UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 देशभक्त: चन्द्रशेखरः (संस्कृत-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 देशभक्त: चन्द्रशेखरः (संस्कृत-खण्ड)

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अवतरणों का सन्दर्भ हिन्दी अनुवाद

(प्रथमं दृश्यम्)

प्रश्न 1.
(स्थानम्-वाराणसी न्यायालयः। न्यायाधीशस्य पीठे एकः दुर्धर्षः पारसीकः तिष्ठति। आरक्षकाः चन्द्रशेखरं तस्य सम्मुखम् आनयन्ति। अभियोगः प्रारभते। चन्द्रशेखरः पुष्टाङ्गः गौरवर्णः षोडशवर्षीयः किशोरः।)
आरक्षकः- श्रीमान् ! अयम् अस्ति चन्द्रशेखरः। अयं राजद्रोही। गतदिने अनेनैव असहयोगिनां सभायां एकस्य आरेक्षकस्य दुर्जयसिंहस्य मस्तके प्रस्तरखण्डेन प्रहारः कृतः। येन दुर्जयसिंहः आहतः।।
न्यायाधीशः-(तं बालकं विस्मयेन विलोकयन्) रे बालक ! तव किं नाम ?
चन्द्रशेखरः-आजादः (स्थिरीभूय)।
न्यायाधीशः–तव पितुः किं नाम ?
चन्द्रशेखरः–स्वतन्त्रः।।
न्यायाधीशः-त्वं कुत्र निवसति ? तव गृहं कुत्रास्ति ?
चन्द्रशेखरः-कारागार एव मम गृहम् ।।
न्यायाधीशः-(स्वगतम्) कीदृशः प्रमत्तः स्वतन्त्रतायै अयम् ? (प्रकाशम्) अतीवधृष्ट: उद्दण्डश्चायं नवयुवकः। अहम् इमं पञ्चदश कशाघातान् दण्डयामि।
चन्द्रशेखरः-नास्ति चिन्ता। [2008, 17]
उत्तर
[ पीठेः = आसन पर। दुर्धर्षः = दुर्दमनीय। पारसीकः = पारसी। आरक्षकाः = सिपाही। आनयन्ति = ले आते हैं। अभियोगः = मुकदमा। पुष्टाङ्गः = हृष्ट-पुष्ट शरीर वाला। षोडशवर्षीयः = सोलह वर्ष का। प्रस्तरखण्डेन = पत्थर के टुकड़े से। (UPBoardSolutions.com) आहतः = घायल हो गया। स्थिरीभूय = दृढ़ होकर। प्रमत्तः = पागल। कशाघातान् = कोड़ों से।] |

सन्दर्भ-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘संस्कृत-खण्ड’ के ‘देशभक्तः चन्द्रशेखरः’ पाठ से उद्धृत है।

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प्रसंग-इसमें चन्द्रशेखर आजाद की वीरता, साहस और देशभक्ति का वर्णन किया गया है।

अनुवाद-(स्थान-वाराणसी न्यायालय। न्यायाधीश के आसन पर एक दुर्दमनीय पारसी बैठा हुआ है। सिपाही चन्द्रशेखर को उसके सामने लाते हैं। मुकदमा आरम्भ होता है। चन्द्रशेखर पुष्ट अंगों वाला, गोरे रंग का, सोलह वर्षीय एक किशोर है।)

सिपाही-श्रीमान् जी! यह चन्द्रशेखर है। यह राजद्रोही है। पिछले (UPBoardSolutions.com) दिन इसने ही असहयोग आन्दोलनकारियों की सभा में एक सिपाही दुर्जनसिंह के मस्तक पर पत्थर के टुकड़े से प्रहार किया था। उससे दुर्जनसिंह घायल हो गया था।

न्यायाधीश-(उस बालक को आश्चर्य से देखते हुए) अरे बालक! तुम्हारा क्या नाम है ?
चन्द्रशेखर--‘आजाद’ (दृढ़ता से)।
न्यायाधीश–तुम्हारे पिता का नाम क्या है ?
चन्द्रशेखर-‘स्वतन्त्र’।
न्यायाधीश-तुम कहाँ रहते हो ? तुम्हारा घर कहाँ है ?
चन्द्रशेखर-जेल ही मेरा घर है।
न्यायाधीश-(मन में) यह स्वतन्त्रता के लिए कैसा पागल है ? (प्रकट रूप में) यह नवयुवक अत्यन्त ढीठ और उद्दण्ड है। मैं इसे 15 कोड़े मारे जाने का दण्ड देता हूँ। चन्द्रशेखर-चिन्ता नहीं है।

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(द्वितीयं दृश्यम्)

प्रश्न 2.
(ततः दृष्टिगोचरौ भवतः–कौपीनमात्रावशेषः, फलकेन दृढं बद्धः चन्द्रशेखरः, कशाहस्तेन चाण्डालेन, अनुगम्यमानः कारावासाधिकारी गण्डासिंहश्च।)
गण्डासिंहः-(चाण्डाले प्रति) दुर्मुख ! मम आदेशसमकालमेव कशाघातः (UPBoardSolutions.com) कर्तव्यः। (चन्द्रशेखरं प्रति) रे दुर्विनीत युवक ! लभस्व इदानीं स्वाविनयस्य फलम्। कुरु राजद्रोहम्। दुर्मुख ! कशाघातः एकः (दुर्मुखः चन्द्रशेखरं कशया ताडयति।)
चन्द्रशेखरः-जयतु भारतम्।।
गण्डासिंहः-दुर्मुख ! द्वितीयः कशाघातः। (दुर्मुखः पुनः ताडयति)।
ताडित: चन्द्रशेखरः पुनः-पुनः “भारतं जयतु” इति वदति।
(एवं स पञ्चदशकशाघातैः ताडितः।)
उत्तर
[ दृष्टिगोचरौ भवतः = दिखाई देते हैं। कौपीनमीत्रावशेषः = लँगोटीमात्र पहने हुए। फलकेन दृढं बद्धः = हथकड़ी में कसकर बाँधा गया। कशाहस्तेन = हाथ में कोड़ा लिये हुए। कारावासाधिकारी = जेलर। आदेश-समकालमेव = आदेश पाते ही। कशाघीतः कर्त्तव्यः = कोड़े मारना। स्वाविनयस्य ( स्व + अविनयस्य) = अपनी धृष्टता का।]

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सन्दर्भ-प्रसंग-पूर्ववत्।
अनुवाद-(इसके पश्चात् लँगोटीमात्र पहने हुए, हथकड़ी से मजबूत बँधा हुआ चन्द्रशेखर और हाथ में कोड़ा लिये चाण्डाल से अनुगमित जेल अधिकारी गण्डासिंह दिखाई पड़ते हैं।)
गण्डासिंह-(जल्लाद से) दुर्मुख! मेरा आदेश पाते ही कोड़े लगाना। (चन्द्रशेखर से) अरे अविनयी युवक! अब तू अपनी अविनय का फल प्राप्त कर। राजद्रोह कर! दुर्मुख! एक कोड़े का प्रहार करो। (दुर्मुख चन्द्रशेखर को कोड़े से पीटता है।) ।
चन्द्रशेखर–भारतमाता की जय हो।
गण्डासिंह-दुर्मुख! कोड़े का दूसरा प्रहार (करो)। (दुर्मुख पुनः कोड़ा मारता है।) (UPBoardSolutions.com) पीटा गया चन्द्रशेखर बार-बार ‘भारतमाता की जय हो’ कहता है। (इस प्रकार वह पन्द्रह कोड़ों से पीटा जाता है।)

प्रश्न 3.
यदा चन्द्रशेखरः कारागारात् मुक्त: बहिः आगच्छति, तदैव सर्वे जनाः तं परित: वेष्टयन्ति, बहवः बालकाः तस्य पादयोः पतन्ति, तं मालाभिः अभिनन्दयन्ति च।
चन्द्रशेखरः–किमिदं क्रियते भवद्भिः ? वयं सर्वे भारतमातुः अनन्यभक्ताः तस्याः शत्रूणां कृते मदीया इमे रक्तबिन्दवः अग्निस्फुलिङ्गाः भविष्यन्ति।।
(जयतु भारतम्’ इति उच्चैः कथयन्तः सर्वे गच्छन्ति।)
उत्तर
[मुक्तः = छूटा हुआ। परितः वेष्टयन्ति = चारों ओर से घेर लेते हैं। (UPBoardSolutions.com) अभिनन्दयन्ति = अभिनन्दन करते हैं। मदीयाः = मेरी। अग्नि स्फुलिंगाः = अग्नि की चिंगारियाँ]

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सन्दर्भ-प्रसंग-पूर्ववत्।
अनुवाद-जब चन्द्रशेखर जेल से छूटकर बाहर आता है, तब सभी लोग उसे चारों ओर से घेर लेते हैं। बहुत-से बालक उसके पैरों में गिरते हैं और उसकी मालाओं से सम्मान करते हैं।
चन्द्रशेखर–आप लोग यह क्या कर रहे हैं ? हम सब भारतमाता के अनन्य भक्त हैं। उसके शत्रुओं के लिए हमारी ये खून की बूंदें अग्नि की चिंगारियाँ होंगी।
(‘भारतमाता की जय हो’ इस प्रकार जोर से कहते हुए सभी चले जाते हैं।)

अतिलघु-उत्तरीय संस्कृत प्रश्नोतर

प्रश्न 1
न्यायाधीशस्य पीठे (आसने) कः अतिष्ठत् ?
उत्तर
न्यायाधीशस्य पीठे (आसने) एकः पारसीकः अतिष्ठत्।।

प्रश्न 2
चन्द्रशेखरः कः आसीत् ? [2010, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17]
उतर
चन्द्रशेखरः प्रसिद्धः क्रान्तिकारी (UPBoardSolutions.com) देशभक्तश्चासीत्।।

प्रश्न 3
चन्द्रशेखरः कथं बन्दीकृतः ?
उत्तर
चन्द्रशेखरः आङ्ग्लशासकै: राजद्रोही घोषितः; अत: बन्दीकृतः।

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प्रश्न 4
चन्द्रशेखरस्य कः अपराधः आसीत् ?
उत्तर
चन्द्रशेखरः एकस्य आरक्षकस्य मस्तके पाषाणखण्डेन प्राहरत्।

प्रश्न 5
चन्द्रशेखरः स्वनाम किम् अकथयत् ?
उत्तर
चन्द्रशेखरः स्वनाम ‘आजाद’ इति अकथ्यत्।

प्रश्न 6
चन्द्रशेखरः स्वगृहं किम् अवदत् ? [2016]
या
चन्द्रशेखरः स्वगृहं कुत्र किम् अवदत् ?
उत्तर
चन्द्रशेखर: स्वगृहं कारागारम् अवदत्।

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प्रश्न 7
न्यायाधीशः चन्द्रशेखरं कथम्/किम् अदण्डयत् ? [2014]
उत्तर
न्यायाधीश: चन्द्रशेखरं पञ्चदश (UPBoardSolutions.com) कशाघातान् अदण्डयत्।

प्रश्न 8
कशया ताडिते चन्द्रशेखरः किम् अकथयत् ?
या
कशया ताडितः चन्द्रशेखरः पुनः पुनः किम् अवदत् ? [2010, 17]
उत्तर
कशया ताडितः चन्द्रशेखरः पुनः पुनः ‘जयतु भारतम् इति’ अकथयत्।

प्रश्न 9
यदा चन्द्रशेखरः कारागारात् बहिः आगच्छति तदा बालकाः किं कुर्वन्ति ?
उत्तर
यदा चन्द्रशेखरः कारागारात् बहिः आगच्छति तदा बालकाः तस्य पादयोः पतन्ति, तं मालाभिः । अभिनन्दयन्ति च।।

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प्रश्न 10
“शत्रूणां कृते मदीयाः इमे रक्तबिन्दवः अग्निस्फुलिङ्गः भविष्यन्ति’, इदं कस्य कथनम् अस्ति ?
उत्तर
इदं चन्द्रशेखरस्य कथनम् अस्ति।।

प्रश्न 11
‘कारागार एवं मम गृहं इदं कथनम् कस्य के प्रति अस्ति ?
उत्तर
इदं चन्द्रशेखरस्य कथनं (UPBoardSolutions.com) न्यायाधीशं प्रति अस्ति।

प्रश्न 12
चन्द्रशेखरः स्व पितुः नाम किम् अळ्थत् ?’
उत्तर
चन्द्रशेखरः स्व पितुः नाम ‘स्वतन्त्र’ इति अकथयत्।

प्रश्न 13
‘कारागार एव मम गृहम्’ इति कः अवदत् ?
उत्तर
‘कारागार एवं मम गृहम्’ इति चन्द्रशेखरः अवदत्।

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प्रश्न 14
‘स्वतन्त्रः कस्य पितुः नाम ?
उत्तर
‘स्वतन्त्रः चन्द्रशेखरस्य पितुः नाम आसीत्।

प्रश्न 15
चन्द्रशेखरस्य रक्तबिन्दवः अग्निस्फुलिङ्गाः केषां कृते भविष्यन्ति ?
उत्तर
चन्द्रशेखरस्य रक्तबिन्दवः अग्निस्फुलिङ्गाः (UPBoardSolutions.com) शत्रूणां कृते भविष्यन्ति।

प्रश्न 16
दुर्मुखः कः आसीत् ? [2011, 13, 15]
उत्तर
दुर्मुखः चाण्डालः आसीत्।

प्रश्न 17
‘जयतु भारतम्’ इति कथनम् कस्य के प्रति च अस्ति ?
उत्तर
‘जयतु भारतम्’ इति कथनम् चन्द्रशेखरस्य गण्डासिंहं प्रति च अस्ति।

प्रश्न 18
आरक्षकस्य किं नाम आसीत् ?
उत्तर
आरक्षकस्य नाम दुर्जयसिंहः आसीत्।

प्रश्न 19
न्यायाधीशः कः आसीत् ? [2014]
उत्तर
न्यायाधीशः एकः दुर्धर्षः पारसीकः आसीत्।

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प्रश्न 20
प्रतिकशाघात पश्चात् चन्द्रशेखरः किम् अकथयत् ? [2011, 17]
उत्तर
प्रतिकशाघात् पश्चात् चन्द्रशेखरः (UPBoardSolutions.com) ‘जयतु भारतम्’ इति अकथयत्।

प्रश्न 21
केन कारणेन चन्द्रशेखरः न्यायालये आनीतः ? [2010]
उत्तर
आरक्षकस्य दुर्जयसिंहस्य मस्तके प्रस्तरखण्डेन प्रहारेण कारणेन चन्द्रशेखरः न्यायालये आनीतः।

प्रश्न 22
राष्ट्रभक्तः कः अस्ति ? [2011]
उत्तर
राष्ट्रभक्त: चन्द्रशेखरः अस्ति।

अनुवादात्मक

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए-
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 देशभक्त: चन्द्रशेखरः (संस्कृत-खण्ड) img-3

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व्याकरणत्मक

प्रश्न 1
‘युष्मद् के पञ्चमी में और ‘अस्मद् के सप्तमी विभक्ति में रूप लिखिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 देशभक्त चन्द्रशेखर (संस्कृत-खण्ड) img-1

प्रश्न 2
निम्नलिखित धातु रूपों के लकार, वचन तथा पुरुष बताइए-
आनयन्ति, अस्ति, निवससि, दण्डयामि, ताडयति, वदति, वेष्टयन्ति, आगच्छति, अभिनन्दयन्ति, भविष्यन्ति, तिष्ठति, लभस्व।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 देशभक्त: चन्द्रशेखरः (संस्कृत-खण्ड) img-4

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प्रश्न 3
निम्नलिखित शब्दों के सन्धि-विच्छेद कीजिए-
तदेव, नास्ति, स्वाविनयस्य।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 देशभक्त चन्द्रशेखर (संस्कृत-खण्ड) img-2

प्रश्न 4
निम्नलिखित शब्दों के वचन एवं विभक्ति बताइए-
भालाभिः, सर्वे, तस्याः।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 देशभक्त: चन्द्रशेखरः (संस्कृत-खण्ड) img-5

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प्रश्न 5
निम्नलिखित शब्दों के सविग्रह समास का नाम लिखिए-
कशाघातः, रक्तबिन्दवः।
उत्तर
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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 (Section 3)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 भूमि संसाधन (अनुभाग – तीन)

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विस्तृत उत्तरीय प्रत

प्रश्न 1.
भारत में पायी जाने वाली मिट्टियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए तथा उनका आर्थिक महत्त्व लिखिए। [2011]
या

जलोढ़ मिट्टी वाले क्षेत्र में जनसंख्या के अधिक घनत्व के कारणों की व्याख्या कीजिए।
या
भारत में कितने प्रकार की मिट्टियाँ पायी जाती हैं ? उनके क्षेत्र तथा महत्त्व बताइए।
या
मरुस्थलीय मिट्टी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
या
जलोढ़ मिट्टी और काली मिट्टी में अन्तर बताइए। [2011]
या

भारत में पायी जाने वाली दो मिट्टियों का नाम क्षेत्र सहित लिखिए। [2011]
या

मिट्टी के किन्हीं दो महत्त्वों का वर्णन कीजिए। [2013]
या

जलोढ़ मिट्टी से आप क्या समझते हैं? इसके दो प्रमुख क्षेत्र तथा प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
या
काली मिट्टी की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। [2018]
या

भारत में पायी जाने वाली किसी एक प्रकार की मिट्टी का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) क्षेत्र, (ख) विशेषताएँ, (ग) उपयोगिता।
या
भारत की मिट्टियों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए तथा किसी एक मिट्टी की किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :

भारतीय मिट्टियाँ, उनके क्षेत्र एवं आर्थिक महत्त्व

भारत में निम्नलिखित प्रकार की मिट्टियाँ पायी जाती हैं—

1. पर्वतीय मिट्टी,
2. जलोढ़ मिट्टी,
3. काली अथवा रेगुर मिट्टी,
4. लाल मिट्टी,
5. लैटेराइट मिट्टी तथा
6. मरुस्थलीय मिट्टी।

1. पर्वतीय मिट्टियाँ- हिमालय पर्वतीय प्रदेश में नवीन, पथरीली, उथली तथा सरन्ध्र मिट्टियाँ पायी जाती हैं। इन मिट्टियों का विस्तार भारत में लगभग 2 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्रफल में है। हिमालय पर्वत के दक्षिणी भागों में कंकड़-पत्थर तथा मोटे कणों वाली बालूयुक्त मिट्टी पायी जाती है। नैनीताल, मसूरी तथा चकरौता क्षेत्र में चूने के अंशों की प्रधानता वाली मिट्टी पायी जाती है। हिमालय के कुछ क्षेत्रों में आग्नेय (UPBoardSolutions.com) शैलों के विखण्डन से निर्मित मिट्टियाँ पायी जाती हैं। हिमाचल प्रदेश में काँगड़ा, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग तथा असम के पहाड़ी ढालों पर इसी मिट्टी की अधिकता मिलती है। चाय उत्पादन के लिए यह मिट्टी सर्वश्रेष्ठ है। इसी कारण इसे ‘चाय की मिट्टी’ के नाम से पुकारा जाता है।

2. जलोढ़ मिट्टी- भारत के विशाल उत्तरी मैदान में नदियों द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों से बहाकर लाई गयी जीवांशों से युक्त उपजाऊ मिट्टी मिलती है, जिसे ‘काँप’ या ‘कछारी’ मिट्टी भी कहते हैं। इस मिट्टी का विस्तार देश के 40% क्षेत्रफल में है। यह मिट्टी हिमालय पर्वत से निकलने वाली तीन बड़ी नदियों सतलुज, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र तथा उनकी सहायक नदियों द्वारा बहाकर लाई गयी है। जलोढ़ मिट्टी पूर्वी तटीय मैदानों, विशेष रूप से महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टा प्रदेश में भी सामान्य रूप से मिलती है। जिन क्षेत्रों में बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता, वहाँ पुरानी जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है, जिसे ‘बाँगर’ कहा जाता है। वास्तव में यह मिट्टी भी नदियों द्वारा बहाकर लाई गयी प्राचीन काँप मिट्टी ही होती है। जिन क्षेत्रों में नदियों ने नवीन काँप मिट्टी का जमाव किया है, उसे ‘खादर’ के नाम से पुकारा जाता है। नवीन जलोढ़ मिट्टियाँ प्राचीन जलोढ़ मिट्टियों की अपेक्षा अधिक उपजाऊ होती हैं। सामान्यतः जलोढ़ मिट्टियाँ सर्वाधिक उपजाऊ होती हैं।

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इनमें पोटाश, चूना तथा फॉस्फोरिक अम्ल पर्याप्त मात्रा में होता है, परन्तु नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है। शुष्क प्रदेशों की मिट्टियों में क्षारीय तत्त्व अधिक होते हैं। भारत की लगभग 50% जनसंख्या का भरण-पोषण इन्हीं मिट्टियों द्वारा होता है। इन मिट्टियों में गेहूँ, गन्ना, चावल, तिलहन, तम्बाकू, जूट आदि फसलों का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। इन्हीं कारणों से यहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक है।

3. काली अथवा रेगुर मिट्टी- इस मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित लावा की शैलों के विखण्डन के फलस्वरूप हुआ है। इस मिट्टी का रंग काला होता है, जिस कारण इसे ‘काली मिट्टी’ अथवा ‘रेगुर मिट्टी’ भी कहा जाता है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है। इसमें लोहांश, मैग्नीशियम, चूना, ऐलुमिनियम तथा जीवांशों की मात्रा अधिक पायी जाती है। वर्षा होने पर यह चिपचिपी-सी हो जाती है तथा सूखने पर इसमें दरारें पड़ जाती हैं। इस मिट्टी का विस्तार दकन ट्रैप के उत्तर-पश्चिमी भागों में लगभग 5.18 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल पर है। महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा तथा दक्षिणी मध्य प्रदेश के पठारी भागों (UPBoardSolutions.com) में यह मिट्टी विस्तृत है। इस मिट्टी का विस्तार दक्षिण में गोदावरी तथा कृष्णा नदियों की घाटियों में भी है।
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 भूमि संसाधन 1
इस मिट्टी में कपास का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन होने के कारण इसे ‘कपास की काली मिट्टी के नाम से भी पुकारा जाता है। इसमें पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। कैल्सियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम कार्बोनेट, पोटाश और चूना इसके प्रमुख पोषक तत्त्व हैं। इस मिट्टी में फॉस्फोरिक तत्त्वों की कमी होती है। ग्रीष्म ऋतु में इस मिट्टी में गहरी दरारें पड़ जाती हैं। इस मिट्टी में कपास, गन्ना, मूंगफली, तिलहन, गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, तम्बाकू, सोयाबीन आदि फसलों का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में किया जाता है।

4. लाल मिट्टी- यह मिट्टी लाल, पीले या भूरे रंग की होती है। इसमें लोहांश की मात्रा अधिक होने के कारण उनके ऑक्साइड में बदलने से इस मिट्टी का रंग ईंट के समाने लाल होता है। प्रायद्वीपीय पठार के दक्षिण-पूर्वी भागों पर लगभग 6 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल में इस मिट्टी का विस्तार पाया जाता है। लाल मिट्टी ने काली मिट्टी के क्षेत्र को चारों ओर से घेर रखा है। भारत में इस मिट्टी का विस्तार कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र के दक्षिण-पूर्वी भाग, तमिलनाडु, ओडिशा, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, मेघालय तथा छोटा नागपुर के पठार पर है। लाल मिट्टी में फॉस्फोरिक अम्ल, जैविक तथा नाइट्रोजन पदार्थों की कमी पायी जाती है। इस मिट्टी में मोटे अनाज; जैसे-ज्वार, बाजरा, गेहूँ, दलहन, तिलहन आदि फसलें उगायी जाती हैं।

5. लैटेराइट मिट्टी- उष्ण कटिबन्धीय भारी वर्षा के कारण होने वाली तीव्र निक्षालन की क्रिया के फलस्वरूप इस मिट्टी का निर्माण हुए है। इस मिट्टी का रंग गहरा पीला होता है, जिसमें सिलिका तथा लवणों की मात्रा अधिक होती है। इसमें मोटे कण, कंकड़-पत्थर की अधिकता तथा जीवांशों का अभाव पाया जाता है। भारत में यह मिट्टी 1.26 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल पर विस्तृत है। यह मिट्टी केरल, कर्नाटक, राजमहल की पहाड़ियों, ओडिशी, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पूर्वी बिहार, उत्तर-पूर्व में मेघालय तथा दक्षिण महाराष्ट्र में पायी जाती है। लैटेराइट मिट्टी कम उपजाऊ होती है। यह केवल घास तथा झाड़ियों को पैदा करने के लिए ही उपयुक्त है, परन्तु उर्वरकों की सहायता से इस मिट्टी में चावल, गन्ना, काजू, चाय, कहवा तथा रबड़ की कृषि की जाने लगी है।

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6. मरुस्थलीय मिट्टी- मरुस्थलीय क्षेत्रों में वर्षा बहुत कम होने के कारण यहाँ ऊसर, धूर, राँकड़ तथा कल्लर जैसी मिट्टियाँ पायी जाती हैं। यह मिट्टी लवण एवं क्षारीय गुणों से युक्त होती है। इस मिट्टी में सोडियम, कैल्सियम व मैग्नीशियम तत्त्वों की प्रधानता होती है, जिससे यह अनुपजाऊ हो गयी है। इसमें नमी एवं वनस्पति के अंश नहीं पाये जाते हैं। इसमें सिंचाई करके केवल मोटे अनाज ही उगाये जाते हैं। यह मिट्टी सरन्ध्र होती है तथा इसमें बालू के पर्याप्त कण दिखलायी पड़ते हैं। भारत में इस मिट्टी का विस्तार 1.5 लाख वर्ग हेक्टेयर क्षेत्रफल पर मिलता है। मरुस्थलीय मिट्टी पश्चिमी राजस्थान, उत्तरी गुजरात, (UPBoardSolutions.com) पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी पंजाब एवं हरियाणा राज्यों में पायी जाती है। बालू के मोटे कणों की प्रधानता होने के कारण इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता बहुत कम होने के साथ-साथ जीवांश तथा नाइट्रोजन की मात्रा भी कम होती है। आर्थिक दृष्टि से मरुस्थलीय मिट्टियाँ उपयोगी नहीं होतीं, परन्तु इनमें सिंचाई करके मोटे अनाज (ज्वार, बाजरा, मूंग तथा उड़द) उगाये जा सकते हैं।

प्रश्न 2.
‘भू-क्षरण’ या ‘मृदा-अपरदन’ से आप क्या समझते हैं ? इनके कारण तथा निवारण के उपायों पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
या
मृदा-अपरदन किसे कहते हैं ? मृदा-अपरदन के चार कारण लिखिए। [2009]
या

मृदा-संरक्षण के दो उपाय बताइए। [2013]
या

मृदा-संरक्षण नियन्त्रण हेतु चार सुझाव सुझाइए। [2016]
या

भूमि-क्षरण के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए। [2013]
या

भारतीय मिट्टी के संरक्षण हेतु पाँच सुझाव दीजिए। [2011, 17]
या

मृदा संरक्षण से आप क्या समझते हैं। मृदा संरक्षण के कोई छः उपाय बताइए। [2016, 18]
उत्तर :

भू-क्षरण या मृदा-अपरदन

भू-क्षरण या मृदा-अपरदन से अभिप्राय प्राकृतिक साधनों (जल या वर्षा, पवन आदि) के द्वारा भूमि की ऊपरी परत या आवरण के नष्ट होने से है। भूमि-अपरदन से भौतिक हानि के अलावा आर्थिक हानि भी होती है, क्योंकि इससे भूमि की ऊपरी परत में मौजूद उर्वर (UPBoardSolutions.com) पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं तथा भूमि अनुर्वर हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि भू-क्षरण वास्तव में मिट्टी के विनाश के लिए रेंगती हुई मृत्यु के समान है।

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भू-क्षरण के कारण
मृदा-अपरदन अथवा भू-क्षरण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

  1. पवन-अपरदन- मरुस्थलों और अर्द्ध-मरुस्थलों में पवन मिट्टी के महीन कणों को उड़ाकर ले जाती . है, जिससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो जाती है।
  2. अत्यधिक चराई- पहाड़ी ढालों पर पशुओं और विशेषकर बकरियों द्वारा अत्यधिक चराई के फलस्वरूप मिट्टी का अपरदन होता है।
  3. प्राकृतिक वनस्पति का विनाश- वृक्षों की जड़ें मिट्टी के कणों को बाँधे रहती हैं और उन्हें बह जाने से रोकती हैं। किन्तु जिन स्थानों पर वृक्षों को अन्धाधुन्ध काट दिया जाता है, वहाँ पानी के बहाव की गति तेज हो जाती है और मिट्टी का अपरदन बढ़ जाता है।
  4. मूसलाधार वर्षा- मूसलाधार वर्षा अपने साथ मृदा को बहाकर ले जाती है, जिससे अत्यधिक भूमि-अपरदन होता है।
  5. मिट्टी के प्रकार- जिन क्षेत्रों में मिट्टी ढीली, असंगठित या तीव्र ढाल वाली होती है, वहाँ मिट्टी का अपरदन भी अधिक या शीघ्र होता है। अधिक तीव्र ढालों पर बहता हुआ जल अधिक अपरदन करता
    है, जिसे अवनालिका अपरदन कहते हैं।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि भारत में भू-क्षरण के लिए तीव्र एवं मूसलाधार वर्षा का होना, नदियों में प्रतिवर्ष बाढ़ों का आना, वनों का अधिकाधिक विनाश, खेतों को खाली एवं परती छोड़ देना, तीव्र पवनप्रवाह का होना, कृषि-भूमि पर पशुओं की अनियमित एवं अनियन्त्रित चराई, खेतों की उचित मेड़बन्दी न किया जाना, भूमि का अधिक ढालूपन, जल निकास की उचित व्यवस्था का न होना आदि कारक उत्तरदायी हैं।

निवारण (मृदा संरक्षण) के उपाय
भू-क्षरण की समस्या के निवारण के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं

1. वृक्षारोपण- 
जिन प्रदेशों में बढ़े अधिक आती हैं, वहाँ जल की (UPBoardSolutions.com) गति को नियन्त्रित करने के लिए वृक्षारोपण किया जाना चाहिए। वृक्षों से गिरने वाली पत्तियाँ खेतों में जीवांश की वृद्धि कर उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में भी कारगर सिद्ध होती हैं।

2. नदियों पर बाँधों का निर्माण- 
नदियों पर बाँधों का निर्माण कर दिये जाने से जल-गति नियन्त्रित होती है तथा बाढ़ के प्रकोप में भी कमी आती है। बाढ़ में कमी आने से भू-क्षरण भी स्वत: ही कम होता है।

3. खेतों की मेड़बन्दी करना- 
भू-क्षरण में कमी लाने के लिए खेतों में ऊँची-ऊँची मेड़बन्दी करना अति आवश्यक है।

4. पशुचारण पर नियन्त्रण- 
पशुओं द्वारा खाली या जोती हुई भूमि पर चराई नहीं करानी चाहिए, क्योंकि पशुओं के खुरों से मिट्टी टूटती है। अत: चरागाहों पर ही पशुचारण किया जाना उचित होता है।

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5. ढाल के विपरीत दिशा में जुताई करना- 
भू-क्षरण रोकने के लिए भूमि के ढाल की विपरीत दिशा में जुताई करनी चाहिए। इससे निर्मित नालियाँ जल की गति को कम कर भू-क्षरण को रोकने में कारगर सिद्ध हो सकती हैं।

6. जल के निकास की उचित व्यवस्था- 
ढालू खेतों में वर्षा के जल के निकास की उचित व्यवस्था कर भू-क्षरण को कुछ सीमा तक रोका जा सकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेतों का ही निर्माण किया जाना चाहिए, अन्यथा भू-क्षरण अत्यधिक होगा।

7. खेतों में हरी खाद वाली फसलें उगाना- 
वर्षा ऋतु में खेतों को खुला नहीं छोड़ना चाहिए, वरन् उनमें हरी खाद वाली फसलें—लैंचा, सनई, मूंग नं० 1 आदि बोनी चाहिए। ऐसा करने से मिट्टी को पोषक तत्त्वों की प्राप्ति होगी तथा भू-क्षरण भी रुक सकेगा।

8: नाली एवं गड्ढों को एक सम बनाना- 
वर्षा के आधिक्य के कारण जल-प्रवाह द्वारा निर्मित गड्ढों एवं नालियों को मिट्टी से भरकर भूमि को समतल बना देना चाहिए। इससे भूमि का कटाव स्वत: ही रुक जाएगा।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार का ध्यान भू-क्षरण की ओर गया है तथा इस समस्या के निवारण हेतु सन् 1953 ई० में केन्द्रीय भू-क्षरण बोर्ड की स्थापना की गयी है, जिसका मुख्य कार्य सरकार को इस
समस्या के सम्बन्ध में सुझाव देना है। वर्तमान समय तक 180 लाख हेक्टेयर (UPBoardSolutions.com) कृषि- भूमि का संरक्षण किया जा चुका है तथा 110 लाख हेक्टेयर भूमि पर वृक्षारोपण का कार्य पूरा किया जा चुका है।

प्रश्न 3.
भारत में भूमि उपयोग की विभिन्न श्रेणियों की व्याख्या कीजिए।
या
किसी देश में भूमि के उपयोग के बारे में जानने की आवश्यकता क्यों पड़ती है ? भारत में विभिन्न प्रकार की भूमि के उपयोग पर प्रकाश डालिए।
या
भारत में भूमि उपयोग का प्रारूप बताइए। [2013]
या
भूमि उपयोग से आप क्या समझते हैं ? भारत में भूमि उपयोग के प्रारूप पर प्रकाश डालिए। [2010]
उत्तर :

भूमि-उपयोग

किसी भी देश के आर्थिक विकास में संसाधनों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। संसाधन दो प्रकार के होते हैं–प्राकृतिक तथा मानव द्वारा निर्मित। प्राकृतिक संसाधनों में भूमि तथा खनिज, जल, वन तथा पशुधन आदि प्रमुख हैं। पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं, जब कि जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। घने बसे देशों; जैसे-भारत में भूमि संसाधन दुर्लभ होते जा रहे हैं।

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बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए आवास, अन्न तथा वनों की लकड़ी उपलब्ध कराने के लिए भूमि संसाधन का विवेकपूर्ण उपयोग अति आवश्यक हो गया है। अतः यह जरूरी है कि बंजर तथा बेकार भूमि का पुनरुद्धार, राष्ट्रीय उद्यानों तथा अभयारण्यों की स्थापना, वनारोपण उपायों द्वारा भूमि संसाधने का संरक्षण किया जाए जिससे भावी पीढ़ियों के लिए यह सुरक्षित रह सके। भूमि उपयोग से यही अभिप्राय है कि हम भूमि संसाधन का विवेकपूर्ण दोहन करें, क्योंकि भूमि संसाधन की उपयोगिता पर ही किसी देश की आर्थिक समृद्धि निर्भर करती है। अफगानिस्तान की आर्थिक दुर्दशा का कारण भूमि-संसाधन का प्रयोग में न आना ही है। इसके विपरीत भारत 108 करोड़ से भी अधिक देशवासियों को अन्न देकर भी अन्न बचा रहा है।

भूमि-उपयोग के ज्ञान की आवश्यकता

भूमि किसी भी देश का सबसे महत्त्वपूर्ण संसाधन है, क्योंकि भूमि पर ही कृषि, पशुपालन, खनन, उद्योग आदि व्यवसाय आधारित हैं। भूमि से ही किसी भी देश की जनसंख्या का पोषण होता है। मानव-मात्र की समस्त प्राथमिक आवश्यकताएँ (भोजन, वस्त्र, आवास) (UPBoardSolutions.com) भूमि से ही पूरी होती हैं। प्रत्येक देश में उपलब्ध भूमि संसाधनों की प्रकृति तथा स्वरूप भिन्न-भिन्न होते हैं। तदनुसार वहाँ भूमि का उपयोग किया जाता है। किसी भी देश के भूमि-उपयोग के बारे में जानना निम्नलिखित कारणों से आवश्यक होता है

  • इससे कुल प्राप्त भूमि संसाधनों के उचित उपयोग को नियोजित किया जा सकता है।
  • भूमि-उपयोग प्रारूप के ज्ञान से भूमि की विविध समस्याओं (जैसे-अपरदन, मरुस्थलीकरण, अनुर्वरता आदि) को नियन्त्रित किया जा सकता है।
  • बंजर भूमि तथा परती भूमि का उचित उपयोग किया जा सकता है।
  • आवश्यकतानुसार भूमि के उपयोग में परिवर्तन किया जा सकता है।

भारत में भूमि का उपयोग

भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र 3287.3 लाख हेक्टेयर में से 92.2% भूमि का उपयोग होता है। इसमें 19.3% भाग वनों से आच्छादित है। भारतीय सांख्यिकीय रूपरेखा में देश की भूमि के उपयोग को निम्नवत् प्रदर्शित किया गया है–

1. कृषि-भूमि- 
नवपाषाण काल के भारतीयों ने देश में लगभग 14 हजार हेक्टेयर भूमि पर कृषि- कार्य आरम्भ कर दिया, जो वर्ष 1993-94 तक 1,86,420 हजार हेक्टेयर तक पहुंच चुका था। इस प्रकार देश की लगभग आधी से अधिक भूमि कृषि के अन्तर्गत आ चुकी थी।

2. वन-भूमि- 
भारत के कुल क्षेत्रफल के 68,830 हजार हेक्टेयर भूमि (1995-96) अर्थात् 21% क्षेत्र वनों के अन्तर्गत है। वन वर्षा के जल को मिट्टी के अन्दर रिसने में सहायक होते हैं। इससे जल का संरक्षण होता है। वन मृदा का भी संरक्षण करते हैं, जिससे बाढ़ों पर नियन्त्रण होता है।

3. चरागाह भूमि- 
हमारा देश कृषि प्रधान देश है और यहाँ पशुपालन कृषि के सहायक उद्योग के रूप में प्रचलित है। अधिकांशतः पशुओं को चारे की फसलों; पुआल, भूसा आदि; पर पाला जाता है। वर्ष 1993-94 में हमारे देश में 11,176 हजार हेक्टेयर भूमि अर्थात् देश के कुल क्षेत्र के लगभग 4% भाग पर स्थायी चरागाह थे।

4. बंजर भूमि- 
वह भूमि जिस पर कोई उपज पैदा नहीं होती, बंजर भूमि कहलाती है। अन्धाधुन्ध वृक्ष काटने, स्थानान्तरी कृषि तथा अत्यधिक नहरीय सिंचाई द्वारा भूमि बंजर हो जाती है। औद्योगिक कूड़ेकचरे को भूमि पर फेंकने से भी भूमि बंजर हो जाती है। (UPBoardSolutions.com) देश की लगभग 24% भूमि बंजर है, जिसके अन्तर्गत पर्वतीय, पठारी, हिमाच्छादित, मरुस्थलीय, दलदली तथा अन्य भूमि जो कृषि के लिए अनुपयुक्त है, सम्मिलित हैं।

5. परती भूमि- 
परती भूमि वह भूमि होती है, जिस पर प्रत्येक वर्ष खेती नहीं की जाती, अपितु दो या तीन वर्षों में एक बार फसल उगायी जाती है। यह सीमान्त भूमि होती है, जिसे उर्वरता बढ़ाने के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। वर्तमान समय में देश का लगभग 7% क्षेत्र इस प्रकार की भूमि के अन्तर्गत

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय मिट्टियों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
भारतीय संसाधनों में मिट्टियों का भूमि संसाधन के रूप में बड़ा महत्त्व है, क्योंकि इन्हीं पर देश का सम्पूर्ण कृषि उत्पादन एवं जैव-जगत् निर्भर करता है। अमेरिकी भूमि विशेषज्ञ डॉ० बेनेट के अनुसार, ‘मिट्टी भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की वह ऊपरी परत है, जो मूल शैलों, जलवायु एवं जैव क्रिया से बनती है।” भारतीय मिट्टियों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • पुरानी एवं परिपक्व- रचना की दृष्टि से अधिकांश भारतीय मिट्टियाँ बहुत (UPBoardSolutions.com) पुरानी और पूर्णत: परिपक्व हैं।
  • प्राचीन जलोढ़- भारत के मैदानी भागों की अधिकांश मिट्टियाँ प्राचीन जलोढ़ हैं, जो न केवल शैलों के विखण्डन से बनी हैं, वरन् उनके निर्माण में जलवायु सम्बन्धी कारकों का भी प्रमुख हाथ रहा है।
  • मिट्टियों में नाइट्रोजन, जीवांश, वनस्पति अंश और खनिज लवणों की कमी- भारत की प्रायः सभी मिट्टियों में इन उपयोगी तत्त्वों की कमी पायी जाती है।
  • ऊँचे तापमान- उपोष्ण कटिबन्धीय भारत में मिट्टियों के तापमान प्राय: ऊँचे पाये जाते हैं। इससे शैलों के टूटते ही उनका रासायनिक विघटन शीघ्र आरम्भ हो जाता है।
  • हल्का आवरण- पहाड़ी एवं पठारी भागों में मिट्टी का आवरण हल्का और फैला हुआ होता है, जबकि मैदानी और डेल्टाई क्षेत्रों में यह गहरों और संगठित होता है।

प्रश्न 2.
काली मिट्टी (रेगुर) तथा लैटेराइट मिट्टी में दो अन्तर लिखिए।
या
काली मिट्टी तथा लैटेराइट मिट्टी में अन्तर बताइए।
उत्तर :
काली मिट्टी तथा लैटेराइट मिट्टी में निम्नलिखित प्रमुख अन्तर हैं
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 भूमि संसाधन 2

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प्रश्न 3.
खादर और बाँगर में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2011, 12, 16]
उत्तर :
बाँगर मिट्टी तथा खादर मिट्टी में निम्नलिखित प्रमुख अन्तर हैं
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 भूमि संसाधन 3
प्रश्न 4.
जलोढ़ मिट्टी व लैटेराइट मिट्टी में अन्तर लिखिए।
उत्तर :
जलोढ़ मिट्टी व लैटेराइट मिट्टी में निम्नलिखित प्रमुख अन्तर हैं
UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 4 भूमि संसाधन 4
प्रश्न 5.
बंजर भूमि किसे कहते हैं ? मनुष्य बंजर भूमि का क्षेत्र बढ़ाने में किस प्रकार सहायक है ? दो बिन्दु दीजिए।
उत्तर :
वह भूमि जिस पर कोई उपज पैदा नहीं होती, ‘बंजर भूमि’ कहलाती है। प्रायः उच्च पहाड़ी. चट्टानी, रेतीली तथा दलदली भूमियाँ बंजर होती हैं। बंजर भूमि के क्षेत्रफल की वृद्धि में मनुष्य की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसके दो बिन्दु अग्रलिखित हैं

  • अन्धाधुन्ध वृक्ष काटने, स्थानान्तरी कृषि तथा अत्यधिक नहरी सिंचाई द्वारा भूमि बंजर हो जाती है।
  • औद्योगिक कूड़े-कचरे को भूमि पर फेंकने से भी वह भूमि बंजर हो जाती है।

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प्रश्न 6.
भूमि संसाधन का क्या तात्पर्य है? भूमि संसाधन के कोई तीन महत्त्व लिखिए। [2011]
या
भूमि से आप क्या समझते हैं ? [2010]
उत्तर :
किसी देश या प्रदेश के अन्तर्गत सम्मिलित भूमि को भूमि संसाधन कहते हैं। इसके अन्तर्गत कृष्य भूमि, चरागाह भूमि, कृषि-योग्य भूमि, बेकार भूमि, वन भूमि, बंजर भूमि, परती भूमि आदि सम्मिलित की जाती हैं। मनुष्य इस उपलब्ध भूमि पर विविध प्रकार से क्रिया-कलाप करता है। कृषि, पशुपालन, वनोद्योग, खनन, निर्माण उद्योग, परिवहन, व्यापार, संचार आदि सभी का सम्बन्ध भूमि संसाधन से होता है। भूमि संसाधन जल-संसाधनों को आधार प्रदान करते हैं तथा मनुष्य विभिन्न रूपों में इनका उपयोग अपने क्रिया-कलापों की पूर्ति में करता है।

प्रश्न 7.
हमारे देश में वनों के क्षेत्र को बढ़ाना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर :
वन किसी भी राष्ट्र की प्राकृतिक सम्पदा होते हैं। देश के आर्थिक विकास तथा पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए यह आवश्यक है कि देश में कम-से-कम एक-तिहाई क्षेत्र पर वनों का विस्तार हो। भारत में 20% से कम क्षेत्र पर ही वन उगे हुए हैं। देश की तेजी (UPBoardSolutions.com) से बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों का विस्तार करना आवश्यक है। वन प्राकृतिक सौन्दर्य में वृद्धि तो करते ही हैं, जीव-जन्तुओं और पक्षियों के अभयारण्य भी होते हैं। ये पारिस्थितिक सन्तुलन बनाने में भी महत्त्वपूर्ण होते हैं। वन जलवायु के नियन्त्रक भी कहे जाते हैं तथा वर्षा कराने में भी इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। अतएव इनके क्षेत्र का विस्तार करना अत्यावश्यक है।

प्रश्न 8.
भारतीय काली मिट्टी को कपास की मिट्टी क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
इस मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित लावा की शैलों के विखण्डन के फलस्वरूप हुआ है। इस मिट्टी का रंग काला होता है, जिस कारण इसे ‘काली मिट्टी’ अथवा ‘रेगुर मिट्टी’ भी कहा जाता है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है। इसमें लोहांश, मैग्नीशियम, चूना, ऐलुमिनियम तथा जीवांशों की मात्रा अधिक पायी जाती है। इस मिट्टी का विस्तार लगभग 5 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल पर महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा तथा दक्षिणी मध्य प्रदेश के पठारी भागों में है। इसके अतिरिक्त दक्षिण में गोदावरी तथा कृष्णा नदियों की घाटियों में भी यह मिट्टी पायी जाती है। इस मिट्टी में कपास का भारी मात्रा में उत्पादन होने (UPBoardSolutions.com) के कारण इसे ‘कपास की काली मिट्टी’ के नाम से भी पुकारा जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऐसे दो राज्यों के नाम लिखिए जहाँ काली मिट्टी पायी जाती है।
उत्तर :
महाराष्ट्र तथा गुजरात ऐसे दो राज्य हैं, जहाँ काली मिट्टी बहुतायत से पायी जाती है।

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प्रश्न 2.
लैटेराइट मिट्टियाँ कहाँ पायी जाती हैं ?
उत्तर :
भारत में पश्चिमी घाट, छोटा नागपुर के पठार, मेघालय तथा तमिलनाडु की पहाड़ियों, केरल तथा पूर्वी घाट के क्षेत्रों में लैटेराइट मिट्टियाँ पायी जाती हैं।

प्रश्न 3.
मरुस्थलीय मिट्टी के कम उपजाऊ होने के दो कारण लिखिए।
उत्तर :
मरुस्थलीय मिट्टी के कम उपजाऊ होने के दो कारण निम्नलिखित हैं|

  • मरुस्थलीय मिट्टी में आर्द्रता धारण करने की क्षमता कम होती है।
  • इनमें नाइट्रोजन तथा जीवांश की कमी होती है।

प्रश्न 4.
‘बाँगर’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
बाँगर एक प्रकार की मिट्टी है, जो उत्तरी मैदान में नदियों की पुरानी काँप द्वारा निर्मित होती है।

प्रश्न 5.
लैटेराइट मिट्टी के कम उपजाऊ होने के दो कारण लिखिए।
उत्तर :
लैटेराइट मिट्टी के कम उपजाऊ होने के दो कारण निम्नलिखित हैं

  • लैटेराइट मिट्टी सिलिका तथा लवण (नमक) के कणों से युक्त होती है, जिसमें मोटे-मोटे कण तथा कंकड़-पत्थर का बाहुल्य होता है।
  • शुष्क मौसम में लैटेराइट मिट्टी ईंट की भाँति सख्त हो जाती है। (UPBoardSolutions.com) इस मिट्टी में कैल्सियम, मैग्नीशियम तथा नाइट्रोजन की कमी तथा पोटाश का अभाव होता है।

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प्रश्न 6.
लाल-पीली मिट्टी के कम उपजाऊ होने के दो कारण लिखिए।
उत्तर :
लाल-पीली मिट्टी के कम उपजाऊ होने के दो कारण निम्नलिखित हैं

  • प्राचीन क्रिस्टलीय शैलों के विखण्डन से बनने के कारण ये छिद्रयुक्त होती हैं; अत: इनमें जलधारण की क्षमता कम होती है।
  • इनमें फॉस्फोरिक अम्ल, जैविक तथा नाइट्रोजन पदार्थ (ह्यूमस) की कमी होती है।

प्रश्न 7.
जलोढ़ मिट्टी की किन्हीं दो प्रमुख विशेषताओं को लिखिए। [2016, 17]
उत्तर :
जलोढ़ मिट्टी की दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • इसके कण सूक्ष्म होते हैं और इसमें जल देर तक ठहर सकता है।
  • इसमें पोटाश तथा चूने की पर्याप्त मात्रा होती है।

प्रश्न 8.
‘भू-क्षरण’ अथवा ‘भू-अपरदन’ के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
‘भू-क्षरण’ अथवा ‘भू-अपरदन’ के प्रमुख कारक हैं—

  • पवन,
  • अत्यधिक पशुचारण,
  • मूसलाधार वृष्टि तथा
  • प्राकृतिक वनस्पति का विनाश।

प्रश्न 9.
‘भू-क्षरण के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
सामान्यतया भू-क्षरण निम्नलिखित दो प्रकार का होता है

  • चादरी भू-क्षरण-जब पवन अथवा जल के द्वारा भूमि की ऊपरी कोमल सतह काटकर उड़ा दी जाती है अथवा बहा दी जाती है, तो उसे समतल अथवा चादरी भू-क्षरण कहते हैं।
  • नालीदार भू-क्षरण–तीव्र गति से बहता हुआ जल जब भूमि (UPBoardSolutions.com) में गहरी-गहरी नालियाँ बना देता है, तो उसे गहन अथवा नालीदार भू-क्षरण कहते हैं।

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प्रश्न 10.
चाय की खेती के लिए उपयोगी मिट्टी कहाँ पायी जाती है ?
उत्तर :
मध्य हिमालय के पर्वतीय ढालों पर मिट्टी में वनस्पति अंशों की अधिकता होती है। इसमें लोहे की मात्रा अधिक तथा चूने का अंश कम होता है। यह मिट्टी चाय के उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। काँगड़ा, देहरादून, दार्जिलिंग तथा असोम के पहाड़ी ढालों पर यह मिट्टी अधिकता से पायी जाती है।

प्रश्न 11.
डेल्टाई काँप मिट्टी कहाँ पायी जाती है ?
उत्तर :
डेल्टाई काँप मिट्टी नदियों के डेल्टा में पायी जाती है, जहाँ नदियाँ काँप मिट्टी का जमाव करती रहती हैं। यह मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ होती है।

प्रश्न 12.
भारत की मिट्टी में किन तत्त्वों की कमी पायी जाती है ?
उत्तर :
भारत की मिट्टी में नाइट्रोजन, जीवांश, वनस्पति अंश और खनिज लवणों की कमी पायी जाती है।

प्रश्न 13.
समुचित भूमि उपयोग न करने के कौन-से दो दृष्परिणाम हो सकते हैं ?
उत्तर :
समुचित भूमि का उपयोग न करने के निम्नलिखित दो दुष्परिणाम हो सकते हैं|

  • कृषि-योग्य भूमि बंजर भूमि में बदल सकती है।
  • भूमि की उत्पादकता में कमी हो सकती है।

प्रश्न 14.
भारत में कहवा उत्पन्न करने वाले दो राज्यों के नाम लिखिए।
या
भारत में कहवा उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर :
उर्वरकों की सहायता से लैटेराइट मिट्टी में कहवा की खेती कर्नाटक, (UPBoardSolutions.com) केरल, महाराष्ट्र के दक्षिणी भागों, आन्ध्र प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है।

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प्रश्न 15.
चाय की खेती के लिए दो उपयोगी भौगोलिक दशाओं को लिखिए।
उत्तर :
चाय की खेती के लिए उपयोगी दो भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं

  • मिट्टी में वनस्पति के अंशों व लोहे के अंशों की अधिकता तथा चूने के अंश की न्यूनता।
  • आग्नेय शैलों के विखण्डन से निर्मित नवीन, पथरीली, दलदली तथा प्रवेश्य मिट्टियाँ।

प्रश्न 16.
कपास की खेती के लिए सर्वोत्तम मिट्टी कौन-सी है ? उसकी एक विशेषता को लिखिए। [2015]
उत्तर :
कपास की खेती के लिए सर्वोत्तम मिट्टी ‘काली मिट्टी’ अथवा ‘रेगुर मिट्टी’ है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता पर्याप्त होती है तथा इसमें पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं।

प्रश्न 17.
लाल मिट्टी भारत में सबसे ज्यादा कहाँ पायी जाती है ?
उत्तर :
भारत में लाल मिट्टी कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के दक्षिण-पूर्वी भागों, तमिलनाडु, मेघालय, ओडिशा में पायी जाती है।

प्रश्न 18.
मिट्टी का निर्माण करने वाले दो कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • वायु तथा
  • जल

प्रश्न 19.
उत्तर प्रदेश के अधिकतर भागों में किस प्रकार की मिट्टी पायी जाती है ? [2010]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश के अधिकतर भागों में (UPBoardSolutions.com) जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है।

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‘बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. कौन-सी मिट्टी वर्षा से चिपचिपी हो जाती है? ‘
(क) लाल
(ख) काली
(ग) जलोढ़
(घ) पर्वतीय

2. काली मिट्टी कौन-सी फसल के लिए उपयुक्त है? [2013]
(क) गेहूँ
(ख) चना
(ग) कपास
(घ) गन्ना

3. लैटेराइट मिट्टी किस राज्य में अधिक मिलती है?
(क) कर्नाटक में
(ख) असोम में
(ग) मेघालय में
(घ) उत्तर प्रदेश में

4. जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है [2012]
(क) पर्वतीय क्षेत्रों में
(ख) मैदानी क्षेत्रों में
(ग) पठारी क्षेत्रों में
(घ) रेगिस्तानी क्षेत्रों में

5. लैटेराइट मिट्टी का रंग होता है
(क) काला
(ख) पीला
(घ) लाल

6. निम्नलिखित में से कौन-सी मिट्टी कपास उत्पादन के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है? [2010]
या
कपास की खेती के लिए सबसे उत्तम मिट्टी है [2012, 13, 14]
(क) जलोढ़ मिट्टी
(ख) लाल मिट्टी
(ग) काली मिट्टी
(घ) लैटेराइट मिट्टी

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7. जलोढ़ मिट्टी का निर्माण मुख्यतः किसके द्वारा होता है? [2014, 16]
(क) ज्वालामुखी द्वारा
(ख) पवन द्वारा
(ग) हिमानी द्वारा
(घ) नदियों द्वारा

8. भारत के किस राज्य में काली मिट्टी का विस्तार सर्वाधिक है?
(क) महाराष्ट्र
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) असोम
(घ) राजस्थान

9. वन हमारी सहायता करते हैं
(क) मिट्टी का कटाव रोककर
(ख) बाढ़ रोककर
(ग) वर्षा की मात्रा बढ़ाकर
(घ) इन सभी प्रकार से

10. जलोढ़ मिट्टी किस फसल की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है? [2011]
(क) चाय
(ख) रबड़
(ग) कपास
(घ) गेहूँ

11. भारत की सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी है [2016]
(क) जलोढ़ मिट्टी
(ख) लाल मिट्टी
(ग) लैटेराइट मिट्टी
(घ) पर्वतीय मिट्टी

12. निम्न में से कौन-सी मिट्टी चाय की खेती के लिए उपयुक्त है? [2017]
(क) पर्वतीय मिट्टी
(ख) काली मिट्टी
(ग) जलोढ़ मिट्टी
(घ) लाल मिट्टी

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13. काली मिट्टी का निर्माण होता है [2017]
(क) वायु से
(ख) ग्लेशियरों से
(ग) ज्वालामुखी विस्फोट से
(घ) नदियों से

उत्तरमाला

1. (ख), 2. (ग), 3. (ग), 4. (ख), 5. (ख), 6. (ग), 7. (घ), 8. (क), 9. (घ), 10. (घ), 11. (क), 12. (क), 13. (ग)

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 जय सुभाष (खण्डकाव्य)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 जय सुभाष (खण्डकाव्य)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 जय सुभाष (खण्डकाव्य).

प्रश्न 1
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए। [2012, 15 16]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य का सारांश लिखिए। [2009, 10, 11, 12, 14, 15]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य की कथा संक्षेप में लिखिए। [2009, 11, 12, 13, 14, 15, 18]
या
“जय सुभाष’ का कथानक राष्ट्रभक्ति से पूर्ण है।” सोदाहरण समझाइए। “जय सुभाष’ खण्डकाव्य का कथानक स्पष्ट कीजिए। [2011]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य हमें राष्ट्रीयता की प्रेरणा देता है। कथन की पुष्टि कीजिए। [2014]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
प्रस्तुत खण्डकाव्य नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के व्यक्तित्व और आदर्श गुणों का परिचय प्रदान करने वाली एक सुन्दर रचना है। इस काव्य का सम्पूर्ण कथानक सात सर्गों में विभक्त है। इसका सर्गवार सारांश इस प्रकार है

सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 (UPBoardSolutions.com) ई० को कटक (उड़ीसा) में हुआ था। इनके पिता को नाम ‘जानकीनाथ बोस’ और माता का नाम ‘प्रभावती देवी’ था।

बड़े होने पर सुभाष ने अपनी तीव्र बुद्धि का परिचय दिया। इन्होंने अपने परिश्रम एवं लगन से सभी शैक्षिक परीक्षाओं में उत्तम अंक प्राप्त किये। प्रेसीडेन्सी कॉलेज में पढ़ते समय ऑटेन नामक अंग्रेज प्रोफेसर द्वारा, भारतीयों की निन्दा सुनकर इन्होंने उसके गाल पर एक तमाचा मारकर स्वाभिमान, देशभक्ति एवं साहस का अद्भुत उदाहरण दिया। इन्होंने बी० ए० की परीक्षा तथा विदेश जाकर आई० सी० एस० की परीक्षा उत्तीर्ण की। महात्मा गाँधी और देशबन्धु चितरंजनदास से प्रभावित होकर सरकार द्वारा प्रदत्त आई० सी० एस० के उच्च पद को त्याग दिया और स्वतन्त्रता संग्राम में सम्मिलित हो गये।

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द्वितीय खण्डकाव्य के सर्ग में सुभाष के भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने का वर्णन है। सन् 1921 ई० में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन व्यापक रूप से चल रहा था। उन्हीं दिनों देशबन्धु जी ने एक नेशनल कॉलेज की स्थापना की, जिसका प्रधानाचार्य उन्होंने सुभाष को नियुक्त कर दिया। सुभाष ने छात्रों में देशप्रेम और स्वतन्त्रता की भावना जाग्रत की और राष्ट्र-भक्त स्वयंसेवकों की एक सेना तैयार की। ये पं० मोतीलाल नेहरू द्वारा स्थापित ‘स्वराज्य पार्टी के प्रबल समर्थक थे। इन्होंने दल के कई प्रतिनिधियों को कौंसिल में प्रवेश कराया। इन्होंने कलकत्ता महापालिका का खूब विकास किया। सरकार ने इन्हें अकारण ही अलीपुर जेल में डाल दिया। इनका अधिकांश जीवन कारागार में ही व्यतीत हुआ।

खण्डकाव्य के तीसरे सर्ग की कथा सन् 1928 से आरम्भ होती है। सन् 1928 ई० में कलकत्ता के कांग्रेस के 46वें अधिवेशन में पं० मोतीलाल नेहरू को अध्यक्ष बनाया गया। इसी समय लोगों को सुभाष की संगठन-कुशलता का परिचय मिला। इसके बाद सुभाष को कलकत्ता नगर का मेयर निर्वाचित किया गया। इन्होंने पुनः सभाओं में ओजस्वी भाषण दिये, जिनको सुनकर इन्हें सिवनी, भुवाली, अलीपुर और माण्डले जेल में भेजकर यातनाएँ दी गयीं, जिससे इनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। इन्हें स्वास्थ्य-लाभ के लिए पश्चिमी देशों में भेजा गया। इन्होंने वहाँ ‘द इण्डियन स्ट्रगल’ नामक पुस्तक लिखी। भारत लौटने पर अगले वर्ष हीरापुर के कांग्रेस अधिवेशन में इन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया गया।

चतुर्थ सर्ग में हीरापुर अधिवेशन से लेकर ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ की (UPBoardSolutions.com) स्थापना तक का वर्णन है। ताप्ती नदी के तट पर बिठ्ठल नगर में कांग्रेस का इक्यावनवाँ अधिवेशन हुआ। इन्हें अधिवेशन का अध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया गया। इससे आजादी का आन्दोलन और अधिक तीव्र हो उठी।

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इसके बाद त्रिपुरा में कांग्रेस का अगला अधिवेशन हुआ। इसमें कांग्रेस अध्यक्ष के चयन में दो नेताओं में मतभेद हो गया। उस समय कांग्रेस को विघटन से बचाने के लिए सुभाष ने कांग्रेस से त्यागपत्र देकर ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ (अप्रगामी दल) की स्थापना की। अब सुभाष सबकी श्रद्धा और आशा के केन्द्र बनकर सबके प्रिय नेताजी’ बन गये थे। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि अपनी मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेज सरकार की यातनाओं को निरन्तर सहन करते रहे।

पञ्चम सर्ग में सुभाष के छद्मवेश में घर से भाग जाने की कथा का वर्णन है। सुभाष जब घर में नजरबन्द थे, तब सरकार ने इनकी समस्त गतिविधियों पर कड़ा प्रतिबन्ध लगा रखा था। 15 जनवरी, 1941 ई० को जाड़े की अर्द्ध-रात्रि में दाढ़ी बढ़ाये हुए, ये एक मौलवी के वेश में पुलिस की आँखों में धूल झोंककर कल गये और फ्रण्टियर मेल से पेशावर पहुँच गये और वहाँ से बर्लिन। बर्लिन में इन्होंने ‘आजाद हिन्द फौज’ की स्थापना की। दूर रहकर स्वतन्त्रता-संग्राम का नेतृत्व करना कठिन जानकर ये पनडुब्बी द्वारा टोकियो पहुँचे। जापानियों ने इन्हें पूरा सहयोग दिया। सहगल, शाहनवाज, ढिल्लन और लक्ष्मीबाई ने वीरता से इसे सेना का नेतृत्व किया। सुभाष ने दिल्ली चलो’ का नारा हर दिशा में गुंजित कर दिया। ‘आजाद हिन्द फौज’ का हर सैनिक स्वतन्त्रता संग्राम में जाने को उत्सुक था।

षष्ठ सर्ग में ‘आजाद हिन्द फौज के भारत पर आक्रमण तथा प्राप्त विजय का वर्णन है। सुभाष ने ‘आजाद हिन्द फौज के वीरों को दिल्ली चलो’ और ‘जय हिन्द’ के नारे दिये। इन्होंने “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” कहकर युवकों का आह्वान किया। आजाद हिन्द सेना ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये और उनके शिविरों पर चढ़ाई करके कई मोर्चे परे उनको अविस्मरणीय करारी हार दी।

सप्तम सर्ग में द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी तथा जापान की पराजय की चर्चा की गयी है। संसार में सुख-दु:ख और जय-पराजय का चक्र चलता रहता है। अंग्रेजों का पलड़ा धीरे-धीरे भारी होने लगा। आजाद हिन्द फौज की भी जय के बाद पराजय होने लगी। अगस्त, 1945 ई० में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर अमेरिका द्वारा अणुबम गिरा दिया गया। जापान ने मानवता की रक्षा के लिए जनहित में आत्मसमर्पण कर दिया। 18 अगस्त, 1945 ई० को ताइहोक में इनका विमान आग लगने से दुर्घटनाग्रस्त हो गया और सुभाष भी नहीं बच सके। जब तक सूर्य, चन्द्र और तारे रहेंगे, भारत के घर-घर में सुभाष अपने यश के रूप में अमर रहेंगे। उनकी यशोगाथा नवयुवकों को त्याग, देशप्रेम और बलिदान की प्रेरणा देती रहेगी।

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प्रश्न 2
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर सुभाषचन्द्र बोस के प्रारम्भिक जीवन (विद्यार्थी जीवन व बाल जीवन) पर प्रकाश डालिए। [2011]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग का सारांश लिखिए। [2010, 11, 14, 18]
उत्तर
सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 ई० को कटक (उड़ीसा) में हुआ था। इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस’ और माता का नाम ‘प्रभावती देवी’ था। इनकी माताजी अत्यन्त विदुषी धार्मिक महिला थीं। इन्होंने बचपन में अपनी माताजी से राम, कृष्ण, अर्जुन, (UPBoardSolutions.com) बुद्ध, महावीर, शिवाजी, प्रताप आदि की कथाएँ सुनी थीं। बालक सुभाष पर उन्हीं के शील और शौर्य का प्रभाव पड़ा।

बड़े होने पर सुभाष ने अपनी तीव्र बुद्धि का परिचय दिया। इन्होंने अपने परिश्रम एवं लगन से सभी शैक्षिक परीक्षाओं में उत्तम अंक प्राप्त किये। विद्यालय में अपने गुरु बेनीमाधव जी के प्रभाव से, इनमें दीन-हीनों और दु:खी-दरिद्रों के प्रति प्रेम, करुणा एवं सेवाभाव जाग्रत हुआ। इन्होंने अपनी अल्प आयु में ही जाजपुर ग्राम में भयंकर बीमारी फैलने पर रोगियों की सेवा-सुश्रूषा की। प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके इन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज में प्रवेश लिया तथा सुरेशचन्द्र बनर्जी से आजीवन अविवाहित रहने की प्रेरणा प्राप्त की। कलकत्ता में महर्षि विवेकानन्द का ओजस्वी भाषण सुनकर सत्य की खोज में मथुरा, हरिद्वार, वृन्दावन, काशी आदि तीर्थों एवं हिमालय की कन्दराओं में भ्रमण किया, परन्तु कहीं भी इन्हें शान्ति न मिली। इन्होंने पुन: पढ़ाई प्रारम्भ कर दी। प्रेसीडेन्सी कॉलेज में ऑटेन नामक अंग्रेज प्रोफेसर द्वारा, भारतीयों की निन्दा सुनकर देशापमान को सहन नहीं कर सकने के कारण इन्होंने उसके गाल पर एक तमाचा मारकर स्वाभिमान, देशभक्ति एवं साहस का अद्भुत उदाहरण दिया। इस अपराध के लिए इन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। अन्य कॉलेज में प्रवेश पाकर इन्होंने बी० ए० की परीक्षा तथा विदेश जाकर आई० सी० एस० की परीक्षा उत्तीर्ण की। स्वदेश लौटने पर इन्होंने देश की दयनीय दशा देखी। महात्मा गाँधी और देशबन्धु चितरंजनदास से प्रभावित होकर सरकार द्वारा प्रदत्त आई० सी० एस० के उच्च पद को । (UPBoardSolutions.com) त्याग दिया और स्वतन्त्रता संग्राम में सम्मिलित हो गये।।

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प्रश्न 3
‘जय सुभाष के द्वितीय सर्ग का सारांश (कथानक, कथावस्तु, कथासार) अपने शब्दों में लिखिए। [2010, 13, 14, 15, 17, 18]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में सुभाष के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर
खण्डकाव्य के इस सर्ग में सुभाष के भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने का वर्णन है। भारतवर्ष में अंग्रेजों के अत्याचार और अन्याय को देखकर भारतमाता को परतन्त्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए सुभाष ने अपना जीवन देश को अर्पित कर देने का निश्चय किया। सन् 1921 ई० में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन व्यापक रूप से चल रहा था। छात्रों ने विद्यालयों का एवं वकीलों ने न्यायालयों का बहिष्कार करके आन्दोलन को तीव्र बनाया। बंगाल में देशबन्धु चितरंजनदास आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे थे। उन्हीं दिनों देशबन्धु जी ने एक नेशनल कॉलेज की स्थापना की, जिसका प्रधानाचार्य उन्होंने सुभाष को नियुक्त कर दिया। सुभाष ने छात्रों में देशप्रेम और स्वतन्त्रता की भावना जाग्रत की और राष्ट्र-भक्त स्वयंसेवकों की एक सेना तैयार की। इस सेना ने बंगाल के घर-घर में स्वतन्त्रता का सन्देश गुंजा दिया। इस सेना के भय से अंग्रेजी सत्ता डोल उठी, जिसके परिणामस्वरूप सरकार ने देशबन्धु और सुभाष को जेल में बन्द कर दिया। जेल में जाकर (UPBoardSolutions.com) उनका साहस व शक्ति और बढ़ गये। जब ये जेल से मुक्त हुए, तब बंगाल भीषण बाढ़ से ग्रस्त था। सुभाष ने तन-मन-धन से बाढ़-पीड़ितों की सहायता की। ये पं० मोतीलाल नेहरू द्वारा स्थापित ‘स्वराज्य पार्टी के प्रबल समर्थक थे। इन्होंने दल के कई प्रतिनिधियों को कौंसिल में प्रवेश कराया। कलकत्ता महापालिका के चुनाव में सुभाष बहुमत से जीते। सुभाष को अधिशासी अधिकारी नियुक्त किया गया। इन्होंने १ 3,000 निर्धारित वेतन के बजाय केवल आधा वेतन लेकर महापालिका का खूब विकास किया। सरकार ने इनकी बढ़ती हुई लोकप्रियता से चिढ़कर इन्हें अकारण ही अलीपुर जेल में डाल दिया। वहाँ से बरहामपुर और माण्डले जेल में भेजकर इन्हें बड़ी यातनाएँ दी गयीं। इस कारण इनका स्वास्थ्य खराब हो गया। दृढ़ स्वर से जनता की माँग के कारण ये जेल से छोड़ दिये गये। कारागार से छूटते ही इन्होंने पुनः संघर्ष आरम्भ कर दिया। इनका अधिकांश जीवन कारागार में ही व्यतीत हुआ।

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प्रश्न 4
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग का सारांश (कथानक, कथावस्तु, कथासार) लिखिए। [2011, 13, 18]
या
‘जय सुभाष’ के आधार पर कलकत्ता में आयोजित 1928 ई० के कांग्रेस अधिवेशन का वर्णन कीजिए और बताइए कि इस अवसर पर सुभाष की क्या भूमिका रही ?
उत्तर
सन् 1928 ई० में कलकत्ता के कांग्रेस के 46वें अधिवेशन में पं० मोतीलाल नेहरू को अध्यक्ष बनाया गया। उनके सम्मान में अड़तालीस घोड़ों के रथ में शोभा-यात्रा निकाली गयी, जिसमें स्वयंसेवकों के दल का नेतृत्व स्वयं सुभाष कर रहे थे। इसी समय लोगों को सुभाष की संगठन-कुशलता का परिचय मिला। पं० मोतीलाल नेहरू ने अपने अध्यक्षीय भाषण में इनके उत्साह, कार्यकुशलता, देशप्रेम और कर्मठता की भूरि-भूरि प्रशंसा की। |

इसके बाद सुभाष को कलकत्ता नगर का मेयर निर्वाचित किया गया। इनके कार्यकाल में ही स्वतन्त्रता-सेनानियों का एक जुलूस निकला, जिसका नेतृत्व स्वयं सुभाष कर रहे थे। इस जुलूस पर पुलिस ने लाठीचार्ज करके सुभाष को लाठियों से बहुत पीटा और नौ माह के लिए इन्हें अलीपुर जेल में डाल दिया। जेल से छूटने पर इन्होंने पुन: सभाओं में ओजस्वी भाषण दिये, जिनको सुनकर देशभक्त युवकों को खून खौल उठा, तब इन्हें सिवनी जेल में डाल दिया गया। वहाँ से भुवाली, अलीपुर और माण्डले जेल में भेजकर यातनाएँ दी गयीं, जिससे इनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। इन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए पश्चिमी देशों में भेजा (UPBoardSolutions.com) गया। वहाँ जाकर इन्होंने यूरोप के वैभव को देखा और भारत से उसकी तुलना की। इन्होंने अपने देश की दशा और जनता के आन्दोलन को यथार्थ चित्र पश्चिमी देशों के सम्मुख रखा। वहाँ से पिता की बीमारी को समाचार सुनकर भारत आये, परन्तु पिता के अन्तिम दर्शन न पा सके। महान् शोक के कारण, स्वास्थ्य लाभ के लिए इन्हें पुनः यूरोप जाना पड़ा। इन्होंने वहाँ ‘द इण्डियन स्ट्रगल’ नामक पुस्तक लिखकर देशप्रेम की भावना और भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का सजीव वर्णन किया। ये विदेशों में रहकर स्वदेश का सम्मान बढ़ाते रहे। सन् 1936 ई० में स्वदेश वापस आने पर इन्हें पुन: जेल भेज दिया गया। जेल में स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण इन्हें स्वास्थ्य-लाभ के लिए एक बार फिर यूरोप भेजा गया। कुछ समय बाद पं० जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लखनऊ में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में सभी नेताओं और जनता ने सुभाष के त्याग और बलिदान की भूरि-भूरि प्रशंसा की। भारत लौटने पर अगले वर्ष हीरापुर के कांग्रेस अधिवेशन में इन्हें कांग्रेस को अध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया गया।

प्रश्न 5
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर इसके चतुर्थ सर्ग का सारांश (कथानक, कथावस्तु) लिखिए। [2017]
उत्तर
इस सर्ग में हीरापुर अधिवेशन से लेकर ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ की स्थापना तक का वर्णन है। ताप्ती नदी के तट पर बिट्ठल नगर में कांग्रेस का इक्यावनवाँ अधिवेशन हुआ। इक्यावन पताकाओं से सुसज्जित, इक्यावन द्वारों से, इक्यावन बैलों के रथ में बैठाकर सुभास का भव्य एवागत किया गया और इन्हें अधिवेशन का अध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया गया। अध्यक्ष पद से इनके ओजस्वी भाषण को सुनकर नवयुवकों में देशप्रेम, एकता और बलिदान की भावना जाग उठी। इससे आजादी का आन्दोलन और अधिक तीव्र हो उठा।

इसके बाद त्रिपुरा में कांग्रेस का अगला अधिवेशन हुआ। इसमें कांग्रेस के दो नेताओं पट्टाभि । सीतारमैया और सुभाष में चुनाव हुआ, जिसमें सुभाष विजयी हुए। गाँधीजी क्योंकि पट्टाभि सीतारमैया का समर्थन कर रहे थे, इसीलिए उन्होंने पट्टाभि (UPBoardSolutions.com) सीतारमैया की हार को अपनी हार समझा। उस समय कांग्रेस को विघटन से बचाने के लिए सुभाष ने कांग्रेस से त्यागपत्र देकर ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ (अग्रगामी दल) की स्थापना की एवं सारे देश में घूम-घूमकर स्वतन्त्रता की ज्योति जगायी। अब सुभाष सबकी श्रद्धा और आशा के केन्द्र बनकर सबके प्रिय नेताजी’ बन गये थे। कलकत्ता में ‘ब्लैक हॉल’ संस्मारक; जिसके बारे में कहा जाता था कि यहाँ अनेक अंग्रेजों को सन् 1857 ई० में भारतीयों द्वारा जिन्दा जला दिया गया था; को हटाने के लिए आन्दोलन करते समय सरकार ने इन्हें फिर जेल में डाल दिया। इन्होंने जेल में भूख हड़ताल की। सरकार को इनके जेल में रहते ही संस्मारक हटाना पड़ा। जनता के प्रबल आग्रह करने पर इन्हें जेल से छोड़कर घर में नजरबन्द कर दिया गया। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि अपनी मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेज सरकार की यातनाओं को निरन्तर सहन करते रहे।

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प्रश्न 6
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर बताइए कि सुभाषचन्द्र बोस किन परिस्थितियों में वेश छोड़कर विदेश गये ? वहाँ जाकर उनके द्वारा भारत की स्वतन्त्रता के लिए किये गये प्रयत्नों का वर्णन कीजिए। [2009, 10]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के ‘पाँचवें सर्ग’ का सारांश (कथासार लिखिए। [2011, 12, 13, 14, 16, 17]
[संकेत द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ सर्ग से परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए पाँचवें सर्ग का सारांश लिखिए।]
उत्तर
इस सर्ग में सुभाष के छद्मवेश में घर से भाग जाने की कथा का वर्णन है। सुभाष जब घर में नजरबन्द थे, तब सरकार ने इनकी समस्त गतिविधियों पर कड़ा प्रतिबन्ध लगा रखा था। गुप्तचरों की कड़ी नजर और पुलिस का पहरा रहने पर भी सुभाष 15 जनवरी, 1941 ई० को जाड़े की अर्द्ध-रात्रि में दाढ़ी बढ़ाये हुए, एक मौलवी के वेश में पुलिस की आँखों में धूल झोंककर निकल गये और फ्रण्टियर मेल से पेशावर पहुँच गये। वहाँ से उत्तमचन्द नाम के व्यक्ति के प्रयास से बर्लिन पहुँच गये। पेशावर से काबुल तक की इनकी यह यात्रा अति भयानक थी। इन्हें अनेक कष्ट सहते हुए अनेक छद्मवेश धारण (UPBoardSolutions.com) करने पड़े। बर्लिन में इन्होंने ‘आजाद हिन्द फौज’ की स्थापना की। दूर रहकर स्वतन्त्रता-संग्राम का नेतृत्व करना कठिन जानकर ये पनडुब्बी द्वारा टोकियो पहुँचे। जापानियों ने इन्हें पूरा सहयोग दिया। वहाँ से रासबिहारी के साथ ये सिंगापुर आये। इनकी सेना में विदेशों में रहने वाले अनेक भारतीय भी सम्मिलित हो गये। इन्होंने तन-मनधन से सुभाष को पूरा सहयोग दिया। इन्होंने गाँधीजी, नेहरू, आजाद और बोस के नाम से चार ब्रिगेड तैयार किये जिनमें पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियाँ भी सम्मिलित थीं। सहगल, शाहनवाज, ढिल्लन और लक्ष्मीबाई ने वीरता से इंस सेना का नेतृत्व किया। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई सभी धर्मावलम्बी एकजुट होकर स्वतन्त्रता संग्राम के लिए तत्पर हो गये। सुभाष ने दिल्ली चलो’ का नारा हर दिशा में गुंजित कर दिया। ‘आजाद हिन्द फौज का हर सैनिक स्वतन्त्रता संग्राम में जाने को उत्सुक था।

प्रश्न 7
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के षष्ठ सर्ग का सारांश लिखिए। [2009, 13, 17]
उत्तर
षष्ठ सर्ग में ‘आजाद हिन्द फौज के भारत पर आक्रमण तथा प्राप्त विजय का वर्णन है। सुभाष ने ‘जाद हिन्द फौज के वीरों को दिल्ली चलो’ और ‘जय हिन्द’ के नारे दिये। इन्होंने “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” कहकर युवकों का आह्वान किया। इस प्रकार इन्होंने अपनी सेना के वीरों में देश की स्वतन्त्रता के लिए बलिदान देने की प्रबल भावना भर दी। सेना के वीर इनके ओजपूर्ण भाषणों को सुनकर शत्रु की विशाल सैन्य-शक्ति की परवाह न (UPBoardSolutions.com) करके, विजय प्राप्त करते हुए 18 मार्च, 1944 ई० को कोहिमा तक पहुँच गये। भयंकर गोलाबारी करके इन्होंने इम्फाल नगर को घेरकर शत्रु को पीछे भगा दिया। अराकान पर्वत-शिखर पर भी भारतीय तिरंगा लहराने लगा। आजाद हिन्द सेना ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये और उनके शिविरों पर चढ़ाई करके कई मोर्चे पर उनको अविस्मरणीय करारी हार दी।

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प्रश्न 8
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के सप्तम (अन्तिम) सर्ग की कथा लिखिए। [2012, 14]
उत्तर
सप्तम सर्ग में द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी तथा जापान की पराजय की चर्चा की गयी है। संसार में सुख-दु:ख और जय-पराजय का चक्र चलता रहता है। अंग्रेजों का पलड़ा धीरे-धीरे भारी होने लगा। आजाद हिन्द फौज की भी जय के बाद पराजय होने लगी। अंग्रेजों ने बर्मा (अब म्यांमार) में आकर अपना स्वत्व स्थापित कर लिया। अगस्त 1945 ई० में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर अमेरिका द्वारा अणुबम गिराकर सर्वनाश कर दिया गया। जापान ने मानवता की रक्षा के लिए जनहित में अमेरिका के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। सुभाष ने स्थिति अनुकूल न जानकर आजाद हिन्द फौज के आत्मसमर्पण करने का भी निर्णय किया। उन्होंने सेना के वीरों को बधाई देते हुए पुन: आकर उचित समय पर स्वतन्त्रता का बीड़ा उठाने का आश्वासन दिया। वे विमान द्वारा टोकियो में जापान के प्रधानमन्त्री (UPBoardSolutions.com) हिरोहितो से मिलने जाना चाहते थे। 18 अगस्त, 1945 ई० को ताइहोक में विमान आग लगने से दुर्घटनाग्रस्त हो गया और सुभाष भी नहीं बच सके। इस दु:खद समाचार को सुनकर हर मनुष्य रो पड़ा। भारत में बहुतों के मन में अब तक यही धारणा है कि सुभाष आज भी जीवित हैं। जब तक सूर्य, चन्द्र और तारे रहेंगे, भारत के घर-घर में सुभाष अपने यश के रूप में अमर रहेंगे। उनकी यशोगाथा नवयुवकों को त्याग, देशप्रेम और बलिदान की प्रेरणा देती रहेगी।

प्रश्न 9
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक (प्रमुख पात्र) नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2010, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘सुभाष में अनेक गुणों का समावेश था।”जय सुभाष’ के आधार पर खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14]
या

‘जय सुभाष खण्डकाव्य के आधार पर सुभाषचन्द्र बोस की चार विशेषताओं पर प्रकाश डालिए, जो आपको अधिकाधिक प्रभावित करती हैं। [2009, 14]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए कि सुभाषचन्द्र त्याग, अदम्य साहस और नेतृत्व क्षमता के प्रतीक हैं। [2010]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए। [2015, 17, 18]
उत्तर
श्री विनोदचन्द्र पाण्डेय ‘विनोद’ द्वारा रचित ‘जय सुभाष’ नामक खण्डकाव्य स्वतन्त्रता-संग्राम के महान् सेनानी सुभाषचन्द्र बोस के त्याग, देशभक्ति एवं बलिदानपूर्ण जीवन की गाथा प्रस्तुत करता है। प्रस्तुत काव्य का उद्देश्य सुभाषचन्द्र बोस के व्यक्तित्व एवं गुणों को उजागर करना है। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ही प्रस्तुत खण्डकाव्य के नायक हैं। इनके चारित्रिक गुण इस प्रकार हैं|

(1) कुशाग्र बुद्धि एवं प्रखर प्रतिभाशाली-सुभाष बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के और प्रतिभाशाली थे। इन्होंने मैट्रिक और इण्टर की परीक्षाएँ प्रथम स्थान प्राप्त करके उत्तीर्ण की थीं। विदेश जाकर इन्होंने आई० सी० एस० की परीक्षा उत्तीर्ण की। उस समय किसी (UPBoardSolutions.com) भारतीय के लिए यह परीक्षा उत्तीर्ण करना अत्यन्त गौरव की बात थी। आगे चलकर कलकत्ता अधिवेशन में इनकी प्रबन्ध-कुशलता, आजाद हिन्द फौज और फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना एवं पुलिस की आँखों में धूल झोंककर कड़ी निगरानी से निकल भागना इनकी विलक्षण प्रतिभा को सूचित करते हैं।

(2) समाजसेवी, अनुपम त्यागी एवं कष्टे-सहिष्णु–सुभाष मानवमात्र के सेवक थे। इन्होंने बंगाल में बाढ़ आने पर बाढ़-पीड़ितों की अपूर्व सहायता की। जाजपुर में महामारी के फैलने पर इन्होंने रोगियों की सेवा की। देश की स्वतन्त्रता के लिए आह्वान होने पर इन्होंने आई० सी० एस० जैसे उच्च पद को छोड़कर महान् त्याग का परिचय दिया। इन्होंने देश को स्वतन्त्र कराने के लिए जैसी कठोर यातनाएँ सहीं, वे अवर्णनीय हैं। इनकी मानव-सेवा की भावना के विषय में पाण्डेय जी ने लिखा है –
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दुःखी जनों का कष्ट कभी वह, नहीं देख सकते थे।
दोस्तों की सेवा करने में, वह न कभी थकते थे।

(3) स्वाभिमानी, साहसी और निर्भीक–सुभाष में स्वाभिमान और निर्भीकता की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। ये किसी भी तरह अपने देश का अपमान नहीं सह सकते थे। छात्रावस्था में प्रोफेसर ऑटेन द्वारा भारतीयों की निन्दा सुनकर इन्होंने ऑटेन को तमाचा जड़कर अपने स्वाभिमान को परिचय दिया था। इन्होंने आई० सी० एस० का गौरवपूर्ण पद भी इसलिए त्याग दिया था कि अंग्रेजों की नौकरी करना इनके स्वाभिमान के अनुकूल नहीं था

स्वाभिमान का परिचय सबको, हो निर्भीक दिया था।
ले देशापमान का बदला, उत्तम कार्य किया था।

(4) महान् देशभक्त और स्वतन्त्रता-प्रेमी–सुभाष देश की स्वाधीनता के अद्वितीय (UPBoardSolutions.com) आराधक थे। इन्होंने गाँधीजी और देशबन्धु चितरंजनदास के आह्वान पर राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए अपनी युवावस्था अर्पित कर दी

की सुभाष ने राष्ट्र-प्रेम हित अर्पित मस्त जवानी।
मुक्ति युद्ध के बने शीघ्र ही वे महान् सेनानी॥

उनके हृदय में आजादी की ज्वाला निरन्तर जलती रही। अनेक बार जेल-यातनाएँ सहने पर भी इन्होंने देश-सेवा का व्रत नहीं छोड़ा। अनेक बार अपने प्राणों को खतरे में डाला, शोषक अंग्रेजों से युद्ध किये और अन्त में बलिदान हो गये। इन्होंने अपने ओजस्वी भाषणों और कार्य-कलापों से समस्त देशवासियों के हृदय में स्वतन्त्रता की अग्नि प्रज्वलित कर दी।

(5) उत्साह की प्रतिमूर्ति–वीरता, उत्साह तथा साहस सुभाष के चरित्र के मुख्य गुण थे। उनके इन गुणों को देखकर जहाँ सामान्य जन प्रायः चकित रह जाते थे, वहीं अंग्रेज प्रायः भयभीत हो जाते थे। अंग्रेजी शासन इन्हें प्रायः कैद कर देता था, लेकिन ये इससे (UPBoardSolutions.com) हतोत्साहित नहीं होते थे। एक बार अंग्रेजों द्वारा घर में ही नजरबन्द कर दिये जाने पर ये अपनी बुद्धि, चतुरता तथा योजनाबद्धता द्वारा अंग्रेज सैनिकों की आँखों में धूल झोंककर भाग निकले और वेश बदलकर काबुल, जर्मनी तथा जापान पहुँच गये। विदेश में रहकर इन्होंने भारतीय युवकों को उत्साहित किया और आजाद हिन्द फौज का गठन किया। इनके भाषण उत्साह से परिपूरित होते थे। इनके उत्साह का ही प्रतिफल था कि आजाद हिन्द फौज को अंग्रेजी सेनाओं के विरुद्ध युद्ध में अनेक स्थानों पर सफलता प्राप्त हुई थी।

(6) जनता के प्रिय नेता–सुभाष सच्चे अर्थों में जनता के प्रिय नेता थे। अपने महान् गुणों एवं अनुपम देश-भक्ति के कारण वे करोड़ों देशवासियों के श्रद्धापात्र बन गये थे

वह थे कोटि-कोटि हृदयों के, एक महान् विजेता।
मातृभूमि के रत्न अलौकिक, जन-जन के प्रियनेता।

इनकी लोकप्रियता का प्रमाण यह है कि इन्होंने हीरापुर अधिवेशन में गाँधीजी द्वारा समर्थित ‘पट्टाभि सीतारमैया’ को चुनाव में पराजित कर दिया था। जिस मनोयोग और निष्ठा से इन्होंने स्वतन्त्रता-संग्राम का संचालन किया, उससे ये जनता के प्रिय नेता बन गये-

वह हो गये समस्त देश की, श्रद्धा के अधिकारी।
लेने लगे प्रेरणा उनसे, बाल-वृद्ध-नर-नारी॥

(7) ओजस्वी वक्ता–सुभाषचन्द्र बोस की वाणी बड़ी ओजपूर्ण थी। वे अपने ओजस्वी भाषणों द्वारा जनता में देशप्रेम, बलिदान और त्याग का मन्त्र फेंक देते थे। “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ की पुकार पर सहस्रों देशभक्त उनकी सेना में तन-मन-धन से सम्मिलित हो गये। उनकी ओजस्वी वाणी सुनकर, वीर पुरुष प्राण हथेली पर रखकर स्वतन्त्रता-संग्राम में कूद पड़े थे-

लगी गूंजने बंगभूमि में, उनकी प्रेरक वाणी।
मन्त्र मुग्ध होते थे सुनकर, उसको सारे प्राणी॥

उन्होंने अनेक सभाओं में एवं आजाद हिन्द फौज के सम्मुख जो भाषण दिये, वे अत्यन्त ओजस्वी और प्रेरणादायक थे।

(8) महान् सेनानी एवं योद्धा-सुभाष महान् सेनानी और अद्भुत योद्धा थे। ‘आजाद हिन्द फौज का संगठन और कुशल नेतृत्व करके उन्होंने एक श्रेष्ठ सेनापति होने की अपनी क्षमता सिद्ध कर दी थी। अंग्रेजों की विशाल सेना के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करके (UPBoardSolutions.com) उन्होंने अपने अदम्य साहस व बुद्धिमत्ता द्वारा उन्हें कई स्थानों पर पराजित किया तथा अनेक स्थानों पर भारतीय तिरंगा फहराकर अपने को महान् विजेता सिद्ध कर दिया-

सेनानी सुभाष ने भीषण, रण-दुन्दुभी बजाई।।
पाने हेतु स्वराज्य उन्होंने, छेड़ी विकट लड़ाई॥

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(9) युवा-आन्दोलन के प्रवर्तक-सुभाष युवा-आन्दोलन के प्रवर्तक तथा नवयुवकों के प्रेरणास्रोत थे। इन्होंने पूरे देश की युवक संस्थाओं को एक सूत्र में पिरोकर संगठित युवा-आन्दोलन के सूत्रपात का प्रशंसनीय कार्य किया था। इन्हीं के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप भारत में नवजवान सभा की स्थापना हो सकी थी–

नवयुवकों के भी प्रयाण की, आयी है शुभ बेला।
हो सकती है नहीं कभी भी, तरुणों की अवहेला॥

(10) महान् साहित्य सेवी-श्री सुभाष ने अत्यधिक विपरीत परिस्थितियों में ‘द इण्डियन स्ट्रगल पुस्तक लिखकर अपनी साहित्यिक प्रतिभा का परिचय दिया था। इनके भाषण भी साहित्य की अमूल्य निधि है-

लिख इण्डियन स्ट्रगल पुस्तक, ख्याति उन्होंने पायी।
प्रकट किये इसमें सुभाष ने, भाव प्रेरणादायी।

(11) स्वतन्त्रता के जन्मदाता–भारतवर्ष को स्वतन्त्र कराने में सुभाषचन्द्र बोस का योगदान स्तुत्य । है। अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़कर इन्होंने उन्हें भयाक्रान्त कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप वे भारत को स्वतन्त्रता प्रदान करने के लिए विवश हो गये थे-

मुक्त हुई उनके प्रयत्न से, अपनी भारतमाता।
दिन पन्द्रह अगस्त का अब भी, उनकी याद दिलाता॥

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इनके अतिरिक्त नेताजी में अन्य अनेक आदर्श गुण थे, जिनके आधार पर उनके महान् व्यक्तित्व और महान् चरित्र का परिचय मिलता है। इन्होंने जो उच्च आदर्श उपस्थित किया है, वह युग-युग तक संसार के अनेक व्यक्तियों को प्रेरणा प्रदान करता रहेगा। इनके (UPBoardSolutions.com) जीवन से मनुष्य कष्ट-सहने की शक्ति, त्याग-भावना एवं राष्ट्रीयता की शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। इनके आदर्श जीवन से भारत के नवयुवकों को स्वतन्त्रता-प्रेम और त्याग की प्रेरणा मिलती रहेगी–

वीर सुभाष अनन्तकाल तक, शुभ आदर्श रहेंगे।
युग-युग तक भारत के वासी, उनकी कथा कहेंगे।

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 3 मेवाड़-मुकुट (खण्डकाव्य)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 3 मेवाड़-मुकुट (खण्डकाव्य)

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प्रश्न 1
‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य की कथावस्तु (कथानक) संक्षेप में लिखिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 17, 18]
या
‘मेवाइ-मुकुट खण्डकाव्य का सारांश लिखिए। [2009]
या
‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य की विषय-वस्तु स्पष्ट कीजिए। ‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य की घटनाओं पर प्रकाश डालिए। [2012, 16]
या
‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य के प्रथम और द्वितीय सर्ग की कथा लिखिए। [2017]
उत्तर
गंगारत्न पाण्डेय द्वारा रचित ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य में महाराणा प्रताप के त्याग, शौर्य, साहस एवं बलिदानपूर्ण जीवन के एक मार्मिक कालखण्ड का चित्रण है। स्वतन्त्रता-प्रेमी प्रताप दिल्लीश्वर अकबर से युद्ध में पराजित होकर अरावली (UPBoardSolutions.com) के जंगल में भटकते फिरते हैं। यहीं से काव्य का प्रारम्भ होता है। प्रस्तुत काव्य की कथावस्तु सात सर्गों में विभाजित है।

अरावली सर्ग की रचना पूर्व-पीठिका के रूप में की गयी है। हल्दीघाटी के मैदान में बड़ी वीरता से युद्ध करने के बाद भी महाराणा प्रताप की सेना पराजित हो जाती है। उस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप साधनहीन होकर अरावली के जंगलों में भटकते हैं।

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अरावली एक पर्वत-श्रृंखला है, जो राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी अंचल में गौरव से सिर उठाये खड़ी है। महाराणा प्रताप शत्रु की कन्या ‘दौलत’ को अपनी शरण में रख उससे पुत्रीवत् व्यवहार करता है। उनकी पत्नी लक्ष्मी अपने पुत्र को गोद में लिये वनवासिनी सीता के समान एक वृक्ष के नीचे बैठी है। अरावली स्वयं स्वतन्त्रता के उपासक इस प्रताप की रक्षा में सन्नद्ध है।

द्वितीय सर्ग का नामकरण महाराणा प्रताप की पत्नी लक्ष्मी के नाम पर हुआ है। इस सर्ग में उसी का चरित्र अंकित हुआ है। रानी लक्ष्मी ने वैभव के दिन देखे हैं और अब उसे निर्धनता का जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। लेकिन सच्ची भारतीय पत्नी और वीर क्षत्राणी के रूप में उसे अपने कष्टों की चिन्ता नहीं है। वह कन्द-मूल-फल खाकर व पृथ्वी पर सोकर धैर्यपूर्वक अपने दिन गुजार देती है। उसके हृदय में उथल-पुथल मची हुई है। अपने बच्चे की दयनीय दशा देखकर वह कभी-कभी धीरज खो बैठती है। वह सोचती है कि राणा ने स्वतन्त्रता नहीं बेची, इसीलिए दु:ख मिल रहा है। वह उत्साहित होकर कह उठती है-”हमको नहीं डुबा पाएगा यह कष्टों का सागर।”

तभी राणा कुटी के बाहर आकर रानी के जागते रहने का कारण पूछते हैं। रानी की मनोदशा (UPBoardSolutions.com) समझकर राणा प्रताप सजल नेत्र हो जाते हैं।

तृतीय सर्ग का नामकरण काव्य के नाम पर हुआ है। इसमें प्रताप के अन्तर्द्वन्द्व का चित्रण है। राणा प्रताप के सामने मेवाड़ की मुक्ति की विकराल समस्या है। वे अपने भाई शक्तिसिंह के विश्वासघात से आहत हैं और उसके अकबर से मिल जाने का उन्हें दुःख भी है। यह सोचकर भी उनका उत्साह कम नहीं होता। वे जानते हैं कि जब उसकी आत्मा धिक्कारेगी, तो वह अवश्य ही लौटकर वापस आएगा। वे मन-ही-मन प्रतिज्ञा करते हैं कि वे मेवाड़ को स्वतन्त्र कराने के लिए अपने प्राण तक दे देंगे। वे चेतक की स्वामिभक्ति तथा शत्रु-पक्ष की कन्या दौलत के विषय में भी विचार करते हैं तथा अनायास ‘दौलत’ से मिलने के लिए चल देते हैं।

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चतुर्थ सर्ग का नामकरण बालिका दौलत के नाम पर हुआ है। दौलत अकबर के मामा की बेटी है। वह पर्णकुटी के पीछे एक वृक्ष की छाया में बैठी अपने विगत जीवन के बारे में विचार करती हुई कहती है कि उस भोग-विलास भरे जीवन में कटुता ही थी, प्रीति नहीं।” अकबर के साम्राज्यवाद की लिप्सा उसके कोमल हृदय में घृणा के बीज बो देती है, किन्तु राणा प्रताप के प्रति उसके विचार पिता जैसी श्रद्धा से युक्त

राणा के भाई शक्तिसिंह पर ‘दौलत’ का मन आकृष्ट है, किन्तु वह राणा के सम्मुख अपनी कहानी कहकर उनके दुःख को और नहीं बढ़ाना चाहती। वह शक्तिसिंह और प्रताप की तुलना करती हुई कहती है। कि “ये सूर्य हैं, वह दीपक है।” दौलत को उसी समय वृक्षों के पीछे से किसी की पदचाप सुनाई पड़ती है। यहीं पर इस सर्ग का समापन हो जाता है।

पञ्चम सर्ग का शीर्षक ‘चिन्ता’ है। ‘दौलत’ के पास पहुँचकर राणा उसके एकान्त चिन्तन का कारण पूछते हैं। दौलत अपने को परम सुखी और निश्चिन्त बताती हुई स्वयं राणा के रात-दिन चिन्तित रहने को ही अपनी चिन्ता का कारण बताती है। इसी प्रसंग में राणा प्रताप कहते हैं कि वे रानी लक्ष्मी की आँखों में आँसू देखकर कुछ विचलित हैं। अत: दौलत राणा के साथ लक्ष्मी के पास जाकर उसके मन की पीड़ा को जानने और यथाशक्ति उसे दूर करने के लिए तत्पर हो जाती है।

अपने पुत्र को गोद में लिटाये हुए रानी लक्ष्मी सोच रही है कि उसके कारण ही राणा अपने देश को त्यागकर जंगल में भटक रहे हैं। उसी समय दौलत का मीठा स्वर उसके कानों में गूंज उठता है। रानी और दौलत के वार्तालाप के इसी अवसर पर (UPBoardSolutions.com) महाराणा प्रताप रानी को सूचना देते हैं कि मेवाड़-भूमि की मुक्ति के लिए, वे मेवाड़ से दूर सिन्धु-प्रदेश में जाकर सैन्य-संग्रह करेंगे। राणा के इस निश्चय को सुनकर लक्ष्मी में चेतना दौड़ पड़ती है। वह भी मेवाड़ की स्वाधीनता हेतु अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तत्पर हो जाती है।

छठे सर्ग का शीर्षक ‘पृथ्वीराज’ सर्ग है। क्षितिज में अरुणाभा फैल जाने पर राणा सभी को यात्रा के लिए तैयार कर देते हैं। उसी समय एक अनुचर अकबर के दरबारी कवि पृथ्वीराज का पत्र लाकर राणा को देता है। वे पत्र पढ़कर पृथ्वीराज से मिलने जाते हैं। पृथ्वीराज अपने और अपने जैसे अन्य राजपूत नरेशों के स्वार्थपूर्ण व्यवहार पर दुःख प्रकट करते हुए कहते हैं कि उन्होंने अपनी राजपूती मर्यादा को भूलकर अकबर का साथ दिया था। अब हम अकबर से प्रतिशोध लेकर मेवाड़ को पुन: प्राप्त करेंगे। पृथ्वीराज यह भी बताता है कि भामाशाह सेना का प्रबन्ध करने के लिए साधन प्रस्तुत करेंगे।

सप्तम सर्ग का शीर्षक ‘भामाशाह’ के नाम पर है। राणा प्रताप एकान्त में बैठकर बदली हुई परिस्थिति पर विचार करते हैं। उसी समय भामाशाह पृथ्वीराज के साथ आकर जय-जयकार करते हुए नतमस्तक हो जाते हैं। भामाशाह अपने पूर्वजों द्वारा संचित अपार-निधि राणा के चरणों में अर्पित करना चाहते हैं, परन्तु राणा प्रताप दी हुई वस्तु को वापस लेना मर्यादा के अनुकूल नहीं मानते।।

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प्रताप का यह वचन सुनकर भामाशाह कहता है कि क्या यह प्रत्येक नागरिक का पावन कर्तव्य नहीं है। कि वह देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दे? भामाशाह के इस विनयपूर्ण अकाट्य तर्क को राणा प्रताप अस्वीकार नहीं कर पाते और भामाशाह को गले से लगा लेते हैं। यहीं ‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य की समाप्ति हो जाती है।

प्रश्न 2
‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग (अरावली) का सारांश (कथा) संक्षेप में लिखिए। [2014, 17]
या
‘मेवाड़-मुकुट’ के अरावली सर्ग की कथा प्रस्तुत कीजिए। [2018]
उत्तर
अरावली सर्ग की रचना पूर्व-पीठिका के रूप में की गयी है। हल्दीघाटी के मैदान में बड़ी वीरता से युद्ध करने के बाद भी महाराणा प्रताप की सेना पराजित हो जाती है। उस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप साधनहीन होकर अरावली के जंगलों में भटकते हैं।

अरावली एक पर्वत-श्रृंखला है, जो राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी अंचल में गौरव से सिर उठाये खड़ी है। कवि ने अरावली और वनस्थली का मानवीकरण किया है। अरावली पर्वत महाराणा प्रताप को अपने अंचल में पाकर गर्व का अनुभव कर अपने को धन्य मानता है। उसे विश्वास है कि यह महापुरुष, मेवाड़ के स्वाभिमान की रक्षा करेगा और उसके गये हुए गौरव को वापस लाएगा। स्वतन्त्रता का दीवाना प्रताप अपनी पत्नी लक्ष्मी और पुत्र अमर के (UPBoardSolutions.com) साथ इस वीराने में भ्रमण कर रहा है। महाराणा प्रताप शत्रु की कन्या ‘दौलत को अपनी शरण में रख उससे पुत्रीवत् व्यवहार करता है। वन के पशु एवं कोल-किरात आदि वन्य जातियाँ ही अब मानो उसके प्रजाजन हैं। उनकी पत्नी लक्ष्मी अपने पुत्र को गोद में लिये वनवासिनी सीता के समान एक वृक्ष के नीचे बैठी हैं। अरावली स्वयं स्वतन्त्रता के उपासक इस प्रताप की रक्षा में सन्नद्ध है।

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प्रश्न 3
‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य के लक्ष्मी सर्ग (द्वितीय सर्ग) की कथा संक्षेप में लिखिए। [2015, 18]
या
‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग का सारांश (कथानक) लिखिए। [2017]
उत्तर
द्वितीय सर्ग का नामकरण महाराणा प्रताप की पत्नी लक्ष्मी के नाम पर हुआ है। इस सर्ग में उसी का चरित्र अंकित हुआ है। रानी लक्ष्मी ने वैभव के दिन देखे हैं और अब उसे निर्धनता का जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। लेकिन सच्ची भारतीय पत्नी और वीर क्षत्राणी के रूप में उसे अपने कष्टों की चिन्ता नहीं है। वह कन्द-मूल-फल खाकर व पृथ्वी पर सोकर धैर्यपूर्वक अपने दिन गुजार देती है। उसे केवल बच्चों की, प्रताप की एवं ‘दौलत’ की भूख सहन नहीं है। वह अपनी कुटी के बाहर मौन बैठी है। उसके हृदय में उथल-पुथल मची हुई है। अपने बच्चे की दयनीय दशा देखकर वह कभी-कभी धीरज खो बैठती है। इस सुन्दर राजपुत्र का कैसा भाग्य, जो राणा का पुत्र होकर भी दूध के लिए तरसता है। वह भाग्य की इस विडम्बना को अत्याचार और अन्याय का समर्थक मानती हुई उद्विग्न हो जाती है। वह सोचती है कि राणा ने : केवल यही तो किया कि अपने शत्रु के सम्मुख शीश नहीं झुकाया, इसी अपराध के कारण उन्हें वन-वन भटकना पड़ रहा है। हमने (UPBoardSolutions.com) स्वतन्त्रता नहीं बेची, इसीलिए दु:ख मिल रहा है। वह उत्साहित होकर कह उठती है-“हमको नहीं डुबा पाएगा यह कष्टों का सागर।”

तभी राणा कुटी के बाहर आकर रानी के जागते रहने का कारण पूछते हैं। रानी ‘कुछ नहीं, कुछ नहीं कहती हुई कुटी के भीतर चली जाती है। रानी की मनोदशा समझकर राणा प्रताप सजल नेत्र हो जाते हैं।

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प्रश्न 4
‘मेवाड़-मुकुट के ‘प्रताप’ सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए। [2012, 13, 14]
या
‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग का सारांश लिखिए। [2010, 13, 16]
या
‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग ‘प्रताप सर्ग पर प्रकाश डालिए। [2017]
उत्तर
तृतीय सर्ग का नामकरण काव्य के नाम पर हुआ है। इसमें प्रताप के अन्तर्द्वन्द्व का चित्रण है। राणा प्रताप के सामने मेवाड़ की मुक्ति की विकराल समस्या है। वे विचारमग्न होकर एक पेड़ के नीचे बैठकर सोचने लगते हैं कि उनकी पत्नी लक्ष्मी ने उनके साथ (UPBoardSolutions.com) क्या-क्या कष्ट नहीं सहे हैं, वह वन-वन मारी फिर रही है। फिर भी वह अपने कर्तव्यपालन से विचलित नहीं हुई। मुझे भी अपना कर्तव्यपालन करना चाहिए। वे अपने भाई शक्तिसिंह के विश्वासघात से आहत हैं और उसके अकबर से मिल जाने का उन्हें दु:ख भी है। वे कहते हैं

शक्तिसिंह, जिसको मैंने था बन्धु बनाकर पाला।
वह भी मुझसे द्रोह कर गया निकला विषधर काला॥

यह सोचकर भी उनका उत्साह कम नहीं होता। वे जानते हैं कि जब उसकी आत्मा धिक्कारेगी, तो वह, अवश्य ही लौटकर वापस आएगा। वे मन-ही-मन प्रतिज्ञा करते हैं कि वे मेवाड़ को स्वतन्त्र कराने के लिए अपने प्राण तक दे देंगे। वे सोचते हैं कि मानसिंह जैसा वीर भी अकबर के इशारे पर नाच रहा है, परन्तु मेरा मस्तक अकबर के सामने नहीं झुक सकता। वे अपने स्वामिभक्त घोड़े चेतक का स्मरण कर करुणा से द्रवित हो जाते हैं।

वे फिर सोचने लगते हैं कि अरावली में रहते हुए स्वतन्त्रता संग्राम के लिए पर्याप्त साधन जुटाना कठिन है। वे देश की मुक्ति के लिए अरावली को छोड़कर सिन्धु-प्रदेश में जाकर सैन्य-संग्रह करके शत्रु से लोहा लेकर मेवाड़ को मुक्त कराने की सोचते हैं। वे अपने सिसोदिया वंश की आन रखने का संकल्प लेते हैं, किन्तु साधनहीन हुए यह विचार करते हैं कि वह शत्रुपक्ष का सामना कैसे करें। वे चेतक की स्वामिभक्ति तथा शत्रु-पक्ष की कन्या दौलत के विषय में भी विचार करते हैं। ‘‘पर दौलत का क्या होगा, क्या वह भी साथ चलेगी?” प्रश्न मन में उठते ही वे अनायास ‘दौलत’ से मिलने के लिए चल देते हैं।

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प्रश्न 5
‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य के ‘दौलत’ सर्ग (चतुर्थ सर्ग) की कथावस्तु लिखिए। [2015, 17]
उत्तर
चतुर्थ सर्ग का नामकरण बालिका दौलत के नाम पर हुआ है। दौलत अकबर के मामा की बेटी है। वह पर्णकुटी के पीछे एक वृक्ष की छाया में बैठी अपने विगत जीवन को याद कर रही है। वह अकबर के दरबार की और अपने विगत (UPBoardSolutions.com) जीवन के बारे में विचार करती हुई कहती है कि “उस भोग-विलास भरे जीवन में कटुता ही थी प्रीति नहीं।” उसे बीते जीवन की तुलना में अपना वर्तमान जीवन अधिक सुखद मालूम होता है। अकबर के साम्राज्यवाद की लिप्सा उसके कोमल हृदय में घृणा के बीज बो देती है, किन्तु राणा प्रताप के प्रति उसके विचार पिता जैसी श्रद्धा से युक्त हैं

सचमुच ये कितने महान् कितने गौरवशाली।
इनको पिता बनाकर मैंने बहुत बड़ी निधि पा ली।।

दौलत विचार करती हुई स्वयमेव कह उठती है कि “अकबर यह क्यों नहीं समझते कि ईश्वर ने सबको समान बनाया है।’ राणा के भाई शक्तिसिंह पर ‘दौलत’ का मन आकृष्ट है, किन्तु वह राणा के सम्मुख अपनी कहानी कहकर उनके दु:ख को और नहीं बढ़ाना चाहती। वह शक्तिसिंह और प्रताप की तुलना करती हुई कहती है कि “ये सूर्य हैं, वह दीपक है।” वह राणा प्रताप के लिए कुछ करना चाहती है। विचारों में निमग्न दौलत को उसी समय वृक्षों के पीछे से किसी की पदचाप सुनाई पड़ती है। यहीं पर इस सर्ग का समापन हो जाता है।

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प्रश्न 6
‘मेवाड़-मुकुट के ‘चिन्ता’ सर्ग (पञ्चम सर्ग) में दिये रानी लक्ष्मी के मनोभावों को स्पष्ट कीजिए।
या
‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘चिन्ता’ (पञ्चम) सर्ग का सारांश (कथावस्तु या कथानक) लिखिए। [2009, 14, 18]
उत्तर
‘दौलत के पास पहुँचकर राणा उसके एकान्त चिन्तन का कारण पूछते हैं। दौलत अपने को परम सुखी और निश्चिन्त बताती हुई स्वयं राणा के रात-दिन चिन्तित रहने को ही अपनी चिन्ता का कारण बताती है। राणा उसे प्यार से कहते हैं-“तूने तो आकर किये मुखर, सोये थे जो स्वर मौन यहाँ।”

इसी प्रसंग में राणा प्रताप कहते हैं कि वे रानी लक्ष्मी की आँखों में आँसू देखकर कुछ विचलित हैं। रानी लक्ष्मी के धीर-गम्भीर स्वभाव की बात कहते हुए दौलत कहती है कि वे अपने मन की गहराई में सारे दु:खों को इस प्रकार समाहित रखती हैं कि किसी को उनके दु:खी होने का पता (UPBoardSolutions.com) नहीं लग पाता। उनकी आँखों में आँसू होने का अर्थ निश्चित ही कोई असामान्य घटना है। अत: दौलत राणा के साथ लक्ष्मी के पास जाकर उसके मन की पीड़ा को जानने और यथाशक्ति उसे दूर करने के लिए तत्पर हो जाती है।

अपने पुत्र को गोद में लिटाये हुए रानी लक्ष्मी सोच रही है कि उसके कारण ही राणा अपने देश को त्यागकर जंगल में भटक रहे हैं। उसके मानस में हल्दीघाटी के युद्ध-स्थल में चेतक पर सवार होकर वीरों का आह्वान करते हुए राणा प्रताप का चित्र अंकित हो जाता है। उसी समय दौलत का मीठा स्वर-हँ, किस चिन्ता में एकाकी बैठी हो चुपचाप इधर” कानों में गूंज उठता है। रानी और दौलत के वार्तालाप के इसी अवसर पर महाराणा प्रताप रानी को अपने निश्चय की सूचना देते हैं कि मेवाड़-भूमि की मुक्ति के लिए, कुछ समय के लिए वे मेवाड़ से दूर सिन्धु-प्रदेश में जाकर सैन्य-संग्रह करेंगे और या तो वे सफल होंगे अथवा मिट जाएँगे। राणा के इस निश्चय को सुनकर लक्ष्मी में चेतना दौड़ पड़ती है। क्षत्राणी होने के कारण वह भी मेवाड़ की स्वाधीनता हेतु अपना सर्वस्व (UPBoardSolutions.com) न्योछावर करने के लिए तत्पर हो जाती है। तत्पश्चात् अगले दिन प्रात: ही प्रस्थान करने का निश्चय हो जाता है।

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प्रश्न 7
‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य के आधार पर कवि पृथ्वीराज और राणा प्रताप के बीच हुए वार्तालाप का सारांश लिखिए।
या
खण्डकाव्य के ‘पृथ्वीराज’ सर्ग (षष्ठ सर्ग) का कथानक संक्षेप में लिखिए। [2009, 15]
या
‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य के ‘पृथ्वीराज’ सर्ग का सारांश लिखिए। [2011, 13]
या
‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य के छठवें सर्ग का कथानक लिखिए। [2016]
उत्तर
क्षितिज में अरुणाभा फैल जाने पर राणा सभी को यात्रा के लिए तैयार कर देते हैं। उसी समय एक अनुचर अकबर के दरबारी कवि पृथ्वीराज का पत्र लाकरे राणा को देता है। वे पत्र पढ़कर पृथ्वीराज से मिलने जाते हैं। पृथ्वीराज अपने और अपने जैसे अन्य राजपूत नरेशों के स्वार्थपूर्ण व्यवहार पर दु:ख प्रकट करते हुए कहते हैं कि उन्होंने अपनी राजपूती मर्यादा को भूलकर अकबर का साथ दिया था। वहाँ क्षुद्र स्वार्थ के कारण उनका स्वाभिमान, स्वातन्त्र्य-प्रेम और जातीय गौरव सभी कुछ नष्ट हो गया है। अब हमने कपटरहित मन से यह स्वीकार किया है कि हम आपको साधनहीन वन-वन भटकने नहीं देंगे। (UPBoardSolutions.com) हमें आपके भुजबल पर भरोसा है। अब हम अकबर से प्रतिशोध लेकर मेवाड़ को पुनः प्राप्त करेंगे। जब राणा प्रताप अपने साधनहीन होने की बात करते हैं, तब पृथ्वीराज बताता है कि भामाशाह सेना का प्रबन्ध करने के लिए साधनों को प्रस्तुत करेंगे। यह सूचना देकर और राणा प्रताप की आज्ञा लेकर वे भामाशाह को बुलाने चले जाते हैं।

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प्रश्न 8
‘मेवाइ-मुकुट’ के सातवें सर्ग ‘भामाशाह का सारांश लिखिए। [2010, 12, 13]
या
‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य के आधार पर राणा प्रताप और भामाशाह के मध्य हुए वार्तालाप का वर्णन कीजिए।
या
‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य में वर्णित किस घटना ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है ? उदाहरण देकर समझाइट। [2009]
या
‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य मेवाड़ की स्वाधीनता का संग्राम था।’ इस उक्ति पर प्रकाश डालिए। [2009]
उत्तर
राणा प्रताप एकान्त में बैठकर बदली हुई परिस्थिति पर विचार करते हैं। उन्हें लगता है कि उनके जीवन-पथ में नियति अब नया मोड़ लाना चाहती है, तभी तो अकबर के मित्र कवि उनकी खोज करते हुए भामाशाह के साथ अरावली में आ पहुँचे हैं। उसी समय भामाशाह पृथ्वीराज के साथ आकर जयजयकार करते हुए नत-मस्तक हो जाते हैं। भामाशाह अपने पूर्वजों द्वारा संचित अपार-निधि राणा के चरणों में अर्पित करना चाहते हैं, परन्तु राणा प्रताप क्षत्रिय होकर पराया धन स्वीकार करना; अपने कुल की मर्यादा के विपरीत मानते हुए उसे लेने से इनकार कर देते हैं। भामाशाह निवेदन करता है कि वह राजवंश की दी हुई सम्पत्ति ही राजवंश की सेवा में अर्पित कर रहा है, परन्तु राणा प्रताप दी हुई वस्तु को वापस लेना मर्यादा के अनुकूल नहीं मानते–

राजवंश ने जिनको जो कुछ दिया, न वापस लूंगा।
शेष प्राण हैं अभी, देश-हित हँस-हँस होम कसँगा।

प्रताप का यह वचन सुनकर भामाशाह कहता है कि क्या देश-हित में त्याग और बलिदान का अधिकार केवल राजवंश को ही है ? क्या यह प्रत्येक नागरिक का पावन कर्तव्य नहीं है कि वह देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दे? भामाशाह के इस विनयपूर्ण अकाट्य तर्क को राणा प्रताप अस्वीकार नहीं कर पाते और एक क्षण को मौन रह जाते हैं, फिर भामाशाह को गले से लगा लेते हैं। भामाशाह के समर्पण को स्वीकार कर राणा प्रताप तुरन्त सैन्य-संग्रह के लिए तत्पर हो जाते हैं। अब मेवाड़ की मुक्ति का स्वप्न उन्हें साकार होता दिखाई देने लगता है। यहीं ‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य की समाप्ति हो जाती है।

प्रश्न 9
‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य के आधार पर महाराणा प्रताप (खंण्डकाव्य के नायक) का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
मेवाइ-मुकुट खण्डकाव्य के नायक कौन हैं ? उनके चरित्र की तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2009, 10, 15, 17]
या
‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य के जिस पात्र ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया हो, उसका चरित्रांकन कीजिए। [2012, 16]
या
“महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के एक ऐसे महापुरुष हैं, जिनसे जातीय स्वाभिमान, देशप्रेम व स्वाधीनता के लिए सर्वस्व बलिदान की सीख राष्ट्र की पीढ़ियाँ निरन्तर ग्रहण करती रहेंगी।” मेवाड़-मुकुट के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
या
‘मेवाड़-मुकुट के आधार पर राणा प्रताप के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। [2012, 13]
या
‘मेवाड़-मुकुट के नायक के त्याग और पराक्रम का वर्णन कीजिए। [2012]
या
‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य के आधार पर राणा प्रताप के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
महाराणा प्रताप ‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य के नायक हैं। कवि ने इस काव्य में भारतीय इतिहास के विख्यात महापुरुष महाराणा प्रताप के त्याग, संघर्ष, देशभक्ति, उदारता और बलिदान का चित्रण किया है। वे हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर से पराजित होकर अरावली के सघन वनों में भटकते हुए भी अपनी प्यारी मातृभूमि मेवाड़ की स्वतन्त्रता के लिए साधन की खोज करते रहते हैं। राणा प्रताप के इन गुणों को अपनाने हेतु प्रेरित करना ही कवि का उद्देश्य रहा है। महाराणा प्रताप के चरित्र में निम्नवत् विशेषताएँ हैं—

(1) स्वतन्त्रता-प्रेमी–स्वतन्त्रता के प्रति प्रेम प्रताप के रोम-रोम में व्याप्त है। भारत के सभी शासक अकबर की शक्ति के कारण उसकी अधीनता स्वीकार कर लेते हैं, परन्तु वह जब तक साँस है स्वतन्त्र रहूँगा, दास नहीं हो सकता” कहते हुए पराधीनता स्वीकार नहीं करते और पराजित होकर अरावली की पहाड़ियों में भटकते रहते हैं और मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए युक्ति सोचते रहते हैं

मैं मातृभूमि को अपनी पुनः स्वतन्त्र करूंगा।
या स्वतन्त्रता की वेदी पर लड़ता हुआ मरूसँगा॥

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(2) देशभक्त-प्रताप में देशप्रेम कूट-कूटकर भरा हुआ है। वे मेवाड़ की मुक्ति के लिए अरावली की घाटियों में भटकते हुए भी अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होते। वे अपना सर्वस्व गॅवाकर भी मातृभूमि की रक्षा के लिए कृतसंकल्प हैं। उन्हें मेवाड़ से, वहाँ की धरती से, नदी-पर्वतों से और वनों-मैदानों से भी असीम प्यार है। वे देश की स्वतन्त्रता व सेवा का आमरण व्रत लिये हुए हैं-

मैं स्वदेश के हित जीवित हूँ, उसके लिए मरूंगा।

(3) उदार और भावुक हृदय-प्रताप का हृदय अत्यधिक उदार है। वे शत्रु की कन्या ‘दौलत’ को भी पुत्रीवत् पालते हैं। अपने भाई शक्तिसिंह के अकबर से मिल जाने पर भी वे उसे उसकी मूर्खता ही मानते हैं। और उसे क्षमा कर देते हैं। उनके शब्दों से भाई के प्रति उनकी (UPBoardSolutions.com) सहृदयता झलकती है—मेरा ही है मुझसे दूर कहाँ जाएगा। इसी प्रकार घोड़े चेतक की मृत्यु पर वे बहुत शोक-विह्वल हो उठते हैं। वे अकबर के मित्र पृथ्वीराज और भामाशाह से भी आत्मीयता से मिलते हैं।

(4) स्वाभिमानी–राणा प्रताप में क्षत्रियोचित स्वाभिमान विद्यमान है, इसलिए भामाशाह के द्वारा सैन्य-संग़ठन के लिए दिये जाने वाले अपरिमित धन को स्वीकार करना वे अपने स्वाभिमान के विरुद्ध मानते हैं। राजवंश के द्वारा दिये गये धन को भी स्वीकार करना वे उचित नहीं मानते–

राजवंश ने जिसको जो कुछ दिया, न वापस लँगा।
शेष प्राण हैं अभी, देश-हित हँस-हँस होम करूंगा।

महाराणा प्रताप की नस-नस में स्वाभिमान समस्या हुआ है। उन्हें अपनी जाति, कुल और देश पर अभिमान है। वे जाति और देश पर मर-मिटना भी जानते थे। स्वाभिमान के कारण वह मेवाड़ की मुक्ति के लिए जीवनभर संघर्ष करते रहे, परन्तु अकबर के सामने सिर झुकाने को किसी भी मूल्य पर तैयार न हुए।

(5) दृढ़-प्रतिज्ञ-राणा प्रताप दृढ़-प्रतिज्ञ हैं। वह अपने संकल्प को बार-बार दुहराते हैं। वे प्रतिज्ञा करते हैं कि जब तक शरीर में श्वास है, मेवाड़ की भूमि को स्वतन्त्र करने का प्रयास करता रहूंगा- .

जब तक तन में प्राण, लड़ेगा, पलभर चैन न लेगा।
सूर्य चन्द्रटल जाये, किन्तु व्रत उसका नहीं टलेगा।

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राणा प्रताप अपने संकल्प को पूरा करने के लिए सिन्धु-देश में जाकर धन और सैन्य-संग्रह करना । चाहते हैं और अपनी प्रतिज्ञा को कार्यरूप देने के लिए सदैव चिन्तित रहते हैं।

(6) धैर्यवान् महाराणा निर्भीक, साहसी और धैर्यशाली हैं। वे दुःखमय जीवन व्यतीत करते हैं, फिर भी शत्रु के सामने नहीं झुकते। वे कन्द-मूल-फल खाकर और भूमि पर सोकर भी धैर्य नहीं छोड़ते । स्वयं अरावली पर्वत भी उनकी धीरता के विषय में कहता है–

वह मति-धीरवीर, विपदा से किंचित् नहीं डरेगा।
फिर मेरे अतीत गौरव का, जीर्णोद्धार करेगा।

(7) शरणागतवत्सल और वात्सल्यपूर्ण पिता-राणा प्रताप का हृदय अत्यन्त (UPBoardSolutions.com) उदार एवं विशाल है। वे शत्रुपक्ष की कन्या दौलत को शरण देते हैं और उसे अपनी पुत्री के समान ही पालते हैं। इस सम्बन्ध में कवि के उद्गार हैं-

अरि की कन्या को भी उसने रख पुत्रीवत वन में।
एक नया आदर्श प्रतिष्ठित किया वीर जीवन में।

दौलत के मुख से निकले हुए शब्द राणा प्रताप के उसके प्रति वात्सल्य भाव को प्रकट करते हैं

सचमुच ये कितने महान् हैं कितने गौरवशाली।
इनको पिता बनाकर मैंने बहुत बड़ी निधि पा ली।

(8) पराक्रमी–महाराणा प्रताप के व्यक्तित्व की ओजस्विता दर्शनीय है। वे युद्धस्थल में शत्रुओं को धराशायी करने में पूर्ण सक्षम हैं। वे अपरिमित सैन्य-शक्तिसम्पन्न अकबर से युद्ध करते हैं तथा उसकी सेना के दाँत खट्टे कर देते हैं। उनके पराक्रम का लोहा स्वयं अकबर भी मानता है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि महाराणा प्रताप स्वतन्त्रता-प्रेमी, देशभक्त, उदारहृदय, त्यागी, दृढ़-प्रतिज्ञ, निर्भीक और स्वाभिमानी लौह-पुरुष हैं। वे भारतीय इतिहास में सदैव वन्दनीय रहेंगे।

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प्रश्न 10
‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य के आधार पर भामाशाह का चरित्र-चित्रण कीजिए। | [2010, 11, 12, 13, 14, 17]
या
भामाशाह का चरित्र आज के अर्थप्रधान युग में प्रासंगिक और अनुकरणीय होने के कारण अपना एक विशिष्ट महत्त्व रखता है। ‘मेवाड़-मुकुट के आधार पर स्पष्ट कीजिए। [2009]
या
‘मेवाड़-मुकुट के आधार पर भामाशाह की देशभक्ति तथा त्याग-भावना पर प्रकाश डालिए। [2009, 10]
या
भामाशाह के चरित्र की तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए और बताइए कि उनसे आपको क्या प्रेरणा मिलती है ?
या
‘मेवाड़-मुकुट के आधार पर भामाशाह के चारित्रिक गुणों (विशेषताओं) पर प्रकाश डालिए। [2014]
उत्तर
भामाशाह ‘मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र हैं। वे मेवाड़-केसरी महाराणा प्रताप की ऐसे समय में सहायता करते हैं, जब वे बिल्कुल असहाय और निराश हो चुके थे। उनका चरित्र त्याग का आदर्श चरित्र है; अत: कवि ने उनके नाम पर एक पृथक् (UPBoardSolutions.com) सर्ग की रचना करके उन्हें गौरव प्रदान किया है। उनके चरित्र में मुख्य रूप से निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगत होती हैं|

(1) देशप्रेमी—भामाशाह को अपनी मातृभूमि मेवाड़ से अटल अनुराग है। स्वदेश-प्रेम की भावना से प्रेरित होकर ही वे महाराणा प्रताप को सैन्य-संगठन के लिए अपनी अतुल सम्पत्ति समर्पित कर देते हैं। वे कहते हैं-

यदि स्वदेश के मुक्ति यज्ञ में, यह आहुति दे पाऊँ।
पितरों सहित देव निश्चय ही, मैं कृतार्थ हो जाऊँ॥

(2) महान् त्यागी–भामाशाह का त्याग अनुपम और आदर्श है। अपने पिता-पितामहों के द्वारा संचित लक्ष-लक्ष मुद्राओं को राणा के चरणों में समर्पित करते हुए वे अपने को धन्य समझते हैं-

पिता-पितामहों के द्वारा यह निधि वर्षों की संचित है।
साधन-संग्रह हेतु देव के चरणों में अर्पित है॥

भामाशाह का त्याग प्रताप को कर्तव्य-पथ की ओर प्रेरित करता है। महाराणा प्रताप स्वयं कहते हैं
“जिस मेवाड़ भूमि पर भामाशाह जैसे त्यागी, बलिदानी पुरुषों ने जन्म लिया, वह भला किस तरह परतन्त्र रह सकती है।”

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(3) राजवंश में निष्ठा-भामाशाह की राजवंश में निष्ठा है। वे राणा प्रताप से कहते हैं कि हमने सारी सम्पदा राजवंश से ही प्राप्त की है—राजवंश के ही प्रसाद से श्रीसम्पन्न बने हम। वे अपने को राज्य का सेवक और सारी सम्पदा को राज्य की ही मानते हुए इस सम्पदा को उपयोग राज्य की रक्षा के लिए किये जाने को उचित ठहराते हैं।

(4) तर्कशील-भामाशाह उत्कृष्ट तार्किक व्यक्ति हैं। उनमें बुद्धि और तर्क का मणिकांचन योग है। प्रताप द्वारा धन अस्वीकार करने पर वे स्पष्ट तर्क देते हुए कहते हैं-“देशहित में त्याग और बलिदान का अधिकार केवल राजवंश को ही नहीं है, वरन् यह प्रत्येक नागरिक (UPBoardSolutions.com) का कर्तव्य है कि वह देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दे।” यहाँ जो कुछ जिस किसी के पास है, वह स्वदेश का है-

उसके ऋण से उऋण करे जो, वह धन देव कहाँ है।
तन-मन-धन-जीवन सब उसका, अपना कुछ न यहाँ है ॥

(5) विनयशील–भामाशाह अत्यन्त विनम्र हैं। वे अपने पूर्वजों के द्वारा संचित निधि को बड़े विनय भाव से राणा के चरणों में अर्पित करते हुए कहते हैं-

वह अधिकार देव सबका है, यह कर्त्तव्य सभी का।
सबको आज चुकाना है, ऋण मेवाड़ी माटी का ॥

भामाशाह राणा प्रताप को ‘देव’ और अपने को उनका ‘सेवक’ बताते हुए उस सम्पदा को स्वीकार करने के लिए विनयपूर्वक याचना करते हैं।

(6) उत्साही एवं प्रेरक— भामाशाह एक उत्साही व्यक्ति हैं। प्रथम मिलन में ही वे राणा प्रताप का उत्साह बढ़ाते हैं तथा उनको मेवाड़ की रक्षा हेतु प्रेरित करते हैं। भामाशाह के प्रेरणात्मक शब्द ही राणा प्रताप के निराश मन में आशा का संचार करते हैं

अविजित हैं, विजयी भी होंगे, देव शीघ्र निःसंशय।
मातृभूमि होगी स्वतन्त्र फिर, हम होंगे फिर निर्भय ॥

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निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भामाशाह को देशप्रेम और त्याग अनुपम है। वह तर्कशील, विनयशील और राजवंश में निष्ठा रखने वाले धनी पुरुष हैं। भामाशाह जैसा त्याग का आदर्श विश्व-इतिहास में दुर्लभ है।।

प्रश्न 11
“मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य के आधार पर पृथ्वीराज का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2014]
उत्तर
पृथ्वीराज अकबर के दरबारी कवि हैं और अकबर के मित्र भी। पहले वे राणा प्रताप के विरुद्ध राजा मानसिंह के पक्ष में रहते हैं किन्तु जब अकबर उनके भी कुल की लाज लूटने लगता है, तब उनका रक्त खौलता है और वे आकर महाराणा प्रताप से मिलते हैं तथा उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे राजपूतों की लाज बचाएँ। मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य में उनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ प्रकट होती हैं

(1) महाराणा प्रताप के प्रति श्रद्धा-पृथ्वीराज राणा प्रताप के प्रति अत्यधिक (UPBoardSolutions.com) श्रद्धा-भाव रखते हैं। जैसे ही महाराणा प्रताप को देखते हैं, वे दोनों हाथ उठाकर उनकी जय-जयकार करते हैं और कहते हैं कि वे सिसौदिया कुल-भूषण हैं। मेवाड़ का कण-कण उनका यशोगान कर रहा है।”

(2) पश्चात्ताप की भावना—पृथ्वीराज पश्चात्ताप की भावना से युक्त हैं। जब राणा प्रताप उनसे क्रोध, घृणा और व्यंग्य की भाषा में बोलते हैं, तब पृथ्वीराज सब कुछ शान्तिपूर्वक सुनते हैं और फिर सच्चे हृदय से अपनी पिछली गलतियों के लिए पश्चात्ताप करते हैं तथा अपने आपको ‘अकबर का चारण’ कहकर सम्बोधित करते हैं-

यह अकबर का चारण अपने, जीवन की निधि खोकर।
आया, चरण शरण राणा की, आज पाप निज धोकर ॥

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पृथ्वीराज का दु:ख देखकर महाराणा प्रताप को हृदय पिघल जाता है। वे कहते हैं कि पृथ्वीराज का पश्चात्ताप राजपूतों की जागृति का शुभ लक्षण है।

(3) प्रतिशोध की भावना से दग्ध-पृथ्वीराज के मन में अकबर के प्रति प्रतिशोध की भावना प्रज्ज्वलित है। जब राणा प्रताप पृथ्वीराज से पूछते हैं कि अब वे हाथ-पर-हाथ रखकर बैठना चाहते हैं। अथवा अकबर से प्रतिशोध लेना चाहते हैं, तब पृथ्वीराज प्रतिशोध की भयंकर भावना से भरकर कह उठते हैं-

बोले हाँ प्रतिशोध मात्र, प्रतिशोध लक्ष्य अब मेरा ।
उसके हित ही लगा रहा हूँ, अरावली का फेरा ॥

(4) सच्चे-सहयोगी–कवि पृथ्वीराज में एक सच्चे सहयोगी की भावना भी पायी जाती है। वे महाराणा प्रताप की उचित वक्त पर सहायता करते हैं। वे अपने साथ भामाशाह को लाते हैं, जो लाखों स्वर्ण मुद्राएँ महाराणा को अर्पित कर देता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि पृथ्वीराज के चरित्र में एक सच्चे देशभक्त की सभी भावनाएँ विद्यमान हैं, जो उचित अवसर पाकर अभिव्यक्त हुई हैं।

प्रश्न 12
“मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य के आधार पर लक्ष्मी का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘मेवाड़-मुकुट खण्डकाव्य के आधार पर किसी नारी पात्र की चारित्रिक विशेषताओं को लिखिए। [2018]
उत्तर
लक्ष्मी महाराणा प्रताप की सच्चे अर्थों में उनकी अद्धगिनी हैं। वे भी महाराणा प्रताप के साथ वन-वन भटक रहीं हैं और उनके समान ही कष्ट सह रही हैं। प्रस्तुत खण्डकाव्य में उनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ प्रकट होती हैं

(1) मानसिक-संघर्ष-लक्ष्मी इतने कष्ट झेलती हैं कि मानसिक संघर्ष के कारण उन्हें अनेक प्रकार की शंकाएँ होने लगती हैं। वे सोचती हैं कि कर्म-योग की बातें करना कोरा आदर्श है। वास्तव में भोग ही सच्चा जीवन-दर्शन है। संसार में दयावान् तथा सविचार (UPBoardSolutions.com) वाले व्यक्ति दु:ख भोगते हैं और कुमार्ग पर चलने वाले सफलता प्राप्त करते हैं।

(2) महाराणा प्रताप के लिए अपार श्रद्धा-लक्ष्मी के हृदय में महाराणा के लिए अपार श्रद्धा है। वे कहती हैं कि उनका एकमात्र अपराध यही है कि उन्होंने कभी अत्याचारी के आगे सिर नहीं झुकाया, अपने धर्म और स्वाभिमान को नहीं बेचा और दासता का जीवन स्वीकार नहीं किया। इसके कारण ही उन्हें इतने कष्ट झेलने पड़ रहे हैं किन्तु उनकी आत्मा महान् है और इससे उन्हें सन्तोष प्राप्त होता है। वास्तव में लक्ष्मी को यही खेद है कि निर्दोष होते हुए भी महाराणा इतना कष्ट भोग रहे हैं।

(3) परदुःख-कातरता लक्ष्मी स्वयं कष्ट सह सकती हैं, पर दूसरों के कष्ट उनसे नहीं देखे जाते। वे कहती हैं कि यदि वे अकेली होतीं तो उन्हें भूखे रहने की कोई चिन्ता न थी किन्तु उनसे अमर, दौलत और राणा जी का भूखों रहना नहीं देखा जाता।

(4) उदारहृदया–लक्ष्मी का हृदय विशील और संकीर्ण साम्प्रदायिक विचारों से परे है। अकबर की ममेरी बहन दौलत उनके साथ आकर रहने लगती है। वे उसको उतना ही स्नेह करती हैं, जितना अपने पुत्र अमर को। वे यह नहीं सोचतीं कि यह बालिका एक यवन पुत्री है और शत्रु की बहन है। यही कारण है कि दौलत भी लक्ष्मी को सच्चे हृदय से अपनी माँ मानती है और उनका उसी प्रकार सम्मान करती है।

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(5) स्वतन्त्रता-प्रेमी-पर्याप्त मानसिक संघर्ष झेलते हुए भी अन्त में उनकी स्वतन्त्रता की भावना की विजय होती है। वे कहती हैं कि वे कष्ट सहती रहेंगी। कष्टे उन्हें विचलित नहीं कर पाएँगे। वे कभी अत्याचारों के आगे शीश नहीं झुकाएँगी।

(6) दृढ़ता एवं वीरता-वे वीरांगना हैं। जब महाराणा प्रताप कहते हैं कि उन्होंने मेवाड़ छोड़ने का निश्चय कर लिया है, तो उनका मन पुनः उत्साह से भर जाता है। वे राणा से कहती हैं कि वे उनकी चिन्ता न करें। वे क्षत्राणी हैं और वे जौहर करना जानती हैं।

निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि रानी लक्ष्मी उदारहृदया, साहसी एवं सहनशील हैं। वे एक आदर्श पत्नी तथा स्नेही माँ हैं। संकटों के झंझावात कभी-कभी उन्हें विचलित कर देते हैं, किन्तु अन्त में उनकी दृढ़ता और उनके स्वतन्त्रता-प्रेम की ही विजय (UPBoardSolutions.com) होती है। वे कष्टों के समक्ष नतमस्तक होने से इन्कार कर देती हैं।

प्रश्न 13
“मेवाड़-मुकुट’ खण्डकाव्य के आधार पर दौलत का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर
दौलत अकबर के मामा की लड़की है, जो राज-प्रासादों के वैभव को त्यागकर वन में महाराणा प्रताप के साथ रहने लगती हैं। महाराणा प्रताप भी उसे अपनी पुत्री की तरह ही स्नेह करते हैं। दौलत को पाकर राणा प्रताप यह भूल जाते हैं कि उनके कोई पुत्री नहीं है।

दौलत के चरित्र का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है, वह काल्पनिक पात्र है। इसका वर्णन स्वर्गीय श्री द्विजेन्द्रलाल राय के नाटक ‘राणा प्रताप सिंह’ में मिला है। कवि ने प्रस्तुत काव्य में उसे वहीं से ग्रहण किया है। उसके चरित्र में हमें निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं

(1) दरबारी जीवन से घृणा–दौलत अकबर के दरबारी जीवन से घृणों करती है। उसका कहना है कि आगरा में वैभव है, ऐश्वर्य है, रंगरेलियाँ हैं किन्तु वहाँ छल-कपट है, दम्भ और द्वेष है। यथार्थ में वहाँ का वातावरण बड़ा ही दूषित है। वहाँ सहृदयता का अभाव है और आपस में स्नेह नहीं है। इसलिए वह उस जीवन को त्याग देती है और राणा की कुटिया में आकर शान्ति प्राप्त करती है।

(2) वन-जीवन के प्रति अनुराग-दौलत राजकुमारी है किन्तु उसे वन-जीवन से अपार अनुराग है। वह प्रकृति में अनुपम सौन्दर्य के दर्शन करती है और वन के जीवन में सुख-शान्ति का अनुभव करती है।

(3) महाराणा के प्रति श्रद्धा-दौलत के हृदय में महाराणा के प्रति असीम श्रद्धा और आदर-भाव है। वह देखती है कि उसके पिता महाराणा से शत्रुता रखते हैं फिर भी महाराणा के हृदय में उसके प्रति महान् स्नेह-भाव है। वे पहले उसे खिलाते हैं, (UPBoardSolutions.com) फिर स्वयं भोजन करते हैं। उसमें और अमर में कोई भेद नहीं करते तथा इस बात को कभी मन में नहीं आने देते हैं कि वह एक यवन और शत्रु-सुता है।।

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(4) अकबर से घृणा-दौलत को इस बात का दु:ख है कि ऐसे महान् व्यक्ति को भी अकबर इतना कष्ट दे रहा है। राणा का एकमात्र अपराध यही है कि उन्होंने महाबली की दासता स्वीकार नहीं की। अत: वह अवबर से घृणा करती है।

(5) रानी लक्ष्मी के प्रति श्रद्धा-दौलत को रानी लक्ष्मी के लिए भी उतनी ही श्रद्धा है, जितनी महाराणा प्रताप के लिए। वह उनकी प्रकृति से भली-भाँति परिचित है और मुक्त-कण्ठ से उनकी प्रशंसा करती है।

(6) त्याग और सेवा-भावना–दौलत चाहती है वह महाराणा प्रताप की कुछ सेवा कर सके–

केवल एक पुकार यही, उठती है अन्तरतम से।
राणाकी अनुगता बनें, जीवन सँवार लें क्रम से॥

(7) शक्तिसिंह के लिए प्रेम-दौलत के वन में आने का वास्तविक कारण यह (UPBoardSolutions.com) है कि वह शक्तिसिंह से प्रेम करती है। वह शक्तिसिंह के गुणों पर नहीं अपितु उसके रूप पर मुग्ध है। वह जानती है कि शक्तिसिंह क्षुद्र-हृदय और कायर है, फिर भी वह उसके रूप को निहारना चाहती है।

संक्षेप में दौलत एक नवयुवती है, उसमें नवयुवती के सदृश सुलभ कामनाएँ हैं। शक्तिसिंह पर मुग्ध होकर वह अकबर का दरबार छोड़ देती है और वन में आकर रहने लगती है, किन्तु यहाँ आकर वह वन-जीवन की भक्त हो जाती है और राणा की सेवा में ही अपने जीवन को सफल मानने लगती है।

We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 3 मेवाड़-मुकुट (खण्डकाव्य) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 3 मेवाड़-मुकुट (खण्डकाव्य), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

 

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 प्रबुद्धो ग्रामीणः (संस्कृत-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 प्रबुद्धो ग्रामीणः (संस्कृत-खण्ड)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 प्रबुद्धो ग्रामीणः (संस्कृत-खण्ड).

अवतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी अनुवाद

प्रश्न 1.
एकदा बहवः जनाः धूमयानम् ( रेलगाड़ी) आरुह्य नगरं प्रति गच्छन्ति स्म। तेषु केचित् । ग्रामीणाः केचिच्च नागरिका: आसन्। मौनं स्थितेषु एकः नागरिकः ग्रामीणीन् उपहसन् अकथयत्‘ग्रामीणाः अद्यापि पूर्ववत् अशिक्षिताः अज्ञाश्च सन्ति। न तेषां विकासः अभवत् न च भवितुं शक्नोति।”तस्य तादृशं जल्पनं श्रुत्वा कोऽपि चतुरः ग्रामीणः अब्रवीत् ‘भद्र नागरिक ! भवान् एवं किञ्चित् ब्रवीतु, यतो हि भवान् शिक्षितः बहुज्ञश्च अस्ति।” इदम् आकर्त्य स नागरिकः सदर्प ग्रीवाम् उन्नमय्य अकथयत्-‘”कथयिष्यामि परं पूर्वं समयः विधातव्यः। तस्य तां वार्ता श्रुत्वा च चतुरः ग्रामीणः अकथयत्-‘भोः वयम् अशिक्षिताः भवान्च शिक्षितः, वयम् अल्पज्ञाः भवान् च बहुज्ञः, इत्येवं विज्ञाय अस्माभिः समयः कर्तव्यः,वयं परस्परं प्रहेलिकां प्रक्ष्यामः।यदि भवान्उत्तरं दातुं समर्थः न भविष्यति तदा भवान् दशरूप्यकाणि दास्यति। यदि वयम् उत्तरं दातुं समर्थाः न भविष्यामः तदा दशरूप्यकाणाम् अर्धं पञ्चरूप्यकाणि दास्यामः।” [2010, 14, 17]
उत्तर
[ धूमयानम् = रेलगाड़ी। आरुह्य = चढ़कर। उपहसन् = मजाक उड़ाते हुए। जल्पनम् = कथन। अज्ञाः = मूर्ख। ब्रवीत् = कहें। आकण्र्य = सुनकर। सदर्प = गर्वसहित। ग्रीवाम् = गर्दन को। उन्नमय्य = ऊँची करके। समयः विधातव्यः = शर्त रख लेनी (UPBoardSolutions.com) चाहिए। विज्ञाय = जानकर। प्रहेलिकां = पहेली को। प्रक्ष्यामः | = पूछेगे। दशरूप्यकाणाम् अर्धं = दस रुपये के आधे, पाँच रुपये।]।

सन्दर्भ–प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘संस्कृत-खण्ड’ के ‘प्रबुद्धो ग्रामीणः’ पाठ से उधृत है।

[ विशेष—इस पाठ के सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा। प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में ग्रामीण व्यक्ति की चतुरता का वर्णन बड़े ही मनोरंजक ढंग से किया गया है।

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अनुवाद–एक बार बहुत-से लोग रेलगाड़ी पर चढ़कर नगर की ओर जा रहे थे। उनमें कुछ ग्रामवासी थे और कुछ नगरवासी। उनके चुपचाप बैठे रहने पर एक नगरवासी ने ग्रामवासियों की हँसी उड़ाते हुए कहा- “ग्रामवासी पहले की भाँति आज भी अशिक्षित और मूर्ख हैं। न तो उनका विकास हुआ है और न हो सकता है। उसके इस प्रकार के कथन को सुनकर कोई चतुर ग्रामीण बोला-“हे नगरवासी भाई! आप ही कुछ कहें; क्योंकि आप शिक्षित और बहुत जानकार हैं।” यह सुनकर नगरवासी ने गर्वसहित गर्दन ऊँची करके कहा- “कहूँगा, परन्तु पहले शर्त रख लेनी चाहिए।” उसकी बात सुनकर उस चतुर ग्रामीण ने कहा-“भाई! हम अशिक्षित हैं और आप शिक्षित हैं। हम कम जानकार हैं और आप अधिक जानकार हैं। यही जानकर हमें शर्त रखनी चाहिए। हम आपस में पहेली पूछेगे। यदि आप उत्तर देने में समर्थ नहीं होंगे तो आप दस रुपये देंगे। यदि हम उत्तर देने में समर्थ नहीं होंगे, तब हम दस रुपये के आधे पाँच रुपये देंगे।”

प्रश्न 2.
“आम् स्वीकृतः समयः”, इति कथिते तस्मिन् नागरिके से ग्रामीणः नागरिकम् अवदत्-“प्रथमं भवान् एव पृच्छतु।”नागरिकश्चतं ग्रामीणम् अकथयत्-‘त्वमेव प्रथमं पृच्छ’ इति। इदं श्रुत्वा स ग्रामीणः अवदत्-‘युक्तम्, अहमेव प्रथमं पृच्छामि-
अपदो दूरगामी च साक्षरो न च पण्डितः ।
अमुखः स्फुटवक्ता च यो जानाति स पण्डितः ॥
अस्या उत्तरं ब्रवीतु भवान्।’ [2011, 13, 15, 17]
उत्तर
[ आम् = हाँ। स्वीकृतः समयः = शर्त स्वीकार है। कथिते = (UPBoardSolutions.com) कहने पर। तस्मिन् नागरिके = उस नागरिक के। श्रुत्वा = सुनकर। युक्तम् = ठीक है। अपदः = बिना पैर के। साक्षरः = अक्षरयुक्त। अमुखः = बिना मुख के। स्फुटवक्ता = स्पष्ट बोलने वाला।]

प्रसंग-इस गद्यांश में ग्रामीण और नागरिक के परस्पर पहेली पूछने का वर्णन किया गया है।

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अनुवाद-“हाँ, मुझे शर्त स्वीकार है, उस नागरिक के ऐसा कहने पर उसे ग्रामीण ने नागरिक से कहा-“पहले आप ही पूछे।” उस नगरवासी ने ग्रामवासी से कहा-“तुम ही पहले पूछो।’ यह सुनकर वह ग्रामवासी बोला-“ठीक है, मैं ही पहले पूछता हूँ

बिना पैर का है, परन्तु दूर तक जाता है, साक्षर (अक्षरों से युक्त) है, परन्तु पण्डित नहीं है, बिना मुख का है, परन्तु साफ बोलने वाला है, उसे जो

जानता है, वह विद्वान् है।”
आप इसका उत्तर बताएँ।

प्रश्न 3.
नागरिकः बहुकालं यावत् अचिन्तयत्, परं प्रहेलिकायाः उत्तरं दातुं समर्थः न अभवत्। अतः ग्रामीणम् अवदत्-”अहम् अस्याः प्रहेलिकायाः उत्तरं न जानामि।” इदं श्रुत्वा ग्रामीणः अकथयत् ‘यदि भवान् उत्तरं न जानाति, तर्हि ददातु दशरूप्यकाणि।” अतः म्लानमुखेन नागरिकेण समयानुसारं दशरूप्यकाणि दत्तानि।। [2010, 11, 13, 15, 17]
उत्तर
[ बहुकालं यावत् = बहुत देर तक। अचिन्तयत् = सोचता रहा। तर्हि = तो। म्लानमुखेन = मलिन मुख वाले।]

प्रसंग-इस गद्यांश में नागरिक के पहेली का उत्तर न दे पाने (UPBoardSolutions.com) का वर्णन किया गया है।

अनुवाद-नागरिक बहुत देर तक सोचता रहा, परन्तु पहेली का उत्तर देने में समर्थ न हो सका; अतः ग्रामवासी से बोला-“मैं इस पहेली का उत्तर नहीं जानता हूँ।” यह सुनकर ग्रामवासी ने कहा-“यदि आप इसका उत्तर नहीं जानते हैं तो दस रुपये दें।” अत: मलिन मुख वाले नगरवासी के द्वारा शर्त के अनुसार दस रुपये दे दिये गये।

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प्रश्न 4.
पुनः ग्रामीणोऽब्रवीत् -“इदानीं भवान् पृच्छतु प्रहेलिकाम्।” दण्डदानेन खिन्नः नागरिकः बहुकालं विचार्य न काञ्चित् प्रहेलिकाम् अस्मरत्, अतः अधिकं लज्जायमानः अब्रवीत्‘स्वकीयायाः प्रहेलिकायाः त्वमेव उत्तरं ब्रूहि।” तदा स ग्रामीणः विहस्य स्वप्रहेलिकायाः सम्यक् उत्तरम् अवदत्-‘पत्रम्” इति। यतो हि इदं पदेन विनापि दूरं याति, अक्षरैः युक्तमपि न पण्डितः भवति। एतस्मिन्नेव काले तस्य ग्रामीणस्य ग्रामः आगतः स विहस रेलयानात् अवतीर्य स्वग्राम प्रति अचलत्।नागरिकः लज्जित: भूत्वा पूर्ववत् तूष्णीम् अतिष्ठत्।सर्वे यात्रिणः वाचालं तं नागरिकं दृष्ट्वा अहसन्। तदा स नागरिकः अन्वभवत् यत्ज्ञानं सर्वत्र सम्भवति।ग्रामीणोः अपि कदाचित् नागरिकेभ्यः प्रबुद्धतराः भवन्ति। [2009, 12, 15]
उत्तर
[ दण्डदानेन = दण्ड देने के कारण। खिन्न = दु:खी। विचार्य = सोचकर। काञ्चित् = किसी। अस्मरत् = याद कर सका। लज्जमानः = लज्जित होता हुआ। स्वकीयायाः = अपनी। विहस्य = हँसकर। सम्यक् = ठीक। याति = जाता है। युक्तमपि (युक्तम् + अपि) = युक्त होने पर भी। अवतीर्य = उतरकर तूष्णीम् = चुपचाप। वाचालं = अधिक बात करने वाले को। दृष्ट्वा = देखकर। अहसन् = हँसे। अन्वभवत् = अनुभव किया। प्रबुद्धतराः = अधिक बुद्धिमान्।]

प्रसंग-उत्तर दे पाने में असमर्थ नागरिक के लज्जित होने का वर्णन इस गद्यांश में किया गया है।

अनुवाद-फिर ग्रामवासी ने कहा-“अब आप पहेली पूछे।” दण्ड देने से दुःखी नगरवासी बहुत समय तक विचार करने पर भी कोई पहेली याद न कर सका; अत: अधिक लज्जित होते हुए बोला-“अपनी पहेली का तुम ही उत्तर बताओ।’ तब (UPBoardSolutions.com) उस ग्रामवासी ने हँसकर अपनी पहेली का सही उत्तर बताया-‘पत्र (चिट्ठी)। क्योंकि यह पैरों के बिना भी अधिक दूर चला जाता है, अक्षरों से युक्त होते हुए भी पण्डित नहीं होता है। इसी समय उस ग्रामवासी को गाँव आ गया। वह हँसता हुआ रेलगाड़ी से उतरकर अपने गाँव चला गया । नगरवासी लज्जित होकर पहले की तरह चुपचाप बैठ गया। सब यात्री उस बातूनी नगरवासी को देखकर हँसने लगे। तब उस नगरवासी ने अनुभव किया कि ज्ञान सभी जगह सम्भव होता है। ग्रामीण भी कभी नगरवासियों से अधिक बुद्धिमान होते हैं।

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अतिलघु-उतरीय संस्कृत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1
ग्रामीणान् उपहसन् नागरिकः किम् अकथयत् ? [2010]
उत्तर
ग्रामीणान् उपहसन् नागरिकः अकथयत्-“ग्रामीणः अद्यापि पूर्ववत् अशिक्षिताः अज्ञानश्च सन्ति। न तेषां विकासः अभवत् न च भवितुं शक्नोति।”

प्रश्न 2
समये स्वीकृते प्रथमं कः अवदत् ?
उत्तर
समये स्वीकृते प्रथमं (UPBoardSolutions.com) ग्रामीणः अवदत्।

प्रश्न 3
कः प्रथमं प्रहेलिकाम् अपृच्छत् ?
उत्तर
ग्रामीणः प्रथमं प्रहेलिकाम् अपृच्छत्।

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प्रश्न 4
ग्रामीणः नागरिकं कां प्रहेलिकाम् अपृच्छत् ?
उत्तर
ग्रामीण: नागरिकं प्रहेलिकाम् अपृच्छत् यत् अपदो दूरगामी च साक्षरो न च पण्डितः। अमुखः स्फुटवक्ता च यो जानाति स पण्डितः।।

प्रश्न 5
प्रहेलिकायाः उत्तरं दातुं कः समर्थः न अभवत् ?
उत्तर
नागरिकः प्रहेलिकाया: उत्तरं दातुं समर्थः न अभवत्।

प्रश्न 6
ग्रामीणस्य प्रहेलिकायाः किम् उत्तरम् आसीत् ? [2010, 13, 18]
उत्तर
ग्रामीणस्य प्रहेलिकायाः (UPBoardSolutions.com) उत्तरं ‘पत्रं’ इति आसीत्।

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प्रश्न 7
नागरिकः किमर्थं लज्जितः अभवत् ? [2011]
या
नागरिकः किं अर्थेन खिन्नः अभवत् ?
उत्तर
नागरिक: ग्रामीणस्य प्रहेलिकायाः उत्तरं दातुं समर्थः न अभवत्, अतः लज्जितः अभवत्।

प्रश्न 8
पदेन विना किं दूरं याति ? [2011, 12, 13, 14, 16, 17, 18]
उत्तर
पदेन विना पत्रं दूरं याति।

प्रश्न 9
नागरिकः प्रहेलिकां कथं न अपृच्छत् ?
उत्तर
नागरिक: दण्डदानेन खिन्नः अभवत् अत: (UPBoardSolutions.com) कामपि प्रहेलिकां न अस्मरत्। अतः सः न अपृच्छत्।

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प्रश्न 10
अन्ते नागरिकः किम् अनुभवम् अकरोत् ? [2010]
उत्तर
अन्ते नागरिकः अनुभवम् अकरोत् यत् ज्ञानं सर्वत्र सम्भवति, ग्रामीणः अपि कदाचित् नागरिकेभ्यः प्रबुद्धतराः भवन्ति।

प्रश्न 11
ज्ञानं कुत्र सम्भवति.? [2015, 16]
उत्तर
ज्ञानं सर्वत्र सम्भवति।

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प्रश्न 12
नागरिकः किं दातुं समर्थः न अभवत् ? [2015, 17]
उत्तर
नागरिक: ग्रामीणस्य प्रहेलिकाया: उत्तरं दातुं समर्थः न अभवत्।

प्रश्न 13
अमुखोऽपि कः स्फुटवक्ता भवति ? [2012, 13, 15, 16]
उत्तर
अमुखमपि पत्रं स्फुटवक्ता भवति।

प्रश्न 14
ग्रामीणान् कः उपाहसत् ? [2010, 12, 16, 17, 18]
उत्तर
ग्रामीणान् एकः (UPBoardSolutions.com) नागरिकः उपाहसत्।

प्रश्न 15
धूमयाने समयः केन जितः ? [2013, 17]
उत्तर
धूमयाने समयः एकः ग्रामीणेन जितः।

प्रश्न 16
‘कथयिष्यामि परं पूर्वं समयः विधातव्यम्’ इति केन उक्तम् ?
उत्तर
‘कथयिष्यामि’ परं पूर्वं समय: विधातव्यम् इति नागरिकेन उक्तम्।

प्रश्न 17
धूमयानमारुह्य के गच्छन्ति स्म ?
उत्तर
धूमयानम् आरुह्य बहवः जनाः नगरं प्रति गच्छन्ति स्म।

प्रश्न 18
‘ज्ञानं सर्वत्र सम्भवति’ इति कः अन्वभवत् ? [2010]
उत्तर
‘ज्ञानं सर्वत्र सम्भवति’ इति (UPBoardSolutions.com) नागरिक: अन्वभवत्।

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प्रश्न 19
ग्रामीणः नागरिकं किम् अपृच्छत्? [2013, 14]
उत्तर
ग्रामीण: नागरिकं एकं प्रहेलिकाम् अपृच्छत्।

अनुवादात्मक

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों की संस्कृत में अनुवाद कीजिए-
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 प्रबुद्धो ग्रामीणः (संस्कृत-खण्ड) img-3

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प्याराणत्मक

प्रश्न 1
‘बहु में ‘ज्ञः’ जोड़कर ‘बहुशः’ शब्द की रचना की गयी है। इसी प्रकार से शः’ जोड़कर पाँच अन्य शब्दों की रचना कीजिए।
उत्तर
अल्पज्ञः, विशेषज्ञः, नीतिज्ञः, वेदज्ञः, नेत्रज्ञः।

प्रश्न 2
‘तव्य’ एक प्रत्यय है, इसे धातु के साथ चाहिए अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है; जैसे-
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 प्रबुद्धो ग्रामीण (संस्कृत-खण्ड) img-1
इसी प्रकार निम्नलिखित धातुओं में ‘तव्य’ प्रत्यय जोड़कर नये शब्द बनाइए-
दृश, प्राप्, स्था, प, ध्या, पा।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 प्रबुद्धो ग्रामीणः (संस्कृत-खण्ड) img-4

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प्रश्न 3
निम्नलिखित शब्दों का सरल संस्कृत-वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
बहुशः, अल्पः , चतुरः, निर्धनम्, युक्तम्, अयुक्तम्, उत्तरम्, तूष्णीम्।
उत्तर
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प्रश्न 4
‘कृ’ धातु के लोट् लकार के रूप लिखिए।
उत्तर
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