UP Board Class 10 Home Science Model Papers Paper 2

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 10
Subject Home Science
Model Paper Paper 2
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 10 Home Science Model Papers Paper 2

समय : 3 घण्टे 15 मिनट
पूर्णांक : 70

निर्देश :
प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
सामान्य निर्देश :

  • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
  • प्रश्न-पत्र में बहुविकल्पीय, अतिलघु उत्तरीय, लघु उत्तरीय और दीर्घ उत्तरीय चार प्रकार के प्रश्न हैं। उनके उत्तर हेतु निर्देश प्रत्येक प्रकार के प्रश्न के पहले दिए गए हैं।

निर्देश :
प्रश्न संख्या 1 तथा 2 बहुविकल्पीय हैं। निम्नलिखित प्रश्नों में प्रत्येक के चार-चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। उनमें से सही विकल्प चुनकर उन्हें क्रमवार अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए।

प्रश्न 1.
(क) बजट बनाने से पहले आवश्यक है। [ 1 ]

  1. आय का पूर्वानुमान
  2. आय पर नियन्त्रण
  3. व्यय पर नियन्त्रण
  4. ये सभी

(ख) जल की कठोरता दूर की जा सकती है। [ 1 ]

  1. सौड़ा डालकर
  2. नमक डालकर
  3. चूना डालकर
  4. ब्लीचिंग पाउडर डालकर

(ग) टायफाइड के जीवाणु का नाम है। [ 1 ]

  1. ट्यूबरकुलोसिस बैसिलस
  2. कॉमा बैसिलस
  3. साल्मोनेला टाइफी
  4. वैरिओला वायरस

(घ) सूती तन्तु प्राप्त होता है। [ 1 ]

  1. बिनौलों से
  2. कीड़ों से
  3. निम्बौरी से
  4. इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 2.
(क) पौधे वायुमण्डल का शुद्धीकरण करते हैं। [ 1 ]

  1. नाइट्रोजन द्वारा
  2. ऑक्सीजन द्वारा
  3. कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा
  4. जल द्वारा

(ख) पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते। [ 1 ]

  1. भूनकर पकाने से
  2. पानी में उबालने से
  3. तलने से
  4. भाप द्वारा पकाने से

(ग) बेरी-बेरी रोग किस विटामिन की कमी से होता है? [ 1 ]

  1. विटामिन ‘A’
  2. विटामिन ‘B’
  3. विटामिन ‘C’
  4. विटामिन ‘D’

(घ) नील का प्रयोग किस वस्त्र पर करते हैं? [ 1 ]

  1. रेशमी वस्त्र
  2. ऊनी वस्त्र
  3. सफेद सूती वस्त्र
  4. रंगीन वस्त्र

निर्देश :
प्रश्न संख्या 3 तथा 4 अतिलघु उत्तरीय हैं। प्रत्येक खण्ड का उत्तर अधिकतम 25 शब्दों में लिखिए।

प्रश्न 3.
(क) नाड़ी की गति पर किन बातों का प्रभाव पड़ता है? [ 2 ]
(ख) पारिवारिक बजट से आप क्या समझती हैं? [ 2 ]
(ग) जीवन रक्षक घोल (ओआरएस) किस रोगी को दिया जाता [ 2 ]
(घ) चल और अचल सन्धि में क्या अन्तर है? उदाहरण दीजिए [ 2 ]
(ङ) मल-मूत्र निकास की जल-संवहन विधि क्या है? [ 2 ]

प्रश्न 4.
(क) मृदा-प्रदूषण का जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? [ 2 ]
(ख) मच्छरों से बचाव के कोई दो प्रमुख उपाय लिखिए। [ 2 ]
(ग) सिलाई किट की क्या उपयोगिता है? [ 2 ]
(घ) फ्रिज की सुरक्षा आप कैसे करेंगी? [ 2 ]
(ङ) जल में घुलनशील विटामिनों को पकाने में आप क्या सावधानी बरतेंगी? [ 2 ]

निर्देश :
प्रश्न संख्या 5 से 7 तक लघु उत्तरीय हैं, इसके प्रत्येक खण्ड का उत्तर 50 शब्दों के अन्तर्गत लिखिए।

प्रश्न 5.
(क) पारिवारिक बजट सम्बन्धी प्रमुख मद कौन-सी हैं? आय-व्यय के सन्तुलन के लिए बजट बनाना क्यों आवश्यक हैं? [ 1 + 3 ]
अथवा
पारिवारिक आय की परिभाषा लिखिए। प्रत्यक्ष आय तथा अप्रत्यक्ष आय में क्या अन्तर है? [ 2 + 2 ]

(ख) जल की अशुद्धियों से आप क्या समझती हैं? जल में कितने प्रकार की अशुद्धियाँ पाई जाती हैं।  [ 2 + 2 ]
अथवा
पर्यावरण प्रदूषण किसे कहते हैं? मानव जीवन पर पर्यावरण प्रदूषण के प्रभावों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए। [ 1 + 3 ]

प्रश्न 6.
(क) हड्डी की टूट एवं मोच में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [ 4 ]
अथवा
उचित श्वसन क्रिया से क्या तात्पर्य है? नाक से साँस लेने के प्रमुख लाभ स्पष्ट कीजिए। [ 1 + 3 ]

(ख) घायल के स्थानान्तरण से क्या आशय है? घायल व्यक्ति का स्थानान्तरण करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? [ 1 + 3 ]
अथवा
पुल्टिस की क्या उपयोगिता है? किन्हीं दो प्रकार की पुल्टिस बनाने की विधि लिखिए। [ 1 + 3 ]

प्रश्न 7.
(क) डूबने पर किस कृत्रिम श्वसन विधि का प्रयोग करते हैं? इस विधि का वर्णन कीजिए। [ 1 + 3 ]
अथवा
ममता  ₹ 1500 लेकर बाजार गई, उसने ₹ 250 के फल ₹ 150.50 की चीनी तथा ₹ 282 की चाय की पत्ती खरीदी। उसने कितना धन खर्च किया तथा कितना शेष रहा?

(ख) तरकारियों के छिलके छीलने से क्या हानि होती है?
अथवा
पाक क्रिया का वसा पर क्या प्रभाव पड़ता है?

निर्देश :

प्रश्न संख्या 8 से 10 तक दीर्घ उत्तरीय हैं। प्रश्न संख्या 8 एवं 9 में विकल्प दिए गए हैं। प्रत्येक प्रश्न के एक ही विकल्प, का उत्तर लिखना है। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर, 100 शब्दों के अन्तर्गत लिखिए।

प्रश्न 8.
हैजा किस प्रकार फैलता है? इस रोग के लक्षण तथा बचने के उपायों का वर्णन कीजिए। [ 2 + 2 + 2 ] 
अथवा
संक्रामक रोग कैसे फैलते हैं? इन्हें फैलने से कैसे रोका जा सकता है? [ 3 + 3 ] 

प्रश्न 9.
फेफड़ों की रचना एवं कार्यों का सचित्र वर्णन कीजिए। [ 6 ] 
अथवा
आधुनिक रसोईघर में समय और शक्ति के बचाव के लिए कौन- कौन से उपकरण उपयोग में लाए जाते हैं? विवेचना कीजिए। [ 6 ] 

प्रश्न 10.
दाग-धब्बे छुड़ाने की विधियाँ लिखिए। पान अथवा कॉफी के दाग कैसे छुड़ाएँगी। [ 2 + 2 + 2 ] 

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UP Board Class 12 Physics Model Papers Paper 5

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Subject Physics
Model Paper Paper 5
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 Physics Model Papers Paper 5

समय 3 घण्टे 15 मिनट
पूर्णांक 70

प्रश्न 1.
सभी खण्डों के उत्तर दीजिये। 
(1 x 6 = 6)
(i) एक आवेशित संधारित्र बैटरी से जुड़ा है। यदि इसके प्लेटों के बीच परावैद्युत 
पदार्थ की एक पट्टी रखी जाए, तो निम्नलिखित में से कौन-सी मात्रा अपरिवर्तित रहती है?
(a) आवेश
(b) विभवान्तर
(c) धारिता
(d) ऊर्जा

(ii) एक बैटरी जिसका विद्युत वाहक बल 5 वोल्ट है तथा आन्तरिक प्रतिरोध 2 ओम है, जो एक बाह्य बैटरी प्रतिरोध से जुड़ा है। यदि परिपथ में धारा । 0.4 ऐम्पियर हो, तो बैटरी की टर्मिनल वोल्टता होगी |
(a) 5 वोल्ट
(b) 5.8 वोल्ट
(c) 4.6 वोल्ट
(d) 4.2 वोल्ट

(iii) 90Ω प्रतिरोध के चल कुण्डली धारामापी में मुख्य धारा 10% भेजने के लिए आवश्यक है।
(a) 9.92 Ω
(b) 10 Ω
(c) 112 Ω
(d) 92 Ω

(iv) यदि काँच-वायु का क्रान्तिक कोण 8 हो, तो वायु के सापेक्ष काँच का अपवर्तनांक होगा
(a) sin θ
(b) cosec θ
(c) sinθ
(d) [latex]\cfrac { 1 }{ { sin }^{ 2 }\theta } [/latex]

(v) एक समबाहु प्रिज्म न्यूनतम विचलन की स्थिति में है। यदि आपतन कोण प्रिज्म | कोण का 4/5 गुना हो, तो न्यूनतम विचलन कोण का मान होगा।
(a) 72°
(b) 60°
(c) 48°
(d) 36°

(vi) AND गेट में एक निवेशी 0 तथा दूसरा 1 है, निर्गत् होगा
(a) 0
(b) 1
(c) 0 अथवा 1
(d) अनिश्चित

प्रश्न 2.
सभी खण्डों के उत्तर दीजिये। (1 x 6 = 6)
(i) स्वप्रेरकत्व पर क्रोड का क्या प्रभाव पड़ेगा?
(ii) भौगोलिक की परिभाषा लिखिये।
(iii) दृश्य तरंगों के दो उपयोग बताइये।
(iv) कैल्साइट क्रिस्टल में से देखने पर किसी वस्तु के दो प्रतिबिम्ब क्यों दिखाई 
देते हैं?
(v) समान चाल से चलते हुए एक इलेक्ट्रॉन तथा एक प्रोटॉन की दे-ब्रोग्ली 
तरंगदैर्यों का अनुपात ज्ञात कीजिए। मान लीजिए प्रोटॉन को द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान का 2000 गुना है।
(vi) व्योम तरंगों से आप क्या समझते हैं?

प्रश्न 3.
सभी खण्डों के उत्तर दीजिये। (2×4= 8)
(i) सिद्ध कीजिये कि एकांक आयतन में किसी समान्तर प्लेट संधारित्र में ऊर्जा
(ii) प्रत्यावर्ती धारा के वर्ग-माध्य-मूल मान का व्यंजक प्राप्त कीजिये।
[latex]=\cfrac { 1 }{ 2 } { \varepsilon }_{ 0 }{ E }^{ 2 } [/latex]
(iii) एक द्वि-उत्तल लेन्स की वक्रता त्रिज्याएँ क्रमशः 10 सेमी तथा 20 सेमी है। इसे 
1.76 अपवर्तनांक वाले द्रव में डुबोने पर फोकस दूरी ज्ञात कीजिए। काँच का अपवर्तनांक 1.6 है। द्रव में लेन्स की प्रकृति बताइए।
(iv) पश्चदिशिक p-n सन्धि डायोड में ऐवेलांश भंजन का क्या अर्थ है?

प्रश्न 4.
सभी खण्डों के उत्तर दीजिये। (3 x 10 = 30)
(i) संलग्न चित्र में जुड़े तीन प्रतिरोध तारों में प्रत्येक का प्रतिरोध 22 है तथा प्रत्येक 
को अधिकतम 18 वाट तक विद्युत शक्ति दी जा सकती है। पूर्ण परिपथ कितनी अधिकतम शक्ति दे सकता है?
(ii) विद्युत वाहक बल E तथा आन्तरिक प्रतिरोध r सेल से किसी प्रतिरोध R पर एक स्थिर वोल्टता मिले, इसके लिये प्रतिबन्ध ज्ञात कीजिये।
(iii) ऐम्पियर के परिपथीय नियम की सहायता से धारावाही परिनालिका के भीतर 
इसकी अक्ष पर चुम्बकीय क्षेत्र के सूत्र की स्थापना कीजिये।
UP Board Class 12 Physics Model Papers Paper 5 image 1
(iv) एक धारामापी के साथ 4 ओम का शन्ट लगाने पर धारामापी में वैद्युत धारा | 1/5 रह जाती है। यदि इस प्रबन्ध के साथ 2 ओम का शन्ट और लगा दें, तब धारामापी में वैद्युत धारा कितनी रह जायेगी?
(v) मैक्सवेल का प्रकाश के सम्बन्ध में विद्युत चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त संक्षेप में लिखिये।
(vi) क्रान्तिक कोण की परिभाषा दीजिये। 
सिद्ध कीजिये कि सघन माध्यम का अपवर्तनांक क्रान्तिक कोण की ज्या का व्युत्क्रम होता है।
(vii) 5400 A तरंगदैर्घ्य का विकिरण एक धातु पर गिरता है, जिसका कार्य फलन 1.9 इलेक्ट्रॉन वोल्ट है। उत्सर्जित फोटो इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा तथा उसका निरोधी विभव ज्ञात कीजिये।
(viii) हाइड्रोजन उत्सर्जन स्पेक्ट्रम में लाइमन श्रेणी का बनना, ऊर्जा-स्तर आरेख पर समझाइये। लाइमन श्रेणी की प्रथम रेखा की तरंगदैर्घ्य की गणना कीजिये।
(ix) नाभिकीय बन्धन ऊर्जा से क्या तात्पर्य है? किसी नाभिकीय विखण्डन की क्रिया में पदार्थ की द्रव्यमान क्षति 1.0 मिलीग्राम है। इस अभिक्रिया में मुक्त ऊर्जा की गणना कीजिये।
(x) मॉडुलन से आप क्या समझते हैं? आयाम मॉडुलित तरंग के उत्पादन के लिए 
आवश्यक नामांकित परिपथ आरेख बनाइये।

प्रश्न 5.
सभी खण्डों के उत्तर दीजिये। (5 x 4= 20)
(i) स्थिर वैद्युत स्थितिज ऊर्जा से आप क्या समझते हैं? ५ वq, कूलॉम के दो आवेशों | की स्थितिज ऊर्जा ज्ञात कीजिये। यदि उनके बीच की दूरी । मीटर है।
(ii) स्वप्रेरण गुणांक की परिभाषा दीजिये। एक समतल वृत्ताकार कुण्डली के स्वप्रेरण 
गुणांक का सूत्र निगमित कीजिये।
(iii) दो बिन्दु प्रकाश स्रोतों की दूरी 24 सेमी है। 9 सेमी फोकस-दूरी के उत्तल लेन्स को उन दोनों के बीच में कहाँ रख दें, कि स्रोतों के प्रतिबिम्ब एक ही जगह बनें?

(iv) AND गेट के लिये लॉजिक प्रतीक सत्यता सारणी बनाइये तथा बूलियन व्यंजक 
लिखिये एवं बताइये कि इसे व्यवहार में दो p-n सन्धि डायोडों को प्रयुक्त कर, किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है?

Answers

उत्तर 1(i).
(b)
विभवान्तर

उत्तर 1(ii).
(d) 4.2 वोल्ट

उत्तर 1(iii).
(b) 10 Ω

उत्तर 1(iv).
(b) cosec θ

उत्तर 1(v).
(d) 36°

उत्तर 1(vi).
(a) 72°

उत्तर 4(iv).
1/13 भाग रह जायेगी

उत्तर 4(vii).
V0=-0.394वोल्ट

उत्तर 4(viii)
1212 Å

उत्तर 4(ix)
9×10
जूले

उत्तर 5(iii)
पहले स्रोत से 18 सेमी पर

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UP Board Class 10 Home Science Model Papers Paper 1

समय : 3 घण्टे 15 मिनट
पूर्णांक : 70

निर्देश :
प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
सामान्य निर्देश :

  • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
  • प्रश्न-पत्र में बहुविकल्पीय, अतिलघु उत्तरीय, लघु उत्तरीय और दीर्घ उत्तरीय चार प्रकार के प्रश्न हैं। उनके उत्तर हेतु निर्देश प्रत्येक प्रकार के प्रश्न के पहले दिए गए हैं।

निर्देश :
प्रश्न संख्या 1 तथा 2 बहुविकल्पीय हैं। निम्नलिखित प्रश्नों में प्रत्येक के चार-चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। उनमें से सही विकल्प चुनकर उन्हें
क्रमवार अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए।

प्रश्न 1.
(क) बी सी जी का टीका किस रोग की रोकथाम के लिए लगाया जाता है?  [ 1 ]
1. कर्णफेर
2. तपेदिक
3. मलेरिया
4. पोलियो

(ख) गोंद के कलफ का प्रयोग किन कपड़ों पर किया जाता है? [ 1 ]
1. ऊनी वस्त्रों पर
2. रेशमी वस्त्रों पर
3. सूती वस्त्रों पर
4. रंगीन वस्त्रों पर

(ग) रिंग कुशन का प्रयोग कब किया जाता है?  [ 1 ]
1. सर्दी लगने पर
2. हैजा होने पर
3. मोच आने पर
4. शैय्या घाव होने पर

(घ) दूध मापने की इकाई क्या है?  [ 1 ]
1. मिलीलीटर, लीटर
2. किलोग्राम, ग्राम
3. सेण्टीमीटर, मीटर
4. इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 2.
(क) ‘वरिष्ठ नागरिक जमा योजना’ खाता खोला जाता है। [ 1 ]
1. 60 वर्ष के उपरान्त
2. 69 वर्ष के पूर्व
3. 50 वर्ष से पूर्व
4. 21 वर्ष के बाद

(ख) अचल जोड़ कहाँ पाया जाता है? [ 1 ]
1. कोहनी
2. खोपड़ी
3. घुटने
4. कलाई

(ग) गर्म पानी की बोतल का प्रयोग किया जाता है। [ 1 ]
1. पेट दर्द में
2. मोच आने पर
3. घाव में
4. इनमें से कोई नहीं

(घ) लौह-तत्त्व की कमी से कौन-सा रोग हो जाता है? [ 1 ]
1. बेरी-बेरी
2. मरास्मस
3. एनीमिया
4. तपेदिक

निर्देश :
प्रश्न संख्या 3 तथा 4 अतिलघु उत्तरीय हैं। प्रत्येक खण्ड का उत्तर अधिकतम 25 शब्दों में लिखिए।

प्रश्न 3.
(क) हैजा रोग किस जीवाणु से फैलता है। इसके बचाव के कोई दो उपाय लिखिए। [ 2 ]
(ख) राम ने एक दर्जन केला ₹ 10 में खरीदा तथा ₹ 12 में बेचा। बताइए। क उसे कितने प्रतिशत लाभ हुआ? [ 2 ]
(ग) बजट सम्बन्धी एंजिल का सिद्धान्त क्या है? [ 2 ]
(घ) शुद्ध जल का क्या आवश्यक गुण है? [ 2 ]
(ङ) कब्ज के रोगी के आहार में मुख्यतया किन भोज्य पदार्थों का समावेश होना चाहिए? [ 2 ]

प्रश्न 4.
(क) ओवन क्या है? इसकी देखभाल आप कैसे करेंगी। [ 2 ]
(ख) कपड़े पर निशान लगाने के लिए किस चॉक का प्रयोग करते हैं और क्यों? [ 2 ]
(ग) वस्त्र की ड्राफ्टिंग करने से क्या लाभ होता है? [ 2 ]
(घ) पाक क्रिया के मुख्य उद्देश्य क्या हैं? [ 2 ]
(ङ) कंकाल तन्त्र की क्या उपयोगिता है? [ 2 ]

निर्देश :
प्रश्न संख्या 5 से 7 तक लघु उत्तरीय हैं, इसके प्रत्येक खण्ड का उत्तर 50 शब्दों के अन्तर्गत लिखिए।

प्रश्न 5.
(क) बैंक के बचत खाते तथा चालू खाते में क्या अन्तर है? [ 2 + 2 ]
अथवा
पारिवारिक बजट बनाने के लाभों का उल्लेख कीजिए। [ 4 ]

(ख) अधिक धन के खर्च के बिना घर की सजावट कैसे कर सकते हैं? उल्लेख कीजिए। [ 2 + 2 ]
अथवा
गृह सज्जा में लकड़ी के फर्नीचर की देखभाल एवं सफाई के बारे में लिखिए। [ 4 ]

प्रश्न 6.
(क) गृह-गणित का ज्ञान होना गृहिणी के लिए क्यों आवश्यक है? [ 2 + 2 ]
अथवा
शुद्ध एवं अशुद्ध जल में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [ 2 + 2 ]

(ख) पेचिश तथा अतिसार में क्या अन्तर है? [ 2 + 2 ]
अथवा
पर्यावरण संरक्षण के लिए जनता को कैसे जागरूक किया जा सकता है? [ 2 + 2 ]

प्रश्न 7.
(क) पर्यावरण प्रदूषण जनजीवन को कैसे प्रभावित करता है? [ 2 + 2 ]
अथवा
रोग-प्रतिरोधक क्षमता से क्या तात्पर्य है? रोग-प्रतिरक्षा के प्रकारों का उल्लेख कीजिए। [ 2 + 2 ]

(ख) ऊनी एवं रेशमी वस्त्रों का रख-रखाव एवं सुरक्षा आप किस प्रकार करेगी। [ 2 + 2 ]
अथवा
“प्रत्येक गृहिणी के लिए सिलाई कला का ज्ञान आवश्यक है।” स्पष्ट कीजिए। [ 2 + 2 ]

निर्देश :
प्रश्न संख्या 8 से 10 दीर्घ उतरीय हैं। प्रश्न संख्या 8 एवं 9 में विकल्प दिए गए हैं। प्रत्येक प्रश्न के एक ही विकल्प का उत्तर लिखना है। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 100 शब्दों के अन्तर्गत लिखिए।

प्रश्न 8.
घर में रसोईघर का क्या महत्त्व है? रसोईघर की व्यवस्था का वर्णन कीजिए। [ 2 + 2 + 2 ]
अथवा
सेक से क्या तात्पर्य हैं? यह कितने प्रकार की होती है? किसी एक विधि का विवरण दीजिए। [ 2 + 2 + 2 ]

प्रश्न 9.
सामान्य स्वस्थ व्यक्ति और रोगी के भोजन में क्या अन्तर होते हैं? रोगी को भोजन देते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? [ 2 + 4 ]
अथवा
सन्धि किसे कहते है? सन्धि कितने प्रकार की होती है? चल सन्धि को उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए। [ 2 + 4 ]

प्रश्न 10.
कृत्रिम श्वसन से आप क्या समझती हैं? कृत्रिम श्वसन की किन्हीं दो विधियों का सामान्य परिचय दीजिए। (2 + 4)

उत्तरमाला

उत्तर 1 :
(क)  1. तपेदिक
(ख) : 2. रेशमी वस्त्रों पर
(ग) : 4. शैय्या घाव होने पर
(घ) : 1. मिलीलीटर, लीटर

उत्तर 2 :
(क) : 1. 60 वर्ष के उपरान्त
(ख) : 2. खोपड़ी
(ग)  : 1. पेट दर्द में
(घ) : 3. एनीमिया

उत्तर 3 :
(क) : हैजा रोग विब्रियो कॉलेरी नामक जीवाणु से फैलता है, इस रोग से बचा के दो प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं। [ 2 ]

  1. नियमित रूप से हैजा का टीका लगवाएँ।
  2. दूध एवं पानी को उबालकर पीना चाहिए।

(ख) : ₹ 10 में खरीदकर ₹ 12 में बेचा
अर्थात् लाभ = 12 -10 = ₹ 2
प्रतिशत लाभ = 2/10 x 100= 20%
20% लाभ हुआ।
(ग) : आय-व्यय से सम्बन्धित इस सिद्धान्त के अनुसार, “पारिवारिक आय बढ़ने के साथ-साथ किसी परिवार के भोजन एवं खाद्य सामग्री पर किए जाने वाले व्ययों में प्रतिशत कमी तथा विलासिता की मदों (शिक्षा, मनोरंजन, स्वास्थ्य) पर होने वाले व्ययों में प्रतिशत वृद्धि अंकित की जाती है।”
(घ) : शुद्ध जल रंगहीन, गन्धहीन, पारदर्शी तथा एक प्रकार की प्राकृतिक चमक से युक्त होता है। इस जल में रोगों के रोगाणुओं का नितान्त अभाव होता है।
(ङ) : कब्ज के रोगी को रेशेदार भोज्य पदार्थों की अधिकता वाले भोजन के साथ हरी सब्जियों, फल, सम्पूर्ण दालें तथा चोकरयुक्त आटे की रोटियाँ आदि पदार्थों का अपने भोजन में समावेश करना चाहिए।

उत्तर 4 :
(क) : ओवन रसोईघर में प्रयुक्त होने वाला विद्युत चालित उपकरण है। इसमें भोजन सेंकने की विधि से पकाया जाता है। ओवन की सुरक्षा हेतु निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  1. ओवन को सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करना चाहिए तथा इसके स्विच, सकिट तथा तार की समय-समय पर जांच करते रहना चाहिए।
  2. इसकी आन्तरिक सफाई करते रहना चाहिए।
  3. इसकी आन्तरिक सतह को कभी खुरचकर साफ नहीं करना चाहिए।

(ख) : मिल्टन चॉक टिकियों के रूप में विभिन्न रंगों व आकारों में बाजार में मिलते हैं। इससे कपड़ों को काटने के लिए चिह्न लगाते हैं, क्योंकि यह धोने पर सरलता से छूट जाता है। गहरे रंग पर भी इसके चिह्न अच्छी तरह चमकते हैं, जिससे वस्त्र को सरलता से काटा जा सकता है।
(ग) : ड्राफ्टिग कर लेने से वस्त्र सही नाप के अनुसार बनता है तथा पहनने वाले के शरीर पर अच्छा लगता है, क्योंकि इससे वस्त्र का खाका तैयार हो जाता है।
(घ) : पाक क्रिया का मुख्य उद्देश्य भोजन को स्वादिष्ट, सुपाच्य एवं रोगाणुमुक्त बनाना है।
(ङ) : कंकाल तन्त्र की उपयोगिता निम्नलिखित है।

  1. शरीर को आकृति प्रदान करता है।
  2. शरीर के कोमल अंगों को सुरक्षा प्रदान करता है।
  3. शरीर को गति प्रदान करता है।
  4. शरीर को दृढता प्रदान करता है।
  5. रक्तकणों के निर्माण में सहायता प्रदान करता है।
  6. कैल्सियम को संचित करने में सहायता प्रदान करता है।

उत्तर 5 :
(क) : उत्तर बचत खाते एवं चालू खाते में अन्तर बचत खाता

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बचत व चालू खाते की उपयोगिता

1. बचत खाता :
व्यक्तिगत एवं पारिवारिक बचतों के लाभकारी विनियोग की सुविधा प्रदान करता है। इस खाते में जमा धनराशि पर निपरित दर से ब्याज प्राप्त होता है। अतः अतिरिक्त आय की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त इस खाते में जमा धनराशि का अन्यत्र महत्त्वपूर्ण योजनाओं में भी विनियोग किया जाता है।

2. चालू खाता :
व्यापारिक लेन-देन की सुविधा उपलब्य कराता है। उल्लेखनीय है कि बैंक इस खाते में जमा धन का कहीं अन्यत्र विनियोग नहीं कर सकता। अतः खाताधारी आवश्यकता पड़ने पर, चाहे जितनी बार खाते में जमा घन निकाल सकता है।
अथवा
उत्तर :
पारिवारिक बजट एक प्रकार का व्यवस्थित प्रलेख अथवा प्रपत्र होता है, जिसमें सम्बन्धित परिवार के निश्चित अवधि में होने वाले आय-व्यय का विवरण प्रस्तुत किया जाता है। क्रेग एवं रश के अनुसार, “पारिवारिक बजट भूतकाल के व्यय, भविष्य के अनुमानित व्यय तथा वर्तमान समय की मदों पर निश्चित व्यय का लेखा-जोखा है।” बजट के अर्थ एवं उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए वेबर ने भी इसे अपने शब्दों में परिभाषित किया है।

वेबर के अनुसार, “पारिवारिक बजट पारिवारिक आय को व्यवस्थित रूप से इस प्रकार व्यय करने का तरीका है, जिससे कि अधिकतम सदस्यों के सुख व कल्याण में वृद्धि हो सके। पारिवारिक बजट असावधानीपूर्वक तथा अव्यवस्थित रूप से व्यय करने के स्थान पर योजनाबद्ध एवं विवेकपूर्ण व्यय को प्रतिस्थापित करने का ढंग या उपाय है।”

पारिवारिक बजट या बजट बनाने से गृहिणियों तथा परिवार को निम्न लाभ होते हैं।

  1. आय का उचित उपयोग बजट के माध्यम से गृहिणी परिवार की आय का सदुपयोग करती है।
  2. अनावश्यक पारिवारिक व्यय पर नियन्त्रण पारिवारिक बजट में सभी आवश्यकताओं एवं व्यय की मदों को चिह्नित किया जाता है, इससे अनावश्यक व्यय को ज्ञात करना सरल होता हैं

(ख) : बहुत  :
से लोगों का मानना है कि गृह-सज्जा में बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है और धन के अभाव में गृह-सज्जा सम्भव नहीं है। उनकी यह धारणा भ्रामक है। वास्तव में, गृह-सज्जा के लिए कीमती तथा अधिक संख्या में वस्तुओं की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि उपलब्ध वस्तुओं की उत्तम व्यवस्था एवं कलात्मकता की आवश्यकता होती है।

यदि किसी घर में बहुत-सी बहुमूल्य वस्तुएँ एवं साधन उपलब्ध हों, परन्तु वे सब व्यवस्थित न हों तथा उनमें कलात्मकता का नितान्त अभाव हो, तो उसे घर को सुसज्जित नहीं कहा जा सकता। आय कम होने की स्थिति में बहुमूल्य वस्तुएँ में उपलब्ध होने पर हस्तनिर्मित वस्तुओं से भी गृह-सज्जा की जा सकती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि गृह सज्जा के लिए अधिक घन की आवश्यकता अनिवार्य शर्त नहीं हैं।
अथवा
उत्तर :
फर्नीचर की वस्तुएँ सामान्यतः लकड़ी, लोहे तथा प्लास्टिक की बनी होती हैं। इनकी सफाई और देखभाल निम्नलिखित प्रकार से की जाती है। लकड़ी के फर्नीचर की सफाई की विधियाँ अलग-अलग होती है।

1. सफेद लकड़ी :
गर्म पानी में सर्फ घोलें तथा मुलायम सूती कपड़े को घोल में भिगोकर वस्तुओं को धीरे-धीरे रगड़कर साफ करना चाहिए।

2. पेण्ट की हुई लकड़ी :
ऐसी वस्तुओं को नींबू द्वारा साफ किया जा सकता है।

3. पॉलिश की हुई लकड़ी :
आधा लीटर पानी में सिरको ड़ालकर कपड़ा भिगोकर रगड़े, फिर सूखे कपड़े से पोंछकर सरसों या मिट्टी के तेल से चमकाये।

4. लोहे का फर्नीचर :
लोहे के फर्नीचर को हल्के नर्म कपड़े से झाड़ा जाता है और साथ ही गीले कपड़े व साबुन से साफ किया जाता है। वर्ष में एक बार इस पर पेण्ट अवश्य किया जाना चाहिए।

5. प्लास्टिक की वस्तुओं एवं फर्नीचर की सफाई :
घर में प्लास्टिक की अनेक वस्तुओं; जैसे-कुर्सी, मेज, बाल्टी, मग इत्यादि को साफ करने के लिए गीले कपड़े में साबुन लगाकर पोंछना चाहिए। गुनगुने पानी का प्रयोग भी करना चाहिए। उसके पश्चात् सूखे कपड़े से पोंछना चाहिए। प्लास्टिक की वस्तुओं को तेज धूप में नहीं रखना चाहिए।

उत्तर 6 :
(क) :
गृह गणित का गृहिणियों के लिए महत्त्व गृह अर्थव्यवस्था के संचालन का कार्य मुख्यतः गृहिणियों पर ही होता है। घरेलू कार्यों में बजट बनाना, आय व्यय का हिसाब रखना, दूध, सब्जी, राशन आदि का हिसाब रखना तथा उनकी कीमत अथवा मूल्य के अनुसार भुगतान करना आदि कार्य आते हैं। इन सभी कार्यों हेतु गणितीय गणनाओं की आवश्यकता होती है। इन सभी कार्यों को सुचारु रूप से करने हेतु गृह गणित का ज्ञान होना प्रत्येक गृहिणी के लिए आवश्यक है।अथवा
उत्तर : शुद्ध एवं अशुद्ध जल में अन्तर
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(ख) : पेचिश तथा अतिसार में अन्तर
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अथवा
उत्तर :
पर्यावरण का मानव जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है, पर्यावरण संरक्षण के लिए। जनचेतना का होना बहुत आवश्यक है। पर्यावरण संरक्षण का लक्ष्य निम्नलिखित उपायों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

  1. पर्यावरण शिक्षा द्वारा जनता में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाई जा सकती है। सामान्य जनता को पर्यावरण के महत्त्व, भूमिका तथा प्रभाव आदि से अवगत कराना आवश्यक है।
  2. वैश्विक स्तर पर पर्यावरण सरक्षण पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कराना चाहिए; जैसे-स्टॉकहोम सम्मेलन (1972), रियो डि जेनेरियो सम्मेलन (1992)
  3. गाँव, शहर, जिला, प्रदेश, राष्ट्र आदि सभी स्तरों पर पर्यावरण संरक्षण में लोगों को शामिल करना चाहिए।
  4. पर्यावरण अध्ययन से सम्बन्धित विभिन्न सेमिनार पुनश्चर्या, कार्य-गोष्ठियाँ, दृश्य-श्रव्य प्रदर्शनी आदि का आयोजन कराया जा सकता है।
  5. विद्यालय, विश्वविद्यालय स्तर पर पर्यावरण अध्ययन विषय को लागू करना एवं प्रौढ़ शिक्षा में भी पर्यावरण-शिक्षा को स्थान देना महत्त्वपूर्ण उपाय है।

उत्तर 7 :
(क) : प्रदूषण का अर्थ प्राकृतिक पर्यावरण में उपस्थित विभिन्न घटकों अथवा तत्त्वों के सन्तुलन में वह बदलाव, जिसका मानव जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, प्रदूषण कहलाता है। पर्यावरण प्रदूषण वर्तमान समय में मानव के समक्ष उत्पन्न एक गम्भीर समस्या है। पर्यावरण प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर पड़ता है। पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव को हम निम्नलिखित रूपों में स्पष्ट कर सकते हैं।

जन स्वास्थ्य पर प्रभाव
जन स्वास्थ्य पर प्रभाव निम्नलिखित हैं

  1. प्रदूषण से विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य सम्बन्धी बीमारियाँ; जैसे-हैजा, कॉलरा, टायफाइड आदि होती हैं।
  2. ध्वनि प्रदूषण से सर दर्द, चिड़चिड़ापन, रक्तचाप बढ़ना, उत्तेजना, हृदय की घड़कने बढ़ना आदि समस्याएँ होती हैं।
  3. जल प्रदूषण से टायफाइड, पेचिश, ब्लू बेबी सिण्ड्रोम, पाचन सम्बन्धी विकार (कब्ज) आदि समस्याएँ होती हैं।
  4. वायु प्रदूषण से फेफड़े एवं श्वास सम्बन्धी, श्वसन-तन्त्र की बीमारियाँ होती हैं।

व्यक्तिगत कार्यक्षमता पर प्रभाव
व्यक्तिगत कार्यक्षमता पर प्रभाव निम्नलिखित है।

  1. पर्यावरण प्रदूषण व्यक्ति की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है।
  2. इससे व्यक्ति की कार्यक्षमता अनिवार्य रूप से घटती है।
  3. प्रदूषित वातावरण में व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं रह पाता।
  4. प्रदूषित वातावरण में व्यक्ति की चुस्ती, स्फूर्ति, चेतना आदि भी घट जाती

आर्थिक जीवन पर प्रभाव
आर्थिक जीवन पर प्रभाव निम्नलिखित हैं।

  1. पर्यावरण-प्रदूषण का गम्भीर प्रभाव जन सामान्य की आर्थिक गतिविधियों एवं आर्थिक जीवन पर पड़ता है।
  2. कार्यक्षमता घटने से उत्पादन दर घटती है।
  3. साधारण एवं गम्भीर रोगों के उपचार में अधिक व्यय करना पड़ता है।
  4. आय दर घटने तथा व्यय बढ़ने पर आर्थिक संकट उत्पन्न होता है।

इस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण मानव जीवन पर बहुपक्षीय, गम्भीर तथा प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न करता है। अतः इसके समाधान हेतु व्यक्ति एवं राष्ट्र दोनों को मिलकर कार्य करना चाहिए।
अथवा
उत्तर :
विभिन्न रोगाणुओं से संघर्ष करने वाली शरीर की इस क्षमता को ही रोग प्रतिरक्षा’ या रोग-प्रतिरोधक क्षमता अथवा रोग-प्रतिबन्धक शक्ति (Immunity Power) कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति में यह क्षमता या शक्ति भिन्नभिन्न स्तरों में पाई जाती है। यही नहीं एक ही व्यक्ति में भी यह क्षमता भिन्न-भिन्न समय में कम या अधिक हो सकती है। रोग प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती हैं।

1. प्राकृतिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता :
प्राकृतिक रूप से ही प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में विभिन्न रोगों का मुकाबला करने की क्षमता होती है, जो जन्मजात होती है। मनुष्य की इस क्षमता को ही प्राकृतिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं।

2. कृत्रिम अथवा अर्जित रोग-प्रतिरोधक क्षमता :
रोगग्रस्त होने से बचने एवं स्वस्थ बने रहने के लिए प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ अतिरिक्त रोग-प्रतिरोधक क्षमता की आवश्यकता होती है। यह अतिरिक्त क्षमता विभिन्न उपायों द्वारा प्राप्त की जा सकती है। इस अतिरिक्त रोग प्रतिरोधक क्षमता को ही स्वास्थ्य विज्ञान की भाषा में कृत्रिम अथवा अर्जित रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं।

रोग प्रतिरक्षा की प्राप्ति के स्रोत नियमित और सन्तुलित जीवनशैली तथा स्वच्छ खानपान के अतिरिक्त टीके या इंजेक्शन पद्धति द्वारा भी अतिरिक्त रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास किया जाता है।

(ख) : ऊनी एवं रेशमी वस्त्रों का रख-रखाव
ऊनी एवं रेशमी वस्त्रों के रख-रखाव हेतु अतिरिक्त सावधानी की आवश्यकता होती है, जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं से समझा जा सकता है।

  1. ऊनी वस्त्रों को सुरक्षित रखने के लिए सम्बन्धित बॉक्स में फिनाइल अथवा नेफ्थेलीन की गोलियाँ अवश्य ही रखी जानी चाहिए।
  2. जरी एवं तिल्ले-गोटे वाले वस्त्रों को अन्य वस्त्रों से अलग स्थानों पर मलमल या अन्य किसी महीन सूती वस्त्र से लपेटकर ही रखना चाहिए।
  3. यदि वस्त्रों को अधिक समय तक बन्द रखना हो, तो समय-समय पर धूप एवं हवा लगा देनी चाहिए।
  4. यदि फिनाइल की गोलियाँ समाप्त हो गई हों, तो अतिरिक्त गोलियाँ रख देनी चाहिए।

अथवा
उत्तर :
गृहिणियों द्वारा घर पर ही अपनी आवश्यकता एवं सुविधा के अनुसार वस्त्रों की सिलाई व मरम्मत की जा सकती है। यह कार्य पर्याप्त सुविधाजनक तथा लाभदायक भी होता है। अतः प्रत्येक गृहिणी को सिलाई कला का ज्ञान होना आवश्यक है। घर पर वस्त्रों की सिलाई के निम्नलिखित लाभ होते हैं।

  1. घर पर स्वयं वस्त्रों की सिलाई करने से धन की पर्याप्त बचत होती है।
  2. घर पर स्वयं सिलाई करने से वस्त्र शीघ्र ही सिलकर तैयार हो जाते हैं। अतः समय की भी बचत होती है।
  3. कपड़े की बचत होती है और साथ ही कपड़े का सदुपयोग किया जा सकता है। सिलाई कार्य में बचे हुए कपड़े को अनेक प्रकार से उपयोग में लाया जा सकता है; जैसे-हमाल, थैले-थैलियाँ बनाना आदि।
  4. अपनी रुचि एवं पसन्द का डिजाइन बनाया जा सकता है।
  5. घर पर वस्त्रों की सिलाई से विशेष प्रकार के सन्तोष एवं आनन्द की प्राप्ति होती है।

उत्तर 8 :
घर में रसोईघर का महत्व
प्रत्येक घर में अनिवार्य रूप से भोजन पकाने हेतु एक रसोईघर होता है। रसोईघर में ही विभिन्न प्रकार की खाद्य सामग्री, भोजन पकाने के साधन एवं उपकरण तथा तैयार यो पकाया हुआ भोजन रखा जाता है। अतः घर में रसोईघर का बहुत अधिक महत्त्व है। रसोईघर का महत्त्व इससे भी स्पष्ट होता है कि रसोईघर में गृहिणी प्रतिदिन अपना पर्याप्त समय व्यतीत करती है तथा यहाँ पाक क्रिया जैसा महत्त्वपूर्ण कार्य होता है। इस दृष्टिकोण से रसोईघर गृणी की सुविधाओं के अनुकूल होनी चाहिए। रसोईघर की उत्तम व्यवस्था का गृहिणी एवं परिवार के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत अव्यवस्थित रसोईघर होने पर गृहिणी तथा परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

रसोईघर की व्यवस्था
रसोईघर की सुव्यवस्था अतिआवश्यक तत्त्व है। मुख्यवस्थित रसोईघर जहाँ एक ओर गृहिणी की कुशलता, इक्षता तथा सुरुचिपूर्णता का प्रमाण है, वहीं दूसरी ओर सुव्यवस्थित रसोईघर में कार्य करना अधिक सरल एवं सुविधाजनक होता है। रसोईघर की सुव्यवस्था हेतु निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

1. रसोईघर की समस्त वस्तुएँ यथास्थान ही रखी जाएँ :
प्रत्येक वस्तु का स्थान निर्धारित करके उसे अपने यथास्थान पर रखना चाहिए। स्थान चयन करते समय कार्यों की सुविधा एवं सरलता को भी ध्यान में रखना चाहिए। किसी वस्तु या उपकरण का प्रयोग करने के उपरान्त उसे पुनः निर्धारित स्थान पर रख देना चाहिए। नित्य प्रयोग के सभी बर्तनों को आगे तथा कभी-कभी प्रयोग में आने वाले बर्तनों को पीछे रखा जा सकता है। रसोईघर के कूड़े को भी टोकरी अथवा ढक्कन युक्त हिने में ही डालना चाहिए, इससे रसोईघर में सफाई अनी रहती है तथा कार्य सरलता से पूर्ण होता जाता है।

2. खाद्य सामग्री का उचित संग्रह :
रसोईघर में विभिन्न प्रकार की खाद्य सामग्रियों; जैसे-आटा, दाल, चावल, चीनी आदि को भिन्न-भिन्न ढंग से संभालकर रखना आवश्यक होता है। आटा, दाल, चीनी तथा चावल आदि को बन्द डिब्बों अथवा कनस्तर आदि में रखना चाहिए, जिससे चीटी, कॉकरोच आदि कीट इन्हें दूषित न कर सकें। ताजा तैयार की गई खाद्य सामग्री आदि को भी ढककर रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त ताजे फलों तथा सब्जियों को फ्रिज में ही रखना चाहिए। सूखी खाद्य सामग्रियों के सभी डिब्बों पर समुचित लेबल लगाए जाने चाहिए। इस प्रकार की व्यवस्था होने पर, आवश्यकता पड़ने पर परिवार का कोई भी सदस्य किसी भी वस्तु को ढूँढ सकता है।

3. रसोईघर के बर्तनों की सफाई :
रसोईघर की व्यवस्था के अन्तर्गत यह आवश्यक है। कि रसोईघर के बर्तनों की नियमित सफाई होनी चाहिए। रसोईघर में प्रयुक्त भिन्न-भिन्न प्रकार के बर्तनों की सफाई उपयुक्त विधि द्वारा ही की जानी चाहिए, अन्यथा या तो बर्तनों की समुचित सफाई नहीं हो पाएगी अयया बना में कुछ दाय आ जाने की आशंका रहेगी। उदाहरण के लिए, स्टील के बर्तनों को याद राख या बालू से साफ किया जाए, तो उनकी चमक घट जाती है तथा खरोंच पड़ने की भी आशंका बनी रहती है। बर्तनों को भली-भाँति साफ करके तया सुखाकर यथास्थान रखा जाना चाहिए। बर्तनों की सफाई के साथ साथ रसोईघर को नियमित सफाई भी आवश्यक है। पूरी तरह से साफ सुथरे रसोईघर को ही सुव्यवस्थित रसोईघर कहा जा सकता है।
अथवा
शरीर के किसी अंग में दर्द होने अथवा सूजन आने पर प्रभावित व्यक्ति को सैंक पहुँचाई जाती है।
सैंक दो प्रकार की होती हैं

  1. गर्म सैंक
  2. ठण्ड़ी सेंक

गर्म सेक
शरीर के किसी रोगग्रस्त भाग या अंग को अतिरिक्त ताप या ऊष्मा पहुंचाने की क्रिया को गर्म सेक कहते हैं। श्वसन तन्त्र से बलगम को निकालने, दर्द कम करने, फोड़े-फुसी को पकाने तथा उनसे मवाद निकालने के लिए गर्म सेक की आवश्यकता पड़ती है। गर्म सेंक प्रदान करने के प्रयोजन भिन्न-भिन्न होते हैं। इस भिन्नता के अनुरूप गर्म सेक प्रदान करने के साधन एवं विधियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं। गर्म सेंक देने के तीन मुख्य साधन निम्नलिखित हैं

1. गर्म-शुष्क सेंक :
इसके लिए कपड़ा रूई आदि को किसी तवे इत्यादि पर सीधे गर्म करते हैं और बाद में सीधे उस अंग पर रखते हैं, जिसकी सिकाई करनी हो। यह सेंक गर्म-शुष्क कहलाती हैं। कभी-कभी कुछ विशेष अंगों को इस प्रकार सिकाई की जाती है। जैसे- गर्म पानी की बोतल द्वारा सेंक, गर्म सेक प्रदान करने की एक विधि हैं। इस प्रकार की सेंक देने के लिए एक रबड़ की बनी हुई बोतल इस्तेमाल की जाती है। इस बोतल में गर्म पानी को डालकर यथास्थान गर्म सेक दी जाती है। इस प्रकार की सेक को दर्द कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
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विधि इसके प्रयोग की विधि निम्नलिखित है

  1. सर्वप्रथम अनुमान से पानी की कुछ मात्रा को गर्म कर दिया जाता हैं।
  2. इसके उपरान्त बोतल के खाली भाग को हाथ से दबाकर अन्दर की वायु को बाहर निकाल देना चाहिए।
  3. इसके बाद बोतल का 2/3 भाग पानी से भरकर, बोतल के हुक्कन को कसकर बन्द कर देना चाहिए।
  4. इसके उपरान्त बोतल को किस तौलिए अथवा मोटे सूती कपड़े में लपेटकर सेक प्रदान करने के लिए शरीर के सम्बन्धित अंग पर रखना चाहिए।
  5. कुछ-कुछ समय उपरान्त बोतल को उस अंग से हटाते रहना चाहिए।
  6. कभी भी बोतल को बिना कपड़े में लपेटे शरीर के सम्पर्क में नहीं लाना चाहिए। बोतल का शरीर से सीधा सम्पर्क कराने से शरीर की त्वचा के झुलस जाने का भय रहता है।

2. गर्म-तर सेंक
गर्म पानी में कपड़ा भिगोकर की जाने वाली सेक गर्म-तर सेक कहलाती हैं। यह कुछ विशेष अंगा पर की जाती है। जैसे-आँख व किसी पात्र इत्यादि पर। विधि गर्म-तर सेंक के प्रयोग की विधि निम्न प्रकार है।

  1. इसके लिए एक मलमल के कपड़े का टुकड़ा लिया जाता है, जिसे तौलिए में लपेट दिया जाता है।
  2. अब इस तौनिए को चिलमची या गर्म पानी की केतली आदि में भिगोते हैं।
  3. अब कपड़े को निकाल लेना चाहिए तथा ध्यान रहे कपड़ा बहुत अधिक गर्म न हो।
  4. तत्पश्चात् तौलिए को दोनों सिरों से पकड़कर निचोड़ दिया जाता हैं।

3. गर्म-गीली सेंक
पैरों में दर्द इत्यादि की स्थिति में इस विधि से पैरों की सिकाई की जाती है। इस विधि में गर्म पानी की बाल्टी या टब में पैर डालकर सिकाई की जाती है। इस विधि मेपैरों को सिकाई हेतु नमक व वोरिङ पाउडर डाला जा सकता है।

ठण्डी सेंक के लिए बर्फ की टोपी का प्रयोग

  1. बर्फ की टोपी या थैली का प्रयोग हुण्डी सेक पहुँचाने के उद्देश्य से किया जाता है। कभी-कभी ज्वर की दशा में रोगी के शरीर का तापमान अत्यन्त ऊँचा हो जाता है, उस समय तापमान को सामान्य स्तर तक लाने के लिए उण्डी पट्ट्टी या बर्फ की टोपी का प्रयोग किया जाता है। बर्फ की टोपी का प्रयोग शरीर के किसी विशेष स्थान पर हुण्डी सैक पहुँचाने के लिए भी किया जाता हैं।
  2. तेज ज्वर को कम करने के लिए, शरीर से होने वाले रक्तस्राव को रोकने के लिए तथा सूजन एवं दर्द को कम करने के लिए उड़ी सेक की आवश्यकता पड़ती है।

उत्तर 9 :
स्वस्थ व्यक्ति एवं रोगी के भोजन में अन्तर
स्वस्थ व्यक्ति को सामान्य, पौष्टिक तथा सन्तुलित आहार प्रण करना चाहिए, परन्तु यदि व्यक्ति किसी साधारण अथवा गम्भीर रोग से पीड़ित है, तो रोग की प्रकृति के अनुसार रोगी के आहार में आवश्यक परिवर्तन करने चाहिए। इस प्रकार के आहार को आहार एवं पोषण विज्ञान की भाषा में उपचारार्थ आहार’ कहते हैं। कुछ रोग ऐसे होते हैं, जो किसी पोषक तत्व की कमी के कारण उत्पन्न होते हैं, जबकि कुछ रोग पाचन तन्त्र अथवा उत्सर्जन तन्त्र की अव्यवस्था के कारण उत्पन्न होते हैं। अतः रोग की प्रकृति को दृष्टिगत रखते हुए उपचारार्थ आहार के तत्वों के अनुपात एवं मात्रा आदि का निर्धारण किया जाता है।आहार के निर्धारण में यह ध्यान रखा जाता है कि रोगी को जिन पोषक तत्वों की आवश्यकता हो, उन सभी तत्वों का आहार में समुचित मात्रा में समावेश होना चाहिए। रोग की अवस्था में रोगी को दो प्रकार का आहार देना चाहिए–तरल आहार एवं अर्द्ध तरल आहार।

रोगी को भोजन कराना
रोग की अवस्था में व्यक्ति का स्वभाव परिवर्तित हो जाता है। व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है तथा उसकी शारीरिक गतिविधियां कम हो जाती हैं। इससे व्यक्ति की भूख व पाचन क्रिया भी प्रभावित होती है। इससे कुछ रोगी अत्यधिक कमजोर हो जाते हैं। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए रोगी को भोजन कराते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।

  1. रोग की अवस्था में रोगी के भोजन का विशेष ध्यान रखना चाहिए। रोगी को नियमित भोजन देना चाहिए, जिससे उसकी भूख नष्ट न हो।
  2. रोगी को भोजन डॉक्टर की सलाह से उचित रूप में तथा समयानुसार देना चाहिए।
  3. रात्रि की अपेक्षा दिन में भोजन देना अधिक उचित है।
  4. सोते हुए रोगी को जगाकर भोजन नहीं देना चाहिए।
  5. रोगी के पास न लाने से पूर्व उसे और उसके आस पास के स्थानको भोजन हेतु पूरी तरह तैयार कर लेना चाहिए; जैसे
    •  रोगी के मुँह-हाथ को स्पंज कर देना चाहिए।
    •  रोगी के आस-पास का स्थान पूर्णतः स्वछ कर लेना चाहिए।
    •  बिस्तर तथा वस्त्रों की रक्षा के लिए तौलिए का प्रयोग करना
    • यदि डॉक्टर ने उठने से मना किया है, तो तकिए के सहारे उसे पलंग पर ही बैठा देना चाहिए।
  6. भोजन अपेक्षित ठण्डा या गर्म होना चाहिए।
  7. भोजन लाने में स्वच्छता एवं आकर्षण हो, जिससे भोजन के प्रति रोगी की रुचि बढ़े। भोजन कराने में शीघ्रता नहीं करनी चाहिए।
  8. रोगी के भोजन करने के पश्चात् जूठे बर्तन तुरन्त हटा देने चाहिए। |
  9. उठने में असमर्थ रोगी को केवल तरल पदार्थ ही भोजन के रूप में दिए जाने चाहिए। रोगी को भोजन कराते समय प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। भोजन की प्यालियाँ, कटोरियाँ तथा लहें अधिक भरी नहीं होनी चाहिए।

अथवा
सन्धि का अर्थ
सन्धि (जोड़) शरीर के उन स्थानों को कहते हैं, जहाँ दो अस्थियाँ एक-दूसरे से मिलती हैं; जैसे–कन्ये, कुहनी या कुल्हे की सन्धि।

अस्थि सन्धि
कंकाल तन्त्र में दो या दो से अधिक अस्थियों के परस्पर सम्बद्ध होने के स्थल को अस्थि सन्धि कहा जाता है। सन्धियां शरीर को गति प्रदान करने में सहायक होती हैं। अस्थि सन्धियाँ दो प्रकार की होती हैं

  1. अचल सन्धि
  2. चल सन्धि

अचल सन्धि
इस प्रकार की सन्धियों में दो या दो से अधिक हड्डियाँ आपस में इस प्रकार जुड़ी होती है कि वे बिल्कुल हिल न सकें अर्थात् लगभग स्थिर स्थिति में हों। इस प्रकार की अस्थियों की बनावट कंटीली अथवा आरी के समान नुकीली होती हैं। ये नुहोलापन एक अस्थि को दूसरी अस्थि से फंसाए रखने में मजबूती प्रदान करता है। इस प्रकार के जोड़ खोपड़ी में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त एक अन्य प्रकार की अचल सन्धि भी होती है, जिसमें एक हड्डी का सिरा दूसरी हड्डी पर बने एक उपयुक्त स्थान में स्थित हो जाता है तथा इन हड्डियों के सिरे संयोजी ऊतकों द्वारा जकड़कर इस तरह बंध जाते हैं कि सन्धि अचल हो जाती हैं। पसलियों एवं रीढ़ की हड्डी तथा पसलियों एवं छाती की हड्डी के बीच इसी प्रकार के जोड़ पाए जाते हैं।

चल सन्धि
चल सन्धियों की बनावट इस प्रकार होती है। कि इसे अपनी इच्छानुसार किसी निश्चित दिशा अथवा अन्य दिशाओं में हिलाया तथा की सहायता से शरीर के विभिन्न अंगों को मोड़ा, घुमाया या चलाया जा सकता है। शरीर में बनावट के आधार पर चल सन्धियां प्रमुखतः अपूर्ण तथा पुर्ण दो प्रकार की होती है।

1. अपूर्ण सन्धि :
ये केवल उपास्थियों द्वारा बनी हुई सन्धियाँ हैं तथा इनकी गति अत्यधिक सीमित होती है। कूल्हे की दोनों प्यूविस अस्थियों के मध्य अपूर्ण सन्धि होती है।

2. पूर्ण सन्धि :
इसमें जुड़ने वाली अस्थियों के मध्य स्थित रिक्त स्थान में एक द्रव भरा रहता है,जिससे इनमें पर्याप्त गति होती है। पूर्ण सन्धि के प्रमुख उपप्रकार निम्न हैं।

(i) कब्जेदार सन्धि :
इस प्रकार की सन्धि में शरीर के अंगों को एक दिशा में घुमाया जा सकता है। इस प्रकार की सन्धि में कोई एक हड्डी या उसका कोई प्रवर्ष इस प्रकार बढ़ा रहता है कि वह एक निश्चित दिशा के अतिरिक्त किसी अन्य दिशा में गति को पूर्णतः रोकता हैं। कोहनी, घुटना तथा अंगुलियों में इस प्रकार का जोड़ पाया जाता हैं।
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(ii) कन्दुक-खल्लिका या गेंद और प्यालेदार सन्धियाँ :
इस सन्धि में एक हड्डी का सिरा गेंद के समान गोल होता है और दूसरी हड्डी का सिरा प्याले की तरह होता है। प्यालेनुमा आकार वाले सिरे में गेद याला सिरा स्थित रहता है, जिसे चारों ओर घुमाया जा सकता है। कुल्हें तथा जाँघ में इस प्रकार के जोड़ पाए जाते हैं। घूमते । समय अस्थियों को रगड़ से बचाने के लिए गाढा तरल पदार्थ प्यालेनुमा एवं गेंद वाले सिरे के मध्य भरा रहता है। यह तरल पदार्थ अत्यन्त लचीली झिल्ली के अन्दर बन्द रहता है। जोड़ पर रज्जु भी संलग्न होती हैं, जिससे अस्थियाँ एक-दूसरे से दूर न हों। इन दोनों सिरों पर उपास्थियों का आवरण भी चढ़ा रहता हैं.
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(iii) खुटीदार सन्धि :
इसे कीलदार या धुराग्र सन्धि भी कहा जाता है, इसमें एक अस्थि प्रवर्ध धुरी की। तरह या बँटे की तरह सीधी होती है। इस धुरी पर दूसरी अस्थि इस प्रकार टिकी रहती है कि इनको इधर-उधर भी घुमाया जाए, इसमें घंटे वाली। हड्डी गति नहीं करती है, बल्कि उस पर टिकी हुई हड्डी ही गतिमान होती है। रीढ़ की हड्डी की पहली दूसरी कशेरुक, खोपड़ी के साथ इसी प्रकार का जोड़ बनाती हैं। रीढ़ की हड्डी के कशेरुक का एक प्रवर्घ निकला रहता है, जिस पर खोपड़ी रखी रहती है। इसी सन्धि की सहायता से हम खोपड़ी को इधर-उधर तथा ऊपर-नीचे हिला सकते हैं।
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(iv) प्रसार अथवा फिसलनदार सन्धि :
इसे ‘विसपी सन्धि’ रेडियस अल्ना भी कहा जाता है। ये सन्धियाँ वास्तविक रूप में किसी जोड़ का निर्माण नहीं करतीं, बल्कि इनकी हड्डियाँ होती हैं, जो इन हड्डियों को गति करने के लिए। फिसलने में मदद करती हैं। इस प्रकार की सुधि में दोनों हड्डियों के बीच कार्टिलेज की गद्दी पाई जाती है। कशेरुकों के योजी प्रवर्षों के मध्य तथा प्रबाहु के रेडियस-अल्ना एवं कलाई के बीच इस प्रकार की सन्धि पाई जाती है।
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(v) पर्याण सन्धि :
यह सन्धि कन्दुक-खल्लिका सन्धि के समान होती है, परन्तु इसमें कन्दुक-खल्लिका का विकास न्यून होता है।
उदाहरण :
अंगूठे के जोड़, जिन्हें अंगुलियों की अपेक्षा इधर-उधर अधिक घुमाया जा सकता है।
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अस्थि-सन्धियों की उपयोगिता
अस्थि सन्धियों का मानव शरीर में निम्नलिखित महत्त्व हैं।

  1. मानव शरीर अस्थि-सन्धियों पर ही गतिमान रहता है। जैसे-मुड़ना, दौड़ना, वस्तु पकड़ना आदि। अतः सन्धियाँ शारीर को गति प्रदान करने में सहायक हैं।
  2. शरीर की विभिन्न क्रियाएँ; जैसे – शरीर में झुकाव, श्वास लेना आदि शरीर की हड्डियों के मध्य पाई जाने वाली सन्धियों पर निर्भर होती हैं। विभिन्न प्रकार की शारीरिक गतिविधियाँ सन्धियों के प्रकार पर निर्भर करती हैं। उदाहरण कोहनी का जोड़ (सन्धि) एक कब्जेदार सन्धि हैं, जो हाथों को पीछे मुड़ने से रोकती हैं, इसी प्रकार कन्दुक-खल्लिका ऐसी सन्धि है, जो सम्पूर्ण बाँह को किसी भी दिशा में आसानी से घूमने देती हैं।
  3. खोपड़ी के बीच में उपस्थित सन्धियाँ विशेष कार्य करती हैं। इन्हीं सन्धियों के कारण बाल्यावस्था में मस्तिष्क के विकसित होने में किसी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न नहीं होता। यहीं सन्धियाँ आगे चलकर अचल हो जाती हैं, जिससे मजबूत कपाल का निर्माण होता है।

उत्तर 10 :
प्राकृतिक श्वसन
वायुमण्डल से प्राप्त आवश्यक ऑक्सीजन को फेफड़ों से कोशिकाओं तक पहुंचाने तथा अशुद्ध वायु या कार्बन डाइऑक्साइड को फेफड़ों से वायुमण्डल में लाने की क्रिया प्राकृतिक श्वसन कहलाती हैं।

कृत्रिम श्वसन का अर्थ एवं आवश्यकता
जब किसी कारणवश फेफड़ों में स्वाभाविक तौर से स्वच्छ वायु का आना-जाना बाधित हो जाए, जिसके फलस्वरूप प्राणी की दम घुटने की स्थिति आ जाती है, तो इस स्थिति में प्राणी को मरने से बचाने के लिए कृत्रिम श्वसन की आवश्यकता पड़ती है। यह भी कहा जा सकता हैं कि कृत्रिम श्वसन का उद्देश्य व्यक्ति के जीवन को बचाना है, जोकि किसी अन्य व्यक्ति के प्रयास द्वारा सम्भव हैं। फेफड़ों में वायु का आना-जाना बाधित होने के कारण कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आवश्यक पूर्ति नहीं हो पाती हैं।

इस ऑक्सीजन पूर्ति के अभाव में व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है। इस स्थिति में कोशिकाओं में ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए व्यक्ति वे फेफड़ों में किसी कृत्रिम-विधि द्वारा स्वच्छ तथा ताजी ऑक्सीजन युक्त वायु को भरा जाना ही कृत्रिम श्वसन कहलाता हैं।दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि किसी अन्य व्यक्ति के प्रयासों द्वारा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की श्वसन क्रिया को चलाना ही कृत्रिम श्वसन क्रिया है। कृत्रिम श्वसन क्रिया का मुख्य उद्देश्य सम्बन्धित व्यक्ति के जीवन को बचाना होता है।

कृत्रिम श्वसन की विधियाँ
कृत्रिम श्वसन की तीन प्रमुख विधियाँ हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित हैं।

1. शेफर विधि
पानी में दुबे व्यक्ति को इस विधि द्वारा कृत्रिम श्वसन दिया जाता है,  इस विधि में जिस व्यक्ति को कृत्रिम श्वसन देना होता है, सर्वप्रथम उसके वस्त्र उतार दिए जाते हैं। यदि यह सम्भव न हो, तो कम-से-कम उसके वक्षस्थल के वस्त्र उतार देने चाहिए। यदि किसी कारणवश यह भी सम्भव न हो तो उन्हें इतना ढीला कर देना चाहिए कि वक्षीय कटहरे पर किसी प्रकार का दबाव न रहे।
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तत्पश्चात् निम्नलिखित प्रक्रिया अपनानी चाहिए

  1. दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को पेट की ओर से लिटाकर मुँह को एक ओर कर देना चाहिए। टांगों को फैला देना चाहिए।
  2. नाक, मुंह इत्यादि को अच्छी तरह साफ कर दें, ताकि श्वास भली-भाँति आ-जा सके। प्राथमिक उपचार करने वाले व्यक्ति को रोगी के एक ओर उसके पाश्र्व में, कमर के पास अपने घुटने भूमि पर टिकाकर, पैरों को थोड़ा-सा रोगी की टाँगों के साथ कोण बनाते हुए बैठ जाना चाहिए। इसके बाद रोग की पीठ पर अपने दोनों हाथों को फैलाकर इस प्रकार रखना चाहिए कि दोनों हाथों के अंगूठे रीढ़ की हड्डी के ऊपर समानान्तर रूप में सिर की ओर मिलाकर रखें। ध्यान रखना चाहिए कि इस समय अंगुलियाँ फैली हुई अर्थात् अंगूठे लगभग 90° के कोण पर रोगी की कमर पर रहे। चिकित्सक को अपने हाथ रोगी की पसलियों के पीछे रखने चाहिए।
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  3. अब दोनों हाथों को पूरी तरह जमाते हुए तथा बिना कोहनी को मोड़े चिकित्सक को आगे की ओर झुकना चाहिए। इस समय चिकित्सक का वजन घुटने तथा हाथ पर रहेगा। इससे रोगी के पेट पर दबाव पड़ेगा तथा इस क्रिया से बक्षीय गुहा फैल जाएगी और फेफड़ों में उपस्थित वायु दबाव के कारण बाहर निकल जाएगी। यदि रोगी के फेफड़ों में पानी भर गया है तो वह भी इस क्रिया से बाहर निकल जाएगा।
  4. चिकित्सक को अपना हाथ यथास्थान रखकर ही धीरे-धीरे झुकाव कम करनाचाहिए, यहाँ तक कि बिल्कुल दबाव न रहे। इस क्रिया से बक्षीय गुहा पूर्व स्थिति में आ जाएगी एवं फेफड़ों में वायु का दबाव कम होने से वायुमण्डल की वायु स्वतः ही अन्दर आ जाएगी।
  5. इस प्रकार दबाव डालने एवं हटाने की प्रक्रिया को एक मिनट में 12-13 बार शनैः-शनैः क्रमिक रूप से दोहराते रहना चाहिए।

शेफर विधि की सावधानियाँ

  1. वक्ष पर किसी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए; जैसे—कपड़ा, इत्यादि का कसाव।
  2. गर्दन पर किसी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए।
  3. नाक, मुँह आदि भली-भाँति साफ कर लेने चाहिए। दबाव डालने एवं कम करने की क्रिया लगातार एवं एक बराबर क़म से होनी चाहिए।
  4. प्राकृतिक श्वसन प्रारम्भ हो जाने पर भी कुछ समय तक रोगी को देखते रहना चाहिए।

2. सिल्वेस्टर विधि
इस विधि में रोगी को किसी समतल स्थान पर लिटाया जाता है, उसके वस्त्रों को ढीला करके गर्दन के पीछे कन्धों के बीच में कोई तकिया इत्यादि लगाया जाता है, जिससे सिर पीछे को नीचा हो जाए। इस विधि से रोगी को श्वसन कराने के लिए दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है। एक व्यक्ति सिर की और घुटने के सहारे बैठकर रोगी के दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों के द्वारा अलग-अलग पकड़ लेता है

इस समय दूसरा व्यक्ति रूमाल या किसी अन्य साफ कपड़े से रोगी की जीभ को पकड़कर बाहर की तरफ खीचे रहता है। पहला व्यक्ति रोगी के दोनों हाथों को उसके वक्ष की ओर ले जाते हुए अपने घुटने पर सीधा होकर आगे की ओर झुकता हुआ रोगी को छाती पर दबाव डालता है। इस प्रकार उस रोगी की भुजाओं को उसके वक्ष की ओर ले जाया जाता हैं।और फिर पुर्व स्थिति में सिर की और खींच लेता है। क्रमिक रूप से 1 मिनट में लगभग 12 बार इस क्रिया को दुहराने से  प्रारम्भ हो जाती है।
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सिल्वेस्टर विधि की सावधानियाँ

  1. रोगी की जीभ को कसकर पकड़ना चाहिए।
  2. रोगी को किसी समतल स्थान पर लिटाना चाहिए तथा उसके वस्त्र इत्यादि ढीले कर देने चाहिए, जिससे वक्ष पर किसी प्रकार का भाव न रहे।
  3. जिस क्रम से चिकित्सक ऊपर उठे, उसी क्रम से नीचे बैठे अर्थात् दबाव डालने और दबाव कम करने की प्रक्रिया एक जैसी होनी

3. लाबाई विधि :
यदि शेफर्स और सिल्वैस्टर विधियों द्वारा श्वास देना सम्भव न हो तो इस विधि का प्रयोग किया जाता है, जैसे वक्ष स्थल की कोई हड्डी इत्यादि। टूटने पर डॉक्टर के आने तक इस विधि द्वारा रोगी को ऑक्सीजन उपलब्ध कराकर जीवित रखा जा सकता है। दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को एक करवट से लिटाकर उसके समीप एक ओर चिकित्सक को अपने घुटने के आधार पर बैठकर रोगी की नाक, मुंह इत्यादि को भलीभाँति साफ र लेना चाहिए।

किसी स्वच्छ रुमाल या कपड़े से रोगी की शुभ पकड़कर बाहर खींचनी चाहिए और 2 सेकण्ड के लिए छोड़ देनी चाहिए। इस समय रोगी का मुंह खुला रहना चाहिए तथा इसके लिए रोगी के मुँह में कोई चम्मच इत्यादि डाली जा सकती है। इस क्रिया को तब तक दोहराते । रहना चाहिए जब तक कि रोगी को प्राकृतिक श्वसन प्रारम्भ न हो जाए।

लाबार्ड विधि की सावधानियाँ
जीभ दांतों के बीच नहीं दबनी चाहिए, इसके लिए चम्मच अथवा लकड़ी इत्यादि कोई कड़ी यस्तु रोगी के मुंह में रखनी चाहिए।
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UP Board Class 12 Physics Model Papers Paper 3

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Subject Physics
Model Paper Paper 3
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 Physics Model Papers Paper 3

समय 3 घण्टे 15 मिनट
पूर्णांक 70

प्रश्न 1.
सभी खण्डों के उत्तर दीजिये। (1 x 6 = 6)
(i) वायु में रखे दो धनावेशों के मध्य परावैद्युत पदार्थ रख देने पर इनके बीच 
प्रतिकर्षण बल का मान
(a) बढ़ जायेगा ।
(b) घट जायेगा।
(c) वही रहेगा
(d) शून्य हो जायेगा

(ii) वैद्युत विभव का मात्रक है।
(a) जूल/कूलॉम
(b) जूल-कूलॉम
(c) कूलॉम/जूल
(d) न्यूटन/कूलॉम

(iii) 10 ओम प्रतिरोध तथा 10 हेनरी प्रेरकत्व की एक कुण्डली 50 वोल्ट की बैटरी से जोड़ी गई है। कुण्डली में संचित ऊर्जा
(a) 125 जूल
(b) 62.5 जूल
(c) 250 जूल
(d) 2500 जूल

(iv) दूर दृष्टि से पीड़ित व्यक्ति का निकट बिन्दु स्थित होगा
(a) 25 सेमी पर
(b) 25 सेमी से कम दूरी पर
(c) 25 सेमी से अधिक दूरी पर
(d) अनन्त पर

(v) 5 x 1014 हर्ट्ज आवृत्ति का प्रकाश 1.5 अपवर्तनांक वाले माध्यम में चल रहा है। उसकी तरंगदैर्ध्य होगी
(c = 3 x 10
8मी/से)
(a) 9000 Å
(b) 6000 Å
(c) 4500Å
(d) 4000 Å

(vi) एक प्रकाश वैद्युत पदार्थ को कार्य फलन 3.3 eV है। उसकी देहली आवृत्ति की तरंगदैर्ध्य होगी
(a) 8 x 10
14 हज
(b) 8×1010 हर्ट्ज़
(c) 5×10
23 हज़
(d) 4 x 1011 हर्ट्ज

प्रश्न 2.
सभी खण्डों के उत्तर दीजिये। (1 x 6 = 6)
(i) चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक को क्षेत्र के सापेक्ष कैसे रखा जाये कि 
चालक पर अधिकतम बल लगे?
(ii) 0.25 मी क्षेत्रफल के लूप में प्रवाहित धारा 0.25 ऐम्पियर है। इसका 
चुम्बकीय आघूर्ण क्या होगा?
(iii) विस्थापन धारा से क्या तात्पर्य है?
(iv) सूक्ष्मदर्शी तथा दूरदर्शी में से किसके दोनों लेन्सों की फोकस दूरियों में ।अधिक अंन्तर होता है?
(v) एनालॉग परिपथ तथा डिजिटल परिपथ में क्या अन्तर है?
(vi) आयाम मॉडुलित तरंग में तीन आवृत्तियाँ कौन-सी हैं? LSB तथा USB 
क्या है?

प्रश्न 3.
सभी खण्डों के उत्तर दीजिये। (2 x 4 = 8)
(i) एक समान्तर प्लेट संधारित्र की प्रत्येक प्लेट का क्षेत्रफ़ल 3 x 102मी है। तथा प्लेटों के बीच की दूरी 0.6 मिमी है। इसे 1000 वोल्ट विभवान्तर तक
आवेशित किया जाता है। इसमें कितनी ऊर्जा संचित होगी?
(ii) यदि प्राथमिक कुण्डली में प्रवाहित धारा 3 ऐम्पियर की धारा को 
0.002 सेकण्ड में शून्य कर दिया जाये, तो द्वितीयक कुण्डली में 1500 वोल्ट का वैद्युत बल प्रेरित होता है। कुण्डलियों के बीच अन्योन्य प्रेरण गुणांक ज्ञात कीजिये।
(iii) एक पतली स्लिट द्वारा पर्दे पर बने विवर्तन प्रतिरूप की तीव्रता वितरण का आरेखखींचिये।
(iv) किसी ट्रांजिस्टर का निवेशी प्रतिरोध निम्न तथा निर्गत् प्रतिरोध उच्च क्यों होता है? 
 व्याख्या कीजिये।

प्रश्न 4.
सभी खण्डों के उत्तर दीजिये। (8 x 10 =30)
(i)
(a) धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अनियमित वेग तथा अनुगमन वेग में क्या 
अन्तर है? समझाइये।
(b) प्रतिरोधकता तथा चालकता को परिभाषित कीजिये।
(ii) संलग्न चित्र में i
1,i2तथा V के मान ज्ञात कीजिये। इनके ऊपर वाली बैटरी का विद्युत वाहक बल 11V तथा आन्तरिक प्रतिरोध 22 और नीचे वाली बैटरी का विद्युत वाहक बल 9V एवं आन्तरिक प्रतिरोध 1Ω है।
(iii) संलग्न चित्र में प्रदर्शित तारों में प्रवाहित वैद्युत धारा के कारण O पर चुम्बकीय क्षेत्र B का मान ज्ञात कीजिये।
(iv) लौहचुम्बकत्व का डोमेन सिद्धान्त क्या है?
(v) वैद्युत चुम्बकीय तरंगों के चार प्रमुख अभिलक्षणों को बताइये। वैद्युत चुम्बकीय तरंग 
को आरेख द्वारा दिखाइये।।
(vi) परस्पर सम्पर्क में रखे दो पतले लेन्सों की संयुक्त फोकस दूरी के सूत्र का निगमन 
कीजिये।
(vii) सूर्य से पृथ्वी पर 1.4 x 103 जूल प्रति मीटर2 प्रति सेकण्ड ऊर्जा प्राप्त होती है। यदि 
हम सूर्य के प्रकाश की औसत तरंगदैर्ध्य 5500 Å मैं मानें, तो सूर्य से पृथ्वी पर प्रति सेमी प्रति सेकण्ड कितने फोटॉन आते हैं?
(viii) हाइड्रोजन परमाणु की nवीं कक्षा में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा का सूत्र लिखिये। इससे 
हाइड्रोजन परमाणु के प्रथम उत्तेजन विभव तथा आयनन विभव के मान ज्ञात कीजिये।
(ix) तापायनिक उत्सर्जन से प्राप्त इलेक्ट्रॉनों तथा नाभिकीय विघटन से उत्सर्जित B-कणों में क्या अन्तर है?
(x) आकाश तरंगों के संचरण को समझाइये। इन तरंगों के संचरण के लिये प्रयुक्त 
आवृत्ति परास क्या है? |

प्रश्न 5.
सभी खण्डों के उत्तर दीजिये। (5 x4= 20)
(i) दो बिन्दु आवेश q
A= 3μc तथा qB=-3μc निर्वात् में 20 सेमी की दूरी पर स्थित है।
(a) दो बिन्दु आवेशों को मिलाने वाली रेखा AB के मध्य बिन्दु पर वैद्युत 
क्षेत्र कितना है?
(b) यदि 1.5 x 10-9 C परिमाण का ऋणात्मक परिक्षण आवेश इस बिन्दु पर स्थित है, तो परिक्षण आवेश पर कितना बल लगेगा?
(ii)
(a) L-C-R परिपथ में अनुनादी आवृत्ति को समझाइये।
(b) दर्शाइये कि L-C-R परिपथ में प्रति संरक्षित औसत शक्ति क्षण |
[latex]p={ V }_{ rms }{ i }_{ rms }\times cos\theta [/latex] होता है; जहाँ कली कोण है।
(iii) प्रकाशिक तन्तु क्या होते हैं? किरण चित्र की सहायता से इनके द्वारा प्रकाश 
संचरण की विधि समझाइये। इसमें किस घटना का उपयोग होता है?
(iv) p-n सन्धि डायोड किसे कहते हैं? दो p-n सन्धि डायोड को पूर्ण तरंग 
दिष्टकारी के रूप में कैसे प्रयुक्त किया जाता है? निवेशी व निर्गत् वोल्टताओं के तरंग रूपों को भी दर्शाइये।

Answers

(1)
उत्तर 1(i).
(b)
घट जायेगा।

उत्तर 1(ii).
(a) जूल/कूलॉम

उत्तर 1(iii).
(a) 125 जूल

उत्तर 1(iv).
(c) 25 सेमी से अधिक दूरी पर

उत्तर 1(v).
(d) 4000 Å

उत्तर 1(vi).
(a) 8 x 1014 हज

उत्तर 4(ii).
[latex]\cfrac { 59 }{ 74 } [/latex] ऐम्पियर, [latex]-\cfrac { 30 }{ 74 } [/latex] ऐम्पियर,9.4 वोल्ट
UP Board Class 12 Physics Model Papers Paper 3 image 1

उत्तर 4(iii).
शून्य ।
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उत्तर 4(vii).
3.89 x 1017 प्रति सेमी2प्रति सेकण्ड ।

उत्तर 4(viii)
10.2 eV तथा 13.6 ev

उत्तर 5(b).
5.4 x 106N/C, 8.1 x 10-3 N

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UP Board Class 10 Hindi Model Papers Paper 3

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Class Class 10
Subject Hindi
Model Paper Paper 3
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 10 Hindi Model Papers Paper 3

समय : 3 घण्टे 15 मिनट
पूर्णांक : 70

प्रश्न 1.
(क) निम्नलिखित में से कोई एक कथन सही है। उसे पहचानकर लिखिए। [ 1 ]

  1. ‘हिमालय की पुकार’ जयप्रकाश भारती का प्रसिद्ध नाटक है।
  2. ‘संस्कृति के चार अध्याय दिनकरजी का काव्यसंग्रह है।
  3. ‘गुनाहों का देवता धर्मवीर भारती का उपन्यास है।
  4. ‘कलम का सिपाही’ प्रेमचन्द की कृति है।

(ख) निम्नलिखित कृतियों में से किसी एक कृति के लेखक का नाम लिखिए। [ 1 ]

  1. त्रिवेणी
  2. माटी की मूरतें
  3. मेरी कॉलेज डायरी
  4. लहरों के राजहंस

(ग) किसी एक आलोचना लेखक का नाम लिखिए। [ 1 ]
(घ) ‘नीड़ का निर्माण फिर’ कृति किस विधा पर आधारित है। [ 1 ]
(ङ) ‘गुलाबराय’ की एक रचना का नाम लिखिए। [ 1 ]

प्रश्न 2.
(क) द्विवेदी युग की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [ 1 + 1 = 2 ] 
(ख) ‘कुरुक्षेत्र’ और ‘पथिक’ के रचयिता के नाम लिखिए। [ 1 + 1 = 2 ] 
(ग) मैथिलीशरण गुप्त की दो काव्य कृतियों के नाम लिखिए। [ 1 ]

प्रश्न 3.
निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक के नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए। [ 2 + 2 + 2 = 6]

(क)
सुन्दर प्रतिमा, मनभावनी चाल और स्वच्छन्द प्रकृति ये ही दो-चार बातें देखकर मित्रता की जाती है, पर जीवन संग्राम में साथ देने वाले मित्रों में इनसे कुछ अधिक बातें चाहिए। मित्र केवल उसे नहीं कहते जिसके गुणों की तो हम प्रशंसा करें पर जिससे हम स्नेह न कर सकें, जिससे अपने छोटे-मोटे काम तो हम निकालते जाएँ पर भीतर ही मौतर घृणा करते रहें। मित्र सच्चे पथ-प्रदर्शक के समान होना चाहिए, जिस पर हम पूरा विश्वास कर सके, भाई के समान होना चाहिए, जिसे हम अपना प्रीतिपात्र बना सकें। हमारे और हमारे मित्र के बीच सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए ऐसी सहानुभूति जिससे एक के हानि-लाभ को दूसरा अपना हानि-लाभ समझे।

  1. उपरोक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
  2. गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
  3. अच्छे मित्र की क्या विशेषताएँ बताई गई हैं?

(ख)
इंष्य का यही अनोखा वरदान है। जिस मनुष्य के हृदय में ईष्र्या घर बना लेती हैं। वह उन चीजों से आनन्द नहीं उठाता, जो उसके पास मौजूद हैं, बल्कि उन वस्तुओं से दु:ख उठाता है जो दूसरों के पास हैं। वह अपनी तुलना दूसरों के साथ करता है और इस तुलना में अपने पक्ष के सभी अभाव उसके हृदय पर दंश मारते रहते हैं। देश के इस दाह को भोगना कोई अच्छी बात नहीं है। मगर ईष्र्यालु मनुष्य करे भी तो क्या? आदत से लाचार होकर उसे यह वेदना भोगनी पड़ती है।

  1. उपरोक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
  2. रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
  3. ईर्ष्यालु व्यक्ति कौन-सी वेदना भौगने के लिए विवश होता है और क्यों?

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पद्यांशों में से किसी एक की सन्दर्भ-सहित व्याख्या कीजिए तथा उसका काव्य-सौन्दर्य भी लिखिए। [ 1 + 4 + 1 = 6 ]

(क)
बैठो माता के आँगन में
नाता भाई-बहन का
समझे उसकी प्रसव बेदना
वही लाल है माई का।
एक साथ मिल बाँट लो
अपना हुर्ष विषादं यहाँ है
सबका शिव कल्याण यहाँ हैं,
पावें सभी प्रसाद यहाँ।

(ख)
ऊधौ मोहि ब्रज बिसरत नहिं।
वृन्दावन गोकुल बन उपबन, सघन कुंज की नाहि।।
प्रात समय माता जसुमति अरु नन्दं देखि सुख पावत।
माखन रोटी दहयौ सजायो, अति हित साथ खुवावत
गोपी ग्वाल-बाल संग खेलत, सब दिन हँसत सिरात।
सूरदास धनि-धनि ब्रजवासी, जिनस हित जदुजात।।

प्रश्न 5.
(क) निम्नलिखित लेखकों में से किसी एक का जीवन-परिचय एवं उनकी एक रचना का नाम लिखिए। [2 + 1 = 3]

  1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
  2. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
  3. डॉ. भगवतशरण उपाध्याय

(ख) निम्नलिखित कवियों में से किसी एक कवि का जीवन-परिचय दीजिए तथा उनकी एक रचना का नाम लिखिए। [2 + 1 = 3]

  1. बिहारी लाल
  2. रसवान
  3. सुमित्रानन्दन पन्त

प्रश्न 6.
निम्नलिखित का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए। [1 + 3 = 4]
अस्माकं संस्कृतिः सदा गतिशीला वर्तते। मानव जीवनं संस्कर्तुम् एषा यथासमयं नवां नवां विचारधारां स्वीकरोति, नवां शक्ति च प्राप्नोति। अत्र दुराग्रह नास्ति, यत् युक्तियुक्तं कल्याणकारि च तदत्र सहर्ष गृहीतं भवति। एतस्याः गतिशीलतायाः रहस्यं मानवजीवनस्य शाश्वत मूल्येषु निहितम्, तद् यथा सत्यस्य प्रतिष्ठा, सर्वभूतेषु समभावः विचारेषु औदार्यम् आचारे दृढ़ता चेति।
अथवा
रे रे चातक! सावधानमनसा मित्र! क्षणं श्रूयताम्।
अम्भोदा बहवो वसन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः।
केचिद वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधांगर्जन्ति केचिद् थाः।।
यं यं पश्यसि तस्य-तस्य पुरतो मा बृहि दीनंवचः।।

7.
(क) अपनी पाठ्यपुस्तक से कण्ठस्थ किया हुआ कोई एक श्लोक लिखिए जो इस प्रश्न-पत्र में न आया हो। [ 2 ]
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में दीजिए। [ 1 + 1 = 2 ] 

  1. दाराशिकोह: वाराणसीम आगत्य किम रोत?
  2. कौशगतः भ्रमरः किम् अचिन्तयत?
  3. गीतायाः कः सन्देशः?
  4. चन्द्रशेखरः कः आसीत्?
  5. वातात् शीघ्रतरं किम् भवति?

प्रश्न 8.
(क) हास्य अथवा करुण रस की परिभाषा सोदाहरण लिखिए। [ 2 ]
(ख) रूपक अथवा उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण लिखिए। [ 2 ]
(ग) रोला अथवा सोरठा छन्द की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए। [ 2 ]

प्रश्न 9.
(क) निम्नलिखित उपसर्गों में से किन्हीं तीन के मेल से एक-एक शब्द बनाइए। [ 1 + 1 +1 = 3 ]

  1. सु
  2. नि
  3. प्रति
  4. अप
  5. कु

(ख) निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रत्ययों का प्रयोग करके एक-एक शब्द बनाइए। [ 1 + 1 = 2 ]

  1. आस
  2. आइन
  3. मान
  4. आवट

(ग) निम्नलिखित में से किन्हीं दो का समास-विग्रह कीजिए तथा समास का नाम लिखिए। [ 1 + 1 = 2 ]

  1. पथ्यापथ्य
  2. त्रिकोण
  3. महाजन
  4. दशानन
  5. नीलोत्पल
  6. चौराहा

(घ) निम्नलिखित में से किन्हीं दो के तत्सम रूप लिखिए। [ 1 + 1 = 2 ]

  1. आँसू
  2. माथा
  3. सावन
  4. कोयल
  5. अनाज
  6. दूध

(ङ) निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं दो के दो-दो पर्यायवाची लिखिए। [ 1 + 1 = 2 ]

  1. सरोवर
  2. वायु
  3. आकाश
  4. कमल
  5. नदी
  6. शहद

प्रश्न 10.
(क) निम्नलिखित में से किन्हीं दो में सन्धि कीजिए और सन्धि का नाम लिखिए। [ 1 + 1 = 2 ]

  1. यदि + अग्नि
  2. महा + औज:
  3. मम + एव
  4. वधू के आगमनम्।
  5. परम + ऐश्वर्यम्
  6. इति + अलम्

(ख) निम्नलिखित शब्दों के रूप षष्ठी विभक्ति द्विवचन में लिखिए। [ 1 + 1 = 2 ]

  • नदी अथवा मनु
  • तद् (पुलिंग) अथवा युष्मद्

(ग) निम्नलिखित में से किसी एक का धातु, लकार, पुरुष एवं वचन का उल्लेख कीजिए। [ 2 ]

  1. पठे:
  2. दृसतम्
  3. पश्येत

(घ) निम्नलिखित में से किन्हीं दो का संस्कृत में अनुवाद कीजिए। [ 2 ]

  1. हम दोनों मैदान में खेलेंगे।
  2. वे पुस्तकें पढ़ रहे हैं।
  3. विद्या विनय देती हैं।
  4. गंगा हिमालय से निकलती है।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबन्ध लिखिए। [ 6 ]

  1. विज्ञान के चमत्कार
  2. शिक्षा में खेलकुद का स्थान
  3. कम्प्यूटर का बढ़ता प्रयोग
  4. परिश्रम का महत्त्व
  5. योग : स्वस्थ जीवन का आधार

प्रश्न 12.
स्वपठित खण्डकाव्य के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक का उत्तर दीजिए। [ 3 ]
(क)

  1. ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य के आधार पर भामाशाह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  2. ‘मेवाड़ मुकुट’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथा की संक्षिप्त प्रस्तुति कीजिए।

(ख)

(1) ‘अमपूजा’ खण्डकाव्य में तृतीय सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
(ii) ‘अग्रपूजा’ खण्डकाव्य के नायक श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए।

(ग)

  1. कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
  2. कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के आधार पर कैकेयी का चरित्र-चित्रण कीजिए।

(घ)

(i) ‘जयसुभाष’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
(ii) ‘जयसुभाष’ खण्डकाव्य के नायक सुभाषचन्द्र बोस का चरित्र-चित्रण कीजिए।

(ङ)

  1. ‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।
  2. ‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के आधार पर चन्द्रशेखर आज़ाद के क्रान्तिकारी रूप का चित्रण कीजिए।

(च)

  1. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के सप्तम एवं अष्टम सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
  2. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नायक लक्ष्मण का चरित्र-चित्रण कीजिए।

(छ)

  1. ज्योति जवाहर’ खण्डकाव्य के आधार पर बताइए कि कलिंग युद्ध का अशोक के हृदय पर क्या प्रभाव पड़ा?
  2. ज्योति जवाहर’ के नायक की चार चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

(ज)

  1. कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण को वीरता का वर्णन कीजिए।
  2. ‘कर्ण’ खण्डकाव्य के छठे सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।

(झ)

  1. ‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथा अपने शब्दो में लिखिए।
  2. ‘मुक्ति दूत’ खण्डकाव्य के आधार पर गांधीजी का चरित्र-चित्रण कीजिए।

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