UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 9 सड़क सुरक्षा एवं यातायात के नियम (गद्य खंड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 9 सड़क सुरक्षा एवं यातायात के नियम (गद्य खंड)

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(विस्तृत उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. सड़क सुरक्षा यातायात के नियम पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर- ‘यातायात’ दो शब्दों से मिलकर बना है- यात + आयात, जिसका अर्थ है, आना-जाना। आजकल सड़क सुरक्षा एक गम्भीर समस्या बन गयी है। प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटनाओं में लाखों व्यक्ति मारे जाते हैं। अतः इस पर नियन्त्रण पाना एक चुनौती है।
आइये हम जानें कि ये सड़क दुर्घटनाएँ क्यों होती हैं –

  1. वाहन चलाते समय यातायात के नियमों का पूर्ण ज्ञान न होना।
  2. बहुत तेज गति से वाहन चलाना।
  3. नशे की हालत में गाड़ी चलाना।
  4. चालक का ध्यान भटकाने वाली चीजें तथा लालबत्ती का उल्लंघन करना।
  5. सीट बेल्ट और हेलमेट जैसे सुरक्षा साधनों की उपेक्षा ।
  6. लेन ड्राइविंग का पालन न करना। 
  7. गलत तरीके से ओवर टेकिंग करना।

भारत में वर्ष 2011 की अवधि में लगभग 4.9 लाख सड़क दुर्घटनायें हुई, जिसमें 1,42,485 लोगों की मृत्यु हुई। इन भयावह दुर्घटनाओं को रोकने के लिए यातायात के नियमों का पालन करना अति आवश्यक है ताकि इस समस्या से मुक्ति मिल सके। सड़क दुर्घटनाओं के बचाव हेतु निम्न उपाय किये जा सकते हैं –

  1. सड़क यातायात के नियमों का पालन विवेकपूर्ण होना चाहिए।
  2. पैदल, साइकिल एवं रिक्शा चालकों को हमेशा बायीं तरफ चलना चाहिए।
  3. सड़क पार करते समय दायें-बायें अवश्य देखना चाहिए।
  4. व्यस्त सड़कों पर सदैव जेब्रा-क्रासिंग का प्रयोग करना चाहिए।
  5. शार्ट कट या आसान विकल्प खोजना खतरनाक हो सकता है।
  6. नशे की हालत में वाहन कभी न चलायें।
  7. वाहन चलाते समय हेलमेट एवं सीट-बेल्ट का प्रयोग अवश्य करें।
  8. कभी ओवरटेक करने का प्रयास न करें।
  9. वाहन चलाते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें।
  10. लाल, पीली एवं हरी बत्ती संकेत का पालन अवश्य करें।

अन्तत: यातायात के नियमों के बहुआयामी उद्देश्यों को ध्यान में रखकर प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बनता है कि वह परिवहन विभग द्वारा बनाए गये यातायात से सम्बन्धित समस्त सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक संकेतकों एवं नियमों का पालन कर देश की समृद्धि एवं विकास में अहम् योगदान देने का प्रयास करें, जिससे हमारा देश, समाज एवं परिवार सुरक्षित रहकर विकास की पराकाष्ठा को प्राप्त करने में सफल रहे।

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प्रश्न 2. यातायात के नियमों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- सड़क यातायात के नियम विवेकपूर्ण होते हैं और उनका विवेकपूर्ण पालन करना भी आवश्यक होता है। सड़क पर चलने वालों की सुरक्षा के लिए अनेक कानून (UPBoardSolutions.com) एवं नियम बनाये गये हैं जिसका पालन करना प्रत्येक नागरिक का दायित्व होता है। जिससे हर कोई घर सुरक्षित पहुँच सके।
           पैदल, साइकिल एवं रिक्शा चालकों को हमेशा अपनी लेन में अर्थात् बायीं तरफ रहना चाहिए एवं सड़क पार करते समय दायें-बायें देखने के बाद ही आगे बढ़ना चाहिए। व्यस्त सड़कों पर हमेशा जेब्रा क्रासिंग का प्रयोग करना चाहिए तथा क्रास करते समय कभी यह न सोचना चाहिए कि वाहन चालक उसे देख रहा है। सड़क की संरचनात्मक ढाँचागत सुविधाओं का पूरा उपयोग हो इसलिए सब-वे (तल मार्ग), फुट ओवर ब्रिज सबका पालन नियमगत करना आवश्यक होता है। शार्टकट या आसान विकल्प खोजना खतरनाक हो सकता है।
            पैदल यात्रियों को सड़क पार करते समय मोटर-वाहनों एवं अपने बीच पर्याप्त दूरी रखना चाहिए और पार्क की गई या खड़ी गाड़ियों के बीच से रास्ता नहीं बनाना चाहिए। सड़क के खतरों से अधिकांशत: बच्चे ज्यादा प्रभावित होते हैं, जिसमें हमेशा चालक की गलती नहीं होती है, क्योंकि बच्चों की लापरवाही और जागरूकता की कमी से भी सड़क दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है। बच्चे हमेशा बड़ों का (UPBoardSolutions.com) अनुसरण करते हैं। इसलिए उनके सामने विवशता में भी सड़क के नियम का उल्लंघन नहीं करना चाहिए और उन्हें ‘रुकें, देखें, सुनें, सोचें’ का मूल मंत्र बताना व पालन कराना अति आवश्यक होता है।

प्रश्न 3. सड़क दुर्घटना से हम अपना बचाव कैसे कर सकते हैं? “
उत्तर- सड़क दुर्घटनना से हम अपना बचाव निम्न रूप में कर सकते हैं

  1. पैदल, साइकिल एवं रिक्शा चालकों को सदैव बायीं तरफ चलना चाहिए।
  2. सड़क पर चलते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें।
  3. दो पहिया वाहन वाले हेलमेट का प्रयोग अवश्य करें।
  4. चार पहिया वाहनवाले सीट बेल्ट का प्रयोग अवश्य करें।
  5. नशे की हालत में वाहन न चलायें।
  6. ओवर टेकिंग न करें। धैर्य बनाये रखें।
  7. सड़क चित्रों का अनुपालन करें।

प्रश्न 4. यातायात के नियमों का पालन करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर- हादसों से बचने के लिए यातायात के नियमों का पालन करना अति आवश्यक है। इसके ज्ञान के अभाव में एवं सुचारु रूप से पालन न करने के कारण भारत में प्रत्येक वर्ष 1,40,000 से अधिक व्यक्ति सड़क-दुर्घटना में मारे जाते हैं। ऐसी विकट परिस्थितियों का अनुमान लगाया जा सकता (UPBoardSolutions.com) है कि विश्व भर के कुल वाहनों में से केवल एक प्रतिशत ही वाहन भारत में हैं, जबकि विश्व की कुल सड़क-दुर्घटना में से 10 प्रतिशत हादसे भारत में होते हैं। विडम्बना यह है कि कोई नियम तब तक अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सकता जब तक पालनकर्ता उसे आत्मसात् करने की कोशिश न करे।

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प्रश्न 5. यातायात के पालन हेतु भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने सड़क सुरक्षा में सुधार करने के लिए कौन से कदम उठाये हैं?
उत्तर- यातायात के नियम पालनार्थ भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने सड़क-सुरक्षा में सुधार करने के लिए अनेक कदम उठाये हैं जैसे-सड़क फर्नीचर, सड़क चिह्न (रोड मार्किंग), उन्नत परिवहन प्रणाली का प्रयोग करते हुए राजमार्ग यातायात प्रबन्धन प्रणाली आरम्भ करना, निर्माण कार्य के दौरान ठेकेदारों में अनुशासन को बनाए रखना, चुनिन्दा क्षेत्रों में सड़क सुरक्षा 
ऑडिट इत्यादि । असंगठित क्षेत्रों में भारी मोटर वाहनों के लिए पुनश्चर्या प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना, राज्यों में ड्राइविंग प्रशिक्षण स्कूलों की स्थापना, दृश्य-श्रव्य तथा (UPBoardSolutions.com) प्रिन्ट माध्यमों के द्वारा सड़क सुरक्षा जागरूकता पर प्रचार अभियान, सड़क सुरक्षा के क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य के लिए स्वैच्छिक संगठनों/व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों का संचालन, वाहनों में सुरक्षा-मानकों को और अधिक सख्त बनाना जैसे-‘सीट-बेल्ट’, ‘पावर-स्टेयरिंग’, ‘रियर-व्यू-मिरर’ इत्यादि। राष्ट्रीय राजमार्ग दुर्घटना सहायता सेवायोजना के अन्तर्गत विभिन्न राज्य सरकारों और सरकारी संगठनों को क्रेन तथा एम्बुलेन्स उपलब्ध कराना । राष्ट्रीय राजमार्गों को 2-लेन से 4-लेन को 4-लेन से 6-लेन का करने का प्रावधान तथा युवा वर्ग में जागरूकता (सड़क-सुरक्षा) का प्रचार करने की प्रक्रिया को भी शामिल करना है।

(लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. सड़क सुरक्षा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- सड़क सुरक्षा से तात्पर्य है-सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं से बचाव । क्योंकि विश्व में सड़क यातायात में मौतें और जख्मी होना एक साधारण घटना हो गयी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रतिवर्ष 10 लाख से अधिकं सड़क हादसों के शिकार व्यक्तियों की मौत हो जाती है। इनमें से (UPBoardSolutions.com) अधिकांश दुर्घटनायें अज्ञानतावश हो जाती हैं। यदि हम इसकी जानकारी करके यातायात के नियमों का पालन करें तो सड़क दुर्घटनाओं से काफी हद तक बचा जा सकता है।

प्रश्न 2. सड़क दुर्घटनाओं से बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर- सड़क दुर्घटनाओं से बचने के लिए हमें यातायात के नियमों का पालन करना चाहिए। ये यातायात के नियम निम्नलिखित हैं –

  1. पैदल यात्रियों, साइकिल एवं रिक्शा चालकों को हमेशा अपनी लेन में अर्थात् बायीं तरफ रहना चाहिए।
  2. सड़क पार करते समय दायें-बायें देखने के बाद ही आगे बढ़ना चाहिए।
  3. व्यस्त सड़कों पर हमेशा जेब्रा-क्रासिंग का प्रयोग करना चाहिए।
  4. पैदल यात्रियों को सड़क पार करते समय मोटर वाहनों एवं अपने बीच पर्याप्त दूरी रखनी चाहिए।
  5. दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

प्रश्न 3. यातायात के किन्हीं पाँच नियमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- 
यातायात के पाँच नियम निम्नलिखित हैं –

  1. बहुत तेज गति से वाहन न चलायें।
  2. नशे की हालत में वाहन न चलायें।
  3. सीट बेल्ट एवं हेलमेट जैसे सुरक्षा साधनों का प्रयोग करें।
  4. गलत तरीके से ओवर टेकिंग न करना।
  5. पैदल, साइकिल एवं रिक्शा चालकों को सदैव बायीं ओर चलना चाहिए।

प्रश्न 4. यातायात नियमों के पालन करने में कौन-से गतिरोध उत्पन्न होते हैं?
उत्तर- यातायात के नियमों का पालन करने में कभी-कभी गतिरोध उत्पन्न हो जाते हैं, क्योंकि अधिकांश लोग नियमों की अनदेखी करके अतिशीघ्रता करने की कोशिश (UPBoardSolutions.com) करते हैं, जिसके कारण सड़कों पर जाम की स्थिति बन जाती है एवं यातायात बाधित होने लगता है। ऐसी परिस्थिति में कभी-कभी विकल्प के अभाव में जनता यातायात के नियमों को तोड़ने के लिए विवश हो जाती है।

प्रश्न 5. पैदल, साइकिल एवं रिक्शा चालकों को सड़क पर चलते समय किस बात का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर- पैदल, साइकिल एवं रिक्शा चालकों को हमेशा अपनी लेन में अर्थात् बायीं तरफ चलना चाहिए। सड़क पार करते समय दायें–बायें देखने के बाद ही आगे बढ़ना चाहिए। व्यस्त सड़कों पर हमेशा जेब्रा क्रासिंग का प्रयोग करना चाहिए एवं क्रास करते समय कभी यह न सोचना चाहिए कि (UPBoardSolutions.com) वाहन चालक उसे देख रहा है। सड़क की संरचनात्मक ढाँचागत सुविधाओं का पूरा उपयोग हो, इसलिए नियम का पालन आवश्यक है। शार्ट-कट या आसान विकल्प खोजना खतरनाक हो सकता है।

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प्रश्न 6. सड़क दुर्घटनायें क्यों होती हैं?
उत्तर- भारत में वर्ष 2011 की अवधि में लगभग 4.9 लाख सड़क दुर्घटनायें हुई हैं, जिसमें 1,42,485 लोगों की मृत्यु हुई। वाहन चलाते समय कुछ मानवीय भूलें होती हैं जिससे दुर्घटना हो जाती है, इसलिए ऐसे तथ्यों पर गहन विवेचना की आवश्यकता होती है। बहुत तेज गति से वाहन चलाना, नशे में गाड़ी चलाना, चालक का ध्यान भटकाने वाली चीजें, लाल बत्ती का उल्लंघन करना, सीट-बेल्ट (UPBoardSolutions.com) और हेलमेट जैसे सुरक्षा साधनों की उपेक्षा, लेन ड्राइविंग का पालन न करना और गलत तरीके से ओवर टेकिंग करना आदि कारणों से सड़क-दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. यातायात किन शब्दों से मिलकर बना है?
उत्तर-
यातायात दो शब्दों से मिलकर बना है-यात + आयात ।

प्रश्न 2. यातायात का क्या अर्थ है?
उत्तर-
यातायात का अर्थ है-आना और जाना।

प्रश्न 3. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रतिवर्ष सड़क हादसे में कितने व्यक्तियों की मौत हो जाती है?
उत्तर-
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रतिवर्ष सड़क हादसे में 10 लाख से अधिक व्यक्तियों की मौत हो जाती है।

प्रश्न 4. भारत में प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटनाओं में कितने व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है?
उत्तर- भारत में प्रतिवर्ष सड़क हादसे में 1,40,000 व्यक्ति मारे जाते हैं।

प्रश्न 5. सड़क यातायात के नियम कैसे होते हैं?
उत्तर- सड़क यातायात के नियम विवेकपूर्ण होते हैं।

प्रश्न 6. विश्व की कुल सड़क दुर्घटना में से कितने प्रतिशत हादसे भारत में होते हैं?
उत्तर- विश्व की कुल सड़क दुर्घटना में से 10 प्रतिशत हादसे भारत में होते हैं।

प्रश्न 7. विश्वभर के कुल वाहनों में से कितने प्रतिशत वाहन भारत में हैं?
उत्तर- विश्वभर के कुल वाहनों में से केवल एक प्रतिशत ही वाहन भारत में हैं।

प्रश्न 8. यातायात के प्रमुख नियमों को कितने भागों में विभक्त किया जा सकता है?
उत्तर- यातायात के प्रमुख नियमों को सीखने की सुगमता के अनुसार दो भागों में विभक्त कर सकते हैं –

  1. सुरक्षा से सम्बन्धित यातायात के नियम एवं सावधानियाँ।
  2. वाहन चलाने के नियम एवं सावधानियाँ।

प्रश्न 9. पैदल, साइकिल एवं रिक्शा चालकों को किस लेन में चलना चाहिए?
उत्तर- पैदल, साइकिल एवं रिक्शा चालकों को बायीं तरफ चलना चाहिए।

प्रश्न 10. सड़क पर चलने के लिए यातायात का मूल मंत्र क्या है?
उत्तर- सड़क पर चलने के लिए यातायात का मूल मंत्र है-रुकें, देखें, सुनें एवं सोचें ।

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प्रश्न 11. वर्ष 2011 की अवधि में लगभग कितनी सड़क दुर्घटनायें हुईं?
उत्तर- भारत में वर्ष 2011 की अवधि में लगभग 4.9 लाख सड़क दुर्घटनायें हुईं।

प्रश्न 12. भारत में वर्ष 2011 में सड़क दुर्घटना में कितने लोगों की मृत्यु हुई?
उत्तर- भारत में वर्ष 2011 में सड़क दुर्घटना में 1,42,485 लोगों की मृत्यु हुई।

प्रश्न 13. सड़क दुर्घटना होने के दो कारण लिखिए।
उत्तर- सड़क दुर्घटना होने के दो कारण निम्नलिखित हैं –

  1. बहुत तेज गति से वाहन चलाना।
  2. गलत तरीके से ओवर टेकिंग करना।

प्रश्न 14. लाल बत्ती का संकेत क्या है?
उत्तर- लाल बत्ती का संकेत है-वाहन का रुकना।

प्रश्न 15. पीली बत्ती का संकेत क्या है?
उत्तर- पीली बत्ती का संकेत है चलने के लिए तैयार होना।

प्रश्न 16. हरी बत्ती का संकेत क्या है?
उत्तर- हरी बत्ती का संकेत है- आगे बढ़ना।

प्रश्न 17. यातायात को सुगम बनाने हेतु कितने प्रकार के चित्र संकेत होते हैं?
उत्तर- यातायात को सुगम बनाने हेतु तीन प्रकार के चित्र संकेत होते हैं।

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प्रश्न 18. यातायात के संकेत किसके द्वारा जारी किये जाते हैं?
उत्तर- यातायात के संकेत भारतीय रोड कांग्रेस द्वारा जारी किये जाते हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 8 तोता (गद्य खंड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 8 तोता (गद्य खंड)

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( विस्तृत उत्तरीय प्रश्न )

प्रश्न 1. निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये-
(1)
तोते को शिक्षा देने का काम राजा के भानजे को मिला। पण्डितों की बैठक हुई। विषय था, “उक्त जीव की अविद्या का 
कारण क्या है?” बड़ा गहरा विचार हुआ। सिद्धान्त ठहरा : तोता अपना घोंसला साधारण खर-पतवार से बनाता है। ऐसे आवास में विद्या नहीं आती। इसलिए सबसे पहले यह आवश्यक है कि इसके लिए कोई बढ़िया-सा पिंजरा बना दिया जाय। राज-पण्डितों को दक्षिणा मिली और वे प्रसन्न होकर अपने-अपने घर गये।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।’
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) तोते को शिक्षा देने का काम किसे मिला?
(4) तोता अपना घोंसला किससे बनाता है?
(5) दक्षिणा किसे मिली?

उत्तर-

  1. प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा लिखित ‘तोता’ नामक कहानी से उद्धृत है।
  2. राज दरबार में जब तोते को बेवकूफ मान लिया गया तो इस पर विचार हुआ कि तोते को बुद्धिमान कैसे बनाया जाय? इस तोते की अविद्या का क्या कारण है? पण्डितों ने विचार किया कि तोता अपना घोंसला खरपतवार से बनाता है। अतः ऐसे घर में विद्या नहीं आती है।
  3. तोते को शिक्षा देने का काम राजा के भानजे को मिली।
  4. तोता अपना घोंसला घास-फूस से बनाता है।
  5. राज-पण्डितों को दक्षिणा मिली।

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(2) संसार में और-और अभाव तो अनेक हैं, पर निन्दकों की कोई कमी नहीं है। एक हुँदो हजार मिलते हैं। वे बोले, ‘पिंजरे की तो उन्नति हो रही है, पर तोते की खोज-खबर कोई लेने वाला नहीं है।” बात राजा के कानों में पड़ी। उन्होंने भानजे को बुलाया और कहा, “क्यों भानजे साहब, यह (UPBoardSolutions.com) कैसी बात सुनायी पड़ रही है?” भानजे, ”महाराज अगर सचसच सुनना चाहते हों तो सुनारों को बुलाइए। निन्दकों को हलवे-माड़े में हिस्सा नहीं मिलता, इसलिए वे ऐसी ओछी बातें करते हैं।”
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) संसार में किसकी कमी नहीं है?
(4) किसकी उन्नति हो रही है?
(5) निन्दक निन्दा क्यों करते हैं?

उत्तर-

  1. प्रस्तुत पंक्तियाँ रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा लिखित ‘तोता’ नामक कहानी से उधृत हैं।
  2. संसार में अनेक अभाव हैं। सामान्य लोग अभाव का ही जीवन व्यतीत करते हैं। किन्तु निन्दकों की संसार में कोई कमी नहीं है। आप जहाँ निगाह डालिए, निन्दक मौजूद रहेंगे।
  3. संसार में निन्दकों की कमी नहीं है।
  4. पिंजरे की उन्नति हो रही है।
  5. किसी के लाभ में निन्दक को कुछ प्राप्त नहीं होता है। इसलिए वह निन्दा करता है।

(3) तोता दिन भर भद्र रीति के अनुसार अधमरा होता गया। अभिभावकों ने समझा कि प्रगति काफी आशाजनक हो रही है। फिर भी पक्षी स्वभाव के एक स्वाभाविक दोष से तोते का पिंड अब भी छूट नहीं पाया था। सुबह होते ही वह उजाले की ओर टुकुर-टुकुर निहारने लगता था और बड़ी ही (UPBoardSolutions.com) अन्याय भरी रीति से अपने डैने फड़फड़ाने लगता था। इतना ही नहीं किसी-किसी दिन तो ऐसा भी देखा गया कि वह अपनी रोगी चोचों से पिंजरे की सलाखें काटने में जुटा हुआ है।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(3) तोता क्यों अधमरा हो गया?
(4) तोते का कौन-सा दोष छूट नहीं पाया था?
(5) तोता अपनी चोचों से क्या कर रहा था?

उत्तर-

  1. प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा लिखित ‘तोता’ नामक कहानी से उद्धृत हैं।
  2. दाना-पानी न मिलने के कारण तोता अधमरा हो गया था। उसकी देख-रेख करने वालों ने सोचा कि तोते में काफी प्रगति हो रही है अर्थात् तोता सभ्य एवं सुशिक्षित ही रहा है।
  3. तोते को अन्न-जल कुछ भी नहीं मिल पा रहा था। उसके पेट में सिर्फ पोथी के पन्ने ही जा रहे थे। इसलिए | वह अधमरा हो गया।
  4. सबेरा होते ही तोता टुकुर-टुकुर निहारने लगता, और अपने डैने को फड़फड़ाने लगता था।
  5. (v) तोता अपनी चोंच से पिंजरे की सलाखें काट रहा था।

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प्रश्न 2. रवीन्द्र नाथ टैगोर का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए। अथवा रवीन्द्र नाथ टैगोर का जीवन-परिचय एवं साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख कीजिए।

( रविन्द्र नाथ टैगोर )
 स्मरणीय तथ्य

जन्म- 6 मई, 1861 ई०। मृत्यु- 7 अगस्त 1941 ई०। जन्म-स्थान कोलकाता के जोड़ासाकोकी ठाकुर बाड़ी।
शिक्षा-
 प्रारम्भिक शिक्षा सेन्ट जेवियर नामक स्कूल में तथा लंदन के विश्वविद्यालय में बैरिस्टर के लिए दाखिला परन्तु बिना डिग्री लिए वापस आ गये।
रचनाएँ-काव्य – दूज का चाँद, गीतांजलि, भारत का राष्ट्रगान (जन-गण-मन), बागवान।
कहानी संग्रह- 
हंगरी स्टोन्स, काबुलिवाला, माई लॉर्ड, दी बेबी, नयन जोड़ के बाबू, जिन्दा अथवा मुर्दा, घर वापसी।
उपन्यास- 
गोरा, नाव दुर्घटना, दि होम एण्ड दी वर्ल्ड।
नाटक- 
पोस्ट ऑफिस, बलिदान, प्रकृति का प्रतिशोध, मुक्तधारा, नातिर-पूजा, चाण्डालिका, फाल्गुनी, वाल्मीकि प्रतिभा, राजा और रानी।
आत्म जीवन-परिचय- मेरे बचपन के दिन।
साहित्य-सेवा- कवि के रूप में, गद्य लेखक के रूप में एवं सम्पादक के रूप में।
निबन्ध व भाषण- मानवता की आवाज।
भाषा- 
बांग्ला, अंग्रेजी।

  • जीवन-परिचय- रवीन्द्र नाथ टैगोर का जन्म 6 मई, 1861 ई० को कलकत्ता (कोलकाता) में हुआ था। इनके बाबा द्वारका नाथ टैगोर अपने वैभव के लिए चर्चित थे। ये राजा राममोहन राय के गहरे दोस्त थे और भारत के पुनर्जागरण में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करते थे। रवीन्द्र नाथ के पिता द्वारका नाथ के सबसे बड़े पुत्र थे जो सुप्रसिद्ध विचारक एवं दार्शनिक थे। इसीलिए उन्हें महर्षि कहा जाता था। वे ब्रह्म समाज के स्तम्भ थे। इनकी माता का नाम सरला देवी था जो एक गृहस्थ महिला थीं। इनका निधन 7 अगस्त, 1941 ई. को हुआ।
  • रवीन्द्र नाथ टैगोर हमारे देश के एक प्रसिद्ध कवि, देशभक्त तथा दार्शनिक थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे जिन्होंने कहानी, उपन्यास, नाटक तथा कविताओं की रचना की। उन्होंने अपनी स्वयं की कविताओं के लिए अत्यन्त कर्णप्रिय संगीत का सृजन किया। वे हमारे देश के एक महान चित्रकार तथा शिक्षाविद् थे। 1901 ई० में उन्होंने शान्ति निकेतन में एक ललित कला स्कूल (UPBoardSolutions.com) की स्थापना की, जिसने कालान्तर में विश्व भारती का रूप ग्रहण किया, एक ऐसा विश्वविद्यालय जिसमें सारे विश्व की रुचियों तथा महान् आदर्शों को स्थान मिला जिसमें भिन्न-भिन्न सभ्यताओं तथा परम्पराओं के व्यक्तियों को साथ जीवन-यापन की शिक्षा प्राप्त हो सके।
  • सर्वप्रथम टैगोर ने अपनी मातृभाषा बंगला में अपनी कृतियों की रचना की। जब उन्होंने अपनी रचनाओं का अनुवाद अंग्रेजी में किया तो उन्हें सारे संसार में बहुत ख्याति प्राप्त हुई। 1913 ई० में उन्हें नोबल पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया जो उन्हें उनकी अमर कृति ‘गीतांजलि’ के लिए दिया गया।’गीतांजलि’ का अर्थ होता है गीतों की अंजलि अथवा गीतों की भेंट। यह रचना उनकी कविताओं का मुक्त काव्य में अनुवाद है जो स्वयं टैगोर ने मौलिक बंगला से किया तथा जो प्रसिद्ध आयरिश कवि (UPBoardSolutions.com) डब्ल्यू. बी. येट्स के प्राक्कथन के साथ प्रकाशित हुई। यह रचना भक्ति गीतों की है, उन प्रार्थनाओं का संकलन है जो टैगोर ने परम पिता परमेश्वर के प्रति अर्पित की थीं। ब्रिटिश सरकार द्वारा टैगोर को ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया परन्तु उन्होंने 1919 ई० में जलियाँवाला नरसंहार के प्रतिकार स्वरूप इस सम्मान का परित्याग कर दिया।
  • टैगोर की कविता गहन धार्मिक भावना, देशभक्ति और अपने देशवासियों के प्रति प्रेम से ओत-प्रोत है। वे सारे संसार में अति प्रसिद्ध तथा सम्मानित भारतीयों में से एक हैं। हम उन्हें अत्यधिक सम्मानपूर्वक ‘गुरुदेव’ कहकर सम्बोधित करते हैं। वे एक विचारक, अध्यापक तथा संगीतज्ञ हैं। उन्होंने अपने स्वयं के गीतों को संगीत दिया, उनका गायन किया और अपने अनेक रंगकर्मी शिष्यों को शिक्षित करने के साथ ही अपने नाटकों में अभिनय भी किया। आज के संगीत जगत में उनके रवीन्द्र संगीत को अद्वितीय स्थान प्राप्त है।
  • टैगोर एक गहरे धार्मिक व्यक्ति थे लेकिन अपने धर्म को मानव को धर्म के नाम से वर्णित करना पसन्द करते थे। वे पूर्ण स्वतंत्रता के प्रेमी थे। उन्होंने अपने शिष्यों के मस्तिष्क में सच्चाई का भाव भरा। प्रकृति, संगीत तथा कविता के निकट सम्पर्क के माध्यम से उन्होंने स्वयं अपनी तथा अपने शिष्यों की कल्पना शक्ति को सौन्दर्य, अच्छाई तथा विस्तृत सहानुभूति के प्रति जागृत किया।

टैगोर की प्रमुख रचनायें-
काव्य- दूज का चाँद, गीतांजलि, भारत का राष्ट्रगान (जन-गण-मन), बागवान।
कहानी- हंगरी स्टोन्स, काबुलीवाला, माई लॉर्ड, दी बेबी, नयनजोड़ के बाबू, जिन्दा अथवा मुर्दा, घर वापिसी।
उपन्यास- गोरा, नाव दुर्घटना, दि होम एण्ड दी वर्ल्ड।
नाटक- पोस्ट ऑफिस, बलिदान, प्रकृति को प्रतिशोध, मुक्तधारा, नातिर-पूजा, चाण्डालिका, फाल्गुनी, वाल्मीकि प्रतिभा, रानी और रानी।
आत्म- जीवन चरित-मेरे बचपन के दिन ।
निबन्ध व भाषण- मानवता की आवाज।

प्रश्न 3. रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा लिखित कहानी ‘तोता’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- 

कहानी का सारांश 

एक तोता था, जो अत्यन्त मूर्ख था। वह उछलता, कूदता, उड़ता तो था, किन्तु कायदा-कानून बिल्कुल नहीं जानता था। राजा ने एक दिन कहा, ऐसा तोता किस काम का है? इससे लाभ तो कुछ नहीं किन्तु हानि अवश्य है। यह बगीचे का फल खा जाता है जिससे मण्डी में फल का अभाव हो जाता है।
               राजा ने मंत्री को बुलाकर तोते को शिक्षा देने के लिए कहा। तोते को शिक्षा देने का काम राजा के भानजे को मिला। राज्य के बड़े-बड़े पण्डितों को बुलाया गया। तोते की अविद्या के कारणों पर विचार हुआ। अन्त में पण्डितों ने यह निष्कर्ष निकाला कि तोता घास-फूस के मकान में रहता है। अत: ऐसे आवास में विद्या नहीं आती है।
               सुनार को बुलाया गया और सोने का भव्य पिंजडा तैयार किया गया। सुनार को बहुत सारा धन ईनाम के रूप में मिला। पण्डित लोग तोते को विद्या पढ़ाने बैठे। (UPBoardSolutions.com) पण्डितों ने कहा कि इतनी कम पोथियों से काम नहीं चलेगा। राजा ने पोथी लिखने वालों को बुलायो । पोथियों की नकल होने लगी और पोथियों का पहाड़ लग गया। उन्हें भी ईनाम दिया गया।
                पण्डित लोग भी गले फाड़-फाड़कर बूटियाँ फड़का-फड़काकर मन्त्र पाठ करने लगे। पिंजरे में दाना-पानी नहीं था सिर्फ पोथियाँ थीं । पण्डित लोग पोथियों के पन्ने फाड-फाडकर कलम की नोंक से तोते की चोंच में घुसेडते थे। तोते का गाना-गाना तो बन्द हो गया था। चीखने-चिल्लाने की आवाज भी नहीं निकल रही थी। तोते का पूरा मुँह पोथियों के पन्ने से ठसाठस भरा था।
              तोता दिन-प्रतिदिन भद्र रीति के अनुसार अधमरा हो गया। देखभाल करने वालों ने सोचा कि आशाजनक प्रगति हो रही है।
              तोते की एक आदत छुट नहीं पायी थी। सुबह होते ही वह पिंजरे के बाहर देखने लगता था और अपने पंख भी फड़फड़ाने लगता था। एक दिन तोता अपने रोगी चोचों से पिंजरे की सलाखें काटने में जुटा हुआ था। कोतवाल नाराज होकर लुहार को बुलाया। लुहार ने तोते के पंख काट दिये। लुहार को भी ईनाम मिला। पण्डितों ने एक हाथ में कलम और दूसरे हाथ में बरछा लेकर काण्ड किया। इसे ही शिक्षा कहते हैं।
              तोतो मर गया। किसी को भी पता न चला कि तोता कब मरा। निन्दक ने अफवाह फैलायी कि तोता मर गया। राजा को जब इस बात का पता चला तो भानजे को (UPBoardSolutions.com) बुलवाया। राजा ने भानजे से कहा कि कैसी बात सुनायी पड़ रही है। भानजे ने कहा कि महाराज! तोते की शिक्षा पूरी हो गयी है। राजा ने पूछा कि क्या अब भी तोता उछलता-कूदता है तो भानजे ने कहा कि अजी, राम कहिये। अब भी उड़ता है? कतई नहीं। अब भी गाता है? नहीं तो। दाना न मिलने पर अब भी चिल्लाता है? नहीं।
              राजा ने कहा, तोते को मेरे पास लाओ। मैं देखेंगा। तोता लाया गया। राजा ने चुटकी से तोते को दबाया । कोई हलचल नहीं हुई। उसके पेट में पोथियों के पन्ने खड़खड़ाने लगे। तोते को महीने से दाना-पानी मिला ही नहीं था। अतः मर गया।

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(लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. तोता स्वभाव से कैसा था?
उत्तर- तोता स्वभाव से नटखट था। वह बड़ा मूर्ख था। गाता था किन्तु शास्त्र नहीं पढ़ता था। उछलता था, फुदकता था, उड़ता था, किन्तु यह नहीं जानता था कि कायदा-कानून क्या है?

प्रश्न 2. टैगोर का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
उत्तर- रवीन्द्र नाथ टैगोर का जन्म 6 मई, 1861 ई. को कलकत्ता में हुआ था। इनके बाबा द्वारका नाथ टैगोर अपने वैभव के लिए चर्चित थे। ये राजा राममोहन राय के गहरे मित्र थे और भारत के पुनर्जागरण में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। रवीन्द्रनाथ के पिता देवेन्द्र नाथ द्वारका नाथ के (UPBoardSolutions.com) सबसे बड़े पुत्र थे जो प्रसिद्ध विचारक एवं दार्शनिक थे। इसीलिए उन्हें महर्षि कहा जाता था। वे ब्रह्म समाज के स्तम्भ थे। इनकी माता का नाम सरला देवी था, जो एक गृहस्थ महिला थीं। इनका निधन 7 अगस्त, 1947 ई. को हुआ।

प्रश्न 3. टैगोर द्वारा रचित रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- टैगोर की प्रमुख रचनायें निम्नलिखित हैंकाव्य-दूज का चाँद, गीतांजलि, भारत का राष्ट्रगान, बागवान। कहानी-हंगरी स्टोन्स, काबुलीवाला, माई लार्ड, जिन्दा अथवा मुर्दा, घर वापिसी। उपन्यास-गोरा, दि होम एण्ड दी वर्ल्ड। नाटक-पोस्ट आफिस, बलिदान, चाण्डालिका, राजा और रानी आदि।

प्रश्न 4. टैगोर की रचनाओं की विषय-वस्तु क्या है?
उत्तर- टैगोर की कविता गहने धार्मिक भावना, देशभक्ति और अपने देशवासियों के प्रति प्रेम से ओत-प्रोत है। वे एक विचारक, अध्यापक तथा संगीतज्ञ हैं। उनकी रचनाओं में प्रकृति के वर्णन मिलते हैं। टैगोर एक गहरे धार्मिक व्यक्ति थे लेकिन अपने धर्म को मानव का धर्म के नाम से वर्णित करना पसन्द करते थे। यही इनकी कविताओं का मूल विषय भी था।

प्रश्न 5. “टैगोर मानव धर्म प्रेमी थे।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- टैगोर एक गहरे धार्मिक व्यक्ति थे, लेकिन अपने धर्म को मानव का धर्म के नाम से वर्णित करना पसन्द करते थे। वे पूर्ण स्वतन्त्रता के प्रेमी थे। उन्होंने अपने शिष्यों के (UPBoardSolutions.com) मस्तिष्क में सच्चाई का भाव भरा। प्रकृति, संगीत तथा कविता के निकट सम्पर्क के माध्यम से उन्होंने स्वयं अपनी तथा अपने शिष्यों की कल्पना शक्ति को सौन्दर्य, अच्छाई तथा विस्तृत सहानुभूति के प्रति जागृत किया।

प्रश्न 6. तोते को विद्वान बनाने के लिए क्या किया गया?
उत्तर- तोते को विद्वान बनाने के लिए राज्य के पण्डितों को बुलाया गया। बहुत सारी पोथियाँ मँगायी गयीं। पोथियों के पन्नों को फाड़े-फाड़कर कलम की नोंक से उसके मुंह में घुसेड़ा जाता था। अन्त में तोता मर गया।

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प्रश्न 7. तोता क्यों मर गया?
उत्तर- तोते के पिंजड़े में दाना-पानी बिल्कुल नहीं था । पोथियों के पन्नों को फाड़-फाड़कर कलम की नोंक से उसके चोंच में डाला जाता था। विद्या देने के दौरान उसे कुछ भी दाना-पानी नहीं दिया गया। तोते के पेट में सिर्फ पोथी के पन्ने थे जिसके कारण तोता मर गया।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. टैगोर ने शान्ति निकेतन में ललित कला स्कूल की स्थापना कब की?
उत्तर- 1901 ई. में टैगोर ने शान्ति निकेतन में ललित कला स्कूल की स्थापना की।

प्रश्न 2. रवीन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार कब मिला?
उत्तर- रवीन्द्र नाथ टैगोर को 1913 में नोबल पुरस्कार मिला।

प्रश्न 3. टैगोर को उनकी किस रचना पर नोबल पुरस्कार मिला?
उत्तर- टैगोर को उनकी रचना ‘गीतांजलि’ पर नोबल पुरस्कार मिला।

प्रश्न 4. टैगोर को ‘सर’ की उपाधि से किसने सम्मानित किया था?
उत्तर- ब्रिटिश सरकार ने टैगोर को ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया था।

प्रश्न 5. टैगोर ने ‘सर’ की उपाधि कब वापस की?
उत्तर- 1919 ई. में टैगोर ने ‘सर’ की उपाधि वापस कर दी।

प्रश्न 6. ‘गोरा’ नामक उपन्यास के रचनाकार कौन हैं?
उत्तर-‘गोरा’ नामक उपन्यास के रचनाकार टैगोर जी हैं।

प्रश्न 7. टैगोर द्वारा लिखित नाटकों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर- पोस्ट आफिस, बलिदान, प्रकृति का प्रतिशोध, मुक्तधारा एवं चाण्डालिका आदि।

प्रश्न 8. टैगोर द्वारा लिखित कहानियों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर- हंगरी स्टोन्स, काबुलीवाला, माई लॉर्ड, जिन्दा अथवा मुर्दा एवं घर वापिसी आदि।

प्रश्न 9. गीतांजलि का क्या अर्थ है?
उत्तर- गीतांजलि का अर्थ होता है- गीतों की अंजलि अथवा गीतों की भेंट।

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प्रश्न 10. तोते को शिक्षा देने का काम राजा ने किसे सौंपा?
उत्तर- तोते को शिक्षा देने का काम राजा ने अपने भानजे को दिया।

प्रश्न 11. पण्डितों के अनुसार किस तरह के आवास में विद्या नहीं आती?
उत्तर- पण्डितों के अनुसार घास-फूस के आवास में विद्या नहीं आती।

प्रश्न 12. पिंजरा किस धातु का बना था?
उत्तर- पिंजरा सोने का बना था।

प्रश्न 13. राजा ने किसके गले में सोने का हार डाल दिया?
उत्तर- राजा ने अपने भानजे के गले में सोने का हार डाल दिया।

प्रश्न 14. तोता गाना गाना क्यों बन्द कर दिया था?
उत्तर- तोता ने कई दिनों से अन्न-जल ग्रहण नहीं किया था। उसके पेट में पोथी के पन्ने भर दिये गये थे। उसका मुँह बन्द था।

प्रश्न 15. राजा ने किसके कान उमेठने के लिए कहा?
उत्तर- राजा ने निन्दक के कान उमेठने के लिए कहा।

व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित समस्त पदों का समास-विग्रह कीजिए तथा समास का नाम भी लिखिए-
कायदा-कानून, राजा-मण्डी, अविद्या ।
उत्तर-
कायदा-कानून – कायदा और कानून – द्वन्द्व समास
राजा-मण्डी – राजा की मण्डी 
– षष्ठी तत्पुरुष समास
अविद्या  – विद्याहीन 
नञ् तत्पुरुष समास

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आन्तरिक मूल्यांकन

टैगोर द्वारा लिखी गयी किसी अन्य कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
नोट- 
विद्यार्थीगण स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 2 संत रैदास (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 2 संत रैदास (काव्य-खण्ड)

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(विस्तृत उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

1. प्रभुजी तुम चन्दन….…………………………………..चन्द चकोरा।
शब्दार्थ-प्रभुजी = ईश्वर । बास = महक, समानी = समाया हुआ है। घन = बादल, मोरा = मयूर, चकोर = चातक, पपीहा, चितवत = देखता है।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ सन्त रैदास द्वारा रचित हैं। प्रसंग-प्रस्तुत पद में कवि की अनन्य भक्ति प्रदर्शित हुई है।
व्याख्या- सन्त रैदास जी कहते हैं कि मेरे मन में राम नाम की जो रट लगी है, अब वह नहीं छूट सकती है। हे प्रभुजी ! आप चन्दन हैं और मैं पानी, जिसकी सुगन्ध मेरे अंग-अंग में (UPBoardSolutions.com) समा गयी है। हे प्रभु! आप इस उपवन के वैभव हैं और मैं मोर । मेरी दृष्टि आपके ऊपर लगी हुई है जैसे चकोर चन्द्रमा की तरफ देखता रहता है। उसी प्रकार मेरा मन भी सदैव आपके ऊपर लगा रहता है। आपसे पृथक् रहकर मेरा कोई अस्तित्व नहीं है।

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2. प्रभुजी तुम दीपक……………………………………… मिलत सोहागा।
शब्दार्थ-दीपक = दीया, जोति = प्रकाश, बरै = जले, सोनहिं = सोना।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ सन्त रैदास द्वारा रचित हैं।
प्रसंग- इन पंक्तियों में सन्त रैदास की ईश्वर के प्रति अनन्य भक्ति का वर्णन है।
व्याख्या- रैदास जी कहते हैं कि हे ईश्वर ! आप दीपक हैं और मैं उस दीप की प्राता हूँ जिसकी ज्योति दिन रात निरन्तर जलती रहती है । हे ईश्वर! आप मोती हैं और मैं (UPBoardSolutions.com) उस मोती में पिरोया जाने वाली धागा हूँ। यह स्थिति उसी प्रकार है जैसे सोने और सुहागा के मिलने पर होता है। हे ईश्वर ! मैं सदैव आपके निकट ही रहना चाहता हूँ।

3. प्रभुजी तुम स्वामी………………………………………करै रैदासा।
शब्दार्थ-स्वामी = मालिक, दासा = दास, नौकर, सेवक।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ सन्त रैदास द्वारा रचित हैं।
प्रसंग- इन पंक्तियों में रैदास जी ने अपने को ईश्वर के दास के रूप में प्रदर्शित किया है।
व्याख्या- रैदास जी कहते हैं कि हे प्रभुजी ! आप स्वामी हैं और मैं आपका दास हूँ। रैदास के मन में ईश्वर के प्रति इसी तरह का भक्ति भाव है। रैदास जी अपने को ईश्वर का दास समझ बैठे हैं। ईश्वर के प्रति उनकी अनन्य भक्ति है। ईश्वर के प्रति इस प्रकार की भक्ति रखने वाले लोग इस संसार के माया-मोह से मुक्त हो जाते हैं।

प्रश्न 2. रैदास का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा रैदास की साहित्यिक सेवाओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

रैदास
(स्मरणीय तथ्य)

जन्म-                    14वीं शताब्दी के मध्य से 15वीं शताब्दी को उत्तरार्द्ध।
मृत्यु-                    
संवत् 1597
माता का नाम-     भगवती
पिता का नाम-     मानदास ।
कृतियाँ-                रैदास की वाणी

जीवन-परिचय- भक्ति कालीन कवियों में सन्त रैदास का महत्त्वपूर्ण स्थान है, किन्तु सटीक साक्ष्यों के अभाव में आज भी इनका जीवन अन्धकारपूर्ण है।
                           रैदास की अनेक कृतियों में उनके अनेक नाम देखने को मिलते हैं। देश के विभिन्न भागों में उनके ऐसे अनेक नाम प्रचलित हैं जिनमें उच्चारण की दृष्टि से बहुत थोड़ा अन्तर है। रैदास (पंजाब), रविदास (आधुनिक), रयदास, रदास (बीकानेर की प्रतियों में), रयिदास आदि (UPBoardSolutions.com) नाम इस उच्चारण की भिन्नता को ही प्रकट करते हैं। इसलिए लोक प्रचलन और सुविधा की दृष्टि से उनका मूल नाम रैदास ही स्वीकार किया जाता है। भक्तमाल में कहा गया है कि रैदास रामानन्द के शिष्य थे। स्वत: रैदास की वाणी में भी ऐसे उद्धरण उपलब्ध हैं, जहाँ उन्होंने स्वामी रामानन्द को अपना गुरु स्वीकार किया है

रामानन्द मोहि गुरु मिल्यो, पायो ब्रह्मविसास।
रस नाम अमीरस पिऔ, रैदास ही भयौ पलास ॥

                               रामानन्द का समय 14वीं शताब्दी के मध्य से 15वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक माना जाता है किन्तु इसकी विरोधी धारणा यह भी प्रचलित है कि रैदास मीरा के गुरु थे। मीरा का समय 16वीं शताब्दी के मध्य से 17वीं शताब्दी के आरम्भ तक माना गया है। प्रायः सभी विद्वानों की धारणा है कि रैदास कबीर (जन्म संवत् 1455) के समकालीन थे।
                                    रैदास के माता-पिता के बारे में प्रामाणिक रूप से कुछ कहना कठिन जान पड़ता है। जनश्रुतियों तथा साम्प्रदायिक सूचनाओं के आधार पर कुछ निष्कर्ष निकाले गये हैं। भविष्यपुराण में रैदास के पिता का नाम मानदास बताया गया है। रैदास-पुराण में रैदास की माता का नाम ‘भगवती’ दिया गया है।

  • रैदास का निर्वाण (तिथि तथा स्थल)- रैदास के निर्वाण की तिथि तथा स्थल के विषय में कोई प्रामाणिक सूचना नहीं मिलती। चित्तौड़ के रविदासी भक्तों का कथन है कि चित्तौड़ में कुम्भनश्याम के मन्दिर के निकट जो रविदास की छतरी बनी हुई है, वही उनके निर्वाण का स्थल है। उस छतरी में रैदास जी के निर्वाण की स्मृतिस्वरूप रैदास जी के चरण-चिह्न भी बने हुए हैं।
                                         रैदास-रामायण के रचयिता ने लिखा है कि रैदास गंगा तट पर तपस्या करते हुए जीवन-मुक्त हुए। दोनों ही विचारधारा वाले लोग रैदास का ‘सदेह गुप्त’ होना मानते हैं। श्रद्धालु भक्त महापुरुषों का ‘सदेह गुप्त’ होना ही मान सकते हैं किन्तु इस सदेह गुप्त होने से एक संशय उत्पन्न होता है। वस्तुत: रैदास के निर्वाण को किसी ने देखा नहीं और इसीलिए उनकी मृत्यु को (UPBoardSolutions.com) श्रद्धापूर्वक सन्देह गुप्त’ अथवा ‘सदेह गुप्त’ कह दिया गया। वस्तुत: रैदास जी अचानक किसी स्थल पर अनायास स्वर्गवासी हो गये होंगे और भक्तों को ज्ञात नहीं हो सका होगा इसीलिए उनके विषय में श्रद्धापूर्वक सदेह गुप्त होने की बात चल पड़ी। रैदास के मृत्यु-स्थल का किसी को भी पता नहीं है।
                                             जहाँ तक रैदास की निर्वाण-तिथि का प्रश्न है, रविदासी सम्प्रदाय तथा भक्तों में रैदास की निर्वाण-तिथि चैत बदी चतुर्दशी मानी जाती है। किसी अन्य प्रमाण के अभाव में हम भी इसी तिथि को रैदास की निर्वाण-तिथि मान सकते हैं। जहाँ तक रैदास के निर्वाण के वर्ष का प्रश्न है, कुछ विद्वानों ने रैदास का मृत्यु-वर्ष संवत् 1597 माना है।’मीरा-स्मृति-ग्रंथ’ में उनका मृत्यु-वर्ष संवत् 1576 माना गया है।
    रैदास की जन्मतिथि को देखते हुए इनमें से कोई भी वर्ष असंगत ज्ञात नहीं होता। हाँ, यह बात अवश्य है। कि रैदास के निर्वाण के सम्बन्ध में इन वर्षों को मानने वाले श्रद्धालु भक्तों ने उनकी आयु 130 वर्ष तक मानकर उनको कबीर से भी ज्येष्ठ सिद्ध करने की चेष्टा अवश्य की है।
  • कृतियाँ-
    1. आदि ग्रन्थ में उपलब्ध रैदास की वाणी,
    2. रैदास की वाणी, वेलवेडियर प्रेस। |
  • हिन्दी साहित्य से जुड़े अनेक विद्वानों ने रैदास जी पर आधारित अनेक रचनाएँ की हैं, जो निम्नलिखित हैं- 
    1. सन्त रैदास और उनका काव्य (सम्पादक : रामानन्द शास्त्री तथा वीरेन्द्र पाण्डेय),
    2. सन्त सुधासार (सम्पादक : वियोगी हरि),
    3. सन्त-काव्य (परशुराम चतुर्वेदी),
    4. सन्त रैदास : व्यक्तित्व एवं कृतित्व (संगमलाल पाण्डेय),
    5. सन्त रैदास (डॉ० जोगिन्दर सिंह),
    6. रैदास दर्शन (सम्पादक : आचार्य पृथ्वीसिंह आजाद),
    7. सन्त रविदास (श्री रत्नचन्द),
    8. सन्त रविदास : विचारक और कवि (डॉ० पद्म गुरुचरण सिंह) और
    9. सन्त गुरु रविदास वाणी (डॉ० वेणीप्रसाद शर्मा)।
  • भाषा-शैली- रैदास की भाषा वस्तुत: तत्कालीन उत्तर भारत की सामान्य जनता के प्रति ग्राह्य भाषा बनकर राष्ट्रीय एकसूत्रता की भाषा बन गयी थी। इनकी भाषा में अवधी एवं ब्रज के शब्दों का सर्वाधिक प्रयोग हुआ है। इनकी शैली भी प्रसाद गुण सम्पन्न और मुख्यतः अभिधात्मक ही (UPBoardSolutions.com) रही है। रैदास के काव्य में भावातिरेक की मात्रा अधिक थी। अतः उनकी रचनाओं में उस अतिरेक को प्रकट करने के लिए प्रतीकात्मक लाक्षणिक शैली अनेक स्थलों पर सहायक सिद्ध हुई है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ‘प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर- हे प्रभुजी ! आप चन्दन हैं और मैं पानी, जिसकी सुगन्ध मेरे अंग-अंग में समा गयी है। हे प्रभुजी ! आप इस उपवन के वैभव हैं और मैं मोर। मेरी दृष्टि आपके ऊपर लगी हुई है जैसे-चकोर चन्द्रमा की तरफ देखता रहता है। हे ईश्वर ! आप दीपक हैं और मैं उस दीप की बाती हूँ जिसकी ज्योति (UPBoardSolutions.com) निरन्तर जलती रहती है। हे ईश्वर ! आप मोती हैं और मैं उस मोती में पिरोया जाने वाला धागा हूँ। यह स्थिति उसी प्रकार है जैसे सोने और सुहागा के मिलने पर होता है। हे प्रभुजी ! आप स्वामी हैं और मैं आपका दास हूँ। रैदास के मन में ईश्वर के प्रति इसी तरह का भक्तिभाव है।

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प्रश्न 2. ‘प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी’ कविता के आधार पर रैदास की भक्ति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- रैदास निर्गुण सन्त थे। उनकी ज्ञान सत्संग एवं लौकिक अनुभव का प्रतिफल था। रैदास एक साधक के रूप में भक्ति भाव के विशेष आग्रही हैं। उनका विश्वास है कि भक्ति से रहित बाहरी आडम्बर निरर्थक है। जो व्यक्ति हृदय से भगवान के प्रति समर्पित नहीं केवल कर्मकाण्ड, तीर्थयात्रा, जप-तप आदि पर ही विश्वास करते हैं, उनकी मुक्ति असम्भव है।
               वे मूर्ति पूजा, यज्ञ, पुराण-कथा आदि की भी उपेक्षा करते हैं। उनकी दृष्टि में ईश्वर कर्मा है, सर्वव्यापक है, अन्तर्यामी है तथा भक्ति से प्रसन्न होकर दीन-दलितों का (UPBoardSolutions.com) उद्धार करने वाला है। ऐसे ईश्वर को प्राप्त करने के लिए भक्ति को छोड़कर वे अन्य कोई साधने उचित नहीं मानते।

प्रश्न 3. जाकी ज्योति बरै दिन राती’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ईश्वर रूपी ज्योति ऐसी है जो निरन्तर जलती रहती है, जो कभी बुझती नहीं है। यह निरन्तर प्रज्ज्वलित रहती है। ईश्वर रूपी ज्योति पूरे संसार को आलोकित करती रहती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. रैदास किस काल के कवि थे?
उत्तर- रैदास भक्तिकाल के कवि थे।

प्रश्न 2. रैदास की रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर- रैदास की वाणी।

प्रश्न 3. रैदास के पिता का क्या नाम था?
उत्तर- भविष्य पुराण में रैदास के पिता का नाम मानदास बताया गया है।

प्रश्न 4. रैदास की माता का नाम लिखिए।
उत्तर- रैदास पुराण में रैदास की माता का नाम भगवती दिया गया है।

प्रश्न 5. रैदास किस कवि के समकालीन थे?
उत्तर- रैदास कबीर के समकालीन थे।

काव्य सौन्दर्य एवं व्याकरण बोध

प्रश्न 1. ‘जैसे चितवत चन्द चकोरा’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर- इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।

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प्रश्न 2. निम्नलिखित के तत्सम रूप लिखिए – राती, सोनहिं, मोती।
उत्तर- 
रात्रि, सुवर्ण, मुक्ता।

आन्तरिक मूल्यांकन

प्रश्न 1. भक्ति कालीन कवियों को सूचीबद्ध कीजिए।

  1. कबीर
  2. मलिक मोहम्मद जायसी
  3. रैदास
  4. मीरा बाई
  5. सूरदास
  6. तुलसीदास

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 1 कबीर (काव्य-खण्ड)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

1. सतगुरु हम सँ…………………….भीजि गया सब अंग। (Imp.)
शब्दार्थ-रीझि करि = प्रसन्न होकर, प्रसंग = ज्ञान की बात, उपदेश ।
सन्दर्भ- प्रस्तुत साखी हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं संत कबीर द्वारा रचित ‘साखी’ कविता शीर्षक से उधृत है।
प्रसंग-इस साखी में कबीर ने गुरु का महत्त्व बताते हुए कहा है कि गुरु की कृपा से ही ईश्वर के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है।
व्याख्या- कबीरदास जी कहते हैं कि सद्गुरु ने मेरी सेवा-भावना से प्रसन्न होकर मुझे ज्ञान की एक बात समझायी, जिसे सुनकर मेरे हृदय में ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम उत्पन्न हो गया। वह उपदेश मुझे ऐसा प्रतीत हुआ, मानो ईश्वर-प्रेमरूपी जल से भरे बादल बरसने लगे हों। उस ईश्वरीय प्रेम की वर्षा से (UPBoardSolutions.com) मेरा अंग-अंग भींग गया। यहाँ कबीरदास जी के कहने का भाव यह है कि सद्गुरु के उपदेश से ही हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है और उसी से मन को शान्ति मिलती है। इस प्रकार जीवन में गुरु का अत्यधिक महत्त्व है।
काव्यगत सौन्दर्य 

  1. भाषा-सधुक्कड़ी
  2. 2. रस-शान्त,
  3. अलंकार-रूपक।  छन्द-दोहा।

भावार्थ- प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बहुत सुन्दर ढंग से ज्ञान और भक्ति के क्षेत्र में गुरु की महत्ता का वर्णन किया है।

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2. राम नाम के पटतरे….…………………….. हौंस रही मन माँहिं।
शब्दार्थ-पटतरे = बराबरी । देबे कौं = देने के लिए, देने योग्य । हौंस = हौसला, उत्साह, उमंग। क्या लै = किस वस्तु ।
सन्दर्भ- प्रस्तुत साखी हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से उधृत है।
प्रसंग- कबीर जी कहते हैं कि जिस गुरु ने हमें ज्ञान प्रदान किया है उसके बदले में मेरे पास देने को कुछ नहीं है।
व्याख्या- कबीरदास जी का कहना है कि गुरु ने मुझे राम नाम (UPBoardSolutions.com) दिया है। उसके समान बदले में संसार में देने को कुछ नहीं है। तो फिर मैं गुरु को क्या देकर सन्तुष्ट करूं? कुछ देने की अभिलाषा मन के भीतर ही रह जाती है। भाव यह है कि गुरु ने मुझे राम नाम का ऐसा ज्ञान दिया है कि मैं उन्हें उसके अनुरूप कोई दक्षिणा देने में असमर्थ हूँ।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. ईश्वर प्रेम की प्राप्ति सद्गुरु की कृपा से ही सम्भव है और सद्गुरु की प्राप्ति ईश्वर की कृपा से ही होती है।
  2. भाषासधुक्कड़ी, शैली-मुक्तक, रस-शान्त, छन्द-दोहा, अलंकार-अनुप्रास।

3. ग्यान प्रकास्या गुर …………………………….. मिलिया आई।
शब्दार्थ-जिनि = नहीं। कृपा = अनुकम्पा । बीसरि-विस्मृत/मिलिया = मिले। सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से लिया गया 
है।
प्रसंग- कबीर जी कहते हैं कि गुरु के मिलने से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है और गुरु भगवान् की कृपा से ही मिलते हैं।
व्याख्या- कबीर का कहना है कि ईश्वर की महान् कृपा से गुरु की प्राप्ति हुई है। इस सच्चे गुरु ने तुम्हारे भीतर ज्ञान का प्रकाश दिया है। हे जीवात्मा ! (UPBoardSolutions.com) कहीं ऐसा न हो कि तुम उसे भूल जाओ क्योंकि ईश्वर की असीम कृपा से तो ‘सद्गुरु’ की प्राप्ति हुई और उसकी कृपा से तुम्हें ज्ञान मिला है।
काव्यगते सौन्दर्य

  1. रस- शान्त, छन्द-दोहा, अलंकार-अनुप्रास।
  2. भाषा- सधुक्कड़ी।

4. माया दीपक……………………………… उबरंत।
शब्दार्थ-पतंग = पतंगा। एक-आध = कोई-कोई । इवें = इसमें । तें = से। उबरंत = मुक्त हो जाते हैं।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से अवतरित है।
प्रसंग- इस पद में कवि ने जीव और माया को क्रमश: पतिंगा और दीपक का रूपक मानते हुए माया की प्रबलता और गुरु के उपदेश की महत्ता को बतलाया है।
व्याख्या- यह संसार माया के दीपक के समान है और मनुष्य पतिंगे के समान है। जिस प्रकार पतिंगा दीपक के सौन्दर्य पर मुग्ध हो अपने प्राणों को त्याग देता है उसी (UPBoardSolutions.com) तरह मनुष्य माया पर मुग्ध हो भ्रम में पड़ कर अपने को मिटा देता है। गुरु के उपदेश से शायद ही एक-आध इससे छुटकारा पा जाते हैं। काव्यगत सौन्दर्य – भाषा-सधुक्कड़ी। रस-शान्त । छन्द-दोहा। अलंकार-अनुप्रास।

5. जब मैं था ………………………………………. न समाहिं।
शब्दार्थ-मैं = अहंकार । प्रेम गली = प्रेम साधना। सांकरी = संकुचित (संकरी) । समाहिं = समाहित करना।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से उधृत है।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहा संत कबीर की रचना है। कबीर गुरु तथा शिष्य के बीच एकात्मकता पर बल दे रहे हैं।
व्याख्या- कबीर कहते हैं-जब तक मुझमें ‘मैं’ अर्थात् (UPBoardSolutions.com) अहंकार था तब तक मुझे अपने सद्गुरु से एकात्मभाव प्राप्त नहीं हो सका। मैं गुरु और स्वयं को दो समझता रहा। अत: मैं प्रेम-साधना में असफल रहा, क्योंकि प्रेम-साधना का मार्ग बड़ा सँकरा है उस पर एक होकर ही चला जा सकता है। जब तक द्वैत भाव-मैं और तू–बना रहेगा प्रेम की साधना, गुरुभक्ति सम्भव नहीं है।
काव्यगत सौन्दर्य – 
भाषा- सधुक्कड़ी। रस-शान्त । छन्द-दोहा। अलंकार-अनुप्रास, रूपक।

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6. भगति भजन हरि………….………………………………… सुमिरण सार।
शब्दार्थ- मनसा = मन से । बाचा = वचन से । कर्मनाँ = कर्म से। सुमिरण = भगवान् नाम का स्मरण । सार = तत्त्व।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से उद्धृत है।
प्रसंग- संत कबीर ने इन काव्य पंक्तियों में जगत् की असारता और परमात्मा की नित्यता बताते हुए अहंकार को नष्ट कर हरि-भक्ति की प्रेरणा दी है।
व्याख्या- जीव के लिए परमात्मा की भक्ति और भजन करना एक नाव के समान उपयोगी है। इसके अतिरिक्त संसार में दुःख ही दुःख हैं। इसी भक्तिरूपी नाव से (UPBoardSolutions.com) सांसारिक-दुःखरूपी सागर को पार किया जा सकता है। इसलिए मन, वचन और कर्म से परमात्मा का स्मरण करना चाहिए, यही जीवन का परम तत्त्व है।
काव्यगत सौन्दर्य
भाषा – सधुक्कड़ी। शैली -उपदेशात्मक, मुक्तक। छन्द -दोहा। रस -शान्त । अलंकार- ‘भगति भजन हरि नाँव है’ में रूपक तथा अनुप्रास है। भाव-साम्य-गोस्वामी तुलसीदास ने भी ईश्वर के नाम-स्मरण के विषय में कहा है।

देह धरे कर यहु फलु भाई। भजिय राम सब काम बिहाई॥

7. कबीर चित्त चमंकिया………………….. बेगे लेहु बुझाई।
शब्दार्थ- चित्त चमंकिया = हृदय में ज्ञान की ज्योति जग गयी है। लाइ = अग्नि। बेगे = शीघ्र।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से उधृत है।
प्रसंग- इसमें कबीरदास जी ने बताया है कि विषयरूपी अग्नि ईश्वर के नाम-स्मरण से ही शान्त हो सकती है।
व्याख्या- कबीर का कथन है कि इस संसार में सब जगह विषय-वासनाओं की आग लगी हुई दिखायी देती है। मेरा मन भी उसी आग से जल रहा है अथवा झुलस रहा है । या यूँ (UPBoardSolutions.com) कहिये कि मेरे मन में भी विषय वासनाएँ उमड़ रही हैं। अपने मन को संबोधित करते हुए संत कबीर कहते हैं कि हे मन! तेरे हाथ में ईश्वर-स्मरण रूपी जल का घड़ा है। तू इस जल से शीघ्र ही वासनाओं की आग बुझा ले । तात्पर्य यह है कि ईश्वर के नाम-स्मरण से ही इन विषय वासनाओं से छुटकारा पाया जा सकता है।
काव्यगत सौन्दर्य 

  1. ईश्वर के नाम- स्मरण से विषय-वासना नष्ट हो जाती है।
  2. भाषा- सधुक्कड़ी।
  3. शैली- मुक्तक।
  4. छन्द- दोहा।
  5. रस- शान्त।
  6. अलंकार-‘हरि सुमिरण हाथू घड़ा’ में रूपक है।

8. अंषड़ियाँ झाईं पड़ी ………………………………. राम पुकारि-पुकारि।
शब्दार्थ-अंषड़ियाँ = आँखों में । निहारि = देखकर। जीभड़ियाँ = ज़िह्वा में।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से उद्धृत है।
प्रसंग- इस दोहे में संत कबीर ने विरह से व्याकुल जीवात्मा के दुःख को व्यक्त किया है।
व्याख्या- कबीर का कथन है कि जीवात्मा बड़ी व्याकुलता से परमात्मा की प्रतीक्षा में आँखें बिछाये हुए है। भगवान् की बाट जोहते-जोहते उसकी आँखों में झाइयाँ पड़ गयी हैं, (UPBoardSolutions.com) पर फिर भी उसे ईश्वर के दर्शन नहीं हुए। जीवात्मा परमात्मा का नाम जपते-जपते थक गयी, उसकी जीभ में छाले भी पड़ गये, परन्तु फिर भी परमात्मा ने उसकी पुकार नहीं सुनी क्योंकि सच्ची लगन, सच्चे प्रेम तथा मन की पवित्रता के बिना इस प्रकार नाम जपना और बाट जोहना व्यर्थ है। काव्यगत सौन्दर्य

  1. यहाँ कवि ने ईश्वर के वियोग में व्याकुल जीवात्मा का मार्मिक चित्रण किया है।
  2. इनमें कवि की रहस्यवादी भावना दृष्टिगोचर होती है।
  3. भाषा- सधुक्कड़ी।
  4. शैली- मुक्तक।
  5. छन्द- दोहा।
  6. रस- शान्त।
  7. अलंकार- पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास ।

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9. झूठे सुख को ……………………………..………….कछु गोद।
शब्दार्थ- मानत हैं = मानते हैं, अनुभव करते हैं। मोद = हर्ष, खुशी । चबैना = चबाकर खाने की वस्तु, भुना हुआ चना अथवा चावल आदि।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से उधृत है।
प्रसंग- प्रस्तुत साखी में कबीर जी ने सांसारिक सुख को मिथ्या बताते हुए इस संसार की असारता को स्पष्ट किया है।
व्याख्या- कबीर कहते हैं – अज्ञानी मनुष्य सांसारिक सुखों को, जो कि मिथ्या और परिणाम में दुःखदायी हैं, सच्चे सुख समझते हैं और मन में बड़े प्रसन्न होते हैं। ये भूल जाते हैं कि यह सारा जगत् काल के चबैने-चना आदि के समान हैं जिसमें से कुछ उसके मुख में जा चुका है और कुछ भक्षण (UPBoardSolutions.com) किये जाने के लिए उसकी गोद में पड़ा हुआ है।
काव्यगत सौन्दर्य- 
भाषा- सधुक्कड़ी। रस- शान्त । छन्द- दोहा । अलंकार- अनुप्रास, रूपक।

10. जब मैं था तब ……………………………………………………………देख्या माँहिं।
शब्दार्थ-मैं = अभिमान। अँधियारा = अज्ञान रूपी अंधकार। माँहि = हृदय के भीतर।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से उधृत है।
प्रसंग- इस साखी में कबीरदास जी ने अहंकार को ईश्वर के साक्षात्कार में बाधक बतलाया है। वे कहते हैं
व्याख्या- जब तक हमारे भीतर अहंकार की भावना थी तब तक ईश्वर के दर्शन नहीं हुए थे, किन्तु जब हमने ईश्वर का साक्षात्कार कर लिया तो अहंकार बिल्कुल (UPBoardSolutions.com) ही नष्ट हो गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि ज्ञानरूपी दीपक के प्रकाश मिल जाने पर अज्ञानरूपी सारा अंधकार नष्ट हो गया है।
काव्यगत सौन्दर्य- 
भाषा- सधुक्कड़ी। रस- शान्त । छन्द- दोहा। अलंकार- अनुप्रास, रूपक।

11. कबीर कहा……………………………………….………..जामै घास।
शब्दार्थ-गरबियौ = गर्व करते हो। आवास = आवास, घर। मैं = भूमि।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से उधृत है।
प्रसंग- इस साखी में कबीर ने संसार की नश्वरता की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा है कि अपने को उच्च स्थान पर पाकर गर्व नहीं करना चाहिए।
व्याख्या- इस संसार की नश्वरता को बतलाते हुए कबीरदास जी कहते हैं कि हे मनुष्य! तुम इस संसार में अपने ऊँचे स्थान पाकर क्यों गर्व करते हो। यह सारा संसार नश्वर है। एक दिन यह सारा वैभव नष्ट होकर धूल में मिल जायेगा और उस पर घास जम् श्येमी अथवा तुम्हें कल भूमि पर लेटना (UPBoardSolutions.com) पड़ेगा अर्थात् तुम भी काल-कवलित हो जाओगे। लोग तुम्हें मिट्टी में दफना देंगे और उस पर घास जम जायेगी।
काव्यगत सौन्दर्य – भाषा- सधुक्कड़ी। छन्द- दोहा। अलंकार- उपमा और अनुप्रास । रस- शान्त।

12. यहुँ ऐसा संसार………………………………………………… न भूलि।
शब्दार्थ-सैंबल = सेमर। यहु = यह।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से उधृत है।
प्रसंग- इस साखी में कबीर ने संसार को सेमल का फूल बताते हुए अल्पकालीन सांसारिक रंगीनियों में न फँसने का उपदेश दिया है।
व्याख्या- संसार की असारता को बतलाते हुए कबीरदास जी का कहना है कि यह संसार सेमल के फूल की भाँति सुन्दर और आकर्षक तो है, किन्तु इसमें कोई गंध नहीं है। जिस प्रकार से तोता सेमल के फूल पर मुग्ध हो उसके सुन्दर फल की आशा में उस पर मँडराता रहता है और अन्त में (UPBoardSolutions.com) उसे निस्सार रुई ही हाथ लगती है ठीक उसी प्रकार यह जीव इस संसार को अल्पकालीन रंगीनियों में भूला हुआ है। उसे इस झूठे रंग में सच्चाई को नहीं भूलना चाहिए। काव्यगत सौन्दर्य

  1. दिन दस का व्यवहार = थोड़े समय का जीवन ।
  2. अलंकार = उपमा।
  3. झूठे रंग न भूल = संसार के कच्चे रंग अर्थात् नश्वरता को न भूलो।
  4. भाषा- सधुक्कड़ी, रस- शान्त।

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13. इहि औसरि ………………………………………………… मुख बेह।
शब्दार्थ- षेह = राख। औसरि = अवसर। चेत्या = चेता।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से उधृत है।
प्रसंग- प्रस्तुत साखी में कबीर ने कहा है कि मनुष्य योनि पाकर भी यदि समय रहते ईश्वर-स्मरण नहीं किया गया तो हमारा जीवन व्यर्थ है।
व्याख्या- कबीरदास जी कहते हैं कि हे जीव! तुम उस मनुष्य योनि में पैदा हुए हो जो बड़े ही सौभाग्य से प्राप्त होता है। इतना सुन्दर अवसर पाकर भी तुम सजग नहीं होते (UPBoardSolutions.com) और ‘राम नाम’ का स्मरण नहीं करते। केवल पशु की भाँति अपने शरीर को पालन-पोषण कर रहे हो। यह समझ लो कि यदि समय रहते तुमने ‘राम’ का स्मरण नहीं किया तो अन्त में मिट्टी में ही मिलना होगा।
काव्यगत सौन्दर्य – भाषा-सधुक्कड़ी। रस-शान्त । छन्द-दोहा।

  1. पशु ज्यूँ पाली देह-उपमा अलंकार।
  2. 2. राम-नाम-अनुप्रास अलंकार।

14. यह तन काचा ………………………………………………… आया हाथि।
शब्दार्थ-तन = शरीर। काचा = कच्चा। कुंभ = घड़ा।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से उद्धृत है।
प्रसंग- इस साखी में कबीरंदास जी ने शरीर की नश्वरता का वर्णन किया है। वे कहते हैं –
व्याख्या- यह शरीर मिट्टी के कच्चे घड़े के समान है जिसे तुम बड़े अहंकार के साथ सबको दिखलाने के लिए साथ लिये घूमते हो, किन्तु एक ही धक्का लगने से यह टूटकर (UPBoardSolutions.com) चूर-चूर हो जायेगा और कुछ भी हाथ नहीं लगेगा अर्थात् काल के धक्के से शरीर नष्ट हो जायेगा और वह मिट्टी में मिल जायेगा।
काव्यगत सौन्दर्य – 
भाषा-सधुक्कड़ी। रस-शान्त। छन्द-दोहा।

  1. अलंकार रूपक तथा अनुप्रास है।
  2. शरीर की नश्वरता का वर्णन है।

15. कबीर कहा गरबियौ…………………………………………………भुवंग।
शब्दार्थ- बीछड़ियाँ = बिछुड़ जाने पर।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं कबीरदास द्वारा रचित ‘साखी’ से उधृत है।
प्रसंग- देह के प्रति मनुष्य का मोह गहन होता है। कबीर ने इसी मोह के प्रति मनुष्य को सावधान किया है।
व्याख्या- कबीरदास जी कहते हैं कि तुम अपने शरीर की सुन्दरता पर इतना क्यों घमण्ड करते हो। तुम्हारा यह घमण्ड सर्वथा व्यर्थ है। मरने के पश्चात् फिर यह शरीर ठीक (UPBoardSolutions.com) उसी प्रकार तुम्हें नहीं मिलेगा जिस प्रकार अपनी केंचुल को एक बार छोड़ देने के पश्चात् सर्प को वह पुनः प्राप्त नहीं होती। वह उसके लिए निरर्थक हो जाती है।
काव्यगत सौन्दर्य – भाषा-सधुक्कड़ी। रस-शान्त । छन्द-दोहा।

  1. ‘कबीर कहा’, ‘देही देखि’ में अनुप्रास अलंकार ।
  2. बीछड़या………. भुवंग-उपमा अलंकार।

प्रश्न 2. कबीरदास का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा कबीर का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी साहित्यिक सेवाओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा कबीर की भाषा-शैली स्पष्ट कीजिए।

कबीर
(स्मरणीय तथ्य)

जन्म- 1398 ई०, काशी।मृत्यु- 1495 ई०, मगहर।
जन्म एवं माता- विधवा ब्राह्मणी से। पालन-पोषण नीरू तथा नीमा ने किया।
गुरु- रामानन्द । 
रचना- बीजक।
काव्यगत विशेषताएँ

  • भक्ति-भावना- प्रेम तथा श्रद्धा द्वारा निराकार ब्रह्म की भक्ति। रहस्य भावना, धार्मिक भावना, समाज सुधार, दार्शनिक |विचार।
  • वर्य विषय- वेदान्त, प्रेम-महिमा, गुरु महिमा, हिंसा का त्याग, आडम्बर का विरोध, जाति-पाँति का विरोध।
  • भाषा- राजस्थानी, पंजाबी, खड़ीबोली और ब्रजभाषा के शब्दों से बनी पंचमेल खिचड़ी तथा सधुक्कड़ी।
  • शैली- 
    1. भक्ति तथा प्रेम के चित्रण में सरल तथा सुबोध शैली।
    2. रहस्यमय भावनाओं तथा उलटवाँसियों में दुरूह तथा अस्पष्ट शैली।
  • छन्द- साखी, दोहा और गेय पद।
  • रस तथा अलंकार- कहीं-कहीं उपमा, रूपक, अन्योक्ति अलंकार तथा भक्ति-भावना में शान्त रस पाये जाते हैं।
  • जीवन-परिचय- कबीरदास का जन्म काशी में सन् 1398 ई० के आस-पास हुआ था। नीमा और नीरू नामक जुलाहा दम्पति ने इनका पालन-पोषण किया। ये बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। हिन्दू भक्तिधारा की ओर इनका झुकाव प्रारम्भ से ही था। इनका विवाह ‘लोई’ नामक स्त्री से हुआ बताया जाता है जिससे ‘कमाल’ और ‘कमाली’ नामक दो संतानों का उल्लेख मिलता है। (UPBoardSolutions.com) कबीर का अधिकांश समय काशी में ही बीता था। वे मूलत: संत थे, किन्तु उन्होंने अपने पारिवारिक जीवन के कर्तव्यों की कभी उपेक्षा नहीं की। परिवार के भरण-पोषण के लिए कबीर ने जुलाहे को धन्धा अपनाया और आजीवन इसी धन्धे में लगे रहे। अपने इसी व्यवसाय में प्रयुक्त होनेवाले चरखा, ताना-बाना, भरनी-पूनी का इन्होंने प्रतीकात्मक प्रयोग अपने काव्य में किया था।
                                  कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे। उन्होंने स्वयं ‘मसि कागद् छुयो नहीं, कलमे गही नहिं हाथ’ कहकर इस तथ्य की पुष्टि की है। सत्संग एवं भ्रमण द्वारा अपने अनुभूत ज्ञान को अद्भुत काव्य प्रतिभा द्वारा कबीर ने अभिव्यक्ति प्रदान की थी और हिन्दी साहित्य की निर्गुणोपासक ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवि के रूप में मान्य हुए।
                                    कबीर ने रामानन्द स्वामी से दीक्षा ली थी। कुछ लोग इन्हें सूफी फकीर शेख तकी का भी शिष्य मानते हैं, किन्तु श्रद्धा के साथ कबीर ने स्वामी रामानन्द का नाम लिया है। इससे स्पष्ट है कि ‘स्वामी रामानन्द’ ही कबीर के गुरु थे।
                                        ‘काशी में मरने पर मोक्ष होता है’ इस अंधविश्वास को मिटाने के लिए कबीर जीवन के अन्तिम दिनों में मगहर चले गये। वहीं सन् 1495 ई० में इनका देहान्त हो गया।
  • रचनाएँ- पढ़े-लिखे न होने के कारण कबीर ने स्वयं कुछ नहीं लिखा है। इनके शिष्यों द्वारा ही इनकी रचनाओं का संकलन मिलता है। इनके शिष्य धर्मदास ने इनकी रचनाओं का संकलन ‘बीजक’ नामक ग्रन्थ में किया है जिसके तीन खण्ड हैं—(1) साखी (2) सबद (3) रमैनी ।

काव्यगत विशेषताएँ

(क) भाव-पक्ष-

  1. कबीर हिन्दी साहित्य की निर्गुण भक्ति शाखा के सर्वश्रेष्ठ ज्ञानमार्गी संत हैं, जिन्होंने जीवन के अद्भुत सत्य को साहस और निर्भीकतापूर्वक अपनी सीधी-सादी भाषा में सर्वप्रथम रखने का प्रयास किया है।
  2. जनभाषा के माध्यम से भक्ति निरूपण के (UPBoardSolutions.com) कार्य को प्रारम्भ करने का श्रेय कबीर को ही है।
  3. कबीर की सधुक्कड़ी भाषा में सूक्ष्म मनोभावों और गहन विचारों को बड़ी ही सरलता से व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता है।
  4. कबीर स्वभाव से सन्त, परिस्थिति से समाज-सुधारक और विवशता से कवि थे।

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(ख) कला-पक्ष-

  1. भाषा-शैली-कबीर की भाषा पंचमेल या खिचड़ी है। इसमें हिन्दी के अतिरिक्त पंजाबी, राजस्थानी, भोजपुरी, बुन्देलखण्डी आदि भाषाओं के शब्द भी आ गये हैं। कबीर बहुश्रुत संत थे, अत: सत्संग और भ्रमण के कारण इनकी भाषा का यह रूप सामने आया। कबीर की शैली पर उनके व्यक्तित्व का प्रभाव है। उसमें हृदय को स्पर्श करनेवाली अद्भुत शक्ति है।
  2. रस-छन्द-अलंकार-रस की दृष्टि से काव्य में शान्त, श्रृंगार और हास्य की प्रधानता है। उलटवाँसियों का अद्भुत रस का प्रयोग हुआ है। कबीर की साखियाँ दोहे में, रमैनियाँ चौपाइयों में तथा सबद गेय शब्दों में लिखे गये हैं। कबीर के गेय पदों में कहरवा आदि लोक-छन्दों का प्रयोग हुआ है। उनकी कविता में रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, दृष्टान्त, यमक आदि अलंकार स्वाभाविक रूप में आ गये हैं।

साहित्य में स्थान- कबीर एक निर्भय, स्पष्टवादी, स्वच्छ हृदय, उपदेशक एवं समाज-सुधारक थे। हिन्दी का प्रथम रहस्यवादी कवि होने का गौरव उन्हें प्राप्त है। इनके सम्बन्ध में यह कथन बिल्कुल ही सत्य उतरता है –

”तत्त्व-तत्त्व कबिरा कही, तुलसी कही अनूठी।
बची-खुची सूरा कही, और कही सब झूठी॥”

( लघु उत्तरीय प्रश्न )

प्रश्न 1. मोक्ष प्राप्त करने के लिए कबीर ने किन साधनों को अपनाने का उपदेश दिया है?
उत्तर- मोक्ष प्राप्त करने के लिए कबीर ने मुख्य रूप से मन को वश में करने, लोभ, मोह और भ्रम का त्याग करके सत्संगति, मन की दृढ़ता और सच्चे गुरु के उपदेशों पर मनन करने का उपदेश दिया है।

प्रश्न 2. कबीर के समाज-सुधार पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- कबीरदास जी स्पष्ट वक्ता एवं समाज-सुधारक थे। उन्होंने हिन्दू और मुसलमान दोनों को फटकार लगायी है। वे दोनों के मध्य झगड़ो समाप्त करने के लिए कहते थे-

”हिन्दू कहै मोहि राम पिआरा, तुरक कहै रहमाना।
आपस में दोउ लड़ि-लड़ि मर गये, मरम काहू नहिं जाना।”

                   कबीर ने विभिन्न वर्ग, जाति, धर्म एवं सम्प्रदायों के बीच भेद मिटाने का प्रयास किया । पाखण्ड और ढोंगों के विरुद्ध हिन्दू और मुसलमान दोनों को फटकार लगायी।

प्रश्न 3. कबीर के काव्य की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- कबीर को काव्य अत्यन्त उत्कृष्ट कोटि का है । कबीर के समाज सुधारक थे। इनकी कविताओं में भी समाज सुधार की स्पष्ट झाँकी प्रस्तुत है। इन्होंने साहित्य के माध्यम से सभ ज में फैली कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। इन्होंने बाह्याडम्बर का जमकर विरोध किया। इनके साहित्य में ज्ञानात्मक रहस्यवाद के दर्शन होते हैं।

प्रश्न 4. कबीर की भाषा का उल्लेख कीजिए। |
उत्तर- कबीर की भाषा एक संत की भाषा है जो अपने में निश्छलता लिये हुए है। यही कारण है कि उनकी भाषा साहित्यिक नहीं हो सकी। उसमें कहीं भी बनावटीपन नहीं हैं। उनकी भाषा में अरबी, फारसी, भोजपुरी, राजस्थानी, अवधी, पंजाबी, बुन्देलखण्डी, ब्रज एवं खड़ीबोली आदि विविध (UPBoardSolutions.com) बोलियों और उपबोलियों तथा भाषाओं के शब्द मिल जाते हैं, इसीलिए उनकी भाषा ‘पंचमेल खिचड़ी’ या सधुक्कड़ी’ कहलाती हैं। सृजन की आवश्यकता के अनुसार वे शब्दों को तोड़-मरोड़कर प्रयोग करने में भी नहीं चूकते थे। भाव प्रकट करने की दृष्टि से कबीर की भाषा पूर्णत: सक्षम है।

प्रश्न 5. कबीर के अनुसार जीवन में गुरु के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर- कबीर की साखियों में गुरु की महिमा अनेक रूपों में वर्णित है। कबीर गुरु को ईश्वर के समकक्ष मानते हैं। उनका मत है कि सच्चे गुरु की कृपा के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है। गुरु से प्राप्त ज्ञान के द्वारा मनुष्य सांसारिक मोह-माया से छुटकारा पा सकता है और ईश्वर के दर्शन प्राप्त करने में समर्थ हो सकता है।

प्रश्न 6. कबीर ने संसार को सेमल के फूल के समान क्यों कहा है? 
उत्तर- कबीर का मत है कि यह संसार सेमल के फूल के समान सुन्दर तो लगता है; किन्तु उसी के समान गन्धहीन और क्षणभंगुर भी है। उसमें वास्तविक सुख प्राप्त नहीं हो सकता।

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प्रश्न 7. कबीर मनुष्य को गर्व न करने का उपदेश क्यों देते हैं?
उत्तर- कबीर मनुष्य को गर्व न करने का उपदेश इसलिए देते हैं क्योंकि मनुष्य धने, बल, महल आदि जिन वस्तुओं पर गर्व करता है वे सब नश्वर हैं। मनुष्य का शरीर स्वयं नश्वर है। उसके महल बने-बनाये रह जाते हैं, वह स्वयं भूमि पर लेटता है और ऊपर घास जमती है। फिर गर्व किस बात का?

प्रश्न 8. सतगुरु की सरस बातों का कबीर पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- सतगुरु की बातें सुनकर कबीर के मन में ईश्वर के प्रति प्रेमभाव उत्पन्न हो गया और उनका मन रोम-रोम में भींग 
गया।

प्रश्न 9. कबीर की रचना में से ऐसी दो पंक्तियाँ खोजकर लिखिए जिनमें उन्होंने अहंकार को नष्ट करने का उपदेश दिया है।
उत्तर- कबीर की रचना में अहंकार को नष्ट करने का उपदेश देने वाली दो पंक्तियाँ हैं

  1. मैमंता मन मारि रे, न हां करि करि पीसि ।
  2. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।

( अतिलघु उत्तरीय प्रश्न )

प्रश्न 1. भक्तिकाल के किसी एक कवि तथा उसकी एक रचना का नाम लिखिए।
उत्तर- भक्तिकाल के प्रमुख कवि कबीरदास जी हैं तथा उनकी रचना साखी है।

प्रश्न 2. कबीर किस धर्म के पोषक थे?
उत्तर-कबीर हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्म के पोषक थे।

प्रश्न 3. कबीर उस घर को कैसा बताते हैं जहाँ न तो साधु की पूजा होती है और न ही हरि की सेवा।
उत्तर- कबीरदास जी कहते हैं कि जिस घर में साधु और ईश्वर की पूजा नहीं होती है, वह घर मरघट के समान है। वहाँ भूत का डेरा होता है।

प्रश्न 4. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाइए –
(अ) कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे।                                                  (√)
(ब) साखी चौपाई छन्द में लिखा गया है।                                   (×)
(स) रावण के सवा लाख पूत थे।                                               (√)
(द) कबीर को लालन-पालन नीमा और नीरू ने किया था।         (×)

प्रश्न 5. कबीर किस काल के कवि हैं?
उत्तर- कबीर भक्तिकाल के कवि हैं।

प्रश्न 6. कबीर कैसी वाणी बोलने के लिए कहते हैं?
उत्तर- कबीरजी कहते हैं कि मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिससे अपना शरीर तो शीतल हो ही दूसरों को भी सुख और शान्ति मिले।

प्रश्न 7. कबीर का जन्म एवं मृत्यु संवत् बताइए।
उत्तर- कबीर का जन्म संवत् 1455 विक्रमी तथा मृत्यु संवत् 1575 विक्रमी में हुई थी।

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प्रश्न 8. ‘साखी’ किस छन्द में लिखा गया है?
उत्तर-
‘साखी’ दोही छन्द में लिखा गया है।

प्रश्न 9. कबीर की भाषा-शैली की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- कबीर की भाषा मिली-जुली भाषा है, जिसमें खडीबोली और ब्रजभाषा की प्रधानता है। इनकी भाषा में अरबी, फारसी, भोजपुरी, पंजाबी, बुन्देलखण्डी, ब्रज, खड़ीबोली आदि विभिन्न भाषाओं के शब्द मिलते हैं। कई भाषाओं के मेल के कारण इनकी भाषा को विद्वानों ने ‘पंचरंगी मिली-जुली’, ‘पंचमेल खिचड़ी’ अथवा ‘सधुक्कड़ी’ भाषा कहा है। कबीर ने सहज, सरल व सरस शैली में उपदेश दिये। यही कारण (UPBoardSolutions.com) है कि इनकी उपदेशात्मक शैली क्लिष्ट अथवा बोझिल है । इसमें सजीवता, स्वाभाविकता, स्पष्टता एवं प्रवाहमयता के दर्शन होते हैं। इन्होंने दोहा, चौपाई एवं पदों की शैली अपनाकर उनका सफलतापूर्वक प्रयोग किया। व्यंग्यात्मकता एवं भावात्मकता इनकी शैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं ।

प्रश्न 10. कबीर की रचनाओं की सूची बनाइए।
उत्तर- साखी, सबद और रमैनी।

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए
ग्यान, अंधियार, सैंबल, भगति, दुक्ख, व्योहार
ग्यान – ज्ञान
अंधियार – अंधकार
सैंबल – सेमल

भगति – भक्ति
दुक्ख –  
दुःख
व्योहार – व्यवहार

प्रश्न 2. निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार एवं छन्द बताइए
(अ) सतगुरु हम सँ रीझि कर, एक कह्या प्रसंग।
(ब) माया दीपक नर पतंग, भ्रमि, भ्रमि इवै पड्त।
(स) यहुँ ऐसा संसार है, जैसा सैंबल फूल ।
उत्तर-
(अ) इसमें रूपक अलंकार है तथा दोहा छन्द है।
(ब) इस पंक्ति में अन्त्यानुप्रास अलंकार तथा दोहा छन्द है।
(स) इस पंक्ति में रूपक तथा उपमा अलंकार है।

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प्रश्न 3. ‘जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं’ पंक्ति का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
काव्य-सौन्दर्य-

  1. यहाँ कवि का सन्देश है कि ईश्वर प्रेम के लिए अहम् को त्यागना ही पड़ता है।
  2. भाषा-पंचमेल खिचड़ी।
  3. शैली-आलंकारिक।
  4. रस-शान्त तथा भक्ति।
  5. छन्द-दोहा (साखी) ।

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 3 मीराबाई (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 3 मीराबाई (काव्य-खण्ड)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

1. बसो मेरे नैनन में ….…………………………………….. भक्त बछल गोपाल।
शब्दार्थ- मकराकृत = मछली के आकार के। छुद्र = छोटी। रसाल = मधुर । भक्त-बछल = भक्त-वत्सल।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित श्रीकृष्ण की अनन्य उपासिका मीराबाई के काव्य-ग्रन्थ ‘मीरा-सुधा-सिन्धु’ के अन्तर्गत ‘पदावली’ शीर्षक से अवतरित है।
प्रसंग- प्रेम-दीवानी मीरा भगवान् कृष्ण की मोहिनी मूर्ति को अपने नेत्रों में बसाना चाहती हैं। इस पद में कृष्ण की मोहिनी मूर्ति का सजीव चित्रण है।
व्याख्या- कृष्ण के प्रेम में दीवानी मीरा कहती हैं कि नन्दजी को आनन्दित करनेवाले हे श्रीकृष्ण! आप मेरे नेत्रों में निवास कीजिए। आपका सौन्दर्य अत्यन्त आकर्षक है। आपके सिर पर मोर के पंखों में निर्मित मुकुट एवं कानों में ऊली की आकृति के कुण्डल सुशोभित हो रहे हैं। मस्तक पर लगे हुए लाल तिलक और सुन्दर विशाल नेत्रों से आपका श्यामवर्ण का शरीर अतीव सुशोभित हो रहा है। अमृतरस से भरे आपके सुन्दर होंठों पर बाँसुरी शोभायमान हो रही है । आप हृदय पर वन के पत्र-पुष्पों से निर्मित माला धारण किये हुए हैं। आपकी (UPBoardSolutions.com) कमर में बँधी करधनी में छोटी-छोटी घण्टियाँ सुशोभित हो रही हैं। आपके चरणों में बँधे हुँघरुओं की मधुर ध्वनि बहुत रसीली प्रतीत होती है । हे प्रभु! आप सज्जनों को सुख देनेवाले, भक्तों से प्यार करनेवाले और अनुपम सुन्दर हैं। आप मेरे नेत्रों में बस जाओ।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. यहाँ भगवान् कृष्ण की मनमोहक छवि का परम्परागत वर्णन किया गया है।
  2. मीराबाई की कृष्ण के प्रति अनन्य भक्तिभावना प्रकट हुई है।
  3. भाषा-सुमधुर ब्रज।
  4. शैली-मुक्तक काव्य की पद शैली है।
  5. छन्द-संगीतात्मक गेय पद।
  6. रस- भक्ति एवं शान्त।
  7. अलंकार-मोर मुकुट मकराकृति कुण्डल’ तथा ‘मोहनि मूरति साँवरि सूरति’ में अनुप्रास है।
  8. भाव-साम्य-कविवर बिहारी भी मीरा की तरह कृष्ण के इस रूप को अपने मन में बसाना चाहते हैं –

“सीस मुकुट, कटि काछनी, कर मुरली उर माल।
इहिं बानक मो मन सदा, बसौ बिहारीलाल॥”

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2. पायो जी म्हैं तो राम रतन ………………………………………… जस गायो।
शब्दार्थ- अमोलक = अनमोल । खेवटिया = खेनेवाला। भव सागर = संसाररूपी सागर । म्है = मैंने।
सन्दर्भ – यह पद मीराबाई की ‘पदावली’ से लिया गया है, जो हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित है।
प्रसंग- प्रस्तुत पद में मीराबाई भगवान् राम के नाम के महत्त्व की चर्चा करती हुई कहती हैं –
व्याख्या- मैंने भगवान् के नामरूपी रत्न सम्पदा को प्राप्त कर लिया। मेरे सच्चे गुरु ने यह अमूल्य वस्तु मुझ पर दया करके मुझे प्रदान की थी, मैंने उसे अंगीकार किया था। इस प्रकार मैंने गुरुदीक्षा के कारण कई जन्मों की संचित पूँजी (पुण्य फल) प्राप्त कर ली और संसार की सारी मोह-मायाओं का त्याग (UPBoardSolutions.com) कर दिया। यह राम नाम की पूँजी ऐसी विचित्र है कि यह खर्च करने पर भी कम नहीं होती और न इसे चोर हो चुरा सकते हैं। यह प्रतिदिन अधिक होती जाती है। मैंने इसी सत्यनाम (ईश्वर का नाम) रूपी नौका पर सवार होकर, जिसके केवट मेरे सच्चे गुरु हैं, संसाररूपी सागर को पार कर लिया है। अंत में मीराबाई कहती हैं कि गिर धरनागर श्रीकृष्ण भगवान् ही एकमात्र मेरे स्वामी हैं। मैं प्रसन्न होकर उनका गुणगान कर रही हूँ।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. इस पद में भक्तिकालीन कवियों की परम्परा के अनुसार भगवान् के नाम के महत्त्व को बतलाया गया है।
  2. मीरा कृष्ण की उपासिका हैं, किन्तु यहाँ ‘राम’ रतन धन की चर्चा करती हैं। यहाँ राम का तात्पर्य घट-घट व्यापी राम से है।
  3. अलंकारअनुप्रास और रूपक।
  4. भाषा-राजस्थानी मिश्रित ब्रज।
  5. शैली-मुक्तक।
  6. छंद-गेयपद।
  7. रस-शान्त और भक्ति।

3. माई री मैं ……………………………………………….. जनम कौ कौल।
शब्दार्थ- छाने = छिपकर । बजन्ता ढोल = ढोल बजाकर, सबको जताकर, खुले आम । मुँहघो = महंगा । सुंहघो = सस्ता । कौल = वचन ।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मीरा द्वारा रचित ‘पदावली’ से संकलित है।
प्रसंग- प्रस्तुत पद में मीरा श्रीकृष्ण से अपने सच्चे प्रेम को निस्संकोच भाव से स्वीकार कर रही हैं।
व्याख्या- मीरा कहती हैं- मैंने तो अपने गोविन्द को मोल ले लिया है। लोग मेरे इस प्रेम-व्यापार पर नाना प्रकार के आक्षेप करते हैं। कोई कहता है कि मैंने श्रीकृष्ण को छिपकर अपनाया है और कोई कहता है कि मैंने उससे चुपचाप प्रेम-सम्बन्ध जोड़ा है, पर मैंने तो ढोल बजाकर-सभी को बताकर-उसे अपनाया है। कोई कहता है कि मेरा यह सौदा बड़ा महँगा (कष्टदायक) है और कोई कहता है कि मैंने श्रीकृष्ण को बड़े सस्ते में (सहज प्रयत्न से) पा लिया है, पर मैंने उसे सब प्रकार से परखकर, हृदयरूपी तराजू पर तौलकर मोल (UPBoardSolutions.com) लिया है। चाहे उसे कोई काला कहे चाहे गोरा, मेरे लिए तो वह जैसा भी है, अमूल्य है, क्योंकि उसे हृदय जैसी मूल्यवान वस्तु के बदले खरीदा गया है। सभी जानते हैं कि मीरा ने कृष्ण को आँख बन्द करके-अंधविश्वास में लिप्त होकर स्वीकार नहीं किया है। उसने तो आँखें खोलकर, सब कुछ सोच समझकर उससे प्रीति सम्बन्ध जोड़ा है। मीरा कहती हैं-मेरे प्रभु पूर्वजन्म से मेरे साथ वचनबद्ध हैं, अत: उन्होंने मुझे दर्शन देकर कृतार्थ किया है।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. मीरा और कृष्ण के पवित्र प्रेम-बन्धन की झाँकी इस पद में साकार हुई है।
  2. भाषा सरस, सरल और मिश्रित शब्दावली युक्त ब्रजी है।
  3. शैली-आत्मनिवेदनात्मक, भावात्मक तथा व्यंग्य का संस्पर्श लिये है।
  4. अनेक मुहावरों का सुन्दर प्रयोग हुआ है। रस-भक्ति। गुण-प्रसाद। छन्द-गेय पद।

4. मैं तो साँवरे ………………………………………………………. भगति रसीली जाँची॥
शब्दार्थ- साँची = सत्य । ब्याल = सर्प । खारो = नीरस, व्यर्थ । काँची = कच्ची, (क्षणभंगुर)। जाँची = प्रतीत हुई।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं मीराबाई द्वारा रचित ‘पदावली’ से उद्धृत है।
प्रसंग- इस पद में मीरा भगवान् कृष्ण के प्रेम में निमग्न होकर पूर्णरूप से उन्हीं के रंग में रंग गयी हैं, इसलिए संसार की अन्य किसी वस्तु में उनका मन नहीं लगता।
व्याख्या- मीरा कहती हैं कि मैं तो साँवले कृष्ण के श्याम रंग में रँग गयी हूँ अर्थात् उनके प्रेम में आत्मविभोर हो गयी हूँ। मैंने तो लोक-लाज को छोड़कर अपना पूरा श्रृंगार किया है और पैरों में सुँघरू बाँधकर नाच भी रही हैं। साधुओं की संगति से मेरे हृदय की सारी कालिमा मिट गयी है और मेरी दुर्बुद्धि भी सद्बुद्धि में बदल गयी है और मैं श्रीकृष्ण की सच्ची भक्त बन गयी हूँ। मैं प्रभु श्रीकृष्ण का नित्य गुणगान करके (UPBoardSolutions.com) कालरूपी सर्प के चंगुल से बच गयी हूँ अर्थात् अब मैं जन्म-मरण के चक्र से छूट गयी हूँ। अब कृष्ण के बिना मुझे यह संसार निस्सार और सूना लगता है, अतः उनकी बातों के अलावा अन्य बातें व्यर्थ लगती हैं। मीराबाई को केवल श्रीकृष्ण की भक्ति में ही आनन्द मिलता है, संसार की किसी अन्य वस्तु में नहीं।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की एकनिष्ठ भक्ति का सुन्दर चित्रण हुआ है।
  2. कृष्ण की दीवानी मीरा को उनके बिना यह संसार निस्सार और सूना लगता है।
  3. भाषा-राजस्थानी मिश्रित ब्रज
  4. शैली-मुक्तक।
  5. छन्द-गेय पद।
  6. रस- भक्ति और शान्त।
  7. गुण-माधुर्य ।
  8. अलंकार-अनुप्रास, रूपक।।

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5. मेरे तो गिरधर …………………………………… तारो अब मोई।
शब्दार्थ-कानि = मर्यादा, प्रतिष्ठा। ढिंग = समीप । आणंद = आनन्द । राजी = प्रसन्न।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं श्रीकृष्ण की अनन्य उपासिका मीरा द्वारा रचित ‘पदावली’ से उद्धृत है।
प्रसंग- मीरा एकमात्र श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व घोषित कर रही हैं। संसार के सारे नाते तोड़कर, लोकलाज छोड़कर, केवल श्रीकृष्ण के प्रेम के आनन्द-पल का आस्वाद ले रही हैं।
व्याख्या- मीरा कहती हैं-अब तो मैं अपना नाता केवल एक श्रीकृष्ण से मानती हूँ और कोई भी मेरा इस संसार में अपना नहीं है। सिर पर मोरमुकुट धारण करनेवाले नटवर-नागर ही मेरे पति हैं। पिता, माता, भाई, बन्धु आदि से अब मेरा कोई नाता नहीं रहा। मैंने तो कृष्ण-प्रेम के लिए अपने कुल की प्रतिष्ठा को भी त्याग दिया है। अब मेरा कोई क्या कर लेगा? सभी कहते हैं कि मैंने सन्तों का सत्संग करके स्त्रियोचित लोक-लज्जा को भी तिलांजलि दे दी है। पर मुझे इसकी चिन्ता नहीं। मैंने अपनी कृष्ण-प्रेम की लता को अपने आँसुओं (UPBoardSolutions.com) से सींचकर (महान् कष्ट सहन करके) बढ़ाया है। अब तो यह प्रेम-लता बहुत फैल चुकी है, अब तो इस पर आनन्दरूपी फल लगनेवाले हैं। मुझे तो अब केवल प्रियतम कृष्ण की भक्ति में ही सुख मिलता है। सांसारिक विषयों को देखकर मेरा मन दु:खी होता है। मीराबाई कह रही हैं कि हे गिरिधर गोपाल ! अब आप अपनी दासी मीरा का उद्धार कीजिए और उसे अपनाकर धन्य बना दीजिए।
काव्यगत सौन्दर्य

  1. श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम-भाव और भक्ति को मीरा ने हृदयस्पर्शी शब्दावली में साकार किया है।
  2. अलंकार-अनुप्रास, रूपक (‘प्रेम-बेलि’ और ‘आनन्द-फल’) तथा पुनरुक्ति अलंकार हैं।
  3. भाषी सरस, सरल, किन्तु भाव-वहन में पूर्ण समर्थ है।
  4. शैली-आत्मनिवेदनात्मक एवं भावात्मक है। गुण-प्रसाद, छन्द-गेय पद।

प्रश्न 2. मीराबाई का जीवन-परिचय बताते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा मीराबाई का जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक सेवाओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा मीरा की रचनाओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

मीराबाई
(स्मरणीय तथ्य)

जन्म-सन् 1498 ई० । मृत्यु- 1546 ई० के आसपास।
पति- महाराणा भोजराज । 
पिता- रतन सिंह।
रचना- गेय पद।
काव्यगत विशेषताएँ
वर्य-विषय -विनय, भक्ति, रूप-वर्णन, रहस्यवाद, संयोग वर्णन।
रस- श्रृंगार (संयोग-वियोग), शान्त।।
भाषा- ब्रजभाषा, जिसमें राजस्थानी, गुजराती, पूर्वी पंजाबी और फारसी के शब्द मिले हैं।
शैली- गीतकाव्य की भावपूर्ण शैली।
छन्द- राग-रागनियों से पूर्ण गेय पद।
अलंकार- उपमा, रूपक, दृष्टान्त आदि ।

  • जीवन-परिचय- मीराबाई का जन्म राजस्थान में मेड़ता के पसि चौकड़ी ग्राम में सन् 1498 ई० के आसपास हुआ था। इनके पिता का नाम रतनसिंह था। उदयपुर के राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ इनका विवाह हुआ था, किन्तु विवाह के थोड़े। ही दिनों बाद इनके पति की मृत्यु हो गयी।
                      मीरा बचपन से ही भगवान् कृष्ण के प्रति अनुरक्त थीं । सारी लोक-लज्जा की चिन्ता छोड़कर साधुओं के साथ कीर्तन-भजन करती रहती थीं। उनकी इस प्रकार का व्यवहार उदयपुर के राज-मर्यादा के प्रतिकूल था। अतः उन्हें मारने के लिए जहर का प्याला भी भेजा। गया था, किन्तु ईश्वरीय कृपा से उनका बाल-बाँका तक नहीं हुआ। परिवार से विरक्त होकर वे वृन्दावन और (UPBoardSolutions.com) वहाँ से द्वारिका चली गयीं। औंर सन् 1546 ई० में स्वर्गवासी हुईं।
  • रचनाएँ- मीराबाई ने भगवान् श्रीकृष्ण के प्रेम में अनेक भावपूर्ण गेय पदों की रचना की है जिसके संकलन विभिन्न नामों से प्रकाशित हुए हैं। नरसीजी को मायरा, राम गोविन्द, राग सोरठ के पद, गीत गोविन्द की टीका मीराबाई की रचनाएँ हैं।

काव्यगत विशेषताएँ

  • (क) भाव-पक्ष- मीरा कृष्णभक्ति शाखा की सगुणोपासिका भक्त कवयित्री हैं। इनके काव्य का वर्ण्य-विषय एकमात्र नटवर नागर श्रीकृष्ण का मधुर प्रेम है।
    1. विनय तथा प्रार्थना सम्बन्धी पद- जिनमें प्रेम सम्बन्धी आतुरता और आत्मस्वरूप समर्पण की भावना निहित है।
    2. कृष्ण के सौन्दर्य वर्णन सम्बन्धी पद- जिनमें मनमोहन श्रीकृष्ण के मनमोहक स्वरूप की झाँकी प्रस्तुत की गयी है।
    3. प्रेम सम्बन्धी पद- जिनमें मीरा के श्रीकृष्ण प्रेम सम्बन्धी उत्कट प्रेम का चित्रांकन है। इनमें संयोग और वियोग दोनों पक्षों का मार्मिक वर्णन हुआ है।
    4. रहस्यवादी भावना के पद- जिनमें मीरा के निर्गुण भक्ति का चित्रण हुआ है।
    5. जीवन सम्बन्धी पद- जिनमें उनके जीवन सम्बन्धी घटनाओं का चित्रण हुआ है।
  • (ख) कला-पक्ष-
    1. भाषा-शैली- मीरा के काव्य की भाषा ब्रजी है जिसमें राजस्थानी, गुजराती, भोजपुरी, पंजाबी भाषाओं के शब्द हैं। मीरा की भाषा भावों की अनुगामिनी है। उनमें एकरूपता नहीं है फिर भी स्वाभाविकता, सरसता और मधुरता कूट-कूटकर भरी हुई है।
    2. रस-छन्द-अलंकार- मीरा की रचनाओं में श्रृंगार रस के दोनों पक्ष, संयोग और वियोग का बड़ा ही मार्मिक वर्णन हुआ है। इसके अतिरिक्त शान्त रस का भी बड़ा ही सुन्दर समावेश हुआ है। मीरा का सम्पूर्ण काव्य गेय पदों में है जो विभिन्न रोगरागनियों में (UPBoardSolutions.com) बँधे हुए हैं। अलंकारों का प्रयोग मीरा की रचनाओं में स्वाभाविक ढंग से हुआ है। विशेषकर वे उपमा, रूपक, दृष्टान्त आदि अलंकारों के प्रयोग से बड़े ही स्वाभाविक हुए हैं।
  • साहित्य में स्थान- हिन्दी गीति काव्य की परम्परा में मीरा का अपना अप्रतिम स्थान है । प्रेम की पीड़ा का जैसा मर्मस्पर्शी वर्णन मीरा की रचनाओं में उपलब्ध होता है वैसा हिन्दी साहित्य में अन्यत्र सुलभ नहीं है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मीरा ने संसार की तुलना किस खेल से की है और क्यों?
उत्तर- मीरा ने संसार की तुलना चौपड़ के खेल से की है क्योंकि चौपड़ का खेल कुछ देर चलता है फिर समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार संसार की वस्तुएँ कुछ समय रहती हैं और फिर नष्ट हो जाती हैं।

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प्रश्न 2. मीरा गिरिधर के घर जाने की बात क्यों कहती हैं?
उत्तर-
मीरा श्रीकृष्ण को अपना आराध्य ही नहीं, पति भी मानती हैं। वे स्वयं को श्रीकृष्ण के साथ दाम्पत्य-सूत्र में बँधा हुआ अनुभव करती हैं और अपने पति (श्रीकृष्ण) का सामीप्य पाने के लिए उनके घर जाना चाहती हैं।

प्रश्न 3. ‘मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो ने कोई’-पद में मीरा के भक्ति-भाव पर प्रकाश डालिए।
अथवा ‘मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई’ -मीरा द्वारा रचित इस पद का सारांश लिखिए।
उत्तर- कृष्ण की भक्ति में डूबी मीरा उन्हें ही अपना पति मानती हैं और कहती हैं कि उनके तो केवल गिरिधर गोपाल ही हैं, दूसरा कोई नहीं है। जिनके सिर पर मोर-मुकुट हैं वे ही उनके पति हैं। माता-पिता, भाई-बन्धु आदि इस संसार में कोई भी कृष्णु के सिवा उनका अपना नहीं है। उन्होंने कृष्ण-भक्ति में सबको त्याग दिया है। यहाँ तक कि अपने कुल को भी त्याग दिया है। लोग इसके लिए उन्हें क्या कहते हैं, इसकी (UPBoardSolutions.com) चिन्ता भी उन्हें नहीं है। उन्होंने संत एवं साधुओं की संगति में बैठकर लोक-लज्जा का त्याग कर दिया है। उन्होंने आँसुओं से सींचकर जिस कृष्ण-भक्ति की बेल (लता) को बोया, वह अब फैलकर फल दे रही है। अब तो वे सांसारिकता को देखकर संसार के प्रति मनुष्य की अज्ञानता पर रोती हैं और जहाँ भक्ति देखती हैं वहाँ उनका मन प्रसन्न हो उठता है । मीरा कहती हैं-‘हे गिरिधर गोपाल ! मैं तुम्हारी दासी हूँ, अब तुम ही मेरा उद्धार करो।’

प्रश्न 4. धर्म के अन्तर्गत केवल बाहरी कर्मकाण्ड करने से क्या होता है?
उत्तर- बाहरी कर्मकाण्डों से व्यक्ति उन्हीं में फँसा रहता है और भगवान् के सच्चे स्वरूप को नहीं जान पाता है। इस प्रकार उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। वह बाह्याडम्बरों में फँसा ही जन्म-मरण के चक्र से कभी नहीं छूट पाता है, अत; धर्म में केवल बाहरी कर्मकाण्ड उचित नहीं है।

प्रश्न 5. मीरा के काव्य में व्यक्त भक्ति एवं रहस्यवाद का परिचय दीजिए।
उत्तर-

  1. भक्ति- मीरा की भक्ति प्रेम प्रधान है। उनका कृष्ण राममय और राम कृष्णमय हैं, अर्थात् दोनों ही एक हैं। राम भी कृष्ण ही हैं। भावों की तीव्रता में कोमलता और मधुरता इनकी भक्ति की विशेषता है। वे गोपियों के समान कृष्ण के प्रति माधुर्य भक्ति से प्रेरित हैं। वे कृष्ण के रंग में रंग कर कहती हैं
    ‘‘मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई।
    जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई॥’
  2. रहस्यवाद- मीरा के काव्य में जिस रहस्यवाद के दर्शन होते हैं, उसमें दाम्पत्य प्रेम की प्रधानता है। वे कहती हैं
    “जिनका पिया परदेश बसत है, लिख-लिख भेजत पाती।
    मेरा पिया हृदय बसत है, ना कहुं आती जाती।”

प्रश्न 6. कृष्ण के क्रय के सम्बन्ध में संसार के लोगों की क्या धारणा है?
उत्तर- मीरा के कृष्ण को क्रय के सम्बन्ध में संसार के लोगों की धारणा है कि मीरा ने गोविन्द को छानबीन कर खरीद लिया है। कोई कहता है कि चुपके से खरीद लिया है, कोई कहता है कि वह काला है, कोई कहता है कि वह गोरा है।

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प्रश्न 7. मीरा ने संसार की तुलना किससे की है और क्यों?
उत्तर- मीरा ने संसार की तुलना चौसर खेल से की है। जिस तरह चौसर खेल क्षण भर में समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार यह संसार भी क्षणभंगुर है। क्षण भर में नष्ट होनेवाला है।

प्रश्न 8. मीरा को कौन-सा धन प्राप्त हो गया है? उस धन की क्या विशेषता है?
उत्तर- मीरा को रामरतन रूपी धन प्राप्त हो गया है । इस धन की विशेषता है कि इसको खर्च नहीं किया जा सकता है और न चुराया जा सकता है अपितु प्रयोग करने से दिन-प्रतिदिन बढ़ता रहता है ।

प्रश्न 9. मीरा ने संसार सागर को पार करने का क्या उपाय बताया है?
उत्तर- मीरा संसार सागर को पार करने के विषय में बताती हैं कि राम नाम का बेड़ा बाँधकर संसार सागर से पार हुआ जा सकता है। राम नाम का बेड़ा बाँधने से मीरा का अभिप्राय भगवान् की भक्ति करने से है।

प्रश्न 10. मीरा भगवान् के किस प्रकार के रूप को अपने नयनों में बसाना चाहती हैं?
उत्तर- मीरा मोर मुकुट, मकराकृत कुण्डल और माथे पर अरुण तिलक लगे नन्दलाल के नटवर नागर रूप को अपनी आँखों में बसाना चाहती हैं।

प्रश्न 11. मीरा शरीर पर गर्व न करने का उपदेश क्यों देती हैं?
उत्तर- मीरा का मत है कि यह शरीर नाशवान है, मिट्टी से बना है और एक दिन मिट्टी में ही मिल जायेगा, इसलिए इस शरीर पर गर्व नहीं करना चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मीरा की किन्हीं दो रचनाओं के नाम बताइए।
उत्तर- नरसी जी का मायरा और राग गोविन्द ।

प्रश्न 2. मीरा ने किस भाषा में रचना की है?
उत्तर- मीरा ने ब्रजभाषा में अपने गीतों की रचना की है।

प्रश्न 3. मीरा ने प्रेम की लता को किस प्रकार पल्लवित किया?
उत्तर- मीरा ने प्रेम की लता को आँसुओं के जल से सींच-सींचकर पल्लवित किया। उसे लता से उसे आनन्दरूपी फल प्राप्त हुआ।

प्रश्न 4. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाइए –
(अ) मीरा भगवान् के सगुण रूप की उपासिका थीं।                                      (√)
(ब) मीरा के अनुसार शरीर पर गर्व करना चाहिए।                                         (×)
(स) मीरा श्रीकृष्ण को पति रूप में मानती हुई उनके घर जाना चाहती हैं।        (√)
(द) मीराबाई रतन सिंह की पुत्री थीं।                                                               (√)

प्रश्न 5. मीरा ने क्या मोल लिया है?
उत्तर- मीराबाई ने गोविन्द श्रीकृष्ण को मोल लिया है।

प्रश्न 6. मीरा भगवान् के किस रूप की उपासिका थीं?
उत्तर- मीरा भगवान् के साकार रूप की उपासिका थीं। कृष्ण को श्याम सुन्दर रूप, कान में कुण्डल, हाथ में मुरली और गले में वनमाला, श्रीकृष्ण के इस रूप पर मीरा मोहित थीं।

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प्रश्न 7. मीरा किस भक्ति-शाखा की कवयित्री हैं?
उत्तर- मीरा सगुण भक्ति शाखा की कवयित्री हैं।

प्रश्न 8. मीरा किसके रंग में रँगी हैं?
उत्तर- मीरा भगवान् श्रीकृष्ण के रंग में रँगी हैं।

प्रश्न 9. मीरा के काव्य को मुख्य स्वर क्या है?
उत्तर- मीरा के काव्य का मुख्य स्वर कृष्ण-भक्ति है।

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम बताइए
(अ) बसो मेरे नैनन में नन्दलाल।
(ब) काल ब्याल हूँ बाँची।
(स) मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल।
उत्तर-
(अ) इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
(ब) काल ब्याल हूँ बाँची में रूपक अलंकार है।
(स) मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल में वृत्त्यनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित पंक्ति का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
गसी मीरा लाल गिरधर, तारो अब मोई।
उत्तर- काव्य सौन्दर्य :
(अ) इस पंक्ति में मीरा अपने को श्रीकृष्ण की दासी बताया है।
(ब) भाषा-ब्रज।
(स) रस-भक्ति एवं शांत।
(द) छंद-गेय।
(य) शैली-मुक्तक।

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प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए-
भगति, सबद, नैनन, बिसाल, किरपा, आणंद, अँसुवन।
उत्तर- भक्ति, शब्द, नयन, विशाल, कृपा, आनंद, आँसुओं।

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