UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants (पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन) are part of UP Board Solutions for Class 12 Biology. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants (पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन).
Board | UP Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Biology |
Chapter | Chapter 2 |
Chapter Name | Sexual Reproduction in Flowering Plants |
Number of Questions Solved | 54 |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants (पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन)
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
एक आवृतबीजी पुष्प के उन अंगों के नाम बताएँ, जहाँ नर एवं मादा युग्मकोभिद् का विकास होता है?
उत्तर
आवृतबीजी पादप (angiospermic plant) पुष्पीय पादप हैं। पुष्प एक रूपान्तरित प्ररोह (modified shoot) है जिसका कार्य प्रजनन होता है। पुष्प में निम्नलिखित चार चक्र होते हैं –
(क) बाह्यदलपुंज (Calyx) – इसका निर्माण बाह्यदल (sepals) से होता है।
(ख) दलपुंज (Corolla) – इसका निर्माण दल (petals) से होता है।
(ग) पुमंग (Androecium) – इसका निर्माण पुंकेसर (stamens) से होता है। यह पुष्प का नर जनन चक्र कहलाता है।
(घ) जायांग (Gynoecium) – इसका निर्माण अण्डप (carpels) से होता है। यह पुष्प का मादा जनन चक्र कहलाता है।
पुंकेसर के परागकोश (anther) में परागकण मातृ कोशिका (pollen mother cells) से अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा परागकण (pollen grains) का निर्माण होता है। परागकण नर युग्मकोभिद् (male gametophyte) कहलाता है।
अण्डप (carpel) के तीन भाग होते हैं – अण्डाशय (ovary), वर्तिका (style) तथा वर्तिकाग्र (stigma)। अण्डाशय में बीजाण्ड का निर्माण होता है। बीजाण्ड के बीजाण्डकाय की गुरुबीजाणु मातृ कोशिका (mega spore mother cell) से अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित गुरुबीजाणु से मादा युग्मकोभिद् (female gametophyte) अथवा भ्रूणकोष (embryo sac) का विकास होता है।
प्रश्न 2.
लघुबीजाणुधानी तथा गुरुबीजाणुधानी के बीच अन्तर स्पष्ट करें। इन घटनाओं के दौरान किस प्रकार का कोशिका विभाजन सम्पन्न होता है ? इन दोनों घटनाओं के अंत में बनने वाली संरचनाओं के नाम बताइए।
उत्तर
लघुबीजाणुधानी तथा गुरुबीजाणुधानी के मध्य निम्न अन्तर हैं –
इन घटनाओं के दौरान अर्धसूत्री विभाजन होता है। लघुबीजाणुजनन के अन्त में लघुबीजाणु अथवा परागकण बनते हैं तथा गुरुबीजाणुजनन के अन्त में चार गुरूबीजाणु बनते हैं।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दावलियों को सही विकासीय क्रम में व्यवस्थित करें-परागकण, बीजाणुजन ऊतक, लघुबीजाणु चतुष्क, परागमातृ कोशिका, नर युग्मक।
उत्तर
उपरोक्त शब्दावलियों का सही विकासीय क्रम निम्नवत् है –
बीजाणुजन ऊतक → परागमातृ कोशिका → लघुबीजाणु चतुष्क → परागकण → नरयुग्मक
प्रश्न 4.
एक प्रारूपी आवृतबीजी बीजाण्ड के भागों का विवरण दिखाते हुए एक स्पष्ट एवं साफ-सुथरा नामांकित चित्र बनाइए। (2010, 15, 17)
उत्तर
प्रश्न 5.
आप मादा युग्मकोभिद् के एकबीजाणुज विकास से क्या समझते हैं ?
उत्तर
गुरुबीजाणुजनन के फलस्वरूप बने गुरुबीजाणु चतुष्क (tetrad) में से तीन नष्ट हो जाते हैं। तथा केवल एक गुरुबीजाणु ही सक्रिय होता है जो मादा युग्मकोभिद् का विकास करता है। गुरुबीजाणु का केन्द्रक तीन, सूत्री विभाजनों द्वारा आठ केन्द्रक बनाता है। प्रत्येक ध्रुव पर चार-चार केन्द्रक व्यवस्थित हो जाते हैं। भ्रूणकोष के बीजाण्डद्वारी ध्रुव पर स्थित चारों केन्द्रक में से तीन केन्द्रक कोशिकाएँ अण्ड उपकरण (egg apparatus) बनाते हैं, जबकि निभागी सिरे के चार केन्द्रकों में से तीन केन्द्रक एन्टीपोडल कोशिकाएँ (antipodal cells) बनाते हैं। दोनों ध्रुवों से आये एक-एक केन्द्रक, केन्द्रीय कोशिका में संयोजन द्वारा ध्रुवीयकेन्द्रक (polar nucleus) बनाते हैं। चूंकि मादा युग्मकोद्भिद् सिर्फ एक ही गुरुबीजाणु से विकसित होता है, अत: इसे एक बीजाणुज विकास कहते हैं।
प्रश्न 6.
एक स्पष्ट एवं साफ-सुथरे चित्र के द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोदभिद के 7-कोशिकीय, 8-न्यूक्लिएट (केन्द्रकीय) प्रकृति की व्याख्या करें।
उत्तर
आवृतबीजी पौधों को मादा युग्मकोभिद् 7-कोशिकीय व 8-केन्द्रकीय होता है जिसके परिवर्धन के समय क्रियाशील गुरुबीजाणु (functional megaspore), प्रथम केन्द्रीय विभाजन द्वारा दो केन्द्रक बनाता है। दोनों केन्द्रक गुरुबीजाणु के दोनों ध्रुवों (माइक्रोपाइल व निभागीय) पर पहुँच जाते हैं। द्वितीय विभाजन द्वारा दोनों सिरों पर दो-दो केन्द्रिकाएँ बन जाती हैं। तृतीय विभाजन द्वारा दोनों सिरों पर चार-चार केन्द्रक बन जाते हैं। माइक्रोपायलर शीर्ष पर चार केन्द्रकों में से तीन केन्द्रक अण्ड उपकरण (egg apparatus) बनाते हैं तथा चौथा केन्द्रक ऊपरी ध्रुव का चक्र बनाता है। निभागीय शीर्ष पर चार केन्द्रकों में से तीन एन्टीपोडल केन्द्रक तथा चौथा केन्द्रक निचला ध्रुव केन्द्रक का निर्माण करता है। ऊपरी तथा निचला ध्रुवीय केन्द्रक मध्य में आकर संयोजन द्वारा द्वितीयक केन्द्रक (secondary nucleus) बनाते हैं। अण्ड उपकरण के तीन केन्द्रकों से मध्य वाला केन्द्रक अण्ड (egg) बनाता है। शेष दोनों केन्द्रक सहायक कोशिकाएँ (synergid cells) बनाते हैं।
प्रश्न 7.
उन्मील परागणी पुष्पों से क्या तात्पर्य है ? क्या अनुन्मीलिय पुष्पों में पर-परागण सम्पन्न होता है ? अपने उत्तर की सतर्क व्याख्या करें।
उत्तर
वे पुष्प जिनके परागकोश तथा वर्तिकाग्र अनावृत (exposed) होते हैं, उन्मील परागणी पुष्प कहलाते हैं। उदाहरण- वायोला, ऑक्जेलिस।
अनुन्मीलिय पुष्पों में पर-परागण नहीं होता है। अनुन्मीलिय पुष्प अनावृत नहीं होते हैं। अतः इनमें पर-परागण सम्भव नहीं होता है। इस प्रकार के पुष्पों के परागकोश तथा वर्तिकाग्र पास-पास स्थित होते हैं। परागकोश के स्फुटित होने पर परागकण वर्तिकाग्र के सम्पर्क में आकर परागण करते हैं। अतः अनुन्मीलिय पुष्प स्व-परागण ही करते हैं।
प्रश्न 8.
पुष्पों द्वारा स्व-परागण को रोकने के लिए विकसित की गयी दो कार्यनीतियों का विवरण दें।
उत्तर
पुष्पों में स्व-परागण को रोकने हेतु विकसित की गयी दो कार्यनीतियाँ निम्न हैं –
- स्व-बन्ध्यता (Self-fertility) – इस प्रकार की कार्यनीति में यदि किसी पुष्प के परागण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं तो वे उसे निषेचित नहीं कर पाते हैं। उदाहरण-माल्वा के एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर अंकुरित नहीं होते हैं।
- भिन्न काल पक्वता (Dichogamy) – इसमें नर तथा मादा जननांग अलग-अलग समय में | परिपक्व होते हैं जिससे स्व-परागण नहीं हो पाता है। उदाहरण-सैक्सीफ्रेगा कुल के सदस्य।
प्रश्न 9.
स्व-अयोग्यता क्या है ? स्व-अयोग्यता वाली प्रजातियों में स्व-परागण प्रक्रिया बीज की रचना तक क्यों नहीं पहुँच पाती है ?
उत्तर
स्व-अयोग्यता पुष्पीय पौधों में पायी जाने वाली ऐसी प्रयुक्ति है जिसके फलस्वरूप पौधों में स्व-परागण (self-pollination) नहीं होता है। अतः इन पौधों में सिर्फ पर-परागण (cross pollination) ही हो पाता है। स्व-अयोग्यता दो प्रकार की होती है –
- विषमरूपी (Heteromorphic) – इस प्रकार की स्व-अयोग्यता में एक ही जाति के पौधों के वर्तिकाग्र तथा परागकोशों की स्थिति में भिन्नता होती है अतः परागनलिका की वृद्धि वर्तिकाग्र में रुक जाती है।
- समकारी (Homomorphic) – इस प्रकार की स्व-अयोग्यता विरोधी-S अलील्स (opposition-S-alleles) द्वारा होती है। उपरोक्त कारणों के फलस्वरूप स्व-अयोग्यता वाली जातियों में स्व-परागण प्रक्रिया बीज की रचना तक नहीं पहुँच पाती है।
प्रश्न 10.
बैगिंग (बोरावस्त्रावरण) या थैली लगाना तकनीक क्या है ? पादप जनन कार्यक्रम में यह कैसे उपयोगी है ?
उत्तर
बैगिंग (बोरावस्त्रावरण) एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा परागण में ऐच्छिक परागकणों का उपयोग तथा वर्तिकाग्र को अनैच्छिक परागकणों से बचाना सुनिश्चित किया जाता है। बैगिंग के अन्तर्गत विपुंसित पुष्पों को थैली से ढ़ककर, इनके वर्तिकाग्र को अवांछित परागकणों से बचाया जाता है। पादप जनन में इस तकनीक द्वारा फसलों को उन्नतशील बनाया जाता है तथा सिर्फ ऐच्छिक गुणों वाले परागकण वे वर्तिकाग्र के मध्य परागण सुनिश्चित कराया जाता है।
प्रश्न 11.
त्रि-संलयन क्या है ? यह कहाँ और कैसे सम्पन्न होता है ? त्रि-संलयन में सम्मिलित न्यूक्लीआई का नाम बताएँ।
उत्तर
परागनलिका से मुक्त दोनों नर केन्द्रकों में से एक मादा केन्द्रक से संयोजन करता है। दूसरा नर केन्द्रक भ्रूणकोष में स्थित द्वितीयक केन्द्रक (2n) से संयोजन करता है। द्वितीयक केन्द्रक में दो केन्द्रक पहले से होते हैं तथा नर केन्द्रक से संलयन के पश्चात् केन्द्रकों की संख्या तीन हो जाती है। तीन केन्द्रकों का यह संलयन, त्रिसंलयन (triple fusion) कहलाता है। त्रिसंलयन की प्रक्रिया भ्रूणकोष में होती है तथा इसमें ध्रुवीय केन्द्रक अर्थात् द्वितीयक केन्द्रक व नर केन्द्रक सम्मिलित होते हैं।
प्रश्न 12.
एक निषेचित बीजाण्ड में, युग्मनज प्रसुप्ति के बारे में आप क्या सोचते हैं ?
उत्तर
निषेचन के पश्चात् बीजाण्ड में युग्मनज (zygote) का विकास होता है। बीजाण्ड के अध्यावरण दृढ़ होकर बीजावरण (seed coat) बनाते हैं। बीजाण्ड के बाहरी अध्यावरण से बीजकवच तथा भीतरी अध्यावरण से अन्तः कवच बनता है। भ्रूणपोष में भोज्य पदार्थ एकत्रित होने लगते हैं। जल की मात्रा धीरे-धीरे कम हो जाती है, अतः कोमल बीजाण्डे कड़ा व शुष्क हो जाता है। धीरे-धीरे बीजाण्ड के अंदर की कार्यिकी क्रियाएँ रुक जाती हैं तथा युग्मनज से बना नया भ्रूण सुप्तावस्था में पहुँच जाता है। इसे युग्मनज प्रसुप्ति कहते हैं। बीजावरण से घिरा, एकत्रित भोजन युक्त तथा सुसुप्त भ्रूण युक्त यह रचना, बीज (seed) कहलाती है।
प्रश्न 13.
इनमें विभेद करें –
(क) बीजपत्राधार तथा बीजपत्रोपरिक
(ख) प्रांकुर चोल तथा मूलांकुर चोल
(ग) अध्यावरण तथा बीज चोल
(घ) परिभ्रूण पोष तथा फलभित्ति
उत्तर
(क) बीजपत्राधार तथा बीजपत्रोपरिक में अन्तर बीजपत्राधार
(ख) प्रांकुर चोल तथा मूलांकुर चोल में अन्तर
(ग) अध्यावरण तथा बीज चोल में अन्तर
(घ) परिभ्रूण पोष तथा फलभित्ति में अन्तर
प्रश्न 14.
एक सेब को आभासी फल क्यों कहते हैं ? पुष्प का कौन-सा भाग फल की रचना करता है ?
उत्तर
सेब में फल का विकास पुष्पासन (thalamus) से होता है। इसी कारण इसे आभासी फल (false fruit) कहते हैं। फल की रचना, पुष्प के निषेचित अण्डाशय (ovary) से होती है।
प्रश्न 15.
विपुंसन से क्या तात्पर्य है ? एक पादप प्रजनक कब और क्यों इस तकनीक का प्रयोग करता है ?
उत्तर
एक द्विलिंगी पुष्प की कली अवस्था में, परागकोश को काटकर अलग करने की प्रक्रिया, विपुंसन (emasculation) कहलाती है। यह कृत्रिम परागण की एक तकनीक है तथा इसका प्रयोग पादप प्रजनक द्वारा आर्थिक महत्त्व के पौधों की अच्छी नस्ल बनाने में किया जाता है। विपुंसन द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि ऐच्छिक वर्तिकाग्र युक्त पौधे पर ही परागण हो।
प्रश्न 16.
यदि कोई व्यक्ति वृद्धि कारकों का प्रयोग करते हुए अनिषेकजनन को प्रेरित करता है तो आप प्रेरित अनिषेकजनन के लिए कौन-सा फल चुनते हैं और क्यों ?
उत्तर
वृद्धि कारकों के प्रयोग द्वारा अनिषेकजनन हेतु हम केले का चयन करेंगे क्योंकि यह बीज रहित होता है।
प्रश्न 17.
परागकण भित्ति रचना में टेपीटम की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
पुंकेसर के परागकोश (anther) में प्रायः चार लघुबीजाणुधानी (microsporangia) बनती हैं। प्रत्येक लघुबीजाणुधानी चार पर्वो वाली भित्ति से आवृत होती है। बाहर से भीतर की ओर इन्हें क्रमशः बाह्य त्वचा (epidermis), अंतस्थीसियम (endothecium), मध्यपर्त (middle layer) तथा टेपीटम (tapetum) कहते हैं। बाह्य तीन पर्ते लघुबीजाणुधानी को संरक्षण प्रदान करती हैं और स्फुटन में सहायता करती हैं। सबसे भीतरी टेपीटम पर्त की कोशिकाएँ विकासशील परागकणों को पोषण प्रदान करती हैं।
प्रश्न 18.
असंगजनन क्या है ? इसका क्या महत्त्व है ? (2014, 17)
उत्तर
अलैंगिक जनन की एक सामान्य विधि जिसमें नये पौधे का निर्माण युग्मकों के संलयन के बिना ही होता है, असंगजनन (apomixis) कहलाती है। असंगजनन में गुणसूत्रों का विसंयोजन व पुनःसंयोजन (segregation and recombination) नहीं होता है। अतः इसमें पौधे के लाभदायक गुणों को अनिश्चित समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
आवरणविहीन तथा एककोशिकीय जनन अंग प्रमुख लक्षण हैं – (2015)
(क) ब्रायोफाइटा के
(ख) टेरिडोफाइटा के
(ग) अनावृतबीजियों के
(घ) थैलोफाइटा के
उत्तर
(घ) थैलोफाइटा के
प्रश्न 2.
एक आवृतबीजी में 400 परागकणों को उत्पन्न करने के लिए कितने अर्ध-सूत्री विभाजन आवश्यक होंगे? (2015)
(क) 400
(ख) 100
(ग) 200
(घ) 50
उत्तर
(ख) 100
प्रश्न 3.
परागकण मातृकोशिका में गुणसूत्रों की संख्या होती है (2016)
(क) अगुणित
(ख) द्विगुणित
(ग) त्रिगुणित
(घ) बहुगुणित
उत्तर
(ख) द्विगुणित
प्रश्न 4.
बीजाण्ड का वह स्थान जहाँ बीजाण्डवृत्त जुड़ा होता है उसे कहते हैं (2017)
(क) निभाग (चलाजा)
(ख) नाभिका (हाइलम)
(ग) केन्द्रक
(घ) माइक्रोपाइल
उत्तर
(ख) नाभिका (हाइलम)
प्रश्न 5.
परागनलिका का अध्यावरण द्वारा बीजाण्ड में प्रवेश कहलाता है (2017)
(क) निभागी युग्मन
(ख) अण्डद्वारी प्रवेश
(ग) इनमें से दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(घ) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 6.
द्विनिषेचन का तात्पर्य है (2017)
(क) दो नर युग्मकों का अण्डकोशिका से संयोजन
(ख) एक नर युग्मक का अण्डकोशिका से तथा दूसरे का द्वितीयक केन्द्रक से संयोजन
(ग) इनमें से दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(ख) एक नर युग्मक का अण्डकोशिका से तथा दूसरे का द्वितीयक केन्द्रक से संयोजन
प्रश्न 7.
द्विनिषेचन क्रिया होती है (2014)
(क) शैवालों में
(ख) ब्रायोफाइट्स में
(ग) अनावृतबीजी पौधों में
(घ) आवृतबीजी पौधों में
उत्तर
(घ) आवृतबीजी पौधों में
प्रश्न 8.
भारतीय भ्रूण-विज्ञान के जनक है – (2017)
(क) राम उदार
(ख) बी०एन० प्रसाद
(ग) पी०एन० मेहरा
(घ) पी० माहेश्वरी
उत्तर
(घ) पी० माहेश्वरी
प्रश्न 9.
नारियल का रेशे उत्पन्न करने वाला भाग है – (2016)
(क) बाह्य फलभित्ति
(ख) अन्तः फलभित्ति
(ग) मध्य फलभित्ति
(घ) तना तथा पत्ती
उत्तर
(ग) मध्य फलभित्ति
प्रश्न 10.
बहुभ्रूणता खोजी गई (2017)
(क) ल्यूवेनहॉक द्वारा
(ख) माहेश्वरी द्वारा
(ग) विन्कलर द्वारा
(घ) कूपर द्वारा
उत्तर
(क) ल्यूवेनहॉक द्वारा।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
युक्तपुंकेसरी दशा किसे कहते हैं? (2017)
उत्तर
जब किसी पुष्प के सभी पुंकेसर परस्पर संलग्न होते हैं, तब इसे युक्तपुंकेसरी दशा कहते हैं। जैसे – Cucurbitaceae family के पौधों में।
प्रश्न 2.
चतुर्दी पुंकेसर किसे कहते हैं? (2017)
उत्तर
जब एक पुष्प के चार पुंकेसर लम्बे और दो पुंकेसर छोटे हों, तो इसे चतुर्थी अवस्था कहते हैं। जैसे – सरसों के पुष्प में।
प्रश्न 3.
जौ या गेहूँ के 100 दाने बनाने के लिए कितने अर्द्धसूत्री विभाजन की आवश्यकता होगी? (2017, 18)
उत्तर
जौ या गेहूँ के 100 दाने बनाने के लिए 125 अर्द्धसूत्री विभाजन की आवश्यकता होगी।
प्रश्न 4.
परिपक्व परागकोष की अनुप्रस्थ काट का चित्र बनाइए। (2015, 17)
उत्तर
प्रश्न 5.
ऊर्ध्ववर्ती एवं अधोवर्ती अण्डाशयों की लम्ब काट का नामांकित चित्र बनाइए। (2015)
उत्तर
प्रश्न 6.
पॉलीगोनम प्रकार के भ्रूणकोष में कितने केन्द्र उपस्थित होते हैं? (2017)
उत्तर
परिपक्व भ्रूणकोष 8 केन्द्रकीय एवं 7 कोशिकीय होता है।
प्रश्न 7.
भ्रूणपोष केन्द्रक का निर्माण कैसे होता है? इसमें उपस्थित गुणसूत्रों की संख्या कितनी होती (2015)
उत्तर
द्वितीयक केन्द्रक (2n) तथा एक नर केन्द्रक (n) के संलयन से भ्रूणपोष केन्द्रक का निर्माण होता है। इसमें उपस्थित गुणसूत्रों की संख्या 3n होती है।
प्रश्न 8.
निमीलिता को परिभाषित कीजिए तथा एक उदाहरण भी दीजिए। (2014)
उत्तर
कुछ द्विलिंगी पुष्प ऐसे होते हैं जो कभी नहीं खिलते। इन पुष्पों को निमीलित पुष्प कहते हैं। ऐसे पुष्पों में बन्द अवस्था में ही परागकोश फट जाते हैं जिससे परागकण पुष्प के वर्तिकाग्र पर बिखर जाते हैं और स्व-परागण हो जाता है। इस प्रक्रिया को ही निमीलिता कहते हैं। उदाहरणार्थ-कनकौआ (Commelina), गुलमेंहदी (Impatiens), बनफसा (Viola), मूंगफली (Arachis) आदि।
प्रश्न 9.
भ्रूणपोष का विकास आवृतबीजी पौधों में किस प्रक्रिया के फलस्वरूप होता है? (2017)
उत्तर
द्विनिषेचन के पश्चात् होता है।
प्रश्न 10.
प्रजनन की पाल्मेला स्टेज किस पादप में पाई जाती है? (2015)
उत्तर
प्रजनन की पाल्मेला स्टेज क्लेमाइडोमोनास में पाई जाती है।
प्रश्न 11.
पालीनिया का नामांकित चित्र बनाइये। (2017)
उत्तर
प्रश्न 12.
निम्न में अन्तर कीजिए – (2017)
- उभयलिंगाश्रयी तथा एकलिंगाश्रयी।
- समकालपक्वता तथा पूर्वमुँपक्वता।
- भ्रूणपोषी तथा अभ्रूणपोषी बीज।
उत्तर
1. उभयलिंगाश्रयी (Monoecious) – जब नर तथा मादा पुष्प एक ही पौधे पर लगे होते हैं, तो ऐसे पौधे को एकक्षयक कहते हैं, जैसे-लौकी, कद्दू, खीरा, मक्का, अरण्डी आदि। एकक्षयक पौधों में बहुधा नर पुष्प शीर्ष की ओर तथा मादा पुष्प नीचे की ओर लगे रहते हैं। इन पौधों के पुष्पों में स्व-परागण भी हो सकता है।
एकलिंगाश्रयी (Dioecious) – जब नर तथा मादा पुष्प दो भिन्न पौधों पर लगे होते हैं, तो ऐसे पौधों को द्विक्षयक कहते हैं, जैसे – पपीता, शहतूत, भाँग, केवड़ा, डेटपाम (datepalm) आदि। द्विक्षयक पौधों में केवल पर-परागण ही सम्भव है।
2. समकालपक्वता (Homogamy) – इस प्रकार के स्वपरागण में पुष्प का परागकोष तथा वर्तिकाग्र एक ही समय में परिपक्व होते हैं; जैसे-गार्डेनिया (Gardenia); कॉनवालवुलस (Convolvulus); सदाबहार (Vinca rosed = Catharanthus roseus), गुलाबांस (Mirabilis) आदि।
पूर्वऍपक्वता (Protandry) – जब पुष्प में पुमंग (androecium), जायांग (gynoecium) से पहले परिपक्व हो जाते हैं तब इस अवस्था को पूर्वऍपक्व (protandrous) कहते हैं। इन पुष्पों के परागकोश से निकलकर परागकण उसी पौधे के पुष्पों का परागण नहीं कर पाते परन्तु दूसरे पुष्पों के वर्तिकाग्र पर पहुँचकर परागण करते हैं; जैसे-गुड़हल, कपास, क्लेरोडेन्ड्रान, सालवियो, सूर्यमुखी, गेंदा, धनिया, सौंफ, बेला आदि। यह दशा पूर्वस्त्रीपक्वता की अपेक्षा अधिक सामान्य है।
3. भ्रूणपोषी बीज (Endospermic Seeds) – ऐसे सभी बीज जिनमें भ्रूणपोष बीजों के अंकुरण तक पाया जाता है उन्हें भ्रूणपोषी बीज या एल्ब्यूमिनस बीज (albuminous seeds) कहते हैं। इन बीजों में बीजपत्र (cotyledons) बहुत पतले होते हैं क्योंकि इनमें भोजन भ्रूणपोष में संचित रहता है; जैसे-सुपारी (Areca), फाइटेलेप्स (Phyteleps), डेट (Phoenix), अरण्डी (Caster), गेहूँ (Wheat), मक्का (Maize) आदि।
अभ्रूणपोषी बीज (Non-endospermic Seeds) – कुछ पौधों, जैसे–चना, सेम, मटर में भ्रूणपोष, भ्रूण-परिवर्धन में पूर्णरूप से प्रयोग हो जाता है। ऐसे बीजों के बीजपत्रों (cotyledons) में भोजन संचित रहने के कारण ये मोटे होते हैं। इन्हें अभ्रूणपोषी (non-endospermic) या एक्सएल्ब्यूमिनस (exalbuminous) बीज कहते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
आवृतबीजों में नर युग्मकोभिद का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (2009, 16)
या
एक आवृतबीजी पौधे के परागकण के अंकुरण की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए। (2010, 12, 15, 16)
उत्तर
नर युग्मकोदभिदका विकास
परागकोश के स्फुटन के समय मध्य स्तर व टेपीटम स्तर नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार परागकोश भित्ति में केवल बाह्यत्वचा (epidermis) व अन्तःत्वचा (endothecium) रह जाती है। प्रायः परागकोश का स्फुटन अनुदैर्घ्य दरारें (longitudinal slits) बनने से होता है जो प्रायः दो परागधानियों के मिलने के स्थान पर (A) (B) होती हैं। कभी-कभी अग्र दरारों (terminal slits) अथवा छिद्रों (pores) से भी परागकोशों को स्फुटन होता है। स्फुटन के फलस्वरूप परागकण स्वतन्त्र हो जाते हैं। परागकोश से स्वतन्त्र होने के पूर्व ही परागकणों का अंकुरण हो जाता है। इस क्रिया में सर्वप्रथम परागकण का केन्द्रक परागकण-भित्ति की ओर जाकर समसूत्री विभाजन द्वारा दो केन्द्रकों में विभाजित हो जाता है।
इनमें बड़े केन्द्रक को वर्दी केन्द्रक या नली केन्द्रक (vegetative nucleus or tube nucleus) तथा छोटे केन्द्रक को जनन केन्द्रक (generative nucleus) कहते हैं। प्रायः इस अवस्था में परागकण, परागकोश को छोड़ देते हैं। अब परागकणों का आगे का विकास मादा पुष्प के स्त्रीकेसर (pistil) के वर्तिकाग्र पर होता है। परागण (pollination) की क्रिया द्वारा परागकण, स्त्रीकेसर (pistil) के वर्तिकाग्र (stigma) पर पहुँच जाते हैं जहाँ इनका अंकुरण होता है।
प्रश्न 2.
वायु परागण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2016)
या
वायु परागित पुष्पों की विशेषताएँ लिखिए। (2017)
उत्तर
पुष्पों में वायु द्वारा होने वाले पर-परागण को वायु परागण (anemophily) कहते हैं और ऐसे पुष्पों को वायु परागित पुष्प (anemophilous flowers) कहते हैं। वायु परागित पुष्पों में कुछ विशेषताएँ पायी जाती हैं जो निम्नलिखित हैं –
- वायु परागित पुष्प छोटे एवं आकर्षण रहित होते हैं। ये रंगहीन (colourless); गंधहीन (odourless) एवं मकरन्द रहित होते हैं।
- वायु परागित पुष्प प्रायः एकलिंगी (unisexual) होते हैं। ये पत्तियों वाले भाग के ऊपर निकलते हैं तथा इनमें नर पुष्पों की अधिकता होती है; जैसे – मक्का में अथवा फिर नई पत्तियों के निकलने से पहले ही खिल जाते हैं, जैसे-पोपलर में।
- पुष्प के अनावश्यक भाग; जैसे – बाह्यदल एवं दल बहुत छोटे होते हैं जिससे ये परागकणों और वर्तिकाग्र के बीच रुकावट न बन सकें।
- वायु परागण करने वाले पुष्पों द्वारा प्रचुर मात्रा में परागकण (pollen grains) उत्पन्न होते हैं। क्योंकि वायु के झोंकों के साथ परागकणों का अधिकांश भाग इधर-उधर गिरकर नष्ट हो जाता है और फिर थोड़े से परागकण ही वास्तविक परागण क्रिया में भाग ले पाते हैं। उदाहरणार्थमक्का (Zea) तथा रूमेक्स (Rumex) का एक पौधा क्रमशः लगभग 2 करोड़ तथा 40 करोड़ परागकण उत्पन्न करता है। इसी प्रकार केनाबिस (Cannabis) के एक पुष्प से लगभग 5 लाख परागकणों का निर्माण होता है।
- परागकण छोटे, शुष्क व हल्के होते हैं जिससे ये वायु में आसानी से इधर-उधर उड़ सकें। कुछ पुष्पों के परागकणों में विशेष संरचनाएँ भी पायी जाती हैं जो वायु परागण में सहायक होती हैं; जैसे-चीड़ (Pinus) के परागकण पंखयुक्त (winged) होते हैं जिससे ये आसानी से उड़ सकें।
- पुंकेसर के पुंतन्तु प्रायः लम्बे तथा पतले होते हैं और पुष्प के बाहर निकले रहते हैं जिससे वायु के झोंकों के साथ ये आसानी से पुंतन्तुओं पर झूल सकें, जैसे—पोपलर में। घास, ताड़ आदि में पुष्पों के परागकोश मुक्तदोली (versatile) प्रकार का होता है जिससे ये वायु में आसानी से झूल सकें।
- इन पुष्पों का वर्तिकाग्र लम्बा, रोमयुक्त एवं पुष्प के बाहर निकला होता है जिससे ये परागकणों को आसानी से पकड़ सकें; जैसे-रोमयुक्त (मक्का) या चिपचिपा (पोपलर)।
प्रश्न 3.
आवृतबीजी पौधों में द्विनिषेचन की क्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए। (2011)
या
द्विनिषेचन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2009, 11, 12, 14, 15, 16)
या
दोहरा निषेचन को परिभाषित कीजिए। (2017)
उत्तर
द्विनिषेचन या दोहरा निषेचन
पराग नलिका (pollen tube) में उपस्थित दोनों नर केन्द्रक ही नर युग्मक (male gametes) की तरह कार्य करते हैं और भ्रूणकोष में पहुँचने के बाद इनमें से एक नर युग्मक वास्तविक मादा युग्मक (female gamete) अर्थात् अण्ड कोशिका (egg cell) के अन्दर प्रवेश करके उसके केन्द्रक के साथ संलयित (fuse) हो जाता है। यह क्रिया वास्तविक युग्मक संलयन (syngamy) है। इस प्रकार की क्रिया को निषेचन (fertilization) कहते हैं। दूसरा नर युग्मक, दो ध्रुवीय केन्द्रकों (polar nuclei) द्वारा बने द्वितीयक केन्द्रक (secondary nucleus) की ओर पहुँचकर उसे निषेचित करता है। यह क्रिया त्रिसंयोजन (triple fusion) कहलाती है। इस समय भ्रूणकोष के अन्दर निषेचित अण्डकोशिका तथा त्रिसंयोजित केन्द्रक के अतिरिक्त सभी केन्द्रक अथवा कोशिकाएँ धीरे-धीरे लुप्त हो जाती हैं। यहाँ, एक ही भ्रूणकोष में दो संलयन होते हैं; अतः यह क्रिया द्विनिषेचन (double fertilization) कहलाती है और इस क्रिया के फलस्वरूप भ्रूणकोष में प्रायः निम्नलिखित परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं –
1. बीजाण्ड के दोनों कवच तथा इनसे बनने वाली संरचनाओं में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता और ये नये बनने वाले बीज का बीजावरण (seed coat) बनाते हैं।
2. बीजाण्डकाय में उपस्थित भ्रूणकोष (embryo sac) में, अब दो ही केन्द्रक तथा उनसे बनने वाली कोशिकाएँ रह जाती हैं, ये इस प्रकार हैं –
- निषिक्ताण्ड (Oospore) – जो एक नर युग्मक (केन्द्रक) तथा अण्डकोशिका के संलयन (fusion) के फलस्वरूप बना है तथा आगे चलकर भ्रूण (embryo) का निर्माण करेगा।
- भूणपोष केन्द्रक (Endospermic Nucleus) – जो द्वितीयक केन्द्रक (2n) तथा एक नर केन्द्रक (n) के संलयन से बना है अतः प्रायः त्रिगुणित (triploid) होता है और | सम्पूर्ण भ्रूणकोष के कोशिकाद्रव्य को अपनी कोशिका मानकर रहता है। यही कोशिका आगे चलकर भ्रूणपोष (endosperm) का निर्माण करती है।
प्रश्न 4.
द्विनिषेचन के पश्चात किसी आवृतबीजी पौधे के बीजाण्ड में होने वाले बहुत से परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए। (2017)
उत्तर
द्विनिषेचन के पश्चात बीजाण्ड में होने वाले परिवर्तन
1. बाह्य अध्यावरण (Outer Integurment) – बीज का बीजचोल (testa) बनाता है।
2. अन्तः अध्यावरण (Inner Integument) – बीज का अन्त:कवच या टेगमेन (tegmen) बनाता है।
3. बीजाण्ड वृन्त (Funiculus) – नष्ट हो जाता है। लीची में इससे एक मांसल ऊतक निकलता है, यह बीज के चारों ओर होता है, इसे बीजचोल या एरिल कहते हैं। यह खाने योग्य भाग है। इसे third integument भी कहते हैं।
4. बीजाण्डद्वार (Micropyle) – बीजाण्डद्वार के रूप में ही रहता है। अरण्डी (castor bean) में इससे एक अतिवृद्धि निकलती है, जिसे बीजचोलक (caruncle) कहते हैं।
5. बीजाण्डकाय (Nucellus) – प्रायः समाप्त हो जाता है, कभी-कभी पतली परत के रूप में बचा रहता है जिसे परिभ्रूणपोष (perisperm) कहते हैं; जैसे-कुमुदिनी, काली मिर्च आदि।
प्रश्न 5.
भ्रूणकोष तथा भ्रूणपोष की तुलना कीजिए। (2010, 14, 15, 17)
उत्तर
भ्रूणकोष तथा भ्रूणपोष की तुलना
प्रश्न 6.
निम्न पर टिप्पणी लिखिए
(क) अनिषेकफलने (2014, 17)
(ख) बहुभ्रूणता (2010, 14, 15, 16)
या
अनिषेकफलन एवं बहुभ्रूणता में अन्तर लिखिए। (2017)
उत्तर
(क) अनिषेकफलन
यह शब्द नौल (Noll) ने दिया। अण्डाशय (ovary) से बिना निषेचन के फल निर्माण की क्रिया को अनिषेकफलन (parthenocarpy) कहते हैं तथा ऐसे फलों को अनिषेकफलनी फल (parthenocarpic fruits) कहते हैं। यह फल बीजरहित (seedless) होते हैं। अंगूर, केले तथा अनन्नास में प्राकृतिक अनिषेकफलन होता है। अनिषेकफलन को हॉर्मोन; जैसे-ऑक्सिन व जिबरेलिन के छिड़काव से भी प्रेरित किया जाता है। अनार (pomegranate), नारियल (coconut) या उन फलों में जिनमें खाने योग्य भाग बीच का है, अनिषेकफलनी फल बनाना बेकार होता है।
(ख) बहुभ्रूणता
एक बीजाण्ड या बीज में एक से अधिक भ्रूणों का उत्पन्न होना बहुभ्रूणता (polyembryony) कहलाता है। अनावृतबीजी पौधों में यह सामान्य घटना है परन्तु आवृतबीजी पौधों में काफी कम पायी जाती है। बहुभ्रूणता (polyembryony) की खोज एण्टोनी वॉन ल्यूवेनहॉक (A.V. Leeuwenhoek) ने 1791 में सन्तरे (orange) के बीजों में की थी। यद्यपि एक बीज में बहुत सारे भ्रूण (embryo) विकसित हो जाते हैं, परन्तु इनमें से एक ही भ्रूण सक्रिय होकर पौधों की अगली पीढ़ी को जन्म देता है।
बहुभ्रूणता निम्न प्रकार की होती है –
1. सरले बहुभ्रूणता (Simple Polyembryony) – इस प्रकार की बहुभ्रूणता में बीजाण्ड में एक-से-अधिक भ्रूणकोष (embryo sac) होते हैं। इनमें निषेचन के बाद अनेक निषिक्ताण्ड (oospore) बनते हैं। प्रत्येक से भ्रूण का निर्माण होता है, जैसे-ब्रेसिका (Brassica)
2. मिश्रित बहुभ्रूणता (Mixed Polyembryony) – इसमें एक से अधिक पराग नलिकाएँ बीजाण्ड में जाती हैं। अतिरिक्त युग्मक, सहायक कोशाओं अथवा प्रतिमुख कोशाओं से संयुक्त हो जाते हैं और इस प्रकार बनी द्विगुणित कोशी (2n) से भी भ्रूण बनता है, जैसे – सैजिटेरिया, पोआ अल्पीना, एलियम ओडोरम आदि।
3. विदलन बहुभ्रूणता (Cleavage Polyembryony) – यह युग्मनज (zygote) के दो अथवा अधिक भागों में विभाजन से होती है। प्रत्येक भाग से भ्रूण बनता है; जैसे – क्रोटेलेरिआ
(Crotalaria), FAT37 15C (Nymphaea advena)
4. अपस्थानिक बहुभ्रूणता (Adventive Polyembryony) – जब भ्रूण का विकास बिना निषेचन के ही बीजाण्डकाय (nucellus) अथवा अध्यावरण (integuments) की कोशाओं से होता है, तब ऐसी बहुभ्रूणता को अपस्थानिक बहुभ्रूणता कहते हैं; जैसे- नींबू, संतरा, आम आदि।
प्रश्न 7.
असंगजनन (apomixis) क्या है? उपयुक्त उदाहरण देकर इस प्रक्रिया को समझाइए। (2014, 17)
या
अपबीजाणुता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2015)
उत्तर
असंगजनन
कभी-कभी पौधे के जीवन-चक्र में युग्मक-संलयन (syngamy) अथवा अर्धसूत्री विभाजन (meiosis) नहीं होते तथा इनकी अनुपस्थिति में नये पौधे का निर्माण हो जाता है, इस क्रिया को असंगजनन (apomixis) कहते हैं। इसकी खोज विंकलर (Winkler, 1908) नामक वैज्ञानिक ने की। असंगजनन मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है –
1. कायिक जनन (Vegetative Reproduction) – इस प्रकार के प्रजनन में बीज नहीं बनता। किसी कलिका से, जो तने अथवा पत्ती के ऊपर उत्पन्न होती है, एक नया पौधा जन्म लेता है;
जैसे – गन्ना, आलू आदि।
2. अनिषेकबीजता (Agamospermy) – लैंगिक जनन की अनुपस्थिति में बीज का निर्माण-इस प्रकार का प्रजनन बीज द्वारा होता है, परन्तु बीज के बनने में संयुग्मन एवं अर्धसूत्री विभाजन नहीं होते। यह निम्न प्रकार का होता है –
- अपस्थानिक भूणता (Adventive Embryony) – इस प्रकार के बीज के निर्माण में बीजाण्डकाय (nucellus) अथवा अध्यावरणों (integuments) की कुछ कोशिकाएँ विभाजन एवं वृद्धि करके भ्रूण का निर्माण करती हैं। इस प्रकार उत्पन्न भ्रूण में सभी कोशिकाएँ द्विगुणित (diploid) होती हैं। उदाहरण—नींबू (Citrus), आम (Mangifera indica), नागफनी (Opuntia dillenii)
- द्विगुणित बीजाणुता (Diplospory) – इस प्रकार के बीज के निर्माण में दीर्घबीजाणु मातृकोशिका (megaspore mother cell) से भ्रूणकोष (embryo sac) बन जाता है। क्योंकि इस निर्माण में अर्धसूत्री विभाजन नहीं होता, सभी कोशिकाएँ द्विगुणित (diploid) होती हैं। यदि इस भ्रूणकोष के अण्ड (egg) से, नर युग्मक के संयोजन के बिना भ्रूण का विकास हो जाता है तो उसे अनिषेकजनन (parthenogenesis) कहा जाता है। उदाहरण-इक्सेरिस डेन्टाटा (Ixertis dentata), टेरेक्साकम एल्बाइडियम (Taraxacum albidium)
- अपबीजाणुता (Apospory) – इसकी खोज रोजनबर्ग (Rosenberg, 1907) ने की। इसमें बीजाण्डकाय (nucellus) की कोई कोशिका एक ऐसे भ्रूणकोष का निर्माण करती है जिसकी प्रत्येक कोशिका में गुणसूत्र द्विगुणित (2n) होते हैं। यदि ऐसे भ्रूणकोष के अण्ड (egg) में नर युग्मक के संयोजन के बिना भ्रूण का विकास होता है तो इसे अनिषेकजनन (parthenogenesis) कहते हैं।
उदाहरण – क्रेपिस (crepis), क्लिफ्टोनिआ (Cliftonia), पार्थिनियम (Parthenium)।
प्रश्न 8.
अपयुग्मन पर टिप्पणी लिखें। (2017)
उत्तर
अपयुग्मन (Apogamy; Greek, apo = without; gamos = marriage)-यदि अगुणित भ्रूणकोष (haploid embryosac) के अण्ड कोशा (egg cell) के अलावा अन्य किसी दूसरी कोशा; जैसे-सहायक कोशा (synergid) अथवा प्रतिमुख कोशा (antipodal) से भ्रूण का निर्माण होता है, तो इसे अपयुग्मन कहते हैं। अर्थात् युग्मकोभिद् (gametophyte) से सीधे बीजाणुद्भिद् (sporophyte) का निर्माण; जैसे-एरीश्रिया (Erythroea); लिलियम (Lilium) आदि।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पुष्पी पादपों में लघुबीजाणुजनन का सचित्र वर्णन कीजिए। (2011)
या
केवल नामांकित चित्रों की सहायता से आवृतबीजी पौधों में लघुबीजाणुजनन का वर्णन कीजिए। (2009, 11)
या
संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए – ‘लघुबीजाणुजनन’। (2010, 11, 14, 16)
या
परागकोश के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का चित्रों की सहायता से वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर
लघुबीजाणुजनन
पुष्पी पादपों में एक परागकोश (anther) एक उभार के रूप में कुछ विभज्योतिकी कोशिकाओं का एक अण्डाकार समूह होता है। शीघ्र ही यह एक चार पालियों वाला आकार बना लेता है। अब, चारों पालियों में बाह्य त्वचा के अन्दर अलग-अलग अधःस्तरीय कोशिकाएँ (hypodermal cells) बड़े आकार की तथा अधिक स्पष्ट दिखाई देने लगती हैं। प्रत्येक पालि (lobe) में इस प्रकार की
कोशिकाओं की प्राय: एक ऊर्ध्व पंक्ति होती है। इन्हें प्रप्रसू कोशिकाएँ (archesporial cells) कहा जाता है। कभी-कभी अनुप्रस्थ काट में इनकी संख्या अधिक भी हो सकती है। प्रत्येक प्रप्रसू कोशिका में एक बड़ा तथा स्पष्ट केन्द्रक एवं प्रचुर मात्रा में जीवद्रव्य होता है। यह कोशिका एक परिनत विभाजन (periclinal division) अर्थात् पालि की परिधि के समानान्तर विभाजन द्वारा विभाजित होकर निम्नांकित दो कोशिकाएँ बनाती है –
1. प्राथमिक भित्तीय कोशिका (Primary Parietal Cell) – बाहरी कोशिका जो बाह्य त्वचा की ओर होती है फिर से एक परिनत विभाजन (parietal division) करके दो कोशिकाओं-बाहरी अन्त:भित्तीय कोशिका (endothecial cell) तथा भित्तीय कोशिका (parietal cell) में बँट जाती है। अन्त:भित्तीय कोशिका केवल पालि की परिधि के साथ 90° का कोण बनाते हुए अर्थात् अपनत (anticlinal) विभाजन द्वारा विभाजित होती है।
साथ ही भित्तीय कोशिका कई परिनत तथा अनेक अपनत विभाजनों के द्वारा विभाजित होती है। इन विभाजनों से परागपुट (pollen chamber) की भित्ति का निर्माण होता है। सम्पूर्ण पालि में ऊर्ध्व पंक्ति में उपस्थित अन्त:भित्तीय कोशिकाएँ विभाजन के बाद अन्त:भित्ति (endothecium) बना लेती हैं। भित्ति कोशिकाओं में से दो-तीन स्तर, मध्य स्तर (middle layers) का निर्माण करते हैं। मध्य स्तर की सबसे भीतरी परत पोषक कोशिकाएँ बनाती हैं, जिसे टैपेटम (tapetum) कहते हैं।
2. प्राथमिक बीजाणुजनक कोशिका (Primary Sporogenous Cell) – यह भीतरी कोशिका होती है जो बिना किसी क्रम के, अनियमित रूप में विभाजित होकर परागपुट (pollen chamber) के अन्दर बीजाणुजनक कोशिकाओं का एक समूह बना लेती है। स्पष्ट है। चारों पालियों में अलग-अलग तथा ऊर्ध्व रूप में निर्मित ये संरचनाएँ परागपुट हैं। इस समय तक योजि (connective) के एक ओर की दो पालियाँ मिलकर एक बड़ी पालि बनाती हैं तथा दूसरी ओर की दूसरी बड़ी पालि। अब प्रत्येक परागपुट में उपस्थित बीजाणुजनक कोशिकाएँ गोल होने लगती हैं, कुछ कोशिकाएँ टूट-फूटकर बढ़ती हुई कोशिकाओं के पोषण के काम आ जाती हैं, साथ ही इन कोशिकाओं का पोषण टैपेटम की कोशिकाओं के द्वारा भी होता है। इस प्रकार विकसित प्रत्येक कोशिका वास्तव में लघुबीजाणु मातृ कोशिका (microspore mother cell) है। एक परागपुट में इनकी संख्या सहस्त्रों हो सकती है।
सभी लघुबीजाणु मातृ कोशिकाओं का केन्द्रक, अब अर्द्ध-सूत्री विभाजन (reduction division or meiosis) द्वारा विभाजित होता है और चार केन्द्रक बनते हैं। इस प्रकार प्रत्येक केन्द्रक में गुणसूत्रों की संख्या मातृ कोशिका के केन्द्रक (2n) से आधी अर्थात् अगुणित (n = haploid) रह जाती है। सामान्यत: चारों केन्द्रक बनने के बाद ही कोशिकाद्रव्य विभाजन होता है, किन्तु कुछ एकबीजपत्री पौधों में कोशिकाद्रव्य का विभाजन प्रथम अर्द्ध-सूत्री विभाजन के बाद ही आरम्भ हो जाता है।
प्रत्येक अगुणित कोशिका ही लघुबीजाणु (microspore) है। ये चार-चार के समूह अर्थात् चतुष्क (tetrad) में विन्यसित रहते हैं, जो अधिकतर द्विबीजपत्रियों में (i) चतुष्फलकीय (tetrahedral), किन्तु अधिकतर एकबीजपत्रियों में (ii) समद्विपाश्विक (isobilateral) होते हैं।
प्रश्न 2.
गुरुबीजाणुजनन क्या है? आवृतबीजीय पौधों में मादा युग्मकोभिद के परिवर्धन का वर्णन कीजिए। (2010, 11)
या
चित्रों की सहायता से एक सामान्य 8-केन्द्रकीय भ्रूणकोष के विकास का वर्णन कीजिए। (2009, 11, 12)
या
आवृतबीजी पौधों में भ्रूणकोष कैसे बनता है? चित्रों की सहायता से समझाइए। विभिन्न केन्द्रकों के कार्य की विवेचना कीजिए। (2010)
या
आवृतबीजी पौधों में गुरुबीजाणुजनन प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। (2014, 17)
या
‘आवृतबीजियों में मादा युग्मकोभिद्’ पर टिप्पणी लिखिए। (2015)
या
भ्रूणकोष का नामांकित चित्र बनाइए। (2017)
उत्तर
गुरुबीजाणुजनन
पुष्पीय पौधे विषमबीजी (heterosporous) होते हैं अर्थात् इन पौधों में दो प्रकार के बीजाणु (spores) बनते हैं – लघुबीजाणु (microspores) जो नर युग्मकोभिद (male gametophyte) बनाने वाली कोशिकाएँ हैं तथा गुरुबीजाणु (megaspores) जो मादा युग्मकोभिद बनाने वाली कोशिकाएँ होती हैं। गुरुबीजाणुओं के बनने की क्रिया जिसमें मिओसिस (अर्द्ध-सूत्री विभाजन) होती है, गुरुबीजाणुजनन (megasporogenesis) कहलाती है।
आवृतबीजी पौधे में मादा युग्मकोभिद का परिवर्धन
1. गुरुबीजाणुओं का निर्माण या गुरुबीजाणुजनन (Development of Megaspores or Megasporogenesis) – बीजाण्ड (ovule) में बीजाण्डकाय (nucellus) के स्वतन्त्र सिरे के कुछ अन्दर अर्थात् अधःस्तरीय (hypodermal) क्षेत्र में एक या कई कोशिकाओं का एक समूह अपने स्पष्ट केन्द्रकों आदि से अधिक स्पष्ट होकर प्रप्रसू कोशिकाएँ (archesporial cells) बनाता है। यदि एक से अधिक प्रप्रसू कोशिकायें हैं तो भी प्राय: एक ही कोशिका बड़ी तथा स्पष्ट होकर एक परिनत विभाजन (periclinal division), जो कि एक सूत्री विभाजन (mitotic division) है, के द्वारा दो कोशिकाओं में बँट जाती है –
- बाहरी कोशिका, प्राथमिक भित्तीय कोशिका (primary parietal cell) कहलाती है जो एक परिनत विभाजन के द्वारा विभाजित होकर दो कोशिकाएँ अथवा कुछ अपनत (anticlinal) विभाजनों के द्वारा भित्तीय कोशिकाओं (parietal cells) का एक समूह बना लेती है।
- भीतरी कोशिका प्राथमिक बीजाणुजनक कोशिका (primary sporogenous cell) कहलाती है और प्रायः बिना विभाजित हुए सीधे ही गुरुबीजाणु मातृ कोशिका (megaspore mother cell) की तरह वृद्धि करने लगती है। यह कोशिका जब काफी बड़ी तथा स्पष्ट केन्द्रक वाली हो जाती है, तो इसमें अर्द्ध-सूत्री विभाजन (meiosis) होता है और चार अगुणित (haploid = n) कोशिकाएँ बनती हैं, जो प्रायः एक लम्बवत् चतुष्क (linear tetrad) में विन्यसित रहती हैं। ये कोशिकाएँ गुरुबीजाणु (megaspore) हैं। इस प्रकार एक सम्पूर्ण बीजाण्ड अर्थात् गुरुबीजाणुधानी (megasporangium) में केवल चार गुरुबीजाणु बनते हैं जिनमें से प्राय: केवल एक ही गुरुबीजाणु क्रियाशील (functional) होता है और बढ़कर मादा युग्मकोभिद (female gametophyte) अर्थात् भ्रूणकोष (embryo sac) में परिवर्द्धित होता है। शेष बचे तीन गुरुबीजाणु बाद में नष्ट हो जाते हैं।
2. आवृतबीजी पौधे के भ्रूणकोष का परिवर्द्धन (Development of an Angiospermic Embryosac) – एक आवृतबीजी बीजाण्ड के बीजाण्डकाय (nucellus) के बीजाण्डद्वारीय (micropylar), स्वतन्त्र सिरे की ओर एक गुरुबीजाणु मातृकोशिका में अर्द्ध-सूत्री विभाजन (meiosis) से चार गुरुबीजाणुओं (megaspores) का निर्माण प्रायः लम्बवत् चतुष्क (linear tetrad) के रूप में होता है। इनमें से एक प्राय: निभागीय (chalazal) सिरे की ओर वाला गुरुबीजाणु (megaspore) जो एक अगुणित (haploid) तथा मादा युग्मकोद्भिद (female gametophyte) की प्रथम कोशिका है, क्रियाशील हो जाता है। यह
गुरुबीजाणु बीजाण्डकाय (nucellus) से अधिक मात्रा में पोषण प्राप्त करने लगता है तथा अब यह बड़ा होकर भ्रूणकोष मातृकोशिका (embryo sac mother cell) की तरह कार्य करने लगता है। यह बीजाण्डकाय का अधिकतम स्थान घेर लेता है। वृद्धि के समय इसका केन्द्रक जो लगभग मध्य में स्थित था, विभाजित होकर दो केन्द्रक बनाता है। बने हुए दोनों केन्द्रकों में से एक-एक दोनों विपरीत ध्रुवों पर (बीजाण्डद्वार वाला सिरा तथा दूसरा निभाग की ओर) स्थित हो जाते हैं। दोनों ध्रुवों पर स्थित ये केन्द्रक सूत्री विभाजन के द्वारा सामान्यत: दो-दो बार और विभाजित होते हैं। इस प्रकार, प्रत्येक ध्रुव पर चार-चार (कुल आठ) केन्द्रक बन जाते हैं। इस समय तक क्रियाशील गुरुबीजाणु जिसमें ये केन्द्रक स्थित हैं, बढ़कर एक थैले (sac) की तरह हो जाता है और अब इसे भ्रूणकोष (embryo sac) कहते हैं। भ्रूणकोष के प्रत्येक ध्रुवीय सिरे में उपस्थित चार-चार केन्द्रकों में से एक-एक केन्द्रक एक-दूसरे के साथ जुड़कर द्वितीयक केन्द्रक (secondary nucleus) का निर्माण करते हैं। उधर, दोनों ध्रुवों पर शेष तीन-तीन केन्द्रक अपने चारों ओर कोशिकाद्रव्य एकत्रित कर निम्नलिखित कोशिकाओं का निर्माण करते हैं –
- बीजाण्डद्वार की ओर वाली तीन कोशिकाओं में से एक कोशिका अधिक बड़ी हो जाती है, यह अण्ड कोशिका (egg cell or oosphere) तथा शेष दोनों कोशिकाएँ सहायक कोशिकाएँ (synergid cells) कहलाती हैं। अण्ड कोशिका प्रायः मध्य में तथा सहायक कोशिकाएँ पाश्र्व में व्यवस्थित रहती हैं।
- निभाग की ओर वाले ध्रुव की ओर बनी तीनों कोशिकाएँ, प्रतिधुवीय कोशिकाएँ (antipodal cells) कहलाती हैं।
इस प्रकार, गुरुबीजाणुधानी के अन्दर ही एक गुरुबीजाणु मादा युग्मकोभिद अथवा भ्रूणकोष (female gametophyte or embryo sac) का निर्माण करता है।
प्रश्न 3.
परागण किसे कहते हैं? सैल्विया में होने वाले परागण की क्रिया का वर्णन कीजिए। (2012)
उत्तर
परागण
पुंकेसर (stamen) पुष्प का नर भाग होता है जबकि स्त्रीकेसर (pistil) मादा भाग होता है। पुंकेसरों में परागकणों (pollen grains) का निर्माण होता है जो नर युग्मक अथवा शुक्राणु (sperms) उत्पन्न करते हैं। स्त्रीकेसरों में अण्डाशय (ovaries) का निर्माण होता है जिसमें मादा युग्मक अथवा अण्डाणु (egg) बनता है। प्रजनन क्रिया के सम्पन्न होने हेतु नर तथा मादा युग्मकों का संयुग्मन (fusion) आवश्यक है। चूंकि अधिकांश पौधों में परागकणों (pollen grains) के संचालन (locomotion) का अभाव होता है, इस कारण परागकणों के जायांग (gynoecium) तक पहुँचने के लिए इन्हें विभिन्न ढंग अपनाने पड़ते हैं। परागकोश में बने परागकणों का मादा पुष्प के वर्तिकाग्र (stigma) तक पहुँचने की घटना को परागण (pollination) कहते हैं। परागण के पश्चात् पुंकेसर और दल गिर जाते हैं, बाह्यदल या तो गिर जाते हैं या फल में चिरलग्न रहते हैं।
परागण के प्रकार
परागण (pollination) निम्नलिखित दो प्रकार का होता है –
- स्व-परागण (self-pollination) तथा
- पर-परागण (cross-pollination)।
1. स्व – परागण
स्व-परागण (self pollination) में एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प अथवा उसी पौधे के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र (stigma) पर पहुँचते हैं।
2. पर-परागण
इस क्रिया में एक पुष्प के परागकण उसी जाति के दूसरे पौधों के पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हैं। यहाँ पर दोनों पुष्प दो अलग-अलग पौधों पर स्थित होते हैं चाहे वे एकलिंगी हों या द्विलिंगी। पर-परागण क्रिया का मुख्य लक्षण यह है कि इसमें बीज उत्पन्न करने के लिये एक ही जाति के दो पौधे भाग लेते हैं। द्विक्षयक पौधों (dioecious plants) के पुष्पों में केवल पर-परागण ही सम्भव होता है। द्विलिंगी पुष्पों में यह सामान्यतया पाया जाता है।
सैल्विया में कीट परागण
सैल्विया का पुष्प द्वि-ओष्ठि (bilabiate) होता है, ऊपरी ओष्ठ प्रजनन अंगों की रक्षा करता है तथा निचला ओष्ठ मधुमक्खियों के बैठने के लिये एक मंच (stage) का कार्य करता है। पुष्प पूर्वऍपक्व (protandrous) होता है, अर्थात् पुंकेसर, स्त्री पुंकेसर से पहले पकता है। इसमें दो पुंकेसर होते हैं।
प्रत्येक पुंकेसर का पुंतन्तु छोटा होता है और इसके सिरे पर लीवर की भाँति मुड़ा तथा असामान्य रूप से लम्बा योजी (connective) होता है जो मध्य से कुछ हटकर पुंतन्तु से जुड़ा होता है। इस प्रकार योजी दो असमान खण्डों में बँट जाता है और इसके दोनों सिरों पर एक-एक परागकोश पालि लगी रहती है। ऊपरी खण्ड बड़ा होता है तथा इसके सिरे पर स्थित पालि अबन्ध्य (fertile) होती है। निचले छोटे खण्ड के सिरे पर बन्थ्य (sterile) पालि लगी रहती है। दोनों पुंकेसरों की बन्ध्य पालियाँ दलपुंज के मुख पर स्थित होती हैं। सल्विया में परागण क्रिया मधुमक्खी (honeybee) द्वारा सम्पन्न होती है।
जब मकरन्द की खोज में कोई मधुमक्खी दलपुंज की नली में प्रवेश करती है तो निचली बन्ध्य परागकोश पालियों को धक्का लगता है जिससे योजी का ऊपरी खण्ड लीवर की भाँति नीचे झुक जाता है। इसके फलस्वरूप दोनों अबन्ध्य परागकोश पालियाँ मधुमक्खी की पीठ से टकराकर अपना परागकण इसके ऊपर बिखेर देती हैं। जब यह मधुमक्खी परिपक्व अण्डप वाले किसी दूसरे पुष्प में प्रवेश करती है तो नीचे की ओर मुड़े हुए वर्तिकाग्र (stima) इसकी पीठ से रगड़ खाकर परागकणों को चिपका लेते हैं और इस प्रकार परागण क्रिया सम्पन्न होती है।
प्रश्न 4.
पर-परागण से होने वाले लाभ तथा हानि का उल्लेख कीजिए। (2016)
या
“स्व-परागण की अपेक्षा पर-परागण अधिक उपयोगी है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए। (2017)
उत्तर
पर-परागण से लाभ (Advantages of Cross-pollination)-पर-परागण से निम्नलिखित लाभ हैं –
- पर-परागित पुष्पों से बनने वाले फल बड़े, भारी एवं स्वादिष्ट होते हैं तथा इनमें बीजों की संख्या अधिक होती है।
- पर-परागण से उत्पन्न बीज भी बड़े, भारी, स्वस्थ एवं अच्छी नस्ल वाले होते हैं, जिससे उपज बढ़ जाती है।
- इन बीजों से उत्पन्न पौधे भी बड़े, भारी, स्वस्थ एवं सक्षम होते हैं तथा इनमें प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने की अधिक क्षमता होती है।
- पर-परागण द्वारा रोग अवरोधक (disease resistant) नयी जातियाँ तैयार की जा सकती हैं।
- पर-परागण से आनुवंशिक पुनर्योजन द्वारा विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
- पर-परागण द्वारा प्रकृति में स्वत: ही पौधों की नई जातियाँ (new varieties) उत्पन्न होती रहती हैं। जिनमें नये गुणों का समावेश होता है तथा हाइब्रिड विगर (hybrid vigour) के कारण अच्छी संतति बनती है।
पर-परागण से हानियाँ (Disadvantages of Cross-pollination) – अनेक लाभ होते हुए भी पर-परागण से निम्नलिखित हानियाँ भी हैं –
- पर-परागण की क्रिया अनिश्चित (uncertain) होती है, क्योंकि परागण के लिए यह वायु, जल एवं जन्तु पर निर्भर होती है।
- परागित करने वाले साधनों की समय पर उपलब्धता न होने पर अधिकांश पुष्प परागित होने से रह जाते हैं।
- पर-परागण के लिए पुष्पों को दूसरे पुष्पों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- कीटों को आकर्षित करने के लिये पुष्पों को चटकीले रंग, बड़े दल, सुगन्ध तथा मकरन्द उत्पन्न करना पड़ता है जिन सबमें अधिक पदार्थ का अपव्यय होता है तथा अधिक ऊर्जा का ह्रास होता है।
- पर-परागित पुष्पों, विशेषकर वायु परागित पुष्पों में परागकण अधिक संख्या में नष्ट होते हैं।
- पर-परागित बीज सदैव संकर (hybrid) होते हैं।
प्रश्न 5.
द्विबीजपत्री भ्रूण के विकास का वर्णन कीजिए। (2015)
या
द्विबीजपत्री पौधों में भ्रूण विकास की विभिन्न अवस्थाओं का केवल नामांकित चित्र बनाइए। (2017)
उत्तर
द्विबीजपत्री भ्रूण का विकास
युग्मनज (zygote) एक द्विगुणित संरचना है। यह सूत्री विभाजनों (mitotic division or mitosis) द्वारा विभाजित होता है। आरम्भ में यह आकार में बढ़कर अपने चारों ओर सेलुलोस की एक भित्ति का निर्माण करता है। इसके पश्चात् यह एक अनुप्रस्थ विभाजन (transverse division) द्वारा दो कोशाओं में विभाजित हो जाता है। इसमें ऊपरी (बीजाण्डद्वार की ओर स्थित) कोशा को आधार कोशा (basal cell) तथा निचली (निभाग की ओर स्थित) कोशा को अन्तस्थ कोशा (terminal cell) कहते हैं। अन्तस्थ कोशा को भूणीय कोशा (embryonal cell) तथा आधार कोशा को निलम्बक कोशा (suspensor cell) कहते हैं। आधार कोशा एक अनुप्रस्थ विभाजन (transverse division) तथा अन्तस्थ कोशा एक उदग्र विभाजन (vertical division) द्वारा विभाजित होकर (T’) के आकार का चार-कोशीय बालभूण (pro embryo) बनाती है।
निलम्बक कोशी कई अनुप्रस्थ विभाजनों द्वारा विभाजित होकर छः से दस कोशा लम्बी सूत्राकार रचना निलम्बेक (suspensor) बनाती है। इस निलम्बक की ऊपरी कोशा कुछ फूलकर एक पुटिका कोशा (vesicular cell or haustorial cell) बनाती है। निलम्बक भ्रूण कोशाओं को नीचे की ओर धकेलती है। इनकी ऊपरी कोशा चूषांग (haustoria) का कार्य करती है। निलम्बक की सबसे निचली कोशी अधःस्फीतिका (hypophysis) कहलाती है। यही कोशा आगे विभाजन करके मूलांकुर (radicle) के शीर्ष को जन्म देती है। निलम्बक का कार्य बीजाण्डकाय से भोजन खींचकर वृद्धि कर रहे भ्रूण को प्रदान करना है।
इसी बीच अन्तस्थ कोशा की दोनों कोशाएँ एक अनुप्रस्थ विभाजन द्वारा विभाजित होकर चार भ्रूणीय कोशाएँ (embryonal cells) बनाती हैं। ये चारों कोशाएँ पुनः विभाजन द्वारा एक आठ कोशाओं वाली। अष्टम अवस्था (octant stage) बनाती हैं। इसमें अधः स्फीतिका के नीचे की चार कोशाएँ अधराधार कोशाएँ (hypobasal cells) तथा इसके नीचे चार कोशाएँ अध्याधार कोशाएँ (epibasal cells) कहलाती हैं। अधराधार कोशाओं से मूलांकुर (radicle) व अधोबीजपत्र (hypocotyl) तथा अध्याधार कोशाओं से प्रांकुर (plumule) व बीजपत्र (cotyledons) बनते हैं। अष्टमावस्था की आठों कोशाएँ परिनत विभाजन (periclinal division) द्वारा विभाजित होकर बाह्यत्वचीय कोशाओं (epidermal cells) का एक स्तर बनाती हैं जो बाद में अपनत विभाजन (anticlinal division) द्वारा विभाजित होकर त्वचाजन (dermatogen) स्तर बनाता है।
अन्दर की कोशाएँ अनेक उदग्र (vertical) व अनुप्रस्थ (transverse) विभाजनों द्वारा विभाजित होकर केन्द्रीय रम्भजन (plerome) तथा मध्य में वल्कुटजन (periblem) बनाती हैं। वल्कुटजन कोशाएँ वल्कुट तथा रम्भजन कोशाएँ रम्भ (stele) बनाती हैं। पुनः वृद्धि एवं विभाजनों द्वारा भ्रूण कुछ हृदयाकार (cordate) हो जाता है। बाद में बीजपत्र बड़े होकर मुड़ जाते हैं। इस प्रकार परिपक्व द्विबीजपत्री भ्रूण में दो बीजपत्र (cotyledons) होते हैं जो एक अक्ष (axis) से जुड़े रहते हैं। अक्ष का एक भाग जो बीजपत्रों के बीच होता है प्रांकुर (plumule) कहलाती है और दूसरा भाग मूलांकुर (radicle) कहलाता है। उपरोक्त प्रकार के द्विबीजपत्री भ्रूण का परिवर्धन सामान्य प्रकार का है। इसका उदाहरण क्रूसीफेरी कुल के सदस्य कैप्सेला बुर्सा पेस्टोरिस (Capsella bursd pastoris) है।
प्रश्न 6.
भ्रूणपोष क्या है? इसके विभिन्न प्रकारों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (2014, 16)
या
आवृतबीजी पौधों में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के भ्रूणपोषों का वर्णन कीजिए। (2011)
या
‘भ्रूणपोष’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2010, 12)
उत्तर
भ्रूणपोष तथा उसके प्रकार
सभी पुष्पीय पौधों में भ्रूण (embryo) के पोषण के लिए एक विशेष ऊतक होता है, इसे भ्रूणपोष कहते हैं। जिम्नोस्पर्स में यह ऊतक युग्मकोभिदी या अगुणित (haploid = n) होता है किन्तु आवृतबीजी पौधों (angiospermic plants) में यह त्रिसंयोजन (triple fusion) के फलस्वरूप बनता है और अधिकतर पौधों में त्रिगुणित (triploid = 3n) होता है। इसके बीज में बने रहने तथा बीजांकुरण में सहायता करने पर बीज भ्रूणपोषी (endospermic) कहलाता है। अनेक द्विबीजपत्री पौधों के बीजों में इसका भोजन बीज के बनते समय बीजपत्रों द्वारा सोख लिया जाता है और यह बीज अभ्रूणपोषी (non- endospermic) कहलाता है।
भ्रूणकोष (embryo sac) में होने वाले त्रिसंयोजन (triple fusion) के फलस्वरूप त्रिगुणित केन्द्रक (3n = triploid nucleus) बनता है। इसी के परिवर्द्धन से एक पोषक संरचना, भ्रूणपोष (endosperm) का निर्माण होता है। यह बढ़ते हुए भ्रूण (embryo) को पोषण देता है। कभी-कभी यह ऊतक; जैसे – अंकुरण के समय भ्रूण को पोषण प्रदान करने का कार्य करता है। आवृतबीजी पौधों में परिवर्धन (development) के आधार पर भ्रूणपोष अग्रलिखित तीन प्रकार के होते हैं –
1. केन्द्रकीय भ्रूणपोष (Nuclear Endosperm)-इस प्रकार के भ्रूणपोष विकास में भ्रूणपोष केन्द्रक (endosperm nucleus) बार-बार विभाजन द्वारा स्वतन्त्र रूप से बहुत-से केन्द्रक
बनाता है (भित्ति-निर्माण नहीं होता) जो बाद में परिधि पर विन्यसित हो जाते हैं। भ्रूणपोष के मध्य में एक केन्द्रीय रिक्तिका (central vacuole) बन जाती है। बाद में यह रिक्तिका समाप्त हो जाती है और बहुत-से केन्द्रक व कोशीद्रव्य इसमें भर जाते हैं। बाद में इनमें अनेक कोशाएँ बन जाती हैं। इस प्रकार का भ्रूणपोष
प्रायः पोलीपेटेली (polypetalae) वर्ग में पाया जाता है, जैसे-कैप्सेला | (Capsella)।
2. कोशिकीय भ्रूणपोष (Cellular Endosperm) – इस प्रकार के भ्रूणपोष निर्माण में भ्रूणपोष केन्द्रक के प्रत्येक विभाजन के पश्चात् कोशा-भित्ति का निर्माण होता है। इस प्रकार का भ्रूणपोष प्रायः गैमोपेटेली वर्ग में पाया जाता है, haustorium जैसे – विल्लारसिया (Villarsia)।
3. हिलोबियल भ्रूणपोष (Helobial Endosperm) – इस प्रकार का भ्रूणपोष लगभग 19% आवृतबीजी पौधों में पाया जाता है, विशेष रूप से यह एकबीजपत्री पौधों में पाया जाता है। यह ऊपर वर्णन किये गये दोनों प्रकार के भ्रूणपोषों के बीच की अवस्था है। इसमें भ्रूणपोष केन्द्रक के प्रथम विभाजन के बाद कोशा-भित्ति का निर्माण होता है। बाद में इन दोनों भागों में केन्द्रक विभाजन होता रहता है और भित्ति-निर्माण नहीं होता, जैसे-ऐरीमुरस (Eremurus)।
प्रश्न 7.
पीढ़ियों का एकान्तरण क्या है? एक आवृतबीजी पौधे के जीवन इतिहास का केवल | रेखांकित चित्रों की सहायता से वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर
आवृतबीज़ी पौधों के जीवन-इतिहास में एक अत्यन्त विकसित एवं द्विगुणित (diploid; 2n) अवस्था बीजाणु-उभिद् (sporophyte) तथा अल्प विकसित, अगुणित (haploid; n) अवस्था युग्मकोभिद् (gametophyte) होती है।
ये दोनों अवस्थाएँ जीवन-चक्र में एक-दूसरे के बाद आती रहती हैं, जिसे पीढ़ी एकान्तरण (alternation of generation) कहते हैं। किन्तु बीजाणुभिद् अवस्था स्वतन्त्र जबकि युग्मकोद्भिद् अवस्था बीजाणुभि पर निर्भर (dependent) होती है।
बीजाणुद्भिद् अवस्था प्रायः जड़, तना एवं पत्तियों में विभक्त होती है। युग्मकोद्भिद् अवस्था में परागकण नर युग्मकोभिद् की प्रथम कोशा है जिसके विकास से नर युग्मकों (male gametes) का निर्माण होता है। इसी प्रकार से बीजाण्ड के अन्दर दीर्घबीजाणु (megaspore) मादा युग्मकोभिद् की प्रथम कोशा है, जिससे भ्रूणकोष को निर्माण होता है। भ्रूणकोष में अण्ड कोशा (egg) बनती है। नरे। युग्मक (male gamete) एवं अण्ड (egg) कोशा के संयुग्मन (fusion) से युग्मनज (zygote; 2n) का निर्माण होता है। चूंकि युग्मनज बीजाण्ड के अन्दर बनता है, अत: बीजाण्ड जिसे निषेचन के पश्चात् बीज कहते हैं; के अंकुरण से बीजाणुभिद् पौधे का पुनः विकास होता है।
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