बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया गया, जहाँ उसने आत्महत्या कर ली। उनके सबसे वीर नेता चीतू ने जंगल में शरण ली और वहीं पर उसे चीते ने खा लिया। बचे-खुचे लोगों ने कृषि-पेशा अपना लिया। इस प्रकारलॉर्ड हेस्टिग्स ने पिण्डारियों का पूर्णतया दमन कर दिया।

प्रश्न 4.
लॉर्ड बैंटिंग के चार सामाजिक सुधार लिखिए।
उतर:
लॉर्ड बैटिंग के चार सामाजिक सुधार निम्नलिखित हैं

  • शिक्षा-सम्बन्धी सुधार
  • सती प्रथा का अन्त
  • नर-बलि प्रथा का अन्त
  • दास प्रथा का अन्त।

प्रश्न 5.
रणजीत सिंह कौन था? उसके चरित्र के कोई दो गुण बताइए।
उतर:
रणजीत सिंह का जन्म 2 नवम्बर, 1780 में एक जाट परिवार में हुआ था। इनके पिता महसिंह सुकरचकिया मिस्ल के सरदार थे। उनकी माँ का नाम राजकौर था, जो जींद के शासक गणपति सिंह की पुत्री थी। छोटी-सी उम्र में चेचक की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आँख की रोशनी जाती रही। 1792 ई० में जब रणजीत सिंह की आयु केवल 12 वर्ष थी, गुजरात में उनके पिता की मृत्यु हो गई, अत: उनकी माता राजकौर ने उन्हें सिंहासन पर बैठा दिया और स्वयं उनकी संरक्षिका बन गई। 12 अप्रैल, 1801 को रणजीत ने महाराजा की उपाधि ग्रहण की। गुरु नानक के एक वंशज ने उनकी ताजपोशी सम्पन्न कराई। उन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया और सन् 1802 में अमृतसर की ओर रुख किया।

कुशल कूटनीतिज्ञ एवं वीरता रणजीत सिंह के चरित्र के दो गुण थे।

प्रश्न 6.
लॉर्ड डलहौजी ने यातायात तथा संचार-व्यवस्था में क्या सधार किए?
उतर:
लॉर्ड डलहौजी ने भारत में रेल, सड़क और तार विभाग को अत्यन्त महत्व दिया। भारत में रेलवे व्यवस्था का प्रारम्भ करने का श्रेय लॉर्ड डलहौजी को ही प्राप्त है। उसने ग्रांड ट्रंक रोड का पुनर्निमाण कराया तथा रेल एवं डाक व तार की व्यवस्था की। 1853 ई० में बम्बई से थाणे तक पहली रेलवे लाइन बनी। लॉर्ड डलहौजी ने सम्पूर्ण भारत के लिए रेलवे लाइन की योजना बनाई जो बाद में सम्पन्न हो सकी। तार लाइन का निर्माण भी सर्वप्रथम लॉर्ड डलहौजी के काल में हुआ। 1853 ई० से 1856 ई० तक विस्तृत क्षेत्र में तार लाइन बिछा दी गई, जिससे कलकत्ता (कोलकाता) और पेशावर तथा बम्बई (मुम्बई) और मद्रास (चेन्नई) के मध्य निकट सम्पर्क हो सका।

प्रश्न 7.
टीपू सुल्तान का पतन कैसे हुआ?
उतर:
तृतीय मैसूर युद्ध में अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान की शक्ति पर घातक प्रहार किए। सन् 1799 ई० में लॉर्ड वेलेजली ने टीपू सुल्तान के राज्य पर चारों ओर से आक्रमण कर दिया। जनरल हैरिस ने मलावल्ली के स्थान पर टीपू को पराजित किया। सदासीर के युद्ध में भी टीपू पराजित हुआ। टीपू ने भाग कर अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टम में शरण ली। अंग्रेजी सेना ने दुर्ग को चारों ओर से घेर लिया। टीपू अत्यन्त वीरतापूर्वक युद्ध करता हुआ किले के फाटक पर ही वीरगति को प्राप्त हो गया। इस प्रकार 4 मई, 1799 ई० को श्रीरंगपट्टम का पतन हो गया।

प्रश्न 8.
लॉर्ड डलहौजी की राज्य हड़प नीति क्या थी? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उतर:
जिस प्रकार वेलेजली ने ‘सहायक संधि’ द्वारा अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तार किया था, ठीक उसी प्रकार लॉर्ड डलहौजी ने राज्य हड़प नीति द्वारा भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तार किया। लॉर्ड डलहौजी की वास्तविक प्रसिद्धि का कारण उसकी साम्राज्यवादी नीति थी। साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण में उसने तीन उपाय किए। पहला युद्ध, दूसरा कुशासन एवं तीसरा राज्य हड़पनीति या गोद निषेद नीति। उस समय अनेक ऐसे राज्य थे, जिनके शासक सन्तान हीन थे। डलहौजी ने दत्तक पुत्र को गोद लेने के अधिकार को छीनकर ऐसे सन्तान हीन शासकों के राज्य ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिए।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“क्लाइव को ब्रिटिश साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है।” इस कथन के आलोक में क्लाइव की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उतर:
रॉबर्ट क्लाइव कम्पनी में एक सामान्य लिपिक से सेवा प्रारम्भ करके गर्वनर के पद तक पहुँचने में सफल रहा। वह निर्भीक सेनानायक था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी जो एक व्यापारिक संस्था मात्र थी, उसे क्लाइव ने राजनीतिक संस्था में परिवर्तित करके ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना का सूत्रपात किया। अंग्रेजों ने उसके कार्यों की बड़ी प्रशंसा की है। लॉर्ड कर्जन ने लिखा है, क्लाइव, अंग्रेज जाति में महान् आत्मा का व्यक्ति था। वह उन व्यक्तियों में से था जो मानव के भाग्य निर्माण के लिए इस विश्व में अवतरित होते हैं।” विंसेंट स्मिथ ने भी लिखा है, “क्लाइव ने जिस योग्यता और दृढ़ता का परिचय भारत में ब्रिटिश राज्य की नींव डालने में दिया, उसके लिए वह ब्रिटिश जनता के मध्य सदैव के लिए याद किया जाएगा।” अपनी योग्यता वह अर्काट के घेरे एवं चाँदा साहब की विजय के दौरान दिखा चुका था। मीरजाफर के साथ षड्यन्त्र रचकर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को प्लासी के युद्ध में परास्त कर बंगाल में कम्पनी की राजनीतिक प्रभुता स्थापित करने वाला क्लाइव ही था।

क्लाइव का मूल्यांकन करते हुए डॉ० ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है- “उसने नवाब को नाममात्र का शासक बना दिया, उसे भलाई करने के साधनों तथा शक्ति से वंचित कर दिया और स्वयं उत्तरदायित्व लेने से दूर भागा। उसकी योजनाओं में न कोई नई बात थी और न मौलिकता थी, उसने डूप्ले तथा बुसी का पदानुगमन किया था और उसकी सफलता अनुकूल परिस्थितियों तथा विश्वासघात के कारण थी, न कि उसकी प्रतिभा के कारण।” हालाँकि क्लाइव का यह मूल्यांकन सर्वथा उचित प्रतीत होता है और भारतीयों के दृष्टिकोण से उसके कृत्य अक्षम्य हैं तथापि उसने अपने देश का महान् हित किया। उसके विरोधियों ने भी अन्त में यह बात स्वीकार कर ली कि उसने जो कुछ भी छलकपट, विश्वासघात तथा बेईमानी की, वह अपने राष्ट्र के हित के लिए की।

सर्वप्रथम दक्षिणी भारत में कर्नाटक के युद्धों में विजय प्राप्त कराने में उसका महत्वपूर्ण हाथ रहा तथा बाद में प्लासी के युद्ध द्वारा उसने बंगाल में जिस क्रान्ति का सम्पादन किया, उससे ब्रिटिश साम्राज्य की भारत में स्थापना सम्भव हो सकी। परन्तु इन सफलताओं का कारण उसका युद्धकौशल न होकर उसकी कूटनीति ही है। चार्ल्स विल्सन ने ठीक ही कहा है- “क्लाइव अपनी योजनाओं में योग्यतापूर्ण संयोजन की भी उपेक्षा करता जान पड़ता है।” बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी मुगल सम्राट से प्राप्त करके उसने कम्पनी का हित किया। प्लासी का युद्ध, जो भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का बीजारोपण करता है, उसी के द्वारा सम्पन्न किया गया। यद्यपि कुछ इतिहासकार उसे ब्रिटिश साम्राज्य का संस्थापक नहीं मानते। इस सम्बन्ध में मार्विन डेविस का कथन है-

“जिस प्रकार बाबर नहीं बल्कि अकबर मुगल साम्राज्य की नींव डालने वाला था, उसी प्रकार भारत में अंग्रेजी साम्राज्य स्थापित करना क्लाइव का नहीं बल्कि उसके उत्तराधिकारियों का कार्य था। उसकी प्रतिभा इतनी सीमित थी कि इतने बड़े कार्य को वह कर ही नहीं सकता था। उसमें इतनी संवेदना, कल्पना-शक्ति, ज्ञान, संयम, धैर्य और अध्यवसाय नहीं थे कि वह एक नई और महान् व्यवस्था की स्थापना कर सकता।” यद्यपि इसमें सन्देह नहीं कि क्लाइव के उत्तराधिकारियों और विशेषकर वारेन हेस्टिग्स को भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव सुदृढ़ करने के लिए अथक परिश्रम करना पड़ा किन्तु इससे क्लाइव के कार्य के महत्व को कम नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 2.
वारेन हेस्टिग्स की प्रारम्भिक कठिनाईयों व सुधारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उतर:
(i) हेस्टिग्स की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ- वारेन हेस्टिग्स को 1772 ई० में कर्टियर के पश्चात् बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया था, उस समय भारत में अंग्रेजी कम्पनी की स्थिति अच्छी नहीं थी। बंगाल में अव्यवस्था व्याप्त थी। संक्षेप में उसके सम्मुख निम्नलिखित प्रमुख कठिनाइयाँ थीं
(क) बंगाल में अराजकता- बंगाल में उस समय चारों ओर अराजकता का साम्राज्य व्याप्त था। अंग्रेजी कम्पनी और बंगाल के नवाब आपस में लड़ते रहते थे। दुर्भाग्य से इसी समय बंगाल में एक अकाल पड़ा, जिससे बंगाल की आन्तरिक समस्या और बढ़ गई।

(ख) द्वैध शासन-
क्लाइव द्वारा लागू किए गए द्वैध शासन में अनेक दोष विद्यमान थे, जिससे बंगाल की दशा दयनीय हो गई थी। बंगाल की जनता अंग्रेजों को घृणा की दृष्टि से देखने लग गई थी। ऐसी स्थिति में कम्पनी का बंगाल में प्रभुत्व कायम रखना बहुत मुश्किल था।

(ग) रिक्त कोष-
कम्पनी के कर्मचारियों की अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार से कम्पनी का कोष खाली हो गया था। ऐसी विकट परिस्थिति में बंगाल की व्यवस्था को सम्भालना मुश्किल था।

(घ) विरोधियों द्वारा उत्पन्न समस्याएँ-
अंग्रेजों के विरोधी मराठों ने अपनी शक्ति को पुनः संगठित कर उत्तर तथा दक्षिण में अपना प्रभुत्व जमा लिया था। शाहआलम भी मराठों के संरक्षण में चला गया। इधर हैदरअली अंग्रेजों के लिए सिरदर्द बना हुआ था। निजाम भी अंग्रेजों से रुष्ट था।

(ii) वारेन हेस्टिग्स के सुधार- वारेन हेस्टिग्स प्रारम्भ में अनेक आन्तरिक एवं बाह्य कठिनाइयों से घिरा हुआ था, भारत को सुदृढ़ करने के लिए अधिक आवश्यकता आन्तरिक सुधारों की थी। हेस्टिग्स ने 1772 से 1774 ई० तक कम्पनी की स्थिति को सुदृढ़ बनाने के लिए अनेक सुधार किए। उसके द्वारा किए गए सुधार निम्नलिखित हैं

(क) लगान सम्बन्धी सुधार-
वारेन हेस्टिग्स ने पंचवर्षीय प्रबन्ध स्थापित किया। भूमि की बोली लगाई जाती थी। जो व्यक्ति सबसे अधिक लगान देने को तत्पर होता, उसे पाँच वर्ष के लिए भूमि ठेके पर दे दी जाती थी। यद्यपि इस व्यवस्था का कृषकों पर बुरा प्रभाव पड़ा, क्योंकि भूमिपति बलपूर्वक किसानों से धन वसूल करते थे, परन्तु कम्पनी की आय में इस व्यवस्था से वृद्धि हुई। लगान वसूल करने के लिए प्रत्येक जिले में एक कलेक्टर की नियुक्ति की गई, जिसकी सहायता के लिए एक भारतीय दीवान होता था। हेस्टिग्स ने अनेक निरर्थक करों को हटा दिया।

(ख) आर्थिक सुधार-
जिस समय वारेन हेस्टिग्स गवर्नर बना था, कम्पनी का राजकोष रिक्त था। अतः आर्थिक सुधारों की नितान्त आवश्यकता थी। उसने बंगाल के नवाब की पेंशन घटाकर 16 लाख रुपए कर दी तथा दिल्ली के बादशाह शाहआलम द्वितीय की पेंशन बन्द कर दी, क्योंकि वह मराठों के संरक्षण में चला गया था। शाहआलम द्वितीय से कड़ा तथा इलाहाबाद के जिले लेकर अवध के नवाब शुजाउद्दौला को 50 लाख रुपए में बेच दिए गए। नवाब शुजाउद्दौला से उसने एक सन्धि की तथा बनारस का जिला और 40 लाख रुपए के बदले में उसे सैनिक सहायता देने का वचन दिया। इन सुधारों से भी कम्पनी की आर्थिक स्थिति पूर्णतया तो दृढ़ नहीं हो सकी परन्तु हेस्टिग्स के आर्थिक सुधार सराहनीय थे।

(ग) शासन सम्बन्धी सुधार-
वारेन हेस्टिग्स ने सर्वप्रथम क्लाइव द्वारा स्थापित द्वैध शासन व्यवस्था का अन्त किया। मुहम्मद रजा खाँ तथा सिताबराय पर अभियोग चलाकर उन्हें पदच्युत कर दिया गया तथा द्वैध शासन का अन्त कर दिया गया। बंगाल के नवाब से शासन सम्बन्धी अधिकार छीनकर उसे पेंशन दे दी गई। हेस्टिग्स ने कलकत्ता को केन्द्र बनाया तथा राजकोष मुर्शिदाबाद से हटाकर कलकत्ता ले गया। भारतीय कलेक्टरों के स्थान पर उसने अंग्रेज कलेक्टर नियुक्त किए।

(घ) न्याय सम्बन्धी सुधार-
न्याय के क्षेत्र में हेस्टिग्स ने महत्वपूर्ण सुधार किए। प्रत्येक जिले में एक फौजदारी और एक दीवानी अदालत स्थापित की गई तथा दोनों अदालतों के क्षेत्र निर्धारित कर दिए गए। अपील की दो उच्च अदालतें सदर निजामत अदालत तथा सदर दीवानी अदालत कलकत्ता में स्थापित की गईं। न्यायाधीशों को नकद वेतन देने की व्यवस्था की गई, जिससे वे ईमानदारी से कार्य कर सकें। प्रत्येक जिले में एक फौजदार की नियुक्ति की गई, जिसका कार्य अपराधियों को पकड़कर न्यायालय के समक्ष उपस्थित करना था। हिन्दू-मुस्लिम कानूनों को संकलित करने का भी वारेन हेस्टिग्स ने प्रयास किया। फौजदारी अदालतों में भारतीय न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई, जो देश के नियमों से परिचित होने के कारण उत्तम ढंग से न्याय कर सकते थे।

(ङ) सार्वजनिक सुधार-
भारतीयों की दशा को सुधारने के लिए भी हेस्टिग्स ने अथक प्रयास किया

(अ) द्वैध शासन व्यवस्था का अन्त-
द्वैध शासन का अन्त करके उसने बंगाल के निवासियों पर महान् उपकार किया।

(ब) डाकुओं का दमन-
इस समय राजनीतिक अव्यवस्था के कारण देश में चारों ओर डाकुओं का बाहुल्य हो गया था। हेस्टिग्स ने डाकुओं का निर्दयतापूर्वक दमन कराया। अनेक डाकुओं को फाँसी पर लटका दिया गया।

(स) संन्यासियों का रूप धारण किए डाकुओं का विनाश-
इस समय देश में साधुओं का वेश धारण कर | डाकुओं ने पर्यटन का बहाना बनाकर लूटमार कर अराजकता फैला रखी थी। हेस्टिग्स ने उनका भी कठोरतापूर्वक दमन कराया।

(द) पुलिस का संगठन-
पुलिस अफसरों के अधिकार बढ़ा दिए गए तथा प्रत्येक जिले में एक पुलिस अफसर की नियुक्ति की गई, जिस पर जिले की सुव्यवस्था का दायित्व होता था। व्यापारिक क्षेत्र में सुधार- कम्पनी का मुख्य उद्देश्य भारत में व्यापार की उन्नति कर स्वयं को सुदृढ़ बनाना था। व्यापारिक दृष्टिकोण से कम्पनी की स्थिति खराब थी। अत: हेस्टिग्स ने दस्तक प्रथा का अन्त कर कर्मचारियों के निजी व्यापार पर प्रतिबन्ध लगा दिया। हेस्टिग्स ने जमींदारों द्वारा स्थापित समस्त चुंगी चौकियों को समाप्त कर केवल कलकत्ता, हुगली, ढाका, मुर्शिदाबाद और पटना में चुंगी चौकियाँ स्थापित की।

सभी सामान चाहे वह यूरोपियन हो या भारतीय समान दर से चुंगी की व्यवस्था की गई। इन सुधारों से व्यापार को प्रोत्साहन मिला और आय में वृद्धि हुई। कलकत्ता में व्यापारियों को आर्थिक सुविधाएँ प्रदान करने के लिए एक बैंक की स्थापना की। तिब्बत के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए हेस्टिग्स ने तिब्बत में एक व्यापारिक मिशन भेजा। उसने कलकत्ता में टकसाल की भी स्थापना की।

प्रश्न 3.
लॉर्ड कार्नवालिस के सुधारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उतर:
लॉर्ड कार्नवालिस के सुधारों को हम चार भागों में विभक्त कर सकते हैं
(i) भूमि का स्थायी बन्दोबस्त
(ii) न्याय सम्बन्धी सुधार
(iii) व्यापारिक सुधार
(iv) शासन-सम्बन्धी सुधार
(i) भूमि का स्थायी बन्दोबस्त- अब तक कम्पनी वार्षिक ठेके के आधार पर लगान वसूल करती थी। सबसे ऊँची बोली बोलने वाले को ही जमीन दी जाती थी। इससे कम्पनी और किसान दोनों को ही परेशानी हो रही थी। अतः कार्नवालिस ने 1790 ई० में यह योजना पेश की कि जमींदारों को भू-स्वामी स्वीकर कर निश्चित लगान के बदले निश्चित अविध के लिए उन्हें जमीन दे दी जाए। संचालकों की अनुमति से 1790 ई० में बंगाल के जमीदारों के साथ ‘दससाला’ प्रबन्ध स्थापित किया गया। बाद में 1793 ई० में बंगाल और बिहार में इस व्यवस्था को चिर-स्थायी व्यवस्था या स्थायी बन्दोबस्त के नाम से घोषित किया गया। इस व्यवस्था के अनुसार, जमींदार भू-स्वामी बन गए। किसानों की स्थिति रैयतमात्र ही रह गई। जमींदारों को निश्चित अवधि के भीतर वसूल किए गए लगान का 10/11 हिस्सा कम्पनी को देना था और 1/11 भाग अपने खर्च के लिए रखना था। लगान की राशि निश्चित कर दी गई। इस व्यवस्था के अन्तर्गत हानि और लाभ दोनों ही विद्यमान थे।

लाभ- इस बन्दोबस्त से अंग्रेजों ने जमींदारों को भूमि का स्वामी बना दिया। इससे दो लाभ हुए-प्रथम, राजनीतिक दृष्टि से अंग्रेजों को भारत में एक ऐसा वर्ग प्राप्त हो गया, जो प्रत्येक स्थिति में अंग्रेजों का साथ देने को तैयार था। द्वितीय, इससे आर्थिक दृष्टि से लाभ हुआ। जमींदारों ने कृषि में स्थायी रुचि लेना आरम्भ किया क्योंकि कृषि के उत्पादन में वृद्धि होने से अधिकांश लाभ उन्हीं का था। सरकार को उन्हें निश्चित लगान देना था, जबकि उत्पादन में वृद्धि होने से वे स्वयं किसानों से अधिक लगान ले सकते थे। इस कारण कृषि की उन्नति से धीरे-धीरे बंगाल और बिहार पुन: धनवान सूबे बन गए।

इस व्यवस्था से कम्पनी की आय भी निश्चित हो गई और उसे योजनाएँ लागू करने में आसानी हुई। इस प्रकार अब कम्पनी के कर्मचारियों को लगान की व्यवस्था करने से मुक्ति मिल गई और वे अधिक स्वतन्त्रता से न्याय, शासन और कम्पनी के व्यापार की ओर ध्यान दे सकते थे। हानि- इस बन्दोबस्त में किसानों के हित का कोई ध्यान नहीं रखा गया था। उनका भूमि पर कोई अधिकार न रहा और लगान के विषय में वे पूर्णत: जमींदारों की दया पर छोड़ दिए गए। इस व्यवस्था के अन्तर्गत बिचौलियों की संख्या में वृद्धि हुई और किसानों का शोषण बढ़ा। इसी कारण इस व्यवस्था के अन्तर्गत उच्च-स्तर पर सामन्तवादी शोषण और निम्न स्तर पर दासता की भावना को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।

(ii) न्याय-सम्बन्धी सुधार- न्याय के क्षेत्र में कार्नवालिस ने अनेक महत्वपूर्ण सुधार किए

(क) कलेक्टरों को मजिस्ट्रेटों के अधिकार-
कार्नवालिस ने 1787 ई० में उन जिलों को छोड़कर, जहाँ पर उच्च न्यायालय स्थापित थे, न्याय के अधिकार पुनः कलेक्टरों को प्रदान कर दिए तथा कुछ फौजदारी मुकदमों का निर्णय करने का अधिकार भी कलेक्टरों को दिया गया। फौजदारी के क्षेत्र में भी कार्नवालिस ने सुधार किए। फौजदारी की मुख्य अदालत मुर्शिदाबाद के स्थान पर पुनः कलकत्ता में स्थापित की गई, जिसके अध्यक्ष गवर्नर जनरल तथा उसकी कौंसिल के सदस्य होते थे।

(ख) जिला अदालतों का अन्त-
कार्नवालिस ने जिले की अदालतों को समाप्त करके कलकत्ता, ढाका, पटना तथा मुर्शिदाबाद में प्रान्तीय अदालतों की स्थापना करवाई। 5,000 रुपए से अधिक मूल्य के मामलों की अपील सपरिषद् सम्राट के यहाँ ही हो सकती थी।

(ग) कार्नवालिस कोडा-
1793 ई० में कार्नवालिस कोड के अनुसार जजों की नियुक्ति की गई तथा उन्हें न्याय सम्बन्धी अधिकार प्रदान किए गए। फौजदारी मुकदमों में मुस्लिम कानून प्रयोग में लाया गया। अंग-भंग के स्थान पर कठोर कैद की सजा देने का प्रावधान किया गया। निचली(लोअर)अदालतों की स्थापना-चार जिलों की अदालतों के अतिरिक्त निचली अदालतों की भी स्थापना की गई, जिनके अधिकारी मुंसिफ होते थे। मुंसिफ अदालत को 50 रुपए तक के मुकदमे सुनने का अधिकार था।

(ङ) दौरा अदालतों का पुनर्गठन-
दौरा करने वाली अदालतों का पुनर्गठन कराया गया तथा उनमें तीन न्यायाधीश नियुक्त किए गए, जो जिलाधीश के निर्णय के विरुद्ध अपील सुनते थे।

(च) दरोगाओं की नियुक्ति-
देश की शान्ति एवं सुरक्षा के लिए प्रत्येक जिले में कई दरोगाओं की नियुक्ति की गई, जो मजिस्ट्रेट के अधीन होते थे।

(iii) व्यापारिक सुधार- कार्नवालिस ने व्यापार के क्षेत्र में निम्नलिखित सुधार किए
(क) कार्नवालिस ने कम्पनी की आय बढ़ाने के लिए व्यापार बोर्ड का पुनर्गठन किया। बोर्ड के सदस्यों की संख्या 12 से घटाकर 5 कर दी।
(ख) प्रत्येक व्यापारी केन्द्र पर एक-एक रेजीडेण्ट की नियुक्ति की गई, जिसका मुख्य कार्य यह देखना था कि कम्पनी का व्यापार उचित ढंग से हो रहा है या नहीं। ठेकेदारों से माल खरीदने की व्यवस्था समाप्त कर दी गई तथा रेजीडेण्ट उत्पादकों से सीधा सम्पर्क स्थापित कर माल खरीदने लगे।
(ग) जुलाहों से माल खरीदने के सम्बन्ध में यह नियम बना दिया गया कि कम्पनी जितना माल खरीदना चाहेगी, उसका पूरा मूल्य पेशगी के तौर पर दिया जाएगा तथा जुलाहे उतना ही माल देने हेतु बाध्य होंगे, जितना रुपया उन्होंने पेशगी लिया है।
(घ) भारतीय कारीगरों और उत्पादकों की सुरक्षा के लिए भी 1778 ई० में विभिन्न कानून बनाए गए।

(iv) शासन-सम्बन्धी सुधार- कम्पनी में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए कार्नवालिस ने शासन-सम्बन्धी अनेक सुधार किए—
(क) योग्यता के आधार पर नियुक्ति- कम्पनी के कर्मचारी धन कमाने में लगे रहते थे तथा कर्तव्य की उपेक्षा करते थे। इस समय बनारस के रेजीडेण्ट का प्रतिमास वेतन तत्कालीन सिक्के की दर के आधार पर 1,000 रुपए अथवा 1,350 रुपए वार्षिक होता था, जो कि इस पद के अनुरूप काफी अच्छा वेतन था, परन्तु फिर भी लॉर्ड कार्नवालिस के साक्ष्य के आधार पर वह परोक्ष एवं अपरोक्ष रूप से व्यक्तिगत व्यापार तथा भ्रष्टाचार द्वारा एक मोटी धनराशि 40,000 रुपए वार्षिक अपने वेतन के अतिरिक्त कमाता था। कार्नवालिस ने कलेक्टरों तथा जजों के भ्रष्ट होने पर खेद प्रकट किया और इन दोषों को दूर करने के लिए कम्पनी में सिफारिशों के स्थान पर योग्यता के आधार पर कर्मचारियों की नियुक्ति की व्यवस्था की गई।

(ख) उच्च सरकारी पदों से भारतीय वंचित-
कार्नवालिस को भारतीयों पर विश्वास नहीं था तथा उसने 500 पौण्ड वार्षिक से अधिक वेतन वाले पदों पर यूरोपियन्स को रखना आरम्भ किया। इस प्रकार उच्च पदों के द्वार भारतीयों के लिए बन्द कर दिए गए।

(ग) वेतन में वृद्धि-
रिश्वतखोरी तथा भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए उसने कम्पनी के कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि कर दी, जिससे वे लोग ईमानदारी से कार्य कर सकें।

प्रश्न 4.
तृतीय मैसूर युद्ध के कारण व घटनाओं पर एक टिप्पणी लिखिए। श्रीरंगपट्टम की संधि की शर्ते लिखिए।
उतर:
तृतीय मैसूर युद्ध के कारण

  1. टीपू ने विभिन्न आन्तरिक सुधारों द्वारा अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश की, जिसके कारण अंग्रेजों, निजाम एवं मराठों को भय उत्पन्न हो गया।
  2. 1787 ई० में फ्रांस एवं टर्की में टीपू द्वारा अपने दूत भेजकर उनकी मदद प्राप्त करने की कोशिश की गई, जिससे अंग्रेजों में शंका उत्पन्न हो गई।
  3. मंगलौर सन्धि टीपू व अंग्रेजों के मध्य एक अस्थायी युद्धविराम था, क्योंकि दोनों की महत्वाकांक्षाओं व स्वार्थों में टकराव था। अत: दोनों गुप्त रूप से एक-दूसरे के विरुद्ध युद्ध की तैयारी कर रहे थे।
  4. अंग्रेजों द्वारा टीपू पर यह आरोप लगाया गया कि उसने अंग्रेजों के विरुद्ध फ्रांसीसियों से गुप्त समझौता किया है।
  5. कार्नवालिस और टीपू के बीच संघर्ष के कारणों के सम्बन्ध में इतिहासकारों के दो मत हैं। कुछ का मानना है कि कम्पनी ने भारत में साम्राज्य–विस्तार की नीति के कारण टीपू से संघर्ष किया। कुछ का कहना है कि टीपू ने स्वयं ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी थीं, जिससे संघर्ष अवश्यम्भावी हो गया था।
  6. टीपू ने ट्रावनकोर के हिन्दू शासक पर आक्रमण कर दिया, जिसको अंग्रेजों का संरक्षण प्राप्त था। टीपू की इस कार्यवाही पर अंग्रेजों ने युद्ध की घोषणा कर दी।

घटनाएँ- 29 दिसम्बर, 1789 ई० को टीपू ने ट्रावनकोर के राजा पर आक्रमण कर दिया। कार्नवालिस ने कुछ प्रदेशों का लालच देकर 1 जून, 1790 ई० को मराठों व 4 जुलाई, 1790 ई० को निजाम से सन्धि कर ली। इस प्रकार कार्नवालिस ने चतुरता से दोनों शक्तियों को साथ लेकर तीसरी भारतीय शक्ति को कुचलने की चाल चली। कार्नवालिस 1791 ई० में बंगलौर (बंगलुरु) पर अधिकार करने के बाद टीपू की राजधानी श्रीरंगपट्टम के नजदीक पहुँच गया। टीपू ने भी आगे बढ़कर कोयम्बटूर पर अधिकार कर लिया परन्तु शीघ्र ही टीपू पराजित होने लगा। अन्त में अंग्रेजों ने उसकी राजधानी श्रीरंगपट्टम को भी घेरकर 1792 ई० में उस पर अधिकार कर लिया। 23 मार्च, 1792 को दोनों पक्षों के बीच श्रीरंगपट्टम की सन्धि हो गई।

श्रीरंगपट्टम की सन्धि- मार्च 1792 ई० में टीपू श्रीरंगपट्टम की सन्धि करने के लिए बाध्य हो गया। इस समय यदि कार्नवालिस चाहता तो टीपू के समस्त राज्य को छीन सकता था। परन्तु उसे भय था कि मराठों तथा निजाम के साथ विभाजन करने की विकट समस्या उत्पन्न हो जाएगी, अतः उसने टीपू का सम्पूर्ण राज्य तो नहीं छीना परन्तु उसे शक्तिहीन बनाकर छोड़ दिया। सन्धि के द्वारा टीपू का आधा राज्य छीन लिया गया तथा तीनों शक्तियों को वितरित कर दिया गया। सबसे बड़ा भाग कम्पनी को मिला। कम्पनी को मालाबार, कुर्ग तथा डिण्डीगान के प्रदेश मिले, निजाम को कृष्णा नदी के तटीय प्रदेश दिए गए तथा कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदी के मध्य का भाग मराठों को प्राप्त हुआ। युद्ध के व्यय के रूप में टीपू को 30 लाख रुपए तथा अपने दो पुत्र बन्धक
के रूप में देने पड़े।

प्रश्न 5.
वेलेजली की सहायक संधि की नीति पर प्रकाश डालिए।
उतर:
वेलेजली की सहायक संधि नीति- वेलेजली एक घोर साम्राज्यवादी गवर्नर था। कम्पनी शासन के विस्तार के लिए उसने जो सरल और प्रभावशाली अस्त्र व्यवहार में लिया, वह सहायक सन्धि के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार की सन्धि की व्यवस्था भारत में सर्वप्रथम फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले ने की थी। आवश्यकतानुसार वह भारतीय नरेशों को सैनिक सहायता देता तथा बदले में उनसे धन प्राप्त करता था। बाद में क्लाइव एवं कार्नवालिस ने भी इसका सहारा लिया, परन्तु इस व्यवस्था को सुनिश्चित एवं व्यापक स्वरूप प्रदान करने का श्रेय वेलेजली को ही है। सहायक सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं

  • सहायक सन्धि स्वीकार करने वाला देशी राज्य अपनी विदेश नीति को कम्पनी के सुपुर्द कर देगा।
  • वह बिना कम्पनी की अनुमति के किसी अन्य राज्य से युद्ध, सन्धि या मैत्री नहीं कर सकेगा।
  • इस सन्धि को स्वीकार करने वाले देशी राजाओं के यहाँ एक अंग्रेजी सेना रहती थी, जिसका व्यय राजा को उठाना होता था।
  • देशी राजाओं को अपने दरबार में एक ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखना होता था।
  • यदि सहायक सन्धि स्वीकार करने वाले देशी राजाओं के मध्य झगड़ा हो जाता है, तो अंग्रेज मध्यस्थता कर जो भी निर्णय देंगे वह देशी राजाओं को स्वीकार करना पड़ेगा।
  • कम्पनी उपर्युक्त शर्तों के बदले सहायक सन्धि स्वीकार करने वाले राज्य की बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा की गारन्टी लेती थी तथा देशी शासकों को आश्वासन देती थी कि वह उन राज्यों के आन्तरिक शासन में हस्तक्षेप नहीं करेगी। इस प्रकार सहायक सन्धि द्वारा राज्यों की विदेश नीति पर कम्पनी का सीधा नियन्त्रण स्थापित हो गया। यह वेलेजली की साम्राज्यवादी पिपासा को शान्त करने का अचूक अस्त्र बन गया।

सहायक सन्धि के गुण- सहायक सन्धि अंग्रेजों के लिए बड़ी लाभकारी सिद्ध हुई। उन्हें इस सन्धि से निम्नलिखित लाभ हुए
(i) कम्पनी के साधनों में वृद्धि- इस सन्धि द्वारा अंग्रेजों को विभिन्न भारतीय शक्तियों से जो धन और प्रदेश मिले, उनसे कम्पनी के साधनों का बहुत विस्तार हुआ। कम्पनी, भारत में अब सर्वोच्च सत्ता बन गई। अब उसका देशी राज्यों की बाह्य नीति पर पूर्णरूप से नियन्त्रण स्थापित हो गया।
(ii) सैन्य व्यय में कमी- इस सन्धि के द्वारा वेलेजली ने अपनी सेनाओं को देशी राजाओं के यहाँ रखा। इस सेना का व्यय देशी राजाओं को देना पड़ता था। इससे कम्पनी की आर्थिक स्थिति मजबूत हो गई।
(iii) कम्पनी के राज्य की बाह्य आक्रमण से सुरक्षा- इस सन्धि के अनुसार देशी राजाओं के यहाँ अंग्रेजी सेना रहती थी। इससे लाभ यह हुआ कि कम्पनी का राज्य बाह्य आक्रमणों से पूर्ण रूप से सुरक्षित हो गया और कम्पनी अनेक युद्ध करने से बच गई।
(iv) फ्रांसीसी प्रभाव का अन्त- इस सन्धि के अनुसार कोई भी देशी राजा अपने यहाँ बिना अंग्रेजों की स्वीकृति के किसी विदेशी को अपनी सेवा में नियुक्त नहीं कर सकता था। इससे भारत में फ्रांसीसी प्रभाव का अन्त हो गया।
(v) कम्पनी के प्रदेशों में शान्ति- इस सन्धि के अनुसार देशी रियासतों के आपसी झगड़े समाप्त हो गए, जिससे वहाँ के लोग शान्तिपूर्वक रहने लगे। अंग्रेजी साम्राज्य के अधिक सुरक्षित हो जाने के कारण वहाँ के नागरिकों का जीवन अधिक समृद्ध और सुरक्षित हो गया।
(vi) वेलेजली के उद्देश्यों की पूर्ति- लॉर्ड वेलेजली घोर साम्राज्यवादी था। इस सन्धि ने उसकी साम्राज्य–विस्तार की भूख को शान्त कर दिया।

सहायक सन्धि के कुप्रभाव ( दोष)- सहायक सन्धि जहाँ कम्पनी के लिए वरदान सिद्ध हुई, वहीं भारतीय रियासतों पर इसका अत्यन्त ही बुरा प्रभाव पड़ा। इसने देशी राज्यों की स्वतन्त्रता समाप्त कर दी तथा उन्हें पूर्णत: कम्पनी पर आश्रित रहने के लिए बाध्य कर दिया।
(i) देशी राजाओं का शक्तिहीन होना- इस सन्धि से देशी राजा शक्तिहीन और निर्बल हो गए। उनके राज्य की बाह्य नीति पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। देशी राजा बिना अंग्रेजों की अनुमति के न तो किसी से सन्धि कर सकते थे और न ही युद्ध कर सकते थे। वास्तव में वेलेजली की सहायक सन्धि ने देशी राजाओं को शक्तिहीन बना दिया।
(ii) आर्थिक संकट- कम्पनी की सेना रखने वाले राज्यों को सेना का सम्पूर्ण व्यय देना पड़ता था। इस कारण उनको आर्थिक संकट का भी सामना करना पड़ा।
(iii) बेकारी की समस्या- देशी राज्यों को अपने यहाँ अनिवार्य रूप से अंग्रेजी सेना रखनी पड़ती थी। अतः देशी राजाओं ने अपनी स्थायी सेना भंग कर दी, जिसके कारण बर्खास्त सैनिक बेरोजगार हो गए और वे असामाजिक और आपराधिक गतिविधियों में भाग लेकर चारों तरफ अव्यवस्था एवं अशान्ति में वृद्धि करने लगे।
(iv) देशी राजाओं का विलासी और निष्क्रिय होना- आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा की गारन्टी प्राप्त होने पर देशी राज्य कम्पनी के समर्थक और सहायक बन गए। उनकी राष्ट्रीयता एवं आत्मगौरव की भावना समाप्त हो गई। उनका सारा समय भोगविलास में व्यतीत होने लगा तथा प्रजा पर अत्याचार बढ़ गए।

सहायक सन्धि की नीति का क्रियान्वयन- वेलेजली ने इस सन्धि को व्यावहारिक रूप प्रदान करने का तुरन्त निश्चय कर लिया तथा सर्वप्रथम अपने मित्र राज्यों को सहायक सन्धि स्वीकार करने पर बाध्य किया। जिन शक्तियों से युद्ध करना पड़ा, उन पर विजय प्राप्त करके भी बलपूर्वक सहायक सन्धि लागू की गई तथा जब वेलेजली भारत से लौटा, वह लगभग सभी प्रमुख शक्तिशाली राज्यों में सहायक सन्धि लागू कर चुका था।

प्रश्न 6.
लॉर्ड डलहौजी के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए।
उतर:
लॉर्ड डलहौजी के चरित्र का मूल्यांकन निम्न बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है
(i) अंग्रेजी शासन का वफादार- लॉर्ड डलहौजी अपने मूल राष्ट्र ब्रिटेन के प्रति समर्पित था। उसके राष्ट्र-प्रेम ने लॉर्ड डलहौजी की अन्तर्राष्ट्रीयता अथवा मानवता की भावनाओं को संकुचित कर दिया। भारतीयों के प्रति उसका व्यवहार अत्यन्त कटु, बर्बर एवं अमानुषिक था। उनकी भावनाओं अथवा भलाई पर उसने कभी भी कोई ध्यान नहीं किया। उसने जो भी सुधार किए, उनका उद्देश्य अंग्रेजों और उनकी सरकार का हित था।

(ii) इच्छा-शक्ति का धनी-
लॉर्ड डलहौजी में अद्भुत इच्छा-शक्ति थी। जिस बात को वह एक बार निश्चित कर लेता था, उससे कभी डिगता नहीं था तथा उसकी पूर्ति के प्रयास में वह निरन्तर संलग्न रहता था। उसे अपने देश एवं उसकी प्रतिष्ठा से अगाध प्रेम था तथा उसकी वृद्धि करने में उसने उचित-अनुचित का भी ध्यान नहीं रखा। उसके कार्यों से उसके देश की ख्याति बढ़ी। उसको आर्थिक एवं राजनीतिक लाभ प्राप्त हुए तथा उसका साम्राज्य विस्तार हुआ।

(iii) परिश्रमी-
लॉर्ड डलहौजी घोर परिश्रमी था तथा दिन-रात के अथक परिश्रम से उसने न केवल भारत में अनेक राज्यों पर विजय प्राप्त की वरन् अनेक राज्यों को अपनी कूटनीति से ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। उसमें क्रियात्मक प्रतिभा थी। गोद-निषेध नीति के समान उच्चकोटि की नीति को जन्म देने का श्रेय लॉर्ड डलहौजी को ही है।

(iv) प्रतिभाशाली व्यक्ति-
लॉर्ड डलहौजी अत्यन्त प्रतिभशाली, कर्तव्यपरायण एवं क्रियाशील व्यक्ति था। भारत में आकर शीघ्र ही वह यहाँ की परिस्थितियों से अवगत हो गया तथा भारत के छोटे-छोटे शक्तिहीन राज्यों को समाप्त करके भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को विशाल एवं संगठित बनाने का कार्य उसने आरम्भ कर दिया।

(v) एकपक्षीय तर्क को आधार बनाने वाला शासक-
लॉर्ड डलहौजी में तर्कशीलता की भावना अत्यन्त प्रबल थी तथा तर्क का आश्रय लेकर वह प्रत्येक कार्य करता था। देशी नरेशों के राज्यों का अपहरण भी उसने तर्क के आधार पर ही किया, यद्यपि उसका तर्क एकपक्षीय ही था।

(vi) स्वेच्छाचारी-
लॉर्ड डलहौली की सबसे बड़ी दुर्बलता थी कि वह योग्य व्यक्तियों के परामर्श को भी नहीं मानता था। इसलिए वह किसी का भी कृपापात्र न बन सका। उसके अधीन कर्मचारी उसके दुर्व्यवहार के कारण उससे भयभीत रहते थे और हृदय से उनका प्रेम उसे प्राप्त न था। यदि अपने सहयोगियों के साथ उसका व्यवहार अधिक सभ्यतापूर्ण होता तो उसे अपने लक्ष्य की प्राप्ति में और भी अधिक सफलता मिल सकती थी।

(vii) आधुनिक भारत का निर्माता-
लॉर्ड डलहौजी ने जो सुधार भारत में किए, उसके आधार पर उसे आधुनिक भारत का निर्माता कहा जा सकता है। उसके सुधार इतने क्रान्तिकारी थे कि भारतवासी उनसे भयभीत हो उठे और वे सोचने लगे कि इन सुधारों के द्वारा उनके धर्म में हस्तक्षेप किया जा रहा है। किन्तु कुछ समय पश्चात् भारतीयों को उन सुधारों की उपयोगिता का अहसास हो सका।

(viii) महान् साम्राज्यवादी-
लॉर्ड डलहौजी महान् साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल था तथा भारत में उसने सदैव इसी नीति का अनुसरण किया। उसके काल में उसकी यह नीति सर्वथा सफल रही किन्तु भारतीयों में उसकी नीति के कारण अंग्रेजों के प्रति अविश्वास एवं घृणा की भावनाएँ प्रबल हो गईं और उसके लौटते ही भारत में महान् क्रान्ति का विस्फोट हुआ। अंग्रेज विद्वानों ने लॉर्ड डलहौजी का मूल्यांकन करते हुए उसकी बहुत प्रशंसा की है। उसे भारत के उच्चतम कोटि के चार प्रमुख साम्राज्यवादी गवर्नर जनरलों में स्थान प्राप्त है।

क्लाइव के द्वारा प्रारम्भ किए गए साम्राज्य निर्माण के कार्य को पूर्ण करने वाला लॉर्ड डलहौजी ही था। शक्तिहीन देशी राजाओं को समाप्त करके उसने भारत में एक सुदृढ़ राज्य स्थापित किया तथा भारत को प्राकृतिक सीमाएँ प्रदान की। उसने सेना का पुनर्सगठन किया, जो गदर को निष्फल बनाने में समर्थ हो सकी। उसमें केवल विजेता के ही गुण नहीं थे वरन् वह एक कुशल निर्माता एवं शासक भी था। अन्य किसी गवर्नर-जनरल में एकसाथ ही तीन गुणों का उचित सम्मिश्रण मिलना दुर्लभ है। जहाँ तक उसकी साम्राज्यवादी नीति का प्रश्न है, डॉ० ईश्वरी प्रसाद की यह बात नितान्त उचित लगती है कि “साम्राज्यवाद का प्रेत जनमत की परवाह नहीं करता। वह तो तलवार की धार से अपना लक्ष्य पूरा करता है।”

इसी प्रकार वी०ए० स्मिथ के अनुसार- “लॉर्ड डलहौजी एक महान् विजेता और कुशल निर्माणकर्ता ही नहीं था, बल्कि वह एक उच्चकोटि का सुधारक भी था। एक विजेता और साम्राज्य विस्तारक के रूप में लॉर्ड डलहौजी ने भारतीयों पर कुठाराघात किया, परन्तु एक सुधारक के रूप में उसका नाम आज भी बड़े गौरव के साथ लिया जाता है।”

प्रश्न 7.
लॉर्ड बैंटिक की नीति उदार थी।’ इस कथन के आलोक में उसके सुधारों का वर्णन कीजिए।
उतर:
लॉर्ड विलियम बैंटिंक की नीति- स्वभाव और मानसिक दृष्टिकोण से वह उदार विचारों वाला शासक था। पी०ई० रॉबर्ट्स के अनुसार- “लार्ड विलियम बैंटिंक अपने समय का सर्वथा उदार विचारों वाला व्यक्ति था। उसका युग सहानुभूतिपूर्ण तथा संसदीय सुधारों का युग था तथा वह उसके सर्वथा अनुरूप था।” वह शान्तिप्रिय था और सुधार कार्य की उसमें प्रबल इच्छा थी। वह उन्मुक्त व्यापार एवं उन्मुक्त प्रतियोगिता की नीति का समर्थक था और उसका विश्वास था कि राज्य को जनता के जीवन में कम-से-कम हस्तक्षेप करना चाहिए। फिर भी लोकहितकारी कार्यों का सम्पादन करने में वह किसी प्रकार के संकोच का अनुभव नहीं करता था। वह सुधारों का प्रबल पक्षपाती था तथा उदार विचार वाला होने के कारण अंग्रेजों की उग्र एवं साम्राज्यवादी नीति का विरोधी था।

बैंटिंक के सुधार- बैंटिंक ने निम्नलिखित सुधार किए हैं
(i) प्रशासनिक और न्यायिक सुधार- सर्वप्रथम बैंटिंक ने प्रशासनिक सुधारों की तरफ ध्यान दिया। वस्तुत: लॉर्ड कार्नवालिस के पश्चात् किसी भी गवर्नर जनरल ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था में सुधार लाने के लिए बैंटिंक ने अग्रलिखित कार्य किए

  • अभी तक कम्पनी के महत्वपूर्ण पदों पर ज्यादातर अंग्रेज अधिकारी नियुक्त थे। बैंटिंक ने अब भारतीयों को भी योग्यता के आधार पर प्रशासनिक सेवा में भर्ती करना आरम्भ कर दिया।
  • बैंटिंक ने लगान-सम्बन्धी सुधार करते हुए जमीन की किस्म एवं उपज के आधार पर लगान की राशि तय कर दी। इस व्यवस्था का काम एक बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के जिम्मे सौंपा गया। यह व्यवस्था 30 वर्षों के लिए लागू की गई। इससे कम्पनी, जमींदार तथा किसान तीनों को लाभ हुए।
  • बैंटिंक ने पुलिस-व्यवस्था में भी सुधार किए। उसने पटेलों एवं जमींदारों को भी पुलिस-सम्बन्धी अधिकार प्रदान किए। अपराधियों पर नियन्त्रण रखने के उद्देश्य से प्रत्येक जिले में पुलिस की स्थायी ड्यूटी लगाई गई।
  • 1832 ई० में बैंटिंक ने इलाहाबाद में सदर दीवानी अदालत तथा सदर निजामत अदालत की स्थापना की। इसका उद्देश्य पश्चिमी प्रान्तों की जनता को राहत पहुँचाना था।
  • 1832 ई० में बैंटिंक ने एक कानून पारित कर बंगाल में जूरी प्रथा को आरम्भ किया, जिससे यूरोपियन जजों को सहायता देने के लिए जूरी के रूप में भारतीयों की सहायता प्राप्त की जा सके।
  • बैंटिंक ने न्यायालयों में देशी भाषा के प्रयोग पर अधिक बल दिया, इससे पूर्व न्यायालयों में फारसी भाषा का प्रयोग अधिक होता था।
  • बैंटिंक के शासन में लॉर्ड मैकॉले द्वारा दण्ड संहिता का निर्माण किया गया। इस प्रकार कानूनों को एक स्थान पर संगृहीत कर दिया गया, जिससे न्याय प्रणाली में पर्याप्त सुधार हुआ।

(ii) शिक्षा-सम्बन्धी सुधार- लॉर्ड बैंटिंक ने शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण सुधार किए। मैकाले ने 2 फरवरी, 1835 ई० के अपने स्मरण-पत्र में प्राच्य शिक्षा की खिल्ली उड़ाई एवं अपनी योग्यता प्रस्तुत की, जिसका उद्देश्य यह था कि भारत में “एक ऐसा वर्ग बनाया जाए, जो रंग तथा रक्त से तो भारतीय हो, परन्तु प्रवृत्ति, विचार, नैतिकता तथा बुद्धि से अंग्रेज हो।” बैंटिंक ने मैकाले की यह नीति (योजना) स्वीकार कर ली। फलस्वरूप भारत में अंग्रेजी को प्रोत्साहन दिया गया। अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार के लिए अनुदान दिए गए तथा कलकत्ता में एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई। इससे भारतीय पाश्चात्य ज्ञान के सम्पर्क में आए।

(iii) सती प्रथा का अन्त- भारत में सती प्रथा एक घोर सामाजिक बुराई थी, जिसका काफी समय से चलन था। 4 दिसम्बर, 1829 ई० को बैंटिंक ने एक कानून पारित कर सती प्रथा को नर हत्या का अपराध घोषित कर दिया। सती प्रथा को समाप्त करने में बैंटिंक को महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय का भरपूर सहयोग मिला। ठगों का दमन- उन्नीसवीं सदी के पहले चार दशकों तक बनारसी ठगों का देशभर में खासकर उत्तर भारत के कई इलाकों में बड़ा आतंक था। ठगी के इस महाजाल को पूरी तरह से नेस्तनाबूद करने में बैंटिंक व स्लीमैन समेत ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कई सिपहसालारों के भी पसीने छूट गए थे। अतः बैंटिंक द्वारा ठगों का दमन करना भी महत्वपूर्ण कार्य था।

मुगल साम्राज्य के पतन के पश्चात् ठगों के प्रभाव में काफी वृद्धि हो चुकी थी। इन्हें जमींदार तथा उच्च अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त था। ठगों के अत्याचारों से जनता त्रस्त थी। ठगों का अन्त करने के लिए बैंटिंक ने कर्नल स्लीमैन के साथ बड़े ही व्यवस्थित ढंग से कार्यवाही प्रारम्भ की। उसने एक के बाद एक, दूसरे गिरोह को पकड़ा और उन्हें कठोर सजाएँ दीं। उसने लगभग 2,000 ठगों को बन्दी बनाया। इनमें से उसने 1,300 को मृत्युदण्ड दिया। 500 ठगों को जबलपुर स्थित सुधार-गृह में भेज दिया गया तथा शेष को देश से निष्कासित कर दिया। बैंटिंक के इस कठोर कदम से 1837 ई० तक संगठित तौर पर काम करने वाले ठगों के गिरोहों का सफाया हो गया।

(v) नर-बलि की प्रथा का अन्त- भारत के कुछ हिस्सों में नर-बलि की प्रथा भी प्रचलित थी। यह प्रथा असभ्य एवं जंगली जातियों के बीच व्याप्त थी। वे अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए निरपराध व्यक्तियों को भी पकड़कर उनकी बलि चढ़ा दिया करते थे। एक कानून बनाकर बैंटिंक ने इस कुप्रथा को बन्द करवा दिया।

(vi) दास प्रथा का अन्त- भारत में दास प्रभा भी प्राचीनकाल से ही प्रचलित थी। दासों की खरीद-बिक्री होती थी। उनसे जानवरों की तरह व्यवहार किया जाता था। बैंटिंक ने 1832 ई० में कानून बनाकर दास प्रथा को भी समाप्त कर दिया।

(vii) हिन्दू उत्तराधिकार कानून में सुधार- हिन्दू उत्तराधिकार नियम में यह दोष व्याप्त था कि अगर कोई व्यक्ति अपना धर्म बदल लेता है तो उसे पैतृक सम्पत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा। बैंटिंक ने घोषणा की कि “धर्म-परिवर्तन करने की स्थिति में उसे पैतृक सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। उसे नियमानुसार पैतृक सम्पत्ति का भाग मिलेगा।

(viii) बाल-वध निषेध- सती प्रथा के समान बाल-वध की भी कुप्रथा प्रचलित थी। अनेक स्त्रियाँ अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अपने बच्चों की बलि चढ़ाने की मनौतियाँ मानती थीं और उनकी बलि चढ़ा देती थीं। राजपूतों में तो कन्या का जन्म ही अपमान का द्योतक था। अत: कन्या के जन्म लेते ही उसकी हत्या कर दी जाती थी। इसलिए बैंटिंक ने बंगाल रेग्यूलेशन ऐक्ट के द्वारा इस कुप्रथा को बन्द करवा दिया।

(ix) जनहितोपयोगी कार्य- बैंटिंक ने जनहित की सुविधा के लिए भी अनेक कार्य करवाए। नहरों, सड़कों, कुओं आदि का निर्माण भी करवाया।

(x) आर्थिक सुधार- बैंटिंक जिस समय भारत आया, कम्पनी की स्थिति ठीक नहीं थी। बर्मा (म्यांमार) युद्ध ने कम्पनी का कोष करीब-करीब रिक्त कर दिया था। उसने आर्थिक सुधार करते हुए असैनिक अधिकारियों के वेतन और भत्ते बन्द कर दिए। अनावश्यक पदों की समाप्ति कर दी। कलकत्ता (कोलकाता) से 400 मील की सीमा में निवास करने वाले सैनिक अधिकारियों को केवल आधा भत्ता दिया जाना निश्चित कर दिया, इससे कम्पनी को लगभग 1,20,000 पौण्ड की वार्षिक बचत हुई। धन की बचत के लिए उसने उच्च पदों पर कम वेतन देकर भारतीयों को नियुक्त कर दिया, जिससे भारतीयों का अंग्रेजों के प्रति असन्तोष भी कम हो गया। बैंटिंक ने लगान मुक्त भूमि का सर्वेक्षण कर उसे जब्त कर लिया तथा उस पर लगान लगा दिया। बैंटिंक के इस कार्य से कम्पनी को करीब 3 लाख रुपए की अतिरिक्त राशि प्राप्त होने लगी

प्रश्न 8.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए|
(क) बेसिन की संधि
(ख) गोरखा युद्ध
(ग) रणजीत सिंह का शासन-प्रबन्ध
(घ) प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध
(ङ) द्वितीय ब्रह्मा युद्ध
(च) नवीन चार्टर एक्ट
उतर:
(क) बेसिन की संधि- पेशवा बाजीराव द्वितीय ने दिसम्बर 1802 ई० में बेसीन की सन्धि पर हस्ताक्षर कर दिए, जिसके द्वारा पेशवा, जो मराठों का नेता माना गया था, सहायक सन्धि को मानने को प्रस्तुत हो गया। पेशवा ने एक सहायक अंग्रेजी सेना रखने की स्वीकृति दे दी, जिसके व्यय के लिए 26 लाख रुपए वार्षिक आय का एक प्रदेश कम्पनी को दे दिया गया। सूरत पर से भी पेशवा ने अपना दावा त्याग दिया तथा अपनी बाह्य नीति के अनुसरण के लिए उसने अंग्रेजों का नियन्त्रण स्वीकार कर लिया। इसके बदले में अंग्रेजों ने पेशवा की सहायता करने का वचन दिया। सर आर्थर वेलेजली के अनुसार- “यह सन्धि एक शून्य (पेशवा की शक्ति) से की गई थी।

बेसीन की सन्धि लॉर्ड वेलेजली की सबसे बड़ी कूटनीतिक विजय थी। पेशवा, जो मराठों का सरदार था, के अंग्रेजों के संरक्षण में आने का अभिप्राय था, सम्पूर्ण मराठों का अंग्रेजों के सरंक्षण में आ जाना। मराठा जाति, जो एकमात्र भारतीय जाति थी, जिससे अंग्रेजों की शक्ति के विनाश की आशा की जा सकती थी, इस सन्धि द्वारा अंग्रेजों के संरक्षण में आ गई। सिन्धिया इस समय भारत का सबसे शक्तिशाली सरदार था, जिसने मुगल सम्राट तक को दहला रखा था तथा दक्षिण में पेशवा का जो सबसे बड़ा समर्थक था, उसका बेसीन की सन्धि को स्वीकार कर लेना बड़ा महत्व रखता था, क्योंकि इस प्रकार उत्तरी तथा दक्षिणी भारत को अंग्रेजों ने अपने संरक्षण में ले लिया। भारतीय तथा अंग्रेज दोनों इतिहासकारों ने ब्रिटिश साम्राज्य के भारत में विस्तार के इतिहास में इस सन्धि को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना है। वेलेजली ने यह सोचा था कि पेशवा द्वारा बेसीन की सहायक सन्धि कर लिए जाने पर मराठा सरदार अंग्रेजों की प्रभुता स्वीकार कर लेंगे किन्तु उसकी यह धारणा गलत साबित हुई।

बेसीन की सन्धि का समाचार सुनकर मराठा सरदार अत्यन्त क्रुद्ध हुए। उनका मानना था कि पेशवा ने उनके परामर्श के बिना ही मराठों तथा देश की स्वतन्त्रता को अंग्रेजों के हाथ बेच दिया है। अत: उसका प्रतिकार करने के लिए उन्होंने युद्ध की तैयारियाँ आरम्भ कर दी। परन्तु इस संकटकाल में भी मराठे संगठित नहीं हो सके। होल्कर ने मराठा संघ में सम्मिलित होने से इन्कार कर दिया परन्तु सिन्धिया तथा भोंसले संगठित हो गए। गायकवाड़ इस युद्ध में तटस्थ रहा।

(ख) गोरखा युद्ध- हेस्टिग्स को सर्वप्रथम नेपाल के गोरखों के साथ युद्ध करना पड़ा। हिमालय की तराई में फैले हुए नेपाल राज्य के निवासी ‘गोरखा’ कहलाते हैं। पूर्व में सिक्किम से पश्चिम में सतलुज तक इनका राज्य फैला हुआ था। गोरखा जाति अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध थी।
(i) गोरखा शक्ति का उदय- चौदहवीं शताब्दी में यहाँ राजपूतों का राज्य था, परन्तु धीरे-धीरे यह राज्य छिन्न-भिन्न होकर शक्तिहीन हो गया। 17 वीं शताब्दी में पृथ्वीनारायण नामक गोरखा सरदार के नेतृत्व में नेपाल को पुन: संगठित किया गया, तब से गोरखा शक्ति का निरन्तर विकास होने लगा। अंग्रेज भी नेपाल से अपने व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करना चाहते थे परन्तु इस उद्देश्य में उन्हें सफलता नहीं मिली। 1802 ई० में जब कम्पनी के हाथ में गोरखपुर का जिला आ गया तो कम्पनी के राज्य की सीमाएँ नेपाल राज्य को स्पर्श करने लगीं तथा तभी से दोनों में संघर्ष होने लगे क्योंकि दोनों राज्यों की कोई सीमा निश्चित नहीं थी।

(ii) आक्रामक गतिविधियाँ- सर जॉर्ज बालों तथा लॉर्ड मिण्टो की अहस्तक्षेप की नीति से उत्साहित होकर गोरखों ने कम्पनी के सीमान्त प्रदेशों पर आक्रमण करना आरम्भ कर दिया तथा कुछ प्रदेश छीन भी लिए। शिवराज तथा बुटवल के प्रदेशों पर गोरखों का अधिकार होने के कारण युद्ध आवश्यक हो गया तथा 1814 ई० में नेपाल के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी गई।

(iii) युद्ध की घटनाएँ- चार सेनाएँ भेजकर लॉर्ड हेस्टिग्स ने नेपाल को चारों ओर से घेर लिया परन्तु गोरखों की वीरता देखकर अंग्रेजों के छक्के छूट गए। बल से जब विजय प्राप्त नहीं हो सकी तब अंग्रेजों ने छलपूर्वक गोरखों को मिलाने का प्रयास किया। गोरखों के सेनापति को बहुत प्रयास करने पर भी अंग्रेज अपना मित्र बनाने में असमर्थ रहे। छापामार रणपद्धति के द्वारा गोरखों ने अंग्रेजों को कई स्थानों पर पराजित किया। पहाड़ी प्रदेशों में मार्गों की कठिनाई के कारण अंग्रेज आगे बढ़ने में असमर्थ रहे तथा उनकी सेनाएँ पीछे हटने लगीं।

पी० ई० रॉबर्ट्स के अनुसार- “यद्यपि गोरखों की संख्या केवल 12,000 थी तथा अंग्रेजी सेना 34,000 के लगभग थी। फिर भी यह 1814-15 ई० का अभियान भयानक रूप से असफल होता लग रहा था। जावा की लड़ाई का नायक जनरल गिलेस्पी एक पहाड़ी किले पर मारा गया। जनरल मार्टिण्डेल ज्याटेक में रोक दिया गया। मुख्यतः पल्पा और राजधानी काठमाण्डू पर हुए हमले असफल कर दिए गए और केवल जनरल ऑक्टर लोनी ही सुदूर पश्चिम में अपनी स्थिति बनाए रख सका।”

(iv) कूटनीति की सफलता और सिगौली की सन्धि- अन्तत: धन का लोभ देकर अंग्रेजों ने अनेक गोरखों को अपनी सेना में भर्ती कर लिया। फलस्वरूप विवश होकर नेपाल के राजा ने सन्धि करना स्वीकार किया। 1816 ई० में सिगौली की सन्धि हो गई, जिसके द्वारा कुमायूँ तथा गढ़वाल के समस्त प्रदेश अंग्रेजों को प्राप्त हुए तथा नेपाल के राजा ने काठमाण्डू में ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखना स्वीकार कर लिया। नेपाल के राज्य को स्वतन्त्र रहने दिया गया परन्तु बाह्य देशों के निवासियों को वह अपने यहाँ नौकरी नहीं दे सकता था।

(v) गोरखा युद्ध के लाभ- गोरखों के साथ मित्रता स्थापित करने से कम्पनी को अनेक लाभ हुए। सर्वप्रथम गोरखा जाति के समान शक्तिशाली एवं वीर जाति का सहयोग अंग्रेजों को प्राप्त हुआ था। अंग्रेजों ने गोरखों की पृथक् सेना का निर्माण किया, जिसने आवश्यकता पड़ने पर विशेष रूप से 1857 ई० की क्रान्ति में अंग्रेजों की महान् सेवा की। सिगौली सन्धि के द्वारा जो पर्वतीय प्रदेश अंग्रेजों को प्राप्त हुए, वहाँ अल्मोड़ा, शिमला, नैनीताल, रानीखेत आदि प्रमुख पहाड़ी नगरों का निर्माण कराया गया, जहाँ पर गर्मी से बचने के लिए अंग्रेजों ने निवास स्थान बनाए।

(ग) महाराजा रणजीत सिंह का शासन-प्रबन्ध
(i) राज्य एवं शासन का संगठन- महाराजा रणजीत सिंह ने अपने विशाल साम्राज्य के लिए एक सुव्यवस्थित शासन पद्धति का निर्माण किया तथा यह सिद्ध कर दिया कि वे केवल एक कूटनीतिक विजेता ही नहीं वरन् कुशल शासक भी हैं। महाराजा रणजीत सिंह से पूर्व सिक्खों के संघ को ‘खालसा’ कहते थे। इसमें अनेक मिस्लें होती थीं, जिनके मुखिया ‘सरदार’ कहलाते थे। सभी सरदार आन्तरिक क्षेत्र में स्वतन्त्र थे तथा खालसा का कार्य सामूहिक उन्नति करना था। खालसा के संचालन के लिए एक गुरुमठ होता था, जिसकी बैठक प्रतिवर्ष अमृतसर में होती थी। किन्तु रणजीत सिंह के राज्य से पूर्व सरदार बहुधा उद्दण्ड और अनियन्त्रित थे तथा खालसा के महत्व की प्रायः अवहेलना करते थे।

(ii) निरंकुश राजतन्त्र- महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब में सिक्खों का एकछत्र राजतन्त्रात्मक साम्राज्य निर्मित किया तथा स्वेच्छाचारी सरदारों पर जुर्माना करके तथा उनकी सम्पत्ति छीनकर उन्हें निर्बल बना दिया। उन्होंने उत्तराधिकार नियम भंग कर दिया तथा सरदार की मृत्यु के उपरान्त उसकी सम्पूर्ण सम्पत्ति हड़पने की नीति प्रचलित की। महाराजा ने एक विशाल सेना का संगठन करके सामन्तों को भयभीत किया। रणजीत सिंह स्वयं सामन्तों की सेना का निरीक्षण भी करते थे, जिस कारण सामन्त महाराजा से आतंकित रहते थे। महाराजा ने निरंकुश एवं स्वच्छ शासन पद्धति को अपनाया परन्तु प्रजाहित का उन्होंने सदैव ध्यान रखा। उनकी स्वेच्छाचारी नीति पर नियन्त्रण रखने के लिए भी अनेक संस्थाएँ थी। प्रथम अकालियों का संगठन तथा कुलीन वर्ग जिस पर उनकी सेना की वास्तविक शक्ति आधारित थी। उन्होंने हिन्दू एवं मुसलमानों को समान रूप से उच्च पद दिए तथा योग्यता का सदा सम्मान किया।

(iii) शासन व्यवस्था- उनके उच्चकोटि के सुव्यवस्थित शासन की अंग्रेजों ने भी प्रशंसा की है। सुविधा के लिए उन्होंने अपने राज्य को चार प्रान्तों में विभाजित किया था। ये प्रान्त कश्मीर, लाहौर, मुल्तान तथा पेशावर थे। इनका शासन नाजिम के हाथ में होता था, जिसकी नियुक्ति स्वयं महाराजा करते थे। नाजिम के नीचे कदीर होते थे। मुकद्दम, पटवारी, कानूनगो उनकी सहायता के लिए होते थे। इन सभी पदाधिकारियों को मासिक वेतन दिया जाता था। प्रान्तों पर केन्द्र का पूर्ण संरक्षण एवं नियन्त्रण था।।

(iv) राजस्व प्रबन्ध- रणजीत सिंह के साम्राज्य में भूमि कर या राजस्व व्यवस्था अविकसित तथा अवैज्ञानिक थी। जागीरदार ही सरकार और जनता के बीच की कड़ी होते थे। राज्य द्वारा लगान की कोई निश्चित दर निश्चित नहीं की गई थी। सामान्यतया लगान उत्पादन का 33% से 40% तक होता था, यह भूमि की उर्वरता के अनुसार लिया जाता था। लगान वसूल करने के लिए सरकार की ओर से मुकद्दम तथा पटवारी होते थे। चुंगी के द्वारा भी राज्य को काफी आय होती थी। विलासिता एवं आवश्यकता की वस्तुओं पर चुंगी समान रूप से लगाई जाती थी, जिससे कर का भार सम्पूर्ण जनता समान रूप से वहन करे।।

(v) सैन्य प्रबन्ध- महाराजा रणजीत सिंह ने सैनिक शक्ति पर आधारित राज्य होने के कारण एक विशाल सेना का संगठन किया। रैपल ग्रिफिन के अनुसार, “महाराजा एक बहादुर सिपाही थे-दृढ़, अल्पव्ययी, चुस्त, साहसी तथा धैर्यशील।” उनसे पहले अश्वारोही सेना का विशेष महत्व था परन्तु महाराजा ने तोपखाना तथा पैदल सेना में अत्यधिक वृद्धि की। सैन्य शिक्षण के लिए उन्होंने शिक्षित यूरोपियनों की नियुक्ति की। परिणामस्वरूप रणजीत सिंह की सेना इतनी शक्तिशाली हो गई कि अंग्रेज भी उनसे भयभीत रहते थे।

उनकी सेना में लगभग 40000 अश्वारोही तथा 40,000 पैदल तथा तोपखाना था। सैनिकों को नकद वेतन मिलता था। उनकी एक विशेष सेना फौज-ए-खास कहलाती थी। इसके संगठन का भार फ्रांसीसी सेनापति वेण्टुरा तथा एलॉर्ड के ऊपर था। उन्होंने ही इस सेना का संगठन फ्रांसीसी प्रणाली के आधार पर किया। महाराजा रणजीत सिंह ने मराठों की छापामार रण-पद्धति का परित्याग कर दिया तथा सामन्ती संगठन के आधार पर राज्य की सेना की व्यवस्था की। इस प्रकार उनकी रण-कुशल सेना अत्यन्त शक्तिशाली बन गई तथा उसी के बल पर इतना विस्तृत साम्राज्य निर्मित करने में वे सफल रहे। इसी आधार पर महाराजा रणजीतसिंह को एक कुशल प्रशासक, साहसी, योग्य तथा कार्यकुशल प्रबन्धक माना गया है।

(vi) न्याय-व्यवस्था- रणजीत सिंह ने प्राचीन न्याय-पद्धति को ही अपनाया था। उनके राज्य में लिखित कानून तथा दण्ड-व्यवस्था का सर्वथा अभाव था। अधिकांशतः ग्रामीण जनता स्वयं ही अपने झगड़ों का निर्णय कर लेती थी। कस्बों में कारदार न्याय विभाग के कर्मचारी होते थे तथा नगरों में नाजिम न्याय का कार्य करते थे। केन्द्र में सर्वोच्च न्यायालय ‘अदालत-उल आला’ होती थी। जिसका प्रधान पद महाराजा स्वयं ग्रहण करते थे। अपराधियों को अधिकतर जुर्माने का दण्ड मिलता था। प्राणदण्ड बहुत कम दिया जाता था। कारागार के दण्ड की कोई व्यवस्था नहीं थी।

महाराजा रणजीत सिंह स्वयं न्यायप्रिय थे तथा उनका न्याय निष्पक्ष होता था। मन्त्रियों को अपने विभागों के मुकदमों का निर्णय करने का अधिकार होता था। महाराजा स्वयं भी राजधानी में प्रतिदिन अपना दरबार लगाते थे और मकदमों की सनवाई करते थे। अपराधों के लिए दण्ड प्रायः कठोर दिए जाते थे। भ्रष्टाचार और घसखोरी ? का दण्ड रणजीत सिंह स्वयं दिया करते थे। कभी-कभी वे अपने कर्मचारियों को राज्य का दौरा करने तथा जनता की शिकायतें सुनने के लिए भेजा करते थे। राज्य की न्याय-व्यवस्था काफी खर्चीली थी और मुकदमों का निर्णय भी प्रायः विलम्ब से होता था। अत: जनसाधारण न्यायालयों की शरण लेने में कतराते थे।

(घ) प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध- प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध होने के निम्नलिखित कारण थे

  1. रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद सेना और शासन में जो अनुशासनहीनता और अव्यवस्था फैल गई थी, उसका लाभ उठाकर अंग्रेज कम्पनी ने राजनीतिक व सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पंजाब को अपने साम्राज्य में मिलाने का निश्चय किया।
  2. राजा दिलीप सिंह की माता झिन्दन अत्यन्त महत्वाकांक्षी और षड्यन्त्रकारी स्त्री थी। सेना ने ही दिलीप सिंह को गद्दी पर बिठाया था और उसे संरक्षिका नियुक्त किया था। शासन पर सेना का ही वास्तविक प्रभुत्व था, जिसे हटाकर झिन्दन स्वयं वास्तविक शासक बनना चाहती थी। अतः उसने सेना के चंगुल से निकलने का यह उपाय निकाला कि उसे अंग्रेजों से उलझाकर शक्तिहीन कर दिया जाए।
  3. प्रथम अफगान युद्ध के समय अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य की सीमा पर एक विशाल सेना एकत्रित कर रखी थी। सेना की संख्या में वे लगातार वृद्धि कर रहे थे, परिणामस्वरूप सिक्खों में अंग्रेजों के विरुद्ध रोष व्याप्त हो गया था।
  4. सिक्ख साम्राज्य के कुछ प्रमुख पदाधिकारी अंग्रेजों से गुप्त पत्र-व्यवहार कर रहे थे, जिससे उन्हें सिक्खों की सैनिक कार्यवाहियों और तैयारियों का पहले से ही पता लग रहा था। इन विश्वासघातियों से अंग्रेजों को युद्ध छेड़ने का प्रोत्साहन मिला। उधर रानी झिन्दन ने भी सिक्ख सेना को अंग्रेजों के विरुद्ध भड़का रखा था।

युद्ध की घटनाएँ- दिसम्बर 1845 ई० में सिक्ख सेना ने सतलुज नदी पार करके अंग्रेजी सेना पर आक्रमण कर दिया। प्रथम संघर्ष मुदकी नामक स्थान पर हुआ, जिसमें कुछ सिक्ख नेताओं के विश्वासघात के कारण सिक्खों की हार हुई, यद्यपि वे बहुत वीरता से लड़े। 21 दिसम्बर को फिरोजशाह नामक स्थान पर दूसरा युद्ध हुआ, इसमें भी अंग्रेजों की जीत हुई। तीसरा और अन्तिम संघर्ष सुबराव के मैदान में हुआ, इसमें भी सिक्खों की आपसी फूट और विश्वासघात के कारण पराजय हुई। इन तीनों युद्धों में सिक्ख बहुत वीरता से लड़े और उन्होंने अंग्रेजों को अपार क्षति पहुँचाई, लेकिन कुछ प्रमुख सिक्ख नेताओं व सेनापतियों के विश्वासघात के कारण उनको पराजय का मुख देखना पड़ा। इसके अतिरिक्त पंजाब की अन्य सिक्ख रियासतों ने अंग्रेजों का ही साथ दिया।

लाहौर की सन्धि-1 मार्च, 1846 ई० में दोनों पक्षों के बीच सन्धि हुई, जिसकी शर्ते निम्नलिखित थीं

  • दिलीप सिंह को पंजाब का राजा और उसकी माता झिन्दन को उसकी संरक्षिका बना रहने दिया गया। अंग्रेजों ने यह आश्वासन दिया कि वे सिक्ख राज्य के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, लेकिन दिलीप सिंह की रक्षा के लिए लाहौर में एक ब्रिटिश सेना रखने की शर्त स्वीकार कर ली गई।
  • सतलुज नदी के बाईं ओर के सब क्षेत्र अंग्रेजों को मिले, जिसमें सतलुज व व्यास के मध्य के सब इलाके और काँगड़ा प्रदेश सम्मिलित थे।
  • युद्ध के हर्जाने के रूप में अंग्रेजों ने डेढ़ करोड़ रुपयों की माँग की। सिक्खों के पास इतना रुपया नहीं था, अत: उन्होंने कश्मीर की रियासत डोगरा राजा गुलाब सिंह को 75 लाख रुपए में बेच दी और वह रुपया अंग्रेजों को दे दिया। गुलाब सिंह को अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी।
  • सिक्ख सेना की संख्या 30 हजार घुड़सवार व पैदल निश्चित कर दी गई।
  • सिक्खों ने वचन दिया कि बिना कम्पनी की आज्ञा के वे किसी विदेशी को अपने यहाँ नौकर नहीं रखेंगे।
  • पंजाब से अंग्रेजी सेना को गुजरने का अधिकार दिया गया।
  • लाहौर में सर हेनरी लारेंस को रेजीडेण्ट नियुक्त किया गया।

लाहौर की सन्धि अस्थायी सिद्ध हुई। हेनरी लारेंस ने राजमाता झिन्दन और लाल सिंह पर कश्मीर में विद्रोह कराने का आरोप लगाकर पदच्युत कर दिया और सिक्खों से 16 दिसम्बर, 1846 ई० को भैरोवाल की सन्धि की। इस सन्धि के अनुसार पंजाब का प्रशासन चलाने के लिए अंग्रेजों के समर्थक आठ सिक्ख सरदारों की एक संरक्षण समिति बनाई गई और हेनरी लारेंस को इसका अध्यक्ष बनाया गया। एक अंग्रेजी सेना लाहौर में रखी गई, जिसके व्यय के लिए 22 लाख रुपए वार्षिक दरबार द्वारा देना निश्चित कर दिया गया। लाल सिंह को बन्दी बनाकर देहरादून भेज दिया गया तथा झिन्दन को डेढ़ लाख रुपया वार्षिक पेंशन देकर बनारस भेज दिया गया। इस प्रकार अंग्रेजों ने पंजाब में अपना पूर्ण आधिपत्य स्थापित कर लिया।

(ङ) द्वितीय ब्रह्मा युद्ध- सामरिक दृष्टि से बर्मा की स्थिति महत्वपूर्ण होने के कारण डलहौजी इसे जीतने के लिए लालायित था। 1852 ई० में ब्रह्मा के साथ अंग्रेजों का द्वितीय युद्ध आरम्भ हो गया। अंग्रेजी सेना का नेतृत्व जनरल गॉडविन और ऑस्टिन ने किया। इस युद्ध के निम्नलिखित कारण थे
(i) अंग्रेजों का दुर्व्यवहार- ब्रह्मा के निवासी प्रथम युद्ध की पराजय से असन्तुष्ट थे तथा अंग्रेज रेजीडेण्ट का व्यवहार उनके लिए असह्य था। याण्डबू की सन्धि के फलस्वरूप रंगून में बहुत-से अंग्रेज व्यापारी बस गए थे तथा व्यापार में अत्यधिक लाभ होने पर भी वे लोग प्राय: चुंगी देने में आनाकानी करते थे।

(ii) ब्रह्मा के उत्तराधिकारी का असन्तोष-
ब्रह्मा के राजा का उत्तराधिकारी याण्डबू की सन्धि को स्वीकार करने को तत्पर नहीं था तथा रेजीडेण्ट के स्थान पर अंग्रेजों का राजदूत रखने को सहमत था। अंग्रेज व्यापारियों की मनमानी से भी वह अत्यन्त क्रुद्ध था। इसी समय कुछ अंग्रेज व्यापारियों ने ब्रह्मावासियों की हत्या कर डाली। अतः उन पर अभियोग चलाया गया। यद्यपि न्यायालय ने उनके साथ अत्यन्त उदारतापूर्ण व्यवहार किया और उनको साधारण जुर्माने का दण्ड देकर ही मुक्त कर दिया।

(iii) लॉर्ड डलहौजी की नीति-
अंग्रेज व्यापारियों ने लॉर्ड डलहौजी से ब्रह्मा की सरकार की शिकायत की। इस पर लॉर्ड डलहौजी ने एकदम यह घोषणा कर दी कि ब्रह्मा की सरकार ने याण्डबू की सन्धि भंग की है। अत: अंग्रेज व्यापारियों की क्षतिपूर्ति के लिए वह एक बड़ी धनराशि अदा करे। लॉर्ड डलहौजी का यह व्यवहार एकदम स्वेच्छाचारी था। इस पर भी ब्रह्मा की सरकार ने युद्ध रोकने के लिए 9,000 रुपए कम्पनी को दिए तथा अंग्रेजों की माँग पर रंगून के गवर्नर को भी पदच्युत कर दिया। परन्तु लॉर्ड डलहौजी तो युद्ध के लिए तैयार बैठा था। अतः उसने सेनाएँ भेजकर ब्रह्मा के विरुद्ध युद्ध की तैयारियाँ आरम्भ कर दीं।

युद्ध की घटनाएँ- रंगून में रह रहे अंग्रेजों की सुरक्षा के बहाने लैम्बर्ट ने रंगून को घेर लिया तथा ब्रह्मा के राजा के जहाज को पकड़ लिया। अपनी सुरक्षा के लिए बर्मियों को गोली चलाने के लिए विवश होना पड़ा। इस क्षतिपूर्ति के लिए ब्रह्मा की सरकार से दस लाख रुपया हर्जाना माँगा गया तथा निश्चित अवधि तक यह रकम न पहुंचने पर लॉर्ड डलहौजी ने युद्ध की घोषणा कर दी।

शीघ्र ही अंग्रेजी सेनाओं ने रंगून पर आक्रमण कर दिया। रंगून को अंग्रेजों ने बुरी तरह लूटा तथा वहाँ की जनता का भीषण संहार किया। तत्पश्चात् इरावती नदी के डेल्टा पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया। अक्टूबर 1852 ई० तक प्रोम भी अंग्रेजों के हाथ में आ गया। इस समय लॉर्ड डलहौजी स्वयं सैन्य संचालन कर रहा था। प्रोम विजय करते ही दक्षिण ब्रह्मा पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।

युद्ध के परिणाम- दक्षिण ब्रह्मा ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया गया। बंगाल की खाड़ी का पूर्वी तट पूर्णतया अंग्रेजों के प्रभुत्व में आ गया तथा शेष ब्रह्मा का समुद्री मार्गों से सम्बन्ध विच्छेद कर दिया गया। इस प्रान्त में अंग्रेजों को आर्थिक लाभ भी हुआ तथा उनका व्यापार भी ब्रह्मा के साथ तेजी से बढ़ने लगा।

(च) नवीन चार्टर एक्ट- 1853 ई० में 20 वर्ष पूरे हो जाने पर ब्रिटिश पार्लियामेण्ट ने पुन: एक नवीन चार्टर कम्पनी के लिए पारित किया। नवीन चार्टर के द्वारा निम्नलिखित संशोधन किए गए।
(i) शासनावधि में वृद्धि- इस बार 20 वर्ष की अवधि हटाकर यह नियम बनाया गया कि कम्पनी को भारत का शासन तब तक चलाने का अधिकार है, जब तक पार्लियामेण्ट यह अधिकार अपने हाथ में न ले ले। इससे कम्पनी पर पार्लियामेण्ट का प्रभुत्व बढ़ गया।

(ii) प्रतियोगिता परीक्षा की व्यवस्था- कम्पनी डायरेक्टरों की संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी गई। इनमें से 6 डायरेक्टर्स सम्राट द्वारा मनोनीत होते थे। कम्पनी की उच्च नौकरियों की नियुक्ति का अधिकार डायरेक्टरों से छीन लिया गया। अब उसके लिए प्रतियोगिता परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य कर दिया गया।

(iii) अध्यक्ष को मन्त्रिमण्डल की सदस्यता- बोर्ड ऑफ कण्ट्रोल के अध्यक्ष को ब्रिटिश मन्त्रिमण्डल का सदस्य बना दिया गया तथा उसके अधिकारों में वृद्धि की गई।

(iv) व्यवस्थापिका सभा- एक व्यवस्थापिका सभा का निर्माण किया गया। गवर्नर जनरल की कौंसिल के सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 12 कर दी गई और अब इसमें गवर्नर जनरल की कौंसिल के 4 सदस्य, प्रत्येक प्रान्त के प्रतिनिधि, सेनापति तथा सर्वोच्च न्यायालय के 2 न्यायाधीश होते थे।

(v) बंगाल का पृथक्करण- बंगाल का शासन गवर्नर जनरल से लेकर एक पृथक् लेफ्टिनेण्ट गवर्नर को सौंपा गया। इस प्रकार डलहौजी आधुनिकीकरण में विश्वास रखा था। कूटनीति और सैनिक प्रतिभा के सहारे उसने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का अधिकतम विस्तार किया। सर रिचर्ड टेम्पल के अनुसार, “भारत के प्रशासन के लिए इंग्लैण्ड द्वारा भेजे गए प्रतिभा सम्पन्न लोगों में उसके आगे कोई निकल ही नहीं पाया, उसके समकक्ष भी शायद ही कोई ठहरता हो।’

प्रश्न 9.
लॉर्ड डलहौजी द्वारा किए गए सुधारों का वर्णन कीजिए।
या
लॉर्ड डलहौजी के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए।
उतर:
लॉर्ड डलहौजी ने निम्नलिखित सुधार किए थे
(i) प्रशासनिक सुधार- डलहौजी ने आठ वर्ष के अपने कार्यकाल में बहुत तेजी के साथ शासन सुधार के कार्य किए। 1854 ई० में बंगाल प्रान्त के शासन का भार लेफ्टिनेण्ट गवर्नर को सौंप दिया गया। अत: डलहौजी के केन्द्रीय शासन को अलगअलग विभागों के आधार पर सुसंगठित किया तथा वह प्रत्येक विभाग का स्वयं निरीक्षण किया करता था। उसने अपनी अद्भुत कार्यक्षमता द्वारा कम्पनी के प्रशासन को स्फूर्ति प्रदान की और इसे पहले की अपेक्षा अधिक कुशल बनाया। प्रत्येक प्रान्त में कमिश्नरी तथा चीफ कमिश्नरों की नियुक्ति की गई और इन्हें गवर्नर-जनरल तथा उसकी कौंसिल के प्रति उत्तरदायी बनाया गया। प्रान्तीय सरकारों का काम मुख्यतः शान्ति एवं सुव्यवस्था स्थापित करना,

कर वसूलना तथा फौजदारी के मकदमों का निर्णय करना था। इस शासन पद्धति का उद्देश्य जनसाधारण की स्थिति में सधार करना नहीं था। लॉर्ड डलहौजी के समय जो लोकहितकारी कार्य किए गए थे, वे प्रान्तीय सरकारों द्वारा नहीं बल्कि वे केन्द्रीय सरकार द्वारा सम्पन्न हुए। प्रान्तीय सरकारों का संगठन इस तरीके से किया गया था कि इसमें कम-से-कम अफसरों से ही काम चल जाता था। जिले के प्रमुख अधिकारी को प्रशासक, राजस्व, न्याय तथा पुलिस इन सभी विभागों से सम्बन्धित कर्तव्यों का निर्वहन करना पड़ता था। कमिश्नरों और जिलाधीशों के सामने कोई निश्चित कानून नहीं थे। वह साधारणतया गवर्नर जनरल के आदेश के अनुसार कार्य करता था। लॉर्ड डलहौजी के सुधारों का मुख्य उद्देश्य केन्द्र की सत्ता को सुदृढ़ बनाना था।

(ii) रेल, डाक और तार विभाग की स्थापना- लॉर्ड डलहौजी ने रेल, डाक और तार विभाग को अत्यन्त महत्व दिया। रेलवे व्यवस्था का प्रारम्भ करने का श्रेय लॉर्ड डलहौजी को ही प्राप्त है। उसने सर्वप्रथम यातायात के साधनों की सुविधा की ओर ध्यान दिया। उसने ग्राण्ड ट्रंक रोड़ का पुनर्निर्माण कराया तथा रेल एवं डाक तथा तार की व्यवस्था की। 1853 ई० में बम्बई से थाणे तक पहली रेलवे लाइन बनी और फिर 1856 ई० में मद्रास असाकुलम तक अन्य रेलवे लाइनें बिछाई गईं। लॉर्ड डलहौजी ने सम्पूर्ण भारत के लिए रेलवे लाइन की योजना बनाई थी, जो कि बाद में सम्पन्न हो सकी। यह ध्यान रखना चाहिए कि रेलवे लाइनों के निर्माण में लॉर्ड डलहौजी का उद्देश्य ब्रिटिश उद्योग-धन्धों की उन्नति करना था, भारत की आर्थिक प्रगति की उसे चिन्ता नहीं थी। तार लाइन का निर्माण भी सर्वप्रथम लॉर्ड डलहौजी के काल में हुआ। 1853 ई० से 1856 ई० के समय में विस्तृत क्षेत्र में तार की लाइनें बिछा दी गईं, जिससे कलकत्ता और पेशावर तथा बम्बई और मद्रास के मध्य निकट सम्पर्क हो सका।

डलहौजी ने डाक-व्यवस्था की जाँच के लिए 1850 ई० में एक कमीशन नियुक्त किया और उसकी रिपोर्ट के आधार पर इसको पूर्णरूप से पुनर्गठित किया। इस विभाग के सुचारु रूप से संचालन हेतु डायरेक्टर जनरल नियुक्त किया गया। डाक-व्यवस्था को सुधारने का श्रेय भी डलहौजी को ही दिया जाता है। उसने ‘पेनी पोस्टेज प्रथा’ भारत में लागू की, जिसके अनुसार दो पैसे के टिकट के द्वारा भारत के किसी भी भाग में एक लिफाफे द्वारा समाचार भेजा जा सकता था, जिसका वजन 1/2 तोला तक हो सकता था। एक पैसे में एक पोस्टकार्ड देश के किसी भी कोने में भेजा जा सकता था।

(iii) शिक्षा सम्बन्धी सुधार- लॉर्ड डलहौजी के समय में शिक्षा में सुधार करने के लिए सर चार्ल्स वुड के नेतृत्व में एक कमीशन नियुक्त किया गया, जिसकी रिपोर्ट 1854 ई० में प्रकाशित हुई। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में शिक्षा के क्षेत्र में अनेक सुधार किए गए। सर्वप्रथम तीनों प्रेसीडेंसियों में एक-एक विश्वविद्यालय की स्थापना की गई, जिसका कार्य परीक्षा लेना था। इण्टरमीडिएट तथा डिग्री कक्षाओं के लिए कॉलेजों की व्यवस्था की गई तथा प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के लिए अनेक स्कूल खोले गए। प्राथमिक शिक्षा का माध्यम प्रान्तीय भाषा रखा गया। शिक्षा के निरीक्षण के लिए प्रत्येक प्रान्त में एक डायरेक्टर जनरल की नियुक्ति की गई। लॉर्ड डलहौजी के काल में स्त्री शिक्षा के लिए भी कुछ संस्थाएँ गठित की गईं।

(iv) सेना में सुधार- लॉर्ड डलहौजी ने सैनिक क्षेत्र में भी अनेक सुधार किए। लॉर्ड डलहौजी से पूर्व सेना का प्रमुख केन्द्र बंगाल था किन्तु पंजाब के ब्रिटिश राज्य में सम्मिलित हो जाने के कारण उत्तर-पश्चिमी प्रदेशों की रक्षा करना भी अंग्रेजों के लिए अनिवार्य हो गया। फलत: पश्चिम में भी सेना का केन्द्र बनाया गया तथा मेरठ में अंग्रेजों के तोपखाने की स्थापना की गई। शिमला में सेना की छावनियाँ बनाई गईं, जहाँ पर गवर्नर जनरल अपनी कौंसिल के साथ रहता था, जिससे सेना से उसका निकट सम्पर्क रह सके। लॉर्ड डलहौजी को भारतीयों पर बिलकुल विश्वास नहीं था। अतः उसने गोरखों की एक पृथक् बटालियन बनाई तथा भारतीय सैनिकों को विभिन्न भागों में नियुक्त कर दिया। लॉर्ड डलहौजी ने तो ब्रिटिश सरकार से यह अनुरोध भी किया था कि भारत में अंग्रेज सैनिकों की संख्या बढ़ा दी जाए, जिससे भारतीय सेना द्वारा विद्रोह की कोई आशंका न रहे।

(v) सार्वजनिक कार्य- लार्ड डलहौजी से पूर्व सार्वजनिक कार्य सेना के एक बोर्ड के द्वारा होता था, जिससे नागरिक विभाग के कार्यों की उपेक्षा होती थी किन्तु इस व्यवस्था को समाप्त करके डलहौजी ने सार्वजनिक निर्माण कार्य के लिए एक स्वतन्त्र विभाग निर्मित किया जिसका प्रधान अधिकारी चीफ इंजीनियर होता था। उसकी सहायता के लिए अनेक पदाधिकारी होते थे। लॉर्ड डलहौजी से पहले सरकारी राजस्व का 10% भी सार्वजनिक निर्माण के कार्य में व्यय नहीं किया जाता था किन्तु उसने 2 करोड़ से लेकर 3 करोड़ रुपए तक इस कार्य के लिए व्यय किए, जबकि उसके समय में सरकारी आमदनी 20 करोड़ रुपए थी। सार्वजनिक निर्माण विभाग ने पुनः सड़कें, नहरें तथा पुल बनवाने का उत्तरदायित्व ग्रहण किया।

देश की भौतिक समृद्धि तथा राज्य की आय में वृद्धि हेतु नहरों और सड़कों की कितनी अधिक उपयोगिता है, इसे डलहौजी भली-भाँति समझता था। अत: सिंचाई की सबसे महत्वपूर्ण योजना, जिसका प्रारम्भ 1851 ई० में किया गया था और जो 1859 ई० में पूरी हुई, ऊपरी दोआब की नहर थी। जो रावी, सतलज और व्यास नदियों के मध्यवर्ती प्रदेश में खुदवाई गई। अपर गंगा नहर 1854 ई० में बनकर तैयार हुई। इसके अतिरिक्त मद्रास क्षेत्र में भी सिंचाई के लिए नहरों की योजना कार्यान्वित हुई। लॉर्ड डलहौजी ने ढाका से अराकान तथा कलकत्ता से लेकर शिमला तक सड़कें बनवाई थीं। भारत की ऐतिहासिक सड़क ग्राण्ड ट्रंक रोड के पुनर्निर्माण का कार्य डलहौजी के कार्यकाल में ही सम्पन्न हुआ। यह स्मरण रखना चाहिए कि लॉर्ड डलहौजी ने सड़कों और पुलों का निर्माण केरल और पंजाब प्रान्त तक ही सीमित न रखा बल्कि सम्पूर्ण देश में नहरों, सड़कों एवं पुलों का निर्माण किया गया।

(vi) व्यावसायिक सुधार- लॉर्ड डलहौजी ने स्वतन्त्र व्यापार नीति को अपनाया तथा भारत का व्यापार सबके लिए खोल दिया गया। व्यापार के क्षेत्र में अंग्रेजों का लाभ ही कम्पनी का उद्देश्य था। उसने प्रकाश स्तम्भों की मरम्मत कराई तथा बन्दरगाहों को विस्तृत एवं विशाल करवाया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत के समुद्रतट का सम्पूर्ण व्यापार अंग्रेज पूँजीपतियों के हाथ में चला गया। भारत के व्यवसाय नष्ट हो गए तथा अत्यन्त तीव्र गति से भारत में विदेशों का माल आने लगा, जिससे भारत का आर्थिक शोषण हुआ और भारतीयों की आर्थिक दशा निरन्तर दयनीय होती गई। या लॉर्ड डलहौजी के चरित्र का मूल्यांकन के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या-6 के उत्तर का अवलोकन कीजिए।

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UP Board Class 10 Home Science Model Papers Paper 3

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 10
Subject Home Science
Model Paper Paper 3
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 10 Home Science Model Papers Paper 3

समय : 3 घण्टे 15 मिनट
पूर्णांक : 70

निर्देश :
प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
सामान्य निर्देश :

  • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
  • प्रश्न-पत्र में बहुविकल्पीय, अतिलघु उत्तरीय, लघु उत्तरीय और दीर्घ उत्तरीय चार प्रकार के प्रश्न हैं। उनके उत्तर हेतु निर्देश प्रत्येक प्रकार के प्रश्न के पहले दिए गए हैं।

निर्देश :
प्रश्न संख्या 1 तथा 2 बहुविकल्पीय हैं। निम्नलिखित प्रश्नों में प्रत्येक के चार-चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। उनमें से सही विकल्प चुनकर उन्हें क्रमवार अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए।

प्रश्न 1.
(क) कृत्रिम श्वसन की सिल्वेस्टर विधि का प्रयोग होता है। [ 1 ]

  1. डूबने पर।
  2. मूर्छित होने पर
  3. अस्थि भंग में
  4. इनमें से कोई नहीं

(ख) आसवन विधि द्वारा शुद्ध किए गए जल को कहते हैं। [ 1 ]

  1. कठोर जल
  2. आसुत जल
  3. प्राकृतिक जल
  4. मृदु जल

(ग) किस प्रकार से भोजन पकाने में समय की बचत होती है? [ 1 ]

  1. तलकर
  2. उबालकर
  3. प्रेशर कूकर द्वारा
  4. भूनकर

(घ) विटामिन ‘डी’ का प्राप्ति-स्रोत क्या है? [ 1 ]

  1. अनाज
  2. अण्डा
  3. हरी सब्जियाँ
  4. सूर्य की किरणें

प्रश्न 2.
(क) हड्डी का कड़ापन किस तत्त्व के कारण होता है? [ 1 ]

  1. लौह-तत्त्व
  2. सोडियम

(ख) मोच का लक्षण है। [ 1 ]

  1. पीड़ा होना
  2. सूजन होना
  3. मांसपेशियों में खिंचाव
  4. ये सभी

(ग) फुफ्फुसीय धमनी कौन-सा रक्त ले जाती है? [ 1 ]

  1. शुद्ध रक्त
  2. अशुद्ध रक्त
  3. पाचन रस
  4. हीमोग्लोबिन

(घ) शरीर का तापमान देखने का अल्पतम समय है। [ 1 ]

  1. 15 से 2 मिनट
  2. 2 से 3 मिनट
  3. 3 से 4 मिनट
  4. 5 मिनट

निर्देश :
प्रश्न संख्या 3 तथा 4 अतिलघु उत्तरीय हैं। प्रत्येक खण्ड का उत्तर अधिकतम 25 शब्दों में लिखिए।

प्रश्न 3.
(क) बर्फ की थैली का प्रयोग कब और क्यों किया जाता है?  [ 2 ]
(ख) विरंजन विधि क्या है? [ 2 ]
(ग) सफेद सूती वस्त्रों का पीलापन कैसे दूर किया जा सकता है? [ 2 ]
(घ) रसोईघर में वायु के आवागमन की प्रणाली का उल्लेख कीजिए। [ 2 ]
(ङ) तरल भोजन अतिसार के रोगी को देना क्यों उपयुक्त माना जाता है? [ 2 ]

प्रश्न 4.
(क) शरीर में मेरुदण्ड की क्या उपयोगिता हैं?  [ 2 ]
(ख) ऑक्सीजन का शरीर में क्या महत्त्व है?  [ 2 ]
(ग) कठोर जल किसे कहते हैं? इसके निवारण के कोई दो उपाय लिखिए।  [ 2 ]
(घ) मशीन से वस्त्रों की सिलाई करने के लाभ लिखिए।  [ 2 ]
(ङ) रोगी का तापक्रम चार्ट क्यों बनाया जाता है?  [ 2 ]

निर्देश :
प्रश्न संख्या 5 से 7 तक लघु उत्तरीय हैं, इसके प्रत्येक खण्ड का उत्तर 50 शब्दों के अन्तर्गत लिखिए।

प्रश्न 5.
(क) गृह विज्ञान की छात्रा के लिए गृह-गणित का ज्ञान क्यों आवश्यक है? [ 2 + 2 ]
अथवा
घर में बच्चों के कमरे की उचित सजावट आप किस प्रकार करेगी? [ 4 ]

(ख) कुकिंग गैस के प्रयोग में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? [ 4 ]
अथवा
भोजन पकाने से पहले, पकाते समय और परोसते समय किस प्रकार की स्वच्छता रखनी चाहिए और क्यों? [ 4 ]

प्रश्न 6.
(क) बहुखण्डी अस्थि भंजन से आप क्या समझती हैं? [ 2 + 2 ]
अथवा
तरल आहार से क्या तात्पर्य है? किन्हीं दो तरल आहार को बनाने की विधि लिखिए। [ 1 + 3 ]

(ख) प्र:श्वसन और नि:श्वसन में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [ 4 ]
अथवा
थर्मामीटर की क्या उपयोगिता है? रोगी का तापमान लेते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। [ 1 + 3 ]

प्रश्न 7.
(क) धन जमा करने की दो सरकारी संस्थाओं के नाम लिखिए। बैंक में धनराशि जमा करने के लाभों का वर्णन कीजिए। [ 1 + 3 ]
अथवा
बचत का क्या अर्थ हैं? डाकखाने की विभिन्न योजनाएँ कौन-कौन सी हैं? किन्हीं दो योजनाओं के विषय में विस्तार से लिखिए। [ 4 ]

(ख) वैक्यूम क्लीनर से आप क्या समझते हैं? इससे क्या लाभ है? [ 4 ]
अथवा
स्टेनलेस स्टील एवं पीतल के बर्तनों की सफाई आप कैसे करेंगी? [ 4 ]

निर्देश :
प्रश्न संख्या 8 से 10 तक दीर्घ उत्तरीय हैं। प्रश्न संख्या 8 एवं 9 में विकल्प दिए गए हैं। प्रत्येक प्रश्न के एक ही विकल्प का उत्तर लिखना है। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 100 शब्दों के अन्तर्गत लिखिए।

प्रश्न 8.
घर की आन्तरिक सजावट से क्या तात्पर्य है? घर की सजावट के लिए किन-किन सिद्धान्तों को ध्यान में रखना चाहिए और क्यों? [ 3 + 3 ] 
अथवा
एक वयस्क महिला पेटीकोट के लिए कपड़े की लम्बाई का अनुमान आप कैसे लगाएँगी? उसे काटने की विधि चित्र सहित समझाइए। [ 6 ] 

प्रश्न 9.
भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की प्रमुख विधियाँ कौन कौन-सी हैं? स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम विधि कौन-सी है? वर्णन कीजिए  [ 6 ] 
अथवा
टायफाइड रोग (मियादी बुखार) के कारण, लक्षण एवं बचाव के उपाय लिखिए।  [ 2 + 2 + 2 ] 

प्रश्न 10.
श्वसन तन्त्र के प्रमुख अंग कौन-कौन से हैं? नामांकित चित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए। [ 2 + 2 + 2 ] 

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