UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रान्ति

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रान्ति

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1.
रूस के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात 1905 ई. से पहले कैसे थे?
                                                  अथवा
1905 ई. से पूर्व रूस की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी में लगभग समस्त यूरोप में महत्त्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन हुए थे। इनमें कई देश गणराज्य थे, तो कई संवैधानिक राजतंत्र। सामंती व्यवस्था समाप्त हो चुकी थी और सामंतों का स्थान नए मध्य वर्ग ने ले लिया था। परन्तु रूस अभी भी ‘पुरानी दुनिया में जी (UPBoardSolutions.com) रहा था। यह बात रूस की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक दशा से स्पष्ट हो जाएगी –

1. 1905 ई. से पूर्व रूस की सामाजिक और आर्थिक स्थिति-
(i) किसानों की शोचनीय स्थिति- रूस में किसानों की स्थिति अत्यन्त शोचनीय थी। वहाँ कृषि-दास प्रथा अवश्य समाप्त हो चुकी थी, लेकिन किसानों की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ था। उनकी कृषि जोतें बहुत ही छोटी थीं और खेती को विकसित तरीके से करने के लिए उनके पास पूँजी का अभाव था। इन छोटी-छोटी जोतों को पाने के लिए भी उन्हें अनेक दशकों तक मुक्ति कर के रूप में बड़ी कीमत चुकानी पड़ती थी।

(ii) श्रमिकों की हीन दशा- औद्योगिक क्रांति के कारण रूस में बड़े-बड़े पूँजीपतियों ने अधिक मुनाफा कमाने की इच्छा से मजदूरों का शोषण करना आरम्भ कर दिया। वे उन्हें कम वेतन देते थे तथा कारखानों में उनके साथ बुरा व्यवहार करते थे। यहाँ तक कि बच्चों व स्त्रियों के जीवन से भी खिलवाड़ करने में वे कभी नहीं चूकते थे। ऐसी अवस्था से बचने के लिए मजदूर एक होने लगे। किन्तु 1900 ई. में इन पर (UPBoardSolutions.com) हड़ताल करने व संघ बनाने पर भी रोक लगा दी गई। उन्हें न तो कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त थे और न ही उन्हें सुधारों की कोई आशा थी। ऐसे समय में उनके पास मरने अथवा मारने के अलावा और कोई चारा नहीं था।

यूरोप के देशों की तुलना में रूस में औद्योगीकरण बहुत देर से शुरू हुआ। इसीलिए वहाँ के लोग बहुत पिछड़े हुए थे। रूस में उद्योग-धन्धे लगाने के लिए पूँजी का अभाव होने के कारण विदेशी पूँजीपति रूस के धन को लूटकर स्वदेश पहुँचाते रहे। सन् 1904 मजदूरों के लिए बहुत बुरा था। आवश्यक वस्तुओं के दाम बहुत बढ़ गए। मजदूरी 20 प्रतिशत घट गयी। कामगार संगठनों की सदस्यता शुल्क नाटकीय तरीके से बढ़ जाता था।

2. रूस की राजनीतिक स्थिति-रूस की राजनीतिक स्थिति 1905 ई. से पूर्व अत्यन्त चिंताजनक थी। रूस में जार का निरंकुश शासन था जिसमें जनता ‘पुरानी दुनिया की तरह रह रही थी क्योंकि वहाँ पर अभी तक यूरोप के अन्य देशों की भाँति आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक परिवर्तन नहीं हो रहे थे। रूस के किसान, श्रमिक और जनसाधारण की हालत बड़ी खराब थी। रूस में औद्योगीकरण देरी से हुआ। (UPBoardSolutions.com) सारा समाज विषमताओं से पीड़ित था। राज्य जनता को कोई अधिकार देने को तैयार नहीं था क्योंकि वह दैवी सिद्धान्त में विश्वास रखता था। जार और उसकी पत्नी बुद्धिहीन और भोग-विलासी थे। वह जनता पर दमनपूर्ण शासन रखना चाहता था।

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प्रश्न 2.
1917 ई. से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले किन-किन स्तरों पर भिन्न थी?
                                                            अथवा
1917 ई. से पहले रूस की श्रमिक जनसंख्या यूरोप के अन्य देशों की श्रमिक जनसंख्या से किस प्रकार भिन्न थी?
उत्तर:
रूस की कामकाज करने वाली जनसंख्या यूरोप के अन्य देशों से 1917 ई. से पहले भिन्न थी। ऐसा इसलिए क्योंकि सभी रूसी कामगार कारखानों में काम करने के लिए गाँव से शहर नहीं आए थे। इनमें से ज्यादातर गाँवों में ही रहना पसन्द करते थे और शहर में काम करने के निमित्त रोज गाँव से आते और शाम को वापस लौट जाते थे। वे सामाजिक स्तर एवं दक्षता के अनुसार समूहों में बँटे हुए थे और यह उनकी (UPBoardSolutions.com) पोशाकों से परिलक्षित होता था। धातुकर्मी अपने को मजदूरों में खुद को साहब मानते थे। क्योंकि उनके काम में ज्यादा प्रशिक्षण और निपुणता की जरूरत रहती थी तथापि कामकाजी जनसंख्या कार्य स्थितियों एवं नियोक्ताओं के अत्याचार के विरुद्ध हड़ताल के मोर्चे पर एकजुट थी।

अन्य यूरोपीय देशों के मुकाबले में रूस की कामगार जनसंख्या जैसे कि किसानों एवं कारखाना मजदूरों की स्थिति बहुत भयावह थी। ऐसा जार निकोलस द्वितीय की निरंकुश सरकार के कारण था जिसकी भ्रष्ट एवं दमनकारी नीतियों से इन लोगों से उसकी दुश्मनी दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी।
कारखाना मजदूरों की स्थिति भी इतनी ही खराब थी। वे अपनी शिकायतों को प्रकट करने के लिए कोई ट्रेड यूनियन अथवा कोई राजनीतिक दल नहीं बना सकते थे। अधिकतर कारखाने उद्योगपतियों की निजी संपत्ति थे।

वे अपने स्वार्थ के लिए मजदूरों का शोषण करते थे। कई बार तो इन मजदूरों को न्यूनतम निर्धारित मजदूरी भी नहीं मिलती थी। कार्य घण्टों की कोई सीमा नहीं थी जिसके (UPBoardSolutions.com) कारण उन्हें दिन में 12-15 घण्टे काम करना पड़ता था। उनकी स्थिति इतनी दयनीय थी कि न तो उन्हें राजनैतिक अधिकार प्राप्त थे और न ही सन् 1917 की रूसी क्रांति की शुरुआत से पहले किसी प्रकार के सुधारों की आशा थी।

किसान जमीन पर सर्फ के रूप में काम करते थे और उनकी पैदावार का अधिकतम भाग जमीन के मालिकों एवं विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों को चला जाता था। कुलीन वर्ग, सम्राट तथा रूढ़िवादी चर्च के पास बहुत अधिक संपत्ति थी। ब्रिटेन में फ्रांसीसी क्रांति के दौरान किसान कुलीनों का सम्मान करते थे और उनके लिए लड़ते थे किन्तु रूस में किसान कुलीनों को दी गई जमीन लेना चाहते थे। उन्होंने लगान देने से मना कर दिया और जमींदारों को मार भी डाला। तत्कालीन रूस के किसान अपनी कृषि भूमि एकत्र कर (UPBoardSolutions.com) अपने कम्यून (मीर) को सौंप देते थे और किसानों को कम्यून उस कृषि भूमि को प्रत्येक परिवार की आवश्यकता के अनुसार बाँट देता था, जिससे उस कृषि भूमि पर सुगमता से कृषि की जा सके।

प्रश्न 3.
1917 ई. में जार का शासन क्यों खत्म हो गया?
उत्तर:
जार की नीतियों के प्रति बढ़ते जन असन्तोष के कारण सन् 1917 में जार के शासन का अंत हो गया। जार निकोलस द्वितीय ने रूस में राजनीतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी, मतदान के नियम परिवर्तित कर दिए तथा अपनी सत्ता के विरुद्ध उठे जन आक्रोश को निरस्त कर दिया। रूस में युद्ध तो अत्यधिक लोकप्रिय थे और जनता युद्ध में जार का साथ भी देती थी किन्तु जैसे-जैसे युद्ध जारी रहा, जार ने (UPBoardSolutions.com) ड्यूमा के प्रमुख दलों से सलाह लेने से मना कर दिया। इस प्रकार उसने समर्थन खो दिया और जर्मन विरोधी भावनाएँ प्रबल होने लगीं। जारीना अलेक्सान्द्रा के सलाहकारों विशेषकर रास्पूतिन ने राजशाही को अलोकप्रिय बना दिया। रूसी सेना लड़ाई हार गई। पीछे हटते समय रूसी सेना ने फसलों एवं इमारतों को नष्ट कर दिया। फसलों एवं इमारतों के विनाश से रूस में लगभग 30 लाख से अधिक लोग शरणार्थी हो गए जिससे हालात और बिगड़ गए।

प्रथम विश्व युद्ध का उद्योगों पर बुरा प्रभाव पड़ा। बाल्टिक सागर के रास्ते पर जर्मनी का कब्जा हो जाने के कारण माल का आयात बन्द हो गया। औद्योगिक उपकरण बेकार होने लगे तथा 1916 ई. तक रेलवे लाइनें टूट गईं। अनिवार्य सैनिक सेवा के चलते सेहतमन्द लोगों को युद्ध में झोंक दिया गया जिसके परिणामस्वरूप मजदूरों की कमी हो गई। रोटी की दुकानों पर दंगे होना आम (UPBoardSolutions.com) बात हो गई। 26 फरवरी, 1917 ई. को ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया गया। यह आखिरी दाँव साबित हुआ और इसने जार के शासन को पूरी तरह जोखिम में डाल दिया। 2 मार्च, 1917 ई. को जार गद्दी छोड़ने पर मजबूर हो गया और इससे निरंकुशता का अन्त हो गया।

किसान जमीन पर सर्फ के रूप में काम करते थे और उनकी पैदावार को अधिकतम भाग जमीन के मालिकों एवं विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों को चला जाता था। किसानों में जमीन की भूख प्रमुख कारक थी। विभिन्न दमनकारी नीतियों तथा कुण्ठा के कारण वे (UPBoardSolutions.com) आमतौर पर लगान देने से मना कर देते और प्रायः जमींदारों की हत्या करते। कार्ल मार्क्स की साम्यवादी धारणा और सर्वहारा की विश्व-विजय के उद्घोष ने रूस के जारशाही से आक्रोशित लोगों को विद्रोह के लिए उद्वेलित किया।

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प्रश्न 4.
दो सूचियाँ बनाइए : एक सूची में फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाओं और प्रभावों को लिखिए और दूसरी सूची में अक्टूबर क्रांति की प्रमुख घटनाओं और प्रभावों को दर्ज कीजिए।
उत्तर:
जार की गलत नीतियों, राजनीतिक भ्रष्टाचार तथा जनसाधारण एवं सैनिकों की दुर्दशा के कारण रूस में क्रान्ति का वातावरण तैयार हो चुका था। एक छोटी-सी घटना ने इस क्रान्ति की शुरुआत कर दी और यह दो चरणों में पूरी हुई। ये दो चरण थे—फरवरी क्रान्ति और अक्टूबर क्रान्ति।

संक्षेप में क्रान्ति का सम्पूर्ण घटनाक्रम इस प्रकार है-
फरवरी क्रान्ति- 1917 ई. के फरवरी माह में शीतकाल में राजधानी पेत्रोग्राद में हालात बिगड़ गए। मजदूरों के क्वार्टरों में खाने की अत्यधिक कमी हो गयी जबकि संसदीय प्रतिनिधि जार की ड्यूमा को बर्खास्त करने की इच्छा के विरुद्ध थे। नगर की संरचना इसके नागरिकों के विभाजन का कारण बन गयी। मजदूरों (UPBoardSolutions.com) के क्वार्टर और कारखाने नेवा नदी के दाएँ तट पर स्थित थे। बाएँ तट पर फैशनेबल इलाके जैसे कि विंटर पैलेस, सरकारी भवन तथा वह महल भी था जहाँ ड्यूमा की बैठक होती थी।

सर्दी बहुत ज्यादा थी – असाधारण कोहरा और बर्फबारी हुई थी। 22 फरवरी को दाएँ किनारे पर एक कारखाने में तालाबंदी हो गई। अगले दिन सहानुभूति के तौर पर 50 और कारखानों के मजदूरों ने हड़ताल कर दी। कई कारखानों में महिलाओं ने हड़ताल की अगुवाई की।
रविवार, 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया। 27 फरवरी को पुलिस मुख्यालय पर हमला किया गया। गलियाँ रोटी, मजदूरी, बेहतर कार्य घण्टों एवं लोकतंत्र के नारे लगाते हुए लोगों से भर गईं।

घुड़सवार सैनिकों की टुकड़ियों ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से मना कर दिया तथा शाम तक बगावत कर रहे सैनिकों यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रान्ति एवं हड़ताल कर रहे मजदूरों ने मिलकर पेत्रोग्राद सोवियत नाम की सोवियत या काउंसिल बना ली। । जार ने 2 मार्च को अपनी सत्ता छोड़ दी और सोवियत तथा ड्यूमा के नेताओं ने मिलकर रूस के लिए अंतरिम सरकार बना ली। फरवरी क्रांति के मोर्चे पर कोई भी राजनैतिक दल नहीं था। इसका नेतृत्व लोगों ने स्वयं किया था। पेत्रोग्राद ने राजशाही का अन्त कर दिया और इस (UPBoardSolutions.com) प्रकार उन्होंने सोवियत इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया।

फरवरी क्रान्ति का प्रभाव यह हुआ कि जनसाधारण तथा संगठनों की बैठकों पर से प्रतिबन्ध हटा लिया गया। पेत्रोग्राद सोवियत की तरह ही सभी जगह सोवियत बन गई यद्यपि इनमें एक जैसी चुनाव प्रणाली का अनुसरण नहीं किया गया। अप्रैल, 1917 ई. में बोल्शेविकों के नेता ब्लादिमीर लेनिन देश निकाले से रूस वापस लौट आए। उसने ‘अप्रैल थीसिस’ के नाम से जानी जाने वाली तीन माँगें रखीं। ये तीन माँगें थीं- युद्ध को समाप्त किया जाए, भूमि किसानों को हस्तांतरित की जाए और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए। उसने इस बात पर भी जोर दिया कि अब अपने रैडिकल उद्देश्यों को स्पष्ट करने के लिए। बोल्शेविक पार्टी का नाम बदलकर कम्युनिस्ट पार्टी रख दिया जाए।

अक्टूबर क्रान्ति- जनता की सबसे महत्त्वपूर्ण चार माँगें थीं- शांति, भूमि का स्वामित्व जोतने वालों को, कारखानों पर मजदूरों का नियंत्रण तथा गैर-रूसी जातियों को समानता का दर्जा। अस्थायी सरकार का प्रधान केरेस्की इनमें से किसी भी माँग को पूरा न कर सका और सरकार ने जनता का समर्थन खो दिया। लेनिन फरवरी क्रान्ति के समय स्विट्जरलैण्ड में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहा था, वह अप्रैल में रूस लौट आया। उसके नेतृत्व में बोल्शेविक पार्टी ने युद्ध समाप्त करने, किसानों को जमीन देने तथा ‘सारे अधिकार सोवियतों को देने (UPBoardSolutions.com) की स्पष्ट नीतियाँ सामने रखीं। गैर-रूसी जातियों के प्रश्न पर भी केवल लेनिन की बोल्शेविक पार्टी के पास एक स्पष्ट नीति थी। अक्टूबर क्रांति अंतरिम सरकार तथा बोल्शेविकों में मतभेद के कारण हुई। सितम्बर में ब्लादिमीर लेनिन ने विद्रोह के लिए समर्थकों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया।

16 अक्टूबर, 1917 ई. को उसने पेत्रोग्राद सोवियते तथा बोल्शेविक पार्टी को सत्ता पर सामाजिक कब्जा करने के लिए मना लिया। सत्ता पर कब्जे के लिए लियोन ट्रॉटस्की के नेतृत्व में एक सैनिक क्रांतिकारी सैनिक समिति नियुक्त की गई।
जब 24 अक्टूबर को विद्रोह शुरू हुआ, प्रधानमंत्री केरेस्की ने स्थिति को नियंत्रण से बाहर होने से रोकने के लिए सैनिक टुकड़ियों को लाने हेतु शहर छोड़ा। क्रांतिकारी समिति ने सरकारी कार्यालयों पर हमला बोला; ऑरोरा नामक युद्धपोत ने विंटर पैलेस पर बमबारी की और 24 तारीख की रात को शहर पर बोल्शेविकों का नियंत्रण हो गया।

थोड़ी सी गम्भीर लड़ाई के उपरान्त बोल्शेविकों ने मॉस्को पेत्रोग्राद क्षेत्र पर पूरा नियंत्रण पा लिया। पेत्रोग्राद में ऑल रशियन कांग्रेस ऑफ सोवियत्स की बैठक में बोल्शेविकों की कार्रवाई को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया।
अक्टूबर क्रान्ति का नेतृत्व मुख्यतः लेनिन तथा उसके (UPBoardSolutions.com) अधीनस्थ ट्रॉटस्की ने किया और इसमें इन नेताओं का समर्थन करने वाली जनता भी शामिल थी। इसने सोवियत पर लेनिन के शासन की शुरुआत की तथा लेनिन के निर्देशन में बोल्शेविक इसके साथ थे।

प्रश्न 5.
बोल्शेविकों ने अक्टूबर क्रान्ति के फौरन बाद कौन-कौन से प्रमुख परिवर्तन किए?
उत्तर:
अक्टूबर क्रांति के पश्चात् बोल्शेविकों द्वारा किए गए प्रमुख परिवर्तन- रूस की बागडोर अपने हाथ में लेकर बोल्शेविक पार्टी ने युद्ध को समाप्त करने, किसानों को जमीन दिलाने तथा सम्पूर्ण सत्ता सोवियतों को सौंपने के सम्बन्ध में स्पष्ट नीतियाँ अपनाईं। सबसे पहले रूस ने अपने-आपको प्रथम विश्वयुद्ध से बिलकुल अलग कर लिया चाहे इसके लिए उसे भारी कीमत क्यों न चुकानी पड़ी। इसके पश्चात् जो-जो (UPBoardSolutions.com) उपनिवेश रूस के अधीन थे उन सब उपनिवेशों को स्वतंत्र कर दिया गया। तदुपरान्त बोल्शेविक पार्टी ने अनेक घोषणाएँ कीं जिनसे रूस में समाजवाद का सूत्रपात हुआ। यह घोषणाएँ निम्नलिखित थीं

  1. बोल्शेविक पार्टी का नाम बदल कर रूसी कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) रख दिया गया।
  2. नवम्बर में संविधान सभा के चुनावों में बोल्शेविकों की हार हुई और जनवरी, 1918 में जब सभा ने उनके प्रस्तावों को खारिज कर दिया तो लेनिन ने सभा बर्खास्त कर दी। मार्च, 1918 में राजनैतिक विरोध के बावजूद रूस ने ब्रेस्ट लिटोव्स्क में जर्मनी से संधि कर ली।
  3. रूस एक-दलीय देश बन गया और ट्रेड यूनियनों को पार्टी के नियंत्रण में रखा गया।।
  4. उन्होंने पहली बारे केन्द्रीकृत नियोजन लागू किया जिसके आधार पर, पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई गईं।
  5. बोल्शेविक निजी सम्पत्ति के पक्षधर नहीं थे अतः अधिकतर उद्योगों एवं बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
  6. भूमि को सामाजिक सम्पत्ति घोषित कर दिया गया (UPBoardSolutions.com) और किसानों को उस भूमि पर कब्जा करने दिया गया जिस पर वे काम करते थे।
  7. शहरों में बड़े घरों के परिवार की आवश्यकता के अनुसार हिस्से कर दिए गए।
  8. पुराने अभिजात्य वर्ग की पदवियों के प्रयोग पर रोक लगा दी गई।
  9. परिवर्तन को स्पष्ट करने के लिए बोल्शेविकों ने सेना एवं कर्मचारियों की नई वर्दियाँ पेश कीं।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखिए-
(क) कुलक
(ख) ड्यू मा
(ग) 1900 से 1930 ई. के बीच महिला कामगार
(घ) उदारवादी
(ङ) स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम।
उत्तर:
(क) कुलक- ये सोवियत रूस के धनी किसान थे। कृषि के सामूहिकीकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत स्तालिन ने इनका अन्त कर दिया। स्तालिन का विश्वास था कि वे अधिक लाभ कमाने के लिए अनाज इकट्ठा कर रहे थे। 1927-28 ई. तक सोवियत रूस के शहर अन्न आपूर्ति की भारी किल्लत को सामना कर रहे थे। इसलिए इन कुलकों पर 1928 ई. में छापे मारे गए और उनके अनाज के भण्डारों को जब्त कर लिया गया। माक्र्सवादी स्तालिनवाद के अनुसार कुलक गरीब किसानों के वर्ग शत्रु थे। उनकी मुनाफाखोरी की इच्छा से खाने की किल्लत हो गई और अन्ततः स्तालिन को इन कुलकों का सफाया। करने के लिए सामूहिकीकरण कार्यक्रम चलाना पड़ा और सरकार द्वारा नियंत्रित बड़े खेतों की स्थापना करनी पड़ी।

(ख) ड्यूमा- ड्यूमा रूस की राष्ट्रीय सभा अथवा संसद थी। रूस के जार निकोलस द्वितीय ने इसे मात्र एक सलाहकार समिति में परिवर्तित कर दिया था। इसमें मात्र अनुदारवादी राजनीतिज्ञों को ही स्थान दिया गया। उदारवादियों तथा क्रान्तिकारियों को इससे दूर रखा गया।

(ग) 1900 से 1930 ई. के बीच महिला कामगार- महिला मजदूरों ने रूस के भविष्य निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। महिला कामगार सन् 1914 तक कुल कारखाना कामगार शक्ति का 31 प्रतिशत भाग बन चुकी थी किन्तु उन्हें पुरुषों की अपेक्षा कम (UPBoardSolutions.com) मजदूरी दी जाती थी।
महिला कामगारों को न केवल कारखानों में काम करना पड़ता था अपितु उनके परिवार एवं बच्चों की भी देखभाल करनी पड़ती थी। वे देश के सभी मामलों में बहुत सक्रिय थीं। प्रायः अपने साथ काम करने वाले पुरुष कामगारों को प्रेरणा भी देती थीं।

1917 ई. की अक्टूबर क्रान्ति के बाद समाजवादियों ने रूस में सरकार बनाई। 1917 ई. में राजशाही के पतन एवं अक्टूबर की घटनाओं को ही सामान्यतः रूसी क्रांति कहा जाता है। उदाहरण के लिए लॉरेंज टेलीफोन की महिला मजदूर मार्फा वासीलेवा ने बढ़ती कीमतों तथा कारखाने के मालिकों की मनमानी के विरुद्ध आवाज उठाई और सफल हड़ताल की। अन्य महिला मजदूरों ने भी माफ वासीलेवा का अनुसरण किया और जब तक उन्होंने रूस में समाजवादी सरकार की स्थापना नहीं की तब तक उन्होंने राहत की साँस नहीं ली।।

(घ) उदारवादी- उदारवाद एक क्रमबद्ध और निश्चित विचारधारा नहीं है, इसका सम्बन्ध न किसी एक युग से है और न ही किसी सर्वमान्य व्यक्ति विशेष से। यह तो युगों-युगों तथा अनेक व्यक्तियों के दृष्टिकोणों का परिणाम है। इस विचारधारा के समर्थक प्रायः निम्न विषयों में परिवर्तन चाहते थे

  1. उदारवादी ऐसा राष्ट्र चाहते थे जिसमें सभी धर्मों को बराबर का सम्मान और जगह मिले।
  2. व्यक्ति की गरिमा और प्रतिष्ठा को बनाए रखा जाए क्योंकि समाज और राज्य व्यक्ति की प्रगति और उत्थान के साधन मात्र हैं।
  3. प्रत्येक व्यक्ति को इच्छानुसार व्यवसाय करने तथा सम्पत्ति अर्जित करने का अधिकार होना चाहिए। राज्य को आवश्यक कर ही लगाने चाहिए।
  4. नागरिकों को कानून के द्वारा आवश्यक स्वतन्त्रता प्रदान की जानी चाहिए जिससे स्वेच्छाचारी शासन का अन्त हो सके तथा व्यक्ति का (UPBoardSolutions.com) विकास तीव्र गति से सम्भव हो सके।
  5. इनके अनुसार व्यक्तियों को प्राचीन रूढ़ियों एवं परम्पराओं का दास नहीं बनना चाहिए। प्रगति एवं विकास के लिए यदि परम्पराओं का विरोध करना पड़े तो भी करना चाहिए।

(ङ) स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम- सन् 1929 से स्तालिन के साम्यवादी दल ने सभी किसानों को सामूहिक स्रोतों (कोलखोज) में काम करने का निर्देश जारी कर दिया। ज्यादातर जमीन और साजो-सामान को सामूहिक खेतों में बदल दिया गया। रूस के सभी किसान सामूहिक खेतों पर मिल-जुलकर काम करते थे। कोलखोज के लाभ को सभी किसानों के बीच बाँट दिया जाता था। इस निर्णय से नाराज किसानों ने सरकार का विरोध किया।

इस विरोध को जताने के लिए वे अपने जानवरों को मारने लगे। परिणामस्वरूप रूस में 1929 से 1931 ई. के बीच जानवरों की संख्या में एक तिहाई की कमी आयी। सरकार द्वारा सामूहिकीकरण का विरोध करने वालों को कठोर दण्ड दिया जाता था। अनेक विरोधियों को देश से निर्वासित कर दिया गया। (UPBoardSolutions.com) सामूहिकीकरण के फलस्वरूप कृषि उत्पादन में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई। दूसरी तरफ 1930 से 1933 ई. के बीच खराब फसल के बाद सोवियत रूस में सबसे बड़ा अकाल पड़ा। इस अकाल में 40 लाख से अधिक लोग मारे गए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रूस में सामूहिक खेतों को किस नाम से जाना जाता था?
उत्तर:
कोलखोज।

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प्रश्न 2.
रूस में बोल्शेविक दल का मुख्य नेता कौन था?
उत्तर:
रूस में बोल्शेविक दल का मुख्य नेता ब्लादिमीर इलिच उलियानोव (लेनिन) था।

प्रश्न 3.
1917 ई. में रूस पर किसका प्रभाव था?
उत्तर:
जार निकोलस द्वितीय का।

प्रश्न 4.
रूस में किस धर्म के अनुयायी बहुमत में थे?
उत्तर:
रूसी आर्थोडॉक्स क्रिश्चियैनिटी के।

प्रश्न 5.
कम्युनिस्ट मेनीफेस्टो के लेखक का नाम बताइए।
उत्तर:
कार्ल मार्क्स एवं फ्रेड्रिक एंगेल्स।

प्रश्न 6.
कार्ल मार्क्स कौन था?
उत्तर:
यह आधुनिक वैज्ञानिक समाजवाद का जनक था। मूलतः जर्मन मार्क्स का ज्यादातर समय इंग्लैण्ड व यूरोपीय देशों में बीता। उसने अपने आजीवन साथी फ्रेड्रिक एंगेल्स से मिलकर प्रथम कम्युनिस्ट घोषणा-पत्र तथा दास कैपिटल नामक विश्वविख्यात पुस्तक की रचना की।

प्रश्न 7.
रूसी क्रांतिकारियों का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
उनका प्रमुख उद्देश्य था—

  1. रूस को प्रथम विश्व युद्ध से हटाना,
  2. कारखानों पर मजदूरों का नियंत्रण,
  3. गैर-रूसी जातियों को समानता का दर्जा देना,
  4. जमीन जोतने वाले को देना।

प्रश्न 8.
रैडिकल से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यूरोप में उन लोगों का समूह जो देश में ऐसी सरकार के पक्ष में थे जो देश की आबादी के बहुमत के समर्थन पर आधारित हो।

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प्रश्न 9.
राष्ट्रवादी से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में यूरोप में उन्होंने उदारवादियों एवं रैडिकल का समर्थन किया। वे ऐसा देश चाहते थे जहाँ सभी नागरिकों को समान अधिकार मिले।

प्रश्न 10.
विंटर पैलेस पर आक्रमण करने वाले युद्धपोत का नाम बताइए।
उत्तर:
ऑरोरा युद्धपोत।

प्रश्न 11.
रूसी ड्यूमा को कब बर्खास्त किया गया?
उत्तर:
25 फरवरी, 1917 ई. को।

प्रश्न 12.
किस घटना के बाद जार निकोलस द्वितीय को गद्दी छोड़ना पड़ा?
उत्तर:
घुड़सवार सैनिकों ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से इन्कार कर दिया। दूसरी रेजीमेंटों ने बगावत कर दी और हड़ताली मजदूरों के साथ आ मिले। अगले दिन एक प्रतिनिधिमंडल जार से मिलने गया। सैनिक कमांडरों ने सलाह दी कि वह राजगद्दी छोड़ दे। उसने कमांडरों की बात मान ली और 2 मार्च को गद्दी छोड़ दी।

प्रश्न 13.
घुमंतू तथा स्वायत्तता का अर्थ बताइए।
उत्तर:
घुमंतू-ऐसे लोग जो किसी एक जगह ठहर कर नहीं रहते बल्कि अपनी आजीविका की खोज में एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते रहते हैं। स्वायत्तता-अपना शासन स्वयं चलाने का अधिकार स्वायत्तता कहलाता है।

प्रश्न 14.
बोल्शेविकों ने जमीन के पुनर्वितरण का आदेश दिया तो रूसी सेना में क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
जब बोल्शेविकों ने जमीन के पुनर्वितरण का आदेश दिया तो रूसी सेना टूटने लगी। ज्यादातर सिपाही किसान थे। वे भूमि पुनर्वितरण के लिए घर लौटना चाहते थे इसलिए सेना छोड़कर जाने लगे।

प्रश्न 15.
रूस की जनता का कितना प्रतिशत भाग कृषि कार्य में संलग्न था?
उत्तर:
रूस की जनता का लगभग 85 प्रतिशत भाग कृषि कार्य में संलग्न था।

प्रश्न 16.
वास्तविक वेतन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यह इस बात का पैमाना है कि किसी व्यक्ति के वेतन से वास्तव में कितनी चीजें खरीदी जा सकती हैं।

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प्रश्न 17.
खूनी रविवार से क्या समझते हैं?
उत्तर:
पादरी गैपॉन के नेतृत्व में मजदूरों का एक जुलूस विंटर पैलेस के सामने पहुँचा तो पुलिस और कोसैक्स ने मजदूरों पर हमला बोल दिया। इस घटना में 100 से ज्यादा मजदूर मारे गए और लगभग 300 घायल हुए। इतिहास में इस घटना को खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 18.
रैडिकल किस तरह की सरकार के पक्ष में थे?
उत्तर:
रैडिकल समूह के लोग ऐसी सरकार के पक्ष में थे जो देश की आबादी के बहुमत के समर्थन पर आधारित हो। इनमें से बहुत सारे महिला मताधिकार आंदोलन के भी समर्थक थे। ये लोग बड़े जमींदारों और संपन्न उद्योगपतियों को प्राप्त किसी भी तरह के विशेषाधिकारों के खिलाफ थे।

प्रश्न 19.
1917 ई. से पहले रूस के दो प्रमुख औद्योगिक शहरों के नाम लिखिए।
उत्तर:
1917 ई. से पूर्व रूस के दो प्रमुख औद्योगिक शहर सेंट पीटर्सबर्ग और मास्को थे।

प्रश्न 20.
रूढ़िवादी किस तरह के बदलाव चाहते थे?
उत्तर:
रूढ़िवादी भी बदलाव की जरूरत को स्वीकार करने लगे थे। पुराने समय में यानि अठारहवीं शताब्दी में रूढ़िवादी आमतौर पर परिवर्तन के विचारों का विरोध करते थे। लेकिन उन्नीसवीं सदी तक आते-आते वे भी मानने लगे थे। कि कुछ परिवर्तन आवश्यक हो गया है परन्तु वह चाहते थे कि (UPBoardSolutions.com) अतीत का सम्मान किया जाय. अर्थात् अतीत को पूरी तरह ठुकराया न जाए और बदलाव की प्रक्रिया धीमी हो।

प्रश्न 21.
उदारवादी समूह किस तरह की सरकार के पक्षधर थे?
उत्तर:
उदारवादी समूह वंश आधारित शासकों की अनियंत्रित सत्ता के विरोधी थे। वे सरकार के समक्ष व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के पक्षधर थे। यह समूह प्रतिनिधित्व पर आधारित एक ऐसी निर्वाचित सरकार के पक्ष में था जो शासकों और अफसरों के प्रभाव से मुक्त और सुप्रशिक्षित न्यायपालिका द्वारा स्थापित किए गए कानूनों के
अनुसार शासन कार्य चलाएँ।

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प्रश्न 22.
रूस में स्थापित होने वाले प्रथम समाजवादी संगठन का नाम बताइए।
उत्तर:
‘रसियन सोशल डेमोक्रेटिक वर्ल्स पार्टी (रूसी सामाजिक लोकतांत्रिक श्रमिक पार्टी) 1898 ई. में रूस में स्थापित होने वाला प्रथम समाजवादी संगठन था।

प्रश्न 23.
1904 ई. में सेंट पीटर्सबर्ग के मजदूर हड़ताल पर क्यों चले गए थे?
उत्तर:
1904 में गठित की गई असेंबली ऑफ एशियन वर्कर्स के चार सदस्यों को प्युतिलोव आयरन वक्र्स में उनकी नौकरी से हटा दिया गया तो मजदूरों ने आंदोलन छेड़ने का एलान कर दिया। अगले कुछ दिनों के भीतर सेंट पीटर्सबर्ग के 1,10,000 से ज्यादा मजदूर काम के घण्टे घटाकर आठ घण्टे किए जाने, वेतन में वृद्धि और कार्यस्थितियों में सुधार की माँग करते हुए हड़ताल पर चले गए।

प्रश्न 24.
रूसी क्रान्ति में सक्रिय दो प्रमुख दल कौन-से थे?
उत्तर:

  1. बोल्शेविक दल,
  2. मेन्शेविक दल।

प्रश्न 25.
रैडिकल और उदारवादियों की आर्थिक दशा किस प्रकार थी?
उत्तर:
बहुत सारे रैडिकल और उदारवादियों के पास काफी सम्पत्ति थी और उनके यहाँ बहुत सारे लोग नौकरी करते थे। उन्होंने व्यापार या औद्योगिक व्यवसायों के जरिए धन-दौलत (UPBoardSolutions.com) इकट्ठा की थी इसलिए वह चाहते थे कि इस तरह के प्रयासों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दिया जाए।

प्रश्न 26.
1905 ई. की क्रान्ति का आरम्भ किस घटना को माना जाता है?
उत्तर:
1905 ई. की क्रान्ति का आरम्भ ‘खूनी रविवार को माना जाता है।

प्रश्न 27.
किस कारण उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में समाज परिवर्तन के इच्छुक बहुत सारे कामकाजी स्त्री-पुरुष उदारवादी और रैडिकल समूहों व पार्टियों के इर्द-गिर्द गोलबंद हो गये थे?
उत्तर:
उदारवादियों और रैडिकल समूहों की मान्यता थी कि यदि हरेक को व्यक्तिगत स्वतंत्रता दी जाए, गरीबों को रोजगार मिले और जिनके पास पूँजी है उन्हें बिना रोकटोक काम करने का मौका दिया जाए तो समाज तरक्की कर सकता है। इसी कारण उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में समाज (UPBoardSolutions.com) परिवर्तन के इच्छुक बहुत सारे कामकाजी स्त्री-पुरुष उदारवादी और रैडिकल समूहों व पार्टियों के इर्द-गिर्द गोलबंद हो गए थे।

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प्रश्न 28.
अस्थायी रूसी सरकार किसके नेतृत्व में बनी थी?
उत्तर:
अस्थायी रूसी सरकार प्रिंस केरेंस्की के नेतृत्व में बनी थी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजवाद की तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
समाजवाद की तीन प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. इसमें मजदूरों का शोषण नहीं होता है। समाजवाद के अनुसार सभी को काम पाने का अधिकार है।
  2. समाजवाद में समाज वर्गविहीन होता है। इसमें अमीर-गरीब के बीच कम-से-कम अन्तर होता है। इसी कारण समाजवाद निजी सम्पत्ति का विरोधी है।
  3. उत्पादन तथा वितरण के साधनों पर पूरे समाज का अधिकार होता है क्योंकि इसका उद्देश्य लाभार्जन नहीं, बल्कि समाज का कल्याण होता है।

प्रश्न 2.
केरेस्की की सरकार की अलोकप्रियता का कारण बताइए।
उत्तर:
रूस में जार के शासन का अन्त होने के बाद प्रिंस केरेस्की की सरकार अस्तित्व में आयी।
इसके सम्मुख प्रमुख समस्याएँ थीं-

  1. युद्ध की समस्या,
  2. भूमि की समस्या,
  3. औद्योगिक श्रमिकों की समस्या।

केरेंस्की की अलोकप्रियता के कारण- यद्यपि केरेंस्की एक योग्य नेता था, परन्तु वह इन समस्याओं को हल करने और जनता की माँगों को पूरा करने में असमर्थ रहा। इसीलिए मार्च, 1917 ई. की क्रांति के बाद रूस में जगह-जगह श्रमिक पंचायतों (सोवियतों) का निर्माण हो गया। इन पंचायतों ने केरेंस्की के स्थान पर स्वयं रूस का शासन संभालने का निश्चय किया। इसलिए वह अलोकप्रिय हो गया। 7 नवम्बर को (UPBoardSolutions.com) केरेंस्की सरकार का पतन हो गया और लेनिन के नेतृत्व में एक नई सरकार बनी जिसे ‘काउंसिल ऑफ पीपुल्स कमीसार्स का नाम दिया गया।

प्रश्न 3.
रैडिकल और रूढ़िवादी में क्या अन्तर है? बताइए।
उत्तर:
(1) रूढ़िवादी- रूढ़िवादी विचारधारा के समर्थक राजतंत्र एवं राजा के दैवी सिद्धान्तों में विश्वास करते थे। यह रैडिकल तथा उदारवादी दोनों विचारधाराओं का विरोध करते थे परन्तु 18वीं शताब्दी के अन्त तक इनकी विचारधारा में तीव्र परिवर्तन आया और इन्होंने भी परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया परन्तु यह चाहते थे कि परिवर्तन की प्रक्रिया धीमी हो तथा अतीत को पूरी तरह न ठुकराया जाए।

(2) रैडिकल (आमूल परिवर्तनवादी )- इस विचारधारा के समर्थक बहुमत पर आधारित सरकार की स्थापना के पक्ष में थे। यह किसी भी व्यक्ति को प्राप्त विशेषाधिकारों के विरुद्ध थे। यह समानता पर आधारित समाज की स्थापना करना चाहते थे। प्राचीन रूढ़ियों के यह विरोधी थे। यह राजा (UPBoardSolutions.com) के दैवी शक्ति के सिद्धान्त में विश्वास नहीं करते थे और राजतंत्र को नष्ट करने के लिए क्रांतिकारी उपायों को अपनाने के पक्ष में थे। फ्रांस में पेरिस कम्यून की स्थापना का श्रेय इसी विचारधारा के समर्थकों को जाता है।

प्रश्न 4.
बोल्शेविक और मेन्शेविक दल के मध्य क्या बुनियादी अन्तर था?
उत्तर:
बोल्शेविक और मेन्शेविक के बीच निम्नलिखित अन्तर इस प्रकार है-

बोल्शेविक

मेन्शेविक

1. बोल्शेविक रूस में 1917 ई. में एक सफल क्रांति ला सके और उन्होंने देश तथा समाज का ढाँचा पूरी तरह करता था। 1. किन्तु यह मेन्शेविक कोई उपलब्धि प्राप्त नहीं कर सका क्योंकि रूसी जार संसदीय तरीकों में विश्वास नहीं बदल दिया।
2. बोल्शेविक रूस में मजदूरों का बहुमत वाला समूह था जिसका नेता लेनिन था। वे समाज तथा देश में बदलाव के लिए संसदीय के लिए क्रान्तिकारी तरीकों में विश्वास करते थे। 2. मेन्शेविक रूस में मजदूरों का एक दूसरा समूह था जो कि देश तथा समाज को चलाने  तरीकों एवं चुनावों में भाग लेने में विश्वास रखता था।
3. इन लोगों का मत था कि संसदीय तौर-तरीके रूस जैसे देश में बदलाव नहीं ला सकेंगे जहाँ लोकतंत्रात्मक अधिकारों का कोई अस्तित्व नहीं था और कोई संसद नहीं थी। 3. ये लोग फ्रांस तथा जर्मनी में मौजूद दलों के पक्षधर थे जो कि अपने देशों में विधायिका के चुनावों में भाग  लेते थे।

प्रश्न 5.
साम्यवाद और फासिस्टवाद के बीच प्रमुख अन्तर बताइए।
उत्तर:

  1. साम्यवाद ने अन्तर्राष्ट्रीयता के विचार को उभारा है। इस प्रकार साम्यवादी विचारधारा में विश्वबन्धुत्व एवं अन्तर्राष्ट्रीयता प्रमुख है। जबकि फासिस्टवाद के अनुसार दो राष्ट्रों या कई राष्ट्रों के मध्य कोई समन्वय अथवा मेल नहीं हो सकता। इसीलिए इन्होंने राष्ट्रीयता पर ही अधिक बल दिया।
  2. साम्यवाद ने जातिभेद, रंगभेद एवं लिंगभेद को यदि समाप्त नहीं, तो कम अवश्य कर दिया। साम्यवाद स्वतंत्रता, समानता एवं प्रजातंत्र पर आधारित है। दूसरी ओर फासिस्टवाद, समाजवाद एवं प्रजातंत्र का विरोधी है। यह संसदीय प्रणाली में विश्वास नहीं करता। फासिज्म एवं प्रजातंत्र को परस्पर विरोधी माना जाता है। इसमें बहुमत के स्थान पर एक ही नेता की तानाशाही को अधिक महत्त्व दिया गया है।

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प्रश्न 6.
खूनी रविवार और इसके बाद के घटनाक्रम को बताइए।
उत्तर:
जनवरी, 1905 ई. में रूसी शासक जार से याचना करने के लिए एक रविवार को मजदूरों ने पादरी गैपॉन के नेतृत्व में एक शांतिपूर्ण जुलूस निकाला। लेकिन ज्यों ही जुलूस विंटर पैलेस पहुँचा, पुलिस एवं कोसैक्स ने उन पर हमला कर दिया। 100 से अधिक मजदूर मारे गए और कई घायल हो गए। यह घटना रविवार के दिन हुई थी, इसलिए इसे खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है। खूनी रविवार ने घटनाओं की एक श्रृंखला को आरंभ कर दिया जिसे 1905 की क्रान्ति के नाम से जाना जाता है। पूरे देश में हड़तालों का आयोजन (UPBoardSolutions.com) किया गया। जब नागरिक स्वतंत्रता के अभाव की शिकायत करते हुए छात्रों ने बहिष्कार किया तो विश्वविद्यालय बन्द हो गए। वकीलों, इंजीनियरों, डॉक्टरों एवं अन्य मध्यम श्रेणी के मजदूरों ने यूनियन ऑफ यूनियन्स बनाया तथा एक संविधान सभा की माँग की।

प्रश्न 7.
रूसी क्रान्ति की सफलता के पश्चात् समाजवादी प्रणाली लोगों के लिए किस तरह उपयोगी थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निस्संदेह रूसी क्रान्ति की सफलता के बाद रूस में समाजवादी प्रणाली की स्थापना हुई थी। यह प्रणाली कई कारणों की वजह से लोगों के लिए अच्छी थी जिनमें से चार प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं जिनके आधार पर क्रांति के उपरांत स्थापित की गई समाजवादी प्रणाली लोकोपयोगी कही जा सकती है।

  1. नई प्रणाली में निजी सम्पत्ति के स्वामित्व पर प्रतिबन्ध लगा दिया जोकि मूलतः पूँजीपतियों तथा मजदूरों को कम मजदूरी दिए जाने के कारण पैदा होती है।
  2. रूसी क्रान्ति के बाद भूमि किसानों के पास तथा कारखाने मजदूरों के पास चले गए।
  3. समाजवादी प्रणाली ने लोगों को स्वेच्छाचारी निरंकुश शासन से मुक्ति दिलाकर उन्हें सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवाद के अधीन ला दिया।
  4. समाजवादी प्रणाली में हर व्यक्ति के लिए काम करना अनिवार्य हो गया। शोषण बन्द हो गया तथा प्रत्येक नागरिक को काम प्राप्त करने का मौलिक अधिकार मिल गया। एक नए समाज का निर्माण हुआ जोकि सामाजिक समानता और न्याय पर आधारित था।

प्रश्न 8.
रूस में उदारवादियों के प्रमुख उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:
उदारवादियों के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार थे-

  1. ये लोग सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (सभी नागरिकों को वोट का अधिकार देने) के पक्ष में नहीं थे। उनका मानना था कि वोट का अधिकार केवल संपत्तिधारियों को ही मिलना चाहिए। वे नहीं चाहते थे कि महिलाओं को भी मतदान का अधिकार मिले।
  2. वे एक स्वतन्त्र न्यायपालिका चाहते थे।
  3. उदारवादी एक ऐसा देश चाहते थे जो सभी धर्मों का सम्मान करे।
  4. उन्होंने वंशवादी शासकों की निरंकुश सत्ता का विरोध किया।
  5. वे सरकार के समक्ष व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा करना चाहते थे।
  6. उन्होंने शासकों एवं अधिकारियों से मुक्त एक प्रतिनिधित्व करने वाली, निर्वाचित संसदीय सरकार की माँग की।

प्रश्न 9.
1917 ई. की रूसी क्रान्ति में लेनिन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेनिन बोल्शेविक दल का एक नेता था। वह समाज तथा देश में बदलाव के लिए क्रांतिकारी तरीकों में विश्वास करता था। लेनिन मजदूरों में आर्थिक समानता लाना चाहता था। उसके विचार में संसदीय तौर-तरीके रूस जैसे देश में बदलाव नहीं ला सकते थे जहाँ लोकतंत्रात्मक अधिकारों का कोई अस्तित्व नहीं था और कोई संसद नहीं थी। अंततः बोल्शेविक रूस में 1917 ई. में एक सफल क्रान्ति ला सके और उन्होंने देश तथा समाज का ढाँचा पूरी तरह बदल दिया। उसने मजदूरों को 1917 की रूसी क्रांति के लिए एक हथियार के (UPBoardSolutions.com) रूप में संगठित किया। उसने युद्ध का अन्त करने और किसानों को भूमि स्थानान्तरित करने की कोशिश की। केरेंस्की की सरकार के पतन के बाद लेनिन विश्व की प्रथम कम्युनिस्ट सरकार का मुखिया बना।

प्रश्न 10.
1917 की रूसी क्रान्ति के प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर:
रूस के उद्योगों पर प्रथम विश्व युद्ध का नकारात्मक प्रभाव पड़ा। बाल्टिक सागर पर जर्मनी के नियंत्रण के कारण रूस का आयात बन्द हो चुका था। 1916 ई. तक रेलवे लाइनें टूट चुकी थीं। अनिवार्य सैनिक सेवा के चलते देश के स्वस्थ लोगों को युद्ध में लगा दिया गया था जिससे देश में मजदूरों की कमी हो गयी थी। रूस में रोटी की दुकानों पर दंगे होना आम बात हो गयी थी।

किसान जमीन पर सर्फ के रूप में काम करते थे और उनकी पैदावार को अधिकतम भाग जमीन के मालिकों एवं विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों को चला जाता था। किसानों में जमीन की भूख प्रमुख कारक थी। विभिन्न दमनकारी नीतियों तथा कुण्ठा के कारण वे आमतौर पर लगान देने से मना कर देते और प्रायः जमींदारों की हत्या करते।

मजदूरों की स्थिति भी बहुत भयावह थी। वे अपनी शिकायतों को प्रकट करने के लिए कोई ट्रेड यूनियन अथवा कोई राजनीतिक दल नहीं बना सकते थे। अधिकतर कारखाने उद्योगपतियों की निजी सम्पत्ति थे। वे अपने स्वार्थ के लिए मजदूरों का शोषण करते थे। कई बार तो इन (UPBoardSolutions.com) मजदूरों को न्यूनतम निर्धारित मजदूरी भी नहीं मिलती थी। कार्य घण्टों की कोई सीमा नहीं थी जिसके कारण उन्हें दिन में 12-15 घण्टे काम करना पड़ता था।
जार का निरंकुश शासन बिल्कुल निष्प्रभावी हो चुका था। वह एक स्वेच्छाचारी, भ्रष्ट एवं दमनकारी शासक था जिसे देश के लोगों के हितों को कोई खयाल नहीं था।

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प्रश्न 11.
1917 ई. की क्रान्ति के लिए रूस के पूँजीपति कहाँ तक उत्तरदायी थे?
उत्तर:

  1. सेना के पास अस्त्र-शस्त्र, खाद्य-सामग्री और यहाँ तक कि पहनने के लिए वर्दी तक की भी कमी हो गई। इसका परिणाम यह हुआ कि युद्ध के दौरान भारी संख्या में रूसी सैनिक मारे गए। इसीलिए उन्हें युद्ध में भारी हार खानी पड़ी। इस प्रकार 1917 ई. की क्रांति लाने में रूस के पूँजीपतियों का भी योगदान था।
  2. पूँजीपति किसानों तथा मजदूरों को बुरी तरह शोषण कर रहे थे। युद्ध के दिनों में भी उनके सामने मुनाफा कमाने के सिवाय और कोई काम न था। इसी उद्देश्य से वे चीजों के दाम बढ़ाते चले गए।
  3. भ्रष्ट सेना अधिकारियों से मिलकर वे इतना अधिक मुनाफा कमाने लगे कि युद्ध के आठ महीनों में ही सेना को युद्ध सामग्री पहुँचानी असंभव हो गई।

प्रश्न 12.
रूस की 1905 ई. की क्रान्ति को 1917 ई. की क्रान्ति की जननी क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
9 जनवरी, 1905 ई. को रविवार के दिन मास्को में एक विशाल जुलूस रूसी शासक जार के महल की ओर अग्रसर था। आंदोलनकारी नेता जार को अपनी 11 सूत्रीय माँगों वाली एक याचिका देने जा रहे थे। जुलूस में शामिल लोग यह नारा लगा रहे थे कि “छोटे भगवान! हमें रोटी दो!” जार चाहता था कि रूस की जनता उसे भगवान की तरह पूजे। इसी कारण रूस के लोग उसे ‘छोटा भगवान’ कहते थे। जार के सैनिकों ने इन निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोली चला दी जिसमें एक हजार के लगभग लोग वहीं मारे गए।

सेना ने 60 हजार के लगभग लोगों को बंदी बना लिया। इसीलिए 9 जनवरी, 1905 ई. का दिन रूस के इतिहास में लाल रविवार (खूनी रविवार) के नाम से जाना जाता है। उस समय तो प्रदर्शनकारियों को सेना ने बलपूर्वक दबा दिया किन्तु क्रान्ति की चिंगारी उनके भीतर सुलगती रही और 1917 ई. में एक क्रान्ति के रूप में प्रकट हुई। इसीलिए 1905 ई. की क्रान्ति को 1917 ई. की क्रान्ति की जननी कहा जाता है।

प्रश्न 13.
प्रथम विश्व युद्ध का 1917 की रूसी क्रान्ति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ होने से पहले यूरोप में दो गुट सक्रिय थे। एक गुट में इंग्लैण्ड, फ्रांस तथा रूस थे जबकि दूसरे गुट में जर्मनी, ऑस्ट्रिया और इटली शामिल थे। प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ होने के समय रूस अपने गुट का साथ देने के लिए युद्ध में शामिल हो गया। लेकिन रूस के पास धन, सैन्य शक्ति और अस्त्र-शस्त्रों का अभाव था। ऐसे में रूसी सरकार ने किसानों को बलपूर्वक सेना में शामिल करके बड़ी संख्या में युद्ध के मैदान में भेज दिया। एक अनुमान के अनुसार प्रथम विश्व युद्ध में 17 लाख सैनिक मारे गए, 5 लाख के (UPBoardSolutions.com) लगभग घायल हुए तथा 20 लाख बन्दी बनाए गए। ऐसी विषम परिस्थिति में युद्ध से पीड़ित सैनिकों के परिवारों तथा पड़ोसियों में सरकार के विरुद्ध विद्रोह की भावनाएँ पनपने लगीं। ये जनभावनाएँ आगे चलकर रूसी क्रान्ति का एक प्रमुख कारण बनीं।

प्रश्न 14.
किसानों की हीन दशा 1917 ई. की रूसी क्रान्ति हेतु उत्तरदायी थी।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. किसानों पर करों को भारी बोझ होता था और वे सदा ऋण से दबे रहते थे। उन्हें दो वक्त भरपेट भोजन भी प्राप्त नहीं होता था। ऐसे में किसानों के पास सिवाय क्रान्ति के कोई चारा नहीं था। यही कारण था कि किसानों की हीन दशा 1917 ई. की क्रांति का मुख्य कारण बनी।
  2. 1861 ई. से पहले रूस में सामन्तवादी प्रथा थी। किसान भूमि-दासों के रूप में जमीनों को जोतते थे परन्तु उन्हें अपनी उपज का एक बड़ा भाग सामन्तों को देना पड़ता था।
  3. यद्यपि 1861 ई. में सामंती प्रथा समाप्त कर दी गई थी परन्तु फिर भी किसानों की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ। उनके खेत छोटे-छोटे होते थे जिन पर वे पुराने ढंग से खेती करते थे।

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प्रश्न 15.
अक्टूबर क्रान्ति के बाद रूस में गृह युद्ध का मार्ग किस प्रकार प्रशस्त हुआ?
उत्तर:
बोल्शेविकों द्वारा जमीन के पुनर्वितरण का आदेश देने पर रूसी सेना टूटने लगी। सैनिक और किसान जमीन के पुनर्वितरण के लिए घर जाना चाहते थे और अन्ततः उन्होंने सेना छोड़ना शुरू कर दिया। बोल्शेविक समाजवादी, उदारवादी, उनके नेता और राजशाही के समर्थकों ने बोल्शेविकों के विद्रोह की निन्दा की। उनके नेता दक्षिण एशिया में चले गए और बोल्शेविकों (रेड्स) से लड़ने के (UPBoardSolutions.com) लिए टुकड़ियाँ एकत्र करने लगे। 1918 ई. और 1919 ई. के बाद ग्रीन्स (समाजवादी क्रांतिकारी) एवं ‘ह्वाइट्स’ (प्रो-जारीस्ट) ने अधिकतर रूसी साम्राज्य पर नियंत्रण कर लिया। फ्रांसीसी, अमेरिकी, अंग्रेज एवं जापानी टुकड़ियों ने उनकी मदद की। ये सभी सेनाएँ भी रूस में बढ़ रहे समाजवाद से चिंतित थीं। इसलिए वहाँ इन टुकड़ियों एवं बोल्शेविकों के बीच गृह युद्ध हो गया। इसके परिणामस्वरूप लूटपाट, डकैती और भुखमरी आम हो गई।

प्रश्न 16.
प्रथम विश्व युद्ध के बाद रूस की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रूस की सेना जर्मनी और ऑस्ट्रिया में 1914 तथा 1916 ई. के बीच बुरी तरह पराजित हुई। 1917 ई. तक 70 लाख लोग युद्ध में मारे गए। पीछे हटते रूसी सैनिकों ने फसलों व इमारतों को इसलिए नष्ट कर दिया। जिससे शत्रु सेना को उस स्थान पर टिक पाना संभव न हों। फसलों और इमारतों के विनाश के परिणामस्वरूप 30 लाख से अधिक लोग अपने ही देश में शरणार्थी बन गए। इस स्थिति ने:आर और सरकार को अपने देश में लोकप्रिय बना दिया। युद्ध का उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

अनेक उद्योग बन्द हो गए। बाल्टिक सागर मार्ग पर जर्मनों का नियंत्रण होने के कारण रूस अपने उद्योगों के लिए कच्चे माल का आयात न कर सका। शहरों में रहने वाले लोगों के लिए रोटी और आटे की किल्लत हो गयी। 1916 ई. तक रोटी की दुकानों पर दंगे होना आम बात हो गयी। यूरोप के अन्य देशों की अपेक्षा रूस के औद्योगिक उपकरण अधिक तेजी से बेकार होने लगे। 1916 ई. तक रेलवे लाईंटूटने लगीं। सेहतमन्द लोगों को युद्ध में झोंक दिया गया। परिणामस्वरूप मजदूरों की कमी हो गई और आवश्यक सामान बनाने वाली छोटी कार्यशालाओं को बन्द कर दिया गया। अनाज का एक बड़ा भाग सैनिकों के भोजन के लिए भेज दिया गया।

प्रश्न 17.
1905 ई. की रूसी क्रान्ति के पश्चात् जार ने रूस में क्या परिवर्तन किए?
उत्तर:
1905 ई. की क्रान्ति के पश्चात् जार द्वारा रूस के राजनैतिक परिवेश में निम्न महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए-

  1. जार ने प्रथम ड्यूमा को 75 दिन के अन्दर और पुनः निर्वाचित दूसरे ड्यूमा को तीन माह के अन्दर बर्खास्त कर दिया। वह अपनी सत्ता पर किसी प्रकार की जवाबदेही अथवा अपनी शक्तियों में किसी तरह की कमी नहीं चाहता थी। उसने मतदान के नियम बदल डाले और उसने तीसरी ड्यूमा में रूढ़िवादी राजनेताओं को भर डाला। उदारवादियों तथा क्रांतिकारियों को बाहर रखा गया।
  2. 1905 ई. की क्रान्ति के उपरान्त सभी समितियाँ एवं संगठन गैरकानूनी घोषित कर दिए गए।
  3. राजनैतिक दलों पर कड़े प्रतिबन्ध लगा दिए गए।

प्रश्न 18.
बोल्शेविकों ने गृह युद्ध के दौरान अर्थव्यवस्था को जारी रखने के लिए क्या किया?
उत्तर:
रूस में बोल्शेविक मजदूरों का बहुमत वाला समूह था जिसका नेता लेनिन था। बोल्शेविक समाज एवं देश में परिवर्तन लाने के लिए क्रांतिकारी तरीकों को अपनाने में विश्वास करते थे।

बोल्शेविकों ने गृह युद्ध के दौरान उद्योगों तथा बैंकों को राष्ट्रीयकृत रखा। उन्होंने समाजीकरण की हुई भूमि पर किसानों को खेती करने दी। बोल्शेविकों ने जब्त की (UPBoardSolutions.com) गई भूमि के द्वारा यह दर्शाया कि सामूहिक कार्य क्या कर सकता है।

केन्द्रीयकृतं नियोजन की एक प्रक्रिया लागू की गई। कर्मचारियों ने यह आंका कि अर्थव्यवस्था किस प्रकार कार्य करेगी और अगले 5 वर्षों के लिए लक्ष्य निर्धारित किए। सभी मूल्य सरकार द्वारा निर्धारित किए जाते थे।
केन्द्रीयकृत नियोजन से आर्थिक विकास को गति मिली। औद्योगिक उत्पादन बढ़ा (1929 से 1933 ई. के बीच में तेल, कोयले और इस्पात में 100 प्रतिशत वृद्धि हुई)। नए औद्योगिक नगर अस्तित्व में आए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्तालिन के सामूहिकीकरण कार्यक्रम का विवरण दीजिए।
उत्तर:
सोवियत रूस के कस्बे 1927-28 ई. तक अनाज की आपूर्ति में जबरदस्त कमी की समस्या से त्रस्त थे। अनाज की कमी की समस्या को दूर करने के लिए खेतों के सामूहिकीकरण का निर्णय सरकार द्वारा किया गया। इसके पीछे यह तर्क दिया गया कि अनाज की यह कमी आंशिक रूप से खेतों के छोटे आकार के कारण है। 1917 ई. के बाद जमीन किसानों को दे दी गई। इन छोटे आकार के खेतों का आधुनिकीकरण नहीं हो पाया। आधुनिक खेत विकसित करने और उन पर मशीनों की सहायता से औद्योगिक खेती करने के लिए कुलकों (रूस के धनी किसान) का सफाया करना, किसानों से जमीन छीनना और राज्य नियंत्रित बड़े खेत बेनाना आवश्यक हो गया।

स्तालिन का विचार था कि कुलक (रूस के धनी किसान) अधिक फायदा पाने के लिए अनाज को नहीं बेच रहे थे। इसलिए स्तालिन ने सामूहिकीकरण कार्यक्रम शुरू किया। 1929 ई. से सभी किसानों को सामूहिक खेत (कोलखोज) को जोतने के लिए विवश किया गया। ज्यादातर भूमि तथा (UPBoardSolutions.com) कृषि यंत्रों का स्वामित्व सामूहिक खेतों को हस्तांतरित कर दिया गया। किसान भूमि पर काम करते तथा कोलखोज से होने वाला लाभ किसानों में बाँट दिया जाता था। यद्यपि स्तालिन की खेतों के सामूहिकीकरण की नीति किसानों में अलोकप्रिय थी और किसानों ने इसके विरोध में अपने पशुओं को मारना शुरू कर दिया।

फलस्वरूप 1929 से 1931 ई. के बीच पशुओं की संख्या एक तिहाई तक घट गयी। खेतों के सामूहिकीकरण का विरोध करने वालों को कठोर दण्ड दिया गया। स्तालिन सरकार ने कुछ स्वतंत्र खेती की अनुमति दी लेकिन ऐसे उत्पादकों के साथ कोई सहानुभूति नहीं दिखाई। सामूहिकीकरण के बावजूद उत्पादन तत्काल नहीं बढ़ा। 1930-33 ई. में खराब फसल के कारण भयंक़र अकाल पड़ा जिसमें चालीस लाख लोग मारे गए।

प्रश्न 2.
उन परिस्थितियों को स्पष्ट कीजिए जिन्होंने जार को सत्ता छोड़ने पर विवश किया?
उत्तर:
7 मार्च, 1917 ई. को रूस की क्रान्ति शुरू हुई। शुरू में रूस की महिलाओं ने देश की असहनीय परिस्थितियों के विरुद्ध एक जुलूस निकाला जिसमें वे रोटी की माँग कर रही थीं। शीघ्र ही सैनिक, कारीगर तथा अन्य लोग इन विरोध प्रदर्शनो में शामिल हो गए। इन क्रान्तिकारियों ने बन्दीगृहों पर धावा बोलकर कैदियों को स्वतन्त्र कर दिया। क्रांतिकारियों की संख्या निरंतर बढ़ने लगी। इन लोगों ने मास्को एवं सेंट (UPBoardSolutions.com) पीटर्सबर्ग पर अधिकार कर लिया। अंततः 15 मार्च, 1917 ई. को जार ने विवश होकर सत्ता का परित्याग कर दिया। राजकुमार ल्वोफ (केरेन्सकी) की देखरेख में पहली अस्थायी सरकार रूस में गठित की गयी।
निम्न कारण जार के पतन के लिए निश्चय ही उत्तरदायी थे-

  1. किसान वर्ग भूमि पर केवल खेती करने वालों का अधिकार चाहता था, परन्तु जार ऐसा करने को तैयार न था।
  2. कारीगर लोग कारखानों पर अपना नियंत्रण चाहते थे, परन्तु जार ने ऐसा करना स्वीकार न किया।
  3. जार ने अपनी साम्राज्यवादी नीति के कारण अनेक जातियों को अपना दास बना रखा था। ऐसी जातियाँ जार को सहयोग देने के लिए तैयार न थीं।
  4. बिना तैयारी के प्रथम विश्वयुद्ध में कूद पड़ने के कारण लाखों की संख्या में रूसी सैनिक मारे गए। ऐसे वातावरण में लोग शांति चाहते थे जबकि जार युद्ध को जारी रखने की बात पर अड़ा हुआ था।
  5. देश में चारों ओर अकाल पड़ा था लोगों के पास खाने को कुछ नहीं था। जार लोगों की समस्या को नहीं सुलझा सका। अतः जार का शासन समाप्त हो गया और उसके राज्य का पतन हो गया।

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प्रश्न 3.
रूसी क्रान्ति में लेनिन की भूमिका बताइए।
उत्तर:

  1. जार की साम्राज्यवादी नीति का दुष्परिणाम रूस को भुगतना पड़ा। निरन्तर युद्धों के कारण देश के धन एवं संसाधनों का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ। देश का आर्थिक संकट गहराने लगा और जनता जार के विरुद्ध हो गयी।
  2. जार अपनी सुन्दर रानी जरीना के प्रभाव में था जबकि रानी जरीना पर रासपूतनिक नामक एक ढोंगी संत को प्रभाव था। यह ढोंगी संत दमन की नीति का पक्षपाती था। कहा जाता है कि यह संत एक गुण्डा था जो चोरी के अपराध में पकड़ा गया था। बाद में उसने साधु का वेश धारण कर लिया था। इतिहासकार रासपूतनिक को ‘होली डेविल के नाम से पुकारते हैं।
  3. 1905 ई. की क्रांति के कारण जार ने यह आश्वासन दिया था कि रूस में ड्यूमा अर्थात् पार्लियामेंट का निर्माण किया जाएगा परन्तु बाद में अपनी निरंकुशता के कारण उसने ड्यूमा को कोई काम नहीं करने दिया। वह इसके चुनाव में भी हस्तक्षेप करने लगा। पहली ड्यूमा (UPBoardSolutions.com) को उसने केवल ढाई महीने में ही भंग कर दिया। जार ने एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर रखा था जिसमें भाँति-भाँति के लोग रहते थे जो सदा उसके लिए कोई न-कोई समस्या खड़ी कर देते थे।
  4. रूस का जार निकोलस द्वितीय बिल्कुल उद्दण्ड और निरंकुश शासक था। 1905 ई. की क्रांति दबाने के बाद भी निकोलस द्वितीय की निरंकुशता बढ़ती ही गई। उसने गुप्तचर विभाग का कार्य बहुत तेज कर दिया। जिन लोगों का क्रांति से जरा-सा भी संबंध समझा गया, उनको या तो मार दिया गया या उन्हें बंदी बना लिया गया या फिर देश-निकाला दे दिया गया।

प्रश्न 4.
रूस की क्रान्ति के वैश्विक प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रूस की क्रान्ति का वैश्विक प्रभाव इस प्रकार है-

  1. रूस की देखा-देखी अन्य सरकारों ने भी अपनी प्रजा की रोटी, कपड़ा व मकान जैसी मौलिक आवश्यकताओं की | पूर्ति को अपना मुख्य कर्तव्य समझना शुरू किया।
  2. जब राष्ट्रसंघ की नींव रखी गई तो उसने विश्वभर के श्रमिकों की दशा सुधारने के लिए एक विशेष संस्था का निर्माण किया। यह संस्था अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ के नाम से प्रसिद्ध हुई।
  3. इसी प्रकार अनेक सरकारों ने शिक्षा देने का कार्य चर्च से छीन लिया।
  4. पहले विश्वयुद्ध के बाद समाजवादी आंदोलन मोटे तौर पर दो भागों-सोशलिस्ट पार्टियों और कम्युनिस्ट पार्टियों में बँट गया। समाजवाद लाने की विधियों बल्कि समाजवाद की परिभाषा को लेकर भी उनके बीच अनेक मतभेद थे। इन मतभेदों के बावजूद अपने उदय (UPBoardSolutions.com) के कुछ ही दशकों के अन्दर समाजवाद सबसे अधिक स्वीकृत विचारधाराओं में से एक बन गया। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद समाजवादी आंदोलन के प्रभाव को फैलना कुछ सीमा तक रूसी क्रांति का परिणाम है।
  5. कम्युनिस्ट इंटरनेशनल (कोमिंटर्न), जिसका गठन पहली और दूसरी अन्तर्राष्ट्रीय क्रान्ति की तर्ज पर किया गया था, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रांतियों को प्रोत्साहन देने का साधन था। समाजवादी आन्दोलन में फूट पड़ गई। सोशलिस्ट पार्टियों के वामपंथी धड़ों ने अब स्वयं को कम्युनिस्ट पार्टियों के रूप में ढाल लिया। दुनिया के अधिकांश देशों में कम्युनिस्ट पार्टियों की स्थापना हुई जो कम्युनिस्ट इंटरनेशनल से संबंधित थीं। कम्युनिस्ट इंटरनेशनल एक ऐसा मंच बन गया जहाँ नीतियों पर विचार-विमर्श होते थे और दुनिया में लागू करने के लिए साझी नीतियाँ तय होती थीं। 1943 ई. में कोमिंटर्न को समाप्त कर दिया।
  6. क्रांति ने राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक सभी क्षेत्रों में क्रान्ति ला दी।
  7. रूस की साम्यवादी सरकार को देखकर संसार के अन्य देशों, जैसे चीन व वियतनाम इत्यादि देशों में भी साम्यवादी सरकारें बनीं।।
  8. रूस की क्रान्ति के बाद पूरे विश्व में पूँजीपतियों व मजदूर वर्ग में एक निरंतर संघर्ष-सा चल पड़ा।
  9. रूस में किसान व मजदूर वर्ग की सरकार स्थापित हो जाने से इस वर्ग का सम्मान संसार के अन्य देशों में भी बढ़ा।

प्रश्न 5.
लेनिन की नयी आर्थिक नीति का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
लेनिन की नयी आर्थिक नीति उसकी दूरदर्शिता का परिणाम थी जिसने रूस की स्थिर अर्थव्यवस्था को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर दिया। नई आर्थिक नीति, 1921 ई. में लागू की गयी। इस नीति के प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-

  1. सरकारी फार्म स्थापित किए गए। इन फार्मों में कृषि संबंधी अनुसंधान कार्य (रिसर्च) तथा नये-नये प्रयोग किए जाने लगे।
  2. भूमि की चकबंदी की गयी। इन बड़े फार्मों पर किसानों को नये यंत्र तथा अच्छी खाद-बीज आदि देकर मदद की गयी।
  3. लोगों को वेतन नकद दिया जाने लगा।
  4. युद्ध के समय साम्यवाद के अन्तर्गत (1917-1921) उठाए गए सभी कदमों को वापस ले लिया गया।
  5. अनाज और माल का निजी क्षेत्र में व्यापार करने की अनुमति फिर दे दी गई।
  6. कुछ उद्योगों में निजी प्रबंध स्वामित्व की छूट दी गई।
  7. रूस में बहुत बड़ी संख्या में सहकारी संघ या समितियाँ स्थापित किए गए।
  8. अकाल पीड़ितों की राहत के लिए बड़े पैमाने पर राहत कार्य शुरू किए गए।

प्रश्न 6.
रूस में 1905 ई. की क्रान्ति से पूर्व के घटनाक्रम का विवरण दीजिए।
उत्तर:
रूस में जार का शासन तानाशाही शासन का प्रतिरूप था। जार निकोलस द्वितीय एक भ्रष्ट, दमनकारी एवं स्वेच्छाचारी शासक था। रूस में जार द्वारा जनसामान्य (UPBoardSolutions.com) की उपेक्षा ने ही लोगों की स्थिति को विपन्न बना दिया था। मजदूर और किसान आपस में विभाजित थे। किसान प्रायः लगाने देने से मना कर देते थे और कभी-कभी वे जमींदार की हत्या तक कर देते थे।

पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा किए गए लोकतांत्रिक प्रयोगों से प्रभावित होकर रूस के लोगों ने भी एक उत्तरदायी सरकार की माँग आरम्भ की, लेकिन जार ने उनकी माँग को अस्वीकार कर दिया। फलस्वरूप उदार सुधारक भी क्रान्ति की बातें करने लगे।
सन् 1904 का वर्ष किसानों के लिए बहुत ही दुष्कर था। आवश्यक वस्तुओं के दाम बहुत ज्यादा बढ़ गए थे तथा मजदूरी 20 प्रतिशत तक घट गयी थी। कामगार संगठनों की सदस्यता शुल्क नाटकीय तरीके से बढ़ा दी गयी। सेंट पीटर्सबर्ग के 1,10,000 से अधिक मजदूर प्रतिदिन काम के घण्टों को कम करने, मजदूरी बढ़ाने तथा कार्यस्थितियों में सुधार करने की माँगों को लेकर हड़ताल पर चले गए।

जनवरी, 1905 ई. में जोर से याचना करने के लिए एक रविवार को मजदूरों ने पादरी गैपॉन के नेतृत्व में एक शान्तिपूर्ण जुलूस निकाला। किन्तु जब यह जुलूस विंटर पैलेस पहुँचा तो पुलिस ने उन पर हमला कर दिया। परिणामस्वरूप 100 से अधिक मजदूर इस हमले में मारे गए जबकि (UPBoardSolutions.com) इससे कहीं अधिक घायल हो गए। यह घटना खूनी रविवार के नाम से जानी जाती है जिसने घटनाओं की एक श्रृंखला को शुरू कर दिया जिसे 1905 की क्रान्ति के नाम से जाना जाता है। इसी कारण पूरे देश में हड़ताले

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प्रश्न 7.
रूसी क्रान्ति के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रूसी क्रान्ति के प्रमुख कारण : 19वीं शताब्दी में लगभग समस्त यूरोप में महत्त्वपूर्ण सामाजिक, आर्भिक एवं राजनीतिक परिवर्तन हो रहे थे। इनमें से ज्यादातर देश फ्रांस की भाँति गणतन्त्र थे और इंग्लैण्ड की भाँति संवैधानिक राजतंत्र। यूरोप के ज्यादातर देशों में प्राचीन सामंती अभिजात वर्ग के स्थान पर नवीन मध्यम वर्ग सत्तासीन हो गया था। लेकिन वह अभी भी पुरानी व्यवस्था में जी रहा था। इसी के चलते रूस में 1905 ई. और 1917 ई. में क्रान्ति घटित हुई। रूसी क्रान्ति के लिए निम्न परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं-

(1) विचारकों का प्रभाव- अनेक रूसी विचारक यूरोप में हो रहे परिवर्तनों से बहुत प्रभावित हुए। वे उसी तरह के परिवर्तन रूस में भी चाहते थे। इसी भावना से प्रेरित होकर उन्होंने किसानों में जागृति लाने और मजदूरों में संगठित होने की विचारधारा का प्रसार किया। रूस की (UPBoardSolutions.com) तत्कालीन स्थितियों में एक नरमपंथी, जनतंत्रवादी अथवा सुधारक को भी क्रांतिकारी बनने के लिए मजबूर होना पड़ा। 19वीं शताब्दी के अन्तिम चरण के दौरान जनता के पास जाओ’ नामक एक आन्दोलन आरम्भ हुआ। यूरोप के उदार विचारों ने भी रूसी-क्रांति लाने में बड़ा योगदान दिया।

भौतिक क्रांति से पहले रूसी जनता के विचारों में क्रांति हुई। जार के अनेक प्रतिबंध लगाने पर भी पश्चिम के उदार विचारकों ने रूस में साहित्य के माध्यम से प्रवेश किया। विभिन्न रूसी लेखकों जैसे टालस्टाय, टर्जने आदि ने नवयुवकों के विचारों में क्रांति पैदा कर दी और वे पश्चिमी देशों के लोगों को प्राप्त सुविधाओं और अधिकारों की माँग करने लगे। जार ने जब उन्हें ठुकराने की कोशिश की तो उन्होंने क्रांति का मार्ग अपनाया।

(2) 1904-05 ई. में रूस-जापान युद्ध- 1904-05 ई. के रूसी-जापानी युद्ध में रूस की हार हुई। छोटे से देश से हारने के कारण जनता जार के शासन की विरोधी बन गई; क्योंकि उसको विश्वास हो गया कि इस हार का
एकमात्र कारण जार की निर्बल और अयोग्य सरकार है जो युद्ध का ठीक प्रकार संचालन करने में असफल रही है।

(3) प्रथम विश्व युद्ध में हुई क्षति- प्रथम विश्व युद्ध में रूस की सेना की कई मोर्चे पर पराजय हुई। इस युद्ध में रूस के 60 लाख सैनिक मारे गए। रूस के लोग युद्ध को चालू रखने के पक्ष में नहीं थे। लगभग समस्त देशवासियों और विशेषकर सैनिकों में युद्ध को लेकर आक्रोश व्याप्त था।

(4) निरंकुश राजतंत्र- रूस की राजनैतिक स्थिति अक्टूबर क्रान्ति से बहुत अच्छी नहीं थी। चूँकि रूस में लम्बे समय से जार का निरंकुश, स्वेच्छाचारी, अत्याचारी, अकुशल और शोषक शासन अस्तित्व में था, ऐसे में रूस में क्रान्ति का घटित होना अवश्यम्भावी नहीं था। क्रांति से पूर्व रूस में शासन पर भ्रष्ट जमींदारों, शाही परिवार के लोगों, अमीरों एवं सैनिक अधिकारियों का प्रभुत्व था। कहने को तो रूस का साम्राज्य बहुत बड़ा था लेकिन इसमें गैररूसी जनता पर और भी अधिक अत्याचार होते थे।

जार को शेष जनता की भावनाओं का कोई आदर नहीं था। वस्तुतः शासकों व शासितों के मध्य अन्तर निरन्तर बढ़ता ही जा रहा था। अतः जनता में असंतोष की सभी सीमाएँ पार हो गई थीं। रूस के जार पूरी तरह निरंकुश व स्वेच्छाचारी थे। उन्होंने समय-समय पर जो परामर्शदात्री सभाएँ बनाईं, उनके विचारों को मानने के लिए वे बाध्य नहीं थे। जापान से परास्त हो जाने के बाद निकोलस द्वितीय को ड्यूमा (UPBoardSolutions.com) नामक संसद के गठन के लिए मजबूर होना पड़ा किन्तु वह वास्तव में जनता तथा विशेषतः समाज के दुर्बल वर्ग का प्रतिनिधित्व नहीं करती थी। दूसरे

इसकी शक्तियाँ सीमित थीं। सम्राट इसके निर्णय से बँधा हुआ नहीं था।
वह पूर्ववत् निरंकुश शासक बना रहा। जब कभी जार के शासन के विरुद्ध जन-आंदोलन उठे, उन्हें निर्दयतापूर्वक दबा दिया गया। जार दैवी सिद्धान्त में विश्वास रखती था। वह और उसकी बुद्धिहीन पत्नी भोग-विलास में डूबे थे। जनसाधारण को कोई राजनैतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे।

(5) किसानों की विपन्न दशा- रूस में किसानों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। रूस में 1861 ई. से पहले। सामन्तवादी व्यवस्था अस्तित्व में थी। अधिकांश किसान भूमि दासों या सर्फ के रूप में जमीन जोता करते थे। उन्हें अपनी उपज का एक बहुत बड़ा हिस्सा सामंतों को देना पड़ता था। यद्यपि 1861 ई. में सामंत-प्रथा समाप्त कर दी गई तो भी किसानों की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ। उनके खेत बहुत छोटे (UPBoardSolutions.com) होते थे जिने पर वे पुराने ढंग से खेती करते थे। उन पर लगे करों को बोझ भारी थी इसलिए वे सदा ऋण से दबे रहते थे। सच तो यह है कि उन्हें दो समय का भरपेट भोजन भी नसीब नहीं होता था। रूस में जमीन के लिए किसानों की भूख असंतोष का एक प्रबल सामाजिक कारण था।

(6) श्रमिकों की विपन्न दशा- औद्योगिक क्रान्ति के कारण रूस में अनेक उद्योगों की स्थापना की गयी थी, जिनमें लाखों मजदूर काम करते थे किन्तु मजदूरों की आर्थिक स्थिति और उनके कार्यस्थल की दशाएँ अत्यन्त शोचनीय थीं। ऐसी दयनीय स्थिति से बचने के लिए मजदूर एक होने लगे। उन्होंने श्रम संघों का निर्माण शुरू किया। परन्तु पूँजीपति व उनके इशारों पर चलने वाली सरकार ने 1900 ई. में श्रम संघ बनाने एवं हड़ताल करने पर रोक लगा दी। उन्हें न तो कोई राजनैतिक अधिकार प्राप्त थे और न ही उन्हें सुधारों की कोई उम्मीद थी।

(7) 1905 ई. की क्रान्ति- 9 जनवरी, 1905 को रविवार के दिन मास्को में जनसाधारण ने अपनी 11 सूत्रीय माँगों के साथ एक जुलूस निकाला। प्रदर्शनकारियों का उद्देश्य इन 11 सूत्रीय माँगों को जार के महल तक जाकर उसे जार को सौंपना था। “छोटे भगवान! हमें रोटी दो।” के नारे के साथ ये लोग जार के महल की ओर बढ़ रहे थे, किन्तु जार ने इनसे बात करना तो दूर इन पर गोली चलवा दी। लगभग 1,000 प्रदर्शनकारी मारे गए तथा 60,000 गिरफ्तार कर लिए गए। रूस की सड़कों पर इस दिन बहुत रक्तपात हुआ। इसीलिए 9 जनवरी, 1905 ई. का रविवार का दिन रूसी इतिहास में खूनी रविवार के नाम से प्रसिद्ध है।

अनेक इतिहासकारों की राय है कि यद्यपि 1905 ई. की क्रांति को कुचलने में जार कामयाब रहा लेकिन इस क्रांति ने अक्टूबर, 1917 ई. की क्रांति के लिए उचित वातावरण तैयार करने में अहम् भूमिका अदा की। इस दिन हुए हत्याकांड से सारे रूस में रोष फैल गया। क्रांतिकारियों के (UPBoardSolutions.com) समर्थन में जगह-जगह बन्द आयोजित किए गए और हड़ताले हुईं। इस क्रांति के कारण शिक्षित वर्ग के लोग भी क्रांतिकारियों के साथ मिल गए। इसीलिए 1905 ई. की क्रांति को कई बार 1917 ई. की क्रांति की जननी भी कहा जाता है।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 3 संविधान निर्माण

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 3 संविधान निर्माण

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
नीचे कुछ गलत वाक्य हैं। हर एक में की गई गलती पहचानें और इस अध्याय के आधार पर उसको ठीक करके लिखें।
(क) स्वतन्त्रता के बाद देश लोकतांत्रिक हो या नहीं, इस विषय पर स्वतन्त्रता आन्दोलन के नेताओं ने अपना दिमाग खुला रखा था।
(ख) भारतीय संविधान सभा के सभी सदस्य संविधान में कही गई हरेक बात पर सहमत थे।
(ग) जिन देशों में संविधान है वहाँ लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था ही होगी।
(घ) संविधान देश का सर्वोच्च कानून होता है इसलिए इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता।
उत्तर:
(क) अंग्रेजी शासन से स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को एक लंबा और कठिन संघर्ष
करना पड़ा था। स्वतन्त्रता के पश्चात् वे देश में लोकतंत्र की स्थापना के लिए वचनबद्ध थे। सन् 1936 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के फैजपुर अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय (UPBoardSolutions.com) भाषण में जवाहरलाल नेहरू ने लोकतन्त्र के प्रति अपनी वचनबद्धता को दोहराते हुए कहा था-“कांग्रेस भारत में पूर्ण लोकतन्त्र का समर्थन करती है और एक लोकतंत्रीय राज्य के लिए संघर्ष कर रही है।”

(ख) भारतीय संविधान सभा के सभी सदस्य संविधान की सभी व्यवस्थाओं के बारे में समान विचार नहीं रखते थे।
इनमें से कई सदस्य देश में एकात्मक शासन प्रणाली का समर्थन करते थे जबकि अन्य संघीय व्यवस्था के पक्ष में थे। संविधान सभा में सभी विषयों पर खुलकर विचार-विमर्श किया जाता था और निर्णय प्रायः बहुमत या पारस्परिक सहमति से लिए जाते थे।

(ग) यह आवश्यक नहीं है कि जिस देश में संविधान है- वहाँ पर लोकतंत्रीय व्यवस्था ही होगी। संविधान में तानाशाही अथवा सैनिक शासन व्यवस्था भी की जा सकती है।

(घ) विश्व में कोई भी ऐसा संविधान नहीं है जिसमें परिवर्तन न किया जा सके। प्रत्येक देश में परिवर्तित होती हुई सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक परिस्थितियों के अनुसार संविधान में संशोधन करना आवश्यक होता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में भी संविधान में संशोधन (UPBoardSolutions.com) करने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। सन् 1950 में भारत के संविधान के लागू होने के बाद से इसमें लगभग 100 से अधिक बार संशोधन किया जा चुका है।

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प्रश्न 2.
दक्षिण अफ्रीका का लोकतांत्रिक संविधान बनाने में, इनमें से कौन-सा टकराव सबसे महत्त्वपूर्ण था
(क) दक्षिण अफ्रीका और उसके पड़ोसी देशों का
(ख) स्त्रियों और पुरुषों का ।
(ग) गोरे अल्पसंख्यक और अश्वेत बहुसंख्यकों का
(घ) रंगीन चमड़ी वाले बहुसंख्यकों और अश्वेत अल्पसंख्यकों का
उत्तर:
(घ) रंगीन चमड़ी वाले बहुसंख्यकों और अश्वेत अल्पसंख्यकों का

प्रश्न 3.
लोकतांत्रिक संविधान में इनमें से कौन-सा प्रावधान नहीं रहता?
(क) शासन प्रमुख के अधिकार
(ख) शासन प्रमुख का नाम
(ग) विधायिका के अधिकार
(घ) देश का नाम
उत्तर:
(ख) शासन प्रमुख का नाम।

प्रश्न 4.
संविधान निर्माण में इन नेताओं और उनकी भूमिका में मेल बैठाएँ
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 3 संविधान निर्माण 1
उत्तर:
(क) मोतीलाल नेहरू- 1928 में भारत का संविधान बनाया।।
(ख) बी. आर. अम्बेडकर- प्रारूप समिति के अध्यक्ष।
(ग) राजेंद्र प्रसाद- संविधान सभा के अध्यक्ष।
(घ) सरोजिनी नायडू- संविधान सभा की सदस्या।

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प्रश्न 5.
जवाहरलाल नेहरू के नियति के साथ साक्षात्कार वाले भाषण के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों का जवाब दें

(क) नेहरू ने क्यों कहा कि भारत का भविष्य सुस्ताने और आराम,करने का नहीं है?
(ख) नए भारत के सपने किस तरह विश्व से जुड़े हैं?
(ग) वे संविधान निर्माताओं से क्या शपथ चाहते थे?
(घ) “हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की कामना हर आँख के आँसू पोंछने की है। वे इस कथन में किसका जिक्र कर रहे थे? .

उत्तर:
(क) ये शब्द जवाहरलाल नेहरू ने 15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि के समय संविधान सभा में दिए गए अपने प्रसिद्ध भाषण में कहे थे। उन्होंने कहा था कि भारत का भविष्य, जब भारत स्वतन्त्र हो रहा है, आराम करने या सुस्ताने का समय नहीं है बल्कि उन वायदों को पूरा करने के लिए निरंतर प्रयास करने का है जिन्हें हमने अक्सर किया है। भारत की सेवा करने का अर्थ है, दुःख और परेशानियों में पड़े (UPBoardSolutions.com) लाखों-करोड़ों लोगों की सेवा करना। इसका अर्थ है दरिद्रता का, अज्ञान और बीमारियों का, अवसर की असमानता का अन्त। हमारे युग के महानतम आदमी की कामना हर आँख से आँसू पोंछने की है। संभव है..
संभव है यह काम हमारे अकेले से पूरा न हो पर जब तक लोगों की आँखों में आँसू हैं, कष्ट है तब तक हमारा काम खत्म नहीं होगा।

(ख) भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपने भाषण में कहा था कि ऐसे पवित्र क्षण में (जब भारत स्वतन्त्र हो रही है। हम अपने आपको, भारत और उसके लोगों तथा उससे भी अधिक मानवता की सेवा में । समर्पित करें, यही हमारे लिए उचित है।

(ग) जवाहरलाल नेहरू संविधान निर्माताओं से यह शपथ चाहते थे कि हम अपने आपको भारत और उसके लोगों तथा मानवता की सेवा के लिए समर्पित करें।

(घ) वे इस कथन में महात्मा गाँधी का जिक्र कर रहे थे।

प्रश्न 6.
हमारे संविधान को दिशा देने वाले ये कुछ मूल्य और उनके अर्थ हैं। इन्हें आपस में मिलाकर दोबारा लिखिए।
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 3 संविधान निर्माण 2
उत्तर:
(क) संप्रभु– फैसले लेने का सर्वोच्च अधिकार लोगों के पास है।
(ख) गणतंत्र– शासन प्रमुख एक चुना हुआ व्यक्ति है।
(ग) बंधुत्व- लोगों को आपस में परिवार की तरह रहना चाहिए।
(घ) धर्मनिरपेक्ष- सरकार किसी धर्म के निर्देशों के अनुसार काम नहीं करेगी।

प्रश्न 7.
कुछ दिन पहले नेपाल से आपके एक मित्र ने वहाँ की राजनैतिक स्थिति के बारे में आपको पत्र लिखा था। वहाँ अनेक राजनैतिक पार्टियाँ राजा के शासन का विरोध कर रही थीं। उनमें से कुछ का कहना था कि राजा द्वारा दिए गए मौजूदा संविधान में ही संशोधन करके चुने हुए प्रतिनिधियों को ज्यादा अधिकार दिए जा सकते हैं। अन्य पार्टियाँ नया गणतांत्रिक संविधान बनाने के लिए नई संविधान सभा गठित करने की माँग कर रही थी। इस विषय में अपनी राय बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें।
उत्तर:
प्रिय मित्र ।
नेपाल की राजनीतिक स्थिति के सम्बन्ध में आपने मुझे जो पत्र लिखा था, उसके सम्बन्ध में मेरा विचार यह है कि लोगों को एक नई संविधान सभा की स्थापना की माँग करनी चाहिए जो नेपाल के लिए गणतंत्रीय संविधान का निर्माण करें और वहाँ पर राजतंत्रीय शासन व्यवस्था को समाप्त कर दें। सन् 2005 में नेपाल के सम्राट ने जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर दिया था और लोगों से समस्त (UPBoardSolutions.com) अधिकार एवं स्वतंत्रताएँ छीन ली थीं, जो उन्हें एक दशक पहले प्राप्त हुए थे।
[नोट : वर्तमान में नेपाल में राजतन्त्र पूरी तरह समाप्त हो गया है। नेपाल अब एक लोकतांत्रिक गणतन्त्र । है, जिसका एक स्वतन्त्र संविधान है। देश में लोगों को सारे लोकतांत्रिक मानवाधिकार प्राप्त हैं।

प्रश्न 8.
भारत के लोकतन्त्र के स्वरूप में विकास के प्रमुख कारणों के बारे में कुछ अलग-अलग विचार इस प्रकार हैं। आप इनमें से हर कथन को भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कितना महत्त्वपूर्ण कारण मानते हैं?
(क) अंग्रेज शासकों ने भारत को उपहार के रूप में लोकतांत्रिक व्यवस्था दी। हमने ब्रिटिश हुकूमत के समय बनी प्रांतीय असेंबलियों के जरिए लोकतांत्रिक व्यवस्था में काम करने का प्रशिक्षण पाया।
(ख) हमारे स्वतन्त्रता संग्राम ने औपनिवेशिक शोषण और भारतीय लोगों को तरह-तरह की आजादी न दिए जाने का विरोध किया। ऐसे में स्वतन्त्र भारत को लोकतांत्रिक होना ही था।
(ग) हमारे राष्ट्रवादी नेताओं की आस्था लोकतन्त्र में थी। अनेक नव स्वतन्त्र राष्ट्रों में लोकतन्त्र का न आना हमारे नेताओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
उत्तर:
(क) भारत में प्रतिनिधि संस्थाओं की स्थापना ब्रिटिश शासनकाल की ही देन है। केन्द्र और अब प्रांतों में द्विसदनीय विधानमण्डल की स्थापना की थी। धीरे-धीरे अधिक लोगों को मतदान का अधिकार भी दिया गया। भारतीय नेताओं को इन संस्थाओं से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ।
(ख) भारतीय नेताओं ने स्वतन्त्रता संग्राम में अनेक आन्दोलन चलाए और राजनीतिक स्वतन्त्रताओं की माँग की,
अत्याचारी व शोषणकारी कानूनों का विरोध किया। अतः भारत के लिए लोकतन्त्र की स्थापना करनी ही थी।
(ग) भारत में लोकतन्त्र की स्थापना में निःसन्देह भारतीय नेताओं ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। सन् 1928 में ही मोतीलाल नेहरू तथा कई अन्य नेताओं ने भारत के लिए एक संविधान का मसौदा तैयार किया था। सन् 1931 में कांग्रेस के कराची में हुए अधिवेशन में भी इस बात पर विचार किया गया था कि स्वतन्त्र भारत का नया संविधान कैसा होगा। यह दोनों दस्तावेजों में वयस्क मताधिकार, स्वतंत्रता तथा (UPBoardSolutions.com) समानता के अधिकारों के प्रति वचनबद्धता जाहिर की गई थी। भावी संविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुरक्षित करने की भी बाते की गई थी।

प्रश्न 9.
1912 में प्रकाशित ‘विवाहित महिलाओं के लिए आचरण पुस्तक के निम्नलिखित अंश को पढ़ें
“ईश्वर ने औरत जाति को शारीरिक और भावनात्मक, दोनों ही तरह से ज्यादा नाजुक बनाया है, उन्हें आत्म रक्षा के भी योग्य नहीं बनाया है। इसलिए ईश्वर ने ही उन्हें जीवन भर पुरुषों के संरक्षण में रहने का भाग्य दिया है-कभी पिता के, कभी पति के और कभी पुत्र के। इसलिए महिलाओं को निराश होने की जगह इस बात से अनुगृहीत होना चाहिए कि वे अपने आपको पुरुषों की सेवा में समर्पित कर सकती हैं।”
क्या इस अनुच्छेद में व्यक्त मूल्य संविधान के दर्शन से मेल खाते हैं या वे संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ हैं?
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में दिए गए सामाजिक मूल्य हमारे संविधान में निहित दर्शन एवं मूल्यों से मेल नहीं खाते हैं। भारत को संविधान समानता, स्वतन्त्रता एवं बंधुत्व की भावना पर जोर देता है। संविधान का प्रथम मौलिक अधिकार समानता का अधिकार है। पुरुषों एवं महिलाओं को समान अधिकार दिए गए हैं। महिलाओं को वोट डालने और चुनाव लड़ने का अधिकार उसी तरह प्राप्त है, जिस प्रकार पुरुषों को। (UPBoardSolutions.com) स्त्रियाँ पुरुषों के अधीन नहीं हैं। भारत की राजनीति, समाज, संस्कृति, उद्योग-धन्धे, पुलिस, सेना आदि सभी क्षेत्रों में महिलाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की ख्याति एक सशक्त प्रधानमंत्री के रूप में है।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। क्या आप उनसे सहमत हैं? अपने कारण भी बताइए।
(क) संविधान के नियमों की हैसियत किसी भी अन्य कानून के बराबर है।
(ख) संविधान बताता है कि शासन व्यवस्था के विविध अंगों का गठन किस तरह होगा।
(ग) नागरिकों के अधिकार और सरकार की सत्ता की सीमाओं का उल्लेख भी संविधान में स्पष्ट रूप में है।
(घ) संविधान संस्थाओं की चर्चा करती है, उसका मूल्यों से कुछ लेना-देना नहीं है।
उत्तर:
(क) यह कथन सत्य ठीक नहीं है, एक साधारण कानून संसद द्वारा पास किया जाता है और संसद जब चाहे उसमें अपनी इच्छानुसार परिवर्तन कर सकती है। इसके विपरीत संविधान के नियमों का महत्त्व अधिक होता है जिन्हें संसद को भी मानना पड़ता है। इन नियमों में परिवर्तन करने के लिए एक विशेष प्रक्रिया को अपनाना पड़ता है।

(ख) यह कथन सत्य है। संविधान में उन नियमों का वर्णन किया गया है जिनके अनुसार, संसद, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की स्थापना की जाएगी। संविधान में राष्ट्रपति के चुनाव की विधि, अवधि व शक्तियों का वर्णन संविधान में किया गया है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति व शक्तियों को वर्णन संविधान में किया गया है। संसद की रचना व शक्तियों का वर्णन संविधान में किया गया है।

(ग) यह कथन सत्य है। संविधान के तीसरे भाग में 6 मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। सरकार मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कानून नहीं बना सकती है और यदि बनाती है तो सर्वोच्च न्यायालय उसे रद्द
कर सकता है।

(घ) यह कथन गलत है। संविधान में केवल संस्थाओं का ही वर्णन नहीं किया जाता है बल्कि मूल्यों पर भी जोर दिया जाता है। भारत के संविधान की प्रस्तावना में संविधान के दर्शन व मूल्यों का वर्णन किया गया है। प्रस्तावना में भारत को प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया है। प्रस्तावना में न्याय, स्वतन्त्रता, समानता, बंधुता, व्यक्ति के गौरव, राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता आदि मूल्यों पर जोर दिया गया है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संविधान देश का सर्वोच्च कानून होता है। संविधान में किसी देश की शासन, राजनीति और समाज को चलाने वाले मौलिक कानून होते हैं। वह सरकार के साथ नागरिकों के सम्बन्ध भी निश्चित करता है, ऐसा कोई भी कानून नहीं बनाया जा सकता है जो संविधान के अनुकूल न हो।

प्रश्न 2.
भारत के संविधान का निर्माण किसके द्वारा किया गया और यह कब लागू किया गया?
उत्तर:
भारत के संविधान का निर्माण एक संविधान सभा द्वारा किया गया जिसकी स्थापना सन् 1946 में की गयी थी। संविधान सभा द्वारा संविधान को 26 नवम्बर, 1949 को पास किया गया था। यह 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ।

प्रश्न 3.
संविधान सभा के अध्यक्ष एवं सदस्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन दिसम्बर, 1946 को हुआ। इसके लिए डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा जो संविधान सभा के सदस्यों में सबसे अधिक (82 वर्ष) आयु के थे, को संविधान सभा का अस्थाई अध्यक्ष बनाया गया। 11 दिसम्बर, 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष चुन लिया गया। संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों का विवरण इस प्रकार है-

  1. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद,
  2. जवाहरलाल नेहरू,
  3. डॉ. बी. आर. अम्बेडकर,
  4.  सरदार बल्लभ भाई पटेल,
  5.  के. एम. मुंशी।

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प्रश्न 4.
रंगभेद से क्या आशय है?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने 1948 से 1989 के बीच काले लोगों के साथ नस्ली अलगाव और खराब व्यवहार करने की नीति अपनायी जिसे रंगभेद कहते हैं।

प्रश्न 5.
भारत का संविधान 26 जनवरी को ही क्यों लागू किया गया?
उत्तर:
हमारे देश का संविधान, संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर, 1949 को पारित किया गया था लेकिन यह 26 जनवरी, 1950 से प्रभावी हुआ। इसे 26 जनवरी, 1950 को ही लागू किया गया। प्रश्न उत्पन्न होता है कि इसी तिथि को क्यों चुना गया? इस तिथि के चयन के पीछे भी देश का इतिहास है। दिसंबर 1929 को लाहौर अधिवेशने । में भारतीय नेशनल कांग्रेस (पार्टी) ने पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने का संकल्प लिया था (UPBoardSolutions.com) और 26 जनवरी, 1930 को पहली बार तथा उसके उपरान्त हर वर्ष स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। यही कारण है कि हमारे नेताओं ने भारतीय संविधान लागू करने के लिए 26 जनवरी, 1950 की तिथि निश्चित की, जो भारतीय स्वतंत्रता का प्रतीक है।

प्रश्न 6.
प्रस्तावना का अर्थ बताएँ।।
उत्तर:
संविधान का वह प्रथम कथन जिसमें कोई देश अपने संविधान के आधारभूत मूल्यों और अवधारणाओं को स्पष्ट ढंग से कहता है, प्रस्तावना कहलाता है।

प्रश्न 7.
‘संविधान सभा’ से क्या आशय है?
उत्तर:
संविधान सभा से आशय किसी देश के लिए संविधान का निर्माण करने वाली सभा से लिया जाता है। एनसाइक्लोपीडिया ऑफ सोशल साइंसेज (Encyclopaedia of Social Sciences) के अनुसार संविधान सभा एक ऐसी प्रतिनिधि सभा होती है जिससे नवीन संविधान पर विचार करने और अपनाने या मौजूदा संविधान में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करने के लिए चुना जाए। भारत के संविधान का निर्माण करने के लिए संविधान सभा की स्थापना सन् 1946 में की गई थी।

प्रश्न 8.:
भारतीय संविधान के निर्माण में कितना समय लगा? संविधान में कितने अनुच्छेद एवं अनुसूचियाँ हैं?
उत्तर:
भारत के संविधान के निर्माण में 2 वर्ष, 11 माह तथा 18 दिन का समय लगा। संविधान सभा द्वारा संविधान को 26 नवम्बर, 1949 को पारित किया गया। भारत के संविधान में 395 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियाँ हैं।

प्रश्न 9.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में शामिल ‘समाजवाद’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
समाजवाद का अर्थ है भारत में शासन-व्यवस्था इस प्रकार चलाई जाए जिससे सभी वर्गों को, विशेष रूप से पिछड़े वर्गों को, अपने विकास के लिए उचित वातावरण तथा परिस्थितियाँ मिलें, आर्थिक असमानता कम हो और देश के विकास का फल थोड़े से लोगों के हाथों में न होकर समाज के सभी लोगों को मिले। इसका उद्देश्य सभी प्रकार के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक शोषण से (UPBoardSolutions.com) छुटकारा है।
समाजवादी शब्द संविधान की प्रस्तावना में सन् 1976 में 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया था।

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प्रश्न 10.
भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत की संविधान-सभा द्वारा भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया। इसका आशय यह है कि राज्य का कोई धर्म नहीं है और प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को मानने तथा उसका प्रचार करने की पूरी स्वतन्त्रता है। धर्म के आधार पर राज्य द्वारा नागरिकों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता। राज्य द्वारा नागरिकों को किसी एक धर्म को (UPBoardSolutions.com) मानने तथा उसके लिए दान अथवा चन्दा देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता। भारत में हिन्दू समुदाय बहुसंख्यक हैं किन्तु यहाँ तीन बार मुस्लिम एवं एक बार सिक्ख राष्ट्रपति बन चुके हैं। इस उदाहरण से भारत की धर्मनिरपेक्षता प्रमाणित होती है।

प्रश्न 11.
‘यंग इण्डिया’ में गांधीजी ने 1931 में संविधान से अपनी क्या अपेक्षा प्रस्तुत की थी?
उत्तर:
मैं भारत के लिए ऐसा संविधान चाहता हूँ जो उसे गुलामी और अधीनता से मुक्त करे। मैं ऐसे भारत के लिए प्रयास करूंगा जिसे सबसे गरीब व्यक्ति भी अपना मानें और उसे लगे कि देश को बनाने में उसकी भी भागीदारी है। ऐसा भारत जिसमें लोगों का उच्च वर्ग और निम्न वर्ग न रहे, ऐसा भारत जिसमें (UPBoardSolutions.com) सभी समुदाय के लोग पूरे मेल जोल से रहें। ऐसे भारत में छुआछूत या शराब और नशीली चीजों के लिए कोई जगह न हो। औरतों को भी मर्दो जैसे अधिकार हो। मैं इससे कम पर संतुष्ट नहीं होगा।

प्रश्न 12.
भारत के संविधान निर्माता किन आदर्शों से प्रभावित थे?
उत्तर:
भारत के संविधान निर्माता फ्रांसीसी क्रांति के आदर्शों, ब्रिटेन के संसदीय लोकतंत्र के कामकाज और अमेरिका के अधिकारों की सूची से काफी प्रभावित थे। रूस में हुई समाजवादी क्रांति ने भी अनेक भारतीयों को प्रभावित किया और वे सामाजिक और आर्थिक समता पर आधारित व्यवस्था बनाने की कल्पना करने लगे थे।

प्रश्न 13.
भारतीय संविधान के आधारभूत मूल्य कौन-से हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान के आधारभूत मूल्य या दर्शन में भारत को प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय, स्वतन्त्रता, समानता, व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता को बढ़ावा दिया गया है।

प्रश्न 14.
भारतीय संविधान निर्माण की प्रक्रियाओं के बारे में वर्णन करें।
उत्तर:
जुलाई, 1946 में भारतीय संविधान सभा के लिए चुनाव हुए थे। संविधान सभा की प्रथम बैठक दिसम्बर, 1946 में हुई थी।
भारतीय संविधान सभा में 299 सदस्य थे। संविधान निर्माण के लिए 166 बैठकें हुईं और 114 दिनों तक इस पर चर्चा हुई। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान बनकर तैयार हो गया। इस निर्माण प्रक्रिया में 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन लगें। संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू कर दिया गया।

प्रश्न 15.
भारत के प्रमुख संविधान निर्माताओं के बारे में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भारत के संविधान सभा की अध्यक्षता की थी। संविधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए एक प्रारूप समिति का गठन किया गया था। प्रारूप समिति के सात सदस्य थे। प्रारूप समिति का अध्यक्ष डॉ. भीम राव अम्बेडकर को बनाया गया था। संविधान सभा के लिए 299 सदस्यों का (UPBoardSolutions.com) चुनाव किया गया था। संविधान के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेताओं में अबुल कलाम आजाद, टी.टी. कृष्णमचारी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जयपाल सिंह, एच. सी. मुखर्जी, जी. दुर्गाबाई देशमुख, बलदेव सिंह, कन्हैया मानिक लाल मुंशी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, भीम राव अम्बेडकर, जवाहर लाल नेहरू, सोमनाथ लाहिड़ी, सरदार बल्लभभाई पटेल, सरोजनी नायडू प्रमुख थीं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘भारतीय संविधान’ के आधारभूत ढाँचे से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
‘भारतीय संविधान संविधान के आधारभूत ढाँचे को स्पष्ट नहीं करता, परन्तु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘केशवानन्द भारती मुकदमे का निर्णय सुनाते हुए यह कहा था कि संविधान की प्रत्येक धारा में संशोधन किया जा सकता है। यद्यपि संविधान के मूल ढाँचे में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए। संविधान के मूल ढाँचे में निम्नलिखित बातों को शामिल किया जा सकता है

  1. विधानमण्डल, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के बीच शक्तियों का पृथक्करण।
  2.  संविधान का संघीय स्वरूप।
  3. संविधान की सर्वोच्चता।
  4. सरकार का गणतंत्रात्मक और लोकतंत्रीय स्वरूप।
  5. संविधान का धर्म-निरपेक्ष स्वरूप।

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प्रश्न 2.
लचीले अथवा कठोर संविधान में अन्तर स्पष्ट कीजिए। भारत का संविधान लचीला है अथवा कठोर? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उस संविधान को लचीला संविधान कहते हैं जिसमें संविधान संशोधन उसी प्रक्रिया से किया जा सके जो एक साधारण कानून को पास करने के लिए अपनाई जाती है। जबकि कठोर संविधान उस संविधान को कहते हैं जिसमें संशोधन करने के लिए किसी विशेष प्रक्रिया को अपनाना पड़ता है। उसमें संशोधन साधारण कानून को पास करने की प्रक्रिया से नहीं किया जा सकता।
भारत का संविधान न तो पूरी तरह से लचीला है और न ही कठोर। यह अंशतः लचीला और अंशतः कठोर है। इसका कारण यह है कि संशोधन के कार्य के लिए भारत के संविधान को तीन भागों में बाँटा गया है

  1. संविधान की कुछ धाराओं में संसद अपने साधारण बहुमत से संशोधन कर सकती है।
  2.  कुछ धाराओं में संशोधन संसद के दोनों सदनों के दो-तिहाई बहुमत तथा आधे राज्यों की स्वीकृति से किया जा सकता है।
  3.  शेष धाराओं में संशोधन संसद के दोनों सदनों के दो-तिहाई बहुमत से किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
“26 जनवरी, 1950 को हम विरोधाभास से भरे जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं।” डॉ. अम्बेडकर उक्त पंक्तियों में क्या कहना चाह रहे हैं?
उत्तर:
26 जनवरी, 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ। इसी दिन संविधान निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने संविधान सभा में एक भाषण दिया। अपने निष्कर्ष भाषण में उन्होंने दलितों के समाज में असमान स्थान पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि राजनीति में दलित समानता का दर्जा पाएँगे किन्तु सामाजिक एवं आर्थिक स्तर पर 299 असमान (UPBoardSolutions.com) रहेंगे। उन्होंने कहा कि राजनीति में वे एक व्यक्ति एक वोट एक मूल्य के सिद्धान्त का पालन करेंगे। दूसरी ओर, उनके सामाजिक व आर्थिक जीवन में, वे एक व्यक्ति एक मूल्य के सिद्धान्त से वंचित रहेंगे और इस प्रकार वे विरोधाभास से भरे जीवन को जीते रहेंगे।

प्रश्न 4.
संविधान निर्माताओं ने संविधान संशोधन के लिए क्या प्रावधान किए हैं?
उत्तर:
भारत का संविधान एक विस्तृत दस्तावेज है। इसे वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिक बनाए रखने के लिए इसमें अनेक बार संशोधन करने पड़ते हैं। भारत के संविधान निर्माताओं ने अनुभव किया कि इसे लोगों की आकांक्षाओं एवं समाज के बदलाव के अनुरूप होना चाहिए। उन्होंने इसे एक पवित्र, (UPBoardSolutions.com) स्थाई एवं अपरिवर्तनीय कानून की नजर से नहीं देखा। इसलिए उन्होंने समय-समय पर इसमें बदलाव समाहित करने के लिए प्रावधान किया। इस बदलाव को संविधान संशोधन कहा जाता है।

प्रश्न 5.
हमारे लिए संविधान क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी भी देश के नागरिकों के लिए उस देश का संविधान महत्त्वपूर्ण होता है। संविधान सरकार की शक्तियों को निश्चित करता है तथा उन पर नियंत्रण लगाता है। संविधान सरकार के विभिन्न अंगों की शक्तियों को भी निश्चित करता है जिससे उनमें झगड़े की संभावना नहीं रहती। यह नागरिकों के अधिकारों तथा सरकार के साथ नागरिकों के सम्बन्ध भी निश्चित करता है। (UPBoardSolutions.com) संविधान के द्वारा लोग अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं तथा सरकार पर अंकुश लगा सकते हैं। संविधान के अभाव में शासन के सभी कार्य शासकों की इच्छानुसार ही चलाए जाएँगे, जिससे नागरिकों पर अत्याचार होने की संभावना बनी। रहेगी। ऐसे शासक से छुटकारा पाने के लिए नागरिकों को विद्रोह का सहारा लेना पड़ेगा जिससे देश में अशांति और अव्यवस्था का वातावरण बना रहेगा।

प्रश्न 6.
‘संविधान’ का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक देश का अपना संविधान होता है। संविधान उन मौलिक नियमों, सिद्धान्तों तथा परम्पराओं का संग्रह होता है, जिनके अनुसार राज्य की सरकार का गठन, सरकार के कार्य, नागरिकों के अधिकार तथा नागरिकों और सरकार के बीच सम्बन्ध को निश्चित किया जाता है। शासन का स्वरूप लोकतांत्रिक हो या अधिनायकवादी, कुछ ऐसे नियमों के अस्तित्व से इन्कार नहीं किया जा सकता जो राज्य में विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं तथा शासकों की भूमिका को निश्चित करते हैं। इन नियमों के संग्रह को ही संविधान कहा जाता है।

संविधान में शासन के विभिन्न अंगों तथा उसके पारस्परिक सम्बन्धों का विवरण होता है। इन सम्बन्धों को निश्चित करने हेतु कुछ नियम बनाए जाते हैं, जिनके आधार पर शासन का संचालन सुचारू रूप से संभव हो जाता है तथा शासन के विभिन्न अंगों में टकराव की संभावनाएँ कम हो जाती हैं। संविधान के अभाव में शासन के सभी कार्य निरंकुश शासकों की इच्छानुसार ही चलाए जाएँगे जिससे नागरिकों पर अत्याचार होने की संभावना बनी रहेगी। ऐसे शासक से छुटकारा पाने के लिए नागरिकों को अवश्य ही विद्रोह का सहारा (UPBoardSolutions.com) लेना पड़ेगा जिससे राज्य में अशांति तथा अव्यवस्था फैल जाएगी। इस प्रकार एक देश के नागरिकों हेतु एक सभ्य समाज एवं कुशल तथा मर्यादित सरकार का अस्तित्व एक संविधान की व्यवस्थाओं पर ही निर्भर करता है।

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प्रश्न 7.
भारत में इस समय कुल कितने राज्य तथा संघीय-क्षेत्र हैं? उनके नाम बताइए। |
उत्तर:
भारत में इस समय कुल 29 राज्य तथा 7 संघीय-क्षेत्र हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 3 संविधान निर्माण 3
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 3 संविधान निर्माण 4

प्रश्न 8.
संविधान सभा में प्रस्तुत किए गए ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा की पहली बैठक में उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था। इस उद्देश्य प्रस्ताव में मुख्य रूप से निम्नलिखित बातें शामिल थीं|

  1. अल्पसंख्यक वर्गों, पिछड़ी जातियों, जनजातियों, दलित तथा अन्य पिछड़े वर्गों के हितों की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था की जाएगी।
  2. भारतीय गणतन्त्र की भौगोलिक अखण्डता तथा इसके भू-भाग, समुद्र तथा वायुमण्डल क्षेत्र पर इसकी प्रभुसत्ता की रक्षा न्यायोचित तथा सभ्य राष्ट्रों के कानूनों के अनुसार की जाएगी।
  3. यह राज्य विश्व शांति तथा मानव मात्र के कल्याण की उन्नति में अपना सम्पूर्ण तथा स्वैच्छिक योगदान करेगा। इस प्रस्ताव को संविधान सभा द्वारा सर्वसम्मति से पास कर दिया गया था।
  4. भारत एक प्रभुसत्ता-सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य होगा
  5. भारत ब्रिटिश भारत कहे जाने वाले क्षेत्र, भारतीय रियासतों के क्षेत्र और भारत के ऐसे अन्य क्षेत्र, जो इस समय ब्रिटिश भारत तथा भारतीय रियासतों के क्षेत्र से बाहर हैं और जो भारत में शामिल होना चाहते हैं, उन सबका एक संघ बनेगा।
  6.  स्वतन्त्र एवं प्रभुसत्ता-सम्पन्न भारत संघ और उसके अन्तर्गत आने वाले विभिन्न घटकों की शक्ति का स्रोत जनता होगी।
  7. भारत के सभी लोगों को सामाजिक, आर्थिक न्याय का आश्वासन, कानून के सामने समानता, विचार, विश्वास, धर्म, पूजा, व्यवसाय की स्वतन्त्रताएँ प्राप्त होंगी।

प्रश्न 9.
भारत में संसदीय शासन-प्रणाली को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संसदीय शासन-प्रणाली, उस शासन प्रणाली को कहते हैं जिसमें राज्य का अध्यक्ष नाममात्र का अध्यक्ष होता है जबकि वास्तविक शासन का संचालन प्रधानमंत्री तथा मंत्रिमण्डल के अन्य सदस्यों द्वारा चलाया जाता है। मंत्रिमण्डल का निर्माण सांसदों में से किया जाता है और मंत्रिगण संसद के प्रति (UPBoardSolutions.com) उत्तरदायी होते हैं। भारत में राज्य का अध्यक्ष अर्थात् राष्ट्रपति नाममात्र का अध्यक्ष है। यद्यपि संविधान द्वारा उसे अनेक शक्तियाँ प्राप्त हैं परन्तु वह वास्तव में उनका प्रयोग नहीं करता। इसकी शक्तियों का वास्तविक प्रयोग मंत्रिमण्डल के सदस्यों द्वारा किया जाता है। यद्यपि शासन राष्ट्रपति के नाम पर चलाया जाता है, परन्तु उसका वास्तविक संचालन मंत्रिमण्डल द्वारा किया जाता है। मंत्रिमण्डल का निर्माण संसद में से किया जाता है और इसके सदस्य संसद के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होते हैं। मंत्रिमण्डल के सदस्य उतने समय तक अपने पद पर बने रहते हैं जब तक उन्हें संसद में बहुमत का समर्थन प्राप्त रहता है। उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि भारत में संसदीय शासन प्रणाली है।

प्रश्न 10.
भारत में संघीय शासन प्रणाली को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संघीय शासन व्यवस्था में शासन की शक्तियों का केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों के बीच विभाजन किया जाता है। भारतीय संविधान के अनुसार देश में संघीय सरकार की स्थापना की गयी है, जो इस प्रकार है

1. लिखित तथा कठोर संविधान- भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है जिसमें 395 धाराएँ हैं। इसके अतिरिक्त संविधान का एक भाग ऐसा है जिसमें संशोधन करने के लिए कम-से-कम आधे राज्यों की स्वीकृति
लेनी आवश्यक है। अतः यह एक कठोर संविधान है।

2. शक्तियों का विभाजन- संविधान द्वारा शासन की शक्तियों का तीन सूचियाँ-
1. संघीय सूची,
2. राज्य सूची तथा
3. समवर्ती सूची, में विभाजन किया गया है।

3. सर्वोच्च न्यायालय- संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करने के लिए एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गयी है।

4. द्विसदनीय विधानमण्डल- भारतीय संसद के दो सदन हैं–लोकसभा तथा राज्यसभा। लोकसभा में जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि बैठते हैं और राज्यसभा में राज्यों को प्रतिनिधित्व दिया गया है।
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि भारत में संघीय सरकार की व्यवस्था की गई है।

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प्रश्न 11.
दक्षिण अफ्रीका हेतु नया संविधान बनाने में आने वाली कठिनाइयों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका में संविधान निर्माताओं को नया संविधान बनाने में निम्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ा

  1. अश्वेत बहुसंख्यक यह सुनिश्चित करने को आतुर थे कि बहुमत के लोकतंत्रात्मक सिद्धान्त के साथ कोई समझौता न किया जाए। वे मूलभूत सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों को पाना चाहते थे। गोरे अल्पसंख्यक अपने विशेषाधिकारों एवं संपत्ति की रक्षा करना चाहते थे।
  2.  दमन करने वालों एवं जिनका दमन किया गया था, दोनों समानता के आधार पर नए लोकतांत्रिक दक्षिण अफ्रीका में एक साथ रहने की योजना बना रहे थे।
  3.  गोरों एवं अश्वेतों में परस्पर विश्वास नहीं था। उन्हें अपने-अपने डर सता रहे थे। वे अपने हितों की रक्षा करना चाहते थे।

प्रश्न 12.
अफ्रीका सरकार की रंगभेद नीति का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
अफ्रीका अश्वेत लोगों के साथ निम्न रूप में रंगभेद नीति अपनायी जाती थी

  1. श्वेत एवं अश्वेत लोगों के लिए रेलगाड़ियाँ, बसें, टैक्सियाँ, होटल, अस्पताल, स्कूल व कॉलेज, पुस्तकालय, सिनेमा हाल, थियेटर, समुद्र तट, तरण ताल, जन-शौचालय आदि अलग-अलग थे।
  2.  यहाँ तक कि गिरजाघरों में भी उनका प्रवेश वर्जित था जहाँ पर श्वेत लोग पूजा करते थे।
  3. अश्वेतों को संगठन बनाने या इस भयानक बर्ताव का विरोध करने की अनुमति नहीं थी।
  4.  रंगभेद प्रणाली अश्वेतों के प्रति दमनकारी थी।
  5.  उन्हें गोरे लोगों के लिए आरक्षित क्षेत्रों में रहने की मनाही थी।
  6. वे गोरे लोगों के लिए आरक्षित क्षेत्रों में तभी काम कर सकते थे जब उनके पास इसका अनुमतिपत्र हो।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति के विरुद्ध लोगों के संघर्ष का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका में यूरोपीय लोगों द्वारा अश्वेत लोगों के साथ रंगभेद की नीति अपनायी गयी थी। यूरोप की दक्षिण अफ्रीका में व्यापार करने वाली कम्पनियों ने 17वीं एवं 18वीं शताब्दी में बलपूर्वक इस देश पर अधिकार कर लिया और वहाँ की शासक बन गयी। रंगभेद की नीति के आधार पर दक्षिण अफ्रीकी लोगों को श्वेत और अश्वेत में बाँट दिया गया। दक्षिण अफ्रीका के मूल निवासी काले रंग के हैं। ये पूरी आबादी (UPBoardSolutions.com) का तीन-चौथाई हिस्सा थे और इन्हें अश्वेत कहा जाता था। इन दो समूहों के अतिरिक्त (श्वेत एवं अश्वेत) मिश्रित नस्ल वाले लोग भी थे जिन्हें रंगीन चमड़ी वाले कहा जाता था। गोरे (श्वेत) अल्पसंख्यक लोगों ने सरकार बनाई और रंगभेद की नीति अपनाई।

वे अश्वेतों को हीन समझते थे। अश्वेतों को वोट का अधिकार नहीं दिया गया था। रंगभेद नीति अश्वेतों के लिए विशेष रूप से दमनकारी थी। उन्हें गोरों के लिए आरक्षित क्षेत्रों में रहने का अधिकार नहीं था। वे गोरों के लिए आरक्षित क्षेत्रों में तभी काम कर सकते थे यदि उनके पास उसका अनुमति-पत्र हो। श्वेत एवं अश्वेत लोगों के लिए रेलगाड़ियों, बसें, टैक्सियाँ, होटल, अस्पताल, स्कूल व कॉलेज, पुस्तकालय, सिनेमा हाल, थियेटर, समुद्र तट, तरण ताल, जन-शौचालय आदि अलग-अलग थे। यहाँ तक कि गिरजाघरों में भी उनका प्रवेश वर्जित था जहाँ पर श्वेत लोग पूजा करते थे। अश्वेतों को संगठन बनाने या इसे भयानक बर्ताव का विरोध करने की अनुमति नहीं थी।

1950 तक अश्वेत, रंगीन चमड़ी वाले लोग एवं भारतीय मूल के लोग रंगभेद नीति के विरुद्ध लड़ते रहे। उन्होंने विरोध यात्राएँ निकालीं एवं हड़तालें कीं। अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस नामक दल ने इस संघर्ष का नेतृत्व किया जिसने जल्दी ही गति पकड़ ली। (UPBoardSolutions.com) बढ़ते हुए विरोधों एवं संघर्षों से सरकार को यह अहसास हो गया कि वे अश्वेतों को और अधिक समय तक दमन करके अपने शासन के अधीन नहीं रख सकते अतः श्वेतों की हुकूमते अपनी नीतियाँ बदलने के लिए विवश हो गयीं। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद वाले कानून को समाप्त कर दिया गया। राजनैतिक दलों एवं संचार माध्यमों पर लगे प्रतिबन्ध हटा लिये गए। अश्वेतों के मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले नेता नेल्सन मण्डेला को 28 वर्ष तक जेल में बंद रखने के बाद मुक्त कर दिया गया। 26 अप्रैल, 1994 की अर्द्धरात्रि के बाद दक्षिण अफ्रीका गणराज्य में नया लाल ध्वज फहराया गया। इसने विश्व में एक नए लोकतन्त्र के जन्म को इंगित किया। इस तरह दक्षिण अफ्रीका में रंग-भेद की नीति अपनाने वाली सरकार का अन्त हो गया, जिससे वहाँ एक समान मानवाधिकार वाली लोकतांत्रिक सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ।

प्रश्न 2.
भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताओं को वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
(i) लिखित एवं विस्तृत संविधान- भारत का संविधान एक लिखित एवं विस्तृत संविधान है। इसमें 395 अनुच्छेद
और 12 अनुसूचियाँ हैं, जिन्हें 25 भागों में विभक्त किया गया है। अब तक इसमें 100 से अधिक संशोधन हो चुके हैं। भारत के संविधान को विश्व का सबसे विस्तृत संविधान कहा जाता है क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में 7, चीन के संविधान में 138, जापान के संविधान में 103 तथा (UPBoardSolutions.com) कनाडा के संविधान में 197 अनुच्छेद हैं। इस संविधान के अनुसार भारत को एक प्रभुसत्ता-सम्पन्न, समाजवादी, धर्म निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य घोषित किया गया है।

(ii) इकहरी नागरिकता- अमेरिका जैसी संघात्मक शासन-व्यवस्था में नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता है। एक ओर नागरिक अपने इकाई राज्य का नागरिक है और दूसरी ओर संघ का। परन्तु भारत में ऐसा नहीं है। भारत का नागरिक संघ या केंद्र दोनों का ही नागरिक है। कश्मीरी, गुजराती, पंजाबी, मद्रासी सभी भारतीय नागरिक हैं। यह इकहरी नागरिकता भारतीय संविधान की एकात्मक भावना का प्रमाण है।

(iii) संयुक्त चुनाव प्रणाली तथा वयस्क मताधिकार- अंग्रेजी शासनकाल में भारत में सांप्रदायिक चुनाव प्रणाली को लागू किया गया था। हिन्दू मतदाता हिन्दुओं को चुनते थे, मुसलमान मतदाता मुसलमानों को लेकिन नए संविधान ने यह सांप्रदायिक चुनाव प्रणाली समाप्त कर दी है। अब किसी भी क्षेत्र में हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई कोई भी उम्मीदवार खड़ा हो सकता है। सभी सम्प्रदायों के लोग मतदान करते हैं। प्रत्येक मतदाता उस क्षेत्र में खड़े किसी भी उम्मीदवार को मत दे सकता है। वयस्क मताधिकार का अर्थ है कि एक निश्चित आयु पर पहुँचने पर हर नागरिक को मत देने का अधिकार दिया जाता है। भारत में 18 वर्ष की आयु का प्रत्येक नागरिक मत देने का अधिकार रखता है।

(iv) अंशतः कठोर तथा अंशतः लचीला संविधान- भारतीय संविधान कठोर तथा लचीले संविधान का मिला जुला रूप है। एक ओर तो उसने राज्यों के नाम बदलने, उनकी सीमाओं में परिवर्तन करने, नए राज्यों का गठन करने, भारतीय नागरिकता के नियम निश्चित करने आदि के मामलों में संसद को साधारण बहुमत से ही संशोधन करने की शक्ति दी है। दूसरी ओर राष्ट्रपति के निर्वाचन के तरीके, केन्द्र तथा राज्यों के बीच अधिकार क्षेत्र के मामले, सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की शक्तियों तथा अधिकार क्षेत्र आदि से संबंधित (UPBoardSolutions.com) मामले संसद के दो-तिहाई बहुमत से संशोधन होने पर कम-से-कम आधे राज्यों के विधानमंडलों द्वारा उनका अनुमोदन होना जरूरी है। शेष मामलों में संसद के 2/3 बहुमत से संशोधन किया जा सकता है। संशोधन की यह प्रक्रिया ब्रिटेन के संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया की तरह सरल अथवा लचीला न होने पर भी संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान जितनी कठोर नहीं है।

(v) संसदीय शासन-प्रणाली- भारतीय संविधान की एक मुख्य विशेषता यह भी है कि यह संसदीय सरकार की।
स्थापना करता है। भारत का राष्ट्रपति केवल नाममात्र का राज्य अध्यक्ष है। शासन उसके नाम पर चलता है, परन्तु शासन का कार्य वास्तव में प्रधानमन्त्री अपने मंत्रिमण्डल की सहायता से करता है। प्रधानमंत्री तथा उसका मंत्रिमण्डल विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी होता है। यदि मंत्रिमण्डल विधानमण्डल में बहुमत का समर्थन खो बैठे तो (प्रधानमंत्री सहित सारे मंत्रिमण्डल को) त्याग-पत्र देना पड़ता है।

(vi) धर्म-निरपेक्ष राज्य- संविधान के अनुसार भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है। राज्य की दृष्टि में सब धर्म समान
हैं। नागरिकों को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को मानने और उसका प्रचार करने का अधिकार है। धर्म के नाम पर किसी भी व्यक्ति को किसी भी अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा। सरकार अपनी नीति के निर्धारण 303 में किसी धर्म-विशेष का अनुसरण नहीं करेगी। (UPBoardSolutions.com) धर्म-निरपेक्षता का अर्थ धर्म-विरोध नहीं है। सरकार सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखती है, यही धर्म-निरपेक्षता है। संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है।

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प्रश्न 3.
उन परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए जिसमें भारत के संविधान का निर्माण हुआ।
उत्तर:

  1. विभाजन संबंधित हिंसा में सीमा के दोनों ओर लगभग 10 लाख लोग मारे गए थे।
  2. अंग्रेजों ने रियासतों के शासकों को उनकी इच्छा पर छोड़ दिया था कि वे भारत में विलय चाहते हैं या पाकिस्तान में अथवा वे स्वतन्त्र रहना चाहते हैं। इन रियासतों का विलय कठिन एवं अनिश्चय भरा काम था।
  3.  भारत जैसे विशाल एवं विविधता भरे देश के लिए संविधान बनाना कोई आसान काम नहीं था। उस समय भारत देश के लोग प्रजा की हैसियत से नागरिक की हैसियत पाने जा रहे थे।
  4. देश ने अभी-अभी धार्मिक विविधताओं के आधार पर विभाजन झेला था। यह भारत एवं पाकिस्तान के लोगों के लिए एक डरावना अनुभव था।

प्रश्न 4.
“संविधान सभा ने एक व्यवस्थित, खुले एवं सहमतिपूर्ण तरीके से कार्य किया।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सर्वप्रथम कुछ मूलभूत सिद्धान्त निर्धारित किए गए और उन पर सहमति कायम हुई। तत्पश्चात् डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता वाली एक प्रारूप कमेटी ने परिचर्चा के लिए संविधान का मसौदा तैयार किया। संविधान के मसौदे की एक-एक धारा पर गहन चर्चा के कई दौर हुए। दो हजार (UPBoardSolutions.com) से अधिक संशोधनों पर विचार किया गया।
सदस्यों ने 3 वर्षों के दौरान 114 दिन विचार-विमर्श किया। सभा में प्रस्तुत किए गए प्रत्येक दस्तावेज और संविधान सभा में बोले गए प्रत्येक शब्द को रिकार्ड रखा गया और सहेज कर रखा गया। इन्हें ‘कांस्टीट्युएंट असेम्बली डीबेट्स’ कहा जाता है। मुद्रण के उपरान्त ये 12 विशाल खण्डों में समाहित हैं। इन अभिभाषणों (डीबेट्स) की सहायता से प्रत्येक प्रावधान के पीछे की सोच और तर्क को समझा जा सकता है। इनका प्रयोग संविधान के अर्थ की व्याख्या करने के लिए किया जाता है।
उपरोक्त के प्रकाश में हम कह सकते हैं कि भारत की संविधान सभा ने एक व्यवस्थित, खुले एवं सहमतिपूर्ण तरीके से कार्य किया।

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की शुरुआत प्रस्तावना से होती है जिसमें संविधान के मूल आदर्शों और उद्देश्यों का वर्णन किया गया है। प्रस्तावना किसी भी संविधान का प्रारम्भिक कथन होता है जिसमें उसके निर्माण के कारणों का उल्लेख किया जाता है तथा उन उद्देश्यों एवं आकांक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन किया (UPBoardSolutions.com) जाता है, जिन्हें वह प्राप्त करना चाहता है। संविधान की प्रस्तावना एक ऐसा झरोखा होती है जिसमें संविधान के निर्माताओं की भावनाओं तथा उनकी आशाओं का दृश्य देखा जा सकता है। इसी कारण से भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान निर्माताओं के दिलों की कुंजी कहा जाता है।

यद्यपि प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं होता, क्योंकि संविधान का आरम्भ उसके बाद होता है, परन्तु कई देशों में संसद को प्रस्तावना में संशोधन करने का अधिकार प्राप्त होता है। भारतीय संसद को भी यह अधिकार प्राप्त है। सन् 1976 में भारतीय संसद ने प्रस्तावना में संशोधन करके इसमें समाजवादी’ तथा ‘धर्म-निरपेक्ष’ शब्द जोड़ दिए थे। इसके अतिरिक्त जहाँ, ‘राष्ट्र की एकता’ के शब्द का प्रयोग किया गया, (UPBoardSolutions.com) वहाँ ‘एकता तथा अखण्डता’ का भी प्रयोग किया गया। संविधान की प्रस्तावना इसलिए महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि इसमें उन उद्देश्यों-आकांक्षाओं एवं आदर्शों का वर्णन किया जाती है जिन्हें वह प्राप्त करना चाहती है। इसमें संविधान के स्रोतों को उल्लेख किया गया होता है तथा उस तिथि का भी उल्लेख किया जाता है जब संविधान को स्वीकार और अधिनियमित किया जाता है।

प्रश्न 6.
‘भारत एक प्रभुसत्ता सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतंत्रीय गणराज्य है।” व्याख्या करो।
उत्तर:
भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक प्रभुसत्ता सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतंत्रीय गणराज्य घोषित किया गया है।

(i) सम्पूर्ण प्रभुसत्ता सम्पन्न- सम्पूर्ण-प्रभुसत्ता सम्पन्न का आशय यह है कि भारत एक स्वतन्त्र देश है और इस पर आन्तरिक एवं बाह्य दृष्टि से किसी विदेशी शक्ति का अधिकार नहीं है। भारत का संयुक्त-राष्ट्र संघ तथा राष्ट्रमण्डल का सदस्य होना इसकी प्रभुसत्ता पर कोई प्रभाव नहीं डालता।
इस बात को स्पष्ट करते हुए पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “भारत एक क्षण के लिए भी राष्ट्रमण्डल में रहने के लिए बाध्य नहीं है। हम अपनी इच्छा से राष्ट्रमण्डल के सदस्य बने हैं और अपनी इच्छानुसार उसे छोड़ सकते हैं। कोई भी ताकत हमें अपनी इच्छा के विरुद्ध उसका सदस्य बने रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकती।

(ii) समाजवादी- समाजवादी शब्द प्रस्तावना में 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया है। इसका अर्थ है कि भारत में | शासन-व्यवस्था इस प्रकार चलाई जाए कि सभी वर्गों की विशेष रूप से पिछड़े वर्गों को अपने विकास के लिए उचित वातावरण तथा परिस्थितियाँ मिलें, आर्थिक असमानता कम हो और देश के विकास का फल थोड़े-से लोगों के हाथों में न होकर समाज के सभी लोगों को मिले।

(iii) धर्म-निरपेक्ष- धर्म-निरपेक्ष शब्द भी प्रस्तावना में सन् 1976 में 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया है। इसका अर्थ है कि देश के सभी नागरिकों को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को अपनाने तथा उसका प्रचार करने की स्वतन्त्रता है।
राज्य-धर्म के आधार पर नागरिकों में किसी प्रकार का (UPBoardSolutions.com) भेदभाव नहीं कर सकता और राज्य किसी विशेष धर्म की किसी विशेष रूप से सहायता नहीं कर सकता। धर्म के आधार पर किसी भी सरकारी शिक्षा संस्था में किसी को दाखिला लेने से इंकार नहीं किया जा सकता।

(iv) लोकतंत्रीय- लोकतंत्रीय शब्द का अर्थ यह है कि शासन-शक्ति किसी एक व्यक्ति या वर्ग विशेष के हाथों में न होकर समस्त जनता के हाथों में है। शासन चलाने के लिए जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है जो अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी है।
देश के प्रत्येक नागरिक को, चाहे (UPBoardSolutions.com) वह किसी धर्म, जाति अथवा स्थान से सम्बन्ध रखता हो, सभी राजनीतिक अधिकार समान रूप से प्रदान किए हैं।
गणराज्य- गणराज्य का अर्थ यह है कि भारत में राज्य के अध्यक्ष का पद वंशक्रमानुगत नहीं है, बल्कि राज्य का अध्यक्ष-राष्ट्रपति एक निश्चित काल के लिए जनता के प्रतिनिधियों द्वारा निर्वाचित किया जाता है। इंग्लैण्ड तथा जापान लोकतंत्रीय राज्य होते हुए भी गणराज्य नहीं है, क्योंकि इन देशों में राजा को पद पैतृक आधार पर चलता है और वह जनता अथवा उनके प्रतिनिधियों द्वारा निश्चित काल के लिए निर्वाचित नहीं किया जाता।

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प्रश्न 7.
भारत के संविधान के प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान की प्रस्तावना से यह बात स्पष्ट होती है कि संविधान द्वारा निम्न उद्देश्यों की पूर्ति होती है

 राष्ट्र की एकता व अखण्डता- भारतीय संविधान के निर्माता अंग्रेजों की ‘फूट डालो व शासन करो’ की नीति से अच्छी प्रकार परिचित थे। इसीलिए उनके मन और मस्तिष्क में राष्ट्र की एकता का विचार बहुत प्रबल था। इसी कारण से संविधान की प्रस्तावना में राष्ट्र की एकता को बनाए रखने की घोषणा की गई है। (UPBoardSolutions.com) इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही भारत को एक धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है तथा इकहरी नागरिकता के सिद्धान्त को अपनाया गया है। समस्त देश का एक ही संविधान है और प्रमुख 22 भाषाओं को संविधान द्वारा मान्यता प्रदान की गई है। संविधान के 42वें संशोधन द्वारा राष्ट्र की ‘एकता’ के साथ ‘अखण्डता’ शब्द को जोड़ दिया गया है।

स्वतन्त्रता- भारतीय संविधान का उद्देश्य नागरिकों को केवल न्याय दिलाना ही नहीं, बल्कि उनकी स्वतंत्रता को भी सुनिश्चित करना है, जो व्यक्ति के जीवन के विकास के लिए आवश्यक मानी जाती है। संविधान की प्रस्तावना में नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास तथा उपासना की स्वतन्त्रता का अश्वासन दिया गया है। इसकी पूर्ति संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के द्वारा की गई है।

समानता- प्रस्तावना में सामाजिक स्तर तथा अवसर की समानता का उल्लेख किया गया है। स्तर की समानता का अर्थ यह है कि कानून की दृष्टि में देश के सभी नागरिक समान हैं तथा सभी को कानून की समान सुरक्षा प्राप्त है। समाज में किसी को कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है और धर्म, रंग, लिंग आदि के आधार पर नागरिकों में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।(UPBoardSolutions.com) इन बातों का स्पष्टीकरण संविधान की धाराओं 14 से 18 के द्वारा किया गया है। धारा 14 के अन्तर्गत सभी नागरिकों को कानून के सामने समानता तथा सुरक्षा प्रदान की गई है। धारा 15 में यह कहा गया है कि राज्य किसी नागरिक के साथ धर्म, रंग, जाति तथा लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। धारा 16 के द्वारा सभी नागरिकों को अवसर की समानता प्रदान की गई है। धारा 17 के द्वारा छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है तथा धारा 18 के द्वारा शिक्षा तथा सेना की उपाधियों को छोड़ अन्य सभी उपाधियों को समाप्त कर दिया गया है।

बंधुता- संविधान की प्रस्तावना में बंधुता की भावना को विकसित करने पर भी बल दिया गया है। भारत जैसे देश के लिए जिसमें दासता के लम्बे काल के कारण धर्म, जाति व भाषा आदि के आधार पर भेदभाव उत्पन्न हो गए थे, बंधुता की भावना के विकास का विशेष महत्त्व है। इसी उद्देश्य से साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली तथा छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है।
इसके साथ ही प्रस्तावना में व्यक्ति की गरिमा (Dignity of Individual) शब्दों को रखा जाना इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति का व्यक्तित्व बहुत पवित्र है। इसी धारणा से देश के सभी नागरिकों को समान मौलिक अधिकार दिए गए हैं।

सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय- संविधान का उद्देश्य यह है कि देश के सभी नागरिकों को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र–सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक क्षेत्रों में न्याय मिले। (UPBoardSolutions.com) इस बहुमुखी न्याय से ही नागरिक अपने जीवन का पूर्ण विकास कर सकता है।

सामाजिक न्याय का अर्थ है कि किसी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, जन्म-स्थान, रंग तथा लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए देश के सभी नागरिकों के लिए संविधान के द्वारा समानता का अधिकार सुरक्षित किया गया है। देश के सभी नागरिक कानून के सामने समान हैं। सार्वजनिक स्थानों पर जाने के लिए नागरिकों में रंग, जाति तथा धर्म आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। सरकारी नौकरी पाने के क्षेत्र में सबको समानता के आधार पर स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है।

आर्थिक न्याय का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को अपनी आजीविका कमाने के समान तथा उचित अवसर प्राप्त हों तथा उन्हें अपने कार्य के लिए उचित वेतन मिले। आर्थिक न्याय के लिए यह आवश्यक है कि उत्पादन तथा वितरण के साधन थोड़ेसे व्यक्तियों के हाथों में न होकर समाज के हाथों में हो (UPBoardSolutions.com) और उनका प्रयोग समस्त समाज के हितों को ध्यान में रखकर किया जाए। आर्थिक न्याय के इस लक्ष्य की प्राप्ति समाजवादी ढाँचे के समाज की स्थापना के आधार पर ही की जा सकती है।

राजनीतिक न्याय का अर्थ है कि राज्य के सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के सभी राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों। भारत में वयस्क मताधिकार प्रणाली को अपनाकर इस व्यवस्था को लागू किया गया है। धर्म, जाति, रंग तथा लिंग आदि के आधार पर नागरिकों को राजनीतिक अधिकार देने में कोई भेदभाव नहीं किया गया है और साम्प्रदायिक चुनाव-प्रणाली का अन्त कर दिया गया है।
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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 3 अपवाह

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 3 अपवाह

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए।
(i) निम्नलिखित में से कौन-सा वृक्ष की शाखाओं के समान अपवाह प्रतिरूप प्रणाली को दर्शाता है?
(क) अरीय
(ख) केंद्राभिमुख
(ग) द्वमाकृतिक
(घ) जालीनुमा

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(ii) वूलर झील निम्नलिखित में से किस राज्य में स्थित है?
(क) राजस्थान
(ख) पंजाब
(ग) उत्तर प्रदेश
(घ) जम्मू-कश्मीर

(iii) नर्मदा नदी का उद्गम कहाँ से है?
(क) सतपुड़ा
(ख) अमरकंटक
(ग) ब्रह्मगिरी
(घ) पश्चिमी घाट के ढाल

(iv) निम्नलिखित में से कौन-सी लवणीय जलवाली झील है?
(क) सांभर
(ख) वूलर
(ग) डल
(घ) गोबिंद सागर

(v) निम्नलिखित में से कौन-सी नदी प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी नदी है?
(क) नर्मदा
(ख) गोदावरी
(ग) कृष्णा
(घ) महानदी

(vi) निम्नलिखित नदियों में से कौन-सी नदी भ्रंश घाटी से होकर बहती है?
(क) दामोदर
(ख) कृष्णा
(ग) तुंगभद्रा
(घ) तापी
उत्तर:
(i) (ग) द्रुमाकृतिक
(ii) (घ) जम्मू-कश्मीर
(iii) (ख) अमरकंटक
(iv) (क) सांभर
(v) (ख) गोदावरी
(vi) (घ) तापी

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए –

  1. जल-विभाजक को क्या कार्य है? एक उदाहरण दीजिए।
  2. भारत में सबसे विशाल नदी द्रोणी कौन-सी है?
  3. सिंधु एवं गंगा नदियाँ कहाँ से निकलती हैं?
  4. गंगा की दो मुख्य धाराओं के नाम लिखिए। ये कहाँ पर एक-दूसरे से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं?
  5. लंबी धारा होने के बावजूद तिब्बत के क्षेत्रों में ब्रह्मपुत्र में कम गाद (सिल्ट) क्यों है?
  6. कौन-सी दो प्रायद्वीपीय नदियाँ गर्त से होकर बहती हैं? समुद्र में प्रवेश करने के पहले वे किस प्रकार की आकृतियों का निर्माण करती हैं?
  7. नदियों तथा झीलों के कुछ आर्थिक महत्त्व को बताएँ।

उत्तर:

  1. कोई उच्चभूमि जैसे पर्वत जो दो पड़ोसी अपवाह द्रोणियों को अलग करता है, उसे जल-विभाजक कहते हैं। हिमालय एक महत्त्वपूर्ण जल-विभाजक है।
  2. भारत की सबसे विशाल नदी द्रोणी गंगा नदी की द्रोणी है। गंगा नदी की लंबाई 2,500 किमी है।
  3. सिंधु नदी तिब्बत में मानसरोवर झील के पास से निकलती है। गंगा नदी गंगोत्री नामक हिमानी से निकलती है जो हिमालय के दक्षिणी (UPBoardSolutions.com)  ढलान पर स्थित है।
  4. गंगा नदी की दो प्रमुख धाराएँ भागीरथी और अलकनंदा हैं। ये उत्तराखण्ड के देवप्रयाग नामक स्थान पर एक-दूसरे से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं।
  5. तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी का मार्ग बहुत लंबा है, परन्तु इस मार्ग में इसे वर्षा अथवा अन्य साधनों से कम जल की प्राप्ति होती है। कम जल के कारण इसकी अपरदन शक्ति कम होती है। इसी कारण इसमें गोद (सिल्ट) की मात्रा कम होती है।
  6. नर्मदा एवं तापी भारत की दो ऐसी नदियाँ हैं जो गर्त से होकर बहती हैं तथा ज्वारनदमुख को निर्माण करती हैं।
  7. नदियाँ एवं झीलें नदी के बहाव को नियंत्रित करती हैं। ये अति-वृष्टि के समय बाढ़ को रोकती हैं। अनावृष्टि के समय ये पानी के बहाव को बनाए रखती हैं। इनका उपयोग जल-विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है। ये आसपास की जलवायु को मृदु बनाती हैं तथा जलीय परितंत्र का संतुलन बनाए रखती हैं। ये प्राकृतिक सौंदर्य में वृद्धि करती हैं तथा पर्यटन का विकास करने में सहायता प्रदान करती हैं और मनोरंजन करती हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 3.
नीचे भारत की कुछ झीलों के नाम दिए गए हैं। इन्हें प्राकृतिक एवं मानवनिर्मित वर्गों में बाँटिए-

  1. वूलर
  2. डल
  3. नैनीताल
  4. भीमताल
  5. गोबिन्द सागर
  6. लोकताक
  7. बारापानी
  8. चिल्का
  9. सांभर
  10. राणाप्रताप सागर
  11. निजाम सागर
  12. पुलिकट
  13. नागार्जुन सागर
  14. हीराकुण्ड

उत्तर:

प्राकृतिक झील

मानवनिर्मित झील

वूलर गोविन्द सागर
डल राणा प्रताप सागर
नैनीताल निजाम सागर
भीमताल नागार्जुन सागर
लोकताक हीराकुण्ड
बारापानी
चिल्का
सांभर
पुलिकट

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प्रश्न 4.
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय नदियों के मुख्य अंतरों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय नदियों में निम्नलिखित अंतर है-

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ

प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ

1. इन नदियों से नहरें निकालना आसान और अधिक उपयोगी है। इनके जल का उपयोग सिंचाई और जल विद्युत दोनों में खूब किया जाता है।  1. इन नदियों से नहरें निकालना कठिन है। अतः सीमित क्षेत्रों में ही सिंचाई हो पाती है।
2. इन नदियों ने देश के विस्तृत उपजाऊ मैदान का निर्माण कर, देश को कृषिप्रधान बनाया है। 2. ये नदियाँ तेज ढाल वाले क्षेत्रों तथा पथरीले भागों में बहती  हैं। अतः जल विद्युत केन्द्रों की स्थापना कर, जल विद्युत के निर्माण के लिए अधिक उपयोगी हैं।
3. देश का कुल संभावित जल विद्युत क्षमता को 60  प्रतिशत प्रतिशत भाग हिमालय की नदियों में है। 3. इन नदियों में देश की संभावित जलशक्ति का 40
भाग पाया जाता है।
 4. समतल भू-भाग से (UPBoardSolutions.com)
होकर बहने के कारण से नाव्य नदियाँ हैं।
4. ये नदियाँ मार्ग में प्रपात बनाती चलती हैं। अतः नाव्य नहीं  हैं। तटीय मैदानों में ही ये नाव्य हैं।
 5. हिमालय पर्वत से निकलने वाली अधिकांश नदियाँ हिमानियों से जन्मी हैं। 5. प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ वर्षा के जल अथवा भूमिगत जल पर निर्भर हैं। यहाँ कोई हिमानी नहीं है।
6. इन नदियों में जल वर्ष भर पर्याप्त मात्रा में मिलता है। 6. शुष्क मौसम में यहाँ की अधिकांश नदियाँ सूख जाती हैं, शेष की जलधारा बहुत पतली हो जाती है। अतः ये नदियाँ सदानीरा होती हैं।

प्रश्न 5.
प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व एवं पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
पूर्व एवं पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों में प्रमुख अंतर इस प्रकार है-

पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ

पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ

1. कृष्णा, कावेरी, गोदावरी, महानदी पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ हैं। 1. नर्मदा एवं तापी पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ हैं।
2. पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ बंगाल की खाड़ी  में गिरती हैं। 2. ये नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं।
3. इन नदियों का अपवाह तंत्र विकसित तथा आकार में बड़ा है। 3. इन नदियों का अपवाह तंत्र विकसित नहीं है। उनकी
सहायक नदियाँ आकार में छोटी होती हैं।
4. ये नदियाँ बहुत गहराई में नहीं बहती हैं। 4. ये नदियाँ गर्त से होकर बहती हैं।
5. ये नदियाँ पूर्वी तट पर बड़े डेल्टा का निर्माण करती हैं। 5. ये नदियाँ डेल्टा की बजाय ज्वारनद का निर्माण करती हैं।
  6. मुहाने के निकट इन नदियों की गति बहुत मंद हो जाती है। 6. मुहाने के निकट इन नदियों की गति बहुत तेज होती है।
7. इन नदियों की लंबाई अधिक होती है। 7. इन नदियों की लंबाई कम होती है।

प्रश्न 6.
किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए नदियाँ महत्त्वपूर्ण क्यों हैं?
उत्तर:
नदियों का किसी देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट हो जाता है-

  1. ये जल के बहाव को नियंत्रित करने में सहायता करती हैं।
  2. ये भारी वर्षा के समय बाढ़ को रोकती हैं।
  3. ये शुष्क मौसम के दौरान पानी का एकसमान बहाव बनाए रखती हैं।
  4. इनकी सहायता से जल-विद्युत पैदा की जाती है।
  5. ये आस-पास के वातावरण को मृदु बना देती हैं।
  6. ये जलीय परितंत्र को बनाए रखती हैं।
  7. ये प्राकृतिक सौन्दर्य में वृद्धि रखती हैं।
  8. ये पर्यटन का विकास करने में सहायता प्रदान करती हैं और मनोरंजन करती हैं।
  9. नदियों से हमें प्राकृतिक ताजा मीठा पानी मिलता है जो मनुष्य सहित अधिकतर जीव-जंतुओं के जीवन के लिए आवश्यक है।
  10. ये नई मृदा बिछाकर उसे खेती-योग्य बनाती हैं जिससे बिना अधिक मेहनत के इस पर खेती की जा सके।
  11. नदियों के तटों ने प्राचीनकाल से ही आदिवासियों को आकर्षित किया है। ये बस्तियाँ कालांतर में बड़े शहर बन गए।
  12. नदियाँ अपने प्रवाह क्षेत्र में जल निकासी का कार्य करती हैं।
  13. नदियाँ अवसादी निक्षेपों का निर्माण करती हैं। इन निक्षेपों में वनस्पति तथा प्राणी अवशेष पाए जाते हैं जो कालांतर में सड़-गलकर कोयले एवं पेट्रोलियम में रूपांतरित हो जाते हैं।

मानचित्र कौशल

(i) भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित नदियों को चिन्हित कीजिए तथा उनके नाम लिखिए-

  • गंगा,
  • सतलुज,
  • दामोदर,
  • कृष्णा,
  • नर्मदा,
  • तापी,
  • महानदी,
  • दिहांग।

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(ii) भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित झीलों को चिन्हित कीजिए तथा उनके नाम लिखिए-

  • चिल्का,
  • सांभर,
  • वूलर,
  • पुलिकट तथा कोलेरू

उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 3 अपवाह

क्रियाकलाप

नीचे दी गई वर्ग पहेली को हल करें –
बाएँ से दाएँ-

    1. नागार्जुन सागर नदी परियोजना किस नदी पर है?
    2. भारत की सबसे लंबी नदी।
    3. ब्यास कुण्ड से उत्पन्न होने वाली नदी।
    4. मध्य प्रदेश के बेतुल जिले से उत्पन्न होकर पश्चिम की ओर बहने वाली नदी।
    5. पश्चिम बंगाल का ‘शोक’ के नाम से जानी जाने वाली नदी।
    6. किस नदी से इन्दिरा गांधी नहर निकाली गई है?
    7. रोहतांग दरें के पास किस नदी का स्रोत है?
    8. प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लंबी नदी।
      ऊपर से नीचे :
    9. सिंधु की सहायक नदी जिसका उद्गम स्थल हिमाचल प्रदेश में है।
    10. भ्रंश अपवाह से होकर अरब सागर में मिलने वाली नदी।
    11. दक्षिण भारतीय नदी, जो ग्रीष्म तथा सर्द दोनों ऋतुओं में वर्षा का जल प्राप्त करती है।
    12. लद्दाख, गिलगित तथा पाकिस्तान से बहने वाली नदी।
    13. भारतीय मरुस्थल की एक महत्त्वपूर्ण नदी।
    14. पाकिस्तान में चेनाब से मिलने वाली नदी।
    15. यमुनोत्री हिमानी से निकलने वाली नदी।

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 3 अपवाह

उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 3 अपवाह
बाएं से दाएँ :

  1. कृष्णा KRISHNA)
  2. गंगा (GANGA)
  3. ब्यास (BEAS)
  4. तापी (TAPI)
  5. दामोदर (DAMODAR)
  6. सतलुज (SATLUJ)
  7. रावी (RAVI)
  8. गोदावरी (GODAVARI)
    ऊपर से नीचे :
  9. चेनाब (CHENAB)
  10. नर्मदा (NARMADA)
  11. कावेरी (KAVERI)
  12. सिंधु (INDUS)
  13. लूनी (LUNI)
  14. झेलम (JHELUM)
  15. यमुना (YAMUNA)

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के किन राज्यों में सिंधु नदी तंत्र के जल से सिंचाई होती है?
उत्तर:
इस नदी तंत्र से भारत के पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान के पश्चिमी भागों में सिंचाई होती है।

प्रश्न 2.
सिंधु जल संधि के अनुसार भारत सिंधु नदी क्षेत्र के कितने प्रतिशत जल का उपयोग कर सकता है?
उत्तर:
इस संधि के अनुसार भारत इस नदी क्षेत्र के 20 प्रतिशत जल का उपयोग कर सकता है।

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प्रश्न 3.
भारत में नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए कौन-सी योजना बनायी गयी है?
उत्तर:
भारत में नदियों को प्रदूषित होने से बचाने के लिए राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना कार्यरत है।

प्रश्न 4.
‘राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना’ का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
गंगा कार्य योजना के क्रियाकलापों का पहला चरण 1985 से आरंभ किया गया एवं इसे 31 मार्च, 2000 ई0 को बंद किया गया था। राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण की कार्यकारी समिति ने गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण की प्रगति की समीक्षा की तथा गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण से प्राप्त (UPBoardSolutions.com) अनुभवों के आधार पर आवश्यक सुझाव दिए। इस कार्य योजना को देश की प्रमुख प्रदूषित नदियों से राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के अन्तर्गत लागू किया गया है।

प्रश्न 5.
पृथ्वी पर स्वच्छ जल की उपलब्ध मात्रा बताइए।
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल का लगभग 71 प्रतिशत भाग जल से ढका हुआ है लेकिन इसका 97 प्रतिशत जल लवणीय है। मात्र 3 प्रतिशत ही जल स्वच्छ रूप में उपलब्ध है। साथ ही स्वच्छ जल का तीन चौथाई भाग हिमानी के रूप में उपलब्ध है।

प्रश्न 6.
राजस्थान में स्थित खारे पानी की प्रसिद्ध झील का नाम और महत्त्व बताइए।
उत्तर:
राजस्थान में खारे पानी की प्रसिद्ध झील ‘सांभर’ है। इसके नाम से खाने वाला नमक बनाया जाता है।

प्रश्न 7.
भारत के पूर्वी तट पर खारे पानी की दो झीलों के नाम बताइए।
उत्तर:
ओडिशा की चिल्का झील तथा तमिलनाडु की पुलिकट झील।

प्रश्न 8.
भारत की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील कहाँ स्थित है?
उत्तर:
भारत में जम्मू-कश्मीर में स्थित वूलर झील मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है।

प्रश्न 9.
‘मेघना’ क्या है?
उत्तर:
बांग्लादेश के दक्षिणी भाग में जब ब्रह्मपुत्र और गंगा आपस में मिलती हैं तो इसकी संयुक्त धारा को ‘मेघना’ कहते हैं।

प्रश्न 10.
गंगा नदी तंत्र का अपवाह किन-किन राज्यों में है?
उत्तर:
गंगा नदी तंत्र उत्तराखण्ड, हरियाणा, दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, उत्तरी मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल राज्यों में जल का अपवाह करता है।

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प्रश्न 11.
शिवसमुद्रम जलप्रपात के लाभ बताइए।
उत्तर:
शिवसमुद्रम जलप्रपात कावेरी नदी पर स्थित है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा जलप्रपात है। यह प्रपात, मैसूर, बंगलुरु तथा कोलार स्वर्ण क्षेत्र को विद्युत प्रदान करता है।

प्रश्न 12.
सिंधु जल समझौता संधि का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
सिंधु जल समझौता संधि 1960 ई0 में भारत और पाकिस्तान के बीच किया गया था। सिंधु जल समझौता संधि के अनुच्छेदों (1960) के अनुसार भारत इस नदी प्रक्रम के संपूर्ण जल का केवल 20 प्रतिशत जल उपयोग कर सकता है। इस जल का उपयोग हम पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम भागों में सिंचाई के लिए करते हैं।

प्रश्न 13.
द्रुमाकृतिक अपवाह प्रतिरूप किसे कहते हैं?
उत्तर:
द्रुमाकृतिक अपवाह प्रतिरूप उस समय विकसित होता है जब धाराएँ उस क्षेत्र की ढलान के अनुसार बहती हैं। यदि किसी धारा की सहायक नदियाँ किसी वृक्ष की शाखाओं जैसी प्रतीत होती हैं तो यह प्रतिरूप दुमाकृतिक प्रतिरूप कहलाता

प्रश्न 14.
जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप क्या है?
उत्तर:
जब सहायक नदियाँ मुख्य नदी से समकोण पर मिलती हैं तथा इसे जाली जैसा आकार प्रदान करती हैं तो इस विशिष्ट अपवाह तंत्र को जालीनुमा प्रतिरूप कहा जाता है।

प्रश्न 15.
अरीय अपवाह प्रतिरूप क्या है?
उत्तर:
जब केन्द्रीय शिखर अथवा गुबंद जैसी संरचना से धाराएँ विभिन्न दिशाओं में प्रवाहित होती हैं तो उस प्रतिरूप को अरीय प्रतिरूप कहा जाता है। विभिन्न प्रकार के अपवाह प्रतिरूप एक ही अपवाह द्रोणी में भी पाए जा सकते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हिमालय क्षेत्र में पायी जाने वाली झीलों का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर:
हिमालय क्षेत्र में प्रमुख रूप से ताजे पानी की झीलें पायी जाती हैं। इन झीलों की उत्पत्ति हिम नदियों से हुई है। वास्तव में हिमनदियों ने एक गहरे बेसिन का निर्माण किया। धीरे-धीरे यह बेसिन हिमानियों की बर्फ पिघलने से बने जल से भर गया। इस तरह हिमालय क्षेत्र की झीलें अस्तित्व में आई थीं।

प्रश्न 2.
भारत की झीलों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
डल, वूलर, सांभर, चिल्का, पुलिकट, कोलेस, बेबनाद, लोनार आदि भारत की प्रमुख झीलें हैं। इनमें से अधिकांश कुमाऊँ हिमालय क्षेत्र के नैनीताल जिले में हैं। डल और वूलर झीलें उत्तरी कश्मीर में हैं। ये पर्यटकों के लिए आकर्षण के केन्द्र हैं। राजस्थान में जयपुर के समीप सांभर और महाराष्ट्र में (UPBoardSolutions.com) बुलढाणा जिले में लोणार में खारे पानी की झीलें हैं। ओडिशा की चिल्का झील भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। चेन्नई के निकट पुलिकट अनूप झील है। गोदावरी और कृष्णा नदी के डेल्टा प्रदेश के बीच कोलेस नामक मीठे पानी की झील है। केरल के किनारों के साथ-साथ लंबी-लंबी अनूप झीलें हैं। इन्हें कयाल कहते हैं। इनमें से बेबनाद खारे पानी का सबसे बड़ा कयाल है।

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प्रश्न 3.
गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
उत्तर भारत के मैदान का ज्यादातर हिस्सा गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों के योगदान से निर्मित है। गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(अ) गंगा का मैदान
(ब) ब्रह्मपुत्र का मैदान।

(अ) गंगा का मैदान – भारत के सर्वाधिक विस्तृत इस मैदान का निर्माण गंगा और उसकी सहायक नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टी के निक्षेप से बना है। गंगा के मैदान का ढाल पूर्व की ओर है क्योंकि गंगा का प्रवाह पश्चिम से पूर्व की ओर है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, राजस्थान तथा मध्यप्रदेश राज्यों के अधिकांश मैदानी भाग गंगा नदी-तंत्र के योगदान से निर्मित हैं।

(ब) ब्रह्मपुत्र का मैदान – यह मैदान देश के उत्तर के विशाल पूर्वी भाग में स्थित है। इस मैदान का विस्तार असोम और मेघालय राज्यों में है। इस मैदान का निर्माण ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के निक्षेप से हुआ है।
उत्तरी विशाल मैदान बहुत उपजाऊ है। यह भारत का अन्न भंडार है। अन्न के साथ-साथ कई व्यापारिक फसलें जैसे-गन्ना और जूट का यह प्रमुख क्षेत्र है।

जीविकोपार्जन के साधन सुलभ होने, जल निकास की समुचित व्यवस्था होने, स्वास्थ्यवर्द्धक जलवायु, यातायात के साधन, कृषि एवं उद्योगों के विकास के कारण ही इन मैदानी भागों में देश की आधी से अधिक जनसंख्या निवास करती है।
धरातल के समतल होने के कारण यातायात के साधनों (UPBoardSolutions.com) का तेजी से विकास हुआ है। फलस्वरूप यहाँ अनेक नगरों, व्यावसायिक तथा औद्योगिक केन्द्रों का विकास हुआ है।

प्रश्न 4.
गंगा द्रोणी की चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गंगा द्रोणी की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. यह द्रोणी बहुत मंद ढाल वाली है। हरियाणा से बांग्लादेश तक कुल 300 मीटर का ढाल है।
  2. भारत के विशाल मैदान पर गंगा द्रोणी का ही सबसे अधिक विस्तार है।
  3. गंगा हिमालय क्षेत्र में गंगोत्री से निकलती है और हरिद्वार के निकट गंगा मैदान में प्रवेश करती है।
  4. गंगा की प्रमुख सहायक नदी-यमुना यमुनोत्री से निकलकर, इलाहाबाद में गंगा से मिल जाती है। गंगा की अन्य सहायक नदियाँ गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी आदि हैं।

प्रश्न 5.
प्रायद्वीपीय भारत की तापी तथा नर्मदा नदियों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
तापी नदी-तापी नदी की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. यह नदी मध्य प्रदेश के बेतुल जनपद में स्थित सतपुड़ा श्रृंखला से निकलती है।
  2. यह नर्मदा के समानांतर एक भ्रंश घाटी में बहती है किन्तु यह लंबाई में अपेक्षाकृत बहुत छोटी है।
  3. इसकी द्रोणी में मध्य प्रदेश, गुजरात तथा महाराष्ट्र शामिल हैं।
  4. पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के बीच तटीय मैदान बहुत सँकरे हैं। इसलिए तटीय नदियाँ बहुत छोटी हैं।
  5. पश्चिम की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ साबरमती, माही, भारत-पुजा और पेरियार हैं।

नर्मदा नदी-नर्मदा नदी की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. यह नदी मध्य प्रदेश में स्थित अमरकंटक पहाड़ियों के निकट से निकलती है।
  2. यह भ्रंशीकरण के कारण पैदा हुई एक भ्रंश घाटी में पश्चिम की ओर बहती है।
  3. जबलपुर के निकट संगमरमर की चट्टानों में यह गहरे गॉर्ज बनाती है तथा धौलाधर प्रपात में यह नदी खड़ी चट्टानों पर गिरती है जो कि नर्मदा नदी द्वारा बनाए गए दर्शनीय स्थानों में से एक है।
  4. नर्मदा द्रोणी में मध्य प्रदेश का कुछ भाग तथा गुजरात शामिल हैं।

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प्रश्न 6.
गंगा कार्य योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यह कार्य योजना 1985 ई0 में आरंभ की गयी। इस कार्य योजना के प्रथम चरण की समाप्ति सन् 2000 में हुई। राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण कार्यकारी समिति गंगा कार्य योजना की प्रगति की समीक्षा की तथा इसमें पाई गई खामियों को दूर किया गया। इस सुधारी हुई योजना को राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के अंतर्गत देश की मुख्य प्रदूषित नदियों पर लागू किया गया।

अब गंगा कार्य योजना (भाग-II) को राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना में मिला दिया गया है। विस्तृत राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण अब 16 राज्यों के 152 कस्बों में 27 अंतर्राज्यीय नदियों को समाहित करता है। इस कार्य योजना के अन्तर्गत 57 नगरों में प्रदूषण कम करने के लिए कार्य किया जा रहा है। (UPBoardSolutions.com) प्रदूषण कम करने की कुल 215 योजनाओं को मंजूरी दी गई है। अब तक इस कार्य योजना के अधीन 69 योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं।

प्रश्न 7.
ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र की विशेषताएँ बताइए।।
उत्तर:
ब्रह्मपुत्र को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है-अरुणाचल प्रदेश में इसे दिहांग कहते हैं, असोम और मेघालय में इसे ब्रह्मपुत्र कहते हैं, बांग्लादेश के उत्तरी भाग में जमुना तथा मध्य भाग में पद्मा कहा जाता है; आगे चलकर गंगा और ब्रह्मपुत्र की संयुक्त धारा को मेघना कहते हैं।
ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत में मानसरोवर झील के पूर्व से निकलती है जो कि सिंधु एवं सतलुज नदी के स्रोत के पास है।
  2. इसका अधिकतर मार्ग भारत से बाहर स्थित है।
  3. यह हिमालय के समानांतर पूर्व दिशा की ओर बहती है। नामचा बरवा (7,757 मी की ऊँचाई) में अंग्रेजी के अक्षर ‘N’ जैसा मोड़ लेती है तथा अरुणाचल प्रदेश में एक गॉर्ज के रास्ते भारत में प्रवेश करती है।
  4. यहाँ इसे ‘दिहांग’ कहा जाता है तथा दिबांग, लोहित, केनुला एवं कई अन्य सहायक नदियाँ इसमें मिल जाती हैं। जिन्हें असोम में ब्रह्मपुत्र कहा जाता है।
  5. प्रत्येक वर्ष वर्षा ऋतु में यह अपने किनारों को लांघ जाती है तथा असोम और बांग्लादेश में बाढ़ का कारण बनती है।

प्रश्न 8.
नदी प्रदूषण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
औद्योगीकरण, नगरीकरण, खेतों में रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक का प्रयोग, उपभोक्तावादी संस्कृति के चलते नदियों में प्रदूषण निरंतर बढ़ता जा रहा है। नदियों से निरंतर जल का दोहन किया जा रहा है जिससे नदियों का जलस्तर घट रहा है। इससे जल की गुणवत्ता घटती है तथा नदी का स्वतः स्वच्छता पर प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, समुचित जल प्रवाह में गंगा का जल लगभग 20 किमी क्षेत्र में फैले बड़े शहरों की गंदगी को तनु करके समाहित कर सकता है लेकिन बढ़ते शहरीकरण एवं औद्योगीकरण के कारण ऐसा नहीं हो पाता और बहुत-सी नदियों में प्रदूषण का स्तर निरंतर बढ़ता जा रहा है।
निम्न कारणों से जल विशेष रूप से प्रदूषित होता है-

  1. नदियों व झीलों में कपड़े, बर्तन धोना एवं पशुओं को नहलाना।
  2. अपरिष्कृत मलिन जल तथा औद्योगिक कचरे की नदियों में डाला जाना। (ग) जहाजों से तेल का रिसाव।।
  3. खेती में रासायनिक खाद एवं रसायनों का अत्यधिक प्रयोग।

प्रश्न 9.
सुंदरबन डेल्टा की निर्माण प्रक्रिया स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब गंगा पश्चिम बंगाल में बहती है तो यह दो भागों में बँट जाती है–भागीरथी एवं हुगली (एक वितरिका), दक्षिण की ओर डेल्टाई मैदान से बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है। मुख्य धारा दक्षिण की ओर बांग्लादेश में प्रवेश करती है तथा ब्रह्मपुत्र भी आकर इसमें मिलकर डेल्टा का निर्माण करती है। इन नदियों द्वारा निर्मित डेल्टा को सुंदरबन का डेल्टा कहा जाता है। सुंदरबन डेल्टा को यह नाम इसमें पाए (UPBoardSolutions.com)  जाने वाले सुंदरी के पेड़ों के कारण पड़ा है जो कि दलदली भूमि में अधिक उगते हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा तथा सर्वाधिक तेजी से बढ़ता हुआ डेल्टा है। यह रॉयल बंगाल टाईगर का निवास भी है।

प्रश्न 10.
सिंधु नदी तंत्र की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
सिंधु नदी तंत्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. सिंधु नदी बलूचिस्तान एवं गिलगिट से बहते हुए अटक में पर्वतों से बाहर निकलती है।
  2. सतलुज, ब्यास, रावी, चेनाब एवं झेलम नदियाँ पाकिस्तान के पठानकोट में आकर इसमें मिल जाती हैं।
  3. अंततः कराची के पूर्व में यह अरब सागर में जा गिरती है।
  4. सिंधु नदी के मैदान का ढाल बहुत ही कम है।
  5. सिंधु नदी की लगभग एक तिहाई अपवाह द्रोणी जम्मू व कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब में स्थित है जबकि शेष पाकिस्तान में हैं।
  6. 2,900 किमी लम्बाई के साथ सिंधु नदी विश्व की सबसे लंबी नदियों में से एक है।
  7. सिंधु नदी महान हिमालय की कैलाश श्रृंखला की चोटी के पास स्थित मानसरोवर झील से निकलती है।
  8. यह समुद्र तल से 5,000 मी की ऊँचाई से नीचे बहती है।
  9. यह जम्मू-कश्मीर के लद्दाख जिले में प्रवेश करती हैं जहाँ यह एक दर्शनीय गॉर्ज का निर्माण करती है तथा जास्कर, नूबरा, श्योक तथा हुंजा जैसी कई सहायक नदियाँ यहाँ इसमें मिल जाती हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रायद्वीपीय पठार के नदी तंत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार भारतीय भू-भाग का प्राचीनतम हिस्सा है। अतः इस क्षेत्र की ज्यादातर नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।  इस क्षेत्र में पश्चिमी घाट श्रेणी जल-विभाजक का कार्य करती है,
जो इस क्षेत्र के जल-प्रवाह को दो भागों में विभक्त करती है-

  1. अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ
  2. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ

पश्चिमी घाट पर्वत श्रेणी से इस क्षेत्र की नदियों का उद्गम होता है। ढाल के अनुरूप मार्ग बनाती हुई, इस क्षेत्र की नदियाँ अरब सागर अथवा बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। इस क्षेत्र में अपरदन कम होने के कारण इस क्षेत्र की नदियों की घाटियाँ चौड़ी एवं उथली हैं। इसका कारण यह है कि इस प्रदेश का ढाल बहुत मंद है जिससे इस क्षेत्र की नदियाँ केवल पार्श्ववर्ती अपरदन ही करने में सक्षम होती हैं। अतः ये अपनी घाटियों को नीचे की ओर गहराई में नहीं काट पाती हैं। इस पठारी प्रदेश में कहींकहीं जल-प्रपात मिलते हैं। इनमें शिवसमुद्रम तथा जोगप्रपात मुख्य हैं।

शिवसमुद्रम जलप्रपात कावेरी नदी पर स्थित है और लगभग मी ऊँचा है। जोगप्रपात की ऊँचाई लगभग 255 मी है। यह शरावती नदी पर स्थित है। इस प्रपात पर ही महात्मा गाँधी प्रोजेक्ट बनाया गया है। इस प्रदेश की नदियाँ अधिकतर डेल्टा बनाती हैं। महानदी, कृष्णा, गोदावरी तथा कावेरी नदियों के डेल्टा प्रसिद्ध हैं। प्रायद्वीपीय पठार के उत्तरी भाग का ढाल उत्तर की ओर होने से इस भाग की नदियाँ उत्तर की ओर बहकर यमुना तथा गंगा नदी तंत्र में सम्मिलित हो जाती हैं। इस भाग की प्रमुख नदियाँ चंबल, सोन तथा बेतवा हैं जो विंध्याचल-सतपुड़ा पर्वत श्रेणी से निकलती हैं। प्रश्न 2. ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र का विवेचन कीजिए।

उत्तर-ब्रह्मपुत्र नदी चेमयुंगडुंग हिमानी से कैलाश पर्वत के निकट से निकलती है। चेमयुंगडुंग हिमानी मानसरोवर झील के दक्षिण-पूर्व में लगभग 100 किमी की दूरी पर स्थित है। पहले ब्रह्मपुत्र नदी सांगपो के नाम से 1,250 किमी तक तिब्बत के पठार में पूर्व की ओर बहने के पश्चात् हिमालय के पूर्वी सिरे के (UPBoardSolutions.com) निकट दक्षिण की ओर मुड़कर भारत में प्रविष्ट होती है। तत्पश्चात् यह अरुणाचल प्रदेश एवं असोम में बहती हुई बांग्लादेश में गंगा से मिल जाती है। यह नदी अरुणाचल प्रदेश के नामचा बारवा पर्वत शिखर जिसकी ऊँचाई 7,757 मीटर है, के पास यू (U) आकार का मोड़ लेकर पश्चिम की ओर गतिशील होती है।

इस मोड़ पर ब्रह्मपुत्र नदी 5,500 मीटर गहरे महाखड्डु का निर्माण करती है। ब्रह्मपुत्र नदी भारत की अन्य नदियों की अपेक्षा अधिक पानी लाती है, परंतु इसकी धारा के बीच में रेत से बने टापू मिलते हैं। इस प्रकार की टापू वाली नदी गुंफित घाटी वाली नदी कहलाती है। इसमें बाढ़ मई में बर्फ पिघलने के साथ शुरू हो जाती है और जून से सितंबर तक वर्षा की अधिकता के कारण इसकी सतह इतनी ऊँची उठ जाती है कि सहायक नदियों का पानी मुख्य नदी में नहीं आ पाता। अतः इन सहायक नदियों का पानी चारों ओर फैल जाता है, जिससे विस्तृत बाढ़ के कारण बहुत धन-जन की हानि होती है। ब्रह्मपुत्र नदी में बंगाल की खाड़ी से डिबरूगढ़ तक स्टीमर चलाए जाते हैं। गोहाटी, डिबरूगढ़ आदि प्रमुख नगर इस नदी के किनारे पर स्थित हैं। ब्रह्मपुत्र नदी में स्थान-स्थान पर नदीय द्वीप पाए जाते हैं। माजोली ब्रह्मपुत्र नदी में स्थित विश्व का सबसे बड़ा नदीय द्वीप है।

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प्रश्न 3.
गोदावरी और महानदी का संक्षिप्त विवेचन कीजिए। पूर्व की ओर बहने वाली प्रायद्वीपीय नदियों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
गोदावरी नदी-

  1. दक्षिण की गंगा के नाम से प्रसिद्ध गोदावरी प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी नदी है।
  2. यह महाराष्ट्र के नासिक जिले के पश्चिम घाट की ढालानों से निकलती है। इसकी लम्बाई लगभग 1,500 किमी है।
  3. यह बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसका अपवाह तंत्र प्रायद्वीपीय नदियों में सबसे बड़ा है जो महाराष्ट्र (लगभग 50 प्रतिशत), मध्य प्रदेश, ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश में स्थित है।
  4. पूर्णा, वर्धा, प्रांहिता, मंजरा, वेनगंगा एवं पेनगंगा  जैसी बहुत-सी सहायक नदियाँ इसमें आकर मिलती हैं।

महानदी नदी-

  1. यह नदी छत्तीसगढ़ की उच्चभूमि से निकलकर ओडिशा में बहते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
  2. 860 किमी लंबी महानदी का अपवाह तंत्र महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखण्ड एवं ओडिशा में स्थित है।

महानदी, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख प्रायद्वीपीय नदियाँ हैं।
पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. ये नदियाँ बड़ी मात्रा में तलछट लाती हैं।
  2. इनकी सहायक नदियों की संख्या अधिक है।
  3. सामान्यतः इन नदियों का अपवाह क्षेत्र विशाल होता है।
  4. ये नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।
  5. इन नदियों का अपवाह तंत्र विकसित एवं आकार में बड़ा है।
  6. ये नदियाँ बहुत गहरी नहीं बहतीं।
  7. ये नदियाँ पूर्वी तट पर बहुत बड़े डेल्टा बनाती हैं।

प्रश्न 4.
गंगा नदी तंत्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गंगा नदी तंत्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. भागीरथी के गंगोत्री हिमानी से निकलने वाली गंगा को इसके उद्गम स्थल से लेकर देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलने तक ‘भागीरथी’ कहते हैं। हरिद्वार में गंगा नदी पर्वतीय भाग से मुक्त होकर मैदान में प्रकट होती है।
  2. गंगा पश्चिम बंगाल में गंगा के डेल्टा के सबसे उत्तरी भाग में बहती है। नदी यहाँ दो भागों में बँट जाती है-भागीरथी एवं हुगली (एक वितरिका), दक्षिण की ओर डेल्टाई मैदान से बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है। मुख्यधारा दक्षिण की ओर बांग्लादेश में प्रवेश करती है तथा ब्रह्मपुत्र भी आकर इसमें मिलकर डेल्टा का निर्माण करती है। आगे निचली जलधारा को ‘मेघना’ (UPBoardSolutions.com) कहा जाता है। इन नदियों द्वारा निर्मित डेल्टा को ‘सुंदरबन का डेल्टा’ कहा जाता है। यह विश्व का सबसे बड़ा तथा सर्वाधिक तेजी से बढ़ता हुआ डेल्टा है। यह रॉयल बंगाल टाईगर का निवास भी है।
  3. गंगा नदी की लंबाई 2,500 किमी से अधिक है। अंबाला, सिंधु एवं गंगा नदी तंत्र के जल-विभाजक पर स्थित है।
  4. हिमालय से निकलने वाली कई नदियाँ जैसे यमुना, घाघरा, गंडक तथा कोसी आदि सहायक व प्रमुख नदियाँ गंगा में आकर मिल जाती हैं।
  5. यमुना नदी हिमालय की यमुनोत्री हिमानी से निकलती है। यह गंगा के समानांतर बहती है और इलाहाबाद में गंगा की दाहिनी ओर की सहायक नदी के रूप में इसमें मिल जाती है।
  6. घाघरा, गंडक तथा कोसी जैसी सहायक नदियाँ नेपाल हिमालय से निकलती हैं। ये वे नदियाँ हैं जो प्रत्येक वर्ष उत्तर के मैदानों के कुछ भागों में बाढ़ का कारण बनती हैं जिससे जान-माल की बहुत हानि होती है किन्तु ये मिट्टी | को उर्वर बनाकर गहन कृषि के उपयुक्त बना देती हैं।
    चंबल, बेतवा और सोन जैसी सहायक नदियाँ अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों से निकलती हैं तथा इनकी लंबाई कम होती है। ये कम मात्रा में जल लाती हैं।

प्रश्न 5.
डेल्टा तथा ज्वारनदमुख में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
डेल्टा तथा ज्वारनदमुख में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं-

डेल्टा

ज्वारनदमुख (एश्चुअरी)

 1. डेल्टा क्षेत्र प्रायः कृत्रिम जल पत्तन वाले क्षेत्र होते हैं। यहाँ जल की निश्चित गहराई बनाए रखने के लिए कीचड़, गाद आदि को मशीनों की सहायता से निकालना पड़ता है। 1. एश्चुअरी वाले क्षेत्र प्राकृतिक जल पत्तन के लिए अधिक उपयुक्त होते हैं, क्योंकि यहाँ जले की गहराई अधिक होती  है। इसके साथ ही नदी के जल तथा ज्वार के कारण मुहाने साफ रहते हैं।
2. गंगा, ब्रह्मपुत्र, कावेरी, कृष्णा, गोदावरी, व महानदी नदियाँ डेल्टा बनाती हैं। 2. भारत की नर्मदा तथा तापी नदियाँ एश्चुअरी बनाती हैं।
3. नदी द्वारा बहाकर लाए गए अवसादों के मुहाने पर हुए त्रिभुजाकार जमाव को डेल्टा कहते हैं। 3. नदी के मुहाने पर बनी सँकरी व गहरी घाटी को एश्चुअरी या ज्वारनदमुख कहते हैं।
4. डेल्टा बहुत ही समतल और उपजाऊ मैदान होता है। 4. एश्चुअरी बनाने वाली नदियों का मार्ग गहरा और सँकरा होने के कारण अवसादों का जमाव संभव नहीं। फलतः ये नदियाँ मैदानों का निर्माण नहीं करतीं।
5. डेल्टा प्रदेश में नदी कई उपनदियों या जल वितरिकाओं में विभाजित हो जाती है। 5. इसमें मुख्य नदी उपनदियों या जल वितरिकाओं में विभाजित  नहीं होती।

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मानचित्र कार्य

प्रश्न 1.
भारत के राजनैतिक मानचित्र पर निम्नलिखित झीलों को अंकित कीजिए-

  1. चिलका,
  2. पुलिकट,
  3. कोलेरू,
  4. बेबनाद,
  5. सांभर

उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 3 अपवाह

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 3 पुरुषोत्तमः रामः (पुरुषों में श्रेष्ठ राम) (संस्कृत-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 3 पुरुषोत्तमः रामः (पुरुषों में श्रेष्ठ राम) (संस्कृत-खण्ड)

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1. इक्ष्वाकुवंशप्रभवो ………………………………………………………………………. वशी।।

शब्दार्थ-इक्ष्वाकुवंशप्रभवः = इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न ! नियतात्मा = आत्मसंयमी द्युतिमान = कान्तिमान महावीर्यः – महान् वीर। धृतिमान = धैर्यवान्। वशी : जितेन्द्रिय।

सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के अन्तर्गत संस्कृत खण्ड के ‘पुरुषोत्तमः रामः’ नामक पाठ से लिया गया है। इसमें भगवान् राम के गुणों का वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद – लोगों द्वारा ‘राम’ नाम से सुने हुए, इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न, (राम) आत्मा को वश में रखनेवाले, महाबलशाली, कान्तिमान्, धैर्यवान् एवं जितेन्द्रिय हैं।

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2. बुद्धिमान् ………………………………………………………………………. महाहनुः।।

शब्दार्थ-वाग्मी = बोलने में चतुर श्रीमाञ्छत्रुनिर्वहणः (श्रीमान् + शत्रु-निर्वहण:) = श्री (शोभा) सम्पन्न और शत्रु को नष्ट करनेवाले। विपुलांसः = पुष्ट कन्धों वाले। महाबाहुः = विशाल भुजाओं वाले। कम्बुग्रीवः = शंख जैसी गर्दन वाले।

हिन्दी अनुवाद – (राम) बुद्धिमान्, नीतिमान, बोलने में कुशल, शोभावाले, शत्रु-विनाशक, ऊँचे कंधे वाले, विशाल भुजाओं वाले, शंख के समान गर्दन वाले, बड़ी ठोड़ी वाले (हैं)।

3. महोरस्को ………………………………………………………………………. सुविक्रमः।।

शब्दार्थ-गूढजत्रुः = जिनकी गले की हँसुली नहीं दिखायी देती। महोरस्को = बड़े वक्षस्थल वाले। महेष्वासः = बड़े धनुष वाले।।

हिन्दी अनुवाद – (राम) विशाल वक्षस्थल वाले, विशाल धनुष वाले (मांस में) दबी ग्रीवास्थि = हँसुली वाले, शत्रुओं का दमन करने वाले, घुटनों तक लम्बी भुजाओं वाले, सुन्दर सिर वाले, सुन्दर मस्तक वाले तथा महापराक्रमी (हैं)।

4. समः समविभक्ताङ्ग ………………………………………………………………………. लक्ष्मीवाञ्छुभलक्षणः।

शब्दार्थ-समविभक्ताङ्ग = समान रूप से विभक्त अंगों वाले, सुडौल पीनवक्षा = पुष्ट वक्षस्थल वाले। विशालाक्षः – विशाल नेत्रोंवाले लक्ष्मीवाञ्छुभलक्षणः (लक्ष्मीवान् + शुभलक्षणः) = शोभा सम्पन्न (सम्पत्तिशाली) और शुभ लक्षणों वाले।।

हिन्दी अनुवाद – वे (राम) समान रूप से विभक्त अंगों वाले (सुडौल), सुन्दर वर्ण, प्रतापी, पुष्ट वक्षस्थल वाले, विशाल नेत्रों वाले, शोभा-सम्पन्न और शुभ लक्षण से युक्त शरीरवाले हैं।

5. धर्मज्ञः ………………………………………………………………………. शुचिर्वश्यः समाधिमान्।।

शब्दार्थ-सत्यसन्धः = सत्य प्रतिज्ञा वाले। शुचिः = पवित्र वश्यः = इन्द्रियों को वश में रखने वाले। धर्मज्ञः = धर्म के ज्ञाता।

हिन्दी अनुवाद – वे (राम) धर्म के ज्ञाता, सत्य प्रतिज्ञा वाले तथा प्रजा के हित में लगे रहने वाले हैं। वे यशस्वी, ज्ञानी, पवित्र, जितेन्द्रिय और एकाग्रचित्त हैं।

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6. प्रजापति समः श्रीमान् ………………………………………………………………………. धर्मस्य परिरक्षिता।।

शब्दार्थ-धाता = पालन करनेवाले रिपुनिषूदनः = शत्रुओं का विनाश करने वाले। परिरक्षिता = रक्षा करनेवाले।

हिन्दी अनुवाद – श्रीराम प्रजापति (राजा) के समान सभी के पालक अर्थात् रक्षक हैं। वह शत्रुओं का नाश करनेवाले हैं। सम्पूर्ण जीवलोक के रक्षक तथा धर्म की रक्षा करनेवाले हैं।

7. रक्षिता स्वस्य ………………………………………………………………………. निष्ठितः ।।

शब्दार्थ-स्वस्य = अपने वेदवेदाङ्गत्तत्वज्ञः = वेद और वेदांगों के तत्त्व को जानने वाले। धनुर्वेदे = धनुर्विद्या में निष्ठितः = निपुण।।

हिन्दी अनुवाद – (राम) अपने धर्म के रक्षक, अपने परिजनों की रक्षा करनेवाले, वेद और वेदांग के तत्त्व को जाननेवाले और धनुर्विद्या में निपुण हैं।

8. सर्वशास्त्रार्थतत्त्वज्ञः ………………………………………………………………………. विचक्षणः ।।

शब्दार्थ-प्रतिभावान् = प्रतिभाशाली। साधुरदीनात्मा > साधुः + अदीनात्मा; साधुः अदीनात्मा = सज्जन, उदाराशय अर्थात् स्वतन्त्र विचार वाले।।

हिन्दी अनुवाद – (राम)सम्पूर्ण शास्त्रों के अर्थ के तत्त्व को जानने वाले, अच्छी स्मरण शक्ति वाले, प्रतिभाशाली, सम्पूर्ण संसार के प्रिय, सज्जन, स्वतन्त्र विचार वाले तथा चतुर हैं।

9. स च नित्यं ………………………………………………………………………. प्रतिपद्यते।।

शब्दार्थ-प्रशान्तात्मा = प्रशान्त मन वाले। मृदु = मधुर भाषी भाषते = बोलते हैं। प्रतिपद्यते = कहते हैं।

हिन्दी अनुवाद – और वह राम नित्य शान्त मन वाले, मृदुभाषी और स्वाभिमानी होने पर भी कठोर वचन नहीं कहते।

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10. कदाचिदुपकारेण ………………………………………………………………………. शक्तया।।

शब्दार्थ – कदाचिदुपकारेण = (कदाचित + उपकारेण) कभी उपकार के द्वारा। कृतेनैकेन = (कृतेन + एकेन) एक के किये जाने पर। तुष्यते = सन्तुष्ट हो जाते हैं। स्मरत्यपकाराणां = (स्मरति अपकाराणाम्) अपकारों को याद नहीं करते हैं। शतमप्यात्म शक्तया = (शतम् + अपि + आत्म शक्तया) = अपनी आत्मशक्ति से सौ को भी।

हिन्दी अनुवाद – यदि कभी कोई एक ही उपकार कर देता है तो उसी से सन्तुष्ट हो जाते हैं। अपनी आत्मशक्ति के कारण किसी के द्वारा किये गये सौ अपकारों को भी याद नहीं करते हैं।

11. सर्वविद्याव्रत ………………………………………………………………………. कालवित्॥

शब्दार्थ – विद्याव्रतस्नातो = सभी विद्याओं में पारंगत यथावत् = भली प्रकार से, उसी प्रकार साङ्गवेदवित् = वेदों के छह अङ्गों के जानकार। अमोघ = अत्यधिक, निष्फल न होनेवाला कालवित् = समय के जानकार।।

हिन्दी अनुवाद – श्रीराम सभी विद्याओं में पारंगत हैं। उसी प्रकार वेदों के छह अङ्गों के जानकार हैं। उनका क्रोध और हर्ष निष्फल न होनेवाला है। वे त्याग और संयम के समय (UPBoardSolutions.com) को जानने वाले हैं अर्थात् किस समय त्याग करना चाहिए और किस समय वस्तुओं का संग्रह करना चाहिए इसको (भली प्रकार) जानते हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 2 लोकतंत्र लोकतन्त्र क्या? लोकतंत्र क्यों?

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 2 लोकतंत्र लोकतन्त्र क्या? लोकतंत्र क्यों?

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
यहाँ चार देशों के बारे में कुछ सूचनाएँ हैं। इन सूचनाओं के आधार पर आप इन देशों का वर्गीकरण किस तरह करेंगे? इनके सामने ‘लोकतांत्रिक’, ‘अलोकतांत्रिक’ और ‘पक्का नहीं लिखें।
(क) देश क : जो लोग देश के आधिकारिक धर्म को नहीं मानते उन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं है।
(ख) देश ख : एक ही पार्टी बीते वर्षों से चुनाव जीतती आ रही है।
(ग) देश ग : पिछले तीन चुनावों में शासक दल को पराजय को मुँह देखना पड़ा।
(घ) देश घ : यहाँ स्वतन्त्र चुनाव आयोग नहीं है।
उत्तर:
(क) अलोकतांत्रिक
(ख) पक्का नहीं
(ग) लोकतांत्रिक
(घ) अलोकतांत्रिक

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प्रश्न 2.
यहाँ चार अन्य देशों के बारे में कुछ सूचनाएँ दी गई हैं। इन सूचनाओं के आधार पर इन देशों का वर्गीकरण आप किस तरह करेंगे? इनके आगे ‘लोकतांत्रिक’, ‘अलोकतांत्रिक’ और ‘पक्का नहीं लिखें।
(क) देश च : संसद सेना प्रमुख की मंजूरी के बिना सेना के बारे में कोई कानून नहीं बना सकती।
(ख) देश छ : संसद न्यायपालिका के अधिकारों में कटौती का कानून नहीं बना सकती।
(ग) देश जे : देश के नेता बिना पड़ोसी देश की अनुमति के किसी और देश से संधि नहीं कर सकते।
(घ) देश झ : देश के अधिकांश फैसले केन्द्रीय बैंक के अधिकारी करते हैं जिसे मंत्री भी नहीं बदल सकते।
उत्तर:
(क) अलोकतांत्रिक
(ख) लोकतांत्रिक
(ग) अलोकतांत्रिक
(घ) अलोकतांत्रिक

प्रश्न 3.
इनमें से कौन-सा तर्क लोकतंत्र के पक्ष में अच्छा नहीं है और क्यों?
(क) लोकतन्त्र में लोग खुद को स्वतंत्र और समान मानते हैं।
(ख) लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ दूसरों की तुलना में टकरावों को ज्यादा अच्छी तरह सुलझाती हैं।
(ग) लोकतांत्रिक सरकारें लोगों के प्रति ज्यादा उत्तरदायी होती हैं।
(घ) लोकतांत्रिक देश दूसरों की तुलना में ज्यादा समृद्ध होते हैं।

उत्तर:
(क) एक लोकतंत्रीय राज्य अन्य राज्यों की तुलना में अधिक समृद्ध हो, ऐसा होना आवश्यक नहीं है। देश विदेश के लोगों की समृद्धि और खुशहाली देश के आर्थिक विकास पर निर्भर करती है न कि सरकार के स्वरूप पर। हमें ऐसे अनेक उदाहरण सरलता से प्राप्त हो जाएँगे कि देश में लोकतांत्रिक सरकार विद्यमान होते हुए भी वहाँ के लोगों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश आज भी आर्थिक रूप से
विकसित हो रहे हैं। जबकि संयुक्त अरब अमीरात जैसे राजतंत्र वाले देश आर्थिक रूप से समृद्ध हैं।

प्रश्न 4.
इन सभी कथनों में कुछ चीजें लोकतांत्रिक हैं तो कुछ अलोकतांत्रिक। हर कथन में इन चीजों को अलग अलग करके लिखें।
(क)
एक मंत्री ने कहा कि संसद को कुछ कानून पास करने होंगे जिससे विश्व व्यापार संगठनों द्वारा तय नियमों की पुष्टि हो सके।
(ख) चुनाव आयोग ने एक चुनाव क्षेत्र के सभी मतदान केन्द्रों पर दोबारा मतदान का आदेश दिया जहाँ बड़े पैमाने पर मतदान में गड़बड़ की गई थी।
(ग) संसद में औरतों का प्रतिनिधित्व कभी भी 1 प्रतिशत तक नहीं पहुँचा है। इसी कारण महिला संगठनों ने संसद में एक-तिहाई आरक्षण की माँग की है।
उत्तर:
(क) लोकतांत्रिक चीज : “संसद को कुछ कानून पास करने होंगे।’
अलोकतांत्रिक चीज : “विश्व व्यापार संगठन द्वारा तय नियमों की पुष्टि हो सके।
(ख) लोकतांत्रिक चीज : “चुनाव आयोग ने किसी चुनाव क्षेत्र में दोबारा मतदान का आदेश दिया।”
अलोकतांत्रिक चीज : “बड़े पैमाने पर मतदान में गड़बड़ हुई थी।
(ग) लोकतांत्रिक चीज : “इसी के कारण महिला संगठनों ने एक तिहाई आरक्षण की माँग की है।”
अलोकतांत्रिक चीज : “संसद में औरतों का प्रतिनिधित्व कभी भी 10 प्रतिशत तक नहीं पहुँचा है।”

प्रश्न 5.
लोकतन्त्र में अकाल और भुखमरी की संभावना कम होती है। यह तर्क देने का इनमें से कौन-सा कारण सही नहीं है?
(क) विपक्षी दल भूख और भुखमरी की ओर सरकार को ध्यान दिला सकते हैं।
(ख) स्वतंत्र अखबार देश के विभिन्न हिस्सों में अकाल की स्थिति के बारे में खबरें दे सकते हैं।
(ग) सरकार को अगले चुनाव में अपनी पराजय का डर होता है।
(घ) लोगों को कोई भी तर्क मानने और उस पर आचरण करने की स्वतंत्रता है।

उत्तर:
(घ) लोगों को कोई भी तर्क मानने और उस पर आचरण करने की स्वतंत्रता है।

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प्रश्न 6.
किसी जिले में 40 ऐसे गाँव हैं जहाँ सरकार ने पेयजल उपलब्ध कराने का कोई इंतजाम नहीं किया है। इन गाँवों के लोगों ने एक बैठक की और अपनी जरूरतों की ओर सरकार का ध्यान दिलाने के लिए कई तरीकों पर विचार किया। इनमें से कौन-सा तरीका लोकतांत्रिक नहीं है।
(क) अदालत में पानी को अपने जीवन के अधिकार का हिस्सा बताते हुए मुकदमा दायर करना।
(ख) अगले चुनाव का बहिष्कार करके सभी पार्टियों को संदेश देना।
(ग) सरकारी नीतियों के खिलाफ जन-सभाएँ करना।
(घ) सरकारी अधिकारियों को पानी के लिए रिश्वत देना।
उत्तर:
(घ) यह एक अलोकतांत्रिक तरीका है।

प्रश्न 7.
लोकतन्त्र के खिलाफ दिए जाने वाले इन तर्को का जवाब दीजिए
(क) सेना देश का सबसे अनुशासित और भ्रष्टाचार मुक्त संगठन है। इसलिए सेना को देश का शासन करना चाहिए।
(ख) बहुमत के शासन का मतलब है मूख और अशिक्षितों का राज। हमें तो होशियारों की जरूरत है, भले ही उनकी संख्या कम क्यों न हो।
(ग) अगर आध्यात्मिक मामलों में मार्गदर्शन के लिए हमें धर्म-गुरुओं की जरूरत होती है तो उन्हीं को राजनैतिक मामलों में मार्गदर्शन का काम क्यों नहीं सौंपा जाए। देश पर धर्म गुरुओं का शासन होना चाहिए।
उत्तर:
(क) किसी देश की सेना रक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है लेकिन यह लोगों द्वारा निर्वाचित नहीं है। इसलिए एक लोकतांत्रिक
सरकार का गठन नहीं कर सकती है। निश्चय ही सेना सर्वाधिक अनुशासित एवं भ्रष्टाचार मुक्त संगठन है फिर भी कोई व्यक्ति इस बात की गारण्टी नहीं दे सकता है कि सेना तानाशाह नहीं बनेगी। सैन्य शासन के अधीन नागरिकों के सभी मौलिक अधिकार छीन लिए जाएँगे। उदाहरण के (UPBoardSolutions.com) लिए, जनरल ऑगस्तों पिनोशे के शासन के अधीन चिली के लोगों को अनेक कष्ट भोगने पड़े थे।

(ख) किसी भी देश के सभी लोग कुछ सीमा तक समझदार होते हैं। सार्वभौम वयस्क मताधिकार सिद्धान्त के अनुसार भारत में 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को मताधिकार प्रदान किया गया है। समाज के कुछ वर्गों की उपेक्षा करना उचित नहीं है।

(ग) तीसरा कथन उपयुक्त नहीं है। राजनीति में धर्म को शामिल करने से खतरनाक विवाद उत्पन्न हो सकता है क्योंकि भारत में अनेक धर्मों के लोग साथ-साथ रहते हैं ऐसे में किसी एक धर्म के धर्मगुरुओं को राज्य के संचालन का कार्य सौंप देने से देश में साम्प्रदायिक संघर्ष उत्पन्न हो सकते हैं। वैश्विक स्तर पर अभी तक किसी धार्मिक नेता द्वारा सफल शासन संचालन का उदाहरण प्राप्त नहीं हुआ है।
ऐसे में धर्म को राजनीति से पृथक् रखना ही उचित है। राजनीति में धर्म का हस्तक्षेप विनाशकारी होता है। अतः सत्ता को धर्म-निरपेक्ष होना चाहिए और धार्मिक विश्वास के मामले को व्यक्ति की उसकी रुचि पर छोड़ देना चाहिए।

प्रश्न 8.
इनमें से किन कथनों को आप लोकतांत्रिक समझते हैं? क्यों?
(क) बेटी से बाप : मैं शादी के बारे में तुम्हारी राय सुनना नहीं चाहता। हमारे परिवार में बच्चे वहीं शादी करते हैं जहाँ माँ-बाप तय कर देते हैं।
(ख)  छात्र से शिक्षक : कक्षा में सवाल पूछकर ध्यान मत बँटाओ।
(ग) अधिकारियों से कर्मचारी : हमारे काम करने के घंटे कानून के अनुसार कम किए जाने चाहिए।
उत्तर:
(क) पहला कथन लोकतांत्रिक नहीं है क्योंकि बेटी को उसकी शादी के बारे में अपना मत प्रकट करने का अवसर नहीं दिया जा रहा है। बेटी को दूसरे लोगों द्वारा उसकी इच्छा के विरुद्ध शादी करने के लिए विवश नहीं किया जाना चाहिए। विवाह के पश्चात् बेटी को ही अपने पति के साथ जीवन-निर्वाह करना होता है। इसलिए बेटी के विवाह में पति का चयन करते समय बेटी के विचार को महत्त्व दिया जाना चाहिए।

(ख) दूसरी कथन लोकतांत्रिक नहीं है क्योंकि छात्र को प्रश्न पूछ कर अपने मन में उत्पन्न संशय का समाधान करने का पूरा अधिकार है। अध्यापक द्वारा छात्र को प्रश्न पूछने से रोकना अलोकतांत्रिक है। उपयुक्त तो यह होता है कि शिक्षक छात्रों से कहें कि कक्षा समाप्त होने के पश्चात् छात्र अपने मन में उठे विषय से सम्बन्धित प्रश्नों का समाधान करें। शिक्षक को छात्रों के प्रश्नों का निश्चय ही समाधान करना चाहिए।

(ग) यह कथन लोकतांत्रिक है क्योंकि वह ऐसे नियम या कानून की माँग करता है जो कर्मचारियों के लिए लाभप्रद है। कर्मचारी कानूनी मानकों के अनुरूप अपने अधिकारी (UPBoardSolutions.com) से किसी चीज की माँग कर सकते हैं। अतः यह कथन
लोकतांत्रिक मूल्यों के सापेक्ष है।

प्रश्न 9.
एक देश के बारे में निम्नलिखित तथ्यों पर गौर करें और फैसला करें कि आप इसे लोकतंत्र कहेंगे या नहीं। अपने फैसले के पीछे के तर्क भी बताएँ।।
(क) देश के सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार है और चुनाव नियमित रूप से होते हैं।
(ख) देश ने अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसियों से ऋण लिया। ऋण के साथ यह एक शर्त जुड़ी थी कि सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य पर अपने खर्चे में कमी करेगी।
(ग)  लोग सात से ज्यादा भाषाएँ बोलते हैं पर शिक्षा का माध्यम सिर्फ एक भाषा है, जिसे देश के 52 फीसदी लोग बोलते हैं।
(घ) सरकारी नीतियों का विरोध करने के लिए अनेक संगठनों ने संयुक्त रूप से प्रदर्शन करने और देश भर में हड़ताल करने का आह्वान किया है। सरकार ने उनके नेताओं को गिरफ्तार कर लिया है।
(ङ) देश के रेडियो और टेलीविजन चैनल सरकारी हैं। सरकारी नीतियों और विरोध के बारे में खबर छापने के लिए अखबारों को सरकार से अनुमति लेनी होती है।
उत्तर:
(क) सभी नागरिकों को समानता के सिद्धान्त पर मताधिकार देना और नियमित चुनाव लोकतांत्रिक प्रणाली के अनुरूप है परन्तु चुनाव स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष होना चाहिए।
(ख)वह देश लोकतांत्रिक हो सकता है यदि ऋण लेने वाली सरकार जनता द्वारा निर्वाचित है।
(ग)  वह राज्य लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता क्योंकि नागरिकों को अपनी भाषा में शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नहीं है।
(घ) सभी लोकतांत्रिक राज्य अपने नागरिकों को हड़ताल करने का अधिकार देते हैं, इससे राज्य अलोकतांत्रिक नहीं बन जाता।
(ङ) यह अलोकतांत्रिक है। रेडियो तथा टेलीविजन सरकारी नहीं होना चाहिए। लोगों को समाचार-पत्रों, रेडियो तथा टेलीविजन द्वारा अपने विचार प्रकट करने तथा सरकार की जन-विरोधी नीतियों की आलोचना करने का पूरा अवसर मिलना चाहिए।

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प्रश्न 10.
अमेरिका के बारे में 2004 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार वहाँ के समाज में असमानता बढ़ती जा रही है।
आमदनी की असमानता लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विभिन्न वर्गों की भागीदारी घटने-बढ़ने के रूप में भी सामने आई। इन समूहों की सरकार के फैसलों पर असर (UPBoardSolutions.com) डालने की क्षमता भी इससे प्रभावित हुई है। इस रिपोर्ट की मुख्य बातें थीं
(क) सन् 2004 में एक औसत अश्वेत परिवार की आमदनी 100 डालर थी जबकि गोरे परिवार की आमदनी 162 डालर/औसत गोरे परिवार के पास अश्वेत परिवार से 12 गुना ज्यादा सम्पत्ति थी।

(ख) राष्ट्रपति चुनाव में 75,000 डालर से ज्यादा आमदनी वाले परिवारों के प्रत्येक 10 में से 9 लोगों ने वोट डाले थे। यही लोग आमदनी के हिसाब से समाज के ऊपरी 20 फीसदी में आते हैं। दूसरी ओर 15,000 डालर से कम आमदनी वाले परिवारों के प्रत्येक 10 में से सिर्फ 5 लोगों ने ही वोट डाले। आमदनी के हिसाब से ये लोग सबसे निचले 20 फीसदी हिस्से में आते हैं।

(ग) राजनैतिक दलों का करीब 95 फीसदी चंदा अमीर परिवारों से ही आता है। इससे उन्हें अपनी राय और चिंताओं से नेताओं को अवगत कराने का अवसर मिलता है। यह सुविधा देश के अधिकांश नागरिकों को उपलब्ध नहीं है।

(घ) जब गरीब लोग राजनीति में कम भागीदारी करते हैं तो सरकार भी उनकी चिंताओं पर कम ध्यान देती हैगरीबी दूर करना, रोजगार देना, उनके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास की व्यवस्था करने पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना दिया जाना चाहिए। राजनेता अक्सर अमीरों और व्यापारियों की चिंताओं पर ही नियमित रूप से गौर करते हैं।

इस रिपोर्ट की सूचनाओं को आधार बनाकर और भारत के उदाहरण देते हुए ‘लोकतंत्र और गरीबी’ पर एक लेख लिखें।
उत्तर:
भारत में आर्थिक आधार पर अत्यधिक असमानता पायी जाती है। समाज में एक वैभवशाली, साधन सम्पन्न विलासी वर्ग है तो वहीं ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें वक्त की रोटी भी मुश्किल से मिल पाती है। इससे स्पष्ट है कि लोगों की आय में अत्यधिक असमानता पायी जाती है। मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार भारत में 26 प्रतिशत लोग गरीबी की श्रेणी में आते हैं। निर्धनता अनेक सामाजिक (UPBoardSolutions.com) और आर्थिक बुराइयों को जन्म देती है।
निर्धन व्यक्ति को हमेशा अपने भरणपोषण की चिन्ता सताती रहती है। ऐसे में उसके पास समाज और देश की समस्याओं के बारे में विचार करने का न तो समय होता है और न ही इच्छा।
गरीब व्यक्ति चुनाव लड़ना तो दूर उसके बारे में मुश्किल से सोच पाता है क्योंकि उसके सामने आर्थिक समस्याओं का पहाड़ खड़ा रहता है। राजनीतिक दल पूँजीपतियों से पार्टी फण्ड में चन्दा लेते हैं, इसलिए यह आम धारणा है कि सरकार पर पूँजीपतियों का नियंत्रण है। प्रत्येक राजनीतिक दल गरीबों की गरीबी का राजनीतिक लाभ उठाना चाहता है।
चुनाव के समय सभी राजनीतिक दल गरीबी उन्मूलन की बात तो करते हैं किन्तु सत्ता में आने के बाद वे अपने इस वायदे को भूल जाते हैं। निर्धनता ने अनेक हिंसात्मक आन्दोलनों को जन्म दिया है। निश्चय ही निर्धनता भारतीय लोकतन्त्र की सफलता में बहुत बड़ी बाधा है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सार्वभौम वयस्क मताधिकार से क्या आशय है?
उत्तर
भारत में 18 वर्ष से अधिक की आयु का कोई भी नागरिक चाहे वह किसी भी जाति, रंग, सम्प्रदाय या सामाजिक स्थिति का हो उसे मतदान का अधिकार है।

प्रश्न 2.
डेमोक्रेसी शब्द की उत्पत्ति किस भाषा के शब्द से हुई है?
उत्तर
डेमोक्रेसी शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द डीमोस (Demos) तथा क्रेशिया (Cratia) से हुई है, ‘डीमोस’ का अर्थ है जनता (लोग) तथा ‘क्रेशिया’ का अर्थ है शासन। अतः लोकतंत्र वह शासन प्रणाली है जिसमें देश का शासन जनता के हाथों में होता है।

प्रश्न 3
अधिनायकवाद ( तानाशाही ) का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तानाशाही शासन का वह रूप है जिसमें शासन की सत्ता एक ही व्यक्ति अथवा एक ही राजनैतिक दल के हाथों में होती है। तानाशाह (अधिनायक) अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता है और वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। नागरिकों को तानाशाह अथवा (UPBoardSolutions.com) उसकी नीतियों की आलोचना करने का अधिकार नहीं होता। उसका कार्यकाल निश्चित नहीं होता और वह तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक शासन की शक्ति उसके हाथों में रहती है।

प्रश्न 4.
लोकतांत्रिक सरकार की सीमाएँ बताइए।
उत्तर:
एक लोकतांत्रिक सरकार संवैधानिक कानूनों एवं नागरिक अधिकारों के दायरे में रहते हुए शासन करती है। इसमें कानून का शासन होता है जिससे सरकार संवैधानिक कानूनों एवं नागरिक अधिकारों के दायरे में रहते हुए शासन करती है।

प्रश्न 5.
लोकतन्त्र लोगों की गरिमा में वृद्धि करता है। व्याख्या करें।
उत्तर:
राजनीतिक समानता पर आधारित होने के कारण लोकतन्त्र यह स्वीकार करता है कि सबसे निर्धन एवं सबसे कम पढ़े लिखे लोगों की समाज में वही स्थिति है जो अमीर व शिक्षित लोगों की है। लोकतंत्र में लोग शासक की प्रजा नहीं बल्कि स्वयं शासक हैं।

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प्रश्न 6.
लोकतांत्रिक व्यवस्था दूसरों से बेहतर है क्योंकि लोकतंत्र मतभेदों और टकरावों को संभालने का तरीका उपलब्ध कराता है। व्याख्या करें।
उत्तर:
किसी भी समाज में लोगों के हितों और विचारों में अन्तर होता है। भारत की तरह भारी सामाजिक विविधता वाले देश में इस तरह का अन्तर और भी ज्यादा होता है। भारत में विभिन्न भाषा, क्षेत्र, जाति, धर्म के लोग रहते हैं। इनके रहन-सहन में भी अन्तर है। एक समूह की पसंद और दूसरे (UPBoardSolutions.com) समूह की पसंद में टकराव भी होता है। लोकतन्त्र इस समस्या का एकमात्र शांतिपूर्ण समाधान उपलब्ध कराता है। लोकतांत्रिक सरकार विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच सामंजस्य कराता है।

प्रश्न 7.
बेहतर सरकार और सामाजिक जीवन पर प्रभाव की दृष्टि से तीन तर्क दीजिए जो लोकतन्त्र को सुदृढ़ सिद्ध करते हैं।
उत्तर:
(क) लोकतांत्रिक व्यवस्था में नागरिक अधिकार और सम्मान में वृद्धि होती है।
(ख) लोकतन्त्र में अन्य शासकीय व्यवस्थाओं की तुलना में नागरिक की स्थिति अच्छी होती है।
(ग) लोकतन्त्र राजनीतिक समानता के सिद्धान्त पर आधारित है, यहाँ सबसे गरीब और अनपढ़ को भी वही दर्जा प्राप्त है जो अमीर और पढ़े लिखे लोगों को है। लोग किसी शासक की प्रजा न होकर खुद अपने शासक हैं।

प्रश्न 8.
लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी गलती सुधारने का अवसर मिलता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ऐसा कोई शासन तन्त्र नहीं जिसमें शासन तन्त्र से कोई गलती न हो चाहे वह लोकतन्त्र ही क्यों न हो। लेकिन लोकतन्त्र में गलतियों पर विचार-विमर्श करने और उसे सुधारने की संभावना अन्तर्निहित होती है। इसका आशय यह है कि या तो शासक समूह अपना निर्णय बदले या फिर शासक समूह को ही बदला जा सकता है। गैरलोकतांत्रिक सरकारों में ऐसा नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 9.
जिम्बाब्वे की लोकतांत्रिक व्यवस्था ने किस तरह का उदाहरण प्रस्तुत किया है?
उत्तर:
जिम्बाब्वे लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए यह उदाहरण प्रस्तुत करता है कि शासकों द्वारा जनता का विश्वास पाने के लिए बार-बार जनादेश पाना लोकतन्त्र की एक आवश्यकता है पर इतना ही पर्याप्त नहीं है। लोकप्रिय नेता भी अलोकतांत्रिक हो सकते हैं। लोकप्रिय नेता भी तानाशाह हो सकते हैं। जिम्बाब्वे के नेता रॉबर्ट मुगाबे अत्यधिक लोकप्रिय नेता हैं। स्वतन्त्रता के बाद से ही शासन कर रहे हैं। चुनाव नियमित रूप से होते हैं और सदा जानु पी. एफ. दल ही चुनावों में जीतता आया है। चुनाव जीतने के लिए गलत तरीके भी अपनाए जाते हैं। अतः यह उदाहरण लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अच्छा संदेश नहीं है।

प्रश्न 10.
मैक्सिको में पी. आर. आई. पार्टी निरन्तर 2000 ई. से किस तरह से सत्ता में बनी हुई है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मैक्सिको का यह राजनीतिक दल चुनाव में हर तरह के हथकण्डे अपनाकर किसी न किसी तरह चुनाव जीतने का प्रयास करती रही है और इसमें सफल भी रही थी। सरकारी कार्यालयों में काम करने वाले सभी लोगों के लिए पार्टी की बैठकों में जाना (UPBoardSolutions.com) अनिवार्य था। सरकारी स्कूलों के अध्यापक अपने विद्यार्थियों के माता-पिता से पी.आर.आई. को वोट देने को कहते थे। कई बार अन्तिम क्षणों में मतदान केन्द्रों को एक जगह से हटाकर दूसरी जगह कर दिया जाता था जिससे अनेक लोग वोट नहीं डाल पाते थे। पी.आर.आई. राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों के चुनाव अभियान में काफी धन खर्च करती थी।

प्रश्न 11.
चीन में सांसद का चुनाव किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
चीन की संसद ‘राष्ट्रीय जन संसद’ कहलाती है। चीन की संसद हेतु प्रत्येक पाँचवें वर्ष नियमित रूप से चुनाव होता है। इस संसद को देश का राष्ट्रपति नियुक्त करने का अधिकार है। इसमें पूरे देश से लगभग 3,000 सदस्य आते हैं। कुछ सदस्यों का चुनाव सेना (UPBoardSolutions.com) भी करती है। चुनाव लड़ने से पहले सभी उम्मीदवारों को चीनी कम्युनिष्ट पार्टी से मंजूरी लेनी होती है। 2002-03 ई. में हुए चुनावों में सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी और उससे सम्बद्ध कुछ छोटी पार्टियों के सदस्यों को ही चुनाव लड़ने की अनुमति मिली। सरकार सदा कम्युनिष्ट पार्टी की ही बनती है।

प्रश्न 12.
ऐसे दो देशों का उदाहरण दीजिए जहाँ नागरिकों को मतदान के समान अधिकार नहीं हैं?
उत्तर:
एस्टोनिया ने अपने यहाँ नागरिकता के नियम कुछ इस तरह बनाए हैं कि रूसी अल्पसंख्यक समाज के

  1. लोगों को मतदान का अधिकार हासिल करने में मुश्किल होती है।
  2. फिजी की चुनाव प्रणाली में वहाँ के मूल निवासियों के वोट का महत्त्व भारतीय मूल के फिजी नागरिक के वोट से ज्यादा है।

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प्रश्न 13.
अर्थशास्त्रियों के अनुसार चीन में पड़े भयंकर अकाल के कारण तीन करोड़ से अधिक लोगों के मरने का प्रमुख कारण क्या था?
उत्तर:
अर्थशास्त्रियों के अनुसार चीन में पड़े भयंकर अकाल के कारण तीन करोड़ से अधिक लोगों के मरने का मुख्य कारण वहाँ पर साम्यवादी शासन व्यवस्था को माना गया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
लोकतन्त्र की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
लोकतन्त्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं–

  1.  एक लोकतांत्रिक देश में प्रत्येक वयस्क नागरिक को एक वोट देने का अधिकार है और प्रत्येक वोट का समान | महत्त्व है। कोई भी नागरिक किसी भी जाति, धर्म, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक पृष्ठभूमि का हो वह किसी भी पद के लिए चुनाव लड़ सकता है जिसका अर्थ यह है कि सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार प्राप्त है।
  2. एक लोकतांत्रिक सरकार संवैधानिक कानूनों एवं नागरिक अधिकारों के दायरे में रहते हुए शासन करती है।
  3. लोकतांत्रिक देशों में शासकों का चयन जनता करती है जो सभी महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं।
  4.  इसमें स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव होते हैं। चुनाव लोगों के सामने वर्तमान शासकों को बदलने का एक विकल्प एवं अच्छा अवसर (UPBoardSolutions.com) प्रदान करते हैं।
  5. चुनाव के पहले और बाद में भी विपक्षी दलों को स्वतन्त्र रूप से काम करते रहने की अनुमति है।
  6.  इसमें अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होती है और लोग मौलिक अधिकारों का प्रयोग करते हैं।
  7. ऐसी सरकारें राजनैतिक समानता के मौलिक सिद्धान्त पर आधारित होते हैं।

प्रश्न 2.
लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रमुख दोषों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रमुख दोष इस प्रकार हैं

  1. लोकतंत्र भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है क्योंकि यह चुनावी प्रतिस्पर्धा पर आधारित है।
  2. निर्वाचित नेता लोगों के सर्वश्रेष्ठ हितों से परिचित नहीं होते हैं। ऐसे में वे अनेक गलत निर्णय करते हैं जिससे जन
    सामान्य को कष्ट होता है।
  3.  लोकतन्त्र में नेता बदलते रहते हैं। यह अस्थिरता का कारण बनता है।
  4. लोकतन्त्र राजनैतिक प्रतिद्वन्दिता एवं शक्ति का खेल है। इसमें नैतिकता के लिए कोई स्थान नहीं है।
  5.  जनसाधारण को यह पता नहीं होता है कि उनके लिए क्या करना अच्छा है, उन्हें कोई निर्णय नहीं लेने दिया जाता है।

प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष लोकतन्त्र को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष लोकतन्त्र में राज्य की इच्छा जनता द्वारा आम सभाओं के माध्यम से प्रकट की जाती है। इसमें जनता अपने प्रतिनिधियों को निर्वाचित करके नहीं भेजती, वरन् स्वयं एकत्रित होकर अधिकारियों को नियुक्त करती है, कर निर्धारित करती है तथा (UPBoardSolutions.com) कानून बनाती है।
ऐसा प्रजातन्त्र छोटे-छोटे राज्यों में ही स्थापित किया जा सकता है। प्राचीन यूनान तथा रोम के नगर-राज्यों में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र प्रणाली प्रचलित थी। आधुनिक राष्ट्र राज्यों में इसे लागू नहीं किया जा सकता फिर भी स्विट्जरलैण्ड के कुछ कैंटनों, अमेरिका तथा रूस के कुछ राज्यों तथा गणतन्त्रों में प्रत्यक्ष प्रजातंत्र की व्यवस्था है।
प्रत्यक्ष प्रजातंत्र के आधुनिक साधनों में जनमत संग्रह, प्रस्तावाधिकार तथा प्रत्यावर्तन के साधन हैं। इन साधनों द्वारा मतदाता कानून के निर्माण में प्रत्यक्ष रूप से भाग ले सकते हैं। जनमत संग्रह का थोड़ा-बहुत प्रयोग अन्य देशों में भी किया जाता है।

प्रश्न 4.
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष (प्रतिनिधि) लोकतन्त्र वर्तमान समय में ऐसे राज्यों में पाया जाता है जहाँ का क्षेत्रफल तथा जनसंख्या अधिक होती है। जनसंख्या व क्षेत्रफल की विशालता के कारण ही अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र का विकास हुआ, जिसमें मतदाता अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं, जो देश का शासन चलाते हैं।
ये प्रतिनिधि एक निश्चित समय के लिए चुने जाते हैं। यदि ये प्रतिनिधि जनता की इच्छानुसार या जनमत के अनुसार कार्य नहीं करते तो अगले चुनाव में जनता उन्हें वोट नहीं करेगी और वे चुनाव हार कर सत्ता से बाहर हो जायेंगे। इस तरह जनता के प्रतिनिधि जनता के प्रति उत्तरदायी बने रहते हैं। वर्तमान समय में जहाँ भी प्रजातंत्रात्मक शासन प्रणाली अपनायी गयी है वहाँ प्रतिनिधि प्रजातन्त्र प्रणाली ही पायी जाती है।

प्रश्न 5.
भारत में लोकतन्त्र का भविष्य बताइए।
उत्तर:
यद्यपि भारत के लोकतांत्रिक विकास के मार्ग में अनेक बाधाएँ हैं लेकिन भारत में अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत में लोकतन्त्र का भविष्य उज्ज्वल है। ये सभी चुनाव प्रायः स्वतन्त्र और निष्पक्ष रूप से कराए गए हैं।
न केवल भारतीय जनता बल्कि राजनीतिक दलों को भी लोकतन्त्र में दृढ़ विश्वास है। भारतीय मतदाता अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए आंदोलन करने तथा बड़ी-से-बड़ी कुरबानी देने के लिए तैयार रहते हैं। चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग की स्थापना की गई है जो पूर्ण रूप से निष्पक्ष होकर कार्य करता है। भारत में न्यायपालिका भी स्वतन्त्र है जो (UPBoardSolutions.com) लोकतन्त्र पर होने वाले किसी भी आघात को रोकती है। यद्यपि भारत के अधिकांश लोग अशिक्षित हैं, परन्तु वे राजनीतिक दृष्टि से जागरुक हैं। ऐसी स्थिति में भारतीय लोकतन्त्र के सफल भविष्य के बारे में चिंता की कोई बात नहीं है।

प्रश्न 6.
लोकतन्त्र की त्रुटियों को कैसे सुधारा जा सकता है?
उत्तर:
लोकतन्त्र स्वयं की गलतियों को सुधारने की अनुमति देता है। इसकी कोई गारंटी नहीं है कि लोकतन्त्र में कोई गलती नहीं हो सकती। सरकार का कोई भी स्वरूप इसकी गारण्टी नहीं दे सकता। लोकतन्त्र का गुण यह है कि ऐसी गलतियाँ लम्बे समय तक छिपी नहीं रहतीं। इन गलतियों पर सार्वजनिक चर्चा की जा सकती है और गलती सुधारने का अवसर भी उपलब्ध रहता है या तो शासकों को अपने निर्णय बदलने पड़ते हैं अन्यथा शासकों को बदल दिया जाता है।

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प्रश्न 7.
“लोकतन्त्र मतभेदों एवं विवादों से निपटने का तरीका उपलब्ध कराता है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी भी समाज के लोगों में मत एवं हितों में विवाद हो सकता है। भारत में ये मतभेद और भी गहरे हैं। लोग विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्ध रखते हैं, वे अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं, अलग-अलग धर्म का पालन करते हैं और वे विभिन्न जातियों से सम्बन्ध रखते हैं।
एक समूह की प्राथमिकता दूसरे समूह के साथ टकराव का कारण बन सकती है। इस विवाद को बल प्रयोग से भी हल किया जा सकता है। जो भी समूह अधिक शक्तिशाली होगा वह अपनी शर्ते मनवा लेगा और दूसरे लोगों को इसे स्वीकार करना होगा। किन्तु यह आक्रोश का कारण बनेगा। (UPBoardSolutions.com) लोकतन्त्र इस समस्या का एकमात्र शांतिपूर्ण हल उपलब्ध कराता है। लोकतन्त्र में कोई भी स्थायी विजेता नहीं होता। विभिन्न समूह परस्पर शांतिपूर्वक रह सकते हैं। भारत जैसे विविधता । भरे देश में लोकतन्त्र विभिन्न प्रकार के लोगों को एक साथ रहने में मदद करता है।

प्रश्न 8.
“1958-1961 ई. के बीच का चीन का अकाले सरकारी नीतियों का परिणाम था।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चीन में 1958 से 1961 ई. के बीच भीषण अकाल पड़ा। इस अकाल में लगभग 3 करोड़ लोग मारे गये। उस समय चीन की अर्थव्यवस्था भारत की अर्थव्यवस्था से अच्छी नहीं थी। चीन में लोकतांत्रिक व्यवस्था न होने के कारण सरकार लोगों की अधिक फिक्र नहीं करती थी। यदि चीन में बहुदलीय चुनावी व्यवस्था होती, विपक्षी दल होता और सरकार की आलोचना कर सकने वाली स्वतन्त्र मीडिया होती तो इतने सारे लोग भूख से नहीं मरे होते।

प्रश्न 9.
लोकतन्त्र को सरकार के अन्य स्वरूपों की अपेक्षा बेहतर क्यों माना जाता है?
उत्तर:
लोकतन्त्र को सरकार के अन्य स्वरूपों से बेहतर इसलिए माना जाता है क्योंकि यह लोगों की आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करता है। लोकतन्त्र शासक या (UPBoardSolutions.com) तानाशाह की सनक पर निर्भर नहीं है। लोकतन्त्र लोगों के लिए है तथा एक लोकतांत्रिक सरकार सदैव लोगों के प्रति उत्तरदायी है जिसका विवरण इस प्रकार है

  1. यह राजनैतिक समानता के सिद्धान्त पर आधारित है जो यह स्वीकार करता है कि सबसे निर्धन एवं सबसे कम पढ़े-लिखे लोगों की भी समाज में वही स्थिति है जो अमीर व शिक्षित लोगों की है। इस प्रकार लोकतंत्र नागरिकों की गरिमा में वृद्धि करता है।
  2.  लोकतन्त्र सरकार के अन्य स्वरूपों की अपेक्षा बेहतर है क्योंकि यह हमें इसकी गलती सुधारने का अवसर प्रदान करती है।
  3.  लोकतन्त्र मतभेदों एवं विवादों से निपटने का तरीका उपलब्ध कराता है।
  4.  लोकतन्त्र निर्णय लेने की गुणवत्ता में सुधार करता है क्योंकि यह मंत्रणा एवं परिचर्चा पर आधारित होता है।
  5. लोकतन्त्र प्रत्येक समस्या का शान्तिपूर्ण समाधान उपलब्ध कराता है। यह भारत जैसे देश के लिए उपयुक्त है जिसमें भाषा, धर्म एवं संस्कृति आधारित भिन्नताएँ पायी जाती हैं। भारतीय लोकतन्त्र ने भिन्नता में एकता बनाए रखते हुए एक शांतिपूर्ण समाज उपलब्ध कराया है।

प्रश्न 10.
किन्हीं दो देशों के नाम बताएँ जहाँ नियमित रूप से चुनाव कराए जाते हैं किन्तु उन्हें लोकतांत्रिक देश नहीं कहा जा सकता? इसके कारण भी बताएँ।
उत्तर:
चीन और मैक्सिको लोकतांत्रिक देश नहीं हैं क्योंकि चीन में चुनाव लोगों को कोई गम्भीर विकल्प उपलब्ध नहीं कराते। उन्हें शासन कर रहे दल (कम्युनिस्ट पार्टी) और उसके द्वारा अनुमोदित उम्मीदवारों को ही चुनना पड़ता है। मैक्सिको में 1930 (इसकी आजादी के दिन से) से सन् 2000 तक प्रत्येक चुनाव में पी. आर. आई. (इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी) ही विजयी होती आई थी क्योंकि विपक्षी दल कभी भी जीत ही नहीं पाए। पी.आर.आई. चुनाव में गन्दे हथकण्डे अपनाकर जीतने के लिए कुख्यात थी। किसी प्रकार (UPBoardSolutions.com) के चुनाव कराना ही पर्याप्त नहीं है। अपितु चुनाव में उपलब्ध विकल्पों में से किसी एक को चुनने की स्थिति भी होनी चाहिए। किन्तु मैक्सिको में शासक दल को पराजित नहीं किया जा सकता था, चाहे लोग उसके विरुद्ध ही क्यों न हों। इसलिए लोकतन्त्र एक स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव पर आधारित होना चाहिए जिसमें सत्ताधारी दल के हार जाने के भी पूर्ण अवसर हों। लेकिन चीन और मैक्सिको में ऐसा नहीं है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतांत्रिक एवं अलोकतांत्रिक सरकारों के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लोकतांत्रिक एवं अलोकतांत्रिक सरकारों के मध्य अन्तर लोकतांत्रिक सरकार
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 2 लोकतंत्र लोकतन्त्र क्या? लोकतंत्र क्यों?

प्रश्न 2.
भारतीय लोकतन्त्र की प्रमुख समस्याएँ बताइए तथा उन समस्याओं को दूर करने के उपाय बताइए।
उत्तर:
भारतीय लोकतन्त्र की प्रमुख समस्याएँ इस प्रकार हैं

  1. असामाजिक तत्वों की भूमिका- चुनावों में असामाजिक तत्वों की भूमिका बहुत बढ़ गयी है। चुनावों के दौरान मतदाताओं पर किसी व्यक्ति विशेष के पक्ष में मतदान करने के लिए दबाव डाला जाता है। चुनाव के दौरान मत खरीदे और बेचे जाते हैं और मतदान केन्द्रों पर कब्जा किया जाता है।
  2. जातिवाद और सम्प्रदायवाद- जातिवाद एवं सम्प्रदायवाद भारतीय लोकतन्त्र के सम्मुख उपस्थित एक गम्भीर समस्या है। चुनाव के लिए प्रत्याशियों का चयन करते समय सभी राजनीतिक दल जातीय समीकरण को महत्त्व देते हैं। मतदाता भी मतदान करते समय जातिवाद तथा सम्प्रदायवाद से प्रभावित होकर मतदान करते हैं। कई राजनीतिक दलों का गठन भी सम्प्रदाय तथा जातिवाद के आधार पर किया गया है। जातिवाद के आधार पर लोगों में आपसी झगड़े होते रहते हैं जो लोकतन्त्र की बड़ी समस्या का कारण बनते हैं।
  3. सामाजिक तथा आर्थिक असमानता- किसी भी देश में लोकतन्त्र की सफलता के लिए सामाजिक एवं आर्थिक समानता का होना अनिवार्य होता है। भारत में इसका अभाव है। समाज में सभी नागरिकों को समान नहीं समझा जाता। जाति, धर्म तथा वंश आदि के आधार पर नागरिकों में भेदभाव किया जाता है। आर्थिक दृष्टि से अमीर तथा गरीब की खाई बहुत बड़ी है।
  4. निरक्षरता- भारत में बहुत बड़ी संख्या में लोग अनपढ़ हैं। उन्हें अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों के बारे में पूरा ज्ञान नहीं है। अनपढ़ व्यक्ति देश की समस्याओं को ठीक प्रकार से नहीं समझ सकते। उनका दृष्टिकोण संकुचित होता है और वे जातिवाद, भाषावाद तथा (UPBoardSolutions.com) सम्प्रदायवाद की भावनाओं में पड़े रहते हैं। अनपढ़ता के कारण देश में राजनीतिक समस्याओं के बारे में स्वस्थ जनमत का निर्माण नहीं हो सकता। अतः निरक्षरता लोकतन्त्र की सफलता में बाधक बनती है।

लोकतंत्र की समस्याओं को दूर करने के उपाय

  1. सरकार द्वारा लोकतन्त्र में व्याप्त समस्याओं के निराकरण के लिए निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं|
  2.  चुनावों में धर्म तथा जाति के प्रयोग में कड़ी पाबन्दी लगा देनी चाहिए, धर्म अथवा जाति के आधार पर राजनैतिक । दलों के गठन को रोका जाए और चुनावों के दौरान धर्म अथवा जाति के आधार पर वोट माँगने वाले उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर देना चाहिए।
  3. नागरिकों में सामाजिक व आर्थिक असमानता को दूर करने के उपाय करने चाहिए।
  4. नागरिकों को शिक्षित करने का प्रबन्ध करना चाहिए। शिक्षित तथा राजनीतिक दृष्टि से जागरूक नागरिक ही कुशल ईमानदार तथा निःस्वार्थी प्रतिनिधियों का चुनाव कर सकते हैं।
  5. समाज में लोकतंत्रीय मूल्यों का विकास करना चाहिए, प्रत्येक नागरिक को चाहिए कि वह अन्य नागरिकों के अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं का आदर करें।

प्रश्न 3.
लोकतन्त्र किसे कहते हैं? लोकतन्त्र के गुण-दोषों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लोकतन्त्र से आशय-वह शासन पद्धति जिसमें शासक लोगों द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं, को लोकतन्त्र कहते हैं। इस प्रकार लोकतन्त्र का अर्थ है लोगों द्वारा शासन। लोकतंत्र के गुण :

  1.  लोकतन्त्र में किसी की भी जय या पराजय स्थायी नहीं होती।
  2. लोकतन्त्र मतभेदों एवं विवादों से निपटने का तरीका उपलब्ध कराती है।
  3.  लोकतन्त्र नागरिकों की गरिमा में वृद्धि करता है क्योकि यह राजनैतिक समानता के सिद्धान्त पर आधारित है जो
    यह स्वीकार करता है कि सबसे निर्धन एवं सबसे कम पढ़े-लिखे लोगों की भी समाज में वही स्थिति है जो अमीर | व शिक्षित लोगों की है। लोग किसी शासक की प्रजा नहीं हैं अपितु वे स्वयं शासक हैं।
  4.  लोकतन्त्र लोगों की जरूरतों को प्रत्युत्तर देती है। एक लोकतांत्रिक सरकार सदैव लोगों के प्रति जवाबदेह है।
  5. लोकतन्त्र निर्णय करने की गुणवत्ता में सुधार लाती है क्योंकि ये संविधान एवं परिचर्चा पर आधारित होते हैं।
  6. लोकतन्त्र प्रत्येक समस्या का शांतिपूर्ण समाधान उपलब्ध कराता है। यह भारत जैसे देश के लिए उपयुक्त है जिसमें भाषा, धर्म एवं संस्कृति आधारित भिन्नताएँ पायी जाती हैं।

भारतीय लोकतन्त्र ने भिन्नता में एकता बनाए रखते हुए एक शांतिपूर्ण समाज उपलब्ध कराया है।

  1.  लोकतन्त्र भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है क्योंकि यह चुनावी प्रतिस्पर्द्ध पर आधारित है।
  2. जनसाधारण को पता नहीं होता कि उनके लिए क्या अच्छा है; न ही उन्हें कोई निर्णय लेने का समय होता है।
  3. लोकतन्त्र में नेता बदलते रहते हैं। यह अस्थिरता का कारण बनता है।
  4.  लोकतन्त्र राजनैतिक प्रतिद्वन्द्विता एवं शक्ति का खेल है। इसमें नैतिकता के लिए कोई स्थान नहीं है।
  5. निर्वाचित नेता लोगों के सर्वश्रेष्ठ हितों से परिचित नहीं होते। यह गलत निर्णयों का कारण बनता है।

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प्रश्न 4.
‘लोकप्रिय सरकारें अलोकतांत्रिक हो सकती हैं और लोकप्रिय नेता स्वेच्छाचारी हो सकते हैं।’ जिम्बाब्वे के सन्दर्भ में इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जिम्बाब्वे ने सन् 1980 में स्वतन्त्रता प्राप्त की। इस देश में तभी से जानु पी. एफ. दल का शासन है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से इस देश पर रॉबर्ट मुगाबे का शासन है। जिम्बाब्वे में नियमित रूप से चुनाव कराए जा रहे हैं और हर बार रॉबर्ट मुगाबे का दल चुनाव में विजयी हो रहा है।
रॉबर्ट मुगाबे यद्यपि अपने देश में लोकप्रिय है किन्तु वह चुनाव में अनुचित साधनों का प्रयोग करता है। राष्ट्रपति की शक्तियाँ बढ़ाने और उसे कम जवाबदेह बनाने के लिए संविधान में कई बार संशोधन किए जा चुके हैं। विपक्षी दल के कार्यकर्ताओं को सताया जाता है और उनकी सभाओं को तितर-बितर किया जाता है। सरकार विरोधी प्रदर्शनों एवं आन्दोलनों को गैर कानूनी घोषित (UPBoardSolutions.com) कर दिया गया है। राष्ट्रपति की आलोचना का अधिकार सीमित है।
मीडिया पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में है और केवल सत्ताधारी दल की विचारधारा का प्रसार करते हैं। स्वतन्त्र अखबारों को सत्ताधारी दल के विरुद्ध कुछ भी लिखने पर सताया जाता है। सरकार न्यायालय के ऐसे फैसलों की परवाह नहीं करती जो उसके विरुद्ध जा रहे हों और जजों पर दबाव डाला जाता है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि लोकतन्त्र में शासकों का लोकप्रिय अनुमोदन किया जाए, यही पर्याप्त नहीं है। लोकप्रिय सरकारें आलोकतांत्रिक हो सकती हैं और लोकप्रिय नेता स्वेच्छाचारी हो सकता है।

प्रश्न 5.
क्या लोकतांत्रिक व्यवस्था सभी राज्यों के लिए उपयुक्त है?
उत्तर:
अनेक लोगों का विचार है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था केवल उन्हीं देशों के लिए उपयुक्त है जो आर्थिक तथा औद्योगिक दृष्टि से विकसित हैं। उनके विचार में यह प्रणाली भारत एवं पाकिस्तान जैसे विकासशील देशों के लिए उपयुक्त नहीं है। उन विचारकों का कहना है कि देश का ठीक तथा शीघ्र (UPBoardSolutions.com) विकास तानाशाही शासन में ही संभव है क्योंकि उसमें अनुशासन रहता है और निर्णय शीघ्र किया जा सकता है। वाद-विवाद में समय नष्ट नहीं करना पड़ता और निर्णय लेते समय सरकार को अगले चुनावों को ध्यान में रखना पड़ता है। किन्तु यह विचार उपयुक्त नहीं है।

यदि हम संयुक्त-राज्य अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा भारत जैसे लोकतंत्रीय देशों की ओर ध्यान करें तो हमें यह बात स्पष्ट दिखाई देगी कि इन देशों की सरकारें देश के विकास के लिए बहुत अच्छा कार्य कर रही हैं। सरकार द्वारा नागरिकों की भलाई के लिए अनेक योजनाएँ लागू की गई हैं और लोगों को समान रूप से शिक्षा तथा रोजगार के अवसर दिए जा रहे हैं।
इसके दूसरी ओर तानाशाही शासन में तानाशाह द्वारा नागरिकों की भलाई की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता और लोगों को भी सरकार की आलोचना करने का अधिकार नहीं होती। देश के विकास की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता और थोड़ा-बहुत विकास का लाभ तानाशाह तथा शासक दल के अन्य सदस्यों द्वारा हथिया लिया जाता है। वे गैर-कानूनी तथा भ्रष्ट उपायों से धन इकट्ठा करने में लगे रहते हैं।

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