UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 5 त्यागपथी

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name त्यागपथी (रामेश्वर शुक्ल अञ्चल)
Number of Questions 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 5 त्यागपथी (रामेश्वर शुक्ल अञ्चल)

प्रश्न 1:
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की कथावस्तु (कथानक) को संक्षेप में लिखिए।
या
‘त्यागपथी’ काव्यग्रन्थ की प्रमुख घटनाओं का क्रमबद्ध उल्लेख कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग का सारांश लिखिए।
या
‘त्यागपथी’ के पंचम सर्ग की कथा अपनी भाषा में लिखिए।
या
‘त्यागपथी’ के अन्तिम सर्ग की कथावस्तु की आलोचना कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में उल्लिखित दिवाकर मित्र की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में वर्णित किसी प्रेरणाप्रद घटना का सोदाहरण उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
श्री रामेश्वर शुक्ल अञ्चल द्वारा रचित ‘त्यागपथी ऐतिहासिक खण्डकाव्य की कथा पाँच सर्गों में विभाजित है। इसमें छठी शताब्दी के प्रसिद्ध सम्राट हर्षवर्धन के त्याग, तप और सात्विकता का वर्णन किया गया है। सम्राट हर्ष की वीरता का वर्णन करते हुए कवि ने इस खण्डकाव्य में राजनीतिक एकता और विदेशी आक्रान्ताओं के भारत से भागने का भी वर्णन किया है। इस खण्डकाव्य का सर्गानुसार कथानक अग्रवत् है

प्रथम सर्ग

थानेश्वर के राजकुमार हर्षवर्द्धन वन में आखेट हेतु गये थे। वहीं उन्हें अपने पिता प्रभाकरवर्द्धन के विषम ज्वर-प्रदाह का समाचार मिलता है। कुमार तुरन्त लौट आते हैं। वे पिता के रोग का बहुत उपचार करवाते हैं, परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिलती। हर्षवर्द्धन के बड़े भाई राज्यवर्द्धन उत्तरापथ पर हूणों से युद्ध करने में लगे थे। हर्षवर्द्धन ने दूत के साथ अपने अग्रज को पिता की अस्वस्थता का समाचार पहुँचाया। इधर हर्षवर्द्धन की माता अपने पति की दशा बिगड़ती देख आत्मदाह के लिए तैयार हो जाती हैं। हर्ष ने उन्हें बहुत समझाया, पर वे नहीं मानीं और हर्ष के पिता की मृत्यु से पूर्व ही वे आत्मदाह कर लेती हैं। कुछ समय पश्चात् राजा प्रभाकरवर्द्धन की भी मृत्यु हो जाती है। पिता को अन्तिम संस्कार कर हर्षवर्द्धन शोकाकुल मन से राजमहल में लौट आते हैं। उन्हें इस बात की बड़ी चिन्ता है कि पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर अनुजा (बहन) राज्यश्री तथा अग्रज (भाई) राज्यवर्द्धन की क्या दशा होगी ?

द्वितीय सर्ग

राज्यवर्द्धन हूणों को परास्त कर सेनासहित अपने नगर सकुशल लौट आते हैं। शोकविह्वल हर्षवर्द्धन की दशा देख वे बिलख-बिलखकर रोते हैं। माता-पिता की मृत्यु से शोकाकुल राज्यवर्द्धन वैराग्य लेने का निश्चय कर लेते हैं, किन्तु तभी उन्हें समाचार मिलता है कि मालवराज ने उनकी छोटी बहन राज्यश्री के पति गृहवर्मन को मार डाला है तथा राज्यश्री को कारागार में डाल दिया है। राज्यवर्द्धन वैराग्य को भूल मालवराज का विनाश करने चल देते हैं। राज्यवर्द्धन गौड़ नरेश को पराजित कर देते हैं, परन्तु गौड़ नरेश छलपूर्वक उनकी हत्या करवा देता है। हर्षवर्द्धन को जब यह समाचार मिलता है तो वे विशाल सेना लेकर मालवराज से युद्ध करने के लिए चल पड़ते हैं। मार्ग में हर्षवर्द्धन को समाचार मिलता है कि उनकी छोटी बहन राज्यश्री बन्धनमुक्त होकर; विन्ध्याचल की ओर वन में चली गयी है। यह समाचार पाकर हर्षवर्द्धन बहन को खोजने वन की ओर चल देते हैं। वन में दिवाकर मित्र के आश्रम में उन्हें एक भिक्षुक से यह समाचार मिलता है कि राज्यश्री आत्मदाह करने वाली है। वे शीघ्र ही पहुँचकर राज्यश्री को आत्मदाह करने से बचा लेते हैं। वे दिवाकर मित्र और राज्यश्री को अपने साथ ले कन्नौज लौट आते हैं।

तृतीय सर्ग

हर्षवर्द्धन अपनी बहन के छीने हुए राज्य को पुन: प्राप्त करने के लिए अपनी विशाल सेना के साथ कन्नौज पर आक्रमण कर देते हैं। वहाँ अनीतिपूर्वक अधिकार जमाने वाला मालव-कुलपुत्र भाग जाता है। राज्यवर्द्धन का हत्यारा गौड़पति-शशांक भी अपने गौड़-प्रदेश को भाग जाता है। सभी लोग हर्षवर्द्धन से कन्नौज का राजा बनने की प्रार्थना करते हैं, परन्तु हर्ष अपनी बहन का राज्य लेने से मना कर देते हैं। वे अपनी बहन से सिंहासन पर बैठने को कहते हैं, परन्तु बहन भी राज-सिंहासन ग्रहण करने से मना कर देती है। फिर हर्षवर्द्धन ही कन्नौज के संरक्षक बनकर अपनी बहन के नाम से वहाँ का शासन चलाते हैं।

इसके बाद छह वर्षों तक हर्षवर्द्धन का दिग्विजय-अभियान चलता है। उन्होंने कश्मीर, पञ्चनद, सारस्वत, मिथिला, उत्कल, गौड़, नेपाल, वल्लभी, सोरठ आदि सभी राज्यों को जीतकर तथा यवन, हूण और अन्य विदेशी शत्रुओं का नाश करके देश को अखण्ड और शक्तिशाली बनाकर एक सुसंगठित राज्य बनाया। अपनी बहन के स्नेहवश वे अपनी राजधानी भी कन्नौज को ही बनाते हैं और अनेक वर्षों तक धर्मपूर्वक शासन करते हैं। उनके राज्य में प्रजा सुखी थी तथा धर्म, संस्कृति और कला की भी पर्याप्त उन्नति हो रही थी।

चतुर्थ सर्ग

राज्यश्री एक बड़े राज्य की शासिका होकर भी दुःखी है। वह सब कुछ छोड़कर गेरुए वस्त्र धारण कर भिक्षुणी बनना चाहती है। वह हर्षवर्द्धन से संन्यास ग्रहण करने की आज्ञा माँगने जाती है तो हर्षवर्द्धन उसे समझाते हैं कि तुम तो मन से संन्यासिनी ही हो। यदि तुम गेरुए वस्त्र ही धारण करना चाहती हो तो अपने वचनानुसार मैं भी तुम्हारे साथ ही संन्यास ले लूंगा। तभी दिवाकर मित्र आकर उन्हें समझाते हैं कि वास्तव में आप दोनों भाई-बहन का मन संन्यासी है, किन्तु आज देश की रक्षा एवं सेवा संन्यास-ग्रहण करने से अधिक महत्त्वपूर्ण है। दिवाकर मित्र के समझाने पर दोनों संन्यास का विचार त्याग देशसेवा में लग जाते हैं।

पंचम सर्ग

हर्षवर्द्धन एक आदर्श सम्राट के रूप में शासन करते हैं। उनके राज्य में प्रजा सब प्रकार से सुखी है, विद्वानों की पूजा की जाती है। सभी प्रजाजन आचरणवान्, धर्मपालक, स्वतन्त्र तथा सुरुचिसम्पन्न हैं। महाराज हर्षवर्द्धन सदैव जन-कल्याण एवं शास्त्र-चिन्तन में लगे रहते हैं। अपने भाई के ऐसे धर्मानुशासन को देखकर राज्यश्री भी प्रसन्न रहती है। सम्पूर्ण राज्य एकता के सूत्र में बँधा हुआ है। एक बार हर्षवर्द्धन तीर्थराज प्रयाग में सम्पूर्ण राजकोष को दान कर देने की घोषणा करते हैं

हुई थी घोषणा सम्राट की साम्राज्य भर से,
करेंगे त्याग सारा कोष ले संकल्प कर में।

सब कुछ दान करके वे अपनी बहन से माँगकर वस्त्र पहनते हैं। इसके पश्चात् प्रत्येक पाँच वर्ष बाद वे इसी प्रकार अपना सर्वस्व दान करने लगे। इस दान को वे प्रजा-ऋण से मुक्ति का नाम देते हैं। अपने जीवन में वे छह बार इस प्रकार के सर्वस्व-दान का आयोजन करते हैं। हर्षवर्द्धन संसारभर में भारतीय संस्कृति का प्रसार करते हैं। इस प्रकार कर्तव्यपरायण, त्यागी, परोपकारी, परमवीर, महाराज हर्षवर्द्धन का शासन सब प्रकार से सुर्खकर तथा कल्याणकारी सिद्ध होता है।

प्रश्न 2:
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की कथावस्तु की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की कथावस्तु की विवेचना (समीक्षा) कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ नाटक की विशेषता लिखिए।
या
‘त्यागपथी’ में वर्णित भारत की राजनीतिक उथल-पुथल एवं सांस्कृतिक वैभव का उल्लेख कीजिए। यह भारत के राजनीतिक संघर्ष का एक दस्तावेज है।” सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की कथावस्तु की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं

(1) इतिहास और कल्पना का समन्वय – ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में श्री रामेश्वर शुक्ल अञ्चल ने इतिहास और कल्पना का सुन्दर समन्वय किया है। इस खण्डकाव्य में हर्षवर्द्धन, राज्यश्री, प्रभाकरवर्द्धन, राज्यवर्द्धन, शशांक आदि सभी पात्र ऐतिहासिक हैं।
हर्षवर्द्धन के माता-पिता, भाई, बहनोई की मृत्यु, राज्यश्री की खोज, राज्यश्री के नाम पर हर्षवर्द्धन की दिग्विजय, राजधानी थानेश्वर से कन्नौज ले जाना, प्रयाग में हर पाँचवें वर्ष सर्वस्व-दान, हर्षवर्द्धन का धर्मानुशासन आदि सभी ऐतिहासिक तथ्य हैं।
इनके अतिरिक्त यशोमती का चिता-प्रवेश, शोकाकुल हर्षवर्द्धन की व्यथा, राज्यश्री को खोजते-खोजते हर्षवर्द्धन का दिवाकर मित्र के आश्रम में पहुँचना और वहाँ एक भिक्षुक से राज्यश्री के आत्मदाह करने की सूचना प्राप्त करना बाणभट्ट की प्रमुख रचना ‘हर्षचरित’ पर आधारित हैं।
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में माता-पिता और भाई-बहन के प्रति हर्षवर्द्धन की प्रेम-भावाभिव्यक्ति में तथा बौद्ध श्रमण आचार्य दिवाकर मित्र, राज्यश्री, हर्षवर्द्धन के चरित्र-चित्रण में कवि ने कल्पना का प्रयोग किया है। कवि ने इस खण्डकाव्य में ऐतिहासिक एवं काल्पनिक घटनाओं का इतना सुन्दर और सजीव समन्वय किया है। कि सभी घटनाएँ एवं चरित्र बहुत अधिक प्रभावशाली बन गये हैं।

(2) कथा-संगठन की श्रेष्ठता – कुमार हर्षवर्द्धन पर किशोरावस्था में ही दु:खों के पहाड़ टूटने लगते हैं। यहीं से कथानक का आरम्भ होता है। कथा का आरम्भ बहुत ही रोचक एवं प्रभावशाली है। कन्नौज के राजा की मृत्यु का बदला लेने के लिए हर्षवर्द्धन द्वारा ससैन्य प्रयाण तथा उन्हीं पर सम्पूर्ण राज्यभार आ पड़ना कथा का विकास है। हर्षवर्द्धन द्वारा दिग्विजय के बाद तीर्थराज प्रयाग में सर्वस्व त्याग कथानक की चरम सीमा है। यहाँ आकर त्यागपथी हर्षवर्द्धन का लोककल्याण अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है। इसके पश्चात् हर्षवर्द्धन के सुशासन का वर्णन कथानक का उतार है और उनकी मृत्यु तथा उनके महान् चरित्र से प्रेरणा लेने की कामना के साथ ‘त्यागपथी’ के कथानक का अन्त हो जाता है। इस प्रकार इस खण्डकाव्य का सम्पूर्ण कथानक सुगठित और सुविकसित है। प्रसंगों में प्रवाह है और कथा की तारतम्यता कहीं भी शिथिल या बाधित नहीं होती है।

(3) कौतूहलवर्द्धक – ‘त्यागपथी’ की कथावस्तु कौतूहलवर्द्धक है। आखेट के समय हर्षवर्द्धन को पिता के भयंकर ज्वर-दाह की सूचना, माता यशोमती का आत्मदाह, कन्नौज की घटनाएँ, राज्यवर्द्धन की हत्या, राज्यश्री की खोज तथा कन्नौज का शासन ग्रहण करने की समस्या आदि सभी घटनाएँ पाठकों के मन में कौतूहल जगाती

(4) मार्मिकता – प्रस्तुत काव्य में कवि ने मार्मिक घटनाओं का चयन करने में बड़ी सावधानी से काम लिया है। यशोमती को चितारोहण, राज्यवर्द्धन और हर्षवर्द्धन का वैराग्य लेने को तैयार होना, राज्यश्री के वैधव्य का समाचार पाकर हर्ष की व्याकुलता, आत्मदाह के लिए उद्यत राज्यश्री का हर्ष से मिलना इत्यादि ऐसी मार्मिक घटनाएँ हैं, जिनके वर्णन को पढ़कर पाठक का हृदय द्रवित हो जाता है। इस प्रकार ‘त्यागपथी’ की कथावस्तु वास्तव में अत्यन्त मार्मिक, सुसम्बद्ध, इतिहास और कल्पना के सुन्दर समन्वय से रमणीय और प्रेरणाप्रद है।

प्रश्न 3:
‘त्यागपथी’ के नायक अथवा प्रमुख पात्र (हर्षवर्धन) का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
” ‘त्यागपथी’ के हर्षवर्द्धन का चरित्र देशप्रेम का प्रखरतम (आदर्श) उदाहरण है।” उपयुक्त उदाहरण देते हुए इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर हर्ष की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या
” ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के नायक हर्षवर्द्धन का सम्पूर्ण जीवन सदाचार, उन्नत मानवीय जीवन के प्रति निष्ठा, सहयोग और सदभावना के प्रति जीवन्त आस्था का एक महान् उदाहरण है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
या
‘हर्षवर्द्धन मानवीय आदर्शों का प्रतीक है।”त्यागपंथी’ खण्डकाव्य के आधार कथन की समीक्षा कीजिए।
या
‘सोदाहरण सिद्ध कीजिए कि त्यागपथी खण्डकाव्य हर्षवर्द्धन की देशभक्ति, राष्ट्र-रचना और लोक-कल्याणकारी सदवृत्तियों का सम्यक उद्घाटन करता है।’
या
‘हर्षवर्द्धन के चरित्र में लोकमंगल की कामना निहित है। इस कथन के आलोक में ‘त्यागपथी’ के नायक हर्षवर्द्धन का चरित्रांकन कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य महाराजा हर्षवर्द्धन की दानवीरता और राष्ट्रीयता का द्योतक है, कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
थानेश्वर के महाराज प्रभाकरवर्द्धन के छोटे पुत्र हर्षवर्द्धन के चरित्र की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) नायक – हर्षवर्द्धन ‘त्यागपथी’ के नायक हैं। इस खण्डकाव्य की सम्पूर्ण कथा का केन्द्र वही हैं। सम्पूर्ण घटनाचक्र उन्हीं के चारों ओर घूमता है। कथा आरम्भ से अन्त तक हर्षवर्द्धन से ही सम्बद्ध रहती है।

(2) आदर्श पुत्र एवं भाई – इस खण्डकाव्य में हर्षवर्द्धन एक आदर्श पुत्र एवं आदर्श भ्राता के रूप में पाठकों के समक्ष आते हैं। अपने पिता के रुग्ण होने का समाचार पाकर वे आखेट से तुरन्त लौट आते हैं और यथासामर्थ्य उनकी चिकित्सा करवाते हैं। पिता के स्वस्थ न होने तथा माता द्वारा आत्मदाह करने की बात सुनकर वे भाव-विह्वल हो जाते हैं। वे अपनी माता से कहते हैं

मुझ मन्द पुण्य को छोड़ न माँ तुम भी जाओ।
छोड़ो विचार यह, मुझे चरण से लिपटाओ।।

आदर्श पुत्र के समान ही वे आदर्श भाई का कर्तव्य भी पूरा करते हैं। वे अपनी बहन राज्यश्री को अग्निदाह करने एवं संन्यास लेने से रोकते हैं

दोनों करों से घेरकर छोटी बहिन के भाल को।
भूल खड़े थे निकट जलती चिता की ज्वाल को ।।

(3) देश-प्रेमी – हर्षवर्द्धन सच्चे देश-प्रेमी हैं। उन्होंने छोटे राज्यों को एक साथ मिलाकर विशाल राज्य की स्थापना की। देश की एकता एवं रक्षा हेतु वे बड़े-से-बड़ा युद्ध करने से भी नहीं हिचकते थे। उन्होंने एक बड़े राज्य की स्थापना ही नहीं की, वरन् धर्मपूर्वक शासन भी किया। देश-सेवा ही उनके जीवन का व्रत है।

(4) अजेय योद्धा – हर्षवर्द्धन एक अजेय योद्धा हैं। विद्रोही उनके तेजबल के आगे ठहर नहीं पाता। कोई भी राजा उन्हें पराजित नहीं कर सका। भारत के इतिहास में महाराज हर्षवर्द्धन की दिग्विजय, उनका युद्ध-कौशल और उनकी अनुपम वीरता आज भी स्वर्णाक्षरों में लिखी है। उनकी वीरता एवं कुशल शासन का ही यह परिणाम था कि ”उठा पाया न सिर कोई प्रवंचक।”

(5) श्रेष्ठ शासक – महाराज हर्षवर्द्धन एक श्रेष्ठ शासक हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन प्रजा के हितार्थ ही समर्पित है। उनका शासन धर्म-शासन है। उनके शासन में सब जनों को समान न्याय एवं सुख उपलब्ध है।

वे सदैव प्रजा के कल्याण में लगे रहते थे और स्वयं को प्रजा का सेवक समझते थे। उनका मत था

नहीं अधिकार नृप को पास रखे धन प्रजा का,
करे केवल सुरक्षा देश-गौरव की ध्वजा का।

(6) महान् त्यागी – हर्षवर्द्धन महान् त्यागी एवं आत्म संयमी हैं। आत्म संयम एवं सर्वस्व त्याग करने के कारण ही कवि ने उन्हें ‘त्यागपथी’ के नाम से पुकारा है। पिता की मृत्यु के पश्चात् वे अपने बड़े भाई के अधिकार को ग्रहण करना नहीं चाहते। इसी प्रकार कन्नौज का राज्य भी वे अपनी बहन के नाम पर चलाते हैं। प्रयाग में छः बार अपना सर्वस्व प्रजा के लिए दे देना उनके महान् त्याग को प्रमाण है। वे राजकोष को प्रजा की सम्पत्ति मानते हैं। इसीलिए वे उसे प्रजा को ही दान कर देते हैं।

(7) धर्मपरायण – हर्षवर्द्धन के जीवन में धर्मपरायणता कूट-कूटकर भरी हुई है। वे जन-सेवा में ही अपना जीवन लगा देते हैं

रहे कल्याण मानवमात्र का ही धर्म मेरा,
रहे सर्वस्व-त्यागी पुण्य पर विश्वास मेरा।

उन्होंने शैव, शाक्त, वैष्णव और वेद-मत को एक साथ रखा। उन्होंने किसी के प्रति भी भेदभाव नहीं बरता।

(8) कर्त्तव्यनिष्ठ एवं दृढनिश्चयी – सम्राट हर्ष ने आजीवन अपने कर्तव्य का पालन किया। प्रारम्भ में इच्छा न होते हुए भी इन्होंने अपने भाई के कहने पर राज्य सँभाला और प्रत्येक संकटापन्न स्थिति में भी अपने कर्तव्य को निभाया। बहन राज्यश्री को वनों में खोजकर वे अपनी कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देते हैं। भाई की छल से की गयी हत्या का समाचार सुनकर उन्होंने जो प्रतिज्ञा की थी, उससे उनके दृढ़निश्चय का पता चलता है

लेकर चरण रज आर्य की करता प्रतिज्ञा आज मैं,
निर्मूल कर दूंगा धरा से अधर्म गौड़ समाज मैं।

(9) महादानी – त्यागपथी के हर्षवर्द्धन आत्मसंयमी तथा महादानी हैं। महान् त्यागी होने के कारण ही कवि ने उन्हें ‘त्यागपथी’ नाम से पुकारा है। पिता की मृत्यु के पश्चात् वे अपने बड़े भाई का अधिकार ग्रहण नहीं करना चाहते। कन्नौज विजय के बाद भी वे कन्नौज का सिंहासन राज्यश्री को देना चाहते हैं।

इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि हर्ष का चरित्र एक महान् राजा, आदर्श भाई, आदर्श पुत्र और महान् त्यागी का चरित्र है, जिसके लिए प्रजा की सुख-सुविधा ही सर्वोपरि है और वह अपने मानवीय कर्तव्यों के प्रति भी निष्ठावान् है।

प्रश्न 4:
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर राज्यश्री का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ में निरूपित राज्यश्री की चारित्रिक छवि पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राज्यश्री सम्राट् हर्षवर्द्धन की छोटी बहन है। हर्षवर्द्धन के चरित्र के बाद राज्यश्री का चरित्र ही ऐसा है, जो पाठकों के हृदय एवं मस्तिष्क पर छा जाता है। राज्यश्री के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है

(1) माता-पिता की लाडली – राज्यश्री अपने माता-पिता को प्राणों से भी प्यारी है। कवि कहता है

माँ की ममता की मूर्ति राज्यश्री सुकुमारी।
थी सदा पिता को, माँ को प्राणोपम प्यारी ॥

(2) आदर्श नारी – राज्यश्री आदर्श पुत्री, आदर्श बहन और आदर्श पत्नी के रूप में हमारे समक्ष आती है। वह यौवनावस्था में विधवा हो जाती है तथा गौड़पति द्वारा बन्दिनी बना ली जाती है। भाई राज्यवर्द्धन की मृत्यु के बाद वह कारागार से भाग जाती है और वन में भटकती हुई एक दिन आत्मदाह के लिए उद्यत हो जाती है; किन्तु अपने भाई हर्षवर्द्धन द्वारा बचा लेने पर वह तन-मन-धन से प्रजा की सेवा में ही अपना जीवन अर्पित कर देती है। हर्ष द्वारा राज्य सौंपे जाने पर भी वह राज्य स्वीकार नहीं करती। यही है उसका आदर्श रूप, जो सबको आकर्षित करता है

विपुल साम्राज्य की अग्रज सहित वह शासिका थी,
अभ्यन्तर से तथागत की अनन्य उपासिका थी।

(3) देश-भक्त एवं जन-सेविका – राज्यश्री के मन में देशप्रेम और लोक-कल्याण की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है। हर्ष के समझाने पर वह अपने वैधव्य का दुःख झेलती हुई भी देश-सेवा में लगी रहती है। देशप्रेम के कारण राज्यश्री संन्यासिनी बनने का विचार भी छोड़ देती है तथा शेष जीवन को देश-सेवा में ही लगाने का । व्रत लेती है।

(4) करुणामयी नारी – राज्यश्री ने माता-पिता की मृत्यु तथा पति और बड़े भाई की मृत्यु के अनेक दु:ख झेले। इन दु:खों ने उसे करुणा की मूर्ति बना दिया। अपने अग्रज हर्षवर्द्धन से मिलते समय उसकी कारुणिक दशा अत्यन्त मार्मिक प्रतीक होती है

सतत बिलखती थी बहिने माता-पिता की याद कर।
ले नाम सखियों का, उमड़ती थी नदी-सी वारि भर ॥
था सास्तु अग्रज धैर्य देता माथ उसका ढाँपकर।
रोती रही अविरल बहिन बेतस लता-सी काँपकर ॥

(5) त्यागमयी नारी – राज्यश्री का जीवन त्याग की भावना से आलोकित है। भाई हर्षवर्द्धन द्वारा कन्नौज का राज्य दिये जाने पर भी वह उसे स्वीकार नहीं करती। वह कहती है

स्वीकार न मुझको कान्यकुब्ज सिंहासन।
बैठो उस पर तुम करो शौर्य से शासन ।

वह राज्य-कार्य के बन्धन में पड़ना नहीं चाहती; क्योंकि वह मन से संन्यासिनी है। हर्षवर्द्धन के समझाने पर भी वह नाममात्र की ही शासिका बनी रहती है। प्रयाग महोत्सव के समय हर्षवर्द्धन के साथ राज्यश्री भी अपना सर्वस्व प्रजा के हितार्थ त्याग देती है।

(6) सुशिक्षिता एवं ज्ञान – सम्पन्न राज्यश्री सुशिक्षिता एवं शास्त्रों के ज्ञान से सम्पन्न है। जब आचार्य दिवाकर मित्र संन्यास धर्म का तात्त्विक विवेचन करते हुए उसे मानव-कल्याण के कार्य में लगने का उपदेश देते हैं तब राज्यश्री इसे स्वीकार कर लेती है और आचार्य की आज्ञा का पूर्णरूपेण पालन करती है।
इस प्रकार राज्यश्री का चरित्र एक आदर्श भारतीय नारी का चरित्र है। उसके पातिव्रत-धर्म, देश-धर्म, करुणा और कर्तव्यनिष्ठा के आदर्श निश्चय ही अनुकरणीय हैं।

प्रश्न 5:
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के भावपक्ष एवं कलापक्ष की विशेषताएँ बताइए।
या
‘त्यागपथी’ की काव्यगत विशेषताओं (काव्य-सौष्ठव) पर प्रकाश डालिए।
या
खण्डकाव्य की दृष्टि से त्यागपथी की समीक्षा (आलोचना) कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ एक ऐतिहासिक खण्डकाव्य है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
या
काव्य-शिल्प की दृष्टि से त्यागपथी’ खण्डकाव्य की सोदाहरण समीक्षा कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की काव्य-शैली की विवेचना कीजिए।
या
खण्डकाव्य के लक्षणों (तत्त्वों) के आधार पर ‘त्यागपथी’ के महत्त्व का मूल्यांकन कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की काव्य-गुणों की दृष्टि से समीक्षा कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की भाषा-शैली की समीक्षा कीजिए।
या
कथावस्तु और चरित्र-चित्रण की दृष्टि से त्यागपथी खण्डकाव्य का मूल्यांकन कीजिए।
या
“त्यागपथी एक सफल खण्डकाव्य है’, इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के संवाद शिल्प पर प्रकाश डालिए।
या
” ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की भाषा कथावस्तु के अनुकूल है।” उचित उदाहरण देते हुए सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
श्री रामेश्वर शुक्ल अञ्चल’ द्वारा रचित खण्डकाव्य ‘त्यागपथी’ एक ऐतिहासिक कथानक पर आधारित खण्डकाव्य है। इस रचना में कवि ने अपनी काव्यात्मक प्रतिभा का प्रयोग अत्यधिक कुशलता से किया है। इस खण्डकाव्य की विशेषताओं का विवेचन अग्रवत् किया जा सकता है।

कथानक की ऐतिहासिकता – ‘त्यागपथी’ में सातवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध सम्राट हर्षवर्द्धन की कथा का वर्णन हुआ है। कवि ने हर्षवर्द्धन के माता-पिता की मृत्यु, भाई और बहनोई की हत्या, कन्नौज में राज्य सँभालना, मालवराज शशांक से युद्ध, दिग्विजय करके धर्म-शासन की स्थापना और हर पाँचवें वर्ष तीर्थराज प्रयाग में सर्वस्व दान करने की ऐतिहासिक घटनाओं को बड़े ही सरल और सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया है।

पात्र एवं चरित्र-चित्रण – ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में प्रभाकरवर्द्धन तथा उनकी पत्नी यशोमती; उनके दो पुत्र राज्यवर्द्धन और हर्षवर्द्धन; एक पुत्री राज्यश्री; कन्नौज, मालव, गौड़ प्रदेश के राजाओं के अतिरिक्त आचार्य दिवाकर, सेनापति भण्ड आदि पात्र हैं। इस खण्डकाव्य का नायक हर्षवर्द्धन है तथा इसकी नायिका होने का गौरव उसकी बहन राज्यश्री को प्राप्त है।

‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(क) भावगत विशेषताएँ

(1) मार्मिकता – इस खण्डकाव्य में कवि ने हर्षवर्द्धन की माता यशोमती का चितारोहण, राज्यवर्द्धन और हर्षवर्द्धन का वैराग्य लेने को तैयार होना, राज्यश्री के विधवा होने की सूचना पाकर हर्षवर्द्धन की व्याकुलता, राज्यश्री द्वारा आत्मदाह के समय हर्षवर्द्धन के मिलन का वर्णन अतीव मार्मिक है।

(2) रस-निरूपण – ‘त्यागपंथी’ में कवि ने करुण, वीर, रौद्र, शान्त आदि रसों का सुन्दर निरूपण किया है।
करुण रस का निम्नलिखित उदाहरण द्रष्टव्य है

मुझ मन्द पुण्य को छोड़ न माँ तुम भी जाओ।
छोड़ो विचार यह, मुझे चरण से लिपटाओ ।
सँवरो देवि ! यह रूप नहीं देखा जाता।
हो पिता अदय, पर सतत वत्सला है माता॥

(3) प्रकृति-चित्रण – ‘त्यागपथी’ में कवि ने प्रकृति के विभिन्न रूपों का सुन्दर चित्रण किया है। आखेट के समय जब हर्षवर्द्धन को राजा के गम्भीर रूप से रोगग्रस्त होने का समाचार मिलता है तो वे तुरन्त राजमहल को लौट आते हैं। उस समय के वन का चित्रण द्रष्टव्य है

वन-पशु अविरत, खर-शर-वर्णन से अकुलाये।
फिर गिरि-श्रेणी में खोहों से बाहर आये ॥

(ख) कलागत विशेषताएँ

(1) भाषा – भारतीय इतिहास में गुप्तकाल स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है। उस काल में भारतीय संस्कृति, कला और साहित्य अपनी उन्नति की चरम सीमा पर थे। ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की भाषा भी वैसी ही गरिमामयी है। इस खण्डकाव्य की भाषा प्रभावशाली, भावानुकूल और समयानुकूल है। इसकी भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली हिन्दी है। भाषा में माधुर्य, ओज एवं प्रसाद गुण विद्यमान हैं। प्रारम्भ के दो सर्गों में ओज गुण अधिक है, जब कि अन्त के सर्गों में चित्त की दीप्ति और विस्तार के कारण माधुर्य और प्रसाद गुण अधिक हैं।

उदाहरण(i) था वस्त्र-कर्मान्तिक सजल-दृग आ गया वल्कल लिए।
(ii) जन-जन वहाँ था साश्रु, जब वल्कल उन्होंने ले लिया।

(2) शैली – त्यागपथी में वर्णनप्रधान चित्रात्मकता लिये हुए संवादात्मक और सुललित सूक्ति-शैली का प्रयोग किया गया है। शब्दों के क्रम और ध्वनियों के संयोजन से जिस लय की रचना होती है, वह लय पूरे खण्डकाव्य में समान रूप से निहित है। अर्थ के साथ-साथ यह लय स्वर के आरोह-अवरोह के कारण और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है। पाँचवें सर्ग के अन्त में शैली में एक प्रकार की तीव्रता और आवेग है। इस खण्डकाव्य की शैली में आकर्षण और कौतूहल उत्पन्न करने की क्षमता है, जो खण्डकाव्य के लिए अनिवार्य है।

(3) अलंकार-योजना – ‘त्यागपथी’ में कवि ने स्थान-स्थान पर विभिन्न अलंकारों का प्रयोग किया है। अलंकार-योजना सर्वत्र स्वाभाविक रूप में है। भावोत्कर्ष में अलंकारों का प्रयोग विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण रहा है। कवि ने उपमा, अनुप्रास, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग किया है।

(4) छन्द-विधान – रामेश्वर शुक्ल अञ्चल ने ‘त्यागपथी’ में 26 मात्राओं के ‘गीतिका’ छन्द का प्रयोग किया है। अन्त में आकर कवि ने 34 मात्राओं वाले घनाक्षरी छन्द भी लिखे हैं। अन्त में घनाक्षरी छन्द का प्रयोग रचना की समाप्ति का सूचक ही नहीं, वरन् वर्णन की दृष्टि से प्रशस्ति का भी सूचक है। कवि की छन्द-योजना निस्सन्देह प्रशंसनीय है।
निष्कर्षतः ‘त्यागपथी’ काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से एक सफल खण्डकाव्य है।

प्रश्न 6:
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के रचयिता का मुख्य उद्देश्य अथवा सन्देश क्या है ? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
या
“सच्ची राष्ट्रधर्मिता को उद्भासित करना ‘त्यागपथी’ का प्रमुख उद्देश्य है।” इस उक्ति की दृष्टि से त्यागपथी की आलोचना कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर भारतीय जीवन-शैली और सामाजिक व्यवस्था का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में हर्षकालीन भारतीय समाज एवं जन-जीवन का उदात्त चित्रण मिलता है, सिद्ध कीजिए।
या
“त्यागपथी’ खण्डकाव्य में हर्षकालीन जीवन व समाज का उदात्त चित्रण मिलता है।” स्पष्ट कीजिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के आधार पर उसके उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में हर्षकालीन भारत सजीव हो उठा है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
या
खण्डकाव्य ‘त्यागपथी’ के नामकरण की सार्थकता एवं उसके उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
या
‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य के नाम की सार्थकता पर विचार कीजिए।
उत्तर:
[ संकेत- ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं के स्पष्टीकरण के लिए प्रश्न सं० 1 के उत्तर का अध्ययन करें और उसे संक्षेप में लिखें। ‘त्यागपथी’ खण्डकाव्य में कविवर रामेश्वर शुक्ल ‘अञ्चल’ ने अनेक प्रयोजनों को पल्लवित किया है। इसके मुख्य उद्देश्य या सन्देश निम्नवत् हैं

(1) प्राचीन भारत का गौरवमय चित्र प्रस्तुत करना – अञ्चल जी ने अपने प्रस्तुत काव्य में प्राचीन भारत के गौरवमय चित्र को प्रस्तुत किया है। उस समय समाज में सभी को समान न्याय और सभी प्रकार के सुख उपलब्ध थे। उन्होंने यह दर्शाया है कि प्राचीन भारत धर्म, संस्कृति, सभ्यता, विद्या, अर्थ और सभी दृष्टियों से वैभवसम्पन्न था।

(2) सम्राट् हर्ष के त्यागमय जीवन का आदर्श प्रस्तुत करना – हर्षवर्द्धन ‘त्यागपथी’ के नायक हैं। प्रजा की सेवा और उसका कल्याण ही सम्राट हर्ष के लिए सर्वोपरि था। सम्पूर्ण घटनाचक्र उन्हीं के चारों ओर घूमता है। कवि ने हर्ष के त्यागमय उज्ज्वल चरित्र के माध्यम से यह प्रस्तुत करना चाहा है कि आज के शासक भी उन्हीं की भॉति त्यागमय और सरल जीवन अपनाकर प्रजा के सम्मुख एक आदर्श उपस्थित करें।

(3) मानवीय गुणों की स्थापना करना – कवि ने प्रस्तुत काव्य में बड़ों के प्रति आदर, छोटों से स्नेह, उदारता, विनम्रता के साथ-साथ सांसारिक गरिमा आदि मानवीय गुणों को व्यक्त किया है। उसने हर्षवर्द्धन के माध्यम से सत्य, अहिंसा, त्याग, शान्ति, परोपकार और निष्काम कर्म जैसे गांधीवादी जीवन-मूल्यों की स्थापना की है।

(4) धर्मनिरपेक्षता पर बल देना – अञ्चल जी ने ‘त्यागपथी’ के माध्यम से सर्व-धर्म समभाव की सशक्त अभिव्यंजना की है। कवि ने दिखाया है कि सम्राट हर्ष के समय में सभी धर्मों को अपने प्रचार और प्रसार का समान अवसर प्राप्त था। सभी धर्मावलम्बियों के साथ समान व्यवहार होता था, जिस कारण सर्वत्र सुख और समृद्धि व्याप्त थी।

(5) राष्ट्रप्रेम की अभिव्यक्ति करना – प्रस्तुत काव्य में कवि ने राष्ट्रप्रेम की सशक्त अभिव्यक्ति की है। सम्राट् हर्ष सच्चे देशप्रेमी हैं। उन्होंने छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर विशाल राज्य की स्थापना की। वे देश की एकता और रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहे। उन्होंने अपनी बहन राज्यश्री को भी आत्मदाह करने से रोककर; देश-सेवा करने को प्रेरित किया।

(6) मानवतावाद का प्रसार करना – प्रस्तुत खण्डकाव्य की रचना में कवि ने मानवता के प्रसार को सन्देश दिया है। कवि ने युद्ध और हिंसा के स्थान पर प्रेम को बढ़ावा दिया है, जिससे आज शोषित और उत्पीड़ित मानवता दमन-चक्र से मुक्त हो सके।

शीर्षक की सार्थकता – उपर्युक्त सभी सन्देश काव्यकार ने सम्राट हर्षवर्द्धन के चरित्र के माध्यम से दिये हैं। हर्ष ने सर्वस्व त्याग करके ही इन सभी आदर्शों की स्थापना की। उनका त्याग क्षणिक नहीं है और न ही वह भावावेग में लिया हुआ निर्णय है, वरन् उन्होंने इस त्याग-पथ का चयन भली प्रकार सोच-समझकर किया है। प्रति पाँचवें वर्ष अपना सर्वस्व दान कर देने वाले त्याग-पथ के इस अमर पथिक के लिए ‘त्यागपथी’ के अतिरिक्त और कौन नाम उपयुक्त हो सकता है ? इस प्रकार खण्डकाव्य के नायक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करने वाला खण्डकाव्य का शीर्षक ‘त्यागपथी’ सर्वथा उपयुक्त और सार्थक है।

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UP Board Solutions for Class 12 English Prose Chapter 6 Womens Education

UP Board Solutions for Class 12 English Prose Chapter 6 Women’s Education are part of UP Board Solutions for Class 12 English. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 English Prose Chapter 6 Women’s Education.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject English Prose
Chapter Chapter 6
Chapter Name Womens Education
Number of Questions Solved 18
Category NCERT Solutions

UP Board Solutions for Class 12 English Prose Chapter 6 Women’s Education

LESSON at a Glance

We are living in an age where there are great opportunities for women in social work, public life and administration. Society needs women of disciplined minds and restrained manners. Hence, women’s education is of paramount importance in present time.

Dr. Radhakrishnan is not satisfied with the type of education that Indian women are getting. Girls education is not widespread so the institutions imparting education to girls should be encouraged. The education, so imparted, must not only be broad but should also be deep and purposeful.

According to the author, compassion, daya, is the quality which is more characteristic of women than of men. It is therefore, essential for every human being, men and women alike, to develop the quality of considerateness, kindness and compassion. Without these qualities we are only human animals, nara pasu, not more than that.

Dr, Radhakrishnan says that the study of our great classics, such as the Ramayana, Upnishad, etc., and communion with great minds, are the two things that mould men’s mind and heart. They instil into us great moral strength, which will lay down for us the lines on which we have to conduct ourselves. The learned author realises the value of women’s education and says.
“Give us good women, we will have a great civilization.
Give us good mothers, we will have a great nation.”
Such is the importance of women’s education.

पाठ का हिन्दी अनुवाद

(1) You are living ………………. your work.
आप एक ऐसे युग में रह रहे हैं जहाँ स्त्रियों के लिए सामाजिक कार्य में, जनजीवन में तथा प्रशासन में अनेक महान् अवसर प्राप्त हैं। समाज को अनुशासित मस्तिष्क वाली तथा संयमित आचरण वाली स्त्रियाँ चाहिए। आप चाहे कोई भी कार्य चुनें आपको उसे ईमानदारी तथा अनुशासित मस्तिष्क से करना चाहिए। तभी आपको कार्य में सफलता और आनन्द प्राप्त होंगे।

(2) Actually in our ………………. present generation.
हिन्दी अनुवाद–वास्तव में, हमारे देश में जहाँ तक लड़कियों की शिक्षा का सम्बन्ध है, शिक्षा काफी विस्तृत नहीं है। इसलिए प्रत्येक वह संस्था जो लड़कियों की शिक्षा में योगदान देती है वह मान्यता, उत्साह प्रदान करने के योग्य है। लेकिन मैं इस बात के लिए चिन्तित हूँ कि जो शिक्षा प्रदान की जाए वह केवल विस्तृत ही ने हो, अपितु वह जीवन के रहस्यों को जानने के योग्य भी हो। इसे गहराई में अर्थात् जीवन के रहस्यों को जानने में हम पीछे हैं। हम विद्वान् और कुशल बन सकते हैं। किन्तु यदि हमारे जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है। तब हमारा जीवन अन्धकारमय होगा, हम भारी भूलें करेंगे और फिर हमें दुःख प्राप्त होगा। गीता में कहा है। ‘व्यावसायात्मिका बुद्धिरेकेह’ अर्थात् नि:स्वार्थ कार्य में बुद्धि स्थिर होती है और एक ओर ही लगी रहती है। एक सच्चे सुसंस्कृत मस्तिष्क वाले मनुष्य को मानसिक एकरूपता तथा जीवन के उद्देश्य के प्रति प्रेम होता

है। एक असंस्कृत मनुष्य के लिए सम्पूर्ण जीवन भिन्न-भिन्न दिशाओं में बिखरा रहता है—“बहुशाखा ह्यनन्ताश्च’। अत: यह आवश्यक है कि वह शिक्षा जो आप इन संस्थाओं में प्राप्त कर रहे हैं, वह आपको केवल ज्ञान और कुशलता ही प्रदान न करे, अपितु आपको जीवन का एक निश्चित उद्देश्य भी दे। वह निश्चित उद्देश्य क्या हो यह आपको सोचना है। यह कहा जाता है कि विद्या विवेक प्रदान करती है। विमर्शरूपिणी विद्या आपको यह ज्ञान प्रदान करती है कि जिससे आप यह तय करेंगे कि क्या उचित है। वह आपको अनुचित बातों से बचने में सहायता करेगी। इसलिए आपको यह पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए कि इस पीढ़ी में आपसे क्या अपेक्षित है। एक वह उद्देश्य जो सदियों से ठीक रहा है, वह हमारे देश और संसार की तेजी से बदलती हुई परिस्थितियों में ठीक नहीं भी हो सकता। इसलिए वह उद्देश्य जो आप अपनाएँ, वह वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिए।

(3) Every time we ………………. more than that.
जब भी हम कोई कार्य आरम्भ करते हैं तब हम अपने मन्त्रों का उच्चारण करते हैं और उस कार्य को समाप्त करते समय शान्ति-शान्ति कहते हैं। अध्यापक तथा शिष्यों से यह आशा की जाती है कि वे एक-दूसरे से घृणा करने से बचें। दया एक ऐसा गुण है जो पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक पाया जाता है। हाल ही में मैंने एक पुस्तक पढ़ी है जिसमें स्त्रियों के गुणों के ह्रास के विषय में पढ़ा है और उसका मुख्य कारण है दया की भावना का ह्रास। दूसरे शब्दों में स्त्री का प्राकृतिक गुण देया है। यदि आप में दया नहीं है तो आप मनुष्य नहीं हैं। इसलिए प्रत्येक प्राणी के लिए यह आवश्यक है कि उसे अपने में दूसरे का ध्यान रखने की भावना, दया और सहानुभूति के गुण पैदा करने चाहिए। इन गुणों के बिना हम मानव कहलाने के योग्य नहीं हैं, बल्कि केवल नर पशु हैं और अधिक कुछ नहीं।

(4) There is famous ………………. my dear.
एक प्रसिद्ध कविता है जो हमें बताती है कि संसार विष वृक्ष है। इस अपूर्ण विश्व में अर्थात् संसार में अद्वितीय गुणों के दो फल हैं। वे हैं अपनी महान् साहित्यिक कृतियों का अध्ययन और महान् विचारकों के साथ एकरूपता। यही वे दो बातें हैं जो मनुष्य के हृदय और मस्तिष्क को बदलती हैं। मैं इस बात के लिए उत्सुक हूँ कि हम अपनी महान् कृतियों का अध्ययन करें, देश की उन सभी महान् कृतियों का जो हमें विरासत में प्राप्त हुई हैं। एक उपनिषद् के छोटे से कथोपकथन में एक प्रश्न किया गया है, “अच्छे जीवन का सार क्या है?” शिक्षक उत्तर देता है, “क्या तुमने उत्तर नहीं सुना?” बादलों की गड़गड़ाहट होती है–दा-दा-दा, तुरन्त शिक्षक ने समझाया कि यही अच्छे जीवन का सार है दम, दान व दया। यही अच्छे जीवन का निर्माण करती हैं। दम का अर्थ है आत्म-नियन्त्रण जो मानवता का प्रतीक है। रामायण में बताया गया है जब लक्ष्मण वन को जाने लगे तब उसकी माता ने उन्हें बताया, “राम को अपने पिता दशरथ के समान समझना, सीता को अपनी माता के समान, वन को अयोध्या के समान समझना, जाओ, मेरे प्रिय बेटे।”

(5) There are ever ………………. a great nation.
हमारी साहित्यिक कृतियों में बहुत-सी ऐसी आनन्ददायक कहानियाँ हैं जो हमारे भीतर महान् नैतिक शक्ति का संचार करती हैं जो हमारे लिए ऐसी रूपरेखा बनाती हैं जिनके अनुरूप हम अपना आचरण बनाते हैं।
हमें अच्छी स्त्रियाँ दो, हमारी सभ्यता महान् होगी।
हमें अच्छी माताएँ दो, हमारा राष्ट्र महान् होगा।

(6) When you talk ………………. tatha.
जब आप शिक्षा के विषय में बात करते हैं तब आपके सम्मुख कुछ लक्ष्य होते हैं-जिन लोगों को शिक्षा दी जाती है उन्हें उस संसार का ज्ञान दो जिसमें वे रह रहे हैं—यह ज्ञान आप विज्ञान, इतिहास तथा भूगोल से प्राप्त कर सकेंगे। आप लोगों को कुछ तकनीकी ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी प्रशिक्षित करें ताकि वे अपना जीविकोपार्जन कर सकें। इन बातों को पूरे संसार में शिक्षा के लक्ष्यों के रूप में स्वीकार किया जाता है अर्थात् उस संसार का ज्ञान जिसमें आप रहते हैं और तकनीकी योग्यता जिसके द्वारा आप जीविकोपार्जन कर सकते हैं। किन्तु उस शिक्षा की क्या विशेषता है जो हमारे देश के विद्यालयों में दी जा रही है। हमने सुना है कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य दक्षता और ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि उच्च जीवन की प्राप्ति का प्रयास करना है। एक ऐसे संसार के निर्माण का प्रयास जो स्थान व समय से परे हो यद्यपि बाद वाला पहले वाले को प्रकाशित तथा क्रियाशील करता है। यही शिक्षा का मुख्य उद्देश्य रहा है। सदियों तक हमने स्त्री जाति की उपेक्षा की है। परम्परा सम्भवतः इससे भिन्न रही है।
पुराकल्पेषु नारीनां मन्दिरा वन्दना निश्चितः।
अध्यापनाञ्च वेदानां गायत्री वाचानां तथा।।

(7) In ancient times ………………. into their own.
प्राचीन समय में हमारी स्त्रियों में उपनयन संस्कार होता था। वे वेदों का अध्ययन करने की अधिकारी हो जाती थीं। वे गायत्री मन्त्र का जाप करने की भी अधिकारी हो जाती थीं। ये सभी बातें हमारी स्त्रियों के लिए खुली थीं। किन्तु हमारी सभ्यता संकुचित हो गयी और स्त्रियों की पराधीनता हमारी सभ्यता के पतन का एक प्रतीक है।

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद महात्मा गाँधी के अथक प्रयासों से हमारे देश में एक क्रान्ति आई और अब स्त्रियाँ अपने पैरों पर खड़ी हो गई हैं।

Understanding the Text is

Explanations
Explain one of the following passages with reference to the context:
(1) You are living ………………. your work. [2018]
Or
Society requires ………………. disciplined mind. [2018]
Reference : These lines have been taken from the lesson ‘Women’s Education’ written by S. Radhakrishnan. [ N.B.: The above reference will be used for all explanations of this lesson.]

Context : In this lesson the author lays emphasis on the need of education for women in India. He advocates that a drastic change should be brought about in the educational pattern specially for women. He wants that the education should be according to the needs of the present time.

Explanation : In this passage the author makes it clear that we are now living in an age which is much different to the previous ages. Those were the ages when women were kept confined in the four walls of their houses. But now the women are free to come out of the houses and work in different fields of life social, public and political. They have a lot of opportunities in these fields. But they should have discipline and controlled manners. They should be honest in their dealing. Only then they will get success and pleasures.

(2) Actually in our country ………………. and bitter. [2014]
Context : In this lesson the author tells us about education particularly about girls’ education. In our country the girls’ education is not widespread. So, we should encourage every institution which contributes in spreading the girls’ education.

Explanation : In these lines the author describes the types of education he wants. There are two essentials of good education–broad education and deep education. No doubt the education given in our schools and colleges is very wide. But it is lacking in depth. We should not be satisfied only with learning and skill. But we should understand the purpose of our life. Without knowing the purpose, we shall be misguided. We shall do mistakes and our life will be painful.

(3) Therefore it is essential ………………. for yourselves. [2013, 16, 18]
Context : The author feels that our education is lacking in depth. We may become learned and skilled, but if we do not have some kind of purpose in our life, our lives may become blind and bitter.

Explanation : To avoid bitterness and blindness in our life, it is necessary that the education which you gain in the schools and colleges should not only add to your knowledge and technique but should also provide you with a clearly defined purpose in life. As regards the purpose, you have to outline it yourself depending upon the needs.

(4) It is said that vidya ………………. present generation. [2009, 14, 16]
Context : Here the author says that the real aim of education is to have a definite purpose of life. Education helps us in it by enabling us to decide what is right and what is wrong.

Explanation : The author tells us that vidya (knowledge) gives us wisdom and enables us to differentiate between right and wrong. So, the author advises us to find out what is needed in us in the present generation. The world is very wide and is rapidly changing. So, the purpose of life also changes in the changed conditions. One particular purpose cannot hold good in all times. So, it is our duty to decide a purpose of life carefully keeping in view the needs of the present generation. Education helps us a lot in this matter.

(5) Compassion, daya, is ……………… more than that. [2011, 16]
Context : Here, the author tells us about one of the greatest qualities of human beings, i.e., compassion. Compassion means pity including sympathy and consideration of others.

Explanation : The author says that compassion or pity is the natural quality of a woman. But it does not mean that men should not have pity. In fact compassion is the quality of every human being. It is compassion which differentiates man from animal. Every one of us should be sympathetic for others. We should be considerate of joys and sorrows of our fellow beings. Pity, sympathy and considerateness make a man civilized. So, if we want to have a strong society, we should develop these qualities in ourselves.

(6) When you talk ………………. livelihood. [2013, 18]
Context : The author has highlighted the value of good women and educated mothers for a nation.

Explanation : In these lines the author is explaining the two of the many purposes of education. The first purpose of education is to give as much theoretical knowledge to the students as we can. This is possible by teaching them science, history and geography. The other purpose of education is to teach the people to gain applied and industrial ability to do jobs by themselves. This will enable them to earn a means of living.

(7) But what is there ………………. education. [2010, 16, 17, 18]
Context : There are several aims of education. First is that education imparts us knowledge of the world in which we live. Science, history, geography and other subjects help us in this field. Second aim of education is to develop technical skill so that man may earn his livelihood.

Explanation : In these lines the author says that these are not the real aims of knowledge. Only getting information and skill are the ordinary aims. The main aim of education is to enable a man to pass a nobler and higher life. To make a man successful in this world is to enable a man to enjoy permanent bliss of spiritual life.

(8) In ancient times. ………………. subjection of women. [2010, 17]
Context : The author has told that the real aim of education should be to enable a man to pass a nobler and higher life. Here the writer tells us about the education of women in ancient times.

Explanation : In these lines the author points out that in ancient times the women had equal rights to men in the field of education. They had the right to perform all religious ceremonies. They had the right to study vedas and to sing gayatri mantra. Their status was not inferior to men in any way. But the ancient civilization began to decline and it affected the rights of women adversely.

(9) After Independence ………………. their own.
Context : The author is narrating the position and role of women in our country. In ancient times they occupied a valuable position but in time to follow they became subdued.

Explanation : The writer says that after India became free on account of the relentless efforts of Gandhiji, a welcome change has been brought out in the condition of women in our country. Women are now receiving their old heritage and regaining their valuable position.

Short Answer Type Questions

Answer one of the following questions in not more than 30 words:
Question 1.
What are the opportunities available to women in our times ? [2013, 15]
(हमारे समय में स्त्रियों को कौन-से अवसर उपलब्ध हैं?)
Answer :
In our times there are opportunities for women in social work, public life and administration.
(हमारे समय में स्त्रियों को सामाजिक कार्यों में, सार्वजनिक जीवन में तथा प्रशासन में बड़े अवसर उपलब्ध

Question 2.
What kind of women does the society need ? [2017, 18]
(समाज को किस प्रकार की स्त्रियों की आवश्यकता है?)
Or
What qualities should the women have according to the present needs of the society?
(आज के समाज की आवश्यकता के अनुसार स्त्रियों में क्या गुण होने चाहिए ?)
Answer :
Society needs disciplined women of controlled behaviour.
(समाज को नियन्त्रित व्यवहार वाली अनुशासित स्त्रियाँ चाहिए।)

Question 3.
What is the real.situation regarding women’s education in India ?
(भारत में स्त्रियों की शिक्षा की वास्तविक स्थिति क्या है?)
Answer :
In reality women’s education in India is not wide spread.
(वास्तव में भारतवर्ष में स्त्रियों की शिक्षा विस्तृत रूप से फैली हुई नहीं है।)

Question 4.
What kind of education does the author recommend (or advocate) and why?
(लेखक किस प्रकार की शिक्षा की सिफारिश करता है और क्यों?).
Answer :
The author recommends an education with a definite purpose because education without purpose leads towards mistaken deeds resulting in grief.
(लेखक निश्चित उद्देश्य वाली शिक्षा की सिफारिश करता है, क्योंकि उद्देश्यहीन शिक्षा गलत कार्यों की ओर प्रेरित करती है जिसके परिणामस्वरूप दुःख होता है।)

Question 5.
Point out the difference between the cultured and the uncultured mind so far as attitude towards life is concerned.
(जहा तक जीवन के प्रति दृष्टिकोण का सम्बन्ध है सुसंस्कृत तथा असंस्कृत मस्तिष्क का अन्तर स्पष्ट करो।)
Answer :
A cultured mind is dedicated to a single purpose while uncultured mind is scattered in many directions.
(एक सुसंस्कृत मस्तिष्क एक ही लक्ष्य की ओर लगा रहता है, जबकि असंस्कृत मस्तिष्क भिन्न-भिन्न दिशाओं में बिखरा रहता है।)

Question 6.
Which particular quality distinguishes men from women ? [2009, 17]
(कौन-सी विशेष गुण पुरुषों को स्त्रियों से भिन्न करता है?)
Answer :
Compassion or feeling of pity distinguishes men from women.
(दया की भावना पुरुषों को स्त्रियों से भिन्न करती है।)

Question 7.
What qualities are necessary for the development of human beings ?
(मनुष्य के विकास के लिए कौन-कौन-से गुण आवश्यक हैं?)
Answer :
Kindness, considerateness and compassion are necessary qualities for the development of human beings.
(दया, दूसरों के प्रति विचारशील होना तथा सहानुभूति मनुष्य के विकास के लिए आवश्यक गुण हैं।)

Question 8.
What are the two important products of the tree of life and what is their effect on human beings ?
(जीवन-रूपी वृक्ष के दो मुख्य उत्पाद क्या हैं और मनुष्य पर उनका क्या प्रभाव होता है ?)
Answer :
The two important products of the tree of life are—the study of our ancient literature and communion with great minds. These two things mould men’s mind and heart.
(जीवन-रूपी वृक्ष के दो प्रमुख उत्पाद हैं—अपने प्राचीन साहित्य का अध्ययन और महान् व्यक्तियों से मस्तिष्क द्वारा सम्पर्क। ये दो वस्तुएँ मनुष्यों के मस्तिष्कों और हृदयों को बदल देती हैं।)

Question 9.
What are the three important qualities of a valuable life? [2018]
(सारयुक्त जीवन के तीन महत्त्वपूर्ण गुण कौन-कौन से हैं?)
Or
What constitutes the essence of good life ? [2017]
(जीवन का सार कौन-सी बात बनाती है?)
Answer :
The three important qualities of a valuable life are—Dama i.e. self-control, Dana i.e. charity and Daya i.e. compassion.
(सारयुक्त जीवन के तीन मुख्य गुण हैं—दम अर्थात् आत्म-नियन्त्रण, दान अर्थात् सहायता और दया अर्थात् सहानुभूति।)

Question 10.
What aims do people have in view generally when they talk about : education ?
(जब लोग शिक्षा के विषय में बात करते हैं, तब सामान्यत: उनके विचार से शिक्षा के क्या उद्देश्य होते हैं?)
Answer :
Generally the people have two aims of education in their view—
(i) to give the student knowledge of the world in which they live through science, history and geography,
(ii) to give them technical skill to earn their livelihood.
(साधारणत: लोगों के मन में शिक्षा के दो उद्देश्य होते हैं–
(i) विद्यार्थियों को विज्ञान, इतिहास तथा भूगोल के द्वारा उस संसार का ज्ञान देना जिसमें वे रहते हैं,
(ii) उन्हें तकनीकी कुशलता देना ताकि वे अपनी : आजीविका प्राप्त कर सकें।)

Question 11.
State the chief purpose of education. [2013, 18]
(शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बताइए।)।
Answer :
The chief purpose of education is not merely to gain skill or to know more and more about the world but the chief purpose of education is the initiation into a higher life, initiation into a world which transcends the world of space and time.
(शिक्षा का मुख्य उद्देश्य केवल कार्य-निपुणता प्राप्त करना अथवा संसार की अधिक-से-अधिक जानकारी प्राप्त करना ही नहीं है बल्कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य उच्च जीवन को जानने का प्रयास करना है, उस संसार को जानने का प्रयास करना है जो स्थान और समय से कहीं ऊपर हो।)

Question 12.
What were the things women entitled to in ancient India ? [2018]
(वे कौन-कौन सी बातें थीं जिनका प्राचीन भारत में स्त्रियों को अधिकार था?)
Answer :
In ancient India women were entitled to study Vedas and to the chanting of Gayatri mantra.
(प्राचीन भारत में स्त्रियों को वेदों का अध्ययन करने तथा गायत्री मन्त्र का जप करने का अधिकार था।)

Question 13.
What is one of the signs of the decline of our civilization ?
(हमारी सभ्यता के पतन का एक चिह्न क्या है ?)
Answer :
Subjection of women is one of the signs of the decline of our civilization.
(स्त्रियों की पराधीनता हमारी सभ्यता के पतन का एक चिह्न है।)

Question 14.
Through whose efforts has a change been brought about in the condition of women after Independence ?
(स्वतन्त्रता के बाद स्त्रियों की दशा में परिवर्तन किसके प्रयासों से आया?)
Answer :
Through the efforts of Mahatma Gandhi, a change has been brought about in the condition of women after independence.
(स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद महात्मा गाँधी के प्रयासों से स्त्रियों की दशा में परिवर्तन आया है।)

Question 15.
Briefly describe the importance of the study of classics in shaping the personality of men and women in society.
(हमारे समाज में पुरुष और स्त्रियों के व्यक्तित्व को बनाने में प्राचीन ग्रन्थों के अध्ययन की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।)
Answer :
When we study our classics, we come in close contact of different characters and minds. There we find many examples which fill us with the feelings of considerateness, kindness and compassion which shape the personality of men and women in our society.
(जब हम अपने प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन करते हैं तब हम भिन्न-भिन्न चरित्रों एवं विद्वानों के सम्पर्क में आते हैं। वहाँ हमें बहुत से ऐसे उदाहरण मिलते हैं जो हमें दूसरों के प्रति विचारवान बनाते हैं तथा दया और सहानुभूति की भावनाओं से भर देते हैं जो हमारे समाज में स्त्री तथा पुरुषों के व्यक्तित्व को बनाती है।)

Question 16.
Why is education of women essential for a nation ?
(किसी राष्ट्र की स्त्रियों के लिए शिक्षा क्यों आवश्यक है?)
Answer :
The progress of nation depends upon its women also. So, the education of women is essential so that they may be broad minded and well disciplined.
(किसी राष्ट्र की उन्नति उसकी स्त्रियों पर भी निर्भर करती है। इसीलिए स्त्रियों की शिक्षा आवश्यक है ताकि वे विशाल मस्तिष्क वाली तथा अनुशासित हों।)

Question 17.
What was the great teaching that Lakshman’s mother gave him when he was going to the forest ? [2011, 18]
(लक्ष्मण की माता ने उसे क्या महान् शिक्षा दी जब वे जंगल को जा रहे थे ?)
Answer :
When Lakshman was going to the forest, his mother taught him, “Look upon, Ram as your father, look upon Sita as myself, look upon the forest as Ayodhya.” (जब लक्ष्मण वन को जाने लगे तब उनकी माता ने उन्हें सिखाया, “राम को अपने पिता के समान, सीता को अपनी माता के समान और वन को अयोध्या के समान समझना।)

Question 18.
What causes the decline of womanhood, according to S. Radhakrishnan? [2013,15]
(एस० राधाकृष्णन के अनुसार नारीत्व के पतन का क्या कारण है?)
Answer :
According to S. Radhakrishnan, subjection of women causes the decline of womanhood. (एस० राधाकृष्णन के अनुसार नारीत्व के पतन का कारण नारी की पराधीनता है।)

Vocabulary

Choose the most appropriate word or phrase that best completes the sentence:
1. Society requires women of disciplined minds and ……………… manners. [2017]
(a) controlled
(b) restrained
(c) good
(d) disciplined

2. Actually in our country, education, ……………… girl’s education is concerned, is not widespread enough.
(a) so far as
(b) as far as
(c) so long as
(d) as long as

3. But I am anxious that the kind of education that is imparted must not only be broad but should also be ……………… [2017]
(a) meaningful
(b) useful
(c) purposeful
(d) deep

4. So the purpose which you ……………… in your life must he adapted to the relevant needs of the present generation.
(a) accept
(b) recognise
(c) adapt
(d) adopt

5. I am anxious that our great classics should be studied, the classics of all countries of which we are the ………………
(a) master
(b) possessor
(c) upholders
(d) inheritors

6. There are ever so many ……………… stories in our classics which will in still into us great moral strength, which will lay down for us the lines on which we have to conduct ourselves.
(a) thrilling
(b) joyful
(c) inspiring
(d) moral

7. But our civilization became arrested and one of the main signs of that ……… of our civilization is the subjection of women.
(a) fall
(b) ruin
(c) set back
(d) decay

8. After Independence, through the exertions of ……………… a revolution has been effected in our country, and women are coming into their own.
(a) Mahatma Gandhi
(b) Vinoba Bhave
(c) Mother Teresa
(d) Jawaharlal Nehru

9. When you talk about education, you have several aims ………………
(a) openly
(b) in view
(c) internally
(d) out of tune

10. For some ……………… We neglected our women folk. [2017]
(a) years
(b) weeks
(c) decades
(d) centuries

11. If you do not have ……………… you are not human. [2017]
(a) power
(b) compassion
(c) glory
(d) money

12. You are living in an age when there are great ……………… for women in social work. [2017]
(a) profits
(b) problems
(c) opportunities
(d) dangers

13. The natural quality of women is ……………… [2018]
(a) indifference
(b) charm
(c) selfishness
(d) compassion

14. ……………… is the quality which is more characteristic of women than men. [2012, 18].
(a) Emotion
(b) Compassion
(c) Passion
(d) Impassioned

15. When you talk about education, you have ……………… aims in view. [2016]
(a) several
(b) plenty of
(c) so many
(d) a number of

16. We have heard that the chief ……………… of education is not merely the acquiring of skill or information but the initiation into a higher life. [2016]
(a) aim
(b) goal
(c) purpose
(d) principle

Answers :
1. (b), 2. (b), 3. (b), 4. (d), 5. (), 6. (a), 7. (d), 8. (a), 9. (b), 10. (d), 11. (b), 12. (c), 13. (d), 14. (b), 15. (a), 16. (c).

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UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 4 Population : Growth, Density, Distribution and Structure

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 4 Population : Growth, Density, Distribution and Structure (जनसंख्या : वृद्धि, घनत्व, वितरण एवं संरचना) are part of UP Board Solutions for Class 12 Geography. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 4 Population : Growth, Density, Distribution and Structure (जनसंख्या : वृद्धि, घनत्व, वितरण एवं संरचना).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Geography
Chapter Chapter 4
Chapter Name Population : Growth, Density, Distribution and Structure (जनसंख्या : वृद्धि, घनत्व, वितरण एवं संरचना)
Number of Questions Solved 35
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 4 Population : Growth, Density, Distribution and Structure (जनसंख्या : वृद्धि, घनत्व, वितरण एवं संरचना)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
संसार में जनसंख्या के घनत्व तथा वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारकों की विवेचना कीजिए। [2007, 08, 10, 14]
या
जनसंख्या के असमान वितरण के लिए उत्तरदायी भौगोलिक कारकों का वर्णन कीजिए। (2007)
विश्व में एशिया के असमान वितरण की व्याख्या कीजिए तथा ऐसे असमान वितरण के किन्हीं तीन कारणों का वर्णन कीजिए। [2016]
या
जनसंख्या-वृद्धि के लिए उत्तरदायी भौगोलिक कारकों का विश्लेषण कीजिए। [2012,16]
या
जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों की समीक्षा कीजिए। [2008, 14]
या

विश्व की जनसंख्या का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –
(क) जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक
(ख) जनसंख्या का वितरण। [2013]
उत्तर
मानव- भूगोल के अध्ययन में मानवे का केन्द्रीय स्थान है, क्योकि मानव ही अपने प्राकृतिक और सांस्कृतिक पर्यावरण का उपभोग करता है, उनसे प्रभावित होता है और उनमें अपनी आवश्यकतानुसार परिवर्तन करता है। पृथ्वीतल पर सभी आर्थिक व्यवसाय मानव द्वारा सम्पन्न होते हैं। इसी कारण पृथ्वीतल पर जनसंख्या कितनी है, उसका वितरण किन प्रदेशों में अधिक या कम है, उसमें कितनी वृद्धि अथवा कमी हुई है, उसकी क्षमता कैसी है तथा उसकी समस्याएँ क्या हैं आदि सभी तथ्यों का अध्ययन करना बड़ा महत्त्वपूर्ण है।
जनसंख्या अध्ययन का मुख्य उद्देश्य पृथ्वीतल के विभिन्न प्रदेशों में जनसंख्या की स्थिति, वृद्धि अथवा कमी, उसकी भिन्नताएँ, घनत्व, आवास-प्रवास, शारीरिक शक्ति, आयु-वर्ग, पुरुष-महिला अनुपात तथा जनसंख्या के आर्थिक विकास की अवस्थाओं का पता लगाना होता है।

विश्व में जनसंख्या के वितरण में प्राचीन काल से अब तक बहुत-से परिवर्तन हुए हैं। पृथ्वी पर जनसंख्या के वितरण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भूतल पर मनुष्यों का निवास असमान है। केवल कुछ प्रदेश ऐसे हैं जहाँ मानव-निवास अति सघन है, जबकि बहुत-से भूभाग खाली पड़े हैं। विश्व की 50 प्रतिशत जनसंख्या; भू-स्थल के केवल 5 प्रतिशत भाग पर निवास करती है, जबकि 7 प्रतिशत क्षेत्रफल ऐसा है जहाँ केवल 5% जनसंख्या ही रहती है; अत: स्थल-खण्ड का कम बसा भाग बहुत बड़ा है। पश्चिमी गोलार्द्ध के स्थल भाग पर केवल एक-चौथाई जनसंख्या निवास करती है। इस वितरण पर प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक विषमताओं का भी प्रभाव पड़ता है।

जनसंख्या के घनत्व तथा वितरण को प्रभावित करने वाले कारक
Factors Affecting the Density and Distribution of Population

जनसंख्या का घनत्व – जनसंख्या के घनत्व का आशये किसी क्षेत्र में निवास करने वाली जनसंख्या की सघनता से है। जनसंख्या के घनत्व को प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या के रूप में मापा जाता है। घनत्व ज्ञात करने के लिए किसी क्षेत्र की कुल जनसंख्या को उसके क्षेत्रफल से भाग दिया जाता है। घनत्व से जनसंख्या के किसी क्षेत्र में संकेन्द्रण की मात्रा का बोध होता है।
जनसंख्या के घनत्व तथा वितरण पर निम्नलिखित भौगोलिक एवं अन्य कारकों का प्रभाव पड़ता है –

1. स्थिति (Location) – किसी प्रदेश की स्थिति का प्रभाव उसके समीपवर्ती देशों, परिवहन, व्यापार तथा मानव इतिहास पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, हिन्द महासागर में भारत की स्थिति केन्द्रीय होने के कारण मध्य-पूर्व के देशों तथा पूर्वी गोलार्द्ध के देशों के साथ समुद्री व्यापार की सुविधा रखने वाली है। विश्व की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या तटीय भागों तथा उनकी सीमा-पेटियों में निवास करती है। भूमध्यसागरीय भागों में उसके चारों ओर प्राचीन काल से ही मानव-बस्तियों का विकास होता रही हैं। यहाँ मछलियों की प्राप्ति, सम-जलवायु, समतल मैदानी भूमि जिसमें कृषि, उद्योग, परिवहन एवं मानव-आवासों का तीव्र गति से विकास हुआ है। इसीलिए इन भागों में सघन जनसंख्या का संकेन्द्रण हुआ है।

2. जलवायु (Climate) – सभी कारकों में जलवायु महत्त्वपूर्ण साधन है, जो जनसंख्या को । किसी स्थान पर बसने के लिए प्रेरित करती है। विश्व के सबसे घने बसे भाग मानसूनी प्रदेश तथा सम-शीतोष्ण जलवायु के प्रदेश हैं। चीन, जापान, भारत, म्यांमार, वियतनाम, बांग्लादेश तथा पूर्वी-द्वीप समूह की जलवायु मानसूनी है, जबकि पश्चिमी यूरोप एवं संयुक्त राज्य की जलवायु सम-शीतोष्ण है; अतः इन देशों में सघन जनसंख्या का निवास हुआ है।

इसके विपरीत जिन प्रदेशों की जलवायु उष्ण एवं शुष्क है, वहाँ बहुत ही कम जनसंख्या निवास करती है। उदाहरण के लिए, सहारा, कालाहारी, अटाकामा, अरब, थार एवं ऑस्ट्रेलियाई मरुस्थलों में जनसंख्या का घनत्व एक व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। अति उष्ण एवं आर्दै प्रदेशों में भी जनसंख्या कम है; जैसे- अमेजन बेसिन के पर्वतीय एवं पठारी क्षेत्रों में।
मानव-आवास के लिए स्वस्थ अनुकूलतम जलवायु वह है जिसमें ग्रीष्म ऋतु का अधिकतम औसत तापमान 18°सेग्रे से कम तथा शीत ऋतु के सबसे ठण्डे महीने का तापमान 3° सेग्रे से कम न हो। सामान्यतया 4°-21° सेग्रे तापमान के प्रदेश जनसंख्या के आवास के लिए सर्वाधिक अनुकूल माने जाते हैं। वर्षा की मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ जनसंख्या के घनत्व में भी वृद्धि होती जाती है तथा उसके घटने के साथ-साथ जनसंख्या घनत्व में कमी होती जाती है।

3. भू-रचना (Terrain) – भू-रचना का जनसंख्या से गहरा सम्बन्ध है। समतल मैदानी भागों में कृषि, सिंचाई, परिवहन, व्यापार आदि का विकास अधिक होता है; अतः मैदानी क्षेत्र सघन रूप से बस जाते हैं। पर्वतीय एवं पहाड़ी क्षेत्रों में कष्टदायकं एवं विषम भूमि की बनावट होने के कारण बहुत कम लोग निवास करना पसन्द करते हैं। भारत के असम राज्य में केवल 397 मानव प्रति वर्ग किमी निवास करते हैं, जबकि गंगा के डेल्टा में 800 से भी अधिक व्यक्ति प्रति वर्ग किमी निवास कर रहे हैं। विश्व में जनसंख्या के चार समूहों का संकेन्द्रण हुआ है-

  1. चीन एवं जापान,
  2. भारत एवं बांग्लादेश,
  3. यूरोपीय देश एवं
  4. पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका।

विश्व में उपजाऊ भूमि के कारण नदी-घाटियाँ भी सघन रूप से बसी हैं।

4. स्वच्छ जल की पूर्ति (Supply of Clean water) – जल मानव की मूल आवश्यकता है। जल की आवश्यकता मुख्यत: तीन प्रकार की है –

  1. घरेलू आवश्यकताओं के लिए जल की पूर्ति
  2. औद्योगिक कार्यों के लिए जल की पूर्ति एवं
  3. सिंचाई के लिए जल की पूर्ति।

अतः जिन प्रदेशों एवं क्षेत्रों में शुद्ध एवं स्वच्छ मीठे जल की पूर्ति की सुविधी होती है, वहाँ जनसंख्या भी अधिक निवास करने लगती है; जैसे-नदी-घाटियों एवं समुद्रतटीय क्षेत्रों में।

5. मिट्टियाँ (Soils) – जनसंख्या का मूल आधार भोजन है जिसके बिना वह जीवित नहीं रह सकती। शाकाहारी भोजन प्रत्यक्ष रूप से एवं मांसाहारी भोजन अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी में ही उत्पन्न होते हैं। जिन प्रदेशों की मिट्टियाँ उपजाऊ होती हैं, वहाँ सघन जनसंख्या निवास करती है। चीन, भारत एवं यूरोपीय देशों में नदियों की घाटियों में मिट्टी की अधिक उर्वरा शक्ति के कारण सघन जनसंख्या निवास कर रहा है।

6. खनिज पदार्थ (Minerals) – जिन प्रदेशों में खनिज पदार्थों का बाहुल्य होता है, वहाँ उद्योगों के विकसित होने की पर्याप्त सम्भावनाएँ रहती हैं। इस कारण ये क्षेत्र जनसंख्या को अपनी ओर आकर्षित करते हैं तथा विषम परिस्थितियों में भी इन प्रदेशों में सघन जनसंख्या का आवास रहता है। यूरोप महाद्वीप के सघन बसे प्रदेश कोयले एवं लोहे की खानों के समीप ही स्थित मिलते हैं। इसी प्रकार रूस के उन क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक है, जहाँ खनिज भण्डार अधिक हैं।

7. शक्ति के संसाधन (Power Resources) – उद्योगों एवं परिवहन के साधनों के संचालन में कोयला, पेट्रोलियम, जल-विद्युत एवं प्राकृतिक गैस की आवश्यकता होती है तथा इनकी प्राप्ति वाले क्षेत्रों में जनसंख्या भी सघन रूप में निवास करने लगती है।

8. आर्थिक उन्नति की अवस्था (Stage of Economic Progress) – किसी प्रदेश की आर्थिक स्थिति में वृद्धि होने पर उसकी जनसंख्या-पोषण की क्षमता में भी वृद्धि हो जाती है; अत: इन प्रदेशों में जनसंख्या भी अधिक निवास करने लग जाती है। कृषि उत्पादन कम होने पर भी इन प्रदेशों में खाद्यान्न विदेशों से आयात कर लिये जाते हैं, क्योंकि आयात करने के लिए उनकी आर्थिक स्थिति अनुकूल होती है।

9. तकनीकी प्रगति का स्तर (Level of Technological Progress) – तकनीकी विकास के द्वारा नवीन यन्त्रों, उपकरणों एवं मशीनों के उत्पादन में वृद्धि होती है जिससे विभिन्न क्षेत्रों के उत्पादों में भी वृद्धि होती है एवं ऋतु तथा जलवायु की विषमताओं पर नियन्त्रण कर लिया जाता है। इन सुविधाओं के स्तर में वृद्धि से जनसंख्या में भी वृद्धि हो जाती है। यूरोप के औद्योगिक प्रदेशों में 700 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से भी अधिक जन-घनत्व इसी कारण मिलता है।

10. सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक (Social and Cultural Factors) – सामाजिक रीतिरिवाजों, धार्मिक विश्वासों एवं जीवन के प्रति दृष्टिकोण का प्रभाव जनसंख्या वितरण पर भी पड़ता है। जिस समाज में लोग भाग्यवादी होते हैं, उनमें परिवार-कल्याण कार्यक्रमों के प्रति विश्वास एवं रुचि न होने के कारण अधिक सन्तति से जनसंख्या में वृद्धि होती चली जाती है। उदाहरण के लिए, भारत में मुस्लिम लोगों का परिवार-कल्याण के प्रति धार्मिक विश्वास न होने के कारण उनकी जनसंख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है।

11. राजनीतिक कारक (Political Factors) – राजनीतिक नियमों का प्रभाव भी जनसंख्या वितरण पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। उदाहरणार्थ- ऑस्ट्रेलिया का क्षेत्रफल भारत की अपेक्षा लगभग तीन गुना अधिक है, जब कि ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या भारत की जनसंख्या का केवल 1/50 भाग ही है। इसका प्रमुख कारण ऑस्ट्रेलिया सरकार की श्वेत नीति (White Policy) है जो गोरी जातियों के अतिरिक्त दूसरी नस्ल के लोगों को ऑस्ट्रेलिया में बसने से रोकती है।

12. मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factors) – किसी प्रदेश में मानव के कम या अधिक निवास के लिए उसकी छाँट दो सीमाओं के मध्य रहती है। एक ओर प्राकृतिक पर्यावरण द्वारा निश्चित की हुई सीमा तथा दूसरी ओर सरकारी नीति। इस प्रकार कुछ मानव थोड़े संसाधनों के क्षेत्र में बसे होते हैं तथा उनकी जीविकोपार्जन की विधि भी पिछड़ी हुई होती है। ऐसे उदाहरण पर्वतीय तथा वन-क्षेत्रों में अधिक मिलते हैं। विश्व के दक्षिणी महाद्वीपों में ऐसे क्षेत्र अधिक मिलते हैं।

13. पर्यावरण की वांछनीयता (Environmental Desirability) – मानवीय सभ्यता के विकास के साथ-सांथ परिवहन, संचार आदि साधनों में वृद्धि से विभिन्न प्रदेशों की वांछनीयता में भी परिवर्तन हो जाते हैं। जहाँ आर्थिक विकास की सम्भावनाएँ अत्यधिक दिखलाई पड़ती हैं, उन क्षेत्रों में मानव के बसने की इच्छा भी अधिक रहती है। उदाहरणार्थ-बिहार राज्य के उत्तरी भाग में कृषि द्वारा सघन जनसंख्या पोषण करने की क्षमता विद्यमान है और दक्षिण की ओर छोटा नागपुर पठारे में खनिज पदार्थों के कारण औद्योगिक विकास की भारी क्षमता है। अत: बिहार राज्य में इन सम्भावनाओं के कारण जनसंख्या भी सघन होती जा रही है। इसके विपरीत सम्भावनाओं की कमी के कारण हिमालय के तराई प्रदेश में जनसंख्या विरल है।

14. अन्तर्राष्ट्रीय पारस्परिक निर्भरता (International Interdependence) – वर्तमान समय में विशेषीकरण में वृद्धि के फलस्वरूप सभ्य राष्ट्र अपनी खाद्यान्न आवश्यकता के लिए एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन तथा जर्मनी के खाद्यान्न अधिकतर ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अर्जेण्टाइना आदि देशों से मशीनों के बदले आते हैं; अर्थात् एक देश दूसरे देश की उपज को आसानी से बदल सकता है। इससे विशेषीकरण में वृद्धि होती है तथा अधिक जनसंख्या का पोषण सम्भव हो सकता है। इसी प्रकार जापान ने भी सघन जनसंख्या के पोषण की क्षमता आसानी से प्राप्त कर ली है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार ने विभिन्न देशों की आर्थिक निर्भरता की अपेक्षा विशेषीकरण को प्रोत्साहन दिया है, परन्तु कभी-कभी राजनीतिक सम्बन्ध खराब होने से विभिन्न देशों में युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अतः इसके लिए एक देश को दूसरे देश की विशेषताओं को उचित प्रकार से समझना चाहिए।

प्रश्न 2
एशिया में जनसंख्या के असमान वितरण हेतु भौगोलिक कारकों की विवेचना कीजिए। [2015]
या
एशिया में जनसंख्या के असमान वितरण के कारणों की विवेचना कीजिए। [2008, 10, 11, 16]
उत्तर
विश्व में जनसंख्या का वितरण समान नहीं है। सन् 1992 में विश्व की जनसंख्या 5.48 अरब थी जो 2013 ई० तक बढ़कर 7.125 अरब पहुँच गयी है। इस प्रकार विश्व जनसंख्या में 9.7 करोड़ मानव प्रतिवर्ष बढ़ जाते हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि सन् 2050 तक विश्व की जनसंख्या 9.10 अरब हो जाएगी। यह जनसंख्या 135 करोड़ वर्ग किमी क्षेत्रफल पर निवास करती है। विश्व में जनसंख्या का सामान्य घनत्व 93 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। किन्तु कहीं-कहीं पर यह 3,000 से 4,000 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से भी अधिक पाया जाता है, जबकि कुछ प्रदेशों में 5 व्यक्तियों से भी कम है।

इस प्रकार दो-तिहाई जनसंख्या कुल क्षेत्रफल के सातवें भाग पर निवास करती है। इससे पता चलता है कि विश्व की जनसंख्या का वितरण बड़ा ही असमान है। यदि जनसंख्या-वितरण का अध्ययन करें तो पता चलता है। कि एशिया महाद्वीप में विश्व की सबसे अधिक अर्थात् 60.8% जनसंख्या निवास करती है। यूरोप, अफ्रीका, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका महाद्वीपों में क्रमश: 12%, 13.9%, 7% तथा 5.8% जनसंख्या निवास करती है, जबकि ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में बहुत ही कम अर्थात् केवल 0.7 प्रतिशत जनसंख्या ही निवास करती है। निम्नांकित तालिकी विश्व में जनसंख्या वितरण को प्रकट करती है-
UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 4 Population Growth, Density, Distribution and Structure 1

यदि विश्व में जनसंख्या वृद्धि का अध्ययन किया जाये तो पता चलता है कि जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। ऐसे क्षेत्र, जो पहले जनशून्य थे, अब मानव ने उन निर्जन क्षेत्रों में भी अपने बसाव प्रारम्भ कर दिये हैं। मानव ने अपने जीवन-निर्वाह के साधनों की खोज में अब पर्वतीय, पठारी, मरुस्थलीय एवं ध्रुवीय प्रदेशों की ओर प्रयास तेज कर दिये हैं। विश्व की अधिकांश जनसंख्या थोड़े-से क्षेत्रफल में ही निवास करती है; अर्थात् विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या केवल तीन बड़े क्षेत्रों में केन्द्रित है –

  1. दक्षिणी-पूर्वी एशियाई मानसूनी देश
  2. पश्चिमी और मध्य यूरोपीय देश
  3. पूर्वी तथा मध्य

संयुक्त राज्य अमेरिका। विश्व का अधिकांश क्षेत्रफल कम जनसंख्या रखने वाला है। इन तथ्यों को जनसंख्या के महाद्वीपीय वितरण से समझा जा सकता है।

जनसंख्या का महाद्वीपीय वितरण
Continental Distribution of Population

एशियाई जनसमूह – एशिया महाद्वीप में विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या निवास करती है। विश्व के लगभग 60.8% अर्थात् लगभग 357 करोड़ लोग एशिया महाद्वीप में निवास करते हैं, परन्तु यहाँ पर जनसंख्या का वितरण बड़ा ही असमान है। चीन, जापान, कोरिया, फिलीपीन्स तथा वियतनाम देशों में कुल मिलाकर विश्व की लगभग 25% जनसंख्या निवास करती है। चीन की जनसंख्या 138.4 करोड़ (सन् 2016 में) हो गयी है। जापान में भी 12 करोड़ 81 लाख (लगभग) व्यक्ति निवास कर रहे हैं। दक्षिणी-पूर्वी एशिया में इस महाद्वीप की जनसंख्या को 75% भाग समुद्रतटीय क्षेत्रों तथा नदियों की घाटियों में निवास करता है।

भारतवर्ष में सन् 2011 की जनगणनानुसार 121.01 करोड़ व्यक्ति निवास कर रहे थे। इस प्रकार”एशिया महाद्वीप में बहुत थोड़े क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ घनी आबादी निवास करती है, जबकि अधिकांश क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ बहुत ही कम लोग निवास करते हैं।” एशिया महाद्वीप के कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व 550 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, जबकि कुछ भागों में 1 से 25 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ही है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में जनसंख्या का घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। मंगोलिया, सिक्यांग एवं तिब्बत का पठार तथा साइबेरिया के विस्तृत भाग और अरब का मरुस्थल विशेष रूप से कम जनसंख्या रखने वाले विस्तृत प्रदेश हैं।

एशिया महाद्वीप में जनसंख्या के सघन कुंज लगभग 10 से 40° उत्तरी अक्षांशों के मध्य पाये जाते हैं। यहाँ जनसंख्या का मुख्य आर्थिक आधार कृषि-कार्य हैं। मानसूनी जलवायु, सिंचाई की सुविधाएँ,
उपजाऊ कॉप मिट्टी के मैदान, परिश्रमी कृषक, सदावाहिनी नदियों से जल की उपलब्धि आदि के द्वारा वर्ष में 2 से 3 तक फसलों का उत्पादन किया जाता है। नदियों की घाटियाँ और डेल्टाई भागों में गेहूं एवं चावल उत्पादक क्षेत्र मानव समूहों से भरे पड़े हैं। इन देशों में 70% से 80% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है।

यूरोपीय जनसमूह – यूरोप महाद्वीप का जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में तृतीय स्थान है। यहाँ पर 727 करोड़ व्यक्ति निवास करते हैं। यहाँ जनसंख्या का घनत्व 101 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। विश्व की 12.8% जनसंख्या इस महाद्वीप में निवास करती है। जनसंख्या के समूह 40° उत्तरी अक्षांश से 60° उत्तरी अक्षांश के मध्य फैले हैं, किन्तु सबसे सघन बसाव 45° उत्तर से 55° उत्तरी अक्षांशों के बीच है जहाँ कोयला अधिक मात्रा में प्राप्त होता है। 50°उत्तरी अक्षांश के साथ जनसंख्या का जमाव पश्चिम में इंग्लिश चैनल से लेकर पूरब में यूक्रेन देश तक विस्तृत है।

इस क्षेत्र को ‘यूरोपीय जनसंख्या की धुरी’ कहा जाता है जो पश्चिम से पूरब की ओर सँकरी होती गयी है। वास्तव में यूरोप की जनसंख्या का आधार औद्योगिक-प्राविधिक विकास है। औद्योगिक विकास के साथ-साथ परिवहन के साधनों का विकास एवं विस्तार हुआ जिससे व्यापार को प्रश्रय मिला। यही कारण है कि यूरोप के जनसंख्या जमघट में नगरों का विशेष महत्त्व है, क्योंकि नगर ही सम्पर्क तथा आर्थिक कार्यों के केन्द्र बिन्दु हैं। इन देशों की 70%-85% जनसंख्या नगरीय केन्द्रों में निवास करती है।

उत्तरी अमेरिकी जनसमूह – एशिया एवं यूरोप महाद्वीप की अपेक्षा उत्तरी अमेरिका महाद्वीप में जनसंख्या कम है। यहाँ पर विश्व की लगभग 7% जनसंख्या निवास करती है तथा घनत्व 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। जनसंख्या का जमघट पूर्वी भाग में 100° पश्चिमी देशान्तर से पूर्व में 30° से 45° उत्तरी अक्षांशों के मध्य हुआ है। उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भाग में यूरोपियन प्रवासी सबसे पहले आकर बसे थे, परन्तु अब पश्चिमी भागों में कैलीफोर्निया में भी जनसंख्या अधिक हो गयी है। यहाँ पर औद्योगिक विकास के साथ-साथ कृषि भी आधुनिक ढंग से की जाती है।

उत्तरी अमेरिका में नदियों के बेसिन तथा उपजाऊ मैदान सघन बसे हैं। महान् झीलों का समीपवर्ती क्षेत्र, पूर्वी तटीय भाग, मध्यवर्ती क्षेत्र तथा मिसीसिपी का मैदान तथा कनाडा में झीलों एवं सेण्ट लारेंस के निकटवर्ती क्षेत्र सर्वाधिक जनसंख्या रखने वाले हैं। यहाँ पर जन-घनत्व 200 से 300 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। पश्चिमी द्वीप समूह, मध्य एवं पूर्वी मैक्सिको तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्यवर्ती भागों में जनसंख्या का घनत्व 50 से 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। ग्रीनलैण्ड, अलास्का, न्यूफाउण्डलैण्ड, रॉकी पर्वत तथा मरुस्थलीय प्रदेश कम जनसंख्या रखने वाले हैं, जहाँ जनसंख्या का घनत्व केवल 10 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। इन प्रदेशों में विषम जलवायु तथा आर्थिक विषमताएँ मानव-बसाव में बाधक बनी हुई हैं।

दक्षिणी अमेरिकी जनसमूह – जनसंख्या के दृष्टिकोण से यह महाद्वीप अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं है। क्षेत्रफल की तुलना में जनसंख्या बहुत ही कम (विश्व की लगभग 5.8%) है। जनसंख्या का घनत्व भी केवल 16 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है।असमतल धरातल, विषम जलवायु, सघन वन, शुष्क मरुस्थल तथा अनुपजाऊ भूमि के कारण यहाँ जनसंख्या कम मिलती है। यहाँ पर कुछ जनसंख्या समूहों के रूप में भी बसी है। प्रमुख रूप से मध्यवर्ती पूर्वी भागों में जनसंख्या के जमघट विकसित हुए हैं। इन तटीय भागों में उपजाऊ भूमि के कारण मानव-आवास संघन हुए हैं तथा जनसंख्या का घनत्व भी 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से अधिक मिलता है। इस महाद्वीप की सघन जनसंख्या कृषि क्षेत्रों, तटीय भागों, विशाल नगरों तथा राजधानियों में निवास करती है। दक्षिणी-पूर्वी ब्राजील, लाप्लाटा बेसिन, मध्य चिली, कैरेबियन तट तथा ओरीनीको डेल्टा घने बसे हुए क्षेत्र हैं।

इस महाद्वीप के उत्तरी तथा उत्तरी-पश्चिमी तटीय भागों में मध्यम जनसंख्या निवास करती है। यहाँ पर जनसंख्या का घनत्व 10 से 30 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। कोलम्बिया के पूर्वी तट, वेनेजुएला का उत्तरी भाग, पीरू का उत्तरी-पश्चिमी तट, इक्वेडोर, बोलीविया का मध्य भाग, अर्जेण्टाइना का मध्य भाग तथा पैराग्वे का मध्य भाग मध्यम जनसंख्या के क्षेत्रों में सम्मिलित किये जा सकते हैं। दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप के पर्वतीय क्षेत्रों, मरुस्थलों, अविकसित क्षेत्रों तथा दलदली भागों में बहुत ही कम जनसंख्या निवास करती है। पैन्टागोनिया एवं अटाकामा के शुष्क मरुस्थल, एण्डीज तथा बोलीविया के उच्च शिखरों पर विरल जनसंख्या पायी जाती है। यहाँ पर 40% क्षेत्र में न्यून जनसंख्या निवास करती है। इस महाद्वीप की 65% से 70% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है।

अफ्रीकी जनसमूह – अफ्रीका महाद्वीप में क्षेत्रफल की अपेक्षा जनसंख्या बहुत ही कम है। जनसंख्या के दृष्टिकोण से विश्व में एशिया एवं यूरोप महाद्वीप के बाद अफ्रीका का स्थान आता है। यहाँ 81.8 करोड़ मानव निवास करते हैं जो विश्व की कुल जनसंख्या का 13.9% भाग है तथा जनसंख्या घनत्व 20 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। अफ्रीका महाद्वीप को अधिकांश क्षेत्रफल ऊबड़-खाबड़, असमतल, पठारी, मरुस्थलीय तथा विषम जलवायु एवं कठोर पर्यावरण वाला होने के कारण मानव-आवास के अयोग्य है।

अफ्रीका महाद्वीप के उत्तरी – पूर्वी भागों में सघन जनसंख्या निवास करती है। इन भागों में जनसंख्या का घनत्व 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। नील नदी के डेल्टाई भागों में 500 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से भी अधिक मानव निवास करते हैं। इसके अतिरिक्त दक्षिणी अफ्रीकी संघ, तटीय मैदानी भाग तथा उत्तरपश्चिमी भागों में भी जनसंख्या का घनत्व अधिक है। अल्जीरिया के उत्तरी भाग, घाना, नाइजीरिया तथा मेडागास्कर में मध्यम जनसंख्या निवास करती है, जहाँ जन-घनत्व 50 से 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। इस महाद्वीप का 50% क्षेत्र न्यून जनसंख्या रखने वाला है, जहाँ जनसंख्या का घनत्व केवल 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। इनमें सहारा का मरुस्थल, कालाहारी मरुस्थल तथा अबीसीनिया का पठार सम्मिलित हैं।

ऑस्ट्रेलियाई जनसमूह – ऑस्ट्रेलिया विश्व में सबसे कम जनसंख्या रखने वाला महाद्वीप है। यहाँ विश्व की केवल 0.7% जनसंख्या ही निवास करती है। जनसंख्या का घनत्व भी 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। यहाँ पर यूरोपियन श्वेत लोगों का आधिक्य है जो सोना एवं अन्य बहुमूल्य खनिजों की खोज में आये थे।
दक्षिण – पूर्वी तथा दक्षिण-पश्चिमी एवं समुद्रतटीय भागों में मरे-डार्लिंग एवं स्वॉन नदी का डेल्टा, मेलबोर्न तथा सिडनी के निकटवर्ती भागों में जनसंख्या का आधिक्य है। इन भागों में जनसंख्या का घनत्व 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। पूर्वी ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण-पूर्वी तट, पश्चिमी तथा दक्षिणी तट मध्यम जनसंख्या के क्षेत्र हैं। यहाँ औसत घनत्व 30 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी मिलता है। तस्मानिया द्वीप भी इसी श्रेणी में आता है। पर्वतीय, पठारी तथा मरुस्थलीय क्षेत्रों में विरल जनसंख्या है जहाँ जन-घनत्व केवल 1 से 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है।

प्रश्न 3
विश्व में मानव-निवास क्षेत्रों की व्याख्या कीजिए।
या
“विश्व के कुछ भाग घने बसे हैं और अधिकांश भाग जनशून्य हैं।” इस कथन की सत्यता की परख कीजिए।
उत्तर

विश्व में जनसंख्या-वितरण
Population Distribution in the World

विश्व-मानचित्र पर यदि हम जनसंख्या के वितरण पर दृष्टिपात करें तो जनसंख्या-वितरण की असमानता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या विस्फोट, तो कुछ क्षेत्र जनसंख्याविहीन दृष्टिगोचर होते हैं। विश्व की लगभग 60.8% जनसंख्या एशिया महाद्वीप में, 12% यूरोप महाद्वीप में, 7% उत्तरी अमेरिका महाद्वीप में, 13.9% अफ्रीका महाद्वीप में, 5.8% जनसंख्या दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में तथा 0.7% ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों में निवास करती है। उपर्युक्त आँकड़ों में सबसे अधिक आकर्षित करने वाले इस तथ्य से पता चलता है कि विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या इसके क्षेत्रफल के सातवें भाग पर ही केन्द्रित है। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि विश्व के कुछ भाग अत्यन्त घने बसे हुए हैं और अधिकांश भाग जनशून्य हैं अथवा बहुत ही कम जनसंख्या वाले हैं।

विश्व की अधिकांश जनसंख्या तीन बसे हुए क्षेत्रों में केन्द्रित है। जनसंख्या के इन जमघटों का समूह उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। मानव-बसाव के आधार पर विश्व को इन क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
(क) सघन बसे हुए क्षेत्र Densed Region
विश्व के निम्नलिखित क्षेत्र जनसंख्या के घने बसे हुए क्षेत्रों के अन्तर्गत आते हैं –

1. पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के मानव समूह – इस क्षेत्र में विश्व की 60% जनसंख्या निवास करती है। दक्षिण-पूर्वी एशिया के बसे हुए क्षेत्रों के अन्तर्गत भारत में गंगा की निम्न घाटी एवं डेल्टाई क्षेत्र, चीन में ह्वांग्हो, यांगटिसीक्यांग और जेचुआन बेसिन (रेड बेसिन), जापान में पूर्वी समुद्रतटीय मैदानी क्षेत्र, पाकिस्तान में सिंचित क्षेत्र, बांग्लादेश तथा इण्डोनेशिया सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र में जनसंख्या का संकेन्द्रण पूर्णत: कृषि-कार्यों पर आधारित है। इस क्षेत्र की लगभग 70से भी अधिक जनसंख्या की आजीविका को साधन कृषि-कार्यों पर ही निर्भर करता है। एशिया के इस विशाल जन-समूह को ‘कृषि सभ्यता’ या ‘चावल सभ्यता’ के नाम से भी पुकारा जाता है, क्योंकि यहाँ का मुख्य धन्धा कृषि एवं प्रमुख फसल चावल है।

2. उत्तर-पश्चिमी यूरोप के मानव समूह – उत्तर-पश्चिमी यूरोपीय देश भी बहुत सघन बसे हुए हैं। इस क्षेत्र को यूरोप की जनसंख्या की धुरी की संज्ञा दी जाती है। इस क्षेत्र में ब्रिटेन से लेकर रूस के डोनेत्ज बेसिन तक जनसंख्या के सघन संकेन्द्रण पाये जाते हैं। इस क्षेत्र के अन्तर्गत विश्व की लगभग 20% जनसंख्या निकस करती है। इसमें रूस, ब्रिटेन, जर्मनी, हॉलैण्ड, बेल्जियम, फ्रांस, पोलैण्ड, इटली तथा स्पेन आदि देश सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र के जनसमूह का मुख्य आधार उद्योग, वाणिज्य तथा व्यापार है।

3. उत्तरी अमेरिका के उत्तर-पूर्वी मानव समूह – उत्तरी अमेरिका को यह जनसमूह महान् झीलों के पूर्वी क्षेत्र में 30° उत्तरी अक्षांश से 45° उत्तरी अक्षांश तथा 100° पश्चिमी देशान्तर के पूर्व तक विस्तृत है। यहाँ इस महाद्वीप की लगभग 85% जनसंख्या निवास करती है। इस क्षेत्र में जनसंख्या का बसाव मिसीसीपी नदी के पूर्व में, ओहियो नदी के उत्तर में तथा सेण्ट लारेंस नदी की घाटी में केन्द्रित है। इस जनसमूह में विश्व की केवल 5% जनसंख्या पायी जाती है। इस क्षेत्र में संयुक्त राज्य की कृषि-पेटियाँ स्थित हैं। अधिकांश जनसंख्या विस्तृत एवं आधुनिक यन्त्रों से सुसज्जित कृषि-फार्मों तथा औद्योगिक केन्द्रों में बसी हुई है।

(ख) विरल बसे हुए क्षेत्र Rared Region
वास्तव में विश्व का 70% क्षेत्र अति विरल जनसंख्या वाला है जिसमें विश्व की केवल 5% जनसंख्या ही निवास करती है। इन क्षेत्रों की विषम तथा कठोर परिस्थितियाँ; जैसे- कठोर जलवायु, विषम धरातल, मरुस्थलीय क्षेत्रों का विस्तार, पर्वत तथा पठार आदि संरचना पायी जाती हैं। बिना बसे हुए क्षेत्रों के अन्तर्गत विश्व के निम्नलिखित क्षेत्र सम्मिलित हैं –

1. अत्यधिक ठण्डे क्षेत्र – इस क्षेत्र का विस्तार उत्तर में आर्कटिक महासागर तथा दक्षिण में अण्टार्कटिक महाद्वीप के समीपवर्ती क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके अन्तर्गत ग्रीनलैण्ड, अण्टार्कटिका, उत्तरी साइबेरिया, उत्तरी कनाडा तथा अलास्का आदि देश सम्मिलित हैं। इन क्षेत्रों में कठोर शीत ऋतु, न्यूनतम तापमान, हिम एवं पाले की कठोरता के फलस्वरूप अत्यन्त अल्प जनसंख्या निवास करती है। टुण्ड्रा प्रदेश में 60° उत्तरी अक्षांश के उत्तर में जन-विन्यास केवल नाममात्र को ही पाया जाता है। आन्तरिक महाद्वीपीय भागों में बर्फ से ढकी पर्वत श्रेणियाँ भी जनसंख्यारहित क्षेत्र हैं।

2. मध्य अक्षांशीय उष्ण मरुस्थलीय क्षेत्र – इन क्षेत्रों में बालू की प्रधानता, शुष्क एवं उष्ण जलवायु, भीषण तापमान तथा प्राकृतिक संसाधनों का अभाव मानव-बसाव में बाधक हैं। इन क्षेत्रों में जल की कमी होने के कारण कृषि व्यवसाय तथा अन्य आर्थिक कार्य विकसित नहीं हो पाये हैं। अफ्रीका महाद्वीप में सहारा व कालाहारी के उष्ण मरुस्थल; एशिया महाद्वीप में गोबी, थार, अरब, तुर्किस्तान व मंगोलिया; ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप का मरुस्थल; उत्तरी अमेरिका महाद्वीप के संयुक्त राज्य अमेरिका में ग्रेट बेसिन व आन्तरिक पठार तथा दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में पेंटागोनिया तथा अटाकामा के मरुस्थल इन क्षेत्रों के अन्तर्गत आते हैं। जल की कमी, शुष्कता तथा उष्णता के कारण ये क्षेत्र प्रायः मानव बसाव के योग्य नहीं हैं; अत: यहाँ पर बहुत-ही कम जनसंख्या निवास करती है।

3. विषुवतरेखीय उष्णार्द्र वन प्रदेश – ये क्षेत्र उच्च तापमान, अत्यधिक वर्षा, विषैली मक्खी एवं मच्छर तथा संक्रामक महामारियों जैसी विषम परिस्थितियों के कारण अल्प जनसंख्या रखने वाले हैं। इस क्षेत्र के अन्तर्गत दक्षिणी अमेरिका के अमेजन तथा अफ्रीका के कांगो-बेसिन के सघन वन क्षेत्र आते हैं। इन क्षेत्रों में भूमध्यरेखीय उष्ण एवं आर्द्र जलवायु के कारण सघन वनस्पति पायी जाती है। यह जलवायु मानव-बसाव के अनुकूल नहीं है; अतः यहाँ जनसंख्या का बसाव बहुत कम है।

4. ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी व पठारी क्षेत्र – उच्च पर्वत तथा पठारी क्षेत्र भी कम बसे हुए भागों के अन्तर्गत आते हैं। ये क्षेत्र ऊबड़-खाबड़ धरातल, कठोर एवं विषम जलवायु, कृषि-योग्य भूमि की कमी, यातायात के साधनों का अभाव, उद्योग-धन्धों की कमी आदि के कारण जन-शून्य हो गये हैं। विश्व में हिमालय, रॉकी, आल्प्स तथा एण्डीज पर्वतों के भू-भाग कम बसे हुए हैं। एशिया के मध्यवर्ती पर्वतीय तथा पठारी क्षेत्रों को इसी कारण ‘एशिया का मृत हृदय’ कहकर पुकारा जाता है।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 4 Population : Growth, Density, Distribution and Structure

प्रश्न 4
जनसंख्या की विभिन्न विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जनसंख्या के भौगोलिक अध्ययन में निम्नलिखित तथ्य सम्मिलित किये जाते हैं –

  1. संख्या
  2. घनत्व एवं
  3. वृद्धि।

परन्तु केवल इन्हीं तथ्यों को ही जान लेना पर्याप्त नहीं है, वरन् यह जानना भी आवश्यक है कि किसी प्रदेश की जनसंख्या में मनुष्यों का

  1. स्वास्थ्य कैसा है?
  2. उनमें लिंग-अनुपात (स्त्री-पुरुष अनुपात) क्या है?
  3. उनकी आयु-संरचना अर्थात् जनसंख्या का आयु- संघटन क्या है?
  4. विभिन्न व्यवसायों का स्तर कैसा है?
  5. ग्रामीण एवं नगरीयं जनसंख्या को अनुपात क्या है? तथा
  6. शिक्षा, विज्ञान एवं तकनीकी प्रगति किस अवस्था तक हुई है?

उपर्युक्त सभी तथ्यों के सम्मिलित अध्ययन से किसी देश की जनसंख्या की वास्तविक शक्ति और उन्नति की क्षमता को ठीक-ठीक अनुमान लगाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेश के किसी देश में उद्योगों तथा वैज्ञानिक संस्थानों में काम करने वाले 1,000 मानव में तथा उष्ण कटिबन्धीय प्रदेश के किसी देश में निवास करने वाले 1,000 मानव में, दोनों की संख्या तो बराबर है, परन्तु उनकी उत्पादन क्षमता में बहुत भारी अन्तर हो सकता है। इसीलिए जनसंख्या की विभिन्न विशेषताओं को जान लेना अति आवश्यक है, जिनका विवरण निम्नलिखित है –

आयु-संरचना (Age-composition) – जनसंख्या की क्षमता और शक्ति के अध्ययन में सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता उसकी आयु-संरचना है। इसके अन्तर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि किसी देश की जनसंख्या में विभिन्न आयु के व्यक्तियों की संख्या कितने प्रतिशत है; अर्थात् उसमें बच्चों, जवानों और बूढ़ों की संख्या कितनी है? इसके द्वारा अग्रलिखित तीन बातों का पता चलता है –

  1. किसी राष्ट्र की वास्तविक और भावी श्रम-शक्ति कितनी है?
  2. सैन्य महत्त्व की दृष्टि से सैनिक मानव-शक्ति कितनी है?
  3. भविष्य में कितने मानवों के लिए शिक्षा और सहायता की योजना बनाई जाए। सरकारी कार्यालयों, सुरक्षा मन्त्रालयों, योजना समितियों और रोजगार देने वालों को इस प्रकार की जानकारी आवश्यक होती है।

आयु-संरचना के विचार से जनसंख्या के निम्नलिखित चार बड़े वर्ग होते हैं –

  1. बाल्यावस्था-15 वर्ष से कम,
  2. किशोरावस्था-15 से 20 वर्ष तक,
  3. सामान्य श्रमिक अवस्था—20 से 65 वर्ष तक तथा
  4. उत्तरावस्था अथवा वृद्धावस्था-65 वर्ष से अधिक।

स्टाम्प ने मानव की आयु के केवल तीन खण्ड बताये हैं। उन्होंने बालक और किशोर दोनों अवस्थाओं को एक साथ मिलाकर 0 से 19 वर्ष तक पहला खण्ड,20 से 64 वर्ष तक दूसरा खण्ड और 65 वर्ष से ऊपर तीसरा खण्ड माना है। इस गणना के आधार पर स्टाम्प ने विश्व को आयु-संरचना के दृष्टिकोण से निम्नलिखित चार बड़े वर्गों में बाँटा है –

  1. प्रथम वर्ग में उत्तर-पश्चिमी यूरोपीय देश, ब्रिटेन, बेल्जियम, फ्रांस, डेनमार्क, नीदरलैण्ड आदि देश हैं जिनमें उत्तरावस्था और श्रमिक आयु के मनुष्यों की संख्या बहुत अधिक है तथा बच्चों की संख्या कम है। जापान भी इसी वर्ग में सम्मिलित है।
  2. द्वितीय वर्ग में एशियाई और अफ्रीकी देश आते हैं जिनमें उच्च जन्म-दर और निम्न प्रत्याशित आयु है, जिसके कारण जनसंख्या में बच्चों की संख्या अधिक है और वृद्धि कम।
  3. तीसरे वर्ग में दक्षिणी अमेरिकी देश सम्मिलित हैं जिनकी संख्या में बच्चे अधिक हैं।
  4. चौथे वर्ग में मध्य अक्षांशों में स्थित नये बसे हुए देश संयुक्त राज्य, ऑस्ट्रेलिया आदि हैं। जिनमें पश्चिमी यूरोप के सघन देशों की अपेक्षा छोटी उम्र के बच्चे अधिक हैं और वृद्धों की संख्या कुछ कम है।

जनसंख्या के आयु-संरचना की दृष्टि से पिछले 70 वर्षों में काफी परिवर्तन हुए हैं। अब से 100 वर्ष पूर्व ब्रिटेन में चिकित्सा विज्ञान की उतनी उन्नति नहीं हुई थी। उस समय ब्रिटेन में बच्चों की संख्या अधिक थी तथा वृद्धों की कम। द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् ब्रिटेन में प्रत्याशित आयु में वृद्धि हो गयी, तब 35 वर्ष से 40 वर्ष की आयु वाले स्त्री-पुरुषों की संख्या बढ़ गयी थी। सन् 1960 में ब्रिटेन में 20 वर्ष से 64 वर्ष की आयु के व्यक्तियों की संख्या लगभग 60% हो गयी थी। बेल्जियम में श्रमिक आयु के व्यक्ति 61% के लगभग हैं, जबकि भारत में यह जनसंख्या केवल 49% है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में सन् 1850 में 15 वर्ष तक के बच्चों की संख्या 42% थी जो सन् 1950 में 27% रह गयी, परन्तु सन् 1950 के बाद से संयुक्त राज्य अमेरिका में जन्म-दर में कुछ वृद्धि हुई है, जिसके फलस्वरूप 1970 ई० में वहाँ बच्चों की संख्या लगभग 31% थी।
एशियाई देशों में जैसे भारत, चीन, जापान, श्रीलंका आदि; दक्षिणी अमेरिकी तथा अफ्रीकी देशों में कम आयु की जनसंख्या अधिक है। इनमें 35% से 40% जनसंख्या 15 वर्ष से कम आयु की है। इन देशों में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा क्षेत्रों में इतनी प्रगति नहीं हुई है जितनी पश्चिमी यूरोपीय देशों एवं संयुक्त राज्य में हुई है।

लिंगानुपात (Sex Ratio) – जनसंख्या में स्त्री-पुरुष अनुपात से जनसंख्या की शारीरिक शक्ति का अनुमान होता है। भारत में सन् 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति 1,000 पुरुषों के पीछे 940 स्त्रियाँ हैं, जब कि 1981-1991 के दशक में यह संख्या 927 थी, परन्तु राज्यों में यह अन्तर अलग-अलग है। पंजाब में स्त्रियों की संख्या 893, पश्चिमी बंगाल में 947, उत्तर प्रदेश में 908, तमिलनाडु में 995 और केरल में 1,084 है। इस स्थिति की एक व्याख्या यह है कि अधिकांश व्यक्ति लड़का चाहते हैं और लड़की की मन से देखभाल करना पसन्द नहीं करते हैं।

ब्रिटेन में प्रति 1,000 पुरुषों के पीछे लगभग 1,090 स्त्रियाँ हैं। जिन देशों की जनसंख्या विदेशों को प्रवास कर गयी है; जैसे- इटली, नार्वे आदि, उन देशों में स्त्रियों की जनसंख्या अधिक है। इसके विपरीत जिन देशों में विदेशों से जनसंख्या को आवास हुआ है; जैसे-कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि में, वहाँ पुरुषों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है। इसका प्रमुख कारण यह है कि प्रवास करने वाली जनसंख्या में पुरुषों की संख्या अधिक होती है, जबकि स्त्रियाँ कम होती हैं।

साक्षरता (Literacy) – जनसंख्या में साक्षरता से व्यक्ति के मानसिक स्तर का अनुमान होता है। यूरोप में साक्षरता का प्रतिशत बहुत अधिक है, जबकि एशिया में यह अपेक्षाकृत काफी कम है। भारत में स्त्री और पुरुषों में साक्षरता के प्रतिशत में बहुत अन्तर है। पुरुषों में साक्षरता का स्तर 2011 ई० की जनगणना के आधार पर 82.14% है, जबकि स्त्रियों में यह 65.46% प्रतिशत है। केरल भारत का सबसे अधिक साक्षर प्रदेश है। यहाँ पर 93.91 प्रतिशत जनसंख्या साक्षर है। साक्षरता की सबसे कम दर बिहार में है, जहाँ केवल 63.82 प्रतिशत व्यक्ति ही साक्षर हैं।

सामाजिक एवं आर्थिक विशेषताएँ (Social and Economic Characteristics) – इस प्रकार की विशेषताओं के अन्तर्गत सामाजिक संगठन, शिक्षा का स्तर, व्यावसायिक स्थिति, धार्मिक विश्वास, ग्रामीण एवं नगरीय बस्तियाँ, आर्थिक उत्पादन आदि का विचार किया जाता है।
यूरोप, संयुक्त राज्य, रूस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड एवं जापान में तकनीकी-वैज्ञानिक शिक्षा का स्तर बहुत ऊँचा है, जबकि एशियाई देशों में यह स्तर नीचा है तथा अफ्रीकी देशों में और भी अधिक कम है। जिन देशों में वैज्ञानिक प्रगति अधिक है उनमें यान्त्रिक कृषि, निर्माण उद्योग एवं व्यापार, परिवहन आदि कार्यों का विकास अधिक हुआ है।

ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या के विचार से विश्व की 75% जनसंख्या ऐसे देशों में रहती है, जहाँ लोग कृषि कार्य करते हुए ग्रामों में निवास करते हैं। सबसे अधिक नगरीय बस्तियाँ इन चार प्रदेशों में विकसित हुई हैं-

  1. उत्तर-पश्चिमी यूरोप,
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाडा,
  3. ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड तथा
  4. दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप का दक्षिणी भाग।

भारत में 26%, जापान में 60%, संयुक्त राज्य में 82% तथा ब्रिटेन में 92% व्यक्ति नगरीय बस्तियों में निवास करते हैं। वास्तव में नगरीकरण का प्रचार यूरोप की औद्योगिक क्रान्ति से आरम्भ हुआ है। यूरोपीय देशों से प्रवासी बहुत-से नये बसे हुए देशों को गये हैं और वहाँ यूरोपीय सभ्यता के प्रचार-प्रसार द्वारा नगरीय बस्तियों को विकसित किया है। जापान में औद्योगिक क्रान्ति के श्रीगणेश द्वारा नगरीय जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। टोकियो विश्व का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। इसके बाद साओपालो एवं न्यूयॉर्क नगरों का स्थान आता है। एशियाई एवं अफ्रीकी देशों में अधिकांश जनसंख्या ग्रामों में निवास करती है। भारतवर्ष में सन् 2011 की जनगणना के अनुसार 70% जनसंख्या ग्रामों में निबास कर रही थी।

प्रश्न 5
नगरीकरण क्या है? भारत में नगरीकरण की समस्याओं और उनके समाधान की विवेचना कीजिए। [2007,14,16]
या
नगरीकरण की प्रमुख समस्याओं का विवरण दीजिए तथा उनके समाधान हेतु उपायों को सुझाइए। [2012,13]
या
नगरीकरण क्या है? बढ़ते नगरीकरण के कारणों को बताइए। [2015]
उत्तर

नगरीकरण का अर्थ

नगरीकरण से आशय व्यक्तियों द्वारा नगरीय संस्कृति को स्वीकारना है। नगरीकरण की प्रक्रिया नगर से सम्बन्धित है। नगर सामाजिक विभिन्नताओं का वह समुदाय है जहाँ द्वितीयक एवं तृतीयक समूहों-उद्योग और व्यापार, सघन जनसंख्या और वैयक्तिक सम्बन्धों की प्रधानता हो। नगरीकरण की प्रक्रिया द्वारा गाँव धीरे-धीरे कस्बे, कस्बे से नगर में परिवर्तित हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में ग्रामीण बस्ती का प्राथमिक भूमि उपयोग; द्वितीयक एवं तृतीयक कार्यों में परिवर्तित हो जाता है। श्री बर्गेल ग्रामों के नगरीय क्षेत्र में रूपान्तरित होने की प्रक्रिया को ही नगरीकरण कहते हैं।
विभिन्न विद्वानों ने नगरीकरण को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है –

  1. ग्रिफिथ टेलर ने ग्रामों से नगरों की ओर जनसंख्या की अभिमुखता” को नगरीकरण की संज्ञा दी है।
  2. जी०टी० ट्विार्थ के अनुसार, “कुल जनसंख्या में नगरीय स्थानों में रहने वाली जनसंख्या के अनुपात को नगरीकरण का स्तर कहा जाता है।”

नगरीकरण के कारण उत्पन्न समस्याएँ एवं उनका समाधान

  1. अपर्याप्त आधारभूत ढाँचा और सेवाएँ
  2. परिवहन की असुविधा
  3. अपराधों में वृद्धि
  4. आवास की कमी
  5. औद्योगीकरण
  6. द्वितीयक समूहों की प्रधानता
  7. वर्गीय व्यवस्था का उदय
  8. अनौपचारिक सामाजिक नियन्त्रण का अभाव
  9. अवैयक्तिक सम्बन्धों की अधिकता
  10. भौतिकवादी विचारधारा का विकास
  11. पारम्परिक सामाजिक मूल्यों की प्रभावहीनता

1. अपर्याप्त आधारभूत ढाँचा और सेवाएँ यद्यपि नगरीकरण की तीव्रता से विकास की गति प्रकट होती है, परन्तु अति तीव्र नगरीकरण से नगरों में नगरीय सेवाओं और सुविधाओं का अभाव हो जाता है। यह सर्वविदित तथ्य है कि दस-लक्षीय महानगरों की 30% से 40% तक जनसंख्या गन्दी बस्तियों (Slums) में निवास करती रही है। नगरों में ऐसी आवासविहीन जनसंख्या बहुत अधिक है जिसका जीवन-स्तर बहुत ही निम्न होता है।

एक अनुमान के अनुसार नगरीय केन्द्रों में केवल 35% घरों में विद्युत की सुविधा है, 33% घरों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध है और 68% घरों में शौच की सुविधा उपलब्ध है। अत: नगरीय जनसंख्या में वृद्धि के आधार पर नगरीय प्रशासन के आधारभूत ढाँचे और सेवाओं में विस्तार करना चाहिए। इसके लिए वित्तीय साधनों की पूर्ति नगरीय सेवाओं के बदले लगाए गए करों और केन्द्र सरकार द्वारा अनुदानों के द्वारा की जा सकती है।

2. परिवहन की असुविधा नगरों में जनसंख्या की भीड़ बढ़ने से परिवहन की समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं, परिवहन के साधन कम पड़ने लगे हैं तथा परिवहन मार्ग संकुचित हो गए हैं जिससे दुर्घटनाओं में वृद्धि हो रही है।

3. अपराधों में वृद्धि आज नगरों में अपराधों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। चोरी, डकैती, हत्या, जुआखोरी, शराबखोरी, बलात्कार, धोखाधड़ी आदि का कारण तेजी से बढ़ती हुई नगरीय जनसंख्या ही है।

4. आवास की कमी जितनी तेजी से नगरों की जनसंख्या बढ़ रही है, उतनी तेजी से आवासों का निर्माण नहीं हो पा रहा है; अतः नगरों में आवासों की भारी कमी हो गई है।
नगरों में बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण परिवहन एवं आवास की समस्याएँ जटिल रूप धारण करती जा रही हैं। इसी के कारण नगरों में अपराधों की संख्या में भी वृद्धि होती है। अतः नगरों में परिवहन एवं आवास समस्याओं को दूर करने के लिए नगर मास्टर प्लान बनाया जाना चाहिए, साथ ही भूमि उपयोग नियोजन और भूमि क्रय-विक्रय नीति बनाई जानी चाहिए। अपराधों को रोकने के लिए सुरक्षा और जनशिक्षा का प्रसार महत्त्वपूर्ण उपाय होगा।

5. औद्योगीकरण नमरों का विकास हो जाने के कारण औद्योगीकरण की प्रक्रिया में तीव्रती आई है। प्राचीन उद्योग-धन्धे समाप्त हो गए हैं। नवीन उद्योग-धन्धों के विकास के कारण भारत में सामाजिक संगठन में परिवर्तन हुए हैं। पूँजीपति एवं श्रमिक वर्ग के बीच संघर्ष बढ़ गए हैं। स्त्रियों की आत्मनिर्भरता में वृद्धि हुई है। व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास करने लगे हैं। कारखानों की स्थापना से गन्दी बस्तियों की समस्याओं एवं हड़तालों आदि के कारण जीवन में अनिश्चितता आ गई है।

6. द्वितीयक समूहों की प्रधानता नगरीकरण के कारण भारत में परिवार, पड़ोस आदि जैसे प्राथमिक समूह प्रभावहीन होते जा रहे हैं। वहाँ पर समितियों, संस्थाओं एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों के द्वारा
ही सामाजिक सम्बन्धों की स्थापना की जा सकती है। इस प्रकार के सम्बन्धों में अवैयक्तिकता की भावना पायी जाती है।

7. वर्गीय व्यवस्था का उदय नगरीकरण के प्रभाव से समाज में वर्गों का संगठन विभिन्न आधारों पर हो रहा है। एक वर्ग के व्यक्ति केवल अपने ही वर्ग के सदस्यों के साथ सम्बन्धों की स्थापना करते हैं। और उन्हीं का हित चाहते हैं। ये वर्ग प्रायः व्यवसायों के आधार पर बन गए हैं। इसीलिए आज अध्यापक वर्ग, श्रमिक वर्ग, लिपिक वर्ग, कर्मचारी वर्ग, अधिकारी वर्ग आदि के नाम सुने जाते हैं। इन वर्गों ने समाज को विभिन्न टुकड़ों में विभाजित कर दिया है।

वर्गीय व्यवस्था में परस्पर सामाजिक एकता की भावना के विकास हेतु सामूहिक प्रयास किए जाने चाहिए। गन्दी बस्तियों की समस्याओं हेतु नगरों से पर्याप्त दूरी पर निर्बल वर्गीय आवासों का प्रबन्धन सरकारी स्तर पर किया जाना उपयुक्त होगा। इससे वर्गीय असन्तोष एवं समस्याओं को दूर किया जा सकता है।

8. अनौपचारिक सामाजिक नियन्त्रण का अभाव नगरीकरण के कारण व्यक्तिवादी भावना का जन्म हुआ है। इस भावना के परिणामस्वरूप प्राचीन सामाजिक रीति-रिवाज प्रभावहीन हो गए हैं। प्राचीन समय में लोग समाज के नीति-रिवाज, पारिवारिक प्रथाओं तथा परम्पराओं के अनुसार काम करते थे, परन्तु नगरीकरण द्वारा उत्पन्न वैयक्तिक भावना के कारण सामाजिक नियन्त्रण के अनौपचारिक साधन (जैसे–परिवार, प्रथाएँ, परम्पराएँ, रूढ़ियाँ, धर्म इत्यादि) प्रभावहीन हो गए हैं; अतः इन साधनों को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए।

9. अवैयक्तिक सम्बन्धों की अधिकता नगरीकरण के कारण नगरों में जनसंख्या की तीव्र वृद्धि हुई है। जनसंख्या की इस वृद्धि के कारण लोगों में व्यक्तिगत सम्बन्धों में कमी आ गई है। इसी आधार पर आर० एन० मोरिस ने लिखा है-“जैसे-जैसे नगर विस्तृत होते जाते हैं, वैसे-वैसे इस बात की सम्भावना भी कम हो जाती है कि दो व्यक्ति एक-दूसरे को जानेंगे। नगरों में सामाजिक सम्पर्क अवैयक्तिक, क्षणिक, अनावश्यक तथा खण्डात्मक होता है। अत: नगरों में जनसंख्या वृद्धि को नियन्त्रित करने हेतु विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए।

10. भौतिकवादी विचारधारा का विकास नगरीकरण का विकास नागरिकों के दृष्टिकोण में भारी परिवर्तन लाया है। अभी तक भारत में अध्यात्मवाद की भावना पर बल दिया जाता था, परन्तु नगरों का विकास हो जाने से लोगों में भौतिकवाद की भावना का जन्म हुआ है। इस भौतिकवाद के कारण व्यक्ति का दृष्टिकोण उपयोगितावादी बन गया है। वह प्रत्येक वस्तु अथवा विचारधारा को उसी समय ग्रहण करता है जबकि वह उसके लिए भौतिक दृष्टि से उपयोगी हो या उसकी आर्थिक स्थिति में वृद्धि करती हो। इस भौतिकवादी दृष्टिकोण के कारण भारत में वैयक्तिक सम्बन्धों का अभाव पाया जाता है।

11. पारम्परिक सामाजिक मूल्यों की प्रभावहीनता नगरीकरण के कारण व्यक्तिवादी विचारधारा का विकास हुआ है। इस विचारधारा के कारण प्राचीन सामाजिक मूल्यों का ह्रास होने लगा है। प्राचीन समय में बड़े-बुजुर्गों का आदर, तीर्थ-स्थानों की पवित्रता, धर्म के प्रति आस्था, ब्राह्मण, गाय व गंगा नदी के प्रति श्रद्धा की मान्यता थी, परिवार की सामाजिक स्थिति का ध्यान रखा जाता था। परन्तु नगरीकरण का विकास हो जाने से प्राचीन सामाजिक मूल्य प्रभावहीन हो गए हैं। उनका स्थान भौतिकवाद तथा व्यक्तिवाद ने ले लिया है। अत: लोगों में नैतिक शिक्षा और मूल्यों के विकास पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

नगरीकरण से उत्पन्न उपर्युक्त समस्याओं और उनके समाधान की विवेचना से स्पष्ट है कि जब तक नगर और ग्राम दोनों के विकास पर समान स्तर पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तब तक इनमें उत्पन्न समस्याओं का समाधान कठिन है। वर्तमान समय में ग्रामों में विकास के प्रति उदासीनता के कारण ग्रामीण जनसंख्या नगरों की ओर पलायन कर रही है जिससे नगरों में जनसंख्या दबाव के कारण और ग्रामों से जनसंख्या प्रवास के कारण सामाजिक व आर्थिक अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए नगरीय समस्याओं को रोकने के लिए ग्रामों का विकास सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समाधान है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में जनसंख्या के असमान वितरण के लिए उत्तरदायी दो कारकों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर
ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप सबसे विरल आबाद महाद्वीप है, जहाँ जनसंख्या का औसत घनत्व 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से भी कम है। किन्तु इस महाद्वीप पर जनसंख्या का वितरण बहुत विषम है। दक्षिण-पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्वी समुद्रतटीय भागों में जनसंख्या का घनत्व 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, जब कि पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के मरुस्थलीय भागों में औसत जनघनत्व 1 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से भी कम है। इस विषम वितरण के अग्रलिखित कारण हैं –

  1. महाद्वीप के विशाल क्षेत्र पर मरुस्थल का विस्तार है, जहाँ कठोर जलवायु के कारण आबादी का घनत्व बहुत कम है।
  2. पूर्वी तथा दक्षिणी समुद्रतटीय भागों में पर्याप्त वर्षा, नदियों द्वारा जल की उपलब्धता, निचली पहाड़ियों के कारण मनोरम जलवायु, यातायात आदि सुविधाएँ प्राप्त होने के कारण घनी आबादी मिलती है।

प्रश्न 2
विश्व में अधिक जनसंख्या घनत्व वाले तीन क्षेत्रों का सकारण विवरण दीजिए। [2010]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 के अन्तर्गत (क) सघन बसे हुए क्षेत्र शीर्षक देखें।

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प्रश्न 3
नगरीकरण वृद्धि के दो प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए। (2008, 15)
उत्तर
नगरीकरण वृद्धि के दो प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. ग्रामीण जनसंख्या का प्रवास वर्तमान समय में ग्रामीण जनसंख्या नगरों की ओर तेजी से प्रवास कर रही है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन के लिए पर्याप्त आवश्यक सुविधाओं का अभाव है।
  2. असन्तुलित विकास ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास के असन्तुलन के कारण ग्रामीण क्षेत्र के लोग जीवनयापन के लिए रोजगार और अन्य आधारभूत सेवाओं के लिए नगरों में चले जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के लिए उपलब्ध कृषि विकास पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कुटीर और लघु उद्योगों का भी ग्रामों में विकास नहीं किया गया है। इसलिए इस असन्तुलित
    आर्थिक विकास के कारण नगरीकरण में वृद्धि होती रहती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
जनसंख्या घनत्व से क्या तात्पर्य है? [2009, 10]
उत्तर
जनसंख्या के घनत्व का आशय किसी क्षेत्र में निवास करने वाली जनसंख्या की सघनता से है। जनसंख्या के घनत्व को प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या के रूप में मापा जाता है।

प्रश्न 2
पृथ्वीतल पर सभी आर्थिक व्यवसाय किसके द्वारा सम्पन्न होते हैं?
उत्तर
पृथ्वीतल पर सभी आर्थिक व्यवसाय मानव द्वारा सम्पन्न होते हैं।

प्रश्न 3
भूमध्यसागरीय भागों में मानव-बस्तियों के विकास के क्या कारण हैं?
उत्तर
भूमध्यसागरीय भागों में उसके चारों ओर मानव-बस्तियों के विकास के कारण हैं- मछलियों की प्राप्ति, सम जलवायु, समतल मैदानी भूमि जिसमें कृषि, परिवहन एवं मानव के आवासों का तीव्र गति से विकास हुआ है।

प्रश्न 4
वर्ष 2011 के अनुसार पृथ्वीतल पर कितनी जनसंख्या है?
उत्तर
वर्ष 2011 के अनुसार पृथ्वीतल पर 6.90 अरब जनसंख्या है।

प्रश्न 5
पृथ्वी पर जनसंख्या वितरण की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
उत्तर
पृथ्वी पर जनसंख्या क्तिरण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भूतल पर मनुष्यों का निवास असमान है।

प्रश्न 6
लिंगानुपात से क्या तात्पर्य है? [2009, 12, 15]
या
लिंग-अनुपात की व्याख्या कीजिए। [2013, 14]
उत्तर
लिंगानुपात या स्त्री-पुरुष अनुपात से अभिप्राय प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या से है।

प्रश्न 7
विश्व में जनसंख्या के किन चार समूहों का संकेन्द्रण हुआ है?
उत्तर
विश्व में जनसंख्या के जिनं चार समूहों का संकेन्द्रण हुआ है, वे हैं-

  1. चीन वं जापान
  2. भारत एवं बांग्लादेश
  3. यूरोपीय देश एवं
  4. पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका।

प्रश्न 8
भारत में 2011 ई० की जनगणना के आधार पर जनसंख्या घनत्व क्या था?
उत्तर
2011 ई० की जनगणना के आधार पर भारत में जनसंख्या का घनत्व 382 प्रति वर्ग किमी था।

प्रश्न 9
दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में जनसंख्या का घनत्व क्यों कम है?
उत्तर
असमतल धरातल, विषम जलवायु, सघन वन, शुष्क मरुस्थल तथा अनुपजाऊ भूमि के कारण, दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में जनसंख्या घनत्व कम (16 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी) है।

प्रश्न 10
अफ्रीका महाद्वीप के वे प्रमुख क्षेत्र बताइए जहाँ जनसंख्या का घनत्व मात्र 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है।
उत्तर
अफ्रीका महाद्वीप के वे क्षेत्र जहाँ जनसंख्या का घनत्व मात्र 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, इस प्रकार हैं-सहारा का मरुस्थल, कालाहारी मरुस्थल तथा अबीसीनिया का पठार।

प्रश्न 11
किस जनसमूह को ‘कृषि सभ्यता या ‘चावल सभ्यता के नाम से पुकारा जाता है?
उत्तर
पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के मानव समूह को ‘कृषि सभ्यता’ या ‘चावल सभ्यता’ के नाम से पुकारा जाता है, क्योंकि यहाँ का मुख्य धन्धा कृषि एवं प्रमुख फसल चावल है।

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प्रश्न 12
विश्व के किस महाद्वीप में सबसे कम जनसंख्या निवास करती है?
उत्तर
ऑस्ट्रेलिया विश्व में सबसे कम जनसंख्या रखने वाला महाद्वीप है। यहाँ विश्व की केवल 0.7% जनसंख्या निवास करती है तथा यहाँ जनसंख्या का घनत्व भी 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है।

प्रश्न 13
उत्तर-पश्चिमी यूरोप को जनसंख्या की धुरी की संज्ञा क्यों दी जाती है?
उत्तर
यूरोप के उत्तर-पश्चिमी देश बहुत सघन बसे हुए हैं, इसी कारण इस क्षेत्र को जनसंख्या की धुरी की संज्ञा दी जाती है।

प्रश्न 14
एशिया का ‘मृत हृदय से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
एशिया के मध्यवर्ती पर्वतीय तथा पठारी क्षेत्र लगभग जन-शून्य हैं। इन क्षेत्रों को एशिया का ‘मृत हृदय’ कहा जाता है।

प्रश्न 15
जनसंख्या के कृषि घनत्व से आप क्या समझते हैं? [2007, 12, 15]
उत्तर
कृषि के अन्तर्गत क्षेत्रफल एवं कृषक जनता के अनुपात को कृषि घनत्व कहते हैं।

प्रश्न 16
अंकगणितीय घनत्व से आप क्या समझते हैं? या जनसंख्या के गणितीय घनत्व की व्याख्या कीजिए। [2010]
उत्तर
किसी प्रदेश के क्षेत्रफल तथा वहाँ निवास करने वाली जनसंख्या का अनुपात गणितीय घनत्व कहलाता है। जनसंख्या में क्षेत्रफल से भाग देने पर प्रति वर्ग किलोमीटर घनत्व प्राप्त हो जाता है।
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प्रश्न 17
विश्व के किन्हीं दो जन संकुल क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। [2011]
उत्तर

  1. चीन व जापान तथा
  2. भारत एवं बांग्लादेश।

प्रश्न 18
जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना की विवेचना कीजिए। [2009]
उत्तर
कुल जनसंख्या में कार्यशील जनसंख्या जो विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में संलग्न है; व्यावसायिक जनसंख्या की संरचना करती है। इस जनसंख्या को उच्च मानव संसाधन माना जाता है। देश के आर्थिक विकास एवं सामाजिक और परिवार के विकास में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
विश्व के तटीय भागों तथा सीमा-पेटियों में निवास करने वाली जनसंख्या है –
(क) 28 प्रतिशत
(ख) 75 प्रतिशत
(ग) 57 प्रतिशत
(घ) 70 प्रतिशत
उत्तर
(ख) 75 प्रतिशत।

प्रश्न 2
निम्नलिखित में से कौन-सा देश निम्नजन्मदर एवं निम्न मृत्युदर से सम्बन्धित है?
(क) डेनमार्क
(ख) बेल्जियम
(ग) ब्रिटेन
(घ) इटली
उत्तर
(क) डेनमार्क।

प्रश्न 3
निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में जनसंख्या सर्वाधिक पाई जाती है?
(क) पूर्वी एशिया
(ख) दक्षिणी-पूर्वी एशिया
(ग) पश्चिमी यूरोप व उत्तरी पूर्वी
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका
उत्तर
(ख) दक्षिणी-पूर्वी एशिया।

प्रश्न 4.
वह महाद्वीप जिसका क्षेत्रफल विश्व का 16% है और जनसंख्या निवास केवल 8% है, वह है –
(क) एशिया महाद्वीप
(ख) अफ्रीका महाद्वीप
(ग) उत्तरी अमेरिका महाद्वीप
(घ) दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप
उत्तर
(ग) उत्तरी अमेरिका महाद्वीप।

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प्रश्न 5
विकासशील देशों में जनाधिक्य होने का मुख्य कारण है –
(क) उच्च मृत्यु-दर
(ख) निम्न मृत्यु-दर
(ग) उच्च जन्म-दर
(घ) जन्म-दर की अपेक्षा कम मृत्यु-दर
उत्तर
(घ) जन्म-दर की अपेक्षा कम मृत्यु-दर।

प्रश्न 6
निम्नांकित में किसमें जनसंख्या का घनत्व सर्वाधिक पाया जाता है?
(क) भूमध्यरेखीय प्रदेश
(ख) उष्ण मानसूनी प्रदेश
(ग) चीन तुल्य प्रदेश
(घ) स्टेपी तुल्य प्रदेश
उत्तर
(ग) चीन तुल्य प्रदेश।

प्रश्न 7
निम्नांकित में किस राज्य में लिंग-अनुपात न्यूनतम है? [2007]
(क) छत्तीसगढ़
(ख) ओडिशा
(ग) हरियाणा
(घ) गुजरात
उत्तर
(ग) हरियाणा।

प्रश्न 8
निम्नलिखित देशों में से किस देश की जनसंख्या सर्वाधिक है ? [2010, 11, 12]
(क) भारत
(ख) चीन
(ग) रूस
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका
उत्तर
(ख) चीन।

प्रश्न 9
जैनसंख्यों के अधिक घनत्व के सम्बन्ध में निम्नलिखित में कौन सही है ? [2009]
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UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 4 आलोकवृत्त

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 4 आलोकवृत्त (गुलाब खण्डेलवाल) are part of UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi . Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 4 आलोकवृत्त (गुलाब खण्डेलवाल).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name आलोकवृत्त (गुलाब खण्डेलवाल)
Number of Questions 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 4 आलोकवृत्त (गुलाब खण्डेलवाल)

प्रश्न 1:
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में बताइए।
या
‘आलोकवृत्त की कथावस्तु (कथानक) पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ का कौन-सा सर्ग आपको सर्वोत्तम प्रतीत होता है और क्यों ? सोदाहरण समझाइए।
या
‘आलोकवृत्त’ के चतुर्थ सर्ग का सारांश लिखिए।
या
‘आलोकवृत्त के आधार पर महात्मा गांधी के जीवनवृत्त की किसी प्रमुख घटना का वर्णन कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर सन् 1942 ई० की जनक्रान्ति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ काव्य में वर्णित स्वतन्त्रता-प्राप्ति की प्रमुख घटनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ के तृतीय सर्ग के आधार पर गांधी जी के अफ्रीका-प्रवास के जीवन पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के सप्तम सर्ग का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग के आधार पर गांधी जी का जीवन-परिचय प्रस्तुत कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ के आधार पर स्वाधीनता की ऐतिहासिक यात्रा की संक्षिप्त समीक्षा कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर देश के स्वतन्त्रता संग्राम में गांधी जी के योगदान का वर्णन कीजिए।
या
” ‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य आधुनिक भारत के महान संघर्ष का जीता-जागता सच्चा इतिहास है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की पंचम एवं षष्ठ सर्ग की कथा पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य में वर्णित प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
“आलोकवृत्त’ के कथानक में आठ सर्ग हैं, जिनकी कथावस्तु संक्षेप में निम्नलिखित है

प्रथम सर्ग : भारत का स्वर्णिम अतीत

प्रथम सर्ग में कवि ने भारत के अतीत के गौरव तथा तत्कालीन पराधीनता का वर्णन किया है। कवि ने बताया है। कि भारत वेदों की भूमि रही है। भारतवर्ष ने ही संसार को सर्वप्रथम ज्ञान की ज्योति दी थी, किन्तु दुर्भाग्यवश एक समय ऐसा आया कि भारतवासी यह भूल गये कि हम कितने गौरवमण्डित थे ? इसका परिणाम यह हुआ कि भारतवर्ष सैंकड़ों वर्ष तक दासता की बेड़ियों में जकड़ा रहा। सन् 1857 ई० की क्रान्ति के पश्चात् गुजरात के ‘पोरबन्दर’ नामक स्थान पर एक दिव्य ज्योतिर्मय विभूति मोहनदास करमचन्द गांधी के रूप में प्रकट हुई, जिसने हमें विदेशियों की दासता से मुक्त करवाया।

द्वितीय सर्ग : गांधी जी का प्रारम्भिक जीवन

द्वितीय सर्ग में गांधी जी के जीवन के क्रमिक विकास पर प्रकाश डाला गया है। वे बचपन में कुसंगति में फैंस गये थे, किन्तु शीघ्र ही उन्होंने अपने पिता के समक्ष अपनी त्रुटियों पर पश्चात्ताप किया और दुर्गुणों को सदैव के लिए छोड़ने की प्रतिज्ञा की और आजीवन उसका निर्वाह किया। इसके बाद कस्तूरबा के साथ गांधी जी का विवाह हुआ। इसके कुछ समय बाद उनके पिताजी का देहान्त हो गया। वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड गये। उनकी माँ ने विदेश में रहकर मांस-मदिरा का प्रयोग न करने के लिए समझाया

मद्य-मांस-मदिराक्षी से बचने की शपथ दिलाकर।
माँ ने तो दी विदा पुत्र को मंगल तिलक लगाकर।।

इंग्लैण्ड में सात्त्विक जीवन व्यतीत करते हुए भी वे एक दिन एक कलुषित स्थान पर पहुँच गये, लेकिन उन्होंने अपने चरित्र को कलुषित होने से बचा लिया। वहाँ से वे बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। भारत आने पर उन्हें उनकी माता के देहान्त का दुःखद समाचार मिला। यहीं पर द्वितीय सर्ग की कथा समाप्त हो जाती है।

तृतीय सर्ग : गांधी जी का अफ्रीका-प्रवास

तृतीय सर्ग में गांधी जी के अफ्रीका में निवास का वर्णन है। एक बार रेलगाड़ी में यात्रा करते समय एक गोरे अंग्रेज ने उन्हें काला होने के कारण अपमानित करके रेलगाड़ी से नीचे उतार दिया। रंगभेद की इस कुटिल नीति से गांधी जी के हृदय को बहुत दु:ख पहुँचा। वे भारतीयों की दुर्दशा से चिन्तित हो उठे। यहाँ पर कवि ने गांधी जी के मन में उत्पन्न अन्तर्द्वन्द्व का बड़ा सुन्दर चित्रण किया है। गांधी जी ने सत्य और अहिंसा का सहारा लेकर असत्य और हिंसा का सामना करने का दृढ़ निश्चय किया। अपनी जन्मभूमि से दूर विदेश की भूमि पर उन्होंने मानवता के उद्धार का प्रण लिया

पशु-बल के सम्मुख आत्मा की शक्ति जगानी होगी।
मुझे अहिंसा से हिंसा की आग बुझानी होगी।

सत्य और अहिंसा के इस मार्ग को उन्होंने सत्याग्रह का नाम दिया। गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में सैकड़ों सत्याग्रहियों का नेतृत्व किया। दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष-समाप्ति के साथ ही तृतीय सर्ग समाप्त हो जाता है।

चतुर्थ सर्ग : गांधी जी का भारत आगमन

चतुर्थ सर्ग में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आते हैं। भारत आकर गांधी जी ने लोगों को स्वतन्त्रता प्राप्त करने हेतु जाग्रत किया। उन्होंने साबरमती नदी के तट पर अपना आश्रम बनाया। अनेक लोग गांधी जी के अनुयायी हो गये, जिनमें डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, विनोबा भावे, ‘राजगोपालाचारी’, सरोजिनी नायडू, ‘दीनबन्धु’, मदनमोहन मालवीय, सुभाषचन्द्र बोस आदि प्रमुख थे। अंग्रेज देश की जनता पर भारी अत्याचार कर रहे थे। गांधी जी ने चम्पारन में नील की खेती को लेकर आन्दोलन आरम्भ किया; जिसमें वे सफल हुए। एक अंग्रेज द्वारा अपनी पत्नी के हाथों गांधी जी को विष देने तक का प्रयास किया गया, परन्तु वह स्त्री गांधी जी के दर्शन कर ऐसा ने कर सकी। इसके विपरीत उन दोनों को हृदय-परिवर्तन हो गया। इसी सर्ग में ‘खेड़ा-सत्याग्रह का वर्णन भी हुआ है। कवि ने इस सत्याग्रह में सरदार वल्लभभाई पटेल को चरित्र-चित्रण विशेष रूप से किया है।

पंचम सर्ग : असहयोग आन्दोलन

इस सर्ग में कवि ने यह चित्रित किया है कि गांधी जी के नेतृत्व में स्वाधीनता आन्दोलन निरन्तर बढ़ता गया। अंग्रेजों की दमन-नीति भी बढ़ती गयी। गांधी जी के नेतृत्व में स्वतन्त्रता-प्रेमियों का समूह नागपुर पहुँचता है। नागपुर के कांग्रेस-अधिवेशन में गांधी जी के ओजस्वी भाषण ने भारतवर्ष के लोगों में नयी स्फूर्ति भर दी, किन्तु अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति ने हिन्दुओं-मुसलमानों में साम्प्रदायिक दंगे करवा दिये। गांधी जी को बन्दी बना लिया गया। उन्होंने सत्याग्रह का कार्यक्रम स्थगित कर दिया। कारागार से छूटने के बाद उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता, शराब-मुक्ति, हरिजनोत्थान, खादी-प्रचार आदि रचनात्मक कार्यों में अपना सम्पूर्ण समय लगाना आरम्भ कर दिया। हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए गांधी जी ने इक्कीस दिनों का उपवास रखा

आत्मशुद्धि का यज्ञ कठिन, यह पूरा होने को जब आया।
बापू ने इक्कीस दिनों के, अनशन का संकल्प सुनाया।

फिर लाहौर में पूर्ण स्वतन्त्रता के प्रस्ताव के साथ ही पाँचवाँ सर्ग समाप्त हो जाता है।

षष्ठ सर्ग : नमक सत्याग्रह

इस सर्ग में गांधी जी द्वारा चलाये गये नमक-सत्याग्रह का वर्णन हुआ है। गांधी जी ने समुद्रतट पर बसे ‘डाण्डी नामक स्थान की पैदल यात्रा 24 दिनों में पूरी की। नमक आन्दोलन में हजारों लोगों को बन्दी बनाया गया। अंग्रेज सरकार ने लन्दन में ‘गोलमेज सम्मेलन बुलाया, जिसमें गांधी जी को आमन्त्रित किया गया। इसके परिणामस्वरूप सन् 1937 ई० में ‘प्रान्तीय स्वराज्य की स्थापना हुई। इसके साथ ही षष्ठ सर्ग समाप्त हो जाता है।

सप्तम सर्ग : सन् 1942 की जनक्रान्ति

द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ हो गया। अंग्रेज सरकार भारतीयों का सहयोग तो चाहती थी, किन्तु उन्हें पूर्ण अधिकार देना नहीं चाहती थी। क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद 1942 ई० में गांधी जी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नारा दिया। सम्पूर्ण देश में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। इसका वर्णन कवि ने बड़े ही सजीव रूप से किया है

थे महाराष्ट्र-गुजरात उठे, पंजाब-उड़ीसा साथ उठे।
बंगाल इधर, मद्रास उधर, मरुथल में थी ज्वाला घर-घर ॥

कवि ने इस आन्दोलन का वर्णन अत्यधिक ओजस्वी भाषा में किया है। बम्बई अधिवेशन के बाद गांधी जी सहित सभी भारतीय नेता जेल में डाल दिये जाते हैं। पूरे देश में इसकी विद्रोही प्रतिक्रिया होती है। कवि के शब्दों में,

जब क्रान्ति लहर चल पड़ती है, हिमगिरि की चूल उखड़ती है।
साम्राज्य उलटने लगते हैं, इतिहास पलटने लगते हैं।

इस सर्ग में कवि ने गांधी जी एवं कस्तूरबा के मध्य हुए एक वार्तालाप का भी भावपूर्ण चित्रण किया है जिसमें गांधी जी के मानवीय स्वभाव और कस्तूरबा की सेवा-भावना, मूक त्याग और बलिदान का सम्यक् निरूपण किया है।

अष्टम सर्ग : भारतीय स्वतन्त्रता का अरुणोदय

अष्टम सर्ग का आरम्भ भारत की स्वतन्त्रता से किया गया है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् देशभर में हिन्दू-मुस्लिम-साम्प्रदायिक दंगे हो जाते हैं। गांधी जी को इससे बहुत दुःख हुआ। वे ईश्वर से प्रार्थना करते हैं

प्रभो ! इस देश को सत्पथ दिखाओ, लगी जो आग भारत में बुझाओ।
मुझे दो शक्ति इसको शान्त कर दें, लपट में रोष की निज शीश धर दें।

इस कल्याण-कामना के साथ ही यह खण्डकाव्य समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 2:
कवि ने ‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की रचना सोद्देश्य की है। इस कथन को समझाइट।
या
” ‘आलोकवृत्त’ मनुष्य के जीवन में आशा और आस्था का आलोक विकीर्ण करता हुआ उसे मानवता के उच्चतम शिखरों की ओर उन्मुख करता है।” इस कथन की सार्थकता सोदाहरण सिद्ध कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य का सन्देश अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य का उद्देश्य महात्मा गांधी के आदर्शों का निदर्शन है। प्रमाणित कीजिए।
या
“‘आलोकवृत्त’ में स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास की झाँकी के दर्शन होते हैं।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ में जीवन के श्रेष्ठ मूल्यों का उद्घोष है। सिद्ध कीजिए।
या
“‘आलोकवृत्त’ पीड़ित मानवता को सत्य और अहिंसा का शाश्वत सन्देश देता है।” इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं ?
या
“‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य में भारत के सांस्कृतिक-ऐतिहासिक इतिहास को वाणी दी गयी है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
या
” ‘आलोकवृत्त में युग-युग तक मानवता को सत्य, प्रेम और अहिंसा के दिव्य सन्देश से अनुप्राणित करने की भावना है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के उद्देश्य (सन्देश) को स्पष्ट कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य में वर्णित जीवन के अनुकरणीय मूल्यों पर अपने विचार उदाहरण सहित लिखिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य राष्ट्रीय चेतना का एक प्रतीक है। सिद्ध कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य का कथानक देश-प्रेम और मानव-कल्याण की भावना से ओत-प्रोत है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
या
” ‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य में ऐसे चिरंतन आदर्शों और सार्वभौम मूल्यों का प्रतिपादन है, जो मानव समाज को प्रेरणा देता है।” इस दृष्टि से ‘आलोकवृत्त’ पर अपना विचार प्रस्तुत कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य में वर्णित गांधी जी के मानसिक संघर्ष को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
शीर्षक की सार्थकता – कवि गुलाब खण्डेलवाल ने आलोकवृत्त’ में महात्मा गांधी के सदाचार एवं मानवता के गुणों से आलोकित व्यक्तित्व को चित्रित किया है। इस खण्डकाव्य का विषय, उद्देश्य एवं मूल भावना यही है। महात्मा गांधी के जीवन को हम आलोक स्वरूप कह सकते हैं, क्योंकि उन्होंने भारतीय संस्कृति की चेतना को अपने सद्गुणों एवं सविचारों से आलोकित किया है। विश्व में सत्य, प्रेम, अहिंसा आदि मानवीय भावनाओं का आलोक उनके द्वारा ही फैलाया गया; इसलिए उनके जीवन-वृत्त को ‘आलोक-वृत्त’ कहना युक्तियुक्त ही है। इस दृष्टिकोण से यह शीर्षक उपयुक्त है। यह शीर्षक महात्मा गांधी के जीवन, उनके चरित्र, गुणों, सिद्धान्तों एवं दर्शन को पूर्णरूपेण परिभाषित करने में सफल हुआ है। प्रत्येक साहित्यिक रचना के पीछे लेखक का कोई-न-कोई उद्देश्य अवश्य होता है। ‘आलोकवृत्त’ में भी कवि का उद्देश्य निहित है। इसका उद्देश्य या सन्देश निम्नवत् है

(1) स्वदेश-प्रेम की प्रेरणा – इस खण्डकाव्य का सर्वप्रथम उद्देश्य देशवासियों के हृदय में स्वदेश-प्रेम की भावना जाग्रत करना है। कवि ने भारत के गौरवमय अतीत का वर्णन कर लोगों को अपने महान् देश का । वास्तविक स्वरूप दिखाया है

जिसने धरती पर मानवता का, पहला जयघोष किया था।
बर्बर जग को सत्य-अहिंसा का, पावन सन्देश दिया था।

इस प्रकार कवि भारत के अतीत का वर्णन करके भारत की वर्तमान अधोगति के प्रति भारतीय जनता के हृदय में टीस, आक्रोश एवं चेतना जाग्रत करना चाहता है।

(2) सत्य-अहिंसा का महत्त्व – आलोकवृत्त के माध्यम से कवि ने सत्य और अहिंसा को प्रतिष्ठित किया है। कवि ने देश की स्वाधीनता हेतु सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देकर लोगों को श्रेष्ठ आचरणवान् बनने की शिक्षा दी है। कवि ने गांधी जी का उदाहरण प्रस्तुत करके यह सिद्ध किया है कि हम सत्य और अहिंसा के द्वारा अपने प्रत्येक संकल्प को पूरा कर सकते हैं

अहिंसा ने अजब जादू दिखाये।
विरोधी हैं खड़े कन्धा मिलाये ॥

(3) सहयोग एवं राष्ट्रीय एकता – कवि यह अनुभव करता है कि अंग्रेज शासकों ने हमारे देश में तरह-तरह की फूट डालकर देश को विघटित करने का प्रयास किया है। उसका मानना है कि हमारे देश की स्वतन्त्रता, एकता एवं सहयोग की भावना के आधार पर ही सुरक्षित रह सकती है। इसी को ध्यान में रखते हुए आलोकवृत्त’ खण्डकाव्यं में यह सन्देश दिया गया है कि हमें साम्प्रदायिक एवं प्रान्तीय भेदभाव को भूलकर राष्ट्र की एकता बनाये रखनी है

यदि मिलकर इस राष्ट्र-यज्ञ में, सब कर्तव्य निभायें अपना।
एक वर्ष में हो पूरा, मेरा रामराज्य का सपना ॥

(4) मानवमात्र का कल्याण – कवि ने मात्र भारत के ही कल्याण की कामना नहीं की है, वरन् वह तो सम्पूर्ण मानवता का कल्याण चाहता है

जुड़ता जब सम्बन्ध हृदय का, भेदभाव मिट जाता है।
देश-जाति रंगों से गहरा, मानवता का नाता है।

(5) मानवीय-मूल्यों की प्रतिष्ठा-आलोकवृत्त’ के रचनाकार का उद्देश्य यह रहा है कि सर्वत्र सत्य, प्रेम,
सदाचार, न्याय, सहिष्णुता आदि मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा हो; उदाहरणार्थ

प्रेम सृष्टि का मूल्य धर्म, चेतना का नियम सनातन ।
इसके कारण ही विनाश से, बचो आज तक जीवन ॥
X                          X                     X
लोकतन्त्र का रथ समता के, पहियों पर चलता है।

(6) त्याग तथा बलिदान की भावना का सन्देश – कवि का एक सन्देश देश के लिए त्याग एवं बलिदान से सम्बन्धित है। गांधी जी ने देश की स्वतन्त्रता के लिए बड़े से बड़ा बलिदान किया तथा अनेक कष्ट सहे। कवि ने गांधी जी के उदाहरण को प्रस्तुत करके देश के युवकों को देश के लिए त्याग एवं बलिदान का सन्देश दिया है।

(7) पवित्र साधन अपनाने का सन्देश – गांधी जी का विचार था कि उत्तम साध्यों की प्राप्ति के लिए पवित्र साधनों को ही अपनाना चाहिए। गांधी जी ने देश की स्वतन्त्रता के लिए प्रेम, सत्य तथा अहिंसा को ही साधन के रूप में अपनाया था। गांधी जी के जीवन के उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कवि ने प्रत्येक को केवल पवित्र साधनों को ही अपनाने का महान् सन्देश दिया है।
इस प्रकार आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य गांधी जी के जीवन-चरित को माध्यम बनाकर राष्ट्रप्रेम, सत्य, अहिंसा, परोपकार, न्याय, समता, सदाचार आदि की प्रेरणा देने के अपने उद्देश्य में पूर्णतः सफल रहा है।

प्रश्न 3:
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की कथावस्तु की समीक्षा कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ के संवाद-सौष्ठव की निदर्शना कीजिए।
या
खण्डकाव्य की दृष्टि से ‘आलोकवृत्त’ का मूल्यांकन कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ एक सफल खण्डकाव्य है। इस उक्ति की सप्रमाण पुष्टि कीजिए।
या
इतने बड़े कथानक को ‘आलोकवृत्त’ में समेटकर कवि ने अपनी प्रबन्ध पदता का परिचय दिया है। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
‘आलोकवृत्त’ की कथावस्तु भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित है। कवि ने कल्पना का पुट देकर कथा को सरस तथा हृदयस्पर्शी बना दिया है। कवि ने भारत के अतीत के गौरव का स्मरण करते हुए तत्कालीन स्थिति का वर्णन किया है। आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की कथावस्तु की मुख्य विशेषताएँ निम्नवत् हैं

(1) प्रभावपूर्ण चित्रण और सुगठित घटनाक्रम – ‘आलोकवृत्त’ की कथावस्तु के माध्यम से कवि ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया है। आरम्भ के चार सर्गों में स्वाधीनता-आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार की गयी है और अन्तिम चार सर्गों में दक्षिण अफ्रीका से गांधी जी के भारत-आगमन, स्वतन्त्रता-आन्दोलन, स्वतन्त्रता-प्राप्ति और स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में हुए साम्प्रदायिक दंगों का इतिहास रोचक शैली में कलात्मक रूप से प्रस्तुत किया है।

(2) सफल चरित्रांकन : गांधी जी की जीवनी – आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य वास्तव में गांधी जी की संक्षिप्त जीवन-कथा है। कवि ने गांधी जी के जन्म; शैशवकालीन घटनाओं; पिता की मृत्यु; कस्तूरबा से विवाह; इंग्लैण्ड-यात्रा; दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश लौटना; चम्पारन-खेड़ा सत्याग्रह; कलकत्ता, कानपुर, लाहौर के कांग्रेस-अधिवेशन; नमक सत्याग्रह; गोलमेज सम्मेलन; 1942 ई० में भारत छोड़ो आन्दोलन; कस्तूरबा की मृत्यु; साम्प्रदायिक संघर्ष; इक्कीस दिनों का अनशन तथा स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद गांधी जी के मन की चिन्ता का क्रमबद्ध वर्णन प्रस्तुत किया है। वास्तव में यह गांधी जी की काव्यात्मक संक्षिप्त जीवनी है।

(3) कथा-संगठन – आलोकवृत्त’ का आरम्भ भारत के गौरवमये अतीत से होता है। इसके साथ ही । गांधीकालीन भारत की दुर्दशा का वर्णन किया गया है, जो बहुत ही प्रेरणाप्रद है। गांधी जी का शिक्षा ग्रहण करने इंग्लैण्ड जाना; वहाँ से बैरिस्टर बनकर दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह करना तथा तत्पश्चात् कथा का उतारे दिखाया गया है। इसके बाद भारतवर्ष तथा विश्व की मंगल-कामना के साथ कथावस्तु का अन्त हो जाता है।

विषमता, फूट, मिथ्याचार भागे, सभी का हो उदय, नव ज्योति जागे।
विजित हों प्यार से तक्षक विषैले, दयामय! विश्व में सद्भाव फैले ॥

इस प्रकार कथावस्तु पाँचों कार्यावस्थाओं की दृष्टि से पूर्ण सफल है।
खण्डकाव्य के शिल्प के अनुसार ‘आलोकवृत्त’ को आठ सर्गों में विभक्त किया गया है। सर्गों का क्रम कवि की रचनात्मक प्रतिभा का द्योतक है। कवि ने इस खण्डकाव्य में महात्मा गांधी के समग्र जीवन-वृत्त को इस रूप में चित्रित किया है कि भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम के पूरे इतिहास के साथ-साथ गांधी जी के सत्य और अहिंसा के सिद्धान्त भी पूरी तरह प्रतिपादित होते हैं।

(4) संवाद-योजना – कथावस्तु के विस्तार के कारण इस खण्डकाव्य में संवाद-योजना को प्रमुखता प्रदान नहीं की गयी है। यद्यपि यह खण्डकाव्य प्रधान रूप से वर्णनात्मक ही है; तथापि विभिन्न स्थानों पर महात्मा गांधी के संक्षिप्त संवाद भी प्रस्तुत किये गये हैं। कुछ अन्य पात्रों द्वारा भी संवादों का प्रयोग हुआ है, किन्तु इसे नगण्य ही कहा जाएगा।

(5) पात्र एवं चरित्र-चित्रण – आलोकवृत्त’ में गांधी जी का चरित्र धीरोदात्त नायक के रूप में विकसित हुआ है। यद्यपि उनमें मानवोचित दुर्बलताएँ हैं; परन्तु अपनी ईमानदारी, सरलता, सत्यनिष्ठा और लगन के बल पर वे उन दुर्बलताओं पर सहज विजय प्राप्त कर लेते हैं। गांधी जी में दम्भ और पाखण्ड का लेशमात्र अंश भी नहीं है। वे अपने प्रेम से विरोधियों तक के हृदय को जीत लेते हैं। मानवता में उनकी अखण्ड आस्था है और इसी आस्था के बल पर वे देश, जाति और भेदभाव पर आधारित सीमाओं का अतिक्रमण करके मानव-एकता को प्रतिष्ठित करते हैं। मानव-हृदय की एकता और सभी के प्रति पारस्परिक समानता का भाव उनके अहिंसा-सिद्धान्त की आधारशिला है। इस प्रकार प्रस्तुत खण्डकाव्य में गांधी जी को चरितनायक बनाकर उनके प्रेरणाप्रद विचारों को वाणी दी गयी है। अन्य पात्रों का समावेश नायक के चरित्र पर प्रकाश डालने हेतु प्रसंगवश ही किया गया है। वे कवि के उद्देश्य को अभिव्यक्ति देने में सहायकमात्र हैं।

(6) वर्णन में भावात्मकता – आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की कथावस्तु का आरम्भ बड़ा ही रोचक है। मध्य की घटनाएँ कौतूहल बढ़ाने वाली हैं। कथा का अन्त बड़ा ही मार्मिक एवं प्रभावशाली है। खण्डकाव्य के शिल्प के अनुसार ‘आलोकवृत्त’ की कथा वर्णनात्मक है। वर्णनात्मक स्थलों को भावात्मक स्वरूप प्रदान करने में कवि ने अपना पूरा-पूरा प्रयास किया है। मार्मिक स्थलों के चयन में कवि की प्रतिभा एवं सहृदयता भी पूर्णरूपेण परिलक्षित होती है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि आलोकवृत्त’ में गांधी जी जैसे महान् लोकनायक के गुणों को आधार बनाकर काव्य-रचना की गयी है। कथा की पृष्ठभूमि विस्तृत है, किन्तु कवि ने गांधी जी की चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट करने हेतु आवश्यक प्रसंगों का चयनकर उसे इस प्रकार संगठित एवं विकसित किया है कि वह खण्डकाव्य के उपर्युक्त बन गयी है। गौण पात्रों का चित्रण नायक के चरित्र की विशेषताओं को प्रकाशित करने हेतु किया गया है। आदर्शपूर्ण भावनाओं की स्थापना हेतु रचित इस काव्य-ग्रन्थ में यद्यपि रसों एवं छन्दों की विविधता है; तथापि इससे खण्डकाव्य के उद्देश्य एवं उसके विधा सम्बन्धी तत्त्वों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। अतः इस काव्यग्रन्थ को एक आदर्श सफल खण्डकाव्य कहना उपयुक्त होगा।

प्रश्न 4:
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर गांधी जी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के नायक (प्रमुख पात्र) गांधी जी का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ के आधार पर गांधी जी के जीवन और आदर्शों का उल्लेख कीजिए।
या
” ‘आलोकवृत्त’ में गांधी जी धीरोदात्त नायक और लोकनायक के रूप में चित्रित किये गये हैं।” इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? तर्कयुक्त उत्तर दीजिए।
या
” ‘आलोकवृत्त’ में गांधी जी का कृतित्व ही नहीं उनका जीवन-दर्शन और चिन्तन भी अभिव्यक्त हुआ है।” इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर गांधी जी के चरित्र की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर गांधी जी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवतु हैं

(1) सामान्य मानवीय दुर्बलताएँ – गांधी जी का आरम्भिक जीवन एक साधारण मनुष्य की भाँति मानवीय दुर्बलताओं वाला रहा है। उन्होंने एक बार अपने गुरु से छुपकर मांस-भक्षण किया था; उदाहरणार्थ

करने लगे मांस-भक्षण, गुरुजन की आँख बचाकर।।

किन्तु बाद में उन्होंने अपनी इन दुर्बलताओं पर अपनी आत्मिक शक्ति के बल पर पूर्ण विजय पा ली।

(2) देश-प्रेमी – आलोकवृत्त’ में गांधी जी के चरित्र की सर्वप्रथम विशेषता उनका देशप्रेम है। वे देशप्रेम के कारण अनेक बार कारागार जाते हैं, जहाँ उन्हें अंग्रेजों के अपमान-अत्याचार सहने पड़ते हैं। उन्होंने अपना सर्वस्व देश के लिए न्योछावर कर दिया। भारत के लिए उनका कहना था

तू चिर प्रशान्त, तू चिर अजेय,
सुर-मुनि-वन्दित, स्थित,’ अप्रमेय
हे सगुण ब्रह्म, वेदादि-गेय,
हे चिर अनादि हे चिर अशेष
मेरे भारत, मेरे स्वदेश।

(3) सत्य और अहिंसा के प्रबल समर्थक – गांधी जी देश की स्वतन्त्रता केवल सत्य और अहिंसा के द्वारा ही प्राप्त करना चाहते हैं। असत्य और हिंसा का मार्ग उन्हें अच्छा नहीं लगता। वे कहते हैं

पशुबल के सम्मुख आत्मा की, शक्ति जगानी होगी।
मुझे अहिंसा से हिंसा की, आग बुझानी होगी।

अहिंसा व्रत का पूर्ण रूप से पालन उनके जैसा कोई विरला व्यक्ति ही कर सकता है।

(4) दृढ़ आस्तिक – गांधी जी पुरुषार्थी हैं तो भी वे ईश्वर की सत्ता में अटूट विश्वास रखते हैं। उनका मानना है। कि साधन पवित्र होने चाहिए और परिणाम ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। वे प्रत्येक कार्य ईश्वर को साक्षी मानकर करते हैं। यही कारण है कि वे मात्र पवित्र साधनों को प्रयोग ही उचित समझते हैं

क्या होगा परिणाम सोच हूँ, पर क्यों सोचें, वह तो।
मेरा क्षेत्र नहीं, स्रष्टा का, जो प्रभु करे वही हो ।।

(5) स्वतन्त्रता-प्रेमी – गांधी जी के जीवन का मूल उद्देश्य भारत को स्वतन्त्र करवाना है। वे भारतमाता की स्वतन्त्रता के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। देशंवासियों को परतन्त्रता की बेड़ियाँ काटने के लिए प्रेरित करते हुए वे कहते हैं

जाग तुझे तेरी अतीत, स्मृतियाँ धिक्कार रही हैं।
जाग-जाग तुझे भावी, पीढ़ियाँ पुकार रही हैं।

(6) मानवतावादी – गांधी जी मानव-मानव में अन्तर नहीं मानते। वे सबके लिए समानता के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं। उन्होंने जीवन भर ऊँच-नीच, जाति-पाँति और रंग-भेद का डटकर विरोध किया। अछूत कहे जाने वाले भारतीयों के उद्धार के लिए वे सतत प्रयत्नशील रहे। इस भेदभाव से उन्हें बहुत दुःख होता था

जिसने मारा मुझे, कौन वह, हाथ नहीं क्या मेरी।
मानवता तो एक, भिन्न बस उसका-मेरा घेरा॥

(7) भावात्मक, राष्ट्रीय और हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक – गांधी जी ‘विश्वबन्धुत्व’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से ओत-प्रोत थे। वे सभी को सुखी व समृद्ध देखना चाहते थे। इन्होंने भारत की समग्र जनता को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए जीवन-पर्यन्त प्रयास किया और हिन्दू-मुसलमानों को भाई-भाई की तरह रहने की प्रेरणा दी। उनका कहना था

यदि मिलकर इस राष्ट्रयज्ञ में सब कर्तव्य निभायें अपना,
एक वर्ष में ही पूरा हो मेरा रामराज्य का सपना।

(8) आत्मविश्वासी – गांधी जी आत्मविश्वास से परिपूर्ण थे, उन्होंने जो कुछ भी किया पूर्ण आत्मविश्वास के साथ किया और उसमें वे सफल भी हुए। उनका मानना था

शासित की स्वीकृति न मिले तो शासक क्या कर लेगा
यदि आधार मिटे भय का तो एकतन्त्र ठहरेगा।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि एक श्रेष्ठ मानव में जितने भी मानवोचित गुण हो सकते हैं वे सभी महात्मा गांधी में विद्यमान थे।

प्रश्न 5:
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के काव्य-सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ के काव्य-वैभव (काव्य-सौन्दर्य) की समीक्षा कीजिए।
या
“काव्य-कला की दृष्टि से ‘आलोक-वृत्त’ एक श्रेष्ठ रचना है।” इस कथन को सिद्ध कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
किसी भी रचना के काव्य-सौन्दर्य के अन्तर्गत उसके भावपक्ष और कलापक्ष के सौन्दर्य की समीक्षा की जाती है। ‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य का काव्य-सौन्दर्य अथवा इसकी काव्यगत विशेषताएँ निम्नवत् हैं

(अ) भावगत विशेषताएँ

(1) कथावस्तु-वर्णन – ‘आलोकवृत्त काव्य में आठ सर्ग हैं। इन सर्गों में कवि ने गांधी जी के सम्पूर्ण जीवन के साथ भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम का इतिहास भी प्रस्तुत किया है। कवि ने इतिहास एवं जीवन-गाथा के साथ-साथ श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों की स्थापना भी की है।

(2) रस-योजना – आलोकवृत्त’ में कवि ने विभिन्न मानव मन:स्थितियों के साथ-साथ वीर, शान्त और करुण रसों को निरूपित किया है; उदाहरणार्थ

वीर रस – जब क्रान्ति लहर चल पड़ती है, हिमगिरि की चूल उखड़ती है।
साम्राज्य उलटने लगते हैं, इतिहास पलटने लगते हैं।
शान्त रस – पर कैसे प्रतिकार असत् का, हिंसा का पशुबल का ।
कैसे सम्भव शमन द्वेष के, इस नरमेध-अनल का ॥
करुण रस – चीत्कार हुआ ज्यों सहसा डूबे रहे जन का
दौड़ा पति सुनकर शब्द प्रिया के क्रन्दन का।
देखा कि साश्रु वह अतिथि-पदों में पड़ी हुई।
सिसकियाँ विकल भरती थी भू में गड़ी हुई।

(3) प्रकृति-चित्रण – कवि ने ‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य में प्रकृति-चित्रण कम ही किया है। कुछ स्थलों पर प्रकृति को पृष्ठभूमि के रूप में चित्रित किया गया है; उदाहरणार्थ

पद-प्रान्त में सागर गरजता सिंह-सा, झलमल गले से हीरकों के हार-सी।
गंगा तरुणिजा, गोमती, गोदावरी, कृष्णादिका, सिर पर मुकुट हिमवान का ॥

(ब) कलागत विशेषताएँ

(1) भाषा – आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की भाषा सरल, सुबोध, परिमार्जित एवं रोचक खड़ी बोली हिन्दी है। भाषा में माधुर्य, ओज एवं प्रसाद गुण विद्यमान हैं। कवि ने अनेक प्रचलित मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग भी किया है ।

कट जाता शासन का पत्ता। मुँह के बल गिर पड़ती सत्ता।

इस खण्डकाव्य की भाषा अत्यन्त सरल और बिम्बमय है। सीधे-सादे शब्दों में बड़ी बातें कहने में कवि की । कला सराहनीय है। भाषा की बिम्बमयता का एक उदाहरण देखिए

हँस हँसकर अंगारे चुगते शशि की ओर चकोर चले।
जैसे घन पाहन-वर्षण में पर फैलाये मोर चले।।

ओज गुण का निर्वाह तो खण्डकाव्य में आद्योपान्त किया गया है। प्रसाद गुण तो इसकी प्रत्येक पंक्ति में देखा जा सकता है। जिन प्रसंगों में माधुर्य की अपेक्षा है, वहाँ भाषा अत्यन्त मधुर रूप ग्रहण कर लेती है।

(2) शैली – प्रबन्ध शैली में लिखे गये आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की घटनाओं के वर्णन में वर्णनात्मक शैली की चित्रोपमता और प्रतीकात्मकता के दर्शन होते हैं। यंत्र-तत्र संवादात्मकता भी है, किन्तु शैली का स्वरूप वर्णनात्मक ही है। वर्णनात्मक शैली में भावात्मकता को स्थान देकर इन्होंने अपने भावों को कुशल अभिव्यक्ति दी है।

(3) छन्द-विधान – आलोकवृत्त’ में छन्दों की विविधता है। 16 मात्राओं के छोटे छन्द से लेकर 32 मात्राओं के लम्बे छन्दों का प्रयोग इसमें सफलतापूर्वक किया गया है। प्रथम सर्ग में मुक्त छन्द का प्रयोग हुआ है। सर्गों के मध्य में गीत-योजना भी की गयी है, जिससे राष्ट्रीय भावनाओं की वृद्धि में सहयोग मिला है।

(4) अलंकार-योजना – आलोकवृत्त’ काव्य में कवि ने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, यमक, अनुप्रास, श्लेष आदि अलंकारों का सफल प्रयोग किया है। अलंकार-प्रयोग में स्वाभाविकता है। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं

रूपक    –      कैसे सम्भव शमन द्वेष के,
इस नरमेध-अनल का।।
उपमा     –    पद-प्रान्त में सागर गरजता सिंह-सा।
पद-प्रान्त म साग
यमक     –        मन्मथ धन्य प्रथम नायक का,
जिसने मन मथ डाला।

निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि ‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की रचना महान् लोकनायक गांधी जी के गुणों को आधार बनाकर की गयी है। गौण पात्रों का चरित्रांकन नायक गांधी जी के चरित्र की विशेषताओं को प्रकाशित करने हेतु ही किया गया है। यद्यपि इस खण्डकाव्य में रसों एवं छन्दों की विविधता है तथापि इससे उद्देश्य एवं विधा से सम्बद्ध तत्त्वों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अत: इसे एक सफल खण्डकाव्य कहा जा सकता है।

प्रश्न 6:
‘आलोकवृत्त’ में भारत के स्वाधीनता संग्राम की सही झाँकी मिलती है ? पुष्टि कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ के आधार पर भारत के स्वतन्त्रता-संग्राम का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
या
आलोकवृत्त’ नाटक में वर्णित घटनाओं को अपने शब्दों में लिखिए।
या
“‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य आधुनिक भारत के संघर्षों की झाँकी प्रस्तुत करने में सफल है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की कथावस्तु आठ सर्गों में विभक्त है। प्रथम सर्ग में भारत के गौरवशाली अतीत का, उसके बाद पराधीनता का और सन् 1857 ई० की क्रान्ति के बाद नयी ज्योति के रूप में गांधी जी के उदय का वर्णन है। द्वितीय सर्ग में गांधी जी के प्रारम्भिक जीवन और फिर इंग्लैण्ड से उच्च शिक्षा प्राप्त कर स्वदेश लौटने तथा उनकी माता की मृत्यु का वर्णन है। तृतीय सर्ग में गांधी जी द्वारा अफ्रीका में रंग-भेद से दु:खी भारतीयों का वर्णन है, जिन्हें दुर्दशा से मुक्ति दिलाने के लिए गांधी जी ने उनका नेतृत्व किया और सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। चतुर्थ सर्ग में गांधी जी भारत लौट आये और उन्होंने देशवासियों को स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए जगाया। इसमें चम्पारन और खेड़ा के आन्दोलन का वर्णन है। पंचम सर्ग में अंग्रेजों के दमन, साम्प्रदायिक दंगे भड़कने, गांधी जी को बन्दी बनाने और फिर जेल से छूटने के बाद गांधी जी द्वारा हिन्दी-मुस्लिम एकता, शराब-मुक्ति, हरिजन-उत्थान, खादी-प्रचार आदि कार्यक्रमों का वर्णन है और लाहौर में पूर्ण स्वतन्त्रता प्रस्ताव के वर्णन के साथ यह सर्ग समाप्त हो जाता है। इसी सर्ग में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए गांधी जी के 21 दिनों के उपवास का भी वर्णन है

आत्म शुद्धि का यज्ञ कठिन यह पूरा होने को जब आया।
बापू ने इक्कीस दिनों के अनशन का संकल्प सुनाया ।।

छठे सर्ग में नमक आन्दोलन, लन्दन के गोलमेज सम्मेलन और 1937 के प्रान्तीय स्वराज्य की स्थापना का वर्णन है। सातवें सर्ग में 1942 के ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन का और आठवें सर्ग में भारतीय स्वतन्त्रता के अरुणोदय के साथ-साथ विभाजन के कारण भड़के दंगों से दु:खी गांधी जी की कल्याण-कामना का वर्णन है, जिसमें उन्होंने कहा है

प्रभो इस देश को सत्पथ दिखाओ।
लगी जो आग भारत में बुझाओ ॥

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि ‘आलोकवृत्त’ में भारत के स्वाधीनता संग्राम की सही झाँकी मिलती है।

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UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्य-साहित्यका विकास बहुविकल्पीय प्रश्न : एक

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 2
Chapter Name काव्य-साहित्यका विकास बहुविकल्पीय प्रश्न : एक
Number of Questions 208
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi काव्य-साहित्यका विकास बहुविकल्पीय प्रश्न : एक

बहुविकल्पीय प्रश्न : एक

[ ध्यान दें: नीचे दिये गये बहुविकल्पीय प्रश्नों के विकल्पों में सामान्य से अधिक काले छपे विकल्प को उचित विकल्प समझे।] ।
उचित विकल्प का चयन करें-

(1) निम्नलिखित में से कौन-सा कथन आदिकाल से सम्बन्धित नहीं है?
(क) युद्धों का सजीव वर्णन मिलता है
(ख) लक्षण ग्रन्थों की रचना हुई
(ग) रासो ग्रन्थ रचे गये।
(घ) श्रृंगार प्रधान काव्यों की रचना हुई

(2) दलपति विजय किस काल के कवि हैं ?
(क) भक्तिकाल
(ख) रीतिकाल
(ग) आधुनिककाल
(घ) आदिकाल

(3) निम्नलिखित में से लौकिक साहित्य के अन्तर्गत हैं-
(क) रेवंतगिरि रास
(ख) खुसरो की पहेलियाँ
(ग) खुमाण रासो
(घ) कामायनी

(4) हिन्दी के प्रथम कवि के रूप में मान्य हैं [2015, 16]
(क) शबरपा
(ख) चन्द
(ग) लुइपा
(घ) सरहपा

(5) इतिवृत्तात्मकता की प्रधानता’ किस युग की मुख्य विशेषता थी ?
(क) छायावाद काल
(ख) द्विवेदी युग
(ग) भारतेन्दु युग
(घ) प्रगति काल

(6) हिन्दी साहित्य का’आदिकाल’ निम्नांकित में से किस साम्राज्य की समाप्ति के समय से प्रारम्भ होता है ?
(क) अंग्रेजी साम्राज्य
(ख) वर्धन साम्राज्य
(ग) गुप्त साम्राज्य
(घ) मौर्य साम्राज्य

(7) जैन साहित्य का सबसे अधिक लोकप्रिय रूप है
(क) रासो ग्रन्थ
(ख) रीति ग्रन्थ
(ग) रास ग्रन्थ
(घ) लौकिक ग्रन्थ

(8) आदिकाल का एक अन्य नाम है-
(क) स्वर्ण युग
(ख) सिद्ध-सामन्त काल
(ग) श्रृंगार काल
(घ) भक्तिकाल

(9) वीरगाथाकाल के ग्रन्थों की भाषा है-
(क) अवधी
(ख) मैथिली
(ग) डिंगल-पिंगल
(घ) अपभ्रंश

(10) इनमें से हिन्दी का प्राचीनतम (प्रथम) महाकाव्य कौन-सा है ? [2010, 11]
था
निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रन्थ आदिकाल का है ? [2013]
(क) श्रीरामचरितमानस
(ख) पद्मावत
(ग) पृथ्वीराज रासो
(घ) प्रिय प्रवास

(11) निम्नलिखित में से कौन आदिकाल के कवि नहीं हैं ?
(क) शारंगधर
(ख) जगनिक
(ग) सुमित्रानन्दन पन्त
(घ) चन्दबरदाई

(12) ‘बीसलदेव रासो’ रचना है [2010]
(क) नरपति नाल्ह की
(ख) भट्ट केदार की
(ग) जगनिक की
(घ) दलपति विजय की

(13) निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रन्थ आदिकाल का है ? [2010, 13]
(क) सूरसागर
(ख) पद्मावत
(ग) बीसलदेव रासो
(घ) आँसू

(14) हिन्दी साहित्य के आदिकाल की रचना नहीं है [2013, 14]
(क) पृथ्वीराज रासो
(ख) परमाल रासो
(ग) पद्मावत
(घ) विद्यापति पदावली

(15) आदिकाल की रचना नहीं है [2013]
(क) उक्ति-व्यक्ति प्रकरण
(ख) जयचंद प्रकाश
(ग) राउल वेल
(घ) मृगावती

(16) किस आलोचक ने ‘पृथ्वीराज रासो’ को अर्द्ध प्रामाणिक रचना माना है ?
(क) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(ख) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ग) डॉ० नगेन्द्र
(घ) डॉ० गणपतिचन्द्र गुप्त

(17) निम्नलिखित में कौन-सी प्रवृत्ति आदिकाल से सम्बन्धित है ?
(क) संसार की असारता का प्रतिपादन
(ख) अलंकरण के सभी साधन अपनाये गये
(ग) श्रृंगार का पूर्ण बहिष्कार
(घ) युद्धों का सुन्दर और सजीव वर्णन

(18) कौन-सा कथन आदिकाल ( वीरगाथा काल) से सम्बन्धित है ?
(क) आश्रयदाताओं के युद्धोत्साह, केलि-क्रीड़ा आदि के बड़े सरस वर्णन हैं।
(ख) काव्य-भाषा के रूप में खड़ी बोली हिन्दी को मान्यता मिली
(ग) भारतीय काव्य-शास्त्र का हिन्दी में अवतरण हुआ
(घ) ईश्वर की लीलाओं का ज्ञान तथा लोकोन्मुखी भावनाओं का प्रतिपादन

(19) भाट यो चारण कवि क्या करते थे ?
(क) युद्ध-काल में वीर रस के गीत गा-गाकर सेना को प्रोत्साहित करते थे
(ख) अपने आश्रयदाताओं की वीरता का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन करते थे
(ग) अपने आश्रयदाताओं की वीरता के गुणगान सम्बन्धी गीत बनाते एवं सुनाते थे
(घ) उपर्युक्त तीनों

(20) कौन-सी प्रवृत्ति आदिकाल के काव्य में वर्णित साहित्य से सम्बन्धित है ?
(क) जीवन की नश्वरता का वर्णन
(ख) युद्ध का विशद वर्णन
(ग) श्रृंगारिक बातों का वर्णन
(घ) काव्य में अलंकरण का वर्णन

(21) कौन-से व्यक्ति ‘नाथ’ साहित्य के व्यवस्थापक (प्रवर्तक) माने जाते हैं ?
(क) विश्वनाथ
(ख) रवीन्द्रनाथ
(ग) जगन्नाथ
(घ) गोरखनाथ

(22) कौन-सा ग्रन्थ रासो परम्परा का श्रेष्ठ महाकाव्य हैं ?
(क) खुमाण रासो
(ख) बीसलदेव रासो
(ग) पृथ्वीराज रासो
(घ) परमाल रासो

(23) कौन-सी रचना वीर गाथात्मक है ?
(क) पृथ्वीराज रासो
(ख) विद्यापति
(ग) खुसरो की पहेलियाँ
(घ) साहित्य लहरी

(24) ‘पृथ्वीराज रासो’ में प्रधानता है [2012]
(क) श्रृंगार रस की
(ख) वीर रस की
(ग) शान्त रस की
(घ) हास्य रस की

(25) वीरगाथा काल में लिखित कौन-सी रचना है ?
(क) रस विलास
(ख) ललित ललाम
(ग) कवित्त रत्नाकर
(घ) सन्देश रासक

(26) निर्गुणभक्ति की ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रधान (प्रतिनिधि) कवि हैं [2010, 13]
(क) रैदास
(ख) कबीरदास
(ग) मलूकदास
(घ) नानक

(27) निम्नलिखित में से कौन ज्ञानाश्रयी शाखा के कवि नहीं हैं ?
(क) नानक
(ख) दादू
(ग) केशव
(घ) मलूकदास

(28) किसे खड़ी बोली का प्रथम कवि माना जाता है ?
(क) अब्दुर्रहमान
(ख) नरपति नाल्ह
(ग) अमीर खुसरो
(घ) धनपाल

(29) निम्नलिखित में से कौन-सा कवि ज्ञानाश्रयी शाखा का नहीं है ? [2009]
(क) मलिक मुहम्मद जायसी
(ख) रैदास
(ग) नानक
(घ) कबीर

(30) “भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे।” प्रस्तुत कथन किस लेखक का है ? [2015]
(क) नन्ददुलारे वाजपेयी
(ख) रामचन्द्र शुक्ल
(ग) हजारीप्रसाद द्विवेदी
(घ) रामविलास शर्मा

(31) निर्गुण काव्य-धारा की प्रवृत्ति है|
(क) वात्सल्य रस की प्रधानता
(ख) प्रकृति पर चेतन सत्ता का आरोप
(ग) रुढ़ियों एवं बाह्य आडम्बर का विरोध
(घ) आश्रयदाता की प्रशंसा

(32) ‘कबीरदास’ भक्तिकाल की किस धारा के कवि हैं ?
(क) सन्त काव्यधारा
(ख) प्रेम काव्यधारा
(ग) राम काव्यधारा
(घ) कृष्ण काव्यधारा

(33) निम्नलिखित में से कौन-सा कवि ज्ञानाश्रयी शाखा से सम्बन्धित नहीं है ?
(क) कबीर
(ख) नानक
(ग) रैदास
(घ) कुतुबन

(34) सन्त काव्यधारा के कवि नहीं हैं [2013]
(क) कबीर
(ख) रैदास
(ग) कुतुबन
(घ) दादू दयाल

(35) निम्नलिखित में से भक्तिकालीन कवि कौन हैं ? [2013]
(क) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(ख) कुम्भनदास
(ग) हरिऔध
(घ) महादेवी

(36) इस शाखा में केवल सौन्दर्य वृत्ति से प्रेरित स्वच्छन्द प्रेम तथा प्रगाढ़ प्रणय-भावना है-
(क) कृष्णभक्ति शाखा
(ख) रामभक्ति शाखा
(ग) प्रेमाश्रयी शाखा
(घ) ज्ञानाश्रयी शाखा

(37) निर्गुण भक्ति की प्रेमाश्रयी शाखा (सूफी काव्यधारा ) के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं
(क) कुतुबन
(ख) मंझन
(ग) उस्मान
(घ) जायसी

(38) काव्य साहित्य में कौन-सा काल स्वर्ण-काल कहलाता है ?
(क) आदिकाल
(ख) भक्तिकाल
(ग) रीतिकाल
(घ) आधुनिककाल

(39) ‘रुनकता’ नामक स्थान सम्बन्धित है [2013]
(क) जयशंकर प्रसाद से
(ख) सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ से
(ग) कबीरदास से
(घ) सूरदास से

(40) प्रेमाश्रयी सूफी काव्यधारा का सम्बन्ध किससे है ? [2013]
(क) कृष्णभक्ति
(ख) सगुणभक्ति
(ग) निर्गुणभक्ति
(घ) रामभक्ति

(41) कृष्णभक्ति शाखा के कवि नहीं हैं [2013, 14]
(क) सूरदास
(ख) नन्ददास
(ग) नाभादास
(घ) जगन्नाथ दास

(42) कृष्णभक्ति शाखा के कौन कवि नहीं हैं ?
(क) मलिक मुहम्मद जायसी
(ख) तुलसीदास
(ग) सूरदास
(घ) सुमित्रानन्दन पन्त

(43) निम्नलिखित कवियों में वल्लभाचार्य का शिष्य कौन था ?
(क) भूषण
(ख) भिखारीदास
(ग) रघुराज सिंह
(घ) कृष्णदास

(44) कृष्णभक्ति शाखा का प्रथम कवि कहते हैं
(क) सूरदास को
(ख) विद्यापति को
(ग) मीराबाई को
(घ) रसखान को

(45) वात्सल्य रस के सम्राट कहे जाते हैं| या ‘श्रृंगार’ और ‘वात्सल्य रस के अमर कवि हैं [2015]
(क) तुलसीदास
(ख) सूरदास
(ग) परमानन्ददास
(घ) कुम्भनदास

(46) कौन सगुण भक्ति शाखा के कवि नहीं हैं ?
(क) सूरदास
(ख) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(ग) तुलसीदास
(घ) ये सभी

(47) कृष्णभक्ति काव्यधारा के अन्तर्गत आते हैं-
(क) सभी ब्रजभाषा के कवि
(ख) भक्तिकाल के कवि
(ग) अष्टछाप के कवि
(घ) सभी श्रृंगारिक रचनाकार

(48) मर्यादा पुरुषोत्तम राम की अवधारणा दी
(क) वाल्मीकि
(ख) तुलसीदास
(ग) कुम्भनदास
(घ) नन्ददास

(49) राम भक्ति शाखा से सम्बन्धित हैं [2009]
(क) कुम्भनदास
(ख) परमानन्ददास
(ग) नाभादास
(घ) चतुर्भुजदास

(50) हिन्दुओं के लिए कौन-से कवि आदरणीय हैं ?
(क) कबीर
(ख) रहीम
(ग) सूरदास
(घ) तुलसीदास

(51) तुलसीदास ने ‘श्रीरामचरितमानस’ की रचना की है [2013]
(क) ब्रजभाषा में
(ख) भोजपुरी में
(ग) अवधी में
(घ) खड़ी बोली में

(52) कौन-सा कथन भक्तिकाल से सम्बन्धित नहीं है ?
(क) जीवन की नश्वरता का वर्णन
(ख) ईश्वर के नाम-स्मरण की महत्ता
(ग) सहयोग और समन्वय की भावना
(घ) नारी को भोग्य सम्पत्ति के रूप में प्रस्तुत करना

(53) कुम्भनदास, परमानन्द दास, क्षीत स्वामी, गोविन्द स्वामी, चतुर्भुज दास, नन्ददास तथा सूरदास को किस श्रेणी का कवि माना जाता था ?
(क) सन्त कवि
(ख) गायक कवि
(ग) महान् कवि
(घ) अष्टछाप के कवि

(54) ‘अष्टछाप’ के कवियों का सम्बन्ध भक्तिकाल की किस शाखा से है ? [2015, 18]
(क) ज्ञानाश्रयी शाखा
(ख) प्रेमाश्रयी शाखा
(ग) कृष्णभक्ति शाखा
(ग) रामभक्ति शाखा

(55) मलिक मुहम्मद जायसी, मंझन तथा कुतुबन किस काव्यधारा के कवि थे ?
(क) ज्ञानाश्रयी निर्गुण काव्यधारा
(ख) सगुण भक्ति काव्यधारा
(ग) प्रेमाश्रयी निर्गुण काव्यधारा
(घ) इनमें से कोई नहीं

(56) निम्नलिखित में से कौन-सी कवि प्रेमाश्रयी शाखा से सम्बन्धित नहीं है ?
(क) जायसी
(ख) मंझन
(ग) चन्दबरदाई
(घ) कुतुबन

(57) ‘प्रेमाश्रयी सूफी काव्यधारा’ का सम्बन्ध किससे था ?
(क) कृष्ण-भक्ति
(ख) सगुण भक्ति
(ग) निर्गुण भक्ति
(घ) इनमें से कोई नहीं

(58) लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम का प्रतिपादन किस काव्यधारा के काव्य के अन्तर्गत किया गया है ?
(क) निर्गुण भक्ति काव्यधारा
(ख) कृष्णभक्ति काव्यधारा
(ग) प्रेमाश्रयी निर्गुण भक्ति काव्यधारा
(घ) सगुण भक्ति काव्यधारा

(59) रसखान किस काव्यधारा के कवि थे ?
(क) प्रेमाश्रयी काव्यधारा
(ख) निर्गुण भक्ति काव्यधारा
(ग) सगुण भक्ति काव्यधारा
(घ) कृष्णभक्ति काव्यधारा

(60) गोस्वामी तुलसीदास केशवदास, हृदयराम तथा प्राणचन्द किस काव्यधारा के कवि थे ?
(क) सगुण भक्ति काव्यधारा
(ख) कृष्णभक्ति काव्यधारा
(ग) ज्ञानाश्रयी भक्ति काव्यधारी।
(घ) रामभक्ति काव्यधारा

(61) सखा-भाव की भक्ति-भावना की प्रधानता तथा श्रृंगार एवं वात्सल्य रस की प्रधानता किस काव्यधारा की मुख्य विशेषताएँ हैं ?
(क) प्रेमाश्रयी काव्यधारा
(ख) कृष्णभक्ति काव्यधारा
(ग) सगुण भक्ति काव्यधारा
(घ) रामभक्ति काव्यधारा

(62) सेवक-सेव्य भाव की भक्ति की प्रधानता है-
(क) सन्त काव्यधारा में ।
(ख) कृष्णभक्ति काव्यधारा में
(ग) रामभक्ति काव्यधारा में
(घ) सगुण भक्ति काव्यधारा में

(63) ‘भक्तिकाल’ का समय आचार्य रामचन्द्रशुक्ल ने माना है [2012]
(क) संवत् 1000 से संवत् 1375 तक
(ख) संवत् 1374 से संवत् 1700 तक
(ग) संवत् 1040 से संवत् 1370 तक
(घ) संवत् 950 से संवत् 1440 तक

(64) निम्नांकित में से कौन प्रेमाश्रयी शाखा के कवि नहीं हैं ?
(क) जायसी
(ख) सूरदास
(ग) मंझन
(घ) कुतुबन

(65) भक्तिकाल की प्रेमाश्रयी शाखा के कवि हैं [2012]
(क) कुम्भनदास
(ख) दादूदयाल
(ग) मंझन
(घ) नन्ददास

(66) निम्नलिखित में से कौन-सी प्रवृत्ति ज्ञानाश्रयी शाखा के काव्य में नहीं पायी जाती ?
(क) गुरु-गोविन्द की महत्ता
(ख) समाज-सुधार का दृष्टिकोण
(ग) नायक-नायिका का वर्णन
(घ) आडम्बर का विरोध

(67) निम्नलिखित में एक रचना तुलसीदास की नहीं है; उसका नाम लिखिए
(क) श्रीकृष्णगीतावली
(ख) साहित्यलहरी
(ग) विनयपत्रिका
(घ) पार्वतीमंगल

(68) निम्नलिखित में से कौन-सी रचना भक्तिकाल में लिखी गयी है ?
(क) कामायनी
(ख) सूरसागर
(ग) भारतभारती
(घ) उद्धवशतक

(69) गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘विनयपत्रिका’ की भाषा है [2010, 16]
(क) अवधी
(ख) मैथिली
(ग) ब्रज
(घ) खड़ी बोली

(70) गोस्वामी तुलसीदास के बचपन का नाम था [2012, 13]
(क) तुकाराम
(ख) आत्माराम
(ग) सीताराम,
(घ) रामबोला

(71) रामचन्द्र शुक्ल ने भक्तिकाल को सर्वश्रेष्ठ लोकवादी कवि किसे कहा है ?
(क) कबीरदास
(ख) सूरदास
(ग) मलिक मुहम्मद जायसी
(घ) तुलसीदास

(72) निम्नलिखित में से किस कवि का काव्य श्रीमद्भागवत से अत्यधिक प्रभावित है ?
(क) केशव
(ख) सूर
(ग) तुलसी
(घ) बिहारी

(73) निम्नलिखित में से किस कवि को बाल-वर्णन क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है ?
(क) तुलसीदास
(ख) बिहारी
(ग) सूरदास
(घ) केशवदास

(74) निम्नलिखित कवियों में स्वामी रामानन्द का शिष्य कौन था ?
(क) नानक
(ख) मलूकदास
(ग) रैदास
(घ) कबीरदास

(75) निम्नलिखित में से कौन-सा कथन भक्तिकाल से सम्बन्धित है ?
(क)लोकोन्मुखी प्रवृत्ति के कारण इस काल की भक्ति-भावना लोक-प्रचलित है।
(ख) इस काल का समस्त साहित्य आक्रमण एवं युद्ध के प्रभावों की मन:स्थितियों का प्रतिफलन है।
(ग) हिन्दी साहित्य में आधुनिकता का सूत्रपात अंग्रेजों की साम्राज्यवादी शासन-प्रणाली के नवीन अनुभव से हुआ था
(घ) प्रगतिवाद के साथ-साथ मनुष्य के मन के यथार्थ को अभिव्यक्त करने वाली प्रयोगवादी धारा भी प्रवाहित हुई।

(76) “वह इस असार संसार को न देखने के वास्ते आँखें बन्द किये थे।” यह किसका कथन है? [2012]
(क) अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का।
(ख) मलिक मुहम्मद जायसी का
(ग) भारतेन्दु हश्चिन्द्र का
(घ) जगन्नाथदास रत्नाकर का

(77) कौन-सा कथन भक्तिकाल की प्रेमाश्रयी शाखा से सम्बद्ध है ?
(क) स्वच्छन्दवादी काव्य-रचनाओं का कला–पक्ष भी नवीनता लिये हुए होता है।
(ख) सामाजिक रूढ़ियों से मुक्त एवं सौन्दर्य-वृत्ति से प्रेरित स्वच्छन्द प्रेम तथा प्रगाढ़ प्रणय भावना ही इस काव्य का मूल विषय रहा है।
(ग) श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में वात्सल्य रस की प्रमुखता है।
(घ) कवियों ने अपने-अपने आश्रयदाताओं की इच्छा के अनुरूप श्रृंगार रस में ही अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं

(78) निम्नलिखित में से कौन सगुण भक्तिशाखा के कवि नहीं हैं ?
(क) सूरदास
(ख) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(ग) तुलसी
(घ) केशवदास

(79) निम्नांकित में रामभक्ति शाखा में कौन नहीं हैं ?
(क) तुलसीदास
(ख) चतुर्भुज दास
(ग) अग्रदास
(घ) नाभादास

(80) भक्तिकाल की रचनाओं में निम्नलिखित में से कौन सबसे अधिक लोकप्रिय है ?
(क) पद्मावत
(ख) श्रीरामचरितमानस
(ग) रामचन्द्रिका
(घ) सूरदास

(81) निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रन्थ सगुण भक्तिधारा का श्रेष्ठ ग्रन्थ है ?
(क) कवितावली
(ख) साहित्य लहरी
(ग) श्रीरामचरितमानस
(घ) रामलला नहछू

(82) भक्तिकाल की काव्य नहीं है [2012]
(क) पद्मावत
(ख) पृथ्वीराज रासो
(ग) श्रीरामचरितमानस
(घ) सूरसागर

(83) भक्तिकाल की कृति है [2010]
(क) साकेत
(ख) पार्वती-मंगल
(ग) कामायनी
(घ) पृथ्वीराज रासो

(84) सामाजिक दृष्टि से घोर अध:पतन का काल था
(क) आदिकाल
(ख) भक्तिकाल
(ग) रीतिकाल
(घ) छायावाद काल

(85) रीतिकाल से सम्बन्धित विशेषता है
(क) सख्य भाव की भक्ति की प्रधानता
(ख) समन्वयकारी भावना
(ग) भक्ति की प्रधानता
(घ) नारी-सौन्दर्य का विलासितापूर्ण चित्रण

(86) रीतिकाल का अन्य नाम है– [2010, 13]
(क) स्वर्णकाल
(ख) उद्भव कोल
(ग) श्रृंगार काल
(घ) संक्रान्तिकाल

(87) रीतिकाल के कवियों की रचनाओं में प्रधानता है-
(क) भावुकता की
(ख) समाज-सुधार की
(ग) अलंकार-प्रदर्शन की
(घ) राष्ट्रीय भावना की

(88) ‘कठिन काव्य का प्रेत’ कहा जाता है [2013, 16]
(क) घनानन्द को
(ख) ‘भूषण’ को
(ग) ‘केशव’ को
(घ) ‘पद्माकर’ को

(89) कौन-सा ग्रन्थ रीतिकालीन काव्य-परम्परा से सम्बन्धित है ?
(क) श्रीरामचरितमानस
(ख) बिहारी सतसई
(ग) दीपशिखा
(घ) रश्मिरथी

(90) निम्नलिखित में कौन-से कवि रीतिकाल के हैं ?
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) रामधारी सिंह दिनकर
(ग) मलूकदास
(घ) बिहारी

(91) रीतिबद्ध काव्यधारा के कवि हैं
(क) केशवदास
(ख) बिहारी
(ग) घनानन्द
(घ) बोधा

(92) ‘बिहारी सतसई’ की भाषा है [2013]
(क) अवधी
(ख) खड़ी बोली
(ग) ब्रजभाषा
(घ) मैथिली

(93) रीतिमुक्त काव्यधारा के कवि हैं [2013, 14, 15]
(क) घनानन्द
(ख) सेनापति
(ग) बिहारी
(घ) वृन्द

(94) रीतिकाल की कृति है [2010, 11]
(क) रसमंजरी
(ख) प्रेमसागर
(ग) आर्या सप्तशती
(घ) बिहारी सतसई

(95) निम्नलिखित में से कौन-सा कथन रीतिकाल से सम्बन्धित है ?
(क) भागवत धर्म के प्रचार तथा प्रसार के परिणामस्वरूप भक्ति आन्दोलन का सूत्रपात हुआ था
(ख) वीरगाथाओं की रचना प्रवृत्ति की प्रधानता थी
(ग) सामान्य रूप से श्रृंगारप्रधान लक्षण-ग्रन्थों की रचना हुई।
(घ) गुरु और गोविन्द की महत्ता का प्रतिपादन हुआ

(96) निम्नलिखित में रीतिमुक्त कवि कौन हैं ?
(क) महाकवि देव
(ख) आलम
(ग) मतिराम
(घ) पद्माकर

(97) रीतिकाल की निम्नलिखित प्रमुख प्रवृत्तियों में से कौन-सी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है ?
(क) राज-प्रशस्ति
(ख) श्रृंगारिकता
(ग) रीति निरूपण
(घ) नीति

(98) निम्नलिखित कवियों में से रीतिकाल का कवि कौन नहीं है ?
(क) घनानन्द
(ख) मतिराम
(ग) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(घ) पद्माकर

(99) ‘कवितावर्धिनी’ साहित्यिक संस्था की स्थापना की थी [2016]
(क) जयशंकर प्रसाद ने
(ख) महावीरप्रसाद द्विवेदी ने।
(ग) महादेवी वर्मा ने
(घ) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने।

(100) भारतेन्दु युग की रचना है [2010]
(क) प्रेम-माधुरी
(ख) कामायनी
(ग) निरुपमा
(घ) युगवाणी

(101) ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका’ पत्रिका के सम्पादक थे–
(क) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(ख) मैथिलीशरण गुप्त
(ग) महादेवी वर्मा
(घ) सुमित्रानन्दन पन्त

(102) साहित्य सुधानिधि’ के सम्पादक हैं [2013]
(क) जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’
(ख) महावीर प्रसाद द्विवेदी
(ग) अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
(घ) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

(103) ‘हरिऔध’ का जन्म-स्थान है [2013]
(क) एबटाबाद
(ख) निजामाबाद
(ग) काशी
(घ) फर्रुखाबाद

(104) मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक काल के किस युग से सम्बन्धित हैं ?
(क) शुक्ल युग
(ख) द्विवेदी युग
(ग) छायावादी युग
(घ) छायावादोत्तर युग

(105) मैथिलीशरण गुप्त का प्रथम काव्य-संग्रह है [2012]
(क) अनद्य
(ख) भारत भारती
(ग) पंचवटी
(घ) सिद्धराज

(106) अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ किस युग के कवि हैं ?
(क) भारतेन्दु युग
(ख) प्रगतिवाद युग
(ग) द्विवेदी युग
(घ) छायावाद युग

(107) निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रन्थ द्विवेदी युग से सम्बन्धित है ?
(क) कामायनी
(ख) पल्लव
(ग) साकेत
(घ) यामा

(108) निम्नलिखित में से द्विवेदी युग की रचना है [2018]
(क) कामायनी
(ख) तार-सप्तक
(ग) प्रिय-प्रवास
(घ) ग्राम्या

(109) द्विवेदी युग में लिखी गयी रचना है
(क) सान्ध्यगीत
(ख) गीतावली
(ग) पंचवटी
(घ) कवि प्रिया

(110) द्विवेदी युग का महाकाव्य नहीं है [2013]
(क) प्रियप्रवास
(ख) साकेत
(ग) कामायनी
(घ) द्वापर

(111) श्रृंगार के पूर्ण बहिष्कार से सौन्दर्य को स्रोत सूख गया था
(क) भारतेन्दु युग में
(ख) द्विवेदी युग में
(ग) छायावाद युग में
(घ) रीतिकाल में

(112) ‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल’—यह प्रसिद्ध पंक्ति किस काल की देन है ?
(क) छायावादोत्तर काल
(ख) भारतेन्दु काल
(ग) छायावादी काल
(घ) रीतिकाल

(113) हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल’ का सूत्रपात किस शासन-काल में हुआ ?
(क) स्व-शासन-काल
(ख) ब्रिटिश शासन-काल
(ग) मुगल शासन-काल
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

(114) हिन्दी साहित्य में आधुनिकता का प्रवर्तक साहित्यकार किसे माना जाता है ?
(क) भूषण
(ख) भारतेदु हरिश्चन्द्र
(ग) मतिराम
(घ) गंग कवि

(115) हिन्दी जागरण के अग्रदूत थे-
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) सुमित्रानन्दन पन्त
(ग) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(घ) मुंशी प्रेमचन्द

(116) निम्नांकित में से कौन-सी रचना भारतेन्दु युग में लिखी गयी है ?
(क) प्रेममाधुरी
(ख) कामायनी
(ग) निरुपमा
(घ) युगवाणी

(117) निम्नलिखित में से उस ग्रन्थ का नाम लिखिए जो ‘हरिऔध’ जी का नहीं है
(क) चोखे चौपदे
(ख) वैदेही वनवास
(ग) चित्राधार
(घ) प्रियप्रवास

(118) निम्नलिखित में से कौन-सा कवि छायावादी नहीं है ? [2011]
(क) महादेवी वर्मा
(ख) जयशंकर प्रसाद
(ग) मैथिलीशरण गुप्त
(घ) सुमित्रानन्दन पन्त

(119) निम्नलिखित में से छायावादयुगीन कवि हैं [2011, 17]
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) जगन्नाथदास ‘रत्नाकर
(ग) रामधारीसिंह ‘दिनकर’
(घ) कबीरदास

(120) निम्नलिखित में से कौन-सा छायावादी कवि है?
(क) सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला
(ख) भूषण
(ग) बिहारी
(घ) रामधारी सिंह ‘दिनकर’

(121) निम्नलिखित में से कौन-सा कथन छायावाद से सम्बन्धित है ?
(क) सौन्दर्य का स्रोत सूख गया था
(ख) ब्रजभाषा का एकछत्र साम्राज्य था।
(ग) सामाजिक समस्याओं का चित्रण हुआ
(घ) मानव की अन्तरात्मा के सौन्दर्य का उद्घाटन हुआ

(122) छायावाद युग का समय कब से कब तक माना जाता है?
(क) 1938-1943 ई०
(ख) 1868-1900 ई०
(ग) 1919-1938 ई०
(घ) 1900-1922 ई०

(123) ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से विभूषित किया गया है [2010]
या
राष्ट्रकवि का सम्मान मिला है। [2018]
(क) रामकुमार वर्मा को
(ख) मैथिलीशरण गुप्त को
(ग) महादेवी वर्मा को
(घ) सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ को

(124) छायावादी कविता के ह्रास का सबसे बड़ा कारण था-
(क) भक्ति-भावना
(ख) विदेशी शासन के दमन-चक्र की पीड़ा
(ग) नारी को भोग्य सम्पत्ति का रूप देना
(घ) लक्षण ग्रन्थों की रचना

(125) छायावादी काव्य की विशेषता नहीं है-
(क) रहस्यवाद की प्रधानता
(ख) स्वदेश प्रेम की अभिव्यक्ति
(ग) मानवतावादी दृष्टिकोण
(घ) व्यक्तिवादी भावना एवं अतिशय भावुकता

(126) छायावाद की मुख्य विशेषता है– [2010, 11]
(क) प्रकृति-चित्रण
(ख) युद्धों का वर्णन
(ग) यथार्थ-चित्रण
(घ) भक्ति की प्रधानता

(127) ‘छायावाद’ की विशेषता है
(क) इतिवृत्तात्मकता
(ख) शृंगारिक भावना
(ग) सौन्दर्य एवं प्रेम
(घ) उपदेशात्मक वृत्ति

(128) छायावादी कवि हैं– [2010]
(क) सुमित्रानन्दन पन्त
(ख) नागार्जुन
(ग) सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
(घ) अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

(129) निम्नलिखित में से कौन-सा कवि छायावादी है ? [2009]
(क) अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
(ख) श्रीधर पाठक
(ग) महादेवी वर्मा
(घ) मैथिलीशरण गुप्त

(130) प्रकृति के सुकुमार कवि कहलाते हैं [2011]
(क) सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’
(ख) सुमित्रानन्दन पन्त
(ग) जयशंकर प्रसाद
(घ) महादेवी वर्मा

(131) छायावादी काव्य की वृहत्-त्रयी के रचनाकार नहीं हैं [2012]
(क) प्रसाद
(ख) पन्त
(ग) निराला
(घ) महादेवी

(132) ‘प्रसाद’ का काव्य प्रवृत्ति-निवृत्ति मिश्रित है [2013]
(क) ‘लहर’ में
(ख) “आँसू’ में
(ग) ‘झरना’ में
(घ) ‘कामायनी’ में

(133) कौन-सा नया अलंकार छायावाद की देन है ?
(क) अनुप्रास
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) सन्देह
(घ) मानवीकरण

(134) कौन-सा कवि छायावाद के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक नहीं है ?
(क) जयशंकर प्रसाद
(ख) सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला
(ग) जगन्नाथदास ‘रत्नाकर
(घ) महादेवी वर्मा

(135) आधुनिक युग की मीरा हैं [2013]
(क) महादेवी वर्मा
(ख) सुभद्राकुमारी चौहान
(ग) सुमित्रा कुमारी सिन्हा
(घ) इनमें से कोई नहीं

(136) इतिवृत्तात्मकता की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप किस वाद का प्रादुर्भाव हुआ ?
(क) मानवतावाद
(ख) छायावाद
(ग) प्रगतिवाद
(घ) प्रयोगवाद

(137) ‘पन्त’ जी के उस काव्य-ग्रन्थ का नाम लिखिए जिसमें उनकी सांस्कृतिक एवं दार्शनिक विचारधारा व्यक्त हुई है-
(क) चिदम्बरा
(ख) उत्तरा
(ग) पल्लव
(घ) लोकायतन

(138) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने कौन-सी पत्रिका प्रकाशित की थी ?
(क) कविवचन सुधा
(ख) सरस्वती
(ग) कल्पना
(घ) ज्ञानोदय

(139) निम्नलिखित में से कौन-सी रचना छायावाद युग में लिखी गयी है ?
(क) प्रेम-माधुरी
(ख) उद्धव शतक
(ग) चित्राधार
(घ) सूरसारावली

(140) ‘कामायनी’ और ‘झरना’ किस युग की रचनाएँ हैं ? [2011, 13]
(क) भारतेन्दु युग
(ख) द्विवेदी युग
(ग) छायावादी युग
(घ) प्रगतिवादी युग

(141) ‘कामायनी’ महाकाव्य में सर्गों की संख्या है [2013, 14]
(क) नौ
(ख) बारह
(ग) पन्द्रह
(घ) सत्रह

(142) निम्नलिखित में कौन-सा कथन छायावाद से सम्बन्धित है ?
(क) इस काव्य में लौकिक वर्णनों के माध्यम से अलौकिकता की व्यंजना की गयी है।
(ख) धार्मिक क्षेत्र में रूढ़िवाद और बाह्याडम्बर का विरोध किया गया है।
(ग) इस काव्य में मूलतः सौन्दर्य और प्रेम-भावना मुखरित हुई है।
(घ) इस काव्य में भाव-पक्ष की अपेक्षा कला-पक्ष की प्रधानता है।

(143) निम्नलिखित में से कौन-सा कथन आधुनिक काल से सम्बन्धित है ?
(क) हिन्दी काव्य कवियों के स्वच्छन्द और समर्थ व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है।
(ख) विलास के साधनों से हीन वर्ग कर्म एवं आचार के स्थान में अन्धविश्वासी हो चला था
(ग) साहित्य मानव-समाज की भावनात्मक स्थिति और गतिशील चेतना की अभिव्यक्ति है।
(घ) उपर्युक्त सभी

(144) निम्नलिखित उद्धरणों में कौन-सा उद्धरण आधुनिक काल से सम्बन्धित है ?
(क) जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि सरहपा को हिन्दी का प्रथम कवि माना जाता है।
(ख) लौकिक (देशभाषा) साहित्य देशभाषा डिंगल में उपलब्ध होता है।
(ग) हिन्दी साहित्य में मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के दर्शन को प्रगतिवाद और फ्रायड के मनोविश्लेषण को प्रयोगवाद की संज्ञा दी गयी।
(घ) रहस्यवाद के दर्शन से इस धारा के अधिकांश कवियों का भक्त कवियों में अन्तर्भाव हो जाता है।

(145) “विदेशी सत्ता प्रतिष्ठित हो जाने के कारण देश की जनता में गौरव, गर्व और उत्साह का अवसर न रह गया था।” यह कथन निम्नलिखित लेखकों में से किस लेखक का है ?
(क) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
(ख) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
(ग) डॉ० रामकुमार वर्मा
(घ) डॉ० नगेन्द्र

(146) ‘वह तोड़ती पत्थर’ नामक कविता किस प्रकार की है ?
(क) प्रयोगवादी
(ख) रीतिकालीन
(ग) द्विवेदीयुगीन
(घ) प्रगतिवादी

(147) प्रगतिवादी कवि नहीं है [2010]
(क) शिवमंगल सिंह सुमन
(ख) रामविलास शर्मा
(ग) नागार्जुन
(घ) भवानीप्रसाद मिश्र

(148) प्रगतिवादी कवि कौन है ?
(क) महादेवी वर्मा
(ख) पाल भसीन
(ग) नागार्जुन
(घ) प्रभाकर माचवे

(149) काव्य में हालावाद के प्रवर्तक हैं
(क) सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
(ख) सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’
(ग) धर्मवीर भारती
(घ) हरिवंश राय बच्चन’

(150) निम्नलिखित में प्रगतिवाद की कौन-सी समयावधि मान्य है ? [2009]
(क) 1900 ई० से 1918 ई०
(ख) 1918 ई० से 1936 ई०
(ग) 1936 ई० से 1943 ई०
(घ) 1943 ई० से 1953 ई०

(151) ‘काव्य जगत् में व्याप्त प्राचीन रूढ़ियों और मान्यताओं का स्पष्ट विरोध’ तथा काव्य के ‘मानवतावाद की प्रधानता’ किस काल की मुख्य विशेषता है ?
(क) द्विवेदी काल
(ख) प्रगतिवादी काल
(ग) छायावादी काल
(घ) प्रयोगवादी काल

(152) निम्नलिखित में छायावादोत्तर कवि कौन है ?
(क) हरिऔध
(ख) मैथिलीशरण गुप्त
(ग) महादेवी वर्मा
(घ) अज्ञेय

(153) ‘नयी कविता’ का शुभारम्भ हुआ [2012, 13]
(क) सन् 1954 में
(ख) सन् 1940 में
(ग) सन् 1950 में
(घ) सन् 1947 में

(154) नयी कविता की आधारभूत विशेषता है-
(क) आध्यात्मिक छाया-दर्शन
(ख) श्रृंगार की प्रधानता
(ग) किसी भी दर्शन से बँधी हुई नहीं है।
(घ) लाक्षणिकता

(155) किसी भी दर्शन के साथ बँधी हुई नहीं है-
(क) छायावादी कविता
(ख) नयी कविता
(ग) प्रगतिवादी कविता
(घ) रीतिकालीन कविता

(156) ‘कनुप्रियां’ किस युग से सम्बन्धित रचना है ?
(क) द्विवेदी युग
(ख) शुक्ल युग
(ग) छायावादी युग
(घ) छायावादोत्तर युग

(157) प्रयोगवादी काव्यधारा के जनक (प्रवर्तक) हैं [2011, 12]
(क) ‘अज्ञेय’
(ख) “दिनकर’
(ग) “मुक्तिबोध’
(घ) “धूमिल’

(158) निम्नलिखित में कौन प्रगतिवादी कवि नहीं है ?
(क) प्रभाकर माचवे
(ख) मुक्तिबोध
(ग) शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
(घ) अज्ञेय

(159) प्रयोगवाद काव्य के क्षेत्र में—
(क) चिरकाल तक रहा
(ख) शीघ्र ही समाप्ति की ओर चला गया
(ग) बहुत प्रसिद्ध हुआ
(घ) अधिक सफल नहीं हुआ।

(160) घोर वैयक्तिकता, अति यथार्थवाद, अति बौद्धिकता तथा सभी पुरानी मान्यताओं के विरुद्ध पूर्ण विद्रोह किस काव्यधारा की विशेषताएँ हैं ?
(क) छायावादी काव्यधारा
(ख) प्रगतिवादी काव्यधारा
(ग) प्रयोगवादी काव्यधारा
(घ) इनमें से कोई नहीं

(161) “प्रयोग सभी कालों के कवियों ने किया है। ::::किसी एक काल में किसी विशेष दिशा में प्रयोग करने की प्रवृत्ति स्वाभाविक ही है।” यह वक्तव्य निम्नलिखित रचनाकारों में किसका है ?
(क) निराला
(ख) अज्ञेय
(ग) प्रसाद
(घ) महादेवी वर्मा

(162) निम्नलिखित में से प्रयोगवादी कवि कौन है ?
(क) भूषण
(ख) सुमित्रानन्दन पन्त
(ग) बिहारी
(घ) अज्ञेय

(163) ‘अज्ञेय’ ने तार सप्तक’ का प्रकाशन किया [2009, 10, 11, 13, 14]
या
‘तारसप्तक’ का प्रकाशन वर्ष है– [2015, 16,17, 18]
(क) सन् 1947 में
(ख) सन् 1943 में
(ग) सन् 1950 में
(घ) सन् 1931 में

(164) तार सप्तक’ के सम्पादक हैं [2010, 13, 15, 17]
(क) विद्यानिवास मिश्र
(ख) मुक्तिबोध
(ग) अज्ञेय
(घ) हजारीप्रसाद द्विवेदी

(165) तार सप्तक से सम्बन्धित हैं [2009]
(क) रामविलास शर्मा
(ख) नरेन्द्र शर्म
(ग) भवानीप्रसाद मिश्र
(घ) धर्मवीर भारती

(166) ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ की स्थापना कब हुई ? [2012, 18]
(क) सन् 1943 में
(ख) सन् 1954 में
(ग) सन् 1938 में
(घ) सन् 1936 में

(167) निम्नलिखित में कौन प्रेमाश्रयी शाखा का कवि नहीं है ?
(क) जायसी
(ख) बिहारीलाल
(ग) कुतुबन
(घ) मंझन

(168) निम्नलिखित में से कौन-सा कथन भक्तिकाल से सम्बन्धित है ?
(क) सामाजिक दृष्टि से यह काल घोर अध:पतन का काल था
(ख) सिद्धों की वाममार्गी योग साधना की प्रतिक्रिया से नायपंथियों की हठयोग साधना आरम्भ हुई
(ग) जीवन का समन्वयवादी एवं मर्यादावादी दृष्टिकोण ही तुलसी की सबसे बड़ी देन है।

(169) विनय-पत्रिका किस भाषा की कृति है ? [2010]
(क) अवधी
(ख) ब्रजभाषा
(ग) खड़ी बोली हिन्दी
(घ) भोजपुरी

(170) कृष्णकाव्य-धारा के प्रतिनिधि कवि हैं [2011]
(क) मीरा
(ख) रसखान
(ग) परमानन्ददास
(घ) सूरदास

(171) कृष्णकाव्य-धारा के कवि नहीं हैं
(क) नन्ददास
(ख) चतुर्भुजदास
(ग) सूरदास
(घ) लालदास

(172) निम्नलिखित में से कौन-सा कवि ‘कृष्णभक्ति धारा’ से सम्बन्धित नहीं है ? (2009)
(क) सूरदास
(ख) नाभादास
(ग) कृष्णदास
(घ) नन्ददास

(173) निम्नलिखित में से कौन-सी रचना वीरगाथात्मक नहीं है ? [2009]
(क) परमाल रासो
(ख) विद्यापति
(ग) पृथ्वीराज रासो
(घ) बीसलदेव रासो

(174) निम्नलिखित में से कौन-सा भक्तिकाल का काव्य है ?
(क) श्रीरामचरितमानस
(ख) साकेत
(ग) कामायनी
(घ) बीसलदेव रासो

(175) निम्नलिखित कवियों में बल्लभाचार्य के शिष्य कौन हैं ?
(क) रघुराज सिंह
(ख) बिहारीलाल
(ग) भूषण
(घ) कृष्णदास

(176) ‘भक्ति-आन्दोलन’ का श्रेय जाता है [2016]
(क) वल्लभाचार्य को
(ख) शंकराचार्य को
(ग) रामानुजाचार्य को
(घ) निम्बार्काचार्य को

(177) निम्नलिखित में से रीतिकाल का काव्य है [2009]
(क) पृथ्वीराज रासो
(ख) रामचन्द्रिका
(ग) कामायनी
(घ) विनय पत्रिका

(178) निम्नलिखित में कौन-सा कवि ‘रीतिमुक्त’ काव्यधारा का है ?
(क) चिन्तामणि
(ख) केशव
(ग) ठाकुर
(घ) देव

(179) मैथिलीशरण आधुनिक काल के किस युग से सम्बन्धित हैं ?
(क) शुक्लयुग
(ख) द्विवेदी युग
(ग) छायावाद युग
(घ) छायावादोत्तर युग

(180) निम्नलिखित में कौन-सी महादेवी वर्मा की रचना है ?
(क) धूप के धान
(ख) चाँद का मुँह टेढ़ा
(ग) सान्ध्य गीत
(घ) पल्लव

(181) शोषण का विरोध एवं शोषकों के प्रति घृणा किस काव्यधारा की प्रमुख विशेषताएँ मानी गयी हैं?
(क) छायावाद
(ख) प्रगतिवाद
(ग) प्रयोगवाद
(घ) नयी कविता

(182) नयी कविता के कवि हैं [2011]
(क) नरेन्द्र शर्मा
(ख) अज्ञेय
(ग) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(घ) सुमित्रानन्दन पन्त

(183) ज्ञानाश्रयी काव्यधारा के कवि नहीं हैं [2014]
(क) कबीरदास
(ख) मलूकदास
(ग) नन्ददास
(घ) रैदास

(184) अमीर खुसरो कवि हैं [2014]
(क) आदिकाल के
(ख) भक्तिकाल के
(ग) रीतिकाल के
(घ) आधुनिककाल के

(185) ‘रीतिकाल’ को ‘ श्रृंगारकाल’ नाम दिया है [2014]
या
रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के जिस काल को ‘रीतिकाल’ कहा है, उसे ‘ श्रृंगार काल’ नाम दिया है [2015, 18]
(क) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने
(ख) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने
(ग) आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने।
(घ) आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ने

(186) रीतिकालीन कवि हैं [2014]
(क) मीराबाई
(ख) रसखान
(ग) द्विजदेव
(घ) विद्यापति

(187) ”हिन्दी साहित्य के हजार वर्षों में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ।” यह कथन है [2014]
(क) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का
(ख) आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का
(ग) आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का
(घ) आचार्य श्यामसुन्दर दास का

(188) रामचन्द्र शुक्ल ने जिस काल को ‘वीरगाथाकाल’ कहा है, उसे आदिकाल कहा है-[2014]
(क) राहुल सांकृत्यायन ने
(ख) हजारीप्रसाद द्विवेदी ने
(ग) डॉ० रामकुमार वर्मा ने
(घ) डॉ० धीरेन्द्र वर्मा ने

(189) ‘दूसरा सप्तक’ के कवि हैं [2014]
(क) रामविलास शर्मा
(ख) गिरिजा कुमार माथुर
(ग) केदारनाथ सिंह
(घ) भवानीप्रसाद मिश्र

(190) खड़ी बोली’ का प्रथम महाकाव्य है [2014]
(क) वैदेही वनवास
(ख) प्रिय प्रवास
(ग) साकेत
(घ) कामायनी

(191) ‘रामभक्ति शाखा’ के कवि नहीं हैं [2014]
(क) तुलसीदास
(ख) अग्रदास
(ग) चतुर्भुजदास
(घ) नाभादास

(192) ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार नहीं मिला है [2014]
(क) सुमित्रानन्दन पन्त को
(ख) मैथिलीशरण गुप्त को
(ग) रामधारी सिंह ‘दिनकर’ को
(घ) महादेवी वर्मा को

(193) ‘बसुआ गोविन्दपुर’ में जन्म हुआ था [2014]
(क) रत्नाकर का
(ख) सूरदास का
(ग) रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का
(घ) बिहारी का

(194) सूकर खेत’ स्थान सम्बन्धित है [2014]
(क) कबीरदास से
(ख) सूरदास से
(ग) तुलसीदास से।
(घ) केशवदास से

(195) ‘आदिकाल’ का नाम ‘अपभ्रंश काल दिया है [2014]
(क) मिश्रबन्धु ने
(ख) राहुल सांकृत्यायन ने
(ग) महावीरप्रसाद द्विवेदी ने
(घ) चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ ने।

(196) भवानीप्रसाद मिश्र कवि-रूप में संगृहीत हैं [2015]
(क) तारसप्तक में
(ख) दूसरा सप्तक में
(ग) तीसरा सप्तक में
(घ) चौथा सप्तक में

(197) हिन्दी साहित्य के ‘आदिकाल’ के लिए बीज-वपन काल’ नाम दिया है [2015, 16]
(क) रामचन्द्र शुक्ल ने
(ख) डॉ० रामकुमार वर्मा ने
(ग) आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने
(घ) डॉ० मोहन अवस्थी ने।

(198) चिन्तामणि कवि हैं [2016]
(क) रीतिसिद्ध वर्ग के
(ख) रीतियुक्त वर्ग के
(ग) रीतिरहित वर्ग के
(घ) रीतिबद्ध वर्ग के

(199) मैथिलीशरण गुप्त की रचना में राष्ट्रप्रेम की भावना परिलक्षित होती है– [2016]
(क) भारत-भारती में
(ख) जयद्रथ वध में
(ग) साकेत में
(घ) पंचवटी में

(200) ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ काव्य कृति है [2016]
(क) गजानन माधव मुक्तिबोध की
(ख) रामधारीसिंह ‘दिनकर’ की
(ग) गिरिजाकुमार माथुर की
(घ) धर्मवीर भारती की

(201) कला और बूढ़ा चाँद’ पर सुमित्रानन्दन पन्त को पुरस्कार प्राप्त हुआ [2016, 17]
(क) साहित्य अकादमी
(ख) ज्ञानपीठ
(ग) मंगलाप्रसाद
(घ) सोवियत लैण्ड नेहरू

(202) ‘अलंकार-रत्नाकर’ के लेखक हैं [2016]
(क) याकूब खाँ
(ख) जसवन्त सिंह
(ग) दलपति राय वंशीधर
(घ) भिखारीदास

(203) मध्वाचार्य का वाद हैं [2016]
(क) द्वैतवाद
(ख) अद्वैतवाद
(ग) द्वैताद्वैतवाद
(घ) शुद्धाद्वैतवाद

(204) ‘मुकरियाँ’ रचना है (2016)
(क) मधुकर कवि की
(ख) कुशल राय की
(ग) अमीर खुसरो की
(घ) भट्ट केदार की

(205) ‘प्रयोगवाद’ को ‘नई कविता’ की संज्ञा दी [2016]
(क) गिरिजाकुमार माथुर
(ख) केदारनाथ सिंह
(ग) अज्ञेय
(घ) धर्मवीर भारती

(206) आदिकाल को वीरगाथा काल का नामकरण किया [2016]
(क) हजारीप्रसाद द्विवेदी ने।
(ख) डॉ० रामकुमार वर्मा ने
(ग) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने
(घ) मिश्रबन्धु ने

(207) प्रेम माधुरी के रचयिता हैं [2016]
(क) प्रतापनारायण मिश्र
(ख) बालकृष्ण भट्ट
(ग) लाला श्री निवासदास
(घ) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

(208) मैथिलीशरण गुप्त की रचना है– [2016]
(क) प्रिय-प्रवास
(ख) साकेत
(ग) कामायनी
(घ) लोकापतन

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