UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 6 बादल-राग / सन्ध्या सुन्दरी part of UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 6 बादल-राग / सन्ध्या सुन्दरी.
Board | UP Board |
Textbook | SCERT, UP |
Class | Class 12 |
Subject | Sahityik Hindi |
Chapter | Chapter 6 |
Chapter Name | बादल-राग / सन्ध्या सुन्दरी |
Number of Questions Solved | 2 |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 6 बादल-राग / सन्ध्या सुन्दरी
बादल-राग / सन्ध्या सुन्दरी – जीवन/साहित्यिक परिचय
(2018, 17)
प्रश्न-पत्र में संकलित पाठों में से चार कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनमें से एक का उत्तर: देना होता है। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।
जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
महाकवि निराला का जन्म बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में 1899 ई. में हुआ था। माँ द्वारा सूर्य का व्रत रखने तथा निराला के रविवार के दिन जन्म लेने के कारण इनका नाम सूर्यकान्त रखा गया, परन्तु बाद में साहित्य के क्षेत्र में आने के कारण इनका उपनाम ‘निराला’ हो गया।
इनके पिता पण्डित रामसहाय त्रिपाठी उत्तर: प्रदेश के बैसवाड़ा क्षेत्र के जिला उन्नाव के गोला ग्राम के निवासी थे था महिषादल राज्य में रहकर राजकीय सेवा में कार्य कर रहे थे। माता-पिता के असामयिक निधन, फिर पत्नी की अचानक मृत्यु, पुत्री सरोज की अकाल मृत्यु आदि ने निराला के जीवन को करुणा से भर दिया। बेटी की असामयिक मृत्यु की अवसादपूर्ण घटना से व्यथित होकर ही इन्होंने ‘सरोज स्मृति’ नामक कविता लिखी। कबीर का फक्कड़पन एवं निर्भीकता, सूफियों का सादापन, सूर-तुलसी की प्रतिभा और प्रसाद की सौन्दर्य-चेतना का मिश्रित रूप निराला के व्यक्तित्व में झलकता है।
इन्होंने कलकता में अपनी रुचि के अनुरूप रामकृष्ण मिशन के पत्र ‘समन्वय’ का सम्पादन-भार सँभाला। इसके बाद ‘मतवाला’ के सम्पादक मण्डल में भी सम्मिलित हुए। इसके बाद लखनऊ में ‘गंगा पुस्तकमाला’ का सम्पादन तथा ‘सुधा’ पत्रिका के लिए सम्पादकीय भी लिखने लगे। जीवन के उत्तर:ार्द्ध में ये इलाहाबाद चले आए। इनकी आर्थिक स्थिति अत्यन्त विषम हो गई। आर्थिक विपन्नता भोगते हुए 15 अक्टूबर, 1961 को ये चिरनिद्रा में लीन हो गए।
साहित्यिक गतिविधियाँ
छायावाद के प्रमुख स्तम्भों में से एक कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की उपन्यास, कहानी, आलोचना, निबन्ध आदि सभी क्षेत्रों में ही रचनाएँ मिलती हैं, तथापि यह कवि के रूप में अधिक विख्यात हुए।
कृतियाँ
प्रमुख काव्य-ग्रन्थों में अनामिका, परिमल, गीतिका, अणिमा, नए पत्ते, आराधना आदि उल्लेखनीय हैं।
लम्बी कविताएँ तुलसीदास, राम की शक्ति पूजा, सरोज-स्मृति आदि।
गद्य रचनाएँ चतुरी-चमार, बिल्लेसुर बकरिहा, प्रभावती, निरूपमा आदि उल्लेखनीय हैं।
काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष
विद्रोहशील व्यक्तित्व वाले निराला ने जब मन की प्रबल भावनाओं को वाणी दी, तो छन्द के बन्धन सहज ही विच्छिन्न हो गए तथा मुक्त छन्द का आविर्भाव हुआ। इनकी कविताओं में छायावादी, रहस्यवादी और प्रगतिवादी विचारधाओं का भरपूर समावेश हुआ है। इनके काव्य में क्रान्ति की आग एवं पौरुष के दर्शन होते हैं।
- मानवतावाद निराला मानवतावाद के घोर समर्थक थे। समाज के हाशिये पर खड़ा समुदाय हमेशा इनकी सहानुभूति का पात्र रहा। समानता एवं बन्धुत्व की भावना इनकी रचनाओं में सर्वत्र बिखरी पड़ी है।
- रस योजना निराला जी की कविताओं में श्रृंगार, वीर, रौद्र, करुण आदि रसों का सुन्दर परिपाक हुआ है, लेकिन प्रधानता पौरुष एवं ओज की है। राम की शक्ति पूजा में वीर और रौद्र रस की प्रधानता है तो सरोजस्मृति में कण रस प्रधान हैं।
- प्रकृति चित्रण निराला जी का प्रकृति से विशेष अनुराग होने के कारण उनके काव्य में स्थान-स्थान पर प्रकृति के मनोहारी चित्र मिलते हैं; जैसे
दिवावसान का समय,
मेघमय आसमान से उतर रही है,
वह सन्ध्या-सुन्दरी परी-सी
धीरे-धीरे-धीरे। - रहस्यवाद अद्वैतवादी सिद्धान्त के समर्थक निराला के स्वस्थ चिन्तन में रहस्यवाद प्रस्तुत हुआ है। ये सर्वत्र आभासित होने वाली चेतन सत्ता में विश्वास रखते थे।
- नारी चित्रण इनके काव्य में नारी का नित्य नया एवं उदात्त रूप चित्रित हुआ हैं। इन्होंने नारी का उज्वल, सात्विक एवं शक्तिमय रूप प्रस्तुत किया है।
- शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति प्रगतिवादी कवि निराला स्वभाव से ही विद्रोही एवं सामाजिक असमानता के घोर विरोधी थे। इनके काव्य में शोषित वर्ग के प्रति अथाह करुणा एवं सहानुभूति थी।
कला पक्ष
- भाषा निराला जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है। कोमल कल्पना के अनुरूप इनकी भाषा की पदावली भी कोमलकान्त है। भाषा में खड़ी बोली की नीरसता नहीं, बल्कि उसमें संगीत की मधुरिमा विद्यमान है। इन्होंने मुहावरों के प्रयोग द्वारा भाषा को नई व्यंजनाशक्ति प्रदान की है। जहाँ दर्शन, चिन्तन एवं विचार-तत्त्व की प्रधानता हैं, वहीं इनकी भाषा दुरूह भी हो गई है। इन्होंने उर्दू, अंग्रेजी आदि के शब्दों का बेधड़क प्रयोग किया है।
- शैली निराला जी एक और कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति में सिद्धहस्त हैं, तो दूसरी ओर कतर एवं प्रचण्ड भावों की व्यंजना में भी। दार्शनिक एवं राष्ट्रीय विचारों की अभिव्यक्ति सरल एवं मुहावरेदार शैली में हुई है। शैली में प्रयोगधर्मिता अनेक जगह दिखती है।।
- छन्द योजना अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए निराला जी ने प्रायः मुक्त छन्द का प्रयोग किया। इन्होंने अपनी रचना क्षमता से यह सिद्ध कर दिया कि छन्दों का बन्धन व्यर्थ है। इन्होंने मुक्त छन्द की नूतन परम्परा को स्थापित किया।
- अलंकार योजना अलंकारों को काव्य का साधन मानते हुए इन्होंने अनुपास, यमक, उपमा, रूपक, सन्देह आदि अलंकारों का सफल प्रयोग किया। नवीन अलंकारों में मानवीकरण, ध्वन्यर्थ-व्यंजना, विशेषण-विपर्यय आदि की सार्थक योजना प्रस्तुत की।
हिन्दी साहित्य में स्थान
निराला जी बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न कलाकार थे। ये छायावाद के प्रतिनिधि कवि हैं। इन्होंने देश के सांस्कृतिक पतन की और खुलकर संकेत किया। हिन्दी काव्य को नूतन पदावली और नूतन छन्द देकर इन्होंने बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इनके द्वारा रचित छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता की रचनाएँ हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।
पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर: देने होंगे।
बादल राग
प्रश्न 1.
झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर!
राग-अमर! अम्बर में भर निज रोर!
झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में,
घर, मरु तरु-मर्मर, सागर में,
सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में
मन में, विजन-गहन कानन में,
आनन-आनन में, रव घोर कठोर—
राग–अमर! अम्बर में भर निज रोर!
अरे वर्ष के हर्ष!
बरस तू बरस-बरस रसधार!
पार ले चल तू मुझको
बहा, दिखा मुझको भी निज
गर्जन-भैरव-संसार!
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।
(i) प्रस्तुत पद्यांश के शीर्षक तथा कवि का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश ‘बादल-रोग’ कविता से उद्धृत है तथा इसके कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बादल के किस रूप का वर्णन किया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बादल के लोक कल्याणकारी रूप का वर्णन किया है। कवि ने बादलों से बरसकर सम्पूर्ण प्रकृति को कोमलता एवं गम्भीरता से भर देने का आग्रह किया है तथा उनसे सृष्टि को नवीन शक्ति प्रदान करने की अपेक्षा की हैं।
(iii) “पार ले चल तू मुझको’, ‘बहा दिखा मुझको भी निज” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि बादलों से इतना अधिक बरसने के लिए कह रहा है कि वह भी उसके साथ बह चले। फलस्वरूप इस भीषण संसार में जगत् के उस पार पहुँचकर मैं भी तुम्हारे गर्जना भरे उस संसार को देखें जिसे भयावह कहा गया है। तुम बरसकर मेरे अस्तित्व को अपने में विलीन कर दो।
(iv) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बादलों से क्या आह्वान किया हैं?
उत्तर:
कवि ने बादलों से आह्वान करते हुए कहा है कि तुम मन्द मन्द झूमते हुए अपनी घनघोर गर्जना से सम्पूर्ण वातावरण को भर दो। अपने शौर से आकाश में एक ऐसा संगीत छोड़ दो, जो अमर हो जाए।
(v) ‘निर्भर’ और ‘संसार’ शब्द में से उपसर्ग शब्दांश छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
निर्झर-निर् (उपसर्ग)
संसार–सम् (उपसर्ग)
सन्ध्या सुन्दरी
प्रश्न 2.
दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है
वह सन्ध्या -सुन्दरी परी-सी धीरे धीरे धीरे।
तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास,
मधुर-मधुर हैं दोनों उसके अधर,
किन्तु जरा गम्भीर, नहीं है उनमें हास-विलास।
हँसता है तो केवल तारा एक
गुंथा हुआ उन घंघराले काले काले बालों से
हृदयराज्य की रानी का वह करता हैं अभिषेक।
अलसता की-सी लता किन्तु कोमलती की वह कली
सखी नीरवता के कन्धे पर डाले बाँह,
छाँह-सी अम्बर पथ से चली।
नहीं बजती उसके हाथों से कोई वीणा,
नहीं होता कोई अनुराग-रोग-आलाप,
नूपुरों में भी रुनझुन-रुनझुन नहीं,
सिर्फ एक अव्यक्त शब्द-सा “चुप, चुप, चुप
है गूंज रहा सब कहीं—
उपरोक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।
(i) प्रस्तुत पद्यांश के शीर्ष तथा कवि का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश ‘सन्ध्या-सुन्दरी’ कविता से उद्धृत है तथा इसके कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ हैं।
(ii) सन्ध्यारूपी सुन्दरी का चित्रण कवि ने कैसे किया हैं?
उत्तर:
सन्ध्यारुपी सुन्दरी का चित्रण कवि ने इस प्रकार किया है कि सन्यारूपी सुन्दरी के अधराधरं मधुर हैं, किन्तु उसकी मुखमुद्रा गम्भीर है। उसमें प्रसन्नता को व्यक्त करने वाली चेष्टाओं का अभाव है। सन्ध्या के समय सुन्दरी के काले होते बालों में गुँथा एक तारा है। वह उसके सौन्दर्य को और अधिक बढ़ा देता है। इसी प्रकार कवि ने सन्ध्यारूपी सुन्दरी का मनोहारी चित्रण किया हैं।
(iii) प्रस्तुत पद्यांश में गूंथा हुआ तारा’ किसका प्रतीक है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में ‘गूंथा हुआ तारा’ सन्ध्या सुन्दरी के बालों में सुशोभित है जो ऐसा प्रतीत हो रहा है, मानो वह अपने हृदय-राज्य की रानी का अभिषेक कर रहा हो।
(iv) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने सन्ध्या सुन्दरी को किसके समान बताया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने सन्ध्या-सुन्दरी को आलस्य के समान बताया है, फिर भी वह कोमलता की कली है अर्थात् आलस्य विद्यमान होते हुए भी उसमें कोमलता का गुण विद्यमान है।
(v) “किन्तु कोमलता की वह कली।” पंक्ति में कौन सा अलंकार है?
उत्तर:
“किन्तु कोमलता की वह कली’ पंक्ति में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
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