UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 13 Nuclei

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 13 Nuclei (नाभिक) are part of UP Board Solutions for Class 12 Physics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 13 Nuclei (नाभिक).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Physics
Chapter Chapter 13
Chapter Name Nuclei (नाभिक)
Number of Questions Solved 121
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 13 Nuclei (नाभिक)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

अभ्यास के प्रश्न हल करने में निम्नलिखित आँकड़े आपके लिए उपयोगी सिद्ध होंगे :
e= 1.6 x 10-19C,                                                    N = 6.023 x 1023 प्रति मोल
[latex ]\frac { 1 }{ 4\pi { \varepsilon }_{ 0 } }[/latex] = 9 x 109 Nm/c2                                         k= 1.381 x 1023 J°K-1
1 MeV = 1.6×10-13J                                            1u = 931.5 MeV/c2
1 year = 3.154 x 107s
mH = 1.007825u                                                mn = 1.008665u )
m( [latex]\frac { 4 }{ 2 }[/latex]He) = 4.002603 u                                       me= 0.000548u

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प्रश्न 1:
(a) लीथियम के दो स्थायी समस्थानिकों को [latex]_{ 3 }^{ 6 }{ Li }[/latex] एवं [latex]_{ 3 }^{ 7 }{ Li }[/latex] की बहुलता का प्रतिशत
क्रमशः 7.5 एवं 92.5 हैं। इन समस्थानिकों के द्रव्यमान क्रमशः 6.01512 u एवं 7,01600u हैं। लीथियम का परमाणु द्रव्यमान ज्ञात कीजिए। ।
(b) बोरॉन के दो स्थायी, समस्थानिक [latex]_{ 5 }^{ 10 }{ B }[/latex] एवं [latex]_{ 5 }^{ 11 }{ B }[/latex] हैं। उनके द्रव्यमान क्रमशः 10.01294u एवं 11.00931u एवं बोरॉन का परमाणु भार 10.811u है। [latex]_{ 5 }^{ 10 }{ B }[/latex] एवं [latex]_{ 5 }^{ 11 }{ B }[/latex] की बहुलता ज्ञात कीजिए।
हल:
(a) माना लीथियम के किसी नमूने में 100 परमाणु लिए गए हैं, तब इनमें 7.5 परमाणु [latex]_{ 3 }^{ 6 }{ Li }[/latex] के तथा 92.5 परमाणु [latex]_{ 3 }^{ 7 }{ Li }[/latex] के होंगे।
∴ 100 परमाणुओं का द्रव्यमान = (7.5 x 6.01512+ 92.5 x 7.01600) u
= (45,1134 + 648.98) u= 694.0934u
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= [latex]\frac { 694.0934 }{ 100 }[/latex]
= 6.940934u
≈ 6.94lu

(b) माना बोरॉन के दो समस्थानिकों की बहुलता क्रमश: x% तथा y% है, तब
x + y = 100  …….(1)
यदि बोरॉन के 100 परमाणु लिए जाएँ तो इनमें x परमाणु [latex]_{ 5 }^{ 10 }{ B }[/latex] के तथा y परमाणु [latex]_{ 5 }^{ 11 }{ B }[/latex] के होंगे।
∴ बोरॉन का परमाणु द्रव्यमान
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या 10.811 x 100 = 10.01294 x + 11.00931 (100 – x) [∵ x + y = 100
⇒ 1081.1- 1100.931 = 10.012943x – 11.00931x
⇒ – 19.831 = – 0.99637x
∴ x = [latex]\frac { -19.831 }{ – 099837 }[/latex] =19.9
∴  y = 100- x = 100 – 19.9 = 80.1
अत: बोरॉन में [latex]_{ 5 }^{ 10 }{ B }[/latex] तथा [latex]_{ 5 }^{ 11 }{ B }[/latex] समस्थानिकों की बहुलता प्रतिशत क्रमश: 19.9 तथा 80.1 हैं।

प्रश्न 2.
नियॉन के तीन स्थायी समस्थानिकों की बहुलता क्रमशः 90.51%, 0.27% एवं 9.22% है। इन समस्थानिकों के परमाणु द्रव्यमान क्रमशः 19.99u 20.99u एवं 21.99u हैं। नियॉन का औसत परमाणु द्रव्यमान ज्ञात कीजिए।
हल:
यदि नियॉन के 100 परमाणु लिए जाएँ तो उनमें नियॉन के तीन समस्थानिकों के क्रमश: 90. परमाणु, 0.27 परमाणु तथा 9.22 परमाणु होंगे।
∴ नियॉन का औसत परमाणु द्रव्यमान
= [latex]\frac { (90.51x 19.99+ 0.27 x 20.99+ 9.22 x 21.99) u }{ 100 }[/latex]
= [latex]\frac { (1809.2949 + 5.6673 + 202.7478) u }{ 100 }[/latex]
= [latex]\frac { 2017.71 }{ 100 }[/latex]
= 20.177 u ≈ 20.18u

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प्रश्न 3.
नाइट्रोजन नाभिक ([latex]_{ 7 }^{ 14 }{ N }[/latex] ) की बन्धन-ऊर्जा MeV में ज्ञात कीजिए। mN = 14.00307u mH = 1.00783u, mn = 1.00867u]
हल:
[latex]_{ 7 }^{ 14 }{ N }[/latex] में प्रोटॉन = Z = 7 तथा न्यूट्रॉन
= (A – Z) = (14 – 7) = 7
न्यूक्लिऑनों का कुल द्रव्यमान = 7 x mH + 7 x mn
= (7 x 1.00783 +7 x 1.00867) u
= 14.1155 u
∴ द्रव्यमान क्षति
Δm = न्यूक्लिऑनों का द्रव्यमान –  [latex]_{ 7 }^{ 14 }{ B }[/latex] नाभिक का द्रव्यमान
= 14.11550 u – 14.00307 u = 0.11243 u
अतः बन्धन ऊर्जा EB = Δm के तुल्य ऊर्जा
= 0.11243 x 931 MeV
= 104.67 MeV (∵1u = 931 Mev)

प्रश्न 4:
निम्नलिखित आँकड़ों के आधार पर [latex]_{ 26 }^{ 56 }{ Fe }[/latex]एवं [latex]_{ 83 }^{ 209 }{ Bi }[/latex] नाभिकों की बन्धन-ऊर्जा MeV
में ज्ञात कीजिए। m([latex]_{ 26 }^{ 56 }{ Fe }[/latex]) = 55.934939u, m ([latex]_{ 83 }^{ 209 }{ Bi }[/latex]) = 208:980388u
हल:
दिया है, प्रोटॉन का द्रव्यमान mH = 1.007825u
न्यूट्रॉन का द्रव्यमान mn= 1.008665u

(i) [latex]_{ 26 }^{ 56 }{ Fe }[/latex] नाभिक का द्रव्यमान mFe= = 55.934939u
इस नाभिक में 26 प्रोटॉन तथा (56 – 26) = 30 न्यूट्रॉन हैं।
∴ न्यूक्लिऑनों का द्रव्यमान = 26 mH + 30mn
= 26 x 1.007825 + 30 x 1.008665
= 26.20345 + 30.25995 = 56.4634u
∴ द्रव्यमान क्षति Δm = न्यूक्लिऑनों का द्रव्यमान – नाभिक का द्रव्यमान
= 56.4634 – 55.934939 = 0.528461u
∴ [latex]_{ 26 }^{ 56 }{ Fe }[/latex] नाभिक की बन्धन-ऊर्जा = Δm x 931 = 0.528461 x 931.5 MeV
= 492.26 MeV
∴ बन्धन-ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन = [latex]\frac { 492.26 }{ 56 }[/latex]
= 8.79 MeV/ न्यूक्लिऑन

(ii) [latex]_{ 83 }^{ 209 }{ Bi }[/latex] नाभिक का द्रव्यमान mBi= 208.980388u
इस नाभिक में 83 प्रोटॉन तथा 126 न्यूट्रॉन हैं।
∴ न्यूक्लिऑनों का द्रव्यमान = 83mH +126mn
= 83 x 1.007825 + 126 x 1.008665
= 83.649475+ 127.091790
= 210.741260 u
∴ नाभिक की द्रव्यमान-क्षति Δm = 210.741260 – 208.980388
= 1.760872u
∴ नाभिक की बन्धन ऊर्जा = Δm x 931.5 MeV
= 1.760872 x 931.5
= 1640.26 MeV
∴ बन्धन-ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन = [latex]\frac { 1640.26 }{ 209 }[/latex]= 7.85 MeV/ न्यूक्लिऑन

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प्रश्न 5:
एक दिए गए सिक्के का द्रव्यमान 3.0 g है। उस ऊर्जा की गणना कीजिए जो इस सिक्के के सभी न्यूट्रॉनों एव प्रोटॉनों को एक-दूसरे से अलग करने के लिए आवश्यक हो। सरलता के | लिए मान लीजिए कि सिक्का पूर्णतः [latex]_{ 29 }^{ 63 }{ Cu }[/latex] परमाणुओं का बना है। ([latex]_{ 29 }^{ 63 }{ Cu }[/latex] का द्रव्यमान = 82,92960u)।
हल:
[latex]_{ 29 }^{ 63 }{ Cu }[/latex] में प्रोटॉन (Z) = 29, न्यूट्रॉन = 63 – 29= 34
∴ न्यूक्लिऑनों का कुल द्रव्यमान
= 29 प्रोटॉनों का द्रव्यमान + 34 न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान
= (29 x 1.00783+ 34 x 1.00867) u = 63.52185 u
∴ द्रव्यमान क्षति Δm = न्यूक्लिऑनों का द्रव्यमान – [latex]_{ 29 }^{ 63 }{ Cu }[/latex] नाभिक का द्रव्यमान
= 63.52185 u – 62.92960 u = 0.59225 u
∴ [latex]_{ 29 }^{ 63 }{ Cu }[/latex] नाभिक की बन्धन ऊर्जा
EB = 0.53225 x 931 MeV = 551.385 MeV
m = 3.0 ग्राम में परमाणुओं (नाभिकों) की संख्या
= [latex]\frac { m }{ M }[/latex] x आवोगाद्रो संख्या
=  [latex]\frac { 3 }{ 63 }[/latex]  x 6.02 x 1023 = 2.86 x 1022
∴  सिक्के के सभी न्यूट्रॉनों तथा प्रोटॉनों को एक-दूसरे से अलग करने के लिए आवश्यक ऊर्जा
= 2.86 x 1022 x EB
= 2.86 x 1022 x 551.385 MeV
= 1.6 x 1025 MeV

प्रश्न 6:
निम्नलिखित के लिए नाभिकीय समीकरण लिखिए
(i) [latex]_{ 88 }^{ 226 }{ Ra }[/latex] का α- क्षय
(ii) [latex]_{ 94 }^{ 242 }{ Pu }[/latex] का α- क्षय
(iii) [latex]_{ 15 }^{ 32 }{ P }[/latex] P का β – क्षय
(iv) [latex]_{ 210 }^{ 83 }{ Bi }[/latex] का β -क्षय
(v) [latex]_{ 6 }^{ 11 }{ C }[/latex]  का β+ -क्षय
(vi)  [latex]_{ 43 }^{ 97 }{ Tc }[/latex]  Tc का β+ -क्षय
(vii) [latex]_{ 54 }^{ 120 }{ Xe }[/latex] 120Xe का इलेक्ट्रॉन अभिग्रहण
हल:
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प्रश्न 7:
एक रेडियोऐक्टिव समस्थानिक की अर्धायु T वर्ष है। कितने समय के बाद इसकी ऐक्टिवता, प्रारम्भिक ऐक्टिवता की (a) 3.125%, तथा (b) 1% रह जाएगी।
हल:
(a) माना समस्थानिक की प्रारम्भिक रेडियोऐक्टिवता = R0
माना समयान्तराल n अद्धयुकालों के पश्चात् शेष रेडियोऐक्टिवता = R
प्रश्नानुसार, R =R0 का 3.125%
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प्रश्न 8:
जीवित कार्बनयुक्त द्रव्य की सामान्य ऐक्टिवता, प्रति ग्राम कार्बन के लिए 15 क्षय प्रति मिनट है। यह ऐक्टिवता, स्थायी समस्थानिक [latex]_{ 6 }^{ 14 }{ C }[/latex] के साथ-साथ अल्प मात्रा में विद्यमान रेडियोऐक्टिव [latex]_{ 6 }^{ 12 }{ C }[/latex] के कारण होती है। जीव की मृत्यु होने पर वायुमण्डल के साथ इसकी अन्योन्य क्रिया (जो उपर्युक्त सन्तुलित ऐक्टिवता को बनाए रखती है) समाप्त हो जाती है तथा इसकी ऐक्टिवता कम होनी शुरू हो जाती है।[latex]_{ 6 }^{ 14 }{ C }[/latex] की ज्ञात अर्धायु (5730 वर्ष) और (UPBoardSolutions.com) नमूने की मापी गई ऐक्टिवता के आधार पर इसकी सन्निकट आयु की गणना की जा सकती है। यही पुरातत्व विज्ञान में प्रयुक्त होने वाली [latex]_{ 6 }^{ 14 }{ C }[/latex] कालनिर्धारण (dating) पद्धति का सिद्धान्त है। यह मानकर कि मोहनजोदड़ो से प्राप्त किसी नमूने की ऐक्टिवता 9 क्षय प्रति मिनट प्रति ग्राम कार्बन है। सिन्धु घाटी सभ्यता की सन्निकट आयु का आकलन कीजिए।
हल:
दिया है, R0 = 15 क्षय प्रति मिनट
R = 9 क्षय प्रति मिनट, T1/2 = 5730 वर्ष
सूत्र R= R0e-λt से, 9 = 15e-λt
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प्रश्न 9:
8.0 mCi सक्रियता का रेडियोऐक्टिव स्रोत प्राप्त करने के लिए [latex]_{ 27 }^{ 60 }{ Co }[/latex]  की कितनी मात्रा की आवश्यकता होगी? [latex]_{ 27 }^{ 60 }{ Co }[/latex]  की अर्धायु 5.3 वर्ष है।
हल:
दिया है, सक्रियता R = 80 mCi= 80 x 10-3 x 3.7 x 1010 विघटन s-1
= 29.6 x 107 विघटन s-1
T1/2 = 5.3 वर्ष (∵ 1 क्यूरी = 3.7 x 1010 विघटन s-1)
= 5.3 x 365 x 24 x 60 x 60s
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प्रश्न 10:
[latex]_{ 38 }^{ 90 }{ Sr }[/latex] की अर्धायु 28 वर्ष है। इस समस्थानिक के 15 mg की विघटन दर क्या है?
हल:
दिया है, पदार्थ का द्रव्यमान = 15 x 10-3
तथा  T1/2 = 28 वर्ष = 28 x 365 x 24 x 60 x 60 s = 88.3 x 107s
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प्रश्न 11:
स्वर्ण के समस्थानिक [latex]_{ 79 }^{ 197 }{ Au }[/latex] एवं रजत के समस्थानिक [latex]_{ 47 }^{ 107 }{ Ag }[/latex] की नाभिकीय त्रिज्या के अनुपात का सन्निकट मान ज्ञात कीजिए।
हल:
किसी नाभिक की त्रिज्या निम्नलिखित सूत्र द्वारा प्राप्त होती है
R =  R0A1/3
जहाँ A = परमाणु द्रव्यमान जबकि R0 = नियतांक
यहाँ [latex]_{ 79 }^{ 197 }{ Au }[/latex] के लिए, A1 = 197
तथा [latex]_{ 47 }^{ 107 }{ Ag }[/latex] के लिए, Ag = 107
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प्रश्न 12:
(a) [latex]_{ 88 }^{ 226 }{ Ra }[/latex] एवं (b) [latex]_{ 86 }^{ 220 }{ Rn }[/latex] नाभिकों के α-क्षय में उत्सर्जित -कणों का Q-मान एवं
गतिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए।
दिया है : m ([latex]_{ 88 }^{ 226 }{ Ra }[/latex]) = 226.02540u, m([latex]_{ 86 }^{ 220 }{ Rn }[/latex]) = 222.01750u
m([latex]_{ 86 }^{ 220 }{ Rn }[/latex]) = 220.01137u, m([latex]_{ 84 }^{ 216 }{ Po }[/latex]) = 216.00189u
हल:
(a) [latex]_{ 88 }^{ 226 }{ Ra }[/latex] का z-क्षय निम्न अभिक्रिया के अनुसार होगा
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प्रश्न 13:
रेडियोन्यूक्लाइड [latex]_{ 6 }^{ 11 }{ C }[/latex]का क्षय निम्नलिखित समीकरण के अनुसार होता है
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उत्सर्जित पॉजिट्रॉन की अधिकतम ऊर्जा 0.960 Mev है। द्रव्यमानों के निम्नलिखित मान दिए गए हैं
m( [latex]_{ 6 }^{ 11 }{ C }[/latex]) = 11.011434u तथा m( [latex]_{ 6 }^{ 11 }{ B }[/latex]) = 11.009305u
Q-मान की गणना कीजिए एवं उत्सर्जित पॉजिट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा के मान से इसकी तुलना कीजिए।
हल:
दिया गया समीकरण
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उत्सर्जित पॉजिट्रॉन की महत्तम गतिज ऊर्जा 0.960 MeV है जो कि Q-मान के तुल्य है।
∵ उत्पाद नाभिक पॉजिट्रॉन की तुलना में अत्यधिक भारी है; अत: इसकी गतिज ऊर्जा लगभग शून्य होगी, पुन: चूंकि पॉजिट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा Q – मान के तुल्य है; अतः न्यूट्रिनो भी लगभग शून्य ऊर्जा के साथ उत्सर्जित होगा।

प्रश्न 14:
[latex]_{ 10 }^{ 23 }{ Ne }[/latex] का नाभिक, β उत्सर्जन के साथ क्षयित होता है। इस β-क्षय के लिए समीकरण लिखिए और उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए।
m ([latex]_{ 10 }^{ 23 }{ Ne }[/latex]) = 22.994466 um([latex]_{ 10 }^{ 23 }{ Na }[/latex]) = 22.089770u
हल:
[latex]_{ 10 }^{ 23 }{ Ne }[/latex]  नाभिक के β-क्षय का समीकरण निम्नलिखित है
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∵  [latex]_{ 10 }^{ 23 }{ Ne }[/latex]  नाभिक,  [latex]_{ +1 }^{ 0 }{ \beta }[/latex]  तथा ऐन्टिन्यूट्रिनो की तुलना में अत्यधिक भारी है; अत: इसकी गतिज ऊर्जा लगभग शून्य होगी। β-कण की ऊर्जा अधिकतम होगी यदि ऐन्टिन्यूट्रिनो शून्य ऊर्जा के साथ उत्सर्जित हो। इस (UPBoardSolutions.com) दशा में β-कण की ऊर्जा अधिकतम होगी यदि ऐन्टिन्यूट्रिनो शून्य ऊर्जा के साथ उत्सर्जित हो। इस दशा में β-कण की अधिकतम ऊर्जा ९ मान के बराबर अर्थात् 4.37 MeV होगी।

प्रश्न 15:
किसी नाभिकीय अभिक्रिया A+b→ C+d का Q-मान निम्नलिखित समीकरण द्वारा परिभाषित होता है: Q= [mA +mb – mc – md] c2
जहाँ दिए गए द्रव्यमान, नाभिकीय विराम द्रव्यमान (rest mass) हैं। दिए गए आँकड़ों के आधार पर बताइए कि निम्नलिखित अभिक्रियाएँ ऊष्माक्षेपी हैं या ऊष्माशोषी।
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हल:
(i) दी गई अभिक्रिया निम्नलिखित है
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Q-मान धनात्मक है; अत: यह अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया है।

प्रश्न 16:
माना कि हम [latex]_{ 26 }^{ 56 }{ Fe }[/latex] नाभिक के दो समान अवयवों [latex]_{ 13 }^{ 28 }{ Al }[/latex] में विखण्डन पर विचार करें।
क्या ऊर्जा की दृष्टि से यह विखण्डन सम्भव है? इस प्रक्रम का Q-मान ज्ञात करके अपना तर्क प्रस्तुत करें।
दिया है : m([latex]_{ 26 }^{ 56 }{ Fe }[/latex]) = 55.93494u एवं m([latex]_{ 13 }^{ 28 }{ Al }[/latex]) = 27.98191u
हल:
[latex]_{ 26 }^{ 56 }{ Fe }[/latex]  → [latex]_{ 13 }^{ 28 }{ Al }[/latex] + [latex]_{ 13 }^{ 28 }{ Al }[/latex]+Q
∴ Q = [m( [latex]_{ 26 }^{ 56 }{ Fe }[/latex]) – 2 x m ([latex]_{ 13 }^{ 28 }{ Al }[/latex])]x 931 MeV
= [55.93494- 2x 27.98191]x 931 MeV
= -26.92 MeV
चूँकि Q का मान ऋणात्मक है अतः विखण्डन सम्भव नहीं है।

प्रश्न 17:
[latex]_{ 94 }^{ 239 }{ Pu }[/latex] के विखण्डन गुण बहुत कुछ [latex]_{ 92 }^{ 235 }{ U }[/latex] से मिलते-जुलते हैं। प्रति विखण्डन विमुक्त औसत ऊर्जा 180 MeV है। यदि 1kg शुद्ध [latex]_{ 94 }^{ 239 }{ Pu }[/latex] के सभी परमाणु विखण्डित हों तो कितनी MeV ऊर्जा विमुक्त होगी?
हल:
यहाँ [latex]_{ 94 }^{ 239 }{ Pu }[/latex]के विखण्डन से मुक्त ऊर्जा = 180 MeV
[latex]_{ 94 }^{ 239 }{ Pu }[/latex] का ग्राम परमाणु द्रव्यमान = 239g
∴ [latex]_{ 94 }^{ 239 }{ Pu }[/latex]प्लूटोनियम में उपस्थित परमाणुओं की संख्या = 6.02 x 1023
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प्रश्न 18:
किसी 1000 MW विखण्डन रिएक्टर के आधे ईधन का 5.00 वर्ष में व्यय हो जाता है। प्रारम्भ में इसमें कितना [latex]_{ 92 }^{ 235 }{ U }[/latex] था? मान लीजिए कि रिएक्टर 80% समय कार्यरत रहता है, इसकी सम्पूर्ण ऊर्जा [latex]_{ 92 }^{ 235 }{ U }[/latex]  के विखण्डन से ही उत्पन्न हुई है; तथा [latex]_{ 92 }^{ 235 }{ U }[/latex] एन्यूक्लाइड केवल विखण्डन प्रक्रिया में ही व्यय होता है।
हल:
रिएक्टर की शक्ति P= 1000 MW = 1000 x 106 Js-1= 109 Js-1
समय t = 5.0 वर्ष = 5 x 365 x 24 x 60 x 60s
= 1.577 x 108 s
∴ 5 वर्ष में रिएक्टर में उत्पन्न ऊर्जा (जबकि यह 80% समय ही कार्य करता है)
E = 80% t x P
= [latex]\frac { 80 }{ 100 }[/latex] x 1.577 x 108 x 169
: = 1.2616 x 1017J
∵ [latex]^{ 235 }{ U }[/latex] के एक परमाणु के विखण्डन से औसतन 200 MeV ऊर्जा उत्पन्न होती है।
∴ 100 MeV ऊर्जा उत्पन्न होती है = 1 परमाणु से
या 200 x 1.6 x 10-13J ऊर्जा उत्पन्न होती है = 1 परमाणु से
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प्रश्न 19:
2.0 kg ड्यूटीरियम के संलयन से एक 100 वाट का विद्युत लैम्प कितनी देर प्रकाशित रखा जा सकता है? संलयन अभिक्रिया निम्नवत् ली जा सकती है।
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हल:
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प्रश्न 20:
दो ड्यूट्रॉनों के आमने-सामने की टक्कर के लिए कूलॉम अवरोध की ऊँचाई ज्ञात कीजिए। (संकेत-कूलॉम अवरोध की ऊँचाई का मान इन ड्यूट्रॉन के बीच लगने वाले उस कूलॉम प्रतिकर्षण बल के बराबर होता है जो एक-दूसरे को सम्पर्क में रखे जाने पर उनके बीच आरोपित होता है। (UPBoardSolutions.com) यह मान सकते हैं कि ड्यूट्रॉन 2.0 fm प्रभावी त्रिज्या वाले दृढ़ गोले हैं।)
हल:
प्रत्येक ड्यूट्रॉन पर आवेश
q1 = q2 = +1.6 x 10-19C
ऊर्जा के पदों में कुलॉम अवरोध (विभव प्राचीर)
माना प्रारम्भ में प्रत्येक ड्यूट्रॉन की गतिज ऊर्जा K है। जब ये दोनों एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तो सम्पूर्ण ऊर्जा विद्युत स्थितिज ऊर्जा में बदल जाती है। ∴ ऊर्जा संरक्षण से,
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प्रश्न 21:
समीकरण R= R0A1/3 के आधार पर, दर्शाइए कि नाभिकीय द्रव्य को घनत्व लगभग अचर है (अर्थात् A पर निर्भर नहीं करता है)। यहाँ R0 एक नियतांक है एवं A नाभिक की द्रव्यमान संख्या है।
हल:
∵  नाभिक की द्रव्यमान संख्या = A
∴ नाभिक का द्रव्यमान m = Au
= A x 1.66 x 10-27kg
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∵ यह घनत्व नाभिक की द्रव्यमान संख्या A से मुक्त है; अत: हम कह सकते हैं कि नाभिकीय द्रव्य का , घनत्व लगभग अचर है।।

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प्रश्न 22:
किसी नाभिक से β+ (पॉजिट्रॉन) उत्सर्जन की एक अन्य प्रतियोगी प्रक्रिया है जिसे इलेक्ट्रॉन परिग्रहण (Capture) कहते हैं (इसमें परमाणु की आन्तरिक कक्षा, जैसे कि K-कक्षा, से नाभिक एक इलेक्ट्रॉन परिगृहीत कर लेता है और एक न्यूट्रिनो, ν उत्सर्जित करता है)।
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दर्शाइए कि यदि β+ उत्सर्जन ऊर्जा विचार से अनुमत है तो इलेक्ट्रॉन परिग्रहण भी आवश्यक रूप से अनुमत है, परन्तु इसका विलोम अनुमत नहीं है।
हल:
पॉजिट्टॉन उत्सर्जन की अभिक्रिया का समीकरण निम्नलिखित है
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समीकरण (3) व (4) से स्पष्ट है। यदि पॉजिट्रॉन उत्सर्जन [अभिक्रिया (1)] ऊर्जा दृष्टि से अनुमत है तो इस अभिक्रिया का Q-मान अर्थात्
Q1 धनात्मक होगी।
अर्थात्   Q1 > 0
Q2 > Q1  अतः Q1 > 0 ⇒ Q1  > 0
अर्थात् तब अभिक्रिया (2) का -मान भी धनात्मक होगा अर्थात् ऊर्जा दृष्टि से इलेक्ट्रॉन परिग्रहण भी अनुमत है।
अब इस अभिक्रिया के विलोम पर विचार कीजिए,
स्पष्ट है कि इस अभिक्रिया का Q-मान – Q2 के बराबर होगा।
∴ Q2> 0; अतः Q3 =-Q2 < 0
∵  इस अभिक्रिया का 2-मान ऋणात्मक है; अतः यह अभिक्रिया ऊर्जा दृष्टि से अनुमत नहीं है।

अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 23:
आवर्त सारणी में मैग्नीशियम का औसत परमाणु द्रव्यमान 24.312u दिया गया है। यह औसत मान, पृथ्वी पर इसके समस्थानिकों की सापेक्ष बहुलता के आधार पर दिया गया है। मैग्नीशियम के तीनों समस्थानिक तथा उनके द्रव्यमान इस प्रकार हैं
[latex]_{ 12 }^{ 24 }{ Mg }[/latex](28.98504u), [latex]_{ 12 }^{ 25 }{ Mg }[/latex](24.98584) एवं [latex]_{ 12 }^{ 26 }{ Mg }[/latex](25.98259u)। प्रकृति में प्राप्त मैग्नीशियम में [latex]_{ 12 }^{ 24 }{ Mg }[/latex] की (द्रव्यमान के अनुसार) बहुलता 78.99% है। अन्य दोनों समस्थानिकों की बहुलता का परिकलन कीजिए।
हल:
दिया है, मैग्नीशियम का औसत परमाणु द्रव्यमान = 24.312u
[latex]_{ 12 }^{ 24 }{ Mg }[/latex] समस्थानिक की बहुलता = 78.99%
माना समस्थानिक [latex]_{ 12 }^{ 25 }{ Mg }[/latex] की बहुलता a% है।
[latex]_{ 12 }^{ 26 }{ Mg }[/latex] समस्थानिक की बहुलता = 100 – 78.99- a
= (21.01 – a) %
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प्रश्न 24:
न्यूट्रॉन पृथक्करण ऊर्जा (Separation energy), परिभाषा के अनुसार वह ऊर्जा है, जो किसी नाभिक से एक न्यूट्रॉन को निकालने के लिए आवश्यक होती है। नीचे दिए गए  आँकड़ों का इस्तेमाल करके [latex]_{ 20 }^{ 41 }{ Ca }[/latex]एवं [latex]_{ 13 }^{ 27 }{ Al }[/latex] नाभिकों की न्यूट्रॉन पृथक्करण ऊर्जा ज्ञात कीजिए।
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हल:
[latex]_{ 20 }^{ 41 }{ Ca }[/latex]  की न्यूट्रॉन पृथक्करण ऊर्जा
न्यूट्रॉन पृथक्करण अभिक्रिया का समीकरण निम्नलिखित है
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∴ Qका मान ऋणात्मक है अर्थात् उक्त अभिक्रिया ऊष्माशोषी है।
∴ न्यूट्रॉन पृथक्करण ऊर्जा 8.36 MeV है।

(ii) [latex]_{ 13 }^{ 27 }{ A }[/latex]  की न्यूट्रॉन पृथक्करण ऊर्जा
[latex]_{ 13 }^{ 27 }{ A }[/latex] की न्यूट्रॉन पृथक्करण समीकरण निम्नलिखित है
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∴ Q का मान ऋणात्मक है; अत: उक्त अभिक्रिया ऊष्माशोषी है।
∴ [latex]_{ 13 }^{ 27 }{ A }[/latex] की न्यूट्रॉन पृथक्करण ऊर्जा 13.06 MeV है।

प्रश्न 25:
किसी स्रोत में फॉस्फोरस के दो रेडियो न्यूक्लाइड निहित हैं [latex]_{ 15 }^{ 32 }{ P }[/latex](T1/2 = 14.3d) एवं [latex]_{ 15 }^{ 33 }{ P }[/latex](1/2 = 25.3d)। प्रारम्भ में [latex]_{ 15 }^{ 33 }{ P }[/latex] से 10% क्षय प्राप्त होता है। इससे 90% क्षय प्राप्त करने के लिए कितने समय प्रतीक्षा करनी होगी?
हल:
माना प्रारम्भ में [latex]_{ 15 }^{ 33 }{ P }[/latex] तथा [latex]_{ 15 }^{ 32 }{ P }[/latex] को रेडियोऐक्टिवताएँ R01 व R02 हैं तथा । समय पश्चात् इनकी रेडियोऐक्टिवताएँ Rव R2 हैं।
तब प्रारम्भ में, पदार्थ की कुल सक्रियता = R01 + R02

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प्रश्न 26:
कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में एक नाभिक, α -कण से अधिक द्रव्यमान वाला एक कण उत्सर्जित करके क्षयित होता है। निम्नलिखित क्षय-प्रक्रियाओं पर विचार कीजिए
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इन दोनों क्षय प्रक्रियाओं के लिएQ-मान की गणना कीजिए और दर्शाइए कि दोनों प्रक्रियाएँ ऊर्जा की दृष्टि से सम्भव हैं।
हल:
दी गई समीकरण निम्नलिखित है
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प्रश्न 27:
तीव्र न्यूट्रॉनों द्वारा [latex]_{ 92 }^{ 238 }{ U }[/latex] के विखण्डन पर विचार कीजिए। किसी विखण्डन प्रक्रिया में प्राथमिक अंशों (Primary fragments) के बीटा-क्षय के पश्चात कोई न्यूट्रॉन उत्सर्जित नहीं होता तथा [latex]_{ 58 }^{ 140 }{ P }[/latex] तथा [latex]_{ 34 }^{ 99 }{ Ru }[/latex] अन्तिम उत्पाद प्राप्त होते हैं। विखण्डन प्रक्रिया के लिए के मान का परिकलन कीजिए। आवश्यक आँकड़े इस प्रकार हैं
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हल:
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प्रश्न 28:
D.T अभिक्रिया (ड्यूटीरियम-ट्राइटियम संलयन), [latex]_{ 1 }^{ 2 }{ H }[/latex]+ [latex]_{ 1 }^{ 3 }{ H }[/latex] → [latex]_{ 2 }^{ 4 }{ He }[/latex] + n पर विचार कीजिए।
(a) नीचे दिए गए आँकड़ों के आधार पर अभिक्रिया में विमुक्त ऊर्जा का मान Mev में ज्ञात कीजिए।
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(b) इयूटीरियम एवं ट्राइटियम दोनों की त्रिज्या लगभग 1.5 fm मान लीजिए। इस अभिक्रिया में, दोनों नाभिकों के मध्य कूलॉम प्रतिकर्षण से पार पाने के लिए कितनी गतिज ऊर्जा की आवश्यकता है? अभिक्रिया प्रारम्भ करने के लिए गैसों (0 तथा 1 गैसें) को किस ताप तक ऊष्मित कि(UPBoardSolutions.com) या जाना चाहिए?
(संकेत : किसी संलयन क्रिया के लिए आवश्यक गतिज ऊर्जा = संलयन क्रिया में संलग्न कणों की औसत तापीय गतिज ऊर्जा = 2 (3KT/2); K:  बोल्ट्ज़मान नियतांक तथा T = परम ताप)
हल:
(a) दी गई अभिक्रिया का समीकरण निम्नलिखित है
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प्रश्न 29:
नीचे दी गई क्षय-योजना में, γ-क्षयों की विकिरण आवृत्तियाँ एवं β-कणों की अधिकतम गतिज ऊर्जाएँ ज्ञात कीजिए। दिया है:
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हल:
चित्र से, E1 = [latex]_{ 80 }^{ 198 }{ Hg }[/latex] की निम्नतम ऊर्जा स्तर में ऊर्जा = 0 MeV
E2 = [latex]_{ 80 }^{ 198 }{ Hg }[/latex] की प्रथम उत्तेजित अवस्था में ऊर्जा = 0.412 MeV
E3 = [latex]_{ 80 }^{ 198 }{ Hg }[/latex] की द्वितीय उत्तेजित अवस्था में ऊर्जा = 1.088 MeV
माना उत्सर्जित γ फोटॉनों (γ12 व γ3) की आवृत्तियाँ क्रमशः ν12 व ν3 हैं।
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जबकि इन फोटॉनों की ऊर्जाएँ निम्नलिखित हैं
E (γ1) = E3 – E1 = 1.088 MeV
E (γ2)= E2– E1 = 0.412 Mev
E (γ3) = E3 – E2 = 1.088- 0.412 = 0.676 MeV
[latex]_{ 79 }^{ 198 }{ Au }[/latex] के β1-क्षय में Au नाभिक पहले एक β कण उत्सर्जित करता है तत्पश्चात् γ1-फोटॉन को । उत्सर्जित करके  [latex]_{ 80 }^{ 198 }{ Hg }[/latex] नाभिक में बदल जाता है; अतः
[latex]_{ 79 }^{ 198 }{ Au }[/latex] के β1-क्षय का समीकरण निम्नलिखित है
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यहाँ E(β1) तथा E (γ1) इन कणों की ऊर्जाएँ हैं। स्पष्ट है कि E(β1) का मान अधिकतम होगा यदि [latex]_{ 80 }^{ 198 }{ Hg }[/latex] की गतिज ऊर्जा शून्य हो। अर्थात् अभिक्रिया की सम्पूर्ण ऊर्जा केवल β-कण तथा γ-कोटॉन की ऊर्जा के रूप में निकलें।।
∴  β -कण की महत्तम गतिज ऊर्जा
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[latex]_{ 79 }^{ 198 }{ Au }[/latex] के β2क्षय में Au नांभिक पहले β-कण उत्सर्जित करता है तत्पश्चात् γ2 फोटॉन उत्सर्जित करता हुआ [latex]_{ 80 }^{ 198 }{ Hg }[/latex]नाभिक में बदल जाता है।
इसे क्षय का समक्रण निम्नलिखित है
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प्रश्न 30:
सूर्य के अभ्यंतर में (a) 1kg हाइड्रोजन के संलयन के समय विमुक्त ऊर्जा का परिकलन कीजिए। (b) विखण्डन रिएक्टर में 1.0 kg [latex]^{ 235 }{ U }[/latex] के विखण्डन में विमुक्त ऊर्जा का परिकलेन कीजिए। (c) प्रश्न के खण्ड (a) तथा (b) में विमुक्त ऊर्जाओं की तुलना
कीजिए।
हल:
(a) सूर्य के अभ्यन्तर में हाइड्रोजन के 4 परमाणु निम्नलिखित अभिक्रिया के अनुसार संलयित होकर हीलियम परमाणु का निर्माण करते हैं तथा लगभग 26 Mev ऊर्जा उत्पन्न होती है।
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प्रश्न31:
मान लीजिए कि भारत का लक्ष्य 2020 तक200,000 MW विद्युत शक्ति जनन का है। इसका 10% नाभिकीय शक्ति संयंत्रों से प्राप्त होना है। माना कि रिएक्टर की औसत उपयोग दक्षता (ऊष्मा को विद्युत में परिवर्तित करने की क्षमता) 25% है। 2028 के अन्त तक हमारे देश को प्रति वर्ष कितने विखण्डनीय यूरेनियम की आवश्यकता होगी। [latex]^{ 235 }{ U }[/latex] प्रति विखण्डन उत्सर्जित ऊर्जा 200 MeV है।
हल:
कुल ऊर्जा लक्ष्य = 200,000 MW
∴  नाभिकीय संयंत्रों से प्राप्त शक्ति = 10% x 200,000 MW
= [latex]\frac { 10 }{ 100 }[/latex] x 200,000 x 106w
= 2 x 1010w
∴ प्रतिवर्ष नाभिकीय संयंत्रों से प्राप्त ऊर्जा = 2 x 1010Js-1x 1 x 365 x 24 x 60 x 60s
= 6.31 x 1017 J
माना संयंत्रों में विखण्डन हेतु x kg [latex]^{ 235 }{ U }[/latex] की प्रतिवर्ष आवश्यकता होती है।
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1:
1 amu के तुल्य ऊर्जा है (2009, 16, 17) 
(i) 190 MeV
(ii) 139 MeV
(iii) 913 MeV
(iv) 931 MeV
उत्तर:
(iv) 931 MeV

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प्रश्न 2:
हीलियम के नाभिक के लिए द्रव्यमान क्षति 0.0303 amu है। इसके लिए Mev में प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा लगभग होगी (2011)
(i) 28
(ii) 7
(ii) 4
(iv) 1
उत्तर:
(i) 28

प्रश्न 3:
हाइड्रोजन नाभिक की बन्धन ऊर्जा है (2017)
(i) -13.6 eV
(ii) 0
(iii) 13.6 eV
(iv) 6.8 eV
उत्तर:
(ii) 0

प्रश्न 4.
न्यूक्लियर बल की प्रकृति है (2011)
(i) विद्युतीय
(ii) चुम्बकीय :
(iii) गुरुत्वीय
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(iv) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 5. निम्न में से समन्यूट्रॉनिक युग्म होंगे (2012)
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उत्तर:
(i) 6c14 तथा 8016

प्रश्न 6:
दो परमाणुओं के परमाणु क्रमांक समान परन्तु परमाणु द्रव्यमान भिन्न हैं। वे होंगे (2011, 14)
(i) समस्थानिक
(ii) समभारिक
(iii) समन्यूट्रॉनिक
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(i) समस्थानिक

प्रश्न 7:
वे नाभिक जिनके लिए A तथा zभिन्न परन्तु (A-Z) समान होता है, कहलाते हैं
(i) समस्थानिक
(ii) समप्रोटॉनिक
(iii) समन्यूट्रॉनिक
(iv) समभारिक
उतर:
(iii) समन्यूट्रॉनिक

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प्रश्न 8:
दी गई नाभिकीय अभिक्रिया में X प्रदर्शित करता है (2017)
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(i) इलेक्ट्रॉन
(ii) न्यूट्रॉन
(iii) न्यूट्रीनो
(iv) प्रोटॉन
उत्तर:
(iii) न्यूट्रीनो

प्रश्न 9:
किसी नाभिक से-किरणें उत्सर्जित होने पर परिवर्तित होती है (2017)
(i) प्रोटॉन संख्या
(ii) न्यूट्रॉन संख्या
(iii) प्रोटॉन व न्यूट्रॉन दोनों की संख्या
(iv) न प्रोटॉन और न ही न्यूट्रॉन की संख्या
उत्तर:
(iv) न प्रोटॉन और न ही न्यूट्रॉन की संख्या

प्रश्न 10:
………… के क्षय के कारण तत्व परिवर्तित नहीं होता है। (2017)
(i) γ -किरण
(ii) β -किरण
(iii) β+ किरण
(iv) α -किरण
उत्तर:
(i) किरण

प्रश्न 11:
कण जो 92U228 के नाभिक में नहीं उपस्थित हैं (2017)
(i) 92 प्रोटॉन
(ii) 92 इलेक्ट्रॉन
(iii) 146 न्यूट्रॉन
(iv) 238 न्यूक्लिऑन
उतर:
(ii) 92 इलेक्ट्रॉन

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प्रश्न 12:
यदि 5 वर्ष अर्द्ध-आयु के पदार्थ का प्रारम्भिक द्रव्यमान N0 है तो 15 वर्ष बाद पदार्थ का अन्तिम द्रव्यमान है (2014)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 13 Nuclei 22
उत्तर:
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प्रश्न 13:
एक रेडियोऐक्टिव पदार्थ अपनी औसत आयु के बराबर समयान्तराल के लिए विघटित होता है। इसका कितना अंश विघटित होगा? (2012)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 13 Nuclei 24
उतर:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 13 Nuclei 25

प्रश्न 14:
एक रेडियोऐक्टिव नाभिक 81X237  तीन α-कण तथा एक β-कण उत्सर्जित करता है। प्राप्त नाभिक है (2013)
(i) 76Y225
(ii) 78Y225
(ii) 80Y229
(iv) 82Y230
उत्तर:
(i) 76Y225

प्रश्न 15:
रेडियोऐक्टिव पदार्थ उत्सर्जित नहीं करते हैं (2013)
(i) इलेक्ट्रॉन
(ii) प्रोटॉन
(iii) γ -किरणें
(iv) हीलियम नाभिक
उत्तर:
(ii) प्रोटॉन

प्रश्न 16:
Bi20 की अर्द्ध-आयु 5 दिन है। इसके किसी नमूने के 8 भागों में से 7 भागों के क्षय होने में समय लगता है
(i) 3.4 दिन
(ii) 10 दिन
(iii) 15 दिन
(iv) 20 दिन
उत्तर:
(iii) 15 दिन

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प्रश्न 17:
रेडियोऐक्टिव विघटन में 9a0238 का नाभिक giPa234 में बदल जाता है। इस विघटन के दौरान उत्सर्जित कण है (2010)
(i) एक प्रोटॉन एवं एक न्यूट्रॉन
(ii) एक ऐल्फा कण एवं एक बीटा कण
(iii) दो बीटा कण एवं एक न्यूट्रॉन
(iv) दो बीटा कण एवं एक प्रोटॉन
उत्तर:
(ii) एक ऐल्फा कण एवं एक बीटा कण

प्रश्न 18:
प्रकाश तरंगों की प्रकृति समान होती है (2010)
(i) कैथोड किरणों के
(ii) β-किरणों के
(iii) γ-किरणों के
(iv) α-किरणों के
उत्तर:
(iii) γ-किरणों के

प्रश्न 19:
किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ के निश्चित द्रव्यमान में 20 घण्टे में 75% की कमी हो जाती है। उसकी अर्द्ध-आयु होगी  (2011)
(i) 5 घण्टे
(ii) 10 घण्टे
(iii) 15 घण्टे
(iv) 20 घण्टे
उत्तर:
(ii) 10 घण्टे

प्रश्न 20:
रेडियम की अर्द्ध-आयु 1600 वर्ष है। वह समय जब 100 ग्राम रेडियम से 25 ग्राम, रेडियम अविघटित रह जाता है, है (2010)
(i) 2400 वर्ष
(ii) 3200 वर्ष
(iii) 4800 वर्ष
(iv) 6400 वर्ष
उत्तर:
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प्रश्न 21:
एक रेडियोऐक्टिव पदार्थ का क्षय नियतांक 3,465  x 10-4 प्रति वर्ष है। इसकी लगभग अर्द्ध-आयु है (2015)
(i) 2000 वर्ष
(ii) 2400 वर्ष
(iii) 2600 वर्ष
(iv) 6300 वर्ष
उत्तर:
(i) 2000 वर्ष

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प्रश्न 22:
सूर्य की विकिरण ऊर्जा का स्रोत है (2015)
(i) नाभिकीय विखण्डन
(iii) प्रकाश-वैद्युत प्रभाव
(ii) साइक्लोट्रॉन
(iv) नाभिकीय संलयन
उत्तर:
(iv) नाभिकीय संलयन

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
हाइड्रोजन के तीनों आइसोटोपों (समस्थानिकों) के नाम व सूत्र लिखिए। (2011)
उत्तर:
हाइड्रोजन (1H1), ड्यूटीरियम (1H2), ट्राइटीयम (1H3)

प्रश्न 2:
उन परमाणुओं को, जिनके नाभिकों में प्रोटॉनों की संख्या समान हो परन्तु न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न हो, को क्या नाम दिया गया है ? (2011)
उत्तर:
समस्थानिक अथवा समप्रोटॉनिक।

प्रश्न 3:
समन्यूट्रॉनिक से आप क्या समझते हैं? उदाहरण दीजिए। (2017)
उत्तर:
ऐसे नाभिक जिनमें केवल न्यूट्रॉनों की संख्या समान होती है, समन्यूट्रॉनिक कहलाते
उदाहरणार्थ  1H3, 2He4, 3Li74Be8

प्रश्न 4:
नाभिकीय क्रिया की उस समीकरण को लिखिए जिसका सम्बन्ध प्रोटॉन की खोज से है। या प्रोटॉन की खोज सम्बन्धी समीकरण लिखिए। (2013)
उत्तर:
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प्रश्न 5:
लीथियम नाभिक का प्रतीक 3Li7 है। इसके नाभिक में कितने प्रोटॉन तथा कितने न्यूट्रॉन हैं ?(2011)
हल:
प्रोटॉनों की संख्या = Z = 3
न्यूट्रॉनों की संख्या = A – Z = 7 – 3= 4

प्रश्न 6:
निम्नलिखित नाभिकीय क्रिया को पूरा कीजिए (2013)
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उत्तर:
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प्रश्न 7:
7N14 पर -कण की बमबारी करने पर 8O17 बनता है। कौन-सा कण उत्सर्जित होता है? अभिक्रिया लिखकर बताइए। (2013)
उत्तर:
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प्रश्न 8:
निम्नलिखित नाभिकीय क्रियाओं को पूरा कीजिए
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उत्तर:
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प्रश्न 9:
यदि प्रकाश की चाल वर्तमान चाल की दोगुनी हो जाए, तो नाभिक की बन्धन ऊर्जा कितनी हो जाएगी? (2012)
उत्तर:
नाभिक की बन्धुन ऊर्जा = द्रव्यमान क्षति x c²
अतः बन्धन ऊर्जा चार गुनी हो जायेगी।

प्रश्न 10:
जब तीन α -कण जुड़कर कार्बन नाभिक 6C12  बनाते हैं तो उत्पन्न ऊर्जा की गणना कीजिए। 2Heको परमाणु द्रव्यमान 4.002803 amu है।
(2014)
हल:
कार्बन नाभिक 6C12  का द्रव्यमान = 12u
अभिक्रिया 3 ( 2He)- 6C12  में निर्गत् ऊर्जा
= [3m (2He4)- m (6C12)] c2
= [3 x 4.002603u – 12u] (931 MeV/4)
= 7.27 MeV/u

प्रश्न 11:
1 मिलीग्राम द्रव्यमान क्षति से कितने जूल ऊर्जा मुक्त होगी? (2013, 15)
हल:
Δm = 1 मिलीग्राम = 1 x 10-6 kg
मुक्त ऊर्जा = Δm x c2= 1 x 10-6 x (3 x 108)2
= 9 x 1010 जूल।

प्रश्न 12:
1.0 किग्रा हाइड्रोजन के हीलियम में परिवर्तन से उत्पन्न ऊर्जा का मान किलोवाट घण्टा में प्राप्त कीजिए। इस प्रक्रिया में द्रव्यमान क्षति 0.4है। (2012)
हल:
m = 1.0 किग्रा ।
द्रव्यमान क्षति Δm= 1 किग्रा का 0.4% = 0.004 किग्रा
उत्पन्न उर्जा ΔE = (Δm) c² = 0.004 x (3 x 108)2
= 0.036 x 1016 = 3.6 x 1014 जूल
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प्रश्न 13:
हीलियम (2He4) नाभिक की प्रति न्यूक्लीऑन बन्धन ऊर्जा 7.0756 Mev है। नाभिक के लिए द्रव्यमान क्षति की गणना कीजिए। (2012)
हल:
नाभिक की कुल बन्धन ऊर्जा = प्रति न्यूक्लीऑन बन्धन ऊर्जा x द्रव्यमान संख्या
= 7.0756 x 4 = 28.3024 MeV
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प्रश्न 14:
यदि प्रकाश की चाल 108 मी/से हो जाए, तो किसी नाभिक की बन्धन ऊर्जा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? (2013)
हल:
नाभिक की बन्धन ऊर्जा = द्रव्यमान क्षति x c2
= Δm x (3 x 108)2 मी/से
= 9 x 1016Am जूल   [∵ c = 3×108 मी/से]
जब c = 10मी/से
तब बन्धन ऊर्जा = Δm x (108) जूल = Δm x 1016 जूल
अर्थात नाभिक की बन्धन ऊर्जा [latex]\frac { 1 }{ 9 }[/latex] हो जायेगी।

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प्रश्न 15:
हीलियम नाभिक की द्रव्यमान क्षति 0.0303 amu है। प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा की गणना कीजिए। (2014)
हल:
हीलियम नाभिक की बन्धन ऊर्जा = 0.0303×931 = 28.20 MeV
प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा = [latex]\frac { 28.20 }{ 4 }[/latex]  = 7.05 MeV

प्रश्न 16:
क्यूरी की परिभाषा दीजिए।
या
क्यूरी किस भौतिक राशि का मात्रक है? क्यूरी का मान कितना है? (2013)
उत्तर:
क्यूरी (Curie): यह रेडियोऐक्टिव पदार्थ की सक्रियता का मात्रक है। इसको इस प्रकार परिभाषित किया जाता है
“यदि किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ में 3.7 x 1010 विघटन प्रति सेकण्ड होते हैं, तो उस पदार्थ की सक्रियता 1 क्यूरी होगी।”
अर्थात् 1 क्यूरी = 3.7 x 1010

प्रश्न 17:
किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ की अर्द्ध-आयु से क्या तात्पर्य है? (2012, 15)
उत्तर:
अर्द्ध-आयु-वह समय अन्तराल जिसके अन्तर्गत किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ की मात्रा अर्थात् उसके परमाणुओं (नाभिकों) की संख्या रेडियोऐक्टिव क्षय के फलस्वरूप घटकर अपने प्रारम्भिक मान की आधी रह जाती है, उस रेडियोऐक्टिव पदार्थ की अर्द्ध-आयु कहलाता है। इसको T से प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 18:
किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ के क्षय नियतांक की परिभाषा लिखिए। (2012)
उत्तर:
किसी क्षण रेडियोऐक्टिव पदार्थ के परमाणुओं के क्षय होने की दर [  ([latex]\frac { dN }{ dt }[/latex] ) ]  तथा उस क्षण पदार्थ में विद्यमान परमाणुओं की संख्या (N) के अनुपात को उस रेडियोऐक्टिव पदार्थ का क्षय नियतांक (λ) कहते हैं।

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प्रश्न 19:
रेडियोऐक्टिव क्षय का नियम क्या है? (2014, 17)
उत्तर:
किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ के परमाणुओं से α- अथवा β- कण तथा γ-किरणें निकलती रहती हैं। इससे परमाणु का भार तथा क्रमांक बदल जाते हैं। इस प्रकार (UPBoardSolutions.com) प्रारम्भिक रेडियोऐक्टिव परमाणु का क्षय हो जाता है तथा किसी नये तत्त्व के परमाणु का जन्म हो जाता है। इस घटना को रेडियोऐक्टिव क्षय कहते हैं।

प्रश्न 20:
एक रेडियोऐक्टिव परमाणु ZXA पहले β-कण उत्सर्जित करता है तत्पश्चात् एक γ-फोटॉन उत्सर्जित करता है। प्राप्त नये परमाणु का परमाणु क्रमांक एवं परमाणु द्रव्यमान लिखिए। (2017)
उत्तर:
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प्रश्न 21:
8Po210  एक ऐल्फा-कण उत्सर्जित करके सीसे (Pb) में बदल जाता है। इस रेडियोऐक्टिव क्षय की समीकरण दीजिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 13 Nuclei 33

प्रश्न 22:
(i) एक रेडियोऐक्टिव तत्त्व की अर्द्ध-आयु 3 घण्टे है। 9 घण्टे पश्चात इसकी सक्रियता की गणना कीजिए।
(ii) चार अर्द्ध-आयुओं के बाद किसी रेडियोऐक्टिव तत्त्व की सक्रियता, प्रारम्भिक सक्रियता के पदों में क्या होगी? (2012)
या
4 अर्द्ध-आयुओं के पश्चात् किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ की कितनी मात्रा अवशेष रह जायेगी ? (2013)
हल:
(i) T = 3 घण्टा तथा t = 9 घण्टा,
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प्रश्न 23:
किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ का क्षय नियतांक 0.001 प्रतिवर्ष है। इसकी औसत आयु ज्ञात कीजिए। (2011, 15)
हल:
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प्रश्न 24:
एक रेडियोऐक्टिव पदार्थ की अर्द्ध-आयु 693 वर्ष है। इसका क्षयांक ज्ञात कीजिए।  (2010, 14, 17)
हल:
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प्रश्न 25:
रेडियम की अर्द्ध-आयु 1600 वर्ष है। कितने समय पश्चात् रेडियम के किसी खण्ड का 25% अविघटित रह जाएगा? (2015)
हल:
अर्द्ध-आयु 1 = 1600 वर्ष
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प्रश्न 26:
5 अर्द्ध-आयुओं के उपरान्त किसी रेडियोऐक्टिव तत्त्व की मात्रा का कितना प्रतिशत अविघटित रहेगा? (2012)
हल:
माना रेडियोऐक्टिव तत्त्व की प्रारम्भिक मात्रा N0 है। तब, n अर्द्ध-आयुओं के पश्चात् बचे पदार्थ की मात्रा
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प्रश्न 27:
एक रेडियोऐक्टिव तत्त्व की अर्द्ध-आयु 8 वर्ष है। कितने समय बाद पदार्थ विघटित होकर प्रारम्भिक मात्रा का एक चौथाई रह जायेगा? (2016)
हल:
अर्द्ध-आयु, T = 8 वर्ष
प्रारम्भिक मात्रा = N0
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प्रश्न 28:
किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ की अर्द्ध-आयु 16 घण्टे है। कितने समय बाद प्रारम्भिक द्रव्यमान का 25% भाग अविघटित रह जाएगा? (2017)
हल:
अर्द्ध-आयु, 7 = 16 घण्टे
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प्रश्न 29:
β-किरणों के दो मुख्य गुण लिखिए। (2012)
उत्तर:
β-किरणों या β-कणों के दो मुख्य गुण इस प्रकार हैं
(i) आवेशित होने के कारण ये कण चुम्बकीय-क्षेत्र में विक्षेपित हो जाते हैं। विक्षेप की दिशा से पता चलता है कि ये ऋणावेशित कण हैं। α-कणों की (UPBoardSolutions.com) अपेक्षा इनका विक्षेप बहुत अधिक होता है इससे पता चलता है कि β-कण, α-कण की अपेक्षा बहुत हल्के होते हैं।
(ii) रेडियोऐक्टिव पदार्थों से β-कण अत्यधिक उच्च वेग से उत्सर्जित होते हैं। इनका वेग प्रकाश की चाल के 1% से लेकर 99% तक होता है।

प्रश्न 30:
किसी नाभिक से एक β-कण निकलने पर उसके परमाणु क्रमांक तथा द्रव्यमान संख्या में क्या परिवर्तन होता है ? (2011)
उत्तर:
परमाणु क्रमांक में 1 की वृद्धि होती है तथा द्रव्यमान संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

प्रश्न 31:
नाभिकीय श्रृंखला क्रिया में क्रान्तिक द्रव्यमान से क्या अभिप्राय है? (2009, 17)
उत्तर:
नाभिकीय विखण्डन की श्रृंखला-अभिक्रिया चालू रखने के लिए विखण्डनीय पदार्थ का द्रव्यमान सदैव एक निश्चित द्रव्यमान से अधिक होना चाहिए। इस निश्चित द्रव्यमान को ही क्रान्तिक द्रव्यमान कहते है।

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प्रश्न 32:
एक परमाणु द्रव्यमान मात्रक (1 amu) की तुल्य ऊर्जा मिलियन इलेक्ट्रॉन वोल्ट (MeV) में बताइए। (2013)
या
आइन्स्टीन के समीकरण से amu की तुल्य ऊर्जा MeV में कितनी होती है?
उत्तर:
1 amu= 931 MeV

प्रश्न 33:
नाभिकीय रिएक्टर में मन्दक की आवश्यकता क्यों होती है?
या
नाभिकीय रिएक्टर में मन्दंक का क्या उपयोग है? (2009)
उत्तर:
न्यूट्रॉन की गति मन्द करने के लिए मन्दक का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 34:
भारी जल का प्रयोग मुख्यतः कहाँ और किसलिए किया जाता है? (2017)
उत्तर:
नाभिकीय रिएक्टर में न्यूट्रॉनों की गति मन्द करने के लिए।

प्रश्न 35:
नाभिकीय रिएक्टर में कैडमियम छड़ों का क्या उपयोग है?
उतर:
विखण्डन क्रिया को नियन्त्रित करने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 36:
नाभिकीय रिएक्टर में प्रयुक्त किये जाने वाले किन्हीं दो मन्दकों के नाम लिखिए।(2013)
उत्तर:
भारी जल तथा ग्रेफाइट।

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प्रश्न 37:
नाभिकीय रिएक्टर में भारी जल एक उपयुक्त मन्दक क्यों है? (2009)
उत्तर:
चूँकि यह हाइड्रोजनीय पदार्थ है इसलिए इसमें न्यूट्रॉनों के टकराने पर इनके वेग में अधिक कमी होती है।

प्रश्न 38:
युग्म उत्पादन से आप क्या समझते हैं? इसका एक उदाहरण दीजिए। (2014)
उत्तर:
जब कोई ऊर्जिते गामा-किरण फोटॉन किसी भारी पदार्थ पर गिरता है तो वह पदार्थ के किसी नाभिक द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है तथा उसकी ऊर्जा से एक इलेक्ट्रॉन व एक पॉजिट्रॉन की उत्पत्ति हो जाती है। इस प्रक्रिया को युग्म-उत्पादन कहते हैं तथा इसे निम्न समीकरण से प्रदर्शित करते हैं
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प्रश्न 39:
यदि एक़ नाभिकीय संलयन प्रक्रिया में द्रव्यमान क्षति 0.3% हो, तो 1 किग्रा द्रव्यमान की नाभिकीय संलयन प्रक्रिया में कितनी ऊर्जा मुक्त होगी? (2009, 11, 12)
हल:
Δm = 1 किग्रा का 0.3% = 0.003 किग्रा
अतः मुक्त ऊर्जा E = Δm x c = 0.003 किग्रा x (3 x 108 मी/से)2
= 0.027 x 1016 जूल
= 2.7 x 1014 जूले

प्रश्न 40:
एक [latex]^{ 235 }{ U }[/latex] नाभिक के विखण्डन से 150 मिलियन इलेक्ट्रॉन-वोल्ट ऊर्जा उत्पन्न होती है। एक रिएक्टर 4.8 मेगावाट शक्ति दे रहा है। रिएक्टर में प्रति सेकण्ड विखण्डित हो रहे नाभिकों की संख्या की गणना कीजिए।    (2015) 
हल:
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प्रश्न 41:
एक नाभिक ZXA एक α-कण तथा एक β-कण का उत्सर्जन करता है। उत्सर्जन के बाद नयी नाभिक क्या होगा? (2015)
उत्तर:
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प्रश्न 42:
नाभिकीय संलयन में 1 ग्राम हाइड्रोजन से 0.993 ग्राम हीलियम प्राप्त होती है। यदि जनित्र की दक्षता 5% हो तो उत्पन्न ऊर्जा की गणना कीजिए। (2017)
हल:
द्रव्यमान क्षति Δm = 1-0.993 = 0.007 ग्राम = 7 x 10-6 किग्रा
अतः उत्पन्न ऊर्जा ΔE = (Δm) x c2
= 7 x 10-6 x 9 x 1016 x 5% जूल = 315 x 108 जूल
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प्रश्न 43:
यदि नाभिक 13Al27 की त्रिज्या 3.6 फर्मी हो तब नाभिक 52Te125 की त्रिज्या ज्ञात (2018)
हल:
सूत्र, R = R0A1/3 से,
जहाँ, R0 = 1.2 x 10-15 m
तथा A = नाभिक की द्रव्यमान संख्या है।
यदि R1 तथा R2 क्रमश: Al वे Te की नाभिकीय त्रिज्याएँ हैं, तो
R1 = R0 (27)1/3 = 3R0 तथा
R = R0(125)1/3 = 5R0
R1 को R2 से भाग देने पर,
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प्रश्न 44:
किसी नाभिक की त्रिज्या (r) तथा नाभिक के परमाणु द्रव्यमान संख्याA) में क्या सम्बन्ध है?  (2018)
हल:
R3 α A
R α A1/3
R = R0 A1/3
जहाँ R0 = फर्मी नियतांक
R= नाभिक की त्रिज्या
A = परमाणु द्रव्यमान त्रिज्या

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
अन्त:नाभिकीय बल से क्या तात्पर्य है? इन बलों की प्रकृति के बारे में क्या तथ्य प्राप्त किये गये? (2017)
या
अन्तःनाभिकीय बलों के गुण लिखिए। या नाभिकीय बल किसे कहते हैं? (2012, 17)
उत्तर:
नाभिकीय बल (Nuclear Forces):
किसी भी परमाणु के नाभिक में दो मूल कण, प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन होते हैं। समान रूप से आवेशित कण होने के कारण प्रोटॉनों के बीच एक वैद्युत प्रतिकर्षण बल कार्य करता है, जबकि आवेश-रहित न्यूट्रॉनों के बीच इस प्रकार का कोई बल नहीं लगता। ये कण नाभिक के अत्यन्त सूक्ष्म (UPBoardSolutions.com) स्थान (≈ 10-15 मीटर) में एक साथ कैसे रहते हैं? इस तथ्य को समझने के लिए यह परिकल्पना की गयी कि नाभिक के भीतर ऐसे बल कार्यशील रहते हैं। जो कि न्यूक्लिऑनों को परस्पर नाभिक में एक साथ बाँधे रखते हैं। इन बलों को ‘नाभिकीय बल’ (nuclear forces) कहते हैं। इन बलों के विषय में निम्नलिखित तथ्य ज्ञात हुए हैं

  1. ये बल आकर्षण-बल हैं अन्यथा समान आवेश के प्रोटॉन नाभिक जैसे सूक्ष्म स्थान में जमा नहीं रह पाते।
  2.  ये बल अत्यन्त तीव्र (very strong) हैं। मानव जानकारी में अब तक जितने भी बल ज्ञात हैं उनमें सबसे अधिक तीव्र नाभिकीय-बल ही हैं।
  3. ये वैद्युत बल नहीं हैं। यदि ये वैद्युत बल होते, तो इनके कारण प्रोटॉनों के बीच प्रतिकर्षण होता और नाभिक की संरचना सम्भव न हो पाती।
  4.  ये गुरुत्वीय बल भी नहीं हैं। दो न्यूक्लिऑनों के बीच गुरुत्वीय बल बहुत क्षीण होते हैं, जबकि नाभिकीय बल अत्यन्त तीव्र होते हैं।
  5. ये बल आवेश पर किसी प्रकार भी निर्भर नहीं करते अर्थात् विभिन्न न्यूक्लिऑनों के बीच | (जैसे -प्रोटॉन-प्रोटॉन के बीच, न्यूट्रॉन-न्यूट्रॉन के बीच, प्रोटॉन-न्यूट्रॉन के बीच) बल एकसमान (uniform) होते हैं।
  6. ये बल अत्यन्त लघु परिसर (short range) के हैं। अतः ये बहुत कम दूरी (केवल नाभिकीय
    व्यास, 10-15 मीटर के अन्दर) तक ही प्रभावी होते हैं।

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प्रश्न 2:
किसी नाभिक की द्रव्यमान क्षति क्या है? इससे बन्धन ऊर्जा कैसे प्राप्त होती है।
या
द्रव्यमान क्षति किसे कहते हैं? समझाइए। बन्धन ऊर्जा तथा नाभिक के स्थायित्व में क्या सम्बन्ध है?
या
किसी नाभिक की बन्धन ऊर्जा से क्या तात्पर्य है? (2009, 11, 14, 15)
या
द्रव्यमान क्षति से क्या तात्पर्य है? या नाभिक की द्रव्यमान क्षति एवं बन्धन ऊर्जा से क्या तात्पर्य है? (2013)
या
नाभिक के द्रव्यमान क्षति से आप क्या समझते हैं? द्रव्यमान क्षति नाभिक की बन्धन ऊर्जा से कैसे सम्बन्धित है? (2014)
या
नाभिकीय बन्धन ऊर्जा से क्या तात्पर्य है? (2015)
उत्तर:
देव्यमान क्षति: नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान उसमें उपस्थित प्रोटॉनों तथा न्यूट्रॉनों के द्रव्यमानों के योग से सदैव कुछ कम होता है। द्रव्यमानों का यह अन्तर द्रव्यमान क्षति (mass defect) कहलाता है।
द्रव्यमान क्षति = (प्रोटॉनों का द्रव्यमान + न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान) – नाभिक का द्रव्यमान
माना किसी परमाणु B की (UPBoardSolutions.com) द्रव्यमान संख्या A तथा परमाणु क्रमांक Z है, तो इसके नाभिक में प्रोटॉनों की संख्या Z तथा न्यूट्रॉनों की संख्या (A – Z) होगी। यदि प्रोटॉन का द्रव्यमान mp न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान mएवं नाभिक का द्रव्यमान M हो, तो द्रव्यमान क्षति Δm = [Zmp + (A -Z)mn]- M द्रव्यमान क्षति Δm को अर्थ है कि जब प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन मिलकर नाभिक का निर्माण करते हैं तो Δm द्रव्यमान लुप्त हो जाता है तथा इसके तुल्य ऊर्जा (Δm) c² मुक्त हो जाती है। इस ऊर्जा के कारण ही प्रोटॉन व न्यूट्रॉन नाभिक में बंधे रहते हैं। इसे नाभिक की बन्धन ऊर्जा कहते हैं।
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 बन्धन ऊर्जा तथा नाभिक के स्थायित्व में सम्बन्ध:
किसी नाभिक की प्रति-न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा जितनी अधिक होती है वह उतना ही अधिक स्थायी होता है।

प्रश्न 3:
6C12 की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा की गणना कीजिए।
दिया गया है, 6C12 का द्रव्यमान = 12.0038 amu
प्रोटॉन का द्रव्यमान = 1.0081 amu
न्यूट्रॉन का द्रव्यमान = 1.0090 amu (2013)
हल:
6C12 नाभिक में प्रोटॉन = Z = 6
तथा  न्यूट्रॉन = A – Z = 12 – 6 = 6
अतः 6C12 नाभिक में न्यूक्लिऑनों की संख्या = A = 12
∴ 6C12 नाभिक में न्यूक्लिऑनों का द्रव्यमान
= (6 प्रोटॉनों +6 न्यूट्रॉनों) का द्रव्यमान
= 6(1.0081+1.0090) amu
= 6 x 2. 0171 amu = 12.1026 amu
∴ द्रव्यमान क्षति Δm = न्यूक्लिऑनों का द्रव्यमान – नाभिक का द्रव्यमान
= 12.1026 amu-12.0038 amu== 0.0988 amu
कुल बन्धन ऊर्जा EB = Δm द्रव्यमान के तुल्य ऊर्जा
= 0.0988 x 931 MeV= 91.9828 MeV
∴ प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा = [latex]\frac { { E }_{ B } }{ A }[/latex]  = [latex]\frac { 91.9828 }{ 12 }[/latex] MeV
= 7.665 MeV

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प्रश्न 4:
एक 29Cu63 के सिक्के को द्रव्यमान 3.0 ग्राम है। उस ऊर्जा की गणना MeV में कीजिए जो इस सिक्के के सभी न्यूट्रॉनों एवं प्रोटॉनों को एक-दूसरे से अलग करने के लिए आवश्यक हो।
दिया है, 29Cu63 का द्रव्यमान= 62.9296,
mP = 1.0078 amu,
mn = 1,0086 amu,
me = 0.0005 amu,
1 amu = 931.5 MeV (2015)
हल:
29Cu63 नाभिक में प्रोटॉन (Z) = 29
न्यूट्रॉन = 63 – 29= 34
न्यूक्लिऑनों की संख्या (A) = 63
∴ न्यूक्लिऑनों का द्रव्यमान = (29 x 1.0078+ 34 x 1.0086)
= 63.5186 amu
द्रव्यमान क्षति (ΔM) = 63.5186- 62.9296= 0.589 amu
∴ बन्धन ऊर्जा (EB ) = Δm x 931 MeV
= 0.589 x 931 MeV
= 548.359 Mev

प्रश्न 5:
हीलियम नाभिक (2He4) के लिये द्रव्यमान क्षति 0.0304 amu है। इसकी प्रति न्यूक्लिऑन नाभिकीय बन्धन ऊर्जा ज्ञात कीजिए। (2013)
हल:
Δm = 0.0304 amu
कुल वन्धन ऊर्जा = 0.0304 MeV x 931 MeV/amu
= 28.3024 MeV
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प्रश्न 6:
एक न्यूट्रॉन का द्रव्यमान 1.00867amu तथा प्रोटॉन को द्रव्यमान 1.00728 amu है। यदि हीलियम नाभिक (α-कण) का द्रव्यमान 4,00150 amu हो, तो हीलियम की बन्धन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन eV में ज्ञात कीजिए। (2012, 14)
हल:
हीलियम की बन्धन ऊर्जा E
= [(प्रोटॉनों का द्रव्यमान + न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान) – (He नाभिक का द्रव्यमान)] x 931MeV
= [(2 x 1.00728 + 2 x 1.00867) – (4.00150)] x 931
= 0.0304 x 931= 28.30 MeV= 28.3 x 106MeV

प्रश्न 7:
बन्धन ऊर्जा से क्या तात्पर्य है? यदि प्रोटॉन, न्यूट्रॉन तथा ऐल्फा (α) कणों के द्रव्यमान क्रमशः 1.00728 amu, 1.00867 amu तथा 4.00150 amu हों, तो α कण की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा ज्ञात कीजिए। [1 amu= 931 MeV] (2016, 17)
हल:
बन्धन ऊर्जा:
किसी नाभिक की बन्धन ऊर्जा वह न्यूनतम ऊर्जा है जो नाभिक के न्यूक्लिऑनों को अनन्त दूरी तक अलग-अलग करने के लिए आवश्यक है।

प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा:
α कण हीलियम 2He4 का नाभिक है। जिसमें दो प्रोटॉन तथा दो न्यूट्रॉन होते हैं।
∵ दो प्रोटॉनों का द्रव्यमान = 2 x 1.00728 = 2.01456 amu
दो न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान = 2 x 1.00867 = 2.01734 amu
इनका योग = 4.03190 amu
अतः द्रव्यमान क्षति Δm = न्यूक्लिऑनों का द्रव्यमान – α कण का द्रव्यमान
= 4.03190 amu – 4.00150 amu = 0.03040 amu
1 amu के तुल्य ऊर्जा 931 MeV होती है।
अतः 0.03040 के तुल्य ऊर्जा, Δ E = 0.03040 x 931 = 28.3 MeV
यह α कण की बन्धन ऊर्जा है।
α  कण में 4 न्यूक्लिऑन (2 प्रोटॉन व 2 न्यूट्रॉन) होते हैं। अतः प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन ऊर्जा [latex]\frac { \Delta E }{ 4 }[/latex]
= [latex]\frac { 28 }{ 3 }[/latex]  = 7.07 MeV

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प्रश्न 8:
परमाणु द्रव्यमान मात्रक (a.m.u.) की परिभाषा दीजिए। इसका मान किलोग्राम तथा MeV में व्यक्त कीजिए। (2017)
उत्तर:
मूल कणों, नाभिकों तथा परमाणुओं के द्रव्यमान अति सूक्ष्म होते हैं, अत: इनके द्रव्यमानों को व्यक्त करने के लिए एक बहुत छोटा मात्रक चुना गया है, जिसे परमाणु द्रव्यमान मात्रक (a.m.u.) कहते हैं। 1 a.m.u. कार्बन परमाणु के द्रव्यमान के बारहवें भाग के बराबर होता है।
1a.m.u. = 1.66 x 10-27 किग्रा ।
1 a.m.u. = 931 MeV

प्रश्न 9:
निम्नलिखित अभिक्रिया में निर्मुक्त ऊर्जा की गणना कीजिए (2017)
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हल:
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प्रश्न 10:
निम्नलिखित समीकरणों को पूरा कीजिए
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उत्तर:
(i) 2He4
(ii) 6C12
(iii) 290Th234
(iv) 0n1

प्रश्न 11:
प्राकृतिक रेडियोऐक्टिवता में मिलने वाली तीनों प्रकार की किरणों के गुणों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
α-कण, β-कण तथा  γ-किरणों के गुणों की तुलना
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प्रश्न 12:
अर्द्ध-आयु तथा क्षय नियतांक में सम्बन्ध का सूत्र स्थापित कीजिए। (2017)
या
किसी रेडियो-सक्रिय पदार्थ की अर्द्ध-आयु, माध्य आयु तथा क्षय नियतांक के बीच सम्बन्ध का निगमन कीजिए।
या
रेडियोऐक्टिव पदार्थ के लिए अर्द्ध-आयु काल एवं क्षय नियतांक में सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2014, 15, 16)
उत्तर:
अर्द्ध-आयु तथा क्षय नियतांक में सम्बन्ध:
यदि प्रारम्भ में (t = 0) किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ की मात्रा (परमाणु की संख्या) N0 तथा इसकी अर्द्ध-आयु T है तथा t समय पश्चात् पदार्थ की मात्रा N रह जाए, तो
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प्रश्न 13:
एक रेडियोऐक्टिव पदार्थ की सक्रियता 32 वर्षों में घटकर अपने प्रारम्भिक मान कारह [latex]\frac { 1 }{ 16 }[/latex] जाती है। पदार्थ की अर्द्ध-आयु की गणना कीजिए। (2009, 12)
हल:
यदि किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ की प्रारम्भिक मात्रा N0 है, तब n अर्द्ध-आयुओं के पश्चात् बचे पदार्थ की मात्रा
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प्रश्न 14:
एक रेडियोऐक्टिव पदार्थ की सक्रियता 33 वर्षों में घटकर अपने प्रारम्भिक मान का  [latex]\frac { 1 }{ 8 }[/latex] रह जाती है। पदार्थ की अर्द्ध-आयु एवं क्षय-नियतांक की गणना कीजिए। (2016)
हल:
माना रेडियोऐक्टिव पदार्थ की प्रारम्भिक मात्रा N0 है, तब n अर्द्ध-आयुओं के पश्चात् बचे पदार्थ की मात्रा
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 13 Nuclei 41

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प्रश्न 15:
रदरफोर्ड-सोडी के रेडियोऐक्टिव क्षय का नियम क्या है? दो रेडियोऐक्टिव स्रोत A तथा B की अर्द्ध-आयु क्रमशः 1 घण्टा तथा 4 घण्टा है। यदि प्रारम्भ में A व B के रेडियोऐक्टिव परमाणुओं की संख्या समान हो तो 4 घण्टे के पश्चात् इन दोनों की सक्रियताओं का अनुपात क्या होगा? (2016)
हल:
रदरफोर्ड सोडी के क्षय नियतांक के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 3 का उत्तर देखें।
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प्रश्न 16:
नाभिकीय संलयन से क्या तात्पर्य है? (2012, 17)
या नाभिकीय संलयन क्या है? (2014)
उत्तर:
नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion)-दो हल्के नाभिकों के परस्पर संयुक्त होकर भारी नाभिक बनाने की प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। संलयन से प्राप्त नाभिक का द्रव्यमान, संलयन करने वाले मूल नाभिकों के द्रव्यमानों के योग से कम होता है तथा द्रव्यमान के इस अन्तर के तुल्य (UPBoardSolutions.com) ऊर्जा इस प्रक्रिया में मुक्त होती है।
उदाहरण के लिए, भारी हाइड्रोजन अथवा ड्यूटीरियम ( 1H2) के दो नाभिकों के संलयन को इस समीकरण द्वारा व्यक्त कर सकते है ।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 13 Nuclei 42
ड्यूटीरियम ड्यूटीरियम ट्राइटियम हाइड्रोजन ऊर्जा ट्राइटियम पुनः ड्यूटीरियम के नाभिक से संलयित होकर हीलियम नाभिक का निर्माण करता है।
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प्रश्न 17:
नाभिकीय विखण्डन क्या है? इसे प्रदर्शित करने का एक समीकरण दीजिए। नाभिकीय विखण्डन में ऊर्जा कहाँ से उत्सर्जित होती है? (2015, 17)
उत्तर:
नाभिकीय विखण्डन-इस प्रक्रिया में किसी भारी नाभिक पर न्यूट्रॉनों की बमबारी किये जाने पर यह नाभिक दो लगभग बराबर नाभिकों में टूट जाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 13 Nuclei 44
नाभिकीय विखण्डन की प्रक्रिया में अपार ऊर्जा उत्पन्न होने का कारण है कि इस प्रक्रिया में प्राप्त नाभिकों तथा न्यूट्रॉनों का द्रव्यमान मूल नाभिक तथा न्यूरॉन के द्रव्यमान से कुछ कम होता है, अर्थात् इस प्रक्रिया में कुछ द्रव्यमान की क्षति होती है। यह द्रव्यमान क्षति ही आइन्स्टीन के द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध के अनुसार ऊर्जा के रूप में परिवर्तित होकर प्राप्त होती है।

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प्रश्न 18:
क्रान्तिक द्रव्यमान तथा नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया से आप क्या समझते हैं? (2013)
उत्तर:
क्रान्तिक द्रव्यमान (Critical Mass):
किसी विखण्डनीय पदार्थ का उसके क्रान्तिक आकार के संगत वह द्रव्यमान जो श्रृंखला अभिक्रिया को जारी रखने के लिए आवश्यक होता है, क्रान्तिक द्रव्यमान कहलाता है।

नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया (Controlled Chain Reaction):
यह अभिक्रिया कृत्रिम उपायों द्वारा इस प्रकार नियन्त्रित की जाती है कि प्रत्येक विखण्डन से उत्पन्न न्यूट्रॉनों में से केवल एक ही न्यूट्रॉन विखण्डन कर पाये । इस प्रकार (UPBoardSolutions.com) अभिक्रिया में नाभिकों के विखण्डन की दर नियन्त्रित रहती है। अतः यह क्रिया धीरे-धीरे होती है तथा इसमें उत्पन्न ऊर्जा लाभदायक कार्यों के लिए प्रयुक्त की जा सकती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
समभारिक’ तथा ‘समस्थानिक’ पदों के अर्थ समझाइए।   (2013)
या
समस्थानिक तथा समभारिक का अर्थ दो-दो उदाहरण देकर समझाइए।
या
समस्थानिक का अर्थ एक उदाहरण देकर समझाइए। (2015, 7)
या
समभारिक का अर्थ उदाहरण सहित समझाइए। (2015, 17)
उत्तर:
1. समस्थानिक अथवा समप्रोटॉनिक (Isotopes or Isoprotons):
किसी एक ही तत्त्व के ऐसे परमाणु जिनके नाभिकों में प्रोटॉनों की संख्या समान होती है, परन्तु न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है, उस तत्त्व के ‘समस्थानिक’ या ‘समप्रोटॉनिक’ कहलाते हैं। इस प्रकार किसी तत्त्व के विभिन्न समस्थानिकों के परमाणु क्रमांक (Z) समान होते हैं, परन्तु द्रव्यमान (UPBoardSolutions.com) संख्या (A) भिन्न-भिन्न होती है। क्योंकि इनके परमाणु-क्रमांक समान हैं, अत: आवर्त सारणी में इनका स्थान समान होता है। इसी कारण इन्हें समस्थानिक भी कहते हैं।
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(2) समभारिक (Isobaric): ऐसे नाभिकों को जिनमें न्यूक्लिऑनों की कुल संख्या समान होती है, परन्तु प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है; समभारिक’ कहते हैं। इन नाभिकों का परमाणु क्रमांक (Z) भिन्न-भिन्न तथा द्रव्यमान संख्या (A) समान होती है। अतः आवर्त सारणी में इनका स्थान भिन्न-भिन्न होता है और इनके रासायनिक गुण भी एक जैसे नहीं होते।
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प्रश्न 2:
विभिन्न नाभिकों की बन्धन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन का द्रव्यमान संख्या (A) के साथ परिवर्तन, ग्राफ द्वारा निरूपित कीजिए। कारण बताते हुए समझाइए कि क्यों हल्के नाभिकों का सामान्यतः नाभिकीय संलयन होता है?  (2014)
उत्तर:
विभिन्न परमाणुओं के नाभिकों के स्थायित्व की तुलना करने के लिये नाभिकों की ‘प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा’ (binding energy per nucleon) ज्ञात करते हैं। किसी नाभिक की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा जितनी अधिक होती है; नाभिक उतना ही अधिक स्थायी होता है। (UPBoardSolutions.com) विभिन्न परमाणुओं के नाभिकों के स्थायित्व का अध्ययन करने के लिये इनकी प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा तथा द्रव्यमान-संख्या के बीच ग्राफ खींचा जाता है। प्राप्त वक्र को बन्धन-ऊर्जा वक्र’ कहते हैं (चित्र 13.4)। इस वक़ से निम्न महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष प्राप्त होते हैं

  1. द्रव्यमान संख्या लगभग A = 50 से A = 80 तक के बीच वक्र में एक सपाट शिखर (flat maximum) है जिसके संगत औसत प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा लगभग 8.5 MeV है। अतः वे नाभिक जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ 50 व 80 के बीच हैं, अधिक स्थायी हैं। इनमें Fe56, जिसकी प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा अधिकतम (लगभग 8.8 MeV) हैं, सबसे अधिक स्थायी हैं
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  2. 80 से ऊँची द्रव्यमान-संख्या वाले नाभिकों के लिए प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा धीरे-धीरे घटती जाती है तथा यूरेनियम नाभिक (A = 238) के लिए लगभग 7.6 MeV रह जाती है। अत: नाभिकों को स्थायित्व भी घटता जाता है। यही कारण है कि 83Bi209 के आगे वाले भारी नाभिक रेडियोऐक्टिव हैं।
  3. 50 से नीची द्रव्यमाने-संख्या वाले नाभिकों के लिए भी प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा घटने लगती है, तथा 20 से नीचे बहुत तेजी से घट जाती है। उदाहरण के लिए, भारी हाइड्रोजन (A = 2) के लिए यह केवल 1.1 MeV होती है। इससे यह पता चलता है कि 20 से नीचे द्रव्यमान संख्या वाले
    नाभिक अपेक्षाकृत कम स्थायी हैं।
  4. A = 50 से नीचे, वक्र सतत रूप से नहीं गिरता, बल्कि 8O16, 6C12तथा ,2He4नाभिकों पर गौण शिखर प्राप्त होते हैं। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि ये (सम-सम) नाभिक समीप की द्रव्यमान-संख्याओं वाले अन्य नाभिकों से अधिक स्थायी हैं।
  5.  यह वक्र मोटे तौर पर बताता है कि बहुत भारी तथा बहुत हल्के नाभिकों की प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा बाद वाले नाभिकों के सापेक्ष कम होती है। अत: यदि हम किसी बहुत भारी नाभिक (जैसे यूरेनियम) को किसी विधि द्वारा अपेक्षाकृत हल्के (अर्थात् बीच वाले) नाभिकों में तोड़ लें तो प्रति न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा बढ़ जायेगी। अत: इस प्रक्रिया में ऊर्जा बहुत बड़ी मात्रा में मुक्त होगी। इस प्रक्रिया को ‘नाभिकीय विखण्डन (nuclear fission) कहते हैं।

इसी प्रकार, यदि हम दो अथवा अधिक बहुत हल्के नाभिकों (जैसे भारी हाइड्रोजन 1Hके नाभिक) को किसी विधि द्वारा अपेक्षाकृत भारी नाभिक (जैसे-2He4) में संयुक्त कर लें तब भी प्राप्त न्यूक्लिऑन बन्धन-ऊर्जा बढ़ जायेगी। इस प्रक्रिया में भी अत्यधिक ऊर्जा मुक्त होगी। इस प्रक्रिया को ‘नाभिकीय संलयन’ (nuclear fusion) कहते हैं।

प्रश्न 3:
यदि λ क्षय नियतांक है, तो सिद्ध कीजिए कि N = N0e-λt, जहाँ Na और N क्रमशः समय है t= 0 तथा t समय के बाद परमाणुओं की संख्याएँ हैं। (2009, 14)
या
रेडियोऐक्टिव क्षय से सम्बन्धित रदरफोर्ड-सोडी का नियम क्या है? (2012, 16, 17)
या
रदरफोर्ड-सोडी नियम क्या है ? सूत्र N = N0e-λt का व्युत्क्रम कीजिए। (2018)
उत्तर:
रेडियोऐक्टिव क्षय से सम्बन्धित रदरफोर्ड तथा सोडी का नियम: इस नियम के अनुसार, “किसी भी क्षण रेडियोऐक्टिव परमाणुओं के क्षय होने की दर उस क्षण उपस्थित परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है।” माना किसी क्षण t पर उपस्थित परमाणुओं की (UPBoardSolutions.com) संख्या N है तथा (t + dt) क्षण पर यह संख्या घटकर (N – dN ) रह जाती हो, तो परमाणुओं के क्षय होने की दर = – (dN/dt) तथा रदरफोर्ड-सोडी के नियमानुसार,
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जहाँ N0 व N क्रमशः प्रारम्भ में (t = 0 क्षण पर) तथा t समय पश्चात् किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ में परमाणुओं की संख्याएँ हैं। इसे समीकरण से स्पष्ट है कि किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ का क्षय चर घातांक नियम (exponential law) के अनुसार होता है, अर्थात् क्षय प्रारम्भ में तेजी से होता है तथा फिर इसकी दर लगातार घटती जाती है। अतः किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ को पूर्णतः क्षय होने में अनन्त समय
लगता है।

प्रश्न 4:
किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ के नमूने में किसी समय अविघटित पदार्थ 25% रहता है।
10 सेकण्ड के उपरान्त अविघटित पदार्थ घटकर 12.5% रह जाता है। ज्ञात कीजिए
(i) पदार्थ की माध्य आयु।
(ii) वह समय जब अविघटित पदार्थ घटकर विघटित पदार्थ का 6.25% हो जाए। (2013)
हल:
(i) किसी क्षण अविघटित नाभिकों की संख्या 25% है। 10 सेकण्ड पश्चात् यह 12.5% (आधी) रह जाती है। इसका अर्थ है कि रेडियोऐक्टिव पदार्थ की अर्द्ध-आयु 10 सेकण्ड है अर्थात्
T = 10 सेकण्ड
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प्रश्न 5:
सूर्य से ऊर्जा नाभिकीय संलयन प्रक्रिया से किस प्रकार प्राप्त हो रही है? आवश्यक समीकरण सहित समझाइए। यह अभिक्रिया सामान्य ताप पर क्यों नहीं होती है?
या
सूर्य में ऊर्जा किस प्रकार पैदा होती है ? आवश्यक समीकरण सहित समझाइए। ये अभिक्रियाएँ अति उच्च ताप पर ही क्यों होती हैं? (2009)
या
हम जानते हैं कि हमें लाखों वर्षों से सूर्य से असीमित ऊर्जा प्राप्त हो रही है। सूर्य की इस असीमित ऊर्जा के स्रोत को नाभिकीय समीकरणों की सहायता से स्पष्ट कीजिए (2010)
या
नाभिकीय संलयन के आधार पर सौर ऊर्जा के स्रोत की व्याख्या आवश्यक समीकरणों के साथ कीजिए। (2011)
ताप-नाभिकीय अभिक्रियाओं द्वारा सूर्य में नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया समझाइए। ये अभिक्रियाएँ अति उच्च ताप पर ही क्यों होती हैं? (2013)
या
सूर्य से ऊर्जा नाभिकीय संलयन द्वारा कैसे उत्पन्न होती है? आवश्यक समीकरणों की सहायता से समझाइए। (2014)
उत्तर:
सन् 1939 में अमेरिकी वैज्ञानिक एच० ए० बेथे (H.A. Bethe) ने बताया कि सूर्य पर लगातार नाभिकीय संलयन होता रहता है, जिससे वह अविरत रूप से ऊर्जा का उत्सर्जन कर रहा है। इस विषय में उन्होंने निम्नलिखित स्पष्टीकरण प्रस्तुत कियासूर्य की अपार ऊर्जा का स्रोत हल्के नाभिकों का संलयन (fusion) है। सूर्य के द्रव्य में 90% अंश तो हाइड्रोजन व हीलियम का है तथा शेष 10% अंश में अन्य तत्त्व हैं जिनमें अधिकांश हल्के तत्त्व हैं। सूर्य के बाहरी पृष्ठ का ताप लगभग 8000 K है तथा इसके भीतरी भाग का ताप (UPBoardSolutions.com) लगभग 2 x 107 K है। इतने ऊँचे ताप पर सूर्य में उपस्थित समस्त तत्त्वों के परमाणुओं की कक्षाओं से इलेक्ट्रॉन निकल जाते हैं; अत: वे तत्त्व नाभिकीय अवस्था में रह जाते हैं। ये नाभिक इतने तीव्रगामी होते हैं कि इनकी परस्पर टक्कर से इनका स्वतः ही संलयन होता रहता है और अपार ऊर्जा विमुक्त होती रहती है। वैज्ञानिक बेथे के अनुसार सूर्य पर नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया निम्नलिखित दो प्रकार से पूर्ण होती है

1. कार्बन-साइकिल (Carbon Cycle):
सन् 1939 में अमेरिकन वैज्ञानिक बेथे (Bethe) ने यह बताया कि सूर्य में चार हाइड्रोजन नाभिकों (चार प्रोटॉनों) का एक हीलियम नाभिक में संलयन सीधे न होकर, कई ताप-नाभिकीय अभिक्रियाओं (thermonuclear reactions) की एक साइकिल के द्वारा होता है जिसमें कार्बन एक उत्प्रेरक का कार्य करता है। इस साइकिल को ‘कार्बन-साइकिल’ कहते हैं। इस साइकिल में छ: अभिक्रियाएँ निम्नलिखित क्रमानुसार होती हैं
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इस प्रकार, एक पूरी कार्बन-साइकिल में चार हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर एक हीलियम नाभिक का निर्माण करते हैं तथा इसके साथ दो (UPBoardSolutions.com) पॉजिट्रॉन (+1β0) व 24.7 MeV ऊर्जा उत्सर्जित होती है। ये पॉजिट्रॉन दो इलेक्ट्रॉनों से विनाशित (annihilate) होकर लगभग 2 MeV ऊर्जा की उत्पत्ति करते हैं। इस प्रकार एक कार्बन-साइकिल में कुल 26.7 Mev ऊर्जा उत्पन्न होती है। चूंकि सूर्य के द्रव्य के 1 ग्राम में लगभग 2 x 1023 प्रोटॉन होते हैं, अतः सूर्य के 1 ग्राम द्रव्य से अपार ऊर्जा की उत्पत्ति हो जाती हैं।

2. प्रोटॉन-प्रोटॉन साइकिल H-H Cycle):

नये नाभिकीय आँकड़ो  के आधार पर अब यह विश्वास किया जाता है कि सूर्य में कार्बन-साइकिल की अपेक्षा एक अन्य साइकिल की अधिक सम्भावना है जिसे ‘प्रोटॉन-प्रोटॉन साइकिल’ कहते हैं। इस साइकिल में भी कई अभिक्रियाओं के द्वारा हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर हीलियम के नाभिक का निर्माण करते हैं
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स्पष्ट है कि इस साइकिल का नेट परिणाम ठीक वही है जो कार्बन-साइकिल का है। इस साइकिल की तीसरी अभिक्रिया होने के लिए यह आवश्यक है कि पहली दो अभिक्रियाएँ दो-दो बार हों।

सामान्य ताप व दाब पर संलयन असम्भव:
इसका कारण यह है कि जब संलयन होने वाले धनावेशित नाभिक क-;सर के निकट आते हैं तो उनके बीच वैद्युत प्रतिकर्षण बल अति तीव्र हो जाता है। इस बल के (UPBoardSolutions.com) विरुद्ध संलयितं, होने के लिए उन्हें बहुत अधिक ऊर्जा (≈ 0.1 MeV) चाहिए। इन्हें इतनी अधिक ऊर्जा देने के लिए अति उच्च ताप ≈10° K तथा अति उच्च दाब चाहिए। ताप व दाब की ये दशाएँ पृथ्वी पर साधारणतया अंकृतिक रूप में उपलब्ध नहीं हैं।

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प्रश्न 6:
नाभिकीय विखण्डन तथा नाभिकीय संलयन में अन्तर स्पष्ट कीजिए। दी गई संलयन प्रक्रिया में उत्पन्न ऊर्जा की गणना कीजिए (2016)
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उत्तर:
नाभिकीय विखण्डन तथा नाभिकीय संलयन में अन्तर नाभिकीय विखण्डन में एक ‘भारी’ नाभिक न्यूट्रॉनों की बमबारी से दो अपेक्षाकृत हल्के रेडियोऐक्टिव नाभिकों में टूटता है जिनका सम्मिलित द्रव्यमान मूल नाभिक के द्रव्यमान से कम होता है। द्रव्यमान की यह क्षति ऊर्जा के रूप में (UPBoardSolutions.com) मुक्त होती है।
इसके विपरीत, संलयन में दो अथवा अधिक ‘हल्के’ नाभिक एक अकेले नाभिक में संलयित (fuse) हो जाते हैं जिसका द्रव्यमान संलयित होने वाले नाभिकों के द्रव्यमानों के योग से कम होता है। पुनः, द्रव्यमान की यह क्षति ऊर्जा के रूप में मुक्त होती है। यह प्रक्रिया अत्यन्त उच्च ताप व दाब पर होती है तथा मुक्त ऊर्जा अनियन्त्रित होती है।
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UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements

UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements (तत्त्वों के निष्कर्षण के सिद्धान्त एवं प्रक्रम) are part of UP Board Solutions for Class 12 Chemistry. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements (तत्त्वों के निष्कर्षण के सिद्धान्त एवं प्रक्रम).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Chemistry
Chapter Chapter 6
Chapter Name General Principles and Processes of Isolation of Elements
Number of Questions Solved 81
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements (तत्त्वों के निष्कर्षण के सिद्धान्त एवं प्रक्रम)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सारणी 6.1 (पाठ्यपुस्तक) में दर्शाए गए अयस्कों में से कौन-से चुम्बकीय पृथक्करण विधि द्वारा सान्द्रित किए जा सकते हैं?
उत्तर
वे अयस्क जिनमें कम-से-कम एक घटक (अशुद्धि या वास्तविक अयस्क) चुम्बकीय होता है, उन्हें चुम्बकीय पृथक्करण विधि द्वारा सान्द्रित किया जा सकता है; जैसे- हेमेटाइट (Fe2O3), मैग्नेटाइट (Fe3O4), सिडेराइट (FeCO3) तथा आयरन पाइराइट (FeS2) को चुम्बकीय पृथक्करण विधि द्वारा सान्द्रित किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में निक्षालन का क्या महत्त्व है?
उत्तर
ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में निक्षालन के उपयोग से बॉक्साइट अयस्क से अशुद्धियाँ जैसे SiO2, Fe2O3 आदि को हटाया जा सकता है तथा शुद्ध ऐलुमिना प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
अभिक्रिया
Cr2O3 + 2 Al → Al2O3 + 2Cr  (ΔfG = – 421 kJ)
के गिब्ज ऊर्जा मान से लगता है कि अभिक्रिया ऊष्मागतिकी के अनुसार सम्भव है, पर यह कक्ष ताप पर सम्पन्न क्यों नहीं होती ?
उत्तर
ऊष्मागतिकीय रूप से सम्भव अभिक्रियाओं के लिए भी सक्रियण ऊर्जा की निश्चित मात्रा की आवश्यकता होती है, अतः दी गई अभिक्रिया को सम्पन्न करने के लिए अतिरिक्त ऊष्मा की आवश्यकता
होगी।

प्रश्न 4.
क्या यह सत्य है कि कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में मैग्नीशियम, SiO2 को अपचयित कर सकता है और Si, MgO को? वे परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर
1600 K (सिलिकन का गलनांक) से कम ताप पर, SiO2 के निर्माण के लिए ΔG वक्र, MgO के ΔG वक्र से ऊपर स्थित होता है; अत: 1600 K से कम ताप पर Mg, SiO2 को Si में अपचयित कर सकता है। दूसरी ओर 1600 K से अधिक ताप पर MgO के लिए ΔG वक्र, SiO2 के ΔG वक्र से ऊपर स्थित होता है; अत: 1600 K से अधिक ताप पर Si, MgO को Mg में अपचयित कर सकता है।

अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 1.
कॉपर का निष्कर्षण हाइड्रोधातुकर्म द्वारा किया जाता है, परन्तु जिंक का नहीं। व्याख्या कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 1
से अधिक कियाशील होता है। कॉपर आयनों के विलयन से Cu2+ आयनों को Zn के द्वारा आसानी से प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
Zn(s) + Cu2+ (aq) → Zn2+ (aq) + Cu (s)
इस प्रकार, कॉपर को हाइड्रोधातुकर्म के द्वारा निष्कर्षित किया जा सकता है। परन्तु, जिंक को अधिक क्रियाशील होने के कारण, Zn2+ आयन युक्त विलयन से सरलता से विस्थापित नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, कॉपर को हाइड्रोधातुकर्म के द्वारा निष्कर्षित किया जा सकता है। परन्तु, जिंक को अधिक क्रियाशील होने के कारण, Zn2+ आयन युक्त विलयन से सरलता से विस्थापित नहीं किया जा सकता है। इसका कारण यह है कि जिंक से अधिक क्रियाशील धातु; जैसे-ऐलुमिनियम, मैग्नीशियम, कैल्सियम इत्यादि जल से क्रिया करती हैं इसलिए, जिंक को हाइड्रोधातुकर्म के द्वारा निष्कर्षित नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
फेन प्लवन विधि में अवनमक की क्या भूमिका है?
उत्तर
फेन प्लवन विधि में अवनमक का मुख्य कार्य संकरता के द्वारा अयस्क के अवयवों में से किसी एक को फेन बनाने से रोकना है। जैसे, NaCN का प्रयोग अवनमक के रूप में PbS से ZnS अयस्क को पृथक् करने के लिए किया जाता है। यह ZnS के साथ संकर यौगिक बनाता है तथा इसको फेन बनाने से रोकता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 2
इस प्रकार केवल PbS ही फेन बनाने के लिए उपलब्ध होता है तथा इसे ZnS से सरलता से पृथक् किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
अपचयन द्वारा ऑक्साइड अयस्कों की अपेक्षा पाइराइट से ताँबे का निष्कर्षण अधिक कठिन क्यों है?
उत्तर
पायराइट अयस्क में, कॉपर Cu2S के रूप में विद्यमान रहता है। Cu2S के निर्माण की मानक मुक्त ऊर्जा (Δf G), CS2 से अधिक होती है, जो कि एक ऊष्माशोषी यौगिक है। इसलिए, कार्बन या H2 का प्रयोग Cu2S को Cu धातु में अपचयित करने के लिए नहीं किया जा सकता है। इसके विपरीत Cu2O के Δf G का मान CO, से बहुत कम होता है। इसलिए, Cu2O को कार्बन के द्वारा Cu धातु में सरलता से अपचयित किया जा सकता है।
Cu2O (s) + C (s) → 2Cu(s) + CO (g)
यही कारण है कि पायराइट से Cu का निष्कर्षण इसके ऑक्साइड के अपचयन द्वारा अधिक कठिन है।

प्रश्न 4.
व्याख्या कीजिए-

  1. मण्डल परिष्करण,
  2. स्तम्भ वर्णलेखिकी।

उत्तर
1. मण्डल परिष्करण (Zone refining) – यह विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि अशुद्धियों की विलेयता धातु की ठोस अवस्था की अपेक्षा गलित अवस्था में अधिक होती है। अशुद्ध धातु की छड़ के एक किनारे पर एक वृत्ताकार गतिशील तापक लगा रहता है (चित्र-1)। इसकी सहायता से अशुद्ध धातु को गर्म किया जाता है। तापक जैसे ही आगे की ओर बढ़ता है, गलित से शुद्ध धातु क्रिस्टलित हो जाती है तथा अशुद्धियाँ संलग्न गलितं मण्डल में चली जाती हैं। इस क्रिया को कई बार दोहराया जाता है तथा तापक को एक ही दिशा में बार-बार चलाते हैं। अशुद्धियाँ छड़ के एक किनारे पर एकत्रित हो जाती हैं। इसे काटकर अलग कर लिया जाता है। यह विधि मुख्य रूप से अतिउच्च शुद्धता वाले अर्द्धचालकों जैसे जर्मेनियम, सिलिकन, बोरॉन, गैलियम एवं इण्डियम तथा अन्य अतिशुद्ध धातुओं को प्राप्त करने के लिए बहुत उपयोगी है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 3

2. स्तम्भ वर्णलेखिकी (Column chromatography) – यह विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है। कि अधिशोषक पर मिश्रण के विभिन्न घटकों का अधिशोषण अलग-अलग होता है। मिश्रण को द्रव या गैसीय माध्यम में रखा जाता है जो कि अधिशोषक में से गुजरता है। स्तम्भ में विभिन्न घटक भिन्न-भिन्न स्तरों पर अधिशोषित हो जाते हैं, बाद में अधिशोषित घटक उपयुक्त विलायकों (निक्षालक) द्वारा निक्षालित कर लिए जाते हैं। गतिशील माध्यम की भौतिक अवस्था, अधिशोषक पदार्थ की प्रकृति एवं गतिशील माध्यम के गमन के प्रक्रम पर निर्भर होने के कारण इसे ‘स्तम्भ वर्णलेखिकी‘ नाम दिया गया है। इस प्रकार की एक विधि में काँच की नली में Al2O3 का एक स्तम्भ बनाया जाता है तथा गतिशील माध्यम जिसमें अवयवों का विलयन उपस्थित होता है, द्रव प्रावस्था में होता है। यह स्तम्भ वर्णलेखिकी का एक उदाहरण है।

यह विधि सूक्ष्म मात्रा में पाए जाने वाले तत्वों के शुद्धिकरण और शुद्ध किए जाने वाले तत्व तथा अशुद्धियों के रासायनिक गुणों में अधिक भिन्नता न होने की स्थिति में शुद्धिकरण के लिए अत्यधिक उपयोगी होती है। स्तम्भ वर्णलेखिकी में प्रयुक्त प्रक्रम को चित्र-2 में दर्शाया गया है।
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प्रश्न 5.
673 K ताप पर C तथा CO में से कौन-सा अच्छा अपचायक है?
उत्तर
673 K ताप पर C एवं CO में से CO एक अच्छा अपचायक है। इसको निम्न प्रकार समझाया जा सकता है –
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 5
एलिंघम चित्र (चित्र 3) में, C, CO2 वक्र लगभग क्षैतिज है, जबकि CO, CO2 वक्र उर्ध्वगामी हैं तथा दोनों वक्र 673 K पर एक-दूसरे को काटते हैं। C (s) + O2 (g) → CO2 (g) ऊर्जा की दृष्टि से कम सम्भाव्य है क्योंकि इसकी ΔfG का मान अभिक्रिया 2CO (g) + O2 (g) → CO2 (g) की तुलना में कम ऋणात्मक होता है। इसलिए 673 K से नीचे CO एक अधिक अच्छे अपचायक के रूप में कार्य करता है।

प्रश्न 6.
कॉपर के विद्युत-अपघटन शोधन में ऐनोड पंक में उपस्थित सामान्य तत्वों के नाम दीजिए। वे वहाँ कैसे उपस्थित होते हैं?
उत्तर
कॉपर के वैद्युत शोधन में ऐनोड मड में उपस्थित सामान्य तत्त्व सेलेनिमय, टेलुरियम, सिल्वर, गोल्ड आदि हैं। ये तत्त्व कॉपर से कम क्रियाशील होते हैं तथा वैद्युत प्रक्रिया में अप्रभावित रहते हैं।

प्रश्न 7.
आयरन (लोहे) के निष्कर्षण के दौरान वात्या भट्टी के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली अभिक्रियाओं को लिखिए।
उत्तर
आयरन के ऑक्साइड अयस्कों को निस्तापन अथवा भर्जन से सान्द्रित करके, लाइमस्टोन तथा कोक के साथ मिश्रित करके वात्या भट्टी के हॉपर में डाला जाता है। वात्या भट्टी में विभिन्न ताप-परासों में आयरन ऑक्साइड का अपचयन होता है। वात्या भट्टी में होने वाली अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं –
500 – 800 K पर (वात्या भट्टी में निम्न ताप परिसर में)

  • 3Fe2O3 + CO → 2 Fe3O4 + CO2 ↑
  • Fe3O4 + 4 CO → 3 Fe ↓ + 4CO2
  • Fe2O3 + CO → 2 FeO + CO2

900 – 1500 K पर (वात्या भट्टी में उच्च ताप-परिसर में)

  • C + CO2 → 2 CO ↑
  • FeO + CO → Fe + CO2

चूना पत्थर (लाइमस्टोन) भी CaO में अपघटित हो जाता है जो अयस्क की सिलिकेट अशुद्धि को धातुमल के रूप में हटा देता है। धातुमल (slag) गलित अवस्था में होता है तथा आयरन से पृथक्कृत हो जाता है।

प्रश्न 8.
जिंक ब्लेण्ड से जिंक के निष्कर्षण में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं को लिखिए।
उत्तर
जिंक ब्लेण्ड से जिंक के निष्कर्षण में होने वाली अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं –

  1. सान्द्रण (Concentration) – अयस्क को पीसकर फेन प्लवन प्रक्रम द्वारा इसको सान्द्रण किया जाता है।
  2. भर्जन (Roasting) – सान्द्रित अयस्क का लगभग 1200 K ताप पर वायु की अधिकता में भर्जन किया जाता है जिससे जिंक ऑक्साईड (ZnO) प्राप्त होता है।
    UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 6
  3. अपचयन (Reduction) – प्राप्त जिंक ऑक्साइड को चूर्णित कोक के साथ मिलाकर एक फायर क्ले रिटॉर्ट में 1673 K तक गर्म किया जाता है, परिणामस्वरूप यह जिंक धातु में अपचयित हो जाता है।
    ZnO + C [latex]\underrightarrow { 1673K }[/latex] Zn ↓ + CO ↑
    1673 K पर जिंक धातु वाष्पीकृत होकर (क्वथनांक 1180 K) आसवित हो जाती है।
  4. विद्युत-अपघटनी शोधन (Electrolytic refining) – अशुद्ध जिंक ऐनोड बनाता है तथा कैथोड शुद्ध जिंक की शीट से बना होता है। विद्युत-अपघट्य तनु H2SO4 से अम्लीकृत ZnSO4 विलयन होता है। विद्युत धारा प्रवाहित करने पर शुद्ध Zn कैथोड पर संगृहीत हो जाता है।

प्रश्न 9.
कॉपर के धातुकर्म में सिलिका की भूमिका समझाइए।
उत्तर
भर्जन के दौरान कॉपर पाइराइट FeO तथा Cu2O के मिश्रण में परिवर्तित हो जाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 7
FeO (क्षारीय) को हटाने के लिए प्रगलन के दौरान एक अम्लीय गालक सिलिका मिलाया जाता है। FeO, SiO2 से संयोग करके फेरस सिलिकेट (FeSiO3) धातुमल बनाता है जो गलित अवस्था में प्राप्त मैट पर तैरने लगता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 8
अत: कॉपर के निष्कर्षण में सिलिका की भूमिका ऑक्साइड को धातुमल के रूप में हटाने की होती है।

प्रश्न 10.
‘वर्णलेखिकी पद का क्या अर्थ है?
उत्तर
वर्णलेखिकी (क्रोमैटोग्राफी) ग्रीक भाषा में क्रोमा का अर्थ रंग तथा ग्राफी का अर्थ लिखना होता है। शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1906 में आईवेट (Iswett) के द्वारा पौधों से रंगीन पदार्थों को पृथक् करने के लिए किया गया था। अब इस शब्द का मूल अर्थ अस्तित्वहीन है क्योंकि आजकल इस तकनीक का प्रयोग व्यापक रूप में पृथक्करण, शोधन तथा रंगीन या रंगहीन मिश्रण के अवयवों के लक्षणीकरण (characterisation) तत्त्वों के निर्धारण में किया जाता है। यह कार्बनिक यौगिक के मिश्रण के अवयवों का दो प्रावस्थाओं के बीच वितरण के सिद्धान्त पर आधारित है। इन दोनों प्रावस्थाओं में एक स्थिर होती है, जो कि ठोस या द्रव हो सकती है। इसे स्थिर प्रावस्था कहते हैं। दूसरी प्रावस्था को गतिशील प्रावस्था कहते हैं। यह गतिशील प्रकृति की होती है और द्रव या गैस की बनी होती है।

प्रश्न 11.
वर्णलेखिकी में स्थिर प्रावस्था के चयन में क्या मापदण्ड अपनाए जाते हैं?
उत्तर
स्थिर प्रावस्था इस प्रकार के पदार्थ की बनी होनी चाहिए, जो कि अशुद्धियों को शुद्ध किये जाने वाले तत्त्व की अपेक्षा अधिक प्रबलता से अधिशोषित करने में सक्षम हो। इससे तत्त्व का निर्गमन (elution) सुगमता से हो जाता है।

प्रश्न 12.
निकिल-शोधन की विधि समझाइए।
उत्तर
निकिल-शोधन का मॉन्ड प्रक्रम (Mond process of nickel purification) – इस प्रक्रम में निकिल (अशुद्ध) को कार्बन मोनोक्साइड के प्रवाह में गर्म करने से वाष्पशील निकिल टेट्रोकार्बोनिल संकुल बन जाता है –
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इस कार्बोनिल को और अधिक ताप पर गर्म करते हैं जिससे यह विघटित होकर शुद्ध धातु दे देता है।
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प्रश्न 13.
सिलिका युक्त बॉक्साइट अयस्क में से सिलिका को ऐलुमिना से कैसे अलग करते हैं? यदि कोई समीकरण हो तो दीजिए।
उत्तर
शुद्ध ऐलुमिना को बॉक्साइट अयस्क से बायर प्रक्रम द्वारा पृथक्कृत किया जा सकता है। सिलिका युक्त बॉक्साईट अयस्क को NaOH के सान्द्र विलयन के साथ 473 – 523 K ताप पर तथा 35 – 36 bar दाब पर गर्म करते हैं। इससे ऐलुमिना, सोडियम ऐलुमिनेट के रूप में तथा सिलिका, सोडियम सिलिकेट के रूप में घुल जाता है तथा अशुद्धियाँ अवशेष के रूप में रह जाती हैं।
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परिणामी विलयन को छानकर अविलेय अशुद्धियों (यदि कोई हो) को हटा दिया जाता है तथा इसे CO2 गैस प्रवाहित करके उदासीन कर दिया जाता है। इस अवस्था पर विलयन को ताजा बने हुए जलयोजित Al2O3 के नमूने से बीजारोपित किया जाता है जो अवक्षेपण को प्रेरित करता है।
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सोडियम सिलिकेट विलयन में शेष रह जाता है तथा जलयोजित ऐलुमिना को छानकर, सुखाकर तथा गर्म करके पुनः शुद्ध Al2O3 प्राप्त कर लिया जाता है।
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प्रश्न 14.
उदाहरण देते हुए भर्जन व निस्तापन में अन्तर बताइए। (2009, 17)
उत्तर
निस्तापन में सान्द्रित अयस्क को उसके गलनांक से नीचे वायु की सीमित मात्रा में गर्म किया जाता है।
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भर्जन में अयस्क को वायु की अधिकता में तीव्रता से गर्म करते हैं। इसके फलस्वरूप P, As, S आदि की अशुद्धियाँ ऑक्सीकृत हो जाती हैं तथा सल्फाइड अयस्क धातु ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है।
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प्रश्न 15.
ढलवाँ लोही कच्चे लोहे से किस प्रकार भिन्न होता है?
उत्तर
वात्या भट्टी से प्राप्त अशुद्ध आयरन को कच्चा लोहा कहा जाता है। इसमें S, P, Si, Mn आदि की अशुद्धियों के साथ लगभग 4% कार्बन होता है। ढलवां लोहे को बनाने के लिए कच्चे लोहे को गर्म वायु में स्क्रैप आयरन तथा कोक के साथ पिघलाया जाता है। इसमें कार्बन की मात्रा कम (लगभग 3%) पायी जाती है।

प्रश्न 16.
अयस्कों तथा खनिजों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
प्राकृतिक रूप से उपस्थित रासायनिक पदार्थ, जिनके रूप में धातुएँ अशुद्धियों के साथ भूपर्पटी में उपस्थित होती हैं, खनिज (minerals) कहलाते हैं। वे खनिज, जिनसे धातुओं का निष्कर्षण सरल तथा आर्थिक रूप से लाभदायक हो, अयस्क कहलाते हैं। अतः सभी अयस्क खनिज होते हैं, परन्तु सभी खनिज अयस्क नहीं होते हैं। उदाहरणार्थ– भूपर्पटी में लोहा ऑक्साइडों, कार्बोनेटों तथा सल्फाइडों के रूप में विद्यमान होता है। लोहे के इन खनिजों में से निष्कर्षण के लिए लोहे के ऑक्साइडों को चुना जाता है, इसलिए लोहे के ऑक्साइड, लोहे के अयस्क हैं। इसी प्रकार भूपर्पटी में ऐलुमिनियम दो खनिजों के रूप में पाया जाता है- बॉक्साइट (Al2O3 . xH2O) तथा क्ले (Al2O3 . 2SiO2 . 2H2O)। इन दोनों खनिजों में से बॉक्साइट से Al का निष्कर्षण सरलतापूर्वक तथा आर्थिक रूप से लाभदायक रूप में किया जा सकता है, इसलिए बॉक्साइट ऐलुमिनियम का अयस्क है।

प्रश्न 17.
कॉपर मैट को सिलिका की परत चढ़े हुए परिवर्तकों में क्यों रखा जाता है?
उत्तर
सिलिका युक्त परिवर्तक (बेसेमर परिवर्तक) में मैट में उपस्थित शेष FeS को FeO में ऑक्सीकृत करने के लिए रखा जाता है जो सिलिका के साथ संयोग कर संगलित धातुमल बनाता है।
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जब सम्पूर्ण लोहे को धातुमल के रूप में पृथक् कर लिया जाता है, तब कुछ Cu2S ऑक्सीकरण के फलस्वरूप Cu2O बनाता है जो अधिक Cu2S के साथ अभिक्रिया करके कॉपर धातु बनाता है।
2Cu2S + 3O2 → 2Cu2O + 2SO2 ↑
2Cu2O + Cu2S → 6Cu ↓ + SO2
अत: कॉपर मैट को सिलिका की परत चढ़े हुए परिवर्तक में मैट में उपस्थित FeS को FeSiO3 धातुमल के रूप में हटाने के लिए भी रखा जाता है।

प्रश्न 18.
ऐलुमिनियम के धातुकर्म में क्रायोलाइट की क्या भूमिका है?
उत्तर
क्रायोलाइट, मिश्रण के संगलन ताप को कम करता है तथा ऐलुमिना की वैद्युत चालकता को बढ़ाता है जो कि वास्तव में विद्युत का अच्छा चालक नहीं होता है।

प्रश्न 19.
निम्न कोटि के कॉपर अयस्कों के लिए निक्षालन क्रिया को कैसे किया जाता है?
उत्तर
निम्न ग्रेड कॉपर अयस्क का निक्षालन वायु या जीवाणुओं की उपस्थिति में अम्ल के साथ क्रिया कर किया जाता है। इस प्रक्रिया में कॉपर Cu2+ आयनों के रूप में विलयन में चला जाता है।
Cu (s) + 2H+ (aq) + 1/2 O2 (g) → Cu2+ (aq) + H2O (l)

प्रश्न 20.
Co का उपयोग करते हुए अपचयन द्वारा जिंक ऑक्साइड से जिंक का निष्कर्षण क्यों नहीं किया जाता?
उत्तर
एलिंघम चित्र में CO, CO2 वक्र Zn, ZnO वक्र के ऊपर स्थित है। यह स्पष्ट करता है कि CO से CO2 बनाने के लिए Δf G का मान Zn से ZnO के निर्माण के मान से कम ऋणात्मक है। इसलिए, यदि CO का अपचायक के रूप में प्रयोग किया जाता है, तो अपचयन में बहुत अधिक ताप की आवश्यकता होगी। यही कारण है कि जिंक को CO अपचायक के प्रयोग द्वारा ZnO से निष्कर्षित नहीं किया जाता है।

प्रश्न 21.
Cr2O3 के विरचन के लिए Δf G का मान – 540 kJ mol-1 है तथा Al2O3 के लिए – 827 kJ mol-1 है। क्या Cr2O3 का अपचयन Al से सम्भव है?
उत्तर
हाँ, Al के द्वारा Cr2O3 का अपचयन सम्भव है। इसको निम्न प्रकार समझा जा सकता है –
इस प्रक्रिया में निहित अभिक्रियाएँ निम्न हैं –
2Al (s) + 3/2 O2 (g) → Al2O3 (s); Δf G  = – 827 kJ mol-1 …(i)
2Cr (s) + 3/2 O2 (g) → Cr2O3 (s) ;  Δf G = – 540 kJ mol-1 …(ii)
समीकरण (ii) में से (i) को घटाने पर
2Al (s) + Cr2O3 (3) → Al2O3 (s) + 2Cr (s);
Δf G = – 827- (-540) = – 287 kJ mol-1
चूँकि संयुक्त रिडॉक्स अभिक्रिया के लिए Δf G– का मान ऋणात्मक है, इसलिए प्रक्रिया सम्भाव्य है। अर्थात् Al के द्वारा Cr2O3 का अपचयन सम्भव है।

प्रश्न 22.
C व CO में से ZnO के लिए कौन-सा अपचायक अच्छा है?
उत्तर
कार्बन CO से अधिक अच्छा अपचायक है, इसको अग्र प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है –
एलिंघम चित्र में, C, CO वक्र Zn, ZnO वक्र से 1120 K से अधिक ताप पर नीचे स्थित तथा C, CO2 वक्र 1323 K से अधिक ताप पर नीचे स्थित है। इस प्रकार, C से CO के लिए Δf G का मान तथा C, CO2 के लिए Δf G के मान क्रमशः 1120 K तथा 1323 K पर C से ZnO के लिए Δf G के मान से कम है जबकि CO, CO2 वक्र Zn, ZnO वक्र से 2273 K पर भी ऊपर है। इसलिए ZnO को C के द्वारा अपचयित किया जा सकता है परन्तु CO के द्वारा नहीं। इसलिए C व CO में से ZnO के अपचयन के लिए C अधिक अच्छा अपचायक है।

प्रश्न 23.
किसी विशेष स्थिति में अपचायक का चयन ऊष्मागतिकी कारकों पर आधारित है। आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं? अपने मत के समर्थन में दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर
किसी निश्चित धात्विक ऑक्साइड का धात्विक अवस्था में अपचयन करने के लिए उचित अपचायक का चयन करने में ऊष्मागतिकी कारक सहायता करता है। इसे निम्नवत् समझा जा सकता है –
एलिंघम आरेख से यह स्पष्ट होता है कि वे धातुएँ, जिनके लिए उनके ऑक्साइडों के निर्माण की मानक मुक्त ऊर्जा अधिक ऋणात्मक होती है, उन धातु ऑक्साइडों को अपचयित कर सकती हैं जिनके लिए उनके सम्बन्धित ऑक्साइडों के निर्माण की मानक मुक्त ऊर्जा कम ऋणात्मक होती है। दूसरे शब्दों में, कोई धातु किसी अन्य धातु के ऑक्साइड को केवल तब अपचयित कर सकती है, जबकि यह एलिंघम आरेख में इस धातु से नीचे स्थित हो। चूंकि संयुक्त रेडॉक्स अभिक्रिया का मानक मुक्त ऊर्जा परिवर्तन ऋणात्मक होगा (जो कि दोनों धातु ऑक्साइडों के Δf G में अन्तर के तुल्य होता है।), अत: Al तथा Zn दोनों FeO को Fe में अपचयित कर सकते हैं, परन्तु Fe, Al2O3 को Al में तथा Zn0 को Zn में अपचयित नहीं कर सकता। इसी प्रकार C, ZnO को Zn में अपचयित कर सकता है, परन्तु CO ऐसा नहीं कर सकता।

प्रश्न 24.
उस विधि का नाम लिखिए जिसमें क्लोरीन सह-उत्पाद के रूप में प्राप्त होती है। क्या होगा यदि NaCl के जलीय विलयन का विद्युत-अपघटन किया जाए?
उत्तर
डाउन की प्रक्रिया में गलित NaCl के वैद्युत-अपघटन के फलस्वरूप सह-उत्पाद के रूप में क्लोरीन प्राप्त होती है।
NaCl (fused) → Na+ + Cl
कैथोड पर : Na+ + e → Na (s)
ऐनोड पर : Cl + e → 1/2 cl2 (g)
जब NaCl के जलीय विलयन का वैद्युत-अपघटन किया जाता है, तो कैथोड पर H2 गैस तथा ऐनोड पर Cl2 गैस प्राप्त होती हैं। NaOH का एक जलीय विलयन सह-उत्पाद के रूप में प्राप्त है।
NaCl (aq) → Na+ (aq) + Cl (aq)
ऐनोड पर : Cl (aq) + e → 1/2 Cl2 (g)
कैथोड पर : 2H2O (l) + 2e → 2OH (a) + H2 (g)

प्रश्न 25.
ऐलुमिनियम के विद्युत-धातुकर्म में ग्रेफाइट छड़ की क्या भूमिका है?
उत्तर
इस प्रक्रिया में ऐलुमिना, क्रायोलाईट तथा फ्लुओरस्पार (CaF2) के गलित मिश्रण का विद्युतअपघटन ग्रेफाइट को ऐनोड के रूप में तथा ग्रेफाइट की परत चढ़े हुए आयरन को कैथोड के रूप में प्रयुक्त करके किया जाता है। विद्युत-अपघटन करने पर Al कैथोड पर मुक्त होती है, जबकि ऐनोड पर CO तथा CO2 मुक्त होती हैं।
कैथोड पर : Al3+ (गलित) → Al (l)
ऐनोड पर : C (s) + O2- (गलित) → CO (g) + 2e
C (s) + 2O2- (गलित) → CO2 (g) + 4e

यदि किसी अन्य धातु को ग्रेफाइट के स्थान पर प्रयुक्त किया जाता है, तब मुक्त O2 न केवल इलेक्ट्रोड की धातु को ऑक्सीकृत ही करेगी, बल्कि कैथोड पर मुक्त Al की कुछ मात्रा को पुनः Al2O3 में परिवर्तित कर देगी। चूँकि ग्रेफाइट अन्य किसी धातु से सस्ता होता है, इसलिए इसे ऐनोड के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में ग्रेफाइट छड़ की भूमिका ऐनोड पर मुक्त O2 को संरक्षित करना है जिससे यह मुक्त होने वाले Al की कुछ मात्रा को पुन: Al2O3 में परिवर्तित न कर दे।

प्रश्न 26.
निम्नलिखित विधियों द्वारा धातुओं के शोधन के सिद्धान्तों की रूपरेखा दीजिए –

  1. मण्डल परिष्करण
  2. विद्युत-अपघटनी परिष्करण
  3. वाष्प प्रावस्था परिष्करण।

उत्तर
1. मण्डल परिष्करण (Zone refining) – इसके लिए अभ्यास-प्रश्न संख्या 4(i) देखिए।

2. विद्युत-अपघटनी परिष्करण (Electrolytic Refining) – इस विधि में अशुद्ध धातु को ऐनोड बनाते हैं। उसी धातु की शुद्ध धातु-पट्टी को कैथोड के रूप में प्रयुक्त करते हैं। इन्हें एक उपयुक्त विद्युत-अपघट्य का विलयन विश्लेषित्र में रखते हैं जिसमें उसी धातु का लवण घुला रहता है। अधिक क्षारकीय धातु विलयन में रहती है तथा कम क्षारकीय धातुएँ ऐनोड पंक (anode mud) में चली जाती हैं। इस प्रक्रम की व्याख्या, विद्युत विभव की धारणा, अधिविभव तथा गिब्ज ऊर्जा के द्वारा (उपयोग) भी की जा सकती है। ये अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं –
ऐनोड पर : M → Mn+ + ne
कैथोड पर : Mn+ + ne → M
उदाहरण– ताँबे का शोधन विद्युत-अपघटनी विधि के द्वारा किया जाता है। अशुद्ध कॉपर ऐनोड के रूप में तथा शुद्ध कॉपर पत्री कैथोड के रूप में लेते हैं। कॉपर सल्फेट का अम्लीय विलयन विद्युत-अपघट्य होता है तथा विद्युत अपघटन के वास्तविक परिणामस्वरूप शुद्ध कॉपर ऐनोड से कैथोड की तरफ स्थानान्तरित हो जाता है।
ऐनोड पर : Cu → Cu2+ + 2e
कैथोड पर : Cu2+ + 2e → Cu
फफोलेदार कॉपर से अशुद्धियाँ ऐनोड पंक के रूप में जमा होती हैं जिसमें एण्टिमनी, सेलीनियम टेल्यूरियम, चाँदी, सोना तथा प्लैटिनम मुख्य होती हैं। इन तत्वों की पुन: प्राप्ति से शोधन की लागत की क्षतिपूर्ति हो सकती है। जिंक को शोधन भी इसी प्रकार से किया जा सकता है।

3. वाष्प प्रावस्था परिष्करण (Vapour Phase Refining) – इस विधि में धातु को वाष्पशील यौगिक में परिवर्तित करके दूसरे स्थल पर एकत्र कर लेते हैं। इसके बाद इसे विघटित करके शुद्ध धातु प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रक्रिया की दो आवश्यकताएँ होती हैं –

  • उपलब्ध अभिकर्मक के साथ धातु वाष्पशील यौगिक बनाती हो तथा
  • वाष्पशील पदार्थ आसानी से विघटित हो सकता हो जिससे धातु आसानी से पुनः प्राप्त की जा सके।

उदाहरणजिर्कोनियम या टाइटेनियम के शोधन के लिए वॉन-आरकैल विधि : यह Zr तथा Ti जैसी कुछ धातुओं से अशुद्धियों की तरह उपस्थित सम्पूर्ण ऑक्सीजन तथा नाईट्रोजन को हटाने में बहुत उपयोगी है। परिष्कृत धातु को निर्वातित पात्र में आयोडीन के साथ गर्म करते हैं। धातु आयोडाइड अधिक सहसंयोजी होने के कारण वाष्पीकृत हो जाता है।
Zr + 2I2 → ZrI4
धातु आयोडाइड को विद्युत धारा द्वारा 1800 K ताप पर गर्म किए गए टंग्स्टन तन्तु पर विघटित किया जाता है। इस प्रकार से शुद्ध धातु तन्तु पर जमा हो जाती है।
ZrI4 → Zr ↓ + 2I2 ↑

प्रश्न 27.
उन परिस्थितियों का अनुमान लगाइए जिनमें Al, MgO को अपचयित कर सकता है।
उत्तर
दोनों अभिक्रियाएँ इस प्रकार हैं –
[latex s=2]\frac { 4 }{ 3 } [/latex] Al + O2 → [latex s=2]\frac { 2 }{ 3 } [/latex] Al2O3 ; ΔG Al, Al2O3 …(i)
2Mg + O2 → 2MgO ; ΔG Mg, MgO
एलिंघम आरेख द्वारा स्पष्टीकरण – कुछ ऑक्साइडों के विरचन में AG° तथा T के एलिंघम आरेख निम्नवत् हैं –
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 17
उपर्युक्त आरेख से स्पष्ट है कि 1665 K से नीचे तापमान पर Al2O3 का ΔG मान MgO की तुलना में कम ऋणात्मक है। अतः जब समीकरण

  • को समीकरण
  • में से घटाया जाता है तो संयुक्त रेडॉक्स अभिक्रियाओं अर्थात् समीकरण
  • का ΔG ऋणात्मक होता है।

2Mg + [latex s=2]\frac { 2 }{ 3 } [/latex] Al2O3 → 2MgO + [latex s=2]\frac { 4 }{ 3 } [/latex] Al ; ΔG = – ve …(iii)
इस प्रकार 1665 K से नीचे तापमान पर Mg, Al2O3 को Al में अपचयित कर सकता है। 1665 K से अधिक तापमान पर Al2O3 का ΔG मान MgO की तुलना में अधिक ऋणात्मक होता है। इसलिए जब समीकरण (ii) को समीकरण (i) में से घटाया जाता है तो संयुक्त रेडॉक्स अभिक्रिया अर्थात् समीकरण (iv) का ΔG ऋणात्मक होता है।
[latex s=2]\frac { 4 }{ 3 } [/latex] Al+ 2 MgO → [latex s=2]\frac { 2 }{ 3 } [/latex] Al2O3 + 2Mg ; ΔG = – Ve …(iv)
अत: 1665 K से अधिक तापमान पर Al, MgO को Mg में अपचयित कर सकता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा अयस्क नहीं है? (2017)
(i) आयरन पाइराइट
(ii) हॉर्न सिल्वर
(iii) मैलेकाइट
(iv) पिग आयरन
उत्तर
(iv) पिग आयरन

प्रश्न 2.
कौन से अयस्क का सान्द्रण फेल प्लवन विधि द्वारा किया जाता है? (2017)
(i) कार्बोनेट
(ii) सल्फाइड
(iii) ऑक्साइड
(iv) फॉस्फेट
उत्तर
(ii) सल्फाइड

प्रश्न 3.
लौह अयस्कों का सान्द्रण किया जाता है – (2010, 17)
(i) गुरुत्व पृथक्करण विधि द्वारा।
(ii) फेन प्लवन विधि द्वारा
(iii) चुम्बकीय पृथक्करण विधि द्वारा
(iv) अमलगम विधि द्वारा।
उत्तर
(iii) चुम्बकीय पृथक्करण विधि द्वारा

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन क्षारीय गालक नहीं है?
(i) CaCO3
(ii) CaO
(iii) SiO2
(iv) MgO
उत्तर
(iii) SiO2

प्रश्न 5.
वात्या भट्टी में आयरन ऑक्साइड अपचयित होता है – (2009, 18)
(i) SiO2 द्वारा
(ii) C द्वारा
(iii) CO द्वारा
(iv) CaCO3 द्वारा
उत्तर
(iii) CO द्वारा

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अयस्क किसे कहते हैं? अयस्क तथा खनिज में क्या अन्तर है? (2009, 12)
उत्तर
खनिज-पृथ्वी में धातु तथा उनके यौगिक जिस रूप में मिलते हैं, वे खनिज कहलाते हैं; जैसे- रॉक साल्ट (rock salt), NaCl आदि।
अयस्क- वे खनिज जिनसे किसी शुद्ध धातु का निष्कर्षण अधिक मात्रा में सुविधापूर्वक व कम व्यय पर किया जा सके, उस धातु के अयस्क कहलाते हैं; जैसे- लोहे का अयस्क हेमेटाइट, Fe2O: 2H2O है। अतः सभी अयस्क खनिज होते हैं, परन्तु सभी खनिज अयस्क नहीं होते हैं।

प्रश्न 2.
ऐलुमिनियम के दो प्रमुख अयस्कों के नाम तथा सूत्र लिखिए। (2012)
उत्तर
ऐलुमिनियम के दो प्रमुख अयस्क इस प्रकार हैं –

  1. बॉक्साइट Al2O3 : 2H2O
  2. क्रायोलाइट Na3AIF6

प्रश्न 3.
ऐलुनाइट अयस्क का संगठन लिखिए। (2012)
उत्तर
K2SO4 : Al2(SO4)3 : 4 Al(OH)3

प्रश्न 4.
कॉपर के दो प्रमुख अयस्कों के नाम तथा सूत्र लिखिए। (2016, 12, 15, 16, 17)
उत्तर
कॉपर के दो प्रमुख अयस्क क्यूप्राइट (Cu2O) व कॉपर पायराइट (CuFeS2) हैं।

प्रश्न 5.
किन्हीं दो सल्फाइड अयस्कों के नाम लिखिए। (2012)
उत्तर

  1. अर्जेण्टाइट (Ag2S)
  2. कैल्कोपायराइट (CuFeS2)

प्रश्न 6.
डायस्पोर तथा केरार्जिराइट किन धातुओं के अयस्क हैं? (2009)
उत्तर

  • डायस्पोर- ऐलुमिनियम;
  • केरार्जिराइट- सिल्वर

प्रश्न 7.
लोहे के प्रमुख अयस्कों के नाम तथा सूत्र लिखिए। (2009, 10, 11, 13, 17)
उत्तर
1, ऑक्साइड अयस्क – लाल हेमेटाइट (Fe2O3 . 2H2O), मैग्नेटाइट (Fe3O4)
2. जलीय ऑक्साइड अयस्क – भूरा हेमेटाइट या लिमोनाइट (Fe2O3 : 3H2O)
3. कार्बोनेट अयस्क – सिडेराइट (FeCO3)
4. सल्फाइड अयस्क – आयरन पाइराइट (FeS2), कॉपर आयरन पाइराइट या कैल्को पाइराइट (CuFeS2)

प्रश्न 8.
ऐजुराइट तथा सिडेराइट अयस्कों का सूत्र लिखिए। (2012)
उत्तर
ऐजुराइट- 2CuCO3 . Cu(OH)2, सिडेराइट (FeCO3)

प्रश्न 9.
आधात्री की व्याख्या कीजिए। (2009)
उत्तर
खनिजों में मिट्टी, कंकड़, पत्थर आदि अनावश्यक पदार्थ अशुद्धियों के रूप में मिले रहते हैं। इन पदार्थों को गैंग या आधात्री कहते हैं।

प्रश्न 10.
फेन प्लवन विधि द्वारा किन अयस्कों का सान्द्रण किया जाता है। इस विधि का वर्णन | कीजिए। (2009, 11, 17)
उत्तर
यह विधि अयस्क तथा आधात्री (gangue) की किसी द्रव से भीगने की प्रवृत्ति पर निर्भर करती है। इस विधि में बारीक पिसे हुए अयस्क को जल तथा तेल के मिश्रण में डालकर वायु प्रवाहित की जाती है। अशुद्ध अयस्क तेल के साथ झाग (फेन) बनाकर ऊपर तैरने लगता है और अपद्रव्य नीचे बैठ जाते हैं। इस विधि में चीड़ का तेल (pine oil) या क्रीओसेट तेल (creosate oil) काम में लाया जाता है। सल्फाइड अयस्कों का सान्द्रण इसी विधि से किया जाता है।
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प्रश्न11.
अयस्कों का सान्द्रण क्यों आवश्यक है? चुम्बकीय पृथक्करण विधि से क्या तात्पर्य है? (2012)
उत्तर
खानों से प्राप्त अयस्कों में मिट्टी, कंकड़, पत्थर आदि मिले होते हैं जिन्हें आधात्री कहते हैं। आधात्री के कारण शुद्ध धातु प्राप्त करने में अवरोध उत्पन्न होता है तथा धन व समय का भी अपव्यय होता है। अत: धातु निष्कर्षण के पूर्व अयस्क से इन अशुद्धियों को दूर किया जाता है जिसे अयस्क का सान्द्रण कहते हैं।
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चुम्बकीय पृथक्करण – सान्द्रण की यह विधि पदार्थों के चुम्बकीय तथा अचुम्बकीय गुणों पर निर्भर करती है। किसी अयस्क में उपस्थित चुम्बकीय अशुद्धि को इस विधि के द्वारा पृथक् कर सकते हैं। टिन-स्टोन (SnO2) में कुछ चुम्बकीय पदार्थ; जैसे- Fe3O4 आदि मिला होता है। अयस्क के महीन चूर्ण को दो बेलनों पर लगी पट्टी (belt) पर डालते हैं। इनमें से एक बेलन चुम्बकीय होता है। पट्टी को चलाने पर चुम्बकीय तथा अचुम्बकीय पदार्थ अलग-अलग स्थानों पर एकत्रित होते जाते हैं, जैसा कि चित्र में प्रदर्शित किया गया है। इस विधि में महीन चूर्ण को पट्टी पर डालते रहते हैं तथा पट्टी बेलनों की सहायता से चलती रहती है। विद्युत चुम्बकीय ध्रुवों के प्रभावों के कारण चुम्बकीय पदार्थ उससे दूर पृथक्-पृथक् होते जाते हैं। इस प्रकार से सान्द्रित अयस्क एकत्रित कर लिया जाता है।

प्रश्न 12.
गालक किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइए। (2011, 12, 13, 15, 16, 17)
उत्तर
गालक– गालक उस पदार्थ को कहते हैं जो अयस्क में उपस्थित अगलनीय अशुद्धियों के साथ उच्च ताप पर क्रिया करके इनको आसानी से गलाकर पृथक् होने वाले पदार्थों के रूप में दूर कर देते हैं। अशुद्धियों की गालक से क्रिया के फलस्वरूप बने गलनीय पदार्थ को धातुमल कहा जाता है। धातुमल, धातु से हल्का होने के कारण उसके ऊपर एक अलग पर्त के रूप में तैरने लगता है जिसको अलग कर लेते हैं। गालक दो प्रकार के होते हैं –
1. अम्लीय गालक; जैसे- SiO2। यह क्षारीय अशुद्धियों; जैसे- CaO, FeO आदि को दूर करता है।
2. क्षारीय गालक; जैसे- चूने का पत्थर (CaCO3)। यह अम्लीय अशुद्धियों; जैसे- SiO2, P2O5 को दूर करता है।

प्रश्न 13.
अम्लीय गालक क्या है? धातुकर्म में इसकी क्या उपयोगिता है? एक उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर
वे गालक जो क्षारीय अशुद्धियों से क्रिया करके धातुमल बनाते हैं, अम्लीय गालक कहलाते हैं। सिलिका (SiO2) तथा बोरेक्स प्रमुख अम्लीय गालक हैं।
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प्रश्न 14.
SiO2 अशुद्धि दूर करने के लिए उपयुक्त गालक लिखिए तथा सम्बन्धित अभिक्रिया लिखिए। (2009)
उत्तर
SiO2 अशुद्धि दूर करने के लिए उसमें क्षारीय गालक CaCO3 लिया जाता है।
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प्रश्न15.
धातुमल किसे कहते हैं? एक उदाहरण से समझाइए। (2009, 12, 13, 15, 16)
उत्तर
अयस्क में कुछ अशुद्धियाँ ऐसी होती हैं जिनका गलनांक बहुत अधिक होता है। गालक इन अशुद्धियों से मिलकर द्रवित पदार्थ बनाते हैं जिसे धातुमल कहते हैं। यह धातु से हल्का होने के कारण ऊपर तैरता रहता है जिसे निथारकर अलग कर दिया जाता है।
अशुद्धि + गालक = धातुमल
उदाहरणार्थ- FeO में SiO2 मिलाने पर FeSiO3 धातुमल प्राप्त होता है।
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प्रश्न 16.
निस्तापन किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए। (2009, 11, 16)
उत्तर
वह क्रिया जिसमें अयस्क को इतना गर्म करते हैं कि वह पिघले नहीं तथा अयस्क से गैसीय पदार्थ या वाष्पशील पदार्थ पृथक् हो जाते हैं, निस्तापन कहलाती है। गैस निकलने पर अयस्क सरन्ध्र (porous) हो जाता है; जैसे- कार्बोनेट अयस्क गर्म होकर ऑक्साइड अयस्क तथा COमें बदल जाता है।
ZnCO3 → ZnO + CO2 ↑

प्रश्न 17.
भर्जन किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए। (2011, 16, 17)
उत्तर
वह क्रिया जिसमें अयस्क को वायु की उपस्थिति में उसके गलनांक से नीचे गर्म किया जाता है, भर्जन कहलाती है। इस क्रिया में S, As आदि वाष्पशील अशुद्धियाँ ऑक्साइडों के रूप में पृथक् हो जाती हैं। और सल्फाइड अयस्क ऑक्साइड में बदल जाता है।
S + O2 → SO2
4 As + 3O2 → 2 As2O3
2 Zns + 3O2 → 2 ZnO + 2 SO2 ↑

प्रश्न 18.
जिंक ब्लैण्ड से जिंक के निष्कर्षण में भर्जन व अपचयन की अभिक्रिया का रासायनिक समीकरण दीजिए। (2014)
उत्तर
जिंक ब्लैण्ड (ZnS) एक सल्फाइड अयस्क है, अत: इसका निष्कर्षण फेन प्लवन विधि द्वारा सान्द्रित करने के पश्चात् निम्न पदों में किया जाता है –
1. जिंक ब्लैण्ड अयस्क का भर्जन – सान्द्रित जिंक ब्लैण्ड को परावर्तनी भट्ठी में 927°C पर वायु की उपस्थिति में गर्म करने पर यह (ZnS) अपने ऑक्साइड (ZnO) में परिवर्तित हो जाता है। अभिक्रिया निम्न है।
2 ZnS + 3O2 → 2 ZnO + 2 SO2
Zns + 2O2 → ZnSO4
2 ZnSO4 [latex]\underrightarrow { \triangle } [/latex] 2 ZnO + 2 SO2 ↑ + O2

2. ऑक्साइड का अपचयन – भर्जन क्रिया से प्राप्त ZnO को कार्बन के साथ गर्म करने पर ZnO का Zn में अपचयन हो जाता है।
ZnO + C [latex]\underrightarrow { \triangle } [/latex] Zn + CO ↑

प्रश्न 19.
प्रगलन क्या है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए। (2009, 10, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18)
या
प्रगलन में किस भट्टी का प्रयोग करते हैं ? इसका नामांकित चित्र बनाइए। (2009, 15)
उत्तर
अयस्क में उचित गालक मिलाकर मिश्रण को उच्च ताप पर गलाने की क्रिया को प्रगलन कहते हैं। इस क्रिया में अयस्क का गलित धातु में अपचयन हो जाता है अथवा धातुयुक्त पदार्थ पिघल जाता है। गालक अयस्क में उपस्थित अपद्रव्य से क्रिया करके धातुमल बनाता है जिसे अलग कर लेते हैं। इसमें वात्या भट्ठी का प्रयोग करते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 23
लोहा तथा ताँबा धातुओं के निष्कर्षण में वात्या भट्ठी का उपयोग होता है।
उदाहरणार्थ– कॉपर पाइराइट से कॉपर का निष्कर्षण वात्या भट्ठी में प्रगलन द्वारा किया जाता है। इसमें निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होती हैं –
Cu2O + Fes → Cu2S + FeO
2 Fes + 3O2 → 2 FeO + 2 SO2 ↑
FeO + SiO2 → FeSiO3

प्रश्न 20.
प्रगलन में कोक और गालक का प्रयोग क्यों किया जाता है? व्याख्या कीजिए। (2009, 17)
उत्तर
प्रगलन में कोक तथा गालक के प्रयोग से अयस्क के निस्तापन से प्राप्त ऑक्साइड को कोक अपचयित करता है, जिससे गलित धातु प्राप्त हो जाती है और अपद्रव्य गालक से क्रिया करके धातुमल के रूप में अलग हो जाते हैं। इससे अयस्क का गलनांक भी कम हो जाता है।

प्रश्न 21.
ऐलुमिनो-थर्मिक विधि क्या है ? इसके उपयोग लिखिए। (2012)
उत्तर
धातुओं के ऑक्साइडों को ऐलुमिनियम चूर्ण के साथ उच्च ताप पर गर्म करने से धातुएँ प्राप्त होती हैं। यह क्रिया ऊष्माक्षेपी है तथा इसको एलुमिनोथर्मिक विधि कहते हैं।
3 Co3O4 + 8 Al → 9 Co + 4Al2O5
3 Mn3O4 + 8 Al → 9 Mn + 4 Al2O5
इस विधि का उपयोग CO, Mn और Cr धातुओं के निष्कर्षण और थर्माइट वेल्डिंग में किया जाता है।

प्रश्न 22.
लीचिंग क्या है? एक उदाहरण द्वारा समझाइए। (2015)
उत्तर
यह विधि रासायनिक परिवर्तन पर आधारित है। इसके अन्तर्गत बारीक पिसे अयस्क को उचित अभिकर्मक के साथ क्रिया कराते हैं। जिससे विलयन की अवस्था में परिवर्तन आ जाता है तथा अशुद्धियाँ ठोस अवस्था में रह जाती हैं।
उदाहरण– बॉक्साइट अयस्क को सान्द्रण करने के लिए Al2O5 . 2H2O की क्रिया NaOH से कराने पर NaAlO2 बन जाता है जो जल में विलेय है और अशुद्धियाँ; जैसे- सिलिका, Fe2O3 नीचे ठोस के रूप में अवक्षिप्त हो जाती हैं।
Al2O3 . 2H2O + 2 NaOH → 2 NaAlO2 + 3 H2O
NaAlO2 + 2H2O → Al(OH)3 + NaOH

प्रश्न23.
लोहे के निष्कर्षण के दौरान वात्या भट्टी में चूने का पत्थर क्यों डालते हैं? समझाइए। (2015)
उत्तर
लोहे के निष्कर्षण के दौरान वात्या भट्टी में मिलाया गया चूना पत्थर (CaCO3) गालक का कार्य करता है। यह धातुमल (SiO2) से संयोग करके धातुमल (CaSiO3) कैल्सियम सिलिकेट बनाता है।

प्रश्न 24.
इस्पात का ऊष्मा उपचार क्यों आवश्यक है ? यह किस प्रकार किया जाता है? (2010, 11, 12)
उत्तर
इस्पात के यान्त्रिक गुण उसके ऊष्मा उपचार पर निर्भर करते हैं। ऊष्मा उपचार द्वारा इस्पात को कठोर या नर्म बनाया जा सकता है।
इस्पात का कठोरीकरण – इस्पात को रक्त-तप्त ताप तक गर्म करके ठण्डे जल द्वारा उसे एकाएक ठण्डा करने की क्रिया इस्पात का कठोरीकरण (hardening of steel) कहलाती है। इस क्रिया से इस्पात बहुत कठोर और भंगुर हो जाता है।

इस्पात का टैम्परीकरण – कठोरीकृत (hardened) इस्पात को किसी उच्च ताप तक (पहले से कम ताप पर) पुनः गर्म करके धीरे-धीरे ठण्डा करने की क्रिया इस्पात का टैम्परीकरण (tempering) कहलाती है। इस क्रिया से इस्पात नर्म (soft) हो जाता है और उसकी भंगुरता (brittleness) मिट जाती है। इस्पात को धीरे-धीरे ठण्डा करने पर ऑस्टीनाइट धीरे-धीरे सीमेन्टाइट और आइरन में अपघटित हो जाता है, जिससे इस्पात नर्म हो जाता है।

प्रश्न 25.
ढलवाँ लोहा, पिटवाँ लोहा तथा इस्पात में अन्तर लिखिए।
उत्तर

  • ढलवाँ लोहा – इसमें लगभग 93 से 94% Fe, 2 से 4% C तथा शेष Si, P तथा Mn की अशुद्धियाँ होती हैं।
  • पिटवाँ लोहा – इसमें 98.8% से 99.9% Fe और 0.1 से 0.25% C तथा शेष Si, P और Mn की अशुद्धियाँ होती हैं।
  • इस्पात – इसमें 98 से 99.8% Fe और 0.25 से 1.5% C होता है।

प्रश्न 26.
स्टेनलेस स्टील का संगठन तथा उपयोग लिखिए।
उत्तर
Fe – 74%, Ni – 8%, Cr (18%)
उपयोग– बर्तन, मूर्तियाँ, बॉल बेयरिंग तथा शल्य चिकित्सा के औजार बनाने में।

प्रश्न 27.
फेरिक क्लोराइड के दो रासायनिक गुण लिखिए।
उत्तर
1. जल- अपघटन पर यह HCl उत्पन्न करता है; अत: इसका जलीय विलयन अम्लीय प्रकृति का होता है।
FeCl3 + 3H2O → Fe(OH)3 + 3 HCl
2. पोटैशियम फेरोसायनाइड विलयन के साथ यह नीले रंग का फेरिक फेरोसायनाइड (प्रशियन ब्लू) बनाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 24

प्रश्न 28.
कॉपर के किसी एक मिश्र-धातु का संघटन तथा उपयोग लिखिए। (2011)
उत्तर

  • पीतल– Cu (80%), Zn (20%)
  • उपयोग– इसका उपयोग बर्तन बनाने में किया जाता है।

प्रश्न 29.
जिंक ऑक्साइड के दो उपयोग लिखिए। (2011)
उत्तर

  1. सफेद वर्णक (pigment) के रूप में तथा
  2. क्रीम, पाउडर और टूथपेस्ट बनाने में।

प्रश्न 30.
क्रायोलाइट का सूत्र लिखिए। इसका उपयोग किस धातुकर्म में होता है?
उत्तर
क्रायोलाइट का सूत्र Na3AlF6 है। यह ऐलुमिनियम के धातुकर्म में प्रयुक्त होता है।

प्रश्न 31.
फ्लुओरस्पार का सूत्र लिखिए। इसका ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में क्या उपयोग है? (2009, 12, 17)
उत्तर
फ्लुओरस्पार का सूत्र CaF2 है। ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में इसका उपयोग तरलता बढ़ाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 32.
ऐलुमिना के वैद्युत-अपघटन में क्रायोलाइट का उपयोग समझाइए। (2009, 12)
उत्तर
क्रायोलाइट ऐलुमिना का गलनांक कम करता है तथा ऐलुमिना के वेद्युत-अपघटन में सहायता करता है क्योंकि शुद्ध ऐलुमिना विद्युत कुचालक है परन्तु क्रायोलाइट की सहायता से यह वैद्युत सुचालक हो जाता है।

प्रश्न 33.
Al(OH)3 उभयधर्मी है, समझाइए। (2011)
उत्तर
Al(OH)3 उभयधर्मी है क्योंकि यह अम्लों व अपने से प्रबल क्षारों के साथ क्रिया करके लवण व जल बनाता है।
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प्रश्न 34.
अमलगम तथा मिश्रधातु में क्या अन्तर है?
उत्तर
दो या दो से अधिक धातुओं या धातु व अधातु के समांग मिश्रण को धातु संकर या मिश्रधातु कहते हैं। ये प्राय: ठोस होती हैं। यदि मिश्रधातु में एक धातु मर्करी हो तो इसे अमलगम कहते हैं। ये प्राय: द्रव होती हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
परावर्तनी भट्टी का नामांकित चित्र दीजिए और संक्षेप में इसकी कार्य-विधि का वर्णन कीजिए। (2009, 11, 12, 13, 17)
या
परावर्तनी भट्टी का नामांकित चित्र बनाइए। (2018)
उत्तर
भर्जन क्रिया परावर्तनी भट्ठी में करायी जाती है। इस भट्ठी में ईंधन अलग स्थान पर जलाया जाता है। तथा गर्म किये जाने वाले अयस्क को सीधे ज्वाला के सम्पर्क में नहीं आने देते हैं। यह केवल गर्म गैसों के सम्पर्क में आकर गर्म होता है। इस प्रक्रम में गर्म किये जाने वाला पदार्थ भट्टी तल (hearth) पर रखा जाता है और ईंधन अग्नि स्थान (fire place) में जलाया जाता है। इसका उपयोग ऑक्सीकरण तथा अपचयन दोनों प्रकार के प्रक्रमों में करते हैं। इस भट्टी का प्रयोग ताँबा, लेड, टिन आदि धातुओं के धातुकर्म में किया जाता है।
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प्रश्न 2.
मफल भट्टी का सरल नामांकित चित्र बनाइए तथा इसका संक्षिप्त विवरण दीजिए। इसका उपयोग किस धातु के निष्कर्षण में किया जाता है? (2010, 12)
उत्तर
मफल भट्ठी के अन्दर, दो उच्च ताप सह (refractory) ईंटों से बने हुए कोष्ठ होते हैं जिनको मफल (muffle) कहते हैं जैसा कि संलग्न चित्र में दिखाया गया है। सान्द्रित अयस्क को इन मफलों (रिटार्टी) के अन्दर बन्द कर दिया जाता है। दोनों मफलों को विद्युत द्वारा या ईंधन जलाकर चारों तरफ से गर्म किया जाता है। इस प्रकार इस भट्टी में न तो ईंधन और न ही ज्वाला गर्म होने वाले पदार्थ के सम्पर्क में आ सकते हैं। इस भट्ठी में पदार्थ को अत्यधिक ताप तक गर्म किया जा सकता है। धातु पिघलने पर दोनों बगलों में बने हुए निकास द्वारों के द्वारा बाहर निकल जाती है।

जिन धातुओं को गर्म करने पर ईंधन तथा उसके जलने से उत्पन्न गैसों के सम्पर्क में लाना ठीक नहीं होता उन्हीं का निष्कर्षण मफल भट्ठी में करते हैं। इसका उपयोग चाँदी, सोना, जिंक व लेड के धातुकर्म में किया जाता है।
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प्रश्न 3.
इस्पात के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली खुले तल की भट्टी का नामांकित चित्र बनाइए। (2009)
या
सीमेन्स-मार्टिन की खुली भट्टी का नामांकित चित्र बनाइए। (2009, 11, 13)
उत्तर
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प्रश्न 4.
बेसेमर परिवर्तक द्वारा ढलवाँ लोहे से इस्पात कैसे प्राप्त किया जाता है? बेसेमर परिवर्तक का चित्र दीजिए और उसमें होने वाली रासायनिक अभिक्रिया का समीकरण भी दीजिए। (2010, 11)
उत्तर
इस विधि में ढलवाँ लोहे को एक बेसेमर परिवर्तक में भरकर उसमें वायु या ऑक्सीजन और भाप का मिश्रण प्रवाहित किया जाता है।
बेसेमर प्रक्रम– यह प्रक्रम बेसेमर परिवर्तक (Bessemer’s Converter) में किया जाता है जिसे संलग्न चित्र में दर्शाया गया है।
यह परिवर्तक पिटवाँ लोहे या इस्पात का अण्डाकार आकृति का पात्र होता है जिसमें उच्च ताप सह (refractory) सिलिको यो डोलोमाइट ईंटों का अस्तर लगा होता है। वायु-प्रवाह हेतु इसमें नीचे की ओर छिद्र होते हैं। इस पात्र को एक क्षैतिज अक्ष पर चारों ओर घुमाया जा सकता है। परिवर्तक में वात्या भट्ठी से प्राप्त पिघला हुआ ढलवाँ लोहा भरकर नीचे से वायु प्रवाहित की जाती है। जिसके फलस्वरूप सिलिकॉन तथा मैंगनीज के ऑक्साइड प्राप्त होते हैं।
Si + O2 → SiO2
2Mn + O2 → 2 MnO
ये ऑक्साइड परस्पर अभिक्रिया करके मैंगनीज सिलिकेट धातुमल बनाते हैं जिसे पृथक् कर दिया जाता है।
MnO + SiO2 → MnSiO3 ↓ (धातुमल)

सल्फर, ऑक्सीकृत होकर SO2 बनाती है, जो ऊपर निकल जाती है। कार्बन, कार्बन मोनोक्साइड में परिणित हो जाती है जो कि परिवर्तक के मुंह पर नीली लौ से जलती है। इस ज्वाला से CO गैस की उपस्थिति का आभास मिलता है। CO गैस जलना बन्द होने का तात्पर्य है कि अभिक्रिया पूर्ण हो गयी है। तत्पश्चात् इसमें स्पीगेल (spiegel) की आवश्यक मात्रा मिलाते हैं (स्पीगेल में लोहे के साथ मैंगनीज तथा कार्बन भी उपस्थित होता है) जिससे लोहे में कार्बन की आवश्यक मात्रा हो जाती है तथा इस्पात प्राप्त होता है।
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प्रश्न 5.
हूप विधि द्वारा ऐलुमिनियम धातु के शोधन का वर्णन कीजिए।
उत्तर
ऐलुमिना के वैद्युत-अपघटन से प्राप्त ऐलुमिनियम धातु में अनेक अशुद्धियाँ होती हैं, जिनको हूप विधि (Hoopes process) से शुद्ध किया जाता है। यह एक वैद्युत-अपघटनी विधि है। ऐनोड के रूप में कार्य करने वाले कार्बन अस्तर लगे एक लोहे के पात्र में सबसे नीचे ताँबा तथा सिलिकन युक्त अशुद्ध ऐलुमिनियम की मिश्रित धातु लगी होती है, जो चालक को कार्य करती है। इसके ऊपर अशुद्ध ऐलुमिनियम धातु का गलित रखा जाता है। इसके ऊपर Na, Ba तथा Al के फ्लुओराइडों के मिश्रण तथा Al2O3 का गलित रखा जाता है, जो वैद्युत-अपघट्य का कार्य करता है। सबसे ऊपर पिघले हुए शुद्ध ऐलुमिनियम की एक पर्त होती है, जो कैथोड का कार्य करती है, जिसमें चालक का कार्य करने हेतु एक ग्रेफाइट की छड़ लगी होती है।

वैद्युत धारा प्रवाहित करने पर अशुद्ध ऐलुमिनियम से शुद्ध ऐलुमिनियम ऊपर की सतह पर आ जाता है और इतनी ही मात्रा में अशुद्ध ऐलुमिनियम को पात्र में लगे कीप से डाल दिया जाता है। इस प्रकार शुद्ध ऐलुमिनियम नीचे की पर्त (ऐनोड) से ऊपर की पर्त (कैथोड) पर आ जाता है और अशुद्धियाँ नीचे बैठ जाती हैं। शुद्ध ऐलुमिनियम को ऊपरी पर्त में बने छिद्र से अलग करके चादरों, छड़ों आदि के रूप में बदल दिया जाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 30

प्रश्न 6.
सिलिका युक्त बॉक्साइट का शोधन किस प्रकार किया जाता है ? रासायनिक समीकरण भी दीजिए। (2009, 11, 16)
या
सपॅक की विधि द्वारा ऐलुमिना को शोधन कैसे करेंगे? (2016)
उत्तर
जब बॉक्साइट में SiO2 की अशुद्धि अधिकता में होती है, तब सपेंक की विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में बॉक्साइट में कार्बन का चूर्ण मिलाकर मिश्रण को 1800°C तक गर्म करके इसमें नाइट्रोजन प्रवाहित की जाती है जिससे ऐलुमिनियम नाइट्राइड (AIN) बनता है तथा सिलिका अपचयित होकर वाष्पशील सिलिकॉन में परिवर्तित हो जाती है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 31
इस प्रकार प्राप्त ऐलुमिनियम नाइट्राइड को पानी के साथ गर्म करने पर इसका जल-अपघटन हो जाता है। जिससे ऐलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड का अवक्षेप प्राप्त होता है। इस अवक्षेप को जल से धोकर सुखाकर तेज गर्म करने पर निर्जल ऐलुमिना प्राप्त होता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 32

प्रश्न 7.
जब बॉक्साइट अयस्क में फेरिक ऑक्साइड की अशुद्धि अधिक होती है तथा जब सिलिका की अशुद्धि अधिक होती है तो बॉक्साइट से ऐलुमिना प्राप्त करने की विधि का मान तथा रासायनिक समीकरण लिखिए। (2016)
उत्तर
बॉक्साइट अयस्क में फेरिक ऑक्साइड भी अशुद्धि अधिक होने पर इससे एलुमिना प्राप्त करने के लिए बेयर विधि का प्रयोग किया जाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 33
बॉक्साइट अयस्क में सिलिका की अशुद्धि अधिक होने पर इससे ऐलुमिना प्राप्त करने के लिए सपेंक विधि का प्रयोग किया जाता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 34

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ढलवाँ लोहे का उसके अयस्क से निष्कर्षण की विधि का वर्णन कीजिए। इस निष्कर्षण में प्रयुक्त होने वाली भट्टी के प्रमुख क्षेत्रों में होने वाली अभिक्रियाओं को लिखिए। (2009, 12)
या
लोहे का उदाहरण देते हुए प्रगलन की प्रक्रिया की भट्टी का चित्र एवं रासायनिक समीकरण द्वारा समझाइए। (2018)
उत्तर
ढलवाँ लोहे का निष्कर्षण वात्या भट्टी द्वारा किया जाता है। यह निष्कर्षण हेमेटाइट अयस्क से निम्नलिखित पदों में किया जाता है –
1. धावन– लोहे के अयस्कों में 20 – 55% के बीच लोहा होता है इसीलिए इसका सान्द्रण करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। हल्की अशुद्धियाँ; जैसे- रेत, मिट्टी आदि घनत्व पृथक्करण विधि द्वारा पृथक् कर ली जाती हैं। अयस्क के महीन चूर्ण पर जल की धारा प्रवाहित करने से अशुद्धियाँ जल के साथ बह जाती हैं तथा लोहे का भारी अयस्क नीचे बैठ जाता है।

2. चुम्बकीय सान्द्रण – इस विधि में मैग्नेटाइट अयस्क का सान्द्रण चुम्बकीय विधि द्वारा किया जाता है।

3. प्रारम्भिक भर्जन अथवा निस्तापन – अयस्क को बारीक टुकड़ों में करके, उसमें कोयला मिलाया जाता है, फिर इस मिश्रण को कम गहरी भट्ठियों में तथा वायु की अधिकता में गर्म किया जाता है। इस प्रकार निस्तापने करने से निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं –

  1. नमी भाप बनकर निकल जाती है
  2. अयस्क में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ CO2 के रूप में निकल जाते हैं।
  3. गन्धक तथा आर्सेनिक क्रमशः SO2 व As2O3 के रूप में निकल जाते हैं।
  4. कार्बोनेट अयस्क अपघटित होकर फेरस ऑक्साइड बनाता है, जो फेरिक ऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाता है, जिससे गलनीय फेरस सिलिकेट (FeSiO3) नहीं बनता है।
    FeCO3 → FeO + CO2
    4 FeO + O2 → 2Fe2O3
  5. अयस्क सरन्ध्र (porous) हो जाता है जिससे इसका अपचयन सरलतापूर्वक हो जाता है।

4. प्रगलन – निस्तापित अयस्क में कोक तथा चूने का पत्थर मिलाकर उसे कप तथा कोन व्यवस्था की सहायता से धीरे-धीरे एक बड़ी वात्या भट्ठी में प्रगलित किया जाता है। नीचे से शुष्क तथा गर्म वायु ईंधन को गर्म करने के लिए प्रवाहित की जाती है। भट्टी से निकलने वाली गर्म गैसों को एक धूल कक्ष तथा काउपर स्टोव में से प्रवाहित किया जाता है। इस व्यवस्था से काफी ईंधन बच जाता है। जैसे-जैसे चार्ज नीचे खिसकता है, वह अधिक ताप के कटिबन्धों (zones) में से गुजरता है। नीचे पहुँचकर लोहा पिघल जाता है। इसके ऊपर धातुमल की परत तैरने लगती है। धातुमल को ऊपर के छेद से तथा पिघली धातु को नीचे के छेद से निकाल लेते हैं। पिघली धातु को साँचों में ढाल लेते हैं। इस प्रकार ढलवाँ लोहा प्राप्त होता है।
[संकेत– वात्या भट्टी के लिए पृष्ठ 165 पर चित्र देखें]

वात्या भट्ठी में होने वाली अभिक्रियाएँ – विभिन्न कटिबन्धों में निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होती हैं –
(i) प्रारम्भिक ताप का कटिबन्ध – यह भट्ठी का सबसे ऊपर का क्षेत्र है। यहाँ ताप 250°C रहता है। यहाँ चार्ज की सारी नमी दूर हो जाती है।

(ii) अपचयन का ऊपरी कटिबन्ध – यहाँ ताप लगभग 300°C – 900°C रहता है। यहाँ नीचे से आने वाली गर्म वायु, कोक से क्रिया करके CO बनाती है।
2C + O2 → 2 CO ↑
यह गैस नीचे से ऊपर उठती है और लोहे के ऑक्साइडों को स्पंजी लोहे में अपचयित कर देती है।

  1. 3Fe2O3 + CO [latex]\underrightarrow { { 300 }^{ 0 }C } [/latex] 2 Fe3O4 + CO2 ↑
  2. Fe3O4 + CO [latex]\underrightarrow { { 500 }^{ 0 }C } [/latex] 3 FeO + CO2 ↑
  3. FeO + CO [latex]\underrightarrow { { 700 }^{ 0 }C } [/latex] Fe + CO2 ↑

700°C पर चूने का पत्थर भी अपघटित हो जाता है।

  1. CaCO3 [latex]\rightleftharpoons [/latex] CaO + CO2
  2. CaCO3 + C → CaO + 2CÓ ↑

अतः ऊपर उठने वाली गैसे CO तथा CO2 का मिश्रण होती हैं।

(iii) अपचयन का निचला कटिबन्ध – यहाँ ताप 900°C – 1200°C रहता है। इस कटिबन्ध में स्पंजी लोहे की उपस्थिति में CO की नियोजन क्रिया (2 CO → CO2 + C) उत्प्रेरित होकर कार्बन देती है। यह कार्बन निचले कटिबन्ध के लोहे से संयोग करता है। कार्बन के साथ Mn, P, S, Si आदि अशुद्धियाँ भी लोहे से संयोग कर लेती हैं। इस कारण लोहा 1200°C पर ही पिघल जाता है,
जबकि इसका गलनांक 1580°C है।

(iv) गलन कटिबन्ध – यहाँ ताप 1200°C – 1500°C रहता है। इसमें स्पंजी लोहा पूर्णतया पिघल । जाता है। इसमें C, Mn, P, Si आदि अशुद्धियाँ घुल जाती हैं तथा चूना, सिलिका व ऐलुमिना के साथ धातुमल बनाती हैं जो पिघले लोहे पर तैरने लगता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements image 35
धातुमल के कारण लोहा वायु की ऑक्सीजन के सम्पर्क में आकर ऑक्सीकृत नहीं होने पाता।

प्रश्न 2.
सल्फाइड अयस्क से धातु (कॉपर) निष्कर्षण की विधि का वर्णन कीजिए। सम्बन्धित रासायनिक समीकरण भी दीजिए। (2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17)
या
कॉपर पायराइट से ताँबे के निष्कर्षण की विधि का वर्णन कीजिए। सम्बन्धित रासायनिक समीकरण लिखिए। प्राप्त धातु को किस प्रकार शुद्ध करेंगे? (2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17)
उत्तर
कॉपर को मुख्य अयस्क कॉपर पायराइट (CuFeS2) है जो कि सल्फाइड अयस्क है। कॉपर पायराइट से ताँबा निष्कर्षित करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रम करने होते हैं –
1. सान्द्रण – अयस्क को बारीक पीसकर चूर्ण बना लिया जाता है तत्पश्चात् फेन प्लवन विधि (Froth Floatation Process) द्वारा सान्द्रण कर लेते हैं।

2. भर्जन – सान्द्रित अयस्क को हवा की अधिकता और न्यून ताप पर गर्म किया जाता है जिसे भर्जन कहा जाता है। यह क्रिया परावर्तनी भट्ठी (Reverberatory furnace) में होती है। इस भट्ठी में गैस की ज्वालाएँ अयस्क पर प्रतिबिम्बित होती हैं। भट्ठी में हवा के लिए विशेष छेद बने होते हैं। भर्जन क्रिया में अयस्क में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं –

  1. अयस्क में उपस्थित मुक्त सल्फर SO2 में ऑक्सीकृत होकर बाहर निकल जाता है।
    S + O2 → SO2
  2. आर्सेनियस की अशुद्धि वाष्पशील (volatile) आर्सेनियस ऑक्साइड के रूप में बाहर निकल जाती है।
    4As + 3O2 → 2As2O3 ↑
  3. कॉपर पायराइट, क्यूप्रस सल्फाइड और फेरस सल्फाइड में बदल जाता है।
    2CuFeS2 + O2 → Cu2S + 2 Fes + SO2
  4. अधिकांश फेरस सल्फाइड, फेरस ऑक्साइड में बदल जाता है।
    2Fes + 3O2 → 2FeO + 2SO2 ↑
  5. क्यूप्रस सल्फाइड आंशिक रूप से क्यूप्रस ऑक्साइड में बदल जाती है।
    2 Cu2S + 3O2 → 2Cu2O + 2SO2

भर्जन के बाद कॉपर व आयरन के ऑक्साइड और सल्फाइड का मिश्रण प्राप्त होता है, जिसे भर्जित अयस्क कहते हैं।

3. प्रगलन – भर्जित अयस्क में सिलिका और कोक मिलाकर मिश्रण को वाया भट्ठी में प्रगलित किया जाता है। यह भट्ठी स्टील की प्लेटों की बनी होती है जिसके अन्दर अग्निसह ईंटों का अस्तर तथा बाहर वॉटर जैकेट लगा होता है। भट्ठी के निचले भाग में ट्वीयर (tuyers) लगे होते हैं जिनसे गर्म वायु का झोंका भट्ठी में भेजा जाता है। गलित पदार्थ भट्ठी के तल में एकत्रित होते हैं तथा अवशिष्ट गैसें भट्ठी के ऊपरी भाग से बाहर निकलती हैं। प्रगलन में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं –

  1. क्यूप्रस ऑक्साइड फेरस सल्फाइड से क्रिया करके क्यूप्रस सल्फाईड में बदल जाता है।
    Cu2O + FeS → Cu2S + FeO
  2. फेरस सल्फाइड की काफी मात्रा फेरस ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाती है।
    2Fes + 3O2 → 2FeO + 2SO2 ↑
  3. फेरस ऑक्साइड सिलिका (SiO2) से संयोग करके गलित फेरस सिलिकेट बनाता है जिसे धातुमल (slag) कहते हैं। सिलिको गालक का कार्य करता है।
    FeO + SiO2 → FeSiO3

क्यूप्रस सल्फाइड और फेरस सल्फाइड का गलित मिश्रण जिसे मैट (matte) कहते हैं, भट्ठी के पेंदे में एकत्रित हो जाता है और मैट के ऊपर गलित धातुमल की परत जमा हो जाती है। मैट को निकास द्वार से बाहर निकाल दिया जाता है। इसमें लगभग 50% ताँबा होता है।

4. बेसेमरीकरण – गलित मैट में थोड़ी सिलिका मिलाकर एक बेसेमर परिवर्तक में भर देते हैं और उसमें गर्म वायु का झोंका प्रवाहित किया जाता है। बेसेमर परिवर्तक में नाशपाती की आकृति का स्टील का पात्र होता है जिसके भीतर अग्निसह ईंटों तथा लाइम का अस्तर लगा रहता है। इसकी बगल में, काफी ऊँचाई पर ट्वीयर लगा होता है जिसके द्वारा गर्म वायु का झोंका परिवर्तक में भेजा जाता है। गलित मैट और सिलिका के मिश्रण में गर्म वायु का झोंका प्रवाहित करने पर निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होती हैं –

  1. मैट में उपस्थित फेरस सल्फाइड फेरस ऑक्साइड में बदल जाता है।
    2FeS + 3O2 → 2FeO + 2SO2
  2. फेरस ऑक्साइड सिलिका से संयोग करके गलित फेरस सिलिकेट (धातुमल) बनाता है।
    FeO + SiO2 → FeSiO3
  3. क्यूप्रस सल्फाइड का कुछ भाग क्यूप्रस ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है जो बचे हुए क्यूप्रस सल्फाइड से क्रिया करके कॉपर बनाता है।
    2 Cu2S + 3O2 → 2 Cu2O + 2SO2
    Cu2S + 2 Cu2O → 6 Cu + SO2 ↑

गलित कॉपर के ऊपर से धातुमल की परत को हटाने के उपरान्त परिवर्तक को उलटकर गलित कॉपर को बाहर निकाल लेते हैं। इसे ठण्डा करने पर SO2 बुलबुलों के रूप में बाहर निकलती है। जिससे कॉपर की सतह पर फफोले पड़ जाते हैं। इस कॉपर को फफोलेदार कॉपर (blister copper) कहते हैं। इसमें लगभग 98% कॉपर तथा 2% अशुद्धियाँ (सल्फर, आर्सेनिक, आयरन, सिल्वर, गोल्ड आदि) होती हैं। इनको शोधन द्वारा पृथक् कर लेते हैं।

5. शोधन – अशुद्ध कॉपर को मुख्यत: वैद्युत-अपघटनी विधि द्वारा शुद्ध किया जा सकता है। इस प्रक्रम में एक टैंक में अशुद्ध ताँबे के पट लटका दिये जाते हैं। ये ऐनोड का कार्य करते हैं। शुद्ध ताँबे की पतली पत्तियाँ कैथोड का काम करती हैं। कॉपर सल्फेट का अम्लीय विलयन वैद्युत-अपघट्य के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। वैद्युत धारा प्रवाहित करने पर कैथोड पर शुद्ध ताँबा जमा होता है तथा अशुद्धियाँ (लोहा, निकिल और जिंक) विलयन में रह जाती हैं। सोना या चाँदी अवक्षेप के रूप में ऐनोड के नीचे जमा हो जाते हैं, इनको ऐनोड पंक (Anode mud) कहा जाता है। इस प्रकार कैथोड पर शुद्ध (99.98%) ताँबा प्राप्त होता है।

प्रश्न 3.
ऐलुमिनियम के दो मुख्य अयस्कों के नाम तथा सूत्र लिखिए। बॉक्साइट के शुद्धिकरण की किसी एक विधि को संक्षेप में वर्णन कीजिए। ऐलुमिना से धातु कैसे प्राप्त की जाती है? (2010, 12, 14, 15, 16)
उत्तर
ऐलुमिनियम के दो मुख्य अयस्क-

  1. बॉक्साइट [Al2O5 . 2H2O]
  2. क्रायोलाइट [Na3AlF6]

बॉक्साइट के शुद्धिकरण को बेयर प्रक्रम – जब बॉक्साइट में Fe,05 की अधिक मात्रा होती है तो यह प्रक्रम प्रयुक्त होता है। इस प्रक्रम में बारीक पिसे बॉक्साइट को कॉस्टिक सोडा विलयन के साथ ऑटोक्लेव में 150°C तथा 80 वायुमण्डलीय दाब पर गर्म करते हैं। इस प्रकार Al2O3, सोडियम मेटाऐलुमिनेट में परिवर्तित हो जाता है, जो जल में घुलनशील है। अविलेय अशुद्धियों को विलयन से छानकर पृथक् कर लेते हैं। निस्यन्द में थोड़ा-सा नव-अवक्षेपित Al(OH)3 डालकर जल के साथ उबालते हैं। इससे सोडियम मेटाऐलुमिनेट जल-अपघटित होकर Al(OH)3 का अवक्षेप देता है। इस अवक्षेप को छानकर, धोकर सुखा , लेते हैं। इस सूखे अवक्षेप को गर्म करने से शुद्ध ऐलुमिना प्राप्त हो जाता है।
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ऐलुमिना से धातु का निष्कर्षण – शुद्ध ऐलुमिना के वैद्युत अपघटने, जिसे इलेक्ट्रो अपचयन विधि भी कहते हैं, से ऐलुमिनियम धातु प्राप्त की जाती है। शुद्ध ऐलुमिना (Al2O3) का गलनांक 2050° C होता है। इसमें Na3AlF6 तथा CaF2 मिलाकर गर्म करने पर यह 875°C से 900°C के मध्य ही पिघल जाता है। Al2O3, Na3AlF6 तथा CaF2 के मिश्रण के गलित को कार्बन अस्तर लगे एक लोहे के पात्र में डालकर उसमें ग्रेफाइट की छड़े लटकायी जाती हैं। कार्बन अस्तर कैथोड तथा ग्रेफाइट छड़ ऐनोड का कार्य करती है। वैद्युत चक्र में समानान्तर क्रम में एक बल्ब लगाकर वैद्युत धारा प्रवाहित की जाती है जिससे ऐनोड पर ऑक्सीजन मुक्त होती है, जो ग्रेफाइट से क्रिया करके CO2 गैस के रूप में निकल जाती है। कैथोड (कार्बन अस्तर) पर ऐलुमिनियम धातु मुक्त होती है जिसे समय-समय पर एक छिद्र से बाहर निकाल लिया जाता है। ग्रेफाइट के ऐनोड के ऑक्सीकरण के कारण ग्रेफाइट समाप्त होती जाती है जिससे कुछ समय बाद नया ऐनोड लगाना पड़ता है। वैद्युत-अपघटन की क्रिया का रासायनिक समीकरण इस प्रकार है –
पहले क्रायोलाइट आयनित होता है।
Na3AIF6 [latex]\rightleftharpoons [/latex] 3 Na+ + Al3+ + 6F
Al3+ + 3e → Al (कैथोड पर) (अपचयन)
2F  – 2e → F2 (ऐनोड पर) (ऑक्सीकरण)
फ्लोरीन ऐलुमिना से क्रिया करके ऐनोड पर 02 मुक्त करती है।
2Al2O3 + 6F2 → 4AlF3 + 3O2
2C + O2 → 2CO
C + O2 → CO2
क्रायोलाइट की उपस्थिति में गलित ऐलुमिना के वैद्युत-अपघटन से लगभग 99.8% शुद्ध ऐलुमिनियम प्राप्त होता है।
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प्रश्न 4.
सिल्वर (Ag) के निष्कर्षण की किसी एक विधि का वर्णन कीजिए। या सायनाइड प्रक्रम द्वारा चाँदी प्राप्त करने की विधि तथा आवश्यक रासायनिक समीकरण लिखिए। (2018)
उत्तर
सिल्वर धातु अत्यधिक क्रियाशील न होने के कारण प्रकृति में मुक्त तथा संयुक्त दोनों अवस्थाओं में पाई जाती है। इसके निष्कर्षण की विधि निम्नवत् है –
1. सान्द्रण – इसके सल्फाइड अयस्क को बाल मिल (Ball mill) में महीन पीसकर इसका झाग प्लवन विधि से सान्द्रण किया जाता है। एक टैंक में जल भरकर उसमें थोड़ा-सा चीड़ का तेल और थोड़ा-सा पोटैशियम एथिलजैन्थेट मिलाकर उसमें महीन पिसा हुआ सल्फाइड अयस्क डालकर वायु की तेज धारा द्वारा विलोडित करते हैं। सल्फाइड अयस्क झाग के रूप में द्रव के सतह के ऊपर तैरने लगता है और भारी अशुद्धियाँ टैंक की पेंदी में बैठ जाती हैं। फेन को अलग करके सुखाकर पीस लिया जाता है।

2. सायनाइड से अभिक्रिया – पिसे हुए सान्द्रित सल्फाइड अयस्क को एक छिद्रयुक्त पेंदी के टैंक में भर देते हैं। इस टैंक के भीतर किरमिच का अस्तर लगा होता है। अब अयस्क में 0.4 से 0.6% सोडियम सायनाइड का घोल मिलाकर हवा की तेज धारा प्रवाहित करते हैं और इस मिश्रण को तीव्रता से हिलाया जाता है। ऐसा करने से सल्फाइड अयस्क में उपस्थित सिल्वर, सायनाइड से क्रिया करके विलेयशील सोडियम डाइसायनोअर्जेन्टेट (I) संकर लवण बनाता है।
Ag2S + 4 NaCN [latex]\rightleftharpoons [/latex] 2 Na[Ag(CN2)]+ Na2S
सोडियम सल्फाइड वायु के द्वारा सोडियम सल्फेट में ऑक्सीकृत हो जाता है।
4Na2S + 5O2 + 2H2O → 2Na2SO4 + 4NaOH + 2S
सोडियम डाइसायनोअर्जेन्टेट (I) विलयन टैंक की पेंदी से टपकता रहता है जिसको एकत्रित करके फिर टैंक में डाल दिया जाता है। इस क्रिया को तीन-चार बार दोहराया जाता है जिससे सोडियम डाइसायनोअर्जेन्टेट (I) का सान्द्र विलयन प्राप्त हो जाता है।

3. सिल्वर का अवक्षेपण – सान्द्र डाइसायनोअर्जेन्टेट (I) विलयन को अवक्षेपण कक्षों में से प्रवाहित करते हैं। इन कक्षों में जिंक धातु की छीलन रखी होती है जो डाइसायनोअर्जेन्टेट (I) विलयन से सिल्वर को प्रतिस्थापित करके सिल्वर का काला अवक्षेप देता है और इस प्रकार से प्राप्त विलयन को छानकर सिल्वर का काला अवक्षेप पृथक् कर लेते हैं।
2Na[Ag(CN2] + Zn → Na2[Zn(CN4) + 2 Ag] ↓
सिल्वर को ऐलुमिनियम पाउडर द्वारा भी अवक्षेपित कराया जाता है।ऐलुमिनियम का उपयोग करने से सीधा ही सोडियम सायनाइड प्राप्त हो जाता है।
Al + 3Na[Ag(CN)2] + 4NaOH → 3Ag ↓ + 6NaCN + NaAlO2 + 2H2O
जिंक द्वारा अवक्षेपण करने में जो जिंक सायनाइड संकर बनता है वह बचे हुए सल्फाइड अयस्क को भी डाइसायनोअर्जेन्टेट (I) में परिवर्तित कर सकता है और इस प्रकार सायनाइड की हानि नहीं होती।
Ag2S+ Na2[Zn(CN)4] → 2Na[Ag(CN)2] + ZnS

प्रश्न 5.
गोल्ड (Au) के निष्कर्षण एवं शोधन की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर
गोल्ड का शुद्धिकरण – गोल्ड का शुद्धिकरण निम्न विधियों द्वारा किया जाता है –
1. क्वार्टेशन विधि – इस विधि द्वारा कॉपर व सिल्वर की अशुद्धियों को हटाया जाता है। यह विधि
इस तथ्य पर आधारित है कि कॉपर व सिल्वर सल्फ्यूरिक व नाइट्रिक अम्लों में घुल जाते हैं, जबकि गोल्ड इन अम्लों के द्वारा प्रभावित नहीं होता। यदि अशुद्ध नमूने में गोल्ड 30% से अधिक है तो कॉपर व सिल्वर भी इन अम्लों के द्वारा प्रभावित नहीं होते। अतः इन अम्लों से अभिक्रिया करने से पहले नमूने को सिल्वर की आवश्यक मात्रा के साथ गलाते हैं जिससे नमूने में गोल्ड की प्रतिशत मात्रा 25% तक घट जाए। इसीलिए इसे क्वॉर्टेशन विधि कहते हैं। परिणामी मिश्र धातु को सान्द्र H,SO, के साथ प्रतिकृत करते हैं जिससे कॉपर व सिल्वर सल्फेटों के रूप में विलयन में आ जाते हैं, जबकि गोल्ड शेष रह जाता है। इस प्रकार से प्राप्त गोल्ड को बोरेक्स व KNOs के साथ गलित। करते हैं जिससे शुद्ध गोल्ड प्राप्त हो जाता है।

  • Cu + 2H2SO4 → CuSO4 + 2H2O + SO2
  • 2Ag + 2H2SO4 → Ag2SO4 + 2H2O + SO2

(ii) विद्युत-अपघटनी विधि गोल्ड का शुद्धिकरण विद्युत अपघटनी विधि के द्वारा भी किया जा सकता है। इस विधि में गोल्ड क्लोराइड के विलयन जिसमें 10 – 20% HCl होता है का विद्युत-अपघटन किया जाता है। अशुद्ध गोल्ड ऐनोड के रूप में तथा शुद्ध गोल्ड कैथोड के रूप में किया जाता है। शुद्ध गोल्ड कैथोड पर एकत्रित हो जाता है, जबकि बने सिल्वर क्लोराइड को कीचड़ (mud) के रूप में हटा दिया जाता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms (परमाणु) are part of UP Board Solutions for Class 12 Physics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms (परमाणु).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Physics
Chapter Chapter 12
Chapter Name Atoms (परमाणु)
Number of Questions Solved 51
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms (परमाणु)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1:
प्रत्येक कथन के अन्त में दिए गए संकेतों में से सही विकल्प का चयन कीजिए
(a) टॉमसन मॉडल में परमाणु का साइज, रदरफोर्ड मॉडल में परमाण्वीय साइज से………..होता है। (अपेक्षाकृत काफी अधिक, भिन्न नहीं, अपेक्षाकृत काफी कम)
(b) ……..में निम्नतम अवस्था में इलेक्ट्रॉन स्थायी साम्य में होते हैं जबकि ……..में इलेक्ट्रॉन, सदैव नेट बल अनुभव करते हैं। (रदरफोर्ड मॉडल, टॉमसन मॉडल)
(c) ………पर आधारित किसी क्लासिकी परमाणु का नष्ट होना निश्चित है। (टॉमसन मॉडल, रदरफोर्ड मॉडल)
(d) किसी परमाणु के द्रव्यमान का……..में लगभग संतत वितरण होता है लेकिन……..में अत्यन्त असमान द्रव्यमान वितरण होता है। (रदरफोर्ड मॉडल, टॉमसन मॉडल)
(e) ………में परमाणु के धनावेशित भाग का द्रव्यमान सर्वाधिक होता है। (रदरफोर्ड मॉडल, दोनों मॉडलों)
उत्तर:
(a) भिन्न नहीं,
(b) टॉमसन, मॉडल, रदरफोर्ड मॉडल,
(c) रदरफोर्ड मॉडल,
(d) टॉमसन मॉडल, रदरफोर्ड मॉडल,
(e) रदरफोर्ड मॉडल।

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प्रश्न 2:
मान लीजिए कि स्वर्ण पन्नी के स्थान पर ठोस हाइड्रोजन की पतली शीट का उपयोग करके आपको ऐल्फा-कण प्रकीर्णन प्रयोग दोहराने का अवसर प्राप्त होता है। (हाइड्रोजन 14K से नीचे ताप पर ठोस हो जाती है।) आप किस परिणाम की अपेक्षा करते हैं?
उत्तर:
हाइड्रोजन परमाणु का नाभिक एक प्रोटॉन है जिसका द्रव्यमान (1.67 x 10-27 kg) α – कण के द्रव्यमान (6.64 x 10-27 kg) की तुलना में कम है। यह हल्का नाभिक भारी α -कण को प्रतिक्षिप्त नहीं कर पाएगा; अतः α-कण सीधे नाभिक की ओर जाने पर भी वापस नहीं लौटेगा और इस प्रयोग में α-कण का बड़े कोणों पर विक्षेपण भी नहीं होगा।

प्रश्न 3:
‘पाशन श्रेणी में विद्यमान स्पेक्ट्रमी रेखाओं की लघुतम तरंगदैर्ध्य क्या है?
उत्तर:
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प्रश्न 4:
2.3eV ऊर्जा अन्तर किसी परमाणु में दो ऊर्जा स्तरों को पृथक कर देता है। उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति क्या होगी यदि परमाणु में इलेक्ट्रॉन उच्च स्तर से निम्न स्तर में संक्रमण करता है?
हल:
दिया है, ∆E = 2.3 eV= 2.3 x 1.6 x 10-19 जूल; h = 6.62 x 10-34 जूल-सेकण्ड विकिरण की आवृत्ति ν = ?
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प्रश्न 5:
हाइड्रोजन परमाणु की निम्नतम अवस्था में ऊर्जा -13.6 eV है। इस अवस्था में इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा और स्थितिज ऊर्जाएँ क्या होंगी?
हल:
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प्रश्न 6:
निम्नतम अवस्था में विद्यमान एक हाइड्रोजन परमाणु एक फोटॉन को अवशोषित करता है। जो इसे n = 4 स्तर तक उत्तेजित कर देता है। फोटॉन की तरंगदैर्घ्य तथा आवृत्ति ज्ञात कीजिए।
हल:
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प्रश्न 7:
(a) बोर मॉडल का उपयोग करके किसी हाइड्रोजन परमाणु में n=1, 2 तथा 3 स्तरों पर इलेक्ट्रॉन की चाल परिकलित कीजिए।
(b) इनमें से प्रत्येक स्तर के लिए कक्षीय अवधि परिकलित कीजिए।
हल:
(a) दिया है,
e= 1.6 x 10-19 कूलॉम, ६ = 8.85 x 10-12 कूलॉम2/न्यूटन मीटर2
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms 7a

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प्रश्न 8:
हाइड्रोजन परमाणु में अन्तरतम इलेक्ट्रॉन-कक्षा की त्रिज्या 5.3 x 10-11m है। कक्षा n= 2 और n = 3 की त्रिज्याएँ क्या हैं?
हल:
बोर की nवीं कक्षा की त्रिज्या
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प्रश्न 9:
कमरे के ताप पर गैसीय हाइड्रोजन पर किसी 12.5 eV की इलेक्ट्रॉन पुंज की बमबारी की गई। किन तरंगदैघ्र्यों की श्रेणी उत्सर्जित होगी?
हल:
निम्नतम ऊर्जा स्तर में H2 परमाणु की ऊर्जा E1 = -13.6 eV
जब इस पर 12.5eV ऊर्जा के इलेक्ट्रॉन की (UPBoardSolutions.com) बमबारी की जाती है तो इस ऊर्जा को अवशोषित करने पर माना यह नावे उत्तेजित ऊर्जा स्तर में चला जाता है।
अत: En = E1 +12.75 = -(-13.6 +12.75)eV = -0.85 eV
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अत: चित्र 12.1 में प्रदर्शित रेखाएँ (तरंगदैर्घ्य उत्सर्जित होंगी)।
सूत्र λ = [latex]\frac { hc }{ \Delta E }[/latex] से, प्रत्येक रेखा के संगत तरंगदैर्घ्य ज्ञात करें। इनके मान क्रमशः होंगे
970.6 [latex]\mathring { A }[/latex], 1023.6 [latex]\mathring { A }[/latex]; 1213.2 [latex]\mathring { A }[/latex], 4852.9[latex]\mathring { A }[/latex]; 6547.6 [latex]\mathring { A }[/latex]; 28409 [latex]\mathring { A }[/latex]

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प्रश्न 10:
बोर मॉडल के अनुसार सूर्य के चारों ओर 1.5 x 1011m त्रिज्या की कक्षा में, 3 x 104m/s के कक्षीय वेग से परिक्रमा करती पृथ्वी की अभिलाक्षणिक क्वांटम संख्या ज्ञात कीजिए। (पृथ्वी का द्रव्यमान= 6.0 x 1024 kg)।
हल:
दिया है, पृथ्वी का द्रव्यमान m = 6.0 x 1024 किग्रा; कक्षा की त्रिज्या r = 1.5 x 1011 मीटर
तथा पृथ्वी का कक्षीय वेग ν = 3 x 104 मीटर/सेकण्ड
h = 6.62 x 104 जूल-सेकण्ड
बोर मॉडल के अनुसार, mνr = [latex s=2]\frac { nh }{ 2\pi }[/latex]
27 यहाँ n कक्षा की अभिलाक्षणिक क्वाण्टम संख्या है।
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उपग्रह की गति के लिए यह क्वाण्टम संख्या अत्यन्त विशाल है और इतनी विशाल क्वाण्टम संख्या के लिए क्वाण्टीकृत प्रतिबन्धों के परिणाम चिरसम्मत भौतिकी से मेल खाने लगते हैं।

अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 11:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए जो आपको टॉमसन मॉडल और रदरफोर्ड मॉडल में अन्तर समझने हेतु अच्छी तरह से सहायक हैं।
(a) क्या टॉमसन मॉडल में पतले स्वर्ण पन्नी से प्रकीर्णित α-कणों का पूर्वानुमानित औसत विक्षेपण कोण, रदरफोर्ड मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित मान से अत्यन्त कम, लगभग समान अथवा अत्यधिक बड़ा है?
(b) टॉमसन मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित पश्च प्रकीर्णन की प्रायिकता (अर्थात α-कणों का 90° से बड़े कोणों पर प्रकीर्णन) रदरफोर्ड मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित मान से अत्यन्त कम, लगभग समान अथवा अत्यधिक है?
(c) अन्य कारकों को नियत रखते हुए, प्रयोग द्वारा यह पाया गया है कि कम मोटाई t के लिए, मध्यम कोणों पर प्रकीर्णित α-कणों की संख्या t के अनुक्रमानुपातिक है। t पर यह रैखिक निर्भरता क्या संकेत देती है?
(d) किस मॉडल में α -कणों के पतली पन्नी से प्रकीर्णन के पश्चात औसत प्रकीर्णन कोण के परिकलन हेतु बहुप्रकीर्णन की उपेक्षा करना पूर्णतया गलत है?
उत्तर:
(a) औसत विक्षेपण कोण दोनों मॉडलों के लिए लगभग समान है।
(b) टॉमसन मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित पश्च प्रकीर्णन की प्रायिकता, रदरफोर्ड मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित मान की तुलना में अत्यन्त कम है।
(c) t पर रैखिक निर्भरता यह प्रदर्शित करती है कि प्रकीर्णन मुख्यतः एकल संघट्ट के कारण होता है। मोटाई t के बढ़ने के साथ लक्ष्य स्वर्ण नाभिकों की संख्या रैखिक रूप से बढ़ती है; अत: α-कणों के, स्वर्ण नाभिक से एकल संघट्ट की सम्भावना रैखिक रूप से बढ़ती है।
(d) टॉमसन मॉडल में परमाणु का सम्पूर्ण धनावेश परमाणु में समान रूप से वितरित है; अत: एकल संघट्ट α-कण को अल्प कोण से विक्षेपित कर पाता है। अतः इस (UPBoardSolutions.com) मॉडल में औसत प्रकीर्णन कोण का परिकलन, बहुप्रकीर्णन के आधार पर ही किया जा सकता है। दूसरी ओर रदरफोर्ड मॉडल में प्रकीर्णन एकल संघट्ट के कारण होता है; अतः बहुप्रकीर्णन की उपेक्षा की जा सकती है।

प्रश्न 12:
हाइड्रोजन परमाणु में इलेक्ट्रॉन एवं प्रोटॉन के मध्य गुरुत्वाकर्षण, कूलॉम-आकर्षण से लगभग 10-40 के गुणक से कम है। इस तथ्य को देखने का एक वैकल्पिक उपाय यह है कि यदि इलेक्ट्रॉन एवं प्रोटॉन गुरुत्वाकर्षण द्वारा सम्बद्ध हों तो किसी हाइड्रोजन परमाणु में प्रथम बोर कक्षा की त्रिज्या का अनुमान लगाइए। आप मनोरंजक उत्तर पाएँगे।
हल:
माना इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान me व प्रोटॉन का द्रव्यमान mp है।
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जहाँ rn, nवीं कक्षा की त्रिज्या है।
यह बल इलेक्ट्रॉन को आवश्यक अभिकेन्द्र बल देता है।
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प्रश्न 13:
जब कोई हाइड्रोजन परमाणु स्तर n से स्तर (n-1) पर व्युत्तेजित होता है तो उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति हेतु व्यंजक प्राप्त कीजिए।n के अधिक मान हेतु, दर्शाइए कि यह आवृत्ति, इलेक्ट्रॉन की कक्षा में परिक्रमण की क्लासिकी आवृत्ति के बराबर है।
हल:
n वें ऊर्जा स्तर में हाइड्रोजन परमाणु की ऊर्जा निम्नलिखित है
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अत: समीकरण (4) एवं (5) से स्पष्ट है कि के उच्च मानों हेतु 7वीं कक्षा में इलेक्ट्रॉन की क्लासिकी घूर्णन आवृत्ति, हाइड्रोजन परमाणु द्वारा n वें ऊर्जा स्तर से (n-1) वें ऊर्जा स्तर में जाने के दौरान उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति के बराबर होती है।

प्रश्न 14:
क्लासिकी रूप में किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर किसी भी कक्षा में हो सकता है। तब प्रारूपी परमाण्वीय साइज किससे निर्धारित होता है? परमाणु अपने प्रारूपी साइज की अपेक्षा दस हजार गुना बड़ा क्यों नहीं है? इस प्रश्न ने बोर को अपने प्रसिद्ध परमाणु मॉडल, (UPBoardSolutions.com) जो आपने पाठ्यपुस्तक में पढ़ा है, तक पहुँचने से पहले बहुत उलझन में डाला था। अपनी खोज से पूर्व उन्होंने क्या किया होगा, इसको अनुकरण करने के लिए हम मूल नियतांकों की प्रकृति के साथ निम्न गतिविधि करके देखें कि क्या हमें लम्बाई की विमा वाली कोई राशि प्राप्त होती है, जिसका साइज, लगभग परमाणु के ज्ञांत साइज (~10-10m) के बराबर है।।
(a) मूल नियतांकों e, me और c से लम्बाई की विमा वाली राशि की रचना कीजिए। उसका संख्यात्मक मान भी निर्धारित कीजिए।
(b) आप पाएँगे कि (a) में प्राप्त लम्बाई परमाण्वीय विमाओं के परिमाण की कोटि से काफी छोटी है। इसके अतिरिक्त इसमें सम्मिलित है। परन्तु परमाणुओं की ऊर्जा अधिकतर अनापेक्षिकीय क्षेत्र (non: relativistic domain) में है जहाँ c की कोई अपेक्षित भूमिका नहीं है। इसी तर्क ने बोर को c का परित्याग कर सही परमाण्वीय साइज को प्राप्त करने के लिए कुछ अन्य देखने के लिए प्रेरित किया। इस समय प्लांक नियतांक h का कहीं और पहले ही आविर्भाव हो चुका था। बोर की सूक्ष्मदृष्टि ने पहचाना कि h, me और e के (UPBoardSolutions.com) प्रयोग से ही सही परमाणु साइज प्राप्त होगा। अतः h, me और e से ही लम्बाई की विमा वाली किसी राशि की रचना कीजिए और पुष्टि कीजिए कि इसका संख्यात्मक मान वास्तव
में सही परिमाण की कोटि का है।
हल:
(a) दी गई राशियों के विमीय सूत्र निम्नलिखित हैं
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प्रश्न 15:
हाइड्रोजन परमाणु की प्रथम उत्तेजित अवस्था में इलेक्ट्रॉन की कुल ऊर्जा लगभग – 3.4eV है।
(a) इस अवस्था में इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा क्या है?
(b) इस अवस्था में इलेक्ट्रॉन की स्थितिज ऊर्जा क्या है?
(c) यदि स्थितिज ऊर्जा के शून्य स्तर के चयन में परिवर्तन कर दिया जाए तो ऊपर दिए गए उत्तरों में से कौन-सा उत्तर परिवर्तित होगा?
हल:
(a) माना प्रथम उत्तेजित अवस्था में कक्षा की त्रिज्या r है।
∵ इलेक्ट्रॉन को अभिकेन्द्र बल, स्थिर विद्युत बल से मिलता है; अतः
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(b) स्थितिज ऊर्जा U = – 2K
⇒ U = – 6.8 eV
(c) यदि स्थितिज ऊर्जा के शून्य को बदल दिया जाए तो इलेक्ट्रॉन की स्थितिज ऊर्जा तथा कुल ऊर्जा बदल जाएगी जबकि गतिज ऊर्जा अपरिवर्तित रहेगी।

प्रश्न 16:
यदि बोर का क्वांटमीकरण अभिगृहीत ( कोणीय संवेग [latex]\frac { nh }{ 2\pi }[/latex]) प्रकृति का मूल नियम है तो यह ग्रहीय गति की दशा में भी लागू होना चाहिए। तब हम सूर्य के चारों ओर ग्रहों की कक्षाओं के क्वांटमीकरण के विषय में कभी चर्चा क्यों नहीं करते?
हल:
माना हम बोर के क्वांटम सिद्धान्त को पृथ्वी की गति पर लागू करते हैं। इसके अनुसार
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∴ n का मान बहुत अधिक है; अत: इसका यह अर्थ हुआ कि ग्रहों की गति से सम्बद्ध कोणीय संवेग तथा ऊर्जा [latex]\frac { h }{ 2\pi }[/latex] की तुलना में (UPBoardSolutions.com) अत्यन्त बड़ी हैं। n के इतने उच्च मान के लिए, किसी ग्रह के बोर मॉडल के दो क्रमागत क्वांटमीकृत ऊर्जा स्तरों के बीच ग्रह के कोणीय संवेग तथा ऊर्जाओं के अन्तर किसी ऊर्जा स्तर में ग्रह के कोणीय संवेग तथा ऊर्जा की तुलना में नगण्य हैं, इसी कारण ग्रहों की गति में ऊर्जा स्तर क्वांटमीकृत होने के स्थान पर सतत प्रतीत होते हैं।

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प्रश्न 17:
प्रथम बोर-त्रिज्या और म्यूओनिक हाइड्रोजन परमाणु [अर्थात् कोई परमाणु जिसमें लगभग 207 me द्रव्यमान का ऋणावेशित म्यूऑन(μ) प्रोटॉन के चारों ओर घूमता है। की निम्नतम अवस्था ऊर्जा को प्राप्त करने का परिकलन कीजिए।
हल:
एक म्यूओनिक हाइड्रोजन परमाणु में प्रोटॉन रूपी नाभिक के चारों ओर एक म्यूऑन (आवेश = – 1.6 x 10-19C, द्रव्यमान mμ = 207me
वृत्तीय कक्षा में चक्कर लगाता है।
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1:
हाइड्रोजन परमाणु की भूतल (आद्य) अवस्था में ऊर्जा – 13.6 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट है। n = 3ऊर्जा स्तर में इसकी ऊर्जा होगी (2014)
(i) -1.51 eV
(ii) – 3.20 eV
(iii)- 0.51 eV
(iv) 40.80 eV
उत्तर:
(i) -1.51 eV

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प्रश्न 2:
एक हाइड्रोजन परमाणु को आयनित करने के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा है
या
हाइड्रोजन परमाणु की आयनन ऊर्जा है (2015, 18)
(i) 13.6 ey से अधिक
(ii) 13.6 eV
(iii) 10.2 eV
(iv) 3.4 eV
उत्तर:
(ii) 13.6 eV

प्रश्न 3:
किसी हाइड्रोजन परमाणु का इलेक्ट्रॉन उत्तेजित अवस्था, n = 5 में है। इससे उत्सर्जित होने वाले विकिरण में सम्भव आवृत्तियों की कुल संख्या होगी (2009)
(i) 4
(ii) 5
(iii) 10
(iv) 25
उत्तर:
(iii) 10

प्रश्न 4:
हाइड्रोजन परमाणु की द्वितीय कक्षा से एक इलेक्ट्रॉन को निकालने के लिए आवश्यक ऊर्जा होगी (हाइड्रोजन परमाणु का आयनीकरण विभव = 13.6V) (2009)
(i) 13.6 eV
(ii) 6.3 eV
(iii) 3.4 ev
(iv) 2.4 eV
उत्तर:
(iii) 3.4 ev

प्रश्न 5:
हाइड्रोजन परमाणु में इलेक्ट्रॉन की प्रथम कक्षा की त्रिज्या 0.53Å है। इसकी तीसरी कक्षा की त्रिज्या होगी (2012)
(i) 4.77 [latex]\mathring { A }[/latex]
(ii) 1.69 [latex]\mathring { A }[/latex]
(iii) 1.06 [latex]\mathring { A }[/latex]
(iv) 1.0 [latex]\mathring { A }[/latex]
उत्तर:
(i) 4.77 [latex]\mathring { A }[/latex]

प्रश्न 6:
हाइड्रोजन परमाणु के भूतलऊर्जा-स्तर में इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग है (2010, 17)
(i) h/π
(ii) h/ 2π
(iii) [latex]\frac { 2\pi }{ h }[/latex]
(iv) π/h
उत्तर:
(ii) h/ 2π

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प्रश्न 7:
हाइड्रोजन परमाणु में त्रिज्या की कक्षा में इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा है (2011)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms p7
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms p7a

प्रश्न 8:
चार ऊर्जा स्तरों के बीच संक्रमण से उत्सर्जित स्पेक्ट्रमी रेखाओं की संख्या होगी (2011)
(i) 10
(ii) 8
(iii) 6
(iv)3
उत्तर:
(iii) 6

प्रश्न 9:
हाइड्रोजन की लाइमन श्रेणी की प्रथम रेखा की तरंगदैर्घ्य है (2009)
(i) 912 [latex]\mathring { A }[/latex]
(ii) 1125 [latex]\mathring { A }[/latex]
(iii) 1215 [latex]\mathring { A }[/latex]
(iv) 1152 [latex]\mathring { A }[/latex]
उत्तर:
(iii) 1215 [latex]\mathring { A }[/latex]

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
परमाणु में इलेक्ट्रॉन की स्थायी कक्षा किसे कहते हैं तथा उसकी शर्त क्या होती है? (2012)
उत्तर:
कुछ निश्चित त्रिज्याओं की कक्षाएँ जिनमें घूमता इलेक्ट्रॉन ऊर्जा का उत्सर्जन नहीं करता है, स्थायी कक्षाएँ कहलाती हैं। इन कक्षाओं में घूमते इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग h/2π का पूर्ण गुणक होता है। अर्थात्
mνr= nh/2π (जहाँ, n = 1, 2, 3, …)

प्रश्न 2:
परमाणु में इलेक्ट्रॉन की स्थायी कक्षा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। (2015)
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन की स्थायी कक्षा वह होती है जिसमें घूमते हुए इलेक्ट्रॉन ऊर्जा उत्सर्जित नहीं करता। इन कक्षाओं में घूमते इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग, h/2π को पूर्ण गुणज होता है, जहाँ h प्लांक नियतांक है। इसे क्वाण्टम प्रतिबन्ध कहते हैं।

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प्रश्न 3:
किसी परमाणु के उत्तेजन विभव से क्या तात्पर्य है? (2013)
उत्तर:
वह न्यूनतम त्वरक विभव जो किसी इलेक्ट्रॉन को इतनी ऊर्जा प्रदान कर सके कि वह किसी परमाणु से टकराने पर उसे निम्नतम ऊर्जा-स्तर से ठीक आगे वाले ऊर्जा-स्तर में उत्तेजित कर सके, परमाणु का प्रथम उत्तेजन विभव कहलाता है।

प्रश्न 4:
आयनन ऊर्जा की परिभाषा दीजिए। हाइड्रोजन परमाणु के लिए इसका मान क्या है? (2016)
उत्तर:
यदि किसी परमाणु को निम्नतम अथवा मूल अवस्था में +13.6eV ऊर्जा बाहर से दी जाए तो परमाणु की कुल ऊर्जा = -13.6eV +13.6 eV = 0 हो जाएगी अर्थात् परमाणु आयनित अवस्था में पहुँच जाएगा। यह बाह्य ऊर्जा ही परमाणु की आयनन ऊर्जा कहलाती है। हाइड्रोजन परमाणु के लिए इसका मान 13.6 eV होगा।

प्रश्न 5:
हाइड्रोजन परमाणु की आयनन ऊर्जा ज्ञात कीजिए। (2015)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms a5
अतः आयनित अवस्था (n = ∞] में ऊर्जा E= 0
परमाणु की निम्नतम अवस्था (n= 1) में ऊर्जा E1 = – 13.6 eV
अत: यदि परमाणु को निम्नतम अथवा मूल अवस्था में 13.6 eV ऊर्जा बाहर से दी जाये, तो परमाणु की कुल ऊर्जा =- 13.6 eV+ 13.6 eV = 0 हो जायेगी अर्थात् परमाणु आयनित अवस्था में पहुँच जायेगा।।

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प्रश्न 6:
रिडबर्ग नियतांक का मान लिखिए। (2011)
उत्तर:
1.097 x 107 मीटर-1

प्रश्न 7:
हाइड्रोजन परमाणु की आयनन ऊर्जा 13.6 eV है। हीलियम परमाणु की आयनन ऊर्जा कितनी होगी? (2013)
हल:
Z परमाणु क्रमांक वाले हाइड्रोजन सदृश परमाणु की n वीं बोहर कक्षा की आयनन ऊर्जा
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प्रश्न 8:
किसी उत्तेजित हाइड्रोजन परमाणु के इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा-3.4eV है। इस इलेक्ट्रॉन का कोणीय संवेग ज्ञात कीजिए। (2012)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms a8
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प्रश्न 9:
हाइड्रोजन के प्रथम बोर कक्षा की त्रिज्या 0.5[latex]\mathring { A }[/latex] है। तृतीय बोर कक्षा की त्रिज्या ज्ञात कीजिए। (2017)
हल:
दिया है, n1= 1, n3 = 3, r1 = 0.5 [latex]\mathring { A }[/latex], r3 = ?
बोर के nवीं कक्षा की त्रिज्या rn α n2 से
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms a9

प्रश्न 10:
हाइड्रोजन परमाणु के वर्णक्रम में बॉमर श्रेणी की प्रथम रेखा की तरंगदैर्घ्य की गणना कीजिए। (2017)
उत्तर:
6563 [latex]\mathring { A }[/latex]

प्रश्न 11:
हाइड्रोजन पर है बॉमर श्रेणी की प्रथम रेखा की तरंगदैर्ध्य रिडबर्ग नियतांक के पदों में बताइए। (2010)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

प्रश्न 12:
हाइड्रोजन के स्पेक्ट्रम में प्राप्त होने वाली कुछ स्पेक्ट्रमी रेखाओं की तरंगदैर्घ्य नीचे दी गई हैं। निम्न में से लाइमन श्रेणी की तरंगदैर्घ्य चुनिए
6560 [latex]\mathring { A }[/latex], 1216 [latex]\mathring { A }[/latex], 9546 [latex]\mathring { A }[/latex], 4860 [latex]\mathring { A }[/latex], 1026 [latex]\mathring { A }[/latex]: (2012)
हल:
1216 [latex]\mathring { A }[/latex], 1026 [latex]\mathring { A }[/latex].

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प्रश्न 13:
हाइड्रोजन परमाणु की बॉमर श्रेणी की रेखाओं की आवृत्ति के लिए सूत्र लिखिए। (2014)
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms a13

प्रश्न 14:
हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम में बॉमर श्रेणी की द्वितीय रेखा की तरंगदैर्घ्य रिडबर्ग नियतांक R के पदों में लिखिए। (2015)
हल:
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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
हाइड्रोजन परमाणु के लिए बोर की परिकल्पनाएँ लिखिए। (2014, 16, 17)
या
हाइड्रोजन परमाणु के लिए बोर की अभिधारणाएँ लिखिए। हाइड्रोजन परमाणु की प्रथम कक्षा की त्रिज्या के लिए व्यंजक निगमित कीजिए। (2015)
या
बोर के परमाणविक मॉडल के अभिगृहीतों का उल्लेख कीजिए। इसके आधार पर इलेक्ट्रॉन की nवीं कक्षा की त्रिज्या के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए। (2017)
उत्तर:
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की कमियों को नील बोर ने प्लांक के क्वाण्टम सिद्धान्त के आधार पर सन् 1913 में दूर किया। इसके लिए उन्होंने निम्नलिखित तीन नये अभिगृहीत (postulate) प्रस्तुत किये
बोर की परिकल्पनाएँ।
(i) इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर केवल उन्हीं कक्षाओं में घूम सकते हैं जिनके लिए उनका कोणीय संवेग h/2π का पूर्ण गुणज हो,
अर्थात् Iω = mrnνn) = nh/2π
जहाँ I इलेक्ट्रॉन की nवीं कक्षा में जड़त्व-आघूर्ण तथा ω कोणीय वेग है। पूर्णांक n = 1, 2, 3, … तथा h प्लांक नियतांक है। इस प्रकार बोर ने माना कि इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर कुछ निश्चित त्रिज्या की कक्षाओं में ही घूम सकते हैं। इन कक्षाओं को स्थायी कक्षाएँ (stationary orbits) कहते हैं।
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(ii) स्थायी कक्षाओं में घूमते समय इलेक्ट्रॉन ऊर्जा का उत्सर्जन नहीं  करते। अतः परमाणु का स्थायित्व बना रहता है।।
(iii) जब परमाणु को बाहर से ऊर्जा मिलती है तो उसका कोई इलेक्ट्रॉन उसे ग्रहण कर ऊँची कक्षा में चला जाता है। यह परमाणु की उत्तेजित अवस्था कहलाती है। इलेक्ट्रॉन ऊँची कक्षा में केवल 10-8 सेकण्ड तक ठहर कर तुरन्त वापस किसी भी नीची कक्षा में लौट आता है और लौटते समय दोनों कक्षाओं की ऊर्जा के अन्तर के बराबर ऊर्जा वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों के रूप में उत्सर्जित करता है। यदि उत्सर्जित तरंगों की आवृत्ति ν हो तथा इलेक्ट्रॉन की उच्च कक्षा में ऊर्जा E2 तथा नीची कक्षा में ऊर्जा E1 हों, तो ,
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

अत: ऊर्जा का उत्सर्जन केवल तभी तक होता है जब तक कि कोई इलेक्ट्रॉन किसी निश्चित ऊँची कक्षा से नीची कक्षा में लौटता है। इस प्रकार परमाणु से केवल कुछ निश्चित आवृत्तियों (तरंगदैर्घ्य) की तरंगें उत्सर्जित होती हैं जो रेखीय स्पेक्ट्रम देती हैं।
इस प्रकार परमाणु के बोर मॉडल के आधार पर हाइड्रोजन के स्पेक्ट्रम की व्याख्या की गई।

हाइड्रोजन परमाणु की प्रथम कक्षा की त्रिज्या के लिए व्यंजक:
हाइड्रोजन-सदृश परमाणु में एकल इलेक्ट्रॉन परमाणु के इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर एक स्थायी कक्षा में घूमता है। माना कि e, m वे ν इलेक्ट्रॉन के क्रमश: आवेश, द्रव्यमान (UPBoardSolutions.com) व वेग हैं तथा कक्षा की त्रिज्या है। (हाइड्रोजन नाभिक पर धनावेश Ze है, जहाँ,Z परमाणु-क्रमांक है (हाइड्रोजन परमाणु के लिए Z = 1)। इलेक्ट्रॉन को अपनी कक्षा में घूमने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्र बल, नाभिक व इलेक्ट्रॉन के बीच स्थिर वैद्युत
आकर्षण-बल से प्राप्त होता है। अतः
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms 11b
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

प्रश्न 2:
हाइड्रोजन परमाणु की मूल अवस्था में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा- 13.6 eV है। इसे 13.6 eV ऊर्जा दी जाती है। यह किस ऊर्जा स्तर में पहुँचेगा? इस प्रक्रिया में अवशोषित फोटॉन की | तरंगदैर्घ्य कितनी होगी ? (2010)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

प्रश्न 3:
सोडियम परमाणु का प्रथम उत्तेजन विभव 2.1 वोल्ट है। इस परमाणु द्वारा उत्सर्जित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए। (2012)
हल:
परमाणु का प्रथम उत्तेजन-विभव 2.1 वोल्ट है। इसका अर्थ यह है कि परमाणु निम्नतम ऊर्जा-स्तर, से अगले ऊर्जा-स्तर में जाने के लिए 2.1 इलेक्ट्रॉन वोल्ट (eV) ऊर्जा लेता है। यदि इस ऊर्जा-स्तर से वापस निम्नतम ऊर्जा-स्तर में लौटते समय परमाणु द्वारा उत्सर्जित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य λ( आवृत्ति ν ) हो, तो :
क्वाण्टम के सिद्धान्त के अनुसार,
∆E = hν = hc/λ
जहाँ, ∆E इन दो ऊर्जा-स्तरों को अन्तर है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms p13

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प्रश्न 4:
संतत (अविरत) स्पेक्ट्रम व रेखीय स्पेक्ट्रम में अन्तर बताइए। (2013)
उत्तर:
रेखीय स्पेक्ट्रम:
इस प्रकार के स्पेक्ट्रम में काली पृष्ठभूमि पर केवल कुछ चमकीली रंगीन रेखाएँ प्राप्त होती हैं। इन्हें स्पेक्ट्रमी रेखाएँ (spectrum lines) कहते हैं, जिनकी संख्या तथा तरंगदैर्घ्य केवल लिये गए तत्त्व (element) पर निर्भर करती है, किसी अन्य राशि पर नहीं।

अविरत या संतत स्पेक्ट्रम:
इस स्पेक्ट्रम में लाल रंग से लेकर बैंगनी तक सभी रंगों की सभी तरंगदैर्ध्य विद्यमान रहती हैं। इसमें सभी रंग एक सिरे से दूसरे सिरे तक एक बिना टूटी हुई पट्टी के रूप में (UPBoardSolutions.com) उपस्थित रहते हैं, अर्थात् इन स्पेक्ट्रमों में यह बताना कठिन है कि एक रंग कहाँ समाप्त हो रहा है। और दूसरा रंग कहाँ से आरम्भ हो रहा है। पास-पास के रंग एक-दूसरे में इस प्रकार विलीन रहते हैं कि दो रंगों के बीच कोई निश्चित पृथक्कारी रेखा (line of separation) नहीं होती।

प्रश्न 5:
बॉमर श्रेणी की द्वितीय रेखा की तरंगदैर्घ्य 4860Å है। ज्ञात कीजिए
(i) रिडबर्ग नियतांक
(ii) बॉमर श्रेणी की प्रथम रेखा की तरंगदैर्घ्य (2017)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

प्रश्न 6:
बॉमर श्रेणी की प्रथम रेखा की तरंगदैर्ध्य 6563Å है। इस श्रेणी की दूसरी रेखा की तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए। (2013)
हल:
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms 16a

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की व्याख्या कीजिए तथा इसकी कमियों का उल्लेख कीजिए। (2015)
उत्तर:
परमाणु की सही संरचना जानने के लिये रदरफोर्ड ने सन् स्वर्ण-पत्र 1911 में एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग किया जिसे चित्र 12.4 में दिखाया प्रस्फुर गया है। इसमें रेडियोऐक्टिव तत्त्व पोलोनियम (polonium) से गणित्र उच्च गतिज ऊर्जा से निकलने वाली α-कणों के एक बारीक किरण-पुंज को एक बहुत पतले स्वर्ण-पत्र पर गिराया गया। पूरे प्रबन्ध को निर्वात् में रखा गया जिससे α -कणों की वायु के कणों से कोई टक्कर न हो। रदरफोर्ड ने यह देखा कि स्वर्ण-पत्र में से गुजरते हुए ये कण विभिन्न दिशाओं में विक्षेपित हो जाते हैं।
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ऐल्फा α-कणों के अपने मार्ग से विक्षेपित होने की इस घटना को , ‘प्रकीर्णन’ कहते हैं। स्वर्ण-पत्र से विभिन्न दिशाओं में निकलने वाले कणों को एक प्रस्फुर गणित्र (scintillation counter) द्वारा गिन सकते हैं। रदरफोर्ड ने इस प्रयोग से निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण तथ्य प्राप्त किये

1. अधिकांश α-कण स्वर्ण-फ्त्र के आर-पार बिना प्रभावित हुए सीधे ही निकल जाते हैं। इससे रदरफोर्ड ने यह निष्कर्ष निकाला कि परमाणु का अधिकांश भाग (UPBoardSolutions.com) भीतर से खोखला होता है।
(यह किसी भी दशा में ठोस नहीं हो सकता जैसा कि टॉमसन ने माना था)।

2. कुछ α-कण छोटे-छोटे कोण बनाते हुए विक्षेपित हो जाते हैं, तथा इनका कोणीय वितरण
सुनिश्चित होता है। अब, , चूँकि α-कण धनावेशित हैं, अतः इन्हें विक्षेपित करने वाला परमाणु भी धनावेशित होना चाहिए। इस आधार पर रदरफोर्ड ने यह माना कि (UPBoardSolutions.com) परमाणु का सम्पूर्ण धन-आवेश एक सूक्ष्म स्थान में केन्द्रित रहता है (यह परमाणु में समान रूप से वितरित नहीं हो सकता जैसा कि टॉमसन ने माना था)।
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3. कुछ α-कण ऐसे भी हैं जो अपने प्रारम्भिक मार्ग से 90° से भी अधिक कोण पर प्रकीर्णित होकर वापस लौट आते हैं (चित्र 12.5)। इससे यह पता चलता है कि जब धनावेशित α-कण स्वर्ण-पत्र के परमाणुओं में से गुजरते हैं, तो किसी-किसी कण पर इतना अधिक प्रतिकर्षण-बल लगता है। कि वह तीव्रगामी α-कण को वापस लौटा देता है। इस आधार पर रदरफोर्ड ने यह माना कि धन-ऑवेश परमाणु के भीतर एक अत्यन्त सूक्ष्म स्थान में संकेन्द्रित रहता है। इस स्थान को ‘नाभिक’ (nucleus) कहते हैं। गणना करने पर नाभिक की त्रिज्या 10-15 मीटर की कोटि की पायी जाती है, जबकि परमाणु की त्रिज्या 10-10 मीटर की कोटि की है। अत: (UPBoardSolutions.com) नाभिक की त्रिज्या परमाणु की त्रिज्या के दस हजारवें भाग के बराबर होती है। परमाणु के शेष खाली भाग में केवल इलेक्ट्रॉन होते हैं। α-कण नाभिक के जितना पास आयेगा, उस पर उतना ही अधिक प्रतिकर्षण-बल लगेगा और वह उतना ही अधिक विक्षेपित होगी। यदि परमाणु के आकार की तुलना में नाभिक अत्यन्त छोटा है, तो किसी ४-कण की नाभिक के समीप पहुँचने की सम्भावना भी बहुत कम होगी। अतः अधिक कोणों पर प्रकीर्णित होने वाले α-कणों की संख्या कम होगी। प्रयोग से इस तथ्य की पुष्टि होती है। गणना द्वारा देखा गया है कि लगभग 20,000 में से केवल 1 ही α-कण ऐसा है जो कि 90° से अधिक कोण पर प्रकीर्णित होता है। इस प्रकार, इस प्रयोग द्वारा परमाणु के धन-आवेश के विस्तार के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई।

4. α-कणों के प्रकीर्णन के प्रयोग द्वारा कूलॉम नियमे की सत्यता के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त हुई। रदरफोर्ड ने यह माना था कि जब कोई α-कण स्वर्ण-पत्र के परमाणुओं में से गुजरता है, तो उस पर नाभिक द्वारा लगाया गया प्रतिकर्षण-बल कूलॉम के नियमानुसार (कण की नाभिक से दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती) होता है। जो कण परमाणु से गुजरते समय नाभिक से दूर रहता है। उस पर लगने वाला प्रतिकर्षण-बल इतना कम होता है कि वह बिना किसी विशेष विक्षेप के अपने मार्ग पर चला जाता है। परन्तु जो कण नाभिक के (UPBoardSolutions.com) जितना समीप से गुजरता है उस पर उतना ही अधिक प्रतिकर्षण-बल लगता है तथा वह उतने ही बड़े कोण से प्रकीर्णित होता है। रदरफोर्ड ने, कूलॉम के नियम के आधार पर विभिन्न कोण पर प्रकीर्णित होने वाले कणों का परिकलन किया। और यह पाया कि नाभिकं द्वारा α-कणों का प्रकीर्णन कूलॉम नियम के अनुसार होता है। दूसरे शब्दों में, कूलॉम का नियम परमाणवीय दूरियों के लिये भी लागू रहता है।

5. रदरफोर्ड ने अपने प्रयोग द्वारा विभिन्न धातुओं के नाभिकों के धन-आवेशों के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त की। उसने -कणों को विभिन्न धातुओं (जैसे–सोना, चाँदी, प्लैटिनम इत्यादि) के पतले पत्रों पर गिराकर एक निश्चित दिशा में प्रकीर्णित होने वाले कणों को गिना और देखा कि यह संख्या विभिन्न धातुओं के पत्रों के लिए भिन्न-भिन्न आती है। इससे यह पता चला कि विभिन्न धातुओं के नाभिकों में धन-आवेश का परिमाण भिन्न-भिन्न होता है। नाभिक में धन-आवेश जितना अधिक होगा, वह α-कण को उतने ही अधिक बल से प्रतिकर्षित करेगा तथा α-कण अपने मार्ग से उतना ही अधिक प्रकीणित होगा।

रदरफोर्ड ने गणना द्वारा यह दिखाया कि एक दिये हुए धातु-पत्र द्वारा एक निश्चित कोण-परिसर (range of angles) के भीतर प्रकीर्णित होने वाले -कणों की संख्या उस धातु के (UPBoardSolutions.com) नाभिक के धन-आवेश की मात्रा के अनुक्रमानुपाती है। इस आधार पर सन् 1920 में चैडविक ने अनेक धातुओं के नाभिकों के धन-आवेशों को ज्ञात किया तथा यह पाया कि किसी धातु के नाभिक के धन-आवेश का परिमाण Ze होता है, जहाँ है इलेक्ट्रॉन के (ऋण) आवेश का मान है तथा Z उस धातु के लिये नियतांक है। Z को ‘परमाणु-क्रमांक’ (atomic number) कहते हैं।

रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल में कमियाँ: रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल में निम्न दो कमियाँ पायी गयीं

(i) परमाणु के स्थायित्व के सम्बन्ध में:
नाभिक के चारों ओर घूमते इलेक्ट्रॉन में अभिकेन्द्र त्वरण होता है। विद्युत गतिविज्ञान (electrodynamics) के अनुसार, त्वरित आवेशित कण ऊर्जा (विद्युत-चुम्बकीय तरंगें) उत्सर्जित करता है। अतः नाभिक के चारों ओर विभिन्न कक्षाओं में घूमते इलेक्ट्रॉनों से विद्युतचुम्बकीय तरंगें लगातार उत्सर्जित होनी चाहिए। इस प्रकार, इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा का ह्रास होने के कारण उनके वृत्तीय पथ की त्रिज्या लगातार कम होती जानी चाहिए और अन्त में वे नाभिक में गिर जाने चाहिए। इस प्रकार परमाणु स्थायी ही नहीं रह सकता।

(ii) रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या के सम्बन्ध में:
मॉडल में इलेक्ट्रॉनों के वृत्तीय पथ की त्रिज्या के लगातार बदलते रहने से उनके घूमने की आवृत्ति भी बदलती रहेगी। इसके फलस्वरूप इलेक्ट्रॉन सभी आवृत्तियों की विद्युत-चुम्बकीय तरंगें उत्सर्जित करेंगे, अर्थात् इन तरंगों का स्पेक्ट्रम संतत (continuous) होगा। परन्तु वास्तव में (UPBoardSolutions.com) परमाणुओं के स्पेक्ट्रम संतत न होकर, रेखीय होते हैं अर्थात् उनमें बहुत-सी बारीक रेखाएँ होती हैं तथा प्रत्येक स्पेक्ट्रमी रेखा की एक निश्चित आवृत्ति होती है। अत: परमाणु से केवल कुछ निश्चित आवृत्ति की ही तरंगें उत्सर्जित होनी चाहिए, सभी आवृत्तियों की नहीं। इस प्रकार, रदरफोर्ड मॉडल रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या करने में असक्षम रहा। इन कमियों को नील बोर ने क्वाण्टम सिद्धान्त के आधार पर दूर किया।

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प्रश्न 2:
हाइड्रोजन परमाणु के लिए एक ऊर्जा-स्तर आरेख बनाइए तथा (i) लाइमन श्रेणी एवं (ii) बॉमर श्रेणी के संगत संक्रमण दिखाइए। ये श्रेणियाँ स्पेक्ट्रम के किस क्षेत्र में आती हैं? (2011)
या
हाइड्रोजन परमाणु के लिए ऊर्जा-स्तर आरेख खींचिए तथा स्पेक्ट्रमी रेखाओं की लाइमन, बॉमर तथा पाश्चन श्रेणियों की उत्पत्ति समझाइए। इन श्रेणियों में से कौन-सी स्पेक्ट्रम के दंश्य भाग में मिलती है? (2015, 17)
या
ऊर्जा स्तर की सहायता से हाइड्रोजन परमाणु में बॉमर श्रेणी का बनना समझाइए। इस श्रेणी की रेखाएँ विद्युत-चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के किस भाग में पड़ती हैं? (2014)
या
हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की विभिन्न श्रेणियों के लिए तरंगदैर्घ्य का सूत्र लिखिए। हाइड्रोजन – परमाणु की लाइमन श्रेणी की प्रथम रेखा की तरंगदै ज्ञात कीजिए। इस श्रेणी की सीमा
तरंगदैर्घ्य भी ज्ञात कीजिए। [R= 1.097 x 107 मी-1 ] (2012)
या
एक ऊर्जा स्तर आरेख खींचकर परमाणु के उत्सर्जन स्पेक्ट्रम की लाइमन तथा बॉमर श्रेणियाँ प्रदर्शित कीजिए। (2013)
या
एक स्पष्ट ऊर्जा-स्तर आरेख खींचकर हाइड्रोजन परमाणु की लाइमन तथा बॉमर स्पेक्ट्रम श्रेणियाँ प्रदर्शित कीजिए। ये श्रेणियाँ किस क्षेत्र में आती हैं? (2013)
या
बॉमर श्रेणी के स्पेक्ट्रमी रेखाओं की उत्पत्ति ऊर्जा-स्तर आरेख की सहायता से समझाइए। (2014)
या
हाइड्रोजन परमाणु की n वीं कक्षा में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा En = [latex ]\frac { -13.6 }{ { n }^{ 2 } }[/latex] इलेक्ट्रॉन वोल्ट (eV) सूत्र से दी जाती है। इसके आधार पर
(i) n = 1, 2, 3, 4, 5, 6 तथा ∞ के लिए विभिन्न ऊर्जा स्तरों की खींचिए।
(ii) विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक संक्रमणों द्वारा हाइड्रोजन परमाणु के उत्सर्जन स्पेक्ट्रम की लाइमन तथा बॉमर श्रेणियों को प्रदर्शित कीजिए। (2015, 17)
या
हाइड्रोजन उत्सर्जन स्पेक्ट्रम में लाइमन श्रेणी का बनना, ऊर्जा स्तर आरेख के आधार पर समझाइए। लाइमन श्रेणी की प्रथम रेखा की तरंगदैर्घ्य की गणना कीजिए। (2015)
या
हाइड्रोजन परमाणु में ऊर्जा स्तरों की En = [latex ]\frac { -13.6 }{ { n }^{ 2 } }[/latex] eV से व्यक्त किया जाता है। ऊर्जा-स्तर आरेख खींचकर Hα तथा Gγ संक्रमणों को दर्शाइए तथा उनकी तरंगदैर्घ्य भी ज्ञात कीजिए। (2018)
उत्तर:
बोर ने अपने परमाणु मॉडल द्वारा हाइड्रोजन के विभिन्न ऊर्जा-स्तरों की ऊर्जाओं के लिए निम्नलिखित सूत्र प्राप्त किया
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms d2
इसमें पूर्णांक n क्वाण्टम संख्या है, R रिडबर्ग नियतांक, h प्लांक नियतांक तथा c प्रकाश की चाल है।
माना हाइड्रोजंग परमाणु के दो ऊर्जा-स्तर n1 व n2 हैं जिनकी संगत ऊर्जाएँ क्रमशः E1 व E2 हैं। यदि ऊर्जा-स्तर E2 से E1 पर संक्रमण द्वारा उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति ν हो, तो
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter
उपर्युक्त समीकरण द्वारा हाइड्रोजन के स्पेक्ट्रम में प्राप्त होने वाली सभी श्रेणियों की व्याख्या की जा सकती

1. लाइमन श्रेणी (Lyman Series):
इन रेखाओं को सबसे पहले लाइमन ने सन् 1916 में प्राप्त किया। जब किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन किसी ऊर्जा-स्तर से प्रथम (निम्नतम) ऊर्जा-स्तर में संक्रमण करता है (अर्थात् n1 = 1 तथा n2 = 2, 3, 4,…,∞) तब उत्सर्जित स्पेक्ट्रम की रेखाएँ पराबैंगनी भाग (ultraviolet part) में प्राप्त होती हैं। इनकी तरंगदैर्घ्य निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त की जा सकती है
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms d2bइसकी सबसे बड़ी तरंगदैर्ध्य अथवा प्रथम रेखा की तरंगदैर्ध्य n = 2 के लिए प्राप्त होती है जिसका मान 1216Å तथा सबसे छोटी, तरंगदैर्घ्य n = 2 के लिए 912Å (श्रेणी-सीमा) प्राप्त होती है।
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2. बॉमर श्रेणी (Balmer Series):
इन रेखाओं को सबसे पहले बॉमर ने सन् 1885 में प्राप्त किया। जब परमाणु किसी ऊँचे ऊर्जा-स्तर से दूसरे ऊर्जा-स्तर में संक्रमण करता है (अर्थात् n1 = 2 तथा n2 = 3, 4, 5, …) तो उत्सर्जित स्पेक्ट्रम की रेखाएँ दृश्य भाग (visible part) में मिलती हैं। इनकी तरंगदैर्ध्य को निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त किया जा सकता है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms 15
n = 3 के लिए सबसे बड़ी तरंगदैर्घ्य 6563Å तथा n = ० के लिए इस श्रेणी की सबसे छोटी तरंगदैर्घ्य 3646 Å प्राप्त होती है। n = 3, 4, 5, 6, … के संगत प्राप्त रेखाओं को क्रमशः Hα, Hβ, Hγ, Hδ,…. रेखाएँ भी कहते हैं। बॉमर श्रेणी की प्रथम रेखा के लिए n = 3; अतः उपर्युक्त सूत्र में R = 1.097 x 107 मी-1 रखकर सरल करने पर
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3. पाश्चन श्रेणी (Paschen Series):
जब किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन किसी उच्च ऊर्जा-स्तर से तीसरे ऊर्जा-स्तर में संक्रमण करता है, अर्थात् (n1 = 3 तथा n2 = 4, 5, 6,…) तो उत्सर्जित रेखाएँ स्पेक्ट्रम के अवरक्त (infrared) भाग में प्राप्त होती हैं। इनकी तरंगदै निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त की जाती है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms d2f
4. ब्रैकेट श्रेणी (Bracket Series):
जब किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन किसी ऊँचे ऊर्जा-स्तर से चौथे ऊर्जा-स्तर में आता है (n1 = 4 तथा n2 = 5, 6, 7, …..) तो ये रेखाएँ भी स्पेक्ट्रम के अवरक्त भाग में प्राप्त होती हैं। इसकी तरंगदैर्घ्य निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त की जाती है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

5. फुण्ड श्रेणी (Pfund Series):
जब किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन किसी ऊँचे ऊर्जा-स्तर से पाँचवें ऊर्जा-स्तर में आता है (n1 = 5 तथा n2 = 6, 7, 8, …..) तो ये रेखाएँ भी स्पेक्ट्रम के अवरक्त भाग में प्राप्त होती हैं। इसकी तरंगदैर्घ्य निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त की जाती है।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms d2h

प्रश्न 3:
हाइड्रोजन परमाणु का आयनन विभव 13.6 वोल्ट है। ज्ञात कीजिए
(i) रिडबर्ग नियतांक,
(ii) बॉमर श्रेणी की H लाइन की तरंगदैर्घ्य तथा (2012)
(iii) लाइमन श्रेणी की सबसे छोटी तरंगदैर्घ्य। (2011)
हल:
(i) ∵ हाइड्रोजन परमाणु का आयनन विभव = 13.6 वोल्ट; अतः आयनन ऊर्जा = 13.6 eV
∴ nवें ऊर्जा-स्तर की ऊर्जा En= – (13.6/n) eV
सूत्र En = – Rhc/n2 से,
E1 = – Rhc/12 = – Rhc तथा E = 0
∴ आयनन ऊर्जा = E∞ – E1 = 0- (- Rhc) = Rhc
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प्रश्न 4:
एक हाइड्रोजन परमाणु दो लगातार संक्रमणों के द्वारा ऊर्जा अवस्थाn = 6 से निम्नतम ऊर्जा अवस्था में आता है। प्रथम संक्रमण में उत्सर्जित फोटॉन की ऊर्जा 1.13 eV है। ज्ञात कीजिए
(i) प्रथम संक्रमण के पश्चात् परमाणु जिस ऊर्जा अवस्था में आता है, उसके लिए nका मान।
(ii) द्वितीय संक्रमण में उत्सर्जित फोटॉन की ऊर्जा। हाइड्रोजन परमाणु की आयनन ऊर्जा = 13.6 eV है। (2012)
हल:
(i) हाइड्रोजन परमाणु की n वीं ऊर्जा-अवस्था में ऊर्जा
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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 Atoms d4a

प्रश्न 5:
हाइड्रोजन परमाणु की निम्नतम स्तर की ऊर्जा -13.6eV है।
(i) द्वितीय उत्तेजित अवस्था में किसी इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा क्या है?
(ii) यदि इलेक्ट्रॉन द्वितीय उत्तेजित अवस्था से प्रथम उत्तेजित अवस्था में कूदता है तो स्पेक्ट्रमी रेखा की तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए।
(iii) परमाणु को आयनित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा की गणना कीजिए। (2017)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter
(iii) यदि आयनन ऊर्जा ∆E है तो आयनन के बाद परमाणु की ऊर्जा
= आयनन ऊर्जा + आयनन से पूर्व ऊर्जा
अथवा 0 = ∆E – 13.6eV (∵ आयनेने के बाद ऊर्जा E = 0)
अतः आयनन ऊर्जा ∆E = 13.6 eV

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UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry

UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry (पृष्ठ रसायन) are part of UP Board Solutions for Class 12 Chemistry. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry (पृष्ठ रसायन).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Chemistry
Chapter Chapter 5
Chapter Name Surface Chemistry
Number of Questions Solved 120
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry (पृष्ठ रसायन)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रसोवशोषण के दो अभिलक्षण दीजिए।
उत्तर

  1. रसोवशोषण अतिविशिष्ट होता है।
  2. रसोवशोषण में यौगिक बनने के कारण इसकी प्रकृति अनुत्क्रमणीय होती है।

प्रश्न 2.
ताप बढ़ने पर भौतिक अधिशोषण क्यों घटता है ?
उत्तर
भौतिक अधिशोषण ऊष्माक्षेपी (exothermic) होता है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry image 1
जब ताप बढ़ाया जाता है तब साम्य पश्च दिशा में विस्थापित हो जाता है जिससे कि बढ़े हुए ताप को उदासीन किया जा सके। अतः अधिशोषक से गैस बाहर निकल जाती है।

प्रश्न 3.
अपने क्रिस्टलीय रूपों की तुलना में चूर्णित पदार्थ अधिक प्रभावी अधिशोषक क्यों होते हैं?
उत्तर
क्रिस्टलीय रूपों की तुलना में चूर्णित पदार्थ का पृष्ठ क्षेत्रफल अधिक होता है। पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक होने पर अधिशोषण अधिक होता है।

प्रश्न 4.
हैबर प्रक्रम में हाइड्रोजन को NiO उत्प्रेरक की उपस्थिति में मेथेन के साथ भाप की अभिक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है। प्रक्रम को भाप पुनः संभावन कहते हैं। अमोनिया प्राप्त करने के हैबर प्रक्रम में CO को हटाना क्यों आवश्यक है?
उत्तर
CO इस प्रक्रम में उत्प्रेरक विष का कार्य करती है, अत: इसे हटाना अनिवार्य होता है।

प्रश्न 5.
एस्टर का जल-अपघटन प्रारम्भ में धीमा एवं कुछ समय पश्चात् तीव्र क्यों हो जाता है?
उत्तर
एस्टर का जल-अपघटन निम्न समीकरण के अनुसार होता है –
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry image 2
अभिक्रिया में निर्मित अम्ल स्वउत्प्रेरक (autocatalyst) का कार्य करता है। अत: कुछ समय पश्चात् अभिक्रिया तीव्र हो जाती है।

प्रश्न 6.
उत्प्रेरण के प्रक्रम में विशोषण की क्या भूमिका है ?
उत्तर
विशोषण ठोस उत्प्रेरक की सतह को उस पर अभिकारकों के पुन: अधिशोषण के लिए मुक्त रखता है।

प्रश्न 7.
आप हार्डीशुल्जे नियम में संशोधन के लिए क्या सुझाव दे सकते हैं?
उत्तर
हार्डी- शुल्जे नियम के अनुसार, आयन जिन पर कोलॉइडी कणों के विपरीत आवेश होता है । कोलॉइडी कणों को उदासीन करके उनका स्कन्दन करते हैं लेकिन वास्तव में इन आयनों युक्त सॉल को भी स्कन्दन होता है। चूंकि कण इनके आवेश को उदासीन कर देते हैं। इन परिस्थितियों में हार्डी-शुल्जे नियम को निम्नवत् रूपान्तरित किया जा सकता है –
जब दो विपरीत आवेशित सॉल की उपयुक्त मात्राओं को मिश्रित किया जाता है तब वे आवेशों को उदासीन करके अवक्षेपित हो जाते हैं।

प्रश्न 8.
अवक्षेप का मात्रात्मक आकलन करने से पूर्व उसे जल से धोना आवश्यक क्यों है?
उत्तर
अवक्षेप बनाने के लिए मिश्रित विद्युत-अपघट्यों की कुछ मात्रा अवक्षेप के कणों की सतह पर अधिशोषित बनी रहती है, अतः अवक्षेप का मात्रात्मक आकलन करने से पूर्व उसे जल से धोना आवश्यक होता है।

अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 1.
अधिशोषण एवं अवशोषण शब्दों (पदों) के तात्पर्य में विभेद कीजिए। प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर
अधिशोषण तथा अवशोषण में अन्तर
(Difference between Adsorption and Absorption)
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry image 3

प्रश्न 2.
भौतिक अधिशोषण एवं रासायनिक अधिशोषण में क्या अन्तर है?
उत्तर
भौतिक अधिशोषण एवं रासायनिक अधिशोषण में अन्तर
(Difference between Physisorption and Chemisorption)
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry image 4

प्रश्न 3.
कारण बताइए कि सूक्ष्म-विभाजित पदार्थ अधिक प्रभावी अधिशोषक क्यों होता है?
उत्तर
सूक्ष्म विभाजित पदार्थ में सतही क्षेत्रफल (surface area) अधिक होने के कारण अधिशोषण के लिए अधिक सक्रिय केन्द्र उपस्थित होते हैं, इसलिए सूक्ष्म विभाजित पदार्थ अधिक प्रभावी अधिशोषक होते है।

प्रश्न 4.
किसी ठोस पर गैस के अधिशोषण को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?
उत्तर

  1. अधिशोष्य तथा अधिशोषक की प्रकृति
  2. अधिशोषक का विशिष्ट सतही क्षेत्रफल तथा इसका सक्रियण
  3. गैस का दाब
  4. तापमान।

प्रश्न 5.
अधिशोषण समतापी वक्र क्या है? फ्रॉयडलिक अधिशोषण समतापी वक्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर
अधिशोषण समतापी वक्र (Adsorption isotherm) – अधिशोषक के प्रति ग्राम में अधिशोषित गैस की मात्रा तथा स्थिर ताप पर अधिशोष्य (गैस) के दाब के बीच खींचा गया वक्र अधिशोषण समतापी वक्र कहलाता है।
फ्रॉयन्डलिक अधिशोषण समतापी वक्र (Freundlich adsorption isotherm) – फ्रॉयन्डलिक ने सन् 1909 में ठोस अधिशोषक के इकाई द्रव्यमान द्वारा एक निश्चित ताप पर अधिशोषित गैस की मात्रा एवं दाब के मध्य एक प्रयोग पर आधारित सम्बन्ध दिया। सम्बन्ध को निम्नलिखित समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है –
[latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex] = kp1/n (n > 1)

जहाँ x, अधिशोषक के m द्रव्यमान द्वारा p दाब पर अधिशोषित गैस का द्रव्यमान है। k एवं n स्थिरांक हैं जो कि किसी निश्चित ताप पर अधिशोषक एवं गैस की प्रकृति पर निर्भर करते हैं। सम्बन्ध को सामान्यतया एक वक्र के रूप में निरूपित किया जाता है जिसमें अधिशोषक के प्रति ग्राम द्वारा अधिशोषित गैस का द्रव्यमान दाब के विपरीत आलेखित किया जाता है (चित्र-1)। ये वक्र व्यक्त करते हैं कि एक निश्चित दाब पर, ताप बढ़ाने से भौतिक अधिशोषण घटता है। ये वक्र उच्च दाब पर सदैव संतृप्तता की ओर बढ़ते प्रतीत होते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry image 5
समीकरण (i) का लघुगणक लेने पर,
log [latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex] = log k + [latex s=2]\frac { 1 }{ n } [/latex] log p …(ii)
फ्रॉयन्डलिक समतापी वक्र की वैधता, आलेख में log [latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex] को Y- अक्ष (कोटि) एवं log p को X- अक्ष (भुज) पर लेकर प्रमाणित की जा सकती है। यदि यह एक सीधी रेखा आती है तो फ्रॉयन्डलिक वक्र प्रमाणित है, अन्यथा नहीं (चित्र-2)। सीधी रेखा का ढाल [latex s=2]\frac { 1 }{ n } [/latex] का मान देता है। Y- अक्ष पर अन्त:खण्ड log k का मान देता है।

फ्रॉयन्डलिक समतापी अधिशोषण के व्यवहार की सन्निकट व्याख्या करता है। गुणक [latex s=2]\frac { 1 }{ n } [/latex] का मान 0 एवं 1 के मध्य हो सकता है (अनुमानित सीमा 0.1 से 0.5)। अत: समीकरण (ii) दाब के सीमित विस्तार तक ही लागू होती है।
(i) जब [latex s=2]\frac { 1 }{ n } [/latex] = 0, [latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex] = स्थिरांक, अतः अधिशोषण दाब से स्वतन्त्र है।

(ii) [latex s=2]\frac { 1 }{ n } [/latex] = 1, [latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex] = kp अर्थात् [latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex] ∝ p, अत: अधिशोषण में परिवर्तन दाब के अनुक्रमानुपाती है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry image 6
दोनों ही प्रतिबन्धों का प्रायोगिक परिणामों से समर्थन होता है। प्रायोगिक समतापी सदैव उच्च दाब पर संतृप्तता की ओर अभिगमन करते प्रतीत होते हैं। इसे फ्रॉयन्डलिक समतापी से नहीं समझाया जा सकता। इस प्रकार यह उच्च दाब पर असफल हो जाता है।

प्रश्न 6.
अधिशोषक के सक्रियण से आप क्या समझते हैं? यह कैसे प्राप्त किया जाता है?
उत्तर
अधिशोषक के सक्रियण से तात्पर्य अधिशोषक की अधिशोषण क्षमता को बढ़ाना है। इसे अधिशोषक के पृष्ठीय क्षेत्रफल को बढ़ाकर किया जा सकता है। अधिशोषक के पृष्ठीय क्षेत्रफल को निम्नलिखित विधियों द्वारा बढ़ाया जा सकता है –

  1. अधिशोषित गैसों को हटाकर अर्थात् चारकोल को 650 K से 1330 K के मध्य ताप पर निर्वात् अथवा अतितप्त भाप में गर्म करके सक्रिय किया जा सकता है।
  2. अधिशोषक को बारीक पीसकर अर्थात् सूक्ष्म विभाजित करके इसकी अधिशोषण क्षमता बढ़ाई जा सकती है।
  3. अधिशोषक की सतह को खुरदरा करके भी इसकी अधिशोषण क्षमता अर्थात् सक्रियता बढ़ाई जो सकती है।

प्रश्न 7.
विषमांगी उत्प्रेरण में अधिशोषण की क्या भूमिका है?
उत्तर
विषमांगी उत्प्रेरण में सामान्यत: ठोस अधिशोषक (उत्प्रेरक) तथा अभिकारक गैसें होती हैं। अभिक्रिया उत्प्रेरक की सतह पर होती है जहाँ अभिकारक अणु (अधिशोष्य) रासायनिक अधिशोषित होते हैं।

प्रश्न 8.
अधिशोषण हमेशा ऊष्माक्षेपी क्यों होता है?
उत्तर
अधिशोषण होने पर पृष्ठ के अवशिष्ट बलों में सदैव कमी आती है अर्थात् पृष्ठ ऊर्जा में कमी आती है जो कि ऊष्मा के रूप में प्रकट होती है। अत: अधिशोषण सदैव एक ऊष्माक्षेपी प्रक्रम होता है। दूसरे शब्दों में, अधिशोषण का ΔH हमेशा ऋणात्मक होता है। जब एक गैस अधिशोषित होती है तो इसके अणुओं का संचलन सीमित हो जाता है। इससे अधिशोषण के पश्चात् गैस की एन्ट्रॉपी घट जाती है। किसी प्रक्रम के स्वत:प्रवर्तित होने के लिए ऊष्मागतिकीय आवश्यकता यह है कि स्थिर ताप एवं दाब पर ΔG ऋणात्मक होना चाहिए अर्थात् गिब्ज ऊर्जा में कमी होनी चाहिए।

समीकरण ΔG = ΔH – T ΔS के आधार पर ΔG तभी ऋणात्मक हो सकता है जब ΔH का मान पर्याप्त ऋणात्मक हो क्योकि – T ΔS का मान धनात्मक है। अत: अधिशोषण प्रक्रम में, जो कि स्वत:प्रवर्तित होती है, इन दोनों गुणकों का संयोजन ΔG को ऋणात्मक बनाता है। जैसे-जैसे अधिशोषण बढ़ता है ΔH कम ऋणात्मक होता जाता है एवं अन्त में ΔH, T ΔS के तुल्य हो जाता है एवं ΔG की मान शून्य हो जाता है। इसे अवस्था पर साम्य स्थापित हो जाता है।

प्रश्न 9.
कोलॉइडी विलयनों को परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम की भौतिक अवस्थाओं के आधार पर कैसे वर्गीकृत किया जाता है?
उत्तर
परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम की भौतिक अवस्थाओं के आधार पर वर्गीकरण (Classification based on the Physical state of Dispersed phase and Dispersion medium) – परिक्षिप्त प्रावस्था तथा परिक्षेपण माध्यम की भौतिक अवस्थाओं के आधार पर आठ प्रकार के कोलॉइडी तन्त्र सम्भव हैं। एक गैस का दूसरी गैस के साथ मिश्रण समांगी होता है, अत: यह कोलॉइडी तन्त्र नहीं होता। विभिन्न प्रकार के कोलॉइडों के उदाहरण उनके विशिष्ट नामों सहित निम्नांकित सारणी में दिए गए हैं –
सारणी – कोलॉइडी तन्त्रों के प्रकार (Types of Colloidal Systems)
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry image 7
अनेक परिचित व्यावसायिक उत्पाद एवं प्राकृतिक वस्तुएँ कोलॉइड हैं; उदाहरणार्थ– फेंटी हुई क्रीम झाग है जिसमें गैस, द्रव में परिक्षिप्त है। हवाई जहाजों के आपातकालीन अवतारण (emergency landing) के समय उपयोग किए जाने वाले अग्निशामक फोम भी कोलॉइडी तन्त्र होते हैं। अधिकांश जैविक तरले, जलीय सॉल (जल परिक्षिप्त ठोस) होते हैं। एक प्रारूपी कोशिका में उपस्थित प्रोटीन एवं न्यूक्लीक अम्ल कोलॉइड के आकार के कण होते हैं जो आयनों एवं लघु अणुओं के जलीय विलयन में परिक्षिप्त होते हैं।

प्रश्न 10.
ठोसों द्वारा गैसों के अधिशोषण पर दाब एवं ताप के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर
अधिशोषण पर दाब का प्रभाव (Effect of pressure on adsorption) – स्थिर ताप पर किसी ठोस में किसी गैस के अधिशोषण का अंश दाब के साथ बढ़ता है। स्थिर ताप पर ठोस में गैस के अधिशोषण के अंश ([latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex]) तथा गैस के दाब (p) के मध्य खींचा गया ग्राफ अधिशोषण समतापी वक्र कहलाता है।
फ्रॉयन्डलिक समतापी वक्र (Freundlich isotherm curve) – इस वक्र के अनुसार,

  1. दाब की न्यूनतम परास में [latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex] आरोपित दाब के अनुक्रमानुपाती होता है।
    [latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex] ∝ p1
  2. दाब के उच्च परास में [latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex] आरोपित दाब पर निर्भर नहीं करता है।
    [latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex] ∝ p°
  3. दाबे के माध्यमिक परास में [latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex] का मान दाब की भिन्नात्मक घात के समानुपाती होता है।
    [latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex] ∝ p1/n
    जहाँ [latex s=2]\frac { 1 }{ n } [/latex] एक भिन्न है। इसका मान 0 से 1 के बीच हो सकता है।
    [latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex] = kp1/n
    log( [latex s=2]\frac { x }{ m } [/latex]) = log k + [latex s=2]\frac { 1 }{ n } [/latex] log p

अधिशोषण पर ताप का प्रभाव (Effect of temperature on adsorption) – अधिशोषण सामान्यतया ताप पर निर्भर होता है। अधिकांश अधिशोषण प्रक्रम ऊष्माक्षेपी होते हैं तथा इसलिए ताप बढ़ाने पर अधिशोषण घट जाता है। यद्यपि ऊष्माशोषी अधिशोषण प्रक्रमों में अधिशोषण ताप बढ़ने पर बढ़ जाता है।

प्रश्न 11.
द्रवरागी एवं द्रवविरागी सॉल क्या होते हैं? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए। द्रवविरोधी सॉल आसानी से स्कन्दित क्यों हो जाते हैं?
उत्तर
द्रवरागी सॉल (Lyophilic Sols) – द्रवरागी शब्द का अर्थ है- द्रव को स्नेह करने वाला। गोंद, रबड़ आदि पदार्थों को उचित द्रव (परिक्षेपण माध्यम) में मिलाने पर सीधे ही प्राप्त होने वाले कोलॉइडी सॉल द्रवरागी कोलॉइड कहलाते हैं। सॉल की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि यदि परिक्षेपण माध्यम को परिक्षिप्त प्रावस्था से अलग कर दिया जाए (माना वाष्पीकरण द्वारा) तो सॉल को केवल परिक्षेपण माध्यम के साथ मिश्रित करके पुन: प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे सॉल उत्क्रमणीय सॉल (reversible sols) भी कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त ये सॉल पर्याप्त स्थायी होते हैं एवं इन्हें आसानी से स्कन्दित नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार के सॉल के उदाहरण गोंद, जिलेटिन, स्टार्च, रबड़ आदि हैं।

द्रवविरागी या द्रवविरोधी सॉल (Lyophobic Sols) – द्रवविरागी शब्द का अर्थ है- द्रव से घृणा करने वाला। धातुएँ एवं उनके सल्फाइड आदि पदार्थ केवल परिक्षेपण माध्यम में मिश्रित करने से कोलॉइडी सॉल नहीं बनाते। इनके कोलॉइडी सॉल केवल विशेष विधियों द्वारा ही बनाए जा सकते हैं। ऐसे सॉल द्रवविरांगी सॉल कहलाते हैं। ऐसे सॉल को विद्युत अपघट्य की थोड़ी सी मात्रा मिलाकर, गर्म करके या हिलाकर आसानी से अवक्षेपित (या स्कन्दित) किया जा सकता है. इसलिए ये स्थायी नहीं होते। इसके अतिरिक्त एक बार अवक्षेपित होने के बाद ये केवल परिक्षेपण माध्यम के मिलाने मात्र से पुन: कोलॉइडी सॉल नहीं देते। अत: इनको अनुक्रमणीय सॉल (irreversible sols) भी कहते हैं। द्रवविरागी सॉल के स्थायित्व के लिए स्थायी कारकों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार के सॉल के उदाहरण गोल्ड, सिल्वर, Fe(OH)3, As2O3 आदि हैं।

द्रवविरोधी सॉल का स्कन्दन (Coagulation of Lyophobic Sols) – द्रवविरोधी सॉल का स्थायित्व केवल कोलॉइडी कणों पर आवेश की उपस्थिति के कारण होता है। यदि आवेश हटा दिया जाए अर्थात् । उचित विद्युत-अपघट्य मिला दिया जाए तो कण एक-दूसरे के समीप आकर पुंजित हो जाएँगे अर्थात् ये स्कन्दित होकर नीचे बैठ जाएँगे। दूसरी ओर द्रवरागी सॉल का स्थायित्व कोलॉइड कणों के आवेश के साथ-साथ उनके विलायकयोजन (solvation) के कारण होता है। इन दोनों कारकों को हटाने के पश्चात् ही इन्हें स्कन्दित किया जा सकता है। अतः स्पष्ट है कि द्रवविरोधी सॉल आसानी से स्कन्दित हो जाते हैं।

प्रश्न 12.
बहुअणुक एवं वृहदाणुक कोलॉइड में क्या अन्तर है? प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए। सहचारी कोलॉइड इन दोनों प्रकार के कोलॉइडों से कैसे भिन्न हैं?
उत्तर
बहुअणुक तथा वृहदाणुक कोलॉइड में अन्तर
(Difference between Multimolecular and Macromolecular Colloids)
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry image 8
सहचारी कोलॉइड एवं बहुअणुक तथा वृहदाणुक कोलॉइडों में अन्तर (Difference among Associated Colloids and Multimolecular and Macromolecular Colloids) – बहुअणुक कोलॉइड सरल अणुओं जैसे SA की अत्यधिक संख्या के पुंजित होने पर बनते हैं। वृहदाणुक कोलॉइड अपने अणुओं के वृहद् आकार के कारण कोलॉइडी सीमा में होते हैं; जैसे–स्टार्च।। कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो कम सान्द्रताओं पर सामान्य प्रबल विद्युत-अपघट्य के समान व्यवहार करते हैं, परन्तु उच्च सान्द्रताओं पर कणों का पुंज बनने के कारण कोलॉइड के समान व्यवहार करते हैं। इस प्रकार पुंजित कण मिसेल कहलाते हैं। ये सहचारी कोलॉइड भी कहलाते हैं। मिसेल केवल एक निश्चित ताप से अधिक ताप पर बनते हैं जिसे क्राफ्ट ताप (Kraft temperature) कहते हैं एवं सान्द्रता एक निश्चित सान्द्रता से अधिक होती है जिसे क्रान्तिक मिसेल सान्द्रता (CMC, Critical Micelle Concentration) कहते हैं। तनु करने पर ये कोलॉइड पुन: अलग-अलग आयनों में टूट जाते हैं। पृष्ठ सक्रिय अभिकर्मक; जैसे—साबुन एवं संश्लेषित परिमार्जक इसी वर्ग में आते हैं। साबुनों के लिए CMC का मान 10-4 से 10-3 mol L-1 होता है। इन कोलॉइडों में द्रवविरागी एवं द्रवरागी दोनों ही भाग होते हैं। मिसेल में 100 या उससे अधिक अणु हो सकते हैं।

प्रश्न 13.
एन्जाइम क्या होते हैं? एन्जाइम उत्प्रेरण की क्रिया-विधि को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर
एन्जाइम (Enzyme) – एन्जाइम जटिल नाइट्रोजनयुक्त कार्बनिक यौगिक होते हैं जो जीवित पौधों एवं जन्तुओं द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं। वास्तविक रूप से ये उच्च आण्विक द्रव्यमान वाले प्रोटीन अणु हैं जो जल में कोलॉइडी विलयन बनाते हैं। ये बहुत प्रभावी उत्प्रेरक होते हैं जो अनेक विशेष रूप से प्राकृतिक प्रक्रमों से सम्बद्ध अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं। इसी कारण इन्हें जैव उत्प्रेरक (biocatalyst) भी कहा जाता है। इन्वर्टेज, जाइमेज, डायस्टेज, माल्टेज एन्जाइम्स के कुछ विशिष्ट उदाहरण हैं।

एन्जाइम उत्प्रेरण की क्रियाविधि (Mechanism of Enzyme Catalysis) – एन्जाइम के कोलॉइडी कणों की सतहों पर बहुत सारे कोटर होते हैं। ये कोटर अभिलक्षणिक आकृति के होते हैं तथा इनमें सक्रिय समूह जैसे -NH2,- COOH, SH, –OH आदि होते हैं। वास्तव में ये सतह पर उपस्थित सक्रिय केन्द्र (active centres) होते हैं। अभिकारक के अणु जिनकी परिपूरक आकृति होती है, इन कोटरों में एक ताले में चाबी के समान फिट हो जाते हैं। सक्रिय समूहों की उपस्थिति के कारण एक सक्रियित संकुल बनता है जो विघटित होकर उत्पाद देता है।
इस प्रकार एन्जाइम उत्प्रेरित अभिक्रियाओं को दो पदों में सम्पन्न होना माना जा सकता है –
E + S [latex]\rightleftharpoons [/latex] [E – S] → E + P
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पद 1 : सक्रियित संकुल बनाने के लिए एन्जाइम का सबस्ट्रेट से आबन्ध
E + S → E – S
पद 2 : उत्पाद बनाने के लिए सक्रियित संकुल का विघटन ।
E – S → E + P

प्रश्न 14.
कोलॉइडों को निम्नलिखित आधार पर कैसे वर्गीकृत किया गया है?

  1. घटकों की भौतिक अवस्था
  2. परिक्षेपण माध्यम की प्रकृति
  3. परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम के मध्य अन्योन्यक्रिया।

उत्तर

  1. घटकों की भौतिक अवस्था (Physical states of constituents) – अभ्यास प्रश्न-संख्या 9 का अध्ययन कीजिए।
  2. परिक्षेपण माध्यम की प्रकृति (Nature of dispersion medium) – यदि परिक्षेपण माध्यम जल है तो ये एक्वासॉल या हाइड्रोसॉल कहलाते हैं। यदि परिक्षेपण माध्यम ऐल्कोहॉल है तो ये ऐल्कोसॉल कहलाते हैं। यदि परिक्षेपण माध्यम बेन्जीन है तो ये बेन्जोसॉल कहते हैं तथा परिक्षेपण माध्यम वायु होने पर ये ऐरोसॉल कहलाते हैं।
  3. परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम के मध्य अन्योन्यक्रिया (Interaction between dispersed phase and dispersion medium) – परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम के मध्य अन्योन्यक्रिया के आधार पर कोलॉइडी सॉल को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- द्रवरागी (विलायक को आकर्षित करने वाले) एवं द्रवविरागी (विलायक को प्रतिकर्षित करने वाले)। यदि परिक्षेपण माध्यम जल हो तो इन्हें क्रमश: जलरागी एवं जलविरागी कहा जाता है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित परिस्थितियों में क्या प्रेक्षण होंगे?

  1. जब प्रकाश किरण पुंज कोलॉइडी सॉल में से गमन करता है।
  2. जलयोजित फेरिक ऑक्साइड सॉल में NaCl विद्युत-अपघट्य मिलाया जाता है।
  3. कोलॉइडी सॉल में से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है।

उत्तर

  1. प्रकाश का प्रकीर्णन होता है (टिंडल प्रभाव)
  2. स्कन्दन
  3. कोलॉइडी कण गति करते हैं (वैद्युत-कण संचलन)।

प्रश्न 16.
इमल्शन क्या हैं? इनके विभिन्न प्रकार क्या हैं? प्रत्येक प्रकार का उदाहरण दीजिए।
उत्तर
दो अमिश्रणीय द्रवों का कोलॉइडी विलयन इमल्शन (पायस) कहलाता है।

  • जल- में-तेल, उदाहरण, दूध;
  • तेल-में-जल, उदाहरण, मक्खन।

प्रश्न 17.
विपायसन क्या है? दो विपायसकों के नाम लिखिए।
उत्तर
पायस को दो द्रवों में पृथक् करना विपायसन (demulsification) कहलाता है।

  •  क्वथन
  • अपकेंद्रण (centrifugation)।

प्रश्न 18.
“साबुन की क्रिया पायसीकरण एवं मिसेल बनने के कारण होती है, इस पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
यह सत्य है कि साबुन की क्रिया पायसीकरण एवं मिसेल बनने के कारण होती है। इसे समझने के लिए हम साबुन के विलयन का उदाहरण लेते हैं। पानी में घुलनशील साबुन उच्च वसा अम्लों के सोडियम अथवा पोटैशियम लवण होते हैं जिन्हें RCOO M+ द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। उदाहरणार्थ– सोडियम स्टिएरेट, जो साबुन का एक प्रमुख घटक है, जल में विलीन करने पर C17H35COO एवं Na+ आयनों में विघटित हो जाता है। किन्तु C17H35COO आयन के दो भाग होते हैं–एक लम्बी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला (जिसे ‘अध्रुवीय पुच्छ’ भी कहते हैं), जो जलविरागी (जल प्रतिकर्षी) होती है तथा ध्रुवीय समूह COO (जिसे ‘ध्रुवीय आयनिक शीर्ष’ भी कहते हैं) जो जलरागी (जल को स्नेह करने वाला) होता है।

C17H35COO आयन पृष्ठ पर इस प्रकार उपस्थित रहते हैं कि उनका COO समूह जल में तथा हाइड्रोकार्बन श्रृंखला C17H35 पृष्ठ से दूर रहती है। परन्तु क्रान्तिक मिसेल सान्द्रता पर ऋणायन विलयन के स्थूल में खिंच आते हैं एवं गोलीय आकार में इस प्रकार एकत्रित हो जाते हैं कि इनकी हाइड्रोकार्बन श्रृंखलाएँ गोले के केन्द्र की ओर इंगित होती हैं तथा COO भाग गोले के पृष्ठ पर रहता है। इस प्रकार बना पुंज आयनिक मिसेल (ionic micelle) कहलाता है। इन मिसेलों में इस प्रकार के 100 तक आयन हो सकते हैं।
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इस प्रकार अपमार्जकों जैसे सोडियम लॉरिल सल्फेट, CH3(CH2)4SO4 Na+ में लम्बी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला सहित – SO2-4 ध्रुवीय समूह है, अत: मिसेल बनने की क्रियाविधि साबुनों के सामन ही है।
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साबुन की शोधन-क्रिया इस तथ्य पर आधारित है कि साबुन के अणु तेल की बूंदों के चारों ओर इस प्रकार से मिसेल बनाते हैं कि स्टिएरेट आयन का जलविरागी भाग बूंदों के अन्दर होता है तथा जलरागी भाग चिकनाई की बूंदों के बाहर (चित्र-6) काँटों की तरह निकला रहता है। चूंकि ध्रुवीय समूह जल से अन्योन्यक्रिया कर सकते हैं, अत: स्टिएरेट आयनों से घिरी हुई तेल की बूंदें जल में खिंच जाती हैं तथा गन्दी सतह से हट जाती है। इस प्रकार साबुन तेलों तथा वसाओं का पायसीकरण (emulsification) करके धुलाई में सहायता करता है। छोटी गोलियों के चारों ओर का ऋण-आवेशित आवरण उन्हें एकसाथ आकर पुंज बनाने से रोकता है।
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प्रश्न 19.
विषमांगी उत्प्रेरण के चार उदाहरण लिखिए।
उत्तर

  1. अमोनिया निर्माण का हैबर प्रक्रम :
    N2 + 3H2 [latex]\overset { Fe }{ \rightleftharpoons }[/latex] 2NH3
  2. सल्फ्यूरिक अम्ल निर्माण का सम्पर्क प्रक्रम :
    2SO2 + O2 [latex]\underrightarrow { { V }_{ 2 }{ O }_{ 5 } } [/latex] 2SO3
  3. नाइट्रिक अम्ल निर्माण का ओस्टवाल्ड प्रक्रम :
    4NH3 + 5O2 [latex]\underrightarrow { Pt } [/latex] 4NO + 6H2O
  4. वनस्पति तेल का हाइड्रोजनीकरण :
    वनस्पति तेल (l) + H(g) [latex]\underrightarrow { Ni(s) } [/latex] वनस्पति घी (s)

प्रश्न 20.
उत्प्रेरक की सक्रियता एवं वरणक्षमता का क्या अर्थ है?
उत्तर
उत्प्रेरक की सक्रियता (Activity of catalyst) – उत्प्रेरक की किसी अभिक्रिया के वेग को बढ़ाने की क्षमता उत्प्रेरकीय सक्रियता कहलाती है।
उदाहरणार्थ– H2(g) + [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 } [/latex] O(g) → कोई अभिक्रिया नहीं
H(g) + [latex s=2]\frac { 1 }{ 2 } [/latex] O(g) + [Pt] → H2O (l) + [Pt] [विस्फोट के साथ तीव्र अभिक्रिया होती है।]

बहुत सीमा तक एक उत्प्रेरक की सक्रियता रसोवशोषण की प्रबलता पर निर्भर करती है। सक्रिय होने के लिए अभिकारक, उत्प्रेरक पर पर्याप्त प्रबलता से अधिशोषित होने चाहिए। यद्यपि वे इतनी प्रबलता से अधिशोषित नहीं होने चाहिए कि वे गतिहीन हो जाएँ एवं अन्य अभिकारकों के लिए उत्प्रेरक की सतह पर कोई स्थान रिक्त न रहे।

उत्प्रेरक की वरणक्षमता (Selectivity of catalyst) – किसी उत्प्रेरक की वरणात्मकता उसकी किसी अभिक्रिया को दिशा देकर एक विशेष उत्पाद बनाने की क्षमता है। उदाहरणार्थ– H2 एवं CO से प्रारम्भ करके एवं भिन्न उत्प्रेरकों के प्रयोग से हम भिन्न- भिन्न उत्पाद प्राप्त कर सकते हैं।
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इसी प्रकार एथेनॉल का विहाइड्रोजनीकरण तथा निर्जलीकरण दोनों सम्भव हैं, परन्तु उचित उत्प्रेरक की। उपस्थिति में केवल एक अभिक्रिया ही होती है।

  • CH3CH2OH [latex s=2]\xrightarrow [ Cu ]{ 573k } [/latex] CH3CHO + H2 (विहाइड्रोजनीकरण)
  • CH3CH2OH [latex s=2]\underrightarrow { { Al }_{ 2 }{ O }_{ 3 } } [/latex] CH2= CH2 + H2O (निर्जलीकरण)

अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उत्प्रेरक के कार्य की प्रकृति अत्यधिक विशिष्ट होती है अर्थात् कोई पदार्थ एक विशेष अभिक्रिया के लिए ही उत्प्रेरक हो सकता है, सभी अभिक्रियाओं के लिए नहीं। इसका अर्थ यह है कि एक पदार्थ जो एक अभिक्रिया में उत्प्रेरक का कार्य करता है, अन्य अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करने में असमर्थ हो सकता है।

प्रश्न 21.
जीओलाइटों द्वारा उत्प्रेरण के कुछ लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
जिओलाइटों द्वारा उत्प्रेरण के लक्षण (Features of Catalysis by Zeolites) –

  1. जिओलाइट जलयोजित ऐलुमिनो-सिलिकेट होते हैं जिनकी त्रिविमीय नेटवर्क संरचना होती है तथा इनके सरन्ध्रों में जल के अणु निहित होते हैं।
  2. जिओलाइटों को उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त करने के लिए, इन्हें गर्म किया जाता है जिससे सरन्ध्रों में उपस्थित जलयोजन को जल निकल जाता है तथा सरन्ध्र रिक्त हो जाते हैं।
  3. सरन्ध्रों का आकार 260 से 740 pm के मध्य होता है, अतः केवल वे अणु ही इन सरन्ध्रों में अधिशोषित हो पाते हैं जिनका आकार सरन्ध्रों में प्रवेश करने हेतु पर्याप्त रूप से कम होता है। इसलिए ये आण्विक जाल (molecular sieves) या आकृति वरणात्मक उत्प्रेरक (shape selective catalyst) की भाँति कार्य करते हैं।
  4. जिओलाइट पेट्रोरसायन उद्योग में हाइड्रोकार्बनों के भंजन एवं समावयवन में उत्प्रेरक के रूप में व्यापक रूप से प्रयुक्त किए जा रहे हैं। ZSM- 5 पेट्रोलियम उद्योग में प्रयुक्त होने वाला एक महत्त्वपूर्ण जिओलाइट उत्प्रेरक है। यह ऐल्कोहॉल का निर्जलीकरण करके हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण बनता है और उन्हें सीधे ही गैसोलीन (पेट्रोल) में परिवर्तित कर देता है।
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जहाँ x, 5 से 10 के मध्य परिवर्तित होता है। ZSM- 5 का विस्तारित नाम Zeolite Sieve of Molecular Porosity-5′ है।

प्रश्न 22.
आकृति वरणात्मक उत्प्रेरण क्या है?
उत्तर
आकृति वरणात्मक उत्प्रेरण वह उत्प्रेरकीय क्रिया होती है जो उत्प्रेरक की छिद्र संरचना तथा अभिकारक/उत्पाद अणुओं के आकार पर निर्भर करती है। हाइड्रोकार्बनों के भंजन में जीओलाइट (ZSM- 5) का उपयोग आकृति वरणात्मक उत्प्रेरण का उदाहरण है।

प्रश्न 23.
निम्नलिखित पदों (शब्दों) को समझाइए –

  1. विद्युत कण-संचलन
  2. स्कन्दन
  3. अपोहन
  4. टिण्डल प्रभाव। (2018)

उत्तर
1. विद्युत कण-संचलन (Electrophoresis) – कोलॉइडी कणों पर धनात्मक़ या ऋणात्मक विद्युत आवेश होता है। जिससे ये कण विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की ओर अभिगमन करते हैं। विद्युत क्षेत्र में कोलॉइडी कणों के विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की ओर अभिगमन (migration) की घटना को विद्युत कण-संचलन कहते हैं। कोलॉइडी कणों की कैथोड की ओर की गति को धन कण-संचलन (cataphoresis) तथा ऐनोड की ओर गति को ऋण कण-संचलन (anaphoresis) कहते हैं जैसे फेरिक हाइड्रॉक्साइड सॉल के कोलॉइडी कण धनावेशित होते हैं और ये कैथोड की ओर गति करते हैं। इसकी सहायता से कोलॉइडी विलयनों में कोलॉइडी कणों पर आवेश का अध्ययन किया जाता है।
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2. स्कन्दन (Coagulation) – किसी कोलॉइडी विलयन अर्थात् सॉल को स्थायी बनाने के लिए उसमें अल्प-मात्रा में विद्युत-अपघट्य मिलाना आवश्यक होता है, परन्तु विद्युत अपघट्य की अधिक मात्रा कोलॉइडी विलयन का अवक्षेपण कर देती है। कोलॉइड विलयनों को विद्युत-अपघट्य के विलयनों द्वारा अवक्षेपित करने की क्रिया को स्कन्दन कहते हैं। इस क्रिया में कोलॉइडी कणों की सतह पर विद्युत-अपघट्य से उनकी प्रकृति के विपरीत आवेशित आयन अधिशोषित हो जाता है। जिससे उनका आकार बढ़ जाता है, फलस्वरूप वे अवक्षेपित (स्कन्दित) हो जाते हैं; जैसे- As2S3 सॉल में विद्युत-अपघट्य BaCl2 डालने पर, As2S3 स्कन्दित (अवक्षेपित) हो जाता है क्योंकि विद्युत अपघट्य (BaCl2 Ba2+ + 2Cl) के Ba2+ आयन As2S3 के ऋणात्मक आवेश को उदासीन कर देते हैं, फलस्वरूप उसका आकार बढ़ जाता है और वह अवक्षेपित हो जाता है।

3. अपोहन (Dialysis) – यह विधि इस तथ्य पर आधारित है कि घुलित पदार्थों के अणु व आयन चर्म-पत्र झिल्ली (parchment paper) में से सरलतापूर्वक विसरित हो जाते हैं, जबकि कोलॉइडी कण उसमें से विसरित नहीं हो पाते या कठिनाई से विसरित होते हैं।
चर्म- पत्र झिल्ली द्वारा कोलॉइडी विलयन में घुलित पदार्थों को पृथक् करने की विधि को अपोहन (dialysis) कहते हैं।
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चर्म-पत्र झिल्ली से बनी एक थैली या किसी बेलनाकार पात्र, जिसे अपोहक (dialyser) कहते हैं, में कोलॉइडी विलयन भरकर उसे बहते हुए जल में निलम्बित करते हैं। कोलॉइडी विलयन में उपस्थित घुलित पदार्थ के कण झिल्ली में से होकर बहते जल के साथ बाहर निकल जाते हैं। कुछ दिनों में शुद्ध कोलॉइडी विलयन प्राप्त हो जाता है। अपोहन की दर को बढ़ाने के लिए विद्युत क्षेत्र भी प्रयुक्त किया जाता है जिसे विद्युत-अपोहन (electrodialysis) कहते हैं। अत: कोलॉइडी विलयनों के शोधन हेतु अपोहन विधि को प्रयुक्त करते हैं।

4. टिण्डल प्रभाव (Tyndall effect) – जिस प्रकार अँधेरे कमरे में प्रकाश की किरण में धूल के कण चमकते हुए दिखाई पड़ते हैं, उसी प्रकार लेन्सों से केन्द्रित प्रकाश को कोलॉइडी विलयन पर डालकर समकोण दिशा में रखे एक सूक्ष्मदर्शी से देखने पर कोलॉइडी कण अँधेरे में घूमते हुए दिखाई देते हैं। इस घटना के आधार पर वैज्ञानिक टिण्डल ने कोलॉइडी विलयनों में एक प्रभाव का अध्ययन किया जिसे टिण्डल प्रभाव कहा गया, अतः कोलॉइडी कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन (scattering of light) के कारण टिण्डल प्रभाव होता है।
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कोलॉइडी कणों का आकार प्रकाश की तरंगदैर्घ्य (wavelength of light) से कम होता है, अतः प्रकाश की किरणों के कोलॉइडी कणों पर पड़ने पर कण प्रकाश की ऊर्जा का अवशोषण करके स्वयं आत्मदीप्त (self-illuminate) हो जाते हैं। अवशोषित ऊर्जा के पुनः छोटी तरंगों के प्रकाश के रूप में प्रकीर्णत होने से नीले रंग का एक शंकु दिखता है जिसे टिण्डल शंकु (Tyndall cone) कहते हैं और यह टिण्डल घटना कहलाती है।

प्रश्न 24.
इमल्शनों (पायस) के चार उपयोग लिखिए।
उत्तर
इमल्शनों (पायस) के चार उपयोग निम्नलिखित हैं –

  1. फेन प्लवन प्रक्रम द्वारा सल्फाइड अयस्क का सान्द्रण इमल्सीफिकेशन पर आधारित होता है।
  2. साबुन तथा डिटर्जेन्ट की शोधन क्रिया गन्दगी तथा साबुन के विलयन के मध्य इमल्शन बनने के कारण ही होती है।
  3. दूध जल में वसा का इमल्शन होता है।
  4. विभिन्न सौन्दर्य प्रसाधन; जैसे- क्रीम, हेयर डाई, शैम्पू आदि, अनेक औषधियाँ तथा लेप आदि इमल्शन होते हैं। इमल्शन के रूप में ये अधिक प्रभावी होते हैं।

प्रश्न 25.
मिसेल क्या हैं? मिसेल निकाय का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर
मिसेल (Micelles) – कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो कम सान्द्रताओं पर सामान्य प्रबल विद्युत-अपघट्यों के समान व्यवहार करते हैं, परन्तु उच्च सान्द्रताओं पर कणों का पुंज बनने के कारण कोलॉइड के समान व्यवहार करते हैं। इस प्रकार के पुंजित कण मिसेल कहलाते हैं। उदाहरणार्थ– जल परिक्षेपण माध्यम में साबुन के अणुओं के स्टिएरेट की विभिन्न इकाइयाँ पुंजित कोलॉइडी आकार के कण बनाती हैं जो मिसेल कहलाते हैं। मिसेल को सहचारी कोलॉइड भी कहते हैं। जल में साबुन का सान्द्र विलयन एक मिसेल निकाय कहलाता है।

प्रश्न 26.
निम्न पदों को उचित उदाहरण सहित समझाइए –

  1. ऐल्कोसॉल
  2. ऐरोसॉल
  3. हाइड्रोसॉल।

उत्तर

  1. ऐल्कोसॉल (Alcosol) – वह कोलॉइड जिसमें परिक्षेपण माध्यम के रूप में ऐल्कोहॉल का प्रयोग किया जाता है, ऐल्कोसॉल कहलाता है। उदाहरणार्थ– एथिल ऐल्कोहॉल में सेलुलोस नाइट्रेट का कोलॉइडी सॉल (कोलोडियन)।
  2. ऐरोसॉल (Aerosol) – वह कोलॉइड जिसमें परिक्षेपण माध्यम वायु या गैस हो, ऐरोसॉल कहलाता है। उदाहरणार्थ– कोहरा।
  3. हाइड्रोसॉल (Hydrosol) – वह कोलॉइड जिसमें परिक्षेपण माध्यम जल हो, हाइड्रोसॉल कहलाता है। उदाहरणार्थ– स्टार्च सॉल।।

प्रश्न 27.
“कोलॉइड एक पदार्थ नहीं पदार्थ की एक अवस्था है।’ इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
कोई पदार्थ (ठोस, द्रव या गैस) विशेष विधियों के प्रयोग से कोलॉइडी अवस्था में परिवर्तित किया जा सकता है। उदाहरणार्थ– NaCl जल में वास्तविक विलयन (true solution) बनाता है लेकिन बेन्जीन में कोलॉइडी विलयन बनाता है। साबुन ऐल्कोहॉल में वास्तविक विलयन लेकिन जल में कोलॉइडी विलयन बनाता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्प्रेरण का अधिशोषण सिद्धान्त उपयोगी है – (2009)
(i) ठोस उत्प्रेरकों में
(ii) गैसीय उत्प्रेरकों में
(iii) द्रव उत्प्रेरकों में
(iv) सभी में
उत्तर
(i) ठोस उत्प्रेरकों में

प्रश्न 2.
सम्पर्क विधि द्वारा H,SO, के निर्माण में प्रयुक्त उत्प्रेरक है – (2012)
(i) Ni
(ii) Pt
(iii) Fe
(iv) Cu
उत्तर
(ii) Pt

प्रश्न 3.
अम्लीय KMnO द्वारा ऑक्सैलिक अम्ल के ऑक्सीकरण में उत्प्रेरक होता है – (2013)
(i) MnO4
(ii) KMnO4
(iii) H+
(iv) Mn2+
उत्तर
(iv) Mn2+

प्रश्न 4.
जल गैस से मेथिल ऐल्कोहॉल के निर्माण में प्रयोग किया जाने वाला उत्प्रेरक है (2013)
(i) CuO + NiO + Cr2O3
(ii) CuO +ZnO + Cr2O3
(iii) Al2O3 + CuO
(iv) CuO + Fe2O3
उत्तर
(ii) CuO + ZnO+ Cr2O3

प्रश्न 5.
पदार्थ जो उत्प्रेरक की क्रियाशीलता को नष्ट अथवा कम कर देता है, कहलाता है – (2011)
(i) ऋणात्मक उत्प्रेरक
(ii) मंदक
(iii) वर्धक
(iv) उत्प्रेरक विष
उत्तर
(iv) उत्प्रेरक विष

प्रश्न 6.
प्लेटिनम उत्प्रेरक के लिए निम्नलिखित में से कौन विष का कार्य करता है? (2013)
(i) SO2
(ii) NO
(iii) As2O3
(iv) H3PO4
उत्तर
(iii) As2O3

प्रश्न 7.
रासायनिक अभिक्रिया 2KClO3 + [MnO2] → 2KCl + 3O2 + [MnO2] । उदाहरण है (2011)
(i) समांग उत्प्रेरण का
(ii) विषमांग उत्प्रेरण का
(iii) ऋणात्मक उत्प्रेरण का
(iv) प्रेरित उत्प्रेरण का
उत्तर
(i) समांग उत्प्रेरण का

प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रकार के उत्प्रेरणों में से किसे अधिशोषण सिद्वान्त द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है? (2012)
(i) समांगी उत्प्रेरण
(ii) विषमांगी उत्प्रेरण
(iii) एन्जाइम उत्प्रेरण
(iv) अम्ल-क्षार उत्प्रेरण
उत्तर
(ii) विषमांगी उत्प्रेरण

प्रश्न 9.
अभिक्रिया CH2 = CH2 (g) + H2 (g) [latex s=2]\xrightarrow [ Ni ]{ \triangle } [/latex]
CH3 – CH3 (g) में Ni उदाहरण है – (2012)
(i) विषमांग उत्प्रेरक का
(ii) समांग उत्प्रेरक का
(iii) ऋणात्मक उत्प्रेरक का
(iv) स्व-उत्प्रेरक का
उत्तर
(i) विषमांग उत्प्रेरक का

प्रश्न 10.
निम्न में से कौन-सा कथन उत्प्रेरक के लिए सही नहीं है? (2013)
(i) यह अभिक्रिया के अन्त में अपरिवर्तित रहता है
(ii) उत्क्रमणीय अभिक्रिया में यह साम्य को परिवर्तित नहीं करता है
(iii) यह अभिक्रिया को प्रारम्भ कर सकता है।
(iv) कभी-कभी उत्प्रेरक अभिक्रियाओं के लिए बहुत विशिष्ट होते हैं
उत्तर
(iii) यह अभिक्रिया को प्रारम्भ कर सकता है।

प्रश्न 11.
किसी विलायक में परिक्षिप्त पदार्थ के कणों का आकार 50 Å से 2000 Å की परास में है। विलयन होगा – (2015)
(i) निलम्बन
(ii) वास्तविक विलयन
(iii) कोलॉइडी विलयन
(iv) संतृप्त विलयन
उत्तर
(iii) कोलॉइडी विलयन

प्रश्न 12.
झाग या फेन किस प्रकार का कोलॉइडी विलयन है? (2015)
(i) गैस में द्रव
(ii) द्रव में गैस
(iii) द्रव में द्रव
(iv) गैस में ठोस
उत्तर
(ii) द्रव में गैस

प्रश्न 13.
कोहरा निम्न कोलॉइडी अवस्था का उदाहरण है – (2012, 14)
(i) गैस में द्रव परिक्षिप्त
(ii) गैस में गैस परिक्षिप्त
(iii) गैस में ठोस परिक्षिप्त
(iv) द्रव में ठोस परिक्षिप्त
उत्तर
(i) गैस में द्रव परिक्षिप्त

प्रश्न 14.
निम्न में द्रव-विरोधी कोलॉइड है – (2010)
(i) गोंद
(ii) गंधक
(iii) जिलेटिन
(iv) स्टार्च
उत्तर
(ii) गंधक

प्रश्न 15.
कोलॉइडी कणों का साइज (आकार) लगभग किस रेंज में है? (2013)
(i) 1 Å से 200 Å
(ii) 50 Å से 2000 Å
(iii) 500 Å से 2000 Å
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(ii) 50 Å से 2000 Å

प्रश्न 16.
जब वायु परिक्षेपण माध्यम होती है तो बना हुआ सॉल कहलाता है – (2014)
(i) एल्कोसॉल
(ii) हाइड्रोसॉल
(iii) बेन्जोसॉल
(iv) एरोसॉल
उत्तर
(iv) एरोसॉल

प्रश्न 17.
निम्नलिखित में कौन प्राकृतिक कोलॉइड नहीं है? (2016)
(i) रक्त
(ii) NaCl
(iii) शर्करा
(iv) RCOONa
उत्तर
(iv) RCOONa

प्रश्न 18.
औषधियाँ किस अवस्था में सर्वाधिक प्रभावी होती हैं? (2015)
(i) कोलॉइड
(ii) ठोस
(iii) विलयन
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(i) कोलॉइड

प्रश्न 19.
क्रिस्टलाभ, कोलॉइड से भिन्न है – (2009)
(i) वैद्युतीय व्यवहार में
(ii) कणों की प्रकृति में
(iii) कणों के आकार में
(iv) विलेयता में
उत्तर
(iii) कणों के आकार में

प्रश्न 20.
कोलॉइडों को शुद्ध करने की विधि है – (2017)
(i) पेप्टीकरण
(ii) स्कन्दन
(iii) अपोहन
(iv) ब्रेडिग की आर्क विधि
उत्तर
(iii) अपोहन

प्रश्न21.
ब्राउनियन गति का कारण है – (2015)
(i) द्रव अवस्था में तापमान का उतार-चढ़ाव
(ii) कणों का आकार
(iii) परिक्षेपण माध्यम के अणुओं का कोलॉइडी कणों पर संघात
(iv) कोलॉइडी कणों पर आवेश का आकर्षण व प्रतिकर्षण
उत्तर
(iii) परिक्षेपण माध्यम के अणुओं का कोलॉइडी कणों पर संघात

प्रश्न 22.
फेरिक हाइड्रॉक्साइड के ताजे अवक्षेप में FeCl3 का तनु विलयन मिलाने पर कोलॉइडी विलयन प्राप्त होता है। इस परिघटना को कहते हैं – (2011, 12)
(i) स्कन्दन
(ii) पेप्टीकरण
(iii) रक्षण
(iv) अपोहन
उत्तर
(ii) पेप्टीकरण

प्रश्न 23.
स्वर्ण संख्या सम्बन्धित है – (2010)
(i) द्रव-स्नेही कोलॉइड से (रक्षी कोलॉइड से)
(ii) द्रव-विरोधी कोलॉइड से
(iii) पायस से
(iv) जैल से
उत्तर
(i) द्रव-स्नेही कोलॉइड से (रक्षी कोलॉइड से)

प्रश्न 24.
फेरिक हाइड्रॉक्साइड सॉल (धनात्मक आवेशित) का स्कन्दन कराने के लिए सबसे अधिक प्रभावी वैद्युत-अपघट्य है – (2009, 11)
(i) KBr
(11) K2SO4
(iii) K2CrO4
(iv) K4[Fe(CN)6]
उत्तर
(iv) K4[Fe(CN)6]

प्रश्न 25.
A, B, C तथा D सॉल की गोल्ड संख्या क्रमशः 0.001, 0.15, 20 तथा 25 है। सबसे प्रभावी रक्षी कोलॉइड है – (2009, 13)
(i) A
(ii) B
(iii) C
(iv) D
उत्तर
(i) A

प्रश्न 26.
आर्सेनियस सल्फाइड के कोलॉइडी विलयन के स्कन्दन में सबसे प्रभावी विलयन है – (2010, 15, 16)
(i) NaCl
(ii) Na2SO4
(iii) Na3PO4
(iv) BaCl2
उत्तर
(iv) BaCl2

प्रश्न 27.
ऋणावेशित आर्सेनियस सल्फाइड के कोलॉइडी विलयन को स्कंदित करने के लिए सबसे अधिक प्रभावी धनायन है – (2009)
(i) Ti4+
(ii) Mg2+
(iii) Al3+
(iv) K+
उत्तर
(i) Ti4+

प्रश्न 28.
दूध एक उदाहरण है – (2011)
(i) झाग का
(ii) पायस का
(iii) जैल का
(iv) सॉल का
उत्तर
(ii) पायस का

प्रश्न 29.
द्रव ऐरोसॉल है – (2009)
(i) फेनित क्रीम
(ii) धुआँ
(iii) दूध
(iv) धुन्ध
उत्तर
(iv) धुन्ध अतिलघु

उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अधिशोषण, अधिशोष्य तथा अधिशोषक से आप क्या समझते हैं? (2016)
उत्तर
अधिशोषण– किसी ठोस अथवा द्रव के पृष्ठ द्वारा किसी पदार्थ के अणुओं को आकर्षित और धारित करने की परिघटना जिसके कारण अणुओं की पृष्ठ पर सान्द्रता में वृद्धि हो जाती है, अधिशोषण कहलाती है।
अधिशोष्य– अणुक स्पीशीज या पदार्थ जो कि पृष्ठ पर सान्द्रित या संचित होता है, अधिशोष्य कहलाता है। अधिशोषक-अणुक स्पीशीज या पदार्थ जिसके पृष्ठ पर अधिशोषण होता है, अधिशोषक कहलाता है।

प्रश्न 2.
धनात्मक तथा ऋणात्मक अधिशोषण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
जब अधिशोषित (अधिशोष्य) की सान्द्रता अधिशोषक के अभ्यन्तर की अपेक्षा उसकी सतह पर अधिक होती है, तोघटना को धनात्मक अधिशोषण (positive adsorption) कहा जाता है। इसके विपरीत, यदि अधिशोषित की सान्द्रता अधिशोषक के अभ्यन्तर की तुलना में इसकी सतह पर कम है तो घटना को ऋणात्मक अधिशोषण (negative adsorption) कहा जाता है।

प्रश्न 3.
अधिशोषण की ऊष्मा अथवा अधिशोषण की एन्थैल्पी को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
अधिशोषण एक ऊष्माक्षेपी प्रक्रम है और इसमें ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। किसी अधिशोषक की सतह पर अधिशोषित के एक मोल की अधिशोषण प्रक्रिया में निहित एन्थैल्पी परिवर्तन (उत्सर्जित ऊष्मा) को अधिशोषण की एन्थैल्पी (enthalpy of adsorption) या अधिशोषण की ऊष्मा (heat of adsorption) कहा जाता है।

प्रश्न 4.
उत्प्रेरक क्या है? इसके प्रमुख लक्षण लिखिए। (2009, 11)
उत्तर
उत्प्रेरक– वह पदार्थ जो किसी रासायनिक अभिक्रिया के वेग को परिवर्तित कर देता है, परन्तु स्वयं अभिक्रिया के अन्त में मात्रा तथा संघटन की दृष्टि से अपरिवर्तित रहता है, उत्प्रेरक कहलाता है।
लक्षण

  1. उत्प्रेरक अभिक्रिया के दौरान अपरिवर्तित रहता है।
  2. उत्प्रेरक की सूक्ष्म मात्रा ही अभिक्रिया की गति को परिवर्तित करने के लिए पर्याप्त होती है।
  3. उत्प्रेरक क्रिया प्रारम्भ नहीं कर सकता है।
  4. उत्प्रेरक साम्यावस्था को प्रभावित नहीं करता है।

प्रश्न 5.
धनात्मक उत्प्रेरक पर टिप्पणी लिखिए। या धनात्मक उत्प्रेरण क्या है?
उत्तर
वे उत्प्रेरक जो अभिक्रिया के वेग को बढ़ा देते हैं, उन्हें धनात्मक उत्प्रेरक कहते हैं तथा इस घटना को धनात्मक उत्प्रेरण कहते हैं।
उदाहरणार्थ– वनस्पति तेल का वनस्पति घी में हाइड्रोजनीकरण निकिल की उपस्थिति में तीव्र गति से होता है।
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प्रश्न 6.
ऋणात्मक उत्प्रेरक पर टिप्पणी लिखिए।
या
ऋणात्मक उत्प्रेरण क्या है? (2013, 16, 17)
उत्तर
जब उत्प्रेरक रासायनिक अभिक्रिया की गति को घटाता है, तो यह घटना ऋणात्मक उत्प्रेरण कहलाती है तथा यह उत्प्रेरक ऋणात्मक उत्प्रेरक कहलाता है।
उदाहरणार्थ- सोडियम सल्फाइट का वायु द्वारा ऑक्सीकरण ग्लिसरीन की उपस्थिति में रुक जाता है; अतः इस अभिक्रिया में ग्लिसरीन ऋणात्मक उत्प्रेरक है।
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प्रश्न 7.
आप उत्प्रेरक उत्साहक (वर्धक) से क्या समझते हैं ? एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए। (2012, 18)
उत्तर
वे बाहरी पदार्थ जो किसी उत्प्रेरण क्रिया में प्रयुक्त उत्प्रेरक की उत्प्रेरण सक्रियता को बढ़ा देते हैं, किन्तु स्वयं अभिक्रिया के लिए उत्प्रेरक नहीं होते हैं, उत्प्रेरक वर्धक कहलाते हैं।
उदाहरणार्थ– तेलों के हाइड्रोजनीकरण में Ni उत्प्रेरक के लिए Cu उत्प्रेरक वर्धक है।
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प्रश्न 8.
उत्प्रेरक विष क्या है? एक उदाहरण द्वारा व्याख्या कीजिए।
उत्तर
जब कोई बाह्य पदार्थ उत्प्रेरण क्रिया में प्रयुक्त उत्प्रेरक की क्रियाशीलता को कम या नष्ट कर देता है, उत्प्रेरक विष कहलाता है।
उदाहरणार्थ– यदि अमोनिया के बनाने की हेबर विधि में हाइड्रोजन में कार्बन मोनोऑक्साइड उपस्थित हो, तो यह लोहे (जो उत्प्रेरक का कार्य करता है) की क्रियाशीलता को काफी कम कर देती है, अर्थात् CO उत्प्रेरक विष है।
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प्रश्न 9.
समांग तथा विषमांग उत्प्रेरण को एक-एक उदाहरण देकर समझाइए। (2013, 16, 17)
उत्तर
समांग उत्प्रेरण– जब अभिकारक तथा उत्प्रेरक एक ही प्रावस्था में होते हैं, तब इस अवस्था को समांग उत्प्रेरण कहते हैं; जैसे –
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विषमांग उत्प्रेरण – जब उत्प्रेरक तथा अभिकारक भिन्न प्रावस्था में होते हैं तब यह अवस्था विषमांग उत्प्रेरण कहलाती है; जैसे –
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प्रश्न 10.
स्वः उत्प्रेरण को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। (2012, 15, 16, 18)
उत्तर
ऐसी अभिक्रिया जिसमें अभिक्रिया के फलस्वरूप बना कोई पदार्थ स्वयं उत्प्रेरक का कार्य करने लगता है, स्वः उत्प्रेरक कहलाता है तथा इस घटना को स्वः उत्प्रेरण कहते हैं।
उदाहरणार्थ– एथिल ऐसीटेट के जल-अपघटन के फलस्वरूप बना ऐसीटिक अम्ल स्व: उत्प्रेरक बन जाता है।
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प्रश्न 11.
प्रेरित उत्प्रेरण को एक उदाहरण द्वारा समझाइए। (2010, 12, 15)
उत्तर
प्रेरित उत्प्रेरण – जब कोई क्रियाशील पदार्थ किसी अक्रियाशील पदार्थ के साथ समान रूप में क्रिया हेतु प्रेरित करके उसको क्रियाशील बना देता है, तो वह क्रियाशील पदार्थ प्रेरित उत्प्रेरक कहलाता है। और यह घटना प्रेरित उत्प्रेरण कहलाती है।
उदाहरणार्थ– सोडियम सल्फाइट (Na2SO3) वायु से ऑक्सीकृत हो जाता है, परन्तु सोडियम आसेंनाइट (Na3AsO3) ऑक्सीकृत नहीं होता है। दोनों को साथ मिलाने पर दोनों ही ऑक्सीकृत हो जाते हैं; क्योंकि सोडियम सल्फाइट का ऑक्सीकरण, सोडियम आसेंनाइट के ऑक्सीकरण को उत्प्रेरित कर देता है; अतः यहाँ सोडियम सल्फाइट प्रेरित उत्प्रेरक का कार्य करता है।
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प्रश्न 12.
उत्प्रेरक से अभिक्रिया की सक्रियण ऊर्जा कम हो जाती है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
किसी अभिक्रिया के लिए सक्रियण ऊर्जा का मान निश्चित और स्थिर होता है, जो अभिक्रिया के ताप या अभिकारकों की सान्द्रता पर निर्भर नहीं करता है। अभिक्रिया की सक्रियण ऊर्जा और उसका वेग स्थिरांक उत्प्रेरक की उपस्थिति से प्रभावित होता है। उत्प्रेरक अभिक्रिया की सक्रियण ऊर्जा को कम कर देता। है और वेग स्थिरांक के मान को बढ़ा देता है, जिससे अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है। उत्प्रेरक की उपस्थिति में अभिक्रिया का नया पथ बन जाता है, जिसमें उत्प्रेरक भाग लेता है। इस नये पथ की सक्रियण ऊर्जा मूल पथ की सक्रियण ऊर्जा से कम होती है।

प्रश्न 13.
सूक्ष्म विभाजित अवस्था में उत्प्रेरक, ठोस अवस्था से अधिक क्रियाशील क्यों होते हैं? समझाइए। (2010, 15)
उत्तर
इसका कारण है कि उत्प्रेरक के जितने अधिक टुकड़े होंगे उतनी ही मुक्त संयोजकताएँ अधिक बढ़ेगी, जिनके कारण उसकी कार्यक्षमता अधिक होगी।

प्रश्न 14.
क्लोरोफॉर्म को रंगीन बोतलों में रखा जाता है तथा उसमें कुछ मात्रा एथिल ऐल्कोहॉल की भी मिलायी जाती है, क्यों? (2009, 12)
उत्तर
क्लोरोफॉर्म को रंगीन बोतल में ऊपर तक भरकर इसलिए रखते हैं जिससे प्रकाश और वायु अन्दर नहीं पहुँच सके, अन्यथा क्लोरोफॉर्म धीरे-धीरे ऑक्सीकृत होकर फॉस्जीन गैस बनाता है जो बहुत तेज विष है। क्लोरोफॉर्म में 1% एथिल ऐल्कोहॉल ऋणात्मक उत्प्रेरक के रूप में डालते हैं। एथिल ऐल्कोहॉल की उपस्थिति से वायु द्वारा क्लोरोफॉर्म के ऑक्सीकरण की गति अत्यन्त धीमी पड़ जाती है।
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प्रश्न 15.
एन्जाइम उत्प्रेरकों तथा साधारण उत्प्रेरकों में क्या अन्तर है? एक उदाहरण देकर समझाइए। (2017)
उत्तर
एन्जाइम उत्प्रेरक अभिक्रिया के लिए ताप का एक परिसर होता है जिस पर इनकी क्रियाशीलता अधिकतम होती है। सामान्यत: यह 25 – 35°C के मध्य है। 70°C पर ये निष्क्रिय हो जाते हैं। साधारण उत्प्रेरकों की क्रियाशीलता 70°C के ऊपर ही प्रभावशाली होती है; जैसे- Al2O3 के लिए अनुकूलतम ताप 250°C है।

प्रश्न 16.
कोलॉइड क्या हैं? क्रिस्टलाभ से ये किस प्रकार भिन्न हैं? (2010, 12)
उत्तर
कोलॉइड-जो पदार्थ सरलता से जल में नहीं घुलते और घुलने पर समांग विलयन नहीं बनाते तथा जिनके विलयन चर्मपत्र द्वारा नहीं छनते कोलॉइड या कोलॉइडी विलयन कहलाते हैं; जैसे-दूध, मक्खन, दही, बादल, धुआँ, आइसक्रीम, गोंद, सोडियम पामीटेट, रक्त आदि।
क्रिस्टलाभ – जिन पदार्थों के विलयन चर्मपत्र द्वारा छन जाते हैं, क्रिस्टलाभ कहलाते हैं; जैसे- यूरिया, शर्करा, सोडियम प्रोपियोनेट आदि।

प्रश्न 17.
वास्तविक विलयन तथा कोलॉइडी विलयन में विभेद कीजिए। (2011)
उत्तर
वास्तविक विलयन– यह एक समांग तन्त्र है जिसमें विलेय तथा विलायक के कणों का आकार बराबर होता है। इन कणों का व्यास 10-7 सेमी से भी कम होता है। इन्हें अति सूक्ष्मदर्शी (ultra-microscope) द्वारा भी नहीं देखा जा सकता।
कोलॉइडी विलयन – यह एक विषमांग तन्त्र है, कोलॉइडी विलयन में भिन्न-भिन्न व्यासों के कण उपस्थित होते हैं। इस विलयन में विलेय के कणों का व्यास 10-4 से 10-7 सेमी होता है और विलायक के कणों का व्यास 10-7 से 10-8 सेमी होता है, जिन्हें अति सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखा जा सकता है।

प्रश्न 18.
निलम्बन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
निलम्बन विषमांग तन्त्र होते हैं। इनमें कणों का आकार 1000 nm से अधिक (>10-6 m) होता है। इस तन्त्र के कणों को नेत्रों तथा सूक्ष्मदर्शी दोनों के द्वारा देखा जा सकता है। निलम्बन के कण साधारण फिल्टर पेपर तथा जन्तु झिल्ली दोनों में से किसी में से भी नहीं गुजर पाते हैं। मिट्टी के कणों को जल में डालकर हिलाने पर निलम्बन तन्त्र प्राप्त होता है।

प्रश्न 19.
निलम्बन तथा कोलॉइडी विलयन में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2011)
उत्तर
कोलॉइडी विलयन फिल्टर पेपर से विसरित हो जाते हैं जबकि चर्मपत्र, पेपर तथा जन्तु की झिल्लियों से विसरित नहीं होते हैं। इनके कणों पर ऋण या धन आवेश होता है। इसके विपरीत निलम्बन इनमें से किसी से भी विसरित नहीं होते हैं तथा इनके कणों पर कोई आवेश नहीं होता है।

प्रश्न 20.
परिक्षिप्त प्रावस्था तथा परिक्षेपण माध्यम को परिभाषित कीजिए।
उत्तर
वह पदार्थ जो कोलॉइडी कणों के रूप में परिक्षेपण माध्यम में वितरित रहता है, परिक्षिप्त प्रावस्था का निर्माण करता है जबकि वह माध्यम जिसमें पदार्थ कोलॉइडी कणों के रूप में वितरित रहता है, परिक्षेपण माध्यम कहलाता है। अतः कोलॉइडी विलयन = परिक्षिप्त प्रावस्था + परिक्षेपण माध्यम

प्रश्न 21.
द्रव-स्नेही और द्रव-विरोधी कोलॉइड किसे कहते हैं? प्रत्येक को एक-एक उदाहरण सहित समझाइए। (2010, 13, 14, 16, 17)
उत्तर
1. द्रव-स्नेही कोलॉइड – वे कोलॉइडी पदार्थ जो विलायक के सम्पर्क में आकर तुरन्त कोलॉइडी कणों में विभाजित होकर कोलॉइडी विलयन बनाते हैं, द्रव-स्नेही कोलॉइड कहलाते हैं। इनको अवक्षेपित करने के बाद फिर से द्रव के सम्पर्क में लाकर सुगमता से कोलॉइडी विलयन बनाया जा सकता है। इस विशेष गुण के आधार पर इन्हें उत्क्रमणीय कोलॉइड (reversible colloids) कहते हैं। उदाहरणार्थ– जिलेटिन, स्टार्च, गोंद, प्रोटीन आदि।

2. द्रव-विरोधी कोलॉइड – वे कोलॉइडी पदार्थ जो विलायक के सम्पर्क में आने पर सरलता से कोलॉइडी विलयन नहीं बनाते हैं, द्रव-विरोधी कोलॉइड कहलाते हैं। इन्हें अवक्षेपित करने के बाद, फिर से कोलॉइडी विलयन में परिवर्तित करना प्राय: कठिन है। अतः ये अनुक्रमणीय कोलॉइड (irreversible colloids) कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-धात्विक या धातु ऑक्साइड, धात्विक हाइड्रॉक्साइड [Fe(OH)3], धातु सल्फाइड (As2S3) आदि।

प्रश्न 22.
द्रव-स्नेही तथा द्रव-विरोधी कोलॉइडों में कौन अधिक स्थायी है? दोनों के एक-एक उदाहरण दीजिए। (2015)
उत्तर
द्रव- स्नेही कोलॉइड अधिक स्थायी होते हैं। द्रव-स्नेही कोलॉइड के उदाहरण- गोंद, जिलेटिन आदि। द्रव-विरोधी कोलॉइड फेरिक हाइड्रॉक्साइड Fe (OH)सॉल हैं।

प्रश्न 23.
द्रव स्नेही सॉल, द्रव विरोधी सॉल से अधिक स्थायी क्यों होते हैं? समझाइए। (2017)
उत्तर
द्रव स्नेही सॉल में परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम के अणुओं के मध्य आकर्षण, द्रव विरोधी सॉल की अपेक्षा बहुत अधिक होता है इसलिए द्रव स्नेही सॉल, द्रव विरोधी सॉल की तुलना में
अधिक स्थायी होते हैं।

प्रश्न 24.
द्रव-विरोधी सॉल बनाने की संघनन विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर
संघनन विधि में पदार्थ के लघु अणुओं या आयनों को विभिन्न भौतिक और रासायनिक विधियों द्वारा परस्पर संयुक्त कराकर कोलॉइडी साइज के कण बनाये जाते हैं। एक प्रमुख संघनन विधि ऑक्सीकरण विधि है। उदाहरणार्थ– हाइड्रोजन सल्फाइड गैस (H2S) के जलीय विलयन का सल्फर डाइऑक्साइड द्वारा ऑक्सीकरण करके सल्फर का कोलॉइडी विलयन (सल्फर सॉल) बनाया जा सकता है। |
2H2S + SO2 → 3S + 2H2O

प्रश्न 25.
सहचारी कोलॉइड या मिसेल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
कुछ पदार्थ ऐसे भी ज्ञात हैं जो कम सान्द्रताओं पर सामान्य प्रबल विद्युत अपघट्य के समान व्यवहार करते हैं परन्तु उच्च सान्द्रताओं पर कणों का पुंज बनने के कारण कोलॉइड के समान व्यवहार करते हैं। इस प्रकार पुंजित कण मिसेल या सहचारी कोलॉइड कहलाते हैं।

प्रश्न 26.
आर्सेनियस सल्फाइड का शुद्ध कोलॉइडी विलयन किस प्रकार प्राप्त किया जाता है? समीकरण भी दीजिए। (2013)
उत्तर
आर्सेनियस सल्फाइड का सॉल उभय-अपघटन विधि से तैयार किया जाता है। आर्सेनियस ऑक्साइड (As2O3) के ठण्डे जलीय विलयन में धीरे-धीरे H2S गैस आधिक्य में प्रवाहित करने से आर्सेनियस सल्फाइड (As2S3) का पीला सॉल प्राप्त होता है।
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प्रश्न 27.
कोलॉइडी विलयनों (सॉल) के शुद्धिकरण की अतिसूक्ष्म निस्यन्दन विधि को समझाइए।
उत्तर
सामान्य फिल्टर पेपर (filter paper) के छिद्रों का आकार बड़ा होता है। इस कारण उससे अशुद्धि कण तथा कोलॉइडी कण आसानी से पार हो जाते हैं। अतः अशुद्ध सॉल से वैद्युत अपघट्य की अशुद्धियों को दूर करने के लिये सामान्य फिल्टर पेपर का उपयोग नहीं किया जा सकता है। लेकिन यदि सामान्य फिल्टर पेपर के छिद्रों का आकार छोटा कर दिया जाये तो अशुद्ध सॉल से अशुद्धियों को अलग करने में इसका उपयोग किया जा सकता है। इसके लिये साधारण फिल्टर पेपर को जिलेटिन या कोलोडिओन (collodion) से लेपित करने के पश्चात् फॉर्मेल्डीहाइड में डुबोया जाता है। प्रयुक्त कोलोडिओन विलयन ऐल्कोहॉल तथा ईथर के मिश्रण में नाइट्रोसेलुलोज (nitrocellulose) का 4% विलयन होता है। इस प्रकार प्राप्त फिल्टर पेपरों को अति सूक्ष्म फिल्टर (ultra filters) कहते हैं तथा इनके द्वारा अशुद्ध कोलॉइडी विलयन या सॉल को छानने के प्रक्रम को अतिसूक्ष्म नियंदन (ultrafiltration) कहते हैं।

प्रश्न 28.
गॅदले पानी को साफ करने के लिए फिटकरी का प्रयोग क्यों किया जाता है? (2012)
उत्तर
आँदले पानी में मिट्टी, रेत आदि की अशुद्धियाँ कोलॉइडी कणों के रूप में उपस्थित रहती हैं। ये कोलॉइडी कण ऋणावेशित होते हैं। कोलॉइडी कणों की अशुद्धि दूर करने के लिए जल में फिटकरी (पोटाशएलम) डाली जाती है। फिटकरी [K2SO4 . Al2(SO4)3 . 24H2O] जल में घुलकर K+ , Al3+ तथा SO2-4 आयनों में वियोजित हो जाती है। K+ और Al3+ द्वारा ऋणावेशित कणों का स्कन्दन हो जाता है। और वे जल में नीचे बैठ जाते हैं। इस प्रकार गॅदला पानी साफ हो जाता है।

प्रश्न 29.
धुएँ से कार्बन के कणों को किस प्रकार पृथक करते हैं ? (2012)
उत्तर
धुएँ को कार्बन के कोलॉइडी कणों से मुक्त करने के लिए कॉटेल धुआँ अवक्षेपक प्रयुक्त किया जाता है। इस अवक्षेपक में एक स्तम्भ में धातु का एक गोला लटका रहता है जिसे उच्च वोल्टता पर धनावेशित किया जाता है। धुएँ को अवक्षेपक में से प्रवाहित करने पर उसमें उपस्थित कार्बन के ऋणावेशित कोलॉइडी कण धनावेशित गोले के सम्पर्क में आकर निरावेशित हो जाते हैं और विद्युत उदासीन कण एक-दूसरे से मिलकर अवक्षेप के रूप में नीचे बैठ जाते हैं तथा कार्बन-कणों से मुक्त वायु बाहर निकल जाती है।

प्रश्न 30.
ठोस ऐरोसॉल क्या है? एक उदाहरण दीजिए। (2011)
उत्तर
जब परिक्षिप्त अवस्था ठोस तथा परिक्षेपण माध्यम गैस होता है तो उस कोलॉइडी विलयन को ठोस ऐरोसॉल कहते हैं; जैसे-धुआँ, ज्वालामुखी का लावा आदि।

प्रश्न 31.
कोलॉइडी अवस्था में औषधियाँ अधिक प्रभावी क्यों होती हैं? समझाइए। (2011)
उत्तर
कोलॉइडी अवस्था में औषधियाँ अधिक प्रभावी इसलिए होती हैं, क्योंकि इस अवस्था में औषधियों का अवशोषण अधिक सुगमता से होता है।

प्रश्न 32.
धुएँ में परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम लिखिए। (2012)
उत्तर
परिक्षिप्त प्रावस्था ठोस, परिक्षेपण माध्यम गैस।

प्रश्न 33.
किसी वैद्युत-अपघट्य का ऊर्णन मान क्या है? समझाइए। (2016)
उत्तर
किसी आयन का मिली मोल में वह कम-से-कम सान्द्रण जो एक लीटर सॉल को स्कन्दित करने हेतु पर्याप्त हो, उसका ऊर्णन मान कहलाता है। जितनी कम मात्रा किसी वैद्युत-अपघट्य की आवश्यक होती है, उतनी ही अधिक उसकी स्कन्दन शक्ति होती है। अतः
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प्रश्न 34.
आर्सेनियस सल्फाइड सॉल के स्कन्दन के लिए निम्नलिखित को उनकी घटती हुई स्कन्दन क्षमता के क्रम में लिखिए –
KCl, AlCl3, Na3PO4 , Mg(NO3)2
उत्तर
आर्सेनियस सल्फाइड सॉल एक ऋणात्मक सॉल है जिसको स्कन्दित करने में वैद्युत-अपघट्य के धनायन प्रयुक्त होंगे; अत: हार्डी-शुल्जे के नियमानुसार इन वैद्युत-अपघट्यों के द्वारा स्कन्दन क्षमता का घटता क्रम है –
AlCl3 > Mg(NO3)2 > KCl > Na3PO4

प्रश्न 35.
नदी तथा समुद्र के मिलन बिन्दु पर डेल्टा बनने का कारण बताइए। (2015)
उत्तर
नदी के जल में मिट्टी, रेत आदि कोलॉइडी विलयन के रूप में उपस्थित रहते हैं, क्योंकि जल में रेत (SiO2) परिक्षिप्त रहता है, जबकि समुद्री जल में NaCl जैसे लवण विलेय रहते हैं, जो वैद्युत-अपघट्य हैं। इन जलों के मिलन बिन्दु पर समुद्र के NaCl द्वारा नदी के कोलॉइड कणों का स्कन्दन (अवक्षेपण) हो जाता है, जिससे मिट्टी, रेत आदि एकत्र होकर डेल्टा का निर्माण कर देते हैं।

प्रश्न 36.
आर्सेनियस सल्फाइडे सॉल में फेरिक हाइड्रॉक्साइड का सॉल मिलाने पर दोनों का अवक्षेपण हो जाता है। समझाइए क्यों ?
उत्तर
दो विपरीत आवेशित द्रव-विरोधी सॉलों को परस्पर उचित अनुपात में मिलाने पर दोनों सॉल एक-दूसरे को अवक्षेपित कर देते हैं। इसे सॉलों का पारस्परिक स्कन्दन कहते हैं। इसीलिए ऋणावेशित
आर्सेनियस सल्फाइड सॉल और धनावेशित फेरिक हाइड्रॉक्साइड सॉल को मिलाने पर आर्सेनियस सल्फाइड तथा फेरिक हाइड्रॉक्साइड दोनों कोलॉइड एक साथ अवक्षेपित या स्कन्दित हो जाते हैं।

प्रश्न 37.
आर्सेनियस सल्फाइड सॉल को स्कन्दित करने में AlCl3 का 0.1 M घोल, Na3PO4 के 0.1 M घोल की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होता है, परन्तु फेरिक हाइड्रॉक्साइड सॉल को स्कन्दित करने में Alcl3 का 0.1 M घोल Na3PO4 के 0.1 M घोल की अपेक्षा कम प्रभावशाली होता है, क्यों ? कारण समझाइए। (2011, 13)
उत्तर
किसी कोलॉइडी विलयन का अवक्षेपण करने में विद्युत अपघट्य का वह आयन प्रभावी होता है। जिस पर कोलॉइडी कणों से विपरीत आवेश होता है तथा प्रभावी आयन की संयोजकता बढ़ने से प्रभावी
आयन की स्कन्दन शक्ति बढ़ती है।

इसलिए आसेंनियस सल्फाइड के ऋणावेशित कोलॉइडी कणों के स्कन्दन में Na3PO4 के Na+ आयन की अपेक्षा AlCl3 के Al3+ आयन अधिक प्रभावी होते हैं जबकि फेरिक हाइड्रॉक्साइड के धनावेशित कोलॉइडी कणों [Fe(OH)3] Fe3+ के स्कन्दन में AlCl3 के Cl आयन, Na3PO4 के PO3-4 आयन की अपेक्षा कम प्रभावी होते हैं।

प्रश्न 38.
रक्षी कोलॉइड क्या हैं? एक उदाहरण दीजिए। (2009, 11, 13, 16, 17)
उत्तर
जब किसी द्रव-विरोधी कोलॉइडी विलयन में वैद्युत-अपघट्य का विलयन मिलाने से पूर्व द्रव-स्नेही कोलॉइडी विलयन की कुछ मात्रा को डाला जाता है, तो द्रव-विरोधी कोलॉइड का स्कन्दन रुक जाता है अर्थात् उसका स्थायित्व बढ़ जाता है। यह प्रक्रम रक्षण (protection) कहलाता है। वे द्रव-स्नेही कोलॉइड, जिन्हें डालने पर द्रव-विरोधी कोलॉइडों का स्कन्दन से स्थायित्व बढ़ जाता है, रक्षी कोलॉइड कहलाते हैं और इस प्रकार प्राप्त द्रव-विरोधी कोलॉइडी विलयन, रक्षित (रक्षी ) कोलॉइड कहलाते हैं; जैसे—गोल्ड के कोलॉइडी विलयन में यदि सोडियम क्लोराइड का विलयन मिला दिया जाए तो यह स्कन्दित हो जाता है, किन्तु इस कोलॉइडी विलयन में यदि जिलेटिन की अल्प- मात्रा डाल दी जाए तो NaCl विलयन द्वारा स्कन्दन रुक जाता है। इस प्रकार जिलेटिन यहाँ एक रक्षी कोलॉइड के रूप में कार्य करता है।

प्रश्न 39.
स्वर्ण संख्या या स्वर्णाक की परिभाषा दीजिए। (2009, 10, 11, 12, 15, 16, 18)
उत्तर
रक्षी कोलॉइड की शक्ति को स्वर्ण संख्या (gold number) से व्यक्त किया जाता है। स्वर्ण संख्या की परिभाषा निम्न प्रकार से दी जाती है –
किसी द्रव-स्नेही कोलॉइड की स्वर्ण संख्या उसका मिलीग्राम में वह भार है जो गोल्ड सॉल के 10 मिली में उपस्थित होने पर 10% NaCl विलयन के 1 मिली को डालने पर सॉल के लाल रंग से नीले रंग में परिवर्तित होने को रोकने के लिए पर्याप्त होता है।”
स्वर्ण संख्या, रक्षी सॉल की शक्ति व्यक्त करने का प्रतीक है। स्वर्ण संख्या जितनी अधिक होगी, सॉल की स्कन्दन शक्ति उतनी ही कम होगी। कम स्वर्ण संख्या होने पर सॉल की स्कन्दन शक्ति अधिक होगी।

प्रश्न 40.
जिलेटिन व गोंद के स्वर्णाक क्रमशः 0.005 तथा 0.10 हैं। इन रक्षी कोलॉइडों में किसकी रक्षी क्षमता अधिक है?
उत्तर
रक्षी कोलॉइडों की रक्षी क्रिया उनका स्वर्णाक घटने के साथ बढ़ती है, अर्थात् एक अच्छे रक्षी कोलॉइड का स्वर्णाक कम होता है। अतः जिलेटिन की रक्षी क्षमता अधिक होगी।

प्रश्न 41.
गोल्ड सॉल के 10 मिली में 10% NaCl विलयन का 1 मिली डालने से पहले 0.025 ग्राम स्टार्च मिला देने से उसका स्कन्दन पूर्णतया रुक जाता है। स्टार्च की गोल्ड संख्या बताइए। (2009)
उत्तर
0.025.

प्रश्न 42.
जिलेटिन की स्वर्ण संख्या 0.005 है। इसका क्या तात्पर्य है?
उत्तर
इसका तात्पर्य है कि जिलेटिन की 0.005 मिलीग्राम मात्रा 10 मिली गोल्ड के कोलॉइडी विलयन का NaCl के 10% सान्द्रता के 1 मिली विलयन द्वारा स्कन्दन रोकती है।

प्रश्न 43.
पेप्टीकरण की क्रिया को एक उदाहरण द्वारा समझाइए। (2009, 12, 18)
उत्तर
पेप्टीकरण– पेप्टीकरण की विधि स्कन्दन के विपरीत है। इसमें ताजे बने हुए अवक्षेप को किसी वैद्युत-अपघट्य के तनु विलयन के साथ हिलाने पर कोलॉइडी विलयन प्राप्त होता है; जैसे- फेरिक हाइड्रॉक्साइड के ताजे अवक्षेप में फेरिक क्लोराइड का विलयन मिलाने पर लाल रंग का Fe(OH)3 का कोलॉइडी विलयन बनता है।

प्रश्न 44.
कासियस-पर्पिल क्या है? आप इसे कैसे प्राप्त करेंगे? (2013, 18)
उत्तर
ऑरिक क्लोराइड विलयन का स्टैनस क्लोराइड विलयन द्वारा अपचयन करने पर बैंगनी रंग का गोल्ड सॉल बनता है, जिसे कासियस-पर्पिल कहते हैं।
2AuCl3 + 3SnCl2 → 2Au + 3SnCl4
SnCl4 + 2H2O → SnO2 + 4HCl

प्रश्न 45.
गोल्ड सॉल बनाने की ब्रेडिग आर्क विधि का वर्णन कीजिए। (2014)
उत्तर
इस विधि में परिक्षेपण तथा संघनन दोनों क्रियाएँ होती हैं। धातु (गोल्ड) के दो इलेक्ट्रोडों को NaOH की अल्प मात्रा युक्त ठण्डे जल (परिक्षेपण माध्यम) में डुबोकर धातु इलेक्ट्रोडों के बीच विद्युत आर्क उत्पन्न किया जाता है जिससे धातु वाष्पित होती है और ठण्डा करने पर कोलॉइड आकार के कणों में परिवर्तित हो जाती है जिससे गोल्ड सॉल बन जाता है।

प्रश्न 46.
नैनो पदार्थ किसे कहते हैं? (2017)
उत्तर
ऐसे पदार्थ जिनका आकार 1 से 100 नैनो (अर्थात् 1 से 100 नैनोमीटर पैमाने) के अन्तर्गत होता है, नैनो पदार्थ कहलाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक उदाहरण देकर उत्प्रेरक के माध्यमिक यौगिक निर्माण सिद्धान्त को समझाइए।
उत्तर
माध्यमिक यौगिक निर्माण सिद्धान्त को सन् 1806 में क्लीमेन्ट तथा डीसोरम्स (Clement and Desormes) ने प्रतिपादित किया था। इस सिद्धान्त के अनुसार उत्प्रेरक किसी एक अभिकारक के साथ क्रिया करके निम्न सक्रियण ऊर्जा वाला एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है।

इस सिद्धान्त के अनुसार उत्प्रेरक किसी एक अभिकारक के साथ रासायनिक संयोग करके एक अस्थायी माध्यमिक यौगिक (intermediate compound) बनाता है। वास्तविक अभिक्रिया की तुलना में माध्यमिक यौगिक का निर्माण निम्न ऊर्जा अवरोध का मार्ग प्रदान करता है। माध्यमिक यौगिक बहुत अस्थायी होता है तथा यह माध्यमिक यौगिक दूसरे अभिकारक से क्रिया करके अभीष्ट उत्पाद बनाता है। इस प्रकार से अभिक्रिया उत्प्रेरित हो जाती है।
लैड चैम्बर विधि द्वारा सल्फ्यूरिक अम्ल के निर्माण में नाइट्रिक अम्ल उत्प्रेरक की भाँति प्रयुक्त होता है।
2SO2 +O2 [latex s=2]\underrightarrow { NO } [/latex] 2SO3
यह माना जाता है कि अभिक्रिया माध्यमिक यौगिक NO2 के निर्माण द्वारा होती है।
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry image 29

प्रश्न 2.
अधिशोषण सिद्धान्त के आधार पर ठोस उत्प्रेरक की क्रियाशीलता को समझाइए। (2009, 11)
उत्तर
इस सिद्धान्त के अनुसार, ठोस उत्प्रेरक अभिकारकों को अपनी सतह पर अधिशोषित कर लेता है। जिससे इनका ठोस की सतह पर सान्द्रण बढ़ जाता है और द्रव्य-अनुपाती क्रिया के नियमानुसार अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है, परन्तु यह सिद्धान्त इस दृष्टि से अपूर्ण है, कि इससे गैस तथा द्रव उत्प्रेरकों के प्रभाव को नहीं समझाया जा सकता। अत: इसका आधुनिक रूप निम्न प्रकार है –
आधुनिक अधिशोषण सिद्धान्त – आधुनिक सिद्धान्त, माध्यमिक यौगिक सिद्धान्त तथा अधिशोषण सिद्धान्त का संयुक्त रूप है।
उदाहरणार्थ– जब वनस्पति तेलों में हाइड्रोजन गैस निकिल उत्प्रेरक की उपस्थिति में प्रवाहित की जाती है। तो तेलों को हाइड्रोजनीकरण होता है और वनस्पति घी बनता है। Ni उत्प्रेरक की क्रियाविधि को निम्न प्रकार समझाया जा सकता है –

  1. अभिकारक अणुओं (वनस्पति तेल, हाइड्रोजन) का सान्द्रण उत्प्रेरक की सतह पर बढ़ जाता है। जिसके कारण अभिक्रिया का वेग बढ़ता है।
  2. Ni उत्प्रेरक की सतह पर विद्यमान मुक्त संयोजकताएँ अभिकारक अणुओं (वनस्पति तेल, हाइड्रोजन) से अस्थायी संयोग कर संक्रियित संकर बना लेती हैं जिससे उनके आकार में तनाव आ जाता है।
  3. इस तनाव तथा संक्रियित संकर की अधिक ऊर्जा के कारण अभिकारक अणुओं (वनस्पति तेल, हाइड्रोजन) की क्रियाशीलता बढ़ जाती है और संक्रियित संकर शीघ्र ही अपघटित होकर उत्पाद देता
  4. इस प्रकार बने उत्पाद (वनस्पति घी) के अणु उत्प्रेरक की मुक्त संयोजकताओं को छोड़कर सतह से पृथक् हो जति हैं और अभिकारक के नये अणु फिर इसी क्रम को दोहराते हैं।

इसी सिद्धान्त के अन्तर्गत यह अनुभव किया गया है कि उत्प्रेरक (Ni) की सतह पर उत्प्रेरण क्षमता समान नहीं होती है। ठोस उत्प्रेरक के पृष्ठ पर कुछ बिन्दु ऐसे होते हैं, जहाँ अधिशोषित अभिकारी अणुओं का सान्द्रण अपेक्षाकृत अधिक होता है, क्योंकि इन बिन्दुओं पर मुक्त संयोजकताओं की संख्या अपेक्षाकृत अधिक होती है। इन बिन्दुओं को सक्रिय केन्द्र (active centres) कहते हैं। सक्रिय केन्द्र मुख्यत: दरारों (cracks), शिखरों (peaks), किनारों (edges) व कोनों (corners) पर होते हैं।

प्रश्न 3.
एन्जाइम उत्प्रेरण क्या है ? इनके सामान्य लक्षणों का उल्लेख कीजिए। (2009, 10, 11, 13, 16)
उत्तर
एन्जाइम (enzyme) जटिल, उच्च अणुभार वाले नाइट्रोजनयुक्त कार्बनिक पदार्थ हैं। ये पेड़-पौधों तथा जीव-जन्तुओं की जीवित कोशिका में उत्पन्न होते हैं। ये मुख्यत: प्रोटीनीय पदार्थ होते हैं और कोलॉइडी प्रकृति के होते हैं। ये बहुत-सी जीव रासायनिक अभिक्रियाओं में उत्प्रेरक का कार्य करते हैं; अतः इनको जीव रासायनिक (biochemical) उत्प्रेरक भी कहते हैं तथा इस घटना को एन्जाइम उत्प्रेरण कहते हैं। इनका नाम मुख्यत: ऐस पर समाप्त होता है; जैसे- जाइमेस, इन्वटेंस, माल्टेस, डायस्टेस, यूरिऐस आदि। इनकी क्रिया विषमांग उत्प्रेरणात्मक प्रकृति की होती है तथा क्रिया की गति अभिक्रिया में भाग लेने वाले पदार्थों की सान्द्रता के समानुपाती होती है। इन्वर्टेस एक प्रमुख एन्जाइम उत्प्रेरक है जो सुक्रोस का ग्लूकोस व फ्रक्टोस में परिवर्तन कर देता है।
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एन्जाइमों के लक्षण

  1. ये उच्च अणुभार वाले जटिल नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक पदार्थ हैं। ये उच्च कार्बनिक पदार्थों को सरलतम पदार्थों में बदलने की क्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं।
  2. एन्जाइम जल में कोलॉइडी विलयन बनाते हैं और इस अवस्था में बहुत प्रभावी उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं।
  3. एन्जाइम किसी उत्क्रमणीय अभिक्रिया की अन्तिम साम्य स्थिति को प्रभावित नहीं करते।
  4. एन्जाइम की उत्प्रेरक क्षमता अत्यन्त विशिष्ट होती है। एक विशेष एन्जाइम केवल एक ही अभिक्रिया को उत्प्रेरित कर सकता है। यदि कोई क्रिया कई पदों में होती है तो प्रत्येक पद के लिए भिन्न एन्जाइम उत्प्रेरक होता है। सुक्रोस से एथिल ऐल्कोहॉल बनने की क्रिया दो पदों में होती है जिनमें भिन्न-भिन्न एन्जाइम उत्प्रेरक उत्प्रेरण करते हैं।
    UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry image 31
  5. ये अधिक ताप (लगभग 70°C) और विषैले पदार्थों (वैद्युत-अपघट्य) से जल्दी प्रभावित हो जाते हैं। शरीर के ताप पर ये सबसे अच्छा कार्य करते हैं। इनकी क्रिया के लिए अनुकूलतम ताप 20°C – 30°C तक है।
  6. एन्जाइम की बहुत सूक्ष्म मात्रा ही पदार्थों की बहुत अधिक मात्रा को प्रभावित करती है।
  7. प्रक्रिया में बने पदार्थों के एकत्रित हो जाने से क्रिया धीमी हो जाती है।
  8. सह-एन्जाइम (co-enzyme) की उपस्थिति में इनकी क्रियाशीलता बढ़ जाती है।
  9. इनकी क्रियाशीलता पराबैंगनी किरणों द्वारा नष्ट हो जाती है।
  10. एन्जाइम उत्प्रेरक की क्रियाशीलता pH परिवर्तन से बहुत प्रभावित होती है। प्रत्येक एन्जाइम की उत्प्रेरक सक्रियता किसी pH पर अधिकतम होती है, जिसे अनुकूलन pH कहते हैं। एन्जाइमों की अनुकूलन pH साधारणतया 5 – 7 होती है।

इनका नाम उस अभिक्रिया की प्रकृति पर निर्भर होता है जिसमें ये भाग लेते हैं और ऑक्सीडेस, रिडक्ट्रेस, हाइड्रेलेस आदि कहलाते हैं।

प्रश्न 4.
कोलॉइडी विलयनों के सामान्य भौतिक गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
कोलॉइडी विलयनों के सामान्य भौतिक गुण निम्नवत् हैं –

  1. विषमांग प्रकृति – कोलॉइडी विलयन प्रकृति में विषमांग होते हैं तथा इनमें दो प्रावस्थाएँ-परिक्षिप्त । प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम होते हैं।
  2. स्थायित्व – सामान्यतः द्रवरागी सॉल तथा सूक्ष्म मात्रा में वैद्युत अपघट्य के उपस्थित होने पर द्रव-विरागी कोलॉइड स्थायी होते हैं तथा इनके परिक्षिप्त कण कुछ समय तक रखने पर नीचे नहीं बैठते हैं लेकिन लम्बे समय तक रखने पर बड़े आकार के कुछ कोलॉइडी कण बैठ जाते हैं।
  3. परिक्षिप्त कणों की दृश्यता – यद्यपि कोलॉइडी विलयन प्रकृति में विषमांग होते हैं लेकिन उनमें उपस्थित परिक्षिप्त कणों को नेत्रों द्वारा देखा जाना सम्भव नहीं है। नेत्रों द्वारा देखने पर ये समांग प्रतीत होते हैं। इसका कारण यह है कि नेत्र द्वारा देखे जाने वाले सबसे छोटे कणों की तुलना में भी कोलॉइडी कणों का आकार छोटा होता है। कोलॉइडी विलयनों के कणों को साधारण सूक्ष्मदर्शी द्वारा | भी नहीं देखा जा सकता है।
  4. छननता – अत्यन्त सूक्ष्म कणों की उपस्थिति के कारण कोलॉइडी विलयन सामान्य फिल्टर पेपर से पार हो जाते हैं, लेकिन जन्तु झिल्ली, सैलोफेन या अति सूक्ष्म फिल्टर से कोलॉइड़ी कण पार नहीं हो पाते हैं।
  5. रंग – कोलॉइडी विलयन का रंग परिक्षिप्त कणों के द्वारा प्रकीर्णित प्रकाश के तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त, प्रकाश का तरंगदैर्ध्य कणों के आकार एवं प्रकृति पर निर्भर करता है। कोलॉइडी विलयनों का रंग प्रेक्षक द्वारा प्रकाश को ग्रहण करने के तरीके पर भी निर्भर करता है। उदाहरण के लिए दूध एवं पानी का मिश्रण परावर्तित प्रकाश में देखने पर नीला एवं संचरित प्रकाश में देखने पर लाल दिखाई देता है। सूक्ष्मतम कणों वाले गोल्ड सॉल का रंग लाल होता है, जैसे- जैसे कणों का आकार बढ़ता जाता है यह बैंगनी, फिर नीला और अन्त में स्वर्णिम हो जाता है।

प्रश्न 5.
समझाइए कि As2S3 के कोलॉइडी कण ऋणावेशित क्यों होते हैं? (2017)
उत्तर
आर्सेनियस ऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड की अभिक्रिया से बने आर्सेनियस सल्फाइड के कण विलयन से सल्फाइड आयनों को पृष्ठ पर अधिशोषित करके ऋणावेशित हो जाते हैं। सल्फाइड आयन (S) प्राथमिक अधिशोषित स्तर और हाइड्रोजन आयन (H+) द्वितीयक विसरित स्तर बनाते हैं।
[As2S3]s2- : 2H+
इसलिए As2S3 के कोलॉइडी कण ऋणावेशित हो जाते हैं।

प्रश्न 6.
ब्राउनियन गति पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2009, 16)
उत्तर
कोलॉइडी सॉल में कोलॉइडी कणों की लगातार टेढ़ी-मेढ़ी गति को ब्राउनियन गति कहा जाता है। ब्राउनियन गति कोलॉइडी कणों के आकार और सॉल की श्यानता पर निर्भर करती है। कोलॉइडी कणों का आकार जितना छोटा और श्यानता जितनी कम होगी, ब्राउनियन गति उतनी ही तीव्र होगी। यह कोलॉइड की प्रकृति पर निर्भर नहीं करती है। कोलॉइडी कणों पर गति करते हुये परिक्षेपण माध्यम के अणुओं के असमान प्रहारों के कारण ब्राउनियन गति उत्पन्न होती है।

परिक्षेपण माध्यम के अणु गति करते हुए सभी दिशाओं में कोलॉइडी कणों से लगातार टकराते हैं जिससे कोलॉइडी कणों में गृति आ जाती है। चूंकि कणों पर होने वाली टक्करों के बल असमान होते हैं इस कारण कोलॉइडी कण किसी विशेष दिशा में गति करते हैं। जैसे ही एक कण किसी निश्चित दिशा में गति करता है वैसे ही माध्यम के अन्य अणु इससे टकराते हैं जिससे कण अपने गति करने की दिशा में परिवर्तन कर लेता है। यह प्रक्रम लगातार चलने के कारण कण टेढ़े-मेढ़े पथ पर गति करता है। कोलॉइडी कणों के आकार बढ़ने पर ब्राउनियन गति का मान कम हो जाता है। यही कारण है कि निलम्बन (suspension) ब्राउनियन गति प्रदर्शित नहीं करते हैं।

प्रश्न 7.
हाड-शुल्जे नियम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2010, 12, 15)
या
“आयनों का स्कन्दन प्रभाव आयनों की संयोजकता पर निर्भर करता है। इस कथन को उदाहरण देकर समझाइए। (2013)
उत्तर
अधिक मात्रा में वैद्युत-अपघट्य मिलाकर किसी कोलॉइडी विलयन की स्कन्दन (अवक्षेपण) क्रिया के लिए हार्डी-शुल्जे (Hardy – Schulze) ने निम्नलिखित दो नियम दिये, जिन्हें हार्डी-शुल्जे नियम कहते हैं –

  1. कोलॉइडी विलयन के स्कन्दन के लिए मिलाये गये वैद्युत-अपघट्य के वे आयन सक्रिय होते हैं, जिनका आवेश कोलॉइडी कणों के आवेश के विपरीत होता है।
  2. सॉल को स्कन्दित करने वाले आयन की शक्ति आयन की संयोजकता पर निर्भर होती है। समान संयोजकता वाले आयनों की स्कन्दित करने की शक्ति तथा मात्रा समान होती है। अधिक संयोजकता
    वाले आयनों की स्कन्दन क्षमता अधिक होती है, अर्थात् हार्डी-शुल्जे नियम के अनुसार, ‘आयनों की स्कन्दन शक्ति आयन की संयोजकता बढ़ने के साथ बढ़ती है।’

यदि As2S3 सॉल में NaCl, BaCl2 तथा AlCl3 वैद्युत-अपघट्य अलग-अलग मिलाये जाएँ तो इनके Na+, Ba2+ तथा Al3+ आयन ऋण आवेशित As2S3 सॉल को अवक्षेपित कर देते हैं। हार्डी-शुल्जे के नियमानुसार, अधिक संयोजकता वाला आयन अधिक स्कन्दन करता है। अत: Al3+ , Ba2+ तथा Na+ आयनों की स्कन्दन क्षमता का क्रम निम्नलिखित होगा –
Al3+ > Ba2+ > Na+
अत: इन आयनों से Aspss के समान मात्रा में अवक्षेपण में NaCl, BaCl2 तथा AlCl3 की मात्रा का निम्नलिखित क्रम होगा –
NaCl > BaCl2 > AlCl3
इसी प्रकार, धनावेशित सॉल के प्रति ऋणायनों की स्कन्दन शक्ति निम्न प्रकार घटती है –
Fe(CN)4-6 > PO3-4 > SO2-4 > Cl

प्रश्न 8.
पायस, पायसीकरण तथा पायसीकारक को समझाइए। पायसों का निर्माण कैसे होता है? (2017)
उत्तर
पायस – द्रव के द्रव में परिक्षेपण को पायस कहते हैं। इसे निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है –
जब परिक्षेपण माध्यम एवं परिक्षिप्त प्रावस्था दोनों ही द्रव हों तो इन दोनों प्रावस्थाओं से बने कोलॉइडी विलयन को पायस कहा जाता है।

पायसों का निर्माण – दो द्रवों को प्रबल रूप से मिश्रित करके पायस बनाये जा सकते हैं। दो द्रवों को मिश्रित करने के लिये उच्च गति की मिश्रण मशीन (high speed mixing machine) या अल्ट्रासोनिक वाइब्रेटर (ultrasonic vibrator) का प्रयोग किया जाता है। इस प्रक्रम को पायसीकरण (emulsification) कहते हैं। चूंकि पायसों को बनाने में प्रयुक्त दोनों द्रव एक-दूसरे में अमिश्रणीय होते हैं अतः पायस को बनाने में एक स्थायीकारक की आवश्यकता होती है, जिसे पायसीकारक (emulsifier) कहा जाता है। पायसीकारक को घटक द्रवों के साथ मिलाया जाता है। o/w प्रकार के पायस के लिए प्रमुख पायसीकारक प्रोटीन, गोंद, प्राकृतिक एवं संश्लेषित साबुन आदि हैं जबकि w/o प्रकार के पायस के लिए वसीय अम्लों के भारी धातुओं के लवण, लंबी श्रृंखला वाले ऐल्कोहॉल, काजल (lamp black) आदि प्रमुख पायसीकारक हैं।

प्रश्न 9.
पायस कितने प्रकार के होते हैं? प्रत्येक का उल्लेख कीजिए। (2017)
उत्तर
परिक्षिप्त प्रावस्था की प्रकृति के आधार पर पायसों को निम्नलिखित दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है –

  1. जल में तेल (o/w) प्रकार के पायस – इस प्रकार के पायसों में तेल परिक्षिप्त प्रावस्था के रूप में कार्य करता है जबकि जल परिक्षेपण माध्यम की भाँति कार्य करता है। इस प्रकार के पायस के
    उदाहरण दूध और वैनिशिंग क्रीम हैं। दूध में द्रव वसा जल में परिक्षिप्त रहती है।
  2. तेल में जल (w/o) प्रकार के पायस – इस प्रकार के पायसों में जल परिक्षिप्त प्रावस्था की तरह कार्य करता है जबकि तेल परिक्षेपण माध्यम की भाँति कार्य करता है। इस प्रकार के पायस का मुख्य उदाहरण कॉड-लीवर तेल (cod liver oil) है। मक्खन (butter) और कोल्ड क्रीम (cold cream) भी इसी प्रकार के पायस हैं।

स्पष्ट है कि पायस का प्रकार दोनों द्रवों को सापेक्षिक मात्राओं पर निर्भर करता है। जल अधिक होने पर पायस जल में तेल प्रकार का पायस होता है जबकि तेल अधिक होने पर पायस तेल में जल प्रकार का पायस होता है। पायस का प्रकार पायसीकारक की प्रकृति पर भी निर्भर करता है। उदाहरणार्थ– पायसीकारक के रूप में विलेय साबुन की उपस्थिति से जल में तेल प्रकार के पायस का निर्माण होता है। जबकि अविलेय साबुन तेल में जल प्रकार के पायसों का निर्माण करते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ठोसों पर गैसों के अधिशोषण को प्रभावित करने वाले कारकों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर
ठोस पदार्थों की सतहों पर गैसों का अधिशोषण अत्यन्त सामान्य है। एक ठोस की सतह पर असन्तुलित (unbalanced) आणविक बल उपस्थित रहते हैं। इन असन्तुलित बलों को सन्तुष्ट करने के लिए ही ठोस पदार्थ अन्य पदार्थों को अपनी सतह पर एकत्रित करते हैं।
ठोस पदार्थों की सतहों पर गैसों का अधिशोषण अग्रलिखित कारकों पर निर्भर करता है –

1. अधिशोषक की प्रकृति, पृष्ठ क्षेत्रफल तथा प्रविभाजित अवस्था – ठोस अधिशोषक की सतह पर एक अवशिष्ट बल क्षेत्र (residual force field) का होना आवश्यक है। यह क्षेत्र जितना अधिक होगा, उसमें अधिशोषण की प्रवृत्ति उतनी ही अधिक होगी। चूंकि अधिशोषण एक पृष्ठ घटना है, अत: इसके सम्पन्न होने की सीमा अधिशोषक के पृष्ठ क्षेत्रफल पर भी निर्भर करती है। अधिशोषक का पृष्ठ क्षेत्रफल जितना अधिक होगा, उसकी सतह पर उतना ही अधिक अधिशोषण होगा।

यही कारण है कि चारकोल और सिलिका जैल अच्छे अधिशोषक हैं क्योंकि वे सरंध्र (porous) होते हैं और इसलिए उनका पृष्ठीय क्षेत्रफल भी अत्यधिक होता है। एक अधिशोषक के पृष्ठ क्षेत्रफल में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि उसकी प्रविभाजित अवस्था (state of subdivision) में वृद्धि करके की जा सकती है। आकार में बड़े कणों की तुलना में उतने ही द्रव्यमान के सूक्ष्म वितरित (finely divided) कणों का पृष्ठ क्षेत्रफल बहुत अधिक होता है। यही कारण है कि कोलॉइडी अवस्था में स्थित एक पदार्थ निस्यन्द रूप में स्थित पदार्थ की तुलना में अधिक अच्छा अधिशोषक सिद्ध होता है। सूक्ष्म वितरित धातुएँ; जैसे- निकिल, प्लेटिनम आदि प्रभावशाली उत्प्रेरकों की भाँति कार्य करती हैं।

2. अधिशोषित पदार्थ की प्रकृति – किसी एक निश्चित ताप पर एक विशिष्ट अधिशोषक पर अधिशोषित होने वाली गैसों की मात्रा भी भिन्न-भिन्न होती है। नीचे सारणी में 288K पर 1 g चारकोल द्वारा अधिशोषित (NTP पर) विभिन्न गैसों के आयतन दिए गए हैं –
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry image 32
सारणी से स्पष्ट है कि उच्च क्रांतिक ताप (critical temperature) युक्त गैसों में कम क्रांतिक ताप युक्त गैसों की तुलना में अधिशोषित होने की प्रवृत्ति अधिक होती है। इसका कारण यह है कि क्रांतिक ताप अधिक होने पर एक गैस आसानी से वाण्डर वाल्स बलों के द्वारा अधिक अधिशोषक की सतह पर अधिशोषित हो जाती है।

3. ताप – किसी अधिशोषक विशेष द्वारा किसी अधिशोषित गैस की मात्रा ताप में वृद्धि करने पर घटती है तथा ताप घटाने पर बढ़ती है। ताप में वृद्धि के साथ अधिशोषण में कमी को निम्न प्रकार समझा जा सकता है- अधिशोषण में दो प्रक्रम एक साथ होते हैं- ठोस के पृष्ठ पर गैस के अणुओं का संघनन अर्थात् अधिशोषण (adsorption) और ठोस के पृष्ठ से अणुओं का गैसीय प्रावस्था में वाष्पन अर्थात् विशोषण (desorption)। अधिशोषण एक ऊष्माक्षेपी प्रक्रम है तथा उपरोक्त दोनों प्रक्रमों में निम्न साम्य स्थापित हो जाता है –
UP Board Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 5 Surface Chemistry image 33
ला- शातेलिए के नियमानुसार, ताप में वृद्धि करने पर अधिशोषण घटता है तथा ताप कम करने पर अधिशोषण में वृद्धि होती है।

4. दाब – स्थिर ताप पर, दाब में वृद्धि के साथ गैस के अधिशोषण में भी वृद्धि होती है। निम्न ताप पर जब दाब निम्न मानों से बढ़ाया जाता है तो गैसों के अधिशोषण में तीव्रता से वृद्धि होती है। विभिन्न स्थिर तापों पर 1 ग्राम चारकोल द्वारा N, गैस के अधिशोषण का दाब के साथ विचरण अग्र ग्राफ में दर्शाया गया है –
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5. ठोस अधिशोषण का सक्रियण – अधिशोषक को सक्रियत करके अर्थात् उसके पृष्ठ क्षेत्रफल में वृद्धि करके भी उसकी अधिशोषण क्षमता में वृद्धि की जा सकती है। इसके लिए अधिशोषक को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जा सकता है। यहाँ यह विशेष रूप से ध्यान रखने योग्य है कि यदि तोड़ने पर अधिशोषक लगभग चूर्ण रूप में हो जाता है तो गैस उसमें प्रवेश नहीं कर पाती है और इस स्थिति में अधिशोषण घट जाता है।
अधिशोषक के पृष्ठ को खुरचकर अथवा रासायनिक विधि द्वारा खुरदरा बनाकर भी अधिशोषक की अधिशोषण क्षमता में वृद्धि की जा सकती है।

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UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter (विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति) are part of UP Board Solutions for Class 12 Physics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter (विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Physics
Chapter Chapter 11
Chapter Name Dual Nature of Radiation and Matter (विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति)
Number of Questions Solved 82
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter (विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1:
30 kV इलेक्ट्रॉनों के द्वारा उत्पन्न X-किरणों की
(a) उच्चतम आवृत्ति, तथा |
(b) निम्नतम तरंगदैर्ध्य प्राप्त कीजिए।
हल:
दिया है, V= 30 kV = 30 x 103v
ऊर्जा E = eV = 1.6 x 10-19 x 30 x 103 J= 4.8 x 10-15 J
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प्रश्न 2:
सीज़ियम धातु का कार्य-फलन 2,14eV है। जब 6 x 1014 Hz आवृत्ति का प्रकाश धातु-पृष्ठ पर आपतित होता है, इलेक्ट्रॉनों का प्रकाशिक उत्सर्जन होता है।
(a) उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की उच्चतम गतिज ऊर्जा
(b) निरोधी विभव, और
(c) उत्सर्जित प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों की उच्चतम चाल कितनी है?
हल:
दिया है, सीजियम धातु का कार्य-फलन
W = 2.14 eV
= 214 x 1.6 x 10-19 जूल
आपतित प्रकाश की आवृत्ति
v = 6 x 1014 Hz
प्लांक का नियतांक
h = 6.62 x 10-34 जूल सेकण्ड
∴ आपतित फोटॉन की ऊर्जा
hν= 6.62 x 10-34 x 6 x 1014 जूल

(a) यदि उत्सर्जित प्रकाश इलेक्ट्रॉन की उच्चतम गतिज ऊर्जा Emax हो तो
आइन्सटीन के प्रकाश-विद्युत समीकरण hν = w + Emax से
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 2
(b) यदि विरोधी विभव V0 हो तो
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter
(c) यदि उत्सर्जित प्रकाश इलेक्ट्रॉन की अधिकतम चाल νmax हो तो
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 2b

प्रश्न 3:
एक विशिष्ट प्रयोग में प्रकाश-विद्युत प्रभाव की अन्तक वोल्टता 1.5 v है। उत्सर्जित प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों की उच्चतम गतिज ऊर्जा कितनी है?
हल:
संस्तब्ध वोल्टेज, V0= 1.5 V
प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की उच्चतम गतिज ऊर्जा,
E = eV0 = 1.5 ev = 1.5 x 16 x 10-19J = 2.4 x 10-19J

प्रश्न 4:
632.8 nm तरंगदैर्घ्य का एकवर्णी प्रकाश एक हीलियम-नियॉन लेसर के द्वारा उत्पन्न किया जाता है। उत्सर्जित शक्ति 9.42mW है।
(a) प्रकाश के किरण-पुंज में प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा तथा संवेग प्राप्त कीजिए।
(b) इस किरण-पुंज के द्वारा विकिरित किसी लक्ष्य पर औसतन कितने फोटॉन प्रति सेकण्ड पहुँचेंगे? (यह मान लीजिए कि किरण-पुंज की अनुप्रस्थ काट एकसमान है जो लक्ष्य के
क्षेत्रफल से कम है), तथा ।
(c) एक हाइड्रोजन परमाणु को फोटॉन के बराबर संवेग प्राप्त करने के लिए कितनी तेज चाल से चलना होगा?
हल:
दिया है, λ = 632.8 nm = 6328 x 10-9m
शक्ति P = 9.42 mW = 9.42 x 10-3 W
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प्रश्न 5:
पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने वाला सूर्यप्रकाश का ऊर्जा-अभिवाह (फ्लक्स) 1.388 x 103 W/m2 है। लगभग कितने फोटॉन प्रति वर्ग मीटर प्रति सेकण्ड पृथ्वी पर आपतित होते हैं? यह मान लें कि सूर्य-प्रकाश में फोटॉन का औसत तरंगदैर्घ्य 550nm है।
हल:
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प्रश्न 6:
प्रकाश-विद्युत प्रभाव के एक प्रयोग में, प्रकाश आवृत्ति के विरुद्ध अन्तक वोल्टता की ढलान 4.12 x 10-15 Vs प्राप्त होती है। प्लांक स्थिरांक का मान परिकलित कीजिए।
हल:
आइन्सटीन की प्रकाश-वैद्युत समीकरण है,
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प्रश्न 7:
एक 100 w सोडियम बल्ब (लैम्प) सभी दिशाओं में एकसमान ऊर्जा विकिरित करता है। लैम्प को एक ऐसे बड़े गोले के केन्द्र पर रखा गया है जो इस पर आपतित सोडियम के सम्पूर्ण प्रकाश को अवशोषित करता है। सोडियम प्रकाश का तरंगदैर्घ्य 589 nm है।
(a) सोडियम प्रकाश से जुड़े प्रति फोटॉन की ऊर्जा कितनी है?
(b) गोले को किस दर से फोटॉन प्रदान किए जा रहे हैं?
हल:
दिया है, P = 100 W, λ = 589 nm = 589 x 10-9 m
(a) प्रति फोटॉन ऊर्जा,
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(b) प्रति सेकण्ड गोले को दिए गए फोटॉनों की संख्या
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प्रश्न 8:
किसी धातु की देहली आवृत्ति 3.3 x 1014 Hz है। यदि 8.2 x 1014 Hz आवृत्ति का प्रकाश धातु पर आपतित हो तो प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के लिए अन्तक वोल्टता ज्ञात कीजिए।
हल:
आइन्सटीन का प्रकाश-वैद्युत समीकरण है।
hν = hν0 + Ek
यदि अन्तक वोल्टता V% हो, तो Ek = eV0
∴ hv = hv0 +eV0
⇒ eV0 = h(ν – ν0)
= 6.63 x 10-34 (8.2 x 1014 – 3.3 x 1014)
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प्रश्न 9:
किसी धातु के लिए कार्य-फलन 4.2eV है। क्या यह धातु 330 nm तरंगदैर्घ्य के आपतित विकिरण के लिए प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन देगा?
हल:
आपतित विकिरण के फोटॉन की ऊर्जा,
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 9
∴ प्रकाश धातु का कार्य-फलन, 20 = 4.2 eV (दिया है) चूँकि आपतित फोटॉन की ऊर्जा कार्य-फलन से कम है, अत: प्रकाश-इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन सम्भव नहीं

प्रश्न 10:
7.21 x 1014 Hz आवृत्ति का प्रकाश एक धातु-पृष्ठ पर आपतित है। इस पृष्ठ से 6.0 x 10 m/s की उच्चतम गति से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित हो रहे हैं। इलेक्ट्रॉनों के प्रकाश उत्सर्जन के लिए देहली आवृत्ति क्या है?
हल:
दिया है, आवृत्ति v = 7.21 x 1014 Hz,
νmax = 6.0 x 105 ms-1
आइन्सटीन की प्रकाश-वैद्युत समीकरण से
Ek = hν – hν0
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प्रश्न 11:
488 pm तरंगदैर्ध्य का प्रकाश एक ऑर्गन लेसर से उत्पन्न किया जाता है, जिसे प्रकाश-विद्युत प्रभाव के उपयोग में लाया जाता है। जब इस स्पेक्ट्रमी-रेखा के प्रकाश को उत्सर्जक पर आपतित किया जाता है, तब प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों का निरोधी (अन्तक) विभव 0.38 V है। उत्सर्जक के पदार्थ का कार्य-फलन ज्ञात करें।
हल:
दिया है, λ = 488 nm = 488 x 10-9m, V0 = 0.38 V
आपतित फोटॉन की ऊर्जा,
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प्रश्न 12:
56V विभवान्तर के द्वारा त्वरित इलेक्ट्रॉनों का
(a) संवेग, और
(b) डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य परिकलित कीजिए।
हल:
इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान = 9.1 x 10-31 kg
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प्रश्न 13:
एक इलेक्ट्रॉन जिसकी गतिज ऊर्जा 120 eV है, उसका (a) संवेग, (b) चाल, और (c) डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य क्या है?
हल:
गतिज ऊर्जा, Ec = 120 eV = 120 x 1.6 x 10-19 J
= 1.92 x 10-17 J
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प्रश्न 14:
सोडियम के स्पेक्ट्रमी उत्सर्जन रेखा के प्रकाश का तरंगदैर्घ्य 589 nm है। वह गतिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए जिस पर
(a) एक इलेक्ट्रॉन, और
(b) एक न्यूट्रॉन का डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य समान होगा।
हल:
दिया है, λ = 589 nm = 5.89 x 10-7m [∵1 nm = 10-9 m]
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प्रश्न 15:
(a) एक 0.040 kg द्रव्यमान का बुलेट जो 1.0 km/s की चाल से चल रहा है, (b) एक 0.060 kg द्रव्यमान की गेंद जो 1.0m/s की चाल से चल रही है, और (c) एक धूल-कण जिसका द्रव्यमान 1.0 x 10-9kg और जो 2.2m/s की चाल से अनुगमित हो रहा है, का डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य कितना होगा?
हल:
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प्रश्न 16:
एक इलेक्ट्रॉन और एक फोटॉन प्रत्येक का तरंगदैर्घ्य 1.00 pm है।
(a) इनका संवेग,
(b) फोटॉन की ऊर्जा, और
(c) इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है, ∴ λ= 1.00 nm = 1.00 x 10-9m
(a) इलेक्ट्रॉन तथौ फोटॉन के संवेग होते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 16
(b) फोटॉन की ऊर्जा,
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(c) इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा,
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प्रश्न 17:
(a) न्यूट्रॉन की किस गतिज ऊर्जा के लिए डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य 1.40 x 10-10 m होगा?
(b) एक न्यूट्रॉन, जो पदार्थ के साथ तापीय साम्य में है और जिसकी 300 K पर औसत गतिज ऊर्जा [latex]\frac { 3 }{ 2 }[/latex]kT है, का भी डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए।
हल:
(a) डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य,
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(b) डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य,
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 17a

प्रश्न 18:
यह दर्शाइए कि विद्युतचुम्बकीय विकिरण का तरंगदैर्घ्य इसके क्वांटम (फोटॉन) के तरंगदैर्घ्य के बराबर है।
हल:
वैद्युत-चुम्बकीय विकिरण की तरंगदैर्घ्य,
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समीकरण (1) व (3) की तुलना करने पर, λ = λ’
अर्थात् वैद्युत-चुम्बकीय विकिरण की तरंगदैर्घ्य, डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य के बराबर है।

प्रश्न 19:
वायु में 300 K ताप पर एक नाइट्रोजन अणु का डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य कितना होगा? यह मानें कि अणु इस ताप पर अणुओं के चाल वर्ग माध्य से गतिमान है। (नाइट्रोजन का परमाणु द्रव्यमान= 14.0076 u)
हल:
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अतिरिक्त अभ्यास

प्रश्न 20:
(a) एक निर्वात नली के तापित कैथोड से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की उस चाल का आकलन कीजिए, जिससे वे उत्सर्जक की तुलना में 500v के विभवान्तर पर रखे गए एनोड से टकराते हैं। इलेक्ट्रॉनों के लघु प्रारम्भिक चालों की उपेक्षा कर दें। इलेक्ट्रॉन का आपेक्षिक आवेश अर्थात् [latex]\frac { e }{ m }[/latex] = 1.76 x 1011 C kg है।।
(b) संग्राहक विभव 10 MV के लिए इलेक्ट्रॉनों की चाल ज्ञात करने के लिए उसी सूत्र का प्रयोग करें, जो (a) में काम में लाया गया है। क्या आप इस सूत्र को गलत पाते हैं? इस सूत्र को किस प्रकार सुधारा जा सकता है?
हल:
(a) त्वरक विभव V= 500 V
इलेक्ट्रॉन का आपेक्षिक आवेश [latex]\frac { e }{ m }[/latex] = 1.76 x 1011 c kg-1
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 20
माना एनोड से टकराते समय इलेक्ट्रॉनों का वेग ν है, तब
इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा में वृद्धि
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(b) पुनः इलेक्ट्रॉन की चाल
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 20b
∵ इलेक्ट्रॉन की यह चाल निर्वात् में प्रकाश की चाल c= 3 x 10 m s-1 से अधिक है तथा हम जानते हैं कि कोई द्रव्य कण निर्वात् में प्रकाश के वेग के बराबर अथवा अधिक चाल से नहीं चल सकता। इससे स्पष्ट है कि इस दशा में उक्त सूत्र (K. E. = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex]mν2) सही नहीं हो सकता।
इस दशा में इलेक्ट्रॉन की सही चाल ज्ञात करने के लिए सापेक्षता के विशिष्ट सिद्धान्त का उपयोग करना होगा।
इस सिद्धान्त के अनुसार यदि कोई द्रव्य कण प्रकाश के वेग के तुलनीय वेग से गति करता है तो उसका गतिज द्रव्यमान निम्नलिख़ित होगा
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प्रश्न 21:
(a) एक समोर्जी इलेक्ट्रॉन किरण-पुंज जिसमें इलेक्ट्रॉन की चाल 5.20 x 106 ms-1 है, पर एक चुम्बकीय-क्षेत्र 1.30 x 10-4 किरण-पुंज की चाल के लम्बवत् लगाया जाता है। किरण-पुंज द्वारा आरेखित वृत्त की त्रिज्या कितनी होगी, यदि इलेक्ट्रॉन के [latex]\frac { e }{ m }[/latex]का मान 1.76 x 1011C kg-1 है।
(b) क्या जिस सूत्र को (a) में उपयोग में लाया गया है वह यहाँ भी एक 20 Mev इलेक्ट्रॉन किरण-पुंज की त्रिज्या परिकलित करने के लिए युक्तिपरक है? यदि नहीं तो किस प्रकार इसमें संशोधन किया जा सकता है? [नोट: प्रश्न 20 (b) तथा 21 (b) आपको आपेक्षिकीय यांत्रिकी तक (UPBoardSolutions.com) ले जाते हैं जो पुस्तक के विषय के बाहर है। यहाँ पर इन्हें इस बिन्दु पर बल देने के लिए सम्मिलित किया गया है कि जिन सूत्रों को आप (a) में उपयोग में लाते हैं वे बहुत उच्च चालों अथवा ऊर्जाओं पर युक्तिपरक नहीं होते। यह जानने के लिए कि ‘बहुत उच्च चाल अथवा ऊर्जा का क्या अर्थ है? अन्त में दिए गए उत्तरों को देखें।
हल:
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इलेक्ट्रॉन की चाल = 2.65 x 109 m/s
∵ इलेक्ट्रॉन की चाल निर्वात् में प्रकाश की चाल से अधिक है। अतः पथ की त्रिज्या का परिकलन करने के लिए सामान्य सूत्र का प्रयोग नहीं किया जा सकता अपितु आपेक्षिकीय यांत्रिकी का प्रयोग करना होगा।
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 21
उक्त सूत्र से पथ की त्रिज्या की गणना की जा सकती है।

प्रश्न 22:
एक इलेक्ट्रॉन गन जिसका संग्राहक 100V विभव पर है, एक कम दाब (~10-2 mm Hg) पर हाइड्रोजन से भरे गोलाकार बल्ब में इलेक्ट्रॉन छोड़ती है। एक चुम्बकीय-क्षेत्र जिसका मान 2.83 x 10-4 Tहै, इलेक्ट्रॉन के मार्ग को 12.0 cm त्रिज्या के वृत्तीय कक्षा में वक्रित कर देता है। (इस मार्ग को देखा जा सकता है क्योंकि मार्ग में गैस आयन किरण-पुंज को इलेक्ट्रॉनों को आकर्षित करके और इलेक्ट्रॉन प्रग्रहण के द्वारा प्रकाश उत्सर्जन करके फोकस करते हैं; इस विधि को परिष्कृत किरण-पुंज नली विधि कहते हैं। आँकड़ों से [latex]\frac { e }{ m }[/latex] का मान निर्धारित कीजिए।
हल:
दिया है, इलेक्ट्रॉनों के लिए त्वरक विभव V = 100 V
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

प्रश्न 23:
(a) एक x-किरण नली विकिरण का एक संतत स्पेक्ट्रम जिसका लघु तरंगदैर्घ्य सिरा 0.45 [latex]\mathring { A }[/latex] पर है, उत्पन्न करता है। विकिरण में किसी फोटॉन की उच्चतम ऊर्जा कितनी है? (b) अपने (a) के उत्तर से अनुमान लगाइए कि किस कोटि की त्वरक वोल्टता (इलेक्ट्रॉन के लिए) की इस नली में आवश्यकता है?
हल:
(a) X – किरण विकिरण में λ = 0.45 [latex]\mathring { A }[/latex] = 45 x 10-12 m
∴ विकिरण में फोटॉन की उच्चतम ऊर्जा
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 23
(b) माना लक्ष्य से टकराने वाले इलेक्ट्रॉनों को उक्त ऊर्जा प्रदान करने के लिए त्वरक विभव V की आवश्यकता होती है।
तब इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा E = eV
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प्रश्न 24:
एक त्वरित्र (accelerator) प्रयोग में पॉजिट्रॉनों (e+) के साथ इलेक्ट्रॉनों के उच्च-ऊर्जा संघट्टन पर, एक विशिष्ट घटना की व्याख्या कुल ऊर्जा 10.2 BeV के इलेक्ट्रॉन-पॉजिट्रॉन युग्म के बराबर ऊर्जा की दो γ-किरणों में विलोपन के रूप में की जाती है। प्रत्येक γ-किरण से सम्बन्धित तरंगदैघ्र्यों के मान क्या होंगे? (1 BeV= 109 eV)
हल:
घटना में विलुप्त इलेक्ट्रॉन-पॉजिट्रॉन की कुल ऊर्जा = 10.2 x 109 eV
यह ऊर्जा दोनों γ-फोटॉनों में बराबर-बराबर बँट जाएगी।
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प्रश्न 25:
आगे आने वाली दो संख्याओं का आकलन रोचक हो सकता है। पहली संख्या यह बताएगी कि रेडियो अभियान्त्रिक फोटॉन की अधिक चिन्ता क्यों नहीं करते। दूसरी संख्या आपको यह बताएगी कि हमारे नेत्र ‘फोटॉनों की गिनती क्यों नहीं कर सकते, भले | ही प्रकाश साफ-साफ संसूचन योग्य हो।
(a) एक मध्य तरंग (medium wave) 10 kW सामर्थ्य के प्रेषी, जो 500 m तरंगदैर्ध्य की रेडियो तरंग उत्सर्जित करता है, के द्वारा प्रति सेकण्ड उत्सर्जित फोटॉनों की संख्या।
(b) निम्नतम तीव्रता का श्वेत प्रकाश जिसे हम देख सकते हैं (10-10 w m4) के संगत फोटॉनों की संख्या जो प्रति सेकण्ड हमारे नेत्रों की पुतली में प्रवेश करती है। पुतली का क्षेत्रफल लगभग 0.4 cm और श्वेत प्रकाश की औसत आवृत्ति को लगभग 6 x 1024 Hz मानिए।
हल:
(a) प्रेषी की शक्ति P = 10 kW = 104 W
उत्सर्जित फोटॉनों की तरंगदैर्घ्य λ = 500 m
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हम देख सकते हैं कि 10 kW सामर्थ्य के प्रेषी द्वारा प्रति सेकण्ड उत्सर्जित फोटॉनों की संख्या इतनी अधिक है। अत: फोटॉनों की अलग-अलग ऊर्जा की उपेक्षा करके रेडियो तरंगों की कुल ऊर्जा को सतत माना जा सकता है।

(b)
श्वेत प्रकाश की औसत आवृत्ति v = 6 x 104 Hz
∴ श्वेत प्रकाश की फोटॉन की ऊर्जा E = hav = 6.62 x 10-34 x 6 x 1014
= 3.97 x 10-19 J
आँख द्वारा संसूचित न्यूनतम तीव्रता = 10-10 Wm-2
इस स्थिति में आँख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की न्यूनतम शक्ति
P = 10-10 Wm-2 x (0.4 x 10-4 m2)
= 4 x 10415 W
∴ आँख में प्रति सेकण्ड प्रवेश करने वाले फोटॉनों की संख्या
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यद्यपि यह संख्या रेडियो प्रेषी द्वारा प्रति सेकण्ड उत्सर्जित फोटॉनों की संख्या से अत्यन्त कम है। परन्तु आँख के सूक्ष्म क्षेत्रफल की दृष्टि से इतनी अधिक (UPBoardSolutions.com) है कि हम आँख पर गिरने वाले फोटॉनों के अलग-अलग प्रभाव को संसूचित नहीं कर पाते अपितु प्रकाश के सतत प्रभाव का अनुभव करते हैं।

प्रश्न 26:
एक 100 W पारद (Mercury) स्रोत से उत्पन्न 2271 [latex]\mathring { A }[/latex] तरंगदैर्घ्य का पराबैंगनी प्रकाश एक मॉलिब्डेनम धातु से निर्मित प्रकाश सेल को विकिरित करता है। यदि निरोधी विभव – 1.3 V हो तो धातु के कार्य-फलन का आकलन कीजिए। एक He-Ne लेसर द्वारा . उत्पन्न 6328 [latex]\mathring { A }[/latex] के उच्च तीव्रता (~105 w m-2) के लाल प्रकाश के साथ प्रकाश सेल
किस प्रकार अनुक्रिया करेगा?
हल:
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प्रश्न 27:
एक नियॉन लैम्प से उत्पन्न 640.2nm (1 nm = 10-9 m) तरंगदैर्ध्य का एकवर्णी विकिरण टंगस्टन पर सीजियम से निर्मित प्रकाश-संवेदी पदार्थ को विकिरित करता है। निरोधी वोल्टता 0.54 V मापी जाती है। स्रोत को एक लौह-स्रोत से बदल दिया जाता है। इसकी 427.2 nm वर्ण-रेखा उसी प्रकाश सेल को विकिरित करती है। नयी निरोधी वोल्टता ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है, λ1 = 640.2nm = 640.2 x 10-9 m
निरोधी वोल्टता V1 = 0.54 V
λ2 = 427.2nm = 427.2 x 10-9m के लिए निरोधी विभव V2 = ?
आइन्स्टीन के प्रकाश-विद्युत समीकरण से,
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प्रश्न 28:
एक पारद लैम्प, प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन की आवृत्ति निर्भरता के अध्ययन के लिए एक सुविधाजनक स्रोत है, क्योंकि यह दृश्य-स्पेक्ट्रम के पराबैंगनी (UV) से लाल छोर तक कई वर्ण-रेखाएँ उत्सर्जित करता है। रूबीडियम प्रकाश सेल के हमारे प्रयोग में, पारद (Mercury) स्रोत की निम्न वर्ण-रेखाओं का प्रयोग किया गया
λ1 = 3650[latex]\mathring { A }[/latex] ,
λ2 = 4047[latex]\mathring { A }[/latex] ,
λ3 = 4358[latex]\mathring { A }[/latex] ,
λ4 = 5461A, 25 = 6907[latex]\mathring { A }[/latex]
निरोधी वोल्टताएँ, क्रमशः निम्न मापी गईं हैं
V01 = 1.28 v,
V02 = 0.95 v,
V03 = 0.74V,
V04 = 0.16 V,
V05 = 0V
(a) प्लांक स्थिरांक h का मान ज्ञात कीजिए।
(b) धातु के लिए देहली आवृत्ति तथा कार्य-फलन का आकलन कीजिए।
[नोट-उपर्युक्त आँकड़ों से h का मान ज्ञात करने के लिए आपको e = 1.6 x 10-19 C की आवश्यकता होगी। इस प्रकार के प्रयोग Na,Li, K आदि के लिए मिलिकन ने किए थे। मिलिकन ने अपने तेल-बूंद प्रयोग से प्राप्त के मान का उपयोग कर आइन्स्टीन के प्रकाश विद्युत समीकरण को सत्यापित किया तथा इन्हीं प्रेक्षणों से h के मान के लिए पृथक् अनुमान लगाया।]
हल:
किसी दी गई तरंगदैर्घ्य 2 के लिए संगत आवृत्ति
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प्रश्न 29:
कुछ धातुओं के कार्य-फलन निम्न प्रकार दिए गए हैं
Na: 2.75 ev; K: 2.30 ev; Mo:417ev; Ni : 5.15 ev इनमें धातुओं में से कौन प्रकाश सेल से 1m दूर रखे गए He-cd लेसर से उत्पन्न 3300[latex]\mathring { A }[/latex] तरंगदैर्घ्य के विकिरण के लिए प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन नहीं देगा? लेसर को सेल के निकट 50 cm दूरी पर रखने पर क्या होगा?
हल:
He-Cd लेसर से उत्पन्न तरंगदैर्घ्य λ = 3300[latex]\mathring { A }[/latex] = 3.3 x 10-7m
इस विकिरण के एक फोटॉन की ऊर्जा
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 29
∵ Mo तथा Ni के लिए कार्य-फलंन, उक्त विकिरण के एक फोटॉन की ऊर्जा से अधिक है; अतः उक्त दोनों धातु प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन नहीं देंगे। यदि लेसर (UPBoardSolutions.com) को 1m के स्थान पर 50 cm दूरी पर रख दें तो भी उक्त परिणाम में कोई अन्तर नहीं आएगा, क्योंकि लेसर को समीप रखने पर धातु पर गिरने वाले प्रकाश की तीव्रता तो बढ़ जाएगी,परन्तु एक फोटॉन से सम्बद्ध ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होगा।

प्रश्न 30:
10-5 W m-2 तीव्रता का प्रकाश सोडियम प्रकाश सेल के 2 cm2 क्षेत्रफल के पृष्ठ पर पड़ता है। यह मान लें कि ऊपर की सोडियम की पाँच परतें आपतित ऊर्जा को अवशोषित करती हैं तो विकिरण के तरंग-चित्रण में प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के लिए आवश्यक समय का आकलन कीजिए। धातु के लिए कार्य-फलन लगभग 2eV दिया गया है। आपके उत्तर का क्या निहितार्थ है?
हल:
दिया है, प्रकाश की तीव्रता I = 10-5 W/m2
सेल का क्षेत्रफल A= 2 x 10-4m, कार्य-फलन Φ0 = 2eV
∴ सोडियम परमाणु की लगभग त्रिज्या r = 10-10 m
∴ सोडियम परमाणु का लगभग क्षेत्रफल πr² = 3.14 x 10-20 = 10-20 m2
∴ एक परत में उपस्थित सोडियम परमाणुओं की संख्या
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 30
∴ 5 परतों में परमाणुओं की संख्या n= 5 x 2x 1016 = 1017
∵ सोडियम के एक परमाणु में एक चालन इलेक्ट्रॉन होता है; अतः इन n परमाणुओं में n चालन इलेक्ट्रॉन होंगे। सेल पर प्रति सेकण्ड आपतित प्रकाशिक ऊर्जा = I x A
= 10-5 x 2 x 10-4 = 2x 109W
∵ कुल ऊर्जा.सोडियम की पाँच (UPBoardSolutions.com) परतों द्वारा अवशोषित होती है; अतः तरंग सिद्धान्त के अनुसार यह ऊर्जा पाँच परतों के n. इलेक्ट्रॉनों में समान रूप से बँट जाती है।
∴ एक इलेक्ट्रॉन को प्रति सेकण्ड प्राप्त होने वाली ऊर्जा
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अर्थात् 1 इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जित कराने के लिए आवश्यक ऊर्जा = 3.2 x 10-19 J
∴ किसी इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जित होने में लगा समय है = पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त करने में लगा समय
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उत्तर का निहितार्थ: इस उत्तर से स्पष्ट है कि प्रकाश के तरंग सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश विद्युत-उत्सर्जन की घटना में एक इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जित होने में लगने वाला (UPBoardSolutions.com) समय बहुत अधिक है जो कि इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन में लगे प्रेक्षित समय (लगभग 10-9s) से मेल नहीं खाता। इससे स्पष्ट है कि प्रकाश का तरंग सिद्धान्त प्रकाश विद्युत उत्सर्जन की व्याख्या नहीं कर सकता।

प्रश्न 31:
X-किरणों के प्रयोग अथवा उपयुक्त वोल्टता से त्वरित इलेक्ट्रॉनों से क्रिस्टल-विवर्तन प्रयोग किए जा सकते हैं। कौन-सी जाँच अधिक ऊर्जा सम्बद्ध है? (परिमाणिक तुलना के लिए, जाँच के लिए तरंगदैर्घ्य को 1[latex]\mathring { A }[/latex] लीजिए, जो कि जालक (लेटिस) में अन्तर-परमाणु अन्तरण की कोटि को है) (me = 9.11 x 10-31 kg)।
हल:
दिया है, X-किरण फोटॉन तथा इलेक्ट्रॉन की तरंगदैर्घ्य λ = 1[latex]\mathring { A }[/latex] = 10-10 m
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प्रश्न 32:
(a) एक न्यूट्रॉन, जिसकी गतिज ऊर्जा 150 eV है, का डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य प्राप्त कीजिए। जैसा कि आपने प्रश्न 31 में देखा है, इतनी ऊर्जा का इलेक्ट्रॉन किरण-पुंज क्रिस्टल विवर्तन प्रयोग के लिए उपयुक्त है। क्या समान ऊर्जा का एक न्यूट्रॉन किरण-पुंज इस प्रयोग
के लिए समान रूप से उपयुक्त होगा? स्पष्ट कीजिए। [mn = 1.675 x 10-27 kg]
(b) कमरे के सामान्य ताप (27°C) पर ऊष्मीय न्यूट्रॉन से जुड़े डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए। इस प्रकार स्पष्ट कीजिए कि क्यों एक तीव्रगामी न्यूट्रॉन को न्यूट्रॉन-विवर्तन प्रयोग में उपयोग में लाने से पहले वातावरण के साथ तापीकृत किया जाता है।
हल:
(a) दिया है, न्यूट्रॉन की ऊर्जा E = 150 eV = 150 x 1.6 x 10-19 J.
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(b) दिया है, कमरे का तापमान T = 27 + 273 = 300K
न्यूट्रॉन का द्रव्यमान mn = 1.675 x 10-27 kg
बोल्टजमैन नियतांक k = 1.38 x 10-23 J/mole K
कमरे के ताप पर न्यूट्रॉन की गतिज ऊर्जा
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स्पष्ट है कि 27°C के न्यूट्रॉन की डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य, क्रिस्टलों में अन्तरापरमाण्विक दूरी के साथ तुलनीय है। अतः यह न्यूट्रॉन क्रिस्टल विवर्तन प्रयोग के लिए उपयुक्त है। इससे स्पष्ट है कि न्यूट्रॉनों को क्रिस्टल विवर्तन प्रयोगों में उपयोग में लाने के लिए उन्हें वातावरण के साथ तापीकृत करना चाहिए।

प्रश्न 33:
एक इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में 50 kV वोल्टता के द्वारा त्वरित इलेक्ट्रॉनों का उपयोग किया जाता है। इन इलेक्ट्रॉनों से जुड़े डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए। यदि अन्य (UPBoardSolutions.com) बातों (जैसे कि संख्यात्मक द्वारक आदि) को लगभग समान लिया जाए, इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता की तुलना पीले प्रकाश का प्रयोग करने वाले प्रकाश सूक्ष्मदर्शी से किस प्रकार होती है?
हल:
दिया है, इलेक्ट्रॉनों का त्वरक विभवान्तर V= 50kV= 50 x 103 v
∴ इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा E = eV जूल
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 33
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प्रश्न 34:
किसी जाँच की तरंगदैर्घ्य उसके द्वारा कुछ विस्तार में जाँच की जा सकने वाली संरचना के आकार की लगभग आमाप है। प्रोटॉनों तथा न्यूट्रॉनों की क्वार्क (quark) संरचना 10-15 m या इससे भी कम लम्बाई के लघु पैमाने की है। इस संरचना को सर्वप्रथम 1970 दशक के प्रारम्भ में, एक रेखीय त्वरित्र (Linear accelerator) से उत्पन्न उच्च ऊर्जा इलेक्ट्रॉनों के किरणे-पुंजों के उपयोग द्वारा, स्टैनफोर्ड, संयुक्त राज्य अमेरिका में जाँचा गया था। इन इलेक्ट्रॉन किरण-पुंजों की ऊर्जा की कोटि का अनुमान लगाइए। (इलेक्ट्रॉन
की विराम द्रव्यमान ऊर्जा 0.511 MeV है।)
हल:
क्वार्क संरचना का आमाप, λ = 10-15m
इलेक्ट्रॉन का विराम द्रव्यमान m0 = 9.1 x 10-31 kg
∴ इलेक्ट्रॉन की विराम द्रव्यमान ऊर्जा ।
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प्रश्न 35:
कमरे के ताप (27°C) और 1 atm दाब पर He परमाणु से जुड़े प्रारूपी डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए और इन परिस्थितियों में इसकी तुलना दो परमाणुओं के बीच औसत दूरी से कीजिए।
हल:
कमरे का ताप T = 27 + 273 = 300 K
He का परमाणु द्रव्यमान = 4g
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

प्रश्न 36:
किसी धातु में (27°C) पर एक इलेक्ट्रॉन का प्रारूपी डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य परिकलित कीजिए और इसकी तुलना धातु में दो इलेक्ट्रॉनों के बीच औसत पृथक्य से कीजिए जो लगभग 2 x 10-10 m दिया गया है। (नोट-प्रश्न 35 और 36 प्रदर्शित करते हैं कि जहाँ सामान्य परिस्थितियों में गैसीय अणुओं से जुड़े तरंग पैकेट अ-अतिव्यापी हैं; किसी धातु में इलेक्ट्रॉन तरंग पैकेट प्रबल रूप से एक-दूसरे से अतिव्यापी हैं। यह सुझाता है कि जहाँ किसी सामान्य गैस में अणुओं की अलग पहचान हो सकती है, किसी धातु में । इलेक्ट्रॉन की एक-दूसरे से अलग पहचान नहीं हो सकती। इस अप्रभेद्यता के कई मूल निहितार्थताएँ हैं। जिन्हें आप भौतिकी के अधिक उच्च पाठ्यक्रमों में जानेंगे]
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 36
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

प्रश्न 37:
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(a) ऐसा विचार किया गया है कि प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के भीतर क्वार्क पर आंशिक आवेश होते
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 37
यह मिलिकन तेल-बूंद प्रयोग में क्यों नहीं प्रकट होते?
(b) संयोग की क्या विशिष्टता है? हम e तथाm के विषय में अलग-अलग विचार क्यों नहीं करते?
(c) गैसें सामान्य दाब पर कुचालक होती हैं, परन्तु बहुत कम दाब पर चालन प्रारम्भ कर देती हैं। क्यों?
(d) प्रत्येक धातु का एक निश्चित कार्य-फलन होता है। यदि आपतित विकिरण एकवर्णी हो तो सभी प्रकाशिक इलेक्ट्रॉन समान ऊर्जा के साथ बाहर क्यों नहीं आते हैं? प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों का एक ऊर्जा वितरण क्यों होता है?
(e) एक इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा तथा इसका संवेग इससे जुड़े पदार्थ-तरंग की आवृत्ति तथा इसके तरंगदैर्घ्य के साथ निम्न प्रकार सम्बन्धित होते हैं
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter 37b
परन्तु λ का मान जहाँ भौतिक महत्त्व का है, के मान (और इसलिए कला चाल 22 को मान) का कोई भौतिक महत्त्व नहीं है। क्यों?
उत्तर:
(a) भिन्नात्मक आवेश वाले क्वार्क न्यूट्रॉन तथा प्रोटॉन के भीतर इस प्रकार सीमित रहते हैं कि प्रोटॉन में उपस्थित क्वार्को के आवेशों का योग +e तथा न्यूट्रॉन में उपस्थित क्वार्को के आवेशों का योग । शून्य बना रहता है तथा ये क्वार्क पारस्परिक आकर्षण बलों द्वारा बँधे रहते हैं। जब इन्हें (UPBoardSolutions.com) अलग करने का प्रयास किया जाता है तो बल और अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं और इसी कारण वे एक साथ बने रहते हैं। इसीलिए प्रकृति में भिन्नात्मक आवेश मुक्त अवस्था में नहीं पाए जाते अपितु वे सदैव इलेक्ट्रॉनिक आवेश के पूर्ण गुणज के रूप में ही पाए जाते हैं।

(b) इलेक्ट्रॉन की गति समीकरणों eV= [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] mν, eE = ma तथा eνB = mν2/r द्वारा निर्धारित होती है। इनमें से प्रत्येक में e तथा m दोनों एक साथ आए हैं। इससे स्पष्ट है कि इलेक्ट्रॉन की गति के लिए e अथवा m पर अकेले-अकेले विचार करने के स्थान पर [latex]\frac { e }{ m }[/latex] पर विचार किया जाता है।

(c) सामान्य दाब पर गैसों में विसर्जन के कारण उत्पन्न आयन कुछ ही दूरी तय करने तक गैस के
अन्य अणुओं से टकराकर उदासीन हो जाते हैं (UPBoardSolutions.com) और इस कारण सामान्य दाब पर गैसों में विद्युत चालन नहीं हो पाता। इसके विपरीत अत्यन्त निम्न दाब पर गैस में अणुओं की संख्या बहुत कम रह जाती है। इस कारण उत्पन्न आयन अन्य अणुओं से टकराने से पूर्व ही विपरीत इलेक्ट्रॉड तक पहुँच जाते हैं।

(d) कार्य फलन से, धातु में उच्चतम ऊर्जा स्तर अथवा चालन बैण्ड में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा का ज्ञान होता है। परन्तु प्रकाश विद्युत उत्सर्जन में । इलेक्ट्रॉन अलग-अलग ऊर्जा स्तरों से निकल कर आते हैं। अतः उत्सर्जन के बाद उनके पास , भिन्न-भिन्न ऊर्जाएँ होती हैं।

(e) किसी द्रव्य कण की ऊर्जा का निरपेक्ष मान (न कि संवेग) एक निरपेक्ष स्थिरांक के अधीन स्वेच्छ होता है। यही कारण है कि द्रव्य तरंगों से सम्बद्ध तरंगदैर्घ्य λ का ही भौतिक महत्त्व होता है न कि आवृत्ति ν का। इसी कारण कला वेग νλका भी कोई भौतिक महत्त्व नहीं होता।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1:
किसी धातु का कार्य फलन  [latex]\frac { hc }{ { \lambda }_{ 0 } }[/latex] है। इसके पृष्ठ पर λ तरंगदैर्घ्य का प्रकाश आपतित होता है। धातु में से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन के लिए शर्त है (2015)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter p1
उत्तर:
(iii) λ = λ0

प्रश्न 2:
किसी धात्विक पृष्ठ से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन तभी सम्भव है, जब आपतित प्रकाश की आवृत्ति (2016)
(i) देहली आवृत्तिं की आधी हो।
(ii) देहली आवृत्ति की एक तिहाई हो
(iii) देहली आवृत्ति से कुछ कम हो
(iv) देहली आवृत्ति से अधिक हो।
उत्तर:
(iv) देहली आवृत्ति से अधिक हो।

प्रश्न 3:
प्रकाश वैद्युत प्रयोग में निरोधी विभव Vs तथा आपतित प्रकाश की आवृत्ति के बीच ग्राफ खींचने पर एक सरल रेखा प्राप्त होती है जो अक्ष से 8 कोण बनाती है। यदि पृष्ठ का कार्य फलन Φ हो, तो tanθ का मान होगा
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter p3
उत्तर:
(i)
[latex]\frac { h }{ e }[/latex]

प्रश्न 4:
समान गतिज ऊर्जा वाले विभिन्न कणों की डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य (λ), कण के द्रव्यमान पर (m) निर्भर करती है (2014)
(i) λ α m
(ii) λ α m1/2
(iii) λ α m-1
(iv) λ α m-1/2
उत्तर:
(iv)
 λ α m-1/2

प्रश्न 5:
किसी गतिमान कण से सम्बद्ध डी-ब्रॉग्ली तरंग की तरंगदैर्घ्य निर्भर नहीं करती है (2011, 16)
(i) द्रव्यमान पर
(ii) आवेश पर
(iii) वेग पर
(iv) संवेग पर
उत्तर:
(ii) आवेश पर

प्रश्न 6:
यदि किसी कण का संवेग दुगुना कर दिया जाए, तो इसकी डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य होगी (2017)
(i) अपरिवर्तित
(i) चारगुनी
(iii) दुगुनी
(iv) आधी
उत्तर:
(iv) आधी

प्रश्न 7:
फोटॉन.का विराम द्रव्यमान होता है
(i) E/c2
(ii) h/cλ
(iii) h/λ
(iv) शून्य
उत्तर:
(iv) शून्य

प्रश्न 8:
फोटॉन के गतिक द्रव्यमान का सूत्र है (2009)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter p8
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter p8a

प्रश्न 9:
फोटॉन के गतिज द्रव्यमान का सूत्र है (2015, 17)
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter p9
जहाँ, h प्लांक नियतांक, ν फोटॉन की आवृत्ति तथा c उसकी चाल है
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter p9a

प्रश्न 10:
एक फोटॉन की तरंगदैर्घ्य 1[latex]\mathring { A }[/latex] है। इसका संवेग होगा : (2011)
(i) 0.1 h
(ii) 10h
(iii) 1010h
(iv) 1011h
उत्तर:
(iii) 1010h

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्रकाश-वैद्युत कार्य-फलन से क्या तात्पर्य है? (2009, 10, 11)
या
कार्य-फलन की परिभाषा लिखिए। (2013, 18)
या
कार्य-फलन से आप क्या समझते हैं? (2014)
उत्तर:
“वह न्यूनतम प्रकाश ऊर्जा जो किसी धातु पृष्ठ से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित करने के लिए आवश्यक होती है, उस धातु का प्रकाश वैद्युत कार्य-फलम (work function) कहलाता है। सामान्यत: इसको W से व्यक्त करते हैं।
W = hν0 अथवा w = hc/λ0

प्रश्न 2:
सीजियम का कार्यफलन 2eV है। इस कथन की व्याख्या कीजिए। (2010)
उत्तर:
सीजियम धातु के पृष्ठ से प्रकाश इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित करने के लिए इस पर आपतित प्रकाश फोटॉन की न्यूनतम ऊर्जा 2 eV होनी चाहिए।

प्रश्न 3:
प्रकाश-वैद्युत प्रभाव में देहली आवृत्ति से क्या तात्पर्य है? इसकी क्या महत्ता है? (2011)
या
देहली आवृत्ति से आप क्या समझते हैं? (2013, 14, 17)
या
प्रकाश वैद्युत उत्सर्जन में देहली आवृत्ति से आप क्या समझते हैं? (2017)
उत्तर:
देहली आवृत्ति आपतित प्रकाश की वह न्यूनतम आवृत्ति है जो किसी धातु से प्रकाश-इलेक्ट्रॉन का। उत्सर्जन कर सके। इसे ν0 से प्रदर्शित करते हैं। इससे कम आवृत्ति के प्रकाश से धातु से कोई प्रकाश-इलेक्ट्रॉन नहीं निकलता है। यही इसकी महत्ता है।।

प्रश्न 4:
प्रकाश-वैद्युत प्रभाव में देहली तरंगदैर्ध्य से आप क्या समझते हैं? (2009, 17, 18)
उत्तर:
देहली तरंगदैर्ध्य-किसी धातु पर आपतित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य का वह अधिकतम मान जिससे तरंगदैर्ध्य का प्रकाश धातु-पृष्ठ से प्रकाश इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित कर सके, देहली तरंगदैर्ध्य कहलाता है। इसको λ0 से प्रदर्शित करते हैं। यह देहली आवृत्ति के संगत तरंगदैर्घ्य होती है, अर्थात् λ0= c/ν0, जहाँ c = प्रकाश की चाल (निर्वात् में)।

प्रश्न 5:
सीजियम धातु के पृष्ठ का कार्यफलन 1.8eV हो तो देहली तरंगदैर्ध्य क्या होगी? (2011,14)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

प्रश्न 6:
एक धातु का कार्य-फलन 2.5eV है, 2eV ऊर्जा के दो फोटॉन धातु पृष्ठ पर आपतित होते हैं। कारण सहित स्पष्ट कीजिए कि फोटो इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित हींगे या नहीं। (2014)
हल:
धातु का कार्य-फलन W = 2.5 eV है तथा इस पर आपतित दोनों फोटॉनों में प्रत्येक की ऊर्जा hν = 2 eV; चूँकि hν <W, अत: फोटो-इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं होगा क्योंकि फोटो-इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन फोटॉन की ऊर्जा पर निर्भर करता है, धातु पर आपतित सभी फोटॉनों की कुल ऊर्जा पर नहीं।

प्रश्न 7:
किसी पृष्ठ का कार्य-फलन 2.5 इलेक्ट्रॉन वोल्ट है। उसके लिए देहली आवृत्ति ज्ञात कीजिए। (2013)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

प्रश्न 8:
किसी धातु जिसका कार्य-फलन 3.2eV है, पर 4.0 eV ऊर्जा वाला एक फोटॉन आपतित होता है। उत्सर्जित फोटो-इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा कितनी होगी? (2013, 14)
हल:
उत्सर्जित फोटो-इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा
Ek = hν – W = 4eV- 3.2eV
= 0.8 eV= 0.8 x 1.6 x 10-19 जूल
= 1.28 x 10-19 जूल

प्रश्न 9:
किसी धातु के लिए कार्य फलन 3.3 इलेक्ट्रॉन वोल्ट है। धातु के लिए देहली आवृत्ति की  गणना कीजिए। (2017)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

प्रश्न 10:
प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के प्रयोग में आपतित प्रकाश की आवृत्ति दोगुनी करने पर उत्सर्जित प्रकाश-इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा कितनी बढ़ जायेगी ? (2012)
उत्तर:
∵ E = hν
∴ गतिज ऊर्जा दोगुनी हो जायेगी।

प्रश्न 11:
प्रकाश वैद्युत प्रभाव में आपतित प्रकाश की आवृत्ति और उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा के बीच ग्राफ खींचिए। (2017)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

प्रश्न 12:
फोटॉन की ऊर्जा तथा संवेग में सम्बन्ध लिखिए। (2009, 11)
उत्तर:
संवेग p =[latex]\frac { E }{ c }[/latex] (जहाँ E = ऊर्जा, c = प्रकाश का वेग)।

प्रश्न 13:
4000[latex]\mathring { A }[/latex]  तरंगदैर्घ्य वाले एकवर्णीय प्रकाश के फोटॉन की ऊर्जा ज्ञात कीजिए। (2012)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter A13

प्रश्न 14:
एक फोटॉन की ऊर्जा 30eV है। इसका संवेग ज्ञात कीजिए। (2012)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

प्रश्न 15:
डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य का सूत्र लिखिए। (2017)
हल:
λ = [latex]\frac { h }{ m\upsilon }[/latex] जहाँ, λ तरंगदैर्घ्य, h प्लांक नियतांक, m कण का द्रव्यमान तथा ν कण का वेग है।

प्रश्न 16:
एक इलेक्ट्रॉन 0.5 x 103 मी/से की चाल से गतिमान है। इससे सम्बद्ध डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए। (2017)
हल:
दिया है, ν = 0.5 x 103 मी/से, λ = ?
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

प्रश्न 17:
एक गतिमान कण का डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य 2.0[latex]\mathring { A }[/latex]  है। कण का संवेग क्या है? (2014, 17)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter A17

प्रश्न 18:
किसी आवेशित कण का द्रव्यमान m तथा इस पर q आवेश है। यदि कण V विभवान्तर सेत्वरित किया जाए, तो इससे सम्बन्धित डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य का सूत्र लिखिए। (2015)
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

प्रश्न 19:
m द्रव्यमान के कण के साथ जुड़ी डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य λ  का सम्बन्ध इसके गतिज ऊर्जा K के पदों में लिखिए। (2016)
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter A19
जहाँ λ = तरंगदैर्घ्य, m = कण का द्रव्यमान तथा K = गतिज ऊर्जा

प्रश्न 20:
प्रोटॉन तथा α-कण की डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य समान हों तो उनकी चालों में अनुपात क्या होगा? (mα = 4mp) (2016)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम लिखिए। या प्रकाश-वैद्युत उत्सर्जन के नियम लिखिए। (2012, 15, 17)
उत्तर:
प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम: वैज्ञानिक लेनार्ड तथा मिलीकन ने प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के सम्बन्ध में किये गये प्रयोगों से प्राप्त प्रेक्षणों के आधार पर कुछ नियम दिये जो प्रकाश-वैद्युत प्रभाव (ऊष्मा उत्सर्जन) के नियम कहलाते हैं।
प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम निम्नलिखित हैं

  1. किसी धातु की सतह से प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की दर धातु की सतह पर गिरने वाले प्रकाश की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होती है।
  2. उत्सर्जित प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती।
  3. प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम (UPBoardSolutions.com) गतिज ऊर्जा प्रकाश की आवृत्ति के बढ़ने पर बढ़ती है।
  4.  यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति एक न्यूनतम मान से कम है तो धातु से कोई भी प्रक़ाश-इलेक्ट्रॉन नहीं निकलता। यह न्यूनतम आवृत्ति (देहली आवृत्ति) भिन्न-भिन्न धातुओं के लिए भिन्न-भिन्न होती है।
  5. प्रकाश के धातु की सतह पर गिरते ही इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने लगते हैं, अर्थात् प्रकाश के सतह पर गिरने तथा इलेक्ट्रॉन के सतह से बाहर निकलने के बीच कोई समय-पश्चता (time-lag) नहीं . होती, चाहे प्रकाश की तीव्रता कितनी भी क्यों न हो।

प्रश्न 2:
प्रकाश:वैद्युत धारा पर क्या प्रभाव पड़ता है, यदि (i) आपतित प्रकाश की तीव्रता बढ़ा दी जाए? (ii) आपतित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य घटा दी जाए? (2013)
उत्तर:
(i)
यदि आपतित प्रकाश की तीव्रता बढ़ा दी जाए तब धातु पर प्रति सेकण्ड अधिक फोटॉन गिरेंगे जिससे कि उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ेगी अर्थात् प्रकाश वैद्युत धारा बढ़ेगी।
(ii) आपतित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य घटाने पर भी प्रकाश वैद्युत धारा को मान बढ़ जायेगा।

प्रश्न 3:
आइन्सटीन की प्रकाश-वैद्युत समीकरण लिखिए तथा इसकी व्याख्या कीजिए। (2009, 12, 15)
या
आइन्सटीन की प्रकाश-वैद्युत समीकरण लिखिए तथा इसकी सहायता से प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियमों को समझाइए। (2017)
या
आइन्सटीन की प्रकाश-वैद्युत उत्सर्जन सम्बन्धी समीकरण के आधार पर प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियमों की व्याख्या कीजिए। (2013)
या
आइन्सटीन का प्रकाश-वैद्युत प्रभाव का समीकरण लिखिए तथा प्रयुक्त संकेतों का अर्थ स्पष्ट कीजिए। (2014)
उत्तर:
आइन्सटीन की प्रकाश-वैद्युत समीकरण
[latex]\frac { RT }{ F }[/latex] mν2max = h(ν – ν0) ……..(1)
जहाँ m = इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान, νmax = उत्सर्जित फोटो इलेक्ट्रॉनों का अधिकतम वेग, h= प्लांक नियतांक, ν = धातु पर आपतित फोटॉन की आवृत्ति, ν0 = देहली आवृत्ति।
व्याख्या:
आइन्सटीन की प्रकाश-वैद्युत समीकरण के आधार पर प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियमों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है

(i) जब किसी धातु-पृष्ठ पर आपतित निश्चित आवृत्ति के प्रकाश की तीव्रता बढ़ायी जाती है तो सतह पर प्रति सेकण्ड आपतित फोटॉनों की संख्या उसी अनुपात में बढ़ जाती है परन्तु प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा hν नियत रहेगी। आपतित फोटॉन की संख्या बढ़ने से उत्सर्जित (UPBoardSolutions.com) प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ जाएगी, परन्तु समी० (1) से स्पष्ट है कि आवृत्ति के निश्चित होने तथा धातु विशेष के लिए ν0 निश्चित होने से पृष्ठ से उत्सर्जित सभी प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा Ek एकसमान । होगी। अत: प्रकाश इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की दर तो आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करती है। परन्तु इनकी अधिकतम गतिज ऊर्जा नहीं। ये ही क्रमश: प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के पहले तथा दूसरे नियम के कथन हैं।

(ii) समीकरण (1) से यह भी स्पष्ट है कि आपतित प्रकाश की आवृत्ति ν बढ़ाने पर उत्सर्जित प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा Ek उसी अनुपात में बढ़ जाएगी। यही प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के तीसरे नियम का कथन है।

(iii) समीकरण (1) में यदि ν < νतो Ek का मान ऋणात्मक होगा, जो असम्भवं है। अतः इससे निष्कर्ष निकलता है कि यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति ν0 से कम है तो प्रकाश-इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन सम्भव नहीं है, चाहे प्रकाश की तीव्रता कितनी भी अधिक क्यों न हो। यही प्रकाश-वैद्युत प्रभाव का चौथा नियम है।

(iv) जब प्रकाश किसी धातु-पृष्ठ पर गिरता है तो जैसे ही कोई एक प्रकाश फोटॉन धातु पर आपतित होता है, धातु का कोई एक इलेक्ट्रॉन तुरन्त उसे ज्यों-का-त्यों (UPBoardSolutions.com) अवशोषित कर लेता है तथा धातु-पृष्ठ से उत्सर्जित हो जाता हैं। इस प्रकार धातु-पृष्ठ पर प्रकाश के आपतित होने तथा इससे प्रकाश-इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जित होने में कोई पश्चता नहीं होती। यही प्रकाश-वैद्युत प्रभाव का पाँचवाँ नियम है।

प्रश्न 4:
विकिरण सम्बन्धी प्लांक की परिकल्पना समझाइए। इसके द्वारा फोटॉन के गतिमान द्रव्यमान का व्यंजक प्राप्त कीजिए। फोटॉन संवेग क्या होगा? या फोटॉन किसे कहते हैं ? इसके गतिज द्रव्यमान एवं संवेग का सूत्र लिखिए। (2012)
या
फोटॉन के गतिज द्रव्यमान का सूत्र लिखिए। (2012)
या
फोटॉन के विराम द्रव्यमान तथा गतिक द्रव्यमान से आप क्या समझते हैं? फोटॉन का संवेग P = [latex]\frac { h }{ \lambda }[/latex] निगमित कीजिए जहाँ h प्लांक नियतांक तथा 2 फोटॉन की तरंगदैर्घ्य है। (2014)
उत्तर:
कृष्णिका विकिरण के स्पेक्ट्रमी वितरण की व्याख्या करने के लिए सन् 1900 में जर्मनी के वैज्ञानिक मैक्स प्लांक ने एक क्रान्तिकारी विचार रखा जिसे ‘प्लांक की क्वाण्टम परिकल्पना’ कहते हैं। इसके अनुसार, किसी पदार्थ द्वारा ऊर्जा का उत्सर्जन अथवा अवशोषण सतत रूप से न होकर ऊर्जा के छोटे-छोटे बण्डलों अथवा पैकेटों के रूप में होता है, जिन्हें ‘फोटॉन’ अथवा ‘क्वाण्टम’ कहते हैं। प्रत्येक (UPBoardSolutions.com) तरंगदैर्घ्य 2 अथवा आवृत्ति (=c/λ) का अपना एक अलग फोटॉन होता है जिसकी ऊर्जा की मात्रा hν होती है; जहाँ । एक नियतांक है, जिसे ‘प्लांक नियतांक’ कहते हैं। प्लांक ने बताया कि कोई भी वस्तु ऊष्मा का उत्सर्जन अथवा अवशोषण इन फोटॉनों के पूर्ण गुणज के रूप में कर सकती है, अर्थात् कोई वस्तु hν, 2hν, 3haν,… आदि के रूप में ऊर्जा का अवशोषण अथवा उत्सर्जन करेगी।
प्लांक नियतांक का मात्रक जूल-सेकण्ड है।
प्लांक ने इस परिकल्पना के आधार पर ऊर्जा वितरण का सूत्र दिया जो कि ल्यूमर तथा प्रिंग्जहाइम के प्रायोगिक (Eλ – λ) वक्रों के पूर्णत: अनुकूल था। आइन्सटीन ने भी इस परिकल्पना की सहायता से प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की सफल व्याख्या की।

फोटॉन का विराम द्रव्यमान तथा गतिक (गतिज) द्रव्यमान:

फोटॉन का विराम द्रव्यमान शून्य होता है, परन्तु इसका गतिक द्रव्यमान शून्य नहीं होता। फोटॉन प्रकाश की चाल से गति करते हैं तथा गतिज अवस्था में फोटॉन की (UPBoardSolutions.com) ऊर्जा के कारण उसमें जो द्रव्यमान होता है, वह फोटॉन का गतिक द्रव्यमान । कहलाता है। आइन्सटीन के द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण के अनुसार
फोटॉन की ऊर्जा E = mc2 …….(1)
जहाँ m = फोटॉन का गतिज द्रव्यमान
तथा c = फोटॉन (प्रकाश) का वेग
प्लांक के अनुसार फोटॉन की ऊर्जा E = hν …..(2)
समी० (1) व समी० (2) से, mc2 = hν
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प्रश्न 5:
द्रव्य तरंगें क्या हैं? द्रव्य तरंगों की तरंगदैर्ध्य का सूत्र लिखिए। (2017, 18)
या
लूईडी-ब्रॉग्ली के द्रव्य तरंग की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। द्रव्य तरंगों के तरंगदैर्घ्य का सूत्र स्थापित कीजिए। (2009, 11, 16, 17)
या
डी-ब्रॉग्ली तरंगें क्या हैं? डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य के लिये व्यंजक लिखिए। (2010, 17)
या
m द्रव्यमान का एक कण वेग से गतिमान है। कण के साथ सम्बन्ध डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य का सूत्र लिखिए। (2012, 15)
या
द्रव्य तरंगें क्या हैं? डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य के लिए सूत्र लिखिए। इन तरंगों का प्रायोगिक सत्यापन करने वाले प्रयोग का नाम लिखिए। (2015)
या
डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य का व्यंजक लिखिए। (2016)
उत्तर:
द्रव्य तरंगें (Matter Waves)-सन् 1922 में डी-ब्रॉग्ली (de-Broglie) ने विचार रखा कि पदार्थ और विकिरण की पारस्परिक क्रिया समझने के लिए कणों को पृथक् रूप में न मानकर तरंग पद्धति से समन्वित माना जाये। उन्होंने बताया कि जब कोई द्रव्य-कण चलता है तो वह भी तरंग की भाँति व्यवहार करता है। इस सिद्धान्त का सत्यापन डेवीसन (Davission) और जर्मर (Germer) ने अपने प्रयोगों (UPBoardSolutions.com) द्वारा किया। उन्होंने स्थापित किया कि इलेक्ट्रॉन के किरण पूँज का विवर्तन देखा जा सकता है, जो एक तरंग का गुण है। अत: द्वैती प्रकृति न केवल प्रकाश में होती है बल्कि यह द्रव्य-कणों में भी होती है।
अतः “गतिमान द्रव्य-कणों (इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन आदि) से तरंग सम्बद्ध होती है। इन तरंगों को द्रव्ये तरंगें अथवा डी-बॉग्ली तरंगें (de-Broglie’s Waves) कहते हैं। द्रव्य तरंगों की तरंगदैर्घ्य डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य कहलाती है।”
द्रव्य तरंगों की तरंगदैर्ध्य
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प्रश्न 6:
प्रकाश-वैद्युत प्रवाह पर एक प्रयोग में निम्न प्रेक्षण प्राप्त होते हैं
(i) आपतित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य = 1.98 x 10-7 मीटर
(ii) संस्तब्ध विभव = 2.5 वोल्ट
फोटो इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा तथा धातु का कार्य फलन ज्ञात कीजिए। (2012)
हल:
फोटो इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा
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प्रश्न 7:
सोडियम का कार्य-फलन 2.0 eV है। ज्ञात कीजिए कि क्या 7000[latex]\mathring { A }[/latex] तरंगदैर्घ्य का प्रकाश उसके | पृष्ठ से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित कर सकेगा? h = 6.6 x 10-34 जूल-से, c = 3 x 108 मी/से। (2009,11)
हल:
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परन्तु यहाँ सोडियम का कार्य फलन W = 2.0 eV
चूंकि E < w
इसलिए 7000[latex]\mathring { A }[/latex] तरंगदैर्घ्य का प्रकाश सोडियम के पृष्ठ से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं कर सकेगा।

प्रश्न 8:
एक पदार्थ से फोटो इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन की देहली तरंगदैर्घ्य 6000[latex]\mathring { A }[/latex] है। इसकी सतह पर 4000[latex]\mathring { A }[/latex] तरंगदैर्घ्य का प्रकाश डाला जाता है। उत्सर्जित फोटो इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा तथा निरोधी-विभव ज्ञात कीजिए। (2012, 18)
हल:
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प्रश्न 9:
किसी धातु का कार्य-फलन 6.8 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट है। इस पर 100[latex]\mathring { A }[/latex] तरंगदैर्घ्य का विकिरण आपतित हो रहा है। उत्सर्जित फोटो-इलेक्ट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा की गणना कीजिए। (2014)
हल:
UP Board Solutions for Class 12 Physics Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter L9

प्रश्न 10:
5400[latex]\mathring { A }[/latex] तरंगदैर्घ्य का विकिरण एक धातु पर गिरता है जिसका कार्य-फलन1.9 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट है। उत्सर्जित फोटो-इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा तथा उसका निरोधी विभव ज्ञात कीजिए। (2014)
हल:
उत्सर्जित फोटो-इलेक्ट्रॉन की अधिकतम ऊर्जा
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प्रश्न 11:
एक प्रकाश सुग्राही धातु पृष्ठ का कार्य-फलन hν0 है। जब 2hν0 ऊर्जा के फोटॉन धातु पृष्ठ पर डाले जाते हैं तब 4×106 मीटर/सेकण्ड के अधिकतम वेग से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं। यदि आपतित फोटॉन की ऊर्जा 5hν0 हो, तब उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन का अधिकतम वेग क्या होगा? (2015)
हल:
आइन्स्टीन का प्रकाश वैद्युत समीकरण
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प्रश्न 12:
300 वाट तथा 6000[latex]\mathring { A }[/latex] तरंगदैर्घ्य के एकवर्षीय प्रकाश स्रोत से प्रति सेकण्ड कितने फोटॉन का उत्सर्जन होता है?
[प्लांक नियतांक (h) = 6.6 x 10-34 Js तथा प्रकाश की चाल (c) = 3×108 ms-1] (2017)
हल:
प्रकाश स्रोत से उत्सर्जित प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा,
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300 वाट के प्रकाश स्रोत से प्रति सेकण्ड उत्सर्जित ऊर्जा 300 जूल/सेकण्ड है।
अत: प्रकाश स्रोत से प्रति सेकण्ड निकलने वाले फोटॉन की संख्या
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प्रश्न 13:
1.6 x 10-27 किलोग्राम द्रव्यमान के न्यूट्रॉन की गतिज ऊर्जा 0.04 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट है।  न्यूट्रॉन की डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए। (2015)
हल:
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प्रश्न 14:
समान चाल से गतिशील इलेक्ट्रॉन एवं प्रोटॉन से सम्बद्ध डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य का अनुपात ज्ञात कीजिए। प्रोटॉन का द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान का 1840 गुना है। (2016)
उत्तर:
हम जानते हैं कि ν  चाल से गतिमान m द्रव्यमान के कण से बद्ध डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य,  λ =  [latex]\frac { m }{ \upsilon }[/latex]
जहाँ h प्लांक नियतांक है, इस प्रकार
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
प्रकाश-वैद्युत उत्सर्जन सम्बन्धी आइन्स्टीन की समीकरण  [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] mν2max = h(ν – ν0) की स्थापना कीजिए। (2010, 14, 16, 17)
या
क्वाण्टम मॉडल के आधार पर प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की व्याख्या कीजिए तथा आइन्स्टीन के प्रकाश-वैद्युत समीकरण को व्युत्पादित कीजिए। (2011, 15)
या
प्रकाश-वैद्युत प्रभाव से आप क्या समझते हैं? आइन्स्टीन के प्रकाश-वैद्युत समीकरण को व्युत्पन्न कीजिए। (2012)
या
आइन्सटीन द्वारा प्रकाश वैद्युत उत्सर्जन की घटना की व्याख्या कीजिए तथा प्रकाश-वैद्युत समीकरण व्युत्पादित कीजिए। (2013)
या
प्रकाश-वैद्युत उत्सर्जन सम्बन्धी आइन्स्टीन की समीकरण को व्युत्पन्न कीजिए। (2013, 17)
या
प्रकाश वैद्युत उत्सर्जन में उत्सर्जित फोटो-इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम ऊर्जा का समीकरण व्युत्पन्न कीजिए। (2015, 17)
उत्तर:
प्रकाश-वैद्युत प्रभाव (Photoelectric Effect)-जब किसी धातु पर उच्च आवृत्ति का प्रकाश (जैसे—पराबैंगनी विकिरण) डाला जाता है तो उसकी सतह से इलेक्ट्रॉन निकलने लगते हैं।
” धातुओं पर प्रकाश के आपतित होने से उनकी सतह से इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन (emission) की घटना को प्रकाश-वैद्युत प्रभाव (photoelectric effect) कहते हैं।”
प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की घटना में उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को प्रकाश-इलेक्ट्रॉन अथवा फोटो- इलेक्ट्रॉन (photoelectron) तथा इन इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के कारण उत्पन्न वैद्युत धारा को प्रकाश-वैद्युत धारा (photoelectric current) कहते हैं।

आइन्सटीन की प्रकाश-वैद्युत समीकरण (Einstien’s Photoelectric Equation):
वैज्ञानिक आइन्सटीन ने प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की व्याख्या प्रकाश के क्वाण्टम मॉडल के आधार पर इस प्रकार दी। जब कोई फोटॉन धातु की प्लेट पर गिरता है तो वह अपनी ‘संमस्त ऊर्जा’ धातु के भीतर उपस्थित इलेक्ट्रॉनों में से किसी एक ही इलेक्ट्रॉन को स्थानान्तरित (transfer) कर देता है तथा ऊर्जा का कुछ भाग इलेक्ट्रॉन को धातु के अन्दर से बाहर निकालने में व्यय हो जाता है जो धातु का कार्य-फलन कहलाता है। तथा शेष ऊर्जा उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन को उसकी गतिज ऊर्जा के रूप में प्राप्त हो जाती है जिससे इलेक्ट्रॉन धातु पृष्ठ से उत्सर्जित हो जाता है। यही प्रकाश-वैद्युत प्रभाव है। चूंकि सभी इलेक्ट्रॉन धातु की सतह से ही उत्सर्जित नहीं होते; अतः धातु से विभिन्न ऊर्जाओं के इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं; क्योंकि जो इलेक्ट्रॉन धातु के भीतर से निकलकर (UPBoardSolutions.com) सतह पर पहुँचते हैं वे सतह तक आने में धन आयनों व परमाणुओं से टकराते हैं; जिससे वे कुछ ऊर्जा खो देते हैं। अतः जो इलेक्ट्रॉन धातु की सतह से उत्सर्जित होते हैं, उनकी गतिज ऊर्जा अपेक्षाकृत अधिक होती है; क्योंकि उनकी ऊर्जा टकराने में नष्ट नहीं होती है। इस प्रकार धातु की ऊपरी सतह से उत्सर्जित प्रकाश इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा अधिकतम होती है। माना किसी धातु की सतह से उत्सर्जित किसी प्रकाश इलेक्ट्रॉन की (UPBoardSolutions.com) अधिकतम गतिज ऊर्जा E, तथा इसको धातु के अन्दर से बाहर सतह पर निकालने के लिए आवश्यक ऊर्जा w है। यहाँ w धातु का कार्य-फलन होगा। अतः आइन्सटीन द्वारा दी गयी प्रकाश-वैद्युत उत्सर्जन की उपर्युक्त व्याख्या के अनुसार इन दोनों प्रकार की ऊर्जाओं का योग ही धातु के अन्दर सतह के निकट इलेक्ट्रॉन द्वारा अवशोषित फोटॉन की ऊर्जा hay के बराबर होगा।
∴ Ek + W= hν
अथवा  Ek =  hν – W   …….(1)
समीकरण (1) से स्पष्ट है कि यदि प्रकाश फोटॉन की ऊर्जा hν कार्य-फलन W के बराबर है तो धातु की सतह से कोई भी इलेक्ट्रॉन नहीं निकलेगा। यदि दी हुई धातु के लिए देहली आवृत्ति ν0 है तो इस आवृत्ति का फोटॉन, इलेक्ट्रॉन को धातु की सतह तक लाने में ही समर्थ होगा, क्योंकि ऐसे फोटॉन (UPBoardSolutions.com) की ऊर्जा hν0 इलेक्ट्रॉन को धातु की सतह तक लाने में ही व्यय हो जाएगी। अत: सतह पर इसका वेग शून्य होगा, अर्थात् इस फोटॉन की ऊर्जा hν0 धातु के कार्य-फलन के बराबर होगी। अतः W = hν0
w का मान समी० (1) में रखने पर
Ek = hν – hν0
अथवा E = h(ν- ν0) …….(2)
यदि धातु की सतह पर निकलने वाले इलेक्ट्रॉन का अधिकतम वेग νmax है, तो इसकी अधिकतम गतिज ऊर्जा Ek = [latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] mν2max = h(ν – ν0) होगी। Ek का यह मान उपर्युक्त समी० (2) में रखने पर
[latex]\frac { 1 }{ 2 }[/latex] mν2max = h(ν – ν0)
इस समीकरण को ‘आइन्सटीन की प्रकाश-वैद्युत समीकरण’ (Einstien’s photoelectric equation) कहते हैं।

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