UP Board Solutions for Class 9 Hindi उपन्यास

UP Board Solutions for Class 9 Hindi उपन्यास

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प्रश्न 1.
द्विवेदी युग के तीन प्रसिद्ध उपन्यासकारों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • मुंशी प्रेमचन्द
  • बाबू वृन्दावनलाल वर्मा
  • किशोरीलाल गोस्वामी।

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प्रश्न 2.
प्रेमचन्द युग के चार उपन्यासकारों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • चतुरसेन शास्त्री
  • विश्वम्भरनाथ ‘कौशिक’
  • गोपालराम गहमरी
  • बाबू वृन्दावन लाल वर्मा।

प्रश्न 3.
प्रेमचन्दोत्तर युग के तीन उपन्यासकारों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • जैनेन्द्र कुमार
  • अमृतलाल नागर
  • यशपाल।

प्रश्न 4.
जयशंकर प्रसाद के दो उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • तितली
  • कंकाल।

प्रश्न 5.
हिन्दी के प्रमुख सामाजिक उपन्यासकारों के नाम लिखिए।
उत्तर :
मुंशी प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, बाबू वृन्दावनलाल वर्मा, आचार्य चतुरसेन शास्त्री व विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक आदि हिन्दी के प्रमुख सामाजिक उपन्यासकार हैं।

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प्रश्न 6.
द्विवेदी युग में प्रायः किस प्रकार के उपन्यास लिखे गये?
उत्तर :
द्विवेदी युग में प्रायः तिलस्मी, जासूसी, सामाजिक, ऐतिहासिक, पौराणिक, चरित्र प्रधान तथा भाव-प्रधान उपन्यास लिखे गये। लिखिए।

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi कहानी

UP Board Solutions for Class 9 Hindi कहानी

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प्रश्न 1.
कहानी किसे कहते हैं?
उत्तर :
कहानी गद्य की वह विधा है, जो छोटी होती हुई भी बड़े-बड़े भावों की व्यंजना करने में समर्थ होती है। इसको आरम्भ तथा अन्त कलात्मक व प्रभावपूर्ण होता है।

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प्रश्न 2.
आधुनिक साहित्य की सबसे अधिक लोकप्रिय विधा का नाम लिखिए।
उत्तर :
आधुनिक साहित्य की सबसे अधिक लोकप्रिय विधा का नाम ‘कहानी’ है।

प्रश्न 3.
आधुनिक कहानी किस उद्देश्य से लिखी जाती है?
उत्तर :
आधुनिक कहानी का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन के अतिरिक्त किसी पात्र, घटना, भाव या संवेदना की मार्मिक अभिव्यंजना करना है।

प्रश्न 4.
हिन्दी-कथा-साहित्य में युगान्तर उपस्थित करनेवाले कथाकार कौन थे?
उत्तर :
मुंशी प्रेमचन्द।

प्रश्न 5.
‘मानसरोवर’ में किसकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं?
उत्तर :
मुंशी प्रेमचन्द की।

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प्रश्न 6.
मुंशी प्रेमचन्द ने अपनी रचनाओं में किनके प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की है?
उत्तर :
मुंशी प्रेमचन्द ने अपनी रचनाओं में किसानों की दशा, सामाजिक बन्धनों में तड़पती नारियों की वेदना, वर्ण व्यवस्था की कठोरता के भीतर संत्रस्त हरिजनों की पीड़ा, दलित जनता तथा मजदूरों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की है।

प्रश्न 7.
विषय की प्रधानता के आधार पर कहानी कितने प्रकार की होती है?
उत्तर :
विषय की प्रधानता के आधार पर कहानी चार प्रकार की होती है

  • घटना प्रधान
  • चरित्र प्रधान
  • भाव प्रधान
  • वातावरण प्रधान

प्रश्न 8.
विषयवस्तु के आधार पर कहानी कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर :
विषयवस्तु के आधार पर कहानी निम्नलिखित प्रकार की होती है

  • ऐतिहासिक
  • सामाजिक
  • यथार्थवादी
  • दार्शनिक
  • मनोवैज्ञानिक
  • हास्य-व्यंग्य प्रधान
  • प्रतीकवादी आदि।

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प्रश्न 9.
द्विवेदी युग के चार प्रसिद्ध कहानीकारों के नाम लिखिए। अथवा द्विवेदी युग के दो कहानीकारों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • मुंशी प्रेमचन्द
  • चन्द्रधरशर्मा ‘गुलेरी’
  • जयशंकर प्रसाद
  • विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’।

प्रश्न 10.
मुंशी प्रेमचन्द की प्रमुख कहानियों के नाम लिखिए।
उत्तर :
ईदगाह, पूस की रात, शतरंज के खिलाड़ी, बड़े भाई साहब, कफन, मन्त्र, पंच परमेश्वर आदि मुंशी प्रेमचन्द की प्रमुख कहानियाँ हैं।

प्रश्न 11.
मुंशी प्रेमचन्द के समकालीन दो कहानीकारों के नाम लिखिए। (V. Imp.)
अथवा हिन्दी के दो प्रसिद्ध कहानीकारों के नाम बताइए।
उत्तर :

  • जयशंकर प्रसाद
  • सुदर्शन।

प्रश्न 12.
प्रेमचन्दोत्तर हिन्दी के दो कहानीकारों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • जैनेन्द्रकुमार
  • यशपाल

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi नाटक

UP Board Solutions for Class 9 Hindi नाटक

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प्रश्न 1.
नाटक किसे कहते हैं?
उत्तर :
नाटक साहित्य की वह दृश्य विधा है, जिसमें अभिनय, नृत्य, संवाद, शरीराकृति और वेशभूषा द्वारा आनन्द प्राप्त होता है।

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प्रश्न 2.
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के चार नाटकों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • भारत दुर्दशा
  • सत्य हरिश्चन्द्र
  • अंधेर नगरी
  • वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति

प्रश्न 3.
भारतेन्दु युग के चार प्रमुख नाटककारों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • राधाचरण गोस्वामी
  • पं० बालकृष्ण भट्ट
  • बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’
  • किशोरीलाल गोस्वामी।

प्रश्न 4.
भारतेन्दु के बाद नाटक के क्षेत्र में सर्वाधिक योगदान किसका रहा?
उत्तर :
जयशंकर प्रसाद का।

प्रश्न 5.
हिन्दी के प्रमुख नाटककारों के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, जयशंकर प्रसाद, डॉ० वृन्दावनलाल वर्मा, लक्ष्मीनारायण मिश्र, सेठ गोविन्ददास, विष्णु प्रभाकर, हरिकृष्ण प्रेमी, उदयशंकर भट्ट, उपेन्द्रनाथ अश्क’ आदि हिन्दी के प्रमुख नाटककार हैं।

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प्रश्न 6.
हिन्दी के ऐतिहासिक नाटककारों एवं उनके एक-एक नाटक का नाम लिखिए। अथवा हिन्दी साहित्य के दो ऐतिहासिक नाटककारों के नाम दीजिए।
उत्तर :

  • जयशंकर प्रसाद-चन्द्रगुप्त
  • हरिकृष्ण प्रेमी-रक्षाबन्धन
  • गोविन्दवल्लभ पन्त-राजमुकुट
  • सेठ गोविन्ददास-हर्ष
  • डॉ० वृन्दावनलाल वर्मा-झाँसी की रानी
  • लक्ष्मीनारायण मिश्र-वत्सराज।

प्रश्न 7.
हिन्दी नाटक के विकास में किस नाटककार का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है? उसके द्वारा लिखित दो नाटकों के नाम लिखिए।
उत्तर :
हिन्दी नाटक के विकास में जयशंकर प्रसाद का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके दो नाटक हैं-‘अजातशत्रु’ और ‘ध्रुवस्वामिनी’।

प्रश्न 8.
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटक किन विषयों पर आधारित हैं?
उत्तर :
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटक राष्ट्रप्रेम, धर्म, राजनीति, समाज-सुधार आदि विषयों पर आधारित हैं। इनमें प्रेमतत्त्व प्रमुख हैं।

प्रश्न 9.
जयशंकर प्रसाद के नाटकों के क्या विषय हैं?
उत्तर :
प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति का समन्वय, देशप्रेम, आधुनिक युग की समस्याएँ, मानव-मन को द्वन्द्व आदि जयशंकर प्रसाद के नाटकों के प्रमुख विषय हैं।

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प्रश्न 10.
जयशंकर प्रसाद के दो ऐतिहासिक नाटकों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर :

  • चन्द्रगुप्त ,
  • स्कन्दगुप्त।

प्रश्न 11.
जयशंकर प्रसाद के परवर्ती ( बाद के) नाटककारों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • लक्ष्मीनारायण मिश्र
  • हरिकृष्ण प्रेमी
  • डॉ० रामकुमार वर्मा
  • सेठ गोविन्ददास
  • उदयशंकर भट्ट
  • गोविन्दवल्लभ पन्त
  • उपेन्द्रनाथ अश्क।

प्रश्न 12.
प्रसाद युग के किन्हीं दो नाटककारों के नाम व उनकी एक-एक रचनाओं का नाम लिखिए।
उत्तर :

  • जयशंकर प्रसाद-अजातशत्रु,
  • हरिकृष्ण प्रेमी-रक्षाबन्धन।

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UP Board Solutions for Class 9 Hindi निबन्ध

UP Board Solutions for Class 9 Hindi निबन्ध

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प्रश्न 1.
निबन्ध किसे कहते हैं?
उत्तर :
निबन्ध उस गद्य विधा को कहते हैं, जो कलात्मक नियमों के बन्धन से मुक्त हो। इसमें लेखक स्वच्छन्दतापूर्वक अपने विचारों तथा भावों को प्रकट करता है।

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प्रश्न 2.
हिन्दी निबन्ध-लेखन की विभिन्न शैलियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
हिन्दी निबन्ध-लेखन में वर्णनात्मक, विवरणात्मक, विचारात्मक तथा भावात्मक शैलियों को अपनाया गया है।

प्रश्न 3.
हिन्दी के प्रमुख ललित निबन्धकारों के नाम बताइए।
उत्तर :
हिन्दी के प्रमुख ललित निबन्धकार हैं-आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, शिवप्रसाद सिंह, रामवृक्ष बेनीपुरी, कुबेरनाथ राय, डॉ० विद्यानिवास मिश्र, डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल, जगदीशचन्द्र माथुर, डॉ० धर्मवीर भारती, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी।

प्रश्न 4.
प्रतापनारायण मिश्र द्वारा रचित दो प्रसिद्ध निबन्धों और नाटकों के नाम लिखिए।
उत्तर :
निबन्ध-

  • रिश्वत
  • समझदार की मौत।

नाटक-

  • हठी हम्मीर
  • कलि कौतुक।

प्रश्न 5.
विचारात्मक तथा भावात्मक निबन्ध-लेखकों में से एक-एक निबन्ध-लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर :

  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल-विचारात्मक निबन्ध लेखक
  • वियोगी हरि-भावात्मक निबन्ध लेखक

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प्रश्न 6.
हिन्दी साहित्य के दो विचारात्मक निबन्धकारों के नाम लिखिए।
उत्तर :

  • डॉ० श्यामसुन्दर दास
  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

प्रश्न 7.
निबन्ध के विकास में योगदान करनेवाले किन्हीं दो निबन्धकारों के नाम बताइए।
उत्तर :

  • आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी
  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल।

प्रश्न 8.
‘नींव की ईंट’ बेनीपुरी जी की किस प्रकार की निबन्ध-रचना है?
उत्तर :
यह भावात्मक निबन्ध-रचना है।।

प्रश्न 9.
‘नींव की ईंट’ निबन्ध में बेनीपुरी जी द्वारा प्रयुक्त दो शैलियों के नाम लिखिए।
उत्तर :
‘नींव की ईंट’ निबन्ध में प्रतीकात्मक तथा भावात्मक दो प्रमुख शैलियों का प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 10.
विचारात्मक निबन्ध लिखने के अतिरिक्त काका साहब ने हिन्दी साहित्य की किस विधा में कलम चलायी है?
उत्तर :
यात्रा-साहित्य में

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प्रश्न 11.
विनयमोहन शर्मा के निबन्धों की मुख्य विशेषताएँ संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
विनयमोहन शर्मा के निबन्ध आत्मव्यंजक तथा दृश्यों को अंकित करने की क्षमता से युक्त हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 भारतदेशः (पद्य-पीयूषम्)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 भारतदेशः (पद्य-पीयूषम्) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 भारतदेशः (पद्य-पीयूषम्).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 7
Chapter Name भारतदेशः (पद्य-पीयूषम्)
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 भारतदेशः (पद्य-पीयूषम्)

परिचय–विश्व में ऐसा कोई भी देश नहीं है, जो भारत के ज्ञान और विज्ञान से स्पर्धा कर सके। भारत का प्राकृतिक सौन्दर्य तो अनुपम ही है। यह वह देश है, जहाँ शरीरधारी सुकर्म करते हुए मोक्ष प्राप्त करते हैं। मनुष्य ही नहीं अपितु देवता भी मोक्ष की कामना से भारतभूमि पर अवतरित होते हैं। प्रस्तुत पाठ के श्लोक विष्णु पुराण से संगृहीत किये गये हैं। इनमें देवताओं द्वारा भारतवर्ष की महिमा का वर्णन किया गया है।

पाठ-सारांश

हमारा देश भारतवर्ष महान् है। इसकी महिमा देवताओं ने पुराणों में गायी है। भारतवर्ष स्वर्ग और मोक्ष का साधनस्वरूप है। यहाँ पर देवता भी देवत्व के सुखों को भोगकर पुरुष रूप में जन्म लेना चाहते हैं। भारत में मनुष्य कर्मफल की इच्छा न करता हुआ अपने कर्मों को विष्णु के प्रति समर्पित करके प्रभु में लीन हो जाता है। यह भारतवर्ष सात समुद्रों वाली पृथ्वी पर सबसे पुण्यशाली है। यहाँ के लोग विष्णु के कल्याणकारी चरितों का गान करते हैं। भारत-भूमि पर जन्म प्राप्त करना बड़े पुण्य से या ईश्वर की कृपा से ही सम्भव है। कल्पों की आयु (UPBoardSolutions.com) प्राप्त करके दूसरे स्थानों पर जन्म लेने की अपेक्षा कम आयु पाकर भारत में जन्म लेना अच्छा है। यहाँ पर अपने क्षणिक जीवन में ही मनुष्य अपने कर्मों को ईश्वर को समर्पित करके विष्णु का अभयपद प्राप्त करता है। देवता लोग कामना करते हैं कि हम अवशिष्ट पुण्य के प्रभाव से भारत में ही जन्म प्राप्त करें। जो पुरुष भारत में जन्म लेकर सत्कर्म नहीं करते, वे अमृत घट को छोड़कर विषपात्र पाने की इच्छा करते हैं। | देवों द्वारा गायी गयी भारतभूमि की महिमा हमारे देश की महत्ता को प्रकट करती है।

पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या

(1)
गायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ये भारतभूमिभागे।
स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ॥

शब्दार्थ-
गायन्ति = गाते हैं।
देवाः = देवतागण।
किले = निश्चित ही।
गीतकानि = गीतों को।
भारतभूमिभागे = भारत के भू-भाग पर।
स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते = स्वर्ग और मोक्ष को प्राप्त कराने में साधनस्वरूप।
भवन्ति = होते हैं।
भूयः = फिर से।
पुरुषाः = रूप में।
सुरत्वात् = देवत्व का उपभोग करने के पश्चात्।।

सन्दर्य
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘भारतदेशः’ शीर्षक पाठ से उधृत है। |

[संकेत-इस पाठ के शेष सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में देवतागण भारत देश के उत्कर्ष का गान करते हुए यहाँ पर स्वयं जन्म धारण करने की इच्छा प्रकट करते हैं।

अन्वय
देवाः किल गीतकानि गायन्ति। स्वर्गापवर्गास्पद हेतु-भूते भारतभूमि भागे ये सुरत्वात्। भूयः पुरुषाः भवन्ति (ते) तु धन्याः (सन्ति)। | व्याख्या-देवगण भी निश्चय ही (भारतभूमि की प्रशंसा के) गीत गाते हैं। स्वर्ग और मोक्ष को प्राप्त कराने में साधनस्वरूप भारतभूमि के भाग में जो देवता लोग देवत्व को छोड़कर फिर से मनुष्य रूप में जन्म लेते हैं, वे निश्चय ही धन्य हैं।

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(2)
कर्माण्यसङ्कल्पित तत्फलानि संन्यस्य विष्णौ परमात्मभूते ।।
अवाप्य तां कर्ममहीमनन्ते तस्मिल्लयं ते त्वमलाः प्रयान्ति ॥

शब्दार्थ-
कर्माणि = कर्मों को।
असङ्कल्पित तत्फलानि = उनके फलों की प्राप्ति की इच्छा से ने किये गये, अनासक्त भाव से किये गये।
संन्यस्य = समर्पित करके।
विष्णौ = विष्णु को।
परमात्मभूते = परमात्मस्वरूप।
अवाप्य = प्राप्त करके।
कर्ममहीम् = कर्मभूमि (भारत)।
अनन्ते = अन्तहीन ईश्वर में।
लयं = लीन।
प्रयान्ति = हो जाते हैं।
अमलाः = पाप-मल से रहित होते हुए। |

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में कर्मफल की इच्छा ने रखकर किये गये कर्म को भगवान् को समर्पित करके मुक्त हो जाने का वर्णन है।

अन्वय
ते तु तां कर्ममहीम् अवाप्य असङ्कल्पित तत् फलानि कर्माणि परमात्मभूते विष्णौ संन्यस्य अमलाः (सन्तः) तस्मिन् अनन्ते लयं प्रयान्ति। | व्याख्या-भारतभूमि में उत्पन्न होने वाले वे लोग उस कर्मभूमि भारत को प्राप्त करके (जन्म : लेकर) कर्मफल की इच्छा न रखते हुए किये (UPBoardSolutions.com) गये (अनासक्त भाव से) कर्मों को परमात्मस्वरूप विष्णु में समर्पित करके पाप-मल से रहित होकर उस अनन्त परमात्मा में विलीन हो जाते हैं। तात्पर्य यह है कि चारों पुरुषार्थों में जो सर्वोपरि पुरुषार्थ मोक्ष है, उसे प्राप्त कर लेते हैं और संसार के आवागमन से मुक्त हो जाते हैं।

(3)
अहो भुवः सप्तसमुद्रवत्याः द्वीपेषु वर्षेष्वधिपुण्यमेतत्
गायन्ति यत्रत्यजनाः मुरारेर्भद्राणि कर्माण्यवतारवन्ति ।

शब्दार्थ
अहो = हर्षसूचक शब्द।
भुवः = पृथ्वी के।
सप्तसमुद्रवत्याः = सात समुद्रों वाली।
द्वीपेषु = समस्त द्वीपों में।
वर्षेषु= द्वीपों के खण्डों में, देशों में।
अधिपुण्यम् = अधिक पुण्य वाला।
एतद् = यह भारतवर्ष।
गायन्ति = गाते हैं।
यत्रत्य जनाः = जहाँ के रहने वाले लोग।
मुरारेः = विष्णु के।
भद्राणि = कल्याणकारी।
अवतारवन्ति = अवतारों वाले।।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में देवताओं ने समस्त विश्व में भारतवर्ष को सर्वोत्कृष्ट बताया है।

अन्वय
अहो! सप्तसमुद्रवत्याः भुवः द्वीपेषु वर्षेषु एतत् (भारतवर्षम्) अधिपुण्यम् (अस्ति), यत्रत्यजनाः मुरारे: अवतारवन्ति भद्राणि कर्माणि गायन्ति।

व्याख्या
अहो! सात समुद्रों से घिरी हुई पृथ्वी के सभी द्वीपों और खण्डों में यह भारतवर्ष अधिक पुण्यशाली है, जहाँ के रहने वाले लोग भगवान् विष्णु के द्वारा लिये गये अवतारों के कल्याणकारी शुभ कर्मों का गान करते हैं। |

(4)
अहो अमीषां किमकारि शोभनं प्रसन्न एषां स्विदुत स्वयं हरिः।
यैर्जन्म लब्धं नृषु भारताजिरे मुकुन्दसेवौपायिकं स्पृहा हि नः ॥

शब्दार्थ
अमीषाम् = इन्होंने।
किम् = कौन, क्या।
अकारि = किया है।
शोभनम् = अच्छा कर्म, पुण्य।
एषां = इन (भारतवासियों) पर।
स्विदुत = अथवा।
स्वयं हरिः = स्वयं विष्णु ने।
यैः = जिनके द्वारा।
लब्धं = प्राप्त किया है।
नृषु = मानव योनि में, मनुष्य रूप में।
भारताजिरे = भारत के प्रांगण में।
मुकुन्दसेवौपायिकम् = विष्णु की सेवा का साधनस्वरूप।
स्पृहा = इच्छा। नः = हमारी।।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में भारत में जन्म लेने वाले लोगों के पुण्य पर देवताओं को भी आश्चर्य , है। |

अन्वय
अहो! अमीषां किं शोभनम् अकारि, स्विदुत हरिः स्वयम् एषां प्रसन्नः (अस्ति)। यैः भारताजिरे नृषु मुकुन्दसेवौपायिकं जन्म लब्धम्। नः हि स्पृही (अस्ति)।

व्याख्या
अहो! इन भारत के रहने वालों ने ऐसा कौन-सा शुभ कर्म किया है अथवा विष्णु स्वयं इन लोगों पर प्रसन्न हैं, जिन लोगों ने भारत के प्रांगण में मनुष्यों में भगवान् विष्णु की सेवा का साधनस्वरूप जन्म प्राप्त किया है। हमारी इच्छा है कि हम भी वहीं जन्म प्राप्त करें।

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(5)
कल्पायुषां स्थानजयात् पुनर्भवात् क्षणायुषां भारतभूजयो वरम्।
क्षणेन मर्येन कृतं मनस्विनः संन्यस्य संयन्त्यभयं पदं हरेः॥

शब्दार्थ
कल्पायुषाम् = एक कल्प की आयु वाले ब्रह्मादिकों का, कल्प समय का एक बहुत बड़ा विभाग है जो एक हजार महायुग अर्थात् 4 अरब 32 करोड़ मानव वर्षों का माना जाता है।
स्थानजयात् = लोकों की प्राप्ति की अपेक्षा
पुनर्भवात् = जहाँ से पुनः जन्म लेना पड़ता है।
क्षणायुषाम् = क्षणभर की आयु वालों का।
भारतभूजयः = भारतभूमि में जन्म।
वरम् = श्रेष्ठ।
क्षणेन = क्षणिक।
मन = मरणशील शरीर से।
कृतम् = अपने कर्म को।
मनस्विनः = धीर, मनस्वी पुरुष।
संन्यस्य = भगवान् को समर्पित करके।
संयान्ति = प्राप्त करते हैं।
अभयं = (जन्म-जरा-मरण आदि के) भय से मुक्ति।
पदं = स्थान को।
हरेः = हरि के।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में एक कल्प की आयु वालों की अपेक्षा क्षणभर की .आयु वाले “भारतवासियों को श्रेष्ठ बताया गया है।

अन्वय
पुनर्भवात् कल्पायुषां स्थानजयात् क्षणायुषां भारतभूजयः वरम् (अस्ति)। मनस्विनः क्षणेन मत्येंन कृतं संन्यस्य हरेः अभयं पदं संयान्ति।

व्याख्या
कल्प की आयु वाले ब्रह्मादिकों से पुनर्जन्म वाले लोकों को प्राप्त करने की अपेक्षा क्षणभर की आयु वालों को भारतभूमि पर जन्म लेना अच्छा है। धीर पुरुष क्षणिक मरणशील शरीर से किये गये कर्म को भगवान् को समर्पित करके विष्णु के जरा-मरणादि भय से रहित स्थान मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

(6)
यद्यस्ति नः स्वर्गसुखावशेषितं स्विष्टस्य सूक्तस्य कृतस्य शोभनम्
तेनाजनाभे स्मृतिमज्जन्म नः स्यात् वर्षे हरिय॑द् भजतां शं तनोति ॥

शब्दार्थ
यद्यस्ति (यदि + अस्ति) = यदि है।
नः = हमारे।
स्वर्गसुखावशेषितम् = स्वर्ग के सुखों से बचा हुआ।
स्विष्टस्य = सुन्दर यज्ञ का।
सूक्तस्य = सुन्दर वचन को।
कृतस्य = पुण्य कर्म का।
अजनाभे = भारतवर्ष में।
स्मृतिमत् = ईश्वर के स्मरण से युक्त।
जन्म स्यात् = जन्म हो।
भजताम् = जिसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों का।
शम् = कल्याण को।
तनोति = वृद्धि करते हैं।

प्रसंग
स्वर्गलोक निवासी जीव स्वर्ग के सुख से बचे हुए पुण्य कर्म से भारत में जन्म लेने की इच्छा करते हैं।

अन्वय
यदि नः स्विष्टस्य, सूक्तस्य कृतस्य (तु) स्वर्गसुखावशेषितम् (अस्ति), (तर्हि) तेन नः अजनाभे स्मृतिमत् जन्म स्यात्। यत् भजतां हरिः शं तनोति।। | व्याख्या–यदि हमारे भली-भाँति किये गये यज्ञ का, सत्य आदि सुन्दर वचन का, किये गये पुण्य कर्म का स्वर्ग-सुख से बचाया हुआ पुण्य कर्म है, तो उससे (UPBoardSolutions.com) भारतवर्ष में भगवान् की स्मृति से युक्त जन्म हो। जिस जन्म को प्राप्त करने वाले पुरुषों के स्वयं भगवान् विष्णु कल्याण की वृद्धि करते हैं। तात्पर्य यह है कि देवतागण भी भारत-भूमि पर जन्म पाने की उत्कट इच्छा रखते हैं और इसके लिए व्याकुलता का अनुभव करते हैं।

(7)
सञ्चितं सुमहत् पुण्यमअक्षय्यममलं शुभम्।
कदा वयं नु लप्स्यामो जन्म भारतभूतले ॥

शब्दार्थ
सञ्चितम् = एकत्र किया हुआ।
सुमहत् = बहुत अधिक।
अक्षय्यम् = नष्ट न होने वाला।
अमलम् = पापरहित।
शुभम् = कल्याणकारी।
लप्स्यामः = प्राप्त करेंगे।
भारत-भूतले = भारतभूमि पर।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में बताया गया है कि देवगण अपने संचित पुण्य से भारतभूमि पर जन्म लेने की उत्कट इच्छा रखते हैं।

अन्वय
(अस्माभिः) अक्षय्यम् अमलं शुभं सुमहत् (यत्) पुण्यं सञ्चितम् (तेनैव पुण्येन) वयं भारतभूतले कदा नु जन्म लप्स्यामः।। 

व्याख्या
हमने (देवताओं ने) कभी नष्ट न होने वाला, पापरहित, शुभ जो बहुत बड़ा पुण्य संचित किया है, उसी पुण्य से हम देवतागण भारतभूमि पर कब जन्म प्राप्त करेंगे?

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(8)
सम्प्राप्य भारते जन्म सत्कर्मसु पराङ्मुखः।।
पीयूषकलशं हित्वा विषभाण्डं स इच्छति ॥

शब्दार्थ
सम्प्राप्य = प्राप्त करके।
सत्कर्मसु = अच्छे कर्मों से
पराङ्मुखः = विमुख।
पीयूषकलशम् = अमृत से भरे घड़े को।
हित्वा = छोड़कर।
विषभाण्डम् = विष से भरे पात्र को।
इच्छति = इच्छा करता है।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में भारत में जन्म लेकर सत्कर्म करने पर बल दिया गया है।

अन्वय
भारते जन्म सम्प्राप्य (यः) सत्कर्मसु पराङ्मुखः भवति, (यः) सः पीयूषकलशं हित्वा विषभाण्डम् इच्छति।।

व्याख्या
भारत में जन्म प्राप्त करके जो व्यक्ति सत्कर्मों से विमुख होता है, वह अमृत से पूर्ण घड़े को छोड़कर विष से पूर्ण पात्रं को पाने की इच्छा करता है। तात्पर्य यह है कि भारत में जन्म लेकर सत्कर्म ही करना चाहिए।

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