UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi साहित्यिक निबन्ध

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name साहित्यिक निबन्ध
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi साहित्यिक निबन्ध

1. रामचरितमानस की प्रासंगिकता (2018)
प्रस्तावना आज हर तरफ मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं परम्पराओं का ह्रास होता जा रहा है। वर्तमान पीढ़ी आज गुणों की अपेक्षा दुर्गुणों को अपनाती जा रही है। आज जन्म देने वाले माता-पिता का सम्मान, अपनी संस्कृति के अनुसार दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है। इसलिए पुन: रामचरितमानस में वर्णित आदर्शो, मान्यताओं और मर्यादाओं की रक्षा के लिए भावी पीढ़ी को रामचरित का ज्ञान होना आवश्यक है।

रामचरितमानस पुस्तक की उपयोगिता किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण एवं उसके प्रचार-प्रसार में पुस्तके विशेष भूमिका निभाती हैं। पुस्तकें ज्ञान का संरक्षण भी करती हैं। यदि हम प्राचीन इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं, तो इसका अच्छा स्रोत भी पुस्तकें ही हैं। उदाहरण के तौर पर, वैदिक साहित्य से हमें उस काल के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक पहलुओं की जानकारी मिलती है। पुस्तके इतिहास के अतिरिक्त विज्ञान के संरक्षण एवं प्रसार में भी सहायक होती हैं। विश्व की हर सभ्यता के विकास में पुस्तकों का प्रमुख योगदान रहा है अर्थात् हम कह सकते हैं कि सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान को भावी पीढ़ी को हस्तान्तरित करने में पुस्तकों की विशेष भूमिका रही है।

पुस्तकें शिक्षा का प्रमुख साधन तो हैं ही, इसके साथ ही इनसे अच्छा मनोरंजन भी होता है। पुस्तकों के माध्यम से लोगों में सद्वृत्तियों के साथ-साथ सृजनात्मकता का विकास भी किया जा सकता है। पुस्तकों की इन्हीं विशेषताओं के कारण इनसे मेरा विशेष लगाव रहा है। पुस्तकों ने हमेशा अच्छे मित्रों के रूप में मेरा साथ दिया है। मुझे अब तक कई पुस्तकों को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इनमें से कई पुस्तकें मुझे प्रिय भी हैं, किन्तु सभी पुस्तकों में ‘रामचरितमानस’ मेरी सर्वाधिक प्रिय पुस्तक है। इसे हिन्दू परिवारों में धर्म-ग्रन्थ का दर्जा प्राप्त है। इसलिए ‘राम चरित मानस’ हिन्दू संस्कृति का केन्द्र है।

जॉर्ज ग्रियर्सन ने कहा है—“ईसाइयों में बाइबिल का जितना प्रचार है, उससे कहीं अधिक प्रचार और आदर हिन्दुओं में रामचरितमानस का है।”

रामचरितमानस का स्वरूप रामचरितमानस’ अवधी भाषा में रचा गया महाकाव्य है, इसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास ने सोलहवीं सदी में की थी। इसमें भगवान राम के जीवन का वर्णन है। यह महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत के महाकाव्य ‘रामायण’ पर आधारित है। तुलसीदास ने इस महाकाव्य को सात काण्डों में विभाजित किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं- ‘बालकाण्ड’, ‘अयोध्याकाण्ड’, ‘अरण्यकाण्ड’, ‘किष्किन्धाकाण्ड’, ‘सुन्दरकाण्ड’, ‘लंकाकाण्ड’ एवं ‘उत्तरकाण्ड’।

‘रामचरितमानस में वर्णित प्रभु श्रीराम के रामराज्य का जो भावपूर्ण चित्रण तुलसीदास जी ने किया है, उसे पढ़कर या सुनकर पाठक अथवा श्रोतागण भावविभोर हो जाते हैं। जैसे कि कहा गया है- दैहिक, दैविक, भौतिक तापा रामराज्य में काहु ने व्यापा।।

रामचरितमानस की प्रासंगिकता “रामचरितमानस में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चन्द्र जी के उत्तम चरित्र का विषद वर्णन है। जिसका अध्ययन पाश्चात्य सभ्यता की अन्धी दौड़ में भटकती वर्तमान पीढ़ी को मर्यादित करने के लिए आवश्यक है, क्योंकि भगवान रामचन्द्र जी ने कदम-कदम पर मर्यादाओं का पालन करते हुए अपने सम्पूर्ण जीवन को एक आदर्श जीवन की श्रेणी में पहुंचा दिया है। ‘रामचरितमानस’ में वर्णित रामचन्द्र जी का सम्पूर्ण जीवन शिक्षाप्रद है।

‘रामचरितमानस’ में सामाजिक आदर्शों को बड़े ही अनूठे ढंग से व्यक्त किया गया है। इसमें गुरु-शिष्य, माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन इत्यादि के आदर्शों को इस तरह से प्रस्तुत किया गया है कि ये आज भी भारतीय समाज के प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। वैसे तो इस ग्रन्थ को ईश्वर (भगवान राम) की भक्ति प्रदर्शित करने के लिए लिखा गया काव्य माना जाता है, किन्तु इसमें तत्कालीन समाज को विभिन्न बुराइयों से मुक्त करने एवं उसमें श्रेष्ठ गुण विकसित करने की पुकार सुनाई देती है। यह धर्म-ग्रन्थ उस समय लिखा गया था, जब भारत में मुगलों का शासन था और मुगलों के दबाव में हिन्दुओं को इस्लाम धर्म स्वीकार करना पड़ रहा था।

समाज में अनेक प्रकार की बुराइयाँ अपनी जड़े जमा चुकी थीं। समाज ही नहीं परिवार के आदर्श भी एक-एक कर खत्म होते जा रहे थे। ऐसे समय में इस ग्रन्थ ने जनमानस को जीवन के सभी आदशों की शिक्षा देकर समाज सुधार एवं अपने धर्म के प्रति आस्था बनाए रखने के लिए प्रेरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन पंक्तियों को देखिए।

जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृप अवसि नरक अधिकारी।।

काव्य-शिल्प एवं भाषा के दृष्टिकोण से भी ‘रामचरितमानस’ अति समृद्ध है। यह आज तक हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य बना हुआ है। इसके छन्द और चौपाइयाँ आज भी जन-जन में लोकप्रिय हैं। अधिकतर हिन्दू घरों में इसका पावन पाठ किया जाता है। रामचरितमानस की तरह अब तक कोई दूसरा काव्य नहीं रचा जा सका है, जिसका भारतीय जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा हो। आधुनिक कवियों ने अच्छी कविताओं की रचना की है, किन्तु आम आदमी तक उनके काव्यों की उतनी पहुँच नहीं है, जितनी तुलसीदास के काव्यों की हैं।

चाहे ‘हनुमान चालीसा’ हो या ‘रामचरितमानस’ तुलसीदास जी के काव्य भारतीय जनमानस में रच बस चुके हैं। इन ग्रन्थों की सबसे बड़ी विशेषता इनकी सरलता एवं गेयता है, इसलिए इन्हें पढ़ने में आनन्द आता है। तुलसीदास की इन्हीं अमूल्य देनों से प्रभावित होकर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है-“यह (तुलसीदास) अकेला कवि ही हिन्दी को एक प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है।”

जीवन के सभी सम्बन्धों पर आधारित ‘रामचरितमानस’ के दोहे एवं चौपाइयाँ आम जन में अभी भी कहावतों की तरह लोकप्रिय हैं। लोग किसी भी विशेष घटना के सन्दर्भ में इन्हें उद्धृत करते हैं। लोगों द्वारा प्रायः रामचरितमानस से उद्धृत की जाने वाली इन पंक्तियों को देखिए

सकल पदारथ ऐहि जग माहिं, करमहीन नर पावत नाहिं।

‘रामचरितमानस’ को भारत में सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला ग्रन्थ माना जाता है। विदेशी विद्वानों ने भी इसकी खूब प्रशंसा की है। रामचरितमानस में वर्णित प्रभु रामचन्द्र जी के जीवन से प्रेरित होकर ही अनेक पाश्चात्य विद्वानों द्वारा इसका अनुवाद विश्व की कई भाषाओं में कराया गया है, किन्तु अन्य भाषाओं में अनूदित ‘रामचरितमानस’ में वह काव्य सौन्दर्य एवं लालित्य नहीं मिलता, जो मूल ‘रामचरितमानस’ में है। इसको पढ़ने का अपना एक अलग आनन्द है। इसे पढ़ते समय व्यक्ति को संगीत एवं भजन से प्राप्त होने वाली शान्ति का आभास होता है, इसलिए भारत के कई मन्दिरों में इसका नित्य पाठ किया जाता है।

उपसंहार हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में ‘रामचरितमानस’ की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रही है। इस कालजयी रचना के साथ-साथ इसके रचनाकार तुलसीदास की प्रासंगिकता भी सर्वदा बनी रहेगी। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के शब्दों में-“लोकनायक यही हो सकता है, जो समन्वय कर सके। गीता में समन्वय की चेष्टा है। बुद्धदेव समन्वयवादी थे और तुलसीदास समन्वयकारी थे। लोकशासकों के नाम तो भुला दिए जाते हैं, परन्तु लोकनायकों के नाम युग-युगान्तर तक स्मरण किए। जाते हैं।”

2. राष्ट्रभाषा की समस्या और हिन्दी (2016)
संकेत विन्दु
भूमिका, हिन्दी राजभाषा के रूप में, हिन्दी देश की सम्पर्क भाषा, हिंग्लिश का प्रचलन, देश की एकता व अखण्डता में सहायक, उपसंहार।

भूमिका “राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गुंगा है। अगर हम भारत को राष्ट्र बनाना चाहते हैं, तो हिन्दी ही हमारी राष्ट्रभाषा हो सकती है। यह बात राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कही है। किसी भी राष्ट्र की सर्वाधिक प्रचलित एवं स्वेच्छा से आत्मसात् की गई भाषा को राष्ट्रभाषा’ कहा जाता है। हिन्दी, बांग्ला, उर्दू, पंजाबी, तेलुगू, तमिल, कन्नड़, मलयालम, उड़िया इत्यादि भारत के संविधान द्वारा राष्ट्र की मान्य भाषाएं हैं।

इन सभी भाषाओं में हिन्दी का स्थान सर्वोपरि है, क्योंकि यह भारत की राजभाषा भी है। राजभाषा वह भाषा होती है, जिसका प्रयोग किसी देश में राज-काज को चलाने के लिए किया जाता है। हिन्दी को 14 सितम्बर, 1949 को राजभाषा का दर्जा दिया गया। इसके बावजूद सरकारी कामकाज में अब तक अपेणी का व्यापक प्रयोग किया जाता है। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा तो है, किन्तु इसे यह सम्मान सिर्फ सैद्धान्तिक रूप में प्राप्त है, वास्तविक रूप में राजभाषा का सम्मान प्राप्त करने के लिए इसे अंग्रेजी से संघर्ष करना पड़ा रहा है।

हिन्दी राजभाषा के रूप में संविधान के अनुच्छेद-343 के खण्ड-1 में कहा गया है कि भारत संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संप के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त होने वाले अंकों का रूप, भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा। खण्ड-2 में यह उपबन्ध किया गया था कि संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की अवधि तक अर्थात् 26 जनवरी, 1965 तक संघ के सभी सरकारी प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होता रहेगा जैसा कि पूर्व में होता था।

वर्ष 1965 तक राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी के प्रयोग का प्रावधान किए जाने का कारण यह था कि भारत वर्ष 1947 से पहले अंग्रेजों के अधीन था और तत्काल ब्रिटिश शासन में यहाँ इसी भाषा का प्रयोग राजकीय प्रयोजनों के लिए होता था।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद अचानक राजकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी का प्रयोग कर पाना व्यावहारिक रूप से सम्भव नहीं था, इसलिए वर्ष 1950 में संविधान के लागू होने के बाद से अंग्रेजी के प्रयोग के लिए पन्द्रह वर्षों का समय दिया गया और यह तय किया गया कि इन पन्द्रह वर्षों में हिन्दी का विकास कर इसे राजकीय प्रयोजनों के उपयुक्त कर दिया जाएगा, किन्तु ये पन्द्रह वर्ष पूरे होने के पहले ही हिन्दी को राजभाषा बनाए जाने का दक्षिण भारत के कुछ स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने व्यापक विरोध करना प्रारम्भ कर दिया। जिस कारण वर्तमान समय तक अंग्रेजी हिन्दी के साथ राजभाषा के रूप में प्रयोग की जा रही है। देश की सर्वमान्य भाषा हिन्दी को क्षेत्रीय लाभ उठाने के ध्येय से विवादों में घसीट लेने को किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता।

हिन्दी देश की सम्पर्क भाषा देश की अन्य भाषाओं के बदले हिन्दी को । राजभाषा बनाए जाने का मुख्य कारण यह है कि यह भारत में सर्वाधिक बोली जाने चाली भाषा के साथ-साथ देश की एकमात्र सम्पर्क भाषा भी है।

ब्रिटिशकाल में पूरे देश में राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होता था। पूरे देश के अलग अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषाएँ बोली जाती है, किन्तु स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय राजनेताओं ने यह महसूस किया कि हिन्दी एकमात्र ऐसी भारतीय भाषा है, जो दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर पूरे देश की सम्पर्क भाषा है और देश के विभिन्न भाषा भाषी भी आपस में विचार विनिमय करने के लिए हिन्दी का सहारा लेते हैं।

हिन्दी की इसी सार्वभौमिकता के कारण राजनेताओं ने हिन्दी को राजभाषा का | दर्जा देने का निर्णय लिया था। हिन्दी, राष्ट्र के बहुसंख्यक लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है, इसकी लिपि देवनागरी है, जो अत्यन्त सरल हैं। पण्डित राहुल सांकृत्यायन के शब्दों में-“हमारी नागरी लिपि दुनिया की सबसे वैज्ञानिक लिपि है।” हिन्दी में आवश्यकतानुसार देशी-विदेशी भाषाओं के शब्दों को तरलता से आत्मसात् करने की शक्ति है। यह भारत की एक ऐसी राष्ट्रभाषा है, जिसमें पूरे देश में भावात्मक एकता स्थापित करने की पूर्ण क्षमता है।

हिंग्लिश का प्रचलन आजकल पूरे भारत में सामान्य बोलचाल की भाषा के रूप में हिन्दी एवं अंग्रेजी के मिश्रित रूप हिंग्लिश का प्रयोग बढ़ा है। इसके कई कारण हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत में व्यावसायिक शिक्षा में प्रगति हुई है। अधिकतर व्यावसायिक पाठ्यक्रम अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध हैं और विद्यार्थियों के अध्ययन का माध्यम अंग्रेजी भाषा ही है। इस कारण से विद्यार्थी हिन्दी में पूर्णतः निपुण नहीं हो पाते। वहीं अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त युवा हिन्दी में बात करते समय अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करने को बाध्य होते हैं, क्योंकि भारत में हिन्दी आम जन की भाषा हैं। इसके अतिरिक्त आजकल समाचार-पत्रों एवं टेलीविजन के कार्यक्रमों में भी ऐसी ही मिश्रित भाषा प्रयोग में लाई जा रही हैं, इन सबका प्रभाव आम आदमी पर पड़ता है।

भले ही हिंग्लिश के बहाने हिन्दी बोलने वालों की संख्या बढ़ रही है, किन्तु हिंग्लिश का बढ़ता प्रचलन हिन्दी भाषा की गरिमा के दृष्टिकोण से गम्भीर चिन्ता का विषय है। कुछ वैज्ञानिक शब्दों; जैसे—मोबाइल, कम्प्यूटर, साइकिल, टेलीविजन एवं अन्य शब्दों; जैसे-स्कूल, कॉलेज, स्टेशन इत्यादि तक तो ठीक है, किन्तु अंग्रेजी के अत्यधिक एवं अनावश्यक शब्दों का हिन्दी में प्रयोग सही नहीं है।

हिन्दी, व्याकरण के दृष्टिकोण से एक समृद्ध भाषा है। यदि इसके पास शब्दों का अभाव होता, तब तो इसकी स्वीकृति दी जा सकती थी। शब्दों का भण्डार होते हुए भी यदि इस तरह की मिश्रित भाषा का प्रयोग किया जाता है, तो यह निश्चय ही भाषायी गरिमा के दृष्टिकोण से एक बुरी बात है। भाषा संस्कृति की संरक्षक एवं वाहक होती हैं। भाषा की गरिमा नष्ट होने से उस स्थान की सभ्यता और संस्कृति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

देश की एकता व अखण्डता में सहायक हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के सन्दर्भ में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था-“भारत की सारी प्रान्तीय बोलियाँ, जिनमें सुन्दर साहित्यों की रचना हुई है, अपने घर या प्रान्त में रानी बनकर रहे, प्रान्त के जन-गण के हार्दिक चिन्तन की प्रकाश-भूमि स्वरूप कविता की भाषा होकर हे और आधुनिक भाषाओं के हार की मध्य-मणि हिन्दी भारत भारती होकर विराजती रहे।” प्रत्येक देश की पहचान का एक मजबूत आधार उसकी अपनी भाषा होती है, जो अधिक-से-अधिक व्यक्तियों के द्वारा बोली जाने वाली भाषा के रूप में व्यापक विचार विनिमय का माध्यम बनकर ही राष्ट्रभाषा (यहाँ राष्ट्रभाषा का तात्पर्य है-पूरे देश की भाषा) का पद ग्रहण करती है। राष्ट्रभाषा के द्वारा आपस में सम्पर्क बनाए रखकर देश की एकता एवं अखण्डता को भी अक्षुण्ण रखा जा सकता है।

उपसंहार हिन्दी देश की सम्पर्क भाषा तो है ही, इसे राजभाषा का वास्तविक सम्मान भी दिया जाना चाहिए, जिससे कि यह पूरे देश को एकता के सूत्र में बाँधने वाली भाषा बन सके। देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की कही यह बात आज भी प्रासंगिक है-“जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। अतः आज देश के सभी नागरिकों को यह संकल्प लेने की आवश्यकता है कि वे हिन्दी को सस्नेह अपनाकर और सभी कार्य क्षेत्रों में इसका । अधिक-से-अधिक प्रयोग कर इसे व्यावहारिक रूप से राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा बनने का गौरव प्रदान करेंगे।”

3. साहित्य के संवर्द्धन में सिनेमा का योगदान (2016)
संकेत बिन्दु भूमिका, साहित्य सिनेमा के लोकदूत रूप में, समाज पर साहित्य व सिनेमा का प्रभाव, हिन्दी साहित्य से प्रभावित भारतीय सिनेमा, साहित्य व भाषा का बढ़ता वर्चस्व, उपसंहार।

भूमिका साहित्य समाज की चेतना से उपजी प्रवृत्ति है। समाज व्यक्तियों से बना है। तथा साहित्य समाज की सृजनशीलता का नमूना है। साहित्य का शाब्दिक अर्थ है जिसमें हित की भावना सन्निहित हो। कवि या लेखक अपने समय के वातावरण में व्याप्त विचारों को पकड़कर मुखरित कर देता है। कवि और लेखक अपने समाज का मस्तिष्क और मुख भी हैं। कवि की पुकार समाज की पुकार है। समाज की समस्त शोभा, उसकी समृद्धि, मान-मर्यादा सब साहित्य पर अवलम्बित हैं। आचार्य शुक्ल के शब्दों में प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब है।”

साहित्य समाज का दर्पण है तथा सिनेमा को समाज का दर्पण कहा जाता है। चाहे साहित्य हो या सिनेमा इनका स्वरूप समाज के यथार्थ की पृष्ठभूमि से सम्बद्ध होता है। साहित्य जो कभी पाठ्य सामग्री के रूप में प्रस्तुत किया जाता था, परन्तु आज सिनेमा के माध्यम से उसका संवर्द्धन दिनों-दिन चरमोत्कर्ष पर है।

सिनेमा लोकदूत रूप में भाषा-प्रसार उसके प्रयोक्ता समूह की संस्कृति और जातीय प्रश्नों को साथ लेकर चला करता है। भारतीय सिनेमा निश्चय ही हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में अपनी विश्वव्यापी भूमिका का निर्वाह कर रहा है। उसकी यह प्रक्रिया अत्यन्त सहज, बोधगम्य, रोचक, सम्प्रेषणीय और पास है। हिन्दी यहाँ भाषा, साहित्य और जाति तीनों अर्थों में ली जा सकती है। जब हम भारतीय सिनेमा पर दृष्टि डालते हैं, तो भाषा का प्रचार-प्रसार, साहित्यिक कृतियों का फिल्म रूपान्तरण, हिन्दी गीतों की लोकप्रियता, हिन्दी की उपभाषाओं, बोलियों का सिनेमा और सांस्कृतिक एवं जातीय प्रश्नों को उभारने में भारतीय सिनेमा का योगदान जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण ढंग से सामने आते हैं। हिन्दी भाषा की संचारात्मकता, शैली, वैज्ञानिक अध्ययन, जन सम्प्रेषणीयता, पटकथात्मकता के निर्माण, संवाद लेखन, दृश्यात्मकता, कोड निर्माण, संक्षिप्त कथन, बिम्ब धर्मिता, प्रतीकात्मकता एवं भाषा-दृश्य की अनुपातिकता आदि मानकों को भारतीय सिनेमा ने गढ़ा है। भारतीय सिनेमा हिन्दी भाषा, साहित्य और संस्कृति का लोकदूत बनकर इन तक पहुँचने की दिशा में अग्रसर है।

समाज पर साहित्य व सिनेमा का प्रभाव यद्यपि हमेशा यह कहना कठिन होता है कि समाज और साहित्य सिनेमा में प्रतिबिम्बित होता है या सिनेमा से समाज प्रभावित होता है। दोनों ही बातें अपनी-अपनी सीमाओं में सही हैं। कहानियाँ कितनी भी काल्पनिक क्यों न हों कहींन-कहीं वे इसी समाज से जुड़ी होती हैं। यही सिनेमा में भी अभिव्यक्त होती है, लेकिन अनेक बार ऐसा भी हुआ है कि सिनेमा का प्रभाव हमारे युवाओं और बच्चों दोनों पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव डालता है। अतः प्रत्येक माध्यम से समाज पर विशेष प्रभाव पड़ते हैं।

भारतीय सिनेमा के आरम्भिक दशकों में जो फिल्में बनती थीं, उनमें भारतीय संस्कृति की झलक (बस) होती थी तथा विभिन्न आयामों से भारतीयता को उभारा जाता था। बहुत समय बाद पिछले दो वर्षों में ऐसी ही दो फिल्में देखी हैं, जिनमें हमारी संस्कृति की झलक थी। देश के आतंकवाद पर भी कुछ अच्छा सकारात्मक हल खोजती फिल्में आई हैं।

हिन्दी साहित्य से प्रभावित भारतीय सिनेमा भारत की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ थी। प्रारम्भिक दौर में भारत में पौराणिक एवं रोमाण्टिक फिल्मों का बोल-चाला रहा, किन्तु समय के साथ ऐसे सिनेमा भी बनाए गए जो हिन्दी साहित्य पर आधारित थे एवं जिन्होंने समाज पर बहुत गहरा प्रभाव डाला। उन्नीसवीं सदी के साठ-सत्तर एवं उसके बाद के कुछ दशकों में अनेक ऐसे भारतीय फिल्मकार हुए जिन्होंने सार्थक एवं समाजोपयोगी फिल्मों का निर्माण किया। सत्यजीत राय (पाथेर पांचाली, चारुलता, शतरंज के खिलाड़ी), ऋत्विक घटक (मेघा ढाके तारा), मृणाल सेन (ओकी उरी कथा),अडूर गोपाल कृष्णन् (स्वयंवरम्) श्याम बेनेगल (अंकुर, निशान्त, सूरज का सातवाँ घोड़ा), बासु भट्टाचार्य (तीसरी कसम), गुरुदत्त (प्यासा, कागज के फूल, साहब, बीवी और गुलाम), विमल राय (दो बीघा जमीन, बिन्दिनी, मधुमती) भारत के कुछ ऐसे ही फिल्मकार हैं। फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की कहानी—मारे गए गुलफाम पर आधारित तीसरी कसम, धर्मवीर भारती के उपन्यास गुनाहों के देवता पर आधारित श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित ‘द सेम नाम’, प्रेमचन्द के उपन्यास सेवासदन व गोदान तथा भीष्म साहनी के उपन्यास तमस पर आधारित सिनेमा निर्मित किए जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त कृष्णा सोबती की ज़िन्दगीनामा पर आधारित सिनेमा ‘ट्रेन ? पाकिस्तान’ तथा यशपाल के ‘झूठा सच पर आधारित ‘खामोश पानी’ जैसी प्रचलित सिनेमा का निर्माण किया जा चुका है। इस प्रकार यह कहा जा सकता हैं कि सिनेमा का जन्म समाज व साहित्य से हुआ है।

साहित्य व भाषा का बढ़ता वर्चस्व आज हॉलीवुड के फिल्म निर्माता भी भारत में अपनी विपणन नीति बदल चुके हैं। वे जानते हैं कि यदि उनकी फिल्में हिन्दी में रूपान्तरित की जाएँगी तो यहाँ से वे अपनी मूल अंग्रेजी में निर्मित चित्रों के प्रदर्शन से कहीं अधिक मुनाफा कमा सकेंगे। हॉलीवुड की आज की वैश्विक बाजार की परिभाषा में हिन्दी जानने वालों का महत्त्व सहसा बढ़ गया है। भारत को आकर्षित करने का उनको अर्थ अब उनकी दृष्टि में हिन्दी भाषियों को भी उतना ही महत्त्व देना है, परन्तु आज बाजार की भाषा ने हिन्दी को अंग्रेजी की अनुचरी नहीं सहचरी बना दिया है। आज टी. बी, देखने वालों की कुल अनुमानित संख्या जो लगभग १ 10 करोड़ मानी गई है, उसमें हिन्दी का ही वर्चस्व है। आज हम स्पष्ट देख रहे हैं कि आर्थिक सुधारों व उदारीकरण के दौर में निजी पहल का जो चमत्कार हमारे सामने आया है इससे हम माने या न मानें हिन्दी भारतीय सिनेमा के माध्यम से दुनिया भर के दूरदराज के एक बड़े भू-भाग में समझी जाने वाली भाषा स्वतः बन गई हैं।

उपसंहार आधुनिक भारतीय फिल्मकारों ने कुछ सार्थक सिनेमा का भी निर्माण किया है। ‘नो वन किल्ड जेसिका’, नॉक आउट’ एवं ‘पीपली लाइव’ जैसी 2010 में निर्मित फिल्में इस बात का उदाहरण हैं। नो वन किल्ड जेसिका’ में मीडिया के प्रभाव, कानून के अन्धेपन एवं जनता की शक्ति को चित्रित किया गया, तो ‘नॉक आउट’ में विदेशों में जमा भारतीय धन का कच्चा चिट्ठा खोला गया और ‘पीपली लाइव’ ने पिछले कुछ वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बढ़ी पीत पत्रकारिता को जीवन्त कर दिखाया। ऐसी फिल्मों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है एवं लोग सिनेमा से शिक्षा ग्रहण कर समाज सुधार के लिए कटिबद्ध होते हैं।

4. साहित्य समाज का दर्पण (2015, 14, 12, 11, 10)
अन्य शीर्षक साहित्य और समाज (2018, 17, 14, 13, 12, 11,10), साहित्य और जीवन (2018, 17, 13, 10), साहित्य और समाज का सम्बन्ध (2012)
संकेत विन्द साहित्य का तात्पर्य, साहित्य समाज का दर्पण, साहित्य विकास का उद्गाता, उपसंहार

साहित्य का तात्पर्य साहित्य समाज की चेतना से उपजी प्रवृत्ति है। समाज व्यक्तियों से बना है तथा साहित्य समाज की सृजनशीलता का प्रतिरूप है। साहित्य का शाब्दिक अर्थ है जिसमें हित की भावना सन्निहित हो। साहित्य और समाज के सम्बन्ध कितने पनिष्ठ है, इसका परिचय साहित्य शब्द की व्युत्पत्ति, अर्थ एवं उसकी विभिन्न परिभाषाओं से प्राप्त हो जाता है। ‘हितं सन्निहितं साहित्यम्’। हित का भाव जिसमें विद्यमान हो, वह साहित्य कहलाता है।

अंग्रेज़ी विद्वान् मैथ्यू आर्नल्ड ने भी साहित्य को जीवन की आलोचना माना है-“Poetry in the bottom criticism of life,” वर्सफोल्ड नामक पाश्चात्य विद्वान् ने साहित्य का रूप स्थिर करते हुए लिखा है-“Literature is the brain of humanity.” अर्थात् साहित्य मानवता का मस्तिष्क है।

जिस प्रकार बेतार के तार का ग्राहम यन्त्र आकाश मण्डल में विचरती हुई विद्युत तरंगों को पकड़कर उनको भाषित शब्द का आधार देता है, ठीक उसी प्रकार कवि या | लेखक अपने समय में प्रचलित विचारों को पकड़कर मुखरित कर देता है। कवि और लेखक अपने समाज के मस्तिष्क हैं और मुख भी। कवि की पुकार समाज की पुकार | है। वह समाज के भावों को व्यक्त कर सजीव और शक्तिशाली बना देता है। उसकी भाषा में समाज के भावों की झलक मिलती है।

साहित्य समाज का दर्पण साहित्य और समाज के बीच अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है। साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब है। जनजीवन के धरातल पर ही साहित्य का निर्माण होता है। समाज की समस्त शोभा, उसकी समृद्धि, मान-मर्यादा सय साहित्य पर अवलम्बित हैं।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में, “प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब है। समाज की क्षमता और सजीवता यदि कहीं प्रत्यक्ष देखने को मिल सकती है, तो निश्चित रूप से साहित्य रूपी दर्पण में ही। कतिपय विद्वान् साहित्य की उत्पत्ति का मूल कारण कामवृत्ति को मानते हैं। ऐसे लोगों में फ्रायड विशेष रूप से उल्लेखनीय है। कालिदास, सूर एवं तुलसी पर हमें गर्व है, क्योंकि उनका साहित्य हमें एक संस्कृति और एक जातीयता के सूत्र में बाँधता है, इसलिए साहित्य केवल हमारे समाज का दर्पण मात्र न रहकर उसका नियामक और उन्नायक भी होता है। वह सामाजिक अन्धविश्वासों और बुराइयों पर तीखा प्रहार करता है। समाज में व्याप्त रूढ़ियों | और आडम्बरों को दूर करने में साहित्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। साहित्य समाज का दर्पण होने के साथ मार्गदर्शक भी होता है, जो समाज को दिशा प्रदान करता है।

साहित्य विकास का उद्गाता साहित्य द्वारा सम्पन्न सामाजिक और राजनीतिक क्रान्तियों के उल्लेखों से तो विश्व इतिहास भरा पड़ा है। सम्पूर्ण यरोप को गम्भीर रूप से आलोकित कर डालने वाली ‘फ्रांस की राज्य क्रान्ति’ (1789 ई.), काफी हद तक रूसो की सामाजिक अनुबन्ध’ नामक पुस्तक के प्रकाशन का ही परिणाम थी। इन्हीं विचारों का पोषण करते हुए कवि त्रिलोचन के उद्गार उल्लेखनीय हैं-

“बीज क्रान्ति के बोता हूँ मैं,
अक्षर दाने हैं।
घर-बाहर जन समाज को
नए सिरे से रच देने की रुचि देता हूँ।”

आधुनिक काल में चार्ल्स डिकेंस के उपन्यासों ने इंग्लैण्ड से कई सामाजिक एवं नैतिक रूढ़ियों का उन्मूलन कर नूतन स्वस्थ सामाजिक व्यवस्था का सूत्रपात कराया। यदि अपने देश के साहित्य पर दृष्टिपात करें, तो एक ओर बिहारी के ‘नहि पराग नहिं मधुर मधु’ जैसे दोहे ने राजा जयसिंह को नारी-मोह से मुक्त कराकर कर्तव्य पालन के लिए प्रेरित किया, तो दूसरी ओर कबीर, तुलसी, निराला, प्रेमचन्द जैसे साहित्यकारों ने पूरी सामाजिक व्यवस्था को एक नई सार्थक एवं रचनात्मक दिशा दी। रचनाकारों की ऐसी अनेक उपलब्धियों की कोई सीमा नहीं।

उपसंहार वास्तव में, समाज और साहित्य का परस्पर अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। इन्हें एक-दूसरे से अलग करना सम्भव नहीं है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि साहित्यकार सामाजिक कल्याण हेतु सद्साहित्य का सृजन करें। साहित्यकार को उसके उत्तरदायित्व का बोध कराते हुए राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने कहा है कि

“केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए,
उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।

सुन्दर समाज निर्माण के लिए साहित्य को माध्यम बनाया जा सकता है। यदि समाज स्वस्थ होगा, तभी राष्ट्र शक्तिशाली बन सकता है।

5. मेरा प्रिय कवि (साहित्यकार) (2018, 15, 13, 12, 11, 10)
अन्य शीर्षक मेरे प्रिय कवि गोस्वामी तुलसीदास,’ महाकवि गोस्वामी तुलसीदास (2017, 14, 13, 12)
संकेत बिन्द्र प्रस्तावना, आरम्भिक जीवन परिचय, काव्यगत विशेषताएँ, उपसंहार

प्रस्तावना संसार में अनेक प्रसिद्ध साहित्यकार हुए हैं, जिनकी अपनी अपनी विशेषताएँ हैं। मेरा प्रिय साहित्यकार महाकवि तुलसीदास हैं। यद्यपि तुलसीदास जी के काव्य में भक्ति-भावना की प्रधानता है, परन्तु इनका काव्य कई सौ वर्षों के बाद भी भारतीय जनमानस में रचा-बसा हुआ है और उनका मार्गदर्शन कर रहा है, इसलिए तुलसीदास मेरे प्रिय साहित्यकार हैं।

आरम्भिक जीवन परिचय प्राय: प्राचीन कवियों और लेखकों के जन्म के बारे में सही-सही जानकारी नहीं मिलती। तुलसीदास के विषय में भी ऐसा ही है, किन्तु माना जाता है कि तुलसीदास का जन्म सम्वत् 1589 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। इनके ब्राह्मण माता-पिता ने इन्हें अशुभ मानकर जन्म लेने के बाद ही इनका त्याग कर दिया था। इस कारण इनका बचपन बहुत ही कठिनाइयों में बीता। गुरु नरहरिदास ने इनको शिक्षा दी। तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली नाम की कन्या से हुआ था। विवाह उपरान्त उसकी एक कटु उक्ति सुनकर इन्होंने रामभक्ति को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया। इन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग सैतीस ग्रन्थों की रचना की, परन्तु इनके बारह ग्रन्थ ही प्रामाणिक माने जाते हैं। इस महान् भक्त कवि का देहावसान सम्वत् 1680 में हुआ।

काव्यगत विशेषताएँ तुलसीदास का जन्म ऐसे समय में हुआ था, जब हिन्दू समाज मुसलमान शासकों के अत्याचारों से आतंकित था। लोगों का नैतिक चरित्र गिर रहा था और लोग संस्कारहीन हो रहे थे। ऐसे में समाज के सामने एक आदर्श स्थापित करने की आवश्यकता थी ताकि लोग उचित-अनुचित का भेद समझकर सही आचरण कर सके। यह भार तुलसीदास ने सँभाला और ‘रामचरितमानस’ नामक महान् काव्य की रचना की। इसके माध्यम से इन्होंने अपने प्रभु श्रीराम का चरित्र-चित्रण किया। हालाँकि रामचरितमानस एक भक्ति भावना प्रधान काव्य है, परन्तु इसके माध्यम से जनता को अपने सामाजिक कर्तव्यों का बोध हुआ। इसमें वर्णित विभिन्न घटनाओं और चरित्रों ने सामान्य जनमानस पर गहरा प्रभाव डाला। रामचरितमानस के अतिरिक्त इन्होंने कवितावली, गीतावली, दोहावली, विनयपत्रिका, जानकीमंगल, रामलला नहङ्, बरवें, रामायण, वैराग्य सन्दीपनी, पार्वती मंगल आदि ग्रन्थों। की रचना भी की है, परन्तु इनकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार रामचरितमानस ही है।

तुलसीदास जी वास्तव में एक सच्चे लोकनायक थे, क्योंकि इन्होंने कभी किसी सम्प्रदाय या मत का खण्डन नहीं किया वरन् सभी को सम्मान दिया। इन्होंने निर्गुण एवं सगुण, दोनों धाराओं की स्तुति की। अपने काव्य के माध्यम से इन्होंने कर्म, ज्ञान एवं भक्ति की प्रेरणा दी। रामचरितमानस के आधार पर इन्होंने एक आदर्श भारतवर्ष की कल्पना की थी, जिसका सकारात्मक प्रभाव हुआ।. इन्होंने लोकमंगल को सर्वाधिक महत्त्व दिया। साहित्य की दृष्टि से भी तुलसी का काव्य अद्वितीय है। इनके काव्य में सभी रसों को स्थान मिला है। इन्हें संस्कृत के साथ-साथ राजस्थानी, भोजपुरी, बुन्देलखण्डी, प्राकृत, अवधी, ब्रज, अरबी आदि भाषाओं का ज्ञान भी था, जिसका प्रभाव इनके काव्य में दिखाई देता है।

इन्होंने विभिन्न छन्दों में रचना करके अपने पाण्डित्य का प्रदर्शन किया है। तुलसी ने प्रबन्ध तथा मुक्त दोनों प्रकार के काव्यों में रचनाएँ कीं। इनकी प्रशंसा में कवि जयशंकर प्रसाद ने लिखा-

प्रभु का निर्भय सेवक था, स्वामी था अपना,
जाग चुका था, जग था, जिसके आगे सपना।
प्रबल प्रचारक था, जो उस प्रभु की प्रभुता का,
अनुभव था सम्पूर्ण जिसे उसकी विभुता का।।
राम छोड़कर और की, जिसने कभी न आस की,
रामचरितमानस-कमल, जय हो तुलसीदास की।”

उपसंहार तुलसीदास जी अपनी इन्हीं सब विशेषताओं के कारण हिन्दी साहित्य | के अमर कवि हैं। नि:सन्देह इनका काव्य महान् है। तुलसी ने अपने युग और भविष्य, स्वदेश और विश्व, व्यक्ति और समाज सभी के लिए महत्वपूर्ण सामी दी है। अत: ये मेरे प्रिय कवि हैं। अन्त में इनके बारे में यही कहा जा सकता है-

“कविता करके तुलसी न लसे,
कविता लसी पा तुलसी की कला।”

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi विविध निबन्ध

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 9
Chapter Name विविध निबन्ध
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi विविध निबन्ध

1. जो चढ़ गए राष्ट्रवेदी पर (2018)

“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।’

मैथिलीशरण गुप्त की इन काव्य पंक्तियों का अर्थ यह है कि देश-प्रेम के अभाव में मनुष्य जीवित प्राणी नहीं, बल्कि पत्थर के ही समान कहा जाएगा। हम जिस देश या समाज में जन्म लेते हैं, उसकी उन्नति में समुचित सहयोग देना हमारा परम कर्तव्य बनता है। स्वदेश के प्रति यही कर्तव्य-भावना, इसके प्रति प्रेम अर्थात् स्वदेश-प्रेम ही देशभक्ति का मूल स्रोत है।

कोई भी देश सांधारण एवं निष्प्राण भूमि का केवल ऐसा टुकड़ा नहीं होता, जिसे मानचित्र द्वारा दर्शाया जाता है। देश का निर्माण उसकी सीमाओं से नहीं, बल्कि उसमें रहने वाले लोगों एवं उनके सांस्कृतिक पहलुओं से होता है। लोग अपनी पृथक सांस्कृतिक पहचान एवं अपने जीवन-मूल्यों को बनाए रखने के लिए ही अपने देश की सीमाओं से बँधकर इसके लिए अपने प्राण न्यौछावर करने को तत्पर रहते हैं। यही कारण है कि देश-प्रेम की भावना देश की उन्नति का परिचायक होती है।

स्वदेश प्रेमः एक उच्च भावना वास्तव में देश-प्रेम की भावना मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ भावना है। इसके सामने किसी भी प्रकार के व्यक्तिगत लाभ का कोई महत्त्व नहीं होता। यह एक ऐसा पवित्र व सात्विक भाव है, जो मनुष्य को निरन्तर त्याग की प्रेरणा देता है, इसलिए कहा गया है-“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” अर्थात् जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। मानव की हार्दिक अभिलाषा रहती है कि जिस देश में उसका जन्म हुआ, जहाँ के अन्न-जल से उसके शरीर का पोषण हुआ एवं जहाँ के लोगों ने उसे अपना प्रेम एवं सहयोग देकर उसके व्यक्तित्व को निखारा, उसके प्रति अपने कर्तव्यों का पालन वह सदा करता रहे। यही कारण है। कि मनुष्य जहाँ रहता है, अनेक कठिनाइयों के बावजूद उसके प्रति उसका मोह कभी खत्म नहीं होता, जैसा कि कवि रामनरेश त्रिपाठी ने अपनी कविता में कहा है।

“विषुवत् रेखा का वासी जो जीता है नित हाँफ-हाँफ कर,
रखता है अनुराग अलौकिक वह भी अपनी मातृभूमि पर।
हिमवासी जो हिम में, तम में जी लेता है काँप-काँपकर,
वह भी अपनी मातृभूमि पर कर देता है प्राण निछावर।”

स्वदेश प्रेम की अभिव्यक्ति के प्रकार स्वदेश प्रेम यद्यपि मन की एक भावना है तथापि इसकी अभिव्यक्ति हमारे क्रिया-कलापों से हो जाती है। देश प्रेम से | ओत-प्रोत व्यक्ति सदा अपने देश के प्रति कर्तव्यों के पालन हेतु न केवल तत्पर रहता है, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर इसके लिए अपने प्राण न्यौछावर करने से भी पीछे | नहीं हटता। सच्चा देशभक्त आवश्यकता पड़ने पर अपना तन, मन, धन सब कुछ देश को समर्पित कर देता है।

यह स्मरण रहे कि स्वदेश प्रेम को किसी विशेष क्षेत्र एवं सीमा में नहीं बघा जासकता। हमारे जिस कार्य से देश की उन्नति हो, वही स्वदेश प्रेम की सीमा में आता है। अपने प्रजातन्त्रात्मक देश में, हम अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए ईमानदार एवं देशभक्त जनप्रतिनिधि का चयन कर देश को जाति, सम्प्रदाय तथा प्रान्तीयता की राजनीति से मुक्त कर इसके विकास में सहयोग कर सकते हैं। जाति प्रथा, दहेज प्रथा, अन्धविश्वास, आढ़त इत्यादि कुरीतियाँ देश के विकास में बाधक है। हम इन्हें दूर करने में अपना योगदान कर देश सेवा का फल प्राप्त कर सकते है। अशिक्षा, निर्धनता, बेरोजगारी, व्याभिचार एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेकर हम अपने देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर सकते हैं। हम समय पर टैक्स का भुगतान कर देश की प्रगति में सहायक हो सकते हैं। इस तरह किसान, मजदूर, शिक्षक, सरकारी कर्मचारी, चिकित्सक, सैनिक और अन्य सभी पेशेवर लोगों के साथ-साथ देश के हर नागरिक द्वारा अपने कर्तव्यों का समुचित रूप से पालन करना भी देशभक्ति ही है।

उपसंहार नागरिकों में स्वदेश प्रेम का अभाव राष्ट्रीय एकता में सबसे बड़ी बाधा के रूप में कार्य करता है, जबकि राष्ट्र की आन्तरिक शान्ति तथा सुव्यवस्था और घाहरी दुश्मनों से रक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है। यदि हम भारतवासी किसी कारणवश छिन्न-भिन्न हो गए, तो हमारी पारस्परिक फूट को देखकर अन्य देश हमारी स्वतन्त्रता को हड़पने का प्रयास करेंगे। इस प्रकार अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा एवं राष्ट्र की उन्नति के लिए राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है और राष्ट्रीय एकता बनाए रखना तब ही सम्भव है, जब हम देश के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे।

2. यदि मैं रक्षा मंत्री होता (2018)
भूमिका एवं रक्षामन्त्री बनने की प्रबुद्ध इच्छा का कारण सेना राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा दिवस का पावन पर्व और मैं सेना मुख्यालय पर तिरंगा फहराने के बाद देश के जवानों को सम्बोधित करते हुए भाषण दे रहा था। इस भाषण में देश की रक्षा के लिए मेरे द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन तो था ही, साथ ही आने वाले वर्षों में मेरे द्वारा किए जाने वाले सम्भावित कार्यों का भी वर्णन था। मैं अभी भाषण दे ही रहा था कि अचानक मेरी नींद खुल गई और मैंने अपने आपको बिस्तर पर पाया। मैं वास्तव में रक्षा मन्त्री होने का खूबसूरत सपना देख रहा था।

रक्षा मन्त्री के रूप में प्राथमिकताएँ भारत के रक्षा मन्त्री के रूप में मेरी निम्नलिखित प्राथमिकताएँ होंगी।

1. सेना का उचित प्रसार देश के रक्षामन्त्री के रूप में सबसे पहले मैं भारत में सेना के उचित प्रसार पर ध्यान देता। किसी भी देश की सुरक्षा इस बात पर निर्भर करती है कि उसके नागरिक कितने सुरक्षित, सजग एवं सतर्क प्रहरी हैं। समय के अनुसार विज्ञान एवं रक्षा मन्त्री के रूप में प्राथमिकता प्रौद्योगिकी में परिवर्तन को देखते हुए भारतीय सेना प्रणाली में भी इनको प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता है। मैं सेना द्वारा सुरक्षा बढ़ाने के लिए विज्ञान की शिक्षा कार्यानुभव एवं व्यावसायिक शिक्षा पर बल देता।।

2. आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा के लिए प्रयास एक देश तब ही प्रगति की राह पर अग्रसर रह सकता है, जब उसके नागरिक अपने देश में सुरक्षित हों। असुरक्षा की भावना न केवल नागरिकों का जीना दूभर कर देती हैं, बल्कि इससे देश की शान्ति एवं सुव्यवस्था के साथ-साथ इसकी प्रगति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। आज भारत निःसन्देह बहुत तेज़ी से प्रगति कर रहा है, किन्तु इसकी आन्तरिक सुरक्षा के समक्ष ऐसी चुनौतियाँ हैं, जो इसकी शान्ति एवं सुव्यवस्था पर प्रश्न-चिह्न लगा रही हैं। साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद, आतंकवाद, अलगाववाद, भाषावाद, नक्सलवाद इत्यादि भारत को आन्तरिक, बाह्य सुरक्षा के समक्ष ऐसी ही कुछ खतरनाक चुनौतियाँ हैं। मैं इन समस्याओं का समाधान कर आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा को सुदृढ़ करने का प्रयास करता।

3. राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने का प्रयास भारत में कई धर्मों एवं जातियों के लोग रहते हैं, जिनके रहन-सहन एवं आस्था में अन्तर तो है ही साथ ही, उनकी भाषाएँ भी अलग-अलग हैं। इन सबके बावजूद पूरे भारतवर्ष के लोग भारतीयता की जिस भावना से ओत-प्रोत रहते हैं, उसे राष्ट्रीय एकता का विश्वभर में सर्वोत्तम उदाहरण कहा जा सकता है। यदि हम भारतवासी किसी कारणवश छिन्न-भिन्न हो गए तो अन्य देश हमारी स्वतन्त्रता को हड़पने का प्रयास करेंगे, इसलिए मैं भारत की सबसे बड़ी विशेषता विविधता में एकता’ को महत्त्व देते हुए भारत की राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने का प्रयास करता।

4. सामाजिक समस्याओं का समाधान धार्मिक कट्टरता, जातिप्रथा, अन्धविश्वास, नारी-शोषण, सामाजिक शोषण, बेरोजगारी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, गरीबी इत्यादि हमारी प्रमुख सामाजिक समस्याएँ हैं। ऐसा नहीं है कि ये सभी सामाजिक समस्याएँ हमेशा से हमारे समाज में विद्यमान रही हैं। कुछ समस्याओं की जड़ धार्मिक कुरीतियाँ हैं, तो कुछ ऐसी समस्याएँ भी हैं, जिन्होंने सदियों की गुलामी के बाद समाज में अपनी जड़ें स्थापित कर ली, जबकि कुछ समस्याओं के मूल में दूसरी पुरानी समस्याएँ रही हैं। देश एवं समाज की वास्तविक प्रगति के लिए इन समस्याओं का शीघ्र समाधान आवश्यक है। एक रक्षा मन्त्री के रूप में मैं रक्षा सेनाओं की समस्याओं का समाधान करने के लिए व्यावहारिक एवं व्यावसायिक रोजगारोन्मुखी NCC, शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित कर देश के युवाओं को सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित करता।

5. रक्षा नीति में सुधार अन्तर्राष्ट्रिीय राजनीति के क्षेत्र में किसी भी देश की स्थिति तब ही सुदृढ़ हो सकती है, जब उसकी रक्षा नीति सही हो। भारत एक शान्तिप्रिय देश है। दुनिया भर में शान्ति को बढ़ावा देने एवं परस्पर सहयोग के लिए मैं भारतीय विदेश नीति में सुधार करता। राष्ट्रीय सीमा सुरक्षा बलों का विकास करता तथा मैं सम्पूण सेना के अंगों को प्रशिक्षित एवं अत्याधुनिक निक हथियारों, वायुयानों, रडारों एवं अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों से सुसज्जित कर देश की सुरक्षा को सुनिश्चित करता।

उपसंहार इस तरह स्पष्ट है कि यदि मैं भारत का रक्षा मन्त्री होता तो देश एवं देश की जनता को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं शैक्षिक सुरक्षा के स्तर पर सुदृढ़ कर भारत को पूर्णतः विकसित ही नहीं, खुशहाल शान्तिप्रिय एवं सुरक्षित देश बनाने का सपना साकार करता।

3. जीवन में खेल की उपयोगिता (2018)
प्रस्तावना सभी प्राणियों में मानव का मस्तिष्क सर्वाधिक विकसित है। अपने मस्तिष्क के बल पर मानव ने पूरी दुनिया पर अधिकार पा लिया है और दिनों-दिन प्रगति के पथ पर अग्रसर है, किन्तु मानव का मस्तिष्क तभी स्वस्थ रह सकता है, जब उसका शरीर तन्दुरुस्त रहे। इसलिए कहा गया है-‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम की आवश्यकता होती है और खेल व्यायाम का एक ऐसा रूप है जिसमें व्यक्ति को शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक विकास भी होता है।

शरीर और मस्तिष्क का पारस्परिक सम्बन्ध इस प्रकार मस्तिष्क के शरीर से और शरीर के मस्तिष्क से पारस्परिक सम्बन्ध को देखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि खेल-कूद व्यक्ति के बहुमुखी विकास के लिए आवश्यक है। जॉर्ज बर्नाड शॉ का कहना है-“हमें खेलना बन्द नहीं करना चाहिए, क्योंकि हम बूढ़े इसलिए होते हैं कि हम खेलना बन्द कर देते हैं।”

जीवन में खेल कूद के लाभ स्वास्थ्य की दृष्टि से खेल कूद के कई लाभ हैं-इससे शरीर की मांसपेशियाँ एवं हड्डियाँ मज़बूत रहती हैं, रक्त का संचार सुचारु रूप से होता है। पाचन क्रिया सुदृढ़ रहती है, शरीर को अतिरिक्त ऑक्सीजन मिलती है और फेफड़े भी मज़बूत रहते हैं। खेलकूद के दौरान शारीरिक अंगों के सक्रिय रहने के कारण शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है। इस तरह, खेल मनुष्य के शारीरिक विकास के लिए आवश्यक हैं। खेल केवल मनुष्य के शारीरिक ही नहीं, मानसिक विकास के लिए भी आवश्यक है। इससे मनुष्य में मानसिक तनावों को झेलने की क्षमता में वृद्धि होती है। खेल-कूद की इसी महत्ता को स्वीकारते हुए ‘स्वामी विवेकानन्द’ ने कहा था-“यदि तुम गीता के मर्म को समझनी चाहते हो, तो खेल के मैदान में जाकर फुटबॉल खेलो।” कहने का तात्पर्य यह है कि खेल-कूद द्वारा शरीर को स्वस्थ करके ही मानसिक प्रगति हासिल की जा सकती हैं।

शिक्षा एवं रोजगार मे खेल-कूद की उपयोगिता शिक्षा एवं रोज़गार की दृष्टि से भी खेल-कूद अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। ‘पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे होंगे खराब’ जैसी कहावत अब बीते दिनों की बात हो गई है। खेल अब व्यक्ति के कैरियर को नई ऊंचाइयों दे रहे हैं। राष्ट्रीय एवं अन्तरर्राष्ट्रीय स्तर पर आए दिन होने वाली तरह-तरह की खेल स्पर्धाओं के कारण खेल, खिलाड़ी और इससे जुड़े लोगों को पैसा, वैभव और पद हर प्रकार के लाभ प्राप्त हो रहे हैं। खेल-कूद के व्यवसायीकरण के कारण यह क्षेत्र रोज़गार का एक अच्छा माध्यम बन गया है। खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए राज्य, राष्ट्रीय एवं अन्तरष्ट्रिीय स्तर के खिलाड़ियों को निजी एवं बैंक, रेलवे जैसी सरकारी कम्पनियाँ ऊँचे वेतन वाले पदों पर नियुक्त करती हैं।

जब खेल-कूद के महत्त्व की बात आती है तो लोग कहते हैं, कि क्रिकेट, बैडमिण्टन, हॉकी, फुटबॉल जैसे मैदान में खेले जाने वाले खेल ही हमारे लिए मानसिक एवं शारीरिक विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं तथा शतरंज, कैरम, लुडो जैसे घर के अन्दर खेले जाने वाले खेलों से सिर्फ हमारा मनोरंजन होता है, इसलिए ये खेल समय की बर्बादी हैं, किन्तु ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है।

खेल-कूद जीवन का अभिन्न अंग जीवन में जिस तरह शिक्षा महत्त्वपूर्ण है, उसी तरह मनोरंजन के महत्त्व को भी नकारा नहीं जा सकता। काम की थकान के बाद हमारे मस्तिष्क को मनोरंजन की आवश्यकता होती है। नियमित दिनचर्या में यदि खेल-कूद का समावेश कर लिया जाए, तो व्यक्ति के जीवन में उल्लास-ही-उल्लास छा जाता है। अवकाश के समय घर के अन्दर खेले जाने वाले खेलों से न केवल स्वस्थ मनोरंजन होता है, बल्कि ये आपसी मेल-जोल को बढ़ाने में भी मददगार साबित होते हैं। खेल कोई भी हो यदि व्यक्ति पेशेवर खिलाड़ी नहीं है, तो उसके लिए इस बात का ध्यान रखना अनिवार्य हो जाता है कि खेल को खेल के समय ही खेला जाए, काम के समय नहीं।।

उपसंहार भारत के ये महान् खिलाड़ी देश की नई पौध को खेल-कूद की ओर आकर्षित कर रहे हैं। क्रिकेट की दुनिया के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेन्दुलकर के कीर्तिमानों को तोड़ने वाला विश्व में कोई खिलाड़ी नहीं। उन्हें वर्ष 2014 में भारत का सर्वोच्च अलंकरण ‘भारत रल’ से भी सम्मानित किया गया है। इस प्रकार निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मनुष्य के सर्वांगीण एवं सन्तुलित विकास के लिए खेल कूद को जीवन में पर्याप्त स्थान दिया जाना चाहिए। अल्बर्ट आइंस्टाइन का कहना था-“खेल सबसे उच्चकोटि को अनुसन्धान है।”

4. ग्राम्य जीवन का आनन्द/ग्रामीण जीवन (2018)
प्रस्तावना यद्यपि आज भारत विकाशील देशों की श्रेणी में खड़ा हुआ है। फिर भी आज शहरों की अपेक्षा भारत वर्ष में गाँवों की संख्या अधिक है। एक सर्वे के अनुसार भारत वर्ष की कुल जनसंख्या का 75% भाग ग्रामीण परिवेश में ही निवास करता है। गाँवों का जीवन शान्त, हरियाली एवं प्रदूषण मुक्त होता है। गाँवों के खेतों की सुन्दरता और हरियाली बरबस ही मन को हर लेती है।

गाँव की शिक्षा व्यवस्था भारतवर्ष के अधिकांश गाँवों में मूलभूत सुविधाओं की प्रायः कमी पाई जाती है। आज भी इस आधुनिक युग में गाँव का जीवन शहरों से बहुत अलग है। गाँव में पूर्ण रूप से शिक्षा की सुविधाएँ आज भी उपलब्ध नहीं हो पाई हैं। आज भी ज्यादातर गाँवों में मात्र प्राइमरी स्कूलों की सुविधा है और कुछ बड़े गाँवों में मात्र हाई स्कूल की सुविधा है। कॉलेज या उच्च शिक्षा के लिए आज भी गाँव के बच्चों को बड़े शहरों में जाना पड़ता है। ऐसे में जिन लोगों के घर अपने बच्चों को शहर भेजने के लिए पैसे नहीं होते हैं, वह उनकी शिक्षा वहीं रोक देते हैं। इस प्रकार ज्यादातर लोग गाँव में अशिक्षित रह जाते हैं।

ग्रामीण आवासीय व्यवस्था भारतवर्ष में आज भी अधिकांश जनसंख्या कच्चे घास फूस के मकानों अथवा झोपड़ियों में निवास करती है। पहले भारत के सभी गाँव में बाँस और भूसे से बने छप्पर हुआ करते थे और घर भी, मिट्टी के बने होते थे, परन्तु अब प्रधानमंत्री आवास योजना की मदद से गाँव में गरीब लोगों को मुफ्त में पक्के घर मिल रहे हैं।

ग्रामीण लोगों का मुख्य व्यवसाय लगभग सभी गाँवों के लोग खेती-किसानी करते हैं और अपने घरों में मुर्गियाँ, गाय-भैंस, बैल और बकरियाँ पालते हैं। साथ ही गाँव के लोग शहरी लोगों की तरह सब्जी मण्डी से सब्जियाँ खरीदने नहीं जाते हैं। हर कोई अपने खेतों और बगीचों में सब्जियाँ लगाते हैं और खुद के घर की सब्जियाँ खाते हैं। गांव के लोगों का मुख्य कार्य खेती होता है। आज भी शहरों में जिस अनाज को लोग खाते हैं, वह गांव के खेतों से ही आता है।

गाँवों में परिवहन की सुविधाएँ आज भी इस 21 वीं सदी में कई ऐसे गाँव हैं, जहाँ तक पहुँचने के लिए अच्छी सड़क तक नहीं है। हालाँकि प्रधानमन्त्री ग्रामीण सड़क योजना के अनुसार ज्यादातर गाँव को अब पक्की सड़कों से जोड़ा जा चुका है, परन्तु फिर भी कुछ ऐसे गाँव हैं, जहाँ पर सड़क न होने के कारण वहाँ जाना तक बहुत मुश्किल होता है। उन जगहों पर सड़क न होने के कारण बारिश के महीने में सड़कों व गड्ढों में पानी भर जाता है व कीचड़ को जाती है, जिसके कारण आना-जाना मुश्किल हो जाता है।

शहर के मुकाबले गाँव में बहुत कम लोग रहते हैं। गाँव में लोगों के घर के आस पास बहुत खुली जगह होती है और हर किसी व्यक्ति के पास मोटरसाइकिल या कार नहीं होती है। गाँव में ज्यादातर लोगों के पास वाहन के रूप में बैलगाड़ी होती है। परन्तु कुछ गाँव में अभी भी लोगों के पास मोटर गाड़ी की सुविधाएँ हैं।

गाँव की स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाएँ अब गाँव के पास भी सरकार की ओर से प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र जगह-जगह खोले जा चुके हैं, जिससे गाँव के लोगों को भी चिकित्सा के क्षेत्र में सुविधाएँ मिल रही हैं। इमरजेंसी के समय के लिए सरकार ने अब ज्यादातर प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों में मुफ्त 108 एम्बुलेंस सर्विस प्रदान की है, जो बहुत मददगार साबित हुई हैं। गाँव में साप्ताहिक छोटे बाजार लगते हैं, जहाँ लोग कपड़े, खाने का समान, बिजली का सामान और अन्य जरूरी समान खरीदने जाते हैं। अगर उन्हें कुछ बड़ी चीजें खरीदनी होती हैं, तो वे पास के शहर चले जाते हैं।

गाँव का वातावरण गांव में मौसम बहुत ही सुहाना और वातावरण बहुत स्वच्छ होता है। आज शहरी इलाकों में प्रदूषण के कारण साँस लेना तक मुश्किल हो गया है। परन्तु गाँव में ऐसा नहीं है। गाँव में कम वाहन चलने के कारण प्रदूषण ना के बराबर होता है, इसलिए वहाँ वातावरण भी स्वच्छ होता है।

ग्रामीण लोगों की जीवन शैली जिन क्षेत्रों में कुछ प्राकृतिक कारणों से खेती-किसानी सही प्रकार से नहीं हो पा रही हैं, उन क्षेत्रों के गांव में ज्यादातर लोग गरीबी रेखा (BPL – Below poverty line) के नीचे होते हैं। उनके पास खेत न होने या खेतों में पानी की सुविधा सही प्रकार से ना हो पाने के कारण उनके पास एक वक्त का खाना खाने के लिए भी अनाज नहीं होता है। ज्यादातर राज्यों की सरकार के द्वारा इन गरीबी रेखा के लोगों के लिए जन धन योजना’ बैंक अकाउण्ट प्रदान किया जाता है और साथ ही परिवार के अनुसार 2 किलो वाला चावल प्रदान किया जा रहा है और साथ ही प्रधानमन्त्री उज्ज्वला योजना के अनुसार, घर पर गैस कनेक्शन दिए जा रहे हैं।

ग्रामीण परिवेश में प्रकाश की व्यवस्था पहले कुछ वर्ष गाँव का जीवन रात होते ही अंधकार में डूब जाता था, क्योंकि ज्यादातर गाँव में बिजली की सुविधा नहीं थी। आज लगभग ज्यादातर गांव में बिजली की सुविधा पहुँच चुकी है। अब गांव के बच्चे भी मेहनत कर रहे हैं और शिक्षा के क्षेत्र में बहुत सफलताएँ प्राप्त कर रहे हैं।

गाँव के पारम्परिक त्योहार और संस्कृति आज भले ही शहरी क्षेत्रों में लोग भारत की संस्कृति और परम्परा को काफी हद तक भुला चुके हैं, लेकिन आज भी ग्रामीण लोगों के दिल में हमारे देश की परम्परा और संस्कृति कूट-कूटकर भरी हुई हैं। गाँव के त्योहारों में शहरों के जितनी आतिशबाजी और रोशनी तो नहीं होती है, परन्तु उनमें सभी लोग नियम से और मिल-जुल कर त्योहार का आनन्द उठाते हैं।

उपसंहार संक्षेप में कहें तो ग्रामीण परिवेश में ही आनन्द की अनुभूति होती है, क्योंकि जहां शहरी व्यक्ति स्वार्थी हो गए हैं, वहाँ वे स्वयं के लिए ही केन्द्रित हो गए हैं, जबकि गांवों के लोग मिलनसार, परस्पर सहयोगी तथा खुश दिखाई देते हैं। सरकार की पहल पर आज गाँवों के जीवन में शहरी जीवन की तरह की आमूलचूल परिवर्तन होता जा रहा है। फिर भी आज जिन गाँवों में मूलभूत सुविधाओं की कमी है, उनमें कम-से-कम मूलभूत सुविधाएँ तो अवश्य ही होनी चाहिए, ताकि ग्रामीण जीवन तथा गाँवों के लोगों का जीवन और अधिक सरल हो सके।

5. रोग वद्धि कारण एवं निवारण/स्वास्थ्य/आरोग्य (2018)
प्रस्तावना हम सब ने स्वास्थ्य से सम्बन्धित अनेक कहावतें तथा श्लोगन सुन रखे हैं; जैसे-जान है तो जहान है। एक तन्तुरूस्ती हजार नियामत तथा संस्कृत भाषा में भी कालिदास द्वारा उक्त शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम् यह बिल्कुल सत्य है कि, ” स्वास्थ्य ही धन है। क्योंकि, हमारा शरीर ही हमारी सभी अच्छी और बुरी सभी तरह की परिस्थितियों में हमारे साथ रहता है। इस संसार में कोई भी हमारे बुरे समय में मदद नहीं कर सकता है। इसलिए, यदि हमारा स्वास्थ्य ठीक है, तो हम अपने जीवन में कितनी भी बुरी परिस्थिति का सामना कर सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति स्वस्थ नहीं है, तो वह अवश्य ही जीवन का आनन्द लेने के स्थान पर जीवन में स्वास्थ्य सम्बन्धी या अन्य परेशानियों से पीड़ित ही होगा।

स्वास्थ्य से तात्पर्य स्वस्थ शरीर से तात्पर्य है कि मानव या किसी भी प्राणी की शारीरिक एवं मानसिक क्षमता को उसके द्वारा सुचारु रूप से उपयोग करना। यदि चर ऐसा नहीं कर पा रहा है तो निश्चित है कि वह किसी-न-किसी शारीरिक अथवा मानसिक रोग से ग्रस्त है। आए दिन नई-नई बीमारियां सामने आती रहती हैं; जैसे बुखार, चेचक, हैजा, कैन्सर, एड्स नजला, जुकाम, जोड़ों का दर्द, अल्जाइमर सियाटिका, अल्सर दाद, खाज, खुजली, मधुमेह, हृदय रोग एवं विभिन्न पातक रोग आदि में से संसार का हर व्यक्ति किसी-न-किसी छोटी-बड़ी बीमारी से अवश्य ही रोग प्रस्त होता है। कुछ रोगों का तो हमें सामान्य रूप से ही पता चल जाता है, परन्तु कुछ रोगों की जाँच के लिए हमें चिकित्सीय उपकरणों /मशीनों आदि की सुविधाएँ लेनी पड़ती है।

रोग वृद्धि के कारण किसी भी रोग की वृद्धि का प्रमुख कारण है, हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आना। दूसरा प्रमुख मूल कारण है, विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों के स्तर में वृद्धि होना, जिसके कारण कुछ रोग तो मनुष्य के खान-पान तथा पेय जल की अशुद्धता से फैलते हैं तथा कुछ रोग वायु की अशुद्धता अर्थात् ऑक्सीजन की कमी तथा विभिन्न जहरीली गैसों के वातावरण में वृद्धि के कारण फैलते हैं। कुछ रोगों की वृद्धि का कारण मानव की अज्ञानता है, तो कुछ रोगों की वृद्धि का कारण मनुष्य की लापरवाही भी होती है।

रोग वृद्धि के दुष्परिणाम सर्वप्रथम तो रोग ग्रस्त व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है। उसका न तो खान-पान में हो मन लगता है और न ही किसी भी अन्य कार्यों में, वह घर के किसी अन्य सदस्य पर निर्भर रहने लगता है, क्योंकि वह स्वयं के कार्यों को भी ठीक से करने में असमर्थ हो जाता है।

संसार का कोई भी शारीरिक और आन्तरिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति जीवनभर में बहुत-सी चुनौतियों का सामना करता है, यहाँ तक कि उसे अपनी नियमित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी और पर निर्भर रहना पड़ता है। यह स्थिति उस व्यक्ति के लिए बहुत शर्मनाक होती है, जो इन सब का सामना करता है। इसलिए, अन्त में सभी प्रकार से खुश रहने के लिए और अपने सभी कार्यों को स्वयं करने के लिए अपने स्वास्थ्य को बनाए रखना अच्छा होता है। यह सत्य है कि धन और स्वास्थ्य एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं, क्योंकि अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए हमें धन की आवश्यकता होती है और धन कमाने के लिए अच्छे स्वास्थ्य की, लेकिन यह भी सत्य है, कि हमारा अच्छा स्वास्थ्य हर समय हमारी मदद करता है और हमें केवल धन कमाने के स्थान पर अपने जीवन में कुछ बेहतर करने के लिए भी प्रोत्साहित करता है।

स्वास्थ्य प्राप्ति एवं रोग निवारण के उपाय आजकल अच्छा स्वास्थ्य भगवान के दिए हुए एक वरदान की तरह है। यह बिल्कुल वास्तविक तथ्य है, कि स्वास्थ्य ही वास्तविक धन है। अच्छा स्वास्थ्य एक व्यक्ति के लिए जीवनभर में कमाई जाने वाली सबसे कीमती आय होती है। यदि कोई अपना स्वास्थ्य खोता है, तो वह जीवन के सभी आकर्षण को खो देता है। अच्छा धन, अच्छे स्वास्थ्य का प्रयोग करके कभी भी कमाया जा सकता है, हालाँकि एक बार अच्छा स्वास्थ्य खो देने पर इसे दोबारा किसी भी कीमत पर प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए हमें नियमित शारीरिक व्यायाम, योग, ध्यान, सन्तुलित भोजन, अच्छे विचार, स्वच्छता, व्यक्तिगत स्वच्छता, नियमित चिकित्सकीय जाँच, पर्याप्त मात्रा में सोना और आराम करना आदि की आवश्यकता होती है। यदि कोई स्वस्थ है, तो उसे अपने स्वास्थ्य के लिए दवा खरीदने या डॉक्टरों से मिलने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इतना ही नहीं अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करना स्वच्छता का मुख्य घटक है। इसलिए माननीय प्रधानमन्त्री महोदय जी द्वारा स्वच्छता अभियान/आन्दोलन सम्बन्धी विभिन्न योजनाओं को लागू किया गया तथा उन्हें बढ़ावा दिया गया है।

उपसंहार हमारे ग्रन्थों में स्वास्थ्य का मूल मन्त्र बताते हुए कहा गया है कि जल्दी सोना, सुबह जल्दी उठना व्यक्ति को सर्वप्रथम स्वस्थ बनाता है, उसे | धनवान बनाता है तथा इतना ही नहीं, उसे बुद्धिमान भी बनाता है। अतः हमें अपने आस-पास की साफ-सफाई के साथ-साथ स्वास्थ्य सम्बन्धी उपरोक्त मन्त्र के अनुसार अपनी दिनचर्या में बदलाव लाना चाहिए, तभी हम स्वस्थ, समृद्ध तथा खुशहाल जीवन जी सकते हैं।

6. मेरा प्रिय खेल-हॉकी (2018)
प्रस्तावना संसार का कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं हैं जिसे कोई न कोई खेल । प्रिय न हो। सभी को कोई-न-कोई खेल अपनी रुचि के अनुरूप अवश्य ही प्रिय होता है। किसी को शारीरिक, तो किसी को मानसिक विकास को प्रबल करने वाले खेल प्रिय होते हैं। मुझे हॉकी का खेल अतिप्रिय है, क्योंकि हॉकी खेल के कारण ही हमारा भारत देश प्रसिद्ध है। यह हमारा राष्ट्रीय खेल भी है।

हॉकी खेल का इतिहास भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी विश्व के लोकप्रिय खेलों में से एक हैं। इसकी शुरूआत कब हुई? यह तो निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता, किन्तु ऐतिहासिक साक्ष्यों से सैकड़ों वर्ष पहले भी इस प्रकार का खेल होने के प्रमाण मिलते हैं। आधुनिक हॉकी खेलों का जन्मदाता इंग्लैण्ड को माना जाता है। भारत में भी आधुनिक हॉकी की शुरूआत का श्रेय अंग्रेज़ों को ही जाता है।

हॉकी के अन्तर्राष्ट्रीय मैचों की शुरूआत 19वीं शताब्दी में हुई थी। इसके बाद 20वीं शताब्दी में वर्ष 1924 में अन्तर्राष्ट्रीय हॉकी संघ की स्थापना पेरिस में हुई। विश्व के सबसे बड़े अन्तर्राष्ट्रीय खेल आयोजन ‘ओलम्पिक’ के साथ-साथ ‘राष्ट्रमण्डल खेल’ एवं ‘एशियाई खेलों में भी हॉकी को शामिल किया जाता है। वर्ष 1971 में पुरुषों के हॉकी विश्वकप की एवं वर्ष 1971 में महिलाओं के हॉकी विश्वकप की शुरूआत हुई। न्यूनतम निर्धारित समय में परिणाम देने में सक्षम होना इस खेल की प्रमुख विशेषता है।

हॉकी खेल का स्वरूप हॉकी मैदान में खेला जाने वाला खेल है। बर्फीले क्षेत्रों में बर्फ के मैदान पर खेली जानी वाली आइस हॉकी भारत में लोकप्रियता अर्जित नहीं कर सकी है। दो दलों के बीच खेले जाने वाले खेल हॉकी में दोनों दलों के 11-11 खिलाड़ी भाग लेते हैं। आजकल हॉको के मैदान में कृत्रिम घास का प्रयोग भी किया जाने लगा है। इस खेल में दोनों टीमें स्टिक को सहायता से रबड़ या कठोर प्लास्टिक की गेंद को विरोधी टीम के नेट या गोल में डालने का प्रयास करती हैं। यदि विरोधी टीम के नेट में गेंद चली जाती है, तो उसे एक गोल कहा जाता हैं। जो टीम विपक्षी टीम के विरुद्ध अधिक गोल बनाती है, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। मैच में विभिन्न प्रकार के निर्णय एवं खेल पर नियन्त्रण के लिए रेफरी को तैनात किया जाता है। मैच बराबर रहने की दशा में परिणाम निकालने के लिए विशेष व्यवस्था भी होती है।

भारतीय हॉकी की प्रतिष्ठा राष्ट्रीय खेल हॉकी की बात आते ही तत्काल मेजर ध्यानचन्द का स्मरण हो आता है, जिन्होंने अपने करिश्माई प्रदर्शन से पूरी दुनिया को अचम्भित कर खेलों के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा लिया। हॉकी के मैदान पर जब वह खेलने उतरते थे, तो विरोधी टीम को हारने में देर नहीं लगती थी। उनके बारे में यह कहा जाता है कि वे किसी भी कोण से गोल कर सकते थे। यही कारण है कि सेण्टर फॉरवर्ड के रूप में उनकी तेज़ी और जबरदस्त फु को देखते हुए उनके जीवनकाल में ही उन्हें ‘हॉकी का जादूगर’ कहा जाने लगा था। उन्होंने इस खेल को नवीन ऊँचाइयाँ दीं।

भारतीय हॉकी का स्वर्णिम इतिहास मेजर ध्यानचन्द का जन्म 29 अगस्त, 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था। वे बचपन में अपने मित्रों के साथ पेड़ की डाली की स्टिक और कपड़ों की गेंद बनाकर हॉकी खेला करते थे। 23 वर्ष की उम्र में ध्यानचन्द वर्ष 1928 के एम्सटर्डम ओलम्पिक में पहली बार भाग ले रही भारतीय हॉकी टीम के सदस्य चुने गए थे। उनके प्रदर्शन के दम पर भारतीय हॉकी टीम ने तीन बार; वर्ष 1928 के एम्सटर्डम ओलम्पिक, वर्ष 1932 के लॉस एंजिल्स ओलम्पिक एवं वर्ष 1936 के बर्लिन ओलम्पिक में स्वर्ण पदक प्राप्त कर राष्ट्र को गौरवान्वित किया था। यह भारतीय हॉकी को उनका अविस्मरणीय योगदान है।

ध्यानचन्द की उपलब्धियों को देखते हुए ही उन्हें विभिन्न पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मानित किया गया। वर्ष 1956 में 51 वर्ष की आयु में जब वे भारतीय सेना के मेजर पद से सेवानिवृत्त हुए, तो उसी वर्ष भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ से अलंकृत किया। उनके जन्मदिन 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाने को घोषणा की गई। मेजर ध्यानचन्द के अतिरिक्त धनराज पिल्ले, दिलीप टिकी, अजीतपाल सिंह, असलम शेर खान, परगट सिंह इत्यादि भारत के अन्य प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी रहे है।

भारतीय हॉकी का विकास एवं शानदार प्रदर्शन देश में राष्ट्रीय खेल हॉकी को विकास करने के लिए वर्ष 1925 में ग्वालियर में अखिल भारतीय हॉकी संघ की स्थापना की गई थी। यदि ओलम्पिक खेलों में भारतीय टीमों के प्रदर्शन की बात की जाए, तो वर्ष 2014 तक देश को कुल 24 पदक प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 11 पदक अकेले भारतीय हॉकी टीम ने ही हासिल किए हैं। हॉकी में प्राप्त 11 पदकों में से 8 स्वर्ण, 1 रजत एवं 2 काँस्य पदक शामिल हैं। वर्ष 1928 से लेकर वर्ष 1956 तक लगातार छ: बार भारत ने ओलम्पिक खेलों में हॉकी का स्वर्ण पदक जीतने में सफलता पाई। इसके अतिरिक्त, भारत ने वर्ष 1964 एवं 1980 में भी स्वर्ण पदक प्राप्त किया। हॉकी के विश्वकप में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन ओलम्पिक जैसा नहीं रहा है। वर्ष 1971 में हुए पहले हॉकी विश्वकप में भारत तीसरे स्थान पर, जबकि वर्ष 1973 में हुए दूसरे विश्वकप में दूसरे स्थान पर रहा। वर्ष 1975 में हुए तीसरे हॉकी विश्वकप में भारतीय खिलाड़ियों ने शीर्ष स्थान प्राप्त कर इतिहास रच दिया।

उपसंहार इधर विगत तीन चार दशकों से भारतीय महिला हॉकी टीम का प्रदर्शन भी अच्छा होने लगा है। इसने राष्ट्रमण्डल खेल, 2002 और एशियन गेम्स, 1982 में स्वर्ण पदक जीतकर भारत का मान बढ़ाया है। इसके अलावा एशियन गेम्स, 1998 और राष्ट्रमण्डल खेल, 2006 में यह टीम उपविजेता घोषित हुई। इतना ही नहीं वर्ष 1986 एवं 2006 में हुए एशियन गेम्स में कांस्य पदक हासिल करने के पश्चात् इसने वर्ष 2014 का एशियन गेम्स हॉकी काँस्य पदक भी अपनी झोली में डाला। इस प्रकार भारतीय पुरुष हॉकी टीम के साथ-साथ भारतीय महिला हॉकी टीम ने भी अन्तरष्ट्रिीय स्तर पर अपनी विशेष पहचान कायम करने में सफलता पाई है। आशा है आने वाले वर्षों में ये दोनों टीमें नए-नए कीर्तिमान गढ़कर भारत को गौरवान्वित करने में पूर्ण सहयोग देगी

7. व्यायाम और योगासन का महत्त्व (2016)
संकेत बिन्दु भूमिका, स्वस्थ शरीर की आवश्यकता, स्वस्थ रहने में योग की भूमिका, व्यायाम और योग के लाभ, उपसंहार।।

भूमिका प्रकृति ने संसार के सभी जीव-जन्तुओं को पनपने एवं बढ़ने के अवसर प्रदान किए हैं। सभी प्राणियों में श्रेष्ठ होने के कारण मानव ने अनुकूल-प्रतिकूल, सभी परिस्थितियों में अपनी बुद्धि और विवेक का प्रयोग कर स्वयं को स्वस्थ बनाए रखने में सफलता हासिल की है। विश्व की सभी सभ्यता-संस्कृतियों में न सिर्फ स्वास्थ्य रक्षा को प्रश्रय दिया गया है, अपितु स्वस्थ रहने की तरह-तरह की विधियों का शास्त्रगत बखान भी किया गया हैं।

भगवान बुद्ध ने कहा था-“हमारा कर्तव्य है कि हम अपने शरीर को स्वस्थ रखें अन्यथा हम अपने मन को सक्षम और शुद्ध नहीं रख पाएंगे।

आज की भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में इनसान को फुर्सत के दो पल भी नसीब नहीं हैं। घर से दफ्तर, दफ्तर से घर, तो कभी घर ही दफ़्तर बन जाता है यानी इनसान के काम की कोई सीमा नहीं है। वह हमेशा खुद को व्यस्त रखता है। इस व्यस्तता वे कारण आज मानव शरीर तनाव, थकान, बीमारी इत्यादि का घर बनता जा रहा है। आज उसने हर प्रकार की सुख-सुविधाएँ तो अर्जित कर ली हैं, किन्तु उसके सामने शारीरिक एवं मानसिक तौर पर स्वस्थ रहने की चुनौती आ खड़ी हुई है।

स्वस्थ शरीर की आवश्यकता यद्यपि चिकित्सा एवं आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में मानव ने अनेक प्रकार की बीमारियों पर विजय हासिल की है, किन्तु इससे इसे पर्याप्त मानसिक शान्ति भी मिल गई हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता। तो क्या मनुष्य अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहा है? यह ठीक है कि काम ज़रूरी है, लेकिन काम के साथ साथ स्वास्थ्य का भी ख्याल रखा जाए, तो यह सोने-पे-सुहागा वाली बात ही होगी। महात्मा गांधी ने कहा भी हैं-

“स्वास्थ्य ही असली धन है, सोना और चाँदी नहीं।”

सचमुच यदि व्यक्ति स्वस्थ न रहे तो उसके लिए दुनिया की हर खुर्श निरर्थक होती है। रुपये के ढेर पर बैठकर आदमी को तब ही आनन्द मिल सकते है, जब वह शारीरिक रूप से स्वस्थ हो। स्वास्थ्य की परिभाषा के अन्तर्गत केवरु शारीरिक रूप से स्वस्थ होना ही नहीं, बल्कि मानसिक रूप से स्वस्थ होना भी शामिल हैं। व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ हो, किन्तु मानसिक परेशानियों से जुड़ रहा हो, तो भी उसे स्वस्थ नहीं कहा जा सकता। उसी व्यक्ति को स्वस्थ कहा जा सकता है, जो शारीरिक एवं मानसिक दोनों रूप से स्वस्थ हो। साइरस ने ठीक ही कहा है कि “अच्छा स्वास्थ्य एवं अच्छी समझ, जीवन के दो सर्वोत्तम वरदान हैं।”

स्वस्थ रहने में योग की भूमिका योग प्राचीन समय से ही प्रारतीय संस्कृति का अंग रहा हैं। हमारे पूर्वजों ने बहुत समय पहले ही इसका आविष्कार कर लिया था और इसके महत्व को पहचान लिया था। इसीलिए योग पद्ध। सदियों बाद भी जीवित है। योग प्रत्येक दृष्टिकोण से लाभदायक हैं। योग करने 3 व्यक्ति का शरीर सुगठित तथा सुडौल बनता है।

वह क्रियाशील बना रहता है। योग से न केवल तन की थकान दूर होती है, बल्कि मन की थकान भी दूर हो जाती है। योग करने वाला व्यक्ति अपने अंग प्रत्यंग में एक नए उत्साह एवं स्फूर्ति का अनुभव करता है। योग करने से शरीर के प्रत्येक अंग में रक्त का संचार सुचारु रूप से होता रहत हैं तथा शरीर रोगमुक्त रहता है। योग से पाचन-तन्त्र भी ठीक रहता है। ध्यान रहे कि पाचन-तन्त्र के अनियमित होने पर ही अधिकांश बीमारियाँ जन्म लेती हैं।

यह आश्चर्यजनक तथ्य है, परन्तु उतना ही सत्य भी है कि नियमित रूप से योग करने से शरीर स्वस्थ तो रहता ही है, साथ ही यदि कई रोग है तो योग के द्वारा उसका उपचार भी किया जा सकता है। कुछ रोगों में दो दवा से अधिक लाभ योग करने से होता हैं।
इसीलिए कहा गया है-

“आसनं विजितं येनल जितं तेन जगत्र्यम्
अनेन विधिनायु तः प्राणायाम सदा कुरू

अर्थात् जिसने आसन को जीत लिया है, उसने तीनों लोकों को जीत लिया। इसीलिए विधि-विधान से प्राणायाम और योग का अभ्यास करना चाहिए।

व्यायाम और योग के लाभ मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर ही योग का विकास किया गया था। यह हमारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं। इसका उद्देश्य शरीर, मन एवं आत्मा के बीच सन्तुलन अर्थात् योग स्थापित करना होता है। यह मन को शान्त एवं स्थिर रखता है, तनाव को दूर कर सोचने की क्षमता, आत्मविश्वास तथा एकाग्रता को बढ़ाता है। यह विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं शोधार्थियों के लिए विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध होता है, क्योंकि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने के साथ-साथ उनकी एकाग्रता भी बढ़ाता है, जिससे उनके लिए अध्ययन-अध्यापन की प्रक्रिया सरल हो जाती है।

यह शरीर के जोड़ों एवं मांसपेशियों में लचीलापन लाता है, मांसपेशियों को मजबूत बनाता है, शारीरिक विकृतियों को काफी हद तक ठीक करता है, शरीर में रक्त के प्रवाह को सुचारु करता है तथा पाचन तन्त्र को मज़बूत बनाता है। इन सबके अतिरिक्त यह शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्तियाँ बढ़ाता है, कई प्रकार की बीमारियों यथा- अनिद्रा, तनाव, थकान, उच्च रक्तचाप, चिन्ता इत्यादि को दूर करता है तथा शरीर को अधिक ऊर्जावान बनाता है। हमारे शास्त्र में कहा भी गया है-“व्यायामान्पुष्ट गात्राणि” अर्थात् व्यायाम से शरीर मजबूत होता हैं।

व्यायाम से होने वाले मानसिक स्वास्थ्य के लाभ पर गौर करें, तो पता चलता है। कि यह मन को शान्त एवं स्थिर रखता है, तनाव को दूर कर सोचने की क्षमता, अमविश्वास तथा एकाग्रता को बढ़ाता है। विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं शोधार्थियों के लिा व्यायाम विशेष रूप से लाभदायक है, क्योकि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ने के साथ-साथ उनकी एकाग्रता भी बढ़ती है, जिससे उनके लिए अध्ययन-अध्यापन की प्रक्रिया सरल हो जाती है। कलियुगी भीम की उपाधि से विभूप्ति विश्वप्रसिद्ध पहलवान राममूर्ति कहते हैं-“मैंने व्यायाम के बल पर अपने दमे तग शरीर की कमजोरी को दूर किया तथा विश्व के मशहूर पहलवानों में अपनी गिनती राई, ये है व्यायाम की महत्ता।

उपहार वर्तमान परिवेश में योग न सिर्फ हमारे लिए लाभकारी है, बल्कि विश्व के बढ़ते प्रदूषण एवं मानवीय व्यस्तताओं से उपजी समस्याओं के निवारण में इसकी सार्थकता पर भी बढ़ गई हैं। योगाभ्यास की जटिलताओं को देखते हुए इसे अनुभवी योग प्रशिक्षक की देखरेख में ही करना चाहिए अन्यथा इससे लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकी है। एक महत्त्वपूर्ण बात और कुछ लोग इसे धर्म विशेष से जोड़कर देखते हैं और लोगों के मन में साम्प्रदायिकता की भावना फैलाने की कोशिश करते हैं, जोकि सर्वथा अनुचित हैं। अतः हमें इसकी महत्ता समझते हुए, इसके कल्याणकारी स्वरूप को अपनाने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

8. यदि मैं प्रधानाचार्य होता (2016)
संकेत बिन्दु भूमिका, प्रधानाचार्य बनने पर किए जाने वाले कार्य, विद्यार्थियों का सर्वागीण विकस, विद्यालय को बेहतर बनाने का प्रयास, उपसंहार।

भूमिका विद्यलय एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था है, जहाँ से शिक्षा प्राप्त करके विद्यार्थी अफार, प्रशासनिक अधिकारी, नेता, मन्त्री, राज्यपाल, राष्ट्रपति आदि बनाते हैं। विद्यार्थियों के जीवन के निर्माण के लिए अच्छे अध्यापक की आवश्यकता होती है तथा उन्हें व्यास्थित तथा उत्तम वातावरण देना प्रधानाचार्य की दायित्व होता है। प्रत्येक विद्यार्थी अपने जीवन में निम्न कल्पनाएँ करता है; जैसे—डॉक्टर बनना, इंजीनियर बनना, IAS ऑफिसर बनना इत्यादि। उसी प्रकार मेरी कल्पना भी एक प्रधानाचार्य बनने की है।

प्रधानाचार्य बनने र किए जाने वाले कार्य अपने कार्यकाल में मैं विद्यालय की व्यवस्था को आकर्षक बनाने का प्रयास करूंगा। प्रधानाचार्य बनने पर मैं सर्वप्रथम विद्यालय के भवनों की रफाई का निरीक्षण करके दिशा-निर्देश जारी करूंगा। विद्यालय के पुस्तकालय को समृद्धशाली बनाऊँगा।

पुस्तकालय में ज्ञान-विज्ञन के सभी प्रकार के साधनों को उपलब्ध कराने का प्रयास करूंगा। मैं विद्यार्थियों के प्रत्येक क्षेत्र में विकास करने का प्रयास करूंगा। मैं विद्यालय में विद्यार्थियों के लिए पढ़ाई, खेलकुद तथा सांस्कृतिक सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थियों के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति करूंगा।।

विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास अपने विद्यालय में विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास करने के लिए हर सम्भव प्रयास करूंगा। अनेक विषयों पर वाद-विवाद, संगीत, चित्रकला आदि की प्रतियोगिताएँ आयोजित करवाऊँगा तथा इन सभी से सम्बन्धित राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में विद्यार्थियों को भाग लेने के लिए प्रेरित करूंगा। सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए कुशल अध्यापकों को नियुक्त करूंगा जिससे हमारा विद्यालय पढ़ाई के साथ-साथ सांस्कृतिक क्षेत्र में भी आगे बढ़ सके।

विद्यालय को बेहतर बनाने का प्रयास विद्यालय का स्तर ऊपर उठाने के लिए मैं कम्प्यूटर प्रणाली लागू करूंगा जिससे प्रत्येक विद्यार्थी तकनीकी क्षेत्र में आगे बढ़ सके। मैं प्रत्येक कक्षा को शैक्षिक भ्रमण पर ले जाऊँगा साथ ही शारीरिक शिक्षा के अध्यापक से मिलकर एक परामर्श समिति बनाऊँगा तथा तद्नुरूप खेलकूद और व्यायाम आदि की व्यवस्था करवाऊंगा।

विद्यार्थियों में नियम पालन, संयम, विनय, कर्तव्यनिष्ठा आदि सद्गुणों के विकास के लिए सदैव प्रयत्नशील रहूंगा तथा मैं स्वयं ही अनुकरणीय आचरण करते हुए अध्यापकों एवं विद्यार्थियों के बीच में प्रस्तुत रहूंगा।

उपसंहार मेधावी गरीब छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें आर्थिक, पुस्तकीय, शत्रवृत्ति के रूप में सहायता प्रदान करने का प्रयास करूंगा। विद्यालय में प्रयोगशाला के स्वरूप में भी सुधार करवाऊँगा, जिससे विद्यार्थियों की विज्ञान के प्रति अधिक रुचि जागृत होगी तथा विद्यार्थी विज्ञान के प्रति हीन-भावना का अनुभव नहीं करेंगे। कर्मचारियों और अध्यापकों को अच्छे कार्य हेतु पारितोषिक प्रदान करते हुए विद्यार्थियों को भी पुरस्कार प्रदान करूंगा। इस प्रकार प्रधानाचार्य बनकर में अपने सभी कर्तव्यों का उचित प्रकार से निर्वाह करूंगा।

9. आज का आदर्श नेता (2017, 16)
संकेत विन्द भूमिका, अरविंद केजरीवाल का समाज सेवा के लिए प्रेरित होना, भ्रष्टाचार का विरोध, ‘आम आदमी पाटी’ की धारणा, उपसंहार।।

भूमिका लोकतन्त्र में आम आदमी होने के मायने क्या होते हैं, ‘आम’ होने के बावजूद वह कितना खास होता है, इसकी एक मिसाल कायम की है अरविन्द केजरीवाल ने इसलिए अरविन्द केजरीवाल को आज का आदर्श नेता माना जाता है। दो साल पहले तक अरविन्द केजरीवाल एक आम भारतीय थे, परन्तु आज वही ‘आम आदमी’ लाखों लोगों की आवाज है। एक आम आदमी से दिल्ली के मुख्यमन्त्री तक का सफर तय करने वाले अरविन्द केजरीवाल का महज दो वर्ष में भारतीय राजनीति में एक अहम जगह बना लेना एक साधारण राजनीतिक घटना नहीं है वरन् भारतीय राजनीति में एक ऐसा अध्याय जुड़ने के समान है, जिसे किसी भी हाल में अनदेखा नहीं किया जा सकता।

अरविन्द केजरीवाल का समाज सेवा के लिए प्रेरित होना सरकारी नौकरी करते हुए अरविन्द केजरीवाल ने सरकारी तन्त्र में फैले हुए भ्रष्टाचार और अव्यवस्था को करीब से महसूस किया, जिससे उन्हें समाज-सेवा के क्षेत्र में आने की प्रेरणा मिली। वर्ष 2000 में अरविन्द केजरीवाल ने अपने सहयोगी मनीष सिसोदिया के साथ | मिलकर ‘परिवर्तन’ नामक एनजीओ की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाना था।

वर्ष 2005 में केजरीवाल ने ‘कबीर’ नाम से एक नए एन जी ओ की स्थापना की, जो मूल रूप से परिवर्तन’ का ही बदला हुआ रूप था। इनके कामकाज का मुख्य तरीका आर टी आई के माध्यम से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर कार्य करना था। उल्लेखनीय है कि सूचना का अधिकार’ को कानूनी रूप देने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे द्वारा एक देशव्यापी आन्दोलन चलाया गया था, जिसमें अरुणा राय, शेखर सिंह, प्रशान्त भूषण आदि सहित केजरीवाल ने भी अपना सक्रिय योगदान दिया था। इन सबके सम्मिलित प्रयासों से ही भारत के नागरिकों को वर्ष 2005 में ‘सूचना का अधिकार’ मिल पाया था।

अपने गाँधीवादी तरीकों के कारण गाँधीवादी नेता के रूप में पहचाने जाने वाले केजरीवाल के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि उनके आदर्श महात्मा गांधी नहीं बल्कि मदर टेरेसा हैं। वह वर्ष 1990 में मदर टेरेसा से मिले भी थे। उनसे मिलने के बाद ही उनके मन में समाज-सेवा के प्रति रुचि जागी। अपना पूरा समय समाज-सेवा को देने के उद्देश्य से केजरीवाल ने फरवरी, 2006 में आयकर विभाग के संयुक्त आयुक्त पद से इस्तीफा दे दिया। इसी वर्ष इन्हें परिवर्तन’ और ‘कबीर’ के द्वारा समाज-सुधार के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाएं देने के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। दिसम्बर 2006 में इन्होंने मनीष सिसोदिया, अभिनन्दन शेखरी, प्रशान्त भूषण और किरण बेदी के साथ मिलकर पब्लिक कॉज़ रिसर्च फाउण्डेशन’ की स्थापना की, जिसके लिए इन्होंने मैग्सेसे पुरस्कार में मिली धनराशि दान कर दी।

भ्रष्टाचार का विरोघ वर्ष 2010 में अरविंद केजरीवाल ने उस वर्ष हुए। दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार की आशंका जताई। केजरीवाल ने यह अनुभव किया कि केबोर’ और ‘परिवर्तन’ जैसे गैर सरकारी संगठनों की सफलता की अपनी सीमाएँ हैं। इसलिए इन्होंने दूसरे सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने वर्ष 2011 में जनलोकपाल बिल को माँग कर रहे और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले अन्ना हजारे का भी समर्थन किया। इस दौरान उनकी गिरफ्तारी हुई और उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

वर्ष 2012 तक केजरीवाल अन्ना हजारे द्वारा शुरू किए गए भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का प्रमुख चेहरा बन चुके थे। बाद में, केन्द्र सरकार ने आन्दोलन से प्रभावित होते हुए जनलोकपाल बिल का मसौदा तैयार किया, लेकिन केजरीवाल सहित अन्य कार्यकर्ता ‘कमजोर’ लोकपाल बिल से खुश नहीं हुए। इसका नतीजा यह हुआ कि अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में आने का फैसला किया और नवम्बर 2012 में उन्होंने औपचारिक रूप से ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) की स्थापना की। केजरीवाल ने न केवल राजनीति में प्रवेश किया बल्कि वर्ष 2018 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी चुनाव लड़ने का फैसला लिया।

‘आम आदमी पार्टी की धारणा ‘आम आदमी पार्टी ने अपने नाम से ही दिल्ली की आम जनता को आकर्षित किया। भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से उपजी यह पाटी आम आदमी को सीधे-सीधे प्रभावित करने वाले मुद्दों जैसे-भ्रष्टाचार, महँगाई, सुरक्षा आदि पर खड़ी हुई थी, जिसमें युवाओं ने भरपूर समर्थन दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि दिसम्बर 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में पूरे आत्मविश्वास के साथ चुनावों में उतरी। दिल्ली के ये चुनाव निकट भविष्य में एक बड़े बदलाव की आहट थे।

एक साल के राजनीतिक अनुभव वाली नई पार्टी ने दिल्ली में 15 वर्षों से सत्ता में रही कांग्रेस को महज 8 सीटों पर सीमित कर दिया। यहाँ तक की केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते हुए तीन बार दिल्ली की मुख्यमन्त्री रहीं शीला दीक्षित को उन्हीं की सीट ‘नई दिल्ली से उनको भारी अन्तर से पराजित किया। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी 31 सीटों के बाद सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी लेकिन 28 सीटों के साथ आप भी अधिक पीछे नहीं थीं। अंततः आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के सहयोग से गठबन्धन की सरकार बनाई। इस दौरान आपने अपने वादों के अनुरूप थोड़े-बहुत काम अवश्य किए, लेकिन दिल्ली की जनता को तब बड़ा झटका लगा जब केवल 49 दिन के बाद अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमन्त्री पद से यह कहकर इस्तीफा दे दिया कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी सत्ताधारी पार्टी से सहयोग नहीं कर रही हैं और इसीलिए उनकी पार्टी जन लोकपाल बिल पारित नहीं करा सकी।

इसके बाद उनकी लोकप्रियता में बहुत कमी आ गई। दिल्ली की जनता ने उन्हें उनके वादों के आधार पर वोट दिया था, लेकिन उनके इस्तीफे से लोगों में यह सन्देश गया कि वह अपने वादों को पूरा करने में सक्षम नहीं है। आप ने 2014 के लोकसभा चुनावों में भी पूरे देश में 400 सीटों पर चुनाव लड़ा पर वहाँ भी उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली। यह वक्त पार्टी नेता अरविन्द केजरीवाल के लिए काफी मुश्किल था। उनकी पार्टी का भविष्य दाँव पर था, लेकिन कहते हैं न कि इनसान की परीक्षा कठिन समय में ही होती है। उन्होंने साहस बनाए रखा और अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी नया उत्साह भरा। अपनी कमियों को पहचानते हुए गलतियों के लिए जनता से माफी माँगी। भ्रष्टाचार मुक्त शासन का सपना देखने वाली जनता पर इसका असर हुआ और फरवरी 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में वह ऐतिहासिक जीत आप की झोली में आई, जिसकी खुद आप नेताओं को भी उम्मीद नहीं थी।

उपसंहार इन चुनावों में आप पार्टी को 70 में से 67 सीटें मिली जबकि राष्ट्रपति शासन लगने से पूर्व हुए चुनावों में पार्टी को बहुमत भी नहीं मिला था। प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा महज 3 सीटों पर सिमट गई तो सबसे अधिक अनुभवी पार्टी कांग्रेस को पूरी दिल्ली में एक भी सोट नसीब नहीं हुई। यह पहली बार हुआ है कि किसी पार्टी को 54% वोट मिले हों और वह 95% से ज्यादा सीटों पर जीती हो। अरविन्द केजरीवाल न केवल जनता का भरोसा जीता बल्कि बड़ी राजनीतिक पार्टियों को भी आईना दिखा दिया। इस प्रकार आज अरविन्द केजरीवाल सभी के लिए आदर्श नेता बन गए हैं।

10. डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम (2016)
संकेत विन्दु भूमिका, विज्ञान के क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धियाँ, डॉ. कलाम को सम्मानित किए गए सम्मान, राष्ट्रपति के रूप में, बहुमुखी प्रतिभा के धनी, उपसंहार।

भूमिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, जिनका पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम हैं, का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु राज्य में स्थित रामेश्वरम् के धनुषकोडी नामक स्थान में एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था। वे अपने पिता के साथ मस्जिद में नमाज़ पढ़ने जाते हुए रास्ते में पड़ने वाले शिव मन्दिर में भी माथा नवाते। इसी गंगा-जमुनी संस्कृति के बीच कलाम ने धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ा। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने एवं घर के खर्चे में योगदान के लिए अखबार बेचने पड़ते थे।

इसी तरह, संघर्ष करते हुए प्रारम्भिक शिक्षा रामेश्वरम् के प्राथमिक स्कूल से प्राप्त करने के बाद उन्होंने रामनाथपुरम् के श्वार्ज हाईस्कूल से मैट्रिकलेशन किया। इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए तिरुचिरापल्ली चले गए। वहाँ के सेंट जोसेफ कॉलेज से उन्होंने बीएससी की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1957 में एम आई टी से वैमानिकी इंजीनियरी में डिप्लोमा प्राप्त किया। अन्तिम वर्ष में उन्हें एक परियोजना दी गई, जिसमें उन्हें 30 दिनों के अन्दर विमान का एक डिज़ाइन तैयार करना था, अन्यथा उनकी छात्रवृत्ति रुक जाती। कलाम ने इसे निर्धारित अवधि में पूरा किया।

उन्होंने तमिल पत्रिका ‘आनन्द विकटन’ में अपना विमान स्वयं बनाएँ’ शीर्षक से एक लेख लिखा, जिसे प्रथम स्थान मिला। बीएससी के बाद वर्ष 1958 में उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की।

विज्ञान के क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धियाँ अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ. कलाम ने हावरक्राफ्ट परियोजना एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। इसके बाद वर्ष 1962 में वे भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन में आए, जहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहाँ रहकर उन्होंने थुम्बा में रॉकट इंजीनियरी डिविजन की स्थापना की। उनको उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें ‘नासा’ में प्रशिक्षण हेतु भेजा गया।

नासा से लौटने के पश्चात् वर्ष 1963 में उनके निर्देशन में भारत का पहला रॉकेट ‘नाइक अपाची’ छोड़ा गया। 20 नवम्बर, 1967 को ‘रोहिणी-75’ रॉकिट का सफल प्रक्षेपण उन्हीं के निर्देशन में हुआ। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 के निर्माण में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इसी प्रक्षेपण यान से जुलाई, 1980 में रोहिणी उपग्रह का अन्तरिक्ष में सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। वर्ष 1982 में वे भारतीय रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन में वापस निदेशक के तौर पर आए तथा अपना सारा ध्यान गाइडेड मिसाइल के विकास पर केन्द्रित किया। अग्नि मिसाइल एवं पृथ्वी मिसाइल के सफल परीक्षण का श्रेय भी काफी हद तक उन्हीं को जाता हैं।

जुलाई, 1992 में वे भारतीय रक्षा मन्त्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त हुए। उनकी देख-रेख में भारत ने 11 मई, 1998 को पोखरण में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया और परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल हुआ। वैज्ञानिक के रूप में कार्य करने के दौरान अलग-अलग प्रणालियों को एकीकृत रूप देना उनकी विशेषता थी। उन्होंने अन्तरिक्ष एवं सामरिक प्रौद्योगिकी का उपयोग कर नए उपकरणों का निर्माण भी किया।

डॉ. कलाम को सम्मानित किए गए सम्मान डॉ. कलाम की उपलब्धियों को देखते हुए वर्ष 1981 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया, इसके बाद वर्ष 1990 में उन्हें पद्म विभूषण’ भी प्रदान किया गया

उन्हें विश्वभर के 30 से अधिक विश्वविद्यालयों ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से विभूषित किया। वर्ष 1997 में भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रल’ से सम्मानित किया। उन्हें एस्ट्रोनॉटिकल सोसायटी ऑफ़ इण्डिया का आर्यभट्ट पुरस्कार तथा राष्ट्रीय एकता के लिए इन्दिरा गाँधी पुरस्कार भी प्रदान किया गया है। वे ऐसे तीसरे राष्ट्रपति हैं, जिन्हें यह सम्मान राष्ट्रपति बनने से पूर्व ही प्राप्त हुआ है। अन्य दो राष्ट्रपति हैं—सर्वपल्ली राधाकृष्णन एवं डॉक्टर जाकिर हुसैन।

राष्ट्रपति के रूप में वर्ष 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन सरकार ने डॉक्टर कलाम को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी उनका समर्थन किया और 18 जुलाई, 2002 को उन्हें 90% बहुमत द्वारा भारत का राष्ट्रपति चुना गया।

इस तरह उन्होंने 25 जुलाई, को ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में अपना पदभार ग्रहण किया। उन्होंने इस पद को 25 जुलाई, 2007 तक सुशोभित किया। वे राष्ट्रपति भवन को सुशोभित करने वाले प्रथम वैज्ञानिक हैं, साथ ही वे प्रथम ऐसे राष्ट्रपति भी हैं, जो अविवाहित रहे। राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल में उन्होंने कई देशों का दौरा किया एवं भारत का शान्ति का सन्देश दुनियाभर को दिया। इस दौरान उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया एवं अपने व्याख्यानों द्वारा देश के नौजवानों का मार्गदर्शन करने एवं उन्हें प्रेरित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी सीमित संसाधनों एवं कठिनाइयों के होते हुए भी उन्होंने भारत को अन्तरिक्ष अनुसन्धान एवं प्रक्षेपास्त्रों के क्षेत्र में एक ऊँचाई प्रदान की। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने तमिल भाषा में अनेक कविताओं की रचना भी की है, जिनका अनुवाद विश्व की कई भाषाओं में हो चुका है।

इसके अतिरिक्त, उन्होंने कई प्रेरणास्पद पुस्तकों की भी रचना की है। भारत 2020 : नईं सहस्राब्दि के लिए एक दृष्टि’, ‘इग्नाइटेड माइण्ड्स : अनलीशिंग द पावर विदिन इण्डिया’, ‘इण्डिया मोइ ड्रीम’, ‘विंग्स ऑफ फायर’, ‘माइ जन’, ‘महाशक्ति भारत’, ‘अदम्य साहस’, ‘छुआ आसमान’, ‘भारत की आवाज’, ‘टर्निग प्वाइण्ट’ आदि उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। ‘विंग्स ऑफ़ फ़ायर’ उनकी आत्मकथा है, जिसे उन्होंने भारतीय युवाओं को मार्गदर्शन प्रदान करने वाले अन्दाज में लिखा है।

उनकी पुस्तकों का कई भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनका मानना है कि भारत तकनीकी क्षेत्र में पिछड़ जाने के कारण ही अपेक्षित उन्नति शिखर पर नहीं पहुँच पाया है, इसलिए अपनी पुस्तक “भारत 2020 : नई सहस्राब्दि  के लिए एक दृष्टि’ के द्वारा उन्होंने भारत के विकास स्तर को वर्ष 2020 तक विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक करने के लिए देशवासियों को एक विशिष्ट दृष्टिकोण प्रदान |किया। यही कारण है कि वे देश को नई पीढ़ी के लोगों के बीच काफी लोकप्रिय रहे हैं।

उपसंहार 80 वर्ष से अधिक आयु के होने के बावजूद वे समाज सेवा एवं अन्य कार्यों में खुद को व्यस्त रखते थे। शिक्षकों के प्रति डॉ. कलाम के हृदय में बहुत सम्मान था।

राष्ट्रपति के पद से सेवानिवृत्त होने के पश्चात् वे देशभर में अनेक शिक्षण संस्थानों में ज्ञान बाँटते रहे, यहाँ तक कि 27, जुलाई, 2015 की शाम को भी उन्होंने अपनी अन्तिम साँस शिलांग में इण्डियन इंस्टीटयट ऑफ मैनेजमेण्ट के विद्यार्थियों से बात करते ली अर्थात् अन्तिम साँस में भी वह शिक्षक के रूप में रहे। वे भारत के सर्वधर्मसद्भावना के साक्षात् प्रतीक हैं। वे कुरान एवं भगवद्गीता दोनों का अध्ययन करते थे।

आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि भारतवासी उनके जीवन एवं उनके कार्यों से प्रेरणा प्रहण कर वर्ष 2020 तक भारत को सम्पन्न देशों की श्रेणी में ला खड़ा करने के उनके सपने को साकार करेंगे। उनके द्वारा कही निम्न पंक्तियों सभी को प्रेरणा देती

“सपने वह नहीं होते जो आप नींद में देखते हैं।
सपने तो वह हैं जो आपको सोने नहीं देते।”

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 1 प्रेम माधुरी / यमुना-छवि

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name प्रेम माधुरी / यमुना-छवि
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 1 प्रेम माधुरी / यमुना-छवि

प्रेम माधुरी / यमुना-छवि – जीवन/साहित्यिक परिचय

(2018, 17, 14, 11, 10)

प्रश्न-पत्र में संकलित पाठों में से चार कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनमें से एक का उत्तर: देना होता है। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
आधुनिक युग के प्रवर्तक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म 1850 ई. में काशी के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। काशी के प्रसिद्ध सेठ अमीचन्द के वंशज भारतेन्दु के पिता का नाम बाबू गोपालचन्द्र था, जो ‘गिरिधरदास’ के नाम से कविता लिखते थे। घरेलू परिस्थितियों एवं समस्याओं के कारण भारतेन्दु की शिक्षा व्यवस्थित रूप से नहीं चल पाई। इन्होंने घर पर ही स्वाध्याय द्वारा हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला, मराठी आदि भाषाओं की शिक्षा ग्रहण की। इन्होंने कविताएँ लिखने के साथ-साथ कवि-वचन सुधा (1884 बनारस) नामक पत्रिका का प्रकाशन भी आरम्भ किया। बाद में, हरिश्चन्द्र मैग्जीन (1883 बनारस) तथा ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका’ का भी सफल सम्पादन किया। ये साहित्य के क्षेत्र में कवि, नाटककार, इतिहासकार, समालोचक, पत्र-सम्पादक आदि थे, तो समाज एवं राजनीति के क्षेत्र में एक राष्ट्रनेता एवं सच्चे पथ-प्रदर्शक थे। जब राजा शिवप्रसाद को अपनी चाटुकारिता के बदले विदेशी सरकार द्वारा सितारे-हिन्द की पदवी दी गई, तो देश के सुप्रसिद्ध विद्वज्जनों ने इन्हें 1880 ई. में ‘भारतेन्दु’ विशेषण से विभूषित किया। क्षय रोग से ग्रस्त होने के कारण अल्पायु में ही 1885 ई. में भारत को यह इन्दु (चन्द्रमा) अस्त हो गया।

साहित्यिक गतिविधियाँ
गयकार के रूप में भारतेन्दु जी को हिन्दी गद्य का जनक माना जाता है। इन्होंने साहित्य को सर्वांगपूर्ण बनाया। काव्य के क्षेत्र में इनकी कृतियों को इनके युग का दर्पण माना जाता है। इनकी निम्नलिखित रचनाएँ उल्लेखनीय हैं।

काव्य कृतियाँ
प्रेम मापुरी, प्रेम तरंग, प्रेम सरोवर, प्रेम मालिका, प्रेम प्रलाप, तन्मय लीला, कृष्ण चरित, दान-लीला, भारत वीरत्व, विजयिनी, विजय पताका आदि रचनाओं के अतिरिक्त उर्दू का स्यापा, नए जमाने की मुकरी आदि भी उल्लेखनीय रचनाएँ हैं।

अन्य कृतियाँ
नाटक ‘वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति’, ‘सत्य हरिश्चन्द्र’, ‘श्रीचन्द्रावली’, ‘भारत दुर्दशा’, ‘नीलदेवी’ और ‘अँधेर नगरी’ आदि नाटकों की रचना भारतेन्दु जी ने की। उपन्यास ‘पूर्ण प्रकाश’ और ‘चन्द्रप्रभा’।

इतिहास और पुरातत्त्व सम्बन्धी कृतियाँ
‘कश्मीर कुसुम’, ‘महाराष्ट्र देश का इतिहास’, ‘रामायण का समय’, ‘अग्रवालों की उत्पत्ति’, ‘बूंदी का राजवंश’ और ‘चरितावली’। देश-प्रेम सम्बन्धी रचनाएँ । ‘भारतवीरत्व, ‘विजय-वल्लरी’, ‘विजयिनी’ एवं ‘विजय-पताका’ प्रमुख हैं।

देश-प्रेम सम्बन्धी रचनाएँ
‘भारत-वीरत्व, ‘विजय-वल्लरी’, ‘विजयिनी’ एवं ‘विजय-पताका’ प्रमुख हैं।

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष

  1. समाज सुधारक भारतेन्दु जी ने काव्य क्षेत्र को आधुनिक विषयों से सम्पन्न किया और रीति की बँधी-बँधाई परिपाटी से कविता को मुक्त कर आधुनिक युग का द्वार खोल दिया। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र कवि होने के साथ-साथ समाज सुधारक एवं प्रचारक भी थे। उन्होंने अपने काव्य में अनेक सामाजिक समस्याओं का चित्रण किया तथा समाज में व्याप्त कुरीतियों पर तीखे व्यंग्य भी किए।
  2. राष्ट्रप्रेम की भावना भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अपनी सजग राजनीतिक चेतना के फलस्वरूप विदेशी शासन के अत्याचारों से पीड़ित भारतीय जनता में देशभक्ति की भावना एवं राष्ट्रीयता का भाव जगाने का प्रयास किया। उन्होंने अंग्रेजों द्वारा किए गए शोषण के विरुद्ध जनता को सचेत करने का भी प्रयास किया।
  3. सामाजिक दुर्दशा का निरूपण भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने समाज में व्याप्त रूढियों एवं कुप्रथाओं का डटकर विरोध किया। भारतेन्दु जी ने नारी शिक्षा का समर्थन किया तथा विधवा विवाह को प्रोत्साहित किया। वे सती प्रथा, छुआछूत आदि के विरोधी थे। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों, धार्मिक पाखण्ड आदि का निरूपण निःसंकोच किया।
  4. भक्ति भावना भारतेन्दु हरिश्चन्द्र कृष्ण के भक्त थे और पुष्टि मार्ग को मानने वाले थे। उनकी कविता में सच्ची भक्ति-भावना के दर्शन होते हैं। ईश्वर के प्रति दृढ विश्वास को व्यक्त करते हुए भारतेन्दु जी अपनी दीनता का उल्लेख करते हैं
    उधारौ दीन बन्धु महाराज
    जैसे हैं जैसे तुमरे ही नहीं और सौं काज।।।
  5. प्रकृति चित्रण प्रकृति चित्रण करने में भारतेन्दु जी को अधिक सफलता नहीं मिली, क्योंकि वे मान-प्रकृति के शिल्पी थे। यद्यपि भारतेन्दु जी ने वसंत, वर्षा आदि ऋतुओं का मनोहारी चित्रण अपने काव्य में किया है। दूसरी ओर उन्होंने गंगा-यमुना, चाँदनी का सुन्दर चित्रण भी अपने काव्य में किया है।

कला पक्ष

  1. भाषा भारतेन्दु आधुनिक हिन्दी गद्य के प्रवर्तक थे, जिन्होंने खड़ी बोली को आधार बनाया, लेकिन पद्य के सम्बन्ध में ये शिष्ट, सरल एवं माधुर्य से परिपूर्ण ब्रजभाषा का ही प्रयोग करते रहे। इसी क्रम में इन्होंने ब्रजभाषा के परिमार्जन का कार्य किया। कुछ अप्रचलित शब्दों को बाहर करने के अतिरिक्त भाषा के रूविमुक्त रूप को अपनाया। भाषा के निखार के लिए लोकोक्तियों एवं मुहावरों को भी अपनाया। भारतेन्दु ने पद्य की कुछ रचनाएँ खड़ी बोली में भी की।
  2. शैली भारतेन्दु जी की शैली इनके भावों के अनुकूल है। इन्होंने इसमें नवीन प्रयोग करके अपनी मौलिक प्रतिभा का परिचय दिया है। इन्होंने अपने काव्य में चार प्रकार की शैलियों को अपनाया
    • भावात्मक शैली प्रेम एवं भक्ति के पदों में
    • रीतिकालीन अलंकार शैली श्रृंगार के पदों में
    • उद्बोधन शैली देश-प्रेम की कविताओं में
    • व्यंग्यात्मक शैली समाज सुधार सम्बन्धी कविताओं में इन सभी रचनाओं में इन्होंने काव्य-स्वरूप के अन्तर्गत मुक्तक शैली का प्रयोग किया।
  3. छन्द एवं अलंकार भारतेन्दु जी के काव्य में अलंकारों का सहज प्रयोग हुआ है। इन्होंने अपने काव्य में अलंकारों को साधन के रूप में ही अपनाया है, साध्य-रूप में नहीं। भारतेन्दु जी ने मुख्यतः अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेक्षा एवं सन्देह अलंकारों को अपने काव्य में अधिक महत्व दिया। कवित्त, सवैया, लावनी, चौपाई, दोहा, छप्पय, गजल, कुण्डलिया आदि छन्दों का प्रयोग इनकी रचनाओं में मिलता है।

हिन्दी साहित्य में स्थान
भारतेन्दु जी में वह प्रतिभा थी, जिसके बल पर ये अपने युग को सच्चा एवं सफल नेतृत्व प्रदान कर सका इनकी काव्य कृतियों को इनके युग का दर्पण कहा जाता है। भारतेन्दु जी की विलक्षण प्रतिभा के कारण ही इनके समकालीन युग को हिन्दी साहित्य में ‘भारतेन्दु युग’ के नाम से जाना जाता है।

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्म भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर: देने होंगे।

प्रेम-माधुरी

प्रश्न 1.
रोकहिं जो तौ अमंगल होय औ प्रेम नसै जो कहैं पिय जाइए।
जौ कहैं जाहु न तो प्रभुता जौ कछू न कहैं तो सनेह नसाइए।।
जो ‘हरिचन्द’ कहूँ तुमरे बिनु जीहैं न तो यह क्यों पतिआइए।
तासों पयान समै तुम्हरे हम का कहैं आपै हमें समुझाइए।।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश के कवि व शीर्षक का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश आधुनिक युग के प्रवर्तक कवि व नाटककार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित कविता ‘प्रेम-माधुरी’ से उधृत है।

(ii) पद्यांश में नायिका की किस मनोदशा का वर्णन किया गया है?
उत्तर:
पद्यांश में नायिका की असमंजस एवं दुविधापूर्ण मानसिक स्थिति का वर्णन किया गया है। नायिका का पति परदेश जा रहा है और वह इस असमंजस की स्थिति में है कि किस प्रकार विदेश जाते हुए अपने पति को अपने मनोभावों से अवगत कराए।

(iii) नायिका द्वारा जगत् की किस रीति का उल्लेख किया गया है?
उत्तर:
नायिका जाते हुए किसी को पीछे से टोकने से सम्बन्धित जगत् की रीति का उल्लेख करती है। नायिका कहती है कि यदि वह अपने प्रियतम को पीछे से टोकती हैं, तो लोगों के अनुसार यात्रा को जाते समय किसी को टोकना अशुभ होता है। अतः वह किस प्रकार अपने प्रियतम को अपनी बात बताए।

(iv) जौ कहूँ जाहु न तो प्रभुता जौ कुछ न कहें तो सनेह नसाइट।’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति में नायिका की दुविधापूर्ण स्थिति का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि वह सोचती है, यदि वह अपने प्रियतम से विदेश में जाने के लिए कहती है तो वह उन्हें आदेश देने के समान होगा और यदि वह उनसे कुछ नहीं कहती तो उसका प्रेम नष्ट होगा।

(v) पद्यांश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रस्तुत् पद्यांश में कवि ने नायिका की दुविधापूर्ण मानसिक रिथति को व्यक्त करने के लिए ब्रज भाषा का प्रयोग किया है, जो अत्यन्त प्रभावशाली है। कवि ने मुक्तक शैली का प्रयोग करते हुए सम्पूर्ण कथा अभिव्यक्त की है।

प्रश्न 2.
आजु लौं जौ न मिले तो कहा हम तो तुम्हरे सब भाँति कहावें।
मेरौ उराहनो है कछु नाहिं सबै फल आपने भाग को पावै।।
जो ‘हरिचन्द भई सो भई अब प्रान चले चहूँ तासों सुनावें।।
प्यारे जू है जग की यह रीति बिदा के समै सब कण्ठ लगावें।।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में नायिका की किस दशा की अभिव्यक्ति हुई है?
उत्तर:
नायिका नायक से अत्यधिक प्रेम करती है। वह उसे बिछुड़ने के कारण अत्यधिक दु:खी है तथा उससे मिलने के लिए लालायित है। नायिका की इसे विरह अवस्था की अभिव्यक्ति ही काव्यांश में हुई है।

(ii) नायिका अपनी विरह अवस्था के लिए किसे उत्तर:दायी मानती है?
उत्तर:
नायिका का मानना है कि नायक से न मिल पाने अर्थात् उससे (नायक) विरह के लिए उसका भाग्य ही उत्तर:दायी है। वह कहती है कि सभी अपने भाग्य के अनुसार फल पाते हैं और उसके भाग्य में नायक से विरह लिखा है, इसलिए वह इस दशा से पीड़ित हैं।

(iii) प्रस्तुत पद्यांश में नायिका ने अपनी कौन-सी इच्छा प्रकट की है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में नायिका-नायक के विरह में तड़प रही है। उसकी उत्कंठ इच्छा है कि नायक उससे मिलने के लिए आए। नायिका अपनी इच्छा प्रकट करते हुए कहती है कि उसके प्राण अब उसके तन से निकलने वाले हैं। अतः नायक को नायिका से मिलने के लिए आनी चाहिए और उसे गले लगाना चाहिए।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश में नायिका ने जगत की किस रीति का उल्लेख किया हैं?
उत्तर:
नायिका का मानना है कि जगत् की यह रीति (नियम) रही है कि जो व्यक्ति जा रहा होता है, उसे गले लगाकर अन्तिम विदाई दी जाती है। अतः नायक को आकर इस रीति का पालन करना चाहिए।

(v) प्रस्तुत पद्यांश में प्रयुक्त रस को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने वियोग श्रृंगार रस का प्रयोग किया है। इस पद्यांश में कवि ने नायक से नायिका के न मिल पाने के कारण उसकी विरहावस्था का वर्णन किया है। अतः इसमें वियोग श्रृंगार रस हैं। अतः नायक को आकर इस . रीत का पालन करना चाहिए।

यमुना-छवि

प्रश्न 3.
तरनि-तनूजा तट तमाले तरुवर बहु छाए।
झुके कुल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाए।
किधौं मुकुर मैं लखत उझकि सबै निज-निज सोभा।
कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा।।।
मनु आतप वारन तीर कौं सिमिटि सबै छाये रहत।
कै हरि सेवा हित नै रहे निरखि नैन मन सुख लहत ।।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश के शीर्षक व कवि का नाम बताइए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी में संकलित भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित कविता ‘यमुना छवि’ से उद्धृत है।।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने किसका वर्णन किया हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने यमुना नदी के किनारे छाए हुए तमाल के वृक्षों का वर्णन किया है। जिन्हें देखकर कवि के मस्तिष्क में भिन्न-भिन्न छायाचित्र निर्मित होते हैं।

(iii) यमुना नदी के किनारे खड़े वृक्षों को देखकर कवि को क्या प्रतीत होता है?
उत्तर:
नदी के किनारे खड़े वृक्षों को देखकर कवि को ऐसा प्रतीत होता है जैसे तेमाल के वृक्ष यमुना नदी को स्पर्श करना चाहते हों या फिर वे झुककर नदी के पानी में अपना प्रतिबिम्ब देखना चाहते हों। कभी-कभी कवि को ऐसा लगता है मानो वे नदी के तट को धूप से बचाने के लिए उसे छाया प्रदान कर रहे हों या वे तट पर, कृष्ण को नमन करने एवं उनकी सेवा करने के लिए झुके हुए हौं।’

(iv) प्रस्तुत पद्यांश के अलंकार सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अलंकारों का अत्यन्त सुन्दर प्रयोग किया है, जिसने काव्य की शोभा बढ़ा दी हैं। ‘तरनि तनूजा तट तमाल’, में ‘त’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार, ‘सब निज-निज सोभा’, में निज-निज की पुनरावृत्ति के कारण पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार व ‘मनु आतप वारन तीर कौं’ में उत्प्रेक्षा अलंकार हैं तथा सम्पूर्ण पद्यांश में मानवीकरण अलंकार विद्यमान हैं।

(v) ‘तरनि-तनूजा’ व ‘तट’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची, बताइए।
उत्तर:

शब्द पर्यायवाची शब्द
तरनि-तनूजा यमुना, कालिन्दी
तट तीर

प्रश्न 4.
कबहुँ होत सत चन्द कबहुँ प्रगटत दुरि भाजत।।
पवन गवन बस बिम्ब रूप जल में बहु साजते।।
मनु ससि भरि अनुराग जमुन जल लोटत डोलै।
कै तरंग की डोर हिंडोरनि करत कलोलें।।
कै बालगुड़ी नभ में उड़ी सोहत इत उत धावती।
कै अवगाहत डोलत कोऊ ब्रजरमनी जल आवती।।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।
(i) कवि को यमुना नदी के जल पर पड़े चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को देखकर क्या अनुभूति होती है?
उत्तर:
कवि जब यमुना नदी के जल पर चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को देखता है तो कभी उसे लहरों पर सौ-सौ चन्द्रमा दिखाई देते हैं, कभी वह उसे दूर जाकर अदृश्य होता हुआ अनुभूत होता है। कभी वह उसे जल में झूला झूलते हुए प्रतीत होता है तो कभी उसे उसमें बच्चे द्वारा उड़ाई गई पतंग की अनुभूति होती है।

(ii) “के बालगुड़ी नभ में उड़ी सोहत इत उत धावती।” पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि यमुना के जल पर चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को देखकर कल्पना करते हुए कहता है कि यमुना की लहरों पर चन्द्रमा का हिलता हुआ प्रतिबिम्ब ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो किसी बच्चे की पतंग आकाश में हवा के जोर से इधर-उधर हिल रही हो।।

(iii) पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर: पद्यांश में कवि भारतेन्दु ने यमुना के जल पर पड़ने वाले चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब का वर्णन किया है। चन्द्रमा का यह रूप कवि को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है, जिसे देखकर कवि के मन में भिन्न-भिन्न प्रकार की कल्पनाएँ प्रकट हो रही हैं।

(iv) पद्यांश के शिल्प पक्ष पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने ब्रजभाषा का प्रयोग करते हुए मुक्तक शैली में काव्य रचना की है। जल पर पड़ने वाली चन्द्रमा की छाया का वर्णन करते हुए पद्यांश में श्रृंगार रस की प्रधानता विद्यमान है। ‘मनु ससि भरि अनुराग’ में उत्प्रेक्षा अलंकार व ‘सोहत इत उत धावती’ में ‘त’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है। माधुर्य गुण व लक्षणा शब्दशक्ति भी काव्य में विद्यमान है।

(v) ‘ससि’ व ‘नभ’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर:

शब्द

पर्यायवाची शब्द

ससि

राकैश, चन्द्रमा

नभ

आकाश, गगन

प्रश्न 5.
मनु जुग पच्छ प्रतच्छ होत मिटि जात जमुन जल।
कै तारागन ठगन लुकत प्रगटत ससि अबिकल।।
कै कालिन्दी नीर तरंग जितो उपजावत।।
तितनो ही धरि रूप मिलन हित तासों धावत।।’
कै बहुत रजत चकई चलत के फुहार जल उच्छत।
कै निसिपति मल्ल अनेक बिधि उठि बैठत कसरत करत।।
कुजत कहुँ कलहंस कहूँ मज्जत पारावत।
कहुँ कारण्डव उड़त कहूँ जल कुक्कुट धावत।।
चक्रवाक कहुँ बसत कहूँ बक ध्यान लगावत।
सुक पिक जल कहुँ पियत कहूँ भ्रमरावलि गावत।।
कहूँ तट पर नाचत मोर बहु रोर बिबिध पच्छी करत।
जल पान नहान करि सुख भरे तट सोभा सब जिय धरत।।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) यमुना के जल में चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब के दिखने व छिपने की तुलना कवि किससे करता है?
उत्तर:
यमुना के जल में चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब के दिखने व छिपने की तुलना कवि माह के दोनों पक्षों कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष से करता है। कवि कहता है कि जब चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है तो ऐसा लगता है, मानो शुक्ल पक्ष के कारण चारों ओर उजाला हो गया। हो और छिपने पर ऐसा लगता है, मानो कृष्ण पक्ष के कारण चारों ओर अँधेरा हो गया हो।

(ii) “कै कालिन्दी नीर तरंग जितो उपजावत तितनो ही धरि रूप मिलन हित तासों धावत।।” प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि प्रत्येक लहर के साथ चन्द्रमा की छवि दिखने के कारण कहता है कि उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो चाँद यमुना में उठने वाली प्रत्येक लहर से मिलने के लिए उतने ही रूप धारण करके उनके पीछे उत्साहित होकर दौड़ता रहता है।

(iii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने पक्षियों की शोभा का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि पक्षियों की शोभा का वर्णन करते हुए कहता है कि यमुना के जल में विभिन्न पदी; राजहंस, कबूतर, जल मुर्गियों, चकवा-चकी, बगुले, सोते, कोयल, मोर, भंवरे आदि इधर-उधर विहार कर रहे हैं। कोई स्नान कर रहा है, कोई गीत गा रहा है। और कोई नृत्य कर रहे हैं। इस प्रकार, कवि ने पक्षियों के विभिन्न यिा -कलापों का वर्णन किया है।

(iv) पद्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पशि में अलंकारों का प्रयोग उसके शिल्प एवं भाव पक्ष में सौन्दर्य उत्पन्न कर देता है। पाश में ‘जात, जमुन जल’ व ‘कुजत कई कलहंस कहूँ’ में क्रमशः ‘ज’ व ‘क’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार, ‘तितनो ही धरि रूप मिलन हित तास धावत’ में मानवीकरण, ‘मनु जुग पच्छ प्रतछ’ में उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग कवि ने किया है।

(v) ‘कालिन्दी’ व ‘सुक’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर:

शब्द

पर्यायवाची शब्द
कालिन्दी

यमुना, सूर्यसुता

सुक

 तोता, सुगा

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi अलंकार

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name अलंकार
Number of Questions Solved 55
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi अलंकार

अलंकार का अर्थ एवं परिभाषा
प्रसिद्ध संस्कृत आचार्य दण्डी ने अपनी रचना ‘काव्यादर्श’ में अलंकार को परिभाषित करते हुए लिखा है-‘अलंकरोतीति अलंकारः’ अर्थात् शोभाकारक पदार्थ को अलंकार कहते हैं। हिन्दी में रीतिकालीन कवि आचार्य केशवदास ने ‘कविमिया’ रचना में अलंकार की विशेषताओं का विवेचन प्रस्तुत किया है।

वस्तुतः भाषा को शब्द एवं शब्द के अर्थ से सुसज्जित एवं सुन्दर बनाने की मनोरंजक प्रक्रिया को ‘अलंकार” कहा जाता है। ‘अलंकार’ काव्य भाषा के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं। यह भाव की अभिव्यक्ति को अधिक प्रभावी बनाते हैं।

अलंकार के भेद
अलंकार को दो रूपों में व्यक्त किया जाता है- शब्दालंकार एवं अर्थालंकार)

1. शब्दालंकार
शब्द निर्माण की प्रक्रिया में ‘ध्वनि’ तथा ‘अर्थ’ का महत्वपूर्ण समन्वय होता है। ध्वनि के आधार पर काव्य में उत्पन्न विशिष्टता अथवा साज-सwण। ‘शब्दालंकार’ की सृष्टि करते हैं। इस अलंकार में वर्ण या शब्दों की लयात्मकता अथवा संगीतात्मकता उपस्थित होती है। ‘शब्दालंकार’ वर्णगत, शब्दगत तथा वाक्यगत होते हैं। अनुमास, यमक, श्लेष इत्यादि प्रमुख शब्दालंकार हैं।

2. अर्थालंकार
जब शब्द, वाक्य में प्रयुक्त होकर उसके अर्थ को चमत्कृत या अलंकृत करने वाला स्वरूप प्रदान करे तो वहाँ ‘अर्थालंकार’ की सृष्टि होती है। *अर्थालंकार’ की एक विशेषता यह है कि यदि वाक्य से किसी शब्द को हटाकर उसकी जगह उसके पर्याय शब्द को रखा जाए, तब भी अलंकार की प्रवृत्ति में कोई अन्तर नहीं आता। वस्तुतः ‘अर्थालंकार” की निर्भरता शब्द पर न होकर शब्द के अर्थ पर होती है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, दृष्टान्त, मानवीकरण इत्यादि प्रमुख अर्थालंकार हैं।

शब्दालंकार
1. अनुप्रास अलंकार (2018, 17, 16, 15, 14, 13, 12)
अनुप्रास वर्णनीय रस की अनुकूलता के अनुसार समान वर्गों का बार-बार प्रयोग है। यह एक प्रचलित अलंकार है, जिसका प्रयोग ,छेकानुप्रास, वृत्यानुप्रास, लाटानुप्रास
आदि के रूप में होता है।
उदाहरण सम सुबरनं सुखाकर सुजस न थोर।
इस वाक्यांश (काव्यांश) में ‘स’ वर्ण की आवृत्ति दिखती है। यह आवृत्ति ‘अनुप्रास अलंकार’ के रूप में जानी जाती हैं।
अनुप्रास अलंकार के भेद
इसके पाँच भेद हैं।

  • श्रुत्यानुप्रास एक ही स्थान से उच्चारित होने वाले वर्षों की आवृत्ति।
  • वृत्यानुप्रास समान वर्ण की अनेक बार आवृत्ति।
  • छेकानुप्रास जब कोई वर्ण मात्र दो बार ही आए।
  • लाटानुप्रास शब्द व अर्थ की आवृत्ति के बाद भी अन्य के उपरान्त भिन्न अर्थ मिले।
  • अन्त्यानुप्रास शब्दों के अन्त में समान ध्वनि की आवृत्ति।

2. यमक अलंकार(2018, 17, 16, 15, 14, 13, 12)
‘यमक’ एक शब्दालंकार है। यमक का अर्थ होता है-‘युग्म्’ अर्थात् ‘जोड़ा। इसमें भिन्न अर्थ के साथ किसी वर्ण अथवा शब्द की आवृत्ति होती हैं।
उदाहरण ”कहै कवि बेनी ब्याल की चुराय लीनी बेनी”
इस काव्यांश में ‘बेनी’ की आवृत्ति है। प्रथम ‘बेनी’ का अर्थ है-‘कवि बेनीप्रसाद’ तथा दूसरे ‘बेनी’ का अर्थ है- ‘चोटी’।।

3. श्लेष अलंकार (2018, 17, 16, 13, 12)
जब कोई शब्द वाक्य में प्रयुक्त होकर दो-या-दो से अधिक भिन्न-भिन्न अर्थ दे तो वहीं ‘श्लेष अलंकार’ होता है। इस अलंकार के अन्तर्गत एक शब्द एक से अधिक अर्थों का बोध कराकर पूरे काव्य को विशिष्ट अर्थ प्रदान करने में सक्षम होता है।
उदाहरण “सुबरन को इँदै फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।”
इस काव्य पंक्ति में ‘सुबरन’ के कई अर्थ ध्वनित हो रहे हैं। ‘सुबरम्’ का अर्थ यहाँ | कवि, व्यभिचारी और चोर से सम्बन्धित है। यथा- कवि ‘सुबरन’ अर्थात् सुवर्ण (अच्छे शब्द) को ढूंढता है। व्यभिचारी ‘सुबरन’ अर्थात् ‘गौरी’ को ढूँढता है। चोर ‘सुबरन’ अर्थात् ‘स्वर्ण’ को ढूंढता है। अतः यहाँ श्लेष अलंकार हैं।

अर्थालंकार
1. उपमा अलंकार (2017, 16, 14, 13)
जब काव्य में समान धर्म के आधार पर एक वस्तु की समानता अथवा तुलना अन्य वस्तु से की जाए, तब वह उपमा अलंकार होता है, जिसकी उपमा दी जाए उसे उपमेय तथा जिसके द्वारा उपमा यानी तुलना की जाए उसे उपमान कहते हैं। उपमेय और उपमान की समानता प्रदर्शित करने के लिए सादृश्यवाचक शब्द प्रयोग किए जाते हैं।
उदाहरण ”मुख मयंक सम मंजु मनोहर।”
इस काव्य पंक्ति में ‘मुख’ उपमेय है, ‘चन्द्रमा’ उपमान है, ‘मनो५’ समान धर्म है। तथा ‘सम’ सादृश्य वाचक शब्द होने से उपमा अलंकार परिपुष्ट हो रहा है।

2. रूपक अलंकार (2018, 17, 16, 15, 14)
रूपक का अर्थ होता है- एकता। रूपक अलंकार में पूर्ण साम्य होने के कारण प्रस्तुत में प्रस्तुत का आरोप कर अभेद की स्थिति को स्पष्ट किया जाता है। इस प्रकार जहाँ ‘उपमेय’ और ‘उपमान’ की अत्यधिक समानता को प्रकट करने के लिए ‘उपमेय’ में ‘उपमान’ का आरोप होता है, वहाँ ‘रूपक अलंकार’ उपस्थित होता है।
उदाहरण “चरण कमल बन्द हरिराई।”
इस काव्य पंक्ति में उपमेय ‘धरण’ पर उपमान ‘कमल’ का आरोप कर दिया गया है। दोनों में अभिन्नता है, पर दोनों साथ-साथ हैं। इस अभेदता के कारण यहाँ रूपक अलंकार है।
रूपक अलंकार के भेद रूपक के विभिन्न भेदों में से तीन मुख्य भेद नीचे दिए गए हैं।

  • सांगरूपक इसमें अवयवों के साथ उपमेय पर उपमान आरोपित किए जाते
  • निरंग रूपक इसमें अवयवों के बिना ही उपमेय पर उपमान आरोपित किए जाते हैं।
  • परम्परित रूपक इसमें उपमेय पर प्रयुक्त आरोप ही दूसरे आरोप का कारण बनता है।

3. उत्प्रेक्षा अलंकार (2018, 17, 15, 14, 12)
‘उत्प्रेक्षा’ का अर्थ है- किसी वस्तु के सम्भावित रूप की उपेक्षा करना। उपमेय अर्थात् प्रस्तुत में उपमान अर्थात् अप्रस्तुत की सम्भावना को ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ कहते हैं। ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ में मानों, जानों, जनु, मनु, ज्यों इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है।
उदाहरण

“सोहत ओढ़ पीत-पट, श्याम सलोने गात।।
मनहुँ नीलमणि सैल पर, आतपु परयौ प्रभात।”

इस काव्यांश में श्रीकृष्ण के श्यामल शरीर पर नीलमणि पर्वत की तथा पीत-पट पर प्रातःकालीन धूप की सम्भावना व्यक्त की गई है। अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

4. भ्रान्तिमान् (2014, 13, 12, 11, 10)
जब उपमेय को भ्रम के कारण उपमान समझ लिया जाता है तब वहीं ‘भ्रान्तिमान अलंकार’ होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस अलंकार में उपमेय में उपमान का धोखा हो जाता है।
उदाहरण

“नाक का मोती अधर की कान्ति से,
बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से।
देख उसको ही हुआ शुक मौन है,
सोचता है अन्य शुक यह कौन हैं?”

5. सन्देह अलंकार (2017, 16, 13, 12)
जब किसी वस्तु में उसी के सदृश अन्य वस्तुओं का सन्देह हों और सदृशता के कारण अनिश्चित की मनोदशा हो तब वहाँ सन्देह अलंकार होता है।
उदाहरण

“सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है,
सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है।”

6. अतिशयोक्ति अलंकार (2014, 13)
जब किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा स्थिति की प्रशंसा करते हुए कोई बात बहुत बढ़ा-चढ़ा कर अथवा लोक सीमा का उल्लंघन करके कहीं जाए, तब वहाँ ‘अतिशयोक्ति अलंकार’ उपस्थित होता है।
उदाहरण

“आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा उतरे कैसे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।।

इस काव्यांश में राणा अभी नदी पार करने की सोच ही रहे थे कि उनका घोड़ा चेतक नदी के पार भी हो गया। यहाँ वेग (गति) के विषय में बहुत बढ़ा चढ़ा कर कहने से अतिशयोक्ति अलंकार परिपुष्ट हुआ है।

7. अनन्वय अलंकार (2016, 12)
काव्य में जहाँ उपमान के अभाव के कारण उपमेय को ही उपमान बना दिया जाए वहाँ ‘अनन्वय अलंकार’ होता है।
उदाहरण

“राम-से राम, सिया-सी सिया,
सिरमौरे बिरंचि बिचारि सँवारे।”

8. प्रतीप अलंकार (2017, 15, 14, 13, 11)
जहाँ उपमेय को उपमान और उपमान को उपमेय बना दिया गया हो तो यह ‘प्रतीप अलंकार’ होता है। प्रतीप अलंकार में उपमा अलंकार की विपरीत स्थिति होती है। उदाहरण “उसी तपस्वी से लम्बे थे देवदारु दो चार खड़े।”

9. दृष्टान्त अलंकार (2018, 13)
उपमेय एवं उपमान के साधारण धर्म में भिन्नता होने पर भी बिम्ब-प्रतिबिम्य भाव से कथन करने को ‘दृष्टान्त अलंकार’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो दृष्टान्त अलंकार के अन्तर्गत पहले एक बात कहकर उसको स्पष्ट करने के लिए उससे मिलती-जुलती अन्य बात कही जाती है।
उदाहरण

‘परी प्रेम नन्दलाल के मोहि न भावत जोग।
मधुप राजपद पाइकै भीखन माँगत लोग।।”

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
“चरन धरत चिन्ता करत, चितवत चारित्र ओर।।
सुबरन को खोजत फिरत, कवि व्यभिचारी चोर।।”
में अलंकार है। (2014, 12)
(क) उपमा
(ख) यमक
(ग) रूपक
(घ) श्लेष
उत्तर:
(घ) श्लेष

प्रश्न 2.
जहाँ एक शब्द अथवा शब्द-समूह का एक से अधिक बार प्रयोग हो, किन्तु उसका अर्थ प्रत्येक बार भिन्न हो, वहाँ कौन-सा अलंकार होता (2010)
(क) अनुप्रास
(ख) श्लेष
(ग) यमक
(घ) भ्रान्तिमान्
उत्तर:
(ग) यमके

प्रश्न 3.
जहाँ उपमेय में उपमान का भेदरहित आरोप हो, वहाँ अलंकार होता है। (2010)
अथवा
जहाँ उपमेय (प्रस्तुत) पर उपमान (अप्रस्तुत) का अभेद आरोप किया जाए, वहाँ अलंकार होता है। (2010)
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) प्रतीप
उत्तर:
(ख) रूपक

प्रश्न 4.
“ऊधौ जोग जोग हम नाहीं।” इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है? (2010)
(क) अनुप्रास
(ख) यमक
(ग) श्लेष
(घ) उत्प्रेक्षा
उत्तर:
(ख) यमक

प्रश्न 5.
जहाँ उपमेय और उपमान के साधारण धर्म में भिन्नता होते हुए भी बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव से कथन किया जाए, वहाँ अलंकार होता है। (2011)
(क) उपमा
(ख) अनन्वय
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) दृष्टान्त
उत्तर:
(घ) दृष्टान्त

प्रश्न 6.
“अर्जी तरयौना ही रह्यौ श्रुति सेवत इक रंग।
नाक बास बेसरि लह्यौ, बसि मुकतनु के संग।।”
इस दोहे में अलंकार है। (2010)
(क) यमक
(ख) श्लेष
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) उपमा
उत्तर:
(ख) श्लेष

प्रश्न 7.
“अम्बर पनघट में डुबो रही, तरा-घट ऊषा-नागरी।”
उपरोक्त पद में अलंकार है। (2011)
(क) रूपक
(ख) श्लेष
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) उपमा
उत्तर:
(क) रूपक

प्रश्न 8.
“अब जीवन की कपि आस न कोय।
कनगुरिया की मुदरी कँगना होय।।”
पद में निहित अलंकार का नाम निम्नांकित विकल्पों में से लिखिए। (2011)
(क) दृष्टान्त
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) उपमा
(घ) अतिशयोक्ति
उत्तर:
(घ) अतिशयोक्ति

प्रश्न 9.
“पापी मनुज भी आज मुख से राम-राम निकालते।
देखो भयंकर भेड़िये भी, आज आँसू ढालते।।”
इन पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है? (2011, 10)
(क) सन्देह
(ख) भ्रान्तिमान्
(ग) दृष्टान्त
(घ) अतिशयोक्ति
उत्तर:
(ग) दृष्टान्त

प्रश्न 10.
जहाँ किसी वस्तु की इतनी प्रशंसा की जाए कि लोक-मर्यादा का अतिक्रमण हो जाए, वहाँ अलंकार होता है। (2011)
अथवा
जहाँ किसी वस्तु का इतना बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया जाए कि सामान्य लोक सीमा का उल्लंघन हो जाए, वहाँ कौन-सा अलंकार होता (2011)
(क) रूपक
(ख) भ्रान्तिमान्
(ग) सन्देह
(घ) अतिशयोक्ति
उत्तर:
(घ) अतिशयोक्ति

प्रश्न 11.
जहाँ उपमेय को उपमान और उपमान को उपमेय बना दिया जाए, वहाँ कौन-सा अलंकार होता है? (2011, 10)
अथवा
जहाँ प्रसिद्ध उपमान को उपमेय बना दिया जाए अथवा उसकी व्यर्थता प्रदर्शित की जाए, वहाँ अलंकार होता है (2011, 10)
(क) रूपक
(ख) प्रतीप
(ग) अनन्वय
(घ) उत्प्रेक्षा
उत्तर:
(ख) प्रतीप

प्रश्न 12.
“रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चून।।”
में अलंकार है। (2013, 10)
(क) उपमा
(ख) यमक
(ग) श्लेष
(घ) रूपक
उत्तर:
(ग) श्लेष

प्रश्न 13.
“उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा।।”
में निहित अलंकार है (2011)
(क) भ्रान्तिमान्
(ख) दृष्टान्त
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) सन्देह
उत्तर:
(ग) उत्प्रेक्षा

प्रश्न 14.
जहाँ उपमान के अभाव में उपमेय को ही उपमान मान लिया जाता है, वहाँ अलंकार होता है।
अथवा
“वयं विषय को बहुत उत्कृष्ट दिखाने के क्रम में, उसके समान कोई अन्य है ही नहीं, सूचित करने के लिए उपमेय को ही उपमान बना देना,” किस अलंकार का लक्षण हैं? (2011)
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) अनन्वय
(घ) सन्देह
उत्तर:
(ग) अनन्वय

प्रश्न 15.
जहाँ रूप-रंग आदि के सादृश्य से उपमेय में उपमान का संशय बना रहे, वहाँ अलंकार होता है। (2010)
(क) सन्देह
(ख) भ्रान्तिमान्
(ग) दृष्टान्त
(घ) प्रतीप
उत्तर:
(ख) भ्रान्तिमान्

प्रश्न 16.
उपमेय में उपमान की सम्भावना (या कल्पना) किस अलंकार में होती है? (2011)
अथवा
जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना की जाए, वहाँ अलंकार होता है। (2011, 10)
(क) सन्देह
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) भ्रान्तिमान्
(घ) अतिशयोक्ति
उत्तर:
(ख) उत्प्रेक्षा

प्रश्न 17.
‘कैर्धी ब्योमबीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,
वीररस बीर तरवारि-सी उघारी है।’
उपरोक्त पद में कौन-सा अलंकार है? (2010)
(क) अनन्वय
(ख) भ्रान्तिमान्
(ग) सन्देह
(घ) दृष्टान्त
उत्तर:
(ग) सन्देह

प्रश्न 18.
‘रहिमन अँसुआ नयन ढरि, जिय दुख प्रगट करे।
जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देड़।।”
उक्त पंक्तियों में अलंकार हैं। (2010)
(क) अनन्वय
(ख) रूपक
(ग) सन्देह
(घ) दृष्टान्त
उत्तर:
(घ) दृष्टान्त

प्रश्न 19.
“बंदउँ कोमल कमल से, जग जननी के पाँय” उक्त पंक्ति में कौन-सा अलंकार है? (2014)
(क) उत्प्रेक्षा
(ख) रूपक
(ग) दृष्टान्त
(घ) उपमा
उत्तर:
(घ) उपमा

प्रश्न 20.
“विदग्ध होके कण धूलि राशि का, तपे हुए लौह कणों समान था।” उक्त पद में अलंकार है। (2011)
(क) अनुप्रास
(ख) यमक
(ग) श्लेष
(घ) उपमा
उत्तर:
(घ) उपमा

प्रश्न 21.
“ओ चिन्ता की पहली रेखा, अरे विश्व वन की व्याली।” में अलंकार है। (2011)
(क) यमक
(ख) रूपक
(ग) श्लेष
(घ) प्रतीप
उत्तर:
(ख) रूपक

प्रश्न 22.
“जनक बचन छुट बिरवा लजाऊ के से,
वीर रहे सकल सकुचि सिर नाय के।”
उपरोक्त पद में अलंकार हैं।
(क) अनुप्रास
(ख) यमक
(ग) श्लेष
(घ) उपमा
उत्तर:
(घ) उपमा

प्रश्न 23.
मंजु मेचक मृदुल तनु, अनुहरत भूवन भरनि।
मनहूँ सुभग सिंगार सिमु-तरु फरयौ अद्भुत फरनि।।
उपरोक्त पंक्तियों में अलंकार है।
(क) उपमा
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) यमक
(घ) श्लेष
उत्तर:
(ख) उत्प्रेक्षा

प्रश्न 24.
“कनक कनक तै सौ गुनी, मादकता अधिकाइ।
उहिं खाएँ बौराई जग, इहिं पाएँ बौराई।।”
उपरोक्त पद में अलंकार है
(क) रूपक
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) यमक
(घ) श्ले ष
उत्तर:
(ग) यमक

प्रश्न 25.
‘हरि पद कोमल कमल-से’ पद में अलंकार है। (2010)
(क) अनुप्रास
(ख) उपमा
(ग) उत्प्रेक्षा।
(घ) यमक
उत्तर:
(ख) उपमा

प्रश्न 26.
जहाँ रूप-रंग आदि के सादृश्य से उपमेय में उपमान का संशय बना रहे, वहाँ अलंकार होता है (2010)
(क) उत्प्रेक्ष
(ख) भ्रान्तिमान्
(ग) उपमा
(घ) सन्देह
उत्तर:
(घ) सन्देह

प्रश्न 27.
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
कि सारी ही की नारी है कि नारी ही सारी है।।
उपरोक्त पद में अलंकार है। (2011)
(क) भ्रान्तिमान्
(ख) दृष्टान्त
(ग) सन्देह
(घ) अतिशयोक्ति
उत्तर:
(ग) सन्देह

प्रश्न 28.
जहाँ काव्य की शोभा का कारण शब्द होता है, वहाँ कौन-सा अलंकार होता है?
(क) अर्थालंकार
(ख) शब्दालंकार
(ग) उपमा
(घ) सन्देह
उत्तर:
(ख) शब्दालंकार

प्रश्न 29.
रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीता राम। उक्त पंक्तियों में अलंकार है।
(क) यमक
(ख) श्लेष
(ग) अनुप्रास
(घ) उपमा
उत्तर:
(ग) अनुप्रास

प्रश्न 30.
जहाँ उपमेय की उपमान के रूप में सम्भावना की जाए, वहाँ अलंकार होता है।
(क) उपमा
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) रूपक
(घ) यमक
उत्तर:
(ख) उत्प्रेक्षा

प्रश्न 31.
‘नील घन-शावक से सुकुमार,
सुधा भरने को विधु के पास।
उक्त पंक्तियों में अलंकार है।
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) दृष्टान्त
उत्तर:
(क) उपमा

प्रश्न 32.
‘रण-कमल बन्द हरिराई।’ में अलंकार हैं।
(क) उपेक्षा
(ख) अनुपास
(ग) रूपक
(घ) उपमा
उत्तर:
(ग) रूपक

प्रश्न 33.
रूपक अलंकार के भेद हैं।
(क) 4
(ख) 2
(ग) 5
(घ) 3
उत्तर:
(घ) 3

प्रश्न 34.
जहाँ समान वर्गों की बार-बार आवृत्ति होती है, वहाँ अलंकार होता है।
(क) अनुप्रास
(ख) यमक
(ग) भ्रान्तिमान
(घ) उपमा
उत्तर:
(क) अनुप्रास

प्रश्न 35.
उपमा अलंकार का विपरीत अलंकार होता है।
(क) दृष्टान्त
(ख) श्लेष
(ग) प्रतीप
(घ) सन्देह
उत्तर:
(ग) प्रतीप

प्रश्न 36.
उपमेय और उपमान के साधारण धर्म में भिन्नता होने पर अलंकार होता
(क) भ्रान्तिमान
(ख) सन्देह
(ग) उपमान
(घ) दृष्टान्त
उत्तर:
(घ) दृष्टान्त

प्रश्न 37.
जहाँ उपमेय को ही उपमान बना दिया जाए, वहाँ कौन-सा अलंकार होता है?
(क) प्रतीप
(ख) अनन्वय
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) भ्रान्तिमान
उत्तर
(ख) अनन्वये

प्रश्न 38.
प्रस्तुत में अप्रस्तुत की सम्भावना को कौन-सा अलंकार कहते हैं?
(क) उपमा
(ख) उत्प्रेक्षा।
(ग) रूपक
(घ) भ्रान्तिमान
उत्तर:
(ख) उत्प्रेक्षा

प्रश्न 39.
‘तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।’ उक्त काव्य पंक्ति में कौन-सा अलंकार हैं? (2008)
(क) यमक
(ख) श्लेष
(ग) उपमा
(घ) अनुप्रास
उत्तर:
(घ) अनुप्रास

प्रश्न 40.
माला फेरत जुग भया, फिरा न मनका फेर।
करका मनका हारि दे मनका-मनका फेर।।
उक्त दोहे में कौन-सा अलंकार है?
(क) श्लेष
(ख) यमक
(ग) अनुप्रास
(घ) रूपक
उत्तर:
(ख) यमके।

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार का नाम और उसका लक्षण लिखिए।
सोहत ओढे पीत पट स्याम सलोने गात।
मनुहुँ नीलमणि शैल पर आतप परयो प्रभात।।
उत्तर:
यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है। जहाँ प्रस्तुत में अप्रस्तुत की सम्भावना की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसके वाचक शब्द, मनु, जनु, मनहु, जनहु, मानो, जानों आदि हैं।

प्रश्न 2.
रूपक अलंकार के कितने भेद होते हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तर:
रूपक अलंकार के तीन भेद होते हैं, जो निम्न प्रकार हैं।
(क) सांग रूपक
(ख) निरंग रूपक
(ग) परम्परित रूपक

प्रश्न 3.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में अलंकार का नाम तथा उसका लक्षण लिखिए।
‘कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यानँ।’
उत्तर:
यहाँ रूपक अलंकार हैं। जहाँ उपमेय में उपमान का भेद रहित आरोप हो, वहाँ रूपक अलंकार होता है।

प्रश्न 4.
‘पूत सपूत तो क्यों धन संचे।’
पूत कपूत तो क्यों धन संचे।।
उत्तर:
यहाँ अनुप्रास का एक भेद लाटानुप्रास है। जहाँ शब्द और अर्थ की आवृत्ति हो अर्थात् जहाँ एकार्थक शब्दों की आवृत्ति तो हो, परन्तु अन्वय करने पर अर्थ भिन्न हो जाए, वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है।

प्रश्न 5.
कहत नटत रीझत खीझत मिलत खिलत लजियात।
भरे भौन में करत हैं, नैननु हीं सौं बात।।
उक्त दोहे में कौन-सा अलंकार है? उसका लक्षण लिखिए।
उत्तर:
यहाँ अनुप्रास का एक भेद अन्त्यानुप्रास’ है। जब छन्द के शब्दों के अन्त में समान स्वर या व्यंजन की आवृत्ति हो, वहाँ ‘अन्त्यानुप्रास’ अलंकार होता है।

प्रश्न 6.
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चुन।।।
उक्त पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है? उसका लक्षण लिखिए।
उत्तर:
यहाँ श्लेष अलंकार है। जहाँ एक शब्द के एक से अधिक अर्थ होते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता हैं।

प्रश्न 7.
अनुप्रास अलंकार का लक्षण एवं उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
जहाँ समान वर्षे की आवृत्ति बार-बार होती है अर्थात् कोई वर्ण एक से अधिक बार आता है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है; जैसे
उदाहरण

रघुपति राघव राजा राम,
पतित पावन सीता राम।।
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,
सबको सम्मति दे भगवान।

प्रश्न 8.
मकराकृति गोपाल के, सोहत कुण्डल कान।
धयो मनौ हिय धर समरु, इयौढी लसत निसान।।
उक्त पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है? उसका लक्षण लिखिए।
उत्तर:
यहाँ रूपक अलंकार है। जहाँ उपमेय और उपमान में अभिन्नता प्रकट की जाए अर्थात् उन्हें एक ही रूप में प्रकट किया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है।

प्रश्न 9.
‘तेरी बरछी ने बरछीने हैं खलन के।’
उक्त काव्य पंक्ति में अलंकार का नाम तथा उसका लक्षण लिखिए।
उत्तर:
यहाँ यमक अलंकार है। जहाँ कोई शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त होता है और प्रत्येक बार उसके अर्थ अलग होते हैं। वहाँ यमक अलंकार होता है।

प्रश्न 10.
‘पछताने की परछाहीं-सी, तुम उदास छाई हो कौन?’ इस पंक्ति में अलंकार का नाम और उसका लक्षण लिखिए।
उत्तर:
यहाँ उपमा अलंकार है। जहाँ उपमेय (संज्ञा) की उपमान (विशेषण) से समानता बताई जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है। इसके वाचक शब्द हैं, सी, सा, से, सम, सरिस आदि।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार का नाम तथा उसका लक्षण लिखिए।
‘चरण-कमल बन्द हरिराई।’ (2013, 10)
उत्तर:
उक्त रूपक अलंकार है। जहाँ उपमेय में उपमान का भेद रहित आरोप हो, वहाँ रूपक अलंकार होता है।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित दोहे में अलंकार का नाम तथा लक्षण लिखिए।
चिरजीव जोरी जुरै, क्यों न सनेह गम्भीर
को घटि ए वृषभानुजा, वे हलधर के वीर।।
उत्तर:
यहाँ श्लेष अलंकार है। जहाँ एक शब्द एक ही स्थान पर प्रयुक्त हो और उसके एक से अधिक अर्थ हों, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में कौन-सा अलंकार है?
मुख मयंक सम मंजु मनोहर।।
उत्तर:
यहाँ उपमा अलंकार है, क्योंकि मुख की समानता चन्द्रमा से की गई है। तथा मंजु और मनोहर साधारण धर्म हैं साथ में वाचक शब्द सा भी प्रयुक्त है।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में कौन-सा अलंकार है?
ओ चिन्ता की पहली रेखा, अरे विश्व वन की व्याली।
उत्तर:
इस पंक्ति में रूपक अलंकार है, क्योंकि चिन्ता उपमेय में विश्व वन की व्याली में उपमान का आरोप किया गया है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?
नाक का मोती अधर की कान्ति से,
बीज़ दाडिम का समझकर भ्रान्ति से।
देख उसको ही हुआ शुक मौन है,
सोचता है अन्य शुक यह कौन है?
उत्तर:
इन पंक्तियों में भ्रान्तिमान अलंकार है। जहाँ समानता के कारण एक वस्तु को दूसरी समझ लिया जाता है। वहाँ भ्रान्तिमान अलंकार होता है। इसमें तोता उर्मिला की नाक के मोती को भ्रमवश अनार का दाना और उसकी नाक को दूसरा तोता समझकर भ्रमित हो जाता है। इस कारण यहाँ पर भ्रान्तिमान अलंकार है।

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UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name छन्द
Number of Questions Solved 56
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द

छन्द का अर्थ एवं परिभाषा
‘छन्द’ शब्द की उत्पत्ति ‘छिदि’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है- ढकना अथवा आच्छादित करना। छन्द उस पद-रचना को कहते हैं, जिसमें अक्षर, अक्षरों की संख्या एवं क्रम, मात्रा, मात्रा की गणना के साथ-साथ यति (विराम) एवं गति से सम्बद्ध नियमों का पालन किया गया हो।

छन्द के अंग अथवा तत्त्व
छन्दबद्ध काव्य को समझने अथवा रचने के लिए छन्द के निम्नलिखित अंगों का ज्ञान होना आवश्यक है।

1. चरण
चरण या पाद छन्द की उस इकाई का नाम है, जिसमें अनेक छोटी-बड़ी ध्वनियों को सन्तुलित रूप से प्रदर्शित किया जाता है। साधारणतः छन्द के चार चरण होते हैं—पहले तथा तीसरे चरण को ‘विषम’ तथा दूसरे और चौथे चरण को ‘सम’ चरण कहते हैं।

2. मात्रा और वर्ण
किसी ध्वनि के उच्चारण में जो समय लगता है, उसकी सबसे छोटी इकाई को मात्रा कहते हैं। छन्दशास्त्र में दो से अधिक मात्राएँ किसी वर्ण की नहीं होती। मात्राएँ स्वरों की होती है, व्यंजनों की नहीं। यही कारण है कि मात्राएँ गिनते समय व्यंजनों पर ध्यान नहीं दिया जाता। वर्ण का अर्थ अक्षर से हैं, इसके दो भेद होते हैं।

(क) ह्रस्व वर्ण (लघु)
जिन वर्गों के उधारण में कम समय लगता है, उन्हें ह्रस्व वर्ण कहते हैं। छन्दशास्त्र में इन्हें लघु कहा जाता है। इनकी ‘एक’ मात्रा मानी गई है तथा इनका चिह्न ” है। ‘ अ, इ, उ तथा ऋ लघु वर्ण हैं।
लघु के नियम

  • ह्रस्व स्वर से युक्त व्यंजन लघु वर्ण कहलाता है।
  • यदि लघु स्वर में स्वर के ऊपर चन्द्रबिन्दु UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 1 है तो उसे लघु ही माना जाएगा। उदाहरण-सँग, हँसना आदि।
  • छन्दों में कहीं-कहीं हलन्त (,) आ जाने पर लघु हीं माना जाता है।
  • हस्व स्वर के साथ संयुक्त स्वर हो तो भी लघु ही माना जाता है। कभी-कभी उच्चारण की सुविधा के लिए भी गुरु को लघु ही मान लिया जाता है।
  • संयुक्त वर्ण से पूर्व हस्व पर जोर न पड़े तो वह भी लघु मान लिया जाता है।

(ख) दीर्घ वर्ण (गुरु)
जिन वर्गों के उच्चारण में हस्व वर्ण से दोगुना समय लगता है, उन्हें दीर्घ वर्ण कहते हैं। इन्हें गुरु भी कहा जाता है। इनकी दो मात्राएँ होती हैं तथा इनको चिह्न ‘ऽ’ है।
आ, ई, ऊ, ओ, औं आदि दीर्घ वर्ण हैं।

गुरु के नियम

  • दीर्घ स्वर और उससे युक्त व्यंजन गुरु माने जाते हैं।
  • यदि हस्त स्वर के बाद विसर्ग (:) आ जाए, तो वह गुरु माना जाता है; जैसे प्रातः आदि।।
  • अनुस्वार (∸) वाले सभी स्वर एवं सभी व्यंजन भी गुरु माने जाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर अन्तिम हस्व स्वर को गुरु मान लिया जाता है।
  • संयुक्त अक्षर या उसके ऊपर अनुस्वार हो तो भी ह्रस्व स्वर गुरु माना जाता है।

3. यति
छन्द पदते समय उच्चारण की सुविधा के लिए तथा लय को ठीक रखने के लिए कहीं-कहीं विराम लेना पड़ता है। इसी विराम या ठहराव को यति कहते हैं।

4. गति
छन्द पढ़ने की लय को गति कहते हैं। हिन्दी में छन्दों में गति प्रायः अभ्यास और नाद के नियमों पर ही निर्भर हैं।

5. तुक
छन्द के चरणों के अन्त में समान वर्गों की आवृत्ति को तुक कहते हैं।

6. संख्या, क्रम तथा गण
छन्द में मात्राओं और वर्गों की गिनती को संख्या कहते हैं तथा छन्द में लघु वर्ण और गुरु वर्ण की व्यवस्था को क्रम कहते हैं। तीन वर्षों के समूह को ‘गण’ कहते हैं। गणों का प्रयोग वर्णिक (वृत्त) में लघु-गुरु के क्रम को बनाए रखने के लिए होता है। इनकी संख्या आठ निश्चित की गई हैं। इनके लक्षण और स्वरूप की तालिका निम्न है ।

गण लक्षण रूप उदाहरण
1. मगण सर्व गुरु ऽऽऽ  नानाजी
2. यगण आदि लघु, बाद में दो गुरु |ऽऽ सवेरा
3. रंगण आदि-अन्त में गुरु, मध्य में लघु प्रथम दो लघु ऽ|ऽ  केतकी
4. सगण प्रथम दो लघु,  अन्त में गुरु ||ऽ रचना
5. तगण प्रथम दो गुरु, अन्त में लघु ऽऽ| आकार
6. जगण आदि-अन्त में लघु, मध्य में गुरु |ऽ| नरेश
7. भगण प्रथम गुरु, बाद में दो लघु ऽ|| गायक
8. भगण सर्व लघु ||| कमल

छन्द के भेद
सामान्यतः वर्ण और मात्रा के आधार पर छन्दों के निम्न चार भेद हैं।

1. मात्रिक छन्द
यह छन्द मात्रा की गणना पर आधारित होता है, इसीलिए इसे मात्रिक छन्द कहा जाता है। जिन छन्दों में मात्राओं की समानता के नियम का पालन किया जाता हैं, किन्तु वणों की समानता पर ध्यान नहीं दिया जाता, उन्हें मात्रिक छन्द कहा जाता है। दोहा, रोला, सोरठा, चौपाई, हरिगीतिका, छप्पय आदि प्रमुख मात्रिक

2. वर्णिक छन्द
जिन छन्दों में केवल वर्गों की संख्या और नियमों का पालन किया जाता है, वे वर्णिक छन्द कहलाते हैं। पनामारी, रूपघनाक्षरी, देवघनाक्षरी, मुक्तक, दण्डक आदि वर्णिक छन्द हैं।

3. उभय छन्द
जिन छन्दों में मात्रा और वर्ण दोनों की समानता एक-साथ पाई जाती है, उन्हें उभय छन्द कहते हैं।

4. मुक्तक छन्द
इन छन्दों को स्वछन्द छन्द भी कहा जाता है, इनमें मात्रा और वर्गों की संख्या निश्थित नहीं होती। भावों के अनुकूल यति-विधान, चरणों की अनियमितता, असमान गति आदि भुक्तक छन्दों की विशेषताएँ हैं। ये अपनी स्वेच्छाचारिता का भरपूर परिचय देते हैं।

प्रमुख मात्रिक छन्द
मात्रिक छन्दों में केवल मात्राओं पर ध्यान दिया जाता है। मात्रिक छन्द तीन प्रकार के होते हैं-

  1.  सम्
  2. असम
  3. विषम्।

प्रमुख मात्रिक छन्दों का वर्णन नीचे किया जा रहा है।

1. चौपाई (2018, 17, 16, 15, 14, 13, 12)
परिभाषा चार चरण वाले इस सम मात्रिक छन्द के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अन्त में जगण (|ऽ|) अथवा तगण (ऽऽ|) नहीं होता है। प्रथम तथा द्वितीय चरणों में ‘तुक’ समान होती है।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 17

स्पष्टीकरण
इस उदाहरण में चार चरण हैं। प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ तथा अन्त में दो गुरु वर्ण हैं। प्रत्येक चरण के अन्त में यति है। अतः यह चौपाई छन्द का उदाहरण है।

2. दोहो (2018, 17, 16, 14, 13, 12, 10)
परिभाषा दोहा अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इस छन्द के प्रथम और तृतीय चरण में 13-13 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11.11 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अन्त में गुरु-लघु आते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 2

स्पष्टीकरण
इस उदाहरण में चार चरण हैं। पहले (कागा काको धन हरै) और तीसरे (मीठे बचन सुनाय कर) चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे (कोयल काको देय) एवं चौथे (जग अपनो कर लेय) चरणों में 11-11 मात्राएँ हैं। सम चरणों के अन्त के वर्ण गुरु और लघु हैं। अतः यह दोहा छन्द को उदाहरण हैं।

3. सोरठा (2018, 17, 16, 14, 13, 12)
परिभाषा दो का उल्टा रूप सोरठा कहलाता है। यह एक अर्बसम छन्द है अर्थात् इसके पहले तीसरे तथा दूसरे-चौथे चरणों में मात्राओं की संख्या समान रहती है। इसके विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 11-11 और सम चरणों (दूसरे और चौथे) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। तुक विषम चरणों में ही होता है तथा सम चरणों के अन्त में जगण (|ऽ|) का निषेध होता है।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 3

स्पष्टीकरण
इस उदाहरण के पहले चरण (मूक होई वाचाल) और तीसरे चरण (जासु कृपा सु । दयाल) में 11-11 मात्राएँ हैं तथा दूसरे (पंगु चदै गिरिवर गहन) और चौथे चरण (द्रव सकल कलिमल दहन) में 13-13 मात्राएँ हैं। विषम चरण में तुक है तथा सम् चरण के अन्त में जगण (|ऽ|) नहीं है। अतः यह सोरठा छन्द का उदाहरण है।

4. रोला (2018, 15, 14, 13, 12, 10, 04)
परिभाषा यह एक सम मात्रिक छन्द है अर्थात् इसके प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या समान रहती हैं। चार चरणों वाले इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। तथा ग्यारह (11) और तेरह (13) मात्राओं पर यति होती है।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 5

स्पष्टीकरण
इस उदाहरण में चार चरण हैं और प्रत्येक चरण में चौबीस (24) मात्राएँ हैं। ग्यारह (11) और तेरह (13) मात्राओं पर यति है। अतः यह रोला छन्द का उदाहरण है।

5. कुण्डलिया (2018, 17, 14, 13)
परिभाषा यह विषम मात्रिक एवं संयुक्त छन्द हैं। इस छन्द का निर्माण दोहा और रोला के संयोग से होता है। इसमें 6 चरण होते हैं। आरम्भ में दोहा और पश्चात् में दो छन्द रोला के होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 6

स्पष्टीकरण
छ; चरणों वाले इस उदाहरण के प्रत्येक चरण में चौबीस (24) माएँ हैं। इसका प्रथम चरण (कोई संगी”) दोहे में प्रथम एवं द्वितीय चरण को मिलाकर रचा गया है और इसके द्वितीय चरण (पथी लेहु ”) की रचना दोहे में तृतीय व चतुर्थ चरण के सम्मिश्रण से हुई है। इसके अन्य चरणों की रचना रोला के चरणों को मिला कर की गई है। इसमें यतियों की व्यवस्था दोहे एवं रोले के अनुसार ही है। अतः यह कुण्डलिया छन्द का उदाहरण है।

6. हरिगीतिका (2018, 17, 14, 13, 12)
परिभाषा इस सम मात्रिक छन्द के प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं तथा 16 और 12 मात्रा पर यति होती है। अन्त में लघु-गुरु का प्रयोग ही अधिक प्रचलित है।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 7

स्पष्टीकरण
यहाँ प्रत्येक चरण 28 मात्राओं वाला है, जिसमें 16 मात्रा पर यति है। अतः यह उदाहरण हरिगीतिका छन्द का है।

7. बरवै (2018, 17, 16, 15, 14, 11, 10)
परिभाषा इस असम मात्रिक छन्द में कुल 38 मात्राओं वाले चार चरण होते हैं। इसके प्रथम और तृतीय चरणों में 12 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों में 7 मात्राएँ होती हैं।

सम अर्थात् द्वितीय और चतुर्थ चरण में जगण (|ऽ|) अथवा तगण (ऽऽ|) के प्रयोग से कविता सरल हो जाती है। यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 8

स्पष्टीकरण
यहाँ प्रथम एवं तृतीय चरण 12.12 तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण 7-7 मात्राओं के हैं। तथा सम चरणों के अन्त में जगण (|ऽ|) है। अतः यह बरवै छन्द का उदाहरण है।

प्रमुख वर्णिक छन्द (वर्णवृत्त)
वर्णिक छन्दों की रचना का आधार वर्गों की गणना होती है।
इसके तीन मुख्य भेद होते हैं-

  1. सम
  2. असम
  3.  विषम

प्रमुख वर्णिक छन्दों का उल्लेख नीचे किया जा रहा है।

1. इन्द्रवज्रो (2018, 17, 16, 15, 14, 13, 12)
परिभाषा यह राम वर्णवृत्त अर्थात् सम वर्णिक छन्द है। चार चरण वाले इस छन्द के प्रत्येक चरण में 11 वर्ण (अक्षर) होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 2 तगण, 1 जगण तथा 2 गुरु होते हैं। 11वें वर्ण पर यति होती है।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 9

स्पष्टीकरण
इस उदाहरण में 11-11 वर्गों वाले 4 चरण हैं तथा प्रत्येक चरण के 11वें वर्ण पर यति है। इसके प्रत्येक चरण में दो जगण, एक तगण एवं अन्त में दो गुरु हैं। अतः यह इन्द्रवज्रा छन्द का उदाहरण है।

2. उपेन्द्रवज्रा (2018, 17, 16, 14, 13, 10)
परिभाषा इस सम वर्णिक छन्द के प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 2 जगण, 1 तगण तथा 2 गुरु होते हैं। 11वें वर्ण पर यति होती हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 10

स्पष्टीकरण
इस पद्य के प्रत्येक चरण में जगण, तगण, जगण और दो गुरु के क्रम से 11 वर्ण है; अतः यह ‘उपेन्द्रवज्रा’ छन्द है।

3. मालिनी (2016, 13)
परिभाषा यह सम वर्णवृत्त है। इसमें 15 वर्षों वाले प्रत्येक चरण में दो नगण, एक मगण तथा दो यगण क्रम से रहते हैं। यति 8 एवं 7 वर्गों पर होती है।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 11

4. वसन्ततिलका (2018, 16, 13, 12)
परिभाषा यह सम पर्णिक छन्द अर्थात् सम वर्णवृत्त है। इसके 14 वर्णों वाले प्रत्येक चरण में एक तगण (ऽऽ|), एक भगण (ऽ||), दो जगण (|ऽ|) सहित अन्त में दो गुरु ‘ होते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 12

स्पष्टीकरण
यहाँ 14 वर्णों वाले प्रत्येक चरण में क्रम से 1 तगण,1 भगण, 2 जगण सहित 2 गुरु का विधान किया गया है। अतः यह वसन्ततिलका छन्द का उदाहरण है।

5. सवैया (2017, 16, 14, 13, 12)
परिभाषा इस सम वर्णवृत्त के प्रत्येक चरण में 22 से लेकर 26 तक वर्ण (अक्षर) होते हैं। सवैया छन्द के कई भेद हैं; जैसे—मत्तगयन्द, सुन्दरी, सुमुखी, मनहर इत्यादि।
(क) मत्तगयन्द (सवैया) यह सम वर्णवृत्त है। इसके 23 वर्गों वाले प्रत्येक चरण में 7 भगण तथा 2 गुरु क्रम से रहते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 13
स्पष्टीकरण
यहाँ प्रत्येक चरण में 23 वर्ण हैं तथा चरण का प्रारम्भ 7 भगण एवं अन्त 2 गुरु से हुआ है। अत: यह मत्तगयन्द छन्द का उदाहरण हैं।
(ख) सुन्दरी (सवैया) यह सम वर्णवृत्त है। इसका प्रत्येक चरण 25 वर्ण (अक्षर) वाला होता है। प्रत्येक चरण में 8 सगण तथा एक गुरु वर्ण क्रम से रहते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 14

स्पष्टीकरण
इस उदाहरण का प्रत्येक चरण 25 वणों वाला है। यहाँ सभी चरणों के प्रारम्भ में 8 सगण तथा अन्त में 1 गुरु के होने से यह सुन्दरी संवैया का उदाहरण है।

(ग) मनहर या मनहरण (सवैया) इसके प्रत्येक चरण में 31 वर्ण (अक्षर) होते हैं। इस प्रकार मनहर छन्द में सवैया के वर्षों की अधिकतम निर्धारित संख्या 26 से अधिक होने के कारण इसे दण्डक छन्द या दण्डक वृत्त कहा जाता है। मनहर को कवित्त भी कहते हैं। इसमें 16-16 अथवा 8-8-8-7 वर्षों पर यति होती हैं तथा अन्त में एक गुरु वर्ण रहता है।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 15

स्पष्टीकरण यहाँ प्रत्येक चरण में 31 वर्ण हैं तथा सभी चरणों में 8-8-8-7 वर्षों पर यति है। अतः यह मनहर छन्द का उदाहरण हैं।

(घ) सुमुखि (सवैया) इसमें सात जगण तथा लघु-गुरु से छन्द की सृष्टि होती है। यति 11वें और 12वें वर्गों पर होती है। मदिरा संवैया के प्रारम्भ में एक लघु वर्ण जोड़ देने से सुमुखी सवैया की रचना होती है। संवैये का यह रूप जगण (|ऽ|) अर्थात् लघु गुरु लघु की आवृत्ति के आधार पर चलता है।
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi छन्द img 16

स्पष्टीकरण
उपर्युक्त उदाहरण में सात जगण के पश्चात् लघु-गुरु का विधान है। अतः सात जगण + लघु + गुरु होने से यहाँ सुमुखि छन्द है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जिस छन्द में चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं, वह कहलाता है। (2010)
अथवा
यह सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण और तगण के प्रयोग का निषेध है। इस छन्द का नाम है (2010)
(क) दोहा
(ख) सोरठा
(ग) रोला
(घ) चौपाई
उत्तर:
(घ) चौपाई

प्रश्न 2.
चौपाई छन्द में कितने चरण होते हैं? सही विकल्प चुनकर लिखिए।
(क) दो
(ख) चार
(ग) छः
(घ) आठ
उत्तर:
ख) चार

प्रश्न 3.
“प्रिय पति वह मेरा, प्राण प्यारा कहाँ है।
दुःख-जलधि निमग्ना का सहारा कहाँ है।
अब तक जिसको मैं देख कर जी सकी हैं।
वह हृदय हमारा, नेत्र तारा कहाँ है।”
उपर्युक्त पद्य में कौन-सा छन्द है? (2011)
(क) सवैया
(ख) सोरठा
(ग) मालिनी
(घ) रोला
उत्तर:
(ग) मालिनी

प्रश्न 4.
हरिगीतिका छन्द में प्रत्येक चरण में मात्राएँ होती हैं (2011)
(क) 24
(ख) 28
(ग) 26
(घ) 22
उत्तर:
(ख) 28

प्रश्न 5.
“नव उज्ज्वल जले-धार, हीर हीरक सी सोहति।
बिच-बिच छहरति बूंद, मध्य मुक्तामनि मोहति।।”
इसमें प्रयुक्त छन्द का नाम है। (2011)
(क) दोहा
(ख) चौपाई
(ग) सोरठा
(घ) बरवै
उत्तर:
(ग) सोरठा

प्रश्न 6.
यह सम मात्रिक छन्द है। यह चार चरण में लिखा जाता है। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। 11वीं और 13वीं मात्राओं पर यति रहती है। वहाँ छन्द होता है। (2010)
(क) रोला
(ख) कुण्डलिया
(ग) इन्द्रवज्रा
(घ) बरवै
उत्तर:
(क) रोला

प्रश्न 7.
“सुनत सुमंगल बैन, मन प्रमोद सनपुलक भर।
सरद सरोरुह नैन, तुलसी भरे सनेह जल।।”
इसमें छन्द है।
(क) दोहा
(ख) रोला
(ग) बरवै
(घ) सोरठा
उत्तर:
(घ) सोरठा

प्रश्न 8.
“नील सरोरुह स्याम, सरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम, सदा छीरसागर संयन।।”
इसमें छन्द है।
(क) चौपाई
(ख) सोरठा
(ग) सवैया
(घ) बरवै
उत्तर:
(ख) सोरठा

प्रश्न 9.
“मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाईं परै श्याम हरित-दुति होय।।”
इस पद में छन्द है।
(क) चौपाई
(ख) सोरठा
(ग) दोहा
(घ) बरवै
उत्तर:
(ग) दोहा

प्रश्न 10.
“मैं लखि नारी ज्ञानु, करि राख्यौ निरधारु यह।
वहई रोग-निदानु, वहै बैदु, औषधी वहै।।
उपर्युक्त पद्य में कौन-सा छन्द है?
(क) दोहा
(ख) रोला
(ग) उपेन्द्रवज्रा
(घ) सोरठा
उत्तर:
(घ) सोरठा

प्रश्न 11.
बरवै छन्द में कुल मात्राएँ होती हैं। (2010)
(क) 48
(ख) 44
(ग) 38
(घ) 32
उत्तर:
(ग) 38

प्रश्न 12.
“अवधि शिला का उर पर, था गुरु भार।
तिल-तिल काट रही थी, दृग जल-धार।।”
इसमें प्रयुक्त छन्द है। (2010)
(क) सोरठा
(ख) दोहा
(ग) रोला
(घ) बरवै
उत्तर:
(घ) बरवै

प्रश्न 13.
सोरठा छन्द की प्रत्येक पंक्ति में कुल मात्राएँ होती हैं।
(क) 16
(ख) 24
(ग) 32
(घ) 64
उत्तर:
(ख) 24

प्रश्न 14.
“सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु, जसु अपजसु बिधि हाथ।।”
इस पद्य में छन्द है। (2010)
(क) चौपाई
(ख) सोरठा
(ग) दोहा
(घ) सवैया
उत्तर:
(ग) दोहा

प्रश्न 15.
सिय मुख शरद कमल जिमि, किमि कहिजाय।
निसि मलीन वह, निसि दिन, यह बिगसाय।।
पद में प्रयुक्त छन्द का नाम हैं।
(क) दोहा
(ख) सोरठा
(ग) बरवै
(घ) चौपाई
उत्तर:
(ग) बरवै

प्रश्न 16.
ऋषिहिं देखि हरषै हियो, राम देखि कुम्हलाई।
धनुष देखि इरपै महा, चिन्ता चित्त डोलाइ।।।
इसमें प्रयुक्त छन्द है।
(क) सोरठा
(ख) चौपाई
(ग) बरवै
(घ) दोहा
उत्तर:
(घ) दोहा

प्रश्न 17.
यगण का सही सूत्र है।
(क) ||ऽ
(ख) |||
(ग) ऽऽ|
(घ) |ऽऽ
उत्तर:
(घ) |ऽऽ

प्रश्न 18.
“कागद पर लिखत न बनत, कहत सन्देसु लेजात।
कहिहै सब तेरो हियौ, मेरे हिय की बात।।”
इसमें प्रयुक्त छन्द का नाम है।
(क) मालिनी
(ख) सवैया
(ग) बरवै
(घ) दोहा
उत्तर:
(घ) दोहा

प्रश्न 19.
“जो न होत जग जनम भरत को।
सकल धरम धुर धरनि धरत को।।”
उपरोक्त पंक्तियाँ किस छन्द में हैं? (2010)
(क) बरवै
(ख) सवैया
(ग) कुण्डलिया
(घ) चौपाई
उत्तर:
(घ) चौपाई

प्रश्न 20.
रोला छन्द में कितनी मात्राएँ होती हैं? (2010)
अथवा
‘रोला’ छन्द के एक (प्रत्येक चरण में कुल कितनी मात्राएँ होती हैं? (2011, 10)
(क) 28
(ख) 24
(ग) 16
(घ) 19
उत्तर:
(ख) 24

प्रश्न 21.
कुण्डलिया के प्रत्येक चरण में मात्राएँ होती हैं।
(क) 22
(ख) 24
(ग) 26
(घ) 20
उत्तर:
(ख) 24

प्रश्न 22.
जिस छन्द में चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में तगण, भगण, दो जगण और दो गुरु होते हैं, वहाँ छ्न्द होता है
(क) इन्द्रवज्रा
(ख) मालिनी
(ग) वसन्ततिलका
(घ) मत्तगयन्द सवैया
उत्तर:
(ग) वसन्ततिलको

प्रश्न 23.
चम्पक हरवा अँग मिलि, अधिक सुहाय।
जानि परै सिय हियरे, जब कॅमिलाय।।
उपरोक्त पद्य में कौन-सा छन्द है? (2011)
(क) दोहा
(ख) बरवै
(ग) सोरठा
(घ) रोला
उत्तर:
(ख) बरवै

प्रश्न 24.
जिस छन्द में प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं, वह कहलाता है?
(क) दोहा
(ख) सोरठा
(ग) रोला
(घ) इन्द्रवज्रा
उत्तर:
(ख) सोरठा

प्रश्न 25.
“बिनु पग चले सुने बिनु काना। कर बिनु कर्म करे विधि नाना।।
तनु बिनु परस नयन बिनु देखा। गहे घ्राण बिनु बास असेखा।।”
उपरोक्त पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? (2011)
(क) बरवै
(ख) चौपाई
(ग) हरिगीतिका
(घ) वसन्ततिलका
उत्तर:
(ख) चौपाई

प्रश्न 26.
“सुनि केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे।
बिहँसे करुणा ऐन, चिरौ जानकी लखन तन।।”
उपरोक्त पद्य में कौन-सा छन्द है?
(क) दोहा
(ख) रोला
(ग) सोरठा
(घ) बरवै
उत्तर:
(ग) सोरठा

प्रश्न 27.
“कातिक सरद चन्द उजियारी जग सीतल हाँ विरहै जारी।”
उक्त पंक्ति में प्रयुक्त छन्द का नाम है। (2010)
(क) दोहा
(ख) रोला
(ग) चौपाई
(घ) सोरठा
उत्तर:
(ग) चौपाई

प्रश्न 28.
“मैं जो नया ग्रन्थ विलौकता हैं, भाता मुझे सो नव मित्र-सा है।
देखें उसे मैं नित नेम से ही, मानो मिला मित्र मुझे पुराना।।”
उपरोक्त पद्य में कौन-सा न्द है? (2010)
(क) उपेन्द्रवज्रा
ख) संवैया
(ग) वसन्ततिलका
(घ) इन्द्रवज्रा
उत्तर:
(घ) इन्द्रवज्रा

प्रश्न 29.
“भू में रमी शरद की कमनीयता थी।
नीला अनन्त नभ निर्मल हो गया था।
थी छा गई कंकुभ में, अमिता सिताभा।
उत्फुल-सी प्रकृति थी, प्रतिभात होती।।”
उपर्युक्त पद्यांश में कौन-सा छन्द है? (2011)
(क) मालिनी
(ख) इन्द्रवज्रा
(ग) वसन्ततिलका
(घ) उपेन्द्रवज्रा
उत्तर:
(ग) वसन्ततिलका।

प्रश्न 30.
“सुख शान्ति रहे सब ओर सदा, अविवेक तथा अघ पास न आवै।
गुणशील तथा बल बुद्धि बढ़े, हठ बैर विरोध घटै मिटि जावै।
कहे मंगल दारिद दूर भगे, जग में अति मोद सदा सरसावै।।
कवि पण्डित शूरन वीरन से, विलसे यह देश सदा सुख पावै।।”
उपरोक्त पद्य में कौन-सा छन्द है? (2011, 10)
(क) सुन्दरी
(ख) मत्तगयन्द
(ग) कवित्त मनहर
(घ) कुण्डलिया
उत्तर:
(क) सुन्दरी

प्रश्न 31.
आदि में एक दोहा जोड़कर और बाद में एक रोला जोड़कर कौन-सा छन्द बनता है?
अथवा
रोला छन्द के प्रारम्भ में एक दोहा जोड़ने पर जो छन्द बन जाता है, उसका नाम लिखिए (2008)
(क) हरिगीतिका
(ख) कुण्डलिया
(ग) बरवै।
(घ) वसन्ततिलका
उत्तर:
(ख) कुण्डलिया

प्रश्न 32.
“सकल मलिन मन दीन दुखारी। देखी सासु आन अनुसारी।” उपरोक्त पद में कौन-सा छन्द है? (2011)
(क) रोला
(ख) सोरठा
(ग) दोहा
(घ) चौपाई
उत्तर:
(घ) चौपाई

प्रश्न 33.
चौपाई छन्द में कुल मात्राएँ होती हैं। (2007)
(क) 15
(ख) 16
(ग) 64
(घ) 32
उत्तर:
(ग) 64

प्रश्न 34.
दोहा छन्द में कुल मात्राएँ होती हैं। (2007)
(क) 24
(ख) 48
(ग) 38
(घ) 32
उत्तर:
(ख) 48

प्रश्न 35.
इन्द्रवज्रा के प्रत्येक चरण में कुल वर्ण होते हैं। (2007)
(क) 10
(ख) 12
(ग) 11
(घ) 14
उत्तर:
(ग) 11

प्रश्न 36.
वसन्ततिलका छन्द के एक चरण में कुल कितने वर्ण होते हैं? (2011)
(क) 16
(ख) 18
(ग) 28
(घ) 14
उत्तर:
(घ) 14

प्रश्न 37.
जहाँ पहले और तीसरे चरण में 12-12 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 7-7 मात्राएँ होती हैं और चरण के अन्त में लघु होता है, वहाँ छन्द होता है।
(क) कुण्डलिया
(ख) बरवै
(ग) इन्द्रवज्रा,
(घ) सवैया
(घ) 32
उत्तर:
(ख) बरवै

प्रश्न 38.
जिस छन्द में प्रत्येक चरण में क्रमशः जगण, तगण, जगण और दो गुरु वर्ण के क्रम से होते हैं, वह कहलाता है।
अथवा
इस छन्द में चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में ग्यारह वर्ण होते हैं। वर्गों में जगण, तगण, जगण और गुरु-गुरु का क्रम होता है। चरण के अन्त में यति होती है। इस छन्द का नाम है। (2008)
(क) इन्द्रवज्रा
(ख) उपेन्द्रवज्रा
(ग) सवैया
(घ) वसन्ततिलका
उत्तर:
(ख) उपेन्द्रवज्रा

प्रश्न 39.
“राधा नागरि सोइ, मेरी भवबाधा हौं।
श्याम हरित दुति होड़, जा तन की झाई परै।।”
इस पद में छन्द है (2008)
(क) चौपाई
(ख) सोरठा
(ग) दोहा
(घ) इन्द्रवज्रा
उत्तर:
(ख) सोरठा

प्रश्न 40.
माटी कहे कुम्हार से तु क्यों रौंदे मोय।।
एक दिन ऐसा होयगा, मैं दूंगी तोय।।
इसमें छन्द है।
(क) सरोठा
(ख) चौपाई
(ग) दोहा
(घ) इन्द्रवज्रा
उत्तर:
(ग) दोहा

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण लिखिए ।
कुन्द इन्दु सम देह, उमा रमण करुणा अयन।
जाहि दीन पर नेह, बुद्धि राशि शुभ गुण सदन।।। (2016)
उत्तर:
यहाँ अर्द्ध सम छन्द सोरठा है। सोरठा के विषम चरणों (प्रथम एवं तृतीय) में 11.11 और सम चरणों (द्वितीय एवं चतुर्थ) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। तुक विषम चरणों में होता है, जबकि विषम चरणों के अंत में जगण (|ऽ|) का निषेध रहता है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण लिखिए।
“मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झांई परे, श्याम हरित दुति होय।।” (2014)
उत्तर:
यहाँ अर्द्ध सम मात्रिक दोहा छन्द है।। दोहा छन्द के प्रथम एवं तृतीय चरण में 13-13 मात्राएँ और द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके सम चरणों के अन्त में गुरु-लघु आते हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? सप्रमाण स्पष्ट कीजिए
“देवी पूजि पद कमल तुम्हारे।
सुर नर मुनि सब होहि सुखारे।।” (2012)
उत्तर:
यहाँ सम मात्रिक चौपाई छन्द हैं, क्योंकि इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ और अन्त में दो गुरु वर्ण हैं। साथ ही चरण के अन्त में जगण (15) एवं तगण (55) नहीं हैं।’

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? सप्रमाण स्पष्ट कीजिए।
सुनत सुमंगल बैन, मन प्रमोद तन पुलक भर।।
सरद सरोरुह नैन, तुलसी भरे सनेह जल।। (2016, 15, 14, 12, 09)
उत्तर:
यह अर्द्ध सम मात्रिक छन्द हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 11 (ग्यारह) दूसरे और चौथे चरण में 13 (तेरह) मात्राएँ हैं। इसमें चार चरण हैं। सोरठा छन्द है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण लिखिए।
खग वृंद सोता है अतः कल, कल नहीं होता वहाँ।
बस मन्द मारुत का गमन ही, मौन है खोता जहाँ।।
इस भौति धीरे से परस्पर, कह सजगता की कथा।।
यों दीखते हैं वृक्ष ये हों, विश्व के प्रहरी यथा।।।
उत्तर:
यह सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसमें प्रत्येक चरण में 16 और 12 पर यति होती है। इसके प्रत्येक चरण के अन्त में रगण (IऽI) आता हैं। इस आधार पर इन पंक्तियों में हरिगीतिका छन्द है।।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? सप्रमाण स्पष्ट कीजिए।
कृतघन कतहुँ न मानहीं, कोटि करौ जो कोय।
सरबस आगे राखिए, तऊ न अपनो होय।।।
तऊ न अपनो होय, भले की भली न मौने।।
काम काठि चुप रहे, फेरि तिहि नहिं पहचानै।।
कह ‘गिरिधर कविराय’ रहत नित ही निर्भय मन।
मित्र शुत्र ना एक, दाम के लालच कृतघन।।
उत्तर:
यह एक विषम मात्रिक छन्द हैं। इसमें छः चरण होते हैं। एक दोहे और एक रोले के योग से बनता है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। प्रथम चरण के प्रथम शब्द की अन्तिम चरण के अन्तिम शब्द के रूप में तथा द्वितीय चरण के अन्तिम अर्द्ध-चरण की तृतीय चरण के प्रारम्भिक अर्द्धचरण के रूप में आवृत्ति होती है। अत: यह कुण्डलिया छन्द हैं।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है। उसका लक्षण लिखिए।
अवधि शिला का इर पर, था गुरु भार।
तिल तिल काट रही थी, दृग जल धार।।
उत्तर:
यह अर्थ सम मात्रिक बरवै छन्द है। इसके पहले और तीसरे चरणों में 12-12 मात्राएँ होती हैं, दूसरे और चौथे चरणों में 7-7 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अन्त में जगण (|ऽ|) आवश्यक होता है।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण लिखिए।
थे दीखते परमवृद्ध नितान्त रोगी,
या थी नवागत वधू गृह में दिखाती।
कोई न और इनको तज़ के कहीं था,
सूने सभी सदन गोकुल के हुए थे।।। (2016, 13, 12)
उत्तर:
यह समवृर्णवृत्त वसन्ततिलका नामक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 14 वर्ण होते हैं और प्रत्येक चरण में एक तगण (ऽऽ|), एक भगण (ऽ||), दो जगण (|ऽ|) और अन्त में दो गुरु होते हैं। इसमें 8, 6 वर्षों पर यति होती है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण लिखिए।
भागीरथी रूप अनूपकारी, चन्द्राननी लोचन कंजधारी।
वाणी बखानी सुख तत्व सोध्यौ, रामानुजै आनि प्रबोध बोध्यौ। (2016, 15, 14, 13, 12)
उत्तर:
यह समवर्णवृत्त इन्द्रवज्रा छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में दो तगण (ऽऽ|), एक जगण (|ऽ|) और दो गुरु होते हैं। इस प्रकार इसके प्रत्येक चरण में कुल 11 वर्ण होते हैं।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण भी लिखिए।
बंदऊँ गुरु पद पदुम पागा, सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।
अमिय मूरिमय चूरन चारु, समन सकल भव रुज परिमारु।।
उत्तर:
यह सम मात्रिक छन्द चौपाई है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण (|ऽ|) और तगण (ऽऽ|) के प्रयोग का निषेध होता है अर्थात् चरण के अन्त में गुरु (ऽ) लघु (|) नहीं होने चाहिए। दो गुरु (ऽऽ), दो लघु (||), लघु-गुरु (|ऽ) हो सकते हैं।

प्रश्न 11.
यति का प्रयोग कहाँ किया जाता है?
उत्तर:
कभी कभी छन्द का पाठ करते समय, कहीं-कहीं क्षण भर को रुकना पड़ता है, उसे यति कहते हैं।

प्रश्न 12.
गण किसे कहते हैं? गण कितने हैं?
उत्तर:
लघु-गुरु क्रम से तीन वर्षों के समुदाय को गण कहते हैं। गणों की संख्या आठ है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण भी लिखिए। (2014, 13, 12, 11, 10)
नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन।।
करउ सो मम उर धाम, सदा छीर सागर सयन।।
उत्तर:
यह अर्द्ध सम मात्रिक छन्द सोरठा है। इसके प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। पहले और तीसरे चरण के अन्त में गुरु-लघु आते हैं और कहीं-कहीं तुक भी मिलती है। यह दोहा छन्द का उल्टा होता है।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण लिखिए।
लसत मंजु मुनि मण्डली, मध्य सीय रघुचन्दु।
ग्यान सभा जनु तनु धरें, भगति सच्चिदानन्दु।।
उत्तर:
यह अर्द्ध सम मात्रिक छन्द दोहा है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ, दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके विषम चरणों के शुरू में जगण (|ऽ|) नहीं होना चाहिए। सम चरणों के अन्त में गुरु (ऽ) और लघु (|) नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा ऊन्द है? उसका लक्षण भी लिखिए।
प्रिय पति वह मेरा प्राण-प्यारा कहाँ है?
दुःख-जलनिधि-डूबी का सहारा कहाँ है?
लख मुख जिसका मैं आज लौ जी सकी हैं।
वह हृदय हमारा नेत्र-तारा कहाँ है?
उत्तर:
यह समवर्णवृत्त मालिनी छन्द है। इसमें 15 वर्ण होते हैं और इसके . प्रत्येक चरण में नगण (|||), मगण (ऽऽऽ), यगण (|ऽऽ) होते हैं और 8-7 वर्गों पर यति होती है।

प्रश्न 16.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा छन्द है? उसका लक्षण लिखिए।
चले बली पावन पादुका लै,
प्रदक्षिणा राम सियाहु को है।
गए ते नन्दीपुर बास कीन्हों,
सबन्धु श्रीरामहिं चित्त दीन्हों।।
उत्तर:
यह समवर्ण-वृत्त छन्द उपेन्द्रवज्रा है। इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं और वे जगण (|ऽ|), तगण (ऽऽ|), जगण और दो गुरु के क्रम से होते हैं।

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