UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 14 Environment Chemistry

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 14 Environment Chemistry (पर्यावरणीय रसायन)

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पाठ के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पर्यावरणीय रसायन शास्त्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत पर्यावरणीय प्रदूषण, और पर्यावरण में होने वाली विभिन्न प्रकार की रासायनिक और प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, पर्यावरणीय रसायन शास्त्र कहलाता है।

प्रश्न 2.
क्षोभमण्डलीय प्रदूषण को लगभग 100 शब्दों में समझाइए।
उत्तर
क्षोभमण्डल में अवान्छित गैसों तथा विविक्त वायु प्रदूषकों की इस सीमा तक वृद्धि कि वे मानव जाति तथा उसके पर्यावरण पर अनिष्ट प्रभाव आरोपित कर सकें, क्षोभमण्डलीय प्रदूषण कहलाता है।

  1. गैसीय प्रदूषक-जैसे—सल्फर के ऑक्साइड (S2, SO3) नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NO, NO2 ), कार्बन के ऑक्साइड (CO, CO2), हाइड्रोजन सल्फाइड हाइड्रोकार्बन, ऐल्डिहाइड, कीटोन इत्यादि।
  2. विविक्त या कणिकीय प्रदूषक-जैसे-धुंध, धुआँ, धूम (fumes), धूल, कार्बन, कण, लेड और कैडमियम यौगिक, जीवाणु, कवक, मॉल्ड इत्यादि। क्षोभमण्डलीय प्रदूषण ईंधनों के दहन, औद्योगिक प्रक्रमों, कीटनाशकों एवं विषैले पदार्थों के उपयोग द्वारा होता है। इसे जीवाश्म ईंधनों (fossil fuels) के प्रयोग को हतोत्साहित कर, ऑटोमोबाइलों से निकलने वाली गैसों को स्वच्छ कॅर, साइक्लोन एकत्रक (cyclone collector) का उपयोग कर एवं उचित अवशिष्ट प्रबन्धन (waste management) द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
कार्बन डाइऑक्साइड की अपेक्षा कार्बन मोनोऑक्साइड अधिक खतरनाक क्यों है? समझाइए।
उत्तर
कार्बन मोनोऑक्साइड एक अत्यधिक हानिकारक गैस है। यह रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन (haemoglobin) से क्रिया कर कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन (carboxyhaemoglobin) बनाती है जो रक्त में O2 का परिवहन रोक देता है। परिणामस्वरूप शरीर में O2 की कमी हो जाती है। CO के वायु में 100 ppm सान्द्रण पर चक्कर आना तथा सिरदर्द होने लगता है। अधिक सान्द्रता पर CO प्राणघातक हो सकती है। कार्बन डाइऑक्साइड हीमोग्लोबिन के साथ कोई क्रिया नहीं करती है। इस कारण यह कम हानिकारक है, यद्यपि यह ग्लोबल वार्मिंग (global warming) उत्पन्न करती है।

प्रश्न 4.
ग्रीन हाउस-प्रभाव के लिए कौन-सी गैसें उत्तरदायी हैं? सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर
CO2 मुख्य रूप से ग्रीन हाउस प्रभाव (green house effect) के लिये उत्तरदायी है। परन्तु दूसरी गैसें जो ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करती हैं वे मेथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन, ओजोन तथा जल-वाष्प हैं।

प्रश्न 5.
अम्लवर्षा मूर्तियों तथा स्मारकों को कैसे दुष्प्रभावित करती है?
उत्तर
अधिकांश मूर्तियाँ तथा स्मारक संगमरमर (marble) के बने होते हैं जिन पर अम्ल वर्षा का बुरा प्रभाव पड़ता है। क्योंकि इन स्मारकों के चारों ओर उपस्थित वायु में इनके पास स्थित उद्योगों तथा ऊर्जा संयन्त्रों (power plants) से निकलने वाले नाइट्रोजन व सल्फर के ऑक्साइड बहुत अधिक मात्रा में विद्यमान हो सकते हैं। ये ऑक्साइड ही अम्ल वर्षा का कारण हैं। अम्ल वर्षा में उपस्थित अम्ल . मार्बल से क्रिया करके मूर्तियों तथा स्मारकों को नष्ट कर देते हैं।

प्रश्न 6.
धूम कुहरा क्या है? सामान्य धूम कुहरा प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे से कैसे भिन्न है?
उत्तर
धूम कुहरा (Smog)–‘धूम-कुहरा’ शब्द ‘धूम’ एवं ‘कुहरे से मिलकर बना है। अत: जब धूम, कुहरे के साथ मिल जाता है, तब यह धूम कुहरा कहलाता है। विश्व के अनेक शहरों में प्रदूषण इसका आम उदाहरण है। धूम कुहरे दो प्रकार के होते हैं-

  1. सामान्य धूम कुहरा (General Smog)—यह ठण्डी नम जलवायु में होता है तथा धूम, कुहरे एवं सल्फर डाइऑक्साइड का मिश्रण होता है। रासायनिक रूप से यह एक अपचायक मिश्रण है। अत: इसे ‘अपचायक धूम-कुहरा’ भी कहते हैं।
  2. प्रकाश रासायनिक धूम कुहरा (Photochemical Smog)-उष्ण, शुष्क एवं साफ धूपमयी जलवायु में होता है। यह स्वचालित वाहनों तथा कारखानों से निकलने वाले नाइट्रोजन के ऑक्साइडों एवं हाइड्रोकार्बनों पर सूर्यप्रकाश की क्रिया के कारण उत्पन्न होता है। प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे की रासायनिक प्रकृति ऑक्सीकारक है। चूंकि इसमें ऑक्सीकारक अभिकर्मकों की सान्द्रता उच्च रहती है; अत: इसे ‘ऑक्सीकारक धूम कुहरा’ कहते हैं।

प्रश्न 7.
प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के निर्माण के दौरान होने वाली अभिक्रिया लिखिए।
उत्तर
प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के निर्माण के दौरान होने वाली अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं
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प्रश्न 8.
प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के दुष्परिणाम क्या हैं? इन्हें कैसे नियन्त्रित किया जा सकता है?
उत्तर
प्रकाश रासायनिक धूम-कुहरे के दुष्परिणाम (Bad Results of Photochemical Smog)-प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के सामान्य घटक ओजोन, नाइट्रिक ऑक्साइड, ऐक्रोलीन, फॉर्मेल्डिहाइड एवं परॉक्सीऐसीटिल नाइट्रेट (PAN) हैं। प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के कारण गम्भीर स्वास्थ्य समस्याएँ होती हैं। ओजोन एवं नाइट्रिक ऑक्साइड नाक एवं गले में जलन पैदा करते हैं। इनकी उच्च सान्द्रता से सिरदर्द, छाती में दर्द, गले का शुष्क होना, खाँसी एवं श्वास अवरोध हो सकता है। प्रकाश रासायनिक धूम कुहरा रबर में दरार उत्पन्न करता है एवं पौधों पर हानिकारक प्रभाव डालता है। यह धातुओं, पत्थरों, भवन-निर्माण के पदार्थों एवं रंगी हुई सतहों (painted surfaces) का क्षय भी करता है।

प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के नियंत्रण के उपाय (Measures to Control the Photochemical Smog)–प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे को नियन्त्रित या कम करने के लिए कई तकनीकों का उपयोग किया जाता है। यदि हम प्रकाश रासायनिक धूम कुहरे के प्राथमिक पूर्वगामी; जैसे- NO, एवं हाइड्रोकार्बन को नियन्त्रित कर लें तो द्वितीयक पूर्वगामी; जैसे-ओजोन एवं PAN तथा प्रकाश रासायनिक धूम कुहरा स्वतः ही कम हो जाएगा। सामान्यतया स्वचालित वाहनों में उत्प्रेरित परिवर्तक उपयोग में लाए जाते हैं, जो वायुमण्डल में नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं हाइड्रोकार्बन के उत्सर्जन को रोकते हैं। कुछ पौधों (जैसे- पाइनस, जूनीपर्स, क्वेरकस, पायरस तथा विटिस), जो नाइट्रोजन ऑक्साइड का उपापचय कर सकते हैं, का रोपण इस सन्दर्भ में सहायक हो सकता है।

प्रश्न 9.
क्षोभमण्डल पर ओजोन परत के क्षय में होने वाली अभिक्रिया कौन-सी है?
उत्तर
ओजोन परत में अवक्षय को मुख्य कारण क्षोभमण्डल से क्लोरोफ्लुओरोकार्बन (CFC) यौगिकों का उत्सर्जन है। CFC वायुमण्डल की अन्य गैसों से मिश्रित होकर सीधे समतापमण्डल में पहुँच जाते हैं। समतापमण्डल में ये शक्तिशाली विकिरणों द्वारा अपघटित होकर क्लोरीन मुक्त मूलक उत्सर्जित करते हैं।

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क्लोरीन मुक्त मूलक तब समतापमण्डलीय ओजोन से अभिक्रिया करके क्लोरीन मोनोक्साइड मूलक तथा आण्विक ऑक्सीजन बनाते हैं।

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क्लोरीन मोनोक्साइड मूलक परमाण्वीय ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया करके अधिक क्लोरीन मूलक उत्पन्न करता है।

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क्लोरीन मूलक लगातार पुनर्योजित होते रहते हैं एवं ओजोन को विखण्डित करते हैं। इस प्रकार CFC , समतापमण्डल में क्लोरीन मूलकों को उत्पन्न करने वाले एवं ओजोन परत को हानि पहुँचाने वाले परिवहनीय कारक हैं।

प्रश्न 10.
ओजोन छिद्र से आप क्या समझते हैं? इसके परिणाम क्या हैं?
उत्तर
सन् 1980 में वायुमण्डलीय वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका पर कार्य करते हुए दक्षिणी ध्रुव के ऊपर ओजोन परत के क्षय, जिसे सामान्य रूप से ‘ओजोन-छिद्र’ कहते हैं, के बारे में बताया। यह पाया गया कि ओजोन छिद्र के लिए परिस्थितियों का एक विशेष समूह उत्तरदायी था। गर्मियों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड परमाणु [अभिक्रिया (i)] क्लोरीन मुक्त मूलकों [अभिक्रिया (ii)] से अभिक्रिया करके क्लोरीन सिंक बनाते हैं, जो ओजोन-क्षय को अत्यधिक सीमा तक रोकता है। जबकि सर्दी के मौसम में विशेष प्रकार के बादल, जिन्हें ‘ध्रुवीय समतापमण्डलीय बादल’ कहा जाता। है, अंटार्कटिका के ऊपर बनते हैं। ये बादल एक प्रकार की सतह प्रदान करते हैं जिस पर बना हुआ क्लोरीन नाइट्रेट (अभिक्रिया (i)] जलयोजित होकर हाइपोक्लोरसे अम्ल बनाता है [अभिक्रिया (ii)]। अभिक्रिया में उत्पन्न हाइड्रोजन क्लोराइड से भी अभिक्रिया करके यह आण्विक क्लोरीन देता है।

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वसन्त में अंटार्कटिका पर जब सूर्य का प्रकाश लौटता है, तब सूर्य की गर्मी बादलों को विखण्डित कर देती है एवं HOCI तथा Cl2 सूर्य के प्रकाश से अपघटित हो जाते हैं (अभिक्रिया v तथा vi)।

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इस प्रकार उत्पन्न क्लोरीन मूलक, ओजोन-क्षय के लिए श्रृंखला अभिक्रिया प्रारम्भ कर देते हैं।

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ओजोन छिद्र के परिणाम (Results of Ozone hole)
ओजोन छिद्र के साथ अधिकाधिक पराबैंगनी विकिरण क्षोभमण्डल में छनित होते हैं। पराबैंगनी विकिरण से त्वचा का जीर्णन, मोतियाबिन्द, सनबर्न, त्वचा-कैन्सर, कई पादपप्लवकों की मृत्यु, मत्स्य उत्पादन की क्षति आदि होते हैं। यह भी देखा गया है कि पौधों के प्रोटीन पराबैंगनी विकिरणों से आसानी से प्रभावित हो जाते हैं जिससे कोशिकाओं का हानिकारक उत्परिवर्तन होता है। इससे पत्तियों के रंध्र से जल का वाष्पीकरण भी बढ़ जाता है जिससे मिट्टी की नमी कम हो जाती है। बढ़े हुए पराबैंगनी विकिरण रंगों एवं रेशों को भी हानि पहुँचाते हैं जिससे रंग जल्दी हल्के हो जाते हैं।

प्रश्न 11.
जल-प्रदूषण के मुख्य कारण क्या हैं? समझाइए।
उत्तर
जल-प्रदूषण के मुख्य कारण (Main Causes of Water Pollution)

  1. रोगजनक (Pathogens)—सबसे अधिक गम्भीर जल-प्रदूषक रोगों के कारकों को ‘रोगजनक’ कहा जाता है। रोगजनकों में जीवाणु एवं अन्य जीव हैं, जो घरेलू सीवेज एवं पशु-अपशिष्ट द्वारा जल में प्रवेश करते हैं। मानव-अपशिष्ट एशरिकिआ कोली, स्ट्रेप्टोकॉकस फेकेलिस आदि जीवाणु होते हैं, जो जठरांत्र बीमारियों के कारक होते हैं।
  2. कार्बनिक अपशिष्ट (Organic waste)-अन्य मुख्य जल-प्रदूषक कार्बनिक पदार्थ; जैसेपत्तियाँ, घास, कूड़ा-करकट आदि हैं। ये जल को प्रदूषित करते हैं। जल में पादप-प्लवकों की अधिक बढ़ोतरी भी जल-प्रदूषण का एक कारण है।

प्रश्न 12.
क्या आपने अपने क्षेत्र में जल-प्रदूषण देखा है? इसे नियन्त्रित करने के कौन-से उपाय हैं?
उत्तर
हाँ, हमारे क्षेत्र में जल प्रदूषित है। जल के प्रदूषित होने की जाँच भी हम स्वयं ही कर सकते हैं। इसके लिए हम स्थानीय जल-स्रोतों का निरीक्षण कर सकते हैं जैसे कि नदी, झील, हौद, तालाब आदि का पानी अप्रदूषित या आंशिक प्रदूषित या सामान्य प्रदूषित अथवा बुरी तरह प्रदूषित है। जल को देखकर या उसकी pH जाँचकर इसे देखा जा सकता है। निकट के शहरी या औद्योगिक स्थल, जहाँ से प्रदूषण उत्पन्न होता है, के नाम का प्रलेख करके इसकी सूचना सरकार द्वारा प्रदूषण-मापन के लिए। गठित ‘प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड कार्यालय को दी जा सकती है तथा समुचित कार्यवाही सुनिश्चित की जा सकती है। हम इसे मीडिया को भी बता सकते हैं। जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए हमें नदी, तालाब, जलधारा या जलाशय में घरेलू अथवा औद्योगिक अपशिष्ट को सीधे नहीं डालना चाहिए। बगीचों में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। डी०डी०टी०, मैलाथिऑन आदि कीटनाशी के प्रयोग से बचना चाहिए तथा यथासम्भव नीम की सूखी पत्तियों का प्रयोग कीटनाशी के रूप में करना चाहिए। घरेलू पानी टंकी में पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO,) के कुछ क्रिस्टल अथवा ब्लीचिंग पाउडर की थोड़ी मात्रा डालनी चाहिए।

प्रश्न 13.
आप अपने जीव रसायनी ऑक्सीजन आवश्यकता (BOD) से क्या समझते हैं?
उत्तर
जल के एक नमूने के निश्चित आयतन में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ को विखण्डित करने के लिए जीवाणु द्वारी आवश्यक ऑक्सीजन को जैवरासायनिक ऑक्सीजन मॉग (BOD)’ कहा जाता है। अत: जल में BOD की मात्रा कार्बनिक पदार्थ को जैवीय रूप में विखण्डित करने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा होगी। स्वच्छ जल की BOD का मान 5 ppm से कम होता है, जबकि अत्यधिक प्रदूषित जल में यह 17 ppm या इससे अधिक होता है।

प्रश्न 14.
क्या आपने आस-पास के क्षेत्र में भूमि-प्रदूषण देखा है? आप भूमि-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए क्या प्रयास करेंगे?
उत्तर
हाँ, हमने अपने आस-पास के क्षेत्र में भूमि-प्रदूषण देखा है। भूमि प्रदूषण की रोकथाम के उपाय (Measures to Control Soil Pollution) मृदा प्रदूषण की रोकथाम के लिए हम निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं

  1. फसलों पर विषैले कीटनाशकों का छिड़काव विवेकपूर्ण ढंग से किया जाए।
  2. डी०डी०टी० का प्रयोग प्रतिबन्धित हो।
  3. सिंचाई और उर्वरकों का प्रयोग करने से पहले मिट्टी और जल का वैज्ञानिक परीक्षण करा लेना चाहिए
  4. रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर कम्पोस्ट तथा हरी खाद (Compost and Green Manuring) के प्रयोग को वरीयता देनी चाहिए।
  5. खेतों में जलं के निकास की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
  6. क्षारीय भूमि को वैज्ञानिक ढंग से शोधित किया जाना चाहिए। जिप्सम, सिंचाई तथा रासायनिक खादों का प्रयोग करके क्षारीय मिट्टी को उर्वर बनाया जा सकता है।
  7.  स्थानान्तरणशील कृषि (jhuming) पर रोक लगाई जानी चाहिए।
  8. मिट्टी के कटाव को रोकने के उपाय किए जाने चाहिए।
  9. जीवांशों की वृद्धि के लिए खेतों में पेड़-पौधों की पत्तियाँ, डण्ठल, छिलके, जड़े, तने आदि सड़ाए जाने चाहिए।
  10. खेतों के किनारे (मेडों पर) और ढालू भूमि पर वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।

प्रश्न 15.
पीड़कनाशी तथा शाकनाशी से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहिँत समझाइए।
उत्तर
पीड़कनाशी (Pesticides)-पीड़कनाशी मूल रूप से संश्लेषित रसायन होते हैं। इनका प्रयोग फसलों को हानिकारक कीटों तथा कई रोगों से बचाने हेतु किया जाता है। ऐल्ड्रीन, डाइऐल्ड्रीन बी०एच०सी० आदि पीड़कनाशी के कुछ उदाहरण हैं। ये कार्बनिक जीव-विष जल में अविलेय तथा अजैवनिम्नीकरणीय होते हैं। ये उच्च प्रभाव वाले जीव-विष भोजन श्रृंखला द्वारा निम्नपोषी स्तर से उच्चपोषी स्तर तक स्थानान्तरित होते हैं। समय के साथ-साथ उच्च प्राणियों में जीव-विषों की सान्द्रता इस स्तर तक बढ़ जाती है कि उपापचयी तथा शरीर क्रियात्मक अव्यवस्था का कारण बन जाती है।
शाकनाशी (Herbicides)-वे रसायन जो खरपतवार (weeds) का नाश करने के लिए प्रयोग किए। जाते हैं, शाकनाशी कहलाते हैं। सोडियम क्लोरेट (NaClO3) सोडियम आर्सिनेट (Na32AsO3) आदि शाकनाशी के उदाहरण हैं। अधिकांश शाकनाशी स्तनधारियों के लिए विषैले होते हैं, परन्तु ये कार्ब-क्लोराइड्स के समान स्थायी नहीं होते तथा कुछ ही माह में अपघटित हो जाते हैं। मानव में । जन्मजात कमियों का कारण कुछ शाकनाशी हैं। यह पाया गया है कि मक्का के खेतं, जिनमें शाकनाशी का छिड़काव किया गया हो, कीटों के आक्रमण तथा पादप रोगों के प्रति उन खेतों से अधिक सुग्राही होते हैं जिनकी निराई हाथों से की जाती है।

प्रश्न 16.
हरित रसायन से आप क्या समझते हैं? यह वातावरणीय प्रदूषण को रोकने में किस प्रकार सहायक है?
उत्तर
हरित रसायन (Green Chemistry)
हमारे देश ने 20वीं सदी के अन्त तक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग तथा कृषि की उन्नत विधियों का प्रयोग करके अच्छी किस्म के बीजों, सिंचाई आदि से खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है, परन्तु मृदा के अधिक शोषण एवं उर्वरकों तथा कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से मृदा, जल एवं वायु की गुणवत्ता घटी है।

इस समस्या का समाधान विकास के प्रारम्भ हो चुके प्रक्रम को रोकना नहीं अपितु उन विधियों को खोजना है, जो वातावरण के असन्तुलन को रोक सकें। रसायन विज्ञान तथा अन्य विज्ञानों के उन सिद्धान्तों का ज्ञान, जिससे पर्यावरण के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके, ‘हरित रसायन’ कहलाता है।

हरित रसायन उत्पादन का वह प्रक्रम है, जो पर्यावरण में न्यूनतम प्रदूषण या असन्तुलन लाता है। इसके आधार पर यदि एक प्रक्रम में उत्पन्न होने वाले सहउत्पादों को यदि लाभदायक रूप से उपयोग नहीं किया गया तो वे पर्यावरण-प्रदूषण के कारक होते हैं। ऐसे प्रक्रम न सिर्फ पर्यावरणीय दृष्टि से हानिकारक हैं अपितु महँगे भी हैं। विकास-कार्यों के साथ-साथ वर्तमान ज्ञान का रासायनिक हानि को कम करने के लिए उपयोग में लाना ही हरित रसायन का आधार है।

एक रासायनिक अभिक्रिया की सीमा, ताष, दाब, उत्प्रेरक के उपयोग आदि भौतिक मापदण्ड पर निर्भर करती हैं। हरित रसायन के सिद्धान्तों के अनुसार यदि एक रासायनिक अभिक्रिया में अभिकारक एक पर्यावरण अनुकूल माध्यम में पूर्णतः पर्यावरण अनुकूल उत्पादों में परिवर्तित हो जाए तो पर्यावरण में कोई रासायनिक प्रदूषक नहीं होगा।

इसी प्रकार संश्लेषण के दौरान प्रारम्भिक पदार्थ का चयन करते समय हमें सावधानी रखनी चाहिए जिससे जब भी वह अन्तिम उत्पाद में परिवर्तित हो तो अपविष्ट उत्पन्न ही न हो। यह संश्लेषण के दौरान अनुकूल परिस्थितियों को प्राप्त करके किया जाता है। जल की उच्च विशिष्ट ऊष्मा तथा कम। वाष्पशीलता के कारण इसे संश्लेषित अभिक्रियाओं में माध्यम के रूप में प्रयुक्त किया जाना वांछित है। जल सस्ता, अज्वलनशील तथा अकैंसरजन्य प्रभाव वाला माध्यम है। हरित रसायन के उपयोग से वातावरणीय प्रदूषण को रोकने में किए जाने वाले कुछ महत्त्वपूर्ण प्रयासों का वर्णन निम्नलिखित है-

  1. कपड़ों की निर्जल धुलाई में (In drycleaning of clothes)--टेट्राक्लोरोएथीन [Cl2C=CCl2] का उपयोग प्रारम्भ में निर्जल धुलाई के लिए विलायक के रूप में किया जाता था। यह यौगिक भू-जल को प्रदूषित कर देता है। यह एक सम्भावित कैंसरजन्य भी है। धुलाई की प्रक्रिया में इस यौगिक का द्रव कार्बन डाइऑक्साइड एवं उपयुक्त अपमार्जक द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। हैलोजेनीकृत विलायक का द्रवित CO2 से प्रतिस्थापन भू-जल के लिए कम हानिकारक है।
    आजकल हाइड्रोजन परॉक्साइड का उपयोग लॉण्ड्री में कपड़ों के विरंजन के लिए लिया जाता है। जिससे परिणाम तो अच्छे निकलते ही हैं, जल का भी कम उपयोग होता है।
  2. पेपर का विरंजन (Bleaching of paper)-पूर्व में पेपर के विरंजन के लिए क्लोरीन गैस उपयोग में आती थी। आजकल उत्प्रेरक की उपस्थिति में हाइड्रोजन परॉक्साइड, जो विरंजन क्रिया की दर को बढ़ाता है, उपयोग में लाया जाता है।
  3. रसायनों का संश्लेषण (Synthesis of chemicals)-औद्योगिक स्तर पर एथीन का ऑक्सीकरण आयनिक उत्प्रेरकों एवं जलीय माध्यम की उपस्थिति में करवाया जाए तो लगभग 90% एथेनल प्राप्त होता है।
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    निष्कर्षतः हरित रसायन एक कम लागत उपागम है, जो कम पदार्थ, ऊर्जा-उपभोग एवं अपविष्ट जनन से सम्बन्धित है।

प्रश्न 17.
क्या होता, जब भू-वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसें नहीं होती? विवेचना कीजिए।
उत्तर
यद्यपि ग्रीन हाउस गैसें (CO2,CH4,O3, CFCs, जल-वाष्प) ग्लोबल वार्मिंग (global warming) उत्पन्न करती हैं, परन्तु फिर भी ये पृथ्वी पर सामान्य जीवन के लिए आवश्यक हैं। ग्रीन हाउस गैसें पृथ्वी की सतह से विकिरणित सौर ऊर्जा को अवशोषित करके वातावरण को गर्म रखती हैं। जो पृथ्वी पर प्राणियों (living beings) के जीवन तथा पादपों (plants) की वृद्धि के लिए आवश्यक है। कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) द्वारा पादपों के भोजन बनाने के लिए आवश्यक है। ओजोन एक छाते की तरह कार्य करती है तथा हमें हानिकारक पराबैंगनी किरणों (U.V. radiation) से बचाती है। अतः, यदि पृथ्वी के वायुमण्डल को ग्रीन हाउस गैसों से पूर्ण रूप से मुक्त कर दिया जाये तो पृथ्वी पर न तो प्राणी शेष रहेंगे और न ही पादप।

प्रश्न 18.
एक झील में अचानक असंख्य मृत मछलियाँ तैरती हुई मिलीं। इसमें कोई विषाक्त पदार्थ नहीं था, परन्तु बहुतायत में पादप्लवक पाए गए। मछलियों के मरने का कारण बताइए।
उत्तर
पादप्लवक (पानी की सतह पर तैरने वाले पौधे) जैव क्षयी (biodegradable) होते हैं और जीवाणुओं की एक बड़ी संख्या द्वारा अपघटित हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में जीवाणु पानी में घुली ऑक्सीजन का बहुत अधिक मात्रा में उपयोग करते हैं जिससे पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। जलीय जीवों जैसे मछलियों को जीवित रहने के लिए जलीय ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। जब पानी में घुली ऑक्सीजन का स्तर, एक निश्चित स्तर (6ppm) से नीचे पहुँच जाता है, तो मछलियाँ मृत होकर पानी की सतह ऊपर तैरने लगती हैं।

प्रश्न 19.
घरेलू अपविष्ट किस प्रेकार खाद के रूप में काम आ सकते हैं?
उत्तर
घरेलू अपशिष्ट पदार्थों के जैव क्षयी (biodegradable) भाग को कुछ महीनों के लिए भूमि में दबा देने पर खाद के रूप में काम में लाया जा सकता है। समय बीतने के साथ, यह खाद में परिवर्तित हो जाता है। घरेलू अपशिष्ट का अजैव क्षयी भाग (जैसे कॉच, प्लास्टिक, धातु की खुरचन इत्यादि) जो सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित नहीं होती, खाद के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता। यह भाग पुनः चक्रण (recycling) के लिए कारखानों में भेज दिया जाता है।

प्रश्न 20.
आपने अपने कृषि-क्षेत्र अथवा उद्यान में कम्पोस्ट खाद के लिए गड़े बना रखे हैं। उत्तम कम्पोस्ट बनाने के लिए इस प्रक्रिया की व्याख्या दुर्गंध, मक्खियों तथा अपविष्टों के चक्रीकरण के सन्दर्भ में कीजिए।
उत्तर
कम्पोस्ट खाद के लिए बने गड्ढे घर के बहुत निकट नहीं होने चाहिए। ये गड्ढे ऊपर से ढके होने चाहिए। जिससे मक्खियाँ इनमें प्रवेश न कर सके तथा दुर्गंध वायुमण्डल में न फैल सके। केवल जैव क्षयी भाग ही गड्ढों में डालना चाहिए। घरेलू अपशिष्टों का अजैव क्षयी भाग जैसे, काँच प्लास्टिक, धातु की खुरचन इत्यादि को गड्ढों में डालने से पहले अलग कर देना चाहिए तथा पुनः चक्रण के लिए बेच देना चाहिए।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गैसीय वायु प्रदूषक है।
(i) कुहरा
(ii) वाष्प
(iii) ऐरोसॉल
(iv) ओजोन
उत्तर
(ii) वाष्प

प्रश्न 2.
कणीय वायु प्रदूषक है।
(i) अमोनिया
(ii) कज्जल
(iii) क्लोरीन
(iv) ये सभी
उत्तर
(ii) कज्जल

प्रश्न 3.
अकार्बनिक वायु प्रदूषक है।
(i) नाइट्रोजन ऑक्साइड
(ii) मेथेन
(iii) एथेन
(iv) ऐल्कोहॉल
उत्तर
(i) नाइट्रोजन ऑक्साइड

प्रश्न 4.
मुख्य वायु प्रदूषक है।
(i) NO
(ii) CO
(iii) SO2
(iv) ये सभी
उत्तर
(iv) ये सभी

प्रश्न 5.
ध्रुवों पर बर्फ किस प्रदूषण के कारण पिघल सकती है?
(i) जल
(ii) तापीय
(iii) मृदा
(iv) ये सभी
उत्तर
(ii) तापीय

प्रश्न 6.
वैश्विक तापन का प्रमुख कारण है।
(i) अम्ल वर्षा
(ii) नाभिकीय दुर्घटनाएँ
(iii) हरित गृह प्रभाव
(iv) भूकम्प
उत्तर
(iii) हरित गृह प्रभाव

प्रश्न 7.
हरित गृह गैसों के फलस्वरूप प्रभाव उत्पन्न होता है।
(i) पृथ्वी के तापक्रम में वृद्धि
(ii) पृथ्वी के तापक्रम में कमी
(iii) पृथ्वी के तापक्रम में कोई परिवर्तन नहीं होता
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर
(i) पृथ्वी के तापक्रम में वृद्धि

प्रश्न 8.
निम्न में से कौन-सी क्रिया वातावरण में co, की मात्रा में वृद्धि नहीं करती है?
(i) जन्तुओं का विघटन,
(ii) श्वसन
(iii) प्रकाश संश्लेषण
(iv) ईंधन का जलना
उत्तर
(iii) प्रकाश संश्लेषण

प्रश्न 9.
CO2 के अतिरिक्त अन्य हरित गृह गैस है।
(i) N2
(ii) Ar
(iii) O2
(iv) CH4
उत्तर
(iv) CH4

प्रश्न 10.
ग्रीन हाउस प्रभाव प्रदर्शित करने वाला युग्म है।
(i) N2,O2
(ii) H2,N2
(iii) CO2, H2O
(iv) O2, CH4
उत्तर
(iii) CO2, H2O

प्रश्न 11.
ओजोन पाई जाती है।
(i) तापमण्डल में
(ii) मध्यमण्डल में
(iii) समतापमण्डल में
(iv) क्षोभमण्डल में
उत्तर
(iii) समतापमण्डल में

प्रश्न 12.
ओजोन परत की मोटाई की मापक इकाई है।
(i) डेसीमल
(ii) आर्मस्ट्राँग
(iii) डॉब्सन
(iv) क्यूरी
उत्तर
(iii) डॉब्सन

प्रश्न 13.
हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी के ऊपरी वायुमण्डल के कारण पृथ्वी पर नहीं पहुँच पाती हैं, क्योंकि वहाँ उपस्थित होती है।
(i) CO2
(ii) O2
(iii) O3
(iv) N2
उत्तर
(ii) O3

प्रश्न 14.
क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स से होता है।
(i) वायुमण्डलीय ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि
(ii) ओजोन परत का क्षय
(iii) हरित गृह गैसों का ह्रास
(iv) दोनों (i) एवं (ii)
उत्तर
(ii) ओजोन परत का क्षय

प्रश्न 15.
अन्टार्कटिका के ऊपर सर्वप्रथम किस वर्ष में ओजोन छिद्र देखा गया?
(i) 1965 में
(ii) 1985 में
(iii) 1987 में
(iv) 1989 में
उत्तर
(ii) 1985 में

प्रश्न 16.
ओजोन परत के अपक्षय से सम्बन्धित निम्नलिखित में से कौन-सा प्रभाव सही नहीं है?
(i) त्वचा कैंसर होना।
(ii) पेड़-पौधों में प्रकाश संश्लेषण की दर में वृद्धि
(iii) ध्रुवीय बर्फ का पिघलना
(iv) आनुवंशिक लक्षणों में परिवर्तन
उत्तर
(iv) आनुवंशिक लक्षणों में परिवर्तन

प्रश्न 17.
जल प्रदूषण का प्रमुख कारण है।
(i) उद्योगों से निकला अपशिष्ट
(ii) खेती में उर्वरक का प्रयोग
(iii) पीड़कनाशियों का प्रयोग
(iv) ये सभी
उत्तर
(iv) ये सभी

प्रश्न 18.
निम्न में से प्रतिबन्धित रसायन है।
(i) BHC
(ii) फोरेट
(iii) मैलाथियॉन
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(i) BHC

प्रश्न 19.
जैविक मृदा-प्रदूषण क़िसके द्वारा होता है?
(i) जल
(ii) जीव-जन्तु
(iii) वायु
(iv) ये सभी
उत्तर
(i) जल

प्रश्न 20.
सिलिकोसिस रोग होता है ।
(i) रुई का काम करने वालों को
(ii) पत्थर तोड़ने वालों को
(iii) ऐस्बेस्टॉस का काम करने वालों को
(iv) ये सभी
उत्तर
(ii) पत्थर तोड़ने वालों को

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रदूषण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
वायु, जल एवं स्थल की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक विशेषताओं में वह अवांछनीय । परिवर्तन जो उन्हें मानव, अन्य जीवों, भवनों तथा अन्य सांस्कृतिक धरोहरों के लिए हानिकारक बना देता है, प्रदूषण कहलाता है।

प्रश्न 2.
वायुमण्डल के विभिन्न क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर
वायुमण्डल को निम्नलिखित चार क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है।

  1. क्षोभमण्डल
  2. समतापमण्डल
  3. मध्यमण्डल
  4. तापमण्डल

प्रश्न 3.
आयनमण्डल के दो भाग कौन-कौन से हैं?
उत्तर
आयनमण्डल के दो भाग मध्यमण्डल तथा तापमण्डल हैं।

प्रश्न 4.
ओजोनमण्डल का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर
ओजोनमण्डल का दूसरा नाम समतापमण्डल है।

प्रश्न 5.
जीवमण्डल से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
जीवमण्डल स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल का वह भाग है जिसमें जीवधारी वास करते हैं।

प्रश्न 6.
वायुमण्डल के किन क्षेत्रों में ताप ऊँचाई में वृद्धि के साथ बढ़ता है?
उत्तर
वायुमण्डल के समतापमण्डल क्षेत्र में ताप -56°C से -2°C तक बढ़ता है तथा तापमण्डल क्षेत्र में ताप -92°C से 1200°C तक बढ़ता है।

प्रश्न 7.
वायु प्रदूषण क्या है? वायु को प्रदूषित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
वायुमण्डल में विभिन्न गैसों का एक निश्चित और सन्तुलित अनुपात है। यदि किसी कारणवश इस अनुपात में परिवर्तन हो जाए, तो सभी जीवधारियों पर इनका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है। इस वायु को प्रदूषित वायु और इस घटना को वायु प्रदूषण कहते हैं। वायु को प्रदूषित करने वाले कारक निम्नवत् हैं-

  1. जनसंख्या वृद्धि,
  2. लगातार वनों का कटना,
  3. कल-कारखानों की आबादी में होना,
  4. कोयले से चालित इंजन,
  5. घरों में धुआँ,
  6. वाहनों की संख्या में लगातार वृद्धि होना।

प्रश्न 8.
वायुमण्डल के दो प्राथमिक तथा दो द्वितीयक प्रदूषकों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. प्राथमिक प्रदूषक = SO2 तथा NO2 गैसे
  2. द्वितीयक प्रदूषक == परॉक्सीऐसिल नाइट्रेट तथा ओजोन

प्रश्न 9.
वायुमण्डल के दो जैव निम्नीकरणीय तथा दो जैव अनिम्नीकरणीय प्रदूषकों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. जैव निम्नीकरणीय प्रदूषक = वाहित मल तथा गोबर
  2. जैव अनिम्नीकरणीय प्रदूषक = मर्करी तथा ऐलुमिनियम

प्रश्न 10.
वायुमण्डलीय प्रदूषण के दो प्राकृतिक स्रोतों के नाम बताइए।
उत्तर
वायुमण्डलीय प्रदूषण के दो प्राकृतिक स्रोतों के नाम ज्वालामुखी विस्फोट तथा तड़ित झंझावात हैं।

प्रश्न 11.
कौन-सा नाइट्रोजन ऑक्साइड लाल-भूरे रंग का होता है?
उत्तर
नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) लाल-भूरे रंग का होता है।

प्रश्न 12.
PAN का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर
PAN का पूरा नाम परॉक्सीऐसिल नाइट्रेट (peroxy acyl nitrate) है।

प्रश्न 13.
पृथ्वी का तापमान लगातार क्यों बढ़ रहा है?
उत्तर
पृथ्वी का तापमान लगातार हरित गृह प्रभाव के कारण बढ़ रहा है।

प्रश्न 14.
CO का प्रमुख सिंक क्या है?
उत्तर
मृदा में उपस्थित सूक्ष्मजीव CO का मुख्य सिंक हैं। ये CO को CO2 में परिवर्तित कर देते हैं।

प्रश्न 15.
क्लोरोसिस से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
SO2 के प्रभाव के कारण पौधों में क्लोरोफिल का निर्माण कम हो जाता है, जिसके कारण इनकी पत्तियाँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तथा अपना हरा रंग खो देती हैं। इसे ही क्लोरोसिस कहते हैं।

प्रश्न 16.
कणिकीय प्रदूषकों का आकार कितना होता है?
उत्तर
कणिकीय प्रदूषकों का आकार 5 mm से 500000 nm के मध्य होता है।

प्रश्न 17.
कौन-से ऐरोमैटिक यौगिक वायु में कणिकाओं के रूप में उपस्थित होते हैं?
उत्तर
बहुचक्रीय ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (Polycyclic Aromatic Hydrocarbon, PAH) वायु में कणिकाओं के रूप में उपस्थित होते हैं।

प्रश्न 18.
किन्हीं दो सजीव कणिकीय प्रदूषकों के नाम लिखिए।
उत्तर
जीवाणु तथा कवक सजीव कणिकीय प्रदूषकों के प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न 19.
सामान्य धूम कुहरा किस प्रकार की जलवायु में देखने को मिलता है? इसकी प्रकृति कैसी होती है।
उत्तर
सामान्य धूम कुहरा ठण्डी तथा नम जलवायु में देखने को मिलता है। इसकी प्रकृति अपचायक होती है।

प्रश्न 20.
प्रदूषित वायु से कणिकीय प्रदूषकों को पृथक करने के लिए प्रयोग की जाने वाली दो युक्तियों के नाम लिखिए।
उत्तर
प्रदूषित वायु से कणिकीय प्रदूषकों को पृथक् करने के लिए मुख्यतः आर्द्र स्क्रबर तथा साइक्लोन संग्राहक का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 21.
ओजोन परत को हानि पहुँचाने वाले दो यौगिकों के नाम बताइए।
उत्तर
नाइट्रिक ऑक्साइड तथा क्लोरोफ्लोरोकार्बन ओजोन परत को हानि पहुँचाने वाले दो यौगिक

प्रश्न 22.
अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र किस ऋतु में बनता है?
उत्तर
अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र बसंत ऋतु में बनता है।

प्रश्न 23.
पॉलीक्लोरीनेटेड बाइफेनिल का प्रयोग कहाँ किया जाता है?
उत्तर
पॉलीक्लोरीनेटेड बाइफेनिल का प्रयोग ट्रांसफार्मरों तथा संधारित्रों में तरलों के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 24.
किस प्रकार का प्रदूषण समुद्री पक्षियों को हानि पहुँचाता है?
उत्तर
समुद्र के जल में तेल प्रदूषण समुद्री पक्षियों को हानि पहुंचाता है।

प्रश्न 25.
पीने के पानी में नाइट्रेट की अधिकतम मात्रा कितनी होनी चाहिए?
उत्तर
पीने के पानी में नाइट्रेट की अधिकतम मात्रा 50 ppm है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रदूषक और संदूषक में क्या अन्तर है?
उत्तर
प्राकृतिक स्रोतों अथवा मानव क्रियाओं अथवा दोनों द्वारा संयुक्त रूप से उत्पन्न पदार्थ जो पर्यावरण में पहले से उपस्थित उसी पदार्थ की सान्द्रता में वृद्धि करके उसे पर्यावरण के समीप या निर्जीव घटकों के लिए हानिकारक बना देता है, प्रदूषक कहलाता है जबकि वह पदार्थ जो प्रकृति में पहले से उपस्थित नहीं होता है परन्तु मानव संक्रियाओं के कारण पर्यावरण में प्रवेश पाता है, संदूषक कहलाता है।

प्रश्न 2.
प्राथमिक तथा द्वितीयक प्रदूषकों से क्या तात्पर्य है? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर
प्राथमिक प्रदूषक वे प्रदूषक होते हैं जो निर्माण के पश्चात् पर्यावरण में प्रवेश करते हैं तथा जैसे के तैसे बने रहते हैं। उदाहरणार्थ-SO2, NO2 आदि। जबकि द्वितीयक प्रदूषक वे प्रदूषक हैं जो प्राथमिक प्रदूषकों के मध्य रासायनिक अभिक्रियाओं से बनते हैं। उदाहरणार्थ-हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड जो प्राथमिक प्रदूषक हैं, सूर्य के प्रकाश में परस्पर क्रिया करके ऐसे पदार्थ बनाते हैं जो हानिकारक होते हैं। इस प्रकार निर्मित यौगिक द्वितीयक प्रदूषक कहलाते हैं।

प्रश्न 3.
जैव निम्नीकरणीय और जैव अनिम्नीकरणीय प्रदूषकों से क्या तात्पर्य है? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर
जैव निम्नीकरणीय प्रदूषक वे हैं जो सूक्ष्मजीवों द्वारा या प्राकृतिक रूप से या उचित क्रिया द्वारा आसानी से विघटित हो जाते हैं और इस प्रकार हानिकारक नहीं होते हैं लेकिन जब ये वातावरण में आधिक्य में होते हैं तब इनका पूर्णतः निम्नीकरण नहीं होता है, अतः ये प्रदूषक बन जाते हैं। उदाहरणार्थ-वाहित मल, गोबर आदि जबकि जैव अनिम्नीकरणीय प्रदूषक मर्करी, ऐलुमिनियम, DDT आदि जैसे पदार्थ होते हैं जिनका निम्नीकरण प्रकृति में स्वयं नहीं होता है या मन्द गति से होता है। तथा वातावरण में इनकी अल्प मात्रा उपस्थित होने पर भी ये मनुष्यों तथा पौधों के लिए अत्यन्त हानिकारक होते हैं। ये वातावरण में उपस्थित अन्य यौगिकों से क्रिया करके और अधिक विषैले यौगिक बनाते हैं।

प्रश्न 4.
SOx प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव लिखिए।
उत्तर
SOx प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव निम्नवत् हैं-

  1. SO2 तथा SO3 दोनों श्वसन नली को हानि पहुँचाती हैं। 5 ppm सान्द्रण पर SO2 गले तथा
    नेत्रों में जलन उत्पन्न करती है। SO3 1ppm सान्द्रण में बेचैनी उत्पन्न करती है। वयोवृद्ध व्यक्ति तथा हृदय या फेफड़ा रोग से ग्रसित व्यक्ति अधिक गम्भीर रूप से प्रभावित होते हैं।
  2. अत्यधिक कम सान्द्रण (0.03 ppm) में भी SO2 पौधों पर अत्यधिक हानिकारक प्रभाव डालती है। ऐसे वायुमण्डल में लम्बे समय तक अर्थात् कुछ दिनों या सप्ताहों तक रखे पौधों में क्लोरोफिल का निर्माण कम हो जाता है तथा इनकी पत्तियाँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तथा हरा रंग खो देती हैं। इसे क्लोरोसिसः (chlorosis) कहते हैं।
  3. SO2 अपने वास्तविक रूपं में अथवा H2 SO4 में परिवर्तित होकर अनेक पदार्थों पर। निम्नलिखित प्रतिकूल प्रभाव डालती है-
    • यह इमारतों विशेषकर संगमरमर की इमारतों को नष्ट करती है। उदाहरणार्थ-आगरा में ताजमहल का संगमरमर उसके निकट स्थित मथुरा रिफाइनरी तथा तापीय शक्ति केन्द्र के कारण नष्ट हो रहा है।
    • यह धातुओं विशेषतः आइरन तथा स्टील को संक्षारित करती है।
    • यह पेण्ट के रंगों को प्रभावित करती है।
    • इससे वस्त्र, चमड़ा, कागज आदि नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 5.
SO2 किस प्रकार एक वायु-प्रदूषक का कार्य करती है?
उत्तर
SO2 एक अत्यन्त हानिकारक गैस है। वायुमण्डल में इसकी उपस्थिति से श्वसन रोग, हृदय रोग, गले तथा आँखों में अनेक परेशानियाँ उत्पन्न होती हैं। यह अम्ल वर्षा (acid rain) का मुख्य कारण है। अम्ल वर्षा जन्तुओं, वनस्पतियों एवं भवनों के लिए अत्यन्त घातक है। अम्ल वर्षा से सम्बन्धित प्रकाश-रासायनिक अभिक्रियाएँ निम्न हैं-

SO2 + hv → SO2
SO2 + O2 → So3 + O
SO2 + SO2 → SO3 + SO
SO+ SO2 → SO3 + S
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 14 Environment Chemistry img-12

इस प्रकार, SO2 एक घातक वायु प्रदूषक है।

प्रश्न 6.
हरितगृह प्रभाव से क्या तात्पर्य है? इसके प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।
या
हरितगृह प्रभाव क्या है? यह किस प्रकार से वैश्विक ऊष्मायन (तापमान) के लिए उत्तरदायी
उत्तर
पृथ्वी की सतह अवशोषित ऊष्मा को अवरक्त किरणों के रूप में उत्सर्जित करती है जिसे वायुमण्डल में उपस्थित CO2 तथा जल-वाष्प अवशोषित करके पुनः पृथ्वी की ओर उत्सर्जित कर देती है। इससे पृथ्वी के वायुमण्डल के निचले भाग के ताप में वृद्धि होती है। यही प्रभाव हरितगृह प्रभाव कहलाता है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि हरितगृह प्रभाव के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ता है और लगातार बढ़ता जा रहा है। पृथ्वी के तापमान में हो रही इस वृद्धि को वैश्विक ऊष्मायन (global warming) कहते हैं। चूंकि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के कारण हरितगृह प्रभाव होता है तथा हरितगृह प्रभाव के कारण वैश्विक ऊष्मायन होता है इसलिए, हम कह सकते हैं कि कार्बन डाइऑक्साइड गैस व हरितगृह प्रभाव वैश्विक ऊष्मायन के लिए उत्तरदायी हैं। हरितगृह प्रभाव के प्रमुख कारण निम्नवत् हैं-

  1. औद्योगिकीकरण-औद्योगिकीकरण के कारण वर्तमान समय में उद्योगों एवं घरों में जीवाश्म ईंधनों के उपयोग में वृद्धि हुई है। वर्तमान समय में प्रतिवर्ष लगभग चार अरब टन जीवाश्म ईंधन जलाया जाता है जिससे प्रतिवर्ष लगभग 4% कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि हो जाती है। CO2 में यह वृद्धि हरितगृह प्रभाव में वृद्धि करती है।
  2. वनोन्मूलन-पौधे प्रकाश संश्लेषण में CO2 का प्रयोग करके O2 छोड़ते हैं तथा इस प्रकार वे वायुमण्डल में CO2 के स्तर को बनाए रखते हैं। वनोन्मूलन से वायुमण्डल में CO2 की वृद्धि दो प्रकार से होती है-एक तो प्रकाश संश्लेषण की कमी होने से CO2 का उपयोग कम हो जाता है तथा दूसरी ओर वृक्षों के ईंधन के रूप में प्रयुक्त होने से CO2 वायुमण्डल में पहुँचती है। इस प्रकारे वनों के विनाश से हरितगृह को बढ़ावा मिलता है।
  3. क्लोरोफ्लोरोकार्बन का उपयोग–क्लोरोफ्लोरोकार्बनों का प्रयोग रेफ्रिजरेटरों, एयरकन्डीशनरों, गद्देदार सीट बनाने वाली फोम (foam) तथा ऐरोसॉल स्प्रे (aerosol spray) के निर्माण में किया जाता है। क्लोरोफ्लोरोकार्बन हरित गृह प्रभाव में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार, क्लोरोफ्लोरोकार्बन और मेथेन गैसों का हरितगृह प्रभाव की वृद्धि में 90% तक योगदान सम्भव है।

प्रश्न 7.
CO2 की अधिक मात्रा भूमण्डलीय ताप वृद्धि के लिए कैसे उत्तरदायी है?
उत्तर
CO2 चक्र के कारण प्राकृतिक रूप से वातावरण में CO2 की सान्द्रता स्थिर रहती है। लेकिन, जब वातावरण में CO2 की सान्द्रता मानवीय क्रियाओं के कारण एक निश्चित स्तर से अधिक हो जाती है, तो वायुमण्डल में उपस्थित CO2 का आधिक्य पृथ्वी द्वारा विकरणित ऊष्मा को अवशोषित कर लेता है। अवशोषित ऊष्मा का कुछ भाग वायुमण्डल में निस्तारित हो जाता है और शेष भाग पृथ्वी पर वापस विकरणित हो जाता है जिससे पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़ जाता है और भूमण्डलीय ताप में वृद्धि होती है। इस प्रभाव को ग्रीनहाउस प्रभाव
कहा जाता है।

प्रश्न 8.
अम्ल वर्षा से क्या तात्पर्य है? यह किस प्रकार होती है?
उत्तर

वह वर्षा जिसमें सल्फर ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड (वायु प्रदूषकों) की जल-वाष्प से अभिक्रिया के फलस्वरूप बने सल्फ्यूरिक अम्ल तथा नाइट्रिक अम्ल होते हैं, अम्ल वर्षा कहलाती है।। वायुमण्डल में उपस्थित सल्फर डाइऑक्साइड (SO, ),सल्फर ट्राइऑक्साइड में ऑक्सीकृत होने के पश्चात् जल-वाष्प से अभिक्रिया करके सल्फ्यूरिक अम्ल बनाती है।

2SO2 + O2 → 2SO3
SO3 + H2O → H2 SO4

ठीक इसी प्रकार नाइट्रोजन के ऑक्साइड विभिन्न अभिक्रियाओं के द्वारा N2O5 बनाते हैं जो जल-वाष्प से अभिक्रिया करके नाइट्रिक अम्ल बनाता है।

NO + O3 → NO2 + O2
NO2 + O3 → NO3 + O2
NO3 + NO2 → N2O5
N2O5 + H2O → 2HNO3

इस प्रकार विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाओं के द्वारा उत्पन्न नाइट्रिक अम्ल तथा सल्फ्यूरिक अम्ल वर्षा के जल के साथ अम्ल वर्षा (acid rain) के रूप में पृथ्वी पर आ जाते हैं।

प्रश्न 9.
कणिकीय प्रदूषक क्या हैं? इनके विभिन्न स्रोत क्या हैं?
उत्तर
कणिकीय प्रदूषक-वायु में निलम्बित सूक्ष्म ठोस कण तथा द्रवीय बूंदें कणिकीय प्रदूषक कहलाते हैं। इन कणों का आकार 5 nm से 500000 pm के मध्य होता है। इनकी सान्द्रता भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होती है। स्वच्छ वायु में इनकी संख्या 100 cm होती है जबकि प्रदूषित वायु में इनकी संख्या 100000 cm होती है। कणिकीय प्रदूषकों के स्रोत निम्नलिखित हैं-

  1.  प्राकृतिक स्रोत
    • मिट्टी एवं धूल को हवा द्वारा उड़ना,
    • ज्वालामुखी का फटना,
      समुद्रों द्वारा लवणों का छिड़काव।
  2. मानव-निर्मित स्रोत
    • कज्जल-ये सबसे सामान्य और सबसे छोटे कणिकीय प्रदूषक हैं। ये औद्योगिक संस्थानों, स्वचालित वाहनों तथा घरों में जीवाश्म ईंधनों के दहन से उत्पन्न होते हैं।
    • फ्लाई एश–ये सबसे बड़े कणिकीय प्रदूषक हैं। ये राख के कण हैं जो ऊष्मीय विद्युत संयन्त्रों, खनन आदि क्रियाओं में जीवाश्म ईंधनों के दहन से उत्पन्न होते हैं।
    • कार्बनिक कणिकीय प्रदूषक-ओलेफिन, पैराफिन, ऐरोमैटिक यौगिक आदि इस श्रेणी में आते हैं। ये स्थायी ईंधनों तथा स्वचालित वाहनों में जीवाश्म ईंधनों के दहन से उत्पन्न होते हैं। ये पेट्रोलियम शोधन, संयन्त्रों (petroleum refineries) में भी उत्पन्न होते हैं। ऐरोमैटिक यौगिकों में से बहुचक्रीय ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (polycyclic aromatic hydrocarbon, PAH) प्रमुख कणिकीय प्रदूषक हैं। ये कज्जली कणों की सतह पर अधिशोषित हो जाते हैं तथा इस रूप में और अधिक हानिकारक हो जाते हैं।
    • अकार्बनिक कणिकीय प्रदूषक-धात्विक ऑक्साइड, धात्विक कण, ऐस्बेस्टॉस की धूल, सल्फ्यूरिक अम्ल की बूंदें, नाइट्रिक अम्ल की बूंदें, लेड हैलाइड आदि अकार्बनिक
      कणिकीय प्रदूषक हैं।

प्रश्न 10.
कणिकीय प्रदूषकों के हानिकारक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
कणिकीय प्रदूषकों के प्रमुख हानिकारक प्रभाव निम्नवत् हैं-

  1. कणिकीय प्रदूषक मनुष्यों में अनेक रोग उत्पन्न करते हैं। 5 माइक्रोन से बड़े कणिकीय प्रदूषक नासिकाद्वार में जमा हो जाते हैं जबकि 1.0 माइक्रोन के कण फेफड़ों में आसानी से प्रवेश कर जाते हैं। अपने अत्यधिक सतही क्षेत्रफल के कारण ये कण विभिन्न कैंसरजन्य यौगिकों को अधिशोषित करके फेफड़ों का कैंसर, ब्रोंकाइटिस (bronchitis) आदि रोग उत्पन्न करते हैं। विभिन्न प्रकार के कणिकीय प्रदूषक विभिन्न रोग उत्पन्न करते हैं, उदाहरणार्थ-सिलिका युक्त धूल से सिलिकोसिस (silicosis) नामक रोग हो जाता है जबकि ऐस्बेस्टॉस से ऐस्बेस्टॉसिस (asbestosis) नामक रोग होता है। लेड के कणिकीय प्रदूषक अपनी विषैली प्रकृति के कारण मस्तिष्क पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं।
  2. विभिन्न कणिकीय प्रदूषक पौधों की पत्तियों पर जमा होकर रन्ध्रों (stomata) को अवरुद्ध कर.. देते हैं। इससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis), वाष्पोत्सर्जन (transpiration) आदि क्रियाएँ प्रभावित होती हैं और पौधों की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  3. वायुमण्डल में कणिकीय प्रदूषकों की उपस्थिति के कारण देखने में परेशानी होती है। ऐसा कणिकीय प्रदूषकों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन (scattering) के कारण होता है।
  4. कणिकीय पदार्थ सूर्य की ऊष्मा को वापस अन्तरिक्ष में परावर्तित कर देते हैं। इससे सूर्य की ऊष्मा पृथ्वी की सतह तक नहीं पहुँच पाती है। साथ ही कणिकीय पदार्थ बादल–निर्माण में केन्द्रकों की भाँति कार्य करते हैं।
  5. ये धातुओं के संक्षारण में वृद्धि करते हैं।
  6. विभिन्न प्रकार के कणिकीय प्रदूषक इमारतों, भवनों, मृदा, कपड़ों, पेण्टों आदि को हानि पहुँचाते हैं।

प्रश्न 11.
आयनमण्डल में होने वाली विभिन्न अभिक्रियाएँ लिखिए।
उत्तर
मध्यमण्डल का विस्तार समुद्र तल से 50-85 km की ऊँचाई तक है जबकि तापमण्डल का विस्तार समुद्र-तल से 85-500 km ऊँचाई तक है। इन दोनों मण्डलों को संयुक्त रूप से आयनमण्डल (ionosphere) कहते हैं। इनमें गैसें आयनित रूप में उपस्थित रहती हैं।
इन मण्डलों में विभिन्न प्रकाश-रासायनिक अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप मुक्त आयनों और इलेक्ट्रॉनों का निर्माण होता है। इन मण्डलों में होने वाली कुछ अभिक्रियाएँ निम्न हैं-

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 14 Environment Chemistry img-10

मध्यमण्डल के निचले भाग में ये मुक्त आयन तथा इलेक्ट्रॉन अन्य आयनों, परमाणुओं तथा अणुओं से टकराकर उदासीन स्पीशीज बनाते हैं। चूँकि ऊपरी वायुमण्डल में ऐसी अन्य स्पीशीज उपस्थित नहीं होती हैं जिनसे ये संयोग कर सकें अत: वहाँ ये लम्बे समय तक बनी रहती हैं।

प्रश्न 12.
कौन-सा ऐरोसॉल (aerosol) ओजोन पर्त को विच्छेदित (deplete) करता है?
उत्तर
क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) ऐरोसॉल; जैसे—फ्रिऑन (CCl2F2) वायुमण्डल के समताप-मण्डल (stratosphere) में उपस्थित ओजोन पर्त को विच्छेदित करते हैं। निहित अभिक्रियाएँ निम्न हैं-

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 14 Environment Chemistry img-11

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जल प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख कारण, प्रभाव तथा नियन्त्रण के उपाय लिखिए।
उत्तर
जल प्रदूषण-जल के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक अभिलक्षणों में परिवर्तन जिससे यह मनुष्य तथा जलीय जीवों के लिए हानिकारक हो जाता है तथा अन्य उपयोगों के लिए भी अनुपयुक्त हो जाता है, जल प्रदूषण कहलाता है। जल प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. घरेलू अपशिष्ट और वाहित मल-घरों से निकलने वाले अपशिष्ट, जैसे-कूड़ा-करकट | आदि और वाहित मल नालियों इत्यादि से होते हुए जलाशयों, नदियों आदि में पहुँचते हैं जहाँ ये उनके जल को प्रदूषित करते हैं।
  2. घरेलू अपमार्जक–घर में उपयोग किए जाने वाले अपमार्जक कपड़े धोने, बर्तन साफ आदि करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के साबुन, सर्फ आदि होते हैं। ये अपमार्जक घरों से नालियों, तालाबों तथा नदियों तक पहुँचकर जल प्रदूषण फैलाते हैं।
  3. औद्योगिक रसायन विभिन्न उद्योगों से निकलने वाले जल में विभिन्न प्रकार के कार्बनिक तथा अकार्बनिक रसायन हो सकते हैं। ये पदार्थ निम्न प्रकार के हो सकते हैं–धूल, क्षार, अम्ल, सायनाइड, मर्करी, जिंक, कॉपर, फेरस लवण, तेल आदि। ये रसायन जल के प्रदूषक
  4. कृषि उद्योग के प्रदूषक-कृषि की उपज में वृद्धि के लिए विभिन्न प्रकार के उर्वरकों, | पीड़कनाशियों, कीटनाशियों आदि का प्रयोग किया जाता है। ये रसायन वर्षा के जल के साथ बहते हुए विभिन्न जल स्रोतों में पहुँचकर जल को प्रदूषित करते हैं।
  5. रेडियोधर्मी पदार्थ–नाभिकीय विस्फोट, नाभिकीय ऊर्जा प्रक्रम से निकलने वाली विकिरण जल में घुलकर प्रदूषण फैलाती है। यूरेनियमयुक्त खनिजों का खनन भी जल प्रदूषण करता है।
  6. सिल्टेशन–पहाड़ों की नदियों में मृदा तथा चट्टानों के कण जल में घुलते रहते हैं। यह प्रक्रम | सिल्टेशन कहलाता है। सिल्ट अथवा गाद के जल में मिलने से भी जल प्रदूषण होता है।
  7. पॉलीक्लोरीनेटेड बाइफेनिल-इन्हें अभी जल प्रदूषकों की श्रेणी में सम्मिलित किया गया है। | इनका प्रयोग ट्रांसफॉर्मरों तथा संधारित्रों (capacitors) में तरलों के रूप में किया जाता है।
  8. ऊष्मीय प्रदूषक–वे प्रदूषक जो जल के ताप में वृद्धि कर देते हैं, ऊष्मीय प्रदूषक कहलाते हैं। अनेक उद्योगों में पदार्थों, माध्यमों आदि को ठंडा करने की आवश्यकता होती है। इनकी ऊष्मा को जल को स्थानान्तरित कर दिया जाता है जिससे उसका ताप बढ़ जाता है। इस गर्म जल को फिर जल-स्रोतों में डाल दिया जाता है।

जल प्रदूषण के प्रभाव निम्नवत् हैं-

  1. प्रदूषित जल में उपस्थित रोगाणु (pathogens) मनुष्यों तथा पालतू पशुओं में विभिन्न रोग उत्पन्न करते हैं।
  2. अपमार्जकों में उपस्थित ऐल्किल बेन्जीन सल्फोनेट (alkyl benzene sulphonate) से जल की अम्लीयता बढ़ती है जो जलीय जीवों के लिए हानिकारक होती है।
  3. जल में उपस्थित वाहित मल, पत्तियाँ और विभिन्न उद्योगों, जैसे—कागज उद्योग, चर्म शोधन उद्योग के कार्बनिक अपशिष्ट पादप प्लवकों की अत्यधिक वृद्धि में सहायता करते हैं। सूक्ष्म जीवों द्वारा कार्बनिक अपशिष्टों के अपघटन से दुर्गंध उत्पन्न होती है। ऐसे जल स्रोत तैरने, नाव चलाने आदि के लिए भी उपयुक्त नहीं होते हैं। जल में ऑक्सीजन की मात्रा घटने से उसमें उपस्थित जलीय जीवों की मृत्यु भी हो सकती है।
  4. तलछट जल को गंदला बनाते हैं।
  5. विषाक्त भारी धातुओं वाले जल का प्रयोग करने से विभिन्न रोग हो जाते हैं। उदाहरणार्थ-कैडमियम प्रदूषण से टाई-टाई नामक रोग हो जाता है। इसी प्रकार मर्करी
    प्रदूषण से मिनामाटा रोग हो जाता है।
  6. जल स्रोतों में उद्योगों द्वारा सीधा डाला गया गर्म जल भी प्रदूषक है। इसमें उपस्थित ऊष्मा जलीय जीवों को हानि पहुँचाती है।
  7. पॉलीक्लोरीनेटिड बाइफेनिल (PCBs) कैंसरजन्य है।
  8. उर्वरकों में प्रयुक्त फॉस्फेट जल स्रोतों में पहुँचकर शैवालों की वृद्धि में सहयोग करता है। शीघ्र ही शैवाल पूरी जल सतह को ढक लेते हैं। इससे जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है। साथ ही फॉस्फेटों की उपस्थिति में जलीय पौधों की संख्या में भी वृद्धि होती है। इससे जल में घुली ऑक्सीजन काफी कम हो जाती है। इससे जलीय जीवों की मृत्यु होने लगती है। जल-निकायों में पौष्टिक अभिवृद्धि के कारण ऑक्सीजन की कमी तथा उसके परिणामस्वरूप
    जलीय जीवों की मृत्यु सुपोषण कहलाती है।

जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के कुछ प्रमुख उपाय निम्नवत् हैं-

  1. वाहित मल को उपचारित करके ही जल स्रोतों में डालना चाहिए।
  2. गर्म जल को जल-स्रोतों में डालने से पहले ठण्डा कर लेना चाहिए।
  3. कृषि में प्रयोग किए जाने वाले रसायनों का केवल आवश्यक मात्रा में ही प्रयोग किया जाना चाहिए। रसायनों के स्थान पर जैव उर्वरकों (bio-fertilizers) आदि का प्रयोग किया जा सकता है।।
  4. विभिन्न उद्योगों के बहिस्रावों (effluents) को उपचारित करने के पश्चात् ही जल-स्रोतों में डालना चाहिए। इसके लिए उद्योगों को सख्त निर्देश दिए जाने चाहिए और सम्बन्धित कानून का भी सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
मृदा प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? इसके कारण, प्रभाव तथा नियन्त्रण का वर्णन कीजिए।
उत्तर
मृदा प्रदूषण-भूपर्पटी की वह ऊपरी सतह जिसमें पौधे उगते हैं, मृदा कहलाती है। मृदा चट्टानों के अपक्षयण से बनती है। बाह्य स्रोतों के कारण अनावश्यक पदार्थों (प्रदूषकों) का मृदा से मिलकर उसे अनुत्पादक बनाना या प्रदूषित करना मृदा प्रदूषण कहलाती है। मृदा प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नवत् हैं-

  1. शहरी अपशिष्ट–इनमें कूड़ा, पत्तियाँ, पॉलिथीन की थैलियाँ, कागज, काँच, फल या सब्जियों के छिलके, खाद्य अपशिष्ट, मल आदि सम्मिलित हैं।।
  2. औद्योगिक अपशिष्ट-उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्टों में अनेक विषैले तथा जैव अनिम्नीकरणीय (non-biodegradable) पदार्थ होते हैं। चीनी मिल, वस्त्र उद्योग, रसायन उद्योग, काँच उद्योग, सीमेन्ट उद्योग, पेट्रोलियम उद्योग आदि ऐसे प्रमुख उद्योग हैं जिनसे मृदा प्रदूषण होता है।
  3. कृषि के प्रदूषक–कृषि में पौधों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने, उन्हें पीड़कों से बचाने आदि के लिए अनेक रसायनों का प्रयोग किया जाता है। ये रसायन मृदा प्रदूषण को प्रमुख कारण हैं।
  4. रेडियोधर्मी प्रदूषक-नाभिकीय परीक्षणों में उत्पन्न नाभिकीय धूल (nuclear dust) पहले वायुमण्डल में जाती है और अंततः मृदा पर बैठकर उसे प्रदूषित करती है। नाभिकीय संयन्त्रों से उत्पन्न नाभिकीय अपशिष्ट मृदा में दबा दिए जाते हैं। ये प्रदूषक का कार्य करते हैं। युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले नाभिकीय बम (परमाणु बम और हाइड्रोजन बम) रेडियोधर्मी उप-उत्पाद बनाते हैं। इनके रेडियोधर्मी अपशिष्टों से हानिकारक विकिरणें निकलती हैं।
  5. अन्य स्रोत–वनोन्मूलन (deforestation) से मृदा अपरदन में वृद्धि होती है। इससे उपजाऊ मृदा समाप्त हो जाती है। अतिचारण भी मृदा अपरदन का एक कारण है।

मृदा प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  1. कूड़ा, काँच; खाद्य अपशिष्ट आदि दृश्य (scene) को गंदा बनाते हैं। अनेक अपशिष्ट सड़कर दुर्गंध देते हैं।
  2. विभिन्न रसायन और पीड़कनाशी मृदा के संघटन को प्रभावित करके उसमें उपस्थित विभिन्न | सूक्ष्म जीवों को मार देते हैं। इससे मृदा की उर्वरता (fertility) कम हो जाती है।
  3. अनेक रसायन और पीड़कनाशी मृदा को विषाक्त करके उसे पौधों के उगने के अयोग्य बनाते हैं।
  4. अनेक पीड़कनाशी और उनके उत्पाद पौधों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। ये विषैले पदार्थ खाद्य श्रृंखला (food chain) के माध्यम से जन्तुओं और मनुष्यों तक पहुँच जाते हैं।
  5. मनुष्यों के मल तथा पशुओं के गोबर आदि पौधों की उपज में वृद्धि करने के साथ-साथ मृदा को प्रदूषित भी करते हैं। मल आदि में उपस्थित रोगाणु मृदा और पौधों को संदूषित करके मनुष्य और पालतू पशुओं के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं।
  6. रेडियोधर्मी धूल मृदा से पौधों और पौधों से मवेशियों, मनुष्यों आदि में पहुँचकर उनके स्वास्थ्य को हानि पहुँचाती है।

मृदा प्रदूषण को निम्नलिखित प्रकार से नियन्त्रित किया जा सकता है-

  1. शहरों के अपशिष्टों को अलग-अलग करके उसके विभिन्न घटकों का प्रयोग निचले क्षेत्रों (low-lying areas) को भरने, कम्पोस्ट (compost) आदि में किया जा सकता है। इसके घटकों का आवश्यकतानुसार पुनः चक्रण (recycle) किया जा सकता है या जलाया जा सकता है।
  2. गोबर का उपयोग गोबर गैस संयन्त्रों में गोबर-गैस बनाने के लिए किया जा सकता है।
  3. स्क्रैप से विभिन्न धातुओं को प्राप्त किया जा सकता है।
  4. काँच और प्लास्टिक का पुनः चक्रण किया जा सकता है। इसी प्रकार कागज का भी पुनः चक्रण किया जा सकता है। पुरानी पुस्तकों, अखबारों, मैग्जीनों को नया कागज बनाने के लिए। कागज की मिलों (paper mills) को भेजा जा सकता है।
  5. रासायनिक उर्वरकों और पीड़कनाशियों का प्रयोग सोच-समझकर और आवश्यकतानुसार ही किया जाना चाहिए।
  6. रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैव उर्वरकों (bio-fertilizers) तथा खाद (manure) का | उपयोग करना चाहिए। इससे मृदा प्रदूषण तो घटता ही है साथ ही, धन की बचत भी होती है।
  7. पीड़कों के नियन्त्रण के लिए जैविक विधियों का प्रयोग करना चाहिए। इससे रासायनिक पीड़कों का प्रयोग कम होगा और मृदा प्रदूषण में भी कमी आएगी।
  8. वनोन्मूलन को नियन्त्रित करके अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाए जाने चाहिए तथा अतिचारण को भी रोकना चाहिए।

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UP Board Solutions for Class 11 English Vocabulary Chapter 6 Antonyms

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UP Board Solutions for Class 11 English Vocabulary Chapter 5 Synonyms

UP Board Solutions for Class 11 English Vocabulary Chapter 5 Synonyms

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UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons (हाइड्रोकार्बन)

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पाठ के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मेथेन के क्लोरीनीकरण के दौरान एथेन कैसे बनती है? आप इसे कैसे समझाएँगे?
उत्तर
मेथेन का क्लोरीनीकरण एक मुक्त मूलक अभिक्रिया है जो निम्नलिखित क्रियाविधि से होती है-
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित यौगिकों के I.U.P.A.C. नाम लिखिए-
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उत्तर
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित यौगिकों, जिनमें द्विआबन्ध तथा त्रिआबन्ध की संख्या दर्शाई गई है, के सभी सम्भावित स्थिति समावयवियों के संरचना सूत्र एवं I.U.P.A.C. नाम दीजिए-
(क) C4H8 (एक द्विआबन्ध)
(ख) C5H8 (एक त्रिआबन्ध)
उत्तर
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प्रश्न 4.
निम्नलिखित यौगिकों के ओजोनी-अपघटन के पश्चात् बनने वाले उत्पादों के नाम लिखिए-
(i) पेन्ट-2-ईन
(ii) 3, 4-डाइमेथिल-हेप्ट-3-ईन
(iii) 2-एथिल ब्यूट-1-ईन
(iv) 1-फेनिल ब्यूट-1-ईन
उत्तर
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प्रश्न 5.
एक ऐल्कीन ‘A’ के ओजोनी अपघटन से पेन्टेन-3-ओन तथा एथेनॉल का मिश्रण प्राप्त होता है। ‘A’ का I.U.P.A.C. नाम तथा संरचना दीजिए।
उत्तर
ऐल्कीन ‘A’ 3-एथिल पेन्ट-2-ईन है। यह ओजोनी अपघटन पर एथेनले तथा पेन्टेन-3-ओन देता है। इनकी संरचनाएँ निम्नलिखित है-
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प्रश्न 6.
एक ऐल्केन A में तीन C—C, आठ C—H सिग्मा-आबन्ध तथा एक C—C पाई आबन्ध हैं। A ओजोनी अपघटन से दो अणु ऐल्डिहाइड, जिनका मोलर द्रव्यमान 44 है, देता है। A का आई०यू०पी०ए०सी० नाम लिखिए।
उत्तर
44 u मोलर द्रव्यमान का ऐल्डिहाइड एथेनल (CH3CHO) है। एथेनल के दो मोलों को एक साथ लिखकर उनके ऑक्सीजन परमाणु हटाते हैं और उन्हें द्विआबन्ध द्वारा जोड़ देते हैं।
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प्रश्न 7.
एक ऐल्कीन, जिसके ओजोनी अपघटन से प्रोपेनॉल तथा पेन्टेन-3-ओन प्राप्त होते हैं, का संरचनात्मक सूत्र क्या है?
उत्तर
उत्पाद हैं-
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प्रश्न 8.
निम्नलिखित हाइड्रोकार्बनों के दहन की रासायनिक अभिक्रिया लिखिए-
(i) ब्यूटेन,
(ii) पेन्टीन,
(iii) हेक्साइन,
(iv) टॉलूईन।
उत्तर
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प्रश्न 9.
हेक्स-2-ईन की समपक्ष (सिस) तथा विपक्ष (ट्रांस) संरचनाएँ बनाइए। इनमें से कौन-से समावयव का क्वथनांक उच्च होता है और क्यों?
उत्तर
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किसी अणु का क्वथनांक द्विध्रुव-द्विध्रुव अन्योन्यक्रियाओं पर निर्भर करता है। चूंकि सिस समावयवी में उच्च द्विध्रुव आघूर्ण होता है, अतः इसका क्वथनांक उच्च होता है।

प्रश्न 10.
बेन्जीन में तीन द्वि-आबन्ध होते हैं, फिर भी यह अत्यधिक स्थायी है, क्यों?
उत्तर
बेंजीन का अति स्थायित्व अनुनाद या 7-इलेक्ट्रॉनों के विस्थानीकरण के कारण होता है। बेंजीन में सभी 67t-इलेक्ट्रॉन (तीन द्विआबन्धों के) विस्थानीकृत (delocalised) होते हैं तथा अणु को स्थायित्व प्रदान करते हैं।
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प्रश्न 11.
किसी निकाय द्वारा ऐरोमैटिकता प्रदर्शित करने के लिए आवश्यक शर्ते क्या हैं?
उत्तर
किसी अणु के ऐरोमैटिक होने के लिए आवश्यक शर्ते निम्न हैं-

  1. अणु में तल के ऊपर तथा नीचे विस्थानीकृत -इलेक्ट्रॉनों का एक चक्रीय अभ्र (cyclic cloud) होना चाहिए।
  2. अणु समतलीय होना चाहिए। ये इसलिए आवश्यक है क्योंकि 7-इलेक्ट्रॉनों के पूर्ण विस्थानीकरण के लिए वलय समतलीय होनी चाहिए जिससे p-कक्षकों का चक्रीय अतिव्यापन हो सके।
  3. इसमें (4n+2) π-इलेक्ट्रॉनं होने चाहिए, जहाँ n = 0, 1, 2, 3, … है। इसे हकल नियम कहते हैं।

प्रश्न 12.
इनमें से कौन-से निकाय ऐरोमैटिक नहीं हैं? कारण स्पष्ट कीजिए-
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उत्तर
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में एक sp3 संकरित कार्बन परमाणु है, अतः अणु समतलीय नहीं होगा। अणु में 6π-इलेक्ट्रॉन हैं। लेकिन निकाय पूर्णत: संयुग्मित नहीं है चूँकि सभी π-इलेक्ट्रॉन चक्रीय वलय के सभी परमाणुओं के चारों ओर चक्रीय इलेक्ट्रॉन अभ्र नहीं बनाते हैं, अतः यह ऐरोमैटिक यौगिक नहीं है।
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ऐरोमैटिक यौगिक नहीं है क्योंकि इसमें एक sp3 कार्बन परमाणु हैं जिसके कारण अणु समतलीय नहीं है। पुनः इसमें केवल 4-इलेक्ट्रॉन हैं अत: निकाय ऐरोमैटिक नहीं है क्योकि (4n +2) π-इलेक्ट्रॉनों युक्त । समतलीय चक्रीय अभ्र उपस्थित नहीं है।
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ऐरोमैटिक नहीं है क्योंकि यह 8-इलेक्ट्रॉनों युक्त निकाय है अतः यह हकल के नियम अर्थात् (4n +2) π-इलेक्ट्रॉन का पालन नहीं करता है। साथ ही यह समतलीय न होकर टब आकृति (tub-shaped) का होता है।

प्रश्न 13.
बेन्जीन को निम्नलिखित में कैसे परिवर्तित करेंगे-
(i) p-नाइट्रोब्रोमोबेन्जीन
(ii) m-नाइट्रोक्लोरोबेन्जीन
(iii) p-नाइट्रोटॉलूईन
(iv) ऐसीटोफीनोन।
उत्तर
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प्रश्न 14.
ऐल्केन HC-CH2-C-(CH32-CH2-CH(CH3) में 1°, 2° तथा 3° कार्बन परमाणुओं की पहचान कीजिए तथा प्रत्येक कार्बन से आबन्धित कुल हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या भी बताइए।
उत्तर
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पाँच 1° कार्बन परमाणुओं से 15 H संलग्न हैं।
दो 2° कार्बन परमाणुओं से 4 H संलग्न हैं।
एक 3° कार्बन परमाणु से 1 H संलग्न है।

प्रश्न 15.
क्वथनांक पर ऐल्केन की श्रृंखला के शाखन का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
ऐल्केनों के क्वथनांक शाखन के साथ घटते हैं क्योंकि शाखन (branching) बढ़ने पर ऐल्केन का पृष्ठ क्षेत्रफल गोले (sphere) के समान हो जाता है। चूंकि गोले का पृष्ठ क्षेत्रफल न्यूनतम होता है, अतः वाण्डर वाल्स बल न्यूनतम होते हैं। अतः शाखन पर क्वथनांक घटते हैं।

प्रश्न 16.
प्रोपीन पर HBr के संकलन से 2-ब्रोमोप्रोपेन बनता है, जबकि बेंजॉयल परॉक्साइड की उपस्थिति में यह अभिक्रिया 1-ब्रोमोप्रोपेन देती है। क्रियाविधि की सहायता से इसका
कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
प्रोपीन पर HBr का योग आयनिक इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रिया है जो मारकोनीकॉफ नियमानुसार होती है। इस अभिक्रिया में सर्वप्रथम Hजुड़कर 2° कार्बोधनायन देता है। इस कार्योधनायन पर नाभिकस्नेही Br- आयन को शीघ्रता से आक्रमण होता है तथा 2-ब्रोमोप्रोपेन प्राप्त होती है।

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बेन्जॉयल परॉक्साइड की उपस्थिति में अभिक्रिया मुक्त मूलक क्रियाविधि के अनुसार होती है। इस अभिक्रिया में Br मुक्त मुलक इलेक्ट्रॉनस्नेहीं के रूप में कार्य करता है जो बेन्जॉयल परॉक्साइड की HBr से क्रिया द्वारा प्राप्त होता है।

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मुक्त मूलक प्रोपीन पर इस प्रकार क्रिया करता है कि अधिक स्थायी द्वितीयक (2°) मुक्त मूलक की उत्पत्ति हो सके। यह 2° मूलक HBr से एक H-परमाणु ग्रहण कर 1-ब्रोमोप्रोपेन देता है।

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प्रश्न 17.
1, 2-डाइमेथिलबेन्जीन (o-जाइलीन) के ओजोनी अपघटन के फलस्वरूप निर्मित उत्पादों को लिखिए। यह परिणाम बेन्जीन की केकुले संरचना की पुष्टि किस प्रकार
करता है?
उत्तर
0-जाइलीन को निम्नलिखित दो केकुले संरचनाओं को अनुनाद संकर माना जाता है। प्रत्येक के ओजोनी अपघटन से दो उत्पाद प्राप्त होते हैं-
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अतः समग्र रूप से तीन उत्पाद निर्मित होते हैं। चूंकि सभी तीन उत्पाद दो केकुले संरचनाओं में से एक से प्राप्त नहीं हो सकते हैं इससे प्रदर्शित होता है कि o-जाइलीन दो केकुले संरचनाओं का अनुनाद संकर है।

प्रश्न 18.
बेन्जीन, n-हैक्सेन तथा एथाइन को घटते हुए अम्लीय व्यवहार के क्रम में व्यवस्थित कीजिए और इस व्यवहार का कारण बताइए।
उत्तर
इन तीनों यौगिकों में कार्बन की संकरण अवस्था निम्नवत् है-
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कक्षक का 5-लक्षण बढ़ने पर अम्लीय लक्षण बढ़ता है अतः अम्लीय लक्षण निम्न क्रम में घटता है-
ऐसीटिलीन > बेंजीन > हेक्सेन

प्रश्न 19.
बेन्जीन इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ सरलतापूर्वक क्यों प्रदर्शित करती हैं, जबकि उसमें नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन कठिन होता है?
उत्तर
C6H6 (बेंजीन) की कक्षक संरचना प्रदर्शित करती है कि -इलेक्ट्रॉन अभ्र वलय के ऊपर तथा नीचे स्थित है तथा ढीला व्यवस्थित है अत: इलेक्ट्रॉनस्नेही के लिए आसानी से उपलब्ध है, अत: बेंजीन इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ शीघ्रता से देती है तथा नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन क्रियाएँ: कठिनता से देती है।

प्रश्न 20.
आप निम्नलिखित यौगिकों को बेन्जीन में कैसे परिवर्तित करेंगे?
(i) एथाइन
(ii) एथीन
(iii) हेक्सेन।
उत्तर
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प्रश्न 21.
उन सभी ऐल्कीनों की संरचनाएँ लिखिए, जो हाइड्रोजनीकरण करने पर 2-मेथिल । ब्यूटेन देती हैं।
उत्तर
उत्पाद की संरचना निम्नवत् है-
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प्रश्न 22.
निम्नलिखित यौगिकों को उनकी इलेक्ट्रॉनस्नेही (E) के प्रति घटती आपेक्षिक क्रियाशीलता के क्रम में व्यवस्थित कीजिए-
(क) क्लोरोबेन्जीन, 2, 4-डाइनाइट्रोक्लोरोबेन्जीन, p-नाइट्रोक्लोरोबेन्जीन
(ख) टॉलूईन, p-H3C-C6H4-NO2,p-O2N-C6H4-NO2
उत्तर
(क) क्लोरोबेंजीन > p-नाइट्रोक्लोरोबेंजीन > 2,4-डाइनाइट्रोक्लोरोबेंजीन,
(ख) टॉलूईन > p-H3C-C6H4-NO2> p-O2N-C6H4-NO2

प्रश्न 23.
बेन्जीन, m-डाइनाइट्रोबेन्जीन तथा टॉलूईन में से किसका नाइट्रीकरण आसानी से होता है और क्यों?
उत्तर
CH3 समूह इलेक्ट्रॉनदाता समूह होता है जबकि -NO2 समूह इलेक्ट्रॉन निष्कासक होता है। अतः अधिकतम इलेक्ट्रॉन घनत्व टॉलूईन में होगा उससे कम बेंजीन में तथा सबसे कम m-डाइनाइट्रोबेंजीन में। अतः नाइट्रीकरण का घटता हुआ क्रम निम्न होगा-
टॉलूईन > बेंजीन > m-डाइनाइट्रोबेंजीन

प्रश्न 24.
बेन्जीन के एथिलीकरण में निर्जल ऐलुमिनियम क्लोराइड के स्थान पर कोई दूसरा लूइस अम्ल सुझाइए।
उत्तर
निर्जल FeCl3, SnCl4, BF3 आदि।

प्रश्न 25.
क्या कारण है कि वुज अभिक्रिया विषम संख्याकार्बन परमाणु वाले विशुद्ध ऐल्केन बनाने के लिए प्रयुक्त नहीं की जाती? एक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
विषम संख्या कार्बन परमाणु युक्त ऐल्केनों के बनाने में दो ऐल्किल हैलाइडों का प्रयोग किया जाता है। ये दो ऐल्किल हैलाइड तीन भिन्न प्रकारों से अभिकृत होकर वांछित ऐल्केन के स्थान पर तीन ऐल्केनों का मिश्रण बनाते हैं। 1-ब्रोमोप्रोपेन तथा 1-ब्रोमोब्यूटेन की वुटुंज अभिक्रिया से हेक्सेन, हेप्टेन तथा ऑक्टेन का मिश्रण प्राप्त होता है जैसा कि नीचे प्रदर्शित है-
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में कौन-सा ऐरोमैटिक यौगिक नहीं है?
(i) बेंजीन
(ii) ऐनिलीन
(iii) साइक्लोहेक्सेन
(iv) पिरीडीन
उत्तर
(iii) साइक्लोहेक्सेन

प्रश्न 2.
निम्नलिखित ब्यूटेनॉल के सम्भव समावयवियों में प्रकाशिक समावयवता प्रदर्शित करने वाला यौगिक है।
(i) CH3CHOHCH2—CH3
(ii) CH3-CH2 CH2-CH2-OH
(iii) (CH3)2CHCH2-OH
(iv) (CH3)3COH
उत्तर
(i) CH3CHOHCH2-CH3

प्रश्न 3.
प्रयोगशाला में बॉयर अभिकर्मक का प्रयोग किया जाता है।
(i) द्विबन्ध की जाँच के लिए
(ii) ग्लूकोस की जाँच के लिए
(iii) अपचयन के लिए
(iv) ऑक्सीकरण के लिए
उत्तर
(i) द्विबन्ध की जाँच के लिए

प्रश्न 4.
ऐसीटिलीन अणु में हैं।
(i) 5 δ बन्ध
(ii) 4 δ तथा 1 π बन्ध
(iii) 3 δ तथा 2 π बन्ध
(iv) 2 δ तथा 3 π बन्ध
उत्तर
(iii) 3 δ तथा 2 π बन्ध

प्रश्न 5.
C5H10 आणविक सूत्र वाले निम्न में से किस यौगिक के ओजोनी अपघटन से ऐसीटोन प्राप्त होती है?
(i) 3-मेथिल-ब्यूट-1-ईन
(ii) साइक्लोपेन्टेन
(iii) 2-मेथिल-ब्यूट-1-ईन
(iv) 2-मेथिल-ब्यूट-2-ईन
उत्तर
(iv) 2-मेथिल-ब्यूट-2-ईन

प्रश्न 6.
प्रोपाइन तथा प्रोपीन पहचाने जा सकते हैं।
(i) सांद्र H2SO4 द्वारा।
(ii) CCl4 में Br2 के द्वारा।
(iii) तनु KMnO4 द्वारा
(iv) अमोनियाकृत AgNO3 द्वारा
उत्तर
(iv) अमोनियाकृत AgNO3 द्वारा

प्रश्न 7.
निम्न में से कौन-सा यौगिक द्विध्रुव आघूर्ण प्रदर्शित करता है?
(i) 1,4- डाइक्लोरोबेंजीन
(ii) 1, 2-डाइक्लोरोबेंजीन
(iii) ट्रान्स-1,2-डाइक्लोरोएथेन
(iv) ट्रान्स-ब्यूट-2-ईन
उत्तर
(i) 1, 2-डाइक्लोरोबेंजीन

प्रश्न 8.
रक्त-तप्त नलियों में C2H2 को गर्म करने पर कौन-सा यौगिक बनता है।
(i) एथिलीन
(ii) बेंजीन
(iii) एथेन
(iv) मेथेन
उत्तर
(ii) बेंजीन

प्रश्न 9.
निम्न में से बेंजीन के सल्फोनीकरण में कौन भाग लेता है?
(i) SO2
(ii) SO3H+
(iii) SO3
(iv) SO3H
उत्तर
(ii) SO3

प्रश्न 10.
बेंजीन पर सूर्य के प्रकाश में क्लोरीन की अभिक्रिया से बनता है।
(i) पिक्रिक अम्ल
(ii) क्लोरोपिक्रिन
(iii) नाइट्रोमेथेन
(iv) गैमेक्सीन
उत्तर
(iv) गैमेक्सीन

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऐलिफैटिक संतृप्त हाइड्रोकार्बन या ऐल्केन से आप क्या समझते हैं?
या
ऐल्केनों को पैराफिन क्यों कहते हैं?
उत्तर
ऐलिफैटिक संतृप्त हाइड्रोकार्बन वे यौगिक होते हैं जिनमें उपस्थित परमाणुओं की सभी श्रृंखलाएँ खुली हुई होती हैं, प्रत्येक कार्बन परमाणु की चारों संयोजकताएँ एकल आबन्धों द्वारा सन्तुष्ट होती हैं तथा केवल कार्बन और हाइड्रोजन उपस्थित होते हैं। इने यौगिकों को ऐल्केन भी कहते हैं। चूंकि ये यौगिक (ऐल्केन) अन्य कार्बनिक यौगिकों की तुलना में कम क्रियाशील होते हैं; इसलिए इन्हें पैराफिन कहते हैं।

प्रश्न 2.
ऐल्केनों की संरचना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
ऐल्केनों में प्रत्येक कार्बन परमाणु sp3 संकरित होता है अत: प्रत्येक कार्बन परमाणु की संरचना समचतुष्फलकीय होती है। दूसरे शब्दों में, प्रत्येक कार्बन परमाणु एक समचतुष्फलक के केन्द्र पर स्थित होता है तथा उसकी संयोजकताएँ समचतुष्फलक के शीर्षों की ओर दिष्ट होती हैं। किन्हीं भी दो संयोजकताओं के मध्य 109°28′ का कोण होता है।
ऐल्केनों में C—C आबन्ध लम्बाई 1.54 तथा C—H आबन्ध लम्बाई 1.09Å होती है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित यौगिकों का संरचनात्मक सूत्र लिखिए
(i) 3, 4, 4, 5-टेट्रामेथिलहेप्टेन
(ii) 2, 5-डाइमेथिलहेक्सेन
उत्तर
(i) CH3–CH2–CH(CH3)=C(CH3)2-CH(CH3)–CH2–CH3
(ii) CH2—CH(CH3)–CH2–CH2–CH(CH3)2CH3

प्रश्न 4.
वुटुंज अभिक्रिया द्वारा आप प्रोपेन किस प्रकार बनाएँगे?
उत्तर
एथिल आयोडाइड और मेथिल आयोडाइड की सोडियम से अभिक्रिया ईथर की उपस्थिति में कराने पर प्रोपेन एवं अन्य हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण प्राप्त होता है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-28

प्रश्न 5.
प्रोपेन के विरचन के लिए किस अम्ल के सोडियम लवण की आवश्यकता होगी? अभिक्रिया का रासायनिक समीकरण लिखिए।
उत्तर
प्रोपेन के विरचन के लिए ब्यूटेनोइक अम्ल के सोडियम लवण की आवश्यकता होती है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-29

प्रश्न 6.
ऐल्केन के शाखित होने से उसकी गलनांक किस प्रकार प्रभावित होगा?
उत्तर
ऐल्केन के शाखित होने से उसके अणु क्रिस्टल जालक में दूर-दूर हो जाते हैं। इससे गलनांक घट जाता है। यदि शाखित होने पर अणु सममित हो जाता है तो अणु क्रिस्टल जालक में निविड संकुलित हो जाते हैं जिससे गलनांक में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 7.
ऐल्केनों की दहन अभिक्रिया को समझाइए।
उत्तर
ऐल्केनें ऑक्सीजन या वायु की अधिकता में ज्योतिहीन ज्वाला के साथ जलकर कार्बन डाइऑक्साइड और जल बनाती हैं। अभिक्रिया में ऊष्मा (heat) और प्रकाश (light) निकलते हैं।

CH4 + 2O2 → CO2 +2H2O+212.8Kcal
C2H6 + 3[latex]\frac { 1 }{ 2 } [/latex]O2 → 2CO2 + 3H2O+373.0 Kcal

मेथेन और वायु (आधिक्य) के मिश्रण को प्रज्वलित करने पर विस्फोट होता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड और जल बनते हैं। कोयले की खानों में विस्फोट होने का यही कारण है।

प्रश्न 8.
ऐल्केनों के ताप अपघटन को समझाइए।
उत्तर
वायु की अनुपस्थिति में उच्च ताप पर गर्म करने से कार्बनिक यौगिक का तापीय अपघटन (thermal decomposition) उनका ताप अपघटन (pyrolysis) कहलाता है।
उदाहरणार्थ-

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-30

उच्च ऐल्केनें वायु की अनुपस्थिति में, उच्च ताप (500-600°C) पर गर्म करने पर छोटे अणुओं में अपघटित हो जाती है। उच्च अणु भार को ऐल्केनों का लघु अणु भार के हाइड्रोकार्बनों में ताप अपघटन भंजन (cracking) कहलाता है। किसी ऐल्केन के भंजन से प्राप्त उत्पाद ऐल्केन की संरचना दाब, ताप, उत्प्रेरक की उपस्थिति आदि कारकों पर निर्भर करते हैं।

प्रश्न 9.
ऐल्केनों के भंजन में C—H आबंधों के स्थान पर C—C आबंध क्यों टूटते हैं।
उत्तर
C—C आबंधों की आबंध वियोजन ऊर्जा C—H आबंधों की आबंध वियोजन ऊर्जा की तुलना में कम होती है। इसलिए ऐल्केनों के भंजन के दौरान C—Cआबंध C—H आबंधों की तुलना में आसानी से टूटते हैं।

प्रश्न 10.
सामान्य ताप पर एथेन के शुद्ध संरूपणों को पृथक करना संभव क्यों नहीं है?
उत्तर
एथेन के दो चरम रूपों (ग्रसित तथा सांतरित संरूपणों) के मध्य ऊर्जा का अंतर 12.5 kJ mol-1 होता है जो कि बहुत कम है। सामान्य ताप पर अंतराण्विक संघट्टों के द्वारा एथेन अणु में तापीय तथा गतिज ऊर्जा होती है जो 12.5kJ mol-1 के ऊर्जा अवरोध को पार करने में सक्षम होती है। इसलिए सामान्य ताप पर एथेन के शुद्ध ग्रसित तथा शुद्ध सांतरित संरूपणों को पृथक् करना संभव नहीं है।

प्रश्न 11.
ऐल्कीन क्या हैं तथा इन्हें ओलीफिन क्यों कहते हैं?
उत्तर
वे ऐलिफैटिक असंतृप्त हाइड्रोकार्बन जिनमें केवल एक कार्बन-कार्बन द्वि-आबन्ध उपस्थित होता है, ऐल्कीन कहलाते हैं। ऐल्कीन श्रेणी का प्रथम सदस्य एथिलीन है जो क्लोरीन के साथ अभिक्रिया करके तेल जैसा पदार्थ एथिलीन डाइक्लोराइड बनाता है। इसीलिए इस श्रेणी के सदस्यों को ओलीफिन (तेल बनाने वाला) कहते हैं।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-31
उत्तर

  1. 2,8-डाइमेथिल डेका-3,6-डाइईन
  2. ऑक्टा -1,3,5,7-टेट्राईन
  3. 2-प्रोपिलपेन्ट-1-ईन
  4. 4-एथिल-2,6-डाइमेथिलडेके-4-ईन

प्रश्न 13.
ऐल्कीनों में संरचनात्मक समावयवता को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर
ऐल्कीन श्रेणी के प्रथम दो सदस्य (एथीन तथा प्रोपीन) समावयवता प्रदर्शित नहीं करते हैं। इस श्रेणी के अन्य सदस्य स्थिति समावयवता तथा श्रृंखला समावयवता प्रदर्शित करते हैं।
उदाहरणार्थ-अणुसूत्र C4H8 तीन समावयवी ऐल्कीनों को प्रदर्शित करता है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-32

यहाँ संरचनाएँ I और II स्थिति समावयवियों को और संरचनाएँ I और II तथा II और II श्रृंखला समावयवियों को प्रदर्शित करती हैं।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित यौगिकों के समपक्ष (cis) तथा विपक्ष (trans) समावयवी बनाइए और उनके IUPAC नाम लिखिए
(i) CHCl = CHCl
(ii) C2H5C(CH3)=C(CH3)C2H5
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-33

प्रश्न 15.
किस धातु का कार्बाइड जल से क्रिया करके ऐसीटिलीन गैस उत्पन्न करता है? रासायनिक समीकरण दीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-34

प्रश्न 16.
ऐल्कीनों के सामान्य भौतिक गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
ऐल्कीनों के प्रमुख सामान्य भौतिक गुण निम्नवत् हैं

  1. इस श्रेणी के प्रथम तीन सदस्य एथीन, प्रोपीन तथा ब्यूटीन रंगहीन गैसें हैं। इसके बाद के | C16H32 तक के सदस्य द्रव तथा इससे ऊँचे सदस्य ठोस होते हैं।
  2. ये जल में अविलेय होते हैं परन्तु ऐल्कोहॉल, बेंजीन तथा ईथर जैसे कार्बनिक विलायकों में विलेय होते हैं।
  3. अणु भार के बढ़ने के साथ इनके आपेक्षिक घनत्व, गलनांक तथा क्वथनांक बढ़ते जाते हैं।
  4. सभी ऐल्कीन वायु में प्रकाश-युक्त लौ के साथ जलती हैं।

प्रश्न 17.
एथेन की तुलना में एथिलीन अधिक क्रियाशील है। क्यों?
उत्तर
एथिलीन में 1 π बन्धं उपस्थित है इसलिए एथिलीन, एथेन की तुलना में अधिक क्रियाशील है।

प्रश्न 18.
HCI, HBr, HI तथा HF को उनकीं ऐल्कीनों से क्रियाशीलता के घटते क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
उत्तर
HI > HBr > HCl> HF

प्रश्न 19.
एथेन और एथीन में कैसे विभेद करेंगे?
उत्तर
एथेन और एथीन में विभेद परीक्षण
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-35

प्रश्न 20.
ऐल्काइन क्या हैं?
उत्तर
वे ऐलिफैटिक असंतृप्त हाइड्रोकार्बन जिनमें केवल एक कार्बन-कार्बन द्वि-आबन्ध उपस्थित होता है, ऐल्काइन कहलाते हैं। इनमें उपस्थित त्रि-आबन्धों को ऐसीटिलीनिक आबन्ध भी कहते हैं।

प्रश्न 21.
ऐल्काइनों के प्रमुख भौतिक गुणधर्म लिखिए।
उत्तर
ऐल्काइनों के प्रमुख भौतिक गुणधर्म निम्नवत् हैं-

  1. ऐल्काइन श्रेणी के प्रथम तीन सदस्य (C2 से C4) गैसें, अगले आठ सदस्य (C52 से C12) द्रव तथा शेष उच्च सदस्य ठोस हैं।
  2. ऐल्काइने रंगहीन तथा स्वादहीन होती हैं।
  3. ऐल्काइने जल में लगभग अविलेय और कार्बनिक विलायकों में विलेय होती हैं।
  4. ऐल्काइनों के गलनांक, क्वथनांक और आपेक्षिक घनत्व उनके अणुभार बढ़ने के साथ-साथ बढ़ते हैं।

प्रश्न 22.
एथीन और एथाइन में विभेद करने के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले दो अभिकर्मकों के नाम लिखिए।
उत्तर
अमोनियामय सिल्वर नाइट्रेट विलयन और अमोनियामय क्यूप्रस क्लोराइड विलयन।

प्रश्न 23.
ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन अथवा ऐरीन क्या हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर
वे हाइड्रोकार्बन तथा उनके ऐल्किल, ऐल्किनिल एवं एल्काइनिल व्युत्पन्न जिनमें एक अथवा अधिक बेंजीन वलय होती हैं, ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन अथवा ऐरीन कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-बेंजीन, टॉलूईन, नैफ्थेलीन, बाइफेनिल आदि।

प्रश्न 24.
निम्न के IUPAC नाम लिखिए
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-36
उत्तर

  1. 2-हाइड्रॉक्सी 3-फेनिल ब्यूटेनल,
  2. एथिल एथेनोएटप्रश्न

प्रश्न 25.
प्रोपाइन, ब्यूट डाइईन, बेंजीन में से किसमें सर्वाधिक आबंध हैं?
उत्तर
बेंजीन में (3)।

प्रश्न 26.
बेंजीन अति असंतृप्त होती है परन्तु फिर भी यह योगात्मक अभिक्रियाएँ प्रदर्शित नहीं करती है। क्यों?
उत्तर
ऐसा इलेक्ट्रॉनों के विस्थानीकरण (delocalization) के कारण अतिरिक्त स्थायित्व के कारण होता है।

प्रश्न 27.
मेसीटिलीन के ओजोनी अपघटन के उद क्या होंगे?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-37

प्रश्न 28.
फ्रीडल-क्राफ्ट्स अभिक्रिया का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-38

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऐल्केनों में पायी जाने वाली समावयवता का वर्णन कीजिए।
उत्तर
ऐल्केन श्रेणी के प्रथम तीन सदस्य अर्थात् मेथेन, एथेन तथा प्रोपेन समावयवता प्रदर्शित नहीं करते हैं। इस श्रेणी के अन्य सभी सदस्य श्रृंखला समावयवता प्रदर्शित करते हैं।
उदाहरणार्थ-अणु सूत्र C2H10, C5H12, तथा C6H14 द्वारा प्रदर्शित समावयवियों की संरचनाएँ तथा उनके नाम निम्नवत् हैं।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-39
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-40
स्पष्ट है कि अणु सूत्र C4H10, C5H12 तथा C2H14 द्वारा प्रदर्शित समावयवियों की कुल संख्या क्रमशः दो, तीन व पाँच हैं। ऐल्केनों में किसी अन्य प्रकार की संरचनात्मक समावयवता नहीं पायी जाती है।

प्रश्न 2.
एक ऐल्केन (अणुभार = 72) मोनोक्लोरीनीकरण करने पर केवल एक क्रियाफल देती है। ऐल्केन का नाम बताइए।
उत्तर
ऐल्केन का सामान्य सूत्र CnH2n+2 होता है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-41
प्रश्नानुसार, ऐल्केन का मोनो क्लोरीनीकरण कराने पर केवल एक उत्पाद बनता है; अतः सभी हाइड्रोजन एक जैसे होने चाहिए। इसलिए वह ऐल्केन 2, 2-डाइमेथिल प्रोपेन होगी।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-42

प्रश्न 3.
ऐल्केनों के भौतिक गुणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर
ऐल्केनों के प्रमुख भौतिक गुण निम्नवत् हैं-

  1. अवस्था-ऋजु श्रृंखला ऐल्केनों के प्रथम चार सदस्य (C1 से C4) रंगहीन, गंधहीन गैसें हैं। अगले उच्च सदस्य (C5 से C17) रंगहीन वाष्पशील द्रव हैं तथा और उच्च सदस्य रंगहीन ठोस हैं|
  2. विलेयता-ऐल्केन अध्रुवीय प्रकृति की होने के कारण ध्रुवीय विलायकों में अविलेय लेकिन अध्रुवीय कार्बनिक विलायकों में विलेय हैं (समान समान को घोलता है)।
  3. घनत्व—ऐल्केनों के घनत्व ऐल्केनों के अणुभार बढ़ने के साथ बढ़ते हैं। किसी भी ऐल्केन का घनत्व 0.8 gcm-3 से अधिक नहीं है अर्थात् सभी ऐल्केनें जल से हल्की होती हैं।
  4. क्वथनांक-सीधी श्रृंखला या n-ऐल्केनों के क्वथनांक कार्बन परमाणुओं की संख्या बढ़ने पर नियमित रूप से बढ़ते हैं। सामान्यतः श्रेणी के दो उत्तरोत्तर सदस्यों (प्रथम कुछ सदस्यों को छोड़कर) के क्वथनांकों में अन्तर 20-30°C होता है। समावयवी ऐल्केनों में साधारण समावयवी का क्वथनांक शाखित श्रृंखला समावयवी से अधिक होता है। श्रृंखला अधिक शाखित होने पर क्वथनांक कम होते हैं।
    क्वथनांक में परिवर्तन को अन्तराण्विक आकर्षण बलों के पदों में समझाया जा सकता है। ये बल अणु की सतह के सापेक्ष कार्य करते हैं तथा इनका परिमाण पृष्ठ सतह के क्षेत्रफल के बढ़ने पर बढ़ता है। जैसे ही श्रेणी में आण्विक आकार बढ़ता है वैसे ही पृष्ठ क्षेत्रफल बढ़ता है। तथा क्वथनांक भी बढ़ते हैं।
    n-ऐल्केनों में शाखित श्रृंखला समावयवियों की तुलना में अधिक पृष्ठ क्षेत्रफल होता है, अत: अन्तराण्विक बल शाखित श्रृंखला समावयवियों में दुर्बल होते हैं। अतः इनके क्वथनांक सीधी श्रृंखला समावयवियों की तुलना में निम्न होते हैं।
  5. गलनांक-आण्विक आकार के बढ़ने के साथ-साथ ऐल्केनों के गलनांकों में क्रमिक परिवर्तन, नहीं पाया जाता है। सम संख्या में कार्बन परमाणुओं वाले ऐल्केनों के गलनांक विषम संख्या में कार्बन परमाणुओं वाले ऐल्केनों से उच्च होते हैं। सम कार्बन संख्या वाले n-ऐल्केन विषम कार्बन संख्या वाले n-ऐल्केनों की तुलना में अधिक सममित होते हैं अर्थात् वे क्रिस्टल जालक में अधिक निविड़ संकुलित (closely packed) होते हैं। दूसरे शब्दों में, इनमें अन्तराण्विक आकर्षण बल अधिक होते हैं, अत: इनके गलनांक कुछ उच्च होते हैं।
    UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-43

प्रश्न 4.
संरूपण क्या है? एथेन के परिप्रेक्ष्य में वर्णन कीजिए।
उत्तर
संरूपण-ऐसे परमाणुओं की त्रिविम व्यवस्थाएँ जो C—C एकल आबन्ध के घूर्णन के कारण एक-दूसरे में परिवर्तित हो जाती हैं, संरूपण, संरूपणीय समावयव या घूर्णी कहलाती हैं।

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-44

एथेन के सॉहार्स प्रक्षेप एथेन के संरूपण-एथेन के असंख्य संरूपण होते हैं। इनमें से दो संरूपण चरम होते हैं। एक रूप में दोनों कार्बन के हाइड्रोजन परमाणु एक-दूसरे के अधिक पास हो जाते हैं उसे ग्रस्त रूप कहते हैं। दूसरे रूप में, हाइड्रोजन परमाणु दूसरे कार्बन के हाइड्रोजन परमाणुओं से अधिकतम दूरी पर रहते हैं। उन्हें सांतरित रूप कहते हैं। इनके अलावा कोई भी मध्यवर्ती संरूपण विषमतलीय संरूपण कहलाता है। सभी संरूपणों में आबन्ध कोण तथा आबन्ध लम्बाई समान रहती है। ग्रस्त तथा सांतरित संरूपणों को सॉहार्स तथा न्यूमैन प्रक्षेप द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

  1. सॉहार्स प्रक्षेप–इस प्रक्षेपण में अणु को आण्विक अक्ष की दिशा में देखा जाता है। कागज पर केंद्रीय C-C आबंध को दिखाने के लिए दाईं या बाईं ओर झुकी हुई एक सीधी रेखा खींची जाती है। इस रेखा को कुछ लंबा बनाया जाता है। आगे वाले कार्बन को नीचे बाईं ओर तथा पीछे वाले कार्बन को ऊपर दाईं ओर से प्रदर्शित करते हैं। प्रत्येक कार्बन से संलग्न तीन हाइड्रोजन परमाणुओं को तीन रेखाएँ। खींचकर दिखाया जाता है। ये रेखाएँ एक-दूसरे से 120° का कोण बनाकर झुकी होती हैं।
  2. न्यूमैन प्रक्षेप–इस प्रक्षेपण में अणु को सामने से देखा जाता है। आँख के पास वाले कार्बन को एक बिंदु द्वारा दिखाया जाता है और उससे जुड़े तीन हाइड्रोजन परमाणुओं को 120° कोण पर खींची तीन रेखाओं के सिरों पर लिखकर प्रदर्शित किया जाता है। पीछे (आँख से दूर) वाले कार्बन को एक वृत्त द्वारा दर्शाते हैं तथा इसमें आबंधित हाइड्रोजन परमाणुओं को वृत्त की परिधि से परस्पर 120° के कोण पर स्थित तीन छोटी रेखाओं से जुड़े हुए दिखाया जाता है।

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-45

प्रश्न 5.
ऐल्कीनों में पाये जाने वाले कार्बन-कार्बन द्वि-आबन्ध की संरचना समझाइए।
या
द्विआबन्धं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
ऐल्कीनों में C=C द्विआबंध होता है, जिसमें एक प्रबल सिग्मा (σ) आबंध (आबंध एंथैल्पी लगभग 348 kJmol-1 है) होता है, जो दो कार्बन परमाणुओं के spसंकरित कक्षकों के सम्मुख अतिव्यापन से बनता है। इसमें दो कार्बन परमाणुओं के 2p2 असंकरित कक्षकों के पार्श्व अतिव्यापन करने पर एक दुर्बल पाई (π) आबंध, (आबंध एंथैल्पी 251 kJmol-1 है) बनता है।
C—C एकल आबंध लंबाई (154 pm) की तुलना में C=C द्विआबंध लंबाई (134 pm) छोटी होती है। पाई (π) आबंध दो p-कक्षकों के दुर्बल अतिव्यापन के कारण दुर्बल होते हैं। अतः पाई (π) आबंध वाले ऐल्कीनों को दुर्बल बंधित गतिशील इलेक्ट्रॉनों का स्रोत कहा जाता है। अत: ऐल्कीनों पर उन अभिकर्मकों अथवा यौगिकों, जो इलेक्ट्रॉनों की खोज में होते हैं, का आक्रमण आसानी से हो जाता है। एथीन अणु के कक्षीय आरेख चित्र निम्नवत् हैं।

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-46

प्रश्न 6.
निम्नलिखित यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए-
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UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-48
उत्तर

  1. 3, 3-डाइमेथिल-1-हेक्सिन,
  2. 2-एथिल ब्यूटानॉइल क्लोराइड।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए-
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-49
उत्तर

  1. 2-एथिल ब्यूटानल,
  2. 2-एथिल 3-मेथिल ब्यूटीन।

प्रश्न 8.
ऐल्कीनों में ज्यामितीय समावयवता को समझाइए।
या
ऐल्कीन ज्यामितीय समावयवता क्यों प्रदर्शित करती हैं?
उत्तर
द्विआबंधित कार्बन परमाणुओं की बची हुई दो संयोजकताओं को दो परमाणु या समूह जुड़कर संतुष्ट करते हैं। अगर प्रत्येक कार्बन से जुड़े दो परमाणु या समूह भिन्न हैं तो इसे YXC = CXY द्वारा प्रदर्शित करते हैं। ऐसी संरचनाओं को दिक् में निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जाता है|
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-50
संरचना ‘a’ में एकसमान दो परमाणु (दोनों x या दोनों Y) द्विआबंधित कार्बन परमाणुओं के एक ही ओर स्थित होते हैं। संरचना ‘b’ में दोनों x अथवा दोनों Y द्विआबंधित कार्बन की दूसरी तरफ या द्विआबंधित कार्बन परमाणु के विपरीत स्थित होते हैं, जो विभिन्न ज्यामिति दर्शाते हैं। इनका दिक् में परमाणु या समूहों की भिन्न स्थितियों के कारण विन्यास भिन्न होता है।
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अतः ये त्रिविम समावयवी (stereo isomers) हैं। इनकी समान ज्यामिति तब होती है, जब द्विआबंधित कार्बन परमाणुओं या समूहों का घूर्णन हो सकता है, परन्तु C= C द्विआबंध में मुक्त घूर्णन नहीं होता। यह प्रतिबंधित होता है। अत: परमाणुओं अथवा समूहों के द्विआबंधित कार्बन परमाणुओं के मध्य प्रतिबंधित घूर्णन के कारण यौगिकों द्वारा भिन्न ज्यामितियाँ प्रदर्शित की जाती हैं। इस प्रकार के त्रिविम समावयवी, जिसमें दो समान परमाणु या समूह एक ही ओर स्थित हों, उन्हें समपक्ष (cis) कहा जाता है, जबकि दूसरे समावयवी, जिसमें दो समान परमाणु या समूह विपरीत ओर स्थित हों, विपक्ष (trans) समावयवी कहलाते हैं। इसलिए दिक् में समपक्ष तथा विपक्ष समावयवों की संरचना समान होती है, किंतु विन्यास भिन्न होता है। दिक् में परमाणुओं या समूहों की भिन्न व्यवस्थाओं के कारण ये समावयवी अनेक गुणों (जैसे-गलनांक, क्वथनांक, द्विध्रुव आघूर्ण, विलेयता आदि) में भिन्नता दर्शाते हैं। ब्यूट-2-ईन की ज्यामितीय समावयवता अथवा समपक्ष-विपक्ष समावयवता को निम्नलिखित संरचना द्वारा प्रदर्शित किया जाता है-
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-52
ऐल्कीन का समपक्ष रूप विपक्ष की तुलना में अधिक ध्रुवीय होता है।
उदाहरणार्थ-समपक्ष ब्यूट-2-ईन का द्विध्रुव आघूर्ण 0.350 डिबाई है, जबकि विपक्ष ब्यूट-2-ईन का लगभग शून्य होता है। अतः विपक्ष ब्यूट-2-ईन अध्रुवीय है। इन दोनों रूपों की निम्नांकित विभिन्न ज्यामितियों को बनाने से यह पाया गया है कि विपक्ष-ब्यूट-2-ईन के दोनों मेथिल समूह, जो विपरीत दिशाओं में होते हैं, प्रत्येक C-CH, आबंध के कारण ध्रुवणता को नष्ट करके विपक्ष रूप को निम्न प्रकार अध्रुवीय बनाते हैं-
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-53
ठोसों में विपक्ष समावयवियों के गलनांक समपक्ष समावयवियों की तुलना में अधिक होते हैं। ज्यामितीय या समपक्ष (cis) विपक्षः (trans) समावयवता, XYC = CXZ तथा XYC = CZW प्रकार की ऐल्कीनों द्वारा भी प्रदर्शित की जाती है।

प्रश्न 9.
ऐल्कीन मुख्यतः इलेक्ट्रॉनस्नेही अभिकर्मकों से अभिक्रिया करती हैं न कि नाभिकस्नेही अभिकर्मकों से। क्यों?
या
ऐल्कीन मुख्यतः इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रियाएँ प्रदर्शित करती हैं न कि इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ क्यों?
उत्तर
ऐल्कीन में द्विआबंध होता है। इनमें से एक प्रबल कार्बन-कार्बन सिग्मा (π) आबंध और एक दुर्बल पाई (σ) आबंध होता है। π – इलेक्ट्रॉनों का इलेक्ट्रॉन अभ्र σ-आबंधित कार्बन परमाणुओं के तल के ऊपर तथा नीचे स्थित होता है। अतः π-इलेक्ट्रॉन कार्बन परमाणुओं से शिथिलता (loosely) से बद्ध होते हैं। चूंकि इलेक्ट्रॉन ऋणावेशित कण होते हैं इसलिए π-इलेक्ट्रॉन इलेक्ट्रॉनस्नेही को आकर्षित और नाभिकस्नेही को प्रतिकर्षित करते हैं। अतः ऐल्कीन इलेक्ट्रॉनस्नेही अभिक्रियाएँ प्रदर्शित करती हैं।
इलेक्ट्रॉनस्नेही अभिक्रियाएँ दो प्रकार की हो सकती हैं-योगात्मक तथा प्रतिस्थापन।
इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं में एक σ- कार्बन-हाइड्रोजन आबंध टूटता है और द्विआबंधित कार्बन परमाणुओं तथा इलेक्ट्रॉनस्नेही के मध्य एक नया σ-आबंध बनता है। इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं में अधिक ऊर्जा परिवर्तन नहीं होता है क्योंकि σ-कार्बन-हाइड्रोजन आबंध तथा नए σ – C – X आबंध की आबंध ऊर्जाओं में अधिक अंतर नहीं होता है।
इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रियाओं में एक दुर्बल -आबंध टूटता है और दो प्रबल o-आबंधों का निर्माण होता है। इस अभिक्रिया में 445 kJmol-1 (2 x 348 kJmol-1 – 251 kJmol-1) ऊर्जा मुक्त होती है। स्पष्ट है कि ऊर्जा की दृष्टि से इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रियाएँ इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं से अधिक अनुकूल होती हैं। यही कारण है कि ऐल्कीन मुख्यतः इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रियाएँ प्रदर्शित करती हैं न कि इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ।

प्रश्न 10.
इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रियाओं की क्रियाविधि समझाइए।
या
एथिलीन के Br2 से योग की क्रियाविधि समझाइए।
उत्तर
इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रियाओं की क्रियाविधि को एथिलीन के Br2 से योग के उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। यह अभिक्रिया निम्न दो पदों में होती है-
पद 1–ब्रोमीन अणु (अध्रुवीय) जब एथिलीन अणु के पास आता है तो द्विआबंध के E-इलेक्ट्रॉन ब्रोमीन अणु में दोनों ब्रोमीन परमाणुओं को बाँधे रखने वाले इलेक्ट्रॉन युग्म को प्रतिकर्षित करने लगते हैं जिससे ब्रोमीन अणु का ध्रुवण हो जाता है। इस ब्रोमीन द्विध्रुव को धन सिरा इलेक्ट्रॉनस्नेही की भाँति व्यवहार करता है। एथिलीन अणु के 7-इलेक्ट्रॉन इस सिरे को आकर्षित करके -संकर (E-complex) बनाते हैं जो बाद में कार्बोधनायन और ब्रोमाइड आयन देता है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-54
यह पद मंद पद (slow step) है। अतः यह अभिक्रिया का दर निर्धारक पद (rate determining step) है।
पद 2–प्राप्त कार्बोधनायन अत्यंत क्रियाशील होता है। विलयन में उपस्थित ब्रोमाइड आयन इस पर नाभिकस्नेही आक्रमण करके योगोत्पाद (addition product) बनाता है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-55

प्रश्न 11.
मारकोनीकॉफ नियम तथा परॉक्साइड प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर
मारकोनीकॉफ का नियम-इस नियम के अनुसार-जब कोई असममित ऐल्कीन किसी असममित अणु से योग करती है तो जुड़ने वाले अणु का धनात्मक भाग द्विआबंध बनाने वाले उस कार्बन परमाणु से जुड़ता है जिस पर अधिक हाइड्रोजन परमाणु उपस्थित होते हैं।
उदाहरणार्थ-
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-56
इस प्रकार उपरोक्त अभिक्रिया में HBr का धनात्मक भाग अर्थात् H+ कार्बन परमाणु संख्या 1 से संयुक्त होता है क्योंकि कार्बन परमाणु संख्या 1 पर कार्बन परमाणु संख्या 2 की तुलना में अधिक हाइड्रोजन परमाणु उपस्थित हैं।
परॉक्साइड प्रभाव या खैराश प्रभाव-खैराश (Kharasch) तथा उनके सहयोगियों ने सन् 1933 में प्रयोगों द्वारा यह ज्ञात किया कि परॉक्साइड जैसे बेन्जोइल परॉक्साइड की उपस्थिति में असममित ऐल्कीनों पर HBr (HCl अथवा HI का नहीं) का योग मारकोनीकॉफ के नियम के विरुद्ध होता है।
उदाहरणार्थ-
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-57
परॉक्साइड परॉक्साइड की उपस्थिति में ऐल्कीनों के इस अपसामान्य (abnormal) व्यवहार को खैराश प्रभाव (Kharasch effect) या परॉक्साइड प्रभाव (peroxide effect) कहते हैं।

प्रश्न 12.
मेथिल ऐसीटिलीन, अमोनियम क्यूप्रस क्लोराइड के साथ क्रिया करके लाल अवक्षेप देती है जबकि डाइमेथिल ऐसीटिलीन लाल अवक्षेप नहीं देती है। कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-58
मेथिल ऐसीटिलीन में एक अम्लीय हाइड्रोजन परमाणु उपस्थित है इसकी CuCl तथा NH4OH से अभिक्रिया कराने पर क्यूप्रस मेथिल ऐसीटेलाइड का लाल अवक्षेप बनता है। डाइमेथिल ऐसीटिलीन में कोई अम्लीय हाइड्रोजन परमाणु उपस्थित नहीं है, इसलिए यह NH4OH तथा CuCl के साथ लाल अवक्षेप नहीं देता है।

प्रश्न 13.
ऐल्काइनों द्वारा प्रदर्शित की जाने वाली समावयवता का वर्णन कीजिए।
या
ऐल्काइनों में पायी जाने वाली समावयवता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
ऐल्काइन निम्नलिखित प्रकार की समावयवता प्रदर्शित करती हैं-

  1. स्थान समावयवता या स्थिति समावयवता–ऐल्काइन श्रेणी के प्रथम दो सदस्य एथाइन तथा प्रोपाइन केवल एक रूप में पाए जाते हैं। ब्यूटाइन तथा अन्य उच्च ऐल्काइन कार्बन श्रृंखला में त्रिआबंध की विभिन्न स्थितियों के अनुसार स्थिति समावयवती प्रदर्शित करते हैं।
    उदाहरणार्थ-
    UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-59
  2. श्रृंखला समावयवता–पाँच तथा उससे अधिक कार्बन परमाणु वाले ऐल्काइन श्रृंखला समावयवता प्रदर्शित करते हैं। यह समावयवता कार्बन श्रृंखला की विभिन्न संरचनाओं के कारण होती है।
    उदाहरणार्थ-
    UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-60
  3. क्रियात्मक समावयवता-ऐल्काइन दो द्विआबंधों वाले यौगिकों के क्रियात्मक समावयवी होते हैं।
    उदाहरणार्थ-
    UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-61
  4. वलय-श्रृंखला समावयवता-ऐल्काइन साइक्लोऐल्कीनों के साथ वलय-श्रृंखला समावयवता प्रदर्शित करते हैं।
    उदाहरणार्थ-
    UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-62

प्रश्न 14.
एथाइन का उदाहरण देते हुए त्रिआबन्ध की संरचना को समझाइए।
या
त्रिआबन्ध की संरचना पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
एथाइन ऐल्काइन श्रेणी का सरलतम अणु है। इसके प्रत्येक कार्बन परमाणु के दो sp संकरित कक्षकों के समअक्षीय अतिव्यापन से कार्बन-कार्बन सिग्मा आबंध बनता है। प्रत्येक कार्बन परमाणु का शेष sp संकरित कक्षक अन्तरानाभिकीय अक्ष के सापेक्ष हाइड्रोजन परमाणु के 1s कक्षक के साथ अतिव्यापन करके दो C-H सिग्मा आबंध बनाते हैं।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-63
H — C—C आबंध कोण 180° का होता है। प्रत्येक कार्बन परमाणु के पास C—C आबंध तथा तल के लंबवत् असंकरित p-कक्षक होते हैं। एक कार्बन परमाणु को 2p कक्षक दूसरे के समांतर होता है, जो समपाश्विक अतिव्यापन करके दो कार्बन परमाणुओं के मध्य दो (पाई) बंध बनाते हैं। अतः एथाइन अणु में एक C—C(सिग्मा) आबंध, दो C — H (सिग्मा) आबंध तथा दो C—C (पाई) आबंध होते हैं।
C ☰ C की आबंध सामर्थ्य 823 kJmol-1 है, जो C⚌C द्विआबंध आबंध एंथैल्पी 681 kJmol-1C—C एकल आबंध आबंध एंथैल्पी 348 kJmol-1 से अधिक होती है। C ☰ C की त्रिआबंध लम्बाई (120 pm), C=C द्विआबंध (134 pm) तथा C—C एकल आबंध (154 pm) की तुलना में छोटी होती है। अक्षों पर दो कार्बन परमाणुओं के मध्य इलेक्ट्रॉन अभ्र अंतरानाभिकीय सममित बेलनाकार स्थिति में होते हैं। एथाइन एक रेखीय अणु है।

प्रश्न 15.
बेंजीन की संरचना से सम्बन्धित अनुनाद संकल्पना क्या है?
उत्तर
अनुनाद संकल्पना के अनुसार बेंजीन को दोनों केकुले संरचनाओं का अनुनादी संकर माना जाता है।
UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-64

बेंजीन की वास्तविक संरचना न तो I है और न ही II है लेकिन इन दोनों संरचनाओं का मध्यमान है। इसके समस्त गुणों की व्याख्या संरचना I या II से नहीं की जा सकती है लेकिन संरचना I तथा II के मध्यमान से की जा सकती है। अत: बेंजीन में प्रत्येक कार्बन-कार्बन आबन्ध की लम्बाई एकल आबंध लम्बाई 1.54 Å तथा द्विआबन्ध लम्बाई 1.34Å के मध्य 1.39 Å होती है। अनुनाद का प्रमुख प्रभाव यह होता है कि अनुनाद संकर का स्थायित्व अनुनाद संरचनाओं के स्थायित्व से अधिक होता है। इस प्रकार बेंजीन की अनुनाद संरचना से इसके स्थायित्व की व्याख्या भी हो जाती है।

प्रश्न 16.
बेंजीन की संरचना की आण्विक ऑर्बिटल संकल्पना क्या है? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर
आण्विक ऑर्बिटल संकल्पना के अनुसार बेंजीन अणु में छ: कार्बन परमाणु एक चक्रीय श्रृंखला में उपस्थित होते हैं। प्रत्येक कार्बन परमाणु sp2 संकरित होता है। प्रत्येक कार्बन परमाणु में तीन sp2 संकरित ऑर्बिटल तीन सिग्मा आबन्ध बनाने में प्रयुक्त होते हैं। प्रत्येक कार्बन परमाणु एक सिग्मा आबन्ध एक हाइड्रोजन परमाणु से तथा एक-एक सिग्मा आबन्ध समीपवर्ती कार्बन परमाणुओं से बनाता है। इस प्रकार ये छ: कार्बन परमाणु एक समषट्भुज बनाते हैं। बेंजीन में C-C- H व C-C-C आबंध कोण 120° के होते हैं तथा प्रत्येक कार्बन परमाणु पर एक अप्रयुक्त p- ऑर्बिटल शेष रहता है। ये सभी p-ऑर्बिटल एक-दूसरे के समानान्तर होते हैं।

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प्रत्येक p-ऑर्बिटल अपने बायें या दायें वाले p-ऑर्बिटल से अतिव्यापन करके एक ए-आबन्ध बना सकता है। इस प्रकार बेंजीन अणु के दो ऑर्बिटल आरेख (orbital diagrams) प्राप्त होते हैं। ये दोनों आरेख दोनों केकुले संरचनाओं के समतुल्य हैं।
आण्विक ऑर्बिटल संकल्पना के अनुसार π–इलेक्ट्रॉनों के विस्थानीकरण (delocalisation) से अधिक स्थायी संरचना प्राप्त होती है। अत: बेंजीन में π – इलेक्ट्रॉनों का विस्थानीकरण हो जाता है। प्रत्येक p-ऑर्बिटल अपने बायें तथा दायें दोनों ओर अतिव्यापन करता है तथा एक विस्थानीकृत आण्विक ऑर्बिटल प्राप्त होता है जिसमें छ: इलेक्ट्रॉन होते हैं।
इस प्रकार बेंजीन अणु एक सैण्डविच के समान है जिसमें छ: कार्बन परमाणु दो इलेक्ट्रॉन मेघों के…। मध्य एक सैण्डविच के रूप में स्थित होते हैं। बेंजीन को केकुले संरचनाओं I या II से प्रदर्शित किया जा सकता है। चूंकि ये संरचनाएँ बेंजीन की वास्तविक संरचनाएँ नहीं हैं, अतः इसकी वास्तविक संरचना को प्रायः संलग्न चित्र में प्रदर्शित संरचना से प्रदर्शित किया जाता है।

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-66

प्रश्न 17.
बेंजीन संरचना में निम्न की पुष्टि कीजिए
(i) यह एक बन्द श्रृंखला का यौगिक है।
(ii) यह एक संतृप्त यौगिक की भाँति व्यवहार करती है।
उत्तर
बेंजीन की संगत ऐल्केन का अणुसूत्र Cn H2n+2 के अनुसार C6H14 है। बेंजीन में इससे आठ हाइड्रोजन परमाणु कम हैं। अतः यदि बेंजीन की संरचना में कार्बन परमाणु एक विवृत श्रृंखला (open chain) बनाते हैं तो उसमें चार द्विआबन्ध या इसके अनुरूप द्विआबन्ध तथा त्रिआबन्ध उपस्थित होने चाहिये। इस आधार पर बेंजीन की निम्नलिखित विवृत श्रृंखला संरचनाएँ सम्भव हैं|

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बेंजीन की विवृत श्रृंखला संरचनाएँ निम्नलिखित कारणों से सम्भव नहीं हैं-

  1. उपरोक्त संरचनाएँ यह प्रदर्शित करती हैं कि एथिलीन तथा अन्य ऐलिफैटिक असंतृप्त हाइड्रोकार्बनों की भॉति बेंजीन भी Br2/CCl4 का रंग उड़ा देगी तथा बॉयर अभिकर्मक का रंग परिवर्तित कर देगी। बेंजीन ऐसा नहीं करती है। अत: बेंजीन की उपरोक्त संरचनाएँ दोषपूर्ण हैं।
  2. बेंजीन हैलोजनीकरण, नाइट्रीकरण, सल्फोनीकरण तथा अन्य प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ सरलतापूर्वक प्रदर्शित करती है। इन अभिक्रियाओं में बेंजीन अणु में उपस्थित एक या अधिक हाइड्रोजन परमाणु अन्य परमाणुओं या समूहों द्वारा प्रतिस्थापित हो जाते हैं। ऐलिफैटिक असंतृप्त हाइड्रोकार्बन इस प्रकार की अभिक्रिया प्रदर्शित नहीं करते हैं। अत: बेंजीन की इन अभिक्रियाओं को उपरोक्त संरचनाओं के आधार पर स्पष्ट नहीं किया जा सकता है।
  3. उपरोक्त संरचनाएँ यह प्रदर्शित करती हैं कि बेंजीन का एक अणु हाइड्रोजन के चार अणुओं का योग करेगा। वास्तव में बेंजीन का एक अणु हाइड्रोजन के तीन अणुओं का योग करता है। अत: बेंजीन की उपरोक्त संरचनाएँ दोषपूर्ण हैं। उपरोक्त विवेचना से यह स्पष्ट होता है कि बेंजीन की विवृत श्रृंखला संरचना सम्भव नहीं है; इसमें तीन कार्बन-कार्बन द्विआबन्ध उपस्थित हैं तथा इसमें उपस्थित द्विबन्धों की प्रकृति ऐलिफैटिक अंसतृप्त हाइड्रोकार्बनों में उपस्थित द्विआबन्धों की प्रकृति से भिन्न है। इस प्रकार उपर्युक्त कारणों से स्पष्ट हो जाता है कि बेंजीन एक बंद श्रृंखला का यौगिक है तथा यह एक संतृप्त यौगिक की भाँति व्यवहार करता है।

प्रश्न 18.
ऐरीनों या बेंजीन के भौतिक गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
ऐरीनों या बेंजीन के प्रमुख भौतिक गुण निम्नवत् हैं-

  1. गंध, रंग तथा भौतिक अवस्था—ये सामान्यतः विशिष्ट गंधयुक्त, रंगहीन, द्रव या ठोस होते हैं। आप नैफ्थेलीन की गोलियों से चिरपरिचित हैं। इसकी विशिष्ट गंध तथा शलभ प्रतिकर्षी गुणधर्म के कारण इसे शौचालय में तथा कपड़ों को सुरक्षित रखने के लिए उपयोग किया जाता है।
  2. विलेयता-वृहद जलविरागी हाइड्रोकार्बन भाग के कारण ये जल में अमिश्रणीय तथा कार्बनिक विलायकों में विलेय होते हैं।
  3. दहन-ये कज्जली लौ के साथ जलते हैं।
  4. गलनांक तथा क्वथनांक-क्वथनांक आण्विक आकार में वृद्धि के साथ बढ़ते हैं। ऐसा वान्डरवाल्स बलों (आकर्षण) में वृद्धि के कारण होता है।

गलनांक आण्विक आकार और सममिति पर निर्भर करते हैं। अणु जितना अधिक सममित होता है। गलनांक उतना ही अधिक होता है।

प्रश्न 19.
टॉलूईन की पाश्र्व श्रृंखला प्रतिस्थापन तथा नाभिकीय प्रतिस्थापन अभिक्रिया के रासायनिक समीकरण लिखिए।
उत्तर
(i) टॉलूईन की पाश्र्व श्रृंखला प्रतिस्थापन अभिक्रिया

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(ii) टॉलूईन की नाभिकीय प्रतिस्थापन अभिक्रिया

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-69

प्रश्न 20.
ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बनों से होने वाली कैन्सरजनीयता तथा विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
बेन्जीन एवं अनेक बहुचक्री ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन बहुत आविषालु (toxic) और कैन्सरजनी (carcinogenic) रासायनिक यौगिक हैं। कैन्सरजनी पदार्थ जैव ऊतकों में कैन्सर उत्पन्न कर सकते हैं। सिगरेट के धुएँ, कोल और पेट्रोलियम के अपूर्ण दहन के उत्पादों में चिमनियों के धुएँ एवं चिमनियों में एकत्रित काजल (soot) में कैन्सरजनी बहुचक्री ऐरामैटिक हाइड्रोकार्बन उपस्थित होते हैं।
1,2-बेन्जऐन्ग्रेसीन (IV), 9, 10-डाइमेथिल-1,2-बेन्जऐन्ट्रेसीन (V) और 1,2-बेन्जपाइरीन (VI), कैन्सरजनी पदार्थ हैं। कैन्सरजनी पदार्थ मानव-शरीर में प्रवेश करके विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाएँ करते हैं और कोशिकाओं (cells) के DNA को क्षति पहुँचाकर कैन्सर पैदा करते हैं। DNA के म्यूटेशन के परिणामस्वरूप कैन्सर होता है।
कुछ कार्बनिक पदार्थ वास्तव में स्वयं कैन्सरजनी नहीं होते, किन्तु जीव में उपाचयी क्रियाओं द्वारा सक्रिय कैन्सरजनों (carcinogens) में परिवर्तित हो जाते हैं। इस प्रकार के यौगिक प्रोकार्सीनोजन (procarcinogens) कहलाते हैं।
1,2-बेन्जपाइरीन (VI) एक कैन्सरजनी (carcinogens) है। यह लीवर में उपस्थित एन्जाइम द्वारा एपॉक्सी डायॉल (epoxy diol) में परिवर्तित हो जाता है जो म्यूटेशन प्रेरित करता है जिसके परिणास्वरूप कुछ कोशिकाओं की अनियन्त्रित वृद्धि हो सकती है।
बेन्जीन एक कैन्सरजुनी यौगिक है। लीवर में उपस्थित एन्जाइम द्वारा बेन्जीन का बेन्जीन ऑक्साइड में ऑक्सीकरण होता है। बेन्जीन ऑक्साइड़ और उससे व्युत्पन्न यौगिक कैन्सरजनी हैं और DNA से क्रिया करके म्यूटेशन प्रेरित कर सकते हैं।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऐल्केनों की हैलोजनीकरण अभिक्रिया को मुक्त मूलक क्रियाविधि सहित समझाइए।
उत्तर
हैलोजनीकरण-ऐल्केनें सूर्य के प्रकाश या उत्प्रेरक की उपस्थिति में या उच्च ताप पर हैलोजनों के साथ प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ करती हैं। किसी हाइड्रोकार्बन के हाइड्रोजन परमाणुओं का हैलोजन परमाणुओं द्वारा विस्थापन हैलोजनीकरण कहलाता है। किसी ऐल्केन के प्रति हैलोजनों की अभिक्रियाशीलता का क्रम E, > Cl, > Br, > I, है। ऐल्केनों की हैलोजनीकरण अभिक्रियाएँ साधारणतः क्लोरीन और ब्रोमीन के साथ करायी जाती हैं, क्योंकि ऐल्केनों की फ्लुओरीन से सीधी अभिक्रिया अति प्रचण्ड व विस्फोटक होती है तथा ऐल्केनों की आयोडीन से अभिक्रिया उत्क्रमणीय एवं अति मन्द होती है।
1. क्लोरीनीकरण-हाइड्रोकार्बन के हाइड्रोजन परमाणुओं का क्लोरीन परमाणुओं द्वारा विस्थापन क्लोरीनीकरण कहलाता है।
उदाहरणार्थ-मेथेन और क्लोरीन के मिश्रण को सूर्य के विसरित प्रकाश में रखने पर या उच्च ताप (250-400°C) पर गर्म करने पर मेथेन के चारों हाइड्रोजन परमाणु एक-एक करके क्लोरीन परमाणुओं द्वारा विस्थापित हो जाते हैं। अभिक्रिया के उत्पादों के रूप में क्लोरोमेथेनों और हाइड्रोजन क्लोराइड का मिश्रण प्राप्त होता है।

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-70

क्लोरोफॉर्म क्लोरीन कार्बन टेट्राक्लोराइड क्लोरीनीकरण की क्रिया बहुत तीव्र गति से होती है। प्राप्त मिश्रण में मेथिल क्लोराइड (CH3Cl2), मेथिलीन क्लोराइड (CH2Cl2), क्लोरोफॉर्म (CHCl3) और कार्बन टेट्राक्लोराइड (CCl4) चारों क्लोरोमेथेन उपस्थित होती हैं। मेथेन और क्लोरीन के आयतनों के अनुपात को नियन्त्रित करके अभिक्रिया ऐच्छिक पद तक करायी जा सकती है। मेथेन की बहुत अधिकता होने पर मेथिल क्लोराइड मुख्य उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है।

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-71

अभिक्रिया की क्रिया-विधि–सूर्य के विसरित प्रकाश में मेथेन की क्लोरीन से प्रतिस्थापन अभिक्रिया एक मुक्त मूलक श्रृंखला अभिक्रिया है। मुक्त मूलक श्रृंखला अभिक्रिया कई पदों में होती है। इसके प्रारम्भन (initiation), संचालन (propagation) और अन्तिम (termination) पद होते हैं। सूर्य के प्रकाश में मेथेन के क्लोरीनीकरण की क्रिया-विधि निम्नलिखित हैं-

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-72

अभिक्रिया के प्रारम्भन पद (1) में Cl2 अणु का क्लोरीन परमाणुओं (मुक्त मूलकों) में होमोलिटिक विदलन होता है। इस पद के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रकाश से प्राप्त होती है। अत्यधिक अभिक्रियाशील क्लोरीन परमाणु शीघ्र मेथेन से अभिक्रिया करता है और उसमें से एक हाइड्रोजन परमाणु को हटा देता। है जिससे UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-73 “(मेथिल मुक्त मूलक) और HCl अणु बन जाता है (पद 2)। मैथिल मुक्त मूलक अत्यधिक अभिक्रियाशील होता है और यह शीघ्र क्लोरीन अणु से अभिक्रिया करके मेथिल क्लोराइड (CH3Cl) और क्लोरीन परमाणु UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-74 बनाता है (पद 3)। क्लोरीन परमाणु पुनः मेथेन अणु से अभिक्रिया करके मेथिल मूलक बनाता है और मेथिल मूलक पुनः क्लोरीन अणु से अभिक्रिया करके क्लोरीन परमाणु बनाता है। पद (2), (3), (2), (3) का यह क्रम लगातार चलता रहता है। पद (2) और (3) श्रृंखला संचालन पद (chain propagating steps) कहलाते हैं। संचालन पद में एक मूलक लुप्त होता है और दूसरा मूलक उत्पन्न होता है। अभिक्रिया में क्लोरीन मूलक श्रृंखला वाहक (chain carrier) का कार्य करता है। अभिक्रिया श्रृंखला का अन्त दो क्लोरीन परमाणुओं के संयोजन से Cl2 अणु बनने (पद 4), या मेथिल मूलक और क्लोरीन मूलक के संयोजन से CH3Cl बनने (पद 5) से होता है। पद (4), (5) श्रृंखला के अन्तिम पद (chain terminating step) कहलाते हैं। सूर्य के सीधे प्रकाश में मेथेन और क्लोरीन का 1 : 2 मिश्रण विस्फोट के साथ अति तीव्र अभिक्रिया करता है। अभिक्रिया में कार्बन और हाइड्रोजन क्लोराइड बनते हैं-

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-75

एथेन और क्लोरीन के मिश्रण को सूर्य के विसरित प्रकाश में रखने पर मेथेन के सदृश एथेन के सभी हाइड्रोजन परमाणु एक-एक करके क्लोरीन परमाणुओं द्वारा विस्थापित हो जाते हैं। अभिक्रिया उत्पादों के रूप में क्लोरोएथेनों और हाईड्रोजन क्लोराइड का जटिल मिश्रण प्राप्त होता है। प्रोपेन व अन्य उच्च ऐल्केनों का क्लोरीनीकरण करने पर समावयवी मोनोक्लोरोऐल्केनों का मिश्रण प्राप्त होता है।
उदाहरणार्थ-प्रोपेन का क्लोरीनीकरण करने पर n-प्रोपिल क्लोराइड (CH3CH2CH2Cl) और आइसोप्रोपिल क्लोराइड (CH3 CHClCH3 ) का मिश्रण बनता है। n-ब्यूटेन । का क्लोरीनीकरण करने पर n-ब्यूविंल क्लोराइड (CH3 CH2CH2CH2Cl) और s-ब्यूटिल क्लोराइड (CH3CH2 CHClCH3) का मिश्रण बनता है। क्लोरीन की अधिकता होने पर विभिन्न क्लोरोऐल्केनों का जटिल मिश्रण प्राप्त होता है।

2. ब्रोमीनीकरण हाइड्रोकार्बन के हाइड्रोजन परमाणुओं का ब्रोमीन परमाणुओं द्वारा विस्थापन ब्रोमीनीकरण कहलाता है। ऐल्केनों की क्लोरीन की भाँति ब्रोमीन के साथ प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ होती हैं, परन्तु ब्रोमीनीकरण अपेक्षाकृत मन्द गति से होता है।

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-76

3. आयोडिनीकरण हाइड्रोकार्बन के हाइड्रोजन परमाणुओं का आयोडीन परमाणुओं द्वारा विस्थापन आयोडिनीकरण कहलाता है। ऐल्केनों की आयोडीन से प्रतिस्थापन अभिक्रिया बहुत मन्द और उत्क्रमणीय होती है, अतः उनको सीधा आयोडिनीकरण नहीं कराया जा सकता है। ऐल्केनों का आयोडिनीकरण प्राय: किसी ऑक्सीकारक (जैसे, HIO3 HNO3, आदि) की उपस्थिति में कराया जाता है। ऑक्सीकारक अभिक्रिया में बने HI को I2 में ऑक्सीकृत कर देता है, जिससे विपरीत अभिक्रिया नहीं होती है।

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-77

प्रश्न 2.
ऐल्कीनों के विरचन की प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिए।
या
निर्जलीकरण अभिक्रियाएँ क्या हैं?
उत्तर
ऐल्कीनों के विरचने की प्रमुख विधियों का वर्णन निम्नवत् है-
1. ऐल्काइनों के आंशिक अपचयन से-ऐल्काइनों की हाइड्रोजन से योग अभिक्रिया का अन्तिम उत्पाद ऐल्केन हैं। इस अभिक्रिया में Ni को उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त करते हैं तथा ताप 250-300°C रखा जाता है। यदि ऐल्काइन को अधिक मात्रा में लिया जाए तथा अभिक्रिया कम ताप पर सम्पन्न करायी जाए तो अभिक्रिया के फलस्वरूप ऐल्कीन भी प्राप्त होती हैं।
उदाहरणार्थ-

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-78

2. ऐल्कोहॉलों के निर्जलीकरण से-ऐल्कोहॉलों को सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल अथवा सान्द्र फॉस्फोरिक अम्ल के साथ गर्म करने पर ऐल्कीन प्राप्त होती है।
उदाहरणार्थ-

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-79

इस अभिक्रिया में ऐल्कोहॉल के एक अणु में से जल की एक अणु निकल जाता है। इस प्रकार की अभिक्रियाओं को निर्जलीकरण (dehydration) कहते हैं।

3. ऐल्किल हैलाइडों के विहाइड्रोहैलोजनीकरण से-ऐल्किल हैलाइडों को कास्टिक पोटाश के ऐल्कोहॉलीय विलयन के साथ गर्म करने पर ऐल्कीन प्राप्त होती है। इस क्रिया में ऐल्किल हैलाइड के एक अणु में से हाइड्रोजन हैलाइड का एक अणु निकल जाता है। अतः इस क्रिया ‘ को विहाइड्रोहैलोजनीकरण (dehydrohalogenation) कहते हैं।
उदाहरणार्थ-

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-80

4. डाइहैलोऐल्केनों के विहैलोजनीकरण से-जिन डाइहैलाइडों में दो हैलोजन परमाणु दो समीपवर्ती कार्बन परमाणुओं पर स्थित होते हैं उन्हें विसिनल डाइहैलाइड (vicinal dihalides) अथवा 1, 2-डाइहैलोऐल्कॅन (1, 2- dihaloalkanes) कहते हैं। इस प्रकार के डाइहैलाइडों को मेथेनॉल अथवा एथेनॉल में जिंक चूर्ण के साथ गर्म करने पर ऐल्कीन प्राप्त होती है।
उदाहरणार्थ-

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-81

5. डाइकार्बोक्सिलिक अम्लों के वैद्युत-अपघटन से कोल्बे अभिक्रिया-डाइकार्बोक्सिलिक अम्लों के सोडियम या पोटैशियम लवणों के जलीय विलयन के वैद्युत-अपघटन से ऐनोड पर ऐल्कीन प्राप्त होती है।
उदाहरणार्थ-पोटैशियम सक्सिनेट के जलीय विलयन का वैद्युत-अपघटन करने पर ऐनोड पर एथिलीन प्राप्त होती है।

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यह अभिक्रिया कोल्बे वैद्युत-अपघटनी अभिक्रिया (Kolbe’s electrolytic reaction) कहलाती है और निम्न पदों में होती है-

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6. ग्रिगनार्ड अभिकर्मक से-हैलोजन प्रतिस्थापित ऐल्कीन (halogen substituted alkenes) तथा ग्रिगनार्ड अभिकर्मकों की अभिक्रिया से उच्च ऐल्कीन प्राप्त की जा सकती हैं।
उदाहरणार्थ-

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7.अमोनियम हाइड्रॉक्साइड के टेट्रा-ऐल्किल व्युत्पन्नों से-अमोनियम हाइड्रॉक्साइड के टेट्रा-ऐल्किल व्युत्पन्नों को गर्म करने पर ऐल्कीन प्राप्त होती हैं।
उदाहरणार्थ-

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-85

8. ऐल्केनों के भंजन से-ऐल्केनों को वायु की अनुपस्थिति में 773-973 K ताप पर गर्म करने |से उनके अधिक अणुभार वाले अणु कम अणु भार वाले अणुओं में विभाजित हो जाते हैं। प्राप्त मिश्रण में निम्न ऐल्केन, ऐल्कीन तथा हाइड्रोजन होते हैं।
उदाहरणार्थ-

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प्राप्त मिश्रण के अवयवों को उपयुक्त विधियों द्वारा अलग-अलग किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
ऐल्कीनों के प्रमुख रासायनिक गुणों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर
द्विआबन्ध की उपस्थिति के कारण ऐल्कीन अत्यन्त क्रियाशील होती हैं तथा प्रायः ऐसी अभिक्रियाएँ प्रदर्शित करती हैं जिनमें द्विआबन्ध का T-आबन्ध विखण्डित हो जाता है। इनकी प्रमुख अभिक्रियाएँ इस प्रकार हैं-
1. योगात्मक अभिक्रियाएँ-ऐल्कीनों में द्विआबन्ध की उपस्थिति के कारण ये यौगिक योगात्मक अभिक्रियाएँ प्रदर्शित करते हैं। इन अभिक्रियाओं में द्विआबन्ध का π-आबन्ध तथा अभिकर्मक दो भागों में विभक्त हो जाता है।
अभिकर्मक का एक भाग द्विआबन्ध बनाने वाले एक कार्बन परमाणु से तथा दूसरा भाग दूसरे परमाणु से जुड़ जाता है।

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ऐल्कीनों की योगात्मक अभिक्रियाओं के कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं-
(i) हाइड्रोजन का योग–ऐल्कीन निकिल चूर्ण की उपस्थिति में 523-573 K ताप पर हाइड्रोजन से योग करके ऐल्केन बना देती हैं।
उदाहरणार्थ-

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निकिल की उपस्थिति में ऐल्कीनों तथा हाइड्रोजन की योग अभिक्रिया को सेवातिये तथा सेण्डर्न की अभिक्रिया कहते हैं। यह अभिक्रिया उच्च ताप पर होती है। पैलेडियम या प्लेटिनम उत्प्रेरक की उपस्थिति में ऐल्कीन तथा हाइड्रोजन साधारण ताप पर ही अभिक्रिया कर लेती हैं तथा ऐल्केन बनाती हैं।

(ii) हैलोजनों का योग-ऐल्कीन, हैलोजनों के साथ संयोग करके डाइहैलोजन यौगिक बनाती हैं। इस अभिक्रिया में हैलोजनों की क्रियाशीलता का क्रम Cl2 > Br2 >I2 है। यह अभिक्रिया किसी अध्रुवीय विलायक जैसे CCl4 तथा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में या किसी ध्रुवीय विलायक जैसे जल में की जाती है।
उदाहरणार्थ-

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(iii) हाइड्रोजन हैलाइडों का योग-किसी भी ऐल्कीन का एक अणु किसी भी हाइड्रोजन हैलाइड के एक अणु से संयोग करके योगात्मक यौगिक बनाता है।
उदाहरणार्थ-

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इस अभिक्रिया में हैलोजन हैलाइडों की क्रियाशीलता का क्रम HI > HBr > HCI है।

(iv) जल का योग–अम्लीय उत्प्रेरकों की उपस्थिति में ऐल्कीनों तथा जल की योग अभिक्रिया के फलस्वरूप ऐल्कोहॉल प्राप्त होते हैं। जल का योग मारकोनीकॉफ के नियम के अनुसार होता है।
उदाहरणार्थ-

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(v) ओजोन का योग–ऐल्कीनों के ईथरीय विलयन में ओजोन प्रवाहित करने पर योगात्मक यौगिक बनते हैं जिन्हें ओजोनाइड (ozonides) कहते हैं। ओजोनाइडों को जल के साथ उबालने पर ये अपघटित हो जाते हैं। जल-अपघटन की क्रिया Zn चूर्ण की उपस्थिति में करायी जाती है। यह जल-अपघटन से प्राप्त हाइड्रोजन परॉक्साइंड को अपघटित कर देता है ताकि यह अन्य उत्पादों से अभिक्रिया न कर सके। ऐल्कीनों तथा ओजोन की योग अभिक्रिया तथा ओजोनाइडों के जल-अपघटन की अभिक्रिया, इस सम्पूर्ण क्रिया को ओजोनी अपघटन (ozonolysis) कहते हैं।
उदाहरणार्थ-

UP Board Solutions for Class 11 Chemistry Chapter 13 Hydrocarbons img-92

स्पष्ट है कि सम्पूर्ण अभिक्रिया में द्विआबन्ध टूट जाता है तथा जिन कार्बन परमाणुओं से द्विआबन्ध जुड़ा था, वे ऑक्सीजन परमाणु से जुड़ जाते हैं।

2. प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ-असंतृप्त होने के कारण ऐल्कीन मुख्यतः योगात्मक अभिक्रियाएँ प्रदर्शित करती हैं तथा प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ प्रदर्शित नहीं करती हैं लेकिन उच्च ताप पर हैलोजनों के साथ संयोग करके ये प्रतिस्थापन उत्पाद भी देती हैं।
उदाहरणार्थ-

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3. ऑक्सीकरण
(i) दहन-हवा अथवा ऑक्सीजन में ऐल्कीन दीप्तिमान ज्वाला के साथ जलती हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड और जल बनते हैं।

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(ii) क्षारीय पोटैशियम परमैंगनेट विलयन से—1% क्षारीय KMnO4 विलयन से ऑक्सीकृत होकर ऐल्कीन, डाइहाइड्रॉक्सी यौगिक बनाती हैं।

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इस अभिक्रिया में KMnO4 का गुलाबी रंग लुप्त हो जाता है तथा K2MnO4 बनने के कारण हरा रंग प्राप्त होता है। इस अभिक्रिया की सहायता से दिये गए कार्बनिक यौगिक में कार्बन-कार्बन द्विआबन्ध या त्रिआबन्ध की उपस्थिति की अर्थात् असंतृप्तता की जाँच की जा सकती है। 1% क्षारीय KMnO4 को बॉयर अभिकर्मक (Baeyer’s reagent) तथा असंतृप्तता के इस परीक्षण को बॉयर परीक्षण (Baeyer’s test) कहते हैं।

(iii) अम्लीय पोटैशियम परमैंगनेट विलयन से-अम्लीय पोटैशियम परमैंगनेट विलयन के प्रभाव में ऐल्कीन अणु उस स्थान से विखण्डित हो जाता है जहाँ द्विआबन्ध होता है तथा अम्ल, ऐल्डिहाइड या कीटोन प्राप्त होते हैं।
उदाहरणार्थ-

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उपरोक्त अभिक्रियाओं सेप्राप्त फॉर्मिक अम्ल अभिक्रिया की परिस्थितियों में कार्बन डाइऑक्साइड व जल में ऑक्सीकृत हो जाता है।

HCOOH +[O] → CO2 + H2O

उपर्युक्त के अतिरिक्त ऐल्कीने बहुलकीकरण, समावयवीकरण, ऑक्सीमरक्यूरेशन डीमरक्यूरेशन तथा हाइड्रोबोरोनेशन या हाइड्रोबोरेशन अभिक्रियाएँ भी प्रदर्शित करती हैं।

प्रश्न 4.
ऐल्काइनों के विरचन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
या
ऐसीटिलीन के विरचन की प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
ऐल्काइनों के विरचन की विभिन्न विधियों का वर्णन निम्नवत् है-

1. डाइहैलोऐल्केन से—KOH के उबलते हुए ऐल्कोहॉलीय विलयन में डाइहैलोऐल्केन मिला देने से ऐल्काइन प्राप्त होती है।
उदाहरणार्थ-

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2. हैलोफॉर्म से—क्लोरोफॉर्म (CHCl3) अथवा आयोडोफॉर्म (CHI3) को सिल्वर चूर्ण के साथ गर्म करने पर ऐसीटिलीन गैस प्राप्त हो जाती है।

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3. संश्लेषण विधिहाइड्रोजन गैस के वातावरण में दो कार्बन इलेक्ट्रोडों के मध्य विद्युतीय आर्क (electric arc) उत्पन्न करने पर ताप लगभग 3270K हो जाता है तथा कार्बन व हाइड्रोजन के संयोग से ऐसीटिलीन गैस बनती है।

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4. मैलिक अथवा फ्यूमेरिक अम्ल के सोडियम अथवा पोटैशियम लवण के वैद्युत अपघटन से (कोल्बे की विधि)-मैलिक अथवा फ्यूमेरिक अम्ल के सोडियम अथवा पोटैशियम लवण के जलीय विलयन का वैद्युत-अपघटन करने पर ऐनोड पर ऐसीटिलीन गैस प्राप्त हो जाती है।
उदाहरणार्थ-

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5. टेट्रालाइडों के विहैलोजनीकरण से टेट्राहैलोऐल्केनों को जिंक चूर्ण (मेथेनॉल में) के साथ गर्म करने पर इनका विहैलोजनीकरण हो जाता है और ऐल्काइन प्राप्त होती है।
उदाहरणार्थ-

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6. कैल्सियम कार्बाइड से (प्रयोगशाला विधि)-कैल्सियम कार्बाइड को जल में मिलाने पर ये । दोनों पदार्थ साधारण ताप पर ही एक-दूसरे से अभिक्रिया करके ऐसीटिलीन बनाते हैं।

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इस अभिक्रिया का उपयोग ऐसीटिलीन को प्रयोगशाला में बनाने में किया जाता है। प्रयोगशाला विधि–एक शंक्वाकार फ्लास्क (conical flask) में रेत के ऊपर कैल्सियम कार्बाइड के टुकड़े रख दिए जाते हैं। फ्लास्क में दो छेद वाला कॉर्क लगा होता है जिसमें बिन्दु कीप (dropping funnel) तथा निकास नली लगा दी जाती हैं। निकास नली को एक धावन बोतल से जोड़ देते हैं जिसमें कॉपर सल्फेट का अम्लीय विलयन भरा रहता है। धावन बोतल को गैस जार से जोड़ देते हैं। बिन्दु कीप से बूंद-बूंद करके फ्लास्क में रखे कैल्सियम कार्बाइड पर जल गिराया जाता है। अभिक्रिया के फलस्वरूप ऐसीटिलीन गैस तीव्रता से निकलती है। इसे । गैस में अशुद्धियों के रूप में फॉस्फीन, हाइड्रोजन सल्फाइड, आर्सीन और अमोनिया गैसें मिली। होती हैं जो अम्लीय कॉपर सल्फेट विलयन द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं। शुद्ध ऐसीटिलीन गैस को पानी के ऊपर गैस जार में एकत्रित कर लिया जाता है।

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7. ऐसीटिलीन से उच्च ऐल्काइनों का संश्लेषण-पहले ऐसीटिलीन की सोडियम धातु से 475K पर अथवा द्रव अमोनिया में सोडामाइड (sodamide) से 196K पर अभिक्रिया कराते हैं। जिससे सोडियम ऐसीटिलाइड बनता है। यह ऐल्किल हैलाइडों से अभिक्रिया करके उच्च ऐल्काइन देता है।
उदाहरणार्थ-

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प्रश्न 5.
ऐल्काइनों की प्रमुख योगात्मक अभिक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
या
ऐल्काइनों की अम्लीय प्रकृति को समझाइए।
उत्तर
ऐल्काइनों की प्रमुख योगात्मक अभिक्रियाएँ निम्नवत् हैं-
1. इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रियाएँ—ये अभिक्रियाएँ निम्न दो पदों में होती हैं-

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कुछ प्रमुख इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रियाएँ निम्न हैं-
(i) हैलोजनों का योग-क्लोरीन और ब्रोमीन ऐल्काइनों से योग करके पहले 1, 2-डाइहैलोऐल्कीन और बाद में 1, 1, 2, 2-टेट्राहैलोऐल्केन बनाती हैं।
उदाहरणार्थ

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इस अभिक्रिया में Br2 का लाल भूरा रंग लुप्त हो जाता है इसलिए इस अभिक्रिया का उपयोग असंतृप्तता के परीक्षण के लिए किया जाता है।

(ii) हैलोजन हैलाइडों का योग-हैलोजन हैलाइड ऐल्काइनों से योग करके पहले वाइनिल हैलाइड और फिर ऐल्किलीडीन हैलाइड (alkylidene halide) बनाते हैं। ये योग मारकोनीकॉफ के नियम के अनुसार होते हैं।
उदाहरणार्थ-

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(iii) हाइपोक्लोरस अम्ल का योग–ऐल्काइन हाइपोक्लोरस अम्ल से दो पदों में योग करती।

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(iv) जल का योग–ऐल्काइन 333K पर मयूंरिक सल्फेट तथा तनु सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में जल के एक अणु के साथ संयुक्त होकर कार्बोनिल यौगिक देती हैं।

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(v) हाइड्रोजन सायनाइड का योग-ऐसीटिलीन Ba(CN)2 अथवा HCl में CuCl की उपस्थिति में हाइड्रोजन सायनाइड से योग करके वाइनिल सायनाइड (vinyl cyanide) बनाती है।

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2. नाभिकस्नेही योगात्मक अभिक्रियाएँ-ऐसीटिलीन को पोटैशियम मेथॉक्साइड (दाब पर) की सूक्ष्म मात्रा (1-2%) की उपस्थिति में 433-473K पर मेथेनॉल में से गुजारने पर मेथिल वाइनिल ईथर प्राप्त होता है।

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3. ऐल्काइनों की अम्लीय प्रकृति-ऐल्काइनों के त्रिआबंध से जुड़े हाइड्रोजन परमाणु अम्लीय होते हैं। यह तथ्य निम्न अभिक्रियाओं द्वारा सत्यापित होता है-
(i) सोडामाइड से अभिक्रिया-सोडामाइड एक प्रबल क्षारक है। एथाइन और अन्य टर्मिनल ऐल्काइन अथवा 1-ऐल्काइन द्रव अमोनिया में सोडामाइड से अभिक्रिया करके
सोडियम ऐसीटिलाइड (क्षारीय) बनाती हैं।

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(ii) सोडियम से अभिक्रिया-एथाइन तथा अन्य टर्मिनल ऐल्काइनों को सोडियम (प्रबल क्षारक) के साथ गर्म करने पर सोडियम ऐसीटिलाइड बनते हैं।

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(iii) अमोनियामय सिल्वर नाइट्रेट विलयन से अभिक्रिया-ऐल्काइनों के त्रिआबंध पर जुड़े हाइड्रोजन परमाणु भारी धातु आयनों जैसे Ag’ आयनों द्वारा भी प्रतिस्थापित हो जाते हैं। ऐल्काइन् अमोनियामय सिल्वर नाइट्रेट विलयन से अभिक्रिया करके सिल्वर ऐसीटिलाइड बनाती हैं।

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(iv) अमोनियामय क्यूप्रस क्लोराइड विलयन से अभिक्रिया-एथाइन तथा टर्मिनल ऐल्काइन अमोनियामय क्यूप्रस क्लोराइड विलयन से अभिक्रिया करके कॉपर ऐसीटिलाइड के लाल अवक्षेप बनाती हैं।

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प्रश्न 6.
बेंजीन की प्रमुख प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं का क्रियाविधि सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर
बेंजीन की प्रमुख प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ निम्नवत् हैं-
1. हैलोजनीकरण-बेंजीन सूर्य के प्रकाश की अनुपस्थिति में तथा हैलोजन वाहक जैसे Fe या FeCl, की उपस्थिति में कमरे के ताप पर ही क्लोरीन या ब्रोमीन से अभिक्रिया करके प्रतिस्थापन उत्पाद बनाती है।

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क्रियाविधि—बेंजीनं पर हैलोजनीकरण निम्न प्रकार से सम्पन्न होता है-

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2. सल्फोनीकरण-बेंजीन को सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म करने पर बेंजीनसल्फोनिक अम्ल प्राप्त होता है। सधूम सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ यह अभिक्रिया साधारण ताप पर ही हो जाती है।

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क्रियाविधि-बेंजीन का सल्फोनीकरण निम्न प्रकार से सम्पन्न होता है-

    1. सांद्र H2SO4 एक SO3 अणु को निष्कासित करता है।
      H2SO4 + H2SO4 ⇌ H3O++ HSO4 + SO3
      SO3 निम्न अनुनाद संरचनाओं को एक अनुनाद संकर है।
    2. इलेक्ट्रॉनस्नेही बेंजीन रिंग पर आक्रमण कर एक σ -जटिल का निर्माण करता है।
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    3.  σ-संकर क्षारक HSO4 से क्रिया कर प्रतिस्थापन उत्पाद बनाता है।
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3. नाइट्रीकरण-बेंजीन सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में सान्द्र नाइट्रिक अम्ल से क्रिया करके नाइट्रोबेंजीन बनाती है।

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साधारण ताप पर यह अभिक्रिया धीमी गति से तथा ताप बढ़ाने पर तेजी से होती है। अधिक ताप पर तथा नाइट्रिक अम्ल की अधिक मात्रा प्रयुक्त करने पर डाइ-तथा ट्राइ-प्रतिस्थापन उत्पाद अर्थात् m-डाइनाइट्रोबेंजीन तथा 1, 3, 5-ट्राइनाइट्रोबेंजीन प्राप्त होते हैं।
क्रियाविधि-बेंजीन का नाइट्रीकरण निम्न प्रकार से सम्पन्न होता है

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4. फ्रीडल-क्राफ्ट ऐल्किलीकरण—किसी लूईस अम्ल जैसे AlCl3 की उपस्थिति में बेंजीन की अभिक्रिया किसी ऐल्किल हैलाइड से कराने पर बेंजीन का ऐल्किलीकरण हो जाता है।
उदाहरणार्थ-

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5. फ्रीडल-क्राफ्ट ऐसिलीकरण-किसी लूईस अम्ल जैसे AlCl3 की उपस्थिति में बेंजीन की अभिक्रिया किसी ऐसिल हैलाइड से कराने पर बेंजीन का ऐसिलीकरण हो जाता है।
उदाहरणार्थ-

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क्रियाविधि-बेंजीन का फ्रीडल-क्राफ्ट ऐसिलीकरण निम्न प्रकार से सम्पन्न होता है।

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UP Board Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 2 Collection of Data

UP Board Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 2 Collection of Data (आँकड़ों का संग्रह)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प सही है
(i) जब आप एक नई पोशाक खरीदते हैं तो इनमें से किसे सबसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं
(क) कपड़े का रंग
(ख) कपड़े की कीमत
(ग) कपड़े को किस कम्पनी ने बनाया है।
(घ) ये सभी
उत्तर :
(घ) ये सभी

(ii) आप कम्प्यूटर का इस्तेमाल कितनी बार करते हैं
(क) दिन में एक बार
(ख) कभी-कभी
(ग) दिन में तीन बार
(घ) दिन में अनेक बार
उत्तर :
(घ) दिन में अनेक बार

(iii) निम्नलिखित में से आप किस समाचार-पत्र को नियमित रूप से पढ़ते हैं|
(क) हिन्दुस्तान
(ख) दैनिक जागरण
(ग) दैनिक भास्कर
(घ) टाइम्स ऑफ इण्डिया
उत्तर :
(ख) दैनिक जागरण

(iv) पेट्रोल की कीमत में वृद्धि न्यायोचित है
(क) यदि पेट्रोल की माँग में वृद्धि हुई है।
(ख) यदि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि हुई है।
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर :
(ग) उपर्युक्त दोनों

(v) आपके परिवार की मासिक आमदनी कितनी है–
(क) 5 हजार से कम
(ख) 10 हजार से कम
(ग) 15 हजार से कम
(घ) 20 हजार
उत्तर :
(घ) 20 हजार

प्रश्न 2.
पाँच द्धिमार्गी प्रश्नों की रचना करें (हाँ/नहीं के साथ)
उत्तर :
(क) क्या आप रोज सुबह टहलने जाते हैं?                       (हाँ/नहीं)
(ख) क्या आप नियमित रूप से नहाते हैं?                        (हाँ/नहीं)
(ग) क्या आप घर पर कम्प्यूटर का प्रयोग करते हैं?          (हाँ/नहीं)
(घ) क्या आपके पास मारुति कार है?                              (हाँ/नहीं)
(ङ) क्या आपके पास एक हरा कलम है?                         (हाँ/नहीं)

प्रश्न 3.
सही विकल्प को चिह्नित करें
(क) आँकड़ों के अनेक स्रोत होते हैं। (सही/गलत)
उत्तर :
सही।
(ख) आँकड़ा-संग्रह के लिए टेलीफोन सर्वेक्षण सर्वाधिक उपयुक्त विधि है, विशेष रूप से जहाँ पर जनता निरक्षर हो और दूर-दराज के काफी बड़े क्षेत्रों में फैली हो। (सही/गलत)
उत्तर :
सही।
(ग) सर्वेक्षक/शोधकर्ता द्वारा संग्रह किए गए आँकड़े द्वितीय आँकड़े कहलाते हैं। ” (सही/गलत)
उत्तर :
गलत।
(घ) प्रतिदर्श के अयादृच्छिक चयन में पूर्वाग्रह (अभिनति) की संभावना रहती है। (सही/गलत)
उत्तर :
सही
(ङ) अप्रतिचयन त्रुटियों को बड़ा प्रतिदर्श अपनाकर कम किया जा सकता है। (सही/गलत)
उत्तर :
गलत।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या आपको इन प्रश्नों में कोई समस्या दिखाई दे रही है? यदि हाँ, तो कैसे?
(क) आप अपने सबसे नजदीक के बाजार से कितनी दूर रहते हैं?
उत्तर :
मैं अपने नजदीक के बाजार से 5 किमी दूर रहता हूँ।

(ख)
यदि हमारे कूड़े में प्लास्टिक की थैलियों की मात्रा 5 प्रतिशत है तो क्या इन्हें निषेधित किया जाना चाहिए?
उत्तर :
हाँ, क्योंकि प्लास्टिक एक अविघटनीय पदार्थ है। यह मृदा-प्रदूषण पैदा करता है। प्लास्टिक की थैलियाँ नालों और नालियों में पानी के बहाव को अवरुद्ध करती हैं। इस प्रकार पर्यावरण के हिसाब से प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग हानिकारक है और इनको निषेध किया जाना चाहिए।

(ग)
क्या आप पेट्रोल की कीमत में वृद्धि का विरोध नहीं करेंगे?
उत्तर :
पेट्रोल की कीमत में वृद्धि होने पर आवश्यक वस्तुओं के दामों में भी वृद्धि हो जाती है, इसलिए । पेट्रोल की कीमत में वृद्धि का विरोध अवश्य करना चाहिए।

(घ)
क्या आप रासायनिक उर्वरक के उपयोग के पक्ष में हैं?
उत्तर :
रासायनिक उर्वरक के उपयोग से हम फसल की उत्पादन मात्रा बढ़ा सकते हैं। परन्तु हमें उर्वरकों का प्रयोग सीमित मात्रा में कराना चाहिए। इनके अधिक प्रयोग से मृदा तथा जल प्रदूषण होता है।

(ङ)
(अ) क्या आप अपने खेतों में उर्वरक इस्तेमाल करते हैं?
उत्तर :
हाँ, परन्तु सीमित मात्रा में।

(ब)
आपके खेत में प्रति हेक्टेयर कितनी उपज होती है?
उत्तर :
40 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

प्रश्न 5.
आप बच्चों के बीच शाकाहारी आटा नूडल की लोकप्रियता का अनुसंधान करना चाहते हैं। इस उद्देश्य से सूचना-संग्रह करने के लिए उपयुक्त प्रश्नावली बनाएँ।
उत्तर :

प्रश्नावली

  1. क्या आप शाकाहारी आटा नूडल का प्रयोग करते हैं?
  2. क्या आपको इसका स्वाद दूसरे खाद्य पदार्थों की तुलना में अधिक अच्छा लगता है?
  3. आप दिन में कब और कितनी बार इसको खाते हैं?
  4. क्या आपको इसकी कीमत उचित लगती है।
  5. एक दिन में आप इस पर कितना खर्च करते हैं?
  6. क्या आप इसे घर पर ही तैयार करते हैं अथवा बाजार से खरीदते हैं?
  7. आप इसे क्यों पसन्द करते हैं?
  8. क्या यह आपकी सेहत के लिए अच्छी है?
  9. क्या आप इसके स्थान पर कुछ औरोंग करना चाहेंगे?

प्रश्न 6.
200 फार्म वाले एक गाँव में फसल उत्पादन के स्वरूप पर एक अध्ययन आयोजित किया गया। इनमें से 50 फार्मों का सर्वेक्षण किया गया, जिनमें से 50 प्रतिशत पर केवल गेहूँ उगाए जाते हैं। यहाँ पर समष्टि एवं प्रतिदर्श को पहचान कर बताएँ।
उत्तर :
समष्टि : 200 फार्म ।
प्रतिदर्श : 50 फार्म, जिनका सर्वेक्षण किया गया है।

प्रश्न 7.
प्रतिदर्श, समष्टि तथा चर के दो-दो उदाहरण दें।
उत्तर :
प्रतिदर्श – प्रतिदर्श समष्टि के एक खण्ड या एक समूह का प्रतिनिधित्व करता है, जिससे सूचना प्राप्त की जा सकती है। एक आदर्श प्रतिदर्श सामान्यतः समष्टि से छोटा होता है।
उदाहरण –

  • एक कॉलेज के 5000 विद्यार्थियों में से 500 विद्यार्थियों का चयन।
  • एक गाँव के 700 कृषि-श्रमिकों में से अध्ययन के लिए 70 कृषि-श्रमिकों का चयन।

समष्टि – सांख्यिकी में समष्टि शब्द से तात्पर्य है-अध्ययन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली सभी मदों/इकाइयों की समग्रता।

उदाहरण –

  • एक जिले के समस्त कृषि-श्रमिक।
  • एक फैक्ट्री के समस्त मजदूर।

चर – वे मूल्य जिनका मान एक मद से दूसरे मद में बदलता रहता है और जो संख्यात्मक रूप में मापे जा सकते हैं, तब उन्हें चर कहा जाता है।

उदाहरण–

  • प्रत्येक वर्ष खाद्यान्न उत्पादन।
  • लोगों की आयु।

प्रश्न 8.
इनमे से कौन-सी विधि द्वारा बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं, और क्यों?
(क) गणना(जनगणना),
(ख) प्रतिदर्श।।
उत्तर :
गणना विधि की तुलना में प्रतिदर्श विधि द्वारा आँकड़े एकत्र करने से बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं। सांख्यिकी में प्रतिदर्श विधि को निम्नलिखित कारणों से प्राथमिकता दी जाती है

  1. प्रतिदर्श कम खर्च में एवं अल्प समय में पर्याप्त विश्वसनीय एवं सही सूचनाएँ उपलब्ध करा सकते
  2. प्रतिदर्श में सघन पूछताछ के द्वारा अधिक विस्तृत जानकारियाँ संगृहीत की जा सकती हैं।
  3. प्रतिदर्श के लिए परिगणकों की छोटी टोली की ही जरूरत होगी जिन्हें आसानी से प्रशिक्षित किया जा सकता है तथा उनके कार्य की निगरानी भली-भाँति की जा सकती है।
  4. गणना संबंधी त्रुटियों की संभावना घट जाती है।

प्रश्न 9.
इनमें कौन-सी त्रुटि अधिक गंभीर है और क्यों?
(क) प्रतिचयन त्रुटि
(ख) अप्रतिचयन त्रुटि।
उत्तर :
(क) प्रतिचयन त्रुटि – प्रतिचयन त्रुटियाँ प्रतिदर्श आकलन और समष्टि विशेष के वास्तविक मूल्य (जैसे-औसत आय आदि) के बीच अंतर प्रकट करती हैं। यह त्रुटि, तब सामने आती है जब आप समष्टि से प्राप्त किए गए प्रतिदर्श का प्रेक्षण करते हैं। जैसे-देहरादून के 5 कृषकों की आमदनी का उदाहरण लें। मान लें चर x (आमदनी) के मापन 600, 650, 700, 750, 800 हैं।

हमने देखा कि यहाँ समष्टि का औसत 600 + 650 + 700 + 750 + 800 +5=3500 * 700 है। अब मान लीजिए कि हम दो कृषकों का एक ऐसा प्रतिदर्श चुनते हैं जहाँ चर (X) का मूल्य 600 व 700 है। तब प्रतिदर्श का औसत (600 + 700 + 2 = 1300 + 2 = 650) होता है। यहाँ आकलन की प्रतिचयन त्रुटि है-700 (असली मान) – 650 (आकलन) = 50

(ख) अप्रतिचयन त्रुटियाँ – सर्वेक्षण क्षेत्र से आँकड़ों के संकलन के समय मापन, प्रश्नावली, रिकॉर्डिंग, अंकगणित संबंधी त्रुटियों को अप्रतिचयन त्रुटियाँ कहा जाता है। अप्रतिचयन त्रुटियाँ प्रतिचयन त्रुटियों की अपेक्षा गंभीर होती है।

प्रश्न 10.
मान लीजिए आपकी कक्षा में 10 छात्र हैं। इनमें से आपको तीन चुनने हैं तो इसमें कितने प्रतिदर्श संभव हैं?
उत्तर :
कक्षा में 10 छात्रों में से 3 छात्रों को चुनने के लिए प्रतिचयनों की संख्या = “0X2= 30 अत: इसमें 30 प्रतिदर्श संभव हैं।

प्रश्न 11.
अपनी कक्षा के 10 छात्रों में से 3 को चुनने के लिए आप लॉटरी विधि का उपयोग कैसे करेंगे? चर्चा करें।
उत्तर :
अपनी कक्षा के 10 छात्रों में से 3 छात्रों को चुनने के लिए हम लॉटरी विधि का प्रयोग इस प्रकार करेंगे

  • सर्वप्रथम कागज की एक ही आकार की 10 चिटें तैयार करेंगे।
  • इन चिटों पर छात्रों का नाम अलग-अलग चिट पर लिखेंगे।
  • चिटों को एक बक्से/घड़े में डालकर अच्छी तरह हिलाएँगे।
  • बक्से/घड़े से एक-एक करके तीन चिट निकालेंगे।
  • निकाली गई चिटों पर अंकित छात्रों के नाम ही लॉटरी विधि से निकाले गए छात्रों के नाम होंगे।

प्रश्न 12.
क्या लॉटरी विधि सदैव एक यादृच्छिक प्रतिदर्श देती है? बताइए।
उत्तर :
लॉटरी विधि द्वारा हमेशा यादृच्छिक का प्रतिचयन ही प्राप्त होता है। इस विधि में प्रत्येक इकाई को शामिल किया जाता है। समग्र की सभी इकाइयों की पर्चियाँ अथवा गोलियाँ बना ली जाती हैं और उन पर्चियों को एक डिब्बे में डाल दिया जाता है। फिर किसी निष्पक्ष व्यक्ति द्वारा अथवा स्वयं आँखें बंद करके उतनी ही पर्चियाँ या गोलियाँ उठा ली जाती हैं जितनी इकाइयाँ प्रतिचयन में शामिल करनी होती हैं। प्रतिचयन की इकाइयों के निष्पक्ष चुनाव के लिए यह आवश्यक है कि सभी पर्चियाँ या गोलियाँ एक-सी बनाई जाएँ, उनका आकार एवं रूप एकसमान हो तथा छाँटने से पूर्व उन्हें हिला-मिला लिया जाए। इस प्रकार इस प्रणाली में प्रत्येक इकाई के चुनाव की समान सम्भावना रहती है।

प्रश्न 13.
यादृच्छिक संख्या सारणी का उपयोग करते हुए, अपनी कक्षा के 10 छात्रों में से 3 छात्रों के चयन के लिए यादृच्छिक प्रतिदर्श की चयन प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
10 छात्रों को दिए जाने वाले अंक हैं –  01 02 03 04 05 06 07 08 09 10
इन संख्याओं में से किसी एक संख्या को दैव आधार पर चयन किया जाएगा। इसके बाद दो क्रमागत संख्याओं का चयन करके 3 छात्रों का चुनाव कर लिया जाएगा। माना, दैव आधार पर चयनित संख्या 5 है तो चयनित छात्रों की संख्याएँ होंगी-5, 6 व 7.

प्रश्न 14.
क्या सर्वेक्षणों की अपेक्षा प्रतिदर्श बेहतर परिणाम देते हैं? अपने उत्तर की कारण सहित व्याख्या करें।
उत्तर :
हाँ, यह सत्य है कि सर्वेक्षणों की अपेक्षा प्रतिदर्श बेहतर परिणाम देते हैं। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं—

  • प्रतिदर्श प्रणाली में समय, धन व श्रम सर्वेक्षणों की तुलना में कम व्यय होता है।
  • इस प्रणाली का प्रयोग अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत क्षेत्र में किया जा सकता है।
  • इस प्रणाली में गणना संबंधी त्रुटियाँ कम होती हैं।
  • इस प्रणाली में अपेक्षाकृत कम गणनाकारों व पर्यवेक्षकों की आवश्यकता होती है।

संक्षेप में प्रतिदर्श प्रणाली अधिक सरल, मितव्ययी व शुद्ध निष्कर्ष देने वाली हैं।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान रीति का प्रयोग सर्वप्रथम भारत में किसने किया?
(क) ली प्ले ने
(ख) आर्थर यंग ने
(ग) यूल ने
(घ) सैलिगमैन ने
उत्तर :
(ख) आर्थर यंग ने

प्रश्न 2.
द्वितीयक समंकों का प्रयोग करने से पूर्व इनमें से किस बात की जाँच कर लेनी चाहिए?
(क) समंकों की उद्देश्य के प्रति अनुकूलता
(ख) समंकों की विश्वसनीयता
(ग) समंकों की पर्याप्तता
(घ) उपर्युक्त सभी की
उत्तर :
(घ) उपर्युक्त सभी की।

प्रश्न 3.
संकलन के विचार से समंकों के प्रकार हैं
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
उत्तर :
(क) दो।

प्रश्न 4.
अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान रीति का दोष है
(क) यह रीति मितव्ययी है।
(ख) यह रीतिं सरल एवं सुविधाजनक है।
(ग) यह रीति विस्तृत क्षेत्र में उपयोगी है।
(घ) इसमें समंकों में एकरूपता नहीं रहती।
उत्तर :
(घ) इसमें समंकों में एकरूपता नहीं रहती

प्रश्न 5.
“एक दैव प्रतिदर्श वह प्रतिदर्श है, जिनका चयन इस प्रकार हुआ हो कि समग्र की प्रत्येक इकाई को सम्मिलित होने का समान अवसर रहा हो।” यह कथन किसका है?
(क) पीगू का
(ख) प्रो० हाटे का
(ग) हार्पर का
(घ) पार्टन का
उत्तर :
(ग) हार्पर का

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक समंक किसे कहते हैं?
उत्तर :
प्राथमिक समंक वे समंक होते हैं जिन्हें अनुसंधानकर्ता प्रयोग में लाने के लिए पहली बार स्वयं एकत्रित करता है।

प्रश्न 2.
द्वितीयक समंक से क्या आशय है?
उत्तर :
द्वितीयक समंक वे समंक हैं जो पहले से अस्तित्व में हैं और वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं बल्कि किसी दूसरे उद्देश्य के लिए एकत्रित किए गए हैं।

प्रश्न 3.
प्राथमिक और द्वितीयक समंकों में एक अंतर बताइए।
उत्तर :
प्राथमिक समंकों के संकलन में धन, समय, श्रम व बुद्धि का प्रयोग करना पड़ता है जबकि द्वितीय समंकों को सिर्फ उद्धृत किया जाता है।

प्रश्न 4.
प्राथमिक समंकों को एकत्र करने की प्रमुख रीतियाँ बताइए।
उत्तर :

  • प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान,
  • अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान,
  • स्थानीय स्रोतों या संवाददाताओं द्वारा सूचना प्राप्ति,
  • सूचकों द्वारा अनुसूचियाँ/प्रश्नावली भरना तथा
  • प्रगणकों द्वारा अनुसूचियाँ भरना।

प्रश्न 5.
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान रीति के दो गुण बताइए।
उत्तर :

  • एकत्रित समंक अत्यधिक विश्वसनीय होते हैं।
  • समंकों में मौलिकता रहती है।

प्रश्न 6.
अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान रीति क्या है?
उत्तर :
इस रीति के अनुसार, सूचकों से प्रत्यक्ष रूप में समंक प्राप्त न करके उन व्यक्तियों से प्राप्त किए जाते हैं, जिनका उन समंकों से कोई प्रत्यक्ष संबंध होता है।

प्रश्न 7.
सूचकों द्वारा अनुसूचियाँ/प्रश्नावली भरना रीति के दो दोष बताइए।
उत्तर :

  • यह प्रणाली लोचदार नहीं है।
  • यदि प्रश्नावली जटिल है तो उत्तर अशुद्ध होंगे और फलस्वरूप परिणाम भी अशुद्ध होंगे।

प्रश्न 8.
द्वितीयक समंकों के स्रोत बताइए।
उत्तर :

  • सरकारी प्रकाशन
  • अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रकाशन
  • पत्र-पत्रिकाओं द्वारा
  • अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं के प्रकाशन।

प्रश्न 9.
अनुसूची से क्या आशय है?
उत्तर :
‘अनुसूची’ प्रश्नों की वह सूची है जिसे प्रगणकों द्वारा सूचकों से पूछताछ करके भरा जाता है।

प्रश्न 10.
प्रश्नावली व अनुसूची में अंतर बताइए।
उत्तर :
प्रश्नावली में प्रश्नों के उत्तर सूचकों द्वारा स्वयं दिए जाते हैं। इसके विपरीत, अनुसूची में प्रश्नों की सूची के प्रगणकों द्वारा सूचकों से सूचना प्राप्त करके भरा जाता है।

प्रश्न 11.
केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (CSO) का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर :
राष्ट्रीय आय के आँकड़ों का संकलन करना एवं उन्हें प्रकाशित करना।

प्रश्न 12.
समग्र से क्या आशय है?
उत्तर :
अनुसंधान क्षेत्र की संपूर्ण इकाइयाँ सामूहिक रूप से ‘समग्र’ कहलाती हैं।

प्रश्न 13.
संगणना अनुसंधान किसे कहते हैं?
उत्तर :
जब अनुसंधान के विषय में संबंधित समग्र या समूह की प्रत्येक इकाई का अध्ययन किया जाता है। तो वह ‘संगणना अनुसंधान’ कहलाएगा।

प्रश्न 14.
संगणना अनुसंधान रीति के दो गुण बताइए।
उत्तर :

  • इस रीति द्वारा संकलित समंक अधिक शुद्ध एवं विश्वसनीय होते हैं।
  • इस रीति के द्वारा समग्र की प्रत्येक इकाई के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 15.
निदर्शन अनुसंधान रीति के लिए उपयुक्त चार दशाएँ बताइए।
उत्तर :

  • जब समग्र अनंत हो,
  • जब समग्र विस्तृत हो,
  • जब धन, समय की बचत करनी हो तथा
  • जब समग्र की प्रकृति परिवर्तनशील हो।।

प्रश्न 16.
दैव निदर्शन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
दैव निदर्शन एक ऐसा रूप है जिसको चुनने की विधि के रूप में प्रयोग करने से यह निश्चित हो जाता है कि समग्र की प्रत्येक इकाई अथवा तत्त्व को चुने जाने का समान अवसर हो।

प्रश्न 17.
दैव निदर्शन रीति के दो गुण बताइए।
उत्तर :

  • इस रीति द्वारा चयन में पक्षपात की कोई गुंजाइश नहीं रहती।
  • यह प्रणाली मितव्ययी है क्योंकि इसमें श्रम, समय व धन की बचत होती है।

प्रश्न 18.
दैव निदर्शन रीति के दो दोष बताइए।
उत्तर :

  • आकार के छोटा होने अथवा उसमें विषमता अधिक होने पर, इस रीति द्वारा लिए गए न्यादर्श समग्र का ठीक प्रकार प्रतिनिधित्व नहीं कर पाते।
  • अनुसंधान का क्षेत्र छोटा होने पर न्यादर्श की इकाइयों का चुनाव करना कठिन हो जाता है।

प्रश्न 19.
सम्पादन से क्या आशय है?
उत्तर :
सम्पादन से आशय संकलित समंकों की शुद्धता की जाँच करना, अशुद्धि को दूर करना तथा शुद्ध समंकों को प्राप्त करने से है।

प्रश्न 20.
उपसादन से क्या आशय है?
उत्तर :
वास्तविक और जटिल संख्याओं को किसी स्थानीय मान के आधार पर निकटतम सरल संख्याओं में व्यक्त करने की क्रिया को उपसादन कहते हैं।

प्रश्न 21.
सांख्यिकीय विभ्रम से क्या आशय है?
उत्तर :
सांख्यिकीय विभ्रम ‘वास्तविक मूल्य’ और ‘अनुमानित मूल्य’ का अंतर है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सांख्यिकीय इकाई क्या है? एक आदर्श सांख्यिकीय इकाई की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
सांख्यिकीय इकाई का अर्थ-सांख्यिकीय इकाई माप करने का वह साधन है जिसके आधार पर आँकड़े एकत्र किए जाते हैं, उनका विश्लेषण किया जाता है तथा वे प्रस्तुत किए जाते हैं। अनुसंधान के प्रारम्भ से अंत तक सांख्यिकीय इकाई की एक ही परिभाषा आनी चाहिए ताकि आँकड़े एकरूप व तुलनीय बने रहें। एक आदर्श सांख्यिकीय इकाई की विशेषताएँ–

  • सांख्यिकीय इकाई की परिभाषा सरल व स्पष्ट होनी चाहिए।
  • इकाई निश्चित होनी चाहिए।
  • सांख्यिकीय इकाई का मूल्य स्थिर, प्रामाणिक एवं सर्वमान्य होना चाहिए।
  • इकाई की परिभाषा अनुसंधान के उद्देश्य के अनुरूप होनी चाहिए।
  • सांख्यिकीय इकाई में सजातीयता एवं समानता होनी चाहिए।

प्रश्न 2.
प्राथमिक एवं द्वितीयक समंकों से क्या आशय है? प्रत्येक की एक-एक परिभाषा दीजिए। उत्तर-संकलन के विचार से समंक दो प्रकार के होते हैं

  1. प्राथमिक समंक तथा
  2. द्वितीयक समंक।

1. प्राथमिक समंक – प्राथमिक समंक, वे समंक होते हैं, जिन्हें अनुसंधानकर्ता प्रयोग में लाने के लिए पहली बार स्वयं एकत्रित करता है। दूसरे शब्दों में, यह अनुसंधाने मौलिक होता है। होरेस सेक्राइस्ट के शब्दों में-“प्राथमिक समंकों से यह आशय है कि वे मौलिक हैं अर्थात् उनका समूहीकरण बहुत ही कम हुआ है या नहीं हुआ है, घटनाओं का अंकन या गणन उसी प्रकार किया गया है जैसा पाया गया है। मुख्य रूप से वे कच्चे पदार्थ होते हैं।”

2. द्वितीयक समंक – “द्वितीयक समंक, वे समंक हैं, जो पहले से किसी अन्य अनुसंधानकर्ता द्वारा अपने किसी निजी उद्देश्य के लिए एकत्रित किए हुए होते हैं। इन्हें अनुसंधानकर्ता स्वयं संकलित नहीं करता अपितु वह किसी अन्य उद्देश्य के लिए संकलित सामग्री का प्रयोग करता है। ब्लेयर के शब्दों में “द्वितीयक समंक वे हैं जो पहले से अस्तित्व में हैं और जो वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं बल्कि किसी दूसरे उद्देश्य के लिए एकत्रित किए गए हैं।”

प्रश्न 3.
द्वितीयक सामग्री का प्रयोग करैते समय क्या-क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
उत्तर :
द्वितीयक सामग्री का प्रयोग करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ रक्नी चाहिए

  1. पिछला अनुसंधानकर्ता योग्य, कार्यकुशल, ईमानदार व अनुभवी होना चाहिए।
  2. उद्देश्य एवं क्षेत्र समान होना चाहिए।
  3. न्यादर्श का आकार उपयुक्त होना चाहिए।
  4. समंक संकलन के लिए अपनाई गई रीति विश्वसनीय होनी चाहिए।
  5. इकाई उपयुक्त होनी चाहिए।
  6. शुद्धता का स्तर ऊँचा होना चाहिए।
  7. उपसादन कम-से-कम अंशों तक किया जाना चाहिए।
  8. इस बात की जाँच कर लेनी चाहिए कि समंक किस ‘समय’ में तथा किन ‘परिस्थितियों में प्रयुक्त | किए गए थे।
  9. यदि अनेक स्रोतों से समंक लिए जाएँ तो उनकी तुलनीयता की जाँच कर लेनी चाहिए।
  10. प्रतिशत, दर, गुणांक आदि की गणना करके उनकी सत्यता की जाँच कर लेनी चाहिए। द्वितीयक समंकों का प्रयोग करते समय यह देख लेना चाहिए कि समंक विश्वसनीय पर्याप्त एवं उपयुक्त

प्रश्न 4.
सर्वेक्षण अथवा संगणना एवं निदर्शन या प्रतिदर्श अनुसंधान से क्या आशय है?
उत्तर :
संगणना अथवा सर्वेक्षण अनुसंधान-जब अनुसंधान के विषय से संबंधित समग्र या समूह की प्रत्येक इकाई का अध्ययन किया जाता है तो वह संगणना अथवा सर्वेक्षण अनुसंधान कहलाता है। इस रीति के अनुसार अनुसंधान करते समय अनुसंधानकर्ता समस्त समूह की जाँच करता है और अनुसंधान से संबंधित प्रत्येक इकाई के संबंध में आवश्यक सूचनाएँ एकत्र करता है; जैसे-जनगणना, उत्पादन संगणना।

निदर्शन या प्रतिदर्श अनुसंधान – निदर्शन या प्रतिदर्श अनुसंधान के अंतर्गत समग्र में से कुछ इकाइयों को छाँटकर उनका विधिवत् अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि हमें किसी कॉलेज के विद्यार्थियों के स्वास्थ्य से संबंधित सर्वेक्षण करना हो तो कॉलेज के प्रत्येक विद्यार्थी का अध्ययन न करके, हम कुछ विद्यार्थियों को लेकर ही उनको अध्ययन कर सकते हैं। इससे जो निष्कर्ष निकलेंगे, वे समस्त समग्र पर लागू होंगे।

प्रश्न 5.
निदर्शन अनुसंधान के लिए आवश्यक दशाएँ बताइए।
उत्तर :
निम्नलिखित दशाओं में निदर्शन प्रणाली का प्रयोग अत्यंत आवश्यक है

  1. जब समग्र अनंत अथवा कभी भी समाप्त न होने वाला हो।
  2. जब समग्र अत्यधिक विस्तृत हो।
  3. जब संगणना प्रणाली द्वारा समस्या का अध्ययन असंभव हो।
  4. जब समग्र नाशवान प्रकृति का हो।
  5. जब धन, समय व परिश्रम की बचत करनी हो।
  6. जब व्यापक दृष्टि से नियमों का प्रतिपादन करना हो।
  7. जब समग्र की प्रकृति परिवर्तनशील हो।

प्रश्न 6.
संगणना व निदर्शन प्रणाली में अंतर बताइए।
उत्तर :
संगणना व निदर्शन प्रणाली में अंतर
UP Board Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 2 Collection of Data 1
UP Board Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 2 Collection of Data 2
प्रश्न 7.
दैव (यादृच्छिक) निदर्शन के गुण व दोष बताइए।
उत्तर :

दैव निदर्शन रीति के गुण,

  • इस नीति द्वारा चयन में पक्षपात की कोई गुंजाइश नहीं रहती क्योंकि समग्र की प्रत्येक इकाई को न्यादर्श के रूप में चुने जाने का अवसर प्राप्त होता है।
  • यह प्रणाली मितव्ययी है क्योंकि इसमें श्रम, समय व धन की बचत होती है।
  • दैव निदर्शन द्वारा चुने गए न्यादर्श समग्र के वास्तविक प्रतिनिधि होते हैं।
  • इस रीति में निदर्शन विभ्रमों की माप की जा सकती है।
  • दैव न्यादर्श में संभावना सिद्धांत को व्यावहारिक रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
  • चुनाव के लिए कोई विस्तृत योजना नहीं बनानी पड़ती।

दैव निदर्शन रीति के दोष

  • यदि केवल कुछ समंक ही उपलब्ध हों तो दैव निदर्शन संभव नहीं है।
  • यदि समग्र का आकार छोटा है या उसमें विषमता अधिक है तो इस रीति द्वारा लिए गए न्यादर्श समग्र का ठीक प्रकार प्रतिनिधित्व नहीं कर पाते।
  • यदि अनुसंधान का क्षेत्र बहुत छोटा है तो न्यादर्श की इकाइयों का चुनाव करना कठिन हो जाता है। इन दोषों के कारण ही दैव न्यादर्श को पूर्ण न्यादर्श नहीं माना जाता है।

प्रश्न 8.
सांख्यिकीय विभ्रम क्या है? विभ्रम और अशुद्ध में अंतर बताइए।
उत्तर :
सांख्यिकीय विभ्रम का अर्थ–सांख्यिकीय विभ्रम समंकों के वास्तविक मूल्य’ व ‘अनुमानित मूल्य’ में अंतर होता है। यह अशुद्धि से भिन्न है।
विभ्रम एवं अशुद्धि में अंतर
UP Board Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 2 Collection of Data 3
UP Board Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 2 Collection of Data 4

प्रश्न 9.
अभिनत एवं अनभिनत विभ्रम से क्या आशय है?
उत्तर :
सांख्यिकी विभ्रम दो प्रकार के होते हैं–

1. अभिनत विभ्रम तथा
2. अनभिनत विभ्रम।

1. अभिनत विभ्रम – अभिनत विभ्रम (biased error) प्रमाणकों अथवा सूचकों के पक्षपात अथवा दोषपूर्ण मापक यंत्रों के कारण उत्पन्न होते हैं। इन विभ्रमों का प्रभाव एक ही दिशा में होता है; अतः इनकी प्रकृति संचयी होती है।

2. अनभिनत विभ्रम – 
अनभिनत विभ्रम (unbiased error) बिना किसी पक्षपात की भावना के कारण उत्पन्न होते हैं और एक-दूसरे को काटने की प्रवृत्ति रखते हैं, इसीलिए इन्हें क्षतिपूरक विभ्रम’ भी कहते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक तथा द्वितीयक समंकों से क्या आशय है? इनमें अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अनुसंधान के आयोजन के उपरांत अगला कदम समंकों का संकलन करना होता है। समंक अनुसंधान के संपूर्ण ढाँचे का आधार-स्तम्भ माने जाते हैं। अत: समंकों का संकलन अत्यंत सावधानी, सतर्कता, दृढ़ता, विश्वास और धैर्य के साथ किया जाना चाहिए। संकलन के विचार से समंक दो प्रकार के होते हैं–
(अ) प्राथमिक समंक तथा
(ब) द्वितीय समंक।

(अ) प्राथमिक समंक (Primary data) प्राथमिक समंक, वे समंक होते हैं, जिन्हें अनुसंधानकर्ता प्रयोग में लाने के लिए पहली बार स्वयं एकत्रित करता है। दूसरे शब्दों में, यह अनुसंधान मौलिक होता है। होरेस सेक्राइस्ट के शब्दों में-“प्राथमिक समंकों से यह आशय है कि वे मौलिक हैं अर्थात् उनका समूहीकरण बहुत ही कम या नहीं हुआ है, घटनाओं का अंकन या गणन उसी प्रकार किया गया है, जैसा पाया गया है। मुख्य रूप से वे कच्चे पदार्थ होते हैं।”

(ब) द्वितीयक समंक (Secondary data) – द्वितीयक समंक, वे समंक हैं, जो पहले से किसी अन्य अनुसंधानकर्ता द्वारा अपने किसी निजी उद्देश्य के लिए एकत्रित किए हुए होते हैं। इन्हें अनुसंधानकर्ता स्वयं संकलित नहीं करता अपितु वह किसी अन्य उद्देश्य के लिए संकलित सामग्री का प्रयोग करता है। ब्लेयर के शब्दों में—“द्वितीयक समंक वे हैं, जो पहले से अस्तित्व में हैं और जो वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं बल्कि किसी दूसरे उद्देश्य के लिए एकत्रित किए गए हैं।”

प्राथमिक एवं द्वितीय समंकों में अंतर

प्राथमिक व द्वितीयक समंकों में अंतर मात्रा का न होकर प्रकृति का है। प्रो० सेक्राइस्ट के शब्दों में-“व्यापक रूप से प्राथमिक तथा द्वितीयक समंकों में भेद केवल अंशों का है। जो समंक एक पक्ष के लिए द्वितीयक हैं, वे ही अन्य पक्ष के लिए प्राथमिक होंगे।”
UP Board Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 2 Collection of Data 5

प्रश्न 2.
प्राथमिक समंकों को संकलित करने की मुख्य रीतियाँ बनाइए। प्रत्येक के गुण व दोषों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
प्राथमिक समंकों को संकलित करने की रीतियाँ प्राथमिक समंकों को संकलित करने की प्रमुख रीतियाँ निम्नलिखित हैं

1. प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान,
2. अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान,
3. स्थानीय स्रोतों या संवाददाताओं द्वारा सूचना प्राप्ति,
4. सूचकों द्वारा अनुसूचियाँ/प्रश्नावली भरना,
5. प्रगणकों द्वारा अनुसूचियाँ भरना।

1. प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान
इस रीति के अंतर्गत अनुसंधानकर्ता स्वयं अपनी योजना के अनुसार पूरे क्षेत्र (समग्र) में जाकर विभिन्न सांख्यिकीय इकाइयों से संपर्क स्थापित करके समंक एकत्रित करता है। इस रीति का प्रयोग सर्वप्रथम यूरोप में ली प्ले (Le Play) और भारत में आर्थर यंग (Arthur Young) ने किया।
उपयुक्ता – इस रीति का प्रयोग वहाँ किया जाना चाहिए|

  • जहाँ अनुसंधान का क्षेत्र अत्यधिक सीमित तथा स्थानीय प्रकृति का हो।
  • जहाँ मौलिक समंकों की आवश्यकता हो।
  • जहाँ शुद्धता पर अधिक जोर देना हो।
  • जहाँ समस्या इतनी अधिक जटिल हो कि अनुसंधानकर्ता की उपस्थिति अनिवार्य हो।
  • जहाँ समंकों को गोपनीय रखना हो।

रीति के गुण

  • इस विधि द्वारा एकत्रित समंक शुद्ध होते हैं।
  • एकत्रित समंक अधिक विश्वसनीय होते हैं।
  • समंकों में मौलिकता रहती है।
  • यह प्रणाली लोचदार है।
  • संकलित समंकों में एकरूपता व सजातीयता पाई जाती है।
  • अन्य सहायक सूचनाएँ भी प्राप्त हो जाती हैं।
  • अनुसंधानकर्ता को समंकों की जाँच का अवसर मिल जाता है।

रीति के दोष

  • इसका प्रयोग क्षेत्र सीमित होता है। विस्तृत क्षेत्र के लिए यह रीति अनुपयुक्त है।
  • इसमे पक्षपात (bias) की संभावना अधिक होती है।
  • यह रीति अपव्ययी है। इसमें धन, समय तथा श्रम का अधिक व्यये होता है।
  • सीमित क्षेत्र में लागू करने पर निष्कर्ष भ्रामक हो सकते हैं।

2. अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसंधान
इस रीति के अनुसार सूचकों से प्रत्यक्ष रूप में समंक प्राप्त न करके उन व्यक्तियों से प्राप्त किए जाते हैं, जिनका उन समंकों से कोई अप्रत्यक्ष संबंध होता है। इन व्यक्तियों को साक्षी कहते हैं। इस विधि को सर्वाधिक उपयोग जाँच समितियों तथा आयोगों द्वारा किया जाता है। उपयुक्तता-इस रीति का प्रयोग वहाँ किया जाना चाहिए

  • जहाँ अनुसंधान का क्षेत्र विस्तृत हो।
  • जहाँ सूचकों से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित न हो सके।
  • जहाँ सूचकं संबंधित सूचना न देना चाहें।
  • जहाँ अनुसंधान को गोपनीय रखा जाए।

रीति के गुण

  • यह रीति मितव्ययी है। इसमें धन, समय व परिश्रम कम खर्च होता है।
  • विस्तृत क्षेत्र में यही रीति उपयोगी होती है।
  • इसमें विशेषज्ञों को सहमति व सुझाव मिल जाते हैं।
  • यह रीति सरल व सुविधाजनक है।
  • इसमें व्यक्तिगत पक्षपात की संभावना नहीं रहती।
  • इस रीति के द्वारा अपेक्षाकृत अधिक जल्दी निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

रीति के दोष

  • इसमें शुद्धता की उच्च मात्रा की आशा नहीं रहती।
  • सूचना एकत्रित करने वाले व्यक्तियों के पक्षपात की संभावना रहती है।
  • प्राप्त होने वाली सूचनाओं में त्रुटियाँ तथा अविश्वास की संभावना बनी रहती है।
  • प्रायः सूचनाएँ लापरवाही तथा अनिच्छा से दी जाती हैं।
  • समंकों में एकरूपता नहीं रहती।

3. स्थानीय स्रोतों या संवाददाताओं द्वारा सूचना प्राप्ति
इस रीति के अनुसार, अनुसंधान से संबंधित सामग्री एकत्रित करने के लिए स्थानीय व्यक्ति नियुक्त किए। जाते हैं, जो अपने ढंग से सूचनाएँ एकत्रित करते हैं और बाद में अनुसंधानकर्ता के पास भेज देते हैं। समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं तथा बाजार भावों के संबंध में इस रीति को अपनाया जाता है। उपयुक्तता—यह रीति वहाँ अधिक उपयुक्त है, जहाँ उच्च स्तर की शुद्धता की आवश्यकता न हो और केवल अनुमान और प्रवृत्तियाँ ज्ञात करनी हों।

रीति के गुण

  • अधिक विस्तृत क्षेत्र के लिए यह प्रणाली अधिक उपयोगी है।
  • अधिक फैले हुए (विकेन्द्रित) क्षेत्र के लिए यह प्रणाली अत्यधिक उपयोगी है।
  • यह प्रणाली मितव्ययी है क्योंकि इसमें धन, समय व श्रम की बचत होती है।
  • यह विधि सरल व सस्ती है।।

रीति के दोष

  • इस रीति के द्वारा निष्कर्ष संवाददाताओं के पक्षपात से प्रभावित हो सकते हैं।
  • अनुमान पर आधारित होने के कारण निष्कर्ष शुद्धता से दूर होते हैं।
  • एकत्रित समंकों में एकरूपता व सजातीयता का अभाव बना रहता है।
  • समंक संकलन में विलम्ब अधिक हो सकता है।
  • संकलित समंकों में मौलिकता का अभाव रहता है।

4. सूचकों द्वारा अनुसूचियाँ/प्रश्नावली भरना
इसके अनुसार, अनुसंधानकर्ता द्वारा एक प्रश्नावली या अनुसूची तैयार की जाती है और संबंधित व्यक्तियों के पास डाक द्वारा भिजवा दी जाती है। इस प्रश्नावली के साथ एक अनुरोध-पत्र भी होता है, जिसका उद्देश्य सूचना देने वाले व्यक्ति का सहयोग प्राप्त करना होता है। तत्पश्चात् सूचना देने वाले व्यक्ति उस प्रश्नावली को उत्तर सहित अनुसंधानकर्ता के पास भेज देते हैं। उपयुक्तता—यह रीति वहाँ अधिक उपयुक्त है, जहाँ अनुसंधान का क्षेत्र बहुत अधिक विस्तृत हो, उस क्षेत्र की जनसंख्या शिक्षित हो और प्रश्नावलियों को भरना जानती हो।

रीति के गुण

  • यह प्रणाली विस्तृत क्षेत्र के लिए अधिक उपयुक्त है। |
  • यह रीति मितव्ययी है और इसमें धन, समय व परिश्रम कम लगता है।
  • इसमें अशुद्धि की कम संभावना रहती है।
  • सूचनाएँ मौलिक व निष्पक्ष होती हैं।

रीति के दोष

  • सूचना देने वालों की इसमें प्राय: रुचि नहीं होती; अत: अधिकतर सूचनाएँ नहीं मिलतीं या मिलती हैं तो अपूर्ण होती हैं।
  • यदि प्रश्नावली जटिल है तो उत्तर अशुद्ध होंगे, फलस्वरूप परिणाम भी अशुद्ध होंगे।
  • यदि सूचक पक्षपातपूर्ण व्यवहार करते हैं तो परिणाम अशुद्ध होंगे।
  • कभी-कभी सूचना देने वाले इस बात से डरते हैं कि कहीं उनकी सूचनाओं का दुरुपयोग न हो।
  • यह प्रणाली लोचदार नहीं है।

5. प्रगणकों द्वारा अनुसूचियाँ भरना
इस रीति में प्रश्नावलियों अथवा अनुसूचियों को भरने का कार्य प्रशिक्षित प्रगणकों को सौंपा जाता है। प्रगणकों को छपी हुई अनुसूचियाँ दे दी जाती हैं और वे सूचकों से और पूछताछ करके उन प्रश्नावलियों को स्वयं भरते हैं। इस प्रणाली की सफलता पूर्णतः प्रगणकों पर निर्भर करती है। अत: प्रगणकों को योग्य, चतुर, परिश्रमी, व्यवहारकुशल, विनम्र और संबंधित क्षेत्र से परिचित होना चाहिए। उपयुक्तता–यह रीति वहाँ अधिक उपयुक्त है, जहाँ अनुसंधानकर्ता अधिक व्यय वहन कर सके। यह रीति सरकारी कार्यों में ही अधिक प्रयोग में आती है। भारत में जनगणना इसी रीति, द्वारा की जाती है। रीति के गुण

  • इस रीति द्वारा व्यापक क्षेत्र से सूचना प्राप्त की जा सकती है।
  • सूचकों से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित किए जा सकने के कारण जटिल प्रश्नों के भी शुद्ध व विश्वसनीय उत्तर प्राप्त हो जाते हैं।
  • संकलित समंकों में पर्याप्त शुद्धता रहती है।
  • व्यक्तिगत पक्षपात का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।

रीति के दोष

  • यह रीति व्ययसाध्य है क्योंकि इसमें प्रगणकों के प्रशिक्षण पर काफी व्यय होता है।
  • अनुसंधान कार्य में अधिक समय लगता है।
  • प्रगणकों को प्रशिक्षण देना व उनके कार्य का निरीक्षण करना पड़ता है।
  • प्रगणकों में पक्षपात की भावना होने पर उसका प्रभाव निष्कर्ष को अविश्वसनीय बना देता है।

प्रश्न 3.
समंक संकलन की उचित रीति का चयन किन बातों पर निर्भर करता है? उत्तर–
समंक संकलन की उपयुक्त रीति का चयन प्राथमिक समंकों के संकलन की विभिन्न रीतियों में से किसी भी एक रीति को सर्वश्रेष्ठ नहीं कहाँ जा सकता। समंक संकलन के लिए किस रीति को अपनाया जाए, यह निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है–

1. अनुसंधान की प्रकृति – यदि अनुसंधान में सूचकों से व्यक्तिगत संपर्क रखने की आवश्यकता है। तो ‘प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान रीति’; यदि शिक्षित व्यक्तियों से जानकारी प्राप्त करनी है तो ‘डाक द्वारा अनुसूचियाँ प्राप्त करने की रीति’; यदि अनुसंधान का क्षेत्र व्यापक है तो प्रगणकों द्वारा अनुसूचियाँ भरवाने की रीति तथा यदि नियमित रूप से किसी एक विषय में जानकारी प्राप्त करनी है तो संवाददाताओं द्वारा सूचना प्राप्ति की रीति’ अधिक उपयुक्त रहेगी।

2. अनुसंधान का उद्देश्य एवं क्षेत्र – यदि अनुसंधान का क्षेत्र सीमित है तो प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान की रीति’ तथा व्यापक क्षेत्र में प्रगणकों द्वारा अनुसूचियाँ भरवाने की रीति’ अधिक उपयुक्त रहेगी।

3. आर्थिक साधन – आर्थिक साधन अधिक होने पर प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान रीति’ अथवा ‘प्रगणकों द्वारा अनुसूची भरवाने की रीति’ को अपनाया जा सकता है। इसके विपरीत, आर्थिक साधनों के सीमित होने पर डाक द्वारा अनुसूचियाँ भरवाने की रीति अपनाई जा सकती है।

4. अपेक्षित शुद्धता की मात्रा – प्रत्यक्ष अनुसंधान रीति में अत्यधिक शुद्धता रहती है। अप्रत्यक्ष अनुसंधान रीति में अधिक शुद्ध परिणाम प्राप्त नहीं होते। संवाददाताओं द्वारा सूचनाएँ प्राप्त करने पर शुद्धता का परिणाम और भी कम हो जाता है। प्रगणकों द्वारा अनुसूचियाँ भरवाने पर शुद्धता का स्तर अधिक होता है, परन्तु सूचकों द्वारा अनुसूचियाँ भरवाने में शुद्धता का स्तर अपेक्षाकृत कम ही रहता है।

5. उपलब्य समय – समय कम होने पर ‘संवाददाताओं से जानकारी प्राप्त करने की रीति’ अथवा ‘सूचकों से प्रश्नावलियाँ भरने की रीति’ अधिक उपयुक्त है। उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर ही उपयुक्त समंक संकलन विधि का चुनाव करना चाहिए।

प्रश्न 4.
द्वितीयक समंक क्या होते हैं। द्वितीयक सामग्री के मुख्य स्रोत बताइए। इनका प्रयोग करने से पूर्व क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?
उत्तर :

द्वितीयक समंक से आशय

किसी अन्य अनुसंधानकर्ता द्वारा संकलित, विश्लेषित तथा प्रकाशित सामग्री ‘द्वितीयक समंक’ कहलाती है। किंतु इस सामग्री का प्रयोग दूसरे अनुसंधानकर्ताओं द्वारा भी किया जा सकता है। ये आँकड़े व्यापारिक संस्थानों, सरकारी विभागों तथा वैज्ञानिकों के यहाँ अथवा समाचार-पत्र, पत्रिकाओं, सरकारी गजटों, व्यापारिक-पत्रों आदि में मिलते रहते हैं। आँकड़ों को प्राप्त करने की यह पद्धति मितव्ययी एवं सरल है।

द्वितीयक सामग्री के मुख्य स्रोत

द्वितीयक सामग्री को प्रकाशित अथवा अप्रकाशित स्रोतों से उपलब्ध किया जा सकता है

(अ) सांख्यिकीय तथ्यों को प्रकाशित करने वाले स्रोत
विभिन्न विषयों पर सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाएँ महत्त्वपूर्ण समंकों को एकत्रित करके उन्हें समय-समय पर प्रकाशित करती रहती हैं। यह सामग्री अत्यधिक उपयोगी होती हैं और विभिन्न अनुसंधानकर्ता इसका प्रयोग करते हैं। प्रकाशित समंकों के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं

1. सरकारी प्रकाशन – केन्द्रीय व राज्य सरकारों के विभिन्न मंत्रालयों तथा विभागों द्वारा समय-समय पर विभिन्न विषयों से संबंधित समंक प्रकाशित होते रहते हैं। ये समंक अत्यधिक विश्वसनीय एवं महत्त्वपूर्ण होते हैं। प्रमुख सरकारी प्रकाशन हैं-Statistical Abstract of India, Monthly Abstract of Statistics, Annual Survey of Industries, Agricultural Statistics of India.

2. अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रकाशन – विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ जैसे U.N.O., I.L.O., ECAFE तथा I.M.F. आदि महत्त्वपूर्ण समंकों का संकलन प्रकाशित करती हैं।

3. समितियों व आयोगों के प्रतिवेदन – विभिन्न समस्याओं के संबंध में उपयुक्त सुझाव देने हेतु सरकार द्वारा समय-समय पर समितियाँ व आयोग गठित किए जाते हैं। इनके द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन सांख्यिकीय तथ्यों के भण्डार होते हैं।

4. अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं के प्रकाशन – नगर निगम, नगरपालिका, जिला परिषद् आदि विभिन्न प्रकार के आँकड़े एकत्रित कराकर प्रकाशित कराते हैं; जैसे–स्वास्थ्य तथा जन्म व मृत्यु से संबंधित आँकड़े।

5. व्यापारिक संस्थाओं व परिषदों के प्रकाशन – अनेक बड़ी-बड़ी व्यापारिक संस्थाएँ, व्यापार परिषदें, स्कन्ध विपणियाँ तथा उपज विपणियाँ भी अनेक प्रकार के समंक संकलित कराकर प्रकाशित कराती रहती हैं।

6. विश्वविद्यालयों तथा शोध संस्थानों के शोध कार्य – विश्वविद्यालयों, रिसर्च ब्यूरो व अनुसंधान संस्थाओं द्वारा शोध परियोजनाओं के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के समंक संकलित कराए जाते हैं, जिन्हें बाद में प्रकाशित करा दिया जाता है। ये समंक निष्पक्ष होते हैं। ये संस्थान हैं-N.C.A.E.R., I.S.I. आदि।

7. पत्र-पत्रिकाओं द्वारा विभिन्न समाचार – पत्र व पत्रिकाएँ भी अपने विशिष्ट क्षेत्रों में समंकों का संकलन व प्रकाशन करते हैं; जैसे-Economic Times, Industrial Times, Commerce आदि। अनेक समाचार-पत्र दैनिक बाजार भाव भी प्रकाशित करते हैं।

8. बाजार समाचार – बाजार समाचार व समीक्षा व्यापार के संबंध में महत्त्वपूर्ण तथ्यों को प्रकाश में * लाती है।

9. व्यक्तिगत अनुसंधानकर्ता द्वारा – अनेक व्यक्ति अपने-अपने विषयों पर अनुसंधान कार्य करके संकलित समंकों को प्रकाशित करवाते हैं।

(ब) अप्रकाशित स्रोत
सरकार, संस्थाएँ एवं अनेक अनुभवी व योग्य व्यक्ति विभिन्न उद्देश्यों से सांख्यिकीय सामग्री संकलित करते हैं, जो अत्यधिक उपयोगी होती है लेकिन किन्हीं कारणों से प्रकाशित नहीं हो पाती। अनुसंधानकर्ता इस सामग्री का द्वितीय सामग्री के रूप में प्रयोग कर सकता है।

द्वितीयक सामग्री के प्रयोग में सावधानियाँ

द्वितीयक समंक अनेक त्रुटियों से पूर्ण हो सकते हैं। ये त्रुटियाँ अनेक कारणों से हो सकती हैं; . जैसे—साख्यिकीय इकाई की परिभाषा में परिवर्तन, सूचना की अपर्याप्तता व अपूर्णता,. पक्षपात, उद्देश्य व क्षेत्र की भिन्नता आदि। अत: द्वितीयक समंकों का उपयोग करने से पूर्व उनकी भली-भाँति जाँच कर लेनी चाहिए।

द्वितीयक समंकों का प्रयोग करने से पूर्व निम्नलिखित बातों की जाँच कर लेनी चाहिए|

  • समंकों की उद्देश्य के प्रति अनुकूलता,
  • समंकों की विश्वसनीयता,
  • समंकों की पर्याप्तता।

अनुसंधानकर्ता को द्वितीयक समंकों का प्रयोग करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए

1. पिछले अनुसंधानकर्ता की योग्यता, अनुभव व ईमानदारी – समंकों का संकलन करने वाले अनुसंधानकर्ता की योग्यता, कार्यक्षमता, ईमानदारी व अनुभव पर विचार करना चाहिए। यदि अनुसंधानकर्ता योग्य, निष्पक्ष, अनुभवी व ईमानदार है तो समंकों पर विश्वास किया जा सकता है। अन्यथा नहीं।

2. अनुसंधान का उद्देश्य एवं क्षेत्र – प्राथमिक अनुसंधान के उद्देश्य एवं क्षेत्र का पता लगा लेना चाहिए। समान उद्देश्य एवं क्षेत्र के लिए समंकों का उपयोग लाभदायक सिद्ध हो सकता है।

3. अनुसंधान का प्रकार : संगणना अथवा प्रतिदर्श – आँकड़ों का संकलन संगणना अथवा प्रतिदर्श रीति द्वारा किया जा सकता है। संगणना रीति अधिक विश्वसनीय होती है। यदि समंक एकत्रित करने में प्रतिदर्श रीति का उपयोग किया गया है तो यह जानना आवश्यक है कि प्रतिदर्श का आकार उचित था या नहीं और प्रतिदर्श लेने की रीति उपयुक्त थी या नहीं।

4. समंक संकलन की रीति – द्वितीयक सामग्री का प्रयोग करने से पूर्व यह देखना चाहिए कि समंक संकलन में जिस रीति को अपनाया गया था, वह उपयुक्त व विश्वसनीय थी या नहीं।

5. इकाई की परिभाषा – यह भी देखा जाना चाहिए कि पिछले अनुसंधान में इकाई को किस प्रकार परिभाषित किया गया था तथा प्रस्तुत अनुसंधान के लिए इकाइयाँ उपयुक्त हैं या नहीं। यदि इकाई की परिभाषा में अंतर है तो आवश्यक समायोजन कर लेने चाहिए।
6. शुद्धता का स्तर – समंकों में शुद्धता का स्तर भी देखा जाना चाहिए। यदि शुद्धता का स्तर ऊँचा रखा गया था, तो उन समंकों का प्रयोग किया जा सकता है।

7. उपसादन का स्तर – 
यह जानना चाहिए कि समंकों को सारणीबद्ध करते समय कितने अंशों तक उपसादन (approximation) किया गया था। जितने कम अंशों तक उपसादन किया गया होगा, शुद्धता का स्तर उतना ही उच्च होगा।

8. प्राथमिक अनुसंधाम का समय व परिस्थितियाँ – 
इनका प्रयोग करने से पूर्व इस बात की जाँच कर लेनी चाहिए कि समंक किस समय में तथा किन परिस्थितियों में प्रयुक्त किए गए थे। सामान्य समय में एकत्रित किए गए समंक अधिक विश्वसनीय होते हैं। सामान्य परिस्थितियों में एकत्रित किए गए.समंक उसी प्रकार की परिस्थितियों के लिए उपयुक्त होते हैं।

9. तुलना – यदि एक समस्या से संबंधित अनेक स्रोतों से द्वितीय समंक उपलब्ध हैं तो उनकी परस्पर तुलना कर लेनी चाहिए। यदि उनमें अंतर है तो नए सिरे से स्वयं अनुसंधान करना चाहिए।

10. परीक्षात्मक जाँच – समंकों के विश्वसनीय होने पर भी उनकी परीक्षात्मक जाँच करनी चाहिए। प्रतिशत, दर, गुणांक आदि की गणना करके उनकी सत्यता की जॉच अवश्य कर लेनी चाहिए।

उपर्युक्त बातों के आधार पर यदि द्वितीयक समंक विश्वसनीय, पर्याप्त एवं उपयुक्त प्रतीत हों तो उनका प्रयोग कर लेना चाहिए अन्यथा नहीं। जे०एम० बेवन के अनुसार-“अन्य व्यक्तियों के परिणामों को अपनाना ही हमारे शोध को उचित दिशा देने के लिए पर्याप्त न होगा। हमें सामान्य ज्ञान, दूरदर्शिता तथा विद्यमान ज्ञान का उपयोग करते हुए उनकी गहराई में जाकर अज्ञानता के क्षेत्र, जिसमें हम अनुसंधान कर रहे हैं, की खोज करनी चाहिए।”

प्रश्न 5.
संगणना (सर्वेक्षण) अनुसंधानें क्या है? इसके गुण व दोष बताइए।
उत्तर :
अनुसंधान क्षेत्र की संपूर्ण इकाइयाँ सामूहिक रूप से ‘समग्र’ कहलाती हैं। समग्र दो प्रकार का होता है
(अ) निश्चित अथवा अनन्त समग्र – निश्चित समग्र में इकाइयों की संख्या निश्चित होती है; जैसे—किसी कॉलेज के छात्र या मिल के श्रमिक। इसके विपरीत, अनंत समग्र में इकाइयों की संख्या भी अनंत होती है; जैसे-नवजात शिशुओं का भार अथवा स्वास्थ्य के विषय में अनुसंधान।
(ब) वास्तविक अथवा काल्पनिक समग्र – ठोस विषय वाले समग्र को वास्तविक समग्र कहते हैं; जैसे – विश्वविद्यालय के छात्र। काल्पनिक विषय वाले समग्र को काल्पनिक समग्र कहते हैं; जैसे – सिक्कों की उछाल के आधार पर चित्र-पट के गिरने की संख्या में बना समग्र।

अनुसंधान के प्रकार अनुसंधान की प्रकृति दो प्रकार की हो सकती है
(अ) संगणना अनुसंधान,
(ब) प्रतिदर्श अनुसंधान।

संगणना अनुसंधान

जब अनुसंधान के विषय में संबंधित समग्र या समूह की प्रत्येक इकाई का अध्ययन किया जाता है तो वह ‘संगणना अनुसंधान’ कहलाता है। इस रीति के अनुसार, अनुसंधान करते समय अनुसंधानकर्ता समस्त समूह की जाँच करता है और अनुसंधान से संबंधित प्रत्येक इकाई के संबंध में आवश्यक सूचनाएँ एकत्र करता है; जैसे-जनगणना, उत्पादन संगणना।

उपयुक्तता – संगणना अनुसंधान का प्रयोग वहाँ उचित है|

  • जहाँ समग्र या क्षेत्र का आकार सीमित हो।
  • जहाँ सांख्यिकीय इकाई में विजातीयता अथवा विविध गुण पाए जाते हैं।
  • जहाँ परिशुद्धता का ऊँची स्तर आवश्यक हो।
  • जहाँ विषय का गहन अध्ययन करना हो अथवा व्यापक सूचनाएँ एकत्र करनी हों।

संगणना अनुसंधान के गुण

  1. गहन अध्ययन–इस रीति द्वारा विषय का गहन अध्ययन संभव है। इससे अनुसंधानकर्ता को उस विषय को पूर्ण ज्ञान हो जाता है।
  2. अधिक शुद्ध एवं विश्वसनीय परिणाम-इस रीति द्वारा संकलित समंक अधिक शुद्ध एवं विश्वसनीय होते हैं। अत: उनसे निकाले गए परिणाम भी अधिक सत्य एवं विश्वसनीय होते हैं।
  3. विस्तृत जानकारी—इस रीति द्वारा समग्र की प्रत्येक इकाई के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की जाती है। अत: अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रकाश में आ जाते हैं।
  4. उपयुक्तता-जब समग्र का आकार सीमित हो और सांख्यिकीय इकाइयों में विजातीयता अथवा विविधता का गुण पाया जाता हो तो यह रीति सर्वथा उपयुक्त होती है।
  5. कुछ दशाओं में आवश्यक-यदि जाँच की प्रकृति ऐसी हो कि सभी पदों का समावेश आवश्यक हो तो इस रीति का प्रयोग आवश्यक होता है।

संगणना अनुसंधान के दोष

  1. अधिक व्ययसाध्य-यह विधि अत्यधिक खर्चीली है, क्योंकि इसमें अनुसंधानकर्ता को समग्र की प्रत्येक इकाई से संबंध स्थापित करना पड़ता है।
  2. अधिक समय व परिश्रम-इस रीति में समय भी अधिक लगता है और अनुसंधानकर्ता को परिश्रम भी अधिक करना पड़ता है।
  3. सांख्यिकीय विभ्रम—इस रीति में सांख्यिकीय विभ्रम (Statistical errors) का पता नहीं लगाया जा सकता।
  4. व्यापक संगठन की आवश्यकताइस रीति द्वारा अनुसंधानकर्ता को कार्य में व्यापक संगठ की आवश्यकता पड़ती है।
  5. अनेक परिस्थितियों में असंभव-यदि समग्र अनंत है, अनुसंधान क्षेत्र विशाल व जटिल है, समग्र की प्रत्येक इकाई से संपर्क स्थापित करना संभव नहीं है अथवा अनुसंधान विधि में समग्र की संपूर्ण इकाइयाँ नष्ट हो जाती हैं तो संगणना अनुसंधान असंभव हो जाता है।

प्रश्न 6.
निदर्शन या प्रतिदर्श अनुसंधान क्या है? प्रतिदर्श प्रणाली के गुण व दोष बताइए।
उत्तर :

निदर्शन याप्रतिदर्श अनुसंधान

संगणना के विपरीत, इस प्रणाली के अंतर्गत समग्र में से कुछ इकाइयों को छाँटकर (दूसरे शब्दों में समस्त समूह के एक अंग का) उनका विधिवत् अध्ययन किया जाता है; उदाहरण के लिए यदि किसी एक कॉलेज के विद्यार्थियों के स्वास्थ्य से संबंधित सर्वेक्षण करना है तो कॉलेज के प्रत्येक विद्यार्थी का अध्ययन न करके, हम कुछ विद्यार्थियों को लेकर ही उनका अध्ययन कर सकते हैं। इससे जो निष्कर्ष निकलेंगे, वे समस्त समग्र पर लागू होंगे। प्रतिदर्श प्रणाली का आधार यह है कि छाँटे हुए प्रतिदर्श (Sample) समग्र का सदैव प्रतिनिधित्व करते हैं अर्थात् उनमें वही विशेषताएँ होती हैं, जो सम्मिलित रूप से सम्पूर्ण समग्र में देखने को मिलती हैं।

वास्तव में, प्रतिदर्श प्रणाली को संगणना प्रणाली से अधिक अच्छा समझा जाता है; क्योंकि संगणना प्रणाली की समस्त सीमाओं को प्रतिदर्श प्रणाली द्वारा दूर किया जाता है। प्रतिदर्श प्रणाली का प्रयोग कहीं-कहीं तो आवश्यक हो जाता है; क्योंकि कुछ ऐसी समस्याएँ व समग्र होते हैं, जहाँ संगणना प्रणाली का प्रयोग किया ही नहीं जा सकता।

प्रतिदर्श अनुसंधान के लिए उपयुक्त दशाएँ – निम्नलिखित दशाओं में प्रतिदर्श प्रणाली का प्रयोग अत्यंत आवश्यक है।
1. जब समग्र अनंत हो – जब समग्र अनंत अथवा कभी न समाप्त होने वाला हो तो संगणना अनुसंधान संभव नहीं हो पाता जैसे नवजात शिशुओं की किसी निश्चित समय पर गणना करना संभव नहीं है। इस प्रकार की समस्याओं में प्रतिदर्श प्रणाली ही उपयुक्त होती है; क्योंकि इसमें समय, धन व परिश्रम की बचत होती है।

2. जब समग्र नाशवान् प्रकृति का हो – 
कुछ समस्याएँ ऐसी होती हैं, जिनका सर्वेक्षण संगणना प्रणाली द्वारा करने पर समस्या या समग्र के ही नष्ट हो जाने की संभावना हो जाती है; उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति के शरीर में पाए जाने वाले रक्त का परीक्षण संगणना प्रणाली के आधार पर नहीं किया जा सकता। ऐसी समस्याओं में प्रतिदर्श प्रणाली का प्रयोग करना ही उचित होता है।

3. जब समग्र विस्तृत हो – 
विस्तृत समग्र के लिए प्रतिदर्श प्रणाली ही उपयुक्त होती है; क्योंकि इससे अनुसंधान कार्य कम समय, कम धन वे कम श्रम से ही संपन्न किया जा सकता है।

4. जब संगणना प्रणाली अव्यावहारिक हो – 
कुछ समस्याओं में प्रतिदर्श प्रणाली को ही प्रयोग किया जाता है; क्योंकि संगणना द्वारा उन समस्याओं का अध्ययन अव्यावहारिक होता है; उदाहरण के लिए भूगर्भ में छिपे हुए खनिज पदार्थों का अनुमान सदैव प्रतिदर्श प्रणाली के आधार पर ही किया जाता है।

5. जब धन, समय या परिश्रम की बचत करनी हो – 
प्रतिदर्श प्रणाली एक मितव्ययी प्रणाली है। अतः जब धन, समय या परिश्रम की बचत करनी हो तो इसी प्रणाली का उपयोग किया जाता है।

6. जब नियमों का प्रतिपादन करना हो – जब व्यापक दृष्टि से नियमों का प्रतिपादन करना हो तो इस प्रणाली का प्रयोग ही श्रेयस्कर होता है।

7. जब समग्र की प्रकृति परिवर्तनशील हो – 
यदि अनुसंधान से संबंधित वस्तुएँ शीघ्र परिवर्तनशील हैं तो प्रतिदर्श प्रणाली ही अपनाई जाती है।

प्रतिदर्श प्रणाली के गुण

  • यह रीति मितव्ययी है। इसमें समय, धन तथा श्रम सभी की बचत होती है।
  • शीघ्रता से बदलती हुई आर्थिक व सामाजिक समस्याओं के अध्ययन में यह प्रणाली अधिक उपयोगी है।
  • ऐसे सामाजिक अनुसंधानों में, जहाँ विस्तृत तथा निरन्तर अन्वेषण की आवश्यकता होती है, प्रतिदर्श अनुसंधान ही सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है।
  • इस प्रणाली द्वारा गहन अनुसंधान संभव है।
  • इस प्रणाली के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष पूर्णत: विश्वसनीय तथा शुद्ध होते हैं।
  • प्रतिदर्श अनुसंधान कार्य का संगठन व प्रशासन करना अधिक सुविधाजनक होता है।
  • कुछ विशेष दशाओं में प्रतिदर्श अनुसंधान ही एकमात्र उपयुक्त प्रणाली होती है।

प्रतिदर्श प्रणाली के दोष

  • यदि प्रतिदर्श की इकाइयों का चुनाव निष्पक्ष रूप से नहीं किया गया तो निष्कर्ष भ्रामक हो सकते हैं।
  • प्रतिनिधि प्रतिदर्श बनाना कठिन होता है।
  • प्रतिदर्श अनुसंधान प्रणाली के प्रयोग के लिए विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता होती है, जिसके अभाव में अनुसंधानकर्ता भयंकर त्रुटियाँ कर सकता है।
  • कभी-कभी समग्र इतना छोटा होता है कि उनमें से प्रतिदर्श बनाना संभव ही नहीं होता।
  • विजातीय और अस्थिर समग्र में प्रतिदर्श प्रणाली अधिक उपयुक्त नहीं होती है।

प्रश्न 7.
प्रतिदर्शअथवा निदर्शन की विभिन्न रीतियों को समझाइए। प्रमुख रीतियों के गुण व दोष भी बताइए।
उत्तर :

प्रतिदर्श अथवा निदर्शन की रीतियाँ

एक समग्र में से प्रतिदर्श अथवा निदर्शन का चुनाव करने की निम्नलिखित रीतियाँ हैं

  1. सविचार प्रतिदर्श (Purposive sampling),
  2. दैव प्रतिदर्श (Random sampling),
  3. मिश्रित या स्तरित प्रतिदर्श (Mixed or Stratified sampling),
  4. अन्य रीतियाँ (Other methods)
  • सुविधानुसार प्रतिदर्श (Convenience sampling),
  • कोटा प्रतिदर्श (Quota sampling),
  • बहुस्तरीय क्षेत्रीय दैव प्रतिदर्श (Multiphase area random sampling),
  • बहुचरण प्रतिदर्श (Multiphase sampling), ,
  • विस्तृत प्रतिदर्श (Extensive sampling)।

1. सविचार प्रतिदर्श
इसमें चयनकर्ता प्रतिदर्श की इकाइयों का चुनाव समझ-बूझकर करता है। चुनाव करते समय वह यह प्रयत्न करता है कि समग्र की सब विशेषताएँ प्रतिदर्श में आ जाएँ। वह इसके लिए कोई प्रमाप निश्चित कर लेता है और उसी के आधार पर ऐसे पदों को चुनता है, जो समस्त समग्र का प्रतिनिधित्व करें।

रीति के गुण

  • यह पद्धति बहुत सरल है।
  • प्रमाप निश्चित करके प्रतिदर्श का चुनाव करने से चुनाव के ठीक होने की संभावना होती है।
  • यह उस अनुसंधान के लिए अधिक उपयुक्त है, जहाँ कुछ महत्त्वपूर्ण इकाइयों को शामिल करना अनिवार्य हो।

रीति के दोष

  • चयनकर्ता की पूर्व धारणाओं का प्रतिदर्श के चुनाव पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इससे निष्कर्ष अशुद्ध हो जाते हैं।
  • प्रतिदर्श विभ्रम (Sampling error) ज्ञात नहीं किया जा सकता।
  • प्रतिदर्श अनुमानों की सत्यता की कोई गारण्टी नहीं होती।
  • प्रतिदर्श के परिणामों की तुलना अन्य प्रतिदर्शों के परिणामों से नहीं की जा सकती।

2. दैव प्रतिदर्श
एक प्रतिदर्श दैव विधि से उस समय चुना जाता है, जब प्रत्येक संभव प्रतिदर्श को चुने जाने का समान अवसर हो। पार्टन (Parten) के शब्दों में-“दैव प्रतिदर्श एक ऐसा रूप है, जिसको चुनने की विधि के रूप में प्रयोग करने से यह निश्चित हो जाता है कि समग्रे की प्रत्येक इकाई अथवा तत्त्व को चुने जाने का समान अवसर हो।’

हार्पर (W.M. Harper) के शब्दों में-‘‘एक दैव प्रतिदर्श वह प्रतिदर्श है, जिसका चयन इस प्रकार हुआ हो कि समग्र की प्रत्येक इकाई को सम्मिलित होने का समान अवसर रहा हो।’ इस रीति के अंतर्गत प्रतिदर्श में कौन-सी इकाई शामिल की जाए और कौन-सी नहीं, यह अनुसंधानकर्ता की अपनी इच्छा पर निर्भर न करके दैव अथवा अवसर पर निर्भर करता है। इसमें विभेद (discrimination) की कोई गुंजाइश नहीं होती। वास्तव में, इसका चुनाव मानवीय निर्णयों से पूर्णतया स्वतन्त्र होता है, तभी इसमें सत्यता व सूक्ष्मता लाई जा सकती है। दैव प्रतिदर्श रीति से प्रतिदर्श लेने के निम्नलिखित तरीके हैं

(i) लॉटरी रीतिं – 
यह रीति सबसे सरल तथा प्रचलित है। इसके अनुसार समग्र की सभी इकाइयों की पर्चियाँ अथवा गोलियाँ बनाकर किसी निष्पक्ष व्यक्ति द्वारा या स्वयं आँखें बंद करके उतनी पर्चियाँ या गोलियाँ उठा ली जाती हैं, जितनी इकाइयाँ प्रतिदर्श में शामिल करनी होती हैं। प्रतिदर्श की इकाइयों के निष्पक्ष चुनाव के लिए यह आवश्यक है कि सभी पर्चियाँ या गोलियाँ एक-सी बनाई जाएँ, उनका आकार, रूप व रंग एकसमान हो तथा उन्हें छाँटने से पूर्व खूब हिला-मिला लिया जाए।

(ii) ढोल घुमाकर – 
इस रीति के अनुसार एक ढोल में समान आकार के लोहे या लकड़ी अथवा गत्ते के गोल टुकड़े जिन पर 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 अंक लिखे रहते हैं, डाल दिए जाते हैं तथा ढोल को हाथ या बिजली से खूब घुमाया जाता है जिससे सभी अंक मिल जाएँ। तत्पश्चात् कोई निष्पक्ष व्यक्ति उसमें से उतने टुकड़े निकाल लेता है, जितने पर प्रतिदर्श लेने होते हैं। ये टुकड़े जिन पदों का प्रतिनिधित्व करते हैं, उन्हें प्रतिदर्श में शामिल कर लिया जाता है।

(iii) सुनियोजित या निश्चित क्रम के आधार पर –
इस रीति के अनुसार सर्वप्रथम पदों को किसी भी क्रम में (भौगोलिक, संख्यात्मक अथवा वर्णात्मक) व्यवस्थित किया जाता है और फिर आकस्मिक रूप से कुछ पदों को चुन लिया जाता है; उदाहरण के लिए कुल 150 इकाइयों में से 15 इकाइयों को चुनना है तो 15 समूह बना लिए जाएँगे। प्रत्येक समूह में 10-10 इकाइयाँ होंगी। अब प्रत्येक समूह में दैव प्रतिदर्श द्वारा एक-एक पद चुन लिया जाएगा।

(iv) टिप्पेट की संख्याओं अथवा दैव प्रतिदर्श सारणियों द्वारा – इस रीति का प्रतिपादन टिप्पेट महोदय ने किया था। उन्होंने विभिन्न देशों की जनसंख्या रिपोर्टों के आधार पर 41,600 अंकों के प्रयोग से चार-चार अंक वाली 10,600 संख्याओं की एक तालिका बनाई है, जिनमें से प्रथम पैंतीस संख्याएँ निम्नवत् हैं-
UP Board Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 2 Collection of Data 6
UP Board Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 2 Collection of Data 7
इस सारणी के आधार पर यदि 6000 में से 20 संख्याएँ छाँटनी हों तो पहले 6000 विद्यार्थियों को 1 से 6000 तक क्रम संख्याओं में क्रमबद्ध किया जाएगा और फिर उपर्युक्त सारणी में से आरम्भ में 20 अंक छाँट लिए जाएँगे, जो 6000 से अधिक न हों। ये 20 अंक निम्नवत् होंगे –
UP Board Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 2 Collection of Data 8
उपर्युक्त 20 विद्यार्थियों को प्रतिदर्श में शामिल किया जाएगा।
रीति के गुण

  • इस रीति द्वारा चयन में पक्षपात की कोई गुंजाइश नहीं रहती क्योंकि समग्र की प्रत्येक इकाई को प्रतिदर्श के रूप में चुने जाने का अवसर प्राप्त होता है।
  • यह प्रणाली मितव्ययी है क्योंकि इसमें श्रम, समय व धन की बचत होती है।
  • दैव प्रतिदर्श द्वारा चुने गए प्रतिदर्श समग्र के वास्तविक प्रतिनिधि होते हैं।
  • इस रीति में प्रतिदर्श विभ्रमों की माप की जा सकती है।
  • दैव प्रतिदर्श में संभावना सिद्धान्त को व्यावहारिक रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
  • चुनाव के लिए कोई विस्तृत योजना नहीं बनानी पड़ती।

रीति के दोष

  • यदि केवल कुछ समंक ही उपलब्ध हों तो दैव प्रतिदर्श संभव नहीं हैं।
  • यदि समग्र का आकार छोटा है या उसमें विषमता अधिक है तो इस रीति द्वारा लिए गए प्रतिदर्श समग्र का ठीक प्रकार प्रतिनिधित्व नहीं कर पाते।
  • यदि अनुसंधान का क्षेत्र बहुत छोटा है तो प्रतिदर्श की इकाइयों का चुनाव करना कठिन हो जाता है। इन दोषों के कारण ही दैव प्रतिदर्श को पूर्ण प्रतिदर्श नहीं माना जाता है।

3. मिश्रित या स्तरित प्रतिदर्श
स्तरित प्रतिदर्श विधि का प्रयोग उस समय उचित होता है, जब समग्र की इकाइयों में सजातीयता की अभाव हो तथा उनको विभिन्न विशेषताओं के आधार पर अनेक खण्डों अथवा स्तरों में विभक्त करना संभव हो। प्रत्येक खण्ड अथवा स्तर में से प्रतिदर्श में उसी अनुपात में इकाइयाँ ली जाती हैं, जो अनुपात उस खण्ड अथवा स्तर का पूर्ण समग्र के साथ होता है; उदाहरण के लिए किसी समग्र में 5000 इकाइयाँ हैं, ज़िनमें से प्रतिदर्श के लिए 10% अथवा 500 इकाइयों का चुनाव करना हो तो समग्र को चार खण्डों अथवा स्तरों में बाँटा जा सकता है तथा इन खण्डों व स्तरों में क्रमशः समग्र की 10, 20, 30 तथा 40 प्रतिदर्श इकाइयाँ हैं तो प्रतिदर्श के लिए इकाइयों का चुनाव इस प्रकार किया जाएगा –
UP Board Solutions for Class 11 Economics Statistics for Economics Chapter 2 Collection of Data 9
स्तरित प्रतिदर्श के लिए आवश्यक है

  • समग्र की विभिन्न विशेषताओं को ज्ञात करके उनके आधार पर विभिन्न खण्डों अथवा स्तरों में बाँटा जाए।
  • प्रत्येक खण्ड अथवा स्तर इतना बड़ा अवश्य होना चाहिए, जिसमें से प्रतिदर्श के लिए इकाइयों का चुनाव संभव हो।
  • विभिन्न खण्डों अथवा स्तरों में पूर्ण रूप से सजातीयता हो।
  • प्रतिदर्श के लिए विभिन्न खण्डों अथवा स्तरों में से इकाइयों का चुनाव अनुपात में किया जाए, जो अनुपात संबंधित स्तर अथवा समग्र में है।

रीति के गुण

  • इसमें कोई भी महत्त्वपूर्ण समूह ऐसा नहीं रहता, जिसका प्रतिनिधित्व प्रतिदर्श में न हो।।
  • प्रतिदर्श में से कोई इकाई खो जाने पर उसी खण्ड में अन्य इकाइयों में से पुनस्र्थापन किया जा सकता है।
  • यह प्रणाली मितव्ययी है क्योंकि इसमें धन, श्रम के समय की बचत होती है।
  • यह अधिक विश्वसनीय है।
  • जहाँ मौलिक समग्र में विषमता पाई जाती है, यह उचित रहता है।

रीति के दोष

  • समग्र का खण्डों में विभाजन उचित न होने पर परिणामों में अभिनति (bias) का प्रभाव आ जाएगा।
  • इकाइयों के चयन में अनुपात लाने के लिए विशेष प्रयत्न करना पड़ता है।
  • गैर-आनुपातिक स्तरीकरण में विभिन्न वर्गों की इकाइयों को भार देने में अभिनति की गुंजाइश रहती है।
  • स्तर बनाने में कठिनाई होती है।

4. अन्य रीतियाँ
(अ) सुविधानुसार प्रतिदर्श – इस प्रणाली में अनुसंधानकर्ता अपनी सुविधा के अनुसार प्रतिदर्श को चुनकर जाँच करता है।

रीति के गुण

  • यह रीति अत्यंत आरामदायक है।
  • यह रीति मितव्ययी है क्योंकि इसमें समय, श्रम व धन की बहुत बचत होती है।

रीति के दोष

  • यह प्रणाली अवैज्ञानिक है।
  • इस रीति के द्वारा निकाले गए निष्कर्ष अविश्वसनीय होते हैं।

(ब) कोटा प्रतिदर्श – इस प्रणाली में प्रतिदर्श की इकाइयाँ छाँटने का कार्य प्रगणकों पर छोड़ दिया जाता है। अनुसंधानकर्ता इस संबंध में प्रगणकों को पर्याप्त निर्देश दे देता है कि उन्हें किस भाग से कितनी इकाइयों का चुनाव करना है।

रीति के गुण
इस प्रणाली के गुण मिश्रित या स्तरित प्रतिदर्श की ही भाँति हैं; उदाहरण के लिए इस रीति में सभी समूहों
का प्रतिनिधित्व हो जाता है, यह प्रणाली मितव्ययी एवं अधिक विश्वसनीय है तथा जहाँ समग्र में मौलिक विषमता पाई जाती है, वहाँ यह रीति अधिक उपयुक्त रहती है किंतु इस रीति द्वारा संतोषजनक फल केवल उस दशा में मिल सकते हैं, जबकि प्रगणक ईमानदारी व परिश्रम से कार्य करें।

रीति के दोष
इस प्रणाली के दोष मिश्रित स्तरित प्रतिदर्श की भाँति ही है; उदाहरण के लिए इसके चयन एवं निष्कर्षों में अभिनति का प्रभाव पड़ता है, स्तर बनाने में कठिनाई होती है और भार (weight) देने में पक्षपात की गुंजाइश रहती है। इसके अतिरिक्त प्रगणकों में उतनी ईमानदारी, निष्पक्षता व सावधानी की आशा करना, जितना अनुसंधानकर्ता स्वयं दिखाता है, गलत होगा।

(स) बहुस्तरीय क्षेत्रीय दैव प्रतिदर्श – 
इस प्रणाली में प्रतिदर्शों के चुनाव का कार्य विभिन्न स्तरों पर किया जाता है। समस्या से संबंधित पहले स्तर तय किए जाते हैं। तत्पश्चात् दैव प्रतिदर्श के आधार पर प्रतिदर्श लिए जाते हैं। इस प्रकार इस विधि की निम्नलिखित दो प्रमुख विशेषताएँ हैं

  • चुनाव कई स्तरों पर होता है।
  • प्रत्येक स्तर पर दैव प्रतिदर्श के आधार पर प्रतिदर्श लिए जाते हैं।

रीति के गुण

  • बड़े शहरों की क्षेत्रीय स्तर पर जनसंख्या ज्ञात करने के लिए यह प्रणाली अत्यधिक उपयुक्त है।
  • इसमें प्रत्येक इकाई को चुने जाने के समान अवसर प्राप्त होते हैं।
  • इस रीति में दैव प्रतिदर्श रीति के सभी लाभ प्राप्त होते हैं।

रीति के दोष

  • विभिन्न क्षेत्रों में एकरूपता नहीं पाई जाती।
  • इसमें दैव प्रतिदर्श के सभी दोष आ जाते हैं।

(द) बहुचरण प्रतिदर्श – जब एक ही प्रकार के समंकों की सहायता से विभिन्न समस्याओं से संबंधित सूचनाएँ प्राप्त करनी होती हैं तो एक ही बार में समग्र के उचित प्रतिनिधि के रूप में पर्याप्त मात्रा में प्रतिदर्श चुन लिया जाता है और फिर उसमें से प्रत्येक समस्या के अध्ययन के लिए उप-प्रतिदर्श लिए जाते हैं।
इन उप-प्रतिदर्शो को क्रमश: प्रथम, द्वितीय, तृतीय ……… चरण प्रतिदर्श कहते हैं।

रीति के गुण

  • एक ही प्रतिदर्श से अनेक प्रकार की समस्याओं का अध्ययन हो जाता है।
  • यह रीति मितव्ययी है। इसमें धन, परिश्रम व श्रम की बचत होती है।
  • यह रीति सुविधाजनक है।

रीति के दोष

  • प्रतिदर्श के दोषपूर्ण होने पर सभी उप-प्रतिदर्श भी दोषपूर्ण होंगे।
  • प्रतिदर्श की जाँच की सुविधा नहीं होती।

(य) विस्तृत प्रतिदर्श – इस विधि में बहुत बड़ा प्रतिदर्श लिया जाता है। लगभग 80 या 90% इकाइयाँ प्रतिदर्श में शामिल की जाती हैं। यह विधि संगणना अनुसंधान विधि से मिलती-जुलती हैं।

रीति के गुण

  • परिणाम अधिक शुद्ध होते हैं।
  • परिणाम पर पक्षपात का कम प्रभाव पड़ता है।
  • जाँच विस्तृत होती है।

रीति के दोष

  • यह प्रणाली व्ययसाध्य है। इसमें धन, श्रम व समय का अपव्यय होता है।
  • समग्र के बड़े अंश के उपलब्ध न होने पर यह रीति संभव नहीं होती।

प्रतिदर्श प्रणाली की उपर्युक्त सभी रीतियों के अपने-अपने गुण-दोष हैं; अतः कोई भी रीति सभी क्षेत्रों व परिस्थितियों में सर्वोत्तम नहीं हो सकती। उपयुक्त रीति का चयन करने से पहले अनुसंधान के उद्देश्य, प्रकृति, आकार, शुद्धता की मात्रा व समग्र की इकाइयों को ध्यान में रखना चाहिए। वैसे सामान्यत: दैये प्रतिदर्श व स्तरित रीति का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 8.
प्रश्नावली क्या है? प्रश्नावली व अनुसूची में क्या अन्तर है? प्रश्नावली बनाते समय किन सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर :
सूचना दो प्रकार से प्राप्त हो सकती है

1. प्रश्नावलियों के प्रयोग से तथा
2. अनुसूचियों के द्वारा।

1. प्रश्नावली – प्रश्नावली में प्रश्न दिए रहते हैं। इनमें प्रश्नों के उत्तर के लिए रिक्त स्थान नहीं होता। उत्तर सूचकों द्वारा अलग प्रपत्रों पर लिखे जाते हैं। आजकल प्रश्नावली में प्रत्येक प्रश्न के साथ वैकल्पिक उत्तर छाप देने की पद्धति अपनाई जाती है जिससे सूचक सही उत्तर पर निशान लगा देता है।

2. अनुसूची – 
‘अनुसूची’ प्रश्नों की वह सूची है जिसे प्रगणकों द्वारा सूचकों से पूछताछ करके भरा जाता हैं यह एक रिक्त सारणी के रूप में होती है जिसमें प्रत्येक मद के सामने या नीचे प्रश्नों के उत्तर लिखने के लिए रिक्त स्थान होता है।

प्रश्नावली तथा अनुसूची में अंतर – सामान्यतः प्रश्नावली एवं अनुसूची को एक ही अर्थ में प्रयोग किया जाता है क्योंकि दोनों का ही उद्देश्य सूचना देने वालों से सूचना प्राप्त करना है किंतु प्रयोग विधि के आधार पर इन दोनों में सूक्ष्म अंतर है। प्रश्नावली में प्रश्नों के उत्तर सूचकों द्वारा स्वयं दिए जाते हैं। इसके विपरीत, अनुसूची में प्रश्नों की सूची के प्रगणकों द्वारा सूचकों से सूचना प्राप्त करके भरा जाता है। प्रश्नों के उत्तर के लिए रिक्त स्थान छोड़ दिया जाता है। व्यवहार में दोनों का प्रयोग एक ही अर्थ में किया जाता है।

प्रश्नावली का उदाहरण

आप अपने नगर में महाविद्यालय के छात्रों के व्ययों का अध्ययन करना चाहते हैं। इसके लिए प्रश्नावली का नमूना तैयार कीजिए।

मेरठ नगर के महाविद्यालयों में छात्रों की व्यय प्रवृत्ति का सर्वेक्षण

1. छात्र/छात्रा …………………………………………………………..
2. कक्षा-स्नातक/स्नातकोत्तर                                                                           संकाय : विधि/विज्ञान/कला/वाणिज्य
3. कॉलेज का नाम …………………………………………………………..
4. स्थायी निवास (गाँव/नगर का नाम)
5. यदि आप मेरठ के निवासी नहीं हैं तो मेरठ में रहने की व्यवस्था क्या है? छात्रावास/किराये का कमरा/रिश्तेदारों या परिचित के यहाँ आवास/प्रतिदिन आना-जाना।
6. आयु ……………………. वर्ष ……………………. माह ………………………….
7. पिता का नाम …………………………………………………………..
8. माँ का नाम …………………………………………………………..
9. पिता का व्यवसाय …………………………………………………………..
10. पिता की आय …………………………………………………………..
11. परिवार के अन्य सदस्यों की आय (यदि कोई हो) …………………………………………………………..
12. छात्र की मासिक आय (यदि कोई हो) …………………………………………………………..
13. छात्र की प्रतिमाह व्यय के लिए प्राप्त होने वाली राशि ………………………………..
(अ) परिवार से …………………………………………………………..
(ब) निजी आय से …………………………………………………………..
(स) छात्रवृत्ति से …………………………………………………………..
कुल राशि …………………………………………………………..
14. छात्र के मासिक व्यय के मद और राशि मद व्यय की राशि (निकटतम रुपया)
(i) कॉलेज की फीस …………………………………………………………..
(ii) पुस्तक एवं पाठ्य-सामग्री …………………………………………………………..
(iii) छात्रावास का किराया …………………………………………………………..
(iv) भोजन …………………………………………………………..
(v) बस/रेल का किराया …………………………………………………………..
(vi) खेलकूद व मनोरंजन पर व्यय …………………………………………………………..
(vii) अन्य व्यय …………………………………………………………..
15. क्या आपको मिलने वाली राशि पर्याप्त है? यदि नहीं, तो कितनी आवश्यकता और समझते हो? ……………………………….
16. क्या आप अपने वर्तमान मासिक व्यय में से कुछ बचत कर सकते हैं? यदि हाँ, तो मद और बचत का अनुमानित विवरण ……………..
17. अन्य संबंधित सूचना …………………………………………………………..

उत्तम प्रश्नावली के लिए सावधानियाँ

सांख्यिकीय अनुसंधान की सफलता मुख्य रूप से प्रश्नावली की उत्तमता पर निर्भर करती है; अतः प्रश्नावली तैयार करते समय सावधानी व सतर्कता बरतनी आवश्यक है। एक प्रश्नावली की रचना करते समय अग्रलिखित बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए
1. निवेदन पत्र – अनुसंधानकर्ता को प्रश्नावली के साथ एक निवेदन पत्र लगाना चाहिए जिससे वह अपना परिचय दे, अनुसंधान का उद्देश्य बताए तथा सूचना को गुप्त रखने तथा इसका दुरुपयोग न करने का विश्वास दिलाए।

2. प्रश्नों की संख्या कम – 
प्रश्नावली में प्रश्नों की संख्या कम होनी चाहिए। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रश्न इतने कम न हो जाएँ कि पर्याप्त सूचना ही प्राप्त न हो सके।

3. सरल व स्पष्ट प्रश्न – 
प्रश्न सरल, स्पष्ट व सूक्ष्म होने चाहिए। अधिकांश प्रश्न ऐसे होने चाहिए जिनका उत्तर ‘हाँ’ या नहीं में दिया जा सके। प्रश्नों में अप्रचलित, जटिल व असम्मानसूचक शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

4. उचित क्रम – 
प्रश्न प्राथमिकता अथवा महत्त्व के क्रम में रखे जाने चाहिए। परस्पर संबंधित प्रश्नों ” को एक ही स्थान पर केन्द्रित किया जाना चाहिए।

5. वर्जित प्रश्न – 
प्रश्नावली में ऐसे प्रश्न सम्मिलित नहीं किए जाने चाहिए जिनसे सूचक के आत्मसम्मान तथा सामाजिक व धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचे, जो उनके मन में संदेह, उत्तेजना या विरोध उत्पन्न करे अथवा जो उसके व्यक्तिगत व्यवहार से संबंधित हों। प्रो० सेक्राइस्ट के शब्दों में-“यदि कठिन तथा अपरिचित प्रश्नों अथवा अविश्वास या संदेह उत्पन्न करने वाले प्रश्नों को पूछा जाता है तो उनके उत्तर अपूर्ण, संक्षिप्त, अर्थहीन, सामान्य या जानबूझकर टालने वाले होने की संभावना रहती है।”
6. प्रश्नों की प्रकृति – प्रश्न चार प्रकार के हो सकते हैं—
(i) सामान्य विकल्पीय प्रश्न – ऐसे प्रश्नों के उत्तर ‘हाँ’ या नहीं’ अथवा ‘गलत’ या ‘सही’ दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए क्या आपके पास कार है? अथवा क्या आप किराये के मकान में रहते हैं? इस प्रकार के प्रश्नों का गठन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

(ii) बहुविकल्पीय प्रश्न – 
इस प्रकार के प्रश्नों में अनेक संभव उत्तर होते हैं। ये उत्तर प्रश्नावली में छपे होते हैं और सूचक उनमें से किसी एक पर निशान लगा देता है।

(iii) विशिष्ट जानकारी देने वाले प्रश्न – ये प्रश्न विशिष्ट जानकारी प्रदान करते हैं; जैसे-आपकी आयु क्या है? आपके कितने बच्चे हैं?

(iv) खुले प्रश्न – 
इन प्रश्नों का उत्तर सूचक को अपने शब्दों में देना होता है। उदाहरण के लिए भारत में मुद्रा स्फीति को किस प्रकार नियन्त्रित किया जा सकता है? प्रश्नावली में जहाँ तक संभव हो सके, प्रथम प्रकार के प्रश्न पूछे जाने चाहिए।

7. प्रश्नों में उचित शब्दों का प्रयोग – 
प्रश्नों के गठन में सही स्थान पर सही शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए। प्रश्न ऐसे होने चाहिए जिनके अर्थ प्रमापित एवं सर्वविदित हों।

8. प्रत्यक्ष संबंध – 
प्रश्न अनुसंधान से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित होने चाहिए ताकि व्यर्थ की सूचना एकत्र करने में धन, श्रम व समय का अपव्यय न हो।

9. सत्यता की जाँच – 
प्रश्नावली में ऐसे प्रश्नों को भी समावेश होना चाहिए जिससे उत्तरों की यथार्थता की परस्पर जाँच की जा सके।

10. प्रश्नावली का गठन – 
प्रश्नावली के गठन पर उपयुक्त ध्यान दिया जाना चाहिए। उत्तर लिखने के लिए पर्याप्त स्थान छोड़ना चाहिए।

11. सूचक की योग्यता के अनुसार प्रश्न – 
प्रश्नावली में ऐसे प्रश्न होने चाहिए जिनके उत्तर सूचक सरलता से दे दें।

12. आवश्यक निर्देश – 
प्रश्नावली भरने के संबंध में प्रश्नावली के प्रारम्भ में अथवा अंत में स्पष्ट रूप से आवश्यक निर्देश दिए जाने चाहिए ताकि सूचक को सूचना देने में आसानी हो।

13. पूर्व परीक्षण एवं संशोधन – 
प्रश्नावली के तैयार हो जाने पर, अनुसंधान कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व उसका कुछ लोगों पर परीक्षण कर लेना चाहिए। इससे प्रश्नावली के दोषों को दूर करने में सहायता मिलेगी।