UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 8  सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 8  सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” (काव्य-खण्ड)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :

(दान)

1. निकला पहिला ……………………………………………………………………. आवेश-चपल। (Imp.)

शब्दार्थ-पहिला अरविन्द = यहाँ इसके दो अर्थ हैं-

  • सरोवर में खिला हुआ पहला कमल,
  • प्रात:काल का सूर्य (ज्ञान)

अनिन्द्य = सुन्दर, निर्दोष सौरभ-वसना = सुगन्धि के वस्त्र धारण किये हुए। क्षीण कटि = पतली कमर (धारा) वाली। नटी-नवल = नव-यौवना, नर्तकी।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित तथा सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘अपरा’ नामक काव्य ग्रन्थ से ‘दान’ शीर्षक कविता से ली गयी हैं।

प्रसंग – इस कविता में उन ढोंगी दानियों पर व्यंग्य किया गया है, जिनके हृदय में दया लेशमात्र भी नहीं है तथा जो धर्म के नाम पर केवल दान का ढोंग करते हैं। इन पंक्तियों में कवि ने प्रात:कालीन प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया है।

व्याख्या – प्रकृति के रहस्यमय सुन्दर श्रृंगार को देखने के लिए पौ फटते ही पहला कमल खिल गया अथवा प्रकृति के रहस्यों को निर्दोष भाव से देखने के लिए आज ज्ञान का प्रतीक सूर्य निकल आया है। आज ही पहली बार कवि को धर्म के बाह्य आडम्बर का स्वरूप देखकर वास्तविक ज्ञान प्राप्त हुआ है। सुगन्धिरूपी वस्त्र धारण कर वायु मन्द-मन्द बह रही है। वह जब कानों के निकट से गुजरती है तो ऐसा मालूम पड़ता है (UPBoardSolutions.com) कि वह प्राणों को पुलकित करनेवाला गतिशीलता का सन्देश दे रही हो। गोमती नदी में कहीं-कहीं पानी कम होने से वह एक पतली कमरवाली नवेली नायिका-सी जान पड़ती है। उसमें उठती-गिरती लहरों के कारण वह धारा मधुर उमंग से भरकर नृत्य करती हुई-सी जान पड़ती है।

काव्यगत सौन्दर्य – कवि ने गोमती तट पर प्रात:कालीन प्राकृतिक सौन्दर्य का सजीव वर्णन किया है।

  • गोमती नदी को नवयौवना नर्तकी कहकर नदी का मानवीकरण किया गया है।
  • भाषा-संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली।
  • शैली-प्रतीकात्मक, वर्णन
  • रस-शान्त, श्रृंगार।
  • शब्द-शक्ति-‘निकला पहिला अरविन्द आज’ में लक्षणा।
  • गुण-माधुर्य।
  • अलंकार-रूपक, मानवीकरण और अनुप्रास

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2. मैं प्रातः पर्यटनार्थ चला ……………………………………………………………………. वह पैसा एक, उपायकरण।
अथवा ढोता जो वह ……………………………………………………………………. उपाय करण।

शब्दार्थ-पर्यटनार्थ = भ्रमण के लिए। निश्चल = स्थिर। सदया = दया भाव से युक्त। कृष्णकाय = काले शरीरवाला।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘दान’ शीर्षक कविता से अवतरित है।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्य-पंक्तियों में दान का ढोंग करनेवालों पर व्यंग्य किया गया है। कवि ने ऐसी ही एक घटना का चित्रात्मक वर्णन किया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि मैं एक दिन सवेरे गोमती नदी के तट पर घूमने के लिए गया और लौटकर पुल के समीप आकर खड़ा हो गया। वहाँ मैं सोचने लगा कि इस संसार के सभी नियम अटल हैं। प्रकृति दया-भाव से सब मनुष्यों को उनके कर्मों का फल प्रदान करती है अर्थात् मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार ही फल पाते हैं। इस प्रकार उनके सोचने के लिए कुछ भी नवीन नहीं होता। सौन्दर्य, गीत, विविध रंग, गन्ध, भाषा, मनोभावों को छन्दों में बाँधना और मनुष्य को प्राप्त होनेवाले ऊँचे-ऊँचे भोग तथा और भी कई प्रकार के दान, जो मनुष्य को प्रकृति ने प्रदान किये हैं या उसने अपने परिश्रम से प्राप्त किये हैं, इन सबमें मनुष्य श्रेष्ठ और सौभाग्यशाली है। (UPBoardSolutions.com) फिर निराला जी ने देखा कि गोमती के पुल पर बहुत बड़ी संख्या में बन्दर बैठे हुए हैं तथा सड़क के एक ओर दुबला-पतला काले रंग का मृतप्राय, जो हड़ियों का ढाँचामात्र था, ऐसा एक भिखारी बैठा हुआ है। वह भिक्षा पाने के लिए अपलक नेत्रों से ऊपर की ओर देख रहा है। उसका कण्ठ भूख के कारण बहुत कमजोर पड़ गया था और उसकी श्वास भी तीव्र गति से चल रही थी। ऐसा लग रहा था, मानो वह जीवन से बिल्कुल उदास होकर शेष घड़ियाँ व्यतीत कर रहा हो। न जाने इस जीवन के रूप में वह कौन-सा शाप ढो रहा था और किन पापों का फल भोग रहा था? मार्ग से गुजरनेवाले सभी लोग यही सोचते थे, किन्तु कोई भी इसका उत्तर नहीं दे पाता था। कोई अधिक दया दिखाता तो एक पैसा उसकी ओर फेंक देता।

काव्यगत सौन्दर्य

  • कवि ने मानव को प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना बताया है।
  • कवि का विचार है कि मनुष्य अपने पूर्वजन्म के कर्मों के कारण दु:ख भोगता है।
  • भाषा-संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली
  • शैली- वर्णनात्मक।
  • रस-शान्त
  • अलंकार-जीता ज्यों जीवन से उदास’ में अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा है।

3. मैंने झुक नीचे ……………………………………………………………………. श्रेष्ठ मानव!
अथवा मैंने झुक ……………………………………………………………………. तत्पर वानर।

शब्दार्थ-पारायण = अध्ययन। कपियों = बन्दरों सरिता-मजन = नदी में स्नान । इतर = दूसरा। दूर्वादल = दूब। तण्डुल = चावल।।

सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तके ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित एवं सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘दान’ शीर्षक कविता से अवतरित है।

प्रसंग – सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ ने अपनी ‘दान’ शीर्षक कविता में ढोंग करनेवाले दिखावटी धार्मिक लोगों पर तीखा व्यंग्य किया है।

व्याख्या – कवि कहता है कि मैंने झुककर पुल के नीचे देखा तो मेरे मन में कुछ आशा जगी । वहाँ एक ब्राह्मण स्नान करके शिव जी पर जल चढ़ाकर और दूब, चावल, तिल आदि भेंट करके अपनी झोली लिये हुए ऊपर आया। उसको देखकर बन्दर शीघ्रता से दौड़े। यह ब्राह्मण भगवान् राम का भक्त था। उसे भक्ति करने से कुछ मनोकामना पूरी होने की आशा थी। वह बारहों महीने भगवान् शिव की आराधना करता था। वे ब्राह्मण महाशय प्रतिदिन प्रात:काल रामायण का पाठ करने के बाद ‘ श्रीमन्नारायण’ मन्त्र का जाप करते हैं। वह (UPBoardSolutions.com) अन्धविश्वासी ब्राह्मण जब कभी दुःखी होता या असहाय दशा का अनुभव करता, तब हाथ जोड़कर बन्दरों से कहता कि वे उसका दु:ख दूर कर दें। कवि उस ब्राह्मण का परिचय देते हुए कहता है कि वे सज्जन मेरे पड़ोस में रहते हैं और प्रतिदिन गोमती नदी में स्नान करते हैं । उसने पुल के ऊपर पहुँचकर अपनी झोली से पुए निकाल लिये और हाथ बढ़ाते हुए बन्दरों के हाथ में रख दिये।

कवि को यह देखकर दुःख हुआ कि उसने बन्दरों को तो बड़े चाव से पुए खिलाये, परन्तु उधर घूमकर भी नहीं देखा, जिधर वह भिखारी कातर दृष्टि से देखता हुआ बैठा था। मानवीय करुणा की उपेक्षा और बन्दरों को पुए खिलाने के बाद वह अन्धविश्वासी ब्राह्मण बोला कि अब मैंने उन राक्षसी वृत्तियों से छुटकारा पा लिया है, जिनके कारण मैं दु:खी था, परन्तु निराला जी के मुख से निकला ‘ धन्य हो श्रेष्ठ मानव’। (UPBoardSolutions.com) भाव यह है कि जो मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना है, उसकी इतनी दुर्गति कि उसे बन्दरों से भी तुच्छ समझा गया। मरणासन्न दशा में देखकर भी उसे भिक्षा के योग्य भी न समझा गया। मानवता का इससे बढ़कर क्रूर उपहास और क्या हो सकता है?

काव्यगत सौन्दर्य

  • कवि ने अन्धविश्वासी मानव के धार्मिक ढोंग पर तीव्र व्यंग्य किया है।
  • भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली।
  • शैली-व्यंग्यात्मक।
  • रस-शान्त।
  • अलंकार-अनुप्रास।

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प्रश्न 2.
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए। अथवा निराला जी की साहित्यिक सेवाओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए। अथवा निराला जी की साहित्यिक सेवाओं एवं काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालिए।

(सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ )
(स्मरणीय तथ्य )

जन्म – सन् 1897 ई०, मेदनीपुर (बंगाल)।
मृत्यु – सन् 1961 ई०।
पिता – पं० रामसहाय त्रिपाठी।
रचना – ‘राम की शक्ति-पूजा’, ‘तुलसीदास’, ‘अपरा’, ‘अनामिका’, ‘अणिमा’, ‘गीतिका’, ‘अर्चना’, ‘परिमल’, ‘अप्सरा’, ‘अलका’।
काव्यगत विशेषताएँ
वर्य-विषय – छायावाद, रहस्यवाद, प्रगतिवाद, प्रकृति के प्रति तादात्म्य का भाव।
भाषा – खड़ीबोली जिसमें संस्कृत शब्दों की बहुलता है। उर्दू व अंग्रेजी के शब्दों तथा मुहावरों का प्रयोग।
शैली – 1. दुरूह शैली, 2. सरल शैली।। छन्द-तुकान्त, अतुकान्त, रबर छन्द।। अलंकार-उपमा, रूपक, अतिशयोक्ति, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय आदि।

जीवन-परिचय – हिन्दी के प्रमुख छायावादी कवि पं० सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म महिषा-दल, स्टेट मेदनीपुर (बंगाल) में सन् 1897 ई० की बसन्त पंचमी को हुआ था। वैसे ये उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ कोला गाँव के निवासी थे। इनके पिता पं० रामसहाय त्रिपाठी थे। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा बंगाल में हुई थी। 13 वर्ष की अल्पायु में इनका विवाह हो गया था। इनकी पत्नी बड़ी विदुषी और संगीतज्ञ थीं। उन्हीं के संसर्ग में रहकर इनकी रुचि हिन्दी साहित्य और संगीत की ओर हुई । निराला जी ने (UPBoardSolutions.com) हिन्दी, बंगला और संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। 22 वर्ष की अवस्था में ही पत्नी का देहान्त हो जाने पर अत्यन्त ही खिन्न होकर इन्होंने महिषादल स्टेट की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और स्वच्छन्द रूप से काव्य-साधना में लग गये। इन्होंने ‘समन्वय’ और ‘मतवाला’ नामक पत्रों का सम्पादन किया। इनका सम्पूर्ण जीवन संघर्षों में ही बीता और जीवन के अन्तिम दिनों तक ये आर्थिक संकट में घिरे रहे। सन् 1961 ई० में इनका देहान्त हो गया।

रचनाएँ – निराला जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कविता के अतिरिक्त इन्होंने उपन्यास, कहानी, निबन्ध, आलोचना और संस्मरण आदि विभिन्न विधाओं में भी अपनी लेखनी चलायी। परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, अपरा, बेला, नये पत्ते, आराधना, अर्चना आदि इनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं। इनकी अत्यन्त प्रसिद्ध काव्य-रचना ‘जुही की कली’ है। लिली, चतुरी चमार, (UPBoardSolutions.com) सुकुल की बीबी (कहानी संग्रह) एवं अप्सरा, अलका, प्रभावती इनके महत्त्वपूर्ण उपन्यास हैं। काव्यगत विशेषताएँ

(क) भाव-पक्ष-

  • हिन्दी साहित्य में निराला मुक्त वृत्त परम्परा के प्रवर्तक माने जाते हैं।
  • इनके काव्य में भाषा, भाव और छन्द तीनों समन्वित हैं।
  • ये स्वामी विवेकानन्द और स्वामी रामकृष्ण परमहंस की दार्शनिक विचारधारा से बहुत प्रभावित थे।
  • निराला के काव्य में बुद्धिवाद और हृदय का सुन्दर समन्वय है।
  • छायावाद, रहस्यवाद और प्रगतिवाद तीनों क्षेत्रों में निराला का अपना विशिष्ट महत्त्वपूर्ण स्थान है।
  • इनकी रचनाओं में राष्ट्रीय प्रेरणा का स्वर भी मुखर हुआ है।
  • छायावादी कवि होने के कारण निराला का प्रकृति से अटूट प्रेम है। इन्होंने प्रकृति-चित्रण में प्रसाद जी की भाँति ही मानवीय भावों का आरोप करते। हुए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।

(ख) कला-पक्ष-
(1) भाषा-शैली-निराला जी की भाषा संस्कृतगर्भित खड़ीबोली है। यत्र-तत्र बंगला भाषा के शब्दों का भी प्रयोग मिल जाता है। इनकी रचनाओं में उर्दू और फारसी के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं। इनके काव्य में जहाँ हृदयगत भावों की प्रधानता है वहाँ भाषा सरल, मुहावरेदार और प्रवाहपूर्ण है। निराला के काव्य में प्राय: तीन प्रकार की शैलियों के दर्शन होते हैं

  • सरल और सुबोध शैली – (प्रगतिवादी रचनाओं में)
  • क्लिष्ट और दुरूह शैली – (रहस्यवादी एवं छायावादी रचनाओं में)
  • हास्य-व्यंग्यपूर्ण शैली – (हास्य-व्यंग्यपूर्ण रचनाओं में)

(2) रस-छन्द-अलंकारे-निराला के काव्य में श्रृंगार, वीर, रौद्र और हास्य रस का सुन्दर और स्वाभाविक ढंग से परिपाक हुआ है। निराला जी परम्परागत काव्य छन्दों से (UPBoardSolutions.com) सर्वथा भिन्न छन्दों के प्रवर्तक माने जाते हैं। इनके मुक्तछन्द दो प्रकार के हैं। (1) तुकान्त (2) अतुकान्त। दोनों प्रकार के छन्दों में लय और ध्वनि का विशेष ध्यान रखा गया है।

अलंकारों के प्रति निराला जी की विशेष रुचि दिखलाई नहीं पड़ती। इन्होंने प्राचीन और नवीन दोनों प्रकार के उपमान की प्रयोग किया है। मानवीकरण और विशेषण जैसे अंग्रेजी के अलंकारों का भी इनके काव्य में प्रयोग मिलता है।

साहित्य में स्थान-निराला जी हिन्दी साहित्य के बहुप्रतिभा सम्पन्न कलाकार एवं साहित्यकार हैं। इन्होंने अपने परम्परागत क्रान्तिकारी स्वच्छन्द मुक्त काव्य-योजना का निर्माण किया। समय के परिवर्तन के साथ-साथ इनके काव्य में भी छायावाद, रहस्यवाद और प्रगतिवाद के दर्शन (UPBoardSolutions.com) हुए हैं। सब कुछ मिलाकर निराला भारतीय संस्कृति के युगद्रष्टा कवि हैं। छायावादी चार कवियों (प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा) में इनका प्रमुख स्थान है।

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प्रश्न 3.
निराला जी द्वारा रचित ‘दान’ कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा लिखित ‘दान’ कविता में दु:खी मानवों की उपेक्षा करके वानरों, कौओं आदि को भोजन खिलाने वाले मनुष्यों पर व्यंग्य किया गया है। ‘दान’ कविता का सारांश निम्न प्रकार है

सारांश – एक दिन प्रात:काल कवि घूमते-घूमते नदी के पुल पर जा पहुँचा और सोचने लगा कि यह प्रकृति-जो जैसा करता है, उसे वैसा ही फल देती है। संसार का सौन्दर्य, गीत, भाषा आदि सभी किसी-न-किसी रूप में प्रकृति का दान पाते हैं और सभी यही कहते हैं कि मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है।

कवि ने देखा कि पुल के ऊपर बहुत से बन्दर बैठे हैं और मार्ग में एक ओर काले रंग का मरा हुआ-सा अत्यन्त दुर्बल भिखारी बैठा हुआ है। जैसे ही कवि ने झुककर नीचे की ओर देखा तो उन्हें वहाँ पर शिवजी के ऊपर चावल, तिल और जल चढ़ाते हुए एक ब्राह्मण दिखलायी दिया तत्पश्चात् वह ब्राह्मण एक झोली लेकर ऊपर आया। बन्दर उसे देखकर वहाँ आ गये। उसने बन्दरों को झोली से निकालकर पुए दे दिये और उसे भिखारी की ओर मुड़कर भी नहीं देखा। यह देखकर कवि को दुःख हुआ। वह व्यंग्य के साथ बोला–हे मानव, तू धन्य है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘दान’ शीर्षक कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर :
शीर्षक ‘दान’ निराला की चर्चित कविता है। प्रस्तुत पंक्तियों में दीनों, असहायों एवं शोषितों के प्रति संवेदना व्यक्त की गयी है। एक दिन निराला घूमते-फिरते नदी के पुल पर जा पहुँचे। पुल पर बहुत से बन्दर बैठे हुए थे। रास्ते में एक दुर्बल भिखारी भी बैठा हुआ है। नीचे शिवजी का मन्दिर (UPBoardSolutions.com) है। शिवजी के ऊपर चावल-तिल आदि चढ़ाने का ताँता लगा हुआ था। एक ब्राह्मण पूजा-पाठ करने के पश्चात् झोली लेकर पुल पर आया। झोली से पुए निकालकर बन्दरों को खिलाने लगा लेकिन भिखारी की ओर देखा तक नहीं। कवि को यह देखकर बहुत कष्ट होता है।

प्रश्न 2.
पुल पर खड़े होकर ‘निराला’ जी क्या सोचते हैं?
उत्तर :
पुल पर खड़े होकर सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ सोचते हैं कि इस सृष्टि का निर्माण करने वाले के नियम अटल हैं। यहाँ जो जैसा करता है उसे वैसे ही फल की प्राप्ति होती है।

प्रश्न 3.
निराला ने ‘दान’ कविता के माध्यम से किस पर प्रहार किया है?
उत्तर :
निराला ने ‘दान’ कविता के माध्यम से धनाढ्य लोगों पर प्रहार किया है, जो बन्दरों को मालपुए खिलाते हैं और निर्धन मनुष्य उन्हें बेबसी से देखते रह जाते हैं।

प्रश्न 4.
मानव के विषय में सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की धारणा पहले क्या थी?
उत्तर :
मानव को सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानते थे।

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प्रश्न 5.
‘कानों में प्राणों की कहती’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
जब सौरभ वसना समीर कानों के निकट से गुजरती है, वह मानो कानों में प्राणों को पुलकित करनेवाला प्रेम मन्त्र चुपचाप कह जाती है।

प्रश्न 6.
‘दान’ शीर्षक कविता में कवि द्वारा किये गये व्यंग्य की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
कविवर निराला ने ‘दान’ शीर्षक कविता में समाज की इस अमानवीय प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है कि भक्त लोग एक भूखे मनुष्य को भोजन कराने के स्थान पर बन्दरों को पुए खिलाते हैं और यह समझते हैं कि इससे उन्हें परम पुण्य की प्राप्ति होगी।

प्रश्न 7.
‘दान’ शीर्षक कविता पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
एक दिन प्रात:काल कवि घूमते-घूमते नदी के पुल पर जा पहुँचा और सोचने लगा कि यह प्रकृति-जो जैसा करता है, उसे वैसा ही फल देती है। संसार का सौन्दर्य, गीत, भाषा आदि सभी किसी-न-किसी रूप में प्रकृति का दान पाते हैं और सभी यही कहते हैं कि मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है।
कवि ने देखा कि पुल के ऊपर बहुत से बन्दर बैठे हैं और मार्ग में एक ओर काले रंग का मरा हुआ-सा अत्यन्त दुर्बल भिखारी बैठा हुआ है। जैसे ही कवि ने झुककर नीचे की ओर देखा तो उन्हें वहाँ पर शिवजी के ऊपर चावल, तिल और जल चढ़ाते हुए एक ब्राह्मण दिखलायी दिया। तत्पश्चात् (UPBoardSolutions.com) वह ब्राह्मण एक झोली लेकर ऊपर आया। बन्दर उसे देखकर वहाँ आ गये। उसने बन्दरों को झोली से निकालकर पुए दे दिये और उस भिखारी की ओर मुड़कर भी नहीं देखा। यह देखकर कवि को दु:ख हुआ। वह व्यंग्य के साथ बोला-हे मानव, तू धन्य है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निराला किस युग के कवि माने जाते हैं?
उत्तर :
निराला छायावाद युग के कवि माने जाते हैं।

प्रश्न 2.
निराला की दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :
परिमल और अनामिका।

प्रश्न 3.
निराला की पुत्री का क्या नाम था?
उत्तर :
निराला की पुत्री का नाम सरोज था।

प्रश्न 4.
छायावाद के स्तम्भ कहे जाने वाले कवि का नाम लिखिए।
उत्तर :
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’।

प्रश्न 5.
निराला के काव्य की भाषा क्या है?
उत्तर :
खड़ीबोली।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से सही उत्तर के सम्मुख सही (NV) का चिह्न लगाइए
(अ) भिखारी का रंग काला था।
(ब) शिवभक्त बन्दरों को पुए खिला रहा था।
(स) निराला भारतेन्दु युग के कवि माने जाते हैं। काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध

1.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए–
(अ) सोचा ‘विश्व का नियम निश्चल’, जो जैसा उसको वैसा फल।
(ब) विप्रवर स्नान कर चढ़ा सलिल, शिव पर दूर्वा दल तण्डुल, तिल।

(अ) काव्यगत विशेषताएँ-

  • यह धरती का शाश्वत सत्य है कि जो जैसा करता है उसी के अनुसार फल मिलता है।
  • छन्द-नवीन प्रकार की अतुकान्त छन्द।
  • भाषा-संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली।
  • शैली-आलंकारिक, भावात्मक।
  • अलंकार-रूपक और अनुप्रास।
  • गुण-माधुर्य।
  • रस-शान्त ।

(ब) काव्यगत विशेषताएँ–

  • कवि ने मानव समाज की दयनीय दशा एवं थोथे आडम्बरों का सजीव चित्रण किया है।
  • भाषा-संस्कृतनिष्ठ एवं साहित्यिक खड़ीबोली।
  • अलंकार-अनुप्रास।
  • छन्द-तुकान्त।
  • रस-शान्त
  • गुण–प्रसाद।

2.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम बताइए
(अ) जीता ज्यों जीवन से उदास।
(ब) भाषा भावों के छन्द बद्ध।
(स) कहते कपियों के जोड़ हाथ।
उत्तर :
(अ) अनुप्रास,
(ब) अनुप्रास,
(स) अनुप्रास।

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3.
निम्नलिखित में समास-विग्रह करते हुए समास का नाम बताइए
कृष्णकाय           =      कृष्ण काय                 =     कर्मधारय
दूर्वादल              =      दूर्वादल (हरीघास)      =     कर्मधारय
सरिता-मज्जन     =      सरिता में मज्जन          =     अधिकरण तत्पुरुष
रामभक्त             =      राम का भक्त              =     सम्बन्ध तत्पुरुष

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 15 प्राथमिक चिकित्सा के प्रमुख सिद्धान्त

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्राथमिक चिकित्सा का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा उसके सिद्धान्तों पर प्रकाश डालिए।
या
प्राथमिक चिकित्सा किसे कहते हैं? प्राथमिक चिकित्सा के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा का अर्थ

सामान्य रूप से, कोई भी दुर्घटना होने पर अथवा आकस्मिक बीमारी होने पर डॉक्टर अथवा चिकित्सक के पास जाया जाता है, परन्तु हर समय तथा हर स्थान पर चिकित्सक को तुरन्त उपलब्ध होना प्रायः सम्भव नहीं होता, क्योंकि दुर्घटना तो कहीं भी घटित हो सकती है। इस स्थिति में डॉक्टर अथवा चिकित्सक को रोगी या दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के पास लाने या ले जाने में काफी समय लग सकता है, परन्तु दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति को तुरन्त सहायता की आवश्यकता होती है। यह सहायता इसलिए आवश्यक होती है ताकि दुर्घटनाग्रस्त (UPBoardSolutions.com) व्यक्ति की दशा और अधिक न बिगड़े अथवा उसे सांत्वना प्राप्त हो जाए। इस प्रकार की सहायता दुर्घटनास्थल पर ही उपस्थित व्यक्तियों द्वारा तुरन्त दी जाती है। इस प्रकार की तुरन्त दी जाने वाली सहायता को प्राथमिक चिकित्सा कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है। कि- ”आकस्मिक रूप से रोगी अथवा घायल हुए व्यक्ति को डॉक्टर अथवा चिकित्सक के आने से पूर्व दी जाने वाली सहायता एवं उपचार ही प्राथमिक चिकित्सा है।” प्राथमिक चिकित्सा के अर्थ को एक व्यावहारिक उदाहरण द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। सड़क पर चलते हुए यदि कोई व्यक्ति किसी वाहन से टकरा जाए तथा उसकी बाँह एवं घुटना घायल हो जाए तथा वह गिर (UPBoardSolutions.com) जाए तो सड़क पर चलते हुए अन्य व्यक्तियों द्वारा उसे उठाया जाता है, आराम से लिटाया या बैठाया जाता है तथा उसके घाव पर पट्टी अथवा रूमाल बाँध दिया जाता है। ये सभी कार्य वास्तव में प्राथमिक चिकित्सा ही है। इसी प्रकार घर पर गर्म तवे से हाथ जल जाने पर तुरन्त बरनॉल लगाना भी प्राथमिक चिकित्सा ही है।

प्राथमिक चिकित्सा के सिद्धान्त अथवा नियम

रोगी अथवा दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा सहायता देने वाला व्यक्ति प्राथमिक चिकित्सक कहलाता है। प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक को हर परिस्थिति में निम्नलिखित सिद्धान्तों को पालन करना चाहिए

(1) रोगी की अवस्था का अनुमान:
प्राथमिक चिकित्सक को सर्वप्रथम पीड़ित व्यक्ति की अवस्था का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करना चाहिए। जैसे कि रोगी का कौन-सा अंग प्रभावित हुआ है, रक्तस्राव हो रहा है अथवा नहीं, हड्डियाँ टूटी हैं अथवा नहीं आदि। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए पीड़ित व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए।

(2) चिकित्सक से सम्पर्क:
यदि दुर्घटना गम्भीर हो तो प्राथमिक चिकित्सक को तुरन्त किसी योग्य चिकित्सक से भी सम्पर्क स्थापित करना चाहिए। इस स्थिति में दुर्घटना की प्रकृति तथा घायल व्यक्ति की स्थिति को ध्यान में रखकर ही सम्बन्धित चिकित्सक से सम्पर्क किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए–यदि दुर्घटना (UPBoardSolutions.com) ग्रस्त व्यक्ति की हड्डी टूट गई हो तो किसी हड्डी विशेषज्ञ से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए तथा यदि व्यक्ति मूर्च्छित हो या उसे किसी साँप ने काट लिया हो तो उस दशा में काय-चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित किया जाना चाहिए।

(3) सहायता की सीमा:
प्राथमिक चिकित्सक को पूर्ण चिकित्सक बनने का प्रयास नहीं करना चाहिए। उसे रोगी को तत्काल केवल जीवन-रक्षक सहायता तब तक देनी चाहिए जब तक कि उपयुक्त चिकित्सा सहायता उपलब्ध न हो।

(4) सांत्वना देना व धैर्य बँधाना:
कई बार चोट से अधिक दुर्घटना का सदमा पीड़ित व्यक्ति की अधिक हानि करता है। अतः प्राथमिक चिकित्सक का कर्तव्य है कि वह पीड़ित व्यक्ति को सांत्वना दे तथा उसे धैर्य बँधाए।

(5) कृत्रिम श्वसन की सहायता:
डूबने, विद्युत करन्ट लगने तथा आत्महत्या के प्रयास में प्रायः पीड़ित व्यक्ति को श्वास अवरुद्ध हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को तुरन्त कृत्रिम श्वास दिलाना चाहिए।

(6) हृदय गति अवरुद्ध होने पर सहायता देना:
कई बार श्वसन क्रिया के साथ-साथ पीड़ित व्यक्ति की हृदय गति भी अवरुद्ध हो जाती है। यदि तत्काल विधिवत् सहायता उपलब्ध हो जाए, तो कई बार पीड़ित व्यक्ति की जीवन रक्षा हो जाती है।

(7) शरीर को गर्म रखना:
यदि व्यक्ति घायल हो गया हो तथा शरीर से रक्त बह रहा हो तो उस व्यक्ति के शरीर को गर्म रखने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए व्यक्ति को गर्म दूध या चाय पिलानी चाहिए। ध्यान रहे ऐसी स्थिति में कभी भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को ठण्डा पानी नहीं पिलाना चाहिए।

(8) मूर्छित अवस्था में सहायता:
यदि पीड़ित व्यक्ति मूर्च्छित अवस्था में है तो उसके चारों ओर भीड़ न लगने दें तथा उसे खुले व हवादार स्थान पर लिटाएँ। उसके सीने के वस्त्रों को बटन खोलकर ढीला कर दें तथा ठण्डे पानी के छीटें देकर मूच्छ दूर करने का प्रयास करें।

(9) रक्त-स्राव रोकना:
घायल व्यक्ति का रक्त-स्राव रोकना प्राथमिक चिकित्सा का सर्वाधिक आवश्यक नियम या सिद्धान्त है, क्योंकि अधिक रक्तस्राव के कारण भी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों की प्रायः आकस्मिक मृत्यु हुआ करती है। इसके लिए बन्द लगाना या टूर्नीकट का प्रयोग करना चाहिए। घायल व्यक्ति को (UPBoardSolutions.com) इस प्रकार लिटाना चाहिए कि उसका सिर शेष शरीर से कुछ नीचा रहे, जिससे कि मस्तिष्क तक रक्त संचार में रुकावट न उत्पन्न हो।

(10) भीड़ न करें:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के आस-पास अधिक लोगों को एकत्रित नहीं होना चाहिए। जो लोग पास रहें, वे भी शान्त रहें। भीड़ होने पर रोगी व्यक्ति घुटन महसूस कर सकता है क्योंकि वातावरण में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है।

(11) घाव पर पट्टी बाँधना:
घायल व्यक्ति के घावों पर कोई नि:संक्रामक लगाकर कसकर पट्टी बाँधनी चाहिए। पट्टी न होने पर कोई स्वच्छ कपड़ा अथवा रूमाल घाव पर कसकर बाँध देना चाहिए।

(12) कम से कम हिलाना:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को कम-से-कम हिलाना-डुलाना चाहिए, क्योंकि इससे रक्तस्राव बढ़ सकता है तथा यदि पीड़ित व्यक्ति के फ्रेक्चर है, तो निम्नलिखित सावधानियाँ रखें

  • (क) जटिल फ्रेक्चर वाले व्यक्ति को पहले रक्तस्राव बन्द करने का उपाय करें तथा फिर उसे किसी योग्य चिकित्सक की देख-रेख में ही अस्पताल तक ले जाएँ।
  • (ख) सरल फ्रेक्चर वाले व्यक्ति के फ्रेक्चर के दोनों ओर खरपच्चियाँ बाँधे तथा फिर उसे सहारा देकर अथवा स्ट्रेचर पर लिटाकर अस्पताल तक ले जाएँ।

(13) विष-पीड़ित व्यक्ति की सहायता:
विष का सेवन किए व्यक्ति को वमन कराना प्रायः लाभप्रद रहता है। अस्पताल ले जाते समय पीड़ित व्यक्ति के वमने का नमूना तथा विष की खाली शीशी ले जाना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि विष के प्रकार की जानकारी पीड़ित व्यक्ति को शीघ्र एवं सही चिकित्सा उपलब्ध करा सकती है।

(14) जले हुए व्यक्ति को सहायता:
जलने की दुर्घटना या तो आग के द्वारा हो सकती है या फिर रासायनिक पदार्थों (अम्ल आदि) के कारण होती है। आग से जलने पर पीड़ित व्यक्ति के घावों को तुरन्त एक स्वच्छ कपड़े से ढक दें तथा यदि वह होश में है तो उसे पर्याप्त मात्रा में पानी, चाय, कॉफी व दूध आदि पिलाएँ। अम्ल से जलने पर प्रभावित स्थान पर पर्याप्त ठण्डा पानी डालें तथा जलन कम होने पर घाव को स्वच्छ कपड़े से ढक दें। उपर्युक्त दोनों प्रकार के व्यक्तियों को शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुँचाएँ।

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प्रश्न 2:
प्राथमिक चिकित्सक में होने वाले आवश्यक गुणों का वर्णन कीजिए।
या
प्राथमिक चिकित्सक के वांछित गुणों का वर्णन कीजिए।
या
प्राथमिक चिकित्सक में किन गुणों का होना आवश्यक है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा एक महत्त्वपूर्ण मानवीय-सामाजिक कार्य है। एक प्राथमिक चिकित्सक यदि योग्य, दूरदर्शी एवं मानवीय गुणों से युक्त है तो वह जीवन-रक्षा जैसे अमूल्य एवं अतिप्रशंसनीय कार्य को सम्पादित कर सकता है।

प्राथमिक चिकित्सक के गुण

एक सरल प्राथमिक चिकित्सक में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है

(1) दुरदर्शी एवं फुर्तीला:
प्राथमिक चिकित्सक दूरदर्शी एवं फुर्तीला होना चाहिए, ताकि दुर्घटना स्थल पर पहुँचते ही पीड़ित व्यक्तियों की आवश्यकतानुसार तुरन्त सहायता कर सकें। दूरदर्शी व्यक्ति घटित होने वाली दुर्घटना के दूरगामी परिणामों का भी अनुमान लगा लेता है तथा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की स्थिति के अनुकूल ही निर्णय लेता है।

(2) स्वस्थ एवं हृष्ट-पुष्ट:
प्राथमिक चिकित्सक अच्छे स्वास्थ्य का व्यक्ति होना चाहिए। उसका मानसिक एवं शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट होना भी आवश्यक है, क्योंकि उसे शीघ्र ही पीड़ित व्यक्तियों (UPBoardSolutions.com) की देखभाल तथा उनका अस्पताल तक स्थानान्तरण करना होता है। दुर्घटना स्थल का दृश्य अनेक बार बहुत ही हृदयविदारक होता है। ऐसी स्थिति में केवल मजबूत हृदय वाला व्यक्ति ही दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को सहायता प्रदान करता है।

(3) चतुर एवं विवेकशील:
एक चतुर एवं विवेकशील प्राथमिक चिकित्सक सही समय पर सही निर्णय ले सकता है तथा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों की आवश्यकता को समझकर उन्हें सांत्वना दे सकता है।

(4) धैर्यवान एवं सहनशील:
रोगी एवं दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति प्रायः चिड़चिड़े हो जाते हैं; अतः प्राथमिक चिकित्सक को धैर्यवान व सहनशील होना चाहिए।

(5) मृदुभाषी एवं सेवाभाव रखने वाला:
रोगी एवं दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति सहानुभूति एवं मृद व्यवहार के पात्र होते हैं। अत: प्राथमिक चिकित्सक अपना दायित्व सफलतापूर्वक तब ही निभा सकता है। जबकि वह मृदुभाषी हो तथा सेवाभाव रखता हो।

(6) आत्मविश्वासी:
प्राथमिक चिकित्सक को पूर्णरूप से आत्मविश्वासी होना चाहिए, क्योंकि दुर्बल आत्मविश्वास रखने वाला प्राथमिक चिकित्सक किसी बड़ी दुर्घटना को देखकर घबरा सकता है। अथवा बौखला सकता है।

(7) साधन सम्पन्नता:
प्राथमिक चिकित्सा के लिए रोगी अथवा घायल व्यक्ति को कुछ औषधियाँ अथवा अन्य सहायता दी जाती है। अतः यह आवश्यक है कि प्राथमिक चिकित्सक के पास उपचार एवं सहायता के लिए अनिवार्य साधन उपलब्ध हों। सामान्य रूप से प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स’ में इस प्रकार की आवश्यक सामग्री रखी जाती है।

(8) शारीरिक विज्ञान का पर्याप्त ज्ञान:
प्राथमिक चिकित्सक को मानव शरीर की बाह्य एवं आन्तरिक रचना का पर्याप्त ज्ञान होना आवश्यक है। गम्भीर रोगों एवं गम्भीर रूप से घायल व्यक्तियों का प्राथमिक उपचार करते समय उपर्युक्त ज्ञान उसे अतिरिक्त सहायता प्रदान करेगा।

(9) प्राथमिक चिकित्सा का अधिकाधिक ज्ञान:
प्राथमिक चिकित्सा करने वाले व्यक्ति को भली प्रकारे सम्बन्धित विषय में प्रशिक्षित होना चाहिए। उदाहरण के लिए उसे तीव्र ज्वर के रोगी के प्रारम्भिक उपचार की जानकारी (UPBoardSolutions.com) होनी चाहिए। इसी प्रकार डूबने, विद्युत करन्ट लगने तथा जलने वाले व्यक्तियों का प्राथमिक उपचार किस प्रकार किया जाता है आदि का उसे अपेक्षित ज्ञान होना चाहिए।

(10) पर्याप्त दक्षता:
प्राथमिक चिकित्सक पर्याप्त दक्ष होना चाहिए ताकि वह सोचने में समय व्यर्थ न करके घायलों की तुरन्त सहायता कर सके तथा विधिपूर्वक उनका स्थानान्तरण अस्पताल तक करा सके।

(11) सीमाओं का ज्ञान:
प्राथमिक चिकित्सक को अपने कर्तव्य की सीमाओं का ज्ञान होना चाहिए। उसे यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वह प्राथमिक चिकित्सक है, कोई डिग्री प्राप्त चिकित्सक नहीं। अतः उसे पीड़ित व्यक्तियों को शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुँचाने अथवा पहुँचवाने का प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 3:
‘प्राथमिक चिकित्सा बक्से में आप कौन-कौन से आवश्यक उपकरण एवं औषधियाँ रखेंगी?
या
प्राथमिक चिकित्सा हेतु आवश्यक वस्तुओं की सूची बनाइए।
या
घर में प्राथमिक सहायता पेटिका रखना क्यों आवश्यक है? इसमें आप क्या-क्या रखेंगी?
उत्तर:
‘प्राथमिक चिकित्सा बक्से’ (फर्स्ट एड बॉक्स) से अभिप्राय सरलतापूर्वक इधर-उधर ले। जाए जा सकने वाले बक्से से है, जिसमें कि प्राथमिक चिकित्सा हेतु आवश्यक उपकरण एवं औषधियाँ रखी होती हैं। प्रत्येक घर, सार्वजनिक एवं राजकीय प्रतिष्ठान तथा स्कूल-कॉलेज में प्राथमिक चिकित्सा बक्से के रखने से, अनेक लाभ हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

  1. घर में होने वाली आकस्मिक दुर्घटनाओं; जैसे-जलना, चोट लगना आदि के समय प्राथमिक उपचार के लिए आवश्यक सामग्री सुविधापूर्वक एवं तुरन्त उपलब्ध हो जाती है।
  2.  स्कूल व कॉलेज आदि के खेल के मैदान में अथवा अन्य अवसरों पर विद्यार्थियों को लगने वाली चोटों की प्राथमिक चिकित्सा तुरन्त सम्भव हो जाती है।
  3.  बस व ट्रेन में यात्रा करते समय अथवा पिकनिक के समय होने वाली आकस्मिक दुर्घटनाओं से पीड़ित व्यक्तियों की प्राथमिक चिकित्सा के लिए प्राथमिक चिकित्सा बक्से में व्यवस्थित रूप से रखी सामग्री अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होती है।

प्राथमिक चिकित्सा बक्से का निर्माण

इसे बनाने के लिए आवश्यक सामग्री को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

(क) आवश्यक उपकरण तथा
(ख) अत्यावश्यक औषधियाँ।

(क) आवश्यक उपकरण:
प्राथमिक चिकित्सा के लिए उपयोगी उपकरणों की सूची निम्नलिखित ह

  1.  कैंची
  2.  चाकू
  3. चिमटी
  4.  सेफ्टी पिन
  5.  सुई-धागा
  6.  गिलास व चम्मच
  7. स्वच्छ रुई
  8. नि:संक्रमित गॉज
  9.  छोटी-बड़ी पट्टियाँ
  10. गर्म पानी की बोतल
  11.  बर्फ की टोपी
  12. स्वच्छ कपड़ा
  13. छोटा तौलिया
  14.  साबुन
  15.  खपच्चियाँ
  16. तीली तथा तैयार फुरेरी
  17.  मोमबत्ती व दियासलाई
  18. टार्च।

(ख) उपयोगी औषधियाँ:
प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स में प्रायः निम्नलिखित औषधियाँ रखी जाती हैं

  1.  अमृतधारा
  2.  पुदीनहरा
  3.  कोरामिन
  4. बरनौल
  5.  फ्यूरासिन
  6. पचनोल
  7. नावलजिन
  8.  आयोडेक्स
  9. ग्लिसरीन
  10.  ऐक्रीफ्लेविन
  11.  सुंघाने वाले लवण
  12.  ग्लूकोस
  13. पोटैशियम परमैंगनेट
  14. डिटॉल
  15.  स्प्रिट
  16. विक्स
  17. बाम
  18.  सामान्य नमक

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
हम जानते हैं कि अनेक बार आकस्मिक दुर्घटनाएँ घातक एवं भयंकर भी हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में यदि दुर्घटना होते ही तुरन्त सम्बन्धित व्यक्ति को आवश्यक सहायता दे दी जाए, तो उसका जीवन बचाया जा सकता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्राथमिक चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य (UPBoardSolutions.com) दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति का जीवन बचाना है। इसके अतिरिक्त प्राथमिक चिकित्सा का एक उद्देश्य रोगी अथवा घायल व्यक्ति को सांत्वना देना भी होता है। इससे रोगी का मनोबल बढ़ता है तथा वह अधिक नहीं घबराता। प्राथमिक चिकित्सा मिल जाने से रोगी की दशा अधिक बिगड़ने से बच जाती है।

प्रश्न 2:
प्राथमिक चिकित्सा की दो विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा की निम्नलिखित दो मुख्य विशेषताएँ हैं

(1) जीवन रक्षा:
प्राथमिक चिकित्सा की सर्वोपरि विशेषता गम्भीर रोगी अथवा गम्भीर रूप से घायल व्यक्ति की जीवन-रक्षा के प्रयास करना है।
(2) तत्काल उपचार:
प्रायः दुर्घटना स्थल पर उपयुक्त चिकित्सा देर से सुलभ होती है। ऐसे विपरीत समय में प्राथमिक चिकित्सा दैवी सहायता के समान होती है।

प्रश्न 3:
प्राथमिक चिकित्सक के कोई चार महत्त्वपूर्ण कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सक के कर्तव्यों की कोई सीमा नहीं है, परन्तु प्राथमिकता के आधार पर उसके निम्नलिखित चार कर्तव्यों को अति महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है

(1) धैर्यपूर्वक तत्काल उपचार करना:
प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक को दुर्घटना स्थल पर बिना घबराए पीड़ित व्यक्तियों का तुरन्त उपचार प्रारम्भ कर देना चाहिए, क्योंकि ऐसे समय पर शीघ्र उपचार प्रायः जीवन-रक्षक सिद्ध होता है।

(2) आपातकालीन सेवा प्रदान करना:

प्राथमिक चिकित्सक को दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को कृत्रिम श्वास देना, रक्त-स्राव रोकना तथा अवरुद्ध हृदय-गति को चालू करने के प्रयास करना आदि
आपातकालीन सेवाएँ तुरन्त प्रदान करनी चाहिए।

(3) सांत्वना देना एवं धैर्य बँधाना:

दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों के लिए कई बार दुर्घटना का मानसिक आघात घातक सिद्ध होता है। अतः प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक का एक मुख्य कर्तव्य है कि वह दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को सांत्वना दे तथा उनका साहस बढ़ाए।

(4) उपयुक्त चिकित्सा उपलब्ध कराना:

प्राथमिक चिकित्सक का कर्तव्य है कि पीड़ित व्यक्तियों के प्राथमिक उपचार के तुरन्त पश्चात् सबसे पास के डॉक्टर अथवा अस्पताल को दुर्घटना की सूचना दे।

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प्रश्न 4:
गृहिणी के लिए प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
अनेक बार आकस्मिक दुर्घटनाएँ घातक एवं भयंकर हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में यदि दुर्घटना होते ही तुरन्त दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को आवश्यक सहायता दे दी जाए, तो उसका जीवन बचाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्राथमिक चिकित्सा का एक उद्देश्य रोगी अथवा घायल व्यक्ति को सांत्वना देना भी होता है, इससे रोगी का मनोबल बढ़ता है और वह घबराता नहीं। प्राथमिक चिकित्सा मिल जाने से रोगी की दशा (UPBoardSolutions.com) अधिक बिगड़ने से बच जाती है। अतः गृहिणी को प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना नितान्त आवश्यक है, क्योंकि समय-समय पर घर में छोटी-छोटी घटनाएँ घटती रहती हैं। प्राथमिक चिकित्सा के ज्ञान के अभाव में ये घटनाएँ ही कभी-कभी भयंकर रूप धारण कर सकती हैं। इसीलिए स्पष्ट है कि गृहिणी को प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना सर्वोपरि कार्य है।

प्रश्न 5:
प्राथमिक चिकित्सा की आवश्यकता की मुख्य दशाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वैसे तो किसी दुर्घटना के घटित होने अथवा व्यक्ति के रोगग्रस्त हो जाने पर तुरन्त प्राथमिक चिकित्सा की आवश्यकता होती है। यहाँ कुछ ऐसी सामान्य दशाओं का उल्लेख किया जा रहा है, जिनमें प्राथमिक चिकित्सा की अनिवार्य रूप से आवश्यकता होती है

  1. चोट लगने से अथवा गिर जाने से हड्डी टूट गई हो।
  2.  विद्युल का झटका लग गया हो।
  3.  किसी भी नशे का अधिक मात्रा में सेवन कर लिया गया हो।
  4. किसी विषैले जानवर अथवा कीड़े ने काट लिया हो।
  5.  कोई व्यक्ति पानी में डूब जाए तथा उसके पेट में पानी भर जाने पर उसे बाहर निकाल कर तुरन्त उपचार देना।
  6.  आग से जल जाने या झुलस जाने पर।
  7.  कोई व्यक्ति जान-बूझकर अथवा अनजाने में किसी विष को अथवा जलाने वाली वस्तु को खा या पी ले।
  8.  व्यक्ति के किसी भी अंग से रक्त बह निकले।
  9. व्यक्ति को श्वास लेने में कठिनाई हो रही हो।
    उपर्युक्त आकस्मिक दुर्घटनाओं के अतिरिक्त किसी भी प्रकार की दुर्घटना के होते ही प्राथमिक चिकित्सा की आवश्यकता पड़ सकती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्राथमिक चिकित्सा क्या है?
उत्तर:
रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को विशिष्ट चिकित्सा सहायता उपलब्ध होने से पूर्व दुर्घटनास्थल पर ही प्रदान की जाने वाली सामान्य परन्तु आवश्यक चिकित्सा सहायता को प्राथमिक चिकित्सा कहते हैं।

प्रश्न 2:
क्या प्राथमिक चिकित्सा के लिए मान्यता प्राप्त चिकित्सक होना आवश्यक है?
उत्तर:
नहीं, कोई भी सेवाभाव रखने वाला व्यक्ति आवश्यक प्रशिक्षण ग्रहण करने पर प्राथमिक चिकित्सा करने योग्य बन सकता है।

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प्रश्न 3:
प्राथमिक चिकित्सा कौन प्रदान कर सकता है?
उत्तर:
दुर्घटना स्थल पर उपस्थित कोई भी व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा प्रदान कर सकता है।

प्रश्न 4:
क्या आवश्यकता पड़ने पर लड़कियाँ भी प्राथमिक चिकित्सा प्रदान कर सकती हैं?
उत्तर:
नि:सन्देह, आवश्यकता पड़ने पर लड़कियाँ भी प्राथमिक चिकित्सा प्रदान कर सकती हैं।

प्रश्न 5:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम उद्देश्य है- दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की जान बचाना।

प्रश्न 6:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा का मुख्यतम सिद्धान्त है- दुर्घटना की वास्तविकता तथा गम्भीरता को । जानना तथा प्राथमिकता के आधार पर आवश्यक कार्यवाही तुरन्त प्रारम्भ करना।

प्रश्न 7:
प्राथमिक चिकित्सा बक्सा क्यों बनाया जाता है?
उत्तर:
जिससे कि समय पड़ने पर प्राथमिक चिकित्सा सम्बन्धी आवश्यक सामग्री एक ही स्थान पर तुरन्त उपलब्ध हो सके।

प्रश्न 8:
क्या एक प्राथमिक चिकित्सक के लिए अतिविशिष्ट औषधियों का प्रयोग करना उचित है?
उत्तर:
कदापि नहीं, अतिविशिष्ट औषधियों का प्रयोग एक मान्यता प्राप्त चिकित्सक को करना चाहिए।

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प्रश्न 9:
कृत्रिम श्वसन की कब आवश्यकता होती है? या कृत्रिम श्वसन कब दिया जाता है?
उत्तर:
प्राय: डूबने व विद्युत करन्ट लगने वाले व्यक्ति की सामान्य श्वास गति अवरुद्ध हो जाती है, अत: उसे तुरन्त कृत्रिम श्वसन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 10:
यदि कोई दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति मूर्च्छित हो तथा उसके शरीर से रक्त बह रहा हो, तो । प्राथमिक चिकित्सक को सर्वप्रथम क्या करना चाहिए?
उत्तर:
इस स्थिति में सर्वप्रथम शरीर से रक्त का बहना रोकने के उपाय करने चाहिए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) दुर्घटनास्थल पर दी जाने वाली तुरन्त सहायता को कहते हैं
(क) औपचारिक चिकित्सा,
(ख) अनावश्यक चिकित्सा,
(ग) प्राथमिक चिकित्सा,
(घ) कृत्रिम चिकित्सा।

(2) प्राथमिक चिकित्सक होता है
(क) कोई भी सामान्य व्यक्ति
(ख) कुशल डॉक्टर
(ग) सम्बन्धित दुर्घटना का अनुभवी व्यक्ति
(घ) जिसे प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान हो

(3) प्राथमिक चिकित्सक में निम्नलिखित दोष नहीं होना चाहिए
(क) धैर्यवान,
(ख) दूरदर्शी,
(ग) चिड़चिड़ा,
(घ) मृदुभाषी।

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(4) प्राथमिक चिकित्सा की विशेषता है
(क) घायलों की मरहम पट्टी,
(ख) पीड़ितों की जीवन-रक्षा,
(ग) दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों को धैर्य बँधाना,
(घ) ये सभी।

(5) दुर्घटना घटने पर हमारा कर्तव्य है ।
(क) तुरन्त प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करना,
(ख) मूक दर्शक बनकर खड़े रहना,
(ग) अनदेखा कर देना,
(घ) तुरन्त घटनास्थल से भाग जाना।

(6) दुर्घटना में पीड़ित जटिल फ्रेक्चर वाले व्यक्ति का सर्वप्रथम
(क) हड्डी टूटने का उपचार करना चाहिए,
(ख) रक्तस्राव रोकना चाहिए,
(ग) हाथ पकड़कर अस्पताल ले जायें,
(घ) खपच्चियाँ लगाए।

(7) कृत्रिम विधि से श्वास कब दिलाई जाती है ।
(क) दम घुटने पर,
(ख) जल में डूबने पर,
(ग) फाँसी लगाने पर,
(घ) तीनों अवस्थाओं में।

(8) टूर्नीकेट का प्रयोग किया जाता है
(क) टूटी हुई हड्डी जोड़ने में,
(ख) घाव पर पट्टी को रोकने में,
(ग) रक्तस्राव को रोकने में अथवा विष को अधिक दूर तक न फैलने देने के लि
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

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(9) आकस्मिक घटना के समय प्राथमिक चिकित्सा दी जाती है
(क) अल्पकालीन,
(ख) दीर्घकालीन,
(ग) तत्काल,
(घ) निरुद्देश्य।

उत्तर:
(1) (ग) प्राथमिक चिकित्सा,
(2) (घ) जिसे प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान हो,
(3) (ग) चिड़चिड़ा,
(4) (घ) ये सभी,
(5) (क) तुरन्त प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करना,
(6) (ख) रक्तस्राव रोकना चाहिए,
(7) (घ) तीनों अवस्थाओं में,
(8) (ग) रक्तस्राव को रोकने में अथवा विष को अधिक दूर तक न फैलने देने के लिए,
(9) (ग) तत्काल।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science प्रयोगात्मक एवं प्रोजेक्ट कार्य

UP Board Solutions for Class 9 Home Science प्रयोगात्मक एवं प्रोजेक्ट कार्य

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science प्रयोगात्मक एवं प्रोजेक्ट कार्य.

प्रयोगात्मक कार्य एवं प्रोजेक्ट कार्य

प्रयोग 1:

विषय:
पाँच विभिन्न कपड़ों के नमूनों का संग्रह करना।

उद्देश्य:

पाँच भिन्न-भिन्न प्रकार के कपड़ों के नमूनों का संग्रह करना। आवश्यक सामग्री
कैंची, विभिन्न प्रकार के कपड़ों की कतरनें, सूई एवं धागा तथा प्रयोगात्मक पुस्तिका।

विधि:

प्रत्येक प्रकार के कपड़े की एक-एक कतरन लेकर उसमें से एक निश्चित आकार (गोलाकार अथवा वर्गाकार) का कपड़ा काट लें। यदि चाहें तो कपड़ों के टुकड़ों की तुरपाई भी कर (UPBoardSolutions.com) लें। इसके उपरान्त इन टुकड़ों को अपनी प्रयोगात्मक पुस्तिका में किसी भी आकर्षक क्रम में टाँक लें। प्रत्येक प्रकार के कपड़े का नाम यथास्थान अंकित कर दें।
UP Board Solutions for Class 9 Home Science प्रयोगात्मक एवं प्रोजेक्ट कार्य

निरीक्षण:
छात्राओं को उपलब्ध कपड़ों के विषय में समुचित जानकारी अवश्य होनी चाहिए। कपड़ों के विषय में उपलब्ध जानकारी को अपनी प्रयोगात्मक पुस्तिका में निम्नलिखित क्रम में अवश्य लिखें

  1. सम्बन्धित कपड़े किस प्रकार के तन्तुओं से निर्मित हैं?
  2.  सामान्य रूप से वे किस ऋतु में धारण किये जाते हैं?
  3. कपड़ों के मुख्य गुण-दोष क्या हैं?
  4.  प्रत्येक प्रकार के कपड़े को धोने की विधि।
  5.  सम्बन्धित कपड़ों के रख-रखाव की विधि।

परिणाम:
प्रयोगात्मक पुस्तिका में भिन्न-भिन्न प्रकार के कपड़ों के नमूनों को एकत्रित करने का मुख्य उद्देश्य कपड़ों की वास्तविक पहचान करना है। इसके अतिरिक्त कपड़ों के गुणों की समुचित जानकारी प्राप्त करना भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

सावधानियाँ:

  1. कपड़ों के नमूनों के संग्रह को नमी एवं सीलन से बचाकर रखना चाहिए।
  2. इस बात की भी सावधानी रखनी चाहिए कि कपड़ों को कीड़ों या फफूदी से हानि न पहुँचे।

प्रयोग सम्बन्धी मौखिक प्रश्न

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प्रश्न 1:
केपड़ा बनाने के लिए किन स्रोतों से तन्तु प्राप्त किये जाते हैं?
उत्तर:
कपड़ा बनाने के लिए मुख्य रूप से प्राकृतिक स्रोतों से तन्तु प्राप्त किये जाते हैं। जैसेप्राणी-जगत् से ऊन एवं रेशम तथा वनस्पति-जगत् से कपास, लिनन, (UPBoardSolutions.com) जूट आदि। इसके अतिरिक्त कपड़ा बनाने के लिए कृत्रिमं तन्तु भी प्रयोग किए जाते हैं; जैसे–रेयॉन, नायलॉन, डेकरॉम, एक्रीलॉन आदि।

प्रश्न 2:
सूती वस्त्र के तन्तु किस स्रोत से प्राप्त किये जाते हैं?
उत्तर:
सूती वस्त्र के तन्तु वनस्पति-जगत् में पाये जाने वाले कपास नामक पौधे से प्राप्त किये जाते हैं।

प्रश्न 3:
लिनन नामक वस्त्र के तन्तु किस स्रोत से प्राप्त किये जाते हैं?
उत्तर:
लिनन के तन्तु फ्लाक्स यो सन नामक पौधे के तने से प्राप्त किये जाते हैं।

प्रश्न 4:
ऊनी तन्तु किस वर्ग के तन्तु हैं?
उत्तर:
ऊनी तन्तु प्राणी-जगत् से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक तन्तु हैं। इन्हें प्रोटीन तन्तु भी कहा जाता है।

प्रश्न 5:
रेशम के कीड़े द्वारा निर्मित खोल को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
रेशम के कीड़े द्वारा निर्मित खोल को ककून कहते हैं।

प्रश्न 6:
वस्त्रों का राजा किस वस्त्र को कहा जाता है?
उत्तर:
रेशम के वस्त्रों को वस्त्रों का राजा कहा जाता है।

प्रश्न 7:
रेशम का कीड़ा कहाँ पाला जाता है?
उत्तर:
रेशम का कीड़ा मुख्य रूप से शहतूत की पत्तियों पर पाला जाता है।

प्रश्न 8:
सूती कपड़े धारण करना किस प्रकार की जलवायु में उत्तम समझा जाता है?
उत्तर:
गर्म जलवायु में सूती कपड़े धारण करना उत्तम समझा जाता है।

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प्रश्न 9:
रूमाल, तौलिए तथा नेपकिन आदि मुख्य रूप से किस वस्त्र के बनाये जाते हैं?
उत्तर:
लिनन के बनाये जाते हैं।

प्रश्न 10:
रेयॉन के तन्तु किस प्रकार के होते हैं? इन्हें कैसे बनाया जाता है?
उत्तर:
रेयॉन के तन्तु कृत्रिम तन्तु हैं, इन्हें यान्त्रिक विधि द्वारा तैयार किया जाता है।

प्रश्न 11:
नॉयलॉन के तन्तु किस प्रकार के होते हैं? इन्हें कैसे बनाया जाता है?
उत्तर:
नायलॉन के तन्तु कृत्रिम तन्तु हैं, इन्हें रासायनिक विधि से तैयार किया जाता है।

प्रश्न 12:
कौन-से वस्त्रों को धोना सर्वाधिक सरल होता है?
उत्तर:
नायलॉन तथा अन्य कृत्रिम तन्तु वाले वस्त्रों को धोना सर्वाधिक सरल होता है।

प्रयोग-2

विषय:
कार्बोहाइड्रेट प्राप्ति के स्रोतों को चित्र द्वारा दर्शाना।

परिचय:
कार्बोहाइड्रेट को वनस्पति-जगत् से ही प्राप्त किया जा सकता है।
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प्रयोग सम्बन्धी मौखिक प्रश्न

प्रश्न 1:
कार्बोहाइड्रेट के अधिकांश स्रोत कहाँ हैं?
उत्तर:
कार्बोहाइड्रेट के अधिकांश स्रोत वनस्पति-जगत् में हैं।

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प्रश्न 2:
क्या मांस-मछली तथा अण्डे में कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है?
उत्तर:
नहीं, मांस-मछली तथा अण्डे में कार्बोहाइड्रेट नहीं पाया जाता।

प्रयोग 3:

विषय:
खाद्य तत्त्वों का संकलन चार्ट द्वारा ( आहार के अनिवार्य तत्त्व विटामिन ‘सी’ का चार्ट द्वारा प्रदर्शन)।

उद्देश्य:
विटामिन ‘सी’ प्राप्ति के स्रोतों को दर्शाना।

आवश्यक सामग्री:
चार्ट पेपर, पेन्सिल, रबड़, काले रंग की स्याही तथा विभिन्न रंग।

विटामिन ‘सी’ प्राप्ति के स्रोत:
विटामिन ‘सी’ की प्राप्ति के मुख्य स्रोत खट्टे फल तथा हरी सब्जियाँ हैं। आँवला विटामिन‘सी’ का अति उत्तम स्रोत है।
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प्रयोग सम्बन्धी मौखिक प्रश्न

प्रश्न 1:
विटामिन ‘सी’ की प्राप्ति के मुख्य स्रोत बताइए।
उत्तर:
‘विटामिन ‘सी’ की प्राप्ति के मुख्य स्रोत हैं—खट्टे फल। इनमें नींबू, नारंगी, सन्तरा, अमरूद, अनन्नास, तरबूज आदि मुख्य हैं। आँवला विटामिन ‘सी’ का एक अति उत्तम स्रोत है। इसके अतिरिक्त टमाटर, गोभी, सलाद आदि हरी सब्जियाँ भी विटामिन ‘सी’ के उत्तम स्रोत हैं।

प्रश्न 2:
हमारे लिए विटामिन ‘सी’ की क्या उपयोगिता है?
उत्तर:
विटामिन ‘सी’ हड्डियों, पेशियों, तन्तुओं तथा अन्य ऊतकों को मजबूती व दृढ़ता प्रदान करता है। यह विटामिन संक्रामक रोगों से बचाव में सहायक होता है तथा लौह खनिज के उपापचय में सहायक होता है।

प्रश्न 3:
आहार में विटामिन ‘सी’ की कमी के प्रभावों को बताइए।
उत्तर:
आहार में विटामिन ‘सी’ की कमी से व्यक्ति की शारीरिक वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति आलस्य एवं कमजोरी महसूस करता है। रोग-प्रतिरोधक-क्षमता घट जाती है दाँतों एवं मसूड़ों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

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प्रश्न 4:
विटामिन ‘सी’ की अत्यधिक कमी से कौन-सा रोग हो जाता है?
उत्तर:
विटामिन ‘सी’ की अत्यधिक कमी से स्कर्वी नामक रोग हो जाता है।

प्रयोग 4:

विषय:
बिस्तर पर लेटे रोगी के बिस्तर की चादर बदलना।

उद्देश्य:
रोगी को संक्रमण से बचाने के लिए एवं स्वच्छता का ध्यान रखते हुए रोगी के बिस्तर की चादर बदलना।

आवश्यक सामग्री:
दो साफ धुली चादरें तथा छोटी चादर।

विधि:
साधारणतया हम बिस्तर की चादर गन्दी होने पर तुरन्त बदल देते हैं। परन्तु समस्या तब उत्पन्न होती है जब रोगी आसानी से उठ-बैठ नहीं पाता और न ही हिल-डुल पाता है। ऐसी दशा में किस प्रकार रोगी की चादर बदली जाए? चादर बदलने की निम्नलिखित विधियाँ हैं

करवट विधि

  1. सर्वप्रथम पहले से एक और चादर उसी लम्बाई को लेकर, उसकी आधी चौड़ाई से अधिक तक मोड़कर लपेट लेते हैं। यदि छोटी चादर या मोमजामा भी बदलना हो तो उसे भी मोड़कर तैयार रखते हैं।
  2. तत्पश्चात् रोगी को एक करवट लिटाकर बिस्तर पर बिछी हुई छोटी चादर, मोमजामा व बड़ी चादर को घुमाकर लपेटते हुए रोगी की पीठ के पास तक ले जाते हैं तथा नीचे के बिस्तर की सिलवटें दूर कर देते हैं।
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  3.  इसके पश्चात् गन्दी चादर को हटाकर शेष बिस्तर पर साफ चादर पहले उस ओर से बिछाते हैं जिधर खाली स्थान है और इसके बाद आधी बिछी हुई चादर पर रोगी की करवट पलट देते हैं।
  4. इसके बाद जब रोगी आधी करवट ले लेता है तब उस खाली आधे स्थान पर तुरन्त चादर बिछा देते हैं।

लपेट विधि

नई चादर को बिछाने के लिए रोगी को करवट दिलानी अति आवश्यक है। उसकी पीठ की ओर खड़े होकर उस ओर से पलंग की पुरानी चादर को पहले थोड़ी दूर तक लपेट लेना चाहिए तथा जितनी दूर तक यह चादर हट जाती है उतनी दूर तक नई चादर को बिछा देना चाहिए। इसी तरह पुरानी चादर लपेटते जाते हैं तथा नई चादर बिछाते जाते हैं। जब दोनों चादरों की लपेटन रोगी के समीप पहुँच जाती है तो उसे सहारा देकर धीरे से नई चादर की ओर करवट दिला दी जाती है।

प्रयोग सम्बन्धी मौखिक प्रश्न

प्रश्न 1:
रोगी के बिस्तर पर सूती चादर क्यों बिछाते हैं?
उत्तर:
रोगी के बिस्तर पर सूती चादर बिछायी जाती है क्योंकि वह रोगी के शरीर से निकलने वाले पसीने को सोख लेती है। इसके अतिरिक्त चादर को निसंक्रमित करने के लिए इसे खौलते पानी में आसानी से धोया जा सकता है।

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प्रश्न 2:
ठीक से उठ-बैठनसकने वाले रोगी के बिस्तर की चादर बदलने में कितने व्यक्तियों की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
इस प्रकार के रोगियों के बिस्तर की चादर बदलते समय दो व्यक्तियों का होना सुविधाजनक रहता है।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 18 तिकोनी और लम्बी पट्टियाँ तथा उनका प्रयोग

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 18 तिकोनी और लम्बी पट्टियाँ तथा उनका प्रयोग

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 18 तिकोनी और लम्बी पट्टियाँ तथा उनका प्रयोग.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
मरहम-पट्टी ( ड्रेसिंग ) से क्या अभिप्राय है? प्राथमिक चिकित्सा में पट्टियाँ बाँधने के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर:
मरहम-पट्टी का अर्थ एवं प्रकार

प्राथमिक चिकित्सा में सर्वाधिक आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण कार्य है-दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की मरहम-पट्टी करना। किसी भी प्रकार की चोट लग जाने या घाव हो जाने पर रोगी की मरहम-पट्टी की जाती है। मरहम-पट्टी के अन्तर्गत चोट या घाव को किसी नि:संक्रामक घोल से साफ करके उस पर मरहम (UPBoardSolutions.com) लगाकर पट्टी बाँधी जाती है। चोट एवं घाव के अतिरिक्त कुछ अन्य दशाओं में भी मरहम-पट्टी की जाती है। सैद्धान्तिक रूप से मरहम-पट्टी के निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं

(1) सूखी मरहम-पट्टी,
(2) गीली मरहम-पट्टी।

(1) सूखी मरहम-पट्टी:
इसका प्रयोग घाव की रक्षा करने, उसके भरने तथा उस पर दबाव डालने के लिए किया जाता है। सामान्यतः ये पट्टियाँ जालीदार महीन कपड़े की बनी होती हैं तथा नि:संक्रमित अवस्था में प्लास्टिक पेपर में बन्द रहती हैं। आकस्मिक दुर्घटना के समय इनके उपलब्ध होने तक इनके स्थान पर स्वच्छ फलालेन कपड़े के टुकड़े, रूमाल अथवा कागज का उपयोग किया जा सकता है।

(2) गीली मरहम-पट्टी:
ये दो प्रकार की होती हैं

(क) ठण्डी पट्टी:
यह पीड़ा, सूजन तथा आन्तरिक रक्तस्राव को कम करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है। ये स्वच्छ कपड़े, रूमाल अथवा फलालेन के कपड़े की चार तह करके ठण्डे पानी में भिगोकर प्रभावित अंगों पर रखी जाती हैं। इन्हें गीला एवं ठण्डा बनाए रखने के लिए समय-समय पर बदलते रहना चाहिए।

(ख) गर्म पट्टी:
इनका उपयोग गुम चोट की पीड़ा को कम करने, फोड़ों को पकाने तथा सूजन को कम करने के लिए किया जाता है। ठण्डी पट्टी के समान इसे भी कपड़े की चार तह करके (UPBoardSolutions.com) बनाया जाता है. तथा गर्म पानी में भिगोकर प्रभावित अंग पर रखा जाता है। प्रभावित अंग को लगातार गर्मी प्रदान करने के लिए पट्टी को बार-बार बदलते रहना चाहिए।

प्राथमिक चिकित्सा में पट्टियों के उद्देश्य एवं महत्त्व

प्राथमिक चिकित्सा में पट्टियों का अपना विशेष महत्त्व है। इसकी पुष्टि के लिए पट्टियों को प्रयोग करने में निम्नलिखित उद्देश्यों का अवलोकन करना आवश्यक है

  1. पट्टियों के प्रयोग करने का एक उद्देश्य घाव को बढ़ने अथवा फैलने से रोकना होता है, जिससे कि चोटग्रस्त अंग अधिक गम्भीर न हो सके।
  2.  पट्टियाँ प्रायः नि:संक्रमित होती हैं; अत: इनका प्रयोग कर घाव को ढकने से घाव वायु में उपस्थित हानिकारक जीवाणु के संक्रमण से सुरक्षित हो जाता है।
  3. चोटग्रस्त अंग पर औषधि एवं खपच्चियों को यथास्थान बनाए रखने के लिए पट्टियों का प्रयोग किया जाता है। दवा लगाकर पट्टी बाँध देने पर दवा के पुछ जाने या अरु जाने की आशंका नहीं रहती।
  4. घायल अंग अथवा अंगों को सहारा देने के लिए झोल के रूप में पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।
  5.  घाव पर उचित मात्रा में दबाव डालने के लिए पट्टियों का प्रयोग करते हैं। इससे सूजन या तो कम हो जाती है या फिर बढ़ती नहीं है।
  6. चोट अथवा घाव आदि को फिर से चोट या धक्का लगने से बचाने के लिए प्रायः पट्टियों का उपयोग किया जाता है।
  7.  रक्तस्त्राव को कम करने के लिए अथवा बन्द करने के लिए घायल अंग पर कसकर पट्टियाँ बाँधी जाती हैं।
  8.  पट्टियाँ बाँधने से क्षतिग्रस्त धमनियों एवं पेशियों को आराम मिलता है तथा दर्द में कमी आती है।
  9. रोगियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए भी पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 2:
लुढ़की अथवा लम्बी पट्टियों का प्रयोग कब किया जाता है? भुजा एवं टाँग के चोटग्रस्त होने पर लम्बी पट्टियाँ किस प्रकार बाँधी जाती हैं?
उत्तर:
लम्बी पट्टियों का प्रयोग:
ये प्राय: 5 मीटर लम्बी होती हैं; परन्तु सीने एवं सिर पर बाँधने के लिए ये 8 मीटर तक लम्बी हो सकती हैं। भिन्न अंगों के लिए इनकी चौड़ाई भिन्न होती है। इन्हें मशीन अथवा हाथ द्वारा लपेटा जा सकता है। इनके प्रयोग करने के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. घाव अथवी चोट पर रुई, औषधि एवं खपच्चियों को यथास्थान बनाए रखने के लिए।
  2. घायल अंगों को सहारा देने के लिए।
  3.  सूजन कम करने तथा घाव पर उचित दबाव डालने के लिए।
  4. रक्त-स्राव रोकने के लिए तथा रक्त-प्रवाह की दिशा को बदलने के लिए।

(क) भुजा अथवा अग्रबाहु पर लम्बी पट्टियाँ बाँधने की विधियाँ

(i) अँगूठे की पट्टी बाँधना:
अँगूठे की पट्टी बाँधने के लिए लगभग 2.5 सेन्टीमीटर चौड़ी तथा 1.5 मीटर लम्बी पट्टी की आवश्यकता होती है। इसे बाँधने के लिए कलाई के पृष्ठ तल पर एक सिरा रखकर दो लपेट लगाते हैं। पट्टी को छोटी उँगली की ओर लपेटते हुए हथेली पर से अंगूठे के नाखून की ओर एक फेरा अँगूठे के चारों (UPBoardSolutions.com) ओर लगाते हैं; अत: यह पट्टी अँगूठे के बाहरी किनारों की ओर होगी। अब अँगूठे के चारों ओर इसे लपेटते हुए अंगूठे के भीतरी किनारे की ओर लाया जाता है और इसी प्रकार और चक्कर लगाए जाते हैं। प्रत्येक चक्कर में पहली पट्टी की चौड़ाई का लगभग 1/3 भाग ढक दिया जाता है। इस प्रकार लपेटी गई पट्टी जब कलाई के पास पहुँच जाती है, तब कलाई पर पट्टी के दो चक्कर लगाकर या तो पहले छोर के साथ गाँठ बाँध दी जाती है। अथवा सेफ्टी पिन की सहायता से पट्टी को जोड़ दिया जाता है।
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(ii) उँगली की पट्टी बाँधना:
यह पट्टी भी 2.5 सेन्टीमीटर चौड़ी तथा 1.5 मीटर लम्बी होती है। इसे । भी कलाई के पृष्ठ भाग से प्रारम्भ करना चाहिए और 1-2 लपेट देने के बाद उँगली के नाखून तक ले जाना चाहिए। अँगूठे की तरह ही क्रमशः आगे से पीछे की ओर पट्टी को लपेटते हुए जब पट्टी हथेली पर पहुँच जाए तो अँगूठे की ओर ले जाकर कलाई के चारों ओर लपेटकर पहले छोर से बाँध देते हैं अथवा सेफ्टी पिन की सहायता से पट्टी को जोड़ देते हैं।

(iii) हथेली की पट्टी बाँधना:
इसके लिए लगभग 5 सेन्टीमीटर चौड़ी पट्टी की आवश्यकता होती है। घायल व्यक्ति की हथेली को नीचे रखकर प्राथमिक चिकित्सक को उसके सामने खड़ा होना चाहिए। अब पट्टी के सिरे को छोटी उँगली के पास रखकर अँगूठे की ओर ले जाते हैं तथा उँगलियों के चारों ओर दो-तीन बार लपेट (UPBoardSolutions.com) देते हैं। इसके बाद पट्टी को अँगूठे और हथेली के कोण । से निकालकर हथेली के पृष्ठ भाग की ओर ले । जाते हैं जहाँ से कलाई की ओर ले जाकर कलाई पर एक चक्कर लगाकर वापस लौटा लेते हैं। इस बार यह चक्कर छोटी अँगली की ओर जाएगा।
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छोटी उँगली के नाखून से नीचे तक तथा उँगलियों के नीचे से निकाल लिया जाता है। इस प्रकार, क्रमशः उँगलियों से कलाई की ओर तथा कलाई से अँगूठे की ओर (UPBoardSolutions.com) आवश्यकतानुसार कुछ चक्कर लगाए जाते हैं। हर बार पट्टी के पिछले चक्कर का कुछ भाग ढक देने से पट्टी के खुलने का भय नहीं रहता है। अन्तिम रूप में पट्टी को कलाई पर ही पहले सिरे के साथ बाँध दिया जाता है अथवा सेफ्टी पिन के साथ जोड़ दिया जाता है।

(iv) अग्रबाहु की पट्टी बाँधना:
यह पट्टी लगभग 5-7 सेन्टीमीटर चौड़ी होती है। इसके सिरे को अँगूठे के सिरे की ओर रखा जाता है तथा कलाई के भीतर की।
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ओर से बाहर की ओर लाया जाता है। अब इस पट्टी को । अँगूठे की ओर से छोटी उँगली की ओर उसके प्रथम जोड़। पर लम्बी पट्टी बाँधना तक लाया जाता है और हथेली की ओर से लेते हुए अँगूठे। और उँगलियों के स्थान से हथेली के पृष्ठ भाग पर लाया जाता है। इस प्रकार दो-तीन चक्कर लगाए जाते हैं। बाद में कलाई पर सीधे दो-तीन चक्कर लगाकर कोहनी की तरफ लपेटते हुए, ध्यान रहे कि हर बार पिछली पट्टी इससे ढकती रहे, जब कोहनी के पास पहुँच जायें तो पट्टी के सिरे कों एक या दो लपेट देकर सेफ्टी पिन की सहायता से जोड़ देते हैं। बड़ी झोली में अग्रबाहू डालकर सहारा दिया जाता है।

(ख) टाँग पर पट्टी बाँधने की विधियाँ:

(i) घटने तथा कोहनी पर पट्टी बाँधना:
घटने। अथवा भुजा की कोहनी पर लगभग 7 सेन्टीमीटर चौड़ी पट्टी बाँधी जाती है। पहले पट्टी के खुले सिरों को जोड़ में भीतरी सतह पर रखकर एक-दो चक्कर लगाने (UPBoardSolutions.com) चाहिए। उसके उपरान्त क्रमशः जोड़ के ऊपर-नीचे लटके हुए ‘8’ की आकृति एक के बाद एक कई बार बनानी चाहिए। जब जोड़ पूरा ढक जाए तो पट्टी को सेफ्टी पिन से अटका देना चाहिए। यदि चोट बाँह में हो, तो उसे झोली में लटका देना चित्र चाहिए।
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(ii) तलुए तथा एड़ी पर पट्टी बाँधना:
दोनों स्थानों पर लगभग 7 सेन्टीमीटर चौड़ी पट्टी प्रयोग में लाई जाती है। पैर को सुविधाजनक स्थिति में रखकर पट्टी को टखने के जोड़ पर इस प्रकार रखा जाता है। कि इसका खुला सिरा टखने पर रहे और फिर टखने के जोड़ पर दो लपेट इस प्रकार लगाए जाते हैं कि जोड़ पूरी । तरह ढक जाए। (UPBoardSolutions.com) इसके बाद पट्टी को पैर के ऊपर से ले जाकर छोटी उँगली के सिरे तक ले जाते हैं और यहाँ से पैर के ऊपर एक सीधा चक्कर लगा देते हैं। अब शेष चक्कर ‘8’ का अंक बनातेहुए लगाते हैं। इस प्रकार पुरा तलुओ। ढक दिया जाता है। अब या तो पहले सिरे के साथ गाँठ बाँध दी जाती है अथवा सेफ्टी पिन द्वारा पट्टी को जोड़ दिया जाता है।
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एड़ी पर पट्टी बाँधते समय पट्टी को टखने के जोड़ के ऊपर से बाँधना आरम्भ करते हैं। एक-दो लपेट एड़ी पर देने के पश्चात् पट्टी तलुए तक पहुँचाते हैं। तलुए के नीचे से निकालकर छोटी उँगली की दिशा में पहले चक्कर की तरह पट्टी एड़ी पर से तिरछी ली जाती है तथा तीन-चार बार लपेट देकर एड़ी
टखने को पूरी तरह ढक देते हैं।

(iii) ट्राँग की पट्टी बाँधना:
अग्रबाहु की तरह टाँग की पट्टी भी 5-7 सेन्टीमीटर चौड़ी होती है। इसके बाँधने का ढंग भी बिल्कुल अग्रबाहु के समान होता है।

प्रश्न 3:
भुजा एवं टाँगों पर बाँधी जाने वाली तिकोनी पट्टियों की विभिन्न विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
तिकोनी पट्टियों के प्रयोग से कुछ विशिष्ट अंगों को आवश्यकतानुसार बाँधकर प्रभावित स्थान को ढकने, पीड़ा कम करने तथा उपयुक्त दबाव डालना आदि महत्त्वपूर्ण कार्य किए जा सकते हैं। तिकोनी पट्टियों को भुजा एवं टाँग पर निम्नलिखित प्रकार से बाँधा जा सकता है

(क) भुजा पर तिकोनी पट्टी बाँधना

(i) हाथ की पट्टी बाँधना:
तिकोनी पट्टी को फैलाकर उसके आधार वाले भाग को लगभग चार सेन्टीमीटर अन्दर की ओर मोड़ दिया जाता है। घायल हाथ को पट्टी के मध्यम भाग में इस प्रकार रखा जाता है कि उँगली पट्टी के शीर्ष की ओर रहे। शीर्ष को मोड़कर कलाई तक ले जाते हैं। पट्टी के आधारीय दोनों सिरों को दोनों हाथों से पकड़कर एक-दूसरे की विपरीत दिशा में खींचकर लपेटते हैं। तथा कलाई पर ‘रीफ’ गाँठ बाँध देते हैं। यदि आवश्यकता हो, तो चोटग्रस्त हाथ को सँकरी झोली द्वारा लटका देते हैं।
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(ii) कोहनी की पट्टी बाँधना:
कोहनी पर बाँधने के लिए एक छोटी पट्टी को फैलाकर उसके आधारीय भाग को हाथ की पट्टी के अनुसार थोड़ा-सा अन्दर की ओर मोड़ लेते हैं। अब कोहनी को समकोण पर मोड़कर पट्टी को इस प्रकार रखा जाता है कि उसका शीर्ष कन्धे की ओर रहे और आधारीय भाग आगे की ओर अग्रबाहु पर। रहे। (UPBoardSolutions.com) अब आधारीय दोनों सिरों को दोनों हाथ से पकड़कर कोहनी के ऊपरी भाग से एक-दूसरे के विपरीत दिशा में लपेटकर ‘रीफ गाँठ बाँध दी जाती है। शीर्ष का बचा हुआ भाग गाँठ के ऊपर लाकर सेफ्टी पिन द्वारा पट्टी से जोड़ दिया जाता है। भुजा को आराम देने के लिए बड़ी झोली में डाल दिया जाता है।
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(iii) कन्धे की पट्टी बाँधना:
इस कार्य के लिए तिकोनी पट्टी के आधारीय भाग को अन्दर की ओर मोड़ते हैं। प्राथमिक चिकित्सक चोटग्रस्त व्यक्ति के घायल कन्धे की ओर खड़ा होकर पट्टी को इस प्रकार रखे कि पट्टी को शीर्ष भाग गर्दन के पास कन्धे पर रहे तथा आधार को मध्य भाग कोहनी से ऊपर रहे। अब पट्टी के दोनों आधारीय सिरों को दोनों हाथों में पकड़कर बाँह के नीचे से विपरीत दिशा में घुमाकर सामने की ओर ‘रीफ’ गाँठ लगा देते हैं। हाथ को कोहनी पर समकोण की दिशा में रखकर झोली में डाल देते हैं।
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(ख) टाँग की पट्टी बाँधना

(i) पैर की पट्टी बाँधना:
इसे भी हाथ के समान ही बाँधा जाता है। पट्टी के आधारीय भाग को थोड़ा-सा अन्दर की ओर मोड़ लिया जाता है।
चित्र 18.8-कन्धे की पट्टी बाँधना, घायल पैर को पट्टी के ऊपर इस प्रकार रखा जाता है कि उँगली शीर्ष की ओर रहे। एड़ी आधार से थोड़ी अन्दर रहनी चाहिए। शीर्ष को मोड़कर पैर के ऊपर लाया जाता है तथा आधारीय जोड़ के पास से ऊपर के भाग पर । दोनों सिरों को विपरीत दिशा में घुमाकर (UPBoardSolutions.com) चारों ओर लपेट देते हैं। अब दोनों सिरों में आगे की ओर ‘रीफ’ गाँठ बाँध देते हैं। शीर्ष के शेष भाग को पट्टी के ऊपर से खींचकर गाँठ को ढकते हुए मोड़कर आगे की ओर सेफ्टी पिन की सहायता से जोड़ दिया जाता है।
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(ii) घुटने की पट्टी बाँधना:
पट्टी के आधारीय भाग को अन्य पट्टियों की तरह मोड़कर घुटने पर इस प्रकार रखा जाता है कि शीर्ष का भाग घुटने के ऊपर कमर की ओर सामने रहे तथा आधारीय भाग घुटने के नीचे रहे। आधारीय दोनों सिरों को दोनों हाथों में पकड़कर टाँग के चारों ओर लपेटना चाहिए तथा लपेटते हुए घुटने के (UPBoardSolutions.com) ऊपर ले जाकर आगे की ओर ‘रीफ’ गाँठं के द्वारा बाँधा जाता है। इस प्रकार शीर्ष पट्टी के नीचे की ओर से निकला रहता है जिसे खींचकर तथा मोड़कर सेफ्टी पिन की सहायता से घुटने से जोड़ दिया जाता है।
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(iii) जाँघ तथा कूल्हे की पट्टी बाँधना:
जाँघ पर बाँधने के लिएदो तिकोनी पट्टियों की आवश्यकता होती है। एक पट्टी का आधारीय भाग अन्य पट्टियों की तरह अन्दर की ओर मोड़ दिया जाता है। इसी भाग को जाँघ के ऊपर इस प्रकार रखा जाता है कि पट्टी का शीर्ष कूल्हे की ओर कमर पर रहे। दोनों आधारीय सिरों को दोनों हाथों में पकड़कर एक-दूसरे के विपरीत दिशा में जाँघ के ऊपर लपेटकर सामने की ओर ‘रीफ’ गाँठ के द्वारा बाँधा जाता है। दूसरी (UPBoardSolutions.com) पट्टी को सँकरी बनाकर कमर पर इस प्रकार बाँधा जाता है कि पहली पट्टी का शीर्ष इसके नीचे दब जाए। सँकरी पट्टी का सिरा ‘रीफ’ गाँठ के द्वारा उचित स्थान पर बाँधा जाता है। अब पहली पट्टी के शीर्ष को ऊपर की ओर थोड़ा खींचकर गाँठ.. के ऊपर से ढकते हुए नीचे की ओर मोड़कर सेफ्टी पिन की सहायता से पट्टी के साथ जोड़ दिया जाता है।
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प्रश्न 4:
सिर पर बाँधते समय तिकोनी वलम्बी पट्टियों का प्रयोग किस प्रकार करेंगी?
उत्तर:
मस्तिष्क एवं अनेक नाड़ियाँ सिर में सुरक्षित रूप में स्थित होती हैं। सिर मानव शरीर का अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। सिर में लगने वाली छोटी-सी चोट भी उपयुक्त देख-रेख न होने पर घातक सिद्ध हो सकती है। इसलिए प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक को सिर पर पट्टी बाँधने की भली प्रकार से जानकारी होनी अति आवश्यक है। सिर में चोट लगने पर तिकोनी व लम्बी दोनों प्रकार की पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

(1) सिर की तिकोनी पट्टी बाँधना:
सिर पर चोट लगने पर घायल भाग पर रुई व औषधि यथास्थान रखने के लिए तथा घाव को भली-भाँति ढकने के लिए तिकोनी पट्टी का प्रयोग किया जाता है। पट्टी बाँधते समय निम्नलिखित नियम अपनाएँ

  •  पट्टी के आधारीय भाग को थोड़ा-सा अन्दर की ओर मोड़ लें। अब पट्टी को सिर पर इस प्रकार रखें कि आधारे का मुड़ा हुआ भाग भौंहों के निकट हो तथा सिरा पीछे की ओर रहे।

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  •  पट्टी के दोनों सिरों को कान के ऊपर से सिर के पीछे की ओर ले जाकर तथा फिर वापस लपेटकर सामने की ओर माथे पर लाना चाहिए। माथे के बीच में दोनों सिरों को लेकर रीफ’ गाँठ द्वारा बाँधे। द्वारा बॉधे।
  • पट्टी के शीर्ष-भाग को थोड़ा खींचकर मोड़ दें तथा इसे शेष पट्टी से सेफ्टी पिन द्वारा जोड़ दें।
  • प्राथमिक चिकित्सक को पट्टी बाँधते समय घायल व्यक्ति को किसी कुर्सी अथवा स्टूल पर बैठाना चाहिए।

(2) सिर पर लम्बी पट्टी बाँधना:
सिर के लिए लगभग पाँच सेन्टीमीटर चौड़ी व सात से आठ मीटर लम्बी दो पट्टियों की आवश्यकता होती है। दोनों पट्टियों के सिरे बाँधकर गाँठ को । रोगी के माथे के मध्य में रखते हैं। प्राथमिक चिकित्सक को रोगी के पीछे खड़े होकर दोनों । पट्टियों को विपरीत दिशा में लपेटते हुए दोनों हाथों से कानों के ऊपर सिर के पीछे ले जाकर मोड़ देना चाहिए। अब दाएँ हाथ की पट्टी को मोड़कर सिर के बीच से सामने माथे की ओर लाते हैं।
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बाएँ हाथ की पट्टी को बाएँ कान के ऊपर से ले जाकर माथे के मध्य में ले आते हैं। जो पट्टी दाएँ हाथ से माथे पर लाई गई थी उसके ऊपर से बाएँ हाथ की पट्टी को बाँधते हुए दाएँ कान की ओर ले जाते हैं। इस प्रकार, दाहिने हाथ की पट्टी के लपेट सिर पर, एक बार बाईं तथा दूसरी बार दाईं ओर लपेटते जाते हैं। इस क्रिया को बार-बार दोहराने से पूरा सिर ढक जाता है। अन्त में दोनों पट्टियों के सिरों को एक-दूसरे (UPBoardSolutions.com) पर मोड़ देकर सिर के पीछे से माथे की ओर विपरीत दिशा में लाते हैं और यहीं पर गाँठ के द्वारा अथवा सेफ्टी पिन की सहायता से बाँध देते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
पट्टियाँ बाँधने के सामान्य नियम कौन-से हैं?
उत्तर:
पट्टियाँ प्रयोग करते समय प्राथमिक चिकित्सक को निम्नलिखित नियमों का अनुसरण करना चाहिए

  1. घाव एवं घायल व्यक्ति का ध्यानपूर्वक निरीक्षण कर प्राथमिक चिकित्सक को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि पूरी पट्टी बाँधी जानी है या आधी अथवा चौड़ी या सँकरी, उसी के अनुसार पट्टियों का प्रयोग करना चाहिए।
  2.  प्रट्टियाँ स्वच्छ एवं कीटाणुरहित होनी चाहिए।
  3.  पट्टियों को आवश्यकतानुसार कसकर बाँधना चाहिए, क्योंकि ढीली पट्टी का कोई विशेष लाभ नहीं होता और यहं खुल भी सकती है।
  4. पट्टी की गाँठ सदैव सुविधाजनक स्थान पर लगानी चाहिए। पट्टी की गाँठ कभी भी घाव के ऊपर नहीं लगाई जाती है।
  5.  पट्टी बाँधने के बाद प्रायः ‘रीफ’ गाँठ लगानी चाहिए।
  6.  पट्टी को कसकर सफाई एवं विधिपूर्वक लपेटना चाहिए।

प्रश्न 2:
‘रीफ’ गाँठ किस प्रकार लगाई जाती है?
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा के लिए पट्टियाँ बाँधते समय मुख्य रूप से रीफ गाँठ ही बाँधी जाती है। रीफ गाँठ बाँधने के लिए पट्टी के दोनों सिरों को दोनों हाथों में पकड़ लेते हैं। बाएँ हाथ के सिरे को दाएँ हाथ के सिरे पर रख दिया जाता है तथा उसे इस इस प्रकार लपेटा जाता है कि दाएँ हाथ का सिरा बाएँ (UPBoardSolutions.com) हाथ में आ जाए। अब दाएँ हाथ के टुकड़े के। सिरे को बाएँ हाथ में रखा जाता है और पहले की तरह घुमाकर नीचे से । निकाल लिया जाता है। अब दोनों सिरों को दो विपरीत दिशाओं में खींच देने से गाँठ भली-भाँति कस जाएगी।
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प्रश्न 3:
तिकोनी पट्टी कैसे तैयार की जाती है? इसे किस-किस प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है?
उत्तर:
तिकोनी पट्टी बनाने के लिए मारकीन अथवा अन्य किसी मजबूत कपड़े का 1×1 मीटर आकार का टुकड़ा लिया जाता है। इसके एक सिरे को सामने वाले दूसरे सिरे से मिलाकर तथा दोहरा करके त्रिभुज की तरह बना लिया जाता है। अब मुड़े हुए स्थान से काटने पर दो तिकोनी पट्टियाँ प्राप्त (UPBoardSolutions.com) होती हैं। इनके किनारों को थोड़ा-सा मोड़कर तुरपन कर दी जाती है। तिकोनी पट्टियों को आवश्यकतानुसार निम्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है

(1) पूरी खुली पट्टी:
यह पीठ, छाती तथा सिर पर बाँधने में प्रयुक्त होती है। इसका प्रयोग सम्पूर्ण रूप में किया जाता है।

(2) चौड़ी पट्टी:
यह शीर्ष को आधार पर उलट कर तथा पट्टी को दोहरा करके प्रयोग में लाई जाती है। यह झोल डालने या खपच्च बाँधने के काम आती है।
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(3) संकरी पट्टी:
इसे बनाने के लिए दो बार मुड़े शीर्ष-भाग को पुनः तीसरी बार आधार पर रखकर मोड़ देते हैं। अधिक सँकरी करने के लिए इसे पुन: मोड़ा जा सकता है। इसका प्रयोग भी चौड़ी पट्टी के समान किया जाता है।

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प्रश्न 4:
तिकोनी पट्टी का प्रयोग कब-कब किया जाता है?
उत्तर:
तिकोनी पट्टियों का प्राथमिक चिकित्सा में अत्यधिक महत्त्व है। इनका प्रयोग निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है

  1. चोटग्रस्त अंग एवं घाव को ढकने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है। इससे प्रभावित भाग वायु में उपस्थित धूल के कणों एवं जीवाणुओं से सुरक्षित हो जाते हैं।
  2. इनकी सहायता से खपच्चियों, औषधि व रुई आदि को घायल अंग पर यथास्थान बनाए रखा जा सकता है।
  3.  घायल अंग पर उपयुक्त दबाव डालने के लिए तिकोनी पट्टियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं। ऐसा करने से पीड़ित व्यक्ति का दर्द एवं रक्तस्राव कम होता है।
  4.  तिकोनी पट्टियों की झोली बनाई जाती है जो कि चोटग्रस्त अंग को सहारा देने के काम आती है।

प्रश्न 5:
रोलर पट्टी का प्रयोग कब किया जाता है?
उत्तर:
लम्बी या रोलर पट्टियाँ हाथ से या मशीन से रोलर के रूप में लपेटी जाती हैं। इनकी चौड़ाई भिन्न-भिन्न होती है। ये प्रमुखत: रुई को बाँधने तथा औषधि, खपच्चियों आदि को यथास्थान रखने के
प्रयोग में लाई जाती है। इसके अतिरिक्त ये सूजन कम करने, घाव पर दबाव डालने, रक्त स्राव रोकने, टूटे अंग पर प्लास्टर चढ़ाने आदि के लिए भी अत्यन्त उपयोगी हैं।

प्रश्न 6:
तिकोनी पट्टी से बड़ी झोली एवं सैन्ट जॉन झओली किस प्रकार बनाई जाती है?
उत्तर:

(1) बड़ी झोली:
तिकोनी पट्टी को खुली अवस्था में चोटग्रस्त व्यक्ति के वक्षस्थल पर इस प्रकार रखते हैं कि पट्टी के आधार को एक सिरा स्वस्थ कन्धे पर रहे तथा दूसरा नीचे लटकता रहे। बाँह की समको ३२ ड देते हैं। अब नीचे लटकने वाले सिरे को मोड़कर घायल व्यक्ति के कन्धे पर लाया जाता है और दोनों सिरों को हँसली की हड्डी के पास के गड्ढे में ‘रीफ’ गाँठ लगाकर बाँध देते हैं। पट्टी के शीर्ष भाग को अन्दर की ओर भली-भाँति मोड़कर सेफ्टी पिन लगा दी जाती है।

(2) सैन्ट जॉन झोली:
यह हॅसली की हड्डी टूट जाने पर बाँधी जाती है। जिस ओर की हॅसली की इड्डी टूटी हुई हो उस ओर बगल में पैड लगा दिया जाता है। अब घायल अंग की ओर के हाथ को व-स्थल पर मोड़कर इस प्रकार रख दिया जाता है कि वह स्वस्थ कंधे को छूता रहे। पट्ट को खुली हुई अवस्था में इस प्रकार (UPBoardSolutions.com) फैलाते हैं कि पूरे अग्रबाहु को ढकते हुए इसके आधार को एक सिरा स्वस्थ कंधे पर रहे। दूसरा नीचे लटका हुआ सिरा पीठ की ओर से घुमाकर स्वस्थ कंधे पर लाया जाता है। इस प्रकार दोनों आधारीय सिरों को इसी कंधे पर हँसली की हड्डी के ऊपरी गर्त में ‘रीफ’ गाँठ द्वारा बाँध दिया जाता है। कोहनी पर पट्टी के शीर्ष-भाग के सिरे को मोड़कर सेफ्टी पिन से जोड़ दिया जाता है।
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प्रश्न 7:
कान पर पट्टी किस प्रकार बाँधी जाती है?
उत्तर:
विधि-इसके लिए 6 सेमी चौड़ी तथा 5 मीटर लम्बी पट्टी की आवश्यकता होती है। इसमें । पट्टी को सिर और माथे पर दो बार लपेट देते हैं। पट्टी को घायल कानों के नीचे से निकालकर सामने माथे की ओर लाते हुए सिर के पीछे ले जाते हैं। दूसरा चक्कर पहले चक्कर का – भाग दबाते हुए (UPBoardSolutions.com) कान के ऊपर लगाते हैं और पट्टी को माथे की ओर लाकर स्वस्थ कान की ओर झुकाव देते हुए सिर के पीछे ले जाते हैं। इसी प्रकार सारे कान को ढक देते हैं। जब पूरा कान ढक जाए, तो एक चक्कर माथे और सिर के चारों ओर लाकर माथे पर पट्टी लाकर सेफ्टी पिन लगा देनी चाहिए।

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प्रश्न 8:
जबड़े की पट्टी किस प्रकार बाँधी जाती है?
उत्तर:
विधि-जबड़े की पट्टी दो प्रकार से बाँधी जाती है ।
(क) एक पट्टी द्वारा,
(ख) दो पट्टियों द्वारा

(क) एक पट्टी द्वारा:
एक पट्टी को सँकरा मोड़ लेते हैं। इस पट्टी का बीच का भाग हड्डी के नीचे रखकर दोनों सिरों को गालों के ऊपर से लाकर सिर के ऊपर ले जाते हैं और दोनों सिरों में सिर के ऊपर आधी रीफ गाँठ बाँधकर धीरे-धीरे कसते हैं। अब इस पट्टी के दो हिस्से हो जाएँगे। एक हिस्से को धीरे-धीरे माथे पर तथा दूसरे हिस्से को सिर के पीछे वाले भाग पर लाया जाता है। पट्टी के सिरों को हाथों में ध्यान से पकड़े रहना चाहिए, (UPBoardSolutions.com) जिससे पट्टी ढीली न होने पाए। इन सिरों को कानों से बाहर निकालते हुए कानों के ऊपरी भाग पर धीरे-धीरे खींचकर तथा सिरे के बीच में लाकर एक रीफ गाँठ द्वारा बाँध दिया जाता है।

(ख) दो पट्टियों द्वारा:
दो पट्टियाँ लेकर सँकरी मोड़ लेते हैं। पहले एक पट्टी ठुड्डी के नीचे से तथा गालों के ऊपर से ले जाकर सिर के ऊपर बाँध दी जाती है। अब दूसरी पट्टी ठुड्डी पर से तथा दोनों कानों के नीचे से ले जाकर गर्दन के पीछे ‘रीफ’ गाँठ द्वारा बाँध देते हैं। अब दोनों पट्टियों के बचे हुए सिरों को एक-दूसरे से रीफ गाँठ द्वारा बाँध देते हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
पट्टियाँ कितने प्रकार की होती हैं? नाम लिखिए।
उत्तर:
पट्टियाँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं
(1) तिकोनी पट्टियाँ तथा
(2) लम्बी पट्टियाँ।

प्रश्न 2:
तिकोनी पट्टी का प्रयोग कब-कब किया जाता है?
उत्तर:
चोटग्रस्त अंग एवं घाव को ढकने तथा घायल अंगों को सहारा देने के लिए तिकोनी पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3:
लम्बी पट्टियों का प्रयोग कब किया जाता है?
उत्तर:

  1. घाव तथा चोट पर खपच्चियाँ, रुई एवं औषधि को रोकने तथा घायल अंगों को सहारा देने के लिए।
  2.  सूजन को कम करने तथा घाव पर दबाव डालकर रक्तस्राव को रोकने के लिए भी लम्बी पट्टी को प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 4:
लम्बी पट्टी बाँधते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:

  1.  पट्टियाँ स्वच्छ एवं कीटाणुरहित हों।
  2. पट्टियों को आवश्यकतानुसार कसकर बाँधे तथा गाँठ सुविधाजनक स्थान पर लगाएँ।
  3.  सही आकार की पट्टी का चुनाव करें।

प्रश्न 5:
पट्टियाँ बाँधते समय मुख्य रूप से किस गांठ को अपनाया जाता है ?
उत्तर:
पट्टियाँ बाँधते समय मुख्य रूप से रीफ गांठ को अपनाया जाता है।

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प्रश्न 6:
‘रीफ’ गाँठ बाँधने से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
‘रीफ’ गाँठ बाँधने से निम्नलिखित लाभ हैं

  1.  यह अपने आप न तो खुलती है और न ही खिसकती है।
  2.  आवश्यकता पड़ने पर इसे सहज ही खोला जा सकता है।

प्रश्न 7:
पट्टियाँ बाँधने के दो मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पट्टियाँ प्रयोग करने के दो मुख्य उद्देश्य हैं

  1. औषधि, खपच्चियों एवं रुई को घायल अंग पर स्थिर रखना।
  2.  घाव को वायु में उपस्थित धूल के कणों एवं जीवाणुओं से सुरक्षित रखना।

प्रश्न 8:
तिकोनी पट्टी के लिए प्रायः कौन-सा कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है?
उत्तर:
तिकोनी पट्टी के लिए प्राय: मारकीन नामक कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 9:
लम्बी पट्टियाँ बनाने के लिए कौन-सा कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है?
उत्तर:
लम्बी पट्टियाँ सामान्यतः जाली वाले सफेद कपड़े से बनाई जाती हैं। इस कपड़े को गौज कहते हैं।

प्रश्न 10:
घायल अंगों को सहारा देने के लिए आप किस प्रकार की पट्टियों का प्रयोग करेंगी?
उत्तर:
घायल अंगों को सहारा देने के लिए तिकोनी पट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11:
सबसे अच्छी पट्टी कौन-सी है?
उत्तर:
कीटाणुरहित स्वच्छ पट्टी सर्वोत्तम होती है।

प्रश्न 12:
आपातकाल में पट्टियाँ न उपलब्ध होने पर आप क्या करेंगी?
उत्तर:
आपातकाल में पट्टियों के स्थान पर किसी स्वच्छ कपड़े का टुकड़ा, रूमाल अथवा स्वच्छ कागज प्रयोग कर घाव को ढककर बाँध देना चाहिए।

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प्रश्न 13:
गरम सेंक वाली पट्टी से क्या लाभ है?
उत्तर:
यह घाव की पीड़ा को कम करने के लिए की जाती है।

प्रश्न 14:
गीली मरहम-पट्टी क्यों की जाती है?
उत्तर:
यह सूजन कम करने के लिए की जाती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) हँसली की हड्डी टूट जाने पर बाँधी जाती है
(क) बड़ी झोली,
(ख) सैन्ट जॉन झोली,
(ग) कॉलर-कफ झोली,
(घ) सँकरी झोली।

(2) पट्टियों को कसकर नहीं बथना चाहिए, क्योंकि
(क) इससे रक्त प्रवाह रुक सकता है,
(ख) इससे रक्तस्राव बन्द हो सकता है,
(ग) रोगी को अधिक दर्द होता है,
(घ) यह अशोभनीय पट्टी है।

(3) आन्तरिक रक्तस्त्राव को रोकने के लिए प्रयोग की जाती है
(क) सूखी पट्टी,
(ख) गरम सेंक वाली पट्टी,
(ग) ठण्डी सेंक वाली पट्टी,
(घ) कोई भी पट्टी।

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(4) बाह्य रक्तस्राव को रोकने के लिए प्रयोग की जाती हैं
(क) तिकोनी पट्टियाँ,
(ख) लम्बी पट्टियाँ,
(ग) गरम सेंक वाली पट्टियाँ,
(घ) कोई भी पट्टी।

(5) कोहनी के जोड़ पर बाँधते समय पट्टी
(क) आठ (8) का अंक बनाती है,
(ख) साधारण चक्राकार होती है,
(ग) अनियमित चक्र बनाती है,
(घ) ढीली-ढाली होती है।

(6) सिर पर लम्बी पट्टी बाँधने के लिए पट्टियों की आवश्यकता पड़ेगी
(क) एक पट्टी की,
(ख) दो पट्टी की,
(ग) तीन पट्टियों की,
(घ) चार पट्टियों की।

(7) तिकोनी पट्टी बाँधी जाती है
(क) अँगूठा, उँगली तथा कलाई पर,
(ख) छाती, पीठ तथा सिर पर,
(ग) सिर, टाँग और उँगलियों पर,
(घ) कहीं भी।

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(8) सैन्ट जॉन झोली का काम है
(क) एक हाथ के सिरे को दूसरे हाथ के सिरे पर रखना,
(ख) एक हाथ को सहारा देना,
(ग) दोनों हाथों को सहारा देना,
(घ) उपर्युक्त सभी।

उत्तर:
(1) (ख) सैन्ट जॉन झोली,
(2) (क) इससे रक्त प्रवाह रुक सकता है,
(3) (ग) ठण्डी सेंक वाली पट्टी,
(4) (ख) लम्बी पट्टियाँ,
(5) (क) आठ (8) का अंक बनाती है,
(6) (ख) दो पट्टी की,
(7) (ख) छाती, पीठ तथा सिर पर,
(8) (ख) एक हाथ को सहारा देना।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘संसाधन के रूप में लोग’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी देश के लोग उस देश के लिए बहुमूल्य संसाधन होते हैं, यदि वे स्वस्थ्य, शिक्षित एवं कुशल हों, क्योंकि मानवीय संसाधन के बिना आर्थिक क्रियाएँ संभव नहीं हैं। मानव, श्रमिक, प्रबन्धक एवं उद्यमी के रूप में समस्त आर्थिक क्रियाओं का संपादन करता है। इसे मानव संसाधन भी कहते हैं।

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प्रश्न 2.
मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूँजी जैसे अन्य संसाधनों से कैसे भिन्न है?
उत्तर:
मानवीय संसाधन अन्य संसाधनों से इस प्रकार भिन्न है

  1. मानवीय संसाधन उत्पादन का एक अत्याज्य (Indispensable) साधन है।
  2. मानवीय संसाधन श्रम, प्रबंध एवं उद्यमी के रूप में कार्य करता है।
  3.  मानवीय संसाधन उत्पादन को एक जीवित, क्रियाशील एवं भावुक साधन है।
  4.  मानवीय संसाधन कार्य कराता है और अन्य साधनों को कार्यशील करता है।

प्रश्न 3.
मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है?
उत्तर:
मानव पूंजी (मानव संसाधन) निर्माण में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। शिक्षा एवं कौशल किसी व्यक्ति की आय को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक हैं। किसी बच्चे की शिक्षा और प्रशिक्षण पर किए गए निवेश के बदले में वह भविष्य में अपेक्षाकृत अधिक आय एवं समाज में बेहतर योगदान के रूप में उच्च प्रतिफल दे सकता है। शिक्षित लोग अपने बच्चों की शिक्षा पर अधिक निवेश (UPBoardSolutions.com) करते पाए जाते हैं।

इसका कारण यह है कि उन्होंने स्वयं के लिए शिक्षा का महत्त्व जान लिया है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह शिक्षा ही है जो एक व्यक्ति को उसके सामने उपलब्ध आर्थिक अवसरों का बेहतर उपयोग करने में सहायता करती है। शिक्षा श्रम की गुणवत्ता में वृद्धि करती है और कुल उत्पादकता में वृद्धि करने में सहायता करती है। कुल उत्पादकता देश के विकास में योगदान देती है।

प्रश्न 4.
मानव पूंजी निर्माण में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर:
मानव पूंजी निर्माण अथवा मानव संसाधन विकास में स्वास्थ्य की प्रमुख भूमिका है, जिसे हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं

  1. किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य अपनी क्षमता एवं बीमारी से लड़ने की योग्यता को पहचानने में सहायता करता है।
  2. केवल एक पूर्णतः स्वस्थ व्यक्ति ही अपने काम के साथ न्याय कर सकता है। इस प्रकार यह किसी व्यक्ति के कामकाजी जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
  3. एक अस्वस्थ व्यक्ति अपने परिवार, संगठन एवं देश के लिए दायित्व है। कोई भी संगठन ऐसे व्यक्ति को काम पर नहीं रखेगा जो खराव स्वास्थ्य के कारण पूरी दक्षता से काम न कर सके।
  4.  स्वास्थ्य न केवल किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाता है अपितु मानव संसाधन विकास में वर्धन करता है जिस पर देश के कई क्षेत्रक निर्भर करते हैं।

प्रश्न 5.
किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर:
स्वास्थ्य मानव को स्वस्थ, सक्रिय, शक्तिशाली एवं कार्य कुशल बनाता है। यह सही कहा गया है कि एक स्वस्थ शरीर में एक स्वस्थ दिमाग होता है। अच्छा स्वास्थ्य एवं मानसिक जागरुकता एक मूल्यवान परिसंपत्ति है जो मानवीय संसाधन को देश के लिए एक संपत्ति बनाती है। स्वास्थ्य जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। स्वास्थ्य का अर्थ जीवित रहना मात्र ही नहीं है।

स्वास्थ्य में शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं सामाजिक सुदृढ़ता शामिल हैं। स्वास्थ्य में परिवार कल्याण, जनसंख्या नियंत्रण, दवा नियंत्रण, प्रतिरक्षण एवं खाद्य मिलावट निवारण आदि बहुत से क्रियाकलाप शामिल हैं यदि कोई व्यक्ति अस्वस्थ है तो वह ठीक से काम नहीं कर (UPBoardSolutions.com) सकता। चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में एक अस्वस्थ मजदूर अपनी उत्पादकता और अपने देश की उत्पादकता को कम करता है। इसलिए किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता

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प्रश्न 6.
प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में किस तरह की विभिन्न आर्थिक क्रियाएँ संचालित की जाती
उत्तर:
प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में पृथक्-पृथक संचालित की जाने वाली प्रमुख क्रियाएँ इस प्रकार हैं|

  1.  प्राथमिक क्षेत्र–कृषि, वन एवं मत्स्य पालन, खनन तथा उत्खनन ।
  2. द्वितीयक क्षेत्र—उत्पादन, विद्युत-गैस एवं जल की आपूर्ति, निर्माण, व्यापार, होटल तथा जलपानगृह
  3.  तृतीयक क्षेत्र- परिवहन, भण्डार, संचार, वित्तीय, बीमा, वास्तविक संपत्ति तथा व्यावसायिक सेवाएँ, सामाजिक एवं व्यक्तिगत् सेवाएँ।।

प्रश्न 7.
आर्थिक और गैर आर्थिक क्रियाओं में क्या अन्तर है?
उत्तर:
आर्थिक क्रियाएँ-वह क्रियाएँ जो जीविका कमाने के लिए और आर्थिक उद्देश्य से की जाती हैं, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। यह क्रियाएँ उत्पादन, विनियम एवं वस्तुओं और सेवाओं के वितरण से संबंधित होती हैं। लोगों का व्यवसाय, पेशे और रोज़गार में होना आर्थिक क्रियाएँ हैं। इन क्रियाओं का (UPBoardSolutions.com) मूल्यांकन मुद्रा में किया जाता है। गैर-आर्थिक क्रियाएँ-वह क्रियाएँ जो भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए की जाती हैं। और जिनका कोई आर्थिक उद्देश्य नहीं होता, गैर-आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। यह क्रियाएँ सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षिक एवं सार्वजनिक हित से संबंधित हो सकती हैं।

प्रश्न 8.
महिलाएँ क्यों निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित होती हैं?
उत्तर:
महिलाएँ निम्न कारणों से निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित होती हैं

  1.  ज्ञान व जानकारी के अभाव में महिलाएं असंगठित क्षेत्रों में कार्य करती हैं जो उन्हें कम मजदूरी देते हैं। उन्हें अपने
    कानूनी अधिकारों की जानकारी भी नहीं है।
  2.  महिलाओं को शारीरिक रूप से कमजोर माना जाता है इसलिए उन्हें प्रायः कम वेतन दिया जाता है।
  3. बाजार में किसी व्यक्ति की आय निर्धारण में शिक्षा महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक है।
  4. भारत में महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा कम शिक्षित होती हैं। उनके पास बहुत कम शिक्षा एवं निम्न कौशल स्तर हैं। इसलिए उन्हें पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है।
  5.  महिलाएँ भौतिक एवं भावनात्मक रूप से कमजोर होती हैं।
  6. महिलाएँ खतरनाक कार्यों (hazardous work) के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं।
  7.  महिलाओं के कार्यों पर सामाजिक प्रतिबंध होता है।
  8. महिलाएँ दूर स्थित, पहाड़ी एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों में कार्य नहीं कर सकती।

प्रश्न 9.
‘बेरोजगारी’ शब्द की आप कैसे व्याख्या करेंगे?
उत्तर:
वह स्थिति जिसके अन्तर्गत कुशल व्यक्ति प्रचलित कीमतों पर कार्य करने के इच्छुक होते हैं किन्तु कार्य नहीं प्राप्त कर पाते, तो ऐसी स्थिति बेरोजगारी कहलाती है, यह स्थिति विकसित देशों की अपेक्षा विकासशील देशों में अधिक देखने को मिलती है।

प्रश्न 10.
प्रच्छन्न एवं मौसमी बेरोजगारी में क्या अन्तर है?
उत्तर:
प्रच्छत्र एवं मौसमी बेरोजगारी में अंतर इस प्रकार है
प्रच्छन्न बेरोजगारी–इस बेरोजगारी में लोग नियोजित प्रतीत होते हैं जबकि वास्तव में वे उत्पादकता में कोई योगदान नहीं कर रहे होते हैं। ऐसा प्रायः किसी क्रिया से जुड़े परिवारों के सदस्यों के साथ होता है। जिस काम में पाँच लोगों की आवश्यकता होती है (UPBoardSolutions.com) किन्तु उसमें आठ लोग लगे हुए हैं, जहाँ 3 लोग अतिरिक्त हैं। यदि इन 3 लोगों को हटा लिया जाए तो भी उत्पादकता कम नहीं होगी। यही बचे 3 लोग प्रच्छन्न बेरोजगारी में शामिल हैं।

मौसमी बेरोजगारी-वर्ष के कुछ महीनों के दौरान जब लोग रोजगार नहीं खोज पाते, तो ऐसी स्थिति मौसमी बेरोजगारी कहलाती है। भारत में कृषि कोई पूर्णकालिक रोजगार नहीं है। यह मौसमी है। इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि में पाई जाती है। कुछ व्यस्त मौसम होते हैं जब बिजाई, कटाई, निराई और गहाई की जाती है। कुछ विशेष महीनों में कृषि पर आश्रित लोगों को अधिक काम नहीं मिल पाता।

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प्रश्न 11.
शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक विशेष समस्या क्यों है?
उत्तर:
शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक कठिन चुनौती के रूप में उपस्थित हुई है। मैट्रिक, स्नातक, स्नातकोत्तर डिग्रीधारक अनेक युवा रोजगार पाने में असमर्थ हैं। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मैट्रिक की अपेक्षा स्नातक एवं स्नातकोत्तर डिग्रीधारकों में बेरोजगारी अधिक तेजी से बढ़ी है। (UPBoardSolutions.com) एक विरोधाभासी जनशक्ति-स्थिति सामने आती है क्योंकि कुछ वर्गों में अतिशेष जनशक्ति अन्य क्षेत्रों में जनशक्ति की कमी के साथ-साथ विद्यमान है। एक ओर तकनीकी अर्हता प्राप्त लोगों में बेरोजगारी व्याप्त है जबकि दूसरी ओर आर्थिक संवृद्धि के लिए जरूरी तकनीकी कौशल की कमी है।

उपरोक्त के प्रकाश में हम कह सकते हैं कि शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक विशेष समस्या है। । अधिकांश शिक्षित बेरोज़गारी शिक्षित मानवशक्ति के विनाश को प्रदर्शित करती हैं। बेरोजगारी सदैव बुरी है किन्तु यह हमारी शिक्षित युवाओं की स्थिति में एक अभिशाप है। हम अपने कुशल दिमाग का उपयोग करने योग्य नहीं होते।

प्रश्न 12.
आपके विचार से भारत किस क्षेत्र में रोजगार के सर्वाधिक अवसर सृजित कर सकता है?
उत्तर:
सेवा क्षेत्र भारत में सर्वाधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध करा सकता है। भूमि की अपनी एक निर्धारित सीमा है जिसे बदला नहीं जा सकता है अतः कृषि क्षेत्र में हम अधिक रोजगार के अवसर की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। कृषि में पहले से ही छिपी बेरोजगारी विद्यमान है जबकि दूसरी ओर उद्योग स्थापित करने में बड़े पैमाने पर संसाधन की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति हम सरलता से नहीं कर सकते हैं।(UPBoardSolutions.com) भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है और जिसे उचित शिक्षा, पेशेवर गुणवत्ता एवं कुशल श्रमशक्ति की आवश्यकता है। कुशल लोगों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर माँग होती है। अतः हम कह सकते। हैं कि भारत में सेवा क्षेत्र में रोजगार की असीम सम्भावनायें हैं।

प्रश्न-13.
क्या आप शिक्षा प्रणाली में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए कुछ उपाय सुझा सकते हैं?
उत्तर:
शिक्षा प्रणाली में निम्नलिखित सुधार करके हम शिक्षित बेरोजगारी को दूर कर सकते हैं

  1. शिक्षा द्वारा लोगों को स्वावलंबी एवं उद्यमी बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
  2. शिक्षा के लिए योजना बनाई जानी चाहिए एवं इसकी भावी संभावनाओं को ध्यान में रखकर इसे क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
  3. रोजगार के अधिक अवसर पैदा किए जाने चाहिए।
  4.  केवल किताबी ज्ञान देने की अपेक्षा अधिक तकनीकी शिक्षा दी जाए।
  5. शिक्षा को अधिक कार्योन्मुखी बनाया जाना चाहिए। एक किसान के बेटे को साधारण स्नातक की शिक्षा देने की अपेक्षा इस बात का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि खेत में उत्पादन कैसे बढ़ाया जा सकता है।
  6.  हमारी शिक्षा प्रणाली को रोज़गारोन्मुख (Job oriented) एवं आवश्यकतानुसार होना चाहिए। उच्च स्तर तक सामान्य शिक्षा होनी चाहिए। इसके पश्चात् विभिन्न शैक्षिक शाखाएँ प्रशिक्षण के साथ प्रारंभ करनी चाहिए।

प्रश्न 14.
क्या आप कुछ ऐसे गाँवों की कल्पना कर सकते हैं जहाँ पहले रोज़गार का कोई अवसर नहीं था, लेकिन बाद में बहुतायत में हो गया?
उत्तर:
निश्चय ही हम ऐसे गाँवों की कल्पना कर सकते हैं, क्योंकि हमने अपने गाँव के वयोवृद्ध लोगों से आर्थिक रूप से पिछड़े गाँवों के बारे में काफी कुछ सुना है। लोगों ने बताया है कि देश की स्वतंत्रता के समय गाँव में मूलभूत सुविधाओं जैसे-अस्पताल, स्कूल, सड़क, बाजार, पानी, बिजली, यातायात का अभाव था। लेकिन स्वतंत्रता के बाद सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के माध्यम से गाँवों में आवश्यक सेवाओं का विस्तार हुआ। गाँव के लोगों ने पंचायत का ध्यान इन सभी समस्याओं की ओर आकृष्ट किया। पंचायत ने एक स्कूल खोला जिसमें कई लोगों को रोजगार मिला। (UPBoardSolutions.com) जल्द ही गाँव के बच्चे वहाँ पढ़ने लगे और वहाँ कई प्रकार की तकनीकों का विकास हुआ। अब गाँव वालों के पास बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ एवं पानी, बिजली की भी उचित आपूर्ति उपलब्ध थी। सरकार ने भी जीवन स्तर को सुधारने के लिए विशेष प्रयास किए थे। कृषि एवं गैर कृषि क्रियाएँ भी अब आधुनिक तरीकों से की जाती हैं।

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प्रश्न 15.
किस पूँजी को आप सबसे अच्छा मानते हैं-भूमि, श्रम, भौतिक पूँजी और मानव पूँजी? क्यों?
उत्तर:
जिस तरह जल, भूमि, वन, खनिज आदि हमारे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है उसी प्रकार मानव संसाधन भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है। मानव राष्ट्रीय उत्पादन का उपभोक्ता मात्र नहीं है बल्कि वे राष्ट्रीय संपत्तियों के उत्पादक भी हैं। वास्तव में मानव संसाधनों जैसे-भूमि, जल, वन, खनिज की तुलना में इसलिए श्रेष्ठ है। भूमि, पूँजी, जल एवं अन्य प्राकृतिक संसाधन स्वयं उपयोगी नहीं है, वह मानव ही है जो इसे उपयोग करता है या उपयोग के योग्य बनाता है। यदि हम लोगों में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करें तो जनसंख्या (UPBoardSolutions.com) के बड़े भाग को परिसंपत्ति में बदला जा सकता है। हम जापान का उदाहरण सामने रखते हैं। जापान के पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे। इस देश ने अपने लोगों पर निवेश किया विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में। अंततः इन लोगों ने अपने संसाधनों का दक्षतापूर्ण उपयोग करने के बाद नई तकनीक विकसित करते हुए अपने देश को समृद्ध एवं विकसित बना दिया है।

इस प्रकार मानव-पूँजी अन्य सभी संसाधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है। मानवीय पूँजी को किसी भी सीमा तक बढ़ाया जा सकता है और इसके प्रतिफल को कई बार गुणा किया जा सकता है। भौतिक पूँजी का निर्माण, प्रबंध एवं नियंत्रण मानवीय पूँजी द्वारा किया जाता है। मानवे पूँजी केवल स्वयं के लिए ही कार्य नहीं करती बल्कि अन्य साधनों को भी क्रियाशील बनाती है। मानवीय पूँजी उत्पादन का एक अत्याज्य साधन है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बेरोजगारी को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
बेरोजगारी वह स्थिति है जिसके अंतर्गत कुशल व्यक्ति प्रचलित कीमतों पर कार्य करने के इच्छुक होते हैं लेकिन कार्य नहीं प्राप्त कर पाते।

प्रश्न 2.
महिलाओं एवं पुरुषों के बीच विभेद को कम करने के लिए सरकार द्वारा किए गए चार उपाय बताइए।
उत्तर:
सरकार द्वारा सामज से लिंग-भेद मिटाने के लिए भिन्न उपाय किए गए हैं-

  1.  विधवा का पुनर्विवाह,
  2.  सती प्रथा से सुरक्षा,
  3. बाल अवस्था में विवाह पर रोक,
  4. लिंग के आधार पर सभी विभेद को रोकना।

प्रश्न 3.
चा गैर-आर्थिक क्रियाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वह क्रियाएँ जो भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए की जाती हैं, गैर-आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं, जैसे

  1.  परिवार के सदस्यों के लिए खाना बनाना,
  2. माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को पढ़ाना।
  3. गरीब बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था,
  4.  गरीब लोगों के लिए मुफ्त चिकित्सा व्यवस्था।

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प्रश्न 4.
‘रोजगार से क्या आशय है?’
उत्तर:
रोजगार से अभिप्राय किसी अनुबंध के अंतर्गत दूसरे व्यक्तियों के लिए कार्य करना और उसके बदले पारितोषिक प्रा करना है। इसमें सभी प्रकार की सेवाएँ शामिल हैं। कर्मचारी कुछ निवेश नहीं करते और न ही व्यवसाय में उनका कोई जोखिम होता है।

प्रश्न 5.
व्यवसाय झा अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
वस्तुओं और सेवाओं का लाभ के उद्देश्य से किया गया विक्रय, विनिमय का हस्तांतरण व्यवसाय कहलाता है।
वसाय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. व्यवसाय का उद्देश्य लाभ कमाना है।
  2. व्यवसाय वस्तुओं एवं सेवाओं के विक्रय, विनियम एवं हस्तांतरण से संबंधित है।
  3. व्यवसाय वस्तुओं एवं सेवाओं में व्यापार करता है।
  4. व्यवसाय एक निरंतर क्रिया है।
  5.  व्यवसाय में जोखिम का तत्व होता है।

प्रश्न 6.
प्राथमिक क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रकृति द्वारा प्रदत वस्तु को एकत्र करने या उपलब्ध कराने से जुड़ी क्रियाओं को प्राथमिक क्षेत्र में शामिल किया जाता है।
उदाहरणतः कृषि, वानिकी, पशुपालन, मुर्गीपालन, मत्स्य पालन एवं खनन आदि।

प्रश्न 7.
द्वितीय क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
वे क्रियाएँ जो कच्चे माल या प्राथमिक उत्पाद को और अधिक उपयोगी वस्तुओं में बदलती हैं उन्हें द्वितीयक क्षेत्र के अन्तर्गत शामिल किया जाता है।
उदाहरणतः उद्योग, विद्युत, बाँध, जल आदि।

प्रश्न 8.
तृतीयक क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
इस क्षेत्र में वे क्रियाएँ आती हैं जो आधुनिक कारखानों को चलाने या प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों क्षेत्रों की क्रियाएँको सहारा देने के लिए तथा विभिन्न प्रकार की सेवाएँ शामिल हैं।
उदाहरणतः बैंकिंग, परिवहन, व्यापार, शिक्षा, बीमा आदि।

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प्रश्न 9.
भारत में सभी राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएँ एक समान नहीं हैं। व्याख्या करें।
उत्तर:
भारत में अनेक स्थान हैं जिनमें मौलिक स्वास्थ्य सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं। केवल चार राज्यों जैसे कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र में देश के कुल 181 मेडिकल कॉलेजों में से 81 मेडिकल कॉलेज हैं। दूसरी तरफ बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में निम्न स्वास्थ्य सूचक हैं तथा यहाँ बहुत ही कम मेडिकल कॉलेज हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बाजार क्रियाएँ किस तरह गैर-बाजार क्रियाओं से भिन्न हैं?
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

प्रश्न 2.
भौतिक पूँजी और मानव पूंजी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

प्रश्न 3.
अल्प रोजगार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब कोई व्यक्ति पूर्ण समय का कार्य प्राप्त नहीं कर पाता तो यह अल्प रोजगार कहलाता है। यदि कार्य में परिवर्तन से किसी व्यक्ति की आय एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है तो भी उसकी अल्प रोज़गार में गणना की जाती है। अल्प रोजगारी की समुस्या भी ढंकी-छुपी बेरोज़गारी से संबंधित है, जहाँ (UPBoardSolutions.com) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य या नकारात्मक हो जाती है। स्व रोज़गार से संबंधित लोगों में अल्प रोज़गार अधिक होता है। आकस्मिक रोज़गार वाले लोगों में भी यह अधिक पाया जाता है। कृषि एवं इसकी सहायक क्रियाओं में अल्प रोज़गार का दबाव अधिक महसूस किया जाना है। लगभग इस क्षेत्र में 36.3% अल्प रोज़गारी है।

प्रश्न 4.
प्रौढ़ साक्षरता दर किसे कहते हैं?
उत्तर:
15 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के लोगों की दर एवं प्रतिशत जो अपने दैनिक जीवन में छोटे और सरल वाक्य पढ़, लिख और समझ सकते हैं, वह साक्षर कहे जाते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि साक्षर व्यक्ति अवश्य कुछ निश्चित कथन पढ़ने एवं लिखने योग्य होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति हस्ताक्षर करने योग्य है किंतु सरल वाक्यों को पढ़ने एवं लिखने योग्य नहीं है तो वह साक्षर नहीं है।इसी प्रकार केवल पढ़ने की योग्यता या केवल लिखने की योग्यता किसी व्यक्ति को साक्षर नहीं। बनाती है। साक्षरता निःसंदेह लोगों की गुणवत्ता का प्रतीक है।

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प्रश्न 5.
जनसंख्या किसी अर्थव्यवस्था के लिए दायित्व नहीं अपितु एक परिसंपत्ति है; इसे सिद्ध करने के लिए उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कुछ लोग यह मानते हैं कि जनसंख्या एक दायित्व है न कि एक परिसंपत्ति। किन्तु यह सच नहीं है। लोगों को एक परिसंपत्ति बनाया जा सकता है यदि हम उनमें शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करें। जिस प्रकार भूमि, जल, वन, खनिज आदि हमारे बहुमूल्य प्राकृतिक (UPBoardSolutions.com) संसाधन हैं उसी प्रकार मनुष्य भी एक बहुमूल्य संसाधन है। लोग राष्ट्रीय परिसंपत्तियों के उपभोक्ता मात्र नहीं हैं अपितु वे राष्ट्रीय संपत्तियों के उत्पादक भी हैं।
वास्तव में मानव संसाधन अन्य संसाधनों जैसे कि भूमि तथा पूँजी की अपेक्षाकृत श्रेष्ठ हैं क्योंकि वे भूमि एवं पूँजी का प्रयोग करते हैं। भूमि एवं पूँजी स्वयं उपयोगी नहीं हो सकते। हम जापान का उदाहरण दे सकते हैं। इस देश ने मानव संसाधन में ही निवेश किया है क्योंकि इसके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं था। लोगों ने अन्य संसाधनों जैसे कि भूमि एवं पूँजी का दक्षतापूर्ण प्रयोग किया है। लोगों द्वारा विकसित दक्षता एवं तकनीक ने जापान को एक धनी एवं विकसित देश बना दिया।

प्रश्न 6.
यह सिद्ध करने के लिए एक उदाहरण दीजिए कि मानव पूँजी में निवेश समृद्धशाली प्रतिफल देता है।
उत्तर:
लोगों में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करने से जनसंख्या के एक बड़े भाग को परिसंपत्ति में बदला जा सकता है। हमें जापान का उदाहरण सामने रखते हैं। जापान के पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे।
इस देश ने अपने लोगों पर निवेश किया विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में।
अंततः इन लोगों ने अपने संसाधनों का दक्षतापूर्ण उपयोग करने के बाद नई तकनीक विकसित करते हुए अपने देश को समृद्ध एवं विकसित बना दिया है। इस प्रकार मानव-पूँजी अन्य सभी संसाधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 7.
बेरोजगारी के प्रमुख परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बेरोजगारी के प्रमुख परिणाम इस प्रकार हैं

  1.  किसी अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोजगारी का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बेरोजगारी में वृद्धि मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था की सूचक है।
  2. बेरोजगार युवा धोखेबाजी, चोरी, कत्ल एवं आतंकवाद जैसी समाजविरोधी गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं।
  3. किसी व्यक्ति के साथ-साथ समाज की जीवन गुणवत्ता पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है जो अंततः स्वास्थ्य स्तर में गिरावट एवं स्कूल प्रणाली में बढ़ती गिरावट का कारण बनती है।
  4.  बेरोजगारी जनशक्ति संसाधन की बर्बादी का कारण बनती है। जो लोग देश के लिए एक परिसंपत्ति होते हैं वे देश के लिए दायित्व बन जाती हैं।
  5.  बेरोजगारी आर्थिक बोझ में वृद्धि करने की कोशिश करती है। बेरोजगारों की कार्यरत जनसंख्या पर निर्भरता बढ़ जाती है।

प्रश्न 8.
भारत में लोगों की जीवन प्रत्याशी बढाने के लिए क्या प्रयास किए गए हैं?
उत्तर:
भारत में लोगों की जीवन प्रत्याशा बढ़ाने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए थे

  1. बच्चों की संक्रमण से रक्षा, जच्चा-बच्चा देख-रेख एवं पोषण के कारण शिशु मृत्युदर में कमी आई है। शिशु मृत्युदर जो सन् 1951 में 147 थी वह कम हो कर 2001 में 63 रह गई।
  2.  जनसंख्या के अल्प-सुविधा प्राप्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण एवं पोषण सेवाओं में सुधार। शिशु मृत्यु दर जो 1951 में 25 प्रति हजार थी वह 2001 में घट कर 8.1 प्रति हजार हो गई।
  3. जीवन प्रत्याशी 2011 में बढ़कर 64 वर्ष से अधिक हो गई है। आयु में वृद्धि होना आत्मविश्वास के साथ जीवन की उच्च गुणवत्ता का सूचक है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि लोग किस प्रकार संपत्ति के रूप में संसाधन होते हैं?
उत्तर:
किसी देश के लोग उस देश के लिए वास्तविक एवं बहुमूल्य संपत्ति होते हैं। इसे निम्नलिखित आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है–

  1. मानव साधन की गुणवत्ता लोगों के आर्थिक एवं सामाजिक स्तर का चिन्ह या पहचान है। इस प्रकार मानव विकास को वृद्धि की आवश्यकता है।
  2. स्वस्थ, शिक्षित, कुशल एवं अनुभवी लोग राष्ट्र की संपत्ति होते हैं जबकि अस्वस्थ, अशिक्षित, अकुशल एवं अनुभवहीन लोग एक बोझ हैं।
  3. मानवीय संसाधन सभी आर्थिक क्रियाओं का अत्याज्य साधन है। सभी उत्पादित क्रियाओं को भूमि, श्रम, पूँजी, संगठन एवं उद्यम जो उत्पादन के साधन हैं और उसकी आवश्यकता होती है।
  4. इन साधनों में से श्रम, संगठन एवं उद्यम मानवीय संसाधन हैं। इसके बिना उत्पादित क्रियाएँ संभव नहीं हैं।
  5. मानवीय साधन उत्पादन का केवल आवश्यक तत्व ही नहीं बल्कि यह अन्य उत्पादन के साधनों को भी कार्यशील बनाता है।

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प्रश्न 2.
संगठित क्षेत्र में महिला रोजगार वृद्धि हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
उत्तर:
संगठित क्षेत्र में महिला रोजगार बढ़ाने के लिए किए जाने वाले प्रमुख प्रयास

  1. महिलाओं की शिक्षा, प्रशिक्षण एवं घर से बाहर कार्य करने के संबंध में पारंपरिक विचार को परिवर्तित करने के लिए समाज में सार्वजनिक चेतना का विकास किया जाना चाहिए।
  2. महिलाओं के कार्य के दौरान उनके बच्चों की देख-रेख के लिए शिशुपालन केन्द्र (creches) की व्यवस्था होनी चाहिए।
  3. महिलाओं को अधिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए।
  4. नियुक्तिकर्ताओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए कि महिलाओं को रोज़गार प्रदान करें।
  5. महिलाओं के कार्य के लिए आवासीय स्थान प्रदान करना चाहिए। कार्य करने वाली महिलाओं के लिए छात्रावास बनाए जाने चाहिए।

प्रश्न 3.
महिलाओं द्वारा किए जाने वाले गैर-भुगतान कार्य को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
महिलाओं द्वारा संपादित गैर भुगतान कार्य निम्नलिखित हैं

  1.  कल्याण क्रियाएँ-मानवीय रूप से कल्याण के लिए दी गई सेवाएँ एवं पिछड़े लोगों को ऊपर उठाने के लिए | किए गए कार्यों का भुगतान नहीं किया जाता।
  2.  सांस्कृतिक क्रियाएँ–सांस्कृतिक क्रियाओं में महिलाओं के योगदान जैसे-नृत्य, नाटक, गीत आदि से उनको कोई कमाई नहीं होती।
  3. धार्मिक क्रियाएँ–कीर्तन, भजन, धार्मिक गान, भगवती जागरण आदि सेवाएँ गैर भुगतान होती हैं।
  4. मनोवैज्ञानिक एवं आवश्यकताओं की संतुष्टि की क्रियाएँ-उपरोक्त क्रियाओं के अतिरिक्त अन्य सेवाएँ जो निजी, भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक खुशी की संतुष्टि के उद्देश्य से की जाती हैं वह भी भुगतान प्राप्त नहीं करती।
  5. घरेलू क्रियाएँ-महिलाओं को घरेलू सेवाएँ प्रदान करने की आवश्यकता होती है जैसे-खाना बनाना, सफाई, धुलाई, कपड़े धोना आदि। जिनके लिए उन्हें भुगतान नहीं किया जाता है। उन्हें सब कार्य उनके उत्तरदायित्व पर करने होते हैं।
  6. दान क्रियाएँ-पड़ोसियों, कमज़ोरों एवं गरीब लोगों को दान के रूप में सेवाएँ प्रदान करने का भी भुगतान नहीं किया जाता।
  7. सामाजिक सेवाएँ समाज के लाभ के लिए प्रदान की गई सेवाएँ जैसे-गरीबों को शिक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा एवं सफाई के लिए भी भुगतान प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 4.
“मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण निवेश है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिक्षा मानव पूँजी निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि जनसंख्या शिक्षित नहीं होगी तो वह उत्तरदायित्व में बदल जाएगी। उचित शिक्षा प्रदान करके हम किसी बच्चे को अच्छी तरह विकसित एवं कोई भी काम करने योग्य बना सकते हैं। इस प्रकार शिक्षा श्रम की गुणवत्ता में सुधार करती हैं। इससे सकल उत्पादकता में वृद्धि होती है जो अर्थव्यवस्था की विकास दर में वृद्धि (UPBoardSolutions.com) करती है।
बदले में यह व्यक्ति को वेतन एवं अन्य विकल्प प्रदान करती है।
मानव संसाधन विकास में शिक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। शिक्षा एवं कौशल किसी व्यक्ति की आय को निर्धारित करने वाले मुख्य कारक हैं। किसी बच्चे की शिक्षा और प्रशिक्षण पर किए गए निवेश के बदले में वह भविष्य में अपेक्षाकृत अधिक आय एवं समाज में बेहतर योगदान
के रूप में उच्च प्रतिफल दे सकता है। शिक्षित लोग अपने बच्चों की शिक्षा पर अधिक निवेश करते पाए जाते हैं। इसका कारण यह है कि उन्होंने स्वयं के लिए शिक्षा का महत्त्व जान लिया है।

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प्रश्न 5.
भारत में बच्चों में शिक्षा के प्रसार हेतु सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
उत्तर:
भारत में बच्चों में शिक्षा के प्रसार हेतु सरकार ने निम्न कदम उठाए हैं-

  1. हमारे संविधान में प्रावधान है कि राज्य सरकारें 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को सार्वभौमिक निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराएगी। हमारी केन्द्र सरकार ने वर्ष 2010 तक 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देने के लिए “सर्व शिक्षा अभियान के नाम से एक योजना प्रारंभ की है।
  2.  लड़कियों की शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है।
  3.  प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय जैसे विशेष स्कूल खोले गए हैं।
  4. उच्च विद्यालय के छात्रों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से व्यावसायिक पाठ्यक्रम विकसित किए गए हैं।
  5. स्कूल उपलब्ध कराने के साथ ही यह लोगों को उनके बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करने एवं बीच में पढ़ाई छोड़ने को हतोत्साहित करने हेतु कुछ गैर-पारंपरिक उपाय कर रही है।
  6. उपस्थिति को प्रोत्साहित करने व बच्चों को स्कूल में बनाए रखने और उनके पोषण स्तर को बनाए रखने के लिए दोपहर की भोजन योजना लागू की गई है।
  7. कामकाजी वयस्कों एवं खानाबदोश परिवारों के बच्चों के लिए रात्रि स्कूल एवं मोबाइल स्कूल उपलब्ध कराए गए हैं।
  8. दसवीं पंचवर्षीय योजना ने इस योजना के अंत तक 18 से 23 वर्ष तक की आयु समूह के युवाओं में उच्चतर शिक्षा हेतु नामांकन वर्तमान 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 9 प्रतिशत करने का प्रयास किया।
  9. यह योजना दूरस्थ शिक्षा, अनौपचारिक, दूरस्थ एवं सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षण संस्थानों के अभिसरण पर भी केंद्रित हैं।

Hope given UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 are helpful to complete your homework.

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