UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 6 Tissues

UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 6 Tissues (ऊतक)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 6 Tissues (ऊतक).

पाठ्य – पुस्तक के प्रश्नोत्तर

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 77)

प्रश्न 1.
ऊतक क्या है ?
उत्तर-
कोशिकाओं का ऐसा समूह जो बनावट व कार्य में समान होता है, एक ही तरह के कार्य को सम्पन्न करता है ऊतक कहलाता है।

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प्रश्न 2.
बहुकोशिकीय जीवों में ऊतकों का क्या उपयोग है ?
उत्तर-
बहुकोशिकीय जीवों में लाखों कोशिकाएँ होतं. हैं। इनमें से अधिकतर कुछ ही कार्यों को सम्पन्न करने के लिए होती हैं। प्रत्येक विशेष कार्य कोशिकाओं के विभिन्न समूहों द्वारा किया जाता है। बहुकोशिक जीवों में श्रम विभाजन होता है। शरीर के अन्दर ऐसी कोशिकाएँ जो एक तरह के कार्य को सम्पन्न करने (UPBoardSolutions.com) में दक्ष होती हैं, सदैव एक ही समूह में रहती हैं अर्थात् ऊतक बनाती हैं। रक्त, फ्लोयम ऊतक पेशी सभी ऊतक के उदाहरण हैं।

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पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 81)

प्रश्न 1.
प्रकाश संश्लेषण के लिए किस गैस की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
प्रकाश संश्लेषण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड गैस (CO) की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2.
पौधों में वाष्पोत्सर्जन के कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर-
पौधों में वाष्पोत्सर्जन के कार्य निम्नलिखित हैं
(i) पौधे जमीन से पानी को वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा ऊपर खींचते हैं।
(ii) पौधा ठण्डा रहता है।

पाठात प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 83)

प्रश्न 1.
सरल ऊतकों के कितने प्रकार हैं ?
उत्तर-
सरल ऊतकों के तीन प्रकार हैं
(i) मृदूतक
(ii) स्थूलकोण ऊतक
(iii) दृढ़ ऊतक।

प्रश्न 2.
प्ररोह का शीर्षस्थ विभज्योतक कहाँ पाया जाता है ?
उत्तर-
एपिकल विभज्योतक जड़ तथा तनों की चोटी पर पाया जाता है। यह तने तथा जड़ों की वृद्धि करने में सहायता करता है।

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प्रश्न 3.
नारियल का रेशा किस ऊतक का बना होता है ?
उत्तर-
स्कलेरेन्काइमा ऊतक।

प्रश्न 4.
फ्लोएम के संघटक कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
(i) छलनी नलिका,
(ii) साथी (सहचर) कोशिकाएँ,
(iii) फ्लोएम मृदूतक,
(iv) स्कलेरेन्काइमा।

पाठगत प्रश्न (पृष्ठ संख्या – 87)

प्रश्न 1.
उस ऊतक का नाम बताएँ जो हमारे शरीर में गति के लिए उत्तरदायी है।
उत्तर-
पेशी ऊतक हमारे शरीर की गति के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 2.
न्यूरॉन देखने में कैसा रुगता है ?
उत्तर-
तंत्रिका ऊतक की कोशिकाओं को न्यूरॉन कहा जाता है। न्यूरॉन में कोशिकाएँ केन्द्रक तथा साइटोप्लाज्म होते हैं। इससे लम्बे, पतले बालों जैसी शाखाएँ निकली होती हैं। (UPBoardSolutions.com) प्रायः प्रत्येक न्यूरॉन में इस तरह का एक लम्बा प्रवर्ध होता है, जिसे एक्सॉन कहते हैं और बहुत सारी छोटी शाखा वाले प्रवधू को डेन्डराइट्स कहते हैं। एक तंत्रिका कोशिका एक मीटर लम्बी हो सकती है।
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प्रश्न 3.
हृदय पेशी के तीन लक्षणों को बताएँ।
उत्तर-
हृदय पेशी ऊतक के तीन लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. ये अनैच्छिक पेशियाँ ही होती हैं जो सामान्य परिस्थितियों में जीवन-पर्यन्त लयबद्ध संकुचन और प्रसार करती हैं।
  2. ये ऊतक बेलनाकार, कम शाखित व एक या दो केन्दलीय होते हैं।
  3. इन ऊतकों पर हल्की व कम गहरी धारियाँ होती हैं।

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प्रश्न 4.
ऐरीओलर ऊतक के क्या कार्य हैं ?
उत्तर-
ऐरीओलर ऊतक त्वचा व पेशीय के बीच रक्त वाहिकाओं के गिर्द, अस्थिमज्जा व तन्त्रिकाओं में पाया जाता है।
कार्य-

  1. यह अंगों के मध्य स्थान की पूर्ति करता है।
  2. अन्दर के अंगों को सहारा देता है।
  3. यह ऊतकों की मरम्मत में भी सहायता करता है।

अभ्यास प्रश्न (पृष्ठ संख्या 88 – 89)

प्रश्न 1.
ऊतकं को परिभाषित करें।
उत्तर-
कोशिकाओं के ऐसे समूह को जिनकी उत्पत्ति, रचना व कार्य एक समान हो ऊतक कहते हैं।

प्रश्न 2.
कितने प्रकार के तत्त्वे मिलकर जाइलम ऊतक का निर्माण करते हैं। उनके नाम बताएँ।
उत्तर-
चार प्रकार के अवयव मिलकर जाइलम ऊतक को बनाते हैं। वे निम्न प्रकार के हैं

  1. ट्रेकीड
  2. वैसलस (वाहिका)
  3. जाइलम पेरनकाइमा
  4. जाइलम फाइबर्स।

इनमें से वाहिकाएँ सबसे प्रमुख हैं। इनकी कोशिका भित्ति कठोर व सामान्यतया मृत होती है। वाहिकाएँ बेलनाकार होती हैं और एक नलिका-सी बनाती हैं जो पानी व खनिज लवणों को जड़ों से पौधे के विभिन्न भागों तक पहुँचाते हैं। पेरनकाइमा भोजन संग्रहण करती है जबकि फाइबर्स दृढ़ता प्रदान करते हैं।

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प्रश्न 3.
पौधों में सरल ऊतक जटिल ऊतक से किस प्रकार भिन्न होते हैं ?
उत्तर-

  1. सरल ऊतक – ये ऊतक एक ही प्रकार की कोशिकाओं से बने होते हैं जैसे विभज्योतक, पेरनकाइमा, कोलेनकाइमा व स्केलरनकाइमा ये विभिन्न कार्य करते हैं।
  2. विभज्योतक  –  तीव्रता से विभाजित होकर वृद्धि करते हैं, पेरनकाइमा भोजन का संग्रह करता है, कोलेनकाइमा तना, शाखाएँ व पत्तों को दृढ़ता प्रदान (UPBoardSolutions.com) करके उसे यान्त्रिकी आधार देता है।
  3. जटिल ऊतक – इस प्रकार के ऊतक एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बनते हैं। सभी कोशिकाएँ परस्पर मिलकर कोई सामान्य कार्य करती है। जैसे जाइलम व फ्लोएम। ये दोनों संवहन का कार्य करते हैं और संवहन बंडल बनाते हैं।

प्रश्न 4.
कोशिका भित्ति के आधार पर पैरेन्काइमा, कॉलेन्काइमा व स्क्लेरेन्काइमा के बीच भेद स्पष्ट करें।
उत्तर-
पैरेन्काइमा, कॉलेन्काइमा व स्क्लेरेन्काइमा में निम्नलिाखत अन्तर हैं
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प्रश्न 5.
रन्ध्र के क्या कार्य हैं ?
उत्तर-
पौधों की पत्तियों में बाह्य त्वचा या एपिडर्मिस की कोशिकाओं में छोटे-छोटे रन्ध्र होते हैं उन्हें स्टोमेटा या वात-रन्ध्र कहते हैं। ये पौधे के लिए निम्न प्रकार आवश्यक हैं-

  1. ये वायुमण्डल से पौधों में वायु की गैसों का आदान-प्रदान कराने में सहायक हैं अर्थात् इनकी सहायता से पौधा प्रकाश संश्लेषण क्रिया के लिए कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं और
    ऑक्सीजन बाहर (UPBoardSolutions.com) निकालते हैं।
  2. स्टोमेटा वाष्पोत्सर्जन की क्रिया में भी पौधे की पत्तियों द्वारा फालतू पानी को वाष्प के रूप में वायुमण्डल में उत्सर्जित करते हैं।

प्रश्न 6.
तीनों प्रकार के पेशीय रेशों में चित्र बनाकर अन्तर स्पष्ट करें।
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प्रश्न 7.
कार्डिक (हृदयक) पेशी का विशेष कार्य क्या है ?
उत्तर-
हृदय पेशी ऊतक अनैच्छिक ऊतक है अतः ये जीवनपर्यन्त हृदय में लयबद्ध संकुचन व प्रसार करती रहती हैं, जिसके कारण शरीर में रुधिर का परिवहन होता है और जीवित रहते हैं।

प्रश्न 8.
रेखित, अरेखित तथा कार्डिक (हृदयक) पेशियों में शरीर में स्थित कार्य और स्थान के आधार पर अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
रेखित, अरेखित तथा कार्डिक (हृदयक) पेशी में निम्नलिखित अन्तर हैं-
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प्रश्न 9.
न्यूरॉन का एक चिन्हित चित्र बनाएँ।
उत्तर-
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प्रश्न 10.
निम्नलिखित के नाम लिखिए
(a) ऊतक जो मुँह के भीतरी अस्तर का निर्माण करता है।
(b) ऊतक जो मनुष्य में पेशियों को अस्थि से जोड़ता है।
(c) ऊतक जो पौधों में भोजन को संवहन करता है।
(d) ऊतक जो हमारे शरीर में वसा का संचय | करता है।
(e) तरल आधात्री सहित संयोजी ऊतक।
(f) मस्तिष्क में स्थित ऊतक।
उत्तर-
(a) हमारी मुख गुहिका की आन्तरिक परत बनाने वाले शल्की एपिथीलियम ऊतक है।
(b) मानव शरीर में हड्डियों के जोड़ने वाले ऊतक कन्डरा होते हैं।
(c) फ्लोएम ऊतक पौधों में भोजन का संवहन करते हैं।
(d) ऐडीपोज (वसा) ऊतक हमारे शरीर में वसा का संग्रह करते हैं।
(e) तरल आधात्री वाला योजी (UPBoardSolutions.com) ऊतक रक्त है।
(f) मस्तिस्क में पाए जाने वाले ऊतक तन्त्रिका ऊतक (न्यूरॉन) हैं।

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प्रश्न 11.
निम्नलिखित में ऊतक के प्रकार की पहचान करें
(1) त्वचा
(2) पौधे का वल्क
(3) अस्थि
(4) वृक्कीय नलिका अस्तर
(5) संवहन बण्डल।
उत्तर-
(1) त्वचा-शल्की एपिथीलियम ऊतक।
(2) पौधे का वल्क-रक्षात्मक ऊतक।
(3) अस्थि-योजी ऊतक।
(4) वृक्कीय नलिका अस्तर-स्तंभाकार एपिथीलियम।
(5) संवहन बण्डल-जाइलम और फ्लोएम।

प्रश्न 12.
पैरेन्काइमा ऊतक किस क्षेत्र में स्थित होते हैं ?
उत्तर-
पैरेन्काइमा ऊतक – ये ऊतक पौधे के विभिन्न भागों में जैसे जड़, तना, पत्तियाँ, फल, फूल इत्यादि में पाए जाते हैं। इन ऊतकों में जब क्लोरोफिल पाई जाती है। और ये पौधे का भोजन बनाती है उस स्थिति में इन्हें क्लोरनकाइमा कहते हैं।

प्रश्न 13.
पौधों में एपिडर्मिस की क्या भूमिका है?
उत्तर-
एपिडर्मिस जो कोशिकाओं की बाह्यतम परत है वह रक्षात्मक ऊतक का कार्य करती है। ये ऊतक सामान्यतया जड़, तने, पत्तियों और फूलों की कोशिकाओं के बाहर पाए जाते हैं। यह मोटाई में एककोशिकीय होती है जिसके बाहर क्यूरिन की परत चढ़ी होती है। जैसे-जैसे पौधे की आयु बढ़ती है (UPBoardSolutions.com) परिधि पर स्थित एपिडर्मिस के अन्दर की कोशिकाएँ कार्क कोशिकाओं में रूपान्तरित हो जाती हैं। इनकी कोशिका भित्ति सुबेरिन के जमाव के कारण बहुत मोटी व मृत हो जाती है। यह जल की हानि को कम करती है।
कार्य-

  1. पौधे की सुरक्षा करती है।
  2. इसका उपयोग रोधन व धात रोधन में करते हैं।
  3. इसका उपयोग लिनोलियम व खेल का सामान बनाने में भी किया जाता है।
  4. एपिडर्मिस की कोशिकाओं में बीच-बीच में छोटे रन्ध्र होते हैं जिन्हें वातरन्ध्र (स्टोमेटा) कहते हैं।
  5. कुछ कार्बनिक पदार्थों के जमाव के कारण यह मोटी व जलरोधी हो जाती है।

प्रश्न 14.
छाल (कॉक) किस प्रकार सुरक्षा ऊतक के रूप में कार्य करता है ?
उत्तर-
कॉर्क एक सुरक्षा ऊतक की तरह कार्य करता है क्योंकि
(i) इसकी कोशिकाएँ मृत होती हैं तथा बिना स्थान छोड़े लगातार परत बनाती हैं।
(ii) इसकी भित्ति पर सुबेरिन जमा होता है जो इसे गैसों के आदान-प्रदान में सहायता करने योग्य बनाता है।
अतः कॉर्क ऊतकों की अत्यधिक पानी-हानि बाह्य वायुमंडल के प्रभावों से सुरक्षा प्रदान करती है।

प्रश्न 15.
निम्न दी गई तालिका को पूर्ण करें-
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अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऊतक किसे कहते हैं ?
उत्तर-
ऊतक (Tissues)-कोशिकाओं के ऐसे समूह जिनकी उत्पत्ति, रचना एवं कार्य समान हों, ऊतक कहलाते हैं।

प्रश्न 2.
‘अंग’ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अंग (Organs)-उच्च श्रेणी के जन्तुओं तथा पौधों में विभिन्न प्रकार के ऊतक तन्त्र मिलकर अंग का निर्माण करते हैं। अंग अलग-अलग निश्चित कार्य करते हैं।

प्रश्न 3.
‘अंग तन्त्र’ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अंग तन्त्र (Organ System)-विशेष कार्य करने वाले अंगों के समूह को अंग तन्त्र कहते हैं।

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प्रश्न 4.
पादप ऊतक की परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
पादप ऊतक (Plant tissues)-पादप कोशिकाओं के ऐसे समूह जिनकी उत्पत्ति, रचना एवं कार्य समान हों, पादप ऊतक कहलाते हैं।

प्रश्न 5.
ऊतक शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किस वैज्ञानिक ने किया था ?
उत्तर-
ऊतक शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग बिचर नामक वैज्ञानिक ने किया था।

प्रश्न 6.
विभज्योतक क्या है ?
उत्तर-
विभज्योतक (Meristematic tissues) – वे ऊतक जिनकी कोशिकाएँ निरन्तर वृद्धि करके पौधों की लम्बाई एवं मोटाई में वृद्धि करती रहती हैं विभज्योतक कहलाते हैं।

प्रश्न 7.
दृढ़ोतक या स्क्लेरेनकाइमा का एक प्रमुख कार्य लिखिए
उत्तर-
दृढ़ोतक या स्क्लेरेनकाइमा का एक प्रमुख कार्य पौधों को दृढ़ता प्रदान करना है।

प्रश्न 8.
जटिल ऊतक किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जटिल ऊतक (Complex tissues)-जो ऊतक एक (UPBoardSolutions.com) से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं तथा जो सभी मिलकर इकाई ऊतक के रूप में कार्य करते हैं, वे जटिल ऊतक कहलाते हैं।

प्रश्न 9.
ग्रन्थिल ऊतक क्या हैं?
उत्तर-
ग्रन्थिल ऊतक (Glandular Tissues)- ग्रन्थियुक्त विशिष्ट स्रावी ऊतक, न्थिल ऊतक कहलाते

प्रश्न 10.
आक्षीरी ऊतक क्या है ?
उत्तर-
आक्षीरी ऊतक (Lacticiferous tissues)-नलिकायुक्त वे विशिष्ट स्रावी ऊतक जो दुग्ध जैसे पदार्थ का स्रावण करते हैं आदी ऊतक कहलाते हैं।

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प्रश्न 11.
ग्रन्थिल ऊतक का क्या कार्य है ?
उत्तर-
ग्रन्थिल के गोंद, रेजिन, तेल, सुगन्धित तेल एवं मकरन्द वा स्राव करते हैं।

प्रश्न 12.
ग्रन्थिले ऊतक किन पौधों में पाये जाते हैं?
उत्तर-
ग्रन्थिल ऊतक, जैट्रोपा तम्बाकू, बबूल, चीड़ आदि पौधों में पाये जाते हैं।

प्रश्न 13.
आक्षीरी ऊतक किन पौधों में पाये जाते हैं?
उत्तर-
आक्षीरी ऊतक, आक, गूलर आदि पौधों में पाये जाते हैं।

प्रश्न 14.
पेशी और अस्थि को जोड़ने वाले ऊतक का नाम बताइये।
उत्तर-
पेशी अंग अस्थि को नोडने वाले ऊतक का नाम कण्डराएँ (Tendons) हैं।

प्रश्न 15.
पेशी को पेशी से जोड़ने वाले ऊतक का नाम लिखिए।
उत्तर-
पेशी से पेशी को जोड़ने वाले ऊतक का नाम स्नायु (Ligament) है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जटिल ऊतक कितने प्रकार के होते हैं ? उनके नाम लिखिए।
अथवा
जटिल ऊतक के केवल नाम लिखिए।
उत्तर-
जटिल ऊतकों के प्रकार – जटिल ऊतक निम्न दो प्रकार के होते हैं।

  1. दारू ऊतक या जाइलम (Xylem)
  2. अधोवाही ऊतक या फ्लोएम (Phloem)

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प्रश्न 2.
शीर्षस्थ विभज्योतक क्या है ?
उत्तर-
शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical meristematic tissues) – ये ऊतक जड़ एवं तने के शिखाग्र पर स्थित रहते हैं तथा जड़ एवं तने की लम्बाई में वृद्धि करते हैं।

प्रश्न 3.
अन्तर्विष्ट विभज्योतक क्या है ?
उत्तर-
अन्तर्विष्ट विभज्योतक (Intercalarymeristematic tissues) – ये ऊतके पौधे में पत्ती के आधार के पास अथवा पर्व के आधार के पास स्थित होते हैं। ये पौधे की लम्बाई बढ़ाने में सहयोग करते हैं।

प्रश्न 4.
पाश्र्व विभज्योतक क्या है ?
उत्तर-
पार्श्व विभज्योतक (Lateral meristematic tissues) – ये ऊतक तनों एवं जड़ों के पाश्र्व भाग में स्थित होते हैं। इनसे पौधों के तनों एवं जड़ों की मोटाई बढ़ती है।

प्रश्न 5.
स्थायी ऊतक किसे कहते हैं ?
उत्तर-
स्थायी ऊतक (Permanent tissues) – विभज्योतकों से बने वे ऊतक जिनकी कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता समाप्त हो जाती है तथा जो एक निश्चित आकार ग्रहण कर लेते हैं, स्थायी ऊतक कहलाते हैं।

प्रश्न 6.
सरल स्थायी ऊतक क्या हैं ?
उत्तर-
सरले स्थायी ऊतक (Simple permanent tissues) – जो स्थायी ऊतक केवल एक ही प्रकार की कोशिकाओं से बने होते हैं, वे सरल स्थायी ऊतक कहलाते हैं।

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प्रश्न 7.
स्थूलकोण ऊतक या कॉलेनकाइमा के प्रमुख दो कार्य लिखिए।
उत्तर-
स्थूलकोण ऊतक या कोलेनकाइमा के प्रमुख कार्य

  1. ये पौधों में दृढ़ता प्रदान करते हैं।
  2. क्लोरोफिल की उपस्थिति में जब ये

प्रकाश-संश्लेषण द्वारा भोजन बनाने का कार्य करते हैं, तब इन्हें क्लोरेनकाइमा भी कहते हैं।

प्रश्न 8.
जाइलम एवं फ्लोएम में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
जाइलम एवं फ्लोएम में अन्तर-
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प्रश्न 9.
लसिका के कार्य लिखिए।
उत्तर-
लसिका के कार्य (Functions of Lymph)-

  1. लसिका ऊतकों तक भोज्य पदार्थों का संवहन करती है।
  2. ऊतक से उत्सर्जी पदार्थ एकत्रित करती है।
  3. हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करके शरीर की रक्षा करती है।
  4. पचे वसा का अवशोषण करके शरीर के विभिन्न भागों तक ले जाती है।
  5. शरीर के घाव भरने में सहायक होती है।

प्रश्न 10.
लसिका तथा रक्त में अन्तर लिखिए।
अथवा
रक्त एवं लसीका में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लसिका तथा रक्त में अन्तर-
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पौधों में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के ऊतकों के नाम एवं उनके प्रमुख कार्य लिखिए।
उत्तर-
पौधों में पाये जाने वाले विभिन्न ऊतक एवं उनके प्रमुख कार्य-
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प्रश्न 2.
रक्त कणिकाओं के प्रकार एवं कार्यों का सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा
रक्त की संरचना (के घटकों) का विस्तृत सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा
रक्त कणिकाओं के नाम और कार्य लिखिए।
उत्तर-
रक्त की संरचना एवं रक्त के घटक (Structure and Composition of Blood)- रक्त निम्नलिखित घटकों से मिलकर बना होता है-
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  1. लाल रक्त कणिकाएँ (R.B.C.) या इरिथ्रोसाइट्स (Erythrocytes) – इनमें हीमोग्लोबिन नाम का प्रोटीन होता है जो श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन करता है।
  2. श्वेत रक्त कणिकाएँ (W.B.C.) या ल्यूकोसाइट्स (Leucocytes) – ये हानिकारक बैक्टीरिया एवं मृत कोशिकाओं का भक्षण करके उन्हें नष्ट कर देती हैं और संक्रमण तथा आघातों से शरीर की रक्षा करती हैं।
  3. रक्त पट्टिकाएँ (Blood Platelets) या थ्रोम्बोसाइट्स (Thrombocytes) – ये रक्त का थक्का जमाने में सहायक होती हैं और इस प्रकार अमूल्य रक्त को नष्ट होने से रोकती हैं।
  4. प्लाज्मा (Plasma) – यह रक्त का द्रवीय भाग (UPBoardSolutions.com) है जिसमें प्रोटीन, हॉर्मोन्स, ग्लूकोज, वसीय अम्ल, ऐमीनो अम्ल, खनिज लवण, भोजन के पचित भाग एवं उत्सर्जी पदार्थ होते हैं। यह रक्त के परिवहन का मुख्य माध्यम है।

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प्रश्न 3.
रक्त के कार्य लिखिए।
उत्तर-
रक्त के कार्य (Functions of Blood)रक्त के विभिन्न कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. फेफड़ों से ऊतकों तक ऑक्सीजन का परिवहन करता है।
  2. विभिन्न ऊतकों में कार्बन डाइऑक्साइड को एकत्रित करके उसका फेफड़ों तक परिवहन करता है।
  3. उपापचय में बने विषैले एवं हानिकारक पदार्थों | को एकत्रित करके हानिरहित बनाने के लिए यकृत में भेजता है।
  4. विभिन्न प्रकार के उत्सर्जी पदार्थों को उत्सर्जन हेतु वृक्कों तक पहुँचाता है।
  5. छोटी आँतों से पचित भोज्य पदार्थों का अवशोषण भी रक्त प्लाज्मा द्वारा होता है जिसे यकृत और फिर विभिन्न ऊतकों में भेज दिया जाता है।
  6. विभिन्न प्रकार के हॉर्मोनों का परिवहन करता है।
  7. शरीर के तापक्रम को ऊष्मा वितरण द्वारा नियन्त्रित रखता है।
  8. रक्त की श्वेत रक्त कणिकाएँ हानिकारक बैक्टीरियाओं, मृतकोशाओं तथा रोगाणुओं का भक्षण करके उन्हें नष्ट कर देती है। इस प्रकार रोग से रक्षा करता है।
  9. पट्टिकाएँ तथा फाइब्रिनोजेन नामक प्रोटीन रक्त में उपस्थित होती है जो रक्त का थक्का जमने में सहायक होते हैं।
  10. विभिन्न प्रकार के एन्जाइम्स का परिवहन करता है।

प्रश्न 4.
रेखित पेशी एवं हृदय पेशी का नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर-
रेखित पेशी एवं हृदय पेशी का नामांकित चित्र-
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प्रश्न 5.
उपकला ऊतक के प्रकारों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
उपकला ऊतक के प्रकार-उपकला ऊतक अग्र प्रकार के होते हैं-

    1. सरले घनाकार उपकला ऊतक (Simple cuboidal epithelial tissue) – ये घनाकार होते हैं व लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई बराबर होती है। ये स्वेद ग्रन्थियों, थायरॉइड ग्रन्थियों, यकृत, वृक्क नलिकाओं व जनदों में पाया जाता है।
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    1. सरले स्तम्भकार ऊतक (Simple columnar epithelial tissue) – इस ऊतक की कोशिकाएँ एक-दूसरे से सटी हुई व स्तम्भ के समान दिखाई देती हैं। इनके स्वतन्त्र सिरों पर सूक्ष्मांकुर (Microvilli) पाये जाते हैं। ये अवशोषण तल को बढ़ाते हैं वे संवेदी अंगों से संवेदना ग्रहण करते हैं। पित्ताशय व पित्तवाहिनी की दीवार इसी ऊतक की बनी होती है।
    2. स्तरित उपकला ऊतक (Stratified epithelial tissue) – इसमें कोशिकाएँ कई स्तरों में व्यवस्थित रहती हैं एवं स्तम्भाकार एवं जीवित होती हैं। इसमें जीवन-पर्यन्त विभाजन की क्षमता पाई जाती है। विभाजन की क्षमता होने के कारण इसे जनन स्तर कहते हैं। यह ऊतक घर्षण करने वाले स्थानों, मुखगुहा, त्वचा, एपिडर्मिस, इसोफेगस, नासा गुहा की म्यूकोसा, योनि आदि में पाया जाता है।
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    1. ग्रन्थिल उपकला ऊतक (Glandular epithelial tissue) – हमारे शरीर में कई प्रकार की ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं। इन ग्रन्थियों की स्वतन्त्र आन्तरिक सतह पर पाये जाने वाले ऊतक को ग्रन्थिल उपकला ऊतक कहते हैं। ये ग्रन्थियाँ एककोशिकीय व बहुकोशिकीय होती हैं। ये ग्रन्थियाँ त्वचा, स्वेद ग्रन्थि, स्तन ग्रन्थि, तेल ग्रन्थि, लार ग्रन्थि, जठर ग्रन्थि, अग्न्याशयी ग्रन्थि में होती हैं।
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    1. सरल पक्ष्माभी उपकला ऊतक (Simple ciliated epithelial tissue) – इस ऊतक की कोशिकाएँ स्तम्भकार या घनाकार होती हैं। इसके सिरों पर छोटी-छोटी महीन धागों के समान रचनाएँ पायी जाती। हैं, जिन्हें सीलिया (Cilia) कहते हैं। ये ऊतक (UPBoardSolutions.com) अण्डवाहिनी (Oviduct), मूत्रवाहिनी (Ureter), मुगुहा की श्लेष्मकला (Mucous menabrane), टिम्पैनिक गुहा, मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु की केन्द्रीय नील (Central canal) तथा श्वास नली की भीतरी सतह पर पाये जाते हैं। ये ऊतक के पक्ष्म तरफ तथा अन्य पदार्थ को ढकेलने में मदद करती हैं।
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    1. सरल शल्की उपकला ऊतक (Siniple squamous epithelial tissue) – यह ऊतक शरीर की सतह की सुरक्षात्मक आवरण बनाता है। मूत्र नलिका, देहगुहा, हृदय के चारों ओर रक्षात्मक आवरण बनाता है।
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    1. संवेदी उपकला ऊतक (Sensory epithelial tissue) – ये स्तम्भी उपकला ऊतक का रूपान्तरण है। इनके सिरे पर संवेदी रोम (Sensory hair) पाये जाते हैं। ये रोम तन्त्रिका तन्तु से जुड़े रहते हैं। ये ऊतक घ्राण कोष, आँख की रेटिना तथा मुखगुहा की म्यूकस झिल्ली में पाया जाता है।
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प्रश्न 6.
तन्त्रिकीय कोशिका के सचित्र वर्णन कीजिए।
अथवा
तन्त्रिका ऊतक क्या है? इनकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-
तत्रिका कोशिका या तन्त्रिक ऊतक का सचित्र वर्णन
तन्त्रिकीय ऊतक (Nervous tissue) – ये ऊतक सोचने, समझने, संवेदनाओं, उद्दीपन या बाह्य परिवर्तनों को ग्रहण करने की क्षमता रखता है। यह दो विशिष्ट (UPBoardSolutions.com) प्रकार की कोशिका का बना होता है।

  1. तन्त्रिका कोशिका (Neurons) – ये तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण करती हैं व 4 से 136u या अधिक व्यास की कोशिकाएँ हैं। ये दो भागों की बनी होती हैं
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    • कोशिकाकाय या सायटन (Cell body or Cyton) – यह तन्त्रिका का मुख्य भाग है, इसके कोशिकाद्रव्य में छोटे-छेटे निसिल्स कण (Nissils Granules) पाये जाते हैं।
    • कोशिका प्रवर्ध (Cell processes) – कोशिकाकाय से एक या एक से अधिक छोटे-बड़े कोशिका द्रव्यीय प्रवर्ध निकले रहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं
      • डेण्ड्राइट्स (Dendrites) तथा
      • एक्सॉन (Axon)
  2. न्यूरोग्लिया (Neurogloea) – ये एक्सॉन रहित कोशिकाएँ हैं जो तन्त्रिकाओं में आवरण बनाती हैं।

प्रश्न 7.
जालिकावत् एवं रेशेदार संयोजी ऊतकों के नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर-
जालिकावत् एवं रेशेदार संयोजी ऊतकों के नामांकित चित्र-
UP Board Solutions for Class 9 Science Chapter 6 Tissues image -22

अभ्यास प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. शैवालों में पाया जाता है
(a) असूत्री विभाजन
(b) समसूत्री विभाजन
(c) अर्द्धसूत्री विभाजन
(d) इनमें से कोई नहीं।

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2. समसूत्री विभाजन कौन-सी कोशिकाओं में होता
(a) जनन
(b) वसीय
(c) दैहिक
(d) ऊतक

3. स्नायु और कण्डरा इसके बने होते हैं
(a) उपकला ऊतक
(b) पेशी ऊतक
(c) उपास्थि
(d) संयोजी ऊतक

4. कोलेजन को जब जल में उबालते हैं, वह इसमें परिवर्तित हो जाता है
(a) जिलैटिन
(b) रेटिकुलिन
(c) इलास्टिन
(d) मायोसिन

5. अस्थिकोरकों से प्रवर्ध इसमें पाये जाते हैं
(a) पटलिकाएँ।
(b) सूक्ष्मनलिकाएँ
(c) दुमिका
(d) हैवर्स नलिका

6. कणिकाओं को निकाल देने के पश्चात् रुधिर को तरल अंश होता है
(a) प्लाज्मा
(b) लिम्फ
(c) सीरम
(d) वैक्सिन

7. रुधिर में वास्तविक कोशिकाएँ कौन-सी नहीं हैं?
(a) प्लेटलेट्स
(b) मोनोसाइट्स
(c) बेसोफिल्स
(d) न्यूट्रोफिल्स

8. इसके अत्यधिक खिंच जाने से मोच आ जाती है
(a) तंत्रिका
(b) कण्डरी
(c) पेशी
(d) स्नायु

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9. कंण्डरा एक संरचना है जो जोड़ता है
(a) एक अस्थि को दूसरी अस्थि से
(b) पेशी को अस्थि से
(c) तंत्रिका को पेशी से
(d) पेशी को पेशी से

10. चिकनी पेशियाँ इसमें पायी जाती हैं
(a) गर्भाशय
(b) धमनी
(c) शिरा
(d) ये सभी

11. निम्नलिखित पादप ऊतकों में से किसमें परिपक्वता पर जीवित प्रोटोप्लाज्म नहीं होता है
(a) दृढ़ोतक
(b) श्लेषोतक
(b) ट्रेकीड्स
(d) अधिचर्म

12. संयोजी ऊतक के श्वेत तंतु इसके बने होते हैं
(a) इलास्टिन
(b) रेटिकुलर तन्तु
(c) कोलेजन ।
(d) मायोसिन

13. अस्थि ऊतक की कठोरता इनके फॉस्फेट्स तथा कार्बोनेट्स के कारण होती है
(a) कैल्सियम और सोडियम
(b) कैल्सियम और मैग्नीशियम
(c) मैग्नीशियम और सोडियम
(d) मैग्नीशियम और पोटैशियम

14. आकृति, कार्य तथा उत्पत्ति में समान कोशिकाओं का समूह कहलाता है
(a) ऊतक
(b) अंग
(c) अंगक
(d) इनमें से कोई नहीं

15. पौधे की लम्बाई इसके द्वारा बढ़ती है
(a) शीर्षस्थ विभज्या
(b) पार्श्व विभज्या
(c) बल्कुटजन
(d) मृदूतक

16. कोशिका विभाजन इस तक सीमित है
(a) विभज्योतक कोशिकाएँ
(b) स्थायी कोशिकाएँ
(c) स्रावी कोशिकाएँ
(d) उपर्युक्त सभी

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17. सक्रिय विभाजन इसकी कोशिकाओं में होता है
(a) जाइलम
(b) फ्लोएम
(c) दृढ़ोतक
(d) कैम्बियम

18. घास का तना इसकी क्रियाशीलता से लम्बाई में बढ़ता है
(a) प्राथमिक विभज्या
(b) द्वितीयक विभज्या
(c) अंतर्वेशी विभज्या
(d) शीर्षस्थ विभज्या

19. सरल ऊतक ये हैं
(a) मृदूतक, जाइलम और श्लेषोतक
(b) मृदूतक, श्लेषोतक और दृढ़ोतक
(c) मृदूतक, जाइलम और दृढ़ोतक
(d) मृदूतक, जाइलम और फ्लोएम

20. जटिल ऊतक इनका बना होता है-
(a) समान कार्य करने वाली विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ
(b) भिन्न-भिन्न कार्य करने वाली विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ
(c) समान उत्पत्ति तथा समान कार्य करने वाली समान प्रकार की कोशिकाएँ।
(d) समान उत्पत्ति तथा समान कार्य करने वाली विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ।

21. सबसे अधिक सामान्य प्रकार का भरण ऊतक है
(a) उपत्वचा (या अधिचर्म)
(b) श्लेषोतक
(c) दृढ़ोतक
(d) मृदूतक

22. दृढ़ोतक से श्लेषोतक इसमें भिन्न होता है
(a) परिपक्वता पर कोशिकाद्रव्य धारण किये रखना
(b) स्थूल भित्तियाँ रखना
(c) विस्तृत अवकाशिका रखना
(d) विभज्योतकी होना

23. श्लेषोतक मुख्यतः बनाता है
(a) अधश्चर्म
(b) अधिचर्म
(c) फ्लोएम
(d) आन्तरिक बल्कुट

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24. किसकी जीवित कोशिकाएँ तनन तथा यान्त्रिक
सामर्थ्य प्रदान करती हैं
(a) श्लेषोतक
(b) दृढ़ोतक
(c) फ्लोएम
(d) स्क्लोराइड

25. काष्ठीय (लिग्नीफाइड) दीर्धित निर्जीव कोशिकाएँ हैं
(a) मृदूतक
(b) श्लेषोतक
(c) दृढ़ोतक
(d) इनमें से कोई नहीं

26. निम्नलिखित ऊतकों में से प्रायः कौन निर्जीव कोशिकाओं का बना होता है
(a) फ्लोएम
(b) अधिचर्म
(c) जाइलम
(d) अन्तश्चर्म

27. पौधों में फ्लोएम यह कार्य सम्पन्न करता है
(a) आहार का चालन
(b) जल का चालन
(c) आधार प्रदान करना
(d) प्रकाश-संश्लेषण

28. सरल उपकला एक ऊतक है जिसमें कोशिकाएँ
(a) कठोर होती हैं और अंगों को आधार प्रदान करती हैं।
(b) अंग बनाने के लिए लगातार विभाजित होती रहती हैं।
(c) एकल परत बनाने के लिए एक-दूसरे से सीधे चिपकी रहती हैं।
(d) अनियमित परत बनाने के लिए एक-दूसरे से शिथिलता से जुड़ी रहती हैं।

29. कुट्टिम उपकला इसका नाम है
(a) शल्की उपकला
(b) घनाभ उपकला
(c) पक्ष्माभी उपकला
(d) स्तम्भकार उपकला

30. कुर्च परिवेशित उपकला इसमें पायी जाती है
(a) आमाशय
(b) छुद्रान्त्र
(c) डिम्बवाहिनी नली
(d) श्वासनली

31. पक्ष्माभी उपकला इसमें पायी जाती है
(a) जिह्वा
(b) ग्रसिका।
(c) श्वासनली
(d) गर्भाशय

32. किस प्रकार का ऊतक ग्रन्थियाँ बनाता है ?
(a) उपकला
(b) संयोजी
(c) तन्त्रिका
(d) पेशी

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33. गर्तिकामय ऊतक है
(a) तंत्रिका ऊतक
(b) संयोजी ऊतक
(c) पेशी ऊतक
(d) अस्थि ऊतक

34. कलश कोशिकाओं का कार्य क्या है?
(a) HCl का उत्पादन
(b) श्लेष्मा का उत्पादन
(c) एन्जाइमों का उत्पादन
(d) हार्मोनों का उत्पादन

35. एक लम्बी अस्थि का सिरा, दूसरी अस्थि से इसके द्वारा जुड़ा होता है
(a) स्नायु
(b) कण्डरा
(c) उपास्थि
(d) पेशी

उत्तरमाला

  1. (a)
  2. (c)
  3. (d)
  4. (a)
  5. (b)
  6. (a)
  7. (a)
  8. (d)
  9. (b)
  10. (d)
  11. (a)
  12. (c)
  13. (b)
  14. (a)
  15. (a)
  16. (a)
  17. (d)
  18. (c)
  19. (b)
  20. (b)
  21. (d)
  22. (a)
  23. (a)
  24. (a)
  25. (c)
  26. (c)
  27. (a)
  28. (c)
  29. (a)
  30. (b)
  31. (c)
  32. (a)
  33. (b)
  34. (b)
  35. (a)

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Class 9 Sanskrit Chapter 6 UP Board Solutions श्रम एव विजयते Question Answer

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 6
Chapter Name श्रम एव विजयते (कथा – नाटक कौमुदी)
Number of Questions Solved 26
Category UP Board Solutions

UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 6 Shram ev Vijayate Question Answer (कथा – नाटक कौमुदी)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 6 हिंदी अनुवाद श्रम एव विजयते के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

परिचय- संस्कृत वाङमय में पंचतन्त्र, हितोपदेश आदि की उपादेय कथाएँ विपुल संख्या में प्राप्त हैं। वेद, पुराणादि की कथाएँ जो भारतीय धर्म-परम्परा की परिचायक हैं, उनसे भी समाज अत्यधिक लाभान्वित हुआ है। आज के परिवर्तनशील परिप्रेक्ष्य में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जो परिवर्तन दृष्टिगोचर (UPBoardSolutions.com) हो रहे हैं, उनके सन्दर्भो में मात्र सिद्धान्तों से काम नहीं चल सकता। इसके लिए हमें देश और समाज की समस्याओं की ओर ध्यान देना ही होगा और उनके समाधान भी ढूढ़ने होंगे।

प्रस्तुत पाठ इसी भावना से लिखा हुआ नाटक है। भारत जैसे विशाल देश में स्थान-विशेष से सम्बद्ध अनेकानेक कठिनाइयाँ और समस्याएँ हैं, जिनका निराकरण श्रम, दृढ़ निश्चय और परोपकार भावना से संगठित होकर ही सरलता से किया जा सकता है। इस पाठ के देवसिंह का चरित्र इसी का ज्वलन्त उदाहरण है।

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पाठ-सारांश

‘श्रम एव विजयते’ पाठ में स्पष्ट किया गया है कि श्रम, पक्का इरादा और परोपकार की भावना से अनेकानेक कठिनाइयों और समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। पाठ का सारांश निम्नलिखित है

प्रथम दृश्य- प्रस्तुत नाटक में तीन दृश्य हैं। प्रथम दृश्य में शीला अपने ग्राम शिवपुर की समस्याओं की ओर देवसिंह का ध्यान आकृष्ट करती हुई धिक्कारती है कि इस गाँव में पेट भरने योग्य अन्न व पीने के लिए जल भी सुलभ नहीं है। ईंधन प्राप्त करने के लिए वन नहीं है और पशुओं के खाने के लिए घास नहीं है, फिर लोगों को दूध कैसे प्राप्त हो? इस गाँव की स्थिति तो नरक से भी बदतर हो रही है।

इसी समय देवसिंह को अपने उस प्रसिद्ध कुल को ध्यान आता है, जिसकी यशोगाथाएँ अन्य राज्यों में भी फैली हुई थीं और आज उसी के ग्राम की वधुएँ कष्टपूर्ण जीवन बिता रही हैं। यह सोचकर देवसिंह पहले जल की समस्या का समाधान करना चाहता है।

द्वितीय दृश्य- द्वितीय दृश्य में देवसिंह अपने गाँव के निकट स्थित एक पर्वत के शिखर पर चढ़कर चारों ओर देखता है। उसे एक छोटी नदी दिखाई देती है। नदी और गाँव के मध्य वही छोटा-सा पर्वत है, जिस पर देवसिंह चढ़ा हुआ है। वह उसी पर्वत में ग्रामीणों की सहायता से सुरंग बनाकर नदी के जल को अपने गाँव में लाने की सोचता है। उसकी एक सेवक सदानन्द नदी के जल को पर्वत में सुरंग बनाकर गाँव में लाने के प्रयास को आकाश से तारे तोड़कर लाने के समान असम्भव बताता है, परन्तु देवसिंह के मन में अपार उत्साह है। (UPBoardSolutions.com) वह कहता है कि जब एक छोटा-सा चूहा पर्वत को फोड़कर उसमें अपना बिल बना सकता है, तब शरीर से पुष्टं मानव ग्रामीणों की सहायता से पर्वत में सुरंग बनाकर जल को अपने गाँव तक लाने का प्रयत्न क्यों न करे? वह जानता है कि “लक्ष्मी उद्यमी पुरुष के पास स्वयं पहुँच जाती है।”

तृतीय दृश्य- तृतीय दृश्य में ग्रामवासी आपस में बातचीत करते हैं कि देवसिंह के प्रयास से शिवपुर ग्राम निश्चित ही सुखी हो जाएगा। पहले तो सभी ग्रामीण उसकी योजना को सुनकर हँसते थे, परन्तु दृढ़-निश्चयी देवसिंह को अपने परिवार के साथ पर्वत खोदने के काम में लगा देखकर गाँव में आबाल-वृद्ध सभी कुदाल लेकर पर्वत में सुरंग खोदकर नहर बनाने के काम में उसके साथ लग जाते हैं।

इसी बीच एक पुरुष दौड़ता हुआ आकर देवसिंह को सूचना देता है कि उसका इकलौता पुत्र पर्वत की लुढ़कती चट्टान के नीचे दबकर मर गया है। सब रोते हुए वहीं चले जाते हैं जहाँ देवसिंह के पुत्र का शव पड़ा है।

सभी ग्रामवासियों को शोक-सागर में डूबे हुए देखकर देवसिंह उन्हें शोक न करने के लिए समझाता है। वह इसे कर्तव्यनिष्ठा की परीक्षा का समय मानता है। वह कहता है कि जन्म और मृत्यु मनुष्य के अधीन नहीं हैं। उत्तम जन किसी कार्य को प्रारम्भ करके बीच में नहीं छोड़ते; अतः हमें भी दुःख-सुख की परवाह न करके ‘बहुजन हिताय’ शुरू किये गये कार्य में व्यक्तिगत चिन्ता छोड़ देनी चाहिए; अतः हे ग्रामवासियों! कुछ ही महीनों में नहर बनकर तैयार हो जाएगी। गाँव में अपूर्व सुख प्राप्त होगा, कृषि से अन्न उत्पन्न होगा। सभी ग्रामवासी (UPBoardSolutions.com) देवसिंह को ‘धन्य’ कह उठे, जो एकमात्र पुत्र की मृत्यु की परवाह न करके अपने गाँव के विकास के लिए लगा हुआ था। निश्चय ही वह धन्य है। परिश्रमी गाँववासियों के द्वारा सम्पन्न किये गये कार्य से गाँव को अवश्य ही कल्याण होगा।

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चरित्र – चित्रण

देवसिंह
परिचय-प्रस्तुत एकांकी का प्रमुख पात्रे देवसिंह शिवपुर ग्राम का रहने वाला, उत्साही, कर्तव्यनिष्ठ, परिश्रमी और कर्म पर विश्वास करने वाला प्रगतिशील युवक है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) साहसी– देवसिंह साहसी युवक है। वह अपनी भाभी से ग्राम की नारकीय दशा को सुनकर गाँव में पेयजल लाने का साधन ढूंढ़ निकालना चाहता है। वह पर्वत में सुरंग बनाकर नदी का जल गाँव में लाने का साहसिक निर्णय कर लेता है। ग्रामीणों के उपहास करने पर भी वह मात्र अपने परिवार को लेकर ही पर्वत को खोदने में लग जाता है। पुत्र की मृत्यु पर भी वह अपने साहसिक कदम को पीछे नहीं हटाता।

(2) आशावादी–वह आशावादी व्यक्ति है। वह गाँव और नदी के बीच पर्वत को देखकर भी उसे भेदकर गाँव तक जल लाने की आशा करता है। सदानन्द के द्वारा इस कार्य को आकाश के तारे तोड़ने के समान असम्भव कहने पर भी वह निराश नहीं होता है। गाँव वालों के उपहास करने पर भी उसे गाँव तक जल पहुँचने की आशा है।

(3) आत्मविश्वासी एवं दृढनिश्चयी- देवसिंह को अपनी शक्ति और अपने निश्चय के प्रति दृढ़ आस्था है। अपने आत्मविश्वास के आधार पर ही वह पर्वत काटकर नहर निकालने का दृढ़ निश्चय करता है और केवल अपने बल पर ही प्रारम्भ किये गये कार्य में अन्तत: सफलता प्राप्त करता है।

(4) प्रगतिशील विचारक और त्यागी- देवसिंह प्रगतिशील विचारों का व्यक्ति है। वह अपने गाँव को खुशहाल देखना चाहता है। वह ग्रामीणों के श्रम द्वारा नहर निकालने की योजना (UPBoardSolutions.com) बनाता है और उसे क्रियान्वित करने में अग्रणी रहता है। देश की प्रगति के लिए वह सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर है। पुत्र का बलिदान करके भी नहर के कार्य को पूर्ण करना उसके सर्वस्व त्याग का श्रेष्ठ उदाहरण है।

(5) सहनशील– देवसिंह सहनशील व्यक्ति है। वह ग्राम की उन्नति के लिए बड़े-से-बड़े कष्ट को भी सहन करने की क्षमता रखता है। पुत्र की मृत्यु को सहन करके भी वह प्रारम्भ किये गये कार्य को अधूरा नहीं छोड़ता। वह पुत्र की मृत्यु को कर्तव्यनिष्ठा की परीक्षा का समय मानता है।

(6) आदर्श नेता– देवसिंह में आदर्श नेतृत्व के समस्त गुण विद्यमान हैं। उसका सिद्धान्त है कि जो कार्य लोगों के सहयोग से पूर्ण हो सकता हो, उसे पहले स्वयं करने लगो। ऐसा करने से दूसरे लोग स्वयं नेता का अनुगमन करने लगेंगे। निश्चय ही आदर्श नेता परोपदेशक मात्र नहीं होते, वरन् वे दूसरों को भी स्वेच्छा से कार्य करने के लिए प्रेरित करने में सफल होते हैं।निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि देवसिंह एक उत्साही, कर्मठ, साहसी, धीर-वीर और प्रगतिशील युवक है।

लघु-उत्तरीय संस्कृत प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिए

प्ररन 1
देवसिंहस्य भ्रातृजाया तं किम् उवाच?
उत्तर
देवसिंहस्य भ्रातृजाया स्वग्रामस्य नारकी दशाम् अकथयत्।

प्ररन 2
देवसिंहस्य जनकः केन नाम्ना प्रथते स्म?
उत्तर
देवसिंहस्य.जनक: ‘कालोभण्डारि’ इति नाम्ना प्रथते स्म।

प्ररन 3
शिखरमारुह्य देवसिंहः कम् अपश्यत्? :
उत्तर
पर्वतशिखरमारुह्य देवसिंह: एकां लघ्वी नदीम् अपश्यत्।

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प्ररन 4
शिखरोपरि मूषकः किम् अकरोत्?
उत्तर
शिखरोपरि मूषक: विलम् अखनत्।।

प्ररन 5
मूषकं विलं खनन्तं दृष्ट्वा सः किम् अकथयत्?
उत्तर
मूषकं विलं खनन्तं दृष्ट्वा देवसिंहः अकथयत् यत् एषः अल्पप्राणः गिरि भित्वा स्व विलं निर्मातुं प्रयतते, कथं न अयं वपुषा पुष्टः मानवः स्वग्रामीणानां साहाय्येन पर्वते वृहद् विलं निर्माय पानीयं स्वग्रामम् आनेतुम् प्रयतेत्?

प्ररन 6
सदानन्दः देवसिंहं किं प्रत्यवदत्?
उत्तर
सदानन्दः देवसिंहं प्रत्यवदत् यत् मूषकाः प्रकृतिदत्तया शक्त्या विलं खनन्ति, वयं न तादृशाः भवामः।।

प्ररन 7
गिरिखननकाले देवसिंहस्य किम् अनिष्टम् अभवत्।।
उत्तर
गिरिखननकाले देवसिंहस्य पुत्रः पर्वतखण्डस्य अधस्तात् आयातः पिष्टः मृतश्च अभवत्।

प्ररन 8
विषीदतः ग्रामवासिनः देवसिंहः किम् अवदत्?
उत्तर
विषीदतः ग्रामवासिनः देवसिंहः अवदत्-सुख-दुःखम् अविगणय्यैव बहुजनहिताय .. क्रियमाणे कर्माणी स्वार्थचिन्तां जहति।

 

वस्तुनिष्ठ  प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1.
‘श्रम एव विजयते’ पाठ किस विधा पर आधारित है?
(क) आख्यायिका
(ख) कथा
(ग) नाटक
घ) जीवनवृत्त

2. ‘श्रम एव विजयते’ पाठ का नायक कौन है?
(क) कालोभण्डारि
(ख) देवसिंह
(ग) वीरसिंह
(घ) सदानन्द

3. शीला और देवसिंह में क्या सम्बन्ध है?
(क) पत्नी-पति का
(ख) भाभी-देवर को
(ग) पुत्री-पिता का
(घ) पुत्रवधु श्वसुर का

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4. गाँव की दुर्दशा के विषय में देवसिंह किसके द्वारा धिक्कारा जाता है?
(क) शीला द्वारा।
(ख) ग्रामीण पुरुष द्वारा
(ग) सदानन्द द्वारा।
(घ) वीरसिंह द्वारा 

5. देवसिंह बहुत जल वाले भूभागों को खोजने के लिए किसके साथ निकला?
(क) अपने बड़े भाई के साथ
(ख) अपने छोटे भाई के साथ
(ग) अपने पुत्र के साथ
(घ) अपने सेवक के साथ।

6. देवसिंह पहाड़ी पर ऐसा क्या देखता है, जिससे वह नदी से गाँव तक नहर खोदने का निर्णय लेता है?
(क) छोटी-सी पहाड़ी को
(ख) बिल खोदते हुए चूहे को
(ग) उत्साही गाँववालों को
(घ) ग्राम की दु:खी वधुओं को

7. सदानन्द देवसिंह को क्या कहकर हतोत्साहित करता है?
(क) धिङ मे पौरुषम् 
(ख) इदं कार्यं केवलं बालचापलमिव
(ग) उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः
(घ) अयं ग्राम: नरकायते

8. देवसिंह ने दृढ़ निश्चय किया|
(क) गाँव छोड़ देने का
(ख) पानी के लिए उपाय करने का
(ग) कुएँ खोदने का
(घ) शीला से बदला लेने का

9. नहर खुदाई के मंगल-कार्य में अमंगल किस प्रकार उत्पन्न हुआ?
(क) नहर के कार्य के बन्द होने से ।
(ख) शीला के पत्थर के नीचे आ जाने से
(ग) पहाड़ी के ढहने से।
(घ) देवसिंह के पुत्र की मृत्यु से।

10. देवसिंह के पुत्र की मृत्यु किस कारण से हुई?
(क) वह नदी में डूब गया था ।
(ख) उसे सदानन्द ने मार दिया था।
(ग) वह पत्थर के नीचे दब गया था
(घ) उसे साँप ने काट लिया था

11. देवसिंह ने अपने पुत्र की मृत्यु के बारे में सुनकर गाँव वालों से क्या कहा?
(क) जब तक काम पूरा न हो, तब तक मत रुको
(ख) यह सूचना मेरे घर मत देना
(ग) दुर्भाग्य प्रबल है ।
(घ) काम बन्द कर दो

12. ‘त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) देवसिंहः
(ख) वीरसिंहः
(ग) सदानन्दः
(घ) शीला

13. ‘दैवेन देयमिति •••••••••••••••• वदन्ति।’ में रिक्त पद की पूर्ति होगी
(क) ‘सुपुरुषा:’ से
(ख) ‘महापुरुषा:’ से।
(ग) “कापुरुषाः’ से
(घ) “उत्साही पुरुषा:’ से

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14. ‘दृढसङ्कल्पेन श्रमेच किं न भवितुं शक्यते।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) नन्दः
(ख) देवसिंहः
(ग) वीरसिंहः
(घ) देवसिंहस्य पुत्रः

15.’देवसिंहस्य जनकः ‘कालोभण्डारि’ : अवदानगाथाः अतिलछ्य ………..सीमानं, ” प्रसिद्ध्यन्ति स्म।’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी
(क) ‘गढवाल’ से
(ख) “कश्मीर से ,
(ग) उत्तरांचल’ से
(घ) उत्तराखण्ड से

16. ‘उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति ………………… श्लोकस्य चरणपूर्तिः पदः अस्ति
(क) शक्तिः
(ख) सरस्वती
(ग) लक्ष्मी :
(घ) दुर्गा :

17. ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे ::•••••••••••निरामयाः।’ श्लोकस्य चरणपूर्ति पदः अस्ति
(क) सन्तु
(ख) स्त
(ग) स्तः
(घ) सन्ति 

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18. ‘चोत्तमजनाः प्रारब्धं कार्यमाफलोदयं न त्यजन्ति।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) सदानन्दः
(ख) देवसिंहः
(ग) ग्रामवासी
(घ) कालोभण्डारि

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Class 9 Sanskrit Chapter 7 UP Board Solutions भारतदेशः Question Answer

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 भारतदेशः (पद्य-पीयूषम्) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 भारतदेशः (पद्य-पीयूषम्).

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Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 7
Chapter Name भारतदेशः (पद्य-पीयूषम्)
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UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 7 Bharatadesham Question Answer (पद्य-पीयूषम्)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 7 हिंदी अनुवाद भारतदेशः के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

परिचय–विश्व में ऐसा कोई भी देश नहीं है, जो भारत के ज्ञान और विज्ञान से स्पर्धा कर सके। भारत का प्राकृतिक सौन्दर्य तो अनुपम ही है। यह वह देश है, जहाँ शरीरधारी सुकर्म करते हुए मोक्ष प्राप्त करते हैं। मनुष्य ही नहीं अपितु देवता भी मोक्ष की कामना से भारतभूमि पर अवतरित होते हैं। प्रस्तुत पाठ के श्लोक विष्णु पुराण से संगृहीत किये गये हैं। इनमें देवताओं द्वारा भारतवर्ष की महिमा का वर्णन किया गया है।

पाठ-सारांश

हमारा देश भारतवर्ष महान् है। इसकी महिमा देवताओं ने पुराणों में गायी है। भारतवर्ष स्वर्ग और मोक्ष का साधनस्वरूप है। यहाँ पर देवता भी देवत्व के सुखों को भोगकर पुरुष रूप में जन्म लेना चाहते हैं। भारत में मनुष्य कर्मफल की इच्छा न करता हुआ अपने कर्मों को विष्णु के प्रति समर्पित करके प्रभु में लीन हो जाता है। यह भारतवर्ष सात समुद्रों वाली पृथ्वी पर सबसे पुण्यशाली है। यहाँ के लोग विष्णु के कल्याणकारी चरितों का गान करते हैं। भारत-भूमि पर जन्म प्राप्त करना बड़े पुण्य से या ईश्वर की कृपा से ही सम्भव है। कल्पों की आयु (UPBoardSolutions.com) प्राप्त करके दूसरे स्थानों पर जन्म लेने की अपेक्षा कम आयु पाकर भारत में जन्म लेना अच्छा है। यहाँ पर अपने क्षणिक जीवन में ही मनुष्य अपने कर्मों को ईश्वर को समर्पित करके विष्णु का अभयपद प्राप्त करता है। देवता लोग कामना करते हैं कि हम अवशिष्ट पुण्य के प्रभाव से भारत में ही जन्म प्राप्त करें। जो पुरुष भारत में जन्म लेकर सत्कर्म नहीं करते, वे अमृत घट को छोड़कर विषपात्र पाने की इच्छा करते हैं। | देवों द्वारा गायी गयी भारतभूमि की महिमा हमारे देश की महत्ता को प्रकट करती है।

पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या

(1)
गायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ये भारतभूमिभागे।
स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ॥

शब्दार्थ-
गायन्ति = गाते हैं।
देवाः = देवतागण।
किले = निश्चित ही।
गीतकानि = गीतों को।
भारतभूमिभागे = भारत के भू-भाग पर।
स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते = स्वर्ग और मोक्ष को प्राप्त कराने में साधनस्वरूप।
भवन्ति = होते हैं।
भूयः = फिर से।
पुरुषाः = रूप में।
सुरत्वात् = देवत्व का उपभोग करने के पश्चात्।।

सन्दर्य
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘भारतदेशः’ शीर्षक पाठ से उधृत है। |

[संकेत-इस पाठ के शेष सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में देवतागण भारत देश के उत्कर्ष का गान करते हुए यहाँ पर स्वयं जन्म धारण करने की इच्छा प्रकट करते हैं।

अन्वय
देवाः किल गीतकानि गायन्ति। स्वर्गापवर्गास्पद हेतु-भूते भारतभूमि भागे ये सुरत्वात्। भूयः पुरुषाः भवन्ति (ते) तु धन्याः (सन्ति)। | व्याख्या-देवगण भी निश्चय ही (भारतभूमि की प्रशंसा के) गीत गाते हैं। स्वर्ग और मोक्ष को प्राप्त कराने में साधनस्वरूप भारतभूमि के भाग में जो देवता लोग देवत्व को छोड़कर फिर से मनुष्य रूप में जन्म लेते हैं, वे निश्चय ही धन्य हैं।

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(2)
कर्माण्यसङ्कल्पित तत्फलानि संन्यस्य विष्णौ परमात्मभूते ।।
अवाप्य तां कर्ममहीमनन्ते तस्मिल्लयं ते त्वमलाः प्रयान्ति ॥

शब्दार्थ-
कर्माणि = कर्मों को।
असङ्कल्पित तत्फलानि = उनके फलों की प्राप्ति की इच्छा से ने किये गये, अनासक्त भाव से किये गये।
संन्यस्य = समर्पित करके।
विष्णौ = विष्णु को।
परमात्मभूते = परमात्मस्वरूप।
अवाप्य = प्राप्त करके।
कर्ममहीम् = कर्मभूमि (भारत)।
अनन्ते = अन्तहीन ईश्वर में।
लयं = लीन।
प्रयान्ति = हो जाते हैं।
अमलाः = पाप-मल से रहित होते हुए। |

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में कर्मफल की इच्छा ने रखकर किये गये कर्म को भगवान् को समर्पित करके मुक्त हो जाने का वर्णन है।

अन्वय
ते तु तां कर्ममहीम् अवाप्य असङ्कल्पित तत् फलानि कर्माणि परमात्मभूते विष्णौ संन्यस्य अमलाः (सन्तः) तस्मिन् अनन्ते लयं प्रयान्ति। | व्याख्या-भारतभूमि में उत्पन्न होने वाले वे लोग उस कर्मभूमि भारत को प्राप्त करके (जन्म : लेकर) कर्मफल की इच्छा न रखते हुए किये (UPBoardSolutions.com) गये (अनासक्त भाव से) कर्मों को परमात्मस्वरूप विष्णु में समर्पित करके पाप-मल से रहित होकर उस अनन्त परमात्मा में विलीन हो जाते हैं। तात्पर्य यह है कि चारों पुरुषार्थों में जो सर्वोपरि पुरुषार्थ मोक्ष है, उसे प्राप्त कर लेते हैं और संसार के आवागमन से मुक्त हो जाते हैं।

(3)
अहो भुवः सप्तसमुद्रवत्याः द्वीपेषु वर्षेष्वधिपुण्यमेतत्
गायन्ति यत्रत्यजनाः मुरारेर्भद्राणि कर्माण्यवतारवन्ति ।

शब्दार्थ
अहो = हर्षसूचक शब्द।
भुवः = पृथ्वी के।
सप्तसमुद्रवत्याः = सात समुद्रों वाली।
द्वीपेषु = समस्त द्वीपों में।
वर्षेषु= द्वीपों के खण्डों में, देशों में।
अधिपुण्यम् = अधिक पुण्य वाला।
एतद् = यह भारतवर्ष।
गायन्ति = गाते हैं।
यत्रत्य जनाः = जहाँ के रहने वाले लोग।
मुरारेः = विष्णु के।
भद्राणि = कल्याणकारी।
अवतारवन्ति = अवतारों वाले।।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में देवताओं ने समस्त विश्व में भारतवर्ष को सर्वोत्कृष्ट बताया है।

अन्वय
अहो! सप्तसमुद्रवत्याः भुवः द्वीपेषु वर्षेषु एतत् (भारतवर्षम्) अधिपुण्यम् (अस्ति), यत्रत्यजनाः मुरारे: अवतारवन्ति भद्राणि कर्माणि गायन्ति।

व्याख्या
अहो! सात समुद्रों से घिरी हुई पृथ्वी के सभी द्वीपों और खण्डों में यह भारतवर्ष अधिक पुण्यशाली है, जहाँ के रहने वाले लोग भगवान् विष्णु के द्वारा लिये गये अवतारों के कल्याणकारी शुभ कर्मों का गान करते हैं। |

(4)
अहो अमीषां किमकारि शोभनं प्रसन्न एषां स्विदुत स्वयं हरिः।
यैर्जन्म लब्धं नृषु भारताजिरे मुकुन्दसेवौपायिकं स्पृहा हि नः ॥

शब्दार्थ
अमीषाम् = इन्होंने।
किम् = कौन, क्या।
अकारि = किया है।
शोभनम् = अच्छा कर्म, पुण्य।
एषां = इन (भारतवासियों) पर।
स्विदुत = अथवा।
स्वयं हरिः = स्वयं विष्णु ने।
यैः = जिनके द्वारा।
लब्धं = प्राप्त किया है।
नृषु = मानव योनि में, मनुष्य रूप में।
भारताजिरे = भारत के प्रांगण में।
मुकुन्दसेवौपायिकम् = विष्णु की सेवा का साधनस्वरूप।
स्पृहा = इच्छा। नः = हमारी।।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में भारत में जन्म लेने वाले लोगों के पुण्य पर देवताओं को भी आश्चर्य , है। |

अन्वय
अहो! अमीषां किं शोभनम् अकारि, स्विदुत हरिः स्वयम् एषां प्रसन्नः (अस्ति)। यैः भारताजिरे नृषु मुकुन्दसेवौपायिकं जन्म लब्धम्। नः हि स्पृही (अस्ति)।

व्याख्या
अहो! इन भारत के रहने वालों ने ऐसा कौन-सा शुभ कर्म किया है अथवा विष्णु स्वयं इन लोगों पर प्रसन्न हैं, जिन लोगों ने भारत के प्रांगण में मनुष्यों में भगवान् विष्णु की सेवा का साधनस्वरूप जन्म प्राप्त किया है। हमारी इच्छा है कि हम भी वहीं जन्म प्राप्त करें।

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(5)
कल्पायुषां स्थानजयात् पुनर्भवात् क्षणायुषां भारतभूजयो वरम्।
क्षणेन मर्येन कृतं मनस्विनः संन्यस्य संयन्त्यभयं पदं हरेः॥

शब्दार्थ
कल्पायुषाम् = एक कल्प की आयु वाले ब्रह्मादिकों का, कल्प समय का एक बहुत बड़ा विभाग है जो एक हजार महायुग अर्थात् 4 अरब 32 करोड़ मानव वर्षों का माना जाता है।
स्थानजयात् = लोकों की प्राप्ति की अपेक्षा
पुनर्भवात् = जहाँ से पुनः जन्म लेना पड़ता है।
क्षणायुषाम् = क्षणभर की आयु वालों का।
भारतभूजयः = भारतभूमि में जन्म।
वरम् = श्रेष्ठ।
क्षणेन = क्षणिक।
मन = मरणशील शरीर से।
कृतम् = अपने कर्म को।
मनस्विनः = धीर, मनस्वी पुरुष।
संन्यस्य = भगवान् को समर्पित करके।
संयान्ति = प्राप्त करते हैं।
अभयं = (जन्म-जरा-मरण आदि के) भय से मुक्ति।
पदं = स्थान को।
हरेः = हरि के।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में एक कल्प की आयु वालों की अपेक्षा क्षणभर की .आयु वाले “भारतवासियों को श्रेष्ठ बताया गया है।

अन्वय
पुनर्भवात् कल्पायुषां स्थानजयात् क्षणायुषां भारतभूजयः वरम् (अस्ति)। मनस्विनः क्षणेन मत्येंन कृतं संन्यस्य हरेः अभयं पदं संयान्ति।

व्याख्या
कल्प की आयु वाले ब्रह्मादिकों से पुनर्जन्म वाले लोकों को प्राप्त करने की अपेक्षा क्षणभर की आयु वालों को भारतभूमि पर जन्म लेना अच्छा है। धीर पुरुष क्षणिक मरणशील शरीर से किये गये कर्म को भगवान् को समर्पित करके विष्णु के जरा-मरणादि भय से रहित स्थान मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

(6)
यद्यस्ति नः स्वर्गसुखावशेषितं स्विष्टस्य सूक्तस्य कृतस्य शोभनम्
तेनाजनाभे स्मृतिमज्जन्म नः स्यात् वर्षे हरिय॑द् भजतां शं तनोति ॥

शब्दार्थ
यद्यस्ति (यदि + अस्ति) = यदि है।
नः = हमारे।
स्वर्गसुखावशेषितम् = स्वर्ग के सुखों से बचा हुआ।
स्विष्टस्य = सुन्दर यज्ञ का।
सूक्तस्य = सुन्दर वचन को।
कृतस्य = पुण्य कर्म का।
अजनाभे = भारतवर्ष में।
स्मृतिमत् = ईश्वर के स्मरण से युक्त।
जन्म स्यात् = जन्म हो।
भजताम् = जिसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों का।
शम् = कल्याण को।
तनोति = वृद्धि करते हैं।

प्रसंग
स्वर्गलोक निवासी जीव स्वर्ग के सुख से बचे हुए पुण्य कर्म से भारत में जन्म लेने की इच्छा करते हैं।

अन्वय
यदि नः स्विष्टस्य, सूक्तस्य कृतस्य (तु) स्वर्गसुखावशेषितम् (अस्ति), (तर्हि) तेन नः अजनाभे स्मृतिमत् जन्म स्यात्। यत् भजतां हरिः शं तनोति।। | व्याख्या–यदि हमारे भली-भाँति किये गये यज्ञ का, सत्य आदि सुन्दर वचन का, किये गये पुण्य कर्म का स्वर्ग-सुख से बचाया हुआ पुण्य कर्म है, तो उससे (UPBoardSolutions.com) भारतवर्ष में भगवान् की स्मृति से युक्त जन्म हो। जिस जन्म को प्राप्त करने वाले पुरुषों के स्वयं भगवान् विष्णु कल्याण की वृद्धि करते हैं। तात्पर्य यह है कि देवतागण भी भारत-भूमि पर जन्म पाने की उत्कट इच्छा रखते हैं और इसके लिए व्याकुलता का अनुभव करते हैं।

(7)
सञ्चितं सुमहत् पुण्यमअक्षय्यममलं शुभम्।
कदा वयं नु लप्स्यामो जन्म भारतभूतले ॥

शब्दार्थ
सञ्चितम् = एकत्र किया हुआ।
सुमहत् = बहुत अधिक।
अक्षय्यम् = नष्ट न होने वाला।
अमलम् = पापरहित।
शुभम् = कल्याणकारी।
लप्स्यामः = प्राप्त करेंगे।
भारत-भूतले = भारतभूमि पर।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में बताया गया है कि देवगण अपने संचित पुण्य से भारतभूमि पर जन्म लेने की उत्कट इच्छा रखते हैं।

अन्वय
(अस्माभिः) अक्षय्यम् अमलं शुभं सुमहत् (यत्) पुण्यं सञ्चितम् (तेनैव पुण्येन) वयं भारतभूतले कदा नु जन्म लप्स्यामः।। 

व्याख्या
हमने (देवताओं ने) कभी नष्ट न होने वाला, पापरहित, शुभ जो बहुत बड़ा पुण्य संचित किया है, उसी पुण्य से हम देवतागण भारतभूमि पर कब जन्म प्राप्त करेंगे?

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(8)
सम्प्राप्य भारते जन्म सत्कर्मसु पराङ्मुखः।।
पीयूषकलशं हित्वा विषभाण्डं स इच्छति ॥

शब्दार्थ
सम्प्राप्य = प्राप्त करके।
सत्कर्मसु = अच्छे कर्मों से
पराङ्मुखः = विमुख।
पीयूषकलशम् = अमृत से भरे घड़े को।
हित्वा = छोड़कर।
विषभाण्डम् = विष से भरे पात्र को।
इच्छति = इच्छा करता है।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में भारत में जन्म लेकर सत्कर्म करने पर बल दिया गया है।

अन्वय
भारते जन्म सम्प्राप्य (यः) सत्कर्मसु पराङ्मुखः भवति, (यः) सः पीयूषकलशं हित्वा विषभाण्डम् इच्छति।।

व्याख्या
भारत में जन्म प्राप्त करके जो व्यक्ति सत्कर्मों से विमुख होता है, वह अमृत से पूर्ण घड़े को छोड़कर विष से पूर्ण पात्रं को पाने की इच्छा करता है। तात्पर्य यह है कि भारत में जन्म लेकर सत्कर्म ही करना चाहिए।

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Class 9 Sanskrit Chapter 13 UP Board Solutions विद्यादानम् Question Answer

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 13
Chapter Name विद्यादानम्  (कथा – नाटक कौमुदी)
Number of Questions Solved 27
Category UP Board Solutions

UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 13 Vidyadhanam Question Answer (कथा – नाटक कौमुदी)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 13 हिंदी अनुवाद विद्यादानम् के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

परिचय- भारतीय वाङ्मय में वेदों और पुराणों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वेदों की अपेक्षा पुराण सरल, सरस और बोधगम्य हैं। पुराणों में उपदेश कथाओं के माध्यम से दिये गये हैं। ये कथाएँ काल्पनिक न होकर वास्तविक हैं। पुराणों को इतिहास भी माना जाता है। पुराण’ शब्द का अर्थ है–पुराना। इसी आधार पर कहा जाता है कि जो व्यतीत हो जाता है, उसी की चर्चा इतिहास और पुराण दोनों में होती है। दोनों में अन्तर मात्र इतना ही होता है कि पुराणों का दृष्टिकोण धार्मिक होता है, जब कि इतिहास का तथ्यपरक। । पुराणों की कुल संख्या अठारह मानी जाती है। इसमें एक महत्त्वपूर्ण विष्णु पुराण’ भी है। विष्णु पुराण में भूगोल, ज्योतिष, कर्मकाण्ड, राजवंश-वर्णन एवं श्रीकृष्ण चरित से सम्बद्ध वर्णन हैं। इसके अन्त में कलियुग का वर्णन भी प्राप्त होता है तथा इसके पश्चात् अध्यात्म-मार्ग की (UPBoardSolutions.com) शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उल्लेख है। । प्रस्तुत पाठ के रूप में जो कथा प्रस्तुत है, उसका आधार इसी ‘विष्णु-पुराण’ का छठा अंश है। ‘केशिध्वज’ और ‘खाण्डिक्य’ दोनों विदेह नाम से प्रसिद्ध राजा जनक के पौत्र थे। दोनों ही समझते थे कि विरोध, शत्रुता और वैमनस्य मन का मैल है जो जीवन को सन्तापमय बनाता है। मन के इस मैल को धोने की सामर्थ्य विद्या में ही है। प्रस्तुत पाठ में विद्या के इसी ध्येय को व्यक्त किया गया है।

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पाठ सारांश  

राजा केशिध्वज और खाण्डिक्य आपस में विरोधी होते हुए भी एक-दूसरे की विद्या का आदर करते हैं तथा अवसर आने पर एक-दूसरे को अपनी विद्या दान में देते हैं। ऐसा करने से दोनों के मन का वैमनस्य नष्ट हो जाता है। पाठे का सारांश इस प्रकार है

केशिध्वज और खाण्डिक्य जनक का परिचय- प्राचीनकाल में धर्मध्वजजनक नाम के एक राजा थे। उनके दो पुत्र थे-अमितध्वज और कृतध्वज। कृतध्वज के केशिध्वज नाम का तथा अमितध्वज के खाण्डिक्य-जनक नाम का एक पुत्र था। खाण्डिक्य कर्ममार्ग में तथा केशिध्वज अध्यात्मशास्त्र में निपुण था। दोनों ही एक-दूसरे पर विजय पाना चाहते थे। केशिध्वज के द्वारा राज्य से उतार दिये जाने पर खाण्डिक्य अपने पुरोहित और मन्त्रियों के साथ वन में चले गये। केशिध्वज ने अमरता प्राप्त करने के लिए बहुत-से यज्ञ किये।

केशिध्वज द्वारा यज्ञानुष्ठान– एक बार केशिध्वज ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उसकी धर्मधेनु को एक सिंह ने मार दिया। उसने ऋत्विजों, कशेरु, शुनक आदि आचार्यों से इसके प्रायश्चित का विधान पूछा। कोई भी उसे यथोचित प्रायश्चिते का विधान बताने में समर्थ नहीं हुआ। अन्तत: उसे ‘. शुनक ने बताया कि केवल खाण्डिक्य ही प्रायश्चित का विधान जानता है, अतः आप उसके पास चले जाइए। ‘केशिध्वज’ (UPBoardSolutions.com) ने उसे अपना वैरी समझते हुए अपने मन में निश्चय किया कि खाण्डिक्य के पास जाने पर यदि वह मुझे मार देगी तो मुझे यज्ञ का फल प्राप्त हो जाएगा और यदि वह मुझे प्रायश्चित बताएगा तो मेरा यज्ञ निर्विघ्न समाप्त हो जाएगा।

केशिध्वज का खाण्डिक्य के समीप जाना— केशिध्वज रथ पर सवार होकर खाण्डिक्य के पास पहुँचा। केशिध्वज को देखकर ख़ाण्डिक्य ने समझा कि वह उसे मारने आया है; अतः उसने अपने धनुष पर बाण-चढ़ाकर उसे युद्ध के लिए ललकारा। केशिध्वज ने कहा- मैं तुम्हें मारने नहीं, अपितु एक संशय दूर करने आया हूँ। यह सुनकर खाण्डिक्य शान्त हो गया। मन्त्रियों द्वारा केशिध्वज को मारने की सलाह देने पर भी खाण्डिक्य ने सोचा कि इसको मारकर मैं पृथ्वी का राज्य प्राप्त करूंगा और नहीं मारता हूँ तो पारलौकिक विजय प्राप्त करूंगा। दोनों में पारलौकिक विजय श्रेष्ठ है; अतः मुझे इसे न मारकर इसकी शंका का समाधान करना चाहिए।

खाण्डिक्य द्वारा प्रायश्चित्त– विधान का कथन-केशिध्वज ने अपनी यज्ञ की धर्मधेनु के सिंह द्वारा वध का वृत्तान्त बताकर उसका प्रायश्चित पूछो। खाण्डिक्य ने यथाविधि उसे उचित प्रायश्चित बता दिया। प्रायश्चित ज्ञात होने पर राजा केशिध्वज यज्ञ-स्थान पर लौट आया और सहर्ष यज्ञ सम्पन्न कराकर (UPBoardSolutions.com) यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों, सदस्यों और याचकों को खूब दान दिया। अन्त में उसे स्मरण आया कि उसने खाण्डिक्य को गुरु-दक्षिणा नहीं दी हैं।

केशिध्वज द्वारा गुरु-दक्षिणा- केशिध्वज पुनः रथ पर सवार होकर खाण्डिक्य के पास वन में गया और कहा कि मैं तुम्हें गुरु-दक्षिणा देने आया हूँ। मन्त्रियों द्वारा अपहत राज्य माँगने का परामर्श दिये जाने पर भी खाण्डिक्य ने राज्य की माँग नहीं की वरन् उससे कहा कि आप अध्यात्मविद्या के ज्ञाता हैं। अतः ऐसे कर्म का उपदेश दीजिए, जिससे क्लेश की शान्ति हो। केशिध्वज को आश्चर्य हुआ कि उसने (UPBoardSolutions.com) निष्कण्टक राज्य क्यों नहीं माँगा? उसके इस ‘ल्का स्त्र देते हुए खाण्डिक्य ने कहा कि मूर्खजन राज्य की इच्छा करते हैं, मेरे जैसे नहीं। केशिध्वज ने प्रसन्न होकर उससे कहा कि खाण्डिक्य तुम धन्य हो। मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। तत्पश्चात् उसे आत्मा का स्वरूप और योग-विद्या की शिक्षा दी। इस प्रकार शिक्षा से दोनों के मन की मलिनता समाप्त हो गयी।

चरित्र-चित्रण 

केशिध्वज 

परिचय- केशिध्वज धर्मध्वज-जनक का पौत्र और कृतध्वज का पुत्र था। वह अध्यात्मविद्या का ज्ञाता था और अमरत्व-प्राप्त करने के लिए अनेक यज्ञों का विधान किया करता था। वह खाण्डिक्य से राज्य छीनकर स्वयं राजा बन बैठा था। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) सांसारिक सुखों में आसक्त- केशिध्वज अध्यात्मवेत्ता होते हुए भी सांसारिक सुख-भोगों में आसक्त था। उसने अपने भाई खाण्डिक्य का राज्य छीनकर हड़प लिया था। अन्त में वह स्वयं अनुभव करता है कि वह अज्ञान से मृत्यु को जीतना चाहता है एवं राज्य और भोगों में लिप्त है।

(2) धर्मभीरु- केशिध्वज धर्मभीरु राजा है तभी वह सिंह द्वारा यज्ञधेनु के मार देने पर विद्वानों से उसका प्रायश्चित पूछता है और विहित प्रायश्चित जानने के लिए ही खाण्डिक्य के पास पहुँचता है। जब तक वह प्रायश्चित नहीं कर लेता, उसे शान्ति नहीं मिलती। यज्ञ के पूरा होने पर वह खाण्डिक्य के पास गुरु-दक्षिणा देने के लिए भी जाता है। इन सभी बातों से उसकी धर्मभीरुता प्रकट होती है।

(3) यज्ञ में रुचि- केशिध्वज अमरत्व प्राप्त करने के लिए अनेक यज्ञ करता है। वह यज्ञ को निर्विघ्न समाप्त करना चाहता है। इसीलिए विघ्न आने पर शत्रु से भी पूछकर वह उसका प्रायश्चित करता है। यज्ञ की समाप्ति पर वह ब्राह्मणों, याचकों और सदस्यों को खूब धन दक्षिणी रूप में देता है। प्रायश्चित (UPBoardSolutions.com) पूछने के लिए शत्रु के पास जाने को, यज्ञ के फल और उसकी निर्विघ्न समाप्ति को वह प्राणों से भी अधिक महत्त्व देता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि वह न केवल यज्ञ का विधान करने का इच्छुक है, अपितु वह यज्ञ की निर्विघ्न समाप्ति भी चाहता है।

(4) अध्यात्म विद्या का ज्ञाता– केशिध्वज अध्यात्मपरायण कृतध्वज का पुत्र है; अत: अध्यात्म विद्या का ज्ञान उसे पैतृकदाय के रूप में प्राप्त हुआ है। खाण्डिक्य भी उसे अंध्यात्म विद्या का विद्वान् मानते हुए उससे आत्मा का स्वरूप और योग-विद्या को सीखता है।

(5) गुणग्राही– केशिध्वज गुणों का आदर करना जानता है और शत्रु से भी विद्या-ग्रहण करने में  संकोच नहीं करता। वह खाण्डिक्य से यज्ञधेनु की हत्या का प्रायश्चित पूछने जाता है और उससे नम्रतापूर्वक व्यवहार करता। खाण्डिक्य के क्रोध करने पर भी वह जरा-भी विचलित नहीं होता। उसका यह गुण उसकी गुण-ग्राहकता में अचल आस्था को प्रदर्शित करता है। इसके साथ ही वह अपने गुणों को दूसरों को प्रदान करने वाला भी है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि केशिध्वजे अध्यात्मज्ञानी, विवेकी और गुणग्राही होते हुए भी सांसारिक सुखों में आसक्त और धर्मभीरु राजा है, जिसमें विवेकशीलता, प्रत्युत्पन्नमतित्व, आत्मबले आदि गुण भी विद्यमान हैं।

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खाण्डिक्य

परिचय-खाण्डिक्य धर्मध्वज-जनक का पौत्र और अमितध्वज का पुत्र था। राज्य हड़प लेने के कारण वह केशिध्वज को अपना शत्रु मानता था। कर्मकाण्ड में उसकी दृढ़ आस्था थी। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं

(1) विवेकी-खाण्डिक्यजनक विवेकी राजा है। किसी भी कार्य को करने से पहले वह अपने मन्त्रियों और पुरोहितों से सलाह लेकर तत्पश्चात् अपने विवेक से काम करता है। वह मन्त्रियों की सलाह को आँख मूंदकर नहीं मानता। केशिध्वज के वन में आने पर वह दोनों ही बार अपने विवेक से कार्य करता है।

(2) प्रतिशोध की भावना से पीड़ित – केशिध्वज द्वारा परास्त किये जाने और राज्य छीन लेने के बाद से ही खाण्डिक्य उससे प्रतिशोध लेने के अवसर की प्रतीक्षा में रहता था। केशिध्वज को वन में पास आता देखकर वह उसे मारने के लिए क्रोध से धनुष उठा लेता है, लेकिन वह इस प्रकार प्रतिशोध से (UPBoardSolutions.com) पृथ्वी के राज्य को प्राप्त करने की अपेक्षा पारलौकिक विजय को श्रेयस्कर मानकर केशिध्वज को नहीं मारता। इस क्रिया से उसका चरित्र एक आदर्श प्रतिशोधी के रूप में दृष्टिगत होता है।

(3) परमार्थ प्रेमी– खाण्डिक्य परमार्थ प्रेमी है। वह शत्रु को सम्मुख आया हुआ देखकर भी परमार्थ के लोभ से उसे नहीं मारता। वह केशिध्वज से गुरु-दक्षिणा के रूप में राज्य न माँगकर परमार्थ विद्या माँगता है। वह परमार्थ विद्या को क्लेश-शान्ति का उपाय मानता है। सांसारिक सुख या राज्यादि की कामना करने वालों को वह मन्दमति मानता है। वह परमार्थ विद्या को ही शाश्वत और स्थायी आनन्द प्रदान करने वाली मानता है।

(4) सन्तोषी व्यक्ति– खाण्डिक्य परम सन्तोषी व्यक्ति था। इसीलिए वह केशिध्वज से दोनों बार राज्य नहीं माँगता। यदि वह चाहता तो उसे राज्य अनायास ही प्राप्त हो जाता; क्योंकि दोनों बार उसके सम्मुख ऐसे ही अवसर उपस्थित थे; किन्तु उसने ऐसा नहीं किया। ये दोनों ही घटनाएँ उसके सन्तोषी व्यक्ति होने की ओर इंगित करती हैं।

(5) तत्त्वज्ञानी– खांण्डिक्य अपने द्वारा सम्पादित होने वाले समस्त कार्यों के अन्तर्भूत तत्त्वों को जान लेने के पश्चात् ही उनको सम्पादन करता था। वह कर्मकाण्ड के सभी विधानों के (UPBoardSolutions.com) सारभूत तत्त्वों का ज्ञाता और अद्वितीयवेत्ता था। यह बात शुनक द्वारा केशिध्वज को; प्रायश्चित विधान के तत्त्व को जानने के लिए; उनके पास भेजे जाने वाले प्रसंग से भली-भाँति स्पष्ट हो जाती है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि खाण्डिक्य सांसारिक सुखों को महत्त्व न देकर परमार्थ को महत्त्व देता है। केशिध्वज से आत्मज्ञान प्राप्त करके वह अपने मन में वैमनस्य की मलिनता को धो डालता है।

लघु उत्तरीय संस्कृत  प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिएप्रश्

प्रश्‍न 1
केशिध्वजः कस्य सूनुः आसीत्?
उत्तर
केशिध्वजः कृतध्वजस्य सूनुः आसीत्।

प्रश्‍न 2
खाण्डिक्यजनकः कस्य पुत्रः आसीत्?
उत्तर
खाण्डिक्यजनकः अमितध्वजस्य पुत्रः आसीत्।

प्रश्‍न 3
खाण्डिक्यः कथं वनं जगाम?
उत्तर
केशिध्वजेन पराजितः राज्यादवरोपितः सन् खाण्डिक्य: वनं जगाम।

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प्रश्‍न 4
केशिध्वजस्य धर्मधेनुं कः जघान?
उत्तर
केशिध्वजस्य धर्मधेनुं एकः सिंह: जघान।

प्रश्‍न 5
प्रायश्चितविषये ऋत्विजः किम् ऊचुः?
उत्तर
प्रायश्चितविषये न वयं जानीमः, अत्र कशेरु: प्रष्टव्यः इति ऋत्विजः ऊचुः।

प्रश्‍न 6
कशेरुः केशिध्वजं किमब्रवीत्?
उत्तर
कशेरुः ‘नाहं जानामि, भार्गवं शुनकं पृच्छ, सः नूनं वेत्स्यति’ इति केशिध्वजम् अब्रवीत्।

प्रश्‍न 7
भार्गवो शुनकः राजानं किमाह?
उत्तर 
भार्गवः शुनकः राजानमाह यत् “न कशेरुः न चाहं, वान्यः कश्चिज्जानाति, केवलं खाण्डिक्य: जानाति, यो भवता पराजितः।”

प्रश्‍न 8
पुरोहितः मन्त्रिणश्च खाण्डिक्यं किमुचुः?
उत्तर
पुरोहितः मन्त्रिणश्च खाण्डिक्यम् ऊचुः यत् वंशगतः शत्रुरेषु हन्तव्यः, हतेऽस्मिन् सर्वा पृथ्वी तव वश्या भविष्यति।।

प्रश्‍न 9
केशिध्वजम् आयान्तं दृष्ट्वा खाण्डिक्यः किमुवाच?
उत्तर
केशिध्वजम् आयान्तं दृष्ट्वा खाण्डिक्यः उवाच यत् त्वं मां हन्तुम् आगतः, त्वाम् अहं हनिष्यामि, त्वं मम राज्यहरो रिपुः इति।।

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प्रश्‍न 10
खाण्डिक्येन केशिध्वजः कथं न हेत:?
उत्तर-खाण्डिक्येन पारलौकिकं जयम् अवाप्तं केशिध्वजः न हतः।

प्रश्‍न 11
खाण्डिक्यः केशिध्वजं कां गुरुदक्षिणाम् अयाचत्?
उत्तर
खाण्डिक्यः केशिध्वजम् गुरुदक्षिणारूपेण अध्यात्मविद्याम् अयाचत्।।

वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है।शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1. विद्यादानम्’ नामक पाठ किस ग्रन्थ से उदधृत है?
(क) “श्रीमद्भागवत् पुराण’ से
(ख) ‘अग्निपुराण’ से
(ग) ‘महाभारत से
(घ) विष्णुपुराण’ से

2. विष्णुपुराण की रचना किसके द्वारा की गयी?
(क) महर्षि वाल्मीकि के द्वारा
(ख) महर्षि वशिष्ठ’ के द्वारा
(ग) “महर्षि विश्वामित्र के द्वारा
(घ) महर्षि वेदव्यास के द्वारा

3. धर्मध्वज के पुत्रों के नाम क्या थे?
(क) केशिध्वज और अमितध्वज
(ख) अमितध्वज और कृतध्वज
(ग) कृतध्वज और केशिध्वज
(घ) केशिध्वज और खाण्डिक्य-जनक

4. खाण्डिक्य-जनक किसके पुत्र थे?
(क) अमितध्वज के
(ख) केशिध्वज के
(ग) धर्मध्वज के .
(घ) कृतध्वज के

5. खाण्डिक्य वन में क्यों चला गया था?
(क) क्योंकि नगर में उसका दम घुटता था
(ख) क्योंकि वह केशिध्वज से पराजित हो गया था।
(ग) क्योंकि वह तपस्या करना चाहता था।
(घ) क्योंकि उसके लिए वन का निवास रुचिकर था

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6. सिंह ने किसकी धर्मधेनु को मार डाला था?
(क) केशिध्वज की
(ख) अमितध्वज की
(ग) धर्मध्वज की
(घ) कृतध्वज की

7. केशिध्वज क्या धारण करके खाण्डिक्य के पास पहुँचा था? 
(क) कृष्णाजिन
(ख) वल्कल
(ग) कवच
(घ) राजसी वस्त्र

8. केशिध्वज किसका प्रायश्चित करना चाहता था?
(क) उसने अपने पुरोहित का अपमान किया था
(ख) उसके यज्ञ की यज्ञधेनु को सिंह ने मार डाला था
(ग) वह अधिक यज्ञ नहीं कर सका था।
(घ) उसने अपने भाई का राज्य छीना था ।

9. खाण्डिक्यजनक के मन्त्रियों ने केशिध्वज के प्रायश्चित पूछने के लिए आने पर उसे परामर्श दिया कि
(क) उसे प्रायश्चित बताकर पारलौकिक विजय प्राप्त करनी चाहिए
(ख) प्रायश्चित्त पूछने के लिए आये शत्रु को प्रायश्चित नहीं बताना चाहिए
(ग) विद्या सीखने के लिए आये हुए को नहीं मारना चाहिए
(घ) वंशगत शत्रु केशिध्वज को मार डालना चाहिए।

10. केशिध्वज के मन को सन्तोष क्यों नहीं था?
(क) क्योंकि उसने अपनी प्रजा को कष्ट दिया था।
(ख) क्योंकि उसने खाण्डिक्य को गुरुदक्षिणा नहीं दी थी
(ग) क्योंकि उसने खाण्डिक्य से क्षमायाचना नहीं की थी।
(घ) क्योंकि उसने यज्ञ के पुरोहित को दक्षिणा नहीं दी थी।

11. खाण्डिक्य ने केशिध्वज से गुरुदक्षिणा में राज्य क्यों नहीं माँगा?
(क) क्योंकि खाण्डिक्य को राज्य से घृणा हो गयी थी,
(ख) क्योंकि खाण्डिक्य के पास स्वयं बड़ा राज्य था।
(ग) क्योंकि खाण्डिक्य के मन्त्रियों ने राज्य न लेने की सलाह दी थी
(घ) क्योंकि खाण्डिक्यं आत्मज्ञान को क्लेश शान्त करने वाला समझता था

12. ‘मूर्खाः कामयन्ते राज्यादिकं न तु मादृशाः।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) केशिध्वजः
(ख) अमितध्वजः
(ग) खाण्डिक्यजनकः
(घ) धर्मध्वजः

13. ‘…………..” कर्ममार्गे केशिध्वजश्च अध्यात्मशास्त्रे निपुणः आसीत्।’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी।
(क) “खाण्डिक्यः’ से
(ख) ‘कृतध्वजः’ से
(ग) “अमितध्वजः’ से
(घ) “धर्मध्वजः’ से

14. ‘रे मूढ़! किं मृगाः कृष्णचर्मरहिताः भवन्ति?’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) केशिध्वजः
(ख) धर्मध्वजः
(ग) खाण्डिक्यः
(घ) अमितध्वजः

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15. किन्तु मया हतोऽयं पारलौकिकविजयं प्राप्स्यति, अहञ्च •••••••” ।’ वाक्य में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी
(क) राजकोषम्’ से ।
(ख) राजसिंहासनम्’ से
(ग) “धनम्’ से
(घ) “पृथिवीम्’ से

16. क्षत्रियः सन्नपि त्वं निष्कण्टकं राज्यं कथं न याचसे?’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) केशिध्वजः
(ख) धर्मध्वजः।
(ग) खाण्डिक्यः
(घ) अमितध्वजः

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Class 9 Sanskrit Chapter 9 UP Board Solutions पण्डितमूढयोर्लक्षणम् Question Answer

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 9
Chapter Name पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्)
Category UP Board Solutions

UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 9 Pandit Amudhayor Lakshanam Question Answer (पद्य-पीयूषम्)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 9 हिंदी अनुवाद पण्डितमूढयोर्लक्षणम् के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

परिचय-भारतीय वाङमय में वेदों के पश्चात् प्राचीन और सर्वमान्य ग्रन्थों में वेदव्यास अथवा कृष्णद्वैपायन व्यास द्वारा रचित महाभारत का सर्वोच्च स्थान है। धार्मिक, राजनीतिक, व्यावहारिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक तथा साहित्यिक दृष्टि से यह ग्रन्थ अत्यधिक गौरवपूर्ण है। भारतवर्ष में ही नहीं अपितु विश्व साहित्य में महाकाव्यों में सर्वप्रथम इसी की गणना की जाती है। महत्त्व की दृष्टि से इसे पाँचवाँ वेद भी कहा जाता है। (UPBoardSolutions.com) प्रस्तुत पाठ के श्लोक महाभारत से संगृहीत किये गये हैं। पाठ के प्रथम छः श्लोकों में पण्डित के और बाद के चार श्लोकों में मूर्ख के लक्षण बताये गये हैं।

[संकेत-श्लोकों की ससन्दर्भ व्याख्या’ शीर्षक से सभी श्लोकों के अर्थ संक्षेप में अपने शब्दों में लिखें।]

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(1)
निषेवते प्रशस्तानि निन्दितानि न सेवते ।
अनास्तिकः श्रद्दधानो ह्येतत्पण्डितलक्षणम् ॥

शब्दार्थ
निषेवते = आचरण करता है।
प्रशस्तानि = प्रशंसा करने योग्य।
निन्दितानि = निन्दित, बुरे कार्य।
सेवते = सेवन करता है।
अनास्तिकः = जो नास्तिक (वेद-निन्दक) न हो।
श्रद्दधानः = श्रद्धा रखता हुआ।
ह्येतत् (हि + एतत्) = यह ही।

सन्दर्य
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘पण्डितमूढयोर्लक्षणम्’ शीर्षक पाठ से उधृत है।

[संकेत-इस पाठ के शेष सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में पण्डित (विद्वान्) के लक्षण बताये गये हैं।

[संकेत-आगे के पाँच श्लोकों के लिए भी यही प्रसंग प्रयुक्त होगा।

अन्वय
(य:) प्रशस्तानि निषेवते, निन्दितानि न सेवते (यः) अनास्तिकः श्रद्दधानः (अस्ति)। एतत् हि पण्डित लक्षणम् (अस्ति)।

व्याँख्या
जो शुभ आचरणों का सेवन करता है, निन्दित आचरणों का सेवन नहीं करता है, जो नास्तिक (वेद-निन्दक-ईश्वर को न मानने वाला) नहीं है और श्रद्धालु है, इन सब गुणों से युक्त (UPBoardSolutions.com) होना ही पण्डित का लक्षण है। तात्पर्य यह है कि उत्तम कर्मों को करने वाला, अशुभ कर्मों को न करने वाला, ईश्वर की सत्ता में विश्वास और उसमें श्रद्धा रखने वाला व्यक्ति पण्डित होता है।

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(2)
क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च हीः स्तम्भो मान्यमानिता।
यमर्थान्नापर्कषन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥

शब्दार्थ
दर्पः = अहंकार।
हीः = लज्जा।
स्तम्भः= जड़ता।
मान्यमानिता = स्वयं को सम्मान के योग्य मानना।
यम् = जिसको।
अर्थाः = लक्ष्य से।
अपकर्षन्ति = पीछे खींचते हैं।
वै = निश्चय से।
उच्यते = कहा जाता है।

अन्वय
(य:) क्रोधः, हर्षः, दर्पः, हीः, स्तम्भः, मान्यमानिता च यमर्थान् न अपकर्षन्ति, वै स पण्डितः उच्यते।

व्याख्या
जिसको क्रोध, हर्ष, अहंकार, लज्जा, जड़ता, अपने को सम्मान के योग्य मानने की .. भावना ये सब अपने लक्ष्य से पीछे की ओर नहीं खींचते हैं। निश्चय ही पण्डित’कहलाता है। तात्पर्य यह है। 
कि इन सभी मनोविकारों के होने के बावजूद जो अपने उद्देश्य को पूरा करने में पीछे नहीं रहता, वही पण्डित होता है।

(3)
यस्य संसारिणी प्रज्ञा धर्मार्थावनुवर्तते । |
कामादर्थं वृणीते यः सवै पण्डित उच्यते ॥

शब्दार्थ
यस्य = जिसकी।
संसारिणी = व्यावहारिक।
प्रज्ञा = बुद्धि।
धर्मार्थी = धर्म और अर्थ का।
अनुवर्तते = अनुसरण करती है।
कामादर्थं = कार्य की अपेक्षा से अर्थ को।
वृणीते = वरण करता है।

अन्वय
यस्य संसारिणी प्रज्ञा धर्मार्थी अनुवर्तते, य: कामात् अर्थ वृणीते, वै सः पण्डितः उच्यते।।

व्याख्या
जिसकी व्यावहारिक बुद्धि धर्म और अर्थ का अनुसरण करती है, जो काम की अपेक्षा अर्थ का वरण करता है, निश्चय ही वह पण्डित कहा जाता है।

(4)
क्षिप्रं विजानाति चिरं शृणोति विज्ञाय चार्थं भजते न कामात् ।
नासम्पृष्टो व्युपयुङ्क्ते परार्थे तत्प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य ॥

शब्दार्थ
क्षिप्रम् = शीघ्र।
विजानाति = विशेष रूप से जानता है।
चिरम् = देरी से।
शृणोति = सुनता है।
विज्ञाय = अच्छी तरह जानकर।
अर्थम् कार्य को, प्रयोजन को।
भजते = स्वीकार करता है।
कामात् = स्वार्थ से, इच्छा से।
असम्पृष्टः = बिना पूछा गया।
व्युपयुङ्क्ते = अपने को लगाता है।
परार्थे = परोपकार में।
प्रज्ञानम् = लक्षण।

अन्वय
क्षिप्रं विजानाति, चिरं शृणोति, अर्थ विज्ञाय च भजते, कामात् न (भजते) असम्पृष्टः परार्थे न व्युपयुङ्क्ते, तत् पण्डितस्य प्रथमं प्रज्ञानम् (अस्ति)।

व्याख्या
जो किसी बात को संकेतमात्र से शीघ्र समझ जाता है, प्रत्येक तथ्य को बहुत देर तक अर्थात् तब तक सुनता रहता है, जब तक कि अच्छी तरह समझ नहीं लेता है, कार्य को अच्छी तरह जानकर ही कार्य करता है, स्वार्थ से नहीं करता है। भली-भाँति न पूछा गया दूसरों के काम में स्वयं को नहीं लगाता है, पण्डित का यही प्रथम लक्षण है।

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(5)
न हृष्यत्यात्मसम्माने नावमानेन तप्यते ।।
गाङ्गो हृद इवाक्षोभ्यो यः स पण्डित उच्यते ॥

शब्दार्थ
हृष्यति = प्रसन्न होता है।
आत्मसम्माने = अपने सम्मान में।
अवमानेन = अपमान से।
तप्यते = दु:खी होता है।
गाङ्गः = गंगा का।
हृदः = कुण्ड।
अक्षोभ्यः = क्षुभित (व्याकुल) न होने वाला।

अन्वय
(यः) आत्मसम्माने न हृष्यति, अवमानेन न तप्यते, यः गङ्गाः हृदः इव अक्षोभ्यः भवति सः पण्डितः उच्यते।।

व्याख्या
जो अपने सम्मान पर प्रसन्न नहीं होता है, अपने अपमान से दु:खी नहीं होता है, जो गंगा के निर्मल जलकुण्ड की तरह क्षुभित नहीं होता है, वह पण्डित कहलाता है। तात्पर्य यह है कि बुद्धिमान् व्यक्ति को न तो अपने सम्मान पर प्रसन्न होना चाहिए और ही अपने अपमान पर दु:खी। उसे । तो गंगाजल की तरह शान्त रहना चाहिए।

(6)
तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञः सर्वकर्मणाम्।।
उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते ॥ 

शब्दार्थ
तत्त्वज्ञः = वास्तविक रूप को जानने वाला।
सर्वभूतानाम् = सब प्राणियों के।
योगज्ञः = योग (समन्वय को जाननेवाला।
सर्व कर्मणाम् = सभी कर्मों के।
उपायज्ञः = हित के उपायों को जानने वाला।

अन्वय
(यः) सर्वभूतानां तत्त्वज्ञः, सर्वकर्मणां योगज्ञः, मनुष्याणाम् उपायज्ञः (भवति सः) नरः पण्डित उच्यते।

व्याख्या
जो मनुष्य सभी प्राणियों के वास्तविक रूप को जानने वाला है, जो सभी कर्मों के समन्वय को जानने वाला है, मनुष्यों के हित के उपायों को जानने वाला होता है, वह मनुष्य पण्डित कहलाता है। तात्पर्य यह है कि जो मनुष्य सभी प्राणियों के वास्तविक स्वरूप को, सभी कर्मों के समन्वय को और मनुष्यों के हित के उपायों को जानता है, वही बुद्धिमान होता है।

(7)
अश्रुतश्च समुन्नद्धो दरिद्रश्च महामनाः।
अर्थाश्चाकर्मणी प्रेप्सुर्मूढ इत्युच्यते बुधैः ॥
शब्दार्थ
अश्रुतः = वेद एवं शास्त्र के ज्ञान से रहित।
समुन्नद्धः = (शास्त्रज्ञ होने का) गर्व करने वाला।
महामनाः = उदार मन वाला, अधिक इच्छा रखने वाला।
अर्थान् = धनों को।
अकर्मणा = बिना कर्म किये।
प्रेप्सुः = प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला।
बुधैः = विद्वानों के द्वारा।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में मूर्ख व्यक्ति के लक्षण बताये गये हैं।

[संकेत–आगे के तीन श्लोकों के लिए यही प्रसंग प्रयुक्त होगा।]

अन्वय
(यः) अश्रुतः (भूत्वा) (अपि) समुन्नद्धः (भवति यः) दरिद्रः च ( भूत्वा) महामनाः (भवति) (य:) अर्थान् च अकर्मणा प्रेप्सुः (भवति सः) बुधैः मूढः इति उच्यते।

व्याख्या
जो शास्त्रवेत्ता न होते हुए भी, अभिमानपूर्वक स्वयं को पण्डित कहता है, जो दरिद्र होकर भी उदार मन वाला (अधिक इच्छाओं वाला) होता है, जो धन को बिना कर्म किये (UPBoardSolutions.com) प्राप्त करने की इच्छा रखता है, विद्वानों ने उसे मूढ़ (विवेकहीन) पुरुष कहा है। तात्पर्य यह है कि अभिमानपूर्वक स्वयं को पण्डित कहने वाला, धनहीन होते हुए भी उदार मन वाला, बिना कर्म किये धन प्राप्ति की इच्छा करने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है।

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(8)
स्वमर्थं यः परित्यज्य परार्थमनुतिष्ठति ।।
मिथ्याचरति मित्रार्थे यश्च मूढः स उच्यते ॥

शब्दार्थ
स्वमर्थं = अपने कार्य को।
परित्यज्य = छोड़कर।
परार्थम् = दूसरे के कार्य को।
अनुतिष्ठति = करता है।
मिथ्याचरति = मिथ्या आचरण करता है।
मित्रार्थे = मित्र के साथ भी।

अन्वेय
यः स्वम् अर्थं परित्यज्य परार्थम् अनुतिष्ठति, यः च मित्रार्थे मिथ्या आचरति, सः मूढः उच्यते।

व्याख्या
जो मनुष्य अपने काम को छोड़कर दूसरों के कार्य को करता है; अर्थात् जो अपने अधिकार से बाहर है उन कार्यों को करता है और जो मित्र के साथ भी मिथ्या आचरण करता है, वह मूढ़ कहलाता है। तात्पर्य यह है कि अपने काम को छोड़कर दूसरों के काम को करने वाला और मित्र के साथ मिथ्या आचरण करने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है।

(9)

अमित्रं कुरुते मित्रं मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति च।
कर्म चारभते दुष्टं तमाहुर्मूढचेतसम्॥

शब्दार्थ
अमित्रम् = शत्रु को।
कुरुते = करता है।
द्वेष्टि = द्वेष करता है।
हिनस्ति = नुकसान पहुँचाता है।
चारभते = आरम्भ करता है।
दुष्टम् = निन्दित।
आहुः = कहते हैं।
मूढचेतसम् = मूढ़ चित्त वाला।

अन्वय
(य:) अमित्रं मित्रं कुरुते, (यः) मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति च (यः) दुष्टं कर्म आरभते, तं मूढचेतसम् आहुः।।

व्याख्या
जो शत्रु को मित्र बनाता है, जो मित्र से द्वेष करता है और हानि पहुँचाता है, जो निन्दित कर्म को आरम्भ करता है, उसे (विद्वान्) मूढ़ चित्त वाला (मूर्ख) कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जो व्यवहारहीन व्यक्ति शत्रु के साथ मित्रता का और मित्र के साथ शत्रुता का व्यवहार करता है, उसे विद्वानों ने मूर्ख कहा है।

(10)

अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते ।।
विश्वसिति प्रमत्तेषु मूढचेता नराधमः ॥

शब्दार्थ
अनाहूतः = बिना बुलाया गया।
प्रविशति = प्रवेश करता है।
अपृष्टः = बिना पूछा गया।
बहु भाषते = बहुत बोलता है।
विश्वसिति = विश्वास करता है।
प्रमत्तेषु = पागलों पर।
नराधमः = नीच मनुष्य।।

अन्वय
(यः) अनाहूतः (गृह) प्रविशति, (य:) अपृष्टः बहु भाषते, (य:) प्रमत्तेषु विश्वसिति, (स:) नराधमः मूढचेताः (भवति)।

व्याख्या
जो बिना बुलाये घर में प्रवेश करता है; अर्थात् अनाहूत ही सर्वत्र जाने का इच्छुक होता है, जो बिना पूछे बहुत बोलता है, जो पागलों पर विश्वास करता है, वह नीच मनुष्य मूढ़ चित्त वाला होता है। तात्पर्य यह है कि बिना बुलाये किसी के घर जाने वाला, बिना कुछ पूछे बोलने वाला। और पागल पर विश्वास करने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है।

श्लोक का संस्कृत-अर्थ

(1) निषेवते प्रशस्तानि •••••••••••••••• ह्येतत्पण्डितलक्षणम्॥ (श्लोक 1)
संस्कृतार्थ-
महर्षिव्यासः महाभारते पण्डितस्य लक्षणं कथयति-यः पुरुषः प्रशंसनीयानि कार्याणि कॅरोति, निन्दितानि कर्माणि न करोति, ईश्वरे विश्वसिति वेदानां निन्दकः वा न अस्ति, यश्च श्रद्धां करोति, सः पण्डितः भवति। 

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(2) तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां ••••••••••••• पण्डित उच्यते ॥ (श्लोक 6)
संस्कृतार्थः-
य: नरः सर्वेषां प्राणिनां वास्तविकं रूपं जानाति, यः सर्वेषां कर्मणां योगं (समन्वय) जानाति, यः नराणां हितानाम् उपायान् जानाति, सः नरः पण्डितः कथ्यते।।

(3) स्वमर्थम् “••••••••••••••••••••••••••• मूढः स उच्यते ॥ (श्लोक 8 )
संस्कृतार्थः–
महर्षिः वेदव्यासः कथयति यत् यः जनः स्वकीयं कार्यम् उपेक्ष्य परकार्यं कर्तुम् इच्छति, करोति च, स्वमित्रेषु मिथ्याचरणं भजते सः मूर्खः भवति।

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