UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 15 (Section 1)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 15 क्रान्तिकारियों का योगदान (अनुभाग – एक)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष में क्रान्तिकारियों की भूमिका की विवेचना कीजिए। [2013]
उत्तर :
स्पष्ट राजनीतिक आन्दोलन के अतिरिक्त बीसवीं शताब्दी के पहले दशक में देश के विभिन्न भागों में अनेक क्रान्तिकारी संगठन भी बने। इन संगठनों का संघर्ष सशस्त्र था। इनकी संवैधानिक आन्दोलन में कोई आस्था नहीं थी। इनका मुख्य उद्देश्य था—ब्रिटिश अधिकारियों को आतंकित करके पूरे सरकारी तन्त्र का मनोबल तोड़ना तथा स्वतन्त्रता प्राप्त करना। इन क्रान्तिकारियों की वीरता और आत्म-बलिदान ने। जनता को प्रेरणा दी और इस तरह जनता में राष्ट्रवादी भावनाओं का विकास किया। स्वतन्त्रता आन्दोलन के तीन प्रमुख क्रान्तिकारियों का संक्षिप्त जीवन परिचय नीचे दिया जा रहा है –

1. चन्द्रशेखर आजाद – देश की स्वतन्त्रता के मार्ग पर हँसते-हँसते शहीद हो जाने वाले क्रान्तिकारियों की प्रथम श्रेणी में चन्द्रशेखर आजाद का नाम आता है। इनका जन्म 23 जुलाई, 1906 ई० में मध्य प्रदेश के भाँवरा नामक ग्राम में हुआ था। चन्द्रशेखर आजाद ने काकोरी काण्ड व साण्डर्स की हत्या में भाग लेकर अपनी प्रतिभा की धाक जमा दी थी। उन्होंने क्रान्तिकारी दल का नेतृत्व बड़ी सफलता से किया। (UPBoardSolutions.com) ब्रिटिश सरकार उनसे परेशान हो गयी थी और उन्हें गिरफ्तार करने के लिए सक्रिय हो गयी थी। सन् 1931 ई० को वे इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने साथियों के साथ बैठक कर रहे थे। वहाँ पर पुलिस से इनकी मुठभेड़ हुई। इन्होंने पुलिस के हाथों में आने से पहले ही स्वयं को गोली मारकर वीरगति प्राप्त की।

2. भगतसिंह – शहीद भगतसिंह भारत के सच्चे देशभक्त और महान क्रान्तिकारी थे। इनका जन्म 27 दिसम्बर, 1907 ई० को पंजाब के लायलपुर जिले में हुआ था। ब्रिटिश सरकार इनके क्रान्तिकारी कार्यों से बुरी तरह घबरा गयी थी। इन्होंने सबसे पहले चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर लाला लाजपत राय पर लाठी बरसाने वाले अंग्रेज अधिकारी साण्डर्स की हत्या की। इसके उपरान्त सुखदेव व राजगुरु के साथ मिलकर 8 अप्रैल, 1929 ई० को केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंककर सनसनी फैला दी। देश की जनता को स्वतन्त्रता के प्रति जागरूक करने के लिए इन्होंने स्वयं को गिरफ्तार करवा दिया। 23 मार्च, 1931 ई० को लाहौर जेल में इन्हें और इनके साथियों को फाँसी दे दी गयी, किन्तु अपने बलिदान से ये भारतीय इतिहास में अमर हो गये।

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3. खुदीराम बोस – खुदीराम बोस भारत के परम देशभक्त और महान क्रान्तिकारी थे। इनका जन्म 3 दिसम्बर, 1889 ई० को बंगाल के मिदनापुर जिले में हुआ था। शिक्षा पूर्ण करके ये बंगाल के क्रान्तिकारी दल में सम्मिलित हो गये। इन्होंने मुजफ्फरपुर में जस्टिस किंग्सफोर्ड की गाड़ी पर बम फेंका। वे उस गाड़ी में मौजूद न होने के कारण बच गये, किन्तु दो निर्दोष स्त्रियाँ मारी गयीं। ये बाद में कैद कर लिये गये तथा सन् 1908 ई० में उन्हें फाँसी दे दी गयी। खुदीराम बोस ने देश की स्वाधीनता और सम्मान के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी।

महत्त्व – इन क्रान्तिकारियों की गतिविधियाँ समय-समय पर अंग्रेजी सरकार को हिलाती रहती थीं। जिसके परिणामस्वरूप सरकार किसी भी कार्य का उचित फैसला नहीं ले पाती थी। अगर क्रान्तिकारी आन्दोलन भारत में न हुए होते तो भारत को 15 अगस्त, 1947 ई० को (UPBoardSolutions.com) स्वतन्त्रता प्राप्त करना मुश्किल ही नहीं असम्भव भी था। इसलिए क्रान्तिकारी आन्दोलनों ने स्वतन्त्रता-प्राप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।

प्रश्न 2.
पंजाब तथा बंगाल की प्रमुख क्रान्तिकारी गतिविधियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
क्रान्तिकारी आन्दोलन उन्नीसवीं सदी के अन्त तथा बीसवीं सदी के शुरू में भारत में चला। यह आन्दोलन तिलक-पक्षीय राजनीतिक उग्रवाद से बिल्कुल भिन्न था। क्रान्तिकारी लोग अपीलों, प्रेरणाओं और शान्तिपूर्ण संघर्षों में विश्वास नहीं रखते थे। उनका यह निश्चित मत था कि पशु बल से स्थापित किये गये साम्राज्यवाद को हिंसा के बिना उखाड़ फेंकना सम्भव नहीं। ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रियावादी और दमन नीति ने उन्हें निराश कर दिया थी। वे प्रशासन और उसके हिन्दुस्तानी सहायकों की हिम्मत पस्त करने के लिए हिंसात्मक कार्य में विश्वास रखते थे। वे अपने आन्दोलन को चलाने के लिए सशस्त्र आक्रमण करना तथा राजकोषों पर डकैती डालने के कार्य को बुरा नहीं समझते थे। इस आन्दोलन में विदेशों में स्थित राष्ट्रवादी भारतीयों ने भी खुलकर भाग लिया।

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क्रान्तिकारी आन्दोलन के केन्द्र एवं गतिविधियाँ

क्रान्तिकारी राष्ट्रवादियों का सर्वप्रथम केन्द्र महाराष्ट्र था। सन् 1899 ई० में जनता की घृणा के पात्र रैण्ड और रिहर्स्ट की हत्या कर दी गयी जिसमें श्यामजी कृष्ण वर्मा का हाथ था। वह भागकर लन्दन पहुँच गये। जहाँ उन्होंने सन् 1905 ई० में इण्डियन होमरूल सोसायटी की स्थापना की। उनकी सहायता से विनायक दामोदर सावरकर भी लन्दन पहुँचकर ‘इण्डिया हाउस’ में क्रान्तिकारी दल के नेता हो गये। वी० डी० सावरकर ने ‘अभिनव भारत’ सोसायटी के सदस्यों के लिए पिस्तौलें भेजने की व्यवस्था की। विनायक सावरकर के भाई गणेश सावरकर पर अभियोग चलाया गया तथा सन् 1909 ई० में उन्हें गोली से उड़ा दिया गया।

बंगाल में क्रान्तिकारियों का नेतृत्व अरविन्द घोष के भाई वी०के० घोष ने किया। उन्होंने ‘युगान्तर’ अखबार के माध्यम से जनता को राजनीतिक और धार्मिक शिक्षा देना आरम्भ किया। वी०एन० दत्त और वी०के० घोष के नेतृत्व में अनेक क्रान्तिकारी समितियाँ बनायी गयीं जिनमें ‘अनुशीलन समिति’ प्रमुख थी। इस समिति की शाखाएँ कलकत्ता (कोलकाता) तथा ढाका में थीं। इस समिति ने आतंकवादी कार्यक्रम शुरू किया। सन् 1907 ई० में लेफ्टिनेण्ट गवर्नर की गाड़ी को बम से उड़ाने का विफल प्रयास किया गया। प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस इस समिति के महत्त्वपूर्ण सदस्य थे। चाकी ने स्वयं को गोली से उड़ा लिया, खुदीराम बोस को फाँसी दे दी गयी।

कलकत्ता (कोलकाता) षड्यन्त्र में अरविन्द घोष, वी०के० घोष, हेमचन्द्र दास, नरेन्द्र गोसाईं, के०एल० दत्त, एस०एन० बोस आदि को गिरफ्तार करके मुकदमे चलाये गये। के०एल० दत्त तथा एस०एन० बोस को फाँसी पर लटका दिया गया। क्रान्तिकारियों ने चुन-चुनकर पुलिस अफसरों, मजिस्ट्रेटों, सरकारी वकीलों, विरोधी गवाहों, गद्दारों, देशद्रोहियों आदि को गोली से उड़ा दिया।

मदनलाल ढींगरा ने इंग्लैण्ड में, भारत में आक्रमणकारियों को दी गयी अमानुषिक (UPBoardSolutions.com) सजाओं के विरोध में सरं विलियम कर्जन वायली को गोली से उड़ा दिया। इस कारण उन्हें फाँसी दे दी गयी।

पॉण्डिचेरी (पुदुचेरी) भी क्रान्तिकारी गतिविधियों का केन्द्र था। एम०पी० तिरुमल आचार्य और वी०वी०एस० अय्यर यहाँ के मुख्य कार्यकर्ता थे। उनके एक शिष्य वाँची अय्यर को जिला मजिस्ट्रेट को गोली से उड़ाने के अपराध में फाँसी पर चढ़ा दिया गया।

क्रान्तिकारी गतिविधियों का एक केन्द्र अमेरिका के पैसिफिक तट पर था।’इण्डो-अमेरिकन एसोसिएशन तथा ‘यंग इण्डिया एसोसिएशन के मुख्य कार्यालय कैलिफोर्निया में थे तथा अन्य स्थानों पर इनकी शाखाएँ थीं। इनके कार्यकर्ता मुख्यत: बंगाली छात्र थे जिन्हें आयरिश-अमेरिकन छात्रों का सहयोग प्राप्त था। बंगाल और पंजाब में सन् 1913-16 ई० के दौरान क्रान्तिकारी आन्दोलन उग्र रूप में था। पंजाब के कुछ क्रान्तिकारियों ने भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग की जान लेने की कोशिश की। दिल्ली षड्यन्त्र केस में अमीरचन्द, अवध बिहारी, बालमुकुन्द, बसन्त कुमार और विश्वास को मौत की सजा हुई। कनाडा के सिक्ख लोगों के लौटने से पंजाब में क्रान्तिकारी आन्दोलन को बल मिला।

हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक पार्टी ने सरकार के दमन और आतंक का मुकाबला करते हुए क्रान्तिकारी आन्दोलन को बल दिया। सरदार भगतसिंह, यतीन्द्रनाथ दास और चन्द्रशेखर आजाद जैसे क्रान्तिकारियों ने देश के लिए अपना जीवन दे दिया।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित घटनाओं के कारण तथा परिणामों का संक्षेप में वर्णन कीजिए – [2016]
(क) काकोरी काण्ड, (ख) सेन्ट्रल असेम्बली (केन्द्रीय विधानसभा बम प्रहार), (ग) लाहौर काण्ड।
या
काकोरी हत्याकाण्ड कब और कहाँ घटित हुआ था? [2018]
उत्तर :

(क) काकोरी काण्ड

अगस्त, 1925 ई० में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्यों ने (UPBoardSolutions.com) लखनऊ के निकट काकोरी नामक स्थान लखनऊ जाने वाली गाड़ी के एक डिब्बे में रखे सरकारी खजाने को लूट लिया। इस घटना में 29
क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर उन पर काकोरी षड्यन्त्र काण्ड में दो वर्ष तक मुकदमा चलाया गया।

क्रान्तिकारियों में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, रोशन लाल तथा राजेन्द्र लाहिडी को फाँसी दे दी गयी।

काकोरी काण्ड में “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के अधिकांश नेता गिरफ्तार कर लिए गए। जिसके परिणामस्वरूप इस संगठन का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया। कुछ समय पश्चात् इस काण्ड के एकमात्र बचे क्रान्तिकारी सदस्य चन्द्रशेखर आजाद ने सन् 1928 में दिल्ली के ‘फीरोजशाह कोटला मैदान में एक बैठक आयोजित की और उन्होंने यहीं पर ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की। ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ का पहला क्रान्तिकारी कार्य लाहौर के सहायक पुलिस अधीक्षक ‘साण्डर्स’ की हत्या थी। यह हत्या 30 अक्टूबर, 1928 को साइमन कमीशन के विरोध के कारण एवं लाला लाजपत राय की पुलिस द्वारा की गयी पिटाई का प्रतिशोध थी। साण्डर्स की हत्या में भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद और राजगुरु शामिल थे।

साण्डर्स की हत्या के बाद क्रान्तिकारी तो भूमिगत हो गए परन्तु ब्रिटिश पुलिस निर्दोष अथवा सामान्य जनता को परेशान करने लगी। पुलिस का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए भगतसिंह एवं बटुकेश्वर दत्त ने (1929 ई० में) विधानसभा (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम फेंका, जिसमें इन तीनों को गिरफ्तार कर लिया गया तथा मुकदमा चलाया गया।

भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त की गिरफ्तारी के साथ ही अन्य अनेक क्रान्तिकारी गिरफ्तार किये गये और उन पर लाहौर षड्यन्त्र काण्ड में संयुक्त रूप से मुकदमा चला गया। जेल में बन्द इन कैदियों ने राजनीतिक बन्दियों का दर्जा प्राप्त करने के लिए भूख हड़ताल (UPBoardSolutions.com) प्रारम्भ कर दी। इनमें ‘जतिन दास’ भी शामिल थे। हड़ताल के 64वें दिन जतिन दास का देहान्त हो गया। लाहौर काण्ड में अधिकांश क्रान्तिकारियों को दोषी पाया गया और उनमें से तीन भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को 23 मार्च, 1931 को लाहौर में फॉसी दे दी गयी।

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(ख) असेम्बली में बम विस्फोट

ब्रिटिश सरकार द्वारा सेण्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली में सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम’ (पब्लिक सेफ्टी बिल) तथा व्यापार विवाद अधिनियम’ (ट्रेड डिस्प्यूट बिल) पेश किये गये थे। इन अधिनियमों के तहत अंग्रेज सरकार तथा पुलिस को भारतीय क्रान्तिकारियों तथा स्वतन्त्रता सेनानियों के विरुद्ध अधिक अधिकार दिये गये थे। असेम्बली में इन अधिनियमों को मात्र एक वोट से हरा दिया गया। इन अधिनियमों की स्वीकृति हेतु चर्चा के दौरान हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के कार्यकर्ताओं ने सेण्ट्रल (UPBoardSolutions.com) लेजिस्लेटिव असेम्बली में बम विस्फोट करने की योजना बनायी। क्रान्तिकारी आन्दोलन के नेता चन्द्रशेखर आजाद, बम-विस्फोट के पक्ष में नहीं थे। किसी प्रकार से एसोसिएशन के अन्य नेताओं ने भगतसिंह की इस योजना में सम्मिलित होने के लिए चन्द्रशेखर आजाद को सहमत कर लिया। आजाद ने बम विस्फोट का कार्य बटुकेश्वर दत्त तथा भगतसिंह के सुपुर्द कर दिया।

8 अप्रैल, 1929 को बटुकेश्वर दत्त और भगतसिंह असेम्बली की दर्शक-दीर्घा में पहुँच गए। वहाँ पहुँचकर उन्होंने ‘इंकलाब जिन्दाबाद’ का नारा लगाया और बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली के रिक्त स्थान (जहाँ पर कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं था) पर कुछ बम फेंके। भगतसिंह ने कुछ छपे हुए पर्चे (पैम्फ्लेट्स) असेम्बली में उपस्थित सदस्यों के ऊपर फेंके जिन पर लिखा था “बहरों को कोई बात सुनाने के लिए अधिक कोलाहल की आवश्यकता पड़ती है।” बम फेंकने का उद्देश्य किसी की हत्या करना नहीं था। तत्पश्चात् बटुकेश्वर दत्त तथा भगतसिंह को गिरफ्तार करके अदालत में पेश किया गया, जहाँ दोनों ने अपने किये गये (UPBoardSolutions.com) जुर्म को स्वीकार कर लिया। ब्रिटिश फोरेंसिक विशेषज्ञों ने भी इस बात की पुष्टि की कि बम इतने शक्तिशाली नहीं थे, जिनसे किसी को घायल भी किया जा सकता हो। यह घटना इतनी बड़ी नहीं थी, जिसके लिए उन्हें फाँसी दी जा सके। इसलिए 12 जून, 1929 ई० को दिल्ली के सेशन जजों ने विस्फोटकजन्य पदार्थ ऐक्ट की धारा चार तथा इण्डियन पीनल कोड की धारा 307 के तहत उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनायी।

बटुकेश्वर दत्त को अण्डमान में स्थित सेल्युलर जेल, जो कि काला पानी’ नाम से कुख्यांत थी, भेज दिया गया। उन्हें लाहौर षड्यन्त्र केस में भी अदालत में पेश किया गया जिसमें उनको निर्दोष सिद्ध कर दिया गया। उन्होंने मई, 1933 तथा जुलाई, 1937 में सेल्युलर जेल में दो बार ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। सन् 1937 में ही बटुकेश्वर दत्त को हिन्दुस्तान भेज दिया गया, जहाँ पर पटना की बाँकीपुर जेल से उन्हें सन् 1938 ई० में रिहा कर दिया गया।

(ग) लाहौर काण्ड

भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त की गिरफ्तारी के कारण अनेक एच० एस० आर० ए० क्रान्तिकारी भी गिरफ्तार किये गये और उन पर लाहौर षड्यन्त्र काण्ड में संयुक्त रूप से मुकदमा चलाया गया। जेल में रहते हुए जिन कैदियों पर मुकदमा चलाया जा रहा था, उन्होंने साधारण अपराधियों के बजाय राजनीतिक बन्दियों का दर्जा प्राप्त करने के लिए भूख हड़ताल की थी। इन भूख-हड़तालियों में जतिन दास भी थे, जिनका 13 सितम्बर, 1929 ई० को अनशन के 64वें दिन देहान्त हो गया। लाहौर षड्यन्त्र काण्ड में अधिकांश क्रान्तिकारियों को दोषी पाया गया और उनमें से तीन भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को 23 मार्च, 1931 ई० क फाँसी दे दी गई।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की शाखाएँ किन-किन जगहों पर स्थापित की गयी ?
उत्तर :
अक्टूबर, 1924 ई० में सभी क्रान्तिकारी दलों ने लखनऊ में एक सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में शचीन्द्रनाथ सान्याल, जगदीशचन्द्र चटर्जी, रामप्रसाद बिस्मिल, योगेश चटर्जी आदि सम्मिलित हुए। नये नेताओं में भगतसिंह, शिव वर्मा, सुखदेव, भगवतीचरण बोहरा, चन्द्रशेखर आजाद आदि शामिल थे। नये क्रान्तिकारी राष्ट्रभक्तों ने कुछ नवीन संगठनों की स्थापना की। ये संगठन संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश), दिल्ली, पंजाब तथा बंगाल आदि केन्द्रों में बनाये गये।

हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना सन् 1924 ई० में कानपुर में की गयी। इसके मुख्य कार्यकर्ता शचीन्द्रनाथ सान्याल, रामप्रसाद बिस्मिल, योगेश चटर्जी, अशफाक उल्ला खाँ, रोशन सिंह आदि थे। बंगाल, बिहार, उ०प्र०, दिल्ली, पंजाब, मद्रास (चेन्नई) आदि (UPBoardSolutions.com) प्रान्तों में इसकी शाखाएँ स्थापित की गयीं। इस संगठन के प्रमुख विचार निम्नलिखित थे –

  1. भारतीय जनता में गांधी जी की अहिंसावाद की नीतियों की निरर्थकता के प्रति जागृति उत्पन्न करना।
  2. पूर्ण स्वतन्त्रता-प्राप्ति के लिए प्रत्यक्ष कार्यवाही तथा क्रान्ति की आवश्यकता का प्रदर्शन करना।
  3. अंग्रेजी साम्राज्यवाद के स्थान पर समाजवादी विचारधारा से प्रेरित भारत में संघीय गणतन्त्र की स्थापना करना।
  4. इन्होंने अपने कार्यों के लिए धन एकत्रित करने हेतु सरकारी कोषों को अपना निशाना बनाने का निश्चय किया।

प्रश्न 2.
देश को स्वतन्त्रता दिलाने में मौलाना आजाद का क्या योगदान रहा ? [2011, 16]
उतर :
मौलाना अबुल कलाम आजाद का देश को स्वतन्त्रता दिलाने में महत्त्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने ‘मुस्लिम लीग’ की नीतियों का विरोध करते हुए भारतीय मुसलमानों को राष्ट्रीय धारा में जोड़ने का अथक् प्रयास किया। उन्होंने अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति का प्रबल विरोध किया। भारतीय मुसलमानों को जागृत करने के लिए आजाद ने ‘अल हिलाल’ नामक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। यह पत्र मुसलमानों में अत्यधिक लोकप्रिय था। 1916 ई० में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के आपसी समझौते में उनका सराहनीय सहयोग था। उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया, जिसके फलस्वरूप उन्हें 1 वर्ष की सजा हुई। 1923 ई० के कांग्रेस अधिवेशन में उन्हें अध्यक्ष चुन लिया गया। 1930 ई० में जब गांधी जी ने ‘सविनय अवज्ञा-आन्दोलन’ चलाया तो आजाद ने सक्रिय सहयोग प्रदान किया। 1940 (UPBoardSolutions.com) ई० से 1946 ई० तक वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सभापति रहे। 1947 ई० की अन्तरिम सरकार में वे शिक्षामंत्री रहे। स्वतंत्र भारत में 1958 ई० तक वे लगातार शिक्षामंत्री के पद पर बने रहे। उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘इण्डिया विन्स. फ्रीडम’ थी।

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प्रश्न 3.
भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में सुभाषचन्द्र बोस के योगदान की विवेचना कीजिए। [2015, 18]
उतर :

सुभाषचन्द्र बोस

सुभाषचन्द्र बोस ने राष्ट्रीय आन्दोलन में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आर०सी० मजूमदार के शब्दों में–“गाँधी जी के बाद भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष में सबसे प्रमुख व्यक्ति नि:सन्देह सुभाषचन्द्र बोस ही थे।” सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 ई० को उड़ीसा के कटक नगर में हुआ था। सुभाषचन्द्र बोस एक महान् देशभक्त थे। वे राजनीतिक यथार्थवाद से अनुप्राणित थे। उन्होंने लाहौर अधिवेशन में 1929 ई० मे पं० जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत ‘पूर्ण स्वराज्य’ के प्रस्ताव का समर्थन किया। यहीं पर इनके विचारों में अचानक क्रान्तिकारी विचारधारा उत्पन्न हुई। वे 1929 ई० के लाहौर कांग्रेस के अधिवेशन से जब बाहर निकले तो उन्होंने कांग्रेस प्रजातन्त्र पार्टी का निर्माण किया। इसके बाद उन्होंने फारवर्ड ब्लॉक नामक एक अन्य दल की स्थापना की। इन्होंने गाँधी जी के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया, किन्तु सुभाष और गांधी दोनों के विचार एक-दूसरे से सर्वथा विपरीत थे। गांधी जी शान्तिपूर्ण तरीकों से स्वराज्य-प्राप्ति में विश्वास करते थे, जबकि बोस क्रान्तिकारी नीतियों में विश्वास करते थे, किन्तु साध्य दोनों का स्वराज्य-प्राप्ति ही था। सुभाषचन्द्र बोस का विचार था कि गांधी जी की नीति से स्वराज्य कभी नहीं पाएगी, क्योंकि अंग्रेज इतने सीधे व सरल नहीं थे कि वे भारत को सहज ही स्वतन्त्रता प्रदान कर देते। अत: वे क्रान्तिकारी साधनों में विश्वास करते थे। जब द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था तो उन्होंने कहा था, “यह स्वतन्त्रता-प्राप्ति (UPBoardSolutions.com) का अच्छा अवसर है। हमको संगठित होकर ब्रिटिश सरकार से सत्ता छीनने का प्रयत्न करना चाहिए। किन्तु इस समय कांग्रेस ने उनका साथ नहीं दिया। वे 1941 ई० में वेश बदलकर भारत से बाहर चले गए और गुप्त रहकर भारत को स्वतन्त्र कराने का प्रयत्न करते रहे। इन्होंने एक सेना संगठित कर उसका नाम ‘आजाद हिन्द फौज’ रखा। इनका उद्देश्य भारत को परतन्त्रता की बेड़ियों से मुक्त कराना था। बोस इस सेना के प्रधान सेनापति थे। उनका उद्घोष था-‘दिल्ली चलो।’ सुभाष बाबू ने सैनिकों को सम्बोधित करते हुए कथा था-“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” इस सेना ने अंग्रेजों की सेना में अनेक बार सफल मोर्चा लिया। उन्होंने एक अस्थायी सरकार का गठन भी किया। सुभाष का व्यक्तित्व इतना विशाल था कि उस काल की विश्व-शक्तियों ने उन्हें भारत की अस्थायी सरकार का प्रथम राष्ट्रपति घोषित किया था। जिसे जापान एवं जर्मनी ने भी मान्यता दे दी थी, किन्तु 1945 ई० में एक वायुयान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ की स्थापना कब की गयी थी ?
उत्तर :
‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना सन् 1924 ई० में कानपुर में की गयी थी ?

प्रश्न 2.
काकोरी काण्ड के अन्तर्गत कितने क्रान्तिकारियों को फाँसी की सजा दी गयी ?
उत्तर :
काकोरी काण्ड में रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिडी, अशफाक (UPBoardSolutions.com) उल्ला खाँ तथा रोशन लाल को फाँसी की सजा दी गयी।

प्रश्न 3.
लाला लाजपत राय के ऊपर लाठी चार्ज किस प्रदर्शन के दौरान किया गया ?
उत्तर :
लाहौर में साइमन कमीशन का विरोध-प्रदर्शन करते समय लाला लाजपत राय के ऊपर लाठी चार्ज किया गया।

प्रश्न 4.
सी०आर० दास की मृत्यु के बाद बंगाल में कांग्रेसी नेतृत्व कितने गुटों में विभक्त हो गया था ?
उत्तर :
सी०आर० दास की मृत्यु के बाद बंगाल में कांग्रेसी नेतृत्व दो गुटों में विभक्त हो गया था।

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प्रश्न 5.
साण्डर्स की हत्या में कौन-कौन से क्रान्तिकारी शामिल थे?
उत्तर :
साण्डर्स की हत्या में भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद और राजगुरु शामिल थे।

प्रश्न 6.
बंगाल में क्रान्तिकारी गतिविधियों का नेतृत्व किस-किसने किया?
उत्तर :
बंगाल में क्रान्तिकारी गतिविधियों का नेतृत्व सुभाषचन्द्र बोस (UPBoardSolutions.com) और जे०एम० सेन गुप्त ने किया।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. काकोरी काण्ड किस जगह घटित हुआ ?

(क) वाराणसी में
(ख) गोरखपुर में
(ग) लखनऊ में
(घ) पंजाब में

2. चन्द्रशेखर आजाद ने ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” की स्थापना कहाँ पर की थी ?

(क) पंजाब में
(ख) इलाहाबाद में
(ग) दिल्ली में
(घ) लखनऊ में

3. भगतसिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को फाँसी कहाँ दी गयी ?

(क) पेशावर में
(ख) लाहौर में
(ग) दिल्ली में
(घ) मुम्बई में

4. भगतसिंह को फाँसी दी गयी [2011]

(क) 23 मार्च, 1925 ई० को
(ख) 23 मार्च, 1927 ई० को
(ग) 23 मार्च, 1931 ई० को
(घ) 23 मार्च, 1935 ई० को

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5. वह स्थान जहाँ चन्द्रशेखर आजाद शहीद हुए [2012]

(क) कानपुर
(ख) इलाहाबाद
(ग) लखनऊ
(घ) झाँसी

6. ‘इण्डिया विन्स फ्रीडम’ पुस्तक का लेखक कौन है?

(क) महात्मा गांधी
(ख) सुभाषचन्द्र बोस
(ग) मौलाना अबुल कलाम आजाद
(घ) जवाहरलाल नेहरू

7. लाला हरदयाल थे एक [2015, 16]

(क) वैज्ञानिक
(ख) समाज सुधारक
(ग) शिक्षाविद्
(घ) क्रान्तिकारी

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8. हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का संस्थापक निम्नलिखित में से कौन था? (2017)

(क) अशफाक उल्ला खाँ
(ख) शचीन्द्रनाथ सान्याल
(ग) चन्द्रशेखर आजाद
(घ) योगेश चटर्जी।

9. भगत सिंह को कब फाँसी दी गयी? (2018)

(क) 23 मार्च, 1927
(ख) 23 मार्च, 1931
(ग) 23 मार्च, 1935
(घ) 23 मार्च, 1937

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 15 क्रान्तिकारियों का योगदान 1

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 1 (Section 1)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 1 पुनर्जागरण (अनुभाग – एक)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 1 पुनर्जागरण (अनुभाग – एक).

विरतृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्जागरण से आप क्या समझते हैं ? यूरोप में पुनर्जागरण के क्या कारण थे ? [2012, 16]
       या
पुनर्जागरण का क्या अर्थ है ? पुनर्जागरण के कारण बताइट।
उत्तर :
पुनर्जागरण – यूरोप के निवासियों ने मध्यकाल की निर्जीव और मृतप्राय रोमन एवं यूनानी सभ्यता को पुनर्जीवित करने के जो प्रयास किये, उन्हें पुनर्जागरण (Renaissance) कहते हैं। ‘पुनर्जागरण’ शब्द का प्रयोग उन सभी बौद्धिक परिवर्तनों के लिए किया जाता है जो मध्य युग के अन्त में तथा आधुनिक युग के प्रारम्भ में हुए। इससे अज्ञानता और अन्धविश्वास की जंजीरों में जकड़े हुए मनुष्य को छुटकारा मिला और उसके जीवन (UPBoardSolutions.com) में नये ज्ञान एवं नयी चेतना का उदय हुआ। इसीलिए ‘पुनर्जागरण’ को मध्यकालीन पुराने विचारों के विरुद्ध एक सांस्कृतिक एवं अहिंसक क्रान्ति की संज्ञा दी गयी। पुनर्जागरण के फलस्वरूप यूरोप में राज्य, राजनीति, धर्म, न्याय, साहित्य, दर्शन आदि के क्षेत्र में बहुत अधिक परिवर्तन तथा सुधार हुए।

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यूरोप में पुनर्जागरण के कारण

यूरोप में पुनर्जागरण के लिए मुख्यतया निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे –

1. धर्म-युद्ध – नवीन ज्ञान का मार्ग दिखाने में मध्यकाल में लड़े गये धर्म-युद्धों ने विशेष भूमिका निभायी। ये धर्म-युद्ध तुर्को से येरुसलम को स्वतन्त्र कराने के लिए ईसाइयों ने लड़े। इन धर्म-युद्धों के कारण यूरोपवासी अन्य देशों की सभ्यता एवं संस्कृति के सम्पर्क में आये और उनमें नवीन विचारों का उदय हुआ।

2. इस्लाम धर्म का प्रचार – धर्म-युद्धों के कारण यूरोप के लोग मध्य-पूर्व की इस्लाम सभ्यता के सम्पर्क में आये। इससे यूरोपवासियों को अपने राजनीतिक एवं धार्मिक ढाँचे की कमियों की जानकारी हुई। उन्होंने अपने जर्जर धार्मिक, राजनीतिक तथा सामाजिक जीवन में समयानुकूल परिवर्तन करने आवश्यक समझे तथा अपनी प्राचीन सभ्यता-संस्कृति को पुनः स्थापित करने के लिए नये सिरे से प्रयास करने प्रारम्भ कर दिये।

3. कुस्तुनतुनिया पर तुर्को का अधिकार – सन् 1453 ई० में तुर्को ने कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया। इससे यूरोप में पुनर्जागरण को बड़ा बल मिला। तुर्को के अत्याचार से डरकर बहुत सारे यूनानी- ईसाइयों ने यूरोप के भिन्न-भिन्न भागों (UPBoardSolutions.com) में शरण ली। इन लोगों ने यूरोप में जगह-जगह यूनानी सभ्यता का प्रचार किया, जिसका लोगों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। इस प्रभाव ने यूरोप में जागृति की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी।

4. नवीन धार्मिक मान्यताओं का विकास – यूरोप के लोगों में यह विश्वास उत्पन्न होने लगा कि स्वर्ग तथा नरक केवल रूढ़िवादी धर्म की कल्पनाएँ हैं। जीवन का सच्चा सुख तो केवल परिश्रम तथा । स्वावलम्बन से प्राप्त होता है। स्वर्ग कहीं नहीं, इसी धरती पर विद्यमान है। इन मानवतावादी विचारों के प्रादुर्भाव से यूरोप के निवासियों को अन्धविश्वासों से मुक्ति मिली और वे नये तार्किक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने लगे।

5. भौगोलिक खोजें – पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस, इटली, इंग्लैण्ड, हॉलैण्ड आदि देशों के नाविकों ने नये-नये सामुद्रिक मार्गों तथा नये-नये देशों की खोज की। यूरोप के लोगों ने इन देशों में अपने उपनिवेश स्थापित किये, जिससे यूरोप में साम्राज्यवाद के युग का आरम्भ हुआ। इन भौगोलिक खोजों से यूरोपवासी अनेक उन्नत व प्राचीन सभ्यताओं के सम्पर्क में आये, जिससे यूरोप में नवीन विचारों का उदय हुआ।

6. छापेखाने का आविष्कार – छापेखाने के आविष्कार से पुस्तकों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई, जिससे सामान्य जनता के लिए शिक्षा के द्वार खुल गये। शिक्षा के प्रसार से लोगों का ज्ञान बढ़ा तथा उनकी तर्क-शक्ति का विकास हुआ। फलस्वरूप यूरोप में नवीन विचारों का उदय हुआ।

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7. आविष्कारों का प्रभाव – यूरोप में विभिन्न वैज्ञानिकों ने नये-नये आविष्कार किये। न्यूटन तथा गैलीलियो जैसे वैज्ञानिकों के आविष्कारों के फलस्वरूप विज्ञान के क्षेत्र में क्रान्ति आ गयी। विभिन्न आविष्कारों के कारण प्राचीन-निरर्थक मान्यताओं का लोप होने लगा और लोगों में नवीन वैज्ञानिक दृष्टिकोण जाग्रत हो गया।

8. भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में परिवर्तन – उन दिनों लैटिन सारे यूरोप की भाषा बनी हुई थी। इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध साहित्यकार चासर ने ‘द कैण्टरबरी टेल्स’ पुस्तक की रचना करके आधुनिक अंग्रेजी साहित्य का मार्ग प्रशस्त किया। इटली के महान् कवि दान्ते ने इटली की भाषा में प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘डिवाइन कॉमेडी’ की रचना की। इटली निवासी मैकियावली ने राज्य की नयी कल्पना प्रस्तुत की तथा जर्मन निवासी मार्टिन लूथर ने चर्च (UPBoardSolutions.com) के विरुद्ध ग्रन्थ लिखे। इन विभिन्न कवियों तथा लेखकों की कृतियों ने यूरोप में पुनर्जागरण को अत्यधिक प्रोत्साहित किया।

9. नये नगरों की स्थापना – यूरोप के विभिन्न देशों में नये नगरों की स्थापना की गयी। आर्थिक और व्यापारिक दृष्टि से ये नगर सम्पन्न थे, जिस कारण इनमें विज्ञान, शिक्षा तथा कला का विकास हुआ। फलस्वरूप इन नगरों के निवासियों में नये ज्ञान तथा नवीन चेतना का उदय हुआ।

10. कलाओं का प्रभाव – चित्रकला, मूर्तिकला, संगीतकला तथा भवन निर्माण में अभूतपूर्व परिवर्तन हुए। इस युग के प्रमुख कलाकारों में राफेल, माइकल एंजेलो तथा लियोनार्दो-दा-विन्ची के नाम उल्लेखनीय हैं। इन कलाकारों ने अपनी कृतियों द्वारा यूरोप के लोगों को अत्यधिक प्रभावित किया।

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प्रश्न 2.
पुनर्जागरण के क्या परिणाम हुए ? विस्तारपूर्वक लिखिए।
       या
पुनर्जागरण से प्राचीन प्रेरणाओं पर आधारित एक नया प्रयोग शुरू हुआ।” इस कथन की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।
       या
पुनर्जागरण काल में आर्थिक दशा और व्यापार में क्या प्रगति हुई ?
       या
यूरोप में पुनर्जागरण के फलस्वरूप समाज, धर्म और राजनीति के क्षेत्र में क्या परिवर्तन हुए
       या
पुनर्जागरण के फलस्वरूप मानव-जीवन अथवा उसके क्रियाकलापों में क्या परिवर्तन आए ?
उत्तर :
पुनर्जागरण काल का एक प्रमुख परिणाम मध्यम वर्ग का उदय और उसकी शक्ति में हुई वृद्धि थी। पुनर्जागरण के फलस्वरूप तत्कालीन यूरोप की आर्थिक दशा, व्यापार, सामाजिक जीवन, धर्म, राजनीति आदि में निम्नलिखित परिवर्तन हुए –
1. आर्थिक दशा तथा विदेशी व्यापार में परिवर्तन – पुनर्जागरण के कारण यूरोपीय नाविकों ने
नये-नये देशों तथा समुद्री मार्गों की खोज की। समुद्री मार्गों का प्रयोग करने से विदेशी व्यापार में असाधारण वृद्धि हुई। यूरोप के राष्ट्रों ने खोजे गये नये-नये देशों में अपने उपनिवेश बसाये और उन्हें अपना व्यापारिक केन्द्र बनाया।उपनिवेशवाद के (UPBoardSolutions.com) कारण साम्राज्यवाद और पूँजीवाद का जन्म हुआ तथा पूँजीवाद के कारण शोषण तथा वर्ग-संघर्ष का उदय हुआ।

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2. सामाजिक जीवन में परिवर्तन – पुनर्जागरण के कारण यूरोप के लोगों के जीवन में व्यापक स्तर पर दूरगामी परिवर्तन हुए। पुनर्जागरण ने अन्धविश्वासों का अन्त करके यूरोपवासियों को व्यावहारिक तथा उपयोगी जीवन प्रदान किया। सामन्तवादी पद्धति का अन्त हो गया। यूरोपीय समाज ने मध्यकालीन युग से निकलकर आधुनिक युग में प्रवेश किया। मानवतावाद के जन्म के कारण समाज में नये मध्यम वर्ग का उदय हुआ। शिक्षा के प्रसार से समाज में नयी चेतना और जागृति आयी और लोग रूढ़िवाद को छोड़कर यथार्थवाद तथा भौतिकवाद की ओर झुकने लगे।

3. राजनीतिक परिवर्तन – धर्म-युद्धों में हार के कारण यूरोप के निरंकुश शासकों को अपनी परम्परागत युद्ध शैली बदलनी पड़ी। इसके फलस्वरूप यूरोप में मध्यकालीन सामन्तवाद धीरे-धीरे समाप्त होने लगा और राज्यों में राष्ट्रीय भावनाएँ पनपने लगीं। राज्य केन्द्रीय शक्ति के रूप में उभरने लगे। कालान्तर में प्रजातान्त्रिक शासन-प्रणाली का जन्म हुआ।

4. धार्मिक परिवर्तन – पुनर्जागरण के कारण यूरोप के धार्मिक जीवन में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। इस्लाम धर्म के बढ़ते प्रभाव से अपने धर्म तथा समाज की रक्षा के लिए यूरोप का सारा समाज एकजुट हो गया। यूरोप ने अपने सांस्कृतिक पुनरुत्थान के द्वारा अपने धर्म और समाज की रक्षा की। कैथोलिक धर्म की बुराइयों के विरोध में प्रोटेस्टेण्ट धर्म का अभ्युदय हुआ। यूरोप के अधिकांश देशों ने प्रोटेस्टेण्ट धर्म को अपनाना प्रारम्भ कर (UPBoardSolutions.com) दिया। इरैस्मस, ज्विग्ली, मार्टिन लूथर, जॉन काल्विन जैसे समाज- सुधारकों ने धर्म को परिष्कृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।

5. भाषा और साहित्य में परिवर्तन – सन् 1465 ई० में जर्मनी में छापेखाने का आविष्कार हुआ। उसके बाद सन् 1476 में इंग्लैण्ड में छापाखाना खोला गया। इसके बाद छापेखानों में वृद्धि होती गयी, जिससे पुस्तकों की छपाई तेजी से होने लगी। इससे सामान्य जनता के लिए शिक्षा के द्वार खुल गये। पुनर्जागरण काल में लैटिन, फ्रेंच, अंग्रेजी आदि भाषाओं का पर्याप्त विकास हुआ। इटली, जर्मनी, इंग्लैण्ड, फ्रांस, हॉलैण्ड आदि देशों के कवियों तथा लेखकों ने अनेक प्रसिद्ध कृतियों की रचना की। विलियम शेक्सपियर ने मैकबेथ, हेमलेट, मर्चेण्ट ऑफ वेनिस, रोमियो-जूलियट तथा इरैस्मस ने इन द प्रेज़ ऑफ फॉली’ की रचना की।

6. राष्ट्रीयता का विकास – पुनर्जागरण के फलस्वरूप यूरोप में नये राज्यों के उत्कर्ष के साथ-साथ राष्ट्रीयता की भावना भी जाग्रत हुई। सामन्तवाद का अन्त हो जाने से जहाँ एक ओर शक्तिशाली राजसत्ता का उदय हुआ, वहीं दूसरी ओर जनता का महत्त्व भी बढ़ा।

7. कला का विकास – इटली का पुनर्जागरण प्रधानत: कला के क्षेत्र में हुआ। वहाँ चित्रकारी, शिल्प एवं स्थापत्य की बड़ी उन्नति हुई। पुनर्जागरण काल के चित्रकारों ने विषयों का चुनाव सीधे जीवन से किया। प्लास्टर और लकड़ी के पैनल के स्थान पर कैनवस का उपयोग शुरू हुआ। लियोनार्दो-दा-विन्ची, माइकल ऐन्जेलो, राफेल और टिशियान के चित्र आज तक अद्वितीय माने जाते हैं।

निष्कर्ष – स्पष्ट है कि पुनर्जागरण से प्राचीन प्रेरणाओं पर आधारित एक नया प्रयोग शुरू हुआ, जिसमें सामंजस्य एवं मौलिकता थी। मनुष्य के सामाजिक मूल्य की पुनर्प्रतिष्ठा शुरू हुई। वास्तव में पुनर्जागरण एक सन्धिकाल था जिसमें प्राचीन एवं आधुनिक काल दोनों की विशेषताएँ मौजूद थीं। भौगोलिक खोजों ने अमेरिका के रूप में नयी दुनिया का पता दिया। कैथोलिक चर्च का एकाधिकार टूटा। धार्मिक संकीर्णता की पकड़ से मानव मुक्त होने लगा। वैज्ञानिक जीवन दर्शन ने मनुष्य को निरन्तर प्रगति के पथ पर बढ़ने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार मनुष्य के दृष्टिकोण में जो बदलाव आया वह राजनीति से बाजार, (UPBoardSolutions.com) बाजार से व्यक्ति के जीवन में हर जगह दिखाई पड़ने लगा।

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प्रश्न 3.
पुनर्जागरण के महत्त्व को बताइट।
उत्तर :
यूरोप के इतिहास में पुनर्जागरण के महत्त्व को निम्नवत् स्पष्ट किया जा सकता है

1. प्राचीन साहित्य का अध्ययन – पुनर्जागरण काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना बौद्धिक क्रान्ति थी। जिसका मुख्य कारण प्राचीन साहित्य का अध्ययन था। यूरोपवासी 13वीं शताब्दी से ही रोम और यूनान की पुरानी संस्कृति को सम्मान की दृष्टि से देखने लगे थे। इन लोगों ने यूनानी भाषा का अध्ययन किया जिसके फलस्वरूप उन्हें एक नयी संस्कृति, नये विचार और जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण मिला। प्राचीन यूनानी दर्शन और साहित्य (UPBoardSolutions.com) के फलस्वरूप प्लेटो तथा अरस्तू जैसे महान् दार्शनिकों के साहित्य का अध्ययन किया जाने लगा।

2. आलोचनात्मक प्रवृत्तिका उदय – प्राचीन साहित्य के अध्ययन से यूरोपवासियों में आलोचनात्मक और अन्वेषणात्मक प्रवृत्ति उत्पन्न हुई। अब तक तो वे सत्ता की आज्ञा (राजाओं के आदेश) का पालन चुपचाप करते थे और उनके अत्याचारों को सहन करते थे लेकिन अब वह सत्ता की आज्ञाओं को तर्क की कसौटी पर परखने लगे थे। यूरोप की जनता ने आत्म-दमन के स्थान पर आत्म-गौरव और व्यक्तित्व की महत्ता को स्वीकार करना प्रारम्भ कर दिया।

3. बाइबिल का अन्य भाषाओं में अनुवाद – ईसा मसीह के विचारों को अच्छी तरह समझने के लिए बाइबिल का अन्य देशी भाषाओं में अनुवाद किया गया, जिससे बाइबिल की पहुँच आम जनता के दिलों तक पहुँच गयी। लोगों के हृदय में अपने-अपने राष्ट्र के प्रति अद्भुत प्रेम उत्पन्न होने लगा। परिणामस्वरूप अंग्रेज इंग्लैण्ड के विकास के लिए तथा फ्रांसीसी फ्रांस के विकास के लिए प्रयत्नशील होने लगे।

4. मानववाद का उदय – पुनर्जागरण काल में लोग प्राचीन साहित्य की ओर आकर्षित हुए तथा उसके आगे मध्यकालीन आत्मनिग्रह एवं वैराग्य के आदर्श फीके पड़ गये और मानववाद को प्रधानता दी जाने लगी। यूरोप के लोगों ने आत्मनिग्रह के स्थान पर (UPBoardSolutions.com) आत्म-विकास, आत्म-विश्वास, आत्म-गौरव तथा मानव-जीवन के सुखों पर जोर देना प्रारम्भ कर दिया।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि यूरोप में पुनर्जागरण काल एक नये युग की शुरुआत थी। जिसने समाज में व्याप्त समस्त बुराइयों तथा रूढ़ियों के विरुद्ध लोगों में आत्म-चेतना जाग्रत की और लोगों को सम्मानपूर्वक जीवन की एक नयी दिशा प्रप्त हुई।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यूरोप में पुनर्जागरण सर्वप्रथम कहाँ, कब और क्यों आरम्भ हुआ? [2017]
       या
पुनर्जागरण सर्वप्रथम इटली में ही क्यों प्रारम्भ हुआ? (2016)
       या
यूरोप में पुनर्जागण सर्वप्रथम किस देश में हुआ? इसकी प्रगति के लिए उत्तरदायी कारणों में से किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए। (2011, 16)
उत्तर :
यूरोप में पुनर्जागरण सर्वप्रथम इटली में आरम्भ हुआ। कुस्तुनतुनिया नगर पर तुर्को द्वारा अधिकार कर लिये जाने पर यूनान के विद्वान् धर्म तथा दर्शन की पुस्तकें लेकर इटली पहुँच गये। इटलीवासियों ने उनका हृदय से स्वागत किया। फलस्वरूप इटली में नवीन (UPBoardSolutions.com) विचारों, भावनाओं तथा मान्यताओं का उदय होने से वहाँ पुनर्जागरण प्रारम्भ हुआ। पुनर्जागरण के सर्वप्रथम इटली में ही प्रारम्भ होने के उपर्युक्त कारण के अतिरिक्त और भी कई कारण थे; जैसे –

  1. इटली के अनेक नगर वाणिज्य तथा व्यापार के केन्द्र होने के कारण समृद्ध थे।
  2. इटली के नगर सामन्ती नियन्त्रण से मुक्त थे। इन नगरों के स्वतन्त्र व्यापार से पुनर्जागरण को प्रोत्साहन मिला।
  3. इन नगरों के शासक कला-प्रेमी थे। उन्होंने कुस्तुनतुनिया से आने वाले यूनानी विद्वानों का स्वागत किया।

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प्रश्न 2.
पुनर्जागरण की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
पुनर्जागरण की विशेषताएँ – पुनर्जागरण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नानुसार थीं –

  1. पुनर्जागरण ने धार्मिक विश्वास के स्थान पर स्वतन्त्र चिन्तन को महत्त्व देकर तर्क-शक्ति का विकास किया।
  2. पुनर्जागरण ने मनुष्य को अन्धविश्वासों, रूढ़ियों तथा चर्च के बन्धनों से छुटकारा दिलाया और उसके व्यक्तित्व का स्वतन्त्र रूप से विकास किया।
  3. पुनर्जागरण ने केवल मानववादी विचारधारा का विकास किया व मानव-जीवन को सार्थक बनाने की शिक्षा दी।
  4. पुनर्जागरण ने केवल यूनानी और लैटिन भाषाओं के ग्रन्थों को (UPBoardSolutions.com) ही नहीं वरन् देशज भाषाओं के साहित्य के विकास को भी प्रोत्साहन दिया।
  5. चित्रकला के क्षेत्र में पुनर्जागरण ने यथार्थ चित्रण को प्रोत्साहन दिया।
  6. विज्ञान के क्षेत्र में पुनर्जागरण ने निरीक्षण, अन्वेषण, जाँच तथा परीक्षण को महत्त्व दिया।

प्रश्न 3.
पुनर्जागरण के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
पुनर्जागरण एक ऐसा आन्दोलन था जिसने एक नये युग का सूत्रपात किया। इससे लोगों के दृष्टिकोण में निम्नलिखित परिवर्तन आये –

  1. तार्किकता – यूनानी तथा रोमन संस्कृति के प्रभाव से ईसाई जगत् में भी वैज्ञानिक व तार्किक दृष्टिकोण तथा वैज्ञानिक खोज की चेतना का प्रादुर्भाव हुआ। लोग अन्धविश्वासों से मुक्त होने लगे।
  2. मानवतावाद – विद्वान्, दार्शनिक, कलाकार आदि सभी मानवतावाद में रुचि लेने लगे। दिव्यता की अपेक्षा मानव के सम्मान के प्रति सभी की रुचि जाग्रत हुई।
  3. शिक्षा का प्रसार – कला, विज्ञान, साहित्य सभी का एक ही लक्ष्य था—जीवन की सत्यता का ज्ञान।
  4. खोज तथा आविष्कार – महान् नाविकों की समुद्री यात्राओं तथा खोज-यात्राओं ने नये तथा अज्ञात देशों की जानकारी दी।
  5. ईसाई धर्म का विभाजन – सुधार आन्दोलनों ने ईसाई धर्म को (UPBoardSolutions.com) दो सम्प्रदायों-रोमन कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेण्ट में बाँट दिया।
  6. राष्ट्र-राज्यों का उदय – राष्ट्र-राज्यों के उदय से सामन्ती लॉड तथा पोप का राजनीति में हस्तक्षेप बन्द हो गया।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित का संक्षिप्त परिचय दीजिए (क) गैलीलियो, (ख) टॉमस मूर, (ग) रोज़र बेकन, (घ) लियोनार्दो-दा-विन्ची।
उत्तर :

(क) गैलीलियो – गैलीलियो इटली का वैज्ञानिक था। इसने दूरबीन अथवा दूरदर्शक यन्त्र बनाकर खगोलशास्त्र के अनेक तथ्यों के बारे में पता लगाया तथा डायनेमिक्स (गति विज्ञान) के अध्ययन की नींव भी डाली। गैलीलियो एक ज्योतिषी ही नहीं, वरन् एक महान् वैज्ञानिक भी था। इसने थर्मामीटर का भी आविष्कार किया।

(ख) टॉमस मूर – टॉमस मूर पुनर्जागरण काल का इंग्लैण्ड का एक प्रसिद्ध साहित्यकार था। उसने अपनी साहित्यिक रचना ‘यूटोपिया’ में समकालीन समाज का व्यंग्यात्मक चित्रण किया है।

(ग) रोजर बेकन – रोज़र बेकन (सन् 1214-95 ई०) इंग्लैण्ड के महान् वैज्ञानिक थे। इन्होंने तर्कवाद के आधार पर सत्य और धर्म की विवेचना करने पर जोर दिया। रोज़र बेकन ने भूगोल, खगोल, गणित, विज्ञान आदि के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये। इस (UPBoardSolutions.com) महान् साहित्यकार ने अनेक विषयों पर विद्वत्तापूर्ण निबन्ध लिखे। बेकन ने यूरोपवासियों में शिक्षा एवं अध्ययन के प्रति रुचि जाग्रत की।

(घ) लियोनार्दो-दा-विन्ची – यह पुनर्जागरण काल को इटली का एक महान् चित्रकार था। इसके चित्र ‘द लास्ट सपर’ तथा ‘मोनालिसा’ लोगों को आज भी आश्चर्यचकित कर देते हैं। वास्तव में लियोनादों सर्वतोमुखी प्रतिभा का स्वामी था। वह कवि, गायक, चित्रकार, मूर्तिकार, दार्शनिक, वैज्ञानिक और इन्जीनियर सभी कुछ था।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्जागरण का क्या अभिप्राय है ? [2016]
उत्तर :
पुनर्जागरण का अभिप्राय है-पुनर्जन्म या अन्धकार से निकलकर ज्ञान का पुन: प्रसार।.

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प्रश्न 2.
पुनर्जागरण काल कब आरम्भ हुआ था ?
उत्तर :
पुनर्जागरण काल लगभग 1300 ई० में आरम्भ हुआ था।

प्रश्न 3.
यूरोप में पुनर्जागरण के कोई दो प्रमुख कारण लिखिए। [2012]
उत्तर :
यूरोप में पुनर्जागरण के दो प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  • भौगोलिक खोजें तथा
  • वैज्ञानिक आविष्कार।

प्रश्न 4.
पुनर्जागरण के दो परिणाम लिखिए।
उत्तर :
पुनर्जागरण काल के दो परिणाम निम्नलिखित हैं

  • राजनीतिक परिवर्तन तथा
  • भाषा और साहित्य में परिवर्तन।

प्रश्न 5.
यूनानी विद्वान् इटली क्यों गये ?
उत्तर :
तुर्को द्वारा कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लेने के बाद यूनानी विद्वानों ने इटली में जाकर शरण ली। इटली के शासकों ने यूनानी विद्वानों, कलाकारों तथा साहित्यकारों का हृदय से स्वागत किया और उन्हें शरण तथा संरक्षण प्रदान किया। (UPBoardSolutions.com)

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प्रश्न 6.
छापाखाने (प्रिण्टिग प्रेस) का आविष्कार किसने किया ?
उत्तर :
छापाखाने (प्रिण्टिग प्रेस) का आविष्कार जर्मनी के एक प्रसिद्ध आविष्कारक गुटेनबर्ग ने सन् 1465 ई० में किया।

प्रश्न 7.
छापाखाने के आविष्कार से पड़ने वाले दो प्रभावों को लिखिए।
उत्तर :
छापाखाने के आविष्कार से निम्नलिखित दो प्रभाव पड़े

  • छापाखाने के आविष्कार से पुस्तकों की संख्या में वृद्धि हुई।
  • कम कीमत में आसानी से पुस्तकें उपलब्ध होने लगीं।

प्रश्न 8.
गैलीलियो और न्यूटन किस देश के निवासी थे? विज्ञान के क्षेत्र में उनका क्या योगदान था? (2012)
उत्तर :
गैलीलियो इटली का निवासी था और उसने दूरबीन का (UPBoardSolutions.com) आविष्कार किया था। न्यूटन जर्मनी का निवासी था और उसने ‘गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त’ की खोज की थी।

प्रश्न 9.
माइकल एंजेलो कौन था? उसकी एक कृति का नाम लिखिए। [2011]
उत्तर :
माइकल एंजेलो एक चित्रकार था। उसकी प्रसिद्ध कृति ‘द फाल ऑफ मैन’ है।

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प्रश्न 10.
दान्ते कौन था ? [2011,14]
उत्तर :
दान्ते इटली के एक महान् कवि थे। इन्होंने इटली की भाषा में प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘डिवाइन कॉमेडी की रचना की।

प्रश्न 11.
‘द प्रिन्स’ किसकी कृति है ? [2012]
उत्तर :
‘द प्रिन्स’ फ्लोरेन्स के एक प्रसिद्ध इतिहासकार और महान् दार्शनिक ‘मैकियावली’ की कृति

प्रश्न 12.
पुनर्जागरण काल के पश्चिमी यूरोप के दो वैज्ञानिकों के नाम लिखिए। [2014]
उत्तर :

  • गैलीलियो – इटली
  • न्यूटन – जर्मनी

प्रश्न 13.
‘कुस्तुनतुनिया पर तुर्की का अधिकार हो जाने से यूरोपीय देशों को किस प्रकार की कठिनाई का सामना करना पड़ा? भारत में यूरोपीय राष्ट्रों ने किस मार्ग से प्रवेश किया? [2015]
उत्तर :
कुस्तुनतुनिया पर तुर्को का अधिकार हो जाने से (UPBoardSolutions.com) इन्होंने ईसाइयों पर अत्याचार करना प्रारम्भ कर दिया। भारत में यूरोपीय राष्ट्रों ने समुद्री मार्ग से प्रवेश किया।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. तुर्को ने कुस्तुनतुनिया पर कब आक्रमण किया?

(क) 1453 ई० में
(ख) 1435 ई० में
(ग) 1485 ई० में
(घ) 1688 ई० में

2. यूरोप में पुनर्जागरण सर्वप्रथम किस देश में हुआ?

(क) इटली में
(ख) फ्रांस में
(ग) ब्रिटेन में
(घ) स्पेन में

3. पुनर्जागरण का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा

(क) स्थापत्य कला पर
(ख) नृत्य कला पर
(ग) चित्रकला पर
(घ) संगीत कला पर

4. राफेल कौन था? (2011, 13, 18)

(क) चित्रकार
(ख) वैज्ञानिक
(ग) लेखक
(घ) कवि

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5. मोनालिसा का चित्रकार था (2018)

(क) माइकल एंजेलो
(ख) राफेल
(ग) जाफरे चासर
(घ) लियोनार्दो-दा-विन्ची

6. गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त की व्याख्या की
या
‘गुरुत्वाकर्षण’ के सिद्धान्त का प्रतिपादक कौन था ? (2013)

(क) गैलीलियो ने
(ख) कॉपरनिकस ने
(ग) न्यूटन ने
(घ) रॉबर्ट बॉयल ने

7. पुनर्जागरण के प्रवर्तक के रूप में कौन जाने जाते हैं? (2012)

(क) पेट्रार्क
(ख) दान्ते
(ग) इरास्मस
(घ) टॉमस मूर

8. शेक्सपियर किस देश का नागरिक था ? (2012)

(क) इंग्लैण्ड
(ख) अमेरिका
(ग) फ्रांस
(घ) आयरलैण्ड

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9. टॉमस मूर ने कौन-सी पुस्तक लिखी ? (2011, 12, 13)
या
टॉमस मूर रचयिता था (2015)

(क) यूटोपिया
(ख) मोनालिसा
(ग) हेमलेट
(घ) द प्रिन्स

10. जूलियस सीजर के रचनाकार थे (2012)

(क) दान्ते
(ख) शेक्सपियर
(ग) टॉमस मूर
(घ) मैकियावेली

11. “पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है।” यह कथन था (2011)

(क) पेट्रार्क का
(ख) न्यूटन की
(ग) गैलीलियो का
(घ) कॉपरनिकस का

12. दूरबीन ( टेलीस्कोप) को आविष्कार किसने किया? (2011, 12, 14, 16, 18)

(क) गैलीलियो ने
(ख) आर्किमिडीज ने।
(ग) न्यूटन ने
(घ) विलियम हार्वे ने

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13. मैकियावेली द्वारा लिखित पुस्तक का नाम क्या था ?(2012, 13, 14, 16)

(क) डिवाइन कॉमेडी
(ख) यूटोपिया
(ग) द प्रिन्स
(घ) डेकामेरॉन

14. माइकल एंजेलो था एक – (2014)

(क) चित्रकार
(ख) मूर्तिकार
(ग) दार्शनिक
(घ) कवि

15. यूटोपिया के रचनाकार थे (2014)

(क) कार्ल मार्क्स
(ख) मैकियावेली
(ग) टॉमस मूर शेक्सपियर

16. लियोनार्दो-दा-विन्ची था एक (2014)

(क) चित्रकार
(ख) मूर्तिकार
(ग) लेखक
(घ) दार्शनिक

17. किस देश में पुनर्जागरण सर्वप्रथम प्रारम्भ हुआ? (2015)

(क) जर्मनी
(ख) इंग्लैण्ड
(घ) फ्रांस

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18. लेवियाथन’ के लेखक का नाम है (2017)

(क) प्लेटो
(ख) हॉब्स
(ग) लॉक
(घ) मॉण्टेस्क्यू

19. टॉमस मूर था एक महान (2017)

(क) वैज्ञानिक
(ख) मूर्तिकार
(ग) चित्रकार
(घ) लेखक

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 1 (Section 1) 1a

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 (Section 3)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 खनिज संसाधन (अनुभाग – तीन)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 खनिज संसाधन (अनुभाग – तीन).

विरतृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में लौह-अयस्क के वितरण का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
या
भारत में लौह-अयस्क के खनन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
या
भारत में लौह-अयस्क का वितरण निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दीजिए
(1) भण्डार,
(2) उत्पादक-क्षेत्र,
(3) उत्पादन तथा
(4) व्यापार
या
धात्विक खनिज से आप क्या समझते हैं ? किसी एक की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
या
लौह-अयस्क के उत्पादन के किन्हीं दो क्षेत्रों की विवेचना कीजिए।
उत्तर :
धात्विक खनिज जिन खनिजों से धातु (Metal) (UPBoardSolutions.com) की प्राप्ति होती है, उन्हें धात्विक खनिज कहा जाता है। लोहा, ताँबा, सोना, चाँदी, बॉक्साइट, सीसा, टिन, मैंगनीज, क्रोमियम, प्लैटिनम, बेरिलियम, जिरकॉन, एण्टिमनी, पारा, रेडियम आदि धात्विक खनिज हैं।

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लौह-अयस्क के भण्डार

भारत में लौह-अयस्क के बहुत बड़े भण्डार (विश्व का 16.5%) विद्यमान हैं। यहाँ हैमेटाइट और मैग्नेटाइट किस्म का लौह-अयस्क अधिक मात्रा में पाया जाता है, जिसमें लोहांश 60 से 70% तक होता है। इसी कारण अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में हमारे लौह-अयस्क की अत्यधिक माँग रहती है। एक अनुमान के अनुसार देश में 17.57 अरब टन लौह-अयस्क के सुरक्षित भण्डार विद्यमान हैं; परन्तु भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग ने 23 अरब टन लौह-अयस्क के सुरक्षित भण्डारों का अनुमान लगाया है, जिसमें 85% लौह-अयस्क हैमेटाइट किस्म का है।

भारत में लौह-अयस्क के 50% भण्डार झारखण्ड राज्य के सिंहभूम जिले (UPBoardSolutions.com) तथा ओडिशा राज्य के क्योंझर, बोनाई, सुन्दरगढ़ और मयूरभंज जिलों में पाये जाते हैं। लौह-अयस्क का यह क्षेत्र विश्व का सबसे बड़ा तथा सम्पन्न क्षेत्र है। झारखण्ड के हजारीबाग और शाहाबाद जिलों में भी लौह-अयस्क निकाला जाता है।

उत्पादक-क्षेत्र

भारत में राज्यानुसार लौह-अयस्क का उत्पादन निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जाता है
1. गोआ- वर्तमान समय में गोआ राज्य भारत का 32% लौह-अयस्क उत्पन्न क़र प्रथम स्थान बनाये, हुए है। यहाँ लोहे की खुली खाने हैं। पिरना-अदोल, पाले-ओनेडा तथा कुडनेम-सुरला लौह-अयस्क की प्रमुख खाने हैं। यहाँ की धातु उत्तम किस्म की नहीं है। यहाँ से लोहा जापान, कोरिया, ताईवान तथा पश्चिमी यूरोप को निर्यात कर दिया जाता है।

2. छत्तीसगढ़- 
छत्तीसगढ़ 25% लौह-अयस्क का उत्पादन कर देश में दूसरा स्थान बनाये हुए है। यहाँ | धल्ली-राजहरा (दुर्ग) तथा बैलाडिला (बस्तर) की खाने प्रसिद्ध हैं। रायगढ़, बिलासपुर, माण्डला, बालाघाट, जबलपुर एवं सरगुजा जिलों में भी लौह-अयस्क के भण्डार पाये जाते हैं। बेलाडिला की लौह खदानों का विकास जापान सरकार के सहयोग से किया गया है।

3. मध्य प्रदेश- 
मध्य प्रदेश का लौह-अयस्क क्षेत्र छत्तीसगढ़ (नव-निर्मित राज्य) में चले जाने के बाद अब यहाँ लोहे के सीमित भण्डार ही रह गये हैं, जो कि माण्डला, बालाघाट एवं जबलपुर के आस-पास हैं।।

4. ओडिशा- 
भारत के लौह-अयस्क उत्पादन में इस राज्य का तीसरा स्थान है, यहाँ देश के लगभग 30% लोहे के भण्डार सुरक्षित हैं। क्योंझर, बोनाई, सुन्दरगढ़, गुरुमहिसानी, सुलेपात तथा बादाम पहाड़ लौह-अयस्क की प्रमुख खाने हैं। मयूरभंज में (UPBoardSolutions.com) भारत की सबसे बड़ी लोहे की खान है। क्योंझर में नोआमुण्डी से भी लोहा निकाला जाता है। यह एशिया महाद्वीप की सबसे बड़ी लोहे की खान मानी जाती है।

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5. झारखण्ड- 
झारखण्ड 16% लौह-अयस्क का उत्पादन कर देश में चौथा स्थान बनाये हुए है। झारखण्ड के लौह-अयस्क की खानें ओडिशा की लौह पेटी से जुड़ी हुई हैं। यहाँ लोहे की प्रमुख खाने गुआ, बड़ाबुरू, पंसीराबुरू, मनोहरपुर आदि में हैं। सिंहभूम की लौह पेटी पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहाँ से झारखण्ड राज्य का 72% लोहा निकाला जाता है।

6. कर्नाटक- 
यहाँ भारत का 9% लौह-अयस्क निकाला जाता है, जो मैग्नेटाइट किस्म का है। हॉस्पेट, | बाबाबूदन की पहाड़ियाँ, केमनगुण्डी, शिमोगा, तुमकुर, धारवाड़, चिकमगलूर आदि स्थानों में लोहे की प्रमुख खाने हैं।

7. महाराष्ट्र-
 महाराष्ट्र के चन्द्रपुर जिले में उत्तम श्रेणी के लोहे के पर्याप्त भण्डार हैं, जिसमें धातु का अंश 61 से 67% तक है। इस क्षेत्र में लोहे के प्रमुख उत्पादन लोहारा, रत्नागिरी और पीपल गाँव हैं। यहाँ 30 | करोड़ टन के संचित भण्डार होने का अनुमान है।

8. आन्ध्र प्रदेश– 
यहाँ लोहे का उत्पादन कृष्णा, कर्नूल, कुडप्पा, चित्तूर, गुण्टूर तथा वारंगल जिलों में किया जाता है। ये खदानें गुण्टूर जिले में ओलोर ग्रुप और नेलोर जिले में कईंकर तालुका में स्थित हैं। अनुमान है कि यहाँ 15 करोड़ टन के लौह-भण्डार संचित हैं।

9. तमिलनाडु– 
इस राज्य में मैग्नेटाइट किस्म की लौह-अयस्क पायी जाती है। गोलामलाई, थालमलाई, सिंगापट्टी, थिरथामलाई, पंचमलाई, कोलेमलाई एवं कंजमलाई में लोहे के जमाव पाये जाते हैं।

10. अन्य राज्य– 
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में दामूदा एवं महादेव श्रेणियों की बालुका- पत्थर शैलों से हैमेटाइट किस्म का लोहा निकाला जाता है। जम्मू-कश्मीर राज्य में जम्मू एवं ऊधमपुर जिलों में लोहे के भण्डार हैं। उत्तराखण्ड में गढ़वाल, अल्मोड़ा तथा नैनीताल में, हिमाचल प्रदेश में काँगड़ा एवं मण्डी जिलों में, गुजरात में नवानगर, पोरबन्दर, जूनागढ़, भावनगर, बड़ोदरा एवं खाण्डेश्वर तथा हरियाणा राज्य के महेन्द्रगढ़ जिले में भण्डार अनुमानित किये (UPBoardSolutions.com) गये हैं।

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उत्पादन एवं उपयोग

भारत में लौह-अयस्क का उपयोग एवं लोहे का उत्पादन इस्पात मिलों में किया जाता है। मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ राज्यों को लौह-अयस्क भिलाई व विशाखापत्तनम् संयन्त्रों, ओडिशा के क्योंझर व बोनाई क्षेत्रों तथा झारखण्ड के सिंहभूम जिले का लौह-अयस्क टाटा आयरन ऐण्ड स्टील कम्पनी; जमशेदपुर; बोकारो; कुल्टी; हीरापुर-बर्नपुर; आसनसोल; दुर्गापुर तथा राउरकेला इस्पात संयन्त्रों, कर्नाटक राज्य के लौहअयस्क का भद्रावती व सेलम कारखानों में उपयोग कर उत्पादन किया जाता है।

व्यापार

लोहे के विश्व-व्यापार में भारत का भाग लगभग 5% है। कुल निर्यात होने वाले खनिज में 60% भाग लोहे से। ही प्राप्त होता है। जापान भारतीय लोहे का सबसे बड़ा ग्राहक है, जो लोहे के निर्यात का 70% से भी अधिक भाग आयात करता है। रूमानिया, चेकोस्लोवाकिया, पोलैण्ड, इटली, यूगोस्लाविया, जर्मनी, चीन, पाकिस्तान, कोरिया, ईरान एवं इराक आदि देश भारतीय लोहे के अन्य प्रमुख ग्राहक हैं।

प्रश्न 2.
भारत में मैंगनीज की उपयोगिता और वितरण की विवेचना कीजिए।
या
भारत में मैंगनीज के तीन प्रमुख उत्पादक राज्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :

उपयोग/उपयोगिता

मैंगनीज धातु काले रंग की प्राकृतिक भस्मों के रूप में धारवाड़ युग की शैलों में मिलती है। इन शैलों में देश का 90% मैंगनीज पाया जाता है। यह खनिज ठोस, कोमल एवं रवेहीन और बहुत ही उपयोगी होता है। इसके 95% भाग का उपयोग धातुओं में मिलाकर उन्हें कठोर एवं टिकाऊ बनाने में किया जाता है, जिसका सबसे अधिक उपयोग इस्पात बनाने में किया जाता है। मैंगनीज तथा ताँबे के मिश्रण से टरबाइन–ब्लेड्स; मैंगनीज एवं काँसे के मिश्रण से जलयानों के प्रोपेलर; मैंगनीज एवं ऐलुमिनियम के मिश्रण से विद्युत-तारों को

प्रतिरोधक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इस मिश्र धातु का उपयोग काँच का रंग उड़ाने, रोगन एवं वार्निश को सुखाने, बिजली की बैटरियों, ऑक्सीजन, क्लोरीन आदि गैसों, ब्लीचिंग पाउडर बनाने, मोटरगाड़ियों, टैंक, वायुयान, रेल के डिब्बे, प्लास्टिक बनाने एवं रासायनिक उद्योगों में प्रमुख रूप से किया जाता है। उत्पादन एवं वितरण भारत में मैंगनीज का वितरण अथवा मैंगनीज के प्रमुख उत्पादक राज्य निम्नलिखित हैं

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1. ओडिशा- 
मैंगनीज के उत्पादन में ओडिशा राज्य का भारत में प्रथम स्थान है। यहाँ से देश का 30% मैंगनीज निकाला जाता है। यहाँ पर मैंगनीज के 40% सुरक्षित भण्डार हैं। यहाँ गंगपुर, बोनाय, क्योंझर, कोरापुट, कालाहाण्डी, बोलनगिरि, सुन्दरगढ़ एवं तालचिर की खाने प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।

2. मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़-
मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ राज्यों का भण्डारों की दृष्टि से प्रथम, परन्तु उत्पादन की दृष्टि से दूसरा स्थान है। मध्य प्रदेश के बालाघाट, सिवनी, छिन्दवाड़ा, माण्डला, जबलपुर, धार, झाबुआ एवं इन्दौर प्रमुख उत्पादक जिले हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर व बिलासपुर जिलों से भी मैंगनीज निकाला जाता है। इन दोनों राज्यों से देश के लगभग 40% मैंगनीज का उत्पादन किया जाता है।

3. महाराष्ट्र- 
इस राज्य का देश के मैंगनीज उत्पादन में तीसरा स्थान है। यह देश का 18% मैंगनीज उत्पन्न करता है। मैंगनीज नागपुर, भण्डारा एवं रत्नागिरि जिलों में मिलता है।

4. कर्नाटक- 
इस राज्य का देश के मैंगनीज उत्पादन में चौथा स्थान है, जहाँ देश का लगभग 17% मैंगनीज निकाला जाता है। चित्रदुर्ग, कादूर, चिकमंगलूर, शिमोगा, तुमकुर, बेल्लारी एवं बेलगाम जिले प्रमुख मैंगनीज उत्पादक क्षेत्र हैं।

5. राजस्थान- 
इस राज्य में मध्यम श्रेणी का मैंगनीज उदयपुर, बाँसवाड़ा, सिरोही एवं डूंगरपुर जिलों से निकाला जाता है।

6. गुजरात- 
इस राज्य में मैंगनीज की संचित राशि का अनुमान 25 लाख टन लगाया गया है। इसके बड़ोदरा एवं पंचमहल जिले प्रमुख मैंगनीज उत्पादक क्षेत्र हैं।

7. आन्ध्र प्रदेश- 
यहाँ से देश के मैंगनीज उत्पादन का लगभग 8% भाग प्राप्त किया जाता है। विशाखापत्तनम, कुडप्पा, श्रीकाकुलम, गुण्टूर, विजयनगर मैंगनीज के प्रमुख उत्पादक जिले हैं।

8. अन्य राज्य- 
मैंगनीज के अन्य उत्पादक राज्यों में गोआ, बिहार और (UPBoardSolutions.com) झारखण्ड प्रमुख हैं। गोआ से 5% उत्पादन परनेग तथा बारदेर क्षेत्रों से प्राप्त होता है। झारखण्ड राज्य में सिंहभूम जिला मैंगनीज का प्रमुख उत्पादक है।

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प्रश्न 3.
भारत में बॉक्साइट के उपयोग, भण्डार, उत्पादन एवं वितरण पर प्रकाश डालिए।
या
बॉक्साइट से कौन-सी धातु प्राप्त होती है ? इसके औद्योगिक महत्त्व को बताते हुए इसके भारत में वितरण पर प्रकाश डालिए।
या
भारत में बॉक्साइट उत्पादन का वर्णन कीजिए। इसकी उपयोगिता पर भी प्रकाश डालिए। [2017]
उत्तर :

उपयोग/महत्त्व

बॉक्साइट एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक एवं उपयोगी धातु है, जिससे ऐलुमिनियम बनाया जाता है। यह एक हल्की व लचीली धातु है जिसे किसी भी रूप में ढाला जा सकता है। इसका रंग मिट्टी के समान लाल या पीला होता है। उत्तम किस्म की बॉक्साइट में 50 से 60% तक ऐलुमिनियम ऑक्साइड होती है। ऐलुमिनियम से अनेक प्रकार के विद्युत उपकरण, बर्तन, चादरें आदि बनायी जाती हैं। यहाँ तक कि इससे बारीक तार भी बनाये जा सकते हैं। (UPBoardSolutions.com) ऐलुमिनियम की 60% खपत बिजली उद्योग में की जाती है। इससे बिजली के केबिल, तार, वायुयान के इंजन और रेलवे कोचों की बॉडी बनायी जाती है। इसकी विशिष्ट मिश्रधातु से बर्तन बनाये जाते हैं। इस धातु से सस्ते बर्तन तथा हलके डिब्बे भी बनाये जाते हैं। बॉक्साइट के मैल से सीमेण्ट बनाया जाता है। इसका औद्योगिक महत्त्व होने के कारण भारत में इसके उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि हुई है।

भण्डार

बॉक्साइट के भण्डारों के दृष्टिकोण से भारत विश्व में दसवाँ स्थान रखता है। देश में बॉक्साइट के भण्डार 303.70 करोड़ टन अनुमानित किये गये हैं। इसमें 7 करोड़ टन के भण्डार उत्तम प्रकार के हैं। संचित राशि का एक-तिहाई भाग केवल मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों में सुरक्षित है।

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उत्पादन एवं वितरण

बॉक्साइट के उत्पादन में भारत का स्थान विश्व में दसवाँ है। इसके प्रमुख उत्पादक राज्य बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोआ, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश एवं जम्मू-कश्मीर हैं।

1. बिहार और झारखण्ड- 
इन राज्यों का बॉक्साइट उत्पादन में प्रथम स्थान है, यहाँ से देश का 36% उत्पादन प्राप्त होता है तथा यहाँ 15% संचित राशि विद्यमान है। यहाँ ग्रेनाइट एवं नीस चट्टानों के रूपान्तरण से बॉक्साइट की प्राप्ति होती है। राँची, पलामू, मुंगेर एवं शाहाबाद जिले प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। यहाँ 4.5 करोड़ टन उत्तम धातु के भण्डार अनुमानित किये गये हैं। राँची जिले में लोहरडगा के समीप बॉक्साइट की 80 खाने हैं।

2. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़- 
ये राज्य बॉक्साइट के भण्डारों की दृष्टि से प्रथम स्थान रखते हैं। यहाँ देश के 20 से 30 करोड़ टन भण्डार अनुमानित किये गये हैं, जब कि उत्पादन में इनका दूसरा स्थान है। यहाँ से 26% उत्पादन प्राप्त होता है। यहाँ बॉक्साइट उत्पादन के तीन क्षेत्र प्रमुख हैं

  • कटनी-निमाड़-जबलपुर क्षेत्र,
  • अमरकण्टक-बालाघाट क्षेत्र एवं
  • रायगढ़-बस्तर-दुर्ग क्षेत्र।

3. महाराष्ट्र– बॉक्साइट उत्पादन की दृष्टि से महाराष्ट्र राज्य का तीसरा स्थान है। कोल्हापुर, थाना, कोलाबा, रत्नागिरि, पुणे, सतारा जिले मुख्य उत्पादक हैं। यहाँ बॉक्साइट के एक करोड़ टन के भण्डार अनुमानित किये गये हैं। भारत का 20% बॉक्साइट (UPBoardSolutions.com) महाराष्ट्र राज्य के द्वारा उत्पन्न किया जाता है।

4. गुजरात- 
इस राज्य में बॉक्साइट की खाने सौराष्ट्र क्षेत्र के हाल्हार एवं धाँगरवाड़ी तालुका में स्थित हैं। यहाँ पर इसके 80 लाख टन से 1 करोड़ टन के भण्डार अनुमानित किये गये हैं। भावनगर, नवानगर, पोरबन्दर, जाफराबाद, बेतवा, महुआ एवं भाटिया के समीप उत्तम किस्म की बॉक्साइट धातु मिलती है। खेड़ा जिले में कपाडवंज तथा कच्छ जिले में मांडवी, लाखपत, भुज, अंजर व नखतराना तालुके से भी बॉक्साइट प्राप्त होता है।

5. तमिलनाडु- 
यहाँ सलेम जिले की शिवराय पहाड़ियों में बॉक्साइट की खानें पायी जाती हैं। यहाँ पर 60 से 70 लाख टन बॉक्साइट के भण्डार अनुमानित किये गये हैं। मैटूर में स्थित चेन्नई कम्पनी बॉक्साइट को परिष्कृत करने का कार्य करती है।

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6. कर्नाटक- 
कर्नाटक राज्य में बाबाबूदन की पहाड़ियों में बॉक्साइट की छोटी-छोटी खानें स्थित हैं। बेलगाम क्षेत्र से भी बॉक्साइट प्राप्त होता है। यहाँ 7 लाख टन बॉक्साइट के भण्डार सुरक्षित हैं।

7. अन्य राज्य- 
गोआ राज्य में क्वेपेम एवं कानकोआ तालुके से बॉक्साइट प्राप्त होता है। उत्तर प्रदेश राज्य के बाँदा जिले में 40 से 60% तक की शुद्धता वाला बॉक्साइट मिलता है। इलाहाबाद जिले में भी कुछ भण्डारों का पता चला है। जम्मू-कश्मीर राज्य में पूँछ एवं रियासी क्षेत्रों की खानों में लगभग 22 लाख टन बॉक्साइट के अनुमानित भण्डार प्राप्त किये गये हैं। ओडिशा राज्य के कालाहाण्डी, बोलनगिरि एवं सम्बलपुर जिलों से भी बॉक्साइट प्राप्त होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अभ्रक का क्या महत्त्व है ? भारत में इसके क्षेत्र लिखिए। [2017]
या
भारत में अभ्रक के उत्पादन-क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
या
अभ्रक की उपयोगिता बताइट।
उत्तर :
उपयोग/महत्त्व- 
अभ्रक एक महत्त्वपूर्ण बहु-उपयोगी खनिज है। यह ताप एवं विद्युत का कुचालक होता है; अत: इसका उपयोग विद्युत उपकरण, रेडियो, वायुयान, औषधि निर्माण, अग्निरोधक कपड़ों, पंखों, टेलीफोन, खिलौनों, शीशे की चिमनियों, नेत्ररक्षक चश्मे आदि बनाने में किया जाता है। यह पारदर्शक एवं चमकीला होता है। अतः इससे वार्निश एवं पेण्ट भी बनाये जाते हैं। अभ्रक का उपयोग बेतार का तार तथा सैन्य उपकरण बनाने में भी किया जाता है। अभ्रक औद्योगिक एवं विद्युत सुरक्षा की दृष्टि से एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण खनिज है।

अभ्रक उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। यहाँ विश्व का 90% अभ्रक उत्पन्न किया जाता है। यह अभ्रक उत्तम श्रेणी का होता है। इसके निर्यात से भारत करोड़ों रुपयों की विदेशी मुद्रा अर्जित करता है।

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उत्पादक-क्षेत्र- अभ्रक उत्पादन में बिहार तथा झारखण्ड राज्य अग्रणी हैं। यहाँ देश का 60% अभ्रक निकाला जाता है। यहाँ अभ्रक उत्पादक पेटी 95 से 160 किमी लम्बी तथा 19 से 26 किमी चौड़ी है। इस पेटी का थि:तार चम्पारन से उत्तर-पूर्व की ओर गया तथा हजारीबाग जिलों तक 3,880 वर्ग किमी क्षेत्रफल पर है। अभ्रक का 30% उत्पादन कर आन्ध्र प्रदेश राज्य दूसरे स्थान पर है। यहाँ अभ्रक उत्पादन क्षेत्र अर्द्ध-चन्द्राकार पेटी में नेल्लोर जिले से गुण्टूर जिले तक 1,550 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले हुए हैं। राजस्थान (जयपुर, उदयपुर, भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक, अलवर एवं डूंगरपुर जिले) अभ्रक के प्रमुख उत्पादक जिले हैं। (UPBoardSolutions.com) यह राज्य अभ्रक के उत्पादन का केवल 10% भाग ही पूरा करता है। तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, ओडिशा, केरल, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल अभ्रक के अन्य उत्पादक राज्य हैं। इन राज्यों से बहुत थोड़ा अभ्रक, जिसकी किस्म भी अच्छी नहीं होती, निकाला जाता है।

प्रश्न 2.
भारत में सोने के उपयोग, उत्पादन एवं वितरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
उपयोग– 
सोना एक बहुमूल्य खनिज है, जिसका भारत में भण्डार बहुत कम है। भारत विश्व में सोने की सर्वाधिक खपत वाला देश है। इसका प्रयोग आभूषण, मूर्तियाँ आदि बनाने में होता है। प्राचीन काल में इसके सिक्के भी बनाये जाते थे। वर्तमान समय में संसार की विभिन्न देशों की मुद्राओं का पारस्परिक विनिमय मूल्य सोने की मात्रा के स्टॉक के द्वारा ही निर्धारित किया जाता है।

भण्डार, उत्पादन एवं वितरण- भारत में सोने के भण्डार बहुत ही कम मात्रा में पाये जाते हैं। संसार के कुल सोना उत्पादन का मात्र 1.5% ही भारत में निकाला जाता है। कर्नाटक राज्य में कोलार सोने की खान प्रमुख स्थान बनाये हुए है जो कि विश्व की सबसे गहरी स्वर्ण खान है। कोलार तथा हट्टी की खानों से भारत के कुल स्वर्ण उत्पादन का लगभग 98% भाग निकाला जाता है। कर्नाटक में चैम्पियन तथा नन्दी दुर्ग में नयी खानों का भी पता लगा है। 1956 ई० में भारत सरकार ने इन खानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। भारत के राज्य सिक्किम में भी सोने की खानों का पता चला है। अनुमान है कि गंगटोक से 20 किमी दूर डिक्बू स्थान में लगभग 20 लाख टन सोने-चॉदी के भण्डार हैं। इसके अतिरिक्त आन्ध्र प्रदेश में रामगिरि, अनन्तपुर तथा तमिलनाडु में सलेम जिलों की खानों से भी कुछ सोना निकाला जाता है। भारत में बिहार की गंडक, झारखण्ड की स्वर्ण रेखा तथा उत्तर प्रदेश की रामगंगा नदी के रेत से भी सोना निकाला जाता है। भारत में अनुमानतः 103.17 टन शुद्ध सोने के भण्डार हैं। देश में सोने का उत्पादन लगातार घटता ही जा रहा है। सन् 1951 ई० में कुल 7,000 किग्रा सोने का उत्पादन किया गया था, जो वर्ष 1998-99 ई० में 2,463 किलोग्राम और वर्ष 2009-10 ई० में 269.19 किग्रा रह गया।

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प्रश्न 3.
खनिज की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
जो पदार्थ पृथ्वी के धरातल से खोदकर निकाले जाते हैं उन्हें ‘खनिज’ कहते हैं। प्राकृतिक संसाधनों में खनिज पदार्थों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। खनिज की अपनी विशेष रचना व भौतिक गुण होते हैं। देश के आर्थिक विकास और औद्योगिक विकास में खनिज की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। कुछ खनिज संसाधन पृथ्वी के ऊपरी भाग व कुछ सागर की तली से निकाले जाते हैं। सभ्यता की शुरुआत से ही मानव विभिन्न खनिजों का इस्तेमाल करता करता चला आ रहा है। पहले मनुष्य ने ताँबे और काँसे का प्रयोग करना सीखा जिसे कांस्य युग या ताम्र युग के नाम से जाना जाता है। बाद में लौह-अयस्क की खोज की गयी जिससे मजबूत और टिकाऊ सामान बनने लगे। वर्तमान समय में लोहे का सबसे अधिक प्रयोग होता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इसका प्रयोग होता है इसलिए वर्तमान युग को लौहयुग की संज्ञा दी गयी है।

प्रश्न 4.
खनिजों का संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर :
लोहा, ताँबा, ऐलुमिनियम, टिन आदि पदार्थ आर्थिक उपयोग की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण धातुएँ हैं। लोहा तो आधुनिक युग में सोने से भी अधिक उपयोगी है। यह आधुनिक सभ्यता का आधार है। इन | खनिज संसाधनों की बढ़ती मॉग एवं अनियन्त्रित खनन के कारण निकट भविष्य में इनके भण्डार समाप्त हो सकते हैं। अत: इनके संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाये जाने चाहिए–

  • लोहा, ताँबा, ऐलुमिनियम आदि चक्रीय संसाधन हैं, अर्थात् इन्हें एक बार प्रयोग करने के बाद गलाकर पुन: प्रयोग किया जा सकता है। अतः धातु से बनी पुरानी मशीनों के टुकड़ों को फिर से प्रयोग में लाया जाना आवश्यक है। रद्दी लोहे को सस्ता या बेकार (UPBoardSolutions.com) समझकर कम कीमत पर विदेशों को निर्यात किया जाना उचित नहीं है। इस्पात-निर्माण की तकनीक में विकास करके इससे पुन: धातु प्राप्त की जानी चाहिए। उच्च तकनीक के कारण ही जापान भारत से रद्दी (Scrap) लोहा खरीदकर उससे अच्छी किस्म का इस्पात बनाता है।
  • खनिजों की खनन तकनीकों में भी पर्याप्त सुधार की आवश्यकता है, जिससे धातुओं की बर्बादी कम हो।
  • जो धातुएँ भारत में कम उपलब्ध हैं उनके स्थान पर उन धातुओं का प्रयोग बढ़ाया जाना चाहिए जो अधिक मात्रा में उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए–बिजली में ताँबे के तारों के स्थान पर ऐलुमिनियम के तारों का प्रयोग किया जा सकता है।
  • लोहे का सबसे बड़ा शत्रु जंग है। पेण्ट, ग्रीस, तेल लगाकर या अन्य किसी वैज्ञानिक विधि से यदि लोहे | की रक्षा कर ली जाए तो लौह-भण्डारों का अधिक समय तक संरक्षण हो सकता है।
  • अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी भारत को खनिजों को विनाश से बचाना होगा तथा इनका निर्यात खनिज रूप में न करके संशोधित रूप में किया जाना उचित होगा।

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प्रश्न 5.
खनिज संसाधनों की दृष्टि से भारत की विश्व में क्या स्थिति है?
उत्तर :
भारत कुछ खनिज संसाधनों में बहुत सम्पन्न है। खनिज पदार्थ ऐसे संसाधन होते हैं जो भूमि के । गर्भ से गहराई से प्राप्त किए जाते हैं। इनमें से कुछ खनिज संसाधन सागरों के अध:तले में भी दबे पड़े हैं। आधुनिक वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी युग में इन खनिज संसाधनों का महत्त्वपूर्ण स्थान है तथा औद्योगिक विकास की धुरी (Pivot) कहलाते हैं। देश में अपने ही बल पर एक बड़ी शक्ति बनने की अपार क्षमताएँ विद्यमान हैं। यहाँ कुछ खनिज देश की आवश्यकता से अधिक पाए जाते हैं, जिनका विदेशों को निर्यात भी किया जाता है। दूसरी ओर कुछ खनिज ऐसे भी हैं जिनका आयात करना पड़ता है। खनिज सम्पदी तथा उनके वितरण की विशेषताओं को निम्नलिखित रूपों में प्रस्तुत किया जा सकता है

  • भारत आधारभूत खनिज सम्पदा अर्थात् लौह-अयस्क की पर्याप्त मात्रा सँजोए हुए है। एक अनुमान के अनुसार देश में विश्व के लौह-अयस्क के एक-चौथाई भण्डार विद्यमान हैं जो उत्तम श्रेणी के हैं। अर्थात् उनमें लोहांश की मात्रा 60% से 75% तक पाई जाती है।
  • देश में पर्याप्त मात्रा में मैंगनीज, अभ्रक (विश्व का 90%), ताँबा, बॉक्साइट आदि खनिज उपलब्ध हैं। जो देश को सुदृढ़ औद्योगिक आधार प्रदान करने में सक्षम हैं।

प्रश्न 6.
ताँबे का क्या उपयोग है ? यह भारत में कहाँ-कहाँ पाया जाता है ?
या
भारत में ताँबे के उत्पादन-क्षेत्रों का वर्णन कीजिए। [2009]
उत्तर:
उपयोग- 
ताँबा एक उपयोगी धातु है। प्राचीन काल से ही भारत में ताँबे की मूर्तियाँ, सिक्के तथा बर्तन आदि बनाये जाते रहे हैं। यह विद्युत और ताप का सुचालक होता है, इसी कारण इसका प्रयोग विद्युत तारों, रेडियो, बिजली की मोटरों, इंजनों में तथा अन्य उपकरणों के बनाने में किया जाता है। लोहे की खोज होने से पूर्व ताँबा ही सभ्यता के विकास का आधार था। भूगर्भ में यह आग्नेय तथा कायान्तरित शैलों की परतों से प्राप्त होता है। अयस्क (UPBoardSolutions.com) रूप में प्राप्त होने के कारण इसका उपयोग करने से पूर्व शोधन किया जाना
आवश्यक होता है।

भण्डार– भारत में लगभग 70 करोड़ टन ताँबे के सुरक्षित भण्डार होने का अनुमान लगाया गया है। राजस्थान (अलवर व झुंझनू), झारखण्ड (सिंहभूम), बालाघाट (मध्य प्रदेश), चित्रदुर्ग (कर्नाटक) में ताँबे की खाने हैं।

उत्पादन एवं वितरण– ताँबे के उत्पादन में भारत का स्थान बहुत पीछे है। ताँबा उत्पादक स्थान निम्नवत् हैं

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1. झारखण्ड- 
इस राज्य का ताँबा उत्पादन में प्रथम स्थान है। यहाँ ताँबा उत्पादक क्षेत्र 130 किमी की लम्बाई में ओडिशा राज्य की सीमा तक फैले हुए हैं। इस राज्य के सिंहभूम, हजारीबाग एवं संथाल परगना प्रमुख ताँबा उत्पादक जिले हैं।
2. मध्य प्रदेश- यह राज्य देश का 20% ताँबा उत्पन्न करता है। जबलपुर, बालाघाट, होशंगाबाद, सागर प्रमुख ताँबा उत्पादक जिले हैं।
3. छत्तीसगढ़- इस राज्य के बस्तर जिले से भी ताँबा निकाला जाता है।
4. आन्ध्र प्रदेश- इस राज्य में नेल्लोर, खम्माम, अनन्तपुर और गुण्टूर जिलों से ताँबा प्राप्त किया जाता है।
5. राजस्थान- इस राज्य में खेतड़ी, झुंझनू, अलवर, सिरोही, उदयपुर आदि स्थानों से ताँबा निकाला जाता है। यहाँ हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड ने खेतड़ी कॉपर प्रोजेक्ट द्वारा ताँबा उत्खनन का कार्य आरम्भ किया है।
6. कर्नाटक- इस राज्य के हासन व चित्रदुर्ग जिलों में भी ताँबा मिलता है।
7. सिक्किम, जम्मू- कश्मीर, पंजाब, पश्चिम बंगाल, मणिपुर आदि राज्य अन्य प्रमुख ताँबा उत्पादक राज्य हैं।

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प्रश्न 7.
भारत में लौह-अयस्क के भण्डारों की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
भारत में लौह-अयस्क के भण्डारों की दो मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • लौह-अयस्क भण्डार की दृष्टि से भारत पर्याप्त धनी है। भारत में उत्तम किस्म की लौह-अयस्क धातु के पर्याप्त भण्डार हैं, जिनमें धातु का अंश 67% तक होता है।
  • भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग ने यहाँ पर लौह-अयस्क के भण्डार (UPBoardSolutions.com) 23 अरब टन आँके हैं। लौह-अयस्क के 50% भण्डार झारखण्ड राज्य के सिंहभूम जिले तथा ओडिशा राज्य के क्योंझर, बोनाई, सुन्दरगढ़ और मयूरगंज क्षेत्रों में पाये जाते हैं। लौह-अयस्क का यह क्षेत्र विश्व का सबसे बड़ा तथा सम्पन्न क्षेत्र है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उन दो खनिजों के नाम बताइए, जिनमें भारत धनी है और उन दो खनिजों के नाम भी बताइए जिनका भारत में अभाव है।
उत्तर :
भारत लौह-अयस्क, मैंगनीज और अभ्रक में धनी है और ताँबा, सोना और जस्ता खनिजों का भारत में अभाव है।

प्रश्न 2.
कोलार की खानें किसलिए प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर :
कर्नाटक राज्य में स्थित कोलार की खाने स्वर्ण-उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 3.
किस खनिज के उत्पादन में भारत विश्व में अग्रणी है ?
उत्तर :
अधात्विक खनिज अभ्रक के उत्पादन में भारत विश्व में अग्रणी है।

प्रश्न 4.
भारत के किन्हीं दो लौह उत्पादक क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारत के दो लौह-उत्पादक क्षेत्रों के (UPBoardSolutions.com) नाम हैं–(1) क्योंझर (ओडिशा) तथा (2) बेलाडिला (छत्तीसगढ़)।

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प्रश्न 5.
मैंगनीज को किस प्रकार का खनिज कहते हैं?
उत्तर :
मैंगनीज को धात्विक खनिज कहते हैं।

प्रश्न 6.
अभ्रक का उपयोग किस वस्तु में होता है ?
उत्तर :
अभ्रक का उपयोग डायनमो, बिजली की मोटरों, तार एवं टेलीफोन, रेडियो, स्टोव आदि की सामग्री, कपड़ों, पंखों, खिलौनों आदि में चमक देने के कार्यों में किया जाता है।

प्रश्न 7.
लौह-अयस्क के दो उपयोग लिखिए।
उत्तर :
इस अयस्क से शुद्ध लोहा बनाकर मशीनों, जलयान, वायुयान, कल-पुर्जी आदि में प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 8.
बॉक्साइट का रंग कैसा होता है ?
उत्तर :
बॉक्साइट का रंग मिट्टी के समान लाल या पीला होता है।

प्रश्न 9.
खनिज संरक्षण के दो उपाय लिखिए। [2014]
उत्तर :

  • खनिजों को प्रयोग करने के बाद लोहा, ताँबा आदि को गलाकर पुन: प्रयोग करना चाहिए।
  • खनिजों की खनन तकनीकों में पर्याप्त सुधार की आवश्यकता है, जिससे धातुओं की बर्बादी न हो।

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प्रश्न 10.
मैंगनीज के दो उपयोग लिखिए। [2010, 11]
उत्तर :

  • मैंगनीज तथा ताँबे के मिश्रण से टरबाइन–ब्लेड्स बनाये जाते हैं।
  • मैंगनीज तथा काँसे के मिश्रण से जलयानों के प्रोपेलर बनाये जाते हैं।

प्रश्न 11.
धात्विक खनिजों के चार नाम लिखिए। [2015]
उत्तर :
लौह-अयस्क, मैंगनीज, निकल तथा कोबाल्ट धात्विक खनिज हैं।

प्रश्न 12.
अधात्विक खनिजों के चार नाम लिखिए।
उत्तर :
अधात्विक खनिजों के चार नाम इस प्रकार (UPBoardSolutions.com) हैं-अभ्रक, हीरा, जिप्सम और संगमरमर।

प्रश्न 13.
भारत के किन्हीं दो लौह-अयस्क उत्पादक राज्यों के नाम लिखिए। [2017]
उत्तर :
गोवा व छत्तीसगढ़।

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प्रश्न 14.
भारत के किन्हीं दो ताँबा उत्पादक राज्यों के नाम लिखिए। [2018]
उत्तर :

  • झारखण्ड तथा
  • मध्य प्रदेश।

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1. लौह खनिज का एक उदाहरण है

(क) मैंगनीज
(ख) सीसा
(ग) जस्ता
(घ) ताँबा

2. हैमेटाइट का सम्बन्ध किस खनिज पदार्थ से है? [2012]

(क) ताँबा
(ख) सोना
(ग) बॉक्साइट
(घ) लौह-अयस्क

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3. बॉक्साइट किस धातु का अयस्क है? [2011]
या
बॉक्साइट सम्बन्धित है [2013]

(क) सीसा
(ख) ताँबा
(ग) जस्ता
(घ) ऐलुमिनियम

4. रानीगंज प्रसिद्ध है [2012]

(क) कोयले के लिए।
(ख) ताँबा के लिए
(ग) बॉक्साइट के लिए।
(घ) चूना-पत्थर के लिए

5. कोलार का सम्बन्ध किस खनिज से है? [2012]
या
निम्नलिखित में से कोलार किससे सम्बन्धित है? [2013, 15]

(क) ताँबा से
(ख) बॉक्साइट से
(ग) सोना से
(घ) लौह-अयस्क से

6. विश्व में सबसे अधिक अभ्रक उत्पादक देश है [2015]

(क) चीन
(ख) जापान
(ग) अमेरिका
(घ) भारत

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7. निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य सर्वाधिक अभ्रक का उत्पादक है?
या
भारत में अभ्रक उत्पादन में किस राज्य का प्रथम स्थान है? [2016]

(क) झारखण्ड
(ख) चेन्नई
(ग) मध्य प्रदेश
(घ) छत्तीसगढ़

8. मैंगनीज के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?

(क) पहला
(ख) दूसरा
(ग) तीसरा
(घ) चौथा

9. निम्नलिखित में से कौन-सी धात्विक खनिज है? [2017]

(क) अभ्रक
(ख) जिप्सम
(ग) ताँबा
(घ) हीरा

10. किस खनिज के उत्पादन में भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है?

(क) मैंगनीज
(ख) लोहा
(ग) ताँबा
(घ) अभ्रक

11. बेलाडिला खदान किस खनिज के लिए महत्त्वपूर्ण है?

(क) मैंगनीज
(ख) लौह-अयस्क
(ग) अभ्रक
(घ) बॉक्साइट

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12. ‘कोलार’ सोने की खान स्थित है

(क) आन्ध्र प्रदेश में
(ख) तमिलनाडु में
(ग) कर्नाटक में
(घ) महाराष्ट्र में

13. भारत का कौन-सा शहर ‘स्टील सिटी’ कहा जाता है [2016]

(क) भिलाई
(ख) दुर्गापुर
(ग) जमशेदपुर
(घ) बोकारो

14. मैंगनीज आवश्यक है [2018]

(क) ताँबा उद्योग के लिए
(ख) लौह-इस्पात उद्योग के लिए
(ग) एल्युमिनियम उद्योग के लिए।
(घ) इनमें से किसी के लिए नहीं

उत्तरमाला

1. (क), 2. (घ), 3. (घ), 4. (क), 5. (ग), 6. (घ), 7. (क), 8. (घ), 9. (ग), 10. (घ), 11. (ख), 12. (ग), 13. (ग), 14. (ख)

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 खनिज संसाधन (अनुभाग – तीन) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 खनिज संसाधन (अनुभाग – तीन), drop a comment below and we will get back to you at the earliest

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 16 (Section 1)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 16 भारत-विभाजन एवं स्वतन्त्रता-प्राप्ति (अनुभाग – एक)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 16 भारत-विभाजन एवं स्वतन्त्रता-प्राप्ति (अनुभाग – एक)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत-विभाजन एवं स्वतन्त्रता-प्राप्ति की प्रक्रिया को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :

भारत-विभाजन एवं स्वतन्त्रता-प्राप्ति

अगस्त, 1946 ई० में वायसराय ने पं० जवाहरलाल नेहरू को अन्तरिम सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित किया। इससे नाराज होकर मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान निर्माण के लिए 16 अगस्त, 1946 ई० को सीधी कार्यवाही (Direct Action) करने का निश्चय किया। मुस्लिम लीग का नारा था—-‘मारेंगे या मरेंगे, पाकिस्तान बनाएँगे।” इससे कलकत्ता (कोलकाता) व नोआखाली में दंगे भड़क उठे। भयंकर रक्तपात । हुआ। अनेक हिन्दू व मुसलमान इन दंगों में मारे गये। ये दंगे धीरे-धीरे सम्पूर्ण भारत में शुरू हो गये। 2 सितम्बर, 1946 को पं० जवाहरलाल नेहरू पाँच राष्ट्रवादी मुसलमानों को साथ लेकर अन्तरिम सरकार बनाने में सफल हुए, परन्तु आन्तरिक झगड़ों के कारण यह अन्तरिम सरकार असफल हो समाप्त हो गयी।

ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री एटली ने घोषणा की कि ब्रिटेन जून, 1948 ई० तक भारत का शासन छोड़ देगा। लेकिन मिलने वाली स्वाधीनता की खुशियों पर अगस्त, 1946 ई० के बाद भड़कने वाले व्यापक साम्प्रदायिक दंगों ने पानी फेर दिया। हिन्दू और मुस्लिम सम्प्रदायवादियों ने इस जघन्य संघर्ष का दोषी एक-दूसरे को ठहराया। मानव मूल्यों का इस तरह उल्लंघन होते और सत्य-अहिंसा का गला घोंटे जाते (UPBoardSolutions.com) देखकर महात्मा गांधी दु:ख से द्रवित हो उठे। साम्प्रदायिकता की आग को बुझाने में दूसरे अनेक हिन्दू-मुसलमानों ने भी प्राणों से हाथ धोये लेकिन साम्प्रदायिक तत्त्वों ने इसके बीज विदेशी सरकार की सहायता से बहुत गहरे बोये थे जिन्हें उखाड़ फेंकना आसान नहीं था।

मार्च, 1947 ई० को माउण्टबेटन ने भारत के वायसराय के पद को ग्रहण किया। उसे इस बात का पता था कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग में समझौता होना अत्यन्त कठिन है। माउण्टबेटन को ज्ञात था कि पाकिस्तान बनाने की योजना उचित नहीं है और न ही इससे साम्प्रदायिकता की समस्या को दूर किया जा सकता है परन्तु फिर भी उसने भारत को विभाजित करने का निर्णय लिया।

गांधी जी व कांग्रेस के अन्य नेता किसी भी शर्त पर भारत के विभाजन को मानने के लिए तैयार नहीं थे। माउण्टबेटन ने पं० जवाहरलाल नेहरू व सरदार वल्लभभाई पटेल को पाकिस्तान बनाने की आवश्यकता के विषय में समझाने का प्रयास किया। हालाँकि प्रारम्भिक दौर में उन्होंने इस (UPBoardSolutions.com) बात को मानने से इन्कार कर दिया लेकिन साम्प्रदायिकता की आग को रोकने के लिए कांग्रेस के नेताओं ने इस योजना को अनमने मन से स्वीकार कर लिया। सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा कि “यदि हम एक पाकिस्तान स्वीकार नहीं करते हैं। तो भारत में सैकड़ों पाकिस्तान होंगे।”

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इस प्रकार माउण्टबेटन ने कूटनीति का परिचय देते हुए कांग्रेस के नेताओं को मानसिक रूप से भारत के विभाजन के लिए तैयार कर लिया। उन्होंने एक योजना बनायी जिसे वे शीघ्र लागू करना चाहते थे। इस नयी योजना के विषय में माउण्टबेटन, नेहरू, मुहम्मद अली जिन्ना एवं बलदेवसिंह ने आकाशवाणी से घोषणा की।

प्रश्न 2.
भारत-विभाजन के कारणों पर प्रकाश डालिए। [2017]
उत्तर :

भारत-विभाजन के कारण

भारत-विभाजन के निम्नलिखित कारण थे –

1. ब्रिटिश शासकों की नीति – भारत-विभाजन के लिए ब्रिटिश शासकों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति मुख्य रूप से उत्तरदायी थी। इस नीति का अनुसरण करके उन्होंने भारत के हिन्दुओं और मुसलमानों में साम्प्रदायिकता का विष घोल दिया था। इसके अतिरिक्त ब्रिटिश शासकों की सहानुभूति भी पाकिस्तान के साथ थी। शायद इसीलिए वायसराय लॉर्ड वेवेल के संवैधानिक परामर्शदाता वी०पी० मेनन ने सरदार पटेल से कहा था कि “गृह-युद्ध की ओर बढ़ने के बजाय देश का विभाजन स्वीकार कर लेना अच्छा है।” लॉर्ड वेवेल ने अन्तरिम सरकार में भी मुस्लिम लीग को कांग्रेस के विरुद्ध कर दिया था।

2. मुस्लिम लीग को प्रोत्साहन – ब्रिटिश सरकार आरम्भ से ही कांग्रेस के विरुद्ध रही, क्योंकि कांग्रेस ने अपनी स्थापना के बाद से ही सरकार की आलोचना करनी शुरू कर दी थी और सरकार के सामने ऐसी माँगें रख दी थीं, जिन्हें सरकार स्वीकार करने (UPBoardSolutions.com) के लिए तत्पर नहीं थी। इसीलिए सरकार ने मुस्लिम लीग को प्रोत्साहन देने के लिए सन् 1909 ई० के अधिनियम में मुसलमानों को साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया और आगे भी वह मुसलमानों को कांग्रेस के विरुद्ध भड़काती रही।

3. जिन्ना की जिद – जिन्ना प्रारम्भ से ही द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के समर्थक थे। पहले वे बंगाल और सम्पूर्ण असम (असोम) को पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे तथा पश्चिमी पाकिस्तान में समस्त पंजाब, उत्तर-पश्चिमी सीमा-प्रान्त, सिन्ध और बलूचिस्तान को मिलाना चाहते थे। अपनी जिद के कारण जिन्ना ने निरन्तर गतिरोध बनाये रखा और समस्या के निराकरण के लिए बनायी गयी सभी योजनाओं को अस्वीकार कर दिया। परन्तु 3 जून, 1947 ई० की योजना में उन्हें दिया गया पाकिस्तान उस पाकिस्तान से अच्छा नहीं था, जिसे उन्होंने सन् 1944 ई० में अपूर्ण, अंगहीन तथा दीमक लगा कहकर अस्वीकार कर दिया था। अब जो पाकिस्तान उनको दिया गया, वह (UPBoardSolutions.com) उनकी आशाओं से बहुत छोटा था, जिसे जिन्ना ने लॉर्ड माउण्टबेटन के दबाव के कारण स्वीकार कर लिया था।

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4. साम्प्रदायिक दंगे – जिन्ना की प्रत्यक्ष कार्यवाही की नीति के कारण भारत के कई भागों में हिन्दू-मुस्लिमों के बीच दंगे-फसाद हो रहे थे, जिनमें हजारों की संख्या में निर्दोष लोग मारे जा रहे थे और अपार धन-सम्पत्ति नष्ट हो रही थी। कांग्रेसी नेताओं ने इन दंगों को रोकने के लिए भारत का विभाजन स्वीकार करना ही उचित समझा।

5. भारत को शक्तिशाली बनाने की इच्छा – कांग्रेसी नेता इस बात का अनुभव कर रहे थे कि विभाजन के बाद भारत बिना किसी बाधा के चहुंमुखी.उन्नति कर सकेगा, अन्यथा भारत सदैव गृह-संघर्ष में ही फँसा रहेगा। 3 जून, 1947 ई० को पं० जवाहरलाल नेहरू ने विभाजन को स्वीकार करने के लिए जनता से अपील करते हुए कहा था कि “कई पीढ़ियों से हमने स्वतन्त्रता व संयुक्त भारत के लिए संघर्ष किया तथा स्वप्न देखे हैं, (UPBoardSolutions.com) इसलिए उस देश के विभाजन का विचार भी बहुत कष्टदायक है, परन्तु फिर भी मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमारा.वर्तमान निर्णय सही है। यह समझना आवश्यक है कि तलवारों द्वारा भी अनैच्छिक प्रान्तों को भारतीय संघ राज्य में रख सकना सम्भव नहीं है। यदि उन्हें जबरन भारतीय संघ में रखा भी जा सके तो कोई प्रगति और नियोजन सम्भव न होंगे। राष्ट्र में संघर्ष और परस्पर झगड़ों के जारी रहने से देश की प्रगति रुक जाएगी। भोली-भाली जनता के कत्ल से तो विभाजन ही अच्छा है।

6. हिन्दू महासभा का प्रभाव – प्रारम्भ में हिन्दू महासभा ने कांग्रेस को हर प्रकार का सहयोग दिया, किन्तु सन् 1930 ई० के उपरान्त हिन्दू महासभा पर प्रतिक्रियावादी तत्त्वों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। हिन्दू महासभा के अधिवेशन में भाषण देते हुए श्री सावरकर ने स्पष्ट रूप से कहा कि “भारत एक और एक सूत्र में बँधा राष्ट्र नहीं माना जा सकता, अपितु यहाँ दो राष्ट्र हैं-हिन्दू और मुसलमान। भविष्य में हमारी राजनीति विशुद्ध हिन्दू राजनीति होगी। इस प्रकार हिन्दू सम्प्रदायवाद ने भी मुसलमानों को पाकिस्तान बनाने के लिए प्रेरित किया।

7. भारतीयों को सत्ता देने में सरकार का रुख – सन् 1929 ई० से 1945 ई० की अवधि में ब्रिटिश सरकार और भारतीयों के सम्बंधों में काफी कटुता आ गयी थी। ब्रिटिश सरकार यह अनुभव करने लगी थी कि भारत स्वाधीनता की प्राप्ति के बाद ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल को सदस्य कदापि नहीं रहेगा। इसलिए उसने विचार किया कि यदि स्वतन्त्र भारत अमैत्रीपूर्ण है तो उसे निर्बल बना देना ही उचित है। पाकिस्तान का निर्माण अखण्ड भारत को विभाजित कर देगा और कालान्तर में भारत उपमहाद्वीप (UPBoardSolutions.com) में ये दोनों देश आपस में लड़कर अपनी शक्ति को क्षीण करते रहेंगे।

8. भारत के विभाजन के स्थायीकरण में सन्देह – अनेक राष्ट्रीय नेताओं को भारत के विभाजन के स्थायी रहने में सन्देह था, उनका कहना था कि भौगोलिक, राजनीतिक, आर्थिक और सैनिक दृष्टिकोण से पाकिस्तान एक स्थायी राज्य नहीं हो सकता और आज अलग होने वाले क्षेत्र कभी-न-कभी फिर से भारतीय संघ में सम्मिलित हो जाएँगे।

9. कांग्रेसी नेताओं का सत्ता के प्रति आकर्षण – माइकल ब्रेचर ने लिखा है कि कांग्रेसी नेताओं के सभक्ष सत्ता के प्रति आकर्षण भी था। इन नेताओं ने अपने राजनैतिक जीवन का अधिकांश भाग ब्रिटिश शासन के विरोध में ही बिताया था और अब वे (UPBoardSolutions.com) स्वाभाविक रूप से सत्ता के प्रति आकर्षित हो रहे थे। कांग्रेसी नेता सत्ता का रसास्वादन कर चुके थे और विजय की घड़ी में इससे अलग होने के इच्छुक नहीं थे।

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10. लॉर्ड माउण्टबेटन का प्रभाव – भारत-विभाजन के लिए लॉर्ड माउण्टबेटन का व्यक्तिगत प्रभाव भी उत्तरदायी था। उन्होंने कांग्रेसी नेताओं को भारत-विभाजन के प्रति तटस्थ कर दिया था। मौलाना आजाद ने लिखा है कि “लॉर्ड माउण्टबेटन के भारत आने के एक (UPBoardSolutions.com) माह के अन्दर पाकिस्तान के प्रबल विरोधी नेहरू विभाजन के समर्थक नहीं तो कम-से-कम इसके प्रति तटस्थ अवश्य हो गये।

प्रश्न 3.
भारत का विभाजन किन परिस्थितियों में हुआ? नव-स्वतंत्र भारत को नि समस्याओं का सामना करना पड़ा? किन्हीं दो को समझाकर लिखिए। [2014]
             या
स्वतन्त्र भारत के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं ? उनमें से किन्हीं दो के निराकरण के उपाय बताइए। [2013]
             या
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा ? (2013)
             या
साम्प्रदायिकता की भावना किस प्रकार लोकतन्त्र के सिद्धान्तों के विपरीत है ? इस भावना को दूर करने के कोई दो उपाय लिखिए। [2013]
उत्तर :
[संकेत – भारत का विभाजन किन परिस्थितियों में हुआ ? प्रश्न के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 2 का उत्तर देखें।]

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आतंकवाद

वर्तमान में आतंकवाद विश्व की एक गम्भीर और अत्यन्त भयावहं समस्या है। यह गुमराह और भटके हुए व्यक्तियों द्वारा आम जनता को भयभीत करने के लिए तथा सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं आर्थिक तनाव उत्पन्न करने हेतु संचालित किया जाता है। शान्ति एवं सद्भाव भंग करने की दृष्टि से गोलाबारी, बन्दूक; आत्मघाती हमले, सार्वजनिक स्थलों पर बम विस्फोट आदि माध्यमों को अपनाया जाता है। विगत तीन-चार दशकों में भारत निरन्तर आतंकवाद से ग्रसित है। 1980 ई० के दशक में पंजाब आतंकवाद का शिकार रहा। इसके बाद इसकी आग जम्मू-कश्मीर में फैल गयी और आज तक भारत आतंकवाद (UPBoardSolutions.com) की इस ज्वाला में झुलस रहा है। भारत के 220 जनपदों में देश की कुल भूमि का लगभग 45 प्रतिशत भाग आन्तरिक विद्रोह, अशान्ति एवं आतंकवाद से ग्रस्त है। गत कुछ वर्षों में ही हजारों की संख्या में लोग आतंकवाद की भेट चढ़ चुके हैं। नक्सलवादियों से देश को खतरा लगातार बढ़ती जा रहा है। देश के किसी-न-किसी भाग में आतंकवाद की छिटपुट घटनाएँ प्रायः होती ही रहती हैं। मुम्बई में बम विस्फोट, गुजरात में अक्षरधाम पर आक्रमण और गोधरा काण्ड इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। यहाँ तक कि संसद भवन भी आतंकवाद के निशाने पर रह चुका है। अयोध्या के विवादित राम मन्दिर के परिसर में आतंकवादियों का प्रवेश उनके दुस्साहस का अनूठा उदाहरण है। जम्मू-कश्मीर, असोम, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, झारखण्ड जैसे उत्तरी-पूर्वी राज्यों में आतंकवाद एवं नक्सलवाद का प्रभाव अधिक है। विश्व के अन्य देश भी इससे अछूते नहीं हैं। 11 सितम्बर, 2011 ई० को न्यूयार्क में विश्व व्यापार केन्द्र तथा वाशिंगटन में पेंटागन पर हुआ आतंकवादी हमला अत्यन्त भयावह था। भारत की पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गाँधी, उनके पुत्र राजीव गाँधी आतंकवाद के ही शिकार बने। (UPBoardSolutions.com) कहने का तात्पर्य यह है कि आतंकवाद देश के लिए एक गम्भीर खतरा तथा समस्या बन चुका है, अत: प्रत्येक नागरिक को इससे सावधान रहने की आवश्यकता है।

साम्प्रदायिकता

साम्प्रदायिकता की प्रवृत्ति लोकतन्त्र के आधारभूत सिद्धान्तों के विपरीत है। यह प्रवृत्ति समाज में घृणा, तनाव तथा संघर्ष को जन्म देती है। लोकतन्त्र तो धार्मिक सद्भाव अथवा धर्मनिरपेक्षता पर आधारित होता है। धार्मिक सम्प्रदायवाद समाज में विघटन उत्पन्न करके समाज को विभिन्न वर्गों में विभाजित कर देता है। यह विकृत स्थिति भारत में सदियों से व्याप्त है तथा यह लोकतन्त्र के लिए एक चुनौती है।

साम्प्रदायिकता को दूर करने के उपाय

  1. साम्प्रदायिक सद्भाव विकसित करके विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों के व्यक्तियों को एक-साथ रहने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए तथा इसके लिए कोई राष्ट्रीय नीति बनायी जानी चाहिए।
  2. गिरते हुए नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की पुनस्र्थापना का प्रयास किया जाना चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार से परिवर्तन किया जाना चाहिए कि नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों को प्रोत्साहन मिले।
  3. सभी त्योहारों को राष्ट्रीय स्तर पर मनाने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए, (UPBoardSolutions.com) ताकि विभिन्न सम्प्रदाय एक साथ मिलकर इनमें सम्मिलित हो सकें।
  4. धर्मनिरपेक्षता (लौकिकता) को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  5. भाषा के सम्बन्ध में एक स्पष्ट व सर्वमान्य राष्ट्रीय नीति बनायी जानी चाहिए।
  6. शिक्षा के माध्यम से धार्मिक कट्टरवाद के दोषों को दूर करके लौकिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  7. सार्वजनिक शान्ति-समितियों व प्रार्थना सभाओं का गठन व आयोजन किया जाना चाहिए तथा इनमें | सभी धर्मों के व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  8. साम्प्रदायिक तत्त्वों पर कड़ी नजर रखी जानी चाहिए।
  9. गुप्तचर एजेन्सियों को और अधिक चुस्त बनाया जाना चाहिए, ताकि वे कूटरचित साम्प्रदायिक गुप्त-मन्त्रणाओं की सूचना पहले से ही दे सकें।
  10. समाज-विरोधी तत्त्वों और साम्प्रदायिक तत्त्वों के विरुद्ध कठोर (UPBoardSolutions.com) कार्यवाही की जानी चाहिए।

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क्षेत्रवाद

राष्ट्रीय एकीकरण की समस्या पिछले दशकों में चिन्तनीय बन पड़ी है। संकीर्ण क्षेत्रीयता न सिर्फ हिंसक टकरावों में अभिव्यक्त हुई है, बल्कि पृथक्तावादी आन्दोलनों के रूप में भी सामने आयी है। अति महत्त्वाकांक्षी राजनेताओं ने भी कई बार धर्म, जाति, भाषा जैसे विघटनकारी तत्त्वों का सहारा लेकर क्षेत्रीय भावनाएँ भड़काई हैं। तो क्या क्षेत्रवाद की इस नकारात्मक प्रवृत्ति पर किसी प्रकार का नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है। यह नियन्त्रण संभव तो है, लेकिन आसान बिल्कुल नहीं है। इसके लिए निष्पक्ष कर्मछता और ‘बहुजन-सुखाय’ की मानसिकता की दरकार है।

यदि सरकारी नीतियों के माध्यम से विशिष्ट जातीय एवं उप-सांस्कृतिक क्षेत्रों की संस्कृति और अस्मिता को ध्यान में रखते हुए संतुलित (क्षेत्रीय व आर्थिक) विकास को प्रोत्साहन दिया जा सके, तो क्षेत्रवाद को बल नहीं मिल सकेगा। विशेषत: पिछड़े क्षेत्रों के आर्थिक विकास का अधिक ख्याल रखना होगा (दुर्भाग्यवश निजीकरण के दौर में इन क्षेत्रों की उपेक्षा की जा रही है)। यदि केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच सौहार्दपूर्ण सामंजस्य रह सके और भिन्न-भिन्न क्षेत्रीय भाषाओं को उचित सम्मान दिया जा सके, तो क्षेत्रवाद भड़काने के प्रयासों को निरुत्साहित किया जा सकता है। इसी प्रकार सक्षम प्रशासन के माध्यम से (UPBoardSolutions.com) संकीर्ण क्षेत्रवादी आन्दोलनों की हिंसक प्रवृत्ति को दृढ़पूर्वक दबाया जाना आवश्यक है।

भाषावाद

भाषा के आधार पर पृथक् राजनीतिक पहचान ने भाषावादी राजनीति को जन्म दिया। इसके कारण उग्र राजनीतिक आन्दोलन हुए। किन्हीं समर्थकों व हिन्दी विरोधियों के बीच दूरियाँ बढ़ीं और रोष उत्पन्न हुआ। हिंसात्मक व तोड़-फोड़ की गतिविधियों ने अव्यवस्था फैलायी। राष्ट्र की उन्नति व विकास के प्रयास व ऊर्जा , में बाधा पहुँची। यहाँ तक कि छात्रों ने भी भाषायी राजनीति में खुलकर भाग लिया। 1967 में चेन्नई में छात्रों ने हिन्दी विरोधी आन्दोलन किया, जिसकी आग कर्नाटक व आन्ध्र प्रदेश तक फैल गयी।

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देश की आन्तरिक सुरक्षा को कायम रखने के लिए निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है –

  1. आतंकवाद को खत्म करने के लिए कड़ाई से निपटा जाए।
  2. आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले को कठोर दण्ड की व्यवस्था की जाए।
  3. क्षेत्रवाद एवं सम्प्रदायवाद की राजनीति करने वाले लोगों को दण्डित किया जाए।
  4. सी०आर०पी०एफ० एवं आर०ए०एफ० को सदैव सतर्क रहना चाहिए।
  5. प्रत्येक राज्य की पुलिस व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त होनी चाहिए।
  6. भाषा के नाम पर यदि कोई विवाद हो तो उसे आपसी बातचीत से हल करना चाहिए।

मूल्यांकन – यदि देश की आन्तरिक सुरक्षा ठीक नहीं है तो यह देश के लिए खतरनाक सिद्ध होगा। देश की राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा उत्पन्न हो जायेगा। देश टुकड़ों में विभाजित हो जायेगा। देश की एकता एवं अखण्डता कायम नहीं रह पायेगी। इसके लिए आवश्यक है कि देश की सुरक्षा-व्यवस्था सुदृढ़ हो।

देश की आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के उपाय –

  1. भारतीयों में राष्ट्रीय सुरक्षा की भावना होना अनिवार्य है। भारतीय नागरिक विभिन्न प्रकार के आपसी मतभेदों और राष्ट्र पर किसी प्रकार के संकट का सामना करने के लिए तैयार रहें।
  2. आन्तरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए नागरिकों को प्रशिक्षण (UPBoardSolutions.com) देना अनिवार्य है, इसके लिए सरकार ने नागरिक सुरक्षा संगठन का भी गठन किया है। =
  3. देश में उत्पन्न संकट का सामना करने के लिए सुरक्षाकर्मियों को उचित प्रशिक्षण देना अनिवार्य है, जिससे किसी संकट का सामना आसानी से किया जा सके।
  4. रक्षा बजट में सरकार प्रतिवर्ष वृद्धि करती है जिससे सुरक्षाकर्मियों एवं सेना को चुस्त-दुरुस्त रखा जा सके।
  5. सरकार को चाहिए कि जो राष्ट्र की सुरक्षा में लगे हैं, उन्हें आधुनिक तकनीक तथा अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित रखना चाहिए।

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प्रश्न 4.
लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन क्यों किया ? भारतीयों ने इसका विरोध कैसे व्यक्त किया ? [2012]
उत्तर :
एक ओर राष्ट्रीय आन्दोलन ने भारतीयों में एकता लाने के प्रयास पर बल दिया, परन्तु सम्प्रदायवाद ने इस प्रयास को दुष्कर बना दिया। यह 20वीं शताब्दी का एक ऐसा परिवर्तन था जिसने लोगों को ‘धार्मिक समुदायों और धार्मिक राष्ट्रों के झूठे अवरोधों के आधार पर बाँटने का प्रयास किया। इस प्रवृत्ति को आधुनिक काल के राजनीतिक तथा आर्थिक घटनाक्रम, ब्रिटिश शासन के सामाजिक व सांस्कृतिक प्रभाव और 19वीं शताब्दी के समाज तथा राजनीति में उभरते रुझानों के सन्दर्भ में समझा जाना चाहिए।

कर्जन की साम्राज्यवादी तथा ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का सबसे बड़ा परिणाम बंगाल विभाजन के रूप में सामने आया। इस नीति ने साम्प्रदायिक समस्या को कई गुना बढ़ा दिया था। सामान्यत: तत्कालीन सरकार द्वारा बंगाल-विभाजन का कारण शासकीय आवश्यकता’ बताया गया, परन्तु यथार्थ में विभाजन का मुख्य कारण शासकीय न होकर राजनीतिज्ञ था। बंगाल राष्ट्रीय गतिविधियों का केन्द्र बनता जा रहा था। कर्जन कलकत्ता (कोलकाता) (UPBoardSolutions.com) और अन्य राजनीतिक षड्यन्त्रों के केन्द्रों को नष्ट करना चाहता था। कलकत्ता केवल ब्रिटिश भारत की राजधानी ही नहीं, बल्कि व्यापार-वाणिज्य का स्थल और न्याय का प्रमुख केन्द्र भी था। यहीं से अधिकतर समाचार-पत्र निकलते थे, जिससे लोगों में विशेषकर शिक्षित वर्ग में राष्ट्रीय भावना उदित हो रही थी। विभाजन का उद्देश्य बंगाल में राष्ट्रवाद को दुर्बल करना तथा इसके विरुद्ध एक मुस्लिम गुट खड़ा करना था। जैसा कि कर्जन ने कहा, “इस विभाजन से पूर्वी बंगाल के मुसलमानों को ऐसी एकता प्राप्त होगी जिसकी अनुभूति उन्हें पूर्व के मुसलमान राजाओं और वायसरायों के काल के पश्चात् कभी नहीं हुई।

कर्जन अपने भारतीय कार्यकाल के दौरान अप्रैल, 1904 में कुछ समय के लिए इंग्लैण्ड चला गया। वापस लौटने पर 19 जुलाई, 2004 को भारत सरकार ने बंगाल के दो टुकड़े करने का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव के अनुसार पूर्वी बंगाल और असम को नया प्रान्त बनाना तय किया गया। जिसमें चटगाँव, ढाका और राजेशाही के डिवीजन शामिल थे। नए प्रान्त का क्षेत्रफल एक लाख छ: हजार पाँच सौ चालीस वर्ग मील निर्धारित किया गया, जिसकी आबादी तीन करोड़ दस लाख थी, जिसमें एक करोड़ अस्सी लाख मुसलमान और एक करोड़ बीस लाख हिन्दू थे। नए प्रान्त में एक विधानसभा और बोर्ड ऑफ रेवेन्यू की व्यवस्था थी और इसकी राजधानी ढाका निर्धारित की गई। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा (ओडिशा) थे। इसका क्षेत्रफल एक लाख इकतालीस हजार पाँच सौ अस्सी वर्ग मील था (UPBoardSolutions.com) और इसकी आबादी पाँच करोड़ चालीस लाख, जिसमें चार करोड़ बीस लाख हिन्दू और नब्बे लाख मुसलमान थे। भारतीय मन्त्री ब्रॉडरिक ने उपर्युक्त प्रस्ताव में मामूली संशोधन करके इसकी स्वीकृति दे दी। भारत सरकार ने इस सारी योजना को ‘प्रशासकीय सीमाओं का निर्धारण मात्र’ कहा। परिणामस्वरूप कर्जन ने 16 अक्टूबर, 1905 को बंगाल विभाजन की घोषणा कर दी। वस्तुत: यह कर्जन का सर्वाधिक प्रतिक्रियावादी कानून था, जिसका सर्वत्र विरोध हुआ और जिसने शीघ्र ही एक आन्दोलन का रूप ले लिया।

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स्वदेशी व बहिष्कार आन्दोलन

लॉर्ड कर्जन के बंगाल विभाजन (बंग-भंग) के बहुत दूरगामी परिणाम हुए। इसने भारतीयों में एक नई राष्ट्रीय चेतना भर दी और विभाजन विरोधी व स्वदेशी आन्दोलन को जन्म दिया। यह, आन्दोलन तब तक चलाया रहा, जब तक भारत सरकार ने 1911 ई० में बंगाल का एकीकरण नहीं कर दिया।

बंगाल विभाजन की घटनाओं से भारतीयों ने जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई। भारत के सभी जन-नेताओं ने एक स्वंर में इसकी कटु आलोचना की। इसे राष्ट्रीय एकता पर कुठराघात कहा गया। इसे हिन्दू-मुसलमानों को आपस में लड़ाने का षड्यन्त्रं कहा गया। इसका उद्देश्य पूर्वी बंगाल को जो सरकारी गुप्त दस्तावेजों में षड्यन्त्रकारियों का अड्डा था, नष्ट करना बताया गया। इस बंग विभाजन को चुनौती के रूप में लिया गया। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने विभाजन की घोषणा को एक बम विस्फोट की भाँति बताया और कहा कि इसके द्वारा हमें अपमानित किया गया है। साथ ही इससे बंगाली परम्पराओं, इतिहास और भाषा पर सुनियोजित आक्रमण किया गया है। गोपालकृष्ण गोखले ने एक ही वाक्य द्वारा बंगाल को शान्त करने की कोशिश की। गोखले ने इसे स्वीकार किया कि नवयुवके यह पूछने लगे हैं कि संवैधानिक (UPBoardSolutions.com) उपायों को क्या लाभ है ? क्या इसका परिणाम बंगाल का विभाजन है ? भारत के प्रमुख समाचार-पत्रों ‘स्टेट्समैन’ और ‘इंग्लिशमैन’ ने भी बंग विभाजन का विरोध किया। स्टेट्समैन ने लिखा, “ब्रिटिश भारत के इतिहास में कभी भी ऐसा समय नहीं आया जबकि सुप्रीम सरकार ने जन-भावनाओं और जनमत को इतना कम महत्त्व दिया हो जैसा कि वर्तमान शासन ने।”

अरविन्द घोष जो स्वदेशी आन्दोलन के प्रमुख प्रणेता थे, ने शान्तिपूर्ण प्रतिरोध अथवा प्रतिरक्षात्मक विरोध का एक व्यापक कार्यक्रम तैयार किया। इस कार्यक्रम का सम्बन्ध सभी प्रकार के सरकारी कार्यों से था; जैसे- भारतीय शिक्षण संस्थाओं की स्थापना, प्रशासन, न्याय व्यवस्था तथा समाज सुधार की योजना आदि। इस कार्यक्रम में रचनात्मक पहलू पर बल दिया गया। इसका उद्देश्य था कि जब सरकारी व्यवस्था भारतीयों के असहयोग से गिर जाये तब उसकी वैकल्पिक व्यवस्था की जा सके।

16 अक्टूबर, 1905 को बंगाल का विभाजन किया गया। इस दिन से ही इसका प्रतिक्रियावादी स्वरूप दिखाई देने लगा था। इस दिन को सम्पूर्ण भारत में शोक दिवस के रूप में मनाया गया। लोगों ने व्रत रखा, गंगा स्नान किया, एक-दूसरे के हाथों में एकता का सूत्र राखी बाँधी, जूलूस और प्रभात फेरियाँ निकालीं। समस्त बंगाल वन्देमातरम् के उद्घोष से गूंज उठा। सभी ने स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करने का प्रण लिया, साथ ही विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार भी किया। अत: बंग-भंग विरोधी शीघ्र ही स्वदेशी आन्दोलन और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आन्दोलन बन गया। इस आन्दोलन में सभी वर्गों और सम्प्रदायों ने भाग लिया। नवयुवक, स्त्री-पुरुष, (UPBoardSolutions.com) शिक्षित-अशिक्षित सभी इससे प्रेरित हुए। यह आन्दोलन केवल बंगाल तक ही सीमित न रहा, बल्कि बंगाल की सीमाओं को लाँघकर अन्य प्रान्तों में भी फैला। उदाहरणत: पंजाब में रावलपिण्डी और अमृतसर जैसे स्थानों पर स्वेदेशी व विशेषकर ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार के लिए अनेक सभाएँ हुईं। लाजपत राय ने स्वदेशी आन्दोलन के बारे में लिखा कि “जब सैकड़ों वर्षों के कोरे शाब्दिक आन्दोलन और कागजी आन्दोलन फेल हो गए तो इस छ: महीने या बौरह महीने के सही काम ने सफलता प्राप्त की।”

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कैबिनेट मिशन का मुख्य उद्देश्य क्या था ? इसमें कौन-कौन से सदस्य सम्मिलित थे ?
             या
कैबिनेट मिशन क्या था ? क्या इसने पाकिस्तान बनाये जाने की सिफारिश की थी ?
उत्तर :
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् इंग्लैण्ड में लेबर पार्टी की सरकार बनी। उधर अमेरिका एवं मित्रराष्ट्र भारत को स्वतन्त्र करने के लिए इंग्लैण्ड पर जोर डाल रहे थे। अत: 24 मार्च, 1946 ई० में ब्रिटिश सरकार द्वारा भेजा हुआ तीन सदस्यीय कैबिनेट मिशन भारत आया। इस मिशन के तीन (UPBoardSolutions.com) सदस्य थे-लॉर्ड पेथिक लॉरेन्स, सर स्टेफर्ड क्रिप्स तथा ए०वी० एलेक्जेण्डर। इस समय ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री क्लीमेण्ट एटली थे। इस मिशन ने भारतीयों के समक्ष दो योजनाएँ प्रस्तुत की। एक योजना (मई 16) के अनुसार भारत के समस्त प्रान्तों को तीन भागों में बाँटा गया तथा सम्पूर्ण देश के लिए एक संविधान सभा बनायी गयी।

संविधान सभा में कुल 389 सीटें रखने का निश्चय किया गया, जिसमें 296 सीटों प्रान्तों की व 93 रियासतों की थीं। जुलाई, 1996 ई० में संविधान सभा के लिए चुनाव हुए। प्रान्तों की कुल 296 सीटों में से कांग्रेस को 205, मुस्लिम लीग को 73 और स्वतन्त्र उम्मीदवारों को 18 सीटें प्राप्त हुईं। कैबिनेट मिशन की दूसरी योजना (जून 16) के अनुसार भारत का विभाजन–हिन्दू बहुल भारत व मुस्लिम बहुल पाकिस्तान के रूप में—होना था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को प्रथम योजना भी कुछ शर्तों के साथ स्वीकार थी, दूसरी तो थी ही नहीं।

मुस्लिम लीग ने इसका विरोध किया, क्योंकि उसका कहना था कि अलग-अलग दो राष्ट्र बनेंगे तो उनकी संविधान सभा भी अलग-अलग होनी चाहिए। ब्रिटिश सरकार ने भी मुस्लिम लीग को प्रोत्साहन दिया और कहा कि संविधान तभी लागू किया जाएगा; जब सभी दलों को मान्य होगा। अगस्त, 1946 ई० में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने पण्डित जवाहरलाल नेहरू को अन्तरिम सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित किया।

2 सितम्बर, 1946 ई० को अन्तरिम सरकार भी बन गयी। लॉर्ड वेवेल के आग्रह पर मुस्लिम लीग इस अन्तरिम सरकार में प्रतिनिधि भेजने के लिए तैयार हुई; परन्तु निरन्तर इस माँग पर अडिग रही कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के संविधान के निर्माण के लिए, (UPBoardSolutions.com) पृथक्-पृथक् संविधान सभाओं का गठन होना चाहिए। आन्तरिक झगड़ों के कारण शीघ्र ही यह अन्तरिम सरकार असफल होकर समाप्त हो गयी।

सन् 1947 ई० में लॉर्ड वेवेल के उत्तराधिकारी लॉर्ड माउण्टबेटन भारत आये। उन्होंने भारतीय कांग्रेसी नेताओं और लीग के नेताओं से वार्तालाप किया और एक योजना उनके समक्ष रखी। इस माउण्टबेटन योजना में देश के विभाजन एवं देश की स्वतन्त्रता की घोषणा की गयी थी। देश का विभाजन भारत के दुर्भाग्य के कारण होना निश्चित ही हो चुका था, इसलिए कांग्रेस ने इसे न चाहते हुए भी स्वीकार कर लिया।

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प्रश्न 2.
माउण्टबेटन योजना क्या थी ?
उत्तर :
24 मार्च, 1947 ई० को लॉर्ड माउण्टबेटन भारत के वायसराय नियुक्त किये गये और ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि वह अधिक-से अधिक जून, 1948 ई० तक भारतीयों को सत्ता सौंप देगी।

3 जून, 1947 ई० को लॉर्ड माउण्टबेटन ने प्रस्ताव रखा कि भारत को दो भागों में विभाजित करके भारतीय संघ व पाकिस्तान नामक अलग-अलग राज्य बनाये जाएँ। भारतीय नरेशों के सामने यह विकल्प रखा गया कि वे अपना-अपना भविष्य स्वयं तय करें। कश्मीर के तत्कालीन महाराज हरिसिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 ई० को भारत सरकार से प्रार्थना की कि वह कश्मीर के भारत में विलय को स्वीकार कर लें।

प्रश्न 3.
माउण्टबेटन योजना के तीन सिद्धान्त लिखिए। (2017)
उत्तर :
माउण्टबेटन योजना के तीन सिद्धान्त निम्नांकित थे –

1. पाकिस्तान की माँग अस्वीकार – जिन्ना सारा बंगाल और असम पूर्वी पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे। इसी तरह सारे पंजाब और पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त तथा सिन्ध और बलूचिस्तान को पश्चिम पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे। लॉर्ड माउण्टबेटन तथा कांग्रेसी नेता इस बात के लिए बिल्कुल भी सहमत नहीं थे। वे पंजाब और बंगाल के हिन्दू-बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान से निकालना चाहते थे। इसलिए माउण्टबेटन योजना के अनुसार असम को पाकिस्तान से बाहर निकाल दिया गया और पंजाब तथा बंगाल के बँटवारे की व्यवस्था की गई। इस हेतु प्रत्येक हिन्दू-बहुल जिले को भारत में और प्रत्येक मुस्लिम बहुल जिले को पाकिस्तान में शामिल किया जाना था।

2, असेम्बलियों में बैठक व्यवस्था का विभाजन – पंजाब और बंगाल की असेम्बलियों के सदस्य अलग-अलग हिन्दू-बहुल और मुस्लिम-बहुल जिलों के हिसाब से बैठने की व्यवस्था करेंगे। यदि पंजाब के हिन्दू-बहुल जिलों के सदस्य पंजाब के बँटवारे के लिए प्रस्ताव पारित कर देंगे, तो पंजाब का बँटवारा कर दिया जाएगा। इसी प्रकार की व्यवस्था बंगाल में भी की गई थी।

3. सिलहट में जनमत संग्रह – चूँकि असम के सिलहट में मुसलमानों की जनसंख्या (UPBoardSolutions.com) अधिक थी, इसलिए यह व्यवस्था की गई कि वहाँ जनमत द्वारा यह निर्णय किया जाएगा कि वहाँ के नागरिक भारत में शामिल होना चाहते हैं अथवा पूर्वी पाकिस्तान में।

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प्रश्न 4.
क्या भारत-विभाजन टाला जा सकता था ? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर :
भारत का विभाजन अनिवार्य था या इसे टाला जा सकता था, इस प्रश्न पर विद्वानों के दो विरोधी मत हैं। मौलाना आजाद का मत है कि भारत का विभाजन अनिवार्य नहीं था, वरन् पं० जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल तथा कुछ राष्ट्रवादी नेताओं ने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए स्वेच्छा से विभाजन को स्वीकार किया था। दूसरे पक्ष के समर्थकों का कहना है कि उस समय की राजनीतिक परिस्थिति ऐसी बन चुकी थी कि विभाजन के अतिरिक्त कोई अन्य उपाय नहीं था। यदि कांग्रेस ने विभाजन को स्वीकार न किया होता तो देश का सर्वनाश तक हो सकता था।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि इसमें सन्देह नहीं है कि भारत का विभाजन एक सीमा तक अनुचित ही था, क्योंकि हम आज उसके दुष्परिणाम प्रत्यक्षतः देख रहे हैं। गांधी जी ने भी कहा था, “भारत का विभाजन मेरे 32 वर्ष के सत्याग्रह का लज्जाजनक परिणाम है।”

प्रश्न 5.
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के तीन प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए। [2014]
उत्तर :
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 की तीन प्रमुख प्रावधान निम्नवत् हैं –

  1. ब्रिटिश भारत का दो नये एवं सम्प्रभुत्व वाले दो देशों-भारत एवं पाकिस्तान में विभाजन जो 15 अगस्त, 1947 से प्रभावी हो।
  2. बंगाल और पंजाब रियासतों का इन दोनों नये देशों में विभाजन।
  3. दोनों नये देशों में गवर्नर जनरल के कार्यालय की स्थापना जो इंग्लैण्ड (UPBoardSolutions.com) की महारानी का प्रतिनिधि होता।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लॉई वेवेल ने किस स्थान पर सम्मेलन को बुलाया ?
उत्तर :
लॉर्ड वेवेल ने शिमला में एक सम्मेलन बुलाया।

प्रश्न 2.
कैबिनेट मिशन को किस ब्रिटिश प्रधानमन्त्री ने भारत भेजा था ?
उत्तर :
कैबिनेट मिशन को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री क्लीमेण्ट ने भारत भेजा था।

प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भारत का प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल कौन था ? [2010, 17]
उत्तर :
सी० राजगोपालाचारी।

प्रश्न 4.
क्लीमेण्ट एटली ने किस बात की घोषणा की थी ?
उत्तर :
क्लीमेण्ट एटली ने घोषणा की थी कि ब्रिटिश सरकार भारत के साम्प्रदायिक एवं राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए कैबिनेट मिशन भारत भेजेगी।

प्रश्न 5.
भारत का विभाजन किस योजना के तहत हुआ ?
उत्तर :
भारत का विभाजन माउण्टबेटन योजना के तहत हुआ।

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प्रश्न 6.
सम्प्रदायवाद से आप क्या समझते हैं ? इसके निराकरण का कोई एक उपाय बताइए। [2012]
उत्तर :
अन्य सम्प्रदायों और मजहबों के विरुद्ध द्वेष और भेदभाव पैदा करना सम्प्रदायवाद है। साम्प्रदायिक सद्भाव विकसित करके विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों के व्यक्तियों को एक-साथ रहने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए तथा इसके लिए कोई राष्ट्रीय नीति बनायी जानी चाहिए।

बहुविकल्पीय प्रशन

1. कांग्रेस को विधानसभा के चुनाव में कितने प्रान्तों में सफलता मिली ?

(क) 5 प्रान्तों में
(ख) 4 प्रान्तों में
(ग) 11 प्रान्तों में
(घ) 7 प्रान्तों में

2. भारत में अन्तरिम मन्त्रिमण्डल का गठन किसके नेतृत्व में किया गया ?

(क) पं० जवाहरलाल नेहरू के
(ख) सरदार वल्लभभाई पटेल के
(ग) मुहम्मद अली जिन्ना के
(घ) सुभाषचन्द्र बोस के

3. भारत किस सन् में आजाद हुआ ?

(क) 1942 ई० में
(ख) 1947 ई० में
(ग) 1948 ई० में
(घ) 1950 ई० में

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4. निम्नलिखित में से किसने भारत में आर्थिक नियोजन की नीति प्रारम्भ की ? [2013]

(क) पं० जवाहरलाल नेहरू
(ख) डॉ० बी०आर० अम्बेडकर
(ग) सरदार वल्लभभाई पटेल
(घ) महात्मा गांधी

5. भारत की स्वतन्त्रता और विभाजन की घोषणा की गई [2016]
             या
भारत के विभाजन के समय भारत में वाइसराय कौन थे?

(क) माउण्टबेटन योजना द्वारा
(ख) कैबिनेट मिशन द्वारा
(ग) वेवेल द्वारा
(घ) क्रिप्स योजना द्वारा

6. भारत में लिखित संविधान कब लागू हुआ? [2016]

(क) 15 अगस्त को
(ख) 14 अगस्त को
(ग) 10 दिसम्बर को
(घ) 26 जनवरी को

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7. देशी रियासतों के एकीकरण में किसने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया? [2018]

(क) महात्मा गाँधी
(ख) सरदार वल्लभभाई पटेल
(ग) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(घ) सुभाष चन्द्र बोस

उत्तरमाला 

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 16 भारत-विभाजन एवं स्वतन्त्रता-प्राप्ति 1

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 16 are helpful to complete your homework.

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UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 12 Electricity

UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 12 Electricity (विद्युत)

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पाठगत हल प्रश्न

[NCERT IN-TEXT QUESTIONS SOLVED]

खण्ड 12.1 (पृष्ठ संख्या 222)

प्रश्न 1.
विद्युत परिपथ का क्या अर्थ है?
उत्तर
किसी विद्युत धारा के सतत् तथा बंद पथ को विद्युत परिपथ कहते हैं। इससे विद्युत धारा प्रवाहित हो सकती है परंतु यदि परिपथ कहीं से टूट जाए या स्विच ऑफ कर दिया जाए, तो धारा का प्रवाह बंद हो जाता है।

प्रश्न 2.
विद्युत धारा के मात्रक की परिभाषा लिखिए।
उत्तर
विद्युत धारा का SI मात्रक (UPBoardSolutions.com) ऐम्पियर है। यदि किसी चालक से प्रति सेकंड 1 कूलॉम आवेश प्रवाहित होता है, तो विद्युत धारा का मान 1 ऐम्पियर कहलाता है। अतः
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प्रश्न 3.
एक कूलॉम आवेश की रचना करने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या परिकलित कीजिए।
उत्तर
हमें ज्ञात है कि 1 इलेक्ट्रॉन पर आवेश का मान e = 1.6 x 10-19C होता है।
अतः 1C आवेश की रचना करने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या (n) = [latex s=2]\frac { 1C }{ 1.6\times { 10 }^{ -9 } } [/latex]= 6.25×10-18 इलेक्ट्रॉन

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खण्ड 12.2 (पृष्ठ संख्या 224)

प्रश्न 1.
उस युक्ति का नाम लिखिए जो किसी चालक के सिरों पर विभवांतर बनाए रखने में सहायता करती है।
उत्तर
चालक के सिरों पर विभवांतर बनाए रखने वाली उस युक्ति का नाम बैट्री है, जो एक या अधिक विद्युत सेलों से बनी होती है।

प्रश्न 2.
यह कहने का क्या तात्पर्य है कि दो बिंदुओं के बीच विभवांतर 1V है?
उत्तर
जब हम कहते हैं दो बिंदुओं के बीच विभवांतर 1V है, (UPBoardSolutions.com) तो इसका यह तात्पर्य है कि एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक 1 कूलॉम (1C) आवेश को ले जाने में 1 जूल (1J) कार्य करना पड़ेगा।

प्रश्न 3.
6V बैट्री से गुजरने वाले हर एक कूलॉम आवेश को कितनी ऊर्जा दी जाती है?
उत्तर
आवेश (Q) = 1C, विभवांतर (V) = 6V
∴ प्रत्येक आवेश को दी गई ऊर्जा = किया गया कार्य (W)
= Q.V = 6V x 1C = 6J

खण्ड 12.5 ( पृष्ठ संख्या 232)

प्रश्न 1.
किसी चालक का प्रतिरोध किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर
किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है

  1. चालक तार की लंबाई-चालक तार का प्रतिरोध तार की लंबाई के अनुक्रमानुपाती होता है।
    i.e., R α 1 ………………………. (1)
  2. चालक तार के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल-प्रतिरोध अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (A) का व्युत्क्रमानुपाती होता है।
  3. पदार्थ की प्रकृति-उदाहरण के लिए निक्रोम के तार का प्रतिरोध कॉपर के तार से लगभग 60 गुना अधिक है।
  4. तापमान पर-शुद्ध धातुओं का प्रतिरोध ताप बढ़ाने पर बढ़ता (UPBoardSolutions.com) है तथा ताप कम करने पर कम हो जाता है।

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प्रश्न 2.
समान पदार्थ के दो तारों में यदि एक पतला तथा दूसरा मोटा हो, तो इनमें से किसमें विद्युत धारा आसानी से प्रवाहित होगी जबकि उन्हें समान विद्युत स्रोत से संयोजित किया जाता है? क्यों?
उत्तर
हम जानते हैं कि किसी चालक तार का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात्
[latex s=2]R\propto \frac { 1 }{ A } [/latex]
चूँकि मोटे तार के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल अधिक होता है।
अतः मोटे तार का प्रतिरोध पतले तार के प्रतिरोध की (UPBoardSolutions.com) अपेक्षा कम होगा, जिसके फलस्वरूप मोटे तार से विद्युत धारा आसानी से प्रवाहित होगी।

प्रश्न 3.
मान लीजिए किसी वैद्युत अवयव के दो सिरों के बीच विभवांतर को उसके पूर्व के विभवांतर की तुलना में घटाकर आधा कर देने पर भी उसका प्रतिरोध नियत रहता है। तब उस अवयव से प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा में क्या परिवर्तन होगा?
उत्तर
चूँकि प्रतिरोध, R = [latex s=2]\frac { V }{ 1 } [/latex](ओम के नियम से)
माना कि विभवांतर (V1) से घटाकर V2 कर दिया गया है। तक V2 = [latex s=2]\frac { { V }_{ 1 } }{ 2 } [/latex] चूँकि बँक प्रतिरोध नियत रहता है।
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अतः विभवांतर आधा हो जाने पर धारा भी आधी हो जाएगी।

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प्रश्न 4.
विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्र धातु (या मिश्रातु) के क्यों बनाए जाते हैं?
उत्तर
विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्रधातु (या मिश्रातु) के इसलिए बनाए जाते हैं क्योंकि-

  1. मिश्रधातुओं की प्रतिरोधकता शुद्ध धातुओं की अपेक्षा अधिक होती है तथा ताप वृद्धि के कारण इसके प्रतिरोधकता में नगण्य परिवर्तन होता है।
  2. मिश्रातुओं (मिश्रधातुओं) का अपचयन (दहन) उच्च (UPBoardSolutions.com) ताप पर शीघ्र नहीं होता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तालिका 12.2 में दिए गए आँकड़ों के आधार पर दीजिए।
(a) आयरन (Fe) तथा मर्करी (Hg) में कौन अच्छा विद्युत चालक है?
(b) कौन-सा पदार्थ सर्वश्रेष्ठ चालक है।
उत्तर

  1. हम जानते हैं कि अच्छे चालकों की प्रतिरोधकता कम होती है।
    अतः आयरन (Fe), मर्करी (Hg) से एक अच्छा चालक है। |
  2. तालिका (12.2) के आधार पर सिल्वर (Ag) एक सर्वश्रेष्ठ चालक है, क्योंकि तालिका में सबसे ऊपर स्थित है।

खण्ड 12.6 ( पृष्ठ संख्या 237)

प्रश्न 1.
किसी विद्युत परिपथ की व्यवस्था आरेख खींचिए जिसमें 2V के तीन सेलों की बैट्री, एक 5Ω प्रतिरोधक, एक 8Ω प्रतिरोधक, एक 12Ω प्रतिरोधक तथा एक प्लग कुंजी सभी श्रेणीक्रम में संयोजित हों।
उत्तर
श्रेणी क्रम में संयोजन के लिए व्यवस्था आरेख-
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प्रश्न 2.
प्रश्न 1 का परिपथ दुबारा खींचिए तथा इसमें प्रतिरोधकों से प्रवाहित विद्युत धारा को मापने के लिए ऐमीटर तथा 12Ω के प्रतिरोधक सिरों के बीच विभवांतर मापने के लिए वोल्टमीटर लगाइए। ऐमीटर तथा वोल्टमीटर के क्या पाठ्यांक होंगे?
उत्तर
यहाँ ऐमीटर को श्रेणीक्रम तथा वोल्टमीटर को 12Ω के प्रतिरोध
क के पाश्र्वक्रम में संयोजित किया (UPBoardSolutions.com) गया है।
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खण्ड 12.6 ( पृष्ठ संख्या 240)

प्रश्न 1.
जब (d) 1Ω तथा 106Ω (b) 1Ω, 103Ω तथा 106Ω के प्रतिरोध पाश्र्वक्रम में संयोजित किए जाते हैं, तो इनके
तुल्य प्रतिरोध के संबंध में आप क्या निर्णय करेंगे।
उत्तर
यदि R1 R2 R3…………….. पाश्र्वक्रम में संयोजित (UPBoardSolutions.com) हैं तब इसके तुल्य प्रतिरोध [RP] का मान होगा-
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स्पष्टतः पार्श्वक्रम में तुल्य प्रतिरोध का मान संयोजन में जुड़े अल्पतम प्रतिरोध से भी कम होता है।

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प्रश्न 2.
100Ω का एक विद्युत लैम्प, 50Ω का एक विद्युत टोस्टर तथा 5002 का एक जल फिल्टर 220V के विद्युत स्रोत | से पाश्र्वक्रम में संयोजित है। उस विद्युत इस्तरी का प्रतिरोध क्या है, जिसे यदि समान स्रोत के साथ संयोजित कर दें, तो वह इतनी ही विद्युत धारा लेती है, जितनी तीनों युक्तियाँ लेती हैं? यह भी ज्ञात कीजिए कि इस विद्युत इस्तरी से | कितनी विद्युत धारा प्रवाहित होती है?
उत्तर
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प्रश्न 3.
श्रेणीक्रम में संयोजित करने के स्थान पर वैद्युत युक्तियों को पाश्र्वक्रम में संयोजित करने के क्या लाभ हैं?
उत्तर
वैद्युत युक्तियों को पाश्र्वक्रम में संयोजित करने के निम्नलिखित लाभ हैं-

  1. प्रत्येक युक्ति के लिए विभवांतर समान होगी तथा युक्तियाँ अपने प्रतिरोध के अनुसार धारा ग्रहण कर सकती हैं।
  2. पार्श्वक्रम में प्रत्येक युक्ति के लिए अलग-अलग ऑन/ऑफ स्विच लगा सकते हैं।
  3. पाश्र्वक्रम में यदि किसी कारणवश (UPBoardSolutions.com) कोई एक युक्ति खराब भी हो जाए तो अन्य युक्तियाँ प्रभावित नहीं होती। हैं। वे सुचारू रूप से कार्य करती रहेंगी।
  4. पार्श्वक्रम में कुल प्रतिरोध का मान कम हो जाता है, जिसके कारण धारा का मान बढ़ जाता है।

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प्रश्न 4.
2Ω, 3Ω तथा 6Ω के तीन प्रतिरोधों को किस प्रकार संयोजित करेंगे कि संयोजन का कुल प्रतिरोध
(a) 4Ω
(b) 1Ω हो?
उत्तर
(a) माना कि R1 = 2Ω, R2 = 3Ω तथा R3 = 6Ω है।
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प्रश्न 5.
4Ω, 8Ω, 12Ω तथा 24Ω प्रतिरोध की चार कुंडलियों को किस प्रकार संयोजित करें कि संयोजन से
(a) अधिकतम
(b) निम्नतम प्रतिरोध प्राप्त हो सके?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 12 Electricity img-10

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खण्ड 12.7 ( पृष्ठ संख्या 242)

प्रश्न 1.
किसी विद्युत हीटर की डोरी क्यों उत्तप्त नहीं होती जबकि उसका तापन अवयव उत्तप्त हो जाता है?
उत्तर
विद्युत डोरी तथा तापन अवयव दोनों श्रेणीक्रम में जुड़े होते हैं जिससे दोनों में समान धारा प्रवाहित होती है परंतु डोरी | का प्रतिरोध अत्यंत कम होता है जबकि तापन अवयव विशुद्ध रूप से प्रतिरोधक है जिसका प्रतिरोध काफी ज्यादा होता है। अतः जूल के नियम से HαR होता है। इसलिए विद्युत स्रोत की ऊर्जा पूर्ण रूप से ऊष्मा में बदलकर तापन अवयव उत्तप्त हो जाता है जबकि डोरी के ताप (UPBoardSolutions.com) में नगण्य वृद्धि होती है।

प्रश्न 2.
एक घंटे में 50w विभवांतर से 96000 कूलॉम आवेश को स्थानांतरित करने में उत्पन्न ऊष्मा परिकलित कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 3.
20Ω प्रतिरोध की कोई विद्युत इस्तरी 5A विद्युत धारा लेती है। 30s में उत्पन्न ऊष्मा परिकलित कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 12 Electricity img-12

खण्ड 12.8 ( पृष्ठ संख्या 245)

प्रश्न 1.
विद्युत धारा द्वारा प्रदत्त ऊर्जा की दर का निर्धारण कैसे किया जाता है?
उत्तर
किसी विद्युत धारा द्वारा प्रदत्त ऊर्जा की दर विद्युत शक्ति (p)” के द्वारा निर्धारित होती है।
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प्रश्न 2.
कोई विद्युत मोटर 220V के विद्युत स्रोत से 5.0A विद्युत धारा लेता है। मोटर की शक्ति निर्धारित कीजिए तथा 2 घंटे में मोटर द्वारा उपभुक्त ऊर्जा परिकलित कीजिए।
उत्तर
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पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED]

प्रश्न 1.
प्रतिरोध R के किसी तार के टुकड़े को पाँच बराबर भागों में काटा जाता है। इन टुकड़ों को फिर पाश्र्वक्रम में संयोजित | कर देते हैं। यदि संयोजन को तुल्य प्रतिरोध R’ है, तो R/R1 अनुपात का मान क्या है।
(a) 1/25
(b) 1/5
(c) 5
(d) 25
उत्तर
(d)
संकेत- [प्रत्येक भाग का प्रतिरोध
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा पद विद्युत परिपथ में विद्युत शक्ति को निरूपित नहीं करता?
(a) I2R
(b) IR
(C) VI
(d) V2/R
उत्तर
(b)
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प्रश्न 3.
किसी विद्युत बल्ब का अनुमतांक 220V 100W है। जब इसे 110V पर प्रचालित करते हैं, तब इसके द्वारा उपभुक्त शक्ति कितनी होती है?
(a) 100w
(b) 75W
(c) 50w
(d) 25w
उत्तर
(d)
संकेत- [चूँकि अनुमतांक 220V, 100w है।
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प्रश्न 4.
दो चालक तार जिनके पदार्थ, लंबाई तथा व्यास समान हैं, किसी विद्युत परिपथ में पहले श्रेणीक्रम में और फिर पार्श्वक्रम में संयोजित किए जाते हैं। श्रेणीक्रम तथा पाश्र्वक्रम संयोजन में उत्पन्न ऊष्माओं का अनुपात क्या होगा?
(a) 1:2
(b) 2:1
(c) 1:4
(d) 4:1
उत्तर
(c) 1:4
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प्रश्न 5.
किसी विद्युत परिपथ में दो बिंदुओं के बीच विभवांतर मापने के लिए वोल्टमीटर किस प्रकार संयोजित किया जाता है?
उत्तर
विभवांतर मापने के लिए वोल्टमीटर को दो बिंदुओं के बीच पाश्र्वक्रम में संयोजित किया जाता है।

प्रश्न 6.
किसी ताँबे के तार का व्यास 0.5mm तथा  प्रतिरोधकता 1.6 x 10-8Ωm है। 10Ω प्रतिरोध का प्रतिरोधक बनाने के लिए कितने लंबे तार की आवश्यकता होगी? यदि इससे दो गुने व्यास का तार लें, तो प्रतिरोध में क्या अंतर आएगा?
उत्तर
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अतः तार का नया प्रतिरोध = 2.52
यदि तार का व्यास दुगुना कर दिया जाए तो प्रतिरोध का मान घटकर एक चौथाई हो जाएगा।

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प्रश्न 7.
किसी प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवांतर V के विभिन्न मानों के लिए उससे प्रवाहित विद्युत धाराओं I के संगत मान नीचे दिए गए हैं।
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 12 Electricity img-22
V तथा I के बीच ग्राफ खींचकर इस प्रतिरोधक का प्रतिरोध ज्ञात कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 8.
किसी अज्ञात प्रतिरोध के प्रतिरोधक के सिरों से 12V की बैट्री को संयोजित करने पर परिपथ में 2.5mA विद्युत धारा प्रवाहित होती है। प्रतिरोधक का प्रतिरोध परिकलित कीजिए।
उत्तर
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प्रश्न 9.
9V की किसी बैट्री को 0.2Ω, 0.3Ω, 0.4Ω, 0.5Ω तथा 12Ω के प्रतिरोधकों के साथ श्रेणीक्रम में संयोजित किया | जाता है। 122 के प्रतिरोधक से कितनी विद्युत धारा प्रवाहित होगी?
उत्तर
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हम जानते हैं कि श्रेणीक्रम में संयोजित (UPBoardSolutions.com) सभी प्रतिरोधकों से समान धारा प्रवाहित होती है।
∴ 12Ω के प्रतिरोधक से प्रवाहित धारा का मान (I) = 0.67 होगी।

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प्रश्न 10.
176Ω प्रतिरोध के कितने प्रतिरोधकों को पार्श्वक्रम में संयोजित करें कि 220V के विद्युत स्रोत से संयोजन से 5A विद्युत धारा प्रवाहित हो? ।
उत्तर
माना कि 176Ω प्रतिरोध वाले n प्रतिरोधकों को पार्श्वक्रम में संयोजित किए गए हैं।
अतः तुल्य प्रतिरोध (Rp) का मान होगा-
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 12 Electricity img-26

प्रश्न 11.
यह दर्शाइए कि आप 62 प्रतिरोध के तीन प्रतिरोधकों को किस प्रकार संयोजित करेंगे कि प्राप्त संयोजन का प्रतिरोध
(i) 9Ω
(ii) 4Ω हो।
उत्तर
दिया है R1 = R2 = R3 = 6Ω
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 12 Electricity img-27
(ii) 4Ω कुल प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए निम्न आकृति के अनुसार।
6Ω के तीन प्रतिरोधकों को संयोजित (UPBoardSolutions.com) करेंगे।
6Ω वाले दो प्रतिरोधकों को श्रेणीक्रम में तथा शेष बचे एक प्रतिरोध A क को पाश्र्वक्रम में।
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Rs =6 + 6 = 12Ω [∵ 6Ω वाले दो प्रतिरोधक श्रेणी क्रम में हैं। 12Ω और शेष बचे 6Ω का तुल्य प्रतिरोध-
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प्रश्न 12.
220V की विद्युत लाइन पर उपयोग किए जाने वाले बहुत से बल्बों का अनुमतांक 10W है। यदि 220V लाइन से अनुमन अधिकतम विद्युतधारा 5A है तो इस लाइन के दो तारों के बीच कितने बल्ब पाश्र्वक्रम में संयोजित किए जा सकते हैं?
उत्तर
दिया है—प्रत्येक बल्ब की शक्ति P = 10W और वोल्टता V=220V है।
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प्रश्न 13.
किसी विद्युत भट्टी की तप्त प्लेट दो प्रतिरोधक कुंडलियाँ A तथा B की बनी हैं, जिनमें प्रत्येक का प्रतिरोध 24W है तथा इन्हें पृथक-पृथक, श्रेणीक्रम में अथवा पाश्र्वक्रम में संयोजित करके उपयोग किया जाता है। यदि यह भट्टी 220V विद्युत स्रोत से संयोजित की जाती है, तो तीनों प्रकरणों में प्रवाहित विद्युत धाराएँ क्या हैं?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 12 Electricity img-31

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प्रश्न 14.
निम्नलिखित परिपथों में प्रत्येक में 2Ω प्रतिरोधक द्वारा उपभुक्त शक्तियों की तुलना कीजिए। (i) 6V की बैट्री से संयोजित 1Ω तथा 2Ω श्रेणीक्रम संयोजन (ii) 4V बैट्री से संयोजित 12Ω तथा 2Ω का पार्श्वक्रम संयोजन।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 12 Electricity img-32

प्रश्न 15.
दो विद्युत लैम्प जिनमें से एक का अनुमतांक 100W, 220V तथा दूसरे का 60W, 220V है, विद्युत मेन्स के साथ पार्श्वक्रम में संयोजित हैं। यदि विद्युत आपूर्ति की वोल्टता 220V है, तो विद्युत मेन्स से कितनी धारा ली जाती है?
उत्तर
अनुमतांक 100W ; 220V वाले लैम्प द्वारा ली गई विद्युत धारा-
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प्रश्न 16.
किसमें अधिक विद्युत ऊर्जा उपभुक्त होती हैं-250W का टी.वी. सेट जो एक घंटे तक चलाया जाता है अथवा 120w का विद्युत हीटर जो 10 मिनट के लिए चलाया जाता है?
उत्तर
TV सेट के लिए-
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प्रश्न 17.
18Ω प्रतिरोध का कोई विद्युत हीटर विद्युत मेन्स से 2 घंटे तक 15A विद्युत धारा लेता है। हीटर में उत्पन्न ऊष्मा की दर परिकलित कीजिए।
उत्तर
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UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 12 Electricity img-38

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प्रश्न 18.
निम्नलिखित को स्पष्ट कीजिए
(a) विद्युत लैम्पों के तंतुओं के निर्माण में प्रायः एकमात्र टंगस्टन का ही उपयोग क्यों किया जाता है?
(b) विद्युत तापन युक्तियों जैसे ब्रेड-टोस्टर तथा विद्युत इस्तरी के चालक शुद्ध धातुओं के स्थान पर मिश्र धातुओं (मिश्रातुओं) के क्यों बनाए जाते हैं?
(c) घरेलू विद्युत परिपथों में श्रेणीक्रम संयोजन का उपयोग क्यों नहीं किया जाता है?
(d) किसी तार का प्रतिरोध उसकी अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल में परिवर्तन के साथ किस प्रकार परिवर्तित होता है?
(e) विद्युत संचारण के लिए प्राय: कॉपर तथा ऐलुमिनियम के तारों का उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर
(a) विद्युत लैम्पों के तंतुओं के निर्माण में प्रायः एकमात्र धातु टंगस्टन का उपयोग किया जाता है, क्योंकि यह उच्च गलनांक (3380°C) की एक प्रबल धातु है, जो अत्यंत तप्त होकर प्रकाश उत्पन्न करते हैं, परंतु पिघलते नहीं।

(b) विद्युत तापन युक्तियों जैसे ब्रेड-टोस्टर (UPBoardSolutions.com) तथा विद्युत इस्तरी के चालक शुद्ध धातुओं के स्थान पर मिश्रातुओं (मिश्र धातुओं) के निम्न कारणों से बनाए जाते हैं|

  1. मिश्र धातुओं की प्रतिरोधकता शुद्ध धातुओं की तुलना में अधिक होती है।
  2. उच्च ताप पर मिश्रातुओं का उपचयन (ऑक्सीकरण) शीघ्र नहीं होता है।
  3. ताप वृद्धि के साथ इनकी प्रतिरोधकता में नगण्य परिवर्तन होता है।

(C) घरेलू विद्युत परिपथों में श्रेणीक्रम संयोजन का उपयोग निम्नलिखित कारणों से नहीं किया जाता है

  1. विभिन्न उपकरणों (युक्तियों) के साथ अलग-अलग स्विच ऑन/ऑफ के लिए नहीं लगा सकते। एक
    उपकरण खराब होने पर दूसरा भी कार्य करना बंद कर देता है। |
  2. श्रेणीक्रम संयोजन में सभी युक्तियों या उपकरणों से समान धारा प्रवाहित होती है, जिसकी हमें आवश्यकता नहीं है।
  3. परिपथ का कुल प्रतिरोध (R = R1+ R2 + …….) अधिक होने के कारण धारा का मान अत्यंत कम
    हो जाता है।

(d) किसी तार का प्रतिरोध उसकी अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
i.e., [latex s=2]R\propto \frac { 1 }{ A } [/latex]
जैसे-जैसे तार की मोटाई बढ़ेगी (अर्थात् तार का व्यास बढ़ेगा) अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल भी बढ़ेगा और तार के प्रतिरोध का मान कम हो जाएगा।

(e) विद्युत संचारण के लिए प्राय: कॉपर (UPBoardSolutions.com) तथा ऐलुमिनियम के तारों का उपयोग करते हैं क्योंकि

  1. ये विद्युत के बहुत अच्छे चालक हैं।
  2. इनकी प्रतिरोधकता बहुत कम है, जिसके कारण तार जल्द गर्म नहीं होते हैं।
  3. इनसे सुगमतापूर्वक तार बनाए जा सकते हैं।

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 12 are helpful to complete your homework.

If you have any doubts, please comment below. UP Board Solutions try to provide online tutoring for you.