UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 5 भोजन के पोषक तत्त्व

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 5 भोजन के पोषक तत्त्व (Nutritive Elements of Food)

UP Board Solutions for Class 11 Home Science Chapter 5 भोजन के पोषक तत्त्व

UP Board Class 11 Home Science Chapter 5 विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भोजन या आहार के पोषक तत्त्वों से क्या आशय है? पोषक तत्त्वों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
भोजन में उपस्थित तत्त्व शरीर को पोषण प्रदान करने का कार्य करते हैं, जिन्हें हम भोजन के पोषक तत्त्व कहते हैं। हम भोजन में दूध, दही, मक्खन, पनीर, घी, अण्डा, मांस, मछली, विभिन्न प्रकार के अनाज, शाक-सब्जी, कन्द मूल फल आदि का प्रयोग करते हैं। यदि इनका नियमित और समुचित रूप से प्रयोग न किया जाए तो शारीरिक एवं मानसिक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार भोजन केवल हमारी भूख को ही शान्त नहीं करता वरन् हमारे शरीर का पोषण भी करता है। ‘आहार एवं पोषण विज्ञान’ के अनुसार शरीर के लिए छह पोषक तत्त्व आवश्यक हैं। आहार के इन पोषक तत्त्वों को क्रमश: प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, खनिज लवण तथा जल कहा गया है।

पोषक तत्त्वों का वर्गीकरण:
भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, प्रोटीन, खनिज लवण, विटामिन्स, जल आदि प्रमुख पोषक तत्त्व हैं, जो शरीर के लिए ऊर्जा उत्पादन, शरीर निर्माण एवं मरम्मत तथा रोगों के प्रति प्रतिरोध पैदा करते हैं। पोषक तत्त्वों को कार्यों के आधार पर निम्नलिखित वर्गों में बाँटते हैं-

  • ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्त्व (Energy Producing Elements): प्रमुखत: कार्बोहाइड्रेट्स तथा वसा।
  • निर्माणकारी तत्त्व (Synthetic Elements): कोशिकाओं की टूट-फूट की मरम्मत तथा जीवद्रव्य निर्माण करने वाले तत्त्व। इनमें प्रोटीन्स, खनिज तथा जल आदि प्रमुख तत्त्व हैं।
  • प्रतिरक्षा प्रदान करने वाले तत्त्व (Immunity Providing Elements): रोगों के प्रति प्रतिरोधक शक्ति विकसित करने वाले तत्त्व, विभिन्न जैविक क्रियाओं के भली-भाँति संचालन में भी सहायता करते हैं; जैसे विटामिन्स, खनिज लवण आदि।

तालिका-भोजन (खाद्य पदार्थों) के प्रमुख घटक:
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प्रश्न 2.
आहार के एक पोषक तत्त्व के रूप में कार्बोहाइड्रेट का सामान्य परिचय दीजिए। आहार में कार्बोहाइड्रेट के महत्त्व को भी स्पष्ट कीजिए।
अथवा आहार में कार्बोहाइड्रेट का क्या महत्त्व है? आहार में इसकी कमी तथा अधिकता के परिणामस्वरूप होने वाली हानियों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कार्बोहाइड्रेट्स (carbohydrates) हमारे भोजन के आवश्यक अवयव हैं। ये मुख्यतया पौधों द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं तथा प्राकृतिक कार्बनिक यौगिकों का वृहत समूह बनाते हैं। इनके कुछ सामान्य उदाहरण इक्षु-शर्करा, ग्लूकोस तथा स्टार्च (मण्ड) आदि हैं। इनमें से अधिकांश के सूत्र C(H20)y हैं; अत: पहले इन्हें कार्बन के हाइड्रेट माना जाता था।

रासायनिक रूप से, “कार्बोहाइड्रेट को ध्रुवण घूर्णक (optically active) पॉलिहाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड अथवा कीटोन अथवा उन यौगिकों की भाँति परिभाषित किया जा सकता है जो जलअपघटन के उपरान्त इस प्रकार की इकाइयाँ देते हैं।” खाद्यान्न एवं कन्दमूल स्टार्च के प्रमुख स्रोत हैं। इनसे हमें तुरन्त ऊर्जा प्राप्त होती है। कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण हरे पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में किया जाता है। पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा ग्लूकोस का निर्माण करते हैं। ग्लूकोस से स्टार्च, सेलुलोस का निर्माण होता है। पका हुआ स्टार्च सरलता से पच जाता है तथा पूर्णरूप से ग्लूकोस में बदल जाता है। कोशिकाओं में ग्लूकोस के ऑक्सीकरण से ऊर्जा मुक्त होती है। 1 ग्राम ग्लूकोस के पूर्ण ऑक्सीकरण से 4.2 कि० कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। भारत में कार्बोहाइड्रेट के प्रमुख स्रोत गेहूँ, चावल, मक्का, बाजरा, आलू, शकरकन्द, केला आदि हैं।

कार्बोहाइड्रेट्स दो प्रकार के होते हैं-

(क) घुलनशील कार्बोहाइड्रेट्स: इन्हें सामान्य भाषा में शर्करा कहते हैं; जैसे ग्लूकोस, फ्रक्टोस आदि। गन्ना, चुकन्दर, मीठे फल आदि शर्करा के स्रोत हैं।
(ख) अघुलनशील कार्बोहाइड्रेट्स: इन्हें सामान्य भाषा में मण्ड कहते हैं। यह जल में अघुलनशील होते हैं। चावल, गेहूँ, आलू, मक्का, जौ आदि मण्ड के स्रोत हैं। ग्लाइकोजन (जन्तु स्टार्च), सेलुलोस, काइटिन आदि अघुलनशील कार्बोहाइड्रेट्स के अन्य उदाहरण हैं।

कार्बोहाइड्रेट्स का महत्त्व:

  • कार्बोहाइड्रेट्स युक्त भोज्य पदार्थ पेट भरने अर्थात् भूख को शान्त करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। ये भोज्य पदार्थ सरलता से सर्वत्र उपलब्ध हो जाते हैं।
  • शरीर के विभिन्न कार्यों के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करना, ग्लूकोस ऊर्जा उत्पादन के लिए कोशिकीय ईंधन का काम करती है।
  • यकृत तथा रेखित (कंकाल) पेशियों में संचित ग्लाइकोजन नामक जन्तु स्टार्च ईंधन का काम करते हैं।
  • कार्बोहाइड्रेट वसा ऊतकों में बदलकर संचित भोजन का काम करती है।
  • राइबोस तथा डीऑक्सीराइबोस शर्करा क्रमश: RNA तथा DNA के घटक होते हैं।
  • विभिन्न पॉलीसैकेराइड्स संयोजी ऊतक (connective tissue) निर्माण में भाग लेते हैं।
  • अनेक जन्तुओं में बाह्य कंकाल (exoskeleton) का निर्माण काइटिन से होता है।
  • लेक्टोस शर्करा शरीर में कैल्सियम शोषण में सहायक होती है।
  • कार्बोहाइड्रेट्स शरीर ताप नियमन में सहायक होते हैं।

चूँकि कार्बोहाइड्रेट्स प्रमुख ऊर्जा स्रोत होते हैं, इसीलिए हमारे भोजन में शर्कराओं और अन्य कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा सर्वाधिक होती है। मधुमेह (diabetes) के रोगी की शरीर कोशिकाएँ रक्त से ग्लूकोस का अवशोषण नहीं कर पातीं। मधुमेह रोगी मिठास के लिए कृत्रिम रसायन सैकेरीन (saccharin) का उपयोग करते हैं। इसमें ऊर्जा (कैलोरी) नहीं होती।

कार्बोहाइड्रेट्स की कमी से हानि:

  • शरीर की जैविक क्रियाओं के लिए पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा उपलब्ध नहीं होती।
  • शरीर की ऊर्जा सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वसा तथा प्रोटीन्स से ग्लूकोस का संश्लेषण होता है। इससे शरीर की मांसपेशियाँ शिथिल एवं कमजोर होने लगती हैं। आहार में कार्बोहाइड्रेट्स की निरन्तर कमी से व्यक्ति की त्वचा में झर्रियाँ पड़ने लगती हैं।
  • ऊर्जा के अभाव में शीत ऋतु में ठण्ड लगने का भय रहता है।

कार्बोहाइड्रेट्स की अधिकता से हानि:

  • आवश्यकता से अधिक कार्बोहाइड्रेट्स का उपयोग करने से कार्बोहाइड्रेट्स वसा ऊतक (adipose tissue) के रूप में संचित होने लगती है इस कारण मोटापा (obesity) होता है। मोटापा बढ़ने से हृदय रोग, मधुमेह, जोड़ों में दर्द, रक्त चाप आदि की आशंका बढ़ जाती है।
  • मधुमेह रोग में ग्लूकोस मूत्र के साथ उत्सर्जित होने लगता है। शरीर की कोशिकाएँ इसका उपयोग नहीं कर पातीं।
  • भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स की अधिकता व्यक्ति को आलसी बनाती है।

प्रश्न 3.
आहार के एक पोषक तत्त्व के रूप में वसा का सामान्य परिचय दीजिए। आहार में वसा के कार्यों को भी स्पष्ट कीजिए। अथवा आहार में वसा का क्या महत्त्व है? आहार में इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वसा (Fats) आहार का एक अनिवार्य तथा महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। वसा के अणु ग्लिसरॉल तथा वसीय अम्ल के संयोग से बनते हैं। वसा का निर्माण कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से होता है। वसा में जल की मात्रा कम होने से ये कम स्थान घेरती है। वसा को उनके स्रोत के आधार पर दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-
(क) जन्तु वसा तथा
(ख) वनस्पति वसा।

दूध, पनीर, मक्खन, घी, अण्डा, मांस तथा मछली का तेल आदि जन्तु वसा के उदाहरण हैं। वनस्पति वसा मुख्य रूप से तेलों के रूप में उपलब्ध होती है। अखरोट, बादाम, मूंगफली, नारियल, सरसों, तिल, सूरजमुखी आदि से प्राप्त तेल वनस्पति वसा के उदाहरण हैं।

वसा सामान्यतया 20°C ताप पर ठोस या अर्द्धठोस अवस्था में होती है। परन्तु यदि वे इस ताप पर तरल अवस्था में रहें तो इन्हें ‘तेल’ (oil) कहते हैं। वसा अम्ल दो प्रकार के होते हैं
(क) संतृप्त (Saturated) तथा
(ख) असंतृप्त (Unsaturated)।
असंतृप्त वसा अम्ल मछली का तेल एवं वनस्पति तेल होते हैं। नारियल व ताड़ का तेल (Coconut and Palm oil) संतृप्त तेल के उदाहरण हैं। अधिकतर जन्तु वसा संतृप्त होती हैं। सामान्य ताप (20°C) पर ये ठोस होती हैं; जैसे घी, मक्खन आदि।

एक ग्राम वसा के पूर्ण ऑक्सीकरण से 9.3 कि० कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। यह ग्लूकोस की तुलना में 2- 25 गुना अधिक होती है। आहार में संतृप्त वसा (घी, मक्खन) की मात्रा सन्तुलित होनी चाहिए। संतृप्त वसा से कोलेस्टेरॉल बनता है। यह धमनियों में एकत्र होकर रक्त परिसंचरण को बाधित करता है। धमनी की भित्ति मोटी एवं कठोर हो जाती है। इससे हृदय रोग, उच्च रक्त चाप आदि रोग हो जाते हैं। प्रतिदिन हम जितनी वसा ग्रहण करते हैं उसमें 50% जन्तु वसा तथा 50% वनस्पति वसा होनी चाहिए।

वसा के कार्य:

  • सरल वसा ऊर्जा उत्पादन के लिए ईंधन के रूप में प्रयुक्त होती है।
  • वसा का महत्त्व ‘संचित भोजन’ के रूप में अधिक है। यह वसा ऊतक के रूप में संचित रहती है।
  • वसा ऊतक शरीर की सुरक्षा तथा ताप नियन्त्रण एवं नियमन में सहायक होता है।
  • वसा ऊतक शरीर को निश्चित आकार प्रदान करने में सहायक होता है। यह शरीर को सुन्दर और सुडौल बनाता है।
  • वसा ऊतक पेशियों के रूप में कंकाल की सुरक्षा करता है।
  • कार्बोहाइड्रेट्स (ग्लूकोस) के अभाव में वसा ऊर्जा उत्पादन का कार्य करती है।
  • वसा कोशिका कला तथा कोशिकांगों का आवरण बनाती है।

वसा की कमी से हानि:

  • वसा की कमी के कारण शरीर कमजोर और दुबला-पतला, अस्थियों का ढाँचा मात्र दिखाई देता है।
  • वसा की कमी के कारण शीत ऋतु में शरीर ताप नियमन में असुविधा होती है।
  • अस्थि संधियों के मध्य का वसीय तरल सूखने से जोड़ों में दर्द रहता है।
  • वसा की कमी से त्वचा खुरदरी तथा खुश्क हो जाती है। शरीर के बाल झड़ने लगते हैं।
  • वसा चूँकि एक संगृहीत ऊर्जा स्रोत के रूप में कार्य करती है; अतः इसके अभाव में यह कार्य प्रोटीन को करना पड़ता है जिसका शारीरिक वृद्धि पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

वसा की अधिकता से हानि:

  • अत्यधिक वसा संचित होने से मोटापा (obesity) हो जाता है। त्वचा तथा आहार नाल के ऊपर वसीय ऊतक के संचित होने से पेट निकल जाता है। शरीर का वजन बढ़ने लगता है। .
  • रक्त वाहिनियों में वसा (कोलेस्टेरॉल) के संचित हो जाने से रक्त वाहिनियाँ संकुचित हो जाती हैं। उच्च रक्त चाप रोग हो जाता है। हृदय रोग की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।
  • वृक्कों को अतिरिक्त कार्य करना पड़ता है, इससे वृक्क बेकार होकर अपना कार्य करना बन्द कर देते हैं।
  • आहार में वसा की अधिकता का पाचन-क्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा पाचन-क्रिया बिगड़ जाती है।

प्रश्न 4.
आहार के एक पोषक तत्त्व के रूप में प्रोटीन्स का सामान्य परिचय दीजिए। प्रोटीन के मुख्य कार्यों को भी स्पष्ट कीजिए।
अथवा शरीर एवं स्वास्थ्य के लिए प्रोटीन्स का क्या महत्त्व है? आहार में प्रोटीन्स की कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आहार का एक अति महत्त्वपूर्ण तथा अनिवार्य पोषक तत्त्व प्रोटीन्स (Proteins) है। प्रोटीन्स; कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन से मिलकर बना एक यौगिक होता है। इसके अतिरिक्त प्रोटीन्स में सल्फर, फॉस्फोरस, आयोडीन, लोहा आदि भी पाए जा सकते हैं। प्रोटीन्स सजीव शरीर का लगभग 14% और शरीर के शुष्क भार का लगभग 50 से 75% भाग बनाता है। प्रोटीन शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग बर्जीलियस तथा मुल्डर ने किया था। प्रोटीन्स का निर्माण अमीनो अम्लों से होता है। प्रोटीन की संरचना अत्यधिक जटिल होती है। जैसे-हीमोग्लोबिन (C3032 H4816 O572 N780 S8 Fe4)। इनका अणुभार भी बहुत अधिक होता है। प्रोटीन्स का निर्माण करने वाले 20 प्रकार के अमीनो अम्लों का ज्ञान हो चुका है। इनमें से 10 अमीनो अम्ल हमें भोजन द्वारा प्राप्त होते हैं। शेष 10 अमीनो अम्लों का निर्माण शरीर में ही हो जाता है। जिस भोजन से सभी 10 प्रकार के आवश्यक अमीनो अम्ल उपलब्ध होते हैं, उसे पूर्ण आहार (complete food) कहते हैं।

शारीरिक वृद्धि एवं जैव क्रियाओं के लिए प्रोटीन्स अति आवश्यक होते हैं। इनकी कमी के कारण शारीरिक वृद्धि रुक जाती है।

प्रोटीन्स के स्त्रोत: प्रकृति में प्रोटीन्स के दो प्रकार के स्रोत पाए जाते हैं-
(क)जन्तु प्रोटीन्स: ये जन्तुओं से प्राप्त होती हैं। ये पादप प्रोटीन्स की तुलना में उत्तम होती हैं। दूध, अण्डा, पनीर, मांस, मछली आदि उत्तम प्रोटीन्स प्राप्ति के मुख्य स्रोत हैं। जन्तुओं के मांस में मायोसीन, अण्डे में ऐल्बूमिन, दूध में केसीन प्रोटीन्स न्यूक्लियोप्रोटीन्स आदि के निर्माण में सहायक होती हैं।
(ख) वनस्पति प्रोटीन्स: ये पौधों से प्राप्त भोज्य पदार्थों में पायी जाती हैं। दाल, सोयाबीन, मटर, चना, सेम, बादाम, मूंगफली, पिस्ता, काजू, गेहूँ आदि वनस्पति प्रोटीन्स के प्रमुख स्रोत हैं। गेहूँ के आटे में ग्लूटिनिन, मटर में लेग्यूमिन, दालों में प्रोलैमिन्स आदि प्रोटीन्स होती हैं। वनस्पति प्रोटीन्स जन्तु प्रोटीन्स की अपेक्षा देर से पचती हैं। वनस्पति प्रोटीन्स ‘B’ वर्ग की प्रोटीन्स कहलाती हैं। सोयाबीन में लगभग 34% और मूंगफली में लगभग 26% प्रोटीन पायी जाती है।

प्रोटीन्स के कार्य:

  • प्रोटीन्स ‘एन्जाइम’ बनाती हैं। एन्जाइम जैव उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। शरीर में होने वाली समस्त क्रियाएँ एन्जाइम्स द्वारा नियन्त्रित होती हैं।
  • प्रोटीन्स जीवद्रव्य को आवश्यकतानुसार सॉल या जेल (sol or gel) की स्थिति में बनाए रखती हैं।
  • प्रोटीन्स शरीर के विभिन्न अंगकों तथा संयोजी ऊतकों की संरचना में प्रमुख रूप से भाग लेती हैं। संयोजी ऊतक, पेशियाँ, अस्थियाँ, उपास्थियाँ, दाँत आदि के निर्माण में प्रोटीन्स सहायक होती हैं।
  • प्रोटीन्स शारीरिक टूट-फूट की मरम्मत और वृद्धि के लिए आवश्यक होती हैं।
  • कुछ प्रोटीन्स हॉर्मोन्स के रूप में कोशिका की क्रियाओं का नियमन करती हैं।
  • आवश्यकता से अधिक प्रोटीन्स (अमीनो अम्ल) ऊर्जा उत्पादन में भाग लेती हैं।
  • प्रोटीन्स से आवश्यकतानुसार वसा का संश्लेषण भी होता है।
  • प्रोटीन्स परिवहन में सहायक होती हैं और रक्त की हीमोग्लोबिन O, के संवहन का कार्य करती है। लाइपोप्रोटीन्स वसाओं का संवहन करती हैं। कुछ प्रोटीन्स विभिन्न अणुओं को कोशिका कला से आर-पार लाने-ले जाने का कार्य करती हैं।
  • न्यूक्लियोप्रोटीन्स गुणसूत्रों का निर्माण करती हैं। गुणसूत्र आनुवंशिक लक्षणों की वंशागति का कार्य करते हैं।
  • ऐक्टिन तथा मायोसीन (actin & myosin) प्रोटीन्स के कारण पेशियों में संकुचन एवं शिथिलन होता है। पेशियाँ शरीर को गति प्रदान करती हैं।
  • कुछ प्रोटीन्स प्रतिरक्षी (antibodies) प्रोटीन्स हैं। ये शरीर की रोगाणुओं तथा हानिकारक पदार्थों से सुरक्षा करती हैं।
  • रक्त की फाइब्रिनोजन (fibrinogen) तथा शॉम्बिन (thrombin) प्रोटीन्स रक्त का थक्का बनाकर रक्त के बहने को रोकती हैं।

प्रोटीन्स की कमी से हानि:

  • भोजन में पोषक तत्त्वों की कमी कुपोषण कहलाता है। प्रोटीन्स की कमी से शरीर की वृद्धि और विकास रुक जाता है। बच्चों में प्रोटीन की कमी के कारण क्वाशिओरकॉर (Kwashiorkor) तथा मैरेस्मस (Marasmus) रोग हो जाता है।
  • प्रोटीन्स की कमी के कारण बाल रूखे, दो मुँह के, चमकरहित हो जाते हैं। इसके साथ-साथ बाल झड़ने भी लगते हैं।
  • त्वचा शुष्क, रूखी, खुरदरी, निस्तेज हो जाती है। त्वचा पर चकत्ते से पड़ने लगते हैं।
  • प्रोटीन्स की कमी के कारण दन्त क्षय प्रारम्भ हो जाता है।
  • प्रोटीन्स की कमी से अस्थियाँ, मांसपेशियाँ कमजोर होने लगती हैं। इसके फलस्वरूप अस्थि भंग (fracture) तथा पेशियों के टूटने के कारण शरीर के अंग सामान्य कार्य नहीं करते। मांसपेशियाँ अक्सर थकावट की स्थिति में रहती हैं।
  • प्रोटीन्स की कमी के कारण शरीर की रोग निरोधक क्षमता प्रभावित होती है।
  • बच्चों में प्रोटीन्स की कमी के कारण अतिसार, रक्तहीनता ( एनीमिया), आँखों के नीचे धब्बे आदि हो जाते हैं।
  • स्तनपान कराने वाली महिलाओं के आहार में प्रोटीन की कमी होने पर शिशु कुपोषण के कारण भूखा और कमजोर रहता है। गर्भवती महिलाएँ प्रोटीन की कमी से रक्तहीनता (एनीमिया) की शिकार हो जाती हैं और अविकसित शिशुओं को जन्म देती हैं।
  • मांसपेशियाँ शिथिल एवं त्वचा झुर्सदार हो जाने के कारण व्यक्ति समय से पूर्व प्रौढ़ लगने लगता है।
  • प्रोटीन्स की कमी के कारण शरीर के भार में कमी आने लगती है।

प्रोटीन्स की अधिकता से हानि:

  • प्रोटीन्स की अधिकता के कारण अप्रयुक्त प्रोटीन्स (अमीनो अम्लों) को शरीर से बाहर निकालने के लिए यकृत तथा वृक्क को अत्यधिक कार्य करना पड़ता है।
  • प्रोटीन्स गरिष्ठ होती है तथा कठिनता से पचती है; अत: पाचन तन्त्र को अधिक कार्य करना पड़ता है। प्रोटीन्स की अधिकता के कारण कब्ज की शिकायत होने लगती है। पाचक अंग अधिक कार्य करने के कारण जल्दी शिथिल हो जाते हैं।
  • प्रोटीन्स का अधिकता (मांस, अण्डा आदि) में प्रयोग करने से अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है जो तामसिक प्रवृत्ति उत्पन्न करती है।
  • प्रोटीन्स की अधिकता विशेषकर ग्रीष्म ऋतु में अधिक हानिकारक होती है। अधिक ऊर्जा और ऊष्मा के कारण फोड़े-फुन्सियाँ निकलती हैं।

प्रश्न 5.
‘खनिज लवण’ का सामान्य परिचय दीजिए। मुख्य खनिज लवणों के रूप में कैल्सियम तथा फॉस्फोरस का विवरण दीजिए।
उत्तर:
आहार के अनिवार्य पोषक तत्त्वों में खनिज लवणों (Minarl Salts) का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। हमारे शरीर में अल्प मात्रा में अनेक प्रकार के खनिज लवण पाए जाते हैं। हमारे शरीर में लगभग 4-5% अंश इन्हीं खनिज लवणों का होता है। खनिज लवण हमें भोजन के माध्यम से प्राप्त होते हैं। खनिज लवण शरीर की क्रियाशीलता को बनाए रखने के लिए आवश्यक होते हैं।

इनके अभाव में शरीर स्वस्थ तथा सुचारु रूप से कार्य नहीं कर पाता। इन्हें लघु तत्त्व (minor elements) भी कहते हैं। शरीर क्रियाओं से सम्बन्धित खनिज लवणों में से 10 खनिज लवण शरीर के लिए अति आवश्यक होते हैं। इनके अभाव में शरीर की सामान्य प्रक्रियाओं का संचालन एवं स्वस्थ रहना असम्भव है। खनिज लवणों को रक्षात्मक भोज्य पदार्थ माना जाता है। अन्य पोषक तत्त्वों की तुलना में खनिज लवणों की न्यून मात्रा ही आवश्यक होती है।

1. कैल्सियम (Calcium): शरीर में कुल खनिजों की जितनी मात्रा होती है उसका लगभग 50% कैल्सियम का होता है। 70 किग्रा भार वाले व्यक्ति के शरीर में लगभग 1300 ग्राम कैल्सियम पाया जाता है। इसका लगभग 18% अस्थियों और दाँतों में पाया जाता है, शेष मात्रा मांसपेशियों और रक्त में पायी जाती है। शरीर को प्रतिदिन लगभग 900 मिग्रा से 1.2 ग्राम कैल्सियम की आवश्यकता होती है।

स्रोत: दूध, पनीर, अण्डे, मांस, मछली, हरी सब्जियाँ, फलियाँ, अनाज, बादाम, सोयाबीन, शलजम, शकरकन्द, गाजर, सूखे मेवे आदि। आजकल बाजार में कैल्सियम की गोलियाँ विभिन्न नामों से मिलती हैं। आवश्यकता होने पर चिकित्सक की सलाह से ही इन गोलियों का सेवन करना चाहिए।

कार्य: (1) दाँतों और अस्थियों के विकास एवं वृद्धि के लिए अति आवश्यक है।
(2) क्षतिग्रस्त, अस्थियों तथा मांसपेशियों की मरम्मत एवं उनके रख-रखाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(3) रक्त स्कन्दन (थक्का बनने) में सहायता प्रदान करता है।
(4) यह घावों को जल्दी भरने में सहायक होता है।
(5) तन्त्रिकाओं एवं पेशियों की क्रियाशीलता को बनाए रखता है।
(6) शरीर के अम्ल-क्षार सन्तुलन को बनाए रखता है।

कमी से हानि: (1) बच्चों की अस्थियाँ तथा दाँत कमजोर होते हैं। अस्थियाँ भंगुर हो जाती हैं। लचीली होने के कारण अस्थि विकृत हो जाती हैं। इसे रिकेट्स (Rickets) रोग कहते हैं।
(2) बच्चों का शारीरिक विकास कुण्ठित हो जाता है। शरीर दुर्बल रहता है।
(3) कैल्सियम की कमी से अस्थि सन्धियों में दर्द होने लगता है। अस्थियाँ कमजोर हो जाती हैं।
(4) कैल्सियम की कमी के कारण टिटैनी (tetany) नामक रोग हो जाता है। पेशियाँ लम्बे समय तक संकुचित रहती हैं। उपयुक्त उपचार के अभाव में मृत्यु भी हो जाती है।
(5) कैल्सियम की कमी से ओस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) नामक रोग हो जाता है।

2. फॉस्फोरस (Phosphorus): कैल्सियम के पश्चात् फॉस्फोरस महत्त्वपूर्ण खनिज है। एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में 400-700 ग्राम फॉस्फोरस पाया जाता है। यह मुख्य रूप से अस्थियों तथा दाँतों में पाया जाता है। 80% फॉस्फोरस अस्थियों और दाँतों में पाया जाता है। स्वस्थ व्यक्ति को प्रतिदिन लगभग 900 मिग्रा से 1.2 ग्राम फॉस्फोरस की आवश्यकता होती है।

स्रोत: दूध, मक्खन, पनीर, मांस, मछली, अण्डा आदि पशुजन्य भोज्य पदार्थों में फॉस्फोरस प्रचर मात्रा में पाया जाता है। वनस्पतिजन्य भोज्य पदार्थों में फॉस्फोरस की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है। अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, दालें, मेवे, फलियाँ आदि इसके अन्य स्रोत हैं।
कार्य: (1) यह कैल्सियम के साथ मिलकर अस्थि और दाँतों के निर्माण में भाग लेता है।
(2) यह शरीर में अम्ल-क्षार सन्तुलन बनाए रखने में सहायक होता है।
(3) यह ATP, DNA, RNA आदि की संरचना में भाग लेता है।
(4) यह मांसपेशियों की क्रियाशीलता एवं उनको स्वस्थ रखने में सहायक होता है।
(5) शरीर के विकास में सहायक होता है।

कमी से हानि: (1) दाँत और अस्थियाँ कमजोर रहती हैं। दाँतों के निकलने में परेशानी होती है।
(2) शरीर की वृद्धि कुण्ठित रहती है।
(3) शरीर की कार्यिकी प्रभावित होती है।

प्रश्न 6.
आहार के आवश्यक तत्त्व के रूप में विटामिन’ का सामान्य परिचय दीजिए। विटामिन ‘A’ का आवश्यक विवरण दीजिए। अथवा विटामिन ‘A’ के स्रोत, उपयोगिता तथा कमी से होने वाली हानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आहार के आवश्यक तत्त्वों में ‘विटामिन’ का भी विशेष स्थान है। विटामिन्स शरीर की उपापचय क्रियाओं के लिए अतिमहत्त्वपूर्ण होते हैं। ये ईंधन पदार्थों के संश्लेषण तथा उनके सही उपयोग का नियन्त्रण करते हैं। इनकी कमी से अभावजनित रोग (deficiency diseases) हो जाता है; अत: इन्हें वृद्धि तत्त्व (growth factors) कहते हैं। सर्वप्रथम 1881 में लूनिन (Lunin) ने विटामिनों की खोज की और बताया कि भोजन के साथ ‘अज्ञात’ पदार्थ भी आवश्यक होते हैं। इसका समर्थन 1897 में ईज्कमान (Eijkman) ने किया।

उन्होंने बताया कि पॉलिश किए गए चावल का अधिक उपयोग करने से बेरी-बेरी रोग हो जाता है। हॉप्किन्स एवं फुक ने विटामिन सिद्धान्त (Vitamin Theory) प्रस्तुत किया। इसके अनुसार प्रत्येक रोग आहार में किसी-न-किसी विशेष विटामिन की कमी से होता है। कुंक ने चावल से बेरी-बेरी रोग को रोकने वाले पदार्थ को पृथक् भी किया। इसे उन्होंने विटामिन (जीवन के लिए आवश्यक) नाम दिया। जीवन के लिए आवश्यक 20 विटामिन्स का पता लग चुका है। इन्हें दो प्रमुख समूहों में बाँट लेते हैं

(क) जल में घुलनशील विटामिन्स (Water Soluble Vitamins): जैसे विटामिन ‘B’ तथा ‘C’।
(ख) वसा में घुलनशील विटामिन्स (Fat Soluble Vitamins): जैसे विटामिन ‘A’, ‘D’, ‘E’ तथा ‘K’।

विटामिन ‘A’ या रेटिनॉल (Ratinol):
यह वसा में घुलनशील विटामिन है। हमारे शरीर के लिए प्रतिदिन इसकी 600 ug मात्रा पर्याप्त होती है।
विटामिन ‘A’ के स्रोत: विटामिन ‘A’ विभिन्न सब्जियों तथा फलों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है; जैसे पपीता, आम, केला, गाजर, टमाटर, पालक, गोभी आदि। यह विटामिन दूध, घी, मक्खन, मांस, मछली में भी काफी मात्रा में पाया जाता है।

उपयोगिता: विटामिन ‘A’ के अनेक उपयोग हैं, इनमें से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है इसका शरीर की वृद्धि में सहायक होना तथा आँखों की दृष्टिरंगा (visual pigments) के संश्लेषण में भाग लेना आदि। यह विटामिन संक्रामक रोगों के प्रति हमारे शरीर में प्रतिरोधक शक्ति उत्पन्न करता है। विटामिन ‘A’ एक सहएन्जाइम के रूप में भी कार्य करता है। यह विटामिन कार्बोहाइड्रेट के उपापचय में सहायता प्रदान करता है।

कमी से हानियाँ: विटामिन ‘A’ की कमी से निम्नलिखित रोग हो सकते हैं-

  • विटामिन ‘A’ की कमी से रतौंधी (night-blindness) नामक रोग उत्पन्न हो जाता है जो कालान्तर में अन्धेपन में बदल सकता है।
  • इस विटामिन की कमी से व्यक्ति की वृद्धि बाधित हो जाती है तथा वजन घटने लगता है।
  • विटामिन ‘A’ की कमी से जीरोफ्थैल्मिया (xerophthalmia) नामक रोग भी हो सकता है। इस रोग में आँखों का कॉर्निया शुष्क हो जाता है।
  • इस विटामिन की कमी से डर्मेटोसिस नामक रोग हो जाता है। इस रोग में शरीर की त्वचा शुष्क, शल्कीय तथा टोड के समान हो जाती है, इसलिए इस रोग को टोड स्किन (toad skin) भी कहते हैं।
  • इस विटामिन की कमी से शरीर के श्वसन पथ, आहार नाल आदि स्थानों की उपकला का अपघटन तथा किरैटीभवन हो सकता है।
  • विटामिन ‘A’ की कमी से वृक्क में पथरी भी हो जाती है।विटामिन ‘A’ की कमी के परिणामस्वरूप होने वाले रोगों के उपचार के लिए आहार में विटामिन ‘A’ युक्त खाद्य-पदार्थों की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए  तथा चिकित्सक के परामर्शानुसार विटामिन ‘A’ की गोलियाँ नियमित रूप से लेनी चाहिए।

प्रश्न 7.
एक मुख्य विटामिन के रूप में विटामिन ‘B’ का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
व्यक्ति के शरीर एवं स्वास्थ्य के लिए एक उपयोगी तथा आवश्यक विटामिन ‘B’ है। यह विटामिनों का एक समूह है। इस समूह के अन्तर्गत 12 विटामिन आते हैं। इनमें से कुछ अति महत्त्वपूर्ण हैं; जैसे ‘B1‘B2‘, ‘B6‘ तथा ‘B12‘ इत्यादि।
विटामिन ‘बी’ के स्त्रोत: विटामिन ‘B’ समूह के अधिकतर विटामिन खमीर, यकृत, मछली, अण्डा, दूध, पनीर, हरी सब्जियों आदि में मिल जाते हैं।

उपयोगिता:

1.विटामिन B1 या थायमीन (Thiamine): इस विटामिन द्वारा शरीर का विकास होता है तथा शरीर स्वस्थ रहता है। यह कार्बोहाइड्रेट्स तथा प्रोटीन के उपापचय में भाग लेता है; इस विटामिन की कमी से भूख लगनी बन्द हो जाती है तथा खाने के प्रति रुचि कम हो जाती है। इसकी कमी से बेरी-बेरी (beri-beri) नामक रोग हो जाता है। इसके अतिरिक्त इस विटामिन की कमी से केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र का कार्य बिगड़ जाता है, जिससे लकवा (paralysis) की आशंका हो जाती है। हृदय की पेशियों का दुर्बल होना, शरीर का निर्बल व आलसी होना आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। इसकी 1-1.5 मिग्रा मात्रा आवश्यक होती है। गर्भवती महिलाओं को तथा रोगग्रस्त स्थिति में इसकी 4-5 मिग्रा मात्रा आवश्यक होती है।

2.विटामिन B2 या राइबोफ्लेविन (Riboflavin): यह विटामिन शरीर के स्वास्थ्य तथा वृद्धि के लिए आवश्यक होता है। आँखों की ज्योति को बनाए रखता है। इसकी कमी से आँखों की रोशनी कम होने लगती है। बाल झड़ने लगते हैं, मुँह के कोने फटने लगते हैं। इस रोग को कीलोसिस (cheilosis) कहते हैं। इसके अतिरिक्त आँखों में जलन, रक्तक्षीणता, कमजोर स्मृति, होठों और नासिका पर पपड़ीदार त्वचा इसकी कमी से होती है।

3.विटामिन B3 या पेन्टोथेनिक अम्ल (Pantothenic acid): यह विटामिन सभी पदार्थों के उपापचय में भाग लेने वाले एक सहएन्जाइम का घटक होता है। प्रायः इसकी कमी नहीं हो पाती। इसकी कमी होने पर चर्म रोग, बालों का सफेद होना, थकावट, मन्द बुद्धि, जनन क्षमता में कमी, वृद्धि का अवरुद्ध होना आदि लक्षण दिखाई देते हैं।

4. विटामिन B5 या निकोटिनिक अम्ल (Nicotinic acid): यह विटामिन भी उपापचय में भाग लेने वाले सहएन्जाइम का घटक है। इसकी कमी से चर्मदाह या पेलाग्रा (pellagra) रोग हो जाता है। इस रोग में त्वचा और जीभ पर दाने तथा पपड़ी पड़ जाती हैं। पाचन क्षमता क्षीण हो जाती है। अतिसार (diarrhoea) रोग हो जाता है। तन्त्रिका तन्त्र प्रभावित होता है। पागलपन भी हो सकता है।

5. विटामिन B6 या पायरीडॉक्सिन (Pyridoxine): यह प्रोटीन तथा इसके अवयवों के उपापचय में महत्त्वपूर्ण और स्नायु तथा मांसपेशियों के स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक विटामिन है। यह मस्तिष्क एवं त्वचा के लिए भी आवश्यक है। इस विटामिन की कमी से चर्म रोग, पेशियों में ऐंठन, लाल रुधिर कणिकाओं की कमी, जी मिचलाना, वृक्क की पथरी आदि रोग हो जाते हैं। दैनिक रूप में इसकी 1-2 मिग्रा मात्रा आवश्यक है।

6. विटामिन B12 या सायनोकोबालैमीन (Cyanocobalamine): न्यूक्लिक अम्लों (DNA, RNA) तथा लाल रुधिर कणिकाओं के निर्माण में यह विटामिन अति आवश्यक है। इसकी कमी से रक्तहीनता, मांसपेशियों में जकड़न तथा कड़ापन, कभी-कभी पक्षाघात (paralysis) तक हो जाता है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 5 लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
टिप्पणी लिखिए-गन्धक : एक खनिज।
उत्तर:
गन्धक (Sulphur) एक आवश्यक खनिज लवण है। यह मुख्य रूप से प्रोटीन्स में पाया जाता है। यह शरीर में बहुत कम मात्रा में पाया जाता है।

स्त्रोत: यह पशुजन्य भोज्य पदार्थों जैसे अण्डा, मांस, पनीर, मछली आदि में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है तथा वनस्पतिजन्य भोज्य पदार्थों जैसे मक्का, गेहूँ, ज्वार, अंकुरित बीजों, मूंगफली आदि में अल्प मात्रा में पाया जाता है।

कार्य: (1) यह प्रोटीन का महत्त्वपूर्ण घटक होता है। यह बाल, नाखून, त्वचा के वर्णक आदि की वृद्धि में सहायक होता है।
(2) यह मांसपेशियों के विकास में सहायक होता है।
(3) यह कुछ विटामिन्स का घटक होता है।
(4) यह इन्सुलिन हॉर्मोन तथा उपास्थि निर्माण में सहायक होता है।

कमी से हानि: (1) गन्धक की कमी के कारण प्रोटीन्स की कमी हो जाती है।
(2) प्रोटीन उपापचय में गड़बड़ियाँ होती हैं।
(3) बाल कमजोर होकर झड़ने लगते हैं।
(4) शारीरिक विकास प्रभावित होता है।

प्रश्न 2.
एक खनिज के रूप में पोटैशियम का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर: पोटैशियम (Potassium)-यह हमारे शरीर में पाए जाने वाला तीसरा महत्त्वपूर्ण खनिज तत्त्व है। स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में लगभग 210 ग्राम पोटैशियम पाया जाता है। हमें प्रतिदिन लगभग 2 ग्राम पोटैशियम की आवश्यकता होती है। इसकी सर्वाधिक मात्रा तन्त्रिका तन्तुओं में पायी जाती है।

स्रोत: यह दूध, मांस, अनाज, फल तथा सब्जियों में पाया जाता है। वनस्पतिजन्य भोज्य पदार्थ पशुजन्य भोज्य पदार्थों की तुलना में पोटैशियम के अच्छे स्रोत होते हैं। सामान्य रूप से शरीर में पोटैशियम की कमी नहीं होती।

कार्य-(1) यह शरीर में अम्ल-क्षार सन्तुलन को बनाए रखता है।
(2) यह शरीर में जल-सन्तुलन का नियमन एवं नियन्त्रण करता है।
(3) तन्त्रिकाओं की कार्यिकी को नियन्त्रित रखता है। तन्त्रिकाओं में प्रेरणा प्रसारण के लिए आवश्यक होता है।
(4) मांसपेशियों के संकुचन एवं शिथिलन में सहायता करता है।
(5) यह अनेक एन्जाइम्स की क्रियाशीलता को प्रभावित करता है।

कमी से हानि: (1) पोटैशियम की कमी के कारण मांसपेशियाँ दुर्बल हो जाती हैं। इनका कार्य अस्वाभाविक हो जाता है।
(2) अम्ल-क्षार सन्तुलन बिगड़ जाता है।
(3) तन्त्रिकाएँ अपना सामान्य कार्य नहीं करतीं। फलस्वरूप अंगघात या पक्षाघात (paralysis) की आशंका हो जाती है।
(4) जल-सन्तुलन के बिगड़ जाने से निम्न रक्त चाप (low blood pressure) की शिकायत हो जाती है।

प्रश्न 3.
टिप्पणी लिखिए-सोडियम : एक आवश्यक खनिज लवण।
उत्तर:
सोडियम (Sodium) एक महत्त्वपूर्ण खनिज तत्त्व है। यह शरीर में जल-सन्तुलन के लिए अति महत्त्वपूर्ण खनिज तत्त्व है। एक स्वस्थ व्यक्ति में लगभग 120 ग्राम सोडियम पाया जाता है। हमें प्रतिदिन लगभग 2.5-3.2 ग्राम सोडियम की आवश्यकता होती है।

स्रोत: हमारे शरीर की सोडियम आवश्यकता का लगभग 70% नमक के माध्यम से पूर्ण होता है। अनेक हरी पत्तेदार सब्जियों में अल्प मात्रा में सोडियम पाया जाता है। जल में भी सोडियम अल्प मात्रा में पाया जाता है।

कार्य: (1) यह शरीर में जल-सन्तुलन को बनाए रखने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।
(2) तनिका तन्तुओं की कार्यिकी को प्रभावित करता है। तन्त्रिकाओं में प्रेरणा प्रसारण सोडियम तथा पोटैशियम आयन्स के कारण होता है।
(3) यह शरीर में अम्ल-क्षार सन्तुलन को बनाए रखता है।
(4) यह अनेक खाद्य-पदार्थों के पाचन में सहायक होता है।
(5) मांसपेशियों को क्रियाशील रखने में सहायक होता है।
(6) यह रक्त को शुद्ध करता है।

कमी से हानि: (1) मांसपेशियों में ऐंठन होती है। पेशियों में शिथिलता और थकावट होने लगती है।
(2) भूख नहीं लगती।
(3) निम्न रक्त चाप हो जाता है।
(4) तन्त्रिका तन्तु आवेगों का संवहन ठीक प्रकार से नहीं करते।
उच्च रक्त चाप में नमक (सोडियम) का प्रयोग हानिकारक होता है। अत: चिकित्सक नमक के स्थान पर पोटैशियम के लवण के प्रयोग की सलाह देते हैं। यह मेडिकल स्टोर पर विभिन्न नामों से उपलब्ध होता है।

प्रश्न 4.
लौह खनिज की प्राप्ति के स्रोत, कार्यों तथा कमी से होने वाल हानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
लौह (Iron) एक आवश्यक खनिज तत्त्व है। यह मुख्य रूप से हीमोग्लोबिन के निर्माण में प्रयुक्त होता है। कुछ मात्रा में यह मांसपेशियों, अस्थिमज्जा, यकृत आदि में भी पाया जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में 5-7 ग्राम लौह पाया जाता है। हमें प्रतिदिन लगभग 12 से 35 मिग्रा लौह की आवश्यकता होती है। यह मात्रा मुख्यतया लिंग-भेद से प्रभावित होती है।

स्रोत: दूध, फल (अमरूद, आम, केला, सेब, अनार, अंजीर), पालक आदि हरी सब्जियाँ, . अंकुरित दाल, अनाज, मांस, मछली, अण्डा, मछली का तेल आदि इसके प्रमुख स्रोत हैं।

कार्य: (1) यह रक्त के मुख्य अवयव हीमोग्लोबिन का निर्माण करता है। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन संवहन का कार्य करता है।
(2) यह मांसपेशियों के निर्माण में सहायक होता है।
(3) यह श्वसन एन्जाइम साइटोक्रोम का मुख्य घटक होता है जो कोशिकाओं में भोजन के ऑक्सीकरण के लिए आवश्यक होता है।
(4) यह शारीरिक वृद्धि के लिए आवश्यक होता है।
(5) यह अनेक एन्जाइम्स को सक्रिय या क्रियाशील बनाता है। ,

कमी से हानि: (1) हीमोग्लोबिन की कमी के कारण रक्तक्षीणता या रक्ताल्पता (एनीमिया-anaemia) रोग हो जाता है। ऑक्सीजन परिवहन प्रभावित होने से शरीर को जैविक क्रियाओं के लिए उचित मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं होती।
(2) पाचन क्रिया प्रभावित होती है। शरीर को उचित मात्रा में पोषक तत्त्व उपलब्ध न होने के कारण कमजोरी, थकान अनुभव होने लगती है।
(3) बाल्यावस्था में लौह की कमी के कारण शारीरिक विकास प्रभावित होता है।
(4) लौह तत्त्व की आवश्यकता महिलाओं को अधिक होती है। इससे मासिक स्राव व गर्भवती होने पर शिशु का विकास प्रभावित होता है।
लौह की कमी होने पर औषधियों के माध्यम से इसे पूरा किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
टिप्पणी लिखिए-आयोडीन : एक खनिज।
उत्तर:
शरीर के लिए आवश्यक खनिज तत्त्वों में आयोडीन (Iodine) का भी विशेष महत्त्व है। मनुष्य को आयोडीन की बहुत कम मात्रा में आवश्यकता होती है। हमारे शरीर में 20-25 ग्राम आयोडीन होती है। हमें प्रतिदिन 20 μg आयोडीन की आवश्यकता होती है। आयोडीन तत्त्व के उपयोग का सम्बन्ध थायरॉइड ग्रन्थि से होता है। इस ग्रन्थि से थायरॉक्सिन हॉर्मोन स्रावित होता है। इसका मुख्य अंश आयोडीन होता है।

स्रोत: आयोडीन की पूर्ति जल तथा नमक से होती है। समुद्री जल में आयोडीन प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। तराई क्षेत्रों के जल में आयोडीन की बहुत कमी होती है। इसकी पूर्ति के लिए आयोडीनयुक्त नमक प्रयोग करना चाहिए।

कार्य: (1) आयोडीन थायरॉक्सिन हॉर्मोन का मुख्य घटक है।
(2) थायरॉक्सिन शारीरिक व मानसिक विकास को प्रभावित करता है।
(3) थायरॉक्सिन उपापचय शरीर की गतिशीलता को बनाए रखता है।

कमी से हानि: (1) आयोडीन की कमी से घेघा (गलगण्ड-goitre) रोग हो जाता है।
(2) बचपन में आयोडीन (थायरॉक्सिन) की कमी से शरीर की वृद्धि रुक जाती है। व्यक्ति बौने रह जाते हैं। बौने प्रजनन योग्य नहीं होते।
(3) वयस्क में थायरॉक्सिन की कमी से पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं। समय से पहले बुढ़ापा आ जाता है। प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। जनन क्षमता कम हो जाती है। इस रोग को मिक्सिडिमा (myxoedema) कहते हैं।
(4) त्वचा शुष्क, खुरदरी हो जाती है। बाल सफेद और रूखे हो जाते हैं।

प्रश्न 6.
‘जिंक’ लवण का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर:
उपयोगी खनिज लवणों में जिंक (Zinc) को भी सम्मिलित किया गया है। मनुष्य को जिंक की कम मात्रा में आवश्यकता होती है। प्रतिदिन लगभग 15 मिग्रा जिंक की आवश्यकता होती है।

स्रोत: अनाज, दूध, अण्डा, मांस तथा समुद्री भोजन एवं शैवाल आदि।

कार्य:
(1) यह पाचक एन्जाइम तथा अनेक अन्य एन्जाइम का सहघटक होता है।
(2) यह रक्त निर्माण में सहायक होता है।

कमी से हानि: (1) जिंक की कमी से अरक्तता (anaemia) हो जाती है।
(2) इसकी कमी से शरीर का रोग प्रतिरोधक तन्त्र कमजोर हो जाता है।
(3) इसकी कमी से जनन क्षमता का क्षय होता है।
(4) त्वचा खुरदरी और शुष्क हो जाती है। (
5) वृद्धि रुक जाती है।

प्रश्न 7.
टिप्पणी लिखिए-मैग्नीशियम।
उत्तर:
मैग्नीशियम (Magnesium) भी एक उपयोगी खनिज है। हमारे शरीर में मैग्नीशियम की मात्रा औसतन 20-25 ग्राम तक होती है। यह मुख्य रूप से दाँतों, अस्थियों, तन्त्रिकाओं और पेशियों की क्रियाओं में सहायक होता है। हमें प्रतिदिन लगभग 3.5 मिग्रा मैग्नीशियम की आवश्यकता होती है।

स्रोत: अनाज, हरी सब्जियाँ, फल इसके मुख्य स्रोत हैं।

कार्य: (1) यह उपापचयी अभिक्रियाओं के एन्जाइम्स का सहघटक होता है।
(2) यह ATP निर्माण में सहायक होता है। .
(3) श्वसन की ग्लाइकोलाइसिस अभिक्रियाओं के एन्जाइम्स का घटक होता है।

कमी से हानि: (1) इसकी कमी से उपापचयी अभिक्रियाएँ अनियमित हो जाती हैं।
(2) यह तन्त्रिका तन्त्र की कार्यिकी को मुख्य रूप से प्रभावित करता है।
(3) यह पेशियों और अस्थियों की क्रियाशीलता को प्रभावित करता है।

प्रश्न 8.
संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-फ्लुओरीन।
उत्तर:
अन्य खनिज लवणों के ही समान फ्लुओरीन (Fluorine) को भी एक आवश्यक खनिज माना गया। हमारे शरीर में फ्लुओरीन की मात्रा बहुत कम होती है। प्रतिदिन हमें 2.5 मिग्रा फ्लुओरीन की आवश्यकता होती है।

स्रोत: पेयजल, चाय, समुद्री भोजन से हमें फ्लुओरीन प्राप्त होती है। कार्य-अस्थियों और दाँतों के रख-रखाव में सहायक होती है। हानि–
(1) फ्लुओरीन की कमी से दाँत कमजोर हो जाते हैं।
(2) फ्लुओरीन की अधिकता से दाँतों में फ्लुओरोसिस (Fluorosis) रोग हो जाता है जिसमें दाँत चितकबरे हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
टिप्पणी लिखिए-आहार का एक आवश्यक तत्त्व-जल।
उत्तर: पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवधारियों के लिए जल का महत्त्व इसी तथ्य से ज्ञात हो जाता है कि पृथ्वी का 3/4 भाग जल से ढका हुआ है। पुरातत्त्वविदों का मानना है कि जीवन की उत्पत्ति जल में हुई थी। जल एक यौगिक है जिसके घटक हैं-हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन। जल का रासायनिक सूत्र H20 है। जीवधारियों के शरीर में जल की मात्रा 45 से 90% होती है। नवजात शिशु में लगभग 75% जल होता है। वयस्क व्यक्ति के शरीर में लगभग 57% जल होता है। 70 किग्रा भार वाले व्यक्ति के शरीर में लगभग • 40 लीटर जल होता है। इसमें से लगभग 25-27 लीटर जल कोशिकाओं के जीवद्रव्य में तथा 12-14 लीटर जल रक्तप्लाज्मा, लसीका, ऊतक द्रव्य आदि के रूप में पाया जाता है। हमें प्रतिदिन लगभग 2 लीटर जल की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति खाद्य पदार्थों से, जल पीकर तथा उपापचय क्रियाओं के फलस्वरूप मुक्त होने वाले जल से होती है। लगभग इतना ही जल हमारे शरीर से मूत्र, पसीने के रूप में बाहर निकल जाता है। कुछ उपापचय क्रियाओं में व्यय हो जाता है।

जल के कार्य: (1) जल प्रकृति का सबसे उत्तम घोलक या विलायक है।
(2) यह कोशाद्रव्य, ऊतकद्रव्य, रक्त, लसीका, मूत्र, पसीना आदि का आधारभूत तरल बनाता है।
(3) जीवधारियों के शरीर की समस्त जैविक क्रियाएँ जल की उपस्थिति में ही होती हैं।
(4) बाह्य वातावरण से पदार्थों का आदान-प्रदान तथा शरीर में विभिन्न पदार्थों का परिवहन जल के माध्यम से ही होता है।
(5) जल हमारे शरीर के ताप नियन्त्रण में सहायता करता है। यह हमारे शरीर को वातावरण के ताप में अचानक होने वाले परिवर्तनों के दुष्प्रभाव से बचाता है।
(6) जल कोशिकाद्रव्य, ऊतकद्रव्य आदि के अम्ल-क्षार सन्तुलन को बनाए रखता है।
(7) जल शरीर से उत्सर्जी पदार्थों, के निष्कासन में सहायता करता है।
(8) जल भोजन को निगलने, पचाने तथा स्वांगीकरण में सहायक होता है।
(9) जल अंगों को घर्षण के दुष्प्रभाव से बचाने में सहायता करता है।
(10) शरीर में जल की कमी होने पर रक्त गाढ़ा हो जाता है। रक्त हमारे तालु की कोशिकाओं से जल अवशोषित कर लेता है, इसके फलस्वरूप हमारा तालु सूखने लगता है और हमें प्यास का आभास होता है।
(11) शरीर में जल की आवश्यक मात्रा घट जाने को निर्जलीकरण कहते हैं। निर्जलीकरण घातक भी हो सकता है।

प्रश्न 10.
व्यक्ति के शरीर एवं स्वास्थ्य के लिए विटामिनों के महत्त्व तथा उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विटामिन्स को आहार के सुरक्षात्मक तत्त्व माना जाता है। ये पोषक तत्त्व नहीं हैं, परन्तु व्यक्ति के स्वस्थ एवं रोग-मुक्त रहने के लिए आहार में इनका समावेश होना अति आवश्यक है। विटामिन्सं की उपयोगिता तथा महत्त्व का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं
(1) विटामिन्स का मुख्य महत्त्व तथा उपयोगिता यह है कि आहार में इनका उपस्थिति से शरीर को सम्बन्धित रोगों का मुकाबला करने की शक्ति प्राप्त होती है। यह भी कहा जा सकता है कि आहार में विटामिन्स का समावेश होने की स्थिति में व्यक्ति अभावजनित रोगों का शिकार नहीं होता है। इस स्थिति में यह स्पष्ट है कि यदि आहार में विटामिन्स की कमी या अभाव हो तो व्यक्ति अभावजनित रोगों का शीघ्र ही शिकार हो सकता है।

(2) विटामिन्स का एक महत्त्व यह भी है कि इन्हें आहार के माध्यम से नियमित रूप से ग्रहण करने की स्थिति में व्यक्ति का सामान्य स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है तथा वह चुस्त एवं सक्रिय बना रहता है। यदि व्यक्ति के आहार में विभिन्न विटामिन्स की कमी या अभाव हो जाए तो व्यक्ति निश्चित रूप से सुस्त रहने लगता है तथा उसकी शारीरिक क्रियाशीलता व सामान्य स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

(3) विभिन्न अध्ययनों के आधार पर यह सिद्ध हो गया है कि आहार में विटामिन्स के समुचित मात्रा में समावेश से व्यक्ति की भूख सामान्य बनी रहती है तथा उसकी आहार के प्रति रुचि भी बनी रहती है। इसके विपरीत, यदि व्यक्ति के आहार में विभिन्न विटामिन्स की कमी हो जाए तो व्यक्ति की भूख कम हो जाती है तथा भोजन के प्रति अरुचि भी विकसित होने लगती है। ऐसी स्थिति में निश्चित रूप से सुस्त रहने लगता है तथा उसे हर समय नींद ही आती रहती है।

(4) आहार में विटामिन्स के समुचित समावेश से व्यक्ति की कार्यक्षमता सामान्य बनी रहती तथा वह शारीरिक श्रम वाले कार्य सरलता से कर सकता है। इसके विपरीत, यदि व्यक्ति के आहार में विटामिन्स की कमी होती है तो व्यक्ति कमजोर तथा क्षीण होने लगता है। उसे हर समय थकावट-सी महसूस होती रहती है।

प्रश्न 11.
टिप्पणी लिखिए-विटामिन ‘C’
उत्तर:
यह विटामिन जल में विलेय है तथा इसकी 40-60 मिग्रा मात्रा (एक सामान्य व्यक्ति के लिए) आवश्यक होती है। इसे ऐस्कॉर्बिक अम्ल भी कहा जाता है।

विटामिन ‘C’ के स्रोत: यह विटामिन खट्टे फलों में पाया जाता है; जैसे नीबू, नारंगी, सन्तरा, मुसम्बी, रसभरी, अनन्नास आदि। आँवले में विटामिन ‘C’ अत्यधिक मात्रा में मिलता है।

उपयोगिता: विटामिन ‘C’ रक्त वाहिनियों को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होता है। दाँतों तथा मसूढ़ों को भी इस विटामिन से दृढ़ता प्राप्त होती है। विटामिन ‘C’ विभिन्न संक्रामक रोगों जैसे जुकाम, खाँसी, निमोनिया, तपेदिक आदि से बचाव में सहायक होता है।

कमी के कारण हानियाँ: मुख्य रूप से इसके अभाव में स्कर्वी (Scurvy) रोग हो जाता है। इस रोग में घाव शीघ्र नहीं भरते। कोलैजन तन्तुओं एवं आन्तर कोशिकीय पदार्थ की कमी से घाव भरने में महीनों लग जाते हैं। दाँतों तथा अस्थियों की वृद्धि प्रभावित होती है। शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता (immunity) तथा जनन क्षमता (fertility) कम हो जाती है। पेशियाँ फटने लगती हैं। मसूढ़ों से खून आने लगता है। दाँत गिरने लगते हैं।

प्रश्न 12.
टिप्पणी लिखिए-विटामिन ‘D’
उत्तर:
यह वसाओं में विलेय विटामिन है तथा कई विटामिनों का समूह है। इसे कैल्सिफरॉल भी कहा जाता है। इसकी एक सामान्य व्यक्ति को 200 अन्तर्राष्ट्रीय इकाई प्रतिदिन चाहिए। यह अस्थियों को मजबूत बनाए रखने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। कैल्सियम तथा फॉस्फोरस के स्वांगीकरण के लिए यह अत्यन्त उपयोगी है; अतः गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इस विटामिन की सामान्य से अधिक आवश्यकता पड़ती है।

विटामिन ‘D’ के स्रोत: इस विटामिन का सूर्य की किरणों की उपस्थिति में हमारे शरीर में स्वतः ही निर्माण हो जाता है। इसके अतिरिक्त विटामिन ‘D’ मलाई, मक्खन, मछली के तेल तथा घी एवं तेलों में पाया जाता है।

उपयोगिता: इससे हड्डियाँ तथा दाँत मजबूत बनते हैं।

कमी के कारण हानियाँ: इस विटामिन की कमी से बच्चों की अस्थियाँ लचीली, कमजोर और विकृत हो जाती हैं, इसे रिकेट्स (Rickets) रोग कहते हैं। वयस्कों में विटामिन ‘D’ की कमी से अस्थियाँ भंगुर हो जाती हैं। इसे ऑस्टियोमैलेसिया कहते हैं।

प्रश्न 13.
टिप्पणी लिखिए-विटामिन ‘E’।
उत्तर:
यह वसा में विलेय विटामिन है। यह मांसपेशियों को मजबूत बनाने में सहायक है। यह जननांगों को विकसित करने तथा उन्हें कार्यशील बनाने में भी सहायक है। यह गेहूँ, अण्डा, सोयाबीन, तेल आदि में पाया जाता है। इसकी कमी से कंकाल पेशियाँ कमजोर हो जाती हैं। जनन अंग शिथिल हो जाते हैं।

प्रश्न 14.
टिप्पणी लिखिए-विटामिन ‘K’।
उत्तर:
यह विटामिन प्रोथॉम्बिन के संश्लेषण में सहायक होता है। प्रोटॉम्बिन रक्त का थक्का जमने के लिए आवश्यक होता है; अत: यह विटामिन रक्तस्राव को रोकने में सहायता करने वाला कारक है। यह हरी सब्जियों, सोयाबीन, टमाटर, अण्डा, दूध, पनीर में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 5 अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
आहार या भोजन क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
शरीर की वृद्धि एवं विकास के लिए, ऊर्जा प्राप्त करने के लिए, स्वस्थ रहने के लिए तथा . शरीर के रख-रखाव एवं क्षति-पूर्ति के लिए हमें आहार की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2.
आहार के आवश्यक तत्त्व कौन-कौन से हैं? अथवा खाद्य पदार्थों में कौन-कौन से पोषक तत्त्व पाए जाते हैं?
उत्तर:
आहार के आवश्यक तत्त्व हैं-प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज लवण, विटामिन तथा जल। .

प्रश्न 3.
प्रोटीन की शरीर में क्या उपयोगिता है?
उत्तर:
शरीर के निर्माण, विकास एवं वृद्धि तथा रख-रखाव के लिए प्रोटीन मुख्य रूप से उपयोगी है।

प्रश्न 4.
कार्बोहाइड्रेट्स की मुख्य उपयोगिता क्या है?
उत्तर:
शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करने के लिए कार्बोहाइड्रेट मुख्य रूप से उपयोगी है।

प्रश्न 5.
आवश्यकता से अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स ग्रहण करने से क्या हानियाँ हो सकती हैं?
उत्तर:
आवश्यकता से अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट ग्रहण करने से व्यक्ति मोटापे का शिकार हो जाता है तथा उसकी पाचन-क्रिया बिगड़ जाती है।

प्रश्न 6.
आवश्यकता से अधिक मात्रा में वसा ग्रहण करने से क्या हानियाँ हो सकती हैं?
उत्तर:
आवश्यकता से अधिक मात्रा में वसा ग्रहण करने से व्यक्ति मोटापे का शिकार हो जाता है तथा पित्ताशय की पथरी, उच्च रक्तचाप, मधुमेह व हृदयरोग की आशंका बढ़ जाती है।

प्रश्न 7.
शरीर के लिए अति आवश्यक चार खनिज लवणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शरीर के लिए अति आवश्यक चार खनिज लवण हैं-कैल्सियम, फॉस्फोरस, लौह तथा आयोडीन।

प्रश्न 8.
विटामिनों को किस श्रेणी का तत्त्व माना जाता है? उत्तर-विटामिनों को सुरक्षात्मक श्रेणी का तत्त्व माना जाता है। प्रश्न 9-रतौंधी किस विटामिन की कमी से होती है? इसका उपचार कैसे करेंगी?
उत्तर:
रतौंधी नामक रोग विटामिन ‘A’ की कमी के कारण होता है। इस रोग के उपचार के लिए व्यक्ति के आहार में विटामिन ‘A’ युक्त खाद्य-पदार्थों का अधिक समावेश होना चाहिए।

प्रश्न 10.
विटामिन ‘B’ की कमी से होने वाला मुख्य रोग कौन-सा है?
उत्तर:
विटामिन ‘B’ की कमी से होने वाला मुख्य रोग है-बेरी-बेरी।

प्रश्न 11.
ऐसे चार फलों के नाम लिखिए जिनमें विटामिन ‘C’ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है?
उत्तर:
सन्तरा, मुसम्बी, रसभरी तथा अनन्नास। 3

प्रश्न 12.
विटामिन ‘C’ की कमी से होने वाला मुख्य रोग कौन-सा है?
उत्तर:
विटामिन ‘C’ की कमी से होने वाला मुख्य रोग है-स्कर्वी।

प्रश्न 13.
अस्थि-विकृति अथवा रिकेट्स नामक रोग किस विटामिन की कमी के कारण होता है?
उत्तर:
अस्थि-विकृति अथवा रिकेट्स नामक रोग विटामिन ‘D’ की कमी के कारण होता है।

प्रश्न 14.
लौह खनिज की कमी से किस रोग की आशंका हो जाती है?
उत्तर:
लौह खनिज की कमी से रक्ताल्पता अथवा एनीमिया नामक रोग हो जाने की आशंका होती है।

प्रश्न 15.
घेघा नामक रोग किस लवण की कमी के कारण हो जाता है?
उत्तर:
घेघा नामक रोग आयोडीन लवण की कमी के कारण होता है।

प्रश्न 16.
क्वाशिओरकॉर नामक रोग किस पोषक तत्त्व की कमी के कारण होता है?
उत्तर:
क्वाशिओरकॉर नामक रोग प्रोटीन की कमी के कारण होता है।

प्रश्न 17.
मानव शरीर के लिए जल क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
प्यास शान्त करने के लिए, रक्त को तरलता प्रदान करने के लिए, पाचन-क्रिया को सुचारु बनाने के लिए तथा व्यर्थ एवं हानिकारक तत्त्वों के शरीर से विसर्जन के लिए जल आवश्यक होता है।

प्रश्न 18.
मानव शरीर के लिए जल क्यों आवश्यक है? अथवा जल के क्या कार्य हैं?
उत्तर:
प्यास शान्त करने के लिए, रक्त को तरलता प्रदान करने के लिए, पाचन-क्रिया को सुचारु बनाए रखने के लिए तथा व्यर्थ एवं हानिकारक तत्त्वों के शरीर से विसर्जन के लिए जल आवश्यक होता है। इसके अतिरिक्त शरीर की सफाई का कार्य भी जल के ही द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 19.
फलों और सब्जियों की हमारे भोजन में क्या अपयोगिता है?
उत्तर:
फल एवं सब्जियाँ विभिन्न पोषक तत्त्वों के उत्तम स्रोत हैं। इनसे मुख्य रूप से विटामिन तथा खनिज प्राप्त होते हैं। फलों में पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाइड्रेट भी होता है। शरीर एवं स्वास्थ्य के लिए फल एवं सब्जियाँ अत्यधिक उपयोगी हैं। .

प्रश्न 20.
वनस्पतिजन्य वसा के चार प्रमुख स्त्रोत बताइए।
उत्तर:
वनस्पतिजन्य वसा के प्रमुख स्रोत हैं-सरसों, नारियल, मूंगफली तथा सोयाबीन।

प्रश्न 21.
जल का रासायनिक सूत्र लिखिए।
उत्तर:
जल का रासायनिक सूत्र है-H2O.

प्रश्न 22.
रक्ताल्पता के रोगी को किस प्रकार का भोजन देना चाहिए?
उत्तर:
रक्ताल्पता के रोगी को लौह-खनिज से भरपूर सन्तुलित आहार देना चाहिए।

UP Board Class 11 Home Science Chapter 5 बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए

प्रश्न 1.
भोजन के क्या कार्य हैं
(क) शरीर को ऊर्जा प्रदान करना
(ख) शरीर की वृद्धि करना
(ग) रोगों से सुरक्षा करना
(घ) इनमें से सभी।
उत्तर:
(घ) इनमें से सभी।

प्रश्न 2.
भोजन में ऊर्जा का प्रमुख साधन कौन-सा होता है
(क) कार्बोहाइड्रेट
(ख) प्रोटीन
(ग) खनिज लवण
(घ) विटामिन।
उत्तर:
(क) कार्बोहाइड्रेट।

प्रश्न 3.
शरीर के निर्माण, विकास एवं वृद्धि में निम्नलिखित में से किसका मुख्य योगदान होता है.
(क) वसा का
(ख) कार्बोहाइड्रेट का
(ग) प्रोटीन का
(घ) विटामिन्स का।
उत्तर:
(ग) प्रोटीन का।

प्रश्न 4.
प्रोटीन प्राप्ति का मुख्य वनस्पतिजन्य स्त्रोत कौन-सा है
(क) सब्जियाँ
(ख) फल
(ग) सोयाबीन एवं दालें
(घ) सलाद।
उत्तर:
(ग) सोयाबीन एवं दालें।

प्रश्न 5.
विटामिन ‘C’ किसमें पाया जाता है
(क) गेहूँ में
(ख) अंकुरित अनाज में
(ग) आँवला में
(घ) केला में।
उत्तर:
(ग) आँवला में।

प्रश्न 6.
कौन-सा विटामिन जल में घुलनशील है(क) विटामिन ‘C’
(ख) विटामिन ‘D’.
(ग) विटामिन ‘A’
(घ) विटामिन ‘E’
उत्तर:
(क) विटामिन ‘C’

प्रश्न 7.
वसा में घुलनशील विटामिन कौन-सा है
(क) विटामिन ‘B’
(ख) विटामिन ‘C’
(ग) विटामिन ‘A’
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) विटामिन ‘A’

प्रश्न 8.
कौन-सा विटामिन वसा में घलनशील नहीं है(क) विटामिन ‘A’
(ख) विटामिन ‘B’
(ग) विटामिन ‘D’
(घ) विटामिन ‘K’
उत्तर.
(ख) विटामिन ‘B’ .

प्रश्न 9.
आयोडीन की कमी से कौन-सा रोग होता है
(क) टिटेनस
(ख) मलेरिया
(ग) घेघा
(घ) रेबीज।
उत्तर:
(ग) घेघा।

प्रश्न 10.
कार्बोहाइड्रेट के अधिक सेवन करने पर कौन-सा रोग हो जाता है
(क) बेरी-बेरी
(ख) मधुमेह
(ग) तपेदिक
(घ) प्लेग।
उत्तर:
(ख) मधुमेह।

प्रश्न 11.
विटामिन ‘A’ की कमी से कौन-सा रोग होता है
(क) दन्त पीड़ा
(ख) अतिसार
(ग) रतौंधी ।
(घ) दाद।
उत्तर:
(ग) रतौंधी।

प्रश्न 12.
विटामिन ‘C’ की कमी से कौन-सा रोग होता है
(क) घेघा
(ख) बेरी-बेरी
(ग) स्क र्वी
(घ) रिकेट्स।
उत्तर:
(ग) स्कीं ।

प्रश्न 13.
विटामिन ‘B’ की कमी से कौन-सा रोग होता है
(क) घेघा
(ख) बेरी-बेरी
(ग) रतौंधी
(घ) स्कीं ।
उत्तर:
(ख) बेरी-बेरी।

प्रश्न 14.
विटामिन ‘A’ किसके लिए सर्वाधिक आवश्यक है
(क) अस्थियों के लिए
(ख) आँख तथा त्वचा के लिए
(ग) मांसपेशियों के लिए
(घ) रक्त निर्माण के लिए।
उत्तर:
(ख) आँख तथा त्वचा के लिए।

प्रश्न 15.
सर्वाधिक प्रोटीन निम्नलिखित में से किसमें पाया जाता है
(क) गेहूँ
(ख) मटर
(ग) सोयाबीन
(घ) ज्वार।
उत्तर:
(ग) सोयाबीन।

प्रश्न 16.
विटामिन ‘D’ प्राप्त करने का निःशुल्क स्रोत क्या है
(क) सूर्य की किरणें
(ख) दूध
(ग) अण्डे की जर्दी
(घ) मक्खन।
उत्तर:
(क) सूर्य की किरणें।

प्रश्न 17.
अंकुरित अनाज में भोजन का कौन-सा तत्त्व पाया जाता है(क) खनिज लवण
(ख) विटामिन ‘B’
(ग) प्रोटीन
(घ) इनमें से सभी।
उत्तर:
(ख) विटामिन ‘B’I

प्रश्न 18. आँवला में कौन-सा तत्त्व अधिक मात्रा में पाया जाता है
(क) प्रोटीन
(ख) वसा
(ग) विटामिन ‘C’
(घ) पानी।
उत्तर:
(ग) विटामिन ‘C’

प्रश्न 19.
प्रौढ़ावस्था में कैल्सियम की कमी से कौन-सा अस्थि रोग हो जाता है
(क) रिकेट्स
(ख) ऑस्टियोमैलेशिया
(ग) एनीमिया
(घ) घेघा।
उत्तर:
(ख) ऑस्टियोमैलेशिया।

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