UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 6 बादल-राग / सन्ध्या सुन्दरी

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 6 बादल-राग / सन्ध्या सुन्दरी part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 6 बादल-राग / सन्ध्या सुन्दरी.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 6
Chapter Name बादल-राग / सन्ध्या सुन्दरी
Number of Questions Solved 2
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 6 बादल-राग / सन्ध्या सुन्दरी

बादल-राग / सन्ध्या सुन्दरी – जीवन/साहित्यिक परिचय

(2018, 17)

प्रश्न-पत्र में संकलित पाठों में से चार कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनमें से एक का उत्तर: देना होता है। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
महाकवि निराला का जन्म बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में 1899 ई. में हुआ था। माँ द्वारा सूर्य का व्रत रखने तथा निराला के रविवार के दिन जन्म लेने के कारण इनका नाम सूर्यकान्त रखा गया, परन्तु बाद में साहित्य के क्षेत्र में आने के कारण इनका उपनाम ‘निराला’ हो गया।

इनके पिता पण्डित रामसहाय त्रिपाठी उत्तर: प्रदेश के बैसवाड़ा क्षेत्र के जिला उन्नाव के गोला ग्राम के निवासी थे था महिषादल राज्य में रहकर राजकीय सेवा में कार्य कर रहे थे। माता-पिता के असामयिक निधन, फिर पत्नी की अचानक मृत्यु, पुत्री सरोज की अकाल मृत्यु आदि ने निराला के जीवन को करुणा से भर दिया। बेटी की असामयिक मृत्यु की अवसादपूर्ण घटना से व्यथित होकर ही इन्होंने ‘सरोज स्मृति’ नामक कविता लिखी। कबीर का फक्कड़पन एवं निर्भीकता, सूफियों का सादापन, सूर-तुलसी की प्रतिभा और प्रसाद की सौन्दर्य-चेतना का मिश्रित रूप निराला के व्यक्तित्व में झलकता है।

इन्होंने कलकता में अपनी रुचि के अनुरूप रामकृष्ण मिशन के पत्र ‘समन्वय’ का सम्पादन-भार सँभाला। इसके बाद ‘मतवाला’ के सम्पादक मण्डल में भी सम्मिलित हुए। इसके बाद लखनऊ में ‘गंगा पुस्तकमाला’ का सम्पादन तथा ‘सुधा’ पत्रिका के लिए सम्पादकीय भी लिखने लगे। जीवन के उत्तर:ार्द्ध में ये इलाहाबाद चले आए। इनकी आर्थिक स्थिति अत्यन्त विषम हो गई। आर्थिक विपन्नता भोगते हुए 15 अक्टूबर, 1961 को ये चिरनिद्रा में लीन हो गए।

साहित्यिक गतिविधियाँ
छायावाद के प्रमुख स्तम्भों में से एक कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की उपन्यास, कहानी, आलोचना, निबन्ध आदि सभी क्षेत्रों में ही रचनाएँ मिलती हैं, तथापि यह कवि के रूप में अधिक विख्यात हुए।

कृतियाँ
प्रमुख काव्य-ग्रन्थों में अनामिका, परिमल, गीतिका, अणिमा, नए पत्ते, आराधना आदि उल्लेखनीय हैं।
लम्बी कविताएँ तुलसीदास, राम की शक्ति पूजा, सरोज-स्मृति आदि।
गद्य रचनाएँ चतुरी-चमार, बिल्लेसुर बकरिहा, प्रभावती, निरूपमा आदि उल्लेखनीय हैं।

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष
विद्रोहशील व्यक्तित्व वाले निराला ने जब मन की प्रबल भावनाओं को वाणी दी, तो छन्द के बन्धन सहज ही विच्छिन्न हो गए तथा मुक्त छन्द का आविर्भाव हुआ। इनकी कविताओं में छायावादी, रहस्यवादी और प्रगतिवादी विचारधाओं का भरपूर समावेश हुआ है। इनके काव्य में क्रान्ति की आग एवं पौरुष के दर्शन होते हैं।

  1. मानवतावाद निराला मानवतावाद के घोर समर्थक थे। समाज के हाशिये पर खड़ा समुदाय हमेशा इनकी सहानुभूति का पात्र रहा। समानता एवं बन्धुत्व की भावना इनकी रचनाओं में सर्वत्र बिखरी पड़ी है।
  2. रस योजना निराला जी की कविताओं में श्रृंगार, वीर, रौद्र, करुण आदि रसों का सुन्दर परिपाक हुआ है, लेकिन प्रधानता पौरुष एवं ओज की है। राम की शक्ति पूजा में वीर और रौद्र रस की प्रधानता है तो सरोजस्मृति में कण रस प्रधान हैं।
  3. प्रकृति चित्रण निराला जी का प्रकृति से विशेष अनुराग होने के कारण उनके काव्य में स्थान-स्थान पर प्रकृति के मनोहारी चित्र मिलते हैं; जैसे
    दिवावसान का समय,
    मेघमय आसमान से उतर रही है,
    वह सन्ध्या-सुन्दरी परी-सी
    धीरे-धीरे-धीरे।
  4. रहस्यवाद अद्वैतवादी सिद्धान्त के समर्थक निराला के स्वस्थ चिन्तन में रहस्यवाद प्रस्तुत हुआ है। ये सर्वत्र आभासित होने वाली चेतन सत्ता में विश्वास रखते थे।
  5. नारी चित्रण इनके काव्य में नारी का नित्य नया एवं उदात्त रूप चित्रित हुआ हैं। इन्होंने नारी का उज्वल, सात्विक एवं शक्तिमय रूप प्रस्तुत किया है।
  6. शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति प्रगतिवादी कवि निराला स्वभाव से ही विद्रोही एवं सामाजिक असमानता के घोर विरोधी थे। इनके काव्य में शोषित वर्ग के प्रति अथाह करुणा एवं सहानुभूति थी।

कला पक्ष

  1. भाषा निराला जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है। कोमल कल्पना के अनुरूप इनकी भाषा की पदावली भी कोमलकान्त है। भाषा में खड़ी बोली की नीरसता नहीं, बल्कि उसमें संगीत की मधुरिमा विद्यमान है। इन्होंने मुहावरों के प्रयोग द्वारा भाषा को नई व्यंजनाशक्ति प्रदान की है। जहाँ दर्शन, चिन्तन एवं विचार-तत्त्व की प्रधानता हैं, वहीं इनकी भाषा दुरूह भी हो गई है। इन्होंने उर्दू, अंग्रेजी आदि के शब्दों का बेधड़क प्रयोग किया है।
  2. शैली निराला जी एक और कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति में सिद्धहस्त हैं, तो दूसरी ओर कतर एवं प्रचण्ड भावों की व्यंजना में भी। दार्शनिक एवं राष्ट्रीय विचारों की अभिव्यक्ति सरल एवं मुहावरेदार शैली में हुई है। शैली में प्रयोगधर्मिता अनेक जगह दिखती है।।
  3. छन्द योजना अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए निराला जी ने प्रायः मुक्त छन्द का प्रयोग किया। इन्होंने अपनी रचना क्षमता से यह सिद्ध कर दिया कि छन्दों का बन्धन व्यर्थ है। इन्होंने मुक्त छन्द की नूतन परम्परा को स्थापित किया।
  4. अलंकार योजना अलंकारों को काव्य का साधन मानते हुए इन्होंने अनुपास, यमक, उपमा, रूपक, सन्देह आदि अलंकारों का सफल प्रयोग किया। नवीन अलंकारों में मानवीकरण, ध्वन्यर्थ-व्यंजना, विशेषण-विपर्यय आदि की सार्थक योजना प्रस्तुत की।

हिन्दी साहित्य में स्थान
निराला जी बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न कलाकार थे। ये छायावाद के प्रतिनिधि कवि हैं। इन्होंने देश के सांस्कृतिक पतन की और खुलकर संकेत किया। हिन्दी काव्य को नूतन पदावली और नूतन छन्द देकर इन्होंने बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इनके द्वारा रचित छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता की रचनाएँ हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर: देने होंगे।

बादल राग

प्रश्न 1.
झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर!
राग-अमर! अम्बर में भर निज रोर!
झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में,
घर, मरु तरु-मर्मर, सागर में,
सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में
मन में, विजन-गहन कानन में,
आनन-आनन में, रव घोर कठोर—
राग–अमर! अम्बर में भर निज रोर!
अरे वर्ष के हर्ष!
बरस तू बरस-बरस रसधार!
पार ले चल तू मुझको
बहा, दिखा मुझको भी निज
गर्जन-भैरव-संसार!

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश के शीर्षक तथा कवि का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश ‘बादल-रोग’ कविता से उद्धृत है तथा इसके कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बादल के किस रूप का वर्णन किया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बादल के लोक कल्याणकारी रूप का वर्णन किया है। कवि ने बादलों से बरसकर सम्पूर्ण प्रकृति को कोमलता एवं गम्भीरता से भर देने का आग्रह किया है तथा उनसे सृष्टि को नवीन शक्ति प्रदान करने की अपेक्षा की हैं।

(iii) “पार ले चल तू मुझको’, ‘बहा दिखा मुझको भी निज” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि बादलों से इतना अधिक बरसने के लिए कह रहा है कि वह भी उसके साथ बह चले। फलस्वरूप इस भीषण संसार में जगत् के उस पार पहुँचकर मैं भी तुम्हारे गर्जना भरे उस संसार को देखें जिसे भयावह कहा गया है। तुम बरसकर मेरे अस्तित्व को अपने में विलीन कर दो।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बादलों से क्या आह्वान किया हैं?
उत्तर:
कवि ने बादलों से आह्वान करते हुए कहा है कि तुम मन्द मन्द झूमते हुए अपनी घनघोर गर्जना से सम्पूर्ण वातावरण को भर दो। अपने शौर से आकाश में एक ऐसा संगीत छोड़ दो, जो अमर हो जाए।

(v) ‘निर्भर’ और ‘संसार’ शब्द में से उपसर्ग शब्दांश छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
निर्झर-निर् (उपसर्ग)
संसार–सम् (उपसर्ग)

सन्ध्या सुन्दरी

प्रश्न 2.
दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है
वह सन्ध्या -सुन्दरी परी-सी धीरे धीरे धीरे।
तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास,
मधुर-मधुर हैं दोनों उसके अधर,
किन्तु जरा गम्भीर, नहीं है उनमें हास-विलास।
हँसता है तो केवल तारा एक
गुंथा हुआ उन घंघराले काले काले बालों से
हृदयराज्य की रानी का वह करता हैं अभिषेक।
अलसता की-सी लता किन्तु कोमलती की वह कली
सखी नीरवता के कन्धे पर डाले बाँह,
छाँह-सी अम्बर पथ से चली।
नहीं बजती उसके हाथों से कोई वीणा,
नहीं होता कोई अनुराग-रोग-आलाप,
नूपुरों में भी रुनझुन-रुनझुन नहीं,
सिर्फ एक अव्यक्त शब्द-सा “चुप, चुप, चुप
है गूंज रहा सब कहीं—

उपरोक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश के शीर्ष तथा कवि का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश ‘सन्ध्या-सुन्दरी’ कविता से उद्धृत है तथा इसके कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ हैं।

(ii) सन्ध्यारूपी सुन्दरी का चित्रण कवि ने कैसे किया हैं?
उत्तर:
सन्ध्यारुपी सुन्दरी का चित्रण कवि ने इस प्रकार किया है कि सन्यारूपी सुन्दरी के अधराधरं मधुर हैं, किन्तु उसकी मुखमुद्रा गम्भीर है। उसमें प्रसन्नता को व्यक्त करने वाली चेष्टाओं का अभाव है। सन्ध्या के समय सुन्दरी के काले होते बालों में गुँथा एक तारा है। वह उसके सौन्दर्य को और अधिक बढ़ा देता है। इसी प्रकार कवि ने सन्ध्यारूपी सुन्दरी का मनोहारी चित्रण किया हैं।

(iii) प्रस्तुत पद्यांश में गूंथा हुआ तारा’ किसका प्रतीक है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में ‘गूंथा हुआ तारा’ सन्ध्या सुन्दरी के बालों में सुशोभित है जो ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो वह अपने हृदय-राज्य की रानी का अभिषेक कर रहा हो।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने सन्ध्या सुन्दरी को किसके समान बताया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने सन्ध्या-सुन्दरी को आलस्य के समान बताया है, फिर भी वह कोमलता की कली है अर्थात् आलस्य विद्यमान होते हुए भी उसमें कोमलता का गुण विद्यमान है।

(v) “किन्तु कोमलता की वह कली।” पंक्ति में कौन सा अलंकार है?
उत्तर:
“किन्तु कोमलता की वह कली’ पंक्ति में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 6 बादल-राग / सन्ध्या सुन्दरी help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 6 बादल-राग / सन्ध्या सुन्दरी, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 2 सत्य की जीत

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 2 सत्य की जीत part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 2 सत्य की जीत.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name सत्य की जीत
Number of Questions Solved 8
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 2 सत्य की जीत

कथावस्तु पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की किसी एक घटना का उल्लेख कीजिए जो आपको अच्छी लगी हो। (2018)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का सारांश लिखिए। (2018)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की कथावस्तु/कथानक अपने शब्दों में ‘ लिखिए। (2018, 16)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए। अथवा ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटना का उल्लेख कीजिए। (2017, 16)
अथवा
सत्य की जीत खण्डकाव्य की किसी प्रमुख घटना का परिचय दीजिए। (2018, 16)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य का कथानक/कथावस्तु संक्षेप में लिखिए। (2018, 14, 13, 12, 11, 10)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की कथावस्तु के आधार पर सिद्ध कीजिए कि जीत वहाँ होती है, जहाँ सत्य, धर्म और न्याय होता है।
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की कथा महाभारत के द्रौपदी के चीर-हरण की संक्षिप्त, किन्तु मार्मिक घटना पर आधारित है। सिद्ध कीजिए।
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं पर प्रकाश डालिए। (2014, 13, 12)
उत्तर:
प्रस्तुत खण्डकाव्य की कथा ‘महाभारत’ के द्रौपदी चीर-हरण की अत्यन्त संक्षिप्त, किन्तु मार्मिक घटना पर आधारित है। यह एक अत्यन्त लघु काव्य है, जिसमें कवि ने पुरातन आख्यान को वर्तमान सन्दर्भो में प्रस्तुत किया है। दुर्योधन पाण्डवों को यूतक्रीड़ा (जुआ) के लिए आमन्त्रित करता है और छल-प्रपंच से उनका सब कुछ छीन लेता है। युधिष्ठिर जुए में स्वयं को हार जाते हैं। अन्त में वह द्रौपदी को भी दांव पर लगा देते हैं और हार आते हैं। इस पर कौरव भरी सभा में द्रौपदी को वस्त्रहीन करके अपमानित करना चाहते हैं।

दुःशासन द्रौपदी के केश खींचते हुए उसे सभा में लाता है। द्रौपदी के लिए यह अपमान असह्य हो जाता है। वह सभा में प्रश्न उठाती है कि जो व्यक्ति स्वयं को हार गया है, उसे अपनी पत्नी को दाँव पर लगाने का क्या अधिकार है?

अतः मैं कौरवों द्वारा विजित नहीं हैं। दुःशासन उसका चीर-हरण करना चाहता है। उसके इस कुकर्म पर द्रौपदी अपने सम्पूर्ण आत्मबल के साथ सत्य का सहारा लेकर उसे ललकारती है और वस्त्र खींचने की चुनौती देती है।

अरे-ओ! दु:शासन निर्लज्ज!
देख तू नारी का भी क्रोध।
किसे कहते उसका अपमान
कराऊँगी मैं इसका बोध।।”

तब भयभीत दुःशासन दुर्योधन के आदेश पर भी उसके चीर-हरण का साहस नहीं कर पाता। दुर्योधन का छोटा भाई विकर्ण द्रौपदी का पक्ष लेता है। उसके समर्थन से अन्य सभासद भी दुर्योधन और दुःशासन की निन्दा करते हैं, क्योंकि वे सभी यह अनुभव करते हैं कि यदि आज पाण्डवों के प्रति होते हुए अन्याय को नहीं रोका गया, तो इसका परिणाम बहुत बुरा होगा। अन्ततः धृतराष्ट्र पाण्डवों के राज्य को लौटाकर उन्हें मुक्त करने की घोषणा करते हैं। इस खण्डकाव्य में कवि ने द्रौपदी के चीर हरण की घटना में श्रीकृष्ण द्वारा चीर बढ़ाए जाने की अलौकिकता को प्रस्तुत नहीं किया हैं। द्रौपदी का पक्ष सत्य, न्याय का पक्ष है। तात्पर्य यह है कि जिसके पास सत्य और न्याय का बल हो, असत्यरूपी दुःशासन उसका चीर-हरण नहीं कर सकता।

द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी जी ने इस कथा को अत्यधिक प्रभावी और युग के अनुकूल सृजित किया है और नारी के सम्मान की रक्षा करने के संकल्प को दोहराया है। इस प्रकार प्रस्तुत खण्डकाव्य की कथावस्तु अत्यन्त लघु रखी गई है। कथा का संगठन अत्यन्त कुशलता से किया गया हैं। इस प्रकार ‘सत्य की जीत को एक सफल ‘खण्ड काव्य’ कहना सर्वथा उचित होगा।

प्रश्न 2.
खण्डकाव्य की विशेषताओं के आधार पर सत्य जीत खण्डकाव्य की समीक्षा कीजिए। (2018)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की विशेषताएँ लिखिए। (2017)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2018, 17)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2017)
उत्तर:
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की भावात्मक एवं कलात्मक विशेषताओं का विवरण इस प्रकार है। भावपक्षीय विशेषताएँ ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की भावपक्षीय विशेषताएँ इस प्रकार हैं।

  1. आधुनिक युग आधुनिक युग ‘नारी-जागरण’ का युग है। द्रौपदी के माध्यम से इस काव्य में पग-पग पर आज की जागृत नारी ही बोल रही है। यद्यपि इस खण्डकाव्य की कथा महाभारत की चीर-हरण घटना पर आधारित है, किन्तु कवि ने उसमें वर्तमान नारी की दशा को आरोपित किया है। साथ ही कुछ मौलिक परिवर्तन भी किए हैं। कवि का विचार है कि शक्ति का उपयोग युद्ध के लिए नहीं, अपितु शान्ति एवं विकास कार्यों के लिए होना चाहिए। जीवन में सत्य, न्याय, प्रेम, करुणा, क्षमा, सहानुभूति, सेवा आदि मूल्यों का विकास आवश्यक है।
  2. उदात्त आदर्शों का स्वर सम्पूर्ण भावात्मक क्षेत्रों से भारतीय नारियों के प्रति श्रद्धा, विनाशकारी आचरण एवं शस्त्रों के अंगीकरण का विरोध, प्रजातान्त्रिक आदशों तथा सत्य के आत्मबल की शक्ति का स्वर मुखरित होता है। इस खण्डकाव्य में द्रौपदी के चीर-हरण को प्रसंग बनाकर उदात्त आदशों की भावधारा प्रवाहित की गई है।
  3. रस योजना प्रस्तुत खण्डकाव्य में वीर एवं रौद्र रस की प्रधानता है। ओज गुण की प्रधानता भी दिखाई देती है। इस खण्डकाव्य का विषय एवं भाव नारी के शक्ति-रूप को चित्रित करना है। अत: उसके अनुरूप वीर एवं रौद्र रस की योजना की गई है।

कलापक्षीय विशेषताएँ ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की कलापक्षीय विशेषताएँ निम्न प्रकार है।

1. भाषा-शैली प्रस्तुत खण्डकाव्य न घटना प्रधान है, न भाव प्रधान। यह एक विचारशील रचना है। इस कारण कवि ने इसे अत्यन्त सरल, प्रवाहपूर्ण और प्रसादगुण सम्पन्न खड़ी बोली हिन्दी में लिखा है। इसकी भाषा में न तो अलंकारों की प्रधानता है और न ही कृत्रिमता की।

सह सका भरी सभा के बीच नहीं वह अपना यों अपमान।
देख नर पर नारी का वार एकदम गरज उठी अभिमान।।”

इस काव्य की भाषा बड़ी ओजपूर्ण है। द्रौपदी इसकी प्रमुख स्त्री पात्र है। वह सिंहनी सी निक, दुर्गा सी तेजस्विनी और दीपशिखा सी आलोकमयी है। दूसरी ओर पुरुष पात्रों में दुःशासन प्रमुख है, उसमें पौरुष का अहं है और भौतिक शक्ति का दम्भ भी। अतः दोनों पात्रों के व्यक्तित्व एवं विचारों के अनुरूप ही इस काव्य की भाषा को अत्यन्त वेगपूर्ण एवं ओजस्वी रूप प्रदान किया गया है।

2. संवाद योजना एवं नाटकीयता ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में कवि ने कथोपकथनों द्वारा कथा को प्रस्तुत किया है। इसके संवाद सशक्त, पात्रानुकूल तथा कथा को आगे बढ़ाने वाले हैं। कवि के इस प्रयास से काव्य में नाटकीयता का समावेश हो गया है, जिस कारण सत्य की जीत’ काव्य अधिक आकर्षक बन गया है| “द्रौपदी बढ़-चढ़ कर मत बोल, कहा उसने तत्क्षण तत्काल। पीट मत री नारी का ढोल, उगल मत व्यर्थ अग्नि की ज्वाल।।”

3. अलंकार योजना प्रस्तुत खण्डकाव्य में उत्प्रेक्षा, उपमा एवं रूपक अलंकारों का प्रयोग किया गया है। अनुभावों की चित्रोपमता की सजीव योजना की गई है—

और वह मुख! प्रज्वलित प्रचण्ड
अग्नि को खण्ड, स्फुलिंग का कोष।”

इस प्रकार प्रस्तुत खण्डकाव्य की कथावस्तु अत्यन्त लघु रखी गई है। कथा का संगठन अत्यन्त कुशलता से किया गया है। द्रौपदी का चरित्र आदर्शमय है। इस प्रकार ‘सत्य की जीत’ को एक सफल खण्डकाव्य कहना सर्वथा उपयुक्त हैं।

4. उद्देश्य प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि का उद्देश्य असत्य पर सत्य की विजय दिखाना है। इस खण्डकाव्य का मूल उद्देश्य मानवीय सद्गुणों एवं उदात्त भावनाओं को चित्रित करके समाज में इनकी स्थापना करना और समाज के उत्थान में नर-नारी का समान रूप से सहयोग देना है।

प्रश्न 3.
“सत्य की जीत आधुनिक युग की नारी-जागरण की झलक है।” इस कथन की सार्थकता पर प्रकाश डालिए। (2016)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के शीर्षक (नामकरण) की सार्थकता (आशय) पर प्रकाश डालिए।
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में निहित सन्देश (उददेश्य) को स्पष्ट कीजिए। (2014, 13, 12, 10)
उत्तर:

‘सत्य की जीत’ शीर्षक की सार्थकता

श्री द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में द्रौपदी चीर-हरण के प्रसंग का वर्णन किया गया है, किन्तु यह सर्वथा नवीन है। अत्याचारों को द्रौपदी चुपचाप स्वीकार नहीं करती वरन् पूर्ण आत्मबल से उसके विरुद्ध संघर्ष करती है। चीर-हरण के समय वह दुर्गा का रूप धारण कर लेती है, जिससे दु:शासन सहम जाता है। सभी कौरव द्रौपदी के सत्य बल, तेज और सतीत्व के आगे कान्तिहीन हो जाते हैं। अन्ततः जीत उसी की होती है और पूरी राजसभा उसके पक्ष में हो जाती है। इस खण्डकाव्य के माध्यम से कवि का उद्देश्य सत्य को असत्य पर विजय प्राप्त करते हुए दिखाना है। खण्डकाव्य का मुख्य आध्यात्मिक भाव सत्य की असत्य पर विजय है। अतः खण्डकाव्य का शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है।

‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य का उद्देश्य

प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि का उद्देश्य असत्य पर सत्य की विजय दिखाना है। इस खण्डकाव्य का मूल उद्देश्य मानवीय सद्गुणों एवं उदात्त भावनाओं को चित्रित करके समाज में इनकी स्थापना करना है और समाज के उत्थान में नर-नारी का समान रूप से सहयोग देना है। इस खण्डकाव्य में निम्नलिखित विचारों का प्रतिपादन हुआ है।

1. नैतिक मूल्यों की स्थापना ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में कवि ने दुःशासन और दुर्योधन के छल-कपट, दम्भ, ईष्र्या, अनाचार, शस्त्र बल आदि की पराजय दिखाकर उन पर सत्य, न्याय, प्रेम, मैत्री, करुणा, श्रद्धा आदि मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा की है। कवि का विचार है कि मानव को भौतिकवाद के गर्त से नैतिक मूल्यों की स्थापना करके ही निकाला जा सकता है।

जहाँ है सत्य, जहाँ है धर्म, जहाँ है न्याय, वहाँ है जीत”

2. नारी की प्रतिष्ठा प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि ने द्रौपदी को कोमलता व श्रृंगार की मूर्ति के रूप में नहीं वरन् दुर्गा के रूप में प्रतिष्ठित किया है। कवि ने द्रौपदी को उस नारी के रूप में प्रस्तुत किया है, जो अपने सतीत्व और मर्यादा की रक्षा के लिए चण्डी और दुर्गा बन जाती है। यही कारण है। कि भारत में नारी की शक्ति को दुर्गा के रूप में स्वीकार किया गया है। द्रौपदी दु:शासन से स्पष्ट कह देती है कि नारी का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है, वह पुरुष की सम्पत्ति या भोग्या नहीं हैं। समय पड़ने पर वह कठोरता का वरण भी कर सकती है।

3. स्वार्थ एवं ईष्र्या का विनाश आज को मनुष्य स्वार्थी होता जा रहा है। स्वार्थ भावना ही संघर्ष को जन्म देती है। इनके वश में होकर व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। इसे कवि ने द्रौपदी चीर-हरण की घटना के माध्यम से दर्शाया है। दुर्योधन पाण्ड्वों से ईष्र्या रखता है तथा उन्हें छूतक्रीड़ा (जुआ) में छल से पराजित कर देता है और उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाता है। वह द्रौपदी को निर्वस्त्र करके उसे अपमानित करना चाहता है। कवि स्वार्थ और ईष्र्या को पतन का कारण मानता है। कवि इस खण्डकाव्य के माध्यम से यह सन्देश देता है कि स्वार्थपरता, बैर-भाय, ईष्र्या-द्वेष आदि को हमें समाप्त कर देना चाहिए और उसके स्थान पर मैत्री, सत्य, प्रेम, त्याग, परोपकार, सेवा-भावना आदि का प्रसार करना चाहिए।

4, प्रजातान्त्रिक भावना का प्रतिपादन प्रस्तुत खण्डकाव्य का सन्देश यह भी है कि हम प्रजातान्त्रिक भावनाओं का आदर करें। कवि ने निरंकुशता का खण्डन करके प्रजातन्त्र की उपयोगिता का प्रतिपादन किया है। निरंकुशता पर प्रजातन्त्र एक अंकुश है। राजसभा में द्रौपदी के प्रश्न पर जहाँ दुर्योधन, दुःशासन और कर्ण अपना तर्क प्रस्तुत करते हैं, वहीं धृतराष्ट्र अपना निर्णय देते समय जनभावनाओं को पूर्ण ध्यान में रखते हैं।

5. विश्वबन्धुत्व का सन्देश ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में कवि ने यह सन्देश दिया है कि सहयोग और सह-अस्तित्व से ही विश्व का कल्याण होगा।

जिएँ हम और जिएँ सब लोग।”

इससे सत्य, अहिंसा, न्याय, मैत्री, करुणा आदि को बल मिलेगा और समस्त संसार एक कुटुम्ब की भाँति प्रतीत होने लगेगा।

6. निरंकुशवाद के दोषों का प्रकाशन रचनाकार ने स्वीकार किया है कि जब सत्ता निरंकुश हो जाती है, तो वह अनैतिक कार्य करने में कोई संकोच नहीं करती। ऐसे राज्य में विवेक कुण्ठित हो जाता है। भीष्म, द्रोण, धृतराष्ट्र आदि भी दुर्योधन की सत्ता की निरंकुशता के आगे हतप्रभ है।

इस प्रकार ‘सत्य की जीत’ एक विचार प्रधान खण्डकाव्य है। इसमें शाश्वत भारतीय जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा की गई है और स्वार्थ एवं ईष्र्या के समापन की कामना भी। कवि पाठकों को सदाचारपूर्ण जीवन की प्रेरणा देना चाहता है। वह उन्नत मानवीय जीवन का सन्देश देता है।

प्रश्न 4.
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर द्रौपदी और दुःशासन के वार्तालाप को अपने शब्दों में लिखिए। (2015)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर द्रौपदी और दुःशासन के संवाद को अपने शब्दों में लिखिए। (2011)
उत्तर:
कवि द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी कृत ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य का कथानक ‘महाभारत’ के ‘सभा पर्व’ से लिया गया हैं। इस खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में इस प्रकार है-दुर्योधन पाण्डवों को छूतक्रीड़ा का निमन्त्रण देता है। पाण्डवे उसके निमन्त्रण को स्वीकार कर लेते हैं और जुआ खेलते हैं। युधिष्ठिर जुए में निरन्तर हारते रहते हैं। अन्त में युधिष्ठिर द्रौपदी को भी दाँव पर लगा देते हैं और हार जाते हैं। प्रतिशोध की अग्नि में जलता हुआ दुर्योधन द्रौपदी को भरी सभा में अपमानित करना चाहता है। अतः वह दुःशासन को भरी सभा में द्रौपदी को वस्त्रहीन करने का आदेश देता है। इस घटना को भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, धृतराष्ट्र एवं विदुर जैसे ज्ञानीजन भी मूकदर्शक बने देखते रहते हैं। केश पकड़कर द्रौपदी को सभा में लाया जाता है। इस अपमान से क्षुब्ध होकर वह एक सिंहनी के समान गर्जना करती हुई दु:शासन को ललकारती है। सभी सभासद उसकी ललकार सुनकर स्तब्ध रह जाते हैं। द्रौपदी कहती है-

अरे-ओ! दुःशासन निर्लज! देख तू नारी का भी क्रोध।
किसे कहते उसका अपमान, कराऊँगी मैं इसका बोध।”

द्रौपदी द्वारा नारी जाति पर पुरुषों के अत्याचार का विरोध किया जाता है। दुःशासन नारी को अबला, तुच्छ, महत्त्वहन एवं पुरुष की आश्रिता बताता है, परन्तु द्रौपदी उसे नारी-क्रोध से दूर रहने को कहती है। द्रौपदी कहती है कि संसार के कल्याण के लिए नारी को महत्त्व दिया जाना आवश्यक है।

द्रौपदी और दु:शासन दोनों धर्म-अधर्म, न्याय-अन्याय, सत्य-असत्य पर तर्क-वितर्क करते हैं। द्रौपदी उपस्थित सभासदों से तथा नीतिज्ञ, विद्वान् और प्रतापी व्यक्तियों से पूछती है कि जुए में हारे हुए युधिष्ठिर को मुझे दांव पर लगा देने का अधिकार कैसे हो सकता है? यदि युधिष्ठिर को उसे दांव पर लगाने का अधिकार नहीं है, तो उसे विजित कैसे माना गया और उसे भरी सभा में अपमानित करने का किसी को क्या अधिकार है? द्रौपदी के इस कथन के प्रति सभी संभाजन अपनी सहमति व्यक्त करते हैं। भीष्म पितामह इसका निर्णय युधिष्ठिर पर छोड़ते हैं। द्रौपदी भीष्म पितामह के वचन सुनकर कहती है कि दुर्योधन ने छल-प्रपंच करके सरल हदय वाले युधिष्ठिर को अपने जाल में फंसा लिया हैं। अत: धर्म एवं नीति के ज्ञाता स्वयं निर्णय लें कि उन्हें छल-कपट एवं असत्य की विजय स्वीकार है। अथवा धर्म, सत्य एवं सरलता की। द्रौपदी की बात सुनकर दुःशासन कहता है कि कौरवों को अपने शस्त्र बल पर भरोसा है न कि शास्त्र बल पर। कर्ण, शनि और दुर्योधन, दुःशासन के इस कथन का पूर्ण समर्थन करते हैं।

सभा में उपस्थित एक सभासद विकर्ण को यह बात बुरी लगती है। वह कहता है। कि यदि शास्त्र बल से शस्त्र बल ऊँचा और महत्त्वपूर्ण है, तो मानवता का विकास सम्भव नहीं है, क्योंकि शस्त्र बल मानवता को पशुता में बदल देता है। वह कहता है कि सभी विद्वान् एवं धर्मशास्त्रों के ज्ञाताओं को द्रौपदी के कथन का उत्तर अवश्य देना चाहिए, नहीं तो बड़ा अनर्थ होगा। विकर्ण द्रौपदी को विजित . नहीं मानता। विकर्ण की घोषणा सुनकर सभी सभासद दुर्योधन, दु:शासन आदि की निन्दा करने लगते हैं, परन्तु कर्ण उत्तेजित होकर कौरवों का पूर्ण समर्थन करता है। और द्रौपदी को निर्वस्त्र करने के लिए दु:शासन को आज्ञा देता है।

सभी स्तब्ध रह जाती है। पांचों पाण्डव अपने वस्त्र-अलंकार उतार देते हैं। दुःशासन अट्टहास करता है और द्रौपदी के वस्त्र खींचने के लिए हाथ बढ़ाता है। द्रौपदी गरज उठती है और अपने पूर्ण बल के साथ उसे रोककर कहती है कि वह किसी भी तरह विजित नहीं है तथा दुःशासन उसके प्राण रहते उसका चीर-हरण नहीं कर सकता। यह सुनकर मदान्ध दुःशासन द्रौपदी के वस्त्रों की ओर पुनः हाथ बढ़ाता है। द्रौपदी दुर्गा का रूप धारण कर लेती हैं, जिसे देखकर दुःशासन सहम जाता है तथा अपने आपको चीर-हरण में असमर्थ अनुभव करता है।

द्रौपदी दुःशासन को चीर-हरण के लिए ललकारती है, परन्तु वह दुर्योधन की चेतावनी पर भी द्रौपदी के रौद्र रूप से आतंकित बना रहता है। सभी कौरव द्रौपदी के सत्य बल, तेज और सतीत्व के आगे कान्तिहीन हो जाते हैं। कौरवों को अनीति की राह पर चलता देखकर सभी सभासद उनकी निन्दा करने लगते हैं। राजमदान्ध दुर्योधन, दुःशासन, कर्ण आदि को द्रौपदी फिर ललकारती हुई घोषणा करती है-

“और तुमने देखा यह स्वयं, कि होते जिधर सत्य और न्याय।
जीत होती उनकी ही सदा, समय चाहे जितना लग जाय।।”

सभी सभासद कौरवों की निन्दा करते हैं, क्योंकि वे यह अनुभव करते हैं कि यदि पाण्डवों के प्रति होते हुए इस अन्याय को नहीं रोका गया तो प्रलय हो जाएगा। अन्त में धृतराष्ट्र उठते हैं और सभा को शान्त करते हैं। वे अपने पुत्र दुर्योधन की भूल को स्वीकार करते हैं। धृतराष्ट्र पाण्डवों की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि उन्होंने सत्य, धर्म एवं न्याय का मार्ग नहीं छोड़ा। वे दुर्योधन को आदेश देते हैं कि पाण्डवों का राज्य लौटा दिया जाए तथा उन्हें मुक्त कर दिया जाए। वे भरी सभा में ‘जियो और जीने दो’ की नीति की घोषणा करते हैं-

नीति समझो मेरी यह स्पष्ट, जिएँ हम और जिएँ सब लोग।” धृतराष्ट्र द्रौपदी के विचारों को उचित ठहराते हैं। वे उसके प्रति किए गए। दुर्व्यवहार के लिए उससे क्षमा माँगते हैं। पाण्डवों के गौरवपूर्ण व सुखद भविष्य की कामना करते हुए कहते हैं-

“जहाँ है सत्य, जहाँ है धर्म, जहाँ है न्याय, वहाँ है जीत।
तुम्हारे यश-गौरव के दिग्-दिगन्त में गूंजेंगे स्वर गीत।।”

इस प्रकार ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की कथा द्रौपदी चीर-हरण की अत्यन्त संक्षिप्त, किन्तु मार्मिक घटना पर आधारित है। कवि ने इस कथा को अत्यधिक प्रभावी और युगानुकूल बनाकर नारी के सम्मान की रक्षा करने का अपना संकल्प दोहराया है।

चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 5.
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर द्रौपदी के चरित्र की विशेषताएँ बताइए। (2018, 17)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर द्रौपदी का चरित्रांकन कीजिए। (2017)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर उसकी नायिका के चरित्र की विशेषताएँ बताइए। (2017)
अथवा
‘सत्य की जीत’ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि “नारी अबला नहीं शक्ति स्वरूप है।” (2016)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर द्रौपदी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2016)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर किसी स्त्री पात्र का चरित्रांकन कीजिए। (2016)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर नायिका द्रौपदी का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2013, 12, 11, 10)
अथवा
“सत्य की जीत में द्रौपदी के चरित्र में वर्तमान युग के नारी जागरण का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।” इस कथन को सिद्ध कीजिए। (2013)
उत्तर:
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी कृत खण्डकाव्य ‘सत्य की जीत’ की नायिका द्रौपदी है। कवि ने उसे महाभारत की द्रौपदी के समान सुकुमार, निरीह रूप में प्रस्तुत न करके आत्मसम्मान से युक्त, ओजस्वी, सशक्त एवं वाक्पटु वीरांगना के रूप में चित्रित किया है। द्रौपदी की चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं।

1. स्वाभिमानिनी द्रौपदी स्वाभिमानिनी है। वह अपमान सहन नहीं कर सकती। वह अपना अपमान नारी जाति का अपमान समझती हैं। वह नारी के स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने वाली किसी भी बात को स्वीकार नहीं कर सकती। ‘सत्य की जीत’ की द्रौपदी ‘महाभारत’ की द्रौपदी से बिल्कुल अलग है। वह असहाय और अबला नहीं है। वह अन्याय और अधर्मी पुरुषों से संघर्ष करने वाली हैं।
2. निर्भीक एवं साहसी द्रौपदी निर्भीक एवं साहसी है। दुःशासन द्रौपदी के बाल खींचकर भरी सभा में ले आता है और उसे अपमानित करना चाहता है। तब द्रौपदी बड़े साहस एवं निर्भीकता के साथ दुःशासन को निर्लज्ज और पापी कहकर पुकारती है।
3. विवेकशील द्रौपदी पुरुष के पीछे-पीछे आँखें बन्द करके चलने वाली नारी नहीं है वरन् विवेक से काम लेने वाली हैं। वह भरी सभा में यह सिद्ध कर देती है कि जो व्यक्ति स्वयं को हार गया हो, उसे अपनी पत्नी को दाँव पर लगाने का अधिकार ही नहीं है। अत: वह कौरवों द्वारा विजित नहीं हैं।
4. सत्यनिष्ठ एवं न्यायप्रिय द्रौपदी सत्यनिष्ठ है, साथ ही न्यायप्रिय भी है। वह अपने प्राण देकर भी सत्य और न्याय का पालन करना चाहती है। जब दुःशासन द्रौपदी के सत्य एवं शील का हरण करना चाहता है, तब वह उसे ललकारती हुई कहती है-

न्याय में रहा मुझे विश्वास,
सत्य में शक्ति अनन्त महान्।
मानती आई हूँ मैं सतत्,
सत्य ही है ईश्वर, भगवान।”

5. वीरांगना द्रौपदी विवश होकर पुरुष को क्षमा कर देने वाली असहाय और अबला नारी नहीं है। वह चुनौती देकर दण्ड देने को कटिबद्ध वीरांगना है-

“अरे ओ! दु:शासन निर्लज्ज!
देख तू नारी का भी क्रोध।
किसे कहते उसका अपमान,
कराऊँगी मैं उसका बोध।”

6. नारी जाति का आदर्श द्रौपदी सम्पूर्ण नारी जाति के लिए एक आदर्श है। दुःशासन नारी को वासना एवं भोग की वस्तु कहता है, तो वह बताती है कि नारी वह शक्ति है, जो विशाल चट्टान को भी हिला देती है। पापियों के नाश के लिए वह भैरवी भी बन सकती है। वह कहती है-

पुरुष के पौरुष से ही सिर्फ,
बनेगी धरा नहीं यह स्वर्ग।
चाहिए नारी का नारीत्व,
तभी होगा यह पूरा सर्ग।”

सार रूप में कहा जा सकता है कि द्रौपदी पाण्डव-कुलवधू, वीरांगना, स्वाभिमानिनी, आत्मगौरव सम्पन्न, सत्य और न्याय की पक्षधर, सती-साध्वी, नारीत्व के स्वाभिमान से मण्डित एवं नारी जाति का आदर्श है।

प्रश्न 6.
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्रांकन कीजिए। (2018)
अथवा
‘सत्य की जीत के आधार पर युधिष्ठिर का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2018)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए। (2017)
अथवा
‘सत्य की जीत’ के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2017)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य/नाटक के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 16)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर युधिष्ठिर की चारित्रिक विशेषताओं को लिखिए। (2016)
उत्तर:
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के नायक रूप में युधिष्ठिर के चरित्र को स्थापित किया गया है। द्रौपदी एवं धृतराष्ट्र के कथनों के माध्यम से युधिष्ठिर का चरित्र प्रकट हुआ है। ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में युधिष्ठिर का चरित्र महान् गुणों से परिपूर्ण है।
उनकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

1. सरल-हृदयी व्यक्तित्व युधिष्ठिर का व्यक्तित्व सरल हृदयी है तथा अपने समान ही सभी अन्य व्यक्तियों को भी सरल हृदयी समझते हैं। इसी गुण के कारण वे दुर्योधन और शकुनि के कपट रूपी माया जाल में फंस जाते हैं और इसका दुष्परिणाम भोगने के लिए विवश हो जाते हैं।

2. धीर-गम्भीर युधिष्ठिर ने अपने जीवन काल में अत्यधिक कष्ट भोगे थे, परन्तु उनके स्वभाव में परिवर्तन नहीं हुआ। दुःशासन द्वारा द्रौपदी का चीर-हरण व उसका अपमान किए जाने के पश्चात् भी युधिष्ठिर का मौन व शान्त रहने का कारण उनकी कायरता या दुर्बलता नहीं थी, अपितु उनकी धीरता व गम्भीरता का गुण था।।

3. अदूरदर्शी युधिष्ठिर सैद्धान्तिक रूप से अत्यधिक कुशल थे, परन्तु व्यावहारिक रूप से कुशलता का अभाव अवश्य है। वे गुणवान तो हैं, परन्तु द्रौपदी को दांव पर लगाने जैसा मूर्खतापूर्ण कार्य कर बैठते हैं। परिणामस्वरूप इस फर्म का दूरगामी परिणाम उनकी दृष्टि से ओझल हो जाता है और चीर-हरण जैसे कुकृत्य को जन्म देता है। इस प्रकार युधिष्ठिर अदूरदर्शी कहे जाते हैं।

4. विश्व-कल्याण के अग्रदूत युधिष्ठिर का व्यक्तित्व विश्व-कल्याण के प्रवर्तक के रूप में देखा गया है। इस गुण के सन्दर्भ में धृतराष्ट्र भी कहते हैं कि

“तुम्हारे साथ विश्व है, क्योंकि तुम्हारा ध्येय विश्व-कल्याण।”

अर्थात् धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर के साथ सम्पूर्ण विश्व को माना है, क्योंकि उनका उद्देश्य विश्व-कल्याण मात्र है।
5. सत्य और धर्म के अवतार युधिष्ठिर को सत्य और धर्म का अवतार माना गया है। इनकी सत्य और धर्म के प्रति अडिग निष्ठा है। युधिष्ठिर के इसी गुण पर मुग्ध होकर धृतराष्ट्र ने कहा कि हे युधिष्ठिर! तुम श्रेष्ठ व धर्मपरायण हो और इन्हीं गुणों को आधार बनाकर बिना किसी भय के अपना राज्य संभालो और राज करो।

निष्कर्ष स्वरूप कहा जा सकता है कि युधिष्ठिर इस खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र व नायक हैं, जिनमें विश्व कल्याण, सत्य, धर्म, धीर, शान्त व सरल हृदयी व्यक्तित्व का समावेश है।

प्रश्न 7.
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर दुःशासन के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2018)
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर दुःशासन का चरित्रांकन कीजिए।
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के आधार पर दुःशासन के चरित्र पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के प्रमुख पुरुष पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य में दुःशासन का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत खण्डकाव्य में दुःशासन एक प्रमुख पात्र है। यह दुर्योधन का छोटा भाई तथा धृतराष्ट्र का पुत्र है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

1. अहंकारी एवं बुद्धिहीन दुःशासन अत्यन्त अहंकारी एवं बुद्धिहीन है। उसे अपने बल पर अत्यन्त घमण्ड हैं। वह बुद्धिहीन भी है, विवेक से उसे कुछ लेना-देना नहीं है। वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ एवं महत्त्वपूर्ण मानता है। वह पशुबल में विश्वास करता है। वह भरी सभा में पाण्डवों का अपमान करता है। सत्य, प्रेम, अहिंसा की अपेक्षा वह पाश्विक शक्तियों को ही सब कुछ मानता है।
2. नारी के प्रति उपेक्षा भाव द्रौपदी के साथ हुए तर्क वितर्क से दुःशासन का नारी के प्रति रूढ़िवादी दृष्टिकोण प्रकट हुआ है। वह नारी को भोग्या और पुरुष की दासी मानता है। वह नारी की दुर्बलता का उपहास उड़ाता है। उसके अनुसार पुरुष ने ही विश्व का विकास किया है। नारी की दुर्बलता का उपहास उसने इन शब्दों में किया है

“कहाँ नारी ने ले तलवार, किया है पुरुषों से संग्राम।
जानती है वह केवल पुरुष-भुजाओं में करना विश्राम।”

3. शस्त्र-बल विश्वासी दुःशासन शस्त्र-बल को सब कुछ समझता है। उसे धर्मशास्त्र और धर्मज्ञों में विश्वास नहीं है। वह शस्त्र के समक्ष शास्त्र की अवहेलना करता है। शास्त्रज्ञाताओं को वह दुर्बल मानता हैं।
4. दुराचारी दुःशासन हमारे सम्मुख एक दुराचारी व्यथित के रूप में आता हैं। वह अपने बड़ों व गुरुजनों के सामने अभद्र व्यवहार करने में भी संकोच नहीं करता। द्रौपदी को सम्बोधित करते हुए दुःशासन कहता है

“विश्व की बात द्रौपदी छोड़,
शक्ति इन हाथों की ही तोल।
खींचता हूँ मैं तेरा वस्त्र,
पीट मत न्याय धर्म का ढोल।”

5. सत्य एवं सतीत्व से पराजित दुःशासन के चीर-हरण से असमर्थता इस तथ्य की पुष्टि करती हैं कि हमेशा सत्य की ही जीत होती है। वह जैसे ही द्रौपदी का चीर खींचने के लिए हाथ आगे बढ़ाता है, वैसे ही द्रौपदी के सतीत्व की ज्वाला से पराजित हो जाता हैं।

दु:शासन के चरित्र की दुर्बलताओं का उद्घाटन करते हुए डॉ. ओंकारप्रसाद माहेश्वरी लिखते हैं, “लोकतन्त्रीय चेतना के इस युग में अब भी कुछ ऐसे साम्राज्यवादी प्रकृति के दु:शासन हैं, जो दूसरों के बढ़ते मान-सम्मान को नहीं देख सकते तथा दूसरों की भूमि और सम्पत्ति को हड़पने के लिए प्रतिक्षण घात लगाए हुए बैठे रहते हैं। इस काव्य में
दुःशासन उन्हीं का प्रतीक है।

प्रश्न 8.
‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्रों का संक्षेप में परिचय दीजिए। (2016)
उत्तर:
इस खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र द्रौपदी और दुःशासन हैं। अन्य पात्रों में युधिष्ठिर, दुर्योधन, विकर्ण, विदुर और धृतराष्ट्र उल्लेखनीय हैं। जिनका संक्षेप में परिचय निम्नलिखित है।

  1.  दुःशासन दुःशासन, दुर्योधन का छोटा भाई व धृतराष्ट्र का पुत्र है। यह अहंकारी एवं बुद्धिहीन हैं। सत्य, प्रेम, अहिंसा के स्थान पर वह पाश्विक शक्तियों को महत्त्व देता है। दु:शासन का नारी के प्रति उपेक्षित भाव है। वह दुराचारी व शस्त्र-बल विश्वासी है। वह शस्त्र के समक्ष शास्त्र की अवहेलना करता है तथा शास्त्रज्ञाताओं को दुर्बल मानता है।
  2. द्रौपदी ‘सत्य की जीत’ खण्डकाव्य की नायिका द्रौपदी स्वाभिमानी, ओजस्वी, सशक्त एवं वाक्पटु वीरांगना के रूप में मुखरित हुई है। द्रौपदी पाण्डव-कुलवधू, सत्यनिष्ठ प्रिय, विवेकशील, निर्भक एव साहसी तथा न्याय की पक्षधर, सती साध्वी, नारीत्व के स्वाभिमान से मण्डित एवं नारी जाति का आदर्श है।
  3. दुर्योधन दुर्योधन, धृतराष्ट्र का सबसे बड़ा पुत्र है। इस खण्डकाव्य में दुर्योधन को भी दुःशासन के समान ही असत्य, अन्याय और अनैतिकता को समर्थक माना गया है। वह भी शस्त्रबल का पुजारी है। ईष्र्यालु प्रवृत्ति के कारण ही वह पाण्डवों की समृद्धि और मान-सम्मान से जलता रहा और इसी कारण उसने छल-कपट करके पाण्डवों के राज्य हड़प लिए। सत्ता लोलुपता दुर्योधन के चरित्र की महत्त्वपूर्ण विशेषता है।।
  4. युधिष्ठिर पाण्डवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर हैं। वह सरल हदयी व्यक्तित्व के हैं। धीर, गम्भीर, अदूरदर्शी, विश्व-कल्याण के अग्रदूत व सत्य और धर्म के अवतार आदि गुणों का समन्वय युधिष्ठिर के चरित्र में है। कवि ने युधिष्ठिर को आदर्श राष्ट्रनायक के रूप में प्रस्तुत किया है।
  5. पृतराष्ट्र इस खण्डकाव्य के आधार पर धृतराष्ट्र उदारता और विवेकपूर्णता के गुण से अभिभूत हैं। खण्डकाव्य के अन्तिम अंश में धृतराष्ट्र का उल्लेख हुआ है। वे दोनों पक्षों (पाण्डवों और कौरवों) के समल तक को सुनते हैं और सत्य को सत्य तथा असत्य को असत्य घोषित कर उचित न्याय की प्रक्रिया को पूर्ण करते हैं।
  6. विकर्ण एवं विदुर विकर्ण और विदुर दोनों अस्त्र शस्त्र शक्ति के घोर विरोधी हैं। वे शान्तिप्रिय हैं तथा शस्त्र-बल पर स्थापित शान्ति को प्रान्ति मानते हैं। दोनों पात्र कौरव-कुल के होने के पश्चात् भी द्रौपदी के समर्थन में हैं। ये दोनों पात्र न्यायप्रिय, स्पष्टवादी और निर्भीक हैं।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 2 सत्य की जीत help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 2 सत्य की जीत, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 5 कर्मनाशा की हार

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 5 कर्मनाशा की हार part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 5 कर्मनाशा की हार.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name कर्मनाशा की हार
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 5 कर्मनाशा की हार

कर्मनाशा की हार – पाठ का सारांश/कथावस्तु

(2018, 16, 14, 12)

भैरो पाण्डे एवं उनका भाई कुलदीप
कर्मनाशा नदी के किनारे नई डीह नामक एक गाँव है, जिसमें पैरों से अपाहिज मैरो पाण्डे नामक एक पण्डित रहता है। उनका छोटा भाई कुलदीप जब दो वर्ष का था, भी उन दोनों के माता पिता की मृत्यु हो गई। मैरों पाण्डे ने ही छोटे भाई कुलदीप का पालन-पोषण अपने पुत्र की तरह किया। कुलदीप अब 16 वर्ष का युवक हो गया है। भैरो पाण्डे का अपना पुश्तैनी मकान, जिसमें से हुए मैरों पाण्डे सूत कातकर जनेऊ धनाते, जजमानी चलाते हैं। इसके अतिरिक्त कथा बाँचते और अपना एवं अपने भाई का भरण-पोषण करते हैं।

कुलदीप एवं विधवा फुलमत के बीच प्रेम
एक दिन चाँदनी रात में मल्लाह परिवार की विधवा फुलमत मैरो पाण्डे के यहाँ अपनी बाल्टी माँगने आती है। बाल्टी देते समय कुलदीप फुलमत से टकरा जाता है। फुलमत मुस्कुराती है और कुलदीप उसकी और मुग्ध दृष्टि से देखता है। इसके बाद दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगते हैं।

भैरो पाण्डे के गुस्सा करने पर कुलदीप का घर से चले जाना
एक दिन चाँदनी रात में कर्मनाशा के तट पर कुलदीप एवं फुलमत मिलते हैं। पहले से ही दोनों पर नजर रख रहे मैरो पाण्डे को कुलदीप पर इतना क्रोध आता है कि वह उसके गाल पर थप्पड़ जड़ देता है। इस घटना के बाद कुलदीप घर से भाग जाता है और बहुत ढूँढने पर भी नहीं मिलता।

कर्मनाशा नदी में बाढ़ का आना
कुलदीप को घर से भागे 4-5 महीने बीत चुके हैं। कर्मनाशा नदी में बाढ़ आती हैं, जिससे होने वाली तबाही की आशंका से सभी भयभीत हैं। गाँव वालों में यह अन्धविश्वास प्रचलित है कि कर्मनाशा जब उमड़ती है, तो मानव-बलि अवश्य लेती हैं। फुलमत द्वारा बच्चे को जन्म देने की खबर गाँव में फैल जाती है और गाँव वाले कर्मनाशा की बाढ़ का कारण फुलमत को ही समझने लगते हैं। उसके बच्चे को उसका पाप समझते हैं। उनकी धारणा है कि पुलमत की बलि पाकर कर्मनाशा शान्त हो जाएगी।

भैरो पाण्डे का अन्तर्द्वन्द्व
जब यह सूचना मैरी पाण्डे को मिलती है तो पहले वे सोचते हैं कि चलो अच्छा ही है। परिवार के लिए कलंक बनाने वाली अपने आप ही रास्ते से हट जाएगी, लेकिन फिर उन्हें यह व्यवहार क्रूर, अमानवीय लगने लगता है और उनके मन में भावनाओं का संघर्ष होने लगता है। अन्त में सत्य एवं मानवीय भावनाओं की विजय होती है और वे फुलमत एवं उसके बच्चे को बचाने चल पड़ते हैं।

भैरो पाण्डे का अडिग एवं निर्भीक व्यक्तित्व
कर्मनाशा नदी के तट पर गांववासियों से घिरी फुलमत के पास पहुँचकर मैरो पाण्डे निर्भीक स्वर में कहते हैं कि उसने कोई पाप नहीं किया है। वह उनके छोटे भाई की पत्नी हैं, उनकी बहू है और उसका बच्य। उसके छोटे भाई का बना है। मुखिया इसे भी पाप कहकर इसका दण्ड भोगने की बात कर है, तब मैरी पाण्डे कठोर स्वर में कहता है। कि यदि वे एक-एक के पापों को गिनाने लगे, तो वहीं से सभी लोगों को कर्मनाशा की धारा में जाना पड़ेगा। सहमे हुए स्त ववाशी मैरों पाई के चट्टान की तरह अडिग व्यक्तित्व को देखते रह जाते हैं। कर्मनाशा की लहरें इस सूखी जड़ से टकराकर पछाड़ खा रही थीं, पराजित हो रही थीं। ‘कर्मनाशा की हार’ वस्तुतः रूकियों की हार है।

‘कर्मनाशा की हार’ कहानी की समीक्षा

(2018, 14, 13, 12, 10)

‘कर्मनाशा की हार’ शिवप्रसाद सिंह द्वारा रचित एक चरित्र प्रधान सामाजिक कहानी है। उन्होंने इस कहानी के माध्यम से समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता और अन्धविश्वास का विरोध किया है। प्रस्तुत कहानी की समीक्षा इस प्रकार है

कथानक
‘कनाशा की हार’ एक चरित्र प्रधान कहानी है। इसमें मैरो पाण्डे के व्यक्तित्व के माध्यम से बहानीकार ने प्रगतिशील सामाजिक दृष्टिकोण का समर्थन किया है। कहानी में कहीं भी दिखावा नहीं है। इसमें कहानीकार ने जीवन के छोटे-छोटे क्षणों को पिरोया है। लेखक ने कहानी के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि समाज का शक्तिशाली वर्ग समाज का ठेकेदार बना हुआ है। वह कुछ भी कर सकता है, जबकि कमजोर वर्ग यदि उन्हीं कार्यो को करता है, तो उन्हें दण्डित किया जाता है। इस कहानी में एक ब्राह्मण युवक कुलदीप अपने घर के समीप रहने वाली मल्लाह परिवार की विधवा फुलमत से प्रेम करने लगता है|

परिवार के सदस्य उसे स्वीकार नहीं करते तथा अपने बड़े भाई मैरों पाण्डे की डॉट से घबराकर कुलदीप घर छोड़कर भाग जाता है। फुलमत एक बच्चे को जन्म देती है। तभी र्मनाशा नदी में बाढ़ आ जाती है, जिसे लोग फुलमत के पाप का परिणाम मानकर उसे और उसके बच्चे को नदी में फेंककर बलि देना चाहते हैं, जिससे नदी में आई बाढ़ समाप्त हो। इसका विरोध करते हुए प्रगतिशील मैरी पाण्डे उसे अपनी कुलवधू के रूप में स्वीकार करके गाँव वालों का मुँह बन्द कर देते हैं।

पात्र और चरित्र-चित्रण
प्रस्तुत कहानी में मुख्य पात्र भैरो पाण्डे हैं। मैरो पाण्डे को ही कहानी का नायक भी कहा जा सकता है। इनका चरि-चित्रण बहुत ही मनोवैज्ञानिक ढंग से हुआ है। प्रारम्भ में वे लोक-लाज से आतंकित हैं, लेकिन शीघ्र ही उनमें मानवतावादी दृष्टिकोण प्रस्फुटित होता है। वे कायरता छोड़कर उदारता का परिचय देते हैं और मानवता की रक्षा के लिए पूरे समाज से ड़ि जाते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य उल्लेखनीय पात्रों में कुलदीप एवं फुलमत हैं।

कुलदीप में किसी सीमा तक मर्यादा का बोध भी है, जिसके कारण वह चुपचाप घर छोड़कर चला जाता है, जबकि फुलमत अपने प्रेम की निशानी अपने बच्चे को जन्म देकर अपनी पवित्र भावना को दर्शाती है। मुखिया ग्रामीण समाज का प्रतिनिधि तथा अन्धदियों का समर्थक चरित्र है। वह ईष्र्यालु एवं क्रूर है। इस प्रकार, चरित्र चित्रण की दृष्टि से यह एक सफल कहानी है।

कथोपकथन या संवाद
इस कहानी की संवाद योजना में नाटकीयता के साथ-साथ सजीवता तथा स्वाभाविकता के गुण भी मौजूद हैं। संवाद, पात्रों के चरि-उद्घाटन में सहायक हुए हैं, जिससे पात्रों की मनोवृत्तियों का उद्घाटन हुआ है। वे संक्षिप्त, रोचक, गतिशील, सरस और पात्रानुकूल हैं।

देशकाल और वातावरण
‘कर्मनाशा की हार’ एक आँचलिक कहानी है। इस कहानी में स्वाभाविकता लाने के उद्देश्य से वातावरण की सृष्टि की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। एक कुशल शिल्पी की तरह कथाकार नै देशकाल और वातावरण का चित्रण किया है। इसके अन्तर्गत सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक परिस्थितियों का चित्रण हुआ है। लेखक ने कर्मनाशा की बाढ़ का चित्र ऐसा खींचा है, जैसे पाठक किनारे पर खडा होकर बाढ़ का भीषण ढूश्य देख रहा हो |

भाषा-शैली
भाषा में ग्रामीण शब्दावली मानुष, डीह, तिताई, दस, बिटवा, चौरा आदि का प्रयोग किया गया है। साथ ही मुहावरे तथा लोकोक्तियों का भी प्रयोग करके कथा के वातावरण को सजीव बनाया गया है, जैसे-दाल में काला होना, पेट में जैसे-हौसला, सैलाब आदि के साथ-साथ दोहरे प्रयोग वाले शब्द; जैसे-लोग-बाग, उठल्ले-निठल्ले आदि के कारण भाषा में और अधिक सजीवता आ गई है।

इस कहानी में शिल्पगत विशेषताओं व अधिक फ्लैशबैक की पद्धति का प्रयोग करके लेखक ने घटनाओं की तारतम्यता को कुशलता से जोड़ा है। कहानी की शैली की एक और विशेषता है सजीव चित्रण और सटीक उपमाएँ। कहानीकार में बाढ़ की विभीषिका का बड़ा ही जीवन्त तथा रोमांचक चित्रण किया है।

उद्देश्य
उपेक्षिता के प्रति सहानुभूति एवं संवेदना व्यक्त करना तथा उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देना इस कहानी का एक मुख्य उद्देश्य है। इसमें शोषित वर्ग की आवाज को बुलन्द किया गया है। यह कहानी प्रगतिशीलता एवं मानवतावाद का समर्थन करती है। इसमें अन्धविश्वासों को खण्डित किया गया हैं तथा वैययिक व सामाजिक सभी प्रकार के स्तरों पर होने वाले शोषण का विरोध किया गया है।

शीर्षक
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक कथावस्तु को पूर्णतः सफल बनाने का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें प्रतीकात्मक भाव स्वतः ही देखने को मिलता है। ‘कर्मनाशा नदी’ को इस कहानी में अन्धकार निरर्थक तथा रूदि के प्रतीक के रूप में चित्रित कर कहानीकार ने अपनी लेखनी का सफल सामंजस्य किया है। अन्त में कर्मनाशा नदी को नरबलि का न मिलना उसकी हार तथा मानवता की विजय को प्रदर्शित करता है। अतः ‘कर्मनाशा की हार’ शीर्षक सरल, संक्षिप्त, नवीन व कौतूहलवक है, जो कहानी की कथावस्तु के अनुरूप सटीक व अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है।

भैरो पाण्डे का चरित्र-चित्रण

(2018, 17, 16, 14, 13, 12, 11, 10, 07)

शिवप्रसाद सिंह द्वारा रचित कहानी ‘कर्मनाशा की हार के मुख्य पात्र भैरो पाण्डे का प्रगतिशील एवं निर्भीक चरित्र रूढ़िवादी समाज को फटकारते हुए सत्य को स्वीकार करने की भावना को बल प्रदान करता है। मैरों पाण्डे के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं-

कर्तव्यनिष्ठा एवं आदर्शवादिता
भैरो पाण्डे पुरानी पीढ़ी के आदर्शवादी व्यक्ति हैं, जो अपने भाई को पुत्र की भाँति पालते हैं तथा पंगु होते हुए भी स्वयं परिश्रम करके अपने भाई की देखभाल में कोई कमी नहीं होने देते।

विचारशीलता
भैरो पाण्ड़े एक सच्चरित्र, गम्भीर एवं विचारशील व्यक्तित्व से सम्पन्न हैं। वे गाँव के सभी लोगों की वास्तविकता से परिचित हैं, लेकिन किसी के राज़ को कभी उजागर नहीं करते हैं। वे तथ्यों का बौद्धिक एवं तार्किक विश्लेषण करते हैं।

भ्रातृत्व-प्रेम
मैंरों पाण्डे को अपने छोटे भाई से अत्यधिक प्रेम है। उन्होंने पुत्र के समान अपने भाई का पालन-पोषण किया है। इसीलिए कुलदीप के घर से भाग जाने पर पाण्डे दुःख के सागर में डूबने-उतरने लगता है|

मर्यादावादी और मानवतावादी
प्रारम्भ में भैरो पाण्डे अपनी मर्यादावादी भावनाओं के कारण फुलमत को अपने परिवार का सदस्य नहीं बना पाते हैं, लेकिन मानवतावादी भावना से प्रेरित होकर वे फुलमत एवं उसके बच्चे की कर्मनाशा नदी में बलि देने का कड़ा विरोध करते है तथा उसे अपने परिवार का सदस्य स्वीकार करते हैं।

प्रगतिशीलता
मैरो पाण्ड़े के विचार अत्यन्त प्रगतिशील हैं। वे अन्धविश्वासों का खण्डन एवं रूढ़िवादिता का विरोध करने को तत्पर रहते हैं। ये कर्मनाशा की बाढ़ को रोकने के लिए निर्दोष प्राणियों की बलि दिए जाने सम्बन्धी अन्धविश्वास का विरोध करते हैं। वे बौद्धिक एवं तार्किक दृष्टिकोण से बाढ़ रोकने के लिए बाँध बनाने का उपाय सुझाते हैं।

निर्भीकता एवं साहसीपन
मैरो पाण्ड़े के व्यक्तित्व में निर्भीकता एवं साहसीपन के गुण निहित (समाए) हैं। वह मुखिया सहित गाँव के सभी लोगों के सामने अत्यन्त ही निडरता के साथ कर्मनाशा को मानव बल दिए जाने का विरोध करता है। यह साहस से कहते हैं कि यदि लोगों के पापों का हिसाब देने लगें तो यहाँ उपस्थित सभी लोगों को कर्मनाशा की धारा में समाना होगा। उनकी निभव।। एवं साहस देखकर सभी लोग स्तब्ध रह जाते हैं। इस प्रकार, मैरो पाण्ड़े मानवतावादी भावना के बल पर सामाजिक रूदियों का निडरता के साथ विरोध करते हैं तथा कर्माशा की लहरों को पराजित होने के लिए विवश कर देते हैं।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 5 कर्मनाशा की हार help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 5 कर्मनाशा की हार, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 4 बहादुर

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 4 बहादुर part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 4 बहादुर.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name बहादुर
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 4 बहादुर

बहादुर – पाठ का सारांश/कथावस्तु

(2018, 16)

‘दिलबहादुर’ से ‘बहादुर’ बनने की प्रक्रिया ‘दिलबहादुर लगभग 12-13 वर्ष का एक पहाड़ी नेपाली लड़का है, जिसके पिता की युद्ध में मृत्यु हो चुकी है और उसकी माँ बहुत गुस्सैल स्वभाव की है। माँ की पिटाई की वजह से वह घर से भाग कर एक मध्यम वर्गीय परिवार में नौकर बन जाता है, जहाँ गृहस्वामिनी निर्मला बड़ी उदारता के साथ उसके नाम से ‘दिल’ शब्द हटाकर उसे सिर्फ बहादुर पुकारती है। अब स्वतन्त्र ‘दिलबहादुर’ नौकर ‘ बहादुर’ बन गया।

परिश्रमी एवं हँसमुख बहादुर
बहादुर अत्यन्त परिश्रमी लड़का है, जो अपनी मेहनत से पूरे घर को न केवल साफ़ सुथरा रखता है, बल्कि घर के सभी सदस्यों की सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है। उसके आने से परिवार के सभी सदस्य बड़े ही आरामतलबी एवं कम्पोर या आलसी बन गए हैं। इतना काम करने के बावजूद वह हमेशा हंसत। रहता है। सना और हंसाना मानो उसकी आदत बन गई थी। वह रात में सोते समय कोई-न-कोई गीत अवश्य गुनगुनाता है।

किशोर की बदतमीजी
निर्मला का बड़ा लड़का किशोर एक बिगड़ा हुआ लड़का था, जो शान-शौकत तथा रोय से रहना पसन्द करता था। उसने अपने सारे काम बहादुर को सौंप दिए। यदि बहादुर उसके काम में थोड़ी-सी भी लापरवाही करता, तो वह बहादुर को गालियाँ देता। छोटी-छोटी गलती पर वह बहादुर को पीटता भी था। बहादुर पिटाई खाकर एक कोने में चुपचाप खड़ा हो जाता और कुछ देर बाद घर के कामों में पूर्ववत् जुट जाता।

एक दिन किशोर ने बहादुर को ‘सुअर का बच्चा’ कह दिया, जिससे उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँची और उसने किशोर का काम करने से मना कर दिया। उसने लेखक के पूछने पर रोते हुए कहा कि-”बाबूजी, मैया ने मेरे मरे बाप को क्यों लाकर खड़ा किया?” इतना कहकर वह रो पड़ा।

निर्मला के रिश्तेदार द्वारा चोरी का आरोप लगाना
धीरे-धीरे निर्मला के व्यवहार में भी अन्तर आने लगा और अब उसने बहादुर के लिए रोटियाँ सेंकनी बन्द कर दीं। वह भी बहादुर पर हाथ उठाने लगी। मारपीट एवं गालियों के कारण बहादुर से गलतियाँ एवं भूलें अधिक होने लगीं। एक दिन निर्मला के घर उसके रिश्तेदार अपने परिवार के साथ आए। चाय-नाश्ते के बाद बातचीत के दौरान अचानक रिश्तेदार की पत्नी ने अपने ग्यारह रुपये घर में खो जाने की बात कही। सभी ने बहादुर पर ही शक किया। बहादुर के लगातार मना करने के बावजूद उसे डराया, धमकाया एवं पीटा गया, चूंकि बहादुर पर लगा यह आरोप झूठा था, इसलिए वह लगातार इससे इनकार करता रहा। अन्त में लेखक ने भी उसे पीटा।

बहादुर के प्रति घरवालों का कटुतापूर्ण व्यवहार
इस घटना के बाद से घर के सभी सदस्य बहादुर को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे और उसे कुत्ते की तरह दुत्कारने लगे। बहादुर भी बहुत ही खिन्न रहने लगा। अब उसके अन्दर परिवार के लोगों के प्रति अपनापन नहीं रहा। अन्दर से वह बड़ी बेचैनी एवं बन्धन महसूस करता था।

बहादुर का घर से भाग जाना
एक दिन उसके हाथ से सिल छूटकर गिर गई और उसके दो टुकड़े हो गए। पिटाई के डर तथा लोगों के क्रूर एवं असभ्य व्यवहार से तंग आकर वह अपना सारा सामान घर में ही छोड़कर कहीं चला गया। वह अपना भी कोई सामान लेकर नहीं गया। निर्मला, उसके पति एवं किशोर को उसकी ईमानदारी पर विश्वास हो गया था। वे जानते थे कि रिश्तेदार के रुपये उसने नहीं चुराए थे। सभी बहादुर पर स्वयं द्वारा किए गए अत्याचारों के लिए पश्चाताप करने लगे।

‘बहादुर’ कहानी की समीक्षा

(2018, 17, 16, 14, 13, 11, 10)

श्री अमरकान्त द्वारा रचित ‘बहादुर’ कहानी एक मध्यमवर्गीय परिवार के जीवन से सम्बन्धित समस्याओं पर आधारित है। इसमें एक बेसहारा पहाडी लड़के की मार्मिक कथा का वर्णन है। कहानी के तत्वों के आधार पर प्रस्तुत कहानी की समीक्षा इस प्रकार हैं-

कथानक
इस कहानी की कथावस्तु में मध्यम वर्गीय परिवार की साधारण सी लगने वाली कई बातों के माध्यम से मानवीय करुणा को प्रदर्शित किया गया है। आरम्भ से अन्त तक यह कहानी बहादुर के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं। सहजता, रोचकता, संक्षिप्तता कहानी की विशेषता है तथा यह एक यथार्थवादी कहानी भी है।

बहादुर एक बेसहारा पहाड़ी नेपाली लड़का है। उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है और उसकी माँ उसे हमेशा मारती रहती हैं, जिससे तंग आकर वह घर से भाग जाता है और एक मध्यम वर्गीय परिवार में घरेलू नौकर के रूप में नौकरी करने लगता है। वह हँसमुख, ईमानदार और परिश्रमी लड़का है। निर्मला, जो गृहस्वामिनी है, बहादुर का पूरा ध्यान रखती हैं। निर्मला का बड़ा लड़का किशोर बहादुर पर पूरी तरह आश्रित है। इसके बावजूद वह ज़रा-जरा सी बात पर बहादुर को गालियाँ देता है तथा पीटता है। कुछ दिन बाद निर्मला का व्यवहार भी बहादुर के प्रति बदल जाता है। एक दिन किशोर ने बहादुर के पिता को सम्बोधित कर गाली दे दी, जो बहादुर को बहुत बुरी लगी और उस दिन उसने न तो कोई काम किया और न ही खाना खाया। एक दिन निर्मला के घर कुछ रिश्तेदार आए, उन्होंने बहादुर पर ग्यारह रुपये चोरी करने का आरोप लगाया तथा इसी के लिए निर्मला के पति ने बहादुर की पिटाई कर दी। इस घटना से बहादुर बहुत आहत हो गया और वह चुपचाप घर छोड़कर चला गया। उसके जाने के बाद घर वालों को उसकी कमी महसूस हुई और बाद में सभी लोग पश्चाताप करने लगे। इस प्रकार यह कहानी एक अल्पवयस्क नौकर के मनोविज्ञान को भी प्रकट करती है।

पात्र और चरित्र-चित्रण
प्रस्तुत कहानी का सर्वाधिक प्रमुख पात्र एवं नायक बहादुर है, जिस पर पूरा कथानक टिका हुआ है। इस चरित्र के महत्व का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इस चरित्र के आधार पर ही कहानी का शीर्षक रखी गया है। उसके स्वभाव में कुछ ऐसी सरसता, भोलापन, करुणा एवं वेदना है, जिसके कारण उसे नज़रअन्दाज़ करना असम्भव है। अन्य पात्रों में निर्मला जो पर की स्वामिनी है, निर्मला का पति व निर्मला का पुत्र किशोर जोकि बिगड़ा हुआ | नवयुवक है तथा नौकर को हीन दृष्टि से देखता है।

कथोपकथन या संवाद
इस कहानी के संवाद अत्यन्त सरल, संक्षिप्त, स्वाभाविक, स्पष्ट, रोचक, सार्थक तथा गतिशील हैं। ये पात्रों के अनुकूल तथा सटीक हैं। संवाद संक्षिप्त तथा स्वाभाविक कथोपकथन पर आधारित हैं।

देशकाल और वातावरण
कहानी में देशकाल और वातावरण का भी ध्यान रखा गया है। कहानी में निम्न तथा मध्यम वर्गीय परिवार के लिए सजीव तथा स्वाभाविक वातावरण का चित्रण किया गया है। नौकर पर रोब जमाना, उससे जी तोड़ काम कराना, उसे बात-बात पर बार-बार पीटना, गाली देना आदि घटनाओं ने पारिवारिक वातावरण को मार्मिक बना दिया है।

भाषा-शैली
प्रस्तुत कहानी में अमरकान्त नै सरल, स्वाभाविक और सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है तथा चित्रात्मक शैली का भी प्रयोग किया गया है। भाषा कथा के अनुरूप है, जिसमें अन्य भाषाओं के शब्द भी लिए गए हैं, जैसे-शरारत, ओहदा, किस्सा, ज़रा आदि उर्दू शब्द है। लोकोक्तियों तथा मुहावरों का भी प्रयोग हुआ है; जैसे–माथा ठनकना, नौ दो ग्यारह होना, पंच बराबर होना आदि। इसके अतिरिक्त इसमें वर्णनात्मक, काव्यात्मक और आलंकारिक शैली का प्रयोग किया गया है।

उद्देश्य
यह कहानी निम्न एवं मध्यमवर्गीय समाज के मनोविज्ञान के वास्तविक चित्र को प्रदर्शित करती है। इस कहानी के माध्यम से वर्ग भेद मिटाने को प्रोत्साहन दिया गया है, जो मानवीय सहानुभूति के आधार पर ही मिट सकता है।

शीर्षक
कहानी का ‘बहादुर’ शीर्षक आकर्षक व मुख्य पात्राधारित है। अमरकान्त जी की कहानी के शीर्थक व्यक्ति विशेष से सम्बन्धित हैं। सम्पूर्ण कहानी की कथावस्तु घटनाएँ ‘बहादुर’ के इर्द-गिर्द घूमती हैं। ‘बहादुर’ कहानी का शीर्षक अत्यन्त सरल, संक्षिप्त एवं रोचक है, जो पाठक के मन में कौतूहलता उत्पन्न करता है। अतः शीर्षक की दृष्टि से ‘बहादुर’ कहानी सफल व सार्थक है।

‘बहादुर’ का चरित्र-चित्रण

(2017, 16, 14, 13, 11, 10)

अमरकान्त द्वारा लिखित कहानी ‘बहादुर’ में मुख्य रूप से चार पात्र हैं-लेखक या निर्मला का पति, निर्मला, पुत्र किशोर तथा पहाड़ी नौकर दिलबहादुर, जिसे निर्मला ने केवल बहादुर नाम दे दिया था और यही बहादुर कहानी का नायक हैं। बहादुर के चरित्र की अनेक विशेषताएँ हैं, जिन्हें निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर देखा जा सकता है-

छल-कपट रहित भोला बालक
12-13 वर्ष का नेपाली बालक बहादुर बहुत ही भोला है और छल-कपट से कोसों दूर है। उसमें न तो किसी प्रकार की कृत्रिमता या बनावटीपन है और न ही किसी बात को छिपाने की कला। वह किसी भी बात का बिलकुल सच एवं स्पष्ट उत्तर देता है।

परिश्रमी
बहादुर अत्यन्त परिश्रमी लड़का है। वह घर के सभी सदस्यों के अधिश कार्यों को करता है और उन्हें करते हुए न कोई आलस्य दिखाता है और न कोई अनमनापन। वह बड़े ही प्यार एवं जिम्मेदारी के साथ अपने कार्यों को सम्पन्न करता है।

हँसमुख एवं मृदुभाषी
बहादुर हर समय हँसते रहने वाला लड़का है। वह किसी भी बात कहकर अपनी नैसर्गिक, स्वाभाविक हँसी जरूर हँसता है, जो सामने देखने सुनने वालों के हृदय को । झंकृत कर देती हैं। वह सभी लोगों के प्रश्नों का उत्तर बड़े ही मीठे स्वर में हँसकर देता है।

ईमानदार एवं सच्चा हृदय
गरीब होने के बावजूद भी बहादुर अत्यधिक ईमानदार बालक है, जिसे बेईमानी हूँ तक नहीं पाई है। उसके मन में कोई लालच नहीं है। घर में कहीं गिरे या पड़े पैसों को वह निर्मला के हाथों में रख देता है। वह घर छोड़कर जाते समय भी अपना सामान तक नहीं ले जाती हैं।

सहनशील एवं स्वाभिमानी
बहादुर बड़ा ही सहनशील बालक है। वह घर के सारे काम करने के बावजूद निर्मला की झाँट खाता रहता है। किशोर द्वारा भी कई बार बदतमीज़ियाँ की जाती हैं, जिन्हें वह थोड़ी देर में ही भूल जाता है और अपने काम में पूर्ववत् लग जाता है। एक बार किशोर द्वारा उसके पिता से सम्बन्धित गाली देने पर उसका स्वाभिमान जाग जाता है। वह किशोर का काम करने से इनकार कर देता है।

मातृ-पितृभक्त बालक
बहादुर का हृदय मातृभक्ति एवं पितृभक्ति की भावना से ओत-प्रोत हैं। माँ द्वारा पीटे जाने के कारण घर से भागा बहादुर माँ के पास जाना नहीं चाहता, लेकिन मात-पिता के प्रति अपने फर्ज को वह अच्छी तरह समझता है।। इसीलिए वह अपने कमाए पैसों को माँ को ही देना चाहता है। अपने पिता के प्रति प्रेम ने ही उसे किशोर का काम करने से मना करने हेतु प्रेरित किया।

व्यवहार कुशल
बहादुर बहुत व्यवहार कुशल बालक हैं। इसी व्यवहार कुशलता के कारण वह घर के सभी सदस्यों को अत्यधिक प्रभावित कर देता है। मोहल्ले के बच्चों को भी वह अपने गाने सुनाकर मोहित कर लेता है।

स्नेही बालक
वह निर्मला के अन्दर अपनी माँ की छवि देखता है। वह स्नेह का भूखा है। जब निर्मला उसका ध्यान रखती है, तो वह भी बीमार निर्मला का बहुत ध्यान रखता हैं। उसे निर्मला के स्वास्थ्य की बहुत चिन्ता है। इस प्रकार, बहादुर पाठकों के हृदय-पटल पर अपना अमिट चित्र अंकित कर देता है। पाठक उसे लम्बे समय तक याद रखते हैं।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 4 बहादुर help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi कहानी Chapter 4 बहादुर, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ.

Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name मुक्तियज्ञ
Number of Questions Solved 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ

कथावस्तु पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं पर प्रकाश डालिए। (2018)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की पृष्ठभूमि संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए। (2018)
अथवा
मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए। (2018, 17, 16)
अथवा
“मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में ऐतिहासिक तथ्यों की प्रधानता है।” उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए। (2017)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का कथासार अपने शब्दों में लिखिए। (2016)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का कथानक, संक्षेप में लिखिए। (2018, 16)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का कथानक/कथावस्तु / प्रतिपाद्य और / कथावस्तु दृष्टिकोण को संक्षेप में लिखिए। (2013, 12, 11, 10)
अथवा
“मुक्तियज्ञ गाँधी युग के स्वर्ण इतिहास का काव्यात्मक आलेख है।” पुष्टि कीजिए। (2014, 13, 11, 10)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधीजी का भारत के लिए योगदान पर प्रकाश डालिए। (2011)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य द्वारा कवि सुमित्रानन्दन पन्त ने स्वतन्त्रता प्राप्ति से उपजी किन समस्याओं की ओर पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया है? (2011)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में वर्णित प्रमुख राजनैतिक घटनाओं पर प्रकाश डालिए। (2014, 13, 12, 11)
उत्तर:
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘लोकायतन’ महाकाव्य का एक अंश है। इसमें वर्ष 1921 से 1947 तक के मध्य घटित भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया गया है। अंग्रेज़ शासकों ने नमक पर कर लगा दिया था। महात्मा गाँधी ने इसका विरोध किया। वे साबरमती आश्रम से चौबीस दिनों की यात्रा करके डाण्डी ग्राम पहुँचे और सागरतट पर नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा।

वह चौबीस दिनों का पथ ब्रत, दो सौ मील किए पद पावन।
स्थल-स्थल पर रुक, पा जन पूजन, दिया दीप्त सत्याग्रह दर्शन।”

इसके माध्यम से वे अंग्रेज़ों के इस कानून का विरोध करके जनता में चेतना उत्पन्न करना चाहते थे। उनके इस विरोध का आधार सत्य और अहिंसा था। गाँधीजी के इस सत्याग्रह से शासक क्षुब्ध हो गए और उन्होंने भारतीयों पर दमनचक्र चलाना आरम्भ कर दिया। गाँधीजी तथा अनेक नेताओं को जेल में डाल दिया गया। भारतीयों द्वारा जेलें भरी जाने लगीं। जैसे-जैसे दमनचक्र बढ़ता गया वैसे वैसे मुक्तियज्ञ भी बढ़ता चला गया। गाँधीजी ने भारतीयों को स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया। सभी ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना प्रारम्भ कर दिया। वर्ष 1927 में भारत में ‘साइमन कमीशन’ आया, भारतीयों ने इसका बहिष्कार किया, जिस कारण साइमन कमीशन को वापस जाना पड़ा। वर्ष 1942 में गाँधीजी ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा दिया। अब सब पूर्ण स्वतन्त्रता चाहते थे।

अंग्रेजों ने ‘फूट डालो’ की नीति अपनाकर ‘मुस्लिम लीग’ की स्थापना करा दी। मुस्लिम लीग ने भारत विभाजन की माँग की। वर्ष 1947 में भारत को पूर्ण स्वतन्त्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया। अंग्रेजों ने भारत और पाकिस्तान के रूप में देश का विभाजन कर दिया। देश में एक ओर तो स्वतन्त्रता का उत्सव मनाया जा रहा था, वहीं दूसरी ओर विभाजन के विरोध में गाँधीजी मौन-व्रत धारण किए हुए थे। वे चाहते थे कि हिन्दू-मुस्लिम पारस्परिक वैर को त्यागकर सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि सात्विक गुणों को अपनाएं और मिल-जुलकर रहें।। इस प्रकार ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य देशभक्ति से परिपूर्ण, गाँधी युग के स्वर्णिम इतिहास का काव्यात्मक आलेख है। इसमें उस युग का वर्णन है, जब भारत में चारों ओर हलचल मची हुई थी, चारों ओर क्रान्ति की अग्नि धधक रही थी। कविवर पन्त ने महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व और कृतित्व के माध्यम से विभिन्न आदशों की स्थापना का सफल प्रयास किया है।

प्रश्न 2.
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2018)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की विशेषताओं को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए। (2017)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की विशेषताएँ संक्षेप में लिखिए। (2017)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की कथावस्तु की समीक्षा कीजिए। (2013, 10)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खाण्डकाव्य की कथावस्तु की विशेषताएँ बताइए। (2014, 12)
अथना
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2017, 14)
अथवा
खण्डकाव्य के लक्षणों के आधार पर ‘मुक्तियज्ञ’ की समीक्षा कीजिए। (2010)
उत्तर:
पन्त जी द्वारा रचित ‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु की मुख्य विशेषताएँ निम्नांकित हैं।

1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि मुक्तियज्ञ’ के कथानक की पृष्ठभूमि अत्यधिक विस्तृत है। इसमें वर्ष 1921 से 1947 तक के भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का इतिहास है। प्रमुख रूप से इसमें भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की मुख्य पटनाओं का वर्णन है। साथ ही तत्कालीन विश्व की महत्त्वपूर्ण पटनाओं; जैसे—द्वितीय विश्वयुद्ध, जापान पर गिराए गए अणु बमों आदि का भी उल्लेख हुआ है। इसकी व्यापकता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इसकी कथावस्तु एक महाकाव्य में समाहित हो सकती थी, किन्तु पन्त जी ने बड़ी कुशलता से इस विशाल फलक को एक छोटे से खण्डकाव्य में समेट लिया है। अत: यह कहा जा सकता है कि आकार में लागु होते हुए भी ‘मुक्तियज्ञ’ में महाकाव्य जैसी गरिमा है। इसे लोकहित की दृष्टि से रचा गया है। कहीं भी काल्पनिक घटनाओं का वर्णन नहीं है। मुक्तियज्ञ की कथावस्तु का स्वरूप ऐतिहासिक है।

2. प्रमुख घटनाओं का काव्यात्मक वर्णन मुक्तियज्ञ’ सुनियोजित या सर्गबद्ध रचना नहीं है। इसमें वर्ष 1921 से 1947 तक की प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया गया है। कथावस्तु में ऐतिहासिकता का ध्यान रखा गया है। ‘मुक्तियज्ञ’ से पूर्व जितने भी खण्डकाव्य लिखे गए, उन सभी में कथावस्तु इतिहास और पुराणों से ली गई है। यह पहला ऐसा खण्डकाव्य है, जिसमें पहली बार किसी कवि ने आधुनिक युग में घटित घटनाओं पर दृष्टि डाली। इस दृष्टि से इस खण्डकाव्य का विशेष महत्व है। इसमें कवि ने आधुनिक इतिहास से सामग्री ग्रहण की हैं।

3. गाँधीवाद की राष्ट्रीय विचारधारा को चिन्तन ‘मुक्तियज्ञ’ में गांधीवादी विचारधारा का चित्रण हुआ हैं। कथानक इतिहास पर आधारित है। कथा में भावात्मकता और काव्यात्मकता का सुन्दर मिश्रण है। इसमें सत्य, अहिंसा, नारी जागरण, आत्म स्वतन्त्रता, हरिजनोद्धार, नशाबन्दी आदि विचारधाराओं को सुन्दर काव्यात्मक रूप प्रदान किया गया है।

4. सरल अभिव्यक्ति ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में गत तत्त्वों की सरल अभिव्यक्ति की गई है। कवि ने आलंकारिकता अथवा प्रतीकात्मकता को सहायता नहीं ली है, अपितु ऐतिहासिक तथ्यों की रक्षा के लिए सरलता का विशेष ध्यान रखा है। कवि ने काव्यालंकारों का प्रयोग नहीं करके इसे बोझिल होने से बचा लिया है। इस खण्डकाव्य की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें स्वतन्त्रता संग्राम की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का समावेश किया गया है।

5. सफल कथावस्तु ‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु अत्यन्त विशाल है, जो एक खण्डकाव्य में समाविष्ट नहीं हो सकती। वर्ष 1921 से 1947 तक की घटनाओं को एक खण्डकाव्य में वर्णित नहीं किया जा सकता था, किन्तु पन्त जी ने इस काल की प्रमुख घटनाओं को काव्य के कथानक में इस प्रकार जोड़ा है कि सम्पूर्ण घटनाएँ हमारे सामने सजीव हो उठती हैं। इस प्रकार मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य सत्य पर आधारित खण्डकाव्य है। इसमें महात्मा गाँधी । ने जो कुछ भी किया वह राष्ट्र, समाज और मानवता के कल्याण के लिए किया।

प्रश्न 3.
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के नामकरण या शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए। (2016, 15)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की रचना के उद्देश्य /सन्देश पर प्रकाश डालिए। (2010)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में प्रतिपादित सामाजिक चेतना पर प्रकाश डालिए। (2011)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में अभिव्यक्त गाँधी दर्शन की आत्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि को स्पष्ट कीजिए। (2011)
उत्तर:

नामकरण की सार्थकता

‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का सम्पूर्ण कथानक भारत के स्वतन्त्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है। इसके नायक महात्मा गाँधी हैं, जो परम्परागत नायकों से हटकर हैं। इनका यही व्यक्तित्व भारतीय जनता को प्रेरणा और शक्ति देता है। भारत को स्वतन्त्र कराने के लिए इन्होंने एक प्रकार से यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें अनेक देशभक्तों ने हँसते-हँसते अपने प्राणों की आहुति दे दी, अपनी सर्वस्व बलिदान कर दिया। देश की मुक्ति के लिए चलाए गए यज्ञ के कारण ही इस खण्डकाव्य का नाम ‘मुक्तियज्ञ’ रखा गया, जो पूर्णतया सार्थक एवं उचित है।

मुक्तिया खण्डकाव्य का उद्देश्य

‘मुक्तियज्ञ’ एक उद्देश्य प्रधान रचना है। कवि इस रचना के माध्यम से मनुष्य को परतन्त्र भारत की भीषण परिस्थितियों से परिचित कराना चाहता है। इस उद्देश्य में कवि पूर्णतया सफल रहा हैं। कवि ने आधुनिक युग की घटना को खण्डकाव्य का विषय बनाया है। उनका उद्देश्य भावी पीढ़ी को देश की आजादी के इतिहास से परिचित कराना है, साथ ही गाँधी दर्शन की महत्त्वपूर्ण भूमिका को प्रदर्शित करना है। कवि ने पश्चिमी भौतिकवादी दर्शन और गाँधीवादी मूल्यों के बीच संघर्ष का चित्रण किया है और अन्त में गाँधीवादी जीवन मूल्यों की विजय का शंखनाद किया है।

कवि का उद्देश्य असत्य पर सत्य की विजय, हिंसा पर अहिंसा की विजय दिखाकर मानवता के प्रति सच्ची आस्था उत्पन्न करना है तथा जन-जन में विश्वबन्धुत्व और प्रेम की भावना का संचार करना है।

पन्त जी ने ‘मुक्तियज्ञ’ के माध्यम से लोक कल्याण का सन्देश दिया है। काव्य के नायक गाँधीजी क्रो लोकनायक के रूप में चित्रित कर जातिवाद, साम्प्रदायिकता और रंगभेद का कट्टर विरोध किया है। कवि का उद्देश्य केवल स्वतन्त्रता संग्राम के दृश्यों का चित्रण करना ही नहीं है वरन् कवि ने शाश्वत जीवन मूल्यों का भी उद्घोष किया है जो सत्य, अहिंसा, त्याग, प्रेम और करुणा की विश्वव्यापी भावनाओं पर आधारित हैं। गाँधीवादी दर्शन को माध्यम बनाकर कवि ने विश्वबन्धुत्व और मानवतावाद सम्बन्धी आदर्शों की स्थापना की है।

प्रश्न 4.
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावनाओं पर प्रकाश डालिए। (2016)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का प्रतिपादन किया गया है।” इस कथन की विवेचना कीजिए। (2014, 13)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ में प्रतिपादित सामाजिक चेतना पर प्रकाश डालिए। (2011)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में राष्ट्रीय एकता तथा मानवमात्र का कल्याण निहित है।” इस कथन की विवेचना कीजिए (2018, 09)
उत्तर:
कवि ने आधुनिक युग की घटना को खण्डकाव्य का विषय बनाया है। उनका उद्देश्य भावी पीढ़ी को देश की आज़ादी के इतिहास से परिचित कराना हैं। साथ ही गाँधी दर्शन की महत्त्वपूर्ण भूमिका को प्रदर्शित करना है। कवि ने पश्चिमी भौतिकवादी दर्शन और गाँधीवादी मूल्यों के बीच संघर्ष का चित्रण किया है और अन्त में गाँधीवादी जीवन मूल्यों की विजय का शंखनाद किया है। पन्त जी ने ‘मुक्तियज्ञ’ के माध्यम से लोक कल्याण का सन्देश दिया है। काव्य के नायक गाँधीजी को लोकनायक के रूप में चित्रित कर जातिवाद, साम्प्रदायिकता और रंगभेद का कट्टर विरोध किया है।

कवि का उद्देश्य केवल स्वतन्त्रता संग्राम के दृश्यों का चित्रण करना ही नहीं है वरन् कवि ने शाश्वत जीवन मूल्यों का भी उद्घोष किया है, जो सत्य, अहिंसा, त्याग, प्रेम और करुणा की विश्वव्यापी भावनाओं पर आधारित है। कवि ने इस कृति काव्य में सत्य की असत्य पर विजय और अहिंसा की हिंसा पर विजय दर्शाकिर मानवता के प्रति सच्ची आस्था व्यक्त की है। इससे विश्वबन्धुत्व, प्रेम और सहयोग की भावना सशक्त होगी और विश्व में एकता स्थापित होगी। कवि का यह जीवन दर्शन भारतीय स्वतन्त्रता के आन्दोलन की पृष्ठभूमि में कवि ने गाँधीवादी दर्शन को माध्यम बनाकर विश्वबन्धुत्व और मानवतावाद सम्बन्धी आदशों की स्थापना की है। मुक्तियज्ञ’ का यह पवित्र धुआँ समस्त संसार की मानवता और सांसारिक प्रेम का विस्तृत स्वरूप, प्रहण कर लेता है।

“हिरोशिमा नागासाकी पर, भीषण अणुबम का विस्फोटन,
मानवता के मर्मस्थल का, कभी भरेगा क्या दुःसह व्रण।”

प्रश्न 5.
खण्डकाव्य की दृष्टि से मुक्तियज्ञ’ की समीक्षा कीजिए।
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ के वाक्य कौशल पर प्रकाश डालिए।
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ की भाषा-शैली की क्या विशेषताएँ हैं? (2010)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ की भाषा-शैली पर उदाहरण सहित प्रकाश डालिए। (2012, 11)
अथवा
“आकार की लघुता के बावजूद ‘मुक्तियज्ञ’ की आत्मा में एक महाकाव्य जैसी गरिमा है।” इस कथन की विवेचना कीजिए। (2011, 10)
अथवा
खण्डकाव्य के लक्षणों के आधार पर ‘मुक्तियज्ञ’ की समीक्षा कीजिए। (2010)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु खण्डकाव्य की दृष्टि से कितनी सफल है? स्पष्ट कीजिए। (2015)
अथवा
खण्डकाव्य के लक्षणों (विशेषताओं) का ध्यान रखते हुए सिद्ध कीजिए कि ‘मुक्तियज्ञ’ एक सफल खण्डकाव्य है। (2013, 12)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की रचना में कवि की सफलता का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
किसी भी साहित्यिक रचना के काव्य-सौन्दर्य के दो प्रकार होते हैं।

  1. भावपक्ष
  2. शिल्पपक्ष अथवा कलापक्ष।

इन दोनों प्रकारों को दृष्टिगत रखते हुए ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का काव्य-सौन्दर्य निम्न प्रकार है । भावपक्षीय विशेषताएँ ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की भावपक्षीय विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं।

(i) वैचारिक प्रधानता सुमित्रानन्दन पन्त’ द्वारा रचित खण्डकाव्य ‘मुक्तियज्ञ’ विचार प्रधान खण्डकाव्य है। इसमें गाँधीदर्शन की विस्तृत व्याख्या की गई है। कवि ने गांधीजी के विचारों को बड़े ही सरल, सरस और रुचिकर ढंग से प्रस्तुत किया हैं। कवि ने गाँधीजी की विचारधारा को सत्य, अहिंसा, प्रेम, नारी-जागरण, हरिजनोद्धार, भारतीय कला और संस्कृति की रक्षा, अतिभौतिकता का विरोध, मदिरा के विरुद्ध आन्दोलन तथा स्वदेशी वस्तुओं के अपनाने और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के रूप में प्रस्तुत किया है। समस्त काव्य गम्भीरता से परिपूर्ण है। गाँधीदर्शन एवं भारत के स्वतन्त्रता-संग्राम के भावों को सरल ढंग से प्रस्तुत करते हुए उसका सम्बन्ध विश्व मानवतावाद से जोड़ा है; जैसे-

“प्रतिध्वनित होता जगती में, भारत आत्मा का नैतिक पण,
नई चेतना शिखा जगाता, आत्म-शक्ति से लोक उन्नयन।’

(ii) युग चित्रण कवि ने इस खण्डकाव्य में भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम का पूर्णरूपेण वर्णन किया है। गाँधीजी के पथ-प्रदर्शन में स्वाधीनता आन्दोलन, अंग्रेजों के अत्याचार और आखिर में भारतवासियों के द्वारा स्वराज्य-प्राप्ति, इन सभी घटनाओं का आदि से लेकर अन्त-पर्यन्त इस नाटक में वर्णन किया है।
डॉ. सावित्री सिन्हा के कथनानुसार-“आकार की लघुता के बावजूद ‘मुक्तियज्ञ’ की आत्मा में एक महाकाव्य जैसी गरिमा है।”

(iii) रस परिपाक सुमित्रानन्दन पन्त’ द्वारा रचित ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य वीर रस प्रधान है। इसमें गाँधीजी एवं उनके अन्य सहयोगी लोगों के बलिदान एवं त्याग की साहस से युक्त कार्यों का वर्णन किया गया है। भारतवासियों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध अहिंसात्मक संघर्ष में इन पंक्तियों में वीर रस दर्शनीय है।

गूंज रहा रण शंख, गरजती, भेरी, उड़ता सुर धनु केतन।
ऊर्ध्व असंख्य पदों से धरती चलती, यह मानवता का रण।।”

इसके अतिरिक्त इस खण्डकाव्य में करुण एवं शान्त रस की भी सुन्दर व्यंजना देखने को मिलती हैं।

(iv) प्रकृति चित्रण का अभाव मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के रचयिता सुमित्रानन्दन पन्त’ प्रकृति के चतुर चितेरे हैं। वे प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। उनकी प्रायः प्रत्येक रचना में प्रकृति का अनेक रूपों में वर्णन मिलता है। ‘मुक्तियज्ञ’ में प्रकृति चित्रण का पूर्णतया अभाव है या तो वे प्रकृति का वर्णन करना भूल गए या उन्हें अवकाश ही नहीं मिला, क्योकि ‘मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य एक विचार एवं समस्या प्रधान रचना हैं।

कलापक्षीय विशेषताएँ इस खण्डकाव्य में सुमित्रानन्दन ‘पन्त’ जी के कला पक्षीय काव्य-प्रतिभा का उपयोग नहीं के बराबर हुआ है, फिर भी उनकी कलापक्षीय विशेषताओं के दर्शन निम्नलिखित प्रकार से कई रूपों में होते हैं। –

(i) भाषा ‘मुक्तियज्ञ’ में सुमित्रानन्दन पन्त’ जी ने संस्कृतनिष्ठ, खड़ी बोली और सरल हिन्दी का प्रयोग किया है। भाषा में अभिव्यक्ति की सरलता, बोधगम्यता और चित्रात्मकता के साथ-ही-साथ सरसता और सुकुमारता के भी दर्शन होते हैं। कवि द्वारा अनेक स्थलों पर कठिन शब्दावली का भी प्रयोग किया गया है, जिसके कारण कहीं-कहीं पर भाषा बोझिल सी हो गई है। भाषा माधुर्य, प्रसाद और ओज गुण युक्त है।

इस खण्डकाव्य की भाषा भावात्मक और दार्शनिक विचारों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतया सक्षम है। यहाँ इससे सम्बन्धित एक उदाहरण दर्शनीय है।

झोंक आग में तन के कपड़े, गिरते पद पर पागल स्त्री-नर।
भेद कभी इतिहास कहेगा, कौन पुरुष चला युग-भू पर।”

(ii) शैली कवि ने ‘मुक्तियज्ञ’ की रचना में मूर्तशैली को अपनाया है, जो सीधी-सादी एवं अभिधा प्रधान है। इसमें गम्भीरता है, प्रौढ़ता है और साथ ही यह सरल भी है। इसमें कवि ने काल्पनिकता का समावेश नहीं किया है। खण्डकाव्य में कवि की दृष्टि कथन की शैली पर कम और कथ्य पर अधिक टिकी है। इनकी शैली में व्यंजना शैली का परिचय मिलता है। इससे सम्बन्धित एक उदाहरण दर्शनीय है।

“मुखर तर्क के शब्द जाल में भटक न खो जाए अन्त:स्वर,
गुरुता से सौजन्य, बुद्धि से, हृदय बोध था उनको प्रियतर।”

(iii) छन्द पन्त’ जी ने ‘मुक्तियज्ञ’ में ‘मुक्त’ छन्द का प्रयोग किया है। समस्त काव्य की रचना में कवि ने 16 मात्राओं की चार-चार पंक्तियों वाले छन्द का प्रयोग किया है। कवि ने कुछ स्थानों पर छन्द परिवर्तन भी किया है।

(iv) अलंकार ‘मुक्तियज्ञ’ में कवि की दृष्टि कथन पर कम और कथ्य पर अधिक होने के कारण अलंकारों का प्रयोग केवल विषय की स्पष्टता के लिए ही किया गया है। फिर भी कवि ने खण्डकाव्य में अनुप्रास, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण आदि अलंकारों का प्रयोग किया है। एक ‘उपमा का उदाहरण दर्शनीय हैं-
“उन्नत जन वन देवदारु-से, स्वर्णछत्र सिर पर तारक नभ।
सौम्य आस्य, उन्मुक्त हास्यमय, प्रात: रवि-सा स्निग्ध स्वर्णप्रभ।।”
मानवीकरण का उदाहरण दर्शनीय है।
“जगे खेत खलिहान, बाग फड़, जगे बैल हाँसया हल विस्मित।
हाट बाट गोचर घर-आँगन, वापी पनघट जगे चमत्कृत।।”

इस प्रकार निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की कहानी की पृष्ठभूमि अधिक विस्तृत है, फिर भी कवि ‘पन्त’ जी ने उसके प्रधान प्रसंगों को इस प्रकार से क्रमबद्ध किया है कि कहानी के क्रमिक विकास में कोई बाधा उत्पन्न नहीं हुई है। कवि द्वारा इस कृति में एक ही रस और एक ही छन्द का प्रयोग किया गया है। अतः इस दृष्टि से यह कृति खण्डकाव्य की सभी विशेषताओं से विभूषित है।

(v) उद्देश्य कवि का उद्देश्य असत्य पर सत्य की विजय, हिंसा पर अहिंसा की विजय दिखाकर मानवता के प्रति सच्ची आस्था उत्पन्न करना है तथा जन-जन में विश्वबन्धुत्व और प्रेम की भावना का संचार करना है।

चरित्र-चित्रण पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 6.
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2018)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के आधार पर गाँधीजी के चरित्र की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2018)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के नायक के चरित्र पर प्रकाश डालिए। (2018)
अथवा
‘मुक्तिया’ खण्डकाव्य के आधार पर प्रधान पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2017)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्रांकन कीजिए। (2017)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के मुख्य पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2017)
अथवा
सिद्ध कीजिए कि राष्ट्रपिता गाँधी ‘मुक्तियज्ञ’ के पुरोधा हैं। (2017)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के नायक की विशेषताएँ बताइए। (2016)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ के आधार पर महात्मा गाँधी का चरित्रांकन/चरित्र निरूपण कीजिए। (2016)
अथवा
मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2018, 17, 16)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का नायक कौन हैं? उसकी चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2016)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की दृष्टि से महात्मा गाँधी का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2016)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के नायक कौन हैं? उनका चारित्रिक विश्लेषण कीजिए। (2014, 13, 12, 11, 10)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के नायक महात्मा गाँधी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (2015, 14)
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ के गाँधीजी इस सदी के महानायक हैं। इस कथन की पुष्टि कीजिए। (2012)
अथवा
“गाँधीजी राष्ट्र के लिए एक समर्पित व्यक्ति थे।” उक्ति पर प्रकाश डालिए।
अथवा
“व्यक्ति गाँधी का चित्रण कवि का ध्येय नहीं है-राष्ट्रपिता और राष्ट्रनायक गाँधी ‘मुक्तियज्ञ’ के मुख्य पुरोधा हैं।” इस कथन को ध्यान में रखते हुए गाँधीजी के व्यक्तित्व का विश्लेषण कीजिए।
अथवा
‘मुक्तियज्ञ’ में महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व का वही अंश उभारा गया है, जो भारतीय जनता को शक्ति और प्रेरणा देता है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं? (2011, 10)
उत्तर:
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में गाँधीजी को नायक के रूप में चित्रित किया गया है। वह इस सदी के महानायक हैं। उन्होंने सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारे के महान् गुणों से विश्व और मानवता का कल्याण किया है, लोगों को परम सुख और सन्तोष प्रदान किया है। उनकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. सत्य-अहिंसा के पुजारी गाँधीजी सत्य और अहिंसा के महान् पुजारी थे। देश में जब चारों ओर हिंसा की अग्नि धधक रही थी, तब उन्होंने सत्य और अहिंसा का सहारा लिया। उन्हें पूर्ण विश्वास था कि बिना रक्तपात के भी स्वतन्त्रता प्राप्त की जा सकती है और इन्हीं अस्त्रों के बल पर गाँधीजी ने अंग्रेजों की नींव हिलाकर रख दी। कठिन-से-कठिन परिस्थितियों में भी वह अपने सिद्धान्तों पर अडिग रहे और अन्ततः उन्हीं के सिद्धान्तों पर भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई।
  2. दृढ़प्रतिज्ञ महात्मा गाँधी अपने निश्चय पर दृढ़ रहने वाले एक साहसी व्यक्ति थे। उन्होंने जिस कार्य को पूरा करने का संकल्प किया, उसे वह करके ही रहे। कोई बाधा-विघ्न उन्हें पथ से विचलित नहीं कर सकी। उन्होंने नमक कानून तोड़ने की प्रतिज्ञा को पूरा करके ही दिखाया।
  3. जननायक महात्मा गाँधी जन-जन के प्रिय नेता रहे हैं। उनके एक इशारे पर लाखों नर-नारी अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने के लिए तत्पर रहते थे। भारत की जनता ने उनका पूरा साथ दिया और उनके साथ आजादी की लड़ाई लड़कर अंग्रेजों से अपने आपको मुक्त कराया।
  4. समदर्शी महात्मा गाँधी सबको समान दृष्टि से देखते थे। उनके लिए न कोई बड़ा था, न कोई छोटा। उन्होंने देश से छुआछूत के भूत को भगाने के लिए अथक प्रयास किया। उनकी दृष्टि में कोई अछूत नहीं था।
  5. मानवता के पुजारी ‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गाँधीजी ने अपना सम्पूर्ण जीवन मानव के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उनका दृढ़ विश्वास था कि घृणा, घृणा से नहीं, अपितु प्रेम से मरती हैं। उनमें दया, करुणा, त्याग, संयम, विश्वबन्धुत्व एवं वीरता के गुण भरे हुए थे।
  6. जातिप्रथा के विरोधी गाँधीजी जातिप्रथा के कट्टर विरोधी थे। उनका मानना था कि भारत जाति-पाँति के भेदभाव में पड़कर अपना विनाश कर रहा है।

इस प्रकार ‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गाँधीजी महान् लोकनायक, सत्य एवं अहिंसा के पुजारी, निर्भीक, दृढ़प्रतिज्ञ और साहसी पुरुष के रूप में हमारे सामने आते हैं। कवि ने उनमें सभी लोक कल्याणकारी गुणों का समावेश किया है।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.