UP Board Solutions for Class 10 Hindi हिन्दी-संस्कृत अनुवाद

UP Board Solutions for Class 10 Hindi हिन्दी-संस्कृत अनुवाद

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हिन्दी-संस्कृत अनुवाद

अनुवाद के लिए जानने योग्य बातें

हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करते समय वाक्य में आये हुए शब्दों तथा धातुओं के रूपों का वचन, पुरुष, लिङ्ग, लकार तथा कारक के अनुसार प्रयोग करना चाहिए।

1. कर्ता, क्रिया और धातु 
कर्ता—क्रिया के करने वाले को कर्ता कहते हैं; जैसे—राम: पठति। इस वाक्य में ‘राम:’ कर्ता है।
क्रिया-जिसमें किसी काम को करना या होना पाया जाता है, उसे क्रिया कहते हैं; जैसे-रामः, पठति। इस वाक्य में ‘पठति’ क्रिया है।
धातु–क्रिया के मूल रूप को धातु (UPBoardSolutions.com) कहते हैं; जैसे-‘पठति’ क्रिया का मूल रूप ‘पद् (धातु) है।

2. संस्कृत में तीन वचन होते हैं
(1) एकवचन-जिससे किसी एक (वस्तु अथवा व्यक्ति) का बोध होता है; जैसे-वह, राम, बालक, पुस्तक आदि।
(2) द्विवचन-जिससे दो (वस्तुओं अथवा व्यक्तियों) का ज्ञान होता है; जैसे—वे दोनों, दो बालक, दो पुस्तकें आदि।
(3) बहुवचन-जिससे दो से अधिक (वस्तुओं अथवा व्यक्तियों) का बोध होता है; जैसे-वे सब, लड़के, पुस्तकें आदि।

3. संस्कृत में तीन पुरुष होते हैं

(1) प्रथम पुरुष–जिसके सम्बन्ध में बात की जाती है; जैसे—वह (सः), वे दोनों (तौ), वे सब (ते)।
(2) मध्यम पुरुष–जिससे बात की जाती है; जैसे-तुम (त्वम्), तुम दोनों (युवाम्), तुम सब (यूयम्)।
(3) उत्तम पुरुष-स्वयं बात करने वाला; जैसे—मैं (अहम्), हम दोनों (आवाम्), हम सब (वयम्)।
त्वम्, युवाम्, यूयम्, अहम्, आवाम्, वयम्-इन छ: कर्ताओं को छोड़कर अन्य सभी कर्ता प्रथम पुरुष में आते हैं।

4. संस्कृत में लिङ्ग तीन प्रकार के होते हैं
(1) पुंल्लिङ्ग–जिससे पुरुष जाति का बोध होता है; जैसे—स:, रामः, रविः, भानुः आदि।
(2) स्त्रीलिङ्ग–जिससे स्त्री जाति का बोध होता है; जैसे—सा, रमा, मति, धेनु, नदी आदि।
(3) नपुंसकलिङ्ग–जिससे न पुरुष जाति का और (UPBoardSolutions.com) न स्त्री जाति का बोध होता है; जैसे-फल, मधु, वारि, जगत्, मनस् आदि।

5. संस्कृत में मुख्य लकार पाँच होते हैं
(1) लट् लकार (वर्तमानकाल)।
(2) लङ् लकार (भूतकाल)।
(3) लृट् लकार ( भविष्यत्काल)।
(4) लोट् लकार (आज्ञार्थ)।
(5) विधिलिङ् लकार (विध्यर्थ, चाहिए अर्थ में)।

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6. संस्कृत में कारक छः होते हैं और विभक्तियाँ सात
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अनुवाद के सामान्य नियम

हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करते समय सर्वप्रथम कर्ता पर ध्यान देना चाहिए कि कर्ता किस वचन तथा किस पुरुष में है। संस्कृत में तीन पुरुष और तीन वचन होते हैं। मध्यम पुरुष और उत्तम पुरुष के कर्ता निश्चित होते हैं, अर्थात् ये कभी नहीं बदलते। शेष समस्त कर्ता प्रथम पुरुष के अन्तर्गत आते हैं। निम्नलिखित तालिका को ध्यानपूर्वक पढ़ें—
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कर्ता जिस पुरुष का होगा, क्रिया भी उसी पुरुष की होगी। कर्ता जिस वचन का होगा, क्रिया भी उसी वचन की होगी। संस्कृत में प्रायः पाँच लकारों का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक लकार की क्रिया के पुरुष और वचन के अनुसार 9 रूप होते हैं, (UPBoardSolutions.com) जिनका प्रयोग कर्ता की स्थिति के अनुसार करते हैं-

पठ् धातु (लट् लकार, वर्तमानकाल)

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उदाहरण (निम्नलिखित वाक्यों में तीनों वचनों के कर्ता को लिया गया है)—

  1. राम पढ़ता है। रामः पठति।
  2. वे दोनों जाते हैं। तौ गच्छतः।।
  3. वे सब बोलते हैं। ते वदन्ति।
  4. तुम लिखते हो। त्वं लिखसि।
  5. तुम दोनों देखते हो। युवां पश्यथः।
  6. तुम सब पकाते हो। यूयं पचथ।
  7. मैं जाता हूँ। (2012) अहं गच्छामि।
  8. हम दोनों खेलते हैं। आवां क्रीडावः।
  9. हम सब पीते हैं। वयं पिबाम:।
    तुम खाते हो। त्वं खादसि।

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अभ्यास 1

संस्कृत में अनुवाद कीजिए-

  1. सीता बोलती है।
  2. वे दोनों खेलते हैं।
  3. वन्दना पढ़ती है।
  4. हरि पूछता है।
  5. वे सब जाते। हैं।
  6. तुम पढ़ते हो।
  7. वह गिरता है।
  8. राम खाता है।
  9. रमा लिखती है।
  10. तुम दोनों लिखते हो।

गम् धातु (लङ् लकार, भूतकाल)

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उदाहरण—

  1. वे सब पढ़े। ते अपठन्।
  2. उसने लिखा। सः अलिखत्।
  3. मैं हँसा। अहम् अहसम्।। |
  4. तुम गिरे। त्वम् अपतः।
  5. तुम दोनों ने पूछा। युवाम् अपृच्छतम्।
  6. हम सबने देखा। वयम् अपश्याम।

अभ्यास 2

संस्कृत में अनुवाद कीजिए

  1. तुमने लिखा।
  2. दो लड़कों ने पढ़ा।
  3. छात्र खेलते थे।
  4. हम दोनों गिरे।
  5. तुम गये।
  6. वह हँसा।
  7. तुम सब आये।
  8. लड़के गये।
  9. दो लड़कियाँ हँसीं।
  10. उसने देखा।

हस् धातु (नृट् लकार, भविष्यत्काल)

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अभ्यास 3

संस्कृत में अनुवाद कीजिए

  1. वे दोनों लिखेंगे।
  2. तुम खेलोगे।
  3. मैं आऊँगा।
  4. वे सब देखेंगे।
  5. राम हँसेगा।
  6. हम सब जाएँगे।
  7. आप पढ़ेगी।
  8. तुम दोनों लिखोगे।
  9. बालक पकाएँगे।
  10. तुम देखोगे।।

दृश् धातु (लोट् लकार, आज्ञार्थ)

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उदाहरण-
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अभ्यास 4

संस्कृत में अनुवाद कीजिए

  1. रमेश जाए।
  2. वे दोनों हँसे।
  3. सब बालक देखें।
  4. मैं देखें।
  5. हम दोनों पकाएँ।
  6. तुम खेलो।
  7. वे सब कहें।
  8. सीता पकाए।
  9. हम सब लिखें।
  10.  छात्र पुस्तक पढ़े।

कृ धातु (विधिलिङ् लकार, ‘चाहिए’ अर्थ में)

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उदाहरण–
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अभ्यास 5

संस्कृत में अनुवाद कीजिए

  1. छात्र को पढ़ना चाहिए।
  2. लड़की को जाना चाहिए।
  3. शिष्यों को नमस्कार करना चाहिए।
  4. तुम्हें हँसना चाहिए।
  5. उसे याद करना चाहिए।
  6. तुम्हें खेलना चाहिए।
  7. हमें जाना चाहिए।
  8. लड़कों को जाना चाहिए।
  9. उसे रहना चाहिए।
  10. मुझे देखना चाहिए।

विभक्ति के अनुसार हिन्दी-संस्कृत अनुवाद

प्रथमा विभक्ति (कर्ता कारक)

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अभ्यास 6

संस्कृत में अनुवाद कीजिए|

  1. लड़की पढ़ती है।
  2. मोर नाचता है।
  3. सूर्य निकलता है।
  4. फूल खिलते हैं।
  5. लड़के दौड़ते हैं।
  6. बादल गरजते हैं।
  7. मोहन! तुम घर जाओ।
  8. हे राम! यहाँ रुको।
  9. वे दोनों हँसते हैं।
  10. वह, तुम दोनों और मैं जाते हैं।

द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक)

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अभ्यास 7

संस्कृत में अनुवाद कीजिए

  1. सीता सच बोलती है।
  2. मोहन फल खाता है।
  3. बालक पाठशाला जाते हैं।
  4. अध्यापक प्रश्न पूछता है।
  5. उसने चिट्ठी लिखी।
  6. राम को दूध पीना चाहिए।
  7. उनको काम करना चाहिए।
  8. बालक मोहन से सौ रुपये जीतता है।
  9. गुरु ने प्रश्न पूछा।
  10. तुम दोनों पुस्तक पढ़ो।

तृतीया विभक्ति (करण कारक)

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अभ्यास 8

संस्कृत में अनुवाद कीजिए–

  1. हाथी सँड़ से पानी पीता है।
  2. हम सब आँखों से देखते हैं।
  3. शिष्य ने मस्तक से नमस्कार किया।
  4. लड़का गेंद से खेला।
  5. तुम कलम से लिखो।
  6. मैं मुख से बोलू।
  7. वे बाण से मृग को मारेंगे।
  8. लड़के कानों से सुनेंगे।
  9. माली फूलों से माला बनाएगा।
  10. सीता हाथों से काम करे।

चतुर्थी विभक्ति (सम्प्रदान कारक)

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अभ्यास 9

संस्कृत में अनुवाद कीजिए

  1. राम कृष्ण को पुस्तक देता है।
  2. ध्यापक छात्रों को पारितोषिक देता है।
  3. विद्या विनय के लिए होती है।
  4. तुम मेरे लिए फल लाते हो।
  5. तुम मोहन को मिठाई दो।
  6. विद्या ज्ञान के लिए होती है।
  7. हम सब याचक को भोजन देते हैं।
  8. तुम सब भोजन के लिए आओ।
  9. शिव को नमस्कार।
  10. राम को नमस्कार।

पञ्चमी विभक्ति (अपादान कारक)

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अभ्यास 10

संस्कृत में अनुवाद कीजिए

  1. मैं विद्यालय से आता हूँ।
  2. किसान खेत से आया।
  3. हम घर से आएँगे।
  4. मोर साँप से डरता है।
  5. रमेश मन्दिर से आया।
  6. उसे घर से विद्यालय जाना चाहिए।
  7. वे सब गाँव से गये।
  8. उन्हें नगर से गाँव को जाना चाहिए।
  9. तुम्हें घर से आना चाहिए।
  10. चूहा बिल से निकलता है।

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षष्ठी विभक्ति (सम्बन्ध कारक)

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अभ्यास 11

संस्कृत में अनुवाद कीजिए

  1. राम का भाई पढ़ता है।
  2. हाथी की सँड़ मोटी है।
  3. कमल का फूल लाल है।
  4. राम दशरथ के पुत्र थे।
  5. ये दो आम के वृक्ष हैं।
  6. यह सीता की पुस्तक है।
  7. मेरी माताजी आती हैं।
  8. वह रामायण की कथा कहता है।
  9. उसका घर कहाँ है ?
  10. तुम्हारा क्या नाम है ?

सप्तमी विभक्ति (अधिकरण कारक)

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अभ्यास 12

संस्कृत में अनुवाद कीजिए

  1. मैं विद्यालय में पढ़ता हूँ।
  2. मुनि प्रयाग में रहता है।
  3. किसान खेत में काम करते हैं।
  4. तुम कक्षा में पढ़ती हो।
  5. वह नगर में रहता है।
  6. भेरा घर नगर में है।
  7. उपवन में पेड़ हैं।
  8. लड़के मैदान में खेलते हैं।
  9. माता पुत्र पर स्नेह करती है।
  10. जल में मछली रहती है।

महत्त्वपूर्ण वाक्य और उनके संस्कृत अनुवाद

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UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 20 प्राकृतिक और कृत्रिम श्वसन-क्रिया

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 20 प्राकृतिक और कृत्रिम श्वसन-क्रिया

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 20 प्राकृतिक और कृत्रिम श्वसन-क्रिया.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
कृत्रिम श्वसन का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसके लिए अपनाई जाने वाली मुख्य विधियों का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए। [2009, 11, 13, 14]
या
कृत्रिम श्वसन किसे कहते हैं? यह कब और कितने प्रकार से दी जाती है? [2011]
या
कृत्रिम श्वसन के लिए अपनाई जाने वाली शेफर्स सिल्वेस्टर तथा लाबार्ड विधियों का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए। [2010, 11, 13, 14]
या
प्राकृतिक और कृत्रिम श्वसन से क्या तात्पर्य है ? कृत्रिम श्वसन की आवश्यकता कब होती है? कृत्रिम श्वसन की किसी एक विधि का वर्णन कीजिए। [2007, 09, 12, 13, 18]
या
डूबने पर किस कृत्रिम विधि का प्रयोग करते हैं ? इस विधि का वर्णन कीजिए। [2012, 15]
या
कृत्रिम श्वसन किसे कहते हैं ? शेफर्स विधि क्या है ? [2016]
या
कृत्रिम श्वसन से आप क्या समझते हैं ? किसी एक कृत्रिम श्वसन विधि का वर्णन कीजिए। [2016]
या
लाबार्ड विधि क्या है? [2017]
उत्तर:
प्राकृतिक श्वसन का अर्थ

प्राकृतिक श्वसन की क्रिया मनुष्य के शरीर में सदैव तथा प्रति क्षण होती रहती है। यह स्वतः एक अनैच्छिक क्रिया के रूप में होती रहती है। यह स्वतः ही पसलियों तथा तन्तु पट की क्रिया पर निर्भर करती है और व्यक्ति की स्वयं मांसपेशियों द्वारा सम्पादित होने वाली क्रिया है। यह प्राकृतिक रूप से होने के कारण सदैव एक ही विधि के द्वारा होने वाली क्रिया है।

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कृत्रिम श्वसन का अर्थ
किसी कारणवश यदि फेफड़ों में स्वच्छ एवं ताजा वायु का आना-जाना कम या बन्द हो जाए, तो दुम घुटने की स्थिति आ सकती है। ऐसे में शरीर की कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आवश्यकता पूर्ति न हो पाने के कारण व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है। इस स्थिति (UPBoardSolutions.com) में दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की जीवन रक्षा के लिए उसके फेफड़ों में किसी कृत्रिम-विधि द्वारा स्वच्छ तथा ताजी ऑक्सीजन युक्त वायु को भरा जाना अनिवार्य हो जाता है। इस क्रिया को ही प्राथमिक चिकित्सा की भाषा में कृत्रिम श्वसन-क्रिया कहा जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि किसी अन्य व्यक्ति के प्रयासों द्वारा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की श्वसन-क्रिया को चलाना ही कृत्रिम श्वसन-क्रिया है। कृत्रिम श्वसन की क्रिया प्राथमिक उपचार करने वाले व्यक्ति अथवा चिकित्सक की इच्छा एवं प्रयासों पर निर्भर करती है।

कृत्रिम श्वसन की विधियाँ

कृत्रिम श्वसन-क्रिया के लिए सामान्य रूप से तीन विधियों को अपनाया जाता है, जिनका विवरण अग्रलिखित है

(1) शेफर्स विधि (Shaffer’s Method):
इस विधि में जिस व्यक्ति को कृत्रिम श्वसन देना हात हे सर्वप्रथम उसके वस्त्र उतार दिये जाते हैं। यदि यह सम्भव न हो तो कम-से-कम उसके वक्षस्थल के वस्त्र उतार देने चाहिए। यदि किसी कारणवश यह भी सम्भव नै हो, तो उन्हें इतना ढीला कर दिया जाना चाहिए कि वक्षीय कटहरे पर किसी प्रकार का दबाव न रहे। इसके लिए निम्नलिखित प्रक्रिया अपनानी चाहिए

    1. दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के पेट को आधार मानकर लिटाना चाहिए तथा मुँह को एक ओर कर देना चाहिए। टाँगों आदि को पूरी तरह फैलाकर रखना चाहिए।
    2. नाक, मुँह इत्यादि को अच्छी तरह साफ कर देना चाहिए, ताकि श्वास भली-भाँति आ सके। प्राथमिक चिकित्सा या उपचार करने वाले व्यक्ति को रोगी के एक ओर उसके पार्श्व में, कमर के पास अपने घुटने भूमि पर टिकाकर, पैरों को थोड़ा-सा रोगी की टाँगों के साथ कोण बनाते हुए, बैठ जाना चाहिए। इसके बाद रोगी की पीठ पर अपने दोनों हाथों को फैलाकर इस प्रकार रखना चाहिए कि दोनों हाथों के अँगूठे रीढ़ की हड्डी के ऊपर समान्तर रूप में सिर की ओर मिलाकर रखें। ध्यान रखना चाहिए कि इस समय उँगलियाँ फैली हुईं, अँगूठे के लगभग 90° के कोण पर रोगी की कमर पर रहें। चिकित्सक को अपने हाथ रोगी की पसलियों के पीछे रखने चाहिए।
    3. अब दोनों हाथों को पूरी तरह जमाते हुए, बिना कोहनी को मोड़े, चिकित्सक को आगे की ओर झुकना चाहिए। इस समय चिकित्सक को वजन घुटने तथा हाथ पर रहेगा। इससे रोगी के पेट पर दबाव पड़ेगा तथा इस क्रिया से वक्षीय गुहा फैल जाएगी और फेफड़ों में (UPBoardSolutions.com) उपस्थित वायु दबाव के कारण बाहर निकल जाएगी। यदि रोगी के फेफड़ों में पानी भर गया है, तो वह भी इस क्रिया से बाहर निकल जाएगा।
    4.  चिकित्सक को अपना हाथ यथा-स्थान रखकर धीरे-धीरे झुकाव कम करना चाहिए, यहाँ तक कि बिल्कुल दबाव न रहे। इस क्रिया से वक्षीय गुहा पूर्व-स्थिति में आ जाएगी और फेफड़ों में वायु
      का दबाव कम होने से वायुमण्डल की वायु स्वतः ही अन्दर आ जाएगी।
    5. इस प्रकार दबाव डालने और हटाने की प्रक्रिया को 1 मिनट में 12 से 13 बार शनैः शनैः मिक रूप से दोहराते रहना चाहिए। निश्चय ही क्रिया को सावधानीपूर्वक एक बराबर समय देकर तथा धीरे-धीरे करें। स्वतः प्राकृतिक श्वसन, अपनी सामान्य स्थिति में होने लगेगा।

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सावधानियाँ:

  1. वक्ष पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए; जैसे–कपड़ा इत्यादि का कसाव आदि।।
  2.  गर्दन पर किसी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए।
  3. नाक, मुंह आदि भली-भाँति साफ कर लिये जाने चाहिए। दबाव डालने और दबाव कम करने की क्रिया लगातार और एक बराबर क्रम से होनी चाहिए।
  4.  प्राकृतिक श्वसन प्रारम्भ हो जाने पर भी कुछ समय तक रोगी को देखते रहना चाहिए, ताकि फिर से उसका दम न घुटने लगे।

(2) सिल्वेस्टर विधि (Silvester’s Method):
कृत्रिम श्वास देने की इस विधि में रोगी को किसी समतल स्थान पर सीधा लिटाया जाता है। उसके वस्त्रों को ढीला करके, गर्दन के पीछे कन्धों के बीच में कोई तकिया इत्यादि लगाया जाता है, ताकि सिर पीछे को नीचा हो जाए। इस विधि से रोगी को श्वसन कराने के लिए दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है। एक व्यक्ति सिर की ओर घुटने के सहारे बैठकर रोगी के दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों के द्वारा अलग-अलग पकड़ लेता है। इस समय दूसरा व्यक्ति रूमाल या (UPBoardSolutions.com) किसी अन्य साफ कपड़े से रोगी की जीभ को पकड़कर बाहर की तरफ खींचे रहेगा। पहला व्यक्ति रोगी के दोनों हाथों को उसके वक्ष की ओर ले जाते हुए अपने घुटने पर सीधा होकर आगे की ओर झुकता हुआ रोगी की छाती पर दबाव डालेगा। इस प्रकार उस रोगी की बाहु को उसके वक्ष की ओर ले जाएगा और फिर पूर्व-स्थिति में सिर की ओर खींच लेगा।

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क्रमिक रूप में 1 मिनट में लगभग 12 बार इस क्रिया को दोहराने से रोगी की श्वसन-क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। इस क्रिया में दबाव डालने का समय 2 सेकण्ड और ढीला छोड़ने का समय 3 सेकण्ड होता है। इस क्रिया को क्रमिक तथा धीमे-धीमे व बराबर समय के अन्तराल से किया जाना आवश्यक है।

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सावधानियाँ:

  1. रोगी की जीभ को कसकर पकड़ना चाहिए।
  2. जिस क्रम से चिकित्सक ऊपर उठे, उसी क्रम से नीचे बैठे अर्थात् दबाव डालने और दबाव कम करने की प्रक्रिया एक जैसी होनी चाहिए।
  3.  रोगी को किसी समतल स्थान पर लिटाना चाहिए तथा उसके वस्त्र इत्यादि ढीले कर देने चाहिए, ताकि वक्ष पर किसी प्रकार का दबाव न रहे।

(3) लाबार्ड विधि (Labard’s Method):
शेफर्स और सिल्वेस्टर विधियों द्वारा श्वास देना यदि सम्भव न हो, तो इस विधि का प्रयोग किया जाता है; जैसे-वक्ष-स्थल की कोई हड्डी इत्यादि टूटने पर डॉक्टर के आने तक इस विधि द्वारा रोगी को ऑक्सीजन उपलब्ध कराकर जीवित रखा जा सकता है। यह विधि निम्नलिखित है
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को एक करवट से लिटाकर उसके समीप एक तरफ चिकित्सक को अपने घुटने पर बैठकर रोगी की नाक, मुँह इत्यादि को भली-भाँति साफ कर लेना चाहिए। किसी स्वच्छ रूमाल या कपड़े से रोगी की जीभ पकड़कर बाहर खींचनी चाहिए और 2 सेकण्ड के लिए (UPBoardSolutions.com) छोड़ देनी चाहिए। इसे समय रोगी का मुंह खुला रहना चाहिए तथा इसके लिए रोगी के मुंह में कोई चम्मच इत्यादि डाली जा सकती है। इस क्रिया को तब तक दोहराते रहना चाहिए जब तक कि रोगी की प्राकृतिक श्वसन-क्रिया प्रारम्भ न हो जाए।
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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्राकृतिक और कृत्रिम श्वसन-क्रिया में क्या अन्तर है? [2008, 09, 10, 11, 13, 14, 15, 16, 17]
या
प्राकृतिक श्वसन और कृत्रिम श्वसने के बारे में लिखिए। [2008, 15]
उत्तर:
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प्रश्न 2:
दम घुटने के कारण तथा उपचार बताइए।
उत्तर:
दम घुटने के कारण श्वसन-क्रिया में व्यवधान उत्पन्न होने पर दम घुटने लगता है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  1.  पानी में डूबने पर श्वसन मार्ग में जल घुस जाने के कारण दम घुट सकता है।
  2.  किसी विषैली गैस के श्वसन मार्ग तथा फेफड़ों में भर जाना भी दम घुटने का कारण बन सकता है।
  3. किसी वस्तु के नासा मार्ग में अटक जाने पर भी दम घुटने की स्थिति बन जाती है।
  4.  गले में सूजन या अन्य किसी रोग के कारण भी दम घुटने (UPBoardSolutions.com) की स्थिति बन जाती है।
  5. श्वास नली पर अधिक दबाव पड़ने पर जैसे कि फाँसी लगने पर दम घुट जाता है।
  6. श्वास नियन्त्रण केन्द्र पर किसी विषैले या हानिकारक प्रभाव पड़ने पर भी दम घुटने लगता है। उदाहरण-विष खाना, बिजली का झटका लगना आदि।

दम घुटने के उपचार:
दम घुटने के उपचार निम्ननिखित हैं।

  1. दुर्घटना के कारण को दूर करना।
  2.  यदि डूबने के कारण पेट में पानी भर गया हो तो उसे निकाल देना चाहिए।
  3.  यदि कोई वस्तु श्वसन मार्ग में रुकावट उत्पन्न कर रही है तो उसे निकाल देना चाहिए।
  4. किसी उपयुक्त विधि द्वारा पीड़ित व्यक्ति को कृत्रिम श्वसने देना चाहिए।

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प्रश्न 3:
कृत्रिम श्वसन-क्रिया की हमारे जीवन में कब और क्यों आवश्यकता होती है? [2009, 13, 14]
उत्तर:
विभिन्न परिस्थितियों में जबकि किसी व्यक्ति का दम घुट रहा हो अथवा अचानक श्वसन-क्रिया रुक जाए (रेस्पिरेटरी अरेस्ट) तो कृत्रिम श्वसन कराना अति आवश्यक होता है। इन परिस्थितियों के कारण सामान्यत: निम्नलिखित होते हैं

  1. वक्ष-स्थल की हड्डी अथवा हड्डियों का टूट जाना।
  2. पानी में डूबने के कारण श्वसन मार्ग में जल का प्रवेश कर जाना।
  3.  किसी विषैली गैस को श्वसन मार्ग एवं फेफड़ों में भर जाना।
  4.  श्वास नली पर अत्यधिक दबाव पड़ना।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
कृत्रिम श्वसन की आवश्यकता कब होती है? [2013]
उत्तर:
किसी कारण विशेष से यदि व्यक्ति के फेफड़े कार्य करना बन्द कर दें, तो व्यक्ति की प्राकृतिक श्वसन-क्रिया अवरुद्ध होने लगती है तथा दम घुटने लगता है। इस स्थिति में तत्काल कृत्रिम श्वसन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2:
कृत्रिम श्वसन की कितनी विधियाँ हैं? [2013]
उत्तर:
कृत्रिम श्वसन की निम्नलिखित तीन विधियाँ हैं

  1. शेफर्स विधि,
  2.  सिल्वेस्टर विधि तथा
  3.  लाबार्ड विधि।

प्रश्न 3:
कृत्रिम श्वसन-क्रिया कराने की दर क्या होनी चाहिए?
उत्तर:
कृत्रिम श्वसन कराते समय श्वसन-क्रिया की दर प्रति मिनट 12 से 13 बार तक होनी चाहिए।

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प्रश्न 4:
डूबे हुए व्यक्ति के साथ सर्वप्रथम क्या करना चाहिए?
उत्तर:
सर्वप्रथम डूबे हुए व्यक्ति का पेट एवं फेफड़ों में भरा हुआ पानी बाहर निकालने का प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 5:
लाबार्ड विधि कब प्रयोग में लानी चाहिए?
उत्तर:
वक्षःस्थल की कोई हड्डी टूटने पर कृत्रिम श्वसन के लिए लाबार्ड विधि अपनानी चाहिए।

प्रश्न 6:
लाबार्ड विधि का प्रयोग करते समय आप क्या सावधानी रखेंगी?
उत्तर:
लाबार्ड विधि में विशेष रूप से यह ध्यान रखा जाता है कि (UPBoardSolutions.com) रोगी की जीभ दाँतों के बीच में आकर कट न जाए।

प्रश्न 7:
सिल्वेस्टर विधि में रोगी को किस प्रकार लिटाया जाता है?
उत्तर:
सिल्वेस्टर विधि में रोगी को किसी समतल स्थान पर सीधा लिटाया जाता है।

प्रश्न 8:
शेफर्स विधि में रोगी को किस आसन पर लिटाया जाता है?
उत्तर:
शेफर्स विधि में रोगी के पेट को आधार मानकर लिटाना चाहिए। रोगी के मुँह को एक ओर कर उसके हाथों व टाँगों को पूरी तरह फैला देना चाहिए।

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बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न:
निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

1. शेफर्स विधि द्वारा कृत्रिम श्वसन कराते समय रोगी को लिटाना चाहिए
(क) कमर के बल
(ख) पीठ के बल
(ग) पेट के बल
(घ) किसी भी प्रकार से

2. डूबे हुए व्यक्ति को कृत्रिम श्वसन दिलाने के लिए कौन-सी विधि उत्तम रहती है?
(क) शेफर्स विधि
(ख) सिल्वेस्टर विधि
(ग) लाबार्ड विधि
(घ) मुँह-से-मुँह के द्वारा

3. सिल्वेस्टर विधि से कृत्रिम श्वसन देने के लिए कितने व्यक्तियों की आवश्यकता होती है?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार

4. सिल्वेस्टर विधि में रोगी को लिटाया जाता है
(क) पेट के बल
(ख) उल्टा
(ग) पीठ के बल
(घ) किसी भी प्रकार से

5. कृत्रिम विधि से साँस कब दिलाई जाती है? [2015]
(क) जेल में डूबने पर
(ख) फाँसी लगाने पर
(ग) दम घुटने पर
(घ) तीनों अवस्थाओं में

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6. कृत्रिम श्वसन की क्रिया प्रारम्भ करने से पूर्व साफ कर लेने चाहिए
(क) आँखें
(ख) कान
(ग) नाक तथा मुँह
(घ) हाथ-पैर

7. कृत्रिम श्वसन की सबसे असुविधाजनक विधि है
(क) सिल्वेस्टर विधि
(ख) शेफर्स विधि
(ग) लाबार्ड विधि
(घ) कोई भी नहीं

8. सिल्वेस्टर विधि का प्रयोग होता है। [2012, 14, 18]
(क) डूबने पर
(ख) मूर्च्छित होने पर
(ग) अस्थिभंग में
(घ) इनमें से कोई नहीं

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उत्तर:
1. (ग) पेट के बल,
2. (क) शेफर्स विधि,
3. (ख) दो,
4. (ग) पीठ के बल,
5. (घ) तीनों अवस्थाओं में,
6. (ग) नाक तथा मुँह,
7. (ग) लाबार्ड विधि,
8. (घ) इनमें से कोई नहीं।

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UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 19 श्वसन तन्त्र का प्रारम्भिक ज्ञान

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 19 श्वसन तन्त्र का प्रारम्भिक ज्ञान

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 19 श्वसन तन्त्र का प्रारम्भिक ज्ञान.

विस्तृत उतरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
श्वसन तन्त्र के कौन-कौन से अंग हैं? नामांकित चित्र सहित स्पष्ट कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 15, 16, 17, 18]
या
श्वसन तन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए। या श्वासोच्छ्वास क्रिया क्या है? श्वासोच्छ्वास क्रिया में भाग लेने वाले अंगों का वर्णन कीजिए।
या
श्वसन तन्त्र के प्रमुख अंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
श्वसन तन्त्र का तात्पर्य

जीवित प्राणियों द्वारा बाहर से वायु ग्रहण करना तथा पुनः वायु (UPBoardSolutions.com) को छोड़ना श्वसन या श्वासोच्छवास क्रिया कहलाती है।
गैसों का आदान-प्रदान करने या कराने वाले अथवा इस कार्य में सहायता करने वाले अंगों को हम श्वसनांग (Respiratory organs) कहते हैं। ये सब श्वसनांग, जो सम्मिलित रूप से श्वसन के लिए कार्य करते हैं, श्वसन तन्त्र (Respiratory system) कहलाते हैं।

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मनुष्य के श्वसन तन्त्र के मुख्य अंग

श्वसन क्रिया में भाग लेने वाले मुख्य मानव अंग निम्नलिखित हैं
(1) नासागुहा,
(2) कण्ठ,
(3) श्वासनली तथा
(4) फुफ्फुस या फेफड़े

(1) नासागुहा:
वायु के आवागमन के लिए नाक में छिद्र होते हैं। इन्हें नासाद्वार या नथुने कहते हैं। इनसे दो मार्ग अन्दर की नाक ओर जाते हैं और ये मार्ग एक परदे ग्रसनी द्वारा एक-दूसरे से पृथक् रहते हैं। घाँटी नासागुहा का निचला आधार तालू वाकतन्तु की अस्थि होती है, जोकि नासिका को मुँह से पृथक् करती है। श्वासनली नासिका का – ऊपरी भाग श्वसनी बहु-छिद्रास्थि से बना होता है। नासागुहा का मार्ग श्लेष्मिक कला से मढ़ा होता है। नासागुहा की (UPBoardSolutions.com) सतह पर छोटे-छोटे रोएँ होते हैं, जोकि वायु में उपस्थित धूल के कणों एवं जीवाणुओं को अन्दर कोशिका जाने से रोकते हैं। श्लेष्मिक कला को चिपकाकर अन्दर प्रवेश करने से रोकता है। दोनों नासाद्वार मिलकर एक नली बनाते हैं, जोकि ग्रसनी में खुलती है।

(2) कण्ठ (लैरिंक्स):
यह श्वासनली के ऊपरी सिरे पर स्थित व कण्ठद्वार पर उपास्थि का बना हुआ एक ढक्कन होता है, जोकि कण्ठच्छद कहलाता है। यह भोजन को श्वासनली में जाने से रोकता है। श्वासनली को बनाने वाले उपास्थि के अधूरे छल्लों में से ऊपरी छल्ला अवटु उपास्थि सामने से चौड़ा तथा उभरा हुआ होता है। इसे पुरुषों के कण्ठ में बाहर से छूकर अनुभव किया जा सकता है। दूसरा छल्ला चारों ओर से पूरा होता है तथा मुद्रिका उपास्थि कहलाता है। दोनों छल्लों के बीच रेशेदार तन्तु भरे रहते हैं।
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(3) श्वासनली:
कण्ठ से होकर वायु श्वासनली अथवा वायुनलिका में प्रवेश करती है। इसकी कच्छद गोलाई 2.5 सेण्टीमीटर तथा लम्बाई लगभग 12-13 सेण्टीमीटर होती है। यह नली ‘C’ के आकार के रेशेदार तन्तुओं से निर्मित छल्लों से बनी होती श्वास नली है, जोकि पीछे की ओर खुले रहते हैं। (UPBoardSolutions.com) इनके ऊपर श्लेष्मिक कला मढ़ी होती है। नली के पिछले भाग में भी श्लेष्मिक कला मढ़ी होती है। जब ग्रासनली से गुजरता है तो

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UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 19 श्वसन तन्त्र का प्रारम्भिक ज्ञान

श्वसनिको ग्रासनली फूलती है और श्वासनली की फुफ्फुसावरण पिछली झिल्ली दब जाती है। इस प्रकार ग्रासनली को फूलने का स्थान मिल जाता है। श्वासनली ग्रीवा से,होकर वक्ष में जाती है। वक्ष में यह दो भागों—श्वसनी या ब्रॉन्कस में विभक्त हो जाती है। प्रत्येक श्वसनी प्रत्येक फेफड़े में प्रवेश करती हैं। दोनों श्वसनी दोनों फेफड़ों में जाकर अनेक शाखाओं तथा उपशाखाओं में बँट जाती हैं। अतिविभाजन के फलस्वरूपं ये सौत्रिक़ तन्तु की केवल सूक्ष्म नलिकाएँ (UPBoardSolutions.com) बनकर रह जाती हैं। प्रत्येक सूक्ष्मतर श्वसनिका के अन्त में वायु-कोष होते हैं, जिनका बाहर की वायु से इन श्वसनिकाओं द्वारा सम्पर्क बना रहता है।

(4) फुफ्फुस अथवा फेफड़े:
ये श्वसन तन्त्र को सबसे महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनकी संख्या दो होती है और ये वक्ष गुहा में दाएँ और बाएँ स्थित होते हैं। फेफड़े ही रक्त के शुद्धिकरण का कार्य करते हैं तथा गैसों के आदान-प्रदान का कार्य करते हैं।

प्रश्न 2:
फेफड़ों की रचना एवं कार्य चित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए। [2007, 12, 15]
या
फेफड़ों में रक्त की शुद्धि किस प्रकार होती है? विस्तारपूर्वक समझाइए। [2013, 12, 14, 16]
या
फेफड़ों के कार्य लिखिए। [2013]
उत्तर:
फेफड़ों की रचना

श्वसन तन्त्र के मुख्यतम अंग फेफड़े कहलाते हैं। मनुष्य के शरीर में दो फेफड़े होते हैं, जोकि वक्षगुहा में दाएँ और बाएँ स्थित होते हैं। इनकी संरचना अत्यन्त कोमल, लचीली, स्पंजी तथा गहरे गुलाबी-भूरे रंग की होती है। इसके चारों ओर एक पतली झिल्ली का आवरण होता है। इसके भीतर
लसदार तरल भरा होता है। इस आवरण को फुफ्फुसीय आवरण अथवा प्लूरी कहते हैं तथा गुहा को रम्फुसीय गुहा कहते हैं। ये सब रचनाएँ फेफड़ों की सुरक्षा करती हैं। दायाँ फेफड़ा बाएँ की अपेक्षा बड़ा होता है तथा दो अधूरी खाँचों के द्वारा तीन पिण्डों में बँटा रहता है। बाएँ फेफड़े में (UPBoardSolutions.com) एक अधूरी खाँच होती है तथा यह दो पिण्डों में बँटा होता है। फेफड़ों में मधुमक्खी के छत्ते की तरह असंख्य वायुकोष होते हैं। ये बहुत उपनलिकाएँ महीन होते हैं तथा एक वयस्क मनुष्य में इन वायुकोषों की संख्या लगभग 15 करोड़ तक होती है।
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प्रत्येक वायुकोष, एक बहुत महीन संरचना होते हुए भी एक ऐसी छोटी नली से सम्बन्धित होता है जिसमें और भी कई वायुकोष खुलते हैं। यह स्थान वास्तव में एक छोटी-सी नली का ” उपनली सिरा है जिसमें कि ऐसे अनेक स्थान खुलते हैं। ये नलिकाएँ श्वसनिकाओं की अतिसूक्ष्म नलिकाओं में बार-बार विभाजित होने से बनी अन्तिम नलिकाएँ हैं। अनेक नलिकाएँ एक ही श्वसनिका सम्बन्धित होती हैं। दोनों फेफड़ों से निकलने वाली सभी श्वसनिकाएँ मिलकरं श्वासनली बनाती हैं। इस प्रकार हर बार श्वास लेने से इन छोटे-छोटे वायुकोषों में नयी वायु आती है और पुरानी वायु निकल जाती है।

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फेफड़ों के कार्य

फेफड़ों का मुख्य कार्य अशुद्ध रक्त का शोधन करना है। श्वसन क्रिया में फेफड़े उनमें प्रवेश करने वाली वायु से ऑक्सीजन सोखते हैं तथा इसमें रक्त से प्राप्त कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को छोड़ते हैं। इस प्रकार गैसीय विनिमय द्वारा फेफड़ों में रक्त का शुद्धिकरण होता है; जिसकी विस्तृत विवरण निम्नलिखित है
वायुकोष अत्यन्त छोटे स्थान होते हैं जिनकी भित्ति बहुत महीन होती है।

वायुकोषों की भित्तियों के बाहर रुधिर की अत्यन्त पतली-पतली नलियों (केशिकाओं) का जाल बिछा होता है। इन केशिकाओं में हृदय से अशुद्ध रुधिर आता है तथा शुद्धिकरण के पश्चात् वापस हृदय को चला जाता है। इन केशिकाओं के रुधिर तथा वायुकोषों में उपस्थित वायु के बीच गैसों का आदान-प्रदान होता है। रुधिर में लाल रक्त कणिकाएँ होती हैं। रुधिर का लाल रंग हीमोग्लोबिन नामक विशिष्ट पदार्थ की उपस्थिति के कारण होता है। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन का उत्तम स्वीकारक होता है। यह ऑक्सीजन को तत्काल ग्रहण कर ऑक्सीहीमोग्लोबिन बना लेता है। इसी समय रुधिर के तरल पदार्थ प्लाज्मा में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) वायुकोषों में उपस्थित वायु में, कार्बन डाइऑक्साइड की कमी होने के कारण स्वयं ही आ जाती है। इस प्रकार रुधिर में वायु से ऑक्सीजन तथा वायु में रुधिर से कार्बन (UPBoardSolutions.com) डाइऑक्साइड गैस का आदान-प्रदान होता है। इसके बाद, ऑक्सीजनयुक्त रक्त फेफड़ों से शिराओं के द्वारा हृदय में पहुँचता है जहाँ से यह शरीर के विभिन्न अंगों को वितरित हो जाता है।

प्रश्न 3:
मनुष्य के शरीर में श्वसन-क्रिया किस प्रकार होती है? विस्तारपूर्वक समझाइए। [ 2011]
या
श्वसन-क्रिया से आप क्या समझती हैं? [2011]
या
श्वसन की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है? [2007, 12, 13, 18]
या
रक्त की शुद्धि और श्वसन-क्रिया में क्या सम्बन्ध है? [2010, 16]
या
प्रःश्वसन और निःश्वसन से आप क्या समझती हैं? [2012, 14]
उत्तर:
श्वसन की क्रिया-विधि

मनुष्य के प्रमुख श्वसनांग फेफड़े होते हैं, जो कि वक्ष गुहा में फुफ्फुसीय गुहा के अन्दर स्थित होते हैं। वक्षगुहा का निर्माण पसलियों के द्वारा होता है। वक्षगुहा का पिछला भाग अर्थात् पैर की ओर का भाग तन्तुपट (डायाफ्राम) का बना होता है। श्वसन के लिए ऑक्सीजन की उपलब्धि फेफड़ों में होने वाले वात-विनिमय पर निर्भर करती है जो रुधिर तथा वायु के बीच में होता है। इसके लिए वक्षीय गुहा की पसलियाँ तथा उनकी मांसपेशियाँ व तन्तुपट इस प्रकार प्रक्रिया करते हैं कि वायुमण्डल की वायु स्वत: ही वायुमार्ग से होकर फेफड़ों में प्रवेश कर जाती है। यह प्रक्रिया श्वसन-क्रिया कहलाती है।

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श्वसन-क्रिया की दो उपक्रियाएँ हैं
(1) प्र:श्वसन तथा
(2) नि:श्वसन

(1) प्र:श्वसन (Inspiration):
इस उपक्रिया में वायुमण्डल की वायु को वायुमार्ग द्वारा फेफड़ों तक पहुँचाया जाता है। फेफड़ों के फूलने पर इनके वायुकोषों में वायु का दबाव कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वायुमण्डल की वायु नासामार्ग, श्वसन नली, ग्रसनी तथा एपीग्लॉटिस से होती हुई फेफड़ों तक पहुँच जाती है। फेफड़ों के फूलने के लिए वक्षगुहा का बढ़ना आवश्यक है, जिसके लिए तन्तुपट नीचे की ओर जाता है तथा पसलियाँ फैलकर थोड़ा पाश्र्व तथा नीचे की ओर हो जाती हैं। (UPBoardSolutions.com) इस क्रिया में वक्षगुहा बाहर की ओर गुम्बद के समान फूल जाती है। पसलियों के बीच में उपस्थित मांसपेशियों के संकुचन एवं फैलने के कारण पसलियों के फैलने की क्रिया सम्पन्न होती है। इस समय उरोस्थि भी ऊपर की ओर उठ जाती है। इस प्रकार वक्षगुहा का आयतन बढ़ने से फेफड़े कूल जाते हैं। तथा प्र:श्वसन की क्रिया सम्पन्न होती है।

(2) निःश्वसन (Expiration):
प्र:श्वसन के कारण फेफड़ों में अधिकतम मात्रा में वायु भरी होती है। सभी पेशियाँ शिथिल होकर पूर्व स्थिति की ओर आने लगती हैं। तन्तुपट को पेशियाँ शिथिल होकर तन्तुपट को वक्षगुहा में उभार देती हैं तथा पसलियों के मध्य उपस्थित मांसपेशियाँ शिथिल होकर पसलियों को यथास्थान ले आती हैं। उरोस्थि भी अपनी पूर्व स्थिति में आ जाती है। इन सबका परिणाम यह होता है कि फूला हुआ सीना पिचक जाता है। जिससे फेफड़ों के अन्दर भरी बाय द दबा बढ़ जाता है और वह एपीग्लॉटिस, ग्रसनी, श्वसन नली तथा नासिका मार्ग से होकर नास द्रिों द्वारा शोर के बाहर निकल जाती है। यह क्रिया नि:श्वसन अथवा उच्छ्वसन कहलाती है।

फेफड़ों में गैसीय विनिमय

प्र:श्वसन व नि:श्वसन उपक्रियाओं के द्वारा फेफड़ों व बाहरी वायुमण्डल के बीच वायु का आना-जाना ही श्वसन-क्रिया है, जोकि जीवित मनुष्यों में निरन्तर होती रहती है। फेफड़ों में अनेक छोटे-छोटे वायुकोष होते हैं जिनकी भित्तियों के बाहर पतली रुधिर केशिकाओं का जाल बिछा होता है। इनमें उपस्थित लाल रक्त कणिकाएँ शुद्ध वायु से ऑक्सीजन सोख लेती हैं तथा रुधिर की प्लाज्मा में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साईड वायु में मुक्त हो जाती है।

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श्वसन-क्रिया का महत्त्व
जीवित रहने के लिए श्वसन-क्रिया अत्यावश्यक है। हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं के लिए ईंधन के रूप में भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन में ऊर्जा रासायनिक पदार्थों में बँधी होती है। इस ऊर्जा को मुक्त करने के लिए कोशिकाओं में ऑक्सीकरण क्रिया होती है, जिसके लिऐ ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। यह ऑक्सीजन रुधिर से उपलब्ध होती है। रुधिर में ऑक्सीजन की आवश्यक आपूर्ति फेफड़ों में श्वसन-क्रिया के द्वारा होती है। इस प्रकार शरीर में होने वाली ऑक्सीकरण क्रियाएँ श्वसन-क्रिया पर निर्भर करती हैं। ऑक्सीजन का एक और महत्त्वपूर्ण कार्य शरीर में आवश्यक ताप को नियमित बनाए रखना है।
श्वसन-क्रिया के दौरान फेफड़ों में रक्त का शुद्धिकरण होता है, जिसमें रक्त का हीमोग्लोबिन वायु से ऑक्सीजन सोखता (UPBoardSolutions.com) है तथा अशुद्ध रक्त की प्लाज्मा से कार्बन डाइऑक्साइड वायु में मुक्त होती है। इस प्रकार श्वसन-क्रिया के परिणामस्वरूप शरीर को अनावश्यक एवं हानिकारक कार्बन डाइऑक्साइड से मुक्ति मिलती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
मुँह की अपेक्षा नाक से श्वास लेने के क्या लाभ हैं? [2007, 11, 13, 17]
उत्तर:
नाक श्वसन तन्त्र का प्रवेश द्वार है। हम नाक तथा मुंह दोनों मार्गों से श्वास ग्रहण कर सकते हैं परन्तु नाक से ही श्वास ग्रहण करना उचित माना जाता है। नाक से श्वास लेने के लाभ निम्नलिखित हैं

  1.  नाक में उपस्थित बाल वायु में उपस्थित धूल के कणों व अन्य इस प्रकार की गन्दगी को . रोकते हैं जिसके कारण फेफड़ों तक पहुँचने वाली वायु गन्दगी रहित हो जाती है।
  2. नाक से प्रवेश करने वाली वायु नाक तथा श्वसन नली आदि की रक्त केशिकाओं द्वारा गर्म की जाती है। अतः फेफड़ों को गर्म वायु उपलब्ध होती है। अधिक ठण्ड वायु फेफड़ों के लिए हानिकारक होती है।
  3.  सम्पूर्ण वायु नलिका की भित्ति श्लेष्मिक कला से मढ़ी होती है, जो कि वायु में उपस्थित जीवाणुओं एवं धूल-कणों को रोक लेती है। इस प्रकार फेफड़ों तक पहुँचने वाली वायु अनेक प्रकार के हानिकारक जीवाणुओं से मुक्त होती है।

प्रश्न 2:
प्रःश्वसन व निःश्वसन की वायु में क्या अन्तर है? [2011, 12, 13, 16, 17]
उत्तर:
प्र:श्वसन (शरीर में प्रवेश करने वाली) वायु शुद्ध तथा नि:श्वसन (शरीर से बाहर निकलने वाली) वायु अशुद्ध होती है। दोनों प्रकार की वायु के रासायनिक संगठन में निम्नलिखित अन्तर हैं
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प्रश्न 3:
स्वस्थ श्वसन के लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर:
स्वस्थ श्वसन के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक हैं

  1. हमें सदैव नाक से श्वास लेना चाहिए। इससे शुद्ध एवं गर्म वायु फेफड़ों को उपलब्ध होती है।
  2. अधिक शुद्ध वायु को अन्दर लेने के लिए हमें अधिकतम प्र:श्वसन करना चाहिए तथा (UPBoardSolutions.com) अधिक गैसीय-विनिमय के लिए फेफड़ों में थोड़ा प्र:श्वसन वायु को रोकना चाहिए।
  3. प्रत्येक दिन अनेक बार कुछ देर तक लम्बी-लम्बी श्वासे लेनी चाहिए। ये फेफड़ों के लिए स्वास्थ्यप्रद रहती हैं।
  4. आवासीय व्यवस्था के आस-पास हरे-भरे पेड़-पौधे लगाने चाहिए। इससे हमें अधिक ऑक्सीजनयुक्त शुद्ध वायु प्राप्त होती है।

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प्रश्न 4:
श्वास क्रिया की दर से क्या अभिप्राय है? [2018]
उत्तर:
श्वसन-क्रिया सामान्यतः एक अनैच्छिक क्रिया है। एक सामान्य रूप से स्वस्थ व्यक्ति में यह क्रिया 15-18 बार प्रति मिनट की दर से होती है। शिशु अवस्था में इसकी दर काफी अधिक (25-40 बार प्रति मिनट तक) होती है। यदि समय का आकलन किया जाए तो प्रत्येक वयस्क व्यक्ति प्रति 4 सेकण्ड में यह क्रिया एक बार करता है। इसमें 1.5 सेकण्ड प्र:श्वसन के लिए तथा 2.5 सेकण्ड नि:श्वसन के लिए होता है। श्वसन क्रिया की इस दर को आवश्यकतानुसार नियमित तथा संचालित करने का दायित्व मस्तिष्क में स्थित एक जोड़े श्वास केन्द्र का होता है। ये केन्द्र श्वसन-क्रिया से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की पेशियों, पसलियों तथा तन्तुपट आदि के (UPBoardSolutions.com) संकुचन एवं शिथिलन पर नियन्त्रण बनाए रखते हैं।

दौड़ने, भागने, व्यायाम करने, खेलने-कूदने अथवा अन्य शारीरिक कार्य करने पर श्वास-दर बढ़ जाती है। ज्वर आदि की स्थिति में भी श्वास-दर में वृद्धि हो जाती है। इसका कारण है-उपर्युक्त दशाओं में अधिक ऊर्जा की खपत होने के कारण अधिक एवं अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता। श्वसन-क्रिया पूर्णरूप से अनैच्छिक क्रिया है, परन्तु उसे व्यायाम, योगाभ्यास आदि के द्वारा आंशिक रूप से ऐच्छिक बनाया जा सकता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
श्वसन तन्त्र से क्या आशय है?
उत्तर:
श्वसन-क्रिया में भाग लेने वाले विभिन्न अंगों की व्यवस्था को श्वसन-तन्त्र कहा जाता है।

प्रश्न 2:
श्वसन तन्त्र के किन्हीं तीन मुख्य अंगों के नाम लिखिए। [2010, 12, 13, 14]
उत्तर:
श्वसन तन्त्र के तीन मुख्य अंग हैं नासिका, श्वासनली तथा फेफड़े।

प्रश्न 3:
श्वसन-क्रिया में कौन-सी गैसों का आदान-प्रदान होता है?
उत्तर:
श्वसन-क्रिया में ऑक्सीज़न तथा कार्बन डाइऑक्साइड नामक गैसों का आदान-प्रदान होता है। ऑक्सीजन ग्रहण की जाती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड विसर्जित की जाती हैं।

प्रश्न 4:
मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन क्यों आवश्यक है? [2011, 13, 16, 17]
उत्तर:
रक्त को शुद्ध करने के लिए तथा खाद्य-पदार्थों के ऑक्सीकरण के माध्यम से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए आक्सीजन आवश्यक होती है।

प्रश्न 5:
नाक में बाल क्यों होते हैं? [2007, 13]
उत्तर:
नाक में विद्यमान बाल वायु में मिले हुए धूल कणों वे बैक्टीरिया आदि को (UPBoardSolutions.com) रोक लेते हैं तथा श्वसन तन्त्र में साफ वायु ही प्रवेश कर पाती है।

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प्रश्न 6:
गैसीय-विनिमय का वास्तविक स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
श्वसन-क्रिया में गैसीय-विनिमय फेफड़ों की रुधिर केशिकाओं में होता है।

प्रश्न 7:
फेफड़ों में अशुद्ध रक्त शुद्धिकरण के लिए किसके द्वारा आता है?
उत्तर:
हृदय से फुफ्फुस धमनी के माध्यम से अशुद्ध रक्त शुद्धिकरण के लिए फेफड़ों में आता है।

प्रश्न 8:
प्रःश्वसन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्र:श्वसन द्वारा शुद्ध वायु फेफड़ों में प्रवेश करती है।

प्रश्न 9:
तीव्र ज्वर का श्वास-गति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
ज्वर की अवस्था में श्वास-गति बढ़ जाती है।

प्रश्न 10:
फेफड़ों की रक्षा करने वाली झिल्ली का नाम क्या है?
उत्तर:
फेफड़े चारों ओर से फुफ्फुसीय आवरण नामक झिल्ली में सुरक्षित रहते हैं।

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प्रश्न 11:
सामान्य अवस्था में फेफड़ों में कितनी वायु होती है?
उत्तर:
सामान्य अवस्था में फेफड़ों में लगभग 2.5 लीटर वायु सदैव भरी होती है। फेफड़ों में प्र:श्वसन की (UPBoardSolutions.com) अधिकतम अवस्था में लगभग 6 लीटर तक वायु भरी हो सकती है। यह फेफड़ों की कुल सामर्थ्य कहलाती है।

प्रश्न 12:
श्वसन-क्रिया की क्यों आवश्यकता है?
उत्तर:
कोशाओं में होने वाली ऑक्सीकरण क्रियाओं के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध कराना तथा रुधिर से कार्बन डाइऑक्साइड को विसर्जित करने के लिए श्वसन-क्रिया अति आवश्यक है।

प्रश्न 13:
वक्षीय गुहा के फूलने व पिचकने से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
वक्षीय गुहा के फूलने व पिचकने से फेफड़ों को फूलने व पिचकने के लिए स्थान मिलता है।

प्रश्न 14:
मनुष्य में श्वासनली कितनी लम्बी होती है?
उत्तर:
मनुष्य में श्वासनली की लम्बाई 10 से 11 सेण्टीमीटर तक होती है।

प्रश्न 15:
एक स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट में कितनी बार श्वास लेता है?
उत्तर:
एक स्वस्थ व्यक्ति प्रति मिनट 15-18 बार श्वास लेता है।

प्रश्न 16:
व्यायाम से श्वसन-क्रिया पर पड़ने वाले दो प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
व्यायाम से श्वसन की दर बढ़ जाती है तथा व्यक्ति अधिक मात्रा में बाहरी वायु को ग्रहण करती है। इसमें अधिक मात्रा में ऑक्सीजन भी प्राप्त होती है।

प्रश्न 17:
पार्क या उद्यान में साँस को लाभ बताएँ।
उत्तर:
पार्क या उद्यान में साँस लेने से व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में शुद्ध तथा ऑक्सीजन युक्त वायु मिल (UPBoardSolutions.com) जाती है। इसका व्यक्ति के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

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प्रश्न 18:
मुँह से साँस लेना क्यों हानिकारक है ? [2012, 16 , 17]
उत्तर:
मुँह से साँस लेने से दूषित एवं ठण्डी वायु श्वसन-तन्त्र में पहुंच जाती है। इससे गले एवं श्वसन-तन्त्र के संक्रमण की आशंका रहती है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न:
निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

1. वायु से ऑक्सीजन ग्रहण करने वाला रुधिर में उपस्थित पदार्थ का क्या नाम है? [2015]
(क) हीमोग्लोबिन
(ख) प्लाज्मा
(ग) श्वेत रुधिर कणिकाएँ
(घ) सम्पूर्ण रुधिर

2. एक स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट में कितनी बार साँस लेता है? [2009, 11, 12, 14]
(क) 25-30 बार
(ख) 15-18 बार
(ग) 5-10 बार
(घ) अनेक बार

3. वायुकोषों के समूह का नाम है  [2010]
(क) कण्ठ
(ख) फेफड़े
(ग) श्वासनली
(घ) श्वसन तन्त्र

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4. प्राणवायु कहलाती है
(क) ऑक्सीजन
(ख) कार्बन डाइऑक्साइड
(ग) नाइट्रोजन
(घ) जलवाष्प

5. अधिक व्यायाम करने से श्वास-गति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(क) कम हो जाती है
(ख) पहले जैसी रहती है
(ग) बढ़ जाती है
(घ) रुक जाती है

6. रुधिर की शुद्धि किस अंग में होती है? [2007, 08, 11, 12, 13, 14, 15, 16]
(क) पाचन तन्त्र
(ख) फुफ्फुस
(ग) हृदय
(घ) त्वचा

7. फुफ्फुसीय धमनी कौन-सा रक्त ले जाती है? [2007]
(क) शुद्ध रक्त
(ख) अशुद्ध रक्त
(ग) पाचन रस
(घ) जठर रस

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8. मनुष्य के शरीर में फेफड़ों की संख्या कितनी होती है? [2008, 15, 17]
(क) चार
(ख) एक
(ग) दो
(घ) अनेक

9. श्वसन-क्रिया का प्रमुख अंग कौन-सा है? [2009, 10, 17 ]
(क) फेफड़े
(ख) आमाशय
(ग) खोपड़ी
(घ) नासिका

10. श्वसन-क्रिया में रक्त का शुद्धिकरण कौन-सी गैस द्वारा होता है? [2012]
(क) नाइट्रोजन
(ख) हाइड्रोजन
(ग) कार्बन डाइऑक्साइड
(घ) ऑक्सीजन

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11. ऑक्सीजन द्वारा रक्त का शुद्धिकरण कहाँ होता है?
(क) यकृत में
(ख) वृक्क में
(ग) फेफड़ों में
(घ) श्वास प्रणाली में

12. श्वसन-क्रिया है
(क) ऐच्छिक क्रिया
(ख) अनैच्छिक क्रिया
(ग) अनावश्यक क्रिया
(घ) इनमें से कोई नहीं

13. कौन-सा अंग श्वसन-तन्त्र का भाग नहीं होता है? [2007, 11, 15]
(क) नाक
(ख) फेफड़े
(ग) यकृत/हाथ
(घ) श्वास-नली

14. वायुकोष पाये जाते हैं [2010]
(क) श्वास नली में
(ख) हृदय में
(ग) फेफड़ों में
(घ) वृक्क में

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उत्तर:
1. (क) हीमोग्लोबिन,
2. (ख) 15 -18 बार,
3. (ख) फेफड़े,
4. (क) ऑक्सीजन,
5. (ग) बढ़ जाती है,
6. (ख) फुफ्फुस,
7. (ख) अशुद्ध रक्त,
8. (ग) दो,
9. (क) फेफड़े,
10. (घ) ऑक्सीजन,
11. (ग) फेफड़ों में,
12. (ख) अनैच्छिक क्रिया,
13. (ग) यकृत/हाथ,
14. (ग) फेफड़ों में।

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UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 18 अस्थियों की टूट और मोच

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 18 अस्थियों की टूट और मोच

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 18 अस्थियों की टूट और मोच.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
अस्थि-भंजन से आप क्या समझती हैं? अस्थि-भंजन के कारणों एवं प्रकारों का उल्लेख कीजिए। [2008, 09, 10, 11]
या
अस्थि-भंग या फ्रेक्चर किसे कहते हैं? इनके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए। [2011, 12, 13, 14, 15, 17]
या
हड्डी की टूट कितने प्रकार की होती है? चित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए। [2011]
या
हड्डियों की टूट कितने प्रकार की होती है ? संक्षेप में लिखिए। [2009, 11]
उत्तर:
अस्थि-भंजन का अर्थ

शरीर के किसी भी अंग की अस्थि के टूट जाने को अस्थि-भंजन कहते (UPBoardSolutions.com) हैं। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि यदि कोई अस्थि पूरी तरह से टूटे नहीं, परन्तु उसमें साधारण-सी दरार भी आ जाए तो उसे भी अस्थि-भंजन की ही श्रेणी में रखा जाता है।

अस्थि-भंजन के कारण
आकस्मिक दुर्घटना के कारण किसी अस्थि (हड्डी) के टूट जाने को अस्थि-भंजन कहते हैं। अस्थि-भंजन होने के सामान्य कारण निम्नलिखित हैं

(1) गिरना:
अचानक गिरने अथवा फलों आदि के छिलकों से फिसलने पर प्रायः अस्थि-भंजन की सम्भावना रहती है। ठोकर खाना, छत अथवा सीढ़ियों से गिरना तथा फलों के छिलकों द्वारा फिसलना आदि इस प्रकार की सामान्य दुर्घटनाएँ हैं, जोकि अधिकांशतया अस्थि-भंजन का कारण होती हैं।

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(2) टक्कर लगना:
किसी वाहन (साइकिल, कार, बस व ट्रक आदि) अथवी दीवार इत्यादि से टक्कर होने पर अस्थि-भंजन की अत्यधिक सम्भावना रहती है।

(3) दब जाना अथवा गोली लगना:
अधिक भार वाली वस्तुओं; जैसे-मशीन, पत्थर तथा वाहन आदि) के नीचे दब जाने पर अथवा गोली लगने पर भी अस्थि-भंजन की अत्यधिक सम्भावना रहती है।

अस्थि-भंजन के विभिन्न प्रकार

सामान्य रूप से अस्थियाँ प्रत्यक्ष भंजन; जैसे—किसी अंग में गोली लगने से अस्थि टूटना व अप्रत्यक्ष भंजन; जैसे-खेलते हुए यदि कोई व्यक्ति हाथों के बल गिर जाए तथा झटके से कन्धे की अस्थि का टूटना; से टूटती हैं।
अस्थि-भंजन के मुख्य प्रकारों का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है

(1) साधारण अस्थि-भंजन:
इस प्रकार के अस्थि-भंजन में केवल अस्थि ही टूटती है तथा आस-पास के ऊतकों को कोई विशेष क्षति नहीं होने पाती है।

(2) संयुक्त अस्थि:
भंजन–इस प्रकार के अस्थि-भंजन में टूटने वाली अस्थि का एक सिरा मांस तथा त्वचा को फाड़कर बाहर निकल जाता है, जिसके फलस्वरूप प्रभावित अंग विकृत हो जाता है तथा रोगाणुओं द्वारा घाव के संक्रमित होने की आशंका रहती है।

(3) जटिल अस्थि-भंजन:
इसमें अस्थि टूटने पर आस-पास की रुधिर-वाहिनियों तथा अन्य कोमल अंगों; फेफड़े व मस्तिष्क आदि; को घायल कर देती हैं। जटिल टूट अनेक बार घातक भी सिद्धरो पकती है; अत: इसका तत्काल उपचार आवश्यक है। अनेक बार असावधानी के कारण अथवा (UPBoardSolutions.com) अनुपयुक्त विधि से पीड़ित व्यक्ति को हिलाने-डुलाने पर अथवा स्थानान्तरित करने पर साधारण अस्थि-भंजन भी जटिल अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। इसलिए अस्थि-भंजन के रोगी की भाल नियम एवं विधिपूर्वक की जानी चाहिए।

(4) बहुखण्डी अस्थि-भंजन:
इसमें प्रभावित स्थान पर अस्थि के एक से अधिक टुक जाते हैं।

(5) पच्चड़ी अस्थि-भंजन:
इसमें टूटी हुई अस्थि के सिरे पच्चड़ की तरह एक-दूसरे में घुस जाते हैं।
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6) कच्ची अस्थि-भंजन:
इंस प्रकार की अस्थि-भंजन प्रायः बच्चों की लचीली अस्थियों में होती है। ये अस्थियाँ चोट लगने पर या तो झुक जाती हैं या उनमें दरारें पड़ जाती हैं।

प्रश्न 2:
अस्थि-भंजन के मुख्य लक्षण क्या हैं? अस्थि-भंजन की सामान्य प्राथमिक चिकित्सा आप किस प्रकार करेंगी? [2007, 08, 09, 10, 11, 12, 14, 15, 16]
या
हड्डी टूटने पर आप रोगी को क्या प्राथमिक उपचार देंगी? [2007, 08, 09, 10, 17]
या
हड्डी की टूट के लक्षण क्या हैं? हड्डी टूटने पर क्या प्राथमिक सहायता देनी चाहिए? हड्डियों के लिए किस पोषक तत्त्व की अधिक आवश्यकता होती है ? [2009]
उत्तर:
अस्थि -भंजन

अस्थियाँ शरीर के अन्दर अर्थात् त्वचा एवं मांसपेशियों के नीचे होती हैं; अत: इन्हें बाहर से देखा नहीं जा सकता। इस स्थिति में अस्थि-भंजन की जानकारी कुछ सामान्य लक्षणों के माध्यम से ही प्राप्त की जाती है। अस्थि-भंजन होने पर पीड़ित व्यक्ति दर्द के साथ अनेक प्रकार की कठिनाइयों की भी अनुभूति करता है, जिनके आधार पर प्राथमिक चिकित्सक अस्थि-भंजन की वास्तविकता का अनुमान लगा सकता है।

लक्षण: अस्थि-भंजन के सामान्य लक्षणों का विवरण निम्नलिखित है

  1. हड्डी टूटने के स्थान के निकट असहनीय पीड़ा होती है, जिससे कि पीड़ित व्यक्ति दर्द से तड़पने लगता है।
  2.  हड्डी टूटने वाले अंग की शक्ति नष्ट हो जाती है।
  3.  हड्डी टूटने पर आस-पास के स्थान पर सूजन आ जाती है।
  4. अस्थि-भंजन होने पर ऊतकों के नीचे रक्त प्रवाह के प्रभावित होने के कारण त्वचा का रंग नीला पड़ जाता है।
  5. अस्थि-भंजन के कारण प्रभावित अंग की आकृति बिगड़ जाती है।
  6. प्रभावित अंग को स्वाभाविक ढंग से हिलाने-डुलाने में पीड़ा होती है।
  7. कई बार टूटी हुई अस्थि के सिरे एक-दूसरे के ऊपर चढ़े हुए प्रतीत होते हैं।
  8.  प्रभावित अंग स्वाभाविक ढंग से हिलता-डुलारा नहीं है।
  9. त्वचा के पास हड्डी टूटने पर रोगी स्वयं इसका अनुभव कर सकता है।
  10. टूटी हुई हड्डी के टुकड़े परस्पर रगड़ खाने पर ‘कर-कर’ की ध्वनि उत्पन्न (UPBoardSolutions.com) करते हैं। ऐसी अवस्था में अस्थि-भंजन का निर्णय लेने के लिए किसी योग्य चिकित्सक से भी परामर्श कर लें।
  11.  संयुक्त अथवा जटिल अस्थि-भंजन में पीड़ित व्यक्ति भारी दुर्बलता का अनुभव करता है। तथा वह मूर्च्छित भी हो सकता है।
  12. कभी-कभी टूटी हुई हड्डी मांस व खाल को फाड़कर बाहर आ जाती है।

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उपर्युक्त लक्षणों के दिखाई देने पर अस्थि-भंजन की निश्चित जानकारी के लिए एक्स-रे परीक्षण आवश्यक होता है।

सामान्य प्राथमिक चिकित्सा

अस्थि-भंजन की अवस्था में पीड़ित व्यक्ति की निम्नलिखित विधियों द्वारा प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध करानी चाहिए

(1) उपयुक्त चिकित्सा सहायता:
इसके लिए अविलम्ब किसी योग्य चिकित्सक को बुलाना चाहिए। योग्य चिकित्सक के उपलब्ध न होने पर प्राथमिक चिकित्सा के आवश्यक उपाय करने चाहिए।

(2) रक्त-स्राव को रोकना:
अनेक बार अस्थि-भंजन के कारण पीड़ित व्यक्ति की रुधिर वाहिनियाँ फट जाती हैं, जिसके कारण रक्तस्राव होने लगता है। किसी स्वच्छ कपड़े के द्वारा दबाव डालकर रक्त-स्राव को रोकने का प्रयास करना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो टूर्नीकेट का प्रयोग भी किया जा सकता है।

(3) टूटी हड्डी की देखभाल:
अस्थि-भंजन का प्राथमिक उपचार दुर्घटनास्थल पर किया जाना ही उचित रहता है। रोगी की टूटी हुई हड्डी को खपच्ची, कार्ड-बोर्ड के टुकड़े, छड़ी अथवा अन्य किसी लकड़ी की सहायता से बाँधकर अचल बना देना चाहिए।

(4) घायल अंग की देखभाल:
रोगी के घावों को नि:संक्रामक घोल द्वारा साफ कर ऐन्टीसेप्टिक क्रीम लगाकर घायल अंग को स्वच्छ रूई अथवा कपड़े से ढक देना चाहिए।

(5) झोल का प्रयोग:
यदि बाहु की हड्डियाँ टूटी हों, तो रोगी को आराम देने के लिए उपयुक्त झोल का प्रयोग करना चाहिए।

(6) घायल का स्थानान्तरण:
घायल व्यक्ति को प्राथमिक उपचार देने के पश्चात् किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाना चाहिए।

(7) गर्म पेय पदार्थ देना:
यदि रोगी होश में है, तो उसे पीने के लिए गर्म दूध, चाय व कॉफी देना लाभप्रद रहता है।

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(8) सान्त्वना देना एवं धैर्य बँधाना:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति सदमे की स्थिति में होता है, जोकि अर्धिक होने पर घातक भी हो सकता है। प्राथमिक चिकित्सक का यह दायित्व है कि वह रोगी की घबराहट दूर कर उसे धैर्य बँधाए।।

प्रश्न 3
मोच आने से क्या अभिप्राय है? मोच आने के लक्षण और उपचार लिखिए। [2007, 09, 12, 14, 15, 18]
या
मोच के सामान्य उपचार क्या हैं? [2016]
उत्तर:
मोच आना

हड्डियाँ जोड़ के स्थान पर एक-दूसरे से बन्धक-सूत्रों अथवा तन्तुओं से जुड़ी होती हैं। अचानक चलते-चलते फिसलने, ऊँचे-नीचे स्थानों पर पैर पड़ने अथवा गिर जाने के कारण बन्धक-सूत्र या तो अधिक खिंच जाते हैं अथवा टूट जाते हैं। इसे मोच आंना कहते हैं। प्राय: (UPBoardSolutions.com) कलाई, गर्दन, कमर व टखने में मोच आने की भी अधिक सम्भावना रहती है।

लक्षण:
सामान्यतः मोंच आने पर पीड़ित व्यक्ति निम्नखित कठिनाइयाँ अनुभव करता है

  1. मोच से प्रभावित स्थान पर असहनीय पीड़ा होती है।
  2. जोड़ में सूजन आ जाती है और वह कमजोर हो जाता है।
  3.  मोच के स्थान पर त्वचा का रंग नीला अथवा काला पड़ जाता है।
  4.  मोच से प्रभावित अंग शिथिल हो जाता है। हिलाने-डुलाने पर मोच आए अंग में भयंकर दर्द होता है।

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प्राथमिक चिकित्सा

  1.  मोच आए अंग को आरामदायक स्थिति में रखना चाहिए तथा उसे अनावश्यक हिलानाडुलाना नहीं चाहिए।
  2. यदि मोच आते समय रोगी ने जूता अथवा सैण्डिल आदि पहने हों, तो उन्हें तत्काल उतार देना चाहिए। सूजन बढ़ने पर इनका उतारना कठिन एवं कष्टदायक होता है।
  3. मोच से प्रभावित जोड़ के स्थान पर कसकर पट्टी बाँध देनी चाहिए।
  4. मोच खाए स्थान पर ठण्डे पानी की पट्टी बाँधने से लाभ होता है। पट्टी को लगातार गीला रखना चाहिए।
  5.  यदि ठण्डे पानी की पट्टी से लाभ न हो, तो गर्म पानी की पट्टी बाँधनी चाहिए अथवा एक चिलमची में गर्म पानी तथा दूसरी चिलमची में ठण्डा पानी
    लेकर मोच आए अंग को पाँच मिनट तक
    क्रमशः गर्म व ठण्डे पानी में रखने पर काफी लाभ होता है।
  6. जब उपर्युक्त पट्टियाँ लाभ देना बन्द कर दें, तो उनका प्रयोग (UPBoardSolutions.com) रोक दें तथा कुछ घण्टे पश्चात् इनका फिर से प्रयोग करें।
  7. मोच खाए अंग पर धीरे-धीरे मालिश या मसाज करने से भी आराम मिलता है।
  8. मोच खाए अंग पर आयोडेक्स व मैडीक्रीम आदि मलने पर दर्द व सूजन में लाभ होता है।
  9.  मोच खाए अंग को दिन में तीन-चार बार गर्म पानी में थोड़ा नमक डालकर सेंकने से दर्द व सूजन में कमी आती है।।
  10.  प्रभावित अंग के दोनों ओर थोड़ी दूर तक कसकर पट्टी बाँधने से मोच खाया अंग अचल हो जाता है। इससे घायले बन्धक-सूत्रों को आराम मिलता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
खोपड़ी में अस्थि-भंजन होने पर आप क्या करेंगी?
उत्तर:
सिर के बल गिरने अथवा अन्य किन्हीं कारणों से सिर में चोट लगने पर सिर की कोई अस्थि टूट सकती है। सिर की अस्थि के टूटने से प्रायः व्यक्ति मूर्च्छित हो जाता है। इसके अलावा उसके मस्तिष्क को भी हानि हो सकती है। ऐसी स्थिति में सामान्यतः निम्नलिखित प्राथमिक उपचार करने चाहिए

  1. घायल व्यक्ति को कुर्सी पर सीधा बैठाना चाहिए, ताकि सिर ऊपर की ओर उठा रहे।
  2.  किसी साफ कपड़े की तह करके ठण्डे पानी में भिगोकर घायल व्यक्ति के सिर पर रखना चाहिए।
  3. घायल व्यक्ति के कपड़े ढीले कर देने चाहिए।
  4. अस्थि विशेषज्ञ से तुरन्त सम्पर्क करना चाहिए।
  5. यदि रुधिर बह रहा हो तो उसे रोकने का यथासम्भव प्रबन्ध करना चाहिए।
  6. यदि वह मूर्च्छित है, तो उसकी मूच्र्छा दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए।
  7.  चिकित्सक की सलाह लेना अत्यन्त आवश्यक है।

प्रश्न 2:
पसलियाँ टूटने पर आप क्या करेंगी?
उत्तर:
अनेक बार सीने के बल गिरने या पसलियों पर सीधा आघात पहुँचने पर पसलियाँ टूट जाती हैं। पसलियों का अस्थि-भंजन साधारण, जटिल, संयुक्त या किसी अन्य प्रकार का भी हो सकता है।
घायल व्यक्ति को हिलने-डुलने में पीड़ा होती है तथा श्वास लेने में कठिनाई होती है। इस प्रकार के रोगी को प्रारम्भिक उपचार निम्न प्रकार किया जा सकता है

  1. घायल व्यक्ति को इस प्रकार लिटाना चाहिए कि प्रभावित अंग पर कम-से-कम दबाव पड़े।
  2.  पीठ के नीचे सुविधानुसार तकिया व कम्बल आदि लगाएँ।
  3. घायल व्यक्ति को बर्फ चूसने के लिए देनी चाहिए।
  4. घायल अंग से सम्बन्धित बाँह को झोली की सहायता से सहारा (UPBoardSolutions.com) देकर पट्टी द्वारा बाँध देना चाहिए।
  5. अस्थि विशेषज्ञ से तत्काल परामर्श लेना चाहिए।

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प्रश्न 3:
हड्डी की टूट और मोच में क्या अन्तर है? [2009, 10, 11, 12, 13, 14]
या
अस्थि-भंग तथा मोच के अन्तर को स्पष्ट कीजिए। [2007, 08, 09, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 18]
उत्तर:
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प्रश्न 4:
जबड़ों एवं हँसली का अस्थि-भंजन होने पर क्या करना चाहिए?
उत्तर:
जबड़ों का अस्थि-भंजन-जबड़ों का अस्थि-भंजन होने पर जबड़ों की आकृति विकृत हो जाती है तथा मुंह से खून आता है। ऐसे व्यक्ति को बोलने में कष्ट होता है। प्राथमिक उपचार के लिए

  1. हथेली की सहायता से निचले जबड़े को ऊपर वाले से मिला देना चाहिए। यह कार्य धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
  2.  जबड़ों को तिकोनी, सँकरी पट्टी की सहायता से सही अवस्था में रखकर सिर के ऊपर बाँध देना चाहिए और एक अन्य पट्टी के द्वारा जबड़े से कान के पीछे होकर बाँध देना चाहिए।
  3. घायल व्यक्ति को बोलने नहीं देना चाहिए।
  4.  यदि उल्टी इत्यादि हो रही हो तो पट्टी खोली जा सकती है, (UPBoardSolutions.com) किन्तु बाद में बाँध देनी चाहिए।
  5. अस्थि विशेषज्ञ से तुरन्त सम्पर्क करना चाहिए।
  6. रोगी के साथ सहानुभूति का प्रदर्शन करना चाहिए।

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हॅसली का अस्थि-भंजन:
इस अस्थि के टूटने का मुख्य कारण हाथ या कन्धे के बल गिरना है या सामने से हँसली की अस्थि में सीधे चोट लगे, तो यह अस्थि टूट सकती है। इस अस्थि के अस्थि-भंजन से जिस ओर की अस्थि टूटती है उसी ओर की भुजा कार्य नहीं करती और कन्धा ऊपर नहीं उठाया जा सकता तथा सिर भी उसी ओर झुक जाता है जिधर की अस्थि टूटी हुई होती है। इस प्रकार के अस्थि-भंजन में निम्नलिखित उपचार करने चाहिए

  1. घायल व्यक्ति के कपड़े उतार दिए जाएँ।
  2.  पट्टी या कपड़े की तह बनाकर एक गद्दी 4-5 सेमी मोटी बनाई जाए और उसको घायल अंग की ओर वाले बाहु की बगल में रख दिया जाए।
  3.  सेण्ट जॉन झोली के द्वारा उस बाहु को छाती के साथ बाँध देना चाहिए। एक और पट्टी द्वारा कोहनी के मध्य से छाती तथा पेट की ओर घुमाकर बाँध देना चाहिए।
  4. अस्थि विशेषज्ञ से तुरन्त सलाह लेनी चाहिए।

प्रश्न 5:
जाँघ अथवा टाँग की हड्डी (अस्थि) टूटने पर आप क्या प्राथमिक उपचार करेंगी?
उत्तर:
जाँघ की हड्डी की टूट-जाँघ की हड्डी काफी लम्बी और मजबूत होती है, किन्तु अनेक कारणों से यह टूट सकती है। इसे हड्डी के टूटने से सामान्यत: घायल टाँग, स्वस्थ टाँग से छोटी हो जाती है। काफी सूजन आ जाती है तथा असह्य पीड़ा होती है। इस हड्डी के टूटने का उपचार (UPBoardSolutions.com) बहुत सावधानीपूर्वक करना चाहिए और निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए

    1. घायल व्यक्ति की, पीठ को आधार मानकर लिटाना चाहिए। जिस टाँग में चोट लगी हो उसे खींचकर स्वस्थ टाँग के साथ रूई या कपड़े की गद्दी रखकर बाँध देना चाहिए।

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  1.  लम्बी खपच्चियाँ यदि उपलब्ध हों तो उन्हें टाँगों के साथ बाँध देना चाहिए। यदि ये उपलब्ध न हों, तो लाठी, बाँस इत्यादि बाँध देना उचित है, ताकि यह अपने स्थान से हिले-डुले नहीं।
  2. अस्थि विशेषज्ञ से तुरन्त सम्पर्क स्थापित करना चाहिए तथा उसके परामर्श के अनुसार शेष उपचार होना चाहिए।

टाँग की हड्डी की टूट:
टॉग में भी दो हड्डियाँ होती हैं। ये दोनों ही अथवा एक हड्डी टूट सकती है। इसके प्रमुख उपचार जाँघ की हड्डी की तरह किए जाने चाहिए अर्थात् लम्बी खपच्चियाँ, लाठी आदि की सहायता से दोनों पैरों को सीधा करके, खींचकर कसकर बाँध देना चाहिए। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि पैर हिले-डुले नहीं।
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प्रश्न 6:
जोड़ उतरने के क्या लक्षण हैं? कन्धे की हड्डी उतरने पर प्राथमिक उपचार आप किस प्रकार करेंगी? [2018]
या
अस्थि का खिसकना किसे कहते हैं? अस्थि के खिसकने के लक्षण एवं उपचार क्या हैं? [2007]
उत्तर:
जोड़ उतरने के लक्षण:

शरीर को गतिशील बनाये रखने के लिए शरीर के कई स्थानों; जैसे—जबड़ा, कन्धा, कोहनी, कूल्हे एवं टखने आदि पर हड्डियों के बीच में सन्धियाँ अथवा जोड़ होते हैं। हड्डियों के अपने स्थान से हट जाने को जोड़ उतरना कहते हैं। इसके मुख्य लक्षण अग्रलिखित हैं

  1. जोड़ के पास भयानक पीड़ा होती है तथा जोड़ अचल हो जाता है।
  2.  जोड़ वाला अंग विकृत हो जाता है तथा इसे हिलाने-डुलाने पर बहुत पीड़ा होती है।
  3.  जोड़ के आस-पास सूजन आ जाती है।

कन्धे की हड्डी उतरने पर प्राथमिक उपचार

  1. रोगी को बिस्तर पर आरामदायक स्थिति में लिटाना चाहिए।
  2.  प्रभावित भाग पर बर्फ की थैली रखनी चाहिए। यदि इनसे लाभ न हो तो गरम सेंक करना चाहिए।
  3. रोगी को गर्म कम्बल से ढककर रखनी चाहिए।
  4. रोगी को पीने के लिए गर्म दूध व चाय देनी चाहिए।
  5. जोड़ को चढ़ाने के लिए अस्थि-रोग विशेषज्ञ से सम्पर्क करना चाहिए। (UPBoardSolutions.com) किसी नीम-हकीम को जोड़ चढ़ाने से रोकना चाहिए।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
हड्डी की टूट (अस्थि-भंग) को अर्थ स्पष्ट कीजिए। [2016]
उत्तर:
शरीर की किसी भी हड्डी के टूटने अथवा उसमें दरार पड़े जाने को हड्डी की टूट (अस्थि -भंग) कहते हैं।

प्रश्न 2:
अस्थि-भंजन के मुख्य प्रकार बताइए। [2011, 12, 13, 14]
उत्तर:
अस्थि-भंजन के मुख्य प्रकार हैं

  1. साधारण अस्थि-भंजन,
  2. बहुखण्डी अस्थिभंजन,
  3.  पच्चड़ी अस्थि-भंजन,
  4. संयुक्त अस्थि-भंजन,
  5. जटिल अस्थि-भंजन तथा
  6.  कच्चा अस्थि -भंजन।

प्रश्न 3:
अस्थि-भंजन में खपच्चियों का प्रयोग क्यों किया जाता है? [2008, 11]
उत्तर:
टूटी हुई अस्थि को सहारा देने व स्थिर रखने के लिए अस्थि-भंजन में खपच्चियाँ प्रयुक्त की जाती हैं।

प्रश्न 4:
कौन-से अस्थि-भंजन में खपच्चियों का प्रयोग नहीं किया जाता?
उत्तर:
खोपड़ी, मेरुदण्ड, पसलियों व जबड़ों के अस्थि-भंजन में खपच्चियों का प्रयोग नहीं किया जाता।

प्रश्न 5:
दुर्घटनास्थल पर खपच्चियाँ उपलब्ध न होने पर आप क्या करेंगी?
उत्तर:
ऐसे अवसर पर खपच्चियों के स्थान पर लकड़ी के टुकड़ों, (UPBoardSolutions.com) चप्पल व छतरी आदि का प्रयोग किया जा सकता है।

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प्रश्न 6:
किस प्रकार के अस्थि-भंजन में रोगी को बर्फ चूसने के लिए दी जाती है?
उत्तर:
पसलियाँ टूटने पर रोगी को बर्फ चूसने के लिए देते हैं।

प्रश्न 7:
कच्चे अस्थि-भंजन से क्या अभिप्राय है? [2007]
उत्तर:
इस प्रकार के अस्थि-भंजन में अस्थि टूटती नहीं है, बल्कि उसमें दरार पड़ जाती है।

प्रश्न 8:
घायलों को किस प्रकार स्थानान्तरित किया जाता है?
या
स्ट्रेचर की उपयोगिता लिखिए। [2009]
उत्तर:
आवश्यक प्राथमिक चिकित्सा देने के पश्चात् घायलों को आरामदायक स्थिति में स्ट्रेचर पर डालकर किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाया जाता है।

प्रश्न 9:
मोच आ जाने से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
शरीर के किसी भी अस्थि सन्धि स्थल के बन्धन-सूत्रों में खिंचाव आ जाने अथवा उनके टूट जाने की दशा को मोच आ जाना कहते हैं।

प्रश्न 10:
मोच के दो लक्षण लिखिए। [2008, 10, 11, 13, 14, 16]
उत्तर:
मोच के दो मुख्य लक्षण हैं

  1. सम्बन्धित अंग में दर्द का होना तथा
  2. मोच के स्थान का रंग नीला या काला हो जाना।
    का रंग नीला या काला हो जाना।

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प्रश्न 11:
जोड़ उतरने से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जोड़ के स्थान से हड्डी के खिसकने अथवा हट जाने को जोड़ उतरना कहते हैं।

प्रश्न 12:
कपाल की हड्डी टूटने की क्या पहचान है?
उत्तर:
कपाल के अस्थि-भंजन में चेहरा विकृत हो जाता है तथा इस पर सूजन (UPBoardSolutions.com) आ जाती है। नाक, मुँह व कान इत्यादि से रक्त-स्रार होने लगता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न-निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

1. अस्थियों के टूट जाने को कहते हैं [2007]
(क) अस्थि विस्थापन
(ख) अस्थि -भंग
(ग) मोच
(घ) अस्थि-संक्रमण

2. अस्थि-भंजन में होती है
(क) कम पीड़ा
(ख) असहनीय पीड़ा
(ग) सहनीय पीड़ा
(घ) कोई पीड़ा नहीं

3. अस्थि-भंजन में यदि अस्थि टूटकर खाल के बाहर आ जाए, तो उसे कहते हैं
(क) साधारण अस्थि-भंजन
(ख) कच्चा अस्थि-भंजन
(ग) पच्चड़ी अस्थि-भंजन
(घ) संयुक्त अस्थि-भंजन

4. यदि अस्थि एक से अधिक स्थान पर टूटती है, तो अस्थि-भंजन कहलाता है
(क) बहुखण्डी
(ख) कच्चा
(ग) संयुक्त
(घ) साधारण

5. मोच आने पर प्रयोग करते हैं [2008, 13]
(क) डेटॉल
(ख) आयोडेक्स
(ग) सैवलॉन
(घ) कोल्ड क्रीम

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6. झटके के साथ बोझ उठाने से अधिक सम्भावना रहती है
(क) मोच आने की
(ख) जोड़ उतरने की
(ग) पेशियों के खिंचाव की
(घ) अस्थि -भंजन की

7. पसलियाँ टूट जाने पर कठिनाई होती है
(क) बैठने में
(ख) लेटने में
(ग) साँस लेने में
(घ) कोई कठिनाई नहीं होती

8. मोच आने का लक्षण है [2012, 13, 16]
(क) पीड़ा होना
(ख) सूजन होना
(ग) मांसपेशियों में खिंचाव
(घ) ये सभी

9. कौन-सी वस्तु का प्रयोग अस्थि-भंग में अधिक रक्तस्राव रोकने के लिए किया जाता है? [2016]
(क) बर्फ का प्रयोग
(ख) टूर्नीकेट का प्रयोग
(ग) रूई से दबाना
(घ) इनमें से कोई नहीं

10. अस्थि -भंग के लक्षण हैं [2016, 17]
(क) सूजन आ जाती है
(ख) दर्द होता है
(ग) अंग निष्क्रिय हो जाता है
(घ) ये सभी

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उत्तर:
1. (ख) अस्थि-भंग,
2. (ख) असहनीय पीड़ा,
3. (घ) संयुक्त अस्थि-भंजन,
4. (क) बहुखण्डी,
5. (ख) आयोडेक्स,
6. (ख) जोड़ उतरने की,
7. (ग) साँस लेने में,
8. (घ) ये सभी,
9. (ख) दूनीकेट का प्रयोग,
10. (घ) ये सभी।

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UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 21 घायल का स्थानान्तरण

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 21 घायल का स्थानान्तरण

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 21 घायल का स्थानान्तरण.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
घायल के स्थानान्तरण से क्या तात्पर्य है? घायल व्यक्ति के स्थानान्तरण की क्यों आवश्यकता होती है? इसके लिए एक अकेले व्यक्ति द्वारा ले जाने की विधि का वर्णन कीजिए
या
घायल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने की कितनी विधियाँ हैं? उनका वर्णन कीजिए। [2008]
या
घायल के स्थानान्तरण से क्या तात्पर्य है? स्थानान्तरण की विधियाँ बताइये। [2017]
या
घायल के स्थानान्तरण से क्या समझती हैं? [2018]
उत्तर:
घायल का स्थानान्तरण

दुर्घटनास्थल पर प्रायः चिकित्सा-साधनों का अभाव होता है। इसलिए घायल व्यक्ति को किसी सुरक्षित एवं सुविधाजनक स्थान पर ले जाना हितकर रहता है, परन्तु यह कार्य इतना सरल नहीं है, क्योंकि इसके लिए स्थानान्तरण की विशिष्ट विधियों का ज्ञान होना (UPBoardSolutions.com) अति आवश्यक है। घायल व्यक्ति के स्थानान्तरण के लिए स्ट्रेचर का प्रयोग सर्वोत्तम रहता है, परन्तु सामान्यतः दुर्घटनास्थल पर इनकी उपलब्धि बहुत कम हो पाती है। अतः इसके लिए अन्य विधियों की जानकारी प्राप्त कर लेना भी आवश्यक हो जाता है। इनमें से एक अकेले व्यक्ति द्वारा घायल के स्थानान्तरण की विधि निम्नवर्णित है

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एक व्यक्ति द्वारा घायल का स्थानान्तरण

एक अकेला व्यक्ति घायल की अवस्था के अनुसार उसे स्थानान्तरित करने के लिए निम्नलिखित में से कोई भी एक विधि अपना सकता है

(1) सहारा देकर ले जाना:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति यदि होश में हो तथा चल सकता हो, तो उस व्यक्ति को सहारा देकर किसी सुरक्षित स्थान तक ले जाया जा सकता है। इसके लिए घायल की बगल में खड़े होकर उसके एक हाथ को अपने विपरीत कन्धे पर गर्दन के पीछे से रखवा लेना चाहिए। घायल के इस हाथ (UPBoardSolutions.com) को अपने उसी ओर के हाथ से पकड़ लेना चाहिए। रोगी की ओर के अपने दूसरे हाथ को रोगी की कमर में पीठ की ओर से घुमाकर बगल से सहारा देना चाहिए। अब रोगी को धीरे-धीरे चलाकर वांछित स्थान तक ले जाया जा सकता है।
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(2) गोद में ले जाना:
मूर्च्छित घायल व्यक्ति को दुर्घटनास्थल पर पीठ के बल सीधा लिटाकर हाथ से उसकी दोनों टाँगों के घुटनों से ऊपर, नीचे र हाथ डालकर तथा दूसरे हाथ से कमर से बैठाकर पीठ की ओर हाथ डालकर चित्रं की भाँति उठाया जाता है। यह विधि बच्चों तथा हल्के भार वाले घायल व्यक्तियों को स्थानान्तरित करने के लिए उपयुक्त रहती है।

(3) पीठ पर लादकर ले जाना:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति यदि होश में है और उसे दूर तक ले जाना है, तो उसे पीठ पर लादकर ले जाया जा सकता है। इसके लिए रोगी को अपने दोनों हाथ वाहक की गर्दन के दोनों ओर डालकर सीने पर मजबूती से पकड़ लेना चाहिए। वाहक को अपने दोनों हाथों से, अपने कूल्हे से नीचे से घायल को सँभालना चाहिए। इस अवस्था में घायल के दोनों पैर वाहक की कमर से नीचे आगे की ओर होते हैं।

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(4) कन्धे पर लादकर ले जाना:
मूर्च्छित व्यक्ति को स्थानान्तरित करने की यह एक उत्तम विधि है। किसी स्थान पर आग लग जाने पर आग बुझाने वाले व्यक्ति, आग में घिरे लोगों को इसी विधि से बाहर निकाल कर लाते हैं। इसलिए इस विधि को फायरमैन लिफ्ट भी कहते हैं। इस कार्य के लिए घायल व्यक्ति को पेट के सहारे लिटाकर, उसके सिर के पास खड़े होकर रोगी को दोनों हाथों से इस प्रकार उठाया जाता है कि रोगी के दोनों हाथ वाहक के दूसरे कन्धे के इधर-उधर रहें, जबकि रोगी (UPBoardSolutions.com) का अधिकतर भाग, विशेषकर कमर के स्थान से, उल्टी अवस्था में (पेट के बल) वाहक के दाहिने कन्धे पर चित्रानुसार रहे। इस समय वाहक अपने दाहिने हाथ से रोगी का दाहिना हाथ, कोहनी से नीचे पकड़कर अपने सीने के आर-पार सँभाले रहता है।
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इस प्रकार घायल का सारा भार वाहक के कन्धे पर रहता है। कन्धे पर लादकर घायल को और बाएँ कन्धे पर घायल होने के कारण वाहक सहज ही स्थानान्तरित की विधि ऊँचे-नीचे स्थान पर भी चढ़-उतर सकता है। इस प्रक्रिया में घायल का सिर तथा बायाँ हाथ नीचे की तरफ लटके रहते हैं। यह एक सुविधाजनक विधि है जिसमें एक ही व्यक्ति मूर्च्छित व्यक्ति को सरलतापूर्वक स्थानान्तरित कर सकता है।

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प्रश्न 2:
हस्त-आसन द्वारा किसी घायल व्यक्ति को किस प्रकार स्थानान्तरित किया जाता है? [2015, 16]
या
दो व्यक्ति मिलकर हस्त-आसन विधियों द्वारा घायल व्यक्ति का स्थानान्तरण किस प्रकार कर सकते हैं?
उत्तर:
घायल के स्थानान्तरण के हस्त-आसन

यदि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति अधिक घायल तथा भारी है, तो एक व्यक्ति वाहक के रूप में (UPBoardSolutions.com) उसका स्थानान्तरण ठीक प्रकारे से नहीं कर सकता है। इस प्रकार के घायलों का स्थानान्तरण करने के लिए कम-से-कम दो व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। दो व्यक्ति वाहक के रूप में घायलों का स्थानान्तरण करने के लिए निम्नलिखित प्रकार के हस्त-आसनों का उपयोग कर सकते हैं
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(1) दोहत्थी आसन:
इस विधि में दोनों वाहक व्यक्ति एक-दूसरे के सामने खड़े होते हैं और एक व्यक्ति अपना दायाँ हाथ तथा दूसरा व्यक्ति अपना बायाँ हाथ आपस में पकड़कर बैठकी बनाते हैं। बैठकी बनाने में दोनों व्यक्तियों की उँगलियाँ एक-दूसरे में फंसी रहेंगी जिससे कि दोनों हाथों का जोड़ मजबूत । बन सके। इस आसन को बनाते समय हाथों में दस्ताने पहनना। अथवा उँगलियों के मध्य कोई . कपड़ा या रूमाल रखना सुविधाजनक रहता है। घायल को इस प्रकार के दोहत्थी आसन पर बैठाकर ले जाने के लिए घायल को अपने बीच में खड़ा कर लिया जाता है तथा दोनों हाथों से इस आसन पर धीरे से बैठा लिया जाता है। इस समय वाहकों के (UPBoardSolutions.com) खाली हाथ घायल की पीठ पर क्रॉस बनाए रहते हैं। इसमें घायल को अपने दोनों हाथ वाहकों को गर्दन में लिपटाकर रखने चाहिए। इस विधि में वाहक छोटे-छोटे कदम रखते हैं तथा चलते समय दाहिनी ओर वाला वाहक अप दायाँ पैर तथा बाईं ओर वाला वाहक अपना बायाँ पैर बाहर निकालता है तथा इसके बाद इसके विपरीत क्रिया दोहराई जाती है।

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(2) तिहत्थी आसन:
इस प्रकार के आसन का प्रयोग भी घायल व्यक्ति के मूर्च्छित न होने की अवस्था में किया जाता है। दोनों वाहक घायल के पीछे आमने-सामने मुँह करके खड़े हो जाते हैं। दाहिनी ओर वाला व्यक्ति अपने दाएँ हाथ से अपने बाएँ हाथ की कलाई पकड़ता है तथा दूसरे वाहक को इसो कलाई को पहला वाहक अपने बाएँ हाथ से पकड़ लेता है। इस प्रकार से तिहत्थी आसन बन जाता है। अब बाईं ओर वाला सहायक अपने बाएँ खाली हाथ से घायल के पैरों को सहारा देता है और आसन पर बैठा लेता है। इस प्रकार के आसन पर कपड़े की गद्दी रखकर घायल व्यक्ति को सुविधाजनक स्थिति में बैठाया जा सकता है। इस विधि में घायल व्यक्ति को अपने दोनों हाथों को दोनों वाहकों की गर्दन में घुमाकर डालना चाहिए, ताकि वह तिहत्थी आसन पर ठीक प्रकार से सँभल कर बैठ सके। इस विधि में दाहिने वाहक को दाहिना पैर तथा बाएँ वाहक को बायाँ पैर एक साथ आगे निकालना चाहिए तथा दोनों को धीरे-धीरे चलना चाहिए।
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(3) चौहत्थी आसन:
इस विधि में भी दोनों वाहक एक-दूसरे की कलाइयाँ पकड़ते हैं। दोनों वाहक आमने-सामने मुँह करके खड़े हो जाते हैं। प्रत्येक वाहक अपने दाहिने हाथ से अपनी बाईं कलाई को पकड़ता है। अब दोनों वाहक अपनेअपने खाली बाएँ हाथ से एक-दूसरे की दाहिनी कलाई को । (UPBoardSolutions.com) पकड़ लेते हैं। इस प्रकार चौहत्थी आसन बन जाता है। इस पर कपड़े की गद्दी डालकर घायल को आराम से बैठाया जाता है। घायल व्यक्ति अपने दोनों हाथ वाहकों के गले में डालकर रखता है।
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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
स्ट्रेचर न मिलने पर रोगी को उठाकर सुविधापूर्वक कैसे ले जा सकते हैं?
या
रोगियों को ले जाने के लिए किन-किन विधियों का प्रयोग किया जाता है? किसी एक का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
या
घायल के स्थानान्तरण की कौन-कौन सी विधियाँ हैं? किसी एक विधि का वर्णन कीजिए। [2014, 15, 16]
उत्तर:
रोगी को अभीष्ट स्थान पर ले जाने का सर्वोत्तम साधन स्ट्रे
उपलब्ध न होने पर रोगी को स्थानान्तरित करने की विधियाँ निम्नलिखित हैं –

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(1) अकेले व्यक्ति द्वारा: इसकी निम्नलिखित उपविधियाँ हैं

  1. सहारा देकर ले जाना,
  2.  गोद में ले जाना,
  3. पीठ पर लादकर ले जाना,
  4.  कन्धे पर लादकर ले जाना।

(2) दो व्यक्तियों द्वारा: इसकी उपविधियाँ निम्नलिखित हैं

(क) हस्त-आसन विधि:
इस विधि में घायल के स्थानान्तरण के लिए दोहत्थी, तिहत्थी व चौहत्थी आसन प्रयोग में लाए जाते हैं।

(ख) अग्र-पृष्ठ विधि:
यह कूल्हे पर चोट लगे व्यक्ति के स्थानान्तरण में प्रयोग में लाई जाती है।

प्रश्न 2:
घायल व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और क्यों? [2007]
या
घायल व्यक्ति को स्थानान्तरित करते समय किन-किन सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए।
उत्तर:
रोगी के स्थानान्तरण में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1.  ऊँचे-नीचे स्थानों से ले जाने पर घायल व्यक्ति को कष्ट होता है; अत: उसे सदैव सुगम मार्ग से ले जाने का प्रयास करना चाहिए।
  2. दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के घायल अंगों का विशेष ध्यान रखकर ही उसका (UPBoardSolutions.com) स्थानान्तरण करना चाहिए।
  3. स्थानान्तरण करते समय घायल की अवस्था देखनी चाहिए। होश में होने पर अथवा मूच्छित होने पर घायल के स्थानान्तरण के लिए उपयुक्त विधि का चयन करना चाहिए।
  4. स्ट्रेचर पर घायल को ले जाते समय गड्ढे या नालों को सावधानीपूर्वक पार करना चाहिए।

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प्रश्न 3:
रोगी के स्थानान्तरण की अग्र-पृष्ठ विधि क्या है?
उत्तर:
स्थानान्तरण की अग्र-पृष्ठ विधि–यह विधि ऐसे घायल व्यक्तियों के स्थानान्तरण के लिए प्रयोग में लाई जाती है जिनके कूल्हे पर चोट लगी हो। एक वाहक घायल व्यक्ति के दोनों पैरों के बीच में उसके पैरों की ओर मुंह करके खड़ा हो जाता है तथा घायल के दोनों घुटने पकड़ लेता है। दूसरा वाहक घायल व्यक्ति के पीछे खड़ा होता है तथा अपने दोनों हाथों को घायल व्यक्ति की दोनों बाँहों के नीचे से निकालकर अपनी कलाई पकड़ लेता है। इस प्रकार घायल को ऊँचा उठा लिया जाता है और दोनों वाहक अपने-अपने कदमों को मिलाकर चलते हैं।

प्रश्न 4:
घायल के स्थानान्तरण की स्ट्रेचर विधि की विशेषताएँ बताइए।
या
स्ट्रेचर की क्या उपयोगिता है? आपातकालीन स्ट्रेचर कैसे बनाएँगे?
उत्तर:
स्ट्रेचर विधि:

घायलों के स्थानान्तरण की यह सर्वोत्तम विधि है। इसके द्वारा घायल व्यक्ति को स्थानान्तरित करना सरल भी होता है तथा सुविधाजनक भी। इस विधि द्वारा घायल को स्थानान्तरित करने की स्थिति में उसे किसी प्रकार का कष्ट भी नहीं होता। स्ट्रेचर लकड़ी अथवा लोहे का, एक विशेष प्रकार का फ्रेम होता है जिसके दोनों ओर दो-दो हत्थे लगे होते हैं। फ्रेम के मध्य में दरी, कैनवैस या अन्य किसी मजबूत कपड़े का आधार होता है। घायल को इस आधार पर लिटाकर दोनों वाहक फ्रेम के दोनों ओर खड़े होकर अपने हाथों से फ्रेम के हत्थे को पकड़कर सुरक्षित स्थान तक ले जाते हैं। स्ट्रेचर उपलब्ध न होने पर किसी कुर्सी अथवा चारपाई के दोनों ओर (UPBoardSolutions.com) हत्थियों के समान लकड़ी अथवा लाठियों को बाँधकर कामचलाऊ स्ट्रेचर बनाया जा सकता है। अस्पतालों में ट्रॉलीनुमा स्ट्रेचर भी प्रयोग में लाये जाते हैं। इन्हें ढकेलना सरल होता है। स्ट्रेचर विधि का प्रयोग करने पर वाहकों को अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता तथा रोगी सुविधाजनक स्थिति में रहता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
घायल व्यक्ति को कहाँ स्थानान्तरित किया जाता है?
उत्तर:
घायल व्यक्ति को सुरक्षित तथा आरामदायक स्थान पर स्थानान्तरित किया जाता है।

प्रश्न 2:
किसी दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति को दुर्घटनास्थल से स्थानान्तरित करना क्यों आवश्यक होता है?
उत्तर:
किसी दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति को धूप, गर्मी तथा पुनः दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाने के लिए तथा सुरक्षा एवं आराम प्रदान करने के लिए दुर्घटनास्थल से स्थानान्तरित करना आवश्यक होता है।

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प्रश्न 3:
अस्पतालों में घायलों के स्थानान्तरण के लिए कौन- नी विधि प्रयोग में लायी जाती है?
या
स्ट्रेचर की क्या उपयोगिता है? [2008]
उत्तर:
अस्पतालों में घायलों के स्थानान्तरण के लिए प्राय: स्ट्रेचर विधि प्रयोग में लायी जाती है। यह भारत के स्थानान्तरण की सर्वोत्तम विधि है। इस विधि द्वारा घायल व्यक्ति को स्थानान्तरित करना सरल एवं सुविधाजनक होता है।

प्रश्न 4:
हस्त-आसन विधि कब प्रयुक्त की जाती है?
उत्तर:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के पैर घुटनों अथवा जाँघ में यदि चोट लगी हो, तो प्रायः हस्त आसन विधि का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 5:
हस्त-आसन विधि में कितने वाहकों की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
हस्त-आसन विधि में प्राय: दो वाहकों की (UPBoardSolutions.com) आवश्यकता होती है।

प्रश्न 6:
हस्त-आसन से क्या अभिप्राय है?
या
हैण्ड स्ट्रेचर क्या है ? [2009, 12, 13, 18]
उत्तर:
हाथों द्वारा बनाई गई बैठक को हस्त-आसन कहते हैं।

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प्रश्न 7:
घायल का स्थानान्तरण हस्त-आसन द्वारा कैसे किया जाता है?
या
रोगी को हस्त-आसन द्वारा स्थानान्तरित करने की कौन-कौन सी विधियाँ हैं?
उत्तर:
हाथों से बनी बैठक द्वारा घायल व्यक्ति के स्थानान्तरण की विधि हस्त-आसन विधि कहलाती है। हस्त-आसन प्राय: तीन प्रकार का होता है

  1. दोहत्थी,
  2. तिहत्थी तथा
  3.  चौहत्थी।

प्रश्न 8:
तिहत्थी बैठकी में क्या मुख्य सावधानी बरतनी चाहिए?
उत्तर:
तिहत्थी बैठकी. में रोगी की दोनों भुजाएँ वाहकों के गले में पड़ी होनी चाहिए तथा एक वाहक को, जिसका एक हाथ खाली है, रोगी के पैरों को सहारा देना चाहिए।

प्रश्न 9:
यदि रोगी को ले जाने के लिए स्ट्रेचर न हो, तो क्या करना चाहिए?
उत्तर:
सावधानीपूर्वक हाथ की बैठकी पर रोगी का स्थानान्तरण किया जाना चाहिए।

प्रश्न 10:
मूर्च्छित व्यक्ति के स्थानान्तरण की दो विधियाँ लिखिए।
उत्तर:
मूर्च्छित व्यक्ति को कन्धे पर लादकर या स्ट्रेचर द्वारा स्थानान्तरित किया जा सकता है। (UPBoardSolutions.com) यदि बच्चा हो, तो उसे गोद में उठाकर भी स्थानान्तरित किया जा सकता है।

प्रश्न 11:
आपातकालीन स्ट्रेचर कैसे बनाया जा सकता है?
उत्तर:
आपातकालीन स्टेचर बनाने के लिए दो बॉस लेकर उनके बीच किसी दरी, टाट या कोट आदि को कसकर बाँध लिया जाता है।

प्रश्न 12:
छोटे बच्चे को दुर्घटनास्थल से कैसे स्थानान्तरित किया जाता है?
उत्तर:
छोटे बच्चे को गोद में उठाकर घटनास्थल से स्थानान्तरित किया (UPBoardSolutions.com) जा सकता है।

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बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न:
निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

1. दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के स्थानान्तरण का उद्देश्य है
(क) धूप से बचाना
(ख) सुरक्षित स्थान पर पहुँचाना
(ग) पुन: दुर्घटना से बचाना
(घ) ये सभी

2. आग लग जाने पर दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों का स्थानान्तरण किया जाता है
(क) कन्धे पर लादकर
(ख) गोद में उठाकर
(ग) सहारा देकर
(घ) दोहत्थी आसन द्वारा

3. घायल को दुर्घटनास्थल से स्थानान्तरित करने की आवश्यकता कब होती है?
(क) आग में घिर जाने पर
(ख) किसी वाहन से टकराने पर
(ग) किसी इमारत से गिरने पर
(घ) तीनों अवस्थाओं में

4. मूर्च्छित अवस्था में घायल को स्थानान्तरित करने की विधि है
(क) हस्त-आसन विधि
(ख) कन्धे पर लादकर ले जाना
(ग) सहारा देकर ले जाना
(घ) ये सभी

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5. घायल बच्चों के स्थानान्तरण की सुविधाजनक विधि है
(क) हस्त-आसन विधि
(ख) सहारा देकर ले जाना
(ग) गोद में उठाकर ले जाना
(घ) पीठ-पृष्ठ विधि

6. घायल व्यक्ति के स्थानान्तरण की सर्वोत्तम विधि है
(क) हस्त-आसन द्वारा
(ख) गोद में उठाकर
(ग) कन्धे पर लादकर
(घ) स्ट्रेचर द्वारा

7. स्ट्रेचर का प्रयोग कब किया जाता है? [ 2017]
(क) खेलने के लिए
(ख) बाजार जाने के लिए
(ग) रोगी को ले जाने के लिए
(घ) घूमने के लिए

8. गाँव में दुर्घटनाग्रस्त हुए व्यक्ति को चिकित्सा केन्द्र तक पहुँचाने के लिए आप कौन-सी विधि अफ्नाएँगी?
(क) चारपाई पर लिटाकर
(ख) तिहत्थी आसन द्वारा
(ग) गोद में उठाकर
(घ) पीठ पर लादकर

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उत्तर:
1. (घ) ये सभी,
2. (क) कन्धे पर लादकर,
3. (घ) तीनों अवस्थाओं में;
4. (ख) कन्धे पर लादकर ले जाना,
5. (ग) गोद में उठाकर ले जाना,
6. (घ) स्ट्रेचर द्वारा,
7. (ग) रोगी को ले जाने के लिए,
8. (क) चारपाई पर लिटाकर।

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