UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 उपसर्ग-प्रकरण (व्याकरण)

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Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 7
Chapter Name उपसर्ग-प्रकरण (व्याकरण)
Number of Questions Solved 18
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 उपसर्ग-प्रकरण (व्याकरण)

जो शब्दांश धातु, संज्ञा और विशेषणादि के पूर्व जोड़े जाकर उनके अर्थ में विशेषता उत्पन्न कर देते हैं या सर्वथा अर्थ को बदल देते हैं, उन्हें उपसर्ग कहते हैं; जैसे-‘हार’ से पूर्व (प्र + हार), आ (आ + हार), सम् (सम् + हार), वि (वि * हार), परि (परि + हार)। उपसर्ग लगाने से धातु के अर्थों में अन्तर आ जाता है।

संस्कृत में कुल 22 उपसर्ग माने जाते हैं। उनके नाम और अर्थ इस प्रकार हैं–प्र (अधिक), परा (उल्टा, पीछे), अप (दूर, हीनता, न्यूनता, बुरा), सम् (अच्छी तरह), अनु (पीछे), अव (नीचे, दूर), निस् (बिना, बाहर), निर् (बाहर), दुस् (कठिन), दुर् (बुरा), वि (बिना, अलग), आ-आ (तक, कम), नि (नीचे, निषेध), अधि (ऊपर, श्रेष्ठ), अपि (निकट), अति (बहुत), सु (सुन्दर), उत् (ऊपर); अभि (सामने, ओर), प्रति (ओर, उल्टा), परि. (चारों ओर), उप (निकट)।
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लघुउतरिय प्रश्न संस्कृत व्याकरण

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का अर्थ लिखिए
(अ) सर्वे छात्राः इदानीम् उद्याने विहरन्ति।
(आ) ते उद्यानात् बहूनि फलानि आहरन्ति।
(इ) यदा कोऽपि पशुः उद्याने प्रविशति, उद्यानपालकः तान् लगुडेन प्रहरति।
(ई) अत्र सेवकाः नित्यं जलम् आनयन्ति। ते पादपान् सिञ्चन्ति। समयेन ते फलानि प्रतीक्षन्ते।
(उ) उद्यानपालकः बहु श्रम करोति।
(ऊ) तस्य पुत्रः तम् अनुकरोति।
(ए) यः कोऽपि कार्यं करोति, सः फलं प्राप्नोति।
(ऐ) अध्यापका बालान् उपकरोति, तेषां दुर्वचनानि तिरस्करोति।।
उत्तर:
(अ) सभी छात्र इस समय उद्यान में विहार कर रहे हैं।
(आ) वे उद्यान से बहुत फलों को लेते हैं।
(इ) जब कोई भी पशु उद्यान में प्रवेश करता है, उद्यानपालक (माली) उनको डण्डे के द्वारा मारता है।
(ई) यहाँ सेवक नित्य जल लेने आते हैं। वे पौधों को सींचते हैं। वे समय से फलों की प्रतीक्षा करते हैं।
(उ) उद्यानपालक (माली) बहुत मेहनत करता है।
(ऊ) उसका पुत्रं उसका अनुकरण करती है।
(ए) जो कोई भी कार्य करता है, वह फल प्राप्त करता है।
(ऐ) अध्यापक बालकों का उपकार करता है, उनके दुर्वचनों को दूर करता है।

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प्रश्न 2.
‘उद्यानम्’ पर पाँच वाक्य संस्कृत में लिखिए।
उत्तर:
‘उद्यानम्’ पर पाँच वाक्य निबन्ध-प्रकरण के अन्तर्गत ‘उद्यानम्’ शीर्षक निबन्ध से चुनकर स्वयं लिखिए।

वजनिक प्रश्नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए—
प्रश्न 1.
‘आगच्छति’ शब्द का क्या अर्थ है?
(क) जाता है।
(ख) आता है।
(ग) लौटता है।
(घ) दूर जाता है।

प्रश्न 2.
‘उप’ उपसर्ग का सामान्यतः क्या अर्थ होता है?
(क) छोटा
(ख) निषेध
(ग) विरोध
(घ) अधिक

प्रश्न 3.
‘उद्भवति’ शब्द का क्या अर्थ है?
(क) होता है।
(ख) छिपाता है।
(ग) हराता है।
(घ) उत्पन्न होता है

प्रश्न 4.
उत्पत्ति’ शब्द का क्या अर्थ है?
(क) उड़ता है।
(ख) बैठता है।
(घ) चढ़ता है

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प्रश्न 5.
अध्यक्ष’ शब्द में कौन-सा उपसर्ग लगा है?
(क) अति
(ख) अभि
(घ) अध्य

प्रश्न 6.
‘अति’ उपसर्ग का क्या अर्थ है?
(क) पास
(ख) अधिक
(घ) अच्छा

प्रश्न 7.
‘नि’ उपसर्ग से कौन-सा अर्थ है?
(क) सम्मुख
(ख) श्रेष्ठ
(ग) निषेध
(घ) ऊपर

प्रश्न 8.
‘x’ उपसर्ग से कौन-सा अर्थ ध्वनित होता है?
(क) बुरा
(ख) सम्मुख
(ग) श्रेष्ठ
(घ) ऊपर

प्रश्न 9.
‘सु’ उपसर्ग का कौन-सा अर्थ उचित है?
(क) ऊपर
(ख) अच्छा
(ग) ऊँची
(घ) नीचा

प्रश्न 10.
‘प्रत्यासीदति’ के लिए कौन-सा विकल्प उपयुक्त है?
(क) प्रति
(ख) आ
(ग) प्रति और आ
(घ) प्रत्या

प्रश्न 11.
‘प्रवर्तते’ शब्द का कौन-सा अर्थ उचित है?
(क) देखता है
(ख) वापस जाता है।
(ग) घूमता है।
(घ) शुरू होता है।

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प्रश्न 12.
‘विप्रवदति’ का कौन-सा अर्थ सर्वोपयुक्त है?
(क) झगड़ता हैं।
(ख) ब्राह्मण कहता है।
(ग) चापलूसी करता है।
(घ) उत्तर देता है

प्रश्न 13.
‘परिसरति’ शब्द किस उपसर्ग-धातु के योग से बना है? .
(क) परि और सृ
(ख) प्र और सरति
(ग) परिसर और ति
(घ) परि और सरति

प्रश्न 14.
‘आक्रमति’ शब्द का कौन-सा अर्थ उचित है?
(क) निकलती है।
(ख) आक्रमण करता है।
(ग) मारता है।
(घ) ऊपर जाता है।

प्रश्न 15.
‘समास्यति’ शब्द का क्या अर्थ है?
(क) हराता है
(ख) संक्षिप्त करता है
(ग) जीतता है।
(घ) विलीन होता है।

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प्रश्न 16.
‘परि’ उपसर्ग का कौन-सा अर्थ नहीं है?
(क) आस-पास
(ख) चारों ओर
(ग) बाहर
(घ) पूर्ण
उत्तर:
1. (ख) आता है, 2. (क) छोटा, 3. (घ) उत्पन्न होता है, 4. (क) उड़ता है, 5. (ग) अधि, 6. (ख) अधिक, 7. (ग) निषेध, 8. (घ) ऊपर, 9. (ख) अच्छा , 10. (ग) प्रति और 
आ, 11. (घ)शुरू होता है, 12. (क) झगड़ता है, 13. (क) परि और से, 14. (घ) ऊपर जाता है, 15. (ख) संक्षिप्त करती है, 16. (ग) बाहर।

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 कारक एवं विभक्ति प्रकरण (व्याकरण)

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Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 6
Chapter Name कारक एवं विभक्ति प्रकरण (व्याकरण)
Number of Questions Solved 32
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 कारक एवं विभक्ति प्रकरण (व्याकरण)

विश्व की समस्त भाषाओं में संस्कृत ही एकमात्र ऐसी भाषा है, जिसके वाक्य-विन्यास में कर्ता, क्रिया एवं कर्म को कहीं भी प्रयुक्त किया जा सकता है; अर्थात् इन सबको किसी भी क्रम (UPBoardSolutions.com) में रखने पर वाक्यार्थ नहीं बदलता है। इसके मूल में भाषा का जो तत्त्व सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है, वह कारक है। कारक सम्बन्धी कोई भी त्रुटि संस्कृत में अक्षम्य है; अत: संस्कृत में कारक का ज्ञान होना अत्यावश्यक

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अर्थ व परिभाषा-‘कृ’ धातु में ‘ण्वुल्’ प्रत्यय के योग से कारक शब्द बनता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है—करने वाला। ‘साक्षात् क्रियान्वयित्वं कारकत्वम्’ अर्थात् क्रिया के साथ सीधा सम्बन्ध रखने वाले शब्दों को ही कारक कहते हैं; या दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि वाक्य में संज्ञा, सर्वनाम तथा क्रिया के मध्य पाया जाने वाला सम्बन्ध ही कारक है; यथा–प्रयागे राजा स्वहस्तेन , कोषात् निर्धनेभ्यः वस्त्राणि ददाति।

किसी वाक्य में कारक ज्ञात करने के लिए उसके क्रिया-पद के साथ विभिन्न प्रश्नात्मक पद लगाकर प्रश्न बनाये जाते हैं। उस प्रश्न के उत्तर में जो आता है, वही कारक है। अलग-अलग कारक को ज्ञात करने के लिए क्रिया-पद के साथ अलग-अलग प्रश्नवाचक शब्द लगाकर प्रश्न बनाये जाते हैं। ऊपर दिये गये वाक्य में इसी प्रकार से विभिन्न कारकों को ज्ञात किया जा सकता है–
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 कारक एवं विभक्ति प्रकरण (व्याकरण)

यहाँ पर ‘राजा’ आदि कारक पदों का ‘ददाति’ क्रिया-पद से सम्बन्ध है; अतः ये सभी कारक हैं। क्रिया से सम्बन्ध न होने के कारण ही ‘सम्बन्ध पद’ तथा ‘सम्बोधन पद’ कारक नहीं माने जाते; यथा-दशरथस्य पुत्र: वनम् अगमत्। यहाँ पर ‘दशरथस्य पद का सम्बन्ध ‘पुत्र’ (कर्ता) से तो है, किन्तु ‘अगमत् क्रिया से नहीं। इसी प्रकार प्रभो! रक्षा में प्रभो’ का क्रिया ‘रक्ष’ से कोई सम्बन्ध नहीं है।

इस प्रकार संस्कृत में कुल छः कारक हुए–कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान तथा अधिकरण। इनकी पुष्टि के लिए यह सूत्र कहा गया है

कर्ता कर्म च करणं सम्प्रदानं तथैव च।
अपादानमधिकरणं चेत्याहु कारकाणि षट्॥

विभक्ति- शब्द-रूप प्रकरण में यह बताया जा चुका है कि शब्दों के उत्तर (बाद) में ‘सु’, ‘औ’, ‘जस्’ इत्यादि प्रत्यय लगते हैं। ये प्रत्यय ‘सुपू’ कहलाते हैं। इन्हीं को ‘सुपु विभक्ति’ भी कहा जाता है। इसी प्रकार धातु के उत्तर (बाद) में ‘तिप्’, ‘तस्’, ‘अन्ति’ इत्यादि प्रत्यय लगते हैं। इन्हें ‘तिङ प्रत्यय कहा जाता (UPBoardSolutions.com) है। इन्हीं प्रत्ययों को ‘तिङ’ विभक्ति भी कहते हैं। ये विभक्तियाँ सात होती हैं-प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी तथा सप्तमी।।

प्रत्येक कारक के साथ एक विभक्ति लगती है, इसीलिए कारक और विभक्ति को भ्रमवश एक ही मान लिया जाता है, जब कि ये दोनों अलग-अलग हैं। विभक्तियाँ सात हैं, इसीलिए ‘सम्बन्ध’ को भी लोग कारक मान लेते हैं; क्योंकि इसमें षष्ठी विभक्ति होती है, जब कि वास्तव में ‘सम्बन्ध कारक नहीं है। यदि कारक एवं विभक्ति एक ही होते तो प्रथमा विभक्ति का प्रत्येक शब्द कर्ता या द्वितीया विभक्ति का प्रत्येक शब्द कर्म होता; किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता; उदाहरणार्थ-बालि रामेण हतः। प्रस्तुत वाक्य में ‘बालि’ कर्म है लेकिन उसमें प्रथमा विभक्ति का प्रयोग न होकर तृतीया चिभक्ति का प्रयोग हुआ है।

हिन्दी में कारक पदों के साथ इन विभक्तियों के चिह्न लगते हैं, जिनसे किसी पद में कारक की पहचान होती है, इसीलिए इन चिह्नों को ‘कारक-चिह्न’ कहा जाने लगा। कारक, विभक्ति और उनके चिह्नों को संक्षिप्त रूप में आगे दी गयी तालिका द्वारा समझा जा सकता है–
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 कारक एवं विभक्ति प्रकरण (व्याकरण)

जब कारकों के कारण किसी पद में विभक्ति प्रयुक्त होती है तो उसे ‘कारक-विभक्ति’ कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जब किन्हीं विशेष अव्यय शब्दों के कारण किसी पद में कोई विशेष विभक्ति लगती है तो उसे ‘उपपद विभक्ति’ कहते हैं। यहाँ ध्यान रखने योग्य बात यह है कि उपपद विभक्तियों से कारक विभक्तियाँ प्रबल होती है; यथा-‘रामं नमस्करोति।’

इस वाक्य में ‘न’ के योग के कारण चतुर्थी विभक्ति होनी चाहिए थी, किन्तु यहाँ ‘राम के कर्म होने के कारण उसमें द्वितीया कारक विभक्ति का प्रयोग हुआ है।

यहाँ कारकों का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है तथा उसके साथ ही यह भी समझाया जा रहा है। कि उस कारक में किस नियम से कौन-सी कारक विभक्ति लगती है।

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कर्ता कारक (प्रथमा विभक्ति)

किसी भी क्रिया को स्वतन्त्रतापूर्वक करने वाले को कर्ता कहते हैं। हिन्दी में इसका चिह्न ‘ने’ है; यथा-रहीम ने चोर को पकड़ा। कहीं-कहीं पर इस चिह्न का लोप भी हो जाता है; जैसे—गीतिका खाना खाती है। संस्कृत में कर्ता के तीन पुरुष–प्रथम (सः, तौ, ते, रामः, शिवः रमा आदि), मध्यम (त्वम्, युवाम्, यूयम्), उत्तम (अहम्, आवाम्, वयम्) तथा तीन लिंग-पुंल्लिग, स्त्रीलिंग, नपुंसकलिंग होते हैं।

वाक्य में कर्ता की स्थिति के अनुसार संस्कृत में वाक्य तीन प्रकार के होते हैं–

(1) कर्तृवाच्य- इस वाच्य में कर्ता की प्रधानता होती है और उसमें सदैव प्रथमा विभक्ति ही प्रयुक्त होती है; यथा-अञ्जु पठति।
(2) कर्मवाच्य- इस वाक्य में कर्म की प्रधानता होती है और उसमें सदैव प्रथमा विभक्ति तथा कर्ता में सदैव तृतीया विभक्ति होती है; यथा—रामेण ग्रन्थः पठ्यते।।
(3) भाववाच्य- इस वाक्य में भाव (क्रियात्व) की ही प्रधानता होती है। कर्ता में तृतीया विभक्ति और क्रिया सदैव प्रथम पुरुष, एकवचन (आत्मनेपद) की प्रयुक्त होती है; यथा—कृष्णेन गम्यते।

प्रथमा विभक्ति के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं–

  • ‘सम्बोधने च’ सूत्र के अनुसार सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति होती है; यथा—“भो राजेश! अत्र तिष्ठ।
  • अव्यय के साथ तथा किसी के विशिष्ट नाम को बताने के लिए प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है; यथा-“मदनमोहन मालवीय: महामना’ इति प्रसिद्धः अस्ति।”

कर्म कारक (द्वितीया विभक्ति)

पाणिनि ने कर्मकारक को परिभाषित करते हुए लिखा है कि ‘कर्तुरीप्सिततमं कर्म’; अर्थात् कर्ता जिस पदार्थ को सबसे अधिक चाहता है, वह कर्म है। सरल शब्दों में (UPBoardSolutions.com) कहा जा सकता है कि जिसके ऊपर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता है; उसे कर्म कारक कहते हैं। हिन्दी में, कर्म कारक का चिह्न ‘को’ है; यथा—मोहन ने चोर को देखा। कहीं-कहीं ‘को’ चिह्न का लोप भी देखने को मिलता है; यथा–राम फल खाता है।

कर्मणि द्वितीया सूत्र के अनुसार कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति होती है। कर्म में द्वितीया विभक्ति केवल कर्तृवाच्य में होती है; यथा-“राम:’ फलं खादति।’ कर्मवाच्य में कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है; यथा ‘रामेण ग्रन्थः पठ्यते।” द्वितीया विभक्ति के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं–

(i) ‘अकथितं च सूत्र के अनुसार अप्रधान या गौण कर्म को अकथित कर्म कहते हैं। इसमें भी द्वितीया विभक्ति होती है। यह कर्म कभी अकेला प्रयुक्त नहीं होता, वरन् सदैव मुख्य कर्म के साथ ही प्रयुक्त होता है; यथा-“रामः धेनुं दुग्धं दोग्धि।” इस वाक्य में दूध (दुग्धं) मुख्य कर्म है और ‘दुह्’ धातु के योग के कारण गाय (धेनुं) कथित कर्म है। इस वाक्य से यह स्पष्ट होता है कि ‘दुह द्विकर्मक धातु है। द्विकर्मक धातुओं में 16 धातुएँ तथा इनके अर्थ वाली अन्य धातुएँ (यथा-‘ब्रु’ और ‘कथ्’ धातु के समान अर्थ हैं) सम्मिलित हैं, जो निम्नलिखित हैं

दुह (दुहना), याच् (माँगना), वच् (पकाना), दण्ड् (दण्ड देना), रुध् (रोकना, घेरना), प्रच्छ (पूछना), चि (चुनना, चयन करना), ब्रू (कहना, बोलना), शास् (शासन करना, कहना), जि (जीतना), मेथ् (मथना), मुष (चुराना), नी (ले जाना), ह (हरण करना), कृष् (खींचना), वह (ढोकर ले जाना)

(ii) ‘अधिशीङ्स्थासां कर्म’ सूत्र के अनुसार. शीङ (सोना), स्था (ठहरना) एवं आस् (बैठना) धातुएँ यदि ‘अधि’ उपसर्गपूर्वक आती हैं तो इनके आधार में द्वितीया विभक्ति होती है। यदि ये धातुएँ ‘अधि’ उपसर्गपूर्वक नहीं आती हैं तो इनके आधार में द्वितीया विभक्ति न होकर सप्तमी (UPBoardSolutions.com) विभक्ति प्रयुक्त होती है। . :
(iii) ‘अभितः परितः समया निकषा हा प्रतियोगेऽपि।’ सूत्र के अनुसार अभितः (सब ओर से), परितः (चारों ओर से), समया (निकट), निकषा (समीप), हा (धिक्कार या विपत्ति आने पर), प्रति (ओर) शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।
(iv) ‘कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे’ सूत्र के अनुसार समय और दूरी की निरन्तरता बताने वाले कालवाची और मार्गवाची (दूरीवाची) शब्दों में द्वितीया विभक्ति होती है।

करण कारक (तृतीया विभक्ति)

‘साधकतमं करणम्’ अर्थात् क्रिया की सिद्धि में अत्यन्त सहायक वस्तु अथवा साधन को करण कारक कहते हैं। सरल शब्दों में कह सकते हैं कि जिसकी सहायता से या जिसके द्वारा कार्य पूर्ण होते हैं; उसमें करण कारक होता है तथा उसमें तृतीया विभक्ति होती है। हिन्दी में इसका चिह्न ‘से’ (with) तथा ‘के द्वारा है; यथा-सः हस्ताभ्यां कार्यं करोति (वह हाथों से कार्य करता है)। यहाँ पर हाथों के द्वारा कार्य सम्पन्न हो रहा है; अत: हस्ताभ्याम् में तृतीया विभक्ति है।

तृतीया विभक्ति के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं–

(i) ‘कर्तृकरणयोस्तृतीया’ सूत्र के अनुसार कर्मवाच्य एवं भाववाच्य वाले वाक्यों के कर्ता में तथा सभी प्रकार के करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है; यथा-रामः दण्डेन कुक्कुरं ताडयति (राम डण्डे से कुत्ते को मारता है)। यहाँ करण कारक में तृतीया विभक्ति है। कर्मवाच्य–रामेण ग्रन्थः पठ्यते(राम द्वारा ग्रन्थ पढ़ा जाता है)। भाववाच्य—कृष्णेन सुप्यते (कृष्ण द्वारा सोया जाता है।) यहाँ रामेण और कृष्णेन क्रमशः कर्मवाच्य एवं भाववाच्य के कर्ता हैं; अतः इनमें तृतीया विभक्ति है।

(ii) ‘सहयुक्तेऽप्रधाने’ सूत्र के अनुसार वाक्य में ‘साथ’ को अर्थ रखने वाले ‘सह, साकम्, समम्’ और ‘सार्धम् शब्दों के योग में अप्रधान शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है; यथा-सीता रामेण सह वनम् अगच्छत् (सीता राम के साथ वन गयी।) यहाँ पर प्रधान शब्द सीता है और अप्रधान शब्द राम; अत: राम में तृतीया विभक्ति है।

(iii) पृथग्विनानानाभिस्तृतीयान्यतरस्याम्’ सूत्र के अनुसार ‘पृथक्, विना, नाना’ शब्दों के योग में तृतीया, द्वितीया और पंचमी विभक्ति होती है; यथा–दशरथ: रामेण/रामात्/रामं वा विना/पृथक्/नाना प्राणान् अत्यजत्।।

(iv) येनाङ्गविकारः’ सूत्र के अनुसार जिस अंग से शरीर के विकार का ज्ञान होता है, उसमें तृतीया विभक्ति होती है; यथा-राहुल: पादेन खञ्जः अस्ति (राहुल पैर से लँगड़ा है।)

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सम्प्रदान कारक (चतुर्थी विभक्ति)

‘कर्मणा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम्।’ अर्थात् अत्यन्त इष्ट समझकर जिसको कोई वस्तु दी जाती है। या जिसके लिए कार्य किया जाता है, वह सम्प्रदान कारक है। हिन्दी में इसका चिह्न के लिए अथवा ‘को’ है।

‘चतुर्थी सम्प्रदाने’ सूत्र के अनुसार सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है; यथा— “नृपः विप्रेभ्यः गां ददाति’ (राजा ब्राह्मणों को गाय देता है)। यहाँ पर ब्राह्मण राजा के लिए इष्ट व्यक्ति हैं; अत: ‘विप्र’ में चतुर्थी विभक्ति (बहुवचन) है।

विशेष- यहाँ पर यह बात स्मरणीय है कि जिसको सदा के लिए वस्तु दी जाती है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है, किन्तु जिसको कुछ समय के लिए कोई वस्तु दी जाती है, उसमें षष्ठी विभक्ति; यथा-उपर्युक्त उदाहरण में ब्राह्मणों को गाय सदैव के लिए दी गयी है, अतः विप्रेभ्यः में चतुर्थी विभक्ति है; (UPBoardSolutions.com) किन्तु “राम: रजकस्य वस्त्रं ददाति’ वाक्य में राम थोड़े समय के लिए ही धोबी को कपड़ा दे रहा है; अतः यहाँ रजकस्य में षष्ठी विभक्ति प्रयुक्त हुई है।

चतुर्थी विभक्ति के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं–

(i) ‘रुच्यर्थानां प्रीयमाणः’ सूत्र के अनुसार ‘रुचि के अर्थ वाली धातुओं के योग में जिसको वस्तु अच्छी लगती है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है; यथा—मह्यं मोदकं रोचते (मुझे लड्डू अच्छा लगता है।)

(ii) ‘क्रुधद्हेष्यसूयार्थानां यं प्रति कोपः’ सूत्र के अनुसार क्रुध् (क्रोध करना), द्रुह (द्रोह करना), ई (ईष्र्या करना), असूय् (गुणों में दोष निकालना या जलना) धातुओं एवं इनके समान अर्थ वाली धातुओं के योग में जिसके प्रति क्रोध, द्रोह, ईष्र्या और असूया की जाती है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है; यथा-कृष्णः कंसाय क्रुध्यति (कृष्ण कंस से क्रोध करता है।)।

विशेष- यदि ये धातुएँ उपसर्गपूर्वक प्रयुक्त होती हैं तो इनके योग में चतुर्थी के स्थान पर द्वितीया विभक्ति होती है; यथा—सः रामम् अभिक्रुध्यति (वह राम से गुस्सा करता है।)

(iii) ‘स्पृहेरीप्सितः’ सूत्र के अनुसार ‘स्पृह’ (चाहना) धातु के योग में ईप्सित अर्थात् जिस वस्तु को चाहा जाता है, उस वस्तु में चतुर्थी विभक्ति होती है; यथा–रामः धनाय स्पृहयति (राम धन को चाहता है।)

(iv) ‘नमः स्वस्तिस्वाहास्वधाऽलंवषड्योगाच्च’ सूत्र के अनुसार नमः (नमस्कार), स्वस्ति (कल्याण), स्वाहा (आहुति), स्वधा (बलि), अलम् (समर्थ, पर्याप्त), वषट् (आहुति) के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।

अपादान कारक (पञ्चमी विभक्ति)

‘धुवमपायेऽपादानम्’ अर्थात् जिस वस्तु से किसी का पृथक् होना पाया जाता है, उसे अपादान कारक कहते हैं। हिन्दी में इसका चिह्न ‘से’ (from) है।

अपादाने पञ्चमी सूत्र के अनुसार अपादान कारक में पञ्चमी विभक्ति होती है; यथा-वृक्षात् पत्राणि पतन्ति (वृक्ष से पत्ते गिरते हैं)। यहाँ पर वृक्ष से पत्ते पृथक् हो रहे हैं; अतः वृक्षात् में पञ्चमी विभक्ति प्रयुक्त हुई है।

मंचमी विभक्ति के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं–

(i) ‘जुगुप्साविरामप्रमादार्थानामुपसण्यानम्’ सूत्र के अनुसार जुगुप्सा (घृणा), विराम (बन्द होना, छोड़ देना, हटना) तथा प्रमाद (भूल या असावधानी करना) के समान (UPBoardSolutions.com) अर्थ वाली धातुओं के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है; यथा–कृष्ण: पापात् जुगुप्सते (कृष्ण पाप से घृणा करता है)। सः पापात् विरमति (वह पाप से हटता है)। फ्ज़ र्मात् न प्रमदते (राजा धर्म से प्रमाद नहीं करता है)।

(ii) ‘भीत्रार्थानां भयहेतुः’ सूत्र के अनुसार ‘भय’ तथा ‘रक्षा’ अर्थ वाली धातुओं के योग में जिससे डरा जाता है या रक्षा की जाती है, उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है; यथा—बालकः चौरात् बिभेति (बालक चोर से डरता है)। सैनिकाः शत्रोः देशं रक्षन्ति (सैनिक शत्रु से देश की रक्षा करते हैं)।

(iii) ‘आख्यातोपयोगे’ सूत्र के अनुसार नियम (विधि) पूर्वक विद्या ग्रहण करने में जिससे विद्या ग्रहण की जाती है, उसमें पंचमी विभक्ति होती है; यथा-महेशः उपाध्यायात् वेदम् अधीते (महेश उपाध्याय से वेद पढ़ता है)।

सम्बन्ध (षष्ठी विभक्ति)

‘षष्ठी शेषे’ सूत्र के अनुसार कर्म आदि कारक संज्ञा की विवक्षा न होने पर शेष कहलाता है और उसमें षष्ठी विभक्ति होती है। वस्तुत: सम्बन्ध (षष्ठी) कारक नहीं है; क्योंकि यह वाक्य में प्रयुक्त एक संज्ञा का दूसरी संज्ञा के साथ सम्बन्ध दर्शाता है; यथा-राजू रामपालसिंहस्य पुत्रः अस्ति (राज रामपालसिंह का पुत्र है)। षष्ठी विभक्ति के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं

(i) “षष्ठी हेतुप्रयोगे’ सूत्र के अनुसार हेतु’ शब्द के प्रयुक्त होने पर षष्ठी विभक्ति होती है। ‘कारण’ अथवा ‘प्रयोजनवाचक’ शब्द तथा ‘हेतु’ शब्द दोनों में ही षष्ठी विभक्ति होती है; यथा-सः अध्ययनस्य हेतोः अत्र वसति (वह अध्ययन के लिए यहाँ रहता है)।

(ii) ‘क्तस्य च वर्तमाने’ सूत्र के अनुसार ‘क्त’ प्रत्ययान्त शब्दों के वर्तमानकालवाची होने पर षष्ठी विभक्ति होती है जब कि ‘क्त’ प्रत्यय भूतकालिक है; यथा-अहं राज्ञः अर्चितः (UPBoardSolutions.com) (मैं राजा का अर्चित हूँ)। यहाँ ‘अर्चित: ‘क्त’ प्रत्ययान्त शब्द है।

(iii) ‘षष्ठी चानादरे’ सूत्र के अनुसार जिसका अनादर करके कोई कार्य किया जाता है, उसमें षष्ठी अथवा सप्तमी विभक्ति होती है; यथा–आहूयमानस्य गतः अथवा आहूयमाने गतः (बुलाते हुए का तिरस्कार करके गया)।

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अधिकरण कारक (सप्तमी विभक्ति)

‘आधारोऽधिकरणम्’ अर्थात् जिस वस्तु अथवा स्थान पर कार्य किया जाता है, उस आधार में अधिकरण कारक होता है। इसके चिह्न ‘में, पर, ऊपर हैं।

‘सप्तम्यधिकरणे च’ सूत्र से अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है; यथा-कृष्णः गोकुले वसति (कृष्ण गोकुल में रहता है)। यहाँ पर रहने का कार्य गोकुल में हो रहा है; अतः आधार होने के कारण वह अधिकरण कारक है। | सप्तमी विभक्ति के कुछ अन्य नियम निम्नलिखित हैं

(i) ‘साध्वसाधु प्रयोगे च’ सूत्र के अनुसार ‘साधु’ तथा ‘असाधु’ शब्दों के प्रयोग में जिसके प्रति साधुता अथवा असाधुता प्रदर्शित की जाती है, उसमें सप्तमी विभक्ति होती है; यथा–अस्मधुः कृष्णः शत्रुषु (शत्रुओं के लिए कृष्ण बुरे थे)।

(ii) यतश्च निर्धारणम्’ सूत्र के अनुसार समूह में से किसी एक की विशिष्टता प्रदर्शित करने के लिए यदि उसे समूह से पृथक् किया जाये तो समूहवाचक शब्द में षष्ठी अथवा सप्तमी विभक्ति होती है; यथा—मनुष्याणं क्षत्रियः शूरतमः अथवा मनुष्येषु क्षत्रियः शूरतमः (मनुष्यों में क्षत्रिय सबसे अधिक वीर होता है)।

सम्बोधन

जिसे पुकारा जाता है, सम्बोधित किया जाता है अथवा आकृष्ट किया जाता है, वह सम्बोधन है। इसके चिह्न ‘हे’, ‘भो’, ‘अरे’ इत्यादि हैं। सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति ही होती है; यथा-हे राम! अत्र आगच्छ (हे राम! यहाँ आओ)। मोहन! त्वं कुत्र गच्छसि (मोहन! तुम कहाँ जा रहे हों?) यहाँ राम और मोहन को पुकारा जाता है; अतः यहाँ राम और मोहन में सम्बोधन है।

ध्यातव्य- सर्वनाम शब्दों में सम्बोधन नहीं होता। संस्कृत में सम्बन्ध तथा सम्बोधनको कारक नहीं माना जाता।।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर सात व्याकरण से

प्रश्न 1.
कारक किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
किसी वाक्य में क्रिया के साथ जिसका अन्वय (सम्बन्ध) रहता है, उसको कारक कहते हैं; यथा—प्रयागे राजा स्वहस्तेन कोषात् निर्धनेभ्यः वस्त्राणि ददाति।

प्रश्न 2.
विभक्तियाँ कितनी हैं? प्रत्येक का परिचय दीजिए।
उत्तर:
विभक्तियाँ सात होती हैं प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी तथा सप्तमी। कर्ता कारक में प्रथमा, कर्म कारक में द्वितीया, करण कारक में तृतीया, सम्प्रदान (UPBoardSolutions.com) कारक में चतुर्थी, अप्रादान कारकं में पञ्चमी, सम्बन्ध में षष्ठी तथा अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है।

प्रश्न 3.
सूत्र लिखकर निम्नांकित कारकों के उदाहरण दीजिएकर्म, करण, अपादान, अधिकरण।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 कारक एवं विभक्ति प्रकरण (व्याकरण)
प्ररन 4.
कारक विभक्तियों तथा उपपद विभक्तियों का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी पद में कारक के कारण प्रयुक्त होने वाली विभक्तियाँ ‘कारक विभक्ति तथा किसी अव्यय के कारण प्रयुक्त होने वाली विभक्तियाँ ‘उपपद विभक्ति’ कहलाती हैं।

प्रश्न 5.
निम्नांकित पदों में प्रयुक्त विभक्तियों का कारण लिखिए
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 कारक एवं विभक्ति प्रकरण (व्याकरण)

प्रश्न 6.
अपनी गद्य पुस्तक के किसी एक पाठ में प्रयुक्त द्वितीया, चतुर्थी, पञ्चमी तथा सप्तमी विभक्तियों से युक्त पदों को छाँटिए तथा उनमें प्रयुक्त विभक्तियों का कारण लिखिए।
उत्तर:
सम्बद्ध उदाहरण ‘पुण्यसलिला गङ्गा’ पाठ से उद्धृते हैं
(क) सर्वे एकस्मिन्नेव घट्टे स्नानं कुर्वन्ति।
(ख) सौभाग्यात् भारतीयशासनेन गङ्गाप्रदूषणस्य विनाशाय महती योजना सञ्चालिता।
वाक्य
(क) के, ‘एकस्मिन्’ तथा घट्टे में अधिकरण कारक के कारण सप्तमी विभक्ति है। इसी वाक्य में स्नानं’ पद में कर्म कारक के कारण द्वितीया विभक्ति है।
वाक्य
(ख) के ‘सौभाग्यात्’ पद में अपादान कारक के कारण पञ्चमी, ‘भारतीयशासनेन’ पद में करण कारक के कारण तृतीया तथा ‘विनाशाय’ पद में सम्प्रदान कारक के कारण चतुर्थी विभक्ति है।

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प्ररन 7.
निम्नांकित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 6 कारक एवं विभक्ति प्रकरण (व्याकरण)

विस्तुनिष्ठनोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

प्रश्न 1.
विभक्तियों और कारकों की संख्या होती है’
(क) दस और सात
(ख) छ: और आठ
(ग) आठ और छः
(घ) पाँच और सात

प्रश्न 2.
कर्ता कारक का सूत्र कौन-सा है? ‘:
(क) कर्तुरीप्सिततमं कर्म
(ख) स्वतन्त्रः कर्ता
(ग) कर्तृकरणयोस्तृतीया
(घ) सहयुक्तेऽप्रधाने

प्रश्न 3.
सामान्यतया प्रथमा विभक्ति होती है
(क) सम्प्रदान कारक में
(ख) कर्म कारक में
(ग) कर्ता कारक में
(घ) करण कारक में

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प्रश्न 4.
द्विकर्मक धातुओं के योग में कौन-सी विभक्ति होती है?
(क) चतुर्थी
(ख) तृतीया,
(ग) प्रथमा
(घ) द्वितीया

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में कौन-सी धातु द्विकर्मक है?
(क) भू
(ख) याच्
(ग) पठ्
(घ) गम्

प्रश्न 6.
किस सूत्र से कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति होती है?
(क) “कर्मणि द्वितीया’ से
(ख) ‘कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे’ से।
(ग) “अकथितञ्च’ से।
(घ) “अधिशीङ्स्थासां कर्म’ से

प्रश्न 7.
‘अक्षयः•••••••••• कुक्कुरं ताडयति’ में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी।
(क) दण्डानि’ से
(ख) “दण्डेन’ से
(ग) “दण्ड:’ से
(घ) “दण्डम्’ से

प्रश्न 8.
“पादेन खञ्जः’ में रेखांकित पद में किस सूत्र से तृतीया विभक्ति हुई है?
(क) ‘साधकतमं करणम्’ से ।
(ख) ‘सहयुक्तेऽप्रधाने से
(ग) “येनाङ्गविकारः’ से :
(घ) “कर्तृकरणयोस्तृतीया’ से

प्रश्न 9.
‘सहयुक्तेऽप्रधाने’ सूत्र किस कारक और विभक्ति के लिए प्रयुक्त होता हैं?
(क) सम्प्रदान और चतुर्थी
(ख) करण और तृतीया
(ग) अपादान और पंचमी
(घ) अधिकरण और सप्तमी

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प्रश्न 10.
‘विना’ के योग में कौन-सी विभक्ति प्रयुक्त होगी?
(क) चतुर्थी
(ख) तृतीया
(ग) षष्ठी
(घ) प्रथमा

प्रश्न 11.
‘कर्मणा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम्’ किस कारक की परिभाषा है?
(क) कर्म कारक की
(ख) सम्प्रदान कारक की
(ग) कर्ता कारक की
(घ) करण कारक की

प्रश्न 12.
‘नृपः विप्रेभ्यः गां ददाति’ में रेखांकित पद में कौन-सी विभक्ति है?
(क) तृतीया
(ख) चतुर्थी
(ग) पञ्चमी
(घ) षष्ठी

प्रश्न 13.
‘नमः’, ‘स्वस्ति’, ‘स्वाहा’ और ‘स्वधा’ के योग में कौन-सी विभक्ति होती है?
(क) द्वितीया
(ख) तृतीया
(ग) चतुर्थी
(घ) सप्तमी

प्रश्न 14.
‘मह्यं मोदकं रोचते’ में चतुर्थी विभक्ति के प्रयोग का क्या कारण है?
(क) सम्प्रदान कारक।
(ख) मोदक शब्द
(ग) अस्मद् शब्द
(घ) रुच् धातु

प्रश्न 15.
किस मूत्र के अनुसार ‘रुच्’ धातु के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है?
(क) ‘स्पृहेरीप्सितः’ के अनुसार
(ख) ‘रुच्यर्थानां प्रीयमाणः के अनुसार
(ग) “भीत्रार्थानां भयहेतुः’ के अनुसार
(घ) “चतुर्थी सम्प्रदाने के अनुसार

प्रश्न 16.
निम्नलिखित में अपादान कारक का कौन-सा सूत्र है?
(क) आख्यातोपयोगे
(ख) ध्रुवमपायेऽपादानम्
(ग) अपादाने पञ्चमी
(घ) भीत्रार्थानां भयहेतुः

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प्रश्न 17.
सैनिकः अश्वात् पतति।’ में किस सूत्र में पञ्चमी विभक्ति हो रही है?
(क) ध्रुवमपायेऽपादानम्
(ख) अपादाने पञ्चमी
(ग) भीत्रार्थानां भयहेतुः
(घ) आधारोऽधिकरणम्

प्रश्न 18.
‘भी’ तथा ‘रक्ष’ धातुओं के योग में कौन-सी विभक्ति होती है? .
(क) सप्तमी
(ख)-द्वितीया
(ग) तृतीया
(घ) पञ्चमी

प्रश्न 19.
क्त प्रत्ययान्त शब्दों के किस कालवाची होने पर षष्ठी विभक्ति होती है?
(क) आज्ञार्थककालवाची
(ख) भविष्यत्कालवाची
(ग) भूतकालवाची
(घ) वर्तमानकालवाची

प्रश्न 20.
‘यतश्च निर्धारणम्’ सूत्र में किन-किन विभक्तियों का विधान होता है?
(क) षष्ठी-सप्तमी विभक्तियों को
(ख) प्रथमा-द्वितीया विभक्तियों को
(ग) चतुर्थी-पञ्चमी विभक्तियों को
(घ) तृतीया-सप्तमी विभक्तियों का

प्रश्न 21.
आधार में कौन-सा कारक होता है?
(क) अपादान
(ख) कमें।
(ग) अधिकरण
(घ) करण

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प्रश्न 22.
‘विनीतः मातरि साधुः।’ के रेखांकित पद में कौन-सी विभक्ति और सूत्र प्रयुक्त हुआ है?
(क) सप्तमी और साध्वसाधु प्रयोग च
(ख) तृतीया और सहयुक्तेऽप्रधाने
(ग) षष्ठी और षष्ठी हेतुप्रयोगे
(घ) द्वितीया और अकथितं च

प्रश्न 23.
कृष्णः गोकुले वसति।’ में रेखांकित पद में किस सूत्र से सप्तमी विभक्ति हो रही है?
(क) यतश्च निर्धारणम्’ सूत्र से
(ख) ‘आधारोऽधिकरणम्’ सूत्र से
(ग) “सप्तम्यधिकरणे च सूत्र से
(घ) “साध्वसाधु प्रयोगे च सूत्र से

प्रश्न 24.
‘पृथक्’ के योग में कौन-सी विभक्ति नहीं होती है?
(क) द्वितीय
(ख) तृतीया
(ग) पञ्चमी
(घ) सप्तमी

प्रश्न 25.
यदि ‘शी’, ‘स्था’ एवं ‘आस्’ धातुएँ अधि’ उपसर्गपूर्वक नहीं आती हैं, तो आधार में कौन-सी विभक्ति होती है?
(क) द्वितीया
(ख) तृतीया
(ग) पञ्चमी

उत्तर:
1. (ग) आठ और छः, 2. (ख) स्वतन्त्रः कर्ता, 3. (ग) कर्ता कारक में, 4. (घ) द्वितीया, 5. (ख) याच्, 6. (क) “कर्मणि द्वितीया’ सूत्र से, 7. (ख) ‘दण्डेन’ से, 8. (ग) येनाङ्गविकार:’ से, 9. (ख) करण और तृतीया, 10. (ख) तृतीया, 11. (ख) सम्प्रदान कारक की, 12. (ख) चतुर्थी, 13. (ग) चतुर्थी, 14. (घ) रुच् धातु, 15. (ख) ‘रुच्यर्थानां प्रीयमाणः’ के अनुसार, 16. (ख) ध्रुवमपायेऽपादानम्, 17. (ख) अपादाने पञ्चमी, 18. (घ) पञ्चमी, 19. (घ) वर्तमानकालवाची, 20. (क) षष्ठी-सप्तमी विभक्तियों का, 21. (ग) अधिकरण 22. (क) सप्तमी और साध्वसाधु प्रयोगे च, 23. (ग) “सप्तम्यधिकरणे च’ सूत्र से, 24. (घ) सप्तमी, 25. (घ) सप्तमी।

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 8
Chapter Name हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद
Number of Questions Solved 37
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद

किसी भी भाषा के वाक्यों को दूसरी भाषा के शब्दों में शब्दशः या भावत: बदलने को अनुवाद कहते हैं। अनुवाद शब्द दो शब्दों-अनु = पश्चात्, वाद = कहना–से मिलकर बना है। इसका तात्पर्य है-एक बात को फिर से कहना अर्थात दूसरे अन्य शब्दों में बदलकर कहना। प्रसिद्ध अर्थ में एक भाषा को दूसरी भाषा में परिवर्तित करने को अनुवाद कहते हैं।

यद्यपि संस्कृत भाषा में शब्दों के क्रम में उलट-फेर करने से वाक्य के अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता, फिर भी अनुवाद की सरलता के लिए संस्कृत के वाक्यों का क्रम भी हिन्दी के समान ही होता है; अर्थात् पहले कर्ता, फिर कर्म और अन्त में क्रिया। यह संस्कृत की अपनी विशेषता है कि इसमें कर्ता, कर्म और क्रिया का क्रम आगे-पीछे भी हो सकता है; जैसे-“मैं विद्यालय जाता हूँ।” का संस्कृत में अनुवाद अहं विद्यालयं गच्छामि।’ किया जाता है। फिर भी इसके क्रम को बदलने–विद्यालयम् अहं गच्छामि। गच्छामि विद्यालयम् अहम्। गच्छामि अहं विद्यालयम्- से वाक्य के अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता!

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संस्कृत में अनुवाद करने के लिये निम्नलिखित बातों का ज्ञान परमावश्यक है
(1) वचन- संस्कृत में तीन वचन होते हैं
(क) एकवचन–एक वस्तु के लिए।
(ख) द्विवचन-दो वस्तुओं के लिए।
(ग) बहुवचन-दो से अधिक वस्तुओं के लिए।

सम्मान प्रदर्शन करने के लिए बहुधा बहुवचन सूचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। संस्कृत में अनुवाद करते समय छात्रों को वचन का प्रयोग करते समय अत्यधिक सावधानी रखनी चाहिए।

(2) पुरुष- संस्कृत में पुरुष भी तीन ही होते हैं|
(क) प्रथम पुरुष या अन्य पुरुष–जिसके विषय में बात कही जाये (सः = वह, तौ = वे 
दोनों, ते = वे सब, भवान् = आप, भवन्तौ = आप दोनों, भवन्तः = आप सब)।
(ख) मध्यम पुरुष-जिससे बात कही जाये (त्वम् = तुम, युवाम् = तुम दोनों, यूयम् = तुम 
सब)।
(ग) उत्तम पुरुष–बात कहने वाला (अहम् = मैं, आवाम् = हम दोनों, वयम् = हम सब)।

(3) कर्ता- क्रिया के करने वाले कर्ता कहते हैं। कर्ता में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है। क्रिया से पहले ‘कौन’ लगाने से उत्तर में जो शब्द प्राप्त होता है, उसे ही कर्ता कहते हैं।

(4) क्रिया- जिससे किसी काम को करना या होना पाया जाता है, उसे क्रिया कहते हैं।
(5) काल-क्रिया के तीन प्रमुख काल होते हैं|
(क) वर्तमानकाल–जिससे चल रहे समय का बोध हो। संस्कृत में इसके लिए लट् लकार 
का प्रयोग होता है।
(ख) भूतकाल–जिससे बीते हुए समय का बोध हो। संस्कृत में इसके लिए लङ् लकार 
का प्रयोग होता है।
(ग) भविष्यत्काल—जिससे आने वाले समय का बोध हो। संस्कृत में इसके लिए लुट् 
लकार का प्रयोग होता है।

(6) लिङ्ग- संस्कृत में लिंग का क्रिया पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। लिंग तीन प्रकार के होते हैं
(क) पुंल्लिङ्ग–इससे पुरुष जाति का बोध होता है।
(ख) स्त्रीलिङ्ग-इससे स्त्री जाति का बोध होता है।
(ग) नपुंसकलिङ्ग–जिससे न पुरुष जाति का बोध होता है और न स्त्री जाति का। अनुवाद करते समय छात्रों को लिंग प्रयोग करते समय सावधानी रखनी चाहिए।

(7) कारक- सामान्यत: कारक आठ माने जाते हैं; परन्तु संस्कृत में छ: कारक होते हैं। ‘सम्बन्ध और सम्बोधन’ को कोरक नहीं माना जाता। प्रत्येक कारक को विभक्ति एवं चिह्न सहित आगे दिया जा रहा है–
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(8) पद- संस्कृत भाषा में हमेशा पदों का ही प्रयोग होता है। पद दो प्रकार के होते हैं-सुबन्त और तिङन्त। शब्दों में ‘सु’ इत्यादि प्रत्यय लगाये जाते हैं, इसलिए उससे निर्मित पद सुबन्त कहलाते हैं। धातुओं में ‘तिम्’ इत्यादि प्रत्यय लगाये जाते हैं, इसलिए उनसे निर्मित क्रियाएँ तिङन्त कहलाती हैं। अनुवाद करते समय सबसे पहले ‘कर्ता’ को ढूंढ़ना चाहिए। इसके बाद कर्ता के वचन और पुरुष पर ध्यान देना चाहिए। कर्ता का पुरुष और वचन जान लेने पर क्रिया के काल का निश्चय करना चाहिए। क्रिया का वही पुरुष और वचन होता है, जो उसके कर्ता का पुरुष और वचने होता है।

पाठ 1: संज्ञा तथा सर्वनाम (कर्ता) का तीनों पुरुषों एवं
 वचनों की क्रिया के साथ समन्वय

  1. संस्कृत में प्राय: सभी संज्ञा तथा सर्वनाम कर्ताओं के रूप सातों विभक्तियों के तीनों वचनों में चलते हैं।
  2. संज्ञा कर्ताओं के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। संज्ञा कर्ताओं के सम्बोधन में भी रूप बनते हैं।
  3. सर्वनाम कर्ताओं के रूप भी तीनों लिंगों में पृथक्-पृथक् चलते हैं, किन्तु इनके सम्बोधन के रूप नहीं बनते।।
  4. जिस पुरुष और वचन का कर्ता होता है, उसके साथ क्रिया भी उसी पुरुष और वचन की लगती है।
  5. क्रिया पर कर्ता के लिंग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। तीनों लिंगों के लिए सदैव एक समान क्रिया प्रयुक्त होती है।
  6. कर्तृवाच्य में कर्ता में सदैव प्रथमा विभक्ति होती है।
  7. मध्यम और उत्तम पुरुष में तीनों लिंगों के कर्ता एकसमान होते हैं।
  8. भवत् (आप) कर्ता होने पर क्रिया प्रथम पुरुष की प्रयोग की जाती है।
  9. त्वं, युवां, यूयं, अहं, आवां, वयं के अतिरिक्त सभी कर्ताओं के साथ प्रथम पुरुष की क्रिया प्रयोग की जाती है।

प्रथम पुरुष और प्रथमा विभक्ति के तीनों लिंगों के तीनों वचनों के संज्ञा एवं सर्वनाम कर्ताओं के रूप इस प्रकार होते हैं–
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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 3

विशेष-शेष विभक्तियों के रूप ‘शब्द रूप प्रकरण’ के अन्तर्गत देखे जा सकते हैं। निम्नलिखित तालिकाओं में तीनों लिंगों के संज्ञा तथा सर्वनाम कर्ताओं का तीनों पुरुषों और वचनों की क्रियाओं के साथ समन्वय दर्शाया जा रहा है–
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पाठ 2: अस धातु के रुप और उनका प्रयोग 

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पाठ 3: लङ् लकार (भूतकाल)

संस्कृत में भूतकाल के लिए चार लकारों का प्रयोग किया जाता है—लिट् लकार, लुङ् लकार, लङ् लकार, लुङ् लकार। वक्ता ने जिसका प्रत्यक्ष ने किया हो, वहाँ लिट् लकार; वक्ता ने जिसे प्रत्यक्ष देखा हो, वहाँ लङ् लकार तथा ‘ऐसा होता तो ऐसा होता’ शर्तयुक्त भूतकाल में लुङ् लकार प्रयुक्त होता है। शेष सभी प्रकार के भूतकालिक वाक्यों के लिए लुङ् लकार का प्रयोग होता है। भूतकाल में लङ् लकार का प्रयोग अन्य लकारों की अपेक्षाकृत अधिक होता है।
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पाठ 4: तृट् लकार (भविष्यत्काल)

भविष्यत्काल की क्रिया का बोध कराने के लिए लुट् और लुट् दो लकारों का प्रयोग होता है, जिनमें लृट् लकार का ही प्रयोग सर्वाधिक होता है। 

लृट् लकार में रूप बनाने के लिए धातु में ‘इ’ लगाकर ‘ष्य’ जोड़ने के बाद ‘ति’, ‘त:’, ‘न्ति’ आदि प्रत्यय जोड़ देते हैं। जिन धातुओं में ‘इ’ नहीं लगता, उनमें स्यति, स्यतः, स्यन्ति जोड़ा जाता है।
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पाठ 5: लोट् लकार (आज्ञार्थ)

आज्ञा, प्रार्थना, इच्छा तथा आशीर्वाद के अर्थ में लोट् लकार का प्रयोग होता है। आज्ञा और प्रार्थना अर्थसूचक वाक्यों में कर्ता प्रायः छिपा रहता है, ऐसी स्थिति में क्रिया मध्यम पुरुष एकवचन की प्रयुक्त होती है।
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पाठ 6 : विधिलिङ् लकार (विध्यर्थ)

इच्छा, सम्भावना, अनुमति तथा चाहिए के भाव को प्रकट करने के लिए विधिलिङ् लकार का । प्रयोग किया जाता है।

ध्यातव्य-हिन्दी में ‘चाहिए’ से युक्त वाक्यों में कर्ता में ‘को’ चिह्न लगा रहता है (जैसे—राम को पढ़ना चाहिए), यहाँ पर ‘को’ को कर्म कारक का चिह्न समझकर द्वितीया विभक्ति में अनुवाद नहीं करना चाहिए।
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पाठ 7: कर्मकारक (द्वितीया विभक्ति)

जिस पर क्रिया का प्रभाव पड़ता है, उसको कर्मकारक कहते हैं। कर्म में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। क्रिया से सम्बन्ध रखने वाले जिस पदार्थ को, कर्ता अपने व्यापार से प्राप्त करने की सबसे अधिक इच्छा रखता है, उसे कर्म कहते हैं। कर्मकारक का चिह्न ‘को’ है। कभी-कभी यह चिह्न छिपा भी रहता है। क्रिया से पहले ‘किसको’ या ‘क्या’ लगाने पर उत्तर में जो कुछ आता है, वह कर्म है। उदाहरण–
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द्विकर्मक धातुएँ (द्वितीया विभक्ति)

निम्नलिखित सोलह धातुएँ और उनके समान अर्थ वाली धातुएँ द्विकर्मक (इनके साथ दो कर्म होते हैं) होती हैं दुह् (दुहना), याच् (माँगना), पच् (पकाना), दण्ड् (दण्ड देना), रुध् (रोकना, घेरना), प्रच्छ (पूछना), चि (चुनना, इकट्ठा करना), बू (बोलना, कहना), शास् (शासन करना), जि (जीतना), मथ् (मथना), मुष (चुराना), नी (ले जाना), हृ (हरण करना), कृष् (खींचना, जोतना), वह (वहन करना, ढोना)। इन सभी द्विकर्मक धातुओं के योग में अपादान आदि कारकों में भी द्वितीया विभक्ति होती है। उदाहरण–
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

द्वितीया विभक्ति- उपपद विभक्ति कारकों से ही सदैव विभक्तियों का निर्देश नहीं होता है। कुछ अव्ययों के योग में भी विशेष नियमों के अनुसार विशेष विभक्ति होती है। ऐसी स्थिति में उसे उपपद विभक्ति कहते हैं। उपपद विभक्ति से कारक विभक्ति बलवान् होती है। उपपद विभक्ति के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं–
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पाठ 8 : करण कारक (तृतीया विभक्ति)

कर्ता अपने कार्य को पूरा करने में जिसकी सहायता लेता है, उस साधन में तृतीया विभक्ति होती है। तृतीया विभक्ति का चिह्न ‘से’ या ‘के द्वारा है। उदाहरण–
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तृतीया विभक्ति–उपपद विभक्ति

नियम-

  1. ‘साथ’ का अर्थ रखने वाले सह, साकम्, सार्द्धम्, समम् शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
  2. जिस शब्द से शरीर के किसी अंग का विकार सूचित होता है, उस अंगवाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है।
  3. समानार्थक तुल्यः, समः, समानः शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
  4. किसी वस्तु के मूल्य में तृतीया विभक्ति होती है।
  5. निषेधार्थक ‘अलम्’ के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
  6. किम्, कार्यम्, कोऽर्थः, प्रयोजनम् के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
  7. हेतु (कारण) में तृतीया विभक्ति होती है।
  8. जिसकी सौगन्ध ली जाती है उसमें तृतीया विभक्ति होती है।
  9. प्रकृति और स्वभाव आदि या किसी के कार्य करने की विधि में तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है। उदाहरण–

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पाठ 9: सम्प्रदान कारक (चतुर्थी विभक्ति)

जिसको कोई वस्तु दी जाती है या जिसके लिए कोई कार्य किया जाता है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है। सम्प्रदान का चिह्न ‘को’ या के लिए है। उदाहरण–
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

चतुर्थी विभक्ति-उपपद विभक्ति नियम

  1. ‘रुच्’ धातु या उसके समान अर्थ वाली धातु के योग में प्रसन्न होने वाले में चतुर्थी विभक्ति होती है।
  2. ‘स्पृह’ धातु के योग में ईप्सित पदार्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है।
  3. क्रुध्, द्रुह, असूय् धातुओं के योग में, जिसके प्रति क्रोध आदि किया जाता है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होता है।
  4. नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा तथा अलम् के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। उदाहरण–

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पाठ 10: अपादान कारक (पञ्चमी विभक्ति)

जिससे कोई वस्तु अलग होती है, उसे अपादान कारक कहते हैं। अपादान कारक में पञ्चमी विभक्ति होती है। अपादान का चिह्न ‘से’ (from, अलग होने के अर्थ में) है। उदाहरण–
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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

पञ्चमी विभक्ति–उपपद विभक्ति नियम-

  1. जिससे भय लगता हो अथवा जिससे रक्षा की जाती हो, उसमें पञ्चमी विभक्ति होती
  2. जहाँ से किसी को हटाया जाता है, उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है।
  3. जिससे विधिपूर्वक विद्या पड़ी जाती है, उसे अध्यापक में पञ्चमी विभक्ति होती है।
  4. ‘जन्’ धातु के कर्ता के कारण में पञ्चमी विभक्ति होती है।
  5. ‘भू’ धातु के उद्गम स्थान में पञ्चमी विभक्ति होती है।
  6. जिस स्थान से दूसरे स्थान की दूरी दिखाई जाती है, उस स्थान में पञ्चमी विभक्ति होती है।
  7. प्रभृति, आरभ्य, बहिः, अनन्तरम्, परम के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है।
  8. जब दो वस्तुओं में तुलना की जाती है, तब जिससे तुलना की जाती है, उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है। उदाहरण–

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पाठ 11: सम्बन्ध (षष्ठी विभक्ति)

जब दो या अधिक शब्दों में सम्बन्ध दिखाया जाता है, तो उसे सम्बन्ध कहते हैं। सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति होती है। षष्ठी विभक्ति के चिह्न ‘का, के, की, रा, रे, रो, ना, ने, नी’ हैं। नियम-

  1. ‘क्त’ प्रत्ययान्त शब्दों के वर्तमानकालवाची होने पर षष्ठी विभक्ति होती है। यह बात ध्यान रखने योग्य है कि ‘क्त’ भूतकालिक प्रत्यय है।
  2. हेतु’ शब्द के प्रयुक्त होने पर ‘हेतु’ शब्द में तथा उसके ‘कारण’ अथवा ‘प्रयोजन’ में षष्ठी विभक्ति होती है।
  3. जिसका अनादर किया जाता है, उसमें षष्ठी अथवा सप्तमी विभक्ति होती है।
  4. समान या बराबर का अर्थ रखने वाले ‘समः’, ‘तुल्यः’, ‘सदृशः’ इत्यादि शब्दों के योग में जिससे तुलना की जाती है, उसमें षष्ठी या तृतीया विभक्ति होती है।
  5. ‘कृते’, ‘मध्ये’, ‘समक्ष’ आदि शब्दों के योग में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।
  6. जब समूह में से किसी एक की विशेषता बताने के लिए उसे समूह से अलग किया जाता है उसमें षष्ठी अथवा सप्तमी विभक्ति होती है। उदाहरण–

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पाठ 12: अधिकरण कारक (सप्तमी विभक्ति)

जिस स्थान पर कोई कार्य होता है, उसमें अधिकरण कारक होता है। अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है। इसके हि ‘में, पर, ऊपर हैं। उदाहरण–
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सप्तमी विभक्ति-उपपद विभक्ति नियम

  1. जिस पर स्नेह किया जाता है, जिसमें भक्ति या विश्वास किया जाता है, उसमें सप्तमी विभक्ति होती है।
  2. जब किसी एक कार्य के हो जाने पर दूसरे कार्य का होना प्रतीत हो, तब पहले हो चुके कार्य में तथा उसके कर्ता में सप्तमी विभक्ति होती है।
  3. जिस समय कोई काम होता है तो समयवाचक शब्द को सप्तमी विभक्ति में रखा जाता है।
  4. जब किसी वस्तु की अपने समूह में विशेषता प्रकट की जाती है तो समूहवाचक शब्द में सप्तमी या षष्ठी विभक्ति होती है।
  5. कुशल, निपुण, पटु, साधु, असाधु, चतुर तथा संलग्न अर्थ वाले ‘युक्तः, लग्नः, तत्परः’ इत्यादि शब्दों के योग में सप्तमी विभक्ति होती है।
  6. जिसे कोई वस्तु समर्पित की जाती है, उसे सप्तमी विभक्ति में रखा जाता है। उदाहरण–

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पाठ 13 : सम्बोधन का प्रयोग नियम

  1. जिसको पुकारा जाता है, उसमें सम्बोधन होता है। सम्बोधन में प्राय: प्रथमा विभक्ति के रूपों से पूर्व सम्बोधन के चिह्न लग जाते हैं।
  2. सम्बोधन के चिह्न ‘हे ! भो ! अरे !’ इत्यादि हैं। कभी-कभी ये चिह्न छिपे भी रहते हैं।
  3. यद्यपि सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति के रूप प्रयुक्त होते हैं, किन्तु कुछ शब्दों के एकवचन में परिवर्तन हो जाता है; यथा-आकान्त स्त्रीलिंग शब्दों में अन्तिम ‘आ’ का ‘ए’ हो जाता है। यथा-‘रमा’ प्रथमा विभक्ति का एकवचन है, किन्तु सम्बोधन में रमे प्रयुक्त होता है।
  4. सम्बोधन के वाक्य प्रायः लोट् लकार में होते हैं। उदाहरण–

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पाठ 14: सर्वनामों का प्रयोग

नियम- सर्वनामों का प्रयोग संज्ञाओं के स्थान पर होता है। इनका प्रयोग विशेषणों की भाँति भी होता है। जहाँ ये विशेषण के रूप में आते हैं, वहाँ इनके विभक्ति, वचन और लिंग विशेष्य के अनुसार होते हैं। युष्मद्, अस्मद्, तद्, एतद्, यद्, किम्, इदम्, अदस्, सर्व आदि शब्द सर्वनाम हैं। उदाहरण–
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पाठ 15: विशेषणों का प्रयोग नियम

  1. विशेषणों के विभक्ति, वचन और लिंग अपने विशेष्य के अनुसार होते हैं।
  2. ‘मुझ जैसा’ और ‘तुझ जैसा’ आदि की संस्कृत बनाने के लिए इनके वाचक सर्वनाम शब्दों में ‘दृश’ जोड़ दिया जाता है। इनके लिंग, विभक्ति, वचन भी अपने विशेष्य के अनुसार प्रयुक्त किये जाते हैं। उदाहरण–

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

अनुवाद संस्कृत व्याकरण से
अभ्यास 1

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों से वाक्य-रचना कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित धातुओं के प्रथम पुरुष में रूप बताइए
उत्तर:
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अभ्यास 2

प्रश्न 1.
निम्नलिखित धातुरूपों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित संस्कृत वाक्यों एवं उनके उत्तरों को ध्यान से पढ़िए
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों के संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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अभ्यास 3

प्रश्न 1.
निम्नलिखित धातुओं का इयम्, इमे, इंमाः के साथ प्रयोग कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वर्गों से उपयुक्त शब्द चुनकर वाक्य बनाइए
उत्तर:
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के स्त्रीलिंग में रूप बताइए
उत्तर:
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प्रश्न 6.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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अभ्यास 4

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त-स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

प्रश्न 4:
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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अभ्यास 5

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों को पूर्ण कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित तालिका से उपयुक्त शब्द चुनकर वाक्य बनाइए– शिशवः, कृषकाः, यूयम्, सः, खगः; पास्यन्ति, गमिष्यन्ति, धाविष्यथ, क्रीडिष्यति, कूजिष्यति।
उत्तर:
शिशवः पास्यन्ति।
कृषका: गमिष्यन्ति।
यूयं धाविष्यथ।
सः क्रीडिष्यति।
खगः कूजिष्यति

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए
उत्तर:
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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अभ्यास 6

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित से चतुर्थी विभक्ति के रूप छाँटिए— मृगेभ्यः, मृगाय, विप्राय, विप्रैः, मित्रे, भवते, हरये, भूपतये, गुरवे, शिशुभ्यः।
उत्तर:
मृगेभ्यः, मृगाय, विप्राय, भवते, हरये, भूपतये, गुरवे, शिशुभ्यः।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 4.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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अभ्यास 7

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद 

प्रश्न 3.
कृ धातु के विधिलिङ् लकार के रूप कण्ठस्थ कीजिए।
उत्तर:
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प्रश्न 4.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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अभ्यास 8

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों में सप्तमी विभक्ति के शब्द छाँटिए
(अ) मीनाः जले निमज्जन्ति।
(आ) प्रकोष्ठे बालकाः पठन्ति।
(इ) वृक्षेषु खगाः कूजन्ति।
(ई) सः मातरि स्निह्यति।
(उ) ग्रीष्मे आतपः तीव्रः भवति।
उत्तर:
(अ) जले,
(आ) प्रकोष्ठे,
(इ) वृक्षेषु,
(ई) मातरि,
(३) ग्रीष्मे।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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अभ्यास 9

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के तीनों लिंगों में रूप लिखिए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
कोष्ठक में दिये हुए शब्दों से रिक्त-स्थानों की पूर्ति कीजिए
उतर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
उतर:
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प्रश्न 4.
अपनी पुस्तक से दस विशेषण लिखिए।
उत्तर:
नील, शोभन, रम्य, अभिराम, मलिन, कुलीन, प्रचुर, यादृश, तादृश, कीदृश।

प्रश्न 5.
पुस्तकालय पर पाँच वाक्य संस्कृत में लिखिए।
उत्तर:

  1. पुस्तकानाम् आलयः पुस्तकालयः कथ्यते।
  2. निजीपुस्तकालयः सार्वजनिकपुस्तकालयः च इमौ द्वौ भेदौ स्तः।
  3. पुस्तकालये एकः पुस्तकालयाध्यक्षः भवति।
  4. अत्रे विविधानि पुस्तकानि सन्ति।
  5. जनाः अत्र पठनाय आगच्छन्ति

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 समास-प्रकरण (व्याकरण)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 समास-प्रकरण (व्याकरण) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 समास-प्रकरण (व्याकरण).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 5
Chapter Name समास-प्रकरण (व्याकरण)
Number of Questions Solved 36
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 समास-प्रकरण (व्याकरण)

समास का अर्थ है-संक्षेप। दो या दो से अधिक पदों को इंसे प्रकार मिलाना कि उनके आकार में कमी आ जाये और अर्थ भी पूरा-पूरा निकल आये, को समास कहते हैं; जैसे-नराणां पतिः = नरपतिः। यहाँ पर ‘नराणां पति:’ का वही अर्थ है, जो ‘नरपति:’ का है, किन्तु ‘नरपतिः’ आकार में छोटा हो गया है। समास किये गये पदों को ‘सामासिक पद’ या ‘समस्त पद’ कहते हैं। सामासिक पदों को अलग-अलग करने की विधि को ‘समास-विग्रह’ कहते हैं। उपर्युल्लिखित नरपतिः’ समस्त पद या सामासिक पद है तथा नराणां पति:’ उसका विग्रह है।

यह ध्यान रखना चाहिए कि समस्त पद दो या अधिक पदों से मिलकर बनते हैं, उपसर्ग या प्रत्ययों के योग से नहीं। समास में कम-से-कम दो पदों का होना आवश्यक है। समास के निम्नलिखित छः भेद होते हैं

(1) अव्ययीभाव समास,
(2) तत्पुरुष समास,
(3) कर्मधारय समास,
(4) द्विगु समास,
(5) बहुब्रीहि समास तथा
(6) द्वन्द्व समास।

समास के उपर्युक्त छ: प्रकारों को स्मरण रखने के लिए निम्नलिखित श्लोक को कण्ठस्थ करें

द्वन्द्वो द्विगुरपि चाहूं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः।
तत्पुरुष कर्मधारय येनाहं स्यां बहुब्रीहिः॥

विशेष- नवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में केवल तत्पुरुष, द्वन्द्व और कर्मधारय समास ही निर्धारित हैं, किन्तु भाषा-बोध व एक-दूसरे से सम्बद्धता की दृष्टि से सभी समासों को यहाँ दिया जा रहा है। समासों का यह सम्पूर्ण अध्ययन छात्रों को अगली कक्षाओं में अध्ययन करते समय भी सहायक होगा।

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अव्ययीभाव समास

सूत्र-‘पूर्वपदप्रधानः अव्ययीभावः
जिस समास में पहला पद प्रधान होता है और सम्पूर्ण शब्द क्रिया-विशेषण होकर अव्यय की भाँति प्रयुक्त होता है, वह अव्ययीभाव समास होता है; येथा—उपकूलम् = कुलस्य समीपम् (किनारे के समीप)। इसमें प्रथम पद प्रायः अव्यय और द्वितीय पद कोई संज्ञा शब्द होता है। समस्त पद अव्यय होता है और नपुंसकलिंग एकवचन के तुल्य प्रयुक्त होता है। इस समास में समस्त पद का विग्रह करते समय समस्त पद में प्रयुक्त व्यय के अर्थ का ही प्रयोग किया जाता है; यथा-उपर्युक्त उदाहरण में विग्रह में ‘उप’ का अर्थ ‘समीप ही प्रयुक्त हुआ है। उदाहरण–
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अव्ययं विभक्तिसमीपसमृद्धिव्यूद्ध्यर्थाभावात्ययासम्प्रतिशब्दप्रादुर्भावपश्चात् यथाऽनुपूर्व्ययौगपद्यसादृश्यसम्पत्तिसाकल्याऽन्तवचनेषु।” के अनुसार अव्ययीभाव समास निम्नलिखित अर्थों में होता है
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तत्पुरुष समास

सूत्र- ‘उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः जिस समास में उत्तर पद के अर्थ की प्रधानता हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। वाक्य-प्रयोग में लिंग, विभक्ति तथा वचन का प्रयोग भी उत्तर पद के अनुसार ही होता है। तत्पुरुष समास का विग्रह करने पर पूर्व पद में द्वितीया आदि विभक्तियाँ होती हैं-समास करने पर पूर्व पद की विभक्तियों को लोप हो जाता है; जैसे—देवानां मन्दिरम् = ‘देवमन्दिरम्’, इसमें ‘मन्दिरम्’ (उत्तर पद) प्रधान है। समास करने पर देवानां की षष्ठी विभक्ति का लोप हो जाता है।

तत्पुरुष समास के भेद-पूर्व पद की विभक्ति के लोप के आधार पर तत्पुरुष के छः भेद होते।

(1) द्वितीया तत्पुरुष- इसमें पूर्व पद द्वितीया विभक्ति का होता है और समास करने पर द्वितीया विभक्ति का लोप हो जाता है। उदाहरण–
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(2) तृतीया तत्पुरुष- 
इस समास में पूर्व पद तृतीया विभक्ति का होता है और समास करने पर तृतीया विभक्ति का लोप हो जाता है। उदाहरण
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(3) चतुर्थी तत्पुरुष- जहाँ पूर्व पद चतुर्थी विभक्ति का होता है और समास करने पर चतुर्थी विभक्ति का लोप हो जाता है। उदाहरण
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(4) पञ्चमी तत्पुरुष- जहाँ पूर्व पद पञ्चमी विभक्ति का होता है और समास करने पर पञ्चमी विभक्ति का लोप हो जाता है। उदाहरण
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(5) षष्ठी तत्पुरुष- इसमें पूर्व पद षष्ठी विभक्ति का होता है और समास करने पर षष्ठी विभक्ति | का लोप हो जाता है। उदाहरण
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(6) सप्तमी तत्पुरुष- इसमें पूर्वपद सप्तमी विभक्ति का होता है और समास करने पर सप्तमी विभक्ति का लोप हो जाता है। उदाहरण
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कर्मधारय समास

सूत्र- ‘विशेषणं विशेष्येण बहुलम्।यह तत्पुरुष समास का उपभेद है। इसका पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है। विग्रह करते समय विशेष्य के लिंग, विभक्ति और वचन ही विशेषण में भी प्रयुक्त होते हैं। विशेष्य के लिंग, विभक्ति और वचन के अनुसार ही तत्, एतत् तथा इदम् के रूपों का प्रयोग होता है। उदाहरण
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द्विगु समास

जब कर्मधारय समास का पूर्व पद संख्यावाचक होता है तो वह द्विगु समास कहलाता है; जैसे–त्रिभुवनम्। यहाँ पर ‘त्रि’ शब्द संख्यावाचक है। इस समास का विग्रह करते समय अन्त में ‘समाहारः’ शब्द जोड़ते हैं और प्रायः षष्ठी विभक्ति का प्रयोग करते हैं। उदाहरण
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बहुव्रीहि समास

सूत्र-‘अनेकमन्य पदार्थे।’
जहाँ पर अनेक पद होते हैं, परन्तु वे किसी अन्य पद के विशेषण होते हैं। इसमें अन्य पद के अर्थ की प्रधानता होती है। जिस समास में न तो पूर्व पद प्रधान होता है और न उत्तर पद, अपितु ये पद अपना स्वतन्त्र अर्थ न देकर अन्य पद के लिए विशेषण का कार्य करते हैं, वहाँ बहुव्रीहि समास होता है। इसमें विग्रह करते समय यत्’ शब्द के रूपों (यस्य, येन, यस्मै आदि) का प्रयोग किया जाता है; जैसे-पीताम्बर:-पीतम् अम्बरं यस्य सः (कृष्ण:)। यहाँ पर पीत और अम्बर पदों की प्रधानता न होकर ‘कृष्णः’ पद की प्रधानता है और समस्त पद ‘कृष्ण:’ का विशेषण है। | बहुव्रीहि समास के चार भेद होते हैं–
(क) समानाधिकरण बहुव्रीहि,
(ख) व्यधिकरण बहुव्रीहि,
(ग) तुल्ययोग बहुव्रीहि,
(घ) व्यतिहार बहुव्रीहि।

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(क) समानाधिकरण बहुव्रीहि- जिस समास के दोनों या अधिक पदों में समान विभक्ति हो, उसे समानाधिकरण बहुव्रीहि कहते हैं। इसका विग्रह करते समय ‘यत्’ शब्द के द्वितीय, तृतीया आदि विभक्ति के रूपों का प्रयोग होता है और समस्त पद विशेषण का कार्य करता है। उदाहरण
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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 18

द्वन्द्व समास

सूत्र- ‘चार्थे द्वन्द्वः।उभयपदप्रधानो द्वन्द्वः।’ जिस समास में दो या अधिक पद जुड़े हुए हों और सभी पद प्रधान हों, वह द्वन्द्व समास कहलाता है। इसमें ‘च’ का अर्थ छिपा रहता है। विग्रह करते समय प्रत्येक पद के बाद ‘च’ लगाया जाता है। यह समासु तीन प्रकार का होता है-
(क) इतरेतर,
(ख) समाहार,
(ग) एकशेष।

(क) इतरेतर द्वन्द्व- इस समास में दो या अधिक पदों का योग होता है। दो पदों के लिए द्विवचन और अधिक पदों के लिए बहुवचन का प्रयोग होता है। लिंग अन्तिम पद के समान प्रयोग किया जाता है। उदाहरण
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(ख) समाहार द्वन्द्व- जिस समास में अनेक पदों के समूह (समाहार) का बोध होता है, उसे समाहार द्वन्द्व कहते हैं। इसमें समास करते समय नपुंसकलिंग एकवचन का प्रयोग होता है। प्राणी, वाद्य, सेना और शरीर के अंगों, स्वाभाविक वैर रखने वाले प्राणियों में यह समास होता है। उदाहरण
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 समास-प्रकरण (व्याकरण)

(ग) एकशेष द्वन्द्व- जिस सामासिक पद में समान रूप से प्रयुक्त होने वाले शब्दों (पदों) में से केवल एक पद शेष रह जाता है और अपने भाव को विभक्ति व वचन के अनुसार प्रकट करता है, वहाँ एकशेष द्वन्द्व समास होता है। उदाहरण
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लघु उतरिय प्रश्ननोतर संस्कृत व्याकरण से

तत्पुरुष समास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों में समास-विग्रह करते हुए समास का नाम बताइए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद कीजिए—
उपगृहं भवतो मम मन्दिरम्। संसारे सर्वे सङ्कटापन्नाः। ज्ञाने पापं न भवति। योगी निर्जनं वनमगात्। कोलाहलं नगरे न तु कानने।
उत्तर:
आपके घर के निकट मेरा घर है। संसार में सभी संकटों से घिरे हुए हैं। ज्ञान होने पर पाप नहीं होता है। योगी निर्जन वन को गया। कोलाहल (शोर) नगर में होता है न कि वन में।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों में समास कीजिए
उत्तर:
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कर्मधारय समास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों में विग्रह करते हुए समास बताइए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित पदों में समास कीजिए
उत्तर:
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द्विगु समास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में विग्रह निर्देश करते हुए समास बताइए
उत्तर:
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नञ् तत्पुरुष

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों में विग्रह करते हुए समास का नाम बताइए
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित पदों में समास कीजिए
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 समास-प्रकरण (व्याकरण)

द्वन्द्व समास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों में विग्रह बतलाते हुए समास बताइए
उत्तर:
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इतरेतर द्वन्द्व

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पदों में समास कीजिए
उत्तर:
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बहुव्रीहि समास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों में विग्रहसहित समास बताइए
उत्तर:
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वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए
प्रश्न 1.
समास से क्या भाव व्यक्त होता है?
(क) पदों के मेल का
(ख) पदों के संक्षिप्तीकरण का
(ग) पदों का विस्तारीकरण का
(घ) पदों के दीर्धीकरण का

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प्रश्न 2.
समास के कुल कितने भेद होते हैं?
(क) छः
(ख) पाँच
(ग) तीन
(घ) चार

प्रश्न 3.
उत्तरपद की प्रधानता और पूर्वपद की विभक्ति के लोप वाला समास कहलाता है
(क) तत्पुरुष
(ख) कर्मधारय
(ग) बहुव्रीहि
(घ) द्विगु

प्रश्न 4.
विभक्ति लोप के अनुसार तत्पुरुष समास के कितने भेद होते हैं?
(क) आठ
(ख) सात
(ग) पाँच
(ग) पाँच
(घ) छः

प्रश्न 5.
‘शरणागतः’ का समास-विग्रह क्या होगा?
(क) शरणाय आगतः
(ख) शरणे आगतः
(ग) शरणम् आगतः।
(घ) शरणेषु आगतः

प्रश्न 6.
‘चौरभयम्’ में तत्पुरुष समास का कौन-सा भेद है?
(क) द्वितीया तत्पुरुष
(ख) चतुर्थी तत्पुरुष’
(ग) पञ्चमी तत्पुरुष
(घ) सप्तमी तत्पुरुष

प्रश्न 7.
‘न्यायनिपुणः’ में तत्पुरुष समास का कौन-सा भेद है?
(क) द्वितीया तत्पुरुष
(ख) चतुर्थी तत्पुरुष
(ग) पञ्चमी तत्पुरुष,
(घ) सप्तमी तत्पुरुष

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प्रश्न 8.
जब समस्त पद में पूर्व पद नकारात्मक भाव व्यक्त करता है, तब कौन-सा समास होता है?
(क) कर्मधारय
(ख) अलुक् तत्पुरुष
(ग) नञ् तत्पुरुष
(घ) उपपद तत्पुरुष

प्रश्न 9.
‘दिवंगतः’ का समास-विग्रह क्या होगा?
(क) दिवाय गतः
(ख) दिवसात् गतः
(ग) दिव: गतः
(घ) दिवं गतः

प्रश्न 10.
जब समस्त पद के प्रथम पद की विभक्ति का लोप नहीं होता, तब कौन-सा समास होता है?
(क) नञ् तत्पुरुष
(ख) अलुक् तत्पुरुष
(ग) तृतीया तत्पुरुष
(घ) उपपद तत्पुरुष

प्रश्न 11.
उपपद तत्पुरुष समास में होता है
(क) सम्बोधन का लोप
(ख) समस्त पदों में उपपद क्रिया का प्रयोग
(ग) पूर्वपद की विभक्ति का लोप नहीं
(घ) प्रथम पद नकारात्मक

प्रश्न 12.
‘धनहीनः’ में तत्पुरुष समास का कौन-सा भेद है?
(क) तृतीया तत्पुरुष
(ख) चतुर्थी तत्पुरुष
(ग) पञ्चमी तत्पुरुष,
(घ) षष्ठी तत्पुरुष

प्रश्न 13.
‘भूतबलिः’ का समास-विग्रह होगा
(क) भूतेभ्यः बलिः
(ख) भूतात् बलिः
(ग) भूतं बलिः
(घ) भूतेन बलिः

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से कौन पञ्चमी तत्पुरुष का उदाहरण नहीं है?
(क) धर्मभ्रष्टः
(ख) सर्पभीतः
(ग) रक्षापुरुषः
(घ) दूरादागत:

प्रश्न 15.
निम्नलिखित में से कौन षष्ठी तत्पुरुष का उदाहरण है?
(क) दु:खमुक्तः
(ख) स्वर्गस्य फलम्
(ग) पुत्रहितम्
(घ) धनहीनः

प्रश्न 16.
‘विद्यायाम् कुशलः’ में समास करने पर समस्त पद बनेगा? ।
(क) विद्यकुशलः
(ख) विद्याकुशलः
(ग) विद्यां कुशलः
(घ) विद्याकुशलः

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प्रश्न 17.
जब समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का सम्बन्ध पाया जाता है, तब कौन-सा ‘ समास होता है?
(क) तत्पुरुष
(ख) अव्ययीभाव
(ग) बहुव्रीहि
(घ) कर्मधारय

प्रश्न 18.
‘कमलकोमलम्’ का समास-विग्रह होगा–
(क) कमलं कोमलम्
(ख) कमलस्य कोमलम्
(ग) कमलम् इव कोमलम्
(घ) कमलाय कोमलम्

प्रश्न 19.
‘नर इव सिंहः’ में समास करने पर समस्त पद क्या बनेगा?
(क) नरसिंहः,
(ख) नरिवसिंह
(ग) नरेवसिंह
(घ) नरैवसिंहः

प्रश्न 20.
जिस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं और विग्रह करने पर दोनों के मध्य ‘च’ जुड़ जाता है, वह कौन-सा समास है?
(क) द्वन्द्व
(ख) अव्ययीभाव।
(ग) द्विगु
(घ) बहुव्रीहि

प्रश्न 21.
द्वन्द्व समास के कुल कितने भेद हैं?
(क) पाँच
(ख) चार
(ग) तीन
(घ) दो

प्रश्न 22.
‘पितरौ’ किस समास का उदाहरण है?
(क) इतरेतर द्वन्द्व का
(ख) एकशेष द्वन्द्व का
(ग) समाहारे द्वन्द्व का
(घ) द्विगु का

प्रश्न 23.
‘शास्त्रप्रवीणः का विग्रह और समास का नाम होगा–
(क) शास्त्रेषु प्रवीणः, सप्तमी तत्पुरुष
(ख) शास्त्राणाम् प्रवीणः, षष्ठी तत्पुरुष
(ग) शास्त्राय प्रवीणः, चतुर्थी तत्पुरुष
(घ) शास्त्रे प्रवीणः, सप्तमी तत्पुरुष

प्रश्न 24.
सुन्दर और कुत्सित अर्थों में ‘सु’ और ‘कु’ का प्रयोग किस समास में होता है?
(क) षष्ठी तत्पुरुष,
(ख) कर्मधारय
(ग) अव्ययीभाव
(घ) बहुव्रीहि

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प्रश्न 25.
जिसे समास में अनेक पदों के समूह का बोध होता है, उसे कहते हैं
(क) समाहार द्वन्द्व
(ख) इतरेतर द्वन्द्व
(ग) द्विगु
(घ) एकशेष द्वन्द्व

उत्तर:
1. (ख) पदों के संक्षिप्तीकरण का, 2. (क) छः, 3. (क) तत्पुरुष, 4. (घ) छः, 5. (ग) शरणम् आगतः, 6. (ग) पञ्चमी तत्पुरुष, 7. (घ) सप्तमी तत्पुरुष, 8. (ग) नञ् तत्पुरुष, 9. (घ) दिवं गतः, 10. (ख) अलुक् तत्पुरुष, 11. (ख) समस्त पद में उपपद क्रिया का प्रयोग, 12. (क) तृतीया तत्पुरुष, 13. (क) भूतेभ्यः बलिः, 14. (ग) रक्षापुरुषः, 15. (ख) स्वर्गस्य फलम्, 16. (ख) विद्याकुशलः, 17. (घ) कर्मधारय, 18. (ग) कमलम् इव कोमलम्, 19. (क) नरसिंहः, 20. (क) द्वन्द्व, 21. (ग) तीन, 22. (ख) एकशेष द्वन्द्व का, 23. (क) शास्त्रेषु प्रवीणः, सप्तमी तत्पुरुष, 24. (ख) कर्मधारय, 25. (क) समाहार द्वन्द्व।

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