UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi आर्थिक निबन्ध

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi आर्थिक निबन्ध part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi आर्थिक निबन्ध.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name आर्थिक निबन्ध
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi आर्थिक निबन्ध

1. ग्रामीण रोजगार योजनाएँ (2016)
संकेत विन्दु भूमिका, ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार द्वारा बनाई गई नवीन योजनाएँ, उपसंहार।

भूमिका स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत के सामने एक बड़ी चुनौती थीप्रामीणों की दशा सुधारने के लिए उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करना, क्योंकि किसानों को समृद्ध किए बिना देश की पूर्ण समृद्धि की कल्पना नहीं की जा सकती थी। देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने भी कहा है-“जब तक देश के किसान खुशहाल नहीं होंगे तब तक राष्ट्र एवं समाज का पूर्ण विकास नहीं हो सकता।” उस समय देश के लिए अन्न उपजाने वाले किसान कृषि कार्यों के लिए पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर थे। सूखा, अतिवृष्टि, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाएँ आने पर किसानों की दशा अति दयनीय हो जाती थी और उनके रोजगार ठप पड़ जाते थे।

ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार द्वारा बनाई गई नवीन योजनाएँ स्वतन्त्र भारत में किसानों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में समय-समय पर कई रोजगार योजनाओं व कार्यक्रमों को मूर्त रूप दिया गया, जिनमें ग्रामीण मज़दूर रोजगार कार्यक्रम, मनरेगा, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना, काम के बदले अनाज कार्यक्रम, स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना आदि प्रमुख हैं। इन विकासोन्मुख योजनाओं व कार्यक्रमों के कारण देश के किसानों की दशा में पहले से बहुत सुधार आया है, परन्तु अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में काफी अधिक बेरोजगारी है, जिसका प्रमुख कारण है—देश की जनसंख्या का दिनों-दिन अत्यधिक तेज गति से बढ़ना।

प्रामीण क्षेत्रों में सरकार द्वारा किए गए महत्त्वपूर्ण प्रयास इस प्रकार है
(i) ग्रामीण मजदूरी रोजगार कार्यक्रम केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष 1960-61 में ग्रामीण जनशक्ति कार्यक्रम के रूप में इस कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। उसके बाद वर्ष 1971-72 के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराए जाने हेतु ग्रामीण रोजगार क्रैश स्कौम, कृषि श्रमिक स्कीम, लघु कृषक विकास एजेन्सी, सूखा संवेदी क्षेत्र कार्यक्रम की आधारशिला रखी गई। वर्ष 1980 में इन सबको सम्मिलित रूप से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम और प्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम में और वर्ष 1993 में इन्हें पुनः विस्तारित कर जवाहर रोजगार योजना में परिवर्तित कर दिया गया। वर्ष 1999.2000 में जवाहर रोजगार योजना को जवाहर ग्राम समृद्धि योजना में शामिल कर लिया गया। वर्ष 2001-02 में इसे सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम एवं वर्ष 2005 में काम के बदले अनाज कार्यक्रम में विलय किया गया। केन्द्र सरकार द्वारा किए गए इन प्रयासों का ग्रामीण रोजगार के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान हैं।

(ii) मनरेगा महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम अर्थात् मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने का एक अधिकार सम्बद्ध कार्यक्रम है। इसका कार्यान्वयन वर्ष 2006 में देश के अत्यन्त पिछड़े 200 जिलों में किया गया। वर्ष 2007 एवं पुनः वर्ष 2008 में इसे विस्तारित कर देश के समस्त जिलों में प्रभावी कर दिया गया। मनरेगा का उद्देश्य इच्छुक बेरोजगार वयस्कों को वर्षभर में कम-से-कम 100 दिनों का निश्चित रोजगार प्रदान करना रखा गया। ग्रामीणों को जीविका प्रदान करने के साथ-साथ इसका उद्देश्य पंचायती राज व्यवस्था को प्रभावी बनाना भी हैं। इस कार्यक्रम के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति श्रम दिवस औसत मजदूरी में
81% की वृद्धि हुई है।

(iii) राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) ग्रामीण विकास मन्त्रालय का एक अति महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2021-22 तक देश के ग्रामीण क्षेत्रों के आठ से दस करोड़ निर्धन परिवारों को लाभ पहुँचाना है। पंचायती राज संस्थाओं को विशेष महत्त्व देने वाले इस मिशन को मार्च, 2014 तक देश के 27 राज्यों सहित पुदुचेरी संघ राज्य क्षेत्र में कार्यान्वित कर दिया गया। इस मिशन की सहायता से अब तक देश के डेढ़ लाख महिला श्रमिकों को लाभान्वित किया जा चुका है। (NRLM) के द्वारा वर्ष 2013-14 के दौरान लगभग तीन लाख स्व सहायता समूहों को मदद पहुँचाई गई और कुल 1,300 से भी अधिक ब्लॉकों को इसके अन्तर्गत लाया गया।

(iv) सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना देश में पूर्व से प्रभावी जवाहर ग्राम समृद्धि योजना और रोजगार आश्वासन योजना को सम्मिलित कर वर्ष 2001 में केन्द्र सरकार द्वारा सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना को कार्यरूप दिया गया। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में खाद्य सुरक्षा प्रदान करना तथा स्थायी परिसम्पत्तियों के माध्यम से रोजगार के अवसर का विस्तार करना है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे लोगों को इस योजना में प्राथमिकता दी गई है। इस योजना में व्यय की जाने वाली राशि को केन्द्र व राज्य सरकारों में 75; 25 में बाँटा गया हैं। वहीं जिला पंचायत, मध्यवर्ती पंचायत एवं ग्राम पंचायतों के मध्य संसाधनों का वितरण 20 : 30 : 50 के आधार पर किया गया है। वर्ष 2004 में सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना के द्वारा उपलब्ध किए जाने वाले संसाधनों को छोड़कर ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से काम के बदले अनाज कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। योजना आयोग द्वारा संचालित इस कार्यक्रम का लक्ष्य देश के सर्वाधिक पिछड़े 150 जिलों में खाद्य सुरक्षा व पूरक दैनिक मजदूरी रोजगार के क्षेत्र को विस्तार देना है।

(v) स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से ऊपर जीवन यापन करने वाले निर्धन लोगों को स्वरोजगार प्रदान करने के उद्देश्य से इस योजना को वर्ष 1999 में प्रारम्भ किया गया। इस योजना के अन्तर्गत गैर-सरकारी संस्थाओं को सुविधा प्रदाता के रूप में सम्मिलित कर स्वयंसेवी सहायता समूहों के विकास एवं पोषण पर ध्यान दिया जाता है। इस योजना द्वारा सरकारी सब्सिडी एवं बैंक ऋण के माध्यम से ग्रामीणों तक सहायता पहुंचाई जाती हैं। कुल परियोजना लागत की 30% दर से दी जाने वाली सब्सिडी की अधिकतम सीमा ₹ 7,500 तक निर्धारित की गई है। सामान्यतः 10-20 सदस्यों के द्वारा स्वयं सहायता समूह का गठन किया जा सकता है। इस योजना के अन्तर्गत अब तक लगभग 22 लाख से भी अधिक स्वयं सहायता समूहों को गठित किया गया है। लाभान्वित होने वाले स्वरोजगारियों में लगभग 45% अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति के लोग एवं लगभग 48% महिलाएँ हैं।

उपसंहार निश्चय ही देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के तमाम साधन उपलब्ध हैं और केन्द्र व राज्य की सरकारों द्वारा समय-समय पर चलाए गए विभिन्न रोजगार सम्बद्ध कार्यक्रमों से बड़ी संख्या में ग्रामीणों को लाभ प्राप्त हुआ है, पर आज भी रोजगार के क्षेत्र में गाँवों की स्थिति दयनीय ही है। सरकारी स्तर पर और प्रभावी एवं लाभप्रद योजनाओं को मूर्त रूप देकर ग्रामीणों की दशा सुधारी जा सकती है, पर इसके लिए प्रामीणों में शिक्षा का विस्तार किया जाना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि बिना लोगों को जागरूक किए काम के प्रति लगन पैदा नहीं की जा सकती। सरकारी सुविधाओं का पूर्ण लाभ प्राप्त करने हेतु भी ग्रामीणों का शिक्षित होना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए गाँवों में रोजगारमूलक शिक्षा का प्रचार प्रसार खूब जोर-शोर से करना चाहिए।

2. बेकारी/बेरोजगारी की समस्या एवं समाधान (2015, 14, 13, 12)
अन्य शीर्षक भारत में बेरोजगारी की समस्या (2013, 11, 07, 06, 05), शिक्षित बेरोजगारी की समस्या (2018, 11, 10)

संकेत बिन्दु बेरोजगारी का तात्पर्य, बेरोजगार युवा वर्ग, अनेक समस्याओं की जड़ बेरोजगारी, बेरोजगारी के कारण, बेरोजगारी दूर करने के उपाय, उपसंहार।

बेरोजगारी का तात्पर्य बेरोजगारी से अभिप्राय उस स्थिति से है, जब कोई योग्य तथा काम करने का इच्छुक व्यक्ति प्रचलित मजदूरी की दरों पर काम करने के लिए तैयार हो। बालक, वृद्ध, रोगी, अक्षम एवं अपंग व्यक्तियों को बेरोजगारों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। भारत में बेरोजगारी एक आर्थिक समस्या है।

यह एक ऐसी बुराई है, जिसके कारण केवल उत्पादक मानव शक्ति ही नष्ट नहीं होती, बल्कि देश का भावी विकास भी अवरुद्ध हो जाता है, जो श्रमिक अपने कार्य द्वारा देश के आर्थिक विकास में सक्रिय सहयोग दे सकते थे, ये कार्य के अभाव में बेरोजगार रह जाते हैं। यह स्थिति हमारे आर्थिक विकास में बाधक है।

बेरोजगार युवा वर्ग आज हमारे समाज में बेरोजगारी की समस्या में वृद्धि होती जा रही है, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण आज का युवा वर्ग है। आज का नवयुवक जो विश्वविद्यालय से अच्छे अंक व डिग्री प्राप्त करके निकलता है, परन्तु वह रोजगार की तलाश में भटकता रहता है। बेरोजगारी के कारण नवयुवक प्रतिदिन रोजगार पाने के लिए दफ्तरों के चक्कर लगाते रहते हैं तथा अखबारों, इण्टरनेट आदि में दिए गए विज्ञापनों के द्वारा अपनी योग्यता के अनुरूप नौकरी की खोज में लगे रहते हैं, परन्तु उन्हें रोजगार की प्राप्ति नहीं हो पाती, उन्हें केवल निराशा ही मिलती है।

अनेक समस्याओं की जड़ बेरोजगारी रोजगार न मिलने के कारण युवा वर्ग निराशावादी बन जाता है और आँसुओं के खारेपन को पीकर समाज को अपनी मौनव्यथा सुनाता है। बेरोजगारी किसी भी देश अथवा समाज के लिए अभिशाप है। इससे एक ओर निर्धनता, भुखमरी और मानसिक अशान्ति फैलती है, तो दूसरी ओर युवकों में आक्रोश तथा अनुशासनहीनता को भी प्रोत्साहन मिलता है। चोरी, डकैती, हिंसा, अपराघवृत्ति एवं आत्महत्या आदि समस्याओं के मूल में एक बड़ी सौमा तक बेरोजगारी ही विद्यमान है। बेरोजगारी एक ऐसा भयंकर विष है, जो सम्पूर्ण देश के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन को दूषित कर देता है।

बेरोजगारी के कारण हमारे देश में बेरोजगारी के निम्न कारण हैं-दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली, जनसंख्या में वृद्धि, कुटीर उद्योगों की उपेक्षा, औद्योगीकरण की उपेक्षा, औद्योगीकरण की मन्द प्रक्रिया, कृषि का पिछड़ापन, कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी। इसके अतिरिक्त मानसून की अनियमितता, भारी संख्या में शरणार्थियों का आगमन, अत्यधिक मशीनीकरण के फलस्वरूप होने वाली श्रमिकों की छंटनी, श्रम और माँग की पूर्ति में असन्तुलन, स्वरोजगार के साधनों की कमी इत्यादि इन कारणों से भी बेरोजगारी में वृद्धि हुई हैं। देश को बेरोजगारी से उभारने के लिए इसका समुचित समाधान नितान्त आवश्यक है।

बेरोजगारी दूर करने के उपाय बेरोजगारी को दूर करने के लिए हमें जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण, शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन, कुटीर उद्योगों का विकास, औद्योगीकरण, सहकारी खेती, सहायक उद्योगों का विकास, राष्ट्र-निर्माण सम्बन्धी विभिन्न कार्य आदि का विस्तार करना चाहिए। बेरोजगारी की समस्या का समाधान तब ही सम्भव है, जब व्यावहारिक एवं व्यावसायिक रोजगारोन्मुखी शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित कर लोगों को स्वरोजगार अर्थात् निजी उद्यम और व्यवसाय प्रारम्भ करने के लिए प्रेरित किया जाए।

उपसंहार हमारी सरकार बेरोजगारी उन्मूलन के प्रति जागरूक है और इस दिशा में उसने महत्त्वपूर्ण कदम भी उठाए हैं। परिवार नियोजन, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, कच्चे मालों को एक स्थान-से-दूसरे स्थान पर ले जाने की सुविधा, कृषि-भूमि की चकबन्दी, नए-नए उद्योगों की स्थापना, अप्रेण्टिस (शिनु) योजना, प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना आदि अनेकानेक कार्य ऐसे हैं, जो बेरोजगारी दूर करने में एक सीमा तक सहायक सिद्ध हुए हैं, परन्तु वर्तमान स्थिति को देखते हुए इनको और अधिक विस्तृत एवं प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi आर्थिक निबन्ध help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi आर्थिक निबन्ध, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 11 दूत वाक्यम्

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 11 दूत वाक्यम् part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 11 दूत वाक्यम्.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 11
Chapter Name दूत वाक्यम्
Number of Questions Solved 7
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 11 दूत वाक्यम्

गद्यांशों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद

गद्यांश ।
काञ्चुकीयः-भो भो; प्रतीहाराधिकृताः! महाराजो दुर्योधन: समाज्ञापयति- अद्य सर्वैः पार्थिवैः सह मन्त्रयितुम् इच्छामि! तदाहूयन्तां सर्वे राजानः इति। (परिक्रम्य अवलोक्य) अये! अयं महाराजो दुर्योधनः इत एवाभिवर्तते। (ततः प्रविशति यथानिर्दिष्टो दुर्योधनः)
काञ्चुकीयः-जयतु महाराजः! महाराजशासनात् समानीत सर्व राजमण्डलम्।
दुर्योधनः-सम्यक कृतम्! प्रविश त्वम् अवरोधम्।
काञ्चुकीयः-यदाज्ञापयति महाराजः। (निष्क्रान्तः, पुनः प्रविश्य)
काञ्चुकीयः-जयतु महाराजः एष खलु पाण्डवस्कन्धावारात् दौत्येनागतः पुरुषोत्तम: नारायणः।।
दुर्योधनः-मा तावद् भोः बादरायण! किं किं कंसभृत्यो दामोदरस्तय नारायणः। स गोपालकस्तव पुरुषोत्तमः ब्रार्हद्रथापहृतविजयकीर्तिभोगः तव पुरुषोत्तमः।
अहो! पार्थिवासन्नमाश्रितस्य भृत्यजनस्य समुदाचारः। क एष दूतः प्राप्तः।
सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘दूतवाक्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद
कांचुकीय-हे पहरेदारों! महाराज दुर्योधन आज्ञा देते हैं, “मैं आज सभी राजाओं के साथ मन्त्रणा (विचार-विमर्श करना चाहता हूँ, इसलिए सभी राजाओं को बुलाओ।” (घूमकर देखते हुए) “अरे! ये महाराज दुर्योधन तो इधर ही आ रहे हैं।” (तब जैसा कि निर्दिष्ट किया गया, दुर्योधन प्रवेश करता है)
कांचुकीय-महाराज की जय हो। महाराज की आज्ञा के अनुसार सम्पूर्ण राजमण्डल को बुला लिया गया है।
दुर्योधन–अच्छा किया। तुम रनिवास में जाओ।
कांचुकीय-जैसी आज्ञा महाराज। (निकलकर पुन: प्रवेश करता है)
कांघुकीय-महाराज की जय हो। निश्चय ही पाण्डव शिविर से दूतरूप में पुरुषोत्तम नारायण श्रीकृष्ण पधारे हैं।।

गद्यांश 2.
भो भोः राजानः!
दौत्येनागतस्य केशवस्य किं युक्तम्। किमाहुर्भवन्तः ‘अर्घ्यप्रदानेन पूजयितव्यः केशवः’ इति। न में रोचते। ग्रहणे अत्र अस्य हितं पश्यामि।
अपि च योऽत्र केशवस्य प्रत्युत्थास्यति स मया द्वादशसुवर्णभारेण दण्ड्यः
तदप्रमत्ता भवन्तु भवन्तः। कोऽत्र भोः। (2014, 12, 11, 10)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद हे राजाओ! दूतरूप में आए केशव के लिए क्या उचित है?
आप लोगों का क्या कहना है? अर्घ्य अर्पित कर केशव को पूजना चाहिए। मुझे यह नहीं भाता। यहीं उसे पकड़ लेने (बन्दी बना लेने) में ही मुझे हित दिखता है। और, जो भी यहाँ केशव की ओर से खड़ा होगा, उसे मैं बारह स्वर्ण मुद्राओं से दण्डित करूँगा। अत: आप सब सावधान रहें। अरे! यहाँ कौन है?

गद्यांश 3
काञ्चुकीयः अथ किम् अथ किम्। प्रवेष्टुमर्हति पदमनाभः।
वासुदेव (प्रविश्य स्वगतम्) कथं कथं मां दृष्ट्वा सम्भ्रान्ताः सर्वे क्षत्रिया:। (प्रकाशम्) अलमले सम्भ्रमेण, स्वैरमासतां भवन्तः।
दुर्योधनः कथं कथं केशवं दृष्ट्वा सम्भ्रान्ताः सर्वे क्षत्रियाः। अलम् अलम् सम्भमेण। स्मरणीयः पूर्वमाश्रावितो दण्डः। ननु अहम् आज्ञप्ता।
वासुदेवः-भोः सुयोधन! कि भणसि।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद
कांचुकीय-निश्चय ही, निश्चय ही। श्रीकृष्ण! आप प्रवेश के अधिकारी हैं।
वासुदेव (प्रवेश करके मन-ही-मन में क्यों, मुझे देखकर सभी क्षत्रिय क्यों घबराए हुए हैं? (प्रकट रूप में) घबराएँ नहीं, आप सब निश्चिन्त होकर बैठे।
दुर्योधन-क्या, क्या, सभी क्षत्रिय केशव को देखकर घबरा उठे हैं। मत घबराएँ। पूर्व में सुनाए गए दण्ड को स्मरण रखें। नि:सन्देह, मैं माझा देने वाला हैं।
वासुदेव हे दुर्योधन! क्या कहते हो?

गद्यांश 4
वासुदेवः-भोः सुयोधन! किं न जानासि अर्जुनस्य पराक्रमम्।
दुर्योधनः न जानामि।
वासुदेवः-भोः श्रूयताम्, एकेनैव अर्जुनेन तदा विराटनगरे भीमादयो निर्जिताः। अपि च चित्रसेनेन नभस्तलं नीयमानस्त्वं फाल्गुनेनैव मोचितः।
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद
वासुदेव-हे दुर्योधन! क्या अर्जुन के पराक्रम को नहीं जानते?
दुर्योधन-नहीं जानता।
वासुदेव-हे दुर्योधन सुनो! विराट्नगर में अर्जुन ने अकेले ही भीष्म आदि को जीता था तथा अर्जुन ने ही तुम्हें आकाश में ले जाते हुए चित्रसेन से छुड़ाया था।

गद्यांश 5
वासुदेवः-भोः कुरुकुलकलङ्कभूत!
दुर्योधनः-भोः गोपालक!
वासुदेवः-भोः सुयोधन ! ननु क्षिपसि माम्।।
दुर्योधनः आः अनात्मज्ञस्त्वम्। अहं कथयामि यद् भवविधैः सह न भाषे।
वासुदेवःभोः शठ! त्वदर्थात् अयं कुरुवंशः अचिरान्नाशमेष्यति। भो भो राजानः! गच्छामस्तावत्।।
दुर्योधनः कथं यास्यति किल केशवः। भोः दुःशासन! दूतसमुदाचारमतिक्रान्तः केशवः बध्यताम्। मातुल! बध्यतामयं केशवः। कथं पराङ्मुखः पतति। भवतु अहमेव पाशैर्बध्नामि (उपसर्पति) ।।
वासुदेवः कथं बद्धकामो मां किल सुयोधनः। भवतु, सुयोधनस्य सामर्थ्य पश्यामि (विश्वरूपमास्थितः) ।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद
वासुदेव-है कुरुवंश के कलंक!
दुर्योधन-हे ग्वाले! वासुदेव-है दुर्योधन! मुझ पर आक्षेप करते हो।
दुर्योधन-अरे, तू स्वयं से अनभिज्ञ है। मैं कह देता हूँ कि तुझ जैसों से मैं नहीं बोलता।
वासुदेव-हे मूर्ख! तेरे कारण यह कुरुवंश शीघ्र ही नष्ट हो जाएगा। हे, हे राजाओ! हम जाते हैं।
दुर्योधन-केशव भला कैसे चला जाएगा। हे दुःशासन! दूत की मर्यादा का उल्लंघन करने वाले केशव को बाँध दो। मामा! इस केशव को बाँध दो। अरे आप उल्टे मुँह क्यों गिर रहे हैं? अच्छा, इसे मैं ही बन्धन से बाँधता हूँ (समीप जाता है)।
वासुदेव-क्या, दुर्योधन मुझे बाँधना चाहता है? अच्छा, देखें दुर्योधन की सामर्थ्य (विरारूप धारण करते हैं।

गद्यांश 6
आः तिष्ठ इदानीम्। कथं न दृष्टः केशवः? अहो क्लस्यत्वं केशवस्य। आः तिष्ठ इदानीम् कथं न दृष्टः केशवः! अहो दीर्घत्वं केशवस्या कथं न दृष्टः केशवः! अयं केशवः। कथं सर्वत्र शालायां कैशवा एव केशवा: दृश्यन्ते! किम् इदानीं करिष्ये! भवतु, दृष्टम्। भो राजानः! एकेन एक: केशवः बध्यताम्। कथं स्वयमेव पाशैर्बद्धाः पतन्ति राजानः। (निष्क्रान्ताः सर्वे)। (2018)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद अरे! अब ठहर! क्यों नहीं दिख रहा कैशव? अरे! केशव की सूक्ष्मता! अरे! अब ठहर। केशव क्यों नहीं दिख रहा? अरे! केशव की विशालता। क्यों नहीं दिख रहा केशव? यह है केशव! क्या इस सभा में सर्वत्र केशव-ही-केशव दिख रहा है? अब मैं क्या करूं? अच्छा, समझा है राजाओं! (आप में से) प्रत्येक एक केशव को बाँधे। क्या बन्धन में बँधे राजागण स्वयं ही गिर रहे हैं! (सभी निकलते हैं)

श्लोकों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद

श्लोक 1
ग्रहणमुपगते तु वासुदेवे हृतनयना इव पाण्डवा भवेयुः। गतिमतिरहितेषु पाण्डवेषु, क्षितिरखिलापि भवेन्ममासपत्ना।। (2012, 11)
सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘दूतवाक्यम् पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद वासुदेव को बन्दी बना लेने से पाण्डव नेत्रहीन हो जाएँगे। पाण्डवों के गतिविहीन एवं मतिविहीन हो जाने पर मेरे लिए सम्पूर्ण पृथ्वी शत्रु-रहित हो जाएगी।

श्लोक 2
प्राप्तः किलाद्य वचनादिह पाण्डवानां दौत्येन भृत्य इव कृष्णमतिः स कृष्णः। श्रोतुं सखे! त्वमपि सज्जय कर्ण कर्णी नारीमृदूनि वचनानि युधिष्ठिरस्य।।। (2017, 15, 11)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद निश्चय ही पाण्डवों के कहने पर कुटिल बुद्धि वाला कृष्ण आज दूत रूप में सेवक सदृश यहीं आया है। हे कर्ण युद्धितिर के नारी के सदृश कोमल वचन सुनने के लिए तुम भी अपने कानों को तैयार कर लो।।

श्लोक 3
दुष्टवादी गुणद्वेषी शठः स्वजननिर्दयः।।
सुयोधनो हि मां दृष्ट्वा नैव कार्य करिष्यति।।
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद बुरे वचन बोलने वाला, गुणों से द्वेष रखने वाला, दुष्ट और स्वजनों के प्रति निर्दयीं दुर्योधन मुझे देखकर कार्य नहीं करेगा।

श्लोक 4
अनुभूतं मददु:खं सम्पूर्णः सुम्यः स च।
अस्माकपि धर्म्यं यद् दायाचं तद् विभज्यताम्।। (2018)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद वासुदेव सब कुशलतापूर्वक हैं। आपके राज्य की कुशलता और शरीर के स्वास्थ्य को पूछकर निवेदन करते हैं हमने अत्यधिक कष्ट भोग लिया है। अब वह शर्त भी पूरी हो गई है। अतः धर्म के अनुसार जो भी देने योग्य हो, वह बाँट दीजिए।

श्लोक 5
राज्यं नाम नृपात्मजैस्सहृदयैर्जित्वा रिपून् भुज्यते।
तल्लोके न तु याच्यते न च पुनर्दीना वा दीयते।।
काङ्क्षा चेन्नृपतित्वमाप्तुमचिरात् कुर्वन्तु ते साहसम्।।
स्वैरं वा प्रविशन्तु शान्तमतिभिर्जुण्टं शुमायाश्रमत्।।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद सह्दय राजकुमारों के द्वारा राज्य तो शत्रुओं को जीतकर भौगा जाता है। वह न तो लोक (संसार) में माँगा जाता है तथा न ही किसी निर्धन व्यक्ति को प्रदान किया जाता है। यदि उन्हें (पाण्डवों को) राज़ पाने की चाह हो तो साहस करें, अन्यथा शान्ति हेतु शान्त चित्त वाले तपस्वियों से युक्त आश्रम में प्रवेश करें।

श्लोक 6
कर्तव्यो भ्रातृषु स्नेहो विस्मर्तव्या गुणेतराः।।
सम्बन्धो बन्धुभिः श्रेयान् लोकयोरुभयोरपि।। (2017)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद भाइयों से स्नेह करना कर्तव्य है। उनके अवगुणों को भुला देना चाहिए। भाइयों से मेल-मिलाप रखना दोनों ही लोकों में मंगलकारी होता है।

श्लोक 7
दातुमर्हसि मद्वाक्याद् राज्यार्द्ध धृतराष्ट्रज।
अन्यथा सागरान्तां ग हरिष्यन्ति हि पाण्डवाः।। (2018)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद हे धृतराष्ट्रकुमार! तुम्हें मेरे कथन के अनुसार राज्य का आधा भाग दे देना चाहिए अन्यथा पाण्डव (निश्चय ही) समुद्र के अन्त तक की धरती तुमसे छीन लेंगे।

श्लोक 8
प्रहरति यदि युद्धे मारुतो भीमरूपी
प्रहरति यदि साक्षात्पर्थरूपेण शक्रः ।।
परुषवचनदक्ष! त्वद्वचोभिर्न दास्ये
तृणमपि पितृभुक्ते वीर्यगुप्ते स्वराज्ये।।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद कटुवचन बोलने में दक्ष हे कृष्ण! यदि युद्ध में स्वयं वायु देव भी भीम रूप में प्रहार करें तथा साक्षात् इन्द्र भी अर्जुन रूप में प्रहार करें, तो भी मैं तुम्हारे कहने से पिता द्वारा भोगे गए, पराक्रम से संरक्षित अपने राज्य का तिनका भी नहीं दूंगा।।

श्लोक 9
सृञ्जसि यदि सुमन्ताद् देवमायाः स्वमायाः
प्रहरसि यदि वा त्वं दुर्निवारैस्सुरास्त्रैः।
हयगजवृषभाणां पातनाज्जादपों ।
नरपतिगणमध्ये बध्यसे त्वं मुयाद्य।। (2010)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद यदि तुम चारों ओर अपनी देवमाया रच दो, यदि तुम अबाध दिव्यास्त्रों से प्रहार करो, घोड़े, हाथियों एवं बैलों को मारने से उत्पन्न घमण्ड वाले, आज मैं इन राजाओं के मध्य तुम्हें बॉधूंगा।

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न-पत्र में संस्कृत दिग्दर्शिका के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अतिलघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएंगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

प्रश्न 1.
पाण्डवदूतः कः आसीत् (2014)
उत्तर:
पाण्डवदूतः श्रीकृष्णः आसीत्।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण कस्य समीपे दौत्येन गतः? (2014, 13, 12, 11)
अथवा
श्रीकृष्णः दूतरूपेण कुत्र गतः?
उत्तर:
श्रीकृष्णः दुर्योधनस्य समीपे दौत्येन गतः।

प्रश्न 3.
वासुदेव कस्य दौत्येन कुत्र गतः? (2017)
उत्तर:
वासुदेव युधिष्ठिरस्य दौत्येन दुर्योधनस्य समीपे गतः

प्रश्न 4.
दुर्योधनः कर्णं किम् अवोचत्? (2014, 12)
उत्तर:
दुर्योधनः कर्णम् अवोचत् सखे कर्ण! त्वमपि युधिष्ठिरस्य नारीमृदूनि वचनानि श्रोतुं कणों सज्जय।

प्रश्न 5.
दुर्योधनः श्रीकृष्णं किम् अपृच्छत् ? (2016)
उत्तर:
दुर्योधनः श्रीकृष्णं अपृच्छत् यत् तस्थ भ्रातरः अपि कुशलिनः ?

प्रश्न 6.
दुर्योधनः कस्य पुत्रः आसीत्? (2018, 10)
उत्तर:
दुर्योधनः धृतराष्ट्रस्य पुत्रः आसीत्।

प्रश्न 7.
कः पाण्डवः दूतः अभवत् (2018)
उत्तर:
श्रीकृष्णः पाण्डवः दूतः अभवत्।।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 11 दूत वाक्यम् help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 11 दूत वाक्यम्, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 7 नौका विहार / परिवर्तन / बापू के प्रति

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 7 नौका विहार / परिवर्तन / बापू के प्रति part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 7 नौका विहार / परिवर्तन / बापू के प्रति.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 7
Chapter Name नौका विहार / परिवर्तन / बापू के प्रति
Number of Questions Solved 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 7 नौका विहार / परिवर्तन / बापू के प्रति

नौका विहार / परिवर्तन / बापू के प्रति – जीवन/साहित्यिक परिचय

(2018, 17, 16, 15, 14, 13, 11, 10)

प्रश्न-पत्र में संकलित पाठों में से चार कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनमें से एक का उत्तर देना होता है। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
सुकुमार भावनाओं के कवि सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म हिमालय के सुरम्य प्रदेश कुर्माचल (कुमाऊँ) के कौसानी नामक ग्राम में 20 मई, 1900 को हुआ था। हाईस्कूल में अध्ययन के लिए वे अल्मोड़ा के राजकीय हाईस्कूल में प्रविष्ट हुए। यहीं पर उन्होंने अपना नाम गुसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानन्दन पन्त रखा। इलाहाबाद के म्योर सेण्ट्रल कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद गाँधीजी के आह्वान पर उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया। फिर स्वाध्याय से ही अंग्रेजी, संस्कृत और बांग्ला साहित्य का गहन अध्ययन किया।

उपनिषद्, दर्शन तथा आध्यात्मिक साहित्य की ओर उनकी रुचि प्रारम्भ से ही थी। इलाहाबाद (प्रयाग) वापस आकर ‘रुपाभा’ पत्रिका का प्रकाशन करने लगे। बीच में प्रसिद्ध नर्तक उदयशंकर के सम्पर्क में आए और फिर उनका परिचय अरविन्द घोष से हुआ। इनके दर्शन से प्रभावित पन्त जी ने अनेक काव्य संकलन स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि, उत्तरा आदि प्रकाशित किए। वर्ष 1961 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान, ‘कला एवं बूढ़ा चाँद’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार, ‘लोकायतन’ पर सोवियत भूमि पुरस्कार तथा ‘चिदम्बरा’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। 28 दिसम्बर, 1977 को प्रकृति के सुकुमार कवि पन्त जी प्रकृति की गोद में ही विलीन हो गए।

साहित्यिक गतिविधियाँ
छायावादी युग के प्रतिनिधि कवि सुमित्रानन्दन पन्त ने सात वर्ष की आयु में ही कविता लेखन करना प्रारम्भ कर दिया था। उनकी प्रथम रचना वर्ष 1916 में आई, उसके बाद वर्ष 1919 में उनकी काव्य के प्रति रुचि और बढ़ गई। पन्त जी के काव्य में कोमल एवं मृदुल भावों की अभिव्यक्ति होने के कारण इन्हें प्रकृति का सुकुमार कवि’ कहा जाता है। इनकी निम्नलिखित रचनाएँ उल्लेखनीय हैं।

कृतियाँ
काव्य रचनाएँ यीणा (1919), ग्रन्थि (1920), पल्लव (1926), गुंजन (1932), युगान्त (1987), युगवाणी (1938), ग्राम्या (1940), स्वर्ण-किरण (1947), युगान्तर (1948), उत्तरा (1949), चिदम्बरा (1958), कला और बूढ़ा चाँद (1959), लोकायतन आदि।
गीति-नाट्य ज्योत्स्ना, रजत शिखर, अतिमा (1955)
उपन्यास हार (1960)
कहानी संग्रह पाँच कहानियाँ (1938)

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष

  1. सौन्दर्य के कवि सौन्दर्य के उपासक पन्त की सौन्दर्यानुभूति के तीन मुख्य केन्द्र प्रकृति, नारी एवं कला हैं। उनका सौन्दर्य प्रेमी मन प्रकृति को देखकर विभोर हो उठता है। वीणा, ग्रन्थि, पल्लव आदि प्रारम्भिक कृतियों में प्रकृति का कोमल रूप परिलक्षित हुआ है। आगे चलकर ‘गुंजन’ आदि काव्य रचनाओं में कवियर पन्त का प्रकृति-प्रेम मांसल बन जाती है और नारी सौन्दर्य का चित्रण करने लगता हैं। ‘पल्लव’, एवं ‘गुंजन’ में प्रकृति और नारी मिलकर एक हो गए हैं।
  2. कल्पना के विविध रूप व्यक्तिवादी कलाकार के समान अन्तर्मुखी बनकर अपनी कल्पना को असीम गगन में खुलकर विचरण करने देते हैं।
  3. रस चित्रण पन्त जी का प्रिय रस गार है, परन्तु उनके काव्य में शान्त, अद्भुत, करुण, रौद्र आदि रसों का भी सुन्दर परिपाक हुआ है।

कला पक्ष

  1. भाषा पन्त जी की भाषा चित्रात्मक है। साथ ही उसमें संगीतात्मकता के गुण भी विद्यमान हैं। उन्होंने कविता की भाषा एवं भावों में पूर्ण सामंजस्य पर बल दिया है। उनकी प्रकृति सम्बन्धी कविताओं में चित्रात्मकता अपनी चरम सीमा पर दिखाई देती है।कोमलकान्त पदावली से युक्त सहज खड़ी बोली में पद-लालित्य का गुण विद्यमान है। उन्होंने अनेक नए शब्दों का निर्माण भी किया; जैसे-टलमल, रलमल आदि। उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ एवं परिमार्जित है, जिसमें एक सहज प्रवाह एवं अलंकृति देखने को मिलती है।
  2. शैली पन्त जी की शैली में छायावादी काव्य शैली की समस्त विशेषताएँ: जैसे—लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता, ध्वन्यात्मकता, चित्रात्मकता, सजीव एवं मनोरम बिम्ब-विधान आदि पर्याप्त रूप से विद्यमान हैं।
  3. छन्द एवं अलंकार पन्त जी ने नवीन छन्दों का प्रयोग किया। मुक छन्दों का विरोध किया, क्योंकि वे उसकी अपेक्षा तुकान्त छन्दों को अधिक सक्षम मानते थे। उन्होंने छन्द के बन्धनों का विरोध किया। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अन्योक्ति जैसे अलंकार उन्हें विशेष प्रिय थे। वे उपमाओं की लड़ी बाँधने में अत्यन्त सक्षम थे। उन्होंने मानवीकरण एवं ध्वन्यर्थ-व्यंजना जैसे पाश्चात्य अलंकारों के भी प्रयोग किए।

हिन्दी साहित्य में स्थान
सुमित्रानन्दन पन्त के काव्य में कल्पना एवं भावों की सुकुमार कोमलता के दर्शन होते हैं। पन्त जी सौन्दर्य के उपासक थे। वे युगद्रष्टा व युगस्रष्टा दोनों हीं थे। वे असाधारण प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार थे। छायावाद के युग प्रवर्तक कवि के रूप में उनकी सेवाओं को सदा याद किया जाता रहेगा।

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर देने होंगे।

नौका विहार

प्रश्न 1.
शान्त, स्निग्ध ज्योत्स्ना उज्ज्वल!
अपलक अनन्त नीरव भूतल!
सैकत शय्या पर दुग्ध धवल, तन्वंगी गंगा, ग्रीष्म विरल,
लेटी है श्रान्त, क्लान्त, निश्चल!
तापस-बाला गंगा निर्मल, शशिमुख से दीपित मृदु करतल,
लहरें उर पर कोमल कुन्तल!
गोरे अंगों पर सिहर-सिहर, लहराता तार-तरल सुन्दर
चंचल अंचल-सा नीलाम्बर!
साड़ी की सिकुड़न-सी जिस पर, शशि की रेशमी विभा से भर
सिमटी हैं वर्तुल, मृदुल लहर!

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश किस कविता से उद्धत है तथा इसके कवि कौन हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पशि ‘नौका विहार’ कविता से उदधत है तथा इसके कवि प्रकृति के सुकुमार कवि ‘सुमित्रानन्दन पन्त’ हैं।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने किसका उल्लेख किया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने चाँदनी रात में किए गए भौका विहार का चित्रण किया है। इसमें कवि ने गंगा की कल्पना का उल्लेख नायिका के रूप में किया है।

(iii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अपने आसपास कैसे वातावरण का वर्णन किया हैं?
उत्तर:
कवि के अनुसार चारों ओर शान्त, तरल एवं उज्वल चाँदनी छिटकी हुई है। आकाश टकटकी बोधे पृथ्वी को देख रहा है। पृथ्वी अत्यधिक शान्त एवं शब्दरहित है। ऐसे मनोहर एवं शान्त वातावरण में क्षीण धार वाली गंगा बालू के बीच मन्द-मन्द बह रही है।

(iv) गंगा बालू के बीच बहती हुई कैसी प्रतीत हो रही हैं?
उत्तर:
गंगा बालू के बीच बहती हुई ऐसी प्रतीत हो रही है, मानो कोई छरहरे, दुबले-पतले शरीर वाली सुन्दर युवती दूध जैसी सफेद शय्या पर गर्मी से व्याकुल होकर थकी, मुरझाई एवं शान्त लेटी हुई हो।

(v) ‘नीलाम्बर’ का समास-विग्रह करते हुए भेद बताएँ।
उत्तर:
नीलाम्बर-नीला है जो अम्बर (कर्मधारय समास)।।

प्रश्न 2.
जब पहुँची चपला बीच धार
छिप गया चाँदनी का कगार!
दो बाँहों से दूरस्थ तीर धारा का कृश कोमल शरीर
आलिंगन करने को अधीर!
अति दूर, क्षितिज पर विटप-माल लगती भू-रेखा-सी अराल,
अपलक नभ, नील-नयन विशाल,
माँ के उर पर शिशु-सा, समीप, सोया धारा में एक द्वीप,
उर्मिल प्रवाह को कर प्रतीप,
वह कौन विहग? क्या विकल कोक, उड़ता हरने निज विरह शोक?
छाया को कोकी का विलोक!

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने प्राकृतिक दृश्यों का चित्र किस प्रकार किया हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने नौका-विहार करते हुए दोनों तटों के प्राकृतिक दृश्यों एवं द्वीप और समुद्र का अपनी सूक्ष्म कल्पनाओं द्वारा वर्णन किया है। साथ-ही-साथ गंगा नदी के सौन्दर्य को अति रंजित करने का प्रयास किया है।

(ii) नौका-विहार के समय कवि को दूर से दिखने वाले तट कैसे प्रतीत हो रहे हैं?
उत्तर:
जब कवि की नाव गंगा के मध्य धार में पहुँचती है, तो वहाँ से चन्द्रमा की चाँदनी में चमकते हुए रेतीले तट स्पष्ट दिखाई नहीं देते हैं। कवि को दूर से दिखते दोनों किनारे ऐसे प्रतीत हो रहे हैं जैसे वे व्याकुल होकर गंगा की धारासपी नायिका के पतले कोमल शरीर का आलिंगन करना चाहते हों।

(iii) कवि को वृक्षों को देखकर कैसा प्रतीत हुआ?
उत्तर:
कवि को दूर क्षितिज पर कतारबद्ध वृक्षों को देख ऐसा लग रहा है, मानो वे नीले आकाश के विशाल नेत्रों की तिरछी भौहें हैं और धरती को एकटक निहार रही हैं।

(iv) गंगा नदी के ऊपर पक्षी को उड़ता देख कवि ने क्या कल्पना की?
उत्तर:
गंगा नदी के ऊपर एक पक्षी को उड़ते देख कवि ने कल्पना की कि कहीं यह चकवा तो नहीं है, जो भ्रमवश जल में अपनी ही छाया को चकमी समझ उसे पाने की चाह लिए विरह-वेदना को मिटाने हेतु व्याकुल होकर आकाश में उड़ता जा रहा है।

(v) ‘नयन’ का सन्धि-विच्छेद करते हुए भेद बताइए।
उत्तर:
नयन–ने + अन (अयादि सन्धि)।।

परिवर्तन

प्रश्न 3.
कहाँ आज वह पूर्ण पुरातन, वह सुवर्ण का काल?
भूतियों का दिगन्त छवि जाल, ज्योति चुम्बित जगती का भाल?
राशि-राशि विकसित वसुधा का वह यौवन-विस्तार?
स्वर्ग की सुषमा जब साभार। धरा पर करती थी अभिसार!
प्रसूनों के शाश्वत श्रृंगार, (स्वर्ण भूगों के गन्ध विहार)
गूंज उठते थे बारम्बार सृष्टि के प्रथमोद्गार।
नग्न सुन्दरता थी सुकुमार ऋद्धि औं सिद्धि अपार।
अये, विश्व का स्वर्ण स्वप्न, संसृति का प्रथम प्रभात,
कहाँ वह सत्य, वेद विख्यात?
दुरित, दुःख दैन्य न थे जब ज्ञात,
अपरिचित जरा-मरण भू-पात।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश के शीर्षक तथा कवि का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश ‘परिवर्तन’ नामक कविता से उदधृत है तथा इसके रचयिता प्रकृति के सुकुमार कवि ‘सुमित्रानन्दन पन्त’ जी हैं।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि ने किस ओर संकेत किया हैं?
उत्तर:
कवि ने भारतवर्ष के वैभवपूर्ण और समृद्ध अतीत का उल्लेख करते हुए समय के साथ-साथ देश की भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक परिस्थितियों में होने वाले परिवर्तनों की ओर संकेत किया है।

(iii) कवि ने अतीत के वैभवपूर्ण व समृद्धशाली भारत की तुलना वर्तमान से किस प्रकार की हैं।
उत्तर:
कवि के अनुसार आज हमारी समृद्धि और ऐश्वर्य विलुप्त हो चुके हैं, जो हमारे स्वर्णिम अतीत की पहचान थी। कभी हमारा देश सोने की चिड़िया कहलाता था, आज वह स्वर्ण युग विलुप्त सा हो गया है। इस प्रकार हमारे देश से ज्ञान, हरियाली इत्यादि भी समय-समय पर कम होती जा रही हैं।

(iv) कवि ने स्वर्णिम भारत का चित्रण किस रूप में किया है?
उत्तर:
स्वर्णिम भारत में धरती के चारों और छाया हुआ सौन्दर्य उन्मुक्त और सुकुमार था। धरती अपूर्व वैभव और सुख-समृद्धि से पूर्ण थी। सचमुच वह वैभवशाली युग विश्व के स्वर्णिम स्वप्न का युग था। वह युग सृष्टि के प्रथम प्रभाव के समान आशा, उल्लास, सौन्दर्य व जीवन से परिपूर्ण था।

(v) “विश्व का स्वर्ण स्वप्न संसृति का प्रथम प्रभात” पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
इस पंक्ति में ‘स’ और ‘प्र’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 4.
आज बचपन का कोमल गात। जरा का पीला पात।
चार दिन सुखद चाँदनी रात और फिर अन्धकार, अज्ञात!
शिशिर-सा झर नयनों का नीर झुलस देता गालों के फूल!
प्रणय का चुम्बन छोड़ अधीर अधर जाते अधरों को भूल!
मृदुल होठों का हिमजल हास उड़ा जाता नि:श्वास समीर;
सरल भौंहों का शरदाकाश घेर लेते घन, घिर गम्भीर।
शून्य साँसों का विधुर वियोग छुड़ाता अधर मधुर संयोग!
मिलन के पल केवल दो चार, विरह के कल्प अपार!

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में कवि द्वारा परिवर्तनशीलता को किस प्रकार स्पष्ट किया गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि द्वारा विविध उदाहरणों के माध्यम से समय की परिवर्तनशीलता को स्पष्ट करते हुए उसकी शक्ति के प्रभाव को समझाने का प्रयास किया गया है।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश में प्रेमी-प्रेमिका के माध्यम से दुःख के समय का वर्णन किस प्रकार किया गया है?
उत्तर:
समय की परिवर्तनशीलता को स्पष्ट करते हुए कवि ने आँख से गिरते हुए आँसू की समानता पतझड़ के पीले पत्तों से की है। दुःख के क्षणों में गिरते रहने वाले आँसू, पुष्पों के समान गालों को इस प्रकार झुलसा देते हैं जैसे शिशिर की ओस फूल एवं पत्तों को झुलसा देती है। उस समय प्रेमी के अधर प्रणय के चुम्बनों को भूलकर अपने प्रिय के अधरों को भी भूल जाता है।

(iii) पद्यांश में कवि ने समय की परिवर्तनशीलता को स्पष्ट करने के लिए युवावस्था और वृद्धावस्था के समय का उल्लेख किस रूप में किया है?
उत्तर:
कवि के अनुसार युवावस्था में जिन होंठों पर हमेशा ओस कणों-सी निर्मल और आकर्षण हँसी विद्यमान रहती है, वृद्धावस्था में वही होंठ गहरी साँसों को छोड़ने से मलिन पड़ जाते हैं और उनकी हँसी गायब हों। जाती है।

(iv) “मिलन का समय अल्प, जबकि वियोग का दीर्घ होता है-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में स्पष्ट है कि मिलन के सुखद समय में प्रेमी-प्रेमिका के जो होंठ आपस में जुड़े होते हैं, वियोग के विकट समय में वही होंठ विरह-वेदना से व्याकुल हो उठते हैं। इस प्रकार मिलन का समय तो अल्प होता है, परन्तु वियोग दीर्घकालीन होता है अर्थात् सुख कुछ समय साथ रहकर चला जाता है, जबकि दुःख का प्रभाव देर तक बना रहता है।

(v) ‘समीर’ के चार पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर:
पवन, हवा, अनिल और वायु ‘समीर’ के पर्यायवाची हैं।

प्रश्न 5.
खोलता इधर जन्म लोचन मूदती उधर मृत्यु क्षण-क्षण
अभी उत्सव औ हास हुलास अभी अवसाद, अश्रु, उच्छ्वास!
अचरिता देख जगत् की आप शून्य भरता समीर नि:श्वास,
डालता पातों पर चुपचाप ओस के आँसू नीलाकाश,
सिसक उठता समुद्र का मन, सिहर उठते उहुगन!
अहे निष्ठुर परिवर्तन! तुम्हारा ही ताण्डव नर्तन
विश्व का करुण विवर्तन! तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान, पतन! अहे वासुकि सहस्रफन!
लक्ष अलक्षित चरण तुम्हारे चिह्न निरन्तर
छोड़ रहे हैं जग के विक्षत वक्षःस्थल पर!
शत शत फेनोच्छ्वसित, स्फीत फूत्कार भयंकर
घुमा रहे हैं घनाकार जगती को अम्बर
मृत्यु तुम्हारा गरल दन्त, कंचुक कल्पान्तर
अखिल विश्व ही विवर, वक्र-कुण्डल दिमण्डल।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश द्वारा कवि ने संसार की परिवर्तनशीलता को किस प्रकार स्पष्ट किया है?
उत्तर:
कवि संसार की परिवर्तनशीलता को स्पष्ट करते हुए कहता है कि इस मृत्युलोक में जन्म-मरण का चक्र सदा चलता ही रहता है।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश में परिवर्तन को किसके समान बताया गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में परिवर्तन को विनाशक तथा सप के राजा वासुकि के समान बताया गया है, क्योंकि इन सर्यों के विष के झागों से भरी हुई और सारे विश्व को अपनी लपेट में ले लेने वाली सैकड़ों भयंकर फैंकारें इस संसार के मेघों के आकार से परिपूर्ण आकार को निरन्तर घुमाती रहती हैं।

(iii) प्रस्तुत पद्यांश में एक और सुख का वर्णन है तो दूसरी ओर दुःख का। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि ने सुख के क्षण का वर्णन मानव धरती पर जन्म लेने से किया है, तो दुःख का वर्णन मृत्यु को प्राप्त होने वाले कितने ही लोगों द्वारा आँख मूंद लेने से किया है। इस प्रकार एक ओर जन्म पर हर्षोल्लास का उत्सव है तो वहीं दूसरी ओर मृत्यु के शोक में आँसू बहाए जाते हैं।

(iv) अचरिता देख जगत् की आप’, ‘शून्य भरता समीर निःश्वास” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति से आशय यह है कि जैसे संसार की क्षणिकता देख पवन दु:खी होकर आहे भरने लगी हैं तथा नीले आकाश से भी यह सब नहीं देखा जाता और वह व्यथित होकर अनुरूप में पेड़ की शाखा पर ओस की बूंदें टपकाने लगा है।

(v) “शत-शत फेनोवसित, स्फीत फूत्कार भयंकर’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति में ‘शत’ शब्द की पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

बापू के प्रति

प्रश्न 1.
तुम मांसहीन, तुम रक्तहीन           हे अस्थिशेष! तुम अस्थिहीन,
तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल          हे चिर पुराण! हे चिर नवीन!
तुम पूर्ण इकाई जीवन की,           जिसमें असार भव-शून्य लीन,
आधार अमर, होगी जिस पर        भावी की संस्कृति समासीन।।
तुम मांस, तुम्हीं हो रक्त-अस्थि      निर्मित जिनसे नवयुग का तन,
तुम धन्य! तुम्हारा नि:स्व त्याग        हे विश्व भोग का वर साधन;
इस भस्म-काम तन की रज से,        जग पूर्ण काम नव जगजीवन,
बीनेगा सत्य-अहिंसा के                  ताने-बानों से मानवपन!

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश किस कविता से अवतरित है तथा इसके रचयिता कौन हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश ‘बापू के प्रति’ नामक कविता से अवतरित है तथा इसके रचयिता प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त’ जी हैं।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के आदर्शों को भारतीय संस्कृति का वाहक बताया हैं तथा कवि ने गाँधी जी को सत्य और अहिंसा की प्रतिमूर्ति मानकर उनके बताए गए आदर्शों पर चलने की कामना व्यक्त की है।

(iii) कवि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को नमन करते हुए क्या कह रहे हैं?
उत्तर:
कवि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को नमन करते हुए कहते हैं कि हे महात्मन! तुम्हारे शरीर में मांस और रक्त का अभाव है। तुम हड्डियों का ढाँचा मात्र हो। तुम्हें देख ऐसा आभास होता है कि तुम पवित्रता एवं उत्तम ज्ञान से परिपूर्ण केवल आत्मा हो। हे प्राचीन संस्कृतियों के पोषक! तुम्हारे विचारों में प्राचीन व नवीन दोनों आदर्शों का सार विद्यमान है।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने राष्ट्रपिता को नवयुग के रूप में किस प्रकार प्रस्तुत किया हैं?
उत्तर:
कवि राष्ट्रपिता को नवयुग के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि हे बापू! तुम नवयुग के आदर्श हो, जिस प्रकार शरीर के निर्माण में मांस, रक्त और अरिथ की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, उसी प्रकार नवयुग के निर्माण में तुम्हारे सआदशों की अमूल्य योगदान है।।

(v) ‘तन’ शब्द के चार पर्याय लिखिए।
उत्तर::
देह, अंग, काया, गात तन के पर्यायवाची शब्द हैं।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 7 नौका विहार / परिवर्तन / बापू के प्रति help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 7 नौका विहार / परिवर्तन / बापू के प्रति, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 10 पञ्चशील-सिद्धान्ताः

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 10 पञ्चशील-सिद्धान्ताः part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 10 पञ्चशील-सिद्धान्ताः.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 10
Chapter Name पञ्चशील-सिद्धान्ताः
Number of Questions Solved 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 10 पञ्चशील-सिद्धान्ताः

गद्यांशों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद

गद्यांश 1
पञ्चशीलमिति शिष्टाचारविषयकाः सिद्धान्ताः। महात्मा गौतमबुद्धः एतान् पञ्चापि सिद्धान्तान् पञ्चशीलमिति नाम्ना स्वशिष्यान् शास्ति स्म। अत एवायं शब्दः अधुनापि तथैव स्वीकृतः। इमे सिद्धान्ताः क्रमेण एवं सन्ति-

  1. अहिंसा
  2. सत्यम्
  3. अस्तेयम्
  4. अप्रमादः
  5. ब्रह्मचर्यम् इति।।

सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘पञ्चशील-सिद्धान्ताः’ नामक पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद पंचशील शिष्टाचार से सम्बन्धित सिद्धान्त है। महात्मा गौतम बुद्ध पंचशील नामक इन पाँचों सिद्धान्तों का अपने शिष्यों को उपदेश देते थे, इसलिए यह शब्द आज भी उसी रूप में स्वीकारा गया है। ये सिद्धान्त क्रमशः इस प्रकार हैं-

  1. अहिंसा
  2. सत्य
  3. चोरी न करना
  4. प्रमाद न करना
  5. ब्रह्मचर्य

गद्यांश 2
बौद्धयुगे इमे सिद्धान्ताः वैयक्तिकजीवनस्य अभ्युत्थानाय प्रयुक्ता आसन्। परमद्य इमे सिद्धान्ताः राष्ट्राणां परस्परमैत्रीसहयोगकारणानि, विश्वबन्धुत्वस्य, विश्वशान्तेश्च साधनानि सन्ति। राष्ट्रनायकस्य श्रीजवाहरलालनेहरूमहोदयस्य प्रधानमन्त्रित्वकाले चीनदेशेन सह भारतस्य मैत्री पञ्चशीलसिद्धान्तानधिकृत्यु एवाभवत्। यतो हि उभावपि देशौ बौद्धधमें निष्ठावन्तौ। आधुनिके जगति पञ्चशीलसिद्धान्ताः नवीनं राजनैतिकं स्वरूपं गृहीतवन्तः। एवं च व्यवस्थिताः (2017, 14, 11, 10)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद बौद्धकाल में ये सिद्धान्त व्यक्तिगत जीवन के उत्थान के लिए प्रयुक्त किए जाते थे, किन्तु आज ये सिद्धान्त राष्ट्रों की परस्पर मैत्री एवं सहयोग के कारण तथा विश्वबन्धुत्व एवं विश्वशान्ति के साधन हैं। राष्ट्र के नायक श्री जवाहरलाल नेहरू महोदय के प्रधानमन्त्रित्व काल में पंचशील के सिद्धान्तों को स्वीकार करके ही चीन देश के साथ भारत की मित्रता हुई थी, क्योंकि दोनों ही राष्ट्र बौद्ध धर्म में निष्ठा रखने वाले हैं। आधुनिक जगत् में पंचशील के सिद्धान्तों ने नर्थ राजनीतिक स्वरूप धारण कर लिया है तथा वे इस प्रकार निश्चित किए गए हैं।

गद्यांश 3

  1. किमपि राष्ट्र कस्यचनान्यस्य राष्ट्रस्य आन्तरिकेषु विषयेषु कीदृशमपि व्याघातं न करिष्यति।।
  2. प्रत्येकराष्ट्र परस्परं प्रभुसत्तां प्रादेशिकीमखण्डताञ्च सम्मानयिष्यति।
  3. प्रत्येकराष्ट्र पुरस्परं समानतां व्यवहरिष्यति।।
  4. किमपि राष्ट्रमपरेण नाक्र्स्यते।
  5. सर्वाण्यपि राष्ट्राणि मिथ: स्वां स्वां प्रभुसत्तां शान्त्या रक्षिष्यन्ति। विश्वस्य यानि राष्ट्राणि शान्तिमिच्छन्ति तानि इमान् नियमानङ्गीकृत्य परराष्ट्रस्सार्द्ध स्वमैत्रीभावं दृढ़ीकुर्वन्ति।

सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद

  1. कोई भी राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र के आन्तरिक विषयों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगा।
  2. प्रत्येक राष्ट्र परस्पर प्रभुसत्ता तथा प्रादेशिक अखण्डता का सम्मान करेगा।
  3. प्रत्येक राष्ट्र परस्पर समानता का व्यवहार करेगा।
  4. कोई भी राष्ट्र दूसरे (राष्ट्र) से आक्रान्त नहीं होगा।
  5. सभी राष्ट्र अपनी-अपनी प्रभुसत्ता की शान्तिपूर्वक रक्षा करेंगे। विश्व के जो भी राष्ट्र शान्ति की इच्छा रखते हैं, वे इन नियमों को अंगीकार (स्वीकार करके दूसरे राष्ट्रों के साथ अपने मैत्री-भाव को दृढ़ करते हैं।

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न-पत्र में संस्कृत दिग्दर्शिका के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अतिलघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएंगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित है।

प्रश्न 1.
गौतमबुद्धः कान् सिद्धान्तान् अशिक्षयत्? (2018, 17, 16, 10)
उत्तर:
गौतमबुद्धः पञ्चशीलमिति नाम्नां सिद्धान्तान् स्वशिष्यान शिक्षयत्।।

प्रश्न 2.
महात्मनः गौतमबुद्धस्य पञ्चशीलसिद्धान्ताः के सन्ति? (2011, 10)
अथवा
गौतमबुद्धस्य सिद्धान्ताः के आसन्? (2010)
अथवा
पञ्चशीलसिद्धान्ताः के आसन्? (2011, 10)
उत्तर:
अहिंसा, सत्यम्, अस्तेयम्, अप्रमादः, ब्रह्मचर्यम् इति पञ्चशीलसिद्धान्ताः सन्ति ।।

प्रश्न 3.
क्रमेण के पञ्चशीलसिद्धान्ताः भवन्ति? (2011)
उत्तर:
पञ्चशीलसिद्धान्ताः क्रमेण अहिंसा, सत्यम्, अस्तेयम्, अप्रमादः, ब्रह्मचर्यम् इति भवन्ति।।

प्रश्न 4.
बौद्ध युगे इमे सिद्धान्ताः कस्य हेतोः प्रयुक्ताः आसन्? (2016)
उत्तर:
बौद्ध युगे इमे सिद्धान्ता: वैयक्तिकजीवनस्य अभ्युत्थानाय प्रयुक्ताः आसन्।

प्रश्न 5.
भारत-चीन-देशौ कस्मिन् धर्मे निष्ठावन्तौ? (2017)
उत्तर:
भारत-चीन-देशौ बौद्ध धर्मे निष्ठावन्तौ।।

प्रश्न 6.
पञ्चशीलमिति कीदृशाः सिद्धान्ता सन्ति? (2018, 17)
उत्तर:
पञ्चशीलमिति शिष्टाचार विषयकाः सिद्धान्ता सन्ति।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 10 पञ्चशील-सिद्धान्ताः help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 10 पञ्चशील-सिद्धान्ताः, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 9 महामना मालवीय:

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 9 महामना मालवीय: part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 9 महामना मालवीय:.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 9
Chapter Name महामना मालवीय:
Number of Questions Solved 7
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 9 महामना मालवीय:

गद्यांशों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद

गंद्यांश 1
महामनस्विनः मदनमोहनमालवीयस्य जन्म प्रयागे प्रतिष्ठित-परिवारेऽभवत्। अस्य पिता पण्डितवजनाथमालवीयः संस्कृतस्य सम्मान्यः विद्वान् आसीत्। अयं प्रयागे एव संस्कृतपाठशालायां राजकीयविद्यालये म्योर-सेण्ट्रल महाविद्यालये च शिक्षा प्राप्य अत्रैव राजकीय विद्यालये अध्यापनम् आरब्धवान्। युवक: मालवीयः स्वकीयेन प्रभावपूर्णभाषणेन जनानां मनांसि अमोहयत्। अतः अस्य सुहदः तं । प्राविधाकपदवी प्राप्य देशस्य श्रेष्ठतरां सेवां कर्तुं प्रेरितवन्तः। तद्नुसारम् अयं विधिपरीक्षामुत्तीर्य प्रसागस्थे उच्चन्यायालये प्राविवाककर्म कर्तुमारभत्। विधेः । प्रकृष्टज्ञानेन, मधुरालापेन, उदारव्यवहारेण चायं शीघ्रमेव मित्राणां न्यायाधीशांनाञ्च सम्मानभाजनमभवत्। (2014, 13)
सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘महामना मालवीयः’ नामक पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद महामना मदनमोहन मालवीय का जन्म प्रयाग (इलाहाबाद) के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनके पिता पण्डित व्रजनाथ मालवीय संस्कृत के माननीय विद्वान् थे। इन्होंने प्रयाग में ही संस्कृत पाठशाला, राजकीय विद्यालय तथा म्योर-सेण्ट्रल महाविद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर यहीं राजकीय विद्यालय में अध्यापन प्रारम्भ किया। युवा मालवीय ने अपने प्रभावपूर्ण (ओजस्वी) भाषण से लोगों का मन मोह लिया। अतः इनके शुभचिन्तकों ने इन्हें अधिवक्ता (वकील) की पदवी प्राप्त कर राष्ट्र की श्रेष्ठतम (उच्चतम) सेवा करने के लिए प्रेरित किया।

उसी के अनुसार इन्होंने विधि (कानून) की परीक्षा उत्तीर्ण कर प्रयाग रिथत उच्च न्यायालय में वकालत प्रारम्भ कर दी। विधि के उकृष्ट ज्ञान, मृदु वार्तालाप तथा अपने उदार व्यवहार से शीघ्र ही ये मित्रों एवं न्यायाधीशों के सम्मान के पात्र बन गए।

गद्यांश 2
महापुरुषाः लौकिक-प्रलोभनेषु बद्धाः नियतलक्ष्यान्न कदापि अश्यन्ति। देशसेवानुरक्तोऽयं युवा उच्चन्यायालयस्य परिधौ स्थातुं नाशक्नोत्। पण्डितमोतीलाल नेहरू-लालालाजपतरायप्रभृतिभिः अन्यैः राष्ट्रनायकैः सह सोऽपि देशस्य स्वतन्त्रतासङ्ग्रामेऽवतीर्णः। देहल्यां त्रयोविंशतितमे काङ्ग्रेसस्याधिवेशनेऽयम् अध्यक्षपदमलङ्कृतवान्। ‘रॉलेट एक्ट’ इत्याख्यस्य विरोधेऽस्य ओजस्विभाषणं श्रुत्वा आङ्ग्लशासकाः भीताः जाताः। बहुवार कारागारे निक्षिप्तोऽपि अयं वीरः देशसेवाव्रतं नात्यजत्। (2018, 16, 14, 12, 10)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद महापुरुष सांसारिक प्रलोभनों में फंसकर निश्चित लक्ष्य से कदापि विचलित नहीं होते। राष्ट्रसेवा में लीन यह युवक उच्च न्यायालय की सीमा में नहीं बैंध सका। पण्डित मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपतराय जैसे अन्य राष्ट्रनायकों सहित ये भी देश के स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। दिल्ली में कांग्रेस के 23वें अधिवेशन में इन्होंने अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। ‘रौलेट एक्ट’ के विरोध में इनके ओजस्वी भाषण को सुनकर अंग्रेज शासक भयभीत हो उठे। कई बार जेल जाने के पश्चात् भी इस वीर ने राष्ट्रसेवा-व्रत का त्याग नहीं किया।

गद्यांश 3
हिन्दी-संस्कृताङ्ग्लभाषासु अस्य समानः अधिकारः आसीत्। हिन्दी-हिन्दुहिन्दुस्थानानामुत्थानाय अयं निरन्तर प्रयत्नामकरोत्। शिक्षयैव देशे समाजे च नवीनः प्रकाशः उदेति अतः श्रीमालवीयः वाराणस्यां काशीविश्वविद्यालयस्य संस्थापनमकरोत्। अस्य निर्माणाय अयं जनान् धनम् अयाचर जनाश्च महत्यस्मिन् शान्यज्ञे प्रभूतं धनमस्मै प्रायच्छन्, तेन निर्मितोऽयं विशालः विश्वविद्यालयः भारतीयानां दानशीलतायाः श्रीमालवीयस्य यशसः च प्रतिमूर्तिरित विभाति। साधारणस्थितिकोऽपि जुनः महतोत्साहेन, मनस्वित्या, पौरुषेण च असाधारणमपि कार्यं कर्तुं क्षमः इत्यदर्शयत् मनीषिमूर्धन्यः मालवीयः। एतदर्थमेव जनास्तं महामनी इत्युपाधिना अभिधातुमारब्धवन्तः। (2017, 14, 13, 11, 10)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद इनका हिन्दी, संस्कृत एवं अंग्रेजी भाषाओं पर समान अधिकार था। इन्होंने हिन्दी, हिन्दू एवं हिन्दुस्तान के उत्थान के लिए निरन्तर प्रयन किया। शिक्षा से ही राष्ट्र तथा समाज में नव-प्रकाश का उदय होता है, इसलिए भी मालवीय जी ने वाराणसी (बनारस) में ‘काशी विश्वविद्यालय की स्थापना की। इसके निर्माण के लिए इन्होंने लोगों से धन माँगा। इस महाज्ञान-यज्ञ में लोगों ने इन्हें पर्याप्त धन दिया।

उससे निर्मित यह विशाल विश्वविद्यालय भारतीयों की दानशीलता तथा श्री मालवीय जी के यश (ख्याति) की प्रतिमूर्ति के रूप में शोभायमान है।

विद्वानों में श्रेष्ठ मालवीय जी ने यह दिखा दिया कि साधारण स्थिति वाला भी महान् उत्साह, विचारशीलता तथा पुरुषार्थ से असाधारण कार्य करने में सक्षम होता है, इसलिए लोगों ने इन्हें ‘महामना’ उपाधि से सम्बोधित करना आरम्भ कर दिया।

गद्यांश 4
महामना विद्वान् वक्ता, धार्मिको नेता, पटुः पत्रकारश्चासीत्। परमस्य सर्वोच्चगुणः जनसेवैव आसीत्। यत्र कुत्रापि अयं जनान् दु:खितान् पीड्यमानांश्चापश्यत् तत्रैव सः शीघ्रमेव उपस्थितः, सर्वविधं साहाय्यञ्च अकरोत्। प्राणिसेवा अस्य स्वभाव एवासीत्।।
अद्यास्माकं मध्येऽनुपस्थितोऽपि महामना मालवीयः स्वयशसोऽमूर्तरूपेण प्रकाश वितरन् अन्धे तमसि निमग्नान् जनान् सन्मार्ग दर्शयन् स्थाने-स्थाने, जने-जने उपस्थित एव।। (2018, 11)
सन्दर्भ पूर्ववत्
अनुवाद महामना विद्वान् वक्ता, धार्मिक नेता एवं कुशल पत्रकार थे, किन्तु जनसेवा ही इनका सर्वोच्च गुण था। ये जहाँ कहीं भी लोगों को दुःखी और पीड़ित देखते, वहाँ शीघ्र उपस्थित होकर सब प्रकार की सहायता करते थे। प्राणियों की सेवा ही इनका स्वभाव था। आज हमारे बीच अनुपस्थित होकर भी महामना मालवीय अमूर्त रूप से अपने यश का प्रकाश बाँटते हुए गहन अन्धकार में पूर्व हुए लोगों को सन्मार्ग दिखाते हुए स्थान-स्थान पर जन-जन में उपस्थित हैं।

श्लोकों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद

श्लोक 1
जयन्ति ते महाभागा जुन-सेवा-परायणाः।
जरामृत्युभयं नास्ति येषां कीर्तितनोः क्वचित् ।। (2014, 13, 12, 10)
सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘महामना मालवीयः’ नामक पाठ से उद्धृत हैं।
अनुवाद जन सेवा में परायण (तत्पर) वे व्यक्ति जयशील होते हैं, जिनके यशरूपी शरीर को कहीं भी बुढ़ापे तथा मृत्यु का भय नहीं है।

यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि जो लोग अपना जीवन जनकल्याण के लिए समर्पित कर देते हैं, उनकी कीर्ति मृत्यु के बाद भी जीवित रहती हैं।

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न-पत्र में संस्कृत दिग्दर्शिका के पाठों (गद्य व पद्य) में से चार अतिलघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएंगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

प्रश्न 1.
महामनस्विनः मदनमोहनमालवीयस्य जन्म कुत्र अभवत् ? (2016, 14)
अथवा
मदनमोहनमालवीयस्य जन्म कुत्र अभवत्? (2016)
उत्तर:
मदनमोहनमालवीयस्य जन्म प्रयागनगरे अभवत्।।

प्रश्न 2.
श्रीमालवीयस्य पितुः किं नाम आसीत्? (2013)
अथवा
महामना मालवीयः कस्य पुत्रः आसीत्? (2015)
उत्तर:
श्रीमालवीयस्य पितुः नाम पण्डितव्रजनाथमालवीयः इति आसीत्।।

प्रश्न 3.
मालवीयः कुत्र प्राविवाककर्म कर्तुमारभत्?
उत्तर:
मालवीयः प्रयागस्थे उच्चन्यायालये प्राविवाककर्म कर्तुमार भत्।।

प्रश्न 4.
कासु भाषासु मालवीयमहोदयस्य समानः अधिकारः आसीत् (2017)
उत्तर:
हिन्दी-संस्कृत-आङ्ग्ल-भाषासु मालवीय महोदयस्य समानः अधिकारः आसीत्।

प्रश्न 5.
महामना मालवीयः वाराणसी-नगरे कस्य विश्वविद्यालयस्य संस्थापनमकरोत्? (2018)
अथवा
काशी हिन्दू विश्वविद्यालयस्य संस्थापकः कः आसीत? (2014, 13, 12)
अथवा
श्रीमालवीयः कस्य विश्वविद्यालयस्य स्थापनम् अकरोत्? (2016, 14)
उत्तर:
महामना मालवीयः वाराणसी-नगरे काशी विश्वविद्यालयस्य संस्थापनमकरोत्।।

प्रश्न 6.
शिक्षायाः क्षेत्रे श्रीमालवीयः किमकरोत्? (2014)
उत्तर:
शिक्षायाः कृते श्रीमालवीयः काशीहिन्दूविश्वविद्यालयस्य संस्थापनमकरोत्।

प्रश्न 7.
श्रीमालवीयस्य चरित्रे कः सर्वोच्चगुणः आसीत्? (2011)
उत्तर:
श्रीमालवीयस्य चरित्रे सर्वोच्चगुण: जन-सेवा आसीत्।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 9 महामना मालवीय: help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 9 महामना मालवीय:, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.