UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 4 कैकेयी का अनुताप/गीत

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 4 कैकेयी का अनुताप/गीत part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 4 कैकेयी का अनुताप/गीत.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name कैकेयी का अनुताप/गीत
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 4 कैकेयी का अनुताप/गीत

कैकेयी का अनुताप/गीत – जीवन/साहित्यिक परिचय

(2018, 17, 16, 16, 14, 13, 11, 10)

प्रश्न-पत्र में संकलित पाठों में से चार कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनमें से एक का उत्तर: देना होता है। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झाँसी जिले के चिरगाँव नामक स्थान पर 1886 ई. में हुआ था। इनके पिता सेठ रामचरण गुप्त को हिन्दी साहित्य से विशेष प्रेम था। गुप्त जी पर अपने पिता का पूर्ण प्रभाव प|| घर पर ही अंग्रेजी, संस्कृत एवं हिन्दी का अध्ययन करने वाले गुप्त जी की प्रारम्भिक रचनाएँ कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले ‘वैश्योपकारक’ नामक पत्र में छपती थीं। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के सम्पर्क में आने पर उनके आदेश, उपदेश एवं स्नेहमय परामर्श से इनके काव्य में पर्याप्त निखार आया। 1वेदी जी को ये अपना गुरु मानते थे। राष्ट्रीय विशेषताओं से परिपूर्ण रचनाओं का सृजन करने के कारण ही महात्मा गाँधी ने इन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि दी। ‘साकेत’ महाकाव्य के लिए इन्हें हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया। 12 दिसम्बर, 1964 को माँ भारती का यह सच्चा सपूत हमेशा के लिए पंचतत्व में विलीन हो गया।

साहित्यिक गतिविधियाँ
गुप्त जी ने खड़ी बोली के स्वरूप के निर्धारण एवं विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। गुप्त जी की प्रारम्भिक रचनाओं भारत-भारती आदि में इति वृत्तकथन की अधिकता दिखाई देती हैं।

कृतियाँ
गुप्त जी के लगभग 40 मौलिक काव्य ग्रन्थों में ‘भारत भारती’, किसान’, ‘शकुन्तला’, ‘पंचवटी’, ‘त्रिपथगा’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘द्वापर’, ‘नहुष’, ‘काबा और कर्बला’ आदि रचनाएँ उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त गुप्त जी ने ‘अनघ’, तिलोत्तमा’ एवं ‘चन्द्रहास’ जैसे तीन छोटे-छोटे पद्यबद्ध रूपक भी लिखे।

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष

  1. राष्ट्रप्रेम गुप्त जी की कविता का मुख्य स्वर है। इनकी रचनाओं में आज की समस्याओं एवं विचारों के स्पष्ट दर्शन होते हैं। इसका एक मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता में राष्ट्रीय चेतना जाग्रत करना था। इन्होंने ऐसे समय में लोगों में राष्ट्रीय चेतना का स्वर फेंका, जब हमारा देश परतन्त्रता की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। देशवासियों में स्वदेश प्रेम जाग्रत करते हुए इन्होंने कहा भी है “जो भरा नहीं हैं भावों से, बहती जिसमें रस धार नहीं। वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।”
  2. नारी का महत्व गुप्त जी का हृदय नारी के प्रति करुणा व सहानुभूति से परिपूर्ण है। इन्होंने नारी की स्थिति को ऊँचा उठाने के लिए सदियों से उपेक्षित उर्मिला एवं यशोधरा जैसी नारियों के चरित्र का उदात्त चित्रण करके एक नई परम्परा का सूत्रपात किया।
  3. भारतीय संस्कृति के उन्नायक गुप्त जी भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि कवि हैं, इसीलिए इन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत का सुन्दर वर्णन किया। इनका विश्वास था कि सुन्दर वर्तमान और स्वर्णिम भविष्य के लिए अतीत को जानना अत्यन्त आवश्यक है।
  4. प्रकृति चित्रण इनके प्रकृति चित्रण में हृदय को आकर्षित कर लेने की क्षमता एवं सरसता है। इनमें प्रकृति को आकर्षक रूप देने में अत्यधिक कुशलता है।
  5. रस योजना गुप्त जी की रचनाओं में अनेक रसों का सुन्दर समन्वय मिलता है। श्रृंगार, रौद्र, वीभत्स, हास्य एवं शान्त रसों के प्रसंगों में गुप्त जी अत्यधिक सफल रहे हैं। साकेत में श्रृंगार रस के दोनों पक्षों-संयोग एवं वियोग का सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है। प्रसंगानुसार इनके काव्य में ऐसे एथल भी हैं, जहाँ पात्र अपनी गम्भीरता को भूलकर हास्यमय हो गए हैं।

कला पक्ष

  1. भाषा रखी बोली को साहित्यिक रूप देने में गुप्त जी का महत्वपूर्ण योगदान है। गुप्त जी की भाषा में माधुर्य, भावों में तीव्रता और प्रयुक्त शब्दों का सौन्दर्य अद्भुत है। इन्होंने ब्रजभाषा के स्थान पर सरल, शुद्ध, परिष्कृत खड़ी बोली में काव्य सृर्जन करके उसे काव्य भाषा के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गम्भीर विषयों को भी सुन्दर और सरल शब्दों में प्रस्तुत करने में ये सिद्धहस्त थे। भाषा में लोकोक्तियाँ एवं मुहावरों के प्रयोग से जीवन्तता आ गई है।
  2. शैली गुप्त जी ने अपने समय में प्रचलित लगभग सभी शैलियों को प्रयोग अपनी रचनाओं में किया। ये मूलतः प्रवन्धकार थे, लेकिन प्रबन्ध के साथ-साथ मुक्तक, गीति, गीतिनाट्य, नाटक आदि क्षेत्रों में भी इन्होंने अनेक सफल रचनाएँ की हैं। इनकी रचना ‘पत्रावली’ पत्र शैली में रचित नूतन काव्य-प्रणाली का नमूना है। इनकी शैलियों में गेयता, सहज प्रवाहमयता, सरसता एवं संगीतात्मकता विद्यमान है।
  3. छन्द एवं अलंकार गुप्त जी ने सभी प्रचलित छन्दों में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं। इन्होंने मन्दाक्रान्ता, वसन्ततिलका, द्रुतविलम्धित, हरिगीतिका, बरवै आदि छन्दों में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की। इन्होंने तुकान्त, अतुकान्त एवं गीति तीनों प्रकार के छन्दों का समान अधिकार से प्रयोग किया है। अलंकार क्षेत्र में इन्होंने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, यमक, श्लेष के अतिरिक्त ध्वन्यर्थ-व्यंजना, मानवीकरण जैसे आधुनिक अलंकारों का भी प्रयोग किया। अन्त्यानुप्रास की योजना में इनका कोई जोड़ नहीं हैं।

हिन्दी साहित्य में स्थान
मैथिलीशरण गुप्त जी की राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत रचनाओं के कारण हिन्दी साहित्य में इनका अपना विशेष स्थान है। ये आधुनिक हिन्दी काव्य की धारा के साथ विकास पथ पर चलते हुए युग-प्रतिनिधि कवि स्वीकार किए गए। हिन्दी काव्य राष्ट्रीय भावों की पुनीत गंगा को बहाने का श्रेय गुप्त जी को ही है। अतः ये सच्चे अर्थों में लोगों में राष्ट्रीय भावनाओं को भरकर उनमें जन-जागृति लाने वाले सच्चे राष्ट्रकवि हैं। इनका काव्य हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर: देने होंगे।

कैकेयी का अनुताप

प्रश्न 1.
तदनन्तर बैठी सभा उटज के आगे,
नीले वितान के तले दीप बहु जागे।
टकटकी लगाए नयन सुरों के थे वे,
परिणामोत्सुक उन भयातुरों के थे वे।
उत्फुल्ल करौंदी-कुंज वायु रह-रहकर
करती थी सबको पुलक-पूर्ण मह-महकर।
वह चन्द्रलोक था, कहाँ चाँदनी वैसी,
प्रभु बोले गिरा, गम्भीर नीरनिधि जैसी।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश के शीर्षक तथा कवि का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘कैकेयी का अनुताप’ नामक कविता से उद्धृत हैं तथा इसके रचनाकार द्विवेदी युगीन प्रसिद्ध राष्ट्रकवि ‘मैथिलीशरण गुप्त’ जी

(ii) प्रस्तुत पद्यांश किस प्रसंग से सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में पंचवटी की प्राकृतिक छटा का मनोहारी वर्णन किया गया है। प्रकृति के सौन्दर्य का यह वर्णन उस क्षण का है, जब यहाँ भारत के साथ अयोध्यावासियों को श्रीराम से भेंट करने हेतु रात्रि-सभा का आयोजन किया गया था।

(iii) पंचवटी के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पंचवटी का प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम था। खिले हुए करौंदे, पुष्पों से भरे हुए बगीचों से रह-रहकर आने वाली मन्द, शीतल व सुगन्धित पवन वहाँ उपस्थित लोगों को पुलकित कर रही थी। वहाँ ऐसी मनोहर चाँदनी छिटक रही थी, जिसका अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। वहाँ पंचवटी की सभा चन्द्रलोक सी प्रतीत हो रही थी।

(iv) प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि द्वारा किस भाव की अभिव्यक्ति हुई हैं ?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि द्वारा रात्रि के समय पंचवटी आश्रम के आस-पास की प्राकृतिक छटा के मनोहारी होने का भाव अभिव्यक्त किया गया है।

(v) ‘तदनन्तर’ का सन्धि-विच्छेद करते हुए उसका भेद बताए।
उत्तर:
तदनन्तर तद् + अनन्तर (व्यंजन सन्धि)

प्रश्न 2.
“यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को।”
चौंके सब सुनकर अटल कैकेयी-स्वर को।
सबने रानी की ओर अचानक देखा,
वैधव्य-तुषारावृता यथा विधु-लेखा।।
बैठी थी अचल तथापि असंख्यतरंगा,
वह सिंहीं अब थी हा! गोमुखी गंगा—
हाँ, जनकर भी मैंने न भरत को जाना,
सब सुन लें, तुमने स्वयं अभी यह माना
यह सच है तो फिर लौट चलो घर भैया,
अपराधिन मैं हूँ तात, तुम्हारी मैया।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में किसे अपराध बोध से ग्रसित दिखाया गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कैकेयी को अपराध-बोध से ग्रसित दिखाया गया है। राम को घर लौटने का अनुरोध करके वह सदमार्ग की ओर अग्रसर होती दिख रही हैं।

(ii) कैकेयी के मुख से किस बात को सुनकर सभी विस्मित रह गए।
उत्तर:
कैकेयी के मुख से दृढ़ स्वर में कही गई इस बात को सुनकर सभी विस्मित रह गए कि यदि यह सच है, तो अब तुम अपने घर लौट चलो अर्थात् मेरी उस मूर्खता को भूलकर अयोध्या चलो, जिसके परिणामस्वरूप मैंने तुम्हारे लिए वनवास की माँग की थी।

(iii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने कैकेयी के किस रूप का वर्णन किया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में विधवा कैकेयी श्वेत वस्त्र धारण कर ऐसी प्रतीत हो रहीं थीं, मानों पुरे ने थाँदनी को ढक लिया हो। स्थिर बैठी होने के पश्चात् भी कैकेयी के मन में विचारों की अनगिनत तरंगें उठ रही थीं। कभी सिंहनी सी प्रतीत होने वाली रानी पैकेयी आज दीनता के भावों से भरी थी।

(iv) कैकेयी स्वयं को दोषी मानते हुए राम से क्या कहती हैं?
उत्तर:
कैकेयी स्वयं को दोषी मानते हुए राम से कहती हैं “यदि तुम्हारी कही बात सच है, तो तुम अयोध्या लौट चलो। अपराधिनी मैं हूँ, भरत नहीं। तुम्हें वन में भेजने का अपराध मैंने किया है। इसके लिए मुझे जो दण्ड चाहो दो, मैं उसे स्वीकार करती हैं, परन्तु घर लौट चलो, अन्यथा लोग भरतं को दोषी मानेंगे।”

(v) प्रस्तुत पद्यांश में कौन-सा रस दर्शाया गया हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कैकेयी के अपराध बोध से उत्पन्न शोकाकुल अवस्था के कारण करुण रस है।

प्रश्न 3.
क्या कर सकती थी, मरी मन्थरा दासी,
मेरा ही मन रह सका न निज विश्वासी।
जल पंजर-गत अब अरे अधीर, अभागे,
वे ज्वलित भाव थे स्वयं मुझी में जागे।
पर था केवल क्या ज्वलित भाव ही मन में?
क्या शेष बचा कुछ न और जन में?
कुछ मूल्य नहीं वात्सल्य-मात्र क्या तेरा?
पर आज अन्य-सा हुआ वत्स भी मेरा।।
थूके, मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके,
जो कोई जो कह सके, कहे, क्यों चूके?
छीने न मातृपद किन्तु भरत का मुझसे,
रे राम, दुहाई करूं और क्या तुझसे?

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में कैकेयी की किस विवशता को प्रस्तुत किया गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कैकेयी ने अपनी उस विवशता को प्रस्तुत किया है जब एक माँ सन्तान के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहती है, परन्तु इसके पश्चात् भी उसे अपनी सन्तान से प्यार नहीं मिलता।

(ii) कैकेयी, मन्थरा को निर्दोषी बताते हुए क्या कहती हैं?
उत्तर:
कैकेयी, मन्थरा को निर्दोष बताते हुए कहती हैं कि मन्थरा तो साधारण-सी दासी है। वह भला मेरे मन को कैसे बदल सकती हैं। सच तो यह है कि स्वयं मेरा मन ही अविश्वासी हो गया था।

(iii) कैकेयी अपने अन्तर्मन को ‘अभागा’ और ‘अधीर’ मानकर क्या कहती हैं?
उत्तर:
कैकेयी अपने अन्तर्मन को ‘अभागा’ और ‘अधीर’ मानकर कहती हैं कि मेरे मन में स्थित हे मन! ईष्र्या-द्वेष से परिपूर्ण वे ज्वलन्त भाव स्वयं तुझमें ही जागे थे।

(iv) कैकेयी अपने कर्मों पर पछताते हुए क्या कहती हैं?
उत्तर:
कैकेयी अपने कर्मों पर पछताते हुए कहती हैं कि तीनों लोक अर्थात् धरती, आकाश और पाताल मुझे क्यों न धिक्कारे, मेरे विरुद्ध जिसके मन में जो आए वह क्यों न कहे, किन्तु हे राम! मैं तुझसे दीन स्वर में बस इतनी ही विनती करती हैं कि मेरा मातृपद अर्थात् भरत को पुत्र कहने का मेरा अधिकार मुझसे न छीना जाए।

(v) ‘ज्वलित’ और ‘विश्वासी’ शब्दों में से प्रत्यय शब्दांश आँटकर लिखिए।
उत्तर:
ज्वलित-इत (प्रत्यय), विश्वासी-ई (प्रत्यय)

प्रश्न 4.
निज जन्म जन्म में सुने जीव यह मेरा
धिक्कार! उसे था महा स्वार्थ ने घेरा
सौ बार धन्य वह एक लाल की माई,
जिस जननी ने है जना भरत-सा भाई।”
पागल-सी प्रभु के साथ सभी चिल्लाई
सौ बार धन्य वह एक लाल की माई।”
हाँ! लाल? उसे भी आज गमाया मैंने,
विकराल कुयश ही यहाँ कमाया मैंने।
निज स्वर्ग उसी पर वार दिया था मैंने,
हर तुम तक से अधिकार लिया था मैंने।
पर वहीं आज यह दीन हुआ रोता है,
शंकित तबसे धृत हरिण-तुल्य होता हैं।
श्रीखण्ड आज अंगार- चण्ड है मेरा,
तो इससे बढ़कर कौन दण्ड है मेरा?
पटके मैंने पद-पाणि मोह के नद में,
जन क्या-क्या करते नहीं स्वप्न में, मद में?

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में क्या दर्शाया गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में एक और कैकेयी के द्वारा स्वयं को धिक्कारने, तो दूसरी ओर राम सहित सभासदों द्वारा उनका गुणगान करने के भाव दर्शाए गए हैं।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश में कैकेयी अपना पश्चाताप करते हुए क्या कह रही हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कैकेयी अपना पश्चाताप व्यक्त करते हुए कह रही है कि अब तो जन्म-जन्मान्तर तक मेरी आत्मा यह सुनने के लिए विवश होगी कि अयोध्या की रानी कैकेयी को महास्वार्थ ने घेरकर ऐसा अनुचित कर्म कराया कि उसने धर्म के मार्ग का त्याग कर अधर्म के मार्ग का अनुसरण किया।

(iii) प्रस्तुत पद्यांश में कैकेयी, राम के समक्ष अपनी एवं भरत की दीन दशा का वर्णन करते हुए क्या कहती हैं?
उत्तर:
पश्चाताप की अग्नि में जलती हुई कैकेयी, राम से कहती हैं कि मैंने अपने पुत्र पर अपना स्वर्ग-सुख भी न्योछावर कर दिया था और उसी कारण मैंने तुम्हारा अधिकार (राज्य) छीन लिया। मेरा वहीं पुत्र आज दीन-हीन होकर करुण-क्रन्दन कर रहा है।

(iv) सभासदों की बात सुनकर कैकेयी ने क्या प्रतिक्रिया अभिव्यक्त की?
उत्तर:
सभासदों की बात सुनकर कैकेयी ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि हाँ मैं उसी पुत्र की अभागिन माता हैं, जिसे आज मैंने खो दिया है, वह पुत्र भी अब मेरा नहीं रहा। उसने मुझे माता मानने से इनकार कर दिया है। मैंने प्रत्येक प्रकार से अपयश ही कमाया है और स्वयं को कलंकित भी कर दिया है।

(v) “निज जन्म-जन्म में सुने जीव यह मेरा।” पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति में जन्म-जन्म’ शब्द की पुनरावृत्ति के कारण ‘पुनरविप्रकाश अलंकार है।

गीत

प्रश्न 5.
मुझे फूल मत मारो,
मैं अबला बाला वियोगिनी, कुछ तो दया विचारो।
होकर मधु के मीत मदन, पटु, तुम कटु, गरल ने गारो,
मुझे विकलता, तुम्हें विफलता, ठहरो, श्रम परिहारो।
नहीं भोगिनी यह मैं कोई, जो तुम जाल पसारो,
बल हो तो सिन्दूर-बिन्दु यह–हरनेत्र निहारो!
रूप-दर्प कन्दर्प, तुम्हें तो मेरे पति पर वारो,
लो, यह मेरी चरणधूलि उस रति के सिर पर धारो।।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) वसन्त ऋतु का विकास उर्मिला को कैसा प्रतीत हो रहा है?
उत्तर:
वसन्त ऋतु के सुहावने समय में चारों ओर खिले हुए फूल अपने रंग रूप से अपूर्व मादकता बिखेर रहे हैं, परन्तु उर्मिला को वसन्त ऋतु का विकास और “फूलों का रंग रूप लक्ष्मण के वियोग में अत्यन्त कष्टकारी प्रतीत हो रहा है।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश में उर्मिला ने कामदेव से क्या प्रार्थना की है।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में उर्मिला ने कामदेव से प्रार्थना करते हुए कहा कि तुम मुझे अपने पुष्पबाणों से घायल मत करो, क्योंकि मैं तो वह अबला युवती हैं जो विरहिणी है, वियोगिनी है। तुम्हें मुझ पर विचारपूर्वक दया करनी चाहिए और मुझ विरहिणी को कष्ट नहीं देना चाहिए।

(iii) “नहीं भोगिनी यह मैं कोई, जो तुम जाल पसारो।” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उर्मिला को कामदेव ने दुःख रूपी जाल में फँसाने का बहुत प्रयास किया। उर्मिला ने कामदेव के पुष्पबाण के प्रहार से स्वयं को बहुत विचलित किया, परन्तु वह उनके जाल में फंस नहीं पाई। आशय यह है कि कामदेव चाहे उर्मिला को कितना भी दुःख क्यों न दे दें, परन्तु वह भोग-विलास की छ। रखने वाली कोई विलासिनी नहीं बन सकती।

(iv) उर्मिला द्वारा कामदेव के सौन्दर्य के दर्प को कैसे तोड़ा गया है?
उत्तर:
उर्मिला ने कामदेव के सौन्दर्य के दर्प को तोड़ते हुए कामदेव से कहा कि यदि तुम्हें अपने रूप (सौन्दर्य) पर गर्व है, तो तुम अपने इस गर्व को मेरे पति (लक्ष्मण) के चरणों पर न्योछावर कर दो अर्थात् सौन्दर्य में तुम मेरे पति के चरणों की धूल के समान हो।

(v) ‘विकलता’ और ‘विफलता’ दोनों शब्दों से उपसर्ग, मूलशब्द और प्रत्यय छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
विकलता-वि (उपसर्ग), कल (मूल शब्द), ता (प्रत्यय)
विफलता-वि (उपसर्ग), फल (मूल शब्द), ता (प्रत्यय)

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 4 कैकेयी का अनुताप/गीत help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 4 कैकेयी का अनुताप/गीत, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 3 आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञ

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 3 आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञ part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 3 आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञ.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञ
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 3 आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञ

गद्यांशों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद

गद्यांश 1
याज्ञवल्क्यो मैत्रेयीमुवाच मैत्रेयि! उद्यास्यन् अहम् अस्मात् स्थानादस्मि। ततस्तेऽनया कात्यायन्या विच्छेदं करवाणि इति। मैत्रेयी उवाच-यदीयं सर्वा पृथ्वी वित्तेन पूर्णा स्यात् तत् किं तेनाहममृता स्यामिति। याज्ञवल्क्य उवाच-नेति।। यथैवोपकरणवतां जीवनं तथैव ते जीवनं स्यात्। अमृतत्वस्य तु नाशास्ति वित्तेन इति। सा मैत्रेयी उवाच-येनाहं नामृता स्याम् किमहं तेन कुर्याम्? यदेव भगवान् केवलममृतत्वसाधन जानाति, तदेव में ब्रूहि। याज्ञवल्क्य उवाच-प्रिया नः सती त्वं प्रियं भाषसे। एहि, उपविश, व्याख्यास्यामि ते अमृतत्वसाधनम्। (2010)
सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘आत्मज्ञ एव सर्वज्ञः नामक पाठ से उधृत हैं।
अनुवाद याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी से कहा, “मैत्रेयी! मैं इस स्थान (गृहस्थाश्रम) से ऊपर (पारिव्राज्य आश्रम) जाने वाला हूँ। अतः तुम्हारी सम्पत्ति का मैं (अपनी) दूसरी पत्नी कात्यायनी से बँटवारा कर दें।” मैत्रेयी ने कहा, ” यदि सारी पृथ्वी धन से परिपूर्ण हो जाए तो भी क्या मैं उससे अमर हो। जाऊँगी?” याज्ञवल्क्य बोले–नहीं।

तुम्हारा भी जीवन वैसा ही हो जाएगा जैसा साधन-सम्पन्नों का जीवन  होता है। सम्पत्ति से अमरता की आशा नहीं है। मैत्रेयी बोली, ”मैं जिससे अमर | न हो सकेंगी (भला) उसका क्या करूंगी? भगवन्! आप जो अमरता का साधन जानते हैं केवल वही मुझे बताएँ।” याज्ञवल्क्य ने कहा, “तुम मेरी प्रिया हो और प्रिय बोल रही हो। आओ, बैठो, मैं तुमसे अमृत तत्च के साधन की व्याख्या करूंगा।”

गद्यांश 2
याज्ञवल्क्य उवाचन वा अरे मैत्रेयि! पत्युः कामाय पतिः प्रियो भवति। आत्मनस्तु वै कामाय पतिः प्रियो भवति। न वा अरे, जायायाः कामाय जाया प्रिया भवति, आत्मनस्तु वै कामाय जाया प्रिया भवति। न वा अरे, पुत्रस्य वित्तस्य च कामाय पुत्रो वित्तं वा प्रियं भवति, आत्मनस्तु वै कामाय पुत्रो वित्तं वा प्रियं भवति। न वा अरे, सर्वस्य कामाय सर्व प्रियं भवति, आत्मनस्तु वै कामाय सर्व प्रियं भवति। तस्माद् आत्मा वा अरे मैत्रेयि! द्रष्टव्यः दर्शनार्थं श्रोतव्यः, मन्तव्यः निदिध्यासितव्यश्च। आत्मनः खलु दर्शनन इदं सर्वं विदितं भवति। (2017, 16, 12)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद याज्ञवल्क्य बोले, “अरी मैत्रेयी! (पत्नी को) पति, पति की कामना (इच्छापूर्ति) के लिए प्रिय नहीं होता। पति तो अपनी ही कामना के लिए प्रिय होता है। अरी! न ही (पति को) पत्नी, पत्नी की कामना के लिए प्रिय होती है, (वरन्) अपनी कामना के लिए ही पनी प्रिय होती है। अरी! पुत्र एवं धन की कामना के लिए पुत्र एवं धन, प्रिय नहीं होते, (वरन्) अपनी ही कामना के लिए पुत्र एवं धन प्रिय होते हैं। सबकी कामना के लिए। सब प्रिय नहीं होते, सब अपनी ही कामना के लिए प्रिय होते हैं।” “इसलिए हे मैत्रेयी! आत्मा ही देखने योग्य है। दर्शनार्थ, सुनने योग्य है, मनन करने योग्य तथा ध्यान करने योग्य है। आत्मदर्शन से अवश्य ही यह सब ज्ञात हो जाता है।”

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न-पत्र में संस्कृत दिग्दर्शिका के पाठों (गद्य व पद्य) में से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

प्रश्न 1.
मैत्रेयी याज्ञवल्क्यं किम् अपृच्छतु (2010)
उत्तर:
मैत्रेयी याज्ञवल्क्यं केवलम् अमृत्वसाधनम् अपृच्छत्।।

प्रश्न 2. कस्य खलु दर्शनेन इदं सर्वं विदितं भवति (2017)
उत्तर:
आत्मनः खलु दर्शनेन इदं सर्वं विदितं भवति।

प्रश्न 3.
कः सर्वज्ञः भवति? (2018, 16, 14, 11, 10)
उत्तर:
आत्मनः दर्शनेन नर; सर्वज्ञः भवति।

प्रश्न 4.
कस्य कामाय सर्व प्रियं भवति? (2017)
उत्तर:
आत्मनः कामाय सर्व प्रियं भवति।

प्रश्न 5.
वित्तेन कस्य आशा न अस्ति? (2018)
उत्तर:
वित्तेन अमृनत्वस्य आशा न अस्ति।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 3 आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञ help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 3 आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञ, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 3 पवन-दूतिका

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 3 पवन-दूतिका part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 3 पवन-दूतिका.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name पवन-दूतिका
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 3 पवन-दूतिका

पवन-दूतिका – जीवन/साहित्यिक परिचय

(2018, 17, 16, 14, 13, 12, 11, 10)

प्रश्न-पत्र में संकलित पाठों में से चार कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनमें से एक का उत्तर: देना होता हैं। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
तिवेदी युग के प्रतिनिधि कवि और लेखक अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जन्म 1866 ई. में उत्तर: प्रदेश के आजमगढ़ ज़िले में निजामाबाद नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम पण्डित भोलासिंह उपाध्याय तथा माता का नाम रुक्मिणी देवी था। स्वाध्याय से इन्होंने हिन्दी, संस्कृत, फारसी और अंग्रेजी भाषा का अ ज्ञान प्राप्त कर लिया। इन्होंने लगभग 20 वर्ष तक कानूनगो के पद पर कार्य किया। इनके जीवन का ध्येय अध्यापन ही रहा। इसलिए उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अवैतनिक रूप से अध्यापन कार्य किया। इनकी रचना “प्रियप्रवास’ पर इन्हें हिन्दी के सर्वोत्तम पुरस्कार ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ से सम्मानित किया गया। वर्ष 1947 में इनका देहावसान हो गया।

साहित्यिक गतिविधियाँ
प्रारम्भ में ‘हरिऔध’ जी ब्रज भाषा में काव्य रचना किया करते थे, परन्तु बाद में महावीरप्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी में काव्य रचना की। हरिऔध जी के काव्य में लोकमंगल का स्वर मिलता है।

कृतियाँ
हरिऔध जी की 15 से अधिक लिखी रचनाओं में तीन रचनाएँ विशेष रूप से उल्लेखनीय है प्रियप्रवास’, ‘पारिजात’ तथा ‘वैदेही वनवास’। ‘मियप्रयास’ खड़ी बोली। में लिखा गया पहला महाकाव्य है, जो 17 सर्गों में विभाजित है। इसमें राधा-कृष्ण को सामान्य नायक-नायिका के स्तर से उठाकर विश्व-सेवी एवं विश्व प्रेमी के रूप में चित्रित । किया गया है। प्रबन्ध कायों के अतिरिक्त इनकी मुक्तक कविताओं के अनेक संग्रह-‘चोखे चौपदे’, ‘चुभते चौपदे’, ‘प-प्रसून’, ‘ग्राम-गीत’, ‘कल्पलता आदि उल्लेखनीय हैं।

नाट्य कृतियाँ ‘प्रद्युम्न विजय’, ‘रुक्मिणी परिणय’।
उपन्यास ‘प्रेमकान्ता’, ‘ठेत हिन्दी का ठाठ’ तथा ‘अधखिली फूल’

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष

  1. वयं विषय की विविधता हरिऔध जी की प्रमुख विशेषता है। इनके काव्य में प्राचीन कथानकों में नवीन उदभावनाओं के दर्शन होते हैं। इनकी रचनाओं में इनके आराध्य भगवान मात्र न होकर जननायक एवं जनसेवक हैं। उन्होंने कृष्ण-राधा, राम सीता से सम्बन्धित विषयों के साथ-साथ आधुनिक समस्याओं को लेकर उन पर नवीन ढंग से अपने विचार प्रस्तुत किए हैं।
  2. वियोग और वात्सल्य वर्णन हरिऔध जी के काव्य में वियोग एवं वात्सल्य को वर्णन मिलता है। उन्होंने प्रियप्रवास में कृष्ण के मथुरा गमन तथा उसके बाद ब्रज की दशा का अत्यंत मार्मिक वर्णन किया है। हरिऔध जी ने कृष्ण के वियोग में दु:खी सम्पूर्ण ब्रजवासियों का तथा पुत्र वियोग में व्यभित यशोदा का करुण चित्र भी प्रस्तुत किया है।
  3. लोक-सेवा की भावना हरिऔध जी ने कृष्ण को ईश्वर के रूप में न देखकर | आदर्श मानव एवं लोक सेवक के रूप में अपने काव्य में चित्रित किया है।
  4. प्रकृति-चित्रण हरिऔध जी की प्रकृति चित्रण सराहनीय है। उन्हें काव्य में जहाँ भी अवसर मिला, उन्होंने प्रकृति को चित्रण किया है, साथ ही उसे विविध रूपों में भी अपनाया है। हरिऔध जी का प्रकृति चित्रण सजीव एवं परिस्थितियों के अनुकूल है। प्रकृति सम्बन्धित प्राणियों के सुख में सुखी एवं दुःख में दुखी दिखाई देती है। कृष्ण के वियोग में ब्रज के वृक्ष भी रोते हैं
    फूलों-पत्तों सकल पर हैं वादि-बूंदें लखातीं,
    रोते हैं या विपट सब यो आँसुओं को दिखा के

कला पक्ष

  1. भाषा काव्य के धोत्र में भाव, भाषा, शैली, छन्द एवं अलंकारों की दृष्टि से हरिऔध जी की काव्य साधना महान् है। इनकी रचनाओं में कोमलकान्त पदावलीयुक्त ब्रजभाषा (“सकलश’) के साथ संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग (“प्रियप्रवास’, ‘वैदेही वनवास’) द्रष्टव्य है। इन्होंने मुहावरेदार बोलचाल की खड़ी बोली (चोखे चौपदे’, ‘चुभते चौपदे’) का प्रयोग किया। इसलिए आचार्य शुक्ल ने इन्हें ‘द्विकलात्मक कला’ में सिद्धहस्त कहा है। एक ओर सरल एवं प्रांजल हिन्दी का प्रयोग, तो दूसरी और संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ-साथ सामासिक एवं आलंकारिक शब्दावली का प्रयोग भी है।
  2. शैली इन्होंने प्रबन्ध एवं मुक्तक दोनों शैलियों का सफल प्रयोग अपने काव्य में किया। इसके अतिरिक्त इनके काव्यों में इतिवृत्तात्मक, मुहावरेदार, संस्कृत-काव्यनिष्ठ, चमत्कारपूर्ण एवं सरल हिन्दी शैलियों का अभिव्यंजना शिल्प की दृष्टि से सफल प्रयोग मिलता है।
  3. छन्द सवैया, कवित्त, छप्पय, दोहा आदि इनके प्रिय छन्द हैं और इन्द्रवज्रा, शार्दूलविक्रीडित, शिखरिणी, मालिनी, वसन्ततिलका, द्रुतविलम्वित आदि संस्कृत वर्णवृत्तों का प्रयोग भी इन्होंने किया।
  4. अलंकार इन्होंने शब्दालंकार एवं अर्थालंकार दोनों का भरपूर एवं स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनके काव्यों में उपमा के अतिरिक्त रूपक, उत्प्रेक्षा, अपहृति, व्यतिरेक, सन्देह, स्मरण, प्रतीप, दृष्टान्त, निदर्शना, अर्थान्तरन्यास आदि अलंकारों का भावोत्कर्षक प्रयोग मिलता है।

हिन्दी साहित्य में स्थान
हरिऔध जी अपने जीवनकाल में ‘कवि सम्राट’, ‘साहित्य वाचस्पति’ आदि उपाधियों से सम्मानित हुए। हरिऔध जी अनेक साहित्यिक सभाओं एवं हिन्दी साहित्य सम्मेलनों के सभापति भी रहे। इनकी साहित्यिक सेवाओं का ऐतिहासिक महत्त्व है। निःसन्देह ये हिन्दी साहित्य की एक महान् विभूति हैं।

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर: देने होंगे।

प्रश्न 1.
बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली।
आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते।।
आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गन्ध को ले।
प्रात:वाली सुपवन इसी काल वातयनों से।।।
सन्तापों को विपुल बढ़ता देख के दु:खिता हो।
धीरे बोली स-दुख उससे श्रीमती राधिका यों।।
प्यारी प्रातः पवन इतना क्यों मुझे है सताती।
क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से।।

उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने राधा की किस स्थिति का वर्णन किया है?
उत्तर:
प्ररतुत पद्यांश में कवि ने विरहावस्था के कारण दुःखी नायिका का वर्णन किया है। जिसके नयनों से अश्रुओं की धारा बह रही है तथा मन को हर्षित एवं आनन्दित करने वाली प्रातःकालीन पवन भी नायिका को दुःखी करती हैं। नायिका की इसी स्थिति का वर्णन कवि ने किया है।

(ii) नायिका ने पवन को क्रूर क्यों कहा?
उत्तर:
नायिका का मन खिन्न एवं उदास था। उसके नयन अश्रुओं से भरे हुए थे। नायिका की इस दैन्य दशा में प्रातःकालीन पवन जब सभी में उमंग एवं उत्साह । का संचार कर रही थी, तब वह नायिका के लिए हृदय विदारक बनकर उसके दुःख को बढ़ा रही थी, इसलिए नायिका ने उसे क्रूर कहा।

(iii) नायिका ने पवन से क्या कहा?
उत्तर:
नायिका ने पवन से कहा कि वह इतनी क्रूर, निर्दयी व उसकी पीड़ा को बढ़ाने वाली क्यों बनी हुई है? क्या वह भी उसी के समान किसी पीड़ा से व्यथित है?

(iv) प्रस्तुत पद्यांश की रस योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में वियोग श्रृंगार रस है। इस पद्यांश में कवि ने नायिका की विरहावस्था का वर्णन किया है।

(v) ‘सदगन्ध’ व ‘क्लर’ शब्दों के विपरीतार्थी शब्द लिखिए।
उत्तर:

शब्द विपरीतार्थी शब्द
सद्गन्ध दुर्गन्ध
क्रूर दयालु

प्रश्न 2.
लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आए।
होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को।।
जो थोड़ी भी श्रमित वह हो, गोद ले श्रान्ति खोना।
होठों की औ कमल-मुख की म्लानताएँ मिटाना।।
कोई क्लान्ता कृषक-ललना खेत में जो दिखावे।
धीरे-धीरे परस उसकी क्लान्तियों को मिटाना।।
जाता कोई जलद यदि हो व्योम में तो उसे ला।
छाया द्वारा सुखित करना तप्त भूतांगना को।।

उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने नायिका के द्वारा पवन को कही गई बातों के माध्यम से परोपकार की भावना को महत्त्व दिया है। नायिका द्वारा स्वयं की पीड़ा से पहले दूसरों की पीड़ा एवं कष्टों को दूर करने का सन्देश दिया गया है।

(ii) नायिका पवन से लज्जाशील महिला के प्रति कैसा आचरण अपनाने के लिए कहती हैं?
उत्तर:
नायिका पवन से लज्जाशील महिला के प्रति स्नेह एवं प्रेम का आचरण अपनाने के लिए कहते हुए कहती हैं कि यदि उसे मार्ग में कोई लज्जाशील महिला मिले तो वह उसके वस्त्रों को न उड़ाए। यदि वह उसे थोड़ी थकी हुई लगे तो उसे अपनी गोद में लेकर उसकी थकान और मुख की मलिनता को हर लेना।

(iii) नायिका पवन से किस प्रकार कृषक महिला की सहायता करने के लिए कहती है?
उत्तर:
नायिका पवन से कहती है कि यदि उसे मथुरा जाते समय तुम्हें कोई कृषक महिला खेतों में काम करते हुए दिखाई दे, तो उसके पास जाकर अपने स्पर्श से उसकी थकान को मिटा देना। साथ ही आकाश में छाए बादलों को अपने वेग से उड़ाकर उनकी छाया के द्वारा उसे शीतलता प्रदान करना और उसकी सहायता करना।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश के शिल्प सौन्दर्य का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है। कवि ने प्रबन्ध शैली में नायिका की वियोगावस्था का वर्णन किया हैं। कवि ने रूपक, पुनरुक्तिप्रकाश व मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग करके पद्यांश के भाव-सौन्दर्य में वृद्धि कर दी है।

(v) ‘जलद’ व ‘व्योम’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर:

शब्द विपरीतार्थी शब्द
जलद बादल मेघ
व्योम आकाश, गगन

प्रश्न 3.
साँचे ढाला सकल वपु है दिव्य सौन्दर्यशाली।
सत्पुष्पों-सी सुरभि उसकी प्राण-सम्पोषिका है।
दोनों कन्धे वृषभ-वर-से हैं बड़े ही सजीले।।
लम्बी बांहें कलभ-कर-सी शक्ति की पेटिका हैं।
राजाओं-सा शिर पर लसा दिव्य आपीड़ होगा।
शोभा होगी उभय श्रुति में स्वर्ण के कुण्डलों की।
नाना रत्नाकलित भुज में मंजु केयूर होंगे।
मोतीमाला लसित उनका कम्बु-सा कण्ठ होगा।

उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में नायिका ने किसे प्राण पोषिका के समान बताया हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में नायिका अर्थात् राधा, पवन को श्रीकृष्ण के विषय में बताते हुए कहती है कि उनका सुडौल शरीर साँचे में ढला हुआ प्रतीत होता है। उनके तन से आने वाली सुगन्ध प्राणों को पोषित करने वाली है अर्थात् वह मन को आह्लादित करने वाली है।

(ii) नायिका ने श्रीकृष्ण की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?
उत्तर:
नायिका श्रीकृष्ण की विशेषताएँ बताते हुए कहती है कि उनका शरीर सुडौल है, उनके कन्धे वृषभ के समान बलिष्ठ हैं, उनकी भुजाएँ हाथी की सुंड के समान बलशाली हैं, उनके मस्तिष्क पर राजाओं के समान अपूर्व सौन्दर्य से युक्त मुकुट विराजमान है। उनकी गर्दन सुन्दर एवं सुडौल है।

(iii) प्रस्तुत पद्यांश का केन्द्रीय भाव संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने नायिका की विरहावस्था एवं श्रीकृष्ण के प्रति उनके प्रेम को उद्घाटित किया है। नायिका कृष्ण से दूर ब्रज प्रदेश में हैं, किन्तु उसके मन मस्तिष्क में उनकी छवि विद्यमान है। वह कृष्ण रूप, बेल आदि से अत्यधिक आकर्षित है।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश की भाषा-शैली संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है। कवि ने प्रबन्धात्मक शैली में नायिका की विरह व्यथा को प्रस्तुत किया है। भाषा में तुकान्तता एवं लयात्मकता का गुण विद्यमान है। अभिधा शब्दशक्ति व प्रसाद गुण के प्रयोग से काव्य की भाषा अधिक प्रभावशाली हो गई है।

(v) ‘स्वर्ण’ व ‘सुरभि शब्दों के दो-दो पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर:

शब्द विपरीतार्थी शब्द
स्वर्ण कनक, कुन्दन
सुरभि सुगंध, खुशबू

प्रश्न 4.
जो प्यारे मंजु उपवन या वाटिका में खड़े हों।
छिद्रों में जा क्वणित करना वेणु-सा कीचकों को।
यों होवेगी सुरति उनको सर्व गोपाँगना की।
जो हैं वंशी श्रवण-रुचि से दीर्घ उत्कण्ठ होती।
ला के फूले कमलदल को श्याम के सामने ही।
थोड़ा-थोड़ा विपुल जल में व्यग्र हो-हो डुबाना।
यों देना ऐ भगिनी जतला एक अम्भोजनेत्रा।।
आँखों को ही विरह-विधुरा वारि में बोरती है।

उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) राधा श्रीकृष्ण को अपना सन्देश देने के लिए पवन से क्या कहती है?
उत्तर:
राधा पवन को उसकी विरहावस्था से श्रीकृष्ण को अवगत कराने के लिए बाँसों एवं कमल के खिले हुए फूल को माध्यम बनाने के लिए कहती है।

(ii) श्रीकृष्ण को गोपियों का स्मरण कराने के लिए राधा पवन से क्या कहती हैं?
उत्तर:
श्रीकृष्ण को गोपियों का स्मरण कराने के लिए राधा पवन से कहती है कि अगर तुम्हें कृष्ण उपवन में दिखाई दें, तो तुम बॉस में प्रवेश करके उसे बाँसुरी की तरह बजाना, जिससे श्रीकृष्ण को उनकी बाँसुरी की मधुर आवाज सुनने के लिए लालायित गोपियों की याद आ जाए।

(iii) राधा स्वयं विरहावस्था से श्रीकृष्ण को अवगत कराने के लिए पवन को क्या उपाय सुझाती है।
उत्तर:
राधा श्रीकृष्ण को स्वयं की विरहायस्था एवं पीड़ा से अवगत कराने हेतु पवन से कहती है कि श्रीकृष्ण के समक्ष उपस्थित कमल के पत्तों को पानी में डुबोना, ताकि उस दृश्य को देखकर श्रीकृष्ण कमल से नयनों वाली राधा की वियोगावस्था को पहचान लें।

(iv) पद्यांश की रस योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पशि में श्रीकृष्ण के मथुरा से द्वारका आ जाने के कारण ब्रज की गोपियों व राधा की विरहावस्था का वर्णन किया गया है। अतः पद्यांश में पियो गार रस की प्रधानता विद्यमान है।

(v) ‘कमलदल’ का समास-विग्रह करते हुए समास का भेद बताइए।
उत्तर:
‘कमलदल’ का समास विग्रह ‘कमल का दल’ होगा। यह तत्पुरुष समास का उदाहरण हैं।

प्रश्न 5.
यों प्यारे को विदित करके सर्व मेरी व्यथाएँ।
धीरे-धीरे वहन कर के पाँव की धूलि लाना।
थोड़ी-सी भी चरण-रज जो ला न देगी हमें तू।
हा ! कैसे तो व्यथित चित को बोध में दे सकेंगी।
पूरी होवें न यदि तुझसे अन्य बातें हमारी।
तो तू मेरी विनय इतनी मान ले औ चली जा।
छ के प्यारे कमल-पग को प्यार के साथ आ जा।
जी जाऊँगी हृदयतल में मैं तुझी को लगाके।।

उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर:
पशि में नायक के प्रति नायिका के असीम प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। नायिका पवन से श्रीकृष्ण को अपनी व्यथा बताने और ऐसा न कर पाने की स्थिति में उनके चरणों की धूल लाने अथवा उनके चरणों को स्पर्श करके आने के लिए कहती हैं।

(ii) नायिका श्रीकृष्ण की चरण रज लाने के लिए क्यों कहती है?
उत्तर:
नायिका पवन से श्रीकष्ण को अपनी व्यथा सुनाने और ऐसा न कर पाने पर उनके चरणों की धूल लाने के लिए कहती हैं, ताकि वह उसे पाकर ही अपने दुःखी मन को समझा ले।

(iii) जी जाऊँगी हृदयतल में मैं तुझी को लगा।” पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से राधा पवन से कहती है कि यदि वह श्रीकृष्ण की चरण रज को न ला पाए और केवल उनके चरणों का स्पर्श करके भी आ जाए तो वह भी इसके लिए काफी हैं, क्योंकि वह पवन को ही हृदय से लगाकर अपने मियत की पूर्ण अनुभूति प्राप्| कर लेगी और स्वयं में नव जीवन का संचार कर लेगी।

(iv) पद्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पशि में कवि ने पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास, रूपक व मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग किया है। पद्यांश में धीरे-धीरे वहन कर के’ में पुनरुक्तिप्रकाश, ‘जी जाऊँगी हृदयतल’ में अनुप्रास अलंकार, ‘प्यारे कमल-पग को’ में रूपक अलंकार तथा सम्पूर्ण काव्य रचना में मानवीकरण अलंकार है।

(v) ‘कमल-पग’ का समास-विग्रह करके समास का भेद भी बताइए।
उत्तर:
‘कमल पग’ का समास-विग्रह ‘कमल के समान पग’ है, जोकि कर्मधारय समास का उदाहरण है।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 3 पवन-दूतिका help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 3 पवन-दूतिका, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 1 भोजस्यौदार्यम्

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 1 भोजस्यौदार्यम् part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 1 भोजस्यौदार्यम्.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name भोजस्यौदार्यम्
Number of Questions Solved 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 1 भोजस्यौदार्यम्

गद्यांशों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद

गद्यांश 1
ततः कदाचिद् द्वारपाल आगत्य महाराजं भोजं प्राह–’देव, कौपीनावशेषो विद्वान् द्वारि वर्तते’ इति। राजा ‘प्रवेशय’ इति प्राह। ततः प्रविष्टः सः कविः भोजमालोक्य अद्य में दारिद्रयनाशो भविष्यतीति मत्वा तुष्टो हर्षाश्रूणि मुमोच। राजा तमालोक्य प्राह–’कवे, किं रोदिषि” इति। ततः कविराह-राजन्! आकर्णय मद्गृहस्थितिम्।।
सन्दर्म प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘भोजस्यौदार्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद तत्पश्चात् द्वारपाल ने आकर महाराज भोज से कहा, “देव! द्वार पर ऐसा विहान् खड़ा है जिसके तन पर केवल लँगोटी ही शेष है।” राजा बोले, “प्रवेश कराओं।” तब उस कवि ने भोज को देखकर यह मानकर कि आज मेरी दरिद्रता दूर हो जाएगी, प्रसन्नता के आँसू बहाए। राजा ने उसे देखकर कहा, “कवि! रोते क्यों हो?” तब कवि ने कहा-‘राजन्! मेरे घर की स्थिति को सुनिए।”

गद्यांश 2
राजा शिव, शिव इति उदीरयन् प्रत्यक्षरं लक्ष दत्त्वा प्राह–’त्वरितं गच्छ गेहम्, त्वद्गृहिणी खिन्ना वर्तते।’ अन्यदा भोजः श्रीमहेश्वरं नमितुं शिवालयमभ्यगच्छत्। तदा कोऽपि ब्राह्मणः राजानं शिवसन्निधौ प्राह–देव!
सन्दर्म पूर्ववत्।।
अनुवाद ‘शिव, शिव’ कहते हुए प्रत्येक अक्षर पर लाख मुद्राएँ देकर राजा ने। कहा, ”शीघ्र घर जाओ। तुम्हारी पत्नी दु:खी है।’ भोज अगले दिन श्री महेश्वर (भगवान शंकर) को नमन करने के लिए शिवालय गए। तब शिव के समीप राजा से किसी ब्राह्मण ने कहा- हे राजन्।

गद्यांश 3
राजा तस्यै लक्ष दत्वा कालिदासं प्राह–‘सखे, त्वमपि प्रभातं वर्णय’ इति।
ततः कालिदासः प्राह
अभूत् प्राची पिङ्गा रसंपतिरिव प्राप्य कनुर्क।
गतच्छायश्चन्द्रो बुधजन इव ग्राम्यसदसि।।
क्षणं क्षीणस्तारा नृपतय इवानुद्यम्पराः।
न दीपा राजन्ते द्रविणरहितानामिव गुणाः।।
राजातितुष्टः तस्मै प्रक्षरं लक्षं ददौ। (2014, 18, 11, 06)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद राजा ने उसे एक लाख (रुपये) देकर कालिदास से कहा-“मित्र तुम भी प्रभात का वर्णन करो।” तब कालिदास ने कहा-पूर्व दिशा सुवर्ण (सूर्य की पहली किरण) को पाकर पारे-सी पीली (सुनहरी) हो गई है। चन्द्रमा वैसे ही कान्तिहीन हो गया है, जैसे अज्ञानियों (गॅवारों) की सभा में विद्वान्। तारे उद्यमहीन राजाओं की भाँति क्षणभर में क्षीण हो गए हैं। निर्धनों (धनहीनों) के गुणों के सदृश दीपक भी नहीं चमक रहे हैं। कहने का अर्थ है जिस प्रकार दरिद्रता व्यक्ति के गुणों को ढक लेती है उसी प्रकार सवेरा होने पर दीपक व्यर्थ हो जाता है। राजा ने सन्तुष्ट होकर उसको प्रत्येक शब्द पर लाख मुद्राएँ दीं।।

श्लोकों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद

श्लोक 1
अये लाजानुच्चैः पथि वचनमाकण्यं गृहिणीं।
शिशोः कर्णी यत्नात् सुपिहितवती दीनवदना।।
मयि क्षीणोपाये यदकृतं दृशावश्रुबहुले।
तदन्तः शल्यं मे त्वमसि पुनरुद्धमुचितः ।। (2017, 16, 13, 10)
सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘भोजस्यौदार्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद मार्ग पर ऊँचे स्वर में ‘अरे, खील लो’ सुनकर दीन मुख वाली (मेरी पत्नी ने बच्चों के कान सावधानीपूर्वक बन्द कर दिए और मुझ दरिद्र पर जो अश्रुपूर्ण दृष्टि डाली, वह मेरे हृदय में काँटे सदृश गड़ गई, जिसे निकालने में आप ही समर्थ हैं।

श्लोक 2
अर्द्ध दानववैरिणा गिरिजयाप्यर्द्ध शिवस्याहृतम्।
देवेत्थं जगतीतले पुरहराभावे समुन्मीलति।।
गङ्गा सागरमम्बरं शशिकला नागाधिपः मातलम्।।
सर्वज्ञत्वमधीश्वरत्वमगमत् त्वां मां तु भिक्षाटनम्।। (2013)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद शिव का अद्भुभाग दान-वैरी अर्थात् विष्णु ने तथा अर्द्ध भाग पार्वती ने हर लिया। इस प्रकार भू-तल पर शिव की कमी होने से गंगा सागर में, चन्द्रकला आकाश में तथा नागराज (शेषनाग) भू-तल में समा गए। सर्वज्ञता और अधीश्वरता आपमें तथा भिक्षाटन मुझमें आ गया।

श्लोक 3
विरलविरलाः स्थूलास्ताराः कलाविव सज्जुनाः।
मुन इव मुनेः सर्वत्रैव प्रसन्नमभून्नभः।।
अपसरति च ध्यान्तं चित्तात्सतामिव दुर्जनः।।
ब्रजति च निशा क्षित्रं लक्ष्मीरनुघमिनामिव।। (2018)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद आकाश में बड़े तारे उसी प्रकार गिने-चुने (बहुत कम) । दिखाई दे रहे हैं, जैसे कलियुग में सज्जन। सारा आकाश मुनि के सदृश प्रसन्न (निर्मल) हो गया है। आकाश से अँधेरा वैसे ही मिटता जा रहा है, जैसे सज्जनों के चित्त से दुर्जन और उद्यमहीनों की लक्ष्मी तीव्रता से भागी जा रही हो।

श्लोक 4
अभूत् प्राची पिङ्गा रसपतिरिव प्राप्य कनकं।
गतच्छायश्चन्द्रो बुधजन इव ग्राम्यसदसि।।
क्षणं क्षीणस्तारा नृपतय इवानुद्यमपराः ।।
न दीपा राजन्ते द्रविणरहितानामिव गुणाः ।। (2017, 14, 13, 11)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद पूर्व दिशा सुवर्ण (सूर्य की पहली किरण) को पाकर पारे-सी पीली (सुनहरी) हो गई है। चन्द्रमा वैसे ही कान्तिहीन हो गया है, जैसे अज्ञानियों (गॅवारों) की सभा में विद्वज्जन। तारे उद्यमहीन राजाओं की भाँति क्षणभर में क्षीण हो गए हैं। निर्धनों (धनहीनों) के गुणों के सदृश दीपक भी नहीं चमक रहे हैं। कहने का अर्थ है, जिस प्रकार दरिद्रता व्यक्ति के गुणों को ढक लेती है, उसी प्रकार संवेरा होने पर दीपक व्यर्थ हो जाता है।

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न-पत्र में संस्कृत दिग्दर्शिका के पाठों (गद्य व पद्य) में से चार अतिलघु उत्तरीय प्रश्न पूछे जाएँगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित है।

प्रश्न 1.
द्वारपालः भोजं किम् अकथयत्? (2017, 13, 11)
उत्तर:
द्वारपालः भोजम् अकथयत् यत् कौपीनावशेषः कोऽपि विद्वान् द्वारि वर्तते’ इति।

प्रश्न 2.
भोजं दृष्ट्वा कविः किम् अचिन्तयत?
उत्तर:
भोजं दृष्ट्वा कविः अचिन्तयत् ‘अद्य मम दरिद्रतायाः नाशः भविष्यति’ इति।

प्रश्न 3.
भोजः कविम् किम् अपृच्छतु? (2017, 16)
उत्तर:
भोजः कविम् अपृच्छत् ‘कवे! किं रोदिषि?’ इति।

प्रश्न 4.
राजा भोजः कालिदासं किं कर्तुं प्राह? (2018)
उत्तर:
राजा भोजः कालिदास प्रभातवर्णन कर्तुं प्राह।

प्रश्न 5.
भोजस्य सभायां कः कविः प्रभातम् अवर्णयत्? (2012)
उत्तर:
भोजस्य सभायां कवि: कालिदासः प्रभातम् अवर्णयत्।

प्रश्न 6.
कवि कथम् अरोदी? (2017)
उत्तर:
कवेः रोदनस्य कारणं तस्य दरिद्रता आसीत्।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 1 भोजस्यौदार्यम् help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 1 भोजस्यौदार्यम्, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 2 उद्धव-प्रसंग / गंगावतरण

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 2 उद्धव-प्रसंग / गंगावतरण part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 2 उद्धव-प्रसंग / गंगावतरण.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name उद्धव-प्रसंग / गंगावतरण
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 2 उद्धव-प्रसंग / गंगावतरण

उद्धव-प्रसंग / गंगावतरण – जीवन/साहित्यिक परिचय

(2018, 17, 13, 10)

प्रश्न-पत्र में संकलित पाठों में से चार कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनमें से एक का उत्तर: देना होता हैं। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
आधुनिक काल के ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ का जन्म काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में 1866 ई. (विक्रम सम्वत् 1923) में हुआ था। ‘रत्नाकर’ जी के पिता श्री पुरुषोत्तमदास भारतेन्दु जी के समकालीन, फारसी भाषा के विद्वान् और हिन्दी काव्य के मर्मज्ञ थे।

स्कूली शिक्षा समाप्त करने के बाद 1891 ई. में वाराणसी के सीन्स कॉलेज से बी. ए. की डिग्री प्राप्त करके वर्ष 1902 में अयोध्या-नरेश के निजी सचिव नियुक्त हुए और वर्ष 1928 तक इसी पद पर रहे। राजदरबार से सम्बद्ध होने के कारण इनका रहन-सहन सामन्ती था, लेकिन इनमें प्राचीन धर्म, संस्कृति और साहित्य के प्रति गहरी आस्था थी। इन्हें प्राचीन भाषाओं का अच्छा ज्ञान था तथा ज्ञान-विज्ञान की अनेक शाखाओं में गति भी थी। वर्ष 1932 में इनकी मृत्यु हरिद्वार में हुई।

साहित्यिक गतिविधियाँ
इन्होंने ‘साहित्य-सुधानिधि’ और ‘सरस्वती’ के सम्पादन, ‘रसिक मण्डल’ के संचालन तथा ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना एवं उसके विकास में योगदान दिया।

कृतियाँ
गद्य एवं परा दोनों विधाओं में साहित्य सृजन करने वाले रत्नाकर जी मूलतः कवि थे। इनकी प्रमुख कृतियों में हिण्डोला, समालोचनादर्श, हरिश्चन्द्र, गंगालहरी, शृंगारलहरी, विष्णुलहरी, रत्नाष्टक, गंगावतरण तथा उद्धव शतक उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त इन्होंने सुधाकर, कविकुलकण्ठाभरण, दीप-प्रकाश, सुन्दर श्रृंगार, हमीर हठ, प्रकीर्ण गधावली, रस-विनोद, हिम-तरंगिणी, बिहारी-रत्नाकर आदि ग्रन्थों का सम्पादन भी किया।

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष
जगन्नाथ रत्नाकर भावों के कुशल चितेरे होने के कारण उन्होंने मानव के हृदय के सभी कोनों को झाँककर अपने काव्य में ऐसे चित्र प्रस्तुत किए हैं कि पाठक उन्हें पढ़ते ही भाव-विभोर हो जाते हैं।

  1. काव्य का विशुद्ध शुद्ध रूप रत्नाकर जी के काव्य का पण्र्य विषय भक्ति काल के अनुरूप, भक्ति, श्रृंगार, भ्रमर गीत आदि से सम्बन्धित है और उनके वर्णन करने की शैली रीतिकाल के समरूप ही है। अतः उनके विषय में यह सत्य ही कहा गया है कि रत्नाकर जी ने भक्तिकाल की आत्मा को रीतिकाल के ढाँचे में अवतरित कर दिया है। उनके काव्य का विषय शुद्ध से पौराणिक है। उन्होंने उद्ववशतक, गंगावतरण, हरिश्चन्द्र आदि रचनाओं में पौराणिक कथाओं को ही अपनाया है। रत्नाकर जी के काव्य में धार्मिक भावना के साथ-साथ राष्ट्रीय भावना भी मिलती है।
  2. भाव चित्रण रत्नाकर जी भाव-लौक के कुशल चितेरे थे। उन्होंने अपने काव्य में क्रोध, प्रसन्नता, उत्साह, शोक, प्रेम, घृणा आदि मानवीय व्यापारों के सुन्दर चित्र उपस्थित किए हैं;
    जैसे टूक-टूट हुवै है मन मुकुर हमारे हाय,
    चूंकि हूँ कठोर बैन-पाहन चलावौना।
    एक मनमोहन तौ बसि के उजारयौ मोहिं,
    हिय में अनेक मन मोहन बसावी ना।।
  3.  प्रकृति चित्रण रत्नाकार जी ने अपने काव्य में प्रकृति का अत्यन्त ही मनोहारी वर्णन किया है। उनके प्रकृति-चित्रण पर रीतिकालीन प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
  4. रस इनके काव्य में लगभग सभी रसों को समुचित स्थान प्राप्त है, किन्तु संयोग श्रृंगार की अपेक्षा विप्रलम्भ श्रृंगार में अधिक सजीवता व मार्मिकता है। तथा वीर, रौद्र व भयानक रसों का भी सुन्दर वर्णन है।

कला पक्ष

  1. भाषा रत्नाकर जी भाषा के मर्मज्ञ तथा शब्दों के आचार्य थे। सामान्यतया इन्होंने काव्य में प्रौद साहित्यिक ब्रजभाषा को ही अपनाया, लेकिन उनकी भाषा में जहाँ तहाँ बनारसी बोली का भी समावेश देखने को मिलता है। भाषा व्याकरणसम्मत, मधुर एवं प्रवाहयुक्त है। वाक्य-विन्यास सुगठित एवं प्रवाहपूर्ण है। कहावतों एवं मुहावरों का भी कुशल प्रयोग किया है।
  2. छन्द योजना इन्होंने मुख्यतः रोला, छप्पय, दोहा, कवित्त एवं संवैया को अपनाया। उद्धव शतक और श्रृंगारलहरी में रत्नाकर जी ने अपना सर्वाधिक प्रिय छन्द कविता का प्रयोग किया।
  3. अलंकार योजना अलंकारों का समावेश अत्यन्त स्वाभाविक तरीके से हुआ है, इन्होंने मुख्यतः रूपक, उपेक्षा, उपमा, असंगति, स्मरण, प्रतीप, अनुप्रास, श्लेध, यमक आदि अलंकारों का प्रयोग किया। इनकी रचनाओं में प्राचीन और मध्ययुगीन समस्त भारतीय साहित्य का सौष्ठव बड़े स्वस्थ, समुज्ज्वल एवं मनोरम रूप में उपलब्ध होता है।
  4. शैली रत्नाकर जी के काव्य में चित्रात्मक, आलंकारिक व चामत्कारिक शैली का प्रयोग किया गया हैं।

हिन्दी साहित्य में स्थान
रत्नाकर जी हिन्दी के उन जगमगाते रत्नों में से एक हैं, जिनकी आभा चिरकाल तक बनी रहेगी। अपने व्यक्तित्व तथा अपनी मान्यताओं को इन्होंने काव्य में सफल वाणी प्रदान की है। उसकी छाप इनकी साहित्यिक रचनाओं में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर: देने होंगे।

उद्धव-प्रसंग

प्रश्न 1.
भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की
सुधि ब्रज-गाँवनि मैं पावन जबै लगीं।
कहै ‘रतनाकर’ गुवालिनि की झौरि-झौरि
दौरि-दौरि नन्द-पौरि आवन तबै लगीं।
उझकि-उझकि पद-कंजनि के पंजनि पैं
पेखि-पेखि पाती छाती छोहनि छबै लगीं।
मकौं लिख्यौ है कहा, हमकौं लिख्यौ है कहा,
हमकौं लिख्यौ है कहा कहन सबै लगीं।।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश किस कविता से उदधृत है तथा इसके कवि कौन हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश ‘उद्धव प्रसंग’ कविता से उद्धृत है तथा इसके कवि जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ जी हैं।

(ii) गोपियों के अत्यन्त व्याकुल होने के कारण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि कहते हैं कि जब गोपियों को यह ज्ञात हुआ कि उद्धव उनके प्रिय श्रीकृष्ण का कोई सन्देश लेकर आए हैं, तो वे अपने प्रियतम का सन्देश जानने के लिए अत्यन्त व्याकुल हो उठती हैं।

(iii) श्रीकृष्ण द्वारा भेजे गए सन्देश के आगमन पर गोपियों का चित्रण कवि ने किस प्रकार किया है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण द्वारा भेजे गए सन्देश को उनके दूत उद्धव लाते हैं। इसकी सूचना मिलते ही सभी गोपियाँ समूह में दौड़-दौड़कर अपने प्रियतम (कृष्ण) के दूत (उद्धव) से मिलने हेतु नन्द के द्वार पर आने लगी और अपने कमलपी चरणों के पंजों पर उचक-उचककर में श्रीकृष्ण द्वारा भेजे गए सन्देश को देखने लगीं। यहाँ कवि ने गोपियों की व्याकुलता को उजागर किया है।

(iv) “हम लिख्यौ है कहा कहन सबै लगीं।” इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि सभी गोपियाँ अपने प्रियतम द्वारा भेजे गए सन्देश को जानने हेतु उत्कण्ठित हो उठी हैं। वे सभी उद्धव से जानना चाहती हैं कि उनके प्रियतम में उनके लिए क्या-क्या सन्देश भेजे हैं। वे सभी अपने-अपने सन्देश को सुनने के लिए अत्यन्त व्याकुल हो चुकी हैं।

(v) प्रस्तुत पद्यांश के अलंकार सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘झौरि-झौरि’, ‘दौरि-दौरि’, ‘उझकिझकि’, ‘पेखि पेखि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है, ‘छाती छोहिन छदै’ में अनुप्रास अलंकार है, ‘पद-कंजनि’ में ‘रूपक अलंकार’ है।

प्रश्न 2.
कान्ह-दूत कैधौं ब्रह्म-दूत हैं पधारे आप
धारे प्रन फेरन कौ मति ब्रजबारी की।
कहै ‘रतनाकर’ पै प्रीति-रीति जानत ना।
ठानत अनीति आनि नीति लै अनारी की।
मान्यौ हम, कान्ह ब्रह्म एक ही, कह्यौ जो तुम
तौहूँ हमें भावति ना भावना अन्यारी की।
जैहै बनि बिगरि न बारिधिता बारिधि कौं
बूंदता बिलैहे बूंद बिबस बिचारी की।

उपर्युक्त पह्मांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) गोपियों ने उद्धव के आगमन पर क्या प्रश्न किया?
उत्तर:
गोपियों ने उद्धव के आगमन पर प्रश्न किया कि आप जमण्डल में हमारी बुद्धि बदलने का प्रण लेकर कृष्ण के दूत बनकर आए हैं या बह्म के दूत बनकर आए हैं?

(ii) “धारे प्रन फेरन को मति ब्रजबारी की।” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से उद्धव गोपियों का ध्यान कृष्ण प्रेम से हटाना चाहते हैं। उद्धव गोपियों को निर्गुण उपासना के प्रति उपदेश देकर कृष्ण की सगुण उपासना का विरोध गोपियों के समक्ष करते हैं, जिससे गोपियों का हृदय परिवर्तन हो जाए और वे कृष्ण को अपने मन से विस्मृत कर दें।

(iii) कवि ने उद्धव को अनारी क्यों कहा हैं?
उत्तर:
कवि के अनुसार उद्धव को प्रीति की रीति का ज्ञान नहीं हैं और वे बुद्धिहीनों जैसा व्यवहार करके गोपियों के साथ अन्याय कर रहे हैं। वे गोपियों के प्रेमी कृष्ण के स्थान पर ब्रह्म की बातों का उपदेश दे रहे हैं। यही कारण है कि कवि ने उद्धव को अनारी कहा है।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश में ब्रह्म की तुलना किससे की गई है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में ब्रह्म की तुलना गोपियों ने अथाह समुद्र से करते हुए कहा है कि ब्रह्म अथाह समुद्र की तरह है एवं वे जल की बूंदों के समान हैं। समुद्र में जल की कुछ बूंदें मिलें या नहीं मिलें, इससे समुद्र के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, परन्तु बूंद समुद्र में मिल जाए तो उसका अस्तित्व अवश्य की समाप्त हो जाता है।

(v) प्रस्तुत पद्यांश में कौन-सा रस है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में वियोग श्रृंगार रस है। यहाँ गोपियों एवं कृष्ण के वियोग का वर्णन

प्रश्न 3.
धाई जित तित हैं बिदाई-हेत ऊधव की
गोपी भरीं आरति सँभारति न साँसुरी।।
कहें ‘रतनाकर’ मयूर-पच्छ कोऊ लिए।
कोऊ गुंज-अंजली उमाहे प्रेम आँसुरी।।
भाव-भरी कोऊ लिए रुचिर सजाव दही
कोऊ मही मंजु दाबि दलकति पाँसुरी।
पीत पट नन्द जसुमति नवनीत नयौ
कीरति-कुमारी सुरबारी दई बाँसुरी।।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में किस प्रसंग का वर्णन किया गया हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने उद्धव के मथुरा लौटने के समय राधा, यशोदा, नन्द और गोपियों के द्वारा उन्हें कृष्ण के लिए विभिन्न उपहार दिए जाने से सम्बन्धित प्रसंग का वर्णन किया गया है।

(ii) इस पद्यांश में ब्रजवासियों की कैसी दशा का वर्णन किया गया है?
उत्तर:
इस पद्यांश में कवि ने कृष्ण के प्रेम में विह्वल एवं उद्धव की विदाई से दुःखी ब्रजवासियों की भावपूर्ण दशा का चित्रण किया है।

(ii) गोपियाँ कृष्ण के लिए क्या-क्या उपहार देना चाहती हैं?
उत्तर:
गोपियाँ अपनी शक्ति के अनुसार कृष्ण को कुछ-न-कुछ उपहार अवश्य देना चाहती हैं। कोई गोपी मोर पंख लेकर आती है, तो कोई मुँघची की माला, कोई गोपी मलायुक्त दही, और कोई मट्ठा लेकर आती है। यह सभी उपहार गोपियों द्वारा कृष्ण के प्रति प्रेम-भाव को प्रकट करते हैं।

(iv) ब्रजवासियों का कृष्ण के साथ कैसा सम्बन्ध था?
उत्तर:
ब्रजवासियों का कृष्ण से अथाह प्रेम था। वे उनके दर्शन के लिए एवं उनके सान्निध्य के लिए सदैव व्याकुल रहते थे। ब्रज की गोपियाँ अपने से दूर रहने वाले अपने प्रियतम के लिए सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तत्पर रहती थीं।

(v) “पीत पट नन्द जसुमति नवीन नयौ।” पंक्ति में कौन-सा अलंकार हैं ?
उत्तर:
‘पीत पट’ में ‘प’ वर्ण की आवृत्ति तथा ‘नवीन नयौं’ में ‘न’ वर्ण की | आवृत्ति होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 4.
ब्रज-रज-रंजित सरीर सुभ ऊधव को
धाइ बलबीर है अधीर लपटाए लेत।
कहै ‘रतनाकर’ सु प्रेम-मद-माते हेरि
थरकति बाँह थामि थहरि थिराए लेत।।
कीरति कुमारी के दरस-रस सद्य ही की
छलकनि चाहि पलकनि पुलकाए लेत।
परन न देत एक बूंद पुहुमी की कॉछि
पोछि-पछि पट निज नैननि लगाए लेत।।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में किस प्रसंग का वर्णन है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने गोपियों की भक्ति भावना से विल उद्धव जी के मथुरा लौट आने के पश्चात् उनकी दशा को देखकर कृष्ण जी की भाव विह्वलता की रिथति का वर्णन किया है।

(ii) श्रीकृष्ण के मन में गोपियों की मधुर-स्मृति कैसे जागृत हुई?
उत्तर:
जब उद्धव ब्रज से लौटकर मथुरा आए तब उनका शरीर भूल से भरा हुआ था। ब्रज की पवित्र मिट्टी में लिप्त उद्धव को देख श्रीकृष्ण भाव-विह्वल हो उठे और उन्होंने शव को अपनी बाँहों में ले लिया। उद्धव का धूल भरा शरीर तथा गोपियों के प्रति उनका प्रेम-भाव देखकर ही श्रीकृष्ण के मन में गोपियों एवं ब्रजवासियों की मधुर-स्मृति जागृत

(iii) “कहें ‘रत्नाकर’ सु प्रेम-मद-माते हेरि
थरकति बाँह थामि थहरि थिराए लेत।।”
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्य पंक्तियों से कवि का आशय है कि उद्धव को प्रेम-मर्द में लीन देखकर श्रीकृष्ण उनकी काँपती भुजा को थाम लेते हैं और अपने मन में गोपियों के उस पवित्र प्रेम को याद करके वे काँपते हुए हाथों से उद्धव को स्थिर करने का प्रयास करते हैं।

(iv) श्रीकृष्ण को उद्धव के आँसुओं का स्वरूप कैसा लगता है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण को उच के आँसुओं का स्वरूप राधा के समान दिखाई पड़ता है। राधा के दर्शन से पवित्र हुई उद्धव की आँखों से जब गोपियों के वियोग में आँसू निकल आते हैं तो श्रीकृष्ण उन आँसुओं को पृथ्वी पर गिरने से पूर्व ही एक-एक बूंद को अपने दुपट्टे से पोंछकर अपनी आँखों से लगा लेते हैं, क्योंकि ये आँसू जिन आँखों से निकले थे वे आँखें राधा के दर्शन करके आई थीं।

(v) ”पछि-पछि पट निज नैननि लगाए लेत” प्रस्तुत पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
पछि-पछि में पछि शब्द की पुनरावृत्ति होने के कारण पुनरुक्तिप्रकाश तथा ‘निज नैननि लगाए लेत’ में ‘न’ और ‘ल’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है।

गंगावतरण

प्रश्न 5.
निकसि कमण्डल तें उमण्डि नभ-मण्डल खण्डति।
धाई धार अपार बेग सौं बायु बिहण्डति।।
भयौ घोर अति शब्द धमक सौं त्रिभुवन तरजे।
महामेघ मिलि मनहु एक संगहिं सब गरजे।।
निज दरेर सों पौन-पटल फारति फहरावति।।
सुर-पुर के अति सघन घोर धन घसि धहरावति।।
चली धार धुधकारि धरा-दिसि काटति कावा।
सगर-सुतनि के पाप-ताप पर बोलत धावा।।
स्वाति-घटा घराति मुक्ति-पानिप सौं पूरी।
कैधों आवति झुकति सुभ्र आभा रुचि रूरी।।
मीन-मकर-जलव्यालनि की चल चिलक सुहाई।।
सो जनु चपला-चमचमति चंचल छबि छाई।।।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से अवतरित हैं तथा इसके रचनाकार कौन हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियों ‘गंगावतरण’ कविता से अवतरित है तथा इसके रचनाकार आधुनिक काल के ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ जी हैं।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश में किस प्रसंग का वर्णन किया गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने ब्रह्मा जी के कमण्डल से अवतरित हुई गंगा के स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक पर आने के क्रम में उसकी स्वाभाविक दशा का वर्णन किया है। गंगावतरण स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक पर सगर के पुत्रों के उद्धार के लिए हुआ था। इसी भाव की अभिव्यक्ति कवि ने प्रस्तुत पद्यांश में की है।

(iii) गंगा के स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक तक आने के क्रम को कवि ने किस प्रकार वर्णित किया है?
उत्तर:
स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक तक आने के क्रम में गंगा के तीव्र वेग से अति भयंकर शब्द ध्वनित होते हैं, जिसकी धमक से तीनों लोक काँप उठते हैं। पृथ्वी पर गंगा के अवतरण का वेग अत्यधिक प्रचण्ड है, उससे उत्पन्न ध्वनि सुनकर ऐसा प्रतीत हो। रहा है जैसे प्रलयकाल के बादल एक साथ मिलकर गरज रहे हों।

(iv) गंगा की श्वेत धारा को देखकर कैसा प्रतीत हो रहा है?
उत्तर:
आकाश से धरती पर उतरती हुई गंगा की श्वेत धारा को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे मोतियों की कान्ति से परिपूर्ण स्वाति नक्षत्र के मेघों का समूह आकाश में उमड़ रहा हो या सुन्दर श्वेत प्रकाशमान ज्योति पृथ्वी की ओर झुकती हुई चली आ रही हो।

(v) ‘त्रिभुवन’ शब्द का समास विग्रह करते हुए उसका भेद बताइए।
उत्तर:
त्रिभुवन = तीन भुवनों का समाहार (द्विगु समास)।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 2 उद्धव-प्रसंग / गंगावतरण help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 2 उद्धव-प्रसंग / गंगावतरण, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.