UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 6 Molecular Basis of Inheritance

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Chapter Chapter 6
Chapter Name Molecular Basis of Inheritance
Number of Questions Solved 37
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 6 Molecular Basis of Inheritance (वंशागति का आणविक आधार)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्न को नाइट्रोजनीकृत क्षार व न्यूक्लिओटाइड के रूप में वर्गीकृत कीजिए-एडेनीन, साइटीडीन, थाइमीन, ग्वानोसीन, यूरेसील व साइटोसीन।
उत्तर
नाइट्रोजनीकृत क्षार – एडेनीन, थाइमीन, यूरेसील, साइटोसीन।
न्यूक्लिओटाइड – साइटीडीन, ग्वानोसीन।

प्रश्न 2.
यदि एक द्विरज्जुक DNA में 20 प्रतिशत साइटोसीन है तो DNA में मिलने वाले एडेनीन के प्रतिशत की गणना कीजिए।
उत्तर
चारग्राफ के नियमानुसार द्विरज्जुक DNA में →A + G = T + C = 1 होता है। अर्थात् एडेनीन = थाइमीन,
ग्वानिन = साइटोसीन
चूँकि साइटोसीन की दी गई मात्रा 20% है तो ग्वानिन भी 20% होगा।
ग्वानिन + साइटोसीन = 20 + 20 = 40%
A + G = 100 – 40%
A + G = 60%
चूँकि A = G होता है; अत: एडेनीन की मात्रा = 60/2 = 30% होगी।

प्रश्न 3.
यदि डी०एन०ए० के एकरज्जुक के अनुक्रम निम्नवत् लिखे हैं –
5′ – ATGCATGCATGCATGCATGCATGCATGC – 3′
तो पूरक रज्जुक के अनुक्रम को 5 → 3 दिशा में लिखिए।
उत्तर
डी०एन०ए० द्विकुण्डली संरचना होती है अर्थात् यह दो पॉलिन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं (polynucleotide chains) से बना होता है। दोनों श्रृंखलाएँ प्रतिसमानान्तर ध्रुवणता रखती हैं। इसका तात्पर्य है यदि एक श्रृंखला की ध्रुवणता 5 से 3′ की ओर हो तो दूसरे की ध्रुवणता 3 से 5′ की तरफ होगी।

दोनों श्रृंखलाओं के नाइट्रोजनी क्षार परस्पर हाइड्रोजन बन्ध (bonds) द्वारा जुड़े रहते हैं। ऐडेनीन दो हाइड्रोजन बन्ध द्वारा थाइमीन (A = T) से और साइटोसीन तीन हाइड्रोजन बन्ध द्वारा ग्वानीन (C ≡ G) से जुड़े होते हैं। इसके फलस्वरूप प्यूरीन (purine) के विपरीत दिशा में पिरिमिडीन (pyrimidine) होता है। इससे डी०एन०ए० द्विकुण्डली के दोनों पॉलिन्यूक्लियोटाइड के मध्य समान दूरी बनी रहती है। अतः डी०एन०ए० के पूरक रज्जुक (श्रृंखला) में नाइट्रोजनीकृत क्षार का अनुक्रम निम्नवत् होगा –
5′ – ATGCATGCATGCATGCATGCATGCATGC-3′
3′ – TACGTACGTACGTACGTACGTACGTACG-5′

प्रश्न 4.
यदि अनुलेखन इकाई में कूट लेखन रज्जुक के अनुक्रम को निम्नवत् लिखा गया है –
5′ – ATGCATGCATGCATGCATGCATGCATGC – 3′
तो दूत-आर०एन०ए० के अनुक्रम को लिखिए।
उत्तर
आर०एन०ए० का निर्माण डी०एन०ए० से होता है। आर०एन०ए० सामान्यतया एकरज्जुकी संरचना (single strand structure) होती है। इसमें थाइमीन नाइट्रोजनीकृत क्षार के स्थान पर यूरेसिल (uracil) पाया जाता है। डी०एन०ए० का एकरज्जुक (अनुलेखन इकाई) से आनुवंशिक सूचनाओं का दूत-आर०एन०ए० (m-R.N.A.) में प्रतिलिपिकरण करने की प्रक्रिया अनुलेखन (transcription) कहलाती है।
यदि कूटलेखन रज्जुक (coding strand) के अनुक्रम निम्नवत् हैं –
5′ – ATGCATGCATGCATGCATGCATGCATGC – 3’।
तो दूत-आर०एन०ए० (m-R.N.A.) के अनुक्रम निम्नवत् होंगे –
5′ – AUGCAUGCAUGCAUGCAUGCAUGCAUGC – 3′

प्रश्न 5.
DNA ढिकुंडली की कौन-सी विशेषता ने वाटसन व क्रिक को DNA प्रतिकृति के सेमी कंजर्वेटिव रूप को कल्पित करने में सहयोग किया? इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर
वाटसन व क्रिक ने DNA का द्विकुंडली मॉडल दिया था। इस मॉडल की मुख्य विशेषता पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखलाओं के बीच युग्मन का होना था। पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखलाओं में क्षार युग्मन ही एक ऐसी विशेषता थी जिसने वाटसन व क्रिक को DNA प्रतिकृति के सेमी कंजर्वेटिव रूप को कल्पित करने में सहयोग किया था। क्षार-युग्मन के इसी गुण के आधार पर श्रृंखलाएँ एक-दूसरे की पूरक बनती हैं अर्थात् एक DNA रज्जुक में क्षार अनुक्रम पता होने पर दूसरे रज्जुक के क्षार युग्मन को ज्ञात किया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त DNA का प्रत्येक रज्जुक, नये DNA रज्जुक के संश्लेषण हेतु साँचे का कार्य करता है। इस साँचे से बना द्विकुंडलित DNA अपने जनक DNA के समरूप होता है। DNA प्रतिकृतिकरण की सेमी कंजर्वेटिव पद्धति में DNA के दोनों रज्जुक पृथक् होकर नये रज्जुक के संश्लेषण हेतु साँचे के समान कार्य करते हैं। DNA प्रतिकृति में एक जनक रज्जुक व एक नया रज्जुक होता है।

प्रश्न 6.
टेम्पलेट (डी०एन०ए० या आर०एन०ए०) की रासायनिक प्रकृति व इससे (डी०एन०ए० या आर०एन०ए०) संश्लेषित न्यूक्लीक अम्लों की प्रकृति के आधार पर न्यूक्लीक अम्ल पॉलिमरेज के विभिन्न प्रकार की सूची बनाइए।
उत्तर
न्यूक्लीक अम्ल पॉलिमरेज निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –
1. डी०एन०ए० पॉलिमरेज (D.N.A. polymerase) एन्जाइम प्रतिकृति (replication) के लिए आवश्यक है। यह डी०एन०ए० टेम्पलेट का उपयोग डि-ऑक्सीन्यूक्लियोटाइड के बहुलकन (polymerisation) को प्रेरित करने के लिए करता है। डी०एन०ए० अणुओं की दोनों श्रृंखलाएँ एकसाथ पृथक् नहीं होतीं। डी०एन०ए० द्विकुण्डली प्रतिकृति हेतु छोटे-छोटे भागों में खुलती है। इसके फलस्वरूप बनने वाले खण्ड परस्पर डी०एन०ए० लाइगेज (D.N.A. ligase) एन्जाइम द्वारा जुड़ जाते हैं। डी०एन०ए० पॉलिमरेज स्वयं प्रतिकृति प्रक्रम का प्रारम्भ नहीं कर सकते। यह कुछ निश्चित स्थल पर संवाहक (vector) की सहायता से होती है।

2. आर०एन०ए० पॉलिमरेज (R.N.A. polymerase) – यह डी०एन०ए० पर निर्भर आर०एन०ए० पॉलिमरेज (D.N.A. dependent R.N.A. polymerase) होता है। यह D.N.A. को सभी प्रकार के आर०एन०ए० के अनुलेखन (transcription) के लिए उत्प्रेरित करता है। आर०एन०ए० पॉलिमरेजे अस्थायी रूप से प्रारम्भन कारक या समापन कारक से जुड़कर अनुलेखन का प्रारम्भ या समापन करता है। केन्द्रक में डी०एन०ए० पर निर्भर आर०एन०ए० पॉलिमरेज के अतिरिक्त निम्नलिखित तीन प्रकार के आर०एन०ए० पॉलिमरेज मिलते हैं –

  1. आर०एन०ए० पॉलिमरेज I – यह राइबोसोमल आर०एन०ए० (r-R.N.A.) को अनुलेखित (transcribes) करता है।
  2. आर०एन०ए० पॉलिमरेज III – यह ट्रान्सफर आर०एन०ए० (t-R.N.A.) तथा छोटे केन्द्रकीय आर०एन०ए० के अनुलेखन के लिए उत्तरदायी होता है।
  3. आर०एन०ए० पॉलिमरेज II – यह सन्देशवाहक आर०एन०ए० (m-R.N.A.) के पूर्ववर्ती विषमांगी केन्द्रकीय आर०एन०ए० (heterogenous nuclear R.N.A.-hnR.N.A.) का अनुलेखन करता है।

प्रश्न 7.
DNA आनुवंशिक पदार्थ है, इसे सिद्ध करने हेतु अपने प्रयोग के दौरान हर्णे व चेज ने DNA व प्रोटीन के बीच कैसे अंतर स्थापित किया?
उत्तर
हशें वे चेज ने DNA को आनुवंशिक पदार्थ सिद्ध करने हेतु P32 व P32 आइसोटॉप्स युक्त माध्यम, में ई० कोलाई जीवाणु का संवर्द्धन कराया। कुछ समय वृद्धि करने के पश्चात् जीवाणु को जीवाणुभोजी द्वारा संक्रमित कराया गया। संक्रमण के पश्चात् देखा गया कि जीवाणुभोजी का प्रोटीन आवरण S35 रेडियोधर्मी युक्त हो गया था जबकि इसके DNA में सल्फर नहीं होता। इसके विपरीत जीवाणुभोजी का DNA P32 रेडियोधर्मी आइसोटॉप्स की उपस्थिति दिखा रहा था, क्योंकि DNA में
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फॉस्फोरस होता है। प्रोटीन आवरण में P32 अनुपस्थित था। P32 रेडियोधर्मी युक्त जीवाणुभोजी द्वारा ऐसे जीवाणु को संक्रमित कराया गया जिसमें रेडियोधर्मी तत्त्व नहीं थे। संक्रमण के पश्चात् देखा गया कि समस्त जीवाणु रेडियोधर्मी हो गये थे। अधिकांश रेडियोधर्मी आइसोटॉप्स जीवाणुभोजी की अगली पीढ़ी में भी स्थानांतरित हो गये थे।

रेडियोधर्मी तत्त्व रहित जीवाणुओं में S32 युक्त जीवाणुभोजी द्वारा संक्रमण कराने पर तथा जीवाणुभोजी पृथक् करने पर देखा गया कि जीवाणुओं में रेडियोधर्मी तत्त्व मौजूद नहीं थे बल्कि ये जीवाणुभोजी के प्रोटीन आवरण में ही रह गये थे। उपरोक्त प्रयोग सिद्ध करता है कि जीवाणुभोजी का DNA ही वह पदार्थ है जो नये जीवाणुभोजी उत्पन्न करता है व संक्रमण में भाग लेता है। यह सिद्ध हो गया कि DNA आनुवंशिक पदार्थ है, प्रोटीन नहीं। इसके अतिरिक्त DNA फॉस्फोरस युक्त होता है जबकि प्रोटीन में फॉस्फोरस नहीं होता है। DNA सल्फर रहित होता है, जबकि प्रोटीन, सल्फर युक्त होता है।

प्रश्न 8.
निम्न के बीच अंतर बताइए –
(क) पुनरावृत्ति DNA एवं अनुषंगी DNA
(ख) mRNA और tRNA
(ग) टेम्पलेट रज्जु और कोडिंग रज्जु
उत्तर
(क) पुनरावृत्ति DNA एवं अनुषंगी DNA में अंतर
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(ख) एमआरएनए और टीआरएनए में अंतर
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(ग) टेम्पलेट रज्जु और कोडिंग रज्जु में अंतर
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प्रश्न 9.
स्थानान्तरण के दौरान राइबोसोम की दो मुख्य भूमिकाओं की सूची बनाइए।
उत्तर
स्थानान्तरण (Translation) – इस प्रक्रिया में ऐमीनो अम्लों के बहुलकन (polymerisation) से पॉलिपेप्टाइड का निर्माण होता है। ऐमीनो अम्लों के क्रम व अनुक्रम सन्देशवाहक आर०एन०ए० में पाए जाने वाले क्षारों के अनुक्रम पर निर्भर करते हैं। ऐमीनो अम्ल पेप्टाइड बन्ध (peptide bonds) द्वारा जुड़े रहते हैं। स्थानान्तरण प्रक्रिया पूर्ण होने पर पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला राइबोसोम से पृथक् हो जाती है।
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स्थानान्तरण में राइबोसोम की भूमिका
1. राइबोसोम का छोटा सबयूनिट m-R.N.A. के प्रथम कोडॉन (AUG) के साथ बन्धित होकर समारम्भ कॉम्प्लैक्स (initiation complex) ऐमीनो ऐसिल t-R.N.A. बनाता है जिसकी पहचान प्रारम्भक t-R.N.A. द्वारा की जाती है। ऐमीनो अम्ल t-R.N.A. से जुड़कर एक जटिल रचना बनाते हैं जो आगे चलकर t-R.N.A. के प्रति प्रकूट (anticodon) से पूरक क्षार युग्म बनाकर m-R.N.A. के उचित आनुवंशिक कोडॉन से जुड़ जाती है।

2. राइबोसोम के बड़े सबयूनिट पर t-R.N.A. अणुओं के जुड़ने के लिए दो खाँच होती हैं, इन्हें P-site या दाता स्थल और A-site या ग्राही स्थल कहते हैं। P-site (दाता-स्थल) पर पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला को धारण करने वाला t-R.N.A. जुड़ता है। A-site (ग्राही स्थल) पर ऐमीनो ऐसिल t-R.N.A. जुड़ता है। बड़े सबयूनिट के पेप्टाइड सिन्थेटेज (peptide synthetase) एन्जाइम पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला के ऐमीनो अम्ल के -COOH तथा ऐमीनो ऐसिल t-R.N.A. के ऐमीनो अम्ल के – NH, के मध्य पेप्टाइड बन्ध बनाता है।

प्रश्न 10.
उस संवर्धन में जहाँ ई० कोलाई वृद्धि कर रहा हो लैक्टोस डालने पर लैक-ओपेरॉन उत्प्रेरित होता है, तब कभी संवर्धन में लैक्टोस डालने पर लैक-ओपेरॉन कार्य करना क्यों बन्द कर देता है?
उत्तर
ओपेरॉन संकल्पना
मनुष्य की आँत में पाए जाने वाले जीवाणु ई० कोलाई सामान्यतया लैक्टोस के अपचय से ऊर्जा प्राप्त करते हैं। जैकब एवं मोनोड (Jacob & Monod, 1961) ने पता लगाया कि इसके D.N.A. में तीन जीन का एक समूह लैक्टोस का अपचय करने वाले तीन एन्जाइम्स के संश्लेषण से सम्बन्धित होता है। पोषण माध्यम में लैक्टोस होता है तो ये जीन सक्रिय होते हैं। पोषण माध्यम में लैक्टोस के अभाव में ये निष्क्रिय रहते हैं। जैकब एवं मोनोड ने इस जीन की सक्रियता के नियमन के लिए ओपेरॉन संकल्पना (operon concept) प्रस्तुत की।

ओपेरॉन संकल्पना के अनुसार जीन की सक्रियता का नियमन अनुलेखन स्तर पर प्रेरण या दमन (induction or repression) द्वारा होता है। लैक्टोस का अपचय करने वाले एन्जाइम्स β –गैलेक्टोसाइडेज (β-galactosidase), गैलेक्टोस परमीएज (galactose permease) तथा थायोगैलेक्टोसाइडेज ट्रान्सऐसीटिलेज (thiogalactosidase transacetylase) हैं। इनके संरचनात्मक जीन्स (structural genes) को क्रमशः सिस्ट्रॉन-z, सिस्ट्रॉन-y तथा सिस्ट्रॉन-a द्वारा प्रदर्शित करते हैं। ये एक-दूसरे के निकट स्थित होते हैं। इनमें परस्पर समन्वय होता है।

तीन जीन इनको कन्ट्रोल करते हैं, इन्हें रेगुलेटर जीन (regulator gene), प्रोमोटर जीन (promoter gene) तथा ओपरेटर जीन (operator gene) कहते हैं। किसी उपापचयी तन्त्र में एन्जाइम्स को कोड करने वाले जीन सामान्यतया समूह (cluster) के रूप में गुणसूत्र पर स्थित होती हैं। ये एक कार्यक जटिल (functional complex) बनाती हैं। इस पूरे तन्त्र को लैक ओपेरॉन कहते हैं। इसमें संरचनात्मक जीन (structural genes), प्रोमोटर जीन (promoter gene), ओपरेटर जीन (operator gene) तथा रेगुलेटर जीन (regulater gene) आदि मिलती हैं।

लैक ओपेरॉन = रेगुलेटर जीन + प्रोमोटर जीन + ओपेरेटर जीन + संरचनात्मक जीन लैक ओपेरॉन का प्रकार्य
(A) लैक्टोस की अनुपस्थिति में (In absence of Lactose) – लैक्टोस प्रेरक की अनुपस्थिति में
रेगुलेटर जीन एक लैक निरोधक या दमनकारी प्रोटीन बनाता है। यह ओपरेटर जीन से बन्धित होकर इसके अनुलेखन को रोकता है। इसके फलस्वरूप संरचनात्मक जीन m-R.N.A.
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का संश्लेषण नहीं कर पाते और प्रोटीन संश्लेषण रुक जाता है। यह दमनकर (repression) का उदाहरण है।

(B) लैक्टोस की उपस्थिति में (In presence of Lactose) – माध्यम में लैक्टोस प्रेरक के उपस्थित होने पर प्रोमोटर कोशिका में प्रवेश करके रेगुलेटर जीन से उत्पन्न दमनकर से बन्धित होकर जटिल यौगिक बनाता है। इसके कारण दमनकर ओपरेटर से बन्धित नहीं हो पाता। और ओपरेटर स्वतन्त्र रहता है। यह R.N.A.-पॉलिमरेज को प्रोमोटर जीन के समारम्भन स्थल से बन्धित होने के लिए प्रेरित करता है जिसके फलस्वरूप पॉलिसिस्ट्रोनिक लैक m-R.N.A. का अनुलेखन होता है। यह लैक्टोस अपचय के लिए आवश्यक तीनों एन्जाइम्स को कोडित करता है। इस क्रिया को एन्जाइम उत्प्रेरण कहते हैं। यह उत्प्रेरण या प्रेरण (induction) का उदाहरण है। इसमें लैक्टोस उत्प्रेरक का कार्य करता है।

(C) सहदमनकर (Co-repressor) – कभी-कभी मेटाबोलाइट (लैक्टोस) से बन्धित होने पर निरोधक या दमनकर की संरचना में परिवर्तन हो जाता है। यह ओपरेटर से बन्धित होकर इसके अनुलेखन (transcription) को रोकता है। इसमें मेटाबोलाइट (लैक्टोस) को सहदमनकर कहते हैं, क्योंकि यह ओपरेटर स्थल (operator site) को निष्क्रिय करने के लिए दमनकर को सक्रिय करता है।

प्रश्न 11.
निम्न के कार्यों का वर्णन (एक अथवा दो पंक्तियों में) कीजिए –

  1. उन्नायक (प्रोमोटर)
  2. अन्तरण आर०एन०ए० (t-RNA)
  3. एक्जॉन (Exons)

उत्तर

  1. प्रोमोटर – DNA का यह अनुक्रम जीन अनुलेखन इकाई बनाता है तथा अनुलेखन इकाई में स्थित टेम्पलेट व कूटलेखन रज्जुक का निर्धारण करता है।
  2. tRNA – tRNA प्रोटीन संश्लेषण के दौरान अमीनो अम्लों को कोशिकाद्रव्य से राइबोसोम तक स्थानान्तरित करता है।
  3. एक्जॉन (Exon) – एक्जॉन में नाइट्रोजनी क्षारकों का अनुक्रम होता है तथा ये mRNA के संश्लेषण में सहायता करते हैं।

प्रश्न 12.
मानव जीनोम परियोजना को महापरियोजना क्यों कहा जाता है?
उत्तर
मानव जीनोम परियोजना एक अत्यन्त व्यापक स्तर की योजना है जिसके अन्तर्गत मनुष्य के जीनोम में उपस्थित समस्त जीनों की पहचान की जाती है। मानव जीनोम में 3 x 109 क्षार युग्म हैं तथा प्रति क्षार पहचानने के लिए तीन अमेरिकी डॉलर का खर्च आता है। इस प्रकार संपूर्ण योजना पर लगभग 9 मिलियन डॉलर का खर्च आएगा। ज्ञात अनुक्रमों का संग्रह करने के लिए 1000 पृष्ठों की लगभग 3300 पुस्तकों की आवश्यकता होगी, यदि प्रत्येक पृष्ठ पर 10000 शब्द लिखे जायें। इस योजना को पूरी होने में 13 वर्ष का समय अनुमानित किया गया है।

अनेक देशों के हजारों वैज्ञानिक एक साथ इस पर कार्य करते हैं तो इसकी प्रथम प्रक्रिया पूर्ण होने में 10 वर्ष का समय लगता है। इतने स्तर के आँकड़ों के संग्रह, समापन व विश्लेषण के लिए उच्च कोटि के सांख्यिकीय साधनों की आवश्यकता होगी। अतः अपने इस वृहद् स्तर के कारण यह योजना, महापरियोजना कहलाती है।

प्रश्न 13.
डी०एन०ए० अंगुलिछापी क्या है? इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालिए। (2014, 15, 16, 17, 18)
उत्तर
डी०एन०ए० अंगुलिछापी
डी०एन०ए० फिंगर प्रिन्टिंग तकनीक (अंगुलिछापी) को सर्वप्रथम एलेक जेफ्रे (Alec Jaffreys) ने इंग्लैण्ड में विकसित किया था। इसकी सहायता से विभिन्न व्यक्तियों अथवा जीवधारियों के मूल आनुवंशिक पदार्थ (D.N.A.) में भिन्नताओं को देखा जा सकता है। जैसा कि ज्ञात है कि जीवधारी की प्रजाति के सभी सदस्यों के डी०एन०ए० प्रारूप भिन्न होते हैं। यही कारण है कि समरूपी जुड़वाँ (identical twins) को छोड़कर किसी भी व्यक्ति का फिंगर प्रिन्ट एक-दूसरे से मेल नहीं करता। प्रत्येक जीवधारी की सभी कोशिकाओं में एक जैसा डी०एन०ए० पाया जाता है। डी०एन०ए० के कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से भिन्न होता है। डी०एन०ए० के फिंगर प्रिन्टिग द्वारा डी०एन०ए० में स्थित उन क्षेत्रों की पहचान की जाती है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में किसी भी मात्रा में भिन्नता दर्शाते हैं।

डी०एन०ए० के इन्हीं क्षेत्रों के कारण शरीर में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं। इन विभिन्नता दर्शाने वाले सैटेलाइट डी०एन०ए० (Satellite D.N.A.) को प्रोब (परीक्षण करने वाली सलाई) की भाँति प्रयोग करते हैं। इसमें काफी बहुरूपता होती है। एक्स-रे फिल्म पर एक पट्टिकाओं (bands) के क्रम के रूप में प्राप्त करके उनकी स्थिति, विशिष्टता और पहचान कर सकते हैं। किसी एक व्यक्ति के डी०एन०ए० के क्रम पट्टियों के रूप में अनिवार्य रूप से विशिष्ट होते हैं। समरूप जुड़वाँ के डी०एन०ए० पूर्णरूपेण समरूप हो सकते हैं।
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इन पट्टियों का परिचित्र इलेक्ट्रोफोरेसिस तथा एक रेडियोऐक्टिव पदार्थ की सहायता से प्राप्त किया जाती है। विद्युत क्षेत्र की उपस्थिति में क्षारों की मात्रा विलोमानुपाती ढंग से दूरियाँ तय करती है जो कि बैण्ड्स या पट्टिकाओं के रूप में दृष्टिगोचर होती है।

डी०एन०ए० फिंगर प्रिन्ट विभिन्न ऊतकों (खून, बाल पुटक, त्वचा, अस्थि, लार, शुक्राणु आदि) से प्राप्त किए जा सकते हैं। डी०एन०ए० फिंगर प्रिन्ट का उपयोग अपराध मामलों जैसे-खूनी, बलात्कारी को पहचानने के लिए, पितृत्व के झगड़ों में पारिवारिक सम्बन्धों को ज्ञात करने आदि में किया जाता है।

प्रश्न 14.
निम्न का संक्षिप्त वर्णन कीजिए

  1. अनुलेखन, (2015)
  2. बहुरूपता,
  3. स्थानांतरण,
  4. जैव सूचना विज्ञान

उत्तर
1. अनुलेखन (Transcription) – DNA के रज्जुक में कूट के रूप में निहित आनुवंशिक सूचनाओं का mRNA में प्रतिलिपिकरण, अनुलेखन कहलाता है। इस प्रक्रिया के लिए RNA पॉलीमरेज नामक एंजाइम सहायक होता है। सर्वप्रथम DNA के न्यूक्लिओटाइड्स बनते हैं। तत्पश्चात् DNA रज्जुक अलग होकर साँचे के समान कार्य करने लगते हैं जिसके अनुसार नयी श्रृंखला में क्षारक क्रम व्यवस्थित होते हैं व H-बंधों द्वारा आपस में जुड़ जाते हैं।

2. बहुरूपता (Polymorphism) – जीन जनसंख्या में आनुवंशिक उत्परिवर्तनों का, उच्च आवृत्ति में होना, बहुरूपता कहलाता है। ऐसे उत्परिवर्तन DNA अनुक्रमों के परिवर्तित होने के कारण उत्पन्न होते हैं तथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशागत होकर एकत्रित होते हैं तथा बहुरूपता का कारण बनते हैं। बहुरूपता अनेक प्रकार की होती है तथा इसमें एक ही न्यूक्लिओटाइड में अथवा वृहद स्तर पर परिवर्तन होते हैं।

3. स्थानान्तरण (Translation) – mRNA न्यूक्लिओटाइड की श्रृंखलाओं का अमीनो अम्ल की | पॉलीपेप्टाइड शृंखलाओं में परिवर्तित होना, स्थानान्तरण कहलाता है। यह प्रक्रिया राइबोसोम पर, प्रोटीन संश्लेषण के दौरान होती है। इसमें सर्वप्रथम एंजाइम व ATP द्वारा अमीनो अम्ल का सक्रियकरण होता है। सक्रिय अमीनो अम्ल tRNA पर स्थानांतरित होते हैं वे संश्लेषण प्रारंभ हो जाता है। तत्पश्चात् पॉलीपेप्टाइड अनुक्रम निर्धारित होते हैं। tRNA अणुओं के मध्य उपस्थित पेप्टाइड स्थल द्वारा पेप्टाइड बंध निर्मित होते हैं।

4. जैव सूचना विज्ञान (Bioinformatics) – जीव विज्ञान का वह क्षेत्र जिसके अंतर्गत जीवों के जीनोम संबंधी आँकड़ों का संग्रह, विश्लेषण किया जाता है, जैव सूचना विज्ञान कहलाता है। इसमें मानव जीनोम के मानचित्र बनाये जाते हैं वे DNA के अनुक्रमों को पंक्तिबद्ध किया जाता है। इसका उपयोग कृषि सुधार, ऊर्जा उत्पादन, पर्यावरण सुधार, स्वास्थ्य सुरक्षा आदि में किया जाता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध उपस्थित है – (2017)
(क) एडीपी में ।
(ख) एटीपी में
(ग) सी०एएमपी में
(घ) इनमें से किसी में नहीं
उत्तर
(घ) इनमें से किसी में नहीं

प्रश्न 2.
हरगोविन्द खुराना जाने जाते हैं – (2015, 17)
(क) प्रोटीन संश्लेषण के लिए
(ख) RNA संरचना की खोज के लिए
(ग) DNA संरचना की खोज के लिए
(घ) DNA लाइगेज एन्जाइम की खोज के लिए
उत्तर
(क) प्रोटीन संश्लेषण के लिए

प्रश्न 3.
डी०एन०ए० और आर०एन०ए० में समानता है – (2017)
(क) दोनों न्यूक्लियोटाइड्स की पॉलीमर श्रृंखला है।
(ख) दोनों में एक समान शर्करा पायी जाती है।
(ग) दोनों एक समान पाइरीमिडाइन्स से युक्त होते हैं।
(घ) दोनों इकहरी पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं के रूप में होते हैं।
उत्तर
(क) दोनों न्यूक्लियोटाइड्स की पॉलीमर श्रृंखला है।

प्रश्न 4.
संदेशवाहक आर०एन०ए० का निर्माण होता है – (2017)
(क) केन्द्रक में
(ख) राइबोसोम में
(ग) गॉल्जीकाय में
(घ) एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम में
उत्तर
(क) केन्द्रक में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आनुवंशिकता के गुणसूत्रीय सिद्धान्त को किसने प्रतिपादित किया? (2009)
उत्तर
सट्टन तथा बोवेरी (Sutton & Boveri, 1902) ने।

प्रश्न 2.
जीन की परिभाषा दीजिए। ये कहाँ पाये जाते हैं? (2014)
उत्तर
एक जीव के किसी भी लक्षण को निर्धारित करने वाले मेंडेलियन कारक को जीन कहते हैं। ये आनुवंशिक पदार्थ की एक प्रकार्यक इकाई होती है। जीन गुणसूत्र पर उपस्थित होते हैं।

प्रश्न 3.
अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखकर रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए। (2014)
डी०एन०ए० →…… → प्रोटीन्स” अणुजैविकी का केन्द्रीय सिद्धान्त है।
उत्तर
“डी०एन०ए० → आर०एन०ए० → प्रोटीन्स” अणुजैविकी का केन्द्रीय सिद्धान्त है।

प्रश्न 4.
न्यूक्लियोसाइड्स तथा न्यूक्लियोटाइड्स में अन्तर बताइए। (2010, 14)
उत्तर

  1. एक न्यूक्लियोटाइड न्यूक्लिक अम्ल की एक पूर्ण इकाई है, जबकि न्यूक्लियोसाइड में एक फॉस्फेट मूलक (PO4) की कमी होती है।
  2. स्वभाव में न्यूक्लियोसाइड्स क्षारकीय होते हैं जबकि न्यूक्लियोटाइड्स अम्लीय होते हैं।

प्रश्न 5.
न्यूक्लिओटाइड्स में पायी जाने वाली दो शर्कराओं के नाम सूत्र सहित लिखिए। (2010, 11)
उत्तर

  1. राइबोज शर्करा – C5H10O5 तथा
  2. डीऑक्सीराइबोज शर्करा – C5H10O4

प्रश्न 6.
न्यूक्लिओटाइड्स में पाये जाने वाले प्यूरीन के नाम लिखिए।
उत्तर
एडीनीन (adenine) तथा ग्वानीन (guanine)।

प्रश्न 7.
आर०एन०ए० तथा डी०एन०ए० का पूरा नाम लिखिए। (2015)
उत्तर
आर०एन०ए० = राइबो न्यूक्लिक ऐसिड
डी०एन०ए० = डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड

प्रश्न 8.
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक डी०एन०ए० में अन्तर बताइए। (2012)
उत्तर
प्रोकैरियोटिक DNA के साथ प्रोटीन जुड़े नहीं रहते जबकि यूकैरियोटिक DNA के साथ हिस्टोन प्रोटीन जुड़े रहते हैं।

प्रश्न 9.
यूकैरियोटिक कोशिकाओं में कौन-से दो प्रकार के डी०एन०ए० पाये जाते हैं?
उत्तर
B – DNA तथा Z – DNA

प्रश्न 10.
Z – DNA क्या है? इसके प्रत्येक कुण्डल में कितने न्यूक्लिओटाइड्स होते हैं?
उत्तर
उच्च लवणता की स्थिति में B – DNA परिवर्तित होकर Z – DNA बनाता है। इसमें कुण्डलन वामावर्त होता है। कुण्डल का व्यास 18 Å तथा प्रत्येक कुण्डल में 12 जोड़ी न्यूक्लिओटाइड्स होते हैं।

प्रश्न 11.
डी०एन०ए० अणु का द्विकुण्डलित मॉडल किसने और कब प्रतिपादित किया? (2011)
उत्तर
डी०एन०ए० अणु का द्विकुण्डलित मॉडल 1953 ई० में वाटसन, क्रिक, विलकिन्स व फैंकलिन (J.D. Watson, F.H.C. Crick, M.H.F. Wilkins and R. Franklin) नामक वैज्ञानिकों ने प्रतिपादित किया। इनके इस कार्य के लिए इन्हें सन् 1962 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

प्रश्न 12.
पारक्रमण (transduction) क्या है? (2014)
उत्तर
पारक्रमण वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत वायरस (विषाणु) के द्वारा DNA का स्थानान्तरण एक जीवाणु से दूसरे जीवाणु में किया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
डीऑक्सीराइबोज शर्करा क्या है? इस शर्करा की अणु संरचना बनाइए। (2012, 14)
उत्तर
डीऑक्सीराइबोज शर्करा (deoxyribose sugar) DNA में पाई जाती है। यह पाँच कार्बन युक्त (5C) होती है। इसका पाँचवाँ कार्बन परमाणु वलय से बाहर होता है। शर्करा का पहला कार्बन परमाणु हमेशा नाइट्रोजन क्षारक के साथ ग्लाइकोसिडिक बन्ध (glycosidic bond) द्वारा जुड़ा रहता है जबकि तीसरा तथा पाँचवाँ कार्बन परमाणु हमेशा फॉस्फेट अणु के साथ जुड़ता है। दो शर्करा अणु एक-दूसरे के साथ तीसरे कार्बन (3C) तथा पाँचवें कार्बन (5C) के साथ एक फॉस्फेट अणु फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध (phosphodiester bond) द्वारा जुड़े रहते हैं।
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प्रश्न 2.
DNA अणु की संरचना में चारगैफ के नियमों की महत्ता को स्पष्ट कीजिए। (2012)
उत्तर
चारगैफ (Chargaff) ने विभिन्न जीवों के DNA का अध्ययन किया और बताया कि

  1. सभी DNA अणुओं में प्यूरीन क्षारक की मात्रा पिरीमिडीन क्षारक के बराबर होती है। अतः
    [latex s=2]\frac { adenine+guanine }{ purine } =\frac { thymine+cytosine }{ pyrimidine } [/latex]
  2. भिन्न-भिन्न जातियों के जीवों के DNA में एडीनीन + थाइमीन तथा ग्वानीन + साइटोसीन का अनुपात
    (A + T : G + C) भिन्न-भिन्न होता है परन्तु एक ही जातियों के जीवों में यह समान होता है।
  3. एक ही जीव-जाति के सदस्यों में पाये जाने वाले DNA के कुल अणुओं में क्षारकों की संख्या समान होती है।

उपर्युक्त विचारों को “चारगैफ नियम” (Chargaff’s rule) के रूप में जाना जाता है।
वाटसन एवं क्रिक (Watson and Crick) ने भी DNA का मॉडल प्रस्तुत करने के लिये चारगैफ के नियमों की सहायता ली।

प्रश्न 3.
डी०एन०ए० तथा आर०एन०ए० में अन्तर लिखिए। (2009, 10, 11, 12, 13, 14, 16, 17)
उत्तर
डी०एन०ए० तथा आर०एन०ए० में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 6 Molecular Basis of Inheritance img-9

प्रश्न 4.
RNA कितने प्रकार के होते हैं? इनके कार्य बताइए। (2013, 16)
या
राइबोसोमल आर०एन०ए० पर टिप्पणी लिखिए। (2010)
या
प्रोटीन संश्लेषण में भाग लेने वाले विभिन्न प्रकार के RNA अणुओं का वर्णन कीजिए। (2012)
या
विभिन्न प्रकार के आर०एन०ए० का नाम लिखिए। (2014)
उत्तर
आर०एन०ए० के प्रकार
RNA अधिक अणुभार वाली पॉलीन्यूक्लियोटाइड से मिलकर बना है। यह DNA से भिन्न होता है, क्योंकि इसमें डी-ऑक्सीराइबोज शर्करा के स्थान पर राइबोज शर्करा होती है और नाइट्रोजन बेस थाइमीन के स्थान पर यूरेसिल होता है। प्रत्येक कोशिका में RNA निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं –

1. सन्देशवाहक आर0एन0ए0 (mRNA) – इनका निर्माण केन्द्रक में उपस्थित DNA पर ट्रांसक्रिप्शन की क्रिया द्वारा होता है। ये कोशिका की कुल RNA का 3 – 5% होते हैं और इनका आणविक-भार 500,000 से 2,000,000 होता है। केन्द्रक में DNA साँचे पर इनका निर्माण होता है। सन् 1961 में फ्रैंसिस जैकब (Francis Jacob) तथा जैक्यू मोनाड (Jacques Monod) ने इन्हें सन्देशवाहक RNA अणुओं का नाम दिया।
कार्य – सन्देशवाहक RNA अणु केन्द्रक से बाहर कोशिकाद्रव्य में आ जाता है। यहाँ यह केन्द्रक से आदेश लेकर राइबोसोम पर विभिन्न प्रकार के प्रोटीन बनाता है।

2. राइबोसोमल आर0एन0ए0 (rRNA) – ये RNA के संरचनात्मक (structural) अणु होते हैं। यह कोशिका की कुल RNA का 80% होता है। rRNA केन्द्रक में DNA से उत्पन्न होता है। तीनों प्रकार के RNA में यह सर्वाधिक समय तक क्रियाशील रहता है। प्रत्येक राइबोसोम का लगभग 65% भाग rRNA का तथा शेष 35% भाग प्रोटीन का होता है।
कार्य – rRNA राइबोसोम्स की रचना में भाग लेते हैं। यह प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करता है।

3. स्थानान्तरण आर0एन0ए0 (tRNA or sRNA) – यह कोशिका की कुल आर०एन०ए० का 15-18% होता है। यह कोशिकाद्रव्य में पाया जाता है। ये सबसे छोटे व घुलनशील अणु होते हैं; अतः इन्हें विलेय RNA अणु (soluble RNA molecules) भी कहते हैं। इनको निर्माण केन्द्रक में DNA के साँचे (DNA template) पर होता है।
कार्य – ये विभिन्न प्रकार के अमीनो अम्लों को राइबोसोम्स पर लाते हैं, जहाँ प्रोटीन का संश्लेषण होता है।

प्रश्न 5.
आनुवंशिक कूट या जेनेटिक कोड्स क्या हैं? आनुवंशिक कोड में पाये जाने वाले एक समारम्भ व एक समापन कोडॉन को स्पष्ट कीजिए। (2009, 10, 12, 16)
या
आनुवंशिक कूट क्या है? इसकी कोई चार विशेषताएँ लिखिए। (2015, 17)
या
समारंभन कोडॉन एवं समापन कोडॉन से आप क्या समझते हैं? (2017)
उत्तर
आनुवंशिक कूट या जेनेटिक कोड
डी०एन०ए० (DNA) आनुवंशिक सूचनाओं या सन्देशों के टेप की भाँति है जिसमें नाइट्रोजन क्षारकों के अनुक्रमांक के रूप में आनुवंशिक सन्देश होते हैं। प्रोटीन में प्रायः विभिन्न प्रकार के 20 अमीनो अम्ल होते हैं परन्तु न्यूक्लिक अम्ल में केवल चार ही क्षारक होते हैं। इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि प्रोटीन भाषा की वर्णमाला में 20 अमीनो अम्ल रूपी अक्षर (alphabets) होते हैं। इसी प्रकार न्यूक्लिक अम्लों की भाषा की वर्णमाला में चार क्षारक रूपी अक्षर होते हैं क्योंकि आनुवंशिक सूचना m-RNA से होकर प्रोटीन तक पहुँचती है, अतः RNA की भाषा का प्रोटीन की भाषा में अनुवाद करने के लिए एक शब्दकोष को तैयार करना आनुवंशिक कूट (genetic code) की समस्या थी।

एक चार अक्षरों की भाषा और दूसरी 20 अक्षरों की भाषा होने के कारण यह सम्भव नहीं है कि RNA भाषा का एक अक्षर अर्थात् एक क्षारक प्रोटीन भाषा के एक अक्षर अथवा एक अमीनो अम्ल के समतुल्य हो सके। इस प्रकार आनुवंशिक संकेत पद्धति में कुल 43 =4 x 4 x 4 = 64 कोडॉन होते हैं।

इस सम्बन्ध में अनेक सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये परन्तु क्रिक (EH.C. Crick) द्वारा प्रस्तुत सिद्धान्त ही सर्वाधिक मान्य है। इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक अमीनो अम्ल के लिए तीन नाइट्रोजन क्षारकों का एक अनुक्रम या त्रिक् कोड (triplet code) होता है; अतः आनुवंशिक कूट या जेनेटिक कोड डी०एन०ए० अणुओं में स्थित नाइट्रोजन क्षारकों का वह अनुक्रम है जिसमें प्रोटीन अणुओं के संश्लेषण के लिए सन्देश निहित रहते हैं।

कोडॉन (Codon) – न्यूक्लियोटाइड्स के उस समूह को जिसमें किसी एक अमीनो अम्ल के लिए सन्देश या कोड हो, कोडॉन (codon) कहते हैं; जैसे-AUG समारम्भ कोडॉन है।
एण्टीकोडॉन (Anticodon) – t-RNA में उपस्थित उस तीन क्षारक समूह को जो m-RNA में उपस्थित कोडॉन का पूरक हो, एण्टीकोडॉन (anticodon) कहते हैं।

त्रिक कोड (Triplet code) – गैमो (Gamow, 1954) ने तीन अक्षरीय कोड की सम्भावना प्रकट की। DNA व RNA में कुल चार न्यूक्लियोटाइड्स होते हैं और लगभग 20 अमीनो अम्लों के विन्यास का कोड (code) इनके विन्यास पर आधारित होता है। अगर यह मान लिया जाये कि प्रत्येक कोड केवल एक न्यूक्लिओटाइड का बना होता है तो इससे कुल चार कोड बनेंगे जो केवल 4 अमीनो अम्लों के विन्यास को नियन्त्रित कर सकते हैं। अगर प्रत्येक कोड को दो न्यूक्लियोटाइड्स का बना हुआ माना जाये तो (4 x 4) केवल 16 कोड्स बनेंगे। ये भी 20 अमीनो अम्लों के लिए पर्याप्त नहीं हैं। तीन न्यूक्लियोटाइड्स के बने कोड से (4 x 4 x 4 = 64) 64 कोड शब्द बनते हैं। ये बीस अमीनो अम्लों के लिए आवश्यकता से अधिक हो जाते हैं; अतः गैमो की तीन अक्षरीय कोड की सम्भावना सही है।

श्रृंखला का समारम्भ एवं समापन करने वाले कोडॉन
सिस्ट्रोन के प्रथम कोडॉन को समारम्भ कोडॉन (initiation codon) कहते हैं। यह पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के कोडित होने के सन्देश को प्रारम्भ करता है। अधिकतर श्रृंखलाओं में AUG समारम्भ कोडॉन होता है। यह मेथिओनिन (methionine) नामक अमीनो अम्ल को कोडित करता है। इसी प्रकार सिस्ट्रोन का अन्तिम कोडॉन पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला का समापन करता है। इसे समापन कोडॉन (termination codon) कहते हैं। समापन कोडॉन तीन होते हैं-UAA, UGA तथा UAG। प्रारम्भ में जब इनके कार्य का ज्ञान नहीं था तो ये निरर्थक कोडॉन (nonsense codon) कहलाते थे।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
डी०एन०ए० की आणविक संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा डी०एन०ए० के द्विगुणन में इसका महत्त्व समझाइए। (2009,12)
या
डी०एन०ए० की संरचना के वाटसन एवं क्रिक मॉडल को उपयुक्त चित्र बनाकर समझाइए। (2014, 16)
या
न्यूक्लिक अम्ल की परिभाषा लिखिए। वाटसन एवं क्रिक द्वारा प्रतिपादित डी०एन०ए० मॉडल की संरचना का वर्णन कीजिए। (2014)
या
वाटसन एवं क्रिक द्वारा प्रस्तुत डी०एन०ए० की रासायनिक संरचना का वर्णन कीजिए तथा इसकी आनुवंशिक पदार्थ के रूप में मान्यता का उल्लेख कीजिए। (2015, 17)
उत्तर
न्यूक्लिक अम्ल
सर्वप्रथम आल्टमान (1889) ने केन्द्रकीय पदार्थ को निकालकर इसमें से प्रोटीन्स को पृथक् किया तथा शेष फॉस्फोरस युक्त पदार्थ को अम्लीय होने के कारण न्यूक्लिक अम्ल कहा। ये दो प्रकार के होते हैं-DNA व RNA

डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल (DNA) तथा इसकी संरचना
एक डी०एन०ए० (डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल) अणु एक बहुलक (polymer) है जो आनुवंशिक लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित करता है; अतः इसे आनुवंशिक अणु (molecule of heredity) भी कहते हैं। डी०एन०ए० (DNA = deoxyribo nucleic acid) की खोज फ्रीडरिक मीशर (Friedrich Miescher, 1869) ने की थी। सबसे पहले विलकिन्स तथा फ्रैंकलिन (Wilkins and Franklin, 1952) ने बताया कि डी०एन०ए० एक कुण्डलित (helical) संरचना होती है। 1953 ई० में वाटसन तथा क्रिक (Watson and Crick) ने डी०एन०ए० संरचना का द्विकुण्डलित मॉडल (Double Helix Model) प्रस्तुत किया।

यह दो लम्बी श्रृंखलाओं के बने दो। कुण्डल (helices) होते हैं जो आधारभूत रूप में विशेष इकाइयों जिन्हें न्यूक्लियोटाइड्स (nucleotides) कहा जाता है, से बने होते हैं। इस प्रकार, एक अणु में सहस्रों से लेकर लाखों तक न्यूक्लियोटाइड्स होते हैं अर्थात् ये श्रृंखलाएँ पॉलीन्यूक्लियोटाइड (polynucleotide) श्रृंखलाएँ होती हैं। इस प्रकार, डी०एन०ए० की संरचना अनेक बहुलकों (polymers) की श्रृंखलाओं (chains) के दोहरे होने से बनती है। ये श्रृंखलाएँ काफी लम्बी तथा अणु अत्यधिक बड़े होते हैं। प्रत्येक श्रृंखला का प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड एक विशिष्ट तथा जटिल संरचना है। यह स्वयं तीन प्रकार के अणुओं या मूलकों (radicals) से मिलकर बना होता है, जिनमें

1. एक पेन्टोज शर्करा (pentose sugar), डीऑक्सीराइबोज (deoxyribose) प्रकार की अर्थात् | यह एक पाँच कार्बन वाली शर्करा होती है।
2. एक फॉस्फेट (phosphate) मूलक जो एक अणु फॉस्फोरिक अम्ल (phosphoric acid = H3PO4) से बनता है।
3. एक नाइट्रोजन क्षारक (nitrogen base) जो दो प्रकार के तथा कुल चार क्षारकों में से एक होता है। ये इस प्रकार हैं –
(क) प्यूरीन (purine) प्रकार के जिनमें 2-N रिंग होती है; ये हैं – एडीनीन (adenine) व ग्वानीन (guanine) तथा
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(ख) पिरामिडीन (pyrimidine) प्रकार के जिनमें नाइट्रोजन की एकल रिंग होती है; उदाहरण हैं – साइटोसीन (cytosine) तथा थाइमीन (thymine) क्षारक।

DNA के एक अणु में डीऑक्सीराइबोज शर्करा (deoxyribose sugar) का एक अणु क्षारक (base) के एक अणु से जुड़ा रहता है। इस यौगिक को डीऑक्सीराइबोसाइड (deoxyriboside) कहते हैं। यह एक न्यूक्लिओसाइड (nucleoside) है। अब यह न्यूक्लिओसाइड एक फॉस्फोरिक अम्ल (HI PO4) से मिलकर डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिओटाइड (deoxyribo nucleotide) बनाता है। न्यूक्लिओटाइड के एक अणु में क्षारक का अणु सदैव शर्करा के अणु से जुड़ता है। इसी तरह फॉस्फोरिक अम्ल का एक अणु भी शर्करा के एक अणु से जुड़ा रहता है।

चार विभिन्न नाइट्रोजन बेस होने के कारण डी०एन०ए० (DNA) के अणु में चार प्रकार के न्यूक्लिओसाइड व चार न्यूक्लिओटाइड होते हैं। एक डी०एन०ए० अणु में दो लम्बी श्रृंखलाएँ होती हैं जिनमें क्षारक (base) का अणु अक्ष (axis) की ओर होता है। दोनों श्रृंखलाओं के क्षारकों के अणु एक-दूसरे से हाइड्रोजन बन्ध (H-bonds) से जुड़कर क्षारक का एक जोड़ा बना लेते हैं। इन हाइड्रोजन बन्धों के मध्य 2.83 – 2.90 A का स्थान होता है। इन बन्धों से न्यूक्लिओटाइड्स की दो श्रृंखलाएँ बँधी होती हैं।

ये दोनों शृंखलाएँ एक-दूसरे की परिपूरक (complementary) होती हैं। ये दोनों श्रृंखलाएँ एक-दूसरे से उल्टी दिशा में (antiparallel) होती हैं अर्थात् एक श्रृंखला में फॉस्फोडाइएस्टर लिंकेज (phosphodiester linkage) 3’→ 5′ एक दिशा में तथा दूसरी श्रृंखला में 5’→ 3′ उल्टी दिशा में होते हैं। इस प्रकार डी०एन०ए० एक सीढ़ी की तरह लगता है। DNA का व्यास (diameter) 20 Å होता है।

डी०एन०ए० का द्विकुण्डल प्रतिरूप
सन् 1953 में वाटसन, क्रिक, विलकिन्स व फ्रैंकलिन (J.D. Watson, EH.C. Crick, M.H.E Wilkins and R. Franklin) नामक वैज्ञानिकों ने एक्स-रे विश्लेषण (X-ray diffraction studies) द्वारा डी०एन०ए० (DNA) का द्विकुण्डल प्रतिरूप (double helical model) प्रस्तुत किया जिस पर उन्हें सन् 1962 में नोबेल पुरस्कार मिला। इस मॉडल के अनुसार डी०एन०ए० (DNA) अणु पॉलीन्यूक्लियोटाइट्स के दो स्टैण्ड्स (strands) का बना होता है। दोनों स्टैण्ड्स एक ही केन्द्रीय अक्ष पर कुण्डलित रहते हैं और अक्ष के चारों ओर एक द्विचक्राकार (double helical) संरचना बना लेते हैं। प्रत्येक चक्राकार संरचना में न्यूक्लिओटाइड्स के 10 युगल (ten pairs) होते हैं और एक चक्र से दूसरे चक्र की दूरी 34 में होती है अर्थात् एक न्यूक्लिओटाइड का दूसरे न्यूक्लिओटाइड से अन्तर 3.4 Å होता है। Φ × 174 कॉलीफेज (coliphage) तथा 513 ई० कोलाई फेज (E. coti phase) नामक वाइरस (virus) में अपवाद स्वरूप डी०एन०ए० (DNA) में पॉली डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिओटाइड की एक श्रृंखला (single strand) ही होती है।

प्रत्येक क्षारक युग्म में प्यूरीन प्रकार का क्षारक एडिनीन (adenine) हमेशा पिरीमिडीन प्रकार के क्षारक थाइमीन (thymine) से तथा ग्वानीन (guanine) प्रकार का प्यूरीन क्षारक हमेशा पिरीमिडीन प्रकार के साइटोसीन (cytosine) क्षारक के साथ ही जुड़कर पगदण्ड का एक भाग बनाता है। इसमें अन्य किसी भी प्रकार का युग्म सम्भव नहीं है। इस प्रकार, यदि एक श्रृंखला में T-C-G-A-T-C-G आदि हैं तो दूसरी श्रृंखला में T के सामने A, c के सामने G, G के सामने C तथा A के सामने T आदि ही होंगे। इस प्रकार
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पगदण्ड में न्यूक्लियोटाइड के क्षारक हाइड्रोजन बन्धों (H-bonds) के द्वारा जुड़े होते हैं। इसमें एडिनीन, थाइमीन के साथ दो साइटोसीन, ग्वानीन के साथ तीन बन्धों से बन्धनयुक्त होता है। क्षारकों का निश्चित क्रम डी०एन०ए० की रासायनिक शब्दावली बनाता है जिससे आनुवंशिक लक्षणों की स्थापना होती है।
[संकेत–डी०एन०ए० की संरचना का महत्त्व विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 2 के उत्तर में देखिए।]

प्रश्न 2.
डी०एन०ए० द्विगुणन (replication of DNA) के प्रमुख चरणों का उल्लेख कीजिए। DNA के महत्त्वपूर्ण कार्य क्या हैं?
या
डी०एन०ए० के द्विगुणन (प्रतिकृतियन) का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (2015, 16)
या
डी०एन०ए० की अर्धसंरक्षी द्विगुणन विधि का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर
डी०एन०ए० का द्विगुणन
वाटसन एवं क्रिक (Watson and Crick) ने बताया कि डी०एन०ए० (DNA) एक द्विकुण्डलिनी संरचना है, जो दो पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रृंखलाओं से मिलकर बना है। ये श्रृंखलाएँ प्रतिसप्तान्तर (antiparallel) तथा एक-दूसरे की पूरक (complementary) होती हैं। डी०एन०ए० अणु का द्विगुणन अर्द्धसंरक्षी (semiconservative) होता है। इसका तात्पर्य यह है कि नये बने DNA अणु में एक सूत्र (strand) पैतृक होगा तथा दूसरा सूत्र नवनिर्मित होगा। सन् 1958 में मैथ्यू मेसेल्सन । (Matthew Meselson) तथा फ्रैंकलिन स्टाहल (Franklin Stahl) ने एश्केरीशिया कोलाई (Eischerichia coli = E. coli) नामक जीवाणु के डी०एन०ए० अणु पर ऐसे द्विगुणन की पुष्टि की। डी०एन०ए० के द्विगुणन को हम निम्नलिखित प्रमुख चरणों में बाँट सकते हैं –

1. डी0एन0ए0 अणुओं के पराकुण्डलों का अकुण्डलन एवं पुनर्कुण्डलन (Decoiling and Recoiling of Supercoils of DNA Molecules) – डी०एन०ए० अणुओं के पराकुण्डलन एवं अकुण्डलन का नियमन कुछ विशेष एन्जाइम करते हैं, जिन्हें टोपोआइसोमेरेज (topoisomerase) कहते हैं। द्विगुणन के लिए ये एन्जाइम धीरे-धीरे डी०एन०ए० अणु के छोटे-छोटे स्थानीय खण्डों में इसका पराकुण्डलन समाप्त करके द्विकुण्डलिनी (duplex) को खोलते रहते हैं और द्विगुणन के बाद सन्तति अणुओं का पुनर्कुण्डलन भी करते रहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-टोपोआइसोमेरेज-1 (topoisomerase-I) तथा टोपोआइसोमेरेज-II (topoisomerase-II)।

टोपोआइसोमेरेज-I DNA की द्विकुण्डलिनी के एक सूत्र में कटाव (nick) पैदा करता है, जबकि टोपोआइसोमेरेज-II DNA द्विकुण्डलिनी के दोनों सूत्रों में कटाव उत्पन्न करता है। इसे डी०एन०ए० गाइरेज (DNA gyrase) भी कहते हैं। इन कटावों के बनने से ही स्थानीय अकुण्डलन से शेष द्विकुण्डलिनी में होने वाला घूर्णन (rotation) समाप्त । होता है।

2. द्विकुण्डलिनी का खुलना (Unwinding of Double Helix) – डी०एन०ए० अणु का द्विगुणन कुछ निर्दिष्ट स्थानों पर ही होता है, जिन्हें द्विगुणन मूल (replication origins) कहते हैं। यूकैरियोटिक कोशिकाओं में DNA अपेक्षाकृत लम्बे, रेखीय वे एक से लेकर कई युग्मों (pairs) में होते हैं। प्रत्येक अणु के द्विगुणन के लिए इसमें अनेक द्विगुणन मूल होते हैं। इन द्विगुणन मूल पर कुछ विशेष प्रकार की मूल-बन्धिनी प्रोटीन्स (origin-binding proteins) द्विकुण्डलिनी से जुड़ जाती हैं। यहीं पर विभिन्न प्रकार के प्रोटीन्स व एन्जाइम्स एकत्र होकर द्विगुणन में विविध भूमिकाएँ निभाते हैं।

ई० कोलाई (E. coli) में इन मूल-बन्धिनी प्रोटीन्स को ‘ori C’ का नाम दिया गया है। ये प्रोटीन्स ए०टी०पी० की सहायता से द्विगुणन मूलों के समाक्षारों के युग्मों से H-बन्धों (H-bonds) को हटा देती हैं। द्विगुणने मूल H-बन्धों (H-bonds) के टूटते ही दोहरा हैलिक्स खुल जाता है, इसे डी०एन०ए० अणु का द्रवण (melting) कहते हैं। दोनों कुण्डल के अलग होने से ‘Y’ आकार की चिमटी के समान द्विशाखी, द्विगुणन काँटे (replication fork) जैसी संरचना बन जाती है। प्रत्येक द्विशाख पर एक सूत्र से डी०एन०ए० हेलिकेज (DNA helicase) नामक एन्जाइम का एक बड़ा अणु लिपट जाता है। यह एन्जाइम डी०एन०ए० के सूत्रों को धीरे-धीरे खोलने अर्थात् द्रवण का कार्य करता है।

3. न्यूक्लियोटाइड्स का सक्रियकरण (Activation of Nucleotides) – न्यूक्लियोसाइड एन्जाइम फॉस्फोराइलेज (phosphorylase) तथा ए०टी०पी० की उपस्थिति में सक्रिय हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को फॉस्फोरिलेशन कहते हैं।

4. आर0एन0ए0 प्रवेशक का निर्माण (Formation of RNA Prirmers) – द्विगुणन शाखाओं के बनते ही प्रत्येक द्विशाख पर अलग हुए प्रत्येक DNA सूत्र पर राइबोन्यूक्लियोटाइड (ribonucleotide) अणुओं की एक छोटी अनुपूरक (complementary) श्रृंखला (RNA का छोटा अणु) बन जाती है। इन RNA अणुओं को प्रवेशक (primer) कहते हैं, क्योंकि इन्हीं के 3′ छोरों पर डीऑक्सीराइबो न्यूक्लियोटाइड अणुओं को जोड़कर DNA की एक नयी श्रृंखला का संश्लेषण किया जाता है। आर०एन०ए० प्राइमर का संश्लेषण प्राइमेज (primase) एन्जाइम  या RNA पॉलीमेरेज (RNA polymerase) की सहायता से होता है।

5. डी0एन0ए0श्रृंखला का निर्माण तथा दीर्धीकरण (Formation and Elongation of DNA Chain) – एन्जाइम डी०एन०ए० पॉलीमेरेज-III (DNA polymerase-III) RNA प्राइमर में 5’→3′ दिशा में नये क्षारकों को जोड़ता है। इन क्षारकों का क्रम DNA टेम्पलेट के अनुसार होता है। डी०एन०ए० अणु के दो सूत्र प्रतिसमान्तर होते हैं अर्थात् एक की दिशा 5’→3′ तथा दूसरे की 3′ → 5′ होती है।

एन्जाइम डी०एन०ए० पॉलीमरेज III क्षारकों को केवल 5′ – 3′ दिशा में ही जोड़ सकता है; अत: 3′ – 5′ दिशा वाले DNA टेम्पलेट पर नई DNA श्रृंखला का सतत् निर्माण (continuous synthesis) होता है। ऐसे सूत्र को अगुआ सूत्र या अग्रक रज्जुक (leading strand) कहते हैं। इसके विपरीत जिस नई DNA श्रृंखला का निर्माण 3’→ 5′ दिशा में होता है अर्थात् 5’→3′ दिशा वाले पैतृक सूत्र पर यह असतत् होता है। इस प्रकार यह निर्माण छोटे-छोटे खण्डों के रूप में होता है, ये खण्ड ओकाजाकी खण्ड (Okajaki fragments) कहलाते हैं। इस प्रकार, खण्डों के रूप में हुए निर्माण के कारण इस नये सूत्र को पश्चगामी रज्जुक या पिछुआ सूत्र (lagging strand) कहते हैं। पिछुआ सूत्र के पृथक्-पृथक् टुकड़ों में बनने की प्रक्रिया की खोज रोजी ओकाजाकी (Reiji Okajaki 1968) ने की थी ।
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6. आर0एन0ए0 प्रवेशक का हटना (Removal of RNA Primer) – DNA श्रृंखला की लम्बाई बढ़ने के बाद आर०एन०ए०प्रवेशक (RNA primer) श्रृंखला से हट जाता है। आर०एन०ए० प्रवेशक के हटने से उत्पन्न रिक्त स्थान को भरने में डी०एन०ए०पॉलीमेरेज-1 (DNA polymerase-I) सहायता करता है। जब DNA का निर्माण पूरा हो जाता है तो एन्जाइम DNA हेलिकेज की क्रिया रुक जाती है।

डी०एन०ए० का महत्त्व तथा कार्य
न्यूक्लिक अम्लों को जीवन को चलाये रखने का प्रमुख आधार माना जाता है। ये पीढ़ी-दर-पीढ़ी लक्षणों के प्रकटन से लेकर उन लक्षणों के अन्तर्गत विभिन्न क्रियाओं को उनके निर्दिष्ट तक उचित विधि द्वारा, उचित स्वरूप में तथा नियमित एवं नियन्त्रित अनुक्रियाओं के द्वारा, पहुँचाने का कार्य करते हैं। इस प्रकार –

  1. डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल (DNA) आनुवंशिक सूचनाओं के वाहक का कार्य करता है। तथा सभी आनुवंशिक लक्षणों को पुरानी पीढ़ी से नई पीढ़ी में पहुँचाता है।
  2. DNA के द्वारा निर्मित राइबोन्यूक्लिक अम्ल (RNA) विभिन्न अमीनो अम्लों से DNA द्वारा निर्देशित प्रोटीन का संश्लेषण करते हैं जो विभिन्न प्रकार की क्रियाओं-अनुक्रियाओं को होने देने में एन्जाइम्स (enzymes) के रूप में सहायक होती हैं।
  3. DNA के भाग या उसके द्वारा निर्मित कुछ न्यूक्लियोटाइड हॉर्मोन्स (hormones), सह-एन्जाइमों (co-enzymes) आदि के रूप में कार्य करते हैं।
  4. जिस मास्टर योजना (master plan) के अन्तर्गत जन्म से मृत्यु तक किसी जीव में कोशिकाएँ बनती हैं और कार्य करती हैं, उसकी मूल रूपरेखा (original blue print) डी०एन०ए० के रूप में होती है।

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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism (गतिमान आवेश और चुम्बकत्व) are part of UP Board Solutions for Class 12 Physics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism (गतिमान आवेश और चुम्बकत्व).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Physics
Chapter Chapter 4
Chapter Name Moving Charges and Magnetism (गतिमान आवेश और चुम्बकत्व)
Number of Questions Solved 88
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism (गतिमान आवेश और चुम्बकत्व)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
तार की एक वृत्ताकार कुंडली में 100 फेरे हैं, प्रत्येक की त्रिज्या 8.0 cm है और इनमें 0.40A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। कुंडली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण क्या है ?
हल-
दिया है,
कुण्डली में तार के फेरों की संख्या n = 100
प्रत्येक फेरे की त्रिज्या r = 8.0 सेमी = 8.0 x 10-2 मीटर
कुण्डली में प्रवाहित धारा I = 0.40 ऐम्पियर
कुण्डली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण B = ?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism

प्रश्न 2.
एक लम्बे, सीधे तार में 35 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। तार से 20 cm दूरी पर स्थित किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण क्या है?
हल-
एक लम्बी धारावाही सीधी तार के कारण r दूरी पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र,
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q2
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism

प्रश्न 3.
क्षैतिज तल में रखे एक लम्बे सीधे तार में 50A विद्युत धारा उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित हो रही है। तार के पूर्व में 2.5 m दूरी पर स्थित किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र B का परिमाण और उसकी दिशा ज्ञात कीजिए।
हल-
दिया है,
धारा की प्रबलता I = 50 ऐम्पियर
दिए गए बिन्दु की तार से लम्बवत् दूरी r = 2.5 मीटर
बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र B का परिमाण व दिशा = ?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism

प्रश्न 4.
व्योमस्थ खिंचे क्षैतिज बिजली के तार में 90 A विद्युत धारा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित हो रही है। तार के 1.5 m नीचे विद्युत धारा के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण और दिशा क्या है?
हल-
तार में धारा i = 90 A (पूर्व से पश्चिम), तार से दूरी = 1.5 m
तार के कारण चुम्बकीय क्षेत्र
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q4
चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा क्षैतिजत: उत्तर से दक्षिण की ओर होगी।

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प्रश्न 5.
एक तार जिसमें 8 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है, 0.15 T के एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में, क्षेत्र से 30° का कोण बनाते हुए रखा है। इसकी एकांक लम्बाई पर लगने वाले बल का परिमाण और इसकी दिशा क्या है?
हल-
चुम्बकीय क्षेत्र B में क्षेत्र से θ कोण पर रखे L लम्बाई के धारावाही चालक तार पर लगने वाले बल का परिमाण
F = ILB sin θ (जहाँ I = तार में प्रवाहित धारा)
तार की एकांक लम्बाई ([latex s=2]\frac { F }{ L }[/latex]) = IB sin θ
यहाँ I = 8A; B = 0.15 T तथा θ = 30°
([latex s=2]\frac { F }{ L }[/latex]) = 8 x 0.15 x sin 30° न्यूटन/मीटर
= 8 x 0.15 x ([latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex]) न्यूटन/मीटर
= 0.60 न्यूटन/मीटर

प्रश्न 6.
एक 3.0 cm लम्बा तार जिसमें 10 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है, एक परिनालिका के भीतर उसके अक्ष के लम्बवत् रखा है। परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र का मानं 0.27 T है। तार पर लगने वाला चुम्बकीय बल क्या है?
हल-
परिनालिका के अन्दर उसकी (UPBoardSolutions.com) अक्ष पर चुम्बकीय क्षेत्र B = 0.27 T (जिसकी दिशा अक्ष के अनुदिश ही होती है)। धारावाही तार अक्ष के लम्बवत् है,
अतः θ = 90°; तार की लम्बाई L = 3.0 सेमी = 3.0 x 10-2 मी; तार में धारा I = 10 A; अतः तार पर लगने वाला चुम्बकीय बल
F = ILB sin θ न्यूटन
= 10 x (3.0 x 10-2) (0.27) x sin 90° न्यूटन
= 81 x 10-2 x 1 न्यूटन
= 8.1 x 10-2 न्यूटन

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प्रश्न 7.
एक-दूसरे से 4.0 cm की दूरी पर रखे दो लम्बे, सीधे, समान्तर तारों A एवं B से क्रमशः 8.0 A एवं 5.0 A की विद्युत धाराएँ एक ही दिशा में प्रवाहित हो रही हैं। तार A के 10 cm खण्ड पर बल का आकलन कीजिए।
हल-
परस्पर समान्तर दो लम्बे सीधे धारावाही तारों के बीच प्रत्येक तार की एकांक लम्बाई पर कार्य करने वाला पारस्परिक बल
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प्रश्न 8.
पास-पास फेरों वाली एक परिनालिका 80 cm लम्बी है और इसमें 5 परतें हैं जिनमें से प्रत्येक में 400 फेरे हैं। परिनालिका का व्यास 1.8 cm है। यदि इसमें 8.0 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है तो परिनालिका के भीतर केन्द्र के पास चुम्बकीय क्षेत्र B का परिमाण परिकलित कीजिए।
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प्रश्न 9.
एक वर्गाकार कुंडली जिसकी प्रत्येक भुजा 10 cm है, में 20 फेरे हैं और उसमें 12 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। कुंडली ऊर्ध्वाधरतः लटकी हुई है और इसके तल पर खींचा गया अभिलम्ब 0.80 T के एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा से 30° का एक कोण बनाता है। कुंडली पर लगने वाले बल-युग्म आघूर्ण का परिमाण क्या है?
हल-
बल-युग्म के आघूर्ण का परिमाण τ = NIAB sin θ
यहाँ फेरों की संख्या N = 20; वर्गाकार कुण्डली के तल को क्षेत्रफल
A = भुजा2 = (0.10 मी)2 = 0.01 मी
कुण्डली में धारा I = 12 A; चुम्बकीय क्षेत्र B = 0.80 T तथा θ = 30°
τ = 20 x 12 x 0.01 x 0.80 x sin 30° न्यूटन मीटर
= 240 x 0.008 x ([latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex]) न्यूटन मीटर
= 0.960 न्यूटन मीटर।

प्रश्न 10.
दो चल कुंडली गैल्वेनोमीटर मीटरों MI एवं M, के विवरण नीचे दिए गए हैं।
R1 = 10 Ω, N1 = 30, A1 = 3.6 x 10-3 m2, B1 = 0.25 T
R2 = 14 Ω, N2 = 42, A2 = 1.8 x 10-3 m2, B2 = 0.50 T
(दोनों मीटरों के लिए स्प्रिंग नियतांक समान है)।
(a) M2 एवं M1 की धारा-सुग्राहिताओं,
(b) M2 एवं M1 की वोल्टता-सुग्राहिताओं का अनुपात ज्ञात कीजिए।
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प्रश्न 11.
एक प्रकोष्ठ में 6.5 G (1G = 10-4 T) का एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र बनाए रखा गया है। इस चुम्बकीय क्षेत्र में एक इलेक्ट्रॉन 4.8 x 106 ms-1 के वेग से क्षेत्र के लम्बवत् भेजा गया है। व्याख्या कीजिए कि इस इलेक्ट्रॉन का पथ वृत्ताकार क्यों होगा? वृत्ताकार कक्षा की त्रिज्या ज्ञात कीजिए। (e = 1.6 x 1019 C, me = 9.1 x 10-31 kg)
हल-
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q11
क्योंकि चुम्बकीय क्षेत्र में लम्बवत् प्रवेश करने वाले इलेक्ट्रॉन पर चुम्बकीय बल सदैव इसके वेग के लम्बवत् रहने के कारण इलेक्ट्रॉन का पथ वृत्ताकार हो जाता है।

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प्रश्न 12.
प्रश्न 11 में, वृत्ताकार कक्षा में इलेक्ट्रॉन की परिक्रमण आवृत्ति प्राप्त कीजिए। क्या यह उत्तर इलेक्ट्रॉन के वेग पर निर्भर करता है? व्याख्या कीजिए।
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प्रश्न 13.
(a) 30 फेरों वाली एक वृत्ताकार कुंडली जिसकी त्रिज्या 8.0 cm है और जिसमें 6.0 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है, 1.0 T के एकसमान क्षैतिज चुम्बकीय क्षेत्र में ऊर्ध्वाधरतः लटकी है। क्षेत्र रेखाएँ कुंडली के अभिलम्ब से 60° का कोण बनाती हैं। कुंडली को घूमने से रोकने के लिए जो प्रति आघूर्ण लगाया जाना चाहिए उसके परिमाण परिकलित कीजिए।
(b) यदि (a) में बतायी गई वृत्ताकार कुंडली को उसी क्षेत्रफल की अनियमित आकृति की समतलीय कुंडली से प्रतिस्थापित कर दिया जाए (शेष सभी विवरण अपरिवर्तित रहें) तो क्या आपका उत्तर परिवर्तित हो जाएगा?
हल-
(a) कुंडली में फेरे N = 30, त्रिज्या r = 8.0 x 10-2 m, i = 6.0 A
चुम्बकीय क्षेत्र B = 1.0 T, θ = 60°
कुंडली पर चुम्बकीय क्षेत्र के कारण बल-युग्म का आघूर्ण
τ = NiAB sin 60° = Ni (πr²) B sin 60°
= 30 x 6.0 x (314 x 64.0 x 10-4) x 1.0 x [latex s=2]\frac { \surd 3 }{ 2 }[/latex] = 3.13 N-m
स्पष्ट है कि कुंडली को घूमने से रोकने के लिए 3.13 N-m का बल-आघूर्ण विपरीत दिशा में लगाना होगा।
(b) नहीं, उत्तर में कोई परिवर्तन नहीं होगा। इसका कारण यह है कि बल-आघूर्ण (τ = NiAB sin θ) कुंडली के क्षेत्रफल A पर निर्भर करता है न कि उसके आकार पर।

अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 14.
दो समकेन्द्रिक वृत्ताकार कुंडलियाँ x और Y जिनकी त्रिज्याएँ क्रमशः 16 cm एवं 10 cm हैं, उत्तर-दक्षिण दिशा में समान ऊध्र्वाधर तल में अवस्थित हैं। कुंडली X में 20 फेरे हैं और इसमें 16 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है, कुंडली Y में 25 फेरे हैं और इसमें 18 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। पश्चिम की ओर मुख करके खड़ा एक प्रेक्षक देखता है कि X में धारा प्रवाह वामावर्त है जबकि में दक्षिणावर्त है। कुंडलियों के केन्द्र पर, उनमें प्रवाहित विद्युत धाराओं के कारण उत्पन्न कुल चुम्बकीय क्षेत्र का परिमाण एवं दिशा ज्ञात कीजिए।
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प्रश्न 15.
10 cm लम्बाई और 10-3 m2 अनुप्रस्थ काट के एक क्षेत्र में 100 G (1G = 10-4) का एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र चाहिए। जिस तार से परिनालिका का निर्माण करना है उसमें अधिकतम 15 A विद्युत धारा प्रवाहित हो सकती है और क्रोड पर अधिकतम 1000 फेरे प्रति मीटर लपेटे जा सकते हैं। इस उद्देश्य के लिए परिनालिका के निर्माण का विवरण सुझाइए। यह मान लीजिए कि क्रोड लौह-चुम्बकीय नहीं है।
हल-
माना परिनालिका की एकांक लम्बाई में फेरों की संख्या n तथा उसमें प्रवाहित धारा 1 है तब उसकी अक्ष पर केन्द्रीय भाग में
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q15
दी गई परिनालिका के लिए ni = नियतांक
इस प्रतिबन्ध में दो चर राशियाँ हैं; अत: हम किसी एक राशि को दी गई सीमाओं के अनुरूप स्वेच्छ मान देकर दूसरी राशि का चुनाव कर सकते हैं।
इससे स्पष्ट है कि अभीष्ट परिनालिका के बहुत से भिन्न-भिन्न विवरण सम्भव हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism
हम जानते हैं कि परिनालिका की अक्ष पर उसके केन्द्रीय भाग में चुम्बकीय क्षेत्र लगभग एकसमान होता है। अतः दिया गया स्थान (UPBoardSolutions.com) (10 cm लम्बा व 10-3 m2 अनुप्रस्थ क्षेत्रफल वाला) परिनालिका की अक्ष के अनुदिश तथा केन्द्रीय भाग में होना चाहिए।
अत: परिनालिका की लम्बाई लगभग 50 cm से 100 cm के बीच (10 cm से काफी अधिक) होनी चाहिए तथा परिनालिका का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल 10-3 m2 से अधिक होना चाहिए।
माना परिनालिका की त्रिज्या r है, तब
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q15.2
अतः हम परिनालिका की त्रिज्या 2 cm से अधिक (माना 3 cm) ले सकते हैं।
अतः परिनालिका का विवरण निम्नलिखित है :
लम्बाई l = 50 cm लगभग, फेरों की संख्या N = nl = 800 x 0.5 = 400 लगभग
त्रिज्या r = 3 cm लगभग, धारा i = 10 A

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प्रश्न 16.
I धारावाही, N फेरों और R त्रिज्या वाली वृत्ताकार कुंडली के लिए, इसके अक्ष पर, केन्द्र से x दूरी पर स्थित किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र के लिए निम्नलिखित व्यंजक है-
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q16
(a) स्पष्ट कीजिए, इससे कुंडली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र के लिए सुपरिचित परिणाम कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
(b) बराबर त्रिज्या R एवं फेरों की संख्या N, वाली दो वृत्ताकार कुंडलियाँ एक-दूसरे से R दूरी पर एक-दूसरे के समान्तर, अक्ष मिलाकर रखी गई हैं। दोनों में (UPBoardSolutions.com) समान विद्युत धारा एक ही दिशा में प्रवाहित हो रही है। दर्शाइए कि कुण्डलियों के अक्ष के लगभग मध्यबिन्दु पर क्षेत्र, एक बहुत छोटी दूरी के लिए जो कि Rसे कम है, एकसमान है और इस क्षेत्र का लगभग मान निम्नलिखित है-
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q16.1
[बहुत छोटे से क्षेत्र पर एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए बनायी गई ऊपर वर्णित व्यवस्था हेल्महोल्ट्ज कुण्डलियों के नाम से जानी जाती है।]
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प्रश्न 17.
एक टोरॉइड के (अलौह चुम्बकीय) क्रोड की आन्तरिक त्रिज्या 25 cm और बाह्य त्रिज्या 26 cm है। इसके ऊपर किसी तार के 3500 फेरे लपेटे गए हैं। यदि तार में प्रवाहित विद्युत धारा 11 A हो तो चुम्बकीय क्षेत्र को मान क्या होगा?
(i) टोरॉइड के बाहर,
(ii) टोरॉइड के क्रोड में,
(iii) टोरॉइड द्वारा घिरी हुई खाली जगह में।
हल-
दिया है, आन्तरिक त्रज्या r1 = 0.25 m, बाह्य त्रिज्या r2 = 0.26 m
फेरों की संख्या N = 3500, धारा i = 11 A
(i) टोरॉइड के बाहर चुम्बकीय क्षेत्र B = 0
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q17
(iii) टोरॉइड द्वारा घेरे गए रिक्त स्थान में चुम्बकीय क्षेत्र B = 0

प्रश्न 18.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(a) किसी प्रकोष्ठ में एक ऐसा चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित किया गया है जिसका परिमाण तो एक बिन्दु पर बदलता है, पर दिशा निश्चित है। (पूर्व से पश्चिम)। इस प्रकोष्ठ में एक आवेशित कण प्रवेश करता है और अविचलित एक सरल रेखा में अचर वेग से चलता रहता है। आप कण के प्रारम्भिक वेग के बारे में क्या कह सकते हैं?

(b) एक आवेशित कण, एक ऐसे शक्तिशाली असमान चुम्बकीय क्षेत्र में प्रवेश करता है। जिसको परिमाण एवं दिशा दोनों एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु पर बदलते जाते हैं, एक जटिल पथ पर चलते हुए इसके बाहर आ जाता है। यदि यह मान लें कि चुम्बकीय क्षेत्र में इसका किसी भी दूसरे कण से कोई संघट्ट नहीं होता तो क्या इसकी अन्तिम चाल, प्रारम्भिक चाल के बराबर होगी?

(c) पश्चिम से पूर्व की ओर चलता हुआ एक इलेक्ट्रॉन एक ऐसे प्रकोष्ठ में प्रवेश करता है। जिसमें उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर एकसमान एक विद्युत क्षेत्र है। वह दिशा बताइए जिसमें एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित किया जाए ताकि इलेक्ट्रॉन को अपने सरल रेखीय पथ से विचलित होने से रोका जा सके।
हल-
(a) आवेशितं कण अविचलित सरल रेखीय गति करता है, इसका यह अर्थ है कि कण पर चुम्बकीय क्षेत्र के कारण कोई बल नहीं लगा है। इससे प्रदर्शित होता है कि (UPBoardSolutions.com) कण का प्रारम्भिक वेग या तो चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में है अथवा उसके विपरीत है।

(b) हाँ, कण की अन्तिम चाल उसकी प्रारम्भिक चाल के बराबर होगी। इसका. कारण यह है कि चुम्बकीय क्षेत्र के कारण गतिमान आवेश पर कार्यरत बल सदैव कण के वेग के लम्बवत् दिशा में लगता है जो केवल गति की दिशा को बदल सकता है परन्तु कण की चाल को नहीं।

(c) विद्युत क्षेत्र के कारण इलेक्ट्रॉन पर दक्षिण से उत्तर की ओर विद्युत बल F, कार्य करेगा, जिसके कारण इलेक्ट्रॉन उत्तर दिशा की ओर विक्षेपित होने की प्रवृत्ति रखेगा। इलेक्ट्रॉन बिना विचलित हुए सरल रेखीय गति करे इसके लिए आवश्यक है कि चुम्बकीय क्षेत्र ऐसी दिशा में लगाया जाए कि चुम्बकीय (UPBoardSolutions.com) क्षेत्र के कारण इलेक्ट्रॉन पर उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर चुम्बकीय बल कार्य करे। इसके लिए फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम से चुम्बकीय क्षेत्र ऊर्ध्वाधरत: नीचे की ओर लगाना चाहिए।

प्रश्न 19.
ऊष्मित कैथोड से उत्सर्जित और 2.0 kV के विभवान्तर पर त्वरित एक इलेक्ट्रॉन 0.15 T के एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में प्रवेश करता है। इलेक्ट्रॉन का गमन पथ ज्ञात कीजिए यदि चुम्बकीय क्षेत्र
(a) प्रारम्भिक वेग के लम्बवत है,
(b) प्रारम्भिक वेग की दिशा से 30° का कोण बनाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism

प्रश्न 20.
प्रश्न 16 में वर्णित हेल्महोल्ट्ज कुंडलियों का उपयोग करके किसी लघुक्षेत्र में 0.75 T का एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित किया है। इसी क्षेत्र में कोई एकसमान स्थिरविद्युत क्षेत्र कुंडलियों के उभयनिष्ठ अक्ष के लम्बवत लगाया जाता है। (एक ही प्रकार के) आवेशित कणों का 15 kV विभवान्तर पर (UPBoardSolutions.com) त्वरित एक संकीर्ण किरण पुंज इस क्षेत्र में दोनों कुण्डलियों के अक्ष तथा स्थिरविद्युत क्षेत्र की लम्बवत दिशा के अनुदिश प्रवेश करता है। यदि यह किरण पुंज 9.0 x 10-5 Vm-1, स्थिरविद्युत क्षेत्र में अविक्षेपित रहता है तो यह अनुमान लगाइए कि किरण पुंज में कौन-से कण हैं। यह स्पष्ट कीजिए कि यह उत्तर
एकमात्र उत्तर क्यों नहीं है?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q20
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism

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प्रश्न 21.
एक सीधी, क्षैतिज चालक छड़ जिसकी लम्बाई 0.45 cm एवं द्रव्यमान 60 g है। इसके सिरों पर जुड़े दो ऊर्ध्वाधर तारों पर लटकी हुई है। तारों से होकर छड़ में 5.0 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है।
(a) चालक के लम्बवत कितना चुम्बकीय क्षेत्र लगाया जाए कि तारों में तनाव शून्य हो जाए।
(b) चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा यथावत रखते हुए यदि विद्युत धारा की दिशा उत्क्रमित कर दी जाए तो तारों में कुल आवेश कितना होगा? (तारों के द्रव्यमान की उपेक्षा कीजिए। (g = 9.8 ms-2)
हल-
छड़ की लम्बाई l = 0.45 m व द्रव्यमान m = 0.06 kg, तार में धारा i = 5.0 A
(a) तारों में तनाव शून्य करने के लिए आवश्यक है कि चुम्बकीय क्षेत्र के कारण छड़ पर बल उसके भार के बराबर वे विपरीत हो।
अतः ilB sin 90° = mg
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q20
(b) यदि धारा की दिशा बदल दी जाए तो चुम्बकीय बल तथा छड़ का भार दोनों एक ही दिशा में हो जाएँगे।
इस स्थिति में, तारों का तनाव = mg + IlB sin 90°
= 2mg (∵ प्रथम दशा से, IlB sin 90° = mg)
= 2 x 0.06 x 9.8 = 1.176 = 1.18 N

प्रश्न 22.
एक स्वचालित वाहन की बैटरी से इसकी चालने मोटर को जोड़ने वाले तारों में 300 A विद्युत धारा (अल्प काल के लिए) प्रवाहित होती है। तारों के बीच प्रति एकांके लम्बाई पर कितना बल लगता है यदि इनकी लम्बाई 70 cm एवं बीच की दूरी 1.5 cm हो। यह बल आकर्षण बल है या प्रतिकर्षण बल ?
हल-
दिया है, तारों में धारा i1 = i2 = 300 A, बीच की दूरी r = 1.5 x 10-2 m
तारों की लम्बाई = 70 cm
तारों के बीच एकांक लम्बाई पर बल
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q22
चूँकि तारों में धारा विपरीत दिशा में प्रवाहित होती है; अत: यह बल प्रतिकर्षण का होगा।

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प्रश्न 23.
1.5 T का एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र, 10.0 cm त्रिज्या के बेलनाकार क्षेत्र में विद्यमान है। इसकी दिशा अक्ष के समान्तर पूर्व से पश्चिम की ओर है। एक तार जिसमें 7.0 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। इस क्षेत्र में होकर उत्तर से दक्षिण की ओर गुजरती है। तार पर लगने वाले बल का परिमाण और दिशा क्या है, यदि
(a) तार अक्ष को काटता हो।
(b) तार N-S दिशा से घुमाकर उत्तर-पूर्व, उत्तर-पश्चिम दिशा में कर दिया जाए,
(c) N-S दिशा में रखते हुए ही तार को अक्ष से 6.0 cm नीचे उतार दिया जाए।
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प्रश्न 24.
धनात्मक z-दिशा में 3000 G की एक एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र लगाया गया है। एक आयताकार लूप जिसकी भुजाएँ 10 cm एवं 5 cm और जिसमें 12 A धारा प्रवाहित हो रही है, इस क्षेत्र में रखा है। चित्र 4.7 में दिखायी गई लूप की विभिन्न स्थितियों में इस पर लगने वाला बल-युग्म आघूर्ण क्या है? हर स्थिति में बल क्या है? स्थायी सन्तुलन वाली स्थिति कौन-सी है?
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हल-
दिया है, B = 3000 G = 0.3 T, a = 0.1 m, b = 0.05 m, i = 12 A
कुंडली का क्षेत्रफल A = ab = 0.1 m x 0.05 m = 5 x 10-3 m
(a), (b), (c), (d) प्रत्येक दशा में कुंडली के तल पर अभिलम्ब, चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् है; अतः प्रत्येक दशा में
बल-युग्म का आघूर्ण τ = iAB sin 90° = 12 x 5 x 10-3 x 0.3 = 1.8 x 10-2 N-m
प्रत्येक दशा में बल शून्य है, क्योंकि एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में रखे धारालूप पर बल-युग्म कार्य करता है परन्तु बल नहीं।
(a) τ = 1.8 x 10-2 N-m ऋण y-अक्ष की दिशा में तथा बल शून्य है।
(b) τ = 1.8 x 10-2 N-m ऋण y-अक्ष की दिशा में तथा बल शून्य है।
(c) τ = 1.8 x 10-2 N-m ऋण x-अक्ष की दिशा में तथा बल शून्य है।
(d) τ = 1.8 x 10-2 N-m तथा बल शून्य है।
(e) तथा (f) दोनों स्थितियों में कुंडली के तल पर अभिलम्ब चुम्बकीय क्षेत्र के अनुदिश है; अत:
t = iAB sin 0° = 0
अत: इन दोनों दशाओं में बल-आघूर्ण व बल दोनों शून्य हैं। यह स्थितियाँ सन्तुलन की स्थायी अवस्था में दर्शाती हैं।

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प्रश्न 25.
एक वृत्ताकार कुंडली जिसमें 20 फेरे हैं और जिसकी त्रिज्या 10 cm है, एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में रखी है जिसका परिमाण 0.10 है और जो कुंडली के तल के लम्बवत है। यदि कुंडली में 5.0 A विद्युत धारा प्रवाहित हो रही हो तो,
(a) कुंडली पर लगने वाला कुल बल-युग्म आघूर्ण क्या है?
(b) कुंडली पर लगने वाला कुल परिणामी बल क्या है?
(c) चुम्बकीय क्षेत्र के कारण कुंडली के प्रत्येक इलेक्ट्रॉन पर लगने वाला कुलै’औसत बल क्या है?
(कुंडली 10-5 m2 अनुप्रस्थ क्षेत्र वाले ताँबे के तार से बनी है, और ताँबे में मुक्त इलेक्ट्रॉन घनत्व 1029 m-3 दिया गया है।)
हल-
फेरे N = 20, i = 5.0 A, r = 0.10 m, B = 0.10 T
इलेक्ट्रॉन घनत्व n = 1029 m-3,
तार का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल A = 10-5 m2
(a) कुंडली का तल चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् है; अत: कुंडली के तल पर अभिलम्ब व चुम्बकीय क्षेत्र के बीच का कोण शून्य है (θ = 0°)
बल-आघूर्ण τ = NiLAB sin 0° = 0
(b) कुंडली पर नेट बल भी शून्य है।
(c) यदि इलेक्ट्रॉनों का अपवाह वेग vd है तो
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प्रश्न 26.
एक परिनालिका जो 60 cm लम्बी है, जिसकी त्रिज्या 4.0 cm है और जिसमें 300 फेरों वाली 3 परतें लपेटी गई हैं। इसके भीतर एक 2.0 cm लम्बा, 2.5 g द्रव्यमान का तार इसके (केन्द्र के निकट) अक्ष के लम्बवत रखा है। तार एवं परिनालिका का अक्ष दोनों क्षैतिज तल में हैं। तार को परिनालिका के समान्तर दो वाही संयोजकों द्वारा एक बाह्य बैटरी से जोड़ा गया है जो इसमें 6.0 A विद्युत धारा प्रदान करती है। किस मान की विद्युत धारा (परिवहन की उचित दिशा के साथ) इस परिनालिका के फेरों में प्रवाहित होने पर तारे का भार संभाल सकेगी? (g = 9.8 ms-2)
हल-
परिनालिका की लम्बाई l = 0.6 m, त्रिज्या = 4.0 cm, फेरे N = 300 x 3
तार की लम्बाई L = 20 x 10-2 m, द्रव्यमान m = 25 x 10-3 kg, धारा I = 6.0 A
माना परिनालिका में प्रवाहित धारा = i
तब परिनालिका के अक्ष पर केन्द्रीय भाग में चुम्बकीय क्षेत्र
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प्रश्न 27.
किसी गैल्वेनोमीटर की कुंडली का प्रतिरोध 12 Ω है। 4 mA की विद्युत धारा प्रवाहित होने पर यह पूर्णस्केल विक्षेप दर्शाता है। आप इस गैल्वेनोमीटर को 0 से 18 V परास वाले वोल्टमीटर में कैसे रूपान्तरित करेंगे ?
हल-
दिया है, G = 12 Ω, ig = 4 mA = 4 x 10-3 A
0 से V (V = 18 V) वोल्ट परास के वोल्टमीटर में बदलने के लिए गैल्वेनोमीटर के श्रेणीक्रम में एक उच्च प्रतिरोध R जोड़ना होगा, जहाँ
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q27
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q27.1
अत: गैल्वेनोमीटर के श्रेणीक्रम में 4488 Ω का प्रतिरोध जोड़ना होगा।

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प्रश्न 28.
किसी गैल्वेनोमीटर की कुंडली का प्रतिरोध 15 Ω है। 4 mA की विद्युत धारा प्रवाहित होने पर यह पूर्णस्केल विक्षेप दर्शाता है। आप इस गैल्वेनोमीटर को 0 से 6 A परास वाले अमीटर में कैसे रूपान्तरित करेंगे?
हल-
दिया है, G = 15 Ω, ig = 4 mA = 4.0 x 10-3 A, i = 6 A
गैल्वेनोमीटर को 0-1 ऐम्पियर धारा परास वाले अमीटर में बदलने के लिए इसके पाश्र्वक्रम में एक सूक्ष्म प्रतिरोध S (शण्ट) जोड़ना होगा, जहाँ
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अत: इसके समान्तर क्रम में 10 mΩ का प्रतिरोध जोड़ना होगा।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गतिशील आवेश उत्पन्न करता है- (2013)
(i) केवल वैद्युत क्षेत्र
(ii) केवल चुम्बकीय क्षेत्र
(iii) वैद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र दोनों
(iv) वैद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र में से कोई नहीं
उत्तर-
(iii) वैद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र दोनों

प्रश्न 2.
एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जा सकता है- (2015)
(i) केवल गतिमान आवेश द्वारा
(ii) केवल बदलते वैद्युत क्षेत्र द्वारा
(iii) (i) तथा (ii) दोनों के द्वारा
(iv) इनमें से किसी के द्वारा नहीं
उत्तर-
(iii) (i) तथा (ii) दोनों के द्वारा

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प्रश्न 3.
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक होता है- (2011)
या
चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक होता है- (2015, 16)
(i) वेबर x मीटर2
(ii) वेबर/मीटर2
(iii) वेबर
(iv) वेबर/मीटर
उत्तर-
(i) वेबर/मीटर2

प्रश्न 4.
[latex s=2]\left( { \mu }_{ 0 }{ \varepsilon }_{ 0 } \right) ^{ \frac { -1 }{ 2 } }[/latex] का मान है- (2011, 14, 16, 18)
(i) 3 x 108 सेमी/सेकण्ड
(ii) 3 x 1010 सेमी/सेकण्ड
(iii) 3 x 109 सेमी/सेकण्ड
(iv) 3 x 108 किमी/सेकण्ड
उत्तर-
(ii) 3 x 1010 सेमी/सेकण्ड

प्रश्न 5.
एक इलेक्ट्रॉन तथा एक प्रोटॉन जिनकी गतिज ऊर्जाएँ समान हैं, एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् प्रक्षेपित किए जाते हैं। पथ की त्रिज्या होगी- (2013)
(i) प्रोटॉन के लिए अधिक
(ii) इलेक्ट्रॉन के लिए अधिक
(iii) दोनों के पथ समान वक्रीय होंगे।
(iv) दोनों पथ सरल रेखीय होंगे
उत्तर-
(i) प्रोटॉन के लिए अधिक (∵ त्रिज्या ∝ द्रव्यमान)

प्रश्न 6.
एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र B में बल रेखाओं के समान्तर एक इलेक्ट्रॉन जिसका आवेश e है, वेग v से चलता है। इलेक्ट्रॉन पर लगने वाला बल है- (2011, 14)
(i) evB
(ii) शून्य
(iii) [latex s=2]\frac { ev }{ B }[/latex]
(iv) [latex s=2]\frac { Bv }{ e }[/latex]
उत्तर-
(ii) शून्य

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प्रश्न 7.
m द्रव्यमान का कण जिस पर आवेश q है एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र B के लम्बवत् वेग v से प्रविष्ट होता है। इसके पथ की त्रिज्या होगी- (2014)
(i) [latex s=2]\frac { m }{ qB }[/latex]
(ii) [latex s=2]\frac { m }{ qvB }[/latex]
(iii) [latex s=2]\frac { 2m }{ qB }[/latex]
(iv) [latex s=2]\frac { mv }{ qB }[/latex]
उत्तर-
(iv) [latex s=2]\frac { mv }{ qB }[/latex]

प्रश्न 8.
एक प्रोटॉन व एक α-कण समान वेग से एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में लम्बवत् प्रवेश करते हैं। यदि उनके परिक्रमण काल क्रमशः T1 व T2 हों तब (2012)
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प्रश्न 9.
किसी समान चुम्बकीय क्षेत्र में एक इलेक्ट्रॉन क्षेत्र के लम्बवत दिशा में प्रवेश करता है। इलेक्ट्रॉन का पथ होगा (2013, 15, 17)
(i) परवलयाकार
(ii) दीर्घवृत्ताकार
(iii) वृत्ताकार
(iv) सरल रैखिक
उत्तर-
(iii) वृत्ताकार

प्रश्न 10.
यदि आवेशित कण का वेग दोगुना तथा चुम्बकीय क्षेत्र का मान आधा कर दिया जाए, तो आवेश के मार्ग (पथ की त्रिज्या हो जाएगी) (2014)
(i) 8 गुनी
(ii) 4 गुनी
(iii) 3 गुनी
(iv) 2 गुनी
उत्तर-
(ii) 4 गुनी

प्रश्न 11.
एक हीलियम नाभिक 0.8 मीटर त्रिज्या के वृत्त में प्रति सेकण्ड एक चक्कर लगाता है। वृत्त के केन्द्र पर उत्पन्न चुकीय क्षेत्र होगा (2015)
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प्रश्न 12.
एक वृत्ताकार छल्ले का क्षेत्रफल 1.0 सेमी है तथा इसमें 10.0 ऐम्पियर धारा प्रवाहित हो रही है। 0.1 टेस्ला तीव्रता का चुम्बकीय क्षेत्र छल्ले के तल के लम्बवत लगाया जाता है। चुम्बकीय क्षेत्र के कारण छल्ले पर लगने वाला बल-आघूर्ण होगा (2015)
(i) शून्य
(ii) 10-4 न्यूटन-मी
(iii) 10-2 न्यूटन-मी
(iv) 1.0 न्यूटन-मी
उत्तर-
(iv) 1.0 न्यूटन-मी

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प्रश्न 14.
एक वृत्ताकार लूप का पृष्ठ क्षेत्रफल A तथा इसमें प्रवाहित धारा I है। चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता B लूप के तल के लम्बवत है। चुम्बकीय क्षेत्र के कारण लूप में लगने वाला बल आघूर्ण (2017)
(i) BIA
(ii) 2BIA
(iii) [latex s=2]\sigma [/latex] BIA
(iv) शून्य
उत्तर-
(i) BIA

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लॉरेन्ज बल क्या है? (2009, 18)
या
एक इलेक्ट्रॉन (आवेश e) + X अक्ष की दिशा में v चाल से, समरूप चुम्बकीय क्षेत्र B जो Y अक्ष की दिशा में है, प्रवेश करता है। इलेक्ट्रॉन पर कार्य करने वाले बल का सूत्र एवं दिशा ज्ञात कीजिए। (2015)
उत्तर-
चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेश (इलेक्ट्रॉन) पर लगने वाले चुम्बकीय बल को लॉरेन्ज बल कहते हैं। यदि q आवेश v वेग से चुम्बकीय क्षेत्र [latex s=2]\vec { B }[/latex] की दिशा से θ कोण पर गति करे, तो उस पर कार्य करने वाला लॉरेन्ज बल F = qvB sin θ। बल की दिशा [latex s=2]\vec { v }[/latex] तथा [latex s=2]\vec { B }[/latex] दोनों के लम्बवत् होती है।

प्रश्न 2.
q आवेश वाला कोई कण वेग v से एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र B के समान्तर दिशा में गति कर रहा है। इस कण पर लगने वाले बल का मान कितना होगा? (2016)
उत्तर-
F = qvB sin θ = qvB sin 0° = 0 अर्थात् शून्य।

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प्रश्न 3.
q आवेश का एक आवेशित कण, [latex s=2]\vec { v }[/latex] वेग से चलता हुआ एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र B में, क्षेत्र की दिशा से 30° का कोण बनाता हुआ प्रवेश करता है। आवेश पर लगने वाले बल का परिमाण क्या होगा? (2015)
उत्तर-
F = qvB sin θ = qvB sin 30°
F = [latex s=2]\frac { qvB }{ 2 }[/latex] [∵ sin 30° = [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 }[/latex]]

प्रश्न 4.
एक इलेक्ट्रॉन 0.1 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर के एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में लम्बवत् 105 मीटर/सेकण्ड की चाल से प्रवेश करता है। इलेक्ट्रॉन पर लॉरेन्ज बल का मान ज्ञात कीजिए। (2017)
हल-
दिया है, B = 0.1 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर, v = 105 मी/सेकण्ड
लॉरेन्ज बल (F) = qvB = 1.6 x 10-19 x 105 x 0.1 = 1.6 x 10-15 न्यूटन

प्रश्न 5.
एक सीधे लम्बे तार से 2.0 सेमी दूरी पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता 10-6 टेस्ला है। तार में वैद्युत धारा ज्ञात कीजिए। (2015)
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प्रश्न 6.
साइक्लोट्रॉन किस सिद्धान्त पर कार्य करता है? (2015)
उत्तर-
साइक्लोट्रॉन के कार्य करने का सिद्धान्त यह है कि डीज के बीच लगने वाले प्रत्यावर्ती विभवान्तर की रेडियो आवृत्ति, डीज के भीतर आवेशित कण के परिक्रमण की आवृत्ति के बराबर होनी चाहिए।

प्रश्न 7.
[latex s=2]{ \mu }_{ 0 }{ \varepsilon }_{ 0 }[/latex] का मान ज्ञात कीजिए। संकेतों के सामान्य अर्थ हैं। (2017, 18)
हल-
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प्रश्न 8.
[latex s=2]{ \mu }_{ 0 }{ \varepsilon }_{ 0 }[/latex] का विमीय सूत्र लिखिए। (2017)
उत्तर-
[L-2T2]

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प्रश्न 9.
दिखाइए कि निर्वात में प्रकाश की चात [latex s=2]c=\frac { 1 }{ \sqrt { { \mu }_{ 0 }{ \varepsilon }_{ 0 } } }[/latex] होती है। (2015)
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प्रश्न 10.
किसी 20 सेमी त्रिज्या के वृत्ताकार लूप में 4 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है। लूप के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र की गणना कीजिए। (2012, 13)
हल-
वृत्ताकार धारावाही लूप के केन्द्र पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism VSAQ 10.1

प्रश्न 11.
2.0 मिमी व्यास के ताँबे के तार में 10 ऐम्पियर की धारा है। इस धारा के कारण अधिकतम चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का परिमाप ज्ञात कीजिए। (2017)
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प्रश्न 12.
ऐम्पियर का परिपथीय नियम लिखिए। (2014, 15, 17, 18)
उत्तर-
“किसी बन्द वक्र के परित: चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का रेखा-समाकलन (line-integral) उस बन्द वक्र द्वारा घिरे क्षेत्रफल में से गुजरने वाली कुल वैद्युत धारा का µ0 गुना होता है, जहाँ µ0 निर्वात् की निरपेक्ष चुम्बकशीलता है।” अर्थात्
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism VSAQ 12
जिसमें I पथ द्वारा घिरी नेट धारा है तथा C बन्द पथ की सीमा है।

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प्रश्न 13.
एक ऐम्पियर की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
“1 ऐम्पियर वह वैद्युत धारा है जो कि निर्वात् अथवा वायु में 1 मीटर दूर रखे दो समान्तर तारों में प्रवाहित होने पर उसकी प्रति मीटर लम्बाई पर 2 x 10-7 न्यूटन का बल आरोपित करती है।”

प्रश्न 14.
लम्बी धारावाही परिनालिका के भीतरी अक्ष पर स्थित बिन्दु पर चुम्बकीय बल क्षेत्र का सूत्र लिखिए। (2011, 12)
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प्रश्न 15.
किसी धारा लूप का क्षेत्रफल 0.25 मी2 है तथा उसमें प्रवाहित धारा 0.5 ऐम्पियर है। इस लूप का चुम्बकीय आघूर्ण क्या होगा? (2017)
हल-
दिया है, A = 0.25 मीटर2, I = 0.5 ऐम्पियर
चुम्बकीय आघूर्ण (M) = IA = 0.5 x 0.25 = 0.125 ऐम्पियर-मी

प्रश्न 16.
एक ऋजु रेखीय चालक में धारा से उत्पन्न चुम्बकीय बल रेखाओं की प्रकृति क्या होगी? (2009)
उत्तर-
वृत्ताकार।

प्रश्न 17.
दो समान्तर धारावाही ऋजुरेखीय तारों के बीच लगने वाले बल का सूत्र लिखिए। (2016)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q17
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism Q19

प्रश्न 18.
किसी धारावाही अल्पांश dl से r दूरी पर चुम्बकीय क्षेत्र के लिए बायो-सेवर्ट नियम को सदिश रूप में लिखिए। (2017)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism VSAQ 18
प्रश्न 19.
चल-कुण्डल धारामापी की सुग्राहिता से क्या तात्पर्य है? (2014)
उत्तर-
यदि किसी धारामापी में थोड़ी-सी धारा प्रवाहित करने से ही पर्याप्त विक्षेप आ जाए तो धारामापी को सुग्राही कहते हैं। कुण्डली में एकांक धारा प्रवाहित करने पर उसमें उत्पन्न विक्षेप को धारामापी की सुग्राहिता कहते हैं।

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प्रश्न 20.
एक धारामापी को वोल्टमीटर में कैसे बदलते हैं? (2014)
उत्तर-
श्रेणीक्रम में उच्च प्रतिरोध जोड़ने पर धारामापी वोल्टमीटर में परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न 21.
किसी चल कुण्डली धारामापी का ऐमीटर और वोल्टमीटर में कैसे रूपान्तरण किया जाता (2015)
उत्तर-

  1. धारामापी की कुण्डली के समान्तर में लघु प्रतिरोध (शन्ट) लगा देते हैं, जिसका मान ऐमीटर की परास पर निर्भर करता है। इस प्रकार चल कुण्डली धारामापी का ऐमीटर में रूपान्तरण हो जाता है।
  2. श्रेणीक्रम में उच्च प्रतिरोध जोड़ने पर धारामापी वोल्टमीटर में परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न 22.
99 ओम प्रतिरोध के चल कुण्डली धारामापी में मुख्य धारा का 10% भेजने के लिए आवश्यक शन्ट के प्रतिरोध का मान ज्ञात कीजिए। (2016)
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प्रश्न 23.
चुम्बकीय आघूर्ण की परिभाषा दीजिए। (2017, 18)
हल-
किसी चुम्बकीय द्विध्रुव का चुम्बकीय आघूर्ण वह बल आघूर्ण है जो इस द्विध्रुव को एकांक व एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् रखने पर द्विध्रुव पर लगता है।

प्रश्न 24.
चुम्बकीय बल रेखाओं एवं वैद्युत बल रेखाओं में अन्तर लिखिए। (2017)
हल-

  1. चुम्बकीय बल रेखाएँ बन्द वक्र में होती हैं जबकि वैद्युत बल रेखाएँ बन्द वक्र में नहीं होती हैं। इसका मुख्य कारण चुम्बकीय ध्रुव का विलगित नहीं होना है जबकि धनावेश एवं ऋणावेश विलगित अवस्था में प्राप्त किए जा सकते हैं।
  2. चुम्बकीय बल रेखाओं का किसी चुम्बकीय पदार्थ से किसी भी कोण पर निर्गमन अथवा आगमन सम्भव होता है। जबकि वैद्युत बल रेखाओं को किसी चालक पदार्थ से लम्बवत् निर्गमन अथवा आगमन होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
m द्रव्यमान का इलेक्ट्रॉन (आवेश q), एकसमान वैद्युत क्षेत्र E में विरामावस्था से त्वरित होता है। सिद्ध कीजिए कि x-दूरी तय करने में इलेक्ट्रॉन द्वारा अर्जित वेग [latex s=2]\sqrt { \frac { 2qEx }{ m } }[/latex] होगा। (2013)
उत्तर-
माना द्रव्यमान m तथा धन आवेश q का एक कण एकसमान वैद्युत क्षेत्र [latex s=2]\vec { E }[/latex] में बिन्दु A पर विराम अवस्था में स्थित है (चित्र 4.8)। वैद्युत क्षेत्र द्वारा आवेशित कण पर आरोपित बल,
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प्रश्न 2.
समान गतिज ऊर्जा वाले दो आवेशित कण समरूप चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत प्रवेश करते हैं। यदि उनके द्रव्यमानों का अनुपात 4 : 1 तथा आवेशों का अनुपात 2 : 1 हो तो उनके वृत्तीय पथों की त्रिज्याएँ किस अनुपात में होंगी? (2014)
हल-
यहाँ दोनों कणों की गतिज ऊर्जाएँ समान हैं अर्थात् K1 = K2 = K तथा चुम्बकीय क्षेत्र भी समान हैं।
माना पहले कण का द्रव्यमान व आवेश क्रमशः m1 तथा q1 एवं द्वितीय कण का द्रव्यमान व आवेश क्रमश: m2 तथा q2 हैं।
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प्रश्न 3.
एक इलेक्ट्रॉन-धारा में इलेक्ट्रॉन का वेग 2.0 x 107 मीटर/सेकण्ड है। इलेक्ट्रॉन 1.6 x 103 वोल्ट/मीटर के स्थिर वैद्युत क्षेत्र के लम्बवत दिशा में 10 सेमी चलने में 3.4 मिमी विक्षेपित हो जाता है। इलेक्ट्रॉन के विशिष्ट आवेश की गणना कीजिए। (2013)
हल-
यदि कोई इलेक्ट्रॉन E तीव्रता के वैद्युत क्षेत्र में v वेग से लम्बवत् प्रवेश करके इस क्षेत्र में x दूरी तय करने पर y दूरी ऊर्ध्वाधरतः विक्षेपित हो जाए, तो
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प्रश्न 4.
एक प्रोटॉन, एक ड्यूट्रॉन तथा एक α-कण समान विभवान्तर से त्वरित होकर एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् प्रवेश करते हैं।
(i) इनकी गतिज ऊर्जाओं की तुलना कीजिए।
(ii) यदि प्रोटॉन के वृत्ताकार मार्ग की त्रिज्या 10 सेमी हो, तो ड्यूट्रॉन तथा a कण के मार्गों की त्रिज्याएँ क्या होंगी? (2017)
हल-
(i) V वोल्ट विभवान्तर से त्वरित q कूलॉम आवेश की गतिज ऊर्जा
K = qV जूल।
प्रोटॉन की गतिज ऊर्जा Kp = eV (∵ आवेश q = e)
ड्यूट्रॉन की गतिज ऊर्जा Kd = ev (∵ q = e)
α-कण की गतिज ऊर्जा Kα = 2eV (∵ q = 2e)
Kp : Kd : Kα = 1 : 1 : 2
(ii) चुम्बकीय क्षेत्र B में v चाल से गतिमान आवेशित कण (द्रव्यमान m, आवेश q) के वृत्ताकार पथ की त्रिज्या r के लिए।
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism SAQ 4.1

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प्रश्न 5.
एक वृत्ताकार धारावाही कुण्डली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र का व्यंजक निगमित कीजिए। (2017, 18)
या
बायो-सेवर्ट का नियम समझाइए। इस नियम का उपयोग करके एक वृत्ताकार धारावाही कुण्डली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र के व्यंजक का निगमन कीजिए। (2014, 16)
उत्तर-
बायो-सेवर्ट का नियम- [संकेत-दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 2 का उत्तर पढ़िए।]
वृत्ताकार धारावाही कुण्डली के केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र- माना एक तार को मोड़कर r मीटर त्रिज्या की वृत्ताकार कुण्डली बनाई गयी है। माना कुण्डली में i ऐम्पियर की (UPBoardSolutions.com) धारा प्रवाहित हो रही है। कुण्डली के केन्द्र O पर चुम्बकीय क्षेत्र ज्ञात करने के लिए मान लेते हैं कि कुण्डली की परिधि अनेक अल्पांशों से मिलकर बनी है। इनमें से एक अल्पांश की लम्बाई ∆l है। बायो-सेवर्ट नियम के अनुसार अल्पांश ∆l के कारण O पर चुम्बकीय क्षेत्र का मान
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism SAQ 5.1

प्रश्न 6.
0.5 एंगस्ट्रॉम त्रिज्या के वृत्त में एक इलेक्ट्रॉन 3 x 105 चक्कर/सेकण्ड की दर से घूमता है। वृत्त के केन्द्र पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात कीजिए। (2017)
हल-
वृत्ताकार मार्ग की त्रिज्या (r) = 0.5 Å = 0.5 x 10-10 मी
इलेक्ट्रॉन की चाल (v) = 3 x 105 चक्कर/से
आवेश (q) = e = 1.6 x 10-19 कूलॉम
इलेक्ट्रॉन की वृत्तीय पथ पर गति के कारण केन्द्र पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र
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प्रश्न 7.
2 x 10-10 मी त्रिज्या के वृत्ताकार मार्ग पर एक इलेक्ट्रॉन 3 x 10-6 मी/से की एक समान चाल से चक्कर लगा रहा है। वृत्ताकार मार्ग के केन्द्र पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की गणना कीजिए।
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प्रश्न 8.
किसी 10-5 टेस्ला के एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में 10 eV ऊर्जा का एक इलेक्ट्रॉन वृत्ताकार मार्ग पर परिक्रमा कर रहा है। वृत्ताकार मार्ग की त्रिज्या ज्ञात कीजिए। (2017)
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प्रश्न 9.
दो लम्बे समान्तर तारों में हैं i तथा 2i धाराएँ समान दिशा में प्रवाहित हो रही हैं। यदि तारों के बीच की लम्बवत दूरी 2a हो तब तारों के बीच मध्य बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र का मान व दिशा ज्ञात कीजिए। (2014)
हल-
ऐम्पियर की धारा के कारण बिन्दु P पर चुम्बकीय क्षेत्र
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परिणामी क्षेत्र कागज के तल के लम्बवत् ऊपर की ओर होगा।

प्रश्न 10.
2.0 मीटर लम्बी परिनालिका में 1000 फेरे हैं। इसमें 10 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है। इसके केन्द्र में उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मान ज्ञात कीजिए। (2015)
हल-
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 4 Moving Charges and Magnetism SAQ 10

प्रश्न 11.
दो लम्बे सीधे तार, जिनमें प्रत्येक में 5.0 ऐम्पियर धारा प्रवाहित हो रही है, एक-दूसरे के समान्तर 2.5 सेमी की दूरी पर रखे हैं। तारों की 10.0 सेमी लम्बाई पर लगने वाला बल ज्ञात कीजिए। (2015)
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प्रश्न 12.
एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में एक धारावाही आयताकार कुण्डली लटकायी गई है। इस पर लगने वाले बल युग्म के आघूर्ण का व्यंजक प्राप्त कीजिए। (2017)
हल-
एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारा-लूप (अथवा कुण्डली अथवा परिनालिका) को व्यवहार ठीक वैसा ही होता है जैसा दण्ड-चुम्बक का। हमने यह पढ़ा है कि चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारा-लूप पर एक बल-युग्म लगता है जो कि लूप को ऐसी स्थिति में घुमाने की प्रवृत्ति रखता है जिसमें कि लूप की अक्ष चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर हो जाये। ठीक इसी प्रकार, चुम्बकीय क्षेत्र में लटकाया गया दण्ड-चुम्बक भी घूम (UPBoardSolutions.com) कर ऐसी स्थिति में ठहरता है जिसमें कि चुम्बक की अक्ष चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर हो जाती है। स्पष्ट है कि चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित दण्ड-चुम्बक पर भी एक बल-युग्म लगता है जो कि चुम्बक की अक्ष को क्षेत्र के समान्तर करने की प्रवृत्ति रखता है। चुम्बक के परमाणवीय मॉडल के अनुसार, चुम्बक का प्रत्येक परमाणु एक नन्हा धारा-लूप होता है तथा ये सभी धारा-लूप एक ही दिशा में संरेखित होते हैं चुम्बकीय क्षेत्र में इन नन्हें धारा-लूपों पर लगने वाले बल-युग्मों का योग ही चुम्बक पर लगने वाला बल-युग्म होता है (चित्र 4.12)।
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हम जानते हैं कि चुम्बकीय क्षेत्र [latex s=2]\vec { B }[/latex] में, क्षेत्र की दिशा से θ कोण पर स्थित धारा-लूप पर लगने वाले बल-युग्म का आघूर्ण
= (iA) B sin θ
जहाँ A धारा-लूप को क्षेत्रफल है। यदि दण्ड-चुम्बक में N धारा-लूप हों, तब पूरे चुम्बक पर लगने वाले बल-युग्म का आघूर्ण
T = (NiA) B sin θ …..(1)
चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित दण्ड-चुम्बक, धारा-लूप अथवा धारावाही कुण्डली का व्यवहार वैद्युत क्षेत्र में स्थित वैद्युत द्विध्रुव के व्यवहार के सदृश है। यही कारण है कि दण्ड-चुम्बक, धारा-लूप, धारावाही कुण्डली, इत्यादि ‘चुम्बकीय द्विध्रुव’ (magnetic dipole) कहलाते हैं। हम जानते हैं कि वैद्युत क्षेत्र [latex s=2]\vec { E }[/latex] में क्षेत्र की दिशा से कोण पर स्थित वैद्युत द्विध्रुव पर एक बल-युग्म लगता है, जिसका आघूर्ण निम्नलिखित समीकरण के अनुसार होता है-
t = pE sin θ …..(2)
जहाँ, p वैद्युत द्विध्रुव का आघूर्ण है। समीकरण (1) व (2) की तुलना से यह स्पष्ट है कि राशि NiA, वैद्युत द्विध्रुव के आघूर्ण p के समतुल्य है। इसे चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण’ अथवा दण्ड-चुम्बक का चुम्बकीय आघूर्ण’ (magnetic moment) M कहते हैं, अर्थात्
M= NiA
चुम्बकीय आघूर्ण एक सदिश राशि है। यह चुम्बकीय अक्ष के अनुदिश दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की । ओर दिष्ट होता है।
अब, समीकरण (1) से, दण्ड-चुम्बक पर लगने वाले बल-युग्म का आघूर्ण
t = MB sin θ

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प्रश्न 13.
चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण की परिभाषा दीजिए। बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित चुम्बकीय द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा का व्यंजक प्राप्त कीजिए। (2017)
या
चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण की परिभाषा लिखिए। (2018)
उत्तर-
चुम्बकीय द्विध्रुव की ध्रुव सामर्थ्य तथा चुम्बक की प्रभावी लम्बाई के गुणनफल की चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण कहते हैं। इसे ‘M’ से प्रकट करते हैं।
जब किसी चुम्बकीय द्विध्रुव को एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में रखते हैं तो इस पर एक बल-युग्म का आघूर्ण कार्य करता है जो कि चुम्बकीय द्विध्रुव को बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में संरेखित करने का प्रयत्न करता है। अत: चुम्बकीय द्विध्रुव को चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा से घुमाने – में कार्य करना पड़ता है। यह कार्य ही चुम्बकीय द्विध्रुव में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।
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माना एक चुम्बकीय द्विध्रुव जिसका चुम्बकीय द्विध्रुव-आघूर्ण M है। एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र B में क्षेत्र की दिशा से से कोण बनाते हुए स्थित है अत: चुम्बकीय द्विध्रुव पर कार्यरत बल-युग्म का आघूर्ण
τ = MB sin θ
चुम्बकीय द्विध्रुव को इस स्थिति से अत्यन्त सूक्ष्म कोण dθ घुमाने में किया गया कार्य
dW = tdθ = MB sin θ dθ
इसी प्रकार चुम्बकीय द्विध्रुवे को चुम्बकीय क्षेत्र में अभिविन्यास θ1 से अभिविन्यास θ2 तक घुमाने में किया गया कार्य
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प्रश्न 14.
हाइड्रोजन परमाणु में इलेक्ट्रॉन 5.0 x 10-11 मी त्रिज्या की कक्षा में 2 x 106 मी/से की चाल से गति कर रहा है। परमाणु का चुम्बकीय आघूर्ण ज्ञात कीजिए। (2017)
या
एक परमाणु में इलेक्ट्रॉन 0.50 Å त्रिज्या की कक्षा में 4 x 1015 चक्कर/से से घूम रहा है। परमाणु के चुम्बकीय आघूर्ण का मान ज्ञात कीजिए। (2018)
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प्रश्न 15.
एक धारामापी की कुण्डली का प्रतिरोध 100 ओम है। 5.0 मिली ऐम्पियर धारा से इसमें पूर्ण स्केल विक्षेपण प्राप्त होता है। इसे 0 से 10 ऐम्पियर परास के अमीटर में कैसे परिवर्तित करेंगे? (2014)
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
साइक्लोट्रॉन के सिद्धान्त एवं कार्य विधि का संक्षिप्त विवरण दीजिए। साइक्लोट्रॉन की सीमाओं का उल्लेख कीजिए। (2017)
हल-
सिद्धान्त- चुम्बकीय क्षेत्र में परिक्रमण करने वाले आवेशित कणों की परिक्रमण आवृत्ति कण की ऊर्जा पर निर्भर नहीं करती है। अत: क्रॉसित (परस्पर लम्बवत्) वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों का उपयोग कर आवेशित कण को चुम्बकीय क्षेत्र की सहायता से बार-बार एक ही वैद्युत क्षेत्र से गुजारकर उसको उच्च ऊर्जा तक त्वरित किया जा सकता है।

कार्य-विधि- माना m द्रव्यमान तथा +q आवेश का एक आयन, आयन-स्रोत से उस क्षण निर्गत होता है जबकि D2 ऋण विभव पर है। यह आयनन डीज के बीच के अन्तराल में विद्यमान वैद्युत क्षेत्र के द्वारा D2 की ओर को त्वरित होकर D2 में वेग v (माना) से प्रवेश कर जाता है। डीज के भीतर प्रवेश करते ही यह आयन डीज की धात्विक दीवारों द्वारा वैद्युत क्षेत्र से परिरक्षित कर दिया जाता है। अब डीज के तल के लम्बवत् चुम्बकीय क्षेत्र के कारण आयन नियत चाल v से त्रिज्या r के वृत्ताकार पथ पर चलने लगता है। आयन की वृत्तीय गति के लिए आवश्यक अभिकेन्द्र बल, उस पर कार्यरत चुम्बकीय बल से प्राप्त होता है। अतः अभिकेन्द्र बल = चुम्बकीय बल।
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साइक्लोट्रॉन की सीमाएँ-
(i) साइक्लोट्रॉन द्वारा अनावेशित कण जैसे- न्यूट्रॉन (जो कि नाभिकीय क्रियाओं के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रक्षेप्य कण है) को त्वरित नहीं किया जा सकता है।
(ii) साइक्लोट्रॉन द्वारा इलेक्ट्रॉनों को त्वरित नहीं किया जा सकता है क्योंकि इनका द्रव्यमान बहुत कम होता है, अतः सूक्ष्म गतिज ऊर्जा ग्रहण कर ही ये बहुत उच्च वेग से गति करने लगते हैं।
(iii) साइक्लोट्रॉन द्वारा आवेशित कणों को इतने उच्च वेग तक त्वरित नहीं किया जा सकता है कि उनका वेग प्रकाश के वेग के तुल्य हो जाए क्योंकि इतने उच्च (UPBoardSolutions.com) वेग पर आवेशित कणों का द्रव्यमान नियत न रहकर वेग के साथ परिवर्तित होता हैं। यदि आवेशित कण का विराम द्रव्यमान m0 हो तथा v वेग से गति करते समय कण का वेग m हो, तब
[latex s=2]m=\frac { { m }_{ 0 } }{ \sqrt { 1-\frac { { v }^{ 2 } }{ { c }^{ 2 } } } }[/latex]
जहाँ, c निर्वात् में प्रकाश की चाल है।

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प्रश्न 2.
धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता से सम्बन्धित बायो-सेवर्ट नियम की व्याख्या कीजिए। बायो-सेवर्ट नियम की समीकरण से निर्वात की चुम्बकशीलता का मात्रक एवं विमीय समीकरण निकालिए। (2017)
या
बायो-सेवर्ट नियम को शब्दों तथा सूत्र में लिखिए। (2011)
या
बायो-सेवर्ट नियम का उल्लेख कीजिए। (2013, 17, 18)
या
किसी धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र के सम्बन्ध में बायो-सेवर्ट के नियम का उल्लेख कीजिए। (2015)
उत्तर-
बायो-सेवर्ट का नियम (Biot-Savart Law)- सन् 1820 में बायो तथा सेवर्ट ने धारावाही चालकों द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का अध्ययन करने के लिए अनेक प्रयोग किये। इन प्रयोगों के आधार पर उन्होंने बताया कि किसी धारावाही चालक के एक अल्पांश ∆l के द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र में किसी बिन्दु P पर क्षेत्र का मान ∆B निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-
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प्रश्न 3.
ऐम्पियर के परिपथीय नियम का उपयोग करके एक अनन्त लम्बाई के सीधे धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का सूत्र स्थापित कीजिए। (2014)
या
ऐम्पियर के परिपथीय नियम का उपयोग करके अनन्त लम्बाई के सीधे धारावाही तार के निकट किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात कीजिए। (2015)
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प्रश्न 4.
ऐम्पियर के परिपथीय नियम की सहायता से धारावाही परिनालिका के अन्दर उसकी अक्ष पर चुम्बकीय क्षेत्र के सूत्र की स्थापना कीजिए। (2015)
उत्तर-
माना एक लम्बी परिनालिका की प्रति मीटर लम्बाई में तार के n फेरे हैं तथा इसमें i ऐम्पियर की धारा बह रही है। माना एक आयताकार बन्द पथ a b c d है जिसकी भुजा a b परिनालिका की अक्ष के समान्तर है तथा भुजाएँ। c तथा a d बहुत लम्बी हैं जिससे कि यह माना जा सके कि (UPBoardSolutions.com) भुजा c d परिनालिका से बहुत दूर है तथा इस भुजा पर परिनालिका के कारण चुम्बकीय क्षेत्र नगण्य है। जब परिनालिका लम्बी है। तथा आयताकार बन्द पथ परिनालिका के किसी भी किनारे के बहुत समीप नहीं है, तो क्षेत्र b c तथा a d भुजाओं के लम्बवत् हैं।
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प्रश्न 5.
दो समान्तर धारावाही चालकों के बीच लगने वाले बल [latex s=2]\frac { F }{ l } =\frac { { \mu }_{ 0 } }{ 2\Pi } =\frac { { i }_{ 1 }{ i }_{ 2 } }{ r }[/latex] न्यूटन/मीटर के लिए सूत्र व्युत्पन्न कीजिए। उपर्युक्त सूत्र के आधार पर धारा के एक ऐम्पियर की परिभाषा दीजिए। (2017)
या
दो समान्तर धारावाही चालकों के बीच क़ार्य करने वाले बल का सूत्र ज्ञात कीजिए। (2012, 17, 18)
या
दो समान्तर धारावाही चालकों के बीच लगने वाले बल के लिए सूत्र स्थापित कीजिए। इसके आधार पर वैद्युत धारा के मात्रक ऐम्पियर की परिभाषा दीजिए। (2013)
या
L मीटर लम्बाई के दो समान्तर तारों, जिनके मध्य की दूरी r मीटर है तथा जिनमें i1 और i2 ऐम्पियर की विद्युत धाराएँ प्रवाहित हैं, के मध्य प्रति एकांक लम्बाई पर बल का सूत्र [latex s=2]\frac { F }{ L } =\frac { { \mu }_{ 0 } }{ 2\Pi } =\frac { { i }_{ 1 }{ i }_{ 2 } }{ r }[/latex] व्युत्पादित कीजिए। इस सूत्र से ऐम्पियर की परिभाषा दीजिए। (2015)
उत्तर-
धारावाही चालक के चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है तथा चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर एक बल कार्य करता है। अत: यदि एक धारावाही चालक के निकट कोई दूसरा धारावाही चालक रखा जाये तो यह चालक पहले चालक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र के (UPBoardSolutions.com) कारण एक बल का अनुभव करेगा। इसी प्रकार पहला धारावाही चालक दूसरे धारावाही चालक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र के कारण एक बल अनुभव करेगा। स्पष्ट है कि पास-पास रखे दो धारावाही चालक चुम्बकीय क्षेत्र की पारस्परिक क्रिया के कारण एक-दूसरे पर बल लगाते हैं।

पारस्परिक बल का परिमाण एवं प्रकृति- माना दो लम्बे ऋजुरेखीय तार P९ तथा RS वायु या निर्वात् में एक-दूसरे के समीप परस्पर समान्तर रखे हैं। इनके बीच की दूरी r है (चित्र 4.20)। माना PQ एवं RS में प्रवाहित धाराएँ क्रमशः i1 एवं i2 हैं। PQ में प्रवाहित धारा । के कारण चालक RS के किसी भी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र
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इसकी दिशा भी फ्लेमिंग के बायें हाथ के नियम अथवा दायें हाथ की हथेली के नियम नं० 2 से निर्धारित की जाएगी। यदि धारा i2 उसी दिशा में है जिसमें i1 है तो PQ पर लगने वाला बल चालक RS की ओर दिष्ट होगा। [चित्र 4.20 (a)] और यदि यह विपरीत दिशा में है तो यह RS से दूर (UPBoardSolutions.com) दिष्ट होगा [चित्र 4.20 (b)]। अतः उपर्युक्त विवेचना से यह स्पष्ट होता है कि यदि दो समान्तर तारों में धाराएँ एक ही दिशा में हैं तो वे एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं और यदि धाराएँ विपरीत दिशा में हैं तो तार एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।

प्रश्न 6.
आवश्यक सिद्धान्त देते हुए चल कुण्डली गैल्वेनोमीटर की संरचना तथा कार्यविधि का वर्णन कीजिए। (2014)
या
चल कुण्डली धारामापी का सिद्धान्त एवं कार्यविधि का वर्णन कीजिए। इसकी सुग्राहिता किस प्रकार बढ़ायी जा सकती है? (2017)
या
निम्नलिखित चल कुण्डली धारामापी का सिद्धान्त लिखिए एवं उसकी धारा सुग्राहिता का व्यंजक ज्ञात कीजिए। (2018)
उत्तर-
चल कुण्डली गैल्वेनोमीटर- ये निम्न दो प्रकार के होते हैं
1. निलम्बित कुण्डली धारामापी- यह वैद्युत-धारा के संसूचन (detection) तथा मापन (measurement) के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला उपकरण है। इसकी क्रिया चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही कुण्डली पर कार्यरत् बलाघूर्ण पर आधारित है।
संरचना- इसमें एक आयताकोर कुण्डली होती है जोकि ताँबे के पतले पृथक्कृत (insulated) तार के ऐलुमीनियम के फ्रेम के ऊपर लपेटकर बनायी जाती है (चित्र 4.21)।

इस कुण्डली को एक पतली फॉस्फर-ब्रॉन्ज मरोड़ टोपी (phosphor-bronze) की पत्ती (strip) से एक स्थायी घोड़ा-नाल चुम्बक (horse-shoe magnet) NS के बेलनाकार ध्रुव-खण्डों फॉस्फर-ब्रॉन्ज (pole-pieces) के बीच लटकाया जाता है। पत्ती को ऊपरी सिरा एक मरोड़ टोपी (torsion head) से जुड़ा होता है। कुण्डली का निचला सिरा एक अत्यन्त पतले की कुण्डली का फ्रेम फॉस्फर-ब्रॉन्ज के तार के ढीले-वेष्ठित स्प्रिंग (loosely-wound spring) से जुड़ा होता है। कुण्डली के भीतर एक नर्म लोहे की क्रोड C सममित तथा बिना कुण्डली को स्पर्श किए रखी जाती है। क्रोड बल-रेखाओं को संकेन्द्रित कर देती है तथा इस प्रकार (UPBoardSolutions.com) ध्रुव-खण्डों के स्प्रिंग छ। बीच चुम्बकीय क्षेत्र ‘प्रबल हो जाता है। निलम्बन पत्ती (suspension strip) के। निचले भाग पर एक छोटा दर्पण (mirror) M लगा होता है, जो पत्ती के साथ-साथ घूमती है तथा जिसका विक्षेप एक लैम्प तथा पैमाने (lamp and scale arrangement) की सहायता से पढ़ा जा सकता है। सम्पूर्ण प्रबन्ध को एक धात्विक बक्से में बन्द रखा जाता है (चित्र 4.21 में प्रदर्शित नहीं) जिसके सामने की ओर काँच की एक खिड़की तथा आधार पर समतलकारी पेंच (levelling screws) लगे होते हैं।

धारा जिसको मापने करना हो, एक टर्मिनल (terminal) T1 से प्रवेश करती है तथा निलम्बन, कुण्डली व स्प्रिंग से होकर दूसरे टर्मिनल T2 से निर्गत होती है। स्थायी चुम्बक के ध्रुव खण्ड बेलनाकार रखे जाते हैं ताकि कुण्डली की प्रत्येक स्थिति में चुम्बकीय क्षेत्र त्रिज्य (radial) रहे अर्थात् कुण्डली का तल प्रत्येक स्थिति में बल-रेखाओं के समान्तर रहे।
सिद्धान्त- जब कुण्डली में धारा 1 प्रवाहित की जाती है तो कुण्डली पर लगने वाला बल-आघूर्ण
T= N i AB sin 90° = NiBA

यहाँ θ कुण्डली के तल पर लम्ब की दिशा तथा चुम्बकीय क्षेत्र [latex s=2]\vec { B }[/latex] की दिशा के बीच कोण है। A कुण्डली का क्षेत्रफल तथा N कुण्डली में फेरों की संख्या है।
धारामापी में चुम्बकीय क्षेत्र [latex s=2]\vec { B }[/latex] को, ध्रुवखण्डों N व S को बेलनाकार बनाकर तृथा कुण्डली के भीतर नर्म लोहे की बेलनाकार क्रोड रखकर “त्रिज्य’ (radial) बनाया जाता है। इस दिशा में कुण्डली के तल पर अभिलम्ब चुम्बकीय क्षेत्र B से सदैव समकोण पर होगा (चित्र 4.21) अर्थात् θ = 90° होगा। अत: कुण्डली पर कार्यरत् बलाघूर्ण
t = Ni B A sinθ [θ= 90°]
= NiB A

यदि निलम्बन पत्ती की मरोड़ दृढ़ता (torsional rigidity) c हो तथा निलम्बन पत्ती में ऐंठन Φ हो, तो प्रत्यानयन बल-युग्म = cΦ होगा।
साम्यावस्था के लिये,
विक्षेपक बल-युग्म आघूर्ण = प्रत्यानयन बल-युग्म का आघूर्ण
N i A B = cΦ
i = [latex s=2]\frac { c }{ NAB }[/latex] Φ = kΦ
जहाँ, k = c/NAB उपकरण का (UPBoardSolutions.com) नियतांक है। जिसे धारा परिवर्तन गुणांक (current reduction factor) भी कहते हैं। अतः धारामापी में प्रवाहित धारा, उत्पन्न विक्षेप के अनुक्रमानुपाती होती है।
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2. कीलकित-कुण्डली अथवा वेस्टन धारामापी- यह भी चल कुण्डली धारामापी है। यह निलम्बित-कुण्डली धारामापी की अपेक्षा कुछ कम सुग्राही होता है परन्तु अधिक सुविधाजनक है। इसमें ताँबे के महीन पृथक्कृत तार की, ऐलुमीनियम के फ्रेम पर लिपटी कुण्डली एक स्थायी तथा शक्तिशाली नाल-चुम्बक के ध्रुव-खण्डों के बीच दो चूलों (pivots) पर झूलती है (चित्र 4.22)। कुण्डलियों के दोनों सिरों पर चूलों के पास दो क्रोड स्प्रिंग लगे रहते हैं जो कुण्डली के घूमने पर ऐंठन बल-युग्म उत्पन्न करते हैं तथा कुण्डली को दो कुण्डली स्प्रिंग : सम्बन्धक-पेचों T1 व T2 से जोड़ते हैं। कुण्डली का विक्षेप पढ़ने के लिए कुण्डली के साथ एक ऐलुमीनियम का (UPBoardSolutions.com) लम्बा संकेतक लगा रहता है जो एक वृत्ताकार पैमाने पर घूमता है। पैमाने पर बराबर दूरियों पर चिह्न लगे रहते हैं तथा शून्यांक चिह्न बीच में होता है। अतः धारामापी के सम्बन्धक-पेचों पर धन व ऋण के चिह्न नहीं बने होते। चुम्बकीय क्षेत्र को त्रिज्य बनाने के लिए इससे भी ध्रुव-खण्ड अवतलाकार कटे होते हैं तथा कुण्डली के अन्दर मुलायम लोहे की क्रोड लगी होती है। इसका सिद्धान्त के कार्यविधि चल-कुण्डली धारामापी के समान ही है। इसकी सहायता से 10-6 ऐम्पियर तक की वैद्युत धारा नापी जा सकती है। धारामापी की सुग्राहिता N, A तथा B का मान बढ़ाकर तथा c का मान कम करके बढ़ाई जा सकती है।
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प्रश्न 7.
किसी धारामापी को अमीटर में कैसे परिवर्तित करेंगे? उपयुक्त परिपथ द्वारा स्पष्ट कीजिए। (2014, 18)
उत्तर-
धारामापी का अमीटर में रूपान्तरण- अमीटर वह यन्त्र है जो वैद्युत परिपथ में धारा की प्रबलता सीधे ऐम्पियर में नापने के काम आता है। मिलीऐम्पियर की कोटि की धारा नापने वाले यन्त्र को मिलीअमीटर कहते हैं।

अमीटर मूलतः धारामापी ही होता है जिसे परिपथ के श्रेणीक्रम में डाल देते हैं ताकि नापी जाने वाली सम्पूर्ण धारा इसमें से होकर जाये। तब अमीटर में उत्पन्न विक्षेप अमीटर से होकर जाने वाली धारा की माप देगा (Φ ∝ i)। परन्तु चूँकि अमीटर की अपनी कुण्डली का भी कुछ प्रतिरोध होता है (UPBoardSolutions.com) अतः इसे परिपथ के श्रेणीक्रम में जोड़ने पर परिपथ का प्रतिरोध बढ़ जायेगा जिससे परिपथ में धारा घट जायेगी। अतः अमीटर द्वारा पढ़ा गया धारा का मान, उस धारा के मान से कम होगा जिसे नापना था। अत: यह आवश्यक है कि अमीटर का अपना प्रतिरोध, जितना हो सके कम होना चाहिए ताकि इसे परिपथ में डालने पर नापी जाने वाली धारा का मान न बदले।
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स्पष्ट है इस त्रुटि को पूर्णतः दूर करने के लिए RA का मान शून्य होना चाहिए अर्थात् एक आदर्श अमीटर का अपना प्रतिरोध शून्य होना चाहिए परन्तु शून्य प्रतिरोध का (UPBoardSolutions.com) अमीटर प्राप्त नहीं किया जा सकता। अतः व्यवहार में, एक अच्छे अमीटर का अपनी प्रतिरोध परिपथ में उपस्थित अन्य प्रतिरोधों की तुलना में बहुत कम होना चाहिए अर्थात्
RA << R1 + R2
तब i का मान लगभग i के ही बराबर होगा।

साधारणतः कीलकित (pivoted type) चल-कुण्डली धारामापी को। ही अमीटर के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इसके लिए इसकी कुण्डली के समान्तर क्रम में एक छोटा प्रतिरोध डाल देते हैं जिसे ‘शन्ट’ (shunt) कहते हैं (चित्र 4.24)। इस प्रबन्ध का संयुक्त प्रतिरोध धारामापी की (UPBoardSolutions.com) कुण्डली तथा शन्ट दोनों के अलग-अलग प्रतिरोधों से कम होता है। अतः जब इसे किसी परिपथ में डालते हैं तो अमीटर यह परिपथ की धारा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं करता। इस प्रकार । चित्र 4.24 यह प्रबन्ध एक अच्छे अमीटर का कार्य करता है।
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धारामापी में शन्ट लगाने का एक अन्य लाभ भी है। यदि शन्ट न हो तब परिपथ की पूरी धारा कुण्डली में से होकर जायेगी। इस दशा में धारामापी द्वारा अधिक-से-अधिक उतनी धारा नापी जा सकती है जिससे कि कुण्डली में पूरे पैमाने का विक्षेप (full-scale deflection) हो जाये। शन्ट के होने पर, परिपथ की धारा का केवल एक छोटा भाग ही कुण्डली से होकर जाता है, अधिकांश भाग शन्ट से होकर निकल जाता है। चूंकि कुण्डली का विक्षेप कुण्डली में को जाने वाली धारा के अनुक्रमानुपाती होता है, अत: कुण्डली का विक्षेप (UPBoardSolutions.com) काफी कम हो जाता है। अतः अब परिपथ में पहले से कहीं अधिक धारा होने पर कुण्डली में पूरे पैमाने का विक्षेप होता है। इस प्रकार, शन्टयुक्त धारामापी (अमीटर) कहीं अधिक मान की धारा को नाप सकता है। दूसरे शब्दों में, शन्ट लगाने से मापन की परास (range) बढ़ जाती है। (यद्यपि सुग्राहिता घट जाती है)। वास्तव में शन्ट के प्रतिरोध का मान इसी से निर्धारित किया जाता है कि अमीटर किस परास को बनाना है।

माना कि परिपथ की धारा i है, धारामापी की कुण्डली का प्रतिरोध G तथा शन्ट का प्रतिरोध S है। माना। कि धारा का ig भाग कुण्डली G में तथा शेष भाग (i – ig) शन्ट S में होकर जाता है। चूंकि G व S समान्तर, में हैं, अतः उनके सिरों के बीच एक ही विभवान्तर होगा।
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यदि कुण्डली में धारा ig, के द्वारा पूरे पैमाने का विक्षेप हो तो परिपथ में धारा i होने पर पूरे पैमाने का विक्षेप होगा। अतः स्पष्ट है कि धारामापी के समान्तर में उपरोक्त मान का शन्ट लगाने पर धारामापी, ऐम्पियर की परास का अमीटर होगा। एक दिये गये धारामापी के लिए ig का मान प्रयोग द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity (विद्युत धारा) are part of UP Board Solutions for Class 12 Physics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity (विद्युत धारा).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Physics
Chapter Chapter 3
Chapter Name Current Electricity (विद्युत धारा)
Number of Questions Solved 118
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity (विद्युत धारा)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किसी कार की संचायक बैटरी का विद्युत वाहक बल 12 V है। यदि बैटरी को आन्तरिक प्रतिरोध 0.4 Ω हो तो बैटरी से ली जाने वाली अधिकतम धारा का मान क्या है?
हल-
E वैद्युत वाहक बल वाली बैटरी से ली जाने वाली धारा,
I = [latex s=2]\frac { E }{ R+r }[/latex]
जिसमें R बाह्य प्रतिरोध तथा r आन्तरिक प्रतिरोध है।
अधिकतम धारा के लिए बाह्य प्रतिरोध, R = 0
धारा, I = [latex s=2]\frac { E }{ r }[/latex] = [latex s=2]\frac { 12 }{ 0.4 }[/latex] = 30 A

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प्रश्न 2.
10 V विद्युत वाहक बल वाली बैटरी जिसका आन्तरिक प्रतिरोध 3 Ω है, किसी प्रतिरोधक से संयोजित है। यदि परिपथ में धारा का मान 0.5 A हो तो प्रतिरोधक का प्रतिरोध क्या है? जब परिपथ बन्द है तो सेल की टर्मिनल वोल्टता क्या होगी?
हल-
दिया है, बैटरी का वैद्युत वाहक बल E = 10 वोल्ट
बैटरी का आन्तरिक प्रतिरोध = 3 ओम
| परिपथ में धारा I = 0.5 ऐम्पियर
प्रतिरोधक का प्रतिरोध R = ?
बन्द परिपथ में बैटरी की टर्मिनल वोल्टता V= ?
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प्रश्न 3.
(a) 1 Ω, 2 Ω और 3 Ω के तीन प्रतिरोधक श्रेणी में संयोजित हैं। प्रतिरोधकों के संयोजन का कुल प्रतिरोध क्या है?
(b) यदि प्रतिरोधकों का संयोजन किसी 12 V की बैटरी जिसका आन्तरिक प्रतिरोध नगण्य है से सम्बद्ध है तो प्रत्येक प्रतिरोधक के सिरों पर वोल्टता पात ज्ञात कीजिए।
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हल-
दिया है, R1 = 1 Ω; R2 = 2 Ω; R3 = 3 Ω
(a) यदि श्रेणी संयोजन में तुल्य प्रतिरोध R हो, तो
R = R1 + R2 + R3 = 1 + 2 + 3 = 6 ओम
(b) दिया है, बैटरी का वै० वा० बल E = 12 वोल्ट
बैटरी का आन्तरिक प्रतिरोध r = 0
तथा बाह्य प्रतिरोध R = 6 ओम
यदि संयोजन द्वारा परिपथ में प्रवाहित धारा i हो, तो
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प्रश्न 4.
(a) 2 Ω, 4 Ω और 5 Ω के तीन प्रतिरोधक पार्श्व में संयोजित हैं। संयोजन का कुल प्रतिरोध क्या होगा ?
(b) यदि संयोजन को 20 V के विद्युत वाहक बल की बैटरी जिसका आन्तरिक प्रतिरोध नगण्य है, से सम्बद्ध किया जाता है तो प्रत्येक प्रतिरोधक से प्रवाहित होने वाली धारा तथा बैटरी से ली गई कुल धारा का मान ज्ञात कीजिए।
हल-
(a) समान्तरक्रम में तुल्य प्रतिरोध Rp के लिए
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प्रश्न 5.
कमरे के ताप (27.0°C) पर किसी तापन-अवयव का प्रतिरोध 100 Ω है। यदि तापन-अवयव का प्रतिरोध 117 Ω हो तो अवयव का ताप क्या होगा? प्रतिरोधक के पदार्थ का ताप-गुणांक 1.70 x 10-4°C-1 है।
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प्रश्न 6.
15 मीटर लम्बे एवं 6.0 x 10-7 m2 अनुप्रस्थ काट वाले तार से उपेक्षणीय धारा प्रवाहित की गई है और इसका प्रतिरोध 5.0 Ω मापा गया है। प्रायोगिक ताप पर तार के पदार्थ की प्रतिरोधकता क्या होगी?
हल-
दिया है, तार की लम्बाई l = 15 मीटर
तार की अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A = 6.0 x 10-7 मीटर
तथा तार का प्रतिरोध R = 5.0 ओम
तार के पदार्थ की प्रतिरोधकता ρ = ?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity Q6

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प्रश्न 7.
सिल्वर के किसी तार का 27.5°C प प्रतिरोध 2.1 Ω और 100°C पर प्रतिरोध 2.7 Ω है। सिल्वर का प्रतिरोधकता ताप-गुणांक ज्ञात कीजिए।
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प्रश्न 8.
नाइक्रोम का एक तापन-अवयव 230 V की सप्लाई से संयोजित है और 3.2 A की प्रारम्भिक धारा लेता है जो कुछ सेकेण्ड में 2.8 A पर स्थायी हो जाती है। यदि कमरे का ताप 27.0°C है तो तापन-अवयव का स्थायी ताप क्या होगा? दिए गए ताप-परिसर में नाइक्रोम का औसत प्रतिरोध का ताप-गुणांक 1.70 x 10-4°C-1 है।
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प्रश्न 9.
चित्र 3.2 में दर्शाए नेटवर्क की प्रत्येक शाखा में प्रवाहित धारा ज्ञात कीजिए।
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity Q9.1

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प्रश्न 10.
(a) किसी मीटर-सेतु में जब प्रतिरोधक S = 12.5 Ω हो तो सन्तुलन बिन्दु, सिरे A से 39.5 cm की लम्बाई पर प्राप्त होता है। R का प्रतिरोध ज्ञात कीजिए। व्हीटस्टोन सेतु या मीटर सेतु में प्रतिरोधकों के संयोजन के लिए मोटी कॉपर की पत्तियाँ क्यों प्रयोग में लाते हैं ?
(b) R तथा S को अन्तर्बदल करने पर उपर्युक्त सेतु का सन्तुलन बिन्दु ज्ञात कीजिए।
(c) यदि सेतु के सन्तुलन की अवस्था में गैल्वेनोमीटर और सेल का अन्तर्बदल कर दिया जाए तब क्या गैल्वेनोमीटर कोई धारा दर्शाएगा?
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity Q10.1
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प्रश्न 11.
8 V विद्युत वाहक बल की एक संचायक बैटरी जिसका आन्तरिक प्रतिरोध 0.5 Ω है, को श्रेणीक्रम में 15.5 Ω के प्रतिरोधक का उपयोग करके 120 V के D.C. स्रोत द्वारा चार्ज किया जाता है। चार्ज होते समय बैटरी की टर्मिनल वोल्टता क्या है? चार्जकारी परिपथ में प्रतिरोधक को श्रेणीक्रम में सम्बद्ध करने का क्या उद्देश्य है?
हल-
जब बैटरी को 120 V की D.C. सप्लाई से आवेशित किया जाता है, तो बैटरी में सामान्य अवस्था की अपेक्षा धारा विपरीत दिशा में होगी। अतः बैटरी की टर्मिनल वोल्टता,
V = E + Ir
यहाँ विद्युत वाहक बल, E = 8 V, आन्तरिक प्रतिरोध r = 0.5 Ω
परिपथ में धारा,
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श्रेणी-प्रतिरोध बाह्य D.C. सप्लाई से ली गई धारा को सीमित करता है। बाह्य प्रतिरोध की अनुपस्थिति में संचायक बैटरी द्वारा अनुमेय सुरक्षित धारा के मान से अधिक धारा प्रवाहित हो सकती है।

प्रश्न 12.
किसी पोटेशियोमीटर व्यवस्था में, 1.25 V विद्युत वाहक बल से एक सेल का सन्तुलन बिन्दु तार के 35.0 cm लम्बाई पर प्राप्त होता है। यदि इस सेल को किसी अन्य सेल द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया जाए तो सन्तुलन बिन्दु 63.0 cm पर स्थानान्तरित हो जाता है। दूसरे सेल का विद्युत वाहक बल क्या है ?
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प्रश्न 13.
किसी ताँबे के चालक में मुक्त इलेक्ट्रॉनों का संख्या घनत्व 8.5 x 1028 m3 आकलित किया गया है। 3 m लम्बे तार के एक सिरे से दूसरे सिरे तक अपवाह करने में इलेक्ट्रॉन कितना समय लेता है? तार की अनुप्रस्थ-काट 2.0 x 10-6 m2 है और इसमें 3.0 A धारा प्रवाहित हो रही है।
हल-
दिया है, इलेक्ट्रॉन का संख्या घनत्व n = 8.5 x 1028 m3
तार की लम्बाई l = 3 m
तार के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A = 20 x 10-6 m2
तार में धारा i = 3.0 A
इलेक्ट्रॉन का आवेश e = 1.6 x 10-19 C
माना तार के एक (UPBoardSolutions.com) सिरे से दूसरे सिरे तक प्रवाहित होने में इलेक्ट्रॉन द्वारा लिया गया समय t है, तब सूत्र
i = neAvd से,
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity Q13.1

अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 14.
पृथ्वी के पृष्ठ पर ऋणात्मक पृष्ठ-आवेश घनत्व 10-9 C cm-2 है। वायुमण्डल के ऊपरी भाग और पृथ्वी के पृष्ठ के बीच 400 kV विभवान्तर (नीचे के वायुमण्डल की कम चालकता के कारण) के परिणामतः समूची पृथ्वी पर केवल 1800 A की धारा है। यदि वायुमण्डलीय विद्युत क्षेत्र बनाए (UPBoardSolutions.com) रखने हेतु कोई प्रक्रिया न हो तो पृथ्वी के पृष्ठ को उदासीन करने हेतु (लगभग) कितना समय लगेगा? (व्यावहारिक रूप में यह कभी नहीं होता है। क्योंकि विद्युत आवेशों की पुनः पूर्ति की एक प्रक्रिया है यथा पृथ्वी के विभिन्न भागों में लगातार तड़ित झंझा एवं तड़ित का होना)। (पृथ्वी की त्रिज्या = 6.37 x 106 m);
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प्रश्न 15.
(a) छह लेड एसिड संचायक सेलों, जिनमें प्रत्येक का विद्युत वाहक बल 2Vतथा आन्तरिक प्रतिरोध 0.015 Ω है, के संयोजन से एक बैटरी बनाई जाती है। इस बैटरी का उपयोग 8.5 Ω प्रतिरोधक जो इसके साथ श्रेणी सम्बद्ध है, में धारा की आपूर्ति के लिए किया जाता है। बैटरी से कितनी (UPBoardSolutions.com) धारा ली गई है एवं इसकी टर्मिनल वोल्टता क्या है?
(b) एक लम्बे समय तक उपयोग में लाए गए संचायक सेल का विद्युत वाहक बल 1.9 V और विशाल आन्तरिक प्रतिरोध 380 Ω है। सेल से कितनी अधिकतम धारा ली जा सकती है? क्या सेल से प्राप्त यह धारा किसी कार की प्रवर्तक-मोटर को स्टार्ट करने में सक्षम होगी?
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity Q15.1

प्रश्न 16.
दो समान लम्बाई की तारों में एक ऐलुमिनियम का और दूसरा कॉपर को बना है। इनके प्रतिरोध समान हैं। दोनों तारों में से कौन-सा हल्का है? अतः समझाइए कि ऊपर से जाने वाली बिजली केबिलों में ऐलुमिनियम के तारों को क्यों पसन्द किया जाता है? (ρal = 2.63 x 10-8 Ωm, ρcu = 1.72 x 10-8 Ωm, Al का आपेक्षिक घनत्व = 2.7, कॉपर का आपेक्षिक घनत्व = 8.9)
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स्पष्ट है कि ऐलुमिनियम के तार का द्रव्यमान, कॉपर के तार के द्रव्यमान का आधा है अर्थात् ऐलुमिनियम का तार हल्का है। यही कारण है कि ऊपर से जाने वाले बिजली (UPBoardSolutions.com) के केबिलों में ऐलुमिनियम के तारों का प्रयोग किया जाता है। यदि कॉपर के तारों का प्रयोग किया जाए तो खम्भे और अधिक मजबूत बनाने होंगे।

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प्रश्न 17.
मिश्रधातु मैंगनिन के बने प्रतिरोधक पर लिए गए निम्नलिखित प्रेक्षणों से आप क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं?
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हल-
दी गई सारणी के प्रत्येक प्रेक्षण से स्पष्ट है कि
[latex s=2]\frac { V }{ i }[/latex] = 19.7 Ω
इससे स्पष्ट है कि मैंगनिन का प्रतिरोधक लगभग पूरे वोल्टेज परिसर में ओम के नियम का पालन करता है, अर्थात् मैंगनिन की प्रतिरोधकता पर ताप का बहुत कम प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 18.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

  1. किसी असमान अनुप्रस्थ काट वाले धात्विक चालक से एकसमान धारा प्रवाहित होती है। निम्नलिखित में से चालक में कौन-सी अचर रहती है-धारा, धारा घनत्व, विद्युत क्षेत्र, अपवाह चाल।
  2. क्या सभी परिपथीय अवयवों के लिए ओम का नियम सार्वत्रिक रूप से लागू होता है? यदि नहीं, तो उन अवयवों के उदाहरण दीजिए जो ओम के नियम का पालन नहीं करते।
  3. किसी निम्न वोल्टता संभरण जिससे उच्च धारा देनी होती है, का आन्तरिक प्रतिरोध बहुत कम होना चाहिए, क्यों?
  4. किसी उच्च विभव (H.T.) संभरण, मान लीजिए 6 kV को आन्तरिक प्रतिरोध अत्यधिक होना चाहिए, क्यों?

हल-

  1. केवल धारा अचर रहती है, जैसा कि दिया गया है। अन्य राशियाँ अनुप्रस्थ क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती हैं।
  2. नहीं, ओम का नियम सभी परिपथीय अवयवों पर लागू नहीं होता। निर्वात् नलिकाएँ, (डायोड वाल्व, ट्रायोड वाल्व) अर्द्धचालक युक्तियाँ (सन्धि डायोड तथा ट्रांजिस्टर) इसी प्रकार की युक्तियाँ हैं।
  3. किसी संभरण से प्राप्त महत्तम धारा
    imax = [latex s=2]\frac { E }{ r }[/latex]
    वि० वा० बल कम है; अतः पर्याप्त धारा प्राप्त करने के लिए आन्तरिक प्रतिरोध का कम होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त आन्तरिक प्रतिरोध के अधिक होने से सेल द्वारा दी गई ऊर्जा का अधिकांश भाग सेल के भीतर ही व्यय हो जाता है।
  4. यदि आन्तरिक प्रतिरोध बहुत कम है तो किसी कारणवश लघुपथित होने की दशा में संभरण से अति उच्च धारा प्रवाहित होगी और संभरण के क्षतिग्रस्त होने की संभावना उत्पन्न हो जाएगी।

प्रश्न 19.
सही विकल्प छाँटिए-

  1. धातुओं की मिश्रधातुओं की प्रतिरोधकता प्रायः उनकी अवयव धातुओं की अपेक्षा (अधिक/कम) होती है?
  2. आमतौर पर मिश्रधातुओं के प्रतिरोध का ताप-गुणांक, शुद्ध धातुओं के प्रतिरोध के ताप-गुणांक से बहुत (कम/अधिक) होता है।
  3. मिश्रधातु मैंगनिन की प्रतिरोधकता ताप में वृद्धि के साथ लगभग (स्वतन्त्र है/तेजी से बढ़ती है)।
  4. किसी प्रारूपी विद्युतरोधी (उदाहरणार्थ, अम्बर) की प्रतिरोधकता किसी धातु की प्रतिरोधकता की तुलना में (1022 /1023) कोटि के गुणक से बड़ी होती है?

उत्तर-

  1. अधिक।
  2. कम।
  3. स्वतन्त्र है।
  4. 1022

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प्रश्न 20.
(a) आपको Rप्रतिरोध वाले n प्रतिरोधक दिए गए हैं। (i) अधिकतम, (ii) न्यूनतम प्रभावी प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए आप इन्हें किस प्रकार संयोजित करेंगे? अधिकतम और न्यूनतम प्रतिरोधों का अनुपात क्या होगा?
(b) यदि 1 Ω, 2 Ω, 3 Ω के तीन प्रतिरोध दिए गए हों तो उनको आप किस प्रकार संयोजित करेंगे कि प्राप्त तुल्य प्रतिरोध हों:
(i) [latex s=2]\frac { 11 }{ 3 }[/latex] Ω
(ii) [latex s=2]\frac { 11 }{ 5 }[/latex] Ω
(iii) 6 Ω
(iv) [latex s=2]\frac { 6 }{ 11 }[/latex] Ω
(c) चित्र 3.7 में दिखाए गए नेटवर्को का तुल्य प्रतिरोध प्राप्त कीजिए।
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प्रश्न 21.
किसी 0.5 Ω आन्तरिक प्रतिरोध वाले 12 V के एक संभरण (Supply) से चित्र 3.10 में दर्शाए गए अनन्त नेटवर्क द्वारा ली गई धारा का मान ज्ञात कीजिए। प्रत्येक प्रतिरोध का मान 1 Ω है।
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प्रश्न 22.
चित्र 3.12 में एक पोटेशियोमीटर दर्शाया गया है। जिसमें एक 2.0 V और आन्तरिक प्रतिरोध 0.40 Ω का कोई सेल, पोटेशियोमीटर के प्रतिरोधक तार AB पर वोल्टता पात बनाए A रखता है। कोई मानक सेल जो 1.02 V का अचर विद्युत वाहक बल बनाए रखता है (कुछ mA की बहुत सामान्य धाराओं के लिए) तार की 67.3 cm लम्बाई पर सन्तुलन बिन्दु देता है। मानक सेल से अति न्यून धारा लेना सुनिश्चित करने के लिए । इसके साथ परिपथ में श्रेणी 600 kΩ का एक अति उच्च प्रतिरोध इसके साथ सम्बद्ध किया जाता है, जिसे सन्तुलन बिन्दु प्राप्त होने के निकट लघुपथित (shorted) कर दिया जाता है। इसके बाद मानक सेल को किसी अज्ञात विद्युत वाहक बल E के सेल से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है जिससे सन्तुलन बिन्द तार की 82.3 cm लम्बाई पर प्राप्त होता है।
(a) E का मान क्या है?
(b) 600 kΩ के उच्च प्रतिरोध का क्या प्रयोजन है?
(c) क्या इस उच्च प्रतिरोध से सन्तुलन बिन्दु प्रभावित होता है?
(d) क्या परिचालक सेल के आन्तरिक प्रतिरोध से सन्तुलन बिन्दु प्रभावित होता है?
(e) उपर्युक्त स्थिति में यदि पोटेशियोमीटर के परिचालक सेल का विद्युत वाहक बल 2.0 V के स्थान पर 1.0 V हो तो क्या यह विधि फिर भी सफल रहेगी?
(f) क्या यह परिपथ कुछ mV की कोटि के अत्यल्प विद्युत वाहक बलों (जैसे कि किसी प्रारूपी तापविद्युत युग्म का विद्युत वाहक बल) के निर्धारण में सफल होगी? यदि नहीं, तो आप इसमें किस प्रकार संशोधन करेंगे?
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हल-
(a) विभवमापी के तार की समान विभव प्रवणता के लिए, दो सेलों के वै० वा० बलों की तुलना करने का सूत्र निम्न है।
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(b) उच्च प्रतिरोध का प्रयोजन धारामापी में धारा को कम करना है जबकि जौकी संतुलन बिन्दु से दूर है। इससे प्रमाणिक सेल नुकसान (damage) से बचा रहता है।
(c) संतुलन बिन्दु उच्च प्रतिरोध से प्रभावित नहीं होता है, क्योंकि संतुलन की स्थिति में सेल के द्वितीयक परिपथ में धारा नहीं बहती।
(d) परिचालक सेल के आन्तरिक प्रतिरोध से संतुलन बिन्दु प्रभावित नहीं होता क्योंकि हमने तार पर विभव प्रवणता पहले से ही नियत रख दी है।
(e) नहीं, क्योंकि विभवमापी के कार्य करने के लिए परिचालक सेल का वै० वी० बल, द्वितीयक परिपथ के सेल के वै० वा० बल (E) से अधिक होना चाहिए।
(f) क्योकि संतुलन बिन्दु सिरे A के निकट होगा तथा मापन में त्रुटि बहुत अधिक होगी। इसके लिए परिचालक सेल के श्रेणीक्रम में एक परिवर्ती प्रतिरोध (R) जोड़ते हैं तथा इसका मान इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि तार AB के सिरों के बीच विभवपात द्वितीयक सेल के वै० वा० बल से (UPBoardSolutions.com) थोड़ा ही अधिक हो ताकि संतुलन बिन्दु अधिक लम्बाई पर प्राप्त हो, इससे मापन में त्रुटि कम होगी तथा मापने की यथार्थता बढ़ेगी।

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प्रश्न 23.
चित्र 3.13 दो प्रतिरोधों की तुलना के लिए विभवमापी परिपथ दर्शाता है। मानक प्रतिरोधक R = 10.0 Ω के साथ सन्तुलन बिन्दु 58.3 cm पर तथा अज्ञात प्रतिरोध X के साथ 68.5 cm पर प्राप्त होता है। X का मान ज्ञात कीजिए। यदि आप दिए गए सेल E से सन्तुलन बिन्दु प्राप्त करने में असफल रहते हैं तो आप क्या करेंगे?
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हल-
कुँजियों K1 तथा K2 को क्रमशः बन्द करके विभवमापी के तार पर सन्तुलन बिन्दु प्राप्त करने पर यदि संगत सन्तुलन लम्बाई क्रमशः l1 तथा l2 हो, तो R के सिरों का विभवान्तर = Kl1 = RI
तथा X के सिरों का विभवान्तर = Kl2 = XI
जहाँ I = विभवमापी के तार में धारा
तथा K = इसकी विभव प्रवणता
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यदि सन्तुलन बिन्दु प्राप्त नहीं होता है तो इसका अर्थ है कि R या X के सिरों के बीच विभवान्तर विभवमापी के तार AB के सिरों के बीच विभवान्तर से अधिक है। ऐसी स्थिति में बाह्य परिपथ में धारा का मान कम करने के लिए श्रेणीक्रम में एक उचित प्रतिरोध जोड़ना होगा जो बिन्दु C व D के बीच जोड़ा जाएगा।

प्रश्न 24.
चित्र 3.14 में किसी 1.5 V के सेल का आन्तरिक प्रतिरोध मापने के लिए एक 2.0 V को पोटेशियोमीटर दर्शाया गया है। खुले परिपथ में सेल का सन्तुलन बिन्दु 76.3 cm (UPBoardSolutions.com) पर मिलता है। सेल के बाह्य परिपथ में 9.5 Ω रतिरोध का एक प्रतिरोधक संयोजित करने पर सन्तुलन बिन्दु पोटेंशियोमीटर के तार की 64.8 cm लम्बाई पर पहुँच जाता है। सेल के आन्तरिक प्रतिरोध का मान ज्ञात कीजिए।
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हल-
यहाँ वैद्युत वाहक बल E = 1.5 वोल्ट जिसके संगत (जब सेल खुले परिपथ में है) विभवमापी के तार की संगत सन्तुलन लम्बाई l1 = 76.3 सेमी। सेल के साथ बाह्य प्रतिरोध R = 9.5 Ω संयोजित करने पर (अर्थात् जब सेल बन्द परिपथ में है) तो सेल के टर्मिनल विभवान्तर V के संगत लम्बाई l2 = 64.8 सेमी।
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी चालक में 3.2 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है। प्रति सेकण्ड प्रवाहित इलेक्ट्रॉनों की संख्या होगी। (2015)
(i) 2 x 1019
(ii) 3 x 1020
(iii) 5.2 x 1019
(iv) 9 x 1020
उत्तर-
(i) 2 x 1019

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प्रश्न 2.
वैद्युत धारा घनत्व j तथा अपवाह वेग vd में सम्बन्ध है। (2015)
(i) j = nevd
(ii) j = [latex]\frac { ne }{ { v }_{ d } }[/latex]
(iii) j = [latex]\frac { { v }_{ d }e }{ n }[/latex]
(iv) j = [latex]{ v }_{ d }^{ 2 }[/latex]
उत्तर-
(i) j = nevd

प्रश्न 3.
प्रतिरोध की विमा है।
(i) [ML2T-2A-2]
(ii) [M2L3T-2A-2]
(iii) [ML2T-3A-2]
(iv) [ML3T-3A-3]
उत्तर-
(iii) [ML2T-3A-2]

प्रश्न 4.
40 W तथा 60 w के दो बल्ब 220 V लाइन से जोड़े जाते हैं, उनके प्रतिरोधों में अनुपात होगा
(i) 4 : 3
(ii) 3 : 4
(iii) 2 : 3
(iv) 3 : 2
उत्तर-
(iv) 3 : 2

प्रश्न 5.
एक ताँबे के तार को खींचकर 1% लम्बाई में वृद्धि कर दी जाए, तो प्रतिरोध में प्रतिशत परिवर्तन होगा (2009, 12)
(i) 4% वृद्धि
(ii) 2% वृद्धि
(iii) 1% वृद्धि
(iv) 2% कमी
उत्तर-
(ii) 2% वृद्धि

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प्रश्न 6.
50 Ω प्रतिरोध के धात्विक तार को खींचकर उसकी लम्बाई दो गुनी कर देते हैं। उसका नया प्रतिरोध है- (2016)
(i) 25 Ω
(ii) 50 Ω
(iii) 100 Ω
(iv) 200 Ω
उत्तर-
(iv) 200 Ω

प्रश्न 7.
एक 100 वाट-220 वोल्ट का बल्ब 110 वोल्ट की सप्लाई से जुड़ा है। बल्ब में व्यय होने वाली शक्ति होगी। (2017)
(i) 100 वाट
(ii) 50 वाट
(iii) 25 वाट
(iv) 2 वाट
उत्तर-
(iii) 25 वाट

प्रश्न 8.
2 ऐम्पियर की वैद्युत धारा चित्र 3.15 में प्रदर्शित परिपथ में प्रवाहित हो रही है। विभवान्तर (VB – VD) है। (2013)
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(i) 12 वोल्ट
(ii) 6 वोल्ट
(ii) 4 वोल्ट
(iv) 0 वोल्ट
उत्तर-
(iv) 0 वोल्ट

प्रश्न 9.
समान्तर क्रम में जुड़े 10 ओम के दो प्रतिरोधों की तुल्य प्रतिरोध है। (2014)
(i) 20 ओम
(ii) 10 ओम
(iii) 15 ओम
(iv) 5 ओम
उत्तर-
(iv) 5 ओम

प्रश्न 10.
दो प्रतिरोध R तथा 2R एक विद्युत परिपथ में समान्तर क्रम में जुड़े हैं। R तथा 2R में उत्पन्न ऊष्मीय ऊर्जा का अनुपात होगा (2015)
(i) 1 : 2
(ii) 2 : 1
(iii) 1 : 4
(iv) 4 : 1
उत्तर-
(ii) 2 : 1

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प्रश्न 11.
एक चालक तार का प्रतिरोध R ओम है। इसको n बराबर भागों में बाँटकर उनको समान्तर क्रम में जोड़ने पर तुल्य प्रतिरोध होगा
(i) [latex s=2]\frac { R }{ { n }^{ 2 } }[/latex]
(ii) [latex s=2]\frac { { n }^{ 2 } }{ R }[/latex]
(iii) [latex s=2]\frac { n }{ R }[/latex]
(iv) [latex s=2]\frac { R }{ n }[/latex]
उत्तर-
(i) [latex s=2]\frac { R }{ { n }^{ 2 } }[/latex]

प्रश्न 12.
एक प्राथमिक सेल का वि० वा० बल 2.4 V है। इस सेल को जब लघुपथित कर देते हैं तो 4.0 A की वैद्युत धारा प्राप्त होती है। सेल को आन्तरिक प्रतिरोध है। (2014)
(i) 6.0 Ω
(ii) 1.2 Ω
(iii) 4.0 Ω
(iv) 0.6 Ω
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प्रश्न 13.
एक बैटरी जिसका वि० वा० बल 5 वोल्ट है तथा आन्तरिक प्रतिरोध 2.0 ओम है, एक बाहरी प्रतिरोध से जुड़ी है। यदि परिपथ में धारा 0.4 ऐम्पियर हो, तो बैटरी की टर्मिनल वोल्टता है। (2010, 12)
(i) 5 वोल्ट
(ii) 5.8 वोल्ट
(iii) 4.6 वोल्ट
(iv) 4.2 वोल्ट
उत्तर-
(iv) 4.2 वोल्ट

प्रश्न 14.
किरचॉफ का धारा का नियम किसके संरक्षण के परिणामस्वरूप है?
(i) ऊर्जा
(ii) संवेग
(iii) आवेश
(iv) द्रव्यमान
उत्तर-
(iii) आवेश

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प्रश्न 15.
5 मीटर लम्बे तथा 5 2 प्रतिरोध वाले विभवमापी के तार में 2 mA की धारा प्रवाहित हो रही है। विभवमापी की विभव-प्रवणता है। (2010)
(i) 2.0 x 10-3 वोल्ट/मीटर
(ii) 2.5 x 10-3 वोल्ट/मीटर
(iii) 1.6 x 10-3 वोल्ट/मीटर
(iv) 2.3 x 10-3 वोल्ट/मीटर
उत्तर-
(i) 2.0 x 10-3 वोल्ट/मीटर

प्रश्न 16.
विभवमापी के प्रयोग में दो सेलों के विद्युत वाहक बल E1 तथा E2 हैं। इन्हें श्रेणीक्रम में जोड़कर विभवमापी के तार पर अविक्षेप बिन्दु 58 सेमी पर प्राप्त होता है। जब E2 विद्युत वाहक बल वाली सेल की ध्रुवता उलट दी जाती है तब अविक्षेप बिन्दु 29 सेमी पर प्राप्त होता है। [latex s=2]\frac { { E }_{ 1 } }{ { E }_{ 2 } }[/latex] का अनुपात है (2014)
(i) 3 : 1
(ii) 2 : 1
(iii) 1 : 3
(iv) 1 : 2
उत्तर-
(ii) 2 : 1

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी चालक के भीतर वैद्युत-क्षेत्र [latex]\vec { E }[/latex] तथा धारा घनत्व [latex]\vec { J }[/latex] में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर-
[latex]\vec { E }[/latex] = p [latex]\vec { J }[/latex], जहाँ p चालक के पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध है।

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प्रश्न 2.
समीकरण [latex]\vec { E }[/latex] = p [latex]\vec { J }[/latex] में p को मात्रक लिखिए। (2009)
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प्रश्न 3.
किन्हीं दो गुणों से एक चालक और एक अर्द्धचालक का भेद बताइए। (2009)
उत्तर-

  1. चालक में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या बहुत अधिक होती है, जबकि अंर्द्धचालक में मुक्त इलेक्ट्रॉन चालकों से कम होते हैं।
  2. चालकों का ताप बढ़ाने पर उनका प्रतिरोध बढ़ता है, जबकि अर्द्धचालकों का ताप बढ़ाने से उनका प्रतिरोध घटता है।

प्रश्न 4.
विशिष्ट चालकत्व (specific conductance) की परिभाषा दीजिए। इसकी इकाई भी लिखिए।
या
विशिष्ट चालकता के लिए सूत्र एवं मात्रक लिखिए। (2012, 18)
या
किसी चालक पदार्थ की विशिष्ट चालकता क्या है? विशिष्ट चालकता का अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति में मात्रक दीजिए। (2014)
उत्तर-
किसी चालक के पदार्थ के विशिष्ट प्रतिरोध (UPBoardSolutions.com) के व्युत्क्रम को उस पदार्थ की विशिष्ट चालकता (specific conductance) कहते हैं।
इसे ‘[latex s=2]\sigma[/latex]’ से प्रदर्शित करते हैं। अर्थात् [latex s=2]\sigma =\frac { 1 }{ \rho }[/latex] इसकी इकाई म्हो-मीटर-1 होती है।

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प्रश्न 5.
धारा-घनत्व, विशिष्ट चालकता तथा विद्युत-क्षेत्र के बीच परस्पर सम्बन्ध लिखिए तथा इससे विशिष्ट चालकता का मात्रक निकालिए। (2009, 11, 12)
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प्रश्न 6.
मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अपवाह वेग तथा वैद्युत धारा घनत्व में सम्बन्ध लिखिए। प्रयुक्त संकेतों के अर्थ बताइए। (2015)
हल-
धारा घनत्व (j) = nevd
जहाँ, n= मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या
e = इलेक्ट्रॉन का आवेश
vd = इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग

प्रश्न 7.
ताँबे के एक तार, जिसकी अनुप्रस्थ काट 2 x 10-6 मी2 है; में 3.2 ऐम्पियर धारा प्रवाहित हो रही है। तार में प्रवाहित धारा-घनत्व का मान ज्ञात कीजिए। (2011, 14)
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प्रश्न 8.
धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अपवाह वेग एवं भ्रांतिकाल में सम्बन्ध लिखिए। प्रयुक्त संकेतों के अर्थ बताइए। (2016)
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प्रश्न 9.
एक इलेक्ट्रॉन वृत्ताकार कक्षा में 6 x 106 चक्कर प्रति सेकण्ड की दर से घूम रहा है। लूप में तुल्य प्रवाहित धारा का मान ज्ञात कीजिए। (2016)
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प्रश्न 10.
0.5 मिमी त्रिज्या के एक तार में 0.5 ऐम्पियर की धारा बह रही है। यदि तार में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या 4 x 1028 प्रति मी3 हो, तो उनके अनुगमन वेग की गणना कीजिए। (2017)
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प्रश्न 11.
अनओमीय परिपथ से आप क्या समझते हैं? इसका एक उदाहरण दीजिए। (2009)
या
अनओमीय चालक किसे कहते हैं?
या
गत्यात्मक प्रतिरोध का अर्थ क्या है? (2010)
उत्तर-
वे परिपथ (अर्थात् चालक) जिनमें ओम के नियम का पालन नहीं होता है; अर्थात् जिनके सिरों पर आरोपित विभवान्तर V तथा संगत धारा i का अनुपात नियत नहीं रहता है, अनओमीय परिपथ (चालक) कहलाते हैं। ऐसे परिपथों के लिए V तथा i के अनुपात के नियत न रहने का अर्थ है कि (UPBoardSolutions.com) इनका वैद्युत प्रतिरोध परिवर्तनीय होता है। अतः इनके प्रतिरोध को गत्यात्मक प्रतिरोध (dynamic resistance) भी कहते हैं। अनओमीय परिपथ के किसी खण्ड के विभवान्तर में अल्पांश परिवर्तन ΔV तथा उसके संगत धारा में परिवर्तन Δi का अनुपात गत्यात्मक प्रतिरोध के बराबर होता है; अर्थात् गत्यात्मक प्रतिरोध = [latex s=2]\frac { \triangle V }{ \triangle i }[/latex]
उदाहरण- बल्ब को तन्तु तथा डायोड बल्ब।

प्रश्न 12.
एक तार का प्रतिरोध 10 ओम है। इसे दोगुनी लम्बाई तक खींचा जाता है। इसका नया प्रतिरोध क्या होगा?
हल-
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity VSAQ 12

प्रश्न 13.
कार्बन प्रतिरोधक के सिरों पर 50 वोल्ट विभवान्तर लगाया जाता है। प्रतिरोधक पर प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय वलयों के रंग क्रमशः लाल, पीला एवं नारंगी हैं। प्रतिरोधक में धारा का मान ज्ञात कीजिए। (2015)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity VSAQ 13

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प्रश्न 14.
विशिष्ट प्रतिरोध का मात्रक एवं विमाएँ लिखिए। (2010, 11, 12, 15)
उत्तर-
मात्रक-ओम-मीटर या ओम-सेमी
विमा सूत्र- [ML3T-3A-2]

प्रश्न 15.
पूर्ण प्रज्वलन स्थिति में 100 वाट, 200 वोल्ट के विद्युत बल्ब का प्रतिरोध ज्ञात कीजिए। (2013)
हल-
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity VSAQ 15

प्रश्न 16.
एक प्लैटिनम प्रतिरोध तापमापी का प्रतिरोध 0°C ताप पर 3.0 ओम तथा 1000°C पर 3.75 ओम है। किसी अज्ञात ताप पर इसका प्रतिरोध 3.15 ओम है। अज्ञात ताप का मान ज्ञात कीजिए। (2015)
हल-
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

प्रश्न 17.
1000 W – 250 V के हीटर के तार का प्रतिरोध ज्ञात कीजिए। (2015)
हल-
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity VSAQ 17

प्रश्न 18.
एक चालक में 50 वोल्ट पर 2 मिली-ऐम्पियर तथा 60 वोल्ट पर 3 मिली-ऐम्पियर धारा बहती है। चालक ओमीय है या अन-ओमीय इसे गणना द्वारा स्पष्ट कीजिए। (2017)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

प्रश्न 19.
ऐसे दो पदार्थों के नाम लिखिए जिनकी प्रतिरोधकता ताप बढ़ाने पर घटती है।
उत्तर-
अर्द्धचालक- जर्मेनियम तथा सिलिकॉन।

प्रश्न 20.
किसी धातु के प्रतिरोध पर ताष को क्या प्रभाव पड़ता है? (2015)
उत्तर-
ताप के बढ़ने से किसी धातु के प्रतिरोध का मान बढ़ता है अर्थात् धातु के पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध अथवा पदार्थ की प्रतिरोधकता बढ़ जाती है। दूसरे शब्दों में, ताप के बढ़ने पर धातु की वैद्युत चालकता कम हो जाती है।

प्रश्न 21.
ताप बढाने से किसी चालक के प्रतिरोध में वृद्धि को दर्शाने वाला सूत्र लिखिए। (2015)
उत्तर-
जैसे-जैसे तार का ताप बढ़ता है इसके मुक्त इलेक्ट्रॉनों की वर्ग-माध्य-मूल चाल Vrms बढ़ती है। अतः चालक का प्रतिरोध
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity VSAQ 21

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प्रश्न 22.
1 किलोवाट के विद्युत बल्ब में 1 मिनट में कितनी ऊर्जा व्यय होगी? (2015)
हल-
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity VSAQ 22
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity VSAQ 22.1

प्रश्न 23.
60 वाट, 30 वोल्ट के बल्ब को 90 वोल्ट सप्लाई पर जलाने के लिए श्रेणीक्रम में जुड़े प्रतिरोध का मान ज्ञात कीजिए। (2014)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

प्रश्न 24.
दिये गये परिपथ में A और B के बीच तुल्य प्रतिरोध ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity VSAQ 24
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

प्रश्न 25.
10 Ω प्रतिरोध के तार को 5 बराबर भागों में काट कर उनको समान्तर क्रम में जोड़ा गया है। इस संयोजन का परिणामी प्रतिरोध ज्ञात कीजिए। (2014)
हल-
10 Ω के प्रतिरोध को 5 बराबर भागों में बाँटने पर प्रत्येक प्रतिरोध का मान = [latex s=2]\frac { 10 }{ 5 }[/latex] = 2 Ω
माना समान्तर क्रम में जोड़ने पर इनका तुल्य प्रतिरोध R है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity VSAQ 25

प्रश्न 26.
सेल के आन्तरिक प्रतिरोध से आप क्या समझते हैं? (2015, 16, 18)
उत्तर-
जब किसी सेल की प्लेटों को तार द्वारा जोड़ देते हैं तो तार में वैद्युत धारा सेल की धन-प्लेट से ऋण-प्लेट की ओर तथा सेल के भीतर उसके घोल में ऋण-प्लेट से (UPBoardSolutions.com) धन-प्लेट की ओर बहती है। इस प्रकार, सेल की दोनों प्लेटों के बीच सेल के भीतर वैद्युत धारा के प्रवाह में घोल द्वारा उत्पन्न अवरोध को सेल का ‘आन्तरिक प्रतिरोध’ कहते हैं।

प्रश्न 27.
सेल का आन्तरिक प्रतिरोध किन-किन बातों पर निर्भर करता है? (2018)
उत्तर-
सेल का आन्तरिक प्रतिरोध निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है-

  • सेल के इलेक्ट्रोडों के बीच की दूरी पर- यह दूरी के अनुक्रमानुपाती होता है।
  • वैद्युत-अपघट्य के घोल में इलेक्ट्रोडों के डूबे हुए भागों के क्षेत्रफल पर- यह क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
  • वैद्युत-अपघट्य की प्रकृति तथा सान्द्रता पर- विभिन्न वैद्युत-अपघट्यों के लिए आन्तरिक प्रतिरोध भिन्न होता है तथा यह वैद्युत अपघट्य के घोल की सान्द्रता के भी अनुक्रमानुपाती होता है।

प्रश्न 28.
सेल के विद्युत वाहक बल एवं टर्मिनल विभवान्तर में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2012, 13, 15)
उत्तर-
एकांक आवेश को पूरे परिपथ में सेल सहित प्रवाहित करने में सेल द्वारा दी गयी ऊर्जा को सेल का ‘विद्युत वाहक बल’ कहते हैं, जबकि किसी परिपथ (UPBoardSolutions.com) के दो बिन्दुओं के बीच एकांक आवेश को प्रवाहित करने में किए गए कार्य को उन बिन्दुओं के बीच ‘टर्मिनल विभवान्तर’ कहते हैं।

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प्रश्न 29.
3.2 वोल्ट की एक बैटरी 1.5 ओम प्रतिरोध में 2 ऐम्पियर की धारा भेज रही है। बैटरी का आन्तरिक प्रतिरोध ज्ञात कीजिए। (2013)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity VSAQ 29

प्रश्न 30.
किसी वैद्युत परिपथ में 2 ऐम्पियर की धारा 5 मिनट तक प्रवाहित करने पर सेल द्वारा 1200 जूल कार्य किया जाता है। सेल के विद्युत वाहक बल की गणना कीजिए। (2012)
हल-
परिपथ में प्रवाहित वैद्युत आवेश
q = it = 2 x 5 x 60 = 600 कूलॉम
विद्युत वाहक बल = [latex s=2]\frac { 1200 }{ 600 }[/latex] = 2 वोल्ट

प्रश्न 31.
एक सेल से 0.5 ऐम्पियर धारा लेने पर उसका विभवान्तर 1.8 वोल्ट तथा 1.0 ऐम्पियर धारा लेने पर 1.6 वोल्ट हो जाता है। सेल का आन्तरिक प्रतिरोध तथा विद्युत वाहक बल ज्ञात कीजिए। (2015, 16)
हल-
दिया है, (i) जब = 0.5 ऐम्पियर तब
V = 1.8 वोल्ट तथा
(ii) जब
i = 1.0 ऐम्पियर तब
V = 1.6 वोल्ट
V = E – ir …..(1)
प्रथम स्थिति में समी० (1) से,
1.8 = E – (0.5) ….. (2)
द्वितीय स्थिति में समी० (1) से
1.6 = E – (1.0) r …..(3)
समी० (2) व (3) को हल करने पर,
सेल का आन्तरिक प्रतिरोध r = 0.4 Ω विद्युत वाहक बल
E = 2.0 वोल्ट

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प्रश्न 32.
मिश्रितक्रम में सेलों के संयोजन में अधिकतम धारा की क्या शर्त है? (2013)
उत्तर-
बैटरी का कुल आन्तरिक प्रतिरोध = बाह्य परिपथ का प्रतिरोध।

प्रश्न 33.
निम्न चित्र में धारा का मान ज्ञात कीजिए- (2017)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity
हल-
बिन्दु P पर धारा i1 = बिन्दु P की ओर आने वाली धाराओं का योग – बिन्दु P से दूर जाने वाली धाराओं का योग
i1 = 2 + 2 – 1 = 3 A
बिन्दु Q पर धारा i2 = i1 – 1 A = 3 – 1 = 2 A
बिन्दु R पर धारा i2 + 1 A = i + 1.2 A
i = (2 + 1 – 1.2) A = 1.8 A

प्रश्न 34.
किरचॉफ का पहला नियम तथा दूसरा नियम किस भौतिक राशि के संरक्षण पर आधारित है?
उत्तर-
किरचॉफ का पहला नियम आवेश के संरक्षण पर तथा दूसरा नियम ऊर्जा के संरक्षण पर आधारित है।

प्रश्न 35.
व्हीटस्टोन सेतु की सर्वाधिक सुग्राही होने की शर्त क्या है?
उत्तर-
व्हीटस्टोन सेतु के चारों प्रतिरोध जब एक ही कोटि (order) के होते हैं तो यह सर्वाधिक सुग्राही होता है।

प्रश्न 36.
व्हीटस्टोन सेतु में यदि सेल तथा धारामापी की स्थिति को आपस में बदल दिया जाए तो सन्तुलन की स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्यों? (2009, 14)
उत्तर-
कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसका कारण यह है कि सेल तथा धारामापी व्हीटस्टोन सेतु के विकर्णो के सिरों के बीच जुड़े होते हैं। किसी भी एक विकर्ण के सिरों के बीच सेल जोड़ने पर दूसरे विकर्ण के सिरे समविभव पर होने से सेतु सन्तुलित रहता है।

प्रश्न 37.
यदि संलग्न चित्र 3.19 में दिखाया गया व्हीटस्टोन परिपथ सन्तुलित हो, तो अज्ञात प्रतिरोध x का मान बताइए। (2011)
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प्रश्न 38.
विभवमापी द्वारा मापे गये सेल का वि० वा० बल यथार्थ क्यों होता है ? (2009, 16)
उत्तर-
क्योंकि विभवमापी से पाठ्यांक तब लिया जाता है जब परिपथ में परिणामी धारा शून्य होती है। अर्थात् सेल खुले परिपथ में होती है।

प्रश्न 39.
विभवमापी की सुग्राहिता से क्या तात्पर्य है? इसे कैसे बढ़ाया जा सकता है? (2012, 16)
उत्तर-
विभवमापी की सुग्राहिता का अर्थ है कि जौकी को शून्य विक्षेप स्थिति से थोड़ा-सा खिसकाने पर धारामापी में बहुत अधिक विक्षेप उत्पन्न हो जाये। विभवमापी की सुग्राहिता विभव-प्रवणता के व्युत्क्रमानुपाती होती है। परन्तु विभव-प्रवणता K = [latex s=2]\frac { V }{ L }[/latex] (जहाँ V = विभवमापी के तार के सिरों का विभवान्तर), (UPBoardSolutions.com) अत: K ∝ [latex s=2]\frac { 1 }{ L }[/latex] अर्थात् विभवमापी के तार की लम्बाई L बढ़ाने से K का मान कम हो जाएगा; अर्थात् सुग्राहिता बढ़ जाएगी। इस प्रकार विभवमापी की सुग्राहिता में वृद्धि तार की लम्बाई में वृद्धि करके की जा सकती है।

प्रश्न 40.
किसी विभवमापी में 1.0182 वोल्ट विवा०बल के सेल के लिए सन्तुलन बिन्दु 339.4 सेमी लम्बाई पर प्राप्त होता है। विभवमापी की विभव प्रवणता ज्ञात कीजिए। (2016)
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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
धारा-घनत्व j से आप क्या समझते हैं? इसका मात्रक M.K.S.A. पद्धति में लिखिए तथा विमा सूत्र बताइए। यह सदिश राशि है या अदिश?
या
धारा-घनत्व की परिभाषा दीजिए तथा इसका मात्रक भी लिखिए।
या
धारा घनत्व (j) की परिभाषा लिखिए। (2013)
उत्तर-
धारा-घनत्व (Current Density)- किसी चालक में किसी बिन्दु पर प्रति एकांक क्षेत्रफल से अभिलम्बवत् गुजरने वाली धारा को उस बिन्दु पर ‘धारा-घनत्व’ कहते हैं। इसे j से प्रदर्शित करते हैं। यदि किसी चालक में प्रवाहित धारा , चालक के अनुप्रस्थ क्षेत्रफल A पर एकसमान रूप से वितरित हो, तब उस क्षेत्रफल के किसी बिन्दु पर धारा-घनत्व j = [latex s=2]\frac { i }{ A }[/latex]
M.K.S.A. पद्धति में इसका मात्रक ऐम्पियर प्रति मीटर तथा विमा [AL-2] है। धारा-घनत्व, चालक के भीतर किसी बिन्दु का एक लाक्षणिक गुण है (न कि सम्पूर्ण चालक का) तथा यह एक सदिश राशि है। किसी बिन्दु पर धारा-घनत्व की दिशा उस बिन्दु पर धनावेश के चलने की दिशा होती है।

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प्रश्न 2.
किसी धारावाही चालक में धारा घनत्व J, अनुगमन वेग vd, प्रति एकांक आयतन में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या तथा मूल आवेश में सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2017)
या
मुक्त इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग समझाइए। अनुगमन वेग व धारा-घनत्व के बीच सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2016)
या
किसी चालक में प्रवाहित धारा तथा इसमें मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अपवाह (अनुगमन) वेग में सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2013, 18)
या
मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अपवाह वेग के लिए विद्युत धारा के पद में व्यंजक व्युत्पन्न कीजिए। (2017)
उत्तर-
मुक्त इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग- [संकेत- दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1 के उत्तर में पढ़िए।]
धारा तथा अनुगमन वेग में सम्बन्ध- माना किसी धातु में किसी स्थान से t सेकण्ड में मुक्त इलेक्ट्रॉनों द्वारा ले जाया जाने वाला कुल आवेश q है, तब धातु में वैद्युत धारा
i = [latex s=2]\frac { q }{ t }[/latex] …(1)
माना तार के अनुप्रस्थ परिच्छेद का क्षेत्रफल A है तथा उसके प्रति एकांक आयतन में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या n व इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग vd है, तब
एक सेकण्ड में तार के क्षेत्रफल में से गुजरने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या = nAvd
t सेकण्ड में तार के क्षेत्रफल में से गुजरने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या = nAvd x t
तथा t सेकण्ड में तार के क्षेत्रफल में से गुजरने वाले आवेश की मात्रा
q = nAvd x t x e (जहाँ, e = इलेक्ट्रॉन का आवेश है)
q का मान समीकरण (1) में रखने पर। i = neAvd …(2)
यह वैद्युत धारा तथा अनुगमन वेग में सम्बन्ध है।
धारा-घनत्व तथा अनुगमन वेग में सम्बन्ध- हम जानते हैं कि
धारा-घनत्व j = [latex s=2]\frac { i }{ A }[/latex]
समीकरण (2) से हो का मान रखने पर
j = nevd
यह धारा-घनत्व तथा अनुगमन वेग के बीच सम्बन्ध है।

प्रश्न 3.
एक तार के अनुप्रस्थ-काट का क्षेत्रफल 1 x 10-7 मीटर तथा तार में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या 2 x 1028 प्रति मीटर है। तार में 3.2 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है। ज्ञात कीजिए-
(i) तार में धारा-घनत्व,
(ii) तार में इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग। (2010)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

प्रश्न 4.
L लम्बाई के एक चालक को E विद्युत वाहक बल की सेल से जोड़ा जाता है। यदि इस चालक के स्थान पर समान पदार्थ व समान मोटाई के किसी अन्य चालक जिसकी लम्बाई 3L हो, सेल से जोड़ दिया जाए तब अनुगमन वेग पर क्या प्रभाव पड़ेगा? (2014).
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

प्रश्न 5.
धातुओं में इलेक्ट्रॉनों के अनियमित (मुक्त) वेग और उनके अनुगमन वेग में क्या अन्तर है? (2014)
उत्तर-
धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉन बन्द बर्तन में भरी गैस के अणुओं की तरह व्यवहार करते हैं तथा धातु के भीतर स्थित धन आयनों के बीच खाली स्थान में उच्च (UPBoardSolutions.com) वेग (105 मी/से) से अनियमित गति करते हैं, यह मुक्त इलेक्ट्रॉनों का वेग है। धातु के सिरों के बीच विभवान्तर होने पर मुक्त इलेक्ट्रॉन अपनी अनियमित गति के होते हुए भी एक निश्चित सूक्ष्म वेग (=10-4 मी/से) से उच्च विभव वाले सिरे की ओर खिसकते हैं, यह अनुगमन वेग है।

प्रश्न 6.
सिद्ध कीजिए कि [latex s=2]\hat { j } =\sigma \vec { E }[/latex] है, जहाँ E चालक का वैद्युत क्षेत्र, [latex s=2]\hat { j } [/latex] धारा घनत्व तथा विशिष्ट चालकता है। (2014)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

प्रश्न 7.
ताँबे में मुक्त इलेक्ट्रॉनों का संख्या घनत्व 8.5 x 1028 /मीटर3 है। 0.2 मीटर लम्बाई तथा 1 मिमी2 परिच्छेद क्षेत्रफल के ताँबे के तार से होकर प्रवाहित धारों का मान ज्ञात कीजिए, जबकि 4 वोल्ट की एक बैटरी जुड़ी है। तार में इलेक्ट्रॉनों की गतिशीलता 4.5 x 10-6 मी2/वोल्ट सेकण्ड है। (2015)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

प्रश्न 8.
एक तार में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या 2 x 1028 प्रति मी है। तार का अपवाह (अनुगमन) वेग 1.0 सेमी/सेकण्ड है। तार में धारा घनत्व की गणना कीजिए। (2013)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity SAQ 8
प्रश्न 9.
एक चालक में 6.4 ऐम्पियर वैद्युत धारा प्रवाहित होती है। यदि चालक में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या 8 x 1024 प्रति मीटर हो तो उनका अनुगमन वेग ज्ञात कीजिए। (2014)
हल-
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

प्रश्न 10.
विशिष्ट प्रतिरोध की परिभाषा दीजिए तथा मात्रक बताइए। विशिष्ट प्रतिरोध तथा विशिष्ट वैद्युत-चालकता में क्या सम्बन्ध है? या विशिष्ट प्रतिरोध की परिभाषा लिखिए। (2014, 15)
उत्तर-
विशिष्ट प्रतिरोध- ‘‘किसी धारावाही चालक के अन्दर किसी बिन्दु पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता E तथा उस बिन्दु पर धारा-घनत्व ) के अनुपात को चालक का विशिष्ट प्रतिरोध कहते हैं।”
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

प्रश्न 11.
किसी धातु के 20 सेमी लम्बे तार को खींच कर इसकी लम्बाई 25% बढ़ा दी जाती है। नये तार के प्रतिरोध में प्रतिशत वृद्धि की गणना कीजिए। (2009)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity SAQ 11

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प्रश्न 12.
चित्र 3.20 में किसी चालक में बहने वाली धारा I तथा उसके सिरों पर लगाए गए विभवान्तर V को ग्राफ द्वारा प्रदर्शित किया I (ऐम्पियर) गया है। चालक का प्रतिरोध, कोण θ के व्यंजक में कितना होगा? (2015)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity SAQ 12
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

प्रश्न 13.
एक बल्ब पर 100 वाट तथा 220 वोल्ट अंकित है। जब बल्ब जल रहा हो, तब उसका प्रतिरोध एवं उसमें प्रवाहित धारा की गणना कीजिए। (2015)
हल-
यदि बल्ब का प्रतिरोध R ओम तथा वह V वोल्ट पर जलता है, तब उसमें क्षय वैद्युत शक्ति (वाट में)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

प्रश्न 14.
8 ओम के मोटे तार को खींचकर इसकी लम्बाई दोगुनी कर दी जाती है। तार के नये प्रतिरोध की गणना कीजिए। (2015, 16)
हल-
दिया है, तार का प्रतिरोध (R) = 8 ओम
तार की लम्बाई में वृद्धि (n) = 2
माना तार का नया प्रतिरोध = R’
तब, R’ = n²R = (2)² x 8 = 4 x 8 = 32 ओम

प्रश्न 15.
दिये गये तीन प्रतिरोधों में प्रत्येक का प्रतिरोध 42है तथा प्रत्येक को अधिकतम 64वाट तक की विद्युत शक्ति दी जा सकती है। पूरा परिपथ अधिकतम कितनी शक्ति ले सकता है ? (2012)
हल-
तार में व्यय वैद्युत-शक्ति P = i²R
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity SAQ 15
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

प्रश्न 16.
एक कार्बन प्रतिरोधक की तीन पट्टियों (बैण्ड) के वर्ण कोड़ क्रमशः नीला, काला तथा पीला हैं। यदि इनके सिरों के बीच 30 वोल्ट का विभवान्तर लगाया जाए तब इसमें प्रवाहित धारा क्या है? (2014)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity SAQ 16

प्रश्न 17.
तीन प्रतिरोध तार हैं। प्रत्येक का प्रतिरोध 4 ओम है। इनके सम्भावित संयोजनों को प्रदर्शित कीजिए तथा प्रत्येक संयोजन में तुल्य प्रतिरोध ज्ञात कीजिए। (2016)
हल-
चित्र 3.22 (a) से,
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

प्रश्न 18.
एक R ओम प्रतिरोध के तार को खींचकर तीन गुनी लम्बाई की जाती है। इस खींचे तार को । तीन बराबर लम्बाई के तारों में काट कर उन्हें समान्तर क्रम में जोड़ दिया जाता है। इस संयोजन का कुल प्रतिरोध क्या होगा? (2014)
हल-
माना तार की प्रारम्भिक लम्बाई l है तथा खींचने के पश्चात् l’ है। तार का प्रारम्भिक अनुप्रस्थ क्षेत्रफल A है तथा खींचने के पश्चात् A’ है। तार का प्रारम्भिक आयतन Al (UPBoardSolutions.com) तथा खींचने के पश्चात् A’l’ होगा। परन्तु खींचने पर तार का आयतन नहीं बदलेगा; अत:
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प्रश्न 19.
सेल के विद्युत वाहक बल से क्या तात्पर्य है ? किसी वोल्टमीटर से सेल का वि० वा० बल सही-सही क्यों नहीं नापा जा सकता है ?
या
किसी सेल के विद्युत वाहक बल से क्या तात्पर्य है? (2014)
उत्तर-
सेल का विद्युत वाहक बल- एकांक आवेश को पूरे परिपथ (सेल सहित) में प्रवाहित करने में सेल द्वारा दी गयी ऊर्जा को सेल का ‘विद्युत वाहक बल’ (electromotive force) कहते हैं। यदि किसी परिपथ में q आवेश प्रवाहित करने पर सेल को W कार्य करना पड़े (ऊर्जा देनी पड़े) तो सेल का वि० वा० बल [latex s=2]\frac { W }{ q }[/latex] यदि W जूल में तथा q कूलॉम में हों तो E का मान वोल्ट (UPBoardSolutions.com) में प्राप्त होता है। यदि किसी परिपथ में 1 कूलॉम आवेश प्रवाहित करने पर सेल द्वारा दी गयी ऊर्जा 1 जूल हो, तो सेल का वि० वा० बल 1 वोल्ट होता है। वि० वा० बल प्रत्येक सेले का एक लाक्षणिक गुण होता है। सेल के विद्युत वाहक बल का सही मापन करने के लिए, इसको मापने के लिए प्रयुक्त यन्त्र का प्रतिरोध अनन्त होना चाहिए। परन्तु वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनन्त नहीं होता है। इसलिए इससे विद्युत वाहक बल का सही-सही मापन नहीं किया जा सकता है।

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प्रश्न 20.
किसी सेल के टर्मिनल विभवान्तर, वि० वा० बल तथा आन्तरिक प्रतिरोध में सम्बन्ध स्थापित कीजिए तथा दिखाइए कि टर्मिनल विभवान्तर, सेल से ली गयी धारा पर निर्भर करता है। (2009, 16)
या
किसी सेल के विद्युत वाहक बल तथा इसके सिरों के बीच विभवान्तर (टर्मिनल विभवान्तर) में सम्बन्ध का सूत्र स्थापित कीजिए। (2013)
उत्तर-
माना E विद्युत वाहक बल तथा आन्तरिक प्रतिरोध वाली एक, सेल को चित्र 3.23 की भाँति एक कुंजी. K द्वारा किसी बाह्य परिपथ में जोड़ दिया गया है, जिसका प्रतिरोध R है। कुंजी को बन्द करने पर परिपथ में एक नियत धारा । प्रवाहित होने लगती है जिसका मान परिपथ के श्रेणीक्रम में जुड़े अमीटर की सहायता से पढ़ा जाता है।

माना धारा i परिपथ में t समय के लिए प्रवाहित की जाती है। अत: परिपथ में प्रवाहित आवेश q = धारा x समय = i x है, सेल सहित पूरे परिपथ में इस आवेश को प्रवाहित कराने में सेल द्वारा किया गया कार्य (अर्थात् सेल द्वारा दी गयी ऊर्जा) w हो, तो यह ऊर्जा सेल सहित पूरे परिपथ में निम्नलिखित दो भागों में प्रयुक्त होती है-

ऊर्जा का एक भाग वाडा ; प्रतिरोध R में आवेश १ को प्रवाहित कराने में तथा शेष दूसरा भाग Wआन्तरिक, सेल के आन्तरिक प्रतिरोध r (अर्थात् वैद्युत-अपघट्य) में आवेश q को प्रवाहित कराने में व्यय होता है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity SAQ 20
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity SAQ 22
यही टर्मिनल विभवान्तर तथा सेल के आन्तरिक प्रतिरोध के बीच सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध से स्पष्ट है कि जब किसी सेल से वैद्युत धारा ली जा रही होती है; अर्थात् (UPBoardSolutions.com) सेल बन्द परिपथ में होती है तो उसका टर्मिनल विभवान्तर V उसके विद्युत वाहक बल E से कम होता है। ऐसा सेल के आन्तरिक प्रतिरोध में विभव पतन ir के कारण होता है। परन्तु जब सेल को धारा दी जा रही होती है तो उपर्युक्त सूत्र (2) निम्न प्रकार व्यक्त किया जाता है- V = E + ir

प्रश्न 21.
60 ओम के बाह्य प्रतिरोध को बैटरी के टर्मिनलों से जोड़ने पर 0.3 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित होती है तथा प्रतिरोध घटाकर 30 ओम कर देने पर धारा का मान 0.5 ऐम्पियर हो जाता है। बैटरी के वि० वा० बल और आन्तरिक प्रतिरोध की गणना कीजिए। (2014)
हल-
माना बैटरी का विद्युत वाहक बल E तथा आन्तरिक प्रतिरोध है। इससे जुड़े बाह्य प्रतिरोध R में
वैद्युत धारा
i = [latex s=2]\frac { E }{ R+r }[/latex]
⇒ E = i (R + r)
प्रथमं स्थिति में, E = 0.3 (60 + r) …..(1)
द्वितीय स्थिति में, E = 0.5 (30 + r) ……..(2)
समी० (1) व (2) से,
0.3 (60 + r) = 0.5 (30 + r)
18 + 0.3r = 15 + 0.5r
0.2 r = 3 ⇒ r = 15 Ω
विद्युत वाहक बल E = 0.3 (60 + 15) = 0.3 x 75 = 22.5 वोल्ट

प्रश्न 22.
खुले परिपथ में एक सेल की प्लेटों के बीच विभवान्तर 1.5 वोल्ट है। इस सेल को 10 ओम के प्रतिरोध से जोड़ने पर इसकी प्लेटों के बीच विभवान्तर 1.2 वोल्ट हो जाता है। वैद्युत परिपथ बनाकर सेल का आन्तरिक प्रतिरोध एवं 10 ओम के प्रतिरोध में प्रवाहित होने वाली , धारा का मान ज्ञात कीजिए। (2015, 16)
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity SAQ 22.1

प्रश्न 23.
किसी बैटरी के सिरों पर उच्च प्रतिरोध के वोल्टमीटर को जोड़ने पर पाठ्यांक 15 वोल्ट मिलता है। बैटरी के सिरों को एमीटर से जोड़ने पर एमीटर 1.5 ऐम्पियर और वोल्टमीटर 9 वोल्ट पढ़ता है। बैटरी के आन्तरिक प्रतिरोध तथा एमीटर एवं संयोजक तारों के प्रतिरोध की गणना कीजिए। (2015)
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प्रश्न 24.
किसी सेल से 0.6 ऐम्पियर धारा लेने पर उसकी टर्मिनल वोल्टता 1.6 वोल्ट हो जाती है तथा 0.8 ऐम्पियर धारा लेने पर टर्मिनल वोल्टता 1.3 वोल्ट हो जाती है। सेल का वैद्युत वाहक बल तथा आन्तरिक प्रतिरोध ज्ञात कीजिए। (2017)
हल-
दिया है, I1 = 0.6 ऐम्पियर, V1 = 1.6 वोल्ट
I2 = 0.8 ऐम्पियर, V2 = 1.3 वोल्ट
सेल के सिरों पर विभवान्तर V = E – Ir
पहली स्थिति में, 1.6 = E – 0.6 x r …….(1)
दूसरी स्थिति में, 1.3 = E – 0.8 x r ……..(2)
समीकरण (1) व (2) को हल करने पर,
सेल का वैद्युत वाहक बल E = 2.5 वोल्ट
तथा सेल का आन्तरिक प्रतिरोध r = 1.5 ओम

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प्रश्न 25.
आपको एक 6 वोल्ट विद्युत वाहक बल तथा 1 ओम आन्तरिक प्रतिरोध की सेल के साथ दो बाह्य प्रतिरोध R1 = 2 ओम व R2 = 3 ओम दिए जाते हैं। परिपथमें धारा क्या होगी, जब
(i) R1 व R2 श्रेणीक्रम में जोड़े जाएँ?
(ii) R1 व R2 समान्तर क्रम में जोड़े जाएँ। (2014)
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प्रश्न 26.
एक 3 वोल्ट विद्युत वाहक बल की सेल 4 ओम प्रतिरोध वाले विभवमापी तार AC के मध्य जुड़ी है। 2 ओम प्रतिरोध के सिरों के बीच विभवान्तर ज्ञात कीजिए, यदि सम्पर्क बिन्दु B विभवमापी तार के ठीक मध्य में हो। (2015)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity SAQ 26
हल-
E = iR – ir [जहाँ r = 0]
E = iR [जहाँ R = 4 Ω]
i = [latex s=2]\frac { 3 }{ 4 }[/latex] ऐम्पियर
2 Ω प्रतिरोध के सिरों के बीच विभवान्तर
V = iR = [latex s=2]\frac { 3 }{ 4 }[/latex] x 2 = 1.5 वोल्ट

प्रश्न 27.
निम्नचित्र में प्रदर्शित परिपथ में प्रतिरोध R है। A व B के बीच तुल्य प्रतिरोधज्ञात कीजिए। (2017)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity SAQ 27
हल-
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity
प्रश्न में दिए गए चित्र 3.26 में दिए गए प्रतिरोधों को चित्र 3.27 की भाँति व्यवस्थित कर सकते हैं। इस प्रकार यह परिपथ एक सन्तुलित व्हीटस्टोन सेतु के तुल्य है। यदि A व B के बीच सेल जोड़ दी जाए तो भुजा CD में कोई धारा नहीं बहेगी। अत: C व D के बीच जुड़ा प्रतिरोध प्रभावहीन है।
ADB में जुड़े प्रतिरोधों का परिणामी प्रतिरोध
R1 = R + R = 2R Ω
तथा ACB में जुड़े प्रतिरोधों का परिणामी प्रतिरोध
R2 = R + R = 2R Ω
भुजा ADB तथा ACB में जुड़े प्रतिरोध R1 व R2 परस्पर समान्तर क्रम में हैं।
अतः A व B के बीच तुल्य प्रतिरोध
[latex s=2]R=\frac { 2R\times 2R }{ 2R+2R } =R\Omega[/latex]

प्रश्न 28.
चित्र में दर्शाए गए 75 Ω के प्रतिरोध में प्रवाहित धारा का मान ज्ञात कीजिए। (2017)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity SAQ 28UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अनुगमन वेग से आप क्या समझते हैं? इलेक्ट्रॉन अनुगमन वेग के सिद्धान्त द्वारा ओम के नियम का निगमन कीजिए। (2011, 12, 17, 18)
या
किसी चालक के विभवान्तर तथा मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अपवाह (अनुगमन) वेग के बीच का सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2012)
या
किसी चालक के बीच विभवान्तर तथा मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अनुगमन वेग के बीच सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2013)
या
मुक्त इलेक्ट्रॉनों के ‘अपवाह वेग से आप क्या समझते हैं? मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अपवाह वेग के आधार पर ओम के नियम की व्याख्या कीजिए। (2014, 18)
या
अनुगमन वेग की परिभाषा दीजिए। (2014)
या
मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अनुगमन वेग से आप क्या समझते हैं? (2015)
या
किसी धातु में मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अपवाह वेग से क्या तात्पर्य है? मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अपवाह वेग के आधार पर ओम का नियम व्युत्पन्न कीजिए। (2017, 18)
उत्तर-
अनुगमन वेग (अपवाह वेग)- किसी धातु के तार के सिरों को बैटरी से जोड़ देने पर तार के सिरों के बीच एक विभवान्तर स्थापित हो जाता है। इस विभवान्तर अथवा वैद्युत-क्षेत्र के कारण इलेक्ट्रॉन एक वैद्युत बल का अनुभव करते हैं जो इलेक्ट्रॉनों को त्वरण प्रदान करता है। परन्तु इस त्वरण से इलेक्ट्रॉनों की चाल लगातार बढ़ती नहीं जाती, बल्कि धातु के धन आयनों से टकराकर ये इलेक्ट्रॉन बैटरी से प्राप्त ऊर्जा (UPBoardSolutions.com) को खोते रहते हैं। स्पष्ट है कि बैटरी का विभवान्तर इलेक्ट्रॉनों को त्वरित गति प्रदान नहीं कर पाता बल्कि तार की लम्बाई के अनुदिश एक लघु नियत वेग ही दे पाता है जो इलेक्ट्रॉनों की अनियमित गति पर आरोपित हो जाता है। इलेक्ट्रॉनों के इस लघु नियत वेग को ही ‘अनुगमन वेग’ (drift velocity) कहते हैं। इसे 04 से प्रदर्शित करते हैं।

ओम के नियम का निगमन- माना एक धातु के तार की लम्बाई l तथा अनुप्रस्थ परिच्छेद का क्षेत्रफल A है। जब इसके सिरों के बीच विभवान्तर V लगाया जाता है, तो इसमें वैद्युत धारा i प्रवाहित होने लगती है। यदि तार के प्रति एकांक आयतन में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या (मुक्त इलेक्ट्रॉन-घनत्व) n हो तथा इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग vd हो, तब
i = neAvd …(1)
जहाँ, e इलेक्ट्रॉन का आवेश है। तार के प्रत्येक बिन्दु पर वैद्युत-क्षेत्र की तीव्रता E = [latex s=2]\frac { V }{ l }[/latex]
इस क्षेत्र द्वारा प्रत्येक मुक्त इलेक्ट्रॉन पर आरोपित बल F = eE = [latex s=2]\frac { eV }{ l }[/latex]
यदि इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान m हो, तो इस बल के कारण इलेक्ट्रॉन में उत्पन्न त्वरण
a = [latex s=2]\frac { F }{ m }[/latex] = [latex s=2]\frac { eV }{ ml }[/latex] …(2)

तार के भीतर मुक्त इलेक्ट्रॉन धातु के धन आयनों से बारम्बार टकराते रहते हैं। किसी धन आयन से टकराने के पश्चात् इलेक्ट्रॉन का वेग वैद्युत-क्षेत्र E की विपरीत दिशा में बढ़ने लगता है। यदि किसी इलेक्ट्रॉन की, धन आयनों से हुई दो क्रमागत टक्करों के बीच का समयान्तराल t है, (UPBoardSolutions.com) तो इलेक्ट्रॉन के वेग में aτ वृद्धि होगी। यदि किसी क्षण वैद्युत-क्षेत्र की अनुपस्थिति में किसी इलेक्ट्रॉन का ऊष्मीय वेग u1 है, तब वैद्युत-क्षेत्र में की उपस्थिति में उसका वेग बढ़कर u1 + aτ1 हो जाएगा; जहाँ τ1 उस इलेक्ट्रॉन का दो क्रमागत टक्करों के बीच का समयान्तराल है। इसी प्रकार, अन्य इलेक्ट्रॉनों के वेग (u2 + aτ2), (u3 + aτ3) होंगे। सभी n इलेक्ट्रॉनों का औसत वेग ही मुक्त इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग vd है। इस प्रकार
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity LAQ 1.1
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प्रश्न 2.
हाइड्रोजन परमाणु में 1 इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर 7.0 x 10-11 मीटर त्रिज्या की कक्षा में 4.4 x 106 मी/से की चाल से चक्कर लगाता है। कक्षा में इसके समतुल्य वैद्युत धारा का मान ज्ञात कीजिए। (2011)
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प्रश्न 3.
60 W.220 V तथा 100 W.220 V के दो बल्ब श्रेणीक्रम में जोड़कर 220 वोल्ट मेन्स से सम्बन्धित किये गये हैं। उनमें प्रवाहित होने वाली धाराओं की गणना कीजिए। यदि बल्ब समान्तर क्रम में जोड़े जाये तब धाराएँ कितनी होंगी? (2011, 17)
हल-
श्रेणीक्रम में जुड़े बल्बों में समान धारा प्रवाहित होगी।
60 वोट के बल्ब का प्रतिरोध
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity LAQ 3.1

प्रश्न 4.
दिये गये चित्र 3.29 में दिखाए गए परिपथ में लगी बैटरी का विद्युत वाहक बल 12 वोल्ट तथा आन्तरिक प्रतिरोध नगण्य है। अमीटर A के पाठ्यांक की गणना कीजिए। जबकि, कुँजी k
(i) खुली हो, (ii) बन्द हो। (2015)
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प्रश्न 5.
वैद्युत परिपथ के लिए किरचॉफ के नियमों का व्याख्या सहित वर्णन कीजिए।
या
वैद्युत परिपथ के लिए किरचॉफ के नियमों का उल्लेख कीजिए और उनको परिपथ बनाकर समझाइए। (2012, 18)
या
वैद्युत परिपथ सम्बन्धी किरचॉफ के दोनों नियम समुचित परिपथ आरेख बनाकर समझाइए। (2014)
या
वैद्युत परिपथ सम्बन्धी किरचॉफ के नियम लिखिए। (2015, 17)
या
किरचॉफ का धारा नियम लिखिए तथा धारा के लिए चिह्न परिपाटी भी बताइए। (2018)
उत्तर-
किरचॉफ के नियम (Kirchhoff’s Laws)-
प्रथम नियम- किसी वैद्युत परिपथ की किसी भी सन्धि पर मिलने वाली धाराओं का बीजगणितीय योग (algebraic sum) शून्य होता है;
अर्थात् [latex]\sum { i }[/latex] = 0
माना कि चालक जिनमें धाराएँ i1, i2, i3, i4 व i5 बह रही हैं, सन्धि O पर मिलते हैं। चिह्न परिपाटी के अनुसार सन्धि की ओर आने वाली धारा धनात्मक है। अतः i1 वे i2 धनात्मक तथा i3, i4 व i5 ऋणात्मक हैं। किरचॉफ के नियम के अनुसार,
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i1 + i2 – i3 – i4 – i5 = 0
या i1 + i2 = i3 + i4 + i5
स्पष्ट है कि परिपथ के किसी बिन्दु पर आने वाली धाराओं का योग वहाँ से जाने वाली धाराओं के योग के बराबर होता है। यह नियम आवेश के संरक्षण को व्यक्त करता है।

द्वितीय नियम- किसी वैद्युत परिपथ में प्रत्येक बन्दपाश के विभिन्न भागों में प्रवाहित होने वाली धाराओं एवं संगत प्रतिरोधों के गुणनफलों का बीजगणितीय योग उस पाश में लगने वाले समस्त वि० वा० बलों के बीजगणितीय योग के बराबर होता है।
अर्थात् [latex]\sum { iR }[/latex] = [latex]\sum { E }[/latex]
इस नियम को लगाते समय धारा की दिशा में चलने पर धारा व इसके संगत प्रतिरोध का गुणनफल धनात्मक लेते हैं तथा सेल के वैद्युत-अपघट्य में ऋण इलेक्ट्रोड से धन इलेक्ट्रोड की ओर चलने पर वि० वा० बल धनात्मक लेते हैं। चित्र 3.32 में दिखाये गये वैद्युत परिपथ में दो बन्दपाश (1) व (2) हैं। इस नियम के अनुसार बन्दपाश (1) के लिए
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i1R1 – i2R2 = E1 – E2
तथा बन्दपाश (2) के लिए ।
i2R2 + (i1 + i2) R3 = E2
इन समीकरणों को हल करके i1 व i2 के मान ज्ञात किये जा सकते हैं। यह नियम ऊर्जा के संरक्षण को व्यक्त करता है।

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प्रश्न 6.
वैद्युत परिपथ के लिए, किरचॉफ के नियमों का उल्लेख कीजिए तथा उनकी सहायता से किसी व्हीटस्टोन सेतु के सन्तुलित होने का सूत्र [latex]\frac { P }{ Q }[/latex] = [latex s=2]\frac { R }{ S }[/latex] व्युत्पादित कीजिए, जहाँ संकेतों को सामान्य अर्थ है। (2014)
या
व्हीटस्टोन सेतु का परिपथ चित्र खींचकर उसकी साम्यावस्था का प्रतिबन्ध निकालिए। (2009, 14, 17)
या
व्हीटस्टोन ब्रिज का सिद्धान्त क्या है? (2014)
या
व्हीटस्टोन सेतु की संतुलन अवस्था में उसकी भुजाओं के प्रतिरोध में सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2017)
या
व्हीटस्टोन सेतु का परिपथ आरेख खींचिए तथा संतुलन के प्रतिबन्ध का व्यंजक प्राप्त कीजिए। (2017)
या
व्हीटस्टोन ब्रिज सिद्धान्त की संतुलन गति को लिखिए। (2018)
उत्तर-
किरचॉफ के नियमों के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 5 का उत्तर देखिए।
व्हीटस्टोन सेतु का सिद्धान्त- चित्र 3.33 में व्हीटस्टोन सेतु व्यवस्था दिखायी गयी है। जब व्हीटस्टोन सेतु में चतुर्भुज रूप में जुड़े प्रतिरोधों के मान इस प्रकार समायोजित किये जाएँ कि सेल की कुंजी K1 तथा धारामापी की कुंजी K2 दोनों बन्द करने पर धारामापी में कोई विक्षेप न आये तो इस दशा में सेतु सन्तुलित (balanced) कहा जाता है।
“सेतु की सन्तुलन अवस्था में सेतु (चतुर्भुज) की किन्हीं दो संलग्न भुजाओं में लगे प्रतिरोधों का अंनुपात शेष दो संलग्न भुजाओं में लगे प्रतिरोधों के अनुपात के बराबर होता है।”
अर्थात् [latex]\frac { P }{ Q }[/latex] = [latex s=2]\frac { R }{ S }[/latex]
किरचॉफ के नियमों का उपयोग करके उपर्युक्त सम्बन्ध का निगमन-
चित्र 3.33 में बन्दपाश ABDA में किरचॉफ का द्वितीय नियम लगाने पर
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प्रश्न 7.
विभवमापी का सिद्धान्त चित्र खींचकर समझाइए। यह वोल्टमीटर से श्रेष्ठ क्यों है? (2017, 18)
या
हम सेल का विद्युत वाहक बल नापने के लिए वोल्टमीटर की अपेक्षा विभवमापी को वरीयता क्यों देते हैं। (2014)
या
विभवमापी का सिद्धान्त समझाइए। इसकी सुग्राहिता किस प्रकार बढ़ाई जा सकती है? (2015, 18)
या
विभवमापी में प्रयोग किए जाने वाले तार के विशेष गुण लिखिए।
उत्तर-
विभवमापी- यह किसी सेल का विद्युत वाहक बल अथवा किसी वैद्युत परिपथ के दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर नापने का यथार्थ उपकरण है।
विभवमापी का सिद्धान्त- इसमें मुख्यत: एक लम्बा व एकसमान व्यास की धातु का प्रतिरोध-तार AB होता है। इसका एक सिरा A एक संचायक-बैटरी के धन-ध्रुव से (UPBoardSolutions.com) जुड़ा होता है। बैटरी का ऋण-ध्रुव एक कुंजी (K) तथा एक धारा नियन्त्रक (Rh) के द्वारा सार के दूसरे सिरे B से जोड़ दिया जाता है। धारा नियन्त्रक के द्वारा तार AB में धारा को घटाया अथवा बढ़ाया जा सकता है।

E एक सेल है जिसका विद्युत वाहक बल नापना है। इसका धन-ध्रुव तार के A सिरे से जुड़ा होता है। तथा ऋण-ध्रुव एक धारामापी G के द्वारा जौकी J से जुड़ा होता है जो तार पर खिसकाकर कहीं भी स्पर्श करायी जा सकती है।
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बैटरी से वैद्युत धारा तार के सिरे A से सिरे B की ओर को बहती है। अत: A से B की ओर तार के प्रत्येक बिन्दु पर वैद्युत-विभव गिरता जाता है। तार की प्रति एकांक लम्बाई में विभव-पतन को विभव-प्रवणता कहते हैं तथा इसे K से प्रदर्शित करते हैं।

माना जौकी को J1 पर स्पर्श कराते हैं, जबकि A और J1 के बीच विभवान्तर, सेल E के वि० वा० बल से कम है। चूंकि बिन्दु A का विभव J1 से। ऊँचा है; अत: बैटरी B1 की धारा AE J1 मार्ग से धारामापी में प्रवाहित होगी। परन्तु सेल E का धन-ध्रुव, बिन्दु A से जुड़ा है; अतः सेल की धारा AJ1E मार्ग से धारामापी में प्रवाहित होगी। स्पष्ट है। कि ये दोनों धाराएँ परस्पर विपरीत दिशाओं में हैं। परन्तु चूँकि सेल का वि० वा० बल (UPBoardSolutions.com) बैटरी के कारण उत्पन्न A व J1 के बीच विभवान्तर से अधिक है; अत: सेल की धारा की प्रधानता होगी। इस प्रकार AJ1E की दिशा में प्रवाहित एक परिणामी धारा के – कारण धारामापी की सूई एक ओर विक्षेपित हो जाएगी।

इसके विपरीत यदि जौकी को J2 पर स्पर्श कराते हैं, जबकि A व J2 के बीच विभवान्तर, सेल E के वि० वा० बल से अधिक हो, तो बैटरी B1 की धारा की प्रधानता होगी। इस दशा में धारामापी में एक परिणामी धारा AEJ2 दिशा में प्रवाहित होगी और धारामापी की सूई पहले से विपरीत दिशा में विक्षेपित हो जाएगी।

स्पष्ट है कि जौकी की दोनों स्थितियों J1 व J2 के मध्य में J एक ऐसा बिन्दु होगा, जहाँ पर जौकी को स्पर्श कराने पर धारामापी में कोई विक्षेप नहीं होगा। यह शून्य विक्षेप की स्थिति होगी और ऐसी स्थिति में A व J के मध्य विभवान्तर, सेल के वि० वा० बल के बराबर होगा।
माना तार में बहने वाली धारा का मान i है तथा तार की 1 सेमी लम्बाई का प्रतिरोध p है, तब
विभव-प्रवणता K = ip
यदि तार के भाग AJ की लम्बाई l सेमी हो तथा बिन्दु A व J के बीच विभवान्तर V हो, तो
V = Kl
शून्य विक्षेप स्थिति में, विभवान्तर V सेल के विद्युत वाहक बल E के बराबर होता है। अतः
E = Kl
विभवमापी की सुग्राहिता बढ़ाने के लिए विभवमापी के तार की लम्बाई बढ़ा दी जाती है जिस कारण विभव-प्रवणता कम हो जाती है और शून्य विक्षेप की स्थिति की दूरी (l) अधिक लम्बाई पर आती है।
विभवमापी में प्रयोग होने वाले तार के विशेष गुण

  1. तार का व्यास सर्वत्र समान होना चाहिए।
  2. तार के पदार्थ का प्रतिरोध ताप-गुणांक अधिक होना चाहिए।
  3. तार के पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध कम होना चाहिए।

वोल्टमीटर की तुलना में विभवमापी की श्रेष्ठता

  1. जब हम सेल का वि० वा० बल विभवमापी से नापते हैं तो शून्य-विक्षेप स्थिति में सेल के परिपथ में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती; अर्थात् सेल खुले परिपथ पर होती है। अतः इस स्थिति में सेल के वि० वा० बल का वास्तविक मान प्राप्त होता है। इस प्रकार विभवमापी अनन्त प्रतिरोध के आदर्श वोल्टमीटर के समतुल्य है।
  2. वोल्टमीटर द्वारा वि० वा० बल (UPBoardSolutions.com) नापने के लिए वोल्टमीटर में विक्षेप पढ़ना पड़ता है। विक्षेप के पढ़ने में त्रुटि रह सकती है। इसके विपरीत विभवमापी द्वारा वि० वी० बल अविक्षेप (null) विधि से नापा जाता है। इसमें तार पर शून्य-विक्षेप स्थिति को पढ़ना होता है। शून्य-विक्षेप स्थिति में पढ़ने में अधिक-से-अधिक 1 मिमी की त्रुटि हो सकती है, जो नगण्य है।

प्रश्न 8.
एक विभवमापी की संरचना तथा कार्यविधि का वर्णन कीजिए। इसके द्वारा सेल का विद्युत वाहक बल कैसे ज्ञात किया जाता है? (2011)
या
विभवमापी का सिद्धान्त समझाइए। विभवमापी से किसी सेल का आन्तरिक प्रतिरोध ज्ञात करने के लिए परिपथ आरेख खींचिए तथा प्रयुक्त सूत्र को प्राप्त कीजिए। (2013, 15)
या
विभवमापी का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। इसकी सहायता से किसी सेल का आन्तरिक प्रतिरोध कैसे ज्ञात करते हैं? (2015)
उत्तर-
विभवमापी की संरचना- विभवमापी में मुख्यतः एक उच्च विशिष्ट प्रतिरोध व निम्न प्रतिरोध ताप गुणांक की मिश्रधातु (जैसे- कॉन्सटेन्टन, मैंगनिन आदि) का 4 से 12 मीटर तक लम्बा एक समान व्यास का तार होता है। इस तार को एक-एक मीटर के समान्तर टुकड़ों के रूप में चित्र 3.35 की भाँति एक लकड़ी के तख्ते पर बिछा देते हैं। तार के ये सभी टुकड़े ताँबे की मोटी पत्तियों के द्वारा श्रेणीक्रम में ज़ोड़ (UPBoardSolutions.com) दिये जाते हैं। इस सम्पूर्ण तार के प्रारम्भ होने वाले सिरे और अन्तिम सिरे पर क्रमशः संयोजक पेंच A और B लगा देते हैं। तारों की लम्बाई के समान्तर एक मीटर पैमाना M लगा रहता है, जिससे जौकी J की स्थिति पढ़ ली जाती है।
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कार्यविधि अथवा कार्य सिद्धान्त- उपरोक्त दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 7 में पढ़िए।
विभवमापी द्वारा किसी सेल का आन्तरिक प्रतिरोध ज्ञात करना- इसके लिए विभवमापी के तार AB के सिरों के बीच एक संचायक सेल B1 धारा नियन्त्रक Rh व कुंजी K1 चित्र 3.36 के अनुसार जोड़ देते हैं। सेल B1 का धन-ध्रुव तार के सिरे A से जोड़ा जाता है। अब जिस सेल को आन्तरिक प्रतिरोध ज्ञात करना होता है, उसके धन सिरे को बिन्दु A से तथा ऋण सिरे को एक शण्टयुक्त धारामापी G द्वारा जौकी J (UPBoardSolutions.com) से जोड़ देते हैं। इस सेल के समान्तरक्रम में चित्र 3.36 के अनुसार एक प्रतिरोध बॉक्स व कुंजी K2 डाल देते हैं। सर्वप्रथम कुंजी K2 से प्लग को निकालकर सेल E को खुले परिपथ में रखा जाता है। अब कुंजी K1 का प्लग लगाकर सेल E के लिए शून्य विक्षेप स्थिति ज्ञात कर लेते हैं। मान लीजिए कि इस स्थिति में सिरे A से दूरी l1 सेमी है। चूंकि खुले परिपथ पर सेल की प्लेटों के बीच विभवान्तर V इसके विद्युत वाहक ब्रल E के बराबर है, अतः
E = Kl1 …..(1)

जहाँ K तार AB की विभव-प्रवणता है। अब प्रतिरोध बॉक्स में से कोई उचित प्रतिरोध R निकालकर कुंजी K2 को बन्द कर देते हैं। इस दशा में प्रतिरोध R के सिरों के बीच लगने वाले विभवान्तर V के लिए तार AB पर शून्य विक्षेप स्थिति ज्ञात करे लेते हैं। माना इस स्थिति की बिन्दु A से दूरी l2 सेमी है, तब
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इस सूत्र (5) से r के मान का परिकलन किया जा सकता है। l1 व l2 के अनेक प्रेक्षण लेते हैं और प्रत्येक प्रेक्षण से सेल के आन्तरिक प्रतिरोध को परिकलन करके औसत मान ज्ञात कर लेते हैं।

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प्रश्न 9.
विभवमापी की संरचना तथा कार्यविधि का वर्णन कीजिए। इसके द्वारा दो सेलों के वि० वाहक बल की तुलना कैसे की जाती है। परिपथं आरेख बनाकर समझाइए। (2015)
उत्तर-
विभवमापी की संरचना- उपरोक्त दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 8 में पढ़िए।
विभवमापी की कार्यविधि- उपरोक्त दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 7 में पढ़िए।
विभवमापी द्वारा दो सेलों के वि0 वा बल की तुलना- पहले विभवमापी के तार के सिरों A व B के बीच एक संचायक सेल अथवा बैटरी B1, धारी-नियन्त्रक Rh तथा एक (UPBoardSolutions.com) कुंजी K1 जोड़ देते हैं। (चित्र 3.36)। B1 का धन-ध्रुव तार के A सिरे से जोड़ा जाता है। अब जिन दो सेलों E1 व E2 के विद्युत वाहक बलों की तुलना करनी है, उनके धन-ध्रुवों कों A से जोड़ देते हैं तथा ऋण-ध्रुवों को एक द्वि-मार्गी (two-way) कुंजीk, के द्वारा एक शन्टयुक्त धारामापी G से जोड़कर जौकी J से जोड़ देते हैं। पहले कुंजी K1 को लगाकर तार AB के सिरों के बीच विभवन्तर स्थापित करते हैं। अब पहले सेल” E1 को कुंजी K2 के द्वारा परिपथ में डालते हैं और जौकी के द्वारा शून्य-विक्षेप स्थिति ज्ञात कर लेते हैं। मान लो तार पर शून्य-विक्षेप स्थिति की बिन्दु A से दूरी l1 सेमी है। तब
E = Kl1
जहाँ K तार पर विभव-प्रवणता है। इसी प्रकार दूसरे सेल E2 को कुंजी K2 के द्वारा परिपथ में डालकर पुनः शून्य-विक्षेप स्थिति ज्ञात कर लेते हैं। मान लो इस स्थिति की बिन्दु A से दूरी l2 सेमी है।
तब
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यदि इनमें एक सेल प्रमाणिक सेल हो, जिसका विद्युत वाहक बल ज्ञात होता है तो दूसरी सेल का विद्युत वाहक बल ज्ञात किया जा सकता है। विभवमापी में शून्य-विक्षेप की स्थिति में, सेल E, अथवा E, में कोई धारा नहीं बहती अर्थात् सेल खुले। परिपथ में होती है। अतः विभवमापी से सेल का यथार्थ विद्युत वाहक बल प्राप्त होता है।

प्रश्न 10.
चित्र 3.37 में AB एक 15 ओम प्रतिरोध का 1 मीटर लम्बा, समरूप तार है। शेष आँकडे चित्र में प्रदर्शित हैं। ज्ञात कीजिए-
(i) तार AB में विभव-प्रवणता तथा
(ii) अविक्षेप स्थिति में तार AO की लम्बाई। (2011, 14)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 3 Current Electricity
हल-
(i) चित्र 3.37 में विभवमापी के तार से जुड़े मुख्य परिपथ का कुल प्रतिरोध = 10 Ω + 15 Ω = 25 Ω
तथा परिपथ में जुड़े सेल का वि० वा० बल E = 2 वोल्ट; अतः इस तार में प्रवाहित धारा,
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 5 Magnetism and Matter

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 5 Magnetism and Matter (चुम्बकत्व एवं द्रव्य) are part of UP Board Solutions for Class 12 Physics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 5 Magnetism and Matter (चुम्बकत्व एवं द्रव्य).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Physics
Chapter Chapter 5
Chapter Name Magnetism and Matter (चुम्बकत्व एवं द्रव्य)
Number of Questions Solved 72
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 5 Magnetism and Matter (चुम्बकत्व एवं द्रव्य)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भू-चुम्बकत्व सम्बन्धी निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

  1. एक सदिश को पूर्ण रूप से व्यक्त करने के लिए तीन राशियों की आवश्यकता होती है। उन तीन स्वतन्त्र राशियों के नाम लिखिए जो परम्परागत रूप से पृथ्वी के चुम्बकीय-क्षेत्र को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होती हैं।
  2. दक्षिण भारत में किसी स्थान पर नति कोण का मान लगभग 18° है। ब्रिटेन में आप इससे अधिक नति कोण की अपेक्षा करेंगे या कम की?
  3. यदि आप ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न शहर में (UPBoardSolutions.com) भू-चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं का नक्शा बनाएँ तो ये रेखाएँ पृथ्वी के अन्दर जाएँगी या इससे बाहर आएँगी?
  4. एक चुम्बकीय सुई जो ऊर्ध्वाधर तल में घूमने के लिए स्वतन्त्र है, यदि भू-चुम्बकीय उत्तर या दक्षिण ध्रुव पर रखी हो तो यह किस दिशा में संकेत करेगी?
  5. यह माना जाता है कि पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र लगभग एक चुम्बकीय द्विध्रुव के क्षेत्र जैसा है। जो पृथ्वी के केन्द्र पर रखा है और जिसका द्विध्रुव आघूर्ण 8 x 1022 JT-1 है। कोई ढंग सुझाइए जिससे इस संख्या के परिमाण की कोटि जाँची जा सके।
  6. भूगर्भशास्त्रियों का मानना है कि मुख्य N-S चुम्बकीय ध्रुवों के अतिरिक्त, पृथ्वी की सतह पर कई अन्य स्थानीय ध्रुव भी हैं, जो विभिन्न दिशाओं में विन्यस्त हैं। ऐसा होना कैसे सम्भव है?

उत्तर-

  1. पृथ्वी के चुम्बकीय-क्षेत्र को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होने वाली तीन राशियाँ निम्नलिखित
    • नति कोण अथवा नमन कोण δ (Angle of Dip or Angle of Magnetic Inclination)
    • दिकुपात का कोण θ (Angle of Declination)
    • पृथ्वी के चुम्बकीय-क्षेत्र का क्षैतिज अवयव BH (Horizontal Component of Earth’s Magnetic Field)
  2. जी हाँ, चूँकि ब्रिटेन, दक्षिण भारत की तुलना में पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के अधिक समीप है; अतः यहाँ नति कोण अधिक होगा। वास्तव में ब्रिटेन (UPBoardSolutions.com) में नति कोण लगभग 70° है।
  3. ऑस्ट्रेलिया, पृथ्वी के दक्षिण गोलार्द्ध में स्थित है। चूंकि पृथ्वी के दक्षिण ध्रुव से चुम्बकीय-क्षेत्र रेखाएँ बाहर निकलती हैं; अतः ये पृथ्वी से बाहर निकलती प्रतीत होंगी।
  4. चूँकि ध्रुवों पर पृथ्वी का चुम्बकीय-क्षेत्र ऊर्ध्वाधर होता है; अतः ध्रुवों पर लटकी चुम्बकीय सुई (जो ऊर्ध्वाधर तल में घूमने के लिए स्वतन्त्र है) ऊर्ध्वाधर दिशा की ओर इंगित करेगी।
  5. यदि हम मान लें कि पृथ्वी के केन्द्र पर M चुम्बकीय-आघूर्ण का चुम्बकीय द्विध्रुव रखा है तो पृथ्वी के चुम्बकीय निरक्ष पर स्थित बिन्दुओं की इस द्विध्रुव के केन्द्र से दूरी पृथ्वी की त्रिज्या के बराबर होगी।
    UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 5 Magnetism and Matter
    स्पष्ट है कि पृथ्वी के चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण का यह मान 8 x 1022 JT-1 के अत्यन्त निकट है। इस प्रकार पृथ्वी के चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण के परिमाण की कोटि की जाँच की जा सकती है।
  6. यद्यपि पृथ्वी का सम्पूर्ण चुम्बकीय-क्षेत्र, एकल चुम्बकीय द्विध्रुव के कारण माना जाता है अपितु स्थानीय स्तर पर चुम्बकित पदार्थों के भण्डार अन्य चुम्बकीय ध्रुवों का निर्माण करते हैं।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

  1. एक जगह से दूसरी जगह जाने पर पृथ्वी का चुम्बकीय-क्षेत्र बदलता है। क्या यह समय के साथ भी बदलता है? यदि हाँ, तो कितने समय अन्तराल पर इसमें पर्याप्त परिवर्तन होते हैं?
  2. पृथ्वी के क्रोड में लोहा है, यह ज्ञात है। फिर भी भूगर्भशास्त्री इसको पृथ्वी के चुम्बकीय-क्षेत्र का स्रोत नहीं मानते। क्यों?
  3. पृथ्वी के क्रोड के बाहरी चालक भाग में प्रवाहित होने वाली आवेश धाराएँ भू-चुम्बकीय क्षेत्र के लिए उत्तरदायी समझी जाती हैं। इन धाराओं को बनाए रखने वाली बैटरी (ऊर्जा स्रोत) क्या हो सकती है?
  4. अपने 4-5 अरब वर्षों के इतिहास में पृथ्वी अपने चुम्बकीय-क्षेत्र की दिशा कई बार उलट चुकी होगी। भूगर्भशास्त्री, इतने सुदूर अतीत के पृथ्वी के चुम्बकीय-क्षेत्र के बारे में कैसे जान पाते हैं?
  5. बहुत अधिक दूरियों पर (30,000 km से अधिक) पृथ्वी का चुम्बकीय-क्षेत्र अपनी द्विध्रुवीय आकृति से काफी भिन्न हो जाता है। कौन-से कारक इस विकृति के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं?
  6. अन्तरातारकीय अन्तरिक्ष में 10-12 T की कोटि का बहुत ही क्षीण चुम्बकीय-क्षेत्र होता है। क्या इस क्षीण चुम्बकीय-क्षेत्र के भी कुछ प्रभावी परिणाम हो सकते हैं। समझाइए। [टिप्पणी : प्रश्न 5.2 का उद्देश्य मुख्यतः आपकी जिज्ञासा जगाना है। उपरोक्त कई प्रश्नों के उत्तर या तो काम चलाऊ हैं या अज्ञात हैं। जितना सम्भव हो सका, प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर पुस्तक के अन्त में दिए गए हैं। विस्तृत उत्तरों के लिए आपको भू-चुम्बकत्व पर कोई अच्छी पाठ्यपुस्तक देखनी होगी।]

उत्तर-

    1. यद्यपि यह सत्य है कि पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र समय के साथ बदलता है, परन्तु चुम्बकीय-क्षेत्र में प्रेक्षण योग्य परिवर्तन के लिए कोई निश्चित समय सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। इसमें सैकड़ों वर्ष का समय भी लग सकता है।
    2. यह सुज्ञात तथ्य है कि पृथ्वी के क्रोड में पिघला हुआ लोहा है परन्तु इसका ताप लोहे के क्यूरी ताप से कहीं अधिक है। इतने उच्च ताप पर यह (लौह चुम्बकीय नहीं हो सकता) कोई चुम्बकीय-क्षेत्र उत्पन्न नहीं कर सकता।
    3. यह माना जाता है कि पृथ्वी के गर्भ में उपस्थित रेडियोएक्टिव पदार्थों के विघटन से प्राप्त ऊर्जा ही आवेश धाराओं की ऊर्जा का स्रोत है।
    4. प्रारम्भ में पृथ्वी के गर्भ में अनेक पिघली हुई चट्टानें थीं जो समय के साथ धीरे-धीरे ठोस होती चली गईं। इन चट्टानों में मौजूद लौह-चुम्बकीय पदार्थ उस समय के पृथ्वी के चुम्बकीय-क्षेत्र के अनुरूप संरेखित हो गए। इस प्रकार भूतकाल का पृथ्वी का चुम्बकीय-क्षेत्र इन (UPBoardSolutions.com) चट्टानों में चुम्बकत्व एवं द्रव्य 185 चुम्बकीय पदार्थों के अनुरूपण में अभिलेखित है। इन चट्टानों का भूचुम्बकीय अध्ययन उस समय के पृथ्वी के चुम्बकीय-क्षेत्र का ज्ञान प्रदान करता है।
    5. पृथ्वी के आयनमण्डल में अनेक आवेशित कण विद्यमान रहते हैं जिनकी गति एक अलग चुम्बकीय-क्षेत्र उत्पन्न करती है। यही चुम्बकीय-क्षेत्र, पृथ्वी तल से अधिक दूरी पर पृथ्वी के चुम्बकीय-क्षेत्र को विकृत कर देता है। आयनों के कारण उत्पन्न चुम्बकीय-क्षेत्र सौर पवन पर निर्भर करता है।
      UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 5 Magnetism and Matter Q2
      इससे स्पष्ट है कि अत्यन्त क्षीण चुम्बकीय-क्षेत्र में गतिमान आवेशित कण अति विशाल त्रिज्या का मार्ग अपनाती है जो कि थोड़ी दूरी में लगभग सरल रेखीय प्रतीत होता है; अतः छोटी दूरियों के लिए सूक्ष्म चुम्बकीय-क्षेत्र अप्रभावी प्रतीत होते हैं परन्तु बड़ी दूरियों में ये प्रभावी विक्षेपण उत्पन्न करते हैं।

प्रश्न 3.
एक छोटा छड़ चुम्बक जो एकसमान बाह्य चुम्बकीय-क्षेत्र 0.25 T के साथ 30° का कोण बनाता है, पर 4.5 x 10-2 J का बल आघूर्ण लगता है। चुम्बक के चुम्बकीय-आघूर्ण का परिमाण क्या है?
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प्रश्न 4.
चुम्बकीय-आघूर्ण M = 0.32 JT-1 वाला एक छोटा छड़ चुम्बक, 0.15 T के एकसमान बाह्य चुम्बकीय-क्षेत्र में रखा है। यदि यह छड़ क्षेत्र के तल में घूमने के लिए स्वतन्त्र हो तो क्षेत्र के किस विन्यास में यह
(i) स्थायी सन्तुलन और
(ii) अस्थायी सन्तुलन में होगा? प्रत्येक स्थिति में चुम्बक की स्थितिज ऊर्जा का मान बताइए।
हल-
दिया है, चुम्बक का चुम्बकीय आघूर्ण M = 0.32 जूल/टेस्ला
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता B = 0.15 टेस्ला
(i) चुम्बकीय क्षेत्र में छड़ चुम्बक के स्थायी सन्तुलन के लिए [latex s=2]\vec { M }[/latex] तथा [latex s=2]\vec { B }[/latex] एक ही दिशा में होने चाहिए,
अर्थात् θ = 0 इस स्थिति में चुम्बक की स्थितिज ऊर्जा
U = [latex s=2]\vec { M }[/latex].[latex s=2]\vec { B }[/latex]
= – MB cos θ
= – 0.32 x 0.15 x cos 0
= – 0.32 x 0.15 x 1
= – 0.048 जूल

(ii) चुम्बकीय क्षेत्र में छड़ चुम्बक के अस्थायी सन्तुलन के लिए [latex s=2]\vec { M }[/latex] तथा [latex s=2]\vec { B }[/latex] परस्पर विपरीत दिशा में होने चाहिए, अर्थात् θ = 180°
U = [latex s=2]\vec { M }[/latex] . [latex s=2]\vec { B }[/latex]
= – MB cos θ
= – MB cos 180
= – 0.32 x 0.15 x (-1)
= +0.048 जूल

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प्रश्न 5.
एक परिनालिका में पास-पास लपेटे गए 800 फेरे हैं तथा इसकी अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 25 x 10-4 m2 है और इसमें 3.0 A धारा प्रवाहित हो रही है। समझाइए कि किस अर्थ में यह परिनालिका एक छड़ चुम्बक की तरह व्यवहार करती है। इसके साथ जुड़ा हुआ चुम्बकीय-आघूर्ण कितना है?
हल-
चुम्बकीय आघूर्ण M = NiA
M = 800 x 3.0 ऐम्पियर x 2.5 x 10-4 मी2
= 0.600 ऐम्पियर-मीटर
चूँकि परिनालिका को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में (UPBoardSolutions.com) लटकाने पर दण्ड-चुम्बक के समान ही इस पर भी एक बल-युग्म कार्य करता है, अत: यह दण्ड-चुम्बक के समान व्यवहार करती है।

प्रश्न 6.
यदि प्रश्न 5 में बताई गई परिनालिका ऊर्ध्वाधर दिशा के परितः घूमने के लिए स्वतन्त्र हो और इस पर क्षैतिज दिशा में एक 0.25 T का एकसमान चुम्बकीय-क्षेत्र लगाया जाए, तो इस परिनालिका पर लगने वाले बल आघूर्ण का परिमाण उस समय क्या होगा, जब इसकी अक्ष आरोपित क्षेत्र की दिशा से 30° का कोण बना रही हो?
हल-
बल-आघूर्ण τ = MB sin θ
τ = (0.600) x (0.25) (sin 30°)
= (0.6 x 0.25 x 0.5) न्यूटन मीटर
= 7.5 x 10-2 न्यूटन-मीटर

प्रश्न 7.
एक छड़ चुम्बक जिसका चुम्बकीय-आघूर्ण 15 JT-1 है, 0.22 T के एक एकसमान चुम्बकीय-क्षेत्र के अनुदिश रखा है।
(a) एक बाह्य बल आघूर्ण कितना कार्य करेगा यदि यह चुम्बक को चुम्बकीय-क्षेत्र के
(i) लम्बवत
(ii) विपरीत दिशा में संरेखित करने के लिए घुमा दे।
(b) स्थिति
(i) एवं
(ii) में चुम्बक पर कितना बल आघूर्ण होता है।
हल-
दिया है, चुम्बक का चुम्बकीय आघूर्ण M = 1.5 जूल/टेस्ला
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता B = 0.22 टेस्ला
θ1 = 0
(a) (i) चुम्बक को चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् लाने के लिए
θ2 = 90°
अतः कृत कार्य W= MB [cos θ1 – cos θ2]
= 1.5 x 0.22 x [cos 0 – cos 90°]
= 1.5 x 0.22 x [1 – 0]
= 0.33 जूल

(i) चुम्बक को चुम्बकीय क्षेत्र की विपरीत दिशा में लाने के लिए
θ2 = 180°
अतः कृत कार्य W = MB [cos θ1 – cos θ2]
= 1.5 x 0.22 x [cos 0 – cos 180°]
= 1.5 x 0.22 x [1 – (-1)]
= 0.66 जूल

(b) (i) जब θ2 = 90° तब चुम्बक पर बल-आघूर्ण
t = MB sinθ
= 1.5 x 0.22 x sin 90
= 1.5 x 0.22 x 1
= 0.33 न्यूटन-मीटर

(ii) जब θ2 = 180° तब चुम्बक पर बल-आघूर्ण
t = MB sinθ
= 1.5 x 0.22 x sin 180°
= 1.5 x 0.22 x 0
= 0

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प्रश्न 8.
एक परिनालिका जिसमें पास-पास 2000 फेरे लपेटे गए हैं तथा जिसके अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 1.6 x 10-4 m है और जिसमें 4.0 A की धारा प्रवाहित हो रही है, इसके केन्द्र से इस प्रकार लटकाई गई है कि यह एक क्षैतिज तल में घूम सके।
(a) परिनालिका के चुम्बकीय-आघूर्ण का मान क्या है?
(b) परिनालिका पर लगने वाला बल एवं बल आघूर्ण क्या है, यदि इस पर, इसकी अक्ष से 30° का कोण बनाता हुआ 7.5 x 10-2 T का एकसमान क्षैतिज चुम्बकीय-क्षेत्र लगाया जाए?
हल-
यहाँ N = 2000, A = 1.6 x 10-4 m, i = 4.0 A
(a) परिनालिका का चुम्बकीय आघूर्ण, M = NiA = 2000 x 4.0 x 1.6 x 10-4 = 1.28 ऐम्पियर-मीटर
(b) धारावाही परिनालिका (अथवा चुम्बकीय द्विध्रुव) पर एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में नेट बल सदैव शून्य होगा।
परिनालिका पर बल-आघूर्ण, τ = MB sin θ.
यहाँ B = 7.5 x 10-2 T, θ = 30°
τ = 1.28 x 7.5 x 10-2 x sin 30° = 1.28 x 7.5 x 10-2 x 0.5 = 48 x 10-2 न्यूटन-मीटर

प्रश्न 9.
एक वृत्ताकार कुंडली जिसमें 16 फेरे हैं, जिसकी त्रिज्या 10 सेमी है और जिसमें 0.75 A धारा प्रवाहित हो रही है, इस प्रकार रखी है कि इसका तल, 5.0 x 10-2 T परिमाण वाले बाह्य क्षेत्र के लम्बवत है। कुंडली, चुम्बकीय-क्षेत्र के लम्बवत और इसके अपने तल में स्थित एक अक्ष के चारों तरफ घूमने के लिए स्वतन्त्र है। यदि कुंडली को जरा-सा घुमाकर छोड़ दिया जाए तो यह अपनी स्थायी सन्तुलनावस्था के इधर-उधर 2.0 s-1 की आवृत्ति से दोलन करती है। कुंडली का अपने घूर्णन अक्ष के परितः जड़त्व-आघूर्ण क्या है?
हल-
दिया है, कुण्डली की त्रिज्या r = 10 सेमी = 0.1 मीटर
कुण्डली में तार के फेरों की संख्या N = 16
कुण्डली में प्रवाहित धारा I = 0.75 ऐम्पियर
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता B = 5.0 x 10-2 टेस्ला
कुण्डली की दोलन आवृत्ति f = 2.0 प्रति सेकण्ड
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प्रश्न 10.
एक चुम्बकीय सुई चुम्बकीय याम्योत्तर के समान्तर एक ऊध्र्वाधर तल में घूमने के लिए स्वतन्त्र है। इसका उत्तरी ध्रुव क्षैतिज से 22° के कोण पर नीचे की ओर झुका है। इसे स्थान पर चुम्बकीय-क्षेत्र के क्षैतिज अवयव का मान 0.35 G है। इस स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय-क्षेत्र का परिमाण ज्ञात कीजिए।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 5 Magnetism and Matter Q10
प्रश्न 11.
दक्षिण अफ्रीका में किसी स्थान पर एक चुम्बकीय सुई भौगोलिक उत्तर से 12° पश्चिम की ओर संकेत करती है। चुम्बकीय याम्योत्तर में संरेखित नति-वृत्त की चुम्बकीय सुई का उत्तरी ध्रुव क्षैतिज से 60° उत्तर की ओर संकेत करता है। पृथ्वी के चुम्बकीय-क्षेत्र का क्षैतिज अवयव मापने पर 0.16 G पाया जाता है। इस स्थान पर पृथ्वी के क्षेत्र का परिमाण और दिशा बताइए।
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प्रश्न 12.
किसी छोटे छड़ चुम्बक का चुम्बकीय-आघूर्ण 0.48 JT-1 है। चुम्बक के केन्द्र से 10 cm की दूरी पर स्थित किसी बिन्दु पर इसके चुम्बकीय-क्षेत्र का परिमाण एवं दिशा बताइए यदि यह बिन्दु
(i) चुम्बक के अक्ष पर स्थित हो,
(ii) चुम्बक के अभिलम्ब समद्विभाजक पर स्थित हो।
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प्रश्न 13.
क्षैतिज तल में रखे एक छोटे छड़ चुम्बक का अक्ष, चुम्बकीय उत्तर-दक्षिण दिशा के अनुदिश है। सन्तुलन बिन्दु चुम्बक के अक्ष पर, इसके केन्द्र से 14 सेमी दूर स्थित है। इस स्थान पर पृथ्वी का चुम्बकीय-क्षेत्र 0.36 G एवं नति कोण शून्य है। चुम्बक के अभिलम्ब समद्विभाजक पर इसके केन्द्र से उतनी ही दूर (14 सेमी) स्थित किसी बिन्दु पर परिणामी चुम्बकीय-क्षेत्र क्या होगा ?
हल-
दिया है, पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र B = 0.36 गौस = 0.36 x 10-4 टेस्ला
θ = 0
चुम्बक की अक्ष पर उदासीन बिन्दु की दूरी r = 14 सेमी = 0.14 मीटर
यदि अक्षीय बिन्दु पर चुम्बक के कारण चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता B1 हो, तो
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 5 Magnetism and Matter Q13.1
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प्रश्न 14.
यदि प्रश्न 13 में वर्णित चुम्बक को 180° से घुमा दिया जाए तो सन्तुलन बिन्दुओं की नई स्थिति क्या होगी?
हल-
चुम्बक को 180° घुमाने पर चुम्बक का उत्तरी ध्रुव भौगोलिक उत्तर की ओर हो जाएगा, अत: अब उदासीन बिन्दु चुम्बक की विषुवत् रेखा पर प्राप्त होगा।
यदि उदासीन बिन्दु की चुम्बके से दूरी r हो, तो
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प्रश्न 15.
एक छोटा छड़ चुम्बक जिसका चुम्बकीय-आघूर्ण 5.25 x 10-2 JT-1 है, इस प्रकार रखा है कि इसका अक्ष पृथ्वी के क्षेत्र की दिशा के लम्बवत है। चुम्बक के केन्द्र से कितनी दूरी पर, परिणामी क्षेत्र पृथ्वी के क्षेत्र की दिशा से 45° का कोण बनाएगा, यदि हम
(a) अभिलम्ब समद्विभाजक पर देखें,
(b) अक्ष पर देखें। इस स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय-क्षेत्र का परिमाण 0.42 G है। प्रयुक्त दूरियों की तुलना में चुम्बक की लम्बाई की उपेक्षा कर सकते हैं।
हल-
दिया है,
m = 5.25 x 10-2 JT-1, Be = 0.42 G = 0.42 x 10-4 T
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अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 16.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

  1. ठण्डा करने पर किसी अनुचुम्बकीय पदार्थ का नमूना अधिक चुम्बकन क्यों प्रदर्शित करता हैं? (एक ही चुम्बककारी क्षेत्र के लिए)
  2. अनुचुम्बकत्व के विपरीत, प्रतिचुम्बकत्व पर ताप का प्रभाव लगभग नहीं होता। क्यों ?
  3. यदि एक टोरॉइड में बिस्मथ का क्रोड लगाया जाए तो इसके अन्दर चुम्बकीय-क्षेत्र उस स्थिति की तुलना में (किंचित) कम होगा या (किंचित) ज्यादा होगा, जबकि क्रोड खाली हो?
  4. क्या किसी लौह चुम्बकीय पदार्थ की चुम्बकशीलता चुम्बकीय-क्षेत्र पर निर्भर करती है? यदि हाँ, तो उच्च चुम्बकीय-क्षेत्रों के लिए इसका मान कम होगा या अधिक?
  5. किसी लौह चुम्बक की सतह के प्रत्येक बिन्द पर चुम्बकीय-क्षेत्र रेखाएँ सदैव लम्बवत होती हैं (यह तथ्य उन स्थिरविद्युत क्षेत्र रेखाओं के सदृश है जो कि चालक की सतह के प्रत्येक बिन्दु पर लम्बवत होती हैं। क्यों?
  6. क्या किसी अनुचुम्बकीय नमूने का अधिकतम सम्भव चुम्बकन, लौह चुम्बक के चुम्बकन के परिमाण की कोटि का होगा?

उत्तर-

  1. ताप के घटने पर पदार्थ के परमाण्वीय चुम्बकों का ऊष्मीय विक्षोभ कम हो जाता है जिसके कारण इन चुम्बकों के बाह्य चुम्बकीय-क्षेत्र की दिशा में संरेखित होने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।
  2. प्रतिचुम्बकीय पदार्थ के परमाणु ऊष्मीय विक्षोभ के कारण, भले ही किसी भी स्थिति में हों, उनमें बाह्य चुम्बकीय-क्षेत्र के कारण, प्रेरित चुम्बकीय आघूर्ण सदैव ही बाह्य क्षेत्र के विपरीत दिशा में प्रेरित होता है। इस प्रकार प्रतिचुम्बकत्व पर ताप का कोई प्रभाव नहीं होता।
  3. चूँकि बिस्मथ एक प्रतिचुम्बकीय पदार्थ है; अतः चुम्बकीय-क्षेत्र अपेक्षाकृत कुछ कम हो जाएगा।
  4. लौह चुम्बकीय पदार्थों की चुम्बकशीलता बाह्य चुम्बकीय-क्षेत्र पर निर्भर करती है तथा तीव्र चुम्बकीय-क्षेत्र के लिए इसका मान कम होता है।
  5. जब दो माध्यम किसी स्थान (UPBoardSolutions.com) पर मिलते हैं जिनमें से एक के लिए µ >> 1 हो तो इनके सीमा पृष्ठ पर क्षेत्र रेखाएँ लम्बवत् हो जाती हैं।
  6. हाँ, किसी अनुचुम्बकीय पदार्थ का अधिकतम सम्भव चुम्बकत्व, लौह चुम्बकीय पदार्थ के चुम्बकन के परिमाण की कोटि को हो सकता है। परन्तु किसी अनुचुम्बकीय पदार्थ को इस कोटि तक चुम्बकित करने के लिए अति उच्च चुम्बकीय-क्षेत्र की आवश्यकता होती है जिसे प्राप्त करना व्यवहार में सम्भव नहीं है।

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प्रश्न 17.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

  1. लौह चुम्बकीय पदार्थ के चुम्बकन वक्र की अनुत्क्रमणीयता, डोमेनों के आधार पर गुणात्मक दृष्टिकोण से समझाइए।
  2. नर्म लोहे के एक टुकड़े के शैथिल्य लूप का क्षेत्रफल, कार्बन-स्टील के टुकड़े के शैथिल्य लूप के क्षेत्रफल से कम होता है। यदि पदार्थ को बार-बार चुम्बकन चक्र से गुजारा जाए तो कौन-सा टुकड़ा अधिक ऊष्मा ऊर्जा का क्षय करेगा?
  3. लौह चुम्बक जैसा शैथिल्य लूप प्रदर्शित करने वाली कोई प्रणाली स्मृति संग्रहण की युक्ति है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  4. कैसेट के चुम्बकीय फीतों पर परत चढ़ाने के लिए या आधुनिक कम्प्यूटर में स्मृति संग्रहण के लिए, किस तरह के लौह चुम्बकीय पदार्थों का इस्तेमाल होता है?
  5. किसी स्थान को चुम्बकीय-क्षेत्र से परिरक्षित करना है। कोई विधि सुझाइए।

उत्तर-

  1. जब बाह्य चुम्बकीय-क्षेत्र को शून्य कर दिया जाता है तो भी लौह चुम्बकीय पदार्थ के डोमेन अपनी प्रारम्भिक स्थिति में नहीं लौट पाते अपितु उनमें कुछ चुम्बकन शेष रह जाता है। यही कारण है कि लौह चुम्बकीय पदार्थों का चुम्बकन वक्र अनुत्क्रमणीय होता है।
  2. किसी पदार्थ के शैथिल्य लूप का क्षेत्रफल एक पूर्ण चुम्बकन चक्र में होने वाली ऊर्जा हानि को प्रदर्शित करता है। यह ऊर्जा हानि ही पदार्थ में ऊष्मा के रूप में उत्पन्न होती है। चूंकि कार्बन-स्टील के शैथिल्य लूप को क्षेत्रफल अधिक है; अतः इसमें अधिक ऊष्मा उत्पन्न होगी अर्थात् कार्बन-स्टील का टुकड़ा अधिक ऊष्मा क्षय करेगा।
  3. किसी लौह-चुम्बकीय पदार्थ का (UPBoardSolutions.com) चुम्बकन उस पर लगाए गए बाह्य चुम्बकीय-क्षेत्र के चक्रों की संख्या पर निर्भर करता है। इस प्रकार किसी लौह चुम्बकीय पदार्थ का चुम्बकन उस पर लगाए गए चुम्बकन चक्र की सूचना दे सकता है। इस प्रकार चुम्बकन चक्र की स्मृति, चुम्बकित पदार्थ के नमूने में एकत्र हो जाती है।
  4. इस कार्य के लिए सिरेमिक पदार्थों का प्रयोग किया जाता है।
  5. किसी स्थान को चुम्बकीय-क्षेत्र से परिरक्षित करने के लिए उस स्थान को नर्म लोहे के रिंग से घेर देना चाहिए। इससे चुम्बकीय-क्षेत्र रेखाएँ, नर्म लोहे के रिंग से होकर गुजर जाती हैं तथा रिंग के भीतर प्रवेश नहीं कर पातीं।

प्रश्न 18.
एक लम्बे, सीधे, क्षैतिज केबल में 2.5 A धारा, 10° दक्षिण-पश्चिम से 10° उत्तर-पूर्व की ओर प्रवाहित हो रही है। इस स्थान पर चुम्बकीय याम्योत्तर भौगोलिक याम्योत्तर के 10° पश्चिम में है। यहाँ पृथ्वी का चुम्बकीय-क्षेत्र 0.33 G एवं नति कोण शून्य है। उदासीन बिन्दुओं की रेखा निर्धारित कीजिए। (केबल की मोटाई की उपेक्षा कर सकते हैं।) (उदासीन बिन्दुओं पर, धारावाही केबल द्वारा चुम्बकीय-क्षेत्र, पृथ्वी के क्षैतिज घटक के चुम्बकीय-क्षेत्र के समान एवं विपरीत दिशा में होता है।)
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प्रश्न 19.
किसी स्थान पर एक टेलीफोन केबल में चार लम्बे, सीधे, क्षैतिज तार हैं जिनमें से प्रत्येक में 1.0 A की धारा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित हो रही है। इस स्थान पर पृथ्वी का चुम्बकीय-क्षेत्र 0.39 G एवं नति कोण 35° है। दिक्पात कोण लगभग शून्य है। केबल के 4.0 cm नीचे और 4.0 cm ऊपर परिणामी चुम्बकीय-क्षेत्रों के मान क्या होंगे?
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प्रश्न 20.
एक चुम्बकीय सुई जो क्षैतिज तल में घूमने के लिए स्वतन्त्र है, 30 फेरों एवं 12 cm त्रिज्या वाली एक कुंडली के केन्द्र पर रखी है। कुंडली एक ऊर्ध्वाधर तल में है और चुम्बकीय याम्योत्तर से 45° का कोण बनाती है। जब कुंडली में 0.35 A धारा प्रवाहित होती है, चुम्बकीय सुई पश्चिम से पूर्व की ओर संकेत करती है।
(a) इस स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय-क्षेत्र के दौतिज अवयव का मान ज्ञात कीजिए।
(b) कुंडली में धारा की दिशा उलट दी जाती है और इसको अपनी ऊध्र्वाधर अक्ष पर वामावर्त दिशा में (ऊपर से देखने पर) 90° के कोण पर घुमा दिया जाता है। चुम्बकीय सुई किस दिशा में ठहरेगी? इस स्थान पर चुम्बकीय दिक्पात शून्य लीजिए।
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(b) चित्र (b) से स्पष्ट है कि इस बार नेट चुम्बकीय-क्षेत्र पूर्व से पश्चिम की ओर होगा; अत: चुम्बकीय सुई पूर्व से पश्चिम की ओर संकेत करेगी।

प्रश्न 21.
एक चुम्बकीय द्विध्रुव दो चुम्बकीय-क्षेत्रों के प्रभाव में है। ये क्षेत्र एक-दूसरे से 60° का कोण बनाते हैं और उनमें से एक क्षेत्र का परिमाण 12 x 10-2 T है। यदि द्विध्रुव स्थायी सन्तुलन में इस क्षेत्र से 15° का कोण बनाए, तो दूसरे क्षेत्र का परिमाण क्या होगा ?
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प्रश्न 22.
एक समोर्जी 18 keV वाले इलेक्ट्रॉनों के किरण पुंज पर जो शुरू में क्षैतिज दिशा में गतिमान है, 0.04 G का एक क्षैतिज चुम्बकीय-क्षेत्र, जो किरण पुंज की प्रारम्भिक दिशा के लम्बवत है, लगाया गया है। आकलन कीजिए 30 सेमी की क्षैतिज दूरी चलने में किरण पुंज कितनी दूरी ऊपर या नीचे विस्थापित होगा ? (me = 911 x 10-31 kg, e = 160 x 10-19 C)।
[नोट: इस प्रश्न में आँकड़े इस प्रकार चुने गए हैं कि उत्तर से आपको यह अनुमान हो कि TV सेट में इलेक्ट्रॉन गन से पर्दे तक इलेक्ट्रॉन किरण पुंज की गति भू-चुम्बकीय-क्षेत्र से किस प्रकार प्रभावित होती है।]
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प्रश्न 23.
अनुचुम्बकीय लवण के एक नमूने में 2.0 x 1024 परमाणु द्विध्रुव हैं जिनमें से प्रत्येक का द्विध्रुव आघूर्ण 1.5 x 10-23 JT-1 है। इस नमूने को 0.64 T के एक एकसमान चुम्बकीय-क्षेत्र में रखा गया है और 4.2 K ताप तक ठण्डा किया गया। इसमें 15% चुम्बकीय संतृप्तता आ गई। यदि इस नमूने को 0.98 T के चुम्बकीय-क्षेत्र में 2.8 K ताप पर रखा हो तो इसका कुल द्विध्रुव आघूर्ण कितना होगा? (यह मान सकते हैं कि क्यूरी नियम लागू होता है।)
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प्रश्न 24.
एक रोलैंड रिंग की औसत त्रिज्या 15 सेमी है और इसमें 800 आपेक्षिक चुम्बकशीलता के लौह चुम्बकीय क्रोड पर 3500 फेरे लिपटे हुए हैं। 1.2 A की चुम्बककारी धारा के कारण इसके क्रोड में कितना चुम्बकीय-क्षेत्र ([latex s=2]\vec { B }[/latex]) होगा ?
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण का मात्रक है- (2011, 12)
(i) न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर
(ii) ऐम्पियर-मीटर
(iii) वेबर/मीटर2
(iv) हेनरी
उत्तर-
(ii) ऐम्पियर-मीटर

प्रश्न 2.
एक वृत्तीय धारा लूप का चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण M है। यदि धारा लूप की त्रिज्या आधी कर दी जाए तब चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण होगा (2014)
(i) M
(ii) [latex s=2]\frac { M }{ 2 }[/latex]
(iii) [latex s=2]\frac { M }{ 4 }[/latex]
(iv) 4M
उत्तर-
(i) [latex s=2]\frac { M }{ 2 }[/latex]

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प्रश्न 3.
l मीटर लम्बाई के एक चालक तार को वृत्ताकार लूप में मोड़ा जाता है तथा ऐम्पियर की धारा प्रवाहित की जाती है। लूप का चुम्बकीय आघूर्ण होगा- (2010, 11)
(i) il²/4π
(ii) il²/2π
(iii) πil²
(iv) il
उत्तर-
(i) il²/4π

प्रश्न 4.
पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुवों पर नति(नमन) कोण का मान है- (2012, 18)
(i) 45°
(ii) 30°
(iii) शून्य
(iv) 90°
उत्तर-
(iv) 90°

प्रश्न 5.
चुम्बकीय याम्योत्तर तथा भौगोलिक याम्योत्तर के बीच के कोण को कहते हैं- (2013)
(i) नति कोण
(ii) दिक्पात कोण
(iii) ध्रुवण कोण
(iv) क्रान्तिक कोण
उत्तर-
(ii) दिक्पात कोण

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प्रश्न 6.
किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर घटक बराबर हैं। उस स्थान पर नति कोण का मान होगा- (2009, 11, 12, 17)
(i) 0°
(ii) 45°
(iii) 60°
(iv) 90°
उत्तर-
(ii) 45°
[संकेत- tan θ = V/H = H/H = 1 = tan 45° ⇒ θ = 45°]

प्रश्न 7.
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक शून्य होता है- (2010)
(i) चुम्बकीय ध्रुवों पर
(ii) भौगोलिक ध्रुवों पर
(iii) प्रत्येक स्थान पर
(iv) चुम्बकीय निरक्ष पर
उत्तर-
(i) चुम्बकीय ध्रुवों पर

प्रश्न 8.
पृथ्वी तल के किसी निश्चित स्थान पर, पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का ऊर्ध्वाधर घटक, क्षैतिज घटक का √3 गुना है। इस स्थान पर नति कोण है- (2015)
(i) 0°
(ii) 30°
(iii) 45°
(iv) 60°
उत्तर-
(iv) 60°

प्रश्न 9.
किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकत्व का क्षैतिज घटक H = 0.3 x 10-4 वेबर/मी2 तथा नमन कोण 30° है। सम्पूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र का मान होगा| (2017)
(i) 0.46 x 10-4 वेबर/मी2
(ii) 0.26 x 10-4 वेबर/मी2
(iii) 4.6 x 10-6 वेबर/मी2
(iv) 3.4 x 10-5 वेबर/मी2
उत्तर-
(iv) 3.4 x 10-5 वेबर/मी2

प्रश्न 10.
चुम्बकीय क्षेत्र B के लम्बवत् v वेग से चलने वाले आवेश q पर लगने वाले बल F का मान है-
(i) F = qvB
(ii) F = [latex s=2]\frac { qv }{ B }[/latex]
(iii) F = [latex s=2]\frac { qB }{ v }[/latex]
(iv) F = [latex s=2]\frac { Bv }{ q }[/latex]
उत्तर-
(i) F = qvB

प्रश्न 11.
चुम्बकीय प्रवृत्ति का मान कम परन्तु धनात्मक होता है- (2012)
(i) अनुचुम्बकीय पदार्थों के लिए।
(ii) लौहचुम्बकीय पदार्थों के लिए
(iii) प्रतिचुम्बकीय पदार्थों के लिए
(iv) उपरोक्त सभी पदार्थों के लिए
उत्तर-
(i) अनुचुम्बकीय पदार्थों के लिए

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प्रश्न 12.
अनुचुम्बकीय पदार्थों की चुम्बकशीलता का मान होता है- (2012)
(i) 0
(ii) > 1
(iii) < 1
(iv) 1
उत्तर-
(ii) > 1

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अनुदैर्ध्य स्थिति में किसी छोटे चुम्बक के कारण चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता (चुम्बकीय बल क्षेत्र) को सूत्र लिखिए। प्रयुक्त संकेतों का अर्थ भी लिखिए। यो चुम्बकीय द्विध्रुव के कारण अक्षीय स्थिति में किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक लिखिए। (2013)
उत्तर-
अनुदैर्ध्य स्थिति (End-on Position)- M चुम्बकीय बल- आघूर्ण के किसी छोटे दण्ड चुम्बक की अक्षीय रेखा पर इसके मध्य बिन्दु O से r दूरी पर निर्वात् अथवा (UPBoardSolutions.com) वायु में बिन्दु P पर चुम्बकीय क्षेत्र [latex s=2]\vec { B }[/latex] का परिमाण
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जहाँ, µ0 निर्वात् की चुम्बकशीलता = 4π x 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर2 है। चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा अक्ष के समान्तर दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर होती है।

प्रश्न 2.
परमाणु में परिक्रमण करने वाले इलेक्ट्रॉन के लिए चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण का सूत्र लिखिए। प्रयुक्त संकेतों के अर्थ बताइए। (2016)
उत्तर-
M = NiA
जहाँ, N = फेरों की संख्या, i = कक्षा के किसी बिन्दु से 1 सेकण्ड में गुजरने वाला आवेश तथा A = लूप के परिच्छेद का क्षेत्रफल

प्रश्न 3.
एक चुम्बक के अक्षीय स्थिति में 10 सेमी दूरी पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता 2.0 x 10-4 टेस्ला है। चुम्बक का चुम्बकीय आघूर्ण तथा उसके निरक्षीय स्थिति में 20 सेमी की दूरी पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता की गणना कीजिए। (2015)
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प्रश्न 4.
3.5 सेमी त्रिज्या की वृत्ताकार कुण्डली में 10.0 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है। इसका चुम्बकीय आघूर्ण ज्ञात कीजिए। (2013)
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प्रश्न 5.
चुम्बकीय याम्योत्तर की परिभाषा लिखिए। (2012,14)
उत्तर-
किसी स्थान पर अपने गुरुत्व केन्द्र से स्वतन्त्रतापूर्वक लटकायी गयी चुम्बक के चुम्बकीय अक्ष से गुजरने वाले ऊर्ध्वाधर तल को चुम्बकीय याम्योत्तर कहते हैं।

प्रश्न 6.
नति कोण से आप क्या समझते हैं? (2016)
उत्तर-
नति कोण वह कोण है, जो चुम्बकीय याम्योत्तर में पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र Be की दिशा तथा क्षैतिज दिशा के बीच बनता है।

प्रश्न 7.
दिक्पात कोण से क्या तात्पर्य है? (2017)
उत्तर-
पृथ्वी की सतह पर किसी स्थान पर भौगोलिक याग्योत्तर तथा चुम्बकीय याम्योत्तर के बीच बने न्यूनकोण को उस स्थान के लिए दिक्पात कोण कहते हैं। इसे ‘α’ से प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 8.
पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव पर नमन कोण का मान क्या होता है?
उत्तर-
नति कोण को अधिकतम मान 90° है जो पृथ्वी के उत्तरी व दक्षिणी चुम्बकीय ध्रुवों पर होता है।

प्रश्न 9.
किन दो स्थानों पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक शून्य होता है ? (2012)
उत्तर-
पृथ्वी के चुम्बकीय उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव पर। चूँकि इन स्थानों पर नति कोण θ = 90°
अतः H = Be cos θ = Be cos 90° = Be x 0 = 0

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प्रश्न 10.
किसी स्थान पर नति कोण, पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज घटक तथा ऊर्ध्व घटक के बीच सम्बन्ध लिखिए। (2010, 12)
या
भू-चुम्बकत्व के अवयवों का आपस में सम्बन्ध लिखिए। (2017)
उत्तर-
tan θ = V/H (जहाँ θ = नति कोण, V = Be sin θ (ऊर्ध्व घटक), H = Be cos θ (क्षैतिज घटक) जहाँ, Be = पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र]

प्रश्न 11.
किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर घटक प्रत्येक 0.5 गौस के बराबर हैं। पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की सम्पूर्ण तीव्रता का मान ज्ञात कीजिए। (2015)
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प्रश्न 12.
एक स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का ऊर्ध्वाधर घटक 0.2√3 x 10-4 टेस्ला है। यदि उस स्थान पर नति कोण 30° हो तो चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज घटक के मान की गणना कीजिए। (2014)

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प्रश्न 13.
किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज घटक का मान ऊर्ध्व घटक के मान का √3 गुना है। उस स्थान पर नमन कोण का मान क्या होगा ? (2011, 14)
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प्रश्न 14.
एक स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक 0.3 गौस तथा नति कोण 60° है। उस स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की सम्पूर्ण तीव्रता ज्ञात कीजिए। (2013, 16)
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प्रश्न 15.
किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर घटक प्रत्येक 0.35 गौस के बराबर हैं। उस स्थान पर नमन कोण का मान ज्ञात कीजिए। (2015, 16)
हल-
tan θ = [latex s=2]\frac { V }{ H }[/latex] = 1 [V = H = 0.35]
नति कोण θ = 45°

प्रश्न 16.
किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर घटक समान हैं। उस स्थान पर नमन कोण का मान ज्ञात कीजिए। (2015, 16)
हल-
tan θ = [latex s=2]\frac { V }{ H }[/latex] = [latex s=2]\frac { H }{ H }[/latex] = 1 [∵ V = H]
tan θ = tan 45° ⇒ θ = 45°
अतः नमन कोण 45° होगा।

प्रश्न 17.
यदि पृथ्वी का चुम्बकीय क्षैतिज घटक H तथा नमन कोण θ है, तो सम्पूर्ण क्षेत्र की तीव्रता कितनी होगी? (2016)
उत्तर-
दिया है, पृथ्वी का चुम्बकीय घटक H तथा नमन कोण θ है,
H = Be cos θ
सम्पूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता Be = H/cos θ

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प्रश्न 18.
यदि पृथ्वी के किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के ऊर्ध्वाधर घटक का मान क्षैतिज घटक के मान का √3 गुना हो तो उस स्थान पर नति कोण का मान क्या होगा? (2017)
हल-
माना उर्ध्वघटक V = B sin θ
क्षैतिज घटक H = B cos θ
V = H tan θ प्रश्नानुसार, V√3 = H
अतः V = V√3 tan θ
tan θ = [latex s=2]\frac { 1 }{ \surd 3 }[/latex] = tan 30°
θ = 30°
अतः नति कोण θ = 30°

प्रश्न 19.
किन्हीं दो प्रतिचुम्बकत्व वाले पदार्थों के नाम लिखिए। (2011)
उत्तर-
बिस्मथ तथा ऐण्टीमनी।

प्रश्न 20.
एक अनुचुम्बकीय पदार्थ की चुम्बकीय सुग्राहिता (ψ) का मान 10-4 है। पदार्थ के सापेक्ष चुम्बकशीलता (µr) का मान ज्ञात कीजिए। (2014)
हल-
µr = 1 + ψ = 1 + 10-4 = 1 + 0.0001 = 1.0001

प्रश्न 21.
निम्नलिखित पदार्थों में से प्रतिचुम्बकीय तथा अनुचुम्बकीय पदार्थों को चुनिए-ताँबा, सोडियम, प्लैटिनम तथा चाँदी। (2017)
उत्तर-
प्रतिचुम्बकीय – ताँबा, चाँदी
अनुचुम्बकीय – सोडियम, प्लैटिनम

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प्रश्न 22.
प्रति तथा अनुचुम्बकीय पदार्थों में मुख्य अन्तर लिखिए। (2017, 18)
उत्तर-
ऐसे पदार्थ जो तीव्र प्रबलता के चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर क्षेत्र की विपरीत दिशा में आंशिक रूप से चुम्बकित होते हैं, प्रति चुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। जैसे—सोना, चाँदी, हीरा, नमक, जल, वायु आदि। ऐसे पदार्थ जो प्रबल तीव्रता के चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की दिशा में आंशिक रूप (UPBoardSolutions.com) से चुम्बकित होते हैं, अनुचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। जैसे-ऐलुमिनियम, प्लैटिनम, सोडियम, कॉपर क्लोराइड, ऑक्सीजन आदि।

प्रश्न 23.
किसी बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर प्रतिचुम्बकीय पदार्थों का व्यवहार अनुचुम्बकीय पदार्थों से किस प्रकार भिन्न होता है? (2017)
उत्तर-
प्रतिचुम्बकीय पदार्थों की छड़ों को शक्तिशाली चुम्बक के ध्रुवों के बीच स्वतन्त्रतापूर्वक लटकाने पर इनकी अक्ष (लम्बाई) चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् दिशा में हो जाती है। जबकि अनुचुम्बकीय पदार्थों की छड़ों को शक्तिशाली चुम्बक के ध्रुवों के बीच स्वतन्त्रतापूर्वक लटकाने पर इनकी अक्ष (लम्बाई) चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में हो जाती है।

प्रश्न 24.
विद्युत चुम्बक किसी स्थायी चुम्बक से किस प्रकार भिन्न होता है? (2017)
उत्तर-
वैद्युत चुम्बक बनाने के लिए नर्म लोहे की एक सीधी छड़ अथवा घोड़े की नाल के आकार की छड़ पर किसी चालक पदार्थ के वैद्युतरोधी तार लपेटकर तार में धारा प्रवाहित की जाती है। धारा प्रवाहित करने पर परिनालिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित हो जाता है तथा छड़ के अन्दर उपस्थित (UPBoardSolutions.com) डोमेनों के घूर्णन द्वारा वह पूर्णत: चुम्बकित हो जाती है। वैद्युत चुम्बकों का उपयोग वैद्युत घण्टी, ट्रांसफॉर्मर, वैद्युतमोटर, डायनमो आदि में किया जाता है जबकि स्थायी चुम्बक बनाने के लिए स्टील का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि स्टील की धारणशीलता नर्म लोहे से कम होती है परन्तु इसकी निग्राहिता नर्म लोहे की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। स्टील का एक बार चुम्बकन हो जाने पर सरलता से विचुम्बकन नहीं होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चुम्बकीय द्विध्रुव-आघूर्ण की परिभाषा लिखिए। चुम्बकीय द्विध्रुव-आघूर्ण सदिश राशि है। अथवा अदिश राशि? इसका मात्रक भी लिखिए। (2010, 17)
या
चुम्बकीय आघूर्ण की परिभाषा एवं मात्रक लिखिए। (2012, 18)
या
चुम्बकीय द्विध्रुव-आघूर्ण का सूत्र तथा इसका S.I. मात्रक लिखिए। (2014)
या
चुम्बकीय द्विध्रुव-आघूर्ण की परिभाषा लिखिए। समांग चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित चुम्बकीय द्विध्रुव पर लगने वाले बल के आघूर्ण का सूत्र प्राप्त कीजिए। (2015)
उत्तर-
माना चुम्बकीय द्विध्रुव एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र B में क्षेत्र की दिशा से θ कोण बनाते हुए रखा गया है। अत: द्विध्रुव पर लगने वाले बल-युग्म का आघूर्ण,
τ = MB sin θ.
यदि θ = 90° तो sin θ = 1, तब चुम्बकीय द्विध्रुव पर लगने वाला बल-आघूर्ण अधिकतम होगा, अर्थात्
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अत: किसी चुम्बकीय द्विधुव( अथवा धारा लूप) का चुम्बकीय आघूर्ण वह बल-आघूर्ण है जो इस द्विध्रुव को एकसमान एकांक चुम्बकीय क्षेत्र में क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् रखने पर द्विध्रुव पर लगता है। (UPBoardSolutions.com)
चुम्बकीय द्विध्रुव-आधूर्ण एक सदिश राशि है तथा इसकी दिशा द्विध्रुव के अक्ष के अनुदिश होती है। धारा लूप में चुम्बकीय-आघूर्ण की दिशा दायें हाथ के नियम द्वारा ज्ञात की जाती है। इस नियम के अनुसार, यदि हम अपने दायें हाथ के पंजे को पूरा फैलाकर अँगुलियों को लूप के चारों ओर धारा की दिशा में मोड़े तो अँगूठा चुम्बकीय-आघूर्ण की दिशा की ओर होगा।
मात्रक एवं विमाएँ
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प्रश्न 2.
एक परमाणु के नाभिक के परितः एक इलेक्ट्रॉन 0.5 Å त्रिज्या के वृत्तीय पथ पर 5.0 x 1015 चक्कर/से की आवृत्ति से घूम रहा है। परमाणु का चुम्बकीय-आघूर्ण ज्ञात कीजिए। (2012, 18)
हल-
कक्षा में चक्कर काटता इलेक्ट्रॉन एक धारा-लूप के तुल्य है, जिसमें धारा का मान।
i = कक्षा के किसी बिन्दु से 1 सेकण्ड में गुजरने वाला आवेश
= इलेक्ट्रॉन-आवेण x 1 सेकण्ड में चक्करों की संख्या
= (1.6 x 10-19 कूलॉम) x (5.0 x 1015 सेकण्ड-1)
= 8 x 10-4 ऐम्पियर
तुल्य धारा-लूप का चुम्बकीय आघूर्ण M = Ni A
जहाँ, N फेरों की संख्या है तथा A लूप का परिच्छेद-क्षेत्रफल है। यहाँ N = 1; i = 8 x 10-4 ऐम्पियर
तथा A = πr² = π (0.5 x 10-10 मीटर)2
M = 1 x (8 x 10-4) x 3.14 x (0.5 x 10-10)2 = 6.28 x 10-24 ऐम्पियर-मीटर

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प्रश्न 3.
100 फेरों वाली तथा 15 सेमी x 10 सेमी क्षेत्रफल की एक कुण्डली B = 1.0 वेबर/मी2 के चुम्बकीय क्षेत्र में रखी गई है। कुण्डली में धारा 0.2 ऐम्पियर है तथा कुण्डली का तलं चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर है। कुण्डली पर लगते हुए बल आघूर्ण की गणना कीजिए। (2010)
हल-
τ = NiAB sinθ = 100 x 0.2 (15 x 10 x 10-4) x 1.0 sin 90° = 0.3 न्यूटन-मीटर।

प्रश्न 4.
एक लम्बे सीधे तार में 5 ऐम्पियर की वैद्युत धारा प्रवाहित होती है। एक इलेक्ट्रॉन तार से 10 सेमी दूरी पर हवा में 1 x 106 मी/सेकण्ड से धारा की दिशा के समान्तर गति कर रहा है। इलेक्ट्रॉन पर बल की गणना कीजिए। (2016)
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प्रश्न 5.
एक हाईड्रोजन परमाणु में इलेक्ट्रॉन 0.53 Å त्रिज्या की एक कक्षा में 2.3 x 106 मी/सेकण्ड के वेग से घूम रहा है। परिक्रमण करने वाले इलेक्ट्रॉन के चुम्बकीय आघूर्ण की गणना कीजिए। (2016)
हल-
दिया है, इलेक्ट्रॉन की त्रिज्या r = 0.53 Å = 0.53 x 10-10 मीटर = 5.3 x 10-11 मीटर
तथा वेग, v = 2.3 x 106 मीटर/सेकण्ड
परिक्रमण करने वाले इलेक्ट्रॉन का चुम्बकीय आघूर्ण,
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प्रश्न 6.
एक परमाणु में एक इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर 6.6 x 104 मी/से के वेग से 0.7 A त्रिज्या की कक्षा में घूम रहा है। इसके तुल्य वैद्युत धारा तथा इसके तुल्य चुम्बकीय आघूर्ण की गणना कीजिए। (2014)
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प्रश्न 7.
किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज व ऊर्ध्व घटक बराबर हैं। यदि क्षैतिज घटक का मान 0.3 x 10-4 वेबर/मीटर2 हो तब उस स्थान पर सम्पूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता कितनी होगी ? (2012)
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प्रश्न 8.
चुम्बकत्व के परमाणवीय मॉडल की व्याख्या कीजिए। (2010, 18)
उत्तर-
चुम्बकत्व का परमाणवीय मॉडल- प्रत्येक पदार्थ असंख्य परमाणुओं से मिलकर बना है। प्रत्येक परमाणु के केन्द्र पर एक धनावेशित नाभिक होता है जिसके चारों ओर विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन घूमते रहते हैं। ये इलेक्ट्रॉन कक्षीय परिक्रमण के अतिरिक्त अपनी धुरी पर भी घूमते रहते हैं। इसे (UPBoardSolutions.com) ‘चक्रण (spin) कहते हैं। चूंकि प्रत्येक इलेक्ट्रॉन आवेशित होता है; अतः कक्षीय अथवा चक्रण गति करता हुआ इलेक्ट्रॉन एक धारावाही लूप या चुम्बकीय द्विध्रुव की भाँति व्यवहार करता है। इसी कारण परमाणु में चुम्बकीय आघूर्ण उत्पन्न होता है। परमाणु में चुम्बकीय आघूर्ण का अधिकांश भाग (90%) इलेक्ट्रॉनों के ‘चक्रण के कारण होता है; कक्षीय परिक्रमण के कारण आघूर्ण बहुत कम (10%) होता है।
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प्रश्न 9.
चुम्बकशीलता, चुम्बकीय प्रवृत्ति तथा आपेक्षिक चुम्बकशीलता से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के चुम्बकीय पदार्थ की चुम्बकीय प्रवृत्ति ताप पर निर्भर नहीं करती है? (2013)
उत्तर-
चुम्बकशीलता µ (Magnetic Permeability)- जब किसी चुम्बकीय पदार्थ को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में रखते हैं तो वह पदार्थ चुम्बकित हो जाता है तथा उस पदार्थ में से, वायु के सापेक्ष, अधिक बल-रेखाएँ गुजरती हैं। इससे स्पष्ट है कि बल-रेखाएँ वायु की अपेक्षा चुम्बकीय पदार्थ में से अधिक (UPBoardSolutions.com) सुगमता से गुजरती हैं। इसे हम इस प्रकार भी व्यक्त कर सकते हैं कि वायु की अपेक्षा लोहे में अधिक ‘चुम्बकशीलता’ है। किसी चुम्बकीय पदार्थ में उत्पन्न चुम्बकीय प्रेरण [latex s=2]\vec { B }[/latex] तथा [latex s=2]\vec { H }[/latex] चुम्बकीय क्षेत्र में के अनुपात को पदार्थ की चुम्बकशीलता कहते हैं, अर्थात्।
µ = [latex s=2]\frac { \vec { B } }{ \vec { H } }[/latex]
संख्यात्मक रूप से µ = B/H
इसका S.I. मात्रक वेबर/(ऐम्पियर-मीटर) अथवा न्यूटन/ऐम्पियर2 है।

आपेक्षिक चुम्बकशीलता µr (Relative Magnetic Permeability)- किसी चुम्बकीय पदार्थ की आपेक्षिक चुम्बकशीलता, पदार्थ की चुम्बकशीलता µ0 तथा निर्वात् (वायु) की चुम्बकशीलता 40 के अनुपात को कहते हैं, अर्थात्
µr = [latex s=2]\frac { \mu }{ { \mu }_{ 0 } }[/latex]
यह विमाहीन राशि है तथा निर्वात् के लिए इसका मान 1 है।

चुम्बकीय प्रवृत्ति χm (Magnetic Susceptibility)- किसी पदार्थ की चुम्बकीय प्रवृत्ति उस पदार्थ के चुम्बकत्व धारण करने की क्षमता से नापी जाती है अर्थात् कोई पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र में कितनी सरलता से चुम्बकित होता है। किसी चुम्बकीय पदार्थ में उत्पन्न हुई चुम्बकीय तीव्रता (I) तथा उसे उत्पन्न करने वाले चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता (H) के अनुपात को उस पदार्थ की चुम्बकीय प्रवृत्ति कहते हैं, अर्थात्
χm = [latex s=2]\frac { I }{ H }[/latex]
यह एक शुद्ध संख्या है, (I तथा H दोनों के मात्रक एक ही हैं) तथा निर्वात् के लिए इसका मान शून्य न शून्य है (क्योंकि निर्वात् में चुम्बकेन नहीं हो सकता)। अतः इसका कोई मात्रक नहीं होता है। प्रतिचुम्बकीय पदार्थ की चुम्बकीय प्रवृत्ति ताप पर निर्भर नहीं करती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दिकपात कोण, नमन कोण तथा पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज घटक की व्याख्या कीजिए। (2017)
या
उपयुक्त आरेख बनाकर किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता के क्षैतिज घटक, ऊर्ध्व-घटक एवं नति कोण में सम्बन्ध ज्ञात कीजिए। दिकपात कोण क्या होता है? (2012)
या
नति कोण तथा पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज घटक से क्या तात्पर्य है ? इनके मध्य सम्बन्ध प्राप्त कीजिए। (2012)
या
भू-चुम्बकत्व के चुम्बकीय अवयव क्या हैं? उपयुक्त आरेख की सहायता से उनकी व्याख्या कीजिए। (2017)
या
भू-चुम्बकीय क्षेत्र के विभिन्न अवयव क्या हैं? उनके बीच के सम्बन्ध का सूत्र स्थापित कीजिए। (2017, 18)
उत्तर-
पृथ्वी के भू-चुम्बकत्व के प्रमाण-

  • स्वतन्त्रतापूर्वक लटकाये गये चुम्बक का सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरना,
  • पृथ्वी में गाड़ने पर लोहे के टुकड़े को कुछ समय बाद चुम्बक बनना तथा
  • उदासीन बिन्दुओं का मिलना।

चुम्बकत्व के मौलिक तत्त्व- पृथ्वी भी एक चुम्बक की भॉति व्यवहार करती है। पृथ्वी के इस गुण को भू-चुम्बकत्व कहते हैं। किसी स्थान पर पृथ्वी के भू-चुम्बकत्व का अध्ययन करने के लिए जिन राशियों की आवश्यकता होती है, वे भू-चुम्बकत्व के अवयव कहलाती हैं। भू-चुम्बकत्व के निम्नलिखित तीन अवयव हैं-
1. दिक्पात कोण (Angle of Declination)- किसी स्थान पर अपने गुरुत्व-केन्द्र से स्वतन्त्रतापूर्वक लटकी चुम्बकीय सूई के अक्ष से गुजरने वाले ऊर्ध्वाधर तल को ‘चुम्बकीय याम्योत्तर’ कहते हैं। इसी प्रकार किसी स्थान पर पृथ्वी के भौगोलिक उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों को मिलाने वाली रेखा में से गुजरने वाले ऊर्ध्वाधर तल को ‘भौगोलिक याम्योत्तर’ कहते हैं। पृथ्वी तल के किसी स्थान पर चुम्बकीय याम्योत्तर एवं भौगोलिक याम्योत्तर के बीच बने न्यून
कोण को दिक्पात कोण’ कहते हैं।

2. नति कोण अथवा नमन कोण (Angle of Dip)- यदि किसी चुम्बकीय सूई को उसके गुरुत्व केन्द्र से स्वतन्त्रतापूर्वक इस प्रकार लटकाया जाए कि सूई ऊर्ध्वाधर तल में घूम सके तो चुम्बकीय याम्योत्तर में स्थिर होने पर सूई क्षैतिज दिशा से कुछ झुक जाती है। इस अवस्था में सूई का चुम्बकीय अक्ष, चुम्बकीय याम्योत्तर में क्षैतिज दिशा के साथ जो कोण बनाता है, उसे ‘नति कोण’ कहते हैं। चूँकि (UPBoardSolutions.com) सूई का चुम्बकीय अक्ष पृथ्वी के H चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा प्रदर्शित करता है; अत: नति कोण वह नति कोण कोण है, जो चुम्बकीय याम्योत्तर में पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र Be की दिशा तथा क्षैतिज दिशा के बीच बनता है। नति कोण का मान पृथ्वी की चुम्बकीय निरक्ष पर 0° तथा पृथ्वी के चित्र 5.10 चुम्बकीय ध्रुवों पर 90° होता है। उत्तरी गोलार्द्ध में नति सूई का उत्तरी सिरा और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी सिरा नीचे की ओर झुकता है।
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3. पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक (Horizontal Component of Earth’s Magnetic Field)- किसी स्थान पर चुम्बकीय याम्योत्तर में कार्य करने वाले पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र Be का जो घटक क्षैतिज दिशा में कार्य करता है, उसे पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक (H) कहते हैं। दिक्पात कोण. (α), नति कोण (θ) तथा चुम्बकीय क्षेत्र के क्षैतिज घटक (H) में भौगोलिक उत्तर (UPBoardSolutions.com) सम्बन्ध-चुम्बकीय निरक्ष को छोड़कर, हर स्थान पर चुम्बकीय सूई क्षैतिज से कुछ झुककर रुकती है। अतः चुम्बकीय उत्तर + किसी स्थान पर चुम्बकीय याम्योत्तर में कार्य करने वाले। चुम्बकीय क्षेत्र B को, क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर घटकों में योम्योत्तर वियोजित किया जा सकता है।

ये घटक क्रमशः H तथा V से प्रकट किये जाते हैं। याम्योत्तर इन दोनों में पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को क्षैतिज घटक H अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसीलिए इसको भू-चुम्बकत्व के मौलिक तत्त्वों में सम्मिलित क्रिया गया है।
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NS एक स्वतन्त्रतापूर्वक लटकी चुम्बकीय सूई है। इसके अक्ष में से होकर गुजरने वाला ऊर्ध्वाधर तल OPQR चुम्बकीय याम्योत्तर है। तल OLMR वहाँ पर भौगोलिक याम्योत्तर है। इन तलों के बीच का कोण θ दिक्पात कोण है, जबकि सूई का अक्ष OQ तथा क्षैतिज दिशा OP के (UPBoardSolutions.com) बीच का कोण ‘θ’ नति कोण है।
चुम्बकीय सूई का अक्ष OQ पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र Be की दिशा को प्रदर्शित करता है। चुम्बकीय क्षेत्र Be को क्षैतिज तथा ऊध्र्वाधर घटकों (H वे V) में वियोजित करने पर पृथ्वी के क्षेत्र का क्षैतिज घटक H = Be cos θ
पृथ्वी के क्षेत्र का ऊर्ध्वाधर घटक V = Be sin θ
अत: समी० (1) व (2) का वर्ग करके जोड़ने पर,
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यदि किसी स्थान पर α और θ ज्ञात हों तो पृथ्वी के क्षेत्र Be की दिशा पूर्णतया निर्धारित की जा सकती है तथा यदि H और θ ज्ञात हों तो Be का परिमाण ज्ञात किया जा सकता है। इस प्रकार α, θ तथा H किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का पूर्ण ज्ञान कराते हैं। इसी कारण इन्हें भू-चुम्बकीय अवयव कहते हैं। यही इनका महत्त्व है।

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प्रश्न 2.
चुम्बकत्व के परमाणवीय मॉडल के आधार पर लौहचुम्बकत्व की व्याख्या कीजिए। (2012)
या
डोमेन सिद्धान्त के आधार पर लौहचुम्बकत्व की व्याख्या कीजिए। (2013, 17)
या
अनुचुम्बकीय तथा प्रतिचुम्बकीय पदार्थों के परमाणुओं में क्या अन्तर होता है? (2014, 18)
या
अनुचुम्बकीय तथा प्रतिचुम्बकीय पदार्थों में क्या अन्तर होता है? परमाणु मॉडल के आधार पर समझाइए। (2015)
या
पदार्थों का उनके चुम्बकीय व्यवहार के आधार पर वर्गीकरण कीजिए। प्रत्येक वर्ग की प्रमुख विशेषताओं की व्याख्या कीजिए। (2016)
या
चुम्बकत्व के परमाणवीय मॉडल के आधार पर प्रतिचुम्बकत्व की व्याख्या कीजिए। (2018)
या
प्रतिचुम्बकीय तथा अनुचुम्बकीय पदार्थों में परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण क्रमशः शून्य एवं अशून्य होता है, क्यों? (2018)
उत्तर-
सन् 1846 में फैराडे ने देखा कि सभी पदार्थों में चुम्बकत्व के गुण पाए जाते हैं। उसने अनेक पदार्थों को चुम्बकीय क्षेत्र में रखकर उनके चुम्बकीय व्यवहारों का अध्ययन किया तथा इस आधार पर पदार्थों को निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया-
1. प्रतिचुम्बकीय पदार्थ (Diamagnetic Substances)- कुछ पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की विपरीत दिशा में क्षीण चुम्बकत्व प्राप्त कर लेते हैं। इन्हें प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। तथा इनके इस गुण को ‘प्रतिचुम्बकत्व’ कहते हैं। बिस्मथ, ऐण्टीमनी, सोना, पानी, ऐल्कोहॉल, जस्ता, ताँबा, चाँदी, हीरा, नमक, पारा इत्यादि प्रतिचुम्बकीय पदार्थ हैं।

प्रतिचुम्बकत्व की व्याख्या- प्रतिचुम्बकत्व का गुण प्रायः उन पदार्थों के अणुओं अथवा परमाणुओं में पाया जाता है जिनमें इलेक्ट्रॉनों की संख्या सम (even) होती है तथा दो-दो इलेक्ट्रॉन मिलकर युग्म बना लेते हैं। प्रत्येक युग्म में एक इलेक्ट्रॉन का चक्रण दूसरे इलेक्ट्रॉन के चक्रण की विपरीत दिशा में होता है, जिससे ये एक-दूसरे के चुम्बकीय आघूर्ण को निरस्त कर देते हैं।

अतः प्रतिचुम्बकीय पदार्थ के परमाणु का नेट चुम्बकीय आघूर्ण शून्य होता है। जब ऐसे पदार्थ को किसी बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो युग्म के एक इलेक्ट्रॉन का (UPBoardSolutions.com) चक्रण धीमा तथा दूसरे का त्वरित हो जाता है। अब युग्म के इलेक्ट्रॉन एक-दूसरे के चुम्बकीय प्रभाव को निरस्त नहीं कर पाते और परमाणु में चुम्बकीय आघूर्ण प्रेरित हो जाता है, जिसकी दिशा बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के विपरीत होती है; अर्थात् पदार्थ बाह्य क्षेत्र की विपरीत दिशा में चुम्बकित हो जाता है। ताप के बदलने पर इन पदार्थों के प्रतिचुम्बकत्व गुण पर कोई प्रभाव नहीं होता।

2. अनुचुम्बकीय पदार्थ (Paramagnetic Substances)- कुछ पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की दिशा में क्षीण चुम्बकत्व प्राप्त कर लेते हैं, इन्हें अनुचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं तथा इनके इस गुण को ‘अनुचुम्बकत्व’ कहते हैं। प्लैटिनम, ऐल्युमीनियम, सोडियम, क्रोमियम, मैंगनीज, कॉपर सल्फेट इत्यादि अनुचुम्बकीय पदार्थ हैं।

अनुचुम्बकत्व की व्याख्या- अनुचुम्बकत्व का गुण उन पदार्थों में पाया जाता है जिनके परमाणुओं या अणुओं में कुछ ऐसे आधिक्य इलेक्ट्रॉन होते हैं जिनका चक्रण एक ही दिशा में होता है। अत: प्रत्येक परमाणु में स्थायी चुम्बकीय आघूर्ण होता है और वह एक सूक्ष्म दण्ड चुम्बक की भाँति व्यवहार करता है, जिसे ‘परमाणवीय चुम्बक’ कहते हैं। परन्तु किसी बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में ये पदार्थ (UPBoardSolutions.com) कोई चुम्बकीय प्रभाव नहीं दिखाते। इसका कारण परमाणवीय चुम्बकों का अनियमित रूप से अभिविन्यासित (randomly oriented) होना है [चित्र 5.12 (a)]। बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर प्रत्येक परमाणवीय चुम्बक पर एक बल-आघूर्ण कार्य करता है। जिससे ये क्षेत्र की दिशा में संरेखित हो जाते हैं। इस प्रकार पूरा पदार्थ क्षेत्र की दिशा में चुम्बकीय आधूर्ण प्राप्त कर लेता है; अर्थात् क्षेत्र की दिशा में चुम्बकित हो जाता है [चित्र 5.12 (b)]
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ऊष्मीय विक्षोभ के कारण चुम्बकीय संरेखण कम होता है, जिससे अनुचुम्बकीय पदार्थों में चुम्बकन बहुत कम हो पाता है। बाह्य क्षेत्र की तीव्रता बढ़ाने पर अथवा ताप घटाने पर चुम्बकन बढ़ जाता है।

3. लौहचुम्बकीय पदार्थ (Ferromagnetic Substances)- कुछ पदार्थ चुम्बकीय क्षेत्र में रखे जाने पर क्षेत्र की दिशा में प्रबल रूप से चुम्बकित हो जाते हैं, इन्हें लौहचुम्बकीय पदार्थ कहते हैं। | लोहा, कोबाल्ट, निकिल तथा मैग्नेटाइट (Fe3O4) इत्यादि लौहचुम्बकीय पदार्थ हैं।

लौहचुम्बकत्व की व्याख्या (डोमेन सिद्धान्त)- अनुचुम्बकत्व तथा लौहचुम्बकत्व में केवल तीव्रता का अन्तर होता है। वास्तव में लौहचुम्बकीय पदार्थ ऐसे अनुचुम्बकीय पदार्थ हैं, जिनका चुम्बकीय क्षेत्र में चुम्बकन अत्यन्त तीव्र होता है। लौहचुम्बकीय पदार्थों का भी प्रत्येक परमाणु एक चुम्बक होता है और यह एक स्थायी चुम्बकीय आघूर्ण रखता है परन्तु लौहचुम्बकीय पदार्थों के परमाणुओं की कुछ (UPBoardSolutions.com) अन्योन्य क्रियाओं के कारण पदार्थों के भीतर परमाणुओं के असंख्य अतिसूक्ष्म आकार के प्रभावी क्षेत्र बन जाते हैं, जिन्हें डोमेन कहते हैं। प्रत्येक डोमेन में 1017 से 1021 तक परमाणु होते हैं, जिनकी चुम्बकीय अक्षं एक ही दिशा में संरेखित होती हैं (परन्तु पास वाले डोमेनों के परमाणुओं से भिन्न दिशा में)। इस प्रकार चुम्बकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में भी प्रत्येक डोमेन चुम्बकीय संतृप्तता की स्थिति में होता है। परन्तु परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण शून्य ही रहता है [चित्र 5.13 (a)]।
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लौहचुम्बकीय पदार्थों को किसी बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर पदार्थ का परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण निम्नलिखित दो प्रकार से बढ़ सकता है-

1. डोमेन की परिसीमाओं के विस्थापन द्वारा– बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में संरेखित डोमेनों के आकार में वृद्धि होती है, जबकि अन्य दिशाओं में अभिविन्यस्त डोमेनों के आकार छोटे हो जाते हैं (चित्र 5.13 (b))
जब बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र दुर्बल हो जाता है तो लौहचुम्बकीय पदार्थों का चुम्बकन प्राय: डोमेनों की परिसीमाओं के विस्थापन द्वारा होता है। इस स्थिति में चुम्बकन की क्रिया उत्क्रमणीय होती है; अर्थात् चुम्बकीय क्षेत्र हटा लेने पर डोमेन अपनी पूर्वावस्था में वापस आ जाते हैं। अतः पदार्थ पूर्णत: विचुम्बकित हो जाता है।

2. डोमेनों के घूर्णन द्वारा- डोमेन इस प्रकार घूम जाते हैं कि इनके चुम्बकीय आघूर्ण बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में हो जाते हैं जिससे प्रबल चुम्बकत्व प्राप्त हो जाता है (चित्र 5.13 (c))

बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के दुर्बल होने पर इन पदार्थों में चुम्बकन डोमेनों की परिसीमाओं के विस्थापन द्वारा होता है। परन्तु प्रबल बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में इन पदार्थों का (UPBoardSolutions.com) चुम्बकन डोमेनों के घूर्णन द्वारा होता है। बाह्य क्षेत्र यदि क्षीण है, तो उसे हटा लेने पर डोमेन अपनी मूल स्थितियों में आ जाते हैं और पदार्थ का चुम्बकत्व समाप्त हो जाता है। यदि बाह्य क्षेत्र तीव्र है तो चुम्बकीय-क्षेत्र को हटा लेने पर पदार्थ पूर्णतः विचुम्बकित नहीं होता, बल्कि उसमें कुछ-न-कुछ चुम्बकत्व शेष रह जाता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 5 Principles of Inheritance and Variation

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 5 Principles of Inheritance and Variation (वंशागति और विविधता के सिद्धान्त) are part of UP Board Solutions for Class 12 Biology. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 5 Principles of Inheritance and Variation (वंशागति और विविधता के सिद्धान्त).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Chapter Chapter 5
Chapter Name Principles of Inheritance and Variation
Number of Questions Solved 48
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 5 Principles of Inheritance and Variation (वंशागति और विविधता के सिद्धान्त)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मेंडल द्वारा प्रयोगों के लिए मटर के पौधे को चुनने से क्या लाभ हुए?
उत्तर
मंडल द्वारा प्रयोगों के लिए मटर के पौधे को चुनने से निम्नलिखित लाभ हुए –

  1. यह एकवर्षीय पौधा है वे इसे आसानी से बगीचे में उगाया जा सकता था
  2. इसमें विभिन्न लक्षणों के वैकल्पिक रूप (alternate forms)देखने को मिले
  3. इसके स्व-परागित (self pollinated) होने के कारण कोई भी अवांछित जटिलता नहीं आ पायी
  4. नर व मादा एक ही पौधे में मिल गए
  5. यह पौधा आनुवंशिक रूप से शुद्ध था व पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसके पौधे शुद्ध बने रहे
  6. इस पौधे की एक ही पीढ़ी में अनेक बीज उत्पन्न होते हैं अतः निष्कर्ष निकालने में आसानी रही।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में विभेद कीजिए
(क) प्रभाविता और अप्रभाविता
(ख) समयुग्मजी और विषमयुग्मजी (2015)
(ग) एक संकर और द्विसंकर
उत्तर
(क) प्रभाविता और अप्रभाविता में अन्तर
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(ख) समयुग्मजी और विषमयुग्मजी में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 5 Principles of Inheritance and Variation img-2

(ग) एक संकर और द्विसंकर में अन्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 5 Principles of Inheritance and Variation img-3

प्रश्न 3.
कोई द्विगुणित जीन 6 स्थलों के लिए विषमयुग्मजी (heterozygous) है, कितने प्रकार के युग्मकों का उत्पादन सम्भव है?
उत्तर
जब कोई द्विगुणित जीन 6 स्थलों के लिए विषमयुग्मजी है अर्थात् किसी त्रिसंकर (tri-hybrid) में तुलनात्मक लक्षणों के तीन जोड़े जीन (कारक) होते हैं। प्रत्येक जोड़े लक्षण का विसंयोजन दूसरे जोड़े से स्वतन्त्र होता है तो द्विगुणित जीन 6 स्थलों के लिए विषमयुग्मजी होगा। जैसे लम्बे, पीले तथा गोल बीज वाले शुद्ध जनकों का संकरण, नाटे, हरे और झुरींदार बीज वाले पौधों से कराने पर F1 पीढ़ी में प्राप्त संकर लम्बे, गोल और पीले बीज वाले पौधों की विषमयुग्मजी जीन संरचना Tt Rr Yy होती है। इससे आठ प्रकार के युग्मक TRY, TRy, TrY, Try, tRY, tRy, trY, try बनते हैं। अर्थात् F1 पीढ़ी के सदस्यों के जीन युग्मक निर्माण के समय स्वतन्त्र होकर नए-नए संयोग बनाते हैं।

प्रश्न 4.
एक संकर क्रॉस का प्रयोग करते हुए, प्रभाविता नियम की व्याख्या कीजिए। (2017)
उत्तर
एक ही लक्षण के लिए विपर्यासी पौधे के मध्य संकरण एक संकर क्रॉस कहलाता है, जैसे मटर के लम्बे (T) व बौने (t) पौधे के मध्य कराया गया संकरण। F1 पीढ़ी में सभी पौधे लम्बे किन्तु विषमयुग्मजी (Tt) होते हैं। F1 पीढ़ी में लम्बेपन के लिए उत्तरदायी कारक T, बौनेपन के कारक है पर प्रभावी होता है। कारक अप्रभावी होता है अत: F1 पीढ़ी में उपस्थित होते हुए भी स्वयं को प्रकट नहीं कर पाता है। सभी F1 पौधे लम्बे होते हैं। अत: एक लक्षण को नियन्त्रित करने वाले कारक युग्म में जब एक कारक दूसरे कारक पर प्रभावी होता है, तो इसे प्रभाविता का नियम कहते हैं।
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प्रश्न 5.
परीक्षार्थ संकरण की परिभाषा लिखिए व चित्र बनाइए।
उत्तर
F1 जीव तथा समयुग्मजी अप्रभावी (homozygous recessive) लक्षण वाले जीव के मध्य कराया गया संकरण, परीक्षार्थ संकरण (test cross) कहलाता है। इसे निम्नानुसार दर्शाया जा सकता है –
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UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 5 Principles of Inheritance and Variation img-6

प्रश्न 6.
एक ही जीन स्थल वाले समयुग्मजी मादा और विषमयुग्मजी नर के संकरण से प्राप्त प्रथम संतति पीढ़ी के फीनोटाइप वितरण का पुनेट वर्ग बनाकर प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर
गुणसूत्रों पर विभिन्न लक्षणों वाले जीन एक निश्चित स्थल (locus) पर स्थित होते हैं। एक ही जीन स्थल वाले समयुग्मजी मादा जैसे- शुद्ध नाटे पौधे और विषमयुग्मजी नर जैसे- संकर लम्बे पौधों के मध्य संकरण कराने पर प्राप्त प्रथम पुत्रीय संतति सदस्यों में 50% प्रभावी लक्षण वाले विषमयुग्मजी और 50% समयुग्मजी प्रभावी लक्षण वाले होते हैं; जैसे –
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प्रश्न 7.
पीले बीज वाले लम्बे पौधे (YyTt) का संकरण हरे बीज वाले लम्बे (yyTt) पौधे से कराने पर निम्न में से किस प्रकार के फीनोटाइप संतति की आशा की जा सकती है?

  1. लम्बे हरे
  2. बौने हरे

उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 5 Principles of Inheritance and Variation img-8

  1. लम्बे हरे के फीनोटाइप संतति 6 हैं।
  2. बौने हरे के फीनोटाइप संतति 2 हैं।

प्रश्न 8.
दो विषमयुग्मजी जनकों का क्रॉस है और १ किया गया। मान लीजिए दो स्थल (loci) सहलग्न हैं तो द्विसंकर क्रॉस में F1 पीढ़ी के फीनोटाइप के लक्षणों का वितरण क्या होगा?
उत्तर
एक ही गुणसूत्र पर उपस्थित जीन्स के एकसाथ वंशागत होने को जीन सहलग्नता (gene linkage) या सहलग्न जीन (linked genes) कहते हैं। सहलग्न जीन्स द्वारा नियन्त्रित होने वाले लक्षणों को सहलग्न लक्षण (linked characters) कहते हैं। जीन सहलग्नता (gene linkage) के अध्ययन के लिए मॉर्गन ने ड्रोसोफिला (Drosophila) पर अनेक प्रयोग किए। ये मेण्डेल द्वारा किए गए द्विसंकर संकरण के समान थे। मॉर्गन ने पीले शरीर और श्वेत नेत्रों वाली मादा मक्खियों का संकरण भूरे शरीर और लाल नेत्रों वाली मक्खियों के साथ किया। इनसे प्राप्त प्रथम पुत्रीय संतति (F1 पीढ़ी) के सदस्यों में परस्पर क्रॉस कराने पर उन्होंने पाया कि ये दो जोड़ी जीन एक-दूसरे से स्वतन्त्र रूप से पृथक् नहीं हुए और F2पीढ़ी का अनुपात मेण्डेल के नियमानुसार प्राप्त अनुपात 9:3:3:1 से काफी भिन्न प्राप्त होता है (यह अनुपात दो जीन्स के स्वतन्त्र कार्य करने पर अपेक्षित था)। यह सहलग्नता के कारण होता है।

प्रश्न 9.
आनुवंशिकी में टी०एच० मॉर्गन के योगदान का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर
आनुवंशिकी में टी०एच० मॉर्गन के योगदान निम्नवत् हैं –

  1. मॉर्गन ने ड्रोसोफिला पर अपने प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि जीन, गुणसूत्र पर स्थित होते हैं।
  2. मॉर्गन ने क्रिस-क्रॉस वंशागति की खोज की।
  3. मॉर्गन व उनके साथियों ने गुणसूत्र पर स्थित जीन्स युग्मों के बीच पुनर्योजन की आवृत्ति को जीन्स के बीच की दूरी मानकर, आनुवंशिक मानचित्र की रचना की जो गुणसूत्रों पर जीन्स की स्थिति को दर्शाता है।
  4. मॉर्गन ने जीन्स के उत्परिवर्तन की खोज की।
  5. मॉर्गन ने विनिमय, सहलग्नता की खोज की।
  6. उन्होंने सहलग्नता के गुणसूत्रीय सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
  7. मॉर्गन ने अजनकीय जीन संयोजनों को पुनर्योजन (recombination) का नाम दिया था।

प्रश्न 10.
वंशावली विश्लेषण क्या है? यह विश्लेषण किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर
वंशावली विश्लेषण
मानव एक सामाजिक प्राणी है। मानव पर भी आनुवंशिकी के नियम अन्य प्राणियों की भाँति लागू होते। हैं और इन्हीं के अनुसार आनुवंशिक लक्षण पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशागत होते हैं। प्राकृतिक तथ्यों को जानने के लिए वैज्ञानिकों को जीव-जन्तुओं पर अनेक प्रायोगिक परीक्षण करने पड़ते हैं। मानव पर प्रयोगशाला में ऐसे परीक्षण नहीं किए जा सकते। अतः मानव आनुवंशिकी के अधिकांश तथ्य जन समुदायों के अध्ययन एवं अन्य जीवों की आनुवंशिकी पर आधारित हैं। मानव के आनुवंशिक लक्षणों या विशेषकों का पता लगाने के लिए सर फ्रांसिस गैल्टन (Sir Francis Galton) ने दो विधियाँ बताईं –

  • कुछ विशेष आनुवंशिक लक्षणों को प्रदर्शित करने वाले मानव कुटुम्बों की वंशावलियों (Pedigrees or Genealogies) का अध्ययन।
  • यमजों (twins) के अध्ययन से आनुवंशिक एवं उपार्जित लक्षणों में भेद स्थापित करना।

हार्डी एवं वीनबर्ग (Hardy and Weinberg) ने पूरे-पूरे जन समुदायों में आनुवंशिक लक्षणों का निर्धारण करने की विधि का अध्ययन किया।

मानव आनुवंशिकी में वंशावली अध्ययन एक महत्त्वपूर्ण उपकरण होता है जिसका उपयोग विशेष लक्षण, असामान्यता (abnormality) या रोग का पता लगाने में किया जाता है। वंशावली विश्लेषण में प्रयुक्त कुछ महत्त्वपूर्ण मानक प्रतीकों (symbols) को अग्रांकित चित्र में दिखाया गया है –
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 5 Principles of Inheritance and Variation img-9

प्रश्न 11.
मानव में लिंग निर्धारण कैसे होता है? (2010, 12, 13, 14, 15, 16, 17)
उत्तर
लैंगिक जनन करने वाले जीव दो प्रकार के होते हैं- द्विलिंगी या उभयलिंगी (bisexual or hermaphrodite) तथा एकलिंगी (unisexual)। एकलिंगी जीवों में नर तथा मादा जनन अंग (reproductive organs) अलग-अलग जन्तुओं में होते हैं। नर तथा मादा की शारीरिक संरचना में अन्तर भी होता है। इसे लिंग भेद (sexual dimorphism) कहते हैं।
एकलिंगी जीवों की लिंग भेद प्रक्रिया के सम्बन्ध में मैकक्लंग (Mc Clung, 1902) ने लिंग निर्धारण का गुणसूत्रवाद (chromosomal theory of sex determination) प्रतिपादित किया था। इसके अनुसार लिंग का निर्धारण गुणसूत्रों पर निर्भर करता है तथा इनकी वंशागति मेण्डेल के नियमों के अनुसार होती है।

लिंग निर्धारण का गुणसूत्र सिद्धान्त
इस सिद्धान्त के अनुसार, प्राणियों (मानव) में दो प्रकार के गुणसूत्र पाए जाते हैं –
(i) समजात गुणसूत्र (autosomes) तथा
(ii) लैंगिक गुणसूत्र या एलोसोम (sex chromosomes or allosomes)।
सभी जीवों में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित होती है जिसे 2 x (द्विगुणित) से प्रदर्शित करते हैं। इनमें से दो गुणसूत्र लैंगिक गुणसूत्र (sex chromosome) होते हैं।

लैंगिक गुणसूत्र दो प्रकार के होते हैं- X तथा Y। स्त्रियों में दोनों लैंगिक गुणसूत्र (XX) समान होते हैं। तथा पुरुष में लिंग गुणसूत्र असमान (XY) होते हैं। युग्मक में केवल एक ही लैंगिक गुणसूत्र होता है। लैंगिक गुणसूत्रों की भिन्नता ही लिंग निर्धारित करती है। लैंगिक गुणसूत्रों के अनुसार लिंग निर्धारण निम्नलिखित प्रकार से होता है –

लिंग निर्धारण की XY विधि (The XY-method of sex determination) – इस विधि में स्त्री के दोनों लैंगिक गुणसूत्र XX होते हैं तथा पुरुष में एक लैंगिक गुणसूत्र X एवं दूसरा Y होता है। स्त्री में अण्डजनन द्वारा बने सभी अण्डाणुओं में दैहिक गुणसूत्रों का एक अगुणित सैट तथा एक x लैंगिक गुणसूत्र होता है (A + x)। इस प्रकार सभी अण्डाणु जीन संरचना (A + x) में समान होते हैं। अत: स्त्री को समयुग्मकी लिंग (homogametic sex) कहते हैं। इसके विपरीत पुरुष में शुक्राणुजनन से बने 50% शुक्राणुओं में दैहिक गुणसूत्रों का एक अगुणित सैट तथा X गुणसूत्र व कुछ शुक्राणुओं में दैहिक गुणसूत्रों का एक अगुणित सैट तथा Y गुणसूत्र (A + X or A+Y) होता है।

इस प्रकार दो प्रकार के शुक्राणुओं का निर्माण होता है। 50% शुक्राणु A + X तथा 50% शुक्राणु A +Y गुणसूत्रों वाले होते हैं। अतः पुरुष को विषमयुग्मकी लिंग (heterogametic sex) कहते हैं। निषेचन के समय यदि A + Y शुक्राणु का समेकन अण्डाणु के साथ होता है, तब नर सन्तान (पुत्र) उत्पन्न होती है। यदि अण्डाणु का समेकन A+ X शुक्राणु के साथ होता है, तब मादा सन्तान (पुत्री) उत्पन्न होती है। यह केवल संयोग है कि कौन-से शुक्राणु का समेकन अण्डाणु के साथ होता है। इसी के आधार पर सन्तान का लिंग निर्धारण होता है।
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प्रश्न 12.
शिशु का रुधिर वर्ग O है। पिता का रुधिर वर्ग A और माता का B है। जनकों के जीनोटाइप मालूम कीजिए और अन्य संतति में प्रत्याशित जीनोटाइप की जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर
रुधिर वर्गों की वंशागति (Inheritance of Blood Groups) मेण्डेल के नियमों के अनुसार होती है। इसकी वंशागति दो या अधिक तुलनात्मक लक्षणों वाले जीन्स (genes) अर्थात् ऐलील्स (alleles) पर निर्भर करती है।
रुधिर वर्गों को स्थापित करने वाले प्रतिजन (antigens) की उपस्थिति या अनुपस्थिति तीन जीन्स के कारण होती है। प्रतिजन A के लिए जीन Ia, प्रतिजन ‘B’ के लिए जीन ।b तथा दोनों प्रतिजन के अभाव के लिए जीन I° उत्तरदायी होते हैं। एक मनुष्य में इनमें से कोई एक या दो प्रकार के जीन्स गुणसूत्र जोड़े पर एक निश्चित स्थल (loci) पर स्थित होते हैं। जीन Ia तथा Ib क्रमशः I° पर प्रभावी होते हैं, जबकि जीना Ia तथा Ib में प्रभाविता का अभाव होता है अर्थात् ये सहप्रभावी (codominant) होते हैं। विभिन्न रुधिर वर्ग के व्यक्तियों के रुधिर वर्ग की जीनी संरचना निम्नांकित तालिका के अनुसार हो। सकती है –
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उदाहरण – A तथा B रुधिर वर्ग वाले माता-पिता की सम्भावित सन्तानों के रुधिर वर्गों का जीनोटाइप (genotype) निम्नानुसार होगा –
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‘O’ रुधिर वर्ग वाले शिशु के माता-पिता का जीनोटाइप IIo तथा Ib Io है। ‘AB’ रुधिर वर्ग वाले का जीनोटाइप Ia Ib, A रुधिर वर्ग वाले का Ia Io ‘B’ रुधिर वर्ग वाले का Ib Io और ‘O’ रुधिर वर्ग वाले का जीनोटाइप I° I° होगा।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित को उदाहरण सहित समझाइए
(अ) सह-प्रभाविता
(ब) अपूर्ण प्रभाविता। (2012, 16, 17)
उत्तर
(अ) सह-प्रभाविता – जब किसी कारक या जीन के युग्मविकल्पी में कोई भी कारक प्रभावी या अप्रभावी न होकर, मिश्रित रूप से प्रभाव डालते हैं, तो इसे सहप्रभाविता (co-dominance) कहते हैं। इसके फलस्वरूप F1 पीढ़ी दोनों जनकों की मध्यवर्ती होती है।
उदाहरण – मनुष्य में तीन प्रकार के रुधिर वर्ग होते हैं-A, B, 0, जिनका निर्धारण विभिन्न प्रकार की लाल रुधिराणु कोशिकाएँ करती हैं। इन रुधिर वर्गों का नियन्त्रण ‘I’ जीन करता है जिसके तीन युग्मविकल्पी होते हैं- IA व Ib साथ-साथ उपस्थित होने पर सहप्रभावी होते हैं व AB रुधिर वर्ग बनाते हैं।

(ब) अपूर्ण प्रभाविता – विपर्यासी लक्षणों के युग्म में, एक लक्षण दूसरे पर अपूर्ण रूप से प्रभावी होता है। यह घटना अपूर्ण प्रभाविता कहलाती है।
उदाहरण – मिराबिलिस जलापा या गुल गुलाबाँस के पौधे में लाल पुष्प व सफेद पुष्प युक्त पौधों के मध्य संकरण कराने पर, F1 पीढ़ी में सभी फूल लाल मा सफेद न होकर, गुलाबी रंग के होते हैं। F2 पीढ़ी में 1 लाल, 2 गुलाबी व 1 सफेद पुष्प (1 : 2 : 1) युक्त पौधे प्राप्त होते हैं।
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प्रश्न 14.
बिन्दु उत्परिवर्तन क्या है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर
DNA के किसी एक क्षार युग्म (base pair) या न्यूक्लिओटाइड क्रम में होने वाला परिवर्तन, बिन्दु उत्परिवर्तन कहलाता है। उदाहरण – हँसियाकार कोशिका अरक्तता (sickle cell anaemia)।

प्रश्न 15.
वंशागति के क्रोमोसोमवाद को किसने प्रस्तावित किया?
उत्तर
सटन व बोवेरी (Sutton and Boveri) ने।

प्रश्न 16.
किन्हीं दो अलिंगसूत्री आनुवंशिक विकारों का उनके लक्षणों सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर
शरीर में होने वाली उपापचय क्रियाओं के प्रत्येक चरण पर एन्जाइम नियन्त्रण रखते हैं। पूर्ण प्रक्रिया में कहीं भी एक एन्जाइम के बदल जाने या एन्जाइम का निर्माण न होने की दशा में कोई-न-कोई व्यतिक्रम (disorder) उत्पन्न हो जाता है। बीडल तथा टॉटम (George Beadle and E. L. Tatum, 1941) के एक जीन एक एन्जाइम परिकल्पना’ (one gene one enzyme concept) के पश्चात् यह निश्चित हो गया कि अनेक रोग जीनी व्यतिक्रम (genetic disorder) के कारण होते हैं। मानव में होने वाले ऐसे कुछ रोग निम्नलिखित हैं –

1. दात्र कोशिका अरक्तता (Sickle cell anaemia) – यह मनुष्य में एक अप्रभावी जीन से होने वाला रोग है। जब अप्रभावी जीन समयुग्मकी (Hb Hb) अवस्था में होती है, तब सामान्य हीमोग्लोबिन के स्थान पर असामान्य हीमोग्लोबिन का निर्माण होने लगता है। अप्रभावी जीन के कारण हीमोग्लोबिन की बीटा शृंखला ( 3-chain) में छठे स्थान पर ग्लूटैमिक अम्ल (glutamic acid) का स्थान वैलीन (valine) ऐमीनो अम्ल ले लेता है।

असामान्य हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन का वहन नहीं कर सकता तथा लाल रुधिराणु हँसिए के आकार के (sickle shaped) हो जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में घातक रक्ताल्पता (anaemia) हो जाती है। जिससे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। विषमयुग्मकी व्यक्ति सामान्य होते हैं, किन्तु ऑक्सीजन का आंशिक दाब कम होने पर इनके लाल रुधिराणु हँसिए के आकार के हो जाते हैं। HbA जीन सामान्य हीमोग्लोबिन के लिए है तथा HbS जीन दात्र कोशिका हीमोग्लोबिन के लिए है।
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2. फिनाइलकीटोन्यूरिया (Phenylketonuria) – यह रोग एक अप्रभावी जीन के कारण होता है। इस लक्षण का अध्ययन सर्वप्रथम सर आर्चीबाल्ड गैरड (Sir Archibald Gariod) ने किया था।

फिनाइलएलैनीन (phenylalanine) ऐमीनो अम्ल का उपयोग अनेक उपापचयी पथ (metabolic pathways) में होता है। प्रत्येक पथ में अनेक एन्जाइमें भाग लेते हैं। किसी भी एक एन्जाइम का निर्माण न होने से वह पथ पूर्ण नहीं हो पाता जिससे रोग उत्पन्न हो जाता है। एक अप्रभावी जीन के कारण फिनाइलएलैनीन से टायरोसीन (tyrosine) के निर्माण के लिए आवश्यक एन्जाइम का निर्माण नहीं हो पाता, इस कारण रुधिर में फिनाइलएलैनीन की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है तथा इसका स्रावण मूत्र में भी होने लगता है। इस अवस्था को फिनाइलकीटोन्यूरिया (phenylketonuria) या PKU कहते हैं। ऐसे बालकों में मस्तिष्क अल्पविकसित रह जाता है। I.Q. का स्तर सामान्यतः 20 से कम रहता है।
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘आनुवंशिकी का जनक किसे कहा जाता है? (2015)
(क) ह्यूगो डी ब्रीज
(ख) कार्ल कोरेन्स
(ग) ग्रेगर जे० मेंडल
(घ) एरिक वॉन सरमेक
उत्तर
(ग) ग्रेगर जे० मेंडल

प्रश्न 2.
वंशागति (आनुवंशिक) इकाई है (2014, 15)
(क) गुणसूत्र
(ख) जीन प्रारूप
(ग) गॉल्जीकाय
(घ) जीन
उत्तर
(घ) जीन

प्रश्न 3.
मेंडल के एक गुण प्रसंकरण में कौन-सी पीढ़ी हमेशा विषमयुग्मजी होती है? (2016)
(क) प्रथम सन्तानीय पीढ़ी
(ख) द्वितीय सन्तानीय पीढ़ी
(ग) तृतीय सन्तानीय पीढ़ी
(घ) जनक पीढ़ी
उत्तर
(क) प्रथम सन्तानीय पीढ़ी

प्रश्न 4.
यदि एक विषमयुग्मजी लम्बे पौधे का एक समयुग्मजी बौने पौधे के साथ क्रॉस कराया जाये तो बौने पौधों का प्रतिशत होगा (2015)
(क) 50%
(ख) 25%
(ग) 75%
(घ) 100%
उत्तर
(क) 50%

प्रश्न 5.
गुलाबी फुल वाले गुलाबाँस में स्वनिषेचन से प्राप्त प्ररूपी अनुपात होगा- (2018)
(क) 1: 2:1
(ख) 3 : 1
(ग) 1: 1:1 : 1
(घ) 2:1
उत्तर
(क) 1 : 2 : 1

प्रश्न 6.
प्रथम सन्तानीय पीढ़ी की सन्तान का दोनों जनक में से किसी एक के साथ किया गया प्रसंकरण है (2017)
(क) जाँच प्रसंकरण (टेस्ट क्रॉस)
(ख) संकरे पूर्वज प्रसंकरण (बैक क्रॉस)
(ग) अन्योन्यता प्रसंकरण (रेसीप्रोकल क्रॉस)
(घ) एक गुण प्रसंकरण (मोनोहाइब्रिड क्रॉस)
उत्तर
(ख) संकर पूर्वज प्रसंकरण (बैक क्रॉस)

प्रश्न 7.
एण्टीबॉडीज हैं। (2014)
(क) लिपिड
(ख) खनिज
(ग) प्रोटीन्स
(घ) शर्करा
उत्तर
(ग) प्रोटीन्स

प्रश्न 8.
निम्न में से कौन-सा रक्त समूह सार्विक दाता कहलाता है? (2017)
(क) A
(ख) O
(ग) B
(घ) AB
उत्तर
(ख) O

प्रश्न 9.
रुधिर वर्ग ‘O’ वाली स्त्री ‘AB’ रुधिर वर्ग वाले पुरुष से शादी करती है। उनके पुत्र का रुधिर वर्ग कौन-सा हो सकता है? (2011, 16)
(क) A रुधिर वर्ग
(ख) ‘B’ रुधिर वर्ग
(ग) A या ‘B’ रुधिर वर्ग
(घ) AB’ रुधिर वर्ग
उत्तर
(ग) A या ‘B’ रुधिर वर्ग

प्रश्न 10.
रुधिर वर्ग ‘A’ वाले लड़के को निम्न में से किस रुधिर समूह का रक्त आधान किया जा सकता है? (2010)
(क) केवल ‘O’
(ख) केवल AB’
(ग) ‘A’ तथा ‘O’
(घ) ‘A’ तथा ‘B’
उत्तर
(ग) ‘A’ तथा ‘O’

प्रश्न 11.
सन्तान को पिता से कितने जीन्स प्राप्त होते हैं? (2017)
(क) 25%
(ख) 50%
(ग) 75%
(घ) 25% से 50%
उत्तर
(ख) 50%

प्रश्न 12.
‘मंगोली जड़ता’ किसके कारण होती है? (2014, 16)
(क) लिंग गुणसूत्रों की एकलसूत्रता
(ख) 21वीं जोड़ी के अलिंगसूत्रों की एकलसूत्रता
(ग) लिंग गुणसूत्रों की एकाधिसूत्रता
(घ) 21वीं जोड़ी के अलिंगसूत्रों की एकाधिसूत्रता
उत्तर
(घ) 21वीं जोड़ी के अलिंगसूत्रों की एकाधिसूत्रता

प्रश्न 13.
टरनर सिण्ड्रोम के लिए निम्नलिखित में से कौन सही है? (2016)
(क) AAXO
(ख) AAXYY
(ग) AAXXY
(घ) AAXXX
उत्तर
(क) AAXO

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वंशागति या आनुवंशिकता तथा आनुवंशिकी में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2017)
उत्तर
आनुवंशिक लक्षणों के जनकों से सन्तति में पहुँचने को आनुवंशिकता कहते हैं। विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत आनुवंशिक लक्षणों एवं उनकी वंशागति का अध्ययन किया जाता है, आनुवंशिकी कहलाता है।

प्रश्न 2.
मेंडल ने अपने प्रयोग के लिए कितने लक्षणों का चुनाव किया? किन्हीं चार लक्षणों के नाम लिखिए।
(2015, 17)
उत्तर
मंडल ने अपने प्रयोग के लिए सात जोड़ी विपर्यासी लक्षणों का चुनाव किया। उदाहरणार्थ –

  1. पुष्पों का रंग-बैंगनी तथा सफेद
  2. बीज का रंग-हरा तथा पीला।
  3. पौधे की लम्बाई-लम्बा तथा बौना।
  4. बीज का आकार–गोल एवं झुर्रादार बीज।

प्रश्न 3.
संकर-पूर्वज संकरण (back cross) तथा परीक्षण संकरण (test cross) में अन्तर बताइए।
(2014, 15, 17, 18)
उत्तर
जब किसी संकर को किसी भी जनक से संकरण कराया जाता है तो इसे संकर-पूर्वज संकरण कहते हैं जबकि प्रथम पीढ़ी (F1) जीव एवं समयुग्मकी अप्रभावी लक्षण वाले जीव के मध्य कराये गये संकरण को परीक्षण संकरण कहते हैं।

प्रश्न 4.
सर्वग्राही तथा सर्वदायी रक्त समूह कौन हैं? इनके नाम लिखिए। (2014)
या
किस रुधिर वर्ग का मनुष्य सर्वग्राही होता है? (2010)
उत्तर
‘AB’ रक्त समूह का मनुष्य सर्वग्राही तथा ‘O’ रक्त समूह को मनुष्य सर्वदायी होता है।

प्रश्न 5.
रुधिर वर्ग ‘O’ वाला एक पुरुष रुधिर वर्ग ‘AB’ वाली एक स्त्री से शादी करता है। उनकी संतानों का रुधिर वर्ग क्या होगा? (2017)
उत्तर
यदि पुरुष व स्त्री के रुधिर वर्ग क्रमशः ‘O’ और ‘AB’ हैं तो इनकी संतानों में केवल A अथवा ‘B’ रुधिर वर्ग की सम्भावना होती है।
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प्रश्न 6.
विभिन्नता से आप क्या समझते हैं? कोई दो प्रकार की विभिन्नताएँ बताइए। (2015, 18)
उत्तर
एक ही माता-पिता की विभिन्न संतानों में अंतर पाये जाते हैं। इस प्रकार जीवधारियों के बीच में पाये जाने वाले अंतरों को विभिन्नताएँ कहते हैं। विभिन्नता के दो मुख्य प्रकार निम्नवत् हैं –

  1. दैहिक विभिन्नताएँ
  2. जननिक विभिन्नताएँ

प्रश्न 7.
आनुवंशिक रोग क्या है? मनुष्य में इस रोग के दो उदाहरण लिखिए। (2015)
उत्तर
वे रोग जो किसी संतान को अपने माता-पिता से आनुवंशिक रूप से प्राप्त होते हैं, आनुवंशिक रोग कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-वर्णान्धता तथा हीमोफीलिया।

प्रश्न 8.
लिंग सहलग्न लक्षण को परिभाषित कीजिए। मनुष्य में लिंग सहलग्न वंशागति के द्वारा उत्पन्न दो व्याधियों के नाम लिखिए। (2014,17)
उत्तर
प्राणियों में कुछ आनुवंशिक लक्षणों की वंशागति लिंग से सम्बन्धित होती है। इनका सम्बन्ध लिंग गुणसूत्रों से होने के कारण इन्हें लिंग सहलग्न लक्षण कहते हैं; जैसे-मनुष्य में वर्णान्धता, हीमोफीलिया आदि।

प्रश्न 9.
हीमोफीलिया को ब्लीडर रोग क्यों कहते हैं? (2017)
उत्तर
क्योंकि इस रोग में चोट लग जाने या कट जाने पर रक्त का थक्का नहीं बनता जिसके कारण रक्त लगातार बहता रहता है।

प्रश्न 10.
ओटोसोमल ट्राइसोमी के दो उदाहरण दीजिए तथा इनमें गुणसूत्रों की संख्या एवं अन्य अपसामान्यताएँ बताइए। (2009, 16)
या
मानव में गुणसूत्रीय व्यतिक्रम से उत्पन्न होने वाले दो रोगों के नाम तथा उनके गुणसूत्र विन्यास लिखिए। (2014)
उत्तर

  1. 21वें ओटोसोमल गुणसूत्र की ट्राइसोमी के कारण मंगोलिज्म या डाउन्स सिण्ड्रोम विकसित होता है। इनमें गुणसूत्रों की कुल संख्या 47 होती है।
  2. 18वें ओटोसोमल गुणसूत्र की ट्राइसोमी के कारण एडवर्ड्स सिण्ड्रोम विकसित होता है। इनमें गुणसूत्रों की कुल संख्या 47 होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में अन्तर बताइए –
(क) जीन प्रारूप एवं लक्षण प्रारूप (2015, 2017)
(ख) प्रभावी कारक एवं अप्रभावी कारक (2015, 17)
उत्तर
(क) जीन प्रारूप एवं लक्षण प्रारूप में अन्तर जीन प्रारूप
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(ख) प्रभावी और अप्रभावी कारक में अन्तर
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प्रश्न 2.
पक्षियों में लिंग निर्धारण किस प्रकार होता है? (2017)
उत्तर
पक्षियों में लिंग निर्धारण
ZW – ZZ गुणसूत्रों द्वारा लिंग निर्धारण (Sex Determination by ZW-ZZ Chromosomes) – यह क्रियाविधि कुछ कीटों (तितली और मॉथ) और कुछ कशेरुकियों (मछलियों, सरीसृपों व पक्षियों) में पायी जाती है। नर में दो समरूपी लिंग गुणसूत्र (hormomorphic sex chromosomes) होते हैं। जिन्हें ZZ से निरूपित किया जाता है। इनसे समयुग्मक (homogametes) उत्पन्न होते हैं। इसके विपरीत मादा में दो विषमरूपी लिंग गुणसूत्र (heteromorphic sex chromosomes) पाये जाते हैं। जिन्हें ZW से प्रदर्शित किया जाता है। इनसे विषमयुग्मक (heterogametes) उत्पन्न होते हैं। इसलिए मादा दो प्रकार के अण्डाणु उत्पन्न करती है जिनमें Z या W गुणसूत्र होते हैं। नर में शुक्राणु समान प्रकार के होते हैं।

अतः इन जीवों में लिंग निर्धारण मादा के W गुणसूत्र द्वारा होता है। जब नर का शुक्राणु मादा के z युग्मक से संलयन करता है तो ZZ युग्मनज बनता है जिससे नर संतति उत्पन्न होती है। यदि शुक्राणु मादा के w युग्मक से संलयन करता है तो ZW युग्मनज (zygote) बनता है जो मादा का विकास करता है। इस प्रकार की संतति में 1:1 अनुपात उत्पन्न होने की सम्भावना होती है।

प्रश्न 3.
कोई भी बच्चा वर्णान्ध नहीं पैदा हुआ जबकि उनके पिता वर्णान्ध थे। कारण सहित समझाइए। (2013)
उत्तर
जब एक वर्णान्ध पुरुष का विवाह एक सामान्य स्त्री से किया जाता है तो इन दोनों से उत्पन्न होने वाली सभी पुत्रियाँ वाहक होंगी इनमें वर्णान्धता के लक्षण प्रकट नहीं होते हैं जबकि सभी पुत्र सामान्य होंगे। इसे निम्नवत् प्रदर्शित किया जा सकता है –
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प्रश्न 4.
हीमोफीलिया से ग्रसित एक पुरुष का विवाह एक सामान्य स्त्री से किया गया। उनकी संतानों में इस रोग की वंशागति को रेखाचित्र की सहायता से समझाइए। (2015)
उत्तर
यदि हीमोफीलिया से ग्रसित एक पुरुष किसी सामान्य स्त्री से विवाह करता है तो उनके सभी पुत्र सामान्य तथा सभी पुत्रियाँ रोग की वाहक होंगी।
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Daughters = All carriers
Sons = All normal

प्रश्न 5.
क्लाइनेफेल्टर्स सिण्ड्रोम किसे कहते हैं? यह कैसे बनते हैं? ऐसे मनुष्यों जिनमें यह उपस्थित है, के लक्षण लिखिए। (2015, 17)
या
लिंग गुणसूत्रीय ट्राइसोमी पर टिप्पणी लिखिए। (2016)
उत्तर
क्लाइनेफेल्टर्स सिण्ड्रोम – यह सिण्ड्रोम लिंग गुणसूत्रों की ट्राइसोमी के कारण होता है। इनमें XXY लिंग गुणसूत्र होते हैं। अत: इनमें 47 (44 + XXY) गुणसूत्र होते हैं। इनमें पुरुष व स्त्रियों के लक्षणों का मिश्रण पाया जाता है। Y-गुणसूत्र की उपस्थिति के कारण इनका शरीर लम्बा व सामान्य पुरुषों जैसा होता है लेकिन अतिरिक्त x गुणसूत्र के कारण इनके वृषण तथा अन्य जननांग व जनन ग्रन्थियाँ अल्प-विकसित होती हैं। इसे हाइपोगोनेडिज्म (hypogonedism) कहते हैं। इनमें शुक्राणुओं का निर्माण नहीं होता अतः ये नर बंध्य (male sterile) होते हैं। स्त्रियों के समान इनके चेहरे और शरीर पर बाल कम होते हैं और स्त्रियों के समान स्तन भी विकसित हो जाते हैं। इसे गाइनोकोमेस्टिया (gynaecomastia) कहते हैं।

अमेरिकी वैज्ञानिक एच०एफ० क्लाइनेफेल्टर (H.E Klinefelter) ने सन् 1942 में इस प्रकार के असामान्य पुरुषों का वर्णन किया। लगभग 500 पुरुषों में से एक में क्लाइनेफेल्टर्स सिण्ड्रोम पाया जाता है।

ये असामान्य पुरुष असामान्य अण्डों (XX eggs) व सामान्य शुक्राणुओं (Y sperms) से या सामान्य अण्डों (X eggs) व असामान्य शुक्राणुओं (XY sperms) में निषेचन के फलस्वरूप बनते हैं। ये असामान्य अण्डे या शुक्राणु ४ गुणसूत्रों के अवियोजन (non-disjunction) से बनते हैं।

ऐसे क्लाइनेफेल्टर्स सिण्ड्रोम भी होते हैं जिनमें लिंग गुणसूत्रXYY या XXX या तीन से अधिक XXXY, XXXXY, XXXXXY होते हैं। XYY सिण्ड्रोम वाले पुरुष लम्बे, मूर्ख, कामुक और गुस्सैल एवं उग्र स्वभाव के अतिनर (supermales) होते हैं। इसके विपरीत XXX या XXXX वाली अतिमादाएँ (superfemale or metafemales) मूर्ख और बाँझ होती हैं। दो या दो से अधिक X-गुणसूत्र वाले सभी नर नपुंसक होते हैं।

प्रश्न 6.
डाउन सिण्ड्रोम किसे कहते हैं? इसके कारण एवं लक्षण बताइए। (2010)
या
‘मंगोलियन जड़ता क्या है? इसके दो प्रमुख लक्षण लिखिए। (2015)
या
डाउन्स सिण्ड्रोम के बारे में समझाइए। (2017)
उत्तर
डाउन सिण्ड्रोम
यह रोग गुणसूत्रों में संख्या की अनियमितता के कारण होने वाले परिवर्तनों से होता है। मनुष्य में कभी-कभी गुणसूत्रों (chromosomes) की संख्या 46 के स्थान पर 47 हो जाती है। यह अतिरिक्त गुणसूत्र 21वें समजात जोड़े में तीसरा बढ़ जाने के कारण होता है। इसे डाउन संलक्षण (Down’s syndrome) भी कहते हैं। यह अतिरिक्त गुणसूत्र बच्चे की बुद्धि के सामान्य विकास को रोक देता है। संख्या में अधिक गुणसूत्र का कारण प्रायः अण्ड कोशिका (egg cell) के निर्माण में होने वाली गड़बड़ी के कारण हो सकता है।

47 गुणसूत्रों वाली ऐसी सन्तान का मस्तिष्क अविकसित होता है; सिर गोल, होंठ नीचे की ओर को लटका रहता है, माथा अनावश्यक रूप से चौड़ा होता है; त्वचा खुरदरी होती है; आँखें तिरछी तथा पलकें वलित (folded) होती हैं और मुँह हर समय खुला रहता है। ये मन्द बुद्धि होते हैं। इनके जननांग तो सामान्य होते हैं किन्तु पुरुष नपुंसक होते हैं। इस आनुवंशिक रोग को मंगोलिक बेवकूफी या मंगोलियन जड़ता (Mangolian idiocy) भी कहते हैं।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मेंडल के नियमों की व्याख्या कीजिए। (2013)
या
मेंडलवाद पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए। (2014)
या
मेंडल के द्विगुण संकरण प्रयोग का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। (2013)
या
मेंडल के स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम को समझाइए। (2016, 17)
या
मेंडल का लक्षणों के पृथक्करण का नियम क्या है? इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम क्यों कहते हैं?
(2010, 17)
या
मेंडल के पृथक्करण के नियम का उपयुक्त रेखाचित्रों की सहायता से वर्णन कीजिए। (2018)
उत्तर
मेंडल के वंशागति के नियम
मेंडल ने अपने एकसंकर संकरण (monohybrid cross) तथा द्विसंकर संकरण (dihybrid cross) के पश्चात् जो निष्कर्ष निकाले उन्हें मेंडल के आनुवंशिकता के नियम कहते हैं। इनका विस्तृत वर्णन निम्न प्रकार है –
1. प्रभाविता का नियम (Law of Dominance) – “जब एक जोड़ा विपर्यासी लक्षणों को धारण करने वाले दो शुद्ध जनकों में परस्पर संकरण कराया जाता है तो उनकी संतानों में विरोधी में से केवल एक प्रभावी लक्षण परिलक्षित होता है और दूसरा अप्रभावी लक्षण व्यक्त नहीं हो पाता।”

उदाहरण – मटर के पौधे में ऊँचाई के गुण के दो विपर्यासी लक्षण लम्बापन (tallness) और बौनापन (dwarfness) पर विचार किया जाये तो शुद्ध लम्बे पौधों में लम्बाई के समयुग्मजी कारकों का जोड़ा होगा। लम्बे पौधों का जीनोटाइप TT होगा। इसी प्रकार शुद्ध बौने पौधों का जीनोटाइप tt होगा। जब लम्बे (TT) और बौने (tt) पौधों के बीच संकरण कराया जायेगा तो F1 पीढ़ी के सभी पौधों में जीनोटाइप (Tt) होगा अर्थात् एक कारक लम्बाई का (T) और दूसरा बौनेपन का (t) होगा। चूंकि T और t में से T प्रभावी है; अत: F1 पीढ़ी के सभी पौधे लम्बे होंगे।
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प्रभाविता के नियम के अनुसार निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं –

  1. लक्षणों का नियन्त्रण, नियन्त्रण इकाइयों द्वारा होता है जिन्हें कारक कहते हैं।
  2. कारक जोड़ों में पाये जाते हैं।
  3. असमान कारकों वाले जोड़े में एक सदस्य प्रभावी (dominant) होता है और दूसरा अप्रभावी (recessive) होता है।

2. कारकों के पृथक्करण या युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of Segregation or Law of Purity of Gametes) – लक्षण कारकों के प्रत्येक सजातीय जोड़े के दोनों कारक युग्मक बनाते समय पृथक् हो जाते हैं और इनमें से केवल एक सदस्य कारक ही किसी एक युग्मक में पहुँचता है।

जब परस्पर विरोधी शुद्ध आनुवंशिक लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है, प्रथम पीढ़ी (F1) में केवल प्रभावी लक्षण ही प्रकट होते हैं परन्तु दूसरी पीढ़ी (F2) की संतानों में इन विपरीत लक्षणों का एक निश्चित अनुपात में पृथक्करण (segregation) हो जाता है। अतः इसे पृथक्करण का नियम (law of segregation) कहते हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि प्रथम पीढ़ी में साथ-साथ रहने के बावजूद भी गुणों का आपस में मिश्रण नहीं होता। युग्मक-निर्माण के समय ये गुण पृथक् हो जाते हैं और युग्मकों की शुद्धता बनी रहती है। इसीलिए, इस नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम (law of purity of gametes) भी कहते हैं।

उदाहरण – जब मटर के एक पौधे का जिसमें लाल पुष्प (red flower) होते हैं, सफेद पुष्प (white flower) से संकरण कराया जाता है तो F1 पीढ़ी में केवल लाल पुष्प वाले पौधे उत्पन्न होते हैं। अब यदि F1 पीढ़ी के पौधों में स्व-परागण (self-pollination) कराया जाता है। तो F2 पीढ़ी के पौधे दोनों प्रकार (लाल व सफेद पुष्प वाले) के उत्पन्न होते हैं। लाल एवं सफेद पुष्प वाले पौधों के बीच 3:1 को अनुपात पाया जाता है। लाल पुष्प वाले पौधे संख्या में 1/3 शुद्ध (pure) और 2/3 अशुद्ध या संकर (hybrid) होते हैं। अगली तीसरी पीढ़ी F3 में इनमें से एक-तिहाई अर्थात् 1/3 में केवल लाल पुष्प बनते हैं, शेष दो-तिहाई अर्थात् 2/3 लाल पुष्पों से अगली पीढ़ी में पुन: लाल व सफेद पुष्प बनते हैं।

जब लाल पुष्प वाले शुद्ध पौधे जिसके कारक RR हैं, का परागण सफेद पुष्प वाले पौधे जिसके कारक rr हैं, से कराया जाता है तब इनके युग्मक (gametes) R तथा r आपस में संयोजन करके F1 पीढ़ी के सभी लाल पुष्पों का निर्माण करते हैं क्योंकि कारक R लाल रंग की। अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक होता है। F1 पीढ़ी के सभी पौधों में R कारक उपस्थित होता है। और इसके प्रभावी होने के कारण कारक r अपनी अभिव्यक्ति प्रदर्शित नहीं कर पाता। अतः R प्रभावी तथा r अप्रभावी कारक है।

F1 पीढ़ी में प्राप्त चारों पौधे लाले पुष्प वाले होते हैं। जब F1 पीढ़ी के इन सभी पौधों में स्व-परागण कराया जाता है तो F2 पीढ़ी में रंग के अनुसार दो प्रकार के पौधे उत्पन्न होते हैं। अर्थात् लाल पुष्प वाले एवं सफेद पुष्प वाले पौधों के बीच क्रमशः 3 : 1 का अनुपात होता है। परन्तु कारक सिद्धांत के अनुसार दो पौधे शुद्ध (एक लाल पुष्प वाला तथा एक सफेद पुष्प वाला) जिसमें से एक में RR कारक तथा दूसरे में rr कारक होते हैं जो दोनों ही जनक लक्षणों के शुद्ध रूप होते हैं।

शेष दो पौधे मिश्रित लक्षण वाले अर्थात् Rr कारक वाले होते हैं। यद्यपि इसमें R के प्रभावी होने के कारण लक्षण प्रारूप (phenotype) लाल पुष्प वाले पौधे ही होते हैं। जब RR पौधे में स्व-परागण कराया जाता है तो अगली संतति में इससे लाल पुष्प वाले शुद्ध पौधे उत्पन्न होंगे। इसी प्रकार rr पौधे में स्व-परागण कराया जाए तो इसकी अगली पीढ़ी में सफेद पुष्प वाले शुद्ध पौधे प्राप्त होते हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर F2 पीढ़ी में 3 लाल पुष्प वाले तथा 1 सफेद पुष्प वाला पौधा उत्पन्न होता है। इन प्रयोगों में मेंडल ने पाया कि कारक प्रभावी (dominant) या अप्रभावी (recessive) होते हैं परन्तु यह परिवर्तित नहीं होते हैं लेकिन समय आने पर अप्रभावी कारक पृथक् होकर अपनी अभिव्यक्ति दर्शाते हैं।

मेंडल के उपरोक्त पृथक्करण नियम (segregation law) को पुन्नेट वर्ग या चैकर बोर्ड (Punne’s square or Checker board) द्वारा नीचे प्रदर्शित किया गया है –
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 5 Principles of Inheritance and Variation img-22
पृथक्करण के नियम के आधार पर मंडल ने भविष्यवाणी की थी कि लाल पुष्प वाले पौधों में एक-तिहाई ऐसे होंगे जो F3 पीढ़ी में केवल लाल पुष्प वाली संतति उत्पन्न करेंगे तथा दो-तिहाई ऐसे होंगे जिनकी संतति मिश्रित होगी, जिसमें लाल एवं सफेद पुष्प वाले पौधे 3 : 1 के अनुपात में होंगे। वास्तविक प्रयोगों से प्राप्त आँकड़े “लक्षणों के पृथक्करण’ (segregation of characters) के सैद्धान्तिक आधार पर अनुमानित परिणामों के पूर्णतः अनुरूप हैं।

3. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment = Law of Free Recombination)-मेंडल ने अपने कुछ प्रयोगों में दो विपर्यासी लक्षणों को ध्यान में रखकर पर-परागण (cross pollination) अर्थात् संकरण कराया जिसे द्विगुण संकरण (dihybrid cross) कहते हैं। इस नियम के अनुसार जब दो जोड़ी विपर्यासी लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है तो इन लक्षणों का पृथक्करण स्वतंत्र रूप से होता है अर्थात् एक लक्षण की वंशागति दूसरे को प्रभावित नहीं करती है।”

उदाहरण – मेंडल ने मटर के दो विपर्यासी लक्षण, बीजों के आकार तथा इनके रंग का चयन किया। मंडल ने अपने प्रयोग में गोल (round) तथा पीले (yellow) बीज वाले पौधों का संकरण (cross), झुर्रादार (wrinkled) तथा हरे (green) बीज वाले पौधों से कराया। पर-परागण द्वारा प्राप्त F1 पीढ़ी में उत्पन्न पौधों से प्राप्त सभी बीज गोल तथा पीले रंग के पाए गए क्योंकि गोल आकृति एवं पीला रंग, झुरींदार आकृति एवं हरे रंग पर प्रभावी थे। झुरींदार आकृति एवं हरा रंग अप्रभावी होने के कारण छिपे रहते हैं।

जब F1 पीढ़ी के पौधों में स्व-परागण (self-pollination) कराया जाता है तो F2 पीढ़ी में निम्न चार प्रकार के बीज उत्पन्न करने वाले पौधे बनते हैं –

  • गोल तथा पीले (Round and yellow)
  • झुरींदार तथा पीले (Wrinkled and yellow)
  • गोल तथा हरे (Round and green)
  • झुरींदार तथा हरे (Wrinkled and green)

जब जनक पीढ़ी में गोल व पीले (round and yellow) बीज वाले पौधों तथा झुरींदार व हरे (wrinkled and green) बीज वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है तो जनक पीढ़ी के कारक RRYY गोल तथा पीले (round and yellow) के लिए तथा ryy झुरींदार तथा हरे (wrinkled and green) के लिए अपने युग्मक (gametes) Ry तथा ry बनाते हैं। ये युग्मक प्रथम पीढ़ी (F1) में सभी गोल तथा पीले बीज वाले पौधे उत्पन्न करते हैं क्योंकि इसमें RY कारक है जो गोल तथा पीले गुण के लिए प्रभावी (dominant) है।

F1 पीढ़ी के पौधों में स्व-परागण (self-pollination) कराने पर उससे चार प्रकार के बीज बनते हैं–हरे व झुरींदार, हरे व गोल, गोल व पीले तथा पीले व झुरींदार। इससे यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि आनुवंशिक लक्षण स्वतंत्र होते हैं। चूंकि पीला रंग सदा गोल बीजों के साथ ही नहीं वरन् झुर्रादार बीजों के साथ भी आता है अथवा हरा रंग सदा झुरींदार बीजों के साथ ही नहीं वरन् गोल बीजों के साथ भी आता है।

F1 पीढ़ी के सभी पौधों में युग्मक बनने पर चार प्रकार के युग्मक क्रमशः RY, Ry, rY तथा ry बनते हैं। जब ये युग्मक दूसरे पौधों के इसी प्रकार के युग्मकों से मिलते हैं तो निम्न प्रकार के परिणाम प्राप्त होते हैं –
लक्षण प्रारूपी अनुपात (Phenotype Ratio)

  • 9 पौधे गोल व पीले बीज वाले
  • 3 पौधे गोल व हरे बीज वाले
  • 3 पौधे झुर्रादार व पीले बीज वाले तथा
  • 1 पौधा झुरींदार व हरे बीज वाला

उपरोक्त चारों प्रकार के पौधों के लक्षण प्रारूप को 9:3:3:1 के अनुपात द्वारा भी प्रदर्शित किया जा सकता है जबकि कारक (factor) के आधार पर जीनप्रारूपी अनुपात (genotypic ratio) निम्न प्रकार होता है –
1. गोल तथा पीले बीज वाले पौधे (Round and Yellow Seeded Plants) – जो संख्या में 9 होते हैं, केवल RY के प्रभावी (dominant) होने के आधार पर होते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं –

  • 4 पौधे RY ry कारक वाले
  • 2 पौधे RY Ry कारक वाले
  • 2 पौधे RY rY कारक वाले
  • 1 पौधा RY RY कारक वाला

इस प्रकार 9 पीले व गोल बीज वाले पौधे कारकों के आधार पर 2: 2:2: 2:1 का अनुपात रखते हैं।

2. पीले तथा झूदार बीज वाले पौधे (Yellow and Wrinkled Seeded Plants) – जो संख्या में 3 होते हैं, केवल rY के प्रभावी (dominant) होने के आधार पर होते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं –

  • 2 पौधे ry rY कारक (factor) वाले
  • 1 पौधा rY ry कारक वाला

इस प्रकार 3 झुरौंदार पीले बीजों वाले पौधे कारकों के आधार पर 2:1 का अनुपात रखते हैं।

3. गोल तथा हरे बीज वाले पौधे (Round and Green Seeded Plants) – Ry कारकों के प्रभावी (dominant) होने के आधार पर होते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं –

  • 2 पौधे Ry ry कारक (factor) वाले
  • 1 पौधा Ry Ry कारक वाला

इस प्रकार 3 गोल तथा हरे बीज वाले पौधे कारकों के आधार पर 2:1 का अनुपात रखते हैं।

4. झुर्सदार तथा हरे बीज वाला पौधा (Wrinkled and Green Seeded Plants) – केवल एक ही बनता है। इसमें ryry कारक होते हैं। यदि लक्षणों के दोनों युग्म एक-दूसरे से स्वतंत्र रहकर व्यवहार करें तो भी उनसे उपरोक्त परिणामों की अपेक्षा होगी। यदि अलग-अलग लक्षण 3:1 के अनुपात में विसंयोजित होते हैं तो प्रायिकता का सिद्धांत (theory of probability) लागू होगा। इस सिद्धांत के अनुसार दो या दो
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से अधिक स्वतंत्र लक्षणों के एक साथ पाये जाने की सम्भावना उनके अलग-अलग पाये जाने की सम्भावनाओं का गुणनफल होगा। ऊपर वर्णित किये गये चारों संयोजनों (combinations) या लक्षण प्रारूपों (phenotype) के पाये जाने की सम्भावनाओं की गणना इस आधार पर की जा सकती हैं कि प्रत्येक लक्षण के लिए संतति का 3/4 भाग प्रभावी और 1/4 भाग अप्रभावी होता है।

प्रश्न 2.
गुणात्मक विकल्पी (बहु-विकल्पी) से आप क्या समझते हैं? मानव में रुधिर वर्गों के प्रकार एवं उनकी वंशागति का वर्णन कीजिए। (2015, 17)
या
एबीओ रुधिर वर्ग की विस्तृत विवेचना कीजिए तथा उनकी वंशागति समझाइए। (2017)
उत्तर
बहु-विकल्पी (गुणात्मक विकल्पी)
बहु-विकल्पी तीन, चार अथवा अधिक युग्मविकल्पियों का वह सेट (set) है जो सामान्य जीन में उत्परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं और सजातीय गुणसूत्रों (homologous chromosomes) में उसी बिन्दु पथ (loci) पर स्थित रहते हैं। वास्तव में बहु-विकल्पी एक सामान्य जीन की विभिन्न अभिव्यक्तियों को प्रदर्शित करते हैं।
उदाहरणमानव में रुधिर वर्ग (Blood Groups in Man)-मनुष्यों में रुधिर वर्गों की वंशागति बहु-विकल्पता का उदाहरण है। मनुष्य की आबादी में चार प्रकार के रुधिर वर्ग (blood group) A, B, AB तथा 0 पाए जाते हैं। इनकी खोज कार्ल लैण्डस्टीनर (Karl Landsteiner, 1902) ने की थी। रुधिर वर्गों का वर्गीकरण RBCs की कोशिका कला पर स्थित विशेष प्रोटीन पदार्थ या ग्लाइकोप्रोटीन (glycoproteins) पर निर्धारित होता है। इनको एन्टीजन अथवा एग्लूटीनोजन (Antigen or agglutinogens) कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-A तथा B.

  1. A रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों में होता है – प्रतिजन A (Antigen A)
  2. B रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों में होता है – प्रतिजन B (Antigen B)।
  3. AB रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों में होता है – प्रतिजन A तथा प्रतिजन B (Antigen A and Antigen B)।
  4. O रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों में कोई प्रतिजन (Antigen) नहीं होता है।

मनुष्यों के रुधिर प्लाज्मा में इन प्रतिजनों के प्रति विशिष्ट प्रोटीन्स पाए जाते हैं। इन्हें प्रतिरक्षी (antibodies) या एग्लूटीनिन्स (aglutinins) कहते हैं। ये भी दो प्रकार के होते हैं। इन्हें Anti-A या a तथा Anti-B या b द्वारा प्रदर्शित करते हैं।

  1. A रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों के प्लाज्मा में होती है-प्रतिरक्षी B या b
  2. B रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों के प्लाज्मा में होती है-प्रतिरक्षी A या a
  3. AB रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों के प्लाज्मा में कोई प्रतिरक्षी नहीं होता है।
  4. 0 रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों के प्लाज्मा में A तथा B दोनों प्रतिरक्षी होते हैं।

निम्नांकित तालिका में मनुष्य के विभिन्न रुधिर वर्गों तथा उनमें पाए जाने वाले प्रतिरक्षी और प्रतिजनों को प्रदर्शित किया गया है –
तालिका : रुधिर वर्ग तथा उसमें पाये जाने वाले प्रतिजन व प्रतिरक्षी
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ABO रुधिर वर्गों की वंशागति (Inheritance of ABO Blood Groups) – बर्नस्टीन (Bernstein, 1924-1925) ने ABO रुधिर वर्गों की वंशागति का पता लगाया। इसके अनुसार –

  1. O रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों की जीनी संरचना – l°l°
  2. A रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों की जीनी संरचना – LA lo या LA LA
  3. B रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों की जीनी संरचना – LB lo या LB LB
  4. AB रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों की जीनी संरचना – LA LB

इसका अभिप्राय है कि ABO रुधिर वर्गों की वंशागति के लिए लोकस (locus) पर दो अन्य एलील A व B भी पाए जाते हैं। इनको बहु-विकल्पी एलील्स (multiple alleles) कहते हैं। इन्हें l°, LA तथा LB द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इनमें से एलील A तथा एलील B, l° के प्रति प्रभावी (dominant) हैं। किंतु LA और LB ऐलील सह-प्रभावी (co-dominant) हैं अर्थात् एक साथ होने पर दोनों ही स्वयं को अभिव्यक्त करते हैं।

  1. एलील A या LA की उपस्थिति में A प्रतिजन बनता है।
  2. एलील B या LB की उपस्थिति में B प्रतिजन बनता है।
  3. एलील A तथा एलील B (LA LB) की उपस्थिति में दोनों, प्रतिजन A तथा प्रतिजन B बनते हैं।
  4. केवल एलील l° की उपस्थिति या LA व LB की अनुपस्थिति में कोई प्रतिजन नहीं बनता है।

ABO रुधिर वर्गों की वंशागति का चित्रात्मक निरूपण निम्न प्रकार किया जा सकता है –
1. रुधिर वर्ग A के लिए समयुग्मजी पुरुष द्वारा 0 रुधिर वर्ग वाली स्त्री (अथवा इसके विपरीत) से विवाह करने पर इनकी संतानों में A रुधिर वर्ग होगा।
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2. रुधिर वर्ग B के लिए समयुग्मजी पुरुष द्वारा 0 रुधिर वर्ग की स्त्री (या इसके विपरीत) से विवाह करने पर इनकी सभी संतानों में B रुधिर वर्ग होगा।
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3. A रुधिर वर्ग के लिए समयुग्मजी पुरुष द्वारा B रुधिर वर्ग की समयुग्मजी स्त्री से विवाह करने पर संतानें AB रुधिर वर्ग वाली होंगी।
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4. AB रुधिर वर्ग वाले पुरुष द्वारा AB रुधिर वर्ग वाली स्त्री से विवाह करने पर 25% संतानें A रुधिर वर्ग की, 50% AB रुधिर वर्ग की तथा 25% संतानें B रुधिर वर्ग की होंगी।
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5. विषमयुग्मजी A तथा B रुधिर वर्ग वाले स्त्री-पुरुषों से उत्पन्न संतानों में चारों प्रकार की संतानें 1:1:1:1 के अनुपात में उत्पन्न होने की सम्भावना है।
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6. अगर स्त्री व पुरुष के रुधिर वर्ग क्रमश: AB तथा ० हैं तो इनकी संतानों में केवल A अथवा B रुधिर वर्ग की सम्भावना होती है।
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प्रश्न 3.
लिंग सहलग्न लक्षण से आप क्या समझते हैं? मनुष्य में किन्हीं दो लिंग सहलग्न लक्षणों की वंशागति का वर्णन रेखाचित्रों की सहायता से कीजिए। (2011, 12, 13, 14, 15, 18)
या
लिंग सहलग्न वंशागति क्या है ? मनुष्य में लिंग सहलग्न लक्षणों की वंशागति का रेखाचित्रों की सहायता से वर्णन कीजिए। (2010, 14, 17, 18)
या
मनुष्य में लिंग सहलग्न वंशागति का उदाहरण सहित विस्तृत वर्णन कीजिए। (2010)
या
लिंग सहलग्न लक्षणों पर टिप्पणी लिखिए। (2013, 16)
या
वर्णान्धता क्या है? मनुष्य में वर्णान्धता की वंशागति का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (2015)
या
लिंग-सहलग्न लक्षण (विशेषक) किसे कहते हैं? लिंग प्रभावित और लिंग-सीमित लक्षणों में उदाहरणों सहित अन्तर बताइए। मनुष्य में किसी एक लिंग-सहलग्न लक्षण की वंशागति का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर
लिंग सहलग्न लक्षण तथा इनकी वंशागति
प्राय: लिंग गुणसूत्रों पर लक्षणों के जो जीन्स होते हैं उनका सम्बन्ध लैंगिक गुणों (sexual characters) से होता है। ये जीन्स ही जन्तु में लैंगिक द्विरूपता (sexual dimorphism) के लिए जिम्मेदार (responsible) होते हैं, फिर भी जन्तुओं का यह गुण अत्यन्त जटिल तथा व्यापक होता है। और इसे निर्मित करने के लिए अनेक ऑटोसोमल जीन्स (autosomal genes) भी प्रभावी होते हैं। दूसरी ओर लिंग गुणसूत्रों पर कुछ जीन्स लैंगिक लक्षणों के अतिरिक्त अन्य लक्षणों वाले अर्थात् कायिक या दैहिक (somatic) लक्षणों वाले भी होते हैं। ये लिंग सहलग्न जीन्स (sex linked genes) कहलाते हैं, जो लिंग सहलग्न लक्षण (sex linked characters) उत्पन्न करते हैं। इनकी वंशागति लिंग सहलग्न वंशागति (sex linked inheritance) अथवा लिंग सहलग्नता (sex linkage) कहलाती है। मनुष्य में इस प्रकार के लगभग 120 लक्षणों की वंशागति पायी गयी है।

मनुष्य में लिंग निर्धारित करने वाले गुणसूत्र X तथा Y गुणसूत्र कहलाते हैं। यद्यपि इनकी संरचना में भिन्नता दिखायी देती है, फिर भी वर्तमान जानकारी के अनुसार इन गुणसूत्रों में कुछ भाग समजात (homologous) होता है जो अर्द्धसूत्री विभाजन के समय सूत्रयुग्मन (synapsis) करते हैं, अन्यथा शेष भाग असमजात (non-homologous) होता है। उपर्युक्त आधार पर लिंग सहलग्न लक्षण तीन प्रकार के हो सकते हैं –

1. X-सहलग्न लक्षण (X-Linked Characters) – x-गुणसूत्रों के असमजात खण्डों पर इनके लक्षणों के जीन्स स्थित होते हैं। Y-गुणसूत्र पर इनका युग्म विकल्पी (allele) नहीं होता है। वंशागति में ये लक्षण पुत्रों को केवल माता से तथा पुत्रियों को माता व पिता दोनों से प्राप्त हो। सकते हैं। इन्हें डाइण्डुिक (diandric) लिंग सहलग्न लक्षण कहा जाता है; जैसे—वर्णान्धता (colour blindness), रतौंधी (night blindness) तथा हीमोफीलिया (haemophilia)।

2. Y-सहलग्न लक्षण (Y-Linked Characters) – इसके जीन्स Y-गुणसूत्रों के असमजात खण्डों पर स्थित होते हैं। इस प्रकार सहयोगी X-गुणसूत्रों पर इनके एलील्स (alleles) नहीं पाये जाते; अतः प्रत्येक सन्तति में पिता से केवल पुत्रों तक ही जाते हैं। इन्हें होलेण्डुिक लिंग सहलग्न गुण (holandric sex linked characters) भी कहते हैं तथा इनकी वंशागति को होलैण्डूिक वंशागति (holandric inheritance) कहा जाता है। उदाहरणार्थ- कर्णपल्लवों की हाइपरट्राइकोसिस (hypertrichosis of ears)

3. XY-सहलग्न लक्षण (XY-Linked Characters) – इनके जीन्स एलील्स के रूप में X एवं Y गुणसूत्रों के समजात खण्डों पर स्थित होते हैं; अतः इनकी वंशागति पुत्रों एवं पुत्रियों में सामान्य ऑटोसोमल लक्षणों (autosomal characters) की भाँति होती है। इन्हें अपूर्ण लिंग सहलग्न लक्षण (incomplete sex linked characters) भी कहा जाता है।

लिंग-प्रभावित लक्षण
मानव के कुछ ऐसे लक्षण भी होते हैं जिनके जीन तो ऑटोसोम्स पर होते हैं, परन्तु विकास व्यक्ति के लिंग से प्रभावित होता है। दूसरे शब्दों में, पुरुष और स्त्री में जीनरूप (genotype) समान होते हुए भी दृश्यरूप (phenotype) भिन्न होता है।

मानवों में गंजापन (baldness) काफी होता है। यह विकिरण (radiation) तथा थाइरॉइड ग्रन्थि की अनियमितताओं के कारण भी हो सकता है और आनुवंशिक भी। आनुवंशिक गंजापन एक ऑटोसोमल ऐलीली जीन जोड़ी (B, b) पर निर्भर करता है। समयुग्मजी अर्थात् होमोजाइगस प्रबल जीनरूप (BB) हो तो गंजापन पुरुषों और स्त्रियों दोनों में विकसित होता है, लेकिन विषमयुग्मजी अर्थात् हिटरोजाइगस जीनरूप (Bb) होने पर यह स्त्रियों में नहीं केवल पुरुषों में विकसित होता है, क्योंकि इस जीनरूप में इसके विकास के लिए नर हॉर्मोन्स का होना आवश्यक होता है। समयुग्मजी अर्थात् होमोजाइगस सुप्त जीनरूप (bb) में गंजापन नहीं होता।

लिंग-सीमित लक्षण
ऐसे आनुवंशिक लक्षणों के जीन भी ऑटोसोम्स में होते हैं। इनकी वंशागति सामान्य मेंडेलियन पद्धति के अनुसार होती है, लेकिन इनका विकास पीढ़ी-दर-पीढ़ी केवल एक ही लिंग के सदस्यों में होता है। गाय, भैंस आदि में दुग्ध का स्रावण, भेड़ों की कुछ जातियों में केवल नर में सींगों का विकास, मानव में दाढ़ी-मूंछ आदि लक्षण ऐसे ही होते हैं।
प्रायः दो प्रकार के लिंग सहलग्न रोगों का अध्ययन भली-भाँति हुआ है तथा इनकी वंशागति इस प्रकार से होती है –

उदाहरण – (i) वर्णान्धता की वंशागति (Inheritance of Colour Blindness)-वर्णान्धता से पीड़ित व्यक्ति प्रायः लाल वे हरे रंग में अन्तर नहीं कर पाते; अत: इस रोग को लाल-हरा अन्धापन (red-green blindness) भी कहा जाता है। प्रोटॉन दोष अथवा डाल्टॉनिज्म (proton defect or daltonism) इस रोग के अन्य नाम हैं। इस रोग के कारण चित्रकार, पेण्टर, वाहन चालक आदि अत्यधिक कठिनाई का अनुभव करते हैं। इस रोग का जीन अप्रभावी (recessive) होता है तथा लिंग गुणसूत्रों में से X-गुणसूत्र पर स्थित होता है। Y-गुणसूत्र पर इसका एलील नहीं पाया जाता। एक वर्णान्ध पुरुष और एक सामान्य स्त्री की सभी सन्ताने सामान्य होती हैं, परन्तु पुत्रियों में एक X-गुणसूत्र पर पिता का वर्णान्धता का अप्रभावी जीन पहुँचता है;

अतः ये इस जीन के वाहक (carrier) का कार्य करती हैं। एक सामान्य पुरुष तथा एक वाहक स्त्री की सन्तानों में केवल लड़कों में वर्णान्धता विकसित होती है तथा एक x-गुणसूत्र पर वर्णान्धता का जीन होने पर भी लड़कियों में यह रोग नहीं होता, परन्तु ये वाहक का कार्य करती हैं। एक अन्य स्थिति में यदि एक वाहक स्त्री एक वर्णान्ध पुरुष के साथ सहवास करती है तो होने वाली सन्तानों में आधे पुत्र वर्णान्ध व आधे सामान्य होंगे तथा आधी पुत्रियाँ वर्णान्ध व आधी पुत्रियाँ वाहक होंगी। इस प्रकार निम्नांकित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं –
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  1. स्त्रियाँ तभी वर्णान्ध होती हैं, जबकि स्वर्णान्धता के जीन दोनों (XX) गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं। क्योंकि वर्णान्धता का जीन अप्रभावी होता है और सामान्य स्थिति में X-गुणसूत्र पर इसका प्रभावी रोग को रोकने वाला जीन होता है।
  2. केवल एक ‘x’ गुणसूत्र पर वर्णान्धता का जीन स्थित होने पर स्त्री केवल वाहक का कार्य करती है।
  3. पुरुष में ‘x’ गुणसूत्र केवल एक ही होता है; अतः उस पर वर्णान्धता का जीन होने पर वह वर्णान्ध होता है।
  4. स्त्रियों में यह रोग लगभग 1-2% ही होता है।

उदाहरण – (ii) हीमोफीलिया की वंशागत (Inheritance of Haemophilia) – हीमोफीलिया (haemophilia) एक लिंग सहलग्न रोग है। इसके लक्षण ४ लिंग क्रोमोसोम में सहलग्न होते हैं और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते रहते हैं। हीमोफीलिया रोग प्रायः पुरुषों में होता है परन्तु स्त्रियों द्वारा पुत्रों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुँचाया जाता रहता है। इस रोग के रोगी को चोट लगने पर रुधिर का थक्का नहीं बनता, रुधिर निरन्तर बहता रहता है जिससे अधिक रुधिर बहने से रोगी की मृत्यु होने की सम्भावना रहती है।
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हीमोफीलिया के जीन्स रखने वाली स्त्री या वाहक (carrier) जब एक सामान्य पुरुष (normal man) से विवाह करती है तो उनकी सन्तानों में पुत्रियाँ सामान्य अथवा हीमोफीलिया की वाहक होंगी। इनमें यह रोग स्पष्ट नहीं होता क्योंकि हीमोफीलिया के जीन्स अप्रभावी होते हैं, किन्तु पुत्र (सभी पुत्र नहीं) में हीमोफीलिया रोग के लक्षण हो सकते हैं। पुत्र वाहक नहीं हो सकते हैं।

दोनों जीन्स हीमोफीलिया के होने पर स्त्री प्रायः जीवित नहीं रह सकती फिर भी उससे सम्भावित सन्तानों में लड़के सभी हीमोफीलिक होंगे किन्तु सभी लड़कियाँ वाहक होती हैं।

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