UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 3 लाटी

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name लाटी
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 3 लाटी

लाटी – पाठ का सारांश/कथावस्तु

(2017)

कथानायक कप्तान जोशी की पत्नी को क्षय रोग हो जाना
कथानायक कप्तान जोशी अपनी पत्नी ‘बानो’ से अत्यधिक प्रेम करते हैं। विवाह के तीसरे दिन ही कप्तान को युद्ध के लिए बसरा जाना पड़ा, तब बानो सिर्फ 16 वर्ष की थी। अपने पति की अनुपस्थिति में बानो ने 7-7 ननदों के ताने सुने, भतीजों के कपड़े धोए, ससुर के होज विने, पहाड़-सी नुकीली छतों पर 5-5 सेर उड़द पीसकर बड़ियाँ बनाई आदि। उसे मानसिक प्रताड़ना भी दी गई कि उसका पति जापानियों द्वारा कैद कर लिया गया है और वह कभी नहीं आएगा। यान इन सब कारणों से निरन्तर पुलती रही और क्षय रोग से पीड़ित होकर चारपाई पकड़ लेती है।

कप्तान का पत्नी के प्रति अगाध प्रेम
कप्तान अपनी पत्नी ‘बानो’ से अत्यधिक प्रेम करता है। जब वह दो वर्ष बाद लौटकर घर आता है, तो उसे पता चलता है कि घर वालों ने बानों को क्षय रोग होने पर सैनेटोरियम भेज दिया है। वह दूसरे दिन ही वहाँ पहुँच गया। उसे देखकर बानो के बहते आँसुओं की धारा ने दो साल के सारे उलाहने सुना दिए। सैनेटोरियम के डॉक्टर द्वारा बानो की मौत नज़दीक आने की स्थिति में कमरा खाली करने का उसे नोटिस दे दिया गया। कप्तान ने भूमिका बनाते हुए बानों से कहा कि अब यहीं मन नहीं लगता है। कल किसी और जगह चलेंगे। वह दिन-रात अपनी पत्नी की सेवा में बिना कोई परहेज एवं सावधानी बरते लगा रहता था।

बानो द्वारा आत्महत्या का प्रयास करना
बानो समझ गई कि उसे भी सैनेटोरियम छोड़ने का नोटिस मिल गया है, जिसका अर्थ हुआ कि अब वह भी नहीं बचेगी। कप्तान देर रात तक बानो को बहलाता रहा, उससे अपना प्यार जताता रहा। जब कप्तान को लगा कि बानों सो गई, तो वह भी सोने चला जाता है। सुबह उठने पर बानो अपने पलंग पर नहीं मिली। दूसरे दिन नदी घाट पर बानो की साड़ी मिली। कप्तान को जब लाश भी नहीं मिली, तो उसने समझा बानो नदी में डूबकर मर गई।

‘लाटी’ के रूप में ‘बानो’ का मिलना
जब कप्तान को पूरा विश्वास हो गया कि बानो अब इस दुनिया में नहीं है, तो घर वालों के जोर देने से उसने दूसरा विवाह कर लिया। दूसरी पत्नी प्रभा से उसे दो बेटे एवं एक बेटी है और वह भी कप्तान से अब मेजर हो गया है। लगभग 16 वर्ष बाद नैनीताल में वैष्णवियों के दल में उसे ‘लाटी’ मिलती है, जो यथार्थ में ‘बानो’ थी। अधेड़ वैष्णवियों के बीच बानों जब ‘लाटी’ के रूप में मिलती है, तो मेजर उसे पहचान लेता है। पता चलता है कि गुरु महाराज ने अपनी औषधियों से उसका क्षय रोग ठीक कर दिया था, लेकिन इस प्रक्रिया में उसकी स्मरण शक्ति और आवाज़ दोनों चली गईं। अब न तो वह बोल पाती है और न ही उसे अपना अतीत याद है। वह वैष्णवियों के दल के साथ चली जाती है और मेजर स्वयं को पहले से अधिक बूढ़ा एवं खोखला महसूस करता है।

‘लाटी’ कहानी की समीक्षा

(2018, 17)

सुप्रसिद्ध लेखिका शिवानी ने अपनी कहानियों में भावात्मक और सामाजिक – आर्थिक समस्याओं से जुझती-टकराती नारी को बड़े रोचक एवं मार्मिक रूप से अभिचिंत्रित किया है। शिवानी द्वारा रचित ‘लाटी’ कहानी एक घटना प्रधान मार्मिक कहानी है। यह कहानी महिला त्रासदी पर आधारित है। इसमें बताया गया है कि एक सोलह वर्षीया खूबसूरत लड़की ससुराल में किस तरह सास-ननद के तानों और अत्यधिक काम के बोझ तले दबकर क्षय रोग (टी. बी) का शिकार हो जाती है। कहानी की समीक्षा इस प्रकार हैं—

कथानक
‘लाटी’ कहानी का कथानक मध्यम वर्गीय पहाड़ी परिवार से सम्बन्धित है। कथानक में नई नवेली दुल्हन बानो के जीवन की त्रासदी को उकेरा गया है, जिसके पति कप्तान जोशी विवाह के तीसरे दिन ही उसे छोड़कर युद्ध भूमि में चले जाते हैं और दो वर्षों के बाद लौटते हैं।

इन दो वर्षों में बानो ने सास-ननद के ताने सुने, सास के व्यंग्य-बाण सहे। ससुराल में काम के बोझ तले दबकर सन्त्रास भरी ज़िन्दगी जीने के कारण वह क्षय रोग का शिकार हो जाती है और उसे गोठिया सैनेटोरियम में भर्ती कर दिया जाता है। अब कप्तान आता है और उसे पता चलता है कि बानो क्षय रोग की शिकार है, तो वह मानों के पास रहकर उसकी जी जान से सेवा करता है, किन्तु एक दिन डॉक्टर से घर ले जाने के लिए कहते हैं, क्योंकि अब उसका इलाज सम्भव नहीं है।

कप्तान उसे घर लाने की जगह भुवाली में किराए के मकान में ले जाना चाहता है, किन्तु वह रात में ही नदी में कूदकर आत्महत्या का प्रयास करती हैं। कप्तान को जब नदी किनारे उसकी साड़ी मिलती है, तो वह उसे मृत समझकर घर लौट आता है। और एक वर्ष बाद वह दूसरा विवाह कर लेता है।

उधर, बानो को एक सन्त बचा लेता है और उसका क्षय रोग भी ठीक कर देता है, लेकिन इस प्रक्रिया में उसकी आवाज़ और स्मृति दोनों चली जाती हैं। 16 वर्ष बाद अपनी पत्नी के साथ नैनीताल में घूमने के दौरान एक दिन भुवाली में चाय की दुकान पर कप्तान, जो अब मेजर बन चुका है, की भेंट लाटी से होती है।

मेजर उसे पहचान लेता है, लेकिन बानो उसे नहीं पहचानती। मेजर उसे स्वीकार नहीं कर सकता, क्योंकि उसकी ज़िन्दगी अब काफी आगे बढ़ गई है। अब उसके बच्चे काफी बड़े हो गए हैं और पत्नी बानो जैसी भोली नहीं है। इस प्रकार ‘लाटी’ कहानी एक महिला की त्रासद भरी ज़िन्दगी की कारुणिक कहानी है। इस कहानी के माध्यम से यह बताया गया है कि महिला ही महिला के शोषण का मुख्य कारण है। पति के बिना स्त्री की ससुराल में कोई इज्जत नहीं होती। उसे शारीरिक-मानसिक यातनाओं का शिकार होना पड़ता है।

पात्र और चरित्र-चित्रण
पात्रों की दृष्टि से यह एक सन्तुलित कहानी है। कहानी के सभी पत्रि कथानक के विकास में सहायक हैं। कप्तान जोशी, बानो (लाटी), नेपाली भाभी, प्रभा एवं वैष्णवी इसके मुख्य पात्र हैं, लेकिन लेखिका ने बानो (लाटी) एवं कप्तान जोशी के चरित्र को विशेष रूप से संवारा है। इस कहानी में कप्तान जोशी का चरित्र अत्यधिक अन्तर्धन से भरा हुआ है। नेपाली भाभी के चरित्र के माध्यम से कथानक को गतिशील बनाया गया है। कहानी में सभी पात्रों की सृष्टि सौददेश्य की गई है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि पात्र एवं चरित्र-चित्रण की दृष्टि से ‘लाटी’ एक सफल कहानी है।

कथोपकथन या संवाद
इस कहानी में संवादों की भरमार नहीं है, लेकिन जो भी हैं, वे सभी अत्यन्त प्रभावपूर्ण, भावात्मक पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाले और रोचक हैं। कहानी के संवाद संक्षिप्त, सरल, सारगर्भित, स्वाभाविक, स्पष्ट, सार्थक और गतिशील हैं। पात्रों के चरित्र के अनुसार सटीक हैं।

देशकाल और वातावरण
आलोच्य कहानी में देशकाल और वातावरण को ध्यान हर जगह रखा गया है। कहानी की पृष्ठभूमि पहाड़ी क्षेत्र की हैं। अतः पहाड़ी शब्द; जैसे-‘युद्धज्यू’, ‘तिथण’ आदि का प्रयोग पहाड़ी वातावरण बनाने के लिए किया गया है। सैनेटोरियम के वातावरण में भी लेखिका ने पहाड़ी चित्रों को साकार कर दिया है।

भाषा-शैली
प्रस्तुत कहानी में शिवानी ने सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। पहाड़ी वातावरण सृजित करने के लिए यथास्थान पहाड़ी शब्दों का प्रयोग किया गया है। अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू, अरबी-फारसी, तत्सम, तद्भव, देशज, आँचलिक सभी प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया गया है। आधुनिक सभ्य समाज की इंग्लिश भाषा का एक उदाहरण देखिए-” चलो डार्लिग, पहाड़ का इंटीरियर घूमा जाए। भूवाली चले”… “इसी दुकान में आज एकदम पहाड़ी स्टाइल से कलई के गिलास में चाय पिएँगे हनी।” लेखिका ने शैली के रूप में चित्रात्मक, वर्णनात्मक, हास्य व्यंग्यात्मक, सूत्रात्मक तथा सबसे अधिक भावात्मक शैली का प्रयोग किया है।

उद्देश्य
कहानी का उद्देश्य मध्यम वर्गीय समाज में पति के बिना अकेली रहने वाली पत्नी के जीवन की त्रासदी को दिखाना है। लेखिका ने यह भी सन्देश दिया है कि महिला ही महिला का शोषण करती है। उन्हें अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना चाहिए तथा इसमें यह भी बताया गया है कि क्षय रोग असाध्य नहीं है। परिजनों के सहयोग और प्रेम से रोगी को बचाया जा सकता है—

शीर्षक
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘लाटी’ बानो (लाटी) के जीवन की व्यथा को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सफल है, क्योंकि सम्पूर्ण कहानी बानो (लाटी) के इर्द-गिर्द घूमती है। अतः कहानी का शीर्षक चरित्र प्रधान है। अपनी संक्षिप्तता, गौलिकता व कौतूहलता के चलते ‘लाटी’ शीर्षक पाठक के मन में आरम्भ से अन्त तक जिज्ञासा का प्रतिपादन करता है।

बानो (लाटी) का चरित्र-चित्रण

(2018, 17, 14, 13)

सुप्रसिद्ध लेखिका शिवानी की कहानी ‘लाटी’ में बानो मुख्य स्त्री पात्र है, जो बाद में ‘लाटी’ के नाम से जानी जाती है। बानो कप्तान जोशी की पहली पत्नी है, जिससे कप्तान अगाध प्रेम करता है। बानो के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

मोहक एवं भोला व्यक्तित्व
16 वर्षीया किशोरी बानो का व्यक्तित्व अत्यन्त मोहक एवं भोला है, जिससे कप्तान जोशी उसकी ओर आकर्षित हो जाते हैं और अन्ततः दोनों विवाह के बन्धन में बँध जाते हैं। बानो के मोहक एवं भोले व्यक्तित्व के कारण ही कप्तान जोशी उससे अत्यधिक प्यार करते हैं एवं अन्त समय तक उसकी इच्छा पूरी करने की कोशिश करते हैं।

त्यागमयी एवं पतिव्रता
बानों का विवाह मात्र 16 वर्ष की उम्र में ही हो गया और विवाह के तीन दिन बाद ही उसके पति कप्तान जोशी युद्ध के लिए बस चले गए। वह पूरे दो वर्ष बाद घर लौटे तब तक बानो त्यागपूर्वक पतिव्रत धर्म का निष्ठा के साथ पालन करती रही और अपने पति की प्रतीक्षा में उसने स्वयं को घर के कामों में झोंक दिया।

परिश्रमी एवं सहनशील
बानो बड़ी ही परिश्रमी एवं सहनशील युवती है, जो अपने पति की अनुपस्थिति में अनेक कामों को अंजाम देकार तथा कष्ट सहकर सिद्ध करती है। वह घर के अनेक काम करने के अलावा घर के लोगों के व्यंग्य बाण भी सहती है, लेकिन मुख से कुछ नहीं कहती। इसी कारण वह मन-ही-मन घुटती रहती है।

क्षय रोग की शिकार
मन-ही-मन घुटते रहने तथा पति के आने में देरी होने से उत्पन्न मानसिक तनाव के कारण वह क्षय रोग से पीड़ित हो जाती है। क्षय रोग होने पर उसके ससुराल वाले उसे घर से निकाल कर सैनेटोरियम भेज देते हैं।

अत्यन्त भावुक प्रकृति
बानो अत्यन्त भावूक प्रकृति की युवती है। पति के युद्ध में जाते समय वह उसके पैरों में पड़ जाती है। उसकी पलकें भीग जाती हैं और उसका गला भर आता है। इसी तरह, दो वर्ष बाद पति के वापस आने पर वह सैनेटोरियम में भर्ती है। पति को देखकर उसकी तरल आँखें खुली ही रह गईं, फिर आँसू टपकने लगे। बानो के बहते आँसुओं की धारा में दो साल के सारे उलाहने सुना दिए।

पतिव्रता
अपने कष्टमय जीवन एवं क्षय रोग से तंग आकर तथा इसके कारण होने वाली परेशानियों से पति को मुक्त करने के लिए वह अपने जीवन को समाप्त करने का निर्णय लेती है और नदी में कूद जाती हैं।

अपनी परेशानियों से अधिक उसे अपने पति की परेशानियों की चिन्ता है। वह ऐसा करके अपने पति को दुःख से मुक्ति प्रदान करना चाहती है। इस प्रकार, बानो (लाटी) का चरित्र अत्यन्त भावपूर्ण एवं संवेदनशील हैं, जो पाठकों के हृदय को झकझोर देता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 2 पंचलाइट

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Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name पंचलाइट
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 2 पंचलाइट

पंचलाइट – पाठ का सारांश/कथावस्तु

(2018, 17, 15, 14, 12)

पेट्रोमैक्स यानी पंचलैट की खरीददारी
गाँव में रहने वाली विभिन्न जातियाँ अपनी अलग-अलग टोली बनाकर रहती हैं। उन्हीं में से महतो टोली के पंचों ने पिछले 15 महीने से दण्ड–जुर्माने के द्वारा अमा पैसों से रामनवमी के मेले से इस बार पेट्रोमैक्स खरीदा। पेट्रोमैक्स खरीदने के बाद बचे र 10 रुपये से पूजा की सामग्री खरीदी गई। पेट्रोमैक्स यानी पंचलैट को देखने के लिए टोले के सभी बालक, औरतें एवं मर्द इकट्ठे हो गए और सरदार ने अपनी पत्नी को आदेश दिया कि वह, इसके पूजा-पाठ का प्रबन्ध करे।

पंचलैट को जलाने की समस्या
महतो टोली के सभी जन ‘पंचलैट’ के आने से अत्यधिक उत्साहित हैं, लेकिन उनके सामने एक बड़ी समस्या यह आ गई कि पंचलैट जलाएगा कौन? क्योंकि किसी भी व्यक्ति को उसे जलाना नहीं आता था। महतो टोली के किसी भी घर में अभी तक ढिबरी नहीं जलाई गई थी, क्योंकि सभी पंचलैट की रौशनी को ही सभी ओर फैली हुआ देखना चाहते थे। पंचलैट के न जलने से पंचों के चेहरे उतर गए। राजपूत टोली के लोग उनका मज़ाक बनाने लगे, जिसे सबने धैर्यपूर्वक सहन किया। इसके बावजूद पंचों ने तय किया कि दूसरी टोली के व्यक्ति की मदद से पंचलैट नहीं जलाया जाएगा, चाहे वह बिना जले ही पड़ा रहे।

टोली द्वारा दी गई सजा भुगत रहे गोधन की खोज
गुलरी काकी की बेटी मुनरी गोधन से प्रेम करती थी और उसे पता था कि गोधन को पंचलैट जलाना आता है, लेकिन पंचायत ने गोधन का हुक्का पानी बन्द कर रखा था। मुनरी ने अपनी सहेली कनेली को और कनेली ने यह सूचना सरदार तक पहुँचा दी कि गोधन ‘पंचलैट’ जलाना जानता है। सभी पंचों ने सोच विचार कर अन्त में निर्णय लिया कि गोधन को बुलाकर उसी से ‘पंचलैट’ जलवाया जाए।

गोधन द्वारा पंचलैट जलाना
सरदार द्वारा भेजे गए छड़ीदार के कहने से नहीं आने पर गोधन को मनाने गुलरी काकी गई। तब गोधन ने आकर ‘पंचलैट’ में तेल भरा और जलाने के लिए ‘स्पिरिट’ माँगा। ‘स्पिरिट’ के अभाव में उसने गरी (नारियल के तेल से ही पंचलैट जला दिया। पंचलैट के जलते ही टोली के सभी सदस्यों में खुशी की लहर दौड़ गई। कीर्तनिया लोगों ने एक स्वर में महावीर स्वामी की जय ध्वनि की और कीर्तन शुरू हो गया।

पंचों द्वारा गोधन को माफ़ करना
गोधन ने जिस होशियारी से ‘पंचलैट’ को जला दिया था, उससे सभी प्रभावित हुए थे। गोधन के प्रति सभी लोगों के दिल का मैल दूर हो गया। गोधन ने सभी का दिल जीत लिया। मुनरी ने बड़ी हसरत भरी निगाहों से गोधन को देखा। सरदार ने गोधन को बड़े प्यार से अपने पास बुलाकर कहा कि-“तुमने जाति की इज्जत रखी है। तुम्हारा सात खून माफ है। खूब गाओं सलीमा का गाना।” अन्त में गुलरी काकी ने गोधन को रात के खाने पर निमन्त्रित किया। गौधन ने एक बार फिर से मुनरी की ओर देखा और नज़र मिलते ही लज्जा से मुनरी की पलकें झुक गई।

‘पंचलाइट’ कहानी की समीक्षा

(2018, 17, 13, 12, 11)

ग्रामीण क्षेत्र के जीवन से सम्बन्धित प्रस्तुत कहानी से गाँव की रूढ़िवादिता, सरलता एवं अज्ञानता के बारे में स्पष्ट संकेत मिलता है। ‘पंचलाइट’ फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की आंचलिक कहानी है। यह कहानी ग्रामीण जीवन पर आधारित है। इसमें ऑचलिक परिवेश के आधार पर पात्रों का चित्रण किया गया हैं। इसकी समीक्षा इस प्रकार है

कथानक
प्रस्तुत कहानी में फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ ने पैट्रोमैक्स (जिसे गाँव वाले ‘पंचलाइट’ कहते हैं) के माध्यम से ग्रामवासियों की मनोस्थिति की वास्तविक झलक प्रस्तुत की है। यह कहानी घटनाप्रधान है, जिसमें बताया गया है कि आवश्यकता किस प्रकार मनुष्य के बड़े से बड़े दिग। संस्कार तथा निषेध को भी अनावश्यक सिद्ध कर देती है, जैसा गोधन के साथ हुआ। महतो टोली के पंच पेट्रोमैक्स खरीद तो लाते हैं, किन्तु उसे जलाना नहीं जानते। उनके लिए यह अपमान की बात हो जाती है कि उनका ‘पंचलाइट’ पहली बार किसी दूसरी टोली के सदस्यों द्वारा जलाया जाए। इस समस्या को समाधान मुनरी बताती है, क्योंकि उसका प्रेमी गौधन ‘पंचलाइट जलाना जानता है।

‘पंचायत’ ने गौधन का हुक्का-पानी बन्द कर रखा है, किन्तु जाति की प्रतिष्ठा को बचाए रखने के लिए गोधन को पंचायत में आने की अनुमति दे दी जाती हैं। वह ‘पंचलाइट’ को स्प्रिट के अभाव में गरी (नारियल के तेल से ही जला देता है। अब गोधन पर लगे सारे प्रतिबन्ध हटा लिए जाते हैं और उसे इछानुसार स्वतन्त्र आचरण करने की भी छूट मिल जाती है।

पात्र तथा चरित्र-चित्रण
प्रस्तुत कहानी चूँकि आंचलिक कहानी है। अतः इस कहानी के केन्द्र में अंचल-विशेष या क्षेत्र विशेष हैं, कोई पात्र या चरित्र केन्द्र में नहीं है। इसके बावजूद ‘पंचलाइट’ कहानी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं प्रमुख पात्र गोधन है। कहानीकार ने कुछ पात्रों के चरित्रों की रेखाएँ उभारने की कोशिश की है। प्रस्तुत कहानी में सरदार, दीवान, मुनरी की माँ, गुलरी काकी, फुटंगी झा आदि एक वर्ग के पात्र हैं, जबकि गोधन, मुनरी दूसरे वर्ग के। कहानी के सभी पात्र जीवन्त प्रतीत होते हैं। उनके माध्यम से ग्रामवासियों की मनोवृत्तियों का परिचय बड़े ही यथार्थ रूप में प्राप्त होता है। लेखक को ग्रामीण समूह के चरित्र को उभारने में विशेष सफलता मिली है।

कथोपकथन या संवाद
प्रस्तुत कहानी के संवाद रोचक, सरल, स्वाभाविक और संक्षिप्त हैं। अनावश्यक संवाद नहीं हैं। संवादों के माध्यम से बिहार के ग्रामीण अंचल की भाषा का प्रयोग, संवादों की स्वाभाविकता, संवादों के माध्यम से ग्रामीण जीवन की अशिक्षा, विवादिता, अज्ञानता पर प्रकाश डालकर जीवन्त वातावरण निर्मित किया गया है। जैसे मुनरी ने चालाकी से अपनी सहेली कनेली के कान में बात डाल दी-‘कनेली। चिगों, चिव चिन …..’ कनेली मुस्कुराकर रह गई–’गोधन तो बन्द है।’ मुनरी बोली-‘तू कह तो सरदार से। गोधन जानता है ‘पंचलाइट’ बालना।’ केनेली बोली, ‘कौन, गोधन? जानता है बालना? लेकिन ….’ इस प्रकार इस कहानी के संवाद पात्र एवं परिस्थिति के अनुकूल हैं। कथाकार ने उनका चरित्र चित्रण मनोवैज्ञानिक आधार पर किया है।

देशकाल और वातावरण
रेणु जी की कहानी ग्रामीण परिवेश की आँचलिक कहानी है। इस कहानी में बिहार के ग्रामीण अंचल का चित्र प्रस्तुत किया गया है। वातावरण की सजीवता पाठकों को आकर्षित करने वाली हैं। ‘पंचलाइट’ के माध्यम से ग्रामीणों के आचार-विचार, अन्धविश्वास आदि का भी चित्रण हुआ है। यद्यपि इस कहानी में वातावरण का वर्णन नहीं किया गया है, तथापि घटनाओं और पात्रों के माध्यम से वातावरण स्वयं जीवन्त हो उठता है।

भाषा-शैली
प्रस्तुत कहानी की भाषा बिहार के ग्रामीण अंचलों में बोली जाने वाली जन भाषा है। इस भाषा में स्वाभाविकता झलकती है। गाँव के लोग शब्दों का उच्चारण अशुद्ध करते हैं। उदाहरण के रूप में, टोले की कीर्तन मण्डली के मूलगेन ने अपने भगतिया पछकों को समझाकर कहा- देखो, आज ‘पंचलैट’ की रोशनी में कीर्तन होगा। बेताले लोगों से पहले ही कह देता हैं, आज यदि आखर धरने में छेद-वेद हुआ, तो दूसरे दिन से एकदम बैंकार।” रेणुजी ने इस कहानी में व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया है। उदाहरणस्वरूप ‘एक’ नौजवान ने आकर सूचना दी–राजपूत टोली के लोग हँसते-हँसते पागल हो रहे हैं। कहते हैं, कान पकड़कर ‘पंचलैट’ के सामने पाँच बार उठो बैठो, तुरन्त जलने लगेगा।” पूरी कहानी ग्रामीणों की अज्ञानता, अशिक्षा, रूढिवादिता पर व्यंग्य करती हुई आगे बढ़ती है।

उद्देश्य
प्रस्तुत कहानी में रेणु जी ने ग्राम सुधार की प्रेरणा दी है। इसके साथ-साथ, यह भी सन्देश दिया है कि आवश्यकता बड़े-से-बड़े संस्कार और निषेध को अनावश्यक सिद्ध कर देती है। इसी केन्द्रीय भाव के आधार पर कहानी के माध्यम से एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य को स्पष्ट किया गया है। गोधन द्वारा पेट्रोमैक्स जला देने पर उसकी सब गलतियाँ माफ कर दी जाती हैं। उस पर लगे सारे प्रतिबन्ध हटा दिए जाते हैं।

शीर्षक
‘पंचलाइट’ कहानी का शीर्षक अत्यन्त संक्षिप्त और आकर्षक है। ‘पंचलाइट’ शीर्षक की दृष्टि से यह एक उच्च स्तरीय कथा है, जिसमें एक घटना के माध्यम से सामाजिक सदियों को तोड़ते हुए दिखाया गया है। पंचलाइट शीर्षक कहानी के भाव, उददेश्य और विषय-वस्तु की दृष्टि से पूर्णतः सार्थक है। सम्पूर्ण कहानी शीर्षक के इर्द-गिर्द घूमती है। इस प्रकार यह कहानी शीर्षक की दृष्टि से सफल कहानी है।

गोधन का चरित्र-चित्रण

(2018, 17, 16, 14, 13, 12, 10)

रेणुजी की आंचलिक कहानी ‘पंचलाइट’ में ग्रामवासियों की मनःस्थिति की वास्तविक झलक दिखती हैं। इस कहानी का प्रमुख पात्र गोधन हैं, जिसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं-

युवक की स्वाभाविक प्रवृत्ति
गोधन युवा है, अतः उसके व्यक्तित्व में युवा वर्ग की कुछ स्वाभाविक प्रवृत्तियों निहित हैं। वह मनचला एवं लापरवाह युवक है। वह फिल्मी गाने गाता है। मुनरी से प्रेम करता है और बाहर से आकर बसने के बावजूद पंचों के खर्च के लिए उन्हें कुछ नहीं देता है। यह कहना अधिक उचित होगा कि वह एक अल्हड़ ग्रामीण युवा है।

गुणवान व्यक्तित्व
गोधन अशिक्षित है, लेकिन उसमें गुणों की कमी नहीं है। वह पूरे महतो टोले में एकमात्र ऐसा व्यक्ति है, जो पेट्रोमैक्स जलाना जानता है। वह अत्यन्त चतुर भी है। वह अपनी इस विशेषता को मुनरी को बता देता है, जो इसे सरदार तक पहुंचा देती है। गोधन इतना काबिल है कि वह बिना स्पिरिट के ही गरी (नारियल) के तेल से पेट्रोमैक्स जला देता है। इससे उसकी बौद्धिकता का भी पता चलता है।

स्वाभिमानी
गोधन स्वाभिमानी है, इसीलिए हुक्क-पानी बन्द करने के बाद जब छड़ीदार उसे बुलाने जाता है, तो वह आने से इनकार कर देता है। हुक्का पानी बन्द करने को अपना अपमान समझता है। जिस गुलरी काकी के कहने पर उसे सजा सुनाई गई थी, उन्हीं के मनाने पर वह ‘पंचलैट’ जलाने के लिए आता है।

अपने समाज की प्रतिष्ठा के प्रति संवेदनशील
गोधन अपने समाज की मान-प्रतिष्ठा के प्रति अत्यन्त संवेदनशील है। जिस समाज या पंचायत ने उसका हुक्का-पानी बन्द कर दिया था। उसी समाज की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए वह अपने अपमान को भूल जाता है। बिना स्पिरिट के ही पंचलैट जलाकर वह अपने समाज, जाति एवं पंचायत की मान-प्रतिष्ठा की रक्षा करता है।

निर्भीक व्यक्तित्व
गोपन का व्यक्तित्व अत्यन्त निर्भीक है। वह किसी से बिना डरे मुनरी के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त कर देता है। इस प्रकार, कहा जा सकता है कि गोधन का चरित्र ग्रामीण लड़के से मिलता-जुलता होने के साथ साथ बौद्धिकता एवं विवेकशील भी है, जो उसे आधुनिकता की ओर ले जाती है।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 1 खून का रिश्ता

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Chapter Chapter 1
Chapter Name खून का रिश्ता
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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 1 खून का रिश्ता

खून का रिश्ता – पाठ का सारांश/कथावस्तु

(2018, 13)

बाबूजी एवं वीरजी में वैचारिक मतभेद
आधुनिक दृष्टिकोण वाला वीरजी एम. ए पास नवयुवक है, जो सगाई, ब्याह आदि अवसरों पर धन की बर्बादी एवं किसी भी प्रकार के आडम्बर का विरोधी है, जबकि परम्परागत सोच वाले बाबूजी आडम्बर प्रिय एवं दहेज के समर्थक लगते हैं। पीरजी अपनी सगाई में किसी तरह का आडम्बर एवं दिखावा पसन्द नहीं करता है, इसलिए वह सदा रुपये में सगाई करने तथा सगाई में केवल बाबूजी के जाने के पक्ष में है, जबकि बाबूजी अपने धनी सम्बन्धियों को सगाई में ले जाने के पक्ष में हैं। वीरजी बाबूजी की बात का विरोध करते हुए अपनी बात पर अडिग रहते हैं।

चाचा मंगलसेन का तय हुआ जाना
जब बाबूजी ने पगड़ी खोल कर अपने सफ़ेद बालों की दुहाई देते हुए कुछ लोगों को साथ ले जाने की बात कही, तो वीरजी अपने चाचा मंगलसेन को बाबूजी के साथ गाने के लिए कहता है। मंगलसेन बाबूजी का चचेरा भाई है, जो फौज से रिटायर होने के बाद बाबूजी के साथ ही रहता है और घर का काम करता है। गरीब मंगलसेन को बाबूजी बात पर अपमानित करते हैं तथा उसे उचित सम्मान नहीं देते, जो वीरजी को बुरा लगता है। मंगलसेन को विश्वास था कि वह सगाई में ज़रूर जाएगा और उसका विश्वास साकार हो गया।

समधी जी द्वारा सगाई देना
बाजी और मंगलसेन तैयार होकर अपने होने वाले समधी के घर पहुंचे, जहां उन दोनों की खूब आवभगत हुई। सगाई देने के समय बादाम से भरे कितने ही थाल समधी जी द्वारा लाए गए पर बाबूजी ने केवल सवा रुपये लेने की ही बात कही। अन्त में समधी जी अन्दर से चाँदी का एक थाल लाए जिसमें चाँदी की तीन कटोरियों एवं चॉदी के तीन चम्मच रखे हुए थे। एक कटोरी में केसर, दूसरी में राँगला धागा और तीसरी में चाँदी का रुपया एवं चवन्नी रखी हुई थी।

वापस आने पर एक चम्मच गायब मिलना
थाली को अपने कन्धों पर रखकर मंगलसेन घर पहुँचा। वीरजी की माँ ने रुमाल हटाकर देखा कि चॉदी की कटोरियाँ तो तीन थीं, लेकिन चम्मच दो ही थे। सभी को आश्चर्य हुआ की तीसरा चम्मच कहाँ गया?

मंगलसेन की तलाशी होना
चाँदी का एक चम्मच गायब हो जाने पर सभी को गरीब मंगलसेन पर सन्देह हुआ। मंगलसेन द्वारा बार-बार इनकार करने के बावजूद आँगन में उसे खड़ा कर उसकी तलाशी ली गई, तो उसकी जेब में मैला रुमाल, रीक्षियों की गल्ली, माचिस और छोटी-सी पेन्सिल के अलावा कुछ न मिला। तलाशी लिए जाने से मंगलसेन अत्यन्त अपमानित महसूस करने लगा। उसकी साँस फूलने लगी और वह खड़-खड़ा गिर गया। घर के नौकर सन्तू ने उसे छज्जे पर लिटा दिया।

गायब चम्मच का मिल जाना
ढोलक की आवाज़ सुनकर पड़ोस की महिलाएँ घर में इकट्ठा होने लगीं, तभी वीरजी का साला आकर चोंदी को चम्मच मनोरमा को देकर चला गया। दूसरी और सगाई में जाने सम्बन्धी मुद्दे पर सन्तू ने मंगलसेन से शर्त लगाई थी, जिसे वह हार चुका था। सन्तू कहता है कि तनख्वाह मिलने पर वह शर्त की। रकम मंगलसैन को दे देगा। इसी बिन्दु पर कहानी समाप्त हो जाती है, लेकिन खून का रिश्ता तार-तार हो जाता है। मंगलसेन को यह समझ नहीं आता कि सगाई में उसका जाना उसके लिए सम्मान का सूचक था या अपमान का. क्योंकि सगाई में जाने के कारण ही उस पर चोरी का आरोप लगाया गया और अपमानित करके उसकी तलाशी ली गई।

‘खून का रिश्ता’ कहानी की समीक्षा/विवेचना

(2018, 17, 14)

वर्तमान समाज में टूटते रिश्तों की वास्तविकता बताने वाली कहानी ‘खून का रिश्ता’ की समीक्षा इस प्रकार है।

कथानक/विषय-वस्तु
बाबूजी का बेटा वीरजी अपनी सगाई मात्र सवा रुपये में करवाना चाहता है और सगाई में केवल एक आदमी को भेजना चाहता है, परन्तु उसके माता-पिता अपने पुत्र की सगाई अपनी प्रतिष्ठा के अनुसार धूमधाम से करना चाहते है, किन्तु उनका बेटा ऐसा नहीं करने देता है। वीरजी के एक चाचा मंगलसेन वृद्ध एवं विकलांग है, जो अपने भतीजे की सगाई में जाने के सपने देखते हैं। उनका नौकर सन्तु जब उनसे कहता है कि बाबूजी आपको सगाई में नहीं ले जाएँगे, तो वे उदास हो जाते हैं, कि अन्ततः उनकी भाभी, वीरजी और बाबूजी उन्हें ले जाने के लिए तैयार हो जाते हैं।

उनके पास सगाई में जाने के लिए ढंग के कपड़े भी नहीं हैं। फिर उनकी भाभी ने घुला हुआ पाजामा, बाबूजी की एक पगड़ी देकर उन्हें समधी के यहाँ जाने के लिए तैयार किया। वहाँ जाकर उनका सपना पूरा हो गया। सगाई में समधी के यहाँ से चॉदी की तीन कटौरी और दो चम्मच देखकर वीरजी की माँ को गुस्सा आ गया। वे बोलीं-‘समधी जी ने तीन चम्मच दिए होंगे; किन्तु एक चम्मच कहाँ गायब हो गया? सबको मंगलसेन पर ही शक होता है कि उन्होंने ही हेराफेरी की है। बाबूजी ने उन्हें दण्ड देने की भी बात की। कुछ ही देर में वीरजी का साला एक चम्मच लाकर दे देता है। इस प्रकार मंगलसेन पर लगा आरोप झूठा साबित हो जाता है तथा खून का रिश्ता टूटते टूटते जुड़ जाता है। इस प्रकार कहानी का कथानक विचारोत्तेजक एवं यथार्थपूर्ण है। मानसिक अन्तर्द्वन्द्व का उन्मूलन कर देना भीष्म साहनी की चिन्तन कला का अद्भुत गुण है। कहानी में सजीवता तथा तारतम्यता विद्यमान है।

पात्र और चरित्र-चित्रण
‘खून का रिश्ता’ कहानी में मानवीय दृष्टिकोण से सामाजिक एवं पारिवारिक सम्बन्धों की विवेचना की गई है। यह एक प्रकार से चरि-प्रधान कहानी है, जिसमें मानव चरित्र की प्रतिष्ठा ही मुख्य विषय है। कहानी के प्रमुख पात्र के रूप में वीरजी की चिन्तन-शैली को आधुनिक भारतीय जागरूक नवयुवक के प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो अपनी भावी ज़िन्दगी को सँवारने के लिए दहेज रहित विवाह का आश्चर्यजनक निर्णय लेता है। वीरजी की माँ एक स्वस्थ एवं सन्तुष्ट गृहिणी की भूमिका में हैं, जिनका चरित्र परिस्थितियों के साथ-साथ विकास पाता है। वह कभी खून के रिश्ते की गरिमा को पहचानती एवं महत्त्व देती हैं, तो कभी उसकी उपेक्षा भी करती हैं। प्रस्तुत कहानी में चरित्र की सूक्ष्मता एवं चारित्रिक भगिमाओं का वैशिय यानि विविधतापूर्ण चित्रण दर्शनीय है। कहानी में पात्रों की यथार्थता को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रस्तुत किया गया है। चरित्र-चित्रण में विश्लेषणात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।

कथोपकथन अथवा संवाद
प्रस्तुत कहानी के संवाद पूर्ण नियन्त्रित तथा कौतूहल को उजागर करने वाले हैं। कथाकार ने इस कहानी में मुहावरों का प्रयोग करके संवादों को उत्कृष्ट बनाया है। वीरजी के दहेज विरोधी और माता-पिता के वात्सल्यपूर्ण चरित्र को उजागर करते संवाद है-” मैंने कह दिया, माँ! मेरी सगाई सवा रुपये में होगी और केवल बाबूजी सगाई डलवाने जाएँगे। जौ मंजूर नहीं हो तो अभी से “बस-बस, आगे कुछ मत कहना।” माँ ने झट से टोकते हुए कहा। फिर क्षुब्ध होकर बोली, “जो तुम्हारे मन में आए करो। आजकल कौन किसी की सुनता है। छोटा-सा परिवार और इसमें भी कभी कोई काम ढंग से नहीं हुआ। मुझे तो पहले ही मालूम था तुम अपनी करोगे……………………. ।”

देशकाल और वातावरण
कहानी में देशकाल और वातावरण में आँचलिक और स्थानीय रंग दिखता है। घटना और उससे सम्बन्धित परिस्थितियों का चित्रण सजीव रूप से तथा क्रमानुगत ढंग से किया गया है। समाज के टूटते सम्बन्धों का यथार्थ चित्रण वर्तमान वातावरण के परिप्रेक्ष्य में किया गया है। करुणा, आश्चर्य, प्रेम, वात्सल्य आदि की सरसता वातावरण के प्रभाव से सजीव हो गई है।

भाषा-शैली
भीष्म साहनी ने ‘खून का रिश्ता” कहानी को सरल एवं बोधगम्य भाषा द्वारा प्रभावशाली बनाया है। सूक्ष्म मानवीय सम्बन्धों को उजागर करने के लिए भाषा की सांकेतिकता से उसकी व्यंजना शक्ति बढ़ाई गई है। इस कहानी में शब्दों का चयन क्रियाओं के वेग और अन्तर्द्वन्द्व के विचार से किया गया है। इसमें अंग्रेजी और उर्दू शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। कहानी की सभी शैलियों, शब्दों का चयन प्रभावशाली ढंग से किया गया है। इस कहानी में बाबूजी की शैली अधिकांश स्थानों पर ओजपूर्ण है। नौकर सन्तू की शैली मंगलसेन के प्रति व्यंग्य प्रधान है।

उद्देश्य
प्रत्येक कहानी के मूल में एक केन्द्रीय भाव होता है, जो कहानी को मौलिक आधार प्रदान करता है। यही कहानी का उद्देश्य कहलाता है। साहनी जी ने ‘खून का रिश्ता’ कहानी के माध्यम से दहेज उन्मूलन करने, मानवता तथा भाईचारे की भावना को सुदृढ़ करने आदि पर जोर दिया है। व्यक्ति की वैचारिकता में उदारता, ममत्व और समता भाव संचारित करना कहानी का मूल उद्देश्य है। इस कहानी में वीरजी की माँ द्वारा अपने बेटे की खुशी के लिए समस्त आदर्शों का त्याग करना पाठकों को चकित करने वाला है।

शीर्षक
इस कहानी का शीर्षक कथानुसार सटीक व संगत है। यह शीर्षक कहानी के भाव, विचार, उद्देश्य व कथावस्तु की दृष्टि से पूर्णतः सार्थक व तर्कसंगत है। सम्पूर्ण कथा शीर्षक के इर्द-गिर्द घूमती हैं। इस कहानी के शीर्षक में व्यापकता, प्रतीकात्मकता का गुण भी विद्यमान है। इसी के साथ इस कहानी का शीर्षक सरल, आकर्षक, मौलिक, नवीन व कौतूहलपूर्ण बन जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है। कि शीर्षक की दृष्टि से यह कहानी सार्थक सिद्ध होती हैं।

वीरजी का चरित्र-चित्रण

(2018, 17, 16, 14, 12)

मानवीय संवेदनाओं के कथा शिल्पी भीष्म साहनी की कहानी ‘खून का रिश्ता’ में वीरजी प्रमुख पात्र है, जिसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं।

शिक्षित युवक
वीरजी एक आदर्श नवयुवक है, जो सही अर्थों में शिक्षित हैं। वह नवयुवक घर परिवार के लगभग सभी सदस्यों का विरोध करता हुआ अकेला महज के विरोध विद्रोह करता है तथा सभी को अपना सुसंगत निर्णय मानने के लिए बाध्य करता है। उसके कहने पर ही निर्धन चाचा मंगलसेन उसके पिताजी के साथ समधी के घर सगाई लेकर जा पाते हैं।

आडम्बर एवं दहेज में विश्वास नहीं
वीरजी सही अर्थों में शिक्षित एवं समझदार नवयुवक है। वह अपने विवाह में किसी भी तरह का आज़म्बर या दिखावापन पसन्द नहीं करता है। वह दहेज के रूप में शगुन का सिर्फ सवा रुपया स्वीकार करता है। वह विवाह में फिजूलखर्ची से भी दूर राना चाहता है। यही कारण है कि वह केवल पिताजी को और उनके अत्यधिक आग्रह के बाद साथ में चाचाजी को सगाई में जाने देता हैं।

समानता की भावना का पोषक
वीरजी एक सहदय युवक है, जो अपने गरीब चाचा मंगलसेन को भी बराबर का सम्मान दिलवाता है। उसी की ज़िद का परिणाम होता है कि पिताजी को उसकी बात मानकर मंगलसेन को ले जाने के लिए राज़ी होना पड़ता है। वह धनी रिश्तेदारों की जगह गरीब मंगलसेन को अधिक प्राथमिकता देता है।

व्यवहार कुशल एवं मृदु भाषी
वीरजी एक व्यवहारकुशल युवक है और घर के सभी सदस्यों के प्रति उसका व्यवहार बड़ा ही मृदु है। वह अपने गरीब चाचा मंगलसेन को अत्यधिक सम्मान देता है तथा झुककर उनके पाँव छूता है।

अपनी संगिनी के प्रति स्नेहिल भावना
वीरजी अपनी होने वाली पत्नी प्रभा के प्रति अत्यन्त स्नेहयुक्त भावनाएँ रखता है। वह रुमाल को देखकर ही प्रभा के स्पर्श की कल्पना से पुलकित होने लगता है। वह चाहता है कि रुमाल को हाथ में लेकर चूम ले।

खून के रिश्तों का महत्त्व देने वाला
वीरजी खून के रिश्ते की विशेषता/पवित्रता को समझने वाला आधुनिक बौद्धिक युवक है। वह सभी बातों को बौद्धिक एवं तार्किक रूप से परखने के बाद भी परम्परा की उस मर्यादा को नहीं भूलता, जो बड़ों के प्रति छोटों का कर्तव्य है।

इसके अतिरिक्त, वह इस भावना एवं संवेदना से भी अच्छी तरह परिचित है कि पून के रिश्ते वाले चाचा मंगलसेन अपने भतीजे की शादी से सम्बन्धित क्या-क्या ख्याल रखते होंगे। यही कारण है कि वह अपनी सगाई में चाचा को भेजने की जिद करता है और सफल होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि वीरजी एक शिक्षित युवक, आडम्बर एवं दहेज विरोधी, समानता की भावना का पोषक होने के साथ-साथ खून के रिश्तों को महत्त्व देता है। का हितेषी भी है।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 6 श्रवण कुमार

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 6
Chapter Name श्रवण कुमार
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 6 श्रवण कुमार

कथावस्तु पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाएँ लिखिए। (2018)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए। (2016)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का वर्णन कीजिए। (2017)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए। (2018, 16)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। (2018, 16, 14, 19)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की कथावस्तु (कथानक) संक्षेप में लिखिए। (2018, 16, 15, 13, 11)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में वर्णित बाणविद्ध श्रवण कुमार के करुण विलाप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में नौ सर्ग हैं। खण्डकाव्य की सर्गानुसार संक्षिप्त कथावस्तु इस प्रकार है।

प्रथम सर्ग : अयोध्या (2011)

अयोध्या के गौरवशाली इतिहास में अनेक महान् राजाओं की गौरवगाथा छिपी हुई है। अनेक राजाओं; जैसे-पृथु, इक्ष्वाकु, ध्रुव, सगर, दिलीप, रघु ने अयोध्या को प्रसिद्धि एवं प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुँचाया। इसी अयोध्या में सत्यवादी हरिश्चन्द्र और गंगा को पृथ्वी पर लाने वाले राजा भगीरथ ने शासन किया।

राजा रघु के नाम पर ही इस कुल का नाम रघुवंश पड़ा। महाराज दशरथ राजा अज के पुत्र थे। अयोध्या के प्रतापी शासक राजा दशरथ के राज्य में सर्वत्र शान्ति थी। चारों ओर कला-कौशल, उपासना-संयम तथा धर्मसाधना का साम्राज्य था। सभी वर्ग सन्तुष्ट थे। महाराज दशरथ स्वयं एक महान् धनुर्धर थे, जो शब्दभेदी बाण चलाने में सिद्धहस्त थे।

द्वितीय सर्ग : आश्रम (2014, 11)

सरयू नदी के तट पर एक आश्रम था, जहाँ श्रवण कुमार अपने वृद्ध एवं नेत्रहीन माता-पिता के साथ सुख एवं शान्तिपूर्वक निवास करता था। वह अत्यन्त आज्ञाकारी एवं अपने माता-पिता का भक्त था।

तृतीय सर्ग : आखेट

‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आखेट सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए। (2018)
एक दिन गोधूलि बेला में राजा दशरथ विश्राम कर रहे थे, तभी उनके मन में आखेट की इच्छा जाग्रत हुई। उन्होंने अपने सारथी को बुलावा भेजा।

रात्रि में सोते समय राजा ने एक विचित्र स्वप्न देखा कि एक हिरन का बच्चा उनके बाण से मर गया और हिरनी खड़ी आँसू बहा रही है। राजा सूर्योदय से बहुत पहले जगंकर आखेट हेतु वन की ओर प्रस्थान कर देते हैं।

दूसरी ओर श्रवण कुमार माता-पिता की आज्ञा से जल लेने के लिए नदी के तट पर जाता है। जल में पात्र डूबने की ध्वनि को किसी हिंसक पशु की ध्वनि समझकर दशरथ शब्दभेदी बाण चला देते हैं। यह बाण सीधे श्रवण कुमार को जाकर लगता है, वह चीत्कार कर उठता है। श्रवण कुमार की चीत्कार सुन राजा दशरथ चिन्तित हो उठते हैं।

चतुर्थ सर्ग: श्रवण

राजा दशरथ के बाण से घायल श्रवण कुमार को यह समझ में नहीं आता है कि उसे किसने बाण मारा? वह अपने अन्धे माता-पिता की चिन्ता में व्याकुल है कि अब उसके माता-पिता की देखभाल कौन करेगा? वह बड़े दुःखी मन से राजा से कहता है कि उन्होंने एक नहीं, अपितु एक साथ तीन प्राणियों की हत्या कर दी है। उसने राजा से अपने माता-पिता को जल पिलाने का आग्रह किया। इतना कहते ही उसकी मृत्यु हो गई। राजा दशरथ अत्यन्तै दुःखी हुए और स्वयं जल लेकर श्रवण कुमार के माता-पिता के पास गए।

पंचम सर्ग : दशरथ (2012, 10)

राजा दशरथ दुःख एवं चिन्ता में भरकर सिर झुकाए आश्रम की ओर जा रहे थे। वे अत्यन्त आत्मग्लानि एवं अपराध भावना से भरे हुए थे। पश्चाताप, आशंका और भय से भरकर वे आश्रम पहुँच जाते हैं।

घष्ठ सर्ग : सन्देश (मार्मिक प्रसंग) (2013)

श्रवण के माता-पिता अपने आश्रम में पुत्र के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। वे इस बात से आशंकित थे कि अभी तक उनका पुत्र लौटकर क्यों नहीं आया? उसी समय उन्होंने किसी के आने की आहट सुनी। वे राजा दशरथ को श्रवण कुमार ही समझ रहे थे।

जब राजा ने उन्हें जल लेने के लिए कहा, तो उनका भ्रम दूर हुआ। राजा दशरथ ने उन्हें अपना परिचय दिया और जल लाने का कारण बताया। श्रवण की मृत्यु का समाचार सुनकर उसके वृद्ध माता-पिता अत्यन्त व्याकुल हो उठे।

सप्तम सर्ग : अभिशाप (2017, 14, 13, 12)

सप्तम सर्ग में ऋषि दम्पति के करुण विलाप का चित्रण है। वे आंसू बहाते हुए, विलाप करते हुए नदी के तट पर पहुंचे और विलाप करते-करते अचेत हो जाते हैं। अचेत होते ही राजा दशरथ से कहते हैं कि यद्यपि यह अपराध तुमसे अनजाने में हुआ है, पर इसका दण्ड तो तुम्हें भुगतना ही होगा। वह श्राप देते हैं कि जिस प्रकार पुत्र-शोक में मैं प्राण त्याग रहा हूँ, उसी प्रकार एक दिन तुम भी अपने पुत्र वियोग में प्राण त्याग दोगे।

अष्टम सर्ग : निर्वाण (2014)

श्रवण कुमार के माता पिता द्वारा दिए गए श्राप को सुनकर राजा अत्यन्त दु:खी होते हैं। श्रवण के माता-पिता भी जब रो-रोकर शान्त होते हैं तो उन्हें आप देने का दुःख होता है। अब पिता को आत्मबोध होता है और वे सोचते हैं कि यह तो नियति का विधान था। तभी श्रवण कुमार अपने दिव्य रूप में प्रकट हुआ और उसने अपने माता-पिता को सांत्वना दी। पुत्र शोक में व्याकुल माता पिता भी अपने प्राण त्याग देते हैं।

नवम सर्ग : उपसंहार

राजा दशरथ दुःखी मन से अयोध्या लौट आते हैं। वे इस घटना का वर्णन किसी से नहीं करते हैं, परन्तु राम जब वन को जाने लगते हैं, तो उन्हें उस श्राप का स्मरण हो आता है और वह यह बात अपनी रानियों को बताते हैं।

प्रश्न 2.
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की सामान्य विशेषताओं को लिखिए। (2018)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य एक सफल खण्डकाव्य है। खण्डकाव्य की विशेषताओं के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (2018)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2018)
अथवा
‘श्रवण कुमार के काव्य सौष्ठव (काव्य सौन्दर्य) पर प्रकाश डालिए। (2010)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ एक भावप्रधान (मर्मस्पर्शी, हृदयस्पर्शी घटना की मार्मिकता से पूर्ण) खण्डकाव्य है। सतर्क सोदाहरण प्रमाणित कीजिए। (2013, 11, 10)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2017)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताओं को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए। (2017)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताएँ उद्घाटित कीजिए। (2017)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की विशेषताएँ लिखिए। (2017, 14)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में “करुणा और प्रेम की विह्वल मन्दाकिनी प्रवाहित होती है।” इस कथन की विवेचना कीजिए। (2010)
अथवा
सिद्ध कीजिए कि ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में करुण रस की प्रधानता है।
उत्तर:
डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य एक पौराणिक कथानक पर आधारित है। कवि ने इसमें अपनी काव्यात्मक प्रतिभा का प्रयोग अत्यन्त कुशलता से किया है। यह खण्डकाव्य भावपक्षीय एवं कलापक्षीय दोनों दृष्टियों से उत्तम विशेषताओं को धारण किए हुए है, जिनका विवेचन इस प्रकार है।
भावपक्षीय विशेषताएँ श्रवण कुमार खण्डकाव्य की भावपक्षीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. अन्तर्मुखी भावों की अभिव्यक्ति श्रवण कुमार खण्डकाव्य में मार्मिक स्थलों की कुशल अभिव्यक्ति की गई है। स्वप्न देखते समय, श्रवण कुमार को तीर से मरते देखकर, अभिशाप सर्ग में दशरथ का पश्चाताप एवं दु:ख प्रकट हुआ है। तीर लगने के बाद श्रवण कुमार की मन:स्थिति का चित्रण कवि ने बड़ी कुशलता से किया हैं। कवि ने मन:विश्लेषण को स्वाभाविक अभिव्यक्ति देने का प्रयत्न किया है।
  2. भारतीय संस्कृति का गौरव गान प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि ने भारतीय संस्कृति का गौरवगान किया है। मानव के आदर्शों एवं प्राचीन स्वरूप के गौरव का दर्शन कराना ही इस खण्डकाव्य का मूल उद्देश्य है। इसकी अभिव्यक्ति में कवि ने अपनी पूर्ण प्रतिभा का परिचय दिया हैं।
  3. रस योजना इस खण्डकाव्य का प्रमुख रस करुण है। करुण रस का सहज स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। कवि ने रस योजना में अपनी प्रतिभा का सफल प्रयोग किया हैं। “निर्मम एक बाण ने उनसे, छीन लिया उनका वात्सल्या”

कलापक्षीय विशेषताएँ ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की कलापक्षीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. भाषा-शैली प्रस्तुत खण्डकाव्य की भाषा संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक खड़ी बोली है। इसमें तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। पारिभाषिक और समसामयिक शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। इसमें मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी दर्शनीय है। शैली की दृष्टि से इतिवृत्तात्मक, चित्रात्मक, आलंकारिक, छायावादी आदि शैलियों के दर्शन होते हैं। विभिन्न शैलियों का कुशल प्रयोग तो हुआ ही है, साथ ही अभिव्यंजना शक्ति के पूर्ण स्वरूप के दर्शन भी होते हैं। (2011, 10)
  2. अलंकार योजना प्रस्तुत खण्डकाव्य में उपमान-विधान के लिए विस्तृत भावभूमि का चयन किया गया है। श्लेष, यमक, वक्रोक्ति, चीप्सा, पुनरुक्ति, विरोधाभास, अनुप्रास आदि शब्दालंकारों के साथ ही उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, प्रतीप, व्यतिरेक, उदाहरण, सन्देह, यथासंख्य, परिसंख्या आदि अलंकारों का प्रयोग भी किया गया है।
  3. छन्द योजना प्रधान छन्द ‘वीर’ है। 16, 15 पर यति तथा अन्त में गुरु, लघु का प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं 30 मात्रा वाले छन्द भी आ गए हैं। ऐसे मात्र 3 छन्द हैं और छन्द के दृष्टिकोण से यह सामान्य बात है। अन्तिम तीन छन्दों में ताटक और लावनी छन्दों का भी प्रयोग हुआ है।
  4. उद्देश्य डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित प्रस्तुत खण्डकाव्य का उद्देश्य यह है कि पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंगी युवा पीढ़ी जीवन मूल्यों से दूर न हो, बच्चे अपने कर्तव्यों से विमुख न हों, अपितु वे बड़ों का यथोचित सम्मान करे। आज युवा पीढ़ी में अनैतिकता, उद्दण्डता और अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है, वह अपने गुरुजनों और माता-पिता के प्रति श्रद्धारहित होती जा रही है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि युवा वर्ग में त्याग, सहिष्णुता, दया, परोपकार, क्षमाशीलता, उच्च संस्कार, भावात्मकता, एकता आदि नैतिक आदशों एवं जीवन मूल्यों की प्राण-प्रतिष्ठा की जाए।

कवि ने इस खण्डकाव्य के माध्यम से युवा वर्ग को श्रवण कुमार की भाँति बनने की प्रेरणा दी है। उनकी भाँति वह भी अपने जीवन में, अपने आचरण में इन आदर्शों को उतार सके और गर्व से यह कह सके कि ‘मुझे बाणों की चिन्ता नहीं सता रही है, मुझे अपनी मृत्यु का भय नहीं है, लेकिन मुझे अपने वृद्ध एवं नेत्रहीन माता-पिता की चिन्ता है कि मेरे बाद उनका क्या होगा?

प्रश्न 3.
श्रवण कुमार खण्डकाव्य के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए। (2016)
उत्तर:
डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का प्रमुख पात्र श्रवण कुमार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस प्रमुख पात्र की चरित्रगत विशेषताओं पर प्रकाश डालना ही कवि को प्रमुख उद्देश्य हैं। खण्डकाव्य का मुख्य उद्देश्य होने के कारण इसका शीर्षक ‘श्रवण कुमार’ रखा गया है, जो कथनानुसार पूर्णतः उपयुक्त प्रतीत होता है। ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व मार्मिक प्रसंग दशरथ का श्रवण कुमार के पिता द्वारा शापित होना है, परन्तु इस प्रसंग की अभिव्यक्ति का भाव श्रवण कुमार के व्यक्तित्व से ही मद्ध है। खण्डकाव्य की कथावस्तु के अनुसार दशरथ का चरित्र सक्रियता की दृष्टि से सर्वाधिक है, परन्तु दशरथ के चरित्र के माध्यम से भी श्रवण कुमार के चरित्र की विशेषताएँ ही प्रकाशित हुई हैं। अत: इस खण्डकाव्य का मुख्य पात्र श्रवण कुमार ही है और ‘श्रवण कुमार’ शीर्षक उपयुक्त है।

चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 4.
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर श्रवण कुमार का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17, 16)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक का चरित्रांकन/ चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 16)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र (नायक) का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के श्रवण कुमार की मातृ-पितृभक्ति पर प्रकाश डालिए। (2017, 16)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के नायक की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। (2016)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर श्रवण कुमार की चरित्रगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2016)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के नायक श्रवण कुमार का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2015, 14, 13, 12, 11, 10)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2012)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में श्रवण किन आदर्शों का प्रतीक है? (2010)
अथवा
“चरित्र ही व्यक्ति को महान् बनाता है।” इस कथन के सन्दर्भ में श्रवण कुमार के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए। (2011)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के वर्ण्य-विषय की वर्तमान सन्दर्भो में प्रासंगिकता सिद्ध कीजिए। (2013)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ का चरित्र-चित्रण करते हुए यह बताइए कि वह भारतीय संस्कृति के किन आदर्शों का प्रतीक है? (2011)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ में वर्णित आदर्श चरित्र से आज के परिप्रेक्ष्य में क्या शिक्षा मिलती है? (2010)
अथवा
श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के प्रमुख नायक/पात्र की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2018, 14)
उत्तर:
डॉ. शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य का नायक ऋषि पुत्र श्रवण कुमार हैं। वह सरयू के तट पर अपने अन्धे माता-पिता के साथ एक आश्रम में रहता है। कवि ने श्रवण कुमार के चरित्र को बड़ी कुशलतापूर्वक चित्रित किया है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. मातृ-पितृभक्त श्रवण कुमार एक आदर्श मातृ-पितृभक्त पुत्र है। वह हमेशा अपने माता-पिता की सेवा करता है। वह अपने माता-पिता का एकमात्र सहारा है। वह उन्हें काँवड़ में बिठाकर विभिन्न तीर्थस्थानों की यात्राएँ कराता है। मृत्यु के समीप पहुंचने पर भी उसे केवल अपने माता-पिता को ही चिन्ता सताती है।
  2. सत्यवादी श्रवण कुमार सत्यवादी है। जब राजा दशरथ ब्राह्मण की सम्भावना प्रकट करते हैं, तो वह उन्हें साफ-साफ बता देता है कि वह ब्रह्म कुमार नहीं है। उसके पिता वैश्य और माता शूद्र हैं।
  3. क्षमाशील श्रवण कुमार स्वभाव से ही बड़ा सरल है। उसके मन में किसी के प्रति ईष्र्या या द्वेष का भाव नहीं है। दशरथ द्वारा छोड़े गए बाण से आहत होने पर भी उसके मन में किसी प्रकार का क्रोध उत्पन्न नहीं होता है, इसके विपरीत वह उनका सम्मान ही करता है।
  4. भाग्यवादी श्रवण कुमार भाग्य पर विश्वास करता है अर्थात् जो भाग्य में होता है, वही मनुष्य को प्राप्त होता है। मनुष्य को भाग्य के अनुसार ही फल मिलता है। उसे कोई टाल नहीं सकता, यही जीवन का अटल सत्य है। दशरथ द्वारा बाण लगने में वह उन्हें कोई दोष नहीं देता इसे वह भाग्य का ही खेल मानता है।
  5. आत्मसन्तोषी श्रवण कुमार आत्मसन्तोषी है। उसे भोग व ऐश्वर्य की कोई कामना नहीं है। उसके मन में किसी वस्तु के प्रति कोई लोभ व लालच नहीं है। वह सन्तोषी जीव हैं। उसके मन में किसी को पीड़ा पहुँचाने का भाव ही जाग्रत नहीं होता-
    वन्य पदार्थों से ही होता,
    रहता, मम जीवन-निर्वाह।
    ऋषि हूँ, नहीं किसी को पीड़ा,
    पहुँचाने की उर में चाह।।”
  6. भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी वह भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी है। वह माता पिता, गुरु और अतिथि को ईश्वर मानकर उनकी पूजा करता है। अतः कहा जा सकता है कि श्रवण कुमार के चरित्र में सभी उच्च आदर्श विद्यमान हैं। वह मातृ-पितृभक्त है, तो साथ ही क्षमाशील, उदार, सन्तोषी और भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी भी है। वह खण्डकाव्य का नायक है।

प्रश्न 5.
‘श्रवण कुमार’ के आधार पर महाराज दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17, 14, 13, 12, 11, 10)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के आधार पर दशरथ की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2009)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य के ‘अभिशाप’ सर्ग के आधार पर राजा दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2010)
अथवा
‘श्रवण कुमार’ के पंचम और सप्तम् सर्गों में दशरथ के अन्तर्द्वन्द्र (मनोभावों) पर प्रकाश डालिए। (2011)
अथवा
“दशरथ का अन्तर्द्वन्द्र श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य की अनुपम निधि है।” इस उक्ति के आलोक में दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2011)
उत्तर:
हों, शिवबालक शुक्ल द्वारा रचित ‘श्रवण कुमार’ खण्डकाव्य में दशरथ का चरित्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। वह एक योग्य शासक एवं आखेट प्रेमी हैं। वह रघुवंशी राजा अज के पुत्र हैं। सम्पूर्ण खण्डकाव्य में वह आद्यन्त विद्यमान हैं। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं।

  1. योग्य शासक राजा दशरथ एक योग्य शासक हैं। वह अपनी प्रजा की देखभाल पुत्रवत रूप में करते हैं। उनके राज्य में प्रजा अत्यन्त सुखी है। चोरी का नामोनिशान नहीं है। उनके शासन में चारों ओर सुख-समृद्धि का बोलबाला है। वह विद्वानों का यथोचित सत्कार करते हैं।
  2. उच्चकुल में उत्पन्न राजा दशरथ का जन्म उच्च कुल में हुआ था। पृथु, त्रिशंकु, सगर, दिलीप, रघु, हरिश्चन्द्र और अज जैसे महान् राजा इनके पूर्वज थे।
  3. आखेट प्रेमी राजा दशरथ आखेट प्रेमी हैं, इसलिए सावन के महीने में अब चारों ओर हरियाली छा जाती है, तब उन्होंने शिकार करने का निश्चय किया। वे शब्दभेदी बाण चलाने में अत्यन्त कुशल हैं।
  4. अन्तर्द्वन्द्व से परिपूर्ण शब्दभेदी बाण से जब श्रवण कुमार की मृत्यु हो जाती है, तो वह सोचते हैं कि मैंने यह पाप कर्म क्यों कर डाला? यदि मैं थोड़ी देर और सोया रहता या रथ का पहिया टूट जाता या और कोई रुकावट आ जाती, तो मैं इस पाप से बच जाता। उन्हें लगता है कि मैं अब श्रवण कुमार के अन्धे माता-पिता को कैसे समझाऊँगा, कैसे उन्हें तसल्ली दूंगा? दुःख तो इस बात का है कि अब युगों-युगों तक उनके साथ यह पाप कथा चलती रहेगी।
  5. उदार वे अत्यन्त उदार हैं। श्रवण कुमार के माता-पिता द्वारा दिए गए श्राप को वह चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं। किसी अन्य को वह इस बारे में बताते नहीं हैं, पर मन ही मन यह पीड़ा उन्हें खटकती रहती हैं।
  6.  विनम्र एवं दयालु वह अत्यन्त विनम्र एवं दयालु हैं। अहंकार उनमें लेशमात्र भी नहीं है। वे किसी का दुःख नहीं देख सकते। श्रवण कुमार को जब उनका बाण लगता है, तो वे अत्यन्त चिन्तित हो उठते हैं। वह आत्मग्लानि से भर उठते हैं और उनके माता-पिता के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लेते हैं। इस तरह, राजा दशरथ का चरित्र महान् गुणों से परिपूर्ण है। प्रायश्चित और आत्मग्लानि की अग्नि में तपकर वे शुद्ध हो जाते हैं।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi नाटक Chapter 5 राजमुकुट

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name राजमुकुट
Number of Questions Solved 14
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi नाटक Chapter 5 राजमुकुट

कथावस्तु पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
‘राजमुकुट’ नाटक की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए। (2018)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के प्रथम अंक की कथा अपने शब्दों में लिखिए। (2010)
उत्तर:
मेवाड़ में राणा जगमल अपने वंश की मर्यादा का निर्वाह न करके सुरा सुन्दरी में डूबा हुआ था। अपने भोग-विलास एवं आनन्द में किसी भी तरह की बाधा सहन नहीं करने वाला राणी जगमल एक क्रूर शासक बन गया था। उसने कुछ चाटुकारों के कहने पर निरपराध विधवा प्रजावती की नृशंस हत्या करवा दी, जिससे प्रजा में क्रोध की ज्वाला भड़क उठी। प्रजावती के शव को लेकर प्रजा राष्ट्रनायक चन्दावत के घर पहुंची।

इसी समय कुंवर शक्ति सिंह ने राणा जगमल के क्रूर सैनिकों के हाथों से एक भिखारिणी की रक्षा की। जगमल के कार्यों से खिन्न शक्ति सिंह को चन्द्रावत ने कर्म-पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। एक दिन जब जगमल राजसभा में आनन्द मना रहा था, तो राष्ट्रनायक चन्दावत वहाँ पहुँचे और जगमल को उसके घृणित कार्यों के प्रति सचेत करते हुए उसे प्रजा से क्षमा याचना के लिए कहा।

जगमल ने उनकी बात स्वीकार करते हुए स्वयं से योग्य उत्तराधिकारी चुनने के लिए कहा और अपनी तलवार एवं राजमुकुट उन्हें सौंप दिए। राष्ट्रनायक चन्दावत ने राणा प्रताप को जगमल का उत्तराधिकारी बनाया तथा उन्हें राजमुकुट एवं तलवार सौप दी। प्रताप मेवाड़ के राणा बन गए। अब सुरासुन्दरी के स्थान पर शौर्य एवं त्याग-भावना की प्रतिष्ठा हुई। प्रजा प्रसन्नतापूर्वक राणा प्रताप की जय-जयकार करने लगी।

प्रश्न 2.
‘राजमुकुट’ नाटक के द्वितीय अंक की कथा का सार अपने शब्दों में लिखिए। (2017, 12, 11, 10)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के द्वितीय अंक की कथा अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए। (2018)
उत्तर:
मेवाड़ के राणा बनकर, प्रताप ने अपनी प्रजा को अपने खोए हुए सम्मान को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया। प्रजा में वीरत्व का संचार करने के लिए उन्होंने ‘हेरिया’ उत्सव का आयोजन किया। इस उत्सव में प्रत्येक क्षत्रिय को एक वन्य-पशु का आखेट करना अनिवार्य था। इसी आखेट के क्रम में एक जंगली सुअर के आखेट को लेकर राणा प्रताप और शक्ति सिंह में विवाद उत्पन्न हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों भाई शस्त्र निकाल कर एक-दूसरे पर झपट पड़े। भावी अनिष्ट की आशंका से राजपुरोहित ने बीच-बचाव करने का प्रयत्न किया, परन्तु दोनों ही नहीं माने।

राजकुल को अमंगल से बचाने के लिए राजपुरोहित ने अपने ही हाथों, अपनी कटार अपनी छाती में पोप ली और प्राण त्याग दिए। राणा प्रताप ने शक्ति सिंह को देश (राज्य) से निर्वासित कर दिया। शक्ति सिंह मेवाड़ से निकलकर अकबर की सेना से जा मिला।

प्रश्न 3.
‘राजमुकुट’ नाटक के तृतीय अंक की कथा को सार/कथावस्तु संक्षेप में लिखिए। (2016, 15)
उत्तर:
राजा मानसिंह राणा प्रताप के चरित्र एवं गुणों से बहुत प्रभावित थे, इसलिए वे राणा प्रताप से मिलने आए। राजा मानसिंह की बुआ का विवाह सम्राट अकबर के साथ हुआ। अतः राणा प्रताप ने उन्हें धर्म से च्युत एवं विधर्मियों का सहायक समझकर उनसे भेंट नहीं की। उन्होने राजा मानसिंह के स्वागतार्थ अपने पुत्र अमर सिंह को नियुक्त किया। इससे मानसिंह ने स्वयं को अपमानित महसूस किया और वे उत्तेजित हो गए। अपने अपमान का बदला चुकाने की धमकी देकर वे चले गए। तत्कालीन समय में दिल्ली का सम्राट अकबर मेवाड़-विजय के लिए रणनीति बना रहा था।

उसने सलीम, मानसिंह एवं शक्ति सिंह के नेतृत्व में एक विशाल मुगल सेना मेवाड़ भेजी। हल्दीघाटी के मैदान में भीषण युद्ध हुआ। मानसिंह से बदला लेने के लिए राणा प्रताप मुगल सेना के बीच पहुंच गए और मुगलों के व्यूह में फंस गए। राणा प्रताप को मुगलों से घिरा देख चन्दावत ने राणा प्रताप के सिर से मुकुट उतार कर अपने सिर पर पहन लिया और युद्धभूमि में अपने प्राणों की बलि दे दी। राणा प्रताप बच गए। उन्होंने युद्धभूमि छोड़ दी। दो मुगल सैनिकों ने राणा प्रताप का पीछा किया, जिसे शक्तिसिंह ने देख लिया। शक्ति सिंह ने उन मुगल सैनिकों का पीछा करके उन्हें मार गिराया। शक्ति सिंह और राणा प्रतापगले मिले। उनके आंसुओं से उनका समस्त वैमनस्य धुल गया। उसी समय राणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक’ की मृत्यु हो गई, जिससे राणा प्रताप को अपार दुःख हुआ।

प्रश्न 4.
‘राजमुकुट नाटक के अन्तिम (चतुर्थ) अंक की कथा संक्षिप्त रूप में लिखिए। (2014, 13, 12, 11)
अथवा
नाटक के मार्मिक स्थल पर प्रकाश डालिए। (2010)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर महाराणा प्रताप एवं अकबर की भेंट का वर्णन कीजिए। (2012, 11)
उत्तर:
हल्दीघाटी का युद्ध समाप्त हो जाने पर भी राणा ने अकबर से हार नहीं मानी। अकबर ने प्रताप की देशभक्ति, आत्म-त्याग एवं शौर्य से प्रभावित होकर उनसे भेंट करने की इच्छा प्रकट की। शक्ति सिंह साधु-वेश में देश में विचरण कर रहा था और प्रजा में देशप्रेम की भावना तथा एकता की भावना जाग्रत कर रहा था। अकबर के मानवीय गुणों से परिचित होने के कारण शक्ति सिंह ने प्रताप से अकबर की भेंट को छल-प्रपंच नहीं माना। उसका विचार था कि दोनों के मेल से देश में शान्ति एवं एकता की स्थापना होगी। इस चतुर्थ अंक में ही नाटक का मार्मिक स्थल समाहित है।

एक दिन राणा प्रताप के पास वन में एक संन्यासी आया, जिसका उचित स्वागत-सत्कार न कर पाने के कारण राणा प्रताप अत्यन्त खिन्न हुए। अतिथि को भोजन देने के लिए राणा प्रताप की बेटी चम्पा पास के बीजों की बनी रोटी लेकर आई। उसी समय कोई वनबिलाव चम्पा के हाथ से रोटी छीनकर भाग गया। इसी क्रम में चम्पा गिर गई और सिर में गहरी चोट लगने से स्वर्ग सिधार गई।

कुछ समय बाद अकबर संन्यासी वेश में वहाँ आया और प्रताप से बोला-आप उस अकबर से तो सन्धि कर सकते हैं, जो भारतमाता को अपनी माँ समझता है और आपकी तरह ही उसकी जय बोलता है।” मृत्युशय्या पर पड़े महाराणा प्रताप को रह-रहकर अपने देश की याद आती हैं। वे अपने बन्धु-बाँधवों, पुत्रों और सम्बन्धियों को मातृभूमि की स्वतन्त्रता एवं रक्षा का व्रत दिलाते हुए भारतमाता की जय बोलते हुए स्वर्ग सिधार जाते हैं।

प्रश्न 5.
‘राजमुकुट’ नाटक के शीर्षक का औचित्य बताइए। (2012, 11)
उत्तर:
नाटककार श्री व्यथित हृदय ने प्रस्तुत नाटक का शीर्षक ‘राजमुकुट इसलिए रखा है, क्योंकि सम्पूर्ण नाटक राजमुकुट की प्रतिष्ठा के इर्द-गिर्द ही घूमता है और अन्तिम अंक में इसी राजमुकुट ने मेवाड़ के राणा प्रताप की जान बचाकर मेवाड़ के शासक की रक्षा की ताकि आने वाले समय में मेवाड़ अपनी आन एवं शान को अक्षुण्ण रख सके तथा खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर सके। प्रस्तुत नाटक का आरम्भ ही राजमुकुट की मर्यादाओं की प्रतिष्ठापना से होता है। राणा जगमल की विलासितापूर्ण जीवन-शैली से व्यथित प्रजा एवं राष्ट्रनायक कृष्णजी चन्दावत द्वारा राजमुकुट की मर्यादाओं की रक्षा करने में असक्षम राजा जगमल से राजमुकुट वापस लेकर राणा प्रताप को सौंपा जाता है।

राणा प्रताप देश की स्वतन्त्रता को राजमुकुट की मान प्रतिष्ठा से जोड़ देते हैं तथा मरते दम तक अपने संकल्प की रक्षा करते हैं। राष्ट्रनायक कृष्णजी चन्दावत मेवाड़ के शासक राणा प्रताप की जान बचाने के लिए स्वयं राजमुकुट धारण कर लेते हैं। यह राजमुकुट ही था, जो शासकों को अपने देश को स्वतन्त्रता हेतु मर-मिटने का सन्देश भी देता है और मेवाड़ के शासक की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है। अतः नाटक के कथानक के अनुसार नाटक का शीर्षक ‘राजमुकुट पूर्णतया उपयुक्त एवं सार्थक है।।

प्रश्न 6.
‘राजमुकुट’ नाटक की प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए। (2018)
अथवा
राजमुकुट नाटक की ऐतिहासिकता पर प्रकाश डालते हुए उसकी कथावस्तु लिखिए। (2016)
अथवा
नाट्य-कला की दृष्टि से ‘राजमुकट’ नाटक की समीक्षा कीजिए। (2011)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक की कथा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2018, 17, 14, 12)
अथवा
राजमुकुट नाटक का कथासार/कथावस्तु प्रस्तुत कीजिए। (2016)
अथवा
कथावस्तु की दृष्टि से ‘राजमुकुट’ नाटक की समीक्षा लिखिए। (2013)
उत्तर:
प्रस्तुत नाटक ‘राजमुकुट’ को कथानक विशुद्ध ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है, जिसमें अनेक काल्पनिक तत्वों का समावेश किया गया है। महाराणा प्रताप के शौर्यपूर्ण जीवन से सम्बन्धित इस नाटक का प्रारम्भ महाराणा के राजमुकुट धारण करने से होता है। कथानक के विकास में शक्ति सिंह और राणा का विवाह, अकबर की सेना का मेवाड़ पर आक्रमण, हल्दीघाटी का युद्ध, महाराणा प्रताप का वन-वन भटकना, उनकी मृत्यु आदि अनेक सहायक सोपान हैं। कथानक के अन्तर्गत काल्पनिक तत्वों का समावेश आधुनिक समाज की कुछ समस्याओं का बोध कराने के लिए किया गया है। कथानक में देशप्रेम, राष्ट्रीय एकता, भावात्मक समन्वय तथा अन्तर्राष्ट्रीय चेतना जैसे मानवीय-मूल्यों को महत्त्व देकर इसे व्यापक स्तर पर देशकाल के लिए उपयोगी यानि प्रासंगिक बना दिया गया है। कथानक के अन्तर्गत प्राचीन भारतीय मूल्यों एवं संस्कृति की श्रेष्ठता को भी दर्शाया गया है। इस नाटक का कथानक सुगठित, सशक्त, उद्देश्यपूर्ण, सुन्दर एवं प्रासंगिक है। इस प्रकार, कथानक की दृष्टि से राजमुकुट’ एक सफल नाटक है।

प्रश्न 7.
“राजमुकुट’ नाटक में देशकाल और वातावरण का सफल निर्वाह हुआ है।” इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत नाटक का कथानक ऐतिहासिक होने के कारण नाटककार ने इतिहास की प्रामाणिकता को बहुत महत्त्वपूर्ण माना है तथा उसे महत्त्व दिया है। प्रस्तुत नाटक में अकबर के काल के वातावरण को चित्रित किया गया है, जिसमें नाटककार को अत्यधिक सफलता प्राप्त हुई है। युद्ध का दृश्य अत्यन्त सजीव बन पड़ा है। नाटक में तत्कालीन राजस्थान का परिवेश मुखरित हो उठा है। तत्कालीन समाज के अनुरूप संवादों एवं पात्रों की योजना ने वातावरण के चित्रण को और अधिक स्वाभाविकता प्रदान की है।

प्रश्न 8.
‘राजमुकुट’ की संवाद-योजना (कथोपकथन) की समीक्षा कीजिए। (2012, 11)
उत्तर:
संवाद-योजना की दृष्टि से राजमुकुट’ नाटक पूर्णतया सफल नाटक है। इस नाटक के संवाद सुन्दर, सरल, सहज, सरस, संक्षिप्त एवं पात्रों के अनुकूल हैं। ये । संवाद मनोभावों को भी अभिव्यक्त करने में पूर्णतया सफल हैं। संवादों में कहीं ओज है, तो कहीं माधुर्य। नाटक की संवाद-योजना में इन खूबियों के अतिरिक्त कुछ कमियाँ भी हैं। इसमें स्वगत कथनों की अधिकता है, जिससे पाठक एवं दर्शक को अरुचि होती है। संवादों में कसाव एवं संक्षिप्तता का भी अभाव है। संवादों में । कहीं-कहीं असम्बद्धता भी दिखाई देती है, जिससे पाठक पर नाटक का प्रभाव नहीं पड़ पाता।

प्रश्न 9.
‘राजमुकुट’ नाटक की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए। (2012, 11)
उत्तर:
प्रस्तुत नाटक की भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है। संस्कृतनिष्ठ शब्दों के प्रयोग से यद्यपि भाषा में कुछ क्लिष्टता उत्पन्न हुई है तथापि इसका समायोजन कुशलतापूर्वक किया गया है, जिसके कारण इसमें माधुर्य एवं ओज बना रहता हैं। क्लिष्टता आने का कारण संस्कृत के शब्दों की बहुलता है। इसकी भाषा-शैली में मुहावरों, लोकोक्तियों एवं अलंकारों का प्रयोग खुलकर हुआ है, जिससे भाषा में आकर्षण बढ़ा है; जैसे-“वह देश में छाई हुई दासता की निशा पर सचमुच सूर्य बनकर हँसेगा, आलोक पुंज बनकर ज्योतित होगा। उसका प्रताप अजेय है, उसका पौरुष गेय है।”इस प्रकार, भाषा-शैली की दृष्टि से ‘राजमुकुट एक सफल नाटक है।

प्रश्न 10.
‘राजमुकुट’ नाटक की अभिनेयता (रंगमंचीयता) पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अभिनेयता की दृष्टि से राजमुकुट नाटक रंगमंच के अधिक अनुकूल प्रतीत नहीं होता। दृश्यों की संख्या अधिक होने के साथ-साथ पात्रों की संख्या भी बहुत अधिक है। अभिनय को सफल बनाने में एक बड़ी बाधा के रूप में यह बिन्दु सामने आता है। प्रस्तुत नाटक में रंगमंचीय प्रस्तुतीकरण की तकनीक को ध्यान में नहीं रखा गया है। युद्ध, सैनिक, हाथी-घोड़े आदि का मंचन सम्भव नहीं है या फिर मंचन में कठिनाइयाँ अधिक है। भाषा की दृष्टि से भी यह अभिनेयता या रंगमंचीयता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। इस तरह, कहा जा सकता है कि अभिनेयता या रंगमंचीयता की दृष्टि से यह एक सफल नाटक नहीं है, लेकिन पाठ्य-नाट्य की दृष्टि से ‘राजमुकुट’ एक सफल नाटक है।

प्रश्न 11.
“राजमुकुट नाटक की विशेषता राष्ट्रीय एकता एवं देश प्रेम है।” स्पष्ट कीजिए। (2018)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक में व्यक्त देशभक्ति पर प्रकाश डालिए। (2016)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक का उददेश्य स्पष्ट कीजिए। (2014, 13, 11, 10)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक में व्यक्त देशप्रेम एवं स्वाधीनता की भावना पर प्रकाश डालिए। (2014)
उत्तर:
‘राजमुकुट’ नाटक के नाटककार का उद्देश्य ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित मार्मिक, सजीव, सशक्त तथा प्रभावोत्पादक अंशों एवं प्रसंगों का वर्णन करके भारत के लोगों में देशप्रेम की भावना को जागृत करना है।
प्रस्तुत नाटक के उद्देश्य या सन्देश को निम्न बिन्दुओं के रूप में देख सकते हैं।

  1. स्वाधीनता, देशप्रेम एवं एकता का सन्देश ‘राजमुकुट’ नाटक के लेखक ने राष्ट्रीय एकता का सन्देश देते हुए यह दर्शाया है कि महाराणा प्रताप अन्तिम समय तक अपने राष्ट्र की एकता के लिए संघर्ष करते रहे। वे मृत्यु के समय भी अपने वीर साथियों एवं सम्बन्धियों को मातृभूमि की रक्षा का सन्देश देते हैं।
  2. साम्प्रदायिक सद्भाव लेखक व्यथित हृदय जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता की भावना का प्रसार करने के लिए साम्प्रदायिकता पर कुठाराघात किया है। महाराणा एवं अकबर का मिलन साम्प्रदायिक समन्वय की भावना को प्रदर्शित करता हैं।
  3. जनता की सर्वोच्चता इस नाटक के माध्यम से लेखक यह सन्देश देना। चाहता है कि सत्ता की वास्तविक शक्ति शासित होने वाली जनता में ही निहित है। जनसामान्य का दमन एवं शोषण करके कोई भी शासक चैन से नहीं रह सकता है। राजा या शासक प्रजा या जनसामान्य के केवल प्रतिनिधि भर हैं। उन्हें जनता का शोषण करने का कोई अधिकार नहीं है।

इस प्रकार प्रस्तुत नाटक के माध्यम से नाटककार अपने उद्देश्यों को पाठक तक सम्प्रेषित करने में पूर्णतः सफल रहा है। प्रस्तुत नाटक की पात्र योजना श्रेष्ठ है। इसके नायक महाराणा प्रताप हैं तथा उनके अतिरिक्त अन्य मुख्य पात्रों में शक्तिसिंह, कृष्णजी चन्दावत, जगमल, मानसिंह, अकबर आदि शामिल हैं, जबकि नारी पात्रों में प्रजावती, प्रमिला, गुणवती, चम्पा आदि उल्लेखनीय हैं। प्रस्तुत नाटक के पात्र कहानी के विकास में सहायक हैं। इस नाटक के पात्रों की मुख्य विशेषता उनका उदात्त स्वभाव है।

पात्र एवं चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 12.
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर उस पात्र का चरित्रांकन कीजिए, जिसने आपको प्रभावित किया हो। (2018)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों? (2018)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के नायक या प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17, 16, 15)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर ‘प्रताप सिंह की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2017)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर महाराजा प्रताप की चारित्रिक विशेषताएँ उद्घाटित कीजिए। (2018, 16)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर प्रतापसिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2016)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के नायक की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2016)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक के प्रमुख पुरुष पात्र की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए। (2018, 17, 16)
अथवा
‘राजमुकुट’ नाटक में जिस पात्र ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया हो, उसके व्यक्तित्व का परिचय दीजिए। (2014, 13, 12, 11, 10)
उत्तर:
महाराणा प्रताप के चारित्रिक गुणों को निम्नलिखित बिन्दुओं के रूप में देखा जा सकता है।

  1. आदर्श भारतीय महाराणा प्रताप आदर्श भारतीय नायक के रूप में प्रस्तुत हुए हैं। उनके विशिष्ट एवं उत्कृष्ट गुणों के कारण मेवाड़ की जनता उन्हें एक जनप्रिय शासक मानती हैं। उच्च गुणों एवं मानवीय भावनाओं से सम्पन्न महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व अनुकरणीय है।
  2. दृढ़प्रतिज्ञ एवं कर्तव्यनिष्ठ राणा प्रताप दृढ़निश्चयी एवं अपने कर्तव्य के प्रति अत्यधिक निष्ठावान हैं। वे अपने कर्तव्यों का पालन हर परिस्थिति में करते हैं।
  3. स्वतन्त्रता-प्रेमी महाराणा प्रताप जीवनपर्यन्त देश की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करते रहे। दर-दर की ठोकरें खाने को विवश होने के पश्चात् भी उन्होंने विदेशी मुगल शासकों की अधीनता स्वीकार नहीं की।
  4. आन के रक्षक राणा प्रताप एक सच्चे क्षत्रिय थे, जिन्होंने अपनी आन, बान एवं शान के आगे प्रत्येक चीज को तुच्छ समझा। इसी आन ने उन्हें अकबर से सन्धि नहीं करने दी और उनके इस गुण की प्रशंसा अकबर ने भी की।
  5. पराक्रमी योद्धा राणा प्रताप वीर हैं। हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध उनके शौर्य की गाथा गाते नहीं थकता। वह साक्षी है, महाराणा प्रताप के पराक्रम का, उनकी युद्ध कुशलता एवं वीरता का।।
  6. भारतीय संस्कृति के रक्षक महाराणा प्रताप भारतीय संस्कृति के सच्चे रक्षक हैं, उसके पोषक हैं। अतिथि सत्कार की भारतीय परम्परा को वे अपने जीवन की विकट विषम परिस्थितियों में भी नहीं भूलते हैं। संन्यासी के रूप में अकबर के पहुंचने पर, वे उसके सम्मुख कुछ प्रस्तुत नहीं कर पाने से दुःखी हैं, क्योंकि उनके पास केवल घास की रोटियाँ उपलब्ध हैं।

इस प्रकार कहा जा सकता है धैर्यवान, वीरता एवं शौर्य के प्रतीक, स्वतन्त्रता के परम उपासक, अद्वितीय कष्टसहिष्णु एवं श्रेष्ठ आचरण चाले महाराणा प्रताप एक आदर्श भारतीय नायक थे।

प्रश्न 13.
‘राजमुकुट के आधार पर शक्ति सिंह की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2014, 12, 11, 10)
उत्तर:
नाटककार श्री व्यथित हृदय द्वारा लिखित नाटक ‘राजमुकुट’ के नायक मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप का छोटा भाई शक्ति सिंह नाटक के प्रमुख पात्रों में शामिल हैं। इसका चरित्र-चित्रण निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है-

  1. देश-प्रेमी एवं मानवीयता का रक्षक महाराणा प्रताप के अनुज शक्ति सिंह को नाटक के अन्तर्गत मानवता के रक्षक, देश प्रेमी एवं त्याग की प्रतिमा के रूप में चित्रित किया गया है। वह राज्याधिकार के लिए अपने ही बन्धुओं का रक्तपात करने के लिए तैयार नहीं है। वह जगमल की क्रूरता से एक भिखारिन को भी बचाता है।
  2. राज्य-वैभव या सत्ता के प्रति अनासक्त शक्ति सिंह का चरित्र त्याग भावना से परिपूर्ण है। वह सत्ता के लिए अपने भाइयों से संघर्ष नहीं करता और युद्ध में अपने भाई महाराणा प्रताप को दो मुगल सैनिकों से भी बचाता है। उसे गद्दी पर बैठने में कोई आसक्ति नहीं हैं।
  3. निर्भीक एवं स्पष्ट वक्ता वह बेलाग एवं निर्भीक वक्ता है और जो उसे उचित लगता है, वहीं बोलता एवं करता है। वह अकबर की सेना में सम्मिलित होने के पश्चात् भी मेवाड़ के खिलाफ अकबर का साथ नहीं देता।
  4. भातृ-प्रेमी शक्तिसिंह का भातृ-प्रेम उसके चरित्र को गौरवान्वित करने वाला है। महाराणा प्रताप पर घात लगाए हुए दो मुगल सैनिकों को शक्ति सिंह ने अपने एक ही बार में मौत के घाट उतार दिया। शक्ति सिंह ने अपने बड़े भाई महाराणा प्रताप से क्षमा-याचना भी की तथा उनके प्राणों की रक्षा के लिए उन्हें अपना घोड़ा भी सौप दिया।
  5. राष्ट्रीय एकता एवं साम्प्रदायिक सद्भावना का पोषक शक्ति सिंह का दृष्टिकोण राष्ट्रीय अखण्डता को मूलमन्त्र मानकर चलने वाला है तथा वह हिन्दू-मुस्लिम एकता का भी बड़ा समर्थक है। वह मुगल शासकों को भारत देश का ही अभिन्न अंग मानता हैं और उसे विश्वास है कि ये सभी एक दिन भारतमाता की जय बोलेंगे।
  6. अन्तर्द्वन्त से पीड़ित शक्ति सिंह आन्तरिक स्तर पर घोर अन्तर्दन्द्र से जूझ रहा है। उज्ज्वल चरित्र का शक्ति सिंह प्रतिशोध की भावना और देशभक्ति के द्वन्द्व से घिर जाता है, लेकिन जीत अन्ततः देशभक्ति की ही होती है। कुछ मानवीय दुर्बलताओं ने अपनी उपस्थिति से शक्ति सिंह के चरित्र को यथार्थ का स्पर्श दिया है, जिससे उसका चरित्र और अधिक निखर गया है।

प्रश्न 14.
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर अकबर का चरित्रांकन/ चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17)
उत्तर:
‘राजमुकुट’ नाटक में अकबर एक कुशल कूटनीतिज्ञ, मानवतावादी एवं साम्प्रदायिक समन्वयकर्ता के रूप में दृष्टिगोचर होता है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. कुशल राजनीतिज्ञ अकबर कुशल शासक है। उसके पास विशाल सेना हैं। विदेशी होते हुए भी वह भारतीयों पर अपना प्रभाव छोड़ता है और उन्हें अपने पक्ष में कर लेता है। उसने राजपूत घरानों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करके अपनी शक्ति का विस्तार किया, जिससे उसे अनेक राजपूत शासकों का समर्थन प्राप्त हुआ। मानसिंह की बुआ जोधाबाई उसकी पटरानी है, इस कारण उसे मानसिंह का भी समर्थन मिल जाता है और उसके प्रति राजपूतों का विरोध कम होता है। उसने जैसलमेर और जोधपुर की राजकुमारियों से भी विवाह किए।
  2. धार्मिक सहिष्णुता का परिचय अकबर ने इस्लाम धर्म का स्वरूप बदलकर एक ऐसा धर्म प्रचलित किया, जो अत्यन्त उदार एवं समान व्यवहार पर आधारित था। उसके द्वारा प्रचलित ‘दीन-ए-इलाही’ धर्म सर्वधर्म समन्वय की भावना पर आधारित था। उसने हिन्दू और मुसलमानों को एक दूसरे के निकट लाने का प्रयास किया। धर्म के आधार पर वह किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करता था, इसी कारण उसने हिन्दुओं पर लगे तीर्थयात्रा-कर और जजिया कर को हटा दिया था।
  3. भारत के प्रति प्रेम अकबर ने स्वयं को भारतीय संस्कृति, परम्पराओं और रीति-रिवाज में रंग लिया। वह भारत के सांस्कृतिक वातावरण में पूर्ण रूप से घुल-मिल गया। उसे भारत व उसकी संस्कृति से हार्दिक प्रेम है। ‘राजमुकुट’ नाटक के माध्यम से नाटककार तथाकथित कर्णधारों और अल्पसंख्यक नेताओं को अपना सन्देश देना चाहता है। भारत के प्रति अकबर के प्रेमभाव को दिखाना ही इस नाटक की विलक्षणता है। वह महाराणा प्रताप के अतिथि-प्रेम, देश-भक्ति और स्वाधीनता प्रेम पर मुग्ध हो जाता है, वह महाराणा प्रताप की प्रशंसा करते हैं और उनके समक्ष कहते हैं-“आज से महाराणा, भारत माँ मेरी माँ है और इस देश के निवासी मेरे भाई हैं। हम सब भाई-भाई है महाराणा। हम सब एक हैं।”

इस प्रकार नाटक में अकबर आदर्श शासक एवं मानवतावादी भावनाओं से ओतप्रोत हैं। उनका चरित्र अत्यन्त प्रेरणास्पद एवं अनुकरणीय है।

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