UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 4 सिद्धिमन्त्रः (सफलता का मन्त्र) (संस्कृत-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 4 सिद्धिमन्त्रः (सफलता का मन्त्र) (संस्कृत-खण्ड)

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1. रामदासः नारायणपुरे ………………………………………………………………………. धनधान्यादिपूर्णम् अस्ति।

शब्दार्थ-ब्राह्म मुहूर्ते = प्रात:काल के समय। उत्थाय = उठकर। नित्यकर्माणि = दैनिक कार्य श्रमम् = परिश्रम। प्रभूतम्= अधिक। धनधान्यादिपूर्णम् (धन + धान्य + आदि + पूर्णम्) = धन-धान्य आदि से पूर्ण

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के अन्तर्गत संस्कृत खण्ड के ‘सिद्धिमन्त्रः’ नामक पाठ से लिया गया है। इसमें श्रम के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।

हिन्दी अनुवाद – रामदास नारायणपुर में रहता है। वह रोजाना बहुत सवेरे उठकर दैनिक कार्य करता है, भगवान् का स्मरण करता है, इसके बाद पशुओं को घास देता है। (UPBoardSolutions.com) फिर वह पुत्र के साथ खेतों पर जाता है। वहाँ पर कठोर परिश्रम करता है। उसके परिश्रम और देखभाल से खेती में अधिक अन्न उत्पन्न होता है। उसके पशु हृष्ट-पुष्ट अंगों वाले हैं और घर धनधान्य से भरा हुआ है।

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2. अत्रैव ग्रामे पैतृकधनेन ………………………………………………………………………. अभावग्रस्तं जातम्।
अथवा अत्रैव ………………………………………………………………………. अन्नं नोत्पद्यते।

शब्दार्थ-अत्रैव = (अत्र + एव = यहाँ ही) यहीं सकलम् = सम्पूर्ण सम्पादयन्ति = करते हैं। उपेक्षया = लापरवाही से। नोत्पद्यते (न + उत्पद्यते) = उत्पन्न नहीं होता है। पैतृकं धनम् = पूर्वजों से प्राप्त धन। अभावग्रस्तम् = अभावों से ग्रसित।

हिन्दी अनुवाद – इसी गाँव में पूर्वजों से प्राप्त धन से धनवान् बना हुआ धर्मदास रहता है। उसका सारा काम नौकर-चाकर करते हैं। नौकरों की उपेक्षा (लापरवाही) से उसके पशु कमजोर हो गये हैं और खेतों में बीजमात्र को भी अनाज नहीं होता है। धीरे-धीरे उसका सारा पैतृक धन समाप्त हो गया। उसका सारा जीवन अभावों से ग्रसित हो गया।

3. एकदा वनात् प्रत्यागत्य ………………………………………………………………………. दास्यति इति।
अथवा एकदा वनात् ………………………………………………………………………. सम्पन्नः भवेयम्।
अथवा रामदासः तस्य ………………………………………………………………………. दास्यति इति

शब्दार्थ – एकदा = एक बार प्रत्यागत्य = लौटकर। स्वद्वारि = अपने दरवाजे पर खिन्नम् = दुःखी चिराद् = बहुत समय से। प्रसन्नवदनम् = प्रसन्न मुख क्षीणविभवः = धन से नष्ट। संजातः = हो गया। सम्पन्न = धनवान् अकर्मण्यता = निष्क्रियता। अनुष्ठानम् = विधिपूर्वक किया गया कार्य उपचर्या = सेवा। कर्मकराणाम् = मजूदरों के। वर्षान्ते (वर्ष + अन्ते) = वर्ष के अन्त में।

हिन्दी अनुवाद – एक दिन वन से लौटकर रामदास ने अपने दरवाजे पर बैठे हुए धर्मदास को कमजोर और दुःखी देखकर पूछा–“मित्र धर्मदास बहुत समय के बाद दिखायी दिये हो। क्या किसी रोग से पीड़ित हो, जिससे इतने कमजोर हो गये हो?” धर्मदास ने प्रसन्न मुख वाले उस (मित्र) से कहा-”मित्र! मैं बीमार नहीं हैं, परन्तु धन के नष्ट होने पर कुछ और सा हो गया हूँ। यही सोच रहा हूँ कि किस उपाय, मन्त्र अथवा तन्त्र से धनवान् हो जाऊँ।” उसकी गरीबी का कारण उसी का आलस्य है-ऐसा विचार कर रामदास ने इस प्रकार कहा–“मित्र ! पहले, किसी दयालु महात्मा ने मुझे एक सम्पत्ति दिलाने वाला मन्त्र दिया था। यदि आप भी उस मन्त्र को चाहते हैं तो (UPBoardSolutions.com) उसके द्वारा बताये गये अनुष्ठान (कार्य) को करो इसके पश्चात् मन्त्र का उपदेश देनेवाले उसी महात्मा के पास चलेंगे।” (वह बोला)-”मित्र! उस कार्यविधि को शीघ्र बताओ, जिससे मैं पुनः धनवान् हो जाऊँ।” रामदास बोला-”मित्र! सदा सूर्योदय से पहले उठो और अपने पशुओं की सेवा स्वयं ही करो। प्रतिदिन खेतों में श्रमिकों के कार्यों का निरीक्षण करो। तुम्हारे विधिपूर्वक किये गये इस कार्य से प्रसन्न होकर वह महात्मा एक वर्ष के अन्त में अवश्य तुम्हें सिद्धिमन्त्र देगा।”

4. विपन्नः धर्मदासः सम्पत्तिम् ………………………………………………………………………. धनधान्यपूर्णं जातम्।

शब्दार्थ-विपन्नः = दु:खी। अभिलषन् = इच्छा करता हुआ। यथोक्तम् (यथा + उक्तम्) = कहे अनुसार। महिष्य = भैंसे । प्रचुरम् = अधिक। सन्नद्धाः अभवन् = जुट गये।

हिन्दी अनुवाद – दुःखी धर्मदास ने सम्पत्ति की इच्छा करते हुए एक वर्ष तक जैसा कहा गया था, उसी के अनुसार अनुष्ठान (विधिपूर्वक कार्य) किया। प्रतिदिन प्रातः जागने से उसका स्वास्थ्य बढ़ गया। उसके द्वारा नियमपूर्वक पालित पशु स्वस्थ और सबल हो गये। गायों और भैंसों ने अधिक दूध दिया। उस समय उसके मजदूर भी खेती के कार्य में जुट गये। अत: उस वर्ष उसके खेतों में अधिक अनाज उत्पन्न हुआ और घर धन-धान्य से भर गया।

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5. एकस्मिन् दिने प्रातः ………………………………………………………………………. यथास्थानम् अगच्छत्

शब्दार्थ – दुग्धपरिपूर्णपात्रम् = दूध से भरे हुए बर्तन को। हस्ते दधानम् = हाथ में लिये हुए। सम्यग् = अच्छी तरह। अभीष्टम् = इच्छित, मनचाहा। सम्प्रति = इस समय प्रहृष्टः = प्रसन्न हुआ।

हिन्दी अनुवाद – एक दिन प्रातः खेतों को जाते हुए रामदास ने दूध से भरा हुआ बर्तन हाथ में लिये हुए प्रसन्न मुख वाले धर्मदास को देखकर कहा-”तुम कुशल से तो हो। क्या तुम्हारा कार्य विधिपूर्वक चल रहा है? क्या उस महात्मा के पास मन्त्र के लिए चलें?” धर्मदास ने उत्तर दिया-”मित्र! सालभर परिश्रम (UPBoardSolutions.com) करके मैंने यह अच्छी तरह जान लिया है कि ‘कर्म’ ही वह सफलता देने वाला मन्त्र है। उसी को विधिपूर्वक करने से सब कुछ मनचाहा फल प्राप्त होता है। उसी अनुष्ठान के प्रभाव से अब मैं फिर से सुख और सम्पन्नता का अनुभव कर रहा हूँ।” यह सुनकर प्रसन्न और सन्तुष्ट हुआ रामदास यथास्थान को चला गया।

6. उत्साहसम्पन्नदीर्घसूत्रं ………………………………………………………………………. याति निवासहेतोः॥

शब्दार्थ – अदीर्घसूत्रम् = आलस्य से रहित (जो आज का काम कल पर नहीं टालता) क्रियाविधिज्ञम् (क्रिया + विधिज्ञम्) = कार्य करने की विधि को जानने वाला। व्यसनेष्वसक्तम् (व्यसनेषु + असक्तम्) = बुरी आदतों से दूर रहनेवाला। कृतज्ञम् = किये हुए उपकार को माननेवाला दृढसौहृद्रम् = दृढ़ मित्रता करनेवाला।

हिन्दी अनुवाद – उत्साह से युक्त, आलस्य से रहित, काम करने की विधि को जाननेवाले, बुरे कामों में न लगे हुए, शूरवीर, किये हुए उपकार को माननेवाले और पक्की मित्रता रखनेवाले पुरुष के पास लक्ष्मी (धन-सम्पत्ति) स्वयं निवास के लिए जाती

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 3 पुरुषोत्तमः रामः (पुरुषों में श्रेष्ठ राम) (संस्कृत-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 3 पुरुषोत्तमः रामः (पुरुषों में श्रेष्ठ राम) (संस्कृत-खण्ड)

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1. इक्ष्वाकुवंशप्रभवो ………………………………………………………………………. वशी।।

शब्दार्थ-इक्ष्वाकुवंशप्रभवः = इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न ! नियतात्मा = आत्मसंयमी द्युतिमान = कान्तिमान महावीर्यः – महान् वीर। धृतिमान = धैर्यवान्। वशी : जितेन्द्रिय।

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के अन्तर्गत संस्कृत खण्ड के ‘पुरुषोत्तमः रामः’ नामक पाठ से लिया गया है। इसमें भगवान् राम के गुणों का वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद – लोगों द्वारा ‘राम’ नाम से सुने हुए, इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न, (राम) आत्मा को वश में रखनेवाले, महाबलशाली, कान्तिमान्, धैर्यवान् एवं जितेन्द्रिय हैं।

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2. बुद्धिमान् ………………………………………………………………………. महाहनुः।।

शब्दार्थ-वाग्मी = बोलने में चतुर श्रीमाञ्छत्रुनिर्वहणः (श्रीमान् + शत्रु-निर्वहण:) = श्री (शोभा) सम्पन्न और शत्रु को नष्ट करनेवाले। विपुलांसः = पुष्ट कन्धों वाले। महाबाहुः = विशाल भुजाओं वाले। कम्बुग्रीवः = शंख जैसी गर्दन वाले।

हिन्दी अनुवाद – (राम) बुद्धिमान्, नीतिमान, बोलने में कुशल, शोभावाले, शत्रु-विनाशक, ऊँचे कंधे वाले, विशाल भुजाओं वाले, शंख के समान गर्दन वाले, बड़ी ठोड़ी वाले (हैं)।

3. महोरस्को ………………………………………………………………………. सुविक्रमः।।

शब्दार्थ-गूढजत्रुः = जिनकी गले की हँसुली नहीं दिखायी देती। महोरस्को = बड़े वक्षस्थल वाले। महेष्वासः = बड़े धनुष वाले।।

हिन्दी अनुवाद – (राम) विशाल वक्षस्थल वाले, विशाल धनुष वाले (मांस में) दबी ग्रीवास्थि = हँसुली वाले, शत्रुओं का दमन करने वाले, घुटनों तक लम्बी भुजाओं वाले, सुन्दर सिर वाले, सुन्दर मस्तक वाले तथा महापराक्रमी (हैं)।

4. समः समविभक्ताङ्ग ………………………………………………………………………. लक्ष्मीवाञ्छुभलक्षणः।

शब्दार्थ-समविभक्ताङ्ग = समान रूप से विभक्त अंगों वाले, सुडौल पीनवक्षा = पुष्ट वक्षस्थल वाले। विशालाक्षः – विशाल नेत्रोंवाले लक्ष्मीवाञ्छुभलक्षणः (लक्ष्मीवान् + शुभलक्षणः) = शोभा सम्पन्न (सम्पत्तिशाली) और शुभ लक्षणों वाले।।

हिन्दी अनुवाद – वे (राम) समान रूप से विभक्त अंगों वाले (सुडौल), सुन्दर वर्ण, प्रतापी, पुष्ट वक्षस्थल वाले, विशाल नेत्रों वाले, शोभा-सम्पन्न और शुभ लक्षण से युक्त शरीरवाले हैं।

5. धर्मज्ञः ………………………………………………………………………. शुचिर्वश्यः समाधिमान्।।

शब्दार्थ-सत्यसन्धः = सत्य प्रतिज्ञा वाले। शुचिः = पवित्र वश्यः = इन्द्रियों को वश में रखने वाले। धर्मज्ञः = धर्म के ज्ञाता।

हिन्दी अनुवाद – वे (राम) धर्म के ज्ञाता, सत्य प्रतिज्ञा वाले तथा प्रजा के हित में लगे रहने वाले हैं। वे यशस्वी, ज्ञानी, पवित्र, जितेन्द्रिय और एकाग्रचित्त हैं।

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6. प्रजापति समः श्रीमान् ………………………………………………………………………. धर्मस्य परिरक्षिता।।

शब्दार्थ-धाता = पालन करनेवाले रिपुनिषूदनः = शत्रुओं का विनाश करने वाले। परिरक्षिता = रक्षा करनेवाले।

हिन्दी अनुवाद – श्रीराम प्रजापति (राजा) के समान सभी के पालक अर्थात् रक्षक हैं। वह शत्रुओं का नाश करनेवाले हैं। सम्पूर्ण जीवलोक के रक्षक तथा धर्म की रक्षा करनेवाले हैं।

7. रक्षिता स्वस्य ………………………………………………………………………. निष्ठितः ।।

शब्दार्थ-स्वस्य = अपने वेदवेदाङ्गत्तत्वज्ञः = वेद और वेदांगों के तत्त्व को जानने वाले। धनुर्वेदे = धनुर्विद्या में निष्ठितः = निपुण।।

हिन्दी अनुवाद – (राम) अपने धर्म के रक्षक, अपने परिजनों की रक्षा करनेवाले, वेद और वेदांग के तत्त्व को जाननेवाले और धनुर्विद्या में निपुण हैं।

8. सर्वशास्त्रार्थतत्त्वज्ञः ………………………………………………………………………. विचक्षणः ।।

शब्दार्थ-प्रतिभावान् = प्रतिभाशाली। साधुरदीनात्मा > साधुः + अदीनात्मा; साधुः अदीनात्मा = सज्जन, उदाराशय अर्थात् स्वतन्त्र विचार वाले।।

हिन्दी अनुवाद – (राम)सम्पूर्ण शास्त्रों के अर्थ के तत्त्व को जानने वाले, अच्छी स्मरण शक्ति वाले, प्रतिभाशाली, सम्पूर्ण संसार के प्रिय, सज्जन, स्वतन्त्र विचार वाले तथा चतुर हैं।

9. स च नित्यं ………………………………………………………………………. प्रतिपद्यते।।

शब्दार्थ-प्रशान्तात्मा = प्रशान्त मन वाले। मृदु = मधुर भाषी भाषते = बोलते हैं। प्रतिपद्यते = कहते हैं।

हिन्दी अनुवाद – और वह राम नित्य शान्त मन वाले, मृदुभाषी और स्वाभिमानी होने पर भी कठोर वचन नहीं कहते।

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10. कदाचिदुपकारेण ………………………………………………………………………. शक्तया।।

शब्दार्थ – कदाचिदुपकारेण = (कदाचित + उपकारेण) कभी उपकार के द्वारा। कृतेनैकेन = (कृतेन + एकेन) एक के किये जाने पर। तुष्यते = सन्तुष्ट हो जाते हैं। स्मरत्यपकाराणां = (स्मरति अपकाराणाम्) अपकारों को याद नहीं करते हैं। शतमप्यात्म शक्तया = (शतम् + अपि + आत्म शक्तया) = अपनी आत्मशक्ति से सौ को भी।

हिन्दी अनुवाद – यदि कभी कोई एक ही उपकार कर देता है तो उसी से सन्तुष्ट हो जाते हैं। अपनी आत्मशक्ति के कारण किसी के द्वारा किये गये सौ अपकारों को भी याद नहीं करते हैं।

11. सर्वविद्याव्रत ………………………………………………………………………. कालवित्॥

शब्दार्थ – विद्याव्रतस्नातो = सभी विद्याओं में पारंगत यथावत् = भली प्रकार से, उसी प्रकार साङ्गवेदवित् = वेदों के छह अङ्गों के जानकार। अमोघ = अत्यधिक, निष्फल न होनेवाला कालवित् = समय के जानकार।।

हिन्दी अनुवाद – श्रीराम सभी विद्याओं में पारंगत हैं। उसी प्रकार वेदों के छह अङ्गों के जानकार हैं। उनका क्रोध और हर्ष निष्फल न होनेवाला है। वे त्याग और संयम के समय (UPBoardSolutions.com) को जानने वाले हैं अर्थात् किस समय त्याग करना चाहिए और किस समय वस्तुओं का संग्रह करना चाहिए इसको (भली प्रकार) जानते हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 2 सदाचारः (उत्तम आचरण) (संस्कृत-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 2 सदाचारः (उत्तम आचरण) (संस्कृत-खण्ड)

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1. सतां सज्जनानाम् ………………………………………………………………………. कुर्वन्ति।

शब्दार्थ-आचारः = आचरण सद = सत्य, सही। विचारयन्ति = सोचते हैं। वदन्ति = बोलते हैं। आचरयन्ति = आचरण करते हैं। भवन्ति = होते हैं स्वकीयानि = अपनी। शिष्टं = सभ्यतापूर्ण, अनुशासित।

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के अन्तर्गत संस्कृत खण्ड के ‘सदाचारः’ नामक पाठ से लिया गया है। इसमें सदाचार के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।

हिन्दी अनुवाद – सत् अर्थात् सज्जनों का आचरण ही सदाचार है। जो लोग सत्य ही विचारते हैं, सत्य ही बोलते हैं और सत्य का ही आचरण करते हैं; वे ही सज्जन होते हैं। सज्जन लोग जैसा आचरण करते हैं वैसा ही आचरण सदाचार होता है। सदाचार से ही सज्जन लोग अपनी इन्द्रियों को वश में करके सबके साथ शिष्टता का व्यवहार करते हैं।

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2. विनयः हि ………………………………………………………………………. अनुकरणीयः।

शब्दॆर्थ-विनयः = विनम्रता भूषणम् = गहना। उद्भवति = उत्पन्न होती है। अपितु = बल्कि।विविधा = अनेक प्रकार के। विकसन्ति = विकसित होते हैं। दक्षिण्यम् = उदारता संयम = इच्छाओं का दमन निर्भीकता = निडरता। अस्माकं = हमारी प्रतिष्ठा = सम्मान सदाचार-परायणात् = सदाचार का पालन करने लगे शिक्षरेन् = सीखें जननी = माता एतेषां = इनका। अनुकरणीयः = अनुकरण करना चाहिए।

हिन्दी अनुवाद – विनय ही मनुष्य का आभूषण है। विनयशील मनुष्य सब लोगों का प्रिय हो जाता है। विनय सदाचार से ही पैदा होता है। सदाचार से केवल विनय ही नहीं, बल्कि अनेक प्रकार के अन्य सद्गुण भी विकसित होते हैं; जैसे धैर्य, उदारता, संयम, आत्मविश्वास और निर्भयता। हमारी (UPBoardSolutions.com) भारतभूमि की प्रतिष्ठा संसार में सदाचार के कारण ही थी पृथ्वी पर सब मनुष्यों को अपना-अपना चरित्र भारत के सदाचार का पालन करनेवाले मनुष्यों से सीखना चाहिए। भारतभूमि अनेक सदाचारी पुरुषों की माता है। इन महापुरुषों के आचरण को अनुकरण करना चाहिए।

3. सदाचारः नाम ………………………………………………………………………. निर्णोतुं शक्यते।

शब्दार्थ-युक्ताहार = उचित भोजन। विहारेण = भ्रमण से। युक्तस्वप्नावबोधेन = उचित शयन और जागरण से। सम्भवति = सम्भव होता है। युक्तम् = उचित अयुक्तम् = अनुचित निर्णोतुं शक्यते = निर्णय किया जा सकता है।

हिन्दी अनुवाद – नियम और संयम के पालन का नाम सदाचार है। इन्द्रिय-संयम सदाचार के मूल में स्थित है। इन्द्रिय संयम उचित आहार और व्यवहार तथा उचित शयन और आचरण से सम्भव होता है। क्या उचित है और क्या अनुचित है, इसका सदाचार से ही निर्णय किया जा सकता है।

4. ये कोऽपि पुरुषाः ………………………………………………………………………. अपि वर्णितः।

शब्दार्थ-कोऽपि = कोई भी। गताः = प्राप्त हुए हैं। अधीते = पढ़ता है। शेते = सोता है। जागर्ति = जागता है। अभ्युदयं गच्छति = उन्नति को प्राप्त होता है।

हिन्दी अनुवाद – जो कोई भी पुरुष महान् हुए हैं, वे संयम और सदाचार से ही उन्नति को प्राप्त हुए हैं। जो मनुष्य नियमपूर्वक पढ़ता है, समय पर सोता है, जागता है, खाता है और पीता है, वह निश्चय ही उन्नति को प्राप्त करता है। सदाचार का महत्त्व शास्त्रों में भी वर्णित है।

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5. (श्लोक 1) सर्वलक्षणहीनोऽपि ………………………………………………………………………. वर्षाणि जीवति।

शब्दार्थ-सर्वलक्षणहीनोऽपि = सभी शुभ गुणों से रहित होने पर भी। शतं वर्षाणि = सौ वर्षों तक।

हिन्दी अनुवाद – सभी शुभ गुणों (लक्षणों) से रहित होने पर भी जो मनुष्य सदाचारी है, श्रद्धावान् और द्वेष रहित हैं, वह सौ वर्षों तक जीवित रहता है।

(श्लोक 2)-आचाराल्लभते ………………………………………………………………………. परमं धनम्।

शब्दार्थ-आचाराल्लभते = सदाचार से प्राप्त करता है। ह्यायुराचाराल्लभते (हि + आयुः + आचारात् + लभते) ! श्रियम् = लक्ष्मी, धन-सम्पत्ति । परम् = उत्तम, श्रेष्ठ।।

हिन्दी अनुवाद – मनुष्य (उत्तम) आचरण से दीर्घ आयु प्राप्त करता है। (सद्) आचरण से (मनुष्य) धन-सम्पत्ति (लक्ष्मी) को प्राप्त करता है। (सद्) आचरण से ही (मनुष्य) कीर्ति को प्राप्त करता है। सदाचार परम (श्रेष्ठ) धन है।

6. अतएव सदाचारः ………………………………………………………………………. विनष्टं भवति।

शब्दार्थ-उक्तम् = कहा है। आयाति = आता है। याति = चला जाता है। तर्हि = तो।

हिन्दी अनुवाद – इसलिए सदाचार की सब प्रकार से रक्षा करनी चाहिए। महाभारत में सत्य ही कहा गया है कि हमें सदा चरित्र की रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता है और चला जाता है। (किन्तु) यदि चरित्र नष्ट हो जाय तो सब कुछ नष्ट हो जाता है।

7. वृत्तं यत्लेन ………………………………………………………………………. हतो हतः।

शब्दार्थ-वृत्तं = चरित्र। संरक्षेत् = रक्षा करनी चाहिए। वित्तमेति (वित्तम् + एति) = धन आता है। अक्षीणो = कुछ भी नष्ट नहीं हुआ। हतो = नष्ट हुआ। हतः = मरा हुआ।

हिन्दी अनुवाद – चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन आता है और चला जाता है। धन से क्षीण हुआ मनुष्य क्षीण नहीं होता, लेकिन चरित्र से हीन होकर नष्ट हो जाता है।

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 1 वन्दना (संस्कृत-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 1 वन्दना (संस्कृत-खण्ड)

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1. तेजोऽसि तेजो ………………………………………………………………………. मयि धेहि।

शब्दार्थ-तेजोऽसि (तेजः + असि) = कान्ति-स्वरूप हो। मयि = मुझमें धेहि = धारण कराओ। ओजः = प्राणबल, सामर्थ्य वीर्यं = पराक्रम।

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक ‘वन्दना’ पाठ्य-पुस्तक के अन्तर्गत ‘संस्कृत खण्ड’ के वन्दना नामक पाठ से अवतरित है। इसमें ईश्वर की वन्दना की गयी है।

हिन्दी अनुवाद – (हे ईश्वर !) तुम कान्ति (प्रकाश, तेज) स्वरूप हो, मुझमें भी कान्ति धारण कराओ। तुम पराक्रम-स्वरूप हो, मुझमें (भी) पराक्रम धारण कराओ। तुम बलशाली हो, मुझमें भी बल धारण कराओ। तुम सामर्थ्यवान् (ओजस्वी, समर्थ) हो, मुझमें भी सामर्थ्य (ओज, प्राणबल) धारण कराओ।

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2. असतो मा सद ………………………………………………………………………. मामृतं गमय।।

शब्दार्थ-असतो = बुराई, अस्थिरता से। मा (माम्) = मुझे सद् = भलाई, स्थिरता गमय = ले जाओ। तमसः = अन्धकार से ज्योतिः = प्रकाश की ओर। मृत्योः = मृत्यु से। अमृतम् = अमरत्व की ओर।

हिन्दी अनुवाद – हे ईश्वर तुम मुझे बुराई से भलाई की ओर ले जाओ। तुम मुझे अन्धकार (अज्ञान) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर ले जाओ। तुम मुझे मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाओ।

3. यतो यतः ………………………………………………………………………. पशुभ्यः।

शब्दार्थ-यतो यतः = जिस-जिस से। समीहसे = तुम चाहते हो। तंतोनोऽभयम् = उससे हमें निर्भय कुरु = कर दो। शम् = कल्याण प्रजोभ्योऽभयम् = प्रजाओं का। नः = हमें, हमारी, हमारे।।

हिन्दी अनुवाद – हे देव! तुम जिस-जिस से चाहते हो, उस-उस से हमें निर्भय (निडर) कर दो, हमारी प्रजा का कल्याण करो और हमारे पशुओं को निर्भय कर दो।।

4. नमो ब्रह्मणे ………………………………………………………………………. वक्तारम्॥

शब्दार्थ-नमो ब्रह्मणे = ब्रह्म के लिए त्वमेव = तुम ही। ब्रह्मासि = ब्रह्म हो। त्वामेव = तुमको ही। ऋतं = यथास्थिति, वास्तविक सच्चाई तन्मामवतु = वह मेरी रक्षा करे। वक्तारमवतु = वक्ता की।

हिन्दी अनुवाद – ब्रह्म के लिए नमस्कार है। तुम ही प्रत्यक्ष ब्रह्म हो। तुमको ही प्रत्यक्ष ब्रह्म कहूँगा यथास्थिति (अर्थात् वास्तविक सच्चाई) कहूँगा। सत्य कहूँगा। वह मेरी रक्षा करे। वह वक्ता की रक्षा करे। मेरी रक्षा करे, वक्ता की रक्षा करे।

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5. सत्यव्रतं ………………………………………………………………………. शरणं प्रपन्नाः।।

शब्दार्थ-सत्यव्रतं = सत्य का व्रत लेने वाला। त्रिसत्यं = तीनों कालों में सत्य पंचभूत सत्यस्य सत्यं = पंचभूतों के नाश होने पर भी सत्य योनिं = जन्मदाता ऋतसत्य = यथार्थ सत्य नेत्रं = प्रवर्तक सत्यात्मकं= सत्यरूपी आत्मावाले। प्रपन्नाः = प्राप्त होते हैं।

हिन्दी अनुवाद – (आप) सत्य का व्रत धारण करनेवाले, सत्य में तत्पर रहनेवाले (सत्यनिष्ठ), त्रिकाल सत्य, सत्य को उत्पन्न करनेवाले और सत्य में ही स्थित रहनेवाले, सत्य के भी सत्य और सत्य के प्रवर्तक हैं। हे ईश्वर ! हम आपकी शरण को प्राप्त हुए हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 मङ्गलाचरणम् (पद्य-पीयूषम्)

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 1
Chapter Name मङ्गलाचरणम् (पद्य-पीयूषम्)
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 मङ्गलाचरणम् (पद्य-पीयूषम्)

परिचय
विश्व-साहित्य में भारत के ‘वेद’ सबसे प्राचीन ग्रन्थ माने जाते हैं। वेदत्रयी’ के आधार पर वेद तीन माने गये-ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद। कालान्तर में कभी ‘अथर्ववेद’ को भी इनके जोड़ दिया गया। वेदों में ज्ञान-विज्ञान के सभी क्षेत्रों में सम्बन्धित अथाह सामग्री भरी हुई है। प्रस्तुत पाठ में संकलित मन्त्र (UPBoardSolutions.com) इन्हीं वेदों से लिये गये। ये मन्त्र हमारे जीवन के लिए अत्यधिक उपयोगी हैं। विद्यार्थियों द्वारा इन्हें कण्ठस्थ किया जाना चाहिए। इनकी भाषा का स्वरूप संस्कृत का प्राचीनतर रूप है, जिसे विज्ञ जनों द्वारा ‘वैदिक संस्कृत’ नाम दिया गया है।

पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या

(1) (क) आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः

शब्दार्थ
आयन्तु = आयें।
नः = हमारे लिए।
भद्राः = कल्याणकारी।
क्रतवः = विचार, संकल्प।
विश्वतः = चारों ओर (दिशाओं) से।।

सन्दर्य
प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्य पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘मङ्गलाचरणम्’ पाठ से उद्धृत है, जो ‘ऋग्वेद’ से लिया गया है।

प्रसंग
प्रस्तुत मन्त्र में देवताओं से अपने कल्याण की प्रार्थना की गयी है।

अन्वय
भद्राः क्रतवः नः विश्वतः आयन्तु।।

व्याख्या
कल्याणकारी विचार हमारे मन में चारों ओर से आयें। तात्पर्य यह है कि कल्याणकारी विचार एवं संकल्प सभी दिशाओं से हमारे हृदय में आये।

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(ख) भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।।

शब्दार्थ
भद्रं = शुभ।
कर्णेभिः = कानों से।
शृणुयाम = सुनें।
पश्येम = देखें।
अक्षिभिः = आँखों से।
यजत्राः = यज्ञ करने वाले हम लोग।

सन्दर्भ
पूर्ववत्।।

प्रसंग
प्रस्तुत मन्त्र में याज्ञिक (यज्ञ करने वाले) देवताओं से प्रार्थना कर रहे हैं कि वे उन्हें बुरे कार्यों से बचाते रहें।

अन्वय
देवाः! यजत्राः (वयंम्) कर्णेभिः भद्रं शृणुयाम। अक्षिभिः भद्रं पश्येम।।

व्याख्या
हे देवो! यज्ञ करने वाले हम लोग कानों से कल्याणकारी वचनों को सुनें, आँखों से शुभ कार्यों को देखें। तात्पर्य यह है कि ईश्वर की उपासना करते हुए ईश्वर के प्रति हमारा भक्ति-भाव 
 निरन्तर बना रहे। हम अपने कानों से सदा अच्छे समाचार सुनते रहें तथा आँखों से अच्छी घटनाएँ। |’, देखते रहें।

(2)
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत् पार्थिवं रजः।।
मधुः द्यौरस्तु नः पिता ॥
मधुमान् नो वनस्पतिर्मधुमान् अस्तु सूर्यः । ।
माध्वीर्गावो भवन्तु नः ॥

शब्दार्थ
मधु = मधुर, कल्याणकारी।
नक्तम् = रात्रि।
उत = और।
उषसः = उषाएँ, प्रभात, दिन।
मधुमत् = मधुमय, आनन्दपूर्ण।
पार्थिवं = पृथ्वी (भूमि) से सम्बन्धित, पृथ्वी की।
रजः = मिट्टी, धूल।
द्यौः = आकाश।
अस्तु = हो।
नः = हमारे लिए।
वनस्पतिः = वृक्ष, वृक्ष-समूह, वन।
माध्वीः = आनन्दकारिणी।
गावः = गाएँ।
भवन्तु = हों। |

सन्दर्भ
पूर्ववत्।। प्रसंग-प्रस्तुत मन्त्र में अपने चारों ओर के वातावरण को आनन्दपूर्ण बनाने की प्रार्थना की गयी है।

अन्वयनः
नक्तम् उत उषसः मधु अस्तु। (न:) पार्थिवं रज: मधुमत् (अस्तु)। नः पिताः द्यौः मधु (अस्तु)। (न:) वनस्पतिः मधुमान् (अस्तु)। (नः) सूर्यः मधुमान् अस्तु। न: गावः माध्वीः भवन्तु।|

व्याख्या
हमारी रात्रि और ऊषाकाल (सवेरा) आनन्दमय एवं प्रसन्नता से भरी हों। हमारी मातृभूमि की धूल मधुरता से भरी हो। हमारे पिता आकाश आनन्ददायक हों। हमारे देश की वृक्षादि वनस्पति आनन्ददायक हो। हमारा सूर्य आनन्द प्रदान करने वाला हो। हमारे देश की गायें मधुर (दूध देने वाली) हों। तात्पर्य यह है कि हमारा सम्पूर्ण पर्यावरण हमारे लिए कल्याणकारी हो।

(3)
सं गच्छध्वं सं वदध्वं, सं वो मनांसि जानताम् ।।
समानो मन्त्रः समितिः समानी, समानं मनः सह चित्तमेषाम् ॥

शब्दार्थ
सं गच्छध्वम् = साथ-साथ चलो।
सं वदध्वम् = साथ-साथ (मिलकर) बोलो।
सं जानताम् = अच्छी तरह जानो।
वः = तुम सभी।
मनांसि = मनों को।
मन्त्रः = मन्त्रणा, निश्चय।
समितिः = सभा, गोष्ठी।
समानी = एक समान।
चित्तं = मन।

सन्दर्भ
पूवर्वत्।। प्रसंग-प्रस्तुत मन्त्र में सह-अस्तित्व की भावना पर बल दिया गया है।

अन्वय
(यूयम्) सं गच्छध्वम् , सं वदध्वम् , वः मनांसि सं जानताम्। मन्त्रः समानः (अस्तु), समितिः समानी (अस्तु), मनः समानं (अस्तु), एषां चित्तं सह (अस्तु)। |

व्याख्या
तुम सब एक साथ मिलकर चलो, एक साथ मिलकर बोलो और अपने-अपने मनों को अच्छी तरह समझो। तुम सबका समान विचार हो, समिति (संगठन) समान हो, सबका मन समान हो, इनका चित्त भी एक साथ (एक जैसा) हो।।

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(4)
सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान् नेनीयतेऽभीषुभिर् वाजिन इव।
हृत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु

शब्दार्थ
सुषारथिः (सु + सारथिः) = अच्छा सारथी।
इव = समान, तरह।
नेनीयते = ले जाता है (इच्छानुसार)।
अभीषुभिः = लगामों से।
वाजिनः = घोड़ों को।
हृत्प्रतिष्ठम् = हृदय में प्रतिष्ठित अर्थात् हृदय में
स्थित अजिरं = कभी बूढ़ा न होने वाला।
जविष्ठम् = तीव्र वेग वाला।
शिवसङ्कल्पमस्तु (शिव + सङ्कल्पम् + अस्तु) = कल्याणकारी विचार हो।

सन्दर्भ
प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘मङ्गलाचरणम्’ पाठ से उद्धृत है, जो कि शुक्ल यजुर्वेद’ से लिया गया है।

प्रसंग
प्रस्तुत मन्त्र में मन को नियन्त्रित करने एवं शुभ संकल्पों वाला बनाने के लिए प्रार्थना की गयी है।

अन्वय
यत् (मन) मनुष्यान् सुषारथिः अश्वान् इव अभीषुभिः वाजिन इव नेनीयते, यत् हृत्प्रतिष्ठम् , यत् अजिरं जविष्ठम् (चे अस्ति) तत् मे मनः शिवसङ्कल्पम् अस्तु।

व्यख्या
जो (मन) मनुष्यों को उसी प्रकार नियन्त्रित करके ले जाता है, जैसे अच्छा सारथि घोड़ों को लगाम से (नियन्त्रित करके) सही दिशा की ओर ले जाता है। जो मन हृदय में स्थित है, जो बुढ़ापे से रहित अर्थात् वृद्धावस्था में भी युवावस्था के समान अनेक सुखों को भोगने की इच्छा करता है, तीव्र (UPBoardSolutions.com) वेगगामी है; वह मेरा मन सुन्दर विचारों से सम्पन्न बने अर्थात् वह मेरा मन इस प्रकार की कामना करे, जिससे हमारा कल्याण हो सके।

(5)
यो भूतं च भव्यं च सर्वं यश्चाधितिष्ठति ।
स्वर्यस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः ॥

शब्दार्थ
यः = जो।
भूतम् (भूतकाल में उत्पन्न) = हो चुका है।
भव्यम् = आगे होने वाला है।
अधितिष्ठति = व्याप्त कर स्थित है।
स्वः = स्वर्गलोक।
ज्येष्ठाय = सबसे महान्।
ब्रह्मणे = परमब्रह्म परमात्मा को।
नमः = नमस्कार है।

सन्दर्भ
प्रस्तुतः मन्त्र हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘मङ्गलाचरणम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जो कि. ‘अथर्ववेद’ से लिया गया है।

प्रसंग
प्रस्तुत मन्त्र में ब्रह्मा की महिमा बताकर उसे नमस्कार किया गया है। |

अन्वय
यः भूतं च भव्यं च (अस्ति), यः च सर्वम् अधितिष्ठति, स्वः केवलं यस्य (अस्ति) तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः।

व्याख्या
जो भूतकाल में उत्पन्न हुए तथा भविष्यकाल में उत्पन्न होने वाले सभी पदार्थों को व्याप्त करके स्थित है, दिव्य प्रकाश वाला स्वर्ग केवल जिसको है; अर्थात् जिसकी कृपा से ही मनुष्य परमपद को प्राप्त कर सकता है, उस महनीय परमब्रह्म को नमस्कार है।

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सूक्तिपरक वाक्यांशों की याख्या

(1) सं गच्छध्वं सं वदथ्वं।

सन्दर्भ
प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्‘ के ‘मङ्गलाचरणम्’ पाठ से ली गयी है।

प्रसंग
ऋग्वेद से संकलित इस सूक्ति में ईश्वर से प्रार्थना की गयी है कि हम सब आपस में प्रेम-भाव से मिलकर कार्य करें।

अर्थ
(हम) साथ-साथ मिलकर चलें और साथ-साथ मिलकर बोलें।

अनुवाद
व्यक्तिगत और सामाजिक उन्नति के लिए आवश्यक है कि हम सभी आपस में प्रेम-भाव से रहें। आपस में प्रेम-भाव होने से एक-दूसरे के प्रति द्वेष और घृणा की भावना स्वतः ही समाप्त हो जाती है। साथ-ही-साथ अहंकार और स्वार्थ की भावना भी नहीं रहती, क्योंकि ये दोनों भाव परस्पर कटुता और कलह उत्पन्न करते हैं। इसीलिए ऋग्वेद में शिक्षा दी गयी है कि हे ईश्वर! इस संसार में हम प्रेम-भाव से मिलकर साथ-साथ चलें और साथ-साथ मिलकर बोलें।

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