UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 15 भोजन पकाना और परोसना तथा तत्त्वों की सुरक्षा

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 15 भोजन पकाना और परोसना तथा तत्त्वों की सुरक्षा

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 15 भोजन पकाना और परोसना तथा तत्त्वों की सुरक्षा.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
भोजन पकाने के मुख्य उद्देश्य क्या हैं? आप भोजन पकाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी? [2009, 10, 11, 13, 14]
या
भोजन पकाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए जिससे कि भोजन के तत्त्व नष्ट न हो सकें ? [2008]
या
भोजन पकाकर खाना क्यों आवश्यक है ? [2016, 37, 18]
या
भोजन पकाने के क्या उद्देश्य हैं ? पौष्टिक तत्त्वों की उन पकाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? [2016]
या
पाक-क्रिया के लाभ या उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। [2018]
उत्तर:
भोजन पकाने के मुख्य उद्देश्य

आदि-मानव क्षुधापूर्ति के लिए तत्कालीन भोज्य-पदार्थों का प्राकृतिक रूप में ही उपयोग करता था। उसकी खोजी प्रवृत्ति ने उसे शिकार करने के लिए अस्त्रों, अग्नि तथा नाना प्रकार के भोज्य-पदार्थों का ज्ञान प्राप्त कराया। वह धीरे-धीरे अग्नि का प्रयोग भोजन पकाने में करने लगा। आहार एवं पोषण-विज्ञान के विकास एवं अध्ययन ने आधुनिक मानव को भोजन को पकाने के महत्त्व तथा इसकी वैज्ञानिक विधियों की उपयोगिता की शिक्षा दी है। भोजन पकाने के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं

(1) भोज्य-पदार्थों को सुपाच्य बनाना:
आहार को ग्रहण करने से पूर्ण लाभ तभी प्राप्त होता है जबकि उसका अच्छी प्रकार से पाचन हो जाए। पाक-क्रिया या भोजन को पकाने का एक मुख्य उद्देश्य भोज्य-पदार्थों को सुपाच्य बनाना होता है। बिना पकाए भोज्य-पदार्थों को यदि (UPBoardSolutions.com) ग्रहण किया जाता है, तो इस दशा में उनका पाचन प्रायः असम्भव ही होता है। अतः भोज्य-पदार्थों को सुपाच्य बनाने के उद्देश्य से उन्हें अनिवार्य रूप से पकाया जाता है।

(2) आहार को अधिकाधिक स्वादिष्ट बनाना:
पाक-क्रिया का एक उल्लेखनीय उद्देश्य खाद्य सामग्री को अधिकाधिक स्वादिष्ट बनाना भी है। विभिन्न खाद्य-सामग्रियाँ कच्ची अवस्था में स्वादिष्ट नहीं होतीं, बल्कि उनका स्वाद अरुचिकर ही होता है। इन खाद्य-सामग्रियों को यदि सही पाक-क्रिया द्वारा तैयार किया जाता है, तो ये स्वादिष्ट बन जाती हैं तथा रुचिपूर्वक खाई जा सकती हैं।

UP Board Solutions

(3) आकर्षक बनाना:
खाद्य-सामग्री को पकाने का एक उद्देश्य उसे आकर्षक बनाना भी होता है। पकने पर आहार का स्वाद अच्छा हो जाता है, उसका रूप आकर्षक हो जाता है तथा उसमें एक प्रकार की मनभावन सुगन्ध उत्पन्न हो जाती है। अनेक खाद्य व्यंजनों को मसालों एवं रंगों से विशेष आकर्षक बना दिया जाता है। उदाहरण के लिए-चावल से जब पुलाव या बिरयानी तैयार की जाती है, तो उसमें एक मनोहारी सुगन्ध उत्पन्न हो जाती है तथा उसका रूप भी आकर्षक हो जाता है।

(4) आहार को विविधता प्रदान करना:
पाक-क्रिया का एक उद्देश्य खाद्य-सामग्री को विविधता प्रदान करना भी है। पाक-क्रिया के माध्यम से एक ही खाद्य सामग्री को भिन्न-भिन्न व्यंजनों के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। आहार की विविधता व्यक्ति को अधिक सन्तोष प्रदान करती है। तथा आहार के प्रति रुचि बनी रहती है।

(5) खाद्य-सामग्री को कीटाणुरहित बनाना:
विभिन्न शाक-सब्जियों तथा भोज्य-पदार्थों पर नाना प्रकार के फफूद एवं जीवाणु होते हैं। वर्षा ऋतु में तो इनकी संख्या अत्यधिक होती है। बिना पके भोज्य-पदार्थों का सेवन करने से ये कीटाणु शरीर में प्रवेश करके अनेक रोगों की उत्पत्ति का कारण बन सकते हैं। भोज्य-पदार्थों को पकाते समय उच्च ताप पर ये कीटाणु लगभग समूल नष्ट हो जाते हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि भोज्य-पदार्थों को पकाने का एक उद्देश्य आहार को कीटाणुरहित बनाना भी होता है। जीव जगत से प्राप्त भोज्य सामग्री (दूध, मांस-मछली एवं अण्डे) में कीटाणुओं की अधिक आशंका रही है अतः इन्हे आहार के रूप में ग्रहण करने से पूर्व उच्च ताप पर पकाना अति आवश्यक होता है।

(6) आहार का संरक्षण:
खाद्य-सामग्री को पकाने का एक उद्देश्य उसे अधिक समय तक सुरक्षित रखना भी है। कच्ची खाद्य-सामग्री शीघ्र ही सड़ने लगती है, परन्तु समुचित पाक-क्रिया द्वारा तैयार खाद्य-सामग्री बहुत समय तक सुरक्षित रह सकती है। उदाहरण के लिए-अचार, मुरब्बे, जैम, सॉस आदि के रूप में खाद्य-सामग्री (UPBoardSolutions.com) को बहुत अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इसी प्रकार कच्चा दूध शीघ्र ही फट जाता है, परन्तु यदि उसे पका लिया जाए, तो काफी समय तक ठीक हालत में रखा जा सकता है।

भोजन पकाते समय ध्यान देने योग्य बातें

भोजन पकाने से जहाँ एक ओर अनेक ल हैं, वहीं दूसरी ओर लापरवाही व असावधानीपूर्वक भोजन पकाने से अनेक हानियाँ भी सम्भव हैं। उदाहरण के लिए-गलत विधि से भोजन पकाने पर उसके पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। अतः भोजन पकाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए

(1) स्वच्छ एवं कीटाणुरहित भोजन:
भोजन पकाते समय स्वच्छता का सर्वाधिक ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए ध्यान रखें कि

(क) गन्दे बर्तनों में कीटाणु उपस्थित रहते हैं; अतः भोजन सदैव स्वच्छ बर्तनों में पकाना चाहिए।
(ख) भोजन बनाने में प्रयुक्त पीतल के बर्तन कलई किए हुए होने चाहिए, अन्यथा भोजन के विषैला होने का भय रहता है।
(ग) भोजन बनाते समय गृहिणी के नाखून साफ-स्वच्छ होने चाहिए, क्योंकि नाखूनों की गन्दगी में अनेक कीटाणु होते हैं, जोकि अनेक रोगों को कारण बन सकते हैं।
(घ) खाना पकाते समय गृहिणी को अपने बाल बँधे व कसे हुए रखने चाहिए, ताकि उनके भोजन में गिरने की सम्भावना ही न रहे।
(ङ) रसोईघर में बर्तन पोंछते समय स्वच्छ कपड़ा प्रयुक्त करना चाहिए।

(2) स्वादिष्ट एवं पोषक तत्वों से युक्त भोजन:
भोजन पकाने का मुख्य उद्देश्य स्वादिष्ट एवं पौष्टिक भोजन तैयार करना होता है; अत:

(क) भोजन को पकाते समय बर्तन को खुला नहीं रखना चाहिए। खुला रहने से भोजन वायु के सम्पर्क में आता है, जिससे इसमें कीटाणुओं व धूल गिरने की सम्भावना बनी रहती है तथा भोजन की सुगन्ध भी कम हो जाती है।
(ख) निश्चित अवधि से अधिक देर तक पकाने से भोजन का स्वाद नष्ट हो जाता है तथा उसके पोषकतत्त्वों के नष्ट होने की भी सम्भावना रहती है। अत: खाद्य-सामग्री को केवल उतने ही समय तक पकाना चाहिए जितना आवश्यक हो।।
(ग) भोजन को बार-बार गर्म करने से उसके पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
(घ) खाने का सोडा विटामिन ‘बी’ को नष्ट करता है; अत: इसका उपयोग सोच-समझकर करना चाहिए।
(ङ) चावल व शाक-सब्जियों को पकाते समय उनमें अधिक पानी नहीं डालना चाहिए। इनके पानी में पोषक तत्त्व होते हैं; अतः इसे फेंकना नहीं चाहिए।
(च) आवश्यकता से अधिक मसालों का उपयोग करने से भोजन का स्वाभाविक स्वाद नष्ट हो जाता है तथा स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(छ) सब्जियों को अच्छी तरह से धोकर ही काटना चाहिए। छीलने एवं काटने के बाद नहीं । धोना चाहिए। इससे कुछ पोषक तत्त्व पानी में बह जाते हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 2:
जल, भाप, चिकनाई तथा वायु के माध्यम से की जाने वाली पाक-क्रिया की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
या
भोजन बनाने की कौन-कौन सी विधियाँ हैं? भोजन बनाने की सर्वोत्तम विधि का वर्णन कीजिए। [2007, 11, 12, 13, 14, 15, 16]
या
भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन संक्षेप में कीजिए। [2010, 11, 16, 17, 18]
या
भोजन के पोषक तत्वों की सुरक्षा को ध्यान रखते हुए भोजन पकाने की विधियाँ लिखिए। [2007, 09, 10, 13, 16]
या
भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की प्रमुख विधियाँ कौन-कौन सी हैं? स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम विधि कौन-सी है? वर्णन कीजिए। [2008, 10, 11, 12, 14]
या
भोजन पकाने की मुख्य विधियों का वर्णन कीजिए। इनके गुण व दोष लिखिए। [2007, 09]
या
जल के माध्यम से भोजन पकाने की दो विधियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।[2016]
या
भाप से पकाया गया भोजन पौष्टिक और सुपाच्य क्यों होता है? [2018]
या
तलने की किन्हीं दो विधियों का वर्णन कीजिए। [2018]
उत्तर:
भोजन पकाना

भोजन को स्वादिष्ट, कीटाणुरहित व सुपाच्य बनाने की दृष्टि से भोजन को पकाने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है। आहार को अधिक समय तक संरक्षित रखने के लिए भी उसे पकाकर रखना जरूरी है। कच्ची खाद्य-सामग्री जल्दी ही सड़ने या गलने लगती है।

भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ

सभ्यता एवं आहार सम्बन्धी ज्ञान के विकास के साथ-साथ मनुष्य ने पाक-क्रिया अर्थात् भोज्यपदार्थों को पकाने की विभिन्न विधियों को भी खोज लिया है। अब भिन्न-भिन्न भोज्य पदार्थों से भिन्नभिन्न स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए जाते हैं। इसके लिए भिन्न-भिन्न विधियों को भी अपनाया जाता है। यह सत्य है कि भोजन पकाने की प्रत्येक विधि में ताप की आवश्यकता होती है। ताप प्रत्येक पाक-क्रिया का एक आवश्यक कारक होता है, परन्तु (UPBoardSolutions.com) पाक-क्रिया में ताप के अतिरिक्त एक अन्य कारक भी आवश्यक होता है। यह कारक होता है-पाक-क्रिया का माध्यम अर्थात् खाद्य-सामग्री को किस माध्यम से पकाया जाता है। यह माध्यम जल, वाष्प, चिकनाई (तेल या घी) तथा वायु में से कोई भी एक हो सकता है। इन माध्यमों के आधार पर ही पाक-क्रिया की विभिन्न विधियों का निर्धारण होता है। इस प्रकार भोज्य सामग्री को पकाने की विधियों को मुख्य रूप से निम्नलिखित चार वर्गों में विभक्त किया जाता है

UP Board Solutions

  1. जल के माध्यम से पकाना,
  2. वाष्प के माध्यम से पकाना,
  3. चिकनाई के माध्यम से पकाना तथा
  4. वायु के माध्यम से पकाना।
    पाक-क्रिया की इन चारों विधियों का विस्तृत विवरण निम्नलिखित है

(1) जल के माध्यम से पकाना:
इस विधि में गर्म जल में भोजन को पकाया जाता है। इसे दो प्रकार से पकाया जा सकता है-..

(क) उबालकर पकाना:
यह भोजन पकाने की अत्यन्त प्राचीन एवं सरल विधि है। पकाये जाने वाले भोज्य-पदार्थों को किसी भगोने अथवा डेगची में पानी डालकर चूल्हे अ थवा अँगीठी पर चढ़ा दिया जाता है। उबलने पर पानी का ताप लगभग 100° सेण्टीग्रेड रहता है। कुछ समय बाद भोजन पकाना और परोसना तथा तत्त्वों की सुरक्षा 211 भोज्य पदार्थ भली प्रकार गल जाते हैं। इस विधि द्वारा प्राय: दालें व चावल तथा आलू, अरवी व इसी प्रकार की अन्य सब्जियाँ पकाई जाती हैं। सब्जियों को छिलके सहित उबालकर पानी फेंक देने से इनके पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते, परन्तु चावल पकाते समय पानी का कम प्रयोग करना चाहिए तथा पकने के बाद पानी को फेंकना नहीं (UPBoardSolutions.com) चाहिए क्योंकि इसमें पोषक तत्त्व विद्यमान रहते । हैं। उबालकर पकाया गया भोजन हल्का, सुपाच्य व गुणवत्तापूर्ण होता है।
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 15 भोजन पकाना और परोसना तथा तत्त्वों की सुरक्षा 1

(ख) धीमी आँच पर पकाना:
इसमें भोज्य-पदार्थों को मसालों सहित थोड़े पानी में डालकर मन्द आँच (लगभग 82° सेण्टीग्रेड) पर पकाया जाता है साबुत दाल, सब्जियाँ व मांस आदि पकाने की यह एक उत्तम विधि है। जिनमें भोजन के पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते तथा भोजन भी सुपाच्य एवं स्वादिष्ट बनती है।

(2) वाष्प के माध्यम से पकाना:
भोजन पकाने की यह एक आधुनिक विधि है जिसमें भोजन के अधिकांश पौष्टिक तत्त्व सुरक्षित रहते हैं। भाप द्वारा भोजन पकाने के लिए प्रेशर कुकर नामक उपकरण का प्रयोग किया जाता है। यह भगोने के आकार का होता है जिसमें थोड़े से पानी के साथ भोज्य-पदार्थ डालकर वायु अवरोधक ढक्कन लगा दिया जाता है। इसे अँगीठी अथवा गैस बर्नर पर रखने से पानी गर्म होकर भाप में परिवर्तित हो जाता है। भाप के दबाव व ताप के द्वारा अपेक्षाकृत कम समय में भोजन पक जाता है। विभिन्न प्रकार की दालें, सब्जियाँ व मांस आदि पकाने की यह सर्वोत्तम विधि है। इस विधि में ईंधन व समय की बचत होती है, भोजन के पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते तथा भोजन स्वादिष्ट एवं सुपाच्य बनता है।

(3) चिकनाई के माध्यम से पकाना:
इस विधि में भोजन पकाने के लिए तेल व घी को माध्यम के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। तेल (UPBoardSolutions.com) अथवा घी में भोज्य पदार्थों को पकाने की विधि को तलना कहते हैं। भोज्य-पदार्थों को तलने की निम्नलिखित तीन विधियाँ प्रचलित हैं।

UP Board Solutions

(क) उथली विधि:
इस विधि में चौड़ी व उथली कड़ाही अथवा तवे को प्रयोग में लाया जाता है। कड़ाही में थोड़ा तेल अथंवा घी डालकर उसे आग पर चढ़ा दिया जाता है। घी अथवा तेल के अच्छी तरह गर्म हो जाने पर इसमें भोज्य पदार्थों को तला जाता है। आलू की टिकिया, कटलेट्स, पराँठे, चीले, आमलेट इत्यादि इसी विधि से बनाए जाते हैं। कई बार इस विधि से मसाला डोसा जैसे व्यंजन तलने के लिए कड़ाही के स्थान पर सपाट तवे का प्रयोग किया जाता है।
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 15 भोजन पकाना और परोसना तथा तत्त्वों की सुरक्षा 2

(ख) गहरी विधि:
इस विधि में गहरी कड़ाही प्रयोग में लाई जाती है। कड़ाही में तेल अथवा घी पर्याप्त मात्रा में डालकर उसे खौलने तक गर्म (लगभग 175°सेण्टीग्रेड ताप) किया जाता है। अब भोज्य-पदार्थों को इसमें अच्छी प्रकार तला जाता है। इस विधि से प्रायः सभी प्रकार के पकवान; जैसे-पूड़ी-कचौड़ी, समोसे, पकौड़ियाँ तथा विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ इत्यादि बनाए जाते हैं। तलने की विधि द्वारा भोजन (पकवान) पकाने की विधि अत्यन्त प्राचीन है। इसकी अपनी लोकप्रियता (UPBoardSolutions.com) अलग ही प्रकार की है। इस विधि से भोजन स्वादिष्ट तो बनता है, परन्तु गरिष्ठ होने के कारण सुपाच्य नहीं होता।

(ग) शुष्क विधि:
इस विधि द्वारा केवल कुछ विशेष प्रकार की खाद्य सामग्री को ही पकाया जा सकता है। कुछ खाद्य-सामग्री ऐसी होती है जिनमें से ताप पाकर स्वतः ही चिकनाई निकलती है। उदाहरण के लिए-चर्बीयुक्त सूअर का मांस या बेकन आदि। इन खाद्य-सामग्रियों को तलने के लिए अतिरिक्त चिकनाई की आवश्यकता नहीं होती।

ध्यान रखने योग्य बातें:
चिकनाई के माध्यम से भोजन पकाने या तलने के समय कुछ बातों को अनिवार्य रूप से ध्यान में रखना चाहिए। कड़ाही में घी या तेल डालकर तब तक गर्म करना चाहिए, जब तक उसमें से कुछ-कुछ धुआँ-सा न उठने लगे तब उसमें तलने वाली सामग्री डालनी चाहिए। इस सामग्री को हिलाते तथा उलटते-पलटते रहना चाहिए। समुचित ढंग से पक जाने पर सामग्री को निकाल लेना चाहिए। निकालकर कुछ समय तक उसे पोनी में ही रखना चाहिए, जिससे कि फालतू घी या तेल निकल जाए। तलते समय सामग्री के छोटे-छोटे टुकड़े टूट-टूटकर घी में गिरते रहते हैं। इन्हें मुख्य सामग्री के साथ-साथ निकालते रहना चाहिए अन्यथा ये जल कर अप्रिय गन्ध छोड़ देते हैं। इसके अतिरिक्त तलते समय इस बात की विशेष सावधानी रखनी चाहिए कि गर्म घी या तेल में पानी के छींटे न पड़े। इससे गर्म घी छिटक कर, तलने वाले के शरीर पर पड़ सकता है।

(4) वायु के माध्यम से पकाना:
वायु अग्नि प्रज्वलित करती है तथा अग्नि के सम्पर्क में आकर स्वयं भी गर्म हो जाती है। वायु का यह गुण ही भोजन पकाने की इस विधि का आधार है। वायु द्वारा भोजन पकाने की प्रचलित विधियाँ निम्नलिखित हैं

UP Board Solutions

(क) भूनना (रोस्टिग):
इस विधि के अन्तर्गत बालू या राख को गर्म करके उसमें सम्बन्धित वस्तु को भून कर पकाया जाता है। इस विधि से बैंगन आदि का भुर्ता बनाया जा सकता है। आलू, शंकरकन्द, मक्का, बाजरा या चने आदि भूने जा सकते हैं। इस प्रकार से भूनी हुई वस्तुएँ काफी स्वादिष्ट व पाचक होती हैं। किसी प्रकार की चिकनाई आदि का प्रयोग न होने के कारण ये सामग्री सुपाच्य होती है।

(ख) सेंकना:
सामान्य रूप से भूनना एवं सेंकना एक ही समझा जाता है, परन्तु वास्तव में इन दोनों क्रियाओं में पर्याप्त । अन्तर है। सेंकने की क्रिया के अन्तर्गत सम्बन्धित खाद्य-सामग्री को आग के सम्पर्क में लाया जाता है। सामान्य रूप से धुआँरहित, जलते हुए अंगारों पर वस्तुओं (UPBoardSolutions.com) को सेंका जाता है। भुट्टे, कबाब
आदि इसी विधि से सेंके जाते हैं।
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 15 भोजन पकाना और परोसना तथा तत्त्वों की सुरक्षा 3

(ग) तन्दूर अथवा भट्टी में पकाना (बेकिंग):
रोटी, डबलरोटी, बन व बिस्कुट आदि इस विधि द्वारा ही पकाये जाते हैं। चित्र 15.4-सेंकना मिट्टी का बना हुआ तन्दूर रोटी सेंकने के लिए तथा ओवन अथवा विशिष्ट भट्टी में बिस्कुट, डबल रोटी, बन, पेस्टी, नानखताई आदि पकाए जाते हैं।

पाक-क्रिया की सर्वोत्तम विधि

भाप देकर भोजन पकाने की कुकर्स की विधि बहुत अच्छी है। इस रीति से भोजन पकाने में पौष्टिक तत्त्व नष्ट नहीं होने पाते तथा हल्के व सरलता से पंचने योग्य हो जाते हैं। इस रीति से कार्य करने में समय कम लगता है। जलने का भय नहीं रहता और ईंधन भी कम मात्रा में व्यय होता है। अतः मितव्ययिता तथा समय की बचत–सभी दृष्टियों से यह विधि श्रेष्ठ है।

प्रश्न 3:
भोजन परोसने की शैलियों का वर्णन करते हुए अपनी दृष्टि में उपयुक्त शैली का उल्लेख कीजिए। [ 2007, 08,10,11]
या
भोजन परोसने की विभिन्न शैलियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। आवश्यक हो तो चित्र भी बनाइए।
या
“भोजन परोसना एक-कला है।” स्पष्ट कीजिए। भोजन परोसने की देशी, विदेशी विधियों के बारे में भी लिखिए। [2018, 10, 11]
या
भोजन परोसने की देशी व विदेशी शैली में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2016]
या
भोजन परोसना एक कला है। क्यों ? [2011, 14]
या
भोजन परोसने की कौन-सी विधियाँ हैं? भारतीय ढंग से भोजन परोसने की विधि लिखिए। [2015, 16 ]
उत्तर:
भोजन परोसना

पौष्टिक भोजन तैयार करना गृहिणी का एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है, परन्तु परिवार के सदस्यों एवं अतिथियों की भोजन के प्रति रुचि उत्पन्न करना भी गृहिणी का उतना ही महत्त्वपूर्ण दायित्व है। अतः भोजन परोसना पौष्टिक व स्वादिष्ट भोजन तैयार करने के समान (UPBoardSolutions.com) ही महत्त्व रखता है। इसके लिए गृहिणी को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

UP Board Solutions

  1. भोजन परोसने वाले का व्यवहार विनम्र, मनोहारी तथा कुशल होना चाहिए।
  2. भोजन परोसने का स्थान व बर्तन स्वच्छ होने चाहिए।
  3. भोज्य-पदार्थों को विधि के अनुसार उपयुक्त स्थान पर ही रखना चाहिए।
  4. भोजन परोसने के स्थान अथवा मेज पर फूलदान व अन्य अनेक प्रकार की कलात्मक सजावट करने से भोजन के आकर्षण में कई गुना वृद्धि हो जाती है। । उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट हो जाता है कि भोजन परोसना एक कला है, जो कि भोजन के प्रति रुचि एवं आकर्षण में वृद्धि करती है।

भोजन परोसने की विभिन्न शैलियाँ (विधियाँ)

प्रायः भोजन परोसने की तीन निम्नलिखित शैलियाँ (विधियाँ) प्रचलित हैं
(क) देशी शैली,
(ख) विदेशी अथवा पाश्चात्य शैली तथा
(ग) बुफे शैली।

(क) देशी शैली :
यह अति प्राचीन भारतीय शैली है जिसमें भोजन ग्रहण करने वालों के लिए भूमि पर आसन बिछाए जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को अलग थाली में भोजन परोसा जाता है। थाली में शुष्क भोज्य-पदार्थ तथा कटोरियों में तरल भोज्य-पदार्थ परोसे जाते हैं। प्रारम्भ में थोड़ी मात्रा में भोजन परोसा जाता है तथा फिर भोजन ग्रहण करने वाले की आवश्यकतानुसार और भोजन परोसा जाता है।

विशेषताएँ:
देशी शैली में भोजन परोसने की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. भोजन परोसते समय प्रत्येक खाद्य-पदार्थ के लिए अलग-अलग चम्मच, चमचा व कल्छी आदि होने चाहिए।
  2. प्रथम बार कम भोजन परोसना चाहिए तथा फिर खाने वालों से पूछ-पूछ कर विभिन्न खाद्य पदार्थ परोसने चाहिए। इससे भोजन व्यर्थ नहीं जाता।
  3. तरल पदार्थों को कटोरियों में ही परोसना चाहिए।
  4. थाली में चपातियाँ, पूड़ी व चावल आदि अलग-अलग परोसे जाने चाहिए।
  5. भोजन का स्थान व बर्तन स्वच्छ होने चाहिए।
  6. भोजन परोसने से पूर्व गृहिणी को स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लेने चाहिए।

(ख) विदेशी अथवा पाश्चात्य शैली:
यह शैली परम्परागत शैली से सर्वथा विपरीत है। इस शैली में भोजन एक विशिष्ट मेज (डाइनिंग टेबल) पर परोसा जाता है तथा खाने वाले कुर्सियों (डाइनिंग चेयर्स) पर बैठते हैं। इस शैली में भोजन एक ही बार में परोस दिया जाता है। इस शैली की अन्य विशिष्ट बातें हैं

  1. मेज के केन्द्र में प्लेट में चपातियाँ, एक विशिष्ट रचना की प्लेट (राइस प्लेट) में चावल तथा डोंगों में सब्जियाँ प्रायः एक ही बार में परोस दी जाती हैं।
  2. प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक बड़ी प्लेट, एक छोटी प्लेट, छुरी, काँटा तथा चम्मच रखी जाती है।
  3.  तरल पदार्थों के लिए बाउल प्रयुक्त किए जाते हैं। बाउल को प्लेट के दाईं (UPBoardSolutions.com) ओर रखना चाहिए।
  4. छुरी, प्लेट के दाईं ओर तथा उसकी धार प्लेट की ओर होनी चाहिए। काँटा प्लेट के बाईं ओर रखा जाना चाहिए।
  5. मेज पर आवश्यकतानुसार मसालेदानियाँ, अचार वे मुरब्बे आदि केन्द्रीय भाग में रखे जा सकते हैं।
  6. प्रत्येक व्यक्ति के लिए इस विधि में गिलास में सजाकर एक नेपकिन भी रखा जाता है।

UP Board Solutions

(ग) बुफे शैली:
भोजन करने वालों की संख्या अधिक होने पर प्रायः इस शैली को प्रयोग में लाया जाता है। सामाजिक आयोजनों, विवाह आदि बड़ी दावतों के लिए यह एक सर्वोत्तम आदर्श विधि है। इस विधि में. एक बड़े हॉल अथवा पंडाल में एक ओर लम्बी मेजें लगा दी जाती हैं। इन्हें विधिपूर्वक सजाया जाता है। मेजों पर निश्चित दूरियों पर प्लेटें, छुरियाँ, काँटे व चम्मच आदि सेट कर रख दिए जाते हैं। प्रत्येक सेट के पास में डोंगों में सब्जियाँ तथा अलग-अलग प्लेट में चपातियाँ, पूड़ियाँ, चावल आदि रख दिए जाते हैं। पंडाल के एक कोने में जल की व्यवस्था कर दी जाती है। बुफे शैली में भोजन औपचारिक, अर्द्ध-औपचारिक तथा अनौपचारिक विधि से परोसा जाता है। औपचारिक ढंग में अतिथि स्वयं खाना परोसकर एक ओर खड़े होकर खाते हैं। अर्द्ध-औपचारिक विधि में मेजबान अपने मित्रों अथवा रिश्तेदारों के सहयोग से अतिथियों को भोजन परोसता है। (UPBoardSolutions.com) अनौपचारिक विधि में वेटर अतिथियों को
भोजन परोसते हैं।

विशेषताएँ: इस प्रकार इस शैली में

(1) अतिथि खड़े होकर भोजन करते हैं।
(2) अतिथियों की संख्या अधिक होती है।
(3) मेजों की एक लम्बी कतार की व्यवस्था में भोजन प्रायः एक से अ सेटों में सजाकर एक साथ परोसा जाता है।
(4) सामान्यतः अतिथि अपने लिए स्वयं ही भोजन परोसते हैं।

प्रश्न 4:
खाद्य-पदार्थों के संरक्षण से आप क्या समझते हैं? खाद्य-पदार्थों के संरक्षण के कतिपय उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
खाद्य-पदार्थों का संरक्षण व उसके लाभ

खाद्य-पदार्थों को एक लम्बी अवधि तक फफूदी एवं जीवाणुओं से सुरक्षित रखने की विधियों को खाद्य-पदार्थों का संरक्षण कहते हैं। इससे होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं

  1. प्रायः गृहिणियाँ फसल के समय पूरे वर्ष के लिए सस्ता अनाज खरीदकर रख लेती हैं। यदि यह अनाज संग्रह काल में सुरक्षित रहे, तो गृहिणी को धन की पर्याप्त बचत होती है तथा उसे अनाज खरीदने के लिए बार-बार बाजार जाने की परेशानी नहीं उठानी पड़ती।
  2. मौसम की सब्जियों को यदि सुरक्षित रूप से संगृहीत कर लिया जाए, तो उन्हें विपरीत मौसम में उपयोग में लाया जा सकता है।
  3.  महँगे भोज्य-पदार्थों के शेष बचकर व्यर्थ होने पर पर्याप्त आर्थिक हानि होती है जिसका निराकरण खाद्य-संरक्षण के उपाय अपनाकर किया जा सकता है। संरक्षण की विधियाँ

प्रमुख खाद्य-पदार्थों के संरक्षण की प्रचलित विधियाँ निम्नलिखित हैं

(1) स्वच्छता से संग्रह करके:
प्रायः गन्दे स्थानों व बर्तन आदि में फफूदी व जीवाणुओं की उपस्थिति की सम्भावना अधिक रहती है; अत: भोज्य पदार्थों का संग्रह स्वच्छ स्थान एवं स्वच्छ बर्तनों में करना चाहिए।

(2) सुखाकर:
नमी व सीलन में फफूदी व जीवाणु आसानी से पनपते हैं। अतः खाद्य-पदार्थों को शुष्क स्थान में रखना चाहिए। कुछ खाद्य-पदार्थ; जैसे- आलू, मेथी, गाजर, पोदीना, मटर, चना, फल व मेवे आदि; शुष्क अवस्था में हर प्रकार से सुरक्षित रहते हैं। मटर, चना, गोभी आदि को तो सामान्यतः शुष्कीकरण या निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) द्वारा पूर्णरूप से जलरहित कर डिब्बों आदि में बन्द कर संगृहीत कर लिया जाता है तथा विपरीत मौसम में इन सब्जियों का आनन्द लिया जाता है।

(3) उबालकर:
अनेक खाद्य-पदार्थों को उबालकर जीवाणुरहित कर लिया जाता है। अब इन्हें वायुरोधक डिब्बों में भरकर काफी समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

(4) चाशनी में रखकर:
अनेक फलों को शक्कर की चाशनी में पकाकर मुरब्बों के रूप में सुरक्षित रखा जा सकता है।

(5) अचार, सॉस आदि बनाकर:
प्रायः सभी घरों में आम, गोभी, गाजर, मिर्च आदि का अचार डाला जाता है, जो कि एक लम्बी अवधि तक सुरक्षित रहता है। इसका कारण है नमक व सरसों के तेल का प्रयोग जो फफूदी व जीवाणुओं से अचार को सुरक्षित रखते हैं। टमाटर की चटनी व सॉस को सुरक्षित रखने के लिए इनमें उपयुक्त मात्रा में सोडियम बेन्जोएट तथा साइट्रिक अम्ल मिलाना सर्वोत्तम रहता है।

(6) ठण्डा रखकर:
आलू व अन्य अनेक प्रकार की सब्जियों को शीतगृह में सुरक्षित रखना एक लोकप्रिय (UPBoardSolutions.com) व्यापारिक विधि है। इस विधि का प्रयोग घरों में रेफ्रिजेरेटर के रूप में किया जाता है। रेफ्रिजेरेटर में विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ, भोज्य सामग्री, दूध, अण्डे व मांस आदि को काफी समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

(7) विकिरण विधि द्वारा:
अनेक खाद्य-पदार्थों को विकिरण उपचार द्वारा जीवाणुरहित कर सुरक्षित रखा जाता है।

(8) अनाजों के संरक्षण की विधि:
अनाजों को प्रायः शुष्क स्थानों पर टंकियों में भरकर रखा जाता है। विभिन्न कीटनाशकों का प्रयोग कर इन्हें घुन जैसे हानिकारक कीड़ों से सुरक्षित रखा जाता है। अनाज को सुरक्षित रखने के लिए विभिन्न विधियों द्वारा इसे चूहों से बचाना चाहिए।

UP Board Solutions

(9) दुध को सुरक्षित रखने की विधि:
कम ताप पर दूध प्राय: सुरक्षित रहता है। अधिक समय तक दूध को सुरक्षित रखने के लिए पाश्चुरीकरण की विधि अपनाई जाती है। इसमें दूध को 65° सेण्टीग्रेड ताप पर आधा घण्टा रखकर उसे किसी बोतल अथवा बन्द बर्तन में शीतल स्थान पर रख दिया जाता है।

(10) अण्डा, मांस व मछली को सुरक्षित रखनी:
अण्डे को अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। इसके लिए कम तापक्रम ही एकमात्र उपाय है। मांस को मक्खियों से बचाना चाहिए। इसे सुरक्षित रखने के लिए बर्फ के तापक्रम पर रखना चाहिए। मछली को सुरक्षित रखना कठिन कार्य है। कम ताप पर भी मछली केवल कुछ समय तक ही सुरक्षित रहती है। व्यापारिक स्तर पर मछलियों को शुष्क अवस्था में डिब्बों में बन्द कर सुरक्षित रखा जाता है।

प्रश्न 5:
भोजन में मिलावट से क्या अभिप्राय है? शुद्ध भोजन को किन पदार्थों की मिलावट से अशुद्ध किया जाता है?
या
मिलावटी खाद्य-पदार्थों से क्या हानियाँ होती हैं? मिलावटी पदार्थों से बचने के उपाय बताइए।
उत्तर:
भोजन में मिलावट का अर्थ

खाद्य-पदार्थों में मिलावट का अर्थ है “शुद्ध भोज्य-पदार्थों में अन्य सस्ते खाने या न खाने योग्य पदार्थों को मिलाकर उनके गुणों में कमी करना या उन्हें हानिकारक बनाना।”
आजकल अधिकांश वस्तुएँ मिलावटयुक्त ही मिल रही हैं। दूध में पानी तथा अनाजों, मसालों में कुछ रासायनिक या वनस्पति पद के छिलके, धूल-गर्द मिलना साधारण-सी बात है। अब यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि भोज्य-पदार्थों में इतनी मिलावट का कारण क्या है? (UPBoardSolutions.com) इसका एक स्पष्ट कारण विक्रेता द्वारा धन-लाभ को प्राथमिकता दिया जाना है।
मुख्य वस्तुओं के ही दाम पर असली पदार्थों के समान रूप-गुण वाली सस्ती या खराब वस्तुएँ बेचने के लिए उन्हें मुख्य पदार्थों के साथ मिलाकर बेचा जाता है, अज्ञानतावश लोग उन वस्तुओं को खरीद लेते हैं, जिससे उसके धन एवं स्वास्थ्य दोनों की हानि होती है। अत: मिलावटी वस्तुओं से बहुत सावधान रहना चाहिए।
मिलावटी वस्तुओं को लोग बड़ी चालाकी से बेचते हैं। फिलहाल तो ब्राण्डेड पैक वस्तुएँ भी बाजार में मिलावटी उपलब्ध हैं। अत: इससे बचने के लिए आपको इस बात का भी ज्ञान होना चाहिए कि किन-किन वस्तुओं में प्रायः मिलावट की जाती है।

विभिन्न भोज्य-पदार्थों में मिलावट:
व्यापारी भिन्न-भिन्न खाद्य-पदार्थों में निम्न प्रकार की सस्ती व हानिकारक वस्तुओं की मिलावट करते हैं

  1. अनाज: सस्ते व सड़े-गले अनाज, कंकड़, मिट्टी तथा टूटे हुए अनाज।
  2. आटा, मैदा: पुराना सड़ा आटा या मैदा कभी-कभी खड़िया मिट्टी।
  3.  घी: वनस्पति घी, चर्बी।
  4.  दूध: पानी, अरारोट, अन्य पशुओं का दूध मिलाना अथवा उसमें से वसा निकाल लेना। अब तो यूरिया, रिफाइण्ड तेल आदि से सिन्थेटिक दूध भी तैयार किया जाने लगा है, जिसे दूध में मिलाकर बेचा जा रहा है।
  5.  तेल: अखाद्य-पदार्थों; जैसे–अरण्डी आदि का तेल मिलाना।
  6. टमाटर की चटनी (Sauce) में कद्दू या अन्य सड़ी सब्जी का प्रयोग।
  7. काली मिर्च: पपीते के बीज।
  8. लौंग: तेल निकाल कर सुकड़ी हुई छोटी-छोटी लौग मिलाना।
  9. जीरा: जीरे के पौधे का बीज, कंकड़, मिट्टी या सीके मिलाना।
  10.  पिसा धनिया: धनिये की भूसी, राँगा हुआ लकड़ी का बुरादा, घोड़े की सूखी हुई लीद।
  11. पिसी लाल मिर्च: गेरु, लाल ईंट का चूरा, सूखी (UPBoardSolutions.com) लाले बेर के छिलके का बुरादा।
  12. पिसी हल्दी: पीली मिट्टी या रंगा हुआ अरारोट।
  13.  पिसी खटाई: पीली आम की गुठली।
  14.  चाय: प्रयोग की हुई चाय की पत्ती, पुरानी या खराब पत्तियाँ, चाय की पत्ती का चूरा तथा मिट्टी।
  15. मिठाइयाँ: मैदा, अरारोट, मिलावटी खोया व वर्जित रंग।
  16. शर्बत: चीनी के बजाय सैक्रीन (एक रासायनिक मीठा पदार्थ)।
  17. शहद: गुड़ की चाशनी।।
  18.  केसर: पीली रँगी मुँज या भुट्टे के रंगे हुए छोटे-छोटे रेशे।

इस प्रकार उपर्युक्त तरीकों से अनाजों व मसालों में मिलावट करके अपनी अशुद्ध वस्तुओं को बेचकर लोगों को बेवकूफ बनाया जाता है।

UP Board Solutions

मिलावटी खाद्य-पदार्थों से हानियाँ

मिलावटी खाद्य-पदार्थों के सेवन से निम्नलिखित हानियाँ होने की प्रबल सम्भावना होती है

  1. मिलावटी खाद्य पदार्थों का प्रयोग करते रहने से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है।
  2. मिलावटी व अशुद्ध भोजन से हैजा, पेचिश, गले की खराबियाँ आदि रोग हो सकते हैं।
  3. खाने वाले रंग कैन्सरं का. कारण भी बन जाते हैं।
  4. ऐसे भोजन से कभी-कभी ‘फुड प्वायजनिंग’ से लोगों की मृत्यु तक होती देखी जाती है।
  5.  मिलावटी वस्तुएँ खरीदने से क्रेता को निश्चित रूप से आर्थिक लाभ के स्थान पर हानि होती है।

मिलावट से बचाव के उपाय
मिलावट से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लाए जाते हैं

  1.  बाजार के पिसे मसालों की अपेक्षा घर में पिसे मसाले प्रयुक्त कीजिए अथवा चक्की पर पिसवा लीजिए।
  2. सदैव कम्पनी संस्तुत विश्वसनीय दुकान से ही स्टैण्डर्ड कम्पनी का माल खरीदिए।
  3.  दूध को अपने सामने ही दुहकर लीजिए अथवा विश्वसनीय डेरी से खरीदिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
पाक-क्रिया का अर्थ स्पष्ट कीजिए। [2008, 10]
उत्तर:
प्राकृतिक अवस्था में उपलब्ध खाद्य-सामग्री को आहार के रूप में ग्रहण करने के लिए कृत्रिम रूप से तैयार करने की व्यवस्थित क्रिया को ही पाक-क्रिया कहते हैं। पाक-क्रिया के अन्तर्गत प्राकृतिक अवस्था में उपलब्ध खाद्य-सामग्री को जल, ताप, चिकनाई तथा भाप एवं वायु आदि द्वारा ऐसा रूप दिया जाता है जो इस सामग्री को अधिक स्वादिष्ट, नर्म एवं सुपाच्य बना देता है। जब हम किसी सब्जी को लेकर उसे धोते, छीलते एवं काटते हैं या उबालते एवं छोंकते हैं, तब इन समस्त क्रियाओं को सम्मिलित रूप से पाक-क्रिया ही कहा जाता है। इसी प्रकार से जब हमें गेहूं को पीसते, आटा गूंथते तथा रोटी बेलकर उसे तवे पर सेंकते हैं, (UPBoardSolutions.com) तो ये समस्त क्रियाएँ भी पाक-क्रिया की ही उप-क्रियाएँ होती हैं। इस प्रकार पाक-क्रिया अपने आप में एक विस्तृत एवं व्यवस्थित क्रिया है। विभिन्न प्रकार के बर्तनों के निर्माण से भी पाक-क्रिया के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान मिला है। इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण प्रेशर कुकर है।

UP Board Solutions

प्रश्न 2:
तलने के लाभ एवं हानियाँ लिखिए।
उत्तर:
तलने के लाभ-तलकर भोजन पकाने के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं

  1. तलकर पकाया गया भोजन अधिक स्वादिष्ट एवं रुचिकर होता है।
  2. तले हुए भोजन में एक प्रकार की मनमोहक सुगन्ध एवं आकर्षक रंग आ जाता है, जिसका खाने वाले पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
  3. तलकर पकाया गया भोजन खा लेने के बाद काफी समय तक पुनः भूख नहीं लगती।

तलने की हानियाँ:
तलकर भोजन बनाने से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं

  1. चिकनाई के माध्यम से तलकर पकाया गया भोजन गरिष्ठ हो जाता है तथा शीघ्र नहीं पचता।
  2. तल कर पकाए गए भोजन के विटामिन तथा कुछ पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
  3. अधिक तला हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इससे पेट व गले में जलन हो सकती है।

प्रश्न 3:
पाक-क्रियाओं का पौष्टिक तत्त्वों पर क्या प्रभाव पड़ता है? [2011]
या
प्रोटीन पर पाक-क्रिया का क्या प्रभाव पड़ता है? स्पष्ट कीजिए। [2014]
उत्तर:
प्रोटीन पर पकाने का प्रभाव:
जन्तुजन्य प्रोटीन पकाने पर प्रायः कठोर हो जाने के कारण सुपाच्य नहीं रहती। वनस्पतिजन्य प्रोटीन पकाने पर कोशा-भित्तियों से बाहर आ जाती है; अतः अधिक सुपाच्य हो जाती है। भोज्य-पदार्थों को तलकर पकाने से उनमें उपस्थित प्रोटीन अत्यधिक कड़ी तथा अपाच्य हो जाती है; अत: प्रोटीनयुक्त भोज्य-पदार्थों को तलना नहीं चाहिए।

विटामिन पर पकाने का प्रभाव:
विटामिन ‘ए’ व ‘डी’ अत्यधिक उच्च ताप पर नष्ट हो जाते हैं, परन्तु भोज्य-पदार्थों को सामान्य विधि के अनुसार पकाने पर इन विटामिनों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। विटामिन ‘बी’ पर भी ताप का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, परन्तु जल में विलेय होने के कारण भोज्य-पदार्थों (UPBoardSolutions.com) को अधिक पकाने पर इसका कुछ भाग जल के साथ ही नष्ट हो जाता है। सब्जी का हरा रंग बनाये रखने के लिए प्रयुक्त सोडा बाइकार्बोनेट विटामिन ‘बी’ को नष्ट कर देता है। इसलिए हरी सब्जियों को पकाते समय खाने के सोडे का प्रयोग नहीं करना चाहिए। विटामिन ‘सी’ भी जल में घुलनशील होता है तथा उच्च ताप पर यह नष्ट हो जाता है।

नोट- अन्य पोषक तत्त्वों पर पाक-क्रियाओं के प्रभाव का विवरण आगामी प्रश्नों में वर्णित है।

UP Board Solutions

प्रश्न 4:
तरकारियों को छीलने से क्या हानि होती है?
उत्तर:
पाक-क्रिया के लिए तरकारियों को छीला तथा काटा भी जाता है। तरकारियों के छिलकों में विटामिन व खनिज लवण पाए जाते हैं। अतः तरकारियों को छीलने से इन पोषक तत्त्वों की हानि होती है, जिनसे बचने के लिए

  1. तरकारियों को भली प्रकार धोकर छिलकायुक्त ही काटकर पकाना चाहिए। इससे छिलके में उपस्थित पोषक तत्त्व सुरक्षित रहते हैं।
  2. मोटे छिलके वाली तरकारियों के छिलके अधिक गहरे नहीं छीलने चाहिए, क्योंकि पोषक तत्त्वों की छिलकों के साथ ही निकल जाने की सम्भावना रहती है।

प्रश्न 5:
पाक-क्रिया का वसा पर क्या प्रभाव पड़ता है? [2008, 11, 12, 14]
उत्तर:
साधारणतः पाक-क्रिया का वसा पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता, परन्तु अधिक ताप पर निरन्तर गर्म करने से वसा का एक नया यौगिक बन जाता है, जिसे एक्रोलीन कहा जाता है। इस यौगिक की एक विशेष गन्ध होती है; अतः इस अवस्था में वसायुक्त भोजन में एक तीखी गन्ध आने लगती है। यह एक्रोलीन नामक यौगिक खाने योग्य नहीं होता। अत: इससे युक्त आहार ग्रहण करने से हानि हो। सकती है। यदि वसायुक्त भोजन को बार-बार गर्म किया जाए तो वह सरलता से पचने योग्य नहीं रह जाता। वसा अधिक ताप के प्रभाव से ग्लिसरॉल तथा स्निग्ध के रूप में विघटित भी हो जाती है।

UP Board Solutions

प्रश्न 6:
पाक-क्रिया का कार्बोहाइड्रेट्स पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
पाक-क्रिया का कार्बोहाइड्रेट्स पर विभिन्न प्रकार से प्रभाव पड़ता है। हम भोजन में सामान्य रूप से स्टार्च एवं शर्करा के रूप में कार्बोहाइड्रेट्स ग्रहण करते हैं। स्टार्च को जब पकाया जाता है तो वे पककर मुलायम हो जाते हैं तथा कुछ फूल जाते हैं। इस अवस्था में इनका पाचन सरल हो जाता है। यदि स्टार्च को क्वथनांक तक उबाला जाए तो इसका सेल्यूलोज वाला भाग फट जाता है। यदि इस प्रकार से पकते हुए स्टार्च में कुछ मात्रा में ठण्डा पानी मिला दिया जाए तो स्टार्च के कण अलग-अलग हो जाते हैं तथा भोज्य-पदार्थ लेई के समान हो जाता है। इससे भिन्न, यदि स्टार्च को जलरहित ही शुष्क विधि से पकाया जाए, तो स्टार्च का रंग हल्का बादामी हो जाता है। यदि कुछ अधिक ताप पर स्टार्च को गर्म किया जाए, तो उसका रंग काला हो जाता है। ताप पाकर यह स्टार्च डैक्स्ट्रीन का रूप ग्रहण कर लेता है। इस रूप में स्टार्च अधिक सुपाच्य हो जाता है। इसी प्रकार, यदि शर्करा को शुष्क अवस्था में गर्म किया जाए, तो उसका रंग भूरा हो जाता है। परन्तु यदि शर्करा को जल के साथ गर्म किया जाए, तो वह घुल जाती है तथा एक प्रकार से शर्बत का रूप ग्रहण कर लेती है।

प्रश्न 7:
पाक-क्रिया का खनिज-लवणों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
पाक-क्रिया का खनिज-लवण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। जब विभिन्न खाद्य-सामग्रियों को जल के साथ पकाया जाता है, तो विभिन्न खनिज-लवण जल में आ जाते हैं। इस अवस्था में यदि पकी हुई खाद्य-सामग्री में से अतिरिक्त पानी बहा दिया जाए तो विभिन्न खनिज लवणों के नष्ट हो जाने की सम्भावना रहती है। अतः इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि खाद्य-सामग्री को केवल उतने ही जल में उबाला जाए जितना पकाने में प्रयुक्त हो जाए। (UPBoardSolutions.com) इसके अतिरिक्त इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि सब्जियों को पकाने से पूर्व अधिक समय तक काटकर नहीं रखना चाहिए। सब्जियों को काटने एवं छीलने से पहले ही अच्छी तरह से धो लेना। चाहिए। छीलकर एवं काटकर धोने से बहुत-से खनिज-लवण नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि यदि खाद्य सामग्री को सावधानीपूर्वक पकाया जाए, तो खनिज लवणों को नष्ट होने से बचाया जा सकता है।

प्रश्न 8:
घर में अनाजों की सुरक्षा आप कैसे करेंगी?
उत्तर:
घर में अनाजों की सुरक्ष: के लिए निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए

  1. खुले हुए अनाज को समय-समय पर सुखाना चाहिए।
  2.  अनाजों को घुन, सुरसुरी आदि से बचाने के लिए उसमें कोई दवा; जैसे-गोलियाँ आदि; रखनी चाहिए।
  3. अनाजों को सीलबन्द बर्तनों में रखना चाहिए विशेषकर धातु के बने ड्रम आदि इस कार्य के लिए अधिक उपयुक्त रहते हैं।
  4. अनाजों में जल की मात्रा कम-से-कम रहनी चाहिए, ताकि उन पर फफूद, घुन आदि न लग सकें। इसके लिए उन्हें पूर्णतः सूखा हुआ रखना चाहिए।

प्रश्न 9:
सब्जियों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है? सब्जियों को काटते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? [2009, 10, 11]
उत्तर:
सब्जियाँ हमारे भोजन का अनिवार्य अंग मानी जाती हैं। सब्जियों को सुरक्षात्मक खाद्यसामग्री माना जाता है। सब्जियाँ विभिन्न विटामिन्स एवं खनिज लवणों की उत्तम स्रोत होती हैं। ये विटामिन एवं खनिज-लवण हमारे स्वास्थ्य में विशेष रूप से सहायक होते हैं। सब्जियों में रेशों की भरपूर मात्रा होती है; अतः सब्जियाँ कब्ज-निवारक होती हैं। सब्जियाँ मल-विसर्जन में सहायक होती हैं। सब्जियाँ शरीर में अम्ल एवं क्षार के सन्तुलन को बनाये रखने में सहायक होती हैं। सब्जियाँ भूख बढ़ाती हैं। सब्जियों के समावेश से हमारा भोजन अधिक रुचिकर एवं विविधतापूर्ण बनता है।
सब्जियों को काटते एवं पकाते समय कुछ बातों को अनिवार्य रूप से ध्यान में रखना चाहिए

  1. सब्जियों को सदैव अच्छी तरह से धोकर एवं साफ करके ही छीलना या काटना चाहिए। यदि आवश्यक न हो तो सब्जियों का छिलका नहीं उतारना चाहिए।
  2. सब्जियों को छीलने एवं काटने के उपरान्त बिल्कुल नहीं धोना चाहिए।
  3.  सब्जियों को सदैव ढककर पकाना चाहिए।
  4. सब्जियों को केवल उतने ही जल में पकाना चाहिए जितना जल उन्हें गलाने के लिए आवश्यक हो।
  5. सब्जियों को अधिक भूनना या तलना नहीं चाहिए। तैयार सब्जियों को बार-बार गरम भी नहीं करना चाहिए।

UP Board Solutions

प्रश्न 10:
भोजन पकाने से पहले, पकाते समय और परोसते समय किस प्रकार की स्वच्छता रखनी चाहिए और क्यों ? [2009, 12, 13, 15, 18]
उत्तर:
भोजन पकाने से पहले हमें देखना चाहिए कि जिस बर्तन में भोजन पकाया जाना है वह अच्छी तरह साफ है या नहीं। अगर किसी प्रकार की गन्दगी उसे बर्तन में लगी हुई हो तो उसे अच्छी तरह साफ कर लेना चाहिए। भोजन पकाते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि (UPBoardSolutions.com) भोजन आवश्यकता से अधिक न गल जाए क्योंकि भोजन पकाते समय अगर अधिक गल जाता है तो उसके पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार भोजन परोसते समय हमारे हाथ एवं बर्तन अच्छी तरह साफ होने चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
खाद्य सामग्री को क्यों पकाया जाता है? [2011, 13, 14, 15]
या
भोजन पकाने के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं? [2007, 10, 11]
उत्तर:
खाद्य-सामग्री को स्वादिष्ट, सुपाच्य एवं रोगाणुमुक्त बनाने हेतु तथा विविधता प्रदान करने के लिए पकाया जाता है।

प्रश्न 2:
भोजन पकाने की विधियों के नाम लिखिए। [2007, 09, 10, 17, 18]
उत्तर:
उबालना, तलना, वाष्प द्वारा पकानां तथा भूनना एवं सेंकना भोजन पकाने की मुख्य विधियाँ हैं।

प्रश्न 3:
भोजन को उबालने से अच्छा भाप द्वारा पकाना होता है क्यों? दो कारण लिखिए।
यो
भोजन पकाने की कौन-सी विधि सर्वोत्तम है और क्यों? [2008]
उत्तर:
भोजन पकाने की सर्वोत्तम विधि उसे भाप द्वारा पकाना होती है। इसके दो मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

  1. भोजन सुपाच्य तथा स्वादिष्ट रहता है।
  2. भोजन के पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते।

UP Board Solutions

प्रश्न 4:
भोजन को बार-बार गर्म करने से क्या हानि होती है?
उत्तर:
बार-बार गर्म करने से भोजन के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 5:
धीमी आग पर भोजन पकाने से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
धीमी आग पर पकाए गए भोजन के पोषक तत्त्व सुरक्षित रहते हैं।

प्रश्न 6:
भाप के दबाव से भोजन कैसे पकता है?
उत्तर:
भाप के दबाव के कारण प्रेशर कुकर में उष्णता का घनत्व बढ़ जाने के कारण (UPBoardSolutions.com) भोजन कम समय में ही भली-भाँति पक जाता है।

प्रश्न 7:
भूनने व सेंकने में क्या अन्तर है? [2015, 16, 17]
उत्तर:
भूनते समय भोज्य वस्तु आग के प्रत्यक्ष सम्पर्क में नहीं आती, जबकि सेंकने में उसे सीधे अंगारों अथवा विद्युत सलाखों के ऊपर सेंका जाता है।

प्रश्न 8:
भाप द्वारा भोजन पकाने से क्या लाभ हैं? [2008]
उत्तर:
भाप द्वारा भोजन पकाने से उसके अधिकांश पौष्टिक तत्त्व सुरक्षित रहते हैं।

प्रश्न 9:
तले हुए भोजन का अधिक सेवन करने से क्या हानि है?
उत्तर:
तला हुआ भोजन गरिष्ठ एवं कुपाच्य होता है। अतः अधिक सेवन करने पर अपच एवं कब्ज़ उत्पन्न करता है।

प्रश्न 10:
दूध को पकाने से क्या लाभ है?
उत्तर:
पकाए जाने पर दूध रोगाणुमुक्त तथा सुपाच्य हो जाता है।

प्रश्न 11:
मक्खन को गर्म करने से क्या हानि सम्भव है?
उत्तर:
गर्म करने पर मक्खन में प्राकृतिक रूप से उपस्थित विटामिन ‘ए’ नष्ट हो जाता है।

प्रश्न 12:
गृहिणी के लिए हाथ व नाखून स्वच्छ रखना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
हाथ वे नाखूनों की गन्दगी में रोगाणु उपस्थित रहते हैं, जो कि भोजन पकाते एवं  (UPBoardSolutions.com) परोसते समय भोजन में मिल सकते हैं। अत: प्रत्येक गृहिणी को अपने हाथ व नाखून अच्छी तरह साफ रखने चाहिए।

UP Board Solutions

प्रश्न 13:
आलू को बिना छीले पकाने से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
आलू के छिलके के कारण उसका विटामिन ‘सी’ सुरक्षित रहता है।

प्रश्न 14:
हरी शाक-सब्जियों को काटने से पूर्व धोना चाहिए। क्यों? [2007, 11, 15, 18]
उत्तर:
यदि सब्जियों को छीलकर एवं काटकर धोया जाता है, तो उनके कुछ विटामिन एवं खनिज-लवण पानी में बह जाते हैं। अतः इन खनिज तत्त्वों की सुरक्षा के लिए सब्जियों को छीलने एवं काटने से पहले उन्हें धो लेना चाहिए।

प्रश्न 15:
कच्चा भोजन खाने से क्या हानि हो सकती है?
उत्तर:
कच्चा भोजन खाने से खाद्य-पदार्थों के साथ आये हुए रोगों के जीवाणु शरीर में पहुँचेंगे।

प्रश्न 16:
खाद्य-सामग्री को पकाते समय ढककर रखना क्यों आवश्यक होता है?
उत्तर:
खाद्य सामग्री के पोषक तत्त्वों एवं सुगन्ध को नष्ट होने से बचाने के लिए तथा शीघ्र पकाने के लिए उसे ढककर रखना आवश्यक होता है।

प्रश्न 17:
भोजन पकाने की प्रक्रिया में पौष्टिक तत्त्वों की सुरक्षा के उपाय लिखिए।
उत्तर:
भोजन पकाने की प्रक्रिया में पौष्टिक तत्त्वों की सुरक्षा हेतु उपाय अग्रलिखित हैं

  1. भोजन पकाते समय बर्तन को खुला न रखें। बर्तन खुला रखने पर भोजन वायु के सम्पर्क में आने से कीटाणु व धूल का प्रवेश होता है।
  2. भोजन देर तक न पकाएँ। इससे भोजन के पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
  3. आवश्यकता से अधिक मसालों का प्रयोग कदापि न करें।

UP Board Solutions

प्रश्न 18:
गहरी चिकनाई और उथली चिकनाई में तलने की विधियों के बारे में लिखिए। [2007]
उत्तर:
तलने की गहरी चिकनाई विधि:
इस विधि में गहरी कड़ाही प्रयोग में लाई जाती है और काफी मात्रा में घी या तेल में भोज्य-पदार्थ को डालकर तला जाता है; जैसे-पूड़ी-कचौरी, पकौड़ी, समोसे आदि।

तलने की उथली चिकनाई विधि:
इस विधि में चौड़ी व उथली कंड़ाहीं या तवा प्रयोग में लाया जाता है जिसमें (UPBoardSolutions.com) थोड़ी-सी ही चिकनाई डालकर तला जाता है; जैसे—पराँठे, आलू की टिकिया, आमलेट, चीले आदि।

प्रश्न 19:
भोजन परोसने की दो मुख्य शैलियाँ कौन-सी हैं ? [2008, 10]
उत्तर:
भोजन परोसने की दो मुख्य शैलियाँ हैं

  1. देशी शैली तथा
  2. विदेशी या परम्परागत शैली।

प्रश्न 20:
जल में घुलनशील विटामिनों के नाम लिखिए। [2011]
उत्तर:
जल में घुलनशील विटामिन हैं-विटामिन ‘बी’ कॉम्प्लेक्स, विटामिन ‘सी’ तथा विटामिन ‘पी।

प्रश्न 21:
वसा में घुलनशील विटामिनों के नाम लिखिए। [2011, 13]
उत्तर:
जल में घुलनशील विटामिन हैं विटामिन ‘ए’, विटामिन ‘डी’, विटामिन ‘ई’ तथा विटामिन ‘के’।

प्रश्न 22:
किन-किन फलों में विटामिन ‘सी’ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है? [2009, 11]
उत्तर:
समस्त खट्टे फलों अर्थात् नींबू, नारंगी, सन्तरा, अमरूद, अनन्नास तथा तरबूज में विटामिन ‘सी’ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

प्रश्न 23:
कच्ची सब्जियों के खाने से शरीर को कौन-से पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में मिलेंगे ? [2009, 13, 15]
उत्तर:
कच्ची सब्जियों के खाने से शरीर को खनिज, विटामिन्स आदि पोषक तत्त्व प्राप्त होते हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 24:
शरीर के लिए भोजन क्यों आवश्यक है? [2015, 17]
उत्तर:
जीवित प्राणियों के लिए भोजन ग्रहण करना अनिवार्य है। शरीर की वृद्धि एवं विकास के लिए, ऊर्जा प्राप्त करने के लिए, रोगों से मुकाबला करने की शक्ति प्राप्त करने के लिए तथा नियमित रूप से भूख शान्त करने के लिए भोजन ग्रहण करना आवश्यक है।

प्रश्न 25:
भोजन में कौन-से आवश्यक पोषक तत्त्व पाये जाते हैं? [2015]
या
भोजन के पौष्टिक तत्त्वों के नाम बताइए। [2016]
उत्तर:
भोजन के आवश्यक पोषक तत्त्व हैं–प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, (UPBoardSolutions.com) विटामिन, खनिज तथा जल।

प्रश्न 26:
पौष्टिक भोजन से क्या तात्पर्य है? [2016]
उत्तर:
जो भोजन हमारे शरीर को पुष्ट कर रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है, पौष्टिक भोजन कहलाता है।

प्रश्न 27:
हमारे शरीर में विटामिन ‘सी’ के दो कार्य लिखिए। [2016]
उत्तर:
1. रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
2. दाँतों तथा मसूड़ों को स्वस्थ रखता है।

UP Board Solutions

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न:
निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

1. पाक-क्रिया द्वारा खाद्य सामग्री बन जाती है
(क) अपाच्य
(ख) सुपाच्य (ग) कुपाच्य
(घ) कोई प्रभाव नहीं पड़ता

2. भोजन बनाने की सर्वोत्तम विधि है [2015]
(क) उबालना
(ख) भूनना
(ग) तलना
(घ) सिझाना (स्ट्यू करना)

3. दूध को गर्म करने से नष्ट होते हैं [2008]
या
दूध को उबालने पर निम्नलिखित में से क्या नष्ट हो जाते हैं? [2014, 17]
(क) उसके पोषक तत्त्वे
(ख) उसके कीटाणु
(ग) उसका स्वाद
(घ) कुछ भी नहीं

4. दूध बैक्टीरिया रहित हो जाता है
(क) गर्म करने पर
(ख) ठण्डा करने पर
(ग) उबालने पर
(घ) पानी मिलाने पर

5. सब्जियों को लोहे की कड़ाही में पकाने से
(क) लौह तत्त्व की प्राप्ति होती है।
(ख) विषैलापन आ जाता है।
(ग) स्वाद नष्ट हो जाता है।
(घ) पौष्टिक तत्त्वों की प्राप्ति होती है।

UP Board Solutions

6. डबलरोटी व बिस्कुट बनाने की विधि कहलाती है
(क) ग्रिलिंग
(ख) रोस्टिग
(ग) बेकिंग
(घ) टोस्टिंग

7. भोजन को पकाने से नष्ट न होने वाला विटामिन कौन-सा है?
(क) ‘बी’
(ख) ‘सी’
(ग) “के
(घ) ‘ए’

8. सब्जियों को कब धोना चाहिए ?
(क) काटने के बाद
(ख) छीलने के बाद
(ग) छीलने से पहले
(घ) कभी भी

9. सब्जी को बार-बार गर्म करने से नष्ट हो जाता है, उसका
(क) थायमीन
(ख) एस्कॉर्बिक एसिड
(ग) रिबोफ्लेविन
(घ) निकोटिनिक एसिड

10. बेकिंग पाउडर अथवा खाने का सोडा मिलाकर पकाने से तरकारियों का नष्ट होने वाला पोषक तत्त्व है
(क) विटामिन ‘बी’
(ख) प्रोटीन
(ग) कार्बोज
(घ) खनिज-लवण

11. भोजन पकाने में किसका प्रयोग हानिकारक होता है? [2007, 16, 18]
(क) घी
(ख) मसाले
(ग) सोडा
(घ) इनमें से किसी को नहीं

12. भोजन परोसने की किस शैली में खड़े-खड़े भोजन किया जाता है?
(क) पाश्चात्य शैली
(ख) भारतीय शैली
(ग) बुफे शैली
(घ) इनमें से कोई नहीं

13. भोजन को स्वास्थ्यवर्द्धक बनाने के लिए गृहिणी को विशेष जानकारी होनी चाहिए
(क) भोजन को पकाने की
(ख) भोजन को तलने की
(ग) भोजन में पाए जाने वाले तत्त्वों की
(घ) भोजन परोसने की

UP Board Solutions

14. किस प्रकार भोजन पकाने से पोषक तत्त्व सुरक्षित रहते हैं ? [2009, 10, 15, 18]
(क) उबालकर
(ख) भूनकर
(ग) तलकर
(घ) भाप द्वारा

15. विटामिन ‘डी’ का स्रोत है [2008]
(क) दालें
(ख) सूर्य किरणें
(ग) खट्टे फल
(घ) सब्जियाँ

16. स्कर्वी रोग किस विटामिन की कमी से होता है? [2008]
(क) विटामिन ‘ए’
(ख) विटामिन ‘डी’
(ग) विटामिन ‘सी’
(घ) विटामिन ‘बी’

17. दूध में किस विटामिन का अभाव रहता है? [2008, 16]
(क) ‘ए’
(ख) ‘डी’
(ग) ‘सी’
(घ) ‘के’

18. विटामिन डी की कमी से बच्चों में कौन-सा रोग हो जाता है ? [2009, 17]
(क) खुजली
(ख) पेचिस
(ग) रतौंधी
(घ) रिकेट्स

UP Board Solutions

19. खट्टे फलों में कौन-सा विटामिन अधिक मात्रा में पाया जाता है? [2009, 10, 13, 14]
(क) विटामिन ‘ए’
(ख) विटामिन ‘बी’
(ग) विटामिन ‘सी’
(घ) विटामिन ‘डी’

20. प्रोटीन का मुख्य स्रोत है [2009, 12]
(क) चावल
(ख) चीनी
(ग) दूध
(घ) अंगूर

21. रतौंधी किस विटामिन की कमी से होता है ? [2009, 17]
(क) विटामिन ‘ए’
(ख) विटामिन ‘बी’
(ग) विटामिन ‘सी’ ।
(घ) विटामिन ‘डी’

22. विटामिन का कौन-सा समूह वसा में घुलनशील है ? [2009]
(क) ए, बी, सी, डी
(ख) ए, बी, ई, के
(ग) ए, सी, ई, के
(घ) ए, डी, ई, के

23. भोजन पकाने में समय की बचत होती है [2009]
(क) तलकर
(ख) उबालकर
(ग) प्रेशर कुकरे द्वारा
(घ) भूनकर

24. विटामिन ‘ए’ को उत्तम स्रोत है [2011, 13, 16]
(क) दाल
(ख) दूध
(ग) खट्टे फल
(घ) पीली और हरी सब्जियाँ

25. भोज्य पदार्थों में ऊर्जा का प्रमुख साधन है [2011]
(क) प्रोटीन
(ख) विटामिन
(ग) कार्बोहाइड्रेट
(घ) खनिज लवण

26. लौह तत्त्व की कमी से कौन-सा रोग हो जाता है? [2011, 12, 15 ]
(क) बेरी-बेरी
(ख) एनीमिया
(ग) मरास्मस
(घ) तपेदिक

27. भोजन पकाने की विधि है [2014]
(क) उबालना
(ख) तलनी
(ग) भाप द्वारा
(घ) ये सभी

28. जल में घुलनशील विटामिन हैं [2013, 15, 16, 17]
(क) विटामिन A, B, C
(ख) विटामिन B, C
(ग) विटामिन A, D.
(घ) विटामिन E, K

29. वसा में कौन-सा विटामिन घुलनशील नहीं है? [2013]
(क) विटामिन-ए
(ख) विटामिन-ई
(ग) विटामिन-बी
(घ) विटामिन-के

30. शरीर-निर्माण में सहायक है [2014, 16]
(क) प्रोटीन
(ख) वसा
(ग) विटामिन
(घ) कार्बोहाइड्रेट

31. प्रोटीन पाया जाता है [2012, 14]
(क) मिठाई में
(ख) दालों/सोयाबीन में
(ग) सन्तरा में
(घ) आलू में

32. प्रोटीन का मुख्य कार्य है [2018]
(क) शरीर की वृद्धि तथा विकास
(ख) ऊर्जा प्रदान करना
(ग) अस्थि-निर्माण करना
(घ) हृदय गति सामान्य रखना

33. प्रोटीन की कमी से कौन-सा रोग हो जाता है? [2018]
(क) बेरी-बेरी
(ख) एनीमिया
(ग) मरास्मस
(घ) तपेदिक

UP Board Solutions

34. खाना खाने से पहले हाथ धोने चाहिए [2013]
(क) राख से
(ख) अपमार्जक से
(ग) पानी से
(घ) साबुन एवं पानी से

35. किस प्रकार के भोज्य पदार्थ हमें रोगों से बचाते हैं? [2009, 16, 17]
(क) बिस्कुट
(ख) चावल
(ग) ताजे मौसमी फल एवं हरी सब्जियाँ
(घ) चीनी

36. सूर्य की रोशनी हमें देती है [2016]
(क) विटामिन ‘सी’
(ख) विटामिन ‘डी’
(ग) विटामिन ‘ए’
(घ) इनमें से कोई नहीं

37. विटामिन ‘सी’ का सबसे अच्छा स्रोत है [2015, 15, 17, 18]
(क) मूंग दाल
(ख) आँवला
(ग) दही
(घ) चावल

38. गाजर, पपीता और आम से मिलता है [2016, 17]
(क) कैल्सियम
(ख) प्रोटीन
(ग) विटामिन ‘ए’
(घ) लौह तत्त्व

39. किसके प्रयोग से तुरन्त ऊर्जा मिलती है? [2016, 17, 18]
(क) विटामिन
(ख) प्रोटीन
(ग) ग्लूकोज
(घ) खनिज लवण

40. खाद्य-पदार्थों का संरक्षण किया जा सकता है [2016]
(क) सुखाकर
(ख) चाशनी में रखकर
(ग) तेल व नमक द्वारा
(घ) इन सभी के द्वारा

UP Board Solutions

उत्तर:
1. (ख) सुपाच्य,
2. (क) उबालना,
3. (ख) उसके कीटाणु,
4. (ग) उबालने पर,
5. (क) लौह तत्व की प्राप्ति होती है,
6. (ग) बेकिंग,
7, (ख) ‘सी’,
8. (ग) छीलने से पहले,
9. (ख) एस्कॉर्बिक एसिड,
10. (क) विटामिन ‘बी’,
11. (ग) सोडा,
12. (ग) बुफे शैली,
13. (ग) भोजन में पाये जाने वाले तत्वों की,
14. (घ) भाप द्वारा,
15. (ख) सूर्य किरणें,
16. (ग) विटामिन ‘सी’,
17. (ग) ‘सी’,
18. (घ) रिकेट्स,
19. (ग) विटामिन ‘सी’,
20. (ग) दूध,
21. (क) विटामिन ‘ए’,
22. (घ) ए, डी, ई, के,
23. (ग) प्रेशर कुकर द्वारा,
24. (ख) दूध,
25. (ग) कार्बोहाइड्रेट,
28 (ख) एनीमिया,
27. (घ) ये सभी,
28. (ख) विटामिन B,C.
29. (ग) विटामिन-बी,
30. (क) प्रोटीन,
31. (ख) दालों/सोयाबीन में,
32. (क) शरीर की वृद्धि तथा विकास,
33. (ग) मरास्मस,
34. (घ) साबुन एवं पानी से,
35. (ग) ताजे मौसमी फल एवं हरी सब्जियां,
36. (ख) विटामिन डी’,
37. (ख) आँवला,
38. (ग) विटामिन ‘ए’,
39. (ग) ग्लूकोज,
40. (घ) इन सभी के द्वारा।

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 15 भोजन पकाना और परोसना तथा तत्त्वों की सुरक्षा help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 15 भोजन पकाना और परोसना तथा तत्त्वों की सुरक्षा, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 16 विभिन्न रोगों में रोगी का भोजन

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 16 विभिन्न रोगों में रोगी का भोजन

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 16 विभिन्न रोगों में रोगी का भोजन.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रोगी के भोजन से क्या तात्पर्य है? रोगी को भोजन देते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी?
या
रोगी के स्वास्थ्य-लाभ के समय दिये जाने वाले भोजन का विशेष चुनाव करना चाहिए। क्यों?
या
रोगी के आहार कितने प्रकार के होते हैं? रोगी के आहार को तैयार करते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए? [2008]
उत्तर:
रुग्णावस्था में आहार

रुग्णावस्था के परिणाम हैं
(1) शारीरिक दुर्बलता,
(2) पाचन शक्ति का ह्रास,
(3) पोषक तत्त्वों की कमी तथा
(4) शरीर के विभिन्न अंगों में शिथिलता। इन विशेष परिस्थितियों में रोगी को तला, भुना अथवा मसालों युक्त भोजन दिया जाना अनुपयुक्त रहता है। उसे एक विशिष्ट प्रकार के आहार की आवश्यकता होती है। रोगी को दिया जाने वाला भोजन हल्का, (UPBoardSolutions.com) सन्तुलित, ताजा, आवश्यक पोषक तत्वों से युक्त तथा पर्याप्त ऊर्जा एवं ऊष्मा प्रदान करने वाला होना चाहिए। इसके अतिरिक्त रुग्णावस्था में दिया जाने वाला भोजन रोगों पर भी आधारित होता है। सामान्यतः रोगी के आहार में निम्नलिखित

परिवर्तन किए जाने चाहिए

  1. शुद्ध व गाढ़े दूध के स्थान पर पानी मिला अथवा सप्रेटा दूध उपयोग में लाया जाना चाहिए।
  2. आहार में वसा कम होनी चाहिए।
  3.  खाद्यान्नों, आलू व अरवी आदि की मात्रा कम-से-कम होनी चाहिए।
  4. विटामिन व खनिज-लवणयुक्त तरकारियाँ अधिक प्रयोग में लाई जानी चाहिए।
  5. (फलों का सेवन अधिक कराया जाना चाहिए।
  6. आहार हर प्रकार से सुपाच्य होना चाहिए।

UP Board Solutions

इस प्रकार रुग्णावस्था में आहार को उतना ही महत्त्व है जितना कि रोगोपचार के लिए दी जाने वाली औषधियों का, क्योंकि औषधियाँ यदि रोगी को रोगमुक्त करती हैं, तो उपयुक्त आहार उसे स्वास्थ्य एवं शक्ति प्रदान करता है।

रोगी को भोजन देते समय ध्यान रखने योग्य बातें

रोगी का भोजन क्या और कैसा हो? इसके लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना अत्यधिक आवश्यक है–
(1) सुपाच्य एवं हल्का भोजन:
रोगी को सहज ही पचने वाला भोजन दिया जाना चाहिए जिससे कि उसका (UPBoardSolutions.com) अवशोषण जल्द हो सके। रोगी को सामान्यत: बिस्कुट, साबूदाना, सूजी, दलिया, कस्टर्ड, फल तथा उबली हुई सब्जियाँ दी जानी चाहिए।

(2) उच्च कैलोरीयुक्त आहार:
प्रायः ज्वर की अवस्था में शरीर के तापमान में वृद्धि होती है, जिसके कारण शारीरिक उष्णता एवं शक्ति की हानि होती है; अत: रोगी को 3000-4000 कैलोरी ऊर्जा प्रदान करने वाला आहार देना चाहिए। लम्बी अवधि के रोगी को 2000-3000 कैलोरी ऊर्जा देने वाला भोजन दिया जाना चाहिए। नियमानुसार रोगी को शारीरिक भार की दृष्टि से 80 कैलोरी/किलोग्राम के हिसाब से ऊर्जायुक्त आहार मिलना चाहिए।

(3) अतिरिक्त प्रोटीनयुक्त आहार:
सामान्यत: सभी रोगों में दुर्बलता उत्पन्न होती है तथा आन्तरिक ऊतकों की क्षति होती है जिसका एकमात्र विकल्प प्रोटीनयुक्त आहार है। साधारणत: रोगी को 100-150 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन मिलनी चाहिए। रोगी को भोजन में 300-350 कैलोरी प्रोटीन भोज्यपदार्थों से प्राप्त होनी चाहिए। प्रोटीन-प्राप्त करने के लिए दूध सर्वोत्तम आहार है। यदि वसा की मात्रा कम करनी है तो सप्रेटा दूध प्रयुक्त करना चाहिए। बच्चों को फटे दूध का पानी देना लाभप्रद रहता है। दूध के अतिरिक्त सरलता से पाचनशील दालों के सूप, मटन सूप, अण्डे आदि भी रोगी को दिए जाने । चाहिए। कुछ रोग ऐसे भी होते हैं जिनमें रोगी को बहुत कम प्रोटीनयुक्त आहार ही दिया जाता है।

(4) कार्बोजयुक्त आहार:
सामान्यतः रोगी को वसायुक्त भोज्य-पदार्थ कम-से-कम दिए जाते हैं। अत: रोगी की ऊर्जा पूर्ति के लिए उसके आहार में पर्याप्त कार्बोजयुक्त भोज्य-पदार्थों का होना बहुत आवश्यक है। इसके लिए रोगी को ग्लूकोज वे लैक्टोज के रूप में शक्कर दी जा सकती है। इसका अतिरिक्त लाभ यह है कि यह एन्जाइम क्रिया के बिना ही रक्त प्रवाह में सरलता से अवशोषित
हो जाती है।

(5) विटामिनयुक्त भोजन:
लगभग सभी रोगों में रोगी की पाचन शक्ति कुप्रभावित होती है। चयापचय की क्रिया को प्रोत्साहित करने के लिए विटामिन ‘ए’, ‘बी’ कॉम्पलैक्स तथा एस्कॉर्बिक एसिडयुक्त भोज्य-पदार्थों का सेवन रोगी के लिए आवश्यक होता है। इसके लिए उसे दूध, अण्डा तथा (UPBoardSolutions.com) हरी शाक-सब्जियों का दिया जाना लाभप्रद रहता है।

UP Board Solutions

(6) खनिज-लवणयुक्त आहार:
नमकीन सूप व रस तथा नमकीन भोज्य-पदार्थों का सेवन कराकर रोगी की नमक की आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है। दूध, हरी शाक-सब्जियों, दालों व अण्डा आदि को देने से रोगी को कैल्सियम, लोहा तथा फॉस्फोरस आदि प्राप्त हो सकते हैं। पोटैशियम की कमी को दूर करने के लिए फलों के रस तथा दूध उत्तम स्रोत हैं। उच्च रक्त चाप जैसे कुछ रोगों में व्यक्ति को नमक बहुत कम दिया जाता है।

(7) तरल पदार्थ:
पेय पदार्थ; जैसे फलों के रस, सूप, चाय इत्यादि; रोगी को 2500 से 5000 मिलीलीटर तक प्रतिदिन दिए जाने चाहिए। ज्वर आदि के कारण रोगी के शरीर से पसीने के द्वारा तथा अन्य उत्सर्जन क्रियाओं के द्वारा पानी की बहुत हानि होती है। इसके लिए रोगी को उबालकर ठण्डा किया हुआ पानी अथवा जीवाणु-रोधक फिल्टर द्वारा छाना हुआ पानी पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए।

प्रश्न 2:
रोगी को दिए जाने वाले तरल भोजन कौन-कौन से होते हैं? इन्हें तैयार करने की विधियों का भी वर्णन कीजिए। [2011]
या
फटे दूध का पानी किस रोगी को देते हैं? इसे बनाने की क्या विधि है? [2011, 12, 13, 15, 16]
या
फटे दूध का पानी (whey-water) क्यों उपयोगी है तथा इसे किस रोगी को देंगी?
या
चार तरल आहारों के नाम बताइए।
या
तरल आहार से आप क्या समझते हैं? [2009, 12, 15]
उत्तर:
रोगी के लिए आदर्श तरल आहार

तरल भोजन रोगियों का महत्त्वपूर्ण आहार है। यह हल्का एवं सुपाच्य होता है तथा (UPBoardSolutions.com) रोगी में जलअल्पता (डी-हाइड्रेशन) की स्थिति उत्पन्न नहीं होने देता। तरल भोजन के कुछ मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं

  1. फटे दूध का पानी,
  2.  टोस्ट का पानी,
  3. जौ का पानी,
  4. चावल का पानी,
  5. दाल का सूप,
  6. टमाटर का सूप,
  7. फलों का रस,
  8. आम का पना,
  9.  मांस का सूप तथा
  10.  अण्डे का फ्लिप।

इन तरल आहारों को तैयार करने की विधि तथा उनके उपयोग का विवरण निम्नलिखित है
(1) फटे दूध का पानी:
यह प्रायः बच्चों तथा मोतीझरा अथवा मियादी ज्वर के रोगियों के लिए उपयुक्त रहता है। लगभग 1/2 लीटर दूध साफ बर्तन में उबालें तथा उबाल आते ही उसमें टाटरी अथवा नींबू के रस की कुछ बूंदें डाल दें। दूध के फटने से पानी व छेना अलग-अलग हो जाता है। बर्तन (UPBoardSolutions.com) को अधिक हिलाये बिना पानी को किसी दूसरे साफ बर्तन में छान लेना चाहिए। इसमें स्वाद के अनुसार नमक मिलाया जा सकता है। इसे दिन में 2-3 बार रोगी को देना चाहिए।’

UP Board Solutions

(2) टोस्ट का पानी:
हल्का एवं कार्बोजयुक्त होने के कारण टोस्ट का पानी लगभग सभी प्रकार के रोगियों को दिया जा सकता है। डबल रोटी के टुकड़ों को धीमी आग पर अच्छी तरह सेकिए। अब इन्हें एक बर्तन में रखकर खोलता हुआ पानी इतना डालिए कि टोस्ट पूरी तरह से डूब जाएँ तथा पानी ऊपर रहे। अब लगभग 15-20 मिनट तक इन्हें पानी में पड़ा रहने दीजिए। अब एक स्वच्छ कपड़े में से पानी छान लें। स्वादानुसार नमक अथवा चीनी मिलाकर रोगी को दीजिए।

(3) जौ का पानी:
एक बड़ी चम्मच पिसी हुई जो लेकर अच्छी तरह साफ कर लें। आधा लीटर पानी एक पतीली में लेकर आग पर चढ़ा दें। पानी उबल जाने पर उसमें जौ डालकर धीमी आग पर अच्छी तरह से पकाएँ। अब एक स्वच्छ कपड़े में पानी को छानकर उसमें नींबू का रस, नमक तथा पिसी हुई काली मिर्च डालकर रोगी को दें। जौ का पानी पेचिश तथा गुर्दे के रोगियों को देना लाभप्रद रहता है।

(4) चावल का पानी:
एक बड़ी चम्मच चावल लेकर अच्छी तरह धोकर साफ कर लें। अब इन्हें आधा लीटर पानी में डालकर आग पर चढ़ा दें। चावलों के गलने पर बर्तन को आग पर से उतार लें। एक स्वच्छ कपड़े में से शेष पानी को छान लें। अब इसमें स्वादानुसार नमक व नींबू का रस डालकर रोगी को दें। चावल का पानी पेचिश, अतिसार तथा टायफाइड के रोगियों को देना अत्यन्त लाभप्रद रहता है।

(5) दाल का सूप:
एक बड़ी चम्मच मूंग की दाल को बीनकर व धोकर साफ कर लें। अब इसे किसी बर्तन में आधा लीटर पानी डालकर आग पर चढ़ा दें। धीमी आग पर इसे 15-20 मिनट तक पकाएँ। दाल के अच्छी तरह गल जाने पर शेष पानी को किसी स्वच्छ कपड़े में छान लें। अब इसमें स्वादानुसार नमक डालकर रोगी को दें। मोतीझरा अथवा मियादी ज्वर के रोगी के लिए दाल का सूप सर्वोत्तम रहता है।

(6) टमाटर का सूप:
250 ग्राम पके टमाटर पानी में अच्छी तरह धोकर किसी बर्तन में आधा लीटर पानी डालकर आग पर चढ़ा दें। जब टमाटर गल जाएँ तो उन्हें कुचल व मसलकर किसी बर्तन में छान लें। यदि रोगी को घी लेने की अनुमति हो, तो घी व जीरे का छौंक लगाएँ। अब स्वादानुसार (UPBoardSolutions.com) नमक व पिसी हुई काली मिर्च डाल दें। यदि रोगी को घी लेना मना हो, तो बिना छौंक लगाए ही सुप देना उचित रहता है। इसी प्रकार अन्य सब्जियों; जैसे–पालक, गाजर, लौकी आदि; का भी सूप तैयार किया जा सकता है। इस प्रकार के सूप विटामिन तथा खनिज लवणों से भरपूर होते हैं।

(7) फलों का रस:
मौसमी, सन्तरा, अनार व अँगुर आदि के रस रोगियों के लिए अत्यधिक उपयोगी रहते हैं। रोगी को सदैव अच्छे व ताजे फलों का रस देना चाहिए, क्योंकि सड़े-गले फलों का रस बेस्वाद तथा हानिकारक होता है। रस निकालने से पूर्व फलों को अच्छी प्रकार पानी में धो लेना चाहिए। हाथ की अथवा बिजली की मशीन द्वारा फलों का रस निकालकर उसे एक स्वच्छ कपड़े में छन लेना चाहिए। अब इसमें स्वादानुसार नमक एवं पिसी हुई काली मिर्च डालकर रोगी को देना चाहिए।

UP Board Solutions

(8) आम का पना:
कच्चे आम को राख में भूनकर तथा ठण्डा करके उसका छिलका उतार लेते हैं। अब छिले हुए आम को अच्छी तरह मथकर उसका गूदा अलग कर लेते हैं। गूदे को ठण्डे पानी में घोलकर तथा रोगी की रुचि के अनुसार इसमें नमक, पिसी काली मिर्च, भुना हुआ जीरा, हरे पुदीने का रस व चीनी आदि मिला देते हैं। आम का पनी लू से पीड़ित व्यक्तियों के लिए अत्यन्त लाभप्रद रहता है।

(9) मांस (मटन) का सूप:
250 ग्राम बकरे अथवा मुर्गी का मांस अच्छी प्रकार पानी में साफ कर किसी बर्तन में एक लीटर पानी में डालकर धीमी आग पर निरन्तर उबालें। जब यह भली प्रकार न जे.ए, तो बर्तन को ठण्डा करने के लिए रख दें। ठण्डा होने पर पानी की सतह पर आई चिकनाई को दूर कर देना चाहिए। अब इसे ठीक प्रकार से छान लें। इसे रोगी को देने से पूर्व हल्का-सा. गर्म कर लें तथा स्वादानुसार नमक व पिसी काली मिर्च डाल दें।

(10) अण्डे का फ्लिप:
“अण्डे को तोड़कर किसी प्याले में अच्छी तरह से फेंटें। अब एक गिलास दूध गरम करें। (UPBoardSolutions.com) दूध में रोगी की रुचि के अनुसार चीनी मिलाकर फेंटा हुआ अण्डा अच्छी तरह से घोल दें। अण्डा मिला गरम दूध रोगी के लिए अत्यन्त लाभप्रद रहता है।

प्रश्न 3:
निम्नलिखित की उपयोगिता एवं बनाने की विधि लिखिए
(क) कस्टर्ड,
(ख) अरारोट,
(ग) खिचड़ी,
(घ) दलिया तथा
(ङ) साबूदाना
या
रोगी के लिए खिचड़ी बनाने की विधि लिखिए। [2015, 17]
उत्तर:
(क) कस्टर्ड:
यह कम तरल भोजन की श्रेणी में आता है। यह रोगी के लिए सुपाच्य एवं शक्तिवर्द्धक होता है। इसे बनाने के लिए एक ताजे अण्डे को तोड़कर उसकी जर्दी को अच्छी तरह से फेटते हैं। अब इसमें आवश्यकतानुसार चीनी व 250 मिलीलीटर दूध मिलाकर एक कटोरे में डाल देते हैं। एक भगोने में खौलता हुआ पानी लेकर उसके बीच में उपर्युक्त कटोरा रखकर घोल को चम्मच से | तब तक हिलाते हैं जब तक यह गाढ़ा न हो जाए। गाढ़े घोल को हल्का गर्म अथवा ठण्डा करके रोगी
को दिया जाता है।

(ख) अरारोट:
दो छोटे चम्मच अरारोट पाउडर को 50 मिलीलीटर पानी में डालकर घोल बनाएँ। अब इस घोल को 250 मिलीलीटर खौलते दूध में थोड़ा-थोड़ा डालें तथा चम्मच से लगातार चलाते रहें जिससे कि इसमें गाँठे न पड़े। गाढ़ा होने पर उतारकर चीनी मिला दें। इसे रोगी को (UPBoardSolutions.com) गर्म-गर्म परोसा जाता है। पेचिश एवं अतिसार के रोगी को यह नमक मिलाकर देना चाहिए।

(ग) खिचड़ी:
यह एक सुपाच्य हल्का भोजन है। मूंग की दाल की खिचड़ी मलेरिया व पेचिश के रोगियों के लिए अति उपयोगी रहती है। एक भाग चावल व दो भाग मूंग की दाल लेकर दोनों को बीन कर साफ कर लें तथा स्वच्छ पानी में इन्हें दो-तीन बार धो लें। एक भगोने में पानी उबालें तथा उबलते पानी में उपर्युक्त दाल-चावल डालकर आग पर चढ़ा दें। आवश्यकतानुसार इसमें नमक वे हल्दी डाल दें। जब दाल व चावल अच्छी तरह पक जाए तथा खिचड़ी थोड़ी गाढ़ी हो जाए, तो इसे ठण्डा करके रोगी को दिया जा सकता है।

UP Board Solutions

(घ) दलिया:
दलिये में प्रोटीन, कार्बोज तथा लवण होते हैं। यह हल्का, सुपाच्य तथा पौष्टिक होता है तथा प्रायः सभी प्रकार के रोगियों के लिए उपयोगी रहती है। इसे बनाने के लिए एक बड़ी चम्मच दलिये को दो प्याले पानी में डाल कर उबालें। हल्का गाढ़ा हो जाने पर इसे रोगी की रुचि के अनुसार नमक डालकर परोसे अथवा इसमें चीनी व दूध मिलाकर दें।

(ङ) साबूदाना:
विभिन्न रोगों में पाचन शक्ति कमजोर होने पर साबूदाने का सेवन रोगी के लिए अत्यन्त लाभप्रद रहता है। इसे बनाने के लिए एक बड़ी चम्मच साबूदाना लेकर उसे अच्छी प्रकार से साफ कर लें। अब एक भगोने में 250 मिलीलीटर पानी उबालें। पानी के उबलने पर उसमें साबूदाना डाल दें। थोड़ी देर पकने पर उसमें आवश्यकतानुसार दूध व चीनी डाल दें। इसे रोगी की रुचि के अनुसार गर्म अथवा हल्का गर्म परोसें। यह मलेरिया व टायफाइड के रोगी को दिया जाता है। पेचिश के रोगी को साबूदाना बिना चीनी व दूध डाले देना चाहिए।

प्रश्न 4:
निम्न रोगों के रोगियों के रोग की अवधि तथा स्वास्थ्य लाभ के समय का भोजन क्या होगा और वह कैसे बनेगा
(क)गैस्ट्रोएण्ट्राइटिस तथा
(ख) मियादी बुखार
या
मियादी बुखार के लक्षण लिखिए। किसी एक रोग से ग्रसित रोगी को क्या भोजन देंगे?
या
मियादी बुखार में रोगी को क्या आहार दिया जाना चाहिए? [2018]
उत्तर:

(क) गैस्ट्रोएण्ट्राइटिस:
यह दूषित आहार के कारण होने वाला पेट का रोग है जिसमें आँतों में सूजन आ जाने के फलस्वरूप पेट में दर्द अनुभव होता है तथा अम्लीयता बढ़ जाती है; अतः इस रोग की अवधि में शीघ्र पचने वाले तरल भोज्य-पदार्थों का सेवन अधिक कराया जाता है। इस बात का (UPBoardSolutions.com) विशेष ध्यान रखा जाता है कि आहार में अम्लीय पदार्थ न हों। उदाहरण-टोस्ट का पानी, नींबू रहित चावल का पानी तथा पालक, गाजर वे लौकी आदि सब्जियों का सूप।
स्वास्थ्य लाभ के समय रोगी को हल्के एवं सुपाच्य भोजन; जैसे-खिचड़ी, साबूदाना तथा दलिया; देना चाहिए।

[संकेत: बनाने की विधि हेतु विस्तृत उत्तरीय प्रश्न सं० 3 का उत्तर देखें।)
(ख) मियादी बुखार:
मियादी बुखार या टायफाइड नामक रोग में आहार का विशेष महत्त्व होता है। यह रोग आहार-नाल में जीवाणुओं के संक्रमण से उत्पन्न होता है। इस रोग में आँतों में सूजन एवं घाव हो जाते हैं तथा पाचन शक्ति अत्यधिक क्षीण हो जाती है। इस रोग की अवधि तथा स्वास्थ्य लाभ की अवधि में दिये जाने वाले क्विरण निम्नलिखित हैं

रोग की अवधि में आहार:
मियादी बुखार या टायफाइड रोग की स्थिति में रोगी के शरीर में प्रोटीन की काफी कमी हो जाती है। इसके अतिरिक्त विभिन्न खनिज लवणों तथा ग्लाइकोजन के संग्रह में भी कमी आ जाती है। इस स्थिति में रोगी को ऐसा आहार दिया जाना चाहिए, जिससे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, जल, सोडियम तथा पोटैशियम क्लोराइड की समुचित मात्रा मिलती रहे। इस रोग में ऊर्जा की आवश्यकता भी अधिक होती है। दिन में लगभग 3500 कैलोरी ऊर्जा आवश्यक होती है। (UPBoardSolutions.com) इसके साथ ही प्रतिदिन लगभग 100 ग्राम प्रोटीन भी आवश्यक होती है।

UP Board Solutions

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए टायफाइड के रोगी के लिए नियोजित खाद्य-सामग्री में विभिन्न भोज्य-पदार्थों का समावेश होना चाहिए। रोगी को दूध, आधा उबला हुआ अण्डा, ब्रेड, मक्खन तथा सूजी की खीर या कॉर्नफ्लैक्स आदि दिया जा सकता है। फलों का रस, भुना हुआ आलू, हल्की चपाती तथा मसूर की दाल भी दी जा सकती है। टायफाइड के रोगी को दिन में तीन बार मुख्य आहार दिया
जाना चाहिए तथा साथ ही अल्प-मात्रा में मध्य-आहार भी दिए जा सकते हैं। ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
पेचिश के रोगी के रोग की अवधि और स्वास्थ्य लाभ के समय का भोजन कैसा होना चाहिए?
या
पेचिश के रोगी को कैसा भोजन दिया जाना चाहिए और क्यों? [2008, 11, 12, 13, 16]
उत्तर:
पेचिश की स्थिति में आहार

पेचिश में बार-बार दस्त लगते हैं तथा पेट में ऐंठन होती है। मल के साथ श्लेष्मा तथा कभी-कभी रक्त भी विसर्जित होता है। पेचिश दो प्रकार की होती है-एक एमीबिक (Amoebic) जो अमीबा नामक सूक्ष्म रोगाणु द्वारा उत्पन्न होती है और दूसरी बैसिलरी। यह पहले प्रकार की पेचिश से अधिक घातक होती है।

इस रोग का उद्भवन काल 1 से 2 दिन होता है। बैसिलरी पेचिश में दस्तों के साथ ज्वर भी (UPBoardSolutions.com) रहता है, परन्तु अमीबिक में ज्वर नहीं होता है। ऐंठन के साथ लाल या सफेद आँव वाले दस्त दोनों में
ही लगते हैं।

रोगी को दही, उबला चावल, मूंग की दाल की खिचड़ी, पानी में पका साबूदाना या अरारोट, केला दिया जा सकता है। गम्भीर अवस्था में केवल चावल का माँड ही दिया जाना चाहिए। ईसबगोल
की भूसी दही में मिलाकर दिन में दो या तीन बार खिलानी चाहिए।
जैसे-जैसे पाचन शक्ति ठीक हो जाए रोटी, फल, तरकारी भी खाने को दे सकते हैं।

प्रश्न 2:
स्वस्थ व्यक्ति और रोगी के भोजन में क्या अन्तर होता है? [2008, 11, 12, 13]
उत्तर:
आहार मनुष्य का सर्वोत्तम डॉक्टर है। यदि स्वस्थ अवस्था में सही, सुपाच्य तथा उचित मात्रा में सन्तुलित भोजन मनुष्य को मिलता रहे तो उसका स्वास्थ्य, संक्रामक रोगों को छोड़कर, सामान्यतः ठीक रहता है। इसी प्रकार, रुग्णावस्था में थोड़ा-सा भी अनियमित भोजन लेने पर रोग की गम्भीरता अत्यधिक बढ़ सकती है।
रुग्णावस्था में भोजन ऐसा होना चाहिए जिसमें आवश्यक पोषक-तत्त्व, जिनकी शरीर में कमी हो सकती है, अधिक मात्रा में हों। रोगी के भोजन में सभी पौष्टिक तत्त्व आवश्यक हैं, किन्त यह सरलत ग्राह्य, सुपाच्य तथा शीघ्र पचने वाला होना चाहिए।

UP Board Solutions

प्रश्न 3:
विभिन्न रोगियों को दिए जाने वाले भोजन की तालिका बनाइए।
या।
निम्न रोगों के रोगियों का भोजन कैसा होना चाहिए ? ज्वर, अतिसार, टायफाइड। [2009]
उत्तर:
विभिन्न रोगों के रोगियों को दिए जाने वाले भोजन की तालिका (UPBoardSolutions.com) निम्नलिखित है
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 16 विभिन्न रोगों में रोगी का भोजन

प्रश्न 4:
रोगी के भोजन की व्यवस्था करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए? [2008, 11, 17]
उत्तर:
रोगी के भोजन की व्यवस्था करते समय निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए

  1. भोजन सफाई से स्टील या कलई के बर्तनों में बनाया जाना चाहिए।
  2. भोजन इस प्रकार तैयार होना चाहिए कि उसके पौष्टिक तत्त्व; जैसे—प्रोटीन, खनिज-लवण व विटामिन आदि; नष्ट न होने पाये।।
  3. भोजन डॉक्टर के निर्देशानुसार तैयार करना चाहिए।
  4. रोगी के भोजन में चटपटे मसाले, घी व तेल का कम-से-कम प्रयोग करना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो, उबली हुई सब्जी ही देनी चाहिए।
  5. भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए आवश्यकतानुसार काला नमक व काली मिर्च का प्रयोग करना चाहिए।
  6.  भोजन के साथ सब्जी में नींबू का प्रयोग आवश्यकतानुसार करना चाहिए।
  7. (रोगी को अधिकतर हल्का भोजन; जैसे-खिचड़ी, डबलरोटी, हल्की-हल्की (UPBoardSolutions.com) फुलकियाँ, पालक की सब्जी इत्यादि; देना चाहिए।
  8. रोगी को जो भी भोजन दिया जा रहा है, वह उन तत्त्वों से परिपूर्ण होना चाहिए जिनकी कमी से वह रोग उत्पन्न हुआ है।

UP Board Solutions

प्रश्न 5:
रोगी को भोजन कराते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी? [2011, 13, 14]
उत्तर:
रोगी को भोजन कराते समय ध्यान रखने योग्य मुख्य बातें निम्नलिखित हैं

  1. भोजन सुपाच्य एवं हल्का तथा डॉक्टर की सलाह पर आधारित होना चाहिए।
  2. रोगी को प्रायः दिन में भोजन कराना उपयुक्त रहता है।
  3. रोगी को नींद से जगाकर भोजन न कराएँ।
  4. रोगी को निश्चित कार्यक्रम व समय के अनुसार भोजन कराना चाहिए।
  5.  भोजन सदैव स्वच्छ बर्तनों में देना चाहिए तथा प्रयुक्त बर्तनों को नि:संक्रमित कर साफ करना चाहिए।
  6. रोगी से सदैव प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।

प्रश्न 6:
क्षय रोग से ग्रस्त व्यक्ति को रोग की अवधि तथा स्वास्थ्य लाभ के समय क्या आहार दिया जाना चाहिए? [2014]
उत्तर:
क्षय रोग से ग्रस्त व्यक्ति के फेफड़े कुप्रभावित होते हैं जिससे खाँसी व स्थायी ज्वर बना रहता है। इसके अतिरिक्त रोगी को भूख कम लगती है तथा उसका भार नित्यप्रति कम होता रहता है। अतः उसे अतिरिक्त कैलोरीयुक्त भोजन की आवश्यकता होती है। रोग की अवस्था में उसे हल्का, सुपाच्य एवं पौष्टिक भोजन देना चाहिए। इसके लिए उसे दाल, टमाटर व मांस के सूप दिए जाने चाहिए। शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए रोगी को मूंग की दाल की खिचड़ी, दूध का दलिया, दूध, अण्डा, हरी शाक- सब्जियाँ तथा फलों का सेवन कराना उपयुक्त रहता है।

प्रश्न 7:
मलेरिया रोग में दिए जाने वाले आहार का विवरण प्रस्तुत कीजिए। [2010]
उत्तर:
मलेरिया नामक रोग में व्यक्ति को कॅपकपी से तीव्र ज्वर होता है। इस रोग में व्यक्ति का यकृत भी प्रभावित होता है परन्तु व्यक्ति का पाचन क्रिया पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। सामान्य दशाओं में मलेरिया के रोगी को सामान्य पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार (UPBoardSolutions.com) दिया जा सकता है, परन्तु यदि ज्वर तीव्र है, तो भोजन देना उचित नहीं होता। इस दशा में रोगी को दूध दिया जाना चाहिए। ज्वर उतर जाने के बाद स्वास्थ्य लाभ के समय सुपाच्य किन्तु पौष्टिक हल्का भोजन देना चाहिए। रोगी को उसकी रुचि के अनुसार खिचड़ी, दलिया, साबूदाना, हरी सब्जियाँ दी जा सकती हैं। रोगी को उबला अण्डा तथा मक्खन भी दिया जा सकता है।

प्रश्न 8:
रोगी के आहार में ग्लूकोज का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
ग्लूकोज अन्य शर्कराओं की अपेक्षा अधिक घुलनशील होती है तथा एन्जाइम क्रिया के बिना ही अवशोषित होकर रक्त प्रवाह में पहुँच जाती है। अत: ग्लूकोज तुरन्त ऊर्जा प्रदान करती है। इस प्रकार ग्लूकोज लेने पर रोगी दुर्बलता से शीघ्र मुक्त होने का अनुभव करता है। हमारे शरीर में ग्लूकोज शर्करा ग्लाइकोजन के रूप में संचित रहती है तथा आवश्यकतानुसार ग्लाइकोजन ग्लूकोज में परिवर्तित होकर रुधिर प्रवाह में मिलती रहती है। रुग्णावस्था में ग्लाइकोजने के संचय में कमी आ जाती है, जिसकी पूर्ति करने के लिए रोगी को ग्लूकोज देना आवश्यक हो जाता है।

प्रश्न 9:
टमाटर सूप कैसे तैयार करेंगी? [2015, 17]
उत्तर:
टमाटर सूप बनाने के लिए सही पके हुए टमाटरों को पहले स्टील या कलई किये बर्तन में उबालते हैं। जब टमाटर भली-भाँति उबल जायें तो इन्हें बड़े चम्मच या कलछी से घोट लिया जाता है। तत्पश्चात् इसका पानी छानकर रोगी की इच्छानुसार नमक, काली मिर्च डालकर ही रोगी को दिया जा सकता है। स्वाद के अनुसार इसमें थोड़ी चीनी भी मिलाई जा सकती है।

प्रश्न 10:
टोस्ट वाटर तैयार करने की विधि लिखिए। [2016]
उत्तर:
सामग्री डबलरोटी का टुकड़ा व पानी।

बनाने की विधि डबलरोटी के टुकड़े को आग पर सेंक लेते हैं। जब वह गुलाबी रंग का हो जाता है तो उसे किसी बर्तन (कटोरा) में रख देते हैं। अब एक बड़े बर्तन में पानी उबालते हैं। जब पानी खूब उबल जाता है तो उसे सिके टोस्ट वाले बर्तन में डाल देते हैं तथा उस पानी (UPBoardSolutions.com) को छान लेते हैं, यही टोस्ट वाटर (टोस्ट का पानी) कहलाता है। इसमें काला नमक तथा काली मिर्च मिलाकर रोगी को देते हैं।
टोस्ट वाटर अधिकतर टायफाइड के रोगी को ज्वर उतरने के पश्चात् दिया जाता है।

UP Board Solutions

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
किसी व्यक्ति को रोग की दशा में दिए जाने वाले आहार को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
किसी व्यक्ति को रोग की दशा में दिए जाने वाले आहार को उपचारार्थ आहार कहा जाता है।

प्रश्न 2:
रोगी के भोजन को कितनी श्रेणियों में विभालि किया जा सकता है?
उत्तर:
रोगी के भोजन को क्रमश: तरल आहार तथा कम हार के। श्रणियों में बाँटा जा सकता है। तरल आहार को पुन: पूर्ण-तरल तथा अर्द्ध-तरल आहार में बाँटा जाता है।

प्रश्न 3:
रोगी के लिए कार्बोज का सर्वाधिक उपयोगी स्रोत कौन-सा है?
या
फलों का आहार में क्यमहत्त्व है? [2008]
उत्तर:
सेब, अंगर, केला, अमरूद वे आम आदि फल रोगी के लिए कार्बोज प्राप्ति के मुख्य साधन हैं। इनसे रक्त में शर्करा की आवश्यकता की तुरन्त पूर्ति हो जाती है और शारीरिक अंगों को विशेष श्रम नहीं करना पड़ता।

प्रश्न 4:
जौ का पानी किस रोग में दिया जाता है? [2015, 16]
उत्तर:
जौ का पानी गुर्दो के रोग तथा पेचिश में दिया जाना लाभप्रद रहता है।

प्रश्न 5:
‘फटे दूध का पानी में भोजन के कौन-कौन से तत्त्व पाए जाते हैं?
या
फटे दूध के पानी की पौष्टिकता के विषय में लिखिए।
उत्तर:
फटे दूध को पानी में खनिज-लवण, विटामिन, शर्करा तथा प्रोटीन आदि भोजन के पौष्टिक तत्त्व पाए जाते हैं।

प्रश्न 6:
फटे दूध के पानी में कौन-सा तत्त्व नहीं पाया जाता?
उत्तर:
फटे दूध के पानी में वसा नामक तत्त्व नहीं पाया जाता।

UP Board Solutions

प्रश्न 7:
टोस्ट का पानी’ किस रोगी को दिया जाता है?
उत्तर:
तीव्र ज्वर से पीड़ित रोगी को टोस्ट का पानी दिया (UPBoardSolutions.com) जाता है।

प्रश्न 8:
रुग्णावस्था में रोगी को किस प्रकार का आहार दिया जाना चाहिए?
उत्तर:
साधारणत: रुग्णावस्था में रोगी को हल्का, सुपाच्य एवं पौष्टिक आहार दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 9:
क्षय रोग से पीड़ित व्यक्ति को कैसा आहार देना चाहिए?
उत्तर:
क्षय रोगी को अधिक कैलोरी बाला, प्रोटीनयुक्त, सुपाच्य भोजन देना चाहिए।

प्रश्न 10:
रोगी को उबालकर ठण्डा किया हुआ जल देने का क्या लाभ है?
उत्तर:
उबालकर ठण्डा किया हुआ जल रोगाणुमुक्त हो जाता है; अतः यह रोगी को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाता।

प्रश्न 11:
टायफाइड में ठोस भोजन खिलाना क्यों उपयुक्त नहीं है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
टायफाइड के रोगी की आँते अत्यधिक कमजोर हो जाती हैं। अतः उसे ठोस भोजन न देकर तरल भोजन देना ही उपयुक्त रहता है।

UP Board Solutions

प्रश्न 12:
मियादी बुखार के रोगी को आप कैसा आहार देंगी? [2010, 14]
उत्तर:
मियादी बुखार के रोगी को वसारहित, प्रोटीनयुक्त तथा तरल अथवा कम तरल भोजन देना लाभप्रद रहता है।

प्रश्न 13:
एक व्यक्ति के लिए दलिया बनाने में पदार्थों का क्या अनुपात होना चाहिए?
उत्तर:
एक बड़ी चम्मच दलिया, दो प्याले पानी, एक प्याला दूध व दो छोटी चम्मच चीनी एक व्यक्ति के लिए दलिया तैयार करने के लिए पर्याप्त रहते हैं।

प्रश्न 14:
तरल भोजन रोगी के लिए क्यों उपयुक्त रहता है? [2018]
उत्तर:
रोगी को यह सुविधापूर्वक दिया जा सकता है तथा अधिक सुपाच्य होने के कारण शीघ्र ही शरीर में अवशोषित हो जाता है।

प्रश्न 15:
रोगी को देने के लिए नरम आहार के कुछ उदाहरण बताइए।
उत्तर:
दूध, गला हुआ मांस, मछली, अण्डा, कीमा, कस्टर्ड, दही, दलिया, खिचड़ी आदि नरम आहार हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 16:
पूर्ण-तरल तथा अर्द्ध-तरल भोजन कौन-से हैं?
उत्तर:
नींबू, मांस, जौ आदि का पानी पूर्ण-तरल, जबकि टमाटर, मांस, दाल, सब्जी का सूप, (UPBoardSolutions.com) चाय, दूध आदि अर्द्ध-तरल भोजन हैं। इनसे भी अधिक ठोस दलिया, साग-सब्जियाँ, खट्टे फल, आधा उबला अण्डा आदि कम-तरल भोजन हैं।

प्रश्न 17:
हल्के भोजन से क्या तात्पर्य है? यह कब दिया जाता है?
उत्तर:
हल्के भोजन का अर्थ है अर्द्ध-तरल शीघ्र पचने वाला सुपाच्य भोजन। यह कम तरल पदार्थ देने के पश्चात् तथा ठोस पदार्थ से पूर्व दिया जाता है।

प्रश्न 18:
कब्ज के रोगी के आहार में मुख्यतः किन भोज्य-पदार्थों का समावेश करना चाहिए? [2009, 12, 13, 18]
उत्तर:
कब्ज के रोगी के आहार में मुख्यतः अधिक रेशे युक्त भोज्य पदार्थों का समावेश करना चाहिए जैसे कि सम्पूर्ण अनाज, छिलकायुक्त दालें, सब्जियाँ तथा फल। जल की मात्रा भी अधिक होनी चाहिए।

प्रश्न 19:
लू लगने के लक्षण लिखिए। इस रोगी को किस प्रकार का आहार देना चाहिए? [2007, 18]
उत्तर:
लू लग जाने पर व्यक्ति को तेज ज्वर हो जाता है। चेहरा लाल हो जाता है, होंठ सूखने लगते हैं तथा शरीर में पानी की कमी हो जाती है। इस दशा में रोगी को ठण्डे पेय-पदार्थ अधिक मात्रा में दिए जाने चाहिए। कच्चे आम का पना तथा पुदीने का रस भी दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 20:
अतिसार के रोगी को क्या भोजन देते हैं और क्यों ? [2011]
उत्तर:
अतिसार के रोगी को केवल तरल पदार्थ देने चाहिए, यह भी तब जब मल त्याग बार-बार हो रहा हो। रेशे वाले पदार्थ, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अचार, मुरब्बे आदि न दें; क्योंकि इससे रोग की गम्भीरता बढ़ सकती है। रोगी में जल की कमी हो जाती है; अतः जल दें। चाय, (UPBoardSolutions.com) कॉफी दी जा सकती है। क्योंकि यह मल का निर्माण नहीं करती।

UP Board Solutions

प्रश्न 21:
अतिसार के रोगी के आहार में दही या मटठे का क्या महत्त्व है?
या
अतिसार के रोगी को कैसा आहार देना चाहिए? [2007, 10, 11, 14]
उत्तर:
अतिसार के रोगी के आहार में दही या मट्ठे का विशेष महत्त्व होता है। यदि इसमें ईसबगोल मिला लिया जाए, तो अधिक लाभ होता है।

प्रश्न 22:
मधुमेह के रोगी को कैसा भोजन देना चाहिए? [2008, 12]
उत्तर:
मधुमेह के रोगी को शर्करायुक्त भोजन देना बन्द कर देना चाहिए। ठोस हो या द्रव किसी भी प्रकार का मीठा पदार्थ ऐसे रोगी को न दें। इसके अतिरिक्त अधिक कार्बोहाइड्रेट्स वाले भोजन; चावल, आलू, शकरकन्द आदि; न देकर प्रोटीनयुक्त भोजन; दालें, दाने वाली, फलियों वाली सब्जियां व खट्टे पदार्थ; दिए जाने चाहिए।

प्रश्न 23:
कच्ची सब्जियों को खाने से शरीर को कौन-से पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में मिलते हैं? [2009, 13, 14]
उत्तर:
कच्ची सब्जियों को खाने से शरीर को लोहा तथा विटामिन्स भरपूर मात्रा में मिलते हैं।

प्रश्न 24:
जीवन-रक्षक घोल क्या है? इसे कैसे तैयार करते हैं? [2016]
उत्तर:
हमारे शरीर में पानी की कमी की पूर्ति करने के लिए जो पेय तैयार किया जाता है उसे ‘जीवन-रक्षक घोल’ कहते हैं। (UPBoardSolutions.com) विधि इसे तैयार करने की विधि बड़ी आसान है-जल को उबालकर उसमें थोड़ा-सा नमक तथा चीनी मिलाकर एवं इसके साथ में दो-चार बूंद नींबू का रस डालकर इसे तैयार किया जाता है।

UP Board Solutions

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न:
निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

1. रोग की अवस्था में कमजोर हो जाती है
(क) स्मरण शक्ति
(ख) नजर
(ग) पाचन शक्ति
(घ) श्रवण शक्ति

2. सामान्य रूप से रोगी को दिया जाना चाहिए
या रोगी का भोजन होना चाहिए
(क) गरिष्ठ आहार
(ख) स्वादिष्ट आहार
(ग) सुपाच्य आहार
(घ) चाहे जैसा आहार

3. लू से पीड़ित व्यक्ति को देना चाहिए [2010, 12, 14, 15]
(क) आम का पना
(ख) प्याज
(ग) हरे पुदीने का रस
(घ) ये सभी

4. मलेरिया के रोगी को देना चाहिए
(क) दूध
(ख) दही
(ग) भोजन
(घ) चाहे कुछ भी हो

5. पेचिश के रोगी को भोजन कैसा होना चाहिए?
(क) केवल फल
(ख) केवल दूध
(ग) दही-चावल
(घ) रोटी-सब्जी

6. रोगी को अधिकतर कैसा भोजन देना चाहिए?
(क) तरल
(ख) गरिष्ठ
(ग) ठोस
(घ) चाहे जैसा

7. निमोनिया के रोगी को कौन-सा पेय पदार्थ देंगी?
(क) लस्सी
(ख) शर्बत
(ग) चाय
(घ) शीतल पेय

8. तरल पदार्थ किस रोग के रोगी को दिया जाता है?
(क) मियादी बुखार
(ख) तपेदिक
(ग) रक्ताल्पता
(घ) सिरदर्द.

UP Board Solutions

9. क्षय रोग के रोगी को कौन-सी वस्तु हानि पहुँचाती है? [2013]
(क) मौसमी
(ख) रस वाले फल
(ग) मिर्च-मसालेदार भोजन
(घ) दूध

10. अतिसार में क्या देना चाहिए?
(क) रोटी
(ख) द्वे वाटर
(ग) मीट
(घ) पुलाव

11. रुग्णावस्था में पाचन शक्ति हो जाती है
(क) अत्यधिक तीव्र
(ख) कमजोर
(ग) कोई अन्तर नहीं होता
(घ) इनमें से कोई नहीं

12. कब्ज के रोगी को कौन-सा आहार अधिक मात्रा में देना चाहिए? [2012]
(क) वसायुक्त
(ख) ठोस
(ग) पौष्टिक
(घ) रेशेदार

13. क्षय रोग के रोगी को कौन-सा भोजन देना चाहिए?
(क) मिर्च-मसालेदार
(ख) दूध
(ग) उबला हुआ
(घ) स्वादिष्ट

14. कौन-सा पदार्थ लेने से तुरन्त ऊर्जा मिलती है? [2013, 14, 17]
(क) विटामिन
(ख) ग्लूकोज
ग) प्रोटीन
(घ) खनिज-लवण

15. किसी भी भोज्य-पदार्थ से प्राप्त ऊर्जा को नापने की इकाई है [2017]
(क) ग्राम
(ख) आंस
(ग) डिग्री
(घ) कैलोरी

16. आहार में कार्बोहाइड्रेट का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए [2007]
(क) बेरीबेरी में
(ख) मधुमेह में
(ग) तपेदिक में
(घ) एनीमिया में

17. मधुमेह किस तत्त्व की अधिकता से होता है? [2011, 16]
क) प्रोटीन
(ख) वसा
(ग) शर्करा
(घ) विटामिन

18. किस प्रकार के भोजन रोगों से बचाते हैं ? [2009]
(क) बिस्कुट
(ख) चावल
(ग) ताजे मौसमी फल एवं हरी सब्जियाँ
(घ) चीनी

19. अतिसार के रोगी को कैसा भोजन देना चाहिए ? [2010, 11, 12]
(क) तला भोजन
(ख) तरल भोजन
(ग) गरिष्ठ भोजन
(घ) कुछ नहीं

20. नेत्रों के लिए कौन-सा पौष्टिक तत्त्व आवश्यक है? [2014, 17, 18]
(क) कैल्सियम
(ख) विटामिन ‘बी’
(ग) ग्लूकोज
(घ) विटामिन ‘ए’

UP Board Solutions

उत्तर:
1. (ग) याचन शक्ति,
2. (ग) सुपाच्य आहार,
3. (घ) ये सभी,
4. (क) दूध,
5. (ग) दही-चावल,
6. (क) तरल,
7. (ग) चाय,
8. (क) मियादी बुखार,
9. (ग) मिर्च-मसालेदार भोजन,
10. (ख) हे कटर,
11. (ख) कमजोर,
12. (घ) रेशेदार,
13. (ख) दूध,
14. (ख) ग्लूकोज,
15. (घ) कैलोरी,
16. (ख) मधुमेह में,
17. (ग) शर्करा,
18. (ग) ताजे मौसमी फल (UPBoardSolutions.com) एवं हरी सब्जियाँ,
19. (ख) तरल भोजन,
20. (घ) विटामिन ‘ए

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 16 विभिन्न रोगों में रोगी का भोजन help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 16 विभिन्न रोगों में रोगी का भोजन, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 17 मानव अस्थि-संस्थान तथा सन्धियाँ

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 17 मानव अस्थि-संस्थान तथा सन्धियाँ

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 17 मानव अस्थि-संस्थान तथा सन्धियाँ.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
अस्थि-संस्थान या अस्थि-तन्त्र से आप क्या समझती हैं? अस्थि-संस्थान (कंकाल) का क्या कार्य है? [2007, 09, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17]
या
मनुष्य के शरीर में अस्थि-संस्थान (कंकाल-तन्त्र) की क्या उपयोगिता है? [2007, 09, 10, 11, 13, 14, 15, 17, 18]
या
कंकाल-तन्त्र (अस्थि-संस्थान) या अस्थि-पंजर की हमारे शरीर में क्या उपयोगिता है? मानव शरीर में कुल कितनी अस्थियाँ होती हैं? [2008, 09, 10 ]
या
यदि शरीर में हड्डियाँ न होतीं तो क्या हानि होती? [2013]
उत्तर:
अस्थि-संस्थान का अर्थ एवं कार्य

यह सत्य है कि बाहर से देखने पर शरीर की हड्डियाँ या अस्थियाँ दिखाई नहीं देतीं, परन्तु यदि शरीर की त्वचा तथा मांसपेशियाँ आदि हटा दी जाएँ, तो अन्दर केवल अस्थियों का ढाँचा मात्र रह जाएगा। इसके अतिरिक्त यदि ऊपर से ही शरीर के किसी भाग को हाथ से टटोला जाए, तो त्वचा के नीचे मांस और मांस के नीचे एक प्रकार की कठोर रचना महसूस होती है। ये कठोर रचना अस्थियाँ ही हैं। शरीर में विभिन्न अस्थियाँ आपस में व्यवस्थित रूप (UPBoardSolutions.com) से सम्बद्ध रहती हैं। शरीर की सभी अस्थियाँ परस्पर सम्बद्ध होकर ही कार्य करती हैं। शरीर में अस्थियों की इस व्यवस्था को ही अस्थि-संस्थान या कंकाल-तन्त्र (Skeletal system) कहते हैं। अस्थि-संस्थान ही शरीर को दृढ़ता, आकृति तथा गति प्रदान करता है। अस्थि-संस्थान में अनेक अस्थियाँ तथा अस्थि-सन्धियाँ पाई जाती हैं।

UP Board Solutions

कंकाल अथवा अस्थि-संस्थान की उपयोगिता

हमारे शरीर में उपस्थित लगभग 206 अस्थियाँ सम्मिलित रूप से कंकाल अथवा अस्थि-संस्थान का निर्माण करती हैं। अस्थि-संस्थान हमारे शरीर का एक निश्चित ढाँचा है, जिसकी उपयोगिता निम्नवर्णित हैं

(1) निश्चित आकार प्रदान करना:
कंकाल अथवा अस्थि-संस्थाने हमारे शरीर को एक निश्चित आकार प्रदान करता है। अस्थियों के अभाव में मानव-शरीर मांस के एक लोथड़े के समान ही होता, जो न तो सीधा खड़ा हो सकता और न ही इसका कोई स्थिर आकार ही होता। वास्तव में अस्थि-संस्थान के द्वारा ही व्यक्ति के शरीर की लम्बाई एवं चौड़ाई का निर्धारण होता है।

(2) दृढता प्रदान करना:
अस्थि-संस्थान शरीर को भली-भाँति साधे रहता है। शरीर के लगभग सभी भागों को सुदृढ़ रखने में अस्थियों का भरपूर योगदान रहता है। अस्थि-संस्थान के ही कारण हमारा शरीर बाहरी आघातों को सहन कर लेता है। अस्थि-संस्थान के माध्यम से ही हम भारी-से-भारी बोझ को भी उठा लिया करते हैं।

(3) कोमल अंगों को सुरक्षा प्रदान करना:
भिन्न-भिन्न स्थानों पर अस्थियाँ कोमल अंगों को कवच प्रदान करती हैं; जैसे–पसलियाँ फेफड़ों व (UPBoardSolutions.com) हृदय को, मेरुदण्ड सुषुम्ना नाड़ी को तथा कपाल मस्तिष्क को सुरक्षा प्रदान करता है।

(4) पेशियों को संयुक्त होने का स्थान प्रदान करना:
विभिन्न स्थानों पर पेशियाँ अस्थियों से जुड़ी रहती हैं। पेशियाँ अस्थियों को सबल एवं सचल बनाती हैं।

(5) शरीर को गतिशीलता प्रदान करना:
अस्थि-संस्थान में अनेक महत्त्वपूर्ण स्थानों पर सन्धियाँ होती हैं। अस्थियों, सन्धियों एवं पेशियों के पारस्परिक सहयोग से शरीर व इसके अन् गतिशील होते हैं।

UP Board Solutions

(6) लाल एवं श्वेत रक्त कणिकाओं का निर्माण:
प्रत्येक अस्थि के मध्य भाग में अस्थि-मज्जा होती है। अस्थि-मज्जा में रुधिर की लाल एवं श्वेत कणिकाओं का निर्माण होता है।

(7) श्वसन में सहयोग देना:
ट्रैकिया अथवा वायुनलिका के छल्ले एवं पसलियाँ फेफड़ों को फूलने के संकुचन करने में सहायता प्रदान करती हैं।

(8) श्रवण में सहयोग देना:
कान की कॉर्टिलेज अस्थियाँ श्रवण क्रिया में सहयोग प्रदान करती हैं।

(9) नेत्रों को सहयोग देना:
हमारे नेत्र कपाल में बने अस्थि गड्ढों में सुरक्षित रहते हैं। इनमें उपस्थित पेशियाँ नेत्रों की गति को नियन्त्रित करती हैं।

(10) उत्तोलक का कार्य करना:
बोझा ढोते एवं सामान उठाते समय मेरुदण्ड एक उत्तम उत्तोलक का कार्य करता है।

अस्थियों (हड्डियों) की बनावट (रचना)

अस्थियाँ मानव शरीर का सबसे कठोर भाग होती हैं। मुख्य अस्थियों से भिन्न कुछ उपास्थियाँ मुलायम भी होती हैं जिन्हें कार्टिलेज कहते हैं। अस्थियों का निर्माण जीवित कोशिकाओं से होता है। अस्थियाँ सफेद रंग की तथा छूने में कठोर होती हैं। अस्थियाँ भीतर (UPBoardSolutions.com) से खोखली होने के कारण कठोर होते हुए भी हल्की होती हैं। अस्थियों में एक नली होती है जिसके अन्दर एक गूदेदार पदार्थ भरा होता है, जिसे अस्थिमज्जा (Bone marrow) कहते हैं। जिस खोखले स्थान पर यह अस्थि-मज्जा होती है, उसे अस्थि-गुहा कहते हैं। अस्थि-मज्जा में लाल और श्वेत रक्त कण बनते हैं। नली के चारों ओर असंख्य अस्थि-कोशिकाएँ होती हैं। ये कोशिकाएँ टूटी हुई अस्थि को जोड़ने में भी सहायक होती हैं। अस्थि-नली में रक्तवाहिनी और नाड़ी सूत्र होते हैं। इसी कारण जीवित मनुष्य की अस्थि का रंग कुछ गुलाबीपन लिए होता है और मृत अवस्था में उसका रंग श्वेत हो जाता है। अस्थियां एक आवरण से ढकी रहती हैं, जिसे अस्थिच्छद कहते हैं। यह आवरण बहुत बड़ा होता है तथा मांसपेशियों से जुड़ा रहता है। अस्थियों का निर्माण विभिन्न खनिजों से होता है। इनमें मुख्य हैं-कैल्सियम फॉस्फेट, कैल्सियम कार्बोनेट तथा मैग्नीशियम फॉस्फेट। इनमें सर्वाधिक मात्रा कैल्सियम फॉस्फेट की ही होती है।

UP Board Solutions

अस्थियों का विकास जीवन के आरम्भ से ही होना शुरू हो जाता है। भ्रूणावस्था में पूरा-का-पूरा कंकाल उपास्थि का ही होता है, परन्तु जन्म के उपरान्त इसका अधिकांश भाग हड्डी में परिवर्तित हो जाता है। यह परिवर्तन उपास्थि के मैट्रिक्स (Matrix) में चूने तथा फॉस्फोरस के लवणों के जमने या निक्षेपण (Deposition) से होता है और इस क्रिया को अस्थि-भवन कहते हैं।

अस्थि-संस्थान के भाग

मानव अस्थि-संस्थान को निम्नलिखित तीन मुख्य भागों में विभक्त किया जा सकता है
(1) सिर अथवा खोपड़ी:
खोपड़ी में कपाल (जिसमें मस्तिष्क सुरक्षित रहता है) तथा आनन (चेहरा) सम्मिलित रहते हैं।

(2) धड़:
वक्ष एवं उदर धड़ के दो भाग होते हैं। वक्ष में रीढ़ की अस्थि, उरोस्थि, हॅसली की अस्थियाँ, कन्धे की अस्थियाँ, पसलियाँ तथा नितम्ब की अस्थियाँ आदि होती हैं, जबकि उदर . अस्थिविहीन होता है।

(3) शाखाएँ:
शाखाओं में दो जोड़े होते हैं-ऊर्ध्व शाखाएँ (भुजाएँ) तथा अधोशाखाएँ (डाँगें)।

प्रश्न 2:
मानव कपाल की संरचना का सचित्र एवं संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
या
सिर की अस्थियों की बनावट और कार्य का चित्र सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सिर अथवा खोपड़ी

मानव खोपड़ी में कुल 22 अस्थियाँ होती हैं जिनमें से 14 चेहरे में तथा शेष ऊपरी भाग में स्थित होती हैं। खोपड़ी के दो प्रमुख भाग होते हैं
(1) कपाल (क्रेनियम) तथा
(2) चेहरा (फेस)

कपाल की अस्थियाँ

कपाल ब्रेन बॉक्स की तरह है। यह हमारे शरीर में सिर के ऊपरी भाग में स्थित होता है। यह अन्दर से खोखला तथा गुम्बद की तरह होता है। इसमें हमारा मस्तिष्क सुरक्षित रहता है। कपाल की रचना 8 चपटी हड्डियों के द्वारा होती है। ये हड्डियाँ आपस (UPBoardSolutions.com) में मजबूती से तथा न हिलने-डुलने वाली
सन्धियों अर्थात् अचल सन्धियों से जुड़ी होती हैं। कपाल में निम्नलिखित 8 हड्डियाँ होती हैं

(क) ललाटास्थि (Frontal Bone):
यह माथा बनाती है और सामने वाले भाग में अकेली ही स्थित होती है। इसी में हमारी आँखों के दो गड्ढे भी होते हैं।

(ख) पार्शिवकास्थि (Parietal Bones):
ये संख्या में दो तथा ललाटास्थियों के ठीक नीचे मध्य में आपस में जुड़ी हुई अस्थियाँ होती हैं और कपाल का बीच का ऊपरी भाग बनाती हैं, जोकि गुम्बद की तरह होता है। ये दोनों कानों की तरफ फैली होती हैं तथा ये बड़ी हड्डियाँ होती हैं।
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 17 मानव अस्थि-संस्थान तथा सन्धियाँ

UP Board Solutions

(ग) पाश्चादास्थि (Occipital Bones):
यह हड्डी भी पार्शिवकास्थि से जुड़ी हुई उसके ठीक पीछे स्थित होती है और खोपड़ी का पश्च भाग बनाती है। इस हड्डी में खोपड़ी का एक बड़ा छिद्र होता है, जिसे महाछिद्र कहते हैं। रीढ़ की हड्डी के अन्दर स्थित सुषुम्ना इसी छिद्र से होकर मस्तिष्क के साथ जुड़ी (UPBoardSolutions.com) होती है। इसमें महाछिद्र के दोनों ओर इधर-उधर दो महत्त्वपूर्ण उभार होते हैं जो खोपड़ी को रीढ़ की हड्डी के साथ जोड़ने में सहायक होते हैं। वास्तव में इन्हीं उभारों पर खोपड़ी टिकी रहती है।

(घ) शंखास्थियाँ (Temporal Bones):
ये हड्डियाँ संख्या में दो होती हैं और सिर के दोनों ओर कनपटियों को बनाती हैं। कान भी इन्हीं अस्थियों पर स्थित होते हैं। प्रत्येक कान का छिद्र भी इन्हीं अस्थियों पर होता है।

(ङ) जतुकास्थि (Sphenoid Bones):
यह दोनों शंखास्थियों के बीच कपाल का निचला तल बनाती है। यह आगे की तरफ ललाट से जुड़ी होती है और पंख की तरह होती है। सम्पूर्ण रूप में इसका आकार एक तितली की तरह दिखाई पड़ता है।

(च) झरझरास्थि या बहु छिद्रिकास्थि (Ethmoid Bone):
यह संख्या में एक होती है और कपाल का निचला तल बनाती है। यह दोनों आँखों के कोटरों के बीच स्थित होती है। इस हड्डी में अनेक छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। इन छिद्रों से होकर मस्तिष्क से निकलने वाली तन्त्रिका-तन्त्र की नाड़ियाँ, रक्त की नलिकाएँ आदि निकलती हैं। इस हड्डी से नाक के अन्दर के भीतरी भाग की संरचना भी बनती है।

UP Board Solutions

चेहरे की अस्थियाँ

मानव का चेहरा निम्नलिखित 14 हड्डियों से निर्मित होता है

(क) अधोहनु या निचले जबड़े की अस्थियाँ (Lower Jaw Bones):
यह जबड़ा चेहरे का सबसे निचला भाग हैं। यह अत्यधिक मजबूत तथा काफी बड़ी हड्डी का बना होता है। इसका आधार घोड़े की नाल की तरह होता है। इसको मेण्डिबल भी कहते हैं। ठोढ़ी भी इसी हड्डी के द्वारा बनती है। यह हड्डी निचले जबड़े को हिला-डुला सकती है; जिसके द्वारा भोजन का भक्षण, पीसना-चबाना इत्यादि कार्य होते हैं। इस हड्डी में ऊपर की ओर 16 गड्ढे होते हैं, जिनमें 16 दाँत फिट रहते हैं।।

(ख) ऊर्ध्व-हनु या ऊपरी जबड़े की अस्थियाँ (Upper Jaw Bones):
यह दो हड्डियों से मिलकर बनता है। दोनों हड्डियों में से एक दाहिनी तथा एक बाईं ओर होती है तथा नाक के ठीक नीचे मध्य में जुड़ी रहती है। इसी हड्डी के द्वारा मुँह के अन्दर तालु का अगला भाग भी बनता है। इन दोनों हड्डियों को मैक्सिलरी अस्थियाँ कहते हैं। प्रत्येक हड्डी में नीचे तथा आगे की ओर 8-8 गड्ढे होते हैं, जिनमें दाँत लगे रहते हैं।

(ग) कपालास्थि (Check Bones):
ये संख्या में दो होती हैं तथा कान से लेकर आँख के नीचे, नाक तक फैली रहती हैं (UPBoardSolutions.com) और आकार में चपटी होती हैं। ये गाल के ऊपरी भाग का आकार बनाती हैं, इसलिए इन्हें कपोलास्थियाँ कहते हैं।

(घ) तालुकास्थियाँ (Palate Bones):
इनकी संख्या भी दो होती है। ये छोटी हड्डियाँ हैं और तालु के पिछले हिस्से में लगी होती हैं व आगे की ओर मैक्सिलरी हड्डी से जुड़ी रहती हैं अर्थात् तालु का अगला भाग मैक्सिलरी हड्डी से तथा पिछला भाग तालुकास्थि से बनता है।

(ङ) नासास्थियाँ (Nasal Bones):
इनकी संख्या भी दो होती है। ये हड्डियों भी चपटी होती हैं। इनका आकार लगभग चौकोर होता है और ये नाक के ऊपरी भाग का कठोर कंकाल बनाती हैं।

(च) स्पंजी या टरबाइनल अस्थियाँ (Spongy Bones):
ये संख्या में दो होती हैं। ये हड्डियाँ विशेष सलवटदार तथा ऐठी हुई होती हैं जो नाक के भीतरी भाग में स्थित होती हैं। इसी मार्ग से होकर वायु आती-जाती है; अतः ये श्वसन मार्ग का निर्माण करती हैं। नाक के अन्दर इन्हें उँगलियों से टटोलकर देखा जा सकता है।

(छ) अश्रु अस्थियाँ (Lachrymal Bones):
इनकी संख्या भी दो होती है। ये हड्डियाँ छोटी तथा छिद्रयुक्त होती हैं। इनकी स्थिति नाक के ऊपरी भाग में नेत्र कोटरों के बीच में होती है। इन्हीं से होकर, छिद्र के द्वारा आँख से आँसू नाक के अन्दर पहुँचते हैं; इसीलिए इनको अश्रु अस्थियाँ भी कहते हैं।

UP Board Solutions

(ज) सीरिकास्थि (Vomer Bone):
यह संख्या में एक होती है तथा नाके के अन्दर का परदा बनाती है और इसको दो भागों में बाँटती है।

प्रश्न 3:
मेरुदण्ड (रीढ़ की हड्डी) की रचना और उसके कार्य का वर्णन कीजिए। यो मेरुदण्ड दण्ड की क्या उपयोगिता है? [2013, 15]
उत्तर :
मेरुदण्ड की रचना और कार्य

मेरुदण्ड (Vertebral Column) पीठ की त्वचा के ठीक नीचे मांसपेशियों से घिरा हुआ पृष्ठ-मध्य रेखा पर स्थित होता है। यह गर्दन तथा धड़ दोनों को साधने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। इसे कशेरुक दण्ड भी कहते हैं। |

रचना:
मेरुदण्ड हमारी खोपड़ी के निचले भाग से लेकर शरीर के पिछले छोर तक स्थित छोटे-छोटे टुकड़ों के जुड़ने से बनी एक विशिष्ट रचना है। इन टुकड़ों या भागों को कशेरुकाएँ कहते हैं। छोटे बच्चे के मेरुदण्ड में कुल 33 कशेरुकाएँ होती हैं, युवावस्था में नीचे की नौ कशेरुकाओं में से पिछली पाँच मिलकर एक और अन्तिम चार मिलकर एक अस्थि बन जाती है। इस प्रकार कुल 26
कशेरुकाएँ रह जाती हैं। इनके मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं

(1) ग्रीवा कशेरुकाएँ (Cervical vertebrae):
इनकी संख्या 7 होती है और ये गर्दन के पिछले हिस्से में स्थित होती हैं। गर्दन को (UPBoardSolutions.com) घुमाने, सीधा करने, झुकाने इत्यादि में ये कशेरुकाएँ मजबूती के साथ लचीलापन पैदा करती हैं, साथ-ही-साथ सम्पूर्ण कशेरुक दण्ड में स्थित सुषुम्ना का अग्रभाग इन्हीं कशेरुकाओं के अन्दर स्थित होता है।
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 17 मानव अस्थि-संस्थान तथा सन्धियाँ

(2) वक्षीय कशेरुकाएँ (Thoracic Vertebrae):
इनकी संख्या 12 होती है और ये वक्षीय प्रदेश में पृष्ठ भाग में ग्रीवा कशेरुकाएँ स्थित होती हैं। ये वक्षीय कंकालं का पिछला तथा मजबूत हिस्सा बनाती हैं। सामने की ओर अन्य हड्डियाँ स्थित होने के कारण वक्षीय स्थल बहुत अधिक लचीला नहीं होता है, फिर भी वक्ष कशेरुकाएँ आवश्यकतानुसार यह झुक सकता है।

UP Board Solutions

(3) कटि कशेरुकाएँ (Lumber Vertebrae):
इनकी संख्या 5 होती है। ये प्रमुखत: उदर तथा कमर के भाग में स्थित कटि कशेरुकाएँ होती हैं। इस भाग में आगे सामने की ओर कोई हड्डी न होने के कारण, उदर का यह भाग प्रमुखतः अत्यन्त लचीला होता है। कूल्हे की कशेरुकाएँ

(4) त्रिक कशेरुकाएँ (Sacral Vertebrae):
इनकी । संख्या 5 होती है। कमर के निचले भाग में ये शरीर का लगभग निचला छोर बनाती हैं। 5 कशेरुकाएँ वयस्क होने तक आपस में पूर्णतः समेकित हो जाती हैं और त्रिभुजाकार हड्डी त्रिकास्थि करती हैं। त्रिकास्थि कूल्हे की हड्डी व श्रोणि- इसकी विभिन्न कशेरुकाएँ तथा सम्पूर्ण मेखला के मध्य में स्थित होती है। इसके कारण ही कुल्हे की कशेरुक दण्ड के झुकाव हड्डी के साथ मिलकर मनुष्य सीधा खड़ा हो सकता है।

(5) अनुत्रिक कशेरुकाएँ (Coccycal Vertebrae):
इनकी संख्या 4 होती है। यद्यपि मनुष्य में पूँछ दिखायी नहीं पड़ती, किन्तु पूँछ के अवशेष के रूप में यहाँ 4 कशेरुकाएँ उपस्थित होती हैं। ऐसा समझा जाता है कि मानव का विकास किसी पूंछ वाले जन्तु से हुआ है और उसके अवशेषों के रूप में कुछ कशेरुकाएँ रह (UPBoardSolutions.com) गयी हैं। ये चार अस्थियाँ वयस्क अवस्था प्राप्त करते-करते आपस में समेकित होकर एक छोटी-सी संरचना अनुत्रिक बनाती हैं, जो श्रोणि-मेखला के मध्य से पीछे की ओर वास्तविक अन्तिम भाग बनाती है।

मेरुदण्ड के कार्य:
मेरुदण्ड मानव अस्थि-संस्थान का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

  1. मेरुदण्ड में फिसलने वाली सन्धि पाई जाती है, जिसके फलस्वरूप हम उठ-बैठ व चल पाते हैं।
  2. मेरुदण्ड की कशेरुकाओं के बीच में उपास्थि (Cartilage) की गद्दियाँ होती हैं, जिनके कारण कूदते समय मेरुदण्ड के टूटने का भय नहीं रहता है।
  3.  मेरुदण्ड की प्रथम कशेरुका सिर के लिए आधारशिला का कार्य करती है।
  4. मेरुदण्ड के अन्दर सुषुम्ना नाड़ी सुरक्षित रहती है।
  5. मेरुदण्ड पीठ की ओर पसलियों को जुड़ने का स्थान प्रदान करती है।
  6. मेरुदण्ड सिर से धड़ तक सारे शरीर को साधे रखती है।

UP Board Solutions

प्रश्न 4:
वक्ष-स्थल के अस्थि-संस्थान की संरचना का संक्षेप में परिचय दीजिए।
या
वक्ष तथा पसलियों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर :
वक्षीय कटहरा

गर्दन से लेकर जाँघ तक का भाग धड़ कहलाता है। मध्यपट द्वारा इसके दो स्पष्ट भाग हो जाते हैं
(1) वक्ष (Thorax) तथा
(2) उदर (Abdomen)

वक्षीय भाग में शरीर के अति कोमल एवं महत्त्वपूर्ण अंग (फेफड़े, हृदय आदि) स्थित होते हैं। कंकाल का वक्षीय भाग, जिसे वक्षीय कटहरा कहते हैं, इन अंगों को पूर्ण रूप से सुरक्षित रखता है। इसमें मेरुदण्ड, उरोस्थि तथा पसलियाँ आदि सम्मिलित हैं। इनका (UPBoardSolutions.com) संक्षिप्त परिचय अग्रलिखित है

(1) रीढ़ की हड्डी या मेरुदण्ड (Vertebral Column):
वक्षीय कंकाल का पृष्ठ भाग अर्थात् पीठ का भाग इसी हड्डी के द्वारा बनता है। यह हड्डी, जो कई छोटी-छोटी छल्ले जैसी हड्डियों के पास-पास लगी होने से बनती है, अन्य हड्डियों को साधने, उन्हें उरोस्थिका स्थान देने आदि का कार्य करने के साथ ही अनेक पेशियों को भी स्थान देती है। यह हड्डी इस कंकाल का मजबूत पृष्ठ बनाती है। बनाती है।
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 17 मानव अस्थि-संस्थान तथा सन्धियाँ

(2) उरोस्थि (Sternum):
यदि हम अपने वक्ष में मध्य रेखा पसलियाँ पर अपनी उँगलियों से टटोलकर देखें तो एक दबा हुआ स्थान महसूस होता है। इसके नीचे छाती की हड्डी या उरोस्थि होती है। यह हड्डी प्रमुख रूप से 3 महत्त्वपूर्ण भागों से मिलकर बनती है

(क) उग्र-उरोस्थि (Manubrium):
यह उरोस्थि का अगला, चौड़ा तथा चपटा भाग है, जिसका आधार लगभग तिकोना । चलायमान पसलियाँ तथा नीचे की ओर लगभग सँकरा होता जाता है। दोनों ओर की । त्रिविम दृश्य हँसली की हड्डी अर्थात् जत्रुकास्थि (Collar Bone) इन हड्डियों से जुड़ी होती है। पसलियों को (UPBoardSolutions.com) पहला जोड़ भी इसी भाग से जुड़ा होता है।

UP Board Solutions

(ख) मध्य-उरोस्थि (Mesosternum):
यह भाग काफी लम्बा और सँकरा होता है। यह भाग एक संयुक्त हड्डी के रूप में होता है, जिसमें भ्रूणावस्था में ही चार हड्डियों के टुकड़े पूरी तरह जुड़कर एक हो जाते हैं। पसलियों के छह जोड़े (दूसरी से सातवीं पसली तक) इसी भाग पर दोनों ओर जुड़े होते हैं।

(ग) पश्च-उरोस्थि या जिंफीस्टर्नम (Giphisternum):
यह छोटा भाग है। प्रारम्भिक अवस्था में तो बच्चों में यह उपास्थियों का बना होता है, किन्तु बाद में यह कड़ा हो जाता है। इस भाग में कोई पसली जुड़ी न होने के कारण यह भाग पसलियों से अलग रहता है।

पसलियाँ या पर्शकाएँ

इनकी कुल संख्या 12 जोड़े अर्थात् 24 होती है। ये विशेष रूप से धनुष-कमान की तरह झुककर वक्षीय कटहरा या पिंजरा बनाती हैं। सभी पसलियाँ पृष्ठ भाग में अपने क्रमांक से कशेरुकाओं से जुड़ी होती हैं। इस प्रकार प्रत्येक कशेरुका से दोनों ओर एक-एक पसली उसी क्रमांक में जुड़ी होती है। दूसरी ओर अर्थात् जन्तु के प्रतिपृष्ठ तल की ओर यह पसली उरोस्थि से जुड़ी रहती है, जिसमें से पहला जोड़ा उग्र उरोस्थि से तथा दूसरे से सातवें तक मध्य-उरोस्थि से जुड़े रहते हैं। आठवीं पसली अपनी ओर की सातवीं पसली से मध्य में जुड़ जाती है। नवीं व दसवीं पसली आपस में जुड़ी रहती हैं। इसके अतिरिक्त, ग्यारहवीं व बारहवीं पसली केवल कशेरुकाओं से जुड़ी रहती हैं, जिसके फलस्वरूप इनके दूसरे सिरे बिल्कुल स्वतन्त्र रहते हैं। इसलिए इन्हें मुक्त पर्शकाएँ या तैरती हुई पसलियाँ (Floating ribs) कहते हैं। इनमें से पहले से लेकर सातवें जोड़े तक तो सत्य पसलियाँ तथा शेष मिथ्या पसलियाँ होती हैं। पसलियाँ वक्षीय कटहरे का मुख्य भाग बनाती हैं तथा साथ ही ये कटहरे के भीतरी स्थान को घटा-बढ़ा भी सकती हैं। कटहरे के बीच की मांसपेशियाँ फैलकर पसलियों को झुकाती एवं सौंधा करती रहती हैं, जिससे कि कटहरे का भीतरी स्थान घटता-बढ़ता रहता है। इससे फेफड़ों की संकुचन व फैलने की गति में सहायता मिलती है।

UP Board Solutions

प्रश्न 5:
पैर की हड्डियों का वर्णन कीजिए। [2015]
या
पैर की अस्थियों का चित्र बनाकर नामांकित कीजिए। [2008]
उत्तर:
प्रत्येक पश्च-पाद के

  1. जाँघ,
  2. टाँग,
  3. टखना,
  4. तलवा तथा
  5. उँगलियाँ; पाँच भाग होते हैं। इनका संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है

(1) जाँघ की हड्डी अथवा उर्विका (Femur):
यह एक लम्बी वे अत्यधिक मजबूत हड्डी होती है। इसका सिरा गोल एवं चिकना होता है तथा श्रोणि उलूखल में फंसा रहता है, जिससे कि यह सहज ही कई दिशाओं में घूम सकती है। इसका दूसरा सिरा घुटने का जोड़ बनाता है तथा अपेक्षाकृत चौड़ा होता है।

(2) पगदड़ या टाँग:
घुटने से आगे टखने तक यह श्रेणिफलक भाग दी हड्डियों से मिलकर बना होता है। इनमें से भीतरी त्रिकास्थि हड्डी, जिसे अन्त:जंघिका (Tibia) कहते हैं, मोटी तथा आसनास्थि अधिक लम्बी होती है; जबकि बाहरी हड्डी, जिसे उर्विका बहि:जंधिका (Fibula) कहते हैं, अपेक्षाकृत छोटी (UPBoardSolutions.com) तथा सँकरी होती है। घुटने को मुख्य रूप से अन्त:जंघिका ही बनाती है। इस स्थान पर एक ओर अन्त:जंघिका तथा दूसरी ओर उर्विका के तल आपस में चिपके रहते हैं। बहि:जंघिका का इस ओर जानुका । का सिरा अन्त:जंघिका से जुड़ा होता है। घुटने पर सामने की क चपटी तिकोनी हड्डी और होती है, जिसे जानुका अन्तःजंघिको बहि:जंघिको (पटेला) कहते हैं। यह हड्डी घुटने को आगे की ओर मुड़ने से रोकती है, किन्तु पीछे की ओर मोड़ने में रुकावट नहीं डालती। गुल्फ की अस्थि

(3) टखना:
टखने में 7 हड्डियाँ होती हैं। ये कलाई की तरह स्थित होती हैं, किन्तु अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत और अंगुलास्थियाँ बड़ी भी होती हैं; अतः इनसे एड़ी को कुछ भाग भी बनता है। शरीर का सम्पूर्ण भार इन्हीं को सँभालना अस्थियों का आपसी सम्बन्ध तथा पड़ता है।
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 17 मानव अस्थि-संस्थान तथा सन्धियाँ

(4) तलवा या प्रपाद:
इस भाग को बनाने के लिए 5 लम्बी हड्डियाँ होती हैं। ये सीधी होती हैं। तथा लगभग सम्पूर्ण तलवे को बनाती हैं। इन्हें प्रपादास्थियाँ कहते हैं। पीछे की ओर ये टखने की हड्डी से जुड़ी होती हैं, जबकि आगे की ओर इनसे उँगलियों की अस्थियाँ जुड़ती हैं।

UP Board Solutions

(5) उँगलियाँ:
प्रत्येक उँगली में 3 किन्तु अँगूठे में केवल 2 हड्डियाँ होती हैं। ये हड्डियाँ सीधी व हाथ की हड्डियों की अपेक्षा छोटी होती हैं। यहाँ अँगूठा भी उँगलियों की ही दिशा में लगा रहता है।

प्रश्न 6:
बाहु की अस्थियों का सचित्र वर्णन कीजिए।
या
बाहु की अस्थियों के नाम लिखिए। कोहनी में किस प्रकार का जोड़ पाया जाता है?
या
चित्र की सहायता से अग्रबाह की अस्थियों का वर्णन कीजिए।
या
बाह में पाई जाने वाली अस्थियों के नाम लिखिए। [2011, 13, 14, 16]
उत्तर:
बाह की अस्थियाँ

सम्पूर्ण बाहु की अस्थियों को 5 भागों में बाँट सकते हैं; जैसे-ऊपर से क्रमशः ऊपरी बाहु, अध:बाह या अग्रबाहु, कलाई, हथेली तथा उँगलियाँ। प्रत्येक भाग को बनाने के लिए एक या कुछ अस्थियाँ होती हैं; जैसे

ऊपरी बाहु की अस्थियाँ:
यह केवल एक अस्थि से बनती है जिसे प्रगण्डिकास्थि (Humerus) कहते हैं। यह एक लम्बी अस्थि होती है जो काफी मजबूत व अन्दर से खोखली होती है। लम्बाई में यह पूर्ण ऊपरी बाहु में फैली रहती है। इसकी ऊपरी सिरा गेंद की तरह गोल होता है तथा अंस-फलक के (UPBoardSolutions.com) अंसकूप में फँसा रहता है। यह अपने गोल तथा चिकनेपन के कारण कूट में आसानी से इधर-उधर या किसी भी दिशा में घूम सकता है। इसका दूसरा सिरा अग्रबाहु की अस्थि के साथ एक वि प्रकार की सन्धि बनाता है जो केवल एक ओर को खुलती या बन्द होती है। इस प्रकार की सन्धि
को कब्जा सन्धि कहते हैं। यह भाग कोहनी का जोड़ बनाता है।

अग्रबाहु की अस्थि:
अग्रबाहु या अध:बाहु में दो लम्बी मजबूत अस्थियाँ होती हैं। दोनों एक-दूसरे के पास-पास लगी रहती हैं। इन अस्थियों को बहिःप्रकोष्ठिकास्थि (Radius) तथा अन्तः प्रकोष्ठिकास्थि (UIna) कहते हैं। इनमें से रेडियस अँगूठे की ओर तथा अल्ना छोटी उँगली की ओर होती है। अल्ना अपेक्षाकृत लम्बी अस्थि है। यही अस्थि कोहनी के जत्रुकास्थि भाग में और लम्बी होकर कब्जा सन्धि बनाने में सहायक है। अंर,लङ रेडियस का ऊपरी सिरा सँकरा होता है जो प्रकोष्ठिका के साथ जुड़ा रहता है; किन्तु अगला सिरा, जो कलाई की अस्थि के पास होता है, प्रगण्डिकास्थि काफी चौड़ा होता है। इन दोनों लम्बी अस्थियों का लगाव अग्रबाहु में इस प्रकार होता है कि यदि हम हथेली को सीधा फैलाते हैं, तो ये एक-दूसरे के पास स्थित होती हैं, किन्तु हथेली को घुमाकर अन्दर अन्त:प्रकोष्ठिका की ओर ले जाएँ, तो ये एक-दूसरे के ऊपर स्थित होती हैं।
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 17 मानव अस्थि-संस्थान तथा सन्धियाँ

कलाई की अस्थियाँ:
कलाई में 8 काफी छोटी-छोटी मणिबन्धास्थयाँ अस्थियाँ होती हैं, जिन्हें मणिबन्धिकास्थियाँ (कार्पल्स) कहते हैं। ये मणिबन्ध 4-4 की दो पंक्तियों में स्थित होकर कलाई को बाँधती हैं। इन केर भास्थि अस्थियों के छोटी-छोटी और अलग-अलग होने के कारण कलाई पूरी 18- अँगुल्यास्थियाँ तरह लचकदार होती है तथा किसी भी दिशा में आसानी से घुमाई जा जासकती है।
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 17 मानव अस्थि-संस्थान तथा सन्धियाँ

हथेली की अस्थि:
हथेलीहथेली को 5 लम्बी और सँकरी अस्थियाँ, उनका आपसी सम्बन्ध व हड्डियाँ बनाती हैं। इन अस्थियों को करभिकाएँ या मेटा-कार्पल्स। अंसमेखला के साथ लगाव कहते हैं। कलाई की ओर ये मणिबन्ध से जुड़ी होती हैं। तथा आगे की ओर अँगुलियों की अस्थि से इनका सम्बन्ध मणिबन्धिकास्थियाँ होता है।

UP Board Solutions

अँगुलियों की अस्थि:
प्रत्येक अँगुली में 3 अस्थियाँ होती हैं। अँगूठे में केवल दो अस्थियाँ होती हैं। ये अँगुलास्थियाँ कहलाती हैं तथा छोटी होती हैं। एक-दूसरे के साथ सपाट जोड़ एक-दूसरे के ऊपर फिसलने में मदद करता है। अँगूठा अन्य अँगुलियों के पीछे हथेली के साथ। समकोण बनाता है। इसकी ऐसी स्थिति के कारण ही हम । छोटी-से-छोटी वस्तु को भी आसानी से पकड़ पाते हैं।

प्रश्न 7:
सन्धि किसे कहते हैं? सन्धि कितने प्रकार की होती हैं? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। [2007, 08, 10, 12, 13, 15, 17, 18]
या
मनुष्य के शरीर में कितने प्रकार की सन्धियाँ होती हैं? किसी एक प्रकार की सन्धि का चित्र बनाइए। [2009, 10, 12]
या
अस्थि सन्धि से आप क्या समझती हैं? अस्थि सन्धि के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए उसके प्रकारों का उल्लेख कीजिए। [2007, 08, 9, 10, 16]
या
कन्दुक-खल्लिका सन्धि की रचना लिखिए व चित्र बनाइए  [ 2014, 15, 16]
या
कोहनी में किस प्रकार की सन्धि पायी जाती है? चित्र सहित वर्णन कीजिए। [2013]
या
अस्थि सन्धि से आप क्या समझती हैं? अस्थि सन्धियाँ कितने प्रकार की होती हैं? चल सन्धियों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। [2008]
या
चल सन्धि क्या है ? चल सन्धि के प्रकार उदाहरण सहित लिखिए। [2009, 13]
या
सन्धियाँ कितने प्रकार की होती हैं? [2010, 13, 14, 16]
या
अस्थियों में ‘अचल सन्धि से आप क्या समझती हैं? [2018]
उत्तर:
अस्थि सन्धियाँ

शरार में दो या दो से अधिक अस्थियों के मिलने के स्थान को अस्थि-सन्धि कहते हैं। शरीर के भिन्न भिन्न अंगों की अस्थियाँ पररपा विद रहती हैं। प्रत्येक सन्धि ‘बन्धक तन्तुओं तथा ‘सौत्रिवः पनों की पट्टियों से बँधी रहती है। ये बन्धक सूत्र डोरे के समान होते हैं तथा अस्थियों को उचित स्थानों पर स्थित रखते हैं। जिन स्थानों पर दो अस्थियों की सन्धियाँ होती हैं, वहाँ पर अस्थियों में कोमल पदार्थ कार्टिलेज अधिक मात्रा में विद्यमान रहता है; अत: जोड़ पर इसके रहने से (UPBoardSolutions.com) जोड़ में सुविधा रहती है। जोड़ पर अस्थियाँ एक-दूसरे पर घूमती हैं। इससे रगड़ होना स्वाभाविक है। इस रगड़ को बचाने के लिए प्रत्येक सन्धि पर ऐसी ग्रन्थियाँ होती हैं, जिनसे एक प्रकार का चिकना द्रव पदार्थ सदैव निकलता रहता है। यह पदार्थ सन्धि को उसी प्रकार से सुरक्षित रखता है, जिस प्रकार से कोई मशीन तेल दे देने से सुरक्षित रहती है।

UP Board Solutions

क्रिया एवं महत्त्व:
सन्धियों पर ही अंगों की गति होती है। यदि हमारी बाहु की अस्थि स्केप्युता से अपने वर्तमान रूप में संयुक्त न होती तो हमारी बाँह बेकार निर्जीव अवस्था में लटकती रहती। हम उसे न तो घुमा-फिरा सकते थे और न ही ऊपर से नीचे उठा सकते थे। जब हम दौड़ते हैं, लड़ते हैं या किसी वस्तु को पकड़ते हैं, तो हमारे अंगु इन सन्धियों पर ही मुड़ते हैं। ये मुड़ने की क्रिया उत्पन्न करने वाली पेशियाँ होती हैं, जो एक सन्धि से उदय होकर दूसरी अस्थि पर एक लम्बी रस्सी के समान कण्डरा द्वारा लगती है। जब पेशी संकुचित होती है, तो जिस अस्थि पर वह लगी होती है, वह ऊपर यो सामने या पीछे की ओर उठ जाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सन्धियों के द्वारा ही हमारे शरीर की विभिन्न गतियाँ सम्भव होती हैं। यदि हमारे अस्थि-संस्थान में ये समस्त सन्धियाँ न होतीं, तो हमारा शरीर किसी भी प्रकार की गति न कर पाता तथा वह पूर्ण रूप से स्थिर ही रहता।
सन्धियाँ दो प्रकार की होती हैं
(1) अचल तथा
(2) चलः

(1) अचल सन्धियाँ:
जब दो या दो से अधिक अस्थियाँ आपस में मिलकर इस प्रकार जुड़े जाएँ कि वे बिल्कुल हिल-डुल ही न सकें, तो उस सन्धि को अचल सन्धि कहते हैं। इस प्रकार की सन्धियाँ कपाल की अस्थियों में पाई जाती हैं। इस प्रकार के जोड़ के लिए अस्थियों के किनारे इस प्रकार के होने चाहिए कि वे एक-दूसरे में पूर्ण रूप से जमकर बैठ जाएँ।

UP Board Solutions

(2) चल सन्धियाँ:
दो या दो से अधिक अस्थियाँ जब एक-दूसरे के पास इस प्रकार लगी रहती हैं कि वे किसी निश्चित या कई दिशाओं में आसानी से हिल-डुल सकती हों अर्थात् गति कर सकें, तो इस प्रकार के जोड़ को चल सन्धि कहते हैं।
चल सन्धियाँ शरीर में कई प्रकार की होती हैं, जिनसे शरीर के विभिन्न अंगों को मोड़ा, घुमाया या चलाया जा सकता है। हमारे शरीर के विभिन्न अंगों को विभिन्न प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं। ये सन्धियाँ निम्न प्रकार की होती हैं

(i) कन्दुक-खल्लिका या गेंद और प्यालेदार सन्धियाँ (Ball and Socket Joint):
यह जोड़ एक प्याले जैसे भाग में किसी दूसरी अस्थि का गोल सिरा फिट रहने से बनता है। ऐसी स्थिति में गेंद जैसा गोल सिरा प्याले जैसे गोल अस्थि में आसानी से चाहे जिधर घूम सकता है। ऐसी सन्धि को कन्दुक-खल्लिका सन्धि कहते हैं। शरीर में इस प्रकार की सन्धि कन्धे पर बाहु का जोड़ (UPBoardSolutions.com) तथा कूल्हे पर टॉग का जोड़ है।

(ii) कब्जा सन्धि (Hinge Joint):
इस प्रकार की सन्धियों में दोनों अस्थियाँ अथवा एक अस्थि एक ही दिशा में खुल या बन्द हो सकती है। इस प्रकार के जोड़ में निश्चय ही कोई एक अस्थि या उसका कोई प्रवर्ध इस प्रकार बढ़ा रहता है कि वह एक निश्चित दिशा के अलावा अन्य दिशा की गति को पूर्णत: रोकता है। इस प्रकार का जोड़ कोहनी, घुटना तथा उँगलियों में मिलता है।
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 17 मानव अस्थि-संस्थान तथा सन्धियाँ

(iii) ख़ुटीदार सन्धि (Pivot Joint):
इसे धुराग्र सन्धि भी कहते हैं। इसमें एक अस्थि या उसके प्रवर्ध धुरे की भाँति अथवा बँटे की तरह सीधे होते हैं। इन धुरों पर दूसरी अस्थियाँ या धुरिया इस प्रकार टिकी रहती हैं कि इनको किधर भी घुमाया जा सके। इनमें केवल टिकी हुई अस्थि या अस्थियाँ ही गति करेंगी, बँटे वाली नहीं। रीढ़ की अस्थि की पहली-दूसरी कशेरुका खोपड़ी के साथ इस प्रकार का जोड़ बनाती हैं। वहीं पर इस कशेरुका का एक प्रवर्ध निकला रहता है, जिस पर खोपड़ी रखी रहती है। इस प्रकार खोपड़ी इस पर आसानी से घूमती है।

UP Board Solutions

(iv) फिसलनदार सन्धि (Sliding Joint):
इसे विसप सन्धि भी कहते हैं। ऐसी सन्धि वास्तव में कोई जोड़ नहीं बनाती है, बल्कि इनकी अस्थियाँ एक-दूसरे के ऊपर अपने चपटे तल के पास-पास लगी रहती हैं। इन दोनों की चौड़ाई में कई उपास्थियाँ होती हैं जो इन अस्थियों को गति करने के लिए फिसलने में मदद करती हैं। कलाई की अस्थि के जोड तथा कशेरुका के जोड़ों में इसी प्रकार की सन्धि होती है। यद्यपि हमारी अँगुलियों में कब्जे की तरह के पोरुए होते हैं, जबकि इन अस्थियों का आपसी जोड़ भी फिसलने वाला ही होता है।

(v) पर्याण या सैडिल सन्धि (Saddle Joint):
इस प्रकार की अस्थि सन्धि हमारे हाथ के अँगूठे की मेटाकार्पल्स तथा कार्पल्स के मध्य पाई जाती है। इस सन्धि की विशिष्ट रचना के ही कारण. हाथ को अँगूठा अन्य अँगुलियों की अपेक्षा इधर-उधर अधिक घुमाया जा सकता है। सैडिल सन्धि की रचना कन्दुक-खल्लिका से मिलती-जुलती होती हैं, परन्तु इसे सन्धि में पाए जाने वाले बॉल तथा साकेट कम विकसित होते हैं।

अस्थियों की सन्धियाँ या जोड़ सदैव ही विशेष प्रकार की डोरियों या स्नायुओं (Ligaments) से बँधे रहते हैं। इन्हीं जोड़ों पर मांसपेशियाँ लगी रहती हैं। मांसपेशियाँ गति कराने में सहायक होती हैं, जबकि ये डोरियाँ इन्हें बाँधे रखने में। इस प्रकार के जोड़ों में उपास्थियाँ भी कई बार महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।

चल सन्धि की रचना

हमारे शरीर की चल-सन्धियों में इनमें कई प्रबन्ध होते हैं, ताकि अस्थियाँ आपस में रगड़ खाकर खराब न हों और वे इस प्रकार बँधी रहें कि वे अपने स्थान से हटें भी नहीं। इसके लिए श्वेत स्नायु की गोल या चौड़ी डोरियाँ होती हैं। ये इोरियाँ ही इन अस्थियों को एक-दूसरे के साथ निश्चित स्थान की ओर निश्चित दिशा में बॉधे रखती हैं। छोटी पेशियाँ इन्हें खींचकर किसी भी दिशा या गन्तव्य दिशा में हटाने की कोशिश करती हैं, किन्तु स्प्रिंग की तरह उल्टी दिशा में ये इन्हें (UPBoardSolutions.com) पूर्व-निर्धारित स्थान पर खींच लेती हैं। अस्थियों को रगड़ से बचाने का विशेष प्रबन्ध होता है। इसके लिए दोनों अस्थियों के बीच एक थैली जैसी वस्तु होती है जिसके अन्दर एक गाढ़ा स्नेहयुक्त तरल पदार्थ होता है। इस तरल पदार्थ के कारण अस्थियों के सिरे सदैव चिकने रहते हैं। चिकने तरल पदार्थ वाले इन थैलों को स्नेहको यो स्राव-सम्पुट (Synovial capsules) कहते हैं। इनके अन्दर भरे चिकने पदार्थ को स्नेहक द्रव (Synovial fluid) कहते हैं।

UP Board Solutions

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
मानव शरीर में पाई जाने वाली अस्थियों के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि प्रायः सभी अस्थियों की आन्तरिक रचना एक समान ही होती है, परन्तु उनके बाहरी आकार में पर्याप्त भिन्नता पाई जाती है। आकार की भिन्नता के आधार पर मानव शरीर की समस्त अस्थियों को निम्नलिखित छ: प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है

  1.  चपटी अस्थियाँ:               कपाल की अस्थियाँ।
  2. लम्बी अस्थियाँ:                 बाँहों तथा टाँगों की अस्थियाँ।
  3. गोल अस्थियाँ:                  कलाई तथा टखने की अस्थियाँ।
  4. विषम अस्थियाँ:                मेरुदण्ड की अस्थियाँ।
  5. छोटी अस्थियाँ:                 अँगुलियों की अस्थियाँ।
  6. कीलाकार अस्थियाँ:         टखने की अस्थियों की दूसरी तह के भीतर की तीन अस्थियाँ।

प्रश्न 2:
सन्धि किसे कहते हैं? सन्धियों के प्रकार लिखिए। कन्धे में किस प्रकार की सन्धि पाई जाती है?
या
अस्थि सन्धियाँ किसे कहते हैं? कब्जेदार जोड़ के बारे में लिखिए। [2007, 16]
या
अस्थि-सन्धि किसे कहते हैं। सन्धियों के नाम उदाहरण सहित लिखिए। [2008]
उत्तर:
शरीर के कंकाल तन्त्र में दो या दो से अधिक अस्थियों के मिलने के स्थान को सन्धि कहते हैं। सन्धियाँ प्रमुखतः दो प्रकार की होती हैं
(1) चल सन्धि तथा
(2) अचल सन्धि।

चल सन्धियाँ पूर्ण या अपूर्ण प्रकार की हो सकती हैं। पूर्ण सन्धियाँ कई प्रकार की होती हैं; जैसे-कन्दुक-खल्लिका सन्धि, कब्जा सन्धि, धुराग्र या कीलक सन्धि, विसप सन्धि आदि। कन्धे के स्थान पर कन्दुक-खल्लिका सन्धि पाई जाती है।

UP Board Solutions

प्रश्न 3:
हमारे मेरुदण्ड में पाई जाने वाली कशेरुकाओं की संख्या एवं स्थिति का उल्लेख कीजिए।
या
मेरुदण्ड में कितनी अस्थियाँ होती हैं?
उत्तर:
एक वयस्क व्यक्ति के मेरुदण्ड में कुल 26 कशेरुकाएँ होती हैं, जिनकी स्थिति के अनुसार संख्या निम्नलिखित है
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 17 मानव अस्थि-संस्थान तथा सन्धियाँ

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
अस्थि-संस्थान से क्या आशय है? [2003, 05]
उतर:
शरीर की समस्त अस्थियों की व्यवस्था को अस्थि-संस्थान या कंकाल-तन्त्र के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 2:
वयस्क मनुष्य में अस्थियों की कुल संख्या कितनी होती है?
या
शरीर में कुल कितनी अस्थियाँ होती है। [ 2011, 15]
उत्तर:
वयस्क मनुष्य के अस्थि-संस्थान में प्राय: 206 (UPBoardSolutions.com) अस्थियाँ होती हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 3:
मानव अस्थि-संस्थान को कितने भागों में विभक्त किया जा सकता है?
उत्तर:
मानव अस्थि-संस्थान को तीन मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है
(1) खोपड़ी,
(2) धड़
और
(3) ऊर्ध्व तथा अधोशाखाएँ।

प्रश्न 4:
अस्थियों के विकास के लिए कौन-कौन से पोषक तत्त्व आवश्यक हैं? [2009]
उत्तर:
कैल्सियम तथा फॉस्फोरस अस्थियों के विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व हैं।

प्रश्न 5:
अस्थियों के खोखले भाग को क्या कहते हैं? उसमें क्या भरा रहता है?
उत्तर:
अस्थियों के खोखले भाग को अस्थि-गुहा कहते हैं। उसमें अस्थिमज्जा नामक गूदेदार पदार्थ भरा रहता है।

प्रश्न 6:
लाल रक्त कणिकाओं का निर्माण कहाँ होता है?
उत्तर:
लाल रक्त कणिकाएँ अस्थियों के अस्थिमज्जा भाग में बनती हैं।

प्रश्न 7:
बाल्यावस्था में मेरुदण्ड में कशेरुकाओं की संख्या बताइए।
उत्तर:
बच्चों के मेरुदण्ड में 33 कशेरुकाएँ होती हैं।

प्रश्न 8:
वयस्क व्यक्ति के मेरुदण्ड में कितनी कशेरुकाएँ पाई जाती हैं? [2009]
उत्तर:
वयस्क व्यक्ति के मेरुदण्ड में 26 कशेरुकाएँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 9:
सिर के मुख्य भाग कौन-से हैं?
उत्तर:
सिर के दो मुख्य भाग हैं
(1) कपाल तथा
(2)  चेहरा।

प्रश्न 10:
हमारे शरीर में लम्बी अस्थियाँ कहाँ-कहाँ पाई जाती हैं?
उत्तर:
हमारे शरीर में बाँहों तथा टाँगों में लम्बी अस्थियाँ पाई जाती हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 11:
मानव खोपड़ी में कुल कितनी अस्थियाँ होती हैं?
उत्तर:
मानव खोपड़ी में कुल 22 अस्थियाँ होती हैं, जिनमें से 8 कपाल में तथा 14 चेहरे में स्थित होती हैं।

प्रश्न 12:
मानव खोपड़ी में प्रायः किस प्रकार की सन्धियाँ पाई जाती हैं?
उत्तर:
मानव खोपड़ी में प्राय: अचल सन्धियाँ होती हैं।

प्रश्न 13:
अस्थि सन्धि किसे कहते हैं? सन्धियों के प्रकार लिखिए। [2008, 10, 15, 16]
उत्तर:
अस्थि-संस्थान में दो अथवा दो से अधिक अस्थियों के परस्पर सम्बद्ध होने की व्यवस्था एवं स्थल को अस्थि सन्धि कहते हैं। शरीर में चल तथा अचल दो प्रकार की अस्थि सन्धियाँ पायी जाती हैं।

प्रश्न 14:
शरीर में सन्धियों से क्या लाभ हैं?
या
शरीर में कंकाल सन्धियों का क्या महत्त्व है? [2010, 12]
उत्तर:
शरीर की गतिशीलता में सन्धियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। (UPBoardSolutions.com) इन्हीं के कारण हम अपने हाथ, पैर तथा गर्दन आदि को हिला-डुला पाते हैं। ।

प्रश्न 15:
शरीर में मूल रूप से कितने प्रकार की सन्धियाँ पाई जाती हैं? [2007, 10]
उत्तर:
हमारे शरीर में मूल रूप से दो प्रकार की सन्धि पाई जाती हैं। जिन्हें क्रमश: अचल सन्धि तथा चल सन्धि कहा जाता है।

प्रश्न 16:
अचल सन्धि का क्या अर्थ है? यह शरीर में कहाँ पायी जाती हैं?
उत्तर:
हमारे शरीर की उन अस्थि-सन्धियों को अचल सन्धि कहा जाता है, जिनमें किसी प्रकार की गति नहीं होती तथा सम्बन्धितं अस्थियाँ स्थिर होती हैं। अचल सन्धियाँ कपाल की अस्थियों में पाई : जाती हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 17:
पूर्ण चल सन्धियाँ कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर:
पूर्ण चल सन्धियाँ पाँच प्रकार की होती हैं

  1.  कब्जा सन्धि,
  2. कन्दुक-खल्लिका सन्धि,
  3.  ख़ुटीदार सन्धि,
  4. फिसलनदार या प्रसर सन्धि तथा
  5. सैडिल या पर्याण सन्धि।

प्रश्न 18:
चल तथा अचल सन्धि में क्या अन्तर है? [2007, 13]
उत्तर:
चल सन्धियों में विभिन्न प्रकार की निर्धारित गतियाँ होती हैं, जबकि अचल सन्धियों में किसी प्रकार की गति नहीं होती।

प्रश्न 19:
गेंद-गड्ढा (कन्दुक-खल्लिका) सन्धि के दो उदाहरण बताइए।
उत्तर:
गेंद-गड्ढा या कन्दुक-खल्लिका सन्धि के उदाहरण हैं-कन्धे की अस्थि सन्धि तथा कूल्हे की अस्थि सन्धि।

प्रश्न 20:
कब्जा सन्धि तथा बँटीदार सन्धि का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर:
(1) कब्जा सन्धि: इस प्रकार की सन्धियों में दोनों अस्थियों अथवा एक अस्थि कब्जे की तरह एक ही दिशा में खुल या बन्द हो सकती है; जैसे–कुहनी या उँगली।
(2) ख़ुटीदार सन्धि: इसमें एक अस्थि या उसके प्रवर्ध धुरे की भाँति अथवा बँटे की तरह (UPBoardSolutions.com) सीधी होती हैं। इन पर दूसरी अस्थि को किसी भी तरफ घुमाया जा सकता है; जैसे–कशेरुका के एक प्रवर्ध पर रखी खोपड़ी। इस प्रकार खोपड़ी दाएँ या बाएँ, किधर भी घूम सकती है।

UP Board Solutions

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न-निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

1. कंकाल-तन्त्र के मुख्य कार्य हैं
(क) शरीर को आकृति एवं दृढ़ता प्रदान करना
(ख) रक्त कणों का निर्माण करना
(ग) शरीर को गति प्रदान करना
(घ) ये सभी

2. हड्डी में कड़ापन किस तत्त्व के कारण होता है? [2008, 10, 11, 12, 15, 17]
(क) लौह तत्त्व
(ख) सोडियम
(ग) मैग्नीशियम
(घ) कैल्सियम

3. हड्डियाँ किस तत्त्व से मजबूत होती हैं? [2011]
(क) प्रोटीन
(ख) सोडियम
(ग) कैल्सियम
(घ) वसा

4. खोपड़ी में अस्थियों की कुल संख्या कितनी होती है?
(क) आठ
(ख) चौदह
(ग) बाईस
(घ) चौबीस

UP Board Solutions

5. मानव कंकाल में कितनी अस्थियाँ होती हैं? [2007, 10, 13, 15, 18]
(क) 100
(ख) 206
(ग) 200
(घ) 106

6. बच्चों के मेरुदण्ड में कितनी अस्थियाँ होती हैं? [2013]
(क) 35
(ख) 33
(ग) 30
(घ) 36

7. कन्धे पर किस प्रकार की सन्धि होती है? [2014]
(क) अल्पचल सन्धि
(ख) कब्जेनुमा सन्धि
(ग) अचल सन्धि
(घ) गेंद-गड्ढा सन्धि

8. कोहनी का जोड़ कौन-सा जोड़ कहलाता है? [2015, 16, 17]
(क) धुराग्र
(ख) कब्जेदार
(ग) फिसलने वाला
(घ) ख़ुटीदार

9. चेहरे में कितनी अस्थियाँ पाई जाती हैं? [2007, 14, 17, 18]
(क) अठारह
(ख) बीस
(ग) चौदह
(घ) ये सभी

10. ऊपरी बाह की हडडी होती है
(क) लम्बी
(ख) मोटी
(ग) चपटी
(घ) कैसी भी

11. ऊपरी बाहु की अस्थि है [2018]
(क) अंसफलक
(ख) प्रगण्डिका
(ग) बहिः प्रकोण्ठिकास्थि
(घ) अन्त: प्रकोण्ठिकास्थि

UP Board Solutions

12. गर्दन के भाग में ग्रीवा कशेरुकाओं की संख्या होती है
(क) 4
(ख) 5
(ग) 6
(घ) 7

13. घुटना किस प्रकार की सन्धि का उदाहरण है?
(क) कन्दुक-खल्लिका (गेंद-गड्ढा) जोड़
(ख) कब्जेदार जोड़
(ग) कीलदार जोड़
(घ) फिसलने वाला जोड़

14. रीढ़ की हड्डी में पाया जाता है
(क) कन्दुक-खल्लिका जोड़
(ख) चूलदार जोड़
(ग) कीलदार जोड़।
(घ) फिसलने वाला (विसप) जोड़

15. मानव शरीर में कितने प्रकार के जोड़ होते हैं? [2008, 10]
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच

16. मानव शरीर में कितनी जोड़ी पसलियाँ पाई जाती हैं? [2008, 11, 12, 13, 14, 15]
(क) 5 जोड़ी
(ख) 10 जोड़ी
(ग) 12 जोड़ी
(घ) 20 जोड़ी

17. खूटी (धुराग्र) सन्धि पाई जाती है [2008, 14]
(क) कन्धे में
(ख) घुटने में
(ग) खोपड़ी में
(घ) कोहनी में

18. अचल सन्धि कहाँ पाई जाती है? [2009, 10, 11]
(क) खोपड़ी में
(ख) घुटने में
(ग) कलाई में
(घ) कोहनी में

19. आठ हड्डियाँ पायी जाती हैं [2009, 10, 11]
(क) रीढ़ में
(ख) पेट में
(ग) कपाल में
(घ) हथेली में

20. रीढ़ की हड्डी में कितनी कशेरुकाएँ पायी जाती हैं? [2014, 16]
या
एक वयस्क व्यक्ति के मेरुदण्ड में कितनी कशेरुकाएँ होती हैं? [2014]
(क) 28
(ख) 24
(ग) 26
(घ) 25

UP Board Solutions

उत्तर:
1. (घ) ये सभी,
2. (घ) कैल्सियम,
3. (ग) कैल्सियम,
4. (क) आठ,
5. (ख) 206,
6. (ख) 33,
7. (घ) गेंद-गड्ढा सन्धि,
8. (ख) कब्जेदार,
9. (ग) चौदह,
10. (क) लम्बी,
11. (ख) प्रगण्डिका,
12. (घ) 7,
13. (ख) कब्जेदार जोड़,
14. (ग) कीलदार जोड़,
15. (क) दो,
16, (ग) 12 जोड़ी,
17. (ग) खोपड़ी में,
18. (क) खोपड़ी में,
19. (ग) कपाल में
20. (ग) 28

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 17 मानव अस्थि-संस्थान तथा सन्धियाँ help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 17 मानव अस्थि-संस्थान तथा सन्धियाँ, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 10 Invoice, Mercentile Agents and Account Sale

UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 10 Invoice, Mercentile Agents and Account Sale

Invoice, Mercentile Agents and Account Sale Objective Type Questions (1 Mark)

Question 1.
Invoice is a statement of goods prepared by the:
(a) Buyer
(b) Customer
(c) Seller
(d) None of these
Answer:
(c) Seller

Question 2.
The invoice is the final evidence of:
(a) Purchase
(b) Sale
(c) Goods
(d) None of these
Answer:
(b) Sale

Calculate How Many Weeks Between Dates

UP Board Solutions

3. The expenses mentioned in the proforma invoice are:
(a) Actual
(b) Estimated
(c) Either (a) or ( b)
(d) None of these
Answer:
(b) Estimated

Question 4.
When the seller quotes any price for the goods, the price is for the goods to be delivered of the godown of the ………..
(a) buyer
(b) customer
(c) seller
(d) None of these
Answer:
(c) seller

UP Board Solutions

Question 5.
Amount payable is that amount which the buyer has to pay to the seller for the goods ……
(a) Sold
(b) Purchased
(c) Either (a) or (b)
(d) None of these
Answer:
(b) Purchased

Question 6.
The statement which the selling agent prepares and submits to his principal is called:
(a) Invoice
(b) Account Sales
(c) Sales Letter
(d) None of these
Answer:
(b) Account Sales

Question 7.
Purchase agents appointed to purchase goods on behalf of their …….
(a) Agent
(b) Customer
(c) Principal
(d) None of these
Answer:
(c) Principal

Question 8.
A broker is an agent employed to negotiate for the sale and purchase of ……..
(a) Car
(b) Building
(c) Goodwill
(d) Goods
Answer:
(d) Goods

UP Board Solutions

Question 9.
When an agent is appointed for accomplishing any particular or special job, he is known as ………
(a) General Agent
(b) Local Agent
(c) Special Agent
(d) None of these
Answer:
(c) Special Agent

Question 10.
The principal is responsible for all the deeds of the general agent:
(a) Local Agent
(b) General Agent
(c) Special Agent
(d) None of these
Answer:
(b) General Agent

Question 11.
A merchant middleman who sells chiefly to its: (UP 2016)
(a) Wholesaler
(b) Customer
(c) Retailers
(d) None of these
Answer:
(c) Retailers

UP Board Solutions

Question 12.
Wholesaler invests a lot of ………
(a) Capital in business
(b) labour in business
(c) land in business
(d) None of these
Answer:
(a) Capital in business

Question 13.
Wholesaler purchases goods in ………
(a) Bulk
(b) Small quantity
(c) Either (a) or (b)
(d) None of these
Answer:
(a) Bulk

Question 14.
V.P.P. stands for:
(a) Valuable Payment Post
(b) Value Payable Post
(c) Value Payable Prepaid
(d) None of these
Answer:
(b) Value Payable Post

Question 15.
Super market is a business organisation which is established and run on ……..
(a) Small scale
(b) Large scale
(c) either (a) or (b)
(d) None of these
Answer:
(b) Large scale

Invoice, Mercentile Agents and Account Sale Definite Answer Type Questions (1 Mark)

Question 1.
What kind of statement of goods prepared by the seller?
Answer:
Invoice.

UP Board Solutions

Question 2.
Name of the document which is prepared even before the sale for giving information to the concerned customer.
Answer:
Proforma Invoice.

Question 3.
Name the agents who are appointed to sell goods on behalf of their principals.
Answer:
Sale Agents.

Question 4.
Name the agent appointed to do certain acts on behalf of the principal in return for a commission.
Answer:
Commission Agent.

Question 5.
What kind of commission gives on a credit sale to an agent?
Answer:
Del Credere Commission.

UP Board Solutions

Question 6.
Name the business organisation which run on a large scale.
Answer:
Super Market.

Question 7.
In which country consumers co-operative store originated?
Answer:
England.

Invoice, Mercentile Agents and Account Sale Very Short Answer Type Questions (2 Marks)

Question 1.
What is Invoice? (UP 2015)
Answer:
Invoice is a statement of goods prepared (UPBoardSolutions.com) by the seller and is sent to the buyer along with the Railway receipt or transport documents. The statement of goods contains the list of goods which are sent to the buyer according to his order.

Question 2.
What do you mean by proforma invoice? (UP 2015)
Answer:
Proforma Invoice: It is essential that an ordinary invoice should be distinguished from a proforma invoice. The latter is an invoice merely for the form’s sake or for the sake of information, hence, it is called Proforma Invoice.

Question 3.
What is an agent?
Answer:
A person acting on behalf of another person is known as an agent. An agent is a person employed to do any act for another or to represent others in dealings with the third person.

UP Board Solutions

Question 4.
Who is Del Credere Agent?
Answer:
Del Credere agent is an agent appointed for the sale of certain goods and who gives a guarantee that all the credit sales would be duly paid for, in return for an extra commission known as ‘del credere commission’.

Question 5.
What is account sale?
Answer:
The statement which the selling agent prepares and submits to his principal is called account sales, (account of sales). Therefore, account sale is a statement regarding the sale of goods, which is periodically (UPBoardSolutions.com) submitted to the principal by his agent.

Question 6.
Give any two characteristics of an agent.
Answer:
Two characteristics of an agent are:

  • Right on Goods: The agent does not pass any right on the goods. The ownership of goods always remains with the principal. The agent has to only make arrangements for increasing sales.
  • Eligible to contract: The appointment of an agent or the existence of agency is the result of the contract. This contract is entered between the agent and the principal.

Invoice, Mercentile Agents and Account Sale Short Answer Type Questions (4 Marks)

Question 1.
What is ‘loco invoice’? What are its kinds?
Answer:
Loco Invoice: When the seller quotes any price for the goods, the price is for the goods to be delivered at the godown of the seller. The price does not include any expenses which are done by the seller on packing, (UPBoardSolutions.com) cartage etc. This kind of invoice is known as loco invoice.
Loco Invoice can be of the following three kinds:

  • In the Absence of Advance.
  • In the case of Advance Payment.
  • Advance Payment at will.

UP Board Solutions

Question 2.
What do you mean by E O. R. invoice?
Answer:
In case of F. O. R. invoice, only these expenses which are incurred by the seller after the loading of the goods in railway wagons would be shown as charges, the rest are included in the F.O.R. price.

Question 3.
What do you mean by chain stores or multiple shops?
Answer:
Multiple shapes are the shops established by those producers who (UPBoardSolutions.com) want to sell their products in different towns or in different localities of the same town.

Question 4.
What is a mail-ordered business?
Answer:
In a mail-order business, every activity of purchase and sale is done by the post. It is a method of retail sale on a large scale. There is no direct conversation between a buyer and a seller. The buyer places an order of things required by him through the post and the seller despatches the things by the post. In such type of business, there is no need of displaying the goods.

Question 5.
What do you understand by departmental stores?
Answer:
Departmental stores are those institutions of retail trade where different departments dealing in various commodities are situated under the same root and work under the control of one management.

Question 6.
What are multiple shops?
Answer:
Multiple shops are the shops established by those producers who want to sell their products in different towns or in different localities of the same town. The purpose of this is to keep direct personal contact with the customers by eliminating middlemen.

Question 7.
Give any two advantages of mail-order business.
Answer:
Two advantages of mail-order are as follows:

  • No Bad Debts: All transactions are on a cash basis (UPBoardSolutions.com) and thus there is no danger of bad debts.
  • Expansion of business: There is a wide scope in the mail order business. The businessman reaches there where goes the post.

UP Board Solutions

Question 8.
Write contents of account sale.
Answer:
Contents of Account Sale are as follows:

  1. Name of the Principal.
  2. Name of the ship carrying the goods if the principal lives in a foreign country.
  3. Commission Deducted.
  4. Advance sent to the principal.
  5. Particular of goods sold:
    • Quantity of goods sold
    • Quality of goods sold
    • Price of goods sold along with the rate.
  6. Expenses incurred on behalf of the principal in selling the goods.
  7. Amount of bill accepted as advance.
  8. Amount payable
  9. Particulars and mode of the (UPBoardSolutions.com) amount remitted.

Question 9.
Distinguish between factor and broker.
Answer:
Difference between factor and broker

Factor Broker
1. He sells the goods in his own name. 1. He simply conducts negotiation and the actual sale is made in the name of his principal.
2. He is appointed to sell all the goods. 2. He is appointed to buy and sell a particular commodity.
3. He is given the possession of the goods. 3. He is not given the possession of the goods.
4. He himself is liable in respect of the contract of sale. 4. He performs in the name of his principal and as such the principal is liable in all respects of the transactions.

Question 10.
Write a short note on Del Credere Commission.
Answer:
Del Credere Commission: An agent can sell the goods for cash as well as for credit unless the principal has made specific instructions for cash sales only. There are always possibilities of bad debts in case of credit (UPBoardSolutions.com) sales. If the principal wants to save himself from this kind of loss he gives an extra commission to the agent in addition to the simple commission. This extra commission is known as ‘Del Credere Commission’. Which ensures the bad debts and the agent pays the number of bad debts if any to the principal. In this way, the principal saves himself from bad debts by giving del credere commission.

UP Board Solutions

Question 11.
What are the characteristics of retailers?
Answer:
The following are the characteristics of retailers:

  • Retailers purchase goods from wholesalers and sell them to the ultimate consumers.
  • The retailer purchase goods in small quantities from wholesalers and sell them in still smaller quantities to the consumers.
  • The retailer has a direct relationship with the consumer.
  • Retailers do not specialise in specific product but deal in a variety of goods.

Question 12.
What are the services of retailers towards wholesalers?
Answer:
The facilities and services provided by retail traders to the wholesaler may be enumerated as below:

  1. Collection of Necessary Information: Retailers remain in direct touch with consumers so they provide necessary pieces of information regarding fashion, taste and habits of consumers to the wholesaler.
  2. Relieves from Retail work: Retailers sell goods in small quantities to consumers and thus they relieve the wholesaler from this burden.
  3. Relieves from Local Advertisement: It is the retailer who advertises (UPBoardSolutions.com) the product in local markets. The wholesaler need not do this.
  4. No Need of keeping contact with the consumers: There is no needier the wholesaler to keep direct contact with the consumer for the purpose of sales. This service is performed by the retailer.
  5. Advantages of Increased Sales: Retailers remain in direct and close contact with customers and can induce them to buy more or to buy new products. Due to this, a wholesaler gets the advantage of the increased sale.

UP Board Solutions

Invoice, Mercentile Agents and Account Sale Long Answer Type Questions (8 Marks)

Question 1.
Distinguish between Invoice and Account sale. (UP 2005)
Or
What is the meaning of Invoice and Account Sale? Differentiate between these two. (UP 2006,09)
Or
What is Invoice? Prepare Invoice in a proper form with imaginary figures. (UP 2008, 10)
Or
What is Invoice? Prepare an invoice with the help of imaginary figures. (UP 2018)
Or
What is account sale? Prepare account sale with the help of imaginary information. (UP 2013)
Or
What is the difference between ‘Invoice’ and ‘Account of Sales’? Prepare an Account of Sales with the help of imaginary figures. (UP 2019)
Answer:
Invoice: The business transactions between the buyer and seller are accomplished according to the terms and conditions agreed upon by them. The purchaser sends the order to the seller, in which he mentions the quantity (UPBoardSolutions.com) he wants to purchase and also states that the terms and conditions are acceptable to him. On receiving the order, the seller sends the acceptances of order in writing. Then the seller starts collecting the goods and gets then packed according to the instructions of the buyer and arranges to send the goods to the buyer either by railways or by any other means of transport.

An invoice is a written document, sent by the seller to the buyer, stating therein the quantity and quality of goods sent, their prices, expenses incurred by him on behalf of the buyer and such other particulars. The buyer is also able to find out from an invoice the total amount he has to pay and the details thereof.

Example of Invoice:
Seller: Preeti Bookseller, Kamla Nagar, Kanpur.
Buyer: B.N. Baijal and Sons, Wright Town, Jabalpur.
Description of Goods:
20 copies of Indian History @ Rs. 24 per copy
50 copies of Modern Maths @ Rs. 20 per copy
30 copies of Advanced Accountancy @ Rs. 35 per copy
Expenses Incurred:
Packing Rs. 35, Cartage Rs. 10, Loading Rs. 10, Freight Rs. 30, Insurance Rs. 15.
Terms and Conditions:
Trade Discount 10%
2% Cash discount, if payment is made (UPBoardSolutions.com) within one month.
Prepare a proper invoice.
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 10 Invoice, Mercentile Agents and Account Sale

Account Sale: The owner of the goods has a right to sell them. Sometimes the owner appoints some agents to increase the volume of sales. In this way the goods can be sold by (a) The Owner, (b) The Agent.

UP Board Solutions

Percentage Difference calculator is a free online tool to find the percent difference between two numbers.

The owner sends the goods to his agent or agents on certain terms and conditions. The agents sell the merchandise and calculate the amount received from actual sales. He deducts from this amount the expenses incurred by him on behalf of his principle and commission. The balance is remitted to the principal. The agent submits a written statement periodically (UPBoardSolutions.com) (generally every month) to his principle specifying the details of goods sold, expenses made and commission deducted.

Difference between Invoice and Account Sale

Invoice Account Sale
1. Invoice is prepared by the seller and is sent to the buyer. 1. Account Sale is the statement which the selling agent prepares and submits to his principal.
2. Invoice is prepared after sending the goods to the buyer. 2. Account sale is prepared by the agent after selling whole goods or periodically.
3. All the expenses made by the buyer are added to the cost of goods sold. 3. The expenses incurred by the agent and his commission is deducted from the amount of sale.
4. If there is any trade discount it is deducted from the number of goods. 4. No question arises of any discount in the account sales.
5. No question arises of any commission in the invoice. In Foreign Invoice, the commission is calculated on the amount of invoice and is written at the bottom of the invoice, added to the amount of invoice. 5. The commission is the reward for agents’ efforts. It is calculated at a fixed percentage of the number of sales. It is deducted from the number of sales.
6. It is of two kinds:

  • Invoice (ordinary)
  • Proforma Invoice.
6. It is of only one kind. The calculated amount of sales is sent by the agent through cheque or bank draft.
7. The amount of invoice is paid by the buyer to the seller after receiving the invoice. 7. The same amount is also mentioned in the account sale.
8. If there is any term or condition of payment,, it is mentioned in the invoice. 8. No question arises of any term or condition in the calculation of sales.
9. Invoice is signed by the seller or the person authorised by him to do so. 9. Account sale is signed by the sales agent or by the person authorised by him.

Question 2.
What is an Account Sale? How is it different from Statement of Account?
Or
What is ‘Account Sale’? Prepare Account Sale with the help of imaginary figures. (UP 2011, 13)
Answer:
Account Sale: Sometimes the owner appoints some agent to increase the sale.
The owner sends the goods to his agent on certain terms and conditions. The agent sells the merchandise and calculates the number of actual sales which is submitted to the principal at regular intervals. He deducts from (UPBoardSolutions.com) this all the expenses incurred by him on behalf of the principal and the balance is remitted to the principal. The statements which the selling agent prepares and submits to his principal is called ‘Account Sale’. The account sale gives details and the values of the sales and of expenses incurred by the agent to his principal.

UP Board Solutions

Difference between Statement of Account and Account Sale

Statement of Account Account Sale
1. This is prepared by the seller and is sent to the customer. 1. The Statement which the selling agent prepares and submits to his principal is called account sale.
2. The statement of account is prepared to enable the buyer to compare the account with his own ledger and to check its accuracy. 2. The account sale is sent to the principal by the selling agent as it gives the details and value of the sales and the expenses incurred by the agent on behalf of his principal as well as commission due to the agent.
3. This is sent to purchaser monthly or quarterly or half-yearly. 3. The account sale is sent by the agent after selling the whole goods or periodically.
4. The description of expenses is absent. Only the quantity sent, the amount received arid the balance of amount to be paid is shown. 4. Under this, the expenses incurred by the agent and his commission is deducted from the amount of sale and the amount sent to the principal by draft is stated.
5. Statement of account is a copy of the debtor’s account in the seller’s ledger. 5. Account sale is prepared on the printed forms according to the business customs.

Question 3.
What is Loco Invoice? Give a specimen of Loco Invoice with the help of imaginary figures. (UP 2007)
Answer:
Loco Invoice: When the seller quotes any price for the goods, the price is for the goods to be delivered at the godown of the seller. The price does not include any expenses which are done by the seller on packing, cartage etc. This kind of invoice is known as loco invoice.

UP Board Solutions

Specimen of Loco Invoice:
Seller: Preeti Booksellers, Kamla Nagar, Kanpur:
Buyer: B.N. Baijal and Sons, Wright Town, Jabalpur
Description of Goods:
20 copies of Indian History @ Rs. 48 per copy
50 copies of Modern Maths @ Rs. 50 per copy
30 copies of Advanced Accountancy @ Rs. 75 per copy.
Expenses Incurred:
Packing Rs. 175, Cartage Rs. 165, Loading (UPBoardSolutions.com) Rs. 80, Freight Rs. 155, Insurance Rs. 355.
Terms and Conditions:
Trade Discount 10%
2% Cash discount if payment is made within a month.
Prepare a Proper invoice.
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 10 Invoice, Mercentile Agents and Account Sale

Question 4.
Prepare an invoice from the following particulars:
Seller: Raju Book Store, Adarsh Nagar, Kanpur
Purchaser: Ram Lai and Sons, Katra, Allahabad.
Description of transactions:
50 copies – High School Commerce @ Rs. 50 each
50 copies – Intermediate Commerce @ Rs. 100 each.
40 copies – Advance Accountancy @ Rs. 80 each.
Expenses incurred:
Packing Rs. 200
Carriage Rs. 175
Loading Rs. 80
Insurance Rs. 400
Conditions:
(i) Trade discount @ 10%.
(ii) 2% cash discount is allowed on payment (UPBoardSolutions.com) within a month. (UP 2015)
Solution:
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 10 Invoice, Mercentile Agents and Account Sale

UP Board Solutions

Question 5.
M/s Moni and Sons, Kolkata sold the following articles to Soni & Sons of Varanasi:
25 Dozen bed-sheets @ Rs. 12 per bed-sheet
120 Table-clothes @ Rs. 40 per dozen
288 Towels @ Rs. 24 per dozen
24 Big Towels @ Rs. 36 per dozen.
Following expenses were incurred by the seller for sending the articles: (UPBoardSolutions.com) Packing charges Rs. 10, Carriage Rs. 15, Railway freight Rs. 225, Insurance Rs. 10, 7[latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex], 2 % Trade discount was allowed to purchaser. Assurance was given for allowing 1% cash discount for making payment within a month. Prepare an invoice from the above details.
Solution:
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 10 Invoice, Mercentile Agents and Account Sale

Question 6.
M/s Ghosh Brother, Kolkata sold the following goods to the firm Modern Cloth House, Lucknow:
25 Dozen Bed-sheet @ Rs. 50 per Bed-sheet
120 Table clothes @ Rs. 240 per dozen
288 Towels @ Rs. 120 per dozen
20 Big Towels @ Rs. 360 per dozen
Seller made the following expenses in sending the goods:
Packing expenses Rs. 50
Carriage Rs. 55
Railway Freight Rs. 50
Insurance Rs. 30
Trade discount given to buyer were 7[latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex]% and 1% cash discount if payment is made within a month. Prepare an invoice.
Solution:
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 10 Invoice, Mercentile Agents and Account Sale

UP Board Solutions

Question 7.
What is Sales Statement? What are the differences between Invoice and Sales Statement? Prepare Sales Statement on the basis of imaginary information.
Mumbai sold following goods to M/s Raj Traders, Allahabad:
200 Plastic Buckets 20 Litre @ Rs. 40 each;
100 Plastic Tubs 30 litre @ Rs. 60 each;
100 Plastic Trey @ Rs. 30 each 8” × 15”.
10% Trade Discount is allowed to the purchaser and 2% cash discount if payment is made within a week.
Prepare invoice in the right format from the above particulars. (UP 2010)
Solution:

Invoice
M/s Plastico Ltd.

Mumbai
Date: 30 March, 2010

To,
M/s Raj Traders, Allahabad
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 10 Invoice, Mercentile Agents and Account Sale

Question 8.
M/s Badruddin & Sons, Aminabad, Lucknow sold the following goods on behalf of M/s Karuna Brothers, Mahatma Gandhi Marg, Kanpur on January 5, 2013:
100 Silk Sarees @ Rs. 500 per Saree
100 Cotton Sarees @ Rs. 200 per Saree
500 Metre Shirting @ Rs. 80 per metre
100 Dhoti Mardani @ Rs. 150 per Dhoti
Freight Rs. 2,100, Cartage Rs. 150; Packing Rs. 250; Other expenses Rs. 150 and Commission @ 15%.
Prepare Account Sale from the above information. (UP 2014)
Answer:
UP Board Solutions for Class 10 Commerce Chapter 10 Invoice, Mercentile Agents and Account Sale

UP Board Solutions for Class 10 Commerce

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सिलाई किट से आप क्या समझती हैं? सिलाई-किट में प्रयोग होने वाली आवश्यक सामग्री की सूची बनाइए एवं उसकी उपयोगिता लिखिए। [2011]
या
सिलाई किट से क्या अभिप्राय है? इसके आवश्यक उपकरणों का भी उल्लेख कीजिए। [2007, 09, 10, 12]
या
सिलाई किट की आवश्यक सामग्री की सूची बनाइए एवं उनका प्रयोग लिखिए। [2009, 12, 13, 14, 15, 16]
या
सिलाई किट का उपयोग लिखिए। इस किट में रखे जाने वाले सामानों की सूची बनाइए। [2007, 08, 10, 12, 13]
या
मिल्टन चाक और मिल्टन क्लाथ में क्या अन्तर है? इनका प्रयोग कब किया जाता है? [2018]
या
निम्नलिखित में से प्रत्येक का कार्य संक्षेप में लिखिए [2018]
(क) इंच टेप,
(ख) फिंगर कैप,
(ग) सुई,
(घ) कैंची।

उत्तर:

सफल पारिवारिक जीवन के लिए प्रत्येक महिला को विभिन्न विषयों को समुचित ज्ञान होने के साथ-साथ सिलाई सम्बन्धी आवश्यक ज्ञान प्राप्त करना भी अत्यन्त आवश्यक है। मध्यम वर्गीय महिलाओं के लिए तो यह और भी आवश्यक है, क्योंकि इससे उन्हें सिलाई के पर्याप्त पैसे बच जाने के कारण पर्याप्त आर्थिक लाभ हो जाता है। सिलाई-कार्य अपने आप में एक.व्यवस्थित कार्य है तथा इस कार्य को सुचारु रूप से करने के लिए विभिन्न (UPBoardSolutions.com) यन्त्रों एवं उपकरणों की आवश्यकता होती है। सिलाई-कटाई को व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने से पूर्व इस कार्य में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों एवं यन्त्रों की समुचित जानकारी अर्जित कर लेना अति आवश्यक है।

UP Board Solutions

सिलाई के लिए आवश्यक साधन
वस्त्रों की सिलाई-कटाई का कार्य एक व्यवस्थित कार्य है। इस कार्य को सफलतापवुक तथा सुविधापूर्वक करने के लिए विभिन्न उपकरणों एवं साधनों की आवश्यकता होती है। सिलाई-कार्य करने वाले व्यक्ति को इन उपकरणों एवं साधनों की समुचित जानकारी होनी चाहिए तथा उन्हें सम्भालकर रखना भी आना चाहिए। सिलाई कार्य सम्बन्धी अधिकांश उपकरणों एवं सामग्री को सिलाई किट में एक साथ सम्भालकर रखा जाता है। कुछ आवश्यक साधन सिलाई किट के अतिरिक्त भी होते हैं। दोनों ही वर्गों के साधनों एवं उपकरणों का विस्तृत विवरण निम्नवर्णित है

(क) सिलाई किट
सिलाई किट से तात्पर्य उस थैले अथवा डिब्बे से है जिसमें सिलाई से सम्बन्धित छोटा-मोटा आवश्यक सामान (यन्त्र एवं उपकरण) रखा जाता है। सिलाई किट सामान्य रूप से किसी मोटे कपड़े, रेक्सीन अथवा टाट से, थैले के आकार की बनाई जाती है। इसके अतिरिक्त लकड़ी, गत्ते अथवा लोहे के डिब्बे को भी सिलाई किट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। सिलाई किट में रखे जाने वाले सामान्य सामान निम्नलिखित हैं

(1) कैंचियाँ:
कपड़ा काटने के उपकरण को कैंची कहते हैं। वस्त्रों की सिलाई के लिए कपड़ा काटने के लिए छोटी व बड़ी कैंचियों की आवश्यकता पड़ती है। कैंचियों के उचित रख-रखाव के लिए माह में कम-से-कम एक बार इनके जोड़ों पर हल्का-सा तेल लगा देने से ये सदैव ठीक कार्य (UPBoardSolutions.com) करती हैं। समय-समय पर कैंचियों में धार लगवानी भी आवश्यक होती हैं।

(2) सूइयाँ:
मशीन एवं हाथ से सिलाई करने के लिए विभिन्न प्रकार की सूइयाँ प्रयुक्त की जाती हैं। ये अनेक प्रकार की विभिन्न आकारों में उपलब्ध होती हैं। मशीन की सूई में नीचे व हाथ
की सूई में ऊपर की ओर धागे के लिए छिद्र होता है। लगभग सभी प्रकार की सुइयों का एक सेट सिलाई किट में रखना चाहिए।

(3) पिने:
पीतल की बनी ये पिने वस्त्र की सिलाई एवं कटाई के लिए बहुत उपयोगी हैं। लकड़ी के बोर्ड अथवा मेज पर कपड़ा फैलाकर ये पिनें लगाई जाती हैं, जिससे कि काटते समय कपड़ा इधर-उधर न खिसके।

(4) फिंगर कैप:
अंगुस्तान अथवा फिंगर कैप धातु अथवा प्लास्टिक का बना होता है। यह दाहिने हाथ की मध्यमा (बीच वाली अंगुली) के आकार का होता है तथा हाथ से सिलाई करते समय सूई की चुभन से सुरक्षा प्रदान करता है।

(5) धागे:
सफेद एवं अन्य समस्त सामान्य रंगों के धागे सिलाई किट में सदैव उपलब्ध रहने चाहिए। कपड़े के रंग से मिलते-जुलते रंग के धागे का सिलाई में उपयोग किया जाता है। सिलाई के धागे मजबूत तथा पक्के रंग वाले ही होने चाहिए।

(6) नापने के लिए उपकरण या इंच टेप:
धातु अथवा कपड़े के बने इंच-टेप अथवा मीट्रिक टेप प्रयोग में लाए जाते हैं। वस्त्र की कटाई एवं सिलाई करते समय शारीरिक माप अथवा कपड़े को नापने के लिए इनका उपयोग किया जाता है।

UP Board Solutions

(7) गुनिया:
यह आकार की धातु की बनी होती है तथा इस पर सेण्टीमीटर के चिह्न अंकित होते हैं। यह 16 x 30 सेण्टीमीटर की होती है। इसका मुख्य उपयोग विभिन्न आकार के कपड़े काटने में किया जाता है।

(8) मोम व मिल्टन चाक:
कुछ मोटे कपड़े व जीन सिलाई करते समय कट जाते हैं; अत: इससे बचने के लिए सिलाई के स्थानों पर मोम लगाई जाती है। । विभिन्न रंगों के आयताकार मिल्टन चॉकों को उपयोग कपड़ों की कटाई करते समय विभिन्न नापों अथवा आकारों को चिह्नित करने के लिए किया जाता है। मिल्टन चॉक द्वारा कपड़े पर लगाए गए निशान बिल्कुल साफ चमकते हैं। परन्तु ये पक्के नहीं होते। अत: सिलाई कार्य कर लेने के उपरान्त ब्रश से झाड़कर इन्हें साफ किया जा सकता है।

(9) कागज, रबर व पेन्सिल:
बनाये जाने वाले वस्त्रों का आकार अथवा खाका तैयार करने के लिए कागज व पेन्सिल का उपयोग किया जाता है। रबर द्वारी आवश्यकतानुसार पेन्सिल के चिह्नों को मिटाया जा सकता है।

(ख) अन्य उपकरण:
वस्त्रों की कटाई एवं सिलाई के लिए कुछ ऐसे साधन एवं उपकरण भी आवश्यक होते हैं, जिन्हें सिलाई किट में नहीं रखा जातो परन्तु इस्तेमाल करना अनिवार्य रूप से आवश्यक होता है। इस वर्ग के
साधनों एवं उपकरणों का सामान्य परिचय निम्नलिखित है

(1) सिलाई की मशीन:
यह सिलाई का सर्वाधिक उपयोगी उपकरण है। ये प्रायः दो प्रकार की होती हैं-हाथ से चलाने वाली तथा पैरों से चलाई जाने वाली। अब विद्युत चालित सिलाई मशीन भी बाजार में उपलब्ध है। सिलाई की मशीन के विभिन्न कल-पुर्जा का प्रारम्भिक ज्ञान प्राप्त करना सदैव लाभकारी रहता है। उपयोग में लाने के पश्चात् मशीन की सदैव सफाई करनी चाहिए तथा माह में कम-से-कम एक बार विभिन्न कल-पुर्जा की जड़ में तेल डालना चाहिए। इसके लिए मशीन में विभिन्न स्थानों पर छिद्र एवं चिह्न अंकित होते हैं।

(2) मिल्टन कपडा:
यह एक विशेष प्रकार का ऊनी कपड़ा होता है। इसका प्रयोग कपड़ों की कटाई करते समय मेज पर बिछाने के लिए होता है। इसकी लम्बाई व चौड़ाई मेज की लम्बाई-चौड़ाई के अनुसार होनी चाहिए।
उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि मिल्टन चाक से कपड़े पर आवश्यक निशान (UPBoardSolutions.com) लगाए जाते हैं। तथा मिल्टन कपड़े को कपड़ा काटने वाले स्थान पर बिछाया जाता है।

UP Board Solutions

(3) मेज या पटरा:
प्रायः कपड़े को मेज पर फैलाकर खड़े होकर काटा जाता है। सिलाई की मेज प्राय: लकड़ी की बनी होती है। यह लगभग एक मीटर चौड़ी व डेढ़ मीटर लम्बी होती है। यदि सिलाई-कार्य भूमि पर बैठकर करना हो, तो मेज के स्थान पर एक लकड़ी का पटरा ही इस्तेमाल किया
जाता है।

(4) प्रेस या इस्तरी:
सिलाई क्रिया को सुचारु रूप से करने के लिए प्रेस या इस्तरी की भी आवश्यकता होती है। कपड़े की सलवटें निकालने तथा उसे सीधा करने के लिए प्रेस की आवश्यकता होती है। प्रेस दो प्रकार की हो सकती है विद्युत चालित, तथा कोयले से गर्म होने वाली।

प्रश्न 2:
वस्त्र काटने से पहले नाप लेना क्यों आवश्यक है? नाप लेने की प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिए। [2008, 09, 10, 11]
या
वस्त्र का नाप लेना क्यों आवश्यक है? [2008, 09, 10, 18]
उत्तर:
वस्त्र बनाने से पूर्व नाप लेने के लाभ वस्त्र बनाते समय पहनने वाले व्यक्ति की नाप लेने के अनेक लाभ हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं

  1. यह अनुमान लगाना सम्भव हो जाता है कि वस्त्र बनाने के लिए कितना कपड़ा पर्याप्त रहेगा।
  2. कपड़े के व्यर्थ जाने की सम्भावना समाप्त हो जाती है।
  3. ठीक नाप लेने से वस्त्र उपयुक्त फिटिंग के बनते हैं।
  4. उचित नाप लेकर कटाई व सिलाई करने पर सस्ते कपड़े के वस्त्र भी सुन्दर दिखाई पड़ते हैं।

नाप लेते समय ध्यान देने योग्य बातें
यह एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। अतः इसके लिए निम्नलिखित सावधानियाँ अपेक्षित हैं

  1. वस्त्र बनवाने वाले व्यक्ति की रुचि के अनुसार ढीले अथवा तंग फिटिंग वाली नाप लेनी चाहिए।
  2. विभिन्न अंगों की अलग-अलग नाप लेने से वस्त्र अच्छी फिटिंग के बनते हैं।
  3.  नाप लेते समय सदैव नाप देने वाले व्यक्ति के दाहिनी ओर खड़ा होना चाहिए।
  4.  इंच-टेप के सिरे को बाएँ हाथ से पकड़कर, दाहिने हाथ से नाप लेनी चाहिए।
  5. नाप देने वाले व्यक्ति को स्वाभाविक अवस्था में समतल स्थान पर सीधा खड़ा करना चाहिए।
  6. सिकुड़ने वाले वस्त्रों (मोटे सूती कपड़े व जीन्स आदि) को (UPBoardSolutions.com) नाप लेने से पूर्व धोकर सुखा लेना चाहिए।
  7. व्यक्ति विशेष की विभिन्न नापों को किसी कॉपी अथवा डायरी में क्रम से लिखना चाहिए, ताकि कपड़ा काटते समय भूल पड़ने की सम्भावना ही न रहे।

UP Board Solutions

[नोट-नाप लेने की विधियों के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 देखें।]

प्रश्न 3:
वस्त्रों की कटाई/सिलाई के लिए नाप लेने की विधियों का उल्लेख कीजिए। [2018]
उत्तर:
नाप लेने की विधियाँ | वस्त्रों की कटाई एवं सिलाई के लिए व्यक्ति का नाप लेने की दो विधियाँ हैं। जिस व्यक्ति का कपड़ा सिलना हो, यदि वह उपस्थित है तो उसके प्रत्येक अंग की ठीक नाप ली जा सकती है और यदि व्यक्ति उपस्थित नहीं है तो केवल छाती की नाप द्वारा ही शरीर के अन्य अंगों की नाप का अनुमान लगाया जा सकता है। नाप लेने की दोनों ही विधियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है|

(1) केवल सीने अथवा छाती की नाप लेना:
यदि वस्त्र सिलवाने वाला व्यक्ति अनुपस्थित है, तो उसके सीने अथवा छाती की नापं से ही अन्य अंगों की नाप का अनुमान लगाकरे वस्त्र तैयार किए। जा सकते हैं, परन्तु इस विधि से तैयार वस्त्र एक तो सही फिटिंग के नहीं बन पाते और दूसरे व्यक्ति का असामान्य शारीरिक गठन होने पर अन्य अनेक कठिनाइयाँ हो सकती हैं। केवल सीने की नाप से अन्य नापों का अनुमान निम्न प्रकार से लगाया जाता है
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला 1

UP Board Solutions

(2) विभिन्न अंगों की नाप लेना:
वस्त्र सिलवाने वाला व्यक्ति यदि उपस्थित है, तो इंच-टेप द्वारा उसके विभिन्न अंगों की नाप निम्न प्रकार से लेकर किसी कॉपी अथवा डायरी में लिख लेनी चाहिए।

सीने की नाप:
इंच-टेप को सामने से प्रारम्भ करके छाती के पीछे की ओर घुमाकर दूसरी ओर से सामने तक ले आइए। इस प्रकार सीने की सही नाप ली जा सकती है।

कमर की नाप:
इंच-टेप से कमर के घेरे को नापना चाहिए।

तीरे या पुट की नाप:
रीढ़ की हड्डी के ऊपरी सिरे से लेकर कन्धे तक की नाप लेनी चाहिए।

गले की नाप:
टेप के नीचे उँगली रखकर गले की नाप लेनी चाहिए।

बॉडी की नाप:
गर्दन से लेकर कमर तक की नाप को बॉडी की नाप कहते हैं।

वस्त्र की लम्बाई:
व्यक्ति को सीधा खड़ा करके कन्धे एवं गर्दन के जोड़ से नीचे आवश्यक निचाई तक नापना चाहिए। ब्लाउज के लिए कमर तक तथा कमीज के लिए घुटने से ऊपर तक नाप ली
जाती है। सलवार के कुर्ते के लिए घुटने से कुछ नीचे तक की नाप ली जाती है।।

आस्तीन की नाप:
पूरी आस्तीन के लिए कन्धे से कलाई तक टेप द्वारा नापा जाता है। इसके (UPBoardSolutions.com) साथ कफ के घेरे की नाप लेना आवश्यक होता है। आधी या आधी से कम अथवा अधिक लम्बाई की
आस्तीन के लिए कन्धे से वांछित स्थान तक टेप से नापना चाहिए।

UP Board Solutions

धड़ से नीचे के वस्त्रों की लम्बाई:
पायजामा, पतलून, सलवार आदि के लिए कमर से पैरों तक की लम्बाई टेप से नापनी चाहिए। नेकर अथवा हाफ-पैण्ट के लिए कमर से घुटने तक की लम्बाई नापनी चाहिए। पायजामा, पतलून व सलवार के पाँयचों के लिए इनकी मोहरी की नाप भी लेनी चाहिए।

मियानी:
पायजामे तथा सलवार की मियानी का आगे व

पीछे दोनों ओर की नाप:
इसके लिए कूल्हे के चारों ओर टेप घुमाकर नाप लेनी चाहिए। नेकर व पतलून आदि के लिए सीट की नाप अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है।

प्रश्न 4:
सिलाई कितने प्रकार की होती है? हाथ की सिलाई का प्रयोग कहाँ-कहाँ पर किया जाता है? [2011, 12]
या
वस्त्रों की सिलाई कितने प्रकार से की जाती है? हाथ की सिलाई के किन्हीं चार टॉकों के नाम बताइए। [2012, 13, 14]
या
वस्त्रों की सिलाई में किन-किन टॉकों का प्रयोग किया जाता है किन्हीं तीन टाँको के बारे में लिखिए। [2011]
या
टाँके कितने प्रकार के होते हैं? इनका प्रयोग कब और कहाँ किया जाता है? [2014]
या
तुरपन या तुरपायी किसे कहते है? [2015]
उत्तर:
सिलाई के प्रकार

सिलाई दो प्रकार की होती है-मशीन की सिलाई तथा हाथ की सिलाई। हाथ की सिलाई कई प्रकार की होती है और इसका मशीन की सिलाई से अधिक महत्त्व होता है। हाथ की सिलाई को
आदिकाल से प्रचलन है। प्राचीनकाल में जब मशीन उपलब्ध नहीं थी, तब हाथ से ही सिलाई का कार्य किया जाता था, परन्तु आज मशीन से वस्त्र सिलने के पश्चात् भी हाथ की सिलाई का तथा वस्त्र में हाथ से कार्य करने का अपना एक अलग महत्त्व है। वस्त्रों की सिलाई में विभिन्न प्रकार के टॉकों का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग भिन्न-भिन्न प्रयोजनों के लिए किया जाता है।

UP Board Solutions

हाथ की सिलाई के विभिन्न टाँके

हाथ की सिलाई के विभिन्न टॉकों का सामान्य परिचय निम्नलिखित है

(1) कच्चा टाँका:
कच्चे टाँके का प्रयोग कपड़े को अस्थायी रूप से जोड़ने के लिए किया जाता है। वास्तविक सिलाई कच्चे टाँके के बाद की जाती है। यह टाँका [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] से 1 सेमी लम्बा होता है। धागे में गाँठ देकर कपड़े को दायीं ओर से बायीं ओर सिला जाता है।

(2) सादा टाँका:
सादा या रनिंग टाँका हाथ की स्थायी सिलाई में अधिक प्रयोग किया जाता है। यह कच्चे (UPBoardSolutions.com) टाँके की भाँति होता है, परन्तु उससे छोटा होता है।

(3) बखिया:
बखिया के टॉकों का प्रयोग कपड़ों की मजबूत और पक्की सिलाई करने के लिए। किया जाता है। मशीन से जो सिलाई होती है वह भी बखिया ही होती है। मशीन की बखिया दोनों तरफ एक-सी होती है तथा साफ और सुन्दर लगती है, लेकिन हाथ की बखिया सीधी और उल्टी होती है। तथा मशीन की बखिया से कहीं अधिक मजबूत होती है। कपड़ों के जोड़ पर मजबूत सिलाई करने के लिए बखिया के टॉकों की आवश्यकता होती है।

(4) तुरपाई या हैमिंग टाँका:
कपड़े के धागे निकलने से रोकने के लिए किनारे को बन्द करने के लिए इस टाँके का प्रयोग किया जाता है। इसमें सूई का समान रूप से छोटा टाँका लेकर कपड़े से निकालकर फिर दोहरे मोड़े हुए कपड़े में से निकालते हैं। तुरपन हाथ से ही की जाती है। इससे टाँके
दूर से स्पष्ट नहीं दिखाई देते।

UP Board Solutions

(5) सम्मिलित टाँके:
ये टाँके बहुत मजबूत होते हैं। किसी भी सिलाई को मजबूत बनाने के लिए इन टॉकों का प्रयोग किया जाता है। इसमें तीन सादे टाँकों के साथ एक बखिया का टाँका भी प्रयुक्त किया जाता है।

(6) काज के टॉके:
काज बनाने से ही सिलाई की शिक्षा आरम्भ हो जाती है। काज अधिकतर हाथ से बनाए जाते हैं। काज का टाँका सरल है, फिर भी सफाई से काज बनाना एक कला है।।

(7) पसज के टाँके:
कपड़े के किनारों को बराबर रखने के लिए इस टॉके का प्रयोग किया जाता है। जहाँ कहीं भी कपड़े के किनारे निकलने का भय रहता है या गोट लगानी होती है, वहाँ इस टाँके का प्रयोग प्रायः किया जाता है। इसके टाँके अधिक कसकर नहीं लगाए जाते, क्योंकि कपड़े में तनाव आने का डर रहता है। दो कपड़ों को जोड़ने के लिए इस टाँके का ही प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 5:
फैन्सी टॉकों (स्टिच) से कढाई करने में कौन-कौन से उपकरण किस प्रकार काम में आते हैं? फैन्सी टॉकों के प्रयोग की प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फैन्सी टॉक

वस्त्रों की सुन्दरता बढ़ाने के उद्देश्य से फैन्सी टॉकों द्वारा विभिन्न प्रकार की कढ़ाई की जाती है। यह एक सरल, सस्ता एवं सुरुचिपूर्ण कार्य है। इसमें काम में आने वाले उपकरण हैं

  1. कढ़ाई का वस्त्र,
  2. विभिन्न रंग के कढ़ाई के धागे,
  3.  सूइयाँ,
  4. पेन्सिल,
  5. कार्बन पेपर एवं
  6. कढ़ाई के लिए फ्रेम अथवा अड्डा।

उपकरणों का प्रारम्भिक उपयोग:
सर्वप्रथम कार्बन पेपर को उलटकर कपड़े के सीधी ओर रखना चाहिए। अब कार्बन पेपर पर डिजाइन का कागज पिनों द्वारा स्थापित कर देते हैं। पेन्सिल को डिजाइन पर चलाने से डिजाइन कपड़े पर उतर आता है। अब कपड़े को फ्रेम में इस प्रकार कस देते हैं। कि डिजाइन (UPBoardSolutions.com) फ्रेम के मध्य में रहे। अब उपयुक्त रंगों वाले धागों का प्रयोग कर सूइयों द्वारा कढ़ाई की जाती है।

UP Board Solutions

फैन्सी टॉकों के प्रयोग की विभिन्न विधियाँ

विभिन्न उपयोगों में आने वाले वस्त्रों की कढ़ाई के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के फैन्सी टॉकों को प्रयोग में लाया जाता है। इनके कुछ मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं

(1) हेम स्टिच:
ये मोटे व सूती कपड़ों से बने वस्त्रों; जैसे–मेजपोश, टी०वी० कवर आदि; के लिए उपयुक्त रहते हैं। (देखें चित्र 12.1)

(2) साटिन स्टिच:

इसका प्रयोग फूल-पत्ती तथा अन्य डिजाइनों को भरने के लिए होता है। इसकी कढ़ाई कपड़े पर उभरी हुई होती है। साड़ी इत्यादि की कढ़ाई में साटिन स्टिच का बहुधा उपयोग किया जाता है। (देखें चित्र 12.2)

(3) बटन होल स्टिच:

इसमें काज के समान छोटे-छोटे फूल बनाए जाते हैं। सूई से आगे की ओर धागा करके बार-बार एक ही छेद से निकालते जाते हैं। (देखें चित्र 12.3)
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला

(4) चेन अथवा जंजीरा स्टिच:
कश्मीरी कढ़ाई में इस प्रकार के स्टिच का प्रयोग विशेष रूप से होता है। इसमें टाँकों द्वारा जंजीर अथवा चेन के समान कढ़ाई की जाती है। (देखें चित्र 12.4)
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला

(5) लेजी डेजी स्टिच:
ये लगभग चेन स्टिच के समान बनाए जाते हैं। इसका उपयोग छोटे-छोटे फूल-पत्ती बनाने में होता है। (देखें चित्र 12.5)

(6) स्टेम स्टिच:
इस प्रकार के स्टिचों का उपयोग दिशा, लम्बाई अथवा दूरी के अनुसार किया जाता है। (देखें चित्र 12.6)

प्रश्न 6:
बेबी फ्रॉक के लिए कपड़े की मात्रा का अनुमान कैसे लगाएँगी? दो वर्ष एवं पाँच वर्ष के बकी बेबी फ्रॉक बनाने की विधि सचित्र लिखिए। [2007, 09, 10, 11, 12, 13, 14, 15]
या
तीन वर्ष की बालिका के बेबी फ्रॉक में कितना कपड़ा लगेगा? फ्रॉक को सुन्दर और आकर्षक बनाने के लिए आप क्या करेंगी? [2008]
या
बेबी फ्रॉक में औसतन कितना कपड़ा लगेगा? बेबी फ्रॉक के नाप के अनुसार ड्राफ्टिग कीजिए। [2016, 18]
उत्तर:
बेबी फ्रॉक के लिए अनुमानित कपड़ा

बेबी फ्रॉक बनाने के लिए कपड़े का अनुमान लगाना एक लाभप्रद एवं आवश्यक कार्य है, क्योंकि आवश्यकता से अधिक कपड़ा खरीदना एक प्रकार से धन का अपव्यय ही है। बेबी फ्रॉक के लिए आवश्यक कपड़े का अनुमान निम्न प्रकार से (UPBoardSolutions.com) लगाया जा सकता है
मान लीजिए कि घेर की लम्बाई = 25 सेमी
चोली की लम्बाई = 20
सेमी आस्तीन की लम्बाई = 15सेमी
कपड़े का अर्ज = 92 सेमी
तो, कपड़े की लम्बाई = घेर की लम्बाई x2 + चोली की लम्बाई + आस्तीन की लम्बाई
= 25 x 2 + 20 + 15 + मोड़ने के लिए 10 सेमी
= 95सेमी
यदि गले में झालर लगानी है, तो इसके लिए अतिरिक्त कपड़ा लेना होगा।

UP Board Solutions

बेबी फ्रॉक की रूपरेखा
तीन वर्ष की बालिका का फ्रॉक बनाने के लिए कपड़े का अनुमान निम्नांकित तालिका के
अनुसार लगाएँ:
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला

प्रश्न 7:
लेडीज कुर्ता सिलने की सम्पूर्ण विधि चित्र सहित समझाइए।
या
16 वर्ष की लड़की के कुर्ते में कितना कपड़ा लगेगा? कुर्ते की नाप के अनुसार ड्राफ्टिग कीजिए। [2011]
उत्तर:
लेडीज कुर्ता

युवतियाँ सलवार या चूड़ीदार पायजामे के साथ कुर्ता पहनती हैं। कुर्ता कई प्रकार से बनाया जाता है। फैशन के अनुसार कुर्ता ढीला या टाइट फिटिंग वाला पहना जा सकता है। कुर्ता बनाने के लिए इन नापों की आवश्यकता होती है—लम्बाई, चेस्ट, हिप, घेर, पुट या तीरा, कमर, गला, आस्तीन की लम्बाई, मोहरी।

UP Board Solutions

18 वर्षीया युवती की औसत नाप:
लम्बाई 100 सेमी, चेस्ट 80 सेमी, हिप 50 सेमी, घेर घुटने पर से 90 सेमी, पुट या तीरा 35 सेमी, कमर 70 सेमी, गला 30 सेमी, आस्तीन की लम्बाई 30 सेमी या इच्छानुसार मोहरी 25 सेमी।
(1) कुर्ता बनाने के लिए आगे और पीछे का भाग अलग-अलग तैयार किया जाता है।
(2) कपड़े की चौड़ाई को हिप का +2 सेमी या ढीला अधिक रखना हो, (UPBoardSolutions.com) तो इच्छानुसार

दोहरा करके कपड़ा लम्बाई के बराबर लेकर सामने और उसके पीछे का भाग अलग-अलग रखिए।

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला 2

प्रश्न 8:
18 वर्ष की युवती के पेटीकोट के लिए कितना कपड़ा चाहिए ? पेटीकोट की आवश्यक नाप लिखिए और सचित्र समझाइए। [2008, 09, 11, 12, 16, 17, 18]
या
महिला के पेटीकोट के लिए कपड़े की लम्बाई का अनुमान कैसे लगाया जाएगा? इसके लिए कपड़ा कैसे काटा जाएगा? [2008, 09, 11, 12, 13, 14, 15]
या
कलीदार पेटीकोट का ड्राफ्ट बनाइए। [2007, 08]
उत्तर:
पेटीकोट के लिए अनुमानित कपड़ा

यह देखना चाहिए कि कपड़े की चौड़ाई में से पेटीकोट की एक तरफ अथवा दो कली निकल आयें। यदि नेफा अलग है, तो पेटीकोट के लिए लम्बाई x 2 सेमी लम्बे कपड़े की आवश्यकता पड़ेगी, क्योंकि जितना नेफा ऊपर लगेगा नीचे की ओर उतना ही पेटीकोट को मोड़ा जा सकता है। यदि कपड़े की चौड़ाई में से किनारे से नेफे का कपड़ा न निकले, तो पेटीकोट के लिए लम्बाई x 2 + नेफा कपड़ा लगेगा। यदि पेटीकोट के नीचे लेस या झालर (UPBoardSolutions.com) लगानी हो तो नेफे का कपड़ा छोड़कर दो लम्बाई से कम कपड़े से भी काम चल सकता है।
पेटीकोट की रूपरेखा

कपड़े का अर्ज = 92 सेमी
पेटीकोट की लम्बाई = 1 मीटर (5 सेमी कपड़ा अधिक लें)
कमर का घेरा = 70 सेमी
1 से 2 = पेटीकोट की लम्बाई
100 सेमी + 5 सेमी = 105 सेमी
1 से 3 = कपड़े के अर्ज अथवा पने के अनुसार
1 से 5 = कमर का [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] + 5 = लगभग 23 सेमी
4 से 6 = 1 से 5 = 23 सेमी
5 से 6 को तिरछा मिलाइए
5 से 8 = 1 से 2
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला
6 से 7 = 3 से 4
अब 5 से 6 को पहले तिरछा काटिए।
7 से 9 व 8 से 10 का अधिक वाला कपड़ा काट दीजिए।
म्यानी के लिए कमर की लम्बाई से 10 सेमी कपड़ा अधिक लीजिए अर्थात 70+ 10 = 80 सेमी तथा 10 सेमी चौड़ा कपड़ा लेकर ऊपर पेटीकोट में लगाइए। अब समान रंग के धागे से सिलाई कीजिए।

UP Board Solutions

प्रश्न 9:
पायजामे के लिए कपड़े की मात्रा का अनुमान आप किस प्रकार लगाएँगी? एक वयस्क पुरुष व दो वर्ष के बच्चे के पायजामे को बनाने की विधि का वर्णन कीजिए।
या
एक वयस्क पुरुष के लिए पायजामा का नाप लिखकर काटने की विधि चित्र द्वारा समझाइए। [2008, 09, 10, 11]
या
एक बालक के पायजामे का ड्राफ्ट बनाइए। [2008]
या
एक सादा पायजामे में कितना कपड़ा लगता है? सादा पायजामे के ड्राफ्ट का चित्र बनाइए। [2008, 12]
या
एक 14 या 16 वर्ष के लड़के के लिए पायजामा बनाने में कितना मीटर कपड़ा लगेगा? पायजामे का ड्राफ्ट बनाइए। [2008, 09]
उत्तर:
पायजामे के लिए अनुमानित कपड़ा

यदि कपड़े का अर्ज 92 सेमी है, तो कपड़े की अनुमानित मात्रा होगी,
पायजामे की लम्बाई x 2 + 10 सेमी (मोहरी मोड़ व नेफे के लिए)
वयस्क के लिए यदि पायजामे की लम्बाई = 105 सेमी
तो आवश्यक कपड़ा = 105 x 2 +10 = 220 सेमी

वयस्क व्यक्ति के लिए पायजामा बनाने की विधि
चित्र (अ):
1 से 2 तक की लम्बाई + 5 सेमी = 110 सेमी
1 से 3 तक पाँयचे की चौड़ाई = अर्ज का 3 = 46 सेमी
1 से 5 तक नेफा मोड़ने के लिए = 5 सेमी
2 से 6 तक मोहरी मोड़ने के लिए = 5 सेमी
5 से 6 के तीन बराबर भाग किए।
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला

चित्र (ब):
ऊपर का एक भाग म्यानी के लिए (5 से 7)
4 से 10 = 3 सेमी,
8 से 7 तक सीधी रेखा खींचिए।

चित्र (स):
म्यानी की चौड़ाई = 10 सेमी
1 से 3 म्यानी की लम्बाई = 20 सेमी
1 से 6 = 1.5 सेमी
4 से 5 = 1 से 6, 5 से 6 को मिलाइए
5 से 7= 4 से 2, 6 से 8 = 1 से 3

आवश्यकता से अधिक बचने वाले कपड़े को काटकर म्यानी के दोनों किनारे बराबर कर लीजिए। उपर्युक्त रूपरेखा के अनुसार कपड़े की कटिंग करके पायजामे की सिलाई कर लीजिए व प्रेस करके सलवटें दूर कीजिए।

UP Board Solutions

दो वर्ष के बच्चे का पायजामा:

से 5 वर्ष तक के बच्चे का पायजामा बनाने के लिए कपड़े की एक ही लम्बाई से काम चल जाता है, क्योंकि 92 सेमी के अर्ज में दोनों पाँयचे निकल आते हैं।
यदि पायजामे की लम्बाई = 60
सेमी तो आवश्यक कपड़ा = 60 + 10 (नेफे व मोहरी के लिए) (UPBoardSolutions.com) = 70 सेमी

बनाने की विधि: अब बच्चे के पायजामे की रूपरेखा

चित्र (अ) :
1 से 2 तक की लम्बाई + 5 सेमी = 65 सेमी
1 से 3 पॉयचे की चौड़ाई = अर्ज का = [latex]\frac { 1 }{ 4 }[/latex] 23 सेमी
1 से 5 नेफे के लिए = 5 सेमी
2 से 6 मोहरी मोड़ने के लिए = 5 सेमी
5 से 6 के तीन बराबर भाग कीजिए।

चित्र ( ब ) :
ऊपर का एक भाग म्यानी के लिए (5 से 7)
4 से 10 = 3 सेमी, 8 से 7 तक सीधी रेखा खींचिए।

चित्र (स) :
म्यानी की चौड़ाई = 5 सेमी
1 से 3 म्यानी की लम्बाई = 10 सेमी
1 से 6 = 1 सेमी
4 से 5 = 1 से 6, 5 से 6 को मिलाइए।
5 से 7 = 4 से 2.6 से 8 = 1 से 3 को मिलाइए।
फालतू कपड़े को काटकर म्यानी के दोनों किनारे बराबर कर लीजिए। कपड़े की कटिंग कर व सिलाई कर प्रेस द्वारा सलवटें दूर कर लीजिए।

UP Board Solutions

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
घर पर ही वस्त्रों की सिलाई करने के लाभ बताइए। [2007, 08, 10, 11, 12, 13, 14, 15]
उत्तर:
घर पर ही वस्त्रों की सिलाई करने से वस्त्र कम समय में और जिस समय आवश्यकता हो, . उसी समय तैयार किए जा सकते हैं। दर्जी प्रायः समय अधिक लगाने के साथ-साथ कपड़ा भी अपेक्षाकृत अधिक लेते हैं। घर में वस्त्र नाप के अनुसार उचित रूप से बनाए जा सकते हैं। वस्त्र सिलने पर बचे कपड़े का उपयोग छोटे बच्चों के कपड़े, थैले-थैलियाँ तथा नैपकिन्स आदि बनाने में किया जा सकता है। घर पर सिलाई करने से धन की भी बचत होती है। दर्जियों के पास चक्कर काटने से धन न’ मा का अपव्यय होता है। इसके अतिरिक्त अपने परिवार के सदस्यों तथा स्नेहीजनों के लिए अपने हाथों से बेशभूषा तैयार करने में एक विशेष प्रकार का (UPBoardSolutions.com) भावात्मक सन्तोष तथा प्रसन्नता की भी अनुभूति होती है। इसी प्रकार घर पर ही तैयार किए गए वस्त्रों को पहनकर भी एक अद्भुत आनन्द की प्राप्ति होती है।

प्रश्न 2:
सिलाई किट किसे कहते हैं? [2009, 10, 11, 12, 13, 18]
उत्तर:
सिलाई-कार्य के लिए विभिन्न उपकरणों की आवश्यकता होती है। इन उपकरणों को किसी थैले, डिब्बे अथवा बॉक्स में विधिवत् रखा जाता है। सिलाई उपकरणों सहित इस डिब्बे, थैले अथवा बॉक्स को ही सिलाई किट कहते हैं। सिलाई किट सामान्य रूप से किसी मोटे कपड़े, रेक्सीन अथवा टाट से, थैले के आकार का बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त लकड़ी, गत्ते अथवा लोहे के डिब्बे को भी सिलाई किट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

प्रश्न 3:
सिलाई किट बनाने से क्या लाभ होता है? [2017]
या
सिलाई किट की उपयोगिता क्या है? इसमें कौन-सा सामान रहता है? [2009, 10, 15, 16]
उत्तर:
सिलाई किट में सिलाई-कटाई के लिए आवश्यक समस्त उपकरण एक स्थान पर एकत्र रहते हैं। अतः किसी उपकरण की आवश्यकता होते ही उसे तुरन्त उपलब्ध किया जा सकता है। इससे समय की बचत होती है तथा उपकरण ढूँढ़ने की परेशानी से भी बचा जा सकता है। इसके अतिरिक्त सदैव सिलाई किट में ही आवश्यक उपकरण रखने की आदत से किसी भी उपकरण के खो जाने की आशंका नहीं रहती। सिलाई किट में वस्त्रों की सिलाई के लिए आवश्यक सभी उपकरण एवं सामग्री रखी जाती है। सिलाई मशीन तथा प्रेस आदि उपकरणों को इसमें सम्मिलित नहीं किया जाता है

UP Board Solutions

प्रश्न 4:
कपड़ा काटते समय आप किन बातों को ध्यान में रखना आवश्यक समझती हैं? [2007, 09, 16]
उत्तर:
वस्त्र बनाने के लिए कपड़ा काटते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना सदैव लाभप्रद रहता है
(1) कपड़ा काटने से पूर्व सर्वप्रथम उसकी कान अथवा तिरछापन दूर कर देना चाहिए। यह कार्य वस्त्र की रूपरेखा के चिह्न अंकित करने से पहले करना चाहिए।
(2) कपड़े पर छपे डिजाइन की सिलाई करते समय पूर्ण ध्यान रखना चाहिए। डिजाइन की उपेक्षा करके सिले वस्त्र कम सुन्दर लगते हैं।
(3) अर्ज की ओर कपड़ा आड़ा व लम्बाई की ओर खड़ा कहलाता है। सही फिटिंग के वस्त्र सिलने के लिए कपड़े को सदैव खड़ा काटना चाहिए।
(4) कपड़े को सदैव समतल स्थान पर रखकर काटना चाहिए। (5) कपड़ा काटते समय सिलाई में दबने वाले कपड़े का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
(6) वस्त्र काटते समय दाहिने हाथ में कैंची पकड़कर बाएँ हाथ से वस्त्र को दबाते हुए समान गति से कैंची चलाते हुए कपड़ा काटना चाहिए।
(7) तीव्र व मध्यम धार वाली कैची का उपयोग करना चाहिए।
(8) कपड़ा काटने से पूर्व इस्त्री (प्रेस) कर इसकी सलवटें दूर कर लेनी चाहिए।

प्रश्न 5:
वस्त्रों की सिलाई करते समय मुख्य रूप से किन-किन बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है? [2013, 15]
उत्तर:
वस्त्रों की सिलाई करते समय मुख्य रूप से अग्रलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है

  1. सिलाई करने से पहले हाथ अच्छी तरह से साफ कर लें जिससे कि कपड़ा गन्दा न हो।
  2. सिलाई प्रारम्भ करने से पूर्व सिलाई का सब सामान अपने पास रख लें, ताकि समय की बचत हो और असुविधा भी न हो।।(3) वस्त्र की सिलाई
  3. आँख के बहुत पास लाकर नहीं करनी चाहिए, एक निश्चित दूरी अवश्य रखनी चाहिए।
  4. सिलाई कार्य करने के स्थान पर पर्याप्त प्रकाश होना चाहिए।
  5. सिलाई करने में कपड़े के अनुसार मोटी या पतली सूइयों को प्रयोग करना चाहिए।
  6. सूई को कभी भी मुंह में नहीं रखना चाहिए।
  7. सूई को खोने से बचाने के लिए उसमें सदैव धागा पिरोकर ही रखना चाहिए।

प्रश्न 6:
मशीन द्वारा सिलाई करते समय सूई टूटने के कारण बताइए। [2016]
उत्तर:
सूई के टूटने के प्राय:
निम्नलिखित कारण होते हैं

  1. मशीन में सूई के सही प्रकार से न लगे होने पर इसके टूटने की पूर्ण सम्भावना रहती है।
  2. मशीन में शटल के भली प्रकार कसी न होने पर भी प्राय: सूई टूट जाया करती है।
  3. कपड़े के अनुसार मोटी अथवा पतली सूई का प्रयोग न करना प्रायः सूइयों के टूटने का कारण रहता है।
  4. सिलते समय बार-बार कपड़ा खींचने से भी सूई के टूट जाने का भय रहता है।
  5. नकली, घिसी, जंग लगी पुरानी सूई प्रयोग करने पर टूट सकती है और उससे शारीरिक क्षति की भी सम्भावना रहती है।

UP Board Solutions

प्रश्न 7:
सिलाई करते समय मशीन का धागा टूटने के कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मशीन द्वारा सिलाई करते समय धागा टूट जाने के मुख्य कारण निम्नलिखित होते हैं|

  1.  धागे का क्रम मशीन में यदि ठीक से न रखा गया हो अर्थात् धागा ठीक से न डाला गया हो, तो मशीन चलाते ही धागा टूट जाता है।
  2. धागा यदि पुराना या कच्चा हो अथवा मशीन में ऊपर तथा नीचे का धागा एक समान न हो, तो भी धागा बार-बार टूटता रहता है।
  3. ( मशीन की सूई यदि टेढ़ी अथवा गलत लगी हो तो भी धागा टूट जाता है।
  4. मशीन में खिंचाव को सँभालने वाले स्प्रिंग का कसाव यदि अधिक हो, तो मशीन चलाते समय धागा टूट जाता है।
  5. कपड़े की मोटाई के अनुसार यदि सही सूई एवं धागे को न अपनाया गया हो, तो भी प्रायः धागो टूट जाता है।
  6.  मशीन के पैर के दाँते यदि घिस गए हों, तो भी मशीन चलाते समय धागा है।

प्रश्न 8:
मिल्टन चॉक एवं मीटर टेप का उपयोग बताइए। [2016]
या
मिल्टन चॉक का क्या उपयोग है ? [2009]
या
कपड़े पर काटने से पहले निशान लगाने के लिए किस चॉक का प्रयोग करते हैं और क्यों ? [2012, 13]
उत्तर:
मिल्टन चॉक एवं मीटर टेप दोनों ही वस्त्रों की कटाई-सिलाई के कार्य में प्रयोग किये जाते हैं। वस्त्रों की कटाई के लिए तथा सिलाई के लिए कपड़े पर आवश्यक निशान लगाने पड़ते हैं। कपड़े पर ये निशान लगाने के लिए मिल्टन चॉक का प्रयोग किया जाता है। मिल्टन चॉक से लगाये गये निशान बिल्कुल साफ दिखायी देते हैं तथा जब चाहें इन निशानों को सरलतापूर्वक कपड़े से छुटाया भी जा सकता है। मीटर टेप भी कपड़ों की नपाई के लिए प्रयोग किया जाता है। (UPBoardSolutions.com) कपड़े को नापने के लिए तथा कपड़े पर नाप के अनुसार निशान लगाने के लिए मीटर टेप प्रयोग किया जाता है। मीटर टेप की सहायता से ही हम सही नाप का कपड़ा तैयार कर पाते हैं। कपड़ों की उत्तम सिलाई के लिए व्यक्ति के शरीर का नाप भी मीटर टेप से ही लिया जाता है।

UP Board Solutions

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सिलाई किट से क्या आशय है? [2007, 10, 11, 12, 13]
उत्तर:
सिलाई-कटाई के कार्य के लिए आवश्यक उपकरणों एवं सामग्री को एक साथ रखने वाले डिब्बे या थैले को संयुक्त रूप से सिलाई किट कहा जाता है।

प्रश्न 2:
सिलाई के उपकरण कौन-कौन से होते हैं? [2007, 11]
या
सिलाई में काम आने वाली मुख्य वस्तुओं के नाम लिखिए। [2018]
उत्तर:
सिलाई के महत्त्वपूर्ण उपकरण निम्नलिखित हैं

  1. कैंचियाँ,
  2. सूइयाँ,
  3. फिंगर कैप,
  4. धागे,
  5. इंच-टेप,
  6. सिलाई मशीन,
  7.  मिल्टन कपड़ा,
  8. गुनिया,
  9. मिल्टन चॉक तथा
  10.  मोम, पेन्सिल, रबर, कार्बन पेपर आदि।

प्रश्न 3:
कपड़ा किस प्रकार के स्थान पर काटना उचित रहता है?
उत्तर:
कपड़े को सदैव किसी समतल स्थान (मेज, पटरी, फर्श आदि) पर फैलाकर काटना चाहिए।

प्रश्न 4:
कपड़ा काटने से पूर्व नाप लेने की क्या आवश्यकता है? [2008, 09, 10, 11, 12, 13, 14]
उत्तर:
कपड़ा काटने से पूर्व सही ढंग से नाप लेना आवश्यक होता है क्योंकि इससे ज्ञात हो जाता है कि कपड़ा आवश्यकतानुसार लिया गया है या नहीं। यदि कपड़ा आवश्यकता से अधिक होता है, तो फालतू कपड़े को काटकर अलग कर लिया जाता है।

UP Board Solutions

प्रश्न 5:
वस्त्र सिलने से पूर्व ठीक नाप लेना क्यों आवश्यक है? [2016, 18]
उत्तर:
वस्त्र सिलने से पूर्व ठीक नाप लेने से वस्त्र सही फिटिंग के बनते हैं तथा आरामदायक रहते हैं।

प्रश्न 6:
नाप लेने की कौन-कौन सी विधियाँ हैं?
उत्तर:
नाप लेने की विधियाँ हैं
(1) छाती के नाप के आधार पर शरीर के अन्य भागों की नाप का अनुमान लगाना,
(2) प्रत्येक अंग का अलग से नाप लेना।

प्रश्न 7:
वस्त्र की ड्राफ्टिग करने से क्या लाभ होता है? [2007, 12, 15, 18]
उत्तर:
वस्त्र की कटाई से पहले ड्राफ्टिग की जाती है। ड्राफ्टिग करके वस्त्र बनाने से वस्त्र सही नाप का बनता है तथा उसका नमूना भी सही बनती है। इससे कपड़ा भी व्यर्थ नहीं जाता।

प्रश्न 8:
साधारण सूती कपड़ों की सिलाई के लिए आप किस नम्बर की सूई को प्रयोग करेंगी?
उत्तर:
इसके लिए सिलाई मशीन में 14 अथवा 16 नम्बर की सूई प्रय ग में लायी जाती है।

प्रश्न 9:
सिलाई मशीन की देखभाल क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
मशीन को ढककर रखने व समय-समय पर इसमें तेल डालने से यह धूल से सुरक्षित रहती है तथा ठीक प्रकार से कार्य करती है।

प्रश्न 10:
सिलाई करने के बाद कपड़े पर इस्त्री करना क्यों आवश्यक होता है? [2013]
उत्तर:
इससे वस्त्र में इच्छित चुन्नटे (क्रीज) बनाई जा सकती हैं तथा वस्त्र की सलवटें दूर हो जाती हैं।

UP Board Solutions

प्रश्न 11:
अपने पेटीकोट के लिए कपड़े की मात्रा का अनुमान आप कैसे लगाएँगी?
उत्तर:
पेटीकोट सिलने के लिए, पेटीकोट की लम्बाई x 2 + नेफा सूत्र के अनुसार कपड़े की मात्रा का अनुमान लगाया जाता है।

प्रश्न 12:
सिलाई के टाँके कितने प्रकार के होते हैं? किन्हीं चार के नाम लिखिए। [2012]
उत्तर:
हाथ की सिलाई के मुख्य टाँके हैं-कच्चे व सादे टाँके, काज के टाँके, नेपची टाँके, बखिया व तुरपाई इत्यादि।

प्रश्न 13:
मशीन की सिलाई तथा हाथ की बखिया में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
मशीन की सिलाई दोनों ओर एक-सी तथा सुन्दर होती है, जबकि हाथ की बखिया में सीधा-उल्टा होता है तथा यह अधिक मजबूत नहीं होती है।

प्रश्न 14:
मशीन से वस्त्रों की सिलाई करने से होने वाले कोई दो लाभ लिखिए। [2009, 12, 14]
उत्तर:
ये हैं (1) घर पर स्वयं सिलाई करने से कपड़ा कम समय में अपनी आवश्यकतानुसार तैयार हो जाता है तथा
(2) इससे धन की बचत के साथ ही अनुभव में भी वृद्धि होती है।

प्रश्न 15:
पायजामा और पेटीकोट काटने के लिए किन नापों की आवश्यकता पड़ती है? [2014]
या
पायजामा काटने के लिए किन मापों की आवश्यकता होती है? [2016]
उत्तर:
पायजामा काटने के लिए कमर, लम्बाई, सीट तथा मोहरी की (UPBoardSolutions.com) नाप आवश्यक होती है। पेटीकोट काटने के लिए कमर, लम्बाई तथा घेर की नाप आवश्यक होती है।

प्रश्न 16:
बच्चों के कपड़ों को अधिक कपड़ा दबाकर क्यों सिला जाता है? [2012, 15]
उत्तर:
बच्चों में शारीरिक वृद्धि बड़ी तेजी से होती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए बच्चों के कपड़ों को अधिक कपड़ा दबाकर सिला जाता है, ताकि तंग हो जाने पर इन्हें खोलकर बड़ा किया जा सके।

बहविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न: निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

1. घर पर सिलाई करने से बचत होती है [2008, 09, 10, 11, 12, 13]
(क) समय की
(ख) धन की
(ग) कपड़े की
(घ) समय, धन एवं कपड़े की

UP Board Solutions

2. वस्त्रों की कटाई की जानी चाहिए
(क) पहनने वाले की रुचि के अनुसार
(ख) पहनने वाले की आयु के अनुसार
(ग) पहनने वाले की नाप के अनुसार
(घ) पहनने वाले के पद के अनुसार

3. कौन-सी वस्तु सिलाई किट में नहीं रखी जाती? [2010, 15]
(क) धागा
(ख) सूइयाँ
(ग) कैंची।
(घ) सिलाई मशीन

4. काटने से पहले कपड़े पर किससे निशान लगाना चाहिए? [2011, 15]
(क) फ्रेन्च चॉक
(ख) पेन्सिल
(ग) पेन
(घ) मिल्टन चॉक

5. कपड़े की कटाई के लिए मिल्टन चॉक से निशान लगाया जाता है, क्योंकि
(क) निशान सरलता से छूट जाता है
(ख) निशान सुन्दर बनता है।
(ग) काटने में आसानी होती है,
(घ) निशान स्थायी होता है।

6. कपड़ा काटने का उचित स्थान है [2018]
(क) गोद में रखकर
(ख) हाथ में लेकर
(ग) मेज या पटरे पर रखकर
(घ) कहीं भी

7. कपड़ा काटने से पूर्व की जाने वाली क्रिया है
(क) कपड़े को श्रिंक करना
(ख) कपड़े को प्रेस करना
(ग) मिल्टन चॉक से आवश्यक निशान लगाना
(घ) ये सभी क्रियाएँ

8. धड़ से नीचे के वस्त्रों के लिए आवश्यक नाप है
(क) कमर, कंधा, वक्ष
(ख) लम्बाई, सीट, पायँचा
(ग) वक्ष, कमर, गला
(घ) लम्बाई, गला, कमर

UP Board Solutions

9. सिलाई के सामान रखने के डिब्बे को क्या कहते हैं? [2014, 18]
(क) सिलाई मशीन
(ख) मेज
(ग) बक्सा
(घ) सिलाई किट

उत्तर:
1. (घ) समय, धन एवं कपड़े की,
2. (ग) पहनने वाले की नाप के अनुसार,
3. (घ) सिलाई मशीन,
4. (घ) मिल्टन चॉक,
5. (क) निशान सरलता से छूट जाता है,
6. (ग) मेज या पटरे पर रखकर,
7. (घ) ये सभी क्रियाएँ,
8. (ख) लम्बाई, सीट, पार्यंचा,
9. (घ) सिलाई किटा

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 12 सिलाई किट और वस्त्र-निर्माण कला, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.