UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 10 Displacing Indigenous Peoples

UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 10 Displacing Indigenous Peoples (मूल निवासियों का विस्थापन)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 History . Here we have given UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 10 Displacing Indigenous Peoples

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
संक्षेप में उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
दक्षिणी और उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों के बीच के फर्को से सम्बन्धित किसी भी बिन्दु पर टिप्पणी करिए।
उत्तर :
दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासी बड़े पैमाने पर कृषि कार्य करते थे। इसलिए परिवार पर होने वाले व्यय के पश्चात् अधिशेष होता था। इस अधिशेष के कारण वहाँ राजशाही और साम्राज्य का विकास हुआ। इसके विपरीत उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी कृषि कार्य नहीं करते थे। और न ही वे ऐसा उत्पादन करते थे जिनका अधिशेष रहता हो। इसलिए वहाँ राजशाही व साम्राज्य का विकास नहीं हुआ।

प्रश्न 2.
आप 19वीं सदी के संयुक्त राज्य अमेरिका में अंग्रेजी के उपयोग के अतिरिक्त अंग्रेजों के आर्थिक और सामाजिक जीवन की कौन-सी विशेषताएँ देखते हैं?
उत्तर :
ये विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. वे कुशल कारीगर थे और आकर्षक कपड़े बनाते थे।
  2. लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। संयुक्त रज्य अमेरिका के लोगों ने कृषि क्षेत्र में पर्याप्त विस्तार किया। उन्होंने दूसरे देशों में भी भूमि खरीदी।
  3. वहाँ खनन उद्योग और कारखानों का विकास किया गया।
  4.  वे मछली तथा मांस खाते थे।
  5.  खेतों में सब्जियाँ ओर मकई उगाते थे।
  6. सत्रहवीं सदी में उन्होंने घुड़सवारी आरम्भ कर दी थी।

प्रश्न 3.
अमेरिकियों के लिए फ्रण्टियर के क्या मायने थे?
उत्तर :
अमेरिकियों के लिए ‘फ्रण्टियर’ के मायने उनकी पश्चिमी सीमा से थे। यह सीमा सेटलरों के कारण पीछे खिसकती रहती थी। जैसे-जैसे ये आगे बढ़ती थी मूल निवासी भी पीछे खिसकने के लिए बाध्य किए जाते थे।

प्रश्न 4.
इतिहास की किताबों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को शामिल क्यों नहीं किया गया था?
उत्तर :
इतिहास की किताबों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को इसलिए शामिल नहीं किया गया क्योंकि वे जन्म से यहाँ नहीं थे। वे ऑस्ट्रेलिया के साथ जुड़े एक लम्बे पुल से न्यू गुयाना से आए थे। प्रारम्भिक लोग इन्हें ऐबॉरिजिनीज कंहते थे। देशी लोगों का एक और विशाल समूह उत्तर में निवास करता है। ऐसा माना जाता है कि वे किसी और स्थान से आए थे संक्षेप में निबन्ध लिखिए

प्रश्न 5.
लोगों की संस्कृति को समझने में संग्रहालय की गैलरी में प्रदर्शित चीजें कितनी कामयाब रहती हैं? किसी संग्रहालय को देखने के अपने अनुभव के आधार पर सोदाहरण विचार कीजिए।
उत्तर :
अध्यापक की सहायता से छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 6.
कैलिफोर्निया में चार लोगों के बीच 1880 में हुई किसी मुलाकात की कल्पना करिए। ये चार लोग हैं एक अफ्रीकी गुलाम, एक चीनी मजदूर, गोल्ड रश के चक्कर में आया हुआ एक जर्मन और होपी कबीले का एक मूल निवासी। उनकी बातचीत का वर्णन करिए।
उत्तर :
अध्यापक की सहायता से छात्र स्वयं करें।

परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों ने अपना इतिहास लेखन कब प्रारम्भ किया?
(क) सन् 1740 में
(ख) सन् 1761 में
(ग) सन् 1760 में
(घ) सन् 1861 में
उत्तर :
(क) सन् 1740 में

प्रश्न 2.
कैबॉट न्यूफाउण्डलैण्ड कब पहुँचा?
(क) सन् 1497 में
(ख) सन् 1498 में
(ग) सन् 1530 में
(घ) सन् 1860 में
उत्तर :
(क) सन् 1497 में

प्रश्न 3.
क्यूबेल एक्ट कब पास हुआ?
(क) सन् 1774 में
(ख) सन् 1773 में
(ग) सन् 1781 में
(घ) सन् 1782 में
उत्तर :
(क) सन् 1774 में

प्रश्न 4.
सिडनी कहाँ है?
(क) अमेरिका में
(ख) कनाडा में
(ग) रूस में
(घ) ऑस्ट्रेलिया में
उत्तर :
(घ) ऑस्ट्रेलिया में

प्रश्न 5.
संयुक्त राज्य अमेरिका की कौन-सी सरहद खिसकती रहती थी?
(क) पूर्वी
(ख) पश्चिमी
(ग) उत्तरी
(घ) दक्षिणी
उत्तर :
(ख) पश्चिमी

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सेटलर या आबादकार को क्या अर्थ है?
उत्तर :
सेटलर या आबादकार उपनिवेश स्थापित करने वाले को कहा जाता है। यह शब्द दक्षिण अफ्रीका में डच के लिए, आयरलैण्ड, न्यूजीलैण्ड और ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटिश के लिए और अमेरिका में यूरोपीय लोगों के लिए प्रयुक्त होता था। इन उपनिवेशों की राजभाषा अंग्रेजी थी।

प्रश्न 2.
टेरा न्यूलिअस क्या है?
उत्तर :
टेरो न्यूलिअस (Terra Nullius) का अर्थ है जो किसी की नहीं है।’ यूरोपीय लोगों की । सरकार की ऑस्ट्रेलिया के प्रति यह नीति मूल निवासियों के लिए बनी थी।

प्रश्न 3.
कनाडा की खोज किसने की थी?
उत्तर :
जाक कार्टियर ने सन् 1535 ई० में कनाडा की खोज की थी। कनाडा शब्द की उत्पत्ति ‘कनाटा’ से हुई है, स्थानीय भाषा में जिसका तात्पर्य गाँव से था।

प्रश्न 4.
मूल बाशिन्दा (Native) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
मूल बाशिन्दा वह व्यक्ति होता है जो अपने मौजूदा निवास स्थल में ही जन्मा हो। 20वीं सदी के आरम्भिक वर्षों तक यह यूरोपीय लोगों द्वारा अपने उपनिवेशों के बाशिन्दों के लिए प्रयुक्त होता था।

प्रश्न 5.
उत्तरी अमेरिका में बाहर से आने वाले व्यापारी किन वस्तुओं के व्यापार में रुचि रखते थे?
उत्तर :
ये लोगं वहाँ सोना प्राप्त करना चाहते थे, क्योंकि उत्तरी अमेरिका में सोने के भण्डार अधिक थे। ये लोग मछली और रोएँदार खाल के व्यापार के लिए आए थे।

प्रश्न 6.
अमेरिका के मूल निवासियों का यूरोपीयों के प्रति क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर :
ये लोग यूरोपियों से घृणा करते थे। उनकी अनेक लोककथाओं में यूरोपीय का मजाक उड़ाया गया है। उनका वर्णन लालची और धूर्त के रूप में किया गया है।

प्रश्न 7.
1934 का रजिस्ट्रेशन एक्ट क्या था?
उत्तर :
यह एक युगान्तकारी एक्ट था जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका के मूल निवासियों को नागरिक अधिकार प्रदान किए गए थे। इसी के द्वारा उन्हें भूमि क्रय करने और ऋण लेने का अधिकार प्राप्त हुआ।

प्रश्न 8.
हेनरी रेनॉल्ड्स कौन था?
उत्तर :
हेनरी रेनॉल्ड्स एक प्रभावशाली इतिहासकार था। उसने ऑस्ट्रेलियाई इतिहास लेखन की नई पद्धति को जन्म दिया। उसकी प्रसिद्ध पुस्तक का नाम ‘why we were not told’ था।

प्रश्न 9.
बहुसंस्कृतिवाद से क्या आशय है?
उत्तर :
बहुसंस्कृतिवाद वह विचारधारा है जिसमें अनेक संस्कृतियों को एक साथ रहने पर जोर दिया जाता है। यह सहिष्णुता की नीति वाली संस्कृति है।

प्रश्न 10.
ज्यूडिथ राइट के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
ज्यूडिथ राइट ऑस्ट्रेलिया की प्रसिद्ध लेखिका थी उन्होंने अपनी पुस्तक ‘दो समय’ में मूल निवासियों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई थी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्तरी अमेरिका की भौगोलिक स्थिति का परिचय दीजिए।
उत्तर :
उत्तरी अमेरिका का महाद्वीप उत्तर ध्रुवीय वृत्त से लेकर कर्क रेखा तक और प्रशान्त महासागर से अटलांटिक महासागर तक विस्तृत है। पथरीले पहाड़ों की श्रृंखला के पश्चिम में अरिजोना और नेवादा की मरुभूमि है। थोड़ा और पश्चिम में सिएरा नेवाडा पर्वत है। पूरब में विस्तृत मैदानी क्षेत्र, विस्तृत झीलें, मिसीसिपी और ओहियो पर्वतों की घाटियाँ हैं। दक्षिण की ओर मेक्सिको है। कनाडा का 40 प्रतिशत क्षेत्र वनाच्छादित है। कई क्षेत्रों में तेल, गैस और खनिज संसाधन पाए जाते हैं जिनके कारण इस क्षेत्र में अनेक बड़े उद्योगों का विकास हुआ है।

प्रश्न 2.
उत्तरी अमेरिका के सबसे पहले मूल निवासियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
उत्तरी अमेरिका के सबसे पहले मूल निवासी 30,000 साल पहले बोरिंग स्ट्रेट्स के आर-पार फैले भूमि सेतु के मार्ग से एशिया से आए और 10,000 वर्ष पूर्व अन्तिम हिम युग के दौरान वे कुछ . दक्षिण की ओर बढ़े। अमेरिका में मिलने वाली सबसे प्राचीन मानव द्वारा बनाई गई आकृति–एक तीर की नोक-11,000 वर्ष पुरानी है। लगभग 5,000 वर्ष पूर्व जब जलवायु में अधिक स्थिरता आई, तब जनसंख्या बढ़ना प्रारम्भ हुई। ये लोग नदी घाटी के साथ-साथ बने गाँवों में समूह बनाकर निवास करते थे। ये मछली और मांस खाते थे तथा सब्जियाँ और मकई उगाते थे। वे अक्सर मांस की खोज में लम्बी यात्राओं पर जाया करते थे। मुख्य रूप से उन्हें बाइसौन’ नामक जंगली भैंसों की तलाश रहती थी, जो घास के मैदानों में घूमते थे। लेकिन वे उतने ही जानवर मारते थे जितनी कि उन्हें भोजन के लिए आवश्यकता होती थी।

प्रश्न 3.
चिरोकी कबीले का विस्थापन किस प्रकार हुआ?
उत्तर :
संयुक्त राज्य अमेरिका के मूल निवासियों को यूरोपीय प्रवासियों द्वारा तेजी से हटाया जा रहा था। उसमें वहाँ के उच्चाधिकारी भी सहयोग दे रहे थे। चिरोकी कबीला संयुक्त राज्य अमेरिका के एक नगर जॉर्जिया के कानून से शासित था, उन्हें नागरिक अधिकारों का उपयोग नहीं करने दिया जाता था। अधिकारी इसे सही मानते थे। मूल निवासियों में चिरोकी ही ऐसे थे जिन्होंने अंग्रेजी सीखने और अमेरिकी जीवन शैली को समझने का प्रयास किया, फिर भी उन्हें नागरिक अधिकार प्रदान नहीं किए गए। सन् 1832 में संयुक्त राज्य के मुख्य न्यायाधीश ने एक महत्त्वपूर्ण फैसला दिया–“चिरोकी कबीला एक विशिष्ट समुदाय है और उसके स्वत्त्वाधिकार वाले क्षेत्र में जॉर्जिया का कानून लागू नहीं होता और वे कुछ मामलों में सम्प्रभुता सम्पन्न हैं।” संयुक्त राज्य के तत्कालीन राष्ट्रपति एंड्रिड जैक्सन ने न्यायाधीश जॉन मार्शल की बात नहीं मानी और चिरोकियों को हटाने के लिए एक विशाल फौज भेज दी। 15,000 लोगों को उनके क्षेत्रों से हटा दिया गया।

प्रश्न 4.
बस्तियों के आरक्षण से आप क्या समझते हैं? मूल निवासियों पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
संयुक्त राज्य अमेरिका के मूल निवासियों को स्थायी रूप से पश्चिम में जमीन दे दी गई फिर भी यदि उनकी जमीन में तेल या सोने जैसी किसी चीज के होने का पता चलता तो उन्हें इसी में साझा करना पड़ता। ऐसे में उनके बीच झगड़े उत्पन्न हो जाते थे। मूल निवासी एक छोटे क्षेत्र में कैद कर दिए गए जिन्हें ‘आरक्षित क्षेत्र कहा जाता था। मूल निवासी अपनी जमीन के लिए जीवन भर लड़ते रहे, परन्तु आप्रवासियों ने उनके विद्रोह का दमन कर दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना ने 1865 से 1890 के मध्य विद्रोह की एक पूरी श्रृंखला का दमन किया था। कनाडा में 1869 से 1885 के बीच मेटिसों के विद्रोह हुए किन्तु उन्हें पराजय का मुँह देखना पड़ा।

प्रश्न 5.
ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की विशेषताएँ ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. प्रारम्भ में यहाँ के निवासियों को ऐबॉरीजिनीज कहा जाता था। कई भिन्न-भिन्न समाजों के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला एक सामान्य नाम है। ये लोगे ऑस्ट्रेलिया में 40,000 वर्ष पूर्व आने प्रारम्भ हुए थे।
  2.  ये लोग ऑस्ट्रेलिया के साथ एक लम्बे पुल से जुड़े न्यू गुयाना से आए थे। मूल निवासियों की अपनी परम्परा के अनुसार वे बाहर से नहीं आए थे बल्कि हमेशा से यहीं थे।
  3.  18वीं सदी के अन्त में मूल निवासियों के 350 से 750 समुदाय थे।
  4.  प्रत्येक समुदाय की अपनी भाषा थी। इनमें से 200 भाषाएँ आज भी व्यवहार में हैं।
  5.  मूल निवासियों का एक और समूह उत्तर में रहता है। इसे टॉरस स्ट्रेट कहते हैं। वे ऑस्ट्रेलिया की वर्तमान जनसंख्या का 2.4 प्रतिशत भाग हैं।
  6. ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या विरल है। अधिकांश नगर समुद्रतट के साथ-साथ बसे हैं। बीच का , क्षेत्र शुष्क मरुभूमि है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गोल्ड रश से आप क्या समझते हैं? हजारों लोग क्यों कैलीफोर्निया की ओर दौड़ने लगे थे? इस क्षेत्र में रेलवे लाइनों के पीछे कौन-सा तर्क था?
उत्तर :
यह आशा हमेशा से की जाती रही कि उत्तरी अमेरिका में धरती के नीचे सोना है। 1840 ई० में संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलीफोर्निया में सोने के कुछ चिह्न प्राप्त हुए। इसने ‘गोल्ड रश’ को जन्म दिया। यह उस आपाधापी का नाम है जिसमें हजारों की संख्या में आतुर यूरोपीय लोग अपनी किस्मत सँवारने के लिए अमेरिका पहुँचे। इसके चलते पूरे महाद्वीप में रेलवे लाइनों का निर्माण हुआ। संयुक्त राज्य अमेरिका की रेलवे का काम सन् 1870 ई० में पूरा हुआ और कनाडा की रेलवे का 1885 ई० औद्योगिक क्रान्ति के बाद उत्तरी अमेरिका में भी उद्योग कई प्रकार के अलग कारणों से विकसित हुए—एक उद्योग रेलवे के साज-सम्मान बनाने को विकसित हुआ ताकि दूर-दूर के स्थानों को तीव्र परिवहन द्वारा जोड़ा जा सके। संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा दोनों स्थानों पर औद्योगिक नगरों का विकास हुआ और कारखानों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। सन् 1860 में संयुक्त राज्य अमेरिका का । अर्थतन्त्र अविकसित अवस्था में था। 1890 में वह विश्व की नेतृत्वकारी औद्योगिक शक्ति बन चुका था। वृहद् स्तर पर खेती का भी विस्तार हुआ। बहुत-सा क्षेत्र साफ किया गया और टुकड़ों के रूप में खेत बनाए गए। 1892 में संयुक्त राज्य अमेरिका का महाद्वीप विस्तार पूरा हो चुका था। प्रशान्त महासागर और अटलांटिक महासागर के बीच का क्षेत्र राज्यों में विभाजित किया जा चुका था। कुछ ही वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका ने हवाई और फिलीपीन्स में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए।

प्रश्न 2.
इतिहास की पुस्तकों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को क्यों नहीं शामिल किया गया है?
उत्तर :
18वीं सदी के अन्तिम दौर में ऑस्ट्रेलिया में मूल निवासियों के समुदाय 350 से 750 के बीच थे। प्रत्येक समुदाय की अपनी भाषा थी। देशी लोगों का एक विशाल समूह उत्तर में रहता था। यह क्षेत्र टॉरस स्ट्रेट आइलैण्ड कहलाता है। ये लोग ऑस्ट्रेलिया की वर्तमान जनसंख्या का 2.4 प्रतिशत हैं।
UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 10 Displacing Indigenous Peoples image 1
ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या बहुत विरल है। आज भी यहाँ के अधिकांश नगर समुद्र तट के साथ-साथ बसे हैं, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया के बीच का क्षेत्र शुष्क मरुभूमि है। ऑस्ट्रेलिया में यूरोप आबादकारों, मूल निवासियों और जमीन के बीच आपसी रिश्ते का किस्सा, अमेरिका के किस्से से मिलता-जुलता है, हालाँकि इसका प्रारम्भ 300 वर्षों के बाद हुआ था। मूल निवासियों के साथ हुई भेंट को लेकर कैप्टन कुक और उसके साथियों की प्रारम्भिक रिपोर्ट अत्यन्त उत्साहपूर्ण है और उसमें मूल निवासियों के मित्रवत् व्यवहार का उल्लेख है। लेकिन जब एक मूल निवासी ने कुक की हत्या कर दी यह घटना हवाई में हुई, ऑस्ट्रेलिया में नहीं-तब ब्रिटिशों का व्यवहार पूर्णतः परिवर्तित हो गया। इस कारण इतिहास की पुस्तकों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को स्थान नहीं दिया गया।

प्रश्न 3.
संयुक्त रज्य अमेरिका और कनाड़ा में यूरोपीय आबादकारों के विरुद्ध मूल निवासियों ने अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए किस प्रकार संघर्ष किया?
उत्तर :
संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाड़ा के मूल निवासियों ने अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए निम्नलिखित प्रकार से संघर्ष किया

  1. यूरोपीय आबादकारों द्वारा मूल निवासियों को संस्कृति की रक्षा और नागरिकता के उपभोग से रोका जाता था। इसके विरुद्ध अनेक संघर्ष हुए। यूरोपीय आबादकारों के मन में कुछ सहानुभूति जागी और इसने संयुक्त राज्य में क्रान्तिकारी कानून को जन्म दिया। 1934 के रजिस्ट्रेशन एक्ट के द्वारा आरक्षण पर मूल निवासियों को भूमि क्रय करने और ऋण लेने का अधिकार प्राप्त हुआ।
  2. 1950 और 1960 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा की सरकारों ने मूल निवासियों के लिए बनाए गए, विशेष अधिनियमों को समाप्त करने का प्रयास किया जिससे उन्हें मुख्य धारा में सम्मिलित किया जाए। मूल निवासियों ने इसका कड़ा विरोध किया।
  3. सन् 1954 में मूल निवासियों ने स्व-रचित ‘अधिकार घोषणा पत्र में इस शर्त के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिकता स्वीकार की कि उनके आरक्षण वापस नहीं लिए जाएँगे और उनकी परम्पराओं में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। इसी प्रकार की कार्यवाही कनाडा में भी हुई।
  4.  सन् 1969 में सरकार ने घोषणा की कि वह आदिवासी अधिकारों को मान्यता नहीं देगी। परिणामस्वरूप मूल निवासियों ने संगठित होकर इसका विरोध किया, धरना-प्रदर्शन किया।
  5.  सन् 1982 में एक संवैधानिक धारा के अन्तर्गत मूल निवासियों के वर्तमान आदिवासी अधिकारों और समझौता आधारित अधिकारों को स्वीकृति प्रदान की गई। 18वीं सदी की अपेक्षा वर्तमान में मूल निवासियों की संख्या बहुत कम हो गई है, किन्तु वे अपने अधिकारों के लिए आज भी संघर्षरत हैं।

We hope the UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 10 Displacing Indigenous Peoples help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 10 Displacing Indigenous Peoples , drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 9 The Industrial Revolution

UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 9 The Industrial Revolution (औद्योगिक क्रांति)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 History . Here we have given UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 9 The Industrial Revolution

पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
संक्षेप में उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
ब्रिटेन 1793 से 1815 तक कई युद्धों में लिप्त रहा, इसका ब्रिटेन के उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
ब्रिटेन के युद्धों में लिप्त रहने के कारण निम्नलिखित प्रभाव पड़े

  1. इंग्लैण्ड का अन्य देशों से चलने वाला व्यापार छिन्न-भिन्न हो गया।
  2. विभिन्न कल-कारखाने बन्द हो गए।
  3.  लाखों श्रमिक बेरोजगार हो गए।
  4. रोटी, मांस जैसे आवश्यक खाद्य पदार्थों के मूल्य बढ़ गए।

प्रश्न 2.
नहर और रेलवे परिवहन के सापेक्षिक लाभ क्या-क्या हैं?
उत्तर :
प्रारम्भ में रेलवे का विकास नहीं हुआ था। उस समय नहरों का उपयोग सिंचाई के साथ-साथ मालवाहन के लिए भी किया जाता था। इंग्लैण्ड में कोयला नहरों के रास्ते ले जाया जाता था। नहरों के रास्ते माल ढोना सस्ता पड़ता था और समय भी कम लगता था। समय के साथ नहरों के रास्ते परिवहन में अनेक समस्याएँ दिखाई देनी लगी। नहरों के कुछ भागों में जलपोतों की अधिक संख्या के कारण परिवहन की गति धीमी पड़ गई। बाढ़ या सूखे के कारण इनके उपयोग का समय भी सीमित हो गया ऐसे में रेलमार्ग ही परिवहन का सुविधाजनक विकल्प दिखाई देने लगा।

प्रश्न 3.
इस अवधि में किए गए आविष्कारों की दिलचस्प विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर :
इस अवधि में तेजी से विभिन्न क्षेत्रों में आविष्कार हुए। इन आविष्कारों के कुछ समय पश्चात् इनका उपयोग भी प्रारम्भ हो गया। इन आविष्कारों के कारण प्रौद्योगिकी परिवर्तनों की श्रृंखला दिखाई देने लगी जिसने उत्पादन के स्तरों में अचानक वृद्धि कर दी। रेलमार्गों के निर्माण से एक नवीन परिवहन तन्त्र विकसित हो गया। अधिकांश आविष्कार 1782 से 1800 ई० के मध्य हुए। एक अनुमान के अनुसार केवल 18वीं शताब्दी में ही 26,000 आविष्कार हुए।

प्रश्न 4.
बताइए कि ब्रिटेन के औद्योगीकरण के स्वरूप पर कच्चे माल की आपूर्ति का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
कच्चा माल किसी भी उद्योग का आधार होता है यदि कच्चे माल की आपूर्ति कारखाने को समय पर होती रहे तो उत्पादन की नियमित गति बनी रहती है। इसके विपरीत यदि कच्चे माल की आपूर्ति कम या बन्द हो जाती है तो उद्योग का उत्पादन कम हो जाता है और उससे आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगती है। कच्चे माल की आपूर्ति एक ही क्षेत्र में हो तो उद्योग का विकास तेजी से होता है। यह ब्रिटेन का सौभाग्य था कि वहाँ एक द्रोणी क्षेत्र यहाँ तक कि एक ही पट्टियों में उत्तम कोटि का कोयला और उच्च स्तर का लोहा साथ-साथ उपलब्ध था। ।

संक्षेप में निबन्ध लिखिर

प्रश्न 5.
ब्रिटेन में स्त्रियों के भिन्न-भिन्न वर्गों के जीवन पर औद्योगिक क्रान्ति का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
ब्रिटेन में स्त्रियों के विभिन्न वर्गों के जीवन पर औद्योगिक क्रान्ति का निम्नलिखित प्रभाव पड़ा

  1.  महिलाएँ प्रायः घर का काम (यथा-खाना बनाना, बच्चों एवं पशुओं का पालन पोषण, लकड़ी इकट्ठी करना आदि) करती थीं। परन्तु औद्योगिक क्रान्ति से इनके इन कार्यों में परिवर्तन आ गए।
  2. कारखानों में काम करना महिलाओं के लिए एक दण्ड के समान बन गया था। वहाँ लम्बे समय तक एक ही प्रकार का काम कठोर अनुशासन में तथा विभिन्न भयावह परिस्थितियों में करना पेड़ता था।
  3. कारखानों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को अधिक लगाया जाता था, क्योंकि उनकी मजूदरी कम होती थी और वे प्रायः आन्दोलन नहीं करती थीं।
  4. महिलाओं को उद्योगों में प्रत्येक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। उन्हें छेड़छाड़ या बलात्कार का भय रहता था। उनके कपड़े मशीनों में फँस जाते थे जिससे वे घायल हो जाती थीं।

प्रश्न 6.
विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में रेलवे आ जाने से वहाँ के जनजीवन पर क्या प्रभाव पड़ा? तुलनात्मक विवेचना कीजिए।
उत्तर :
विश्व के लगभग सभी देशों में रेलगाड़ियाँ परिवहन की महत्त्वपूर्ण साधन बन गईं। ये सम्पूर्ण वर्ष उपलब्ध रहती थीं, तेज और सस्ती भी थीं। रेले माल और यात्री दोनों को ढोती थीं। इससे यात्रा करना सरल हो गया। कोयला और लोहे जैसी वस्तुओं को रेल में ही ढोया जा सकता था। इसलिए सभी देशों के लिए रेलों का विकास अनिवार्य हो गया। 1850 तक आते-आते इंग्लैण्ड के सभी नगर आपस में रेलमार्ग से जुड़ गए थे। परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति हुई
(क) वस्त्र उद्योग में
(ख) लोहा उद्योग में
(ग) कृषि उद्योग में
(घ) जूट उद्योग में
उत्तर :
(क) वस्त्र उद्योग में

प्रश्न 2.
पावरलूम नामक मशीन का आविष्कार हुआ था
(क) 1768 ई० में
(ख) 1776 ई० में
(ग) 1769 ई० में
(घ) 1785 ई० में
उत्तर :
(घ) 1785 ई० में

प्रश्न 3.
औद्योगिक क्रान्ति ने किस नवीन विचारधारा को जन्म दिया?
(क) पूँजीवाद
(ख) समाजवाद
(ग) उपयोगितावाद
(घ) व्यक्तिवाद
उत्तर :
(ख) समाजवाद

प्रश्न 4.
औद्योगिक क्रान्ति का आरम्भ सर्वप्रथम किस देश में हुआ था?
(क) जर्मनी
(ख) इंग्लैण्ड
(ग) फ्रांस
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका
उत्तर :
(ख) इंग्लैण्ड

प्रश्न 5.
जॉर्ज स्टीफेन्सन का आविष्कार क्या था?
(क) रेडियो
(ख) रेल का इंजन
(ग) टेलीविजन
(घ) मोटरकार
उत्तर :
(ख) रेल का इंजन

प्रश्न 6.
समाजवाद का जनक था
(क) लेनिन
(ख) अरस्तू
(ग) महात्मा गांधी
(घ) कार्ल मार्क्स
उत्तर :
(घ) कार्ल मार्क्स

प्रश्न 7.
लोहा साफ करने की विधि किसने ज्ञात की थी?
(क) हम्फ्री डेवी ने
(ख) जेम्सवाट ने
(ग) हेनरी कार्ट ने
(घ) आर्थर यंग ने
उत्तर :
(ग) हेनरी कार्ट ने

प्रश्न 8.
सर्वप्रथम सूत कातने के थेत्र का आविष्कार किया
(क) आर्कराइट ने
(ख) हरग्रीब्ज ने
(ग) हाइट ने
(घ) टॉमस कोक ने
उत्तर :
(ख) हरग्रीव्ज ने

प्रश्न 9.
अनाज को भूसे से अलग करने वाली मशीन का आविष्कार किया
(क) ह्वाहट ने
(ख) आर्कराइट ने
(ग) टेलफोर्ड ने
(घ) जॉन के ने
उत्तर :
(क) ह्वाइट ने

प्रश्न 10.
‘फ्लाइंग शटल का आविष्कार किसने किया था?
(क) कार्टराइट ने
(ख) आर्कराइट ने
(ग) क्रॉम्पटन ने
(घ) जॉन के ने
उत्तर :
(घ) जॉन के ने

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया?
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम फ्रांस में जर्जिया मिचलेट एवं जर्मनी में फ्रेडरिक एंजल्स द्वारा किया गया।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रान्ति सर्वप्रथम कहाँ आरम्भ हुई?
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में आरम्भ हुई थी।

प्रश्न 3.
इंग्लैण्ड में लोहा और कोयला कहाँ पाया जाता है?
उत्तर :
इंग्लैण्ड में लोहा तथा कोयला क्रमश: वेल्स, नार्थम्बरलैण्ड और स्कॉटलैण्ड में पाया जाता है।

प्रश्न 4.
फ्लाइंग शटल का आविष्कार कब हुआ और किसने किया?
उत्तर :
फ्लाइंग शटल का आविष्कार जॉन के ने 1733 ई० में किया था।

प्रश्न 5.
जेम्सवाट क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर :
जेम्सवाट 1782 ई० में भाप की शक्ति की खोज के कारण विश्वप्रसिद्ध है।

प्रश्न 6.
जॉर्ज स्टीफेन्सन का आविष्कार क्या था और यह आविष्कार कब हुआ?
उत्तर :
जॉर्ज स्टीफेन्सन का आविष्कार रॉकेट नामक इन्जन था। यह आविष्कार 1820 ई० में हुआ थी।

प्रश्न 7.
सेफ्टी लैम्प किसने बनाया और कब?
उत्तर :
खानों के प्रकाश की व्यवस्था करने के लिए ‘हफ्री डेवी’ नामक व्यक्ति ने 1815 ई० में सेफ्टी लैम्प बनाया था।

प्रश्न 8.
कार्ल मार्क्स ने किस प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की?
उत्तर :
कार्ल मार्क्स ने ‘दास कैपिटल’ नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की थी।

प्रश्न 9.
पहला रेलमार्ग कब तथा कहाँ प्रारम्भ किया गया?
उत्तर :
पहला रेलमार्ग 1825 ई० में हॉलैण्ड में स्टाकटन में डालिंगटन तक प्रारम्भ किया गया था।

प्रश्न 10.
रिचर्ड आर्कराइट क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर :
रिचर्ड आर्कराइट अपने आविष्कार ‘वाटर फ्रेम के कारण प्रसिद्ध है। इसका आविष्कार इसने सन् 1797 ई० में किया था।

प्रश्न 11.
‘बर्सले कैनाल के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
‘बर्सले कैनाल इंग्लैण्ड की पहली नहर थी जो जेम्स ब्रिडले द्वारा बनाई गई थी। उसके माध्यम से कोयला भण्डारों से शहर तक कोयला पहुँचता था।

प्रश्न 12.
ब्लूचर क्या था?
उत्तर :
ब्लूचर एक रेल का इन्जन था जिसे रेलवे इन्जीनियर जॉर्ज स्टीफेन्सन ने बनाया था। यह इन्जन 30 टन भार 4 मील प्रति घण्टे की गति से एक पहाड़ी पर ले जा सकता था।

प्रश्न 13.
औद्योगिक क्रान्ति किस सदी में हुई?
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति 18वीं सदी में हुई।

प्रश्न 14.
समाजवाद का जनक किसे कहा जाता है?
उत्तर :
समाजवाद का जनक कार्ल मार्क्स को कहा जाता है।

प्रश्न 15.
मजदूर संघ सर्वप्रथम किस देश में बने?
उत्तर :
मजदूरों ने अपने हितों की रक्षा के लिए सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में ही ट्रेड यूनियन या मजदूर संघ बनाए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
औद्योगिक क्रान्ति ने इंग्लैण्ड के उद्योगों और समाज पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर :
इंग्लैण्ड की क्रान्ति ने वहाँ के उद्योग-धन्धों व समाज को निम्न प्रकार से प्रभावित किया

  1. उद्योगों पर प्रभाव :
    औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप वस्त्र उद्योग तथा खनन उद्योग का विशेष रूप से विकास हुआ। इस क्रान्ति से वस्त्र उद्योग में भारी परिवर्तन हुआ।फ्लाइंग शटल के आविष्कार से कम समय में बहुत अधिक कपड़ा तैयार होने लगा। स्पिनिंग जेनी, पावरलूम तथा म्यूल नामक यन्त्रों के आविष्कार से उत्तम कपड़ा तैयार किया जाने लगा। आगे चलकर विश्व के प्रत्येक देश में अनेक बड़े-बड़े कारखाने स्थापित हुए। औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप खनन उद्योग का भी बहुत विकास हुआ। खानों से लोहा बड़ी मात्रा में निकाला जाने लगा तथा लोहे से इस्पात बनाया जाने लगा।
  2. समाज पर प्रभाव :
    छोटे किसान या तो फर्म मालिकों के यहाँ मजदूर हो गए या बेकार होकर नगरों के कारखानों में काम करने लगे, जिससे गाँव उजड़ने लगे और औद्योगिक नगर बसने लगे। इसके फलस्वरूप नगरों की जनसंख्या बढ़ने लगी। समाज में जुआखोरी, मद्यपान, हिंसात्मक घटनाएँ बढ़ गईं। औद्योगिक नगरों में स्वच्छता की कमी रहने लगी। चिमनी के धुएँ से प्रदूषण तथा अनेक बीमारियाँ फैलने लगीं। श्रमिक; मनोरंजन के अभाव में मदिरा, जुआ तथा वेश्यागमन जैसे अनैतिक कार्यों में लिप्त हो गए। समाज में पूँजीपति और मजदूर दो वर्ग बन गए। पूँजीपति मजदूरों का शोषण कर अपनी तिजोरियाँ भरने लगे और मजदूरों की दशा दिन-पर-दिन खराब होती गई।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रान्ति इंग्लैण्ड में ही क्यों हुई?
उत्तर :
इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम औद्योगिक क्रान्ति आरम्भ होने के निम्नलिखित कारण थे

  1.  इंग्लैण्ड में लोहे व कोयले के अपार भण्डार थे।
  2.  इंग्लैण्ड को औपनिवेशिक विस्तार के फलस्वरूप स्थापित किए गए अपने उपनिवेशों से ” सरलतापूर्वक कच्चा माल मिल सकता था।
  3.  इंग्लैण्ड को उपनिवेशों से कम मजदूरी पर अधिक संख्या में मजदूर मिल गए थे।
  4.  इंग्लैण्ड में अनेक नए आविष्कार हुए जिन्होंने औद्योगिक क्रान्ति को सफल बनाया।
  5.  इंग्लैण्ड के पूँजीपतियों के पास पर्याप्त मात्रा में पूँजी थी; अतः उन्होंने अनेक उद्योग-धन्धे स्थापित किए।
  6.  इंग्लैण्ड में बने माल के लिए उपनिवेशों में बाजार सुलभ हो जाते थे।

प्रश्न 3.
औद्योगिक विकास का नरों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
औद्योगिक विकास से नगरों के वातावरण पर व्यापक प्रभाव पड़ा। इस प्रभाव का उल्लेख निम्नवत् है

  1. कल-कारखानों की स्थापना होने से बड़े-बड़े नगरों की संख्या बढ़ने लगी और उनकी जनसंख्या में भी अत्यधिक वृद्धि हुई।
  2.  नगरों का जीवन अस्त-व्यस्त एवं अशान्त हो गया और वहाँ को सामाजिक जीवन दूषित होने लगा।
  3. नगरों में अनेक श्रमिक बस्तियाँ बनने लगी और चारों ओर श्रमिकों के आन्दोलन होने लगे।
  4.  नगरों में रहने वाले श्रमिकों में मद्यपान, जुआ खेलने और निकृष्ट कोटि को साहित्य पढ़ने के व्यसन उत्पन्न हो गए।
  5.  नगरों में जल-प्रदूषण और वायु-प्रदूषण की समस्याएँ उत्पन्न हो गईं।

प्रश्न 4.
कपड़ा उद्योग में क्रान्ति लाने वाले आविष्कारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
कपड़ा उद्योग में क्रान्ति लाने वाले आविष्कार निम्नलिखित थे

  1.  हरग्रीब्ज ने मशीनी चरखे का आविष्कार किया। इसे स्पिनिंग जेनी कहा गया। इससे तेजी से सूत कातना सम्भव हुआ।
  2. आर्कराइट ने हरग्रीब्ज की मशीन में कुछ ऐसे परिवर्तन किए जिससे इसे पानी की शक्ति से  चलाना सम्भव हो गया। नए चरखे का नाम वाटर फ्रेम रखा गया।
  3. क्रॉम्पटन ने एक ऐसी मशीन का आविष्कार किया, जिसे म्यूल कहते थे।
  4. कार्टराइट ने शक्ति से चलने वाले करघे का आविष्कार किया जिससे बुनाई का काम तेज हो सकाइस मशीन को पहले पशु-शक्ति से चलाया जाता था। बाद में भाप शक्ति से इसे चलाया  जाने लगा। इसे ‘पावरलूम’ का नाम दिया गया।
  5. एलीहिटन नामक अमेरिकी ने रुई एवं बिनौले अलग करने की मशीन का आविष्कार किया। इस । मशीन का नाम ‘जिन’ रखा गया।

प्रश्न 5.
नगरों एवं कारखानों की दशा सुधारने के लिए कौन-कौन से प्रयास किए गए?
उत्तर :
मानववादी और उदार प्रकृति के लोगों के प्रयासों से इंग्लैण्ड में अनेक कानून पास किए गए जिससे नगरों एवं कारखानों की दशा सुधर सके। इनमें से कुछ प्रमुख प्रयास निम्नलिखित थे

  1.  इंग्लैण्ड में प्रथम कारखाना कानून सन् 1802 में पास किया गया जिसमें बाल श्रमिकों के लिए काम के अधिकतम 12 घण्टे निर्धारित किए।
  2.  सन् 1819 में कानून द्वारा नौ वर्ष से कम आयु के बाल श्रमिक से काम कराने पर पाबन्दी लगा दी गई। कुछ समय बाद एक कानून बनाकर स्त्रियों एवं बालकों के खानों में काम करने पर रोक लगा दी गई।
  3.  सन् 1824 में मजदूर संघ बनाने का संवैधानिक अधिकार मजदूरों को प्राप्त हो गया।
  4. कालान्तर में श्रमिकों को मताधिकार भी दिया गया ताकि वे अपनी समस्याओं को आसानी से ” संसद में प्रभाव डालकर हल करवा सकें।
  5.  नगरों की दशा सुधारने के लिए कारखानों को धीरे-धीरे नगरों के बाहर ले जाया गया।
  6.  चिमनियों की ऊँचाई बढ़ा दी गई ताकि उनसे निकलने वाला धुआँ वातावरण एवं वायुमण्डल को खराब न कर सके।
  7. गन्दी बस्तियों को धीरे-धीरे सुधारा गया।
  8.  मजदूरों के लिए साफ एवं अच्छे आवासों का प्रबन्ध किया गया।

प्रश्न 6.
औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक प्रभाव क्या थे?
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक प्रभाव निम्नलिखित थे

  1. कुटीर तथा लघु उद्योगों का विनष्टीकरण इसी क्रान्ति के कारण हुआ क्योंकि मशीनों द्वारा | कारखानों में बनाया गया माल बहुत सस्ता होता था जिसकी प्रतिस्पर्धा में कुटीर उद्योगों में बना माल नहीं ठहर सकता था।
  2. बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना औद्योगिक क्रान्ति के कारण ही हुई। इन कारखानों में हजारों मजदूर दिन-रात मशीनों की सहायता से बड़े पैमाने पर सस्ती व अच्छी किस्म की वस्तुओं का निर्माण करने लगे।
  3. इस क्रान्ति के पश्चात् बड़ी संख्या में औद्योगिक नगरों की स्थापना हुई। गाँवों के स्थान पर नगर आर्थिक क्रियाओं के प्रमुख केन्द्र बन गए।
  4. मशीनों के अधिक काम करने से कारीगर व शिल्पी बेरोजगार हो गए, बेरोजगारों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हो गई।
  5. औद्योगिक क्रान्ति के कारण धन का विषम बँटवारा सामने आया, पूँजीपति अधिक धनी तथा शिल्पकार गरीब होते चले गए।
  6. औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप कृषिप्रधान देश शीघ्र ही उद्योग प्रधान बन गए। इंग्लैण्ड, फ्रांस, अमेरिका, रूस, जर्मनी तथा जापान की राष्ट्रीय आय बहुत बढ़ गई।

प्रश्न 7.
ट्रेड यूनियन से आप क्या समझते हैं? इसके स्थापित होने के मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :

ट्रेड यूनियन

औद्योगिक क्रान्ति के आने के पश्चात् उन श्रमिकों की दशा बहुत खराब हो गई जो कारखानों में कार्य किया करते थे। जब सरकार श्रमिकों की कठिनाई दूर करने में कोई सहायता न कर सकी तो उन्होंने ट्रेड यूनियन का संगठन कर लिया। अतः ट्रेड यूनियन्स एक प्रकार के मजदूर संघ थे जो कि मजदूरों की भलाई के लिए बनाए गए।

ट्रेड यूनियन्स बनाने का उद्देश्य

ट्रेड यूनियन बनाने के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे

  1. उद्योगपतियों द्वारा किए जाने वाले अन्याय का विरोध करना।
  2. श्रमिकों के कार्य के घण्टे सुनिश्चित करना।
  3.  श्रमिकों के लिए सम्मानजनक वेतन के लिए प्रयास करना।
  4. कारखानों में काम करने की उचित अवस्थाओं तथा सुविधाओं की माँग करना।

प्रश्न 8.
औद्योगिक क्रान्ति ने साम्राज्यवाद को किस प्रकार जन्म दिया?
उत्तर :
यह कथन बिल्कुल सत्य है कि औद्योगिक क्रान्ति ने ही साम्राज्यवाद को जन्म दिया। औद्योगीकरण में अन्य बातों के अतिरिक्त दो बातों की अधिक आवश्यकता होती है—प्रथम कारखानों के लिए कच्चा माल निरन्तर प्राप्त होता रहे, द्वितीय तैयार सामग्री का तेजी से विक्रय हो। उन देशों ने । जिनका औद्योगीकरण हो चुका था, भारी संरक्षी आयात-कर (हैवी इम्पोर्ट ड्यूटी) लगाकर दूसरे देशों का माल अपने देशों में नहीं घुसने दिया। इसलिए प्रश्न उत्पन्न हुआ कि माल बेचा जाए तो कहाँ बेचा जाए? निश्चित रूप से यह माल उन देशों में बिक सकता था जिनका औद्योगीकरण अभी तक नहीं हुआ था। फिर क्या था, ऐसे देशों को अधिकार क्षेत्र या प्रभाव क्षेत्र में लाने की औद्योगिक देशों में होड़ लग गई। परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी और जापान आदि देशों ने एशिया, अफ्रीका और द० अमेरिका के अनेक प्रदेशों में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए। उपनिवेशों से दोहरा लाभ रहा-एक तो वहाँ तैयार माल बिक जाता था, दूसरे उद्योगों के लिए कच्चा माल भी मिलता था।

प्रश्न 9.
समाजवाद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
समाजवाद का अर्थ न्याय, समानता, वास्तविक लोकतन्त्र, मानवता से प्रेम, परोपकार, आत्म-नियन्त्रण, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, उच्च नैतिक आदर्श, शान्ति, सद्भावना, मानव शोषण तथा उत्पीड़न का अन्त और इनकी प्राप्ति के लिए समाज का पुनर्गठन है। दूसरे शब्दों में, समाजवाद एक जनतन्त्रीय आन्दोलन है, जिसका उद्देश्य एक ऐसा आर्थिक संगठन स्थापित करना है जो एक समय में, एक साथ ही अधिकतम न्याय और स्वतन्त्रता दे सके।

प्रश्न 10.
पश्चिमी देशों का प्रभुत्व एशिया और अफ्रीका के देशों पर आसानी से क्यों स्थापित हुआ?
उत्तर :
एशिया और अफ्रीका के देशों में औद्योगिक क्रान्ति न होने के कारण ये देश आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत पिछड़े हुए थे। इन देशों में अविकसित कृषि, अत्यधिक जनसंख्या, आर्थिक विषमता, गरीबी, बीमारी तथा अन्धविश्वासों का बोलबाला था। इनकी राजनीतिक शक्ति भी बिखरी हुई थी और सैनिक शक्ति बहुत कमजोर हो चुकी थी। ज्ञान-विज्ञान का प्रसार न होने से एशिया और अफ्रीका के अधिकांश देश अविकसित तथा कमजोर थे, जिन पर प्रभुत्व जमा लेना एक सरल कार्य था। इन सब दुर्बलताओं का लाभ उठाकर यूरोप के शक्तिशाली देशों ने एक-एक करके एक शताब्दी के अन्दर ही एशिया और अफ्रीका के अधिकांश देशों को अपने साम्राज्यवाद का शिकार बना लिया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
औद्योगिक क्रान्ति से क्या आशय है? औद्योगिक क्रान्ति के कारण लिखिए। या यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति के कारणों की विवेचना कीरिए।
उत्तर :

औद्योगिक क्रान्ति का अर्थ

औद्योगिक क्रान्ति से आशय उद्योगों की प्राचीन, परम्परागत और धीमी गति को छोड़कर; नए वैज्ञानिक तथा तीव्र गति से उत्पादन करने वाले यन्त्रों व मशीनों का प्रयोग किया जाना है। यह क्रान्ति उन महान् परिवर्तनों की द्योतक है जो औद्योगिक प्रणाली के अन्तर्गत हुए। इस प्रकार ‘‘उत्पादन के साधनों में आमूल-चूल परिवर्तन हो जाना ही औद्योगिक क्रान्ति है।” वास्तव में औद्योगिक क्रान्ति से आशय उस क्रान्ति से लगाया जाता है जिसने अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में उत्पादन की तकनीक और संगठन में आश्चर्यजनक परिवर्तन कर दिए। ये परिवर्तन इतने प्रभावी और द्रुत गति से हुए कि इसे ‘क्रान्ति’ कहा गया। औद्योगिक क्रान्ति ने बड़े पैमाने के उद्योगों का सूत्रपात किया। इस क्रान्ति का श्रीगणेश इंग्लैण्ड से ही हुआ।

औद्योगिक क्रान्ति के कारण

औद्योगिक क्रान्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  1. उपनिवेशों की स्थापना :
    नवीन भौगोलिक खोजों ने यूरोप के देशों को अपने उपनिवेश स्थापित करने की प्रेरणा दी। अल्प समय में ही इंग्लैण्ड, फ्रांस, स्पेन और हॉलैण्ड आदि कई देशों ने संसार के कोने-कोने में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए। इन उपनिवेशों तक पहुँचने के लिए यूरोप के देशों को आवागमन के साधनों का विकास करना पड़ा। साथ ही इन उपनिवेशों से कच्चे माल की प्राप्ति हुई और पक्के माल के लिए बाजार उपलब्ध हुए। इस प्रकार उपनिवेशों की स्थापना ने औद्योगिक क्रान्ति लाने में विशेष सहायता प्रदान की।
  2.  वस्तुओं की माँग में वृद्धि :
    यूरोप के देशों का व्यापार तेजी से बढ़ रहा था। व्यापारी पूर्व के देशों के साथ खूब व्यापार करते एवं लाभ कमाते थे। उपनिवेशों की स्थापना के बाद वे अपना माल उपनिवेशों में भी बेचने लगे। इस प्रकार उनके माल की माँग बराबर बढ़ रही थी। व्यापारी अधिक-से-अधिक उत्पादन करके अधिक-से-अधिक माल बेचना चाहते थे। किन्तु मात्र कुटीर उद्योगों से अधिक उत्पादन न हो सकता था; अत: बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए विशाल मिलों की स्थापना की गई, जिससे कम मूल्य पर अधिक उत्पादन सम्भव हो सके।
  3.  कच्चे माल का उपयोग :
    यूरोप के देशों में बड़े कारखानों द्वारा बड़े पैमाने के उत्पादन के लिए पहले पर्याप्त कच्चा माल उपलब्ध नहीं था किन्तु उपनिवेशों की स्थापना के बाद इ: देशों को अपने उपनिवेशों से पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल मिलने लगा। कच्चे माल का सर्वोत्तम प्रयोग तभी हो सकता था जब उससे बड़े पैमाने पर वस्तुएँ बनाए जाएँ तथा उन्हें दुनिया के बाजारों में बेचा जाए।
  4. सस्ते मजदर :
    यूरोप के अनेक देशों में (विशेषकर इंग्लैण्ड में) कृषि-प्रणाली में पर्याप्तपरिवर्तन हो गया था। इस परिवर्तन के फलस्वरूप कृषि का काम बड़ी-बड़ी मशीनों से होने लगा। खेतों की चकबन्दी, जमींदारों द्वारा जमीन की खरीद और चरागाह की भूमि को खेती के काम में लाने के फलस्वरूप गाँवों में रहने वाले बहुत-से लोग विवश होकर नगरों में मजदूरी करने लगे। वे थोड़ी मजदूरी पर भी काम करने को तैयार थे। फलस्वरूप उद्योगों के लिए सस्ते मजदूर उपलब्ध होने लगे, अत: लोगों को उद्योग-धन्धे एवं कारखाने स्थापित करने के लिए विशेष प्रोत्साहन मिला।
  5. कोयले और लोहे की प्राप्ति :
    जिस प्रकार नई मशीनों व नए यन्त्रों के निर्माण के लिए लोहे की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार कारखानों की मशीनों को चलाने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है। यह शक्ति कोयले से प्राप्त हो सकती है। इंग्लैण्ड में लोहे और कोयले की खाने पास-पास थी; अतः इंग्लैण्ड के पूंजीपतियों को कारखाने खोलने की विशेष प्रेरणा प्राप्त हुई।
  6. पूँजी की सुलभता : 
    विगत दो-तीन शताब्दियों में यूरोप के लोगों ने अपना व्यापार पर्याप्त बढ़ा लिया था और पूर्व के देशों के साथ व्यापार करके उन्होंने पर्याप्त मात्रा में धन कमाया। इस कारण उनके पास पूँजी की कमी नहीं थी। पूँजी को व्यापार, उद्योग तथा उत्पादन के कार्यों में लगाने के लिए लोग उत्सुक ही नहीं, वरन् तत्पर भी थे।
  7. विज्ञान का विकास :
    पुनर्जागरण और धर्म-सुधार पर आधारित आन्दोलन के साथ ही यूरोप | में बौद्धिक विकास का युग भी प्रारम्भ हो गया था और नवीन आविष्कार व खोजों पर आधारित कार्य होने लगे थे। इसके फलस्वरूप कई प्रकार के विशेष यन्त्र बने, भाप की शक्ति का पता लगाया गया तथा भौतिक विज्ञान एवं रसायन शास्त्र में भी नवीन खोजें की गईं। इन सबकी सहायता से औद्योगिक सभ्यता को आगे बढ़ाने का प्रयास किया गया।
  8. चालक शक्ति का विकास :
    इंग्लैण्ड में कोयला तथा भाप की शक्ति चालक-शक्ति के रूप में विकसित हो जाने से मशीनें चलाने में सुविधा हुई। मशीनों के विकास ने औद्योगिक क्रान्ति को विकसित करने में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन मशीनों के कारण ही बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा, जिसने औद्योगिक क्रान्ति के विकास के द्वार खोल दिए।
  9. सामन्तवाद का अन्त :
    यूरोप में सामन्तवाद के बाद धनी सामन्तों ने अपना धन उद्योगों में लगाना शुरू कर दिया, जिससे औद्योगिक क्रान्ति को विशेष प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रान्ति के अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों में हुए आविष्कारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :

औद्योगिक क्रान्ति के आविष्कार

इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों में अनेक आविष्कार हुए, यथा

  1. वस्त्र उद्योग :
    1733 ई० में जॉन के ने तेज चलने वाली एक फ्लाइंग शटल का आविष्कार किया। इसके द्वारा पहले की अपेक्षा दुगुनी चौड़ाई में कपड़ा पहले से कम समय में बुना जाने लगा। 1766 ई० में जेम्स हरग्रीव्ज़ ने सूत कातने की एक ऐसी मशीन बनाई जिसमें एक साथ आठ तकुए बारीक सूत कातते थे। इसी समय आर्कराइट ने म्यूल नामक एक मशीन बनाई, जो पानी से चलती थी और बारीक सूत कातती थी। हरग्रीब्स की मशीन को ‘स्पिनिंग जैनी’ तथा आर्कराइट की मशीन को ‘वाटर म’ नाम दिया गया। 1776 ई० में क्रॉम्पटन ने ‘म्यूल’ नामक मशीन का आविष्कार किया, इस मशीन में स्पिनिंग जैनी तथा वाटर फ्रेमn दोनों के गुण विद्यमान थे। 1785 ई० में कार्टराइट ने भाप की शक्ति से चलने वाली ‘पावरलूम’ नामक मशीन का आविष्कार किया। इसके अतिरिक्त ऊन साफ करने, रूई की पूनो बनाने, कपड़ों में सफेदी लाने तथा रँगने की मशीनें भी बनाई गईं। 1846 ई० में एलिहास हो ने सिलाई की मशीन का आविष्कार किया। इन मशीनों के आविष्कार के फलस्वरूप वस्त्र उद्योग में एक क्रान्ति आ गई और इंग्लैण्ड के कल-कारखानों में बड़े पैमाने पर भारी मात्रा में वस्त्रों का उत्पादन होने लगा।
  2. कृषि :
    कृषि के क्षेत्र में इंग्लैण्ड में टाउनशैड ने फसलों को हेर-फेर कर बोने के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। बैकवेल ने पशुओं की नस्ल सुधारने की विधियाँ खोज निकालीं। इसी समय भूमि को खोदने, बीज बोने, फसल काटने, भूसे को अनाज से अलग करने के लिए अनेक यन्त्रों का आविष्कार किया गया। इन आविष्कारों के फलस्वरूप कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हो गई।
  3. भाप की शक्ति :
    न्यूकॉमन ने सर्वप्रथम भाप से चलने वाला इन्जन बनाया, परन्तु जेम्सवाट ने 1782 ई० में भाप की शक्ति का समुचित उपयोग करके उद्योगों के क्षेत्र में एक क्रान्ति उत्पन्न कर दी।
  4. उद्योग :
    उद्योग के क्षेत्र में 1709 ई० में इब्राहीम डर्बी ने जले हुए कोयले द्वारा लोहे को पिघलाने की विधि खोज निकाली। हेनरी कार्ट ने लोहे को गलाने और उसे शुद्ध करने का तरीका बताया। 1856 ई० में हेनरी बेसमर ने लोहे से इस्पात बनाने का तरीका खोज निकाला। 1705 ई० में खानों की खुदाई के समय खानों में भर जाने वाले पानी को निकालने के लिए टामस न्यूकॉमन ने एक इंजने बनाया। 1815 ई० में खानों के प्रकाश के लिए डेवी ने डेवी सेफ्टी लैम्प का आविष्कार किया।
  5. परिवहन :
    परिवहन के क्षेत्र में सर्वप्रथम मैकडम ने पक्की सड़कें बनाने की विधि निकाली। ब्रिटुले नामक इन्जीनियर ने 1761 ई० में मानचेस्टर से बर्सले तक एक नहर का निर्माण किया। जेम्सवाट के बाद 1814 ई० में जॉर्ज स्टीफेन्सन ने ऐसा इंन्जन बनाया जो लोहे की पटरियों पर चलता था। 1825 ई० में स्टाकटन से डालिंगटन के बीच पहली रेलगाड़ी चलाई गई। 1820 ई० में स्टीफेन्सन ने रॉकेट इन्जन बनाया जो 55 किलोमीटर प्रति घण्टे की गति से चल सकता था। 1808 ई० में समुद्री जहाजों का निर्माण हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी में मोटरगाड़ियाँ और हवाई जहाज पेट्रोल तथा डीजल की सहायता से चलने लगे।
  6. संचार के साधन :
    1835 ई० में सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में मोर्स ने तार भेजने की व्यवस्था की। 1857 ई० में इंग्लैण्ड और फ्रांस के बीच तार की लाइनें बिछाई गईं। 1840 ई० में इंग्लैण्ड में ही सर्वप्रथम डाक सेवा शुरू हुई। 1876 ई० में ग्राहम बेल ने टेलीविजन का आविष्कार किया। इन आविष्कारों के फलस्वरूप इंग्लैण्ड के वस्त्र उद्योग, खनन उद्योग, कृषि क्षेत्र, परिवहन तथा संचार के क्षेत्र में एक क्रान्ति-सी आ गई और प्रत्येक क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति होने लगी। इन क्रान्तिकारी आविष्कारों का श्रेय औद्योगिक क्रान्ति को ही दिया जा सकता है।

प्रश्न 3.
औद्योगिक क्रान्ति से विश्व को क्या लाभ हुए?

उत्तर :

औद्योगिक क्रान्ति से विश्व को लाभ

औद्योगिक क्रान्ति मानव के लिए एक वरदान सिद्ध हुई थी और इससे मानव-जाति को अपार लाभ हुए। वुडवर्ड (Woodword) ने इस क्रान्ति के लाभों को व्यक्त करते हुए लिखा है-“इस क्रान्ति से मनुष्य जाति को चमत्कारिक लाभ हुए। जिन कार्यों को करने में असीमित श्रम और पर्याप्त समय लगता था, अब वे अल्पकाल में मामूली श्रम से ही पूरे हो जाते थे।” संक्षेप में औद्योगिक क्रान्ति के अग्रलिखित लाभ हुए

  1. उत्पादन क्षमता में वृद्धि :
    नयन खोजों के परिणामस्वरूप उत्पादन की नवीन तकनीकों को विकास भी होता रहता था, जिससे उत्पादन क्षमता में निरन्तर वृद्धि होती रहती थी। अतः औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप वस्तुओं की उत्पादन क्षमता कई गुना बढ़ गई।
  2. यातायात के साशनों का विकास :
    औद्योगिक क्रान्ति से यातायात के साधनों का तेजी से विकास हुआ। ऐसे नवीन यातायात के साधनों का निर्माण और खोज होने लगी थी जो तीव्र गति से कार्य करते हों। इस प्रकार इस क्रान्ति के फलस्वरूप यातायात अधिक सुगम और विकसित हो गया।
  3. विज्ञान की प्रगति :
    औद्योगिक साधनों के विकास के लिए विज्ञान के क्षेत्र में निरन्तर ‘खोजें चलती रहीं। वैज्ञानिक नई-नई प्रौद्योगिकी की खोज में प्रयत्नशील रहते थे। इन खोजों और प्रयासों के परिणामस्वरूप विभिन्न विज्ञान निरन्तर प्रगति की ओर बढ़ने लगे।
  4.  कृषि में सुधार :
    औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप कृषि कार्यों के लिए नवीन यन्त्रों को प्रयोग किया जाने लगा। अभी तक कृषि अत्यधिक श्रमसाध्य थी तथा इससे उत्पादन बहुत कम होता था। यन्त्रीकरण से कृषि कार्य सरल हो गया और खाद्यान्नों की उत्पादन क्षमता में कई गुना वृद्धि हो गई। अब कृषि धीरे-धीरे व्यवसाय का रूप लेने लगी।
  5. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा सांस्कृतिक सम्पर्क में वृद्धि :
    औद्योगिक क्रान्ति से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भी वृद्धि हुई। व्यापारिक वर्ग के लोग विश्व के सभी देशों में आने-जाने लगे। इससे सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ और मानव परम्परागत रूढ़ियों से मुक्त हो गया।
  6.  दैनिक जीवन के लिए उपयोगी साधनों में वृद्धि :
    मानव के दैनिक जीवन में भौतिक साधनों के सुलभ हो जाने से विशेष सुख-सुविधा का वातावरण बना। मानव को दैनिक जीवन के कार्यों की पूर्ति हेतु विशेष सुविधाएँ प्राप्त हुईं, जिन्होंने नागरिकों के जीवन स्तर को परिष्कृत रूप प्रदान किया। अब उनका जीवन सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण होता चला गया।

प्रश्न 4.
औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों की विवेचना कीजिए। या औद्योगिक क्रान्ति के प्रभावों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर :

औद्योगिक क्रान्ति के प्रभाव

युरोप महाद्वीप के विभिन्न देशों पर औद्योगिक क्रान्ति के अच्छे एवं बुरे दोनों प्रकार के प्रभाव पड़े। औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप वहाँ के सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन में अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए। राजनीतिक क्षेत्र में लोकतन्त्रात्मक शासन-व्यवस्था औद्योगिक क्रान्ति से हुए श्रमिकों के आन्दोलनों के फलस्वरूप ही शीघ्रता से स्थापित हो सकी। इस क्रान्ति के विभिन्न प्रभावों का विवेचन निम्नलिखित है

  1. नगरों का विकास :
    औद्योगिक क्रान्ति के कारण नए नगरों की तेजी से स्थापना हुई और पुराने नगरों में भी विकास होने लगा था। विशाल उद्योगों की स्थापना से वहाँ पर कार्य करने वाले श्रमिकों की संख्या तीव्रता से बढ़ी। नगरों का व्यापारिक विकास होने से दैनिक जीवन में अनेक परिवर्तन हुए तथा व्यापार और उद्योगों का तीव्र गति से विकास हो गया।
  2. गन्दी बस्तियों में वृद्धि :
    इस औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप श्रमिकों ने अपने-अपने कारखानों के आस-पास अव्यवस्थित बस्तियों का निर्माण कर लिया। यहाँ पर अनियोजित ढंग से मकान बने, जिनमें गन्दे पानी के निकास के साधन तक नहीं थे। श्रमिकों की ये बस्तियाँ बीमारी और गन्दगी का केन्द्र थी। कालान्तर में इसका यह परिणाम हुआ कि श्रमिकों ने अपनी सुव्यवस्थित आवास की माँगों की पूर्ति के लिए आन्दोलन भी चलाए।
  3. सामाजिक जीवन में परिवर्तन :औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप सामाजिक जीवन में अनेक परिवर्तन हुए। समाज में ‘पूँजीपति’ और ‘श्रमिक’ नामक दो नए वर्गों को उदय हुआ। इन दोनों वर्गों में परस्पर संघर्ष चलता रहता था। सामाजिक जीवन में एक उल्लेखनीय परिवर्तन यह भी हुआ कि श्रमिकों के अपने परिवारों से पृथक् चले जाने के कारण पारिवारिक विघटन प्रारम्भ हो गया। इसके अतिरिक्त, सामाजिक जीवन का मापदण्ड भौतिक साधनों की सम्पन्नता हो गया।
  4. उद्योगपतियों का विलासी जीवन :
    विशाल उद्योगों से उद्योगपतियों को निरन्तर आर्थिक लाभ प्राप्त हो रहा था। इससे उनका जीवन विलासितापूर्ण होता जा रहा था। उनके भौतिक सुख-साधन बढ़ने लगे ओर वे धन के बल पर विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे।
  5. आर्थिक जीवन पर प्रभाव :
    औद्योगिक क्रान्ति ने मानव के आर्थिक जीवन का रूप ही बदल | दिया, जिससे राज्य की आय भी बढ़ी। उद्योगों के स्वामियों के पास धन की निरन्तर अभिवृद्धि हो रही थी। आर्थिक जीवन में छोटे व्यवसायियों का महत्त्व घट गया और उनके पास धन का अभाव रहने लगा। किसी भी देश के आर्थिक स्तर का मापदण्ड उसके विशाल उद्योगों को ही। स्वीकार किया जाने लगा।
  6.  समाजवाद का विकास :
    औद्योगिक क्रान्ति का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव समाजवादी विचारधारा का विकास था। यह एक श्रमिक आन्दोलन था। सम्पूर्ण विश्व में समाजवाद के सिद्धान्त का विकास औद्योगिक क्रान्ति की ही देन था।
  7. कृषि व यातायात के क्षेत्र में क्रान्ति :
    औद्योगिक क्रान्ति का सबसे उपयोगी और व्यावहारिक प्रभाव यह रहा कि इससे कृषि-जगत और यातायात के संसाधनों में क्रान्ति आ गई। कृषि-यन्त्रों की सहायता से खाद्यान्नों के उत्पादन में कई गुना वृद्धि हुई और कृषकों की दशा में विशेष सुधार हुआ।
  8. राष्ट्रीय आय में वृद्धि :
    औद्योगिक क्रान्ति के कारण विभिन्न देशों में तीव्र गति से औद्योगीकरण हुआ। अब देश और विदेशों में बड़े पैमाने पर तैयार माल बेचा जाने लगा। व्यापार में वृद्धि होने से राष्ट्रीय आय में भी भारी वृद्धि हो गई।
  9. रहन :
    सहन के स्तर में वृद्धि औद्योगिक क्रान्ति के कारण आजीविका के साधनों में भारी वृद्धि हो गई, जिससे नागरिकों की आय बढ़ गई। प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो जाने के कारण मध्यवर्गीय लोग भी महँगी और पहले की अपेक्षा अधिक वस्तुओं का उपभोग करने लगे, जिससे उनके रहन-सहन के स्तर में सुधार आ गया। परिणामतः नागरिकों का जीवन स्तर ऊँचा उठ गया।
  10. जनसंख्या में वृद्धि :
    औद्योगिक क्रान्ति ने आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता उत्पन्न कर दी। अब नागरिक सुखी एवं वैभवपूर्ण जीवन-यापन करने लगे। परिणामत: जनसंख्या अबाध गति से बढ़ने लगी। विशेषतः नगरों में श्रमिकों का जमाव हो जाने के काण जनसंख्या अधिक हो गई।
  11.  कुटीर उद्योग :
    धन्धों का विनाश-औद्योगिक क्रान्ति का छोटे-छोटे कुटीर उद्योग-धन्धों पर सर्वाधिक दुष्प्रभाव पड़ा। बड़े पैमाने के उद्योगों की स्थापना की होड़ में कुटीर उद्योग-धन्धों का विनाश हो गया।
  12.  नवीन आविष्कारों का जन्म :
    औद्योगीकरण की प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने नई मशीनें, उपकरण तथा नई प्रविधियाँ खोज निकाली, जिससे नए आविष्कारों को प्रोत्साहन मिला। लोग नए आविष्कारों की खोज में दत्तचित्त होकर जुट गए।
  13.  धार्मिक प्रभाव :
    औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज के धार्मिक मूल्यों, विश्वासों और धार्मिक मान्यताओं में अनेक परिवर्तन’ हुए। उत्पादन के विभिन्न साधन सुलभ हो जाने से लोगों की इच्छाएँ असीमित होती चली गई और वे भौतिकवादी होते चले गए। धन के आधार पर ही व्यक्ति का मूल्यांकन किया जाने लगा और नैतिकता, सदाचरण, चरित्र आदि को विस्मृत किया। जाने लगा। धनागम में लिप्त व्यक्ति आत्मापरमात्मा, माया-मोह आदि के प्रति अपनी अनास्था प्रकट करने लगे, यहाँ तक कि धर्म को भी अपना स्वार्थ की पूर्ति का साधन बनाया जाने लगा। इसके फलस्वरूप धर्म का महत्त्व कम होने लगा।

प्रश्न 5.
औद्योगिक क्रान्ति ने समाजवाद को किस प्रकार प्रारम्भ किया ? 
उत्तर :

समाजवाद का अर्थ

समाजवाद की अनेक परिभाषाएँ दी जाती हैं। सामान्य शब्दों में, समाजवाद का अर्थ यह है कि समाज में सभी मनुष्य बराबर हों, सभी के पास धन-सम्पत्ति हो तथा सभी को जीवनोपयोगी सामग्री सुविधाजनक ढंग से उपलब्ध हो। इस तरह समाजवाद का अर्थ व्यवहार में मानवीय अधिकारों की समानता से है। आर्थिक दृष्टि से समाजवाद उस व्यवस्था का नाम है जिसमें उत्पत्ति के साधनों पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार न होकर, पूरे समाज का अधिकार होता है। रॉबर्ट (Robert) के अनुसार, “समाजवादी कार्यक्रम का यह एक आवश्यक भाग है कि भूमि तथा उत्पादन के अन्य साधनों पर जनता का अधिकार हो तथा उनको प्रयोग और प्रबन्ध जनता द्वारा जनता के लाभ के लिए ही किया जाए।

औद्योगिक क्रान्ति से समाजवाद का प्रारम्भ

औद्योगिक क्रन्ति के फलस्वरूप समाज में दो वर्गों का उदय हुआ। एक वर्ग औद्योगिक संस्थानों के स्वामियों का था जो धीरे-धीरे सम्पन्न होता जा रहा था। इसके सुखों और भोग-विलासों में निरन्तर वृद्धि हो रही थी। यह वर्ग पूँजीपति कहलाने लगा। समाज में दूसरा वर्ग श्रमिकों का था। शोषण के कारण श्रमिक वर्ग की दशा बड़ी दयनीय थी। श्रमिक दिन-रात अथक परिश्रम करके अपने स्वामियों के लिए अपार धन अर्जित कर रहे थे। परन्तु उन्हें इतना पारिश्रमिक भी नहीं मिलता था जिससे ये अपने परिवार के लिए पेटभर भोजन भी जुटा सकें। यहाँ तक कि इनकी बस्तियाँ भी बहुत गन्दी थीं। फलस्वरूप इन श्रमिकों में पूँजीपतियों के विरुद्ध रोष उत्पन्न होने लगा था। धीरे-धीरे कुछ असन्तुष्ट श्रमिकों ने अपने व्यवस्थित श्रमिक संगठन बना लिए। इन्होंने पूँजीपति वर्ग के विरुद्ध अपने जीवन की आवश्यक सुविधाओं की प्राप्ति के लिए संघर्ष प्रारम्भ कर दिए। इनका उद्देश्य समाज के प्रत्येक प्राणी को विभिन्न सुविधाओं के उपभोग के समान अवसर सुलभ कराना था। इसलिए इनके आन्दोलन कोसमाजवादी आन्दोलन कहा जाता है। इन्होंने अपने समाजवाद के आधार पर पूँजीवाद को समाप्त करने का उद्घोष किया, जिसका आशय था कि ‘समस्त साधनों का उपभोग समस्त जनता को मिलना चाहिए। पूँजी पर सभी का समान नियन्त्रण एवं अधिकार हो तथा उत्पादन में भी जनता के सहयोग से ही हो।’ इस तरह समाजवाद में लोकहितकारी भावना अन्तर्निहित थी। इस भावना के कारण ही इसे अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई। फ्रांस में समाजवाद का विकास लुई ब्लाँ और चार्ल्स फोरियर आदि द्वारा किया गया। जर्मनी में कार्ल माक्र्स ने समाजवाद को क्रमबद्ध नियमों के आधार पर अभिव्यक्त कर विश्वव्यापी बना दिया। यह समाजवाद इतना प्रभावशाली सिद्ध हुआ कि आज विश्व के अनेक देशों में समाजवादी सरकारें स्थापित हो गई हैं। यह समाजवाद औद्योगिक क्रान्ति की ही देन है। औद्योगिक क्रान्ति ने जिस पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को जन्म दिया, उसी के विरोधस्वरूप समाजवादी अर्थव्यवस्था पनपी। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि समाजवाद औद्योगिक क्रान्ति की ही देन है। यह पूँजीपतियों के शोषण से बचाव का नया शास्त्र था। समाजवाद श्रमिकों के मुक्तिदाता के रूप में प्रकट हुआ। कार्ल मार्क्स का मत है कि पूँजीवाद के विनाश के बीज समाजवाद के गर्भ में ही छिपे हैं। वास्तव में औद्योगिक श्रमिकों ने ही पूँजीवाद का अन्त करने के लिए समाजवाद को जन्म दिया है।

प्रश्न 6.
औद्योगिक 
क्रान्ति यूरोप के किन-किन देशों में फैली है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :

औद्योगिक क्रान्ति से प्रभावित यूरोपीय देश

15वीं शताब्दी में विश्व में सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति आरम्भ हुई। यहीं से औद्योगिक क्रान्ति मुख्य रूप से विभिन्न देशों में बहुत तेजी से फैली। औद्योगिक क्रान्ति से प्रभावित विभिन्न यूरोपीय देश इस प्रकार थे

  1. इंग्लैण्ड :
    इंग्लैण्ड स्वयं को यूरोप महाद्वीप से पृथक् रखकर एक अलग महाद्वीप के रूप में स्वीकार करता है। वास्तव में यूरोप की सांस्कृतिक स्थिति का कर्णधार इंग्लैण्ड ही रहा है। विश्व में औद्योगिक क्रान्ति का जन्मदाता भी इंग्लैण्ड ही है। अनेक क्षेत्रों में मशीनी उद्योगों की विशाल स्तर पर स्थापना सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में ही हुई। वस्त्र उद्योग, कृषि उद्योग, यातायात आदि का दुत विकास भी इंग्लैण्ड में ही हुआ। यहीं से इन उद्योगों का फैलाव समस्त यूरोप में हुआ।
  2.  फ्रांस :
    यूरोप महाद्वीप में सम्मिलित फ्रांस देश में भी औद्योगिक विकास बड़ी शीघ्रता से और विशाल पैमाने पर हुआ था। 1830 ई० के बाद सम्राट लुई फिलिप के काल में औद्योगिक क्रान्ति अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई थी। वहाँ रेलमार्गों का विकास हुआ और सड़कों का तेजी से निर्माण हुआ। फ्रांस में औद्योगिक क्रान्ति ने श्रमिकों के आन्दोलनों को भी जन्म दिया।
  3.  जर्मनी और इटली :
    जर्मनी और इटली में भी औद्योगिक विकास तेजी से हुआ। छापेखाने का उद्योग जर्मनी में ही विकसित हुआ। जर्मनी में मशीनों के निर्माण का उद्योग अधिक प्रगति कर गया। इटली में भी एकीकरण के बाद पूँजीपतियों और उद्योगपतियों द्वारा उद्योगों की स्थापना में विशेष रुचि ली गई। इटली में यातायात के साधनों के निर्माण का उद्योग बहुत बड़े पैमाने पर विकसित हुआ।
  4.  रूस :
    यूरोप के विशाल और शक्तिशाली देश रूस में जार सम्राटों की निरंकुशता के कारण औद्योगिक क्रान्ति देर से हो पाई थी। वहाँ जार अलेक्जेण्डर द्वितीय के समय से उद्योगों की स्थापना होनी प्रारम्भ हुई। 1917 ई० की क्रान्ति के बाद रूस में भी औद्योगिक विकास बड़ी शीघ्रता से हुआ था।
    इसके फलस्वरूप रूस औद्योगिक दृष्टि से इतना अधिक विकसित होता गया कि वह विज्ञान और तकनीकी विकास में किसी भी यूरोपीय देश से पीछे नहीं रहा। इस प्रकार औद्योगिक क्रान्ति अपने जन्म-स्थान इंग्लैण्ड से शनैः शनैः यूरोप के अन्य देशों में फैलती चली गई। इसका प्रसारे इतनी तीव्र गति और प्रभावी ढंग से हुआ कि इसने समस्त यूरोपीय देशों को अपने में समेट लिया। सभी यूरोपीय देश औद्योगिक क्रान्ति से प्रभावित हो उठे।

प्रश्न 7.
औद्योगिक क्रान्ति का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
औद्योगिक क्रान्ति के भारतीय अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े

  1. औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व भारत से अनेक वस्तुओं का निर्यात होता था, परन्तु औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् भारत के इस निर्यात को बड़ा धक्का लगा।
  2.  औद्योगिक क्रान्ति के कारण इंग्लैण्ड में विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन तीव्र गति से होने लगा। इस माल के विक्रय के लिए अंग्रेजों को बाजार चाहिए था। भारत की मण्डियों में ब्रिटेन में बना माल भर दिया गया। भारत निर्यात करने वाले देश के स्थान पर आयात करने वाला देश बनकर रह गया।
  3. भारत में विभिन्न लघु उद्योग और दस्तकारियाँ ठप्प हो गईं।
  4.  औद्योगिक क्रान्ति का भारत के कारीगरों और दस्तकारों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा। वे बेरोजगार हो गए और गरीबी का जीवन व्यतीत करने पर मजबूर हो गए।
  5. देश में कृषि में अनेक लोग लगे हुए थे। परन्तु कारीगरों और दस्तकारों के बेरोजगार हो जाने से कृषि पर और बोझ बढ़ गया। इस प्रकार किसानों का जीवन और भी दूभर हो गया और भारत अब पूर्णतया कृषिप्रधान देश बनकर रह गया।
  6. देश में बनी हुई वस्तुएँ इंग्लैण्ड से आने वाली वस्तुओं का मुकाबला नहीं कर सकीं। देश में बनी  वस्तुओं पर भारी कर लगा दिया गया था।
  7. अधिक लाभ उठाने के उद्देश्य से अंग्रेजी सरकार ने भातीय किसानों को अपना कच्चा माल सस्ते दामों पर बेचने के लिए मजबूर कर दिया। यह लूट-खसोट की नीति औद्योगिक क्रान्ति का ही परिणाम थी।
  8.  अन्त में कहा जा सकता है कि इंग्लैण्ड में होने वाली औद्योगिक क्रान्ति भारत की निर्धनता को एक प्रमुख कारण बनी। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था का ढाँचा ही बदल दिया।

We hope the UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 9 The Industrial Revolution help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 9 The Industrial Revolution , drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 8 Confrontation of Cultures

UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 8 Confrontation of Cultures (संस्कृतियों का टकराव)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 History . Here we have given UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 8 Confrontation of Cultures

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
संक्षेप में उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
एजटेक और मेसोपोटामियाई लोगों की सभ्यता की तुलना कीजिए।
उत्तर :
एजटेक और मेसोपोटामियाई लोगों की सभ्यता की तुलना निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर की जा सकती है

  1.  एजटेक सभ्यता के लोगों को कृषि का ज्ञान तो था परन्तु पशुपालन का ज्ञान नहीं था। मेसोपोटामिया के लोग कृषि और पशुपालन दोनों करते थे।
  2. एजटेक सभ्यता के लोगों की भाषा नाहुआट थी। उन्होंने चित्रात्मक ढंग से इतिहास की घटनाओं का अभिलेखों के रूप में वर्णन किया है। मेसोपोटामिया के लोग कलाकार लिपि का प्रयोग करते थे। एक प्रकार से यह भी चित्रात्मक लिपि थी।
  3. एजटेक सभ्यता वालों के पंचांग के अनुसार एक वर्ष में 260 दिन होते थे। उनका पंचांग धार्मिक समारोहों से जुड़ा था। मेसोपोटामिया वालों ने चन्द्रमा पर एक पंचांग का निर्माण किया। उसमें 30-30 दिनों के बारह महीने होते थे।
  4.  एजटेक सभ्यता के समान मेसोपोटामिया का समाज भी अनेक वर्गों में विभाजित था।

प्रश्न 2.
ऐसे कौन-से कारण थे जिनसे 15वीं शताब्दी में यूरोपीय नौचालन को सहायता मिली?
उत्तर :
निम्नलिखित कारणों से यूरोपीय नौचालन में सहायता प्राप्त हुई

  1.  नौका का आकार बड़ा हो गया था और इसमें अधिक सामान भरा जा सकता था।
  2.  नौकाएँ शस्त्रों से सुसज्जित थीं ताकि आक्रमण के समय स्वयं की रक्षा कर सकें।
  3. 15वीं सदी में यात्रा-साहित्य का खूब प्रचार-प्रसार हुआ।।
  4. विश्व की रचना पर जानकारी प्राप्त होने लगी थी और भूगोल विषय उन्नति पर था। इससे लोगों | की रुचि में वृद्धि हुई।

प्रश्न 3.
किन कारणों से स्पेन और पुर्तगाल ने पन्द्रहवीं शताब्दी में सबसे पहले अटलाण्टिक महासागर के पार जाने का साहस किया?
उत्तर :
निम्नलिखित कारणों से स्पेन और पुर्तगाल ने 15वीं सदी में सबसे पहले अटलाण्टिक महासागर के पार जाने का साहस किया

  1.  स्पेन और पुर्तगाल के लोग अन्य देशों में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे।
  2.  वे विभिन्न देशों के साथ व्यापार करना चाहते थे।
  3. इन देशों की आर्थिक स्थिति विभिन्न कारणों से दयनीय हो गई थी। विशेष रूप से सोने-चाँदी की कमी हो गई थी। इन धातुओं से सिक्के बनाए जाते थे। दूसरे देशों की यात्राओं से ये धातुएँ । प्राप्त की जा सकती थीं।

प्रश्न 4.
कौन-सी नई खाद्य वस्तुएँ दक्षिणी अमेरिका से बाकी दुनिया में भेजी जाती थीं?
उत्तर :
दक्षिणी अमेरिका से बाकी दुनिया को भेजी जाने वाली खाद्य वस्तुएँ निम्नलिखित थीं आलू, तम्बाकू, गन्ने से बनी चीनी, रबड़, लाल मिर्च, इमारती लकड़ी, कोको और चॉकलेट बनाने के लिए ककाओ।

प्रश्न 5.
गुलाम के रूप में पकड़कर ब्राजील ले जाए गए एक सत्रह वर्षीय अफ्रीकी लड़के की यात्रा का वर्णन करें।
उत्तर :
अफ्रीका से जहाज द्वारा ब्राजील की यात्रा एक 17 वर्षीय लड़के को गुलाम के रूप में अफ्रीका से पकड़ा जाता है। वह सहम जाता है। जिसने उसे पकड़ा था वह अब उसका मालिक हो गया था। लड़का मालिक के साथ चल देता है। मालिक उसे इबोलैण्ड ले जाता है। वहाँ से उसे कैरीबियन द्वीप समूह और उत्तरी अमेरिका के लिए भेजा जाता है। रास्ते में जहाज में बालक को विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उसे अपने घर की याद आती है, किन्तु वह स्वतन्त्र नहीं था इसलिए कुछ नहीं कर सकता था।UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 8 Confrontation of Cultures image 1

प्रश्न 6.
दक्षिणी अमेरिका की खोज ने यूरोपीय उपनिवेशवाद के विकास को कैसे जन्म दिया?
उत्तर :
अटलाण्टिक महासागर के तट पर स्थित ऐसे अनेक देश थे; विशेष रूप से इंग्लैण्ड, फ्रांस, बेल्जियम और हॉलैण्ड, जिन्होंने इन खोजों का लाभ उठाया और उनके उपनिवेश स्थापित किए। इन देशों के व्यापारियों ने संयुक्त पूँजी कम्पनियाँ बनाईं और बड़े-बड़े व्यापारिक अभियान चलाए। यूरोप में अमेरिका से आए सोने-चाँदी ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और औद्योगीकरण का भरपूर विस्तार किया। यूरोपवासियों को नई दुनिया में पैदा होने वाली नई-नई वस्तुओं; जैसे तम्बाकू, आलू, गन्ने से बनी चीनी, रबड़ आदि का ज्ञान हुआ जिसे वे उपनिवेशों से प्राप्त करने का प्रयास करने लगे।

परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
डच्च इण्डिया की स्थापना किस वर्ष हुई थी?
(क) 1602 ई० में
(ख) 1603 ई० में
(ग) 1604 ई० में
(घ) 1605 ई० में
उत्तर :
(क) 1602 ई० में

प्रश्न 2.
पिजारों ने इंका राज्य को जीता
(क) 1532 ई० में
(ख) 1533 ई० में
(ग) 1534 ई० में
(घ) 1535 ई० में
उत्तर :
(क) 1532 ई० में

प्रश्न 3.
माया लोगों के पंचांग में वर्ष में कितने होते थे?
(क) 365
(ख) 365
(ग) 366
(घ) 368
उत्तर :
(क) 365

प्रश्न 4.
माया पंचांग में प्रत्येक मास कितने दिन का होता था?
(क) 20 दिन
(ख) 24 दिन
(ग) 21 दिन
(घ) 22 दिन
उत्तर :
(क) 20 दिन

प्रश्न 5.
सूडानी सभ्यता का केन्द्र नहीं था
(क) घाना
(ख) माली
(ग) बोनू
(घ) डेन्यूब
उत्तर :
(घ) डेन्यूब

प्रश्न 6.
स्वाहिली क्या है?
(क) तटबन्ध
(ख) राज्य
(ग) भाषा
(घ) संस्कृति
उत्तर :
(ग) भाषा

प्रश्न 7.
झुलते बाग किस सभ्यता की विशेषता थी?
(क) पेरू
(ख) हड़प्पा
(ग) इंका
(घ) आर्य
उत्तर :
(ग) इंका

प्रश्न 8.
वास्कोडिगामा कालीकट किस वर्ष में पहुँचा था?
(क) 1498 ई० में
(ख) 1460 ई० में
(ग) 1475 ई० में
(घ) 1480 ई० में
उत्तर :
(क) 1498 ई० में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्तमाशा अन्तरीप की खोज किसने की थी?
उत्तर :
उत्तमाशा अन्तरीप की खोज बारथोलोम्यु डियाज नामक एक पुर्तगाली नाविक ने की थी।

प्रश्न 2.
वास्कोडिगामा कालीकट कब आया था?
उत्तर :
वास्कोडिगामा 1498 ई० में कालीकट (भारत) आया था

प्रश्न 3.
विश्व की जलमार्ग द्वारा प्रथम परिक्रमा किसने की थी?
उत्तर :
विश्व की जलमार्ग द्वारा प्रथम परिक्रमा मैगलेन नामक नाविक ने की थी?

प्रश्न 4.
अमेरिका की खोज किसने की थी?
उत्तर :
अमेरिका की खोज सर्वप्रथम कोलम्बस ने की थी।

प्रश्न 5.
भौगोलिक खोजों के दो।रिणाम लिखिए।
उत्तर :

  1.  उपनिवशवाद का विस्तार और
  2.  विश्व व्यापार में वृद्धि

प्रश्न 6.
उपनिवेशवाद का क्या अर्थ है?
उत्तर :
उपनिवेशवाद उन राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक नीतियों का नाम है, जिनके आधार पर कोई भी साम्राज्यवादी शक्ति दूसरे देशों पर अपना प्रभुत्स बनाए रखना अथवा इसका विस्तार करना चाहती है।

प्रश्न 7.
रोम के पोप ने विश्व का विभाजन किन दो देशों के मध्य किया था?
उत्तर :

  1. पुर्तगाल और
  2.  स्पेन

प्रश्न 8.
भारत में दो पुर्तगाली उपनिवेशों के नाम बताइए।
उत्तर :

  1.  गोवा और
  2. दादरा

प्रश्न 9.
अरावाकी लुकायो समुदायों के लोग कहाँ निवास करते थे?
उत्तर :
अरावाकी लुकायो कैरीबियन सागर, कैरीबियन प्रदेश और ब्राजील के बहामा, ग्रेटर ऐण्टिलीज में रहते थे।

प्रश्न 10.
तुपिनांबा कौन थे?
उत्तर :
तुपिनांबा दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट और ब्राजील नामक पेड़ के जंगलों के निवासी थे।

प्रश्न 11.
नई दुनिया की खोज कब तथा किसने की? इसका नाम अमेरिका किसने रखा?
उत्तर :
नई दुनिया की खोज 1492 ई० में कोलम्बस ने की। इसका अमेरिका नाम एक जर्मन प्रकाशक द्वारा 1507 ई० में रखा गया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
माया लोगों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ क्या थी?
उत्तर :
माया लोगों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ निम्नलिखित थीं

  1.  माया सभ्यता के लोगों ने अनेक इमारतें; जैसे-वैधशालाएँ तथा पिरामिड आदि बनवाए।
  2.  माया लोगों के पंचांग में वर्ष 365 दिन का था परन्तु उनके वर्ष का विभाजन 18 महीनों में होता था। प्रत्येक महीना 20 दिन का होता था।
  3.  माया सभ्यता के लोगों को गणित का ज्ञान था तथा उनके पास शून्य के लिए भी प्रतीक चिह्न था
  4. माया लोगों की लिपि अंशत: चित्रात्मक थी।
  5.  माया के लोग लिखने के लिए भोजपत्रों या एक प्रकार के कागज का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 2.
एजटेक लोगों के सामाजिक वर्गीकरण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
एजटेक समाज अनेक उच्च और निम्न श्रेणियों में विभाजित था। सर्वोच्च वर्ग सामन्ती वर्ग था जो जन्म से सामन्त और पुरोहित होते थे। ये लोग सरकार, सेना और पुरोहित के कार्य के उच्च पदों पर आसीन थे। इनका समाज में सर्वाधिक सम्मान था। इसके बाद व्यापारियों का महत्त्व था। ये गुप्तचरों , और राजदूतों के रूप में भी कार्य करते थे। प्रतिभाशाली शिल्पियों, कलाकारों, चिकित्सकों और विशिष्ट अध्यापकों को भी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था।

प्रश्न 3.
इंका लोगों के आर्थिक जीवन के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
इंका सभ्यता की जीविका का आधार कृषि था किन्तु उनके यहाँ कृषि योग्य उपजाऊ भूमि नहीं थी। उन्होंने पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन को समतल बनाकर सीढ़ीदार खेत तैयार किए। उन्होंने सिंचाई की प्रणाली और जल निकासी विकसित की। इंका लोग अनाज में मक्को और आलू उगाते थे, भोजन तथा श्रम के लिए लोग लामा पालते थे।

प्रश्न 4.
इंका सभ्यता की कला के विषय में आप क्या जानते हैं? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :

इंका लोगों की कला

  1. इंका लोगोंकी मिट्टी के बर्तन बनाने और बुनाई की कला उच्चकोटि की थी।
  2.  इंका लोगों ने लेखन की किसी प्रणाली का विकास नहीं किया था, किन्तु उनके पास हिसाब लगाने की एक प्रणाली अवश्य थी।
  3. वे क्विपु या डोरियों पर गाँठे लगाकर गणितीय इकाइयों का हिसाब रखते थे। कुछ इतिहासकारों का मत है कि इंका लोग इन धागों में एक प्रकार का गुप्त संकेत बुनते थे।
  4. उन्होंने चट्टानों से सुन्दर भवनों का निर्माण किया। राजमिस्त्री पथरों को सुन्दर रूप देने के लिए शल्कल पद्धति का उपयोग करते थे।

प्रश्न 5.
उत्तमाशा अन्तरीप की खोज किस प्रकार हुई थी?
उत्तर :
उत्तमाशा अन्तरीप की खोज एक समुद्र-यात्री बारथोलोम्युडियाज ने की थी। 1486 ई० में बारथोलोम्यु अनेक कठिनाइयाँ सहन करने के बाद अफ्रीका के दक्षिणी तट पर पहुँचा, जिसे उसने ‘तुफानों का अन्तरीप’ नाम दिया। बाद में पुर्तगाल के शासक ने इसका नाम ‘उत्तमाशा अन्तरीप’ (Cape of Good Hope) रख दिया।

प्रश्न 6.
कोलम्बस की भौगोलिक खोजों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
स्पेनिश राजा फड़नेण्ड की सहायता पाकर साहसी नाविक कोलम्बस 1492 ई० में तीन समुद्री जहाजों को लेकर भारत की खोज के लिए निकला। परन्तु तैंतीस दिन की समुद्री यात्रा के पश्चात् (वास्तव में उचित मार्ग से भटककर) वह एक नई भूमि पर पहुंच गया। पहले वह समझा कि यह भारत भूमि ही है, परन्तु वास्तव में यह नई दुनिया थी। बाद में इटली का एक नाविक अमेरिगो भी यहीं पर पहुंचा। उसी के नाम पर इसका नाम ‘अमेरिका’ पड़ा।

प्रश्न 7.
न्यूफाउण्डलैण्ड और लेब्रेडोर की खोज किसने की?
उत्तर :
यूरोप महाद्वीप के लिए न्यूफाउण्डलैण्ड की खोज इंग्लैण्ड के नाविक जॉन कैबेट की देन थी। 1497 ई० में जॉन कैबेट इंग्लैण्ड के राजा हेनरी सप्तम की सहायता से पश्चिमी समुद्र की ओर निकला। साहसी नाविक जॉन कैबेट उत्तरी अटलाण्टिक महासागर को पार कर कनाडा के समुद्रतट पर पहुँच गया और उसने न्यूफाउण्डलैण्ड की खोज की। त्र सेबासटियन कैबेट ने लेब्रेडोर की खोज की।

प्रश्न 8.
वास्कोडिगामा भारत किस प्रकार पहुँचा?

उत्तर :
यूरोप और भारत के मध्य समुद्री मार्ग की खोज पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा ने की थी। वास्कोडिगामा पुर्तगाल के राजा से आर्थिक सहायता प्राप्त कर इस अभियान पर निकला था। यह नाविक अफ्रीका के पश्चिमी तट से होता हुआ उत्तमाशा अन्तरीप पहुँचा, फिर हिन्द महासागर से होते हुए जंजीबार और वहाँ से पूर्व की ओर बढ़ा। यहाँ से वह भारत के पश्चिमी तट पर स्थित कालीकट के , बन्दरगाह पर पहुँचा।

प्रश्न 9.
भौगोलिक खोजों का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
भौगोलिक खोजों के द्वारा समुद्री मार्ग ढूंढ़ निकालने के कारण यूरोपीय लोगों ने व्यापारिक और औद्योगिक क्षेत्रों में विशेष प्रगति की। इससे उन्हें विश्व की उन्नत सभ्यताओं का ज्ञान ही प्राप्त नहीं हुआ। वरन् उन्होंने अन्य देशों में अपनी सभ्यता एवं संस्कृति का प्रचार और प्रसार भी किया। इससे विश्व में पुनर्जागरण की प्रक्रिया तीव्र हो गई। कोपरनिकस और गैलीलियो की खोजों ने मानव को विश्व के प्रति नई संकल्पना प्रदान की। इस ज्ञान ने मानव के अन्धविश्वासों के भ्रमजाल को तोड़ दिया और उसमें नवीन विचारों और दृष्टिको प्रों को विकसित किया। पृथ्वी को गोल सिद्ध करके भूगोलविदों ने विश्व-परिक्रमा के द्वार खोल दिए। इन्हीं खोजों ने यूरोपवासियों को साम्राज्य विस्तार के लिए प्रेरित किया। इन्हीं खोजों के कारण यूरोपीय सभ्यता अमेरिका तथा पूर्वी देशों तक पहुँचने में सफल हुई। इन खोजों के कारण मानव मध्य युग के अन्धविश्वासों को त्यागकर नवयुग के प्रकाश की ओर बढ़ चल’

प्रश्न 10.
भौगोलिक खोजों के परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
भौगोलिक खोजों के अनेक महत्त्वपूर्ण परिणाम भी हुए, जिनका विवरण इस प्रकार है

  1. भौगोलिक खोजों के परिणामस्वरूप भारत जाने का छोटा और नया मार्ग खुल गया।
  2. नए व्यापारिक मार्गों की खोज के कारण विश्व के व्यापार में तेजी के साथ वृद्धि होने लगी।
  3.  यूरोप में बड़े-बड़े व्यापारिक केन्द्रों का विकास होने लगा और इंग्लैण्ड, फ्रांस, स्पेन तथा पुर्तगाल देश धनी और शक्तिशाली होने लगे।
  4.  यूरोपीय देशों में अपने उपनिवेश बनाने और अपना साम्राज्य बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा प्रारम्भ हो गई।
  5.  यूरोप के शरणार्थी अमेरिका में आकर बसने लगे ओर वहाँ अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को विकास करने लगे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कैरीबियन द्वीपसमूह की अरावाक संस्कृति और ब्राजील के तुपिनांबा लोगों के विषय में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
अरावाकी लुकायो समुदाय के लोग कैरीबियन सागर में स्थित छोटे-बड़े सैकड़ों द्वीपसमूहों (जिन्हें आज बहामा कहा जाता है) और वृहत्तर ऐण्टिलीज में निवास करते थे। कैरिब नाम के एक खुखार कबीले ने उन्हें लघु ऐण्टिलीज प्रदेश से भगा दिया था। इसके विपरीत, अरावाक लोग लड़ने की बजाय बातचीत से झगड़ा निपटाना अधिक पसन्द करते थे। वे कुशल नौका-निर्माता थे (वे पेड़ के खोखले तनों सेअपनी डोंगियाँ बनाते थे) और डोंगियों में बैठकर खुले समुद्र की यात्रा किया करते थे। वे खेती, शिकार और मछली पकड़कर अपना जीवन-निर्वाह करते थे। खेती में वे मक्का, मीठे आलू और अन्य किस्म के कन्द-मूल और कसावा उगाते थे। अरावाक संस्कृति के लोगों के मुख्य सांस्कृतिक मूल्य थे कि वे सब एक साथ मिलकर खाद्य उत्पादन करें जिससे समुदाय के प्रत्येक सदस्य को भोजन प्राप्त हो। वे अपने वंश के वृद्धों के अधीन संगठित रहते थे। उनमें बहुविवाह प्रथा प्रचलित थी। वे जीववादी थे।

अन्य अनेक समाजों के समान अरावाक समाज में भी शमन लोग कष्ट निवारकों और इहलोक तथा परलोक के बीच मध्यस्थों के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते थे। अरावाक लोग सोने से बने आभूषण पहनते थे पर यूरोपवासियों की तरह सोने को उतना महत्त्व नहीं देते थे। उन्हें अगर कोई यूरोपवासी सोने के बदले काँच के मनके दे देता था तो वे प्रसन्न होते थे क्योंकि उन्हें कॉच का मनका अधिक सुन्दर दिखाई देता था। उनमें बुनाई की कला बहुत विकसित थी-हैमक यानी झूले का इस्तेमाल उनकी एक विशेषता थी जिसे यूरोपीय लोगों ने बहुत पसन्द किया। अरावाकों का व्यवहार अत्यन्त उदारतापूर्ण होता था और वे सोने की तलाश में स्पेनी लोगों का साथ देने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। लेकिन कालान्तर में जब स्पेन की नीति क्रूरतापूर्ण हो गई तब उन्होंने उनका विरोध किया परन्तु उन्हें उसके विनाशाकरी परिणाम भुगतने पड़े। स्पेनी लोगों के सम्पर्क में आने के बाद लगभग पच्चीस वर्ष के भीतर ही अरावाकों और उनकी जीवन शैली का लगभग परिवर्तन ही हो गया।
UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 8 Confrontation of Cultures image 2
‘तुपिनांबा’ कहे जाने वाले लोग दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी समुद्रतट पर और ब्राजील नामक पेड़ों के जंगलों में बसे हुए गाँवों में रहते थे। (ब्राजील पेड़ के नाम पर ही इस प्रदेश का नाम ब्राजील पड़ा)। वे खेती के लिए घने जंगलों का सफाया नहीं कर सके क्योंकि पेड़ काटने का कुल्हाड़ा बनाने के लिए उनके पास लोहा नहीं था। लेकिन उन्हे बहुतायत से फल, सब्जियाँ और मछलियाँ मिल जाती थीं जिससे उन्हें खेती पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था। जो यूरोपवासी उनसे मिले, वे उनकी खुशहाल आजादी को देखकर उनसे ईर्ष्या करने लगे, क्योंकि वहाँ न कोई राजा था, न सेना और न ही कोई चर्च था जो उनके जीवन को नियन्त्रित कर सके।

प्रश्न 2.
एजटेक संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
बारहवीं शताब्दी में एजटेक लोग उत्तर से आकर मेक्सिको की मध्यवर्ती घाटी में बस गए थे। (इस घाटी का यह नाम उनके मेक्सिली नामक देवता के नाम पर पड़ा था) उन्होंने अनेक जनजातियों को परास्त करके अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया और उन पराजित लोगों से कर वसूल करने लगे एजटेक समाज श्रेणीबद्ध था। अभिजात वर्ग में वे लोग सम्मिलित थे जो उच्च कुलोत्पन्न, पुरोहित, अथवा जिन्हें बाद में यह प्रतिष्ठा प्रदान कर दी गई थी। पुश्तैनी अभिजातों की संख्या बहुत कम थी और वे सरकार, सेना तथा पौरोहित्य कर्म से उच्च पदों पर आसीन थे। अभिजात लोग अपने में से एक सर्वोच्च नेता चुनते थे जो आजीवन शासक बना रहता था। राजा पृथ्वी पर सूर्य देवता का प्रतिनिधि माना जाता था। योद्धा, पुरोहित और अभिजात वर्गों को सर्वाधिक सम्मान दिया जाता था, लेकिन व्यापारियों को भी अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे और उन्हें अक्सर सरकारी राजदूतों और गुप्तचरों के रूप में सेवा करने का अवसर दिया जाता था।

प्रतिभाशाली शिल्पियों, चिकित्सकों और विशिष्ट अध्यापकों को भी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। चूंकि एजटेक लोगों के पास भूमि की कमी थी इसलिए उन्होंने भूमि उद्धार (reclamation, ज ल में से जमीन लेकर इस कमी को पूरा करना) किया। सरकण्डे की बहुत बड़ी चटाइयाँ बुनकर और उन्हें मिट्टी तथा पत्तों से ढककर उन्होंने मैक्सिको झील में कृत्रिम टापू तैयार किए, जिन्हें चिनाम्पा कहते थे। इन अत्यन्त उपजाऊ द्वीपों के बीच नहरें बनाई गईं जिन पर 1325 में एंजटेक राजधानी टेनोक्टिटलान का निर्माण किया गया, जिसके राजमहल और पिरामिड झील के बीच में खड़े हुए बड़े अद्भुत लगते थे। चूंकि एजटेक शासक अक्सर युद्ध में लगे रहते थे, इसलिए उनके सर्वाधिक भय मन्दिर भी युद्ध के देवताओं और सूर्य भगवान को ही समर्पित थे। साम्राज्य ग्रामीण आधार पर टिका हुआ था। लोग मक्का, फलियाँ, कुम्हड़ा, कद्दू, कसावा, आलू और अन्य फसलें उगाते थे।

भूमि का स्वामित्व किसी व्यक्ति विशेष का न होकर कुल के पास होता था जो सार्वनिक निर्माण कार्यों को सामूहिक रूप से पूरा करवाता था। यूरोपीय कृषिदासों जैसे खेतिहर लोग अभिजातों की जमीनों से जुड़े रहते थे और फसल में से कुछ हिस्से के बदले, उनके खेत जोतते थे, गरीब लोग कभी-कभी अपने बच्चों को भी गुलामी के रूप में बेच देते थे, लेकिन यह बिक्री साधारणतया कुछ वर्षों के लिए ही की जाती थी और गुलाम अपनी आजादी फिर से खरीद सकते थे। एजटेक लोग इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखते थे कि उनके सभी बच्चे शिक्षा अवश्य पाएँ।

कुलीन वर्ग के बच्चे कालमेकाक में भर्ती किए जाते थे जहाँ उन्हें सेना अधिकारी और धार्मिक नेता बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था। शेष बच्चे पड़ोस के तेपोकल्ल स्कूल में पढ़ते थे जहाँ उन्हें इतिहास, पुराण-मिथकों, धर्म और उत्सवी गीतों की शिक्षा दी जाती थी। लड़कों को सैन्य प्रशिक्षण, खेती और व्यापार करना सिखाया जाता था और लड़कियों को घरेलू काम-धन्धों में कुशलता प्रदान की जाती थी। सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में, एजटेक साम्राज्य में अस्थिरता के लक्षण दिखाई देने लगे।

प्रश्न 3.
इंका संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए
उत्तर :
दक्षिणी अमेरिकी देशज संस्कृतियों में से सबसे बड़ी पेरू में  क्वेचुआ या इंका लोगों की संस्कृति महासागर थी। बारहवीं शताब्दी में प्रथम इंका सांता फे शासक मैंको कपाक ने कुजको में अपनी राजधानी स्थापित की थी। नवें इंका शासक के काल में राज्य का इक्वेडोर विस्तार शुरू हुआ और अन्तत: इंका साम्राज्य इक्वेडोर से चिली तक ब्राजील 3,000 मील में फैल गया। इंका साम्राज्य अत्यन्त केन्द्रीकृत था। राजा में ही सम्पूर्ण शक्ति निहित थी और वही सत्ता का उच्चतम स्रोत था। नए जीते गए कबीलों और जनजातियों को पूरी तरह अपने भीतर मिला लिया गया। प्रत्येक प्रजाजन को प्रशसन की भाषा क्वेचुआ बोलनी प्रशान्त महासागर अनिवार्य थी। प्रत्येक कबीला स्वतन्त्र रूप से वरिष्ठों की एक सभा द्वारा शासित होता था, लेकिन पूरा कबीला अपने आप में शासक के प्रति निष्ठावान था। साथ-ही-साथ स्थानीय शासकों को उनके सैनिक सहयोग के लिए पुरस्कृत किया जाता। था। इस प्रकार, एजटेक साम्राज्य की।
UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 8 Confrontation of Cultures image 3
ही तरह इंका साम्राज्य इंकाइयों के नियन्त्रण वाले एक संघ के समान था। जनसंख्या के निश्चित आँकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं लेकिन ऐसा लगता है कि 10 लाख से ज्यादा लोग इस साम्राज्य में थे। एजटेक लोगों की तरह इंका भी उच्चकोटि के भवन-निर्माता थे। उन्होंने पहाड़ों के बीच इक्वेडोर से चिली तक अनेक सड़कें निर्मित की थीं। उनके किले शिलापट्टियों को इतनी बारीकी से तराशकर बनाए जाते थे कि उन्हें जोड़ने के लिए गारे जैसी सामग्री की आवश्यकता नहीं होती थी। वे निकटवर्ती इलाकों में टूटकर गिरी हुई चट्टानों से पत्थरों को तराशने और ले जाने के लिए श्रम-प्रधान प्रौद्योगिकी का उपयोग करते थे जिसमें अपेक्षाकृत अधिक संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती थी।

राज-मिस्त्री खण्डों को सुन्दर रूप देने के लिए शल्क पद्धति (फ्लेकिंग) का प्रयोग करते थे जो प्रभावकारी होने के साथ-साथ सरल होती थी। अनेक शिलाखण्ड वजन में 100 मीट्रिक टन से भी अधिक भारी होते थे, लेकिन उनके पास इतने बड़े शिलाखण्डों को ढोने के लिए पहियेदार गाड़ियाँ नहीं थीं। यह सब काम मजदूरों को जुटाकर बड़ी सावधानी से करवाया जाता था। इंका सभ्यता का मुख्य आधार कृषि था। उनके यहाँ जमीन खेती के लिए बहुत उपजाऊ नहीं थी इसलिए उन्होंने पहाड़ी इलाकों में सीढ़ीदार खेत बनाए और जल-निकासी तथा सिंचाई की प्रणालियाँ विकसित कीं। हाल ही मेंकिए गए अध्ययन से पता चला है कि पन्द्रहवीं शताब्दी में एंडियाई अधिपत्यकाओं (ऊँची भूमियों) में खेती आज की तुलना में काफी अधिक परिमाण में की जाती थी।

इंको लोग मक्का और आलू उगाते थे और भोजन तथा श्रम के लिए लामा पालते थे। उनकी बुनाई और मिट्टी के बर्तन बनाने की कला उच्चकोटि की थी। उन्होंने लेखन की किसी प्रणाली का विकास नहीं किया था। किन्तु उनके पास हिसाब लगाने की एक प्रणाली वश्य थी—यह थी क्विपु, यानी डोरियों पर गाँठे लगाकर गणितीय इकाइयों का हिसाब रखना। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इंका लोग इन धागों में एक किस्म का संकेत (Code) बुनते थे। इंका साम्राज्य का ढाँचा पिरामिडनुमा था जिसका मतलब था कि जब एक बार इंका प्रधान पकड़ लिया जाता था तो उसके शासन की सारी श्रृंखला तुरन्त टूट जाती थी और उस समय भी ऐसा ही हुआ जब स्पेनी सैनिकों ने उनके देश पर आक्रमण करने का निश्चय किया।

एजटेक तथा इंका संस्कृतियों में कुछ समानताएँ थीं, और वे यूरोपीय संस्कृति से बहुत भिन्न थीं। समाज श्रेणीबद्ध था, लेकिन वहाँ यूरोप की तरह कुछ लोगों के हाथों में संसाधानों का निजी स्वामित्व नहीं था। पुरोहितों और शमनों को समाज में उच्च स्थान प्राप्त था। यद्यपि भव्य मन्दिर बनाए जाते थे, जिनमें परम्परागत रूप से सोने का प्रयोग किया जाता था, लेकिन सोने या चाँदी को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता था। तत्कालीन यूरोपीय समाज की स्थिति इस मामले में बिल्कुल विपरीत थी।

प्रश्न 4.
भौगोलिक खोजों के परिणामस्वरूप किस प्रकार पुर्तगाली उपनिवेश स्थापित किए गए?

उत्तर :
पुर्तगाली उपनिवेश तत्कालीन समुद्री खोजों में पुर्तगाल और स्पेन ने सबसे अधिक भाग लिया। स्पेनवासियों ने मैक्सिको, मध्य अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका में उपनिवनेशों की स्थापना की। पुर्तगाल निवासियों ने अफ्रीका के तट पर, फारस की खाड़ी में तथा भारतवर्ष में उपनिवेश स्थापित किए। पुर्तगाल का साम्राज्य औपनिवेशिक की अपेक्षा व्यापारिक अधिक था। इससे अरब और वेनिस के व्यापार को अधिक धक्का पहुँचा और उन लोगों ने पुर्तगाल को बहुत विरोध किया। पुर्तगाल ने उनका सफल प्रतिद्वन्द्वी बनने के लिए अपनी जल-शक्ति में वृद्धि की और धीरे-धीरे पूर्व में एक साम्राज्य भी स्थापित कर लिया। भारतवर्ष में पुर्तगाल साम्राज्य की स्थापना का श्रेय अल्मोड़ा और अलबुकर्क को प्राप्त है। पुर्तगाल के गवर्नर अलबुकर्क ने भारत के पश्चिमी समुद्रतट पर गोवा को अपना प्रधान केन्द्र बनाया और अनेक तटीय नगरों पर अधिकार कर लिया। फारस की खाड़ी में ओर्मज पर भी उसने अधिकार किया।

उसके और उसके उत्तराधिकारियों के शासनकाल में बहुत-से पुर्तगाली पश्चिमी समुद्र-तट पर आ बसे, जिन्होंने अन्तर्जातीय विवाह आदि द्वारा अपना प्रभाव बढ़ाया। ईसाई धर्म के विस्तार में पादरियों ने विशेष योग दिया। भारत के अतिरिक्त चीन, जापान और पूर्वी द्वीपसमूह में भी पुर्तगाल के व्यापारिक क्षेत्र स्थापित हुए। परन्तु समस्त एशिया पर अधिकार करना या उसका यूरोपीयकरण करना उसकी शक्ति की परिधि के बाहर था। वह स्वयं एक छोटा देश था और इसके विपरीत एशिया के अनेक देश बहुत शक्तिशाली और साधन-सम्पन्न थे। दूसरे, एशिया की सभ्यता, यूरोपीय सभ्यता और संस्कृति से कहीं अधिक प्राचीन, प्रौढ़ और सबल थी। संस्कृति के क्षेत्र में इन देशों को पुर्तगाल की अपेक्षा न थी, जहाँ के निवासियों ने धार्मिक क्षेत्र में घोर असहिष्णुता और क्षुद्र हृदय का परिचय दिया था। साथ ही पुर्तगाल को व्यापारिक क्षेत्र में अरबों और वेनिस से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी और इन देशों ने उसका उग्र विरोध किया। अपनी समस्त कठिनाइयों के होते हुए भी पुर्तगाल ने व्यापार के क्षेत्र में पूर्वी देशों में बहुत अधिक लाभ उठाया और उसकी राजधानी लिस्बन तो यूरोप का व्यापारिक केन्द्र बन गई।

इसका परिणाम यह हुआ कि यूरोप की दूसरी शक्तियाँ भी इस क्षेत्र में उतरने लगीं और पोप के विश्व-विभाजन आदेश (1494 ई०) की उपेक्षा करके उन्होंने भी एशिया में अपने व्यापारिक केन्द्र खोलने प्रारम्भ किए। इस प्रयत्न में नीदरलैण्ड का प्रमुख हाथ रहा, जिसने पुर्तगाली जहाजों को लूटनी भी प्रारम्भ कर दिया। स्पेन ने भी फिलिपीन्स पर अधिकार कर लिया। पुर्तगाल ने अफ्रीका के समुद्र-तट पर भी अपनी बस्तियाँ बसानी प्रारम्भ कीं। यूरोप निवासी अफ्रीका को भूत-प्रेत एवं जादूगरों का देश समझते थे। अतएव उन्होंने इसके तट पर उपनिवेश और कोठियाँ स्थापित तो कीं, किन्तु जलवायु के प्रतिकूल होने से यूरोप निवासियों में इस ‘अन्धमहाद्वीप’ के आन्तरिक भागों में प्रवेश करने का साहस तथा सामर्थ्य न थी। अफ्रीका के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्पेन और पुर्तगाल के नाविकों ने अफ्रीका के मूरों को परास्त करके कुछ उपनिवपेश स्थापित किए परन्तु वे स्थायी न हो सके।

अफ्रीका के दक्षिण में भी हॉलैण्ड के निवासियों ने एक उपनिवेश स्थापित किया, परन्तु मूल निवासियों के विरोध के कारण वे भी भीतरी भागों में प्रवेश पाने में असफल रहे। हॉलैण्डवासियों के समान पुर्तगाली भी अफ्रीका के भीतरी भागों में प्रवेश पाने में असमर्थ रहे और कुछ समय पश्चात् अबीसीनियों से उनको निकाल भी दिया गया। इस अन्धमहाद्वीप’ (अफ्रीका) से यूरोप वालों को एक विशेष लाभ यह हुआ कि उन्होंने लाखों हब्शियों को दास बनाकर अमेरिका में बेच दिया और उनको इस व्यापार से अतुल धनराशि प्राप्त हुई तथा अमेरिका के उपनिपवेशों को बसाने में बहुत सहायता मिली। दक्षिणी अमेरिका के ब्राजील देश में पुर्तगालियों को पर्याप्त सफलता मिली।

यहाँ के आदि-निवासियों पर इन्होंने अपना अधिकार कर लिया, साथ ही अन्य यूरोपीय देशों को इस पर अधिकार स्थापित करने से वंचित रखा। पुर्तगाली शासकों और ईसाई पादरियों ने यहाँ पर पुर्तगाल के साम्राज्य की स्थापना की और इसके शासन के लिए पुर्तगाल से गवर्नर भेजे जाने लगे। साम्राज्य-स्थापना का प्रभाव पुर्तगाल पर अन्ततोगत्वा अच्छा नहीं पड़ा। एक तो यह देश छोटा था और दूसरे उसकी जनसंख्या भी कम थी, जो विस्तृत साम्राज्य स्थापना के कार्य को सफल नहीं बना सकती थी। पुर्तगाल की असहिष्णु एवं संकुचित नीति उसके विकास में बाधक थी। साथ ही धन की अधिकता ने उनमें विलासिता भी उत्पन्न कर दी थी। 16वीं शताब्दी के अन्त में पुर्तगाल स्पेन के अधीन हुआ तो पुर्तगाल का ह्रास प्रारम्भ हो गया।

प्रश्न 5.
स्पेन के उत्कर्ष पर संक्षेप में प्रकाश डालिए
उत्तर :
स्पेन का उत्कर्ष स्पेन ने ‘नई दुनिया’ (अमेरिका) में ‘सैन डोमिनिगो के द्वीप में अपना प्रथम उपनिपवेश स्थापित किया और वहीं से उसने अनेक कैरीबियन द्वीपों तथा फ्लोरिडा से वेनेजुएला तक के देशों को अधिकृत किया। स्पेनवासियों ने धन के लालच में ही मध्य और दक्षिणी अमेरिका के भीतरी प्रदेशों में प्रवेश प्रारम्भ किया। उन्होंने पेरू और मैक्सिको की प्राचीन सभ्यता तथा वहाँ के अपार धन (सोना-चाँदी) की अनेक कहानियाँ सुन रखी थीं। इन देशों पर झूठ, निर्दयता और विश्वासघात के आधार पर स्पेन ने विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य की वृद्धि की। स्पेनवासियों ने अपनी बर्बरता तथा नृशंस व्यवहार द्वारा  हूणों तथा मंगोलों के समान रक्तरंजित इतिहास की पुनरावृत्ति की, वहाँ के निवासियों को निर्धन एवं निर्बल बनाकर अमेरिका का धन लूटा, आदिम निवासी दास बनाकर खानों में काम करने के लिए बाध्य किए  गए।

अनेक गाँवों के लोगों ने तो सामूहिक रूप से आत्महत्या करके दासता से मुक्ति प्राप्; की। 1519 ई० में स्पेन के एक साहसी सैनिक हर्नेडो कोर्टिज ने थोडे-से सिपाहियों और तोपों की सहायता से धोखे और विश्वासघात, परन्तु अपूर्व साहस के साथ मैक्सिको पर अधिकार करके उसे स्पेन के साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। कोर्टिज के एक साथी, जिसका नाम फ्रांसिस्को पिजारो था, ने 1531 ई० में पूरे के इंका वंश पर प्रभुत्व स्थापित किया। मैक्सिको की भाँति यहाँ पर भी लूट में स्पेनियों को अपार धनराशि प्राप्त हुई। उदाहरणार्थ-जब पिजारो ने पेरू के अन्तिम सम्राट को बन्दी बनाया तब उसने उसके स्वतन्त्र स्वर्ण से भरा हुआ एक कमरा माँगा। इतना स्वर्ण उसे दिया गया, परन्तु स्वर्ण लेकर भी उसने सम्राट का वध कर डाला। मैक्सिको, मध्य अमेरिका, पश्चिमी द्वीपसमूह और पेरू आदि लैटिन अमेरिका के नाम से सम्बोधित किए जाते हैं क्योंकि उन पर लैटिन अथवा रोमन चर्च के अनुयायियों ने अधिकार किया था।

व्यापार के साथ चर्च ने भी साम्राज्यवाद की सहायता की। चर्च के द्वारा ‘नई दुनिया को सभ्य बनाने का प्रयत्न किया गया, यद्यपि ‘नई दुनिया’ पहले से ही सभ्य एवं सम्पन्न थी। इसका परिणाम यह हुआ कि मैक्सिको तथा पेरू की फलती-फूलती सभ्यता नष्ट हो गई और कला-कौशल तथा वैभवपूर्ण स्थान ऊसर तथा श्मशान में परिणत हो गया। स्पेन के विजेताओं का उद्देश्य उन देशों में रोमन कैथोलिक धर्म का प्रचार करना भी था। इन्हें नास्तिकों की एक बड़ी दुनिया ही मिल गई थी जहाँ धर्म-प्रचार का कार्य सफलतापूर्वक हो सकता था। कुछ अंशों में चर्च ने लोगों की कठिनाइयाँ दूर करने में सहायता भी पहुँचाई। धन की लालसा स्पेनी औपनिवेशिकों के लिए उत्साहवर्द्धक सिद्ध हुई और उन्होंने उपनिवेशों की स्थापना एवं विस्तर को शीघ्रतापूर्वक सम्पन्न किया।

एक स्पेनी सरदार पेड्रो ने अर्जेण्टीना और पैराग्वे की स्थापना की। पिजारो के एक साथी ने चिली के तटीय प्रदेश को और दूसरे ने इक्वेडोर को अधिकृत किया। इसी समय कोलम्बिया पर भी स्पेन का अधिकार हुआ। उन्होंने जिस देश को अधिकृत किया उसमें ईसाई धर्म तथा स्पेनी भाषा का प्रचार किया और व्यापार तथा कृषि को प्रोत्साहन दिया। सोलहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में स्पेनी साम्राज्य शासन की सुविधा के लिए दो भागों में विभक्त था, जिनमें अलग-अलग वाइसराय नियुक्त थे। एक भाग तो नया स्पेन कहलाता था, जिसमें मैक्सिको, वेस्टइण्डीज मध्य अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका का उत्तरी भाग और एशियाई द्वीप फिलीपीन्स आदि थे। जो एक वाइसराय के अधीन थे। पेरू के वाइसराय के अधीन पेरू, चिली, इक्वेडोर और अर्जेण्टीना के देश थे।

ये सभी देश धर्म-प्रचार के लिए अनेक धार्मिक क्षेत्रों में विभक्तथे जहाँ पर स्पेन के राजकीय आश्रय प्राप्त बहुसंख्यक धर्मप्रचारक (Monk) पादरी धर्म-प्रचार के कार्य में संलग्न थे। दो नगरों में विश्वविद्यालयों की भी स्थापना की गई थी। इस प्रकार स्पेन की अधीनता में बड़ी शीघ्रता के साथ अमेरिका या पश्चिमी गोलार्द्ध का यूरोपीयकरण हो रहा था। सोलहवीं शताब्दी में स्पेन ने केवल बाह्य दुनिया में ही एक विस्तृत औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना । नहीं की, वरन् यूरोप में भी वह सबसे अधिक शक्तिशाली राज्य बन गया था। सम्राट चार्ल्स पंचम केवल स्पेन का राजी नहीं, अपितु पवित्र रोम सम्राट भी था। उसका पुत्र और उत्तराधिकारी फिलिप द्वितीय पवित्र रोमन सम्राट तो न था, परन्तु स्पेन के भावी राजा के रूप में वह इस विशाल स्पेन साम्राज्य का स्वामी था, जो दोनों गोलार्द्ध में फैला हुआ था और जिसके अधीन असीम धनराशि थी। उसके आतंक से यूरोप के प्रायः सभी राज्य भयभीत थे। उसने 1580 ई० में पुर्तगाल पर भी विजय प्राप्त की, जिससे स्पेन तथा पुर्तगाल का संयुक्त राज्य गठित हुआ।

We hope the UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 8 Confrontation of Cultures help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 8 Confrontation of Cultures , drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 7 Changing Cultural Traditions

UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 7 Changing Cultural Traditions (बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 History . Here we have given UP Board Solutions for Class 11 History Chapter  7 Changing Cultural Traditions

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
संक्षेप में उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
चौदहवीं और पन्द्रहवीं शताब्दियों में यूनानी और रोमन संस्कृति के किन तत्त्वों को पुनजीवित किया गया? 
उत्तर :
चौदहवीं और पन्द्रहवीं सदी में यूरोप में परिवर्तनों का दौर चल रहा था। इससे यूनान और रोम भी अछूते नहीं रहे। चौदहवीं और पन्द्रहवीं सदी में लोगों में रोम और यूनानी सभ्यता को जानने की इच्छा बढ़ी। इन सदियों में शिक्षा में उन्नति हो ही चुकी थी। लोगों ने यूनानी और रोम सभ्यताओं पर खोज कार्य प्रारम्भ कर दिए। धर्म, शिक्षा, समाज के प्रति लोग अधिक जागरूक हो गए। नए व्यापारिक मार्ग भी सामने आए। यूरोप में तथा यूरोप के बाहर अनेक खोजे हुईं जिससे अनेक सांस्कृतिक रूपों और समूह सभ्यताओं का पता चला और इन सभ्यताओं के सभी आवश्यक सांस्कृतिक तत्त्वों को पुनजीवित किया गया।

प्रश्न 2.
इस काल की इटली की वास्तुकला और इस्लामी वास्तुकला की विशिष्टताओं की तुलना कीजिए।
उत्तर :
15वीं सदी में रोम नगर को अत्यन्त भव्य रूप में तैयार किया गया। वास्तुकला की इस शैली को ‘क्लासिकी’ कहा गया। क्लासिकी वास्तुविद् भवनों में चित्र बनाते, मूर्ति बनाते तथा अनेक प्रकार की आकृतियाँ उकेरते थे। इटली की वास्तुकला की प्रमुख विशेषता थी– भव्य गोलाकार गुम्बद, भवनों की आन्तरिक सजावट, गोल मेहराबदार दरवाजे आदि। दूसरी ओर अरब वास्तुकला भी अपने चरम पर थी। विशाल भवनों में बल्ब के आकार जैसे—गुम्बद, छोटी मीनारें, घोड़े के खुरों के आकार के मेहराब और मरोड़दार स्तम्भ देखते ही बनते थे। इटली और अरब की वास्तुकला तुलनात्मक दृष्टि से लगभगे समान ही प्रतीत होती थी।

प्रश्न 3.
मानवतावादी विचारों का अनुभव सबसे पहले इतालवी शहरों में क्यों हुआ?
उत्तर :
इटली के नगर निवासी यूनानी और रोम के विद्वानों की कृतियों से परिचित थे पर इन लोगों ने इन रचनाओं का प्रचार-प्रसार नहीं किया। चौदहवीं सदी में अनेक लोगों ने प्लेटो और अरस्तू के ग्रन्थों के अनुवादों को पढ़ा। साथ ही प्राकृतिक विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, औषधि विज्ञान सहित अनेक विषय लोगों के समक्ष आए। इटली में मानवतावादी विषय पढ़ाए जाने लगे। इस प्रकार इटली के नगरवासियों ने मानवतावादी विचारों का अनुभव किया।

प्रश्न 4.
वेनिस और समकालीन फ्रांस में अच्छी सरकार’ के विचारों की तुलना कीजिए।
उत्तर :
इटली में 13वीं सदी में स्वतन्त्र नगर-राज्यों के समूह बन गए थे। इन महत्त्वपूर्ण नगरों में फ्लोरेन्स और वेनिस भी थे। ये गणराज्य थे। वेनिस नगर में धर्माधिकारी और सामन्त वर्ग राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली नहीं थे। नगर के धनी व्यापारी और महाजन नगर के शासन में सक्रिय रूप से भाग लेते थे। लोगों में नागरिकता की भावना को विकास होने लगा था। दूसरी ओर फ्रांस में नगर राज्य तो थे किन्तु वहाँ निरंकुश शासन तन्त्र का बोलबाला था। र्माधिकारी और लॉर्ड राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली थे। नागरिकों का शोषण साधारण बात थी। फ्रांस के नगर-राज्यों को इसलिए क्रान्ति का सामना करना पड़ा।

संक्षेप में निबन्ध लिखिए।

प्रश्न 5.
मानवतावादी विचारों के क्या अभिलक्षण थे?
उत्तर :

मानववाद

प्राचीन यूनानी दर्शन और साहित्य के अध्ययन के फलस्वरूप लोगों का जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदलने लगा। उनकी रुचियों में अच्छे और बुरे के सम्बन्धों के मानदण्डों में भारी परिवर्तन हो गया। यही परिवर्तन मानवतावादी विचारों के अभिलक्षण कहे जा सकते हैं। प्राचीन यूनानी विद्वान मानवता का अध्ययन करते थे। इन यूनानी विद्वानों को मानव रुचि के विषयों का अध्ययन करने में आनन्द आता था, परन्तु इसके विपरीत मध्यकाल में देवत्व (Divinity) या ध्यात्मिक ज्ञान, शिक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग था और आध्यात्मिक उन्नति उनका एकमात्र लक्ष्यथा। पुनर्जागरण काल में लोग प्राचीन यूनानी साहित्य की ओर आकर्षित हुए तथा उसके आगे मध्यकालीन आत्म-निग्रह तथा वैराग्य के आदर्श फीके पड़ गए एवं मानवता को प्रधानता दी जाने लगी। आत्म-निग्रह की बजाय आत्म-विकास, आत्म-विश्वास और मानव जीवन के सुखों पर जोर दिया जाने लगा, फलस्वरूप व्यक्तिवाद और वैयक्तिक हित की भावना का विकास हुआ। पुनर्जागरण आन्दोलन के इसी रूप को मानववाद (Humanism) कहते हैं। मानववाद का जन्मदाता पेट्रार्क (Petrarch) था, जिसने मानव हितों को विशेष प्रोत्साहन दिया। पेट्रार्क पुराने प्रतिष्ठित साहित्य को इतना अधिक पसन्द करता था कि वह उसका प्रशंसक बन गया। मानववाद का दूसरा बड़ा मर्थक इरास्मस (Erasmus) था। जिसने अपनी पुस्तक ‘Praise of Folly’ में संन्यासियों के अज्ञान तथा अन्धविश्वासों पर कटाक्ष किया। इस प्रकार मानववाद ने प्रत्यक्ष रूप में प्रोटेस्टेण्ट आन्दोलन के लिए मार्ग तैयार कर दिया।

प्रश्न 6.
सत्रहवीं शताब्दी के यूरोपियों को विश्व किस प्रकार भिन्न लगा? उसका एक सुचिन्तित विवरण दीजिए।
उत्तर :
सत्रहवीं शताब्दी ईसवी के यूरोपवासियों को विश्व निम्नलिखित प्रकार से भिन्न लगा

  1.  तत्कालीन विभिन्न ग्रन्थों में बताया गया कि ज्ञान-विश्वास पर नहीं टिका रहता बल्कि अवलोकन और परीक्षण पर आधारित होता है।
  2.  वैज्ञानिकों के प्रयासों के फलस्वरूप भौतिकी, रसायन और जीव विज्ञान के क्षेत्र में अनेक अन्वेषण थे जो सर्वथा नए और सुविधाजनक थे।
  3. सन्देहवादियों और नास्तिकों के मन में ईश्वर का स्थान प्रकृति ने ले लिया जो सम्पूर्ण सृष्टि का रचना-स्रोत है।
  4. विभिन्न संस्थाओं ने जनता को जाग्रत करने के लिए अनेक नवीन प्रयोग किए और व्याख्यानों का आयोजन किया।

परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यूरोप में पुनर्जागरण का प्रारम्भ किस देश में हुआ?
(क) इंग्लैण्ड
(ख) जर्मनी
(ग) फ्रांस
(घ) इटली
उत्तर :
(घ) इटली

प्रश्न 2.
‘दि प्रिन्स ग्रन्थ का लेखक था
(के) दान्ते
(ख) सर्वेण्टीज
(ग) मैकियावली
(घ) बुकेशियो
उत्तर :
(ग) मैकियावली

प्रश्न 3.
टॉमस मूर ने कौन-सी पुस्तक लिखी?
(क) यूटोपिया
(ख) मोनार्कियो
(ग) हेमलेट
(घ) दि प्रिन्स
उत्तर :
(क) यूटोपिया

प्रश्न 4.
‘नई दुनिया की खोज किसने की थी
(क) वास्कोडिगामा
(ख) कोलम्बस
(ग) मैगलेन
(घ) पिजारो
उत्तर :
(ख) कोलम्बस

प्रश्न 5.
गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त के प्रतिपादक थे
(क) कोपरनिकस
(ख) न्यूटन
(ग) आर्किमिडीज
(घ) रोजर बेकन
उत्तर :
(ख) न्यूटन

प्रश्न 6.
भारत के मार्ग की खोज किसने की थी
(क) कोलम्बस
(ख) वास्कोडिगामा
(ग) अमेरिगो
(घ) मैगलेन
उत्तर :
(ख) वास्कोडिगामा

प्रश्न 7.
‘लैटिन साहित्य का पिता किसे कहा जाता है?
(क) दान्ते
(ख) पेट्रार्क
(ग) बुकेशियो
(घ) शेक्सपीयर
उत्तर :
(ग) बुकेशियो

प्रश्न 8.
दूरबीन का आविष्कार किसने किया था
(क) गैलीलियो
(ख) आर्किमिडीज
(ग) न्यूटन
(घ) विलियम हार्वे
उत्तर :
(क) गैलीलियो।

प्रश्न 9.
जलमार्ग द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा करने वाला नाविक था
(क) कोलम्बस
(ख) वास्कोडिगामा
(ग) मैगलेन
(घ) अमेरिगो
उत्तर :
(ग) मैगलेन

प्रश्न 10.
प्रोटेस्टैण्ट धर्म का संस्थापक था
(क) मार्टिन लूथर
(ख) ऑगस्टाइन
(ग) हेनरी चतुर्थ
(घ) जॉन हस
उत्तर :
(क) मार्टिन लूथर

प्रश्न 11.
पहली मुद्रित पुस्तक कौन-सी थी?
(क) गुटेनबर्ग की ‘बाइबिल’
(ख) कोपरनिकस को ग्रन्थ ‘खगोलीय पिण्डों के परिभ्रमण पर विचार
(ग) वेसिलियस का ग्रन्थ ‘दि ह्युमनी कार्पोरिस फाबरिका’
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर :
(क) गुटेनबर्ग की ‘बाइबिल’

प्रश्न 12.
राफेल कहाँ के चित्रकार थे?
(क) रोम
(ख) फ्रांस
(ग) इटली
(घ) अमेरिका
उत्तर :
(ग) इटली

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रोटेस्टेण्ट सुधार आन्दोलन के दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर :
प्रोटेस्टैण्ट सुधार आन्दोलन 1517 में मार्टिन लूथर ने शुरू किया था। इसके दो उद्देश्य थे

  1.  चर्च और मठों में फैले भ्रष्टाचार को दूर करना।
  2.  पोप और पादरियों के जीवन में सुधार करना।

प्रश्न 2.
लियोनार्डो द विन्ची कौन था?
उत्तर :
लियोनार्डो द विन्ची एक महान् कलाकार था। वह अपने दो बहुचर्चित चित्रों ‘द लास्ट सपर और ‘मोनालिसा’ के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध था।

प्रश्न 3.
‘यूटोपिया’ किसकी रचना थी?
उत्तर :
‘यूटोपिया’ टॉमस मूर की रचना थी।

प्रश्न 4.
‘पुनर्जा.रण’ का क्या अर्थ है?
उत्तर :
‘पुनर्जागरण’ को अर्थ विद्या का पुनर्जन्म तथा कला, विज्ञान, साहित्य और यूरोपीय भाषाओं का विकास है।

प्रश्न 5.
पुनर्जागरण का प्रारम्भ सर्वप्रथम कब और किस देश में हुआ?
उत्तर :
पुनर्जागरण का प्रारम्भ 1300 ई० में इटली में हुआ।

प्रश्न 6.
छापेखाने का आविष्कार सबसे पहले कब और किस व्यक्ति ने किया?
उत्तर :
जर्मनी के निवासी गुटेनबर्ग ने सबसे पहले 1465 ई० में छापेखाने का आविष्कार किया था।

प्रश्न 7.
डिवाइन कॉमेडी’ नामक पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर :
‘डिवाइन कॉमेडी’ नामक पुस्तक दान्ते ने लिखी।

प्रश्न 8.
अमेरिका की खोज किसने की थी?
उत्तर :
अमेरिका की खोज कोलम्बस ने की थी।

प्रश्न 9.
भौगोलिक खोजों के दो परिणाम लिखिए।
उत्तर :
भौगोलिक खोजों के दो परिणाम हैं

  1.  व्यापार व वाणिज्य का विकास, तथा
  2. औपनिवेशिक विस्तार।

प्रश्न 10.
पुनर्जागरण का आरम्भ इटली में ही क्यों हुआ?
उत्तर :
पुनर्जागरण का आरम्भ इटली में ही इसलिए हुआ, क्योंकि तुर्की की कुस्तुनतुनिया विजय के बाद यूनान के विद्वान अपनी रचनाओं सहित इटली चले आए थे और उन्होंने इसी देश में अध्ययन-अध्यापन करना आरम्भ कर दिया था।

प्रश्न 11.
यूरोप में पुनर्जागरण के कोई दो प्रमुख कारण लिखिए।
उत्तर :
यूरोप में पुनर्जागरण के दो प्रमुख कारण थे

  1. भौगोलिक खोजें तथा
  2. वैज्ञानिक आविष्कार।

प्रश्न 12.
इटली के किन्हीं दो चित्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर :
इटली के दो प्रमुख चित्रकारों के नाम हैं

  1. माइकेल एंजिलो तथा
  2. रफेल।

प्रश्न 13.
पुनर्जागरण काल के किन्हीं दो वैज्ञानिकों के नाम बताइए।
उत्तर :
पुनर्जागरण काल के दो प्रमुख वैज्ञानिकों के नाम हैं

  1. कोपरनिकस तथा
  2. गैलीलियो।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से किसी एक का संक्षिप्त परिचय दीजिए

  1. पेट्रार्क
  2.  माइकेल एंजिलो
  3.  रफेल
  4.  टॉमस मूर
  5.  मैकियावली
  6.  लियोनार्डो द विन्ची
  7. गुटेनबर्ग
  8.  गैलीलियो
  9.  कोपरनिकस
  10.  दान्ते
  11. फ्रांसिस बेकन
  12. हेनरी सप्तम

उत्तर :

  1.  पेट्रार्क :
    यह इटली का महान् कवि तथा मानववाद का संस्थापक था। उसने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में व्याप्त दोषों को कटु आलोचना की थी।
  2.  माइकेल एंजिलो :
    यह इटली का एक प्रसिद्ध कलाकार था। उसके बनाए चित्रों में ‘द लास्ट
    जजमेण्ट’ तथा ‘द फॉल ऑफ मैन’ विशेष उल्लेखनीय हैं।
  3. रफेल :
    यह इटली का एक प्रतिभाशाली चित्रकार था। इसकी गणना विश्व के उच्चकोटि के
    कलाकारों में की जाती है। ‘मेडोना’ के चित्र, रफेल की चित्रकारी का सर्वश्रेष्ठ नमूना हैं।
  4. टॉमस मूर :
    यह उच्चकोटि का साहित्यकार था। इसकी कृतियों में ‘यूटोपिया’ विशेष . उल्लेखनीय है। इसमें तत्कालीन समाज की कुरीतियों पर व्यंग्य किया गया है।
  5. मैकियावली :
    मैकियावली को आधुनिक राजनीतिक दर्शन का जनक माना जाता है। यह | फ्लोरेन्स का एक महान् इतिहासकार था। अपनी रचना ‘द प्रिन्स’ में उसने एक नए राज्य के स्वरूप की कल्पना की है।
  6. लियोनार्डो द विन्ची :
    यह इटली का एक प्रसिद्ध चित्रकार था। उसके चित्रों में ‘द लास्ट सपर’ तथा ‘मोनालिसा’ प्रमुख हैं। चित्रकार होने के अतिरिक्त यह एक उच्चकोटि का मूर्तिकार, दार्शनिक, वैज्ञानिक, इन्जीनियर, गायक तथा कवि भी था।इस प्रकार लियोनार्डो द विन्ची अपने बहुमुखी गुणों के लिए जग प्रसिद्ध है।
  7.  गुटेनबर्ग :
    जर्मनी, निवासी गुटिनबर्ग ने यूरोप में छापेखाने का आविष्कार किया था। ‘बाइबिल’ इसके द्वारा मुद्रित पहली पुस्तक थी, जो 1465 ई० में प्रकाशित हुई थी।
  8. गैलीलियो :
    यह इटली का प्रसिद्ध वैज्ञानिक था। उसने दूरबीन की सहायता से नक्षत्रों के सम्बन्ध में अनेक तथ्यों का पता लगाया था।
  9. कोपरनिकस :
    यह एक प्रसिद्ध खगोलशास्त्री था। ‘खगोलीय पिण्डों के परिभ्रमण परे विचार’ नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ इसी की देन है। कोपरनिकस ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा करती है।
  10. दान्ते :
    यह इटली का एक प्रसिद्ध कवि था। इसने लैटिन भाषा में अनेक पुस्तकें लिखीं जिनमें ‘डिवाइन कॉमेडी’ विशेष उल्लेखनीय है। इसमें उसकी कविताओं का संकलन हैं।
  11. फ्रांसिस बेकन :
    यह पुनर्जागरण काल का अंग्रेजी राजनीतिज्ञ और साहित्यकार था। इसने उच्चकोटि के निबन्धों की रचना की थी।
  12.  हेनरी सप्तम :
    यह इंग्लैण्ड में ट्यूडर वंश का संस्थापक था। उसने ‘गुलाबों के युद्ध’ में विजय प्राप्त की थी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जैकब बर्कहार्ट कौन था? इतिहास पर उसके क्या विचार थे?
उत्तर :
जैकब बर्कहार्ट स्विट्जरलैण्ड के ब्रेसले विश्वविद्यालय के इतिहासकार थे और जर्मन इतिहासकार लियोपोल्ड वॉन रांके के शिष्य थे। वे अपने गुरू के इस कथन—“एक इतिहास राज्यों एवं राजनीति का अध्ययन करता है”–से सहमत नहीं थे। उनके अनुसार इतिहास लेखन के लिए राजनीति ही सब कुछ नहीं है। इतिहास का सम्बन्ध संस्कृति और राजनीति दोनों से है। उन्होंने अपने अध्ययन द्वारा स्पष्ट किया है कि 14वीं से 17वीं सदी तक इटली के नगरों में मानवतावादी संस्कृति का विकास हुआ था। उनका मत था कि संस्कृति इस नए विश्वास पर आधारित थी कि व्यक्ति एक इकाई के रूप में स्वयं के बारे में निर्णय लेने और अपनी दक्षता को आगे बढ़ाने में समर्थ थे।

प्रश्न 2.
धर्म-सुधार क्या था? इसके क्या उद्देश्य थे? 
उत्तर :
सोलहवीं शताब्दी से पूर्व तक ईसाई धर्म के दो प्रकार के चर्च थे-ऑर्थोडॉक्स चर्च (Orthodox) तथा रोमन कैथोलिक चर्च। ऑर्थोडॉक्स चर्च पूवी देशों में थे और इन चर्चा का प्रमुख केन्द्र कुस्तुनतुनिया था, लेकिन धीरे-धीरे ऑर्थोडॉक्स चर्चे की महत्ता घटने लगी और रोमन कैथोलिक चर्चा की महत्ता बढ़ने लगी, क्योंकि ये चर्च ज्यादातर पश्चिम यूरोप में थे। रोमन कैथोलिक चर्चा की शक्ति भी अत्यधिक थी इसलिए ये विद्रोह मुख्यतया रोमन कैथोलिक चर्चा के विरुद्ध ही थे। इस विद्रोह के परिणामस्वरूप चर्च में अनेक सुधार हुए और कई नए प्रगतिशील चर्च संगठित हुए।इसलिए इस विद्रोह को धर्म-सुधार (The Reformation) कहते हैं। धर्म-सुधार के दो मुख्य उद्देश्य थे—(1) ईसाई धर्म में पनपे पाखण्ड का परिमार्जन कर उसे पुनः शुद्ध रूप प्रदान करना, तथा (2) पोप के धार्मिक और राजनीतिक प्रभुता सम्बन्धी अधिकारों को ठुकराना। इस प्रकार धर्म-सुधार आन्दोलन धार्मिक और राजनीतिक दोनों ही प्रकार का आन्दोलन था।

प्रश्न 3.
जॉन विकलिफ कौन था? धर्म सुधार में उसने क्या योगदान दिया? 
उत्तर :
पोप के अधिकारों का विरोध 14वीं  शताब्दी से ही प्रारम्भ हो गया था। सर्वप्रथम अंग्रेज पादरी जॉन विकलिफ (1320-1384 ई०) ने रोमन कैथोलिक चर्च के दोषों को जनसाधारण के सम्मुख रखा। वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्य करता था। उसको विद्वानों ने ‘धर्म-सुधार का प्रभात नक्षत्र’ (The Morning Star of Reformation) कहकर गौरव प्रदान किया। उसने ‘बाइबिल’ का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद प्रस्तुत किया जिससे इंग्लैण्ड की जनता को ईसा मसीह का धर्म-सन्देश प्राप्त करना सुगम हो गया। विकलिफ एक महान् विचारक एवं सुधारक था। उसका कथन था कि पोप पृथ्वी पर ईसा मसीह का प्रतिनिधि नहीं है वरन् वह एक महान् आत्मा के सिद्धान्तों के विरुद्ध आचरण करता है। मिशनरी में जीवन व्यतीत करना धार्मिक दृष्टिकोण से आवश्यक नहीं है। ईसाइयों को केर्पल “बाइबिल’ के सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए और चर्च को सम्राट के अधीन होना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसने पादरियों के वासनासिक्त एवं धन-लोलुप जीवन की कटु आलोचना कर पाखण्ड और भ्रष्टाचार में लिप्त धर्म के ठेकेदारों को आवरणरहित किया।

प्रश्न 4.
मार्टिन लुथर कौन था?
उत्तर :
मार्टिन लूथर का जन्म यूरिन्ज्यिा नामक स्थान पर 1483 ई० में हुआ था। उसने एरफर्ट के विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। 1505 ई० में वह धर्म प्रचारक बन गया। मठ में अपने को कड़े अनुशासन में रखने के बावजूद लूथर को आन्तरिक शक्ति न मिली। लूथर ने मठ छोड़ दिया और विटनबर्ग के विश्वविद्यालय में ब्रह्मविद्या (Theology) का प्रोफेसर हो गया। धर्मशास्त्र के अध्ययन और अध्यापन के दौरान रोमन कैथोलिक चर्च के कई मन्तव्यों के बारे में लूथर के मन में अनेक शंकाएँ पैदा हो गईं। इसी कारण 1510 ई० में अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए उसने रोम का भ्रमण किया। रोम में उसने अपनी आँखों से पोप तथा पादरियों का भ्रष्ट जीवन देखा। उस समय पोप अपने धार्मिक कर्तव्य भूलकर भोग-विलास में लिप्त रहते थे। यह देखकर लूथर पोप के विरुद्ध हो गया तथा उसे धर्म से ग्लानि हो गई। उसने 95 सिद्धान्तों की एक सूची प्रस्तुत की जिसमें पोप के सिद्धान्तों का विरोध किया गया था। यह सूची उसने गिरजाघर के मुख्य द्वार पर टाँग दी। इसमें तर्क द्वारा पोप के धर्म का विरोध किया गया था लूथर का यह कथन था कि इस विषय में कोई भी व्यक्ति उससे तर्क कर सकता है। पोप के धर्म का विरोध करने के कारण लूथर द्वारा प्रचलित यह धर्म ‘प्रोटेस्टैण्ट धर्म’ (Protestant Religion) के नाम से सम्बोधित किया गया। जर्मनी में इस धर्म का प्रचार तीव्रता से हुआ। जर्मनी में प्रोटेस्टैण्ट चर्च की स्थापना की गई तथा उत्तरी जर्मनी की अधिकांश जनता लूथर के नवीन धर्म की अनुयायी बन गई।

प्रश्न 5.
प्रोटेस्टैण्ट धर्म की सफलता के क्या कारण थे?
उत्तर :
मार्टिन लूथर द्वारा प्रचलित प्रोटेस्टैण्ट धर्म का जर्मनी में शीघ्रतापूर्वक प्रचार हुआ। इस धर्म-प्रसार की सफलता के अग्रलिखित कारण थे

  1.  पोप एवं उच्च पादरियों के भ्रष्ट जीवन को देखकर अनेक जिज्ञासु व्यक्तियों को प्रचलित धर्म के विषय में सन्देह होने लगा था; अतः जब लूथर ने धर्म-सुधार आरम्भ किया तो अधिकांश जनता ने उसका धर्म स्वीकार कर लिया। लूथर से पूर्व भीशिक्षित वर्ग को धर्म के विषय में अविश्वास प्रकट होने लगा था।
  2. चर्च के अन्धविश्वासपूर्ण, भ्रष्ट तथा अनैतिक जीवन के विपरीत लूथर ने सरलता एवं पवित्रता का जीवन व्यतीत करने की शिक्षा दी जिसके कारण उसके असंख्य अनुयायी बन गए।
  3.  लूथर जिस समय जर्मनी में धर्म प्रसार का कार्य कर रहा था, उस समय पवित्र रोमन सम्राट चार्ल्स पंचम अन्य समस्याओं के समाधान में संलग्न था। यद्यपि उसने लूथर को नास्तिक | घोषित कर दिया किन्तु उसके विरुद्ध वह कोई प्रतिकारात्मक कार्यवाही करने में असमर्थ रही।
  4.  लूथर ने अपने धर्म का प्रचार जर्मन भाषा में किया जिसे जर्मन लोग सरलतापूर्वक समझ सकते थे। इस प्रकार राष्ट्र-भाषा के प्रसार द्वारा उसने जर्मनों में राष्ट्र-भक्ति की भावना जाग्रत कर दी तथा विदेशी पोप के स्थान पर जर्मनों ने अपने राष्ट्र के नेता का अनुसरण आरम्भ कर दिया।

प्रश्न 6.
लियोनार्डो द विन्ची क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर :
लियोनाड द विन्ची रूपचित्र का विशेषज्ञ था। उसने चित्रों को यथार्थवादी रूप देने का प्रयास किया। इसकी आश्चर्यजनक अभिरुचि वनस्पति विज्ञान, शरीर रचना विज्ञान से लेकर गणितशास्त्र और कला तक विस्तृत थी। उसके प्रसिद्ध चित्र ‘मोनालिसा’ और ‘द लास्ट सपर’ थे। उसकी आकाश में उड़ने की प्रबल इच्छा प्रबल इच्छा थी। वह वर्षों तक पक्षियों के उड़ने का निरीक्षण करता रहा और एक उड़ने वाली मशीन का डिज़ाइन बनाया।

प्रश्न 7.
प्रोटेस्टैण्ट धर्म के उदय के क्या कारण थे?
उत्तर :
यूरोप में धर्म सुधार आन्दोलन, ने चर्च के दोषों का भण्डाफोड़ कर दिया। सारे यूरोप में पोप की प्रभुसत्ता के विरुद्ध आवाजें उठने लगीं। इस प्रकार कैथोलिक धर्म की बुराइयों के विरोध में प्रोटेस्टैण्ट (सुधारवादी) धर्म का उदय हुआ। प्रोटेस्टैण्ट धर्म के उदय के मूल कारण पोप की निरंकुश सर्वोच्च सत्ता, चर्च का भ्रष्टाचार और कैथोलिक धर्म के अन्धविश्वास एवं धार्मिक पाखण्ड थे।

प्रश्न 8.
पुनर्जागरण की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
पुनर्जागरण की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार थीं

  1.  पुनर्जागरण ने धार्मिक विश्वास के स्थान पर स्वतन्त्र चिन्तन को महत्त्व देकर तर्क-शक्ति का  विकास किया।
  2.  पुनर्जागरण ने मनुष्य को अन्धविश्वासों, रूढ़ियों तथा चर्च के बन्धनों से छुटकारा दिलाया और उसके व्यक्तित्व का स्वतन्त्र रूप से विकास किया।
  3. पुनर्जागरण ने मानववादी विचारधारा का विकास किया व मानव जीवन को सार्थक बनाने की शिक्षा दी।
  4. पुनर्जागरण ने केवल यूनानी और लैटिन भाषाओं के ग्रन्थों को ही नहीं वरन् देशज भाषाओं के साहित्य के विकास को भी प्रोत्साहन दिया।
  5.  चित्रकला के क्षेत्र में पुनर्जागरण ने यथार्थ चित्रण को प्रोत्साहन दिया।
  6.  विज्ञान के क्षेत्र में पुनर्जागरण ने निरीक्षण, अन्वेषण, जाँच तथा परीक्षण को महत्त्व दिया।

प्रश्न 9.
कैथोलिक धर्म की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
ईसाई धर्म में दो सम्प्रदाय बन गए थे। पहला सम्प्रदाय ‘रोमन कैथोलिक’ और दूसरा ‘प्रोटेस्टेण्ट’ कहलाया। रोमन कैथोलिक सम्प्रदाय प्राचीन ईसाई धर्म के सिद्धान्तों का समर्थक है। इस सम्प्रदाय के अनुयायी रोम के पोप को अपना धर्मगुरु मानते हैं और उसकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करना अपना परम कर्तव्य समझते हैं।

प्रश्न 10.
पोप के क्या-क्या धार्मिक अधिकार थे?
उत्तर :
मध्य युग में रोम के पोप के निम्नलिखित अधिकार थे

  1. वह किसी भी ईसाई धर्म के अनुयायी राजा को आदेश दे सकता था तथा उसे धर्म से बहिष्कृत कर उसके राज्याधिकार की मान्यता को समाप्त कर सकता था।
  2.  पोप की अपनी सरकार, अपना कानून, अपने न्यायालय, अपनी पुलिस और अपनी सामाजिक एवं धार्मिक व्यवस्था थी।
  3. पोप रोमन कैथोलिक धर्म के अनुयायी राजाओं के आन्तरिक मामलों में भी हस्तक्षेप कर सकता था।
  4.  पोप रोमन कैथोलिक जनता से कर वसूल किया करता था। वह उन्हें चर्च के नियमों के अनुसार आचरण करने का आदेश भी देता था।
  5.  पोप को रोमन कैथोलिक राज्यों में चर्च के लिए उच्च पदाधिकारियों को नियुक्त और पदच्युत करने का अधिकार प्राप्त था।

प्रश्न 11.
काउण्टर रिफॉर्मेशन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
लूथर द्वारा प्रचलित धर्म-सुधार की लहर ने सम्पूर्ण यूरोप को आश्चर्यचकित कर दिया। लुथर और काल्विन के विचारों ने यूरोप के प्रत्येक देश में धार्मिक उद्धार को प्रसारित कर दिया था। रोमन कैथोलिक धर्म के प्रमुख केन्द्र इटली एवं स्पेन भी इसके प्रभाव से वंचित न रह सके। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यदि इसे धर्म-सुधार को रोका न गया तो कहीं यह रोमन कैथोलिक धर्म को आत्मसात् न कर ले। धर्म-सुधार आन्दोलन के प्रारम्भ में रोमन चर्च ने अपने दोष दूर करने की चिन्ता नहीं की। लेकिन जब इस आन्दोलन ने जोर पकड़ा तो रोमन चर्चा का ध्यान अपने दोषों की तरफ गया और कैथोलिक धर्म में अनेक सुधार किए गए, यद्यपि शताब्दियों से प्रचलित रोमन कैथोलिक धर्म की नींव इतनी सुदृढ़ थी कि उसका उखड़ना असम्भव था। किन्तु फिर भी प्रोटेस्टैण्ट धर्म को रोकने के लिए पोप और उसके अनुयायियों ने प्रयत्न आरम्भ कर दिए। इसे ही काउण्टर रिफॉर्मेशन (प्रतिसुधार आन्दोलन) कहा जाता है। वे लोग निरन्तर प्रोटेस्टैण्ट धर्म का समूल नाश करने के लिए योजनाएँ बनाते रहे। यद्यपि प्रोटेस्टैण्ट धर्म को समाप्त करने में उन लोगों को सफलता न मिली, किन्तु उसकी प्रगति को अवश्य अवरुद्ध कर दिया गया। इसे ही काउण्टर रिफॉर्मेशन या प्रतिसुधार आन्दोलन कहा जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्जागरण के क्या कारण थे? इसका यूरोप पर क्या प्रभाव पड़ा? या पुनर्जागरण से आप क्या समझते हैं? यूरोप में पुनर्जागरण के क्या कारण थे?
उत्तर :

पुनर्जागरण का अभिप्राय

‘पुनर्जागरण’ शब्द, फ्रांसीसी शब्द ‘रिनेसान्स’ का हिन्दी रूपान्तर है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘फिर से जीवित हो जाना।’ स्वेन के अनुसार, “पुनर्जागरण एक व्यापक शब्द है जिसका प्रयोग उन सभी बौद्धिक परिवर्तनों के लिए किया जाता है जो मध्य युग के अन्त में तथा आधुनिक युग के प्रारम्भ में दृष्टिगोचर हो रहे थे। दूसरे शब्दों में, पुनर्जागरण से तात्पर्य उस अवस्था से होता है जब मानव समाज अपनी पुरानी सांस्कृतिक और राजनीतिक अवस्थाओं से जागकर नवीन उपयोगी परिवर्तनों के लिए उत्सुक हो जाता है। इस प्रकार जब प्रचलित जीवन-परम्पराओं में क्रान्तिकारी सुधार होने से समाज की कायापलट हो जाती है तो यह स्थिति पुनर्जागरण कहलाती है। इससे राज्य, राजनीति, धर्म, संस्था और भौतिक जीवन में सुधारों की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।

यूरोप में पुनर्जागरण के कारण

यूरोप में पुनर्जागरण के निम्नलिखित कारण थे

  1. धर्मयुद्धों का प्रभाव :
    मध्ययुग में तुर्को और ईसाइयों के मध्य इस्लाम धर्म के प्रचार और ईसाईधर्म की सुरक्षा के कारण अनेक धर्मयुद्ध हुए। इन धर्मयुद्धों ने ईसाई संस्कृति को बहुत क्षति पहुँचाई; अतः ईसाई संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए पुनर्जागरण का वातावरण तैयार होने लगा।
  2. धर्म के प्रति नवीनतम मान्यताओं का विकासा :
    यूरोप में अभी तक लोगों की धर्म के प्राचीन सिद्धान्तों में आस्था थी। स्वर्ग और नरक के विचारों से प्रेरित होकर यूरोपीय समाज पुरातन जीवन से जुड़ा आ रहा था, परन्तु अब धर्म के क्षेत्र में नए विचारों का विकास होने लगा। इन नवीन मान्यताओं से ही धार्मिक क्षेत्र में पुनर्जागरण उत्पन्न हुआ।
  3. सामन्तवाद का प्रभाव :
    तत्कालीन राज्य-प्रबन्ध से जनता बहुत दुःखी हो चुकी थी। इसके अन्तर्गत चली आ रही सामन्तवादी प्रथा से जनता को अपार कष्ट हुए। सामन्तवाद के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए कृषकों और मजदूरों ने पुनर्जागरण के आन्दोलन को तीव्र कर दिया।
  4.  नवीन क्षेत्रों की खोज :
    यूरोप के नाविकों ने नवीन क्षेत्रों की खोज करना प्रारम्भ कर दिया। इन | नवीन क्षेत्रों की सभ्यताओं के आमेलन से भी पुनर्जागरण को स्वाभाविक रूप से बल मिला।
  5. शिक्षा का बढ़ता हुआ प्रभाव :
    मध्य युग में शिक्षा के क्षेत्र में भी विशेष प्रगति हुई। शिक्षा-जगत में नवीन ज्ञान और विचारों को विकास हुआ। फ्रांस और इंग्लैण्ड के कुछ राजाओं ने भी नवीन विज्ञानों; जैसे-भूगोल, खगोल, गणित, चिकित्सा-विज्ञान आदि के पठन-पाठन पर अधिक बल दिया।
  6.  छापेखाने का आविष्कार :
    1465 ई० में जर्मनी के गुटिनबर्ग नामक व्यक्ति ने छापेखाने का आविष्कार किया। 1476 ई० में विलियम कैक्सटन ने इंग्लैण्ड में अपना छापाखाना खोला। इसके पश्चात छापाखानों की संख्या में तेजी के साथ वृद्धि होने लगी। इसके फलस्वरूप पुस्तकों की छपाई सरल हो गई और ज्ञान की धरा द्रुत गति से प्रवाहित होने लगी।
  7. आविष्कारों का प्रभाव : 
    यूरोप में विभिन्न वैज्ञानिकों ने नए-नए आविष्कार करने प्रारम्भ कर दिए। न्यूटन, गैलीलियो, रोजर बेकन तथा कोपरनिकस जैसे वैज्ञानिकों के आविष्कारों से | विज्ञान के क्षेत्र में क्रान्ति आ गई। विज्ञान ने पुनर्जागरण के प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
  8. कलाओं का प्रभाव :
    कला के विभिन्न क्षेत्रों में भी निरन्तर विकास हो रहा था। चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत कला, भवन-निर्माण कला में उपयोगी परिवर्तन हुए थे। इस युग के प्रमुख कलाकारों में रफेल, माइकल एंजिलो, लियोनार्डो द विन्ची केनाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इस काल के कलाकारों की मानवतावादी कृतियों ने प्रेम, मैत्री और वात्सल्य का भाव प्रस्तुत किया; अतः जनसामान्य में यह भावना जाग्रत हो गई कि मनुष्य को उचित सम्मान मिलना चाहिए। फलतः अब वह धर्म और ईश्वर के स्थान पर मानव-मात्र के प्रति आस्थावान हो उठा। इस प्रकार उसमें एक नए दृष्टिकोण का उदय हुआ।

प्रश्न 2.
यूरोप में पुनर्जागरण के प्रसार का विवरण दीजिए।
उत्तर :
पुनर्जागरण का प्रसार यूरोप में साहित्य, कला एवं विज्ञान के क्षेत्र में पुनर्जागरण का तीव्र गति से प्रसार हुआ, जिसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

  1. साहित्य में पुनर्जागरण–सर्वप्रथम इटली में साहित्यिक पुनर्जागरण आरम्भ हुआ। इटली के पहले महान कवि दान्ते (1265-1321 ई०) ने ‘डिवाइन कॉमेडी’ नामक महाकाव्य लिखा। दान्ते के बाद ‘मानववाद के पिता पेट्रार्क ने लैटिन साहित्य पर अनेक पुस्तकें लिखीं जिनमें ‘अफ्रीका’, ‘कैवलियर’,
    ‘लेटर्स’ तथा ‘ओनेट्स’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। पेट्रार्क के शिष्य बुकेशियो (1313-1376 ई०) जिसे लैटिन साहित्य का पिता’ कहा जाता है, ने विश्वप्रसिद्ध पुस्तक ‘डेकामरान की कहानियाँ लिखी। मैकियावली, जिसे इटली का चाणक्य’ माना जाता है, ने ‘दि प्रिन्स’ तथा ‘दि आर्ट वार’ नामक ग्रन्थों की रचना की। लोरेन्जी डी मेडोसी, मिरन डोना, टैसो आदि अन्य महान इटैलियन लेखकों ने अनेक पुस्तकें लिखकर इटली में पुनर्जागरण का प्रसार किया। पुनर्जागरण की भावना से प्रभावित होकर फ्रांस के कई लेखकों, कवियों ने फ्रांसीसी भाषा में अनेक पुस्तकें लिखीं। इनमें फ्रांसिस रबेल
    (Francis Rabelais, 1311-1404 ई०) तथा मॉण्टेन (Montaine) के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। फ्रांस के धर्म सुधारक जॉन काल्विन (1509-1564 ई०) ने फ्रेंच गद्य में अनेक रचनाएँ लिखीं। इंग्लैण्ड में ज्योफ्रे चॉसर (Chaucer, 1340-1440 ई०) ने ‘कैण्टरबरी टेल्स’ नामक विश्वप्रसिद्ध कविताएँ लिखीं। शेक्सपीयर (1564-1661 ई०), जिसे अंग्रेजी कविता का जनक’ कहते हैं, ने ‘रोमियो-जूलियट’, ‘मर्चेण्ट ऑफ वेनिस’, ‘हैमलेट’, ‘मैकबेथ’, ‘ओथेलो’, हेनरी चतुर्थ’, ‘वेल्थनाइट’, ‘दि टेम्पेस्ट’ आदि नाटक लिखे। टॉमस मूर (1478-1535 ई०) ने यूटोपिया’ नामक ग्रन्थ लिखा। जॉन कोलेट (1466-1519 ई०), एडमण्ड स्पेन्सर (Edmund Spenser, 1552-1589 ई०), फ्रांसिस बेकन (1561-1626 ई०), क्रिस्टोफर मार्लो (1564-1593 ई०) आदि ने अनेक पुस्तकों की रचना की। स्पेन, पुर्तगाल, जर्मनी, हॉलैण्ड आदि देशों पर भी पुनर्जागरण का प्रभाव पड़ा। स्पेन में सर्वेण्टीज (1547-1616 ई०), पुर्तगाल में केमोन्स, जर्मनी में मार्टिन लूथर तथा हॉलैण्ड में इरास्मस (1466-1536 ई०) जैसे महान् लेखक उत्पन्न हुए। सर्वेण्टीज ने ‘डॉन क्विकजाट’ (शेखचिल्ली जैसी कहानियाँ) तथा इरास्मस ने ‘दि प्रेज ऑफ फॉली’ नामक विश्वप्रसिद्ध | पुस्तकें लिखीं।
  2. कला में पुनर्जागरण :
    पुनर्जागरण के फलस्वरूप वास्तुकला के क्षेत्र मेंएक नई शैली गॉथिक विकसित हुई। इस शैली के उत्कृष्ट नमूने रोम का ‘सेण्ट पीटर गिरजाघर’, लन्दन का ‘सेण्ट पॉल गिरजाघर’ तथा वेनिस (यूनान) में ‘सेण्ट मार्क का गिरजाघर’ है। इटली के कलाकारोंने ‘स्पेन का राजमहल’ और जर्मनी का ‘हैडलबर्ग का किला’ भी बनाया, जो आज भी दर्शनीय हैं। इटली के विख्यात कलाकार गिबर्टी और डेनेटेलो ने मूर्तिकला में एक नई शैली को जन्म दिया। फ्लोरेंस(इटली) में मूर्तिकला का अत्यधिक विकास हुआ। इटली के सीमव्यू (1240-1302 ई०) तथा गिटो (1276-1337 ई०) ने चित्रकला की एक नई शैली को जन्म दिया। लियोनार्डो दविन्ची (1452-1519 ई०)का चित्र ‘दि लास्ट सपर आज भी विश्व में चित्रकला की एक महान् कृति माना जाता है। इसके मोनालिसा के चित्र बड़े सजीव हैं। माइकल एंजिलो (1475-1564 ई०) द्वारा रोम के महल तथा गिरजाघरमें बनाए गए चित्र, मानव जीवन की साकार प्रतिमा प्रतीत होते हैं। उसके द्वारा निर्मित चित्र ‘दि फाल ऑफ मैन’ को आज भी चित्रकला की महान कृति माना जाता है। रफेल (1483-1520 ई०) का चित्र‘मेडोनाज’ आज भी बहुत प्रसिद्ध है। इटली के अतिरिक्त जर्मनी के ड्यूरर, हंस , हालबेन तथा हॉलैण्ड के ह्यूबर्ट, जॉन आदि चित्रकारों ने बहुमूल्य कृतियों कानिर्माण किया।
  3. विज्ञान में पुनर्जागरण :
    पुनर्जागरण काल में विज्ञान के क्षेत्र में भी अनेक नए आविष्कार हुए। सर्वप्रथम रोजर बेकन (1214-1295 ई०) ने प्रयोगों द्वारा वैज्ञानिक तथ्यों का पता लगाने की परिपाटी डाली। कोपरनिकस (1473-1553 ई०) ने यह सिद्ध कर दिया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है, न कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर घूमता है, जैसा कि उस समय विश्वास था। फ्रांसिस बेकने तथा देकार्ते ने विज्ञान में विश्लेषण विधि को जन्म दिया। गैलीलियो (1560 1642 ई०) ने दूरदर्शक यन्त्र का आविष्कार किया और गति विज्ञान के अध्ययन की नींव डाली। न्यूटन (1642-1726 ई०) ने गुरुत्वाकर्षण नियम का पता लगाया। हार्वे ने मानव शरीर में रक्त परिवहन एड़ियस बेसालियस ने रसायन विज्ञान तथा शल्य चिकित्सा और लियोनार्डो द विन्ची ने शरीर विज्ञान, जीव विज्ञान, तकनीकी व रेखागणित के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण, निष्कर्ष निकाले।

प्रश्न 3.
पुनर्जागरण के प्रभाव बताइए। पुनर्जागरण के फलस्वरूप मानव-जीवन में क्या परिरर्तन हुए?
उत्तर :
पुनर्जागरण का प्रभाव पुनर्जागरण के प्रसार के फलस्वरूप मानव-जीवन में होने वाले विभिन्न परिवर्तनों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

  1. आर्थिक दशा और व्यापार में प्रगति :
    पुनर्जागरण काल के कारण ही यूरोपीय नाविक नए-नए भौगोलिक देशों की खोज में सफल हुए। नए देशों के बाजार तथा कच्चे मालों की उपलब्धि के कारण यूरोपीय देशों के व्यापार तथा उद्योगों में बहुत अधिक प्रगति हुई। यूरोप में आर्थिक विकास होने से वहाँ की सम्पन्नता तथा वैभव बढ़ गया। यूरोप के सभी देश व्यापार बढ़ाने तथा धन कमाने में लग गए और उन्होंने अनेक उपनिवेशों की स्थापना की। औद्योगिक नगरों की स्थापना और विकास ने व्यापार तथा उद्योगों को बड़ा प्रोत्साहन दिया। व्यापार की उन्नति के कारण समाज में मध्यम वर्ग का जन्म हुआ। पुनर्जागरण ने यूरोप में ‘वाणिज्यवाद’ को जन्म दिया; अतः यहाँ के देशों में अधिक निर्यात द्वारा स्वर्ण एकत्र करने की प्रवृत्ति बढ़ गई और मध्यम वर्ग धीरे-धीरे प्रभावी होता चला गया।
  2. सामाजिक जीवन में प्रगति :
    पुनर्जागरण के कारण यूरोप के लोगों के जीवन तथा विचारों में व्यापक परिवर्तन हुए। नए विचारों ने अन्धविश्वासों का अन्त करके उन्हें सामाजिक जीवन के प्रति नवीन वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान किया। समाज से सामन्तवादी प्रथा समाप्त हो गई। समाज में एक नए वर्ग
    मध्यम वर्ग का उदय होने से लोगों में राष्ट्रीय भावनाओं का तीव्रता से विकास हुआ। शिक्षा के प्रसार ने भी समाज में नए विचारों को जन्म दिया। समाज में नवीन जागृति और चेतना जाग उठी। लोग राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूक हो गए। लोगों ने सामाजिक कुरीतियों तथा अन्धविश्वासों के गर्त से निकलकर सुसंस्कृत जीवन को ग्रहण किया। भौगोलिक खोजों के कारण विश्व के लोग एक-दूसरे के निकट आ गए। इससे समाज में मैत्री और सहयोग का वातावरण उत्पन्न हो गया। जनसाधारण में विद्याध्ययन की ओर रुचि बढ़ गई तथा समाज से अशिक्षा और अज्ञानता दूर हो गई।
  3. धर्म पर प्रभाव :
    पुनर्जागरण के फलस्वरूप यूरोप के धार्मिक जीवन में भी अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। मध्ययुगीन धार्मिक अन्धविश्वासों और मान्यताओं का खण्डन किया जाने लगा। कैथोलिक धर्म में पर्याप्त सुधार हुआ और प्रोटेस्टेण्ट धर्म की महत्ता बढ़ने लगी। इस्लाम धर्म के बढ़ते प्रसार ने ईसाई समाज को अपने धर्म की रक्षा के लिए एकजुट होकर संघर्ष करने के लिए बाध्य कर दिया। धर्म सुधार-आन्दोलनों ने आडम्बरों, पाखण्डों, भ्रष्टाचारों तथा अन्याय के विरुद्ध कठोर कदम उठाए। इस प्रकार धर्म के क्षेत्र में व्याप्त कुप्रथाएँ समाप्त हो गईं। इसके फलस्वरूप चर्च की निरंकुशता का भी अन्त हो गया। वस्तुतः पुनर्जागरण के फलस्वरूप धर्म का उज्ज्वल स्वरूप निखकर सामने आया। इस दिशा में मार्टिन लूथर तथा जॉन काल्विन । जैसे समाज-सुधारकों ने धर्म को परिष्कृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  4. भाषा और साहित्य पर प्रभाव :
    पुनर्जागरण का महत्त्वपूर्ण प्रभाव भाषा और साहित्य के क्षेत्र पर भी पड़ा। पुस्तकों की छपाई के कारण ज्ञान का कार्य तेजी के साथ हुआ और लोगों के
    दृष्टिकोण में तीव्र गति से परिवर्तन आया।
  5. राष्ट्रीयता का विकास :
    पुनर्जागरण के फलस्वरूप यूरोप में नए राज्यों के उत्कर्ष के साथ-साथ राष्ट्रीयता की भावना भी जाग्रत हुई। सामन्तवाद का अन्त हो जाने से जहाँ एक ओर शक्तिशाली राजसत्ता का उदय हुआ, वहीं दूसरी ओर जनता का महत्त्व भी बढ़ा

प्रश्न 4.
पन्द्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दी की भौगोलिक खोजों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। या भौगोलिक खोजों के कारण तथा महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :

नवीन स्थानों की खोज तथा खोज-यात्राएँ।

पुनर्जागरण काल में यूरोप के साहसी नाविकों ने लम्बी-लम्बी समुद्री यात्राएँ करके नवीन देशों की खोज की; अतः पुनर्जागरण काल को ‘खोजों का काल’ भी कहा जाता है। भौगोलिक खोजों के लिए सर्वप्रथम पुर्तगाली और स्पेनिश नाविक उतरे, बाद में इंग्लैण्ड, फ्रांस, हॉलैण्ड व जर्मनी के लोग भी खोज कार्य में जुट गए।

पुनर्जागरण काल में नए देशों की खोज

  1. उत्तमाशा अन्तरीप की खोज :
    इसकी खोज एक समुद्र-यात्री बारथोलोम्य डियाज ने की थी। 1486 ई० में बारथोलोम्यु अनेक कठिनाइयाँ सहन करने के बाद अफ्रीका के दक्षिणी तट पर पहुँचा, जिसे उसने ‘तूफानों का अन्तरीप’ नाम दिया। बाद में पुर्तगाल के शासक ने इसका नाम ‘उत्तमाशा अन्तरीप’ (Cape and Good Hope) रख दिया।
  2. अमेरिका तथा पश्चिमी द्वीपसमूह की खोज :
    स्पेनिश राजा फड़नेण्ड की सहायता पाकर साहसी नाविक कोलम्बस, 1492 ई० में तीन समुद्री जहाजों को लेकर भारत की खोज के लिए निकला। परन्तु तैंतीस दिन की समुद्री यात्रा के पश्चात् (वास्तव में उचित मार्ग से भटककर) वह एक नई भूमि पर पहुँच गया। पहले वह समझा कि वह भारत भूमि ही है, परन्तु वास्तव में यह नई दुनिया’ थी। बाद में इटली का एक नाविक अमेरिगो भी यहीं पर पहुंचा। उसी के नाम पर इसका नाम ‘अमेरिका’ पड़ा।
  3. न्यूफाउण्डलैण्ड तथा लेख्नडोर की खोज :
    यूरोप महाद्वीप के लिए न्यूफाउण्डलैण्ड की खोज इंग्लैण्ड के नाविक जॉन कैबेट की देन थी। 1497 ई० में जॉन कैबेट इंग्लैण्ड के राजा हेनरी सप्तम् की सहायता के लिए पश्चिमी समुद्र की ओर निकला। साहसी नाविक जॉन कैबेट उत्तरी अटलाण्टिक महासागर को पार कर कनाडा के समुद्र तट पर पहुंच गया और उसने ‘न्यूफाउण्डलैण्ड’ की खोज की। उसके पुत्र सेबान्सटियन कैबेट ने लेब्रेडोर’ की खोज की।
  4.  भारत के समुद्री मार्ग की खोज :
    यूरोप और भारत के मध्य समुद्री मार्ग की खोज पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा ने की थी। वास्कोडिगामा, पुर्तगाल के राजा से आर्थिक सहायता प्राप्त कर इस अभियान पर निकला था। यह नाविक अफ्रीका के पश्चिमी तट से होता हुआ उत्तमाशा अन्तरीप पहुँचा, फिर हिन्द महासागर से होते हुए जंजीबार और वहाँ से पूर्व की ओर बढ़ा। यहाँ से वह भारत के पश्चिमी तट पर स्थित कालीकट के बन्दरगाह पर पहुँचा।
  5. ब्राजील की खोज :
    1501 ई० में पुर्तगाल के नाविक कैबेल ने एक नए देश ‘ब्राजील की खोज की।
  6. मैक्सिको तथा पेरू की खोज:
    1519 ई० में स्पेनिश नाविक कोर्टिस ने ‘मैक्सिको’ की तथा | 1531 ई० में पिजारो ने ‘पेरू’ की खोज की।
  7. अफ्रीका महाद्वीप की खोज :
    इस महाद्वीप की खोज का श्रेय मार्टन स्टेनली तथा डेविड लिविंग्स्टन को प्राप्त है। इन्होंने अफ्रीका को खोजने के उपरान्त अनेक लेख भी लिखे, जिनको | पढ़कर यूरोपवासियों के मन में अफ्रीका में अपने उपनिवेश बसाने की प्रतिस्पर्धात्मक भावना उत्पन्न हुई।
  8. पृथ्वी की प्रथम परिक्रमा :
    पुर्तगाली नाविक मैगलेन तथा उसके साथियों ने 1519 ई० में समुद्र द्वारा पृथ्वी की प्रथम परिक्रमा करके यह सिद्ध कर दिया कि पृथ्वी गोल है तथा उसकी परिक्रमा सुगमता से की जा सकती है।

भौगोलिक खोजों का कारण

पुनर्जागरण काल यूरोपीय इतिहास का अत्यधिक प्रगतिशील युग था। इसमें साहित्य व ज्ञान के क्षेत्र में नवीन क्षेत्रों की खोजें तीव्र गति से हुईं, जिस कारण व्यावहारिक रूप में संसार का ज्ञान प्राप्त करने की उत्कंठा लोगों के मन में जाग्रत हुई। इसी उत्कंठा को मूर्तरूप देने के लिए साहसिक लोगों ने संसार का परिभ्रमण कर नवीन भौगोलिक खोजों को उद्घाटित किया तथा मानव के ज्ञान को समृद्ध किया।

भौगोलिक खोजों के परिणाम (महत्त्व)

भौगोलिक खोजों के अनेक महत्त्वपूर्ण परिणाम हुए, जिनका विवरण इस प्रकार है

  1. भौगोलिक खोजों के परिणामस्वरूप भारत जाने का छोटा और नया मार्ग खुल गया।
  2. नए व्यापारिक मार्गों की खोज के कारण विश्व व्यापार में तेजी के साथ वृद्धि होने लगी।
  3.  यूरोप में बड़े-बड़े व्यापारिक केन्द्रों का विकास होने लगा और इंग्लैण्ड, फ्रांस, स्पेन तथा | पुर्तगाल जैसे देश धनी और शक्तिशाली होने लगे।
  4.  यूरोपीय देशों में अपने उपनिवेश बनाने और अपना साम्राज्य बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा प्रारम्भ हो गई।
  5. यूरोप के शरणार्थी अमेरिका में आकर बसने लगे और वहाँ अपनी सभ्यता एवं संस्कृति का विकास करने लगे।

प्रश्न 6.
धर्म सुधार आन्दोलन के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
धर्म सुधार आन्दोलन के प्रमुख कारण धर्म सुधार आन्दोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  1. पुनर्जागरण का प्रभाव :
    धर्म सुधार आन्दोलन को पुनर्जागरण ने बहुत प्रभावित किया। इसने यूरोप के अन्धकार युग को समाप्त कर नवीन आदर्शों को जन्म दिया। उसने तार्किक प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया और यह स्पष्ट किया कि कोई बात इसलिए सही नहीं है कि वह चर्च का आदेश है तथा वह ईश्वरीय वाक्य है, बल्कि इसलिए सही है, क्योंकि वह तर्क और विचार की कसौटी पर खरी उतरती है। इस प्रवृत्ति के कारण लोगों ने अपने प्राचीन धार्मिक विश्वासों में परिवर्तन करने का निश्चय किया।
  2. राजनीतिक कारण :
    सोलहवीं शताब्दी में यूरोप में इंग्लैण्ड, स्पेन, फ्रांस, हॉलैण्ड, ऑस्ट्रिया आदि राष्ट्रीय राज्यों में निरंकुश राजतन्त्र की स्थापना हो चुकी थी। राष्ट्रीय राज्यों का प्रधान राजा था। रोमन चर्च का प्रधान पोप नहीं चाहता था कि राजा राष्ट्रीय राज्य में सर्वेसर्वा रहे, क्योंकि वह सम्पूर्ण यूरोप के चर्चे का मुखिया स्वयं को मानता था। इसीलिए पोप प्रत्येक राज्य में चर्च के अधिकारियों की नियुक्ति करना अपना एकाधिकार समझता था। लेकिन राजा अपने राज्य में पोप के हस्तक्षेप को सहन करने के लिए तैयार नहीं था। ऐसी स्थिति में राजा और पोप के मध्य तनाव बढ़ने लगा और यह तनाव कालान्तर में धर्म सुधार आन्दोलन का प्रमुख कारण बन गया।
  3. चर्च की अपार सम्पत्ति :
    मध्य युग में चर्च एक धनी संस्था बन गया था। उसके पास अपार सम्पत्ति थी। चर्च कोई कर राज्य को नहीं देता था; अतः राष्ट्रीय राजाओं ने राजकीय व्यय की , पूर्ति के लिए चर्च की सम्पत्ति को जब्त करने के प्रयास किए। ऐसी परिस्थिति में राज्य और चर्च के मध्य संघर्ष अनिवार्य हो गया।
  4. चर्च के दोष : 
    मध्य युग में ही चर्च अनेक दोषों का शिकार हो चुका था। वह अनैतिकता के दलदल में बुरी तरह फंस गया था। पृथ्वी पर ईश्वर के दूत पोप ने अपने उच्च आदर्शों को भुलाकर विलासमय वे अनैतिक जीवन बिताना प्रारम्भ कर दिया था। पोप अलेक्जेण्डर बड़ा ही भ्रष्ट था। पोप लियो दशम ने अपनी विलासमयी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बहुमूल्य धार्मिक मूर्तियों तक को बेच दिया था। इतना ही नहीं, चर्च जनता से धर्म के नाम पर विभिन्न प्रकार के ‘कर वसूल करता था। किसानों को अपनी उपज का 1/10 भाग ‘टिथे’ नामक कर के रूप में चर्च को देना अनिवार्य था। मृतकों को अन्तिम संस्कार तथा अन्य धार्मिक कर्मकाण्डों के लिए पादरी जनता से बहुत ६१ वसूलते थे। पोप लियो दशम ने तो रोम के चर्च के निर्माण के नाम पर भारी धनराशि लेकर चर्च में नए पद बना दिए थे। उसने ‘पापमोचन पत्रों’ (Endulgances) की बिक्री भी प्रारम्भ कर दी थी। इन पत्रों को खरीदकर कोई भी अपराधी अपने अपराध या किए गए पाप से मुक्ति पा सकता था। इतना ही नहीं, पादरियों ने धन लेकर ‘स्वर्ग का टिकट’ तक देना आरम्भ कर दिया था। चर्च की इन बुराइयों ने धर्म सुधार आन्दोलन का मार्ग खोल दिया।
  5. अन्य कारण :
    चर्च द्वारा सूदखोरी का विरोध, चर्च के अधिकारियों का भ्रष्ट जीवन तथा  रिश्वतखोरी, छोटे और बड़े पादरियों में भेदभाव तथा हेनरी अष्टम के तलाक के प्रश्न में धर्म  सुधार आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार कर दी।

प्रश्न 7.
धर्म सुधार आन्दोलन के प्रभावों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :

धर्म सुधार आन्दोलन के प्रभाव

धर्म सुधार आन्दोलन ने यूरोप पर स्थायी तथा दूरगामी प्रभाव डाला। इसने यूरोप के राजनीतिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन को बहुत प्रभावित किया। धर्म सुधार आन्दोलन के परिणामों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं

  1. राजनीतिक परिणाम :
    इसने यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना को प्रोतसाहन दिया और राजाओं की निरंकुश सत्ता को मान्यता दे दी। फ्रांस तथा स्पेन को छोड़ कर यूरोप के अधिकांश देशों में प्रोटेस्टैण्ट धर्म की स्थापना हुई। कैथोलिकों तथा प्रोटेस्टैण्टों के बीच धर्म के नाम पर तीस वर्षीय (1618 1648 ई०) युद्ध हुआ।
  2. धार्मिक परिणाम :
    इस आन्दोलन ने यूरोप के ईसाई देशों की एकता नष्ट कर दी। ‘ईसाई जगत’ शब्द का नामोनिशान मिट गया। इंग्लैण्ड, स्कॉटलैण्ड, उत्तरी जर्मनी, डेनमार्क, नावें, स्वीडन, नीदरलैण्ड के कुछ प्रदेश रोम के चर्च से अलग हो गए। यूरोप में धार्मिक सहिष्णुता और वैयक्तिक नैतिकता का उदय हुआ। ईसाई धर्म में तीन सम्प्रदायों का जन्म हुआ—लूथर का सम्प्रदाय ‘लूथेरियन’, ‘ज्विगली’ को सम्प्रदाय ‘विगलीयन’ और काल्विन का सम्प्रदाय ‘प्रेसविटेरियन’।
  3. आर्थिक परिणाम :
    इस आन्दोलन ने यूरोप की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित किया। रोमन चर्च ने सूदखोरी को अनैतिज और अधार्मिक बताया था, लेकिन प्रोटेस्टेण्ट सम्प्रदाय ने इसे  कानूनी घोषित कर दिया। इससे यूरोप में पूँजीवाद का विकास और व्यापार में वृद्धि हुई।
  4.  राष्ट्रीय भाषा व साहित्य का विकास :
    धर्म सुधार आन्दोलन ने राष्ट्रीय भाषा तथा साहित्य के विकास को प्रोत्साहन दिया। लूथर ने ‘बाइबिल’ का अनुवाद जर्मन भाषा में करके लैटिन भाषा के महत्त्व को कम कर दिया। अब धार्मिक साहित्य राष्ट्रीय भाषाओं में अनुवादित तथा प्रकाशित होने लगा।
  5. धर्म सुधार विरोधी आन्दोलन :
    धर्म सुधार आन्दोलनों ने ‘धर्म सुधार विरोधी आन्दोलन (Counter Reformation) को जन्म दिया। इस धर्म सुधार विरोधी आन्दोलन के फलस्वरूप कैथोलिक धर्म में अनेक सुधार किए गए तथा रोमन चर्च के दोषों को दूर करने का प्रयत्न किया गया। इससे प्रोटेस्टेण्ट धर्म की प्रगति रुक गई। इस प्रकार धर्म सुधार आन्दोलन एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। उसने यूरोप के राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन को प्रभावित किया। वास्तव में पुनर्जागरण और धर्म सुधार आन्दोलन विश्व-इतिहास की युगान्तरकारी घटनाएँ सिद्ध हुईं। इसके साथ ही मध्य युग का अन्त और आधुनिक युग का आगमन हुआ।

प्रश्न 8.
विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में अरबवासियों के योगदान का विवेचन कीजिए।
उत्तर :
सम्पूर्ण मध्यकाल में ईसाई गिरजाघरों और मठों के विद्वान यूनानी और रोमन विद्वानों की कृतियों से परिचित थे। पर इन लोगों ने इन रचनाओं का प्रचार-प्रसार नहीं किया। चौदहवीं सदी में अनेक विद्वानों ने प्लेटो और अरस्तू के ग्रन्थों से अनुवादों को पढ़ना प्रारम्भ किया। इसके लिए वे अपने विद्वानों के ऋणी नहीं थे बल्कि अरब के विद्वानों के ऋणी थे जिन्होंने अतीत की पाण्डुलिपियों का संरक्षण और अनुवाद सावधानीपूर्वक किया था। जबकि एक ओर यूरोप के विद्वान यूनानी ग्रन्थों के अरबी अनुवादों का अध्ययन कर रहे थे दूसरी ओर यूनानी विद्वान अरबी और फारसी विद्वानों की कृतियों को अन्य यूरोपीय लोगों के बीच प्रसार हेतु अनुवाद भी कर रहे थे। ये ग्रन्थ प्राकृतिक विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, औषधि विज्ञान और रसायन विज्ञान से सम्बन्धित थे। टॉलेमी के ‘अलमजेस्ट’ में अरबी भाषा के विशेष अवतरण ‘अल’ का उल्लेख है जोकि यूनानी और अरबी भाषा के बीच रहे सम्बन्धों को प्रकट करता है। मुस्लिम लेखक, जिन्हें इतालवी दुनिया में ज्ञानी माना जाता था, अरबी के हकीम और मध्य एशिया के बुखारा के दार्शनिक इब्नसिना और आयुर्विज्ञान विश्वकोश के लेखक अल राजी थे। स्पेन के अरबी दार्शनिक इब्नरुश्द ने दर्शनिक ज्ञान और धार्मिक विश्वासों के बीच रहे तनावों को सुलझाने की चेष्टा की। उनकी पद्धति को ईसाई चिन्तकों द्वारा अपनाया गया।

प्रश्न 9.
जर्मनी में धर्म सुधार आन्दोलन का प्रसार किस प्रकार हुआ?
उत्तर :

जर्मनी में धर्म-सुधार

धर्म :
सुधार की लहर ने जर्मनी में विशद् रूप धारण कर लिया। यद्यपि इससे पूर्व कई धर्म-सुधार हो चुके थे, किन्तु इस पथ पर सफलतापूर्वक अग्रसर होने वाला प्रथम देश जर्मनी ही था। जर्मनी में धार्मिक सुधार का सूत्रपात करने का श्रेय महान् सुधारक मार्टिन लूथर को है। मार्टिन लूथर (Martin Luther) एक साधारण परिवार का था और विटनबर्ग (wittenburg) के विश्वविद्यालय में प्राध्यापक था। लूथर का जन्म 10 नवम्बर, 1483 ई० को ‘यूरिन्जिया’ नामक स्थान पर एक कृषक परिवार में हुआ था। बाल्यावस्था से ही धर्म में उसकी विशेष रुचि थी। यद्यपि उसके पिता की इच्छा उसे कानून पढ़ाने की थी किन्तु उसने धर्मशास्त्रों का अध्ययन प्रारम्भ कर दिया और 1505 ई० में वह पादरी (missionary) बन गया। पाँच वर्ष पश्चात् उसने रोम का भ्रमण किया और वहाँ के विलासितापूर्ण जीवन का गहराई से अवलोकन किया। तभी से पोप और धर्माधिकारियों के प्रति उसका विश्वास डगमगाने लगा। रोम से लौटकर उसने विटनबर्ग में प्राध्यापक का पद ग्रहण किया तथा वहाँ पर वह धर्मशास्त्र की शिक्षा देने लगा। उसके साहस और स्पष्टता के कारण उसके शिष्य उसका अत्यधिक सम्मान करते थे। लूथर 1510 ई० में रोम गया। वहाँ उसने पोप के दरबार में भ्रष्टाचार का बोलबाला देखा। वहीं उसने धर्म-सुधार की तीव्र आवश्यकता अनुभव की और उसे पूरा करने का संकल्प लिया। धीरे-धीरे कैथोलिक धर्म पर से उसका विश्वास उठता चला गया; क्योकि कैथोलिक धर्म इस समय भोग-विलास, व्यभिचार, भ्रष्टाचार और बाह्याडम्बरों का अड्डा बना हुआ था। धर्म की पुस्तकों के गहन अध्ययन से लूथर इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि मुक्ति का मार्ग दया एवं क्षमा पर आधारित है। पोप एवं धर्माधिकारी, मनुष्य की इस दिशा में कोई सहायता नहीं कर सकते। प्रारम्भ में तो लूथर को पोप का सक्रिय विरोध करने का साहस नहीं था, किन्तु 1517 ई० में जब पोप ने क्षमा-पत्रों की बिक्री आरम्भ की तो लूथर ने पोप का विरोध प्रारम्भ कर दिया। यह विरोध तीव्र गति से बढ़ता चला गया। क्षमा-पत्रों की बिक्री प्रारम्भ करने वाला पोप लियो दशम (Leo X) था जिसने सेण्ट पीटर का गिरजाघर बनवाने में अपार सम्पत्ति व्यय कर दी और अधिक धन प्राप्त करने के लिए उसने इन क्षमा-पत्रों का निर्माण कराया, जिसका आशय था कि इन पत्रों को खरीदने वाले को ईश्वर के दरबार में पापों से मुक्ति मिल जाएगी तथा उसे कोई दण्ड नहीं भुगतना पड़ेगा। पोप ने विटनबर्ग में भी अपना एक दूत भेजा, जो बड़े उत्साह से इन क्षमा-पत्रों को बेच रहा था। यह देखकर लूथर अत्यधिक दु:खी एवं क्रोधित हुआ और उसने गिरजाघर के द्वार पर एक नोटिस लगा दिया, जिसमें रोमन कैथोलिक धर्म के व्यावहारिक सिद्धान्तों का विरोध किया गया था तथा इन सिद्धान्तों की एक सूची भी प्रस्तुत की गई थी। इस नोटिस में लूशर ने यह भी घोषणा की थी कि इन सिद्धान्तों पर कोई भी व्यक्ति उससे शास्त्रार्थ कर सकता है। इस प्रकार लूथर ने रोमन कैथोलिक धर्म का दृढ़तापूर्वक विरोध प्रारम्भ कर दिया। दो वर्ष उपरान्त चर्च के एक अत्यन्त योग्य पादरी को उसने वाद-विवाद में पराजित किया तथा यह सिद्ध कर दिया कि केवल पोप और चर्च को ही ईसामसीह के सिद्धान्तों के अर्थ समझने 3-६’ उनकी व्याख्या करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। विकलिफ एवं जॉन हस के समान लूथर ने इस बात का प्रचार किया कि प्रत्येक व्यक्ति ‘बाइबिल’ पढ़ने और उसे समझने का अधिकार रखता है। लूथर के इस विरोध ने पोप को चौंका दिया क्योंकि अब तक ऐसा प्रबल विरोध करने का साहस किसी ने नहीं किया था। इसके अतिरिक्त जर्मनी की बहुत-सी जनता लूथर को अपना धर्मगुरु मानकर उसकी आज्ञाओं का पालन करने लगी थी और उन्होंने पोप के प्रभुत्व के भार को उतार फेंका था। इन सब बातों के कारण पोप लियो देशम क्रुद्ध हो उठा। उसने लूथर को धर्म से बहिष्कृत किया और पवित्र रोमन सम्राट चार्ल्स पंचम को आदेश दिया कि वह नास्तिक लूथर को दण्ड दे। पोप ने लूथर को नास्तिक कहना आरम्भ कर दिया था। किन्तु इस समय तक जर्मनी की अधिकांश जनता लूथर की अनुयायी बन चुकी थी और उसको इतना बड़ा दण्ड देना सरल न था। उसको दण्ड देने से गृह-युद्ध होने की पूरी आशंका थी। यहाँ तक कि कुछ शासकों ने उसका पक्ष लेना प्रारम्भ कर दिया और सैक्सनी के शासक फ्रेड्रिक ने खुले रूप में लूथर को शरण दी। उसने घोषणा की कि जब तक मेरे महल की एक भी ईंट शेष रहेगी लूथर का कोई बाल भी बाँकी नहीं कर सकता। इस प्रकार उत्तरी जर्मनी की अधिकांश जनता लूथर के पक्ष में हो गई और वे लोग कैथोलिक धर्म के विरुद्ध विद्रोह करने को तत्पर हो गए। दक्षिणी जर्मनी में   किसानों और मजदूरों न विद्रोह कर दिए और धनिक वर्ग इन विद्रोहों से भयभीत हो उठा। लूथर ने विद्रोहों में धनिकों का पक्ष लिया जिसके कारण किसानों ने उसका विरोध प्रारम्भ कर दिया। यद्यपि 1525 ई० में इस विद्रोह का दमन कर दिया गया, किन्तु इस विद्रोह ने जर्मनी को भी दो भागों में विभाजित कर दिया। उत्तरी जर्मनी के राज्यों में जनता अधिकांशत: लूथर की अनुयायी थी और दक्षिणी जर्मनी में कैथोलिक चर्च की। किन्तु डेनमार्क और अन्य स्केण्डिनेवियन राज्यों में भी लूथर का धर्म फैल गया इस प्रकार लूथर को प्रोटेस्टैण्ट धर्म का जन्मदाता माना जाने लगा। जर्मनी में काफी समय तक गृह-युद्ध चलता रहा, किन्तु अन्त में 1515 ई० में ऑग्सबर्ग (Augsburg) के स्थान पर दोनों धर्मावलम्बियों में समझौता हो गया। इस सन्धि के द्वारा पवित्र रोमन सम्राट ने यह बात स्वीकार कर ली कि जर्मनी के विभिन्न प्रदेशों के शासक दोनों धर्मों में से कोई भी धर्म मानने के लिए स्वतन्त्र हैं। इस सन्धि से लूथर द्वारा स्थापित प्रोटेस्टेण्ट धर्म को वैधानिक मान्यता प्रदान कर दी गई किन्तु जनसाधारण को कोई धार्मिक स्वतन्त्रता न थी। उनके शासक जिस धर्म को मानते थे वही धर्म जनता को मानना पड़ता था, अन्यथा शासक लोग विधर्मियों पर भीषण अत्याचार करते थे। यह धार्मिक अत्याचारों का युग सत्रहवीं शताब्दी तक निरन्तर चलता रहा।

प्रश्न 10.
मार्टिन लूथर कौन था? जर्मनी में उसके धर्म सुधार की सफलता के कारण लिखिए।
उत्तर :
मार्टिन लूथर का परिचय धर्म-सुधार का प्रयास चौदहवीं सदी से प्रारम्भ हो गा था, लेकिन अनुकूल परिस्थितियाँ न होने के ” कारण वह विफल रहा। सोलहवीं दी में जर्मनी में अनुकूल परिस्थितियों के बीच इसने सफलता प्राप्त की। सोलहवीं सदी में जर्मनी में धर्म-सुधार आन्दोलन की सफलता के अनेक कारण थे। जर्मनी में शक्तिशाली केन्द्रीय सत्ता का अभाव था। जर्मनी में अनेक स्वतन्त्र रियासतें थीं। इन रियासतों की सुदीर्घ अभिलाषा यह थी कि पोप की राजनीतिक सत्ता समाप्त हो जाए और उन्हें पोप के बन्धनों से मुक्ति मिले। उस समय दो बड़ी कैथोलिक शक्तियाँ-फ्रांस और पवित्र रोमन साम्राज्य-एक-दूसरे के विरुद्ध भीषण युद्धों में लगी हुई थीं। ये दोनों शक्तियाँ संगठित होकर धर्म-सुधार आन्दोलन को दबाने में असमर्थ थीं। पोप के हस्तक्षेप और पोप को दिए जाने वाले करों के कारण अन्य देशों की अपेक्षा जर्मनी को अधिक भार उठाना पड़ रहा था। इन परिस्थितियों के कारण यूरोप में धर्म-सुधार की लहर सबसे पहले जर्मनी में उठी। इस आन्दोलन का मुख्य संचालक मार्टिन लूथर था। मार्टिन लूथर यूरिन्जिया नामक स्थान पर 1483 ई० में हुआ था। उसने एरफ के विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। कानून तथा धर्म के विषय में उसका ज्ञान प्रशंसनीय था। 1505 ई० में वह पारी (missionary) बन गया। गिरजाघर में अपने को कड़े अनुशासन में रखने के बावजूद लूथर को आन्तरिक शान्ति न मिली। लूथर ने गिरजाघर छोड़ दिया और विटनबर्ग के विश्वविद्यालय में धर्मशास्त्र (Theology) का प्रोफेसर हो गया। धर्मशास्त्र के अध्ययन और अध्यापन के दौरान रोमन कैथोलिक चर्च के कई मन्तव्यों के बारे में लूथर के मन में अनेक शंकाएँ पैदा हो गईं। इसी कारण 1510 ई० में अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए उसने रोम का भ्रमण किया। रोम में उसने अपनी आँखों से पोप तथा पादरियों का भ्रष्ट जीवन देखा। उस समय पोप अपने धार्मिक कर्तव्ये भूलकर भोग-विलास में लिप्त रहते थे। यह देखकर लूथर पोप के विरुद्ध हो गया तथा उसे धर्म से ग्लानि हो गई। वह एक नया धर्म चलाने का विचार करने लगा, जिसमें पोप के समान भ्रष्ट चरित्र वाले व्यक्ति का कोई नेतृत्व न हो। पोप के विरुद्ध भ्रष्टाचार खत्म करने का अवसर भी आ गया। उस समय पोप न ईसाई लोगों में यह विश्वास प्रचलित कर दिया था कि मनुष्य को मृत्यु के बाद पापों का दण्ड भुगतना पड़ता है, लेकिन पुण्य कार्यों में धन देने से उस दण्ड की मात्रा काम हो जाती है। दण्ड की मात्रा कम करने के लिए पोप पापमोचन-पत्र (Indulgences) जारी किया करते थे। ईसाई लोग अपने पापों से छुटकारा के लिए इन्हें खरीद लिया करते थे। इस प्रकार पापमोचन-पत्र धन एकत्रित करने का साधन बन गए। 1517 ई० में लूथर को पापमोचन-पत्रों के बारे में ता चला तो उसके हृदय में जो आग पहले से जल रही थी वह और भड़क उठी। लूथर ने, जो इस समय विटनबर्ग में प्रोफेसर था, पोप का कड़ा विरोध करना शुरू कर दिया। उसने 95 सिद्धान्तों की एक सूची प्रस्तुत की, जिसमें पोप के सिद्धान्तों का विरोध किया गया था। यह सूची उसने गिरजाघर के मुख्य द्वार पर टाँग दी। इसमें तर्क के द्वारा पोप के धर्म का विरोध किया गया था तथा लूथर का यह कथन था कि इस विषय में कोई भी व्यक्ति उससे तर्क कर सकता है। पोप के धर्म का विरोध करने के कारण लूथर द्वारा प्रचलित यह धर्म प्रोटेस्टैण्ट धर्म (Protestant Religion) के नाम से सम्बोधित किया गया। जर्मनी में इस धर्म का प्रचार तीव्र-गति से हुआ। जर्मनी में प्रोटेस्टैण्ट चर्च की स्थापना की गई तथा उत्तरी जर्मनी की अधिकांश जनता लूथर के नवीन धर्म की अनुयायी बन गई। मार्टिन लूथर के इस विरोध के कारण पोप उसका शत्रु बन गया तथा एक घोषणा के द्वारा उसने लूथर तथा उसके अनुयायियों को धर्म से बहिष्कृत कर दिया। तथापि लूथर का उत्साह कम नहीं हुआ और उसने सम्पूर्ण जर्मनी में क्रान्ति की लहर फैला दी। उसने घूम-घूमकर पोप तथा उसके धर्म के विरुद्ध प्रचार आरम्भ कर दिया। यद्यपि इस समय अनेक व्यक्ति लूथर के अनुयायी बन गए तथापि उसके विरोधियों का भी अभाव नहीं था। जो अभी तक रोमन कैथोलिक धर्म के अनुयायी थे, लूथर से घृणा करते थे तथा उसके मार्ग में अवरोध उपस्थित कर रहे थे। स्पेन, ऑस्ट्रिया तथा फ्रांस जैसे शक्तिशाली देशों के सम्राटों की सहायता पोप को ही प्राप्त थी। स्पेन के सम्राट चार्ल्स पंचम ने लूथर को बुलाकर धर्म-सुधार आन्दोलन बन्द करने की आज्ञा दी तथा उसके मना करने पर लूथर को नास्तिक घोषित कर, दिया। वह लूथर को दण्ड भी देना चाहता था, परन्तु कुछ आन्तरिक समस्याओं से घिरे रहने के कारण वह उसको दण्ड न दे सका। लूथर ने सैक्सनी के राजा के यहाँ शरण ली। अन्त में जर्मनी के विभिन्न राज्यों ने लूथर के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया तथा लूथर की रक्षा करने का वचन दिया। इस प्रकार जर्मनी  में लूथर का धार्मिक आन्दोलन एक प्रकार से राष्ट्रीय आन्दोलन के रूप में परिणत हो गया।

प्रश्न 11.
वास्तुकला के क्षेत्र में रोमन लोगों की देन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
वास्तुकला के क्षेत्र में रोमन लोगों की देन को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 7 Changing Cultural Traditions image 1

  1.  रोमन लोगों ने ही सबसे पहले कंक्रीट का प्रयोग आरम्भ किया था।
  2. उन्होंने विश्व को ईंट और पत्थर के टुकड़ों को मजबूती से जोड़ने की कला सिखाई।
  3.  उन्होंने वास्तुकला के क्षेत्र में डाटा और गुम्बद का आविष्कार | करके दो महत्त्वपूर्ण सुधार किए। वे एक डाट के ऊपर एक-एक करके अनेक डाट बना सकते थे। इन डाटों का प्रयोग पुल, द्वार और विजय स्मारकों आदि को बनाने में खूब किया गया।
  4.  वे दीवारों पर संगमरमर की पट्टियाँ लगाकर उन्हें सरलता से ऐसा रूप दे सकते थे मानो वे पूर्ण रूप से संगमरमर की ही बनी हो।
  5.  रोमन लोगों द्वारा निर्मित कोलोजियम और पेथियन नामक वास्तुकला ने रोम साम्राज्यकालीन अनेक भवनों की विशिष्टताओं की भवन वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं। कोलोजियम एक प्रकार नकल की। का गोलाकार थियेटर (मण्डप) था, जहाँ रोमवासी पशुओं और दासों के दंगल देखा करते थे। पेथियन एक देव मन्दिर । है जिसका गुम्बद लगभग 142 फुट ऊँचा है। यह इतना मजबूत बना हुआ है कि आज भी एक गिरजाघर के रूप में इसका उपयोग किया जा रहा है।
  6. रोमवासी इन्जीनियरिंग कला में भी बहुत पारंगत थे। उन्होंने पानी के पाइपों द्वारा अनेक नगरों में पानी पहुँचाया। उनके द्वारा तैयार किए गए पुल, सड़कें आज भी उपयोग में आ रहे हैं।
  7.  रोमन लोगों द्वारा भित्तिचित्रों को बनाने की कला का भी खूब विकास किया जिसके अन्तर्गत सम्पूर्ण दिवार को चित्रित कर दिया जाता है।

प्रश्न 12.
काल्विन कौन था? काल्विनवाद के प्रमुख सिद्धान्त व विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
जिस प्रकार जर्मनी में धर्म-सुधार का नेतृत्व-भार लूथर ने सँभाला था, उसी प्रकार फ्रांस में काल्विन ने रोमन कैथोलिक धर्म के दोषों को दूर करने के लिए प्रोटेस्टैण्ट धर्म को जन्म दिया। वह धर्म-सुधार का दूसरा और अधिक प्रभावशाली नेता था। जन्म से वह फ्रांसीसी था। उसका जन्म 1509 ई० में हुआ तथा उसने पेरिस और ऑरलेयाँ विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। वह उच्च विचारों वाला व्यक्ति था और धार्मिक कुरीतियों से उसे घृणा थी। लूथर के विचारों से वह अत्यधिक प्रभावित हुआ तथा 1533 ई० में उसने प्रोटेस्टैण्ट धर्म का अवलम्बन किया, किन्तु फ्रांस के कैथोलिक सम्राट फ्रांसिस के अत्याचारों के कारण अपना देश छोड़कर उसे स्विट्जरलैण्ड में शरण लेने के लिए बाध्य होना। पड़ा। स्विट्जरलैण्ड में धर्म-सुधार ज्विगली के सम्पर्क में आकर उसने प्रोटेस्टैण्ट धर्म का प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया। 1536 ई० में उसने एक पुस्तक ‘Institute of the Christian Religion प्रकाशित की, जिसमें प्रोटेस्टैण्ट धर्म का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया था। इस पुस्तक से काल्विन अत्यधिक प्रसिद्ध हो गया। वह अपने सम्राट फ्रांसिस को भी प्रोटेस्टैण्ट बनाना चाहता था। परन्तु इस कार्य में उसे सफलता प्राप्त न हो सकी। 1538 ई० तक उसने जेनेवा में प्रोटेस्टैण्टों का नेतृत्व किया, किन्तु विरोध के कारण 1539 ई० में उसे जेनेवा छोड़ना पड़ा। उसके जाते ही जेनेवा में पुन: कैथोलिकों का बोलबाला हो गया तथा उन्होंने प्रोटेस्टैण्टों का विनाश करने का प्रयास किया। 1541 ई० में अपने अनुयायियों की सुरक्षा के लिए काल्विन पुनः जेनेवा आया। यहाँ उसने कठोर धर्मतन्त्रात्मक व्यवस्था स्थापित करके शासन सूत्र अपने हाथ में ले लिया। गन्दे नृत्य, गीत, त्योहार व थियेटरों को बन्द करा दिया तथा उसने अन्धविश्वासी कैथोलिकों को मृत्युदण्ड देने में भी संकोच नहीं किया। ‘बाइबिल’ का अनेक भाषाओं में अनुवाद कराया गया जिसके कारण यह ग्रन्थ लोकप्रिय हो सका। अपने धर्म-प्रसार के लिए उसने कई प्रोटेस्टैण्ट विद्यालयों की स्थापना की तथा जेनेवा को प्रोटेस्टैण्ट धर्म का केन्द्र बना दिया। अपने विरोधियों का दमन करने के लिए प्रयास करते थे। काल्विन इतना कट्टर प्रोटेस्टैण्ट था कि उसको ‘प्रोटेस्टैण्ट पोप’ की उपाधि प्रदान की गई। परन्तु काल्विन ने अत्यन्त दृढ़तापूर्वक धर्म-प्रसार का कार्य निरन्तर जारी रखा तथा कुछ काल में ही वह प्रसिद्ध धर्म-सुधारक बन गया। देशी भाषा में धर्म प्रचार करने के कारण उसके अनुयायियों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होने लगी तथा उसके धर्म का प्रभाव इंग्लैण्ड, स्कॉटलैण्ड एवं हॉलैण्ड आदि देशों पर पड़ा। काल्विन द्वारा प्रचारित धर्म शीघ्र ही इन देशों में फैलने लगा। नीदरलैण्ड्स के लोकतन्त्र, लोकतन्त्रवादी उच, स्कॉटलैण्ड के कॉन्वेण्टेटर (Conventator) और इंग्लैण्ड के प्यूरिटन इसी धर्म की देन थी। डचों ने फिलिप के अत्याचारी शासन के विरुद्ध विद्रोह कर डच गणतन्त्र की स्थाना करके ही दम लिया। कॉन्वेण्टेटरों ने चार्ल्स प्रथम के विरोध के बावजूद राष्ट्रीय धर्म की सुरक्षा की तथा प्यूरिटनों ने स्टुअर्ट राजाओं के स्वेच्छाचारी शासन का कड़ा विरोध किया। जेनेवा प्रोटेस्टेण्ट लोगों का शरण-स्थल बन गया तथा अनेक देशों के अत्याचार-पीड़ित प्रोटेस्टैण्ट आकर यहाँ शरण प्राप्त करने लगे। ग्राण्ट (Grant) के अनुसार, “महाद्वीप के एक विशेष भाग में काल्विन के नाम एवं प्रभाव का विस्तार कुछ ही वर्षों में हो गया। उसका आन्दोलन केवल जेनेवा तक ही सीमित न रहा अपितु फ्रांस, इंग्लैण्ड, स्कॉटलैण्ड और नीदरलैण्ड में भी उसका प्रचार हुआ।

काल्विनवाद के प्रमुख सिद्धान्त एवं विशेषताएँ

काल्विन रोमन कैथोलिक धर्म के आडम्बर तथा रूढ़ियों में विश्वास नहीं रखता था। उसका धर्म सरल, सदाचारपूर्ण तथा पवित्र जीवन व्यतीत करना सिखाता था। ‘भाग्यवाद’ उसके धर्म का मूल सिद्धान्त था। पोप एवं पादरियों के भ्रष्ट जीवन का भण्डाफोड़ करके उसने जनता को बताया कि इस प्राचीन धर्म पर चलंकर उन्हें मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता। ईश्वर मनुष्य को स्वर्ग एवं मोक्ष देने वाला है। वह इस संसार का सृजन करता है तथा उसी की इच्छा से मनुष्य का भाग्य निर्मित होता है। ईश्वर की सर्वशक्ति में वह पूर्ण विश्वास रखता था। उसका विचार था कि बिना ईश्वर की कृपा के मोक्ष अथवा स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हो सकती। उसके विचार में चर्च राज्य था और राज्य चर्च, अर्थात् राज्य और चर्च में कोई अन्तर नहीं था। राज्य की नागरिकता चर्च की सदस्यता पर निर्भर करती थी। काल्विन प्रजातन्त्रात्मक चर्च का पक्षपाती था। उसका विचार स्था कि चर्च की व्यवस्था जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथ में होनी चाहिए। इस प्रकार वह एक चर्च सरकार स्थापित करने का इच्छुक था। ‘बाइबिल’ में काल्विन को पूर्ण विश्वास था तथा वही उसका प्रमुख धर्म-ग्रन्थ था। ‘बाइबिल’ को ईश्वर की वाणी समझकर काल्विन उसकी पूजा करता था। धर्म में राज्य को हस्तक्षेप काल्विन की दृष्टि से अनुचित था। उसका विश्वास था कि प्रजा को धर्म का अनुसरण करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए। धर्म-प्रचार तथा चर्च को अनुशासित रखने के लिए काल्विन ने चर्च के अधिकारियों की एक समिति बनाई तथा कठोर अनुशासन द्वारा पादरियों के भ्रष्टाचारपूर्ण जीवन को रोककर उन्हें पवित्र जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य किया। काल्विन के धार्मिक सिद्धान्त लूथर के सिद्धान्तों से काफी मिलते-जुलते थे। उसने भाग्यवाद, चर्च के प्रजातन्त्रात्मक संगठन तथा कठोर अनुशासन को धर्म का आधार मानकर धर्म-प्रचार किया तथा उसे भी लूथर के समान काफी सफलता मिली।

We hope the UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 7 Changing Cultural Traditions help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 7 Changing Cultural Traditions , drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 4 The Central Islamic Lands

UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 4  The Central Islamic Lands (इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570 – 1200 ई०)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 11 History . Here we have given UP Board Solutions for Class 11 History  Chapter 4 The Central Islamic Lands

पाठ्य – पुस्तक के प्रश्नोत्तर
संक्षेप में उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
सातवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में बेदुइओं के जीवन की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर :
बेदुइओं के जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

(i) अनेक अरब कबीले बेदूइन या बद्दू या खानाबदोश होते थे।
(ii) ये अपने खाद्य (खजूर) और अपने ऊँटों के लिए चारे की तलाश में रेगिस्तान के सूखे क्षेत्रों से हरे-भरे क्षेत्रों (नखलिस्तान) की ओर जाते रहते थे।
(iii) इनमें से कुछ नगरों में बस गए और व्यापार करने लगे।
(iv) खलीफा के सैनिकों में ज्यादा बदू ही थे। ये रेगिस्तान के किनारे बसे शिविर शहरों; जैसे कुफा तथा बसरा में रहते थे।

प्रश्न 2.
अब्बासी क्रान्ति’ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
उमय्यदों के विरुद्ध ‘दावा’ नामक एक सुसंगठित आंदोलन हुआ, फलस्वरूप उनका पतन हो गया। सन् 1750 में उनके स्थान पर मक्काई मूल के अन्य परिवार (अब्बासिदों) को स्थापित कर दिया गया। वास्तव में अब्बासिदों ने उमय्यद शासन की जमकर आलोचना की और पैगम्बर द्वारा स्थापित मूल इस्लाम को पुनः बहाल कराने का वादा किया। वे उसमें सफल भी रहे। इसे ही अब्बासी । क्रान्तिं की संज्ञा दी गई है। इस क्रान्ति से राजवंश में परिवर्तन के साथ राजनीतिक संरचना में बहुत परिवर्तन हुआ।

प्रश्न 3.
अरबों, ईरानियों व तुर्को द्वारा स्थापित राज्यों की बहुसंस्कृतियों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
अरबों, ईरानियों और तुर्को द्वारा स्थापित राज्य जातीय पक्षपातरहित थे। ये राज्य किसी एकल राजनीतिक व्यवस्था या किसी संस्कृति की एकल भाषा (अरबी) के बजाय सामान्य अर्थव्यवस्था व संस्कृति के कारण सम्बद्ध रहे। मध्यवर्ती इस्लामी देशों में व्यापारी, विद्वान् तथा कलाकार स्वतन्त्र रूप से आते जाते थे। इस प्रकार विचारों तथा तौर-तरीकों का प्रसार हुआ।

प्रश्न 4.
यूरोप व एशिया पर धर्मयुद्धों का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
यूरोप व एशिया पर धर्मयुद्ध का निम्नलिखित प्रभाव पड़ा
(i) मुस्लिम राज्यों ने अपने ईसाई प्रजाननों के प्रति कठोर रवैया अपनाया। विशेष रूप से यह स्थिति युद्धों में देखी गई।
(ii) मुस्लिम सत्ता की बहाली के पश्चात् भी पूर्व तथा पश्चिम के मध्य इटली के व्यापारिक समुदायों का अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव था।

संक्षेप में निबन्ध लिखिए।

प्रश्न 5.
रोमन साम्राज्य के वास्तुकलात्मक रूपों से इस्लामी वास्तुकलात्मक रूप किस प्रकार भिन्न थे?
उत्तर :
UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 4 The Central Islamic Lands image 1
UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 4 The Central Islamic Lands image 2
रोमन साम्राज्य के महामंदिरों के अनुरूप ही इस्लामी दुनिया में भी धार्मिक इमारतें इस्लामी दुनिया की सबसे बड़ी बहारी प्रतीक थीं। स्पेन से मध्य एशिया तक फैली हुई मस्जिदें, इबादतगाह और मकबरों का मूल्लू डिजाइन समान था। मेहराबें, गुम्बद, मीनार और खुले सहन आदि इमारतें मुसलमानों की आध्यात्मिकता और व्यावहारिक आवश्यकताओं को अभिव्यक्त करती हैं। इस्लाम की प्रथम सदी में, मस्जिद ने एक विशिष्ट वास्तुशिल्पीय रूप (खम्भों के सहारे वाली छत) प्राप्त कर लिया था जो प्रादेशिक विभिन्नताओं से परे था। मस्जिद में एक खुला प्रांगण या सहन होता जहाँ एक फव्वारा या जलाशय बनाया जाता था। यह प्रांगण एक बड़े कमरे की ओर खुलता, जिसमें नमाज पढ़ने वाले लोगों की लम्बी पंक्तियों और नमाज का नेतृत्व करने वाले इमाम के लिए काफी स्थान होता उमय्यदों ने नखलिस्तानों में ‘मरुस्थली महल’ कल्पना कीजिए कि इस पेड़ पर खलीफा विराजमान है। दिए गए चित्र में शान्ति व युद्ध का चित्रण किया गया है। बनाए। उदाहरण के लिए-फिलिस्तीन ने खिरबत-अल-मफजर और जोर्डन में कैसर अमरा जो विलासपूर्ण निवास स्थानों, शिकार और मनोरंजन के लिए विश्रामस्थलों के रूप में प्रयोग किए गए थे। महल रोमन और सासायनियन वास्तुशिल्प के तरीके से बनाए। गए थे। उन्हें चित्रों, प्रतिमाओं और पच्चीकारी से सजाया जाता था। रोम की वास्तुकला अत्यधिक दक्षपूर्ण थी। उनके द्वारा सर्वप्रथम कंकरीट का प्रयोग प्रारम्भ किया गया था। वे पत्थरों व ईंटों को मजबूती से जोड़ सकते थे। रोम के वास्तुकारों ने दो वास्तुशिल्पीय सुधार किए– (i) डाट, (ii) गुम्बद। रोम में इमारतें दो या तीन मंजिलों वाली होती थीं। इनमें डालें (Arches) ठीक एक के ऊपर । मेसोपोटामिया की का प्रयोग कोलोजियम बनाने में किया था। वास्तुकला की परम्पराओं से प्रेरित यह कई शताब्दियों तक दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद थी। डाटों का प्रयोग नहर बनाने के लिए भी किया जाता था। रोम के प्रसिद्ध मंदिर पैन्थियन में । औंधे कटोरे की तरह गुम्बद छत थी। यहाँ रोम वास्तुकला के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं
UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 4 The Central Islamic Lands image 3
UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 4 The Central Islamic Lands image 4

प्रश्न 6.
रास्ते पर पड़ने वाले नगरों का उल्लेख करते हुए समरकन्द से दमिश्क तक की यात्रा का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
समरकन्द से दमस्कस के मार्ग पर मर्व खुरसाम, निशापुर दायलाम, इसफाइन, समारा, बगदाद, कुफा, कुसायुर, अमरा, जेरूसलम आदि शहर स्थित हैं। व्यापारी या यात्री दो रास्तों लाल सागर और फारस की खाड़ी से होकर जाते थे। लम्बी दूरी के व्यापार के लिए उपयुक्त और उच्च मूल्य वाली वस्तुओं; यथा-मसालों, कपड़ों, चीनी मिट्टी की वस्तुओं और बारूद को भारत और चीन से लाल सागर के अदन और ऐधाव तक और फारस की खाड़ी के पत्तन सिराफ और बसरा तक जहाज पर लाया जाता था। वहाँ से माल को जमीन पर ऊँटों के काफिलों द्वारा बगदाद, दमिश्क और समरकन्द तक भेजा जाता था।
UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 4 The Central Islamic Lands image 5

परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
इस्लाम धर्म निम्नलिखित में से किसने चलाया था?
(क) मुहम्मद साहब ने
(ख) अब्राहम ने (ग) इस्माइल ने
(घ) खलीफा उमर ने
उत्तर :
(क) मुहम्मद साहब ने

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रन्थ है?
(क) कुरान शरीफ
(ख) हदीस
(ग) एन्जील
(घ) ओल्ड टेस्टामेण्ट
उत्तर :
(क) कुरान शरीफ

प्रश्न 3.
अरब में मुस्लिम साम्राज्य के संस्थापक कौन थे?
(क) खलीफा अबू बकर
(ख) खलीफा उमर
(ग) पैगम्बर मुहम्मद
(घ) खलीफा अली
उत्तर :
(ख) खलीफा उमर

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा नगर धर्मनिष्ठ खलीफाओं की राजधानी था?
(क) मक्का
(ख) मदीना
(ग) बगदाद
(घ) कुफा
उत्तर :
(ख) मदीना

प्रश्न 5.
अब्बासी खलीफाओं की राजधानी कौन-सा नगर था? 
(क) जेरूसलम
(ख) बगदाद
(ग) मक्का
(घ) बसरा
उत्तर :
(ख) बगदाद

प्रश्न 6.
मुहम्मद साहब का जन्म कब हुआ था?
(क) 540 ई० में
(ख) 560 ई० में
(ग) 570 ई० में
(घ) 575 ई० में
उत्तर :
(ग) 570 ई० में

प्रश्न 7.
अब्बासी खलीफाओं में सबसे अधिक प्रसिद्ध है
(क) अल मंसूर
(ख) हारून-अल-रशीद
(ग) अल बाथिक
(घ) अल मामून
उत्तर :
(ख) हारून-अल-रशीद

प्रश्न 8.
‘शाहनामा’ का लेखक कौन था?
(क) शेख सादी
(ख) अल राजी
(ग) उमर खय्याम
(घ) फिरदौसी
उत्तर :
(घ) फिरदौसी।

प्रश्न 9.
‘चट्टान को गुम्बद कहाँ पर स्थित है?

(क) बसरा
(ख) दमिश्क
(ग) जेरूसलम
(घ) बगदाद
उत्तर :
(ग) जेरूसलेम

प्रश्न 10.
अरब का प्रसिद्ध संगीतकार कौन था?
(क) अल रेहान
(ख) फिरदौसी
(ग) गजाली
(घ) अल अगानी
उत्तर :
(ग) गजाली

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अरब प्रायद्वीप में कौन-कौन से देश सम्मिलित हैं?
उत्तर :
अरब प्रायद्वीप में टर्की, मिस्र, सीरिया, इराक, ओमान, बहरीन, ईरान आदि देश सम्मिलित हैं।

प्रश्न 2.
अरब के मुस्लिम पंचांग का निर्माण किसने किया था?
उत्तर :
अरब के मुस्लिम पंचांग का निर्माण उमर खैयाम ने किया था।

प्रश्न 3.
रसायनशास्त्र में अरब निवासी क्या-क्या बनाना जानते थे?
उत्तर :
अरब निवासी रसायनशास्त्र में चॉदी का घोल, पोटाश, शोरे एवं गन्धक का तेजाब तथा इत्र आदि बनाना जानते थे।

प्रश्न 4.
इस्लाम धर्म के प्रवर्तक कौन थे?
उत्तर :
इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद साहब थे।

प्रश्न 5.
इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक का नाम लिखिए।
उत्तर :
इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक ‘कुरान शरीफ’ है।

प्रश्न 6.
मुहम्मद साहब का जन्म कब तथा किस नगर में हुआ था?
उत्तर :
मुहम्मद साहब का जन्म 570 ई० में अरब देश के मक्का नगर में हुआ था?

प्रश्न 7.
अब्बासी खलीफाओं की राजनधानी कहाँ स्थित थी?
उत्तर :
मध्यकाल में अब्बासी ख़लीफाओं की राजधानी बगदाद में स्थित थी। यह स्थान वर्तमान इराक की राजधानी है।

प्रश्न 8.
मध्यकाल में बगदाद क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर :
मध्यकाल में बगदाद अब्बासी खलीफाओं के वैभव और अरब सभ्यता व संस्कृति तथा व्यापार का प्रमुख केन्द्र होने के कारण प्रसिद्ध था।

प्रश्न 9.
फिरदौसी ने कौन-सी पुस्तक लिखी?
उत्तर :
फिरदौसी ने ‘शाहनामा’ नामक पुस्तक लिखी थी।

प्रश्न 10.
उमर खय्याम क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर :
उमर खय्याम अपनी रूबाइयों के लिए प्रसिद्ध है।

प्रश्न 11.
जेरूसलम कहाँ पर स्थित है और क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर :
जेरूसलम पश्चिमी एशिया (इजराइल राष्ट्र) में स्थित एक धार्मिक नगर है। यह इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्मों का संगम-स्थल व पवित्र तीर्थस्थान तथा ओमर मस्जिद के लिए विश्वप्रसिद्ध है।

प्रश्न 12.
अरबों ने लेखन-कला की किस शैली का आविष्कार किया?
उत्तर :
अरबों ने लेखन-कला की ‘खुशवती’ शैली का आविष्कार किया।

प्रश्न 13.
अलबरूनी ने कौन-सी पुस्तक लिखी थी?
उत्तर :
अलबरूनी ने तहकीके हिन्द’ नामक पुस्तक लिखी थी।

प्रश्न 14.
खिलाफत का क्या अर्थ है?
उत्तर :
मुहम्मद साहब के निधन के बाद इस्लाम के प्रचार व प्रसार का कार्यभार (पद) “खिलाफत कहलाया, जिसका तेतृत्व अबू बकर, उमर, उस्मान तथा अली नामक खलीफाओं ने किया।

प्रश्न 15.
अब्बासी खलीफाओं में सबसे अधिक प्रसिद्ध खलीफा का नाम लिखिए।
उत्तर :
अब्बासी खलीफाओं में सबसे अधिक प्रसिद्ध खलीफा हारून-अल-रशीद था।

प्रश्न 16.
हिजरी सम्वत् कब प्रारम्भ हुआ?
उत्तर :
हिजरी सम्वत् 622 ई० से प्रारम्भ हुआ।

प्रश्न 17.
इस्लाम धर्म ने विश्व की सभ्यता पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर :
इस्लाम धर्म ने विश्व की सभ्यता को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया। कला और धर्म के क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 18.
‘कीमियागिरी क्या थी? यह कला विलुप्त क्यों हो गई?
उत्तर :
रासायनिक प्रक्रिया द्वारा लोहे या किसी अन्य धातु से स्वर्ण (सोना) बनाने की कला को ‘कीमियागिरी’ कहते थे। वंशानुगत होने के कारण यह कला शीघ्र ही विलुप्त हो गई।

प्रश्न 19.
काबा का क्या महत्त्व था?
उत्तर :
मुहम्मद के कबीले कुरैश का जिस मस्जिद पर नियन्त्रण था, उसे काबा कहा जाता था। यह मस्जिद मक्का में थी। सभी लोग इस जगह को पवित्र मानते थे।

प्रश्न 20.
हिजरी वर्ष की क्या विशेषता है?
उत्तर :
हिजरी वर्ष चन्द्रवर्ष होता है जिसमें 354 दिन अर्थात् 29 या 30 दिनों के 12 महीने होते हैं। प्रत्येक दिन सूर्यास्त के समय शुरू होता है।

प्रश्न 21.
प्रथम चार खलीफाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :

  1. अबू बकर,
  2.  उमर,
  3.  उस्मान तथा
  4. अली

प्रश्न 22.
अली के काल में इस्लाम जगत में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर :
इस्लाम के चौथे खलीफा अली के शासनकाल में मुसलमान दो सम्प्रदायों-शिक्षा और सुन्नी में विभाजित हो गया।

प्रश्न 23.
अरब में राजतन्त्र की स्थापना किसने और कब की?
उत्तर :
मुआविया ने स्वयं को पाँचवाँ खलीफा घोषित कर उमय्यद वंश की स्थापना की। वह राजतन्त्र का समर्थक था। राजतन्त्र की स्थापना 661 ई० में हुई।

प्रश्न 24.
फातिमिद कौन था?
उत्तर :
फातिमिद शिया सम्प्रदाय से सम्बद्ध था और स्वयं को मुहम्मद की पुत्री फातिमा का वंशज मानता था। 969 ई० में उसने मिस्र को जीतकर फातिमिद खिलाफत की स्थापना की और काहिरा को अपनी राजधानी बनाया।

प्रश्न 25.
धर्मयुद्ध से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
जेरूसलम और फिलिस्तीन के अधिकार के प्रश्न पर मुसलमानों और ईसाइयों में दो शताब्दियों (1096-1291) तक युद्ध हुए थे, उन्हें धर्मयुद्ध कहा जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बगदाद कहाँ है और क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर :
बगदाद, अरब प्रायद्वीप के देश इराक की राजधानी है। मध्यकाल में यह नगर अब्बासी खलीफाओं की राजधानी था। बगदाद; अरब सभ्यता एवं संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र तथा व्यापार का भी प्रमुख केन्द्र होने के कारण प्रसिद्ध है।

प्रश्न 2.
अरब निवासियों के प्रमुख उद्योग कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
अरब निवासी कृषि योग्य भूमि से वंचित थे; अतः उन्होंने अनेक उद्योग-धन्धे अपना रखे थे। वे कपास से सुन्दर वस्त्र, कालीन, गलीचे आदि बनाते थे। इत्र, अर्क और शर्बत बनाने में वे विशेषकुशल थे। दमिश्क की मलमल, तलवारें एवं युद्ध का सामान, मिट्टी के बर्तन तथा खिलौने, काँच का सामान आदि उस समय सारे संसार में प्रसिद्ध थे। अरब निवासी इनका बड़ी मात्रा में व्यापार किया करते थे।

प्रश्न 3.
मक्का और मदीना क्यों प्रसिद्ध हैं?
उत्तर :
मक्का और मदीना सऊदी अरब के प्रमुख नगर हैं। मक्का में इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद साहब का जन्म हुआ था। हजरत मुहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म चलाया था। मदीना में मुहम्मद साहब ने हिजरत की थी। मक्का मुसलमानों का प्रमुख तीर्थस्थल है। प्रतिवर्ष लाखों मुसलमान यहाँ हज करने के लिए आते हैं। ये दोनों नगर इस्लाम धर्म के पवित्र स्थल होने के कारण प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 4.
विज्ञान के क्षेत्र में अरब निवासियों ने भारत एवं यूनान से क्या-क्या सीखा?
उत्तर :
अरब निवासियों ने विज्ञान के क्षेत्र में भारत और यूनान से बहुत-कुछ सीखा। यूनान से गणित और ज्यामिति का ज्ञान लेकर अरबों ने गोलाकार त्रिकोणमिति की खोज की। भौतिक विज्ञान में उन्होंने पेण्डुलम की खोज की और प्रकाश के सम्बन्ध में अनेक महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले। अरबों ने भारतीयों से आयुर्वेद का ज्ञान भी प्राप्त किया और यूनानी पद्धति अपनाकर यूनानी चिकित्सा की परम्परा प्रारम्भ की।

प्रश्न 5.
विज्ञान के क्षेत्र में अरबों की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
विज्ञान के क्षेत्र में अरबों की उपलब्धियाँ निम्नलिखित थीं

  1.  अरबों के द्वारा गोलाकार त्रिकोणमिति और अंक प्रणाली की खोज की गई थी। यूरोपवासियों ने अरबों से ही अंक प्रणाली को सीखा था।
  2.  अरब वैज्ञानिकों ने ही सर्वप्रथम यह खोज की थी कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हुई स्वयं की परिक्रमा करती है।
  3.  अरबों द्वारा अनुसन्धान हेतु अनेक प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई थी।
  4.  खगोलशास्त्र के क्षेत्र में उन्होंने अनेक वेधशालाओं का निर्माण किया और नए नक्षत्रों का पता लगाया।
  5. भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में पेण्डुलम की खोज उनके द्वारा ही की गई थी। उन्होंने प्रकाश विज्ञान पर अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की थी।
  6.  वे चिकित्सा के क्षेत्र में भी बहुत पारंगत थे और शिल्प-क्रिया से भली-भाँति परिचित थे।

प्रश्न 6.
कबीले की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
कबीले की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

  1. कबीले रक्त सम्बन्धों पर संगठित समाज होते थे।
  2.  अरब कबीले वंशों से बने हुए होते थे अथवा बड़े परिवारों के समूह होते थे, परन्तु बन्द समाज नहीं थे।
  3. गैर-अरब व्यक्ति कबीलों के प्रमुखों के संरक्षण में सदस्य बन जाते थे।
  4.  गैर-रिश्तेदार वंशों को तैयार किए गए वंशक्रम के आधार पर विलय किया जाता था।

प्रश्न 7.
इस्लाम धर्म के उदय होने से पूर्व अरब लोगों के जीवन की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
इस्लाम धर्म से पूर्व अरब लोगों के जीवन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. इस्लाम से पूर्व अरब लोग अनेक छोटे-छोटे कबीलों में बँटे हुए थे।
  2. कबीले परस्पर छोटी-छोटी बातों पर लड़ते रहते थे।
  3. अरब समाज के लोग अनेक अन्धविश्वासों के शिकार थे।
  4. इस समय अरब के लोग अनेक देवी-देवताओं में विश्वास करते थे और मूर्तिपूजा किया करते
  5.  इस समय अरब के लोगों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। कालान्तर में व्यापार भी इनकी जीविका का मुख्य साधन बन गया।

प्रश्न 8.
अब्द-थल-मलिक के प्रमुख कार्य लिखिए।
उत्तर :
अब्द-थल-मलिक के प्रमुख कार्य निम्नलिखित थे

  1. उमय्यदवंशीय अब्द-थल-मलिक ने अरबी को प्रशासन की भाषा के रूप में अपनाया और सिक्के जारी किए।
  2.  सिक्कों पर रोमन और ईरानी की नकल समाप्त करके अरबी भाषा में लेख अंकित कराए।
  3.  उसने जेरूसलम में चट्टान के गुम्बद का निर्माण करवाया और अरब-इस्लामी पहचान में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 9.
इस्लाम धर्म के प्रमुख सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर :
इस्लाम धर्म के प्रमुख सिद्धान्त

  1. अल्लाह एक और निराकार-इस्लाम धर्म एक अल्लाह और उसके निराकार स्वरूप के सिद्धान्त को मानता है। उसके अनुसार अल्लाह सर्वज्ञ, सर्वोच्च और निराकार है।
  2. कर्मवाद में विश्वास-इस्लाम धर्म, कर्म के सिद्धान्त का पोषक है। उसके अनुसार कर्मों से ही मनुष्य को जन्नत (स्वर्ग) या नरक (दोजख) प्राप्त होता है। न्याय-दिवस (कयामत) पर जीवों के कर्मों के लेखे-जोखे के आधार पर ही प्रत्येक जीव को उसके कर्मों का फल मिलता है।
  3.  पाँच कर्म सिद्धान्त-इस्लाम धर्म के पाँच कर्म-सिद्धान्त अग्र प्रकार हैं

(क) कलमा : ह इस्लाम धर्म का मूल मन्त्र है, जिसके अनुसार अल्लाह एक है, उसके अतिरिक्त कोई नहीं है और मुहम्मद साहब उसके पैगम्बर हैं।
(ख) रोजा-ईस्लाम धर्म मानता है कि रमजान के पवित्र महीनों में प्रत्येक मुसलमान को प्रातः से सूर्यास्त तक रोजा (व्रत) रखना चाहिए।
(ग) नमाज-प्रत्येक सच्चे मुसलमान को प्रतिदिन पाँच बार नमाज पढ़नी चाहिए।
(घ) जकात–प्रत्येक इस्लाम के अनुयायी को अपनी आय में से एक निश्चित राशि स्वेच्छा से गरीबों में दान देनी चाहिए। दान देना पुण्य का काम है।
(ङ) हज–प्रत्येक मुसलमान को अपने जीवनकाल में एक बार मक्का की तीर्थयात्रा (हज) पर अवश्य जाना चाहिए।

प्रश्न 10.
सामाजिक एकता स्थापित करने के लिए मुहम्मद साहब ने कौन-से नियम बनाए थे?
उत्तर :
मुसलमानों में एकता की भावना का विकास करने के उद्देश्य से मुहम्मद साहब द्वारा निम्नलिखित नियम बनाए गए थे1. इज्मा-सभी मुसलमानों को प्रत्येक क्षण, प्रत्येक स्थान पर, प्रत्येक परिस्थिति में इस्लाम के | सिद्धान्तों पर एकमत रहना चाहिए। 2. सुन्ना-इस्लाम धर्म में निर्धारित कार्यों को आदर्श मानकर उनका पालन करना चाहिए। 3. कयास-इस्लाम धर्म पर आधारित मुहम्मद साहब के उपदेशो के अर्थ एवं भाव को समझकर उन उपदेशों का यथावते पालन करना चाहिए।

प्रश्न 11.
इस्लामी राज्यों में कृषि की उन्नति हेतु क्या प्रसास किए गए?
उत्तर :
इस्लामी राज्यों में कृषि की उन्नति हेतु निम्नलिखित उपाय किए गए

  1.  अनेक क्षेत्रों में विशेषकर नील घाटी, में राज्य ने सिंचाई प्रणालियों, बाँधों और नहरों के निर्माण, कुओं की खुदाई की व्यवस्था कराई।
  2. पानी उठाने के लिए पनचक्कियों की व्यवस्था की गई।
  3. इस्लामी कानून के अन्तर्गत उन लोगों को कर में छूट दी गई जो जमीन को पहली बार खेती के काम में लाते थे।
  4.  अनेक नई फसलों; यथा-कपास, सन्तरा, केला, तरबूज, पालक और बैंगन की खेती की गई और यूरोप को उनका निर्यात किया गया।

प्रश्न 12.
उलेमा कौन थे और उनका क्या कार्य था?
उत्तर :
उमेला धार्मिक विद्वान थे। ये कुरान से प्राप्त ज्ञान (इल्म) पैगम्बर को आदर्श व्यवहार (सुन्ना) का मार्गदर्शन करते थे। मध्यकाल में उलेमा अपना समय कुरान पर टीका (तफसीर) लिखने और मुहम्मद की प्रामाणिक उक्तियों और कार्यों को लेखबद्ध करने में लगाते थे। कुछ उलेमाओं ने कर्मकाण्डों (इबादत) के माध्यम से ईश्वर के साथ मुसलमानों के सम्बन्ध को नियन्त्रित करने और सामाजिक कार्यों (मुआमलात) के लिए शेष इनसानों के साथ मुसलमानों के सम्बन्धों को नियन्त्रित करने के लिए कानून तैयार करने का कार्य किया।

प्रश्न 13.
भारत में इस्लाम का प्रसार किस प्रकार हुआ?
उत्तर :
इस्लाम के इतिहास में वालिद प्रथम का शासनकाल खिलाफत के विस्तार के लिए विख्यात है। इसी के शासनकाल में 711 ई० में बसरा के गवर्नर हेज्जाज और उसके दामाद मुहम्मद इब्न-उल कासिम ने दक्षिणी भारत और बलूचिस्तान से सिन्ध पर आक्रमण किया। इसके पूर्व मुहम्मद बिन कासिम ने 710 ई० में 6000 सीरियाई सैनिकों की सेना लेकर मकराने पर कब्जा जमा लिया। यहीं से इसने बलूचिस्तान होते हुए 711-712 ई० में सिन्धु की निचली घाटी और सिन्धु नदी के मुहाने की भूमि पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। वहाँ जिन नगरों को जीता गया, उनमें समुद्री बन्दरगाह अल-देबुल और अल-नीरून थे। अल-देबुल में चालीस घन फुट वाली एक बुद्ध की प्रतिमा स्थापित थी। मुहम्मद बिन कासिम की यह विजय उत्तर में दक्षिणी पंजाब स्थित मुल्तान तक की गई, जहाँ गौतम बुद्ध का पवित्र तीर्थस्थल है। इस विजय से दक्षिणी पाकिस्तान के सिन्ध पर इस्लाम का स्थायी प्रभुत्व स्थापित हो गया तथा शेष भारत दसवीं शताब्दी के अन्त तक, जबकि महमूद गजनवी ने आक्रमण किया, अप्रभावित रहा। इस तरह सेमेटिक इस्लाम और भारतीय बौद्ध धर्म के बीच उसी प्रकार स्थायी रूप से सम्पर्क स्थापित हो गया, जिस प्रकार उत्तर में इस्लाम का तुर्की संस्कृति के साथ सम्पर्क स्थापित हुआ था। इस प्रकार दक्षिण में सिन्ध और उत्तर में काशगर और ताशकन्द खिलाफत की सुदूरपूर्वी सीमा बन गई और आगे भी बनी रही।

प्रश्न 14.
धर्मयुद्ध का क्या अर्थ है? इसके क्या कारण थे?
उत्तर :
पवित्र युद्ध या जिहाद उन युद्धों को कहते हैं जो मध्यकाल में फिलिस्तीन को प्राप्त करने के लिए यूरोपीय ईसाइयों ने अरबी मुसलमानों से लड़े। इन युद्धों को धर्मयुद्ध इसलिए कहा जाता है कि यह युद्ध धार्मिक स्थानों को प्राप्त करने के लिए ईसाइयों ने अरबों के विरुद्ध लड़े थे। धर्मयुद्ध के तीन प्रमुख कारण थे

  1. पवित्र प्रदेशों को पुनः प्राप्त करना।
  2. सामन्तों का वीरता प्रदर्शन का शौक।
  3.  लाडौँ तथा चर्च के नेताओं का स्वार्थ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इस्लाम धर्म से पूर्व अरब सभ्यता एवं संस्कृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
इस्लाम धर्म से पूर्व अरब सभ्यता एवं संस्कृति :
इस्लाम धर्म से पूर्व अरब सभ्यता एवं संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के आधार पर किया जा सकता है

प्राचीन अरब के निवासी :
सर्वप्रथम, अरब में बसने वाले कैल्डियन जाति के लोग थे। उनकी सभ्यता उच्चकोटि की थी। बाद में सेमेटिक जनजातियों ने इनकी सभ्यता के अवशेषों को नष्ट कर दिया। सेमेटिक जाति के लोग स्वयं को कहतान (जोकतन) का वंश मानते थे। उन्हीं का आदिपुरुष यारब था, जिसके नाम पर इस देश का नाम ‘अरब’ पड़ा। यारब कहतानी शासक; महान् विजेता और नगरों के निर्माता थे। उन्होंने यमन व अरब के अन्य क्षेत्रों पर सातवीं शताब्दी तक अपनी प्रभुत्व जमाए रखा। अरब के अन्तिम निवासी ‘इस्माइली’ थे।  इस्माइल महान् यहूदी ‘अब्राहम के अनुयायी थे। इन्हें अरब की महानता का संस्थापक और काबा का निर्माता माना जाता है। इस्लामी युग से पूर्व अरब मेंबसने वाले यही लोग थे।

प्राचीन अरबों का राजनीतिक जीवन  :
प्राचीन अरब के निवासी बद्दू कहलाते थे। उनका प्रत्येक तम्बू ‘एक परिवार’ माना जाता था। अनेक तम्बू एक वंश या ‘कौम’ का प्रतिनिधित्व करते थे। एक सौ । वंश मिलकर एक जनजाति’ या ‘कबीले’ का निर्माण करते थे। अरब का यह युग जाहिलिया युग (अज्ञानता और बर्बरता का काल) कहलाता है।

प्राचीन अरबों का सामाजिक एवं आर्थिक जीवन :
प्राचीन अरबवासी खानाबदोश थे। वे तम्बुओं में रहते थे और भेड़, बकरी तथा ऊँट आदि पशुओं को पालते थे। उनका जीवन संघर्षपूर्ण था। प्रत्येक कबीले का एक सरदार होता था, जिसकी आज्ञा कबीले के सभी लोगों को माननी पड़ती थी। अरबवासियों को आर्थिक जीवन व्यापार और लूटमार पर निर्भर था। दक्षिण अरब के लोग विदेशों से व्यापार करते थे।

प्राचीन अरबों का सांस्कृतिक जीवन :
प्राचीन अरब में शिक्षा की कमी थी, लेकिन अरबवासी अपनी भाषा और कविता के लिए विख्यात थे। इस्लाम-पूर्व अरब के साहित्य का पर्याप्त विकास हो चुका था।  इस्लाम-पूर्व अरब के प्रसिद्ध लेखकों में हकीम लुकमान, अख्तम-इब्न-सैफी, हाजी-इब्न-जर्राह, हिद (अलखस की पुत्री, विदुषी), अल मयदानी (‘मजमा-अल-अमथल का लेखक), अल-मुफद्दाल-अल-दब्बी ( ‘अमथल-अल-अरब’ का लेखक) आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इस युग के प्रमुख कवियों में इमारुल केज, तराफा, हरिथ तथा अन्तारा आदि के नाम प्रसिद्ध हैं।

धार्मिक जीवन : इस्लाम पूर्व अरब और जाहिलिया युग  : मुसलमान-विरोधी बद्दुओं की किसी भी धर्म में आस्था नहीं थी। यहूदियों और ईसाइयों को छोड़कर शेष अरब मूर्तिपूजक थे। अरबवासी अनेक देवी-देवताओं की पूजा किया करते थे। अकेले मक्का में ही 360 मूर्तियाँ थीं। बद्द् अधिकतर मूर्तियों और नक्षत्रों की पूजा करते थे। मक्का में ऊँटों और भेड़ों की बलि दी जाती थी। अरबवासी वृक्षों, कुओं, गुफाओं, पत्थर और वायु आदि प्राकृतिक वस्तुओं को पवित्र मानते और उनकी पूजा भी करते थे। प्राचीन अरबों के प्रमुख देवता अल मानहु (सर्वशक्तिमाने शुक्र), देवी अल-लात, अर-राबा और अल-मानह
(भाग्य की देवी), यागुस (गिद्ध), ओफ (एक बड़ी चिड़िया) आदि थे। मक्का के कुरैशियों (प्राचीन अरब का प्रसिद्ध वंश) का देवता ‘अल-हुनल’ था।

प्रश्न 2.
इस्लाम धर्म के प्रवर्तक कौन थे? इस्लाम धर्म की प्रमुख शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
इस्लाम धर्म के प्रवर्तक इस्लाम धर्म के प्रवर्तक मुहम्मद साहब थे। संसार उन्हें पैगम्बर मुहम्मद के नाम से पुकारता है। उनका जन्म 570 ई० में मक्का में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्ला और माता का नाम अमीना था। 25 वर्ष की आयु में उन्होंने खदीजी नामक एक विधवा से विवाह किया। 619 ई० में जब खदीजा की मृत्यु हो गई तब उन्होंने आयशा नामक स्त्री से विवाह किया। उनकी छोटी पुत्री फातिमा ( अज-जोहरा या खूबसूरत), इस्लाम के चौथे खलीफा हजरत अली की पत्नी थी। मुहम्मद साहब प्रारम्भ से ही चिन्तनशील थे। 610 ई० में उन्हें दिव्य सन्देश की प्राप्ति हुई। 40 की आयु में मुहम्मद साहब ने अपने धर्म का प्रचार करना आरम्भ कर दिया। अपने विरोधियों से बचने के लिए। मुहम्मद साहब ने ‘मक्का’ छोड़कर ‘मदीना’ की ओर प्रस्थान किया। इस्लाम के इतिहास में इस घटना का बहुत महत्त्व है और इसे “हिजरत’ कहा जाता है। इसी समय (622 ई०) से मुस्लिम पंचांग का पहला वर्ष अर्थात् हिजरी संवत् शुरू होता है। मुहम्मद साहब मदीना के सर्वोच्च शासक बन गए। उन्होंने अपने विरोधियों को परास्त किया और अपने धर्म का सम्पूर्ण अरब में प्रसार किया। 62 वर्ष की आयु में 632 ई० में उनकी मृत्यु हो गई। बाद में उनके अनुयायियों ने सारे संसार में इस्लाम धर्म का प्रचार किया।

इस्लाम धर्म की प्रमुख शिक्षाएँ।

इस्लाम धर्म की प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं

  1.  ईश्वर एक है तथा मुहम्मद साहब उसके पैगम्बर हैं।
  2.  सभी मनुष्य एक ही ईश्वर (अल्लाह) की सन्तानें हैं; उनमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।
  3.  ईश्वर निराकार है और मूर्तिपूजा एक आडम्बर है।
  4. आत्मा अजर और अमर है।
  5. प्रत्येक मुसलमान को अपने धर्म की रक्षा करनी चाहिए।
  6. मादक वस्तुओं, नृत्य, संगीत तथा चित्र-दर्शन आदि से दूर रहना चाहिए।
  7.  इस्लाम धर्म के अनुसार कयामत के दिन अच्छे काम करने वाले को जन्नत (स्वर्ग) तथा बुरे काम करने वाले को दोजख (नरक) में भेज दिया जाएगा।
  8.  इस धर्म के अनुसार ब्याज लेना, जुआ खेलना, सुअर का मांस खाना पाप है।
  9.  अल्लाह अपने पैगम्बरों को सच्चा ज्ञान (इल्हाम) स्वयं देता है।
  10.  प्रत्येक मुसलमान के पाँच अनिवार्य कर्तव्य हैं

 

  1.  कलमा पढ़ना
  2.  प्रतिदिन पाँचों समय नमाज अता करना (पढ़ना)
  3.  रमजान के महीने में रोजे रखना
  4. अपनी आय का चौथा भाग खैरात (दान) में देना तथा
  5.  जीवन में एक बार हज (मक्का-मदीना की तीर्थयात्रा) रना।

प्रश्न 3.
अरब सभ्यता और संस्कृति का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
अरब सभ्यता एवं संस्कृति मध्य युग में अरब सभ्यता का विकास पश्चिमी एशिया में अधिक हुआ, जिसका संक्षिप्त विवेचन निम्नवत् है
1. शासन व्यवस्था :
इस्लाम के प्रमुख नेता को ‘खलीफा’ कहा जाता था। पहले तीन खलीफाओं की राजधानी मदीना नगर था। उसके बाद यह कूफा नगर ले जाई गई, जो आधुनिक दमिश्क में स्थित था। अब्बासी खलीफाओं ने बगदाद को अपनी राजधानी बनाया। तुर्की ने 1453 ई० में पूर्वी रोमन साम्राज्य का अन्त करके कुस्तुनतुनिया को अपनी राजधानी बनाया। आटोमान तुर्को के समय में खलीफा की शक्ति बहुत कम हो गई थी। खलीफाओं ने निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शासक के रूप में अरब पर शासन किया। अब्बासी  खलीफाओं ने जनहित के बहुत-से कार्य किए।

2. सामाजिक जीवन :
अरब साम्राज्य में चार प्रमुख वर्ग थे। प्रथम वर्ग में खलीफा, द्वितीय वर्ग में कुलीन, तृतीय वर्ग में विद्वान, लेखक, व्यापारी आदि सम्मिलित थे तथा चौथे निम्न वर्ग में किसान, दस्तकार तथा दास आते थे। इस समय दास-दासियों की संख्या बहुत अधिक थी। वे खुले बाजार में बेचे और खरीदे जाते थे। अरब समाज में स्त्रियों की दशा शोचनीय थी और उन्हें पर्दे में रहना पड़ता था। इस समय बहुविवाह, तलाक प्रथा और उपपत्नी प्रथा का प्रचलन था। अरब में पुरुष चौड़े पायजामें, कमीज, बड़ी जाकेट, काली पगड़ी, अंगरखा आदि वस्त्र पहनते थे। स्त्रियाँ रंग-बिरंगे सुन्दर वस्त्र धारण करती थीं। निम्न वर्ग में बुर्का (पूरे शरीर को ढकने वाला चोगा) पहनने की प्रथा थी। अरब लोग विभिन्न प्रकार के भोजन तथा पेयोंः जैसे—बनफशा, फालूदा, अंगूर की बेटी अर्थात् शराब आदि का उपयोग करते थे। शतरंज, चौपड़, पासे, चौगाने, पत्तेबाजी, घुड़दौड़, शिकार आदि उनके मनोरंजन के प्रमुख साधन थे।

3. आर्थिक जीवन :
अरबों का प्रमुख व्यवसाय कृषि और युद्ध करना था। अरब के लोग गेहूँ, चावल, खजूर, कपास, पटुआ, मूंगफली, नारंगी, ईख, गुलाब, तरबूज आदि की खेती करते थे। अरब में कम्बल, कढ़े वस्त्र, सिल्क, सूती व ऊनी वस्त्र, किमखाब, फर्नीचर, काँच के बर्तन, कागज आदि निर्माण के उद्योग-धन्धे प्रचलित थे। अरब कारीगर सोने-चाँदी व कीमती पत्थरों, जवाहरातों से जड़े सुन्दर व कलात्मक आभूषण बनाने में दक्ष थे। इस काल में अरब के भारत, चीन तथा अफ्रीका के देशों से व्यापारिक सम्बन्ध थे। बगदाद, बसरा, काहिरा,  सिकन्दरिया मध्य युग के प्रमुख बन्दरगाह और व्यापारिक केन्द्र थे। मध्य युग में अरब के गलीचे, चमड़े की वस्तुएँ, सुन्दर तलवारें, धातु व काँच के बर्तन सारे संसार में विख्यात थे।

4. सांस्कृतिक जीवन :
इस्लामी अरब में शिक्षा का भी पर्याप्त विकास हुआ। अरब में पहला विद्यालय अबू हातिम ने 860 ई० में स्थापित किया। उस समय शिक्षा मस्जिदों और मदरसों में दी जाती थी। अद्द-अल-दौला ने शिराजी नगर में पहला पुस्तकालय बनवाया। उस समय बगदाद शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। वहाँ एक सौ से अधिक पुस्तक-विक्रेता थे। खलीफा मामून | ने बगदाद में एक उच्च शिक्षा का केन्द्र ‘बैत-अल-हिकमत’ स्थापित करवाया था। 1065-1067 ई० की अवधि में निजाम-उल-मुल्क ने अरब में ‘निजामिया मदरसे’ की स्थापना की थी। इससमय कुरान, हदीस, कानून, धर्मतन्त्र (कलाम), अरबी भाषा और साहित्य, ललित, साहित्य (अदब), गणित आदि की शिक्षा दी जाती थी। अरबों ने लिखने की एक अलंकृत शैली ‘खुशवती’ का आविष्कार किया था।

5. साहित्य :
उस समय के अरब साहित्यकारों में हमदानी (976-1008 ई०, ‘मकाना’ नाटक का लेखक), थालिवी (961-967 ई०), अगानी (गीतिकार), जहशियारी (‘आलिफ-लैला’ का पहला लेखक, 942 ई०), नवास (व्यंग्यकार, गजलों का लेखक), अबू हम्माम, अल बहुतरी (820-897 ई०), उमर खय्याम (रूबाइयों का रचयिता) जैसे महान् कवि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। मध्यकालीन अरब साहित्य में ‘खलीफा हारून-अल-रशीद की कहानियाँ’, ‘उमर खय्याम की रूबाइयाँ’, ‘आलिफ-लैला’ की कहानी और ‘फिरादौसी का शाहनामा’ आज भी सारे संसार में प्रसिद्ध हैं।

6. चिकित्सा :
अरबों ने कई महान् चिकित्सक उत्पन्न किए, जिनमें जिबरील (नेत्र विज्ञान की पुस्तक ‘अल-लाइन’ का लेखक), अलराजी (865-925 ई०, तेहरान निवासी, ‘किताब-उल- असरार’ का लेखक), यूरोप में रहैजेस नाम से विख्यात, चेचक के इलाज का आविष्कारक), अली-अब्बास (‘अल-किताब अल मालिकी’ का लेखक, रोगियों के आहार व मलेरिया की चिकित्सा का अन्वेषक), इब्नसिना (950-1037 ई०, यूरोप में एविसेन्ना नाम से प्रसिद्ध, ‘अलशेख अल-रईस’ की उपाधि, 33 गंन्थों का रचयिता, महान चिकित्सक, क्षय रोग का अन्वेषक, दार्शनिक, भाषाशास्त्री, कवि, प्रमुख पुस्तक ‘किताब-उल-शिफा’) तथा याकूब (पशु चिकित्सक) आज भी सम्पूर्ण-जगत में विख्यात

7. खगोल विद्या और गणित :
अरब ने खगोल विद्या और गणित के क्षेत्र में भी विशेष उन्नति की। अरब खगोलशास्त्रियों ने अबू अहमद, अलबरूनी (973-1048 ई०, ‘हयाहब-अल-न जूम’ का लेखक) तथा उमर खय्याम (1048-1124 ई०, पंचांग का निर्माता) विशेष प्रसिद्ध हैं। मध्यकालीन अरब का विख्यात ज्योतिषी बल्ख का मूल निवासी अबू माशार था, जिसने ज्योतिष सम्बन्धी अनेक पुस्तकें लिखी थीं।

8. कलाओं में प्रगति :
अरब लोगों ने अनेक मस्जिदों व मदरसों का निर्माण करवाया। गजबान ने 838 ई० में बसरा में पहली बार मस्जिद बनवाई। जेरूसलम ने चट्टान का गुम्बद, अक्सा मस्जिद (निर्माता अल-मलिक), दमिश्क में उमय्यद मीनार मस्जिद (705 ई० निर्माता अल वालिद), हरा गुम्बद (निर्माता खलीफा मंसूर) आदि अरब स्थापत्य कला के सुन्दर नमूने हैं। अब्बासी खलीफाओं ने अनेक राजमहलों और भवनों का निर्माण करवाया। बगदाद में बने शाही महल उस समय के अरब वैभव की जानकारी देते हैं। अरब में चित्रकला का भी विकास हुआ। उम्मैद तथा अब्बासी खलीफाओं द्वारा शहरी महलों की दीवारों पर कराई गई चित्रकारी दर्शनीय है। शाही गुम्बद पर घुड़सवार की आकृति (खलीफा मंसूर), शेरों, गरुड़ पक्षियों और समुद्री मछलियों के चित्र (खलीफा अमीन), कैसर आमरा के महल की दीवारों पर महिलाओं तथा शिकार के दृश्यों के चित्र आदि अरब चित्रकला के उत्कृष्ट नमूने हैं। इस युग में प्रमुख चित्रकार अल हरीरी और अल-अल-अगानी थे। अल रेहानी इस समय का विख्यात सुलेखनकार था, जिसने ‘मुकलाह’ की रचना की थी। अरब संगीतकारों में इब्राहीम (खलीफा हारून-अल-रशीद का भाई), गजाली (‘अहिया-अल-उलम’ गजलों का संग्रह), खलीफा अल महदी (सियास या संगीत की पुस्तक), खलीफा अल बाथिक (वीणावादक) के नाम प्रमुख हैं। इस काल में सितार या गिटार तथा उरुयान (आर्गन) प्रमुख वाद्य यन्त्र थे। अल फराबी ने किताब उल मुसीफी अल कबीर’ तथा अल गजाली ने ‘अल समां’ नामक संगीत की पुस्तकें लिखी थीं।।

प्रश्न 4.
कागज की उपलब्धता ने इस्लामिक इतिहास को किस प्रकार संजोया? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
कागज के आविष्कार के पश्चात् मध्य इस्लामिक भूमि में लिखित रचनाओं को बड़े पैमाने पर प्रसार होने लगा। कागज जो लिनन से बनता था, चीन में कागज बनाने की प्रक्रिया को अत्यन्त गुप्त रखा गया था। समरकन्द के मुस्लिम शासकों ने सन् 750 में 20,000 चीनी हमलावरों को बन्दी बना लिया। इनमें से कुछ कागज बनाने में बहुत कुशल थे। अगली एक सदी के लिए, समरकन्द का कागज निर्यात की एक महत्त्वपूर्ण वस्तु बन गया। इस्लाम एकाधिकार का निषेध करता है; अतः कागज इस्लामी दुनिया के शेष भागों में बनाया जाने लगा। दसवीं सदी के मध्य तक इसने पैपाइरस का स्थान ले लिया। कागज की माँग बढ़ गई। बगदाद का एक डॉक्टर अब्द-अल-लतीफ जो 1193 से 1207 तक मिस्र का निवासी था, लिखता है कि मिस्र के किसानों ने ममियों के ऊपर लपेटे गए लिनन से बने हुए आवरण प्राप्त करने के लिए किस तरह कब्रों को लूटा था जिससे वे यह लिनन कागज के कारखानों को बेच सकें। कागज की उपलब्धता के कारण सभी प्रकार के वाणिज्यिक एवं वैयक्तिक दस्तावेजों को लिखना भी सरल हो गया। सन् 1896 में फुस्ताल में बेन एजरा के यहुदी प्रार्थना भवन के एक सीलबन्द कमरे गेनिजा में मध्यकाल के यहूदी दस्तावेजों का एक विशाल भण्डार प्राप्त हुआ। ये सभी दस्तावेज इस यहूदी प्रथा के कारण सुरक्षित रख गए थे कि ऐसी किसी भी लिखित रचना को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए जिसमें ईश्वर का नाम लिखा हुआ हो। गेनिजा में लगभग ढाई लाख पांडुलिपियाँ और उनके टुकड़े थे जिसमें कई आठवीं शताब्दी के मध्यकाल के भी थे। अधिकांश सामग्री दसवीं से तेरहवीं सदी तक की थी अर्थात् फातिमी, अयूबी और प्रारम्भिक मामलुक काल की थी। इनमें व्यापारियों, परिवार के सदस्यों और दोस्तों के बीच लिखे गए पत्र, संविदा, दहेज से जुड़े वादे, बिक्री दस्तावेज, धुलाई के कपड़ों की सूचियाँ और अन्य साधारण वस्तुएँ शामिल थीं।। अधिकांश दस्तावेज यहूदी-अरबी भाषा में लिखे गए थे, जो हिब्रू अक्षरों में लिखी जाने वाली अरबी भाषा का ही रूप था, जिसका उपयोग समूचे मध्यकालीन भूमध्य सागरीय क्षेत्र में यहूदी समुदायों द्वारा साधारण रूप से किया जाता था। गेनिजा दस्तावेज निजी और आर्थिक अनुभवों से भरे हुए हैं और वे भूमध्य सागरीय और इस्लामी संस्कृति की अन्दरूनी जानकारी प्रस्तुत करते हैं। इन दस्तावेजों से यह भी ज्ञात होता है कि मध्यकालीन इस्लामी जगत के व्यापारियों के व्यापारिक कौशल और वाणिज्यिक तकनीक उनके यूरोपीय प्रतिपक्षियों की तुलना में बहुत अधिक उन्नत थीं।

प्रश्न 5.
अरब में दर्शन और इतिहास विषय पर कौन-सी रचनाएँ की गईं? अरबों की विश्व सभ्यता को क्या देन है? 
उत्तर :
अरब दार्शनिकों में अल किन्दी, अल फराबी, इब्नसिना, गजाली, अल-मारी, अलतौहिन्दी के नाम प्रमुख हैं। अरब दर्शन यूनानी दर्शन से प्रभावित था। अरब व यूनान की फिलॉसफी को ‘फलसफा’ कहते थे। अरब में इतिहास-लेखन का भी पर्याप्त विकास हुआ। इस युग के अरब इतिहासकारों में इब्न इशाक (मदीना निवासी, पैगम्बर की जीवनी का पहला लेखक), कृति ‘सिरात रसूल अल्लाह’, अल मुकफा (‘खुदायनामा’ का लेखक), कुतवाह (पहला अरब इतिहासकार, बगदाद निवासी, मृत्यु 889 ई०) कृति ‘किताब उल मारिफ’, अल याकूबी (भूगोलवेत्ता इतिहासकार), अल बालादुरी (‘अल बुल्दान’ तथा ‘अनसाब अल अशरफ’ पुस्तकों का लेखक), अल हकाम (‘फुतुह मित्र’ का लेखक), अल तबरी (838-923 ई०, ‘तारीख अल रसूल’ व अल मुलुक’ का लेखक), अल मसूदी (अरबों का हेरोडोट्स, कृति ‘अल तनवीह’ व ‘अल इशरफ’), अलबरूनी (‘किताब उल हिन्द’ या ‘तहकीके हिन्द’ का लेखक) के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। अरब के भूगोलवेत्ताओं में फाह्यान(‘मजम अल बुल्दान’ या ‘भौगोलिक कोष’ का रचयिता), ख्वारिज्मी (‘सूरत अल गर्द’ या ‘पृथ्वी की शक्ल’ का लेखक), अल हमदानी (‘जजीरात अल अरब’ का लेखक) आदि के नाम सारे संसार में प्रसिद्ध हैं। अरबों की देन-अरबों की विश्व सभ्यता को अनेक महत्त्वपूर्ण देन हैं। अरबों ने सर्वप्रथम प्रबुद्ध राजतन्त्र और राष्ट्रीयता की भावना का विकास किया। इस्लाम धर्म का प्रचार तथा प्रसार किया, सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन करने की प्रेरणा दी। संगठित सामाजिक जीवन की नींव डाली। भारत, चीन और अफ्रीका से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित किए। चीनी, इत्र टिन्चर, कागज, काँच के बर्तन, गलीचे, चमड़े की कलात्मक वस्तुएँ, सुन्दर तलवारें व अन्य हथियार आदि संसार को प्रदान किए। इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरान शरीफ’ की रचना की। उन्होंने संसार को अरेबियन नाइट्स (आलिफ लैला की कहानियाँ), गुलिस्तां व बोस्तां (शेख सादी), शाहनामा (फिरदौसी) जैसे ग्रन्थ उपलब्ध कराए और चिकित्सा, दर्शन, खगोलविद्या, ज्योतिष, गणित, बीजगणित, गोलाकार ज्यामिति तथा कीमियागिरी में अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त की और उनका ज्ञान संसार को दिया। अरबों ने बगदाद, दमिश्क, काहिरा, जेरूसलम, मक्का व मदीना में अनेक मस्जिदों का निर्माण कराया और चित्रकला तथा संगीत कला का भी पर्याप्त विकास किया।

We hope the UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 4 The Central Islamic Lands help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 4 The Central Islamic Lands , drop a comment below and we will get back to you at the earliest.