UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 21 Reward and Punishment in Education

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Pedagogy
Chapter Chapter 21
Chapter Name Reward and Punishment in Education
(शिक्षा में पुरस्कार एवं दण्ड)
Number of Questions Solved 38
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 21 Reward and Punishment in Education (शिक्षा में पुरस्कार एवं दण्ड)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पुरस्कार का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। छात्रों को दिये जाने वाले पुरस्कारों के मुख्य प्रकारों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
पुरस्कार का अर्थ एवं परिभाषा
सीखने की प्रक्रिया में पुरस्कार और दण्ड का विशेष महत्त्व है। अच्छा कार्य करने पर पुरस्कार और बुरा कार्य करने पर दण्ड मिलना एक स्वाभाविक बात है। पुरस्कार एक सुखद अनुभव के रूप में प्राप्त होता है, जो कि अच्छे कार्य करने पर व्यक्ति को प्राप्त होता है। किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा भी किसी। व्यक्ति को अच्छे कार्य करने के उपलक्ष्य में पुरस्कार प्रदान किया जाता है। लेकिन शिक्षा में पुरस्कार का महत्त्व मुख्यतया अनुशासन स्थापित करने में है। वास्तव में पुरस्कार अच्छे कार्यों की प्रेरणा देते हैं, जबकि दण्ड बुरे कार्यों को करने से रोकते हैं।

पुरस्कार का अर्थ बालक को अच्छे कार्यों को करने के फलस्वरूप सुखद अनुभूति कराने से है। अच्छे कार्यों को करने से बालक को उल्लास तथा आनन्द की अनुभूति होती है और वह पुनः श्रेष्ठ कार्यों को करने के लिए उत्साहित तथा प्रेरित होता है। पुरस्कार-प्राप्ति की आकाँक्षा से ही बालक श्रेष्ठ कार्य करने के लिए तत्पर हो जाता है और अपनी क्षमताओं का अभूतपूर्व प्रदर्शन भी करता है। इस प्रकार पुरस्कार एक प्रेरणादायक सथा लाभकारी प्रेरक का कार्य करती है।

पुरस्कार की कुछ परिभाषाएँ इस प्रकार हैं

  1. सेवर्ड (Seward) के अनुसार, “पुरस्कार व्यवहार पर अनुकूल प्रभाव डालने के लिए सम्बन्धित कार्य के साथ सुखद स्मृति का संयोजन करना है।”
  2. हरलॉक (Harlock) के अनुसार, “पुरस्कार वांछित कार्य के साथ सुखद साहचर्य स्थापित करने का साधन है।”
  3. रायबर्न (Ryburn) के अनुसार, “पुरस्कार बालक में सर्वोत्तम कार्य करने की भावना जाग्रत करता है।”

उपर्युक्त वर्णित परिभाषाओं द्वारा ‘पुरस्कार’ का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। वास्तव में पुरस्कार एक साधन है जो सम्बन्धित व्यक्ति को अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित करने हेतु इस्तेमाल किया जाता है।

पुरस्कार के प्रकार
पुरस्कार के अनेक रूप या प्रकार हैं। कुछ प्रमुख प्रकारों का विवरण निम्नलिखित है

1. आदर या सम्मान :
जब कोई बालक, अध्ययन, खेलकूद, अनुशासन आदि के क्षेत्र में विशेष योग्यता का प्रदर्शन केरता है, तो उसे छात्रों, अध्यापकों और विद्यालय की ओर से सम्मानित किया जाता ‘ है। उदाहरण के लिए, यदि विद्यालय का कोई छात्र बोर्ड की परीक्षा में प्रदेश भर में प्रथम स्थान प्राप्त करता। है, तो विद्यालय की ओर से उसे सम्मानित किया जाता है। इस प्रकार से दिये जाने वाले पुरस्कार को उच्च कोटि का पुरस्कार माना जाता है।

2. प्रशंसा :
यदि कोई बालक पढ़ने-लिखने, खेलकूद, नाटक आदि में विशेष योग्यता प्रदर्शित करता हो तो विद्यालय के सभी छात्रों के समक्ष उसकी प्रशंसा की जाती है और उसे गौरवान्वित किया जाता है। इस प्रकार की प्रशंसा से बालक की आत्मसन्तुष्टि होती है और उसका उत्साहवर्धन होता है। प्रशंसा “पाने के लिए वह पहले से भी अधिक उत्तम कार्य करने के लिए प्रोत्साहित होता है।

3. छात्रवृत्ति :
यदि कोई बालक अपनी कक्षा में निरन्तर विशिष्ट सफलता प्राप्त करता है और सदैव : *प्रथम स्थान प्राप्त करता है, तो उसे प्रतिमाह छात्रवृत्ति के रूप में एक निश्चित धनराशि प्रदान की जाती हैं। छात्रवृत्ति से छात्र को परिश्रम करने की सशक्त प्रेरणा मिलती है और उसका उत्साहवर्धन भी होता है।

4. सुविधाएँ :
कक्षा में पढ़ाई-लिखाई तथा विद्यालय में खेलकूद में अग्रणी रहने वाले बालक को कुछ विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। विद्यालय शुल्क में छूट, छात्रावास में नि:शुल्क रहने की सुविधा, पुस्तकों की नि:शुल्क व्यवस्था आदि सुविधाएँ प्रतिभावान बालकों को प्रत्येक विद्यालय में प्राप्त होती हैं। इन सुविधाओं से बालकों को निरन्तरआगे बढ़ने की प्रेरणा प्राप्त होती है।

5. प्रमाण-पत्र :
विद्यालयों में विभिन्न योग्यताओं के प्रदर्शन के उपलक्ष में छात्रों को प्रमाण-पत्र भी प्रदान किये जाते हैं। इन प्रमाण-पत्रों से भी छात्रों को अच्छे कार्य करने की प्रेरणा मिलती है।

6. प्रगति-पत्र पर अंकन :
छात्रों के प्रगति-पत्र पर उनकी विशिष्ट योग्यताओं से सम्बन्धित अंकन भी किये जाते हैं; जैसे परीक्षा में प्रथम श्रेणी या अनुशासन प्रिय छात्रों को ‘ए’ श्रेणी से विभूषित किया जाता है। इन प्रगति-पत्रों से ही छात्रों की विशेषताओं का ज्ञान लोगों को हो जाता है। दूसरी ओर छात्र भी उन्हें लोगों को दिखाते में हर्ष तथा गर्व का अनुभव करते हैं।

7. पदक तथा तसगे या मैडल :
शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्टता प्राप्त करने पर छात्रों को स्वर्ण, रजत, काँस्य आदि धातु के पदक व तमगे आदि प्रदान किये जाते हैं।

8. उपयोगी वस्तुएँ :
कॉलेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर प्रत्येक विद्यालय में विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। जो छात्र इन प्रतियोगिताओं में विजयी होते हैं, उन्हें पुस्तकें, बनियाने, घड़ी, कलम, हॉकी, जूते-मौजे आदि अनेक उपयोगी वस्तुएँ पुरस्कार के रूप में प्रदान की जाती हैं। इन वस्तुओं से भी छात्रों का उत्साहवर्धन होता है।

9. शील्ड और कप :
खेल-कूद, वाद-विवाद तथा निबन्ध आदि की प्रतियोगिताओं में विजेताओं को व्यक्तिगत या सामूहिक दोनों रूपों में शील्ड या कप प्रदान किये जाते हैं; जैसे-फुटबॉल टूर्नामेण्ट के लिए निर्धारित विशेष कप। इनके अतिरिक्त विजेताओं को बहुत-सी अन्य वस्तुएँ भी पुरस्कार के रूप में प्रदान की जाती हैं।

10. सफलता :
किसी कार्य में सफलता का मिलना ही एक बड़ा पुरस्कार होता है, क्योंकि सफलता से बालक की आत्म-सन्तुष्टि होती है तथा वह प्रगति-पथ पर बढ़ने के लिए प्रेरित तथा प्रोत्साहित होता है।

प्रश्न 2
पुरस्कार देते समय ध्यान में रखने योग्य महत्त्वपूर्ण बातों का उल्लेख कीजिए। या शिक्षा में पुरस्कार और दण्ड का महत्त्व अच्छी तरह से स्पष्ट कीजिए। [2008]
उत्तर :
पुरस्कार देते समय ध्यान रखने योग्य महत्त्वपूर्ण बातें। यह सत्य है कि शिक्षा के क्षेत्र में बालकों को पुरस्कार देने का विशेष महत्त्व है, परन्तु पुरस्कारों से अधिकतम लाभ तेभी हो सकता है, जब उनको देते समय निम्नलिखित बातों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाए

  1. पुरस्कार उसी छात्र को देना चाहिए जो कि पुरस्कार पाने का उचित अधिकारी हो, अर्थात् पुरस्कार देने में पक्षपात नहीं करना चाहिए। यदि अधिकारीगण निष्पक्ष भाव से पुरस्कार देने का कार्य नहीं करते हैं। और किसी छात्र के साथ पक्षपात करते हैं तो अन्य छात्रों में असन्तोष की भावना उत्पन्न होगी तथा उनमें अनुशासनहीनता बढ़ जाएगी।
  2. पुरस्कार की घोषणा उचित अवसर पर की जानी चाहिए।
  3. पुरस्कार विशेष रूप से उन बालकों को देना चाहिए जो विभिन्न क्षेत्रों में समान रूप से विशिष्ट योग्यता को प्रदर्शन करें, क्योंकि शिक्षा का मूल उद्देश्यलालक का सर्वांगीण विकास करना ही है।
  4. पुरस्कार जीवन की साधारण बातों; जैसे–समयपालन, नियमपालन, स्वच्छता, शिष्ट व्यवहार, परिश्रम आदि पर देने चाहिए। जीवन की बड़ी बातों; जैसे-सत्यप्रियता, संयम, प्रेम, ईमानदारी आदि पर छोटे-छोटे पुरस्कार नहीं देने चाहिए। इससे उनका महत्त्व कम हो जाता है।
  5. पुरस्कार उन गुणों के लिए देना चाहिए जो छात्र ने अपने प्रयल. या परिश्रम द्वारा विकसित किये हों। जन्मजात विशेषताओं के लिए पुरस्कार नहीं देना चाहिए।
  6. छात्रों को केवल प्रेरणा देने के लिए ही पुरस्कार दिये जाने चाहिए। पुरस्कार मिलने के लालच में ही अच्छे कार्य करने की आदत उनमें नहीं पड़ने दी जानी चाहिए।
  7. पुरस्कार मूल्यवान नहीं होने चाहिए, क्योंकि इससे छात्रों में ईष्र्या-द्वेष की भावना में वृद्धि होती है।
  8. छोटे बच्चों को वर्ष में कई बार पुरस्कार देने चाहिए, जबकि बड़े बालकों को केवल महत्त्वपूर्ण अवसरों पर ही पुरस्कार देने चाहिए।
  9. पुरस्कार तभी दिया जाना चाहिए, जब आलक ने कठोर परिश्रम किया हो। बिना परिश्रम के पुरस्कार मिलने से विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  10. पुरस्कार इस विधि से वितरित करने चाहिए कि बालकों में व्यक्तिगत भावना के साथ सामूहिक भावना का विकास हो।
  11. पुरस्कार इतनी अधिक संख्या में नहीं देने चाहिए, जिससे प्रत्येक छात्र को पुरस्कार मिल जाए। ऐसा करने से पुरस्कार का महत्त्व कम हो जाता है।

प्रश्न 3
दण्ड से आप क्या समझते हैं ? छात्रों को दिये जाने वाले दण्ड के मुख्य प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
दण्ड का अर्थ एवं परिभाषा
जब भी कहीं ‘पुरस्कोर’ की चर्चा होती है, वहीं साथ-ही-साथ दण्ड की भी बात की जाती है। दण्ड और पुरस्कार दो विरोधी अवधारणाएँ हैं। पुरस्कार जहाँ सुखदायक है, क्हीं दण्ड कष्टदायी है। पुरस्कार को उद्देश्य बालकों को आनन्द की अनुभूति कराना है, जबकि दण्ड का लक्ष्य बालक को कष्ट की अनुभूति कराना है। जब किसी बालक को किसी कार्य के परिणामस्वरूप कष्टदायक अनुभव प्राप्त होता है, चाहे वह प्रकृति-प्रदत्त हो या अर्जित, तब उसे दण्ड कहा जाता है। सृष्टि के प्रारम्भ से ही दण्ड व्यवस्था रही है, जब कोई व्यक्ति प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करता है तो समाज उसे दण्ड देता है।

सामान्य अर्थ में निर्धारित नियमों का पालन न करना तथा उनके अनुकूल बाबर ने करना ही अपराध है और दण्ड अफ्ष की वह प्रतिक्रिया है, जो विद्यालय या समाज द्वारा अपराधी के आचरण के विरुद्ध प्रदर्शित की जाती है। इस प्रकार “दण्ड का अर्थ है-कष्ट, जुर्माना या न्यायानुसार दण्ड, शारीरिक पीड़ा अथवा डाँट-फटकार देना।” देण्ड के सामान्य अर्थ को जान लेने के उपरान्त दण्ड की कुछ व्यवस्थित परिभाषाओं का उल्लेख करना भी आवश्यक है। दण्ड की कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं।

  1. सदरलैण्ड के अनुसार, “दण्ड में वह पीड़ा या कष्ट निहित है जो जानबूझकर दी जाती है और किसी ऐसे मूल्य द्वारा उचित ठहराई जाती है, जिसे उसे पीड़ा में छिपा माना जाता है।”
  2. टेफ्ट के अनुसार, “हम दण्ड की परिभाषा उस चेतन दबाव के रूप में कर सकते हैं, जो समाज की शान्ति भंग करने वाले व्यक्ति को अवांछनीय अनुभवों वाला कष्ट देता है। यह कष्ट सदैव ही उस व्यक्ति के हित में नहीं होता।”
  3. थॉमसन के अनुसार, “दण्ड एक साधन है, जिसके द्वारा अवांछनीय कार्य के साथ दुःखद भवना. को सम्बन्धित करके उसको दूर करने का प्रयास किया जाता है।
  4. सेना के अनुसार, “दण्ड एक प्रकार की सामाजिक निन्दा है और इसमें यह आवश्यक नहीं है। कि पीड़ा या कष्ट सम्मिलित हो।”

दण्ड के प्रकार
दण्ड अनेक प्रकार के होते हैं, जिन्हें हम दो वर्गों में रख सकते हैं।

I. सरल दण्ड
सरल दण्ड वे होते हैं, जिसके देने से दण्डित होने वाले को कोई बड़ी शारीरिक क्षति नहीं पहुँचती है। सरल दण्ड निम्नलिखित होते हैं

1. डाँटना व फटकारना :
छोटे-मोटे अपराधों के लिए बालक को सबके सामने डाँटना, फटकारना या झिड़क देना ही पर्याप्त है। सबके सामने डाँटे जाने पर बालक लज्जित हो जाते हैं। और साधारणतया अपराध की पुनरावृत्ति नहीं करते हैं। लेकिन डाँटना, फटकारना समयानुकूल हो और केवल आवश्यकता पड़ने पर ही इसका प्रयोग किया जाए, अन्यथा बहुत अधिक डॉटने पर बालक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

2. अवकाश के बाद रोकना :
जब कोई छात्र नियमित रूप से कक्षा में देर से आने लगे या गृह-कार्य नियमित रूप से न करें तो विद्यालय के अवकाश के बाद भी उसे रोका जा सकता है। इस समय उसे पढ़ने-लिखने का कार्य नहीं देना चाहिए, अन्यथा अध्ययन से अरुचि हो जाएगी, किन्तु रोक लेने पर उसके घर में सूचना अवश्य भिजवा देनी चाहिए।

3. आर्थिक दण्ड :
कक्षा में देर से आने, लगातार कई दिनों तक कक्षा में अनुपस्थित रहने या विद्यालय की कोई वस्तु तोड़ देने पर छात्र को आर्थिक दण्ड दिया जा सकता है। किन्तु वास्तव में यह दण्ड तो अभिभावकों को दिया जाता है, क्योंकि उसका प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से बालक पर नहीं पड़ता। तथापि बालकों की गलतियों के लिए उन्हें इस रूप में दण्डित किया जा सकता है। आजकल विद्यालयों में आर्थिक दण्ड बहुत प्रचलित है, क्योंकि यह दण्ड देनी असान होता है और अन्य प्रकार के दण्डों के लिए अध्यापकों को सोच-विचार करना पड़ता है।

4. नैतिक दण्ड :
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित दण्ड दिये जाते हैं

  1. अपमानित करना : कक्षा में गलती करने वाले छात्र को मूर्ख बनाकर अपमानित किया जाता है, किन्तु इससे छात्रं में अध्यापक के प्रति प्रतिशोध की भावना उत्पन्न होती है।
  2. क्षमा-याचना : अपराधी बालक को भरी कक्षा में या विद्यालय के सभी छात्रों के सामने क्षमा-याचना करने का आदेश दिया जाता है।
  3. स्थान परिवर्तन : गलती करने वाले छात्र को कक्षा में सबसे पीछे बिठा देना या एक कोने से दूसरे कोने में बिठा देना ही इस प्रकार का दण्ड है।
  4. सुविधाओं से वंचित करना : अपराध करने पर परिस्थिति के अनुकूल छात्रों को अनेक सुविधाओं से वंचित कर देना भी एक दण्ड है। ये सुविधाएँ हैं-आधी या पूरी शुल्क छूट को रद्द करना, पुस्तकीय सहायता से वंचित कर देना, छात्रावास में नि:शुल्क रहने की सुविधा समाप्त कर देना आदि।
  5. कक्षा में प्रवेश निषेध : कक्षा में निरन्तर अन्य छात्रों को परेशान करने पर उस छात्र को कक्षा के अन्दर आने की अनुमति न देना भी एक दण्ड है। कुछ अध्यापक देर से आने वाले छात्रों को भी कक्षा में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देते हैं। इससे उनकी पढ़ाई में क्षति पहुँचती है और वे अन्य बुराइयों में लिप्त हो जाते हैं। अतः यह दण्ड किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही दिया जाना चाहिए।
  6. विद्यालय से निष्कासन : गम्भीर अपराध करने या बार-बार अपराध करने पर छात्र को विद्यालय से निष्काषित भी कर दिया जाता है। लेकिन मनोवैज्ञानिक इस दण्ड को अनुचित मानते हैं, क्योंकि इससे छात्र का सुधार नहीं होता है।
  7. अतिरिक्त कार्य देना : ऐसे छात्रों को जो, खाली समय होने के कारण या जल्दी कार्य कर लेने पर बदमाशी करते हैं, अतिरिक्त कार्य दे, देना चाहिए ताकि वे काम में लगे रहें। लेकिन यह दण्ड भी बड़ी सावधानी के साथ देना चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि अधिक कार्य से उसे अरुचि हो जाए।
  8. खेल तथा अन्य सामूहिक कार्यों से वंचित करना : छात्रों में एक साथ कार्य करने, खेलने तथा बातें करने की भावना बड़ी प्रबल होती है। अत: सामूहिक कार्यों से वंचित कर देने पर और कुछ समय के लिए अकेला हो जाने पर छात्र को कष्ट होता है। इसलिए समयानुकूल यह एक उपयोगी दण्ड है।
  9. प्रगति-पत्र पर उल्लेख छात्र के प्रगति : पत्र पर अपराध का विवरण लिख दिया जाए, जिससे छात्र तथा उसके प्रगति-पत्र को पढ़ने वाले अपराध के विषय में जान जाएँ और छात्र को उससे लज्जा का अनुभव हो।

II. शारीरिक दण्ड या कठोर दण्ड
शारीरिक दण्ड के अन्तर्गत थप्पड़ मारना, घूसा जमाना, कान उमेठना, बेंत मारना, मुर्गा बनाना तथा दण्ड-बैठक कराना आदि हैं। पहले विद्यालयों में इस प्रकार के दण्डों का विशेष प्रचलन था, लेकिन कभी-कभी इनके भयंकर परिणाम होते थे और बालक अंगहीन तक हो जाते थे। लेकिन आजकल सामान्यतया इसका प्रयोग वर्जित है। इन दण्डों का प्रयोग तभी करना चाहिए, जब अन्य सभी उपाय असफल हो जाएँ।

जहाँ तक सम्भव हो सुधारात्मक दण्ड ही देने चाहिए। यदि शारीरिक दण्ड देने आवश्यक ही हों तो यह केवल शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट बच्चों को ही दिये जाएँ, कमजोर तथा चौदह वर्ष से कम आयु वाले छात्रों को ये दण्ड न दिये जाएँ, न ही क्रोध के आवेश में दिये जाएँ। लेकिन ऐसे दण्ड अपराध करने के तुरन्त बाद ही दिये जाने चाहिए।

प्रश्न 4
दण्ड देते समय ध्यान में रखने योग्य महत्त्वपूर्ण बातों का उल्लेख कीजिए। या विद्यालय में दण्ड देते समय किन-किन सावधानियों को ध्यान में रखना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
दण्ड देते समय ध्यान रखने योग्य महत्त्वपूर्ण बातें
विद्यालय में अनुशासन स्थापित करने में दण्डों का अपना एक विशेष महत्त्व है। इसके बिना अनुशासन स्थापित होना कठिन है। दण्ड अनेक प्रकार के होते हैं। कौन-सा दण्ड कब दिया जाए, कितनी मात्रा में दिया जाए, किसके द्वारा दिया जाए आदि कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जिनका उत्तर जाने बिना हम दण्डों से यथोचित लाभ प्राप्त नहीं कर सकते। इसीलिए दण्ड देते समय बहुत-सी सावधानियाँ रखनी पड़ती हैं। इनका विवरण इस प्रकार है

1. दण्ड अपराध के अनुरूप हो :
जिस प्रकार का अपराध किया जाए, उसी के अनुरूप या उसी प्रकार का दण्ड भी दिया जाए। यदि कोई छत्र कक्षा में देर से आता है तो उसे छुट्टी के बाद देर तक रोका जाए। यदि वह गृहकार्य करके नहीं लाता तो अपने सामने उसे गृह-कार्य करायें। आजकल अधिकतर अपराधों के लिए आर्थिक दण्ड दिया जाता है, जो कि उचित नहीं है। केवल विद्यालय की कोई वस्तु तोड़ने पर ही आर्थिक दण्ड देना चाहिए।

2. दण्ड अपराध के अनुपात में हो :
छोटे अपराध करने पर छोटा दण्ड और बड़ा अपराध करने पर बड़ा दण्ड देना चाहिए। दण्ड की मात्रा अपराध की गम्भीरता के अनुकूल होनी चाहिए, तभी उसका यथोचित प्रभाव पड़ता है।

3. दण्ड बालक की प्रकृति के अनुरूप हो :
कुछ बालक शरीर से कमजोर होते हैं। ऐसे बालकों को कठोर शारीरिक दण्ड नहीं देना चाहिए। कुछ बालकों को थोड़ा डाँटने भर से ही गहरा प्रभाव पड़ जाता है, उन्हें अधिक मात्रा में दण्ड नहीं देना चाहिए। कुछ बालकों पर साधारण झिड़कियों का कोई प्रभाव नहीं | पड़ता, ऐसे बालक के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिए।

4. दण्ड गम्भीरता के साथ देना चाहिए :
दण्ड देते समय अध्यापक को गम्भीर रहना चाहिए। प्रफुल्ल मुद्रा या मजाक करते हुए दण्ड नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता. और छात्र दण्ड के महत्त्व को नहीं समझ पाता।

5. दण्ड के कारण का ज्ञान :
दण्डित होने वाले छात्र को यह अवश्य ज्ञान होना चाहिए कि उसे किस कारण से दण्ड दिया जा रहा है, तभी छात्र अपराध के कारण को दूर करने का प्रयास करेगा।

6. समयानुकूल दण्ड :
अंपराध और दण्ड के मध्य समय का अन्तराल अधिक नहीं होना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो सके अपराध करने के तुरन्त बाद दण्ड दिया जाना चाहिए ताकि अपराध और दण्ड में सम्बन्ध बना रहे। अपराध के बहुत समय बाद दण्ड देने से दोनों के बीच सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता।

7. उचित दण्ड :
किसी अपराध के लिए जो दण्ड दिया जाए, वह अध्यापक, दण्डित होने वाले छात्र और अन्य छात्रों की दृष्टि में उचित होना चाहिए। दण्ड अनुचित होने पर छात्रों में असन्तोष की भावना उत्पन्न होती है।

8. सम्पूर्ण समूह को दण्ड नहीं देना चाहिए :
कभी-कभी कक्षा के कुछ छात्र शोरगुल करते हैं या गलती करते हैं तो कक्षा के सभी छात्रों पर मार पड़ती है या जुर्माना किया जाता है। यह सुधारक दण्ड
अनुचित है। दण्ड केवल उन्हीं छात्रों को देना चाहिए, जिन्होंने कोई ) दण्ड देने वाले का व्यक्हार अपराध किया हो।

9. दण्ड विचारपूर्वक दिया जाए :
अपराध के कारण को। जानकर तथा अपराध की गुरुता को समझकर ही दण्ड देना चाहिए, अन्यथा कभी-कभी गलत दण्ड दे दिया जाता है। अतः दण्ड देने से पूर्व विचार-विमर्श करना आवश्यक है।

10. उदाहरण बोध दण्ड :
अपराधी बालक को इस प्रकार दण्डित करना चाहिए कि अन्य देखने वाले छात्रों के सामने वह एक उदाहरण का कार्य करे और अन्य छात्र इस प्रकार का अपराध करने की ओर प्रवृत्त न हों।

11. सुधारक दण्ड :
दण्ड में बदले या प्रतिशोध की भावना नहीं होनी चाहिए। दण्ड सुधार करने की भावना से दिये जाने चाहिए, तभी उनको यथेष्ट प्रभाव पड़ता है।

12. दण्ड देने वाले का व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए :
दण्ड क्रोध या बदले की भावना से न देकर सहानुभूतिपूर्ण तरीके से देना चाहिए ताकि छात्र यह समझे कि अध्यापक हमारा हितचिन्तक है। इसलिए मुझे अमुक अपराध के लिए दण्डित किया गया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
छात्रों को पुरस्कार देने के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
छात्रों को पुरस्कार देने के निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं।

1. अनुशासन के प्रति आस्था :
जब अनुशासित रहने पर या अनुशासन सम्बन्धी उत्तम कार्य करने पर छात्रों को पुरस्कृत किया जाता है, तो उनकी अनुशासन के प्रति आस्था अधिक बढ़ जाती है। दूसरे शब्दों में, पुरस्कार द्वारा छात्रों में अनुशासन स्थापित किया जा सकता हैं।

2. स्वस्थ प्रतियोगिता जाग्रत करना :
प्रायः यह देखा गया है कि पढ़ने-लिखने या खेल-कूद में। छात्रों में फ्रस्पर प्रतिस्पर्धा होने लगती है। एक छात्र दूसरे छात्र से आगे निकलने की भरसक कोशिश करता है। इससे विकास तथा सीखने की क्रिया अति तीव्र हो जाती है। अतः पुरस्कार छात्रों में स्वस्थ प्रतियोगिता को उत्पन्न करते हैं और छात्रों को अधिक परिश्रम करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसीलिए सीखने तथा अनुशासन में पुरस्कार का विशेष महत्त्व है।

3. अध्यापकों के प्रति आदर की भावना :
पुरस्कार द्वारा छात्रों का उत्साहवर्धन होता है। उन्हें प्रसन्नता प्राप्त होती है तथा अपने अध्यापकों के प्रति उनके हृदय में आदर के भाव उत्पन्न होते हैं और बढ़ते हैं। अतः अध्यापकों के प्रति आदर की भावना उत्पन्न करना पुरस्कार का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।

4. अच्छे मर्यों के प्रति उत्साह उत्पन्न करना :
यह निर्विवाद सत्य है कि पुरस्कार प्राप्त होने पर छात्र को सुख मिलता है। अतः जिस कार्य से पुरस्कार का सम्बन्ध होता है उस कार्य से छात्र को लगाव हो जाता है और वह अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित तथा उत्साहित होता है।

5. कार्यों में रुचि जाग्रत करना :
जिन कार्यों के लिए पुरस्कार दिये जाते हैं, उनमें छात्रों की रुचि उत्पन्न हो जाती है और वे उन कार्यों को मन लगाकर करना पसन्द करते हैं।

6. चरित्र का विकास :
पुरस्कारों द्वारा उत्तम कार्यों तथा अच्छी बातों के प्रति छात्र के मन में स्थायी भाव बन जाते हैं। इस प्रकार पुरस्कार छात्र के चरित्र के विकास में भी सहायक होते हैं।

प्रश्न 2
पुरस्कार देने के मुख्य लाभों का उल्लेख कीजिए। [2011, 14]
या
सीखने में पुरस्कार की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए। (2007)
उत्तर :
पुरस्कार देने से निम्नांकित लाभ होते हैं

  1. पुरस्कार बालकों को प्रेरित करते हैं तथा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
  2. पुरस्कार सुर्खदायक होते हैं। अत: वे बालक में कार्य के प्रति रुचि तथा उत्साह उत्पन्न करते हैं।
  3. पुरस्कार व्यक्ति के आत्म-सम्मान में वृद्धि करते हैं तथा उसके अहम् की सन्तुष्टि करते हैं। इसके साथ ही वे उसमें उच्च अनुशासन का भाव उत्पन्न करते हैं।
  4. पुरस्कार अच्छे कार्यों को उल्लास से प्रतिबद्ध कर देते हैं और इस प्रकार उनकी आवृत्ति अधिक होने लगती है।
  5. पुरस्कार बालकों की आकाँक्षा स्तर को भी ऊँचा उठाते हैं। इसके फलस्वरूप बालक अपने को सदैव अच्छा बनाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।
  6. पुरस्कारों से प्रेरित होकर बालक आत्म-निर्देशित होता है तथा उसमें विचारों की सक्रियता और गतिशीलता उत्पन्न होती है।
  7. आर्थिक लाभ से युक्त पुरस्कार छात्रों को आर्थिक दृष्टि से भी लाभ पहुँचाते हैं।
  8. पुरस्कार बालक को उत्तम आचरण की दिशा में प्रवृत्त करते हैं। इनसे उसका आचरण नियन्त्रित भी होती है।
  9. बालकों में परस्पर प्रतिस्पर्धा तथा प्रतियोगिता का विकास होता है और उनमें आगे बढ़ने की होड़ लग जाती है।
  10. बालकों के पुरस्कृत होने पर उनसे सम्बन्धित अध्यापक, माता-पिता और अभिभावक आदि भी गौरवान्वित होते हैं और बालक को आगे तथा उन्नति करने के लिए सदैव प्रेरित करते रहते हैं। बालक भी उनकी असलेता तथा अपनी आत्म-सन्तुष्टि कायम रखने के लिए कठोर परिश्रम करते हैं।

प्रश्न 3.
पुरस्कार वितरण से होने वाली हानियों का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर :
इसमें सन्देह नहीं है कि पुरस्कारों का शिक्षा में विशेष महत्त्व है, तथापि थॉमसन (Thomson) व अन्य मनोवैज्ञानिकों ने पुरस्कारों द्वारा होने वाली अनेक हानियों का भी उल्लेख किया है, जिनमें प्रमुख अलिखित हैं

  1. पुरस्कार पाने के लालच में कभी-कभी बालक खेलकूद तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं में अधिक भाग लेने लगते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई-लिखाई चौपट हो जाती है तथा उनकाशैक्षिक स्तर काफी गिर जाता है।
  2. पुरस्कार छात्रों में पारस्परिक ईर्ष्या-द्वेष की भावना उत्पन्न कर देते हैं। इस भावना के कारण छात्र कभी-कभी एक-दूसरे को भारी अहित कर बैठते हैं।
  3. जब बालकों को ध्यान पुरस्कार पर केन्द्रित हो जाता है तो वे प्रत्येक कार्य पुरस्कार प्राप्त करने के लिए ही करते हैं। यदि किसी कार्य में पुरस्कार मिलने वाला नहीं होता तो वे उसकी ओर समुचित ध्यान नहीं देते हैं।
  4. पुरस्कार बालकों का ध्यान कार्य या कर्तव्यं से हटाकर परिणाम पर केन्द्रित करते हैं। इससे कभी-कभी कर्तव्य की अवहेलना हो जाती है।
  5. पुरस्कार छात्रों को प्रायः बाह्य रूप से प्रेरित करते हैं तथा कार्य में उनकी वास्तविक रुचि उत्पन्न नहीं करते।
  6. पुरस्कार न पाने वाले छात्रों में हीनता की भावना उत्पन्न होती है और वे कुण्ठाग्रस्त हो जाते हैं।
  7. प्रायः बालक धोखा देकर भी पुरस्कार पाने का प्रयास करते हैं।

प्रश्न 4
दण्ड क्या है? शिक्षा में इसकी क्या उपयोगिता है? [2016]
या
शिक्षा के क्षेत्र में दण्ड का क्या स्थान है?
उत्तर :
जब किसी व्यक्ति को किसी कार्य के परिणामस्वरूप कष्टदायक अनुभव प्राप्त होता है, चाहे वहु प्रकृति-प्रदत्त हो या अर्जित, तब उसे दण्ड किसी व्यक्ति को अनुचित कार्य करने पर दिया जाता  हैं।

शिक्षा में दण्ड की उपयोगिता
शिक्षा के क्षेत्र, में अनुशासन स्थापित करने में दण्ड का विशेष महत्त्व है। मध्यकालीन शिक्षा में दण्ड’ को अनुशासन स्थापना का प्रमुख साधन समझा जाता था। उस समय उक्ति प्रचलित थी कि डण्डा छूटा बालक बिगड़ा (Spare the rod and spoil the child)। उस समय छात्र द्वारा गलती करने पर उसे कठोरतमै दण्ड दिया जाता था। मध्यकाल में शारीरिक दण्ड की प्रधानता थी।

लेकिन बाद में शिक्षा के क्षेत्र में मनोवैज्ञानिक विचारधारा के प्रवेश के फलस्वरूप शारीरिक दण्ड़ की प्रधानता समाप्त हो गयी, किन्तु अन्य प्रकार को दण्ड आज भी प्रचलित है, क्योंकि दण्ड के अभाव में अनुशासन की स्थापना करना एक कल्पना ही है। छात्रों की बुरी आदतों को छुड़ाने, उन्हें अनुचित कार्य करने से रोकने तथा बुराइयों से बचाने के लिए दण्ड अत्यन्त आवश्यक है। दण्ड के स्वरूप को निर्धारित करने में विशेष सूझ-बूझ से काम लेना चाहिए। दण्ड का उद्देश्य सदैव सुधारात्मक ही होना चाहिए।

प्रश्न 5
विद्यालयों में दण्ड की व्यवस्था के मुख्य लाभ क्या हैं?
या
दण्ड के दो लाभ बताइए। [2011]
उत्तर :
शिक्षा के क्षेत्र में दण्ड से निम्नांकित लाभ हैं

1. गलतियों पर रोक :
किसी गलती पर यदि छात्र को दण्डं मिल जाता है तो वह उसे गलती से दूर रहने की कोशिश करता है और उसकी पुनरावृत्ति नहीं करता।

2. अपराधों में कमी :
दण्ड द्वारा छात्र की अपराधी प्रवृत्ति में सुधार हो जाता है, जिससे उसके अपराधों में निरन्तर कमी आने लगती है। अपराध के फलस्वरूप मिला हुआ दण्ड दुःख की अनुभूतियों से जुड़ जाता है और बालक अपराधी कार्य से दूर रहता है।

3. अपराधों पर नियन्त्रणं :
किसी छात्र को जब किसी अनुचित कार्य के लिए दण्ड मिलता है तो अन्य छात्र भी उस कार्य को नहीं करते, क्योंकि उन्हें भी दण्ड पाने का भय लगने लगता है। इस प्रकार दण्डों से भावी अपराधों पर नियन्त्रण हो जाता है।

4. अनुशासन की स्थापना :
कुछ छात्र ऐसे भी होते हैं, जो सकारात्मक उपायों से नहीं सुधरे सकते। उन्हें सुधारने और अनुशासित रखने के लिए दण्ड बहुत आवश्यक तथा उपयोगी होते हैं।

5. बुरी आदतों को छुड़ाना :
बुरी आदतों को छुड़ाने के लिए उनके साथ दुःखद या अप्रिय अनुभूतियों को प्रतिबद्ध करना उपयोगी होता है। बुरी आदतों के फलस्वरूप दण्ड पाने पर छात्र उन आदतों से बचते हैं।

6. चरित्र :
निर्माण में सहायक-दण्ड के फलस्वरूप छात्रों में अनेक प्रकार के दुर्गुणों का विकास नहीं हो पाता। इससे भी उनके चरित्र की समुचित विकास होता है।

प्रश्न 6
विद्यालयों में दण्ड की व्यवस्था होने की क्या हानियाँ हो सकती हैं?
या
दण्ड की दो हानियाँ लिखिए। (2015)
उत्तर :
प्राय: यह देखा गया है कि दण्ड देने वालों की असावधानी से दण्डों का दुरुपयोग हो जाता है। ऐसी दशा में दण्ड से अनेक हानियाँ होती हैं। इन हानियों का विवेचन निम्नलिखित है

1.प्रतिशोध की भावना :
दण्डिस होने पर दण्ड देने वाले के प्रति छात्रों में बदला या प्रतिशोध लेने की भावना प्रबल हो जाती है और अवसर पाने पर वे अपने दण्ड का प्रतिशोध लेने की कोशिश करते हैं।

2. अपराधों पर अधिक बल :
प्रायः देखा गया है कि अध्यापक दण्ड देते समय छात्र के अपराध या गलती का बार-बार लेख करता है और बताता है कि उसी गलती के लिए उसे दण्ड दिया जा रहा है। इस प्रकार छात्र के मन पर अपराध या गलती की गहरी छाप पड़ जाती है, जो हानिकारक होती है।

3. मानसिक विकास में अवरोध :
अधिक कठोर दण्ड देने से छात्रों में असन्तोष की भावना उत्पन्न होती है और उनका मानसिक विकास भी अवरुद्ध हो जाता है।

4. भावना-ग्रन्थियों का निर्माण :
कठोर दण्ड छात्रों की इच्छा या भावनाओं को दबा देते हैं, जिससे वे अचेतन मन में जाकर ग्रन्थियों का निर्माण करती हैं तथा उन्हें कुण्ठाग्रस्त बना देती हैं।

5. अस्थायी प्रभाव :
छात्र पर दण्ड का प्रभाव स्थायी नहीं हो पाता। दण्ड के भय से छात्र भले ही कोई कार्य करना छोड़ दे, किन्तु दण्ड से उसके हृदय का परिवर्तन नहीं होता है।

6. दण्ड का आदी होना :
बार-बार दण्डित होने पर छात्र दण्ड का आदी हो जाता है और दण्ड का उस पर क्षणिक प्रभाव ही पड़ता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
विद्यालय में छात्रों को किन-किन क्षेत्रों में पुरस्कार दिये जा सकते हैं ?
उत्तर :
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य विशिष्ट या उल्लेखनीय कार्य कर सकता है। अत: प्रत्येक क्षेत्र में पुरस्कार दिये जा सकते हैं। विद्यालय में भी छात्रों द्वारा अनेक क्षेत्रों में प्रशंसनीय कार्य किये जाते हैं। कुछ प्रमुख क्षेत्र, जिनमें पुरस्कार देने चाहिए, निम्नलिखित हैं

  1. बौद्धिक क्षेत्र – बौद्धिक कार्यो; जैसे-पढ़ने-लिखने, वाद-विवाद तथा निबन्ध प्रतियोगिताओं आदि के लिए पुरस्कारों की व्यवस्था होनी चाहिए।
  2. शारीरिक कार्य – शारीरिक स्वास्थ्य, कुश्ती, खेलकूद आदि के लिए भी पुरस्कार देने चाहिए।
  3. नैतिक श्रेष्ठता – नैतिक दृष्टि से उत्तम आचरण करने वाले छात्रों को भी पुरस्कार दिये जाने चाहिए।
  4. सामुदायिक कार्य – सामुदायिक कार्य के सम्पादन तथा सामुदायिक भावना के विकास के लिए पुरस्कार दिये जाने चाहिए।
  5. उपस्थिति व आचरण – कक्षा में नियमित उपस्थिति तथा सदाचरण के लिए भी पुरस्कार दिये। जाने चाहिए।

प्रश्न 2
दण्ड के प्रतिशोधात्मक उद्देश्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
प्रतिशोध को उचित दण्ड कहा जाता है। इसके अनुसार जिस व्यक्ति ने जैसा किया है, उसे उसी प्रकार का दण्ड दिया जाना चाहिए। प्राचीनकाल में दण्ड का यह उद्देश्य सर्वमान्य था और जैसे को तैसा (Tit for Tat) का सिद्धान्त प्रचलित था। उस समय प्रतिशोध या बदला लेने के उद्देश्य से दण्ड दिया जाता था। आज भी अप्रत्यक्ष रूप से इस उद्देश्य से दण्ड दिया जाता है।

राज्य मृत व्यक्ति की आत्मा की शान्ति के लिए तथा उसके परिवार वालों के सन्तोष के लिए हत्यारे को मृत्यु-दण्ड या आजीवन कारावास का दण्ड देता है। अतः दण्ड का यह उद्देश्य नैतिक न्याय की सन्तुष्टि पर आधारित है परन्तु वर्तमान शैक्षिक मान्यताओं के अनुसार बालक के लिए दण्ड की व्यवस्था की यह उद्देश्य उचित नहीं है।

प्रश्न 3.
दण्ड के प्रतिरोधात्मक उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रतिरोधात्मक शब्द प्रतिरोध से बना है। इसका अर्थ है-रोकना या रास्ते पर रोक लगा देना तांकि चलने वाला उस रास्ते पर न जा सके। दूसरे शब्दों में, समाज के द्वारा उन व्यक्तियों पर रोक लगाना जो गलत रास्तों पर चलकर समाज को हानि या चोट पहुँचाते हैं। यह उद्देश्य कठोर दण्ड पर आधारित है। दण्ड की कठोरता के कारण बालक भविष्य में कभी भी अपराध की ओर उन्मुख होने का साहस नहीं करेगा। दण्ड कठोर होने के कारण विद्यालय के अन्य छात्र भी अपराध की ओर अग्रसर नहीं होंगे। आजकल विद्यालयों में दण्ड के इस उद्देश्य को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता।

प्रश्न 4.
दण्ड के सुधारात्मक उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
यह उद्देश्य इस तथ्य पर आधारित है कि बालक की शारीरिक विशेषताएँ और वंशानुक्रम अपराध के कारण नहीं हैं, बल्कि विद्यालय, परिवार तथा समाज का वातावरण अपराध के लिए जिम्मेदार है, न कि बालक। इस उद्देश्य के अनुसार अपराधियों को सुधार किया जाए और उन्हें योग्य नागरिक के समान जीना और जीने देने का पाठ सिखाया जाए। विद्यालय व समाज के वातावरण का सुधार किया जाए, क्योंकि इससे ही अपराधियों का जन्म होता है। इस उद्देश्य के अन्तर्गत कारावास के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। इन कारागारों को सुधार गृह भी कहा जाता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पुरस्कार से क्या आशय है ? [ 2010, 12 ]
उत्तर :
पुरस्कार का आशय बालक को अच्छे कार्यों को करने के फलस्वरूप सुखद अनुभूति कराने से है।

प्रश्न 2
‘पुरस्कार’ की एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
“पुरस्कर वांछित कार्य के साथ सुखद साहचर्य स्थापित करने का साधन है।” [ हेरलॉक ]

प्रश्न 3
बालकों को विद्यालय में सामान्य रूप से दिये जाने वाले पुरस्कार के चार प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

  1. प्रशंसा
  2. पदक या मैडल
  3. प्रमाण-पत्र तथा
  4. छात्रवृत्ति।

प्रश्न 4
पुरस्कार प्रदान करने के चार मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
पुरस्कार प्रदान करने के मुख्य उद्देश्य हैं

  1. अनुशासन के प्रति आस्था
  2. स्वस्थ प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करना
  3. कार्यों के प्रति रुचि जाग्रत करना तथा
  4. अच्छे कार्यों के प्रति उत्साह उत्पन्न करना

प्रश्न 5
विद्यालय में पुरस्कार प्रदान करने में ध्यान रखने योग्य प्रमुख तथ्य क्या है ?
उत्तर :
पुरस्कार प्रदान करते समय ध्यान में रखने योग्य प्रमुख बात यह है कि पुरस्कार देने का निर्णय हर प्रकार से तटस्थ हो, अर्थात् उसमें कोई पक्षपात न हो।

प्रश्न 6
दण्ड कितने प्रकार का होता है?
उत्तर :
दण्ड दो प्रकार का होता है।

  1. सरल दण्ड तथा
  2. शारीरिक दण्ड या कठोर दण्ड

प्रश्न 7
दण्ड-व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य क्या होना चाहिए ? [2013]
उत्तर :
दण्ड-व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य सुधारात्मक होना चाहिए।

प्रश्न 8
सीखने में दण्ड का क्या स्थान है ? [2008]
उत्तर :
सीखने में दण्ड का महत्त्वपूर्ण स्थान है, परन्तु यह सुधारात्मक होना चाहिए।

प्रश्न 9
मध्यकाल में भारत में किस प्रकार के दण्ड का प्रचलन था?
उत्तर :
मध्यकाल में भारत में कठोर दण्ड-व्यवस्था का प्रचलन था।

प्रश्न 10
बालकों को दिया जाने वाला आर्थिक दण्ड क्यों अनुचित माना जाता है?
उत्तर :
आर्थिक दण्ड का प्रत्यक्ष प्रभाव अलक पर नहीं बल्कि उसके अभिभावकों पर पड़ती है। अतः इसे अनुचित माना जाता है।

प्रश्न 11
दण्ड-व्यवस्था से प्राप्त होने वाले चार लाभों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

  1. गलतियों पर रोक
  2. अपराधों पर नियन्त्रण एवं कमी
  3. अनुशासन की स्थापना तथा
  4. बुरी आदतों को समाप्त करना।

प्रश्न 12
मूर्त पुरस्कार किसे कहते हैं? तीन उदाहरण दीजिए। [2010]
उत्तर :
किसी वस्तु अथवा सामग्री के रूप में दिया जाने वाला पुरस्कार मूर्त पुरस्कार कहलाता है। इसके उदाहरण हैं कोई उपयोगी वस्तु (बैट, फुटबॉल आदि), शील्ड तथा धनराशि।

प्रश्न 13
सीखने में पुरस्कार का क्या स्थान है? [2009]
उत्तर :
सीखने की प्रक्रिया में पुरस्कार एक प्रबल प्रेरक के रूप में कार्य करता है।

प्रश्न 14
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य

  1. पुरस्कार-व्यवस्था पूर्णरूप से अनावश्यक है।
  2. विद्यालय में पुरस्कार-व्यवस्था से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का विकास होता है।
  3. सार्वजनिक रूप से की गयी प्रशंसा भी पुरस्कार ही है।
  4.  बालकों के लिए कठोर शारीरिक दण्ड ही सर्वोत्तम दण्ड है।
  5. दण्ड का उद्देश्य सुधारात्मक होना चाहिए।

उत्तर :

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. सत्य।

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1
“पुरस्कार वांछित कार्य के प्रति सुखद साहचर्य स्थापित करने का साधन है।” यह किसकी परिभाषा है ?
(क) हरलॉक की
(ख) थॉर्नडाइक की
(ग) टरमन की
(घ) रायबर्न की
उत्तर :
(क) हरलॉक की

प्रश्न 2
“पुरस्कार व्यक्ति में अच्छा कार्य करने की भावना जाग्रत करता है।” यह कथन है
(क) मैक्डूगल का
(ख) वुडवर्थ का
(ग) हिलगार्ड को
(घ) रायबर्न काँ
उत्तर :
(घ) रायबर्न का

प्रश्न 3
अमूर्त पुरस्कार है (2012)
(क) छात्रवृत्ति
(ख) प्रमाण-पत्र
(ग) उपयोगी वस्तुएँ
(घ) प्रशंसा
उत्तर :
(घ) प्रशंसा

प्रश्न 4
पुरस्कार का प्रमुख उद्देश्य है
(क) छात्रों को खेलने की प्रेरणा देना
(ख) कक्षा में अनुशासन स्थापित करना
(ग) छात्रों को प्रतिस्पर्धी बनाना।
(घ) छात्रों में रुचि, उत्साह एवं लगन से कार्य करने की भावना उत्पन्न करना
उत्तर :
(घ) छात्रों में रुचि, उत्साह एवं लगन से कार्य करने की भावना उत्पन्न करना

प्रश्न 5
थार्नडाइक के सीखने के किस नियम का समान्य पुरस्कार व्यवस्था से है?
(के) यारी का नियम
(ख) अध्याय का नियम
(ग) प्रभाव का नियम
(घ) उपर्युक्त तीनों नियम
उत्तर :
(ग) प्रभाव का नियम

प्रश्न 6
दण्ड, एकू.सीथन है, जिसके द्वेय अवांछनीय कार्य के साथ कुःखद भावना को सम्बन्विं करके उसे दूर करने म प्रयास किया जात है। यह परिभाषा सिक्की है?
(क) थॉमसन
(ख) रॉसेक
(ग) जे० एस० रॉस
(घ) थॉर्नडाइक
उत्तर :
(क) थॉमसन

प्रश्न 7
“दण्ड अवांछनीय व्यवहार को दूर करने का दमनात्मक साधन है।” यह परिभाषा दी
(क) बी० एन० झा ने
(ख) क्रो एवं क्रो ने
(ग) किलपैट्रिक ने
(घ) रॉसेक व अन्य ने
उत्तर :
(घ) रॉसेक व अन्य ने

प्रश्न 8
उपेक्षात्मक दण्ड का उदाहरण है
(क) विद्यालय का कमरा साफ करवाना
(ख) विद्यालय में अवकाश के बाद गृहकार्य पूरा करवाना
(ग) दूसरों के सामने लज्जित करना
(घ) कक्षा में पीछे बैठाना
उत्तर :
(घ) कक्षा में पीछे बैठाना

प्रश्न 9
दण्ड और पुरस्कार है
(क) मनोवैज्ञानिक प्रेरक
(ख) स्वाभाविक प्रेरक
(ग) कृत्रिम प्रेरक
(घ) सामाजिक प्रेरक
उत्तर :
(घ) सामाजिक प्रेरक

प्रश्न 10
उद्दण्ड छात्रों के लिए कौन-सा दण्ड लाभकारी है?
(क) नसिक दण्ड
(ख) आर्थिक दण्ड
(ग) शारीरिक दण्ड
(घ) सामाजिक दण्छ
उत्तर :
(ग) शारीरिक दण्ड

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