UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 15 विकास तथा क्रियात्मक क्षमता पर व्यायाम का प्रभाव (Effect of Exercise on Development and Functional Capacity)
UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 15 विकास तथा क्रियात्मक क्षमता पर व्यायाम का प्रभाव
UP Board Class 11 Home Science Chapter 15 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
व्यायाम से क्या आशय है? व्यायाम के मुख्य लाभ तथा नियम भी बताइए।
उत्तरः
शारीरिक स्वास्थ्य के लिए सन्तुलित आहार तथा शारीरिक स्वच्छता के साथ-साथ उचित व्यायाम, विश्राम तथा निद्रा भी नितान्त आवश्यक हैं। व्यायाम से प्रत्येक व्यक्ति परिचित है। बच्चों को प्रारम्भ से ही व्यायाम के गुणों से अवगत कराया जाता है। व्यायाम के गुणों एवं महत्त्व से प्रत्येक व्यक्ति परिचित है तथा समझता है कि नियमित रूप से व्यायाम करने से अनेक लाभ होते हैं, परन्तु फिर भी आलस्यवश अधिकांश व्यक्ति या तो व्यायाम करते ही नहीं अथवा करते भी हैं तो नियमित रूप से नहीं करते। हमारे स्वास्थ्य के लिए व्यायाम भी उतना ही आवश्यक है जितना कि भोजन तथा विश्राम।
व्यायाम का अर्थ –
ऐसी शारीरिक क्रियाएँ एवं गतिविधियाँ जो मनुष्य के समस्त अंगों के पूर्ण और सन्तुलित विकास में सहायक होती हैं व्यायाम कहलाती हैं। व्यायाम में शरीर के विभिन्न अंगों को विभिन्न प्रकार से गति करनी पड़ती है। व्यायाम के विभिन्न प्रकार हो सकते हैं। सुबह व शाम को घूमना भी एक प्रकार का व्यायाम ही है। खेल खेलना भी व्यायाम है। भागना-दौड़ना, दण्ड-बैठक लगाना, मलखम्भ, योगाभ्यास आदि भी व्यायाम के ही रूप हैं। तैरना भी एक अच्छा व्यायाम है। इसके अतिरिक्त स्त्रियों द्वारा घर के कार्य करना भी एक प्रकार से व्यायाम में सम्मिलित किया जा सकता है। जो व्यक्ति किसी भी प्रकार के श्रम के कार्य; जैसे-बढ़ईगीरी, राजगीरी आदि करते हैं, उन्हें अलग से व्यायाम करने की विशेष आवश्यकता नहीं होती। इसके विपरीत, मानसिक कार्य एवं अधिक समय तक बैठने वाले कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए अलग से व्यायाम करना आवश्यक होता है।
नियमित रूप से व्यायाम करने से शरीर सुन्दर, सुडौल एवं ओजस्वी बनता है। व्यायाम करने से मांसपेशियाँ सुविकसित होती हैं तथा शरीर की कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है। व्यायाम के परिणामस्वरूप शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य बढ़ता है। व्यायाम करते समय श्वसन क्रिया तीव्र हो जाती है; अतः अधिक मात्रा में ऑक्सीजन ग्रहण की जा सकती है। व्यायाम करने से पाचन क्रिया ठीक हो जाती है तथा भूख बढ़ती है। व्यायाम करने से नींद अच्छी आती है।
व्यायाम के लाभ –
समुचित व्यायाम करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं –
- शरीर अधिक स्वस्थ, सुन्दर, सुडौल तथा आकर्षक हो जाता है।
- पेशियों के अधिक क्रियाशील हो जाने से शरीर तेजस्वी तथा स्फूर्तिदायक हो जाता है। आलस्य नहीं रहता है।
- व्यायाम करते समय श्वसन क्रिया अधिक तेज हो जाती है जिससे फेफड़े शुद्ध वायु ग्रहण करते हैं। उनकी सामर्थ्य, धारिता तथा कार्यक्षमता बढ़ती है। इससे शरीर को अधिक ऑक्सीजन मिलने के साथ ही विषैली कार्बन डाइऑक्साइड को अधिक मात्रा में निकालने में सहायता मिलती है।
- व्यायाम से हृदय गति बढ़ती है, अधिक रुधिर संचार होता है तथा शरीर के कोने-कोने तक पोषक तत्त्व तथा ऑक्सीजन पहुँचते हैं।
- हृदय रोग, श्वसन तन्त्र के रोग तथा पाचन सम्बन्धी रोगों के होने की आशंकाएँ घटती हैं।
- व्यायाम से मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं अर्थात् शारीरिक शक्ति का विकास होता है।
- पाचन क्रिया तेज होती है, भूख अधिक लगती है। इससे शरीर स्वस्थ रहता है।
- व्यायाम से मानसिक विकास होता है, मानसिक तनाव भी कम होता है। मस्तिष्क की कार्यशीलता में वृद्धि होती है।
व्यायाम के सामान्य नियम –
व्यायाम से लाभ प्राप्त करने के लिए व्यायाम के निम्नलिखित नियमों को जानना चाहिए। यदि अज्ञानवश व्यायाम किया जाए तो लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है –
- व्यायाम सदैव अपनी क्षमता के अनुकूल करना चाहिए। जब थकान अनुभव हो तो व्यायाम बन्द कर देना चाहिए।
- प्रारम्भ में हल्का व्यायाम करना चाहिए तथा शक्ति बढ़ने पर क्रमशः कठिन एवं भारी व्यायाम किया जा सकता है।
- व्यायाम सदैव नियमित रूप से करना चाहिए।
- व्यायाम सदैव खुली हवा में ही करना चाहिए, बन्द कमरे में नहीं।
- व्यायाम करते समय शरीर अधिक-से-अधिक खुला रहना चाहिए अर्थात् शरीर पर कम-से-कम कपड़े पहनने चाहिए।
- सामान्य रूप से व्यायाम सुबह के समय करना ही उपयुक्त होता है।
- व्यायाम से पहले तथा व्यायाम के तुरन्त पश्चात् कुछ खाना-पीना नहीं चाहिए। कुछ समय विश्राम करने के बाद ही कुछ खाना-पीना चाहिए।
- व्यायाम सदैव रुचि से करना चाहिए। प्रसन्नता से किया गया व्यायाम मनोरंजक तथा लाभदायक होता है।
प्रश्न 2.
विकास पर व्यायाम का क्या प्रभाव पड़ता है? विस्तार से स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
विकास जीवन की प्रमुख विशेषता तथा लक्षण है। विकास की प्रक्रिया आजीवन किसी-नकिसी रूप में चलती रहती है। विकास वह जटिल प्रक्रिया है, जिसके परिणामस्वरूप बालक या व्यक्ति की अन्तर्निहित शक्तियाँ एवं गुण प्रस्फुटित होते हैं। विकास के लिए विभिन्न कारक जिम्मेदार होते हैं। कुछ कारक विकास की प्रक्रिया को सुचारु बनाने में सहायक होते हैं तथा इसके विपरीत कुछ कारक ऐसे भी हैं जो विकास की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। विकास का प्रत्यक्ष सम्बन्ध व्यक्ति की क्रियात्मक क्षमता से भी है। विकास के साथ-साथ व्यक्ति की क्रियात्मक क्षमता भी बढ़ती है। ‘विकास’ तथा ‘क्रियात्मक क्षमता’ को सुचारु बनाए रखने वाले कारकों में से एक महत्त्वपूर्ण कारक है-नियमित रूप से व्यायाम करना।
विकास पर व्यायाम का प्रभाव –
विकास अपने आप में एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है। इसीलिए विकास के विभिन्न स्वरूप माने गए हैं। विकास के मुख्य स्वरूप या पक्ष हैं-शारीरिक विकास, सामाजिक विकास, मानसिक विकास, संवेगात्मक विकास तथा नैतिक विकास। विकास के इन सभी पक्षों को सुचारु बनाए रखने में नियमित व्यायाम का विशेष योगदान होता है। विकास पर व्यायाम के प्रभावों को स्पष्ट करने के लिए विकास के सभी स्वरूपों पर व्यायाम के पड़ने वाले प्रभावों का विवरण अग्रवर्णित है –
1. व्यायाम का शारीरिक विकास पर प्रभाव – विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष शारीरिक विकास है। सुचारु शारीरिक विकास का अनुकूल प्रभाव विकास के अन्य पक्षों पर भी पड़ता है। जहाँ तक व्यायाम का प्रश्न है, नियमित व्यायाम निश्चित रूप से शारीरिक विकास को सुचारु बनाने में उल्लेखनीय योगदान देता है। नियमित व्यायाम से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है, पुष्ट होता है तथा पर्याप्त स्फूर्ति बनी रहती है। उचित रूप से व्यायाम करने से शरीर के सभी संस्थान भी अपने कार्यों को सुचारु रूप से करते हैं।
उदाहरण के लिए शारीरिक व्यायाम से हमारा पाचन-तन्त्र सुचारु रूप से कार्य करता है, भूख सही रहती है, ग्रहण किए गए आहार का पाचन एवं अवशोषण भी सामान्य बना रहता है। इसके परिणामस्वरूप शरीर कुपोषण का शिकार नहीं होता तथा शरीर क्रमशः पुष्ट होता जाता है। इसी प्रकार शरीर का अस्थि संस्थान भी नियमित व्यायाम से दोषरहित तथा सुदृढ़ बना रहता है। उचित व्यायाम से अस्थि-संस्थान की गतिविधियाँ नियमित रहती हैं तथा हड्डियों के जोड़ों से सम्बन्धित दोषों से व्यक्ति बचा रहता है।
जहाँ तक शरीर के पेशी तन्त्र का प्रश्न है, निश्चित रूप से व्यायाम से यह तन्त्र भी प्रभावित होता है। व्यायाम से शरीर की सभी पेशियाँ सुविकसित तथा पुष्ट होती हैं। इसी प्रकार नियमित व्यायाम शरीर के श्वसन तन्त्र तथा परिसंचरण तन्त्र को भी अनुकूल रूप में प्रभावित करता है। व्यायाम करते समय शरीर का श्वसन तन्त्र पूर्ण रूप से सक्रिय हो जाता है तथा फेफड़ों में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन पहुँचती है। शरीर में पर्याप्त ऑक्सीजन पहुँचने से रक्त का शुद्धिकरण भी सही रूप में होता रहता है तथा साथ ही शरीर के विजातीय तत्त्व श्वसन तथा पसीने के माध्यम से शरीर से विसर्जित होते रहते हैं। इन दशाओं में शरीर निश्चित रूप से स्वस्थ बना रहता है।
नियमित व्यायाम शरीर के सुचारु विकास में योगदान देने के साथ-ही-साथ शरीर को विभिन्न रोगों से बचाए रखने में भी सहायक होता है। नियमित व्यायाम से व्यक्ति मोटापे का शिकार नहीं होता। इस स्थिति में व्यक्ति मोटापे से सम्बन्धित रोगों जैसे कि उच्च रक्त चाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, हृदय रोग तथा मधुमेह से बचा रहता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यायाम से व्यक्ति का शारीरिक विकास सुचारु रहता है तथा व्यक्ति का स्वास्थ्य उत्तम रहता है।
2. व्यायाम का सामाजिक विकास पर प्रभाव – विकास का दूसरा मुख्य पक्ष या स्वरूप हैसामाजिक विकास। सामाजिक विकास माध्यम से ही व्यक्ति का सामाजिक व्यवहार सामाजिक मान्यताओं एवं मर्यादाओं के अनुकूल बनता है। सामाजिक विकास ही व्यक्ति को सामाजिक समायोजन की योग्यता प्रदान करता है। सामाजिक विकास की प्रक्रिया अनिवार्य रूप से सामाजिक सम्पर्क तथा सम्बन्धों की स्थापना से परिचालित होती है।
सामाजिक विकास की प्रक्रिया सबसे तीव्र बाल्यावस्था में होती है। इस अवस्था में बालक का सामाजिक सम्पर्क परिवार के अतिरिक्त सबसे अधिक खेल समूह से होता है। खेल एवं व्यायाम के लिए एक सम-आयु समूह की आवश्यकता होती है। खेल के दौरान बालक सामाजिक मान्यताओं एवं नियमोंमर्यादाओं से भली-भाँति परिचित हो जाता है। इससे बालक के सामाजिक विकास में समुचित योगदान मिलता है। सामूहिक खेलों तथा व्यायाम की प्रक्रिया में बच्चों को सहयोग, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा तथा समता आदि सामाजिक गुणों के महत्त्व की व्यावहारिक जानकारी प्राप्त हो जाती है। यह सुचारु विकास के लिए अति महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है।
सामूहिक खेल तथा व्यायाम से बच्चों को आत्म-प्रदर्शन, नेतृत्व, प्रभुत्व आदि गुणों के विकास के अवसर भी उपलब्ध होते हैं। इन गुणों से व्यक्ति का समुचित विकास होता है तथा इन गुणों से बालक के सामाजिक विकास की प्रक्रिया भी सुचारु बनी रहती है। इसके अतिरिक्त सामूहिक खेल एवं व्यायाम निश्चित रूप से बच्चों में सामाजिक समायोजन के गुण का भी विकास करते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यायाम से सामाजिक विकास अनुकूल रूप से प्रभावित होता है।
3. व्यायाम का मानसिक विकास पर प्रभाव – बालक की मानसिक क्षमताओं का सुचारु विकास ही मानसिक विकास कहलाता है। मानसिक विकास के माध्यम से बालक की मानसिक क्षमताओं का उदय होता है तथा ये क्षमताएँ क्रमश: विकसित तथा पुष्ट होती हैं।
मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों में एक मुख्य कारक है, बालक का शारीरिक रूप से स्वस्थ तथा पुष्ट होना। वास्तव में शारीरिक रूप से पुष्ट बालक अधिक मानसिक श्रम कर सकते हैं तथा इसके परिणामस्वरूप उनका बौद्धिक विकास सुचारु होता है। इस सन्दर्भ में यह पूर्व निश्चित है कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए व्यायाम की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। व्यायाम से मानसिक क्षमताओं के विकास में भी समुचित योगदान मिलता है। सामूहिक रूप से खेलने तथा व्यायाम करने से बालक की मानसिक तथा बौद्धिक क्षमताओं का सुचारु तथा बहुपक्षीय विकास होता है। इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि नियमित रूप से व्यायाम करना मानसिक विकास के लिए एक अनुकूल कारक है।
4. व्यायाम का संवेगात्मक विकास पर प्रभाव – बाल-विकास का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष संवेगात्मक विकास भी है। संवेगात्मक विकास का सम्बन्ध बालक के संवेगों के सुचारु विकास से है। जैसे-जैसे बालक का संवेगात्मक विकास होता है, वैसे-वैसे बालक संवेगों को नियन्त्रित करना सीख लेता है। बालक के संवेग क्रमशः सरल से जटिल रूप ग्रहण करते हैं।
सुचारु संवेगात्मक विकास के लिए व्यायाम तथा खेलों का विशेष महत्त्व होता है। विभिन्न मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा ज्ञात हुआ है कि नियमित रूप से व्यायाम करने से तथा सामूहिक खेलों एवं प्राणायाम आदि से संवेगों की उग्रता को नियन्त्रित करने में सहायता मिलती है। सामूहिक खेलों में सम्मिलित होने वाले बालक क्रमशः क्रोध, भय तथा ईर्ष्या आदि उग्र संवेगों को नियन्त्रित करने में सफल होते हैं। यह भी पाया गया है कि शारीरिक रूप से स्वस्थ बालकों में प्राय: अस्वस्थ रहने वाले तथा दुर्बल बालकों की अपेक्षा संवेगात्मक स्थिरता अधिक होती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि नियमित व्यायाम तथा खेल सुचारु संवेगात्मक विकास के लिए अनुकूल कारक हैं।
5. व्यायाम का नैतिक विकास पर प्रभाव – सम्पूर्ण विकास के लिए नैतिक विकास पर भी ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है। नैतिक विकास का मूल्यांकन सामाजिक मान्यताओं एवं निर्धारित नियमों से होता है जो बालक या व्यक्ति समाज द्वारा निर्धारित नियमों एवं मान्यताओं का स्वेच्छा से पालन करता है, उसका नैतिक विकास सुचारु माना जाता है। नैतिकता के नियम उचित-अनुचित से सम्बन्धित होते हैं। अनुचित व्यवहार करने वाले व्यक्ति को अनैतिक माना जाता है तथा उचित व्यवहार करना नैतिकता का प्रतीक माना जाता है।
सुचारु नैतिक विकास के लिए जहाँ उचित शिक्षा आदि विभिन्न कारक जिम्मेदार होते हैं, वहीं व्यायाम तथा सामूहिक खेल सम्बन्धी गतिविधियों का भी उल्लेखनीय योगदान होता है। व्यायाम तथा नियमित रूप से खेलों में सम्मिलित होने से बालक का जीवन नियमित तथा संयमित होता है। इस स्थिति में बालक की संकल्प शक्ति का भी समुचित विकास होता है।
विकसित संकल्प शक्ति वाले बालक को नैतिक नियमों के पालन के लिए शक्ति तथा प्रेरणा मिलती है। व्यायाम तथा सामूहिक खेलों के दौरान खेल के साथियों से भी नैतिक विकास में काफी सहयोग प्राप्त होता है। निश्चित रूप से समूह में खेलने वाले बालक को सहयोग, सच्चाई तथा ईमानदारी एवं साहस का व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त होता है। ये सभी नैतिक सद्गुण हैं तथा इनका समुचित विकास ही नैतिक विकास है। स्पष्ट है कि बालक के नैतिक विकास में खेल एवं व्यायाम का उल्लेखनीय योगदान होता है।
UP Board Class 11 Home Science Chapter 15 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
व्यक्ति की क्रियात्मक क्षमता पर व्यायाम का प्रभाव स्पष्ट करें
उत्तरः
व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं विकास के मूल्यांकन के लिए उसकी क्रियात्मक क्षमता को जानना भी आवश्यक होता है। कार्य या श्रम करने की शक्ति या क्षमता को क्रियात्मक क्षमता के रूप में जाना जाता है। सामान्य क्रियात्मक क्षमता के लिए शरीर का स्वस्थ तथा समुचित स्तर का ऊर्जावान होना अनिवार्य कारक है। जहाँ तक शारीरिक स्वास्थ्य एवं ऊर्जा का प्रश्न है, इसके लिए सबसे अनुकूल कारक नियमित रूप से व्यायाम करना ही है। नियमित रूप से व्यायाम करने वाले व्यक्ति के सभी तन्त्र स्वस्थ तथा सुदृढ़ बनते हैं।
इस स्थिति में व्यक्ति की क्रियात्मक क्षमता का सुचारु विकास एक स्वाभाविक परिणाम होता है। इस तथ्य को कुछ उदाहरणों से भी स्पष्ट किया जा सकता है। जब कोई व्यक्ति सही रूप में व्यायाम करता है तब श्वसन तन्त्र के माध्यम से शरीर में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन प्रवेश करती है। इससे शरीर का रक्त तेजी से शुद्ध होता रहता है तथा शुद्ध रक्त का शरीर में अधिक परिसंचरण होता है।
इससे शरीर को उचित पोषण प्राप्त होता है तथा शरीर में अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। पर्याप्त ऊर्जा उत्पन्न होने की स्थिति में व्यक्ति की क्रियात्मक-क्षमता भी बढ़ती है। एक अन्य उदाहरण पाचन-तन्त्र से सम्बन्धित है। यदि व्यक्ति नियमित रूप से व्यायाम करता है तो उसके पाचन-तन्त्र की क्रियाएँ सुचारु रूप से सम्पन्न होती हैं। इससे शरीर को समुचित पोषण प्राप्त होता है तथा वह आलस्य से बचा रहता है। इस दशा में व्यक्ति की क्रियात्मक क्षमता भी सामान्य बनी रहती है। पाचन तन्त्र के ही समान हमारे उत्सर्जन तन्त्र की क्रियाओं पर भी व्यायाम का अच्छा प्रभाव पड़ता है तथा यह स्थिति भी कार्यात्मक क्षमता के लिए अनुकूल कारक बनती है।
इसके अतिरिक्त एक अन्य तथ्य भी महत्त्वपूर्ण है। सामान्य तथा उत्तम क्रियात्मक क्षमता के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति का चित्त प्रसन्न हो तथा उसमें उत्साह और उल्लास की कमी न हो। यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि नियमित रूप से व्यायाम करने तथा खेल-कूद में सम्मिलित होने से चित्त प्रसन्न रहता है. तथा व्यक्ति उत्साहित रहता है। इन दशाओं में व्यक्ति प्रत्येक कार्य को प्रसन्नतापूर्वक करता है तथा कार्य के प्रति रुचि बनाए रखता है। इन परिस्थितियों में नि:सन्देह रूप से व्यक्ति की क्रियात्मक क्षमता भी निरन्तर उत्तम ही रहती है। स्पष्ट है कि नियमित व्यायाम क्रियात्मक क्षमता के सुचारु विकास के लिए एक अनुकूल कारक है। अच्छी क्रियात्मक क्षमता वाला व्यक्ति जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल रहता है।
प्रश्न 2.
व्यायाम न करने के शरीर एवं स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल परिणामों का उल्लेख करें। ‘
उत्तरः
जहाँ एक ओर व्यायाम करने से विभिन्न लाभ होते हैं तथा विकास एवं क्रियात्मक क्षमता पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है, वहीं व्यायाम न करने की स्थिति में व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं जीवन पर अनेक प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकते हैं।
निश्चित रूप से व्यायाम न करने की स्थिति में सामान्य स्वास्थ्य को सामान्य बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। यदि कोई व्यक्ति व्यायाम या खेल-कूद नहीं करता तो व्यक्ति के चेहरे का स्वाभाविक तेज या रौनक कम होने लगती है। यही नहीं व्यक्ति की शारीरिक चुस्ती-फुर्ती भी घटने लगती है। व्यायाम न करने की दशा में व्यक्ति के स्वभाव तथा व्यवहार पर भी बुरा प्रभाव पड़ने लगता है। इन दशाओं में व्यक्ति का स्वभाव उत्साहरहित तथा उदासीन बन जाता है।
उसके व्यवहार में चिड़चिड़ापन तथा झुंझलाहट देखी जा सकती है। कुछ व्यक्ति व्यायाम तो करते नहीं परन्तु स्वाद एवं लोभवश अधिक तथा पौष्टिक आहार ग्रहण करते रहते हैं। इस स्थिति में शरीर में वसा की मात्रा बढ़ जाती है तथा व्यक्ति मोटापे का शिकार हो जाता है। इस स्थिति में व्यक्ति को विभिन्न रोग भी घेर लेते हैं। मधुमेह, उच्च रक्तचाप तथा हृदय रोग इसी श्रेणी के रोग हैं। लगातार व्यायाम न करने से व्यक्ति की पाचन-क्रिया पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति अपच का शिकार होने लगता है तथा उसकी भूख भी घट जाती है।
प्रश्न 3.
टिप्पणी लिखिए—विभिन्न अवस्थाओं में उपयोगी व्यायाम।
उत्तरः
विभिन्न अवस्थाओं में उपयोगी व्यायाम
UP Board Class 11 Home Science Chapter 15 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘व्यायाम’ से आप क्या समझती हैं?
उत्तरः
उन समस्त क्रियाओं तथा गतिविधियों को व्यायाम माना जाता है जो व्यक्ति के शरीर के समस्त अंगों के पूर्ण तथा सन्तुलित विकास में सहायक होती हैं।
प्रश्न 2.
नियमित रूप से व्यायाम करने से क्या मुख्य लाभ होता है?
उत्तरः
नियमित रूप से व्यायाम करने से शरीर सुन्दर, सुडौल तथा ओजस्वी बनता है।
प्रश्न 3.
व्यायाम के दो मुख्य नियम बताइए।
उत्तरः
- व्यायाम सदैव अपनी क्षमता के अनुकूल करना चाहिए। जब थकान अनुभव हो तब व्यायाम करना बन्द कर देना चाहिए।
- व्यायाम सदैव नियमित रूप से करना चाहिए।
प्रश्न 4.
व्यायाम करने से किस वर्ग के रोगों को नियन्त्रित किया जा सकता है?
उत्तरः
व्यायाम करने से मोटापे से सम्बन्धित रोगों को नियन्त्रित किया जा सकता है। इस वर्ग के मुख्य रोग हैं-उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, हृदय रोग तथा मधुमेह।
प्रश्न 5.
व्यायाम से शरीर का कौन-सा तन्त्र या संस्थान प्रभावित होता है?
उत्तरः
व्यायाम से शरीर के सभी तन्त्र या संस्थान प्रभावित होते हैं। व्यायाम से शरीर के सभी तन्त्रों की क्रियाशीलता में सुधार होता है तथा शरीर की क्रियात्मक क्षमता का समुचित विकास होता है।
प्रश्न 6.
व्यायाम से व्यक्ति के विकास के कौन-कौन से पक्ष प्रभावित होते हैं?
उत्तरः
व्यायाम से व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास सुचारु बनता है अर्थात व्यायाम से विकास के सभी पक्षों पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। .
प्रश्न 7.
अच्छी क्रियात्मक क्षमता से क्या लाभ होता है?
उत्तरः
अच्छी क्रियात्मक क्षमता वाला व्यक्ति जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल रहता है।
UP Board Class 11 Home Science Chapter 15 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए –
1. स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम आवश्यक है, क्योंकि यह शरीर को बनाता है –
(क) आलसी एवं निष्क्रिय
(ख) क्रियाशील एवं स्वस्थ
(ग) स्वस्थ एवं आलसी ।
(घ) दुर्बल एवं बुद्धिमान।
उत्तरः
(ख) क्रियाशील एवं स्वस्था
2. व्यायाम करने से त्वचा द्वारा शरीर से पृथक होते रहते हैं –
(क) अधिक उत्सर्जी पदार्थ
(ख) अधिक पौष्टिक पदार्थ
(ग) अधिक दुर्गन्धयुक्त पदार्थ
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तरः
(क) अधिक उत्सर्जी पदार्थ।
3. मनुष्य को व्यायाम कब करना चाहिए –
(क) भोजन के पश्चात
(ख) रात्रि में
(ग) प्रात:काल खाली पेट
(घ) चाहे जब।
उत्तरः
(ग) प्रात:काल खाली पेट।
4. व्यायाम से लाभान्वित हो सकते हैं –
(क) केवल स्कूल जाने वाले लड़के-लड़कियाँ
(ख) केवल छोटे बच्चे तथा वृद्ध जन
(ग) केवल खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले
(घ) सभी व्यक्ति लाभान्वित होते हैं।
उत्तरः
(घ) सभी व्यक्ति लाभान्वित होते हैं।
5. व्यायाम का अनुकूल प्रभाव पड़ता है –
(क) स्वास्थ्य एवं शारीरिक विकास पर
(ख) मानसिक एवं बौद्धिक विकास पर
(ग) संवेगात्मक विकास तथा स्वभाव पर
(घ) उपर्युक्त सभी अनुकूल प्रभाव।
उत्तरः
(घ) उपर्युक्त सभी अनुकूल प्रभाव।
6. वृद्ध जनों के लिए उपयोगी व्यायाम है –
(क) सुबह-शाम घूमना तथा शारीरिक स्वास्थ्य के अनुसार हल्के कार्य करना
(ख) दौड़ लगाना या जॉगिंग करना
(ग) दौड़-धूप के खेल खेलना
(घ) कोई भी व्यायाम उपयोगी नहीं है।
उत्तरः
(क) सुबह-शाम घूमना तथा शारीरिक स्वास्थ्य के अनुसार हल्के कार्य करना।