UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 18 Learning Meaning, Process, Laws and Methods

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 18 Learning Meaning, Process, Laws and Methods (सीखना-अर्थ, प्रक्रिया, नियम एवं विधियाँ) are part of UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 18 Learning Meaning, Process, Laws and Methods (सीखना-अर्थ, प्रक्रिया, नियम एवं विधियाँ).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Pedagogy
Chapter Chapter 18
Chapter Name Learning Meaning, Process, Laws and Methods
(सीखना-अर्थ, प्रक्रिया, नियम एवं विधियाँ))
Number of Questions Solved 76
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 18 Learning Meaning, Process, Laws and Methods (सीखना-अर्थ, प्रक्रिया, नियम एवं विधियाँ)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
सीखने का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। सीखने की विशेषताओं का सामान्य विवरण भी प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
सीखने का अर्थ व परिभाषा जीवन की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए गते अनुभवों की सहायता से व्यवहार में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया को हम सीखना कहते हैं। वास्तव में, ‘सीखना किसी स्थिति के प्रति एक सक्रिय प्रतिक्रिया है। इस प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप ही व्यक्ति के व्यवहार में प्रगतिशील परिवर्तन होते हैं। प्रत्येक प्रतिक्रिया एक अनुभव देती है और यह अनुभव व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन लाता है। इस सम्पूर्ण प्रतिक्रिया को ही हम सीखना कहते हैं। सीखने की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं।

1. वुडवर्थ :
(Woodworth) के अनुसार, “नवीन ज्ञान और प्रतिक्रियाओं को करने की प्रक्रिया, सीखने की प्रक्रिया है।”

2. गेट्स :
व अन्य के अनुसार, “अनुभवों और प्रशिक्षण द्वारा अपने व्यवहारों का संशोधन करना ही सीखना है।”

3. स्किनर :
(Skinner) के अनुसार, “सीखना व्यवहार में प्रगतिशील सामंजस्य की प्रतिक्रिया

4. क्रॉनबैक :
(Cronback) के अनुसार, “सीखना, अनुभव के फलस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन द्वारा अभिव्यक्त होता है।”

5. कॉलविन :
(Colvin) के अनुसार, “अनुभव के आधार पर हमारे पूर्व-निर्मित व्यवहार में परिवर्तन की प्रक्रिया ही सीखना है।”

6. गिलफोर्ड :
(Guilford) के अनुसार, “व्यवहार के कारण, व्यवहार में परिवर्तन ही सीखना

7. जी० डी० बॉज :
(G. D. Boaz) के अनुसार, “सीखना एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति विभिन्न आदतों, ज्ञान एवं दृष्टिकोण सामान्य जीवन की माँगों की पूर्ति के लिए अर्जित करता है।

8. क्रो व क्रो :
(Crow & Crow) के अनुसार, “ज्ञान और अभिवृत्ति की प्राप्ति ही सीखना है।”

9. प्रेसी :
(Pressy) के अनुसार, “सीखना एक अनुभव है, जिसके द्वारा कार्य में परिवर्तन या समायोजन होता है तथा व्यवहार की गयी विधि प्राप्त होती है।”

10. हिलगार्ड :
(Hilgard) के अनुसार, “सीखना एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कोई प्रक्रिया आरम्भ होती है या सामना की गयी परिस्थिति द्वारा परिवर्तित की जाती है। इसके लिए आवश्यक है कि क्रिया के परिवर्तन की विशेषताओं, मूल-प्रवृत्तियों की प्रक्रिया, परिपक्वता या प्राणी की अस्थायी आवश्यकताओं के आधार पर उस प्रक्रिया को समझाया न जा सके।”

उपर्युक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने से यह निष्कर्ष निकलता है कि

  • सीखने का अर्थ व्यवहार में परिवर्तन है।
  • सीखना व्यवहार का संगठन है।
  • सीखना नवीन प्रक्रिया की पुष्टि है।

सीखने की प्रमुख विशेषताएँ
सीखने की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. सीखना परिवर्तन है :
अनुभव जन्म से लेकर मृत्यु तक चलता रहता है। हर समय व्यक्ति कुछ-न-कुछ सीखता रहता है और इसके लाभ उठाकर व्यक्ति अपने सीखने की प्रमुख विशेषताएँ व्यवहार में परिवर्तन करता है। अतः सीखना परिवर्तन है।

2. सीखना खोज करना है :
मर्सेल (Mursell) के अनुसार, “सीखना उसे तथ्य खोजने और जानने का कार्य है, जिसे व्यक्ति खोजना और जानना चाहता है। वास्तव में, सीखना एक प्रकार से खोज करना है। आज मानव ने जो प्रगति की है, उसको मूल आधार इस प्रकार का सीखना ही है।

3. सीखना जीवन-पर्यन्त चलता है :
अनुभव का जीवन में विशेष महत्त्व हैं, और यह जन्म से लेकर मृत्यु तक निरन्तर चलता रहता है। व्यक्ति जीवनभर कुछ-न-कुछ सीखता ही रहता है और यह प्रक्रिया निरन्तर मृत्यु तक चलती ही रहती है।

4.सीखना सक्रिय है :
सीखना बिना सक्रियता के सम्भव नहीं है। बालक सक्रिय होकर ही सीखता है।

5. सीखना विकास है :
सीखना एक विकास है, जिसका कभी अन्त नहीं होता है। प्रत्येक पल व्यक्ति कुछ-न-कुछ सीखती रहता है, जिसके परिणामस्वरूप उसका मानसिक विकास होता रहता है।

6.सीखना अनुभवों का संगठन है :
एक व्यक्ति जैसे-जैसे अपने अनुभवों के आधार पर नवीन बातें सीखता है, वैसे-ही-वैसे वह आवश्यकतानुसार अपने अनुभवों को संगठित करता जाता है।

7. सीखना सार्वभौमिक है :
सीखना एक सार्वभौमिक क्रिया है, जो समस्त प्राणियों में पायी जाती है। विकास की श्रेणियों के आधार पर प्राणियों के सीखने में अन्तर होता है। पशु-पक्षी कम सीखते हैं, क्योंकि उनमें अपने अनुभव से लाभ उठाने की क्षमता कम होती है। सीखने की प्रवृत्ति मनुष्य में सबसे अधिक पायी जाती है।

8. सीखना उद्देश्यपूर्ण है :
सीखना उद्देश्यपूर्ण होता है। बिना उद्देश्य के सीखना सफल नहीं हो सकता। उद्देश्य की प्रबलता ही सीखने की क्रिया तीव्र करती है।

9. सीखना समायोजन है :
सीखकर मनुष्य अपने को वातावरण से समायोजित करता है। इस प्रकार का समायोजन करना ही सीखना है।

प्रश्न 2
सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए।
या
सीखने को प्रभावित करने वाले कारकों को बताइए। [2016]
उत्तर :
सीखने को प्रभावित करने वाले कारक
सीखने की प्रक्रिया में अनेक बातें सहायक और बाधक होती हैं। यहाँ हम उन कारकों का अध्ययन करेंगे, जिनसे सीखने की क्रिया प्रभावित होती है।

1. वातावरण :
वातावरण प्रमुख कारक है, जो सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। यदि कक्षा का वातावरण शोरगुलयुक्त है, तो छात्र अपना ध्यान एकाग्र नहीं कर सकेंगे। परिणामस्वरूप वे ठीक प्रकार से सीख भी नहीं सकेंगे। उसके अतिरिक्त यदि छात्रों के बैठने की व्यवस्था उचित प्रकार से नहीं है, प्रकाश और वायु के आवागमन की भी उचित व्यवस्था नहीं है तो भी छात्र ठीक प्रकार से नहीं सीख सकेंगे। मौसम का प्रभाव भी सीखने पर पड़ता है। अत्यधिक ठण्डक और अत्यधिक गर्मी दोनों ही सीखने में बाधा पहुँचाती हैं।

2. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य :
यदि बालकों को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ठीक होगा तो वह किसी भी बात को शीघ्रता से सीख जाएगा। शारीरिक और मानसिक दृष्टि से पिछड़े बालक प्रायः पढ़ने-लिखने में कमजोर रहते हैं और वे बहुत देर से सीख पाते हैं।

3.सीखने का समय :
बालक अधिक समय तक किसी विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकती, क्योंकि अधिक समय तक ध्यान केन्द्रित करने में उनमें थकावट आ जाती है और उनका ध्यान इधर-उधर भटकने लगता है। दूसरी ओर प्रात:काल छात्र अधिक स्फूर्ति का अनुभव करते हैं। अत: इस समय उन्हें सीखने में सुगमता होती है। दोपहर अथवा शाम को वह इतना अधिक नहीं सीख पाते। इसी प्रकार विद्यालय के प्रथम घण्टे में जो सीखने की गति होती है, वह अन्त के घण्टों में बहुत कम हो जाती है।

4. विषय-सामग्री :
कठिन, नीरस तथा अर्थहीन विषय-सामग्री की अपेक्षा सरल, रोचक तथा अर्थपूर्ण विषय-सामग्री अधिक सुगमता से सीख ली जाती है।

5. सीखने की अवस्था :
प्रौढ़ व्यक्तियों की अपेक्षा छोटे पाक से बालक किसी बात को शीघ्र समझ जाते हैं। भाषा और कला के विषय में यह बात मुख्य रूप से लागू होती है, परन्तु कुछ बातें बालकों की । अपेक्षा प्रौढ़ जल्दी समझते हैं।

6. सीखने की इच्छा :
सीखना बहुत कुछ व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। जिस बात को सीखने की बालकों की प्रबल इच्छा होती है, उसे वे प्रत्येक परिस्थिति में सीख लेते हैं। उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें कुछ भी नहीं सिखाया जा सकता है। अतः किसी तथ्य को सीखने के लिए छात्रों की इच्छा को उसके अनुकूल बनाना परम आवश्यक है।

7. सीखने की विधियाँ :
सीखने की विधि जितनी ही अधिक सरल, आकर्षक तथा रुचिपूर्ण होगी, उतनी ही सरलता तथा शीघ्रता से बालक सीखेगा।

8. पूर्व अनुभव :
बालक जो कुछ भी सीखता है, वह प्रायः अपने पूर्व अनुभव के आधार पर ही सीखता है। यदि सीखने का सम्बन्ध बालक के पूर्व अनुभव से कर दिया जाए तो वह नवीन बात शीघ्रता तथा सरलता से समझ जाएगा।

9. प्रेरणा :
सीखने की प्रक्रिया में प्रेरणा की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि बालकों को प्रशंसा तथा प्रतियोगिता के आधार पर सिखाया जाए तो वे सुगमता से सीख जाते हैं। सीखने के लिए बालक को प्रेस्ति करना अति आवश्यक है।

10. संवेगात्मक स्थिति :
यदि बालक अत्यधिक क्रोध या भय से ग्रस्त है तो वह ऐसी दशा में कुछ नहीं सीख सकता। संवेगात्मक अस्थिरता सीखने की प्रक्रिया में बाधा डालती है। अत: बालक को संवेगात्मक असन्तुलन या अस्थिरता की दशा में सीखना पूर्णतया असम्भव है।

11. सफलता का ज्ञान :
जब बालक को इस बात का ज्ञान हो जाता है कि उसे अपने कार्यों में सफलता मिल रही है तो उसका उत्साह बढ़ जाता है और उसे कार्य को शीघ्र समझे जाता है।

प्रश्न 3
थॉर्नडाइक के सीखने के नियम क्या हैं? पावलोव के प्रयोग द्वारा सम्बन्ध प्रत्यावर्तन, का सिद्धान्त समझाइए। [2007]
या
प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखने की प्रक्रिया का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। [2007]
या
अधिगम के प्रयास एवं भूल सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए। [2014]
उत्तर :
प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखना
इस विधि या सिद्धान्त के प्रतिपादक थॉर्नडाइक हैं और मैक्डूगल ने इसका समर्थन किया है।
थॉर्नडाइक के अनुसार जब हम किसी कार्य को सीखते हैं तो हमारे सामने एक विशेष उद्दीपक (Stimulus) होता है। यह उद्दीपक हमें एक विशेष प्रकार की प्रतिक्रिया (Response) करने के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार उद्दीपक और प्रतिक्रिया के सम्बन्ध की स्थापना हो जाती है। थॉर्नडाइक ने इसे उद्दीपक-क्रिया-सम्बन्ध बताया है।

उनके अनुसार उद्दीपक-प्रतिक्रिया सम्बन्ध के परिणामस्वरूप जब हम भविष्य के उसी उद्दीपक का पुनः अनुभव करते हैं, तब हम उससे सम्बन्धित उस प्रकार की प्रतिक्रिया करते हैं। यही हमारे सीखने का आधार है। थॉर्नडाइक के अनुसार, “सीखना, सम्बन्ध स्थापित करना है। सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य मस्तिष्क करता है।

1. थॉर्नडाइक :
थॉर्नडाइक के इस सिद्धान्त का सार यह है कि जब हम किसी नवीन बात को सीखते हैं, तो हम तत्काल ही उसे नहीं सीख पाते, वरन् हमें उस बात को सीखने के लिए अनेक प्रयास करने पड़ते हैं और इन प्रयासों के दौरान हम कई त्रुटियाँ भी कर सकते हैं। धीरे-धीरे हमारी त्रुटियों में कमी होती जाती है और हम तथाकथित बात को सीख जाते हैं। उदाहरण के लिए—जब एक बालक प्रारम्भ में पढ़ना-लिखना सीखता है

तो आरम्भ में तो एक अक्षर भी ठीक प्रकार से नहीं लिख पाता और न ही वह शब्दों का सही उच्चारण ही कर पाता है, लेकिन ज्यों-ज्यों वह प्रयास करता है, उसकी त्रुटियों या भूलों में कमी आती जाती है और अन्ततः वह अक्षरों का लिखना और शब्दों का सही उच्चारण करना सीख जाता है। इस विधि से मनुष्य और पशु ही अधिक सीखते हैं। थॉर्नडाइक, मैक्डूगल आदि मनोवैज्ञानिकों ने पशुओं पर भी प्रयोग करके इसका सत्यापन किया

2. थॉर्नडाइक का प्रयोग :
थॉर्नडाइक ने प्रयास एवं त्रुटि या भूल एवं प्रयत्न विधि का सत्यापन करने के लिए एक बिल्ली पर प्रयोग किया। उसने एक भूखी बिल्ली को पिंजरे में बन्द कर दिया। इस पिंजरे में एक बटन लगा था जिसके दबाने पर पिंजरे का दरवाजा झटके के साथ खुल जाता था। उसने पिंजरे के बाहर कुछ भोजन रख दिया। भूखी बिल्ली के लिए भोजन उद्दीपक था। अत: भोजन को देखकर बिल्ली में प्रतिक्रिया हुई।

उसने अनेक प्रकार से निकलने का प्रयास किया। अचानक उसका पंजा बटन पर पड़ गया। पिंजरे का दरवाजा झटके के साथ खुल गया और उसने बाहर आकर भोजन चट कर लिया। कुछ काल के बाद जब बिल्ली को पुनः पिंजरे में बन्द किया गया तो वह बिना कोई त्रुटि किये बटन दबाकर दरवाजा खोलने लगी। इस प्रकार उद्दीपक तथा प्रतिक्रिया में सम्बन्ध की स्थापना से बिल्ली ने बटन दबाकर दरवाजा खोलना सीखा।

(संकेत : पावलोव के सम्बन्ध प्रत्यावर्तन के सिद्धान्त को विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 4 के (ब) में देखें।)

प्रश्न 4
सम्बद्ध प्रत्यावर्तन द्वारा सीखने का प्रयोग सहित वर्णन कीजिए और इसकी शैक्षिक उपयोगिता बताइए। [2012, 13]
या
आई० पी०पावलोव द्वारा किये गये प्रयोग को लिखिए और इसकी सहायता से ‘अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त का विवेचन कीजिए। इसकी शैक्षिक उपयोगिता भी लिखिए। [2007, 15]
या
कोहलर द्वारा किये गये किसी एक प्रयोग को लिखिए और इसकी सहायता से अन्तर्दृष्टि से सीखने के सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
या
अन्तर्दृष्टि अधिगम सिद्धान्त के प्रयोग द्वारा स्पष्ट कीजिए और इसके शैक्षिक निहितार्थ की भी चर्चा कीजिए। [2007]
या
सूझ द्वारा सीखने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए और शिक्षा में इसकी उपयोगिता बताइए। [2011]
या
सूझ द्वारा सीखने का अर्थ किसी प्रयोग की सहायता से स्पष्ट कीजिए और उसके शैक्षिक निहितार्थ बताइए। [2007, 09, 10]
या
अधिगम के सम्बन्ध में प्रत्यावर्तन सिद्धान्त की विवेचना कीजिए तथा इसके शैक्षिक निहितार्थों पर प्रकाश डालिए। [2012]
या
शिक्षा में अनुबन्धित प्रतिक्रिया की क्या उपयोगिता है? [2015]
या
सीखने के सूझ सिद्धान्त को समझाइए। [2009, 13]
या
सूझ द्वारा सीखने के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए और प्रयास तथा त्रटि के सिद्धान्त से इसका अन्तर बताइए। [2016]
उत्तर :
(अ)
सूझ या अन्तर्दृष्टि का सिद्धान्त
सूझ के सिद्धान्त के प्रमुख समर्थक गेस्टाल्टवादी (Gestaltist) हैं। उनके अनुसार पशु और मनुष्य ‘सम्बन्ध प्रतिक्रिया’ तथा ‘प्रयास एवं त्रुटि’ से न सीखकर सूझ या अन्तर्दृष्टि (Insight) द्वारा सीखते हैं। उनके मतानुसार सर्वप्रथम प्राणी अपने आस-पास की परिस्थिति के विभिन्न क्षेत्रों में पारस्परिक सम्बन्धों की स्थापना करता है और सम्पूर्ण परिस्थिति को समझने का प्रयास करता है। तत्पश्चात् उसके अनुसार अपनी प्रतिक्रिया करता है। दूसरे शब्दों में, ‘सुझ’ द्वारा सीखने का तात्पर्य परिस्थिति को पूर्णतया समझकर सीखना है। गुड (Good) के अनुसार, “समझ, यथार्थ स्थिति का आकस्मिक, निश्चित और तत्कालीन ज्ञान है।”

कोहलर का प्रयोग :
सूझ द्वारा सीखने के सिद्धान्त का प्रतिपादन करने के लिए कोहलर (Kohler) ने छह वनमानुषों को एक कमरे में बन्द कर दिया। कमरे की छत पर केलों का एक गुच्छा लटका दिया गया तथा कमरे के एक कोने में एक बॉक्स भी रख दिया गया। समस्त वनमानुष केलों को प्राप्त करने के प्रयास करने लगे, परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। उनमें से एक वनमानुष इधर-उधर घूमकर बॉक्स के पास पहुँच गया। तत्पश्चात् उसने बॉक्स को पकड़कर खींचा और उसे केलों के नीचे ले जाकर रख दिया तथा बॉक्स के ऊपर खड़े होकर उसने केलों के गुच्छे को उतार कर खा लिया।

इस प्रकार वनमानुष अपनी सूझ के आधार पर सीखते हैं। प्रत्येक कार्य या क्रिया के सीखने में हमें सूझ का प्रयोग करना पड़ता है। विभिन्न समस्याओं का हल भी सूझ के माध्यम से होता है। प्रायः देखा गया है कि किसी ऊँचे स्थान पर रखी मिठाई को बालक वनमानुष की विधि द्वारा ही प्राप्त करते हैं। कोफ्का के अनुसार, “सूझ में व्यक्ति चिन्तन, तर्क तथा कल्पना शक्ति से विशेष काम लेता है, जिस व्यक्ति में जितनी कल्पना-शक्ति होगी, उतनी ही उसमें सूझ होगी।” अल्प स्थान में ही एक इंजीनियर अपनी सूझ से विशाल भवन निर्मित कर देता है।

[संकेत : सीखने के सूझ-सिद्धान्त के शैक्षिक महत्त्व का विवरण अतिलघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 5 में तथा प्रयास तथा त्रुटि के महत्त्व का विवरण भी अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 4 में देखें।]

(ब)
सम्बन्ध प्रतिक्रिया का सिद्धान्त
जब स्वाभाविक उत्तेजक या उद्दीपक (Stimulus) को देखकर प्रतिक्रिया होती है, तब वह सहज क्रिया (Reflex Action) कहलाती है, परन्तु जब अस्वाभाविक उत्तेजक के कारण प्रतिक्रिया होती है तो उसे सम्बन्ध सहज क्रिया या सम्बन्ध प्रतिक्रिया कहा जाता है। उदाहरण के लिए, थाली में रखे भोजन को देखकर कुत्ते के मुख से लार टपकना एक प्रकार की सहज क्रिया है, परन्तु जब किसी अन्य अस्वाभाविक उत्तेजक के कारण लार टपकने लगे तो यह सम्बन्ध प्रतिक्रिया है। लैडेल (Ledell) के अनुसार, “सम्बन्ध सहज क्रिया में कार्य के प्रति स्वाभाविक उत्तेजक के स्थान पर एक प्रभावहीन उत्तेजक होता है, जो कि स्वाभाविक उत्तेजक से सम्बन्धित किये जाने के कारण प्रभावपूर्ण हो जाता है।

इस प्रकार सम्बन्ध प्रतिक्रिया के सिद्धान्त में अस्वाभाविक उत्तेजक के प्रति स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है।

पावलोव का प्रयोग :
पावलोव (Pavlov) रूस का प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक था। उसी ने सम्बन्ध प्रतिक्रिया के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था। इस विषय में उसके द्वारा कुत्ते पर किया गया परीक्षण विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह हम सब जानते हैं कि भोजन को देखकर कुत्ते की लार टपकने लगती है। पॉवलोव ने भोजन देते समय घण्टी बजवाई। भोजन और घण्टी की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप कुत्ते के मुख से लार टपकने लगी। इसी प्रकार घण्टी के प्रति कुत्ते की प्रतिक्रिया सम्बन्ध सहज क्रिया कहलाई। इसे निम्नलिखित ढंग से समझाया जा सकता है

भोजन (स्वाभाविक उत्तेजक) – प्रतिक्रिया → “लार टपकना”
भोजन (स्वाभाविक उत्तेजक), घण्टी बजाना (अस्वाभाविक उत्तेजक) – प्रतिक्रिया → “लार टपकना”।
कुत्ते के समान ही मनुष्य भी ‘सम्बन्ध प्रतिक्रिया द्वारा सीखता है। उदाहरण के लिए-हम वुडवर्ड (woodword) द्वारा किया गया परीक्षण प्रस्तुत करते हैं। एक वर्ष के बालक को खरगोश दिखाया गया। बालक खरगोश को देखकर प्रसन्न होकर उसे पकड़ने के लिए लपका। जैसे ही वह खरगोश के निकट आया, एक जोरदार धमाका किया गया। परिणामस्वरूप बालक भयभीत होकर पीछे हट गया। इस प्रयोग को अनेक बार दोहराया गया। बाद में बिना धमाके की आवाज के केवल खरगोश को देखकर ही बालक डरने लगा।

सिद्धान्त का महत्त्व शिक्षा के क्षेत्र में इस सिद्धान्त के महत्त्व से सम्बन्धित निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं

  1. पावलोव के अनुसार, “विभिन्न प्रकार की आदतें, जो कि प्रशिक्षण, शिक्षा और अनुशासन पर निर्भर प्रतिक्रिया की श्रृंखला मात्र हैं।”
  2. व्यक्ति का प्रत्येक व्यवहार सम्बन्ध प्रतिक्रिया के सिद्धान्त पर आधारित है। हमारी दैनिक आदतें भी इसी सिद्धान्त पर निर्भर करती हैं।
  3. इस सिद्धान्त के आधार पर बालकों में अच्छी आदतों का विकास किया जा सकता है।
  4. यह सिद्धान्त सीखने की स्वाभाविक विधि पर प्रकाश डालता है।
  5. इस सिद्धान्त के द्वारा बालकों को वातावरण के अनुकूल सामंजस्य स्थापित करने की शिक्षा दी जा सकती है।
  6. इस सिद्धान्त की सहायता से बालकों के भय सम्बन्धी रोगों का निदान किया जा सकता है।
  7. इस सिद्धान्त के द्वारा बालकों की संवेगात्मक अस्थिरता दूर की जा सकती है।
  8. यह सिद्धान्त उन बालकों के लिए उपचार प्रस्तुत करता है, जो मानसिक रूप से अस्वस्थ होते हैं।
  9. जिन विषयों में चिन्तन की आवश्यकता नहीं पड़ती है, उनके लिए यह सिद्धान्त बहुत उपयोगी है; जैसे—अक्षर विन्यास, सुलेख आदि।

आलोचना :
अनेक मनोवैज्ञानिकों ने निम्नलिखित तर्कों के आधार पर इस सिद्धान्त की आलोचना की है

  1. सम्बन्ध प्रतिक्रिया में अस्थायित्व होता है।
  2. इस सिद्धान्त को प्रतिष्ठदन मुख्यतया बालकों और पशुओं पर किये गये प्रयोगों के आधार पर किया गया है। वयस्क व्यक्तियों के सम्बन्ध में यह मौन है।
  3. यह सिद्धान्त यान्त्रिकता पर अधिक बल देता है और व्यक्ति को केवल एक यन्त्र मानकर चलता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
सीखने की प्रक्रिया के मुख्य तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
सीखने की प्रक्रिया सरल नहीं होती है। इसलिए इसे आसानी से समझना सम्भव नहीं है। विश्लेषण करने पर सीखने की प्रक्रिया में निम्नलिखित तत्त्व मिलते हैं

1. उत्तेजना-अनुक्रिया :
सीखना अर्जित होता है। इस दृष्टि से व्यक्ति को अपने पर्यावरण में कुछ उत्तेजना अवश्य मिलती है और उसके प्रति अनुक्रिया होती है। इस प्रकार सीखने की प्रक्रिया में उत्तेजना तथा अनुक्रिया होती है।

2. उद्देश्य और लक्ष्य :
सीखना एक सोद्देश्य प्रक्रिया है। जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति तथा समाज में सम्मान आदि पाने के उद्देश्य से व्यक्ति सीखता है।

3. अभिप्रेरणा :
सीखना अर्जित अवश्य होता है, परन्तु इसके लिए कुछ-न-कुछ अभिप्रेरण होना। चाहिए। छात्र सीखने के लिए प्रयत्न इसलिए करता है कि उसे परीक्षा पास करने पर नौकरी और सम्मान मिल सकता है।

4. प्रत्यक्षीकरण :
सीखने में प्रत्यक्षीकरण होना आवश्यक है। यदि छात्र को अपने लक्ष्य एवं प्रयत्न के परिणाम स्पष्ट दिखलाई देने लगते हैं तो सीखना सरल और सफल भी होता है और छात्र उसमें लगा रहता है।

5. पुनर्बलन :
पुनर्बलन की क्रिया से व्यक्ति सीखने के लिए बाध्य हो जाता है और उसे बल भी प्राप्त होता है। छात्र को शिक्षक का आदेश, दूसरों की प्रतिस्पर्धा, सामाजिक प्रतिष्ठा आदि से शक्ति मिलती है।

6. एकीकरण :
सीखने में व्यक्ति को अपने ध्यान को विभिन्न वस्तुओं में एकीकृत करना पड़ता है। और किसी प्रयोजन के साथ उनको ग्रन्थित करना पड़ता है, जिससे सफलता मिलती है।

7. साहचर्य :
सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति अपने पूर्व अनुभव ज्ञान से नये अनुभव ज्ञान का साहचर्य कर लेता है। हरबर्ट ने अपने प्रशिक्षण में इसे अपनाया है।

8. अनुकूलन :
सीखने की प्रक्रिया में अनुकूलन एक आवश्यक तत्त्व होता है। छात्र की प्रकृति का सीखने की सामग्री के साथ अनुकूलन होना चाहिए, अन्यथा सीखना सम्भव नहीं होगा। छात्र की क्षमता सीखने की सामग्री को भी अपने अनुकूल बना लेती है, यदि छात्र प्रयत्न करता है।

9. संपरिवर्तन :
सीखने की प्रक्रिया के फलस्वरूप संपरिवर्तन होता है और मूल व्यवहार शिष्ट एवं परिमार्जित हो जाते हैं।

प्रश्न 2
परिपक्वता तथा सीखने में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर :
हमें बात है कि सीखना, व्यवहारे परिवर्तन या व्यवहार अर्जन की एक प्रक्रिया है। किसी व्यक्ति का व्यवहार परिवर्तन या तो परिपक्वता के कारण होता है या किसी नयी बात को ग्रहण करने के कारण। परिवर्तन की प्रक्रिया में नयी-नयी क्रियाएँ और व्यवहार प्रदर्शित तथा विकसित होते रहते हैं। परिपक्वता शारीरिक विकास की प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत बढ़ती हुई आयु के साथ, शरीर व स्नायुमण्डल का विकास, सीखने की सामर्थ्य को जन्म देता है।

स्पष्टतः सीखने के परिणामस्वरूप व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आता है। परिपक्वता की प्रक्रिया सीखने से पूर्व की स्थिति है तथा यह सीखने का आधार है। परिपक्वता के अभाव में किसी क्रिया को सीखना न केवल दुष्कर अपितु असम्भव है। वस्तुतः परिपक्वता किसी व्यवहार को अर्जित करने (सीखने) की एक पूर्व आवश्यकता है।

मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से ज्ञात होता है कि मानव के विकास की प्रक्रिया में परिपक्वता और सीखना दोनों की सशक्त भूमिका है। यदि परिपक्वता के अभाव में सीखना सम्भव नहीं है तो सीखने के अभाव में व्यक्ति की परिपक्वता भी निरर्थक है। समुचित परिपक्वता ग्रहण कर यदि कोई मनुष्य व्यक्तिगत या सामाजिक जीवन के लिए उपयोगी व्यवहार या क्रियाएँ सीखता है तो इसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण समझा जाएगा। इस भाँति परिपक्वता और सीखने में गहरा सम्बन्ध है।

प्रश्न 3
परिपक्वता तथा सीखने में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
परिपक्वता तथा सीखने में अन्तर को निम्नलिखित तालिका के माध्यम से दर्शाया जा सकता है।
UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 18 Learning Meaning, Process, Laws and Methods image 1
UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 18 Learning Meaning, Process, Laws and Methods image 2

प्रश्न 4
थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के नियमों की विवेचना कीजिए। उपयुक्त उदाहों सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
या
थॉर्नडाईक के सीखने के मुख्य नियमों का वर्णन कीजिए। [2007, 11, 12, 13, 15, 16]
उत्तर :
सीखने के नियमों को सर्वप्रथम व्यवस्थित ढंग से थॉर्नडाइक ने प्रस्तुत किया था, इसीलिए इन्हें थॉर्नडाइक के सीखने के नियमों के रूप में जाना जाता है। थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के मुख्य नियम तीन हैं

  1. सीखने का तत्परता का नियम्
  2. सीखने का अभ्यास का नियम तथा
  3. सीखने का प्रभाव का नियम।

सीखने का तत्परता को नियम
थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित तत्परता का नियम बताता है कि जब कोई भी व्यक्ति सीखने के लिए मानसिक रूप से तत्पर होता है (अर्थात् तैयार रहता है) तो सीखने की क्रिया सरलता और शीघ्रता से सम्पन्न होती है। व्यक्ति जिसे समय किसी कार्य को सीखने की धुन में रहता है तो वह सीखने में आनन्द का अनुभव करता है। बांलक में किसी नवीन ज्ञानं या क्रिया को सीखने की तत्परता तभी आती है जब उसमें रुचि होती है और उसके अन्दर सीखने के लिए प्रेरणा उत्पन्न कर दी जाए।

अतः शिक्षक को पाठ शुरू करने से पूर्व बालक की रुचि और जिज्ञासा पर ध्यान देना चाहिए तथा उन्हें सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए। कुछ विद्यार्थियों की किसी विशेष विषय में रुचि नहीं होती जिसकी वजह से तत्परता के नियम की अवहेलना हो सकती है। तत्परता का नियम कुछ निष्कर्षों को महत्त्व देता हैं। प्रथम, इस नियम के अनुसार सीखने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने की दशा में विद्यार्थी को अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता और सीखने की प्रक्रिया सन्तोषजनक रहती है।

द्वितीय, यदि व्यक्ति सीखने के लिए विवश नहीं है और पूर्णरूप से भी तत्पर है तो सीखने में अत्यधिक सन्तुष्टि प्राप्त होगी। तृतीय, सीखने के लिए बलपूर्वक विवश किये जाने पर अरुचि के कारण कार्य असन्तोषजनक होगा। इस भाँति कहा जा सकता है कि “जब कोई बन्धन किसी कार्य को करने के लिए नहीं होता है तो वह प्रक्रिया आनन्द देती है। और जब सीखने की इच्छा नहीं होती तो व्यक्ति सीखने को तैयार नहीं होता तथा उसे बाध्य किया जाता है, तब क्रोध उत्पन्न होता है।”

[संकेत : सीखने के द्वितीय एवं तृतीय नियम का विवरण अगले प्रश्नों (प्रश्न सं० 5 व 6) में देखिए।]

प्रश्न 5
थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के ‘अभ्यास के नियम का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने का दूसरा मुख्य नियम है-अभ्यास का नियम। इसे उपयोग-अनुपयोग का नियम (Law of Use-Disuse) भी कहते हैं। थॉर्नडाइक का विचार है कि अन्य बातें समान रहने पर सीखने की प्रक्रिया में अभ्यास के द्वारा शक्ति में वृद्धि होती है, जबकि अभ्यास की कमी स्थिति और प्रतिक्रिया के सम्बन्ध को कमजोर बना देती है।

हमारी बहुत-सी प्रतिक्रियाओं में उपयोग तथा अनुपयोग के नियम साथ-साथ कार्य करते हैं। हम स्वतन्त्र भाव से उन्हीं उपयोगी क्रियाओं को दोहराते हैं जिनसे हमें आनन्द मिलता है तथा उन अनुपयोगी क्रियाओं को नहीं दोहराते जिनसे हमें दुःख होता है।

अभ्यास के नियम से स्पष्ट है कि जिस काम को जितना अधिक दोहराया जाएगा, जितनी ही उसकी पुनरावृत्ति की जाएगी, उतनी ही दृढ़ता से वह हमारे मन में बैठ जाता है और उसके करने में उतनी ही कुशलता आ जाती है। गायन, खेल, कविता, पहाड़े तथा गणित आदि से सम्बन्धित नियम सिखाने के उपरान्त बालकों को उनका अभ्यास अवश्य करा देना चाहिए।

प्रश्न 6
थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के प्रभाव के नियम का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने का तीसरा मुख्य नियम है 
प्रभाव का नियम (Law of effect)। प्रभाव के नियम को सन्तोष और असन्तोष का नियम भी कह्ते हैं। थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित इस नियम में प्रभावे से तात्पर्य ‘परिणाम’ से है। जिन कार्यों का परिणाम व्यक्ति को सन्तोष प्रदान करता है। तथा उसे सुखद अनुभव देता है-उन कार्यों को मनुष्य सरलता से एवं शीघ्र ही सीख जाता है। इसके विपरीत जिन कार्यों का परिणाम असन्तोषजनक तथा दु:खद अनुभव वाला होता है, उन्हें व्यक्ति भुला, देना चाहता है और बार-बार दोहराना नहीं चाहता।

इसी सन्दर्भ में जिस कार्य को करने से व्यक्ति को प्रशंसा एवं पुरस्कार मिले यानि जिस कार्य का अच्छा प्रभाव (परिणाम) निकले, उसे बालक शीघ्रतापूर्वक सीख जाता है। इसी कारण से शिक्षा में दण्ड एवं पुरस्कार को बहुत अधिक महत्त्व है। बुरा कार्य करने पर बालक दण्ड पाता है किन्तु अच्छे कार्य के लिए उसे पुरस्कृत किया जाता है। प्रभाव का नियम विद्यालय तथा परिवार में पर्याप्त रूप से प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 7
सीखने के पठार से आप क्या समझते हैं।
उत्तर :
जब बालक किसी क्रिया को सीखता है तो उसके सीखने की गति सदा एक-सी नहीं रहती, उसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। सीखते समय कुछ काल तक तो ऐसा लगता है कि उस क्रिया को सीखने में पर्याप्त प्रगति हो रही है, परन्तु कुछ काल के पश्चात् ऐसा ज्ञान होने लगता है कि मानो सीखने की प्रगति में बाधा आ गयी है। सीखने में इस प्रकार की अवस्था को ही पठार कहते हैं।

दूसरे शब्दों में, सीखने की प्रक्रिया के बीच में प्रगति का रुक जाना पठार कहलाता है। इस प्रकार का अवरोध प्रायः संगीत, चित्रकला, टंकण आदि सीखने में आता है। रॉस (Ross) के अनुसार, “सीखने की प्रक्रिया की एक प्रमुख विशेषता पठार है। पठार उस अवधि की ओर संकेत करते हैं, जब सीखने की प्रक्रिया में कोई प्रगति नहीं होती है।”

प्रश्न 8
सीखने के पठार के उत्पन्न होने के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सीखने में पठारों के आने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं

  1. जब शारीरिक क्षमता कम हो जाती है, तब सीखने में पठार बन जाता है।
  2. जब उत्साह कम हो जाता है, तब उसके सीखने की प्रगति में अवरोध हो जाता है।
  3. जब बालकों का ध्यान इधर-उधर भटकने लगता है, तब पठार बनने लगते हैं।
  4. लगातार कार्य करते रहने से थकान उत्पन्न हो जाती है और पठार बन्ने लगते हैं।
  5. सीखने की विधि में निरन्तर परिवर्तन करते रहने से भी पठार बन जाते हैं।
  6. दूषित वातावरण भी पठारों के बनने का एक प्रमुख कारण है।
  7. जब बालक सम्पूर्ण कार्य पर ध्यान न देकर उसके एक भाग पर ही ध्यान देने लगता है, तब उसके सीखने में पठार आ जाता है।
  8. जब कोई क्रिया आरम्भ में सरल होती है, परन्तु बाद में कठिन तथा जटिल हो जाती है, तब सीखने में पठार आ जाता है।
  9. सीखने की अनुचित विधि भी पठारों का कारण होती है। जब प्रभावहीन विधियों का प्रयोग किया जाता है, तब सीखने में पठार पैदा होने लगते हैं।
  10. जब पुरानी आदतों को नयी आदतों में संघर्ष प्रारम्भ हो जाता है, तब भी सीखने में पठार बन जाते हैं।
  11. रायबर्न (Ryburm) के अनुसार, “प्रत्येक व्यक्ति में अधिकतम कुशलता होती है, जिससे आगे वह अग्रसर नहीं हो सकता। यही शारीरिक सीमा कहलाती है। जब व्यक्ति इस सीमा पर पहुँच जाता है, तब उसके सीखने के पठार बन जाते हैं।”

प्रश्न 9
सीखने के पठार के निराकरण के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
पठार सीखने वाले व्यक्ति की प्रगति में बाधा डालकर उसके समय को नष्ट करते हैं। ऐसी दशा में उनके निराकरण पर विचार करना अत्यन्त आवश्यक है।

पठारों के निराकरण के लिए। निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है

  1. शिक्षक का कर्तव्य है कि जब बालक सीखने में उत्साह को प्रदर्शन न कर रहे हों, तो उन्हें उचित तरीके से सीखने के लिए प्रेरित किया जाए।
  2. पठार का कारण विषय को कठिन व गहन होना भी है। अत: विषय को यथासम्भव सरल बनाकर प्रस्तुत किया जाए।
  3. कार्य को सीखने की उचित विधि अपनायी जाए।
  4. सीखने की क्रिया के बीच में विषयान्तर न किया जाए।
  5. सीखने के लिए उचित वातावरण सृजन किया जाए।
  6. सीखने वाले बालकों के वैयक्तिक भेद या क्षमताओं पर ध्यान दिया जाए तथा उसी के अनुसार उन्हें प्रेरणा तथा विश्राम दिया जाए।
  7. जब एक विधि से बालकों की सीखने की प्रगति रुक जाए तो शिक्षक को उसी के अनुकूल नवीन विधि का प्रयोग करना चाहिए।
  8. किसी प्रबल प्रेरक को अपनाकर भी सीखने के पठार का निराकरण किया जा सकता है। प्रेरण एक ऐसा कारक है जो सीखने को गति प्रदान कर सकता है।

प्रश्न 10
सीखने के अनुकरण के सिद्धान्त का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर :
1. अनुकरण के सिद्धान्त का तात्पर्य है :
‘अन्य व्यक्तियों के कार्यों को देखकर वैसा ही करके, सीखना।’ दूसरे शब्दों में, हम अनेक बातें अनुकरण के द्वारा सीखते हैं। जब व्यक्ति एक-दूसरे का अनुकरण करके सीखता है तो उसे अनुकरण का सिद्धान्त कहते हैं। बालक अनेक बातें अनुकरण के द्वारा ही सीखता है। बोलना, चलना तथा अनेक बातें अनुकरण के द्वारा ही सीखी जाती हैं।

2. हेगार्टी :
(Hagarty) ने बन्दरों पर प्रयोग करके यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि अनुकरण द्वारी सीखना, प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखने की अपेक्षा उच्चकोटि का है, परन्तु थॉर्नडाइक के इस सिद्धान्त की कटु आलोचना की है। उनके अनुसार इसका प्रयोग सभी प्रकार के पशुओं पर नहीं किया जा सकता है।

3. सिद्धान्त का महत्त्व :
शिक्षा के क्षेत्र में इस सिद्धान्त का महत्त्व इस प्रकार है।

  • रचनात्मक कार्यों को सीखने के लिए यह सिद्धान्त बहुत उपयोगी है।
  • बालकों में अनुकरण की प्रवृत्ति तीव्र होती है। अत: अनुकरण द्वारा उन्हें अच्छी-अच्छी बातें सिखायी जा सकती हैं।
  • चेतन-मन से किया गया अनुकरण अच्छी आदतों के निर्माण में सहायक होता है।
  • यह सिद्धान्त बालकों के बौद्धिक विकास में सहायक है।
  • शिक्षकों तथा अभिभावकों के आदर्श चरित्र का अनुकरण करके बालक अपने चरित्र का निर्माण करते हैं।
  • मन्दबुद्धि बालकों की शिक्षा में यह सिद्धान्त बहुत उपयोगी है।

प्रश्न 11
सीखने के ‘अन्तसँझ सिद्धान्त को परिभाषित कीजिए! [2016]
उत्तर :
गैस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, प्राणी अपनी सूझ या अन्तर्दृष्टि (Insight) के द्वारा ही सीख पाता है और सूझ के अभाव में वह सीखने में असफल रहता है। उविकास की प्रक्रिया के अन्तर्गत सूझ निम्न स्तर के प्राणियों से उच्च स्तर के प्राणियों की ओर वृद्धि करती है। चूहे, बिल्ली, कुत्ते की अपेक्षा वनमानुष में तथा इने सबसे ज्यादा मनुष्य में सूझ पायी जाती है। सूझ के कारण ही उच्च स्तर के प्राणी जटिल कार्य करने में समर्थ होते हैं।

गैस्टाल्टवादियों का कहना है कि सीखने की प्रक्रिया प्रयत्न एवं भूल अथवा सम्बद्ध प्रत्यावर्तन के अनुसार न होकर सूझ द्वारा होती है। इस विचारधारा के प्रवर्तके कोहलर (Kohler) तथा कोफ्का (Koffika) थे। सूझ या अन्तर्दृष्टि मनुष्य जैसे विकसित प्राणी का प्रमुख लक्षण है। मानव के निकटवर्ती विकसित प्राणियों तथा वनमानुष और चिम्पैन्जी में भी सूझ की क्षमता निहित होती है। कोहलर तथा कोफ्का के अनुसार हमारा सीखना सूझ के द्वारा होता है और सीखने की लगभग सभी प्रतिक्रियाओं में सूझ की आवश्यकता पड़ती है।

इस सिद्धान्त की प्रमुख विशेषता यह है कि सीखने की प्रत्येक क्रिया का कुछ-न-कुछ उद्देश्य अवश्य होता है तथा सीखने के समस्त प्रयास लक्ष्य द्वारा निर्देशित होते हैं। लक्ष्य में विविध बाधाएँ उत्पन्न होने पर सूझ की आवश्यकता होती है।प्रत्येक बाधा व्यक्ति को नवीन परिस्थिति से अवगत कराती है और वह उस परिस्थिति के विभिन्न अंगों में परस्पर सम्बन्ध स्थापित करता है उन्हें समझने की कोशिश करता है।

तत्पश्चात् व्यक्ति समूची परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए उसके अनुसार प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। किसी परिस्थिति विशेष को समझकर उसके अनुसार प्रतिक्रिया करना ही व्यक्ति की सूझ का द्योतक है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप व्यक्ति जो व्यवहार सीखता है, उसे सूझ या अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखना (Learning by Insight) कहते हैं।

प्रश्न 12
सीखने की प्रयत्न (प्रयास) एवं भूल (त्रुटि) विधि तथा सूझ विधि के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सीखने की प्रयत्न एवं भूल विधि तथा सूझ विधि का अन्तर निम्नलिखित तालिका में वर्णित हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 18 Learning Meaning, Process, Laws and Methods image 3
UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 18 Learning Meaning, Process, Laws and Methods image 4

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
सीखना किसे कहते हैं? [2010, 15]
उत्तर :
व्यक्ति के व्यवहार में होने वाले ऐच्छिक परिवर्तन को सीखना कह सकते हैं। सीखने की प्रक्रिया को सम्बन्ध नयी क्रियाओं से होता है तथा इस क्रिया द्वारा सीखी गयी बातों का अन्य बातों पर भी प्रभाव पड़ता है। सीखने की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप व्यक्ति के व्यवहार में एक प्रकार की परिपक्वता भी आती है। इन्हीं तथ्यों को गिलफोर्ड ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “हम इस शब्द की परिभाषा विस्तृत रूप में यह कहकर कर सकते हैं कि सीखना व्यवहार के परिणामस्वरूप, व्यवहार में कोई भी परिवर्तन है।”

प्रश्न 2
सीखने की प्रक्रिया पर व्यक्ति के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य का क्या प्रभाव प्रड़ता है?
उत्तर :
सीखने की तीव्रता व्यक्ति के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य अच्छा न होने पर ज्ञानेन्द्रियाँ ठीक काम नहीं कर पातीं, व्यक्ति रुचि लेकर कार्य नहीं करता और जल्दी ही थक जाता है। जो व्यक्ति देखने, सुनने, बोलने आदि क्रियाओं में निर्बल होते हैं, वे सीखने में पर्याप्त उन्नति नहीं कर पाते। वस्तुतः सीखने की प्रक्रिया का भौतिक और शारीरिक आधार स्नायु संस्थान है।

स्नायु संस्थान के अन्तर्गत मस्तिष्क और स्नायु आते हैं जिनके कार्य करने की शक्ति पर सीखने की प्रक्रिया निर्भर करती है। मस्तिष्क और स्नायु की शक्ति, व्यक्ति के स्वास्थ्य पर निर्भर है। स्पष्टतः सीखने की क्रिया शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य के सीधे रूप में प्रभावित होती है।

प्रश्न 3
सीखने में प्रेरणा का क्या योगदान है? [2007, 08, 09]
उत्तर :
सीखने में प्रेरणा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सीखने में उन्नति लाने की दृष्टि से उसे प्रेरणायुक्त एवं प्रयोजनशील बना देना चाहिए। प्रेरणायुक्त व्यवहार उत्साह के कारण सीखने की प्रक्रिया को तीव्र कर देता है। अतः शीघ्र प्रेरणा से सीखने की गति में तीव्रता आती है। प्रेरणा का सम्बन्ध लक्ष्य या प्रयोजन । से है। यदि सीखने का लक्ष्य अच्छा है तो व्यक्ति उसे शीघ्र सीखने के लिए प्रेरित होता है। अतएव सीखने की प्रक्रिया को त्वरित करने के लिए उसे उद्देश्यपूर्ण एवं प्रेरणायुक्त कर देना उचित है।

प्रश्न 4
प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखने के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
या
थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने की विधि की शैक्षिक उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के सिद्धान्त एवं विधि का विशेष शैक्षिक महत्त्व है। इस विधि के महत्त्व का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है।

  1. इस सिद्धान्त को अपनाकर बालक को परिश्रमी बनाया जा सकता है।
  2. यह सिद्धान्त बालकों में धैर्य का पाठ पढ़ाता है।
  3. मन्दबुद्धि के बालकों के लिए यह सिद्धान्त बहुत उपयोगी है।
  4. इस सिद्धान्त के आधार पर बालक जो कुछ भी सीखता है, वह उसके मस्तिष्क में स्थायी हो जाता है।
  5. गणित और विज्ञान जैसे विषयों के लिए इसका प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
  6. इस सिद्धान्त के आधार पर सीखने से बालक विभिन्न समस्याओं का समाधान करना सीखते हैं।

प्रश्न 5
सूझ द्वारा सीखने के सिद्धान्त के शैक्षिक महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
शिक्षा में ‘सूझ द्वारा सीखने के सिद्धान्त का निम्नलिखित कारणों से विशेष महत्त्व है।

  1. यह सिद्धान्त बालकों की कल्पना-शक्ति और तर्क-शक्ति का विकास करता है।
  2. विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए इस सिद्धान्तं का प्रयोग प्रभावशाली तरीके से किया जा सकता है।
  3.  यह सिद्धान्त बालकों को स्वयं ज्ञान को खोजने के लिए प्रेरित करता है।
  4. गणित के शिक्षण में भी इस सिद्धान्त का प्रयोग विशेष उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
  5. ड्रेवर (Drever) के अनुसार, यह सिद्धान्त बालकों को निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति में उचित व्यवहार की चेतना प्रदान करता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
सीखने से क्या आशय है?
उत्तर :
व्यक्ति के व्यवहार में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन को सीखना माना जाता है।

प्रश्न 2
सीखने की स्किनर द्वारा प्रतिपादित परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
“सीखना व्यवहार में प्रगतिशील सामंजस्य की प्रक्रिया है।” [ स्किनर ]

प्रश्न 3
सीखने की प्रक्रिया की चार मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

  1. सीखना व्यवहार में होने वाला परिवर्तन है
  2. सीखने की प्रक्रिया जीवनपर्यन्त चलती है
  3. सीखना सक्रिस होता है तथा
  4. सीखना अनुभवों का संगठन है।

प्रश्न 4
सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले चार मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक हैं

  1. वातावरण
  2. शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य
  3. सीखने की इच्छा तथा
  4. प्रबल प्रेरणा।

प्रश्न 5
सीखने के मुख्य नियम किसने प्रतिपादित किये हैं। [2007]
उत्तर :
सीखने के मुख्य नियम थॉर्नडाइक ने प्रतिपादित किये हैं।

प्रश्न 6
थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के मुख्य नियम कौन-कौन-से है।
उत्तर :
थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के मुख्य नियम हैं

  1. तत्परता का नियम
  2. अभ्यास का नियम तथा
  3. प्रभाव का नियम

प्रश्न 7
शारीरिक परिपक्वता का क्या अर्थ है?
उत्तर :
शरीर के अंगों को विकसित तथा सुदृढ़ या पुष्ट होना ही शारीरिक परिपक्वता है।

प्रश्न 8
सीखने की प्रक्रिया पर परिपक्वता का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
सीखने की प्रक्रिया के लिए शरीर का परिपक्व होना अति आवश्यक है।

प्रश्न 9
थॉर्नडाइक ने सीखने की किस विधि का समर्थन किया है?
उत्तर :
थॉर्नडाइक ने सीखने का प्रयास एवं त्रुटि विधि’ का समर्थन किया है।

प्रश्न 10
थॉर्नडाइक ने पिंजरे में अपना प्रयोग किस पर किया ? [2007, 11]
उत्तर :
बिल्ली, पर।

प्रश्न 11
सीखने के सूझ अथवा अन्तर्दृष्टि के सिद्धान्त के मुख्य प्रतिपादक कौन थे? [2014]
उत्तर :
सीखने के सूझे अथवा अन्तर्दृष्टि के सिद्धान्त के मुख्य प्रतिपादक कोहलर थे।

प्रश्न 12
सीखने के सम्बन्ध प्रतिक्रिया सिद्धान्त के मुख्य प्रतिपादक कौन थे?
उत्तर :
सीखने के सम्बन्ध प्रतिक्रिया सिद्धान्त के मुख्य प्रतिपादक रूसी विद्वान पावलोव थे।

प्रश्न 13
सामान्य जीवन में व्यक्तियों द्वारा सीखने के लिए किस विधि को सर्वाधिक अपनाया जाता है?
उत्तर :
सामान्य जीवन में व्यक्तियों द्वारा सीखने के लिए अनुकरण विधि’ को सर्वाधिक अपनाया जाता है।

प्रश्न 14
सीखने के पठार से क्या आशय है।
उत्तर :
व्यक्ति के सीखने की दर का स्थिर हो जाना अर्थात् सीखने के दर में वृद्धि न होना ही सीखने का पठार कहलाता है।

प्रश्न 15
सीखने के पठार के निराकरण का सर्वाधिक प्रभावकारी उपाय क्या है?
उत्तर :
सीखने के पठार के निराकरण का सर्वाधिक प्रभावकारी उपाय है-किसी प्रबल प्रेरणा को उत्पन्न करना।

प्रश्न 16
सीखने का मुख्य कारण क्या है? [2015]
उत्तर :
सीखने का मुख्य कारण प्रेरणा है।

प्रश्न 17
“व्यवहार के अर्जन में उन्नति की प्रक्रिया को सीखना कहते हैं।” यह परिभाषा किसने दी है ? [2011]
उत्तर :
प्रस्तुत परिभाषा स्किनर द्वारा प्रतिपादित है।

प्रश्न 18
थॉर्नडाइक ने अधिगम के कितने नियम प्रतिपादित किये हैं। [2014]
उत्तर :
थॉर्नडाइक ने अधिगम के तीन मुख्य नियम प्रतिपादित किये हैं

  1. तत्परता का नियम
  2. अभ्यास का नियम तथा
  3. प्रभाव का नियम

प्रश्न 19
“हम झरके सीखते हैं।” यह किसने कहा है? [2014, 15]
उत्तर :
थॉर्नडाइक ने।

प्रश्न 20
थॉर्नडाइक के अभ्यास के नियम के कितने उपनियम हैं ? [2007]
उत्तर :
थॉर्नडाइक के अभ्यास के नियम के तीन उपनियम हैं

  1. पुनरावृत्ति का नियम
  2. नवीनता का नियम तथा
  3. अनुपयोग का नियम।

प्रश्न21
“व्यवहार के कारण व्यवहार में परिवर्तन ही सीखना है।” यह परिभाषा किसने दी है? [2009]
उत्तर :
गिलफोर्ड ने।

प्रश्न 22
सीखने की प्रक्रिया में उस दशा को क्या कहते हैं, जब व्यक्ति की सीखने की दर स्थिर हो जाती है? [2009]
उत्तर :
सीखने का पठार।

प्रश्न 23
अधिगम में चिम्पैंजी पर किसने प्रयोग किया? [2018]
उत्तर :
कोहलर ने।

प्रश्न 24
सीखने का प्रमुख कारक क्या है? [2009, 15]
उत्तर :
सीखने का प्रमुख कारक “अनुकरण” है।

प्रश्न 25
सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले चार प्रमुख शारीरिक कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

  1. आयु एवं परिपक्वता
  2. लिंग-भेद
  3. स्वास्थ्य तथा
  4. संवेगात्मक स्थिति।

प्रश्न 26
सीखने तथा परिपक्वता में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर :
परिपक्वता सीखने के लिए अनिवार्य शर्त है।

प्रश्न 27
अभिप्रेरणा का सीखने पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
अभिप्रेरणा से सीखने की प्रक्रिया सुचारु एवं सरल हो जाती है।

प्रश्न 28
सीखने के तत्परता के नियम से क्या अभिप्राय है? [2008]
उत्तर :
सीखने के तत्परता के नियम के अनुसार कुछ भी सीखने के लिए व्यक्ति को सर्वप्रथम मानसिक रूप से तैयार होना अनिवार्य है। इस नियम के अनुसार तैयारी या तत्परता सदैव सीखने में सहायक होते हैं।

प्रश्न 29
सीखने के लिए मनुष्यों द्वारा सर्वाधिक किस विधि को अपनाया जाता है?
उत्तर :
अनुकरण विधि।

प्रश्न 30
सीखने की कौन-सी विधि ऐसी है, जिसे प्रमुख रूप से केवल मनुष्यों द्वारा ही अपनाया जाता है?
उत्तर :
सूझ अथवा अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखने की विधि।

प्रश्न 31
सीखने की कौन-सी विधि ऐसी है जिसे मनुष्य तथा पशु समान रूप से अपनाते हैं?
उत्तर :
प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखना

प्रश्न 32
सूझ द्वारा सीखने की विधि को दर्शाने के लिए किस मनोवैज्ञानिक ने महत्त्वपूर्ण प्रयोग किया था तथा उसने यह प्रयोग किस पशु पर किया था?
उत्तर :
सूझ द्वारा सीखने की विधि को दर्शाने के लिए कोहलर नामक मनोवैज्ञानिक ने वनमानुष पर महत्त्वपूर्ण प्रयोग किया था।

प्रश्न 33
कोहलर ने अपना प्रयोग किस पर किया?
उत्तर :
कोहलर ने अपना प्रयोग चिम्पैंजी (वनमानुष) पर किया था।

प्रश्न 34
सम्बद्ध-प्रत्यावर्तन द्वारा सीखने की विधि को सर्वप्रथम किसने दर्शाया था?
उत्तर :
रूस के प्रसिद्ध शरीरशास्त्री पावलोव ने।

प्रश्न 35
पावलोव ने अफ्ना महत्त्वपूर्ण प्रयोग किस पशु पर किया था?
उत्तर :
कुत्ते पर।

प्रश्न 36
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य

  1. सीखने की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप व्यक्ति के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  2. सीखने की प्रक्रिया केवल शैक्षिक-काल में ही होती है।
  3. सीखने की प्रक्रिया जीवन-पर्यन्त चलती रहती है।
  4. प्रेरणा का सीखने की प्रक्रिया पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
  5. परिपक्वता का सीखने की प्रक्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं है।

उत्तर :

  1. असत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. असत्य

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1
“सीखना व्यवहार के परिणामस्वरूप व्यवहार में कोई परिवर्तन है।” यह परिभाषा किसने दी है?
(क) वुडवर्थ ने
(ख) चार्ल्स स्किनर ने
(ग) कॉलविन ने
(घ) गिलफोर्ड ने
उत्तर :
(घ) गिलफोर्ड ने

प्रश्न 2
सम्बद्ध प्रतिक्रिया सिद्धान्त के प्रतिपादक हैं
(क) कोहलर
(ख) स्किनर
(ग) पावलोव
(घ) थॉर्नडाइक
उत्तर :
(ग) पावलोव

प्रश्न 3
बिल्लियों पर प्रयोग किसने किया ?
(क) थॉर्नडाइक ने
(ख) स्किनर ने।
(ग) कोहलर ने
(घ) टरमन ने
उत्तर :
(क) थॉर्नडाइक ने

प्रश्न 4
नवीन अनुबन्धन सिद्धान्त के प्रवर्तक हैं
(क) पावलोव
(ख) थॉर्नडाइक
(ग) कोहलर
(घ) चाल्र्स स्किनर
उत्तर :
(घ) चार्ल्स स्किनर

प्रश्न 5
प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त किसने प्रतिपादित किया ? [2015]
(क) कोहलर ने
|(ख) थॉर्नडाइक ने
(ग) टरमन ने
(घ) स्किनर ने
उत्तर :
(ख) थॉर्नडाइक ने

प्रश्न 6
प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखना ही
(क) सूझ का सिद्धान्त है
(ख) सम्बन्ध प्रतिक्रिया को सिद्धान्त है
(ग) अनुकरण का सिद्धान्त है
(घ) उद्दीपक प्रतिक्रिया को सिद्धान्त है
उत्तर :
(घ) उद्दीपक प्रतिक्रिया का सिद्धान्त है

प्रश्न 7
अनुकरण का सिद्धान्त किसने प्रतिपादित किया ?
(क) बुडवर्थ ने
(ख) हिलगार्ड ने
(ग) स्किनर ने
(घ) कोहलर ने
उत्तर :
(ख) हिलगार्ड ने

प्रश्न 8
‘करके सीखने की क्रिया से सीखने का कौन-सा नियम सर्वाधिक प्रभावी है ? [2007]
(क) तत्परता का नियम
(ख) अभ्यास का नियम
(ग) प्रभाव का नियम
(घ) मनोवृत्त का नियम
उत्तर :
(क) तत्परता का नियम

प्रश्न 9
कोहलर ने सीखने के निम्नलिखित में से किस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया ? [2007, 09, 11]
(क) प्रयास एवं त्रुटि’ द्वारा सीखने का सिद्धान्त
(ख) ‘सूझ’ द्वारा सीखने का सिद्धान्त
(ग) सम्बन्ध प्रत्यावर्तन का सिद्धान्त
(घ) अनुकरण का सिद्धान्त
उत्तर :
(ख) ‘सूझ’ द्वारा सीखने का सिद्धान्त

न 10
थॉर्नडाइक के सीखने के नियम हैं
(क) एक
(ख) तीन
(ग) दो
(घ) चार
उत्तर :
(ख) तीन

प्रश्न 11
“अधिगम जिसमें व्यक्ति किसी समाधान या हल की जाँच करता है कि कहाँ गलतियाँ हैं, उनकी पुनः जाँच कर ठीक करता है और तब तक ठीक करता है जब तक सफल नहीं हो जाता।” यह कथन किसकी विशेषता है? [2015]
(क) प्रयास और त्रुटि द्वारा सीखना
(ख) सूझ द्वारा सीखना
(ग) सम्बन्ध प्रतिक्रिया द्वारा सीखना
(घ) अनुकरण द्वारा सीखना
उत्तर :
(क) प्रयास और त्रुटि द्वारा सीखना

प्रश्न 12
अन्तर्दृष्टि या सूझ द्वारा सीखने के सिद्धान्त के जनक हैं [2009, 14]
(क) मैक्डूगल
(ख) कोहलर
(ग) थॉर्नडाइक
(घ)पावलोव
उत्तर :
(ख) कोहलर

प्रश्न 13
सीखने के उद्दीपक-अनुक्रिया सिद्धान्त के जनक हैं [2011]
या
अधिगम के उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त के प्रतिपादक हैंसीखने के प्रमुख नियमों के प्रतिपादक हैं [2008, 11]
(क) कोहलर
(ख) स्किनर
(ग) थॉर्नडाइक
(घ) पावलोव
उत्तर :
(ग) थॉर्नडाइक

प्रश्न 14
प्रारम्भ में बालक किस प्रकार सीखता है ?
(क) परीक्षण द्वारा
(ख) सूझ द्वारा
(ग) विभेदकरण द्वारा
(घ) प्रयत्न एवं त्रुटि द्वारा
उत्तर :
(धे) प्रयत्न एवं त्रुटि द्वारा

प्रश्न 15
“समस्यात्मक परिस्थिति को समग्र में समझा जाता है और तुरन्त ही हल स्पष्ट रूप से पूर्व-दृष्टि से मन में आ जाता है।” यह कथन किसकी विशेषता है ? [2008]
(क) सूझ द्वारा सीखने की
(ख) प्रयास एवं भूल द्वारा सीखने की
(ग) अनुकरण द्वारा सीखने की
(घ) सम्बन्धीकरण द्वारा सीखने की
उत्तर :
(क) सूझ द्वारा सीखने की।

प्रश्न 16
अधिगम, जो बिना किसी पूर्व-नियोजन के तर्कहीन, यान्त्रिकीय और बिना किसी क्रम के जहाँ हल आकस्मिक होता है, को जाना जाता है [2012]
(क) प्रयास और त्रुटि द्वारा अधिगम
(ख) सूझ द्वारा अधिगम
(ग) सम्बद्ध प्रत्यावर्तन द्वारा अधिगम
(घ) अनुकरण द्वारा अधिगम
उत्तर :
(ख) सूझ द्वारा अधिगम

प्रश्न 17
“प्रगतिशील व्यवहार व्यवस्थापन की प्रक्रिया को अधिगम कहते हैं।” यह कथन किसका है?
(क) थॉर्नडाइक
(ख) स्किनर
(ग) क्रो एवं क्रो
(घ) पारीक
उत्तर :
(ख) स्किनर

प्रश्न 18
सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले शारीरिक कारक हैं
(क) आयु एवं परिपक्वता
(ख) लिंग-भेद
(ग) स्वास्थ्य
(घ) ये सभी कारक
उत्तर :
(घ) ये सभी कारक

प्रश्न 19
सीखने के नियम आधारित हैं
(क) उद्दीपक प्रतिक्रिया सिद्धान्त पर
(ख) सम्बद्ध प्रतिक्रिया सिद्धान्त पर
(ग) सूझ के सिद्धान्त पर
(घ) प्रयास और त्रुटि की विधि पर
उत्तर :
(क) उद्दीपक प्रतिक्रिया सिद्धान्त पर

प्रश्न 20
सूझ द्वारा समस्या का समाधान प्राप्त होता है [2008]
(क) एकाएक
(ख) समस्या उत्पन्न होने के एक घण्टे बाद
(ग) निद्रा के बाद
(घ) कभी नहीं।
उत्तर :
(क) एकाएक

प्रश्न 21
कोहलर ने अपना मुख्य प्रयोग किस पर किया था?
(क) कुत्ते पर
(ख) बन्दर पर
(ग) चिम्पैंजी पर
(घ) बिल्ली पर
उत्तर :
(ग) चिम्पैंजी पर

प्रश्न 22
किस विधि द्वारा विषय को सीखने में समय की बचत होती है?
(क) प्रयास एवं त्रुटि विधि द्वारा
(ख) सूझ विधि द्वारा।
(ग) सम्बद्ध-प्रत्यावर्तन विधि द्वारा
(घ) उपर्युक्त सभी विधियों द्वारा
उत्तर :
(ख) सूझ विधि द्वारा

प्रष्टग 23
छोटे बच्चे एवं मन्दबुद्धि बालक मुख्य रूप से किस विधि द्वारा कार्य करना सीखते हैं?
(के) सूझ विधि द्वारा
(ख) सम्बद्ध-प्रत्यावर्तन विधि द्वारा
(ग) प्रयास एवं त्रुटि विधि द्वारा
(घ) इन सभी विधियों द्वारा
उत्तर :
(ग) प्रयास एवं त्रुटि विधि द्वारा

प्रश्न 24
सीखने के पठार की दशा में  [2012]
(क) सीखने की गति घट जाती है।
(ख) सीखने की गति बढ़ जाती है।
(ग) सीखने की गति में वृद्धि नहीं होती।
(घ) सब कुछ भूल जाता है।
उत्तर :
(ग) सीखने की गति में वृद्धि नहीं होती।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 18 Learning Meaning, Process, Laws and Methods (सीखना-अर्थ, प्रक्रिया, नियम एवं विधियाँ) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 18 Learning Meaning, Process, Laws and Methods (सीखना-अर्थ, प्रक्रिया, नियम एवं विधियाँ), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Leave a Comment