UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 2 महाकवि माघ का प्रभात-वर्णन

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name महाकवि माघ का प्रभात-वर्णन (आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी)
Number of Questions 4
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 2 महाकवि माघ का प्रभात-वर्णन (आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी)

लेखक का साहित्यिक परिचय और भाषा-शैली

प्रश्न:
आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का जीवन-परिचय लिखते हुए उनकी कृतियाँ लिखिए तथा भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
या
महावीरप्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी भाषा-शैली की विशेषताएँ बताइट।
या
महावीरप्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक परिचय दीजिए।
या
महावीरप्रसाद द्विवेदी की भाषा-शैली की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
हिन्दी साहित्याकाश के देदीप्यमान नक्षत्र आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी युग-प्रवर्तक साहित्यकार, भाषा के परिष्कारक, समालोचना के सूत्रधार एवं यशस्वी सम्पादक थे। इनका जन्म रायबरेली जिले के दौलतपुर ग्राम में सन् 1864 ई० में हुआ था। इनके पिता पं० रामसहाय द्विवेदी ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेना में साधारण सिपाही थे। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण द्विवेदी जी ने स्कूली शिक्षा समाप्त करके रेलवे में नौकरी कर ली तथा घर पर ही संस्कृत, मराठी, बंगला, अंग्रेजी और हिन्दी भाषाओं का अध्ययन किया। सन् 1903 ई० में रेलवे की नौकरी छोड़कर ‘सरस्वती’ पत्रिका का सम्पादन प्रारम्भ किया और हिन्दी भाषा की सेवा के लिए अपना शेष जीवन अर्पित कर दिया। इनकी हिन्दी सेवाओं से प्रभावित होकर इनको काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने ‘आचार्य’ की उपाधि से तथा हिन्दी-साहित्य सम्मेलन ने । ‘साहित्य-वाचस्पति’ की उपाधि से सम्मानित किया। सन् 1938 ई० में सरस्वती को यह वरद-पुत्र स्वर्ग सिधार गया।

साहित्यिक सेवाएँ: आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी हिन्दी-साहित्य के युग-प्रवर्तक साहित्यकार हैं। साहित्य-रचना में इनकी रुचि आरम्भ से ही थी। रेलवे में नौकरी करते हुए भी ये साहित्य-रचना करते रहे, परन्तु इनकी साहित्य-साधना का विधिवत शुभारम्भ ‘सरस्वती’ पत्रिका के सम्पादन अर्थात् सन् 1903 ई० से ही होता है। ‘सरस्वती’ का सफलतापूर्वक सम्पादन करते हुए इन्होंने भारतेन्दु युग के हिन्दी गद्य में फैली अनियमितताओं, व्याकरण सम्बन्धी अशुद्धियों, विराम-चिह्नों के प्रयोग की त्रुटियों, पण्डिताऊपन और अप्रचलित शब्दों के प्रयोग को दूर कर हिन्दी गद्य को व्याकरण के अनुशासन में बाँधा और उसे नवजीवन प्रदान किया। इन्होंने हिन्दी के भण्डार को समृद्ध बनाने के लिए नये-नये विषयों पर मौलिक और अनूदित ग्रन्थों की रचना की। अंग्रेजी भाषा एवं संस्कृति के रंग में रंगे लेखकों की इन्होंने तर्कपूर्ण कटु आलोचना की, जिससे बहुत-से लेखकों ने घबराकर या तो लिखना बन्द कर दिया या अपनी भाषा का सुधार किया।

द्विवेदी जी भाषा परिष्कारक के अतिरिक्त समर्थ समालोचक भी थे। इन्होंने अपने लेखन में प्राचीन साहित्य एवं संस्कृति से लेकर आधुनिक काल तक के अनेक विषयों का समावेश केरके साहित्य को समृद्ध किया। द्विवेदी जी ने वैज्ञानिक आविष्कारों, भारत के इतिहास, महापुरुषों के जीवन, पुरातत्त्व, राजनीति, धर्म आदि विविध विषयों पर साहित्य-रचना की।

निबन्ध-लेखक के रूप में इन्होंने निबन्ध-साहित्य को नयी दिशा और सामर्थ्य प्रदान की। द्विवेदी जी ने पाँच प्रकार के निबन्धों की रचना की-शुद्ध साहित्यिक, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, जीवन-परिचय सम्बन्धी और वैज्ञानिक। उत्कृष्ट समालोचक के रूप में इन्होंने हिन्दी समीक्षा के नये मानदण्ड स्थापित किये तथा भाषा-शिल्पी के रूप में हिन्दी गद्य को व्याकरणसम्मत बनाकर उसका परिष्कार और संस्कार किया तथा कवि के रूप में इन्होंने खड़ी बोली को काव्य-भाषा के आसन पर प्रतिष्ठित किया। द्विवेदी जी की अभूतपूर्व साहित्यिक सेवाओं के कारण ही इनके रचना-काल को हिन्दी-साहित्य में द्विवेदी युग’ कहा जाता है।
कृतियाँ: द्विवेदी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। इन्होंने कविता, निबन्ध, आलोचना, व्याकरण एवं इतिहास आदि पर अनेक ग्रन्थों की रचना की। इनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं

(1) कविता संग्रह: काव्य-मंजूषा।
(2) निबन्ध: सरस्वती एवं अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित निबन्ध।
(3) आलोचना: रसज्ञ-रंजन, नैषधचरित चर्चा, हिन्दी नवरत्न, नाट्यशास्त्र, कालिदास की निरंकुशता, कालिदास और उनकी कविता, विचार-विमर्श आदि।
(4) अनूदित: रघुवंश, कुमारसम्भव, किरातार्जुनीय, हिन्दी महाभारत, बेकन विचारमाला, शिक्षा, स्वाधीनता आदि।
(5) सम्पादनं: ‘सरस्वती’ पत्रिका।
(6) अन्य रचनाएँ: साहित्य-सीकूर, हिन्दी भाषा की उत्पत्ति, सम्पत्तिशास्त्र, अद्भुत आलाप, संकलन, अतीत-स्मृति, वाग्विलास, जल-चिकित्सा आदि।

भाषा और शैली

भाषा के आचार्य द्विवेदी जी का हिन्दी गद्य-साहित्य में मूर्धन्य स्थान है। वे हमारे सामने निबन्धकार, आलोचक, सम्पादक और भाषा-संस्कारकर्ता के रूप में आते हैं। द्विवेदी जी से पूर्व भारतेन्दु युग में हिन्दी गद्य अनेक प्रकार के दोषों से युक्त था। लेखकों की भाषा शिथिल और अव्यवस्थित थी। द्विवेदी जी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका का सम्पादन-भार सँभालते ही हिन्दी गद्य को समृद्ध एवं परिष्कृत किया।

(अ) भाषागत विशेषताएँ

द्विवेदी जी भाषा के सुसंस्कारी आचार्य थे; अत: इनकी भाषा परिष्कृत, परिमार्जित और व्याकरणसम्मत है। इन्होंने अपनी रचनाओं में सरल और सुबोध भाषा को अपनाया है। शब्दों के प्रयोग में ये रूढ़िवादी नहीं थे। इन्होंने आवश्यकता के अनुसार तत्सम शब्दों के अतिरिक्त अंग्रेजी, उर्दू और अरबी-फारसी के प्रचलित शब्दों का नि:संकोच प्रयोग किया है। जहाँ भाषा को लाक्षणिक, चमत्कारपूर्ण, सशक्त और प्रभावशाली बनाने के लिए।
आपने कहावतों और मुहावरों का प्रयोग किया है, वहीं अपने भावों को सहृदयों तक और विषय को गहराई तक पहुँचाने के लिए सूक्तियों के प्रचुर प्रयोग भी किये हैं। द्विवेदी जी अपनी भाषा को विषयानुसार परिवर्तित करने में कुशल थे; अत: आलोचनात्मक निबन्धों में इनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ, विवेचनात्मक निबन्धों में शुद्ध साहित्यिक तथा भावात्मक निबन्धों में आलंकारिक और काव्यात्मक हो गयी है।

(ब) शैलीगत विशेषताएँ
कठिन-से-कठिन विषय को बोधगम्य रूप में प्रस्तुत करना द्विवेदी जी की शैली की सबसे बड़ी विशेषता है। इनकी शैली के प्रमुख रूप निम्नलिखित हैं

(1) परिचयात्मक शैली:
इस शैली को प्रयोग ज्ञान-विज्ञान, यात्रा, जीवनी, निजी अनुभव आदि नवीन विषयों पर निबन्ध लिखने में हुआ है। यह इनकी सरलतम शैली है। इस शैली में इन्होंने गूढ़ विषयों को भी बड़े सरल रूप में प्रस्तुत किया है। सरल एवं स्वाभाविक भाषी, छोटे-छोटे वाक्य, उर्दू के शब्दों तथा मुहावरों का प्रयोग; इस शैली की विशेषताएँ हैं।।

(2) गवेषणात्मक शैली:
गम्भीर विषयों के विवेचन और नवीन तथ्यों की गवेषणा करते समय द्विवेदी जी ने इस शैली का प्रयोग किया है। इनके साहित्यिक निबन्धों में भी यह शैली मिलती है। इसमें प्रायः उर्दू शब्दों का
अभाव तथा संस्कृत शब्दावली की अधिकता है।

(3) भावात्मक शैली:
इस शैली का प्रयोग ‘कालिदास के समय भारत’, ‘साहित्य की महत्ता’ आदि निबन्धों में देखने को मिलता है। विचारों की सरस अभिव्यक्ति वाली इस शैली में हृदयस्पर्शी, काव्यात्मक और आलंकारिक भाषा को प्रयोग हुआ है। इसमें अनुप्रास अलंकार की छटा, कोमल शब्दावली का प्रयोग एवं भाषा का सहज प्रवाह देखने को मिलता है।

(4) व्यंग्यात्मक शैली:
इस शैली में द्विवेदी जी की भाषा का सरलतम रूप दिखाई देता है। समाज और साहित्य में व्याप्त दोषों को दूर करने के लिए द्विवेदी जी ने व्यंग्यपूर्ण शैली का प्रयोग किया है। हास्य, चुटीलापन और सरलता इस शैली की विशेषताएँ हैं।।

(5) आलोचनात्मक शैली:
द्विवेदी जी ने इसी शैली में अपने अधिकांश निबन्ध लिखे हैं। साहित्यिक कृतियों की आलोचना करते समय या भाषा-साहित्य विषयक अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करते समय इन्होंने आलोचनात्मक शैली का प्रयोग किया है। इस शैली की भाषा संस्कृत और उर्दू के तत्सम शब्दों से युक्त है। इस शैली द्वारा ही इन्होंने साहित्यकारों का मार्गदर्शन किया है।
साहित्य में स्थान: द्विवेदी जी हिन्दी गद्य के उन निर्माताओं में से हैं, जिनकी प्रेरणा और प्रयत्नों से हिन्दी भाषा को सम्बल प्राप्त हुआ है।

 गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न:
निम्नलिखित गद्यांशों के आधार पर उनसे सम्बन्धित दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1:
पूर्व-दिशारूपिणी स्त्री की प्रभा इस समय बहुत ही भली मालूम होती है। वह हँस-सी रही है। वह यह सोचती-सी है कि चन्द्रमा ने जंब तक मेरा साथ दिया—जब तक यह मेरी संगति में रहा–तब तक उदित ही नहीं रहा, इसकी दीप्ति भी खूब बढ़ी। परन्तु देखो, वही अब पश्चिम-दिशारूपिणी स्त्री की तरफ जाते ही (हीन-दीप्ति होकर) पतित हो रहा है। इसी से पूर्व दिशा, चन्द्रमा को देख-देख प्रभा के बहाने, ईष्र्या से मुसका-सी रही है। परन्तु चन्द्रमा को उसके हँसी-मजाक की कुछ भी परवाह नहीं। वह अपने ही रंग में मस्त मालूम होता है।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) पश्चिम दिशा की ओर जाते ही चन्द्रमा की दीप्ति में क्या परिवर्तन आता है?
(iv) कौन चन्द्रमा को देख-देखकर प्रभा के बहाने, ईष्र्या से मुसका-सी रही है?
(v) किस कारण चन्द्रमा पूर्व-दिशारूपिणी स्त्री की हँसी-मजाक की कुछ परवाह नहीं करता?
उत्तर:
(i) प्रस्तुत गद्यावतरण हिन्दी के युग-प्रवर्तक साहित्यकार आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित और हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित ‘महाकवि माघ का प्रभात-वर्णन’ नामक निबन्ध से लिया गया है।
अथवा निम्नवत् लिखिए
पाठ का नाम: महाकवि माघ का प्रभात वर्णन।
लेखक का नाम: आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी।
[संकेत-इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए प्रश्न (i) का यही उत्तर लिखना है।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: द्विवेदी जी कहते हैं कि प्रात:काल में पूर्व दिशारूपी नायिका प्रभात की लालिमा से रँग जाती है, तब ऐसा लगता है कि वह अनुरागवती है। अनुराग के प्रतीक लाल रंग (प्रभात की लाली) से उसके मुख पर नया तेज दिखाई देता है। उस समय ऐसा जान पड़ता है कि वह हँस रही है। पूर्व दिशा की भाँति ही लेखक ने पश्चिम दिशा को भी एक नायिका के रूप में चित्रित किया है तथा पूर्व दिशारूपी स्त्री के मन की प्रतिक्रिया दर्शायी है कि उसके मन में नारी-सुलभ ईष्र्या जाग गयी है। चन्द्रमा के तेज के कम होने और उसके पतित होने पर उसके मुख पर जो मुसकान आयी है, उसमें उसके मन की ईष्र्या ही प्रकट हुई है। चन्द्रमा की इस दीन-हीन स्थिति के विषय में पूर्व दिशारूपी नायिका सोच रही है कि यह चन्द्रमा जब तक मेरे साथ था, तब तक उदित भी हो रहा था और उसका प्रकाश भी खूब फैल रहा था। उसे उन्नति के साथ-साथ सुयश भी प्राप्त था।
(iii) पश्चिम दिशा की ओर जाते ही चन्द्रमा की दीप्ति पतित होने लगती है।
(iv) पूर्व-दिशारूपिणी स्त्री चन्द्रमा को देख-देखकर प्रभा के बहाने, ईष्र्या से मुसका-सी रही है।
(v) पश्चिम दिशारूपिणी स्त्री की रसिकता में निमग्न होने के कारण चन्द्रमा पूर्व-दिशारूपिणी स्त्री की हँसी-मजाक की कुछ परवाह नहीं करता।

प्रश्न 2:
जब कमलं शोभित होते हैं तब कुमुद नहीं और जब कुमुद शोभित होते हैं तब कमल नहीं। दोनों की दशा बहुधा एक-सी नहीं रहती। परन्तु, इस समय, प्रात:काल, दोनों में तुल्यता देखी जाती है। कुमुद बन्द होने को हैं; पर अभी पूढे बन्द नहीं हुए। उधर कमल खिलने को हैं, पर अभी पूरे खिले नहीं। एक की शोभा आधी ही रह गयी है, और दूसरे को आधी ही प्राप्त हुई है। रहे भ्रमर, सो अभी दोनों ही पर मँडरा रहे हैं। और गुंजा-रव के बहाने दोनों ही के प्रशंसा के गीत-से गा रहे हैं। इसी से, इस समय कुमुद और कमल, दोनों ही समता को प्राप्त हो रहे हैं।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने किस दृश्य का वर्णन किया है?
(iv) किस समय कमल और कुमुद दोनों में तुल्यता देखी जाती है?
(v) भ्रमर, दोनों पर मँडराते हुए गुंजा-रव के बहाने किसके गीत गा रहे हैं?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या:
प्रात:काल में सूर्य के उदित होने पर संसार में विरोधाभासपूर्ण दृश्य दिखाई देता है। दैव अर्थात् भाग्यं की चेष्टाएँ किसी के लिए सुखकर हैं तो किसी के लिए दु:खदायी भी। इसी विरोधाभास को लक्षित करते हुए लेखक कहता है कि जब सूर्य उदित होता है तो सरोवरों में कमल खिलते हैं, जो सरोवरों की सुन्दरता को बढ़ाते हैं लेकिन दूसरी तरफ कुमुद की शोभा को उदित सूर्य हर लेता है। जब कुमुद शोभित होते हैं अर्थात् जब सूर्य अस्ताचल की ओर जाता है अर्थात् अस्त होता है तब कुमुदों की शोभा लौट आती है और कमल शोभाहीन हो जाते हैं। सूर्य के उदित होने अथवा चन्द्रमा के अस्त होने पर, चन्द्रमा के उदित होने अथवा सूर्य के अस्त होने पर कमल और कुमुद की दशा समान नहीं रहती। एक को सुख की अनुभूति होती है तो दूसरे को दु:ख की।
(iii) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने प्रात:काल के समय के विरोधाभासपूर्ण दृश्य का वर्णन किया है।
(iv) प्रात:काल के समय कमल और कुमुद दोनों में ही तुल्यता देखी जाती है।
(v) भ्रमर कमल और कुमुद, दोनों पर मँडराते हुए गुंजा-रव के बहाने दोनों ही के प्रशंसा के गीत गा रहे हैं।

प्रश्न 3:
महामहिम भगवान मधुसूदन जिस समय कल्पांत में समस्त लोकों का प्रलय, बात की बात में कर देते हैं, उस समय अपनी समधिक अनुरागवती श्री (लक्ष्मी) को धारण करके उन्हें साथ लेकर क्षीर-सागर ” में अकेले ही जा विराजते हैं। दिन चढ़ आने पर महिमामय भगवान भास्कर भी, उसी तरह एक क्षण में, सारे तारा-लोक का संहार करके, अपनी अतिशायिनी श्री (शोभा) के सहित, क्षीर-सागर ही के समान आकाश में, देखिए अब यह अकेले ही मौज कर रहे हैं।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने सूर्य, उसकी आभा एवं आकाश को किसके समान चित्रित किया है?
(iv) भगवान विष्णु लक्ष्मी जी को लेकर कहाँ विराजते हैं?
(v) गद्यांश में किस समय के सौन्दर्य का आलंकारिक वर्णन प्रस्तुत किया गया है?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: प्रभातकाल में सूर्योदय के होने पर सारा दृश्य ही बदल जाता है। उस समय लेखक के सम्मुख प्रलयकाल का सो दृश्य उपस्थित हो जाता है। वह कल्पना करता है कि कल्पान्त में भगवान विष्णु भी जब तीनों लोकों को नष्ट कर अपनी प्रेममयी पत्नी लक्ष्मी के साथ क्षीरसागर में अकेले ही शोभित होते हैं।
(iii) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने सूर्य को भगवान विष्णु, सूर्य की आभा को लक्ष्मी एवं आकाश को क्षीरसागर के समान चित्रित किया है।
(iv) भगवान विष्णु लक्ष्मी जी को लेकर क्षीरसागर में विराजते हैं।
(v) गद्यांश में सूर्योदय होने पर चन्द्रमा एवं तारों के अदृश्य होने पर आकाश में अकेले सूर्य एवं उसकी प्रभा के सौन्दर्य का आलंकारिक वर्णन प्रस्तुत किया गया है।

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UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 1 भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?

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Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? (भारतेन्दु हरिश्चन्द्र)
Number of Questions 5
Category UP Board Solutions

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लेखक का साहित्यिक परिचय और भाषा-शैली

प्रश्न 1.
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
या
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का साहित्यिक परिचय दीजिए।
या
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन-परिचय और रचनाएँ लिखते हुए उनकी भाषा-शैली की विशेषताएँ भी बताइए।
उत्तर:
जीवन-परिचय-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र खड़ी बोली हिन्दी गद्य के जनक माने जाते हैं। इन्होंने हिन्दी गद्य-साहित्य को नवचेतना और नयी दिशा प्रदान की। इनका जन्म काशी के एक सम्पन्न और प्रसिद्ध वैश्य परिवार में सन् 1850 ई० में हुआ था। इनके पिता गोपालचन्द्र, काशी के सुप्रसिद्ध सेठ थे जो ‘गिरिधरदास’ उपनाम से ब्रज भाषा में कविता किया करते थे। भारतेन्दु जी में काव्य-प्रतिभा बचपन से ही विद्यमान थी। इन्होंने पाँच वर्ष की आयु में निम्नलिखित दोहा रचकर अपने पिता को सुनाया और उनसे सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया

लै ब्योढा ठाढे भये, श्री अनिरुद्ध सुजान।
बाणासुर की सैन को, हनन लगे भगवान ॥

पाँच वर्ष की आयु में माता के वात्सल्य तथा दस वर्ष की आयु में पिता के प्यार से वंचित होने वाले भारतेन्दु की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने घर पर ही हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, बँगला आदि भाषाओं का अध्ययन किया। तेरह वर्ष की अल्पायु में मन्नो देवी नामक युवती के साथ इनका विवाह हो गया। भारतेन्दु जी यात्रा के बड़े शौकीन थे। इन्हें जब भी समय मिलता, ये यात्रा के लिए निकल जाते थे। ये बड़े उदार और दानी पुरुष थे। अपनी उदारता और दानशीलता के कारण इनकी आर्थिक दशा शोचनीय हो गयी और ये ऋणग्रस्त हो गये।  परिणामस्वरूप श्रेष्ठि-परिवार में उत्पन्न हुआ यह महान् साहित्यकार ऋणग्रस्त होने के कारण, क्षयरोग से पीड़ित हो 35 वर्ष की अल्पायु में ही सन् 1885 ई० में दिवंगत हो गया।साहित्यिक सेवाएँ: प्राचीनता के पोषक और नवीनता के उन्नायक, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हिन्दी खड़ी बोली के ऐसे साहित्यकार हुए हैं, जिन्होंने साहित्य के विभिन्न अंगों पर साहित्य-रचना करके हिन्दी-साहित्य को समृद्ध बनाया। इन्होंने कवि, नाटककार, इतिहासकार, निबन्धकार, कहानीकार और सम्पादक के रूप में हिन्दी-साहित्य की महान् सेवा की है। नाटकों के क्षेत्र में इनकी देन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

भारतेन्दु जी से पूर्व खड़ी बोली गद्य के क्षेत्र में अलग-अलग दो शैलियाँ प्रचलित थीं। एक शैली में अरबी-फारसी के शब्दों की अधिकता थी तो दूसरी में संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता। भारतेन्दु जी ने इन शैलियों के मध्य मार्ग का अनुसरण करके हिन्दी गद्य को ऐसा व्यवस्थित स्वरूप दिया, जिसमें व्यावहारिक उर्दू  और फारसी के शब्दों के साथ-साथ प्रचलित संस्कृत और अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग था।।
भारतेन्दु जी ने हिन्दी भाषा के प्रचार के लिए आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन को गति देने के लिए इन्होंने नयी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन एवं सम्पादन किया, साहित्यिक संस्थाओं की स्थापना की और हिन्दी लेखकों को साहित्य-सृजन के लिए प्रेरित किया। इन्होंने साहित्य-सेवी संस्थाओं तथा साहित्यकारों को धन दिया और देश में अनेक शिक्षा संस्थाओं, पुस्तकालयों एवं नाट्यशालाओं की स्थापना की।

भारतेन्दु जी की साहित्य-रचना का काल भारत की परतन्त्रता का युग था।उस समय देश की सामाजिक और राजनीतिक दशा अत्यन्त दयनीय वे शोचनीय थी। इसलिए इन्होंने अपने साहित्य में समाज और देश की दयनीय स्थिति का चित्रण करके, देश की प्रगति के लिए लोगों का आह्वान किया। इनके नाटकों में समाज-सुधार, देशप्रेम, राष्ट्रीय चेतना और देशोद्धार के स्वर मुखरित हुए हैं।

भारतेन्दु जी ने साहित्य के विभिन्न अंगों अर्थात् विविध विधाओं की पूर्ति की। इन्होंने हिन्दी गद्य के क्षेत्र में नवयुग का सूत्रपात किया और नाटक, निबन्ध, कहानी, इतिहास आदि विषयों पर साहित्य-रचना की। अपने निबन्धों में इन्होंने तत्कालीन सामाजिक, साहित्यिक और राजनीतिक परिस्थितियों का चित्रण किया। इतिहास, पुराण, धर्म, भाषा आदि के अतिरिक्त इन्होंने संगीत आदि पर निबन्ध-रचना की तथा सामाजिक रूढ़ियों पर व्यंग्य भी किये। काव्य के क्षेत्र में भारतेन्दु जी ने कविता को राष्ट्रीयता की ओर मोड़ा। इनके काव्य की मुख्य भाषा ब्रज भाषा और गद्य की प्रमुख भाषा खड़ी बोली थी।

भारतेन्दु जी ने एक यशस्वी सम्पादक के रूप में कवि वचन सुधा’ (1868 ई०) और ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन (1873 ई०) पत्रिकाओं का सम्पादन किया, जिससे हिन्दी गद्य के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ। आठ अंकों के उपरान्त ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ का नाम बदलकर ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका हो गया। इस प्रकार भारतेन्दु जी ने व्यावहारिक हिन्दी भाषा को अपनाकर, विविध विषयों पर स्वयं निबन्ध लिखकर और अन्य लेखकों को लिखने के लिए प्रेरित करके हिन्दी साहित्य की महान् सेवा की और एक नये युग का सूत्रपात किया।

कृतियाँ:
भारतेन्दु जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इन्होंने नाटक, काव्य, निबन्ध, उपन्यास, कहानी आदि साहित्य की तत्कालीन प्रचलित सभी विधाओं में महत्त्वपूर्ण रचनाएँ कीं, किन्तु नाटकों के क्षेत्र में इनकी देन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इनकी कृतियों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है

नाटक:
भारतेन्दु जी ने मौलिक और अनूदित दोनों प्रकार के नाटकों की रचना की है, जिनकी कुल संख्या 17 है:
(1) मौलिक नाटक: सत्य हरिश्चन्द्र, श्री चन्द्रावली, नीलदेवी, भारत दुर्दशा, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, सती प्रताप, अँधेर नगरी, विषस्य विषमौषधम् तथा प्रेम-जोगिनी।
(2) अनूदित नाटक:  मुद्राराक्षस, रत्नावली नाटिका, कर्पूरमंजरी, विद्यासुन्दर, पाखण्ड विडम्बन, धनंजय विजय, भारत जननी तथा दुर्लभ बन्धु।।

निबन्ध-संग्रह:
सुलोचना, मदालसा, लीलावती, दिल्ली दरबार दर्पण एवं परिहास-वंचक।

इतिहास:
अग्रवालों की उत्पत्ति, महाराष्ट्र देश का इतिहास तथा कश्मीर कुसुम।

कविता-संग्रह:
भक्त सर्वस्व, प्रेम सरोवर, प्रेम तरंग, सतसई सिंगार, प्रेम प्रलाप, प्रेम फुलवारी, भारत-वीणा आदि।

यात्रा वृत्तान्त:
सरयू पार की यात्री, लखनऊ की यात्री आदि।

जीवनी:
सूरदास, जयदेव, महात्मा मुहम्मद आदि।

भाषा और शैली

(अ) भाषागत विशेषताएँ

भाषा के समन्वित रूप का प्रयोग:
भाषा समूची युग-चेतना की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। यही कारण है कि भारतेन्दु जी ने काव्य में परम्परागत ब्रज भाषा का प्रयोग किया, परन्तु गद्य के लिए इन्होंने खड़ी बोली को ही अपनाया। भारतेन्दु जी से पूर्व हिन्दी गद्य का कोई निश्चित स्वरूप नहीं था तथा गद्य के लिए दो प्रकार की भाषा का प्रयोग हो रहा था। एक ओर उर्दू-फारसी मिश्रित खड़ी बोली का प्रयोग तो दूसरी ओर संस्कृत की तत्सम शब्दावली से युक्त खड़ी बोली। भारतेन्दु जी ने दोनों प्रकार की भाषा को समन्वित प्रयोग कर भाषा को सरल और व्यावहारिक रूप प्रदान किया। इन्होंने अरबी, फारसी और अंग्रेजी के शब्दों के साथ-साथ, संस्कृत के तत्सम शब्दों, साधारण प्रयोग में आने वाले तद्भव और देशी शब्दों का प्रयोग करके खड़ी बोली हिन्दी का स्वरूप प्रतिष्ठित किया। इनकी इस भाषा को समकालीन लेखकों ने सहर्ष स्वीकार भी किया।

लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग:
भाषा को सजीव रूप प्रदान करने और उसमें प्रवाह एवं ओज उत्पन्न करने के लिए इन्होंने सुन्दर लोकोक्तियों और मुहावरों का सटीक प्रयोग किया। यद्यपि भारतेन्दु जी की भाषा में व्याकरण की दृष्टि से कतिपय दोष दिखाई देते हैं; क्योंकि इनके युग में खड़ी बोली का व्याकरण-सम्मत निश्चित स्वरूप नहीं था; तथापि इनकी भाषा सरल, सुबोध, सुमधुर, व्यावहारिक, भावानुगामिनी एवं सशक्त है।

(ब) शैलीगत विशेषताएँ:
भाव और विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा और अभिव्यक्ति का ढंग शैली कहलाती है। भारतेन्दु जी की रचनाओं में हमें विषयानुरूप शैली के अनेक रूप दिखाई देते हैं। ये अपनी शैली के स्वयं निर्माता थे। इनकी शैली पर इनके मस्त और उदार व्यक्तित्व की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। इनकी शैली के प्रमुख रूप निम्नलिखित हैं

(1) वर्णनात्मक शैली:
किसी वस्तु का वर्णन करते समय अथवा परिचय देते समय भारतेन्दु जी ने वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। इस शैली में वर्णन की प्रधानता होती है। इसमें भारतेन्दु जी ने सरल और सुबोध भाषा का प्रयोग किया है। इस शैली में वाक्य छोटे और व्यवस्थित हैं।

(2) भावात्मक शैली:
भाषा के वेग और तीव्रता को प्रकट करने के लिए भारतेन्दु जी ने भावात्मक शैली को अपनाया है। इसमें वाक्य छोटे और गठे हुए हैं। इस शैली में प्रवाह, ओज तथा कोमल शब्दावली के प्रयोग से विशेष माधुर्य आ गया है।

(3) विवेचनात्मक शैली:
साहित्य, इतिहास, राजनीति आदि विषयों पर लिखते समय भारतेन्दु जी उनका गम्भीर विवेचन भी करते चलते हैं। इस शैली में इनकी भाषा तत्सम शब्दों से युक्त, गम्भीर और प्रौढ़ है।

(4) हास्य-व्यंग्यात्मक शैली:
भारतेन्दु जी ने सामाजिक कुरीतियों, पाखण्डों तथा अंग्रेजी शासकों पर अत्यन्त तीखे व्यंग्य किये हैं। इस शैली में सजीवता और चुटीलापन है।।

(5) गवेषणात्मक शैली:
भारतेन्दु जी ने इस शैली का प्रयोग ऐतिहासिक और साहित्यिक निबन्धों में किया है। इसमें इन्होंने नये-नये तथ्यों की खोज की है। साहित्यिक निबन्धों में शैली का प्रयोग करते समय संस्कृत के तत्सम शब्दों का तथा कुछ बड़े-बड़े वाक्यों का प्रयोग किया गया है।

(6) विवरणात्मक शैली:
जहाँ पर गति के साथ किसी विषय के वर्णन की आवश्यकता महसूस हुई है, वहाँ पर भारतेन्दु जी ने इस शैली का प्रयोग किया है। सरयूपार की यात्रा’, ‘लखनऊ की यात्रा’ आदि यात्रा-वृत्तान्त इस शैली के श्रेष्ठ उदाहरण हैं।

(7) विचारात्मक शैली:
भारतेन्दु जी ने गम्भीर विषयों के विवेचन में इस शैली का सुन्दर प्रयोग किया है। ‘वैष्णवता और भारतवर्ष’, ‘भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?’ इत्यादि निबन्ध इनकी इस शैली के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। उपर्युक्त शैलियों के अतिरिक्त भारतेन्दु जी ने स्तोत्र शैली, प्रदर्शन शैली, शोध शैली, कथा शैली और भाषण शैली को भी बड़ी कुशलता के साथ अपनाया है।

साहित्य में स्थान:
नि:स्न्देह हिन्दी-साहित्याकाश के प्रभामण्डित इन्दु भारतेन्दु जी हिन्दी गद्य-साहित्य के जन्मदाता थे। आज भी साहित्य का यह इन्दु अपनी रचना-सम्पदा के माध्यम से हिन्दी-साहित्य गगन से अमृत-वृष्टि कर रहा है।

गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांशों के आधार पर उनसे सम्बन्धित दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1:
इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाय वही बहुत है। हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं। यद्यपि फर्स्ट क्लास सेकेण्ड क्लास आदि गाड़ी बहुत अच्छी-अच्छी और बड़े महसूल की इस ट्रेन में लगी हैं पर बिना इंजिन सब नहीं चल सकतीं, वैसे ही हिन्दुस्तानी लोगों को कोई चलाने वाला हो तो ये क्या नहीं कर सकते। इनसे इतना कह दीजिए “का चुप साधि रहा बलवाना’ फिर देखिए हनुमान जी को अपना बल कैसा याद आता है। सो बल कौन याद दिलावै।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और उसके लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्याकीजिए।
(iii) लेखक ने देश के लोगों को किसकी संज्ञा दी है? कारण सहित उत्तर दीजिए।
(iv) “का चुप साधि रही बलवाना” इस लोकोक्ति के माध्यम से लेखक किस बात को स्पष्ट करना चाहता है?
(v) प्रस्तुत गद्यांश का आशय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
(i) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ के ‘भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?’
शीर्षक निबन्ध से अवतरित है। इसके लेखक हिन्दी साहित्य के जनक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हैं।
अथवा निम्नवत् लिखिए
पाठ का नाम – भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?
लेखक का नाम – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
[संकेत–इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए प्रश्न (i) का यही उत्तर लिखना है।]

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: भारतेन्दु जी कहते हैं कि यह देश का बड़ा दुर्भाग्य है कि भारतवासियों में विविध प्रकार से गुणी तथा सभी प्रकार की योग्यता रखने वाले लोग हैं, परन्तु वे सही नेतृत्व के अभाव में अभी तक अपनी उन्नति नहीं कर सके हैं। हमारे देश के लोगों को  लगाड़ी की संज्ञा दी जा सकती है। जैसे रेलगाड़ी में ऊँचे किराये तथा सामान्य किराये के डिब्बे लगे रहते हैं, परन्तु इंजन के अभाव में वे सभी अपनी जगह स्थिर रहते हैं, आगे नहीं बढ़ पाते; उसी प्रकार भारत के लोगों में भी उच्च और मध्यम श्रेणी के विद्वान्, वीर एवं शक्ति-सम्पन्न सभी प्रकार की प्रतिभाओं से सम्पन्न लोग हैं, परन्तु नेतृत्वहीनता के कारण वे अपनी उन्नति के लिए स्वयं कोई भी कार्य नहीं कर पाते। यदि भारतीयों को सही मार्गदर्शक की सत्प्रेरणा प्राप्त हो जो उन्हें उनके बल, पौरुष और ज्ञान का स्मरण दिला सके, तो वे कठिन-से-कठिन और बड़े-से-बड़े कार्य को भी आसानी से कर सकते हैं। मात्र एक नेता के अभाव में उसकी सारी शक्ति, ज्ञान और योग्यता व्यर्थ हो जाती है।

(iii) लेखक ने देश के लोगों को रेलगाड़ी की संज्ञा दी है क्योंकि जिस प्रकार से रेलगाड़ी में ऊँचे किराए तथा सामान्य किराए के डिब्बे लगे रहते हैं किन्तु सभी इंजन के अभाव में अपनी जगह स्थिर रहते हैं उसी प्रकार देश के लोगों की स्थिति है। वे भी नेतृत्वहीनता के कारण उन्नति नहीं कर सकते।

(iv) “का चुप साधि रहा बलवाना” लोकोक्ति के माध्यम से लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि देश के लोग हनुमान जी की तरह हैं। जामवंत ने जिस प्रकार हनुमान जी को उनकी शक्ति का स्मरण कराया और वे समुद्र लाँघ गए, उसी प्रकार भारत के लोगों को प्रेरणादायी, सफल नेतृत्व की आवश्यकता है।

(v) उपर्युक्त गद्यांश का आशय यह है हमारे देश के लोग प्रतिभावान एवं सभी प्रकार की योग्यता रखने वाले हैं, किन्तु उन्हें वे अपनी प्रतिभा से अनभिज्ञ हैं। यदि उनको कोई सही मार्गदर्शक मिल जाए तो वे क्या नहीं कर सकते! अर्थात् वे सब कुछ कर सकते हैं। प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक देशवासियों को स्वावलम्बी बनने की प्रेरणा प्रदान करता है।

प्रश्न 2:
यह समय ऐसा है कि उन्नति की मानो घुड़दौड़ हो रही है। अमेरिकन अँगरेज फरासीस आदि तुरकी ताजी सब सरपट्ट दौड़े जाते हैं। सबके जी में यही है कि पाला हमी पहले छू लें। उस समय हिन्दू
काठियावाड़ी खाली खड़े-खड़े टाप से मिट्टी खोदते हैं। इनको औरों को जाने दीजिए जापानी टट्टुओं । को हाँफते हुए दौड़ते देख करके भी लाज नहीं आती। यह समय ऐसा है कि जो पीछे रह जाएगा फिर कोटि उपाय किए भी आगे न बढ़ सकेगा। इस लूट में इस बरसात में भी जिसके सिर पर कम्बख्ती का छाता और आँखों में मूर्खता की पट्टी बँधी रहे उन पर ईश्वर को कोप ही कहना चाहिए।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और उसके लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) लेखक ने कहाँ के निवासियों को जापानी टट्टुओं की संज्ञा दी है?
(iv) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक ने भारतवासियों को क्या सुझाव दिया है?
(v) “उस समय हिन्दू काठियावाड़ी खाली खड़े-खड़े टाप से मिट्टी खोदते हैं।” इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने कौन-सी बात कही है?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: भारतेन्दु जी कहते हैं कि भारतवासियों को यह समझना चाहिए। कि ऐसे क्षणों में यदि वे एक बार पिछड़ जाएँगे तो फिर आगे नहीं बढ़ सकते। लेखक को मत है कि आधुनिक वैज्ञानिक युग में उन्नति के साधन इतनी सरलता से उपलब्ध हैं, जैसे वे अनायास प्राप्त वर्षा का जल हों। ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो लूट का माल बिखरा पड़ा हो और हमने आँखों पर पट्टी बाँध रखी हो अथवा वर्षा हो रही हो और हमने सिर पर छाता लगा रखा हो। तात्पर्य यह है कि भारतवर्ष के लोग आलस्य अथवा अज्ञानवश उन्नति के सुलभ साधनों का न तो उपयोग ही कर पा रहे हैं और न ही उन्हें उपलब्ध करा पा रहे हैं।

(iii) लेखक ने जापान के निवासियों को जापानी टट्टुओं की संज्ञा दी है क्योंकि वे अधिक शक्तिशाली नहीं होते, फिर भी अपनी उन्नति के लिए वे प्रयत्नशील हैं।
(iv) प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से भारतेन्दु जी ने भारतवासियों को सुझाव दिया है कि जब छोटे-छोटे देश भी अपने विकास में संलग्न हैं तब भारतवर्ष को भी अपनी उन्नति का पूरा प्रयास करना चाहिए।

(v) “उस समय हिन्दू काठियावाड़ी खाली खड़े-खड़े टाप से मिट्टी खोदते हैं।” पंक्ति के माध्यम से भारतेन्दु जी भारतीयों की अकर्मण्यता और उदासीन-प्रवृत्ति से क्षुब्ध होकर कहते हैं कि संसार के सभी छोटे-बड़े देश उन्नति की दौड़ में निरन्तर आगे बढ़ते जा रहे हैं और हम भारतवासी अपने स्थान पर खड़े-खड़े पैरों से मिट्टी खोद रहे हैं। अमेरिकन, अंग्रेज, फ्रांसीसी आदि तुर्की घोड़ों की तरह तीव्र गति से प्रगति की दौड़ में एक-दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, किन्तु भारत के लोग निरन्तर पिछड़ते जा रहे हैं। इनका मानसिक और सामाजिक स्तर जो वर्षों पहले था, वही अब भी है। ये आज भी कुरीतियों और अन्धविश्वासों में जकड़े हुए हैं, इसीलिए स्वावलम्बी नहीं हैं।

प्रश्न 3:
सब उन्नतियों का मूल धर्म है। इससे सब के पहले धर्म की ही उन्नति करनी उचित है। देखो! अंगरेजों की धर्मनीति राजनीति परस्पर मिली हैं इससे उनकी दिन-दिन कैसी उन्नति है। उनको जाने दो, अपने ही यहाँ देखो। तुम्हारे यहाँ धर्म की आड़ में नाना प्रकार की नीति समाज-गठन वैद्यक आदि भरे हुए हैं।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और उसके लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) लेखक ने सभी उन्नतियों का मूल किसे बताया है?
(iv) अंग्रेजों की उन्नति का क्या कारण है?
(v) भारतवासियों को सबसे पहले किसकी उन्नति करनी उचित है?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी कहते हैं कि हमारे यहाँ धर्म की आड़ में विविध प्रकार की नीति, समाज-गठन आदि भरे हुए हैं। ये उन्नति का मार्ग प्रशस्त नहीं करते। इसलिए धर्म की उन्नति से सभी प्रकार की उन्नति सम्भव है।
(iii) लेखक ने धर्म को सभी उन्नतियों का मूल बताया है।
(iv) अंग्रेजों की धर्मनीति और राजनीति परस्पर मिली होना उनकी उन्नति का कारण है।
(v) भारतवासियों को सबसे पहले धर्म की उन्नति करनी उचित है।

प्रश्न 4:
एक बेफिकरे मॅगनी का कपड़ा पहनकर किसी महफिल में गये। कपड़े को पहिचान कर एक ने कहा अजी अंगी तो फलाने का है दूसरा बोला अजी टोपी भी फलाने की है तो उन्होंने हँसकर जवाब दिया कि घर की तो मूॐ ही मूढ़े हैं। हाय, अफसोस, तुम ऐसे हो गये कि अपने निज की क़ाम की वस्तु भी नहीं । बना सकते। भाइयो अब तो नींद से चौंको। अपने देश की सब प्रकार से उन्नति करो। जिसमें तुम्हारी भलाई हो वैसी ही किताब पढ़ो वैसे ही खेल खेलो वैसी ही बातचीत करो। परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो। अपने देश में अपनी भाषा में उन्नति करो।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और उसके लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) सारी चीजें माँगी होने पर महाशय ने हँसकर अमुक व्यक्ति को क्या जवाब दिया?
(iv) लेखक ने किस बात पर अफसोस व्यक्त किया है?
(v) लेखक ने भारतीयों में किस भावना को विकसित करने पर बल दिया है?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या: देशवासियों का आह्वान करते हुए लेखक कहते हैं कि लोगों को चाहिए कि अब वे अज्ञानता की नींद से जाग जाएँ और अपने देश की उन्नति के लिए सर्वविध संलग्न हो जाएँ। इन्हें उन्हीं पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए जो इनके लिए कल्याणकारी हों, वैसे ही खेल खेलने चाहिए तथा वैसी ही बातें करनी चाहिए जो इनके नैतिक उत्थान में सहायक हों। साथ ही इनके लिए इस भ्रम से मुक्त होना भी अनिवार्य है कि विदेशी वस्तुएँ व भाषा हमारी वस्तुओं व भाषा से श्रेष्ठ । अपने देश को स्वावलम्बी राष्ट्र के रूप में विकसित करने के लिए स्वदेशी वस्तुओं और अपनी ही भाषा का प्रयोग करना होगा तथा विदेशी भाषा और वस्तुओं पर अपनी निर्भरता को समाप्त करना होगा।
(iii) सारी चीजें माँगी होने पर महाशय ने हँसकर अमुक व्यक्ति को यह जवाब दिया कि अजी घर की तो मूर्छ। ही मूछे हैं।
(iv) लेखक ने इस बात पर अफसोस व्यक्त किया है कि भारतवासी इतने अकर्मण्य हो गए हैं कि वे निज काम की वस्तुएँ भी नहीं बना सकते।
(v) लेखक ने भारतीयों में स्वदेशी की भावना को विकसित करने पर बल दिया है।

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UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids

UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids (ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल) are part of UP Board Solutions for Class 12 Chemistry. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids (ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Chemistry
Chapter Chapter 12
Chapter Name Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids
Number of Questions Solved 99
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids (ऐल्डिहाइड, कीटोन एवं कार्बोक्सिलिक अम्ल)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित यौगिकों की संरचना लिखिए –
(i) a-मेथॉक्सीप्रोपिऑनेल्डिहाइड
(ii) 3-हाइड्रॉक्सीब्यूटेनल
(iii) 2-हाइड्रॉक्सीसाइक्लोपेन्टेन कार्बोल्डिहाइड
(iv) 4-ऑक्सोपेन्टेनल
(v) डाइ-द्वितीयक-ब्यूटिल कीटोन
(vi) 4-क्लोरोऐसीटोफीनोन।
उत्तर
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं के उत्पादों की संरचना लिखिए –
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उत्तर
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित यौगिकों को उनके क्वथनांकों के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए –
CH3CHO, CH3CH2OH, CH3OCH3, CH3CH2CH2
उत्तर
यौगिकों के मोलर द्रव्यमान तुलनात्मक हैं- CH3CHO (44), CH3CH2OH (46), CH3OCH3 (46), CH3CH2CH3 (44)। CH3CH2OH अत्यधिक अन्तराण्विक हाइड्रोजन आबन्ध प्रदर्शित करता है, अतएव यह संयुक्त अणुओं के रूप में पाया जाता है। अतः इसका क्वथनांक उच्चतम होता है (351 K)। CH3CHO के द्विध्रुव आघूर्ण (2.72 D) का मान CH3OCH3 (1.18D) से उच्च होता है, अतएव CH3CHO में द्विध्रुव-द्विधुव अन्योन्यक्रियाएँ CH3OCH3 से प्रबल होती हैं। अत: CH3CHO का क्वथनांक CH3OCH3 से उच्च होता है। CH3CH2CH3 केवल दुर्बल वाण्डर वाल बलों को प्रदर्शित करता है। CH3OCH3 में कुछ प्रबल द्विध्रुव-द्विध्रुव अन्योन्यक्रियाएँ होती हैं। अत: CH3OCH3 का क्वथनांक CH3CH2CH3 से अधिक होता है, अतएव यौगिकों के क्वथनांकों का बढ़ता क्रम निम्नवत् है –
CH3CH2CH3 < CH3OCH3 < CH3CHO < CH3CH2OH

प्रश्न 4.
निम्नलिखित यौगिकों को नाभिकरागी योगज अभिक्रियाओं में उनकी बढ़ती हुई अभिक्रियाशीलता के क्रम में व्यवस्थित कीजिए –

  1. एथेनल, प्रोपेनल, प्रोपेनोन, ब्यूटेनोन
  2. बेन्जेल्डिहाइड, p-टॉलूऐल्डिहाइड, p-नाइट्रोबेन्जेल्डिहाइड, ऐसीटोफीनोन।

[संकेत– त्रिविम प्रभाव व इलेक्ट्रॉनिक प्रभाव को ध्यान में रखें।]
उत्तर
1. कार्बोनिल यौगिकों की नाभिकरागी योगज अभिक्रियाओं के प्रति क्रियाशीलता का बढ़ता क्रम है –
ब्यूटेनोन < प्रोपेनोन < प्रोपनल < एथेनल

2. क्रियाशीलता का बढ़ता क्रम है –
ऐसीटोफीनोन < p-टॉलूऐल्डिहाइड < बेन्जेल्डिहाइड < p-नाइट्रोबेन्जेल्डिहाइड
ऐसीटोफीनोन कीटोन है, जबकि अन्य सदस्य ऐल्डिहाइड हैं। अत: यह सबसे कम क्रियाशील होता है। p-टॉलूऐल्डिहाइड में CH3 समूह कार्बोनिल समूह के सापेक्ष p:स्थान पर है जो कार्बोनिल समूह के कार्बन पर अतिसंयुग्मन (hyperconjugation) प्रभाव के कारण इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ाता है और इसे बेन्जेल्डिहाइड से कम क्रियाशील बनाता है।
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दूसरी ओर p-नाइट्रोबेन्जेल्डिहाइड में -NO2 समूह शक्तिशाली इलेक्ट्रॉन निष्कासक समूह है। यह अनुनाद के कारण इलेक्ट्रॉन निष्कासित करता है। अत: कार्बोनिल समूह के कार्बन परमाणु पर इलेक्ट्रॉन घनत्व घटाता है। यह नाभिकस्नेही के आक्रमण की सुविधा प्रदान करता है तथा इसे बेन्जेल्डिहाइड की तुलना में अधिक क्रियाशील बनाता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं के उत्पादों को पहचानिए –
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उत्तर
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प्रश्न 6.
निम्नलिखित यौगिकों के आई०यू०पी०ए०सी० नाम दीजिए –
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उत्तर
(i) 3-फेनिलप्रोपेनोइक अम्ल
(ii) 3-मेथिलब्यूट-2-इनोइक अम्ल
(iii) 2-मेथिलसाइक्लोपेन्टेनकार्बोक्सिलिक अम्ल ।
(iv) 2, 4, 6-ट्राइनाइट्रोबेन्जोइक अम्ल

प्रश्न 7.
निम्नलिखित यौगिकों को बेन्जोइक अम्ल में कैसे परिवर्तित किया जा सकता है?
(i) एथिल बेन्जीन
(ii) ऐसीटोफीनोन
(iii) ब्रोमोबेन्जीन
(iv) फेनिलएथीन (स्टाइरीन)।
उत्तर
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प्रश्न 8.
नीचे प्रदर्शित अम्लों के प्रत्येक युग्म में कौन-सा अम्ल अधिक प्रबल है?
(i) CH3CO2H अथवा CH2FCO2H
(ii) CH2FCO2H अथवा CH2CICO2H
(iii) CH2FCH2CH2CO2H अथवा CH3CHFCH2CO2H
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उत्तर
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अत: O–H आबन्ध में कम इलेक्ट्रॉन-घनत्व तथा FCH2COO आयन के उच्च स्थायित्व के कारण FCH2COOH, CH3COOH की अपेक्षा एक प्रबल अम्ल है।
(ii) FCH2COO आयन, Cl की तुलना में F के अधिक प्रबल -I प्रभाव के कारण ClCH2COO आयन से अधिक स्थायी होता है। अत: ClCH2COOH की तुलना में FCH2COOH अधिक प्रबल अम्ल है।
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प्रेरक प्रभाव दूरी के साथ घटता जाता है, इसलिए F का -I प्रभाव, 4-फ्लुओरोब्यूटेनोइक अम्ल की तुलना में 3-फ्लुओरोब्यूटेनोइक अम्ल में अधिक प्रबल होता है। इसलिए FCH2CH2CH2COOH की तुलना में CH3CHFCH2COOH प्रबल अम्ल है।
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इसलिए, CH3– C6H4COO (p) आयन से F3C-C6H4-COO (p) आयन के अधिक स्थायी होने के कारण F3C-C6H4-COOH (p) प्रबल अम्लीय है।

अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों (शब्दों) से आप क्या समझते हैं? प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।

  1. सायनोहाइड्रिन
  2. ऐसीटल
  3. सेमीकार्बजोन
  4. ऐल्डोले
  5. हेमीऐसीटल
  6. ऑक्सिम
  7. कीटैल
  8. इमीन
  9. 2, 4-DNP व्युत्पन्न
  10. शिफ-क्षारक।

उत्तर
1. ऐल्डिहाइड तथा कीटोन हाइड्रोजन सायनाइड से अभिकृत होकर संगत सायनोहाइड्रिन (cyanohydrins) देते हैं। शुद्ध HCN के साथ यह अभिक्रिया बहुत धीमी होती है, अत: यह क्षार द्वारा उत्प्रेरित की जाती है तथा जनित सायनाइड (CN) आयन प्रबल नाभिकस्नेही कार्बोनिल यौगिकों पर संयोजित होकर संगत सायनोहाइड्रिन देते हैं।
सायनोहाइड्रिन उपयोगी संश्लेषित मध्यवर्ती होते हैं।
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2. जैम-डाइऐल्कॉक्सी यौगिक जिनमें दो ऐल्कॉक्सी समूह टर्मिनल (अन्तस्थ) कार्बन परमाणु पर उपस्थित होते हैं, ऐसीटल (acetal) कहलाते हैं। ये ऐल्डिहाइड की मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल की दो तुल्यांक मात्रा के साथ शुष्क हाइड्रोजन क्लोराइड की उपस्थिति में अभिक्रिया होने पर बनते हैं।
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ऐसीटल जलीय खनिज अम्लों के साथ जल-अपघटित होकर संगत ऐल्डिहाइड देते हैं, इसलिए कार्बनिक संश्लेषण में इनका प्रयोग ऐल्डिहाइड समूह की रक्षा के लिए किया जाता है।

3. सेमीकाबेंजोन, ऐल्डिहाइडों तथा कीटोनों के व्युत्पन्न होते हैं तथा उन पर सेमीकाबेंजाइड की दुर्बल अम्लीय माध्यम में अभिक्रिया द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं।
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इन्हें ऐल्डिहाइडों तथा कीटोनों की पहचान एवं गुणधर्मों के अध्ययन के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

4. जिन ऐल्डिहाइडों तथा कीटोनों में कम-से-कम एक α-हाइड्रोजन विद्यमान होता है, वे तनु क्षार की (उत्प्रेरक के रूप में) उपस्थिति में अभिक्रिया द्वारा क्रमशः β-हाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड (ऐल्डोल) अथवा β-हाइड्रॉक्सी कीटोन (कीटोल) प्रदान करते हैं। इस अभिक्रिया को ऐल्डोल अभिक्रिया (aldol reaction) कहते हैं।
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उत्पाद में विद्यमान दो प्रकार्यात्मक समूहों, ऐल्डिहाइड व ऐल्कोहॉल के नामों से ऐल्डोल का नाम व्युत्पन्न होता है। ऐल्डोल व कीटोल आसानी से जल निष्कासित करके α, β-असंतृप्त कार्बोनिल यौगिक देते हैं, जो ऐल्डोल संघनन उत्पाद हैं और यह अभिक्रिया ऐल्डोल संघनन (aldol condensation) कहलाती है।

5. जैम- ऐल्कॉक्सीऐल्कोहॉल हेमीऐसीटल कहलाते हैं। ये मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल के एक अणु का ऐल्डिहाइड के साथ शुष्क HCl गैस की उपस्थिति में योग होने पर उत्पन्न होते हैं।
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6. जब ऐल्डिहाइड तथा कीटोन दुर्बल अम्लीय माध्यम में हाइड्रॉक्सिलऐमीन के साथ अभिक्रिया करते हैं, तब ऑक्सिम (oximes) उत्पन्न होते हैं।
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7. जैम-ऐल्कॉक्सीऐल्केन कीटैल (ketals) कहलाते हैं। कीटैल में दो ऐल्कॉक्सी समूह श्रृंखला के भीतर समान कार्बन पर उपस्थित होते हैं। जब कीटोन को शुष्क HCl गैस अथवा p-टॉलूईनसल्फोनिक अम्ल (PTS) की उपस्थिति में एथिलीन ग्लाइकॉल के साथ गर्म किया जाता है तो कीटैल प्राप्त होते हैं।
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ये जलीय खनिज अम्लों के साथ जल-अपघटित होकर संगत कीटोन देते हैं। इसलिए कीटैल कार्बनिक संश्लेषण में कीटो समूह के रक्षण हेतु प्रयुक्त किए जाते हैं।

8. UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 22 समूह युक्त यौगिक इमीन (imines) कहलाते हैं। ये ऐल्डिहाइडों तथा कीटोनों की अमोनिया व्युत्पन्नों के साथ अभिक्रिया से बनाए जाते हैं।
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Z = ऐल्किल/ऐरिल समूह, -NH2,-OH, C6H5NH, -NHCONHआदि।

9. जब ऐल्डिहाइड अथवा कीटोन दुर्बल अम्लीय माध्यम में 2,4-डाइनाइट्रोफेनिलहाइड्राजीन के साथ अभिक्रिया करते हैं तो 2,4-डाइनाइट्रोफेनिलहाइड्रोजोन (2,4-DNP व्युत्पन्न) उत्पन्न होते हैं।
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2,4- DNP व्युत्पन्न ऐल्डिहाइडों तथा कीटोनों की पहचान एवं गुणधर्मों के अध्ययन में प्रयोग किए जाते हैं।

10. ऐल्डिहाइड तथा कीटोन प्राथमिक ऐलिफैटिक अथवा ऐरोमैटिक ऐमीनों से अभिक्रिया करके ऐजोमेथाइन अथवा शिफ़ क्षारक (Shiff’s Base) बनाते हैं।
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित यौगिकों के आई०यू०पी०ए०सी० (IUPAC) नामपद्धति में नाम लिखिए –

  1. CH3CH(CH3)CH2CH2CHO
  2. CH3CH2COCH(C2H5)CH2CH2Cl
  3. CH3CH = CHCHO
  4. CH3COCH2COCH3
  5. CH3CH(CH3)CH2C(CH3)2COCH3
  6. (CH3)3CCH2COOH
  7. OHCC6H4CHO-p

उत्तर

  1. 4-मेथिलपेन्टेनल
  2. 6-क्लोरो-4-एथिलहेक्सेन-3-ओन
  3. ब्यूट-2-इनल
  4. पेन्टेन-2,4-डाइओन
  5. 3,3,5-ट्राइमेथिलहेक्सेन-2-ओन
  6. 3,3-डाइमेथिलब्यूटेनोइक अम्ल
  7. बेन्जीन-1,4-डाइकार्बोल्डिहाइड

प्रश्न 3.
निम्नलिखित यौगिकों की संरचना बनाइए –
(i) 3-मेथिलब्यूटेनल
(ii) p-नाइट्रोप्रोपिओफीनोन
(iii) p-मेथिलबेन्जेल्डिहाइड
(iv) 4-मेथिलपेन्ट-3-ईन-2-ओन
(v) 4-क्लोरोपेन्टेन-2-ओन
(vi) 3-ब्रोमो-4-फेनिल पेन्टेनोइक अम्ल
(vii) p, p’-डाइहाइड्रॉक्सीबेन्जोफीनोन
(viii) हेक्स-2-ईन-4-आइनोइक अम्ल।
उत्तर
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प्रश्न 4.
निम्नलिखित ऐल्डिहाइडों एवं कीटोनों के आई०यू०पी०ए०सी० (IUPAC) नाम लिखिए और जहाँ सम्भव हो सके साधारण नाम भी दीजिए।
(i) CH3CO(CH2)4CH3
(ii) CH3CH2CHBrCH2CH(CH3)CHO
(iii) CH3(CH2)5CHO
(iv) Ph-CH = CH-CH-CHO
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(vi) PhCOPh
उत्तर
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित व्युत्पन्नों की संरचना बनाइए –
(i) बेन्जेल्डिहाइड का 2,4-डाइनाइट्रोफेनिलहाइड्रेजोन
(ii) साइक्लोप्रोपेनोन ऑक्सिम
(iii) ऐसीटेल्डिहाइडडाइमेथिलऐसीटल
(iv) साइक्लोब्यूटेनोन का सेमीकाबेंजोन
(v) हेक्सेन-3-ओन का एथिलीन कीटैल
(vi) फॉर्मेल्डिहाइड का मेथिल हेमीऐसीटल।
उत्तर
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प्रश्न 6.
साइक्लोहेक्सेनकार्बोल्डिहाइड की निम्नलिखित अभिकर्मकों के साथ अभिक्रिया से बनने वाले उत्पादों को पहचानिए –
(i) PhMgBr एवं तत्पश्चात् H3O+
(ii) टॉलेन अभिकर्मक
(iii) सेमीकाबेंजाइड एवं दुर्बल अम्ल
(iv) एथेनॉल का आधिक्य तथा अम्ल
(v) जिंक अमलगम एवं तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल।
उत्तर
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प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-से यौगिकों में ऐल्डोल संघनन होगा, किनमें कैनिजारो अभिक्रिया होगी और किनमें उपर्युक्त में से कोई क्रिया नहीं होगी? ऐल्डोल संघनन तथा कैनिजारो अभिक्रिया में सम्भावित उत्पादों की संरचना लिखिए –
(i) मेथेनल
(ii) 2-मेथिलपेन्टेनल
(iii) बेन्जेल्डिहाइड
(iv) बेन्जोफीनोन
(v) साइक्लोहेक्सेनोन
(vi) 1-फेनिलप्रोपेनोन
(vii) फेनिलऐसीटेल्डिहाइड
(viii) ब्यूटेन-1-ऑल
(ix) 2,2-डाइमेथिलब्यूटेनल।
उत्तर
(a) 2-मेथिल पेन्टेनल, साइक्लोहेक्सेनोन, 1-फेनिलप्रोपेनोन तथा फेनिलऐसीटैल्डिहाइड में 1 या अधिक -हाइड्रोजन उपस्थित हैं। अतः इनमें ऐल्डोल संघनन होगा। अभिक्रिया तथा सम्भावित उत्पादों की संरचनाएँ निम्नवत् हैं –
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(b) मेथेनल, बेन्जेल्डिहाइड तथा 2,2-डाइमेथिलब्यूटेनल में α-हाइड्रोजन नहीं होती है; अत: ये कैनिजारो (Cannizzaro reaction) अभिक्रिया देते हैं। अभिक्रियाएँ तथा सम्भावित उत्पाद निम्नवत् हैं –
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(c) (iv) बेन्जोफीनोन एक कीटोन है। इसमें α-हाइड्रोजन नहीं होती है, जबकि (viii) ब्यूटेन-1-ऑल एक ऐल्कोहॉल है। ये न ऐल्डोल संघनन और न कैनिजारो अभिक्रिया प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 8.
एथेनल को निम्नलिखित यौगिकों में कैसे परिवर्तित करेंगे?
(i) ब्यूटेन-1,3-डाइऑल
(ii) ब्यूट-2-ईनल
(iii) ब्यूट-2-ईनोइक अम्ल।
उत्तर
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प्रश्न 9.
प्रोपेनल एवं ब्यूटेनल के ऐल्डोल संघनन से बनने वाले चार सम्भावित उत्पादों के नाम एवं संरचना सूत्र लिखिए। प्रत्येक में बताइए कि कौन-सा ऐल्डिहाइड नाभिकरागी और कौन-सा इलेक्ट्रॉनरागी होगा?
उत्तर
1. प्रोपेनल नाभिकरागी तथा इलेक्ट्रॉनरागी की तरह –
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2. प्रोपेनल इलेक्ट्रॉनरागी तथा ब्यूटेनल नाभिकरागी की तरह –
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3. ब्यूटेनल एक इलेक्ट्रॉनरागी तथा प्रोपेनल नाभिकरागी की तरह –
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4. ब्यूटेनल नाभिकरागी तथा इलेक्ट्रॉनरागी दोनों के रूप में –
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प्रश्न10.
एक कार्बनिक यौगिक जिसका अणुसूत्र C9H10O है 2,4-DNP व्युत्पन्न बनाता है, टॉलेन अभिकर्मक को अपचयित करता है तथा कैनिजारो अभिक्रिया देता है। प्रबल ऑक्सीकरण पर वह 1,2-बेन्जीनडाइकार्बोक्सिलिक अम्ल बनाता है। यौगिक को पहचानिए।
उत्तर
1. अणुसूत्र C9H10O का दिया गया यौगिक 2,4-DNP यौगिक बनाता है तथा टॉलेन अभिकर्मक को अपचयित करता है; अत: यह ऐल्डिहाइड होगा।
2. यह कैनिजारो अभिक्रिया देता है। अत: -CHO समूह सीधा बेन्जीन वलय से जुड़ा होगा।
3. प्रबल ऑक्सीकरण पर यह 1,2-बेन्जीन डाइकार्बोक्सिलिक अम्ल देता है, अत: यह ऑर्थोप्रतिस्थापी बेन्जेल्डिहाइड होगा। अणुसूत्र C9H10O का ऐसा ऐल्डिहाइड o-एथिल बेन्जेल्डिहाइड होगा।
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प्रश्न11.
एक कार्बनिक यौगिक ‘क’ (आण्विक सूत्र, C8H16O2) को तनु सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ जल-अपघटित करने के उपरान्त एक कार्बोक्सिलिक अम्ल ‘ख’ एवं एक ऐल्कोहॉल ग’ प्राप्त हुए। ‘ग’ को क्रोमिक अम्ल के साथ ऑक्सीकृत करने पर ‘ख’ उत्पन्न होता है। ‘ग’ निर्जलीकरण पर ब्यूट-1-ईन देता है। अभिक्रियाओं में प्रयुक्त होने वाली सभी रासायनिक समीकरणों को लिखिए।
उत्तर
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प्रश्न 12.
निम्नलिखित यौगिकों को उनसे सम्बन्धित (कोष्ठकों में दिए गए) गुणधर्मों के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए –
(i) ऐसीटेल्डिहाइड, ऐसीटोन, डाइ-तृतीयक-ब्यूटिलकीटोन, मेथिल तृतीयक ब्यूटिलकीटोन (HCN के प्रति अभिक्रियाशीलता)।
(ii) CH3CH2CH(Br)COOH, CH3CH(Br)CH2COOH, (CH3)2CHCOOH, CH3CH2CH2COOH (अम्लता के क्रम में)
(iii) बेन्जोइक अम्ल, 4-नाइट्रोबेन्जोइक अम्ल, 3,4-डाइनाइट्रोबेन्जोइक अम्ल, 4-मेथॉक्सी बेन्जोइक अम्ल (अम्लता की सामर्थ्य के क्रम में)।
उत्तर
(i) डाइ-तृतीयक ब्यूटिल कीटोन < तृतीयक ब्यूटिल मेथिल कीटोन < ऐसीटोन < ऐसीटैल्डिहाइड
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(iii) 4.मेथॉक्सी बेन्जोइक अम्ल < बेन्जोइक अम्ल < 4-नाइट्रोबेन्जोइक अम्ल <3,4-डाइनाइट्रोबेन्जोइक अम्ल।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित यौगिक युग्मों में विभेद करने के लिए सरल रासायनिक परीक्षणों को दीजिए –

  1. प्रोपेनल एवं प्रोपेनोन
  2. ऐसीटोफीनोन एवं बेन्जोफीनोन
  3. फीनॉल एवं बेन्जोइक अम्ल
  4. बेन्जोइक अम्ल एवं एथिल बेन्जोएट
  5. पेन्टेन-2-ऑन एवं पेन्टेन-3-ऑन
  6. बेन्जेल्डिहाइड एवं ऐसीटोफीनोन
  7. एथेनल एवं प्रोपेनल।

उत्तर
1. प्रोपेनल एवं प्रोपेनोन – इन यौगिकों में विभेद करने के लिए आयोडोफॉर्म परीक्षण का प्रयोग किया जाता है। यह परीक्षण प्रोपेनोन द्वारा दिया जाता है, परन्तु प्रोपेनल द्वारा नहीं। प्रोपेनोन गर्म NaOH/I2 से अभिक्रिया करके CHI3 का पीला अवक्षेप देता है, जबकि प्रोपेनल नहीं देता।
2NaOH + I2 → NaI + NaOI + H2O
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2. ऐसीटोफीनोन एवं बेन्जोफीनोन – ऐसीटोफीनोन आयोडोफॉर्म परीक्षण देता है, परन्तु बेन्जोफीनोन नहीं देता।
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3. फीनॉल एवं बेन्जोइक अम्ल – बेन्जोइक अम्ल NaHCO3 से अभिक्रिया करके बुदबुदाहट के साथ CO2 गैस देता है, जबकि फीनॉल नहीं देता।
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फीनॉल Br2 जल को रंगहीन करके सफेद अवक्षेप देता है, परन्तु बेन्जोइक अम्ल नहीं देता।
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4. बेन्जोइक अम्ल एवं एथिल बेन्जोएट – बेन्जोइक अम्ल सोडियम बाइकार्बोनेट के साथ अभिक्रिया पर तीव्र बुदबुदाहट के साथ CO2 गैस मुक्त करता है, जबकि एथिल बेन्जोएट ऐसा नहीं करता।
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5. पेन्टेन-2-ऑन एवं पेन्टेन-3-ऑन – पेन्टेन-2-ऑन आयोडोफॉर्म परीक्षण देता है अर्थात् NaOH व  I2 के साथ आयोडोफॉर्म बनाता है, जबकि पेन्टेन-3-ऑन यह परीक्षण नहीं देता।
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6. बेन्जेल्डिहाइड एवं ऐसीटोफीनोन – ऐसीटोफीनोन आयोडोफॉर्म परीक्षण देता है, परन्तु बेन्जेल्डिहाइड यह परीक्षण नहीं देता।
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7. एथेनल एवं प्रोपेनल – एथेनल आयोडोफॉर्म परीक्षण देता है, परन्तु प्रोपेनल नहीं।
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प्रश्न 14.
बेन्जीन से निम्नलिखित यौगिकों का विरचन आप किस प्रकार करेंगे? आप कोई भी अकार्बनिक अभिकर्मक एवं कोई भी कार्बनिक अभिकर्मक, जिसमें एक से अधिक कार्बन न हों, का उपयोग कर सकते हैं।
(i) मेथिल बेन्जोएट
(ii) m-नाइट्रोबेन्जोइक अम्ल
(iii) p-नाइट्रोबेन्जोइक अम्ल
(iv) फेनिलऐसीटिक अम्ल
(v) p-नाइट्रोबेन्जेल्डिहाइड।
उत्तर
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प्रश्न15.
आप निम्नलिखित रूपान्तरणों को अधिकतम दो चरणों में किस प्रकार से सम्पन्न करेंगे?

  1. प्रोपेनोन से प्रोपीन
  2. बेन्जोइक अम्ल से बेन्जेल्डिहाइड
  3. एथेनॉल से 3-हाइड्रॉक्सीब्यूटेनल
  4. बेन्जीन से m-नाइट्रोऐसीटोफीनोन
  5. बेन्जेल्डिहाइड से बेन्जोफीनोन
  6. ब्रोमोबेन्जीन से 1-फेनिलएथेनॉल
  7. बेन्जेल्डिहाइड से 3-फेनिलप्रोपेन-1-ऑल
  8. बेन्जेल्डिहाइड से α-हाइड्रॉक्सीफेनिलऐसीटिक अम्ल
  9. बेन्जोइक अम्ल से m-नाइट्रोबेन्जिल ऐल्कोहॉल।

उत्तर
1. प्रोपेनोन से प्रोपीन
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2. बेन्जोइक अम्ल से बेन्जेल्डिहाइड
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3. एथेनॉल से 3-हाइड्रॉक्सीब्यूटेनल
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4. बेन्जीन से m-नाइट्रोऐसीटोफीनोन
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5. बेन्जेल्डिहाइड से बेन्जोफीनोन
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6. ब्रोमोबेन्जीन से 1-फेनिलएथेनॉल
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7. बेन्जेल्डिहाइड से 3-फेनिलप्रोपेन-1-ऑल
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8. बेन्जेल्डिहाइड से α-हाइड्रॉक्सीफेनिलऐसीटिक अम्ल
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9. बेन्जोइक अम्ल से m-नाइट्रोबेन्जिल ऐल्कोहॉल
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प्रश्न16.
निम्नलिखित पदों (शब्दों) का वर्णन कीजिए –

  1. ऐसीटिलिनन अथवा फ्रीडेल-क्राफ्ट ऐसीटिलीकरण
  2. कैनिजारो अभिक्रिया
  3. क्रॉस ऐल्डोल संघनन
  4. विकार्बोक्सिलन।

उत्तर
1. ऐसीटिलिनन (Acetylation) – ऐल्कोहॉलों, फीनॉलों अथवा ऐमीनों के एक सक्रिय हाइड्रोजन का एक ऐसिल (-RCO) समूह के साथ प्रतिस्थापन, जिसके फलस्वरूप संगत एस्टर या ऐमाइड बनते हैं, ऐसीटिलिनन कहलाता है। यह प्रतिस्थापन किसी क्षारक; जैसे- पिरिडीन अथवा डाइमेथिलऐनिलीन की उपस्थिति में अम्ल क्लोराइड अथवा अम्ल ऐनहाइड्राइड का प्रयोग करके कराया जाता है।
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2. कैनिजारो अभिक्रिया (Cannizzaro’s Reaction) – ऐल्डिहाइड, जिनमें α-हाइड्रोजन परमाणु नहीं होते, सान्द्र क्षार की उपस्थिति में स्वऑक्सीकरण व अपचयन (असमानुपातन) की अभिक्रिया प्रदर्शित करते हैं। इस अभिक्रिया में ऐल्डिहाइड का एक अणु ऐल्कोहॉल में अपचयित होता है, जबकि दूसरा अणु कार्बोक्सिलिक अम्ल के लवण में ऑक्सीकृत हो जाता है।
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इन अभिक्रियाओं में ऐल्डिहाइड असमानुपातन दर्शाता है। इसका तात्पर्य है कि ऐल्डिहाइड का एक अणु कार्बोक्सिलिक अम्ल में ऑक्सीकृत हो जाता है तथा अन्य ऐल्कोहॉल में अपचयित हो जाता है। कीटोन ये अभिक्रिया नहीं देते हैं।
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3. क्रॉस ऐल्डोल संघनन (Cross Aldol Condensation) – जब दो भिन्न-भिन्न ऐल्डिहाइड और/या कीटोन के मध्य ऐल्डोल संघनन होता है तो उसे क्रॉस ऐल्डोल संघनन कहते हैं। यदि प्रत्येक में g-हाइड्रोजन हो तो ये चारे उत्पादों का मिश्रण देते हैं। इसे निम्नलिखित एथेनल व प्रोपेनल के मिश्रण की ऐल्डोल संघनन अभिक्रिया द्वारा समझाया गया है –
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क्रॉस ऐल्डोल संघनन में कीटोन भी एक घटक के रूप में प्रयुक्त हो सकते हैं।
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4. विकार्बोक्सिलन (Decarboxylation) – कार्बोक्सिलिक अम्लों के सोडियम लवणों को सोडलाइम (NaOH तथा CaO, 3 : 1 के अनुपात में) के साथ गर्म करने पर कार्बन डाइऑक्साइड निकल जाती है एवं हाइड्रोकार्बन प्राप्त होते हैं। यह अभिक्रिया विकार्बोक्सिलने (decarboxylation) कहलाती है।
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कार्बोक्सिलिक अम्लों के क्षार धातु लवणों के जलीय विलयन का विद्युत अपघटन द्वारा विकार्बोक्सिलन हो जाता है तथा ऐसे हाइड्रोकार्बन निर्मित होते हैं जिसमें कार्बन परमाणुओं की संख्या, अम्ल के ऐल्किल समूह में उपस्थित कार्बन परमाणुओं की संख्या से दुगुनी होती है। इस अभिक्रिया को कोल्बे विद्युत-अपघटन (Kolbe electrolysis) कहते हैं।

प्रश्न17.
निम्नलिखित प्रत्येक संश्लेषण में छूटे हुए प्रारम्भिक पदार्थ, अभिकर्मक अथवा उत्पादों को लिखकर पूर्ण कीजिए –
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उत्तर
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(iii) H2NNHCONH2 का अधिक नाभिकरागी NH2NH भाग अभिक्रिया करके सेमीकाबेंजोन बनाता है।
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(iv)
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(v) केवल ऐल्डिहाइड ही टॉलेन अभिकर्मक द्वारा ऑक्सीकृत होते हैं।
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(vi) सायनोहाइड्रिन निर्माण ऐल्डिहाइड समूह पर होता है।
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(viii) केवल कीटो समूह NaBH4 द्वारा अपचयित होता है।
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प्रश्न18.
निम्नलिखित के सम्भावित कारण दीजिए –
(i) साइक्लोहेक्सेनोन अच्छी लब्धि में सायनोहाइड्रिन बनाता है, परन्तु 2,2,6- ट्राइमेथिल साइक्लोहेक्सेनोन ऐसा नहीं करता।
(ii) सेमीकाबेंजाइड में दो -NH2 समूह होते हैं, परन्तु केवल एक -NH2 समूह ही सेमीकाबेंजोन विरचन में प्रयुक्त होता है।
(iii) कार्बोक्सिलिक अम्ल एवं ऐल्कोहॉल से अम्ल उत्प्रेरक की उपस्थिति में एस्टर के विरचन के समय जल अथवा एस्टर जैसे ही निर्मित होता है, उसको निकाल दिया जाना चाहिए।
उत्तर
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α-स्थानों पर तीन मेथिल समूहों की उपस्थिति के कारण CN आयनों का नाभिकस्नेही आक्रमण नहीं होता है। साइक्लोहेक्सेन में यह स्टेरिक अवरोध अनुपस्थित होता है। अत: CN आयनों का नाभिकस्नेही आक्रमण शीघ्रता से होता है। अत: साइक्लोहेक्सेनोन सायनोहाइडूिन अच्छी मात्रा में प्राप्त होता है।
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सेमीकाबेंजाइड में दो -NH2 समूह होते हैं, लेकिन इनमें से एक (ऊपर प्रदर्शित) अनुनाद में भाग लेता है जिसके परिणामस्वरूप इस NH2 समूह पर इलेक्ट्रॉन घनत्व घट जाता है। अतः यह नाभिकस्नेही नहीं है, लेकिन दूसरे NH2 समूह पर एकाकी युग्म इलेक्ट्रॉन अनुनाद में भाग नहीं लेता है। अत: ऐल्डिहाइडों एवं कीटोनों के C == O समूह पर आक्रमण के लिए उपलब्ध होता है।

(iii) कार्बोक्सिलिक अम्ल तथा ऐल्कोहॉल से अम्ल की उपस्थिति में एस्टरों के निर्माण की प्रक्रिया उत्क्रमणीय अभिक्रिया होती है।
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साम्यावस्था को अग्र दिशा (forward direction) में विस्थापित करने के लिए जल या एस्टर को निर्मित होते ही निष्कासित कर लिया जाना चाहिए।

प्रश्न19.
एक कार्बनिक यौगिक में 69.77% कार्बन, 11.63% हाइड्रोजन तथा शेष ऑक्सीजन है। यौगिक का आण्विक द्रव्यमान 86 है। यह टॉलेन अभिकर्मक को अपचयित नहीं करता, परन्तु सोडियम हाइड्रोजनसल्फाइट के साथ योगज यौगिक देता है तथा आयोडोफॉर्म परीक्षण देता है। प्रबल ऑक्सीकरण पर एथेनोइक तथा प्रोपेनोइक अम्ल देता है। यौगिक की सम्भावित संरचना लिखिए। (2010)
हल
(क) यौगिक का अणुसूत्र ज्ञात करना –
कार्बन का प्रतिशत = 69.77%
हाइड्रोजन का प्रतिशत = 11.63%
∴ ऑक्सीजन का प्रतिशत = 100 – (69.77 + 11.63)
= 18.6%
C : H : O = [latex]\frac { 69.77 }{ 12 } :\frac { 11.6.3 }{ 1 } :\frac { 18.6 }{ 16 }[/latex]
=5.81 : 11.63 : 1.16
∴ सरल अनुपात = 5 : 10 : 1
दिए गए यौगिक का मूलानुपाती सूत्र = C5H10O
मूलानुपाती सूत्र द्रव्यमान = 5 × 12 + 10 × 1 + 1 × 16 = 86
आण्विक द्रव्यमान = 86 (दिया है)
अणुसूत्र = C5H10O × [latex]\frac { 86 }{ 86 } [/latex] = C5H10O
इस प्रकार दिए गए यौगिक का अणुसूत्र = C5H10O

(ख) यौगिक की संरचना ज्ञात करना

  1. चूंकि दिया गया यौगिक सोडियम हाइड्रोजन सल्फाइट के साथ योगज यौगिक बनाता है, इसलिए यह एक ऐल्डिहाइड अथवा कीटोन होना चाहिए।
  2. चूंकि यौगिक टॉलेन अभिकर्मक को अपचयित नहीं करता, इसलिए यह ऐल्डिहाइड नहीं हो सकता। अतः यह कीटोन होना चाहिए।
  3. चूँकि यौगिक आयोडोफॉर्म परीक्षण देता है, इसलिए दिया गया यौगिक मेथिल कीटोन है।
  4. चूँकि दिया गया यौगिक प्रबल ऑक्सीकरण पर एथेनोइक अम्ले तथा प्रोपेनोइक अम्ल का मिश्रण देता है, इसलिए मेथिल कीटोन पेन्टेन-2-ओन है। इसकी संरचना इस प्रकार है –
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(ग) सम्मिलित अभिक्रियाओं का विवरण
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प्रश्न 20.
यद्यपि फीनॉक्साइड आयन की अनुनादी संरचनाएँ कार्बोक्सिलेट आयन की तुलना में अधिक हैं, परन्तु कार्बोक्सिलिक अम्ल फीनॉल की अपेक्षा प्रबल अम्ल है, क्यों?
उत्तर
काबॉक्सिलेट आयन में ऋणावेश दो ऑक्सीजन परमाणुओं पर विस्थानित होता है, जबकि फीनॉक्साइड आयन में ऋणावेश एक ऑक्सीजन परमाणु पर ही विस्थानित होता है, इसलिए फोनॉक्साइड आयन की तुलना में कार्बोक्सिलेट आयन अधिक स्थायी होता है, फलस्वरूप कार्बोक्सिलिक अम्ल फीनॉल की अपेक्षा प्रबल अम्ल होते हैं।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्न में से कौन जलीय KOH को गर्म करने पर ऐसीटेल्डिहाइड बनाता है ?
(i) CH3CH2Cl
(ii) CH3Cl,CH2Cl
(iii) CH3CHCl2
(iv) CH3COCl
उत्तर
(iii) CH3CHCl2

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन 50% सोडियम हाइड्रॉक्साइड विलयन के साथ क्रिया करके संगत ऐल्कोहॉल तथा अम्ल देता है?
(i) ब्यूटेनॉल
(ii) बेन्जेल्डिहाइड
(iii) फीनॉल
(iv) बेन्जोइक अम्ल
उत्तर
(ii) बेन्जेल्डिहाइड

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन जलीय सोडियम हाइड्रॉक्साइड विलयन के साथ संगत ऐल्कोहॉल तथा अम्ल देगा?
(i) C6H5CHO
(ii) CH3CH2CH2CHO
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 88
(iv) C6H5CH2CHO
उत्तर
(i) C6H5CHO

प्रश्न 4.
निम्न में से कौन-सा यौगिक कैनिजारो अभिक्रिया नहीं देता है? (2017)
(i) HCHO
(ii) CH3CH2CHO
(iii) CCl3CHO
(iv) (CH3)3C .CHO
उत्तर
(ii) CH3CH2CHO

प्रश्न 5.
ऐसीटिल ब्रोमाइड CH3Mgl के आधिक्य तथा NH4Cl के संतृप्त विलयन से क्रिया करके देता है –
(i) 2-मेथिल प्रोपेन-2-ऑल ।
(ii) ऐसीटैमाइड
(iii) ऐसीटोन
(iv) ऐसीटिल आयोडाइड
उत्तर
(i) 2-मेथिल प्रोपेन-2-ऑल

प्रश्न 6.
C6H5COCl का IUPAC नाम है –
(i) क्लोरोबेन्जिले कीटोन
(ii) बेन्जीन क्लोरोकीटोन
(iii) बेन्जीन कार्बोनिल क्लोराइड
(iv) क्लोरोफेनिल कीटोन
उत्तर
(i) क्लोरोबेन्जिल कीटोन

प्रश्न 7.
एक प्रबल क्षार किससे -हाइड्रोजन कम कर सकता है?
(i) कीटोन
(ii) ऐल्केन
(iii) ऐल्कीन
(iv) ऐमीन
उत्तर
(i) कीटोन

प्रश्न 8.
वह अभिकर्मक जिसके साथ ऐसीटेल्डिहाइड तथा ऐसीटोन दोनों आसानी से अभिक्रिया करते हैं, है – (2017)
(i) फेहलिंग अभिकर्मक
(ii) ग्रिगनार्ड अभिकर्मक
(iii) शिफ अभिकर्मक
(iv) टॉलेन अभिकर्मक
उत्तर
(ii) ग्रिगनार्ड अभिकर्मक

प्रश्न 9.
ऐल्डोल संघनन में निर्मित उत्पाद है –
(i) α, β-असंतृप्त ईथर
(ii) α, β-हाइड्रॉक्सी अम्ल
(iii)α, β-हाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड तथा कीटोन
(iv) एक α-हाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड या कीटोन
उत्तर
(iii) α β-हाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड तथा कीटोन

प्रश्न 10.
एक द्रव को एथेनॉल में मिश्रित करके एक बूंद सान्द्र H So, मिलाया गया। फलों जैसी गंध वाला एक यौगिक निर्मित हुआ। द्रव था (2017)
(i) HCHO
(ii) CH3COCH3
(iii) CH3COOH
(iv) CH3OH
उत्तर
(iii) CH3COOH

प्रश्न11.
प्रोपियोनिक अम्ल Brg/P के साथ डाइब्रोमो उत्पाद देता है। इसकी संरचना होगी –
(i) HCBr2 – CH2COOH
(ii) CH2Br-CH2-COBr
(iii) CH3-CBr2-COOH
(iv) CH2Br-CHBr-COOH
उत्तर
(iii) CH3-CBr2-COOH

प्रश्न 12.
ऐसीटिक अम्ल की हाइड्रोजोइक अम्ल के साथ सान्द्र H2SO4 की उपस्थिति में 0°C पर क्रिया कराने पर बनता है – (2017)
(i) मेथेन
(ii) मेथिल ऐमीन
(iii) मेथिल सायनाइड
(iv) ऐथिल ऐमीन
उत्तर
(ii) मेथिल ऐमीन

प्रश्न 13.
ऐसीटिक अम्ल की क्रिया डाइएजोमेथेन से कराने पर बनने वाला यौगिक है – (2017)
(i) मेथिल ऐसीटेट
(ii) ऐथिल ऐसीटेट
(iii) मेथेन
(iv) मेथिल ऐमीन
उत्तर
(i) मेथिल ऐसीटेट

प्रश्न 14.
निम्न में कौन फेहलिंग विलयन का अपचयन नहीं कर सकता है? (2017)
(i) फॉर्मिक अम्ल
(ii) ऐसीटिक अम्ल
(iii) फॉर्मेल्डिहाइड
(iv) ऐसीटेल्डिहाइड
उत्तर
(ii) ऐसीटिक अम्ल

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऐलिफैटिक ऐल्डिहाइड स्थान समावयवता प्रदर्शित नहीं करते, क्यों?
उत्तर
ऐलिफैटिक ऐल्डिहाइडों में -CHO समूह हमेशा सिरे पर होता है, अतः ये स्थान समावयवता प्रदर्शित नहीं करते हैं।

प्रश्न 2.
ऐसिड क्लोराइडों को संगत ऐल्डिहाइडों में परिवर्तन के लिए अभिक्रिया का नाम तथा प्रयुक्त अभिकर्मक लिखिए।
उत्तर
रोजेनमुण्ड अभिक्रिया। अभिकर्मक Pd/BaSO4 द्वारा समर्थित तथा सल्फर या क्विनोलीन द्वारा आंशिक विषाक्त में हाइड्रोजन
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 89

प्रश्न 3.
ऐल्डिहाइडों के क्वथनांक जनक ऐल्केनों तथा संगत ऐल्कोहॉलों के मध्यवर्ती होते हैं। समझाइए।
उत्तर
ऐल्डिहाइडों का अणुभार जनक ऐल्केनों से अधिक होता है तथा ऐल्डिहाइडों में अधिक ध्रुवता के कारण ये जनक ऐल्केनों से अधिक क्वथनांक वाले होते हैं। दूसरी तरफ, ऐल्डिहाइड ऐल्कोहॉलों के समान संयुग्मित द्रव नहीं होते हैं, अत: इनके क्वथनांक संगत ऐल्कोहॉलों से निम्न होते हैं।

प्रश्न 4.
यूरोट्रोपीन पर टिप्पणी लिखिए। (2010)
उत्तर
फॉर्मेल्डिहाइड अमोनिया से अभिक्रिया करके हेक्सा मेथिलीन टेट्राऐमीन बनाती है जिसे हेक्सामीन या यूरोट्रोपीन कहते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 90

प्रश्न 5.
एक ऐल्डिहाइड का नाम लिखिए जो फेहलिंग विलयन परीक्षण नहीं देता है।
उत्तर
बेन्जेल्डिहाइड।

प्रश्न 6.
क्या होता है जब फॉर्मेल्डिहाइड की अभिक्रिया सान्द्र NaOH विलयन से कराते हैं ?
उत्तर
मेथिल ऐल्कोहॉल तथा सोडियम फॉर्मेट बनता है। यह कैनिजारो अभिक्रिया है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित को HCN के प्रति बढ़ती क्रियाशीलता के क्रम में लिखिए –
CH3CHO, CH3COCH3, HCHO, C2H5COCH3
उत्तर
C2H5COCH3 < CH3COCH3 < CH3CHO < HCHO

प्रश्न 8.
किस प्रकार के ऐल्डिहाइड कैनिजारो अभिक्रिया देते हैं?
उत्तर
ऐल्डिहाइड जिनमें 2-हाइड्रोजन नहीं होती, जैसे-फॉर्मेल्डिहाइड तथा बेन्जेल्डिहाइड कैनिजारो अभिक्रिया देते हैं।

प्रश्न 9.
फेहलिंग विलयन क्या होता है?
उत्तर
समान आयतन में CuSO4 विलयन (फेहलिंग A) तथा रोशले लवण के क्षारीय विलयन (फेहलिंग B) का मिश्रण फेहलिंग विलयन कहलाता है।

प्रश्न 10.
ऐल्डिहाइड समूह की पहचान के लिए फेहलिंग विलयन परीक्षण दीजिए।
उत्तर
RCHO + 2Cu2+ + 5OH → RCO0 + Cu2O + 3H2O

प्रश्न 11.
एथेनल को HI तथा लाल P के साथ उच्च दाब पर गर्म करने पर होने वाली क्रिया का समीकरण लिखिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 91

प्रश्न 12.
उस उत्पाद की संरचना तथा नाम लिखिए जब ओजोन एथिलीन के साथ क्रिया करती है तथा अन्तिम उत्पाद को जल अपघटित करते हैं।
उत्तर
फॉर्मेल्डिहाइड (मेथेनल), HCHO.

प्रश्न 13.
आप ऐसीटेल्डिहाइड से 3-हाइड्रॉक्सीब्यूटेनल किस प्रकार प्राप्त करेंगे?
उत्तर
ऐल्डोल संघनन द्वारा।

प्रश्न 14.
क्या होता है जब ऐसीटेल्डिहाइड को H2SO4 की उपस्थिति में K2Cr2O7 से अभिकृत कराते हैं?
उत्तर
ऐसीटेल्डिहाइड ऐसीटिक अम्ल में ऑक्सीकृत हो जाता है।

प्रश्न 15.
फॉर्मेल्डिहाइड ऐल्डोल संघनन में भाग क्यों नहीं लेता है?
उत्तर
ऐल्डोल संघनन में किसी विशेष कार्बोनिल यौगिक के एक अणु से जनित कार्बोधनायन का नाभिकस्नेही आक्रमण दूसरे अणु पर होता है। इसके लिए कार्बोनिल यौगिक में कम-से-कम एक α-हाइड्रोजन उपस्थित होना चाहिए। चूंकि फॉर्मेल्डिहाइड में α-हाइड्रोजन उपस्थित नहीं होता। अतः यह ऐल्डोल संघनन में भाग नहीं लेता, लेकिन यह α-हाइड्रोजन परमाणु युक्त अन्य कार्बोनिल यौगिक के साथ क्रॉस ऐल्डोल संघनन में भाग ले सकता है। उदाहरणार्थ- फॉर्मेल्डिहाइड तथा ऐसीटेल्डिहाइड।

प्रश्न 16.
फॉर्मेलिन क्या है? इसके उपयोग लिखिए। (2011)
उत्तर
फॉर्मेलिन, फॉर्मेल्डिहाइड का जलीय विलयन होता है जिसमें फॉर्मेल्डिहाइड की अधिकतम सान्द्रता 40% तक होती है। यह विलयन मृत जीवों के परिरक्षण में प्रयुक्त होता है।

प्रश्न 17.
एथेनल से ऐसीटोन कैसे प्राप्त करते हैं?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 92

प्रश्न18.
क्या होता है जब कैल्सियम ऐसीटेट को शुष्क आसवित करते हैं ?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 93

प्रश्न 19.
कौन-सा यौगिक बनता है जब बेन्जीन को निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में CH3COCl के साथ अभिकृत कराते हैं?
उत्तर
ऐसीटोफीनोन।

प्रश्न 20.
कीटोन ऐल्डिहाइडों की तुलना में कम सक्रिय होते हैं, क्यों?
उत्तर
कीटोनों में दो ऐल्किल समूहों के धनात्मक प्रेरणिक प्रभाव (+I प्रभाव) के कारण कार्बन परमाणु कम धनात्मक हो जाता है तथा इन्हें ऐल्डिहाइडों से कम सक्रिय बनाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 94

प्रश्न 21.
कीटोनों के क्वथनांक समावयवी ऐल्डिहाइडों से उच्च होते हैं। कारण बताइए।
उत्तर
कीटोनों में दो इलेक्ट्रॉन विमोचक ऐल्किल समूह उपस्थित होते हैं जबकि ऐल्डिहाइडों में एक समूह उपस्थित होता है जिसके परिणामस्वरूप कीटोनों में ऐल्किल समूह ऐल्डिहाइडों से अधिक ध्रुवीय होता है। अत: कीटोनों के क्वथनांक समावयवी ऐल्डिहाइडों से उच्च होते हैं।

प्रश्न 22.
ऐल्डिहाइड तथा कीटोनों के हाइड्रोजोनों का निर्माण प्रबल अम्लीय माध्यम में नहीं किया जा सकता, क्यों?
उत्तर
हाइड्राजोनों को निर्माण कार्बोनिल यौगिकों की हाइड्राजीन से क्रिया द्वारा होता है जो कि नाभिकस्नेही की तरह कार्य करता है। प्रबल अम्लीय माध्यम में हाइड्राजीन प्रोटॉनीकृत हो जाती है। अत: यह नाभिकस्नेही के समान कार्य करने के योग्य नहीं रहती जिसके परिणामस्वरूप ऐल्डिहाइड तथा कीटोनों को प्रबल अम्लीय माध्यमों में नहीं बनाया जा सकता।

प्रश्न 23.
किस प्रकार के ऐल्डिहाइड एवं कीटोन ऐल्डोल संघनन प्रदर्शित करते हैं?
उत्तर
वे ऐल्डिहाइड तथा कीटोन जिनमें α-हाइड्रोजन होती है।

प्रश्न 24.
किस प्रकार के कीटोन आयोडोफॉर्म अभिक्रिया देते हैं ?
उत्तर
कीटोन जिनमें CH3CO- समूह होता है।

प्रश्न 25.
डाइ t-ब्यूटिल कीटोन NaHSO3 एडक्ट नहीं देता जबकि ऐसीटोन देता है, क्यों?
उत्तर
बड़े t-ब्यूटिल समूह के कारण उत्पन्न स्टेरिक अवरोध के कारण बाइसल्फेट आयन कार्बोनिल समूह के योग को प्रेरित नहीं करते हैं।

प्रश्न 26.
आप ऐसीटोन को एथेनोइक ऐसिड में कैसे बदलोगे?
उत्तर
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प्रश्न 27.
क्लीमेन्स अपचयन को उदाहरण देते हुए समझाइए। (2014)
उत्तर
ऐल्डिहाइड या कीटोन का Zn/C2H5OH/HCl के द्वारा अपचयन कराने पर ऐल्केन बनता है। इसे क्लीमेन्स अपचयन कहते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 96

प्रश्न 28.
कार्बोनिल यौगिक ऐल्कोहॉलों से अधिक ध्रुवीय होते हैं जबकि C तथा O परमाणु के मध्य विद्युत्-ऋणात्मकता का अन्तर H तथा O परमाणुओं से कम होता है। समझाइए।
उत्तर
कार्बोनिल समूह UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 97 में π इलेक्ट्रॉन युग्म ढीला बँधा रहता है और आसानी से ऑक्सीजन परमाणु की ओर स्थानान्तरित हो जाता है। ऐसा ऐल्कोहॉल समूह (O-H) में नहीं होता। अतः कार्बोनिल यौगिक अधिक ध्रुवीय होते हैं और इनके द्विध्रुव आघूर्णमान (2.3 से 2.80) ऐल्कोहॉलों (1.6-1.8 D) से उच्च होते हैं।

प्रश्न 29.
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 98
उत्तर
हेक्स-2-ईन-4-आइनोइक अम्ल।

प्रश्न 30.
आप बेन्जीन को बेन्जोइक अम्ल में कैसे परिवर्तित करेंगे? (2018)
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 99

प्रश्न 31.
बेन्जोइक अम्ल ऐसीटिक अम्ल से प्रबल अम्ल क्यों होता है?
उत्तर
बेन्जोइक अम्ल का K, मान (6.3 × 10-5) ऐसीटिक अम्ल के K मान (1.75 × 10-5) से अधिक होता है क्योंकि-I प्रभाव युक्त C6H5 समूह बेन्जोइक अम्ल से H+ का विमोचन सुलभ बनाता है जबकि + I प्रभाव युक्त CH3 समूह इसे रोके रखता है।

प्रश्न 32.
आप ऐसीटिक अम्ल का मेथिलेमीन में परिवर्तन कैसे करेंगे?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 100

प्रश्न 33.
बेन्जेल्डिहाइड तथा बेन्जोइक अम्ल के मध्य विभेद के लिए रासायनिक परीक्षण दीजिए।
उत्तर
बेन्जोइक अम्ल सोडियम बाइकार्बोनेट के साथ गर्म करने पर तेजी से झाग देता है जबकि बेन्जेल्डिहाइड क्रिया नहीं करता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 101

प्रश्न 34.
आप ऐसीटिक अम्ल को ऐसीटेल्डिहाइड में किस प्रकार परिवर्तित करेंगे?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 102

प्रश्न 35.
निम्नलिखित अभिक्रिया को पूर्ण कीजिए – (2013)
CH2 = CH2 + O3 [latex]\underrightarrow { { CCl }_{ 4 } } [/latex] A [latex]\underrightarrow { { Zn+H }_{ 2 }O } [/latex] B
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 103

प्रश्न 36.
उदाहरण द्वारा हैल-वोल्हार्ड-जेलिन्सकी अभिक्रिया समझाइए। (2017)
उत्तर
लाल फॉस्फोरस या आयोडीन उत्प्रेरक की अल्प मात्रा की उपस्थिति में उच्च ताप पर मोनोकार्बोक्सिलिक अम्ल की क्लोरीन से अभिक्रिया कराने पर 2-हैलोजने अम्ल बनते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 104

प्रश्न 37.
ऐसीटिक अम्ल को लाल P तथा Cl2 की उपस्थिति में हैलोजनीकृत किया जा सकता है। लेकिन फॉर्मिक अम्ल को नहीं, क्यों?
उत्तर
फॉर्मिक अम्ल में α-हाइड्रोजन नहीं पाया जाता है। अत: यह हैलोजनीकृत (halogenated) नहीं होता है जबकि ऐसीटिक अम्ल में α-कार्बन परमाणु होता है तथा हैलोजनीकरण -कार्बन परमाणु पर होता है।

प्रश्न 38.
किसका क्वथनांक उच्च होगा-ब्यूटेनोइक अम्ल या एथिल ऐसीटेट ? समझाइए।
उत्तर
दोनों यौगिक समावयवी हैं तथा इनके अणुभार समान हैं। ब्यूटेनोइक अम्ल में OH समूह होता है। अतः यह हाइड्रोजन आबन्ध बनाने में सक्षम होता है। एथिल ऐसीटेट में हाइड्रोजन आबन्ध नहीं पाया जाता है। ब्यूटेनोइक अम्ल का क्वथनांक उच्च होता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 105

प्रश्न 39.
टॉलेन अभिकर्मक क्या होता है?
उत्तर
टॉलेन अभिकर्मक सिल्वर नाइट्रेट का अमोनीकृत विलयन होता है।

प्रश्न 40.
फॉर्मिक अम्ल टॉलेन अभिकर्मक को अपचयित करता है, समझाइए।
उत्तर
फॉर्मिक अम्ल में मुक्त ऐल्डिहाइड समूह होता है जो शीघ्रता से ऑक्सीकृत होता है, अत: यह टॉलेन अभिकर्मक (अमोनीकृत सिल्वर नाइट्रेट विलयन) को रजत दर्पण (silver mirror) में अपचयित करता है।

प्रश्न 41.
फॉर्मिक अम्ल गर्म करने पर ऐनहाइड्राइड क्यों नहीं बनाता है?
उत्तर
गर्म करने पर फॉर्मिक अम्ल H2O का एक अणु खोकर CO में निर्जलीकृत (dehydrated) हो जाता है, अत: यह गर्म करने पर ऐनहाइड्राइड नहीं बनाता है।
HCOOH [latex]\underrightarrow { \triangle } [/latex] H2O + CO ↑

प्रश्न 42.
श्मिट अभिक्रिया द्वारा प्राथमिक ऐमीन कैसे बनायी जाती है? रासायनिक समीकरण भी दीजिए। (2014, 18)
उत्तर
कार्बोक्सिलिक अम्ल को हाइड्राजोइक अम्ल (N3H) के साथ सान्द्र H2SO4 की उपस्थिति में गर्म करने पर प्राथमिक ऐमीन बनती है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 106

प्रश्न43.
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 107
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 108

प्रश्न 44.
रीमर-टीमेन अभिक्रिया को समीकरण सहित लिखिए। (2014, 15, 16)
उत्तर
फीनॉल के क्षारीय विलयन को CCl4 के साथ 60 – 70°C पर reflux करने के पश्चात् मिश्रण को HCl द्वारा अम्लीय करने पर o-हाइड्रॉक्सी बेन्जोइक ऐसिड प्राप्त होता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 109

प्रश्न 45.
आप बेन्जोइक अम्ल को बेन्जामाइड में कैसे परिवर्तित करेंगे?
उत्तर
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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक एस्टर का अणुभार 102 है। इसका जलीय अपघटन करने पर एक क्षारकीय अम्ल तथा एक ऐल्कोहॉल प्राप्त होता है। यदि अम्ल का 0.185 ग्राम 0.1 NNaOH के 25 mL को पूर्णतया उदासीन करता है, तो बने हुए अम्ल, ऐल्कोहॉल तथा एस्टर के संरचना सूत्र लिखिए। (2015)
हल
माना एस्टर RCOOR’ है
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 111
जहाँ, R = R’ या R≠ R’
0.185 ग्राम अम्ल = 25 mL 0.1 N NaOH ≡ 25 mL N NaOH
∵ 1 N NaOH के 2.5 mL उदासीन करता है = 0.185 ग्राम अम्ल को
∵ 1 N NaOH के 1000 mL उदासीन करती है = [latex]\frac { 0.185\times 1000 }{ 2.5 } [/latex] = 74
अतः अम्ल का तुल्यांकी भार = 74
अम्ल का अणुभार = 74
RCOOH का अणुभार = 74
R + 12 + 32 + 1 = 74
R का अणुभार = 74 – 45 = 29
अत: R, C2H5 एथिल समूह है। अम्ल का अणुसूत्र C2H3COOH है। एस्टर का अणुभार = 102
RCOOR’ का अणुभार = 102
29 + 12 + 32 + R’ = 102
R’ = 29
अत: R = R’ है, तो एस्टर C2H5COOC2H5 है और ऐल्कोहॉल का अणुसूत्र C2H5OH है।
अम्ल = C2H5COOH, ऐल्कोहॉल = C2H5OH
एस्टर = C2H5COOC2H5

प्रश्न 2.
विशिष्ट गन्ध वाला कार्बनिक यौगिक A, सोडियम हाइड्रॉक्साइड के साथ क्रिया करके दो यौगिक B तथा C बनाता है। यौगिक B का अणुसूत्र C7H8O है। इसका ऑक्सीकरण करने पर पुनः यौगिक A बनता है। यौगिक C को सोडालाइम के साथ गर्म करने पर बेंजीन प्राप्त होती है। A, B तथा C कार्बनिक यौगिकों की संरचनाएँ लिखिए। सम्बन्धित अभिक्रियाओं के समीकरण भी लिखिए। (2014)
उत्तर
यौगिक A की C6H5CHO होने की सम्भावना लगती है। प्रश्नानुसार यौगिक A की NaOH से क्रिया कराने पर यौगिक B तथा C बनता है। यौगिक B का अणुसूत्र C7H8O है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 112
यौगिक B C6H5CH2OH के ऑक्सीकरण से पुनः यौगिक A C6H5CHO प्राप्त होता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 113
यौगिक C, C6H5COONa को सोडा लाइम के साथ गर्म करने पर बेंजीन बनती है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 114
अत: यौगिक
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 115
B= C6H5CH2OH (बेन्जिल ऐल्कोहॉल), C= सोडियम बेन्जोएट

प्रश्न 3.
एक कार्बनिक यौगिक A जिसका अणुसूत्र C5H10 है ब्रोमीन जल को रंगहीन करता है। यौगिक A अपचयन करने पर 2 मेथिल ब्यूटेन और ओजोनीकरण करने पर ऐथेनल तथा प्रोपेनोन देता है। यौगिक A की पहचान कीजिए। सम्बन्धित अभिक्रियाओं के समीकरण दीजिए। (2014)
उत्तर
यौगिक के अणुसूत्र C5H10 से इसके UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 116 होने की सम्भावना लगती है। चूंकि ओजोनीकरण के उपरान्त एथेनल तथा प्रोपेनोन बनता है तथा यह ब्रोमीन जल को रंगहीन करता है। इससे यौगिक की असंतृप्त होने की पुष्टि होती है।
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यौगिक के अपचयन से 2-मेथिल ब्यूटेन बनता है।
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यौगिक A के ओजोनीकरण से एथेनल तथा प्रोपेनोन बनता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 119
अतः यौगिक A 3-मेथिल-1-ब्यूटीन है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित यौगिकों को अम्लीयता के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित कीजिए तथा अपने उत्तर को समझाइए –
(a) ब्यूटेनोइक अम्ल
(b) 2-क्लोरोब्यूटेनोइक अम्ल
(c) 3-क्लोरोब्यूटेनोइक अम्ल
उत्तर
अम्लीयता का क्रम निम्नवत् है –
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 12 Aldehydes Ketones and Carboxylic Acids image 120
2-क्लोरो प्रतिस्थापी प्रेरणिक प्रभाव द्वारा ब्यूटेनोइक अम्ल की अम्लीयता बढ़ाता है। 3-क्लोरो प्रतिस्थापी अम्लीयता कम मात्रा में बढ़ाता है, क्योंकि C-Cl आबन्ध कार्बोक्सिल समूह से दूर हो जाता है। दूरी बढ़ने से प्रेरणिक प्रभाव घटता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रयोगशाला में फॉर्मेल्डिहाइड बनाने की विधि का सचित्र वर्णन कीजिए। इसकी (i) सान्द्र NaOH घोल तथा (ii) अमोनिया के साथ होने वाली क्रियाओं को समीकरण सहित समझाइए। (2010, 11, 16, 17)
उत्तर
प्रयोगशाला में फॉर्मेल्डिहाइड बनाना – मेथिल ऐल्कोहॉल के उत्प्रेरित ऑक्सीकरण द्वारा प्रयोगशाला में फॉर्मेल्डिहाइड (HCHO) बनाया जाता है।
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विधि
– एक फ्लास्क में मेथिल ऐल्कोहॉल लेकर वायु भेजने के लिए तथा वाष्प निकलने के लिए दो नलियाँ लगाई जाती हैं। वायु निकलने वाली नली को प्लेटिनमयुक्त ऐस्बेस्टॉस से भरी एक नली से जोड़ दिया जाता है, जिसमें से एक अन्य नली जल भरे चूषण पम्पयुक्त फ्लास्क में लगा दी जाती है। मेथिल ऐल्कोहॉल तथा प्लेटिनमयुक्त ऐस्बेस्टॉस को गर्म करने के लिए दो अलग-अलग बर्नर लगा दिए जाते हैं।
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प्लेटिनमयुक्त ऐस्बेस्टॉस से भरी नली को लाल तप्त होने तक गर्म करके चूषण पम्प द्वारा फ्लास्क की वायु निकाल देते हैं। मेथिल ऐल्कोहॉलयुक्त फ्लास्क में वायु प्रवाहित करते हुए 250°C से 300°C ताप के बीच गर्म करने पर मेथिल ऐल्कोहॉल की वाष्प Pt के सम्पर्क में आती है, जिससे इसके ऑक्सीकरण से फॉर्मेल्डिहाइड गैस बनती है, जो ग्राही के जल में विलेय होता है। फॉर्मेल्डिहाइड गैसयुक्त जलीय विलयन को फॉर्मेलिन कहते हैं। इसमें 40% फॉर्मेल्डिहाइड तथा शेष जल होता है।

(i) सान्द्र NaOH घोल से अभिक्रिया – फॉर्मेल्डिहाइड की सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) के सान्द्र विलयन से क्रिया कराने पर मेथिल ऐल्कोहॉल और सोडियम फॉर्मेट बनता है।
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यह अभिक्रिया कैनिजारो अभिक्रिया कहलाती है।

(ii) अमोनिया से अभिक्रिया – फॉर्मेल्डिहाइड सान्द्र अमोनिया के साथ अभिक्रिया करके हेक्सामेथिलीन टेट्राऐमीन बनाती है जिसे हेक्सामीन या यूरोट्रोपिन कहते हैं।
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प्रश्न 2.
प्रयोगशाला में शुद्ध ऐसीटेल्डिहाइड बनाने की विधि का सचित्र वर्णन कीजिए। रासायनिक समीकरण भी दीजिए। इसके कुछ प्रमुख रासायनिक गुण भी दीजिए। (2009, 11, 13, 15, 18)
उत्तर
एथिल ऐल्कोहॉल का K2Cr2O7 तथा तनु H2SO4 द्वारा ऑक्सीकरण कराकर प्रयोगशाला में ऐसीटेल्डिहाइड बनाया जाता है।
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विधि – प्रयुक्त होने वाला उपकरण चित्रानुसार सजाया जाता है। गोल पेंदी के फ्लास्क में K2Cr2O7 चूर्ण (50 ग्राम) तथा जल (200 मिली) लेकर उसमें बिन्दु कीप द्वारा ऐल्कोहॉल (24 मिली) तथा तनु H2SO4 (60 मिली) का मिश्रण बूंद-बूंद करके गिराया जाता है और फ्लास्क को बालू ऊष्मक पर धीरे-धीरे गर्म किया जाता है। फ्लास्क में अभिक्रिया के फलस्वरूप बनी ऐसीटेल्डिहाईड वाष्प को हिम मिश्रण में रखे गए अमोनिया से संतृप्त ईथरयुक्त फ्लास्क में प्रवाहित किया जाता है, जिससे ऐसीटेल्डिहाइड अमोनिया के बने क्रिस्टलों को धोकर, सुखाकर तनु H2SO4 से आसवित करने पर 21°C पर शुद्ध ऐसीटेल्डिहाइड प्राप्त होता है जो ठण्डा होने पर द्रवित हो जाता है।
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रासायनिक परीक्षण – (1) यह I2 व NaOH के साथ पीले रंग का क्रिस्टलीय पदार्थ आयोडोफॉर्म बनाता है।
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2. अपचायक गुण – यह फेहलिंग विलयन को अपचयित कर Cu20 को लाल रंग देता है।
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3. NH2OHसे अभिक्रिया
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4. NaHSO3 से अभिक्रिया
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प्रश्न 3.
ऐसीटेल्डिहाइड बनाने की ऑक्सीकरण एवं उत्प्रेरकीय तथा विहाइड्रोजनीकरण विधियों के रासायनिक समीकरण लिखिए। ऐसीटोन की संघनन अभिक्रिया का समीकरण भी लिखिए। (2014)
या
ऐल्डिहाइडों को बनाने की किन्हीं दो विधियों के रासायनिक समीकरण लिखिए। ऐसीटेल्डिहाइड तनु NaOH तथा टॉलेन अभिकर्मक के साथ किस प्रकार क्रिया करता है? सम्बंधित रासायनिक समीकरण लिखिए। (2015, 18)
उत्तर
(i) ऐसीटेल्डिहाइड बनाने की ऑक्सीकरण एवं उत्प्रेरकीय विधि
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(ii) ऐसीटेल्डिहाइड बनाने की विहाइड्रोजनीकरण विधि
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NaOH से क्रिया
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टॉलेन अभिकर्मक से क्रिया
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प्रश्न 4.
शुद्ध ऐसीटोन बनाने की प्रयोगशाला विधि का नामांकित चित्र सहित वर्णन कीजिए। इसके प्रमुख रासायनिक गुण भी दीजिए। (2009, 10, 12, 13, 16, 18)
या
ऐसीटोन की क्षारीय आयोडीन के साथ अभिक्रिया का रासायनिक समीकरण लिखिए। (2018)
उत्तर
प्रयोगशाला में निर्जल कैल्सियम ऐसीटेट के शुष्क आसवन से ऐसीटोन बनाया जाता है।
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विधि – धातु या काँच के रिटॉर्ट में निर्जल कैल्सियम ऐसीटेट लेकर उपकरण को दिये गये चित्र के । अनुसार व्यवस्थित किया जाता है। रिटॉर्ट को गर्म करने पर ऐसीटोन की वाष्प बनती है जिसे संघनित्र में प्रवाहित करने पर द्रव ऐसीटोन ग्राही में एकत्र हो जाता है। यह ऐसीटोन अशुद्ध होता है। इसे संतृप्त NaHSO3 विलयन के साथ मिलाकर हिलाने के बाद 4-5 घण्टे के लिए रख दिया जाता है, जिससे ऐसीटोन सोडियम बाइसल्फाइट के क्रिस्टल बनते हैं। इन क्रिस्टलों को पृथक् करके इनमें Na2CO3 मिलाकर मिश्रण का आसवन करने पर शुद्ध ऐसीटोन प्राप्त होता है जिसमें जल का कुछ अंश होता है। शुद्ध एवं शुष्क ऐसीटोन प्राप्त करने के लिए ऐसीटोन को निर्जल CaCl2 से सुखाकर पुनः आसवित करने पर 56°C पर शुद्ध ऐसीटोन प्राप्त होता है जिसको संघनित्र द्वारा ग्राही में एकत्र कर लिया जाता है।
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अमोनिया के साथ क्रिया – डाइऐसीटोन ऐमीन बनता है।
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क्लोरोफॉर्म से क्रिया – क्लोरीटोन बनता है। (2009)
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H2SO4 से क्रिया – ऐसीटोन का सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ आसवन करने पर मेसिटलीन बनती है।
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आयोडीन से क्रिया – ऐसीटोन को आयोडीन और NaOH के जलीय विलयन के साथ गर्म करने पर आयोडोफॉर्म का पीला अवक्षेप बनता है।
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प्रश्न 5.
फॉर्मिक अम्ल बनाने की प्रयोगशाला विधि का नामांकित चित्र सहित वर्णन कीजिए तथा अभिक्रियाओं के समीकरण भी दीजिए। इसके दो अपचायक गुणों को लिखिए। (2011, 13)
या
फॉर्मिक अम्ल बनाने की प्रयोगशाला विधि का वर्णन नामांकित चित्र सहित कीजिए तथा अभिक्रियाओं के समीकरण दीजिए। फॉर्मिक अम्ल की फेहलिंग विलयन तथा टॉलेन अभिकर्मक के साथ क्या क्रिया होती है? (2011, 13)
या
फॉर्मिक अम्ल की लेड कार्बोनिल के साथ अभिक्रिया का रासायनिक समीकरण लिखिए। (2018)
उत्तर
प्रयोगशाला में फॉर्मिक अम्ल, ऑक्सैलिक अम्ल तथा निर्जल ग्लिसरॉल के मिश्रण को 100-110°C ताप पर गर्म करके बनाया जाता है। अभिक्रिया निम्नलिखित पदों में होती है –
1. ऑक्सैलिक अम्ल ग्लिसरॉल के साथ अभिक्रिया करके ग्लिसरॉल मोनोऑक्सैलेट (एस्टर) बनाता है।
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2. ग्लिसरॉल मोनो ऑक्सैलेट 100-110°C ताप पर अपघटित होकर ग्लिसरॉल मोनो फॉर्मेट बनाता है।
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3. ग्लिसरॉल मोनो फॉर्मेट में ऑक्सेलिक अम्ल के क्रिस्टलों की कुछ मात्रा मिलाते हैं। इन क्रिस्टलों का जल, ग्लिसरॉल मोनो फॉर्मेट का जल अपघटन कर फॉर्मिक अम्ल तथा ग्लिसरॉल बनाता है।
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अभिक्रिया में बना फॉर्मिक अम्ल आसुत हो जाता है तथा शेष बचे ग्लिसरॉल में फिर ऑक्सैलिक अम्ल मिलाकर फॉर्मिक अम्ल की अधिक मात्रा प्राप्त कर लेते हैं। प्रयुक्त उपकरण का नामांकित चित्र निम्न है –
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निर्जल फॉर्मिक अम्ल बनाना – निर्जल फॉर्मिक अम्ल बनाने के लिए जल मिश्रित अम्ल को उबालकर लेड कार्बोनेट द्वारा उदासीन कर लेते हैं। गर्म विलयन को छानकर, द्रव को ठण्डा करने पर लेड फॉर्मेट के क्रिस्टल पृथक् हो जाते हैं।
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लेड फॉर्मेट लेड फॉर्मेट के क्रिस्टलों को छानकर तथा सुखाकर एक काँच की झुकी नली में लेते हैं। इसके ऊपर शुष्क H2S गैस प्रवाहित करते हैं जिसके फलस्वरूप फॉर्मिक अम्ल बनता है।
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ठोस लेड सल्फाइड नली में नीचे रह जाता है तथा द्रव फॉर्मिक अम्ल को बहाकर दूसरे पात्र में एकत्र कर लेते हैं। इससे निर्जल अम्ल बन जाता है।

अपचायक गुण – (i) फॉर्मिक अम्ल टॉलेन अभिकर्मक को अपचयित करता है।
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(ii) फॉर्मिक अम्ल फेहलिंग विलयन को अपचयित कर देता है।
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प्रश्न 6.
ऐसीटिक अम्ल के औद्योगिक निर्माण की क्विक विनेगर प्रक्रम की विधि का सचित्र वर्णन कीजिए। इसकी PCls के साथ अभिक्रिया लिखिए। इसका एक परीक्षण भी लिखिए। (2016)
या
शीघ्र सिरका विधि द्वारा ऐसीटिक अम्ल बनाने की विधि का सचित्र वर्णन कीजिए। इसके साथ एथिल ऐल्कोहॉल की अभिक्रिया का समीकरण लिखिए।
उत्तर
ऐसीटिक अम्ल का निर्माण निम्नलिखित विधियों से किया जाता है –

  1. ऐसीटिलीन से
  2. लकड़ी के भंजक आसवन से प्राप्त पाइरोलिग्नियस अम्ले से
  3. किण्वने द्वारा
  4. सोडियम मेथॉक्साइड द्वारा।

क्विक विनेगर विधि या किण्वन विधि
किण्वन विधि द्वारा ऐसीटिक अम्ल बनाना – इस विधि को शीघ्र सिरका (Quick vinegar) विधि कहते हैं। इस विधि में एथिल ऐल्कोहॉल का माइकोडर्मा ऐसीटी नामक जीवाणुओं द्वारा किण्वन कराके ऐसीटिक अम्ल का तनु विलयन (सिरका) प्राप्त किया जाता है। ये जीवाणु वायु में उपस्थित रहते हैं। ये अपनी वृद्धि के लिए एथिल ऐल्कोहॉल के विलयन में पहुँच जाते हैं और किण्वन द्वारा ऐल्कोहॉल को सिरके में ऑक्सीकृत कर देते हैं।
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ऐसीटिक अम्ले
किण्वन क्रिया एक लकड़ी के पीपे में होती है। इस पीपे में ऊपर और नीचे की ओर छिद्रयुक्त लकड़ी के तख्ते लगे होते हैं। इन दोनों तख्तों के बीच में लकड़ी का बरादा भरा रहता है जो माईकोडर्मा ऐसीटीयुक्त सिरके से गीला कर दिया जाता है। पीपे के चारों ओर दीवारों में भी छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। पीपे के निचले भाग में बने हुए सिरके को निकालने के लिए एक टोंटी लगी रहती है।

उपकरण को पूर्णतया व्यवस्थित करके पीपे के ऊपरी भाग में 10% एथिल ऐल्कोहॉल का विलयन धीरे-धीरे टपकाया जाता है। यह लकड़ी के बुरादे में उपस्थित माइकोडर्मा ऐसीटी की उपस्थिति में वायु की ऑक्सीजन से ऑक्सीकृत होकर ऐसीटिक अम्ल (सिरका) में परिवर्तित होता रहता है। इस प्रक्रम में पीपे का ताप 30-35°C रखा जाता। है। निचले भाग से प्राप्त द्रव को कई बार पीपे में ऊपर से टपकाया जाता है जिससे 6-8% ऐसीटिक अम्लयुक्त सिरका प्राप्त होता है। इस विधि से सिरका बनने में लगभग एक सप्ताह लगता है।
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ग्लेशियल ऐसीटिक अम्ल बनाना – सिरके को NaOH या Na2CO3 से उदासीन करके निर्जल सोडियम ऐसीटेट प्राप्त कर लिया जाता है। इसका सान्द्र H2SO4 के साथ आसवन करने पर 99% अम्ल प्राप्त होता है। इसको ठण्डा करके ग्लेशियल अम्ल प्राप्त कर लेते हैं।

PCl5 से क्रिया – ऐसीटिल क्लोराईड बनता है।
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C2H5OH से क्रिया – एथिल ऐसीटेट (एस्टर) बनता है।
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ऐसीटिक अम्ल का परीक्षण – ऐसीटिक अम्ल को NaOH विलयन द्वारा उदासीन करके FeCl3 का विलयन मिलाने पर लाल रंग का विलयन प्राप्त होता है।
CH3COOH + NaOH → CH3COONa + H2O
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प्रश्न 7.
ऑक्सैलिक अम्ल के निर्माण की प्रमुख विधियाँ लिखिए। इसके कुछ प्रमुख रासायनिक गुण भी लिखिए। (2016)
उत्तर
निर्माण विधि
1. सुक्रोस के ऑक्सीकरण द्वारा – प्रयोगशाला में ऑक्सैलिक अम्ल सुक्रोस (चीनी) का वैनेडियम पेन्टॉक्साइड उत्प्रेरक की उपस्थिति में सान्द्र नाइट्रिक अम्ल द्वारा ऑक्सीकरण करके बनाते हैं।
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2. सोडियम फॉर्मेट से – सोडियम फॉर्मेट को 360°C पर गर्म करने पर सोडियम ऑक्सैलेट बनता है।
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सोडियम ऑक्सैलेट को जल में विलीन करके उसमें कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड का विलयन डालते हैं। जिससे कैल्सियम ऑक्सैलेट के अवक्षेप बनते हैं। अविलेय कैल्सियम ऑक्सैलेट को छानकर पृथक् करते हैं और उसकी तनु सल्फ्यूरिक अम्ल की आवश्यक मात्रा से क्रिया कराते हैं जिससे कैल्सियम सल्फेट का सफेद अवक्षेप और ऑक्सैलिक अम्ल बनते हैं। अविलेय कैल्सियम सल्फेट को छानकर अलग कर देते हैं और फिल्टरित को वाष्पित करके सान्द्र करते हैं। विलयन को ठण्डा करने पर हाइड्रेटेड ऑक्सैलिक अम्ल (C2O4H2 . 2H2O) के क्रिस्टल प्राप्त होते हैं।

रासायनिक गुण
1. एस्टरीकरण अभिक्रिया – एथिल ऐल्कोहॉल के साथ अभिक्रिया करके यह दो प्रकार के एस्टर बनाता है जिनको अम्लीय तथा सामान्य एस्टर कहते हैं।
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2. अमोनिया से अभिक्रिया – अमोनिया के साथ अभिक्रिया करने पर यह मोनो तथा डाइअमोनियम ऑक्सैलेट बनाता है जो गर्म करने पर मोनोऑक्सैमाइड (ऑक्सैमिक अम्ल) तथा ऑक्सैमाइड देते हैं।
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ऑक्सैमाइड को P2O5 के साथ गर्म करने पर सायनोजन बनता है।
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3. फॉस्फोरस पेन्टाक्लोराइड से अभिक्रिया – फॉस्फोग्स पेन्टाक्लोराइड के साथ अभिक्रिया करके ऑक्सैलिक अम्ल ऑक्सैलिल क्लोराइड देता है।
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4. कैल्सियम क्लोराइड के साथ अभिक्रिया – ऑक्सैलिक अम्ल के NH4OH द्वारा उदासीन विलयन में कैल्सियम क्लोराइड विलयन डालने पर कैल्सियम ऑक्सैलेट का सफेद अवक्षेप बनता है।
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प्रश्न 8.
बेन्जोइक अम्ल बनाने की प्रयोगशाला विधि का वर्णन कीजिए। सम्बन्धित रासायनिक समीकरण, रासायनिक गुण तथा उपयोग भी बताइए।
उत्तर
प्रयोगशाला विधि – बेन्जिल क्लोराइड का क्षारीय माध्यम में पोटैशियम परमैंगनेट द्वारा पोटैशियम बेन्जोएट में ऑक्सीकरण करके मिश्रण को HCl द्वारा अम्लीय करने पर बेन्जोइक अम्ल प्राप्त होता है।
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विधि – एक गोल पेंदी के फ्लास्क में निर्जल सोडियम कार्बोनेट (4g), जल (200 मिली), पोटैशियम परमैंगनेट (9 g) और बेन्जिल क्लोराइड (5 g) लेते हैं और फ्लास्क में एक पश्चवाही संघनित्र लगाकर मिश्रण को अभिक्रिया पूर्ण होने तक (लगभग 1-2 घण्टे) उबालते हैं। बेन्जिल क्लोराइड बेन्जोइक अम्ल के लवण में ऑक्सीकृत हो जाता है और पोटैशियम परमैंगनेट मैंगनीज डाइऑक्साइड में अपचयित होता है। मिश्रण को ठण्डा करके उसे सान्द्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (लगभग 40 मिली) द्वारा अम्लीय करते हैं। फिर उसमें सोडियम सल्फाइड का जलीय विलयन (20%) मैंगनीज डाइऑक्साइड के पूरा घुलने तक डालते हैं। ठण्डे मिश्रण को छानकर बेन्जोइक अम्ल के सफेद क्रिस्टलों को पृथक् कर लेते हैं। फिर गर्म जल से उनका पुनः क्रिस्टलन कराकर शुद्ध बेन्जोइक अम्ल (m.p. 122°C) प्राप्त कर लेते हैं।

रासायनिक गुण
1. फॉस्फोरस पेन्टाक्लोराइड से अभिक्रिया – बेन्जोइक अम्ल की फॉस्फोरस पेन्टाक्लोराइड के साथ अभिक्रिया कराने पर बेन्जॉयल क्लोराइड बनता है।
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2. विकार्बोक्सिलकरण – बेन्जोइक अम्ल या सोडियम बेन्जोएट को सोडालाइम के साथ गर्म करने पर बेन्जीन बनती है।
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इस अभिक्रिया में अम्ल के अणु से कार्बन डाइ ऑक्साइड का एक अणु निष्कासित होता है। यह अभिक्रिया अम्ल का विकार्बोक्सिलकरण कहलाती है।
उपयोग

  1. सोडियम बेन्जोएट का उपयोग अचार, मुरब्बे, टमाटर की चटनी, फलों के रस एवं अन्य खाद्य पदार्थों के परिरक्षण (preservation) में परिरक्षक (preservative) के रूप में होता है।
  2. ऐनिलीन-ब्लू रंजक बनाने में
  3. बेन्जोइक अम्ल और उसके लवणों का उपयोग औषधि में मूत्रीय पूतिरोधी के रूप में होता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 16 Chemistry in Everyday Life

UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 16 Chemistry in Everyday Life (दैनिक जीवन में रसायन) are part of UP Board Solutions for Class 12 Chemistry. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Chapter 16 Chemistry in Everyday Life (दैनिक जीवन में रसायन).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Chemistry
Chapter Chapter 16
Chapter Name Chemistry in Everyday Life
Number of Questions Solved 87
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 16 Chemistry in Everyday Life (दैनिक जीवन में रसायन)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अनिद्राग्रस्त रोगियों को चिकित्सक नींद लाने वाली गोलियाँ लेने का परामर्श देते हैं, परन्तु बिना चिकित्सक से परामर्श लिए इनकी खुराक लेना उचित क्यों नहीं है?
उत्तर :
नींद की गोलियों में प्रशांतक या प्रतिअवसादक होते हैं। ये तंत्रिका तन्त्र को प्रभावित करके नींद लाते हैं। यदि इनकी खुराक भली प्रकार नियन्त्रित न हो तब ये हानिकारक प्रभाव डालते हैं तथा विष की तरह कार्य करके मृत्यु तक कारित करते हैं। अत: यह सलाह दी जाती है कि इन नींद की गोलियों को चिकित्सक की सलाह से लेना चाहिए।

प्रश्न 2.
किस वर्गीकरण के आधार पर वक्तव्य, रेनिटिडीन प्रतिअम्ल हैं, दिया गया है?
उत्तर :
यह वक्तव्य औषध के फार्माकोलोजिकल (pharmacological) आधार पर वर्गीकरण की ओर संकेत करता है क्योंकि औषध जिसका प्रयोग आमाशय में उपस्थित अम्ल के आधिक्य को उदासीन करता है, प्रतिअम्ल (antacid) कहलाता है।

प्रश्न 3.
हमें कृत्रिम मधुरकों की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर :
हमें कृत्रिम मधुरकों की आवश्यकता कैलोरी कम करने तथा दंतक्षय को रोकने के लिए पड़ती है।

प्रश्न 4.
ग्लिसरिल ओलिएट तथा ग्लिसरिल पामिटेट से सोडियम साबुन बनाने के लिए रासायनिक
समीकरण लिखिए। इनके संरचनात्मक सूत्र नीचे दिए गए हैं
(i) (C15H31COO)3 C3H– ग्लिसरिल पामिटेट
(ii) (C15H32COO)3 C3H– ग्लिसरिल ओलिएट।
उत्तर :
(i)
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(ii)
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रकार के अनायनिक अपमार्जक, द्रव अपमार्जकों, इमल्सीकारकों और क्लेदन कारकों (wetting agents) में उपस्थित होते हैं। अणु में जलरागी तथा जलविरागी हिस्सों को दर्शाइए। अणु में उपस्थित प्रकार्यात्मक समूह की पहचान कीजिए।
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उत्तर :
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अपमार्जक अणु में उपस्थित विभिन्न प्रकार्यात्मक समूह हैं

  1. ईथर,
  2. प्राथमिक (1°) ऐल्कोहॉलीय समूह।

अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 1.
हमें औषधों को विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत करने की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर :
औषधों को विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत करने के अनेक लाभ हैं। उदाहरणार्थ, फार्माकोलोजिकल प्रभाव के आधार पर वर्गीकरण डॉक्टरों के लिए लाभदायक है क्योंकि इससे उन्हें किसी रोग विशेष के उपचार के लिए उपलब्ध सभी औषधों की जानकारी मिलती है। इसी प्रकार जैवरासायनिक प्रक्रम पर प्रभाव के आधार पर वर्गीकरण से वांछित औषध के संश्लेषण के लिए सही यौगिक के चयन में सहायता मिलती है। अणु लक्ष्यों के आधार पर वर्गीकरण से केमिस्टों को किसी विशेष ग्राही स्थल के लिए सर्वाधिक प्रभावी औषध के निर्माण में सहायता मिलती है। स्पष्ट है कि प्रत्येक प्रकार के वर्गीकरण की अपनी उपयोगिता है।

प्रश्न 2.
औषध रसायन के पारिभाषिक शब्द, लक्ष्य-अणु अथवा औषध-लक्ष्य को समझाइए।
उत्तर :
औषध सामान्यत: जैविक वृहदाणुओं जैसे-कार्बोहाइड्रेट, लिपिड, प्रोटीन, न्यूक्लीक अम्ल के साथ अन्योन्यक्रियाएँ करते हैं जिन्हें औषध लक्ष्य कहते हैं।

प्रश्न 3.
उन वृहद-अणुओं के नाम लिखिए जिन्हें औषध-लक्ष्य चुना जाता है।
उत्तर :
प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लिपिड, न्यूक्लीक अम्ल आदि।

प्रश्न 4.
बिना डॉक्टर से फ्रामर्श लिए दबाइयाँ क्यों नहीं लेनी चाहिए?
उत्तर :
बिना डॉक्टर के परामर्श के दवाइयाँ इसलिए नहीं लेनी चाहिए क्योंकि अधिक मात्रा में दवा विषैला प्रभाव डालती है तथा जीवधारी के कार्यों में व्यवधान उत्पन्न करती है।

प्रश्न 5.
रसायनचिकित्सा शब्द की परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
रसायन विज्ञान की वह शाखा जो रसायनों के द्वारा रोगों के उपचार से संबंधित होती है, रसायन चिकित्सा कहलाती है।

प्रश्न 6.
एन्जाइम की सतह पर औषध को थामने के लिए कौन-से बल कार्य करते हैं?
उत्तर :
आयनिक बन्धन, हाइड्रोजन बन्धन, द्विध्रुव-द्विध्रुव अन्योन्यक्रियाएँ या वाण्डरवाल्स अन्योन्यक्रियाएँ।

प्रश्न 7.
प्रतिअम्ल एवं प्रति-एलर्जी औषध हिस्टैमिन के कार्य में बाधा डालती हैं, परन्तु ये एक-दूसरे के कार्य में बाधक क्यों नहीं होती?
उत्तर :
औषधों का प्रयोग अंग विशेष की व्याधियों को दूर करने में किया जाता है लेकिन ये अन्य को प्रभावित नहीं करती हैं क्योंकि ये अलग-अलग ग्राहियों (receptors) पर कार्य करती हैं।
उदाहरणार्थ :
हिस्टैमिन का स्रावण एलर्जी (allergy) उत्पन्न करता है। यह आमाशय में HCl विमोचित करने के कारण अम्लता (acidity) भी उत्पन्न करता है। प्रतिएलर्जिक तथा प्रतिअम्ल भिन्न ग्राहियों पर कार्य करते हैं। अत: प्रतिहिस्टैमिन एलर्जी दूर करते हैं जबकि प्रतिअम्ल अम्लता दूर करते हैं।

प्रश्न 8.
नॉरऐड्रीनेलिन का कम स्तर अवसाद का कारण होता है। इस समस्या के निदान के लिए किस प्रकार की औषध की आवश्यकता होती है? दो औषधों के नाम लिखिए।
उत्तर :
इस समस्या के निदान के लिए प्रतिअवसादक औषधों (antidepressant drugs) की आवश्यकता होती है। ये औषध नोरएड्रिनेलिन के निम्नीकरण को उत्प्रेरित करने वाले एंजाइमों को बाधित करते हैं। इससे नेरएड्रिनेलिन धीरे उपापचयित होता है और ग्राही को लंबे समय तक सक्रियित रखता है। जिससे अवसाद कम हो जाता है।
उदाहरणार्थ :
इप्रोनाइजिड, फिनल्जिन आदि।

प्रश्न 9.
‘वृहद्-स्पेक्ट्रम जीवाणुनाशी’ शब्द से आप क्या समझते हैं? समझाइए। (2011)
उत्तर :
वे प्रतिजैविक जो कि कई प्रकार के हानिकारक सूक्ष्म-जीवों के प्रति प्रभावी होते हैं, ‘वृहद-स्पेक्ट्रम प्रतिजैविक’ कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-टेट्रासाइक्लिन, क्लोरम्फेनिकोल आदि।

प्रश्न 10.
पूतिरोधी तथा संक्रमणहारी किस प्रकार से भिन्न हैं? प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
पूतिरोधी वे रसायन होते हैं जो सूक्ष्मजीवियों को मार देते हैं या उनकी वृद्धि रोकते है तथा जीवित ऊतकों को हानि नहीं पहुंचाते हैं। विसंक्रामी सूक्ष्म-जीवों को मार देते हैं तथा जीवित मानव ऊतकों को हानि पहुँचाते हैं।
उदाहरणार्थ :

  1. पूतिरोधी (Antiseptic) : डिटॉल, आयोडोफॉर्म, टिंक्चर आयोडीन।
  2. विसंक्रामी (Disinfectants) : क्लोरीन (> 0.4 ppm), फीनॉल (> 1 % विलयन)।

प्रश्न 11.
सिमेटिडीन तथा दैनिटिडीन सोडियम हाइड्रोजनकार्बोनेट अथवा मैग्नीशियम या | ऐलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड की तुलना में श्रेष्ठ प्रतिअम्ल क्यों हैं?
उत्तर :
सिमेटिडीन तथा रैनिटिडीन श्रेष्ठ प्रतिअम्ल हैं क्योंकि ये आमाशय भित्ति में उपस्थित ग्राहियों (receptors) तथा हिस्टैमिन के मध्य अन्योन्यक्रिया को रोकते हैं जिसके परिणामस्वरूप कम मात्रा में अम्ल मुक्त होता है। दूसरी ओर, सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट अथवा मैग्नीशियम या ऐलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड केवल लक्षणों पर कार्य करते हैं. कारण पर नहीं

प्रश्न 12.
एक ऐसे पदार्थ का उदाहरण दीजिए जिसे पूतिरोधी तथा संक्रमणहारी दोनों प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है।
उत्तर :
फीनॉल का 0.2% विलयन पूतिरोधी का कर्य करता है जबकि 1% विलक्नविसंक्रामी का कार्य करता है।

प्रश्न 13.
डेटॉल के प्रमुख संघटक कौन-से हैं?
उत्तर :
डेटॉल क्लोरोजाइलिनोल तथा α -टरपीनिऑल का मिश्रण होता है।

प्रश्न 14.
आयोडीन का टिंक्चर क्या होता है? इसके क्या उपयोग हैं? ।
उत्तर :
आयोडीन का ऐल्कोहॉल या जल में 2 – 3 % विलयन आयोडीन का टिंक्चर कहलाता है। यह शक्तिशाली पूतिरोधी होता है। इसका प्रयोग घावों पर किया जाता है।

प्रश्न 15.
खाद्य पदार्थ परिरक्षक क्या होते हैं?
उत्तर :
खाद्य परिरक्षक वे पदार्थ होते हैं जो सूक्ष्म-जीवों द्वारा होने वाले किण्वन, अम्लीकरण या अन्य विघटन को बाधित करके भोजन को खराब होने से रोकते हैं।

प्रश्न 16.
ऐस्पार्टेम का प्रयोग केवल ठण्डे खाद्य एवं पेय पदार्थों तक सीमित क्यों है?
उत्तर :
यह पकाने के ताप पर विघटित हो जाता है अतः इसका प्रयोग केवल ठण्डे खाद्य एवं पेय पदार्थों तक सीमित है।

प्रश्न 17.
कृत्रिम मधुरक क्या हैं? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
कृत्रिम मधुरक रासायनिक पदार्थ होते हैं जो स्वाद में मीठे होते हैं लेकिन हमारे शरीर को कैलोरी प्रदान नहीं करते हैं। ये हमारे शरीर से अपरिवर्तित अवस्था में उत्सर्जित हो जाते हैं।
उदाहरणार्थ :
सैकरीन, एस्पार्टेम, सुक्रोलोस आदि।

प्रश्न 18.
मधुमेह के रोगियों के लिए मिठाई बनाने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले मधुरक का क्या नाम है?
उत्तर :
सैकरीन।

प्रश्न 19.
ऐलिटेम को कृत्रिम मधुरक की तरह उपयोग में लाने पर क्या समस्याएँ होती हैं?
उत्तर :
ऐलिटेम उच्च क्षमता का कृत्रिम मधुरक है इसलिए इसका प्रयोग करने पर भोजन की मिठास को नियंत्रित करना कठिन होता है।

प्रश्न 20.
साबुनों की अपेक्षा संश्लेषित अपमार्जक किस प्रकार श्रेष्ठ हैं?
उत्तर :
अपमार्जक का प्रयोग मृदु तथा कठोर जल दोनों में किया जा सकता है क्योंकि ये कठोर जल में भी झाग देते हैं। इसका कारण यह है कि सल्फोनिक अम्ल तथा इनके कैल्सियम तथा मैग्नीशियम लवण जल में विलेय होते हैं जबकि वसीय अम्ल तथा इनके कैल्सियम और मैग्नीशियम लवण अविलेय होते हैं।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित शब्दों को उपयुक्त उदाहरणों द्वारा समझाइए
(क) धनात्मक अपमार्जक
(ख) ऋणात्मक अपमार्जक
(ग) अनायनिक अपमार्जक
उत्तर :
(क)
धनात्मक अपमार्जक (Cationic detergents) :

धनात्मक अपमार्जक ऐमीनों के ऐसीटेट, क्लोराइड या ब्रोमाइड ऋणायनों के साथ बने चतुष्क लवण होते हैं। उदाहरणार्थ सेटिल ट्राइमेथिल अमोनियम क्लोराइड।

(ख)
ऋणात्मक अपमार्जक (Anionic detergents) :

ऋणात्मक अपमार्जक लम्बी श्रृंखला वाले ऐल्कोहॉलों अथवा हाइड्रोकार्बनों के सल्फोनेटित व्युत्पन्न होते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं
(i) सोडियम ऐल्किल सल्फेट (Sodium alkyl sulphates)
उदाहरणार्थ :
सोडियम लॉरिल सल्फेट, C11H23CH2OSO3Na.

(ii) सोडियम ऐल्किल बेन्जीन सल्फेट (Sodium alkyl benzene sulphate) : सर्वाधिक प्रयोग किया जाने वाला घरेलू अपमार्जक सोडियम-4-(-1-डोडेसिल) बेन्जीन सल्फोनेट (SDS) हैं।
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(ग)
अनायनिक अपमार्जक (Non-ionic detergents) :

अनायनिक अपमार्जक, उच्च आण्विक द्रव्यमान वाले ऐल्कोहॉलों के साथ वसा अम्लों के एस्टरे होते हैं।
उदाहरणार्थ :
पॉलिएथिलीन  ग्लाइकॉल स्टिऐरेट CH(CH2)COO (CH2CH2O)n CH2CH2OH.

प्रश्न 22.
जैव-निम्नीकृत होने वाले और जैव-निम्नीकृत न होने वाले अपमार्जक क्या हैं? प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
जैव-अपघट्य (निम्नीकृत) अपमार्जक सीधी हाइड्रोकार्बन शृंखलायुक्त होते हैं। ये अपमार्जक जीवाणुओं द्वारा नष्ट हो जाते हैं। जैव-अनपघट्य (अनिम्नीकृत) अपमार्जक शाखित हाइड्रोकार्बन श्रृंखलायुक्त होते हैं। ये अपमार्जक जीवाणुओं द्वारा नष्ट नहीं होते हैं। अनपघट्य अपमार्जक प्रदूषण का स्रोत होते हैं।

  1. जैव अपघट्य अपमार्जक : सोडियम लॉरिल सल्फेट
  2. अनपघट्य अपमार्जक : सोडियम 4 – (1, 3, 5, 7 – टेट्रामेथिलऑक्टिल) बेन्जीनसल्फोनेट।

प्रश्न 23.
साबुन कठोर जल में कार्य क्यों नहीं करता?
उत्तर :
कठोर जल में कैल्सियम और मैग्नीशियम के लवण होते हैं। साबुन को कठोर जल में डालने पर साबुन कैल्सियम और मैग्नीशियम साबुन के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं। ये साबुन अविलेय होने के कारण कपड़ों पर चिपचिपे पदार्थ के रूप में चिपक जाते हैं।

प्रश्न 24.
क्या आप साबुन तथा संश्लेषित अपमार्जकों का प्रयोग जल की कठोरता जानने के लिए कर सकते हैं?
उत्तर :
साबुन कठोर जल में अविलेय कैल्सियम तथा मैग्नीशियम साबुनों के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं, लेकिन अपमार्जक नहीं। इसलिए साबुन का प्रयोग जल की कठोरता जानने के लिए किया जा सकता है, अपमार्जकों का नहीं।

प्रश्न 25.
साबुन की शोधन क्रिया समझाइए।
उत्तर :
साबुन की शोधन क्रिया (Cleansing Action of Soaps) :
साबुन का अणु दो भागों का बना होता है। साबुन के अणु का एक भाग तो लम्बी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला होती है जो अनायनिक होती है तथा साबुन के अणु का दूसरा भाग छोटा कार्बोक्सिलिक समूह (COO Na+) होता है जो आयनिक होता है। साबुन के अणु को चित्र – 1 द्वारा दर्शाया जाता है जिसमें टेढ़ी-मेढ़ी लम्बी रेखा तो हाइड्रोकार्बन श्रृंखला को निरूपित करती है, जबकि काला गोर्लीय भाग आयनिक समूह (COO) को निरूपित करता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 16 Chemistry in Everyday Life image 6
साबुन के अणु का हाइड्रोकार्बन श्रृंखला वाला भाग जल को प्रतिकर्षित करने वाला होता है (या जलविरोधी होता है), परन्तु वह धूल तथा चिकनाई जैसे  मैल के कार्बनिक कणों को अपने साथ जोड़ लेता है। इसलिए मैले कपड़ों की सतह पर उपस्थित धूल तथा चिकनाई के कण साबुन के अणु के हाइड्रोकार्बन वाले  भाग से जुड़ जाते हैं। साबुन के अणु का आयनिक  भाग (COO) जलस्नेही होता है जो जल के अणुओं की ओर आकर्षित होता है और अपने हाइड्रोकार्बन भाग में चिपके धूल तथा चिकनाई के कणों को अपने साथ खींचकर जल में ले आता है। इस प्रकार मैले कपड़े की सतह पर लगे धूल तथा चिकनाई के सारे कण साबुन के अणुओं के साथ लगकर जल में आ जाते हैं तथा मैला कपड़ा साफ हो जाता है।
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जब साबुन को जल में घोलते हैं तो वह मिसेल (micelles) बनाता है  (क) इस मिसेल में साबुन के अणु अरीय (radially) ढंग से व्यवस्थित होते हैं जिसमें हाइड्रोकार्बन श्रृंखला वाला भाग केन्द्र की ओर होता है। तथा जल को आकर्षित करने वाला कार्बोक्सिलिक भाग बाहर की ओर रहता है जैसा कि (ख) में दिखाया गया है।

जब साबुन के पानी में धूल तथा चिकनाई लगा मैला कपड़ा डालते हैं तो मिसेलों के हाइड्रोकार्बन श्रृंखलाओं वाले सिरे मैले कपड़े की सतह पर उपस्थित धूल तथा चिकनाई के कणों के साथ जुड़ जाते हैं तथा उन्हें अपने बीच फंसा लेते हैं। इसके बाद मिसेलों के बाहर की ओर वाले आयनिक सिरे जल के अणुओं की ओर आकर्षित होते हैं जिससे हाइड्रोकार्बन वाले सिरों में फँसे मैल के कण कपड़े की सतह से खिंचकर जल में आ जाते हैं तथा कपड़ा साफ हो जाता है। साबुन द्वारा चिकनाई तथा धूल को पृथक् करने के प्रक्रम को निम्नांकित चित्र-3 द्वारा दर्शाया गया है
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प्रश्न 26.
यदि जल में कैल्सियम हाइड्रोजनकार्बोनेट घुला हो तो आप कपड़े धोने के लिए साबुन एवं संश्लेषित अपमार्जकों में से किसका प्रयोग करेंगे?
उत्तर :
कैल्सियम बाइकार्बोनेट जले को कठोर बनाता है, अतएव साबुन इस जल में अवक्षेपित हो जाएगा। इसके विपरीत, अपमार्जक के कैल्सियम लवण जल में विलेय होते हैं। अत: संश्लेषित अपमार्जकों का प्रयोग , कठोर जल में कपड़े धोने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 27.
निम्नलिखित यौगिकों में जलरागी एवं जलविरागी भाग दर्शाइए
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उत्तर :
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
डाइजीन (digene) है।
(i) पीड़ाहारी
(ii) पूतिरोधी
(iii) प्रतिअम्ल
(iv) प्रतिहिस्टैमिन
उत्तर :
(iii) प्रतिअम्ल

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा प्रतिअम्ल है?
(i) ग्रास्त्रीवॉल
(ii) फीनॉल
(iii) ओमेप्राजोल
(iv) डेटॉल
उत्तर :
(iii) ओमेप्राजोल

प्रश्न 3.
डूगों का वह वर्ग जिसका प्रयोग तनाव के उपचार के लिए किया जाता है, है।
(i) पीड़ाहारी
(ii) पूतिरोधी
(iii) प्रतिहिस्टैमिन
(iv) प्रशांतक
उत्तर :
(iv) प्रशांतक

प्रश्न 4.
निम्न में से किसका प्रयोग प्रशांतक के रूप में किया जाता है?
(i) नेप्रोक्सेन
(ii) टेट्रासाइक्लिन
(iii) क्लोरफेनेरामाइन
(iv) इक्वैनिल
उत्तर :
(iv) इक्वैनिल

प्रश्न 5. बार्बिट्यूरिक अम्ल का प्रयोग किस रूप में होता है?
(i) ज्वरनाशी
(ii) पूतिरोधी
(iii) पोड़ाहारी
(iv) प्रशांतक
उत्तर :
(iv) प्रशांतक

प्रश्न 6.
निम्न में से सम्भवतः किसका प्रयोग बिना व्यसन उत्पन्न किए पीड़ाहारी के रूप में किया जाता है?
(i) मॉर्फीन
(ii) N-ऐसीटिल-पैरा-ऐमीनोफीनॉल
(iii) डाइजीपाम
(iv) मेथिल सैलिसिलेट
उत्तर :
(ii) N-ऐसीटिल-पैरा-ऐमीनोफीनॉल

प्रश्न 7.
ऐसीटॉक्सी बेंजोइक अम्ल कार्य करता है।
(i) पीड़ाहारी
(ii) ज्वरनाशी
(iii) पूतिरोधी
(iv) प्रतिजैविक
उत्तर :
(i) पीड़ाहारी

प्रश्न 8.
ऐस्प्रिन है।
(i) प्रतिजैविक
(ii) ज्वरनाशी
(iii) पूतिरोधी
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(ii) ज्वरनाशी

प्रश्न 9.
ऐसीटिल सैलिसिलिक ऐसिड कहलाता है।
(i) पूतिरोधी
(ii) ऐस्प्रिन
(iii) प्रतिजैविक
(iv) रंजक
उत्तर :
(ii) ऐस्प्रिन

प्रश्न10.
निम्न में से कौन शरीर का ताप कम करता है?
(i) ज्वरनाशी
(ii) पीड़ाहारी
(iii) प्रतिजैविक
(iv) वैलियम
उत्तर :
(i) ज्वरनाशी

प्रश्न11.
ऐसीटिल सैलिसिलिक ऐसिड का प्रयोग किस रूप में होता है?
(i) प्रतिमलेरियल
(ii) प्रति अवसादक
(iii) पूतिरोधी
(iv) ज्वरनाशी
उत्तर :
(iv) ज्वरनाशी

प्रश्न12.
टिंक्चर आयोडीन है।
(i) I2 का जलीय विलयन
(ii) जलीय KI में I2 का विलयन
(iii) I2 का ऐल्कोहॉलीय विलयन
(iv) KI का जलीय विलयन
उत्तर :
(iii) I2 का ऐल्कोहॉलीय विलयन

प्रश्न 13.
निम्न में से कौन प्रतिजैविक नहीं है?
(i) पेनिसिलीन
(ii) ऑक्सीटॉसिन
(iii) टेट्रासाइक्लीन
(iv) एरिथ्रोमाइसिन
उत्तर :
(ii) ऑक्सीटॉसिन

प्रश्न 14.
बीटाडीन है।
(i) पूतिरोधी
(ii) प्रशांतक
(iii) विसंक्रामी
(iv) प्रतिजैविक
उत्तर :
(i) पूतिरोधी

प्रश्न 15.
पैरासीटेमॉल प्रयुक्त होता है।
(i) प्रतिजैविक के रूप में
(ii) मलेरिया रोधी के रूप में
(iii) ज्वरनाशी के रूप में
(iv) पूतिरोधी के रूप में
उत्तर :
(iii) ज्वरनाशी के रूप में

प्रश्न 16.
पेनिसिलीन है
(i) पूतिरोधी
(ii) ज्वरनाशी
(iii) ऐण्टीबायोटिक
(iv) खाद्य परिरक्षक
उत्तर :
(iii) ऐण्टीबायोटिक

प्रश्न 17.
फीनॉल का 0.2% विलयन निम्न रूप में कार्य करता है।
(i) दर्दनाशक
(ii) ऐण्टीसेप्टिक
(iii) संक्रमण रोधी
(iv) एण्टीबायोटिक
उत्तर :
(ii) ऐण्टीसेप्टिक

प्रश्न 18.
डेटॉल है एक
(i) प्रतिजैविक
(ii) ज्वररोधी
(iii) दर्दनाशक
(iv) पूतिरोधी
उत्तर :
(iv) पूतिरोधी

प्रश्न 19.
पैरासीटामोल की संरचना है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 16 Chemistry in Everyday Life image 11
उत्तर :
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 16 Chemistry in Everyday Life image 12

प्रश्न 20.
पूतिरोधी तथा विसंक्रामी सूक्ष्मजीवों का विनाश करते हैं या उनकी वृद्धि को रोकते हैं। निम्न में से जो कथन सही नहीं है, उसको पहचानिए।
(i) क्लोरीन व आयोडीन प्रबल विसंक्रामी की तरह प्रयोग में आते हैं।
(ii) बोरिक अम्ल व हाइड्रोजन परॉक्साइड का तनु विलयन प्रबल पूतिरोधी होता है।
(iii) विसंक्रामी जीवित ऊतकों को नुकसान पहुंचाते हैं।
(iv) फीनॉल का 0.2% विलयन पूतिरोधी है, जबकि 1% विलयन विसंक्रामी है।
उत्तर :
(ii) बोरिक अम्ल व हाइड्रोजन परॉक्साइड का तनु विलयन प्रबल पूतिरोधी होता है।

प्रश्न21.
निम्न में से किसका प्रयोग ‘मॉर्निग ऑफ्टर पिल’ के रूप में किया जाता है?
(i) एथिनिलएस्ट्राडाइऑल
(ii) मिफैप्रिस्टोन
(iii) बाइथायोनल
(iv) प्रोमैथेजिन
उत्तर :
(ii) मिफैप्रिस्टोन

प्रश्न 22.
क्लोरीन मुक्त कृत्रिम मधुरक जिसकी दिखावट और स्वाद शर्करा (sugar) के समान होता है और जो पकाने के ताप पर स्थायी होता है, है।
(i) एस्पार्टेम
(ii) सैकेरिन
(iii) सुक्रोलोस
(iv) ऐलीटेम
उत्तर :
(iii) सुक्रोलोस

प्रश्न 23.
सॉर्बिक अम्ल और प्रोपिओनिक अम्ल हैं।
(i) प्रतिऑक्सीकारक
(ii) खाद्य परिरक्षक
(iii) पोषक पूरक
(iv) अपमार्जक
उत्तर :
(ii) खाद्य परिरक्षक

प्रश्न 24.
केश कंडीशनरों में प्रयुक्त कार्बनिक अपमार्जक है।
(i) सोडियम लॉरिल सल्फेट
(ii) सोडियम डोडेसिलबेंजीन सल्फोनेट
(iii) सोडियम स्टेरिल सल्फेट
(iv) सेटिलाइमेथिलअमोनियम ब्रोमाइड
उत्तर :
(iv) सेटिलट्राइमेथिलअमोनियम ब्रोमाइड

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ड्रग क्या है?
उत्तर :
वह रासायनिक पदार्थ जो रोग का उपचार करता है और जिसके प्रयोग से व्यक्ति उसका आदि हो जाता है, ड्रग कहलाता है।

प्रश्न 2.
ड्रग का अणुभार कितना होता है?
उत्तर :
100-500 u.

प्रश्न 3.
एंजाइम क्या हैं? (2018)
उत्तर :
प्रोटीन जो जैव उत्प्रेरकों की तरह कार्य करते हैं तथा शरीर में होने वाली विभिन्न अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं, एंजाइम कहलाते हैं।

प्रश्न 4.
ग्राही कहाँ स्थित होते हैं?
उत्तर :
ग्राही कोशिका कला की बाहरी सतह पर स्थित होते हैं।

प्रश्न 5.
ऐलोस्टैरिक स्थान से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
एंजाइम का वह स्थान (सक्रिय स्थान से अलग) जहाँ पर एक अणु जुड़कर सक्रिय स्थान की आकृति को परिवर्तित कर देता है, ऐलोस्टैरिक स्थान कहलाता है।

प्रश्न 6.
ओमेप्राजोल किस प्रकार प्रतिअम्ल का कार्य करती है?
उत्तर :
ओमेप्राजोल आमाशय में HCl के बनने को रोककर प्रतिअम्ल का कार्य करती है।

प्रश्न 7.
किस औषध का प्रयोग हृदयाघातों को रोकने के लिए किया जाता है?
उत्तर :
एस्पिरिन।

प्रश्न 8.
एस्पिरिन किस प्रकार पीड़ाहारी का कार्य करती है?
उत्तर :
ऐस्पिरिन प्रोस्टाग्लैन्डिन के संश्लेषण को रोककर पीड़ाहारी का कार्य करती है। प्रोस्टाग्लैन्डिन ऊतकों की सूजन में वृद्धि कर दर्द उत्पन्न करते हैं।

प्रश्न 9.
एक पदार्थ का नाम लिखिए जो दोनों के समान कार्य करता है।

  1. पीड़ाहारी और ज्वरनाशी तथा
  2. पूतिरोधी और विसंक्रामी।

उत्तर :

  1. ऐस्पिरिन तथा
  2. फीनॉल।

प्रश्न 10.
प्रतिसूक्ष्मजैविक क्या होते हैं? या प्रतिजैविक क्या होते हैं? किन्हीं दो प्रतिजैविकों के नाम लिखिए। (2014)
उत्तर :
वे ड्रग जिनका प्रयोग सूक्ष्मजीवों; जैसे-जीवाणु, वाइरस, कवक आदि के द्वारा उत्पन्न रोगों के निवारण के लिए किया जाता है, प्रतिसूक्ष्मजैविक कहलाते हैं।
उदाहरणार्थ :
पेनिसिलीन तथा स्ट्रेप्टोमाइसिन।

प्रश्न 11.
अतिअम्तृता किस प्रकार हानिकारक है?
उत्तर :
अतिअम्लता से व्रण (ulcers) हो जाते हैं।

प्रश्न 12.
एक विस्तृत परास वाले प्रतिजैविक का नाम लिखिए।
उत्तर :
क्लोरमफेनिकॉल।

प्रश्न 13.
सल्फा ड्रग का मूल यौगिक क्या है?
उत्तर :
सल्फोनिलेमाइड

प्रश्न 14.
सल्फा ड्रग्स प्रतिजैविकों की तरह कार्य करती हैं लेकिन प्रतिजैविक नहीं होती हैं। क्या यह कथन सत्य है और क्यों?
उत्तर :
यह कथन सत्य है। सल्फा ड्रग्स सूक्ष्मजीवियों के प्रति प्रतिजैविकों के समान व्यवहार करती हैं। लेकिन सूक्ष्मजीवियों से प्राप्त नहीं होती हैं।

प्रश्न 15.
आँखों के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले पूतिरोधी का नाम लिखिए।
उत्तर :
बोरिक अम्ल (HBO3) का प्रयोग आँखों के लिए प्रतिरोधी के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 16.
रासायनिक रूप से सैकेरिन क्या है?
उत्तर :
ऑथोंसल्फोबेन्जीमाइड।

प्रश्न 17.
एक कृत्रिम मधुरक का नाम लिखिए जो सुक्रोस का व्युत्पन्न है।
उत्तर :
सुक्रोलोस।

प्रश्न 18.
D – शर्कराएँ अन्तर्ग्रहीत कैलोरी बढ़ाती हैं, जबकि L – शर्कराएँ नहीं, क्यों?
उत्तर :
L – शर्कराएँ अन्तर्ग्रहीत कैलोरी नहीं बढ़ातीं क्योंकि हमारे शरीर में इनका उपापचय करने वाले । एंजाइम नहीं पाए जाते हैं; अतः ये पूर्वावस्था में ही उत्सर्जित हो जाती हैं।

प्रश्न 19.
दो अम्लों के नाम लिखिए जिनके सोडियम लवण खाद्य परिरक्षकों की भाँति प्रयोग किए जाते हैं।
उत्तर :
बेन्जोइक अम्ल तथा सॉर्बिक अम्ल।

प्रश्न 20.
संश्लेषित अपमार्जक क्या होते हैं? किन्हीं दो अपर्माजकों के नाम लिखिए।
उत्तर :
यह एक विशेष प्रकार का कृत्रिम आयनिक कार्बनिक पदार्थ है जिसमें साबुन की तरह मैल घोलने का गुण पाया जाता है। इसका प्रयोग कठोर एवं मृदु दोनों प्रकार के जल के साथ किया जा सकता है। यह प्रबल कार्बनिक अम्ल और प्रबल कार्बनिक क्षारक से बने हुए अति उच्च अणुभार के लवण होते हैं। जिसके धनायन या ऋणायन में 12 से 18 कार्बनिक परमाणुओं वाली हाइड्रोकार्बन शृंखला और जल विरोधी व जल स्नेही दोनों प्रकार उपस्थित होते हैं।
उदाहरण :
(i)
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(ii) सोडियम P डोडेसिलबेन्जीन सल्फोनेट
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प्रश्न 21.
मृदु साबुन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
ओलिक अम्ल, पामीटिक अम्ल, स्टियरिक अम्ल आदि वसीय अम्लों के पोटैशियम लवण मृदु . साबुन कहलाते हैं।

प्रश्न 22.
साबुनों में बाइथायोनल क्यों मिलाया जाता है?
उत्तर :
बाइथायोनल एक पूतिरोधी है। यह त्वचा पर जैव पदार्थों के जीवाणुओं द्वारा अपघटन से उत्पन्न दुर्गंध को समाप्त कर देता है इसलिए इसका प्रयोग साबुनों में किया जाता है।

प्रश्न 23.
किस प्रकार के अपमार्जक का उपयोग कीटाणुनाशक के रूप में किया जाता है?
उत्तर :
धनायनिक अपमार्जकों का।

प्रश्न 24.
किन अपमार्जकों को बर्तन धोने के लिए प्रयोग किया जाता है?
उत्तर :
अन-आयनिक अपमार्जकों को।

प्रश्न 25.
किस प्रकार के अपमार्जक जैव अनिम्नीकरणीय होते हैं?
उत्तर :
अत्यधिक शाखित अपमार्जक।

प्रश्न 26.
उस प्रतिऑक्सीकारक का नाम लिखिए जो मक्खन के भण्डारण के लिए प्रयुक्त होता है।
उत्तर :
BHA या सस्टेन।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रतिहिस्टैमिन क्या होते हैं। दो उदाहरण दीजिए। समझाइए कि ये मानव शरीर पर कैसे कार्य करते हैं?
उत्तर :
वे ड्रग जो हिस्टैमिन के प्रभावों को समाप्त करने के लिए प्रयोग की जाती हैं, प्रतिहिस्टैमिन कहलाती हैं।
उदाहरणार्थ :
ब्रोमफेनिरामिन, टरफेनाडिन, डाइफेनिलहाइड्रेजीन, क्लोरफेनिरैमीन मैलिएट आदि। प्रतिहिस्टैमिन हिस्टैमिन के साथ ‘ग्राही की उस बंधनी सतह के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं जिस पर हिस्टैमिन अपना प्रभाव डालती हैं। इस प्रकार ये हिस्टैमिन के प्राकृतिक कार्य में बाधा डालती हैं तथा हमारे । शरीर को उनके प्रभावों से मुक्ति दिलाती हैं।

प्रश्न 2.
ऐण्टीफर्टीलिटी ड्रग्स (antifertility drugs) से आप क्या समझते हैं? समझाइए।
उत्तर :
वे रासायनिक पदार्थ जो जनन अथवा उत्पादकता (productivity) पर नियन्त्रण रखते हैं, प्रतिजनन क्षमता औषधि (antifertility drugs) कहलाते हैं। इनको विकसित करने का उद्देश्य विश्व की बढ़ती हुई आबादी को कम करना एवं उसको नियन्त्रित करना है। इस दिशा में प्रयोग चूहे, मानव, खरगोश एवं बन्दरों पर करके सार्थक परिणाम निकाले गए। जनन नियन्त्रण औषधियों में संश्लेषित ऐस्ट्रोजन (estrogen) तथा प्रोजेस्टेरोन (progesterone) व्युत्पन्नों का मिश्रण होता है। संश्लेषित प्रोजेस्टोरोन व्युत्पन्न प्राकृतिक प्रोजेस्टेरोन से अधिक प्रभावशाली होते हैं। दोनों ही यौगिक हॉर्मोन होते हैं।

(1) संश्लेषित एस्ट्रोजन :
मौखिक गर्भ निरोधकों के रूप में दो संश्लेषित एस्ट्रोजन प्रयोग किए जा रहे हैं; जैसे-एथाइनिल एस्ट्रोडाइऑल (ethynyl estradiol)।

(2) संश्लेषित प्रोजेस्टेरोन :
ये तीन प्रकार के होते हैं— प्रेगानेन, ओएस्ट्रॉन और गोनॉन। इनमें प्रेगानेन लम्बे समय तक नहीं दी जाती है क्योंकि स्तन कैंसर का भय रहता है। इसी प्रकार ओएस्ट्रॉन जिसे 19 – नॉरटेस्टोस्टेरोन भी कहते हैं, का अधिक समय तक प्रयोग नहीं किया जाता है। गोनॉन सबसे पसंदीदा गर्भ निरोधक हॉर्मोन है जो आजकल प्रयुक्त की जा रही है।

प्रोजेस्टेरोन अण्डोत्सर्ग को निरोधित करता है। नॉरएथिनड्रॉन (norethindrone) संश्लेषित प्रोजेस्टेरोन व्युत्पन्न को एक उदाहरण है जो व्यापक रूप से जनन नियन्त्रण गोलियों में प्रयोग होता है। एथाइनिलएस्ट्राडाइऑल (ethynylestradiol) एक एस्ट्रोजन व्युत्पन्न है जो प्रोजेस्टेरोन व्युत्पन्न के साथ जनन नियन्त्रण गोलियों में प्रयुक्त होता है।
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माइफप्रिस्टॉन एक संश्लेषित स्टेरॉयड है। यह प्रोजेस्टेरोन के प्रभाव को अवरोधित करके गर्भ नियन्त्रण का कार्य करता है।
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गर्म निरोधक औषधियों के विभिन्न पार्श्व प्रभाव हैं; जैसे :

  1. ये मासिक धर्म को अकथनीय रूप में, लम्बे समय के लिए अधिक रक्तस्राव में बदल देती हैं।
  2. इनसे बाँझपन भी उत्पन्न हो जाता है।
  3. इनसे महिलाओं का वजन भी बढ़ता है।

प्रश्न 3.
प्रतिऑक्सीकारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
प्रतिऑक्सीकारक :
वे रासायनिक पदार्थ जो वसा तथा वसा युक्त पदार्थों से मिलकर उनके ऑक्सीकरण को रोकते हैं और उनके जीवनकाल को बढ़ाते हैं, प्रतिऑक्सीकारक कहलाते हैं। ये ऑक्सीजन के प्रति अत्यन्त क्रियाशील होते हैं। प्रतिस्थापी फीनॉलिक (phenolic) यौगिकों का उपयोग । प्रतिऑक्सीकारक के रूप में होता है। ब्यूटिल हाइड्रॉक्सी ऐनिसोल (BHA) (butyl hydroxy anisol) एक अविषैला (non-toxic) प्रतिऑक्सीकारक है जिसका व्यापारिक नाम सस्टेन (sustane) है। यह मक्खन के लिए अच्छा ऑक्सीकारक है। इसके अतिरिक्त ब्यूटिल हाइड्रॉक्सी टॉलूईन (BHT) 2, 3 – डाइतृतीयक ब्यूटिल p-ऐनिसॉल (2, 3 – ditertiary butyl p  anisol) (BHA) तथा प्रोपिल-3, 4, 5 -ट्राइहाइड्रॉक्सी बेन्जोएट (propyl-3, 4, 5 -trihydroxy  benzoate) जिसे प्रोपिल गैलेट (propyl gallate) या (PG) भी कहते हैं, आदि प्रतिऑक्सीकारक हैं। ये बहुत कम सान्द्रता (< 0.01%) पर प्रभावी होते हैं। ये भोज्य पदार्थ में उपस्थित आवश्यक वसीय अम्ल (fatty acids) तथा विटामिन (vitamins) के पौष्टिक मान (nutritional value) को बराबर रखते हैं।
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इसके अतिरिक्त, विटामिन E, सल्फर डाइऑक्साइड तथा ऐस्कॉर्बिक अम्ल विटामिन C को भी प्रतिऑक्सीकारक के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। इनका उपयोग सामान्य रूप में शराब व बीयर, मीठे तरल पदार्थ, सब्जी तथा कटे, छिले शुष्क फलों के लिए प्रतिऑक्सीकारकों के रूप में किया जाता है। ऐस्कॉर्बिक अम्ल एन्जाइमकृत फेनिल यौगिक के ऑक्सीकरण से उत्पन्न भूरेपन को रोकता है।

प्रश्न 4.
निम्न पर टिप्पणी लिखिए|
(i) ऐस्प्रिन औषधि हृदयाघात से बचाती है।
(ii) डायबिटीज रोगियों को प्राकृतिक मधुरकों के स्थान पर कृत्रिम मधुरक लेने की सलाह दी जाती है।
(iii) अपमार्जक जैव अनिम्नीकरणीय होते हैं जबकि साबुन जैव निम्नीकरणीय होते हैं।
उत्तर :
(i) ऐस्प्रिन औषधि हृदयाघात से बचाती है, क्योंकि यह रक्त स्कन्दन रोधी होती है अर्थात् यह रक्त के स्कन्दित होने को कम करती है और स्कन्दित रक्त को तरल में परिवर्तित करती है जिससे रक्त का सुचारु प्रवाह शरीर में होता रहता है और हम हृदयाघात से बच जाते हैं।

(ii) डायबिटीज रोगियों को प्राकृतिक मधुरकों के स्थान पर कृत्रिम मधुरक लेने की सलाह दी जाती है, क्योंकि प्राकृतिक मधुरक रक्त शर्करा के स्तर को बढ़ाते हैं, जबकि कृत्रिम मधुरक रक्त शर्करा का स्तर नहीं बढ़ाते हैं जिससे रोगी स्वस्थ रहता है।

(iii) अपमार्जकों में अत्यधिक शाखित हाइड्रोकार्बन श्रृंखलाएँ होती हैं जिन्हें जीवाणु अपघटित नहीं कर पाते हैं, जबकि साबुन को जीवाणु आसानी से अपघटित कर देते हैं। इसलिए अपमार्जक जैव अनिम्नीकरणीय व साबुन जैव निम्नीकरण होते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
औषध तथा एन्जाइम के मध्य अन्योन्यक्रिया को समझाइए।
उत्तर :
1. औषध तथा एन्जाइम के मध्य अन्योन्यक्रिया (Interaction between Drug and Enzyme) :
जैविक वृहद्-अणु शरीर में विभिन्न कार्य करते हैं जैसे जैव उत्प्रेरक का कार्य करने वाले प्रोटीन्स को एन्जाइम कहते हैं तथा जो प्रोटीन शरीर की संचार व्यवस्था में निर्णायक होते हैं, उन्हें ग्राही कहते हैं। औषध साधारणतया इन वृहद्-अणुओं से अन्योन्यक्रिया करती हैं। औषध तथा एन्जाइम के मध्य अन्योन्यक्रिया को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि एन्जाइम अभिक्रिया का उत्प्रेरण कैसे करते हैं।

2. एन्जाइम का उत्प्रेरण कार्य (Catalytic Function of Enzyme) :
उत्प्रेरण क्रिया में एन्जाइम दो प्रमुख कार्य करते हैं जो निम्नलिखित हैं
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(i) एन्जाइम का पहला कार्य क्रियाधार (सबस्ट्रेट) को रासायनिक अभिक्रिया के लिए बाँधे रखना है। एन्जाइम की सक्रिय सतह क्रियाधार अणु को उपयुक्त स्थिति में बाँधे रखती है जिससे इस पर अभिक्रियक द्वारा प्रभावकारी आक्रमण हो सके। क्रियाधार एन्जाइम की सक्रिय सतह पर विभिन्न प्रकार की अन्योन्यक्रियाओं द्वारा बँधते हैं; जैसे-आयनिक आबन्ध, हाइड्रोजन आबन्ध, वान्डरवाल्स अन्योन्यक्रिया या द्विध्रुव-द्विध्रुव बल।

(ii) एन्जाइम का दूसरा कार्य क्रियाधार पर आक्रमण करके रासायनिक अभिक्रिया करने के लिए प्रकार्यात्मक समूह उपलब्ध कराना है, जो क्रियाधार पर आक्रमण करके रासायनिक अभिक्रिया करेगा। औषध-एन्जाइम अन्योन्यक्रिया

3. (Drug-Enzyme Interaction) :
औषध एन्जाइम की उपर्युक्त गतिविधियों में से किसी में भी अवरोध उत्पन्न करती हैं। ये एन्जाइम की बन्धनी सतह को अवरुद्ध कर सकती हैं और क्रियाधार के आबन्धन में रुकावट डाल सकती हैं अथवा ये एन्जाइम के उत्प्रेरक कार्य में अवरोध उत्पन्न कर सकती हैं, ऐसी औषधों को एन्जाइम संदमक (enzyme inhibitors) कहते हैं। औषध एन्जाइम की सक्रिय सतह पर क्रियाधार के संयोजन में दो प्रकार से अवरोध उत्पन्न कर सकती हैं
(i) औषध एन्जाइम की सक्रिय सतह पर संयोजन के लिए वास्तविक क्रियाधार से स्पर्धा करती हैं। ऐसी औषधों को स्पर्धा संदमक (competitive inhibitors) कहते हैं।
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(ii) कुछ औषध एन्जाइम की सक्रिय सतह पर संयोजन नहीं करतीं। ये एन्जाइम की भिन्न सतह पर संयोजन करती हैं जिसे ऐलोस्टीरिक सतह कहते हैं। इस प्रकार संदमके के ऐलोस्टीरिक सतह पर संयोजन से सक्रिय सतह की आकृति इस प्रकार परिवर्तित हो जाती है कि क्रियाधार इसे पहचान नहीं
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यदि एन्जाइम तथा संदमक के बीच बना आबन्ध मजबूत सहसंयोजी आबन्ध हो और आसानी से तोड़ा न जा सके तो एन्जाइम स्थायी रूप से अवरुद्ध हो जाता है, तब शरीर एन्जाइम-संदमक संकुल को निम्नीकृत कर देता है और नया एन्जाइम बनाता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 11 Alcohols Phenols and Ethers

UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 11 Alcohols Phenols and Ethers (ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर) are part of UP Board Solutions for Class 12 Chemistry. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 11 Alcohols Phenols and Ethers (ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Chemistry
Chapter Chapter 11
Chapter Name Alcohols Phenols and Ethers
Number of Questions Solved 81
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 11 Alcohols Phenols and Ethers (ऐल्कोहॉल, फीनॉल एवं ईथर)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक ऐल्कोहॉल में वर्गीकृत कीजिए –
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उत्तर
प्राथमिक ऐल्कोहॉल : (i), (ii), (iii)
द्वितीयक ऐल्कोहॉल : (iv), (v)
तृतीयक ऐल्कोहॉल : (vi)

प्रश्न 2.
उपर्युक्त उदाहरणों में से ऐलिलिक ऐल्कोहॉलों को पहचानिए।
उत्तर
(ii) तथा (vi)।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित यौगिकों के आई०यू०पी०ए०सी० (IUPAC) नामपद्धति से नाम दीजिए –
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उत्तर
(i) 3-क्लोरोमेथिल-2-आइसोप्रोपिलपेण्टेन-1-ऑल
(ii) 2,5-डाइमेथिलहेक्सेन -1,3-डाइऑल
(iii) 3-ब्रोमोसाइक्लोहेक्सेनॉल
(iv) हेक्स-1-ईन-3-ऑल
(v) 2-ब्रोमो-3-मेथिलब्यूट-2-ईन-1-ऑल

प्रश्न 4.
दर्शाइए कि मेथेनल पर उपयुक्त ग्रीन्यार अभिकर्मक से अभिक्रिया द्वारा निम्नलिखित ऐल्कोहॉल कैसे विरचित किए जाते हैं?
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उत्तर
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित अभिक्रिया के उत्पादों की संरचना लिखिए –
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उत्तर
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(ii) NaBH4 एक दुर्बल अपचायक है, यह ऐल्डिहाइड/कीटोन को अपचयित कर सकता है, परन्तु एस्टर को नहीं।
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(iii) -CHO समूह -CH2OH में अपचयित हो जाता है।
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प्रश्न 6.
यदि निम्नलिखित ऐल्कोहॉल क्रमशः (a) HCl-ZnCl2, (b) HBr, (c) SOCl2 से अभिक्रिया करें तो आप अपेक्षित उत्पादों की संरचनाएँ दीजिए।
(i) ब्यूटेन-1-ऑल
(ii) 2-मेथिलब्यूटेन-2-ऑल।
उत्तर
(a) HCl-ZnClz (ल्यूकास अभिकर्मक) के साथ
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(b) HBr के साथ
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(c) SOCl2 के साथ
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प्रश्न 7.
(i) 1-मेथिलसाइक्लोहेक्सेनॉल और (ii) ब्यूटेन-1-ऑल के अम्ल उत्प्रेरित निर्जलन के मुख्य उत्पादों की प्रागुक्ति कीजिए।
या
किसी ऐल्कोहॉल की किसी एक निर्जलीकरण अभिक्रिया का रासायनिक समीकरण लिखिए। (2018)
उत्तर
(i) 1-मेथिलसाइक्लोहेक्सेनॉल का अम्ल उत्प्रेरित निर्जलन दो उत्पाद, I तथा II दे सकता है। चूँकि उत्पाद (I) अधिक उच्च प्रतिस्थापित है, इसलिए सेटजेफ नियम के अनुसार यह मुख्य उत्पाद है।
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(ii) ब्यूटेन-1-ऑल का अम्ल उत्प्रेरित निर्जलन मुख्य उत्पाद के रूप में ब्यूट-2-ईन तथा गौण उत्पाद के रूप में ब्यूट-1-ईन उत्पन्न करता है। इसका कारण यह है कि ऐल्कोहॉलों का निर्जलन कार्बोधनायने माध्यमिकों के द्वारा होता है। पुनः ब्यूटेन-1-ऑल 1° ऐल्कोहॉल होने के कारण प्रोटॉनीकरण तथा H2O के विलोपन पर पहले 1° कार्बोधनायन (I) देता है जो कम स्थायी होने के कारण पुनर्व्यवस्थित होकर अधिक स्थायी 2° कार्बोधनायन (II) बनाता है, तब यह दो भिन्न प्रकारों से प्रोटॉन निकालकर ब्यूट-2-ईन या ब्यूटन-1-ईन बनाता है। चूंकि ब्यूट-2-ईन अधिक स्थायी है, इसलिए सेटजेफ नियम के अनुसार यह मुख्य उत्पाद होता है।
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प्रश्न 8.
ऑथों तथा पैरा-नाइट्रोफीनॉल, फीनॉल से अधिक अम्लीय होते हैं। उनके संगत फीनॉक्साइड आयनों की अनुनादी संरचनाएँ बनाइए।
उत्तर
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प्रतिस्थापित फीनॉलों में इलेक्ट्रॉन निष्कासक समूह (electron withdrawing group) जैसे नाइट्रो समूह; फीनॉल की अम्लीय सामर्थ्य को बढ़ा देते हैं। जब ऐसे समूह ऑर्थों एवं पैरा स्थितियों पर उपस्थित होते हैं तो यह प्रभाव अधिक प्रबल हो जाता है। इसका कारण फोनॉक्साइड आयन के ऋणायन का प्रभावी विस्थानने (delocalisation) है। अत: फीनॉल की तुलना में 0-तथा p-नाइट्रोफीनॉल अधिक अम्लीय होते हैं।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं में सम्मिलित समीकरण लिखिए –

  1. राइमर-टीमैन अभिक्रिया
  2. कोल्बे अभिक्रिया अथवा कोल्बे श्मिट अभिक्रिया। (2018)

उत्तर
1. राइमर-टीमैन अभिक्रिया (Reimer-Teimann Reaction) – फीनॉल की सोडियम हाइड्रॉक्साइड की उपस्थिति में क्लोरोफॉर्म के साथ अभिक्रिया से बेन्जीन में,—CHO समूह ऑर्थो स्थिति पर प्रवेश कर जाता है। इस अभिक्रिया को राइमर-टीमैन अभिक्रिया कहते हैं।
प्रतिस्थापित मध्यवर्ती बेन्जिल क्लोराइड क्षार की उपस्थिति में अपघटित होकर सैलिसिलैल्डिहाइड बनाता है।
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2. कोल्बे अभिक्रिया अथवा कोल्बे श्मिट अभिक्रिया (Kolbe’s Reaction or Kolbe Schmidt Reaction) – फीनॉल को सोडियम हाइड्रॉक्साइड के साथ अभिकृत कराने से बना फीनॉक्साइड आयन, फीनॉल की अपेक्षा इलेक्ट्रॉनरागी ऐरोमैटिक प्रतिस्थापन अभिक्रिया के प्रति अधिक क्रियाशील होता है। अतः यह CO2 जैसे दुर्बल इलेक्ट्रॉनरागी के साथ इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया करता है। इससे ऑथों-हाइड्रॉक्सीबेन्जोइक अम्ल मुख्य उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है।
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प्रश्न 10.
एथेनॉल एवं 3-मेथिलपेन्टेन-2-ऑल से प्रारम्भ कर 2-एथॉक्सी-3-मेथिलपेन्टेन के विलियमसन संश्लेषण की अभिक्रिया लिखिए –
उत्तर
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प्रश्न 11.
1-मेथॉक्सी-4-नाइट्रोबेन्जीन के विरचन के लिए निम्नलिखित अभिकारकों में से कौन-सा युग्म उपयुक्त है और क्यों?
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उत्तर
अभिकारकों के दोनों युग्म उपयुक्त हैं। प्रथम युग्म में, -NO2 समूह के इलेक्ट्रॉन निष्कासक प्रभाव के कारण Br परमाणु सक्रियित होता है। CH3ONa के नाभिकस्नेही आक्रमण तथा उसके पश्चात् NaBr के विलोपन से वांछित ईथर प्राप्त होता है। दूसरे युग्म में, मेथिल ब्रोमाइड पर 4-नाइट्रोफीनॉक्साइड आयन के नाभिकस्नेही आक्रमण द्वारा वांछित ईथर प्राप्त होता है।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं से प्राप्त उत्पादों का अनुमान लगाइए –
(i) CH3-CH2-CH2-O-CH3 + HBr →
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(iv) (CH3)3C – OC2H5 [latex]\underrightarrow { HI } [/latex]
उत्तर
(i) ऑक्सीजन से जुड़े दोनों ऐल्किल समूह प्राथमिक हैं, इसलिए Br आयन की अभिक्रिया छोटे ऐल्किल समूह (मेथिल समूह) से होगी तथा प्रोपेन-1-ऑल तथा ब्रोमोमेथेन का निर्माण होगा।
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(ii) अनुनाद के कारण, C6H5-O आबन्ध में कुछ द्विआबन्ध गुण विद्यमान होता है, इसलिए यह O-C2H5 आबन्ध से प्रबल होता है। अत: दुर्बल O-C2H5 आबन्ध का विदलन होता है तथा फीनॉल एवं ब्रोमोएथेन प्राप्त होते हैं।
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(iii) इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन में, ऐल्कॉक्सी समूह ऐरोमैटिक वलय को सक्रिय बनाता है तथा प्रवेश करने वाले समूह को 0-तथा p-स्थितियों की ओर निर्दिष्ट करता है। इसलिए एथॉक्सीबेन्जीन का नाइट्रीकरण 2-तथा 4-नाइट्रोएथॉक्सीबेन्जीन का मिश्रण देता है जिसमें 4-नाइट्रोएथॉक्सीबेन्जीन 2-स्थिति पर त्रिविमीय बाधा के कारण मुख्य उत्पाद होता है।
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(iv) चूंकि एथिल कार्बोधनायन की तुलना में तृतीयक-ब्यूटिल कार्बोधनायन अत्यधिक स्थायी होता है, इसीलिए अभिक्रिया SN 1 क्रियाविधि द्वारा होती है तथा तृतीयक-ब्यूटिल आयोडाइड एवं एथेनॉल निम्नलिखित प्रकार बनते हैं –
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अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित यौगिकों के आई०यू०पी०ए०सी० (IUPAC) नाम लिखिए –
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उत्तर
(i) 2, 2, 4-ट्राइमेथिलपेन्टेन-3-ऑल
(ii) 5-एथिलहेप्टेन-2, 4-डाइऑल
(iii) ब्यूटेन-2, 3-डाइऑल
(iv) प्रोपेन-1,2,3-ट्राइऑल
(v) 2-मेथिलफीनॉल
(vi) 4-मेथिलफीनॉल
(vii) 2,5-डाइमेथिलफोनॉल
(viii) 2,6-डाइमेथिलफीनॉल
(ix) 1-मेथॉक्सी-2-मेथिलप्रोपेन
(x) एथॉक्सीबेन्जीन
(xi) 1-फीनॉक्सीहेप्टेन
(xii) 2-एथॉक्सीब्यूटेन

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आई०यू०पी०ए०सी० (IUPAC) नाम वाले यौगिकों की संरचनाएँ लिखिए –
(i) 2-मेथिलब्यूटेन-2-ऑल
(ii) 1-फेनिलप्रोपेन-2-ऑल
(iii) 3,5-डाइमेथिलहेक्सेन-1,3,5-ट्राइऑल
(iv) 2,3-डाइएथिलफीनॉल
(v) 1-एथॉक्सीप्रोपेन
(vi) 2-एथॉक्सी-3-मेथिलपेन्टेन
(vii) साइक्लोहेक्सिलमेथेनॉल
(viii) 3-साइक्लोहेक्सिलपेन्टेन-3-ऑल
(ix) साइक्लोपेन्टेन-3-ईन-1-ऑल
(x) 3-क्लोरोमेथिलपेन्टेन-1-ऑल।
उत्तर
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प्रश्न 3.
(i) С5H12O आणिवक सूत्र वाले ऐलकोहॉलों के सभी समावयवो की सरचना लिखिए एवं  उनके आई०यू०पी०ए०सी० (IUPAC) नाम दीजिए।
(ii) प्रश्न 3(i) के समावयवी ऐल्कोहॉलों को प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक ऐल्कोहॉलों में वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर
C5H12O के 8 समावयवी सम्भव हैं। ये निम्नवत् हैं –
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(ii)

  • प्राथमिक ऐल्कोहॉल – उपर्युक्त में से (i), (iv), (v), (vii)
  • द्वितीयक ऐल्कोहॉल – उपर्युक्त में से (ii), (iii), (viii)
  • तृतीयक ऐल्कोहॉल – उपर्युक्त में से (vi)

प्रश्न 4.
समझाइए कि प्रोपेनॉल का क्वथनांक, हाइड्रोकार्बन ब्यूटेन से अधिक क्यों होता है?
उत्तर
प्रोपेनॉल तथा ब्यूटेन लगभग समान अणु द्रव्यमान के होते हैं, लेकिन प्रोपेनॉल का क्वथनांक उच्च होता है, क्योंकि इसके अणुओं के मध्य अन्तरा-आण्विक हाइड्रोजन आबन्धन पाये जाते हैं। ब्यूटेन में ध्रुवीय –OH समूह की अनुपस्थिति के कारण H-आबन्धन नहीं पाये जाते हैं। ये परस्पर दुर्बल वीण्डरवाल आकर्षण बलों द्वारा जुड़े रहते हैं।
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प्रश्न 5.
समतुल्य आण्विक भार वाले हाइड्रोकार्बनों की अपेक्षा ऐल्कोहॉल जल में अधिक विलेय होते हैं। इस तथ्य को समझाइए।
उत्तर
समतुल्य अणुभार वाले हाइड्रोकार्बनों की अपेक्षा ऐल्कोहॉल जल में अधिक विलेय होते हैं क्योंकि ऐल्कोहॉल अणु जल के साथ हाइड्रोजन आबन्धन बनाते हैं तथा जल के अणुओं के मध्य पहले से उपस्थित H-आबन्धों को तोड़ भी सकते हैं। हाइड्रोकार्बन ऐसा नहीं कर पाते हैं।

प्रश्न 6.
हाइड्रोबोरॉनीकरण-ऑक्सीकरण अभिक्रिया से आप क्या समझते हैं? इसे उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर
डाइबोरेन का ऐल्कीनों से योग द्वारा ट्राइऐल्किलबोरेन का निर्माण तथा इसके क्षारीय H2O2 द्वारा ऑक्सीकरण से ऐल्कोहॉल का निर्माण, यह अभिक्रिया हाइड्रोबोरॉनीकरण-ऑक्सीकरण कहलाती है।
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प्रश्न 7.
आण्विक सूत्र C7H8O वाले मोनोहाइड्रिक फीनॉलों की संरचनाएँ तथा आई०यू०पी०ए०सी० (IUPAC) नाम लिखिए।
उत्तर
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प्रश्न 8.
ऑर्थों तथा पैरा-नाइट्रोफीनॉलों के मिश्रण को भाप-आसवन द्वारा पृथक करने में भाप-वाष्पशील समावयवी का नाम बताइए। इसका कारण दीजिए।
उत्तर
o-नाइट्रोफीनॉल अन्त:अणुक हाइड्रोजन आबन्धन (intra-molecular hydrogen bonding) के कारण भाप वाष्पशील होता है, जबकि p-नाइट्रोफीनॉल अन्तरा-अणुक हाइड्रोजन आबन्धन (intermolecular hydrogen bonding) के कारण कम वाष्पशील होता है।

प्रश्न 9.
क्यूमीन से फीनॉल बनाने की अभिक्रिया का समीकरण दीजिए। (2018)
उत्तर
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प्रश्न 10.
क्लोरोबेन्जीन से फीनॉल बनाने की रासायनिक अभिक्रिया लिखिए। (2018)
उत्तर
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प्रश्न 11.
एथीन के जलयोजन से एथेनॉल प्राप्त करने की क्रियाविधि लिखिए।
उत्तर
किसी अम्ल की उपस्थिति में एथीन का जल से सीधा योग नहीं होता है। एथीन को सर्वप्रथम सान्द्र H2SO4 में प्रवाहित किया जाता है जिससे एथिल हाइड्रोजन सल्फेट बनता है।
H2SO4 → H+ + [latex]\overset { – }{ O } [/latex]SO2OH
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एथिल हाइड्रोजन सल्फेट एथिल हाइड्रोजन सल्फेट को जल के साथ उबालकर जल-अपघटन करने पर एथेनॉल बनता है।
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प्रश्न 12.
आपको बेन्जीन, सान्द्र H2SO4 और NaOH दिए गए हैं। इन अभिकर्मकों के उपयोग द्वारा फीनॉल के विरचन की समीकरण लिखिए। (2013, 18)
उत्तर
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प्रश्न 13.
आप निम्नलिखित को कैसे संश्लेषित करेंगे? दर्शाइए।

  1. एक उपयुक्त ऐल्कीन से 1-फेनिलएथेनॉल
  2. SN 2 अभिक्रिया द्वारा ऐल्किल हैलाइड के उपयोग से साइक्लोहेक्सिलमेथेनॉल
  3. एक उपयुक्त ऐल्किल हैलाइड के उपयोग से पेन्टेन-1-ऑल।

उत्तर
1. तनु H2SO4 की उपस्थिति में एथिनिलबेन्जीन से जल का योग 1-फेनिलएथेनॉल देता है।
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2. जलीय NaOH द्वारा साइक्लोहेक्सिलमेथिल ब्रोमाइड का जल-अपघटन साइक्लोहेक्सिलमेथेनॉल देता है।
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3. जलीय NaOH द्वारा 1-ब्रोमोप्रोपेन का जल-अपघटन प्रोपेन-1-ऑल देता है।
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प्रश्न 14.
ऐसी दो अभिक्रियाएँ दीजिए जिनसे फीनॉल की अम्लीय प्रकृति प्रदर्शित होती हो, फीनॉल की अम्लता की तुलना एथेनॉल से कीजिए।
उत्तर
फीनॉल की अम्लीय प्रकृति प्रदर्शित करने वाली अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं –
(i) सोडियम से अभिक्रिया (Reaction with sodium) – फीनॉल सक्रिय धातुओं; जैसे–सोडियम से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन मुक्त करता है।
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(ii) NaOH से अभिक्रिया (Reaction with NaOH) – फीनॉल NaOH में घुलकर सोडियम फीनॉक्साइड तथा जल बनाता है।
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फीनॉल तथा एथेनॉल की अम्लता की तुलना
(Comparison of Acidity of Phenol and Ethanol)
एथेनॉल की तुलना में फीनॉल अधिक अम्लीय होता है। इसका कारण यह है कि फीनॉल से एक प्रोटॉन निकल जाने के बाद प्राप्त फोनॉक्साइड आयन अनुनाद द्वारा स्थायित्व प्राप्त कर लेता है, जबकि एथॉक्साइड आयन (एथेनॉल से एक प्रोटॉन निकलने के बाद) स्थायी नहीं होता है।
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प्रश्न 15.
समझाइए कि ऑर्थों-नाइट्रोफीनॉल, ऑर्थों-मेथॉक्सीफीनॉल से अधिक अम्लीय क्यों होता है।
उत्तर
NO2 समूह के प्रबल –R तथा -[ प्रभाव के कारण O-H आबन्ध पर इलेक्ट्रॉन घनत्व घट जाता है, अत: प्रोटॉन आसानी से मुक्त हो जाता है।
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प्रोटॉन त्यागने के पश्चात् शेष बचा o-नाइट्रोफीनॉक्साइड आयन अनुनाद द्वारा स्थायित्व प्राप्त करता है।
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ऑर्थों-नाइट्रोफीनॉक्साइड आयन अनुनाद स्थायी होता है, अत: 0- नाइट्रोफीनॉल एक प्रबल अम्ल है। दूसरी तरफ OCH3 समूह के +R प्रभाव के कारण O–H आबन्ध पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ जाता है, अत: प्रोटॉन का निष्कासन कठिन हो जाता है।
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अब o- मेथॉक्सीफोनॉक्साइड आयन जो कि प्रोटॉन के खोने के बाद शेष रहता है, अनुनाद के कारण विस्थायी (destablized) हो जाता है।
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दो ऋणावेश परस्पर प्रतिकर्षित करते हैं तथा 0-मेथॉक्सीफीनॉक्साइड आयन को विस्थायी (destablize) करते हैं, अत: o-नाइट्रोफीनॉल, o-मेथॉक्सीफीनॉल से अधिक अम्लीय होता है।

प्रश्न 16.
समझाइए कि बेन्जीन वलय से जुड़ा–OH समूह उसे इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन के प्रति कैसे सक्रियित करता है?
उत्तर
फीनॉल को निम्नलिखित संरचनाओं को अनुनादी संकर माना जाता है –
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–OH समूह का + R प्रभाव बेन्जीन वलय पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ा देता है जिससे इलेक्ट्रॉनस्नेही की आक्रमण सरल हो जाता है। अतः –OH समूह की उपस्थिति से बेन्जीन वलय इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन क्रियाओं के प्रति सक्रियित होती है। चूंकि ऑथों तथा पैरा स्थानों पर इलेक्ट्रॉन घनत्व आपेक्षिक रूप से उच्च होता है, अत: इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन मुख्यत: ऑर्थों तथा पैरा स्थानों पर अधिक होता है।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं के लिए समीकरण दीजिए –
(i) प्रोपेन-1-ऑल का क्षारीय KMnO4 के साथ ऑक्सीकरण
(ii) ब्रोमीन की CS2 में फीनॉल के साथ अभिक्रिया
(iii) तनु HNO3 की फीनॉल से अभिक्रिया
(iv) फीनॉल की जलीय NaOH की उपस्थिति में क्लोरोफॉर्म के साथ अभिक्रिया।
उत्तर
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प्रश्न 18.
निम्नलिखित को उदाहरण सहित समझाइए –

  1. कोल्बे अभिक्रिया (2018)
  2. राइमर-टीमैन अभिक्रिया
  3. विलियमसन ईथर संश्लेषण
  4. असममित ईथर।

उत्तर
1. पाठ्यनिहित प्रश्न संख्या 9 (ii) देखिए।
2. पाठ्यनिहित प्रश्न संख्या 9 (i) देखिए।
3. विलियमसन ईथर संश्लेषण (Williamson Ether Synthesis) – यह सममित और असममित ईथरों को बनाने की एक महत्त्वपूर्ण प्रयोगशाला विधि है। इस विधि में ऐल्किल हैलाइड की सोडियम ऐल्कॉक्साइड के साथ अभिक्रिया कराई जाती है।
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प्रतिस्थापित (द्वितीयक अथवा तृतीयक) ऐल्किल समूह युक्त ईथर भी इस विधि द्वारा बनाए जा सकते हैं। इस अभिक्रिया में प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड पर ऐल्कॉक्साइड आयन का (SN 2) आक्रमण होता है।
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यदि ऐल्किल हैलाइड प्राथमिक होता है तो अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। द्वितीयक एवं तृतीयक ऐल्किल हैलाइडों की अभिक्रिया में विलोपन, प्रतिस्पर्धा में प्रतिस्थापन से आगे होता है। यदि तृतीयक ऐल्किल हैलाइड का उपयोग किया जाए तो उत्पाद के रूप में केवल ऐल्कीन प्राप्त होती है तथा कोई ईथर नहीं बनता। उदाहरणार्थ– CH3ONa की (CH3)3C-BF के साथ अभिक्रिया द्वारा केवल 2-मेथिलप्रोपीन प्राप्त होती है।
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4. असममित ईथर (Unsymmetrical ethers) – यदि ऑक्सीजन परमाणु से जुड़े ऐल्किल या ऐरिल समूह भिन्न-भिन्न होते हैं तो ईथर को असममित ईथर कहा जाता है। उदाहरणार्थ– एथिल मेथिल ईथर, मेथिल फेनिल ईथर आदि।
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प्रश्न 19.
एथेनॉल के अम्लीय निर्जलन से एथीन प्राप्त करने की क्रियाविधि लिखिए।
उत्तर
क्रियाविधि (Mechanism) – एथेनॉल के अम्लीय निर्जलन से एथीन प्राप्त करने की क्रियाविधि निम्नलिखित पदों में सम्पन्न होती है –
प्रथम पद : प्रोटॉनित ऐल्कोहॉल का बनना (Formation of protonated alcohol) –
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द्वितीय पद : कार्बोधनायन का बनना (Formation of Carbocation) – यह सबसे धीमा पद है, अतः यह अभिक्रिया का दर निर्धारक पद होता है।
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तृतीय पद : प्रोटॉन के निकल जाने से एथीन को बनना (Formation of ethene by elimination of a proton) –
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प्रथम पद में प्रयुक्त अम्ल, अभिक्रिया के तृतीय पद में मुक्त हो जाता है। साम्य को दायीं ओर विस्थापित करने के लिए एथीन बनते ही निष्कासित कर ली जाती है।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित परिवर्तनों को किस प्रकार किया जा सकता है?
(i) प्रोपीन → प्रोपेन-2-ऑल
(ii) बेन्जिल क्लोराइड → बेन्जिल ऐल्कोहॉल
(iii) एथिल मैग्नीशियम क्लोराइड → प्रोपेन-1-ऑल
(iv) मेथिल मैग्नीशियम ब्रोमाइड → 2-मेथिलप्रोपेन-2-ऑल।
उत्तर
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प्रश्न 21.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं में प्रयुक्त अभिकर्मकों के नाम बताइए –

  1. प्राथमिक ऐल्कोहॉल का कार्बोक्सिलिक अम्ल में ऑक्सीकरण
  2. प्राथमिक ऐल्कोहॉल का ऐल्डिहाइड में ऑक्सीकरण
  3. फीनॉल का 2, 4, 6-ट्राइब्रोमोफीनॉल में ब्रोमीनीकरण
  4. बेन्जिल ऐल्कोहॉल से बेन्जोइक अम्ल
  5. प्रोपेन-2-ऑल का प्रोपीन में निर्जलन ।
  6. ब्यूटेन-2-ऑन से ब्यूटेन-2-ऑल।

उत्तर

  1. अम्लीकृत पोटैशियम डाइक्रोमेट या उदासीन, अम्लीय या क्षारीय KMnO4
  2. पिरीडीनियम क्लोरोक्रोमेट (PCC), C5H5NH+Cr CrO3Cl (CH2Cl2 में)
    या पिरीडीनियम डाइक्रोमेट (PDC), (C5H5[latex]\overset { + }{ N }[/latex]H)2Cr2O7 (CH2Cl2 में)
  3. जलीय ब्रोमीन अर्थात् Br2/H2O
  4. अम्लीकृत या क्षारीय KMnO4
  5. सान्द्र H2SO4 (443 K पर)
  6. Ni/H2 या LiAlH4 या NaBH4

प्रश्न 22.
कारण बताइए कि मेथॉक्सीमेथेन की तुलना में एथेनॉल का क्वथनांक उच्च क्यों होता है?
उत्तर
ऋणविद्युती ऑक्सीजन परमाणु के हाइड्रोजन परमाणु से जुड़े होने के कारण एथेनॉल में अन्तरा-अणुक हाइड्रोजन आबन्धन पाया जाता है जिसके परिणामस्वरूप एथेनॉल संयुग्मी अणु के रूप में पाया जाता है। H-आबन्धों को तोड़ने के लिए ऊर्जा की अत्यधिक मात्रा की आवश्यकता पड़ती है। अतः एथेनॉल का क्वथनांक मेथॉक्सीमेथेन, जो कि हाइड्रोजन आबन्धन नहीं बनाता है, से उच्च होता है।

प्रश्न 23.
निम्नलिखित ईथरों के आई०यू०पी०ए०सी० (IUPAC) नाम दीजिए –
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उत्तर
(i) 1.एथॉक्सी-2-मेथिलप्रोपेन
(ii) 2-क्लोरो-1-मेथॉक्सीएथेन
(iii) 4.नाइट्रोऐनिसोल
(iv) 1-मेथॉक्सीप्रोपेन
(v) 4-एथॉक्सी-1,1-डाइमेथिलसाइक्लोहेक्सेन
(vi) एथॉक्सीबेन्जीन

प्रश्न 24.
निम्नलिखित ईथरों को विलियमसन संश्लेषण द्वारा बनाने के लिए अभिकर्मकों के नाम एवं समीकरण लिखिए –
(i) 1-प्रोपॉक्सीप्रोपेन
(ii) एथॉक्सीबेन्जीन
(iii) 2-मेथॉक्सी-2-मेथिलप्रोपेन
(iv) 1-मेथॉक्सीएथेन।
उत्तर
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प्रश्न 25.
कुछ विशेष प्रकार के ईथरों को विलियमसन संश्लेषण द्वारा बनाने की सीमाओं को उदाहरणों से समझाइए।
उत्तर
विलियमसन संश्लेषण को तृतीयक ऐल्किल हैलाइडों को बनाने में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है, चूंकि इससे ईथर के स्थान पर ऐल्कीन प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ– CH3ONa की (CH3)3C-Br के साथ अभिक्रिया द्वारा केवल 2-मेथिलप्रोपीन प्राप्त होती है।
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ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ऐल्कॉक्साइड ने केवल नाभिकरागी होते हैं, अपितु प्रबल क्षारक भी होते हैं। वे ऐल्किल हैलाइडों के साथ विलोपन, अभिक्रिया देते हैं।

प्रश्न 26.
प्रोपेन-1-ऑल से 1-प्रोपॉक्सीप्रोपेन को किस प्रकार बनाया जाता है? इस अभिक्रिया की क्रियाविधि लिखिए।
उत्तर
निम्नलिखित विधि का प्रयोग किया जाता है –
(a) विलियमसन संश्लेषण द्वारा (By Williamson synthesis)
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(b) 413 K पर 1-प्रोपेनॉल का सान्द्र H2SO4 के साथ निर्जलन द्वारा (By dehydration of 1-propanol with conc. H2SO4 at 413 K)
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प्रश्न 27.
द्वितीयकृ अथवा तृतीयक ऐल्कोहॉलों के अम्लीय निर्जलन द्वारा ईथरों को बनाने की विधि उपयुक्त नहीं है। कारण बताइए।
उत्तर
प्राथमिक ऐल्कोहॉलों का ईथरों में अम्लीय निर्जलन SN 2 क्रियाविधि द्वारा होता है जिसमें ऐल्कोहॉल अणु का नाभिकस्नेही आक्रमण प्रोटॉनीकृत ऐल्कोहॉल अणु पर होता है।
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इन परिस्थितियों में द्वितीयक तथा तृतीयक ऐल्कोहॉल ईथरों के स्थान पर ऐल्कीन देते हैं। प्रोटॉनीकृत ऐल्कोहॉल अणु पर ऐल्कोहॉल अणु का नाभिकस्नेही आक्रमण नहीं होता है। इसके स्थान पर प्रोटॉनीकृत द्वितीयक तथा तृतीयक ऐल्कोहॉल जल का एक अणु खोकर स्थायी 2° तथा 3° कार्बोधनायन बनाते हैं। ये कार्बोधनायन वरीयता से H+ खोकर ऐल्कीन बनाते हैं।
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समान प्रकार से 3° ऐल्कोहॉल ईथरों के स्थान पर ऐल्कीन देते हैं।
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प्रश्न 28.
हाइड्रोजन आयोडाइड की निम्नलिखित के साथ अभिक्रिया के लिए समीकरण लिखिए –
(i) 1-प्रोपॉक्सीप्रोपेन
(ii) मेथॉक्सीबेन्जीन तथा
(iii) बेन्जिल एथिल ईथर।
उत्तर
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प्रश्न 29.
ऐरिल ऐल्किल ईथरों में निम्नलिखित तथ्यों की व्याख्या कीजिए –

  1. ऐल्कॉक्सी समूह बेन्जीन वलय को इलेक्ट्रॉनरागी प्रतिस्थापन के प्रति सक्रियित करता है। तथा
  2. यह प्रवेश करने वाले प्रतिस्थापियों को बेन्जीन वलय की ऑर्थोएवं पैरास्थितियों की ओर निर्दिष्ट करता है।

उत्तर
1. ऐरिल ऐल्किल ईथरों में ऐल्कॉक्सी समूह +R प्रभाव के कारण बेन्जीन वलय पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ा देता है तथा बेन्जीन वलय को इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं के प्रति सक्रिय करता है।
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2. चूँकि इलेक्ट्रॉन घनत्व m-स्थानों की तुलना में ऑर्थो तथा पैरा स्थानों पर अधिक हो जाता है, इसलिए इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ मुख्यत: ऑर्थों तथा पैरा स्थानों पर होती हैं।
उदाहरणार्थ
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ऐरोमैटिक ईथर फ्रीडेल-क्राफ्ट ऐल्किलीकरण तथा फ्रीडेल-क्राफ्ट ऐसिलीकरण अभिक्रियाएँ भी देते हैं।
उदाहरणार्थ
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प्रश्न 30.
मेथॉक्सीमेथेन की HI के साथ अभिक्रिया की क्रियाविधि लिखिए।
उत्तर
मेथॉक्सीमेथेन तथा HI की सममोलर मात्राएँ मेथिल ऐल्कोहॉल तथा मेथिल आयोडाइड का मिश्रण बनाती हैं। अभिक्रिया की क्रियाविधि इस प्रकार है –
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यदि HI की अधिक मात्रा का प्रयोग किया जाता है तो द्वितीय पद में बना मेथेनॉल निम्नलिखित क्रियाविधि द्वारा मेथिल आयोडाइड में परिवर्तित हो जाता है –
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प्रश्न 31.
निम्नलिखित अभिक्रियाओं के लिए समीकरण लिखिए –

  1. फ्रीडेल-क्राफ्ट अभिक्रिया-ऐनिसोल का ऐल्किलीकरण
  2. ऐनिसोल का नाइट्रीकरण
  3. एथेनोइक अम्ल माध्यम में ऐनिसोल का ब्रोमीनीकरण
  4. ऐनिसोल का फ्रीडेल-क्राफ्ट ऐसीटिलीकरण।

उत्तर
1. फ्रीडेल-क्राफ्ट अभिक्रिया (Friedel-Crafts reaction) – ऐनिसोल फ्रीडेल-क्राफ्ट अभिक्रिया दर्शाता है अर्थात् निर्जलीय ऐलुमिनियम क्लोराइड (लुईस अम्ल) उत्प्रेरक की उपस्थिति में ऐल्किल हैलाइड से अभिक्रिया होने पर ऐल्किल समूह ऑर्थों तथा पैरास्थितियों पर निर्देशित हो जाता है।
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2. ऐनिसोल को नाइट्रीकरण (Nitration of Anisole) – ऐनिसोल की अभिक्रिया सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल तथा सान्द्र नाइट्रिक अम्ल के मिश्रण से कराने पर ऑथों तथा पैरा-नाइट्रोऐनिसोल का मिश्रण प्राप्त होता है।
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3. एथेनोइक अम्ल के माध्यम में ऐनिसोल का ब्रोमीनीकरण ( हैलोजेनीकरण) [Bromination of Anisole in medium of Ethanoic Acid (Halogenation)] – फेनिलऐल्किल ईथर बेन्जीन वलय में सामान्य हैलोजेनीकरण दर्शाते हैं; उदाहरणार्थ– ऐनिसोल आयरन (II) ब्रोमाइड उत्प्रेरक की अनुपस्थिति में भी एथेनोइक अम्ल माध्यम में ब्रोमीन के साथ ब्रोमीनीकरण दर्शाता है। ऐसा मेथॉक्सी समूह द्वारा बेन्जीन वलय को सक्रियत करने के कारण होता है। पैरा समावयव की 90% मात्रा प्राप्त होती है।
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4. ऐनिसोल का फ्रीडेल-क्राफ्ट ऐसीटिलीकरण (Friedel-Crafts acetylation of anisole) –
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प्रश्न 32.
उपयुक्त ऐल्कीनों से आप निम्नलिखित ऐल्कोहॉलों का संश्लेषण कैसे करेंगे?
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उत्तर
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4-मेथिलहेप्ट-3-ईन से अम्ल की उपस्थिति में H2O के योग से वांछित ऐल्कोहॉल प्राप्त होता है।
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पेन्ट-1-ईन से H2O का योग होने पर वांछित ऐल्कोहॉल प्राप्त होता है।
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अतः वांछित ऐल्कीन पेन्ट-2-ईन के स्थान पर पेन्ट-1-ईन होगा।
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इनमें से किसी भी ऐल्कीन से अम्ल की उपस्थिति में H2O के योग से वांछित ऐल्कोहॉल प्राप्त होता है।
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प्रश्न 33.
3-मेथिलब्यूटेन-2-ऑल को HBr से अभिकृत कराने पर अग्रलिखित अभिक्रिया होती है –
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[संकेत-चरण II में प्राप्त द्वितीयक कार्बोकैटायन हाइड्राईड आयन विचलन के कारण पुनर्विन्यासित होकर स्थायी तृतीयक कार्बोकैटायन बनाते हैं।
उत्तर
दिए गए ऐल्कोहॉल के प्रोटॉनित होकर जल के अणु को निष्कासित करने पर 2° काबकैटायन (I) प्राप्त होता है जो अस्थायी होने के कारण 1,2-हाइड्राइड शिफ्ट द्वारा पुनर्व्यवस्थित होकर अधिक स्थायी 3° कार्बोकिटायन (II) देता है। इस कार्योकैटायन (II) पर Br आयन की नाभिकरागी अभिक्रिया अन्तिम उत्पाद देती है।
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
ऐल्केनॉल समजात श्रेणी को प्रदर्शित करने वाला सामान्य सूत्र है
(i) CnH2n+2O
(ii) CnH2nO2
(iii) CnH2nO
(iv) CnH2n+1O
उत्तर
(i) CnH2n+2O

प्रश्न 2.
CH3-O-CH3 का सामान्य एवं IUPAC नाम क्या है? (2013)
(i) क्रमश: डाइमेथिल ईथर व मेथॉक्सी मेथेन
(ii) क्रमश: डाइमेथिल ईथर व मेथॉक्सी एथेन
(iii) क्रमश: डाइएथिल ईथर व मेथॉक्सी मेथेन
(iv) क्रमशः डाइएथिल ईथर व मेथॉक्सी एथेन
उत्तर
(i) क्रमश: डाइमेथिल ईथर व मेथॉक्सी मेथेन

प्रश्न 3.
ग्लूकोस को एथिल ऐल्कोहॉल में परिवर्तित करने के लिए प्रयुक्त एन्जाइम है – (2016)
(i) इनवटेंस
(ii) जाइमेस
(iii) डायस्टेस
(iv) ये सभी
उत्तर
(ii) जाइमेस

प्रश्न 4.
जब एक ऐल्कोहॉल सान्द्र H2SO4 से क्रिया करता है, तब निर्मित मध्यवर्ती है –
(i) कार्बोधनायन
(ii) ऐल्कॉक्सी आयन
(iii) ऐल्किल हाइड्रोजन सल्फेट
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(i) कार्बोधनायन

प्रश्न 5.
तनु अम्ल की उपस्थिति में आइसोप्रोपिल ऐल्कोहॉल वायु-ऑक्सीकृत होकर देता है –
(i) C6H5COOH
(ii) C6H5COCH3
(iii) C6H5CHO
(iv) C6H5OH
उत्तर
(iv) C6H5OH

प्रश्न 6.
फीनॉल पहले सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल से क्रिया करता है, फिर सान्द्र नाइट्रिक अम्ल से क्रिया करके देता है – (2017)
(i) p-नाइट्रोफीनॉल
(ii) नाइट्रोबेंजीन
(iii) 2, 4, 6-ट्राइनाइट्रोबेंजीन
(iv) 0-नाइट्रोफीनॉल
उत्तर
(iv) 0-नाइट्रोफीनॉल

प्रश्न 7.
सान्द्र H2SO4 की उपस्थिति में फीनॉल को थैलिक ऐनहाइड्राइड के साथ गर्म करने पर बनता है – (2017)
(i) थैलिक अम्ल
(ii) फीनोन
(iii) क्वीनोन
(iv) फिनॉल्फ्थे लीन
उत्तर
(iv) फिनॉल्फ्थेलीन

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में पिक्रिक अम्ल है – (2017)
(i) ०-हाइड्रॉक्सी बेन्जोइक अम्ल
(ii) m-नाइट्रोबेन्जोइक अम्ल
(iii) 2, 4, 6-ट्राइनाइट्रो फीनॉल
(iv) ०, ऐमीनो बेन्जोइक अम्ल
उत्तर
(iii) 2, 4, 6-ट्राइनाइट्रो फीनॉल

प्रश्न 9.
आयोडोफॉर्म परीक्षण देने वाला यौगिक है – (2017)
(i) CH3CH2COCH2CH3
(ii) (CH3)2CHOH
(iii) CH3CH2COC6H5
(iv) CH3CH2CH2-OH
उत्तर
(ii) (CH3)2CHOH

प्रश्न10.
ल्यूकास अभिकर्मक का प्रयोग मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल के विभेद में किया जाता है – (2017)
(i) प्राथमिक
(ii) द्वितीयक
(iii) तृतीयक
(iv) इनमें से सभी
उत्तर
(iv) इनमें से सभी

प्रश्न 11.
फीनॉल का 0.20% विलयन निम्न में से किस रूप में कार्य करता है? (2016)
(i) ऐन्टीसेप्टिक
(ii) प्रतिऑक्सीकारक
(iii) ज्वरनाशक
(iv) ऐन्टीबायोटिक
उत्तर
(i) ऐन्टीसेप्टिक

प्रश्न 12.
जब ऐल्किल हैलाइड को शुष्क Ag2O के साथ गर्म करते हैं, तब यह बनाता है –
(i) एस्टर।
(ii) ईथर
(iii) कीटोन
(iv) ऐल्कोहॉल
उत्तर
(ii) ईथर

प्रश्न13.
क्लोरोबेन्जीन की क्रिया क्यूप्रस ऑक्साइड की उपस्थिति में अमोनिया से कराने पर प्राप्त होता है – (2017)
(i) फीनॉल
(ii) एनिलीन
(iii) बेन्जीन
(iv) बेन्जोइक ऐसिड
उत्तर
(ii) ऐनिलीन

प्रश्न 14.
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(i) एथेन
(ii) एथिलीन
(iii) ब्यूटेन
(iv) प्रोपेन
उत्तर
(i) एथेन

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक ऐल्कोहॉल की तुलना में t-ब्यूटिल ऐल्कोहॉल धात्विक सोडियम से कम तेजी से क्रिया करता है, क्यों?
उत्तर
तृतीयक ब्यूटिल ऐल्कोहॉल में केन्द्रीय C-परमाणु पर उपस्थित तीन -CH3 समूहों की उपस्थिति के कारण यह आंशिक ऋणावेशित हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप यह O-H के इलेक्ट्रॉन युग्म को हाइड्रोजन परमाणु की ओर धकेलता है, अत: H-परमाणु आसानी से प्रतिस्थापित नहीं होता है।

प्रश्न 2.
C2H5OH तथा CH3OCH3 दोनों के अणुभार समान हैं किन्तु कमरे के ताप पर C2H5OH द्रव है तथा CH3OCH3 गैस है क्यों? (2015)
उत्तर
C2H5OH के अणुओं के मध्य अन्तराणुक हाइड्रोजन बन्ध बनता है जिसके कारण इसके अणुओं का संगुणन हो जाता है और यह द्रव अवस्था में रहता है जबकि CH3O-CH3 के अणुओं के मध्य हाइड्रोजन बंध नहीं है इसलिए यह गैस है।

प्रश्न 3.
दुर्बल ऐल्कोहॉल जल में विलेय होते हैं प्रबल ऐल्कोहॉल नहीं, क्यों?
उत्तर
दुर्बल ऐल्कोहॉल जल के साथ H-आबन्ध बनाते हैं, लेकिन प्रबल ऐल्कोहॉल वृहद् जलविरागी भाग के कारण H-आबन्ध नहीं बना सकते हैं।

प्रश्न 4.
क्या होता है जब एथेनॉल को 453 K पर सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म किया जाता है? अभिक्रिया की क्रियाविधि समझाइए।
उत्तर
जब एथेनॉल को 453 K पर सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म किया जाता है, तब एथीन बनती है।
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प्रश्न 5.
सैटजैफ नियम को उदाहरण सहित लिखिए। (2017)
उत्तर
मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल को सान्द्र H2SO4 के साथ 160 – 170°C पर गर्म करने पर ऐल्कोहॉल का –OH तथा α-hydrogen परमाणु मिलकर H2O के अणु के रूप में निकल जाते हैं तथा एथिलीन बनती हैं।
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प्रश्न 6.
आप मेथिल ऐल्कोहॉल और एथिल ऐल्कोहॉल में विभेद कैसे करेंगे? (केवल एक रासायनिक परीक्षण तथा अभिक्रिया का समीकरण दीजिए)। (2013, 16)
उत्तर
मेथिल ऐल्कोहॉल और एथिल ऐल्कोहॉल में विभेद आयोडोफॉर्म परीक्षण द्वारा किया जा सकता है। एथिल ऐल्कोहॉल को जब आयोडीन तथा जलीय सोडियम हाइड्रॉक्साइड या जलीय सोडियम कार्बोनेट विलयन के साथ गर्म करते हैं तो पीला क्रिस्टलीय ठोस आयोडोफॉर्म बनता है।
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मेथिल ऐल्कोहॉल आयोडोफॉर्म परीक्षण नहीं देता है।

प्रश्न 7.
एथेनॉल के उपयोग लिखिए। (2016)
उत्तर
एथेनॉल के प्रमुख उपयोग निम्नवत् हैं –

  1. मेथिलित स्पिरिट बनाने में।
  2. पेन्ट, वार्निश, गोंद, सल्फर, आयोडीन आदि के विलयन के रूप में।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित यौगिकों को अम्ल की बढ़ती हुई प्रबलता के क्रम में लिखिए- (2015)
(i) Phenol
(ii) 0-Cresol
(iii) m-Cresol
(iv) p-Cresol
उत्तर
o-Cresol < p-Cresol < m-Cresol < Phenol अम्ल की प्रबलता का बढ़ता हुआ क्रम है।

प्रश्न 9.
फीनॉल का लीबरमान अभिक्रिया द्वारा परीक्षण लिखिए। (2013, 18)
उत्तर
जब फीनॉल सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल में घुले सोडियम नाइट्राइट से अभिक्रिया करता है तो नीला या हरा रंग प्रकट होता है। क्रियाकारी मिश्रण को जल से तनु करने पर रंग लाल हो जाता है तथा आधिक्य में NaOH मिलाने पर रंग पुनः नीला हो जाता है। इस अभिक्रिया को ही लीबरमान अभिक्रिया कहते हैं।
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प्रश्न 10.
आण्विक सूत्र C4H10O वाले सभी सम्भव ईथरों के संरचना सूत्र लिखिए। (2017, 18)
उत्तर
(i) C2H5-O-C2H5 डाइएथिल ईथर
(ii) CH3-O-CH2-CH2-CH3 मेथिल n-प्रोपिल ईथर
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प्रश्न 11.
उदाहरण देते हुए समझाइए कि ईथर लूइस-बेस के समान व्यवहार करता है और अम्लों के साथ क्रिया करके ऑक्सोनियम लवण बनाता है। (2014)
उत्तर
ईथर अणु में ऑक्सीकरण परमाणु पर दो एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित होते हैं जिसके कारण यह प्रबल अम्लों के प्रति क्षारक जैसा व्यवहार प्रदर्शित करता है। ईथर (C2H5-O-C2H5) सान्द्र H2SO4 के साथ ऑक्सोनियम लवण बनाता है।
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प्रश्न 12.
ईथर पर क्लोरीन की अभिक्रिया निरूपित कीजिए। (2009, 10)
उत्तर
ईथरों की क्रिया क्लोरीन से कराने पर ईथरों में कार्बन परमाणु पर प्रतिस्थापन होता है। उदाहरणार्थ– डाइएथिल ईथर अंधेरे में क्लोरीन से क्रिया करके 1, 1 -डाइक्लोरो- डाइएथिल ईथर बनाता है।
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प्रकाश की उपस्थिति में परक्लोरोडाइएथिल ईथर बनता है।
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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यौगिक C4H10O एक ऐल्केन की H2SO4/H2O के साथ क्रिया से निर्मित होता है जो कि प्रकाशिक समावयवियों में पृथक नहीं होता है। यौगिक की पहचान कीजिए।
उत्तर
सूत्र सुझाता है कि यौगिक एक ऐल्कोहॉल है। चूंकि यह समावयवियों में पृथक् नहीं होता है अतः यह सममित है तथा यह तृतीयक ब्यूटिल ऐल्कोहॉल है। संगत ऐल्केन आइसोब्यूटेन है। ऐल्कोहॉल का निर्माण निम्नवत् होता है –
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प्रश्न 2.
मेथिल ऐल्कोहॉल बनाने की दो विधियों का वर्णन कीजिए। आवश्यक रासायनिक समीकरण भी लिखिए मेथिल ऐल्कोहॉल से डाइमेथिल ईथर कैसे प्राप्त करेंगे? (2016)
उत्तर
मेथिल ऐल्कोहॉल बनाने की दो विधियाँ निम्नवत् हैं –
1. मेथेन के ऑक्सीकरण द्वारा मेथिल ऐल्कोहॉल का निर्माण – मेथेन और ऑक्सीजन के 9 : 1 (आयतन से) मिश्रण को 100 वायुमण्डल दाब और 200°C ताप पर कॉपर की नली में से प्रवाहित करने पर मेथेन का मेथिल ऐल्कोहॉल में ऑक्सीकरण होता है।
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2. कार्बन मोनॉक्साइड के हाइड्रोजनीकरण द्वारा मेथिल ऐल्कोहॉल का निर्माण – उच्च ताप (300- 400°C) और उच्च दाब (200- 300 atm) पर ZnO – Cr2O3 उत्प्रेरक की उपस्थिति में कार्बन मोनॉक्साइड का हाइड्रोजनीकरण करने पर मेथिल ऐल्कोहॉल बनता है।
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मेथिल ऐल्कोहॉल से डाइमेथिल ईथर का निर्माण – मेथिल ऐल्कोहॉल की अधिकता में 140°C पर डाइमेथिल ईथर बनता है।
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प्रश्न 3.
मेथिल ऐल्कोहॉल से एथिल ऐल्कोहॉल कैसे प्राप्त करेंगे? (2015, 16)
उत्तर
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प्रश्न 4.
प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक ऐल्कोहॉलों में विभेद करने वाला एक रासायनिक परीक्षण लिखिए। समीकरण भी दीजिए। (2009)
या
ल्यूकास परीक्षण क्या है ? यह किस प्रकार के यौगिकों की पहचान में उपयोगी है? (2010, 12, 17, 18)
उत्तर
ल्यूकास परीक्षण – यह प्राइमरी, सेकण्डरी तथा टर्शियरी ऐल्कोहॉलों में विभेद करने की अत्यन्त सरल विधि है। यह भिन्न-भिन्न ऐल्कोहॉलों की ‘ल्यूकास अभिकर्मक’ (सान्द्र HCl + निर्जल ZnCl2) के प्रति भिन्न-भिन्न गति से अभिक्रिया करने पर आधारित है। किसी ऐल्कोहॉल में ल्यूकास अभिकर्मक मिलाने पर ऐल्किल क्लोराइड बनते हैं जिससे धुंधलापन उत्पन्न होता है। इस प्रकार,
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  1. कमरे के ताप पर टर्शियरी ऐल्कोहॉल तुरन्त धुंधलापन उत्पन्न करते हैं।
  2. कमरे के ताप पर सेकण्डरी ऐल्कोहॉल 5-10 मिनट बाद धुंधलापन उत्पन्न करते हैं।
  3. कमरे के ताप पर प्राइमरी ऐल्कोहॉल धुंधलापन उत्पन्न नहीं करते हैं; अत: विलयन पारदर्शक होता है।

प्रश्न 5.
सोडियम एथॉक्साइड तथा निर्जल ऐल्कोहॉल की उपस्थिति में फीनॉल तथा एथिल आयोडाइड की क्रिया से प्राप्त मुख्य उत्पाद डाइएथिल ईथर होता है, फेनीटोल नहीं। क्यों?
उत्तर
एथॉक्साइड आयन की उपस्थिति में फीनॉल फीनेट आयन (C6H5O) में परिवर्तित हो जाता है, इस पर नाभिकस्नेही C2H5I के आक्रमण से अपेक्षित फेनीटोल प्राप्त होना चाहिए लेकिन C2H5O, C6H5O की तुलना में फेनिल समूह की इलेक्ट्रॉन निष्कासक (electron withdrawing) प्रवृत्ति के कारण प्रबल नाभिकस्नेही (nucleophile) होता है, अत: C2H5O आयन C2H5I से क्रिया करके उत्पाद में डाइएथिल ईथर बनाता है।
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फेनीटोल (C6H5-O-C2H5) लघु मात्रा में बन सकता है।

प्रश्न 6.
ऐल्कोहॉल, फीनॉल तथा ईथर के प्रमुख उपयोग लिखिए। (2016)
उत्तर
ऐल्कोहॉल के प्रमुख उपयोग निम्नवत् हैं

  1. मेथिल ऐल्कोहॉल तथा गैसोलीन का 20% मिश्रण एक श्रेष्ठ मोटर ईंधन है।
  2. इसका प्रयोग तेल, वसा तथा वार्निश के विलायक के रूप में किया जाता है।
  3. इसका प्रयोग स्वचालित वाहनों के रेडिएटरों में प्रतिशीतलक के रूप में किया जाता है।
  4. इसका प्रयोग रंजक, औषधियों तथा सुगन्धियों के निर्माण में किया जाता है।
  5. इसका प्रयोग टेरीलीन तथा पॉलीथीन के निर्माण में भी होता है।
  6. इसका प्रयोग ऐल्कोहॉलीय पेय पदार्थ बनाने में किया जाता है।

फीनॉल के प्रमुख उपयोग निम्नवत् हैं

  1. इसका प्रयोग पिक्रिक अम्ल (विस्फोटक) के निर्माण में तथा रेशम व ऊन के रंजन में किया जाता है।
  2. इसका प्रयोग साइक्लोहेक्सेनॉल विलायक के निर्माण में किया जाता है।
  3. इसका प्रयोग साबुन, लोशन तथा आयण्टमेण्ट में ऐण्टिसेप्टिक के रूप में किया जाता है।
  4. इसका प्रयोग ऐजो रंजक, फीनॉल्फ्थेलीन आदि के निर्माण में किया जाता है।
  5. इसका प्रयोग बैकेलाइट प्लास्टिक के निर्माण में किया जाता है।
  6. इसका प्रयोग ऐस्प्रिन, सेलॉल आदि औषधियों के निर्माण में किया जाता है।

ईथरों के प्रमुख उपयोग निम्नवत् हैं

  1. इनका सर्वाधिक प्रयोग प्रयोगशाला एवं उद्योगों में तेल, रेजिन, गोद आदि के विलायकों के रूप में किया जाता है।
  2. ईथर ग्रिगनार्ड अभिकर्मकों के बनाने तथा वुज अभिक्रिया में अभिकर्मक के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
  3. ईथर का प्रयोग ‘सामान्य बेहोशीकारक (anaesthetic) के रूप में किया जाता है।
  4. ऐल्कोहॉल तथा ईथर के मिश्रण का प्रयोग पेट्रोल के विकल्प के रूप में किया जाता है।
  5. ईथर का प्रयोग प्रशीतक के रूप में किया जाता है क्योंकि यह वाष्पन पर ठण्डक उत्पन्न करता है। ईथर तथा शुष्क बर्फ (ठोस CO2) -110°C ताप उत्पन्न करता है।
  6. ईथर का प्रयोग धुआँरहित (smokeless) पाउडर बनाने में करते हैं। इनका प्रयोग सुगन्धी उद्योग में भी किया जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित को समझाइए – (2015)

  1. ऐल्कोहॉलों का अणुभार बढ़ने पर जल में इनकी विलेयता घटती है।
  2. पावर ऐल्कोहॉल क्या है? उसका उपयोग क्या है?
  3. फीनॉल अम्लीय होते हैं। क्यों? (2009, 11, 12, 13, 17)

उत्तर

  1. क्योंकि ऐल्किल समुह जलविरोधी होते हैं तथा जल में अविलेय हैं। निम्न ऐल्कोहॉल में ऐल्किल समूह छोटा होता है तथा ऐल्कोहॉल का -OH समूह अणु को जल में विलेय बनाने में प्रभावी रहता है। जैसे-जैसे ऐल्किल समूह का आकार बढ़ता है उच्च अणुभार के ऐल्कोहॉलों में ऐल्किल समूह की जल विरोधी प्रकृति -OH समूह की जल स्नेही प्रकृति पर प्रभावी होती जाती है इसलिए विलेयता घटती है।
  2. परिशोधित स्पिरिट बेंजीन की उपस्थिति में पेट्रोल में मिश्रित हो जाती है। पेट्रोल + औद्योगिक ऐल्कोहॉल और बेंजीन का मिश्रण मोटर ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। यह मिश्रण पावर
    ऐल्कोहॉल कहलाता है।
  3. फीनॉल को जल में घोलने पर यह H+ आयन तथा फीनॉक्साइड आयन देता है जो अनुनाद के कारण स्थायी होता है इसलिए फीनॉल अम्लीय गुण प्रदर्शित करता है।
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प्रश्न 2.
स्टार्च से एथिल ऐल्कोहॉल उत्पादन की औद्योगिक विधि का वर्णन कीजिए। सम्बन्धित रासायनिक अभिक्रियाओं के समीकरण लिखिए। परिशुद्ध ऐल्कोहॉल उत्पादन कैसे किया जाता है? (2009, 11, 12, 13)
उत्तर
स्टार्च से एथिल ऐल्कोहॉल के निर्माण में आलू, चावल, जौ आदि स्टार्चयुक्त पदार्थ कच्चे पदार्थ के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
1. स्टार्च से वाश बनाना – अंकुरित जौ को उबालकर, पीसकर छानने से प्राप्त निष्कर्ष को माल्ट-निष्कर्ष (malt-extract) कहते हैं। इसमें डायस्टेस एन्जाइम होता है। स्टार्चयुक्त पदार्थों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर वे कुचलकर उच्च दाब तथा 150°C ताप पर भाप में गर्म करते हैं, जिससे एक पेस्ट बन जाता है। इस पदार्थ को मैश (mash) कहते हैं। इसमें स्टार्च होता है। मैश में माल्ट-निष्कर्ष मिलाकर उसे 50-60°C पर गर्म करते हैं। माल्ट-निष्कर्ष में उपस्थित डायस्टेस एन्जाइम स्टार्च को माल्टोस नामक शर्करा में जल-अपघटित कर देता है।
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माल्टोस के तनु विलयन में यीस्ट मिलाने पर, यीस्ट में उपस्थित माल्टेस एन्जाइम, माल्टोस को ग्लूकोस में जल अपघटित कर देता है, जिसे यीस्ट में उपस्थित जाइमेस एन्जाइम, एथिल ऐल्कोहॉल में अपघटित कर देता है, इससे प्राप्त विलयन को वाश कहते हैं, जिसमें लगभग 10% एथिल ऐल्कोहॉल होता है।
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2. वाश से शुद्ध एथिल ऐल्कोहॉल प्राप्त करना – वाश के प्रभाजी आसवन से एथिल ऐल्कोहॉल कॉफे भभके (Coffey’s still) द्वारा प्राप्त किया जाता है। इस भभके में दो प्रभाजक स्तम्भ होते हैं, इनमें एक विश्लेषक (analyser) और दूसरा परिशोधक (rectifier) कहलाता है। विश्लेषक तथा परिशोधक एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। विश्लेषक ताँबे की प्लेटों द्वारा कई खानों में विभक्त रहता है। जिनके तल समान्तर रहते हैं। इन प्लेटों में छिद्र होते हैं, जिनमें ऊपर की ओर खुलने वाले वाल्व लगे। होते हैं। प्रत्येक से एक नली निकलकर अपने से नीचे वाले प्याले में डूबी रहती है। परिशोधक (rectifier) का निचला आधा अंश भी विश्लेषक (analyser) की भाँति इसी प्रकार खानों में विभक्त होता है।

वाश को शोधन में ले जाने वाली सर्पाकार नली में पम्प द्वारा विश्लेषक के ऊपर पहुँचाकर नीचे छोड़ा जाता है। विश्लेषक में नीचे से ऊपर की ओर भाप प्रवाहित की जाती है, जो नीचे आने वाले द्रव के वाष्पशील द्रव को वाष्पों में बदलकर ऊपर ले जाती है। यह वाष्प विश्लेषक से लगी नली द्वारा परिशोधक के नीचे पहुँचती है और फिर परिशोधक में ऊपर उठती है। परिशोधक के ऊपर एक नली लगी होती है जो एक संघनित्र से जुड़ी होती है। ऊपर आने वाली वाष्प इस नली से होती हुई परिशोधक के ऊपर पहुँचती है और ठण्डी होकर द्रवित हो जाती है। जिसमें 95.6% एथिल ऐल्कोहॉल होता है। इसको परिशोधित स्पिरिट (rectified spirit) कहते हैं। विश्लेषक (analyser) के पेंदे में बचा हुआ पदार्थ स्पेन्ट वाश (spent wash) कहलाता है।
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3. परिशोधित स्पिरिट का शोधन – कॉफे भभके से प्राप्त परिशोधित स्पिरिट में जल के अतिरिक्त, ग्लिसरीन, सक्सिनिक अम्ल, ऐसीटेल्डिहाइड और फ्यूजेल तेल आदि अशुद्धियाँ मिली होती हैं। इन | अशुद्धियों को दूर करने के लिए पहले परिशोधित स्पिरिट को कोयले के छन्ने में छान लेते हैं और फिर इसका प्रभाजी आसवन करते हैं। प्रभाजी आसवन से मुख्य तीन अंश मिलते हैं –

  1. प्रथम अंश-इसमें ऐसीटेल्डिहाइड होता है।
  2. द्वितीय अंश-इसमें 95.6% शुद्ध एथिल ऐल्कोहॉल तथा 4.4% जल होता है।
  3. अन्तिम अंश-इसमें फ्यूजेल तेल होता है। यह बहुत विषैला पदार्थ होता है, जिसके मिलाने पर एथिल ऐल्कोहॉल दवाइयाँ बनाने के लिए अयोग्य हो जाता है।

4. व्यापारिक मात्रा में परिशुद्ध ऐल्कोहॉल बनाना – परिशोधित स्पिरिट और बेंजीन के मिश्रण का प्रभाजी आसवन करने से 64.8°C पर जल, ऐल्कोहॉल तथा बेंजीन को स्थिर क्वथनी मिश्रण (constant boiling mixture) प्राप्त होता है। फिर 68.30°C पर बेंजीन तथा ऐल्कोहॉल का स्थिर क्वथनी मिश्रण अलग हो जाता है। इस मिश्रण को पुनः आसवित करने पर 78.3°C पर परिशुद्ध ऐल्कोहॉल पृथक् हो जाता है।

प्रश्न 3.
मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल बनाने की दो सामान्य विधियाँ लिखिए और एथिल ऐल्कोहॉल की सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ भिन्न तापों पर अभिक्रिया लिखिए। उपर्युक्त अभिक्रियाओं से सम्बन्धित सभी समीकरण भी दीजिए। (2016)
उत्तर
मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल बनाने की सामान्य विधियाँ निम्नलिखित हैं –
1. ऐल्किल हैलाइडों के जल-अपघटन द्वारा – ऐल्किल हैलाइड (RX) को जलीय सोडियम हाइड्रॉक्साइड या नम (moist) सिल्वर ऑक्साइड के साथ गर्म करने पर ऐल्कोहॉल बनता है।
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2. एस्टरों के जल-अपघटन द्वारा – एस्टर का सोडियम हाइड्रॉक्साइड या पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड विलयन द्वारा जल-अपघटन करने पर कार्बोक्सिलिक अम्ल का लवण और ऐल्कोहॉल बनते हैं।
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3. प्राथमिक ऐमीनों की नाइट्रस अम्ल से क्रिया द्वारा – ऐलिफैटिक प्राथमिक ऐमीन की नाइट्रस अम्ल (NaNO2 + HCl) से क्रिया कराने पर ऐल्कोहॉल बनता है और नाइट्रोजन गैस निकलती है।
NaNO2 + HCl → NaCl + HNO2
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उदाहरणार्थ– एथिलऐमीन की नाइट्रस अम्ल (NaNO2 + HCl) से क्रिया कराने पर एथिल ऐल्कोहॉल बनता है और नाइट्रोजन गैस निकलती है।
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4. ऐल्कीनों के जलयोजन द्वारा – सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल में ऐल्कीन को अवशोषित करने पर ऐल्किल हाइड्रोजन सल्फेट बनता है, जिसका जल-अपघटन करने पर ऐल्कोहॉल प्राप्त होता है।
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एथिल ऐल्कोहॉल की सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल से अभिक्रिया – एथिल ऐल्कोहॉल पर सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया से भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न पदार्थ बनते हैं।
(i) एथिल ऐल्कोहॉल और सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के मिश्रण को 100°C पर गर्म करने पर एथिल हाइड्रोजन सल्फेट बनता है।
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एथिल हाइड्रोजन सल्फेट का समानीत दाब (reduced pressure) पर आसवन करने पर एथिल सल्फेट बनता है।
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(ii) एथिल ऐल्कोहॉल के आधिक्य को सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ 140°C पर गर्म करने पर डाइ एथिल ईथर बनता है। अभिक्रिया अग्रलिखित पदों में होती है –
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(iii) एथिल ऐल्कोहॉल को सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के आधिक्य में 170-180°C पर गर्म करने पर एथिलीन बनती है।
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प्रश्न 4.
प्रयोगशाला में डाइ एथिल ईथर बनाने की विधि का सचित्र वर्णन कीजिए। सम्बन्धित रासायनिक अभिक्रिया लिखिए। इस विधि को अविरत ईथरीकरण विधि क्यों कहते हैं? इसके मुख्य रासायनिक गुण भी दीजिए। (2010)
या
डाइ एथिल ईथर बनाने की प्रयोगशाला विधि का सचित्र वर्णन कीजिए। सम्बन्धित अभिक्रियाओं के रासायनिक समीकरण भी दीजिए। इसकी अंधेरे में क्लोरीन के साथ अभिक्रिया का समीकरण दीजिए। (2009, 12, 16, 17)
या
ईथर की शुद्धता का परीक्षण कैसे करेंगे? (2012)
उत्तर
प्रयोगशाला में डाइ एथिल ईथर, एथिल ऐल्कोहॉल के आधिक्य और सान्द्र H2SO4 को 140°C पर गर्म करके बनाया जाता है।
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एक गोल पेंदी के फ्लास्क में C2H5OH और सान्द्र H2SO4, 2 : 1 के अनुपात में लेकर उपकरण को चित्रानुसार लगाया जाता है। फ्लास्क को बालू ऊष्मक पर 140-145°C तक गर्म करते हैं जिससे ईथर बर्फ के जल में रखे ग्राही पात्र में एकत्र होने लगता है। इस विधि को अविरत ईथरीकरण विधि कहते हैं, क्योंकि एथिल ऐल्कोहॉल और सल्फ्यूरिक अम्ल के गर्म मिश्रण में एथिल ऐल्कोहॉल डालकर ईथर लगातार प्राप्त किया जा सकता है।
इस प्रकार प्राप्त आसवित ईथर में अल्प मात्रा में H2SO4, ऐल्कोहॉल और जल की अशुद्धियाँ मिली रहती हैं। इसके लिए ईथर को कास्टिक सोडा विलयन के साथ धोते हैं फिर इसमें निर्जल CaCl2 डालकर रख देते हैं। इसके बाद छानकर आसवित करने पर 34-35°C पर शुद्ध एवं शुष्क ईथर एकत्र कर लिया जाता है।

1. PCl5 से क्रिया – एथिल क्लोराइड बनता है।
C2H5OC2H5 + PCl5 → 2C2H5Cl + POCl3

2. अंधेरे में ईथर क्लोरीन और ब्रोमीन के साथ हैलोजनीकृत व्युत्पन्न देता है।
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3. H2O के साथ अभिक्रिया – ईथर साधारण परिस्थितियों में अम्लों या क्षारों द्वारा जल अपघटित नहीं होते हैं। तनु सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ उच्च दाब और उच्च ताप पर गर्म करने पर डाइएथिल ईथर बहुत कठिनाई से एथिल ऐल्कोहॉल में जल अपघटित होता है।
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4. ठण्डे HI के साथ अभिक्रिया – डाइ एथिल ईथर की ठण्डे सान्द्र हाइड़िऑडिक अम्ल (HI) से क्रिया कराने पर एक अणु एथिल आयोडाइड और एक अणु एथिल ऐल्कोहॉल बनता है।
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ईथर की शुद्धता का परीक्षण – ईथर की शुद्धता का परीक्षण पोटेशियम आयोडाइड विलयन द्वारा करते हैं। यदि ईथर में पोटैशियम आयोडाइड डालने पर आयोडीन मुक्त होती है तो ईथर अशुद्ध है। शुद्ध ईथर में आयोडीन मुक्त नहीं होती है।

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