UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 11 (Section 2)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 11 देश की आन्तरिक सुरक्षा-व्यवस्था (अनुभाग – दो)

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विस्तृत उत्तरीय प्रत

प्रश्न 1.
आन्तरिक सुरक्षा की चुनौतियों पर सविस्तार प्रकाश डालिए।
              या
भारत की आन्तरिक सुरक्षा को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है? किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए। [2018]
उत्तर :
देश की सुरक्षा का आशय केवल बाहरी सुरक्षा से नहीं, बल्कि आन्तरिक सुरक्षा से भी है। यह सत्य है कि यदि किसी देश की सीमा में रहने वालों का जीवन सुरक्षित नहीं है, तो बाहरी हमलों से भी सुरक्षा सम्भव नहीं है।

देश की आन्तरिक सुरक्षा की चुनौतियाँ

भारत को अपनी आन्तरिक सुरक्षा के क्षेत्र में भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों में अलगाववाद और धार्मिक कट्टरता की कड़ी चुनौती है, वहीं इनसे पैदा हुआ आतंकवाद भारत के लिए एक गम्भीर समस्या बना हुआ है।

अलगाववाद से पीड़ित राज्यों में असम, जम्मू-कश्मीर, नागालैण्ड आदि प्रमुख हैं। इन राज्यों के उग्रवादी समूहों ने क्षेत्रों में विकास न होने का दायित्व भारत सरकार पर थोप दिया है और अलगाववाद को विकास से। जोड़ दिया है। अलगाववाद (UPBoardSolutions.com) की प्रकृति भारतीय सुरक्षा के लिए एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरकर सामने आई है।

आतंकवाद भारत के लिए एक गम्भीर चुनौती है। आतंकवाद का अर्थ राजनीतिक खून-खराबे से है। आतंकवादी अपनी बातों को मनवाने के लिए जन-साधारण को निशाना बनाते हैं और नागरिकों के असन्तोष का उपयोग सरकार के विरुद्ध करते हैं। 26 नवम्बर, 2008 ई० को मुम्बई में हुआ आतंकवादी हमला इसका प्रमुख उदाहरण है। आतंकवादी गतिविधियों के मुख्य उदाहरण हैं—विमान अपहरणे अथवा भीड़ भरी जगहों; जैसे—रेलगाड़ी, होटल, बाजार या ऐसी ही अन्य जगहों पर बम विस्फोट कराना आदि।।

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देश की आन्तरिक सुरक्षा की रणनीति

देश की आन्तरिक सुरक्षा की रणनीति का प्रमुख कारक है—विकास कार्यों को तेजी से पूरा करना। ऐसे कार्यों में समाज के सभी वर्गों, उपवर्गों, सम्प्रदायों को विकास के लाभ में हिस्सेदारी प्रदान की जाती है। इसके साथ-ही-साथ भारत ने राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए लोकतान्त्रिक व्यवस्था में देश के प्रत्येक व्यक्ति को हिस्सेदार बनाया है। भारत में अर्थव्यवस्था को इस प्रकार से भी विकसित करने का प्रयास किया (UPBoardSolutions.com) गया है कि बहुसंख्यक नागरिकों को गरीबी और अभाव से मुक्ति मिले तथा नागरिकों के बीच आर्थिक समानता पैदा हो। इसके अलावा आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था को आधुनिकीकरण और अति आधुनिक हथियारों से लैस करना भी एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारक है।

लघु उत्तरीय प्रत।

प्रश्न 1.
आन्तरिक सुरक्षा के पारम्परिक साधनों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
आन्तरिक सुरक्षा के पारम्परिक साधनों में प्रमुख हैं–पुलिस बल; त्वरित कार्यबल (आर०ए० एफ०); असम राइफल्स; गृहरक्षा वाहिनी (होमगार्ड) आदि। इन सभी बलों पर देश की आन्तरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है। पुलिस के पास आम कानून व्यवस्था बनाये रखने, अपराधों को रोकने एवं उनकी

जाँच करने का दायित्व है। संविधान के तहत आम कानून व्यवस्था और पुलिस राज्य सरकार का विषय है। इसलिए पुलिस पर राज्य सरकार का नियन्त्रण होता है। राज्य में पुलिस बल पर प्रमुख पुलिस महानिदेशक या पुलिस महानिरीक्षक होता है। राज्य को सुविधानुसार कई खण्डों में बाँटा जाता है, जिन्हें ‘क्षेत्र’ कहा जाता है और हर पुलिस क्षेत्र उपमहानिरीक्षक के प्रशासनिक नियन्त्रण में होता है। एक क्षेत्र में कई जिले होते हैं। जिला (UPBoardSolutions.com) पुलिस का विभाजन पुलिस डिवीजनों, अंचलों और पुलिस थानों में किया गया है। राज्यों के पास नागरिक पुलिस के अलावा अपनी सशस्त्र पुलिस, अलग खुफिया शाखा, अपराध शाखा आदि होती हैं।

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प्रश्न 2.
‘असम राइफल्स’ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
पूर्वोत्तर राज्यों में ‘असम राइफल्स’ सबसे पुराना पुलिस बल है। ‘असम राइफल्स’ का गठन सन् 1835 ई० में ‘कछार लेवी’ के नाम से किया गया था। इस पर पूर्वोत्तर क्षेत्र की आन्तरिक सुरक्षा और भारत-म्यांमार सीमा की सुरक्षा को दोहरा उत्तरदायित्व है। पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने में असम राइफल्स की भूमिका सराहनीय रही है। इस बल को प्यार से पूर्वोत्तर का प्रहरी’ और ‘पर्वतीय लोगों का मित्र’ कहा जाता है।

प्रश्न 3.
‘होमगाई’ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
यह एक स्वयंसेवी बल है, जिसका गठन दिसम्बर, 1946 ई० में नागरिक अशान्ति और साम्प्रदायिक दंगों के नियन्त्रण में पुलिस को सहयोग देने के उद्देश्य से किया गया था। इसका काम हवाई हमले, अग्निकाण्ड, चक्रवात, भूकम्प, महामारी आदि आपात स्थितियों में पुलिस की सहायता करना, आवश्यक सेवाएँ बहाल कराना, साम्प्रदायिक सौहार्द बनाना, कमजोर वर्ग के लोगों की रक्षा में प्रशासन का साथ देना, सामाजिक-आर्थिक और कल्याण के कार्यों में हिस्सा लेना तथा नागरिक सुरक्षा का ध्यान रखना है।

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आन्तरिक सुरक्षा के इन पारम्परिक साधनों के अलावा अपारम्परिक साधनों का प्रयोग भी आवश्यक है। अपारम्परिक साधनों से तात्पर्य वंचित, अपेक्षित लोगों को विकास की मुख्यधारा में सम्मिलित करने वाले उपायों से है। अल्पसंख्यकों, महिलाओं, (UPBoardSolutions.com) विकलांगों, पिछड़े क्षेत्रों के लिए सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा हेतु रोजगार, व्यापार आदि पर बल देना चाहिए।

प्रश्न 4.
नेशनल कैडेट कोर (एनसीसी) के विषय में आप क्या जानते हैं? [2011, 12]
              या
नेशनलं कैडेट कोर का संक्षिप्त विवरण दीजिए। [2011, 12]
उत्तर :
नेशनल कैडेट कोर

यह एक महत्त्वपूर्ण युवा संगठन है। इसमें विद्यार्थियों व स्कूली छात्र-छात्राओं को सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है। एन०सी०सी० में तीन डिवीजन हैं—सीनियर, जूनियर व लड़कियाँ। सीनियर डिवीजन में हाईस्कूल से ऊपर के छात्र प्रशिक्षण लेते हैं। जूनियर डिवीजन में नवीं व हाईस्कूल कक्षा में पढ़ने वाले छात्र भाग लेते हैं। एन०सी०सी० के छात्रों के लिए अनेक प्रकार की परीक्षाओं का आयोजन किया जाता है; जैसे-ए, बी, सी, जी प्रमाण-पत्र आदि की परीक्षाएँ। एन०सी०सी० का उद्देश्य देश के प्रत्येक नवयुवक को सैन्य दृष्टि से प्रशिक्षित करना है। आवश्यकता पड़ने पर ऐसे नवयुवकों को शीघ्र ही पूर्ण सैनिक बनाया (UPBoardSolutions.com) जा सकता है। आज एन०सी०सी० के माध्यम से भारतीय सेना को निरन्तर बहुत अच्छे सैनिक अधिकारी प्राप्त हो रहे हैं। इस प्रकार एन०सी०सी० बहुत महत्त्वपूर्ण संगठन है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि “एन०सी०सी० सुरक्षा सेवाओं की नर्सरी है।”

प्रश्न 5.
भारत की आन्तरिक सुरक्षा से सम्बन्धित किन्हीं तीन समस्याओं का वर्णन कीजिए। [2015, 16]
उत्तर : कोई भी राष्ट्र विकास के पथ पर तभी अग्रसर हो सकता है जब वहाँ की आन्तरिक सुरक्षा-व्यवस्था सुदृढ़ हो। आन्तरिक सुरक्षा-व्यवस्था को सुदृढ़ बनाये रखने के लिए प्रत्येक सरकार को सतर्क रहना चाहिए जिससे विध्वंसकारी गतिविधियाँ सक्रिय न हो सकें। ये विध्वंसकारी गतिविधियाँ राष्ट्र के अन्दर गतिरोध उत्पन्न करती हैं और विकास में बाधक सिद्ध होती हैं।  देश में आन्तरिक सुरक्षा के वर्तमान समय में निम्नलिखित खतरे हैं

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1. आतंकवाद– देश में आतंकवाद गम्भीर समस्या है। पड़ोसी देश पाकिस्तान का राष्ट्रीय लक्ष्य भारत को प्रगति के मार्ग पर रोकने, आर्थिक क्षति पहुँचाने, सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने एवं नागरिकों में भय एवं असुरक्षा की भावना पैदा करने के लिए गोलाबारी, बन्दूक, आत्मघाती हमले, सार्वजनिक बम विस्फोट आदि हैं। देश के भीतर सार्वजनिक स्थानों पर बम विस्फोट आन्तरिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करना है। पंजाब एवं (UPBoardSolutions.com) जम्मू-कश्मीर में लगी आतंकवादी आग देश के भीतर अन्य प्रान्तों में भी फैलती जा रही है। इन्दिरा गाँधी, राजीव गाँधी की हत्या आतंकवादी घटनाएँ हैं।

2. नक्सली आतंकवाद- 
नक्सली आतंकवादी राजनीतिक नकाब पहनकर गरीबों का मसीहा बनकर उन्हें बरगलाकर या भयभीत करके उन्हीं की आड़ में आपराधिक गतिविधियाँ चलाते हैं। इनका लक्ष्य आन्तरिक सुरक्षा-व्यवस्था को नष्ट-भ्रष्ट करना होता है। क्षेत्रीय विकास को रोकने के लिए वे आतंकवादी घटनाओं में लिप्त रहते हैं। ऐसा करने के लिए विदेशी शक्तियाँ उन्हें धन एवं शस्त्र उपलब्ध कराती हैं।

3. साम्प्रदायिक दंगे एवं आन्दोलन– 
स्वाधीनता के बाद विशेष सम्प्रदाय की तुष्टीकरण की भयानक परम्परा स्थापित हो गयी है। यह परम्परा सत्तालोलुप तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनेताओं ने डाली है। इनकी धर्मनिरपेक्षता का अर्थ विशेष सम्प्रदायों को खुश करना हो गया है। अब वे दबाव समूह बन गये हैं। उन्हें संवेदनशील सम्बोधित किया जा रहा है। मामूली हस्तक्षेप भी उनके भड़काने का कारण और दंगा का मूल कारण हो गया है, अत: तुष्टीकरण की नीति त्यागकर राष्ट्रीयता की भावना को उभारकर साम्प्रदायिकता का मुकाबला करना चाहिए।

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प्रश्न 6.
भारत की रक्षा तैयारी पर एक लेख लिखिए। [2016]
              या
देश की आन्तरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए सरकार को क्या उपाय करने चाहिए? उनमें से किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए। [2016, 18]
उत्तर :
भारत अपनी विस्तृत सीमा की सुरक्षा के लिए सजग एवं सावधान है। स्वाधीनता के बाद से ही भारत ने इस दिशा में सराहनीय कार्य किये हैं। प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय बजट में रक्षा के लिए पर्याप्त धनराशि की व्यवस्था की जाती रही है। वर्तमान सरकार (UPBoardSolutions.com) ने बजट में रक्षा सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त धनराशि की व्यवस्था की है।

रक्षा बजट

भारत ने अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए निम्न तैयारियाँ की हैं

  1. स्वाधीनता के बाद भारत ने रक्षा उत्पादों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास | किये हैं। भारत के इस प्रयास के फलस्वरूप आज 39 आर्डिनेन्स फैक्ट्रियाँ विविध रक्षा सामग्रियाँ का उत्पादन कर रही हैं।
  2. युद्ध-काल में खाद्यान्न आदि की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए सरकार ने खाद्यान्न उत्पादन एवं भण्डारण की समुचित व्यवस्था की है।
  3. सरकार ने केन्द्रीय वार्षिक बजट में प्रतिवर्ष रक्षा आवश्यकताओं (UPBoardSolutions.com) की पूर्ति के लिए पर्याप्त धन की व्यवस्था की है।
  4. रक्षा उत्पादनों में गुणवत्ता और तेजी लाने के लिए सरकार ने 7 मई, 1980 को रक्षा अनुसन्धान और विकास नामक एक नये विभाग की स्थापना की है।
  5. भारत सरकार ने सेना को आधुनिकतम तकनीक एवं अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित करने का प्रयास किया है। उल्लेखनीय है कि भारत 1998 में दूसरा परमाणु विस्फोट करके संसार के परमाणु शक्ति सम्पन्न ।
    देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है।
  6. भारत ने अपने सैनिकों को युद्ध-कला में और दक्ष बनाने, नये सैनिकों की भर्ती करने एवं उनके प्रशिक्षण के लिए देश में कई प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना की है।
  7. अपने प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम के अन्तर्गत भारत त्रिशूल, पृथ्वी, अग्नि, आकाश, नाग आदि प्रक्षेपास्त्रों के निर्माण में सफल रहा है।

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प्रश्न 7.
राष्ट्रीय अखण्डता बनाये रखने के लिए कौन-से कदम उठाने चाहिए? विवेचना कीजिए। [2011, 16]
उत्तर :

देश की एकता व अखण्डता बनाए रखने के उपाय

देश की एकता व अखण्डता बनाए रखने के लिए अग्रलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं

  • हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्य; जैसे—शिक्षण संस्थानों की स्थापना, रोजगार के अवसरों का सृजन तथा यातायात की सुविधाएँ आदि विकसित किए जाने चाहिए।
  • संचार के साधनों का विकास किया जाना चाहिए।
  • तार्किक तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रचार-प्रसार के लिए अभियान चलाया जाना चाहिए।
  • धार्मिक कट्टरती को फैलने से रोकना चाहिए तथा इस प्रकार के संगठनों को उन्मूलन किया जाना चाहिए।
  • धार्मिक, प्रादेशिक, क्षेत्रीयता पर आधारित राजनीति को समाप्त किया जाना (UPBoardSolutions.com) चाहिए।
  • साम्प्रदायिक सौहार्द उत्पन्न करने वाले कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। एक-दूसरे के धर्म के विचारों को जानने के प्रयत्न किए जाने चाहिए।
  • देश में उद्यमशीलता का विकास किया जाना चाहिए, ताकि अधिक-से-अधिक लोग रोजगारत् रहें और उन्हें आर्थिक लाभ का लालच देकर उकसाया न जा सके।
  • सशस्त्र बलों को सुदृढ़ करना चाहिए तथा उनके प्रशिक्षण पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुलिस किस सूची का विषय है ?
उत्तर :
पुलिस राज्य-सूची का विषय है।

प्रश्न 2.
‘पूर्वोत्तर का प्रहरी किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
असम राइफल्स’ को पूर्वोत्तर का प्रहरी कहा जाता है।

प्रश्न 3.
होमगाई का कोई एक कार्य लिखिए।
उत्तर :
आपात स्थितियों में पुलिस की सहायता करना।

प्रश्न 4.
राज्य पुलिस का सबसे बड़ा अधिकारी कौन होता है ?
उत्तर :
पुलिस महानिदेशक या (UPBoardSolutions.com) पुलिस महानिरीक्षक (D.G.P)।

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प्रश्न 5.
जिले का सबसे बड़ा पुलिस अधिकारी कौन होता है ?
उत्तर :
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (Senior Superintendent of Police : S.S.P)।

प्रश्न 6.
भारत की आन्तरिक सुरक्षा से सम्बन्धित किन्हीं दो समस्याओं के नाम लिखिए। [2015]
उत्तर :
अलगाववाद तथा आतंकवाद।

‘बहुविकल्पीय

प्रश्न 1. आर०ए०एफ० का गठन किया गया

(क) 1991 ई० में
(ख) 1992 ई० में
(ग) 1993 ई० में
(घ) 1994 ई० में

2. असम राइफल्स का गठन हुआ

(क) 1835 ई० में
(ख) 1935 ई० में
(ग) 1951 ई० में
(घ) 1953 ई० में

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3. होमगार्ड का गठन हुआ

(क) 1946 ई० में
(ख) 1948 ई० में
(ग) 1949 ई० में
(घ) 1950 ई० में

उत्तरमाला

1. (ख), 2. (क), 3. (क)

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 (Section 2)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 जनपदीय न्यायालय एवं लोक अदालत (अनुभाग – दो)

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विस्तृत उत्तरीय प्रशा

प्रश्न 1.
जिले के दीवानी न्यायालय का सविस्तार वर्णन कीजिए।
            या
जिला स्तर की अदालतों के गठन पर प्रकाश डालिए और उनके किन्हीं दो कार्यों का उल्लेख कीजिए। [2010]
उत्तर :
दीवानी न्यायालय जनपद में दीवानी या व्यवहार के मामलों से सम्बन्धित निम्नलिखित न्यायाधीशों के न्यायालय होते हैं

1. जिला न्यायाधीश का न्यायालय –
जिला न्यायाधीश दीवानी के मामले में सबसे बड़ा न्यायाधीश होता है। जिला न्यायाधीश सभी प्रकार के दीवानी के मामलों की प्रारम्भिक सुनवाई करता है तथा पाँच लाख रुपये मूल्य तक के विवादों की (UPBoardSolutions.com) अपील सुनता है। इस प्रकार इस न्यायालय में मुकदमों का निर्णय भी होता है और निचली अदालतों के निर्णय के विरुद्ध अपील भी सुनी जाती है। यह जिले के न्यायालयों पर नियन्त्रण रखती है।

2. सिविल जज का न्यायालय- 
सिविल जज दीवानी के मामलों में जिला न्यायाधीश के नीचे का न्यायाधीश होता है। सिविल जज को एक लाख रुपये मूल्य तक के विवादों की प्रारम्भिक सुनवाई का अधिकार प्राप्त है। आवश्यकता पड़ने पर उच्च न्यायालय के निर्देशों पर यह राशि पाँच लाख रुपये तक बढ़ाई जा सकती है। सिविल जज मुन्सिफ के निर्णयों के विरुद्ध उन अपीलों को भी सुनता है, जिन्हें जिला जज सुनवाई हेतु हस्तान्तरित करके उसके पास भिजवाता है।

3. मुन्सिफ का न्यायालय- 
सिविल जज के नीचे मुन्सिफ की अदालत होती है। इन अदालतों में साधारणतः दस हजार रुपये तक के तथा विशेष अधिकार मिलने पर 25,000 की मिल्कियते तक के मामले सुने जाते हैं एवं उन पर निर्णय सुनाये जाते हैं। इनके फैसले के विरुद्ध जिला न्यायाधीश की अदालत में अपील की जा सकती है।

4. खफीफा जज का न्यायालय- 
कहीं-कहीं छोटे मामलों में जल्दी तथा कम खर्च में निर्णय सुनाने के लिए खफीफा जज के न्यायालय होते हैं। मुन्सिफ के न्यायालय के नीचे खफीफा का न्यायालय होता है। इस न्यायालय में पाँच हजार रुपये तक के धन वसूली मामलों तथा १ 25,000 तक के मकानों व दुकानों के बेदखली विवादों की सुनवाई होती है। इनके निर्णयों के विरुद्ध अपील नहीं होती है। जिला न्यायाधीश के न्यायालय में पुनर्विचार (Revision) हो सकता है। इन न्यायालयों की स्थापना इसलिए की गयी है, जिससे बड़े-बड़े नगरों में छोटे-छोटे मुकदमों का शीघ्रतापूर्वक निर्णय किया जा सके।

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5. न्याय पंचायत- 
दीवानी विवादों में सबसे निचले स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय पंचायतें हैं। इन्हें 500 तक के धन-विवादों को सुनने को अधिकार है। इनके निर्णय के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती। इसकी एक विशेषता यह भी है कि कोई भी वकील (UPBoardSolutions.com) इसमें मुकदमे की पैरवी नहीं कर सकता। ऐसा इसलिए किया गया है, जिससे ग्रामीण जनता को निष्पक्ष और सस्ता न्याय मिल सके।

प्रश्न 2.
जिले के राजस्व न्यायालय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :

राजस्व न्यायालय

राजस्व न्यायालय लगान (मालगुजारी) सम्बन्धी मुकदमों की सुनवाई करते हैं। प्रदेश स्तर पर उच्च न्यायालय के अधीन इनकी निम्न व्यबस्था है
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 जनपदीय न्यायालय एवं लोक अदालत 1
राजस्व परिषद्- प्रत्येक राज्य में मालगुजारी सम्बन्धी मुकदमों के निस्तारण हेतु उच्च न्यायालय के बाद एक राजस्व परिषद् होती है। मालगुजारी से सम्बन्धित मुकदमों की यह राज्य स्तरीय सबसे बड़ी अदालत है। इसके निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

आयुक्त- प्रशासन की सुविधा के लिए राज्य को कई कमिश्नरियों (मण्डलों) में विभक्त कर दिया जाता है और प्रत्येक कमिश्नरी का प्रधान अधिकारी कमिश्नर या आयुक्त कहलाता है। आयुक्त मालगुजारी सम्बन्धी मामलों में जिलाधीश के फैसले के विरुद्ध (UPBoardSolutions.com) अपीलें सुनता है। आयुक्त के फैसले के विरुद्ध अपीलें राजस्व परिषद् में सुनी जाती हैं।

जिलाधिकारी- यह जिले में सबसे बड़ा अधिकारी होता है, जो उपजिलाधिकारी (S.D.M.) व तहसीलदार के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनता है। इसके नीचे अपर जिलाधिकारी होता है। उपजिलाधिकारी जिला कई सब-डिवीजनों में विभक्त होता है। प्रत्येक सब-डिवीजन में एक उपजिलाधिकारी की नियुक्ति होती है जो राजस्व के साथ-साथ अपने क्षेत्र में कानून और व्यवस्था को बनाये रखती है।

तहसीलदार– प्रत्येक तहसील में एक तहसीलदार होता है, जो अपने क्षेत्र में राजस्व की वसूली की व्यवस्था करता है तथा इससे सम्बन्धित वादों की सुनवाई भी करता है। नायब तहसीलदार-तहसीलदार की सहायता के लिए नायब तहसीलदारों को नियुक्त किया जाता है। ये तहसीलदार के कार्यों में सहयोग प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 3.
लोक अदालतं पर एक लेख लिखिए। [2013]
या

लोक अदालत की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2015, 16, 18]
या

लोक अदालत का क्या अभिप्राय है ? इसके किन्हीं दो कार्यों का उल्लेख कीजिए। [2012]
या

लोक अदालत क्या है? लोक अदालतों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। क्या इसके निर्णय के विरुद्ध अपील हो सकती है ? [2010, 11]
या

लोक अदालतों की स्थापना क्यों की गई थी ? [2007]
या

लोक अदालत गठित करने का उद्देश्य क्या है ? इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2015]
            या
लोक अदालतों की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2015]
या
लोक अदालतों के गठन एवं उसकी कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालिए। [2016]
या

भारतीय न्याय-व्यवस्था में लोक अदालतों के महत्व का वर्णन कीजिए। [2015]
या

भारतीय न्याय-व्यवस्था में लोक अदालतों की भूमिका का परीक्षण कीजिए। [2015]
उत्तर :

लोक अदालत

आज न्यायालयों में लाखों की संख्या में विचाराधीन मुकदमे पड़े हैं। कार्य-भार के कारण दीवानी, फौजदारी और राजस्व न्यायालयों से न्याय पाने में बहुत अधिक समय लगता है तथा इस प्रक्रिया में धन भी अधिक व्यय होता है और अनेक अन्य परेशानियाँ भी उठानी पड़ती हैं। (UPBoardSolutions.com) ऐसी स्थिति में न्याय-प्रक्रिया को और सरल बनाने के उद्देश्य से एक प्रस्ताव द्वारा भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री पी० एन० भगवती की अध्यक्षता में कानूनी सहायता योजना कार्यान्वयन समिति’ की नियुक्ति की। इस समिति द्वारा प्रस्तावित कार्यक्रम के अन्तर्गत उत्तर प्रदेश राज्य के विभिन्न भागों और देश के अन्य राज्यों के विभिन्न भागों में शिविर’ (Camp) के रूप में लोक अदालतें लगायी जा रही हैं। इन लोक अदालतों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • इन अदालतों में मुकदमों का निपटारा आपसी समझौतों के आधार पर किया जाता है और | समझौता ‘कोर्ट फाइल’ में दर्ज कर लिया जाता है।
  • इनमें वादी और प्रतिवादी अपना वकील नहीं कर सकते वरन् दोनों पक्ष न्यायाधीश के सामने
    आपस में बातचीत करते हैं।
  • इनमें वैवाहिक, पारिवारिक व सामाजिक झगड़े, किराया, बेदखली, वाहनों का चालान, बीमा आदि के सामान्य मुकदमों पर दोनों पक्षों को समझाकर समझौता करा दिया जाता है।
  • इन अदालतों में सेवानिवृत्त जज, राजपत्रित अधिकारी तथा समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति परामर्शदाता के रूप में बैठते हैं।
  • ये अदालतें ऐसे किसी व्यक्ति को रिहा नहीं कर सकतीं, जिसे शासन ने बन्दी बनाया है। ये अदालतें केवल समझौता करा सकती हैं, जुर्माना कर सकती हैं या चेतावनी देकर छोड़ सकती हैं।
  • लोक अदालत को सिविल कोर्ट के समकक्ष मान्यता प्राप्त है। इसके द्वारा दिया गया फैसला अन्तिम होता है, जिसे सभी पक्षों को मानना पड़ता है। इस फैसले के विरुद्ध किसी भी अदालत में अपील नहीं की जा सकती।

भारत में सर्वप्रथम लोक अदालतें 1982 ई० में गुजरात राज्य में लगायी गयीं। तब से लेकर दिसम्बर, 1999 ई० तक देश के विभिन्न भागों में 40,000 से अधिक लोक अदालतें लगायी गयीं, जिनमें 92 लाख से अधिक मामले निबटाये गये। इससे लोक अदालतों की लोकप्रियता का पता चलता है। अब केन्द्र तथा राज्य सरकारें स्थायी एवं निरन्तर लोक अदालतें स्थापित करने का विचार कर रही हैं। सरकार के विभिन्न विभागों एवं सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों के (UPBoardSolutions.com) लिए अलग-अलग लोक अदालतें स्थापित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। लोक अदालतों को कानूनी रूप देने के लिए केन्द्र सरकार शीघ्र ही संसद में एक विधेयक पास करने जा रही है।

जनपदीय स्तर पर सरकार ने परिवार न्यायालयों, उपभोक्ता संरक्षण न्यायालयों तथा विशेष महिला अदालतों की भी स्थापना की है। उत्तर प्रदेश में 2 अक्टूबर, 1986 ई० से परिवार न्यायालय कानून लागू किया गया है। अब तक 10 परिवार न्यायालय उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड राज्यों में कार्यरत हैं। इन न्यायालयों का उद्देश्य पारिवारिक विवादों (विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, भरण-पोषण, सम्पत्ति आदि) को शीघ्रता के साथ हल करना है। विशेष महिला अदालत महिलाओं से सम्बन्धित विवादों की सुनवाई करती है। 10 फरवरी, 1996 ई० से इलाहाबाद में पहली विशेष महिला अदालत ने कार्य आरम्भ किया है। अब तक मथुरा, सहारनपुर आदि जनपदों में विशेष महिला अदालतें स्थापित हो चुकी हैं। इसी प्रकार जनपदों में उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय भी उपभोक्ताओं के हितों को संरक्षण देने के लिए सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं।

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प्रश्न 4.
परिवार न्यायालय पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2011]
            या
परिवार न्यायालय के पक्ष में अपने तर्क दीजिए। [2015, 17]
उत्तर :
जनपदीय स्तर पर सरकार द्वारा परिवार न्यायालयों की स्थापना की गयी है। उत्तर प्रदेश में 2 अक्टूबर, 1986 ई० से परिवार न्यायालय कानून लागू किया गया है। अब तक दस परिवार न्यायालय उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड राज्य में कार्य कर रहे हैं। इन न्यायालयों का उद्देश्य पारिवारिक विवादों (विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, भरण-पोषण, सम्पत्ति आदि) को शीघ्रता के साथ हल करना है। इस न्यायालय में मुकदमों का निपटारा आपसी समझौतों के (UPBoardSolutions.com) आधार पर किया जाता है तथा दोनों पक्ष न्यायाधीश के सम्मुख आपस में बातचीत करते हैं। इन न्यायालयों की आज भारत में अत्यधिक आवश्यकता है। क्योंकि आज सामान्य न्यायालयों में करोड़ों की संख्या में वर्षों से लम्बित मुकदमे पड़े हैं। इसलिए अनेक पारिवारिक विवाद; जिन्हें शीघ्रातिशीघ्र हल हो जाना चाहिए था; वे भी वर्षों से लम्बित हैं। यही कारण है कि ऐसे न्यायालयों की हमारे देश में आवश्यकता है।

लघु उत्तरीय प्रा

प्रश्न 1.
जिले के फौजदारी न्यायालय की रचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर :

फौजदारी न्यायालय

सत्र (सेशन) न्यायालय- उच्च न्यायालय की अधीनता में फौजदारी न्यायालय का कार्य करने वाले सबसे बड़े न्यायालय को ‘सत्र न्यायालय’ कहते हैं। इसके मुख्य न्यायाधीश को सत्र न्यायाधीश कहते हैं। इसे फौजदारी के साथ ही दीवानी के मुकदमों के निर्णय का भी अधिकार प्राप्त है। जब यह फौजदारी के मुकदमे सुनता है तो सेशन जज कहलाता है और जब दीवानी के मुकदमे सुनता है तो जिला जज कहलाता है। इसकी नियुक्ति (UPBoardSolutions.com) उच्च न्यायालय की सम्मति से राज्यपाल द्वारा की जाती है। इस पद पर प्रायः दो भिन्न कोटि के व्यक्ति नियुक्त किये जा सकते हैं-प्रथम तो वे जो राजकीय जुडीशियल सर्विस के सदस्य हों, इसके अलावा सात वर्ष तक अधिवक्ता (वकील) का कार्य करने वाला व्यक्ति भी न्यायाधीश बनाया जा सकता है। न्यायिक पदों के लिए लोक सेवा आयोग द्वारा खुली प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। इन प्रतियोगिताओं में पास होने वाले योग्य व्यक्ति सर्वप्रथम मुन्सिफ के पद पर नियुक्त किये जाते हैं। कुछ समय बाद अपनी योग्यता, कार्यक्षमता एवं निष्पक्षता के बल पर आगे उन्नति करते हुए वे सत्र न्यायाधीश के पद पर पहुँच जाते हैं।

सत्र न्यायाधीश को अपने अधीनस्थ मजिस्ट्रेटों द्वारा दिये गये निर्णय के विरुद्ध अपील भी सुनने का अधिकार है। ये न्यायालय मृत्यु-दण्ड दे सकते हैं, परन्तु मृत्युदण्ड पर उच्च न्यायालय की पुष्टि होनी आवश्यक है। यह जिले के अन्य न्यायाधीशों के कार्यों की देखभाल भी करता है। बड़े जिलों में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एवं सहायक सत्र न्यायाधीश होते हैं।

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प्रश्न 2.
जिला न्यायालय पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2013]
उत्तर :

जनपदीय (जिला) न्यायालय

जनपदीय (जिला) न्यायालय राज्य के उच्च न्यायालय के अधीन होते हैं। प्रत्येक जनपद (जिले) में निम्नलिखित प्रकार के न्यायालय होते हैं

  1. दीवानी न्यायालय–विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 के अन्तर्गत देखें।
  2. फौजदारी न्यायालये-लघु उत्तरीय प्रश्न 1 का उत्तर देखें।
  3. न्याय पंचायत–फौजदारी क्षेत्र में सबसे निम्न स्तर पर न्याय पंचायतें होती हैं। न्याय पंचायतें है 250 तक जुर्माना कर सकती हैं, परन्तु वे कारावास का दण्ड नहीं दे सकतीं। 73वें संविधान संशोधन के बाद बनाए गए पंचायती राज अधिनियम में न्याय पंचायत की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
  4. राजस्व न्यायालय–वर्तमान में उच्च न्यायालय के अधीन राजस्व परिषद्, कमिश्नर, जिलाधीश, परगनाधिकारी (S.D.M.), तहसीलदार और नायब तहसीलदार की अदालतें होती हैं। इन अदालतों में लगान, मालगुजारी आदि के मुकदमों की (UPBoardSolutions.com) सुनवाई की जाती है।
  5. अन्य न्यायालय-उपर्युक्त न्यायालयों के अतिरिक्त कुछ विशेष मुकदमों का फैसला विशेष न्यायालयों में होता है; जैसे—आयकर सम्बन्धी मुकदमों का फैसला आयकर अधिकारी ही कर सकता है। उसके निर्णय के विरुद्ध आयकर आयुक्त और आयकर अधिकरण (Income Tax Tribunal) में अपील की जाती है।

प्रश्न 3.
लोक अदालतें क्यों महत्त्वपूर्ण हैं ? दो कारण बताइए। [2013]
            या
लोक अदालतों की स्थापना के दो कारण बताइट। [2016]
उत्तर :
भारत की वर्तमान न्याय-व्यवस्था इस प्रकार की है कि उसमें न्याय प्राप्त करने में अधिक समय लगता है तथा धन की अधिक आवश्यकता होती है। वर्तमान में भारत के समस्त न्यायालयों में लाखों की संख्या में मुकदमे विचाराधीन पड़े हैं। इस (UPBoardSolutions.com) समस्या का समाधान करने तथा शीघ्र न्याय प्राप्त करने के लिए लोक अदालतें महत्त्वपूर्ण हैं। ये अदालतें देश के विभिन्न भागों में शिविर के रूप में लगाई जाती हैं। इनकी महत्त्वता के दो कारण निम्नलिखित हैं

  • न्यायिक व्यवस्था को सरल तथा सुविधाजनक बनाए जाने की आवश्यकता है। इसमें वकील करने की आवश्यकता नहीं है।
  • मुकदमे का निर्णय उसी दिन हो जाता है जिस दिन यह अदालत लगाई जाती है। इसके निर्णय । सामान्यतया आर्थिक दण्ड के रूप में होते हैं।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जिले का सबसे बड़ा न्यायालय कौन-सा है ?
उत्तर :
जिले का सबसे बड़ा न्यायालय जनपद न्यायालय है।

प्रश्न 2.
न्याय पंचायत कितने रुपये तक का विवाद सुन सकती है ?
उत्तर :
न्याय पंचायत १ 500 तक के धन-विवाद को सुन सकती है।

प्रश्न 3.
सिविल जज (जूनियर डिवीजन) कितने रुपये तक का विवाद सुन सकता है ?
उत्तर : सिविल जज एक लाख रुपये मूल्य तक के मुकदमे सुन सकता है।

प्रश्न 4.
भारतीय जनता को सरल तथा सुविधाजनक न्याय प्रदान करने के लिए किस अदालत की स्थापना की गयी है ? [2009]
उत्तर :
भारतीय जनता को सरल तथा सुविधाजनक न्याय प्रदान करने के लिए लोक अदालत की स्थापना की गयी है।

प्रश्न 5.
लोक अदालत का एक लाभ एवं एक हानि लिखिए। [2009]
उत्तर :
लाभ-इन अदालतों में मुकदमों का निपटारा आपसी समझौते द्वारा किया जाता है। इन अदालतों में वकीलों की आवश्यकता नहीं होती, जिससे खर्चा बचता है और मुकदमे की सुनवाई शीघ्रतापूर्वक हो जाती है। हानि-इन अदालतों के द्वारा दिये गये (UPBoardSolutions.com) फैसले के विरुद्ध किसी और अदालत में याचिका दायर नहीं की जा सकती।

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प्रश्न 6.
जिले में राजस्व न्यायालय के रूप में सर्वोच्च अधिकारी कौन होता है ? उसके निर्णय के विरुद्ध अपील कहाँ की जा सकती है ? [2010]
उत्तर :
जिले में राजस्व न्यायालय का प्रमुख जिलाधिकारी होता है, जो जमीन, लगान आदि से सम्बन्धित मुकदमों की सुनवाई करता है। इसके नीचे परगनाधीश, तहसीलदार, नायब तहसीलदार होते हैं, जिनकी अलग-अलग अदालतें होती हैं। उसके निर्णय के विरुद्ध आयकर आयुक्त और आयकर (अधिकरण) ट्रिब्यूनल में अपील की जा सकती है।

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1. जिले का सबसे बड़ा दीवानी न्यायालय कौन-सा है?

(क) जिला जज का न्यायालय
(ख) सिविल जज का न्यायालय
(ग) मुन्सिफ का न्यायालय
(घ) न्याय पंचायत

2. जिले का सबसे बड़ा फौजदारी न्यायालय है

(क) सेशन जज का न्यायालय
(ख) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट
(ग) मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ।
(घ) न्याय पंचायत

3. उत्तर प्रदेश में परिवार न्यायालय लागू किया गया

(क) 2 अक्टूबर, 1986 ई० को
(ख) 1988 ई० को
(ग) 1999 ई० को
(घ) 5 जनवरी, 2006 ई० को

4. जनपद न्यायालय का सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी कौन होता है?

(क) जिला न्यायाधीश
(ख) जिलाधिकारी
(ग) सिविल जज
(घ) मुन्सिफ मजिस्ट्रेट

5. लोक अदालतों के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य सही नहीं है?

(क) निर्णय आपसी सहमति के आधार पर होते हैं।
(ख) इसमें वकील मुदकमें की पैरवी कर सकते हैं।
(ग) इसमें निर्णय शीघ्र होते हैं।
(घ) ये अदालतें जन-कल्याण हेतु कार्य करती हैं।

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6. दिल्ली में पहली लोक अदालत किस वर्ष गठित की गई थी?

(क) 1985
(ख) 1986
(ग) 1985
(घ) 1988

उत्तरमाला

1. (क), 2. (क), 3. (क), 4. (क), 5. (ख), 6. (ख)

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 (Section 2)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 न्यायिक सक्रियता (अनुभाग – दो)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 न्यायिक सक्रियता (अनुभाग – दो).

विरत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यायिक सक्रियता से आप क्या समझते हैं ? न्यायिक सक्रियता का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर :

न्यायिक सक्रियता

न्यायपालिका शासन का प्रमुख अंग है। शासन के प्रत्येक अंग की भाँति इसे भी कुछ निश्चित प्रक्रियाओं और कार्यपालिकाओं की सीमा के अन्तर्गत कार्य करना पड़ता है। आजकल न्यायपालिका पर चर्चा के दौरान ‘न्यायिक सक्रियता बहुचर्चित बहस है।।

न्यायिक सक्रियता क्या है ?

न्यायिक सक्रियता से तात्पर्य ऐसी प्रवृत्ति से है जिसमें देश की (UPBoardSolutions.com) न्यायपालिका सामाजिक और प्रशासनिक गतिविधियों को नियमित करने में शासन के अन्य अंगों-व्यवस्थापिका और कार्यपालिका से बढ़-चढ़कर भूमिका निभाने लगती है।

पिछले कुछ वर्षों में भारत के सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों ने देश की राजनीति, प्रशासन और सामाजिक-आर्थिक जीवन में फैली हुई सुस्ती, भ्रष्टाचार और अन्याय के विरुद्ध कार्यपालिका और व्यवस्थापिका को निर्देशात्मक निर्णय दिये हैं। न्यायालय की इसी गतिविधि को न्यायिक सक्रियता कहते हैं।

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जनहित याचिका : आलोचना और मूल्यांकन

न्यायिक सक्रियता के महत्त्वपूर्ण साधन जनहित याचिका की आलोचनाएँ भी बहुत हैं। आलोचकों का मानना है कि जनहित याचिकाएँ सस्ती लोकप्रियता और समाचार-पत्रों में स्थान पाने के लिए प्रस्तुत की गयीं और की जाती हैं। आलोचकों का यह भी मानना है कि जनहित याचिकाओं ने न्यायपालिका के कार्यभार को पहले से ही बोझिल भार को और अधिक बढ़ा दिया है। न्यायालयों में सुनवाई की प्रतीक्षा कर रहे मामलों की संख्या लाखों में है। (UPBoardSolutions.com) आलोचकों का यह भी मानना है कि इन मुकदमों में न्यायालय द्वारा जारी किये गये निर्देश अव्यावहारिक हो सकते हैं, जिनका क्रियान्वयन कराना कार्यपालिका के लिए भी मुश्किल हो सकता है। इन आलोचनाओं के बावजूद जनहित याचिकाओं ने न्याय-व्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया है। जनहित याचिकाओं के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय भारतीय राजव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

प्रश्न 2.
जनहित याचिकाओं का अर्थ क्या है ? इनके महत्त्व पर प्रकाश डांलिए।
उत्तर :

जनहित याचिकाएँ : अर्थ

भारत में न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन जनहित याचिका है। कानून की सामान्य प्रक्रिया में कोई भी व्यक्ति तब न्यायालय जा सकता है जब उसका कोई व्यक्तिगत नुकसान हुआ हो। सन् 1979 ई० में इस अवधारणा में बदलाव आया। सन् 1979 ई० में न्यायालय ने ऐसे मुकदमे की (UPBoardSolutions.com) सुनवाई करने का निर्णय लिया जिसे पीड़ित लोगों ने नहीं बल्कि उनकी ओर से दूसरों ने दाखिल किया था। चूंकि इस मामले में जनहित से सम्बन्धित एक मुकदमे पर विचार हो रहा था। अत: इसे और ऐसे ही मुकदमों को जनहित याचिका का नाम दिया गया।

कुछ मामलों में न्यायालय ने स्वयं ही समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचार या विवरण आदि के आधार पर कार्यवाही प्रारम्भ कर दी। जैसे-आगरा प्रोटेक्शन होम केस।

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जनहित याचिकाओं का आरम्भ
जनहित अभियोगों की शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने की थी। भारत में इसकी शुरुआत 1981 ई० से हुई। इन अभियोगों की शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पी० एन० भगवती का विशेष योगदान रहा। इस प्रकार (UPBoardSolutions.com) का पहला वाद भागलपुर (बिहार) जेल में बन्द विचाराधीन कैदियों का था। इसी प्रकार आगरा प्रोटेक्शन होम केस, मुम्बई के पटरीवालों की समस्या, तिलोनिया के श्रमिकों का केस, एशियाड श्रमिक केस प्रमुख जनहित के मुकदमे हैं।

जनहित याचिकाओं का महत्त्व
भारत में जनहित याचिकाओं का निम्नलिखित महत्त्व है

  • समाज के निर्धन व्यक्तियों और कमजोर वर्गों को न्याय दिलाने में सहायक।
  • कानूनी न्याय के साथ-साथ आर्थिक-सामाजिक न्याय पर बल।
  • शासन की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगाने में सहायक।
  • शासन को जनहित के प्रति उत्तरदायित्व निभाने को प्रेरित करने में सहायक।
  • न्यायपालिका को जनोन्मुखी स्वरूप प्रदान करने में सहायक।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यायिक सक्रियता के लाभ लिखिए।
उत्तर :
न्यायिक सक्रियता के लाभ निम्नलिखित हैं

  • इससे न केवल व्यक्तियों बल्कि संस्थाओं, समूहों को भी न्यायालय जाने का अवसर मिला है।
  • न्यायिक सक्रियता ने न्याय व्यवस्था को लोकतान्त्रिक बनाया और कार्यपालिका को जनता के प्रति उत्तरदाये।
  • न्यायिक सक्रियता ने शासन के अन्य अंगों को (UPBoardSolutions.com) अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाने को प्रेरित किया है।
  • न्यायिक सक्रियता ने भारतीय जनमानस का न्यायपालिका में अगाध विश्वास बढ़ाया है।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
न्यायिक सक्रियता का महत्त्वपूर्ण साधन कौन है ?
उत्तर :
न्यायिक सक्रियता का महत्त्वपूर्ण साधन जनहित याचिका है।

प्रश्न 2.
भारत में जनहित अभियोगों को आरम्भ करने का श्रेय किसे प्राप्त है ?
उत्तर :
भारत में जनहित अभियोगों को प्रारम्भ करने का श्रेय सर्वोच्च न्यायालय के माननीय श्री पी० एन० भगवती को प्राप्त है।

प्रश्न 3.
लोकायुक्त किन दो राज्यों में है ?
उत्तर :
लोकायुक्त महाराष्ट्र तथा बिहार राज्यों में है।

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प्रश्न 4.
लोक-आयुक्त की नियुक्ति कौन करता है? उसका कार्यकाल कितना होता है? (2017)
उत्तर :
लोक-आयुक्त की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल (UPBoardSolutions.com) द्वारा की जाती है। अधिकांश राज्यों में लोकायुक्तों का कार्यकाल पाँच वर्ष अथवा 65 वर्ष की उम्र तक, जो भी पहले हो, रखा गया है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. जनहित याचिका का पहला मुकदमा है|

(क) भागलपुर केस
(ख) एशियाड श्रमिक केस
(ग) तिलोनिया श्रमिक केस ।
(घ) मुम्बई के पटरीवालों का केस

2. सर्वप्रथम लोकायुक्त का गठन कहाँ हुआ?

(क) गुजरात में
(ख) महाराष्ट्र में
(ग) आंध्र प्रदेश में
(घ) उत्तर प्रदेश में

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3. जनहित याचिकाओं की शुरुआत हुई

(क) अमेरिका में
(ख) भारत में
(ग) द० अफ्रीका में
(घ) रूस में

उत्तरमाला

1. (क), 2. (ख), 3. (क)

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 (Section 1)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 रूसी क्रान्ति–कारण तथा परिणाम (अनुभाग – एक)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 रूसी क्रान्ति–कारण तथा परिणाम (अनुभाग – एक).

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रूस की क्रान्ति के पूर्व रूस की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर

क्रान्ति से पूर्व रूस की दशा

क्रान्ति से पूर्व रूस की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दशा बड़ी शोचनीय थी, जिसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-.

1. रूस की सामाजिक दशा – सन् 1861 ई० से पूर्व रूस में सामन्तवाद का बोलबाला था। सामन्त लोग किसानों (भूमि-दास या अर्द्ध-दास) द्वारा बेगार लेकर अपनी जमीनों पर खेती करवाते थे। इन भूमि-दासों को सामन्तों के अनेक अत्याचारों का सामना करना पड़ता था। रूस में कुछ छोटे किसान भी थे, जिनकी आर्थिक दशा इतनी खराब थी कि उन्हें भरपेट भोजन भी कठिनाई से मिल पाता था। पीटर महान् (UPBoardSolutions.com) के प्रयासों से रूस में औद्योगीकरण का आरम्भ होने से रूसी समाज के कल-कारखानों में काम करने वाला एक नया वर्ग भी उत्पन्न हो गया था।

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इस प्रकार क्रान्ति से पूर्व रूसी समाज में तीन वर्ग थे–पहला वर्ग सामन्तों व कुलीनों का था, जिसमें बड़े-बड़े सामन्त, जारशाही के सदस्य, उच्च पदाधिकारी आदि आते थे। मध्यम वर्ग का उदय औद्योगीकरण के फलस्वरूप हुआ था, जिसमें लेखक, विचारक, डॉक्टर, वकील तथा व्यापारी लोग सम्मिलित थे। तीसरा वर्ग किसानों तथा मजदूरों का था। इस वर्ग के सदस्यों की दशा बहुत खराब थी। समाज में इस वर्ग को कोई स्थान प्राप्त नहीं था। कुलीन और मध्यम वर्ग के लोग इन्हें हीन और घृणा की नज़र से देखते थे। रूस की अधिकांश जनता अशिक्षित और अन्धविश्वासी थी। चर्च की प्रधानता होने के कारण रूसी समाज में पादरियों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था तथा यह वर्ग भी जनसाधारण का अनेक प्रकार से शोषण करता था।

2. रूस की आर्थिक दशा – औद्योगीकरण से पूर्व रूसी लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। रूस में किसानों की दशा बहुत दयनीय थी। अत्यधिक निर्धन होने के कारण उन्हें दरिद्रता और भुखमरी का जीवन व्यतीत करना पड़ता था। उनके खेत बहुत छोटे-छोटे थे और उन्हें कृषि की नवीन तकनीकों का ज्ञान भी नहीं था। धन के अभाव के कारण वे आधुनिक यन्त्रों को खरीद पाने में असमर्थ थे। कठोर परिश्रम करने पर भी उन्हें भरपेट भोजन नहीं मिल पाता था, क्योंकि उनकी उपज का अधिकांश भाग सामन्त और राजकीय कर्मचारी हड़प जाते थे।

पीटर महान् के काल में रूस में औद्योगीकरण का आरम्भ हुआ। यूरोपीय राष्ट्रों के सम्पर्क में आने से रूस में कल-कारखानों की स्थापना होने लगी। लेकिन इन कारखानों और उद्योगों में विदेशी पूँजी लगी हुई थी तथा विदेशी पूँजीपतियों का एकमात्र लक्ष्य अधिकाधिक लाभ कमाना था। उन्हें गरीब रूसी जनता के प्रति कोई सहानुभूति नहीं थी और न ही वे रूसी श्रमिकों और मजदूरों को सुविधाएँ देते थे। इन परिस्थितियों में रूस में अनाज, वस्त्रे तथा अन्य जीवनोपयोगी वस्तुओं की कमी होने लगी और श्रमिक तथा मजदूरों की दशा पशुओं से भी खराब होने लगी। जारशाही निरंकुश सरकार ने श्रमिकों, मजदूरों तथा किसानों (UPBoardSolutions.com) की आर्थिक दशा सुधारने का कोई प्रयास नहीं किया। सरकारी पदाधिकारियों के भ्रष्टाचार और सैनिकों के अत्याचारों ने स्थिति को दिन-प्रतिदिन गम्भीर बनाना आरम्भ कर दिया।

3. रूस की राजनीतिक दशा – जार निकोलस द्वितीय एक प्रतिक्रियावादी और स्वेच्छाचारी शासक था। उसने संसद के निम्न सदनों (ड्यूमाओं) तक को अपनी स्वेच्छाचारिता का शिकार बनाया। जार के मनमाने आदेश से ड्यूमाओं को स्थगित तथा निलम्बित किया जाता था, उनके सदस्यों को बन्दी बनाया जाता था तथा निर्वासित कर दिया जाता था। इस कारण ड्यूमाएँ मात्र सलाहकार संस्थाएँ बनकर रह गयी थीं।

निकोलस द्वितीय की सैन्य अकुशलता पहले ही क्रीमिया तथा रूस-जापान युद्ध (1905 ई०) में उजागर हो चुकी थी। इसके बावजूद 1915 ई० में विश्व युद्ध में सैनिक पराजयों के पश्चात् उसने सेना की कमान अपने हाथों में ले ली। रूस भले ही युद्ध में जीत गया, पर युद्ध से उसे जो अपूरणीय क्षति हुई, उसका दोष भी जार के सर चढ़ गया।

इस प्रकार क्रान्ति से पूर्व रूस में राजतन्त्र के विघटन के लिए पर्याप्त परिस्थितियाँ तैयार हो चुकी थीं। इसलिए जब रोमानोव शासक ने गद्दी त्यागी तब सामन्तीय तत्त्वों ने कोई प्रतिक्रिया प्रस्तुत नहीं की। रूस की क्रान्ति फ्रांस की क्रान्ति की तरह पूर्णतः स्वत:-स्फूर्त नहीं थी। इसके पास एक कुशल नेतृत्व तथा एक निश्चित कार्यक्रम था।

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प्रश्न 2.
1917 ई० की रूस की क्रान्ति के कारणों का विश्लेषण कीजिए। (2017)
या
अक्टूबर क्रान्ति के पूर्व रूस की जनता में असन्तोष क्यों था ? इस क्रान्ति के बाद राज्यसत्ता किसके हाथ आयी ?
या
रूस में अक्टूबर क्रान्ति क्यों हुई ? दो कारण लिखिए।
या
रूसी क्रान्ति पर अकाल की घटना का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर
रूस की क्रान्ति के कारण रूस की अक्टूबर क्रान्ति (1917 ई०) के पूर्व रूस की जनता में भारी असन्तोष था जिसके फलस्वरूप क्रान्ति हुई। इसके निम्नलिखित कारण थे –

1. व्यावसायिक क्रान्ति का प्रभाव – व्यावसायिक क्रान्ति के फलस्वरूप रूस में भी बड़े-बड़े कल-कारखानों की स्थापना हो चुकी थी। इनमें काम करने वाले हजारों श्रमिक गाँवों तथा कस्बों से आकर कारखानों के निकट नगरों में निवास करने लगे थे। नगर के आधुनिक वातावरण ने उनकी अज्ञानता का अन्त कर दिया था और वे राजनीतिक मामलों में रुचि लेने लगे थे। उन्होंने अपने क्लब बना लिये थे, जिनमें एकत्र (UPBoardSolutions.com) होकर वे विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श तथा वाद-विवाद किया करते थे। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इन क्लबों में कार्ल माक्र्स के समाजवादी सिद्धान्तों का प्रचार करने के लिए क्रान्तिकारी नेता भी आने लगे और उनके विचारों में रूसी श्रमिकों ने रुचि भी लेनी शुरू कर दी। इस समाजवादी प्रचार ने देश के श्रमिकों में जारशाही के प्रति घोर असन्तोष तथा घृणा उत्पन्न कर दी।

2. राजनीतिक चेतना का उदय – समाजवादी प्रचार के फलस्वरूप रूस में 1883 ई० में रूसी समाजवादी लोकतन्त्र की स्थापना हुई। सन् 1903 ई० में यह दल दो दलों में बँट गया। पहला दल मेनशेविक तथा दूसरा बोल्शेविक कहलाया। मेनशेविक दल; जिसका प्रमुख नेता करेन्स्की था; वैधानिक तरीके से शासन-सत्ता पलटकर देश में समाजवादी शासन स्थापित करना चाहता था, जबकि बोल्शेविक दल; जिसका प्रमुख नेता लेनिन था; खूनी क्रान्ति के द्वारा जारशाही का समूल नाश करके देश में सर्वहारा वर्ग की तानाशाही कायम करना चाहता था।

3. किसानों की हीनदशा – 1861 ई० में सामन्तवादी प्रथा समाप्त होने पर भी किसानों की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ। उनके छोटे-छोटे खेत थे जिन पर वे पुराने ढंग से खेती करते थे। करों का उन पर भारी बोझ था तथा वे सदा कर्ज में डूबे रहते थे। उन्हें दो समय का भोजन भी नहीं मिलता था। उनकी उपज का अधिकांश भाग सामन्त तथा जार हड़प जाते थे।

4. श्रमिकों की दयनीय दशा – 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में औद्योगिक क्रान्ति का प्रारम्भ हुआ। उसके बाद इसकी बड़ी तेजी से विकास हुआ, किन्तु निवेश के लिए पूँजी विदेशों से आई। विदेशी पूँजीपति अधिक लाभ कमाना चाहते थे। उन्होंने मजदूरों की दशा की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। पूँजीपति लोग मजदूरों को कम-से-कम वेतन देकर अधिक-से-अधिक काम लेते थे तथा उनसे बुरा व्यवहार करते थे। उन्हें कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे, जिससे उनमें असन्तोष बढ़ता जा रहा था।

5. जारों की निरंकुशता – रूस के जार (शासक) बहुत अधिक निरंकुश थे। वे जनता पर अत्याचार करके उनका दमन करते रहते थे। निरंकुशता तथा अत्याचारों के कारण जनसाधारण के हृदय में क्रान्ति की ज्वाला भड़क उठी। 1905 ई० की क्रान्ति के बाद भी (UPBoardSolutions.com) जार अपनी दमनकारी नीति में कोई परिवर्तन नहीं कर सके। वे अपने गुप्तचरों की सहायता से जनता का मुंह बन्द करने का प्रयास करते रहे।

6. रूसी विचारकों का योगदान – अनेक रूसी विचारक यूरोप में हो रहे परिवर्तनों से बहुत प्रभावित थे। कार्ल मार्क्स, टॉल्सटॉय, तुर्गनेव दाँस्तोवेस्की आदि विद्वानों ने अपने विचारों से लोगों को बहुत प्रभावित किया। उन्होंने किसानों और मजदूरों में जागृति लाने और संगठित होने की विचारधारा का प्रसार किया।

7. जार निकोलस द्वितीय की अयोग्यता – रूस का अन्तिम जार निकोलस द्वितीय था। वह तथा उसकी पत्नी एलिक्स दोनों विलासी व बुद्धिहीन थे। उन्होंने अपने दरबार में पाखण्डी लोग भरे हुए थे। रासपुटिन नामक साधु का रानी पर बहुत अधिक प्रभाव था। वह बड़ा भ्रष्टाचारी था, किन्तु राजा का विश्वासपात्र बना हुआ था। जार उसके परामर्श पर चलता था। रासपुटिन, राजा को कठोरता तथा दमन से शासन करने की राय देता रहता था। राजा की दमनकारी नीतियों के कारण जनता में असन्तोष बढ़ता गया।

8. सरकार व सेना में भ्रष्टाचार – जार द्वारा नियुक्त उच्च अधिकारी भी अयोग्य, भ्रष्ट तथा विलासी थे। सैनिक भी भ्रष्ट और विलासी हो गये थे। जनता में विद्रोह की आग भड़कने पर ऐसी सरकार और सेना उसे दबा नहीं सकी।

9. प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेना – प्रथम विश्व युद्ध सन् 1914 ई० में प्रारम्भ हुआ था। उन दिनों इटली, ऑस्ट्रिया तथा जर्मनी एक गुट में थे, जबकि इंग्लैण्ड, फ्रांस और रूस दूसरे गुट में। रूस के पास इस युद्ध के लिए कोई विशेष तैयारी नहीं थी, किन्तु उसे विवश होकर इसमें कूदना पड़ा। इस युद्ध में रूस को भारी हानि उठानी पड़ी। उसके 6 लाख सैनिक मारे गये और 20 लाख सैनिक बन्दी बना लिये गये। इससे (UPBoardSolutions.com) सैनिकों में असन्तोष फैल गया। जनता तथा सैनिक दोनों तत्कालीन रूसी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए कटिबद्ध हो गये।

10. जापान से रूस की पराजय – 1904-05 ई० में रूस तथा जापान में युद्ध हुआ। जापान जैसे छोटे देश से भी रूस हार गया। इससे जनता को जारों की अयोग्यता का पता चल गया और वह उनके विरुद्ध हो गयी।

11. अकाल – 1916-17 ई० में रूस में भारी अकाल पड़ा। लोग भूखों मरने लगे। देश में महामारी फैल
गयी। दूसरी ओर जार तथा दरबारी दावतें उड़ा रहे थे तथा देश के धन को पानी की तरह बहा रहे थे। पूँजीपति किसानों और श्रमिकों का शोषण करने में लगे हुए थे। इस अकाल ने आग में घी का काम किया। इसने जनता के असन्तोष तथा आक्रोश को चरम सीमा पर पहुँचा दिया।

इस क्रान्ति के बाद रूस में लेनिन की अध्यक्षता में नयी साम्यवादी सरकार ने देश की बागडोर सँभाली। वही क्रान्ति का नेता भी था।

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प्रश्न 3.
रूस की क्रान्ति के परिणामों का वर्णन कीजिए। [2012, 17]
          या
रूस की क्रान्ति का देश और विदेशों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
          या
रूस की क्रान्ति के परिणाम किस प्रकार दूरगामी एवं युगान्तरकारी सिद्ध हुए ? [2010]
          या
रूस की क्रान्ति के किन्हीं चार परिणामों का वर्णन कीजिए। इसे विश्व की महान् घटना क्यों कहते हैं ? [2012]
          या
सन् 1917 ई० की रूसी क्रान्ति के दो परिणाम बताइए। [2009, 14]
          या
रूसी क्रान्ति का विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा? किन्हीं दो प्रभावों का उल्लेख कीजिए। (2018)
उत्तर
सन् 1917 ई० की रूसी क्रान्ति विश्व इतिहास की एक अति महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। इसने न केवल रूस में निरंकुश रोमानोव वंश के शासन को समाप्त किया, अपितु पूरे विश्व की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित (UPBoardSolutions.com) किया। इसीलिए इसे विश्व की महान् घटना कहते हैं।

रूसी क्रान्ति के रूस पर प्रभाव (परिणाम)

रूसी क्रान्ति के रूस पर अग्रलिखित प्रभाव थे –

1. निरंकुश जारशाही का अन्त – रूसी क्रान्ति की पहली उपलब्धि निरंकुश शासन की समाप्ति थी। इसने अभिजात वर्ग तथा चर्च की शक्ति को भी समाप्त कर दिया।

2. प्रथम समाजवादी समाज का निर्माण – रूस में जार के साम्राज्य को एक नये राज्य ‘सोवियत समाजवादी गणराज्यों के संघ’ का रूप दे दिया गया। इस क्रान्ति के बाद सत्ता में आयी नयी सरकार ने कार्ल मार्क्स के शिद्धान्तों को कार्यरूप में परिणत किया। इस नये राज्य की नीतियों का उद्देश्य था–‘प्रत्येक व्यक्ति से उसकी क्षमता के अनुसार काम लिया जाए और प्रत्येक को उसके काम के अनुसार मजदूरी दी जाए। इस उद्देश्य से उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व समाप्त कर दिया गया; अर्थात् निजी लाभ की भावना को उत्पादन व्यवस्था से निकाल देना ही समाज का उद्देश्य था।

3. आर्थिक नियोजन – नयी सरकार के सामने पहला कार्य तकनीकी दृष्टि से एक उच्च अर्थव्यवस्था का निर्माण करना था। इसके लिए आर्थिक नियोजन की विधि अपनायी गयी। उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप का आर्थिक विकास पूँजीपतियों की पहल का परिणाम था, परन्तु सोवियत संघ में पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा औद्योगीकरण किया गया। इन योजनाओं के अन्तर्गत तीव्र गति से आर्थिक विकास के लिए अर्थव्यवस्था (UPBoardSolutions.com) के सभी साधन जुटाये गये और आर्थिक विकास का उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक समानता प्राप्त करना निश्चित किया गया।

4. सामाजिक असमानता की समाप्ति – क्रान्ति के फलस्वरूप संघ में एक नये प्रकार की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था का विकास हुआ। निजी स्वामित्व और मुनाफे की भावना की समाप्ति से समाज में परस्पर विरोधी हितों वाले वर्गों का अस्तित्व भी समाप्त हो गया। इस प्रकार समाज में व्याप्त बड़ी असमानताओं का अन्त हो गया। काम करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक हो गया तथा प्रत्येक व्यक्ति को काम देना समाज और राज्य का कर्तव्य बन गया।

5. शिक्षा एवं संस्कृति के क्षेत्र में विकास – सामाजिक और आर्थिक असमानताओं के उन्मूलन के साथ-साथ शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में भी विकास हुए। शिक्षा प्रसार द्वारा आर्थिक विकास, अन्धविश्वासों के निराकरण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में सहायता मिली। विज्ञान और कला के इस विकास ने आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को तेज किया।

6. गैर-रूसी जातियों को लाभ – जार के अधीन रूस में रहने वाली गैर-रूसी जातियों का बुरी तरह दमन किया गया था, परन्तु क्रान्ति के बाद ये जातियाँ गणराज्यों के रूप में सोवियत संघ का अंग बन गयीं। सोवियत संघ में सम्मिलित सभी जातियों की समानता को 1924 ई० और 1936 ई० में बनाये गये संविधान में कानूनी रूप दिया गया। इन जातियों द्वारा स्थापित गणराज्यों को भी पर्याप्त स्वायत्तता दी गयी जिससे उनकी भाषाओं और (UPBoardSolutions.com) संस्कृतियों का विकास हो सके।

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रूस की क्रान्ति के विश्व पर प्रभाव

रूसी क्रान्ति के विश्व पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े –

1. राष्ट्रवाद का उदय – सन् 1917 ई० की रूसी क्रान्ति ने अफ्रीका तथा एशिया के लोगों में जागृति पैदा की। ये लोग साम्राज्यवादी यूरोपीय देशों के शोषण का शिकार हो रहे थे। रूसी क्रान्ति ने उनमें राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत की, जिससे उन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन आरम्भ किये।

2. समाजवाद का उदय – रूसी क्रान्ति ने यूरोप के अनेक देशों; जैसे-पोलैण्ड, पूर्वी जर्मनी, यूगोस्लाविया, चेकोस्लोवाकिया, बल्गारिया तथा एशियाई देश चीन में समाजवाद की नींव डाली।

3. वर्ग-संघर्ष – रूसी क्रान्ति ने साम्यवादी सिद्धान्तों के आधार पर एक नये समाज को जन्म दिया तथा एक नया सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया।

4. लोकतन्त्र की नयी परिभाषा – रूसी क्रान्ति की सफलता ने लोकतन्त्र की एक नयी परिभाषा दी। पूँजीवादी देश भी यह सोचने को विवश हुए कि वास्तविक लोकतन्त्र की स्थापना के लिए सम्पत्ति, जाति, रंग तथा लिंग के आधार (UPBoardSolutions.com) पर भेदभाव अनुचित है।

5. अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार – रूसी क्रान्ति ने समाजवाद को जन्म दिया। समाजवाद प्रगति के लिए राष्ट्रों में आपसी सहयोग पर बल देता था। इस प्रकार रूसी क्रान्ति ने विश्व के सभी राष्ट्रों के बीच आपसी भाईचारे तथा अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना को विकसित किया।

6. लोक-कल्याणकारी भावनाओं तथा मानव-अधिकारों को सिद्धान्त – रूसी सरकार की देखा-देखी विश्व की अन्य सरकारों ने भी लोक-कल्याणकारी योजनाएँ शुरू कर दीं, जिनमें शिक्षा, चिकित्सा आदि प्रमुख थीं। मानव-अधिकारों के सिद्धान्त की रक्षा के लिए रूस ने अपने अधीन सभी उपनिवेशों को मुक्त कर दिया तथा विश्व में चल रहे स्वतन्त्रता आन्दोलनों को नैतिक समर्थन दिया।

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प्रश्न 4.
रूसी क्रान्तिकारियों के मुख्य उद्देश्य क्या थे ?
उत्तर
सन् 1917 ई० में रूस में सफल क्रान्ति हुई, जो रूसी जनता तथा क्रान्तिकारियों की माँगों का परिणाम थी। क्रान्तिकारियों के प्रमुख उद्देश्य (माँगे) निम्नलिखित थीं

1. शान्ति की इच्छा – जार ने रूस को प्रथम महायुद्ध में झोंका था। रूसी फौज को भारी पराजय को सामना करना पड़ रहा था। फरवरी, 1917 ई० तक 6 लाख सैनिक युद्ध में मारे जा चुके थे। क्रान्तिकारी रूस को युद्ध से अलग रखना चाहते थे। इसलिए देश में शान्ति स्थापित करना उनका मुख्य उद्देश्य था।

2. जोतने वालों की जमीन – क्रान्तिकारी, सामन्तवाद से प्रभावित थे। रूस में भूमि जमींदारों, चर्च तथा जार के पास थी। किसान भूमि पर काम करते थे, परन्तु उनके पास बहुत थोड़ी भूमि थी। वे भूमि से लगभग वंचित ही थे। क्रान्तिकारियों (UPBoardSolutions.com) का नारा था, ‘भूमि पर काम करने वाले भूमि के स्वामी होने चाहिए।’

3. उद्योगों पर मजदूरों का नियन्त्रण – रूस के क्रान्तिकारी, सामन्तवादी व्यवस्था से दु:खी होकर एक ही नारा लगा रहे थे-कारखानों पर मजदूरों का स्वामित्व स्वीकार किया जाए। वे सोचते थे कि कपड़ा बनाने वाले चीथड़े क्यों पहनें, पूँजी अर्जित करने वाला पूँजीपतियों का दास बनकर क्यों रहे।

4. गैर-रूसी राष्ट्रों को समानता का स्तर – रूस में पड़ोसी देशों के ऐसे अनेक भाग थे, जिन्हें जारों ने विजय किया था। इन राष्ट्रों के लोगों को रूसी लोगों के समान अधिकार प्राप्त नहीं थे। इनका दमन किया जाता था। क्रान्तिकारियों का उद्देश्य इन गैर-रूसी राष्ट्रों को भी समानता का दर्जा दिलाना था। वे चाहते थे कि गैर-रूसी राष्ट्रों की जनता, रूसी जनता के समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त करे।

5. कार्ल मार्क्स के विचारों को लागू करना – रूस की क्रान्ति के पीछे मुख्य विचार कार्ल मार्क्स के थे। उसकी कृति ‘दास कैपिटल’ नामक पुस्तक उसके क्रान्तिकारी विचारों का लेखा-जोखा है। वह पूँजीवाद का विरोधी और समाजवाद का प्रबल समर्थक था। उसका कहना था कि उत्पादन के सभी साधनों पर समाज या सरकार का अधिकार होना चाहिए तथा मजदूर स्वयं ही क्रान्ति के द्वारा पूँजीवाद को समाप्त कर समाजवाद की स्थापना कर सकते हैं। मजदूरों को मार्क्स के इन विचारों में आशा की झलक दिखाई देती थी; अत: क्रान्तिकारियों का एक मुख्य उद्देश्य कार्ल मार्क्स के विचारों का समाज बनाना भी था।

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प्रश्न 5.
‘खूनी रविवार की घटना के विषय में आप क्या जानते हैं? क्या यह घटना रूस की क्रान्ति का कारण थी ? अपने विचार लिखिए।
या
रूस में 1905 ई० की घटना ‘खूनी रविवार’ क्यों कही जाती है ?
या
रूस में ‘खूनी रविवार की घटना क्यों हुई? इसका क्या परिणाम हुआ? [2015, 16]
उत्तर
जब किसी देश के शासन, अधिकारी, पूँजीपति आदि (UPBoardSolutions.com) उच्च वर्ग के लोग निरंकुश हो जाते हैं। और गरीब तथा निरीह जनता पर कहर बरपाते हैं तो क्रान्ति का जन्म होता है। रूस की क्रान्ति में भी ऐसे ही कुछ कारणों में से एक प्रमुख कारण ‘खूनी रविवार’ था।

रूस में जारशाही निरंकुशता का बोलबाला था। जार-सम्राट के अधिकारी जनसाधारण वर्ग पर भीषण अत्याचार किया करते थे। वर्ष 1904-05 ई० में रूस, जापान जैसे छोटे देश से ही पराजित हो गया था। इन सभी बातों से क्षुब्ध होकर 22 जनवरी, 1905 ई० को अनेक श्रमिकों ने अपनी माँगें रखीं। माँगें प्रस्तुत करने के लिए ये सभी श्रमिक सेण्ट पीटर्सबर्ग के दुर्ग में एकत्रित हुए। उन्होंने जार के समक्ष अपनी माँगें रखीं, लेकिन जार के आदेश से शाही सैनिकों ने उन पर गोली चला दी, जिसके फलस्वरूप बहुत-से निहत्थे श्रमिकों का खून बह गया। यह घटना रविवार को घटी थी; अत: रूस के इतिहास में इसे ‘खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है। यह घटना भारत के अमृतसर नामक नगर में हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड की याद दिलाती है, क्योंकि इस काण्ड में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा निहत्थे भारतीयों पर गोलियाँ बरसाकर उनकी सामूहिक हत्या कर दी गयी थी।

22 जनवरी, 1905 ई० का यह दिन रूसी इतिहास में लाल रविवार’ या ‘खुनी रविवार’ के नाम से कुख्यात है। इस घटना से सारे देश में क्रान्ति की लहर दौड़ गयी। सेना तथा नौसेना के एक भाग ने भी क्रान्ति कर दी, लेकिन शीघ्र ही इस क्रान्ति को दबा दिया गया। फिर भी क्रान्ति की चिनगारियाँ अन्दर-ही-अन्दर सुलगती रहीं, जो आगे चलकर 1917 ई० में महान् क्रान्ति के रूप में उभरकर आयीं। इसीलिए 1905 ई० की क्रान्ति को 1917 ई० की क्रान्ति की जननी कहा जाता है।

सन् 1905 ई० की घटना 1917 ई० की रूसी क्रान्ति का पूर्वाभ्यास थी। 7 मार्च, 1917 ई० को भूख, प्यास और सर्दी से काँपते हुए श्रमिकों की भीड़ ने पेट्रोग्राड नगर में जुलूस निकाला। उस समय वहाँ के होटलों और रोटी वालों की दुकान पर गर्मागर्म रोटियों से थाल भरे हुए थे। उन्हें देखकर भूख से तड़पती जनता से न रहा गया और उसने गर्मागर्म रोटियों की लूट मची दी। उच्च अधिकारियों ने सेना को बुलाकर गोली चलाने का आदेश दिया, परन्तु सैनिकों ने भूखी-नंगी जनता पर गोली नहीं चलायी। इस प्रकार सेना के अनुशासन भंग करने से रूस में उस क्रान्ति का आरम्भ हुआ, जिसने जार, उसके (UPBoardSolutions.com) सम्बन्धियों, बड़े-बड़े पदाधिकारियों और अमीर सामन्तों का अन्त कर डाला।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रूस में क्रान्तिकारी आन्दोलन के विकास में लेनिन की क्या देन थी?
या
रूस की क्रान्ति कब हुई ? उसके नायक कौन थे ?
या
रूसी क्रान्ति लेनिन के नाम के साथ क्यों जुड़ी है ? व्याख्या कीजिए।
या
लेनिन के कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
या
लेनिन कौन था ? उसका सम्बन्ध किस क्रान्ति से था ? [2012]
या
रूसी क्रान्ति में लेनिन के योगदान का वर्णन कीजिए। [2015]
उत्तर
लेनिन (1870-1924 ई०) का वास्तविक नाम ब्लादिमीर इलिच यूलियनाव था। उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद 1895 ई० में लेनिन रूस से बाहर चला गया और वहाँ से चोरी-छिपे क्रान्तिकारी साहित्य रूस में भेजने लगा। इस अपराध में पहले उसे 14 माह का कारावास मिला, फिर तीन वर्ष के लिए उसे साइबेरिया में भेज दिया गया। सन् 1898 ई० में लेनिन ने रूसी समाजवादी प्रजातान्त्रिक दल’ की स्थापना की। इसके बाद लगभग 20 वर्षों तक उसने यूरोप के विभिन्न देशों में निर्वासित जीवन व्यतीत किया। सन् 1917 ई० में वह वापस आया और करेन्स्की की सरकार को भंग कर अक्टूबर की (UPBoardSolutions.com) क्रान्ति को सफल बनाया। सन् 1924 ई० तक लेनिन रूस का निर्माता और भाग्य-विधाता बना रहा। उसने एक सक्रिय मार्क्सवादी और जन्मजात क्रान्तिकारी के रूप में अमर ख्याति प्राप्त की।

लेनिन ने रूसी क्रान्ति (1917 ई०) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। क्रान्ति के पूर्व ही रूस के निरंकुश जार (शासक) का पतन हो चुका था। रूस में करेन्स्की की सरकार जनता की माँगें पूरी करने में असफल रही। थी। ऐसे समय में लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक पार्टी ने युद्ध को समाप्त करने और ‘सारी सत्ता सोवियतों को सौंपने का नारा दिया। लेनिन ने यह घोषणा की कि गैर-रूसी जनगणों को समान अधिकार दिये बिना सच्चा जनतन्त्र स्थापित नहीं हो सकता। यही रूसी क्रान्ति के वास्तविक उद्देश्य थे, जिन्हें लेनिन ने पूरा कर दिखाया। इसीलिए रूसी क्रान्ति लेनिन के नाम के साथ जुड़ी हुई है।

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प्रश्न 2.
कार्ल मार्क्स कौन था ? उसने कौन-सी पुस्तक लिखी ?
या
कार्ल मार्क्स तथा अन्य विचारकों का 1917 ई० में रूसी क्रान्ति लाने में क्या योगदान था ?
या
उन दार्शनिकों व विचारकों के नाम लिखिए जिनके विचारों से प्रभावित होकर जनता ने रूस में क्रान्ति की। [2009]
उत्तर
कार्ल मार्क्स जर्मनी का निवासी और वैज्ञानिक समाजवाद का जनक था। रूसी क्रान्ति लाने में शायद ही किसी और विचारक का इतना हाथ रहा हो जितना कार्ल मार्क्स का। कार्ल मार्क्स की पुस्तक दास कैपिटल सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक है। इस पुस्तक में उसने अपने विचारों को सारांश में दिया है। उसने लिखा है

  1. पूँजीवाद मजदूरों और किसानों के लिए शोषण करने का एक ढंग है।
  2. पूँजीवाद को हटाने के लिए मजदूरों को क्रान्तियाँ लानी पड़ेगी।
  3. सभी उत्पादन के साधनों पर मजदूरों तथा किसानों का अधिकार आवश्यक है। यह अधिकार उन्हें छीनना पड़ेगा।
  4. मजदूरों एवं किसानों को अपना अधिनायकवाद (UPBoardSolutions.com) स्थापित करना पड़ेगा, चाहे इसके लिए उन्हें हथियार ही क्यों न उठाने पड़ जाएँ।

कार्ल मार्क्स के अतिरिक्त कई दार्शनिकों ने भी तार्किक विधि से जनसाधारण को प्रभावित किया। इनमें फ्रेडरिक एंजिल्स के विचार माक्र्स से मिलते-जुलते थे। टॉल्सटॉय के विचारों का प्रभाव बुद्धिजीवी वर्ग पर पड़ा। बाकुनिन, क्रोपॉटकिन, दाँस्तोवेस्की और तुर्गनेव ऐसे विचारक थे जो कि जनसाधारण के आदर्श बने।

प्रश्न 3.
रूस की क्रान्ति के सामाजिक एवं आर्थिक कारण क्या थे ? (2018)
उत्तर
रूस की क्रान्ति के सामाजिक एवं आर्थिक कारण निम्नलिखित थे

  1. सामाजिक कारण – क्रान्ति से पूर्व रूसी समाज मुख्यत: तीन वर्गों में विभाजित था। ये वर्ग थे–किसान, मध्यम तथा कुलीन। किसान वर्ग के लोगों की दशा बहुत खराब थी। समाज में इस वर्ग को कोई स्थान प्राप्त नहीं था। कुलीन और मध्यम वर्ग के लोग इन्हें हीन और घृणा की दृष्टि से देखते थे। पादरी वर्ग भी अनेक प्रकार से जनसाधारण वर्ग का शोषण करता था। आगे चलकर यही वर्ग-संघर्ष रूसी क्रान्ति का प्रमुख कारण बना।
  2. आर्थिक कारण – औद्योगीकरण से पूर्व रूसी लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। रूस में किसानों की दशा बहुत दयनीय थी। अत्यधिक निर्धन होने के कारण उन्हें दरिद्रता और भुखमरी का जीवन व्यतीत करना पड़ता था। वे सामाजिक (UPBoardSolutions.com) और आर्थिक परिवर्तन की ओर टकटकी लगाये हुए थे। दूसरी ओर रूसी कारखानों और उद्योगों में विदेशी पूँजी लगी हुई थी तथा विदेशी पूँजीपतियों का एकमात्र लक्ष्य अधिकाधिक लाभ कमाना था। इन परिस्थितियों में रूस में अनाज, वस्त्र तथा अन्य जीवनोपयोगी वस्तुओं की कमी होने लगी। जारशाही ने भी श्रमिकों और किसानों की आर्थिक दशा सुधारने का कोई प्रयास नहीं किया। अन्ततः यह आर्थिक दशा भी रूसी क्रान्ति का कारण बनी।

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प्रश्न 4.
रूस के समाज के दो वर्ग कौन-कौन से थे ? उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर
क्रान्ति से पूर्व रूस के समाज के दो वर्ग निम्नलिखित थे –

  1. उच्च वर्ग – उच्च वर्ग में जारशाही के सदस्य, उच्च सामन्त तथा अत्यधिक धनी लोग थे। ये लोग वैभवपूर्ण तथा ऐश्वर्यमय जीवन व्यतीत करते थे। उनका जीवन विलासिता से परिपूर्ण था। वे अपनी जमीनों पर अर्द्ध-दासों से कृषि करवाते थे तथा शिकार आदि करके मनोरंजन करते थे।
  2. मध्यम वर्ग – इस वर्ग में लेखक, विचारक, छोटे व्यापारी तथा छोटे सामन्त आदि सम्मिलित थे। इनकी स्थिति उच्च वर्ग के लोगों से निम्न थी। इन्हें किसी प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त न होने के कारण इनकी स्थिति बहुत ही दयनीय रहती थी।

अतिलघु उत्तरीय प्रत

प्रश्न 1.
रूस की क्रान्ति कब प्रारम्भ हुई? इसके नायक कौन थे? [2012, 18]
या
रूस में क्रान्ति कब हुई थी? [2016]
उत्तर
रूसी क्रान्ति सन् 1917 ई० में प्रारम्भ हुई। इसके नायक लेनिन थे।

प्रश्न 2.
रूस की संसद का क्या नाम था ?
उत्तर
रूस की संसद का नाम ड्यूमा था।

प्रश्न 3.
1917 ई० की रूसी क्रान्ति सबसे अधिक किस विचारधारा से प्रभावित थी ?
उत्तर
1917 ई० की रूसी क्रान्ति सबसे अधिक (UPBoardSolutions.com) लेनिन की विचारधारा से प्रभावित थी।

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प्रश्न 4.
क्रान्ति के पूर्व रूस में किस प्रकार की शासन व्यवस्था थी ?
उत्तर
क्रान्ति के पूर्व रूस में जारशाही शासन व्यवस्था थी।

प्रश्न 5.
क्रान्ति के पूर्व रूस का समाज कितने वर्गों में बँटा था ?
उत्तर
क्रान्ति के पूर्व रूस को समाज तीन वर्गों में बँटा था।

प्रश्न 6.
इयूमा किसे कहते थे ?
उत्तर
रूस की संसद का नाम ड्यूमा था।

प्रश्न 7.
लेनिन कौन था ? उसका सम्बन्ध किस क्रान्ति से था ? [2012]
उत्तर
लेनिन रूस में बोल्शेविक दल का प्रमुख नेता था। उसका सम्बन्ध रूसी क्रान्ति से था।

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प्रश्न 8.
रूस का अन्तिम जार कौन था ?
उत्तर
रूस को अन्तिम जार (सम्राट) निकोलस द्वितीय था।

प्रश्न 9.
रूस के बोल्शेविक दल के सर्वप्रथम नेता कौन थे ?
उत्तर
रूस के बोल्शेविक दल के सर्वप्रथम नेता लेनिन (UPBoardSolutions.com) थे, जिनका वास्तविक नाम ब्लादिमीर इलिच यूलियनाव था।

प्रश्न 10.
रूसी क्रान्ति को प्रभावित करने वालों के नाम लिखिए।
उत्तर
रूसी क्रान्ति को प्रभावित करने वालों में लेनिन, कार्ल मार्क्स, टॉल्सटॉय, मैक्सिम गोर्की, बाकुनिन, तुर्गनेव, दॉस्तोवेस्की आदि प्रमुख थे।

प्रश्न 11.
रूस में बौद्धिक क्रान्ति लाने वाले दो प्रमुख लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर
रूस में बौद्धिक क्रान्ति लाने वाले दो प्रमुख लेखक थे-टॉल्सटॉय तथा दॉस्तोवेस्की।

प्रश्न 12.
फरवरी क्रान्ति का क्या अभिप्राय है ? [2011]
उत्तर
7 मार्च, 1917 ई० की भीषण दुर्घटना ने रूस में क्रान्ति का विस्फोट कर दिया। इस क्रान्ति को ‘फरवरी क्रान्ति’ कहा गया।

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प्रश्न 13.
‘प्रत्येक क्रान्ति में महान विचारकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। (UPBoardSolutions.com) ” इस कथन की पुष्टि में फ्रांस और रूस की क्रान्ति से सम्बन्धित एक-एक विचारक का नाम लिखिए। [2013]
उत्तर
फ्रांस-रूसो, रूस-कार्ल मार्क्स।

प्रश्न 14.
यूरोप की दो महान राज्य क्रान्तियों के नाम लिखिए। [2014]
उत्तर 

  1. इंग्लैण्ड की क्रान्ति।
  2. फ्रांस की क्रान्ति।

बहुविकल्पीय प्रशन

1. रूस की क्रान्ति के समय रूस के सम्राट को कहा जाता था

(क) एम्परर
(ख) प्रिन्स
(ग) जार।
(घ) ड्यूक

2. 1917 ई० की रूसी क्रान्ति के समय रूस का जार था

(क) निकोलस प्रथम
(ख) निकोलस द्वितीय
(ग) पीटर महान
(घ) लेनिन

3. रूसी क्रान्ति के समय लेनिन किस दल का नेता था?

(क) जिरोदिस्त
(ख) बोल्शेविक
(ग) जैकोबिन
(घ) मेनशेविक

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4. रूसी क्रान्ति के समय रूस में भीषण अकाल कब पड़ा?

(क) 1904-05 ई० में
(ख) 1910-11 ई० में
(ग) 1916-17 ई० में
(घ) 1918-19 ई० में

5. रूसे की क्रान्ति का प्रमुख कारण क्या था?

(क) सैनिक दुर्बलता
(ख) रूस की पराजय
(ग) जार की निरंकुशता
(घ) देश का पिछड़ापन

6. रूस की क्रान्ति कब प्रारम्भ हुई थी? [2012]
या
लस में क्रान्ति किस सन में हुई थी? [2014]

(क) 1927 ई० में
(ख) 1917 ई० में
(ग) 1907 ई० में
(घ) 1911 ई० में

7. ‘खूनी रविवार की घटना कहाँ हुई?

(क) पेरिस में
(ख) मास्को में
(ग) लन्दन में
(घ) सेण्ट पीटर्सबर्ग में

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8. समाजवाद का जन्मदाता कौन था?

(क) लेनिन
(ख) कार्ल मार्क्स
(ग) रूसो
(घ) स्टालिन

9. क्रान्ति की सफलता के बाद रूस में कौन-सी व्यवस्था लागू की गई?

(क) पूँजीवादी
(ख) जनतन्त्र
(ग) साम्यवादी
(घ) तानाशाही

10. जार साम्राज्य का पतन कब हुआ?

(क) 15 मार्च, 1917 ई० में
(ख) 27 फरवरी, 1930 ई० में
(ग) 2 अप्रैल, 1930 ई० में।
(घ) 5 जनवरी, 1922 ई० में

11. निम्नलिखित में से कौन रूस की क्रान्ति से सम्बन्धित था? [2011)

(क) लेनिन
(ख) अब्राहम लिंकन
(ग) रूसो
(घ) बिस्मार्क

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12. मेनशेविक दल का प्रमुख नेता था

(क) लेनिन
(ख) करेन्स्की
(ग) रूसो
(घ) कार्ल मार्क्स

उत्तर माला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 6 रूसी क्रान्ति–कारण तथा परिणाम 1

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 1 are helpful to complete your homework.

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UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 15 Our Environment

UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 15 Our Environment (हमारा पर्यावरण)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 15 Our Environment.

पाठगत हल प्रश्न

[NCERT IN-TEXT QUESTIONS SOLVED]

खंड 15.1 ( पृष्ठ संख्या 289)

प्रश्न 1.
क्या कारण है कि कुछ पदार्थ जैव निम्नीकरणीय होते हैं और कुछ अजैव निम्नीकरणीय?
उत्तर
कुछ पदार्थों का जीवाणु अथवा दूसरे मृतजीवियों (saprophytes) द्वारा अपघटन हो जाता है परंतु कुछ पदार्थों का जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटन नहीं हो पाता है। अत: सब्ज़ियों के अपशिष्ट, जंतुओं के अपशिष्ट, पत्ते आदि जैव निम्नीकरणीय हैं क्योंकि जीवाणु (UPBoardSolutions.com) और कवक जैसे सूक्ष्मजीव इन्हें जटिल से सरल कार्बनिक पदार्थों में बदल देते हैं। जबकि प्लास्टिक, पॉलीथीन आदि अजैव निम्नीकरणीय हैं क्योंकि इनका अपघटन नहीं हो पाता है।

प्रश्न 2.
ऐसे दो तरीके सुझाइए जिनमें जैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर
जैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को निम्न दो तरीकों से प्रभावित करते हैं

  1. पौधों तथा जंतुओं के अवशेष के अपघटन (decomposition) से वातावरण दूषित होता है तथा दुर्गध (foul | smell) फैलती है, जिससे आस-पास रहने वाले लोगों को परेशानी होती है।
  2. कूड़े-कचरे के ढेर पर अनेक प्रकार की मक्खियाँ, मच्छर आदि पैदा होते हैं, जो कई प्रकार के रोगों के वाहक होते हैं।
  3. मिथेन गैस, हाइड्रोजन सल्फाइड गैस, CO2 गैस अपघटन प्रक्रम (UPBoardSolutions.com) में निकलते हैं, जिससे प्रदूषण बढ़ता है।

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प्रश्न 3.
ऐसे दो तरीके बताइए जिनमें अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर

  1. अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों; जैसे-प्लास्टिक, पॉलीथीन, पीड़कनाशक (DDT) एवं रसायन आदि का अपघटन नहीं होता। ये पदार्थ लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं तथा जल एवं मृदा प्रदूषण फैलाते हैं।
  2. अजैव निम्नीकरणीय रासायनिक उर्वरक के अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी या तो अम्लीय या क्षारीय हो जाती है, जिससे उर्वरा शक्ति घट जाती है।
  3. DDT जैसे पीड़कनाशक खाद्यान्न, सब्जियों, फलों आदि के माध्यम से हमारे शरीर में पहुँच जाते हैं तथा हमारे स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं।

खंड 15.2 ( पृष्ठ संख्या 294)

प्रश्न 1.
पोषी स्तर क्या है? एक आहार श्रृंखला का उदाहरण दीजिए तथा इसमें विभिन्न पोषी स्तर बताइए।
उत्तर
पोषी स्तर-किसी आहार श्रृंखला के विभिन्न स्तरों (या चरणों) को (UPBoardSolutions.com) पोषी स्तर कहते हैं जिसमें प्रत्येक चरणों पर भोजन का स्थानांतरण होता है।
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प्रश्न 2.
पारितंत्र में अपमार्जकों (Decomposers) की क्या भूमिका है? ।
उत्तर

  1. जीवाणु और कवक जैसे सूक्ष्म जीव मृतजैव अवशेषों का अपमार्जन करके जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल कार्बनिक पदार्थों में बदल देते हैं ताकि पौधों द्वारा पुनः उपयोग में लाए जा सकें।
  2. मृत पौधे और जंतुओं के शरीर में स्थित विभिन्न तत्वों को मिट्टी, जल तथा वायु में पुनः वापस लाते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है तथा प्रकृति में संतुलन बना रहता है। जैसे—मृत जीव को आमेनिया में बदलना।
  3. अपमार्जक पर्यावरण को साफ़ रखने में सहायता करता है।

खंड 15.3 ( पृष्ठ संख्या 296 )

प्रश्न 1.
ओजोन क्या है तथा यह किसी पारितंत्र को किस प्रकार प्रभावित करती है।
उत्तर
ऑक्सीजन के तीन परमाणु मिलकर ऑजोन (O3) के एक अणु का निर्माण करते हैं। वायुमंडल के उच्चतर स्तर पर पराबैंगनी (UV) विकिरण के कारण ऑक्सीजन (O2) अणुओं से ओजोन बनती है। उच्च ऊर्जा वाले पराबैंगनी विकिरण ऑक्सीजन अणुओं (02) को विघटित कर स्वतंत्र ऑक्सीजन (O) परमाणु मुक्त करते हैं। ऑक्सीजन के ये स्वतंत्र परमाणु संयुक्त होकर ओजोन बनाते हैं जैसा कि समीकरण में दिखाया गया है।
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वायुमंडल के ऊपरी स्तर पर ओजोन का आवरण सूर्य से आने वाले पराबैंगनी विकिरण से पृथ्वी को सुरक्षा प्रदान करती है। यह विकिरण जीवों के लिए अत्यंत हानिकारक होता है। उदाहरण के लिए, यह विकिरण मानव में त्वचा का कैंसर उत्पन्न (UPBoardSolutions.com) करती है। अतः ओजोन पारितंत्र को नष्ट होने से बचाती है।

प्रश्न 2.
आप कचरा निपटाने की समस्या कम करने में क्या योगदान कर सकते हैं? किन्हीं दो तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
कचरा निपटान की समस्या कम करने के तरीके निम्नलिखित हैं :

  1. कचरा फेंकने के पूर्व जैव निम्नीकरणीय तथा अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों का पृथक (अलग) कर लीजिए।
  2. ऐसे सभी पदार्थों को अलग कर लीजिए जिनका पुनः चक्रण संभव है; जैसे–कागज़, शीशा, धातुएँ, रबर इत्यादि।
  3. हमें जैव निम्नीकरणीय पदार्थों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करना चाहिए।

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पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED]

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-से समूहों में केवल जैव निम्नीकरणीय पदार्थ हैं
(a) घास, पुष्प तथा चमड़ा
(b) घास, लकड़ी तथा प्लास्टिक
(c) फलों के छिलके, केक एवं नींबू का रस
(d) केक, लकड़ी एवं घास
उत्तर
(d), (c) तथा (d)

प्रश्न 2.
निम्न से कौन आहार श्रृंखला का निर्माण करते हैं-
(a) घास, गेहूँ तथा आम
(b) घासे, बकरी तथा मानव
(c) बकरी, गाय तथा हाथी
(d) घास, मछली तथा बकरी
उत्तर
(b) घास, बकरी तथा मानव

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन पर्यावरण-मित्र व्यवहार कहलाते हैं
(a) बाज़ार जाते समय सामान के लिए कपड़े का थैला ले जाना।।
(b) कार्य समाप्त हो जाने पर लाइट (बल्ब) तथा पंखे का स्विच बंद करना।
(c) माँ द्वारा स्कूटर से विद्यालय छोड़ने के बजाय तुम्हारा विद्यालय तक पैदल जाना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर
(d) उपरोक्त सभी

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प्रश्न 4.
क्या होगा यदि हम एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर दें (मार डालें)?
उत्तर
यदि एक पोषी स्तर के सभी जीवों को मार दिया जाए, तो इससे पहले वाले स्तर के जीवों की संख्या बहुत अधिक हो जाएगी। जिससे उनका भोजन तीव्रता से खत्म हो जाएगा, जबकि उससे बाद आने वाले पोषी स्तर को भोजन नहीं मिल पाएगा। अत: वे भोजन के अभाव में मर जाएँगे अथवा किसी अन्य स्थान पर चले जाएँगे। इसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। यदि सभी शाकाहारी जंतु; जैसे-हिरण, खरगोश आदि मर जाएँगे (UPBoardSolutions.com) तो अगले पोषी स्तर वाले जीव शेर, बाघ आदि को भोजन नहीं मिलेगा और वे या तो मर जाएँगे या गाँवों, शहरों की ओर पलायन करेंगे। इसी प्रकार हिरण, गाय, खरगोश आदि नहीं होने पर घास पौधे बहुत अधिक होंगे क्योंकि इसका भक्षण नहीं होगा।
इस तरह हम कह सकते हैं कि आहार श्रृंखला के टूटने से पारितंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो जाएगा।

प्रश्न 5.
क्या किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तरों के लिए अलग-अलग होगा? क्या किसी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना संभव है?
उत्तर
(a)
हाँ, किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तर के लिए अलग-अलग होगा। इसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है-
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स्थिति I-यदि सभी हिरणों को हटा दें तो शेर भूख से मर जाएँगे तथा पादप (घास, पेड़, पौधों) की संख्या बढ़ेगी।
स्थिति II-यदि सभी शेरों को हटा दें तो हिरणों की संख्या बढ़ेगी, जिससे जंगल खत्म हो सकते हैं तथा रेगिस्तान में परिवर्तित हो सकते हैं।

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(b) नहीं, किसी पारितंत्र को क्षति पहुँचाए बिना (अर्थात् प्रभावित किए बिना) किसी पोषी स्तर के सभी जीवों को हटाना संभव नहीं है।

प्रश्न 6.
जैविक आवर्धन (biological magnificatation) क्या है? क्या पारितंत्र के विभिन्न स्तरों पर जैविक आवर्धन का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होगा?
उत्तर
फसलों की सुरक्षा के लिए पीड़कनाशक एवं रसायन जैसे अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों का उपयोग किया जाता है। यह प्रत्येक पोषी स्तर पर जीवों एवं पादपों के शरीर में संचित होते हैं, जिसे जैविक आवर्धन कहते हैं। भिन्न स्तरों पर जैविक आवर्धन (UPBoardSolutions.com) भिन्न-भिन्न होता है। स्तरों के ऊपर की तरफ़ बढ़ने पर आवर्धन बढ़ता जाता है। चूंकि आहार श्रृंखला में मनुष्य शीर्षस्थ है। अतः हमारे शरीर में इसकी मात्रा सर्वाधिक होती है।

प्रश्न 7.
हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय कचरे से कौन-सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
उत्तर
अजैव निम्नीकरणीय कचरों से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ निम्न हैं|

  1. चूँकि इनका विघटन नहीं हो पाता है इसलिए लंबे समय तक बने रहने के कारण काफ़ी मात्रा में एकत्र हो जाते हैं। तथा पारितंत्र में असंतुलन पैदा करते हैं तथा पर्यावरण के अन्य सदस्यों को हानि पहुँचाते हैं।
  2. पॉलीथीन की थैलियाँ कुछ पालतू जानवर खा लेते हैं, जिससे उनकी मृत्यु तक हो जाती है।
  3. नालियाँ जाम हो जाती हैं, जिससे मल-मूत्र आदि गंदे पदार्थों का वहन नहीं हो पाता है तथा गंदगी फैलती है और अनेक प्रकार की बीमारियाँ होती हैं।
  4. प्लास्टिक की बोतलें, डिब्बों आदि में जल जमा होने के कारण डेंगू, मलेरिया जैसे खतरनाक रोगों की संभावनाएँ बढ़ती हैं।
  5. दवाइयों के स्ट्रिप्स बोतलों, कीटनाशी एवं रसायन आदि से जल एवं मृदा प्रदूषण होता है।
  6. मिट्टी के अंदर दबे रहने के कारण फसलों की वृद्धि में रुकावट होती है तथा उर्वरा शक्ति कम हो जाती है।
  7. इससे जैविक आवर्धन भी होता है।
  8. इसे जलाने पर हानिकारक गैसें निकलती हैं, जो वायु प्रदूषण करता है।

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प्रश्न 8.
यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तो क्या इनका हमारे पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?
उत्तर
हाँ, यहाँ तक कि यदि उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तब भी इनका हमारे पर्यावरण पर प्रभाव पड़ेगा परंतु लंबे समय के लिए नहीं। अधिक मात्रा में कचरा होने के कारण सूक्ष्म जीव (बैक्टिरिया एवं कवक) सही समय पर इनका (UPBoardSolutions.com) विघटन नहीं कर पाएँगे, जिससे ये कचरा जमा हो जाएगा और मक्खियों, मच्छरों आदि को पनपने का अवसर मिलेगा, दुर्गंध फैलेगी, वायु प्रदूषण होगा, बीमारियाँ फैलेंगी, तथा आसपास के लोगों का रहना मुश्किल हो जाएगा। यदि इसका निपटान सही तरीके से होगा; जैसे-जैविक खाद बनाकर, तो कुछ ही समय में ये दुष्प्रभाव ख़त्म हो जाएँगे तथा पर्यावरण को कोई क्षति नहीं होगा।

प्रश्न 9.
ओजोन परत की क्षति हमारे लिए चिंता का विषय क्यों है? इस क्षति को सीमित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर
स्ट्राटोस्फेयर में ओजोन परत होती है, जो सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरण (UV) से पृथ्वी पर रहने वाले जीवों
को सुरक्षा प्रदान करती है। UV के कारण त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद (cataract), प्रति रक्षा-तंत्र की क्षति तथा पौधों को क्षति पहुँचाती है, जिसके कारण फसलों की उपज कम जो जाती है। क्लोरोफ्लुओरो कार्बन (CFCs) का प्रयोग अग्निशमन यंत्रों एवं रेफ्रीजरेटर (UPBoardSolutions.com) (शीतलन) में किया जाता है, जो ओजोन परत को क्षति पहुँचाते हैं। 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम [UNEP : United Nations Environment Programme] में सर्वानुमति बनी कि CFC के उत्पादन को 1986 के स्तर पर ही सीमित रखा जाए।

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