UP Board Class 10 Maths Model Papers Paper 1

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Board UP Board
Textbook NCERT Based
Class Class 10
Subject Maths
Model Paper Paper 1
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 10 Maths Model Papers Paper 1

समय : 3 घण्टे 15 मिनट
पूर्णांक : 70

निर्देश

  •  इस प्रश्न-पत्र में कुल सात प्रश्न हैं।
  • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न के प्रारम्भ में स्पष्ट उल्लेख है, कि उसके कितने खण्ड करने हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न के अंक उसके सम्मुख अंकित हैं।
  • प्रथम प्रश्न से प्रारम्भ कीजिए और अन्त तक करते जाइए। जो प्रश्न न आता हो, उस पर समय नष्ट न करें।
  • यदि रफ कार्य के लिए स्थान अपेक्षित है, तो उत्तर-पुस्तिका के बाएँ पृष्ठ पर कीजिए और फिर काट (x) दीजिए। उस पृष्ठ पर कोई हल न कीजिए।
  • रचना के प्रश्नों के हल में रचना रेखाएँ न मिटाइए। यदि पूछा गया हो तो रचना के पद अवश्य लिखिए।
  • प्रश्न संख्या 1 के अतिरिक्त सभी प्रश्नों के हल के क्रियापद स्पष्ट रूप से लिखिए। प्रश्नों के हल को उत्तर-पुस्तिका के दोनों ओर लिखिए।
  • जिन प्रश्नों के हल में चित्र खींचना आवश्यक है, उनमें स्वच्छ एवं स्पष्ट चित्र अवश्य खींचिए। चित्र के बिना हल अशुद्ध तथा अपूर्ण माना जाएगा।

प्रश्न 1.
सभी खंड कीजिए। प्रत्येक खंड में उत्तर के लिए चार विकल्प दिए गए हैं, जिनमें से केवल एक सही है। सही विकल्प छाँटकर उसे अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए।
(क) 144 के अभाज्य गुणनखंडों में 2 की घात है।
(a) 4
(b)5
(c) 6
(d) 3

(ख) [latex]\frac { 1 }{ cosec\theta } [/latex] का अधिकतम मान है।
(a) 1
(b) -1
(c) 0
(d) 2

(ग) एक परीक्षा में 7 छात्रों के प्राप्तांक 3, 2, 3, 4, 2, 2 तथा 5 हैं। छात्रों के प्राप्तांकों का बहुलक होगा [1]
(a) 2
(b) 3
(c) 4
(d) 5

(घ) दो वृत्त एक-दूसरे को C पर स्पर्श करते हैं तथा उन वृत्तों की AB एक उभयनिष्ठ स्पर्श रेखा है, तो ZACB बराबर हैं।
(a) 60°
(b) 45°
(c) 30°
(d) 90°

(ङ) यदि एक समांतर श्रेणी का वाँ पद [latex]\frac { 3+n }{ 4 }[/latex] है, तो उसका 8वाँ पद है।
(a) 11
(b) [latex]\frac { 11 }{ 4 } [/latex]
(c) [latex]\frac { 11 }{ 2 } [/latex]
(d) 22

(च) एक लंबवृत्तीय शंकु के छिन्नक की ऊँचाई 16 सेमी तथा उसके वृत्ताकार सिरों की त्रिज्याएँ 8 सेमी तथा 20 सेमी हैं। उसकी तिर्यक ऊँचाई बराबर है [1]
(a) 18 सेमी
(b) 16 सेमी
(c) 20 सेमी
(d) 24 सेमी

प्रश्न 2.
सभी खंड कीजिए।
(क) k का वह मान ज्ञात कीजिए, जिसके लिए समीकरण युग्म 3x – 4y + 7 = 0, kx + 3y – 5 = 0 का कोई हल नहीं होगा। [1]
(ख) समांतर श्रेणी 9, 13, 17, 21, 25, … का 12 वाँ पद ज्ञात कीजिए। [1]
(ग) cos 1°, cos 2°, c08 3°, …, cos 180° का मान ज्ञात कीजिए। [1]
(घ) 70 प्रेक्षणों के प्रदत्त आँकड़ों के लिए “कम के लिए तोरण” तथा “अधिक के लिए तोरण’ बिंदु (20.5, 35) पर प्रतिच्छेदित करते हैं, तो आँकड़ों का माध्य ज्ञात कीजिए। .

प्रश्न 3.
सभी खंड कीजिए।
(क) 15 सेमी लंबा एक रेखाखंड खींचिए और इसे 3; 2 अंतः अनुपात में विभाजित कीजिए तथा रचना भी लिखिए। [2]
(ख) क्या 7×5×3×2 + 3 एक भाज्य संख्या है? अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
(ग) चित्र में, AD ⊥ BC तथा BD = [latex]\frac { 1 }{ 3 } [/latex]CD है, तो सिद्ध कीजिए कि
2CA2 = 2AB2 + BC2
UP Board Class 10 Maths Model Papers Paper 1 image 1
(घ) दो वर्गों के क्षेत्रफलों का योग 468 मी’ हैं। यदि उनके परिमापों में 21 का अंतर है, तो दोनों वर्गों की भुजाएँ ज्ञात कीजिए।

प्रश्न 4.
सभी खंड कीजिए।
(क) एक घड़ी की मिनट की सूई की लंबाई 14 सेमी है। सूई द्वारा एक मिनट में पूरा किया गया क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए। ( π= 22/7 लीजिए) [2]
(ख) कक्षा X के 10 विद्यार्थियों ने गणित की पहेली प्रतियोगिता में भाग लिया।
यदि लड़कियों की संख्या लड़कों की संख्या से 4 अधिक हो, तो इसे बीजगणित रूप में व्यक्त कीजिए। [2]
(ग) यदि A(1, 2), B(4,y), C(x, 6) तथा D(3, 5) इसी क्रम में समांतर चतुर्भुज ABCD के शीर्ष हैं, तो x तथा y के मान ज्ञात कीजिए। [2]
(घ) यदि बिंदु (x,y) बिंदुओं A (5, 1) तथा B(-1, 5) से समदूरस्थ है, तो सिद्ध कीजिए कि 3x = 2y

प्रश्न 5.
सभी खंड कीजिए।
(क) निम्न समीकरण युग्म को रैखिक समीकरणों के युग्म में बदलकर हल कीजिए [4]
UP Board Class 10 Maths Model Papers Paper 1 image 2
जहाँ, 2x + 3y ≠ 0 तथा 3x – 2y ≠ 0 है।
(ख) एक न्यून कोण ΔABC में, यदि tan (A + B-C) =1 तथा sec (B +C-A) = 2 हो, तो A, B और C के मान ज्ञात कीजिए। [4]
(ग) एक 20 सेमी आंतरिक व्यास वाले पाइप से 3 किमी/घंटा की दर से पानी एक बेलनाकार टंकी, जिसका व्यास 10 मी तथा गहराई 2 मी है, के अंदर भरा जा रहा है। कितने समय में वह टंकी भर जाएगी? (π = [latex]\frac { 22 }{ 7 } [/latex] लीजिए) [4]
(घ) यदि एक समबाहु त्रिभुज के दो शीर्षों के निर्देशांक (0, 0) तथा (3, √3) हैं, तब तीसरे शीर्ष के निर्देशांक ज्ञात कीजिए। [4]

प्रश्न 6.
सभी खंड कीजिए।
(क) एक डार्टबोर्ड की प्रथम रिंग के आन्तरिक तथा बाह्य व्यास क्रमशः 32 सेमी तथा 34 सेमी और दूसरी रिंग के आन्तरिक तथा बाह्य व्यास क्रमशः 19 सेमी तथा 21 सेमी हैं। इन दोनों रिंगों का कुल क्षेत्रफल कितना है?
(ख) एक भिन्न का हर, अंश के दोगुने से 4 अधिक है तथा जब अंश च हर दोनों में से 6 घटाया जाता है, तो हर अंश का 12 गुना हो जाता है। भिन्न ज्ञात कीजिए।
(ग) सिद्ध कीजिए कि [latex]\frac { tan\theta }{ 1-cot\theta } [/latex] + [latex]\frac { cot\theta }{ 1-tan\theta } [/latex] = 1 + secθ cosecθ
(घ) एक झील के ऊपरी तल से । मी ऊँचाई पर स्थित किसी स्थान पर एक बादल का उन्नयन कोण है तथा झील में उसके प्रतिबिंब का अवनमन कोण B है। सिद्ध कीजिए कि उस स्थान से बादल की दूरी [latex]\frac { 2hsec\alpha }{ tan\beta -tan\alpha } [/latex] है।

प्रश्न 7.
सभी खंड कीजिए।
(क) क्रिकेट टीम के एक कोच ने 3900 में 3 बल्ले तथा 6 गेंदें खरीदीं। बाद में, उसने एक और बल्ला तथा उसी प्रकार की 3 गेदे १ 1300 में खरीदीं। इस स्थिति को बीजगणितीय तथा ज्यामितीय रूप में व्यक्त कीजिए। [6]
अथवा
चित्र में, PAQ तथा PBQ दो अलग-अलग वृत्तों के चाप हैं। केंद्र 0 तथा त्रिज्या OP वाले वृत्त का एक हिस्सा चाप PAQ है तथा केंद्र M तथा त्रिज्या OM वाले वृत्त का एक हिस्सा चाप PBQ है, जहाँ PQ का मध्य-बिंदु M है। दर्शाइए कि दोनों चापों के द्वारा घिरे हुए भाग का क्षेत्रफल 25 (√3 – [latex]\frac { \pi }{ 6 } [/latex]) सेमी है।
UP Board Class 10 Maths Model Papers Paper 1 image 3
(ख) दो लम्बवृत्तीय शंकुओं के आधार के क्षेत्रफल समान हैं तथा उनकी ऊँचाइयों में 4; 3 का अनुपात हैं। यदि छोटे शंकु का आयतन 3637 सेमी” है, तब बड़े शंकु का आयतन ज्ञात कीजिए। [6]
अथवा
एक अर्द्धगोले, लम्बवृत्तीय शंकु और लम्बवृत्तीय बेलन के आधार की त्रिज्याएँ 1: 2:3 के अनुपात में हैं। यदि उनकी ऊँचाइयाँ समान हैं, तब अर्द्धगोले, शंकु और बेलन के आयतनों में अनुपात ज्ञात कीजिए। [6]

Solutions

उत्तर 1.
(क) (a)
(ख) (a)
(ग) (a)
(घ) (d)
(ङ) (b)
(च) (c)

उत्तर 2.
(क) k = [latex]\frac { -9 }{ 4 } [/latex]
(ख) a12 = 53
(ग) 0
(घ) 20.5

उत्तर 3.
(ख) हाँ
(घ) 12 मी तथा 18 मी

उत्तर 4.
(क) 10.26 सेमी
(ख) x + y = 10 तथा, y = x + 4, जहाँ x लड़कों की संख्या एवं y लड़कियों की संख्या है।
(ग) x = 6, y = 3

उत्तर 5.
(क) x = 2, y = 1
(ख) A = 60°, B = 52[latex]\frac { 1 }{ 2 } [/latex]° तथा C = 67[latex]\frac { 1 }{ 2 } [/latex]°
(ग) 166.57 सेमी2
(घ) (0, 2/3) या (3, -3)

उत्तर 6.
(क) 166.57 सेमी2
(ख) [latex]\frac { 7 }{ 18 } [/latex]

उत्तर 7.
(ख) 4847 सेमी3
अथवा
2 : 4 : 27

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 1 बलिदान

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name बलिदान (मुंशी प्रेमचन्द)
Number of Questions 2
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 1 बलिदान (मुंशी प्रेमचन्द)

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प्रश्न 2.
UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 1 बलिदान img-5

उत्तर
UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi कथा भारती Chapter 1 बलिदान img-6

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(3) उद्देश्य – प्रस्तुत कहानी में प्रेमचन्द ने अपने उद्देश्य को यथार्थवादी दृष्टि से प्रस्तुत किया है। यह कहानी कृषक परिवार के सेवा, त्याग और समर्पण की भावना की पोषक है। इसके माध्यम से लेखक शोषित और शोषक वर्ग की भावना से जनसामान्य को अवगत कराता है। शोषित दिन-रात मेहनत करते हैं परन्तु अपने लिए नहीं शोषक के लिए। अन्त में अपने शरीर का बलिदान भी उसी के लिए कर देते हैं। इस कहानी का मूल उद्देश्य जमींदार, कृषक और श्रमिक तीनों के बीच के दारुण सम्बन्धों को जनसामान्य के सम्मुख स्पष्ट करना है।

निष्कर्ष रूप में, कहानी-कला के प्रमुख तत्त्वों की दृष्टि से ‘बलिदान’ प्रेमचन्द की सफल कहानी है। कहानी में यथार्थवादी चित्रण है। आरम्भ, विकास और अन्त तीनों ही प्रभावशाली हैं। द्वन्द्व का सुन्दर चित्रण व पात्रों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है। कथा सरल और रोचक है। उदात्त चरित्र और उद्देश्य कहानी की विशेषताएँ हैं।

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UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 15 The State Legislature

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 15 The State Legislature (राज्य के विधानमण्डल) are part of UP Board Solutions for Class 12 Civics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 15 The State Legislature (राज्य के विधानमण्डल).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter Chapter 15
Chapter Name The State Legislature
(राज्य के विधानमण्डल)
Number of Questions Solved 39
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 15 The State Legislature (राज्य के विधानमण्डल)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
उत्तर प्रदेश की विधानसभा के संगठन एवं शक्तियों का उल्लेख कीजिए। [2016]
या
उत्तर प्रदेश के विधानमंडल के दोनों सदनों के संगठन एवं शक्तियों की परस्पर तुलना कीजिए। [2016]
या
उत्तर प्रदेश की विधानसभा की रचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
या
विधानसभा के संगठन, कार्यकाल तथा अधिकारों (शक्तियों) का उल्लेख कीजिए। [2007]
या
राज्य-मन्त्रिमण्डल की शक्तियों और कार्यों का वर्णन कीजिए।
या
राज्य विधान सभा की वित्तीय शक्तियों का वर्णन कीजिए। [2012]
या
राज्य विधानसभा के कार्यों का वर्णन कीजिए। उत्तर प्रदेश की विधानसभा के संगठन पर प्रकाश डालिए तथा उन उपायों का उल्लेख कीजिए जिनके द्वारा वह मन्त्रिपरिषद् को नियन्त्रित करती है। [2013]
या
राज्य में विधानसभा की दो शक्तियाँ लिखिए। [2008, 10, 12]
उत्तर :
राज्य विधानमण्डल
संविधान के द्वारा भारत के प्रत्येक राज्य में एक विधानमण्डल की व्यवस्था की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 168 में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमण्डल होगा, जो राज्यपाल तथा कुछ राज्यों में दो सदन से मिलकर तथा कुछ में एक संदन से बनेगा। जिन राज्यों के दो सदन होंगे, उनके नाम क्रमशः विधानसभा और विधान-परिषद् होंगे। प्रत्येक राज्य में जनता द्वारा वयस्क मताधिकार द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों का सदन होता है। विधानमण्डल के इस प्रथम सदन को ‘विधानसभा’ कहते हैं। जिन राज्यों में विधानमण्डल का दूसरा सदन है, उसे ‘विधानपरिषद्” कहते हैं।

विधानसभा की रचना
विधानसभा विधानमण्डल का प्रथम और लोकप्रिय सदन है। जिन राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं, वहाँ पर विधानसभा विधान-परिषद् से अधिक शक्तिशाली है।

1. सदस्य-संख्या – संविधान में राज्य की विधानसभा के सदस्यों की केवल न्यूनतम और अधिकतम संख्या निश्चित की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 170 के अनुसार राज्य की विधानसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 और न्यूनतम संख्या 60 होगी। सम्पूर्ण प्रदेश को अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित किया जाता है कि विधानसभा का प्रत्येक सदस्य कम-से-कम 75 हजार जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करे। इस नियम का अपवाद केवल असम के स्वाधीन जिले शिलाँग की छावनी और नगरपालिका के क्षेत्र, सिक्किम, गोआ, मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश हैं। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए जनसंख्या के आधार पर इसके स्थान सुरक्षित किये गये हैं।

2. सदस्यों की योग्यताएँ – विधानसभा के सदस्य के लिए व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए –

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसकी आयु कम-से-कम 25 वर्ष हो।
  3. वह भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन लाभ के पद पर न हो।
  4. वह पागल या दिवालिया घोषित न हो।
  5. वह संसद या राज्य के विधानमण्डल द्वारा निर्धारित शर्तों को पूरा करता हो।
  6. किसी न्यायालय द्वारा उसे दण्डित न किया गया हो।

3. निर्वाचन पद्धति – विधानसभा सदस्यों का निर्वाचन वयस्क मताधिकार प्रणाली द्वारा होता है। कम-से-कम 18 वर्ष की आयु प्राप्त राज्य का प्रत्येक स्त्री, पुरुष मतदान का अधिकारी होता है। इस प्रकार ऐसे व्यक्तियों की मतदाता सूची तैयार कर ली जाती है। निश्चित तिथि को मतदान होता है। मतगणना पश्चात् सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले व्यक्तियों को निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। यह समस्त चुनाव प्रक्रिया देश का निर्वाचन आयोग सम्पन्न कराता है।

4. कार्यकाल – राज्य विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। राज्यपाल द्वारा इसे समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है। यदि संकटकाल की घोषणा हो तो संसद विधि द्वारा विधानसभा का कार्यकाल बढ़ा सकती है जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगा तथा किसी भी अवस्था में संकटकाल की घोषणा समाप्त हो जाने के बाद 6 माह की अवधि से अधिक नहीं होगा।

5. पदाधिकारी – प्रत्येक राज्य की विधानसभा के दो प्रमुख पदाधिकारी होते हैं – (1) अध्यक्ष (Speaker) तथा (2) उपाध्यक्ष (Deputy Speaker)। इन दोनों का चुनाव विधानसभा के सदस्य अपने सदस्यों में से ही करते हैं तथा इनका कार्यकाल विधानसभा के कार्यकाल तक होता है। अध्यक्ष के वही सब कार्य होते हैं जो लोकसभा अध्यक्ष के होते हैं।

राज्य विधानसभा के कार्य और शक्तियाँ

विधानसभा राज्य की व्यवस्थापिका है। संविधान द्वारा राज्य विधानसभा को व्यापक शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं। राज्य विधानसभा की शक्तियों का अध्ययन निम्नलिखित सन्दर्भो में किया जा सकता है –

1. निर्वाचन सम्बन्धी शक्ति – राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेते हैं। इसके अतिरिक्त जिन राज्यों में द्वितीय सदन (विधान-परिषद्) की व्यवस्था है, उसके 1/3 सदस्यों का निर्वाचन विधानसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है।

2. विधायी शक्ति – राज्य की विधानसभा को सामान्यत: उन सभी विषयों पर कानून-निर्माण की शक्ति प्राप्त होती है जो राज्य सूची और समवर्ती सूची में दिये गये हैं। यद्यपि कोई भी विधेयक कानून का स्वरूप तभी धारण करता है जब उसे दोनों सदनों की स्वीकृति प्राप्त हो जाती है, किन्तु इस विषय में विधानसभा की शक्तियाँ विधान-परिषद् की शक्तियों से बहुत अधिक हैं। विधान-परिषद् विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को 4 माह के लिए रोककर केवल देरी ही कर सकती है। समवर्ती सूची के विषय पर राज्यसभा द्वारा निर्मित कोई विधि यदि उसी विषय पर संसद द्वारा निर्मित विधि के विरुद्ध हो तो राज्य विधानमण्डल द्वारा निर्मित विधि मान्य नहीं होगी। राज्य विधानमण्डल की कानून-निर्माण की शक्ति पर निम्नलिखित प्रतिबन्ध भी हैं –

(i) अनुच्छेद 356 के अनुसार यदि राज्य में संविधान तन्त्र भंग होने के कारण राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है।
(ii) कुछ विधेयक राज्य विधानमण्डल में प्रस्तावित किये जाने के पूर्व उन पर राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक होती है। ऐसे विधेयक वे हैं जिनका सम्बन्ध राज्य के भीतर या विभिन्न राज्यों के बीच व्यापार, वाणिज्य व आने-जाने की स्वतन्त्रता पर रोक लगाने से होता है।
(iii) संघीय संसद अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों और समझौतों का पालन करने के लिए भी राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बना सकती है।

3. वित्तीय शक्ति – विधानसभा को राज्य के वित्त पर पूर्ण नियन्त्रण प्राप्त होता है। आय-व्यय का वार्षिक लेखा विधानसभा से स्वीकृत होने पर ही शासन के द्वारा आय-व्यय से सम्बन्धित कोई कार्य किया जा सकता है। वित्त विधेयक केवल विधानसभा में प्रस्तुत किये जा सकते हैं। वित्तीय मामलों में विधान-परिषद् विधानसभा से अत्यधिक दुर्बल सदन है। विधानसभा से विनियोग विधेयक पारित होने पर ही सरकार संचित निधि से व्यय हेतु धन खर्च कर सकती है।

4. प्रशासनिक शक्ति – संविधान द्वारा राज्यों के क्षेत्र में भी संसदात्मक व्यवस्था स्थापित किये जाने के कारण राज्य का मन्त्रिमण्डल अपनी नीति और कार्यों के लिए विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। विधानसभा सदस्यों द्वारा मन्त्रियों से उनके विभागों के सम्बन्ध में प्रश्न पूछे जा सकते हैं व काम रोको प्रस्ताव पारित किया जा सकता है। विधानसभा कभी भी राज्य मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध ‘अविश्वास प्रस्ताव पारित करके इसे उसके पद से हटा सकती है।

5. संविधान संशोधन शक्ति – हमारे संविधान की कुछ धाराएँ ऐसी हैं कि संसद द्वारा बहुमत के आधार पर पारित प्रस्ताव को कम-से-कम आधे राज्यों की विधानसभाओं द्वारा स्वीकार किया जाए। इस प्रकार राज्य विधानसभा संविधान संशोधन के कार्य में भी भाग लेती है।

[संकेत – विधान परिषद् के संगठन एवं शक्तियाँ शीर्षक का अध्ययन विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 2. तथा विधानसभा द्वारा मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण’ शीर्षक का अध्ययन लघु उत्तरीय प्रश्न 4 (शब्द-सीमा 150 शब्द) के अन्तर्गत करें तथा विधान परिषद् के संगठन एवं शक्तियों की परस्पर तुलना के लिए, विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 का उत्तर देखें।]

प्रश्न 2.
उत्तर प्रदेश की विधानपरिषद की रचना किस प्रकार होती है? उसके कार्यों का वर्णन कीजिए। [2013]
या
उत्तर प्रदेश की विधान-परिषद की रचना पर प्रकाश डालिए। [2013]
उत्तर :
विधान-परिषद की रचना अथवा संगठन राज्य, विधान परिषद् की संरचना को निम्नवत् स्पष्ट किया जा सकता है –

1. सदस्य-संख्या – विधान-परिषद् राज्य के विधानमण्डल का उच्च सदन होता है। यह एक स्थायी सदन है। संविधान में व्यवस्था की गयी है कि प्रत्येक राज्य की विधान-परिषद् की सदस्य-संख्या उसकी विधानसभा के सदस्यों की संख्या के 1/3 से अधिक न होगी, किन्तु किसी भी स्थिति में उसकी सदस्य संख्या 40 से कम नहीं होनी चाहिए।

2. सदस्यों को निर्वाचन – विधान-परिषद् के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है तथा कुछ सदस्यों को मनोनीत भी किया जाता है। निम्नलिखित निर्वाचक मण्डल विधान-परिषद् के सदस्यों का चुनाव करते हैं –

(अ) विधानसभा का निर्वाचक मण्डल – कुल सदस्य संख्या के 1/3 सदस्यों का निर्वाचन विधानसभा के सदस्य ऐसे व्यक्तियों में से करते हैं, जो विधानसभा के सदस्य न हों।
(ब) स्थानीय संस्थाओं का निर्वाचक मण्डल – समस्त सदस्यों का 1/3 भाग, उस राज्य की नगरपालिकाओं, जिला परिषदों और अन्य स्थानीय संस्थाओं द्वारा चुना जाता है, जैसा संसद कानून द्वारा निश्चित करे।
(स) अध्यापकों का निर्वाचक मण्डल – इसमें वे अध्यापक होते हैं जो राज्य के अन्तर्गत किसी माध्यमिक पाठशाला या इससे उच्च शिक्षण संस्था में 3 वर्ष से पढ़ा रहे हों। यह निर्वाचक मण्डल कुल सदस्यों के 1/12 भाग को चुनता है।
(द) स्नातकों का निर्वाचक मण्डल – यह ऐसे शिक्षित व्यक्तियों को मण्डल होता है जो इस राज्य में रहते हों तथा स्नातक स्तर की परीक्षा पास कर ली हो और जिन्हें यह परीक्षा पास किये 3 वर्ष से अधिक हो गये हों। यह मण्डल कुल सदस्यों के 1/12 भाग को चुनता है।
(य) राज्यपाल द्वारा मनोनीत सदस्य – कुल सदस्य संख्या के 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा उन व्यक्तियों में से मनोनीत किये जाते हैं जो साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक सेवा के क्षेत्रों में विशेष रुचि रखते हों।

3. सदस्यों की योग्यताएँ – विधान-परिषद् की सदस्यता के लिए भी वे ही योग्यताएँ हैं, जो विधानसभा की सदस्यता के लिए हैं। भिन्नता केवल इतनी है कि विधान परिषद् की सदस्यता के लिए न्यूनतम आयु 30 वर्ष होनी चाहिए। निर्वाचित सदस्य को उस राज्य की विधानसभा के किसी निर्वाचन क्षेत्र का सदस्य तथा निवासी भी होना चाहिए।

4. कार्यकाल – विधान परिषद् इस दृष्टि से स्थायी है कि पूर्ण विधान परिषद् कभी भी भंग नहीं होती। विधान-परिषद् के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष है। प्रति दो वर्ष के बाद 1/3 सदस्य अपने पद से मुक्त होते रहते हैं और उनके स्थान पर नये सदस्य निर्वाचित होते हैं।

5. वेतन तथा भत्ते – विधान परिषद् के सदस्यों के वेतन और भत्ते विधानसभा सदस्यों के बराबर हैं। उत्तर प्रदेश में पारित किये गये कानून के अन्तर्गत विधानमण्डल के प्रत्येक सदस्य (विधायक) को प्रति माह वेतन, निर्वाचन-क्षेत्र भत्ता, जन सेवा भत्ता, सचिवीय भत्ता, चिकित्सा भत्ता तथा मकान किराया भत्ता मिलता है। इसके अतिरिक्त उसे प्रति वर्ष रेल यात्रा के कूपन भी मिलते हैं। इन कूपनों को हवाई यात्रा कूपनों में परिवर्तित कराने की भी सुविधा प्राप्त है। इन्हें पानी, बिजली, टेलीफोन एवं फर्नीचर की सुविधाओं के साथ-साथ उ० प्र० रा० प० नि० की बसों में मुफ्त यात्रा का भी प्रावधान है। मकान बनवाने अथवा कार खरीदने के लिए ब्याज मुक्त ऋण तथा आजीवन पेन्शन की भी व्यवस्था है। इन्हें प्राप्त होने वाले वेतन तथा भत्तों की राशि में समय-समय पर परिवर्तन होते रहते हैं।

6. पदाधिकारी – विधान परिषद् में मुख्यत: दो पदाधिकारी होते हैं, जिन्हें सभापति तथा उपसभापति कहते हैं। विधान परिषद् के सदस्य अपने में से इनका चुनाव करते हैं।

विधान-परिषद् के अधिकार तथा कार्य

विधान-परिषद्, विधानसभा की तुलना में एक कमजोर सदन है, फिर भी इसे निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं –

1. कानून-निर्माण कार्य – साधारण विधेयक राज्य विधानमण्डल के किसी भी सदन में प्रस्तावित किये जा सकते हैं तथा वे विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होने चाहिए। यदि कोई विधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद विधान–परिषद् द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाता है। या परिषद् विधेयक में ऐसे संशोधन करती है जो विधायकों को स्वीकार्य नहीं होते या परिषद् के समक्ष विधेयक रखे जाने की तिथि से तीन माह तक विधेयक पारित नहीं किया जाता है। तो विधानसभा उस विधेयक को पुनः स्वीकृत करके विधानपरिषद् को भेजती है। इस बार विधान परिषद् विधेयक को स्वीकृत करे या न करे, एक माह बाद यह विधान परिषद् द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है।

2. कार्यपालिका शक्ति – विधानपरिषद प्रश्नों, प्रस्तावों तथा वाद-विवाद के आधार पर मन्त्रि परिषद् के विरुद्ध जनमत तैयार करके उसको नियन्त्रित कर सकती है, किन्तु उसे मन्त्रिपरिषद् को पदच्युत करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि कार्यपालिका केवल विधानसभा के प्रति ही उत्तरदायी होती है।

3. वित्तीय कार्य – वित्त विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तावित किये जाते हैं, विधानपरिषद् में नहीं। विधानसभा किसी वित्त विधेयक को पारित कर स्वीकृति के लिए विधान-परिषद्, के पास भेजती है तो विधान-परिषद् या तो 14 दिन के अन्दर उसे ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर सकती है या फिर अपनी सिफारिशों सहित विधानसभा को वापस लौटा सकती है। यह विधानसभा पर निर्भर है कि वह विधान-परिषद् की सिफारिशें माने या न माने। यदि परिषद् 14 दिन के अन्दर विधेयक पर कोई निर्णय नहीं लेती तो वह दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है।

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प्रश्न 3.
राज्य विधानमण्डल में कानून-निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। [2013, 15]
या
राज्य विधानमण्डल में कानून का निर्माण कैसे होता है? इसकी प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।
या
उत्तर प्रदेश राज्य में विधि-निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। [2008]
उत्तर :
राज्य विधानमण्डल में कानून-निर्माण की प्रक्रिया

(1) साधारण विधेयकों के सम्बन्ध में
साधारण विधेयक मन्त्रिपरिषद् के किसी सदस्य या राज्य विधानमण्डल के किसी सदस्य द्वारा विधानमण्डल के किसी भी सदन में रखे जा सकते हैं। यदि विधेयक किसी मन्त्रिपरिषद् के सदस्य द्वारा रखा जाता है तो इसे सरकारी विधेयक’ और यदि राज्य विधानमण्डल के किसी अन्य सदस्य द्वारा रखा जाता है तो इसे ‘निजी सदस्य विधेयक’ कहा जाता है। राज्य विधानमण्डल को भी कानून-निर्माण के लिए लगभग वैसी प्रक्रिया अपनानी होती है जैसी प्रक्रिया संसद के द्वारा अपनायी जाती है। ऐसे विधेयक को कानून का रूप ग्रहण करने के लिए निम्नलिखित चरणों से गुजरना होता है –

(अ) विधेयक को प्रेषित करना तथा प्रथम वाचन – सरकारी विधेयक के लिए कोई पूर्व सूचना आवश्यक नहीं होती है, परन्तु निजी सदस्य विधेयकों के लिए एक महीने पहले ही सूचना देना आवश्यक है। सरकारी विधेयक साधारणतः सरकारी गजट में छापा जाता है। ‘निजी सदस्य विधेयक को प्रस्तुत करने के लिए दिन निश्चित किया जाता है। निश्चित दिन को विधेयक प्रस्तुत करने वाला सदस्य अपने स्थान पर खड़ा होकर उस विधेयक को पेश करने के लिए सदन से आज्ञा माँगता है और विधेयक के शीर्षक को पढ़ता है। यदि विधेयक अधिक महत्त्वपूर्ण है तो विधेयक पेश करने वाला सदस्य विंधेयक पर एक संक्षिप्त भाषण भी दे सकता है। यदि उस सदन में उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्य बहुमत से विधेयक का समर्थन करते हैं तो विधेयक सरकारी गजट में छाप दिया जाता है। यही विधेयक का प्रथम वाचन समझा जाता है।

(ब) द्वितीय वाचन – प्रथम वाचन के बाद विधेयक प्रस्तावित करने वाला सदस्य प्रस्ताव रखता है कि उसके विधेयक का दूसरा वाचन किया जाए। इस अवस्था में विधेयक के सामान्य सिद्धान्तों पर ही वाद-विवाद होता है, उसकी एक-एक धारा पर बहस नहीं होती है। जब इस प्रकार की बहस के बाद कोई विधेयक पारित हो जाता है तो उसे प्रवर समिति (Select Committee) के पास भेज दिया जाता है।

(स) प्रवर समिति अवस्था – द्वितीय वाचन के पश्चात् विवादपूर्ण विधेयक को प्रवर समिति के पास भेज दिया जाता है। इसमें विधानमण्डल के 15 से 30 तक सदस्य होते हैं। इस अवस्था में विधेयक की प्रत्येक धारा पर गहरा विचार किया जाता है।

(द) तृतीय वाचन – प्रतिवेदन अवस्था की समाप्ति के कुछ समय बाद उसका तृतीय वाचन प्रारम्भ होता है। इस अवस्था में विधेयक के साधारण सिद्धान्तों पर फिर से बहस की जाती है और विधेयक में भाषा सम्बन्धी सुधार किये जाते हैं। इस अवस्था में विधेयक की धाराओं में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। इसे या तो स्वीकार किया जाता है या अस्वीकार। इसके बाद मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा स्वीकार होने पर इसे सदन द्वारा स्वीकृत समझा जाता है।

(य) विधेयक दूसरे सदन में – एक सदन द्वारा विधेयक स्वीकार कर लिये जाने पर जिन राज्यों में विधानमण्डल का एक ही सदन है, वहाँ विधेयक राज्यपाल के पास भेज दिया जाता है। और जिन राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं, वहाँ विधेयक दूसरे सदन में भेज दिया जाता है। द्वितीय सदन में भी विधेयक को उन्हीं अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है जिने अवस्थाओं से होकर विधेयक प्रथम सदन में गुजरा था। यदि विधेयक विधानसभा द्वारा पारित होने के पश्चात् विधान-परिषद् द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है या तीन महीने तक विचार पूरा नहीं होता तो विधानसभा उस विधेयक को पुन: स्वीकार करके परिषद् के पास भेजती है। तब यदि विधाने-परिषद् पुनः विधेयक अस्वीकार कर देती है अथवा दोबारा विधेयक आने की तिथि से एक माह बाद तक विधेयक पारित नहीं करती या विधेयक में पुनः ऐसे संशोधन करती है जो विधानसभा को स्वीकार नहीं होते तो विधेयक विधान-परिषद् द्वारा पारित किये बिना ही दोनों सदनों द्वारा पारित हुआ माना जाता है।

(र) राज्यपाल की स्वीकृति – विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होने पर राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राज्यपाल या तो इस विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे देता है या अपनी ओर से कुछ संशोधनों का सुझाव देकर विधेयक विधानमण्डल के पास दोबारा भेज सकता है। यदि इस बार भी विधेयक को उसी रूप में या राज्यपाल की सिफारिशों के अनुरूप पारित कर देता है तो राज्यपाल को उस विधेयक पर अवश्य ही अपनी अनुमति प्रदान करनी पड़ेगी। राज्यपाल की स्वीकृति के बाद यह विधेयक कानून बन जाता है। अनेक बार राज्यपाल कुछ विशेष प्रकार के विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज देता है। ऐसे विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करने के बाद ही कानून बन पाते हैं।

(2) वित्त विधेयकों के सम्बन्ध में

जहाँ तक वित्त विधेयक की प्रक्रिया का सम्बन्ध है ये केवल विधानसभा में ही प्रस्तुत किये जाते हैं और विधान-परिषद् को वित्त विधेयकों के सम्बन्ध में लगभग वे ही अधिकार प्राप्त हैं। जो राज्यसभा को केन्द्रीय वित्त विधेयकों के सम्बन्ध में हैं। विधानसभा द्वारा पारित वित्त विधेयक विधान-परिषद् के पास विचारार्थ भेज दिया जाता है। यदि विधान-परिषद् उस विधेयक को प्राप्ति की तिथि से 14 दिन बाद तक न लौटाये तो वह विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत समझा जाएगा। यदि विधान परिषद् 14 दिन की अवधि में विधेयक को अपने संशोधनों सहित लौटा भी दे तो इन संशोधनों को स्वीकार या अस्वीकार करना विधानसभा पर निर्भर करता है। विधानसभा इन संशोधनों के साथ या इन संशोधनों के बिना किसी रूप में भी विधेयक को राज्यपाल के पास भेज सकती है। और राज्यपाल की स्वीकृति से वह विधेयक कानून का रूप धारण कर लेता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
राज्य विधानमण्डल के दोनों सदनों के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। [2013]
या
विधानसभा और विधान-परिषद् की तुलना कीजिए। इनमें से कौन अधिक शक्तिशाली है और क्यों? [2013]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश के विधानमण्डल में दो सदन हैं। इसके निम्न सदन को विधानसभा तथा उच्च सदन को विधान-परिषद् कहते हैं। विधानसभा की तुलना में विधान परिषद् की स्थिति काफी कमजोर है। यह एक निर्बल द्वितीय सदन है। इन दोनों के पारस्परिक सम्बन्धों को इस प्रकार समझा जा सकता है

1. विधायिनी क्षेत्र में विधायिनी क्षेत्र में विधानसभा व विधान-परिषद् के सम्बन्ध इस प्रकार है –

(अ) साधारण विधेयक के सम्बन्ध में – साधारण विधेयकों के सम्बन्ध में राज्यसभा को लोकसभा के बराबर अधिकार दिये गये हैं, किन्तु विधानपरिषद् के सन्दर्भ में ऐसा नहीं कहा जा सकता है। उसे विधानसभा की इच्छा माननी ही पड़ती है। विधानसभा द्वारा पारित प्रत्येक साधारण विधेयक को स्वीकृति के लिए विधान परिषद् के पास भेजा जाता है। यदि विधान-परिषद् ऐसे किसी भी विधेयक को अस्वीकृत करे या संशोधित करे या तीन महीने तक उस पर कोई निर्णय ही न ले तो विधानसभा उसे पुनः पारित करके विधान परिषद् में भेज सकती है। इस स्थिति में यदि विधान-परिषद् अब भी उसे पारित न करे या एक महीने तक उस पर कोई निर्णय न ले तो विधेयक विधान-परिषद् द्वारा स्वीकृत मान लिया जाएगा और उसे राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जाएगा। इस प्रकार साधारण विधेयकों के पारित होने में विधान परिषद् अधिक-से-अधिक चार महीने की देरी कर सकती है। कानून बनाने में अन्तिम शक्ति विधानसभा की ही रहती है।

(ब) वित्त विधेयक के सम्बन्ध में – लोकतन्त्रात्मक राज्यों में वित्तीय विधेयकों पर निम्न सदन की सम्मति ही सर्वमान्य होती है। विधानसभा भी इसका अपवाद नहीं है। वित्तीय विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं, परन्तु विधान-परिषद् को उन पर अपनी सम्मति व्यक्त करने का पूरा अधिकार है चाहे विधानसभा उसे माने या न माने। नियम यह है कि विधानसभा में पारित हो जाने के बाद प्रत्येक वित्त विधेयक विधान परिषद् की संस्तुति के लिए भेजा जाता है। यदि विधान-परिषद् वित्त विधेयक में कोई संशोधन करे जो विधानसभा को मान्य नहीं है या 14 दिन में कोई वित्त विधेयक बिना निर्णय के लौट आये तो यह विधान-परिषद् द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है। और उसे सीधा राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जाता है।

2. कार्यपालिका क्षेत्र में – राज्य की मन्त्रिपरिषद् विधानसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है और यही उसे अविश्वास प्रस्ताव द्वारा पदच्युत कर सकती है। विधानपरिषद् को मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव रखने का अधिकार नहीं है। यद्यपि विधान-परिषद् के कुछ सदस्य मन्त्रिपरिषद् के सदस्य होते हैं, यहाँ तक कि कुछ राज्यों में इसी सदन के मुख्यमन्त्री भी हो चुके हैं, परन्तु विधान-सभा ही मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण रखती है। विधान-परिषद् इस सन्दर्भ में काफी कमजोर सिद्ध होती है।

3. अन्य क्षेत्रों में विधान – परिषद् राष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सदस्यों के निर्वाचन में भाग नहीं ले सकती। केवल विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को यह अधिकार प्राप्त है। संविधान संशोधन में भी विधानसभाओं की ही राय ली जाती है। विधान-परिषद् को इस सम्बन्ध में कुछ नहीं करना पड़ता। इतना ही नहीं, विधान परिषद् के 1/3 सदस्यों का निर्वाचन तक भी विधानसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है। इस प्रकार से विधान परिषदों की स्थिति कमजोर है। राज्यों के द्वितीय सदन की इस निर्बल स्थिति को देखते हुए आलोचकों का कहना है कि जो संस्था किसी विधेयक के पारित होने में केवल चार महीने की देर कर सकती है, उसे बनाये रखने का कोई औचित्य नहीं। अत: इस पर जनता का धन खर्च करना व्यर्थ है। सत्तारूढ़ दल इसे सदन को अपने दलीय हितों की वृद्धि का साधन बना लेते हैं।

विधान-परिषद् की आवश्यकता

निर्बल स्थिति होने पर भी विधानपरिषद् का महत्त्व कम नहीं आँका जा सकता। इसके द्वारा विधानसभा का कार्यभार हल्का हो जाता है। यहाँ कम सदस्य होते हैं, इसलिए शान्त और गम्भीर वातावरण में अच्छी तरह वाद-विवाद हो जाता है। यह विधि-निर्माण में जल्दबाजी पर रोक लगाता है, जिससे इस बीच विधेयक के सम्बन्ध में जनमत जानने का अवसर भी मिल जाता है। इसके द्वारा विभिन्न वर्गों, अल्पसंख्यकों तथा विभिन्न व्यवसायों का प्रतिनिधित्व किया जा सकता है। साथ ही राज्यपाल द्वारा अनुभवी और विशेषज्ञों को मनोनीत करने से प्रशासन को अवश्य ही लाभ पहुंचता है।

प्रश्न 2.
विधानसभा के विधान-परिषद् से अधिक शक्तिशाली होने के कारणों का उल्लेख कीजिए।
या
इस राज्य में विधानसभा विधान-परिषद् से अधिक शक्तिशाली है” इस कथन का परीक्षण कीजिए। [2012]
उत्तर :
विधानसभा तथा विधान-परिषद् की शक्तियों के निम्नलिखित तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि विधानसभा विधान-परिषद् की तुलना में अधिक शक्तिशाली है।

1. प्रतिनिधित्व के सम्बन्ध में – विधानसभी राज्य की जनता की प्रतिनिधि है, जब कि विधान परिषद् कुछ विशेष वर्गों की।

2. कार्यपालिका के सम्बन्ध में – राज्य की मन्त्रिपरिषद् विधानसभा के ही प्रति उत्तरदायी होती है, विधान परिषद् के प्रति नहीं। विधान परिषद् केवल प्रश्न, पूरक प्रश्न तथा स्थगन प्रस्ताव उपस्थित कर मन्त्रिपरिषद् के कार्यों की जाँच तथा आलोचना ही कर सकती है। मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास कर उसे पदच्युत करने का कार्य विधानसभा के द्वारा ही किया जा सकता है।

3. वित्त के क्षेत्र में – वित्त विधेयक विधानसभा में ही प्रस्तावित किये जा सकते हैं। विधानसभा से स्वीकृत होने पर जब कोई वित्त विधेयक विधान-परिषद् को भेजा जाता है तथा परिषद् 14 दिन के भीतर संशोधन सहित वापस कर देती है, उन संशोधनों को स्वीकार करने का अधिकार विधानसभा को है। यदि परिषद् 14 दिन के भीतर वित्त विधेयक नहीं लौटाती है, तो विधेयक दोनों सदनों से पारितं समझा जाता है। अनुदान की माँगों पर मतदान भी केवल विधानसभा में ही होता है। इस दृष्टि से राज्यों में विधान-परिषद् को वैसी ही स्थिति प्राप्त होती है जैसी स्थिति केन्द्र में राज्यसभा की है।

4. राष्ट्रपति के निर्वाचन के सम्बन्ध में – राष्ट्रपति के निर्वाचन में भी केवल विधानसभा के सदस्य ही भाग लेते हैं, विधान परिषद् के सदस्य नहीं।

विधानसभा तथा विधान-परिषद् की शक्तियों के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि विधान-सभा विधान-परिषद् की तुलना में अधिक शक्तिसम्पन्न है। डॉ० ए० पी० शर्मा के शब्दों में, जो समानता का ढोंग लोकसभा और राज्यसभा के बीच है, वह विधानसभा और विधानपरिषद् के बीच नहीं।” विधानसभा का अधिक शक्तिशाली होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि विधानसभा जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित है, विधान-परिषद् अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित है।

प्रश्न 3.
विधानसभा अध्यक्ष के कार्यों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। [2008, 10]
उत्तर :
विधानसभा अध्यक्ष के कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. वह विधानसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है और सदन की कार्यवाही का संचालन करता
  2. सदन में शान्ति और व्यवस्था बनाये रखना उसका मुख्य उत्तरदायित्व है तथा इस हेतु उसे समस्त आवश्यक कार्यवाही करने का अधिकार है।
  3. सदन का कोई भी सदस्य सदन में उसकी आज्ञा से ही भाषण दे सकता है।
  4. वह सदन की कार्यवाही से ऐसे शब्दों को निकाले जाने का आदेश दे सकता है जो असंसदीय या अशिष्ट हैं।
  5. सदन के नेता के परामर्श से वह सदन की कार्यवाही का क्रम निश्चित कर सकता है।
  6. वह प्रश्नों को स्वीकार करता या नियम-विरुद्ध होने पर उन्हें अस्वीकार करता है।
  7. वह किसी प्रश्न पर मतदान कराता और परिणाम की घोषणा करता है।
  8. सामान्य स्थिति में वह सदन में मतदान में भाग नहीं लेता लेकिन यदि किसी प्रश्न पर पक्ष और विपक्ष में बराबर मत आयें, तो वह ‘निर्णायक मत’ (Casting Vote) का प्रयोग करता है।
  9. कोई विधेयक ‘धन विधेयक’ (Money Bill) है अथवा नहीं इसका निर्णय अध्यक्ष करता है।
  10. विधानसभा और विधान परिषद् के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता वही करता है।
  11. सदन तथा राज्यपाल के बीच ‘अध्यक्ष’ ही सम्पर्क स्थापित करता है।
  12. वह सदन के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करता है।
  13. वह विधानमण्डल की कुछ समितियों का पदेन सभापति होता है।
  14. वह सदन की दर्शक दीर्घा में दर्शकों और प्रेस प्रतिनिधियों के प्रवेश पर नियन्त्रण भी लगा सकता है।

अध्यक्ष की अनुपस्थिति में इन सभी कार्यों का सम्पादन उपाध्यक्ष करता है। यदि दोनों ही अनुपस्थित हों तो विधानसभा अपने सदस्यों में से एक कार्यवाहक अध्यक्ष चुन लेती है।

प्रश्न 4.
“विधानसभा, राज्य मन्त्रिपरिषद पर नियन्त्रण रखती है।” दो तर्क देते हुए इस कथनका औचित्य स्पष्ट कीजिए।
या
विधानसभा मन्त्रिपरिषद पर किस प्रकार नियन्त्रण रखती है ? [2010, 11]
या
विधानसभा तथा मन्त्रिपरिषद् के सम्बन्धों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
संविधान के अनुसार, विधानसभा तथा मन्त्रिपरिषद् परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। बेजहाट का कथन है कि “मन्त्रिपरिषद् अपने जन्म की दृष्टि से विधायिका से सम्बन्धित है।” मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। किन्तु वास्तव में स्थिति इसके विपरीत होती है, क्योंकि मन्त्रिपरिषद् बहुमत दल की होती है, इसलिए विधानसभा इस पर अधिक नियन्त्रण नहीं रख पाती है तथा मुख्यमन्त्री भी विधानसभा को भंग कर सकता है। विधानसभा, प्रश्नों, पूरक प्रश्नों तथा काम रोको प्रस्तावों द्वारा मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण रखती है तथा निम्नलिखित आधारों पर मन्त्रिपरिषद् को पदच्युत कर सकती है –

  1. अविश्वास के प्रस्ताव द्वारा – विधानसभा के सदस्य मन्त्रिपरिषद् से असन्तुष्ट होकर सदन के सामने अविश्वास का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकते हैं। इस प्रस्ताव के पारित हो जाने पर मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देना होता है।
  2. विधेयक की अस्वीकृति – मन्त्रिपरिषद् द्वारा प्रस्तुत किसी विधेयक को यदि विधानसभा स्वीकृति न दे तो ऐसी दशा में भी मन्त्रिपरिषद् को अपना पद त्यागना पड़ता है।
  3. किसी मन्त्री के प्रति अविश्वास – यदि विधानसभा किसी मन्त्री-विशेष के प्रति अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर दे तो भी सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
  4. गैर-सरकारी प्रस्तावे – विरोधी दलों के प्रस्ताव को गैर-सरकारी और मन्त्रिपरिषद् द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव को सरकारी प्रस्ताव कहते हैं। यदि विधानसभा किसी ऐसे गैर-सरकारी प्रस्ताव को स्वीकृत कर दे जिसका मन्त्रिपरिषद् विरोध कर रही हो, तो इस स्थिति में सम्बन्धित मन्त्री को अपना पद त्यागना होगा। सैद्धान्तिक दृष्टि से तो मन्त्रिपरिषद् पर विधानसभा द्वारा नियन्त्रण रखा जाता है, किन्तु व्यवहार में दलीय अनुशासन के कारण मन्त्रिपरिषद् ही विधानसभा पर नियन्त्रण रखती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
राज्य में विधानपरिषद के अस्तित्व के पक्ष में चार तर्क दीजिए। [2007]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र जैसे विशाल राज्यों में विधानपरिषद् का अस्तित्व निश्चित रूप से अपना महत्त्व रखता है। इसके अस्तित्व के पक्ष में प्रमुख तर्क हैं –

  1. विधेयक को अधिकतम चार महीने की अवधि तक रोके रखकर यह प्रथम सदन विधानसभा की मनमानी पर रोक लगाता है।
  2. विधानसभा, प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होती है। विधानपरिषद् अप्रत्यक्ष रूप से। जिन वर्गों को प्रथम सदन में प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं होता, वे द्वितीय सदन में प्रतिनिधित्व प्राप्त कर सकते हैं।
  3. विधेयक को चार माह तक रोके रखकर विधानपरिषद् विधेयक पर जनमत जाग्रत करने का कार्य करती है।

प्रश्न 2.
राज्य के विधानमण्डल में कौन-कौन से अंग होते हैं? [2007]
उत्तर :
प्रत्येक राज्य का विधानमण्डल राज्यपाल और राज्य के विधानमण्डल से मिलकर बनता है। कुछ राज्यों के विधानमण्डल के दो सदन होते हैं, अर्थात् विधानसभा व विधान परिषद्। उत्तर प्रदेश तथा बिहार में द्वि-सदनात्मक विधानमण्डल हैं।

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प्रश्न 3.
उत्तर प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल क्या है? [2015]
उत्तर
उत्तर प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष है। हालांकि राज्यपाल द्वारा इसे समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है। परन्तु यदि संकटकाल की घोषणा प्रवर्तन में हो तो संसद विधि द्वारा विधानसभा का कार्यकाल बढ़ा सकती है जोकि एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगा तथा किस्सी भी अवस्था में संकटकाल की घोषणा समाप्त हो जाने के बाद 6 माह की अवधि से अधिक नहीं होगा।

प्रश्न 4.
राज्य में विधान-परिषद् की उपयोगिता के पक्ष में चार तर्क दीजिए। [2016]
उत्तर :
विधान परिषद् की उपयोगिता के पक्ष में चार तर्क निम्नलिखित हैं –

  1. यह सदन विधेयक में विलम्ब करके जनता को अपना मत अभिव्यक्त करने का अवसर देता है।
  2. यह संशोधनकारी सदन के रूप में कार्य करता है। ब्लण्टशली ने कहा भी है कि “चार आँखे दो आँखों की तुलना में सदैव अच्छा देखती हैं।”
  3. विधानपरिषद् में विशेष हितों-अल्पसंख्यकों, विभिन्न व्यवसायों व वर्गों को प्रतिनिधित्व मिलता है।
  4. इसमें परिपक्व और अनुभवी लोग होते हैं। राज्यपाल इसमें कुछ ऐसे व्यक्तियों को मनोनीत करता है जो कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा, सहकारिता आन्दोलन में विशेष अनुभवी हों।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
उत्तर प्रदेश का विधानमण्डल द्वि-सदनीय है अथवा एक-सदनीय?
उत्तर :
उत्तर प्रदेश का विधानमण्डल द्वि-सदनीय है।

प्रश्न 2.
विधानसभा का कार्यकाल कितना होता है?
उत्तर :
विधानसभा का कार्यकाल सामान्य रूप में पाँच वर्ष का होता है।

प्रश्न 3.
आपके राज्य में विधानसभा के अध्यक्ष का चयन कौन करता है?
उत्तर :
राज्य की विधानसभा के सदस्य विधानसभा के अध्यक्ष का चयन करते हैं।

प्रश्न 4.
विधानसभा तथा विधानपरिषद के सदस्यों हेतु निर्धारित आयु-सीमा बताइए।
उत्तर :

  1. विधानसभा–25 वर्ष तथा
  2. विधान-परिषद्-30 वर्ष।

प्रश्न 5.
विधान-परिषद् के सदस्यों का कार्यकाल कितना है? [2010, 11]
या
राज्य विधान-परिषद का कार्यकाल क्या है? [2012]
उत्तर :
विधान-परिषद् एक स्थायी सदन है, परन्तु इसके सदस्यों का कार्यकाल छ: वर्ष है। प्रति . दो वर्ष बाद 1/3 सदस्य उससे पृथक् हो जाते हैं तथा उनके स्थान पर नये सदस्य चुन लिये जाते हैं।

प्रश्न 6.
किन्हीं चार राज्यों के नाम लिखिए जिनमें द्वि-सदनीय विधानमण्डल हैं। [2013]
उत्तर :
कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा महाराष्ट्र।

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प्रश्न 7.
राज्य विधानमण्डल का सत्रावसान कौन करता है?
उत्तर :
राज्य विधानमण्डल का सत्रावसान राज्यपाल करता है।

प्रश्न 8.
विधेयक कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर :
विधेयक दो प्रकार के होते हैं –

  1. साधारण विधेयक तथा
  2. धन या वित्त विधेयक।

प्रश्न 9
वित्त विधेयक विधानमण्डल के किस सदन में पेश होता है?
उत्तर :
वित्त विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत किये जाते हैं।

प्रश्न 10.
वित्त विधेयक को विधान-परिषद अधिक-से-अधिक कितने दिनों तक रोक सकती [2011]
उत्तर :
वित्त विधेयक को विधानपरिषद अधिक-से-अधिक 14 दिनों तक रोक सकती है।

प्रश्न 11.
विधानसभा के सदस्यों की अधिकतम व न्यूनतम संख्या क्या हो सकती है?
उत्तर :
विधानसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 तथा न्यूनतम संख्या 60 हो सकती है।

प्रश्न 12.
उत्तर प्रदेश विधानसभा एवं विधान-परिषद् की सदस्य-संख्या बताइए। [2008, 11]
या
उत्तर प्रदेश की विधानपरिषद् में कुल कितने सदस्य हैं? [2016]
उत्तर :
विधानसभा सदस्य संख्या : 404 तथा विधान-परिषद् सदस्य-संख्या : 100।

प्रश्न 13.
राज्य सूची पर कौन कानून बनाता है?
उत्तर :
राज्य की विधानसभा राज्य सूची पर कानून बनाती है।

प्रश्न 14.
उन दो राज्यों के नाम बताइए जहाँ व्यवस्थापिका का एक ही सदन है। [2010]
उत्तर :

  1. मध्य प्रदेश तथा
  2. राजस्थान।

प्रश्न 15.
स्थानीय स्व-शासन के दो मुख्य लाभ लिखिए।
उत्तर :

  1. स्थानीय समस्याओं का त्वरित समाधान तथा
  2. नागरिकों के समय तथा धन की बचत।

प्रश्न 16.
उत्तर प्रदेश की विधायिका के दोनों सदनों के नाम लिखिए। [2014, 16]
उत्तर :
विधानसभा तथा विधान-परिषद्।

प्रश्न 17.
उत्तर प्रदेश की विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष कौन थे? [2014, 16]
उत्तर :
श्री पुरुषोत्तम दास टण्डन।

प्रश्न 18.
उत्तर प्रदेश की विधानमण्डल के विश्रान्ति में अध्यादेश कौन जारी करता है? [2014]
उत्तर :
राज्यपाल।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
बिहार में विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या है। [2016]
(क) 224
(ख) 234
(ग) 243
(घ) 288

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कहाँ एक-सदनीय विधानमण्डल है?
(क) कर्नाटक
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) मध्य प्रदेश
(घ) बिहार

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कहाँ द्वि-सदनीय विधानमण्डल है?
(क) गुजरात
(ख) तमिलनाडु
(ग) ओडिशा
(घ) जम्मू-कश्मीर

प्रश्न 4.
भारत के निम्नलिखित में से किस एक राज्य में विधान-परिषद् नहीं है – [2011]
(क) बिहार
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) महाराष्ट्र
(घ) मध्य प्रदेश

प्रश्न 5.
विधानसभा तथा विधान-परिषद् के सदस्यों हेतु न्यूनतम निर्धारित आयु है
(क) 25 वर्ष से 30 वर्ष
(ख) 30 वर्ष से 35 वर्ष
(ग) 20 वर्ष से 25 वर्ष
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 6.
विधान-परिषद् के सदस्यों की न्यूनतम संख्या होती है
(क) 50.
(ख) 80
(ग) 40
(घ) 35

प्रश्न 7.
विधानसभा के सदस्यों की न्यूनतम संख्या होती है
(क) 50
(ख) 60
(ग) 100
(घ) 150

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन राज्य विधान-परिषद् के सदस्यों के निर्वाचन से सम्बन्धित नहीं [2007]
(क) स्थानीय संस्थाओं का निर्वाचन मण्डल
(ख) स्नातकों का निर्वाचन मण्डल
(ग) विधानपरिषद का निर्वाचन मण्डल
(घ) अध्यापकों का निर्वाचन मण्डल

प्रश्न 9.
निम्न में से भारत के किस राज्य में द्वि-सदनात्मक विधान मण्डल नहीं है? [2008, 15]
(क) बिहार
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) जम्मू एवं कश्मीर
(घ) राजस्थान

प्रश्न 10.
भारत के निम्नलिखित में से किस राज्य में विधानपरिषद् है? [2012]
(क) मध्य प्रदेश
(ख) हिमाचल प्रदेश
(ग) गुजरात
(घ) जम्मू-कश्मीर

उत्तर :

  1. (ग) 243
  2. (ग) मध्य प्रदेश
  3. (घ) जम्मू-कश्मीर
  4. (घ) मध्य प्रदेश
  5. (क) 25 वर्ष से 30 वर्ष
  6. (ग) 40
  7. (ख) 60
  8. (ग) विधान परिषद् का निर्वाचन मण्डल
  9. (घ) राजस्थान
  10. (घ) जम्मू-कश्मीर।

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UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 25 Personality and Personality Tests

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 25 Personality and Personality Tests (व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व परीक्षण) are part of UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 25 Personality and Personality Tests (व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व परीक्षण).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Pedagogy
Chapter Chapter 25
Chapter Name Personality and Personality Tests
(व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व परीक्षण)
Number of Questions Solved 46
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 25 Personality and Personality Tests (व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व परीक्षण)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
व्यक्तित्व का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। [2007]
या
व्यक्तित्व का क्या अर्थ है तथा इसकी परिभाषा भी दीजिए। व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए। [2007, 08]
उत्तर :
व्यक्तित्व का अर्थ
शाब्दिक उत्पत्ति के अर्थ में, इस शब्द का उद्गम लैटिन भाषा के ‘पर्सनेअर’ (Personare) शब्द से माना गया है। प्राचीनकाल में, ईसा से एक शताब्दी पहले Persona शब्द व्यक्ति के कार्यों को स्पष्ट करने के लिए प्रचलित था। विशेषकर इसका अर्थ नाटक में काम करने वाले अभिनेताओं द्वारा पहना हुआ नकाब समझा जाता था, जिसे धारण करके अभिनेता अपना असली रूप छिपाकर नकली वेश में रंगमंच पर अभिनय करते थे। रोमन काल में Persona शब्द का अर्थ हो गया—स्वयं वह अभिनेता’ जो अपने विलक्षण एवं विशिष्ट स्वरूप के साथ रंगमंच पर प्रकट होता था। इस भाँति व्यक्तित्व’ शब्द किसी व्यक्ति के वास्तविके स्वरूप का समानार्थी बन गया।

सामान्य अर्थ में 
व्यक्तित्व से अभिप्राय व्यक्ति के उन गुणों से है जो उसके शरीर सौष्ठव, स्वर तथा नाक-नक्श आदि से सम्बन्धित हैं। दार्शनिक दृष्टिकोण के अनुसार, सम्पूर्ण व्यक्तित्व आत्म-तत्त्व की पूर्णता में निहित है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार, मानव जीवन की किसी भी अवस्था में व्यक्ति का व्यक्तित्व एक संगठित इकाई है, जिसमें व्यक्ति के वंशानुक्रम और वातावरण से उत्पन्न समस्त गुण समाहित होते हैं। । दूसरे शब्दों में, व्यक्तित्व में बाह्य गुण तथा आन्तरिक गुण का समन्वित तथा संगठित रूप परिलक्षित होता है। अपने बाह्य एवं आन्तरिक गुणों के साथ व्यक्ति अपने वातावरण के साथ भी अनुकूलन करता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने वातावरण के साथ भिन्न प्रकार से अनुकूलन रखता है और इसी कारण से हर एक व्यक्ति का अपना अलग व्यक्तित्व होता है। इसके साथ ही व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति मनुष्य के व्यवहार से होती है, अथवा व्यक्तित्व पूरे व्यवहार का दर्पण है और मनुष्य व्यवहार के माध्यम से निज व्यक्तित्व को अभिप्रकाशित करता है। सन्तुलित व्यवहार सुदृढ़ व्यक्तित्व का परिचायक है।

व्यक्तित्व की परिभाषाएँ

  1. बोरिंग के अनुसार, “व्यक्ति के अपने वातावरण के साथ अपूर्व एवं स्थायी समायोजन के योग को व्यक्तित्व कहते हैं।”
  2. मन के शब्दों में, “व्यक्तित्व वह विशिष्ट संगठन है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति के गठन, व्यवहार के तरीकों, रुचियों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं, योग्यताओं और प्रवणताओं को सम्मिलित किया जा सकता है।”
  3. आलपोर्ट के अनुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के उन मनो-शारीरिक संस्थानों का गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण के साथ उसके अनूठे समायोजन को निर्धारित करता है।”
  4. मॉर्टन प्रिंस के कथनानुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के सभी जन्मजात व्यवहारों, आवेगों, प्रवृत्तियों, झुकावों, आवश्यकताओं तथा मूल-प्रवृत्तियों एवं अनुभवजन्य और अर्जित व्यवहारों व प्रवृत्तियों का योग है।
  5. वारेन का विचार है, “व्यक्तित्व व्यक्ति का सम्पूर्ण मानसिक संगठन है जो उसके विकास की किसी भी अवस्था में होता है।

उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि 

  1. व्यक्ति एक मनोशारीरिक प्राणी है।
  2. वह अपने वातावरण से समायोजन (अनुकूलन) करके निज व्यवहार का निर्माण करता है।
  3. मनुष्य की शारीरिक-मानसिक विशेषताएँ उसके व्यवहार से जुड़कर संगठित रूप में दिखायी पड़ती हैं। यह संगठन ही व्यक्तित्वे की प्रमुख विशेषता है।
  4. प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व स्वयं में विशिष्ट होता है।

व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारक
व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले मूल कारक हैं – आनुवंशिकता तथा पर्यावरण आनुवंशिकता में उन कारकों या गुणों को सम्मिलित किया जाता है, जो माता-पिता के माध्यम से प्राप्त होते हैं। इस प्रकार के मुख्य गुण हैं-शरीर का आकार एवं बनावट तथा रंग आदि। शरीर में पायी जाने वाली विभिन्न नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ तथा उनसे होने वाला स्राव भी व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। इसके अतिरिक्त वातावरण का भी व्यक्तित्व पर गम्भीर प्रभाव पड़ता है। वातावरण के अन्तर्गत मुख्य रूप से परिवार, विद्यालय तथा समाज का प्रभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण एवं विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न 2
सन्तुलित व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
सन्तुलित व्यक्तित्व की विशेषताएँ आदर्श नागरिक बनने के लिए मनुष्य के व्यक्तित्व का सन्तुलित होना अनिवार्य है। व्यवहार के माध्यम से व्यक्ति का व्यक्तित्व परिलक्षित होता है और समाजोपयोगी एवं वातावरण की परिस्थितियों से अनुकूलित व्यवहार ‘अच्छे व्यक्तित्व से ही उद्भूत होता है। सुन्दर एवं आकर्षक व्यक्तित्व दूसरे लोगों को शीघ्र ही प्रभावित कर देता है, जिससे वातावरण के साथ सफल सामंजस्य में सहायता मिलती है। यह तो निश्चित है कि सुन्दर जीवन जीने के लिए अच्छा एवं सन्तुलित व्यक्तित्व एक पूर्व आवश्यकता है, किन्तु प्रश्न यह है कि एक ‘आदर्श व्यक्तित्व के क्या मानदण्ड होंगे ? इसका उत्तर हमें निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से प्राप्त होगा। सन्तुलित व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है।

1. शारीरिक स्वास्थ्य :
सामान्य दृष्टि से व्यक्ति का शारीरिक स्वास्थ्य सन्तुलित एवं उत्तम व्यक्तित्व का पहला मानदण्ड है। अच्छे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति का शारीरिक गठन, स्वास्थ्य तथा सौष्ठव प्रशंसनीय होता है। वह व्यक्ति नीरोग होता है तथा उसके विविध शारीरिक संस्थान अच्छी प्रकार कार्य कर रहे होते हैं।

2. मानसिक स्वास्थ्य :
अच्छे व्यक्तित्व के लिए स्वस्थ शरीर के साथ स्वस्थ मन भी होना चाहिए। स्वस्थ मन उस व्यक्ति का कहा जाएगा जिसमें कम-से-कम औसत बुद्धि पायी जाती हो, नियन्त्रित तथा सन्तुलित मनोवृत्तियाँ हों और उनकी मानसिक प्रक्रियाएँ भी कम-से-कम सामान्य रूप से कार्य कर रही हों।

3. आत्म-चेतना :
सन्तुलित व्यक्तित्व वाला व्यक्ति स्वाभिमानी तथा आत्म-चेतना से युक्त होता है। वह सदैव ऐसे कार्यों से बचता है जिसके करने से वह स्वयं अपनी ही नजर में गिरता हो या उसकी आत्म-चेतना आहत होती हो। वह चिन्तन के समय भी आत्म-चेतना आहत होती हो। वह चिन्तन के समय भी आत्म-चेतना को सुरक्षित रखता है तथा स्वस्थ विचारों को ही मन में स्थान देता है।

4. आत्म-गौरव-आत्म :
गौरव का स्थायी भाव अच्छे व्यक्तित्व का परिचायक है तथा व्यक्ति में आत्म-चेतना पैदा करता है। आत्म-गौरव से युक्त व्यक्ति आत्म-समीक्षा के माध्यम से प्रगति का मार्ग खोलता है और विकासोन्मुख होता है।

5. संवेगात्मक सन्तुलन :
अच्छे व्यक्तित्व के लिए आवश्यक है कि उसके समस्त संवेगों की अभिव्यक्ति सामान्य रूप से हो। उसमें किसी विशिष्ट संवेग की प्रबलता नहीं होनी चाहिए।

6. सामंजस्यता :
सामंजस्यता या अनुकूलन का गुण अच्छे व्यक्तित्व की पहली पहचान है। मनुष्य और उसके चारों ओर का वातावरण परिवर्तनशील है। वातावरण के विभिन्न घटकों में आने वाला परिवर्तन मनुष्य को प्रभावित करता है। अतः सन्तुलित व्यक्तित्व में अपने वातावरण के साथ अनुकूलन करने या सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता होनी चाहिए। सामंजस्य की इस प्रक्रिया में या तो व्यक्ति स्वयं को वातावरण के अनुकूल परिवर्तित कर लेता है या वातावरण में अपने अनुसार परिवर्तन उत्पन्न कर देता है।

7. सामाजिकता :
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः उसमें अधिकाधिक सामाजिकता की भावना होनी चाहिए। सन्तुलित व्यक्तित्व में स्वस्थ सामाजिकता की भावना अपेक्षित है। स्वस्थ सामाजिकता का भाव मनुष्य के व्यक्तित्व में प्रेम, सहानुभूति, त्याग, सहयोग, उदारता, संयम तथा धैर्य का संचार करता है, जिससे उसका व्यक्तित्व विस्तृत एवं व्यापक होता जाता है। इस भाव के संकुचन से मनुष्य स्वयं तक सीमित, स्वार्थी, एकान्तवासी और समाज से दूर भागने लगता है। सामाजिकता की भावना , व्यक्ति के व्यक्तित्व को विराट सत्ता की ओर उन्मुख करती है।

8. एकीकरण :
मनुष्य में समाहित उसके संमस्त गुण एकीकृत या संगठित स्वरूप में उपस्थित होने चाहिए। सन्तुलित व्यक्तित्व के लिए उन सभी गुणों का एक इकाई के रूप में समन्वय अनिवार्य है। किसी एक गुण या पक्ष का आधिक्य या वेग व्यक्तित्व को असंगठित बना देता है। ऐसा बिखरा हुआ व्यक्तित्व असन्तुष्ट व दु:खी जीवन की ओर संकेत करंता है। अतः अच्छे व्यक्तित्व में एकीकरण या संगठन का गुण पाया जाता है।’

9. लक्ष्योन्मुखता या उद्देश्यपूर्णता :
प्रत्येक मनुष्य के जीवन का कुछ-न-कुछ उद्देश्य या लक्ष्य अवश्य होता है। निरुद्देश्य या लक्ष्यविहीन जीवन असफल, असन्तुष्ट तथा अच्छा जीवन नहीं माना जाता है। हर किसी जीवन का सुदूर उद्देश्य ऊँचा, स्वस्थ तथा सुनिश्चित होना चाहिए एवं उसकी तात्कालिक क्रियाओं को भी प्रयोजनात्मक होना चाहिए। एक अच्छे व्यक्तित्व में उद्देश्यपूर्णता का होना अनिवार्य है।

10. संकल्प :
शक्ति की प्रबलता-प्रबल एवं दृढ़ इच्छा-शक्ति के कारण कार्य में तन्मयता तथा संलग्नता आती है। प्रबल संकल्प लेकर ही बाधाओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है तथा लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। स्पष्टतः संकल्प-शक्ति की प्रबलता सन्तुलित व्यक्तित्व का एक उचित मानदण्ड है।

11. सन्तोषपूर्ण महत्त्वाकांक्षा :
उच्च एवं महान् आकांक्षाएँ मानव जीवन के विकास की द्योतक हैं, किन्तु यदि व्यक्ति इन उच्च आकांक्षाओं के लिए चिन्तित रहेगा तो उससे वह स्वयं को दुःखी एवं असन्तुष्ट हो पाएगा। मनुष्य को अपनी मन:स्थिति को इस प्रकार निर्मित करना चाहिए कि इन उच्च आकांक्षाओं की पूर्ति के अभाव में उसे असन्तोष या दुःख का बोध न हो। मनोविज्ञान की भाषा में इसे सन्तोषपूर्ण महत्त्वाकांक्षा कहा गया है और यह सुन्दर व्यक्तित्व के लिए आवश्यक है। हमने उपर्युक्त बिन्दुओं के अन्तर्गत एक सम्यक् एवं सन्तुलित व्यक्तित्व की विशेषताओं का अध्ययन किया है। इन सभी गुणों का समाहार ही एक आदर्श व्यक्तित्व कहा जा सकता है, जिसे समक्ष रखकर हम अन्य व्यक्तियों से उसकी तुलना कर सकते हैं और निज व्यक्तित्व को उसके अनुरूप ढालने का प्रयास कर सकते हैं।

प्रश्न 3
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य विधियाँ कौन-कौन-सी हैं ? व्यक्तित्व परीक्षण की वैयक्तिक विधियों का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
या
व्यक्तित्व मापन की प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिए। [2008]
या
व्यक्तित्व परीक्षण के कौन-कौन से प्रकार हैं? इनमें से किसी एक की विवेचना कीजिए। [2010]
या
व्यक्तित्व मापन के विभिन्न प्रकार बताइए और उनमें से किसी एक विधि का वर्णन कीजिए। [2007, 13, 15]
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की विधियाँ
व्यक्तित्व का मापने या परीक्षण एक जटिल समस्या है, जिसके लिए किसी एक विधि को प्रामाणिक नहीं माना जा सकता। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व मापन व परीक्षण के लिए कुछ विधियों का निर्माण किया है। इन विधियों को निम्नांकित चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है।

  1. वैयक्तिक विधियाँ
  2. वस्तुनिष्ठ विधियाँ
  3. मनोविश्लेषणात्मक विधियाँ तथा
  4. प्रक्षेपण या प्रक्षेपी विधियाँ।

व्यक्तित्व परीक्षण की वैयक्तिक विधियाँ वैयक्तिक विधियों के अन्तर्गत व्यक्तित्व का परीक्षण स्वयं परीक्षक द्वारा किया जाता है। इसमें जाँच-कार्य, किसी व्यक्ति-विशेष या उसके परिचित से पूछताछ द्वारा सम्पन्न होता है। प्रमुख वैयक्तिक विधियाँ हैं।

1. प्रश्नावली विधि :
प्रश्नावली विधि के अन्तर्गत प्रश्नों की एक तालिका बनाकर उस व्यक्ति को दी जाती है, जिसके व्यक्तित्व का परीक्षण किया जाता है। प्राय: छोटे-छोटे प्रश्न किये जाते हैं, जिनका उत्तर हाँ या नहीं में देना होता है। सही उत्तरों के आधार पर व्यक्ति की योग्यता और क्षमता का मापन किया जाए हैं। प्रश्नावलियों के चार प्रकार हैं—बन्द प्रश्नावली, जिसमें हाँ या नहीं से सम्बन्धित प्रश्न होते हैं। खुली प्रश्नावली, जिसमें व्यक्ति को पूरा उत्तर लिखना होता है। सचित्र प्रश्नावली, जिसके अन्तर्गत चित्रों के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दिये जाते हैं तथा मिश्रित प्रश्नावली, प्रश्न होते हैं।

प्रश्नावली विधि का प्रमुख दोष यह है कि व्यक्ति प्राय: प्रश्नों के गलत उत्तर देते हैं या सही उत्तर को छिपा लेते हैं। कभी-कभी प्रश्नों का अर्थ समझने में भी त्रुटि हो जाती है, जिनका भ्रामक उत्तर प्राप्त होता, है। प्रश्नावलियों द्वारा मूल्यांकन करने पर तुलनात्मक अध्ययन में काफी सहायता मिलती है। इसके साथ ही अनेक व्यक्तियों की एक साथ परीक्षा से धन और समय की भी बचत होती है।

2. व्यक्ति-इतिहास विधि :
विशेष रूप से समस्यात्मक बालकों के व्यक्तित्व का अध्ययन करने के लिए प्रयुक्त इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति-विशेष से सम्बन्धित अनेक सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं। जैसे—उसका शारीरिक स्वास्थ्य, संवेगात्मक स्थिरता, सामाजिक जीवन आदि। व्यक्ति के भूतकालीन जीवन के अध्ययन द्वारा उसकी वर्तमान मानसिक व व्यावहारिक संरचना को समझने का प्रयास किया जाता है। इन सूचनाओं को इकट्ठा करने में व्यक्ति विशेष के माता-पिता, अभिभावक, सगे-सम्बन्धी, मित्र-पड़ोसी तथा चिकित्सकों से सहायता ली जाती है। इन सभी सूचनाओं, बुद्धि-परीक्षण तथा रुचि-परीक्षण के आधार पर व्यक्ति के वर्तमान व्यवहार की असामान्यताओं के कारणों की खोज उसके भूतकाल के जीवन से करने में व्यक्ति-इतिहास विधि उपयोगी सिद्ध होती है।

3. साक्षात्कार विधि :
व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने की यह विधि सरकारी नौकरियों में चुनाव के लिए सर्वाधिक प्रयोग की जाती है। भेंट या साक्षात्कार के दौरान परीक्षक परीक्षार्थी से प्रश्न पूछता है और उसके उत्तरों के आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन करता है। बालक के व्यक्तित्व का अध्ययन करने के लिए उसके अभिभावक, माता-पिता, भाई-बहन व मित्रों आदि से भी भेंट या साक्षात्कार किया जा सकता है। इस विधि का सबसे बड़ा दोष आत्मनिष्ठा का है। थोड़े से समय में किसी व्यक्ति-विशेष के हर पक्ष से सम्बन्धित प्रश्न नहीं पूछे जा सकते और अध्ययन किये गये विभिन्न व्यक्तियों की पारस्परिक, -तुलना भी नहीं की जा सकती। इस विधि को अधिकतम उपयोगी बनाने के लिए निर्धारण मान का प्रयोग किया जाना चाहिए तथा प्रश्न व उनके उत्तर पूर्व निर्धारित हों ताकि साक्षात्कार के दौरान समय एवं शक्ति की बचत हो।

4. आत्म-चरित्र लेखन विधि :
इस विधि में परीक्षक जीवन के किसी पक्ष से सम्बन्धित एक शीर्षक पर परीक्षार्थी को अपने जीवन से जुड़ी ‘आत्मकथा लिखने को कहता है। यहाँ विचारों को लिखकर अभिव्यक्त करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। परीक्षार्थी के जीवन से सम्बन्धित सभी बातों को गोपनीय रखा जाता है। इस विधि का दोष यह है कि प्रायः व्यक्ति स्मृति के आधार पर ही लिखता है, जिससे उसके मौलिक चिन्तन का ज्ञान नहीं हो पाता। कई कारणों से वह व्यक्तिगत जीवन की बातों को छिपा भी लेता है। इस भाँति यह विधि अधिक विश्वसनीय नहीं कही जा सकती।

प्रश्न 4
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य वस्तुनिष्ठ विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य वस्तुनिष्ठ विधियाँ व्यक्तित्व परीक्षण की वस्तुनिष्ठ विधियों के अन्तर्गत व्यक्ति के बाह्य आचरण तथा व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इसमें ये चार विधियाँ सहायक होती हैं।

  1. निर्धारणमान विधि
  2. शारीरिक परीक्षण विधि
  3. निरीक्षण विधि तथा
  4. समाजमिति विधि।

1. निर्धारणमान विधि :
किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के मूल्यांकन हेतु प्रयुक्त इस विधि में अनेक सम्भावित उत्तरों वाले कुछ प्रश्न पूछे जाते हैं तथा प्रत्येक उत्तर के अंक निर्धारित किये जाते हैं। इस विधि का प्रयोग ऐसे निर्णायकों द्वारा किया जाता है जो इस व्यक्ति से भली-भाँति परिचित होते हैं जिसके व्यक्तित्व का मापन करना है। उस विधि से सम्बन्धित दो प्रकार के निर्धारण मानदण्ड प्रचलित हैं।

(i) सापेक्ष निर्धारण मानदण्ड
(ii) निरपेक्ष निर्धारण मानदण्ड

(i) सापेक्ष निर्धारण मानदण्ड :
इस विधि के अन्तर्गत अनेक व्यक्तियों को एक-दूसरे के सापेक्ष सम्बन्ध में श्रेष्ठता क्रम में रखा जाता है। इस भाँति श्रेणीबद्ध करते समय सभी व्यक्तियों की आपस में तुलना हो जाती है। माना 10 व्यक्तियों की ईमानदारी के गुण का मूल्यांकन करना है तो सबसे अधिक ईमानदार व्यक्ति को पहला तथा सबसे कम ईमानदार को दसवाँ स्थान प्रदान किया जाएगा तथा इनके मध्य में शेष लोगों को श्रेष्ठता-क्रम में स्थान दिया जाएगा। यह विधि थोड़ी संख्या के समूह पर ही लागू हो सकती है, क्योंकि बड़ी संख्या वाले समूह के बीच के लोगों का क्रम निर्धारित करना अत्यन्त दुष्कर कार्य है।

(ii) निरपेक्ष निर्धारण मानदण्ड :
इस विधि में किसी के गुण के आधार पर व्यक्तियों की तुलना नहीं की जाती, अपितु उन्हें विभिन्न विशेषताओं की निरपेक्ष कोटियों में रख लिया जाता है। कोटियों की संख्या 3,5,7, 11, 15 या उससे अधिक भी सम्भव है। इन कोटियों को कभी-कभी शब्द के स्थान पर अंकों द्वारा भी दिखाया जा सकता है, किन्तु तत्सम्बन्धी अंकों के अर्थ लिख दिये जाते हैं। ईमानदारी के गुण को निम्न प्रकार मानदण्ड पर प्रदर्शित किया गया है
UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 25 Personality and Personality Tests image 1
इस विधि के अन्तर्गत मूल्यांकन करते समय निर्णायक को न तो अधिक कठोर होना चाहिए और न ही अधिक उदार। व्यक्तियों की कोटियों के अनुसार श्रेणीबद्ध करने में सामान्य वितरण का ध्यान रखना आवश्यक है।

2. शारीरिक परीक्षण विधि :
इसमें व्यक्ति विशेष के शारीरिक लक्षणों के आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। व्यक्तित्व के निर्माण में सहभागिता रखने वाले शारीरिक तत्त्वों के मापन हेतु इन यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है-नाड़ी की गति नापने के लिए स्फिग्नोग्राफ; हृदय की गति एवं कुछ हृदय-विकारों को ज्ञात करने के लिए इलेक्ट्रो कार्डियोग्राफ; फेफड़ों की गति के मापन हेतु-न्यूमोग्राफ; त्वचा में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों के अध्ययन हेतु-साइको गैल्वेनोमीटर तथा रक्तचाप के मापन हेतु-प्लेन्थिस्मोग्राफ।

3. निरीक्षण विधि :
हम जानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति भिन्न-भिन्न परिस्थितियों तथा समयों पर भिन्न-भिन्न आचरण प्रदर्शित करता है। इस विधि के अन्तर्गत उसके आचरण का निरीक्षण करके उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। यहाँ परीक्षक देखकर व सुनकर व्यक्तित्व के विभिन्न शारीरिक, मानसिक तथा व्यावहारिक गुणों को समझने का प्रयास करता है, जिसके लिए निरीक्षण तालिका का प्रयोग किया जाता है। निरीक्षण के पश्चात् तुलना द्वारा निरीक्षण गुणों का मूल्यांकन किया जाता है। निरीक्षणकर्ता की आत्मनिष्ठा के दोष के कारण इस विधि को वैज्ञानिक एवं विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता।

4. समाजमिति विधि :
समाजमिति विधि के अन्तर्गत व्यक्ति की सामाजिकता का मूल्यांकन किया जाता है। बालकों को किसी सामाजिक अवसर पर अपने सभी साथियों के साथ किसी खास स्थान पर उपस्थित होने के लिए कहा जाता है, जहाँ वे अपनी सामर्थ्य और क्षमताओं के अनुसार कार्य करते हैं। अब यह देखा जाता है कि प्रत्येक बालक का उसके समूह में क्या स्थान है। संगृहीत तथ्यों के आधार पर एक सोशियोग्राम (Sociogram) तैयार किया जाता है और उसका विश्लेषण किया जाता है। इसी के आधार पर बालक के व्यक्तित्व की व्याख्या प्रस्तुत की जाती है।

प्रश्न 5
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य प्रक्षेपण विधियों का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
या
व्यक्तिस्व मापन की प्रक्षेपी विधियों से क्या तात्पर्य है ? इनमें से किसी एक विधि का विस्तृत वर्णन कीजिए।
या
व्यक्तित्व मापन की किसी एक विधि की व्याख्या कीजिए। [2007]
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की प्रक्षेपण विधियाँ प्रक्षेपण (Projection) अचेतन मन की वह सुरक्षा प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी अनुभूतियों, विचारों, आकांक्षाओं तथा संवेगों को दूसरों पर थोप देता है। प्रक्षेपण विधियों द्वारा व्यक्ति-विशेष के व्यक्तित्व सम्बन्धी उन पक्षों का ज्ञान हो जाता है जिनसे वह व्यक्ति स्वयं ही अनभिज्ञ होता है। कुछ प्रक्षेपण विधियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. कथा प्रसंग परीक्षण
  2. बाल सम्प्रत्यक्षण परीक्षण
  3. रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण तथा
  4. वाक्य पूर्ति या कहानी पूर्ति परीक्षण।।

1. कथा प्रसंग परीक्षण :
कथा प्रसंग विधि, जिसे प्रसंगात्मक बोध परीक्षण और टी० ए० टी० टेस्ट भी कहते हैं, के निर्माण का श्रेय मॉर्गन तथा मरे (Morgan and Murray) को जाता है। परीक्षण में 30 चित्रों का संग्रह है जिनमें से 10 चित्र पुरुषों के लिए, 10 स्त्रियों के लिए तथा 10 स्त्री व पुरुष दोनों के लिए होते हैं। परीक्षण के समय व्यक्ति के सम्मुख 20 चित्र प्रस्तुत किये जाते हैं। इनमें से एक चित्र खाली रहता है।

अब व्यक्ति को एक-एक करके चित्र प्रस्तुत किये जाते हैं और उस चित्र से सम्बन्धित कहानी बनाने के लिए कहा जाता है जिसमें समय का कोई बन्धन नहीं रहता। चित्र दिखलाने के साथ ही यह आदेश दिया जाता है, “चित्र को देखकर बताइए कि पहले क्या घटना हो गयी है ? इस समय क्या हो रहा है ? चित्र में जो लोग हैं उनमें क्या विचार या भाव उठ रहे हैं तथा कहानी का क्या अन्त होगा?” व्यक्ति द्वारा कहानी बनाने पर उसका विश्लेषण किया जाता है जिसके आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

2. बांल सम्प्रत्यक्षण परीक्षण :
इसे ‘बालकों का बोध परीक्षण’,या ‘सी० ए० टी० टेस्ट’ भी कहते हैं। इनमें किसी-न-किसी पशु से सम्बन्धित 10 चित्र होते हैं, जिनके माध्यम से बालकों की विभिन्न समस्याओं; जैसे-पारस्परिक या भाई-बहन की प्रतियोगिता, संघर्ष आदि के विषय में सूचनाएँ एकत्र की जाती हैं। इन उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर बालक के व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

3. रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षण :
इस परीक्षण का निर्माण स्विट्जरलैण्ड के प्रसिद्ध मनोविकृति चिकित्सक हरमन रोर्शा ने 1921 ई० में किया था। इसके अन्तर्गत विभिन्न कार्डों पर बने स्याही के दस धब्बे होते हैं, जिन्हें इस प्रकार से बनाया जाता है कि बीच की रेखा के दोनों ओर एक जैसी आकृति दिखायी पड़े। पाँच कार्डों के धब्बे काले, भूरे, दो कार्डों के काले-भूरे के अलावा लाल रंग के भी होते हैं तथा शेष तीन कार्डों में अनेक रंग के धब्बे होते हैं। अब परीक्षार्थी को आदेश दिया जाता है।

कि चित्र देखकर बताओ कि यह किसके समान प्रतीत होता है ? यह क्या हो सकता है ? आदेश देने के बाद एक-एक कार्ड परीक्षार्थी के सामने प्रस्तुत किये जाते हैं, जिन्हें देखकर वह धब्बों में निहित आकृतियों के विषय में बताता है। परीक्षक, परीक्षार्थी द्वारा कार्ड देखकर दिये गये उत्तरों को वर्णन,उनका समय, कार्ड घुमाने का तरीका एवं परीक्षार्थी के व्यवहार, उद्गार और भावों को नोट करता जाता है। अन्त में परीक्षक द्वारा परीक्षार्थी के उत्तरों के विषय में उससे पूछताछ की जाती है। रोर्शा परीक्षण में इन चार बातों के आधार पर अंक दिये जाते हैं।

  • स्याही के धब्बों का क्षेत्र
  • धब्बों की विशेषताएँ (रंग, रूप, आकार आदि)
  • विषय-पेड़-पौधे, मनुष्य आदि तथा
  • मौलिकता

अंकों के आधार पर परीक्षक परीक्षार्थी के व्यक्तित्व का मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। इस परीक्षण को व्यक्तिगत निर्देशन तथा उपचारात्मक निदान के लिए सर्वाधिक उपयोगी माना जाता है।

4. वाक्यपूर्ति यो कहानी :
पूर्ति परीक्षण इस विधि के अन्तर्गत परीक्षण-पदों के रूप में अधूरे वाक्य तथा अधूरी कहानियों को परीक्षार्थी के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। जिसकी पूर्ति करके वह अपनी इच्छाओं, अभिवृत्तियों, विचारधारा तथा भय आदि को अप्रत्यक्ष रूप से अभिव्यक्त कर देता है। इस प्रकार के परीक्षण रोडे (Rohde), पैनी (Payne) तथा हिल्ड्रेथ (Hildreath) आदि द्वारा निर्मित किये गये हैं। [2012]

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
व्यक्तित्व क्या है? वे कौन-से कारक हैं जो व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं? [2015]
या
वे कौन-से कारक हैं जो बालकों के व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करते हैं?
उत्तर :
व्यक्तित्व के बाह्य गुणों तथा आन्तरिक गुणों के समन्वित तथा संगठित रूप को व्यक्तित्व कहते हैं। वुडवर्थ के अनुसार, “व्यक्तित्व गुणों को समन्वित रूप है।” व्यक्तित्व के निर्माण एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले दो महत्त्वपूर्ण कारक है।

1. आनुवांशिकता :
शारीरिक आकार, बनावट तथा मानसिक बुद्धि आदि आनुवांशिक गुण होते हैं, जो माता-पिता से प्राप्त होते हैं, जिनसे व्यक्तित्व का निर्माण होता है। ये कारक व्यक्तित्व के विकास के लिए चहारदीवारी का कार्य करते हैं, जिसके भीतर व्यक्तित्व का विकास होता है।

2. वातावरण :
इसके तीन तत्त्व होते हैं।

(i) परिवार :
यह एक ऐसी सामाजिक संस्था है, जहाँ बालक के व्यक्तित्व के विकास का प्रथम चरण प्रारम्भ होता है। परिवार में कुछ तत्त्व व्यक्तित्व के विकास पर व्यापक प्रभाव डालते हैं; जैसे – माता – पिता के आपसी सम्बन्ध, उनका बालक के साथ व्यवहार, परिवार की आर्थिक स्थिति, परिवार का सामाजिक स्तर, परिवार के नैतिक मूल्य, परिवार के सदस्यों की संख्या, संयुक्त परिवार व्यवस्था आदि।

(ii) विद्यालय :
बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करने में घर-परिवार के पश्चात् विद्यालय का ही स्थान आता है। विद्यालय में व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण कारक हैं; जैसे—अध्यापक का व्यवहार, अनुशासन पद्धति, नैतिक मूल्य, अध्यापन तथा सीखने के तरीके, स्वतन्त्र कार्य करने के अवसर तथा साथियों का व्यवहार आदि।

(iii) समाज :
बालक के व्यक्तित्व का निर्माण, सामाजिक रीति-रिवाज, परम्पराएँ, संस्कृति तथा सभ्यता के द्वारा होता है। बालक की मनोवृत्ति का विकास, समाज में प्रचलित मान्यताएँ, विश्वास तथा धारणाएँ करती हैं। इस प्रकार राजनीतिक विचार, जनतान्त्रिक मूल्य आदि भी व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 2
शारीरिक संरचना के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक क्रैशमर (Kretschmer) ने शारीरिक संरचना में भिन्नता को व्यक्तित्व के वर्गीकरण का आधार माना है। उसने 400 व्यक्तियों की शारीरिक रूपरेखा का अध्ययन किया तथा उनके व्यक्तित्व को दो समूहों में इस प्रकार बाँटा।

1. साइक्लॉयड :
क्रैशमर के अनुसार, साइक्लॉयड व्यक्ति प्रसन्नचित्त सामाजिक प्रकृति के, विनोदी तथा मिलनसार होते हैं। इनका शरीर मोटापा लिए हुए होता है। ऐसे व्यक्तियों का जीवन के प्रति वस्तुवादी दृष्टिकोण पाया जाता है।

2. शाइजॉएड :
साइक्लॉयड के विपरीत शाइजॉएड व्यक्तियों की शारीरिक बनावट दुबली-पतली होती है। ऐसे लोग मनोवैज्ञानिक दृष्टि से संकोची, शान्त स्वभाव, एकान्तवासी, भावुक, स्वप्नदृष्टा तथा आत्म-केन्द्रित होते हैं।

क्रैशमर ने इनके अलावा चार उप-समूह भी बताये हैं।

1. सुडौलकाय :
स्वस्थ शरीर, सुडौल मांसपेशियाँ, मजबूत हड्डियाँ, चौड़ा वक्षस्थल तथा लम्बे चेहरे वाले शक्तिशाली लोग, जो इच्छानुसार अपने कार्यों का व्यवस्थापन कर लेते हैं, क्रियाशील होते हैं, कार्यों में रुचि लेते हैं तथा अन्य चीजों की अधिक चिन्ता नहीं करते।

2. निर्बल :
लम्बी भुजाओं व पैर वाले दुबले – पतले निर्बल व्यक्ति, जिनका सीना चपटा, चेहरा तिकोना तथा ठोढ़ी विकसित होती है। ऐसे लोग दूसरों की निन्दा तो करते हैं, लेकिन अपनी निन्दा सुनने के लिए तैयार नहीं होते।

3. गोलकाय :
बड़े शरीर और धड़, किन्तु छोटे कन्धे, हाथ पैर वाले तथा गोल छाती वाले असाधारण शरीर के ये लोग बहिर्मुखी होते हैं।

4. स्थिर बुद्धि :
ग्रन्थीय रोगों से ग्रस्त तथा विभिन्न प्रकार के प्रारूप वाले इन व्यक्तियों का शरीर साधारण होता है।

प्रश्न 3
स्वभाव के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
शैल्डन (Scheldon) ने स्वभाव के आधार पर मानव व्यक्तियों को तीन भागों में बाँटा है।

  1. एण्डोमॉर्फिक (Endomorphic) गोलाकार शरीर वाले कोमल और देखने में मोटे व्यक्ति इस विभाग के अन्तर्गत आते हैं। ऐसे लोगों का व्यवहार आँतों की आन्तरिक पाचन-शक्ति पर निर्भर करता है।
  2. मीजोमॉर्फिक (Mesomorphic) आयताकार शरीर रचना वाले इन लोगों का शरीर शक्तिशाली तथा भारी होता है।
  3. एक्टोमॉर्फिक (Ectomorphic) इन लम्बाकार शक्तिहीन व्यक्तियों में उत्तेजनशीलता अधिक होती है। ऐसे लोग बाह्य जगत् में निजी क्रियाओं को शीघ्रतापूर्वक करते हैं।

शैल्डन : ने उपर्युक्त तीन प्रकार के व्यक्तियों के स्वभाव का अध्ययन करके व्यक्तित्व के ये तीन वर्ग बताये हैं।

1. विसेरोटोनिक (Viscerotonic :
मुण्डोमॉर्फिक वर्ग के ये लोग विसेरोटोनिक प्रकार का . व्यक्तित्व रखते हैं। ये लोग आरामपसन्द तथा गहरी व ज्यादा नींद लेते हैं। किसी परेशानी के समय दूसरों की मदद पर आश्रित रहते हैं। ये अन्य लोगों से प्रेमपूर्ण सम्बन्ध रखते हैं तथा तरह-तरह के भोज्य पदार्थों के लिए लालायित रहते हैं।

2. सोमेटोटोनिक (Somatotonic) :
मीजोमॉर्फिक वर्ग के अन्तर्गत आने वाले सोमेटोटोनिक व्यक्तित्व के लोग बलशाली तथा निडर होते हैं। ये अपने विचारों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना पसन्द करते हैं। ये कर्मशील होते हैं तथा आपत्ति से भय नहीं खाते।

3. सेरीब्रोटोनिक (Cerebrotonic) :
एक्टोमॉर्फिक वर्ग में शामिल सेरीब्रोटोनिक व्यक्तित्व के लोग धीमे बोलने वाले, संवेदनशील, संकोची, नियन्त्रित तथा एकान्तवासी होते हैं। संयमी होने के कारण ये अपनी इच्छाओं तथा भावनाओं को दमित कर सकते हैं। आपातकाल में ये दूसरों की मदद लेना पसन्द नहीं करते। ये सौम्य स्वभाव के होते हैं। इन्हें गहरी नींद नहीं आती।

प्रश्न 4
सामाजिकता के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
या
मनोवैज्ञानिक जंग के अनुसार दो प्रकार के व्यक्तित्व होते हैं। वे कौन-से प्रकार हैं? उनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2010]
या
अन्तर्मुखी व्यक्तित्व से आपको क्या अभिप्राय है? [2014]
उत्तर :
जंग (Jung) नामक मनोवैज्ञानिक ने समाज से सम्पर्क स्थापित करने की क्षमता पर आधारित करके व्यक्तित्व को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया है।

  1. बहिर्मुखी
  2. अन्तर्मुखी। जंग के वर्गीकरण को सर्वाधिक मान्यता प्रदान की जाती है।

1. बहिर्मुखी :
बहिर्मुखी व्यक्तियों की रुचि बाह्य जगत् में होती है। इनमें सामाजिकता की प्रबल भावना होती है और ये सामाजिक कार्यों में लगे रहते हैं। इनकी अन्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  • बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले लोगों का ध्यान सदा बाह्य समाज की ओर लगा रहता है। यही कारण है कि इनका आन्तरिक जीवन कष्टमय होता है।
  • ऐसे व्यक्तियों में कार्य करने की दृढ़ इच्छा होती है और ये वीरता के कार्यों में अधिक रुचि रखते हैं।
  • समाज के लोगों से शीघ्र मेल-जोल बढ़ा लेने की इनकी प्रवृत्ति होती है। समाज की दशा पर विचार करना इन्हें भाता है और ये उसमें सुधार लाने के लिए भी प्रवृत्त होते हैं।
  • अपनी अस्वस्थता एवं पीड़ा की बहुत कम परवाह करते हैं।
  • चिन्तामुक्त होते हैं।
  • आक्रामक, अहमवादी तथा अनियन्त्रित प्रकृति के होते हैं।
  • प्राय: प्राचीन विचारधारा के पोषक होते हैं।
  • धारा प्रवाह बोलने वाले तथा मित्रवत् व्यवहार करने वाले होते हैं।
  • ये शान्त एवं आशावादी होते हैं।
  • परिस्थिति और आवश्यकताओं के अनुसार स्वयं को व्यवस्थित कर लेते हैं।
  • ऐसे व्यक्ति शासन करने तथा नेतृत्व करने की इच्छा रखते हैं। ये जल्दी से घबराते भी नहीं हैं।
  • बहिर्मुखी व्यक्तित्व के लोगों में अधिकतर समाज-सुधारक, राजनैतिक नेता, शासक व प्रबन्धक, खिलाड़ी, व्यापारी और अभिनेता सम्मिलित होते हैं।

2. अन्तर्मुखी अन्तर्मुखी व्यक्तियों की रुचि स्वयं में होती है। :
इनकी सामाजिक कार्यों में रुचि न के बराबर होती है। स्वयं अपने तक ही सीमित रहने वाले ऐसे लोग संकोची तथा एकान्तप्रेमी होते हैं। इनकी अन्य। विशेषताएँ इस प्रकार हैं।

  • अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के लोग कम बोलने वाले, लज्जाशील तथा पुस्तक-पत्रिकाओं को पढ़ने में गहरी रुचि रखते हैं।
  • ये चिन्तनशील तथा चिन्ताओं से ग्रस्त रहते हैं।
  • सन्देह प्रवृत्ति के कारण अपने कार्य में अत्यन्त सावधान रहते हैं।
  • अधिक लोकप्रिय नहीं होते।
  • इनका व्यवहार आज्ञाकारी होता है, लेकिन जल्दी ही घबरा जाते हैं।
  • आत्म-केन्द्रित और एकान्तप्रिय होते हैं।
  • स्वभाव में लचीलापन नहीं पाया जाता और क्रोध करने वाले होते हैं।
  • चुपचाप रहते हैं।
  • अच्छे लेखक तो होते हैं, किन्तु अच्छे वक्ता नहीं होते।
  • समाज से दूर रहकर धार्मिक, सामाजिक तथा राजनैतिक आदि समस्याओं के विषय में चिन्तनरत रहते हैं, लेकिन समाज में सामने आकर व्यावहारिक कार्य नहीं कर पाते।

बहिर्मुखी तथा अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के लोगों की विभिन्न विशेषताओं को अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति समाज में शायद ही कुछ हों जिन्हें विशुद्धतः बहिर्मुखी या अन्तर्मुखी का नाम दिया जा सके। ज्यादातर लोगों का व्यक्तित्व ‘मिश्रित प्रकार का होता है, जिसमें बहिर्मुखी तथा अन्तर्मुखी दोनों प्रकार की विशेषताएँ निहित होती हैं। ऐसे व्यक्तित्व को विकासोन्मुख व्यक्तित्व (Ambivert Personality) की संज्ञा प्रदान की जाती है।

प्रश्न 5
व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए इस्तेमाल होने वाली ‘व्यक्तित्व परिसूचियों का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व के मूल्यांकन की एक प्रविधि व्यक्तित्व परिसूचियाँ भी हैं। व्यक्तित्व परिसूचियाँ (Personality Inventories) कथनों की लम्बी तालिकाएँ होती हैं, जिनके कथन व्यक्तित्व एवं जीवन के विविध पक्षों से सम्बन्धित होते हैं। परीक्षार्थी के सामने परिसूची रख दी जाती है, जिन पर वह हाँ / नहीं अथवा (√) या (×) के माध्यम से अपना मत प्रकट करता है। इन उत्तरों का विश्लेषण करके व्यक्तित्व को समझने का प्रयास किया जाता है। ये व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों रूपों में प्रयुक्त होती हैं।

इनको प्रचलन आजकल काफी बढ़ गया है, क्योंकि इनके माध्यम से कम समय में अधिकाधिक सूचनाएँ एकत्र की जा सकती हैं। अमेरिका तथा इंग्लैण्ड में निर्मित व्यक्तित्व परिसूचियों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-बर्न श्यूटर की व्यक्तित्व परिसूची, कार्नेल सूचक, मिनेसोटा बहुपक्षीय व्यक्तित्व परिसूची, आलपोर्ट का ए० एस० प्रतिक्रिया अध्ययन, वुडवर्थ का व्यक्तिगत प्रदत्त पत्रक, बेल की समायोजन परिसूची तथा फ्राइड हीडब्रेडर का अन्तर्मुखी-बहिर्मुखी परीक्षण इत्यादि। भारत में ‘मनोविज्ञानशाला उ० प्र०, इलाहाबाद द्वारा भी एक व्यक्तित्व परिसूची का निर्माण किया गया है, जिसे चार भागों में विभाजित किया गया है।

  1. तुम्हारा घर तथा परिवार
  2. तुम्हारा स्कूल
  3. तुम और दूसरे लोग तथा
  4. तुम्हारा स्वास्थ्य तथा अन्य समस्याएँ

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
वार्नर द्वारा किया गया व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
वार्नर (Warner) ने शारीरिक आधार पर व्यक्तित्व के दस विभिन्न रूप बताये हैं।

  1. सामान्य
  2. असामान्य बुद्धि वाला
  3. मन्दबुद्धि वाला
  4. अविकसित शरीर का
  5. स्नायुविक
  6. स्नायु रोगी
  7. अपरिपुष्ट
  8. सुस्त और पिछड़ा हुआ
  9. अंगरहित तथा
  10. मिरगी ग्रस्त

प्रश्न 2
टरमन द्वारा किया गया व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
टरमन (Turman) :
बुद्धि-लब्धि के आधार पर व्यक्तित्व के दो प्रकार बताये हैं।

  1. प्रतिभाशाली
  2. उप-प्रतिभाशाली
  3. अत्युत्कृष्ट
  4. उत्कृष्ट बुद्धि
  5. सामान्य बुद्धि
  6. मन्दबुद्धि
  7. मूर्ख
  8. मूढ़-जड़ बुद्धि।

प्रश्न 3
थॉर्नडाइक द्वारा किया गया व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
थॉर्नडाइक (Thorndike) ने विचार – शक्ति के आधार पर व्यक्तित्व को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा है।

  1. सूक्ष्म विचारक – किसी कार्य को करने से पूर्व उसके पक्ष/विपक्ष में बारीकी से विचार करने वाले ऐसे व्यक्ति विज्ञान, गणित व तर्कशास्त्र में रुचि रखते हैं।
  2. प्रत्यय विचारक – ऐसे लोग शब्द, संख्या तथा सन्तों आदि प्रत्ययों के आधार पर विचार करना पसन्द करते हैं।
  3. स्थूल विचारक – स्थूल विचारक क्रिया पर बल देने वाले तथा स्थूल चिन्तन करने वाले होते हैं।

प्रश्न 4
व्यक्तित्व मूल्यांकन के लिए अपनायी जाने वाली स्वतन्त्र साहचर्य विधि का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व मूल्यांकन की स्वतन्त्र साहचर्य (Free Association) विधि में 50 से लेकर 100 तक उद्दीपक शब्दों की एक सूची प्रयोग की जाती है। परीक्षक परीक्षार्थी को सामने बैठाकर सूची का एक-एक शब्द उसके सामने बोलता है। परीक्षार्थी शब्द सुनकर जो कुछ उसके मन में आता है, कह देता है जिन्हें लिख लिया जाता है और उन्हीं के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

प्रश्न 5
स्वप्न विश्लेषण विधि का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर :
स्वप्न विश्लेषण :
यह मनोचिकित्सा की एक महत्त्वपूर्ण विधि है। मनोविश्लेषणवादियों के अनुसार, स्वप्न मन में दबी हुई भावनाओं को उजागर करता है। इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति अपने स्वप्नों को नोट करता जाता है और परीक्षक उसका विश्लेषण करके व्यक्ति के व्यक्तित्व की व्याख्या प्रस्तुत करता है। वैसे तो स्वप्नों को ज्यों-का-त्यों याद करने में काफी कठिनाई होती है तथापि स्वप्न साहचर्य के अभ्यास द्वारा, स्वप्नों को सुविधापूर्वक याद किया जा सकता है।

प्रश्न 6
शिक्षा में ‘व्यक्तित्व परीक्षण के महत्त्व का विवेचन कीजिए। (2016)
उत्तर :
शिक्षा में व्यक्तित्व परीक्षण का महत्त्व इस प्रकार है।

  1. व्यक्तित्व परीक्षण के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तिगत विशेषताओं की माप होती है।
  2. व्यक्तित्व का वास्तविक मापन वस्तुनिष्ठता, वैधता तथा विश्वसनीयता द्वारा होता है।
  3. शिक्षा में व्यक्तित्व का परीक्षण मुख्यत: व्यक्ति के ज्ञान के मूल्यांकन के लिए किया जाता है।
  4. व्यक्तित्व परीक्षण द्वारा व्यक्ति की बुद्धि क्षमता का परीक्षण किया जाता है।
  5. व्यक्तित्व परीक्षण द्वारा परीक्षार्थी के सीखने की क्षमता का पता चलता है।
  6. परीक्षण द्वारा व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक आकलन किया जाता है।
  7. व्यक्ति परीक्षण द्वारा परीक्षार्थी या व्यक्ति के व्यवहार का अवलोकन किया जाता है।

प्रश्न 7
व्यक्तित्व मूल्यांकन की परिस्थिति परीक्षण विधि का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व मूल्यांकन की एक विधि ‘परिस्थिति परीक्षण विधि’ (Situation Test Method) भी है। इसे वस्तु परीक्षण भी कहते हैं, जिसके अनुसार व्यक्ति के किसी गुण की माप करने के लिए उसे उससे सम्बन्धित किसी वास्तविक परिस्थिति में रखा जाता है तथा उसके व्यवहार के आधार पर गुण का मूल्यांकन किया जाता है। इस परीक्षण में परिस्थिति की स्वाभाविकता बनाये रखना आवश्यक है।

प्रश्न 8
व्यक्तित्व मूल्यांकन की व्यावहारिक परीक्षण विधि का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व मूल्यांकन की एक विधि व्यावहारिक परीक्षण विधि (Performance Test Method) भी है। इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति को वास्तविक परिस्थिति में ले जाकर उसके व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। परीक्षार्थी को कुछ व्यावहारिक कार्य करने को दिये जाते हैं। इन कार्यों की परिलब्धियों तथा व्यवहार सम्बन्धी लक्षणों के आधार पर परीक्षार्थी के व्यक्तित्व से सम्बन्धित निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने अनेक प्रकार की व्यावहारिक परीक्षण विधियाँ प्रस्तुत की हैं। एक उदाहरण इस प्रकार है-बच्चों के एक समूह को पुस्तकालय में ले जाकर स्वतन्त्र छोड़ दिया गया और उनके क्रियाकलापों का अध्ययन किया गया। वे वहाँ जो कुछ भी करते हैं, जिन पुस्तकों का अध्ययन करते हैं या जिस प्रकार की बातचीत करते हैं, उसे नोट करके उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
व्यक्तित्व की एक स्पष्ट परिभाषा लिखिए। [2007, 13]
उत्तर :
“व्यक्तित्व व्यक्ति के उन मनो-शारीरिक संस्थानों का गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण के साथ उसके अनूठे समायोजन को निर्धारित करता है।” [आलपोर्ट]

प्रश्न 2
व्यक्तित्व के निर्माण में किन कारकों का योग रहता है ?
उत्तर :
व्यक्तित्व के निर्माण में व्यक्ति के जन्मजात तथा अर्जित गुणों का योग रहता है।

प्रश्न 3
किस विद्वान ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण शारीरिक संरचना के आधार पर किया है ?
उत्तर :
क्रैशमर नामक विद्वान् ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण शारीरिक संरचना के आधार पर किया है।

प्रश्न 4
किस विद्वान ने स्वभाव के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण किया है ?
उत्तर :
शैल्डन ने स्वभाव के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 5
किस मनोवैज्ञानिक ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण सामाजिकता के आधार पर किया है?
उत्तर :
जंग नामक मनोवैज्ञानिक ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण सामाजिकता के आधार पर किया है।

प्रश्न 6
सन्तुलित व्यक्तित्व की चार मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2008]
उत्तर :
सन्तुलित व्यक्तित्व की चार मुख्य विशेषताएँ हैं।

  1. उत्तम शारीरिक स्वास्थ्य
  2. अच्छा मानसिक स्वास्थ्य
  3. संवेगात्मक सन्तुलन तथा
  4. सामाजिकता

प्रश्न 7
व्यक्तित्व – परीक्षण की मुख्य विधियाँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य विधियाँ हैं

  1. वैयक्तिक विधियाँ
  2. वस्तुनिष्ठ विधियाँ
  3. मनोविश्लेषणात्मक विधियाँ तथा
  4. प्रक्षेपण या प्रक्षेपी विधियाँ।

प्रश्न 8
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य वैयक्तिक विधियाँ कौन-कौन-सी ?
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य वैयक्तिक विधियाँ हैं

  1. प्रश्नावली विधि
  2. व्यक्ति इतिहास विधि
  3. साक्षात्कार विधि तथा
  4. आत्म-चरित्र-लेखन विधि।

प्रश्न 9
‘रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षण किस प्रकार की विधि है ? (2007)
उत्तर :
‘रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षण’ एक प्रक्षेपण विधि है।

प्रश्न 10
किस विधि से व्यक्ति में सामाजिक अन्तर्सम्बन्धों को मापा जाता है?
उत्तर :
समाजमिति विधि द्वारा व्यक्ति में सामाजिक अन्तर्सम्बन्धों को मापा जाता है।”

प्रश्न 11
व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त का प्रतिपादक कौन है?
उत्तर :
व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त का प्रतिपादक सिगमण्ड फ्रॉयड है।

प्रश्न 12
किस प्रकार के व्यक्तियों में आत्मविश्वास की सुदृढ भावना और पर्याप्त सहनशीलता होती है?
उत्तर :
बहिर्मुखी प्रकार के व्यक्तियों में आत्मविश्वास की सुदृढ़ भावना और पर्याप्त सहनशीलता होती

प्रश्न 13
सर्वप्रथम ‘स्याही धब्बा परीक्षण किसने किया था ? [2011]
उत्तर :
सर्वप्रथम ‘स्याही धब्बा परीक्षण स्विट्जरलैण्ड के प्रसिद्ध मनोविकृति चिकित्सक हरमन रोर्शा ने किया था।

प्रश्न 14
बाल सम्प्रत्यय परीक्षण (c.A.T.) का सम्बन्ध किस परीक्षण से है? [2014]
उत्तर :
बाल सम्प्रत्यय परीक्षण (C.A.T) का सम्बन्ध व्यक्तित्व-परीक्षण से है।

प्रश्न 15
व्यक्तित्व के शाब्दिक अर्थ को बताइए। [2012]
उत्तर :
व्यक्तित्व का शाब्दिक अर्थ है-व्यक्ति का वास्तविक स्वरूप।

प्रश्न 16
‘स्याही धब्बा परीक्षण क्या है। [2009]
उत्तर :
‘स्याही धब्बा परीक्षण’ व्यक्तित्व-परीक्षण की एक प्रक्षेपी विधि है।

प्रश्न 17
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य।

  1. व्यक्तित्व का आशय है-व्यक्ति का रूप-रंग एवं वेशभूषा धारण करने का ढंग।
  2. व्यक्तित्व वर्गीकरण का एक आधार सामाजिकता भी है।
  3. व्यक्तित्व मापन या मूल्यांकन का न तो कोई महत्त्व है और न ही आवश्यकता।
  4. व्यक्तित्व परीक्षण की मनोविश्लेषणात्मक विधि के प्रतिपादक एडलर थे।

उत्तर :

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. असत्य

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए।

प्रश्न 1
“व्यक्तित्व रुचियों का वह समाकलन है, जो जीवन के व्यवहार में एक विशेष प्रवृत्ति उत्पन्न करता हैं।” यह परिभाषा किसकी है ?
(क) कार माइकेल की
(ख) मैकार्डी की
(ग) आलपोर्ट की
(घ) मार्टन प्रिन्स की
उत्तर :
(ख) मैका की

प्रश्न 2
सामाजिक अन्तर्किया की दृष्टि से जंग के अनुसार व्यक्तित्व के प्रकार हैं।
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर :
(क) दो

प्रश्न 3
व्यक्तित्व परीक्षण की वैयक्तिक विधि है।
(क) मनो-विश्लेषण विधि
(ख) रोश परीक्षण
(ग) वाक्य पूर्ति परीक्षण
(घ) प्रश्नावली विधि
उत्तर :
(घ) प्रश्नावली विधि

प्रश्न 4
रोर्शा परीक्षण मापन करता है। [2008, 10]
(क) उपलब्धि को
(ख) रुचिं को
(ग) बुद्धि का
(घ) व्यक्तित्व का
उत्तर :
(घ) व्यक्तित्व का

प्रश्न 5
व्यक्तित्त्व मापन की वस्तुनिष्ठ विधि है।
(क) समाजमिति
(ख) स्वप्न विश्लेषण
(ग) स्वतन्त्र साहचर्य
(घ) कहानी-पूर्ति परीक्षण
उत्तर :
(क) समाजमिति

प्रश्न 6
मनोविश्लेषण विधि के प्रवर्तक हैं।
(क) वुण्ट
(ख) फ्रॉयड
(ग) जंग
(घ) स्पीयरमैन
उत्तर :
(ख) फ्रॉयड

प्रश्न 7
प्रक्षेपण विधि मापन करता है।
(क) बुद्धि का
(ख) रुचिका
(ग) व्यक्तित्व का
(घ) उपलब्धि का
उत्तर :
(ग) व्यक्तित्व का

प्रश्न 8
व्यक्तित्व मापन की आरोपणात्मक विधि है।
(क) साक्षात्कार विधि
(ख) स्वप्न विश्लेषण विधि
(ग) रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षेण
(घ) ये सभी
उत्तर :
(ग) रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण

प्रश्न 9
आर० बी० कैटल द्वारा विकसित पी० एफ० प्रश्नावली में प्रयुक्त पी० एफ० (व्यक्तित्व कारकों) की संख्या है।
(क) 14
(ख) 16
(ग) 15
(घ) 17
उत्तर :
(ख) 16

प्रश्न 10
“व्यक्तित्व गुणों का समन्वित रूप है।” यह कथन है।
(क) वुडवर्थ का
(ख) गिलफोर्ड का
(ग) जे० एस० रासे को
(घ) स्किनरे का
उत्तर :
(घ) स्किनर का

प्रश्न 11
वाक्यपूर्ति तथा कहानी पूर्ति परीक्षण व्यक्तित्व परीक्षण की किस विधि में शामिल है?
(क) आत्म चरित्र लेखन विधि
(ख) वस्तुनिष्ठ विधि
(ग) प्रक्षेपी विधि
(घ) मनोविश्लेषणात्मक विधि
उत्तर :
(क) आत्म चरित्र लेखन विधि

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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 15 Sources of Income and Items of Expenditure of Central Government

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 15
Chapter Name Chapter 15 Sources of Income and Items of Expenditure of Central Government (केन्द्रीय सरकार की आय के स्रोत तथा व्यय की मदें)
Number of Questions Solved 29
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 15 Sources of Income and Items of Expenditure of Central Government (केन्द्रीय सरकार की आय के स्रोत तथा व्यय की मदें)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
भारत में केन्द्र सरकार की आय के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए। [2009, 10, 12, 14, 16]
या
भारत में केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाले प्रमुख करों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। [2013, 16]
या
भारत में केन्द्र सरकार की आय के प्रमुख स्रोत क्या हैं? विवेचना कीजिए। [2015]
उत्तर:
केन्द्र सरकार की आय के स्रोत
केन्द्र सरकार की आय के स्रोतों को मुख्यत: निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

(अ) करों से प्राप्त आय
विभिन्न प्रकार के करों के द्वारा केन्द्र सरकार को आय प्राप्त होती है, जिनमें मुख्य कर निम्नलिखित हैं

1. संघीय उत्पादन शुल्क – संघीय उत्पादन कर केन्द्रीय सरकार की आय का प्रमुख स्रोत है। यह कर देश में उत्पन्न होने वाली वस्तुओं पर लगाया जाता है। कुछ वस्तुओं को छोड़कर (जैसे-शराब-भाँग आदि) देश में उत्पन्न होने वाली प्राय: सभी वस्तुओं पर संघ सरकार द्वारा उत्पादन कर लगाया जाता है; जैसे-कपड़ा, चीनी, दियासलाई, टायर-ट्यूब, बिजली के सामान, रेडियो, मोटरगाड़ियाँ आदि। इस कर से प्राप्त आय का एक पूर्वनिश्चित भाग राज्यों में बाँट दिया जाता है।

2. आयकर – यह एक प्रत्यक्ष कर है जो गैर-कृषि आय पर लगाया जाता है। इस कर को लगाने व वसूल करने का अधिकार केन्द्र सरकार को है। आयकर से प्राप्त निवल आय का विभाजन केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच होता है। आयकर भारत में प्रगतिशील कर है। इस कर से केन्द्र सरकार को पर्याप्त आय प्राप्त होती है।

3. निगम कर – निगम कर से अभिप्राय, देशी व विदेशी कम्पनियों की वार्षिक आय पर लगाये गये अति कर Super Tax से है। यह कर सम्पूर्ण आय पर एक निश्चित दर से लगाया जाता है। सरकार को इससे भी आय होती है।

4. सम्पत्ति कर – भारत में यह कर 1957-58 से लागू किया गया है। जिन व्यक्तियों के पास 15, लाख रुपये से अधिक की सम्पत्ति होती है, उन्हें सम्पत्ति कर देना पड़ता है। इस कर से कुछ खम्पत्तियों को मुक्त रखा गया है; जैसे – कृषि भूमि, गाँवों में रहने के मकान, धार्मिक स्थानों की सम्पत्ति, बीमा व भविष्य निधि कोष आदि। इस कर की दर आरोही है। केन्द्रीय सरकार को इस कर से भी आय प्राप्त होती है।

5. उपहार कर – यह कर केन्द्रीय सरकार द्वारा 1958-59 ई० से लागू किया गया। यह कर उन व्यक्तियों पर लगाया जाता है जो अपने जीवन काल में निश्चित मूल्य से अधिक के उपहार अपने सम्बन्धियों या अन्य व्यक्तियों को देते हैं। इस कर का उद्देश्य मृत सम्पत्ति, कर की चोरी रोकना तथा धन के वितरण की विषमता को कम करना है। अब इस कर को समाप्त कर दिया गया है।

6. सीमा शुल्क-आयात – निर्यात कर को ही सीमा शुल्क कहते हैं। जब ये शुल्क मूल्य के आधार पर लगाये जाते हैं, तब इन्हें मूल्यानुसार शुल्क और जब ये शुल्क परिमाण या संख्या के अनुसार लगाये जाते हैं, तब इन्हें परिमाणानुसार शुल्क कहते हैं। भारत में ये दोनों प्रकार के शुल्क लगाये जाते हैं।
केन्द्रीय सरकार को निर्यात शुल्क की अपेक्षा आयात शुल्क से अधिक आय प्राप्त होती है। विगत दस, बारह वर्षों में सीमा शुल्कों से प्राप्त आय में निरन्तर वृद्धि हो रही है।

(ब) गैर-कर आय
भारत सरकार की आय के कुछ गैर-कर साधन निम्नलिखित हैं

1. ब्याज एवं लाभांश से प्राप्तियाँ – केन्द्रीय सरकार राज्य सरकारों के अन्य संस्थाओं को एक बहुत बड़ी मात्रा में ऋण देती है। अत: इसको प्रतिवर्ष इन ऋणों की ब्याज से करोड़ों रुपये की आय होती है।

2. प्रशासनिक प्राप्तियाँ – केन्द्रीय सरकार नागरिक प्रशासन, न्याय, शान्ति एवं व्यवस्था आदि के रूप में मनुष्यों को अनेक महत्त्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान करती है जिनसे उसे प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की आय होती है।

3. मुद्रा एवं टकसाल – केन्द्रीय सरकार को नोट छापने व सिक्कों को ढालने का एकाधिकार प्राप्त है जिससे सरकार को आय होती हैं। सरकार की ओर से यह कार्य देश में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया’ करता है।

4. सरकारी व्यवसायों में विशुद्ध आय – इस मद के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार को निम्नलिखित स्रोतों से आय होती है

  • डाक एवं तार विभाग से आय-इस पर भी केन्द्रीय सरकार का एकाधिकार है। इससे सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की आय प्राप्त होती है।
  •  रेलों से आय-इस पर भी केन्द्रीय सरकार का एकाधिकार है। इससे सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये आय प्राप्त होती है।
  • अन्य स्रोतों से आय-इसके अन्तर्गत अफीम, जंगलात, सड़क यातायात आदि से भी केन्द्रीय सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की आय प्राप्त होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
भारत में केन्द्र सरकार के व्यय के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए। [2009, 10, 12, 16]
उत्तर:
केन्द्र सरकार के व्यय के स्रोत (मदे)
केन्द्र सरकार अपनी आय को निम्नलिखित मदों पर व्यय करती है

1. करों को एकत्रित करने पर व्यय – केन्द्रीय सरकार को प्रतिवर्ष करों की धनराशि को एकत्रित करने पर बहुत बड़ी धनराशि व्यय करनी पड़ती है।

2. ऋण सेवाओं पर व्यय – केन्द्रीय सरकार ने अपनी विभिन्न प्रकार की योजनाओं को पूरा करने के लिए अनेक प्रकार के ऋण लिये हैं। इन ऋणों पर दी जाने वाली ब्याज की धनराशि इस शीर्षक के अन्तर्गत आती है। इस मद पर भी केन्द्रीय सरकार का व्यय निरन्तर बढ़ता जा रहा है।

3. रक्षा व्यय – चीन व पाकिस्तान के आक्रमण के भय के कारण हमारी सरकार को अपने देश की रक्षा पर प्रतिवर्ष होने वाले व्यय पर वृद्धि करनी पड़ रही है। इसके अन्तर्गत जल, थल और नभ सेनाओं पर होने वाला व्यय सम्मिलित किया जाता है।

4. नागरिक प्रशासन पर व्यय – इस मद के अन्तर्गत संसद, मन्त्रिपरिषद्, राष्ट्रपति, सचिवालय, सामान्य प्रशासन, न्याय, पुलिस लेखा परीक्षण आदि पर होने वाले व्यय सम्मिलित हैं। इस मद पर होने वाले व्यय में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।

5. मुद्रा एवं टकसाल पर व्यय –  केन्द्रीय सरकार, जो नोट छापने व सिक्कों को ढालने का कार्य करती है, इस पर होने वाले व्यय में प्रतिवर्ष वृद्धि कर रही है।

6. सामाजिक विकास पर व्यय – इस मद में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, चिकित्सा, पिछड़ी तथा परिगणित जातियों के कल्याण, सामाजिक कल्याण पर किया जाने वाला व्यय आदि सम्मिलित होते हैं। प्रत्येक सरकार को उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है; अतः इस मद पर होने वाले व्यय में अत्यधिक वृद्धि हुई है।

7. पेन्शन व्यय – केन्द्रीय सरकार को प्रतिवर्ष अवकाश प्राप्त कर्मचारियों एवं अधिकारियों को पेन्शन देनी होती है। अवकाश प्राप्त कर्मचारियों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होने के कारण इस मद पर व्यय होने वाली धनराशि में भी वृद्धि होती जा रही है।

8. राज्यों को अनुदान – केन्द्रीय सरकार राज्यों को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये का अनुदान देती है। विकास कार्यों में वृद्धि होने के कारण इस मद में होने वाले व्यय में भी निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।

9. अन्य व्यय – उपर्युक्त प्रमुख मदों के अतिरिक्त केन्द्रीय सरकार को अन्य कई मदों पर व्यय करने होते हैं; जैसे-अकाल, बाढ़, सूखा, भूकम्प, शिक्षा संस्थाओं को दिया गया अनुदान आदि।

प्रश्न 2
केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाले किन्हीं चार करों का उल्लेख कीजिए। [2015]
उत्तर:
केन्द्र सरकार की आय के स्रोतों को मुख्यत: निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

(अ) करों से प्राप्त आय
विभिन्न प्रकार के करों के द्वारा केन्द्र सरकार को आय प्राप्त होती है, जिनमें मुख्य कर निम्नलिखित हैं

1. संघीय उत्पादन शुल्क – संघीय उत्पादन कर केन्द्रीय सरकार की आय का प्रमुख स्रोत है। यह कर देश में उत्पन्न होने वाली वस्तुओं पर लगाया जाता है। कुछ वस्तुओं को छोड़कर (जैसे-शराब-भाँग आदि) देश में उत्पन्न होने वाली प्राय: सभी वस्तुओं पर संघ सरकार द्वारा उत्पादन कर लगाया जाता है; जैसे-कपड़ा, चीनी, दियासलाई, टायर-ट्यूब, बिजली के सामान, रेडियो, मोटरगाड़ियाँ आदि। इस कर से प्राप्त आय का एक पूर्वनिश्चित भाग राज्यों में बाँट दिया जाता है।

2. आयकर – यह एक प्रत्यक्ष कर है जो गैर-कृषि आय पर लगाया जाता है। इस कर को लगाने व वसूल करने का अधिकार केन्द्र सरकार को है। आयकर से प्राप्त निवल आय का विभाजन केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच होता है। आयकर भारत में प्रगतिशील कर है। इस कर से केन्द्र सरकार को पर्याप्त आय प्राप्त होती है।

3. निगम कर – निगम कर से अभिप्राय, देशी व विदेशी कम्पनियों की वार्षिक आय पर लगाये गये अति कर Super Tax से है। यह कर सम्पूर्ण आय पर एक निश्चित दर से लगाया जाता है। सरकार को इससे भी आय होती है।

4. सम्पत्ति कर – भारत में यह कर 1957-58 से लागू किया गया है। जिन व्यक्तियों के पास 15, लाख रुपये से अधिक की सम्पत्ति होती है, उन्हें सम्पत्ति कर देना पड़ता है। इस कर से कुछ खम्पत्तियों को मुक्त रखा गया है; जैसे – कृषि भूमि, गाँवों में रहने के मकान, धार्मिक स्थानों की सम्पत्ति, बीमा व भविष्य निधि कोष आदि। इस कर की दर आरोही है। केन्द्रीय सरकार को इस कर से भी आय प्राप्त होती है।

5. उपहार कर – यह कर केन्द्रीय सरकार द्वारा 1958-59 ई० से लागू किया गया। यह कर उन व्यक्तियों पर लगाया जाता है जो अपने जीवन काल में निश्चित मूल्य से अधिक के उपहार अपने सम्बन्धियों या अन्य व्यक्तियों को देते हैं। इस कर का उद्देश्य मृत सम्पत्ति, कर की चोरी रोकना तथा धन के वितरण की विषमता को कम करना है। अब इस कर को समाप्त कर दिया गया है।

6. सीमा शुल्क-आयात – निर्यात कर को ही सीमा शुल्क कहते हैं। जब ये शुल्क मूल्य के आधार पर लगाये जाते हैं, तब इन्हें मूल्यानुसार शुल्क और जब ये शुल्क परिमाण या संख्या के अनुसार लगाये जाते हैं, तब इन्हें परिमाणानुसार शुल्क कहते हैं। भारत में ये दोनों प्रकार के शुल्क लगाये जाते हैं।
केन्द्रीय सरकार को निर्यात शुल्क की अपेक्षा आयात शुल्क से अधिक आय प्राप्त होती है। विगत दस, बारह वर्षों में सीमा शुल्कों से प्राप्त आय में निरन्तर वृद्धि हो रही है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
वित्त आयोग पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की धारा 180 के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गयी है कि भारत का राष्ट्रपति प्रति पाँच वर्ष के लिए एक वित्त आयोग का गठन करेगा। इसका कार्य केन्द्र व राज्यों के बीच आय, अनुदान आदि को सुनिश्चित करना तथा वित्त सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण सुझाव देना है।

प्रश्न 2
घाटे की वित्त-व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
घाटे की वित्त-व्यवस्था एक ऐसी स्थिति को बतलाती है जिसमें सरकार का व्यये उसकी कुल आय से अधिक होता है। सरकार बजट के इस घाटे को पूरा करने के लिए या तो केन्द्रीय बैंक से अथवा जनता से ऋण लेती है या नई मुद्रा जारी करती है। इस प्रकार कोई भी व्यय जो सार्वजनिक ऋण से पूरा किया जाता है, घाटे की वित्त-व्यवस्था के अन्तर्गत आ जाता है। किसी प्रकार के वित्त-प्रबन्ध को घाटे की वित्त-व्यवस्था कहने से पूर्व इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि उसके परिणामस्वरूप समाज में मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि होती है अथवा नहीं। जब सरकार की आये उसके द्वारा किये जाने वाले व्यय से कम रह जाती है तो बजट में इस प्रकार उत्पन्न होने वाले घाटे को पूरा करने के लिए जो व्यवस्था की जाती है, उसे घाटे की वित्त-व्यवस्था कहते हैं। ऐसा दो प्रकार से किया जा सकता है

  • नई मुद्रा के निर्गमन द्वारा तथा
  • संचित नकद बकाया को खातों से निकालकर।

रोजगार बढ़ाने, मन्दी की दशाओं को दूर करने तथा आर्थिक विकास की योजनाओं को पूरा करने के लिए विकासशील देशों में घाटे की वित्त-व्यवस्था को अपनाया जाना आवश्यक है, किन्तु इसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए हर सम्भव प्रयास किये जाने चाहिए।

निश्चित उतरीय प्रश्न, (1 अंक)

प्रश्न 1
केन्द्र सरकार द्वारा कौन-कौन से कर लगाये जाते हैं ?
या
केन्द्र सरकार की कर-आय के दो प्रमुख स्रोतों के नाम बताइए। [2010]
या
केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाले किन्हीं दो करों के नाम लिखिए। [2013]
उत्तर:
केन्द्र सरकार द्वारा लगाये जाने वाले कर हैं

  1. सीमा कर,
  2. संघीय उत्पादन कर,
  3. आयकर,
  4. सम्पत्ति कर,
  5. उपहार कर आदि।

प्रश्न 2
संघीय उत्पादन शुल्क के दो उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
संघीय उत्पादन शुल्क के दो उद्देश्य हैं

  1. आर्थिक विकास के कार्यों को कार्यान्वित करने के लिए तथा,
  2. देश में मुद्रास्फीति की दशाओं पर रोक लगाने के लिए।

प्रश्न 3
आयात शुल्क लगाने के दो उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
आयात शुल्क लगाने के दो उद्देश्य हैं

  1. आय प्राप्त करना तथा
  2. स्वदेशी उद्योगों को संरक्षण प्रदान करना।

प्रश्न 4
भारत में ‘आयकर’ किस प्रकार का कर है ?
उत्तर:
भारत में आयकर प्रगतिशील कर है, क्योंकि कर की दर, आय की वृद्धि के साथ बढ़ती जाती है।

प्रश्न 5
केन्द्रीय सरकार की व्यय की सबसे बड़ी मद कौन-सी है?
उत्तर:
केन्द्रीय सरकार की व्यय की सबसे बड़ी मद प्रतिरक्षा सेवा है।

प्रश्न 6
आयकर किसके द्वारा लगाया जाता है ? [2009, 11, 12, 13]
उत्तर:
आयकर केन्द्रीय सरकार द्वारा लगाया जाता है।

प्रश्न 7
केन्द्रीय सरकार की व्यय को दो मदें लिखिए। [2011]
उत्तर:

  1. देश की सुरक्षा पर व्यय तथा
  2. विकास योजनाओं पर व्यय।

प्रश्न 8
केन्द्र सरकार की विकास व्यय की मदें क्या हैं ?
उत्तर:

  1. सामाजिक एवं सामुदायिक सेवाएँ तथा
  2.  सामान्य आर्थिक सेवाएँ।

प्रश्न 9
भारत सरकार की आय में किस प्रकार के करों का अधिक महत्त्व है ?
उत्तर:
भारत सरकार की आय में परोक्ष करो का अधिक महत्त्व है।

प्रश्न 10
काले धन को बाहर निकालने के लिए सरकार ने कौन-सी योजना चलाई ?
उत्तर:
केन्द्र सरकार ने काले धन को बाहर निकालने के लिए 12 जनवरी, 1981 ई० को ‘विशेष धारक बॉण्ड योजना प्रारम्भ की।

प्रश्न 11
विशेष धारक बॉण्ड योजना क्या है ?
उत्तर:
विशेष धारक बॉण्ड योजना में यह घोषित किया गया कि जो लोग इस योजनान्तर्गत विशेष बॉण्ड खरीदेगे, उनसे यह नहीं पूछा जाएगा कि यह धन उनके पास कहाँ से आया।

प्रश्न 12
भारत में योजना आयोग का अध्यक्ष कौन होता है ?
उत्तर:
भारत में योजना आयोग का अध्यक्ष प्रधानमन्त्री होता है।

प्रश्न 13
ऐसे कर जिनका प्रभाव सम्पूर्ण देश पर पड़ता है, लगाने का अधिकार किसे है ?
उत्तर:
ऐसे कर जिनका प्रभाव सम्पूर्ण देश पर पड़ता है, को लगाने का अधिकार केन्द्र सरकार को है।

प्रश्न 14
उत्पाद शुल्क किस सरकार से सम्बन्धित है? [2006]
उत्तर:
केन्द्र सरकार।

प्रश्न 15
निगम कर कैसा कर है? [2007]
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 16
निगम कर किसके द्वारा लगाया जाता है? [2007, 12]
उत्तर:
केन्द्र सरकार द्वारा।

प्रश्न 17
प्रतिरक्षा व्यय को कौन-सी सरकार वहन करती है ? [2010, 12, 16]
उत्तर:
प्रतिरक्षा व्यय’ को केन्द्रीय सरकार वहन करती है।

प्रश्न 18
कौन-सी सरकार सेवा कर लगाती है? [2010]
उत्तर:
केन्द्रीय सरकार।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
निम्नलिखित में से किस कर को केन्द्रीय सरकार नहीं लगाती है ? [2006]
या
निम्नलिखित में से कौन-सा कर राज्य सरकार द्वारा लगाया जाता है? [2015]
(क) आय कर
(ख) निगम कर
(ग) सम्पत्ति कर
(घ) मनोरंजन कर
उत्तर:
(घ) मनोरंजन कर।

प्रश्न 2
संघीय सरकार की व्यय की सबसे बड़ी मद कौन-सी है ?
(क) प्रतिरक्षा सेवा
(ख) सामाजिक तथा विकासार्थ व्यय
(ग) ऋण सेवा
(घ) प्रशासनिक सेवा
उत्तर:
(क) प्रतिरक्षा सेवा।

प्रश्न 3
निम्नलिखित में से किस कर को केन्द्रीय सरकार लगाती है ? [2013]
(क) आय कर
(ख) बिक्री कर
(ग) मनोरंजन कर
(घ) भू-राजस्व
उत्तर:
(क) आय कर।

प्रश्न 4
भारत के वर्तमान वित्त मन्त्री हैं
(क) मनमोहन सिंह
(ख) पी० चिदम्बरम्
(ग) अटल बिहारी वाजपेयी
(घ) अरुण जेटली
उत्तर:
(घ) अरुण जेटली।

प्रश्न 5
भारत में योजना आयोग का अध्यक्ष होता है।
(क) राष्ट्रपति
(ख) प्रधानमन्त्री
(ग) वित मन्त्री
(घ) योजना मन्त्री
उत्तर:
(ख) प्रधानमन्त्री।

प्रश्न 6
भारत में आय कर लगाया जाता है [2014]
(क) केन्द्र सरकार द्वारा
(ख) राज्य सरकार द्वारा
(ग) स्थानीय सरकार द्वारा
(घ) इन सभी के द्वारा
उत्तर:
(क) केन्द्र सरकार द्वारा।

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