UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 10 Non-Alignment (गुट-निरपेक्षता) are part of UP Board Solutions for Class 12 Civics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 10 Non-Alignment (गुट-निरपेक्षता).
Board | UP Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Civics |
Chapter | Chapter 10 |
Chapter Name | Non-Alignment (गुट-निरपेक्षता) |
Number of Questions Solved | 29 |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 10 Non-Alignment (गुट-निरपेक्षता)
विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)
प्रश्न 1.
गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
या
गुट-निरपेक्षता का महत्त्व स्पष्ट कीजिए। [2010, 16]
या
गुट-निरपेक्षता का क्या अर्थ है? वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के सन्दर्भ में उसकी प्रासंगिकता का परीक्षण कीजिए। [2015]
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [ 2012, 13, 15]
या
गुट-निरपेक्षता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। वर्तमान समय में यह कहाँ तक प्रासंगिक [2010, 11]
या
गुट-निरपेक्षता पर एक निबन्ध लिखिए। [2008]
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए [2016]
उत्तर
गुट-निरपेक्षता
द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् सम्पूर्ण विश्व दो गुटों में बँट गया। एक गुट का नेतृत्व अमेरिका ने किया और दूसरे गुट का सोवियत संघ (रूस) ने। दोनों गुटों में अनेक कारणों को लेकर भीषण शीतयुद्ध प्रारम्भ हो गया। यूरोप और एशिया के अधिकांश देश इस गुटबन्दी में फंस गये और वे किसी-न-किसी गुट में सम्मिलित हो गये। 15 अगस्त, 1947 को जब भारत स्वतन्त्रं हुआ तो भारत के नेताओं को अपनी विदेश नीति का निर्माण करने का अवसर प्राप्त हुआ। भारत की विदेश नीति के निर्माता पं० जवाहरलाल नेहरू थे। उन्होंने अपनी विदेश-नीति का आधार गुट-निरपेक्षता (NonAlignment) को बनाया। उन्होंने स्पष्ट किया कि “हम किसी गुट में सम्मिलित नहीं हो सकते, क्योकि हमारे देश में आन्तरिक समस्याएँ इतनी अधिक हैं कि हम दोनों गुटों से सम्बन्ध बनाये बिना उन्हें सुलझा नहीं सकते। धीरे-धीरे गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने वाले देशों की संख्या में वृद्धि होती गयी। सन् 1961 में बेलग्रेड में हुए गुट-निरपेक्ष देशों के प्रथम शिखर सम्मेलन में केवल 25 देशों ने भाग लिया था, किन्तु अब इनकी संख्या 120 हो गयी है।
गुट-निरपेक्षता का अर्थ व परिभाषा
गुट-निरपेक्षता की कोई सर्वमान्य व सर्वसम्मत परिभाषा उपलब्ध नहीं है, फिर भी गुटनिरपेक्षता की प्रकृति, तत्त्व तथा अर्थ के आधार पर इसकी परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है-“किसी भी राजनीतिक अथवा सैनिक गुट से संलग्न हुए बिना स्वतन्त्रता, शान्ति तथा सामाजिक न्याय के कार्य में योगदान देना ही गुट-निरपेक्षता है।” गुट-निरपेक्षता की नीति से अभिप्राय है। विभिन्न शक्तियों या गुटों से अप्रभावित रहते हुए अपनी स्वतन्त्र नीति अपनाना और राष्ट्रीय हितों के अनुसार न्याय का समर्थन देना।
कुछ लोग गुट-निरपेक्षता की नीति को, ‘तटस्थता’ की संज्ञा देते हैं, जो उचित नहीं है। इस सम्बन्ध में 1949 ई० में पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिकी जनता के समक्ष स्पष्ट रूप से कहा था-“जब स्वतन्त्रता के लिए संकट उत्पन्न हो, न्याय पर आघात पहुँचे या आक्रमण की घटना घटित हो, तब हम तटस्थ नहीं रह सकते और न ही हम तटस्थ रहेंगे।”
जॉर्ज लिस्का ने लिखा है कि “किसी विवाद के सन्दर्भ में यह जानते हुए कि कौन सही है। और कौन गलत, किसी का पक्ष न लेना ‘तटस्थता’ है, किन्तु गुट-निरपेक्षता का अर्थ है सही और गलत में भेद करना तथा सदैव सही नीति का समर्थन करना।
गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख तत्त्व
गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख तत्त्व निम्नवत् हैं-
1. राष्ट्रवाद की भावना – एशियाई-अफ्रीकी देशों ने राष्ट्रवाद की भावना के आधार पर एक लम्बे संघर्ष के बाद यूरोपियन साम्राज्यवाद से मुक्ति प्राप्त की थी। ऐसी स्थिति में सबसे पहले भारत और बाद में अन्य देशों ने स्वाभाविक रूप से सोचा कि किसी शक्ति गुट की सदस्यता को स्वीकार कर लेने पर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वे उसके पिछलग्गू बन जायेंगे, जिससे उनके आत्म-सम्मान, राष्ट्रवाद और सम्प्रभुता को आघात पहुँचेगा। इस प्रकार राष्ट्रवाद की भावना ने उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में स्वतन्त्र मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित किया।
2. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध – भारत और अन्य एशियाई-अफ्रीकी देशों ने लम्बे समय तक साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के अत्याचार भोगे थे और साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के प्रति उनकी विरोध भावना बहुत अधिक तीव्र थी। उन्होंने सही रूप में यह महसूस किया कि दोनों ही शक्ति गुटों के प्रमुख नव-साम्राज्यवादी हैं। तथा साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध करने के लिए शक्ति गुटों से अलग रहना बहुत अधिक आवश्यक है।
3. शान्ति के लिए तीव्र इच्छा – लम्बे संघर्ष के बाद स्वतन्त्रता प्राप्त करने वाले एशियाई अफ्रीकी देशों ने सत्य रूप में महसूस किया कि यूरोपीय देशों की तुलना में उनके लिए शान्ति बहुत अधिक आवश्यक है। उन्होंने यह भी सोचा कि उनके लिए युद्ध और तनाव की सम्भावना बहुत कम हो जायेगी, यदि वे अपने आपको शक्ति गुटों से अलग रखें।
4. आर्थिक विकास की लालसा – नवोदित राज्य शस्त्रास्त्रों की प्रतियोगिता से बचकर अपने देश का आर्थिक पुनर्निर्माण करना चाहते हैं। आर्थिक पुनर्निर्माण तीव्र गति से हो सके, इसके लिए विकसित राष्ट्रों से आर्थिक और तकनीकी सहयोग प्राप्त करना जरूरी है। गुट-निरपेक्षता का मार्ग अपनाकर ही कोई राष्ट्र बिना शर्त विश्व की दोनों महाशक्तियों-साम्यवादी और पूँजीवादी गुटों से आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्राप्त कर सकता था।
5. जातीय एवं सांस्कृतिक पक्ष – गुट-निरपेक्षता की नीति की एक प्रेरक तत्त्व जातीय एवं सांस्कृतिक पक्ष’ भी है। गुट-निरपेक्षता की नीति के अधिकांश समर्थक यूरोपियन राष्ट्रों का शोषण भुगत चुके हैं और अश्वेत जाति के हैं। इनमें सांस्कृतिक एवं जातीय समानताएँ भी विद्यमान हैं और कमजोर ही सही, लेकिन समानताओं ने उन्हें शक्ति गुटों से अलग रहने के लिए प्रेरित किया है।
गुट-निरपेक्षता का महत्त्व
वर्तमान विश्व के सन्दर्भ में गुट-निरपेक्षता का व्यापक महत्त्व है, जिसे निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
- गुट-निरपेक्षता ने तृतीय विश्वयुद्ध की सम्भावना को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया
- गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने साम्राज्यवाद का अन्त करने और विश्व में शान्ति व सुरक्षा बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए हैं।
- गुट-निरपेक्षता के कारण ही विश्व की महाशक्तियों के मध्य शक्ति सन्तुलन बना रहा।
- गुट-निरपेक्ष सम्मेलनों ने सदस्य राष्ट्रों के मध्य होने वाले युद्धों एवं विवादों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान किया है।
- गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने विज्ञान व तकनीकी के क्षेत्र में एक-दूसरे को पर्याप्त सहयोग दिया है।
- गुट निरपेक्षता ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को व्यापक रूप से प्रभावित किया है।
- गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने विश्व के परतन्त्र राष्ट्रों को स्वतन्त्र कराने और रंग-भेद की नीति का विरोध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- यह आन्दोलन निर्धन तथा पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर बहुत बल दे रहा है।
- गुट-निरपेक्ष आन्दोलन राष्ट्रवाद को अन्तर्राष्ट्रवाद में परिवर्तित करने तथा द्विध्रुवीकरण को बहु-केन्द्रवाद में परिवर्तित करने का उपकरण बना।
- इसने सफलतापूर्वक यह दावा किया कि मानव जाति की आवश्यकता पूँजीवाद तथा साम्यवाद के मध्य विचारधारा सम्बन्धी विरोध से दूर है।
- इसने सार्वभौमिक व्यवस्था की तरफ ध्यान आकर्षित किया तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में शीत युद्ध की भूमिका को कम करने तथा इसकी समाप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- गुट-निरपेक्षता नए राष्ट्रों के सम्बन्धों में स्वतन्त्रापूर्वक विदेशों से सम्बन्ध स्थापित करके तथा सदस्यता प्रदान करके उनकी सम्प्रभुता की सुरक्षा का साधन बनी है।
गुट-निरपेक्षता का मूल्यांकन
गुटनिरपेक्षता पर आधारित विचारधारा का उदय उन परिस्थितियों में हुआ जब सम्पूर्ण विश्व दो गुटों में विभक्त हो गया था। इस प्रकार की स्थिति, सम्पूर्ण विश्व के लिए किसी भी समय खतरनाक सिद्ध हो सकती थी। यह गुटनिरपेक्षता पर आधारित नीति का ही परिणाम है कि वर्तमान विश्व तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका को कम करने में काफी सीमा तक सफल हो सका है। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के माध्यम से, विश्वयुद्ध को आमन्त्रित करने वाली प्रत्येक स्थिति की प्रबल विरोध किया जाता रहा है और विश्व-शान्ति की दिशा में अनेक सराहनीय प्रयास किए गए हैं। साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के उन्मूलन, विभिन्न देशों में स्वतन्त्रता के लिए किए गए संघर्ष को सफल बनाने, रंगभेद की नीति का अन्त करने, विश्व में शक्ति सन्तुलन बनाए रखने तथा पिछड़े देशों की प्रगति हेतु समन्वित रूप से प्रयास करने की दिशा में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की अनेक महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ रही हैं। यही नहीं, पारस्परिक निर्भरता के आधुनिक युग में एक-दूसरे की प्रगति हेतु सहयोग प्राप्त करने तथा विश्व को भावी उपनिवेशवादी शक्तियों के ध्रुवीकरण से बचाए रखने की दृष्टि से भी गुटनिरपेक्षता का अस्तित्व बने रहना परम आवश्यक है। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् यद्यपि गुटनिरपेक्षता की नीति पर प्रश्न-चिह्न लग गया है परन्तु वर्तमान समय में भी इसके सदस्य राष्ट्रों में सहयोगात्मक की भावना प्रफुल्लित हो रही है। इसके सदस्य राष्ट्रों की संख्या कम होने के स्थान पर निरन्तर बढ़ती जा रही है।
प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत के योगदान का परीक्षण कीजिए।
उत्तर
गुट-निरपेक्षता में भारत का योगदान
गुट-निरपेक्षता के विकास में भारत का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत की विदेश नीति का प्रमुख सिद्धान्त ही गुट-निरपेक्षता है। सर्वप्रथम भारत ने ही एशिया तथा अफ्रीका के नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्रों को परस्पर एकता और सहयोग के सूत्र में बाँधने का प्रयास किया था। ‘बांडुंग सम्मेलन’ में भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस प्रकार भारत गुट-निरपेक्षता का अग्रणी रहा है। पं० जवाहरलाल नेहरू का कथन था कि “चाहे कुछ भी हो जाए, हम किसी भी देश के साथ सैनिक सन्धि नहीं करेंगे। जब हम गुट-निरपेक्षता का विचार छोड़ते हैं तो हम अपना संसार छोड़कर हटने लगते हैं। किसी देश से बँधना-आत्म-सम्मान का खोना तथा अपनी बहुमूल्य नीति का अनादर करना है।’ पं० नेहरू के बाद श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने गुट-निरपेक्षता के विकास को अग्रसरित किया। प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने सातवें सम्मेलन (1983) में नई दिल्ली में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की अध्यक्षता ग्रहण की थी। श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने अपने एक भाषण में कहा था कि “गुट-निरपेक्षता अपने आप में एक नीति है। यह केवल एक लक्ष्य ही नहीं, इसके पीछे उद्देश्य यह है कि निर्णयकारी स्वतन्त्रता और राष्ट्र की सच्ची भक्ति तथा बुनियादी हितों की रक्षा की जाए।
प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी भी गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को प्रभावशाली बनाने के लिए कृतसंकल्प थे। 15 अगस्त, 1986 को श्री राजीव गाँधी ने कहा था कि “भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति के कारण ही भारत का विश्व में आदर है। भारत बोलता है तो वह आवाज सौ करोड़ लोगों की होती है। गुट-निरपेक्षता के मार्ग पर चलकर भारत आज बिना किसी दबाव के बोलता है। उसके साथ संसार के दो-तिहाई गुट-निरपेक्ष देशों की आवाज होती है।”
नवे शिखर सम्मेलन (सितम्बर 1989 ई०) में प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी ने कहा था कि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन तभी गतिशील रह सकता है, जब यह उन्हीं सिद्धान्तों पर चले, जिन पर चलने का वायदा यहाँ 1961 ई० में प्रथम सम्मेलन में सदस्यों ने किया था। ग्यारहवें शिखर सम्मेलन में भारत ने दो बातों के प्रसंग में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की। भारत ने आणविक शस्त्रों पर आणविक शाक्तियों के एकाधिकार का विरोध किया। बारहवें सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान की आणविक विस्फोट के लिए आलोचना की गयी। सम्मेलन में सम्मेलन के अध्यक्ष नेल्सन मण्डेला द्वारा कश्मीर समस्या का उल्लेख किये जाने पर भारत द्वारा कड़ी आपत्ति की गयी। भारत की आपत्ति को दृष्टि में रखते हुए नेल्सन मण्डेला ने अपना वक्तव्य वापस ले लिया। तेरहवें शिखर सम्मेलन में प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता हेतु भी पहल की। प्रधानमन्त्री वी०पी० सिंह भी गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के प्रबल समर्थक रहे हैं और तत्पश्चात् प्रधानमन्त्री चन्द्रशेखर भी। इस आन्दोलन को सफल बनाने के लिए प्रयत्नशील थे। प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने भी इसी नीति को जारी रखा। इसके बाद प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार देश की सुरक्षा और अखण्डता के मुद्दे पर समयानुसार विदेश नीति निर्धारित करने के लिए दृढ़ संकल्प थी। वर्तमान में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी भी इसी नीति को जारी रखे हुए हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)
प्रश्न 1.
गुट-निरपेक्षता की प्रेरक शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
गुटनिरपेक्षता की प्रेरक शक्तियाँ
गुट निरपेक्षता की प्रेरक शक्तियाँ निम्नलिखित हैं-
- गुट निरपेक्षता की प्रमुख प्रेरक-शक्ति राष्ट्रवाद की भावना है। राष्ट्रवाद तथा गुट-निरपेक्षता के मध्य सहयोग से स्पष्ट है कि नवोदित राष्ट्रों के नेता अपनी गुट-निरपेक्षता के समर्थन में राष्ट्रवाद का सहारा लेते रहे हैं।
- गुट-निरपेक्षता की दूसरी प्रेरक-शक्ति उपनिवेशवाद का विरोध करना है। बाण्डंग सम्मेलन में इस तथ्य को स्वीकार किया गया था कि यदि किसी राष्ट्र को सैनिक-संगठन में सम्मिलित होने को बाध्य करने वाली कोई स्थिति नहीं है, तो उपनिवेश विरोधी भावना उसे गुट-निरपेक्षता की दिशा में प्रेरित करेगी।
- गुट-निरपेक्षता की तीसरी प्रेरक-शक्ति नवोदित राज्यों की अर्द्ध-विकसित अवस्था है। इन राष्ट्रों की रुचि शास्त्रों की प्रतियोगिता से बचकर आर्थिक पुनर्निर्माण में अधिक है और केवल गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाकर ही ये राष्ट्र शक्तिशाली गुटों से आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं। गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का तर्क है कि उन्हें जो भी सहायता विकसित राष्ट्रों से प्राप्त हो रही है वह उनका अधिकार है, न कि उन पर कोई अहसान।
- गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने का एक कारण जातीय तथा सांस्कृतिक पहलू भी है। इस नीति के समर्थक मुख्यत: अफ्रीकी तथा एशियाई देश हैं, जिनका यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा आर्थिक शोषण किया गया था और इन पर राजनीतिक प्रभुत्व रहा। ये गुट-निरपेक्ष राष्ट्र अश्वेत हैं और जातीय तथा सांस्कृतिक दृष्टि से उनमें बहुत कुछ समानता है। वे समान रूप से किसी बड़ी शक्ति के अधीन नहीं रहना चाहते हैं।
प्रश्न 2.
आज के विश्व की बदलती हुई परिस्थितियों में गुट-निरपेक्षता के भविष्य का आकलन कीजिए।
उत्तर
विश्व की बदलती हुई परिस्थितियों में गुट-निरपेक्षता का स्वरूप भी बदला है और इसका महत्त्व पहले से अधिक हो गया है। गुट-निरपेक्षता विश्व राजनीति में राष्ट्रों के लिए एक नये विकल्प के रूप में निश्चय ही स्थायी रूप धारण कर चुकी है। इसने विशेषतया राष्ट्र-समाज के छोटे-छोटे और अपेक्षाकृत कमजोर सदस्यों के सन्दर्भ में राष्ट्रों की स्वतन्त्रता और समता बनाये रखने में योग दिया है। यही कारण है कि आज गुट-निरपेक्षता का पालन करने वाले राष्ट्रों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र में गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की आवाज प्रबल बन सकी है।
कहा जाता है कि गुट-निरपेक्षता को प्रादुर्भाव शीतयुद्ध के परिप्रेक्ष्य में हुआ था और शीतयुद्ध की समाप्ति के साथ गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अप्रासंगिक हो गया है तथा इसको औचित्य नहीं रह गया है।
वास्तव में, वर्तमान समय में शीतयुद्ध का तो अन्त हो गया है, लेकिन बदलती हुई अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अनेक क्षेत्रों में तनाव की स्थितियाँ बनी हुई हैं। महाशक्ति के रूप में अमेरिका तथा विश्व के अन्य कुछ शक्तिशाली देश आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में ‘नव-साम्राज्यवाद की नीति अपनाने की ओर उन्मुख हैं। इस स्थिति में आर्थिक रूप से पिछड़े हुए गुट-निरपेक्ष देशों को बचाने के लिए यह आवश्यक है कि विकसित और विकासशील देशों के बीच सार्थक वार्ता के लिए दबाव डाला जाए और विकासशील देशों के साथ पारस्परिक सहयोग सुदृढ़ और सक्रिय बनाया जाए। इसके लिए निर्गुट आन्दोलन एक अपरिहार्य मंच है।
प्रश्न 3.
गुट-निरपेक्षता तथा तटस्थता के मध्य अन्तर बताइए।
उत्तर
कुछ विद्वान गुट-निरपेक्षता को तटस्थता की स्थिति मानते हैं, परन्तु यह तटस्थता से बिल्कुल पृथक् नीति है। तटस्थता तथा गुट-निरपेक्षता की यदि गम्भीरता से तुलना की जाए तो निम्नलिखित अन्तर सामने आते हैं-
- तटस्थता दो आक्रामकों तथा उनके मध्य संघर्ष के प्रति उदासीनता के दृष्टिकोण का दावा करता है। गुट-निरपेक्षता ऐसा कुछ नहीं करती है। इसके विपरीत, यह प्रत्येक समस्या का उसके गुण के आधार पर न्याय करती है तथा अपने स्वतन्त्र मत की घोषणा करती है।
- तटस्थता से आशय एकाकीपन की अवस्था से है, जबकि गुट-निरपेक्षता विकासशील देशों की जनता को अपना भविष्य निर्मित करने में सहायता देती है। न तो वह स्विट्जरलैण्ड या स्वीडन की स्थायी तटस्थता है और न अमेरिका का सकारात्मक एकाकीपन है।
- गुट-निरपेक्षता तटस्थता नहीं है, क्योंकि वह अपने दृष्टिकोणों तथा विचारों में सकारात्मक है। गुट-निरपेक्षता से आशय अन्तर्ग्रस्त होने से मुक्ति नहीं है, बल्कि यह अन्तर्ग्रस्त होने की अपरिहार्यता से उत्पन्न होती है।
- स्विस सरकार के लिए विपरीत गुट-निरपेक्ष राष्ट्र बिना गुट का निर्माण किए हुए विश्व की समस्याओं पर सहयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, कांगो, स्वेज, क्यूबा, खाड़ी युद्ध संकट आदि।
- तटस्थता में जहाँ नकारात्मक प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है और यह केवल एक वास्तविक युद्ध की अवधि तक ही सीमित है, वहाँ गुट-निरपेक्षता का विचार सक्रिय, सकारात्मक तथा निश्चित है।
तटस्थता का परिवर्तनशील सिद्धान्त गुट-निरपेक्षता के विचार को शीतयुद्ध अथवा परमाणु सन्धि की अवधि में ही अपने अन्तर्गत समाहित किए हुए है। संक्षेप में, गुट-निरपेक्षता एक सकारात्मक तटस्थता ही है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)
प्रश्न 1.
गुट-निरपेक्षता की नीति की चार विशेषताएँ लिखिए। [2007, 14]
या
गुट-निरपेक्षता के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर
गुट-निरपेक्षता के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ)
गुट-निरपेक्षता के प्रमुख लक्षण अथवा विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- शक्ति गुटों से पृथक् रहना और महाशक्तियों के साथ किसी प्रकार का सैनिक समझौता न करना।
- स्वतन्त्र विदेश नीति का निर्धारण करना।
- शान्ति एवं सद्भावना की नीति का विस्तार करना।
- साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, शोषण एवं आधिपत्य का विरोध करना।
- विकासशील नीति का अनुसरण करना।
- गुट-निरपेक्षता आन्दोलन संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों में सहयोगात्मक भूमिका का निर्वाह करता है।
- गुट-निरपेक्षता एक सकारात्मक तटस्थता है।
प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के चार आधारभूत तत्त्वों का उल्लेख कीजिए। [2010]
या
गुट-निरपेक्षता के आवश्यक तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
सन् 1961 में बेलग्रेड में आयोजित गुट-निरपेक्ष देशों के प्रथम शिखर सम्मेलन में असंलग्नता की नीति के कर्णधारों-नेहरू, नासिर और टीटो ने इस नीति के 5 आवश्यक (आधारभूत) तत्त्व माने हैं, जो निम्नलिखित हैं-
- सम्बद्ध देश स्वतन्त्र नीति का अनुसरण करता हो;
- वह उपनिवेशवाद का विरोध करता हो;
- वह किसी भी सैनिक गुट का सदस्य न हो;
- उसने किसी भी महाशक्ति के साथ द्विपक्षीय सैनिक समझौता नहीं किया हो;
- उसने किसी भी महाशक्ति को अपने क्षेत्र में सैनिक अड्डा बनाने की स्वीकृति न दी हो।
उपर्युक्त आधारभूत तत्त्वों के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सैनिक गुट की सदस्यता या किसी भी महाशक्ति के साथ द्विपक्षीय सैनिक समझौते से दूर रहते हुए शान्ति, न्याय और राष्ट्रों की समानता के सिद्धान्त पर आधारित स्वतन्त्र रीति-नीति का अवलम्बन करना ही गुट-निरपेक्षता है।”
प्रश्न 3.
गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रेरक तत्त्व के रूप में शीतयुद्ध का वर्णन कीजिए।
उत्तर
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों के बीच मतभेदों की एक ऐसी खाई उत्पन्न हो गयी थी और दोनों गुट एक-दूसरे के विरोध में इस प्रकार सक्रिय थे कि इसे शीतयुद्ध का नाम दिया गया। शीतयुद्ध के इस वातावरण में एशिया और अफ्रीका के नव-स्वतन्त्र राष्ट्रों ने किसी भी पक्ष का समर्थन न करके पृथक् रहने का निर्णय किया। शीतयुद्ध से पृथक् रहने की नीति ही आगे चलकर गुट-निरपेक्षता के नाम से पुकारी जाने लगी।
प्रश्न 4.
गुट-निरपेक्ष नीति का सार है ‘स्वतन्त्र विदेश-नीति’। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
गुट-निरपेक्षता का अभिप्राय यह है कि सम्बद्ध देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में किसी शक्ति गुट के साथ बँधा हुआ नहीं है, अपितु उसका स्वतन्त्र पथ है जो न्याय, सत्य, शान्ति और औचित्य पर आश्रित है। जिन देशों ने गुट-निरपेक्षता का मार्ग चुना है वे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में किसी के पिछलग्गू नहीं होते, वरन् स्वयं अपनी दिशा का निर्धारण करते हैं। अल्जीरिया के प्रधानमन्त्री बिन बिल्लाह ने स्पष्ट कहा था, “हम किसी से बँधे नहीं …….. गुट| निरपेक्षता से भी नहीं।’
प्रश्न 5.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की चार उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के किन्हीं दो लाभों का उल्लेख कीजिए। [2008]
उत्तर
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की चार उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं-
- गुट निरपेक्षता को दोनों गुटों द्वारा मान्यता,
- निरस्त्रीकरण और अस्त्र-नियन्त्रण की दिशा में प्रगति,
- शीतयुद्ध की तीव्रता में कमी तथा
- संयुक्त राष्ट्र संघ के स्वरूप को रूपान्तरित करना।
प्रश्न 6.
वर्तमान में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन किन चार क्षेत्रों में बल दे रहा है?
उत्तर
वर्तमान में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन निम्नलिखित चार क्षेत्रों में बल दे रहा है-
- नवीन अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की माँग करना।
- आणविक निरस्त्रीकरण के लिए दबाव बनाना।
- विकसित और विकासशील देशों के बीच सार्थक वार्ता के लिए दबाव डालना।
- सुरक्षा परिषद् का विस्तार, विशेषता या परिषद् के स्थायी सदस्यों की संख्या में वृद्धि।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1.
गुट-निरपेक्षता के कर्णधार कौन थे?
उत्तर
भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू गुट-निरपेक्षता के कर्णधार और प्रणेता थे।
प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्षता की त्रिमूर्ति में कौन-कौन लोग थे?
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के दो संस्थापक नेताओं के नाम बताइए। [2009, 11, 13]
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के किसी एक संस्थापक का नाम लिखिए। [2013]
उत्तर
भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टोटो तथा मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर।
प्रश्न 3.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
- शक्तिशाली गुटों से पृथक् रहना तथा सैन्य गुटों में सम्मिलित न होना तथा
- शान्ति की नीति का पालन करना।
प्रश्न 4.
गुट-निरपेक्षता और तटस्थता में अन्तर बताइए।
उत्तर
किसी विवाद में यह जानते हुए कि कौन सही है तथा कौन गलत, किसी का पक्ष न लेना तटस्थता कहलाती है, किन्तु गलत और सही में भेद करते हुए सदैव सही का पक्ष लेना गुटनिरपेक्षता है।
प्रश्न 5.
गुट-निरपेक्ष से क्या आशय है?
उत्तर
गुट निरपेक्ष से आशय है–सैनिक गुटों से अलग रहते हुए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में स्वतन्त्र नीति अपनाना।
प्रश्न 6.
NAM से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
NAM का अर्थ है- Non-Aligned Movement अर्थात् गुट-निरपेक्ष आन्दोलन।
प्रश्न 7.
तेरहवाँ गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन कहाँ आयोजित किया गया?
उत्तर
तेरहवाँ गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन कुआलालम्पुर (मलेशिया–फरवरी, 2003 ई०) में आयोजित किया गया था।
प्रश्न 8.
दो गुट-निरपेक्ष देशों के नाम बताइए। [2010, 11]
उत्तर
- भारत तथा
- मिस्र।
प्रश्न 9.
उस भारतीय का नाम लिखिए जो गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का संस्थापक था। [2011]
उत्तर
पं० जवाहरलाल नेहरू।
प्रश्न 10.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रथम शिखर सम्मेलन किस नगर और किस देश में हुआ?
उत्तर
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रथम सम्मेलन बेलग्रेड नामक नगर में हुआ, जो यूगोस्लाविया की राजधानी है।
प्रश्न 11.
सन् 2006 में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का शिखर सम्मेलन कहाँ हुआ था? [2016]
उत्तर
हवाना (क्यूबा) में।
बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)
1. प्रथम गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ था- [2008]
या
असंलग्न देशों की प्रथम बैठक हुई थी-
(क) 1945 ई० में
(ख) 1950 ई० में
(ग) 1961 ई० में
(घ) 1962 ई० में
2. प्रथम गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था- [2007, 08, 13, 14]
(क) काहिरा, 1964 में
(ख) हवाना, 1979 में
(ग) बेलग्रेड, 1961 में
(घ) लुसाका, 1970 में
3. दसवाँ गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था-
(क) हरारे में।
(ख) जकार्ता में
(ग) कार्टाजेना में
(घ) डरबन में
4. तेरहवाँ गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था-
(क) नयी दिल्ली में
(ख) कुआलालम्पुर में
(ग) डरबन में
(घ) कोलम्बो में
5. निम्नलिखित नेताओं में से कौन गुट-निरपेक्ष आन्दोलन से सम्बन्धित नहीं है? [2007, 10, 12, 15]
(क) नेहरू
(ख) नासिर
(ग) टीटो
(घ) स्टालिन
6. सोलहवाँ गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन कहाँ सम्पन्न हुआ? [2013]
(क) बेलग्रेड
(ख) नई दिल्ली
(ग) डरबन
(घ) तेहरान
7. वर्तमान समय में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में शामिल राष्ट्रों की संख्या कितनी है? [2016]
(क) 114
(ख) 116
(ग) 120
(घ) 124
उत्तर
- (ग) 1961 ई० में,
- (ग) बेलग्रेड, 1961 में,
- (ख) जकार्ता में,
- (ख) कुआलालम्पुर में,
- (घ) स्टालिन,
- (घ) तेहरान,
- (ग) 120.
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