UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 10 Non-Alignment

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter Chapter 10
Chapter Name Non-Alignment (गुट-निरपेक्षता)
Number of Questions Solved 29
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 10 Non-Alignment (गुट-निरपेक्षता)

विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
या
गुट-निरपेक्षता का महत्त्व स्पष्ट कीजिए। [2010, 16]
या
गुट-निरपेक्षता का क्या अर्थ है? वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के सन्दर्भ में उसकी प्रासंगिकता का परीक्षण कीजिए। [2015]
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [ 2012, 13, 15]
या
गुट-निरपेक्षता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। वर्तमान समय में यह कहाँ तक प्रासंगिक [2010, 11]
या
गुट-निरपेक्षता पर एक निबन्ध लिखिए। [2008]
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए [2016]
उत्तर
गुट-निरपेक्षता
द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् सम्पूर्ण विश्व दो गुटों में बँट गया। एक गुट का नेतृत्व अमेरिका ने किया और दूसरे गुट का सोवियत संघ (रूस) ने। दोनों गुटों में अनेक कारणों को लेकर भीषण शीतयुद्ध प्रारम्भ हो गया। यूरोप और एशिया के अधिकांश देश इस गुटबन्दी में फंस गये और वे किसी-न-किसी गुट में सम्मिलित हो गये। 15 अगस्त, 1947 को जब भारत स्वतन्त्रं हुआ तो भारत के नेताओं को अपनी विदेश नीति का निर्माण करने का अवसर प्राप्त हुआ। भारत की विदेश नीति के निर्माता पं० जवाहरलाल नेहरू थे। उन्होंने अपनी विदेश-नीति का आधार गुट-निरपेक्षता (NonAlignment) को बनाया। उन्होंने स्पष्ट किया कि “हम किसी गुट में सम्मिलित नहीं हो सकते, क्योकि हमारे देश में आन्तरिक समस्याएँ इतनी अधिक हैं कि हम दोनों गुटों से सम्बन्ध बनाये बिना उन्हें सुलझा नहीं सकते। धीरे-धीरे गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने वाले देशों की संख्या में वृद्धि होती गयी। सन् 1961 में बेलग्रेड में हुए गुट-निरपेक्ष देशों के प्रथम शिखर सम्मेलन में केवल 25 देशों ने भाग लिया था, किन्तु अब इनकी संख्या 120 हो गयी है।

गुट-निरपेक्षता का अर्थ व परिभाषा
गुट-निरपेक्षता की कोई सर्वमान्य व सर्वसम्मत परिभाषा उपलब्ध नहीं है, फिर भी गुटनिरपेक्षता की प्रकृति, तत्त्व तथा अर्थ के आधार पर इसकी परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है-“किसी भी राजनीतिक अथवा सैनिक गुट से संलग्न हुए बिना स्वतन्त्रता, शान्ति तथा सामाजिक न्याय के कार्य में योगदान देना ही गुट-निरपेक्षता है।” गुट-निरपेक्षता की नीति से अभिप्राय है। विभिन्न शक्तियों या गुटों से अप्रभावित रहते हुए अपनी स्वतन्त्र नीति अपनाना और राष्ट्रीय हितों के अनुसार न्याय का समर्थन देना।

कुछ लोग गुट-निरपेक्षता की नीति को, ‘तटस्थता’ की संज्ञा देते हैं, जो उचित नहीं है। इस सम्बन्ध में 1949 ई० में पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिकी जनता के समक्ष स्पष्ट रूप से कहा था-“जब स्वतन्त्रता के लिए संकट उत्पन्न हो, न्याय पर आघात पहुँचे या आक्रमण की घटना घटित हो, तब हम तटस्थ नहीं रह सकते और न ही हम तटस्थ रहेंगे।”
जॉर्ज लिस्का ने लिखा है कि “किसी विवाद के सन्दर्भ में यह जानते हुए कि कौन सही है। और कौन गलत, किसी का पक्ष न लेना ‘तटस्थता’ है, किन्तु गुट-निरपेक्षता का अर्थ है सही और गलत में भेद करना तथा सदैव सही नीति का समर्थन करना।

गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख तत्त्व
गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रमुख तत्त्व निम्नवत् हैं-

1. राष्ट्रवाद की भावना – एशियाई-अफ्रीकी देशों ने राष्ट्रवाद की भावना के आधार पर एक लम्बे संघर्ष के बाद यूरोपियन साम्राज्यवाद से मुक्ति प्राप्त की थी। ऐसी स्थिति में सबसे पहले भारत और बाद में अन्य देशों ने स्वाभाविक रूप से सोचा कि किसी शक्ति गुट की सदस्यता को स्वीकार कर लेने पर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वे उसके पिछलग्गू बन जायेंगे, जिससे उनके आत्म-सम्मान, राष्ट्रवाद और सम्प्रभुता को आघात पहुँचेगा। इस प्रकार राष्ट्रवाद की भावना ने उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में स्वतन्त्र मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित किया।

2. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध – भारत और अन्य एशियाई-अफ्रीकी देशों ने लम्बे समय तक साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के अत्याचार भोगे थे और साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद के प्रति उनकी विरोध भावना बहुत अधिक तीव्र थी। उन्होंने सही रूप में यह महसूस किया कि दोनों ही शक्ति गुटों के प्रमुख नव-साम्राज्यवादी हैं। तथा साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध करने के लिए शक्ति गुटों से अलग रहना बहुत अधिक आवश्यक है।

3. शान्ति के लिए तीव्र इच्छा – लम्बे संघर्ष के बाद स्वतन्त्रता प्राप्त करने वाले एशियाई अफ्रीकी देशों ने सत्य रूप में महसूस किया कि यूरोपीय देशों की तुलना में उनके लिए शान्ति बहुत अधिक आवश्यक है। उन्होंने यह भी सोचा कि उनके लिए युद्ध और तनाव की सम्भावना बहुत कम हो जायेगी, यदि वे अपने आपको शक्ति गुटों से अलग रखें।

4. आर्थिक विकास की लालसा – नवोदित राज्य शस्त्रास्त्रों की प्रतियोगिता से बचकर अपने देश का आर्थिक पुनर्निर्माण करना चाहते हैं। आर्थिक पुनर्निर्माण तीव्र गति से हो सके, इसके लिए विकसित राष्ट्रों से आर्थिक और तकनीकी सहयोग प्राप्त करना जरूरी है। गुट-निरपेक्षता का मार्ग अपनाकर ही कोई राष्ट्र बिना शर्त विश्व की दोनों महाशक्तियों-साम्यवादी और पूँजीवादी गुटों से आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्राप्त कर सकता था।

5. जातीय एवं सांस्कृतिक पक्ष – गुट-निरपेक्षता की नीति की एक प्रेरक तत्त्व जातीय एवं सांस्कृतिक पक्ष’ भी है। गुट-निरपेक्षता की नीति के अधिकांश समर्थक यूरोपियन राष्ट्रों का शोषण भुगत चुके हैं और अश्वेत जाति के हैं। इनमें सांस्कृतिक एवं जातीय समानताएँ भी विद्यमान हैं और कमजोर ही सही, लेकिन समानताओं ने उन्हें शक्ति गुटों से अलग रहने के लिए प्रेरित किया है।

गुट-निरपेक्षता का महत्त्व
वर्तमान विश्व के सन्दर्भ में गुट-निरपेक्षता का व्यापक महत्त्व है, जिसे निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. गुट-निरपेक्षता ने तृतीय विश्वयुद्ध की सम्भावना को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया
  2. गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने साम्राज्यवाद का अन्त करने और विश्व में शान्ति व सुरक्षा बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए हैं।
  3. गुट-निरपेक्षता के कारण ही विश्व की महाशक्तियों के मध्य शक्ति सन्तुलन बना रहा।
  4. गुट-निरपेक्ष सम्मेलनों ने सदस्य राष्ट्रों के मध्य होने वाले युद्धों एवं विवादों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान किया है।
  5. गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों ने विज्ञान व तकनीकी के क्षेत्र में एक-दूसरे को पर्याप्त सहयोग दिया है।
  6. गुट निरपेक्षता ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को व्यापक रूप से प्रभावित किया है।
  7. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन ने विश्व के परतन्त्र राष्ट्रों को स्वतन्त्र कराने और रंग-भेद की नीति का विरोध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  8. यह आन्दोलन निर्धन तथा पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर बहुत बल दे रहा है।
  9. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन राष्ट्रवाद को अन्तर्राष्ट्रवाद में परिवर्तित करने तथा द्विध्रुवीकरण को बहु-केन्द्रवाद में परिवर्तित करने का उपकरण बना।
  10. इसने सफलतापूर्वक यह दावा किया कि मानव जाति की आवश्यकता पूँजीवाद तथा साम्यवाद के मध्य विचारधारा सम्बन्धी विरोध से दूर है।
  11. इसने सार्वभौमिक व्यवस्था की तरफ ध्यान आकर्षित किया तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में शीत युद्ध की भूमिका को कम करने तथा इसकी समाप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  12. गुट-निरपेक्षता नए राष्ट्रों के सम्बन्धों में स्वतन्त्रापूर्वक विदेशों से सम्बन्ध स्थापित करके तथा सदस्यता प्रदान करके उनकी सम्प्रभुता की सुरक्षा का साधन बनी है।

गुट-निरपेक्षता का मूल्यांकन
गुटनिरपेक्षता पर आधारित विचारधारा का उदय उन परिस्थितियों में हुआ जब सम्पूर्ण विश्व दो गुटों में विभक्त हो गया था। इस प्रकार की स्थिति, सम्पूर्ण विश्व के लिए किसी भी समय खतरनाक सिद्ध हो सकती थी। यह गुटनिरपेक्षता पर आधारित नीति का ही परिणाम है कि वर्तमान विश्व तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका को कम करने में काफी सीमा तक सफल हो सका है। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के माध्यम से, विश्वयुद्ध को आमन्त्रित करने वाली प्रत्येक स्थिति की प्रबल विरोध किया जाता रहा है और विश्व-शान्ति की दिशा में अनेक सराहनीय प्रयास किए गए हैं। साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के उन्मूलन, विभिन्न देशों में स्वतन्त्रता के लिए किए गए संघर्ष को सफल बनाने, रंगभेद की नीति का अन्त करने, विश्व में शक्ति सन्तुलन बनाए रखने तथा पिछड़े देशों की प्रगति हेतु समन्वित रूप से प्रयास करने की दिशा में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की अनेक महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ रही हैं। यही नहीं, पारस्परिक निर्भरता के आधुनिक युग में एक-दूसरे की प्रगति हेतु सहयोग प्राप्त करने तथा विश्व को भावी उपनिवेशवादी शक्तियों के ध्रुवीकरण से बचाए रखने की दृष्टि से भी गुटनिरपेक्षता का अस्तित्व बने रहना परम आवश्यक है। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् यद्यपि गुटनिरपेक्षता की नीति पर प्रश्न-चिह्न लग गया है परन्तु वर्तमान समय में भी इसके सदस्य राष्ट्रों में सहयोगात्मक की भावना प्रफुल्लित हो रही है। इसके सदस्य राष्ट्रों की संख्या कम होने के स्थान पर निरन्तर बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत के योगदान का परीक्षण कीजिए।
उत्तर
गुट-निरपेक्षता में भारत का योगदान
गुट-निरपेक्षता के विकास में भारत का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत की विदेश नीति का प्रमुख सिद्धान्त ही गुट-निरपेक्षता है। सर्वप्रथम भारत ने ही एशिया तथा अफ्रीका के नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्रों को परस्पर एकता और सहयोग के सूत्र में बाँधने का प्रयास किया था। ‘बांडुंग सम्मेलन’ में भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस प्रकार भारत गुट-निरपेक्षता का अग्रणी रहा है। पं० जवाहरलाल नेहरू का कथन था कि “चाहे कुछ भी हो जाए, हम किसी भी देश के साथ सैनिक सन्धि नहीं करेंगे। जब हम गुट-निरपेक्षता का विचार छोड़ते हैं तो हम अपना संसार छोड़कर हटने लगते हैं। किसी देश से बँधना-आत्म-सम्मान का खोना तथा अपनी बहुमूल्य नीति का अनादर करना है।’ पं० नेहरू के बाद श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने गुट-निरपेक्षता के विकास को अग्रसरित किया। प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने सातवें सम्मेलन (1983) में नई दिल्ली में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की अध्यक्षता ग्रहण की थी। श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने अपने एक भाषण में कहा था कि “गुट-निरपेक्षता अपने आप में एक नीति है। यह केवल एक लक्ष्य ही नहीं, इसके पीछे उद्देश्य यह है कि निर्णयकारी स्वतन्त्रता और राष्ट्र की सच्ची भक्ति तथा बुनियादी हितों की रक्षा की जाए।

प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी भी गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को प्रभावशाली बनाने के लिए कृतसंकल्प थे। 15 अगस्त, 1986 को श्री राजीव गाँधी ने कहा था कि “भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति के कारण ही भारत का विश्व में आदर है। भारत बोलता है तो वह आवाज सौ करोड़ लोगों की होती है। गुट-निरपेक्षता के मार्ग पर चलकर भारत आज बिना किसी दबाव के बोलता है। उसके साथ संसार के दो-तिहाई गुट-निरपेक्ष देशों की आवाज होती है।”

नवे शिखर सम्मेलन (सितम्बर 1989 ई०) में प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी ने कहा था कि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन तभी गतिशील रह सकता है, जब यह उन्हीं सिद्धान्तों पर चले, जिन पर चलने का वायदा यहाँ 1961 ई० में प्रथम सम्मेलन में सदस्यों ने किया था। ग्यारहवें शिखर सम्मेलन में भारत ने दो बातों के प्रसंग में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की। भारत ने आणविक शस्त्रों पर आणविक शाक्तियों के एकाधिकार का विरोध किया। बारहवें सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान की आणविक विस्फोट के लिए आलोचना की गयी। सम्मेलन में सम्मेलन के अध्यक्ष नेल्सन मण्डेला द्वारा कश्मीर समस्या का उल्लेख किये जाने पर भारत द्वारा कड़ी आपत्ति की गयी। भारत की आपत्ति को दृष्टि में रखते हुए नेल्सन मण्डेला ने अपना वक्तव्य वापस ले लिया। तेरहवें शिखर सम्मेलन में प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता हेतु भी पहल की। प्रधानमन्त्री वी०पी० सिंह भी गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के प्रबल समर्थक रहे हैं और तत्पश्चात् प्रधानमन्त्री चन्द्रशेखर भी। इस आन्दोलन को सफल बनाने के लिए प्रयत्नशील थे। प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने भी इसी नीति को जारी रखा। इसके बाद प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार देश की सुरक्षा और अखण्डता के मुद्दे पर समयानुसार विदेश नीति निर्धारित करने के लिए दृढ़ संकल्प थी। वर्तमान में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी भी इसी नीति को जारी रखे हुए हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
गुट-निरपेक्षता की प्रेरक शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
गुटनिरपेक्षता की प्रेरक शक्तियाँ
गुट निरपेक्षता की प्रेरक शक्तियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. गुट निरपेक्षता की प्रमुख प्रेरक-शक्ति राष्ट्रवाद की भावना है। राष्ट्रवाद तथा गुट-निरपेक्षता के मध्य सहयोग से स्पष्ट है कि नवोदित राष्ट्रों के नेता अपनी गुट-निरपेक्षता के समर्थन में राष्ट्रवाद का सहारा लेते रहे हैं।
  2. गुट-निरपेक्षता की दूसरी प्रेरक-शक्ति उपनिवेशवाद का विरोध करना है। बाण्डंग सम्मेलन में इस तथ्य को स्वीकार किया गया था कि यदि किसी राष्ट्र को सैनिक-संगठन में सम्मिलित होने को बाध्य करने वाली कोई स्थिति नहीं है, तो उपनिवेश विरोधी भावना उसे गुट-निरपेक्षता की दिशा में प्रेरित करेगी।
  3. गुट-निरपेक्षता की तीसरी प्रेरक-शक्ति नवोदित राज्यों की अर्द्ध-विकसित अवस्था है। इन राष्ट्रों की रुचि शास्त्रों की प्रतियोगिता से बचकर आर्थिक पुनर्निर्माण में अधिक है और केवल गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाकर ही ये राष्ट्र शक्तिशाली गुटों से आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं। गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का तर्क है कि उन्हें जो भी सहायता विकसित राष्ट्रों से प्राप्त हो रही है वह उनका अधिकार है, न कि उन पर कोई अहसान।
  4. गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने का एक कारण जातीय तथा सांस्कृतिक पहलू भी है। इस नीति के समर्थक मुख्यत: अफ्रीकी तथा एशियाई देश हैं, जिनका यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा आर्थिक शोषण किया गया था और इन पर राजनीतिक प्रभुत्व रहा। ये गुट-निरपेक्ष राष्ट्र अश्वेत हैं और जातीय तथा सांस्कृतिक दृष्टि से उनमें बहुत कुछ समानता है। वे समान रूप से किसी बड़ी शक्ति के अधीन नहीं रहना चाहते हैं।

प्रश्न 2.
आज के विश्व की बदलती हुई परिस्थितियों में गुट-निरपेक्षता के भविष्य का आकलन कीजिए।
उत्तर
विश्व की बदलती हुई परिस्थितियों में गुट-निरपेक्षता का स्वरूप भी बदला है और इसका महत्त्व पहले से अधिक हो गया है। गुट-निरपेक्षता विश्व राजनीति में राष्ट्रों के लिए एक नये विकल्प के रूप में निश्चय ही स्थायी रूप धारण कर चुकी है। इसने विशेषतया राष्ट्र-समाज के छोटे-छोटे और अपेक्षाकृत कमजोर सदस्यों के सन्दर्भ में राष्ट्रों की स्वतन्त्रता और समता बनाये रखने में योग दिया है। यही कारण है कि आज गुट-निरपेक्षता का पालन करने वाले राष्ट्रों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र में गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की आवाज प्रबल बन सकी है।
कहा जाता है कि गुट-निरपेक्षता को प्रादुर्भाव शीतयुद्ध के परिप्रेक्ष्य में हुआ था और शीतयुद्ध की समाप्ति के साथ गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अप्रासंगिक हो गया है तथा इसको औचित्य नहीं रह गया है।

वास्तव में, वर्तमान समय में शीतयुद्ध का तो अन्त हो गया है, लेकिन बदलती हुई अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अनेक क्षेत्रों में तनाव की स्थितियाँ बनी हुई हैं। महाशक्ति के रूप में अमेरिका तथा विश्व के अन्य कुछ शक्तिशाली देश आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में ‘नव-साम्राज्यवाद की नीति अपनाने की ओर उन्मुख हैं। इस स्थिति में आर्थिक रूप से पिछड़े हुए गुट-निरपेक्ष देशों को बचाने के लिए यह आवश्यक है कि विकसित और विकासशील देशों के बीच सार्थक वार्ता के लिए दबाव डाला जाए और विकासशील देशों के साथ पारस्परिक सहयोग सुदृढ़ और सक्रिय बनाया जाए। इसके लिए निर्गुट आन्दोलन एक अपरिहार्य मंच है।

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प्रश्न 3.
गुट-निरपेक्षता तथा तटस्थता के मध्य अन्तर बताइए।
उत्तर
कुछ विद्वान गुट-निरपेक्षता को तटस्थता की स्थिति मानते हैं, परन्तु यह तटस्थता से बिल्कुल पृथक् नीति है। तटस्थता तथा गुट-निरपेक्षता की यदि गम्भीरता से तुलना की जाए तो निम्नलिखित अन्तर सामने आते हैं-

  1. तटस्थता दो आक्रामकों तथा उनके मध्य संघर्ष के प्रति उदासीनता के दृष्टिकोण का दावा करता है। गुट-निरपेक्षता ऐसा कुछ नहीं करती है। इसके विपरीत, यह प्रत्येक समस्या का उसके गुण के आधार पर न्याय करती है तथा अपने स्वतन्त्र मत की घोषणा करती है।
  2. तटस्थता से आशय एकाकीपन की अवस्था से है, जबकि गुट-निरपेक्षता विकासशील देशों की जनता को अपना भविष्य निर्मित करने में सहायता देती है। न तो वह स्विट्जरलैण्ड या स्वीडन की स्थायी तटस्थता है और न अमेरिका का सकारात्मक एकाकीपन है।
  3. गुट-निरपेक्षता तटस्थता नहीं है, क्योंकि वह अपने दृष्टिकोणों तथा विचारों में सकारात्मक है। गुट-निरपेक्षता से आशय अन्तर्ग्रस्त होने से मुक्ति नहीं है, बल्कि यह अन्तर्ग्रस्त होने की अपरिहार्यता से उत्पन्न होती है।
  4. स्विस सरकार के लिए विपरीत गुट-निरपेक्ष राष्ट्र बिना गुट का निर्माण किए हुए विश्व की समस्याओं पर सहयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, कांगो, स्वेज, क्यूबा, खाड़ी युद्ध संकट आदि।
  5. तटस्थता में जहाँ नकारात्मक प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है और यह केवल एक वास्तविक युद्ध की अवधि तक ही सीमित है, वहाँ गुट-निरपेक्षता का विचार सक्रिय, सकारात्मक तथा निश्चित है।

तटस्थता का परिवर्तनशील सिद्धान्त गुट-निरपेक्षता के विचार को शीतयुद्ध अथवा परमाणु सन्धि की अवधि में ही अपने अन्तर्गत समाहित किए हुए है। संक्षेप में, गुट-निरपेक्षता एक सकारात्मक तटस्थता ही है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
गुट-निरपेक्षता की नीति की चार विशेषताएँ लिखिए। [2007, 14]
या
गुट-निरपेक्षता के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर
गुट-निरपेक्षता के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ)
गुट-निरपेक्षता के प्रमुख लक्षण अथवा विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. शक्ति गुटों से पृथक् रहना और महाशक्तियों के साथ किसी प्रकार का सैनिक समझौता न करना।
  2. स्वतन्त्र विदेश नीति का निर्धारण करना।
  3. शान्ति एवं सद्भावना की नीति का विस्तार करना।
  4. साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, शोषण एवं आधिपत्य का विरोध करना।
  5. विकासशील नीति का अनुसरण करना।
  6. गुट-निरपेक्षता आन्दोलन संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों में सहयोगात्मक भूमिका का निर्वाह करता है।
  7. गुट-निरपेक्षता एक सकारात्मक तटस्थता है।

प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के चार आधारभूत तत्त्वों का उल्लेख कीजिए। [2010]
या
गुट-निरपेक्षता के आवश्यक तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
सन् 1961 में बेलग्रेड में आयोजित गुट-निरपेक्ष देशों के प्रथम शिखर सम्मेलन में असंलग्नता की नीति के कर्णधारों-नेहरू, नासिर और टीटो ने इस नीति के 5 आवश्यक (आधारभूत) तत्त्व माने हैं, जो निम्नलिखित हैं-

  1. सम्बद्ध देश स्वतन्त्र नीति का अनुसरण करता हो;
  2. वह उपनिवेशवाद का विरोध करता हो;
  3. वह किसी भी सैनिक गुट का सदस्य न हो;
  4. उसने किसी भी महाशक्ति के साथ द्विपक्षीय सैनिक समझौता नहीं किया हो;
  5. उसने किसी भी महाशक्ति को अपने क्षेत्र में सैनिक अड्डा बनाने की स्वीकृति न दी हो।

उपर्युक्त आधारभूत तत्त्वों के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सैनिक गुट की सदस्यता या किसी भी महाशक्ति के साथ द्विपक्षीय सैनिक समझौते से दूर रहते हुए शान्ति, न्याय और राष्ट्रों की समानता के सिद्धान्त पर आधारित स्वतन्त्र रीति-नीति का अवलम्बन करना ही गुट-निरपेक्षता है।”

प्रश्न 3.
गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रेरक तत्त्व के रूप में शीतयुद्ध का वर्णन कीजिए।
उत्तर
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों के बीच मतभेदों की एक ऐसी खाई उत्पन्न हो गयी थी और दोनों गुट एक-दूसरे के विरोध में इस प्रकार सक्रिय थे कि इसे शीतयुद्ध का नाम दिया गया। शीतयुद्ध के इस वातावरण में एशिया और अफ्रीका के नव-स्वतन्त्र राष्ट्रों ने किसी भी पक्ष का समर्थन न करके पृथक् रहने का निर्णय किया। शीतयुद्ध से पृथक् रहने की नीति ही आगे चलकर गुट-निरपेक्षता के नाम से पुकारी जाने लगी।

प्रश्न 4.
गुट-निरपेक्ष नीति का सार है ‘स्वतन्त्र विदेश-नीति’। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
गुट-निरपेक्षता का अभिप्राय यह है कि सम्बद्ध देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में किसी शक्ति गुट के साथ बँधा हुआ नहीं है, अपितु उसका स्वतन्त्र पथ है जो न्याय, सत्य, शान्ति और औचित्य पर आश्रित है। जिन देशों ने गुट-निरपेक्षता का मार्ग चुना है वे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में किसी के पिछलग्गू नहीं होते, वरन् स्वयं अपनी दिशा का निर्धारण करते हैं। अल्जीरिया के प्रधानमन्त्री बिन बिल्लाह ने स्पष्ट कहा था, “हम किसी से बँधे नहीं …….. गुट| निरपेक्षता से भी नहीं।’

प्रश्न 5.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की चार उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के किन्हीं दो लाभों का उल्लेख कीजिए। [2008]
उत्तर
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की चार उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. गुट निरपेक्षता को दोनों गुटों द्वारा मान्यता,
  2. निरस्त्रीकरण और अस्त्र-नियन्त्रण की दिशा में प्रगति,
  3. शीतयुद्ध की तीव्रता में कमी तथा
  4. संयुक्त राष्ट्र संघ के स्वरूप को रूपान्तरित करना।

प्रश्न 6.
वर्तमान में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन किन चार क्षेत्रों में बल दे रहा है?
उत्तर
वर्तमान में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन निम्नलिखित चार क्षेत्रों में बल दे रहा है-

  1. नवीन अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की माँग करना।
  2. आणविक निरस्त्रीकरण के लिए दबाव बनाना।
  3. विकसित और विकासशील देशों के बीच सार्थक वार्ता के लिए दबाव डालना।
  4. सुरक्षा परिषद् का विस्तार, विशेषता या परिषद् के स्थायी सदस्यों की संख्या में वृद्धि।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
गुट-निरपेक्षता के कर्णधार कौन थे?
उत्तर
भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू गुट-निरपेक्षता के कर्णधार और प्रणेता थे।

प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्षता की त्रिमूर्ति में कौन-कौन लोग थे?
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के दो संस्थापक नेताओं के नाम बताइए। [2009, 11, 13]
या
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के किसी एक संस्थापक का नाम लिखिए। [2013]
उत्तर
भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टोटो तथा मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर।

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प्रश्न 3.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर

  1. शक्तिशाली गुटों से पृथक् रहना तथा सैन्य गुटों में सम्मिलित न होना तथा
  2. शान्ति की नीति का पालन करना।

प्रश्न 4.
गुट-निरपेक्षता और तटस्थता में अन्तर बताइए।
उत्तर
किसी विवाद में यह जानते हुए कि कौन सही है तथा कौन गलत, किसी का पक्ष न लेना तटस्थता कहलाती है, किन्तु गलत और सही में भेद करते हुए सदैव सही का पक्ष लेना गुटनिरपेक्षता है।

प्रश्न 5.
गुट-निरपेक्ष से क्या आशय है?
उत्तर
गुट निरपेक्ष से आशय है–सैनिक गुटों से अलग रहते हुए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में स्वतन्त्र नीति अपनाना।

प्रश्न 6.
NAM से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
NAM का अर्थ है- Non-Aligned Movement अर्थात् गुट-निरपेक्ष आन्दोलन।

प्रश्न 7.
तेरहवाँ गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन कहाँ आयोजित किया गया?
उत्तर
तेरहवाँ गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन कुआलालम्पुर (मलेशिया–फरवरी, 2003 ई०) में आयोजित किया गया था।

प्रश्न 8.
दो गुट-निरपेक्ष देशों के नाम बताइए। [2010, 11]
उत्तर

  1. भारत तथा
  2. मिस्र।

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प्रश्न 9.
उस भारतीय का नाम लिखिए जो गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का संस्थापक था। [2011]
उत्तर
पं० जवाहरलाल नेहरू।

प्रश्न 10.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रथम शिखर सम्मेलन किस नगर और किस देश में हुआ?
उत्तर
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रथम सम्मेलन बेलग्रेड नामक नगर में हुआ, जो यूगोस्लाविया की राजधानी है।

प्रश्न 11.
सन् 2006 में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का शिखर सम्मेलन कहाँ हुआ था? [2016]
उत्तर
हवाना (क्यूबा) में।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

1. प्रथम गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ था- [2008]
या
असंलग्न देशों की प्रथम बैठक हुई थी-
(क) 1945 ई० में
(ख) 1950 ई० में
(ग) 1961 ई० में
(घ) 1962 ई० में

2. प्रथम गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था- [2007, 08, 13, 14]
(क) काहिरा, 1964 में
(ख) हवाना, 1979 में
(ग) बेलग्रेड, 1961 में
(घ) लुसाका, 1970 में

3. दसवाँ गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था-
(क) हरारे में।
(ख) जकार्ता में
(ग) कार्टाजेना में
(घ) डरबन में

4. तेरहवाँ गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था-
(क) नयी दिल्ली में
(ख) कुआलालम्पुर में
(ग) डरबन में
(घ) कोलम्बो में

5. निम्नलिखित नेताओं में से कौन गुट-निरपेक्ष आन्दोलन से सम्बन्धित नहीं है? [2007, 10, 12, 15]
(क) नेहरू
(ख) नासिर
(ग) टीटो
(घ) स्टालिन

6. सोलहवाँ गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मेलन कहाँ सम्पन्न हुआ? [2013]
(क) बेलग्रेड
(ख) नई दिल्ली
(ग) डरबन
(घ) तेहरान

7. वर्तमान समय में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में शामिल राष्ट्रों की संख्या कितनी है? [2016]
(क) 114
(ख) 116
(ग) 120
(घ) 124

उत्तर

  1. (ग) 1961 ई० में,
  2. (ग) बेलग्रेड, 1961 में,
  3. (ख) जकार्ता में,
  4. (ख) कुआलालम्पुर में,
  5. (घ) स्टालिन,
  6. (घ) तेहरान,
  7. (ग) 120.

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UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 1

UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 1 are part of UP Board Class 12 Biology Model Papers. Here we have given UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 1.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Model Paper Paper 1
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 1

पूर्णाक : 70
समय : 3 : घण्टे 15 मिनट

निर्देश प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
नोट

• सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
• आवश्यकतानुसार अपने उत्तरों की पुष्टि नामांकित रेखाचित्रों द्वारा कीजिए।
• सभी प्रश्नों के निर्धारित अंक उनके सम्मुख अंकित हैं।

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए। [1]
(क)अगुणित कोशिका है
(A) टेपीटम
(B) पराग मातृ कोशिका
(C) पराग कण
(D) पराग कोष

(ख) मनुष्य में सन्तान का लिंग निर्धारण होता है। [1]
(A) माँ के लिंग गुणसूत्र से
(B) अण्डाणु के माप से
(C) शुक्राणु के माप से
(D) पिता के लिंग गुणसूत्र से

(ग) निम्नलिखित में कौन वायु प्रदूषक गैस है और अम्लीय वर्षा बनाती है? [1]
(A) सल्फर डाई ऑक्साइड
(B) ऑक्सीजन
(C) नाइट्रोजन
(D) हाइड्रोजन

(घ) जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग होता है? [1]
(A) चिकित्सा में
(B) कृषि क्षेत्र में
(C) इन दोनों में
(D) इनमें से किसी में नहीं।

प्रश्न 2.
(क) एक आवृतबीजी पुष्प के उन अंगों के नाम लिखिए जहाँ नर . एवं मादा युग्मकोभिद् का विकास होता है [1]
(ख) उस एन्जाइम का नाम लिखिए जो DNA अणु को खण्डों में तोड़ देता है। [1]
(ग) उन कोशिकाओं को नाम लिखिए जो विकसित हो रहे शुक्राणुओं को पोषण प्रदान करती है [1]
(घ) एक खाद्य श्रृंखला में सर्वाधिक संख्या किसकी होती है? [1]
(ङ) क्लाइनफेल्टर एवं टर्नर सिण्ड्रोम में गुणसूत्रों की संख्या लिखिए [1]

प्रश्न 3.
(क) वाट्सन तथा ‘क्रिक द्वारा प्रस्तुत DNA के द्विकुण्डलित मॉडल का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए। [2]
(ख) जैव विकास किसे कहते हैं?
(ग) आर्किड पौधा आम के पेड़ की शाखा पर उग रहा है। आर्किड और आम के पेड़ के बीच पारस्परिक क्रिया को आप कैसे स्पष्ट करेंगे? [2]
(घ) एक स्थलीय पारितन्त्र में अपघटन चक्र का आरेखीय निरूपण कीजिए। [2]
(ङ) मौन (मधुमक्खी) पालन का हमारे जीवन में क्या महत्व है?

प्रश्न 4.
(क) एक संकर क्रॉस का प्रयोग करते हुए प्रभाविता नियम की व्याख्या कीजिए। [3]
(ख) कायिक प्रवर्धन से आप क्या समझते हैं? कोई दो उपयुक्त उदाहरण दीजिए। [2 + 4]
(ग) निम्नलिखित में विभेद कीजिए [1/2 +1/2]

  1. सहज जन्मजात और उपार्जित प्रतिरक्षा
  2. सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा

(घ) वाहित मल हमारे लिए किस प्रकारे हानिप्रद है? [3]

प्रश्न 5.
(क) टिप्पणी लिखिए। [1/2 +1/2].

  1. PCR
  2. प्रतिबन्ध एन्जाइम

(ख) निम्नलिखित में अन्तर कीजिए [1/2 + 1/2]

  1. उत्पादक एवं उपभोक्ता
  2. प्रभाविता एवं अप्रभाविता

(ग) हमारे समाज में लडकियाँ पैदा होने पर, दोष केवल महिलाओं को दिया जाता है? बताइए कि यह क्यों सही नहीं है? [3]
(घ) जैव-प्रौद्योगिकी का कृषि क्षेत्र में क्या उपयोग है? [3]

प्रश्न 6.
(क) मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए। [3]
(ख) उस संवर्धन में जहाँ ई० कोलाई वृद्धि कर रहा हो लैक्टोज डालने पर लैक ओपेरॉन उत्प्रेरित होता है पर कभी संवर्धन में लैक्टोज डालने पर लैक ओपेरॉन कार्य करना बन्द कर देता है, क्यों? स्पष्ट कीजिए।[3]
(ग) जैव प्रबलीकरण का क्या अर्थ है? विवेचना कीजिए। [3]
(घ) क्या सुकेन्द्री कोशिकाओं में प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज मिलते हैं? स्पष्ट कीजिए। [3]

प्रश्न 7.
मनुष्य के नर जनन तन्त्र का वर्णन कीजिए। इसमें शुक्राणु कहाँ संचित रहते हैं? [4+1]
अथवा
जनन क्या है? जन्तुओं में जनन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए। [1+4]

प्रश्न 8.
जैव विकास के पक्ष में शारीरिक (तुलनात्मक शरीर रचना) से प्राप्त प्रमाणों का वर्णन कीजिए। [5]
अथवा
आनुवंशिक कूट क्या हैं? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [1+4]

प्रश्न 9.
पारिस्थितिक पिरामिड को परिभाषितं करें तथा जीव भार तथा ऊर्जा के पिरामिडों की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए। [1+2+2]
अथवा
जल प्रदूषण से क्या तात्पर्य है? जल प्रदूषण के कारणों तथा मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव की विवेचना कीजिए। [1+2+2]

Answers

उत्तर 1.
(क) (C)
(ख) (D)
(ग) (A)
(घ) (C)

उत्तर 2.
(क) नर युग्मकोभिद (पराग कण) → परागकोष (लघुबीजाणुधानी)
मादा युग्मकोद्भिद (भ्रूणकोष) → अण्डाशय (बीजाण्ड)
(ख) प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज एवं एक्सोन्यूक्लिएज।
(ग) सली या अवलम्बन कोशिकाएँ
(घ) उत्पादक
(ङ) क्लाइनफेल्टर सिण्ड्रोम-46 से अधिक
(44 + XXY, 44 + XXXY, आदि)
टर्नर सिण्ड्रोम-45 (44 + XO)

उत्त्तर 3.
(क) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 63 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 देखें।
(ख) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 69 पर जैव विकास’ को देखें।

(ग) सहभोजिता दो जीवों के मध्य होने वाली ऐसी पारस्परिक क्रिया है। जिसमें एक प्रजाति को तो लाभ होता है, जबकि दूसरी प्रजाति अप्रभावित रहती है अर्थात् उसे न तो कोई लाभ होता है और न कोई हानि; उदाहरण-अधिपादप एवं आम का वृक्ष।। अधिपादप पादप (Epiphytic plants) पादप जगत में अधिपादप वे पादप हैं, जो स्वपोषी हैं, परन्तु दूसरे पादपों पर उगते हैं। ऑर्किड इसका प्रमुख उदाहरण है। अधिपादप पादप स्थान परजीवी (Space parasite) हैं। ये दूसरे पादपों पर उगते हैं, परन्तु अपना भोजन स्वयं बनाते हैं और उस पादप को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचाते हैं। ये पादप अपनी आर्द्रताग्राही लटकने वाली जड़ों (Hygroscopic roots) की मदद से वायुमण्डल से नमी का अवशोषण (Absorption) करते हैं। .

(घ)
UP Board Class 12 Biology Model Papers Paper 1 1

(ङ) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 104 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 देखें।

उत्तर 4.
(क) प्रभाविता का नियम इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 48 पर लघु उत्तरीय-I का प्रश्न संख्या 3 देखें।’ एकसंकर संकरण इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 50 पर लघु उत्तरीय-II का प्रश्न संख्या 1 देखें।
(ख) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 10 पर लघु उत्तरीय-I का प्रश्न संख्या 1 देखें।
(ग)

  1. इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 89 पर लघु उत्तरीय-II काप्रश्न संख्या 5 देखें।
  2. इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 87 पर लघु उत्तरीय-I का प्रश्न संख्या 14 देखें।

(घ) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 113 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 देखें।

उत्तर 5.
(क)

  1. इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 120 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 देखें।
  2. इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 117 पर लघु उत्तरीय-II का प्रश्न संख्या 2 देखें।

(ख)

  1. इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 147 पर लघु उत्तरीय-I का प्रश्न संख्या 2 देखें।
  2. इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 48 परं लघु उत्तरीय-I का प्रश्न संख्या 4 देखें।

(ग) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 51 पर लघु उत्तरीय-II का प्रश्न संख्या 5 देखें।
(घ) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 128 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 देखें।

उत्तर 6.
(क) प्लाज्मोडियम नामक परजीवी मलेरिया का रोगजनक या परजीवी है। इसका संक्रमण मादा एनॉफिलीज मच्छर के काटने से होता है। प्लाज्मोडियम का जीवन चक्र के लिए पृष्ठ संख्या 188 पर देखें।
(ख) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 67 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 7 देखें।
(ग)इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 101 पर लघु उत्तरीय-I का प्रश्न संख्या 7 देखें।

(घ) नहीं, प्रायः सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं में प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम नहीं होते हैं। क्योंकि सुकेन्द्रकीय जीवों में, DNA मिथाइलेज नामक एन्जाइम द्वारा मिथाइलीकृत हो जाता है। यह प्रक्रम DNA को प्रतिबन्धन एन्जाइमों से बचाता है। ये एन्जाइम केवल प्राक्केन्द्रकीय जीवों की कोशिका में पाए जाते हैं एवं विषाणु को संक्रमण होने पर उसके DNA को नष्ट कर प्रतिरक्षा तन्त्र की भूमिका निभाते हैं। हालाँकि यीस्ट में प्रतिबन्धन न्यूक्लिएज एन्जाइम पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त DNA द्विगुणन में प्रयुक्त DNA गायरेज़ एन्जाइम भी कुछ सीमा तक प्रतिबन्धन न्यूक्लिएज की भाँति व्यवहार करता है।

उत्तर 7.
इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 33 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 देखें। मानव में शुक्राणु स्खलन से पूर्व शुक्राशय में संचित रहते हैं।
अथवा
वह प्रक्रिया, जिसके द्वारा जीवधारी अपने जैसे जीव उत्पन्न करते हैं अथवा वह प्रक्रिया, जिसके फलस्वरूप अपने वंश व प्रजाति की निरन्तरता को बनाए रखने के लिए माता-पिता द्वारी सन्तान का जन्म होता है, जनन (Reproduction) कहलाती है। यह एक आवश्यक जैव प्रक्रिया है। जन्तुओं में जनन सामान्यतया दो प्रकार से होता है।

  1. अलैगिक जनन
  2. लैंगिक जनन

जन्तुओं में अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction in Animals) जन्तुओं में ‘अलैंगिक जनने बहुत आम नहीं होता है। यह सिर्फ निम्न स्तर के जन्तुओं जैसे में ही देखने को मिलता है। उच्च जन्तुओं में लैंगिक जनन ही मुख्य जनन होता है तथा अलैंगिक जनन मुख्यतया पुनरुद्भवन तक ही सीमित होता है। जन्तुओं में अलैंगिक जनन की विधियाँ निम्नलिखित हैं।
1. विखण्डन (Fission) इस विधि से प्रायः एककोशिकीय जन्तु प्रजनन करते हैं। एककोशिकीय जन्तुओं में कोशिका विभाजन या विखण्डन (Cell division) द्वारा नए जन्तु की उत्पत्ति होती है। विखण्डन की कुछ प्रमुख विधियाँ निम्न हैं।

  • द्विविखण्डन (Binary fission) कुछ प्रोटोजोआ (Protozoa) की कोशिकाएँ विभाजन द्वारा सामान्यतया दो बराबर भागों में विभक्त हो जाती हैं; उदाहरण-अमीबा, पैरामीशियम, आदि। इस प्रक्रिया में पहले केन्द्रक का विभाजन होता है, तत्पश्चात् कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) का विभाजन होता है, जिससे प्रत्येक कोशिका दो सन्तति कोशिकाओं में बँट जाती है।
  • बहुविखण्डन (Multiple fission) कुछ एककोशिकीय जन्तुओं में कोशिकाद्रव्य विभाजित होकर अनेक विखण्ड बना लेते हैं। अनुकूल परिस्थितियों में कोशिका आवरण फटने पर ये विखण्ड मुक्त होकर स्वतन्त्र जीवों के रूप में विकसित हो जाते हैं; उदाहरण- प्लाज्मोडियम।

2. बीजाणुजनन (Sporulation) इस विधि में एककोशिकीय जीव की केन्द्रक कला (Nuclear membrane) कभी-कभी टूट जाती है, जिससे उसमें उपस्थित क्रोमैटिन कण कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) में बिखर जाते हैं। यह क्रोमैटिन कण कोशिकाद्रव्ये के साथ मिलकर बीजाणु (Spores) बनाते हैं, जिससे प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवों के चारों ओर एक कठोर आवरण (Cyst wall) बन जाता है। यह आवरण अनुकूल परिस्थितियों में फट जाता है और बीजाणु मुक्त होकर नए जीव का निर्माण करते हैं। इस प्रकार का अलैगिक जनन मुख्यतया अमीबा में होती है।

3. खण्डन (Fragmentation) सरल संरचना वाले बहुकोशिकीय जन्तुओं में जनन की खण्डन विधि कार्य करती है; उदाहरण-हाइड्रा। इस विधि में जन्त का शरीर सामान्य रूप से विकसित होकर छोटे-छोटे टुकड़ों में खण्डित हो जाता है। तत्पश्चात् प्रत्येक टुकड़ा वृद्धि कर नए जीव की उत्पत्ति करता है।

4.मुकुलन (Budding) इस विधि में शरीर पर एक छोटा-सा उभार बाहर की ओर निकलने लगता है, जिसे मुकुल (Bud) कहते हैं। यह मुकुल धीरे-धीरे बड़ा हो जाता है और जनक जीव से अलग हो जाता है; उदाहरण-हाइड्रा, जिसमें नियमित विभाजन के कारण एक स्थान पर उभार विकसित हो जाता है। यही उभार वृद्धि करता हुआ नए जीव में बदल जाता है तथा पूर्ण विकसित होकर जनक से अलग होकर स्वतन्त्र जीव बने जाता है।

5. पुनरुदभवन (Regeneration) किसी जन्तु के किसी भी भाग को काटकर सामान्यतया नए जन्तु की उत्पत्ति को पुनरुद्भवन (पुनर्जनन) कहते हैं; उदाहरण-हाइड्रा तथा प्लेनेरिया, आदि जीवों को यदि अनेक टुकड़ों में काट दिया जाए, तो प्रत्येक भाग वृद्धि एवं विभाजन द्वारा विकसित होकर पूर्ण जीव का निर्माण करता है। जन्तुओं में लैंगिक जनन (Sexual Reproduction in Animals) इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 13 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 देखें।

उत्तर 8.
इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 77 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 देखें।
अथवा
इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 65 पर दीर्घ उत्तरीयप्रश्न संख्या 5 देखें।

उत्तर 9.
इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 153 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 4 देखें।
अथवा
इसके उत्तर के लिए पृष्ठ संख्या 174 पर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ” संख्या 2 देखें।

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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency: Arithmetic Mean

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency: Arithmetic Mean (केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप : समान्तर माध्य) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency: Arithmetic Mean (केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप : समान्तर माध्य).

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Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 27
Chapter Name Measure of Central Tendency: Arithmetic Mean (केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप : समान्तर माध्य)
Number of Questions Solved 44
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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency: Arithmetic Mean (केन्द्रीय प्रवृत्ति की माप : समान्तर माध्य)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
समान्तर माध्य से आप क्या समझते हैं ? समान्तर माध्य के प्रकार बताइए। [2010]
उत्तर:
साधारण बोलचाल की भाषा में समान्तर माध्य को औसत कहते हैं। समान्तर माध्य केन्द्रीय प्रवृत्ति का एक मापक है। वह संख्या जो किसी समूह विशेष के सभी आँकड़ों का प्रतिनिधित्व करती है, समान्तर माध्य कहलाती है। समान्तर माध्य वह मान है जो दिये हुए पदों के योगफल में पदों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए-यदि छ: बालकों की आयु क्रमशः 5, 7, 9, 11, 13 व 15वर्ष है तो इसका समान्तर माध्य = [latex]\frac { 5+7+9+11+13+15 }{ 6 }[/latex] = [latex]\frac { 60 }{ 6 }[/latex] = 10 वर्ष होगा।

समान्तर माध्य निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया जा सकता है
प्रो० होरेस सैक्रिस्ट के अनुसार, “एक समंकमाला के पदों के मूल्यों के योग को उनकी संख्या से भाग देने पर जो संख्या प्राप्त होती है, उसे ‘माध्य’ कहते हैं।”
क्रॉक्सटन व क्राउड़न के अनुसार, “माध्य समंकों के विस्तार के अन्तर्गत स्थित एक ऐसा मूल्य है जिसका प्रयोग श्रेणी के सभी मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जाता है, क्योंकि माध्य समंकों के विस्तार के अन्तर्गत ही कहीं होता है; अत: यह केन्द्रीय मूल्य का माप कहा जाता है।”

गणितीय माध्य या समान्तर माध्य के प्रकार
गणितीय या समान्तर माध्य के निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं
1. सरल समान्तर माध्य तथा
2. भारित समान्तर माध्य।

1. सरले समान्तर माध्य – सरल समान्तर माध्य में समूह के सभी पदों या समंकों को समान महत्त्व दिया जाता है तथा इसकी गणना पदों के योगफल में पदों की संख्या से भाग देकर की जाती है।
2. भारित समान्तर माध्य – भारित समान्तर माध्य में प्रत्येक पद को उसके महत्त्व के अनुसार कम या अधिक भार प्रदान किया जाता है। पद मूल्यों को उसके महत्त्व के अनुसार भार देकर समान्तर माध्य निकालना ही भारित समान्तर माध्य कहलाता है।

प्रश्न 2
समान्तर माध्य के गुण-दोष लिखिए। [2008, 11, 12, 13, 15]
उत्तर:
समान्तर माध्य के गुण- समान्तर माध्य में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं

  1. सरलता – समान्तर मध्य में सरलता का गुण पाया जाता है। एक साधारण व्यक्ति भी इसकी गणना सरलतापूर्वक कर सकता है, क्योंकि इसको समझना आसान होता है।
  2. समस्त पदों का प्रतिनिधित्व – समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए सम्पूर्ण समंकों का प्रयोग किया जाता है; अत: यह सभी पदों का प्रतिनिधित्व करता है।
  3. निश्चितता – संमान्तर मध्य सदैव एक ही होता है। श्रेणी चाहे जिस ढंग से लिखी जाए, इसमें कोई अन्तर नहीं आता; अत: इसमें निश्चितता का गुण पाया जाता है।
  4. तुलना का आधार – समान्तर माध्य के द्वारा विभिन्न समंकों में तुलना की जा सकती है; अतः समान्तर माध्य तुलना का आधार प्रस्तुत करता है।
  5. बीजगणितीय विवेचन सम्भव होता है – समान्तर माध्य का प्रयोग बीजगणितीय क्रियाओं में सम्भव है; अत: इस माध्य का प्रयोग उच्च-स्तरीय सांख्यिकीय विश्लेषण में किया जाता है।

समान्तर माध्य के दोष – समान्तर माध्य में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं

  1. समान्तर माध्य ज्ञात करते समय सभी पदों को महत्त्व दिया जाता है, परन्तु बड़े मूल्यों के पद माध्य को अधिक प्रभावित करते हैं, जिसके कारण समान्तर माध्य श्रेणी का ठीक प्रतिनिधित्व करने में असफल रहता है; जैसे – किसी कार्यालय के प्रबन्धक का वेतन ₹14,000 और दो लिपिकों का वेतन क्रमशः ₹3,000 और ₹4,000 है तो इस समूह के वेतन का माध्य हैं ₹7,000 होगा, जो कि श्रेणी का उचित प्रतिनिधित्व नहीं करता।
  2. समान्तर माध्य द्वारा कभी-कभी अशुद्ध परिणाम भी निकल जाते हैं। उदाहरण के लिए-यदि तीन फर्मों के विभिन्न वर्षों के लाभ निम्नवत् हैं
    UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 1
    उपर्युक्त लाभ को देखने से स्पष्ट होता है कि तीनों फर्मों का औसत लाभ या समान्तर माध्य 50,000 है। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि तीनों फर्म समान प्रगति पर हैं, परन्तु फर्म A प्रगति पथ पर है और फर्म B की स्थिति शोचनीय।
  3. गुणात्मक सामग्री का समान्तर माध्य ज्ञात नहीं किया जा सकता है। इस कारण गुणात्मक सामग्री के लिए यह अनुपयुक्त है।
  4. समान्तर माध्य के द्वारा कभी-कभी विचित्र व हास्यास्पद परिणाम प्राप्त होते हैं; जैसे-एक व्यक्ति के पास 4 गाय हैं और दूसरे व्यक्ति के पास 3 गाय हैं तो इनका समान्तर माध्य 3.5 होता है। जबकि 3.5 गाय नहीं होती हैं; अत: जिन वस्तुओं का विभाजन असम्भव है उनके समान्तर माध्य को ज्ञात करना कठिन है।
  5. समान्तर माध्य का बिन्दुरेखीय प्रदर्शन या रेखाचित्र असम्भव है।
  6. समंकमाला को देखकर समान्तर मध्य का अनुमान लगाना कठिन होता है।
  7. सम्पूर्ण समंकों में से यदि कोई एक समंक गायब हो जाता है, तो ऐसी स्थिति में समान्तर माध्य ज्ञात करना कठिन होता है।
  8. समान्तर माध्य छोटे पदों को कम और बड़े पदों को अधिक महत्त्व देता है।

प्रश्न 3
समान्तर माध्य की गणना हेतु प्रयुक्त प्रत्यक्ष एवं लघु रीतियों को उदाहरण सहित समझाइए। [2010]
उत्तर:
समान्तर माध्य ज्ञात करने की दो विधियाँ हैं- 1. प्रत्यक्ष विधि (Direct Method) तथा 2. परोक्ष विधि या लघु विधि (Indirect or Short-cut Method)

1. प्रत्यक्ष विधि – समान्तर माध्य ज्ञात करने की यह विधि अत्यन्त सरल है, परन्तु यदि समंकों का मूल्य बड़ा होता है और उनकी संख्या भी अधिक होती है तो इस विधि का प्रयोग उचित नहीं रहता, क्योंकि गणना करने में अधिक समय व श्रम का व्यय होता है।

2. परोक्ष विधि या लघु विधि – इस विधि को अप्रत्यक्ष विधि या कल्पित माध्य विधि भी कहते हैं। इसमें दिये हुए पद-मूल्यों में से किसी एक को अथवा पद-मूल्यों से भिन्न किसी दूसरी संख्या को कल्पित माध्य (Assumed Mean) मान लेते हैं तथा कल्पित माध्य को प्रत्येक पद-मूल्य में से घटाकर धनात्मक या ऋणात्मक विचलन ज्ञात कर लेते हैं। कल्पित माध्य से प्रत्येक पद-मूल्य के विचलनों के योग को पदों की संख्या से भाग देते हैं। इस प्रकार जो भागफल प्राप्त होता है यदि वह धनात्मक (+) धनात्मक या ऋणात्मक विचलन ज्ञात कर लेते हैं। कल्पित माध्य से प्रत्येक पद-मूल्य के विचलनों के योग को पदों की संख्या से भाग देते हैं। इस प्रकार जो भागफल प्राप्त होता है यदि वह धनात्मक (+) होता है तो उसे कल्पित माध्य में जोड़ देते हैं और यदि ऋणात्मक (-) होता है तो उसे कल्पित माध्य से घटा देते हैं। जो मूल्य प्राप्त होता है वही समान्तर माध्य होता है। यदि समंकों का मूल्य बड़ा हो तथा समंकों की संख्या भी अधिक हो तो इस विधि का प्रयोग उचित होता है, क्योंकि गणना करने में समय व श्रम का कम व्यय होता है।

विशेष – समंक तीन प्रकार की श्रेणियों में मिल सकते हैं

  1. व्यक्तिगत श्रेणी (Individual Series) में,
  2. खण्डित श्रेणी (Discrete Series) में तथा
  3. सतत् (अखण्डित) श्रेणी (Continuous Series) में। प्रत्येक प्रकार की श्रेणी का समान्तर मध्य प्रत्यक्ष या परोक्ष दोनों ही विधियों से ज्ञात किया जा सकता है।

व्यक्तिगत श्रेणी में समान्तर माध्य की गणना

(अ) प्रत्यक्ष विधि – व्यक्तिगत श्रेणी में सभी पदों के मूल्यों को जोड़कर, कुल योग को पदों की संख्या से भाग देते हैं।
सूत्र रूप में:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 2
यहाँ, [latex]\overline { X }[/latex] संकेताक्षर का प्रयोग सरल समान्तर माध्य के लिए है। x1, x2, x3, x4, आदि व्यक्तिगत पद-मूल्य हैं तथा n पदों की संख्या है।
Σ(Sigma) ग्रीक भाषा का अक्षर है, जिसका अर्थ दिये गये समस्त पद-मूल्यों का योग है।

(ब) अप्रत्यक्ष विधि या लघु रीति – अप्रत्यक्ष विधि को कल्पित माध्य रीति भी कहते हैं। इसमें दिये हुए पद-मूल्यों में से किसी एक को अथवा पद-मूल्यों में से भिन्न किसी दूसरी संख्या को कल्पित माध्य मान लेते हैं, फिर निम्नलिखित क्रियाएँ करनी पड़ती हैं
सूत्र [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma dx }{ n } [/latex]
यहाँ
n A = offrea FTET (Assumed Mean)
Σdx = कल्पित माध्य से विचलन (Deviations from Assumed Mean)
n = पदों की संख्या

उदाहरण 1
एक कक्षा के 12 विद्यार्थियों के भार सम्बन्धी ऑकड़े निम्नलिखित हैं। प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य की गणना कीजिए
भार (किग्रा में) : 45         42       47        55      58        60          61       44      49         52         48        45
हल:
समान्तर माध्य की गणना (प्रत्यक्ष विधि से)
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 3

हल:
समान्तर माध्य की गणना (अप्रत्यक्ष विधि से)
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 4

खण्डित श्रेणी में समान्तर साध्य की गणना
खण्डित श्रेणी में प्रत्येक पद-मूल्य की तत्सम्बन्धी आवृत्तियाँ दी हुई रहती हैं। इस श्रेणी में भी समान्तर माध्य दोनों विधियों से ज्ञात किया जा सकता है।

(अ) प्रत्यक्ष विधि द्वारा – खण्डित श्रेणी में प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए पद-मूल्यों को सम्बन्धित आवृत्तियों से गुणा करके गुणनफलों के योग में कुल आवृत्तियों का भाग दे देते हैं।
सूत्र [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma fx }{ n } [/latex]
इस सूत्र में- fx = आवृत्ति का उसके मूल्य का गुणनफल।
Σfx = सभी गुणनफलों का योग।
n = आवृत्तियों का योग अर्थात् Σf

(ब) अप्रत्यक्ष (लघु) विधि – कल्पित माध्य से पद-मूल्यों का विचलन निकालकर सम्बन्धित आवृत्तियों से गुणा करते हैं। गुणनफलों के योग में कुल आवृत्तियों का भाग देने पर प्राप्त भागफल यदि धनात्मक है तो उसे कल्पित माध्य में जोड़ देते हैं और यदि ऋणात्मक है तो उसे कल्पित माध्य से घटा देते हैं। इस प्रकार समान्तर माध्य ज्ञात हो जाता है।
सूत्र [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma fdx }{ n } [/latex]
यहाँ A = कल्पित माध्य;
Σfdx = कल्पित माध्य से पद-मूल्यों के विचलनों व आवृत्तियों के गुणनफल का योग;
n = पदों की संख्या।

उदाहरण 2
निम्नांकित श्रेणी के समान्तर माध्य की गणना प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रीति से कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 5
हल:
प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 6
अप्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 7

सतत या अखण्डित श्रेणी में समान्तर माध्य की गणना
सतत् श्रेणी में मूल्य (x) वर्गों में दिये हुए रहते हैं; अतः सर्वप्रथम प्रत्येक वर्गान्तर का मध्य बिन्दु (mid point) या मध्य मूल्य (mid value) ज्ञात करते हैं। यह मध्य मूल्य M.V. को x यानि पद-मूल्य मानकर आगे की गणना की जाती है। इस प्रकार सतत् श्रेणी खण्डित श्रेणी में परिवर्तित हो जाती है। इसके बाद वे सभी क्रियाएँ करनी पड़ती हैं जो खण्डित श्रेणी में की जाती हैं। सतत् श्रेणी में समान्तर माध्य ‘प्रत्यक्ष विधि तथा ‘लघु विधि’ दोनों प्रकार से ज्ञात किया जा सकता है।

(अ) प्रत्यक्ष विधि – सतत् श्रेणी में प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए वर्गों के ‘मध्य मूल्य निकाले जाते हैं। तत्पश्चात् उनको आवृत्तियों (f) से गुणा करते हैं। गुणनफल के योग में
आवृत्तियों के योग से भाग दे देते हैं।
सूत्र [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma fx }{ n } [/latex]
इस सूत्र में – fx = आवृत्ति का सम्बन्धित मध्य मूल्य से गुणनफल।
Σfx = सभी गुणनफलों का योग।
n = आवृत्तियों का योग अर्थात् Σf ।

(ब) अप्रत्यक्ष या लघु विधि – सतत् श्रेणी में लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात करना प्रत्यक्ष विधि की अपेक्षा सरल होता है। लघु विधि में समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित क्रियाएँ करनी पड़ती हैं

  1. सर्वप्रथम वर्गान्तरों के मध्य मूल्य ज्ञात करते हैं।
  2. मध्य मूल्य में से एक मूल्य या कोई अन्य कल्पित माध्य (A) मान लिया जाता है।
  3. कल्पित माध्य को प्रत्येक मूल्य में से घटाकर विचलन (dx) ज्ञात करते हैं।
  4. dx को तत्सम्बन्धी आवृत्तियों से गुणा कर fdx ज्ञात करते हैं।
  5. गुणनफलों का योग करके Σfdx ज्ञात करते हैं।
  6. समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं

सूत्र- [latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma fdx }{ n } [/latex]
यहाँ, A = कल्पित माध्य;
fdx = कल्पित माध्य से विचलन X आवृत्ति;
Σfdx = आवृत्ति तथा विचलन के गुणनफल का योग;
n = पदों की संख्या।

उदाहरण 3
निम्नलिखित तालिका में दिये गये आँकड़ों के आधार पर समान्तर माध्य की गणना प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रीति से कीजिए विद्यार्थियों की संख्या
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 8
हल:
प्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 9
अप्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 10
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 11

संचयी आवृत्तियाँ दिये रहने पर समान्तर माध्य की गणना
सतत् श्रेणी में संचयी आवृत्तियाँ दो प्रकार से हो सकती हैं
(1) ‘से अधिक’ तथा (2) ‘से कम। दोनों प्रकार से दी गयी संचयी आवृत्तियों में समान्तर माध्य की गणना उदाहरण 4 तथा 5 द्वारा स्पष्ट की जा रही है।

उदाहरण 4
निम्नलिखित आवृत्ति वितरण से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 86
हल:
उपर्युक्त प्रश्न ‘से अधिक के आधार पर संचयी आवृत्ति में दिया हुआ है। इसमें वर्गों की निम्न सीमाएँ दी गयी हैं; अत: इसे सर्वप्रथम सतत् श्रेणी में बदलेंगे। श्रेणी को देखने से ज्ञात होता है कि श्रेणी में वर्गान्तर 10 का है। अत: पहला वर्ग 10-20 का बनेगा तथा पहले संचयी आवृत्ति में से अगली संचयी आवृत्ति को घटाते जाएँगे, अर्थात् संचयी आवृत्ति से सामान्य आवृत्ति बनाएँगे; अब साधारण श्रेणी में प्रश्न निम्नलिखित प्रकार से बनेगा
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 12
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 13
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 14

उदाहरण 5
निम्नलिखित आवृत्ति-वितरण से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 15
हल:
उपर्युक्त प्रश्न ‘से कम के आधार पर संचयी आवृत्ति में दिया हुआ है। इसमें वर्गान्तर की उच्च सीमाएँ दी हैं। हम देखते हैं कि श्रेणी के प्रत्येक वर्ग में अन्तर 10 का है। सर्वप्रथम हम इसे सतत् श्रेणी में बदलेंगे। हमारा पहला वर्ग 10-20 का होगा। प्रत्येक वर्ग की आवृत्ति ज्ञात करने के लिए अगले वर्ग की संचयी आवृत्ति में से पहले वर्ग की संचयी आवृत्ति घटा देंगे। सतत् श्रेणी में प्रश्न निम्नलिखित प्रकार से बनेगा
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 16
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 17

उदाहरण 6
निम्नलिखित श्रेणी से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 18
हल:
विशेष – समानान्तर माध्य ज्ञात करने की दोनों विधियाँ (प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष) इस प्रश्न के हल हेतु दर्शायी गयी हैं
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 19

विशेष – समान्तर माध्य ज्ञात करने की यह कोई भिन्न विधि नहीं है, वरन् लघु विधि की सहायक विधि ही है। इस विधि में कल्पित माध्य से अन्तर की संख्याओं को किसी उभयनिष्ठ संख्या से भाग दे दिया जाता है, जिससे पद-विचलन बहुत छोटे हो जाते हैं। इस प्रकार इन छोटे पद-विचलनों में उनकी आवृत्तियों से गुणा करने पर कुल विचलन ज्ञात हो जाते हैं। अन्त में विचलनों के योग में उक्त उभयनिष्ठ संख्या का गुणा कर दिया जाता है। शेष विधि वही रहती है जिसे लघु विधि के अन्तर्गत समझाया गया है। चिह्नों के अर्थ भी वही होते हैं जिन्हें लघु रीति के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।

उदाहरण 7
एक परीक्षा में 50 विद्यार्थियों द्वारा प्राप्तांक नीचे तालिका में दिये गये हैं। अंकगणितीय माध्य की गणना कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 20
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 21
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 22

उदाहरण 8
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 23
या
निम्न समंकों में से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए [2014]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 24
या
निम्नलिखित श्रेणी के समान्तर माध्य की गणना कीजिए [2014]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 25
या
निम्नलिखित आवृत्ति वितरण में समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए [2014]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 26
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 27
प्रश्न 4
भारित समान्तर माध्य क्या है? भारित समान्तर माध्य ज्ञात करने की विधि उदाहरण के द्वारा समझाइए।
उत्तर:
आर्थिक समस्याओं के अध्ययन में भारित समान्तर माध्य का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। यह वह माध्य होता है जिसमें पदों को उनके सापेक्षिक महत्त्व के अनुसार भार देकर माध्य की गणना की जाती है। अनेक स्थितियों में तुलना करने के लिए भारित समान्तर माध्य ही उपयुक्त विधि होती है। उदाहरणार्थ-एक कारखाने के कर्मचारियों की औसत आय ज्ञात करने के लिए व्यवस्थापक के वेतन तथा कर्मचारियों के वेतन को समान महत्त्व देना अनुचित होगा; क्योंकि कारखाने में व्यवस्थापक तो एक होगा तथा कर्मचारियों की संख्या अधिक होगी। उचित औसत आय तब ही प्राप्त हो सकती है, जब हम व्यवस्थापक तथा कर्मचारियों को उनके महत्त्व के अनुसार भार दें। इसके लिए भारित समान्तर माध्य ही उपयुक्त है।

भारित समान्तर माध्य ज्ञात करने की विधियाँ – भारित समान्तर माध्य भी प्रत्यक्ष विधि एवं अप्रत्यक्ष या लघु विधि से ज्ञात किया जा सकता है

(क) प्रत्यक्ष विधि से भारित समान्तर माध्य – (1) प्रत्येक पद को उसके महत्त्व के आधार पर भार (w) प्रदान किया जाता है।
(2) प्रत्येक मूल्य (x) को उसके भार (W) से गुणा करके गुणनफल (Wx) ज्ञात करते हैं। इसके बाद गुणनफलों का योग करके ΣWx निकालते हैं। ।
(3) गुणनफलों (Σwx) में भारों के योग (ΣW) का भाग देकर समान्तर माध्य निकालते हैं। सूत्र रूप में
[latex]\overline { X }[/latex] = A + [latex]\frac { \Sigma Wx }{ \Sigma W } [/latex]
यहाँ, [latex]\overline { X }[/latex] w = भारित समान्तर माध्य है।
ΣWx = मूल्यों तथा भारों के गुणनफलों का योग है।
Σw = भारों का योग है।

(ख) लघु रीति से भारित समान्तर माध्य – इस विधि द्वारा भारित समान्तर माध्य ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित क्रियाएँ करनी पड़ती हैं

  1. प्रत्येक पद को महत्त्व के अनुसार भार देना।
  2. कल्पित माध्य (A) मानकर मूल्यों से विचलन (dx) ज्ञात करना।
  3. विचलनों को तत्सम्बन्धी भार से गुणा करके गुणनफल ज्ञात करना तथा उनका योग करना। इस प्रकार ΣWdx ज्ञात हो जाएगा।
  4. निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करके भारित समान्तर माध्य ज्ञात किया जाएगा

[latex]\overline { X }[/latex]W = A + [latex]\frac { \Sigma Wdx }{ \Sigma W } [/latex]
यहाँ परे, [latex]\overline { X }[/latex]W = भारित समान्तर माध्य;
A = कल्पित माध्य।
ΣWdx = कल्पित माध्य से प्राप्त विचलनों और तत्सम्बन्धी भारों के गुणनफल का योग।
Σw = भारों का योग।

उदाहरण 9
एक व्यक्ति ने निम्नलिखित वस्तुएँ विविध मूल्यों पर नीचे दी गयी तालिका के अनुसार खरीदी हैं। उनका भारित समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 28
हल:
प्रत्यक्ष विधि द्वारा भारित समान्तर माध्य की गणना।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 29
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 30
लघु रीति द्वारा भारित समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 31

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
निम्नांकित समंकों की सहायता से प्राप्तांकों का समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए। प्रश्न-पत्र के अधिकतम अंक 50 थे
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 32
हल:
[ संकेत–उपर्युक्त प्रश्न व्यक्तिगत श्रेणी के अन्तर्गत आता है। ] ।
समान्तर माध्य सूत्र
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 33

प्रश्न 2
निम्नलिखित आँकड़ों से लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
7, 10, 13, 18, 24, 30
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 34
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 35

प्रश्न 3
उत्तर प्रदेश सरकार के निम्नलिखित वार्षिक व्यय के माध्य की गणना कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 36
हल:
समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 37
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 38

प्रश्न 4
लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 39
हल:
लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 40

प्रश्न 5
8 व्यक्तियों के समूह के मासिक व्यय का समान्तर माध्य ₹5,000 है। 12 व्यक्तियों के एक समूह का समान्तर माध्य ₹6,000 है। सभी 20 व्यक्तियों के मासिक व्यय का समान्तर माध्य ज्ञात करें।
हल:
समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 41
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 42

प्रश्न 6
एक शहर के 100 परिवारों की मासिक आय निम्नवत है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 43
उपर्युक्त आँकड़ों की सहायता से इस शहर के परिवारों की मासिक आय का समान्तर माध्य लघु विधि द्वारा ज्ञात कीजिए।
हल:
विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 44

प्रश्न 7
निम्नांकित श्रेणी से समान्तर माध्य की गणना प्रत्यक्ष तथा लघु दोनों रीति से कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 45
हल:
प्रत्यक्ष एवं लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 46
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 47
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 48

प्रश्न 8
निम्नलिखित का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विधियों द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 49
हल:
संकेत – सर्वप्रथम वर्गान्तर समान अन्तराल के बनाने होंगे; क्योकि पहले वर्गान्तर में 1 का अन्तर है, दूसरे व तीसरे में 2 का तथा चौथे व पाँचवें में 5 का। अतः सुविधा के लिए पहले, दूसरे व तीसरे को मिलाकर एक वर्गान्तर बना लेंगे, जिसमें 5 का अन्तर होगा।

प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 50
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 51
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 52

प्रश्न 9
निम्नांकित का लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 53
हल:
लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 54
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 55

प्रश्न 10
क, ख और ग आगरा के किसी इण्टरमीडिएट कॉलेज के परीक्षार्थी हैं। इन्होंने निम्नलिखित प्रश्न का समान्तर माध्य निकाला। तीनों परीक्षार्थियों के उत्तर एक-दूसरे से भिन्न थे। क का उत्तर 347, जबकि ख और ग के उत्तर क्रमशः 35 और 37 थे। समान्तर माध्य की गणना करके ज्ञात कीजिए कि इन परीक्षार्थियों में किसका उत्तर सही है?
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 56
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 57

प्रश्न 11
एक विद्यार्थी के पाँच विषयों में प्राप्त अंकों का समान्तर माध्य 40 है। छठे विषय में प्राप्त अंकों को सम्मिलित कर लेने पर समान्तर माध्य 46 हो जाता है। छठे विषय में उसे कितने अंक मिले?
हल:
पाँच विषयों में प्राप्त अंकों का समान्तर माध्य = 40
पाँच विषयों में कुल प्राप्त अंक = 40 x 5 = 200
छः विषयों में प्राप्त अंकों का समान्तर माध्य = 46
छः विषयों में कुल प्राप्त अंक। = 46 x 6 = 276
छठे विषय में प्राप्तांक = छः विषयों के कुल प्राप्तांक-पाँच विषयों के कुल प्राप्तांक
छठे विषय के प्राप्तांक = 276 – 200 = 76

प्रश्न 12
निम्नलिखित आँकड़ों से लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 58
हल:
लघु विधि द्वारा समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 59

प्रश्न 13
निम्नलिखित आँकड़ों से प्राप्तांकों का समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 60
हल:
सर्वप्रथम वर्गान्तर को अपवर्जी श्रेणी बनाकर तथा संचयी आवृत्ति को सामान्य आवृत्ति में बदल लेंगे, तत्पश्चात् प्रश्न को अग्रवत् हल करेंगे
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 61

प्रश्न 14
10 छात्रों के अंक इस प्रकार हैं
10, 28, 32, 12, 18, 20, 25, 15, 26, 14. प्रत्यक्ष विधि से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए।
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 62

प्रश्न 15
निम्नलिखित समंकों में से प्रत्यक्ष रीति द्वारा समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 63
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 64
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 65

प्रश्न 16
निम्नलिखित समंकों में से अप्रत्यक्ष विधि से समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 66
हल:
समान्तर माध्य की गणना
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 67

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
समान्तर माध्य की गणना हेतु व्यक्तिगत श्रेणी की प्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 68

प्रश्न 2
एक आदर्श माध्य के गुण बताइए।
उत्तर:
एक आदर्श माध्य में निम्नलिखित आवश्यक गुण होने चाहिए

  1. स्पष्ट परिभाषा।
  2. श्रेणी के सभी पदों पर आधारित।
  3. माध्य सरल होना चाहिए।
  4. अंकगणितीय एवं बीजगणितीय विवेचन सम्भव।
  5. उच्चावचनों का कम प्रभाव।
  6. माध्य से निकाली गयी संख्या निश्चित एवं निरपेक्ष होनी चाहिए।

प्रश्न 3
एक व्यक्ति की मासिक आय रुपये में नीचे दी गयी है। प्रत्यक्ष विधि से समान्तर माध्य कीजिए [2008]
1400, 1350, 1500, 1750, 1100
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 69

प्रश्न 4
निम्नलिखित आवृत्ति सारणी के आधार पर छात्रों को प्राप्त अंकों का समान्तर माध्य ज्ञात कीजिए [2007]
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 70
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 71

निश्चित उतरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
समान्तर माध्य किसे कहते हैं? [2008, 11, 12, 13, 15]
या
समान्तर माध्य को परिभाषित कीजिए। [2013, 14]
उत्तर:
समान्तर माध्य वह मान है जो दिये हुए पदों के योगफल में पदों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त होता है।
या
वह संख्या जो किसी समूह विशेष के सभी आँकड़ों का प्रतिनिधित्व करती है, उस समूह का समान्तर माध्य कहलाती है।

प्रश्न 2
समान्तर माध्य कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
समान्तर माध्य दो प्रकार के होते हैं

  1. सरल समान्तर माध्य तथा
  2. भारित समान्तर माध्य।

प्रश्न 3
सरल समान्तर माध्य से क्या अभिप्राय होता है?
उत्तर:
सरल समान्तर माध्य की गणना पदों के योगफल में पदों की संख्या से भाग देकर की जाती है। सरल समान्तर माध्य में समूह के सभी पदों या समंकों को समान महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 4
भारित समान्तर माध्य से क्या अभिप्राय होता है? [2009, 11]
उत्तर:
भारित समान्तर माध्य में प्रत्येक पद को उसके महत्त्व के अनुसार कम या अधिक भार प्रदान किया जाता है।
पद मूल्यों को उसके महत्त्व के अनुसार भार देकर समान्तर माध्य ज्ञात करना भारित समान्तर माध्य है।

प्रश्न 5
समान्तर माध्य की तीन सीमाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(1) समान्तर माध्य की गणना करते समय सभी समंक समान गुण वाले होने चाहिए।
(2) उच्चावचनों का कम प्रभाव होना चाहिए।
(3) समान्तर माध्य की गणना योग्य एवं कुशल व्यक्ति के द्वारा की जानी चाहिए जिससे कि समान्तर माध्य शुद्ध प्राप्त हो सके।

प्रश्न 6
अप्रत्यक्ष विधि से समान्तर माध्य ज्ञात करने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 72

प्रश्न 7
समान्तर माध्य के दो गुण बताइए।
उत्तर:
(1) समान्तर माध्य में सरलता का गुण पाया जाता है।
(2) समान्तर माध्य सभी पदों का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रश्न 8
समान्तर माध्य के दो दोष लिखिए।
उत्तर:
(1) समान्तर माध्य ज्ञात करने में सभी पदों को महत्त्व दिया जाता है। किन्तु बड़े मूल्यों के पद समान्तर माध्य को अधिक प्रभावित करते हैं।
(2) समान्तर माध्य द्वारा कभी-कभी अशुद्ध परिणाम भी निकल जाते हैं।

प्रश्न 9
समान्तर माध्य की गणना हेतु व्यक्तिगत श्रेणी की प्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 73

प्रश्न 10
समान्तर माध्य की गणना हेतु व्यक्तिगत श्रेणी की अप्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए। [2009,11]
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 74

प्रश्न 11
समान्तर माध्य की गणना हेतु खण्डित श्रेणी की प्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए। [2009, 11]
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 75

प्रश्न 12
समान्तर माध्य की गणना हेतु खण्डित श्रेणी की अप्रत्यक्ष विधि का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 76

प्रश्न 13
भारित समान्तर माध्य की गणना हेतु लघु विधि का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
भारित समान्तर माध्य का लघु विधि का सूत्र
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 77

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
केन्द्रीय प्रवृत्ति की एक माप है
(क) समान्तर माध्य
(ख) माध्य विचलन
(ग) प्रमाप विचलन
(घ) सह-सम्बन्ध
उत्तर:
(क) समान्तर माध्य।

प्रश्न 2
समान्तर माध्य का मूल्य श्रेणी के सभी चरों के मूल्य के
(क) योग के बराबर होता है।
(ख) वर्गों के योग के बराबर होता है।
(ग) योग में चरों की संख्या से गुणा करने पर प्राप्त मूल्य के बराबर होता है।
(घ) योग में चरों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त मूल्य के बराबर होता है ।
उत्तर:
(घ) योग में चरों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त मूल्य के बराबर होता है।

प्रश्न 3
खण्डित या विच्छिन्न श्रेणी में प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य निकालने का सूत्र है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 78
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 79

प्रश्न 4
खण्डित या विच्छिन्न श्रेणी में अप्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य निकालने का सूत्र है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 79
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 81

प्रश्न 5
अविच्छिन्न अथवा सतत् श्रेणी में प्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य निकालने का सूत्र है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 82
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 83

प्रश्न 6
अविच्छिन्न अथवा सतत् श्रेणी में अप्रत्यक्ष रीति से समान्तर माध्य निकालने का सूत्र है
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 84
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 27 Measure of Central Tendency Arithmetic Mean 85

प्रश्न 7
53 छात्रों के प्राप्तांकों का समान्तर माध्य 53 है। यदि प्रत्येक छात्र के प्राप्तांकों में 3 की वृद्धि कर दी जाए तो प्राप्तांकों का समान्तर माध्य
(क) 53 +[latex]\frac { 3 }{ 53 }[/latex] = 53 [latex]\frac { 3 }{ 53 }[/latex] हो जाएगा।
(ख) 53 + 3 = 56 हो जाएगा।
(ग) 53 +[latex]\frac { 3 }{ 4 }[/latex] = 54[latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] हो जाएगा।
(घ) 53 + 32 = 62 हो जाएगा।
उत्तर:
(ख) 53 +3 = 56 हो जाएगा।

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UP Board Class 12 Computer Model Papers Paper 3

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Computer
Model Paper Paper 3
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 Computer Model Papers Paper 3

समय : 3 घण्टे 15 मिनट
पूर्णांक : 70

निर्देश प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
नोट

  • इस प्रश्न-पत्र में कुल पाँच प्रश्न हैं।
  • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
  • आवश्यकतानुसार अपने उत्तरों की पुष्टि नामांकित रेखाचित्रों द्वारा कीजिए।
  • सभी प्रश्नों के निर्धारित अंक उनके सम्मुख अंकित हैं।

प्रश्न 1.
I. निम्न प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से दीजिए: (5 × 1 = 5)
(क) LibreOffice उदाहरण है।
(a) ट्राइनक्स
(b) रेड हैट
(c) डेवियन
(d) इनमें से कोई नहीं

(ख) निम्न में से कौन-सा ऑपरेटिंग सिस्टम केवल एक बार में एक उपयोगकर्ता को ही कार्य करने की अनुमति प्रदान करता है?
(a) मल्टी यूजर OS
(b) सिंगल यूजर OS
(c) सिंगल टास्किंग OS
(d) बैच OS

(ग) निम्न में से कौन-से पहले से परिभाषित फंक्शन्स होते हैं?
(a) बिल्ट इन फंक्शन
(b) गणितीय फंक्शन
(c) यूजर डिफाइण्ड फंक्शन
(d) इनमें से कोई नहीं

(घ) निम्न में से कौन-सा सीधे मेमोरी के एड्स पर कार्य करने की सुविधा प्रदान करता हैं?
(a) पॉइण्टर
(b) ऐरेज
(e) इनहेरिटेन्स
(d) स्ट्रिंग

(ङ) RDBMS का पूर्ण रूप क्या है?
(a) रेशनल डाटाबेस मैनेज सिस्टम
(b) रिकॉर्ड डाटाबेस मैनेजमेण्ट सिस्टम
(c) रिलेशनल डाटाबेस मैनेजमेण्ट सिस्टम
(d) रिकॉर्ड डाटाबेस मैनेज सिस्टम

(च) HTML में, इमेज को URL देने के लिए किस एट्रिब्यूट का प्रयोग किया जाता है?
(a) align
(b) src
(c) width
(d) alt

प्रश्न 2.
निम्न प्रश्नों के उत्तर सत्य अथवा असत्य में दें। (5 × 1 = 5)
(क) clrscr () फंक्शन का प्रयोग आउटपुट स्क्रिन पर आउटपुट प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।
(ख) ऑब्जेक्ट को ऑब्जेक्ट के नाम से पहचाना जाता हैं।
(ग) HTML में, लिंकिंग तीन प्रकार की होती है।
(घ) कम्प्यूटर के क्षेत्र में आदेशों के समूह को प्रोग्राम कहा जाता है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (5 × 2 = 10)
(क) सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर में अन्तर बताइए।
(ख) प्रचालन तन्त्र (ऑपरेटिंग सिस्टम) के प्रकार की व्याख्या कीजिए।
(ग) लाइनक्स के फाइल सिस्टम को समझाइए।
(घ) उदाहरण सहित टोकन का अर्थ समझाइए।
(ङ) स्ट्रिग से आपका क्या तात्पर्य है?

प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (5 × 3 = 15)
(क) स्यूडोकोड के लाभ व सीमाएँ बताइए।
(ख) एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को परिभाषित कीजिए।
(ग) कम्प्यूटर प्रोग्राम के विकास की प्रक्रिया लिखिए।
(घ) C++ का परिचय दीजिए तथा इसके तत्त्व भी बताइए।
(ङ) लूपिंग स्टेटमेण्ट को उदाहरण देकर समझाइए

प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं 6 प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (5 × 5 = 25)
[प्रश्न (झ) अथवा (ज) में से कोई एक अनिवार्य है।
(क) सिस्टम सॉफ्टवेयर से आपको क्या तात्पर्य है? इनके प्रमुख कार्यों को लिखिए।
(ख) लाइनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के भागों का वर्णन कीजिए।
(ग) एल्गोरिथ्म से आप क्या समझते है? इसकी संरचना क्यों करते हैं? समझाइए।
(घ) वेबसाइट पर एक निबन्ध लिखिए।
(ङ) ब्रांचिंग का संक्षिप्त विवरण दीजिए। दी गई 2 से विभाज्य है या नहीं, जानने के लिए C++ में प्रोग्राम लिखिए।
(च) C++ में दस संख्याओं की ऐरे में सबसे छोटी तथा सबसे बड़ी संख्या छापने हेतु प्रोग्राम लिखिए।
(छ) स्टैटिक वैरिएबल किस प्रकार अन्य वैरिएबल से भिन्न है? उदाहरण सहित समझाइए।
(ज) क्लास की परिभाषा का प्रारूप लिखिए और उसके प्रत्येक भाग का अर्थ समझाइए।
(झ) एक वेब पेज बनाइए जो मल्टीपल हाइपरटैक्स्ट को लिंक करता हो।
(त्र) C++ में, एक प्रोग्राम बनाए जो यूजर द्वारा करैक्टर एण्टर कराए और प्रिण्ट कराए कि दिया गया करैक्टर एल्फाबेट है या डिजिट।

Solutions

उत्तर 1.
(क) (b) रेड हैट
(ख) (b) सिंगल यूजर OS
(ग) (a) बिल्ट इन फंक्शन
(घ) (a) पॉइण्टर
(ङ) (c) रिलेशनल डाटाबेस मैनेजमेण्ट सिस्टम
(च) (b) src

उत्तर 2.
(क) असत्य
(ख) सत्य
(ग) असत्य
(घ) सत्य

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UP Board Solutions for Class 12 Civics भारत की विदेश नीति

UP Board Solutions for Class 12 Civics भारत की विदेश नीति are part of UP Board Solutions for Class 12 Civics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Civics भारत की विदेश नीति.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter 22 c
Chapter Name भारत की विदेश नीति
Number of Questions Solved 31
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics भारत की विदेश नीति

विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति की विवेचना कीजिए। भारत की विदेशी नीति का सबसे प्रमुख लक्षण क्या है?
या
भारत की विदेश नीति के निर्माता के रूप में पं० जवाहरलाल नेहरू के योगदान का परीक्षण कीजिए।
या
पंचशील के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। [2013, 14]
उत्तर :
भारत की विदेश नीति 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हो गया और 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हो जाने के बाद से भारत प्रभुत्व-सम्पन्न समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य बन गया। पण्डित जवाहरलाल नेहरू स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री बने और डॉ० राजेन्द्र प्रसाद प्रथम राष्ट्रपति। अब तक भारत की विदेश नीति के मूलाधार पण्डित जवाहरलाल नेहरू द्वारा स्थापित आदर्श रहे हैं। भारत की विदेश नीति उनके द्वारा दिखाये गये अहिंसा, मैत्री, मानवता, सहयोग और स्नेह के सद्गुणों पर आधारित रही है। पण्डित नेहरू ने बुद्ध के पंचशील जैसे महान् शब्द को लेकर अपनी विदेश नीति में पंचशील को मुख्य आधार बनाया था। भारत की विदेश नीति विश्व के सभी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने में सहायक रही है। इस विदेश नीति के प्रमुख उद्देश्य और आधार निम्नलिखित हैं –

1. शान्ति का पोषक – भारत का सदैव से यही प्रयास रहा है कि विश्व से युद्धों की समाप्ति हो, विस्फोटक वातावरण के स्थान पर शान्ति का वातावरण स्थापित हो। विश्व में शान्ति स्थापित करने के उद्देश्य से भारत ने सदैव ही विश्व के सभी राष्ट्रों से मैत्री बनाये रखने का प्रयत्न किया है। पण्डित नेहरू और अमेरिका के राष्ट्रपति कैनेडी ने मिलकर विश्व शान्ति का पोषण करने में सक्रिय कार्य किये। पण्डित नेहरू ने सोवियत संघ के साथ भी मधुर सम्बन्ध बनाये रखे। श्रीमती इन्दिरा गाँधी और श्री राजीव गाँधी ने भी विश्व में शान्ति स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।

2. संयुक्त राष्ट्र संघ में विश्वास – विश्व के अन्तर्राष्ट्रीय संघ संयुक्त राष्ट्र संघ में भी भारत ने सदैव पूरी रुचि ली है तथा इसके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों और निर्देशों का सदा तत्परता से पालन किया है। कश्मीर के मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देश पर भारत ने तुरन्त युद्ध-विराम कर लिया था। इसके अतिरिक्त विश्व के विभिन्न देशों-कोरिया, कांगो, वियतनाम, बांग्लादेश, इजरायल, अफगानिस्तान, हंगरी और स्वेज नहर आदि की समस्या सुलझाने में भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ को पूर्ण सहयोग दिया।

3. गुट-निरपेक्षता की नीति – पं० जवाहरलाल नेहरू ने एक नीति विकसित की थी कि हम किसी एक गुट के साथ न तो विशेष मित्रता रखेंगे और न ही शत्रुता। हम तटस्थ रहेंगे। हमारा उद्देश्य विश्व के दोनों गुटों के मध्य मधुर सम्बन्ध बनाना रहेगा। यह गुट-निरपेक्षता की नीति बहुत लोकप्रिय हुई थी। विश्व के बहुत-से राष्ट्र इस गुट-निरपेक्षता की नीति का पालन करते हैं। अब तो गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का एक प्रबल संगठन बन गया है। श्रीमती इन्दिरा गाँधी के शासनकाल में यह गुट-निरपेक्षता का कार्य बहुत तेजी से हुआ। वे 1983 ई० में इस संगठन की अध्यक्षा थीं और उनके नेतृत्व में ही सातवाँ गुट-निरपेक्ष सम्मेलन दिल्ली में 7 मार्च से 12 मार्च, 1983 तक हुआ जिसमें 101 देशों ने भाग लिया। स्व० प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी ने भी गुट-निरपेक्ष नीति का ही पालन किया है। 16वाँ गुट-निरपेक्ष सम्मेलन 26 अगस्त से 31 अगस्त तक तेहरान (ईरान) में सम्पन्न हुआ था। भारत की ओर से हमारे प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने इस सम्मेलन में सक्रिय भूमिका निभाई तथा गुट-निरपेक्ष आन्दोलन (NAM) को और अधिक प्रभावी बनाने हेतु विभिन्न सुझाव प्रस्तुत किये।

4. पंचशील : विदेश नीति की आत्मा – पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने जब भारत की विदेश नीति के आदर्श और व्यवहार निर्धारित किये, तब उन्होंने पाँच मुख्य ध्येय निर्धारित किये। भगवान् बुद्ध के पंचशील शब्द से प्रेरणा पाकर नेहरू जी ने इन्हें पंचशील की संज्ञा दी। ये पंचशील यथार्थ में भारत की विदेश नीति की आत्मा बन गये। इसलिए इन पर ही भारत की विदेश नीति आधारित थी। ये पंचशील के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  1. अखण्डता की रक्षा – सभी राष्ट्रों को एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता की रक्षा करनी चाहिए। एक-दूसरे की स्वतन्त्रता और राष्ट्रीय सीमा का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। यह मैत्री और सार्वभौमिकता का महान् सिद्धान्त है।
  2. युद्ध को टालना – भारत कभी भी निरुद्देश्य युद्ध नहीं करेगा और दूसरे देशों के साथ भी यही प्रयास करेगा कि वे युद्ध न करें।
  3. गृह-नीति में हस्तक्षेप न करना – सभी राष्ट्रों को एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
  4. सहयोग की नीति – सभी राष्ट्रों को मानवता के आदर्श का पालन करते हुए एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए और एक-दूसरे से सहयोग प्राप्त करना चाहिए।
  5. स्वतन्त्रता की रक्षा – कोई भी राष्ट्र कभी-भी ऐसा प्रयास न करे, जिससे किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व खतरे में पड़ जाए।

भारत की विदेश नीति का एक लक्ष्य धीरे-धीरे यह बनता गया कि सोवियत रूस को अपना परम मित्र मानकर भारत उनकी ओर विशेष रूप से झुकता चला गया। यह प्रक्रिया पण्डित नेहरू के समय में ही प्रारम्भ हो गयी थी। लालबहादुर शास्त्री, श्रीमती इन्दिरा गाँधी और राजीव गाँधी ने भी सोवियत रूस से अत्यधिक मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध अपनाये। इस सन्दर्भ में भारत और सोवियत रूस के प्रमुख नेताओं की क्रमश: सोवियत और भारत यात्रा बहुत महत्त्वपूर्ण रही।

हाल ही में अमेरिका तथा भारत के सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आयी है।

इस तरह उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारत की विदेश नीति पंचशील आदर्शों पर आधारित रही है। सभी राष्ट्रों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध और पंचशील के महान् आदर्श इस विदेश नीति के प्रमुख आधार हैं। पं० जवाहरलाल नेहरू के अनुसार, “विश्व में शान्ति स्थापित करना ही हमारी वैदेशिक नीति का प्रमुख उद्देश्य है।”

प्रश्न 2.
भारतीय विदेश नीति की विशेषताएँ बताइए। [2009, 12, 13]
या
भारतीय विदेश नीति के प्रमुख लक्षणों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए। [2010]
या
भारत की विदेश नीति के मूल (आधारभूत) सिद्धान्तों की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए। [2008, 13]
या
भारत की विदेशी नीति के प्रमुख तत्त्वों का परीक्षण कीजिए। [2009]
या
भारत की विदेशी नति के चार सिद्धान्तों को बताइए एवं पंचशील की व्याख्या कीजिए। भारतीय विदेश नीति के प्रमुख मूल सिद्धान्त क्या हैं? [2010, 11]
या
भारत की विदेश नीति के आधारभूत तत्त्वों (लक्षणों) का वर्णन कीजिए। [2017]
उत्तर :
भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ (लक्षण) निम्नलिखित हैं –

1. राष्ट्रीय हित – किसी भी राष्ट्र की विदेश नीति का प्रमुख आधार राष्ट्रीय हित होता है। भारतीय विदेश नीति के निर्धारण में भी इस तत्त्व का विशेष महत्त्व है। भारतीय विदेश नीति में राष्ट्रीय हित के महत्व को स्पष्ट करते हुए विदेश नीति के सृजनकर्ता कहे जाने वाले भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री नेहरू का मत था कि “हम चाहे कोई भी नीति निर्धारित करें, देश की वैदेशिक नीति से सम्बन्धित की गयी चतुरता राष्ट्रीय हित को सुरक्षित रखने में ही निहित है। भारत की प्रत्येक सरकार अपने राष्ट्रीय हितों को ही प्राथमिकता और सर्वोपरिता देगी। कोई भी सरकार ऐसे आचरण का खतरा नहीं उठा सकती जो राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल हो।’

2. गुट-निरपेक्षता की नीति – गुट-निरपेक्षता अथवा असंलग्नता की नीति भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषता है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय सम्पूर्ण विश्व को दो गुटों में बँटा देख भारतीय प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने नव स्वतन्त्र राष्ट्रों के लिए एक पृथक् सिद्धान्त का प्रतिपादन किया, जिसके अन्तर्गत नवे स्वतन्त्र राष्ट्रों द्वारा दोनों गुटों से पृथक् रहने की नीति को अपनाया गया। गुटों से पृथक् रहने की इसी नीति को गुट-निरपेक्षता की नीति के नाम से जाना जाता है।

3. मैत्री और सह-अस्तित्व की नीति – भारतीय विदेश नीति की एक अन्य प्रमुख विशेषता मैत्री और शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व पर बल देती है। भारत विश्व के सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को बनाने में विश्वास रखता है।

4. विरोधी गुटों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने पर बल – भारतीय विदेश नीति द्वारा विश्व के दोनों विरोधी गुटों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने के महत्त्वपूर्ण प्रयास किये गये हैं। इस सम्बन्ध में भारत ने विश्व राजनीति में शक्ति का सन्तुलन बनाये रखने में दोनों गुटों के मध्य कड़ी का कार्य किया है।

5. साधनों की पवित्रता की नीति – भारतीय विदेश नीति साधनों की पवित्रता पर विशेष बल देती है। यह नैतिकता व आदर्शवादिता का समर्थन करती है तथा अनैतिकता व अवसरवादिता का घोरें विरोध करती है।

6. पंचशील – भारत शान्ति का पुजारी है, इसलिए उसने विश्व शान्ति स्थापित करने की नीति अपनायी है। 1954 ई० में उसने पंचशील को अपनी विदेश नीति का अंग बनाया। पंचशील का सिद्धान्त महात्मा बुद्ध के उन पाँच सिद्धान्तों पर आधारित है जो उन्होंने व्यक्तिगत आचरण के लिए निर्धारित किये थे। पंचशील के सिद्धान्तों का सूत्रपात पं० जवाहरलाल नेहरू व चीन के प्रधानमन्त्री चाऊ-एन-लाई के मध्य तिब्बत समझौते के समय हुआ था। पंचशील के पाँच सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  1. सभी राष्ट्र एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता और प्रभुसत्ता का सम्मान करें।
  2. कोई राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण न करे और सभी राष्ट्र एक-दूसरे की स्वतन्त्रता का आदर करें।
  3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न किया जाए।
  4. प्रत्येक राष्ट्र एक-दूसरे के साथ समानता का व्यवहार करे तथा पारस्परिक हित में सहयोग करे।
  5. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति का सभी राष्ट्र पालन करें।

7. निःशस्त्रीकरण में आस्था – भारत हमेशा विश्व-शान्ति का समर्थक रहा है, इसलिए भारत ने सदैव नि:शस्त्रीकरण की प्रक्रिया का समर्थन किया है। भारत का मत है विश्व-शान्ति तभी स्थापित की जा सकती है जब भय और आतंक का वातावरण उत्पन्न करने वाली शस्त्रों की दौड़ से दूर रहा जाए और सभी राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिज्ञा-पत्र का पूर्ण ईमानदारी एवं सच्चाई से पालन करें।

8. संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग – भारत ने सदा ही विश्व-हितों को प्रमुखता दी है। प्रारम्भ से ही भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग किया है। इसके महत्त्व के विषय में पं० नेहरू ने कहा था कि, “हम संयुक्त राष्ट्र संघ के बिना आधुनिक विश्व की कल्पना नहीं कर सकते।’ कोरिया, हिन्दचीन, साइप्रस एवं कांगो की समस्याओं के समाधान में भारत ने अपनी रुचि दिखलाई थी और संयुक्त राष्ट्र संघ के आदेश पर भारत ने यहाँ अपनी सेनाएँ भेजकर शान्ति-स्थापना में महत्त्वपूर्ण योग दिया था। भारत ने कभी अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं किया और संयुक्त राष्ट्र संघ के आदेशों का यथोचित सम्मान किया। भारत के यथोचित सम्मान दिये जाने के कारण ही भारत चार बार सुरक्षा परिषद् का अस्थायी सदस्य चुना गया। डॉ० राधाकृष्णन यूनेस्को के सर्वोच्च पद पर रहे। श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित साधारण सभा की सभापति रह चुकी हैं। प्रो० बी० ए० राव ने अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।

9. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध – साम्राज्यवादी शोषण से त्रस्त भारत ने अपनी विदेश नीति में साम्राज्यवाद के प्रत्येक रूप का कटु विरोध किया है। भारत इस प्रकार की प्रवृत्तियों को विश्व-शान्ति एवं विश्व-व्यवस्था के लिए घातक एवं कलंकमय मानता है। 1956 ई० में जब इंग्लैण्ड व फ्रांस मिलकर मिस्र पर आक्रमण कर स्वेज नहर को हड़पना चाहते थे तो भारत ने इसे नवीन साम्राज्यवाद का घोर विरोध किया। भारत ने लीबिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को, मलाया, अल्जीरिया आदि देशों के स्वतन्त्रता संग्राम का पूरा समर्थन किया। दक्षिणी अफ्रीका व रोडेशिया के प्रजातीय विभेद का भारत ने जोरदार विरोध किया और संयुक्त राष्ट्र संघ में यह प्रश्न उठाता रहा। के० एम० पणिक्कर के अनुसार, “भारत की नीति हमेशा से यही रही है कि यह पराधीन लोगों की स्वतन्त्रता के प्रति आवाज उठाता रहा है एवं भारत का दृढ़ विश्वास रहा है कि साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद हमेशा से आधुनिक युद्धों का कारण रहा है।”

इस प्रकार भारत की विदेश नीति ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ सिद्धान्त का पालन कर रही है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति का सबसे मुख्य लक्षण क्या है?
उत्तर :
असंलग्नता या गुट-निरपेक्षता भारत की विदेश नीति का सबसे प्रमुख लक्षण है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद ही भारत के द्वारा निश्चित कर लिया गया कि भारत इन दोनों विरोधी गुटों में से किसी में भी शामिल न होते हुए विश्व के सभी देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न करेगा और इस दृष्टि से भारत के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में असंलग्नता या गुट-निरपेक्षता की विदेश नीति का पालन किया जाएगा। वास्तव में भारत के द्वारा असंलग्नता की विदेश नीति को अपनाने के कुछ विशेष कारण थे। प्रथमतः यदि भारत किसी गुट की सदस्यता को स्वीकार कर लेता तो अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में उसकी स्वतन्त्रता समाप्त हो जाती। वह विश्व राजनीति में स्वतन्त्र रूप से भाग नहीं ले सकता था। दूसरे पक्ष के अनुसार ही अपनी विदेश नीति तय करनी पड़ती, अत: अपने सम्मान को बनाए रखने के लिए असंलग्नता की नीति ही श्रेयस्कर थी। द्वितीयतः सैकड़ों वर्षों के साम्राज्यवादी शोषण से मुक्ति के बाद भारत के सम्मुख सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण प्रश्न आर्थिक पुनर्निर्माण का था और आर्थिक पुनर्निर्माण का यह कार्य विश्व शान्ति के वातावरण में ही सम्भव था। अत: भारत के लिए यही स्वाभाविक था कि वह सैनिक गुटों से अलग रहते हुए अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को कम करने का प्रयत्न करे। इस प्रकार राष्ट्रीय हितों और विश्व शान्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गुट-निरपेक्षता की विदेश नीति अपनायी गयी है।

UP Board Solutions for Class 12 Civics भारत की विदेश नीति

प्रश्न 2.
भारत की लुक ईस्ट (पूरब की ओर देखो) की नीति क्या है?
उत्तर :
‘पूरब की ओर देखो’ की नीति

वर्ष 1991 में रूस के विघटन तथा अमेरिका के नेतृत्व में उभरती एक ध्रुवीय व्यवस्था व वैश्वीकरण के आलोक में भारत ने अपनी विदेश नीति को नया आयाम दिया तथा उसे व्यावहारिकता प्रदान की। 1991 में भारत ने ‘लुक ईस्ट’ नीति का आरम्भ किया जिसमें ‘एशियान’ (ASEAN) सहित पूर्वी एशिया के देशों के साथ घनिष्ठ आर्थिक व व्यापारिक सम्बन्धों का विस्तार करना था। शीत युद्ध के युग में भारत व पूर्वी एशिया के देशों के पारस्परिक सम्बन्धों को अधिक महत्त्व नहीं दिया गया।

1996 में भारत को ‘एशियान’ संगठन में पूर्ण वार्ताकार का दर्जा प्राप्त हुआ तथा तब से भारत लगातार इसकी शिखर-वार्ताओं में भाग लेता रहा है। वर्ष 2002 में एशियान-भारत शिखरवार्ताओं की शुरुआत हुई। इसी प्रकार सातवीं शिखर-वार्ता अक्टूबर, 2009 में चोम हुआ हिन (थाईलैण्ड) में तथा आठवीं शिखर-वार्ता 2 अक्टूबर, 2010 में हनोई में सम्पन्न हुई, जिसमें भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भाग लिया। भारत व एशियन के मध्य नौवीं शिखर-वार्ता 2011 में जकार्ता में तथा 10वीं शिखर-वार्ता 2012 में दिल्ली में सम्पन्न हुई। इसमें आतंकवाद के विरुद्ध संयुक्त लड़ाई हेतु सहमति बनी। एशियान देशों के साथ बढ़ते सम्बन्धों के कारण द्विपक्षीय व्यापार 1990 में 22.2 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2009 में 40 बिलियन डॉलर हो गया। भारत व एशियान देशों के मध्य अगस्त, 2009 में मुक्त व्यापार समझौता सम्पन्न हुआ, जिसमें 4,000 वस्तुओं पर सीमा कर में कटौती की जाएगी। इससे व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। यह समझौता 1 जनवरी, 2010 को लागू हो गया है। भारत ने 2005 से ही पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में प्रतिवर्ष भाग लेना आरम्भ किया है। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य यूरोपीय संघ की तर्ज पर पूर्वी एशिया में एक आर्थिक समुदाय का विकास करना है।

भारत ने 1996 में एशियान क्षेत्रीय मंच (ARF) की सदस्यता प्राप्त की थी। यह मंच एशियान क्षेत्र में सुरक्षा सम्बन्धी सहयोग का एक मंच है। भारत तथा पूर्वी एशिया के देशों ने यूरोपियन कम्युनिटी की तर्ज पर पूर्वी एशिया कम्युनिटी की स्थापना का लक्ष्य रखा है। भारत ने पूर्व की ओर देखो नीति की सफलता को देखते हुए इसके दूसरे चरण की शुरुआत 2001 में की, जहाँ इसके प्रथम चरण (1991-2001) में एशियान देशों के साथ आर्थिक व व्यापारिक सम्बन्धों को बढ़ावा दिया गया था। वहीं दूसरे चरण में एशियान के अतिरिक्त पूर्वी एशिया के अन्य देशों-दक्षिण कोरिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि के साथ सम्बन्धों को बढ़ाता जा रहा है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति के उददेश्य बताइए। [2013]
उत्तर :
भारत की विदेश नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाये रखना।
  2. सभी राज्यों और राष्ट्रों के बीच शान्तिपूर्ण और सम्मानपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखना।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून के प्रति और विभिन्न राष्ट्रों के पारस्परिक सम्बन्धों में सन्धियों के पालन के प्रति आस्था बनाये रखना।
  4. सैनिक गुटबन्दियों और समझौते से अपने आपको अलग रखना तथा ऐसी गुटबन्दियों को निरुत्साहित करना।
  5. उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विरोध करना।

प्रश्न 2.
पंचशील के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। [2013]
उत्तर :
पंचशील के सिद्धान्त

भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख तत्त्व पंचशील या शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व के पाँच सिद्धान्त रहे। ये पाँच सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  1. एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता और सर्वोच्च सत्ता के प्रति पारस्परिक सम्मान की भावना।
  2. एक-दूसरे के क्षेत्र पर आक्रमण का परित्याग।
  3. एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का संकल्प।
  4. समानती और पारस्परिक लाभ के सिद्धान्तों के आधार पर मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना। .
  5. शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व।

भारत इस बात के लिए प्रयत्नशील है कि विश्व के विभिन्न राज्यों के द्वारा अपने पारस्परिक व्यवहार में पंचशील के इन पाँचों सिद्धान्तों को स्वीकार कर लिया जाए। पंचशील के सिद्धान्तों को सबसे पहले अपनाने वाले देश चीन के द्वारा इन सिद्धान्तों का खुला उल्लंघन किया गया, किन्तु इससे पंचशील के सिद्धान्तों का महत्त्व कम नहीं हो जाता।

प्रश्न 3.
उत्तर-नेहरू युग में भारत की विदेश नीति की विवेचना कीजिए। [2010]
उत्तर :
उत्तर-नेहरू युग में भारत की विदेश नीति

1962 के पूर्व तक भारतीय विदेश नीति को सामान्यतया सफल समझा जाता था, लेकिन 1962 में चीन के बड़े पैमाने पर आक्रमण और भारतीय सेना की पराजय ने भारतीय विदेश नीति की सफलता के भ्रम को समाप्त कर दिया। अत: नेहरू युग में ही भारतीय विदेश नीति पर पुनर्विचार प्रारम्भ हो गया और इस पुनर्विचार के आधार पर उत्तर-नेहरू युग में भारतीय विदेश नीति ने आदर्शवादिता के स्थान पर राष्ट्रीय हितों के अनुरूप एक यथार्थवादी मोड़ ले लिया। शीतयुद्ध की समाप्ति के उपरान्त भारत ने अमेरिका के साथ अपने सम्बन्धों को सुधारा है। यह व्यावहारिकता का प्रतीक है। 2008 में अमेरिका के साथ भारत ने सिविल परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसी प्रकार राष्ट्रहित के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए भारत में पूर्वी एशिया, अफ्रीका सेण्ट्रल एशिया आदि के प्रति नीतियों में परिवर्तन किया है। भारतीय विदेश नीति की यह यथार्थवादिता जिन घटनाओं के रूप में देखी जा सकती है, उनमें दो-तीन निश्चित रूप से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।

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प्रश्न 4.
भारत ने विश्व के विभिन्न देशों के साथ अपने सम्बन्धों के निर्धारण के लिए किन सिद्धान्तों का अनुसरण किया है?
उत्तर :
भारत ने विश्व के विभिन्न देशों के साथ अपने सम्बन्धों के निर्धारण के लिए निम्नलिखित सिद्धान्तों के अनुसरण का सदैव ध्यान रखा है –

  1. सम्पूर्ण विश्व में शान्ति और सुरक्षा का वातावरण बनाये रखने में हर सम्भव सहयोग देना।
  2. विश्व के सभी देशों से सम्मानजनक सम्बन्ध न्यायसंगत आधार पर बनाये रखना।
  3. विश्व के सभी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाये रखने के साथ अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों और सन्धियों का पूर्ण निष्ठा से पालन करने की दिशा में प्रयासरत रहना।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
किसी भी देश की विदेश नीति की मूल आधारशिला क्या होती है?
उत्तर :
किसी भी देश की विदेश नीति का सबसे प्रमुख आधार होता है-‘राष्ट्रीय हित’।

प्रश्न 2.
भारत व एशियान के मध्य मुक्त व्यापार समझौता कब लागू हुआ? (2012)
उत्तर :
भारत व एशियान मुक्त व्यापार समझौता वर्ष 2010 में लागू हुआ। इस समझौते पर हस्ताक्षर वर्ष 2009 में किए गए थे।

प्रश्न 3.
भारत ने प्रथम अणु परीक्षण कब किया व अन्तरिक्ष में पहला चरण कब आगे बढ़ाया?
उत्तर :
प्रथम अणु परीक्षण 18 मई, 1974 को पोखरण में किया गया और प्रथम भू-उपग्रह ‘आर्यभट्ट प्रथम’ 19 अप्रैल, 1975 को अन्तरिक्ष में भेजा गया।

प्रश्न 4.
1996 में आणविक निःशस्त्रीकरण के क्षेत्र में कौन-सी सन्धि सम्पन्न हुई है?
उत्तर :
1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि’ सम्पन्न हुई है। यह सन्धि भेदभावपूर्ण है, इसलिए भारत ने इस सन्धि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं?

प्रश्न 5.
भारत ने दूसरी बार अणु परीक्षण कब किया?
उत्तर :
भारत ने दूसरी बार आणविक परीक्षण मई, 1998 में पाँच आणविक परीक्षण के रूप में किये।

प्रश्न 6.
भारत की विदेश नीति की दो मुख्य विशेषताएँ बताइए। [2007]
या
पंचशील के कोई दो मुख्य सिद्धान्त बताइए। [2016]
उत्तर :

  1. गुट-निरपेक्षता की नीति तथा
  2. विश्वशान्ति।

प्रश्न 7.
पंचशील के किसी एक सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
अहस्तक्षेप।

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प्रश्न 8.
इण्डिया, ब्राजील, साउथ अफ्रीका (IBSA) ‘इब्सा’ की स्थापना किस वर्ष हुई थी?
उतर :
इब्सा’ की स्थापना वर्ष 2003 में हुई थी।

प्रश्न 9.
पंचशील के दो सिद्धान्तों के नाम लिखिए। [2012, 14, 15, 16]
उतर :

  1. प्रादेशिक अखण्डता और प्रभुसत्ता का पारस्परिक सम्मान एवं
  2. समानता और पारस्परिक हित में सहयोग।

प्रश्न 10.
भारत की विदेश नीति का प्रमुख लक्षण लिखिए। [2007]
उत्तर :
गुट-निरपेक्षता की नीति भारत की विदेश नीति का प्रमुख लक्षण है।

प्रश्न 11.
भारतीय विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य क्या है?
उत्तर :
भारत की विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य अपने राष्ट्रीय हितों में अभिवृद्धि करना है।

प्रश्न 12.
शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का अर्थ क्या है?
उत्तर :
शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का अर्थ है-जिस व्यक्ति या देश के साथ मतभेद हों, उसके साथ भी शान्तिपूर्वक रहना।

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प्रश्न 13.
शिमला समझौता कब एवं किनके बीच हुआ था?
उत्तर :
शिमला समझौता जुलाई, 1972 ई० में भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति श्री जैड० ए० भुट्टो के बीच हुआ था।

प्रश्न 14.
पंचशील सिद्धान्त के प्रवर्तक कौन थे?
उत्तर :
स्व० पण्डित जवाहरलाल नेहरू।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य है
(क) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखना
(ख) सभी राज्यों और राष्ट्रों के बीच शान्तिपूर्ण और सम्मानपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखना
(ग) उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विरोध करना
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषता है
(क) गुट-निरपेक्षता की नीति
(ख) विश्वशान्ति
(ग) साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध
(घ) ये सभी

प्रश्न 3.
‘परमाणु परीक्षण रोक सन्धि’ कब हुई थी?
(क) 1960 में
(ख)1962 में
(ग) 1963 में
(घ) 1965 में

प्रश्न 4.
‘भारत-सोवियत संघ मैत्री सन्धि’ कब सम्पन्न हुई?
(क) 8 अगस्त, 1970 को
(ख) 9 अगस्त, 1971 को
(ग) 9 सितम्बर, 1972 को
(घ) 11 अगस्त, 1975 को

प्रश्न 5.
भारत ने अपना प्रथम अणु परीक्षण कब किया?
(क) 10 मई, 1972 को
(ख) 10 अगस्त, 1973 को
(ग) 18 मई, 1974 को
(घ) 9 सितम्बर, 1975 को।

प्रश्न 6.
भारत ने पूरब की ओर देखो’ की नीति की शुरुआत कब की? [2012]
(क) 1990
(ख) 1991
(ग) 1992
(घ) 1993

प्रश्न 7.
स्वतन्त्र भारत का पहला विदेश मन्त्री कौन था?
(क) अम्बेडकर
(ख) सरदार पटेल
(ग) जवाहरलाल नेहरू
(घ) सरदार स्वर्ण सिंह

प्रश्न 8.
भारत की विदेशी नीति के निर्माता हैं [2014]
(क) महात्मा गांधी
(ख) विनोबा भावे
(ग) जवाहरलाल नेहरू
(घ) डॉ० अम्बेडकर

प्रश्न 9.
पंचशील सिद्धान्त के प्रवर्तक थे [2014]
(क) सरदार वल्लभभाई पटेल
(ख) पं० जवाहरलाल नेहरू
(ग) महात्मा गाँधी
(घ) दलाई लामा

उत्तर :

  1. (घ) उपर्युक्त सभी
  2. (घ) ये सभी
  3. (ग) 1963 में
  4. (ख) 9 अगस्त, 1971 को
  5. (ग) 18 मई, 1974 को
  6. (ख) 1991
  7. (क) अम्बेडकर
  8. (ग) जवाहरलाल नेहरू
  9. (ख) पं० जवाहरलाल नेहरू।

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