UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 20 रोगी का कमरा एवं उसकी व्यवस्था

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 20 रोगी का कमरा एवं उसकी व्यवस्था

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 20 रोगी का कमरा एवं उसकी व्यवस्था.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रोगी के कमरे का चुनाव करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
या
रोगी के कमरे का चुनाव करते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी?रोगी के कमरे के आवश्यक सामानों की सूची बनाइए।
उत्तर:
रोगी के कमरे का चयन

रोगग्रस्त व्यक्ति को अधिकांश समय विश्राम करना अनिवार्य होता है; अतः उसके लिए अलग से कमरे की व्यवस्था की जानी चाहिए। रोगी का कमरे का वातावरण शान्त होना चाहिए तथा उसमें किसी प्रकार की गन्दगी नहीं होनी चाहिए। रोगी के कमरे में सूर्य के प्रकाश तथा वायु के पारगमन की (UPBoardSolutions.com) समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। रोगी के लिए कमरे का चुनाव करते समय मुख्य रूप से निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए

  1.  रोगी का कमरा पर्याप्त बड़ा होना चाहिए। सामान्यतः रोगी का कमरा 450-500 घन मीटर स्थान वाला होना आवश्यक है। इस आकार के कमरे में रोगी को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल सकती है।
  2.  रोगी का कमरा मुख्य द्वार तथा सड़क से दूर मकान के पीछे की ओर होना चाहिए। इस प्रकार को कमरा शान्त एवं आरामदायक रहता है तथा सड़क से उठने वाली धूल से सुरक्षित रहता है।
  3.  रोगी के कमरे में खिड़कियाँ, रोशनदान व दरवाजे आदि इस प्रकार होने चाहिए कि वायु का संवातन भली-भाँति बना रहे।
  4. खिड़कियों तथा रोशनदान से सूर्य का प्रकाश आते रहना चाहिए जिससे कि रोगाणुओं के पनपने की आशंका न रहे। स्वच्छ वायु एवं सूर्य का प्रकाश रोगी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ में सहायता करते हैं। दार किवाड़ होना अति आवश्यक है। इनसे मक्खियाँ, मच्छर व वायु में उड़ने वाले अन्य कीड़े कमरे में प्रवेश नहीं कर पाते।
  5.  रोगी का कमरा रसोईघर व अन्य शयन-कक्षों से दूर होना चाहिए।
  6. रोगी का कमरा स्नानगृह तथा शौचालय के पास होना चाहिए ताकि रोगी को स्नान करने व शौच जाने के लिए अधिक दूर न जाना पड़े।
  7.  रोगी के कमरे के बाहर बरामदा होने पर वह इसका उपयोग टहलने तथा खुली वायु में बैठने के लिए कर सकता है। वैसे भी बरामदा होने पर कमरे के अन्दर का वातावरण अधिक उपयुक्त रह संकता है तथा धूल इत्यादि भी कमरे में प्रवेश नहीं करेगी।
  8.  रोगी के कमरे में अन्धकार, दुर्गन्ध, सीलन तथा नमी आदि नहीं रहनी चाहिए, क्योंकि इनकी उपस्थिति में रोगाणु आसानी से पनपते हैं।
  9.  रोगी के कमरे का फर्श पक्का व साफ-सुथरा होना चाहिए। पक्के फर्श को सहज ही कीटाणुनाशक घोल द्वारा धोया जा सकता है। कमरे में पानी के (UPBoardSolutions.com) निकास के लिए नालियों का होना भी आवश्यक है।
  10.  रोगी के कमरे का चयन करते समय मौसम का ध्यान रखना भी आवश्यक है। ग्रीष्म ऋतु में रोगी का कमरा ऐसा होना चाहिए कि यह अधिक गर्म न होता हो, जबकि शरद् ऋतु में गर्म रहने वाला कमरा उपयुक्त रहता है।
  11.  रोगी के कमरे से संलग्न एक छोटे कमरे का होना अच्छा रहता है। इस कमरे को परिचारिका प्रयोग में ला सकती है तथा सहज ही रोगी की परिचर्या कर सकती है। इसके अतिरिक्त इस कमरे में रोगी के उपयोग में आने वाली वस्तुओं को रखा जा सकता है।
  12. रोगी के कमरे की दीवारें स्वच्छ एवं चूने से पुती होनी चाहिए। दीवारों पर रोगी की रुचि के अनुसार चित्र व अन्य सज्जा-सामग्री की व्यवस्था होनी चाहिए।

रोगी के कमरे के सामान की सूची

रोगी की आवश्यकताओं एवं सुविधाओं की पूर्ति के लिए निम्नलिखित सामग्री होनी आवश्यक है

  1.  कसी हुई चारपाई अथवा स्प्रिंगदार पलंग।
  2.  दो छोटी मेज व दो कुर्सियाँ।
  3. दो स्टूल।
  4. भोज्य पदार्थों व औषधियों आदि को रखने के लिए एक जालीदार छोटी अलमारी।
  5.  वस्त्र, तौलिए आदि रखने के लिए एक अन्य अलमारी।
  6. विशेष उपयोग के पात्र; जैसे—मल-मूत्र विसर्जन पात्र, बाल्टी व कूड़ेदान आदि।
  7. मनोरंजन के लिए पत्रिकाए, ट्रांजिस्टर व टी० बी० आदि।
  8.  थर्मामीटर व ताप तथा नाड़ी के लिए चार्ट।
  9.  गिलास, प्याला, चम्मच, चाकू व प्लेट आदि।
  10.  दीवारों के लिए सुन्दर व आकर्षक चित्र एवं मेज के लिए फूलदान।
  11.  साबुन, पेस्ट, डिटॉल, फिनाइल व फिनिट आदि।
  12. थूकने, वमन करने, पेस्ट करने व हाथ धुलाने के लिए चिलमची।

लघु उत्तरीय प्रश्न

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प्रश्न 1:
रोगी व्यक्ति के लिए अलग कमरे की व्यवस्था क्यों की जाती है?
उत्तर:
स्वास्थ्य विज्ञान की सैद्धान्तिक मान्यता है कि रोगी व्यक्ति को सामान्य रूप से अलग कमरे में ही रखा जाना चाहिए। विभिन्न कारणों से रोगी के लिए अलग कमरे की व्यवस्था को आवश्यक माना। जाता है। वास्तव में इस व्यवस्था से जहाँ एक ओर रोगी को लाभ होता है, वहीं दूसरी ओर परिवार के अन्य सदस्यों के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी इसे आवश्यक माना जाता है। रोगी व्यक्ति प्रायः काफी दुर्बल हो जाता है तथा उसे अतिरिक्त विश्राम की आवश्यकता होती है। उसके सोने-जागने का समय भी अनिश्चित हो जाता है। (UPBoardSolutions.com) इस स्थिति में उसे शान्त एवं एकान्त वातावरण की आवश्यकता होती है। इस उद्देश्य से रोगी को अलग कमरे में रखना ही उचित माना जाता है। रोगी के लिए यदि अलग कमरे की व्यवस्था हो जाती है तो उसकी आवश्यकता की समस्त वस्तुओं को वहीं रखा जा सकता है। रोगी के लिए अलग कमरे की व्यवस्था होने की स्थिति में परिवार के अन्य सदस्य भी लाभान्वित होते हैं। इस स्थिति में परिवार के अन्य सदस्य रोग के संक्रमण से कुछ हद तक बच सकते हैं।

प्रश्न 2:
रोगी के कमरे में सफाई की व्यवस्था आप किस प्रकार करेंगी?
उत्तर:
उत्तम स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य लाभ के लिए स्वच्छ वातावरण का होना अति आवश्यक है। गन्दगी सदैव रोगाणुओं को पनपने का अवसर प्रदान करती है; अतः रोगी के कमरे की नियमित सफाई अति आवश्यक है। यह निम्नलिखित प्रकार से की जानी चाहिए

  1.  फर्श की सफाई प्रतिदिन फिनाइल के घोल से की जानी चाहिए। फिनाइल का घोल कीटाणुओं को नष्ट कर देता है।
  2. कमरे की दीवारों से मकड़ी के जाले साफ करें तथा दिन में एक बार कीटनाशक (फ्लिट, बेगौन स्प्रे आदि) का प्रयोग करना चाहिए ताकि रोगी के कमरे में मक्खियाँ व मच्छर न रहें।
  3. रोगी के कमरे के परदे, बैड कवर व अन्य सूती वस्त्रों को खौलते पानी से धोने से वे साफ व कीटाणुरहित हो जाते हैं। कृत्रिम धागों से बने वस्त्रों तथा ऊनी वस्त्रों की शुष्क धुलाई कराएँ।
  4. रोगी के बर्तन, चिलमची वे पीकदान आदि की सफाई के लिए नि:संक्रामकं घोल का प्रयोग करें।
  5. फूलदान आदि में ताजे पुष्प लगाएँ और यदि सम्भव हो, तो दीवारों पर लगे चित्रों को भी बदल दें। स्वच्छ एवं सुसज्जित कमरा रोगी को मानसिक सुख एवं सन्तोष प्रदान करता है।

प्रश्न 3:
रोगी के कमरे में सूर्य का प्रकाश आना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
रोगी के कमरे में दिन में कुछ समय के लिए धूप का आना अत्यावश्यक है, क्योंकि

  1.  सूर्य का प्रकाश कमरे के अन्धकार वे नमी को दूर करता है; अत: रोगाणुओं के पनपने की आशंका कम हो जाती है।
  2. सूर्य का प्रकाश कीटाणुनाशक की तरह कार्य करता है तथा अनेक प्रकार के रोगाणुओं को नष्ट । कर देता है।
  3.  सूर्य के प्रकाश से हमारे शरीर में विटामिन ‘डी’ का निर्माण होता है; अतः धूप की उपस्थिति रोगी के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लाभदायक रहती है। यद्यपि सूर्य के प्रकाश में रोगी को उपर्युक्त लाभ होते हैं, परन्तु तीव्र व चकाचौंध करने वाला प्रकाश रोगी की बेचैनी बढ़ा सकता है (UPBoardSolutions.com) तथा उसके आराम में व्यवधान उत्पन्न कर सकता है। अतः आवश्यक एवं व्यवस्थित प्रकाश के लिए रोगी के कमरे में परदों का प्रयोग किया जाना चाहिए। परदों द्वारा सूर्य के प्रकाश एवं धूप को अपनी इच्छा एवं आवश्यकता के अनुसार नियन्त्रित किया जा सकता है।

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प्रश्न 4:
रोगी के कमरे में प्रकाश-व्यवस्था कैसी होनी चाहिए?
उत्तर:
रोगी के कमरे में रात के समय तीव्र या चकाचौंध करने वाला प्रकाश नहीं होना चाहिए। यदि घर में बिजली हो तो सामान्य रूप से हल्के दूधिया रंग का बल्ब ही इस्तेमाल करना चाहिए। यदि बिजली न हो तो तेल से जलने वाला दीपक या लालटेन जलाई जा सकती है। ध्यान रहे, (UPBoardSolutions.com) इनकी लौ कम : रखनी चाहिए ताकि इनका कच्चा धुआँ न बनने पाए। दीपक या लालटेन को रोगी के पलंग से काफी दूर ही रखना चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
आपके विचार से रोगी को कमरा कैसा होना चाहिए?
उत्तर:
हमारे विचार से रोगी का कमरा साफ-सुथरा, हवादार तथा प्रकाशयुक्त होना चाहिए।

प्रश्न 2:
रोगी के कमरे की सफाई को अधिक महत्त्व क्यों दिया जाता है?
उत्तर:
नियमित सफाई से रोग के जीवाणुओं को बढ़ने से रोका जा सकता है, इससे रोगी के शीघ्र स्वस्थ होने में योगदान प्राप्त होता है। इसी कारण से रोगी के कमरे की सफाई को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 3:
रोगी के कमरे में पोछा लगाने के लिए पानी में क्या मिलाया जाता है?
उत्तर:
रोगी के कमरे में पोछा लगाने के लिए पानी में फिनाइल आदि निसंक्रामक घोल मिलाया जाता है।

प्रश्न 4:
रोगी के कमरे में धूप का उचित प्रबन्ध क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
सूर्य की किरणें अनेक रोगाणुओं को नष्ट करती हैं तथा रोगी को स्वास्थ्य लाभ करने में सहायता करती हैं।

प्रश्न 5:
रोगी के कमरे में वायु के संवातन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
वायु की उपयुक्त संवातन व्यवस्था से रोगी को शुद्ध वायु प्राप्त होती है तथा कमरे की अशुद्ध वायु बाहर निकल जाती है। इस स्थिति में रोग के जीवाणु भी अधिक नहीं पनप पाते।

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प्रश्न 6:
रोगी के कमरे का तापक्रम क्या रहना चाहिए?
उत्तर:
रोगी के कमरे का तापक्रम सामान्यतः 98° फॉरेनहाइट (लगभग 37° सेन्टीग्रेड) रहना। चाहिए।

प्रश्न 7:
रोगी के कमरे का तापक्रम किस प्रकार नियन्त्रित किया जा सकता है?
उत्तर:
रोगी के कमरे के तापक्रम को नियन्त्रित करने के लिए ग्रीष्म ऋतु में कूलर व वातानुकूलन यन्त्र तथा शरद् ऋतु में रूम-हीटर प्रयोग में लाए जाते हैं।

प्रश्न 8:
रोगी के कमरे से रात्रि में साज-सज्जा वाले पौधे अथवा फूलदान क्यों हटा देने चाहिए?
उत्तर:
रात्रि में पौधों में श्वसन क्रिया अधिक होती है, जिसके फलस्वरूप हानिकारक कार्बन डाइऑक्साइड अधिक निष्कासित होती है; अतः रोगी के कमरे से रात्रि में फूलदान इत्यादि को हटाना उचित रहता है।

प्रश्न 9:
रोगी के कपड़े यथासम्भव सूती होने चाहिए, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि सूती वस्त्रों को खौलते पानी में धोकर सहज ही नि:संक्रमित किया जा सकता है।

प्रश्न 10:
रोगी के कमरे में मनोरंजन की व्यवस्था आप कैसे करेंगी?
उत्तर:
रोगी के मनोरंजन के लिए उसके कमरे में पत्रिकाएँ, ट्रांजिस्टर व टी० बी० इत्यादि रखे जा सकते हैं।

प्रश्न 11:
रोगी के पलंग की विशेषता बताइए।
उत्तर:
रोगी का पलंग ऊँचा, स्प्रिंग वाला तथा लोहे का बना ठीक रहता है।

प्रश्न 12:
मेल-पात्र की आवश्यकता किस दशा में होती है?
उत्तर:
मल-पात्र की आवश्यकता रोगी के उठने-बैठने में असमर्थ होने की दशा में होती है।

वसतुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न-प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) संक्रामक रोगग्रस्त व्यक्ति को आप किस प्रकार रखेंगी?
(क) अलग कमरे में,
(ख) बच्चों के कमरे में,
(ग) किसी के भी कमरे में,
(घ) बरामदे में।

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(2) रोगी का कमरा होना चाहिए
(क) रसोईघर के पास,
(ख) पशुशाला के पास,
(ग) शौचालय एवं स्नान घर के पास,
(घ) बैठक में कमरे के पास।

(3) रोगी के कमरे की दीवारें पुती होनी चाहिए
(क) पेन्ट्स से,
(ख) चूने से,
(ग) डिस्टेम्पर से,
(घ) किसी से भी।

(4) रोगी के मनोरंजन के लिए कमरे में होनी चाहिए
(क) पत्रिकाएँ,
(ख) ट्रांजिस्टर,
(ग) टी० बी०,
(घ) ये सभी।

(5) रोगी के लिए उपयुक्त वस्त्र होते हैं
(क) नायलॉन के,
(ख) सूती,
(ग) टेरीकॉट,
(घ) जरीदार।

(6) रोगी के कमरे के फर्श को प्रतिदिन धोना चाहिए
(क) डिटॉल से,
(ख) फिनिट से,
(ग) फिनाइल से,
(घ) लाल दवा से।

(7) रोगी के कमरे का तापक्रम रहना चाहिए
(क) 90° फॉरेनहाइट,
(ख) 100° फॉरेनहाइट,
(ग) 40° सेन्टीग्रेड,
(घ) 37° सेन्टीग्रेड।

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(8) रोगी के कमरे में प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए
(क) लाल या हरे रंग की,
(ख) तेज एवं चमकदार,
(ग) हल्की तथा दूधिया रंग की,
(घ) किसी भी प्रकार की।

(9) रोगी के इस्तेमाल के लिए उपयोगी पलंग होना चाहिए
(क) तख्त के रूप में,
(ख) सामान्य फोल्डिग चारपाई,
(ग) सिंप्रग द्वारा कसा हुआ पलंग,
(घ) इनमें से कोई भी।

(10) रोगी के बिस्तर पर बिछाई जाने वाली चादर होनी चाहिए
(क) काले या पीले रंग की,
(ख) हरे या नीले रंग की,
(ग) सफेद रंग की,
(घ) किसी भी गहरे रंग की।

उत्तर:
(1) (क) अलग कमरे में,
(2) (ग) शौचालय एवं स्नान घर के पास,
(3) (ख) चूने से,
(4) (घ) ये सभी,
(5) (ख) सूती,
(6) (ग) फिनाइल से,
(7) (घ) 37° सेन्टीग्रेड,
(8) (ग) हल्की तथा दूधिया रंग की,
(9) (ग) सिंप्रग द्वारा कसा हुआ पलंग,
(10) (ग) सफेद रंग की।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 19 गृह-परिचर्या और गृह-परिचारिका

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 19 गृह-परिचर्या और गृह-परिचारिका

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह-परिचर्या की परिभाषा देते हुए उसका महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
या
गृह-परिचर्या का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
गृह-परिचर्या का अर्थ एवं परिभाषा

सामान्य स्वस्थ व्यक्ति अपने सभी दैनिक कार्य स्वयं ही किया करते हैं अर्थात् प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति नहाना-धोना, शौच, कपड़े बदलना तथा भोजन ग्रहण करना आदि कार्य स्वयं ही करता है, परन्तु अस्वस्थ अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति अनेक बार अपने इंन व्यक्तिगत कार्यों को स्वयं करने में असमर्थ हो जाता है। इन परिस्थितियों में व्यक्ति के ये सभी साधारण कार्य भी किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ही किए जाते हैं। रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के इन कार्यों तथा कुछ अन्य सहायक कार्यों को ही सम्मिलित रूप से रोगी की परिचर्या कहते (UPBoardSolutions.com) हैं। रोगी की परिचर्या के अन्तर्गत रोगी व्यक्ति को आवश्यक औषधि देना, उसकी मरहम-पट्टी करना, उठने-बैठने आदि में सहायता प्रदान करना आदि सभी कुछ सम्मिलित होता है। रोगी के इन सेवा-सुश्रूषा सम्बन्धी समस्त कार्यों को रोगी की परिचर्या कहते हैं। यदि रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति अस्पताल में भर्ती हो, तो उसकी परिचर्या का कार्य वहाँ के कर्मचारी ही करते हैं। सामान्य रूप से यह कार्य नस द्वारा किया जाता है। जब रोगी घर पर होता है, उस समय रोगी की परिचर्या या सेवा-सुश्रूषा का कार्य घर पर ही किया जाता है। इस स्थिति में होने वाली परिचर्या को . ‘गृह-परिचय’ कहते हैं। इस प्रकार गृह-परिचय को इन शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है, “घर पर रहने वाले रोगी व्यक्ति की चिकित्सक के निर्देशानुसार की जाने वाली सेवा-सुश्रूषा अथवा परिचर्या को ही गृह-परिचर्या कहते हैं।” रोगी के रोग-काल में गृह-परिचर्या का विशेष महत्व होता है। गृह-परिचर्या के माध्यम से ही रोगी का सफल उपचार सम्भव हो पाता है। उत्तम गृह-परिचर्या के अभाव में चिकित्सक द्वारा रोगी का सफल उपचार कर पाना प्रायः कठिन ही होता है।

गृह-परिचर्या का महत्त्व

रोगी की स्नेहपूर्वक देख-रेख औषधीय चिकित्सा. के समान ही महत्त्वपूर्ण है, बल्कि कई बार (मानसिक रोग आदि में) तो यह औषधियों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है। औषधियाँ यदि रोग का निवारण करती हैं, तो रोगी से किया जाने वाला प्रेमपूर्ण व्यवहार रोगी को साहस एवं धैर्य बँधाता है। गृह-परिचर्या एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है जिसका निर्वाह करने के लिए विनम्र, हँसमुख, बुद्धिमान एवं कार्यकुशल (UPBoardSolutions.com) परिचारिका की आवश्यकता होती है। परिचारिका को स्वास्थ्य के नियमों एवं उनके पालन के महत्त्व को भली-भाँति समझना चाहिए। उसे चिकित्सक से रोगी के लिए देख-रेख एवं औषधि सम्बन्धी आवश्यक निर्देश प्राप्त कर लेने चाहिए, क्योंकि तब ही वह रोगी की नियमित परिचर्या कर सकती है। औषधियों का उचित प्रयोग, विनम्र एवं प्रेमपूर्ण व्यवहार रोगी की रोग की अवधि में अत्यधिक सहायता करता है।
रुग्ण होने की दशा में यदि, उपयुक्त चिकित्सा उपलब्ध हो, तो रोगी को सर्वोत्तम परिचर्या घर पर ही मिलती है। घर पर परिवार के सदस्यों को प्रेमपूर्ण व्यवहार, आस-पास का परिचित वातावरण एवं अन्य सुख-सुविधाएँ रोगी में असुरक्षा की भावनाओं को दूर करती हैं तथा उसकी दशा में सुधार शीघ्रतापूर्वक होता है।
रोग की गम्भीर अवस्था में रोगी डर एवं सदमे का शिकार हो सकता है। इस खतरनाक एवं गम्भीर परिस्थिति में अस्पताल अथवा नर्सिंग होम की परिचारिका की अपेक्षा गृहिणी (गृह-परिचारिका) अधिक प्रभावी ढंग से रोगी को धैर्य बँधा सकती है तथा रोगमुक्त होने के लिए आशान्वित कर सकती है। (UPBoardSolutions.com) गृह-परिचारिका को चिकित्सक के निर्देशों का नियमपूर्वक पालन करना चाहिए अन्यथा हानि होने की सम्भावना भी हो सकती है। उसमें पर्याप्त आत्मविश्वास होना चाहिए। रोगी की गम्भीर अवस्था में भी उसे उत्तेजित अथवा घबराना नहीं चाहिए। इस प्रकार के गुणों से युक्त गृह-परिचारिका रोगी की अस्पताल से भी अच्छी परिचर्या कर सकती है।

आधुनिक काल में रोग एवं दुर्घटनाएँ प्रत्येक घर एवं परिवार के लिए सामान्य घटनाओं के समान बन चुकी हैं। अत: गृह-परिचर्या के महत्त्व को भली-भाँति समझा जा सकता है। प्रत्येक गृहिणी एवं परिवार के अन्य सदस्यों को परिचर्या के आवश्यक नियमों का ज्ञान अनिवार्य रूप से प्राप्त करना चाहिए, क्योंकि गृह-परिचर्या में दक्ष गृहिणी किसी भी प्रकार की आपात स्थिति में घर में अस्पताल की सभी सुविधाएँ सुलभ कर परिवार के पीड़ित सदस्य अथवा सदस्यों की उपयुक्त देख-रेख कर सकती है।

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प्रश्न 2:
अच्छी परिचारिका में क्या गुण होने चाहिए? विस्तार से वर्णन कीजिए।
या
परिचारिका के मुख्य गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परिचारिका के गुण

रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के उपचार के लिए जितनी अच्छी चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है उतनी ही आवश्यकता अच्छी परिचर्या की भी होती है, इसके लिए एक कुशल एवं बुद्धिमान परिचारिका का होना अत्यन्त आवश्यक है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि यह (UPBoardSolutions.com) अनिवार्य नहीं कि गृह-परिचर्या को कार्य किसी महिला (परिचारिका) द्वारा ही किया जाए। सुविधा एवं परिस्थितियों के अनुसार गृह-परिचर्या का कार्य परिवार का कोई पुरुष सदस्य भी कर सकता है। ऐसे पुरुष को ‘गृह-परिचारक’ कहा जाता है। गृह-परिचर्या का कार्य करने वाले व्यक्ति के लिए आवश्यक गुणों का विवरण निम्नवर्णित है

(1) उत्तम स्वास्थ्य:
परिचारिका को एक लम्बी अवधि तक निरन्तर रोगी की देखभाल करनी होती है; अत: उसका पूर्णतः स्वस्थ होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त पूर्ण रूप से स्वस्थ परिचारिका के रोगी के पास में रहने पर रोग से संक्रमित होने की सम्भावना भी कम रहती है। इसके साथ-साथ (UPBoardSolutions.com) यह भी सत्य है कि यदि परिचारिका स्वयं भी रोग से ग्रस्त हो तो उस स्थिति में सम्बन्धित रोग का संक्रमण रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को भी हो सकता है।

(2) कार्य-कुशल एवं दूरदर्शी होना:
परिचारिका का परिचर्या के कार्यों में दक्ष होना आवश्यक है। उसका दूरदर्शी होना भी अत्यन्त अनिवार्य है ताकि वह रोगी की अवस्था एवं आवश्यकताओं का अनुमान कर आवश्यक प्रबन्ध कर सके।

(3) विनम्र एवं हँसमुख होना:
स्वभाव से कोमल तथा हँसमुख परिचारिका रोगी के चिड़चिड़ेपन को दूर कर मानसिक सन्तोष प्रदान कर सकती है, जिसकी रोगी को अत्यधिक आवश्यकता होती है। सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार से रोगी परिचारिका की सभी बातें मानता है तथा शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है।

(4) सहानुभूति के गुण से परिपूर्ण:
रोगग्रस्त व्यक्ति की सच्चे मन से तथा पूरी लगन से सेवा एवं देखभाल का कार्य वही व्यक्ति कर सकता है जिसके मन में सहानुभूति की भावना प्रबल हो। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही परिचारिका का एक आवश्यक गुण सहानुभूति से परिपूर्ण होना माना गया है।

(5) सहनशीलता:
अधिक समय तक अस्वस्थ रहने पर रोगी प्रायः क्रोधी व चिड़चिड़ा हो जाता है। औषधियों के प्रति उसमें विरक्ति उत्पन्न हो जाती है तथा वह ऊट-पटांग बातें एवं कार्य करने लगता है। उसकी देख-रेख के लिए एक ऐसी सहनशील परिचारिका की आवश्यकता होती है जो कि उसकी उपर्युक्त बातों का बुरा न माने तथा पूर्णरूप से सहज एवं विनम्र रहकर उसकी परिचर्या करती रहे।

(6) अच्छी स्मरण:
शक्ति-रोगी को निश्चित समय पर औषधि सेवन कराना, भोजन एवं फल आदि देना तथा उसकी अन्य दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना परिचारिका के महत्त्वपूर्ण दायित्व हैं। इनका नियमित पालन करने के लिए उसमें अच्छी स्मरण शक्ति का होना अनिवार्य है।

(7) तीव्र निरीक्षणशक्ति एवं निर्णय लेने की क्षमता:
परिचारिका की निरीक्षण शक्ति तीव्र होनी चाहिए ताकि वह रोगी की बिगड़ती अवस्था का तुरन्त अनुमान लगा सके। ऐसी अवस्था में चिकित्सक को अविलम्ब बुलाना, चिकित्सक के उपलब्ध न होने पर चिकित्सक के पूर्व निर्देशों के अनुसार औषधि की मात्रा या प्रकार में परिवर्तन, कृत्रिम श्वसन आदि उपायों को अपनाने के उपयुक्त निर्णय लेने की क्षमता का होना भी एक अच्छी परिचारिका का गुण है।

(8) कर्त्तव्यपरायण एवं आज्ञाकारी:
परिचारिका को रोगी की देख रेख को अपना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कर्तव्य समझना चाहिए। उसे एक आज्ञाकारी व्यक्ति की भाँति चिकित्सक द्वारा दिए गए सभी निर्देशों का पालन करना चाहिए। यदि रोगी किसी औषधि को लेना नहीं चाहता अथवी अपनी भोजन व्यवस्था में परिवर्तन (UPBoardSolutions.com) चाहता है अथवा अन्य किसी प्रकार की इच्छा रखता है तो एक अच्छी परिचारिका स्वयं कोई निर्णय न लेकर चिकित्सक से ही उपयुक्त निर्देश प्राप्त करती है। एक अच्छी परिचारिका अपने कर्तव्य से भली प्रकार परिचित होती है तथा स्वयं चिकित्सक बनने का प्रयास नहीं करती।

(9) स्वच्छता का ध्यान रखना:
परिचारिका को सफाई के प्रति पूर्णतः सचेत रहना चाहिए। रोगी के शरीर की सफाई,बिस्तर व उसके आसपास की सफाई तथा साथ ही रोगी के वस्त्र व भोजन (UPBoardSolutions.com) आदि की स्वच्छता का उसे सदैव ध्यान रखना चाहिए। परिचारिका को रोगी के वस्त्र एवं बर्तन आदि को . समय-समय पर नि:संक्रमित करना चाहिए। इसके साथ-साथ परिचारिका को स्वयं अपने हाथों आदि की सफाई का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि यदि उसके हाथ साफ नहीं हैं, तो उस स्थिति में रोगी का अहित हो सकता है।

(10) प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना:
अनेक बार रोगों या दुर्घटनाओं से पीड़ित व्यक्तियों को तत्काल चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है। ऐसे गम्भीर समय में एक दक्ष परिचारिका पीड़ित व्यक्तियों को आपातकाल चिकित्सा उपलब्ध करा सकती है। अतः परिचारिका को प्राथमिक चिकित्सा का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।

(11) पाक-कला में निपुण होना:
परिचारिका को रुग्णावस्था में दिए जाने वाले सभी आहारों के तैयार करने की विधियाँ आनी चाहिए। रुग्णावस्था में प्रायः रोगियों का स्वाद बिगड़ जाता है तथा वह भिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों की माँग करते हैं। अतः परिचारिका को पाक-कला में निपुण होना चहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह-परिचारिका का रोगी के लिए क्या महत्त्व है?
उत्तर:
रोगी को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ कराने में परिचारिका का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। वह रोगी एवं चिकित्सक के बीच की महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जो कि

  1. रोगी की देखभाल करती है।
  2.  रोगी व उसके आस-पास की सफाई की व्यवस्था करती है।
  3.  चिकित्सक के निर्देशानुसार रोगी को औषधि देती है।
  4.  घावों की आवश्यक मरहम-पट्टी करती है।
  5.  रोगी को स्नान व स्पंज कराती है।
  6. रोगी को मल-मूत्र विसर्जन में सहायता करती है।
  7. रोगी के आहार की व्यवस्था करती है।
  8.  रोगी के ताप आदि का चार्ट बनाती है।
  9.  रोगी की निराशा दूर कर उसे धैर्य बँधाती है।
  10.  रोगी से मित्रतापूर्ण व्यवहार करती है तथा उसकी सभी सुख-सुविधाओं का ध्यान रखती है।

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प्रश्न 2:
रोगी की रिपोर्ट लिखना क्यों आवश्यक है? रिपोर्ट में परिचारिका को क्या-क्या बातें लिखनी चाहिए?
उत्तर:
रोगी की रिपोर्ट लिखने की आवश्यकता:

परिचारिका को नियमित रूप से रोगी की रिपोर्ट तैयार करते रहना चाहिए। इससे निम्नलिखित लाभ होते हैं

  1. रुग्णावस्था में रोगी की सही दंशा का अनुमान लगाने में सुविधा रहती है।
  2.  रिपोर्ट के आधार पर चिकित्सक उपयुक्त चिकित्सा सम्बन्धी निर्देश दे सकता है।

रोगी की रिपोर्ट का अभिलेखन:
इसके लिए परिचारिका को निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए

(i)  रोगी की नाड़ी, श्वास गति एवं ताप का चार्ट तैयार करना:
यह एक नियन्त्रित चार्ट होता है, जिसमें समय-समय पर रोगी की नाड़ी की गति, श्वास गति तथा तापक्रम को अंकित किया जाता है। इन तथ्यों को ग्राफ के माध्यम से भी दर्शाया जा सकता है।

(ii) रोगी के मल-मूत्र विसर्जन का चार्ट बनाना:
इसमें रोगी कितनी बार मल-मूत्र विसर्जित करता है, मल-मूत्र की बनावट, रंग व गन्ध तथा इस क्रिया में होने वाले कष्ट आदि का विवरण अंकित किया जाता है।

(iii)  निद्रा एवं भूख की स्थिति का अंकन:
इसमें रोगी सही नींद लेता है अथवा नहीं तथा उसे आवश्यक भूख लगती है अथवा नहीं आदि का अभिलेखन किया जाता है।

 (iv) अन्य बातें:
इसमें औषधियों के प्रति रोगी की प्रतिक्रिया, औषधियों का प्रभाव, रोगी की मानसिक दशा तथा रोगी की जिह्वा का रंग आदि का अभिलेखन किया जाता है।
उपर्युक्त बातों को प्रायः निम्नलिखित तालिका द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 19 गृह-परिचर्या और गृह-परिचारिका

प्रश्न 3:
परिचारिका के रोगी के प्रति मुख्य रूप से क्या कर्तव्य होते हैं?
उत्तर:
परिचारिका के रोगी के प्रति मुख्य रूप से निम्नलिखित कर्तव्य होते हैं।

  1. परिचारिका का कर्तव्य है कि वह रोगी को हर प्रकार से आराम पहुँचाए।
  2. परिचारिका का कर्तव्य है कि वह रोगी के शरीर की स्वच्छता एवं अनिवार्य प्रसाधन को ध्यान रखे। रोगी के बालों में कंघा करके उसे साफ-सुथरे वस्त्र पहनाने का कार्य भी परिचारिका द्वारा ही किया जाता है।
  3.  परिचारिका को रोगी के भोजन की भी व्यवस्था करनी होती है; अतः रोगी के भोजन को पकाना भी उसे आना चाहिए।
  4.  रोगी यदि स्वयं मल-मूत्र का त्याग न कर सकता हो, तो बिस्तर पर ही मल-त्याग कराने की सुविधा होनी चाहिए। यह कार्य भी परिचारिका द्वारा ही किया जाता है।
  5.  रोगी के कमरे एवं आवश्यक सामान को साफ एवं सही ढंग से रखना भी परिचारिका का ही कार्य है।
  6.  परिचारिका का कार्य है कि वह अपने व्यवहार से रोगी को मानसिक रूप से प्रसन्न रखे।
  7. परिचारिका को रोगी के प्रति मित्रता का व्यवहार करना चाहिए।
  8.  यदि रोगी के लिए आराम आवश्यक हो, तो परिचारिका का कर्तव्य है कि वह रोगी से मिलने वाले व्यक्तियों को रोके तथा रोगी को हर प्रकार से आराम पहुँचाए।

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प्रश्न 4:
गृह-परिचारिका का चिकित्सक के प्रति क्या कर्तव्य है?
उत्तर:
परिचारिका रोगी और चिकित्सक के बीच की कड़ी है, अतः जहाँ उसका रोगी के प्रति देखभाल का कर्तव्य है, वहाँ चिकित्सक को उसके कार्यों में सहायता प्रदान (UPBoardSolutions.com) करना भी उसका दायित्व है। ” वह चिकित्सक के निर्देशों के अनुसार रोगी की देख-रेख करते हुए चिकित्सक को निम्नलिखित सूचनाएँ उपलब्ध कराती है

  1. रोगी के दर्द, बेचैनी, वमन, खाँसी आदि के विषय में जानकारी देना।
  2.  रोगी के मल-मूत्र विसर्जन की स्थिति की सूचना देना।
  3.  रोगी की भूख-प्यास सम्बन्धी सूचना देना।
  4.  रोगी का ताप, नाड़ी श्वास इत्यादि का उपयुक्त चार्ट तैयार कर चिकित्सक को दिखाना।
  5.  रोगी पर औषधि के प्रभाव की सूचना देना।
  6.  रोगी की निद्रा तथा अन्य शारीरिक परिवर्तनों के विषय में चिकित्सक को सूचित करना।

प्रश्न 5:
गृह-परिचारिका के अपने स्वयं के प्रति क्या कर्त्तव्य होते हैं?
उत्तर:
परिचारिका के कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य भी हैं जो प्रत्यक्ष रूप से तो स्वयं उसके अपने ही प्रति होते हैं, परन्तु इनका अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव रोगी पर पड़ता है। सर्वप्रथम परिचारिका को अपने शरीर की स्वच्छता का अधिक-से-अधिक ध्यान रखना चाहिए। उसे अपने हाथ आदि सदैव साफ एवं धुले हुए रखने चाहिए। परिचारिका को साफ एवं सफेद रंग के धुले हुए वस्त्र धारण करने चाहिए। परिचारिका को सदैव प्रसन्नचित्त, चुस्त एवं हँसते हुए रहना चाहिए। उसे अपने मनोरंजन एवं स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 6:
परिचारिका का दूरदर्शी होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
परिचारिका को अपने कार्यों में चतुर एवं विवेकशील होना आवश्यक है। उसका दूरदर्शी होना अति अनिवार्य है, क्योंकि

  1. रोगी की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान कर एक दूरदर्शी परिचारिका समय पर ही उनकी पूर्ति कर देती है।
  2. रोगी पर औषधियों का विपरीत प्रभाव पड़ने पर वह उन्हें तत्काल देना बन्द कर चिकित्सक से परामर्श प्राप्त करती है।
  3. रोगी की हालत बिगड़ने पर उसे परिस्थिति के अनसार कृत्रिम श्वसन, हृदय स्पन्दन अथवा ऑक्सीजन देने जैसी आपातकाल सहायता के विषय में तत्काल निर्णय लेकर उनके क्रियान्वयन की अविलम्ब व्यवस्था एक दूरदर्शी परिचारिका ही कर सकती है।

प्रश्न 7:
रोगी को औषधि देते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
रोगी को औषधि देते समय एक अच्छी परिचारिका निम्नलिखित बातों का सदैव ध्यान रखती है

  1. चिकित्सक के निर्देशों का सावधानीपूर्वक पालन करना।
  2.  निश्चित समय पर ही औषधि देना।
  3.  औषधि देते समय रोगी से मधुर व्यवहार करना तथा उसे धैर्य बँधाना।
  4.  रोगी पर औषधि के प्रभाव की सूचना चिकित्सक को उपलब्ध कराना।
  5.  रोगी पर औषधि का विपरीत प्रभाव होने पर उसकी सूचना अविलम्ब चिकित्सक तक पहुँचाना तथा आवश्यकता पड़ने पर रोगी को आपातकाल सहायता देना।

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प्रश्न 8:
परिचारिका को रोगी व चिकित्सक के मध्य की कड़ी क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
परिचारिका रोगी की देख-रेख करती है। वह रोगी के उपचार में चिकित्सक की सहायता करती है। चिकित्सक के निर्देशानुसार रोगी की देख-रेख करती है तथा रोगी की रोग सम्बन्धी स्थिति की जानकारी चिकित्सक को देती है। इस भूमिका के कारण ही परिचारिका को रोगी एवं चिकित्सक के मध्य की कड़ी कहा जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह-परिचर्या से क्या आशय है?
उत्तर:
घर पर रहने वाले रोगी व्यक्ति की चिकित्सक के निर्देशानुसार की जाने वाली सेवा-सुश्रूषा अथवा परिचर्या को ही गृह-परिचर्या कहते हैं।

प्रश्न 2:
गृह-परिचारिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
घर पर रहकर रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की परिचर्या करने वाली स्त्री को गृह-परिचारिका कहते हैं।

प्रश्न 3:
क्या गृह-परिचर्या का कार्य केवल महिलाएँ ही कर सकती हैं?
उत्तर:
नहीं, यह अनिवार्य नहीं है। गृह-परिचर्या का कार्य पुरुष भी कर सकते हैं। गृह-परिचर्या के कार्य को करने वाले पुरुष को ‘गृह-परिचारक’ कहते हैं।

प्रश्न 4:
अच्छी परिचारिका के चार मुख्य गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अच्छी परिचारिका के चार मुख्य गुण हैं

  1.  उत्तम स्वास्थ्य,
  2. विनम्र एवं हँसमुख स्वभाव,
  3.  प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना तथा
  4.  हर प्रकार की स्वच्छता का ध्यान रखना।

प्रश्न 5:
परिचारिका को प्राथमिक चिकित्सा का पूर्ण ज्ञान होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को, चिकित्सक के उपलब्ध न होने पर, तत्काल चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए परिचारिका को प्राथमिक चिकित्सा का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है।

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प्रश्न 6:
गृह-परिचारिका का प्रमुख कर्त्तव्य क्या है?
उत्त:
रोगी को उचित समय पर उचित वस्तु उपलब्ध कराना तथा चिकित्सक के परामर्श के अनुसार कार्य करना गृह-परिचारिका के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कर्तव्य हैं।

प्रश्न 7:
अस्पतालों में परिचर्या का कार्य कौन करता है?
उत्तर:
अस्पतालों में परिचर्या का कार्य नर्स करती हैं।

प्रश्न 8:
रोगी के जीवन में परिचारिका का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
परिचारिका रोगी की शारीरिक व मानसिक क्रियाओं को ध्यान में रखकर उसके कल्याण हेतु कार्य करती है।

प्रश्न 9:
रोगी तथा चिकित्सक के सन्दर्भ में परिचारिका की क्या भूमिका है?
उत्तर:
रोगी तथा चिकित्सक के सन्दर्भ में परिचारिका द्वारा एक सम्पर्क सूत्र या बीच की कड़ी की भूमिका निभाई जाती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) परिचर्या के अन्तर्गत किया जाता है
(क) रोगी व्यक्ति की देख-भाल करना,
(ख) चिकित्सक के निर्देशानुसार औषधि देना,
(ग) समय पर आहार देना तथा अन्य सभी कार्यों में सहायता प्रदान करना,
(घ) ये सभी।

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(2) परिचारिका को नहीं करना चाहिए
(क) रोगी से विनम्र व्यवहार,
(ख) औषधि निर्धारण,
(ग) रोगी की देख-रेख,
(घ) चिकित्सक से परामर्श।

(3) परिचारिका को नहीं होना चाहिए
(क) स्वस्थ,
(ख) हँसमुख,
(ग) दूरदर्शी,
(घ) चिड़चिड़ा।

(4) गृह-परिचर्या से अभिप्राय है
(क) गृहिणी द्वारा रोगी की देख-रेख,
(ख) नर्स द्वारा रोगी की देख-रेख,
(ग) चिकित्सक द्वारा रोगी का उपचार,
(घ) रोगी द्वारा स्वयं की देख-रेख।

(5) परिचारिका को आज्ञापालन करनी चाहिए
(क) रोगी की,
(ख) गृह-स्वामी की,
(ग) चिकित्सक की,
(घ) इन सभी का।

(6) गृह-परिचर्या को कार्य भली-भाँति किया जा सकता है
(क) बच्चों द्वारा,
(ख) गृह-स्वामी द्वारा,
(ग) गृहिणी द्वारा,
(घ) किसी के भी द्वारा।

(7) गृह-परिचारिका को समुचित ज्ञान होना चाहिए
(क) विभिन्न रोगों का,
(ख) विभिन्न रोगों की निर्धारित औषधियों का,
(ग) सामान्य प्राथमिक चिकित्सा का,
(घ) इन सभी का।

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(8) यदि रोगी के स्वास्थ्य में कोई असामान्य लक्षण प्रकट होने लगे तो गृह-परिचारिका को तुरन्त सूचित करना चाहिए
(क) घर के मुखिया को,
(ख) पड़ोसियों को,
(ग) ज्योतिषी को,
(घ) सम्बन्धित चिकित्सक को।

उत्तर:
(1) (घ) ये सभी,
(2) (ख) औषधि निर्धारण,
(3) (घ) चिड़चिड़ा,
(4) (क) गृहिणी द्वारा रोगी की देख-रेख,
(5) (ग) चिकित्सक की,
(6) (ग) गृहिणी द्वारा,
(7) (ग) सामान्य प्राथमिक चिकित्सा का,
(8) (घ) सम्बन्धित चिकित्सक को।

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 3 आदिकविः वाल्मीकिः (गद्य – भारती)

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 5
Chapter Name आदिकविः वाल्मीकिः (गद्य – भारती)
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 3 आदिकविः वाल्मीकिः  (गद्य – भारती)

पाठ-सारांशु

पूर्व जीवन-संस्कृत के आदिकवि वाल्मीकि हैं। इन्होंने भगवान् राम का लोक-कल्याणकारी चरित्र काव्य रूप में लिखा। राम का जीवन-चरित्र हमारे देश और संस्कृति का प्राण है। वाल्मीकि द्वारा लिखित ‘रामायण’ को संस्कृत का आदिकाव्य माना जाता है।

‘स्कन्दपुराण’ और ‘अध्यात्मरामायण के अनुसार, इनका नाम अग्निशर्मा था तथा ये जाति के ब्राह्मण थे। पूर्व जन्म के कर्मफल स्वरूप ये वन में पथिकों का धन लूटकर जीविका चलाते थे और धन न मिलने पर हत्या करने में भी संकोच नहीं करते थे।

एक बार इन्होंने वन-पथ पर आते हुए एक मुनि को देखा और कड़े स्वर में उससे कहा-“जो कुछ तुम्हारे पास है, सब मुझे दे दो।’ मुनि ने कहा-“मेरे पास कुछ नहीं है, परन्तु तुम इस पापकर्म को क्यों करते हो? इस लूटे गये धन से तुम जिन परिवार वालों का पालन करते हो, क्या वे तुम्हारे (UPBoardSolutions.com) पापकर्म के फल में भी सहभागी होंगे?’ वाल्मीकि ने मुनि के इस प्रश्न का उत्तर परिवार वालों से पूछकर देने के लिए कहा और मुनि को रस्सियों से बाँधकर परिवारजनों से पूछने के लिए चले गये। .
उनके कुटुम्बी उनके प्रश्न को सुनकर क्रुद्ध हुए और बोले-“हमने तुम्हें पापकर्म करने के लिए : नहीं कहा; अत: हम तुम्हारे पाप के फल के भागीदार नहीं होंगे।”

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हृदय-परिवर्तन-परिवारजनों को उत्तर सुनकर वाल्मीकि बहुत दु:खी हुए। उनके शोक को दूर करने के लिए मुनि ने इन्हें ‘राम’ का नाम जपने का उपदेश दिया, परन्तु अपने हिंसक स्वभाव के कारण वे ‘मरा-मरा’ जपने लगे। इस प्रकार वर्षों तक इन्होंने इतना कठोर तप किया कि इनके शरीर के आसपास दीमकों की बॉबी बेने गयी और उसकी मिट्टी से इनका सारा शरीर ढक गया। एक समय वरुणदेव के द्वारा निरन्तर वर्षा (UPBoardSolutions.com) से इनके शरीर से वह मिट्टी बह गयी और ये आँखें खोलकर छठ खड़े हुए। दीमकों की मिट्टी अर्थात् ‘वल्मीक’ से प्रकट होने के कारण ये ‘वाल्मीकि’ नाम से प्रसिद्ध हुए। वरुण का एक अन्य नाम प्रचेता भी है। “प्रचेतसा उत्थापितः इति प्राचेतसः’ इस कारण वरुणदेव के द्वारा मिट्टी बहाये जाने के कारण ये ‘प्रचेतस्‘ कहलाये।

आदिकविता–एक बार वाल्मीकि ने ब्रह्मर्षि नारद से भगवान् राम का कल्याणकारी चरित्र सुना और उसे काव्यबद्ध करने की इच्छा की। इसके बाद किसी दिन ये मध्याह्न-स्नान के लिए तमसा नदी के तट पर गये हुए थे। वहाँ इन्होंने एक क्रौञ्च युगल को प्रेम-क्रीड़ा करते हुए देखा। उनके देखते-ही-देखते एक शिकारी ने उसमें से नरक्रौञ्चे को बाण से घायल कर दिया। खून से लथपथ, पृथ्वी पर धूल-धूसरित होते क्रौञ्च को (UPBoardSolutions.com) देखकर क्रौञ्ची करुण विलाप करने लगी। क्रौञ्ची के करुण विलाप को सुनकर मुनि का हृदय शोक से द्रवित हो गया और उनके हृदय से शिकारी के प्रति श्राप रूप में ‘मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः’ छन्द फूट पड़ा। यही छन्द संस्कृत की पहली कविता अथवा पहला
छन्द बना।।

रामायण की रचना-श्राप रूप में श्लोक के निकलते ही महामुनि के हृदय में महती चिन्ता हुई। तब ब्रह्माजी ने इनके पास आकर कहा-“श्लोक बोलते हुए आपने दुःखियों पर दया करने के धर्म का पालन किया है। अब सरस्वती की आप पर कृपा हुई है। अब आप नारदजी से सुने अनुसार भगवान् राम के सम्पूर्ण चरित्र का वर्णन करें। मेरी कृपा से आपको सम्पूर्ण रामचरित स्मरण हो जाएगा।” ऐसा कहकर ब्रह्मा अन्तर्धान हो गये। तब वाल्मीकि ने सात काण्डों में आदिकाव्य रामायण की रचना की। इनके दो आश्रम थे-एक चित्रकूट में और दूसरा ब्रह्मावर्त (बिठूर) में। यहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ था।

गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1) संस्कृतवाङ्मयस्यादिकविः महामुनिः वाल्मीकिरिति सर्वैः विद्वद्भिः स्वीक्रियते। महामुनिना रम्यारामायणी-कथा स्वरचिते काव्यग्रन्थे निबद्धा। भगवतो रामस्य चरितमस्माकं देशस्य (UPBoardSolutions.com) संस्कृतेश्च प्राणभूतं तिष्ठति। वस्तुतस्तु, महामुनेः वाल्मीकेरेवैतन्माहात्म्यमस्ति। यत्तेन रामस्य लोककल्याणकारकं रम्यादर्शभूतं रूपं जनानां समक्षमुपस्थापितम्। वयं च तेन रामं ज्ञातुं अभूम।।

शाब्दार्थ-
वाङ्मय = साहित्य स्वीक्रियते = स्वीकार किया जाता है।
रम्या = सुन्दर।
निबद्धा = गुंथी हुई है।
प्राणभूतम् = प्राणस्वरूप।
वस्तुतस्तु = वास्तव में।
वाल्मीकेरेवैतन्माहात्म्यमस्ति (वाल्मीकेः + एव + एतत् + माहात्म्यम् + अस्ति) = वाल्मीकि का ही यह माहात्म्य है।
आदर्शभूतम् = आदर्शस्वरूप।
उपस्थापितम् = उपस्थित किया गया।
ज्ञातुं अभूम = जानने में समर्थ हुए।

सन्दर्थ
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य-भारती’ में संकलित ‘आदिकविः वाल्मीकिः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

संकेत
इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।] ।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में आदिकवि वाल्मीकि की यशः कीर्ति पर प्रकाश डाला गया है।

अनुवाद
सभी विद्वान् यह स्वीकार करते हैं कि महामुनि वाल्मीकि संस्कृत-साहित्य के आदिकवि हैं। महामुनि ने रामायण की सुन्दर कथा को अपने द्वारा रचित काव्यग्रन्थ मे गुँथा है। भगवान् राम का चरित हमारे देश की संस्कृति का प्राणस्वरूप है। वास्तव में महामुनि वाल्मीकि का ही यह माहात्म्य है कि उन्होंने राम का लोक कल्याणकारी, सुन्दर, आदर्शभूत स्वरूप लोगों के सामने उपस्थित किया (रखा) और उससे हम राम को जानने में समर्थ हुए। .

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(2) स्कन्दपुराणाध्यात्मपरामायणयोरनुसारात् अयं ब्राह्मणजातीयः अग्निशर्मा- भिधश्चासीत्। पूर्वजन्मनः विपाकात् परधनलुण्ठनमेवास्य कर्माभूत्। वनान्तरे पथिकानां धनलुण्ठनमेव तस्य जीविकासाधनमासीत्। लुण्ठनव्यापारे, संशयश्चेत् प्राणघातेऽपि स सङ्कोचं नाऽकरोत्। इत्थं हिंसाकर्मणि लिप्तः एकदा वनपथे पथिकमाकुलतया प्रतीक्षमाणोऽसौ । मुनिवरमेकमागच्छन्तमपश्यत्, दृष्ट्वा च हर्षेण प्रफुल्लो जातः। समीपमागते मुनिवरे रक्ते । अक्षिणी श्रीमयन् भीमेन रवेण तमवोचत् यत्किञ्चित्तवास्ति तत्सर्वं मह्यं देहि नो चेत्तव (UPBoardSolutions.com) प्राणसंशयों भविष्यति। मुनिना प्रत्युक्तं, लुण्ठक! मत्पाश्र्वे तु किञ्चिदपि नास्ति, परं त्वां पृच्छामि किं करोषि लुण्ठितेन धनेन? इदं पापकर्म किमिति न जानासि? जानामि, तथापि करोमि। लुण्ठितेन धनेन परिवारजनस्य पोषणरूपं महत्कार्यं करोमीति तेनोक्तम्। मुनिः पुनरपृच्छत्-. पापकर्मणार्जितेन वित्तेन पोषितास्तव परिवारसदस्याः किं तव पापकर्मण्यपि सहभागिनः। स्युरिति। सोऽवोचत् वक्तुं न शक्नोमि परं तान् पृष्ट्वा वदिष्यामि। त्वं तावदत्रैव विरम यावदहं तान् सम्पृच्छ्यागच्छामि। इत्युक्त्वा तं मुनिवरं रज्जुभिः दृढं बद्ध्वा स्वकुटुम्बिनः प्रष्टुं जगाम।

शाब्दार्थ-
अनुसारोत् = अनुसार।
अभिधः = नाम वाला।
विपाकात् = फल या परिपाक, दुष्परिणाम से।
लुण्ठनम् = लूटना।
प्राणघातेऽपि = प्राणनाश में भी।
लिप्तः = लगा हुआ।
प्रतीक्षमाणः = प्रतीक्षा करता हुआ।
मुनिवरमेकमागच्छन्तमपश्यत् (मुनिवरम् + एकम् + आगच्छन्तम् + अपश्यत्) = एक श्रेष्ठ मुनि को आता हुआ देखा।
प्रफुल्लः = प्रसन्न।
रक्ते अक्षिणी = लाल-लाल आँखें।
भ्रामयन् = घुमाता हुआ।
भीमेन रवेण = भयंकर आवाज से।
प्रत्युक्तम् (प्रति + उक्तम्) = उत्तर दिया। लुण्ठक = हे लुटेरे!
सहभागिनः = साथ में भाग लेने वाले अर्थात् हिस्सेदार।
विरम = ठहर। सम्पृच्छ्यागच्छामि (सम्पृच्छ्य + आगच्छामि) = पूछकर आता हूँ।
रज्जुभिः = रस्सियों से।
प्रष्टुम् = पूछने के लिए।
जगाम = चला गया।

प्रसंग
इस गद्यांश में वाल्मीकि के आपराधिक जीवन पर प्रकाश डाला गया है।

अनुवाद
ये वाल्मीकि स्कन्द पुराण और अध्यात्म रामायण के अनुसार ब्राह्मण जाति के थे और इनका नाम अग्निशर्मा था। पूर्व जन्म के परिपाक (फल) से दूसरों के धन को लूटना ही इनका कर्म था। वन के मध्य में पथिकों का धन लूटना ही उनकी जीविका का साधन था। यदि लूटने के काम में सन्देह हो तो वे हत्या करने में भी संकोच नहीं करते थे। इस प्रकार हिंसा के काम में लगे हुए एक बार वन के पथ पर राहगीर की बेचैनी से प्रतीक्षा करते हुए उन्होंने एक मुनिवर को आते हुए देखा और देखकर हर्ष से खिल उठे। मुनिवर के पास आने पर लाल-लाल नेत्रों को घुमाते हुए भयंकर स्वर में उनसे बोले—“जो कुछ तुम्हारे पास है वह सब मुझे दो, नहीं तो तुम्हारे प्राणों का संकट होगा।” मुनि ने उत्तर दिया-“लुटेरे! मेरे पास तो कुछ भी नहीं है, परन्तु तुमसे पूछता हूँ-“लूटे हुए धन से तुम क्या करते हो? (UPBoardSolutions.com) यह पाप का कर्म है, क्या तुम यह नहीं जानते हो?” “ज्ञानता हूँ तो भी करता हूँ। लूटे हुए धन से मैं परिवार वालों का पालन रूप महान् कार्य करता हूँ।” ऐसा उससे (मुनि से) कहा। मुनि ने फिर पूछा-‘पापकर्म से कमाये गये धन से पाले हुए तुम्हारे परिवार के सदस्य क्या तुम्हारे पापकर्म में भी हिस्सेदार होंगे?” वह बोला-“कह नहीं सकता, परन्तु उनसे पूछकर बताऊँगा। तुम तब तक यहीं रुको, जब तक मै उनसे पूछकर आता हूँ।” यह कहकर उस मुनिवर को रस्सियों से कसकर बाँधकर अपने कुंटुम्बियों से पूछने चले गये।

(3) अथ तस्य कुटुम्बिनः तस्य प्रश्नं श्रुत्वा भृशं चुकुपुरूचुश्च कथं वयं तव पापकर्माणि | सहभागिनो भवेम? वयं किं जानीमहे त्वं किं करोषि कया वा रीत्या धनार्जनं विदधासि? नास्माभिः तवं पापकर्म कर्तुमादिष्टः।

तेषां स्वपरिवारजनानामुत्तरमाकर्त्य सोऽतीव विषण्णोऽभवत्। द्रुतं मुनिवरमुपगम्य सर्वं च तत्परिवारजनोख्यातमसावभाषत। परं निर्विण्णं तं मुनिः तस्य हृदयशोकशमनाय ‘राम’ इति जप्तुमुपादिशत्। ‘राम’ इति समुच्चारेणऽक्षमः स्ववृत्त्यनुसारं ‘मरा’ इत्येव जप्तुमारभत। इत्थमसौ बहुवर्षाणि यावत् समाधौ लीनः तीव्र तपश्चचार। तपसि रतस्य तस्य शरीरं वल्मीकमृत्तिकाभिः आवृत्तं जातम्। अथ कदाचित् प्रचेतसा निरन्तरजलधारया तस्य शरीरात् वल्मीकमृत्तिक परिस्राविता अभवन्। (UPBoardSolutions.com) मृत्तिकाभिः तिरोहितं तस्य शरीरं पुनः प्रकटितम्। ततो मुनिभिः स संस्तुतोऽभ्यर्थितश्च चक्षुषी उन्मील्योदतिष्ठत्। वल्मीकात् प्रोद्भूतत्वाद् वाल्मीकिरिति, प्रचेतसा जलधारया मृत्तिकायाः परित्रुतत्वाद् प्रचेतस इति तस्य नामद्वयं जातम्।रामायणे मुनिना स्वपितुः
नाम प्रचेताः तस्य दशमः पुत्रोऽहमित्त्थमुल्लिलेखे। यथा च–’प्रचेतसोऽहं दशमः पुत्रो.. राघवनन्दन।’

शब्दार्थ-
भृशम् = बहुत। चुकुपुरूचुश्च (चुकुपः + ऊचुः + च). = क्रोधित हुए और बोले।
विदधासि = करते हो।
आदिष्टः = आदेश दिया, कहा।
विषण्णः = उदास, दु:खी।
द्रुतं = शीघ्र।
शोकशमनाय = दु:ख की शान्ति के लिए।
निर्विण्णं = दु:खी।
अक्षमः = असमर्थ स्ववृत्त्यनुसारम् = अपने स्वभाव के अनुसार।
जप्तुमारभत = जपना आरम्भ कर दिया।
इत्थं = इस प्रकार।
तपश्चचारः (तपः + चचारः) = तप करता रहा।
आवृत्तं जातम् = ढक गया।
प्रचेतसा = वरुण देव के द्वारा।
परिस्राविता अभवन् = धुल गयी, गीली होकर बह गयी।
तिरोहितम् = छिपा हुआ।
उन्मल्योदतिष्ठत (उन्मील्य + उत् + अतिष्ठत्) = खोलकर उठ बैठे।
प्रोद्भूतत्वात् = प्रकट होने के कारण।
परिवृतत्वाद = बहाये जाने के कारण से।
स्वपितुः = अपने पिता का।
वल्मीकमृत्तिकाभिः = दीमक की मिट्टी से।।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में अग्निशर्मा के तपस्या करने एवं वाल्मीकि तथा प्राचेतस ये दो नाम धारण करने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
इसके बाद उनके कुटुम्बी उनके प्रश्न को सुनकर अत्यन्त क्रुद्ध हुए और बोले-“हम तुम्हारे पाप कर्म में क्यों हिस्सेदार होंगे? हम क्या जानें, तुम क्या करते हो अथवा किसी रीति से धन कमाते हो? हमने तुम्हें पाप कर्म करने को नहीं कहा था।” .. उन अपने परिवार के लोगों के उत्तर को सुनकर वह अत्यन्त दुःखी हुआ। शीघ्र ही मुनिवर के पास आकर उसने परिवारजनों का कहा हुआ वह सब बता दिया। अत्यन्त दु:खी हुए उससे (अग्निशर्मा से) मुनि ने उसके हृदय के शोक को शान्त करने के लिए ‘राम’ जपने का उपदेश दिया। ‘राम’ शब्द के उच्चारण में असमर्थ उसने अपने स्वभाव के अनुसार ‘मरा’ जपना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार उन्होंने बहुत वर्षों तक समाधि में लीन होकर कठोर तप किया। तप में लीन उनका शरीर दीमकों की मिट्टी से ढक गया। इसके बाद किसी (UPBoardSolutions.com) समय वरुण के द्वारा लगातार जल की धारा से उनके शरीर से दीमकों की मिट्टी धूल गयी (बह गयी) और मिट्टी से छिपा हुआ उनका शरीर पुनः प्रकट हो गया। तब मुनियों ने उनकी स्तुति और पूजा की तथा वे आँखें खोलकर उठ बैठे। दीमकों की मिट्टी से निकलने के कारण ‘वाल्मीकि’, प्रचेता (वरुण) के द्वारा जलधारा से मिट्टी के धुल जाने के कारण ‘प्रचेतस’ इसे प्रकार उनके दो नाम हो गये। रामायण (उत्तरकाण्ड) में मुनि (वाल्मीकि) ने अपने पिता का नाम ‘प्रचेता “मैं उसका दसवाँ पुत्र” ऐसा लिखा है। जैसे-“हे राघव पुत्र! मैं प्रचेता का दसवाँ पुत्र हूँ।”

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(4) अथ कदाचित् सः ब्रह्मर्षेः नारदात् भगवतो रामस्य लोककल्याणकरं वृत्तं शुश्राव। तदाप्रभृत्येव रामचरितं काव्यबद्धं कर्तुमाकाङ्क्षते स्म। अथैकदा महर्षिः माध्यन्दिनसंवनाय प्रयागमण्डलान्तर्गतां तमसानदीं गच्छन्नासीत्। तत्र वनश्रियं निरीक्षमाणो महामुनिः स्वच्छन्दं विरचत् कौञ्चमिथुनमेकमपश्यत्। पश्यत एव तस्य कश्चित् पापनिश्चयो व्याधः तस्मान् मिथुनादेकं बाणेन विजघानां बाणेन विद्धं महीतले लुण्ठन्तं (UPBoardSolutions.com) शोणितपरीताङ्गं तं विलोक्य क्रौञ्ची करुणया गिरा रुराव। क्रौञ्च्याः करुणारावं आवं आवं मुनिहृदयालीनः शोकानलपरिद्रुतः करुणरसः श्लोकच्छलाद् हृदयादेवं निर्गतोऽभवत्

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥

शब्दार्थ-
लोककल्याणकरम् = संसार का कल्याण करने वाला।
वृत्तम् = चरित्र।
आकाङ्क्षते स्म = इच्छा की।
माध्यन्दिनसवनाय = दोपहर के स्नान के लिए।
विचरत् = विचरण करते हुए।
मिथुनं = जोड़े को।
पापनिश्चयः = पापी।
व्याधः = शिकारी।
विजेघान = मार दिया।
लुण्ठन्तम् = लेटते हुए।
शोणितपरीताङ्गम् = खून से लथपथ शरीर वाले।
गिरा = वाणी से।
रुराव = रोने लगी।
करुणरवं = दु:खपूर्ण रुदन को।
श्रावं आवम् = सुन-सुनकर।
शोकानलः= शोक रूपी अग्नि।
परिद्रुतः = भड़क उठी।
निषाद = शिकारी।
शाश्वतीः समाः = चिरकाल तक।
अवधीः = मार, डाला।
काममोहितम् = काम से मुग्ध होने वाले को।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में क्रौञ्च के जोड़े में से नर क्रौञ्च को शिकारी के द्वारा मारे जाते देखकर वाल्मीकि के हृदय से छन्द फूट पड़ने का वर्णन है। यही छन्द आदि कविता कहलाया।

अनुवाद
इसके बाद कभी उन्होंने (वाल्मीकि ने) ब्रह्मर्षि नारद से भगवान् राम का लोक-कल्याणकारी चरित्र सुना। तब से ही उन्होंने राम के चरित्र को काव्यबद्ध करने की इच्छा की थी।
इसके बाद एक दिन महर्षि दोपहर के स्नान के लिए प्रयागमण्डल के अन्तर्गत तमसा नदी पर गये हुए। थे। वहाँ वन की शोभा को देखते हुए महामुनि ने स्वच्छन्द घूमते हुए एक कौञ्च पक्षी-युगल को देखा। उनके देखते हुए ही किसी पापपूर्ण निश्चय वाले शिकारी ने उस जोड़े में से एक को बाण (UPBoardSolutions.com) से मार दिया। बाण से बिंधे, भूमि पर गिरे हुए, खून से लथपथ शरीर वाले उसे देखकर क्रौञ्ची (चकवी) ने करुण वाणी से रुदन किया। क्रौञ्ची के करुण-विलाप को सुन-सुनकर मुनि के हृदय में छिपी शोकाग्नि से पिघला हुआ करुण रस श्लोक के बहाने से हृदय से इस प्रकार निकल पड़ा

“हे निषाद! तू चिरकाल तक रहने वाली स्थिति (सुख) को मत प्राप्त कर; क्योंकि तूने क्रौञ्च के जोड़े में से काम से मुग्ध अर्थात् काम-क्रीड़ा में रत एक(नर क्रौञ्च ) को मार डाला।”

(5) श्लोकोऽयमाम्नायादन्यत्र छन्दसां नूतनोऽवतार आसीत्। एवं बुवतस्तस्य हृदि महती चिन्ता बभूव-अहो! शकुनिशोकपीडितेन मया किमिदं व्याहृतम्। अत्रान्तरे, वेदमूर्तिश्चतुर्मुखो भगवान् ब्रह्मा महामुनिमुपगम्य सस्मितमुवाच महामुने, आपन्नानुकम्पनं हि महतां सहजो धर्मः। श्लोकं ब्रुवता त्वया त्वेष एवं धर्मः पालितः। तन्नात्र विचारणा कार्या। सरस्वती मच्छन्दादेव त्वयि प्रवृत्ता। साम्प्रतं यथा नारदाच्छूतं तथा त्वं श्रीमद्भगवतो रामचन्द्रस्य कृत्स्नं चरितं वर्णय। मत्प्रसादात् निखिलं च रामचरितं तव विदितं भविष्यति। किं बहुना, यावन्महीतले गिरिसरित्समुद्राः स्थास्यन्ति तावल्लोके रामायणकथा ‘प्रचलिष्यतीत्यादिश्य (UPBoardSolutions.com) भगवानब्जयोनिरन्तर्हितोऽभवत्। ततो योगबलेन नारदोक्तं समग्रं रामचरितमधिगम्य गङ्गातमसयोरन्तराले तटे, सप्तकाण्डात्मकं रामायणाख्यमादिमहाकाव्यं रचयामास, तदनन्तरं मुनेः विश्रामार्थं द्वौ अपराश्रमौ अभूताम्। एकश्चित्रकूटे अपरश्च कानपुरमण्डलान्तर्गत ब्रह्मावर्तान्तः आधुनिके बिठूरनाम्नि स्थाने आसीत् अत्रैव लवकुशयोः ज़नुरभूत्। एवमादिकविर्यशसा ख्यातोऽभवल्लोके महामुनिः ब्रह्मर्षिः।

शब्दार्थ-
आम्नायात् = वेद से।
बुवतस्तस्य = कहते हुए उनके।
शकुनिशोकपीडितेन = पक्षी के शोक से दुःखित हुए।
महामुनिमुपगम्य = महामुनि के पास जाकर।
व्याहृतम् = कह दिया।
सस्मितम् = मुस्कराते हुए।
आपन्नानुकम्पनं = पीड़ितों पर दया या कृपा।
सहजः = स्वाभाविक।
बुवता = बोलते हुए।
साम्प्रतं = अब (इस समय)।
नारदाच्छुतम् (नारदात् + श्रुतम्) = नारद से सुने हुए। कृत्स्नम् = सम्पूर्ण।
निखिलम् = पूरा। यावत् = जब तक।
स्थास्यन्ति = स्थित रहेंगे।
तावत् = तब तक।
प्रचलिष्यतीत्यादिश्य (प्रचलिष्यति + इति + आदिश्य) = प्रचलित रहेगी, ऐसी आदेश देकर।
अब्जयोनिः = कमल से उत्पन्न ब्रह्माजी।
अन्तर्हितः = अन्तर्धान।
अधिगम्य = जानकर।
अन्तराले = बीच में।
अपराश्रमौ (अपर + आश्रमौ) = अन्य आश्रम।
ब्रह्मावर्तान्तः = ब्रह्मावर्त में।
अत्रैव (अत्र + एव) = यहाँ ही।
जनुरभूत् (जनु: + अभूत्) = जन्म हुआ।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में श्राप देने से दु:खीं वाल्मीकि को ब्रह्माजी द्वारा सान्त्वना देने तथा रामचरित का वर्णन करने की प्रेरणा दी गयी है।

अनुवाद
यह श्लोक वेद से पृथक्-लोक में छन्दों का नया जन्म था। इस प्रकार कहते हुए उनके हृदय में महान् चिन्ता हो गयी। “ओह! पक्षी के शोक से पीड़ित मैंने यह क्या कह दिया।” इसी बीच वेदमूर्ति चतुर्मुख ब्रह्मा ने महामुनि के पास जाकर मुस्कराते हुए कहा-“हे महामुने! पीड़ितों पर दया करेंना महापुरुषों का स्वाभाविक धर्म है। श्लोक बोलते हुए तुमने इसी धर्म का पालन किया है। तो इस विषय में सोच नहीं करना चाहिए। सरस्वती मेरी इच्छा से ही तुममें प्रवृत्त हुई हैं। अब जैसा तुमने नारद जी से सुना है, वैसा तुम भगवान् रामचन्द्रजी के सम्पूर्ण चरित्र का वर्णन करो। मेरी कृपा से तुम्हें सम्पूर्ण रामचरित ज्ञात हो जाएगा। अधिक क्या? जब तक पृथ्वी (UPBoardSolutions.com) पर पर्वत, नदी और समुद्र रहेंगे, तब तक संसार में राम की कथा चलती रहेगी।’ ऐसा आदेश देकर भगवान् ब्रह्मा अन्तर्धान हो गये। तब योगबल से नारद जी के द्वारा बताये गये सम्पूर्ण रामचरित को जानकर गंगा और तमसा के मध्य स्थित तट पर सात काण्डों वाले ‘रामायण’ नाम के इस महाकाव्य की रचना की। इसके अतिरिक्त मुनि के विश्राम के लिए दो दूसरे आश्रम थे। एक चित्रकूट पर, दूसरा कानपुर मण्डल के अन्तर्गत ब्रह्मावर्तान्त (ब्रह्मावर्त्त) आधुनिक नाम बिठूर के स्थान पर था। यहीं पर लव-कुश का जन्म हुआ था। इस प्रकार महामुनि ब्रह्मर्षि (वाल्मीकि) संसार में आदिकवि के यश से प्रसिद्ध हो गये।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 4 चुनावी राजनीति

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 4 चुनावी राजनीति

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
चुनाव क्यों होते हैं, इस बारे में इनमें से कौन-सा वाक्य ठीक नहीं है?
(क) चुनाव लोगों को सरकार के कामकाज का फैसला करने का अवसर देते हैं।
(ख) लोग चुनाव में अपनी पसंद के उम्मीदवार का चुनाव करते हैं।
(ग) चुनाव लोगों को न्यायपालिका के कामकाज का मूल्यांकन करने का अवसर देते हैं।
(घ) लोग चुनाव से अपनी पसंद की नीतियाँ बना सकते हैं।
उत्तर:
(ग) चुनाव लोगों को न्यायपालिका के कामकाज का मूल्यांकन करने का अवसर देते हैं।

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प्रश्न 2.
भारत के चुनाव लोकतांत्रिक हैं, यह बताने के लिए इनमें कौन-सा वाक्य सही कारण नहीं देता?
(क) भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा मतदाता हैं।
(ख) भारत में चुनाव आयोग काफी शक्तिशाली है।
(ग) भारत में 18 वर्ष से अधिक उम्र का हर व्यक्ति मतदाता है।
(घ) भारत में चुनाव हारने वाली पार्टियाँ जनादेश स्वीकार कर लेती हैं।
उत्तर:
(क) भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा मतदाता हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में मेल हूँढ़ें|
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उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 4 चुनावी राजनीति

प्रश्न 4.
इस अध्याय में वर्णित चुनाव सम्बन्धी सभी गतिविधियों की सूची बनाएँ और इन्हें चुनाव में सबसे पहले किए जाने वाले काम से लेकर आखिर तक के क्रम में सजाएँ। इनमें (UPBoardSolutions.com) से कुछ मामले हैं- . चुनावी घोषणा-पत्र जारी करना, वोटों की गिनती, मतदाता सूची बनाना, चुनाव अभियान, चुनाव नतीजों की घोषणा, मतदान, पुनर्मतदान के आदेश, चुनाव प्रक्रिया की घोषणा, नामांकन दाखिल करना।
उत्तर:

  1. मतदाता सूची बनाना
  2.  चुनाव प्रक्रिया की घोषणा
  3.  नामांकन दाखिल करन
  4. चुनाव घोषणा-पत्र जारी करना
  5. चुनाव-अभियान
  6.  मतदान
  7.  पुनर्मतदान के आदेश
  8. वोटों की गिनती
  9.  चुनाव नतीजों की घोषणा।

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प्रश्न 5.
सुरेखा एक राज्य विधानसभा क्षेत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने वाली अधिकारी है। चुनाव के इन चरणों में उसे किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए?
(क) चुनाव प्रचार
(ख) मतदान के दिन
(ग) मतगणना के दिन
उत्तर:
(क) चुनाव प्रचार : इसके लिए सुरेखा को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उम्मीदवार निम्नलिखित कार्य न करें

  1. चुनाव प्रचार हेतु पूजा स्थलों का प्रयोग करना।
  2.  मंत्रीगणों द्वारा सरकारी वाहनों, हवाई जहाजों एवं कर्मचारियों का चुनाव हेतु प्रयोग।
  3.  मतदाताओं को रिश्वत/घूस अथवा धमकी देना।
  4.  जाति अथवा धर्म के नाम पर वोट देने की अपील करना।
  5. चुनाव अभियान के लिए सरकारी संसाधनों का प्रयोग करना।
  6.  लोकसभा चुनाव हेतु चुनाव क्षेत्र में 25 लाख तथा विधानसभा चुनाव में 10 लाख से अधिक खर्च करना।

(ख) मतदान के दिन : इस दिन सुरेखा को यह सुनिश्चित करना होगा कि चुनावी गड़बड़ी, मतदान केन्द्रों पर कब्जा न हो।

(ग)। वोटों की गिनती का दिन : इस दिन सुरेखा को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी उम्मीदवारों के एजेन्ट वोटों की सुचारु रूप से गणना सुनिश्चित करने के लिए वहाँ मौजूद हैं।

प्रश्न 6.
नीचे दी गई तालिका बताती है कि अमेरिकी कांग्रेस के चुनावों के विजयी उम्मीदवारों में अमेरिकी समाज के विभिन्न समुदाय के सदस्यों का क्या अनुपात था। ये किस अनुपात में जीते। इसकी तुलना अमेरिकी समाज में इन समुदायों की आबादी के अनुपात से कीजिए। इसके आधार पर क्या आप अमेरिकी संसद के चुनाव में भी आरक्षण का सुझाव देंगे? अगर हाँ, तो क्यों और किस समुदाय के लिए? अगर नहीं तो क्यों?
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उत्तर:
उपर्युक्त तालिका के आधार पर हिस्पैनिक समुदाय के लिए आरक्षण एक अच्छा विचार है। हिस्पैनिक समुदाय की जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए ऐसा करना आवश्यक है।

प्रश्न 7.
क्या हम इस दी गई सूचनाओं के आधार पर निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल सकते हैं? इनमें सभी पर अपनी राय के पक्ष में दो तथ्य प्रस्तुत कीजिए।
(क) भारत के चुनाव आयोग को देश में स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव करा सकने लायक पर्याप्त अधिकार नहीं हैं।
(ख) हमारे देश के चुनाव में लोगों की जबर्दस्त भागीदारी होती है। (ग) सत्ताधारी पार्टी के लिए चुनाव जीतना बहुत आसान होता है।
(घ) अपने चुनावों को पूरी तरह से निष्पक्ष और स्वतन्त्र बनाने के लिए कई कदम उठाने जरूरी हैं।
उत्तर:
(क) ऐसा नहीं है। यथार्थ में निर्वाचन आयोग को देश में स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने का अधिकार प्राप्त है।
यह चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता (UPBoardSolutions.com) लागू करता है तथा इसका उल्लंघन करने वाले राजनीतिक दलों या प्रत्याशियों को दण्डित करता है। चुनाव ड्यूटी के दौरान नियुक्त कर्मचारी चुनाव आयोग के अधीन कार्य करते हैं न कि सरकार के।

(ख) यह सत्य है। चुनावों में लोगों की भागीदारी प्रायः मतदान करने वाले लोगों के आँकड़ों से मानी जाती है। मतदान
प्रतिशत योग्य मतदाताओं में से वास्तव में मतदान करने वाले लोगों के प्रतिशन को प्रदर्शित करता है। मतदाता चुनावों द्वारा राजनीतिक दलों पर अपने अनुकूल नीति एवं कार्यक्रमों के लिए दबाव डाल सकते हैं। मतदाताओं को ऐसा लगता है कि देश के शासन-संचालन के, तरी में उनके मन का विशेष महत्त्व है।

(ग) यह सत्य नहीं है। सत्ताधारी भी चुनाव में पराजित हुए हैं। कई बार ऐसे प्रत्याशी जो चुनावों में अधिक धन खर्च करते हैं, चुनाव हार जाते हैं।

(घ) यह सत्य है। चुनाव सुधार के द्वारा धन बल और अपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों को राजनीति से दूर करने की आवश्यकता है। क्योंकि कई बार धन-बल और अपराधिक छवि वाले लोग राजनीतिक दलों से टिकट
पाने और चुनाव जीतने में सफल हो जाते हैं। ऐसे लोग जनकल्याण नहीं कर सकते बल्कि ये अपनी स्वार्थ सिद्ध में ही लगे रहते हैं।

प्रश्न 8.
चिनप्पा को दहेज के लिए अपनी पत्नी को परेशान करने के जुर्म में सजा मिली थी। सतबीर को छुआछूत मानने को दोषी माना गया था। दोनों को अदालत ने चुनाव लड़ने की (UPBoardSolutions.com) इजाजत नहीं दी। क्या यह फैसला लोकतांत्रिक चुनावों के बुनियादी सिद्धान्तों के खिलाफ जाता है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
यह निर्णय लोकतांत्रिक चुनावों के आधारभूत सिद्धान्तों के विरुद्ध नहीं है क्योंकि चिनप्पा और सतबीर दोनों ही अपराधी हैं। दोनों को कानून का पालन न करने पर न्यायालय द्वारा दण्डित किया जा चुका है अर्थात् ये दोनों देश के लिए । ‘ अच्छे व आदर्श नागरिक सिद्ध नहीं हुए हैं। इसलिए उन्हें केन्द्र अथवा राज्य सरकार में कोई पद धारण नहीं करने देना चाहिए क्योंकि उनमें परिवार और समाज के प्रति सम्मान का अभाव है और उनसे देश व समाज के प्रति सम्मान प्रदर्शन की आशा नहीं है।

प्रश्न 9.
यहाँ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में चुनावी गड़बड़ियों की कुछ रिपोटें दी गई हैं। क्या ये देश अपने यहाँ के चुनावों के सुधार के लिए भारत से कुछ बातें सीख सकते हैं? प्रत्येक मामले में आप क्या सुझाव देंगे?
(क) नाइजीरिया के एक चुनाव में मतगणना अधिकारी ने जान-बूझकर एक उम्मीदवार को मिले वोटों की संख्या बढ़ा दी और उसे विजयी घोषित कर दिया। बाद में अदालत ने पाया कि दूसरे उम्मीदवार को मिले पाँच लाख वोटों को उस उम्मीदवार के पक्ष में दर्ज कर लिया गया था।

(ख)फिजी में चुनाव से ठीक पहले एक परचा बाँटा गया जिसमें धमकी दी गयी थी कि अगर पूर्व प्रधानमंत्री महेंद्र चौधरी के पक्ष में वोट दिया गया तो खून-खराबा हो जाएगा। यह धमकी भारतीय मूल के मतदाताओं को दी गई थी।

(ग) अमेरिका के हर प्रान्त में मतदान, मतगणना और चुनाव संचालन की अपनी-अपनी प्रणालियाँ हैं। सन् 2000 ई. के चुनाव में फ्लोरिडा प्रान्त के अधिकारियों ने जॉर्ज (UPBoardSolutions.com) बुश के पक्ष में अनेक विवादास्पद फैसले लिए पर उनके फैसले को कोई भी नहीं बदल सका।
उत्तर:
(क) यदि चुनाव अधिकारी द्वारा की गयी गड़बड़ी न्यायालय में प्रमाणित हो जाती है तो उस चुनाव को अवैध घोषित कर दिया जाना चाहिए और उस चुनाव को दोबारा कराया जाना चाहिए। भारत में मतगणना के दौरान धाँधली सम्भव नहीं है क्योंकि मतगणना के दौरान उम्मीदवार अथवा उनके प्रतिनिधि मतगणना केन्द्र पर उपस्थित रहते हैं और मतगणना उनके सामने होती है।

(ख) चुनाव से पूर्व किसी प्रत्याशी के विरोध हेतु धमकी भरा परचा निकालना और एक समुदाय को भयभीत करना निश्चित रूप से चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है। इस परचे को जारी करने वाले व्यक्ति अथवा राजनीतिक दल का पता लगा करके उसे दण्डित किया जाना चाहिए। क्योंकि चुनाव परिणाम को प्रभावित करने के लिए धमकी देना लोकतांत्रिक सिद्धान्तों के विरुद्ध है।

(ग) चूँकि, संयुक्त-राज्य अमेरिका के प्रत्येक राज्य को अपने चुनाव-संबंधी कानून बनाने का अधिकार है, फ्लोरिडा राज्य द्वारा लिया गया निर्णय उस राज्य के चुनाव के कानूनों के अनुकूल होगा। यदि ऐसा है तो किसी को भी ऐसे निर्णय को चुनौती देने का अधिकार नहीं होता। भारत में चूंकि (UPBoardSolutions.com) राज्यों को अपने अलग चुनाव-सम्बन्धी कानून बनाने का अधिकार नहीं है, यहाँ पर ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं हो सकती।

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प्रश्न 10.
भारत में चुनावी गड़बड़ियों से सम्बन्धित कुछ रिपोर्टों यहाँ दी गयी हैं। प्रत्येक मामले में समस्या की पहचान कीजिए। इन्हें दूर करने के लिए क्या किया जा सकता है?
(क) चुनाव की घोषणा होते ही मंत्री महोदय ने बन्द पड़ी चीनी मिल को दोबारा खोलने के लिए वित्तीय सहायता देने की घोषणा की।
(ख) विपक्षी दलों का आरोप था कि दूरदर्शन और आकाशवाणी पर उनके बयानों और चुनाव अभियान को उचित जगह नहीं मिली।
(ग) चुनाव आयोग की जाँच से एक राज्य की मतदाता सूची में 20 लाख फर्जी मतदाताओं के नाम मिले।
(घ) एक राजनैतिक दल के गुण्डे बन्दूकों के साथ घूम रहे थे, दूसरी पार्टियों के लोगों को मतदान में भाग लेने से रोक रहे थे और दूसरी पार्टी की चुनावी सभाओं पर हमले कर रहे थे।
उत्तर:
(क) चुनावी की तिथि घोषित हो जाने के बाद सरकार द्वारा नीतिगत निर्णय लेना उचित नहीं है। मंत्री महोदय ने चीनी मिल को आर्थिक सहायता देने का वायदा करके एक नीतिगत निर्णय की घोषणा की है। जो कि अनुचित है। क्योंकि इससे चुनाव को प्रभावित करने की मंशा साफ झलकती है। (UPBoardSolutions.com) अतः मंत्री महोदय को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। मंत्री महोदय का कृत्य आदर्श चुनाव आचार-संहिता का स्पष्ट उल्लंघन है।

(ख) सभी राजनैतिक दलों को रेडियो तथा दूरदर्शन अपने विचार प्रस्तुत करने की स्वतन्त्रता एवं समय दिया जाना चाहिए। भारत में सभी राजनैतिक दलों को निर्वाचन आयोग द्वारा समय दिया जाता है। विपक्षी दल के बयानों । एवं चुनाव अभियान को दूरदर्शन तथा आकाशवाणी पर उचित स्थान न देकर सरकार ने अपनी स्थिति का दुरुपयोग किया है। इसके प्रत्युत्तर में विपक्ष को राष्ट्रीय मीडिया में पर्याप्त समय मिलना चाहिए।

(ग) फर्जी मतदाताओं की मौजूदगी का अर्थ है कि मतदाता सूची तैयार करने वाले अधिकारियों ने चुनावी गड़बड़ी की तैयारी की थी। चुनाव आयोग को मतदाता सूची की तैयारी की देखभाल करनी चाहिए।

(घ) गुण्डों एवं आपराधिक तत्त्वों का प्रयोग करके राजनैतिक दलों द्वारा अपने प्रतिद्वन्द्वियों द्वारा धमकाना और भयभीत करना राजनैतिक दुराचार है। बन्दूक तथा अन्य घातक हथियारों के साथ चुनाव के दौरान लोगों का घूमना फिरना बन्द किया जाना चाहिए। जिनके पास लाइसेंसी हथियार हैं (UPBoardSolutions.com) उनके हथियार चुनावी प्रक्रिया शुरू होते ही जमा करा लिए जाने चाहिए तथा अवैध हथियार लेकर घूमने वालों को दण्डित किया जाना चाहिए। सभी उम्मीदवारों को सरकार की ओर से सुरक्षा उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इस बात के पुख्ता इंतजाम किए जाने चाहिए कि असामाजिक तत्त्व चुनाव के दौरान गड़बड़ी न कर सकें।

प्रश्न 11.
जब यह अध्याय पढ़ाया जा रहा था तो रमेश कक्षा में नहीं आ पाया था। अगले दिन कक्षा में आने के बाद उसने अपने पिताजी से सुनी बातों को दोहराया। क्या आप रमेश को बता सकते हैं कि उसके इन बयानों में क्या गड़बड़ी है?
(क) औरतें उसी तरह वोट देती हैं जैसा पुरुष उनसे कहते हैं इसलिए उनके मताधिकार का कोई मतलब नहीं है।
(ख) पार्टी-पॉलिटिक्स से समाज में तनाव पैदा होता है। चुनाव में सबकी सहमति वाला फैसला होना चाहिए, प्रतिद्वंद्विता नहीं होनी चाहिए।
(ग) सिर्फ स्नातकों को ही चुनाव लड़ने की इजाजत होनी चाहिए।
उत्तर:
(क) यह बात सही नहीं है। वर्तमान भारत में आज ऐसी महिलाएँ बहुत बड़ी संख्या में विद्यमान हैं जो स्वेच्छा से मतदान करती हैं। महिलाओं को मताधिकार से वंचित करना अथवा उन्हें जबरन किसी प्रत्याशी विशेष के लिए मतदान करने के लिए प्रेरित करना लोकतांत्रिक रूप से अनुचित है। (UPBoardSolutions.com) इसीलिए विश्व के सभी लोकतांत्रिक देशों में महिलाओं को मतदान और चुनाव लड़ने का अधिकार दिया गया है।

(ख) यह सत्य है कि दलगत राजनीति समाज में तनाव उत्पन्न करती है किन्तु इसके लिए कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है। वर्तमान में राज्यों की जनसंख्या करोड़ों में है और इतने लोगों से किसी सहमति पर पहुँचना बहुत कठिन होगा।

(ग) केवल स्नातकों को चुनाव लड़ने का अधिकार देना अलोकतांत्रिक होगा। इसका आशय यह होगा कि उन लोगों को चुनाव न लड़ने दिया जाए जो स्नातक नहीं हैं। प्रत्याशियों का शिक्षित होना अच्छी बात है, लेकिन इसके लिए सरकार को दायित्व है कि वह लोगों को शिक्षित करने का प्रयास करे।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चुनाव का अर्थ बताइए।
उत्तर:
लोकतन्त्र में शासन जनता द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के माध्यम से चलाया जाता है। चुनाव वह प्रक्रिया है। जिसके माध्यम से नागरिक अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं।

प्रश्न 2.
मतदाता किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक राज्य में निवास करने वाले ऐसे व्यक्ति जिन्हें प्रतिनिधियों के चुनाव में भाग लेने एवं मतदान करने का अधिकार होता है उन्हें मतदाता कहा जाता है।

प्रश्न 3.
चुनावी धाँधली से क्या आशय है?
उत्तर:
चुनाव में अपने वोट बढ़ाने के लिए उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों द्वारा की जाने वाली गड़बड़ी को चुनावी धाँधली कहते हैं। एक ही व्यक्ति द्वारा अलग-अलग लोगों के नाम पर वोट डालना और मतदान अधिकारी को डरा धमका कर या घूस देकर अपने उम्मीदवार के पक्ष में काम करवाने जैसी बातें चुनावी धाँधली में शामिल हैं।

प्रश्न 4.
मतदान केन्द्र पर कब्जा से क्या आशय है?
उत्तर:
मतदान के दौरान किसी उम्मीदवार अथवा दल के समर्थकों अथवा भाड़े के अपराधियों द्वारा मतदान केन्द्रों पर नियंत्रण करना, असली मतदाताओं को मतदान केन्द्रों पर आने से रोकना तथा स्वयं ज्यादातर वोट डाल देना, मतदान केन्द्रों पर कब्जा कहलाता है।

प्रश्न 5.
चुनाव में उम्मीदवार बनने की योग्यता बताइए।
उत्तर:
चुनाव में उम्मीदवार के लिए निम्न योग्यताएँ होनी चाहिए

  1. वह देश का नागरिक हो।
  2. उस पर किसी तरह का अपराध करने का आरोप सिद्ध नहीं हुआ हो।
  3.  25 वर्ष की न्यूनतम आयु वाला कोई भी मतदाता।
  4.  वह पागल व दिवालिया न हो।।

प्रश्न 6.
लोकतन्त्र में चुनाव का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
आधुनिक राज्यों में प्रायः अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र को स्थापित किया गया है। इस प्रणाली में मतदाता एक निश्चित काल के लिए अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं, जो सरकार को चलाते हैं। प्रतिनिधियों को चुनने के लिए चुनाव आवश्यक होते हैं। चुनाव प्रायः दलीय आधार पर लड़े जाते हैं, परन्तु (UPBoardSolutions.com) कई उम्मीदवार स्वतन्त्र (Independent) उम्मीदवार भी चुनाव लड़ते हैं। चुनावों में जिस राजनैतिक दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त हो जाता है, वह सरकार का गठन करता है और शासन की बागडोर अपने हाथों में सँभालता है।

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प्रश्न 7.
आधुनिक लोकतन्त्र को अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र क्यों कहते हैं?
उत्तर:
आधुनिक राज्य जनसंख्या और क्षेत्रफल की दृष्टि से बहुत बड़े हैं। इसमें सभी मतदाताओं के लिए राज्य के कार्यों में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेना सम्भव नहीं है। इसमें नागरिक एक निश्चित अवधि के लिए अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं जो उसे निर्धारित अवधि तक शासन का संचालन करते हैं। प्रतिनिधियों के माध्यम से संचालित होने के कारण ही इसे अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र कहते हैं।

प्रश्न 8.
उप-चुनाव से आप क्या समझते हैं? |
उत्तर:
संसद या राज्य विधानमण्डल के किसी सदस्य की मृत्यु होने अथवा सदस्य द्वारा किसी कारण से त्यागपत्र देने
या उसे पदच्युत किए जाने की स्थिति में रिक्त हुई लोकसभा या विधानसभा सीट के लिए कराए जाने वाले चुनाव को उपचुनाव कहते हैं। इस चुनाव में निर्वाचित सदस्य केवल उस सदन के शेष कार्यकाल के लिए ही चुने जाते हैं। .

प्रश्न 9.
मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति और पदमुक्त करने की प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत के राष्ट्रपति द्वारा देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की जाती है। एक बार नियुक्त हो जाने के बाद चुनाव आयुक्त राष्ट्रपति या सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं होता है। यदि शासक दल या सरकार को चुनाव आयुक्त पसन्द न हो तब भी मुख्य चुनाव आयुक्त को उसके पद से मुक्त कर पाना सम्भव नहीं होता है।

प्रश्न 10.
चुनाव में किस तरह की गड़बड़ियों की आशंका होती है?
उत्तर:
चुनाव में निम्न गड़बड़ियों की आशंका बनी रहती है

  1. अमीर उम्मीदवारों और बड़ी पार्टियों द्वारा बड़े पैमाने पर धन खर्च करने की।
  2. मतदान के दिन मतदाताओं को डराना और फर्जी मतदान करना।
  3. मतदाता सूची में फर्जी नाम डालने और असली नामों को गायब करने की।
  4. शासक दल द्वारा सरकारी सुविधाओं और अधिकारियों के दुरुपयोग की।

प्रश्न 11.
भारत में किसे मताधिकार प्राप्त है? किसे मताधिकार से वंचित किया जा सकता है?
उत्तर:
भारत में वयस्कता की आयु 18 वर्ष निर्धारित की गयी है। 18 वर्ष या इससे अधिक उम्र का कोई व्यक्ति चुनाव में मतदान कर सकता है। उसे जाति, धर्म, लिंग के आधार पर मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। लेकिन अपराधियों एवं मानसिक रूप से असंतुलित लोगों को मताधिकार का प्रयोग करने का अधिकार नहीं है।

प्रश्न 12.
“मतदाता सूची’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
लोकतांत्रिक निर्वाचन व्यवस्था में निर्वाचन से पहले मतदान की योग्यता रखने वालों की सूची तैयार की जाती है।
इस सूची को अधिकारिक रूप से मतदाता सूची कहते हैं।

प्रश्न 13.
1987 ई. में हुए हरियाणा राज्य विधानसभा के बाद अस्तित्व में आयी सरकार ने क्या महत्त्वपूर्णघोषणा की?
उत्तर:
हरियाणा में चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद चौधरी देवीलाल राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री पद ग्रहण करने के बाद चौधरी देवीलाल ने सर्वप्रथम छोटे किसान, खेतिहर मजदूर और छोटे व्यापारियों के बकाया ऋण को माफ करने का निर्णय किया।

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प्रश्न 14.
न्याय युद्ध आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
हरियाणा में 1982 ई. में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार अस्तित्व में थी। तत्कालीन नेता विपक्ष चौधरी देवीलाल ने कांग्रेस शासन के विरुद्ध न्याय युद्ध आन्दोलन का नेतृत्व किया (UPBoardSolutions.com) और लोकदल नामक नए राजनीतिक दल का गठन किया। चौधरी देवीलाल ने कांग्रेस के विरुद्ध चुनाव लड़ने के लिए अन्य विपक्षी दलों को मिलाकर एक मोर्चे का गठन किया।

प्रश्न 15.
1971 ई. में इन्दिरा गाँधी ने, 1977 ई. में जनता पार्टी ने और 1977 ई. में ही बंगाल में वामपंथियों ने चुनाव में क्या नारा दिया था?
उत्तर:
1971 ई. के लोकसभा के चुनावों में इन्दिरा गाँधी की नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया। था। 1977 ई. में हुए लोकसभा चुनावों में जनता पार्टी ने लोकतन्त्र बचाओ का नारा दिया था। वामपंथी दलों ने 1977 ई. में हुए पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में जमीन जोतने वाले को जमीन का नारा दिया था।

प्रश्न 16.
मध्यावधि चुनाव किसे कहते हैं?
उत्तर :
भारत में लोकसभा और विधानसभा का चुनाव प्रायः पाँच वर्ष के लिए करवाया जाता है किन्तु यदि लोकसभा या विधानसभा को उसके निश्चित कार्यकाल से पहले भंग कर दिया जाता है तो उसके लिए नए चुनाव करवाए जाते हैं, तो ऐसे चुनाव को

प्रश्न 17.
भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त (2018) कौन हैं?
उत्तर:
भारत के वर्तमान (2018) मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत हैं। इनकी नियुक्ति अचल कुमार ज्योति के स्थान पर 23 जनवरी, 2018 ई. को की गयी। वे भारत के 22वें मुख्य निर्वाचन आयुक्त हैं। चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की अवधि तक होता है।

प्रश्न 18.
चुनाव को लोकतांत्रिक बनाने के दो आधार बताइए।
उत्तर:
(i) प्रत्येक मतदाता को समान रूप से चुनाव लड़ने का अधिकार हो और राजनैतिक दलों तथा उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की आजादी हो और वे मतदाताओं के (UPBoardSolutions.com) सम्मुख विकल्प प्रस्तुत कर सकें।
(ii) देश के प्रत्येक नागरिक को बिना किसी प्रकार के भेदभाव के मतदान का अधिकार प्राप्त हो और प्रत्येक मतदाता के मत का मूल्य समान हो।

प्रश्न 19.
राजनैतिक प्रतिद्वन्द्विता का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
चुनाव का वास्तविक अर्थ राजनैतिक प्रतिद्वन्द्विता है। इसके कई रूप हो सकते हैं जिनमें से सबसे स्पष्ट रूप है।
राजनैतिक दलों के बीच प्रतिद्वन्द्विता। निर्वाचन-क्षेत्र में इसका रूप उम्मीदवारों के बीच प्रतिद्वन्द्विता का हो जाता है।
यदि प्रतिद्वन्द्विता न रहे तो चुनाव बेमानी हो जाएँगे।

प्रश्न 20.
चुनाव आयोग के दो प्रमुख कार्य बताइए।
उत्तर:
चुनाव आयोग के दो प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं

  1. यह चुनावों का प्रबन्ध, निर्देशन नथा नियंत्रण करता है तथा चुनावों से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान करता है।
  2.  चुनाव आयोग चुनावों से पूर्व चुनाव-क्षेत्र के आधार पर मतदाताओं की सूचियाँ तैयार करवाता है।

प्रश्न 21.
भारत की चुनाव-व्यवस्था के कोई दो दोष (त्रुटियाँ) लिखें।
उत्तर:
(i) चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका।
(ii) जाति तथा धर्म के आधार पर मतदान।

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प्रश्न 22.
गुप्त मतदान का क्या अर्थ है?
उत्तर:
गुप्त मतदान का अर्थ है कि चुनाव अधिकारियों द्वारा चुनाव के लिए ऐसी प्रबन्ध किया जाता है कि स्वयं मतदाता के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को यह मालूम न हो कि मतदाता ने किस उम्मीदवार को अपना मत दिया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में राजनैतिक दलों को चुनाव में चुनाव चिह्न दिए जाने का कारण है?
उत्तर:
चुनाव आयोग द्वारा भारत में विभिन्न राजनीतिक दलों को विभिन्न चुनाव चिह्न आबंटित किये गये। उदाहरण के लिए कांग्रेस (इ) का चुनाव चिह्न ‘हाथ का पंजा’ तथा भाजपा का चुनाव चिह्न ‘कमल का फूल’ है।
राजनैतिक दलों को चुनाव चिह्न प्रदान करने का प्रमुख कारण यह है

  1.  यदि एक ही नाम के दो अथवा अधिक उम्मीदवार हों, तो चुनाव चिह्नों की सहायता से उनकी पहचान करना। आसीन हो जाता है।
  2. चिह्न के द्वारा एक साधारण तथा अशिक्षित व्यक्ति भी चिह्न से सम्बन्धित राजनैतिक दल के उम्मीदवार की पहचान कर सकता है। |
  3.  चुनाव चिह्न की सहायता से सभी चुनाव क्षेत्रों में राजनैतिक दल बड़ी आसानी से अपना चुनाव-प्रचार कर सकते। हैं। चुनाव चिह्नों से उन्हें जलूस तथा जलसे आदि संगठित करने में आसानी होती है।

प्रश्न 2.
चुनाव घोषणा-पत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
राजनैतिक दलों द्वारा चुनाव के समय अपने कार्यक्रम, नीतियों तथा उद्देश्यों को बताने के लिए जो प्रपत्र जारी किया जाता है, उसी प्रपत्र को चुनाव घोषणा-पत्र कहते हैं। चुनाव के कुछ दिन पहले प्रत्येक राजनैतिक दल अपना घोषणापत्र जारीं करते हैं। इस प्रपत्र के माध्यम से राजनीतिक (UPBoardSolutions.com) दल लोगों को यह बताते हैं कि देश की आन्तरिक तथा विदेश नीति के बारे में उनके क्या विचार हैं और उसे यदि सरकार बनाने का अवसर मिला, तो वह कौन-कौन से कार्य करेंगे।
चुनाव घोषणा-पत्र के निम्नलिखित उपयोग (लाभ) हैं

  1. इससे विभिन्न राजनैतिक दलों की आन्तरिक तथा बाहरी नीति के बारे में लोगों को जानकारी मिल सकती है।
  2. विभिन्न राजनैतिक दलों के चुनाव घोषणा-पत्रों को देखने के पश्चात् मतदाताओं के लिए मत का निर्णय लेना आसान होता है।
  3.  चुनाव जीतने वाले दल के लिए घोषणा-पत्र पथ-प्रदर्शन का कार्य करता है, क्योंकि उन्हें अपना कार्य उसी के । अनुसार करना होता है।
  4. चुनाव के पश्चात् घोषणा-पत्र के अनुसार कार्य करने के लिए जनता सरकार पर दबाव डाल सकती है।
  5. यदि सरकार उन वायदों को पूरा नहीं करती जो घोषणा-पत्र में दिए गए थे, तो जनता सरकार की आलोचना कर सकती है।

प्रश्न 3.
लोकतन्त्र में चुनाव क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
भग्त जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनाव के समय लोग आपस में विचार-विमर्श करके मतदान का निर्णय करते हैं। किन्तु लोगों के लिए व्यावहारिक रूप से यह संभव नहीं है कि सभी मुद्दों पर सभी नागरिक बैठकर आपस में निर्णय लें क्योंकि इसके लिए सभी व्यक्तियों के पास इसके (UPBoardSolutions.com) लिए आवश्यक समय तथा ज्ञान नहीं होता है। इसलिए अधिकतर लोकने देशों में लोग अपने प्रतिनिधियों द्वारा शासन करते हैं। लोकतंत्र चुनाव के माध्यम से लोगों को एक ऐसा तरीका उपलब्ध करा है जिसके द्वारा लोग नियमित अन्तरलों पर अपने प्रतिनिधियों को चुन सकते हैं तथा यदि वे चाहें तो उन्हें बदल भी सकते हैं। अतः किसी भी लोकतन्त्र के लिए चुनाव आवश्यक है।

प्रश्न 4.
भारत में चुनावी प्रतिद्वन्द्विता के दोषों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में चुनाव प्रतिद्वन्द्विता के कुछ दोष इस प्रकार हैं

  1.  चुनाव जीतने का दबाव सही किस्म की दीर्घकालिक राजनीति को पनपने नहीं देता।
  2.  समाज तथा देश की सेवा करने की इच्छा रखने वाले अच्छे लोग भी इन्हीं कारणों से चुनावी मुकाबले में नहीं उतरते।
  3.  यह प्रत्येक समुदाय में ‘अलगाव तथा ‘भिन्नता’ की भावना पैदा करता है।
  4. विभिन्न राजनैतिक दल तथा नेतागण एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं।
  5. दल तथा उम्मीदवार चुनाव जीतने के लिए तरह-तरह के हथकण्डे अपनाते हैं।

प्रश्न 5.
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र के प्रसार से पहले मताधिकार सम्पत्ति, शिक्षा, नस्ल, लिंग आदि पर आधारित होता था, परन्तु आधुनिक समय में इस समस्त पूर्ववर्ती मान्यताओं को अस्वीकार कर दिया गया है। अब वयस्कता को ही मतदान का एकमात्र आधार माना जाने लगा है। इसमें प्रत्येक नागरिक को, जो वयस्क हो गया है, मतदान का अधिकार दे दिया जाता है। केवल अल्पवयस्क, पागल, दिवालिया, अपराधी तथा विदेशी लोगों को ही मताधिकार से वंचित नहीं किया जाता है।
किसी भी व्यक्ति को उसके धर्म, जाति, वंश, लिंग तथा (UPBoardSolutions.com) जन्म-स्थान के आधार पर मताधिकार से वंचित किया जाता। वयस्क होने की आयु भिन्नभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न रखी गयी है। स्विट्जरलैण्ड में यह आयु 20 वर्ष है। भारत में व्यक्ति के वयस्क होने के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष और जापान में 25 वर्ष निश्चित की गई है। वर्तमान युग में विश्व के लगभग सभी देशों में वयस्क मताधिकार को लागू किया गया है।

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प्रश्न 6.
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के विपक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:

  1. प्रशासन तथा देश की समस्याएँ जटिल- आधुनिक युग में शासन सम्बन्धी प्रश्न तथा समस्याएँ दिन-प्रतिदिन जटिल होती जा रही हैं, जिन्हें समझ पाना साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं है। प्रायः साधारण मतदाता अयोग्य व्यक्ति को चुन लेते हैं क्योंकि उनके पास देश की (UPBoardSolutions.com) समस्याओं पर विचार करने तथा उन्हें समझने के लिए समय ही नहीं होता। इस कारण से भी मतदान का अधिकार केवल शिक्षित व्यक्तियों को ही देना चाहिए।
  2. साधारण जनता रूढ़िवादी होती है- साधारण जनता द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में प्रगतिशील नीतियों का विरोध किया जाता है। अतः मताधिकार ऐसे व्यक्तियों को दिया जाना चाहिए जो इसका उचित प्रयोग करने की योग्यता रखता हो।
  3. अज्ञानी व्यक्तियों को मताधिकार देना अनुचित है– प्रत्येक देश में अधिकतर जनता अशिक्षित तथा अज्ञानी होती है। वे उम्मीदवार के गुणों को न देखकर जाति, धर्म तथा मित्रता आदि के आधार पर अपने मत का प्रयोग करते हैं। ऐसे व्यक्ति राजनीतिक नेताओं के जोशीले भाषणों से भी शीघ्र प्रभावित हो जाते हैं। अतः अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार देना उचित नहीं है। |
  4.  भ्रष्टाचार को बढ़ावा– वयस्क मताधिकार प्रणाली में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। धनी उम्मीदवारों द्वारा निर्धन व्यक्तियों के मतों को खरीद लिया जाता है। निर्धन व्यक्ति थोड़े-से लालच में पड़कर अपना मत स्वार्थी तथा भ्रष्टाचारी उम्मीदवारों के हाथों में बेच देते हैं।

प्रश्न 7.
चुनाव अभियान को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
भारत में चुनाव अभियान प्रत्याशियों की अन्तिम सूची की घोषणा से मतदान की तिथि (लगभग 2 सप्ताह तक चलता है। इस अवधि के दौरान प्रत्याशी अपने मतदाताओं से संपर्क करता है, राजनैतिक नेता चुनावी सभाओं ‘ को सम्बोधित करते हैं तथा राजनैतिक दल अपने समर्थकों (UPBoardSolutions.com) को सक्रिय करते हैं।
अखबारों, दूरदर्शन चैनलों, चुनाव सभाओं, पोस्टरों, होर्डिंग इत्यादि के द्वारा भी प्रचार किया जाता है। चुनाव अभियान के दौरान राजनैतिक दल बड़े मुद्दों की ओर जनसाधारण का ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास करते हैं जिसके लिए सामान्यतः लुभावने नारे तैयार किए जाते हैं ताकि लोगों का ध्यान खींचा जा सके।

प्रश्न 8.
उन तत्त्वों का उल्लेख कीजिए जो चुनाव को लोकतांत्रिक बनाती हैं?
उत्तर:
प्रायः सभी लोकतांत्रिक देशों में चुनाव प्रक्रिया अपनायी जाती है। निम्नलिखित तत्त्व चुनाव को लोकतांत्रिक बनाते हैं

  1. कुछ वर्षों के अंतराल पर नियमित रूप से चुनाव होने चाहिए।
  2. चुनाव स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष होने चाहिए ताकि लोग अपनी इच्छानुसार उम्मीदवार चुन सकें। |
  3.  प्रत्येक व्यक्ति को वोट को अधिकार होना चाहिए तथा प्रत्येक वोट का समान मूल्य होना चाहिए।
  4.  दलों तथा उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की स्वतंत्रता होनी चाहिए तथा उन्हें मतदाता को वास्तविक चुनाव हेतु न।’ विकल्प उपलब्ध कराना चाहिए। |

प्रश्न 9.
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के बारे में बताइए।
उत्तर:
पहले मतदान के लिए बैलेट पेपर का प्रयोग किया जाता था जिस पर मतदाता अपनी पसन्द के उम्मीदवार के नाम के आगे अंकित चुनाव चिह्न पर मुहर लगाकर मतदान करते थे किन्तु अब मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग किया जाता है। मशीन प्रत्याशियों के नाम तथा दलों के चुनाव चिह्न दर्शाती है। आजाद उम्मीदवारों को भी चुनाव आयोग द्वारा चुनाव चिह्न प्रदान किए जाते हैं। मतदाता को केवल उस उम्मीदवार के सामने का बटन दबाना होता है जिसे वह वोट (UPBoardSolutions.com) देना चाहता/चाहती है। एक बार मतदान समाप्त हो जाने के बाद सभी ई.वी.एम. सील की जाती हैं तथा किसी सुरक्षित । स्थान पर ले जाई जाती हैं। उसके बाद निर्धारित तिथि को प्रत्येक उम्मीदवार को मिले वोटों की गणना की जाती है तथा जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक वोट मिलते हैं उसे निर्वाचित घोषित किया जाता है।

प्रश्न 10.
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष चुनाव में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वह चुनाव प्रणाली जिसमें साधारण मतदाता अपने जनप्रतिनिधियों को स्वयं चुनते हैं, उसे प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली कहते हैं। इसमें प्रत्येक मतदाता विभिन्न उम्मीदवारों में से एक उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करता है और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों में से जो उम्मीदवार शेष सभी उम्मीदवारों से अधिक मत प्राप्त कर लेता है, वह निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। भारत में लोकसभा के सदस्यों के चुनाव के (UPBoardSolutions.com) लिए वही चुनाव प्रणाली लागू की गई है। इसके विपरीत अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के अन्तर्गत मतदाता स्वयं अपने प्रतिनिधियों का चुनाव नहीं करते। मतदाता अपने मत डालकर कुछ निर्वाचकों अथवा प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं और इस प्रकार एक निर्वाचक मण्डल का निर्माण होता है। इस निर्वाचक मण्डल के सदस्य विशेष अधिकारी का चुनाव करते हैं। भारत में राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के चुनाव के लिए इस चुनाव-प्रणाली को अपनाया गया है।

प्रश्न 11.
चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार किस अनुचित साधनों का प्रयोग करते हैं?
उत्तर:
लोकतन्त्र में चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार कई बार अनुचित साधनों का प्रयोग करते हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है..

  1. मतदाताओं को भयभीत करना और मतदान के दिन चुनावी धाँधली करना।
  2.  कुछ प्रभावशाली उम्मीदवारों द्वारा चुनाव जीतने हेतु मतदान केन्द्रों पर कब्जा भी किया जाता है।
  3.  मतदाता सूची में झूठे नाम शामिल करना तथा वास्तविक नामों को हटाना।
  4.  सत्ताधारी दल द्वारा सरकारी सुविधाओं व कर्मचारियों का दुरुपयोग।
  5. बड़े दल एवं धनी उम्मीदवारों द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक धनराशि का प्रयोग।

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प्रश्न 12.
भारतीय चुनावों की चुनौतियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय चुनावों की प्रमुख चुनौतियाँ इस प्रकार हैं

  1. अक्सर आम आदमी के लिए चुनाव में कोई ढंग का विकल्प होता ही नहीं क्योंकि दोनों प्रमुख पार्टियों की नीतियाँ 319 एवं व्यवहार लगभग एक जैसे ही होते हैं।
  2.  बड़ी पार्टियों की अपेक्षा छोटे दलों तथा निर्दलीय उम्मीदवारों को कई प्रकार की परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं।
  3.  आर्थिक रूप से सम्पन्न उम्मीदवार एवं दल चाहे चुनाव में अपनी विजय के प्रति आश्वस्त न हों लेकिन छोटे दलों एवं निर्दलीय उम्मीदवारों पर बड़ा तथा अनुचित लाभ पाते हैं।
  4. देश के कुछ भागों में आपराधिक छवि वाले लोग अन्य लोगों को चुनावी दौड़ में पछाड़ कर मुख्य दलों से चुनाव | का टिकट पाने में सफल हो जाते हैं।
  5. लग-अलग दलों पर कुछेक परिवारों का जोर है तथा उनके रिश्तेदार आसानी से टिकट पा जाते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए भारत में क्या प्रयास किए गए हैं?
उत्तर:
भारत में स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए किये गये प्रयासों का विवरण इस प्रकार है

  1.  चुनाव आयोग की स्थापना- भारत में स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए संविधान द्वारा एक चुनाव आयोग की स्थापना की गयी है। इसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो अन्य आयुक्त होते हैं।
  2.  चुनाव से पहले मतदाता सूचियों को ठीक करना- चुनावों के कुछ समय पहले राज्य विधानसभा तथा संसद के प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूचियों को दोहराया जाता है और इस बात की तसल्ली की जाती है कि कोई मतदाता ऐसा न रह जाए जिसका नाम उस सूची में शामिल न हो।
  3. सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग पर नियंत्रण- चुनाव आयोग द्वारा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि सत्तारूढ़ दल सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग न करें।
  4.  मतदाताओं के लिए पहचान-पत्र- फर्जी मतदान को रोकने के लिए मतदाताओं को फोटो सहित पहचान-पत्र जारी किए जाते हैं।
  5. चुनाव याचिका को शीघ्र निपटारा- यदि चुनावों के पश्चात् कोई उम्मीदवार चुनाव याचिका पेश करता है तो ,उसे जल्द से जल्द निपटा देना चाहिए।
  6.  चुनावों में धन का प्रयोग- चुनावों में धन की भूमिका को कम-से-कम करने के लिए प्रत्येक उम्मीदवार द्वारा किए गए खर्च की जाँच की जाए। यदि किसी उम्मीदवार ने निश्चित की गई सीमा से अधिक धन खर्च किया है। तो उसके चुनाव को अवैध घोषित किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
निर्वाचन को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र में स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनावों के महत्त्व को देखते हुए इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान में एक निर्वाचन आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया है। चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा कुछ अन्य सदस्य होते हैं।
वर्तमान समय में चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त के अतिरिक्त दो अन्य सदस्य नियुक्त किए गए हैं। उनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उनका कार्यकाल 6 वर्ष निश्चित किया गया है।
चुनाव आयोग के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

  1. देश में सभी चुनाव सम्बन्धी मामलों पर निरीक्षण तथा नियंत्रण रखना।।
  2. राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं व विधानपरिषदों के चुनाव करवाना तथा परिणाम घोषित करना।
  3. मतदाताओं की सूचियाँ तैयार करवाना।
  4.  राजनैतिक दलों को मान्यता प्रदान करना तथा उन्हें चुनाव चिह्न देना।
  5. विभिन्न चुनाव करवाने के लिए रिटर्निंग ऑफिसर तथा सहायक रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त करना।
  6. नाव के लिए नामांकन पत्रों को जमा कराने, नाम वापस लेने तथा मतदान की तिथियाँ निश्चित करना।
  7.  राजनैतिक दलों के लिए आचार-संहिता तैयार करना।
  8. विभिन्न राजनैतिक दलों को रेडियो तथा टेलीविजन आदि पर चुनाव प्रचार करने की सुविधाएँ दिलाना।

प्रश्न 3.
भारतीय चुनाव प्रणाली की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भारत में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली अस्तित्व में है अतः एक निश्चित समयान्तराल पर चुनाव होते रहते हैं। भारत में अपनायी गयी निर्वाचन प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1.  प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष चुनाव- भारत में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के चुनाव कराए जाते हैं। लोकसभा,
    विधानसभाओं, नगरपालिकाओं तथा पंचायतों आदि के सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से चुने जाते हैं। इसके विपरीत राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के चुनाव के लिए अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का प्रयोग किया जाता है।
  2. चुनाव याचिका- यदि कोई उम्मीदवार या मतदाता किसी चुनाव से संतुष्ट नहीं है, तो वह उच्च न्यायालय में उस चुनाव के विरुद्ध अपनी याचिका भेज सकता है।
  3. अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए स्थान सुरक्षित करना– भारतीय संविधान के अनुसार संसद, राज्यों के विधानमण्डलों तथा स्थानीय स्वशासन की इकाइयों में पिछड़ी जातियों तथा हरिजनों के लिए स्थान सुरक्षित रखने की व्यवस्था की गयी है।
  4. वयस्क मताधिकार– भारत में चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होते हैं। इनका अर्थ यह है कि प्रत्येक उस नागरिक को जिसकी आयु 18 वर्ष अथवा इससे अधिक है, बिना जाति, धर्म, लिंग तथा रंग आदि के भेदभाव के मतदान का अधिकार दिया गया है।
  5. संयुक्त-निर्वाचन- ब्रिटिश सरकार ने भारत में रहने वाली विभिन्न जातियों के सदस्यों में फूट डालने के लिए साम्प्रदायिक चुनाव-प्रणाली को लागू किया था, परन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् इसे समाप्त कर दिया गया है। अब एक चुनाव-क्षेत्र में रहने वाले सभी मतदाता, चाहे वह किसी भी जाति अथवा धर्म से सम्बन्ध रखते हों, अपना एक ही प्रतिनिधि चुनते हैं।
  6. एक सदस्य निर्वाचन क्षेत्र- इसका अर्थ यह है कि चुनाव के समय समस्त देश को या उस राज्य को जिसमें चुनाव होना है लगभग बराबर जनसंख्या वाले चुनाव-क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है और प्रत्येक चुनाव-क्षेत्र में एक ही सदस्य निर्वाचित किया जाता है।
  7.  गुप्त मतदान- चुनाव गुप्त मतदान रीति से होता है। स्वयं मतदाता के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति को इस बात
    का पता नहीं चल सकता कि मतदाता ने किस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया है।

प्रश्न 4.
भारत में चुनाव के विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में चुनाव के प्रमुख सोपान इस प्रकार हैं

  1. प्रत्याशी द्वारा नामांकन- कोई भी व्यक्ति जो मतदान कर सकता है वह चुनाव में प्रत्याशी भी बन सकता है।
    किन्तु मतदान हेतु न्यूनतम आयु सीमा 18 वर्ष है जबकि प्रत्याशी बनने हेतु न्यूनतम आयु सीमा 25 वर्ष है। राजनैतिक दल अपने प्रत्याशी नामित करते हैं (UPBoardSolutions.com) जिन्हें उस दल का चुनाव निशान तथा नामांकन उपलब्ध होता है। दल द्वारा नामांकन को दल को ‘टिकट’ भी कहा जाता है। चुनाव लड़ने के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति को एक नामांकन पत्र भरना होता है तथा उसे जमानत के रूप में कुछ पैसा जमा करना होता है।
  2. चुनाव अभियान- चुनाव अभियान की पूरी प्रक्रिया प्रत्याशियों की अन्तिम सूची की घोषणा से मतदान की तिथि
    (लगभग 2 सप्ताह की अवधि) तक क्रियाशील रहता है। चुनाव अभियान के दौरान प्रत्याशी अपने मतदाताओं से | सम्पर्क करता है, चुनावी सभाओं को सम्बोधित करता है। इस प्रकार राजनैतिक दल अपने समर्थकों को जागरुक करते हैं। समाचार-पत्रों, दूरदर्शन चैनलों, चुनाव सभाओं, पोस्टरों, होर्डिंग इत्यादि के द्वारा प्रचार किया जाता है। चुनाव अभियान के दौरान राजनैतिक दल (UPBoardSolutions.com) बड़े मुद्दों की ओर जनसाधारण का ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास करते हैं जिसके लिए सामान्यतः लुभावने नारे तैयार किए जाते हैं ताकि लोगों का ध्यान खींचा जा सके।
  3. मतदान व मतगणना- मतदान के दिन मतदाता अपना वोट देते हैं। जिन लोगों को मतदान का अधिकार है वे निकटतम ‘मतदान केन्द्र पर जाकर मतदान करते हैं। मतदान करने वाले व्यक्ति की अंगुली पर एक पहचान चिह्न लगाया जाता है जिससे कोई भी मतदाता एक बार से अधिक मतदान न कर सके। मतदान की अविध समाप्त हो जाने के बाद ई.वी.एम. मशीनों को सील कर (UPBoardSolutions.com) दिया जाता है तथा इसे सुरक्षित स्थलों पर पहुँचा दिया जाता है। मतगणना के लिए पूर्व निर्धारित तिथि को मतों की गणना की जाती है तथा सर्वाधिक मत पाने वाले प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।

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प्रश्न 5.
आरक्षित चुनाव क्षेत्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान में प्रदत्त अधिकार के माध्यम से प्रत्येक नागरिक अपना जनप्रतिनिधि स्वेच्छा से चुन सकता है और स्वयं एक प्रतिनिधि के रूप में चुना जा सकता है। हमारे संविधान निर्माताओं ने समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षित चुनाव क्षेत्रों की एक विशेष प्रणाली अपनायी है। ऐसा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए किया गया है ताकि वे लोकसभा तथा विधानसभा के लिए निर्वाचित हो सकें जो कि अन्य संसाधनों तथा शिक्षा आदि की कमी के कारण अन्यथा उनके लिए (UPBoardSolutions.com) संभव नहीं हो पाता। कुछ चुनावी क्षेत्र अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों से सम्बन्ध रखने वाले लोगों के लिए आरक्षित किए गए हैं। फिलहाल, लोकसभा में अनुसूचित जातियों के लिए 79 तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए 41 सीटें आरक्षित हैं। कुछ राज्यों में अब अन्य पिछड़े वर्गों के लिए भी ग्रामीण पंचायत तथा शहरी नगरपालिका एवं नगर निगम, स्थानीय निकायों में आरक्षण देना प्रारम्भ किया है। इसी प्रकार ग्रामीण तथा शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए भी एक तिहाई सीटें आरक्षित हैं।

प्रश्न 6.
चुनाव-अभियान के दौरान प्रयोग में लाए जाने वाले साधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
चुनाव अभियान निर्वाचन की एक प्रमुख प्रक्रिया है। इसके माध्यम से उम्मीदवार मतदाताओं को अपने पक्ष में मतदान करने हेतु प्रेरित करने का प्रयास करता है। उम्मीदवारों द्वारा चुनाव अभियान के दौरान निम्न साधनों का प्रयोग किया जाता है

  1.  प्रेस व समाचार-पत्र- पढ़े-लिखे मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं का भी प्रयोग किया जाता है। विभिन्न नेता उनमें अपने विचार व्यक्त करते हैं तथा जनता को अपने पक्ष में मतदान करने की अपील करते हैं।
  2.  रेडियो तथा टेलीविजन- रेडियो तथा टेलीविजन में भी प्रायः सभी दलों को कुछ निश्चित समय प्रदान किया जाता है जिससे वे अपनी नीतियों तथा कार्यक्रम का प्रचार करते हैं।
  3. घर-घर जाकर मुलाकात करना- चुनाव के दिनों में प्रत्येक उम्मीदवार अपने कार्यकर्ताओं को साथ लेकर घर| घर जाकर मतदाताओं से वोट माँगता है। मतदाताओं को उम्मीदवार तथा उसके दल के बारे में जानकारी दी जाती है और उनकी शंकाएँ दूर की जाती हैं। लोगों में पोस्टर तथा घोषणा-पत्र भी बाँटे जाते हैं और उनका समर्थन प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है।
  4.  पोस्टर लगाना- पोस्टर के माध्यम से (UPBoardSolutions.com) राजनीतिक दल तथा उम्मीदवार पढ़े-लिखे मतदाताओं को लुभाने का प्रयत्न करते हैं। पोस्टरों द्वारा आकर्षक नारे, प्रभावशाली आक्षेप, कार्टून तथा चुनाव सम्बन्धी विभिन्न सूचनाएँ दी जाती हैं।
  5.  सभाएँ करना वे भाषण देना– विभिन्न राजनैतिक दल तथा उम्मीदकर आम सभाएँ करके अपने विचार जन साधारण तक पहुँचाते हैं, वे अपनी अथवा अपने दल की अच्छाइयों तथा विरोधी दल की बुराइयों से जनता को अवगत कराते रहते हैं।
  6. जलूस निकालना- मतदाताओं को प्रभावित करने तथा अपने पक्ष में करने के लिए विभिन्न दल जलूस निकालते हैं जिनमें लाउडस्पीकरों से जोर-जोर से नारे लगाए जाते हैं। मतदाताओं से यह अपील की जाती है कि वह उस दल अथवा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करें।

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प्रश्न 7.
भारत में चुनाव-प्रणाली की चुनौतियों का उल्लेख कीजिए। इन चुनौतियों के समाधान हेतु सुझाव भी प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है। भारत में 62 करोड़ से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं। भारत में अब तक लोकसभा के 16 चुनाव हो चुके हैं। किन्तु इस दौरान भारतीय चुनाव प्रणाली के कुछ दोष भी दिखलायी पड़े जिनका विवरण इस प्रकार है

(i) चुनाव में बाहुबल और हिंसा- भारतीय चुनाव में एक और गम्भीर त्रुटि और समस्या है चुनाव में बाहुबल का प्रयोग। चुनने में हिंसा बढ़ती जा रही है। चुनाव में बाहुबल और हिंसा का प्रयोग विशेषकर हरियाणा, पश्चिमी बंगाल, जम्मू-कश्मीर तथा बिहार आदि राज्यों में हो रहा है। विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में बम विस्फोट, छुरेबाजी औं गोली का प्रयोग होता है। मतदाताओं को डराया-धमकाया जाता है और उन्हें एक विशेष दल के पक्ष में वोट डालने के लिए कहा जाता है। मतदान केंद्रों पर कब्जा किया जाता है। चुनाव के दिनों में आम आदमी सुरक्षित महसूस नहीं करता। मतदान केन्द्रों पर कब्जा बड़े नियोजित ढंग से किया जाता है।

(ii) चुनाव याचिका के निपटारे में देरी– साधारणतः यह देखा गया है कि चुनाव याचिका के निपटारे में बहुत अधिक समय लग जाता है। कई बार तो उम्मीदवार का कार्यकाल समाप्त होने को आता है और चुनाव याचिका का निर्णय ही नहीं होता।

(iii) सरकारी तंत्र का दुरुपयोग- भारतीय चुनाव व्यवस्था की एक और गम्भीर त्रुटि सामने आयी है। मंत्रियों द्वारा
दलीय लाभ के लिए सरकारी तंत्र का प्रयोग किया जाता है। वोट बटोरने के लिए मंत्रियों द्वारा लोगों को तरह-तरह के आश्वासन दिए जाते हैं। विभिन्न वर्गों के लिए अनेकानेक रियायतों और सुविधाओं की घोषणा की जाती है। अनेक प्रकार की विकास योजनाओं की घोषणा की जाती है; जैसे–कारखानों, स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों व पुलों के शिलान्यास आदि की घोषणा करना। सरकारी कर्मचारी के वेतन-भत्ते आदि में वृद्धि की जाती है। कर्जे माफ किए जाते हैं।

(iv) मतदाताओं की अनुपस्थिति- चुनावों में बहुत से मतदाता भाग लेते ही नहीं। मतदाता चुनावों में रुचि लेते ही नहीं।
उनके लिए वोट डालना एक समस्या बन गई है। वह मतपत्र का प्रयोग करते ही नहीं। मतपत्र का प्रयोग न करना एक प्रकार से लोकतंत्र को धोखा देना ही है। अक्सर देखने में आता है कि 60 प्रतिशत मतदाता ही वोट डालते हैं। मतदान का प्रतिशत कई चुनावों में तो 60% अथवा इससे भी कम रहता है।

(v) राजनीति का अपराधीकरण- पिछले कुछ वर्षों में भारतीय चुनाव-प्रणाली में एक और दोषपूर्ण मोड़ आया है।
प्रायः सभी राजनीतिक दलों ने ऐसे बहुत-से उम्मीदवार चुनाव में खड़े किए, जिनका अपराधों की दुनिया में नाम था। ऐसे व्यक्तियों ने राजनीति में अपराधीकरण को बढ़ावा देने का काम किया और लोगों को भय दिखाकर वोट माँगे तथा गोली के बल पर विरोधियों को न चुनाव लड़ने दिया और न ही वोट डालने दिया। जब अपराधी, तस्कर और लुटेरे पहले किसी दल के सक्रिय सदस्य तथा बाद में विधायक बन जाएँ तो उस देश के भविष्य के उज्ज्वल होने की आशा नहीं की जा सकती।

(vi) चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका- भारतीय चुनाव-प्रणाली का सबसे बड़ा दोष चुनावों में धन की बढ़ती हुई भूमिका है। भारतीय चुनावों में धन का अंधाधुंध प्रयोग और दुरुपयोग ने भारत की राजनीति को काफी भ्रष्ट किया है। भारत में काले धन का बड़ा बोलबाला है और उसका चुनावों में दिल खोलकर प्रयोग किया जाता है। मतदाताओं के लिए शराब के दौर चलाए जाते हैं, मत खरीदे जाते हैं, उम्मीदवारों (UPBoardSolutions.com) को धनी लोगों द्वारा खड़ा किया जाता है। और पैसे के बल पर बिठाया जाता है तथा मतदाताओं को लाने व ले जाने के लिए गाड़ियों का प्रयोग किया जाता है। आज का चुनाव पैसे के बल पर ही जीता जा सकता है और इस धन ने मतदाताओं, राजनीतिक दलों तथा प्रतिनिधियों सबको भ्रष्ट बना दिया है।

(vii) जाति और धर्म के नाम पर वोट- भारत में सांप्रदायिकता का बड़ा प्रभाव है और इसने हमारी प्रगति में सदैव बाधा उत्पन्न की है। जाति और धर्म के नाम पर खुले रूप से मत माँगे और डाले जाते हैं। राजनीतिक दल भी अपने उम्मीदवार खड़े करते समय इस बात को ध्यान में रखते हैं और उसी जाति और धर्म का उम्मीदवार खड़ा करने का प्रयत्न करते हैं, जिस जाति का उस निर्वाचन-क्षेत्र में बहुमत हो। भारत में अब तक जो चुनाव हुए हैं, उनके आँकड़े भी इस बात का समर्थन करते हैं।

(viii) मतदाता सूचियों के बनाने में लापरवाही- यह भी देखा गया है कि भारत में मतदाता सूचियों के बनाने में बड़ी लापरवाही से काम लिया जाता है और कई बार जान-बूझकर तथा कई बार अनजाने में पूरे-के-पूरे मोहल्ले सूचियों से गायब हो जाते हैं। मतदाता सूचियाँ अधिकतर राज्य सरकार के (UPBoardSolutions.com) कर्मचारियों द्वारा बनायी जाती हैं और वे इसे फिजूल का काम समझते हैं। पटवारी तथा स्कूल के अध्यापकों से ये काम करवाया जाता है। एक मतदाता का नाम अनेकों बार तथा जाली मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में जोड़ दिए जाते हैं।

चुनाव प्रणाली के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों के सुधार हेतु निम्न उपाय अपनाए जा सकते हैं

  1. फर्जी मतदान तथा चुनाव-केन्द्रों पर कब्जा करने की घटनाओं को सख्ती के साथ निपटोना चाहिए।
  2. सभी उम्मीदवारों तथा राजनैतिक दलों को प्रचार करने के लिए रेडियो तथा मीडिया का प्रयोग करने दिया जाए। चुनावी राजनीति
  3. मतदान अनिवार्य कर देना चाहिए।
  4. चुनाव-याचिका थोड़े समय में ही निपटा देनी चाहिए।
  5. चुनावों में धन की भूमिका को कम करने के लिए चुनाव खर्च राज्य द्वारा किया जाना चाहिए।
  6. चुनावों में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग पर सख्त पाबंदी लगाई जाए।
  7.  उन उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए जो चुनाव में धर्म तथा जाति का प्रयोग करते हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 10 कपड़े के तन्तु : प्रकार एवं दैनिक जीवन में इनका प्रयोग

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 10 कपड़े के तन्तु : प्रकार एवं दैनिक जीवन में इनका प्रयोग

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
‘तन्तु’ (Fibers) से आप क्या समझती हैं? वस्त्रोपयोगी तन्तुओं का एक वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
या
विभिन्न प्रकार के वस्त्रोपयोगी तन्तुओं का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
या
वनस्पतियों से प्राप्त होने वाले वस्त्रोपयोगी तन्तुओं का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
या
जन्तुओं से प्राप्त होने वाले वस्त्रोपयोगी तन्तुओं का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
या
कृत्रिम अथवा मानव-निर्मित वस्त्रोपयोगी तन्तुओं का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर:
तन्तु का अर्थ

तैयार वस्त्र की साज-सज्जा तथा प्रयोग आदि से प्रत्येक व्यक्ति परिचित है, परन्तु इस बात का ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति को नहीं है कि वस्त्र कैसे तथा किससे-तैयार किए जाते हैं। वस्त्रों का निर्माण अनेक प्रकार के तन्तुओं से होता है। अब प्रश्न उठता है कि तन्तु किसे कहते हैं? वस्त्र-विज्ञान की भाषा में वस्त्र-निर्माण की सबसे छोटी इकाई को तन्तु या रेशा कहते हैं। तन्तुओं से धागा तैयार किया जाता है तथा धागों से वस्त्र का निर्माण किया (UPBoardSolutions.com) जाता है। इस प्रकार वस्त्र-निर्माण के लिए अपनाए जाने वाले विभिन्न तन्तुओं के आकार, शक्ल, गुण, लम्बाई तथा स्रोत भिन्न-भिन्न होते हैं। प्रारम्भ में व्यक्ति केवल प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होने वाले तन्तुओं से ही वस्त्र तैयार करता था, परन्तु आधुनिक युग में मनुष्य ने कृत्रिम रूप से भी वस्त्रोपयोगी तन्तु तैयार कर लिए हैं।

वस्त्रोपयोगी तन्तुओं का वर्गीकरण

तन्तुओं के विभिन्न स्रोत निम्नलिखित हैं
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 10 कपड़े के तन्तु प्रकार एवं दैनिक जीवन में इनका प्रयोग

उपर्युक्त वर्णित तालिका के आधार पर कहा जा सकता है कि वस्त्रोपयोगी तन्तु मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-प्राकृतिक तन्तु तथा कृत्रिम तन्तु। प्राकृतिक तन्तु उन तन्तुओं को कहा जाता है जिन्हें प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त किया जाता है। इन तन्तुओं को पुनः तीन उपवर्गों में बाँटा जा सकता है-वनस्पति-जगत् से प्राप्त होने वाले तन्तु, प्राणी या जन्तु-जगत् से प्राप्त होने वाले तन्तु तथा खनिज स्रोतों से प्राप्त होने वाले तन्तु। वस्त्रोपयोगी कृत्रिम तन्तु मानव-निर्मित हैं। इन्हें यान्त्रिक तथा रासायनिक विधियों द्वारा बनाया जाता है। विभिन्न प्रकार के वस्त्रोपयोगी तन्तुओं का सामान्य परिचय निम्नवर्णित है

(1) वनस्पति-जगत् से प्राप्त होने वाले तन्तु:
पेड़-पौधों के विभिन्न भागों से अनेक प्रकार के महत्त्वपूर्ण वस्त्रोपयोगी तन्तु प्राप्त होते हैं। इनमें से मुख्य कपास, जूट, लिनेन तथा हैम्प के तन्तु हैं। वनस्पति-जगत् से प्राप्त (UPBoardSolutions.com) होने वाले तन्तुओं में सेल्यूलोस की सर्वाधिक मात्रा पाई जाती है। अतः इन तन्तुओं को ‘सेल्यूलोस तन्तु’ भी कहा जाता है। इन तन्तुओं का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है

(क) कपास अथवा रूई ( कॉटन):
कपास के पौधे के बीजों की सतह पर पाए जाने वाले रेशों से वस्त्रोपयोगी तन्तु प्राप्त किए जाते हैं। इन तन्तुओं को ही कपास के तन्तु कहा जाता है। इन तन्तुओं से सूती वस्त्रों (जैसे-खद्दर, हथकरघा वस्त्र व मिल-निर्मित वस्त्र आदि) का निर्माण किया जाता है। कपास के तन्तु की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. एक पाउण्ड कपास में लगभग 9,00,00,000 (नौ करोड़) तन्तु होते हैं।
  2. कपास के तन्तु आधार पर चौड़े तथा नुकीले सिरों के होते हैं।
  3.  प्रत्येक तन्तु में लगभग 90% सेल्यूलोस, 2-3% प्रोटीन, 0.6% जल व 0.3% शर्करा होती है।
  4.  ये अत्यधिक मजबूत व टिकाऊ होते हैं।
  5.  ये अत्यधिक ताप सह सकते हैं।
  6. इनमें जल सोखने की क्षमता होती है। अतः इनसे बने वस्त्र ग्रीष्म ऋतु में (पसीना सोख पाने के कारण) अत्यन्त उपयोगी होते हैं।
  7. सूती वस्त्रों को धोना सरल होता है। इन्हें किसी भी साबुन से सरलता से धो सकते हैं।
  8.  सूती वस्त्रों में प्रत्यास्थता तथा प्रतिस्कन्दता का गुण नहीं पाया जाता; अतः इनमें सामान्य लचक नहीं होती तथा शीघ्र ही सलवटें पड़ जाती हैं।
  9.  सूती वस्त्रों पर कोई भी रंग आसानी से चढ़ाया जा सकता है।
  10.  सूती वस्त्रों पर क्षार का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता, परन्तु सान्द्र अम्लों के सम्पर्क से ये नष्ट हो जाते हैं।
  11. सूती वस्त्रों को यदि नम अवस्था में कुछ समय तक रख लिया जाए, तो इनमें फफूदी लग जाती है।

(ख) अन्य वानस्पतिक तन्तु:
ये प्रायः पौधों के स्तम्भ अथवा तने से प्राप्त किए जाते हैं। इनके उदाहरण निम्नलिखित हैं

  1. फ्लैक्स: लाइनम नामक पौधों से प्राप्त ये तन्तु लाइनिन-वस्त्र, कालीन व कागज आदि के निर्माण में प्रयुक्त होते हैं।
  2. हैम्प: एक विशेष पौधे से प्राप्त ये तन्तु निम्न श्रेणी के वस्त्र, रस्सियों व थैलों के निर्माण में प्रयुक्त होते हैं।
  3.  जूट: कोरकोरस नामक पौधे से प्राप्त इस तन्तु का उपयोग रस्सियाँ, कालीन, परदे व कागज आदि बनाने में होता है।
  4.  कौइर: नारियल के मध्य भाग से कौइर अथवा जटा प्राप्त होती है। इसका उपयोग रस्सियाँ, दरवाजों के पायदान, फर्श की चटाई इत्यादि बनाने में होता है।

(2) जन्तुओं से प्राप्त तन्तु

रेशम एवं ऊन दो महत्त्वपूर्ण तन्तु हैं जो हमें जन्तुओं से प्राप्त होते हैं। प्राणी-जगत् से प्राप्त होने वाले इन तन्तुओं में प्रोटीन की अधिकता होती है; अतः इन तन्तुओं को प्रोटीन तन्तु’, भी कहा जाता है।

(क) रेशम:
रेशम का कीट प्रायः शहतूत के पौधे की पत्तियों पर अपना जीवन व्यतीत करता है। इसके लारवा शहतूत की पत्तियों पर एक लसदार पदार्थ अपने चारों ओर निर्मित कर (UPBoardSolutions.com) एक संरचना बनाते हैं, जिसे कोया या ‘कोकून’ कहते हैं। इन संरचनाओं को गर्म पानी में डालने पर इनके अन्दर के कीट मर जाते हैं तथा बाह्य खोलों से रेशम के लम्बे तथा महीन तन्तु प्राप्त किए जाते हैं।

रेशम के तन्तु की विशेषताएँ

  1. यह एक लम्बा, समान मोटाई का तथा चिकना एवं चमकदार तन्तु होता है।
  2. ये सफेद अथवा क्रीम रंग के होते हैं।
  3.  इनकी जल-अवशोषण क्षमता लगभग शून्य होती है।
  4. हल्के अम्ल के प्रयोग से रेशम के तन्तु अधिक चमकदार हो जाते हैं।
  5.  कास्टिक सोडे के हल्के घोल में डालने पर इनकी चमक नष्ट हो जाती है तथा इनके गलने की सम्भावना रहती है।
  6.  रगड़ने व मलने से रेशम के तन्तुओं की कोमलता के नष्ट होने की सम्भावना रहती है।
  7.  अधिक गर्म वायु अथवा धूप में रखने से रेशम की गुणवत्ता कम हो जाती है।
  8.  रेशम के तन्तु जलाने पर बालों के जलने के समान गन्ध देते हैं।
  9.  जलाने पर रेशम के तन्तुओं की काली गोली बन जाती है।
  10.  रेशम का तन्तु पानी में गीला करने पर न तो फैलता है और न ही सिकुड़ता है।

(ख) ऊन:
यह मुख्यतः भेड़ों के बालों से निर्मित की जाती है। भारतवर्ष में पाई जाने वाली मैरीनो जाति की भेड़ों से सर्वोत्तम प्रकार की ऊन प्राप्त होती है। भेड़ के मेमनों से प्राप्त ऊन (UPBoardSolutions.com) अति कोमल व उच्च गुणवत्ता की होती है। भेड़ों के अतिरिक्त ऊँट, बकरी व खरगोश आदि प्राणियों के बालों से भी ऊन प्राप्त की जाती है। काश्मीर में पाई जाने वाली बकरियों से प्राप्त ऊन भी सर्वोच्च श्रेणी की होती है।

ऊन के तन्तु की विशेषताएँ:

  1.  उत्तम ऊनी तन्तु लम्बाई में 5-15 सेमी तक होता है।
  2.  यह लगभग गोलाकार तथा लहरियापन लिए होता है।
  3. रेशम के तन्तु के समान इसमें चमक पाई जाती है।
  4. धुलाई व रँगाई में प्रयुक्त होने वाले सामान्य व हल्के अम्लीय घोलों को ऊन पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है।
  5. कपड़े धोने के सोडे (कास्टिक सोडे) के प्रयोग से ऊन के तन्तु परस्पर चिपक जाते हैं तथा उनकी कोमलता नष्ट हो जाती है, परन्तु सुहागा व अमोनिया अथवा उत्तम साबुन के प्रयोग से ऊन की गुणवत्ता नष्ट नहीं होती है।
  6. उच्च ताप अथवा तीव्र धूप में ऊन का रंग हल्का पड़ जाता है तथा इसकी गुणवत्ता भी कुप्रभावित होती है।
  7. भीगे हुए तन्तुओं को मलने से वे नरम पड़ जाते हैं।
  8. ऊन वायु से सहज ही नमी को सोख लेती है।
  9.  अनुपयुक्त ताप व असावधानीपूर्वक धोने से ऊन के तन्तु सिकुड़ जाते हैं।
  10.  जलाने पर ऊन चिड़िया के पंखों के जलने जैसी गन्ध देती है तथा सज्जी के घोल में 5-6 मिनट तक उबालने पर ऊन पूर्ण रूप से घुलकर अदृश्य हो जाती है।
  11.  ऊन ऊष्मा की कुचालक होती है; अत: शारीरिक ऊष्मा को बाहर नहीं जाने देती। इसलिए शरद ऋतु में ऊनी वस्त्रों का उपयोग लाभकारी होता है।

(3) खनिज पदार्थों से निर्मित तन्तु

(क) सोने-चाँदी से निर्मित तन्तु:
इनका निर्माण मशीनों द्वारा किया जाता है। इन तन्तुओं (महीन तारों) को रेशमी अथवा सूती तन्तुओं के साथ मिश्रित कर वस्त्रों का निर्माण किया जाता है। इन वस्त्रों का जरीदार अथवा किमखाब कहा जाता है। ये बहुमूल्य होते हैं। आजकल इनके स्थान पर ऐलुमिनियम के तन्तुओं का प्रयोग कर कृत्रिम जरीदार एवं सस्ते मूल्य के वस्त्रों का निर्माण किया जाने
लगा है।

(ख) ऐस्बेस्टॉस से निर्मित तन्तु:
इन पर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं होता है; अतः इनसे अग्नि शमकों के वस्त्र व अन्य प्रकार के अग्नि से सुरक्षित रखने वाले वस्त्र निर्मित किए जाते हैं।

(4) कृत्रिम अथवा मानव-निर्मित तन्तु
मनुष्य ने अनेक यान्त्रिक एवं रासायनिक विधियों द्वारा कई प्रकार के तन्तुओं का आविष्कार किया है। ये कृत्रिम अथवा मानव-निर्मित तन्तु कहलाते हैं। सामान्यत: आधुनिक समय में निम्न प्रकार के कृत्रिम तन्तु प्रचलित हैं

(क) रेयॉन:
सामान्यतः लकड़ी, बॉस अथवा रूई की लुग्दी बनाकर उसे द्रव में परिवर्तित किया जाता है। इस द्रव को मशीन के महीन छिद्रों में से निकालकर व शुष्क करके लम्बे व चमकदार तन्तु प्राप्त किए जाते हैं। रेयॉन के तन्तु समान व्यास के तथा सेलुलोस के बने होते हैं। अधिक गर्म जल में धोने से अथवा अधिक ताप पर ये कमजोर पड़ जाते हैं। अम्लों व क्षारों का इन पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

(ख) नायलॉन:
यह तन्तु कोयला, जल व वायु के संयोग से रासायनिक विधियों द्वारा निर्मित किया जाता है। नायलॉन ताप को सुचालक है। अत्यधिक ताप पर यह पिघलकर नष्ट हो जाता है; अतः नायलॉन के वस्त्रों पर अत्यधिक गर्म इस्तरी (प्रेस) का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसको जलाने पर प्लास्टिक के जलने (UPBoardSolutions.com) जैसी गन्ध आती है। हल्के अम्लों का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्षारों से अप्रभावित रहने के कारण इसे अनेक बार धोया जा सकता है।

(ग) पोलिएस्टर तन्तु:
डैकरॉन एवं टेरीलीन मुख्य पोलिएस्टर तन्तु हैं। हल्के अम्लों को इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्षारों से ये अप्रभावित रहते हैं। अत्यधिक ताप पर ये नष्ट हो जाते हैं। ज्वलनशील होने के कारण इनसे निर्मित वस्त्रों को अग्नि से दूर रखना चाहिए।

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प्रश्न 2:
वस्त्रों का हमारे जीवन में क्या उपयोग तथा महत्त्व है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वस्त्रों का जीवन में उपयोग तथा महत्त्व

सभ्य मानव का वस्त्रों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। वस्त्रविहीन मनुष्य को मानव समाज में कदापि सम्मिलित नहीं किया जा सकता। वस्त्रों से मनुष्य अपने शरीर को प्राकृतिक कारकों से बचाता है। वस्त्रों से ही वह अपने शरीर को सजाता-सँवारता है। वेशभूषा के अतिरिक्त व्यक्ति के दैनिक जीवन में वस्त्रों के अन्य अनेक उपयोग भी हैं। मनुष्य के लिए वस्त्रों के उपयोग एवं महत्त्व का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है

(1) शरीर को सुरक्षा प्रदान करना:
वस्त्र हमें विभिन्न प्राकृतिक कारकों से सुरक्षा प्रदान करते हैं। सर्दी-गर्मी तथा बरसात आदि कारकों से बचने के लिए वस्त्र धारण किए जाते हैं। गर्मी में लू से बचने में वस्त्र (UPBoardSolutions.com) सहायक होते हैं। वस्त्रविहीन शरीर सूर्य की तेज किरणों से झुलस सकता है। सर्दी से बचने के लिए ऊनी वस्त्र धारण किए जाते हैं। बरसात से बचने के लिए जल अवरोधक वस्त्र तथा छाते आदि इस्तेमाल किए जाते हैं।

(2) शरीर को छिपाने में सहायक:
सभ्य समाज में मनुष्य द्वारा शरीर की गोपनीयता को बनाए रखने के लिए वस्त्र धारण किए जाते हैं। वस्त्रविहीन अर्थात् नग्न व्यक्ति को असभ्य अथवा पागल ही माना जाता है।

(3) वस्त्र शरीर को सजाने सँवारने में सहायक होते हैं:
मनुष्य के लिए वस्त्रों का एक विशिष्ट महत्त्व है–शरीर को सजाना तथा सँवारना। विभिन्न प्रकार की आकर्षक एवं उत्तम वेशभूषा धारण करके स्त्री-पुरुष अपने शरीर को अधिक-से-अधिक सजाते-सँवारते हैं। उत्तम वेशभूषा से व्यक्तित्व में अतिरिक्त निखार आ जाता है।

(4) वस्त्र सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि करते हैं:
वस्त्र व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि करने वाले कारक भी हैं। धनवान् लोग अधिक-से-अधिक कीमती तथा उत्तम वस्त्र धारण करके समाज में प्रतिष्ठा (UPBoardSolutions.com) अर्जित करते हैं। कीमती वस्त्रों के अतिरिक्त उचित ढंग से वस्त्र धारण करना, सौम्य वस्त्र धारण करना आदि भी प्रतिष्ठा के चिह्न माने जाते हैं। इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति भद्दे ढंग से वस्त्र धारण करता है तो समाज में उसकी प्रतिष्ठा घट भी सकती है।

(5) वस्त्र व्यक्ति को विशिष्ट पहचान प्रदान करते हैं:
वस्त्रों को देखकर अनेक व्यक्तियों को सरलता से पहचान लिया जाता है। सामान्य रूप से स्कूल के बच्चों, सेना, पुलिस, डाक-तार विभाग, रेलवे तथा अस्पताल के कर्मचारियों आदि की वेशभूषा निर्धारित होती है। ऐसे व्यक्ति की वेशभूषा को देखकर ही उसकी पहचान की जा सकती है।

(6) वस्त्रों के कुछ अन्य उपयोग:
वेशभूषा के अतिरिक्त वस्त्रों के कुछ अन्य उपयोग भी हैं। घर को सजाने-सँवारने तथा उपयोग की अनेक वस्तुओं के निर्माण में वस्त्रों की मुख्यतम भूमिका होती है। परदे, कालीन, बिस्तर, दरियाँ आदि इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। वस्त्रों से ही तम्बू तथा शामियाने बनाए जाते हैं। विभिन्न उद्योगों (UPBoardSolutions.com) में भी वस्त्रों का अत्यधिक उपयोग होता है। दैनिक जीवन में विभिन्न वस्तुओं को लाने-ले जाने के लिए कपड़ों से निर्मित थैले, बोरियाँ तथा रस्सियाँ आदि इस्तेमाल होते हैं। इसके अतिरिक्त चिकित्सा के क्षेत्र में भी कपड़े का भरपूर इस्तेमाल होता है। घाव हो जाने पर, शल्य चिकित्सा होने पर, हड्डी टूट जाने अथवा मोच आ जाने पर उपचार के लिए कपड़ों से निर्मित पट्टियाँ ही सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध होती हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
कपड़ा बनाने के लिए किन स्रोतों से तन्तु प्राप्त किए जाते हैं?
उत्तर:
कपड़ा बनाने के लिए दो प्रमुख स्रोतों से तन्तु प्राप्त किए जाते हैं

(1) प्राकृतिक स्रोत तथा
(2) कृत्रिम अथवा मानव-निर्मित स्रोत। प्राकृतिक स्रोत के अन्तर्गत

तन्तु:
(क) वनस्पतियों,
(ख) जन्तुओं तथा
(ग) खनिज पदार्थों से प्राप्त किए जाते हैं। कृत्रिम तन्तुओं
में: (क) रेयॉन,
(ख) नायलॉन तथा
(ग) पोलिएस्टर आते हैं।

 

प्रश्न 2:
तन्तुओं के आधार पर वस्त्र कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
विभिन्न स्रोतों से प्राप्त तन्तुओं से निम्न प्रकार के वस्त्र निर्मित किए जाते हैं

(क) वानस्पतिक तन्तुओं से निर्मित वस्त्र

  1.  सूती वस्त्र-कपास के तन्तुओं से धागे (सूत) तैयार कर इन वस्त्रों का निर्माण किया जाता है।
  2.  लिनेन वस्त्र–फ्लैक्स के पौधों से प्राप्त तन्तुओं से धागा तैयार कर इन्हें निर्मित किया जाता है।

(ख) जन्तुओं से प्राप्त अथवा जान्तव तन्तुओं से निर्मित वस्त्र

  1.  रेशमी वस्त्र:
    रेशम के कीड़ों द्वारा निर्मित तन्तुओं से इन वस्त्रों को तैयार किया जाता है।
  2. ऊनी वस्त्र:
    ये ऊन से तैयार किए जाते हैं तथा ऊन के तन्तु प्रायः ऊँट, खरगोश, भेड़ों व बकरियों के शरीर में उगने वाले बालों से प्राप्त होते हैं।

(ग) खनिज पदार्थों से प्राप्त तन्तुओं से निर्मित वस्त्र

  1. जरीदार वस्त्र:
    ये मूल्यवान् वस्त्र चाँदी-सोने अथवा ऐलुमिनियम के महीन तारों को रेशमी अथवा सूती तन्तुओं के साथ मिश्रित करे तैयार किए जाते हैं।
  2.  अग्निप्रतिरोधक वस्त्र:
    ऐस्बेस्टॉस से निर्मित तन्तुओं से इस प्रकार के वस्त्र तैयार किए जाते हैं।

(घ) कृत्रिम तन्तुओं से निर्मित वस्त्र

मनुष्य द्वारा रासायनिक विधियों के प्रयोग से निर्मित तन्तुओं से तैयार किए जाने वाले वस्त्र हैं

  1.  रेयॉन,
  2.  नायलॉन एवं
  3.  पोलिएस्टर वस्त्र इत्यादि।

प्रश्न 3:
प्राकृतिक तन्तु तथा कृत्रिम तन्तु में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वस्त्रोपयोगी तन्तु मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं—प्राकृतिक तन्तु तथा कृत्रिम तन्तु। इन दोनों प्रकार के तन्तुओं में विद्यमान अन्तर को निम्नलिखित तालिका के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता है ।
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 10 कपड़े के तन्तु प्रकार एवं दैनिक जीवन में इनका प्रयोग
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प्रश्न 4:
ऊन की शुद्धता आप किस प्रकार निश्चित करेंगी?
उत्तर:
ऊन की शुद्धता के लिए ऊन की निम्नलिखित विशेषताओं का निरीक्षण आवश्

  1.  ऊन का धागा लगभग गोलाकार तथा लहरियापन लिए होता है।
  2.  कास्टिक सोडे के प्रयोग से ऊन के तन्तु परस्पर चिपक जाते हैं।
  3.  जलाने पर ऊन चिड़िया के पंखों के जलने के समान गन्ध देती है।
  4.  सज्जी या क्षार घोल में 5-6 मिनट तक उबालने पर ऊन इसमें पूर्णरूप से घुलकर अदृश्य हो जाती है।

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प्रश्न 5:
सूती वस्त्रों की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
सूती वस्त्रों की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  1.  अपेक्षाकृत कम मूल्य के होते हैं।
  2.  हल्के अम्लों व क्षारों से अप्रभावित रहने के कारण इन्हें सहज ही व अनेक बार साबुन से धोया जा सकता है।
  3.  इनमें पसीना सोखने की क्षमता अधिक होती है।
  4.  ये शीघ्र सूख जाते हैं।
  5.  अधिक ताप सहन-शक्ति के कारण इन पर सरलतापूर्वक इस्तरी की जा सकती है।
  6.  जल शोषण करने की अधिक क्षमता के कारण तौलिये व झाड़न आदि के लिए सूती वस्त्र सर्वोत्तम होते हैं।
  7.  सूती वस्त्रे शरीर की गर्मी को सहज ही बाहर निकलने देते हैं; अत: ग्रीष्म ऋतु के लिए ये सर्वोत्तम वस्त्र होते हैं। ।
  8.  सूती वस्त्र प्रायः प्रथम बार धोने पर अधिक सिकुड़ते हैं; अतः वस्त्र-विशेष को निर्मित कराने से पूर्व इन्हें धोकर सुखा लेना चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
तन्तु से क्या आशय है?
उत्तर:
वस्त्र-निर्माण की सबसे छोटी इकाई को तन्तु कहते हैं।

प्रश्न 2:
वस्त्रोपयोगी तन्तुओं के दो प्रमुख वर्ग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
वस्त्रोंपयोगी तन्तुओं के दो प्रमुख वर्ग हैं
(क) वस्त्रोपयोगी प्राकृतिक तन्तु तथा
(ख) वस्त्रोंपयोगी कृत्रिम तन्तु।

प्रश्न 3:
तन्तु तथा धागे में क्या अन्तर है?
उत्तर:
तन्तु वस्त्र निर्माण की सबसे छोटी एवं स्वतन्त्र इकाई है। अनेक तन्तुओं को निश्चित विधि द्वारा परस्पर सम्बद्ध करके धागे का निर्माण होता है। तन्तु सामान्य रूप से प्रकृतिजन्य होते हैं जबकि धागे विधिवत् तैयार किए जाते हैं।

प्रैश्न 4:
वस्त्रोपयोगी प्राकृतिक तन्तुओं की प्राप्ति के स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वस्त्रोपयोगी प्राकृतिक तन्तुओं की प्राप्ति के स्रोत हैं-वनस्पति-जगत्, प्राणी-जगत् तथा खनिज स्रोत।।

प्रश्न 5:
वनस्पतिजन्य तन्तुओं को अन्य किस नाम से जाना जाता है? कारण भी बताइए।
उत्तर:
वनस्पतिजन्य तन्तुओं में अधिकांश भाग सेलुलोस का होता है। अत: इन तन्तुओं को सेलुलोस तन्तु भी कहा जाता है।

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प्रश्न 6:
सूती रेशे की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
कपास के बीज रोमों से प्राप्त सूती रेशे अधिक मजबूत व टिकाऊ होते हैं। इनमें अधिक ताप सहने व जल सोखने की क्षमता होती है।

प्रश्न 7:
प्राणिजन्य तन्तुओं को अन्य किस नाम से जाना जाता है? कारण भी बताइए।
उत्तर:
प्राणिजन्य तन्तुओं में अधिकांश भाग प्रोटीन का पाया जाता है; अत: इन तन्तुओं को ‘प्रोटीन तन्तु’ भी कहा जाता है।

प्रश्न 8:
कृत्रिम तन्तुओं से प्रायः कौन-कौन से वस्त्र बनते हैं?
उत्तर:
कृत्रिम तन्तुओं से निर्मित होने वाले प्रमुख प्रकार के वस्त्र हैं

  1.  रेयॉन,
  2.  नायलॉन,
  3.  डैकरॉन,
  4. टेरीलीन।

प्रश्न 9:
रेयॉन किस प्रकार को तन्तु है?
उत्तर:
रेयॉन यान्त्रिक विधि से निर्मित कृत्रिम तन्तु है।

प्रश्न 10:
ऊनी तन्तु किस वर्ग के तन्तु हैं?
उत्तर:
ऊनी तन्तु प्राणिजन्य प्राकृतिक तन्तु हैं।

प्रश्न 11:
जरीदार वस्त्र किस प्रकार निर्मित किए जाते हैं?
उत्तर:
सोने, चाँदी अथवा ऐलुमिनियम के महीन तारों को सूती अथवा रेशमी धागों के साथ मिश्रित करे जरीदार वस्त्र निर्मित किए जाते हैं।

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प्रश्न 12:
शुद्ध रेशम की क्या पहचान है?
उत्तर:

  1.  रेशम के तन्तु जलाने पर बालों के जलने के समान गन्ध देते हैं तथा इनकी काली-सी गोली बन जाती है।
  2.  पानी में धोने पर रेशम न तो फैलता है और न ही सिकुड़ता है।

प्रश्न 13:
बर्तन पोंछने के तौलिए (डस्टर)प्रायः सूती ही क्यों प्रयोग किए जाते हैं?
उत्तर:
क्योंकि सूती डस्टर अधिक गर्मी सहन कर लेते हैं तथा बर्तनों की नमी सोख लेते हैं। ये शीघ्र ही आग को नहीं पकड़ते।

प्रश्न 14:
गर्म जलवायु में सूती वस्त्र अधिक सुविधाजनक क्यों प्रतीत होते हैं?
उत्तर:
गर्म जलवायु में शरीर से अधिक पसीना निकलता है। सूती वस्त्रे इस पसीने को शीघ्र ही सोख लेते हैं तथा चिपचिपाहट नहीं होती। अतः ये अधिक सुविधाजनक प्रतीत होते हैं।

प्रश्न 15:
उत्तम ऊन किस प्रकार की भेड़ों से प्राप्त होती है?
उत्तर:
उत्तम ऊन प्रायः मैरीनो जाति की जीवित भेड़ों से प्राप्त होती है।

प्रश्न 16:
ऊनी वस्त्र गर्म क्यों माने जाते हैं? या ऊनी कपड़ों की विशेषता लिखिए।
उत्तर:
ऊनी तन्तुओं के ऊष्मा के कुचालक होने के कारण ऊनी वस्त्र शरीर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देते, जिससे ये शीत ऋतु में ठण्डे स्थानों के लिए गर्म व उपयुक्त वस्त्र माने जाते हैं।

प्रश्न 17:
जान्तव तन्तु कौन-से होते हैं? किसी एक के बारे में बताइए।
उत्तर:
जन्तुओं से प्राप्त होने वाले तन्तु को जान्तव तन्तु या प्राणिजन्य तन्तु कहते हैं। रेशम एवं ऊन इसके प्रमुख उदाहरण हैं।।

प्रश्न 18:
नायलॉन, डैकरॉन, आरलॉन तथा एक्रीलॉन नामक वस्त्रोपयोगी तन्तु किस वर्ग के तन्तु हैं? इन्हें किस विधि द्वारा तैयार किया जाता है?
उत्तर:
नायलॉन, डैकरॉन, आरलॉन तथा एक्रीलॉन नामक वस्त्रोपयोगी तन्तु कृत्रिम वर्ग के तन्तु हैं? इन्हें रासायनिक विधि द्वारा तैयार किया जाता है।

प्रश्न 19:
क्षार का नायलॉन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
त्तर:
क्षार का नायलॉन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

प्रश्न 20:
गन्धक के तेजाब के गाढ़े घोल का ऊनी वस्त्रों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
गन्धक के तेजाब (सल्फ्यूरिक अम्ल) के गाढ़े घोल से ऊनी तन्तु नष्ट हो जाते हैं।

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प्रश्न 21:
दैनिक उपयोग के लिए किस प्रकार के वस्त्र सुविधाजनक हैं?
उत्तर:
दैनिक उपयोग के लिए सूती वस्त्र उपयोगी हैं और इसमें भी खादी के वस्त्र सर्वश्रेष्ठ ।

प्रश्न 22:
वस्त्रों का व्यक्ति के जीवन में उपयोग एवं महत्त्व बताइए।
उत्तर:

  1.  वस्त्र शरीर को प्राकृतिक कारकों से सुरक्षा प्रदान करते हैं,
  2.  वस्त्र शरीर को गोपनीयता प्रदान करते हैं,
  3. वस्त्र शरीर को सजाने एवं सँवारने में सहायक होते हैं,
  4. वस्त्र व्यक्ति को सामाजिक प्रतिष्ठा एवं विशिष्ट पहचान प्रदान करते हैं तथा
  5. वस्त्र दैनिक जीवन के अनेक कार्यों में उपयोगी हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) वस्त्र विज्ञान के अनुसार वस्त्र-निर्माण की सबसे छोटी इकाई है
(क) कपास,
(ख) ऊन,
(ग) तन्तु,
(घ) धागा।

(2) सूती वस्त्र के लिए तन्तु प्राप्त किए जाते हैं
(क) रासायनिक पदार्थों से,
(ख) प्राणी-जगत् से,
(ग) व्यर्थ पदार्थों से,
(घ) वनस्पति-जगत् से।

(3) भारतवर्ष में प्रायः सूती वस्त्र अधिक पहने जाते हैं, क्योंकि ये
(क) बहुमूल्य होते हैं,
(ख) सहज ही उपलब्ध हैं,
(ग) वातावरण के अनुरूप हैं,
(घ) ऊष्मा के कुचालक हैं।

(4) नायलॉन के तन्तु हैं
(क) प्राकृतिक तन्तु,
(ख) प्राणिजन्य तन्तु,
(ग) यान्त्रिक विधि से निर्मित तन्तु ,
(घ) रासायनिक विधि द्वारा निर्मित कृत्रिम तन्तु।

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(5) ऊन प्राप्त की जा सकती है
(क) भेड़ों से,
(ख) बकरियों से,
(ग) ऊँटों से,
(घ) इन सभी से।

(6) उच्च गुणवत्ता की ऊन प्राप्त की जाती है
(क) बकरियों से,
(ख) भेड़ों से,
(ग) मेमनों से,
(घ) ऊँट से।

(7) निम्नलिखित में मानव-निर्मित तन्तु नहीं है।
(क) रेयॉन,
(ख) रेशम,
(ग) पोलिएस्टर,
(घ) नायलॉन।

(8) निम्नलिखित में पौधों से न प्राप्त होने वाली तन्तु है
(क) टेरीलीन,
(ख) सूत,
(ग) लिनन,
(घ) जूट।

(9) निम्नलिखित में से किस तन्तु पर आग का प्रभाव नहीं पड़ता है
(क) खनिज ( धातुमय) तन्तु ,
(ख) वनस्पति तन्तु,
(ग) जान्तव तन्तु,
(घ) कृत्रिम तन्तु।

(10) निम्नलिखित में से प्राकृतिक स्रोत से प्राप्त तन्तु निर्मित वस्त्र है
(क) नायलॉन,
(ख) पोलिएस्टर,
(ग) खद्दर,
(घ) डैकरॉन।

(11) रेयॉन नामक कृत्रिम तन्तु बनाया जाता है
(क) नितान्त सरल विधि द्वारा,
(ख) रासायनिक विधि द्वारा,
(ग) जटिल विधि द्वारा,
(घ) यान्त्रिक विधि द्वारा।

(12) ग्रीष्म ऋतु के लिए वस्त्र होता है
(क) सूती,
(ख) लिनन,
(ग) रेशमी,
(घ) टेरीलीन।

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(13) हमारे लिए वस्त्रों की उपयोगिता है
(क) प्राकृतिक कारकों से सुरक्षा प्रदान करना,
(ख) शरीर को सजाना-सँवारना,
(ग) सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान करना,
(घ) ये सभी।

उत्तर:
(1) (ग) तन्तु,
(2) (घ) वनस्पति-जगत् से,
(3) (ग) वातावरण के अनुरूप हैं,
(4) (घ) रासायनिक विधि द्वारा निर्मित कृत्रिम तन्तु,
(5) (घ) इन सभी से,
(6) (ग) मेमनों से,
(7) (ख) रेशम,
(8) (क) टेरीलीन,
(9) (क) खनिज (धातुमय) तन्तु,
(10) (ग) खद्दर,
(11) (घ) यान्त्रिक विधि द्वारा,
(12) (क) सूती,
(13) (घ) ये सभी।

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