UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 1 (Section 3)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 1 भारत : भौतिक स्वरूप (अनुभाग – तीन)

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विरत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत का भौगोलिक वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए [2016]
(क) स्थिति एवं विस्तार,
(ख) भू-आकृति (उच्चावच),
(ग) जल-निकास (प्रवाह)।
उत्तर :

(क) भारत की स्थिति एवं विस्तार

हिन्द महासागर के शीर्ष पर स्थित भारत एक विशाल देश है। इसका क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी (2.43%) है। भारत 8°4′ से 37°6′ उत्तरी अक्षांशों और 687′ से 97°25′ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। निकोबार द्वीप समूह में स्थित ‘इन्दिरा प्वॉइण्ट’ भारत का दक्षिणतम बिन्दु है। मुख्य स्थल पर कन्याकुमारी भारत का सबसे दक्षिण में स्थित बिन्दु है जब कि जम्मू-कश्मीर राज्य में स्थित इन्दिरा कोल’ सबसे उत्तरी बिन्दु। 26 दिसम्बर, 2009 में सूनामी के कारण भारत के सबसे दक्षिणी बिन्दु ‘इन्दिरा प्वॉइण्ट’ ने जल समाधि ले ली। 82°30′ पूर्वी देशान्तर रेखा भारत की प्रामाणिक देशान्तर रेखा है, (UPBoardSolutions.com) जो इलाहाबाद तथा चेन्नई से होकर गुजरती है। कर्क वृत्त (23°30′ उत्तरी अक्षांश) देश के लगभग मध्य से होकर गुजरती है; अत: देश का उत्तरी भाग उपोष्ण (सम-शीतोष्ण) कटिबन्ध में तथा दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है। भारतीय मानक समय रेखा भारत के पाँच राज्यों-उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आन्ध्र प्रदेश से गुजरती है। भारत का दक्षिणी भाग, जिसमें प्रायद्वीपी-भारत सम्मिलित है, उष्ण कटिबन्ध में आता है। उत्तरी भाग जिसमें मुख्यत: उत्तर का पर्वतीय मैदानी भाग है, उपोष्ण कटिबन्ध में आता है। तीन ओर से सागरों से घिरा होने के कारण यहाँ विशिष्ट मानसूनी जलवायु पायी जाती है, जो देश के समूचे अर्थतन्त्र को प्रभावित करती है। भारत यूरोप से ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिणी और पूर्वी एशियाई देशों के व्यापारिक मार्गों पर स्थित है। . इसलिए प्राचीन काल से ही यहाँ विदेशी व्यापार उन्नत रहा है।

भारतीय उपमहाद्वीप एक सुस्पष्ट भौगोलिक इकाई है, जिसमें एक विशिष्ट संस्कृति का विकास हुआ है। इस महाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान, केन्द्र में भारत, उत्तर में नेपाल, उत्तर-पूर्व में भूटान तथा पूर्व में बाँग्लादेश सम्मिलित हैं। हिन्द महासागर में स्थित द्वीपीय देश श्रीलंका और मालदीव हमारे दक्षिणी पड़ोसी देश हैं। इन प्रदेशों की भौगोलिक स्थिति, जलवायु, प्राकृतिक मिट्टी तथा जनसंख्या की विशेषताओं में विभिन्नताएँ तथा विविधताएँ होते हुए भी उनमें एकात्मकता दिखायी पड़ती है। इसीलिए इसे उपमहाद्वीप कहा जाता है।

भारत विषुवत् रेखा के उत्तर में स्थित है। इस कारण यह उत्तरी गोलार्द्ध में आता है। प्रधान मध्याह्न रेखा (ग्रीनविच रेखा) के पूर्व में स्थित होने के कारण भारत पूर्वी गोलार्द्ध में आता है। हम जानते हैं कि मध्याह्न रेखा की मध्य स्थिति 90° पूर्वी देशान्तर है, जो भारत से ही होकर गुजरती है। 82°30′ पूर्वी मध्याह्न रेखा भारत की मानक मध्याह्न रेखा है। इससे पूर्वी गोलार्द्ध में भारत की केन्द्रीय स्थिति स्पष्ट हो जाती है। भारत एशिया महाद्वीप के दक्षिण (UPBoardSolutions.com) मध्य प्रायद्वीप में स्थित है। एशियो संसार में सबसे बड़ा तथा सबसे अधिक जनसंख्या वाला महाद्वीप है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण ही भारत को प्राचीन काल से ही आर्थिक लाभ प्राप्त हुए हैं।

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(ख) भारत का उच्चावच अथवा प्राकृतिक स्वरूप (बनावट)

उच्चावच से तात्पर्य किसी भू-भाग के ऊँचे व नीचे धरातल से है। सभी प्रकार के पहाड़ी, पठारी व मैदानी तथा मरुस्थलीय क्षेत्र मिलकर किसी क्षेत्र के उच्चावच का निर्माण करते हैं। उच्चावच की दृष्टि से भारत में अनेक विभिन्नताएँ मिलती हैं। इनका मूल कारण अनेक शक्तियों और संचालनों का परिणाम है, जो लाखों वर्ष पूर्व घटित हुई थीं। इसकी उत्पत्ति भूवैज्ञानिक अतीत के अध्ययन से स्पष्ट की जा सकती है। आज से 25 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप विषुवत् रेखा के दक्षिण में स्थित प्राचीन गोण्डवानालैण्ड का एक भाग था। अंगारालैण्ड नामक एक अन्य प्राचीन भूखण्ड विषुवत् रेखा के उत्तर में स्थित था। दोनों प्राचीन भूखण्डों के मध्य टेथिस नामक एक सँकरा, लम्बा, उथला सागर था। इन भूखण्डों की नदियाँ टेथिस में अवसाद जमा करती रहीं, जिससे कालान्तर में टेथिस सागर पट गया। पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण दोनों भूखण्ड टूटे। गोण्डवानालैण्ड से भारत का प्रायद्वीप अलग हो गया तथा भूखण्डों के टूटे हुए भाग विस्थापित होने लगें। आन्तरिक हलचलों से टेथिस सागर के अवसादों की परतों में भिंचाव हुआ और उसमें विशाल मोड़ पड़े गये। इस प्रकार हिमालय पर्वत-श्रृंखला की रचना हुई। इसी कारण हिमालय को वलित पर्वत कहा जाता है।

हिमालय की उत्पत्ति के बाद भारतीय प्रायद्वीप और हिमालय के मध्य एक खाई या गर्त शेष रह गया। हिमालय से निकलने वाली नदियों ने स्थल का अपरदन करके अवसादों के उस गर्त को क्रमशः भरना शुरू किया जिससे विशाल उत्तरी मैदान की रचना (UPBoardSolutions.com) हुई। इस प्रकार भारतीय उपमहाद्वीप की भू-आकृतिक इकाइयाँ अस्तित्व में आयीं।

भारत एक विशाल देश है। भू-आकृतिक संरचना की दृष्टि से भारत में अनेक विषमताएँ एवं विभिन्नताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। भारत का 29.3% भाग पर्वतीय, पहाड़ी एवं ऊबड़-खाबड़, 27.7% भाग पठारी तथा 43% भाग मैदांनी है। भारत में अन्य देशों की अपेक्षा मैदानी क्षेत्रों का विस्तार अधिक है (विश्व की औसत 41%)। देश में एक ओर नवीन मोड़दार पर्वत-श्रृंखलाएँ हैं तो दूसरी ओर विस्तृत तटीय मैदान, कहीं नदियों द्वारा समतल उपजाऊ मैदान हैं तो कहीं प्राचीनतम कठोर चट्टानों द्वारा निर्मित कटा-फटा पठारी भाग है।

(ग) जल-निकास : प्रवाह विस्तृत स्तरीय प्रश्न संख्या 6 देखें।

प्रश्न 2.
भारत को प्रमुख भू-आकृतिक विभागों में बाँटिए और भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का वर्णन कीजिए।
या
भारत को भौतिक विभागों में विभाजित कीजिए तथा उनमें से किन्हीं एक का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए [2014]
(क) स्थिति का विस्तार, (ख) प्राकृतिक स्वरूप।
या
भारत को उच्चावच के आधार पर भौतिक विभागों में विभाजित कीजिए तथा उनमें से किसी। एक की स्थिति, विस्तार एवं भौतिक स्वरूप का वर्णन कीजिए। [2012]
या

भारत को विभिन्न भौतिक विभागों में बाँटिए और पूर्वी  तथा पश्चिमी (UPBoardSolutions.com) मैदानों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। भारत को प्राकृतिक भागों में विभक्त कीजिए तथा उनमें से किसी एक की स्थिति, धरातल तथा मानव-जीवन का वर्णन कीजिए। [2016]
या

पूर्वी समुद्र तटीय मैदान की स्थिति एवं विस्तार का वर्णन कीजिए। [2017]
उत्तर :

भारत का प्राकृतिक स्वरूप (बनावट)

भारत एक विशाल देश है। भू-आकृतिक संरचना की दृष्टि से भारत में अनेक विषमताएँ एवं विभिन्नताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। भारत का 29.3% भाग पर्वतीय, पहाड़ी एवं ऊबड़-खाबड़; 27.7% भाग पठारी तथा 43% भाग मैदानी है। भारत में अन्य देशों की अपेक्षा मैदानी क्षेत्रों का विस्तार अधिक है (विश्व का औसत 41%)। देश में एक ओर नवीन मोड़दार पर्वत-श्रृंखलाएँ हैं, तो दूसरी ओर विस्तृत तटीय मैदान, कहीं नदियों द्वारा समतल उपजाऊ मैदान हैं तो कहीं प्राचीनतम कठोर चट्टानों द्वारा निर्मित कटा-फटा पठारी भाग है। इस प्रकार जम्मू से कन्याकुमारी तक भारत को उच्चावच अथवा भू-आकृतिक संरचना के अनुसार अग्रलिखित पाँच भागों में विभाजित किया जा सकता है

  • उत्तरीय पर्वतीय प्रदेश,
  • उत्तरी भारत का विशाल मैदान,
  • दक्षिण का पठार,
  • समुद्रतटीय मैदान एवं द्वीप समूह,
  • थार का मरुस्थल।

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इनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
(1) उत्तरी पर्वतीय प्रदेश– भारत के उत्तर में लगभग 2,500 किमी की लम्बाई तथा पूर्व में 150 किमी तथा पश्चिम में 400 किमी की चौड़ाई में उत्तरी अथवा हिमालय पर्वतीय प्रदेश का विस्तार है। यह पर्वत-श्रृंखला पूर्व से पश्चिम तक चाप के आकार में फैली हुई है। इस पर्वतीय प्रदेश का विस्तार लगभग 5 लाख वर्ग किमी है। यह मोड़दार पर्वतमाला तीन समानान्तर श्रेणियों-

  • महान् हिमालय (हिमाद्रि हिमालय),
  • लघु हिमालय,
  • बाह्य हिमालय (शिवालिक हिमालय) में विस्तृत है। महान् हिमालय की औसत ऊँचाई 6,000 मीटर से अधिक होने के कारण ये श्रेणियाँ सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं। विश्व की सर्वोच्च पर्वत-श्रेणी माउण्ट एवरेस्ट इसी हिमालय पर्वतमाला में स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई 8,848 मीटर है। हिमालय पर्वत उत्तरी भारत की अधिकांश नदियों का उद्गम स्थल तथा हरे-भरे वनों का भण्डार है। यहाँ बहने वाली नदियाँ (UPBoardSolutions.com) तीव्रगामी तथा अपनी युवावस्था में हैं। ये उत्तरी मैदानों में बहती हुई अरब सागर या बंगाल की खाड़ी में गिर जाती हैं। इनसे भारतीय उपमहाद्वीप की तीन प्रमुख नदियाँ सिन्धु, सतलुज तथा ब्रह्मपुत्र हिमालय के उस पार से निकलती हैं। हिमालय अपनी सुन्दर और रमणीक घाटियों के लिए विश्वविख्यात हैं, जिनमें कश्मीर घाटी, दून घाटी, कुल्लू और काँगड़ा घाटी पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं।
    UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 1 भारत भौतिक स्वरूप 1

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(2) उत्तरी भारत का विशाल मैदान- उत्तरी भारत अथवा गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान हिमालय पर्वत के दक्षिण में और दक्षिणी पठार के उत्तर में भारत का ही नहीं वरन् विश्व का सबसे अधिक उपजाऊ और घनी जनसंख्या वाला मैदान है। इसका क्षेत्रफल लगभग 7 लाख वर्ग किमी से अधिक है। इस मैदान की पश्चिम से पूरब की लम्बाई 2,414 किलोमीटर तथा उत्तर-दक्षिण की चौड़ाई 150 से 500 किलोमीटर है। इस मैदान का ढाल लगभग 25 सेण्टीमीटर प्रति किलोमीटर है। अरावली पर्वत-श्रेणी को छोड़कर इसका कोई भी भाग समुद्र तल से 150 मीटर से ऊँचा नहीं है।

यह मैदान सिन्धु, सतलुज, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और उनकी अनेक सहायक नदियों द्वारा लाई गयी मिट्टी से बना है; अत: यह बहुत ही उपजाऊ है। इस मैदान के बीच में अरावली पर्वत आ जाने के कारण सिन्धु और उसकी नदियाँ पश्चिम में तथा गंगा और उसकी सहायक नदियाँ तथा ब्रह्मपुत्र पूर्व में बहती हैं। पश्चिमी मैदान का ढाल उत्तर से दक्षिण की ओर है और पूर्वी मैदान का ढाल उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है। इस मैदान में गहराई (UPBoardSolutions.com) नहीं पायी जाती। सम्पूर्ण गंगा का मैदान बाँगर तथा खादर से निर्मित है। यहाँ देश की 45% जनसंख्या निवास करती है। प्रति वर्ष नदियाँ इस मैदान में उपजाऊ काँप मिट्टी अपने साथ लाकर बिछाती रहती हैं।

(3) दक्षिण का पठार(प्रायद्वीपीय पठार)– भारत के दक्षिण में प्राचीन ग्रेनाइट तथा बेसाल्ट की कठोर शैलों से बना दकन का पठार है, जिसे दक्षिण का पठार भी कहते हैं। यह राजस्थान से लेकर कुमारी अन्तरीप तक और पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व की ओर पश्चिम बंगाल तक विस्तृत है। इसका आकार त्रिभुजाकार है एवं आधार उत्तर की ओर तथा शीर्ष दक्षिण की ओर है। पठार के उत्तर में। अरावली, विन्ध्याचल और सतपुड़ा की पहाड़ियाँ हैं, पश्चिम में ऊँचे पश्चिमी घाट और पूरब में निम्न पूर्वी घाट और दक्षिण में नीलगिरि पर्वत हैं।

इसके पश्चिमी भाग पर ज्वालामुखी द्वारा निर्मित लावा के निक्षेप हैं, जो काली मिट्टी के उपजाऊ क्षेत्र हैं। इस पठारी क्षेत्र पर अधिकांश नदियों ने गहरी घाटियाँ बना ली हैं। इस पठार की औसत ऊँचाई 500. से 750 मीटर है। इसको धरातल बहुत ही विषम है। इस पठारी भाग का क्षेत्रफल लगभग 16 लाख वर्ग किमी है। दकन का पठारी क्षेत्र खनिज पदार्थों का विशाल भण्डार है। इस पठार पर बहुमूल्य मानसूनी वन सम्पदा पायी जाती है। सागौन एवं चन्दन की बहुमूल्य लकड़ी इसी पठारी भाग में मिलती है। यह कृषि-उपजों का भण्डार तथा उद्योग-धन्धों का महत्त्वपूर्ण केन्द्र भी है।

इस पठार पर बहने वाली अधिकांश नदियाँ दक्षिण-पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी ऐसी ही नदियाँ हैं। नर्मदा और ताप्ती नदियाँ भ्रंश घाटी में होकर बहती हैं तथा अरब सागर में गिरती हैं। अरब (UPBoardSolutions.com) सागर में गिरने वाली अन्य नदियाँ बहुत छोटी तथा तीव्रगामी हैं।

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(4) समुद्रतटीय मैदान एवं द्वीप समूह– दकन के पठार के दोनों ओर पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली पट्टी के रूप में जो मैदान फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहते हैं। इन मैदानों का निर्माण सागर की लहरों तथा नदियों ने अपनी निक्षेप क्रियाओं द्वारा लाये गये अवसाद से किया है। इस मैदानी क्षेत्र को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है

  • पश्चिमी तटीय मैदान- यह मैदान पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक फैला हुआ है। इसकी औसत चौड़ाई 64 किलोमीटर है। इसमें बहने वाली नदियाँ अत्यन्त तीव्रगामी हैं। इसके दक्षिणी मार्ग में नावों के लिए अनेक अनूप (Lagoons) पाये जाते हैं। नया । मंगलोर, कोचीन इन्हीं अनूपों पर स्थित हैं। यहाँ चावल, केला, गन्ना व रबड़ खूब पैदा होता है। ” कॉदला, मुम्बई व कोचीन इस तट पर स्थित अन्य प्रमुख बन्दरगाह हैं।
  • पूर्वी तटीय मैदान– पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा यह मैदान अधिक (UPBoardSolutions.com) चौड़ा है। इसकी औसत | चौड़ाई 161 से 483 किलोमीटर है। यह उत्तर में गंगा के मुहाने से दक्षिण में कुमारी अंन्तरीप तक फैला हुआ है। कोलकाता, मद्रास (चेन्नई) व विशाखापत्तनम् इस तट के प्रमुख बन्दरगाह हैं।

द्वीप समूह–भारत के मुख्य स्थल भाग के पश्चात् सागरों के बीच में जो आकृतियाँ स्थित हैं वे द्वीपसमूह के रूप में जानी जाती हैं। ये भारत का अभिन्न अंग हैं। छोटे-बड़े मिलाकर कुल 247 द्वीप हैं, जो स्थिति-अनुसार निम्नलिखित दो भागों में बँटे हुए हैं—

  1. अरब सागरीय द्वीप-ये द्वीप अरब सागर के मुख्य स्थल (केरल तट) के पश्चिम में स्थित हैं। | इन द्वीपों की आकृति घोड़े की नाल या अँगूठी के समान है। इनका निर्माण अल्पजीवी सूक्ष्म प्रवाल जीवों के अवशेषों के जमाव से हुआ है। इसलिए इन्हें प्रवालद्वीप वलय (एटॉल) कहते हैं। इनमें लक्षद्वीप, मिनीकोय एवं अमीनीदीवी प्रमुख हैं। इन द्वीपों पर नारियल के वृक्ष बहुत अधिक उगाये जाते हैं। इन द्वीपों की संख्या 43 है तथा लक्षद्वीप का क्षेत्रफल मात्र 32 वर्ग किलोमीटर है। कवरत्ति यहाँ की राजधानी है।
  2. बंगाल की खाड़ी के द्वीप- बंगाल की खाड़ी में भी भारत के अनेक द्वीप हैं। इन्हें अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह के नाम से पुकारते हैं। ये द्वीप बड़े भी हैं और संख्या में भी अधिक हैं। ये जल में डूबी हुई पहाड़ियों की श्रृंखला पर स्थित हैं। (UPBoardSolutions.com) इन द्वीपों में से कुछ की उत्पत्ति ज्वालामुखी के उद्गार से हुई है। भारत को एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी इन्हीं द्वीपों में एक बैरन द्वीप पर स्थित है। इनका विस्तार 590 किमी की लम्बाई तथा अधिकतम 50 किमी की चौड़ाई में अर्द्ध-चन्द्राकार रूप में बना हुआ है। ये द्वीप यहाँ एक समूह के रूप में पाये जाते हैं, जो एक-दूसरे से संकीर्ण खाड़ी द्वारा पृथक् होते हैं। इनकी कुल संख्या 204 है तथा पोर्ट ब्लेयर यहाँ की राजधानी है।

(5) थार का मरुस्थल- राजस्थान का उत्तर-पश्चिमी भाग रेगिस्तानी है जिसे ‘थार का मरुस्थल’ कहा जाता है। इस मरुस्थल का कुछ भाग पाकिस्तान में भी है। इस भाग में प्रतिदिन धूल व रेतभरी तेज हवाएँ चलती हैं, जो जगह-जगह रेत के टीले बना देती हैं। यहाँ 10 सेमी से भी कम वर्षा होती है, इसलिए यह भाग वर्ष भर शुष्क बना रहता है और पूरे भाग में पानी की कमी रहती है। अतः यहाँ ज्वार-बाजरा जैसी कम पानी वाली फसलें अधिक उगाई जाती हैं। यह मरुस्थलीय भाग 644 किमी लम्बा व लगभग 161 किमी चौड़ा है। इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 1,04,000 वर्ग किमी है तथा इसका विस्तार हरियाणा, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात राज्यों में है। इस प्रदेश में अत्यन्त विरल । जनसंख्या निवास करती है। लूनी इस मरुस्थलीय प्रदेश की मुख्य मौसमी नदी है। यहाँ पर साँभर, डिंडवाना, लूनकरनसर, कुचामन तथा डेगाना खारे पानी की प्रमुख झीलें हैं, जिनसे नमक बनाया जाता है। कुछ भागों में ग्रेनाइट, नीस तथा शिस्ट चट्टानों की नंगी सतह दिखलायी पड़ती हैं। खनिज पदार्थों में ताँबा, जिप्सम पत्थर तथा मुल्तानी मिट्टी यहाँ मुख्यतः मिलती हैं। राजस्थान में झुंझुनू जिले के खेतड़ी नगर के पास ताँबे की अनेक खाने हैं। यहाँ ऊँट यातायात का प्रमुख साधन है, (UPBoardSolutions.com) जिसे रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है। मरुस्थलीय संरचना एवं जलवायु की विषमताओं के कारण यह क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। पूर्व की ओर इन्दिरा गांधी नहर के बन जाने से धीरे-धीरे सम्बद्ध क्षेत्रों में विकास हो रहा है।

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प्रश्न 3.
भारत के उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत की बनावट कैसी है? इस प्रदेश का भौगोलिक वर्णन कीजिए।
या
हिमालय के कोई दो महत्त्व लिखिए। हिमालय पर्वत से होने वाले कोई पाँच लाभ लिखिए। [2011]
या

हिमालय पर्वतों की तीन समान्तर शृंखलाओं के नाम लिखिए और प्रत्येक की एक-एक विशेषता लिखिए। भारत के हिमालय पर्वतीय प्रदेश का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए- [2015]
(क) स्थिति एवं विस्तार, (ख) धरातलीय संरचना, (ग) जल-प्रवाह।
उत्तर :

हिमालय पर्वत की संरचना

भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत चाप के आकार में तथा पश्चिम में सिन्धु नदी के मोड़.से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी • के मोड़ तक 2,500 किमी की लम्बाई में चन्द्राकार रूप में फैले हैं। इसकी औसत चौड़ाई 150 से 400 किमी के बीच है। हिमालय; भारत और तिब्बत (चीन) के मध्य एक अवरोध के रूप में स्थित है। मुख्य हिमालय में विश्व की सर्वोच्च पर्वत-चोटियाँ पायी जाती हैं, जिनकी औसत ऊँचाई 6,000 मीटर से भी अधिक है। एशिया महाद्वीप में 97 (UPBoardSolutions.com) ऐसी ज्ञात चोटियाँ हैं, जिनकी ऊँचाई 7,500 मीटर से अधिक है। इनमें से 95 चोटियाँ भारत के इसी पर्वतीय प्रदेश में स्थित हैं। हिमालय की ये पर्वत-श्रेणियाँ सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं, इसलिए इस पर्वतमाला का नाम हिमालय रखा गया है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5 लाख वर्ग किमी है। भौगोलिक दृष्टि से हिमालय पर्वतीय प्रदेश को निम्नलिखित उपविभागों में बाँटा जा सकता है–

1. महान् या वृहद् हिमालय– हिमालय की यह पर्वत-श्रेणी सबसे ऊँची है, जिन्हें हिमाद्रि या वृहत्तर हिमालय भी कहा जाता है। इस पर्वत-श्रेणी की औसत ऊँचाई 6,000 मीटर से अधिक होने के कारण यह वर्षभर बर्फ से आच्छादित रहती है। इस पर्वत-श्रेणी की लम्बाई सिन्धु नदी के मोड़ से अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक 2,500 किमी तथा औसत चौड़ाई 25 किमी है। इस क्षेत्र में गंगोत्री, जेमू तथा मिलाम जैसे विशाल हिमनद (Glaciers) पाये जाते हैं, जिनकी लम्बाई 20 किमी से भी अधिक है। माउण्ट एवरेस्ट, कंचनजंगा, मकालू, धौलागिरि, नंगा पर्वत, गॉडविन-ऑस्टिन, त्रिशूल, बदरीनाथ, नीलकण्ठ, केदारनाथ आदि इस क्षेत्र के प्रमुख पर्वत-शिखर हैं। इन। पर्वत-श्रेणियों का निर्माण ग्रेनाइट, नीस, शिस्ट आदि कठोर और प्राचीन शैलों से हुआ है। माउण्ट एवरेस्ट (नेपाल देश में स्थित) विश्व की सर्वोच्च पर्वत-श्रेणी है, जिसकी ऊँचाई 8,848 मीटर है। महान् हिमालय में अनेक दरें पाये जाते हैं जिनमें शिपकीला, थांगला, नीति, लिपुलेख, बुर्जिल, माना, नाथुला तथा (UPBoardSolutions.com) जैलेपला आदि मुख्य हैं। इन्हीं दरों के मार्ग द्वारा भारत की सीमा के पार जाया जा सकता है। महान् हिमालय की पूर्वी सीमा पर ब्रह्मपुत्र तथा पश्चिमी सीमा पर सिन्धु नदियाँ गहरी एवं सँकरी घाटियों से होकर प्रवाहित होती हैं। वृहद् हिमालय और श्रेणियों के मध्य दो प्रमुख घाटियाँ हैंकाठमाण्डू की घाटी (नेपाल) और कश्मीर की घाटी (भारत)।

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2. लघु या मध्य हिमालय- यह पर्वत-श्रेणी महान् हिमालय के दक्षिण में उसके समानान्तर फैली हुई है, जो 80 से 100 किमी तक चौड़ी है। इस श्रेणी की औसत ऊँचाई 2,000 से 3,500 मीटर तक है। तथा अधिकतम ऊँचाई 4,500 मीटर तक पायी जाती है। इस भाग में नदियाँ ‘वी’ (V) अकार की घाटियाँ तथा गहरी कन्दराएँ बनाकर बहती हैं, जिनकी गहराई 1,000 मीटर तक है। महान् और लघु हिमालय के मध्य कश्मीर, काठमाण्डू, काँगड़ा एवं कुल्लू की घाटियाँ महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। शीत-ऋतु में तीन-चार महीने यहाँ हिमपात होता है। ग्रीष्म ऋतु में ये पर्वतीय क्षेत्र उत्तम एवं स्वास्थ्यवर्द्धक जलवायु तथा मनमोहक प्राकृतिक सुषमा के कारण पर्यटन के केन्द्र बन जाते हैं। कश्मीर की जास्कर और पीर पंजाल इसकी महत्त्वपूर्ण श्रेणियाँ हैं, जो अनेक भुजाओं वाली हैं। इस श्रेणी की ऊँचाई 4,000 मीटर है। चकरौता, शिमला, मसूरी, नैनीताल, रानीखेत, दार्जिलिंग आदि स्वास्थ्यवर्द्धक पर्वतीय नगर लघु हिमालय में ही स्थित हैं, जहाँ प्रति वर्ष लाखों पर्यटक सैर के लिए जाते हैं। इस श्रेणी के उत्तरी ढाल मन्द, हैं, जब कि दक्षिणी ढाल तीव्र। इस पर्वतीय क्षेत्र में उपयोगी कोणधारी वृक्ष तथा ढालों पर घास उगती है। घास के इन मैदानों को कश्मीर में मर्ग (गुलमर्ग, खिलनमर्ग, सोनमर्ग) तथा उत्तराखण्ड में बुग्याल और पयार (गढ़वाल एवं कुमाऊँ हिमालय) के नाम से पुकारते हैं। इस भाग की संरचना में अवसादी शैलों की प्रधानता है, जिनमें अधिकांश चूने की चट्टानें विस्तृत क्षेत्र में फैली हैं।

3. उप-हिमालय या शिवालिक श्रेणियाँ अथवा बाह्य हिमालय- हिमालय की सबसे निचली तथा दक्षिणी पर्वत-श्रेणियाँ इसके अन्तर्गत आती हैं, जिन्हें बाह्य हिमालय या शिवालिक श्रेणियों के नाम से भी पुकारते हैं। यह हिमालय का नवनिर्मित भाग है, जो पंजाब में पोतवार बेसिन के दक्षिण से आरम्भ होकर पूर्व में कोसी नदी अर्थात् 87° देशान्तर तक विस्तृत है। इन पर्वत-श्रेणियों का निर्माण-काल बीस लाख वर्ष से दो करोड़ वर्ष के मध्य माना जाता है। शिवालिक श्रेणियों का निर्माण नदियों द्वारा लायी गयी अवसाद में मोड़ पड़ने से हुआ है, इसलिए इन पर अपरदन की क्रियाओं का विशेष प्रभाव पड़ा है। तिस्ता और (UPBoardSolutions.com) रायडॉक के निकट 50 किमी की चौड़ाई में इन पहाड़ियों का लोप हो जाता है। इनकी औसत चौड़ाई पश्चिम में 50 किमी और पूरब में 15 किमी है। ये पर्वत औसत रूप से 600 से 1,500 मीटर तक ऊँचे हैं। इस क्षेत्र में अनेक उपजाऊ तथा समतल विस्तृत घाटियाँ हैं, जिन्हें दून और द्वार कहते हैं; जैसे-देहरादून, पूर्वादून, कोठड़ीदून, पाटलीदून, हरिद्वार, कोटद्वार आदि।

भौगोलिक महत्त्व/लाभ

हिमालय पर्वत ने हमारे देश के भौतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक स्वरूप का निर्माण किया है। इनके भौगोलिक महत्त्व/लाभ का वर्णन निम्नलिखित है

  1. ये पर्वत साइबेरिया और मध्यवर्ती एशिया की ओर से आने वाली बर्फीली, तूफानी और शुष्क हवाओं से भारत की रक्षा करते हैं।
  2. हिमालय की ऊँची-ऊँची हिमाच्छादित चोटियाँ उत्तरी भारत के तापमान एवं आर्द्रता (वर्षा) को | प्रभावित करती हैं। इसी के फलस्वरूप हिमालय में हिम नदियाँ, सदावाहिनी नदियाँ प्रारम्भ होती हैं, जो उत्तरी मैदान को उपजाऊ बनाती हैं।
  3. हिमालय के हिमाच्छादित शिखरों और नैसर्गिक दृश्यों के कारण इन पर्वतों का पर्यटकों के लिए महत्त्व बढ़ गया है।
  4. हिमालय की घाटी में जैसे ही वृक्षों की सीमा समाप्त होती है, वहाँ छोटे-छोटे चरागाह पाये जाते हैं, जिन्हें मर्ग कहते हैं; जैसे—गुलमर्ग, सोनमर्ग आदि। यहाँ कश्मीरी गड़रिये भेड़-बकरियाँ चराते हैं।
  5. हिमालय पर्वत से निकलने वाली सदावाहिनी नदियाँ अपने प्रवाह-मार्ग में प्राकृतिक जल-प्रपातों की . रचना करती हैं। ये जल-प्रपात जल-विद्युत शक्ति के उत्पादन में सहायक सिद्ध हुए हैं।
  6. शीत ऋतु में उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश से ठण्डी एवं बर्फीली पवनें दक्षिण की ओर चला करती हैं। हिमालय | पर्वतमाला इन पर्वतों के मार्ग में बाधा बनकर भारत को ठण्ड से बचाती है। 7. हिमालय पर्वत पर पर्याप्त मात्रा में कोयला, पेट्रोल तथा अन्य खनिज पदार्थ प्राप्त होने की सम्भावना | व्यक्त की गयी है, जिससे इसका आर्थिक महत्त्व और अधिक बढ़ गया है।
  7. हिमालय पर्वतमाला भारत के उत्तर में पहरेदार की भाँति एक अभेद्य दीवार के रूप में खड़ी है, जो । आक्रमणकारियों से भारत की रक्षा करती है।
  8. हिमालय की कश्मीर घाटी को फलों का स्वर्ग कहा जाता है। यहाँ सेब, अखरोट, आड़, खुबानी, अंगूर व नाशपाती आदि फल उगाये जाते हैं। पर्वतीय ढालों पर चाय, सीढ़ीदार खेतों में चावेल व आलू की खेती भी की जाती है।
  9. हिमालय पर्वत के दोनों ढालों पर उपयोगी वनों का बाहुल्य है। इन वनों से विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चे माल, उपयोगी इमारती लकड़ियाँ आदि प्राप्त होती हैं।
  10. हिमालय पर्वतमाला से अनेक जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं, जो अनेक (UPBoardSolutions.com) रोगों की चिकित्सा में काम आती हैं। इसके अतिरिक्त हिमालय के वनों से शहद, आँवला, बेंत, गोंद, लाख, कत्था, बिरोजा आदि प्राप्त होते हैं, जो मानव की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। हिमालय के अनेक पर्वतीय नगर ग्रीष्म-ऋतु में पर्यटकों के भ्रमण के लिए आकर्षण के केन्द्र बन जाते हैं।

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प्रश्न 4.
भारत के उत्तरी विशाल मैदान का भौगोलिक वर्णन कीजिए तथा इसके आर्थिक महत्त्व का उल्लेख कीजिए। [2014]
या

भारत के उत्तरी मैदान की स्थिति व विस्तार को स्पष्ट कीजिए। इसकी कृषि के लिए क्या उपयोगिता है? [2010]
या

गंगा के मैदानी भाग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए- [2011, 18]
(क) स्थिति, (ख) विस्तार, (ग) महत्त्व।
या
भारत के उत्तरी मैदानी भाग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए- [2012]
(क) स्थिति, (ख) विस्तार, (ग) वनस्पति, (घ) व्यवसाय
या
भारत के उत्तरी विशाल मैदान का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए- [2016, 18]
(क) स्थिति एवं विस्तार, (ख) मिट्टियाँ, (ग) कृषि।
या
भारत का उत्तरी मैदानी क्षेत्र घना क्यों बसा है? कोई तीन कारण बताइए। [2018]
उत्तर :
उत्तर का विशाल मैदान नवीनतम भूखण्ड है। इस विशाल मैदान का निर्माण हिमालय पर्वतमाला की उत्पत्ति के बाद उत्तर में हिमालयं तथा दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियों द्वारा बहाकर लायी गयी अवसाद से हुआ है। सिन्धु की सहायक सतलुज, रावी, झेलम, चिनाब, व्यास, गंगा तथा उसकी सहायक और ब्रह्मपुत्र व उसकी सहायक नदियों द्वारा बहाकर लायी गयी अवसाद के जमने से इस मैदान के निर्माण में विशेष (UPBoardSolutions.com) योगदान मिला है। इसे जलोढ़ मैदान के नाम से भी पुकारते हैं। यह जलोढ़ दो प्रकार की होती है—प्राचीन एवं नवीन। नवीन जलोढ़ अत्यधिक उपजाऊ होती है। अत: यह मैदान अत्यधिक उर्वर तथा घना आबाद है।

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हिमालय पर्वत के दक्षिण तथा प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर में यह मैदान भारत का ही नहीं, अपितु विश्व का सर्वाधिक उपजाऊ एवं सघन जनसंख्या वाला मैदान है। यहाँ देश की 45% जनसंख्या निवास करती है। इस मैदान का क्षेत्रफल 7 लाख वर्ग किमी है। पूर्व से पश्चिम इस मैदान की लम्बाई 2.414 किमी तथा चौडाई पश्चिम में 480 किमी है, जब कि पूर्व में यह केवल 145 किमी रह जाती है। यह एक समतल मैदान है, जिसका अधिकांश भाग समुद्र तल से 150 मीटर से अधिक ऊँचा नहीं है। इस मैदान का निर्माण काँप मिट्टी से हुआ है, जिसकी गहराई 400 मीटर तक मिलती है। इस मैदान का विस्तार उत्तरी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तरी बिहार, पश्चिम बंगाल तथा असोम राज्यों में है।

विभिन्न प्राकृतिक कारकों तथा बहने वाली नदियों की प्राथमिकता के आधार पर इस वृहद् मैदान को तीन उप-विभागों में बाँटा गया है—
(1) पश्चिमी मैदान, (2) मध्यवर्ती मैदान एवं (3) पूर्वी मैदान।

1. पश्चिमी मैदान- 
इस भाग में पंजाब, राजस्थान और हरियाणा का पश्चिमी भाग सम्मिलित किया जाता है। सम्पूर्ण पश्चिमी मैदान की औसत ऊँचाई 150 से 300 मीटर तक है। इसको सामान्य ढाल उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर है। पश्चिमी मैदान के अन्तर्गत थार के मरुस्थल को भी सम्मिलित किया जाता है। इसे पश्चिमी शुष्क मैदान भी कहते हैं, जो 640 किलोमीटर लम्बा तथा 160 किलोमीटर चौड़ा है। यह नीची भूमि का (UPBoardSolutions.com) प्रदेश है।

यमुना नदी के पश्चिम में पंजाब और हरियाणा राज्यों में विस्तृत भाग पंजाब का मैदान कहलाता है। यह मैदान चौरस है तथा समुद्र तल से इसका धरातल 200 से 250 मीटर ऊँचा है। सिन्धु के मैदान का अधिकांश भाग अब पाकिस्तान में चला गया है।

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2. मध्यवर्ती मैदान अथवा गंगा का मैदान– 
पश्चिम में यमुना नदी से लेकर पूर्व में बांग्लादेश की पश्चिमी सीमा तक लगभग 1,400 किलोमीटर लम्बा तथा उत्तर में शिवालिक पर्वत श्रेणी से दक्षिण में पठारी प्रदेश तक औसतन 300 किलोमीटर चौड़ा क्षेत्र मध्यवर्ती मैदान कहलाता है। इसे गंगा का मैदान भी कहते हैं। देश के सबसे महत्त्वपूर्ण तथा समतल इस मैदान का क्षेत्रफल 3,57,000 वर्ग किलोमीटर है। इस मैदान का ढाल सामान्यतः उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर 15 सेण्टीमीटर प्रति किलोमीटर है। .

ओ०एच०के० स्पेट ने इस विस्तृत मैदान को निम्नलिखित तीन उपविभागों में बाँटा है–

  • ऊपरी गंगा का मैदान अथवा गंगा-यमुना दोआब-यह भाग पश्चिम में दिल्ली से पूर्व में इलाहाबाद तक विस्तृत है। इसका प्रमुख भाग गंगा-यमुना का दोआब है। यह मैदान यमुना, गंगा, शारदा, चम्बल नदियों द्वारा जमा किये गये अवसादों से बना है।
  • मध्य गंगा का मैदान—यह इलाहाबाद से भागलपुर (बिहार) तक लगभग 1,62,200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इसमें गंगा की सहायक नदियाँ–गोमती, घाघरा, गण्डक, कोसी, टोंस तथा सोन–बहती हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार के मैदान इस भाग में स्थित हैं। यह मैदान दोमट तथा जलोढ़ मिट्टियों से बना है।
  • निचला गंगा का मैदान अथवा गंगा का डेल्टा-इसके अन्तर्गत गंगा का डेल्टा प्रदेश आता है, जो पश्चिम बंगाल राज्य में फैला है। इसका क्षेत्रफल 79,100 वर्ग किलोमीटर है। इसका अधिकांश भाग बांग्लादेश में है। इस मैदान की औसत ऊँचाई समुद्र की सतह से 50 मीटर से भी कम है। कोलकाता के पास इसकी ऊँचाई केवल 6 मीटर है। यह संसार का सबसे बड़ा डेल्टा क्षेत्र है।

3. पूर्वी मैदान अथवा ब्रह्मपुत्र का मैदान– असोम राज्य में सदिया के उत्तर-पूर्व से लेकर धुवरी स्थान तक लगभग 650 किलोमीटर लम्बा एवं 100 किलोमीटर चौड़ा पूर्वी मैदान है। इसे ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहते हैं। इस मैदान के पश्चिमी भागों को (UPBoardSolutions.com) छोड़कर सभी ओर ऊँचे पहाड़ी भाग हैं। इस समतल भाग का ढाल क्रमशः उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पूर्व की ओर कम होता जा रहा है।

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उपर्युक्त मैदानों के अतिरिक्त हिमालय पर्वत के बाहरी ढाल पर कंकरीली बलुई मिट्टी के निक्षेप से बने भाग को भाबर का मैदान कहते हैं। भावर के आगे बारीक कंकड़, पत्थर, रेत और चिकनी मिट्टी से तराई का , मैदान बना है।।

भौगोलिक महत्त्व अथवा संसाधनों का आकलन

यह मैदान भारत के लगभग एक-तिहाई क्षेत्रफल को घेरे हुए है। अनुकूल जलवायु, उपजाऊ मिट्टी, सिंचाई की सुविधा तथा यातायात के मार्गों का विस्तृत जाल और जीवन की अन्य सुविधाएँ सुलभ हो जाने से सम्पूर्ण देश की लगभग 45% जनसंख्या इसी क्षेत्र में निवास करती है। यद्यपि भौगोलिक तथा आर्थिक दृष्टि से यह मैदान भारत का सर्वोत्तम भाग है, किन्तु भू-वैज्ञानिक दृष्टि से इसका महत्त्व अधिक नहीं है, क्योंकि यह भारत का नवीनतम भाग है और इसकी संरचना सरल है। इस मैदान का महत्त्व अग्रलिखित तथ्यों से स्पष्ट होता है

  1. इस मैदान की रचना उर्वर-काँप मिट्टी से होने के कारण यह कृषि सम्पन्न प्रदेश है तथा भारत का ‘अन्न भण्डार’ कहलाता है। तापमान व आर्द्रता की भिन्नता के आधार पर यहाँ फसलों की विविधता पायी जाती है।
  2. इस मैदान में असंख्य नदियाँ प्रवाहित होती हैं, जिनमें से अधिकांश हिमालय से निकलने वाली सदावाहिनी नदियाँ हैं। उत्तर प्रदेश व पंजाब के शुष्क भागों में सिंचाई के लिए ये विशेष उपयोगी हैं।
  3. उत्तरी मैदान की नदियों के मार्ग में ढाल प्रवणता बहुत कम है; अतएव ये नौकारोहण योग्य हैं।
  4. जहाँ कहीं भी नदियों के मार्ग में प्रपात स्थित हैं, वहाँ (UPBoardSolutions.com) जल-विद्युत शक्ति विकसित की गयी है।
  5. समतल एवं कोमल शैलों से निर्मित होने के कारण यहाँ सड़क व रेलमार्गों का उत्तम विकास सम्भव हुआ है।
  6. नवीन शैलों से निर्मित होने के कारण इस मैदान में खनिजों की कमी है। मैदान के पूर्वी एवं पश्चिमी छोरों पर कहीं-कहीं कोयला एवं पेट्रोलियम प्राप्त होने की सम्भावनाएँ अवश्य हैं।
  7. शताब्दियों से यह मैदान सघन जनसंख्या के पोषण में समर्थ रहा है। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति यहीं फली-फूली है।
  8. यह मैदान भारतीय इतिहास, राजनीति एवं धर्म का केन्द्र तथा भारत की समृद्धि एवं गौरव का प्रतीक रहा है।

यह क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से भारत का सर्वोत्तम भाग है। भूमि समतल होने के कारण यहाँ रेलमार्गों व सड़कों का जाल बिछा हुआ है। इसके परिणामस्वरूप देश के बड़े-बड़े व्यापारिक और औद्योगिक केन्द्र यहाँ स्थित हैं। दिल्ली, कानपुर, पटना तथा कोलकाता जैसे प्रमुख नगर इसी क्षेत्र में बसे हैं।

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मिट्टियाँ

उत्तरी विशाल मैदान में सर्वत्र काँप (जलोढ़) मिट्टी का विस्तार है। यह मिट्टी कृषि-उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है जिसका विस्तार 7.68 लाख वर्ग किमी क्षेत्र पर है। इसी कारण इस क्षेत्र में सघन जनसंख्या निवास करती है। काँप मिट्टियाँ हिमालय पर्वत से निकलने वाली सिन्धु, गंगा, ब्रह्मपुत्र एवं उनकी सहायक नदियों द्वारा लाई गयी अवसाद से निर्मित हुई हैं। यह मिट्टी हल्के भूरे रंग की होती है। इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और वनसपति के अंशों की कमी होती है तथा सिलिका एवं चूने के अंशों की प्रधानता होती है। यह मिट्टी पीली दोमट है। कुछ स्थानों पर यह चिकनी एवं बलुई होती है। उत्तरी विशाल मैदान की मिट्टियों को वर्षा की भिन्नता, क्षारीय गुणों, बालू एवं चीका की भिन्नता के आधार पर निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

  1. पुरातन काँप- इसे बाँगर मिट्टी के नाम से भी पुकारा जाता है। इस मिट्टी का विस्तार उन क्षेत्रों में है। जहाँ नदियों की बाढ़ का पानी नहीं पहुँच पाता है। इसमें कहीं-कहीं कंकड़ भी पाये जाते हैं। खुरदरे एवं बड़े कणों वाली मिट्टी को भूड़ कहते हैं। इस मिट्टी में गन्ना एवं गेहूं अधिक उगाया जाता है।
  2. नवीन काँप- इसे खादर मिट्टी भी कहा जाता है। यह मिट्टी रेतीली एवं कम कंकरीली होती है। इस मिट्टी के क्षेत्रों में प्रतिवर्ष बाढ़े आती हैं तथा उनके द्वारा नवीन काँप मिट्टी बिछती रहती है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की शक्ति अधिक होती है। कहीं-कहीं पर दलदल भी होती है। इसमें पोटाश, फॉस्फोरस, चूना एवं जीवांशों की मात्रा अधिक होती है।
  3. डेल्टाई काँप- यह मिट्टी नदियों के डेल्टा में पायी जाती है। यहाँ नदियाँ नवीन क़ाँप मिट्टी का जमाव करती रहती हैं, अत: यह मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ होती है। इस मिट्टी के कण बहुत ही बारीक होते हैं। जिन फसलों को अधिक जल की (UPBoardSolutions.com) आवश्यकता होती है, उनमें सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। चावल, जूट, तम्बाकू, गेहूँ, तिलहन आदि इस मिट्टी की प्रमुख फसलें हैं। उत्तरी विशाल मैदान के दक्षिण-पश्चिम में मरुस्थलीय अथवा रेतीली मिट्टी पायी जाती है। वर्षा की कमी के कारण इसमें नमी की मात्रा कम होती है। जल की कमी के कारण यह मिट्टी अनुपजाऊ होती है।

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कृषि

उत्तरी विशाल मैदान में कृषि के तौर पर मुख्यतः गन्ना, गेहूँ, कपास, ज्वार व बाजरा आदि फसलो पर जोर. दिया जाता है। ‘नकदी फसल के रूप में गन्ना प्रमुख है। इस क्षेत्र की कृषि की प्रमुख विशेषताएँ अग्र प्रकार हैं

1. खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक-देश के साथ- साथ इस क्षेत्र की कृषि को मुख्य उद्देश्य क्षेत्र की विशाल जनसंख्या की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। किन्तु अभी हाल के वर्षों में इसमें व्यापारिक और बाजारोन्मुख होने के प्रवृत्ति देखी जा रही है।

2. विशाल जनसंख्या का भारी दबाव- 
देश की कृषि की तरह इस क्षेत्र की कृषि पर जनसंख्या का भारी दबाव है। देश की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा यहाँ निवास करता है जिसमें अधिकांश पूरी तरह कृषि पर निर्भर है। जनसंख्या के तेजी से बढ़ने के कारण प्रति व्यक्ति कृषि भूमि का औसत निरन्तर कम होता जा रहा है।

3. खाद्यान्नों की कृषि को प्रमुखता- 
इस क्षेत्र की कृषि में खाद्यान्नों की कृषि में प्रमुखता है। यह कृषिगत क्षेत्र का 76 प्रतिशत भाग और सम्पूर्ण कृषि उत्पादन का 80 प्रतिशत भाग प्रदान करते हैं। इसमें गन्ना, गेहूं, ज्वार, बाजरा, चना, मक्का एवं कुछ मात्रा में चावल आदि शामिल हैं।

4. कृषि फसलों में विविधता- 
यहाँ की कृषि में फसलों की विविधता देखने (UPBoardSolutions.com) को मिलती है। ऐसा इस क्षेत्र की जलवायु एवं भौतिक विशेषताओं में भिन्नता के कारण है। कभी-कभी तो एक ही खेत में एक साथ अनेक फसलें बोई जाती हैं।

5. खेत छोटे-छोटे टुकड़ों में- 
भौतिक, आर्थिक एवं सामाजिक कारणों से देश की तरह इस क्षेत्र में भी कृषि भूमि का आकार बहुत छोटे-छोटे खेतों के रूप में है। यह छोटे-छोटे खेत आधुनिक कृषि के दृष्टिकोण से उचित नहीं हैं।

6. वर्षा पर आधारित कृषि-
इस क्षेत्र में कृषि अधिकांशत: वर्षा पर निर्भर है।

नदियों द्वारा लायी गयी बारीक मिट्टी से निर्मित तथा सिंचित होने के कारण यह मैदान बहुत उपजाऊ है। यहाँ गेहूँ, गन्ना, दाल-दलहन, कपास आदि की फसलें बड़े पैमाने पर पैदा की जाती हैं। इस क्षेत्र में अनेक तीर्थस्थल; जैसे-हरिद्वार, मथुरा, प्रयाग, काशी आदि स्थित हैं। यहाँ सारे देश से यात्रीगण आते हैं, जिस कारण इन स्थानों पर आर्थिक गतिविधियाँ प्रायः पूरे वर्ष चरम पर रहती हैं।

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प्रश्न 5.
दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठार की भौगोलिक रचना तथा आर्थिक महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
या
भारत के दक्षिणी पठारी भाग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए
(क) स्थिति, (ख) विस्तार, (ग) खनिज सम्पदा। [2014]
या

भारत के दक्षिणी पठारी भाग के किन्हीं तीन खनिज संसाधनों का वर्णन कीजिए। [2014]
या

भारत के दक्षिणी पठारी भाग की छः विशेषताएँ बताइए। [2014]
या

भारत के दक्षिणी पठारी भाग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए- [2010]
(अ) धरातल, (ब) जल-प्रवाह प्रणाली, (स) भौगोलिक महत्त्व।
भारत के दक्षिणी प्रायद्वीपीय भाग में जल-प्रवाह (UPBoardSolutions.com) प्रणाली का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। [2010]
या

दक्षिण के पठारी भाग की स्थिति, विस्तार तथा खनिज सम्पदा का वर्णन कीजिए। [2012]
या

दकन के पठार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। भारत के दक्षिणी पठारी भाग का वर्णन निम्नलिखित शीषकों में कीजिए- [2015]
(क) स्थिति एवं विस्तार, (ख) जल-प्रवाह प्रणाली, (ग) खनिज़।
या
भारत में दक्षिणी पठार का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए- [2016, 17]
(क) स्थिति एवं विस्तार, (ख) प्राकृतिक बनावट (भौतिक लक्षण) (ग) खनिज।
या
भारत के दक्षिणी पठार के किन्हीं तीन आर्थिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए। [2018]
उत्तर :

दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार की भौगोलिक रचना (धरातल)

भारत के दक्षिण में प्राचीन ग्रेनाइट तथा बेसाल्ट की कठोर शैलों से निर्मित दकन (दक्षिण) को पठार है। यह विशाल प्रायद्वीपीय पठार प्राचीन गोण्डवानालैण्ड का ही एक अंग है, जो भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्राचीन भूभाग है। यह पठारी प्रदेश 16 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल में विस्तृत है। इसकी आकृति त्रिभुजाकार है। इसके उत्तर में गंगा-सतलुज-ब्रह्मपुत्र का मैदान, पूर्व में पूर्वी तटीय मैदान एवं बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिन्द महासागर तथा पश्चिम में पश्चिमी तटीय मैदान एवं अरब सागर स्थित है। इस पठार पर अनेक पर्वत विस्तृत हैं, जो मौसमी क्रियाओं; अर्थात् अपक्षय; द्वारा प्रभावित हैं। इस (UPBoardSolutions.com) भौतिक प्रदेश में सबसे अधिक धरातलीय विषमताएँ मिलती हैं। समुद्र-तल से इस पठार की औसत ऊँचाई 500 से 700 मीटर है। इस पठारी प्रदेश का विस्तार उत्तर में राजस्थान से लेकर दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक 1,700 किमी की लम्बाई तथा पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में पश्चिम बंगाल तक 1,400 किमी की चौड़ाई में है। प्राकृतिक दृष्टिकोण से इसकी उत्तरी सीमा अरावली, कैमूर तथा राजमहल की पहाड़ियों द्वारा निर्धारित होती है। यहाँ मौसमी क्रियाओं द्वारा चट्टानों का अपक्षरण होता रहता है। नर्मदा नदी की घाटी सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र को दो असमान भागों में विभाजित कर देती हैं। उत्तर की ओर के भाग को मालवा का पठार तथा दक्षिणी भाग को दकन ट्रैप या प्रायद्वीपीय पठार के नाम से पुकारते हैं। इस प्रदेश में निम्नलिखित स्थलाकृतिक विशिष्टताएँ पायी जाती हैं’

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1. मालवा का पठार- 
मालवा का पठार ज्वालामुखी से प्राप्त लावे द्वारा निर्मित हुआ है, जिससे यह समतल हो गया है। इस पठार पर बेतवा, माही, पार्वती, काली-सिन्धु एवं चम्बल नदियाँ प्रवाहित होती हैं। चम्बल एवं उसकी सहायक नदियों ने इस पठार के उत्तरी भाग को बीहड़ तथा ऊबड़-खाबड़ गहरे खड्डों में परिवर्तित कर दिया है, जिससे अधिकांश भूमि खेती के अयोग्य हो गयी है। शेष भूमि समतल और उपजाऊ है। इस पठार का ढाल पूर्व तथा उत्तर-पूर्व की ओर है। विन्ध्याचल की पर्वत-श्रृंखलाएँ यहीं पर स्थित हैं।

2. विन्ध्याचल श्रेणी– 
प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर-पश्चिमी भाग पर विन्ध्याचल श्रेणी का विस्तार है। इस श्रेणी के उत्तर-पश्चिम (राजस्थान) में अरावली श्रेणी स्थित है। यह श्रेणी अत्यधिक अपरदन के कारण निचली पहाड़ियों के रूप में दृष्टिगोचर होती है। विन्ध्याचल. श्रेणी के दक्षिण में नर्मदा की घाटी स्थित है। नर्मदा घाटी के दक्षिण में सतपुड़ा श्रेणी का विस्तार है, जो महानदी और गोदावरी के बीच स्थित है।

3. बुन्देलखण्ड एवं बघेलखण्ड का पठार- 
यह पठार मालवा पठार के उत्तर-पूर्व में स्थित है। यमुना एवं चम्बल नदियों ने इस पठार को काट-छाँटकर बीहड़ खड्डों का निर्माण किया है, जिससे यह असमतल तथा अनुपजाऊ हो गया है। इस पठार पर नीस, ग्रेनाइट, बालुका-पत्थर की चट्टानें तथा पहाड़ियाँ मिलती हैं।

4. छोटा नागपुर का पठार- 
यह पठार एक सुस्पष्ट पठारी इकाई है। इसके उत्तर व पूर्व में गंगा का मैदान है। इसका पश्चिमी मध्यवर्ती भाग 100 मीटर ऊँचा है, जिसे ‘पाट क्षेत्र’ कहते हैं। झारखण्ड राज्य के गया, हजारीबाग तथा राँची जिलों में यह पठार विस्तृत है। (UPBoardSolutions.com) महानदी, सोन, स्वर्ण-रेखा एवं दामोदर इस पठार की प्रमुख नदियाँ हैं। यहाँ ग्रेनाइट एवं नीस की शैलें पायी जाती हैं। यह पठार खनिज पदार्थों में बहुत धनी है। इसकी औसत ऊँचाई 400 मीटर है।

5. मेघालय का पठार- 
उत्तर-पूर्व में इस पठार को मिकिर की पहाड़ियों के नाम से पुकारते हैं। इसका | उत्तरी ढाल खड़ा है, जिसमें ब्रह्मपुत्र तथा उसकी सहायक नदियाँ प्रवाहित होती हैं। इसी पठार में गारो, खासी तथा जयन्तिया की पहाड़ियाँ विस्तृत हैं।

6. दकन का पठार- 
यह महाराष्ट्र पठार के नाम से भी जाना जाता है। इसका क्षेत्रफल 5 लाख वर्ग किमी है। इसका विस्तार मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, पश्चिमी तमिलनाडु एवं आन्ध्र प्रदेश राज्यों पर है। यह पठार बेसाल्ट शैलों से निर्मित है तथा खनिज पदार्थों में धनी है। यह पठार दो भागों में विभाजित है-तेलंगाना एवं दकन का पठार।

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7. प्रायद्वीपीय पठार 
की प्रमुख पर्वत-श्रेणियाँ–यह पठारी प्रदेश अनाच्छादन की क्रियाओं से प्रभावित है। यहाँ विन्ध्याचल, सतपुड़ा एवं अरावली की पहाड़ियाँ प्रमुख हैं। इनकी औसत ऊँचाई 300 से 900 मीटर तक है।

8. पश्चिमी घाट– 
इन्हें सह्याद्रि की पहाड़ियों के नाम से भी पुकारा जाता है। ये पश्चिमी तट के समीप उसके समानान्तर विस्तृत हैं। इनकी औसत चौड़ाई 50 किमी है। इनका विस्तार मुम्बई के उत्तर से दक्षिण में कुमारी अन्तरीप तक लगभग 1,600 किमी है। थाकेघाट, भोरघाट व पालघाट यहाँ के प्रमुख दरें हैं। इस श्रेणी के उत्तर-पूर्व में पालनी तथा दक्षिण में इलायची की पहाड़ियाँ हैं। अनाईमुडी इसका सर्वोच्च शिखर (2,695 मीटर) है।

9. पूर्वीघाट– 
इस श्रेणी का विस्तार महानदी के दक्षिण में उत्तर-पूर्व दिशा से दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर नीलगिरि की पहाड़ियों तक 1,300 किमी की लम्बाई में है। इनकी औसत ऊँचाई 615 मीटर तथा औसत चौड़ाई उत्तर में 190 किमी तथा दक्षिण में 75 किमी है। इन घाटों को काटकर महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियाँ पश्चिमी भागों से पूर्व की ओर बहती हुई उपजाऊ मैदान में डेल्टा बनाती हैं।

जल-प्रवाह प्रणाली

दक्षिण पठारी भाग की जल-प्रवाह प्रणाली में नर्मदा, ताप्ती, महानदी, कृष्णा, कावेरी, पेन्नार आदि नदियों का योगदान है। इनमें नर्मदा व ताप्ती पश्चिम की ओर बहकर अरब सागर में गिरती हैं। नर्मदा अमरकण्टक की पहाड़ियों से निकलती है तथा ताप्ती (UPBoardSolutions.com) मध्य प्रदेश के बैतूल जिले से निकलती है। यह दोनों नदियाँ सतपुड़ा के दक्षिण में सँकरी तथा गहरी भ्रंश घाटियों से होकर बहती हैं। महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी तथा पेन्नार नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। साबरमती व माही नदियाँ कच्छ की खाड़ी में गिरती हैं।

भौगोलिक महत्त्व

प्रायद्वीपीय पठार के भौगोलिक-आर्थिक महत्त्व का वर्णन निम्नलिखित है

  • प्राचीन आग्नेय कायान्तरित शैलों से निर्मित होने के कारण यह भू-भाग खनिज सम्पन्न है। मध्य प्रदेश में मैंगनीज, संगमरमर, चूना-पत्थर, बिहार व उड़ीसा (ओडिशा) में लोहा व कोयला, कर्नाटक में सोना, आन्ध्र प्रदेश में कोयला, हीरा आदि आर्थिक महत्त्व के खनिज उपलब्ध होते हैं।
  • लावा की मिट्टी कपास व गन्ने की खेती के लिए अत्युत्तम है। पहाड़ी क्षेत्रों में लैटेराइट मिट्टियाँ चाय, कहवा तथा रबड़ के लिए उपयुक्त हैं। गर्म मसाले, काजू, केला अन्य महत्त्वपूर्ण उपजें हैं।
  • वनों में चन्दन, साल, सागौन, शीशम आदि बहुमूल्य लकड़ी तथा लाख, बीड़ी बनाने के लिए तेन्दू व टिमरु वृक्ष के पत्ते, हरड़, बहेड़ा, आँवला, चिरौंजी, अग्नि व रोशा घास आदि आर्थिक महत्त्व की गौण वन-उपजें प्राप्त होती हैं।
  • पठारी धरातल पर प्रवाहित होने वाली नदियों के प्रपाती मार्ग में अनेक स्थानों पर जल-विद्युत शक्ति के विकास की सम्भावनाएँ उपलब्ध हैं। कठोर चट्टानी धरातल होने के कारण वर्षा के जल को एकत्रित करने के लिए जलाशय में बाँध की सुविधाएँ प्राप्त हैं।
  • सामान्यतः प्रायद्वीपीय पठार की जलवायु उष्ण है, किन्तु उटकमण्ड, पंचमढ़ी, महाबलेश्वर आदि सुरम्य एवं स्वास्थ्यवर्द्धक स्थल पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र हैं।
  • विषम धरातल होने के कारण यहाँ आवागमन के साधनों का (UPBoardSolutions.com) समुचित विकास नहीं हो सका है। उत्तरी मैदान की तुलना में यहाँ कृषि भी अधिक विकसित नहीं है। चम्बल व अन्य नदियों के बीहड़ लम्बी अवधि तक डाकुओं व असामाजिक तत्वों के शरणस्थल रहे हैं। विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा पर्वत प्राचीन काल से ही उत्तर एवं दक्षिण भारत के मध्य प्राकृतिक व सांस्कृतिक अवरोध रहे हैं; अतएव दक्षिणी भारत में उत्तर भारत से सर्वथा भिन्न संस्कृति विकसित हुई है।

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प्रश्न 6.
भारत में जल-प्रवाह प्रणाली का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए
(क) पूर्वी तट का जल-प्रवाह, (ख) उत्तरी मैदानी भाग का जल-प्रवाह।
उत्तर भूतल की बनावट तथा नदियों के उद्गम के दृष्टिकोण से भारत के जल-प्रवाह तन्त्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है- (क) उत्तरी मैदानी-भाग को जल-प्रवाह तथा (ख) प्रायद्वीपीय या दक्षिण भारत का जल-प्रवाह। दक्षिण भारत के जल-प्रवाह में कुछ जल अरब सागर में प्रवाहित होता है तथा कुछ। बंगाल की खाड़ी में। उत्तरी मैदानी भाग तथा पूर्वी तट जल-प्रवाह दोनों का वर्णन निम्नलिखित है–

(क) पूर्वी तट का जल-प्रवाह– 
इसे जल-प्रवाह में महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, पेन्नार आदि नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है

  • महानदी- इस नदी का उद्गम-स्रोत छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में फरसिया ग्राम के निकट स्थित एक तालाब से है। यह मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, बिहार से होकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
  • गोदावरी- यह प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी नदी है। यह महाराष्ट्र राज्य में नासिक से दक्षिण-पश्चिम में त्र्यम्बक गाँव से निकलती है। यह 1,465 किमी लम्बी है। यह मध्य प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा तथा आन्ध्र प्रदेश से होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
  • कृष्णा- यह नदी महाबलेश्वर की पहाड़ियों से निकलती है। इसकी लम्बाई 1,400 किमी है। यह महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा आन्ध्र प्रदेश से होकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
  • कावेरी- यह नदी कर्नाटक राज्य की नीलगिरि पर्वत-श्रेणियों से निकलती है। यह कर्नाटक तथा तमिलनाडु राज्यों से होकर बहती है। यह लगभग 815 किमी लम्बी है।

(ख) उत्तरी मैदानी भाग का जल-प्रवाह- उत्तरी मैदानी भाग के जल-प्रवाह तन्त्र (UPBoardSolutions.com) को तीन नदी तन्त्रों–सिन्धु नदी, गंगा नदी तथा ब्रह्मपुत्र नदी में विभाजित किया जा सकता है। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है

  • सिन्धु नदी तन्त्र– सिन्धु नदी तन्त्र- में पश्चिम हिमालय से निकलने वाली नदियाँ–सिन्धु, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलुज आती हैं। ये सभी अरब सागर में गिरती हैं। इनका प्रवाह उत्तर से दक्षिण- पश्चिम की ओर है।
  • गंगा नदी तन्त्र- गंगा नदी तन्त्र बंगाल की खाड़ी में मिलता है। इस तन्त्र की मुख्य नदी गंगा है। गंगा नदी, भागीरथी व अलकनन्दा नदियों का सम्मिलित रूप है। इसका उद्गम उत्तरकाशी जिले के ग्लेशियर से है। उद्गम स्थल से मुहाने तक गंगा नदी की लम्बाई 2,525 किमी है। इसकी मुख्य सहायक नदियाँ हैं-राम गंगा, गोमती, घाघरा, गण्डक, कोसी, यमुना तथा चम्बल। गंगा नदी तन्त्र का प्रवाह उत्तर से दक्षिण-पूर्व की ओर है।
  • ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र– उत्तरी भारत के अपवाह का पूर्वी भाग ब्रह्मपुत्र व उसकी सहायक नदियों द्वारा बनाया गया है। ब्रह्मपुत्र भारत की सबसे बड़ी नदी है। यह तिब्बत में कैलाश पर्वत पर मानसरोवर झील से 80 किमी की दूरी पर 5,150 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। लगभग 1,100 किमी तक महान् हिमालय के समानान्तर बहने के बाद यह नामचा-बरुआ के निकट दक्षिण की ओर मुड़कर असोम में दिहांग के नाम से प्रकट होती है। यहाँ से यह दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती है।।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ब्रह्मपुत्र की घाटी का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर :
ब्रह्मपुत्र का उद्गम स्थान तिब्बत में सिन्धु और सतलुज के उद्गम के निकट ही है। ब्रह्मपुत्र की लम्बाई सिन्धु नदी के बराबर है, परन्तु इसका अधिकांश विस्तार तिब्बत में है। तिब्बत में इसका नाम सांग है। नामचा-बरुआ नामक पर्वत के पास यह तीखा मोड़ लेकर भारत में प्रवेश करती है। अरुणाचल प्रदेश में इसे दिहांग के नाम से पुकारते हैं। लोहित, दिहांग तथा दीबांग के संगम के पश्चात् इसका नाम ब्रह्मपुत्र पड़ता है। बांग्लादेश के उत्तरी (UPBoardSolutions.com) भाग में इसका नाम जमुना है तथा मध्य भाग में इसे पद्मा कहते हैं। दक्षिण में पहुंचकर ब्रह्मपुत्र और गंगा आपस में मिल जाती हैं, तब इस संयुक्त धारा को मेघना कहते हैं।

प्रश्न 2.
भारत के उत्तरी विशाल मैदान का निर्माण किस प्रकार हुआ ?
उत्तर :
भारत का उत्तरी मैदान हिमालय तथा दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार के मध्य स्थित है। यह मैदान हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार से निकलकर उत्तर की ओर बहने वाली नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टियों से बना है। इन महीन मिट्टियों को जलोढ़क’ कहते हैं। उत्तरी मैदान जलोढ़कों द्वारा निर्मित एक समतल उपजाऊ भू-भाग है।

प्राचीनकाल में इसे मैदान के स्थान पर एक विशाल गर्त था। हिमालय पर्वतों के निर्माण के बाद हिमालय से निकलकर बहने वाली नदियों ने उस गर्त में गाद भरने शुरू किये। अनाच्छादन के कारकों ने हिमालय का अपरदन किया तथा भारी मात्रा में अवसाद (UPBoardSolutions.com) उस गर्त में एकत्रित होते गये। क्रमश: वह गर्त अवसादों से पट गया तथा उत्तरी मैदान की रचना हुई।

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प्रश्न 3.
पश्चिमी तटीय मैदान की भौगोलिक स्थिति एवं विस्तार तथा उसकी तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2010]
या
भारत के पश्चिमी तटीय भाग के दोनों नामों को स्थिति सहित लिखिए।
उत्तर :
पश्चिमी तटीय मैदान एक सँकरी पट्टी के रूप में विस्तृत हैं। प्रायद्वीप के पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक इस मैदान का विस्तार है। इसकी औसत चौड़ाई 64 किमी है, जब कि नर्मदा एवं ताप्ती नदियों के मुहाने के निकट ये 80 किमी तक चौड़े हैं। इस मैदान के उत्तरी भाग को कोंकण तथा दक्षिणी भाग को मालाबार कहते हैं। यहाँ सघन जनसंख्या पायी जाती है। इनकी स्थिति का विवरण अग्रलिखित है 10.

  • कोंकण का मैदान– इस मैदान का विस्तार दमन से लेकर गोआ तक 500 किमी की लम्बाई में है। इस मैदान की चौड़ाई 50 से 60 किमी के बीच है तथा मुम्बई के निकट सबसे अधिक है।
  • मालाबार का तटीय मैदान– इस मैदान का विस्तार मंगलोर से लेकर कन्याकुमारी तक 500 किमी की लम्बाई में है। इस पर लैगून नामक छोटी-छोटी तटीय झीलें पायी जाती हैं।

पश्चिमी तटीय मैदानों की प्रमुख तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • ये मैदान एक सँकरी पट्टी के रूप में विस्तृत हैं। गुजरात में ये अधिकतम चौड़े हैं तथा दक्षिण की ओर सँकरे हैं।
  • इस तट पर अनेक ज्वारनदमुख स्थित हैं जिनमें नर्मदा और ताप्ती के ज्वारनदमुख (एस्चुरी) मुख्य हैं।
  • दक्षिण में केरल में अनेक लैगून या पश्चजल स्थित हैं। उनके मुख पर बालूमिति या रोधिकाएँ स्थित हैं।

प्रश्न 4.
पूर्वी तटीय मैदान की स्थिति, विस्तार तथा उसकी तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी किनारे पर बंगाल की खाड़ी के तट तक तथा पूर्वी घाट के मध्य प० बंगाल से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक पूर्वी तटीय मैदानों का विस्तार है। तमिलनाडु में यह मैदान 100 से 120 किमी चौड़ा है। गोदावरी के डेल्टा के उत्तर में यह सँकरा है। कहीं-कहीं इसकी चौड़ाई 32 किमी तक है। इसकी तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—

  • यह मैदान पश्चिमी तटीय मैदान से अधिक चौड़ा है। नदियों के डेल्टाओं के निकट विशेष रूप से यह अधिक चौड़ा है।
  • नदी डेल्टाओं के मैदान अत्यधिक उर्वर तथा सघन आबाद हैं। महानदी, (UPBoardSolutions.com) गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी यहाँ बहने वाली नदियाँ हैं।
  • डेल्टाओं में नदियों से अनेक नहरें निकाली गयी हैं, जो सिंचाई के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। यहाँ अनेक लैंगून झीलें भी मिलती हैं, जिनमें ओडिशा की चिल्का, आन्ध्र प्रदेश की कोलेरू तथा तमिलनाडु की पुलीकट झीलें उल्लेखनीय हैं।

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प्रश्न 5.
उत्तरी पर्वत प्राचीर तथा प्रायद्वीपीय पठार में क्या अन्तर है ?
उत्तर :
उत्तरी पर्वत प्राचीर तथा प्रायद्वीपीय पठार में निम्नलिखित अन्तर हैं
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प्रश्न 6.
हिमालय की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए। या हिमालय का निर्माण किस प्रकार हुआ ?
उत्तर :
हिमालय की उत्पत्ति या निर्माण-उच्चावच से तात्पर्य किसी भू-भाग के ऊँचे व नीचे धरातल से है। सभी प्रकार के पहाड़ी, पठारी व मैदानी तथा मरुस्थलीय क्षेत्र मिलकर किसी क्षेत्र के उच्चावच का निर्माण करते हैं। उच्चावच की दृष्टि से भारत में अनेक विभिन्नताएँ मिलती हैं। इनका मूल कारण अनेक शक्तियों और संचलनों का परिणाम है, जो लाखों वर्ष पूर्व घटित हुई थीं। इसकी उत्पत्ति भूवैज्ञानिक अतीत के अध्ययन से स्पष्ट की जा सकती है। आज से 25 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप विषुवत रेखा के दक्षिण में स्थित प्राचीन गोण्डवानालैण्ड का एक भाग था। अंगारालैण्ड नामक एक अन्य प्राचीन भूखण्ड विषुवत् रेखा के उत्तर (UPBoardSolutions.com) में स्थित था। दोनों प्राचीन भूखण्डों के मध्य टेथिस नामक एक सँकरा, लम्बा, उथला सागर था। इन भूखण्डों की नदियाँ टेथिस में अवसाद जमा करती रहीं, जिससे कालान्तर में टेथिस सागर पट गया। पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण दोनों भूखण्ड टूटे। गोण्डवानालैण्ड से भारत का प्रायद्वीप अलग हो गया तथा भूखण्डों के टूटे हुए भाग विस्थापित होने लगे। आन्तरिक हलचलों से टेथिस सागर के अवसादों की परतों में भिंचाव हुआ और उसमें विशाल मोड़ पड़ गये। इस प्रकार हिमालय पर्वत-श्रृंखला की रचना हुई। इसी कारण हिमालय को वलित पर्वत कहा जाता है।

हिमालय की उत्पत्ति के बाद भारतीय प्रायद्वीप और हिमालय के मध्य एक खाई या गर्त शेष रह गया। हिमालय से उतरने वाली नदियों ने स्थल का अपरदन करके अवसादों के उस गर्त को क्रमशः भरना शुरू किया जिससे विशाल उत्तरी मैदान की रचना हुई। इस प्रकार भारतीय उपमहाद्वीप की भू-आकृतिक इकाइयाँ अस्तित्व में आयीं।

प्रश्न 7.
हिमालय से निकलने वाली नदियों तथा प्रायद्वीपीय भारत की नदियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिमालय से निकलने वाली नदियों तथा प्रायद्वीपीय नदियों में निम्नलिखित अन्तर हैं
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प्रश्न 8.
दक्षिण के पठार में नहर बनाना क्यों कठिन है ? इसके दो कारण लिखिए।
उत्तर:
दक्षिण के पठार में भौगोलिक स्थितियाँ नहर बनाने के अनुकूल नहीं हैं। इसके दो कारण निम्नलिखित हैं

  1. चम्बल व उसकी सहायक नदियों ने इस पठार के उत्तरी भाग को बीहड़ तथा ऊबड़-खाबड़ गहरे खड्डों में परिवर्तित कर दिया है। यही स्थिति बुन्देलखण्ड एवं बघेलखण्ड के पठार की भी है, जहाँ पर चम्बल व यमुना नदी ने बीहड़ निर्मित किये हैं। यह क्षेत्र नहर बनाने के लिए उपयुक्त नहीं है।
  2. यह पठारी क्षेत्र अत्यन्त कठोर चट्टानों द्वारा निर्मित है। इन चट्टानों को तोड़कर (UPBoardSolutions.com) नहरें निकालना अत्यन्त महँगा व श्रम-साध्य कार्य है। इन्हीं कारणों से दक्षिण के पठार में नहरें बनाना कठिन है।

प्रश्न 9.
भारत के समुद्रतटीय मैदानों के आर्थिक महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
प्रायद्वीपीय पठार के दोनों ओर पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली सँकरी पट्टी के रूप में जो मैदान फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहते हैं। ये क्रमश: पश्चिमी तथा पूर्वी समुद्रतटीय मैदान कहलाते हैं। इनका आर्थिक महत्त्व निम्नवत् है

1. पश्चिमी तटीय मैदान– 
प्रायद्वीप के पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक इस मैदान का विस्तार है। नर्मदा तथा ताप्ती यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं। नदियों के मुहानों पर बालू जम जाने से यहाँ लैगून निर्मित होते हैं। इनमें मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। उपयुक्त जलवायु तथा उत्तम मिट्टी के कारण यहाँ चावल, आम, केला, सुपारी, काजू, इलायची, गरम मसाले, नारियल आदि की फसलें उगायी जाती हैं। सागर तट पर नमक बनाने तथा मछलियाँ पकड़ने का व्यवसाय भी पर्याप्त रूप में विकसित हुआ है। भारत के प्रमुख पत्तन इन्हीं मैदानों में स्थित हैं। काँदला, मुम्बई ( न्हावाशेवा) व कोचीन इस तट के प्रमुख बन्दरगाह हैं।

2. पूर्वी तटीय मैदान– 
प्रायद्वीपीय पठारों के पूर्वी किनारों पर बंगाल की खाड़ी के तट तक तथा पूर्वी घाट के मध्य प० बंगाल से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक पूर्वी तटीय मैदानों का विस्तार है। इस मैदान में महानदी, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के डेल्टा विकसित हुए हैं। डेल्टाओं में नदियों से अनेक नहरें निकाली गयी हैं, जो सिंचाई का महत्त्वपूर्ण साधन हैं। यह तटीय मैदान उपजाऊ है तथा कहीं- कहीं पर कॉप मिट्टी से ढका है। यह मैदान कृषि की दृष्टि से बड़ा अनुकूल है। चावल, गन्ना, तम्बाकू व जूट इस मैदान की मुख्य उपज हैं।

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प्रश्न 10.
भारत के पश्चिमी तथा पूर्वी तटीय मैदानों में दो मुख्य अन्तर लिखिए।
या
भारत के पूर्वी व पश्चिमी तटीय मैदानों की तुलना कीजिए। [2014]
उत्तर :
प्रायद्वीपीय पठार के दोनों ओर पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली पट्टी के रूप में जो मैदान फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहते हैं। इन मैदानों को दो क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है-पूर्वी तटीय मैदान एवं पश्चिमी तटीय मैदान। इन दोनों मैदानों में दो मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं

  • आकार–पश्चिमी तटीय मैदान एक सँकरी पट्टी के रूप में विस्तृत हैं। इनकी औसत चौड़ाई 64 किमी है तथा नर्मदा एवं ताप्ती के मुहाने के निकट ये 80 किमी चौड़े हैं, जबकि पूर्वी तटीय मैदान अपेक्षाकृत अधिक चौड़े हैं। इनकी औसत चौड़ाई (UPBoardSolutions.com) 161 से 483 किमी है।
  • विस्तार–पश्चिमी तटीय मैदान प्रायद्वीप के पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक फैले हैं, जबकि पूर्वी तटीय मैदान प्रायद्वीपीय पठारों के पूर्वी किनारों पर बंगाल की खाड़ी के तट तक तथा पूर्वी घाट के मध्य पश्चिमी बंगाल से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक विस्तृत हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रज,

प्रश्न 1.
भारत के अक्षांशीय एवं देशान्तरीय विस्तार को लिखिए। [2012]
उत्तर :
भारत हिन्द महासागर के शीर्ष पर स्थित एक विशाल देश है। इसका क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी है। भारत 8°4′ उत्तर से 37°6′ उत्तरी अक्षांश और 68°7′ से 97°25′ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है।

प्रश्न 2.

क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है ?
उत्तर:
क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व का सातवाँ विशाल देश है। इससे अधिक बड़े आकार वाले देश क्रमशः रूस, कनाडा, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील तथा ऑस्ट्रेलिया हैं।

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प्रश्न 3.
भारत की सीमाओं पर स्थित पड़ोसी देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत की पूर्वी सीमा बांग्लादेश तथा म्यांमार से, पश्चिमी सीमा पाकिस्तान (UPBoardSolutions.com) व अफगानिस्तान से, उत्तरी सीमा चीन, नेपाल और भूटान से तथा दक्षिण में श्रीलंका से मिलती है।

प्रश्न 4.
भारतीय उपमहाद्वीप में कौन-कौन-से देश हैं ?
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप में पाकिस्तान,भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका तथा मालदीव देश सम्मिलित हैं।

प्रश्न 5.
हिमालय को नवीन वलित पर्वत क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
हिमालय की उत्पत्ति टेथिस सागर में लगातार तलछटों के निक्षेप से बनी परतों में मोड़ पड़ जाने से हुई। भिंचाव की शक्तियों के कारण ये मोड़ ऊँचे उठते चले गये जो बाद में पर्वत बन गये। इसीलिए हिमालय को नवीन वलित पर्वत कहते हैं।

प्रश्न 6.
भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्राचीन भू-भाग कौन-सा है ?
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्राचीन भू-भाग विशाल प्रायद्वीपीय पठार है, जो उत्तरी मैदान के दक्षिण में स्थित है।

प्रश्न 7.
लक्षद्वीप किस सागर में स्थित है ?
उत्तर:
लक्षद्वीप अरब सागर में स्थित है।

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प्रश्न 8.
उत्तर भारत के विशाल मैदानों की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2011]
उत्तर:

  • उत्तर का विशाल मैदान सतलज, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियों के अपरदन से बना है।
  • यह क्षेत्र अत्यधिक उपजाऊ है।

प्रश्न 9.
शिवालिक श्रेणी किन दो राज्यों में स्थित है ?
उत्तर:
शिवालिक श्रेणी

  • पंजाब तथा
  • उत्तराखण्ड राज्यों में स्थित है।

प्रश्न 10.
भारत के पश्चिमी तट के दक्षिणी भाग को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर:
भारत के पश्चिमी तट के दक्षिणी भाग को ‘मालाबार’ (UPBoardSolutions.com) नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 11.
हिमालय के दो सर्वोच्च शिखरों के नाम लिखिए।
उत्तर:
हिमालय के दो सर्वोच्च शिखर माउण्ट एवरेस्ट (नेपाल) तथा के-2 (भारत) हैं।

प्रश्न 12.
हिमालय की प्रमुख घाटियों के नाम बताइए। इनका क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
हिमालय की प्रमुख घाटियों, जिन्हें ‘दून’ कहते हैं; के नाम हैं-देहरादून, पूर्वादून, कोठड़ीदून, पाटलीदून आदि। ये घाटियाँ अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए विश्वविख्यात हैं।

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प्रश्न 13.
पूर्वांचल में पर्वत-श्रृंखलाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
पटकाई कूम, गारो-खासी जयन्तिया तथा चुसाई पहाड़ियाँ।

प्रश्न 14.
गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों के डेल्टा को हम किस नाम से जानते हैं?
उत्तर:
सुन्दरवन डेल्टा।

प्रश्न 15.
विशाल प्रायद्वीपीय पठार की दो प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
विशाल प्रायद्वीपीय पठार की दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • यह विशाल प्रायद्वीपीय पठार भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्राचीन भू-भाग है, जो गोण्डवाना–लैण्ड का ही एक अंग है।
  • इस पठार का निर्माण त्रिभुजाकार आकृति में प्राचीन (UPBoardSolutions.com) ग्रेनाइट तथा बेसाल्ट की कठोर शैलों से हुआ है।

प्रश्न 16.
ब्रह्मपुत्र नदी भारत के किस राज्य में बहती है ?
उत्तर:
ब्रह्मपुत्र नदी भारत के असोम राज्य में बहती है।

प्रश्न 17.
सतपुड़ा पर्वत किन दो नदियों के बीच स्थित है ?
उत्तर:
सतपुड़ा पर्वत नर्मदा और ताप्ती नदियों के बीच स्थित है।

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प्रश्न 18.
अरावली पहाड़ियाँ किस राज्य में स्थित हैं ?
उत्तर:
अरावली पहाड़ियाँ राजस्थान राज्य में स्थित हैं।

प्रश्न 19.
बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली दो नदियों के नाम लिखिए। [2018]
उत्तर:

  • महानदी तथा
  • स्वर्ण रेखा नदी।

प्रश्न 20.
थार मरुस्थल कहाँ है ?
उत्तर:
थार मरुस्थल उत्तर-पश्चिमी भारत (राजस्थान) में है।

प्रश्न 21.
भारत और विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा कौन-सा है ?
उत्तर:
भारत और विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा या सुन्दरवन है।

प्रश्न 22.
डेल्टा को परिभाषित कीजिए और किसी एक डेल्टा का नाम लिखिए। [2011, 12]
या
डेल्टा किसे कहते हैं? यह कैसे बनता है?
उत्तर:
जब नदियों में अवसाद की मात्रा ज्यादा हो जाती है तो (UPBoardSolutions.com) नदियों का पानी कई शाखाओं में होकर बहने लगता है, जिससे निक्षेपण क्षेत्र A के आकार का हो जाता है, जिसे ‘डेल्टा’ कहते हैं। सुन्दरवन डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है।

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प्रश्न 23.
मालय के दो प्रमुख दरों के नाम लिखिए। [2011, 13, 16]
उत्तर:
हिमालय के दो प्रमुख दरों के नाम हैं–

  • कराकोरम तथा
  • शिपकी-ला।

प्रश्न 24.
अरब सागर में गिरने वाली दो नदियों के नाम लिखिए। [2011, 13]
उत्तर:
अरब सागर में गिरने वाली दो नदियाँ हैं–सिन्धु नदी तथा नर्मदा नदी।

प्रश्न 25.
भारत और चीन के बीच सीमा-रेखा का क्या नाम है ?
उत्तर:
भारत और चीन के बीच सीमा-रेखा का नाम मैकमोहन रेखा है।

प्रश्न 26.
कौन-सा दर्रा भारत के सिक्किम राज्य को तिब्बत से जोइता है ?
उत्तर:
नाथुला दर्रा भारत के सिक्किम राज्य को तिब्बत से जोड़ता है।

प्रश्न 27.
भारत के पश्चिम और दक्षिण में कौन-से सागर हैं? [2014]
उत्तर:

पश्चिम-(1) अरब सागर।
दक्षिण-(2) हिन्द महासागर।

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प्रश्न 28.
डेल्टा तथा ज्वारनदमुख में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जब नदियों में अवसाद की मात्रा ज्यादा हो जाती है तो नदियों का पानी कई शाखाओं में होकर बहने लगता है, जिससे निक्षेपण क्षेत्र A के आकार का हो जाता है, जिसे डेल्टा’ (Delta) कहते हैं तथा जब नदियाँ बिना डेल्टा का निर्माण किए सीधे समुद्र (UPBoardSolutions.com) में गिरती हैं तो उसे ‘ज्वारनदमुख’ कहते हैं।

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1. भारत किस महाद्वीप में स्थित है?

(क) यूरोप में
(ख) अफ्रीका में
(ग) एशिया में
(घ) ऑस्ट्रेलिया में

2. भारत किस कटिबन्ध में स्थित है?

(क) उपोष्ण
(ख) उष्ण
(ग) शीतोष्ण
(घ) शीत

3. भारत की वह नदी जो ज्वारनदमुख बनाती है

(क) ताप्ती
(ख) महानदी
(ग) गोदावरी
(घ) लूनी

4. भारत के कुल क्षेत्रफल में मैदानी भाग हैं [2011]

(क) लगभग 43%
(ख) लगभग 40%
(ग) लगभग 33%
(घ) लगभग 30%

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5. ‘शिपकी-ला’ दर्रा भारत को जोड़ता है [2011]

(क) पाकिस्तान से
(ख) चीन से
(ग) भूटान से
(घ) नेपाल से

6. भारत के दक्षिण में स्थित देश का नाम है [2012]

(क) श्रीलंका
(ख) नेपाल
(ग) चीन
(घ) म्यांमार

7. हिमालय पर्वत की सर्वोच्च चोटी है

(क) एवरेस्ट
(ख) कंचनजंगा
(ग) K-2
(घ) नन्दा

8. अरुणाचल प्रदेश में मुख्य दर्रा है[2011]

(क) नाथुला दर्रा
(ख) बोमडिला दर्रा
(ग) कराकोरम दर्रा
(घ) बोलन दर्रा

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9. गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है

(क) चम्बल
(ख) यमुना
(ग) बेतवा
(घ) नर्मदा

10. नन्दा देवी शिखर किस पर्वत से सम्बन्धित है?

(क) नीलगिरि पर्वत से
(ख) सतपुड़ा पर्वत से
(ग) हिमालय पर्वत से
(घ) मैकाले पर्वत से

11. भारत का सर्वोच्च शिखर कौन-सा है? [2011, 13, 14]

(क) गॉडविन ऑस्टिन
(ख) कंचनजंगा
(ग) नन्दा देवी ,
(घ) इनमें से कोई नहीं

12. भारत की स्थल सीमा की कुल लम्बाई कितनी है?

(क) 15,200 किमी.
(ख) 15,300 किमी
(ग) 15,400 किमी
(घ) 15,500 किमी

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13. नीलगिरि पर्वत स्थित है [2011, 12, 13, 16]

(क) उत्तरी भारत में
(ख) दक्षिणी भारत में
(ग) पूर्वी भारत में
(घ) पश्चिमी भारत में

14. नाथूला दर्रा किस राज्य में स्थित है?

(क) अरुणाचल प्रदेश में
(ख) असोम में
(ग) सिक्किम में ।
(घ) मणिपुर में

15. बोमडिला दर्रा किस राज्य में स्थित है? [2010]

(क) सिक्किम में
(ख) हिमाचल प्रदेश में
(ग) जम्मू-कश्मीर में
(घ) अरुणाचल प्रदेश में

16. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी अरब सागर में गिरती है? [2012, 13, 18]

(क) सतलुज
(ख) महानदी
(ग) ताप्ती
(घ) कावेरी

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17. ऊटकमण्ड किस राज्य में स्थित है? [2012]

(क) केरल
(ख) कर्नाटक
(ग) तमिलनाडु
(घ) उत्तराखण्ड

18. शिवालिक पर्वत स्थित है [2012]

(क) उत्तरी भारत में
(ख) दक्षिणी भारत में
(ग) पूर्वी भारत में
(घ) पश्चिमी भारत में

19. जोजिला दर्रा जोड़ता है [2012]

(क) जम्मू और कठुआ को
(ख) जम्मू और ऊधमपुर को
(ग) श्रीनगर और लेह को
(घ) श्रीनगर और कुपवाड़ा को

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20. निम्नलिखित में से कौन-सी सबसे बड़ी नदी है? [2011]

(क) गोदावरी
(ख) गंगा
(ग) कृष्णा
(घ) साबरमती

21. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी बंगाल की खाड़ी में गिरती है? [2011]

(क) नर्मदा
(ख) गोदावरी
(ग) ताप्ती
(घ) साबरमती

22. शिपकी-ला दर्रा किस राज्य में है?

(क) उत्तराखण्ड
(ख) हिमाचल प्रदेश
(ग) सिक्किम

23. भारतीय गणराज्य में कितने राज्य हैं?

(क) 29
(ख) 28
(ग) 30
(घ) 35

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24. कौन-सा समुद्र तट कोरोमण्डल तट कहा जाता है? [2013, 15]

(क) गुजरात का समुद्र तट
(ख) केरल का समुद्र तट
(ग) तमिलनाडु की समुद्र तट
(घ) ओडिशा का समुद्र तट

25. किस राज्य की तट रेखा सबसे लम्बी है? [2014]

(क) गुजरात
(ख) आन्ध्र प्रदेश
(ग) पश्चिम बंगाल
(घ) गोवा

26. भारतवर्ष का क्षेत्रफल है [2014]

(के) 32,87,263 वर्ग किमी
(ख) 33,87,364 वर्ग किमी
(ग) 30,80,362 वर्ग किमी
(घ) 31,80,664 वर्ग किमी

27. क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य है [2014]

(क) मध्य प्रदेश
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) बिहार
(घ) राजस्थान

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28. कंचनजंगा की ऊँचाई है [2015]

(क) 8598 मीटर
(ख) 7598 मीटर
(ग) 6598 मीटर
(घ) 5598 मीटर

29. संसार का सबसे बड़ा डेल्टा है [2015]

(क) अमेजन का डेल्टा ।
(ख) गंगा का डेल्टा
(ग) मिसीसिपी का डेल्टा
(घ) नील नदी का डेल्टा

30. माउण्ट एवरेस्ट की ऊँचाई है [2015, 16]

(क) 8848 मीटर
(ख) 7747 मीटर
(ग) 6646 मीटर
(घ) 5545 मीटर

31. भारत की सर्वोच्च श्रेणी की ऊँचाई है [2015]

(क) 8211 मीटर
(ख) 8611 मीटर
(ग) 8000 मीटर
(घ) 8302 मीटर

32. कंचनजंगा चोटी अवस्थित है [2015]

(क) जम्मू और कश्मीर में
(ख) उत्तराखण्ड में
(ग) सिक्किम में
(घ) हिमाचल प्रदेश में

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33. मालाबार तट कहा जाता है [2015]

(क) पश्चिमी समुद्र तटीय मैदान का उत्तरी भाग
(ख) पश्चिमी समुद्र तटीय मैदान का दक्षिणी भाग
(ग) पूर्वी समुद्र तटीय मैदान का उत्तरी भाग
(घ) पूर्वी समुद्र तटीय मैदान का दक्षिणी भाग

34. मैकमोहन रेखा स्थित है [2015, 16]

(क) भारत तथा बांग्लादेश के मध्य
(ख) भारत तथा नेपाल के मध्य ।
(ग) भारत तथा पाकिस्तान के मध्य
(घ) भारत तथा चीन के मध्य

35. निम्नलिखित में से कौन पर्वतीय चोटी भारत में स्थित है? [2016]

(क) माउण्ट एवरेस्ट
(ख) धौला गिरि
(ग) अन्नपूर्णा
(घ) नन्दा देवी

36. निम्नलिखित में से किस राज्य में समुद्र तट नहीं है? [2017]

(क) महाराष्ट्र
(ख) गुजरात
(ग) केरल
(घ) मध्य

प्रदेश 37. गंगा नदी का उद्गम स्थल है [2017]

(क) तिब्बत का पठार
(ख) मानसरोवर झील
(ग) गोमुख हिमनद
(घ) नंगा पर्वत

38. नीलगिरि पर्वत स्थित है [2017]

(क) तमिलनाडु
(ख) कर्नाटक
(ग) केरल
(घ) आन्ध्र

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प्रदेश 39. कन्याकुमारी स्थित है [2017]

(क) कर्नाटक
(ख) आन्ध्र प्रदेश
(ग) केरल
(घ) तमिलनाडु

40. नवीनतम पर्वतश्रेणी है

(क) नीलगिरि
(ख) सतपुड़ा
(ग) शिवालिक
(घ) विन्ध्य की पहाड़ियाँ

उत्तरमाला

1. (ग), 2. (क), 3. (क), 4. (क), 5. (ख), 6. (क), 7. (क), 8. (ख), 9. (ख), 10. (ग), 11. (ख), 12. (क), 13. (ख), 14. (ग), 15. (घ), 16. (ग), 17. (ग), 18. (क), 19. (ग), 20. (ख), 21. (ख), 22. (ख), 23. (क), 24. (ग), 25. (क), 26. (क), 27. (घ), 28. (क), 29. (ख), 30. (क), 31. (ख), 32. (ग), 33. (ख), 34. (घ) 35. (घ), 36. (घ), 37. (ग), 38. (क), 39. (घ), 40. (ग) |

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 पानी में चंदा और चाँद पर आदमी (गद्य खंड)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 पानी में चंदा और चाँद पर आदमी (गद्य खंड)

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जीवन-परिचय एवं कृतियाँ

प्रश्न 1.
जयप्रकाश भारती के जीवन-परिचय एवं साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालिए। [2009, 10]
या
जयप्रकाश भारती का जीवन-परिचय दीजिए और उनकी एक रचना का नामोल्लेख कीजिए। [2012, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
पत्रकार एवं हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक श्री जयप्रकाश भारती ने साहित्यिक शैली में वैज्ञानिक लेख लिखने और साक्षरता प्रसार के कार्य में विशेष ख्याति प्राप्त की है। ये सफल निबन्धकार, कहानीकार एवं रिपोर्ताज लेखक हैं। गम्भीर विषय को भी रुचिकर और बोधगम्य बनाकर प्रस्तुत करने में आप सिद्धहस्त हैं।

जीवन-परिचय—श्री जयप्रकाश भारती का जन्म मेरठ नगर के मध्यमवर्गीय प्रतिष्ठित परिवार में 2 जनवरी, सन् 1936 ई० को हुआ था। इनके पिता श्री रघुनाथ सहाय मेरठ के प्रसिद्ध वकील, पुराने कांग्रेसी और समाज-सेवी व्यक्ति थे। इन्होंने (UPBoardSolutions.com) मेरठ में अध्ययन कर बी० एस-सी० की परीक्षा उत्तीर्ण की और छात्र-जीवन से ही समाज-सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि के रूप में समाज-सेवा की। मेरठ में साक्षरता-प्रसार के लिए इन्होंने कई वर्षों तक प्रौढ़ रात्रि-पाठशाला का नि:शुल्क संचालन कर उल्लेखनीय कार्य किया। इन्होंने सम्पादन कला-विशारद’ की परीक्षा उत्तीर्ण करके मेरठ से प्रकाशित होने वाले दैनिक प्रभात’ और दिल्ली से प्रकाशित होने वाले ‘नवभारत टाइम्स’ में व्यावहारिक प्रशिक्षण तथा ‘साक्षरता-निकेतन’ लखनऊ में नवसाक्षर साहित्य के लेखन का विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया। इन्होंने कई वर्षों तक दिल्ली से प्रकाशित होने वाले ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान में सह-सम्पादक के रूप में कार्य किया। तत्पश्चात् दिल्ली में हिन्दुस्तान टाइम्स द्वारा संचालित सुप्रसिद्ध बाल पत्रिका ‘नंदन’ के सम्पादक के रूप में कार्य करते रहे। दिनांक 5 फरवरी, 2005 को श्री भारती जी का देहावसान हो गया।

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रचनाएँ-भारती जी की अनेक मौलिक एवं लगभग सौ सम्पादित पुस्तकें हैं। इनकी उल्लेखनीय रचनाएँ अग्रलिखित हैं

  1. मौलिक रचनाएँ-‘हिमालय की पुकार’, ‘अनन्त आकाश : अथाह सागर’ (ये दोनों पुस्तकें यूनेस्को द्वारा पुरस्कृत हैं); ‘विज्ञान की विभूतियाँ’, ‘देश हमारा’, ‘चलो चाँद पर चलें’ (ये तीनों पुस्तकें भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हैं), ‘सरदार भगत सिंह’, ‘हमारे गौरव के प्रतीक’, ‘अस्त्र-शस्त्र’, ‘आदिम युग से अणु युग तक’, ‘उनका बचपन यूँ बीता’, ‘ऐसे थे हमारे बापू’ , “लोकमान्य तिलक’, ‘बर्फ की गुड़िया’, ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’, ‘भारत को संविधान’, ‘दुनिया रंग-बिरंगी’ आदि।
  2. सम्पादित रचनाएँ-‘भारत की प्रतिनिधि लोककथाएँ तथा किरणमाला’ (तीन भागों में) आदि।
  3. सम्पादन-कार्य–‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान में सह-सम्पादक एवं ‘नंदन’ (बाल-पत्रिका) के सम्पादक।
    साहित्य में स्थान-बालोपयोगी साहित्य के प्रणयन, वैज्ञानिक लेखों के साहित्यिक शैली में प्रस्तुतीकरण एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में जयप्रकाश भारती का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने साहित्य में वैज्ञानिक लेखन के अभाव की पूर्ति कर हिन्दी-साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान (UPBoardSolutions.com) बना लिया है।

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गद्यांशों पर आधारित प्रश्न

प्रश्न-पत्र में केवल 3 प्रश्न (अ, ब, स) ही पूछे जाएँगे। अतिरिक्त प्रश्न अभ्यास एवं परीक्षोपयोगी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण दिए गये हैं।
प्रश्न 1.
दुनिया के सभी भागों में स्त्री-पुरुष और बच्चे रेडियो से कान सटाए बैठे थे, जिनके पास . टेलीविजन थे, वे उसके पर्दे पर आँखें गड़ाए थे। मानवता के सम्पूर्ण इतिहास की सर्वाधिक रोमांचक घटना के एक क्षण के वे भागीदार बन रहे थे – उत्सुकता और कुतूहल के कारण अपने अस्तित्व से बिल्कुल बेखबर हो गये थे। [2018]
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) रोमांचक घटना के भागीदार कौन बन रहे थे?
[ दुनिया = विश्व। सटाए = मिलाकर। गड़ाए = एकटक देखना। भागीदार = हिस्सेदार। बेखबर = अनजान।]
उत्तर
(अ) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के गद्य-खण्ड (UPBoardSolutions.com) में संकलित श्री जयप्रकाश भारती द्वारा लिखित ‘पानी में चंदा और चाँद पर आदमी’ नामक निबन्ध से अवतरित है। अथवा निम्नवत् लिखिए पाठ का नाम-पानी में चंदा और चाँद पर आदमी। लेखक का नाम-श्री जयप्रकाश भारती। [विशेष—इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही उत्तर इसी रूप में लिखा जाएगा।] |

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(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक का कथन है कि सबसे अधिक रोमांचकारी घटना (मनुष्य का चाँद पर पहुँचना) को देखने और सुनने के लिए टी०वी० या रेडियो के पास बैठकर पूरी दुनिया के सभी व्यक्ति एक पल के लिए इसके हिस्सेदार बन रहे थे। जिज्ञासा और बेचैनी के कारण वे अपनी हस्ती से बिल्कुल अनजान हो गये थे।

(स) दुनिया के सभी भागों के स्त्री-पुरुष और बच्चे रोमांचक घटना के भागीदार बन रहे थे। ”

प्रश्न 2.
मानव को चन्द्रमा पर उतारने का यह सर्वप्रथम प्रयास होते हुए भी असाधारण रूप से सफल रहा। यद्यपि हर क्षण, हर पग पर खतरे थे। चन्द्रतल पर मानव के पाँव के निशान उसके द्वारा वैज्ञानिक तथा तकनीकी क्षेत्र में की गयी असाधारण प्रगति के प्रतीक हैं। जिस क्षण डगमग-डगमग करते मानव के पग उस धुलि-धूसरित अनछुई सतह पर पड़े तो मानो वह हजारों-लाखों साल से पालित-पोषित सैकड़ों अन्धविश्वासों तथा (UPBoardSolutions.com) कपोल-कल्पनाओं पर पद-प्रहार ही हुआ। कवियों की कल्पना के सलोने चाँद को वैज्ञानिकों ने बदसूरत और जीवनहीन करार दे दिया-भला अब चन्द्रमुखी कहलाना किसे रुचिकर लगेगा। [2013]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए अथवा गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।. .
(स)

  1. चन्द्रमुखी कहलाना क्यों रुचिकर नहीं लगेगा ?
  2. जिस समय मनुष्य के कदम चन्द्रमा पर पड़े, उस समय क्या हुआ ? या मानव के चन्द्रमा पर उतरने का क्या भाव प्रतिध्वनित हुआ ?
  3. मानव द्वारा चन्द्रमा पर उतरने का प्रयास कैसा रहा ?

[डगमग-डगमग करते हुए = लड़खड़ाते हुए। धूलि-धूसरित = धूल से सने हुए। अनछुई = जो किसी के द्वारा छुई हुई न हो। पालित-पोषित = पालन-पोषण किये गये। कपोल-कल्पना = झूठी कल्पना। पद-प्रहार = पैरों का आघात, (यहाँ पर) किसी धारणा को एकदम ही नकार देना। सलोने = सुन्दर। जीवनहीन = जीवों से रहित। करार देना = नाम देना। रुचिकर = अच्छा।]

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उत्तर
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक श्री जयप्रकाश भारती जी कहते हैं कि चन्द्रमा पर उतरने के कई सफल प्रयास पहले भी किये जा चुके थे। लेकिन चन्द्रमा पर मनुष्य को उतारने का। यह प्रथम प्रयास था, जो कि अमेरिका के द्वारा किया गया था। यह प्रयास उम्मीद से अधिक सफल रहा। यद्यपि चन्द्रमा पर मनुष्य के रखे गये प्रत्येक कदम और बिताये गये प्रत्येक क्षण खतरे से भरे हुए थे, तथापि दोनों ही अन्तरिक्ष यात्री अपने तीसरे साथी के साथ पृथ्वी पर सकुशल वापस लौट आये।।

द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक श्री जयप्रकाश भारती जी कहते हैं कि जैसे ही अमेरिकी चन्द्रयान चन्द्रमा पर पहुंचा और मानव ने अपने लड़खड़ाते हुए कदम सफलतापूर्वक चन्द्रमा के धरातल पर रखे, वैसे ही प्राचीनकाल से आज तक के उसके बारे में चले आ रहे सारे अन्धविश्वास एवं निरर्थक अनुमान असत्य प्रमाणित हो गये। चन्द्रमा पर पहुँचने पर उसके विषय में यथार्थ सत्य सामने आ गया और सारी कल्पनाएँ झूठी सिद्ध हो गयीं। हमारे प्राचीन कवि चन्द्रमा को सुन्दर कहते थे और नारियों के सुन्दर मुख की तुलना चन्द्रमा से किया करते थे, लेकिन चन्द्रतल पर पहुँचकर वैज्ञानिकों ने कवियों (UPBoardSolutions.com) की इन भ्रान्तियों को असत्य सिद्ध कर दिया। उन्होंने बताया कि चन्द्रमा बहुत कुरूप, ऊबड़-खाबड़ और जीवनहीन है। यदि कोई व्यक्ति किसी सुन्दरी को अब चन्द्रमुखी कहेगा तो अब वह अपने को चन्द्रमुखी (कुरूप और निर्जीव मुख वाली) कहलाना कैसे पसन्द करेगी ?
(स)

  1. अब किसी स्त्री को चन्द्रमुखी; चन्द्रमा के समान मुख वाली; कहलाना इसलिए रुचिकर नहीं लगेगा; क्योंकि चन्द्रमा पर उतरने के बाद वैज्ञानिकों ने इसे बदसूरत और जीवनहीन घोषित कर दिया।
  2. जिस समय मनुष्य के कदम चन्द्रमा पर पड़े उस समय लाखों वर्षों से चन्द्रमा के बारे में चले आ रहे अन्धविश्वास और निरर्थक अनुमान असत्य सिद्ध हो गये।
  3. मानव द्वारा चन्द्रतल पर उतरने का सर्वप्रथम प्रयास पूर्ण रूप से सफल रहा। यह मनुष्य की वैज्ञानिक-तकनीकी क्षेत्र में की गयी असाधारण प्रगति का प्रतीक था।

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प्रश्न 3.
हमारे देश में ही नहीं, संसार की प्रत्येक जाति ने अपनी भाषा में चन्द्रमा के बारे में कहानियाँ गढ़ी हैं और कवियों ने कविताएँ रची हैं। किसी ने उसे रजनीपति माना तो किसी ने उसे रात्रि की देवी कहकर पुकारा। किसी विरहिणी ने उसे अपना दूत बनाया तो किसी ने उसके पीलेपन से क्षुब्ध होकर उसे बूढ़ा और बीमार ही समझ लिया। बालक श्रीराम चन्द्रमा को खिलौना समझकर उसके लिए मचलते हैं तो सूर के। श्रीकृष्ण भी उसके लिए हठ करते हैं। (UPBoardSolutions.com) बालक को शान्त करने के लिए एक ही उपाय था; चन्द्रमा की छवि को । पानी में दिखा देना। [2009, 15, 17]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. मचलते और हठ करते बालक को शान्त करने के लिए क्या उपाय था?
  2. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने क्या कहा है ?

[रजनीपति = रात्रि का स्वामी। विरहिणी = प्रिय अथवा पति से बिछड़ी हुई दुःखी स्त्री। क्षुब्ध = दु:खी।]
उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक का कथन है कि निर्जीव चन्द्रमा को कभी रात्रि का पति तो कभी रात की देवी कहा गया। कभी किसी विरह-विधुरा नायिका ने उसे अपना दूत बनाकर उसके माध्यम से अपने प्रियतम के लिए सन्देश भेजा तो कभी उसका पीलापन देखकर उसे बूढ़ा, बीमार और दुर्बल समझ लिया गया।
(स)

  1. मचलते और हठ करते बालक को शान्त करने के लिए चन्द्रमा की छवि को पानी में दिखा दिया जाता था।
  2. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने कहा है कि चन्द्रमा से केवल भारत के ही नहीं, वरन् संसार की प्रत्येक जाति के लेखक और कवि प्रभावित रहे हैं और उसके विषय में कहानियाँ गढ़ते रहे हैं।
  3. मानव की प्रगति का चक्र कितना घूम गया है। इस लम्बी विकास-यात्रा को (UPBoardSolutions.com) श्रीमती महादेवी वर्मा ने एक ही वाक्य में बाँध दिया है-“पहले पानी में चंदा को उतारा जाता था और आज चाँद पर मानव पहुँच गया है।”

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प्रश्न 4.
मानव मन सदा से ही अज्ञात के रहस्यों को खोलने और जानने-समझने को उत्सुक रहा है। जहाँ तक वह नहीं पहुंच सकता था, वहाँ वह कल्पना के पंखों पर उड़कर पहुंचा। उसकी अनगढ़ और अविश्वसनीय कथाएँ उसे सत्य के निकट पहुँचाने में प्रेरणा-शक्ति का काम करती रहीं। अन्तरिक्ष युग का सूत्रपात 4 अक्टूबर, 1956 को हुआ था, जब सोवियत रूस ने अपना पहला स्पुतनिक छोड़ा। प्रथम अन्तरिक्ष यात्री बनने का गौरव यूरी गागरिन को प्राप्त हुआ। 2014, 161
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. मानव की विकास यात्रा को महादेवी जी ने कैसे स्पष्ट किया है ?
  2. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने मनुष्य की किस प्रवृत्ति को स्पष्ट किया है ?
  3. अन्तरिक्ष युग का सूत्रपात कब हुआ? [अनगढ़ = बेडौल।]

उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक कहता है कि मनुष्य को मन प्राचीनकाल से ही नयी-नयी बातों को जानने के लिए उत्सुक रहा है। वह सदा अनजाने रहस्यों को सुलझाकर उन्हें जानने और समझने में अपनी शक्ति का उपयोग करता रहा है। जहाँ तक सम्भव हुआ, मानव ने अपनी कल्पना द्वारा उसे जानने की चेष्टा की। उसने अज्ञात रहस्यों के विषय में अनेक कल्पनाओं का निर्माण किया। चाहे उसे वे कल्पनाएँ सत्य से परे निराधार मालूम (UPBoardSolutions.com) पड़ीं, लेकिन वह उन्हीं कल्पनाओं को साकार करने का प्रयास करता रहा और उनसे ही सत्य के निकट पहुँचने की प्रेरणा प्राप्त करता रहा।
(स)

  1. मानव की विकास-यात्रा को महादेवी जी ने एक वाक्य-“पहले पानी में चंदा को उतारा जाता था और आज मानव चाँद पर पहुँच गया है।”–में निबद्ध कर दिया है।
  2. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अज्ञात रहस्यों को जानने की मनुष्य की प्रवृत्ति को स्पष्ट किया है तथा “यह भी कहा है कि मनुष्य की यही जिज्ञासा उसे प्रगति की ओर अग्रसर करती है।
  3. अन्तरिक्ष युग का सूत्रपात सोवियत रूस के द्वारा पहले स्पुतनिक को छोड़े जाने की तिथि 4 अक्टूबर, 1956 से हुआ।

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प्रश्न 5.
अभी चन्द्रमा के लिए अनेक उड़ानें होंगी। दूसरे ग्रहों के लिए मानवरहित यान छोड़े जा रहे हैं। अन्तरिक्ष में परिक्रमा करने वाला स्टेशन स्थापित करने की दिशा में तेजी से प्रयत्न किये जा रहे हैं। ऐसा स्टेशन बन जाने पर ब्रह्माण्ड के रहस्यों की पर्ते खोलने में काफी सहायता मिलेगी।
यह पृथ्वी मानव के लिए पालने के समान है। वह हमेशा-हमेशा के लिए इसकी परिधि में बँधा हुआ नहीं रह सकता। अज्ञात की खोज में वह कहाँ तक पहुँचेगा, कौन कह सकता है?
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?
  2. लेखक ने चन्द्र-अन्तरिक्ष अभियानों के आगामी प्रयत्नों के बारे में क्या लिखा है ? वर्तमान समय में इसकी क्या स्थिति है ?

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उतर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक कहता है कि व्यक्ति पालने में केवल अपना बचपन गुजारता है। जैसे-जैसे वह बचपन से किशोरावस्था की ओर अग्रसर होता है, वैसे-वैसे उसका पालने से मोहभंग होता जाता है और एक दिन वह पालने की परिधि से बाहर हो जाता है। यह पृथ्वी भी मनुष्य के लिए एक पालने के समान ही है और वह निरन्तर उसकी परिधि से बाहर जाने का प्रयत्न करता रहता है। अन्तरिक्ष अथवा अज्ञात की अनेक खोजें (UPBoardSolutions.com) उसके इन्हीं प्रयत्नों का परिणाम हैं। इस अनन्त-असीम अन्तरिक्ष अथवा अन्य स्थानों में अज्ञात रहस्यों की खोज करता हुआ वह कहाँ तक पहुँचेगा, इसकी भविष्यवाणी करना असम्भव है।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक द्वारा यह बात बड़े प्रभावशाली ढंग से बतायी गयी है कि वैज्ञानिक खोजों के लिए अनन्त क्षेत्र उपलब्ध है और मनुष्य जैसे-जैसे अपने ज्ञान-विज्ञान के द्वारा इस अनन्त का अन्त पाने का प्रयास करता है, वैसे-वैसे उस अनन्त का और अधिक विस्तार होता जाता है।
  2. सोमवार, 21 जुलाई, 1969 को सर्वप्रथम मानव ने चन्द्रमा पर अपने पैर रखे। लेखक ने चन्द्रमाअन्तरिक्ष अभियानों के आगामी प्रयत्नों के बारे में लिखा है कि “अभी चन्द्रमा के लिए और उड़ानें होंगी। दूसरे ग्रहों के लिए भी यान छोड़े जा रहे हैं। अन्तरिक्ष में स्टेशन स्थापित करने की दिशा में भी प्रयत्न किये जा रहे हैं। वर्तमान समय में लेखक द्वारा लिखे गये समस्त आगामी प्रयत्न वैज्ञानिकों द्वारा सफलतापूर्वक सम्पन्न किये जा चुके हैं।

व्याकरण एवं रचना-बोध ।

प्रश्न 1
निम्नलिखित शब्दों में सविग्रह समास-नाम बताइए-
चन्द्रतल, त्रिपाद, मरणोपरान्त, चन्द्रमुखी, रजनीपति, प्राणोदक, प्रयोगशाला।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 पानी में चंदा और चाँद पर आदमी (गद्य खंड) img-1

प्रश्न 2
निम्नलिखित शब्दों में प्रत्यय लगाकर नये शब्द बनाइए-
अस्ति, स्थापना, दुर्घटना, काल, प्रक्षेपण, स्थगन।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 पानी में चंदा और चाँद पर आदमी (गद्य खंड) img-2

प्रश्न 3
निम्नलिखित शब्दों से उपसर्ग पृथक् करके लिखिए-
बदसूरत, दुस्साहस, प्रघात, अनुसन्धान, प्रयोग, विशेष।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 पानी में चंदा और चाँद पर आदमी (गद्य खंड) img-3

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प्रश्न 4
निम्नलिखित शब्दों में नियम-निर्देशपूर्वक सन्धि-विच्छेद कीजिए-
सर्वाधिक, मरणोपरान्त, दुस्साहस, पूर्वाभिनय,  शयनागार, प्राणोदक।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 7 पानी में चंदा और चाँद पर आदमी (गद्य खंड) img-4

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 14 (Section 1)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 14 सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा भारत छोड़ो आन्दोलन (अनुभाग – एक)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 14 सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा भारत छोड़ो आन्दोलन (अनुभाग – एक)

विरतृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के क्या कारण थे ? उसके परिणामों पर प्रकाश डालिए। [2010, 11]
          या
सविनय अवज्ञा आन्दोलन किन परिस्थितियों में प्रारम्भ किया गया ? इसका क्या प्रभाव पड़ा ? [2010]
          या
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें। [2018]
उत्तर :
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का अर्थ है–विनम्रतापूर्वक आज्ञा या कानून की अवमानना करना। मार्च, 1930 ई० में गांधी जी ने यह आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन में गुजरात में स्थित डाण्डी नामक स्थान से समुद्र तट तक (UPBoardSolutions.com) उन्होंने पैदल यात्रा की, जिसमें हजारों नर-नारियों ने उनका साथ दिया। वहाँ उन्होंने स्वयं नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा। शीघ्र ही हजारों लोगों तथा राष्ट्रीय नेताओं को जेल में डाल दिया गया। सविनय अवज्ञा आन्दोलन निम्नलिखित परिस्थितियों में बाध्य होकर आरम्भ किया गया था –

  1. अंग्रेजों द्वारा पारित नमक कानून के कारण भारत की निर्धन जनता पर बुरा प्रभाव पड़ा था; अत: उनमें अंग्रेजों के इस अन्यायपूर्ण कानून के विरुद्ध भारी रोष था।
  2. साइमन कमीशने में भारतीयों को प्रतिनिधित्व न मिलने के कारण जनता में रोष व्याप्त था।
  3. अंग्रेजों ने नेहरू रिपोर्ट के तहत भारतीयों को डोमिनियन स्तर देना अस्वीकार कर दिया था।
  4. बारदोली के किसान-आन्दोलन’ की सफलता ने गांधी जी को अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन चलाने को प्रोत्साहित किया।

आन्दोलनको प्रारम्भ(सन् 1930-31 ई०) – सविनय अवज्ञा आन्दोलन गांधी जी की डाण्डी-यात्रा से आरम्भ हुआ। उन्होंने 12 मार्च, 1930 ई० को पैदल यात्रा आरम्भ की और 6 अप्रैल, 1930 ई० को डाण्डी के निकट समुद्र तट पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाया और नमक कानून भंग किया। वहीं से यह आन्दोलन सारे देश में फैल गया। अनेक स्थानों पर लोगों ने सरकारी कानूनों का उल्लंघन किया। सरकार ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए दमन-चक्र आरम्भ कर दिया। गांधी जी सहित अनेक आन्दोलनकारियों को जेलों में बन्द कर दिया गया, परन्तु आन्दोलन की गति में कोई अन्तर न आया। इसी बीच गांधी जी और तत्कालीन वायसराय में एक समझौता हुआ। समझौते के अनुसार गांधी जी ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना तथा आन्दोलन बन्द करना स्वीकार कर लिया। इस तरह सन् 1931 ई० में सविनय अवज्ञा आन्दोलन कुछ समय के लिए रुक गया।

आन्दोलन की प्रगति (सन् 1930-33 ई०) तथा अन्त – सन् 1931 ई० में लन्दन में दूसरा गोलमेज सम्मेलन बुलाया गया। इसमें कांग्रेस की ओर से गांधी जी ने भाग लिया, परन्तु इस सम्मेलन में भी भारतीय प्रशासन के लिए उचित हल न निकल सका। (UPBoardSolutions.com) गांधी जी निराश होकर भारत लौट आये और उन्होंने अपना आन्दोलन फिर से आरम्भ कर दिया। सरकार ने आन्दोलन के दमन के लिए आन्दोलनकारियों पर फिर से अत्याचार करने आरम्भ कर दिये। सरकार के इन अत्याचारों से आन्दोलन की गति कुछ धीमी पड़ गयी। कांग्रेस ने 1933 ई० में इस आन्दोलन को बन्द कर दिया।

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परिणाम / प्रभाव

इस आन्दोलन के निम्नलिखित परिणाम/प्रभाव थे –

  1. इस आन्दोलन में पहली बार बहुत बड़ी संख्या में भारतीयों ने भाग लिया।
  2. इस आन्दोलन में मजदूर, किसानों, महिलाओं से लेकर उच्चवर्गीय लोग तक सम्मिलित थे।
  3. सरकारी अत्याचारों के बावजूद लोगों ने अहिंसा का रास्ता (UPBoardSolutions.com) नहीं छोड़ा, जिससे भारतीयों में आत्म-बल की वृद्धि हुई।
  4. इस आन्दोलन ने कांग्रेस की कमजोरियों को भी स्पष्ट कर दिया। कांग्रेस के पास भविष्य के लिए आर्थिक-सामाजिक कार्यक्रम न होने के कारण वह भारतीय जनता में व्याप्त रोष का पूर्णतया उपयोग न कर सकी।

प्रश्न 2.
भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण एवं परिणाम पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
          या
कांग्रेस ने ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ क्यों प्रारम्भ किया ? इसकी असफलता के क्या कारण थे?
          या
भारत छोड़ो आन्दोलन के तीन कारण लिखिए। ब्रिटिश सरकार की इस पर क्या प्रतिक्रिया थी ? क्या आपके मत में यह असफल रहा ? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए। [2013]
          या
भारत छोड़ो आन्दोलन क्या था ? इसका क्या प्रभाव पड़ा ? (2013)
          या
भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के दो प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए [2016]
          या
भारत छोड़ो आन्दोलन किसने चलाया ? इसके कोई दो कारण बताइए। [2016]
          या
‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के तीन प्रमुख बिन्दुओं को इंगित कीजिए। [2017]
          या
भारत छोड़ो आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें। [2018]
उत्तर :
मार्च, 1942 ई० में सर स्टेफर्ड क्रिप्स कुछ प्रस्तावों के साथ भारत आये। प्रस्ताव के अनुसार, सुरक्षा के अतिरिक्त भारतीयों को भारत सरकार के सभी विभाग हस्तान्तरित करने की बात कही गयी थी। क्रिप्स का प्रस्ताव स्वीकार करो अथवा छोड़ दो।’ की (UPBoardSolutions.com) भावना पर आधारित था। इसे भारतीयों ने स्वीकार नहीं किया। अन्ततः अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने 8 अगस्त, 1942 को ‘भारत छोड़ो’ वाला प्रसिद्ध प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तथा आन्दोलन की बागडोर गांधी जी को सौंप दी। भारत छोड़ो आन्दोलन महात्मा गांधी द्वारा चलाया गया था।

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भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण

भारत छोड़ो आन्दोलन को चलाने के निम्नलिखित कारण थे –

1. पहला कारण यह था कि जापान के आक्रमण का भय बढ़ रहा था। गांधी जी चाहते थे कि भारत को उस आक्रमण से बचाया जाए। यह तभी हो सकता था जब अंग्रेज लोग भारत को छोड़ देते।

2. दूसरा कारण यह था कि अंग्रेजों की हर जगह हार हो रही थी। उनके हाथों से सिंगापुर और बर्मा निकल 1गये। गांधी जी का यह विचार था कि यदि अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान को न छोड़ा तो इस देश के लोगों की भी वही दुर्दशा होगी जो बर्मा और मलाया (UPBoardSolutions.com) के लोगों की हुई थी। गांधी जी का विचार था कि यदि अंग्रेज लोग भारत छोड़ जाएँ तो जापान भारत पर आक्रमण नहीं करेगा।

3. आन्दोलन को आरम्भ करने का एक और कारण यह था कि हिटलर और उसके साथियों का प्रोपेगण्डा बढ़ रहा था और उसका प्रभाव भारतीयों पर भी पड़ रहा था। सुभाषचन्द्र बोस स्वयं बर्लिन से हिन्दुस्तानी भाषा में ब्रॉडकास्ट कर रहे थे। ऐसा महसूस किया गया कि भारत की रक्षा के लिए उत्साह पैदा किया जाए और ऐसा तभी हो सकता था जब देश में एक व्यापक आन्दोलन हो।

4. बर्मा (म्यांमार) छोड़ने के समय हिन्दुस्तान के लोगों से अच्छा व्यवहार नहीं किया गया। उनको भारत लौटते समय अनगिनत कष्ट सहने पड़े। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध बहुत रोष उत्पन्न हो गया। इस वातावरण ने भी गांधी जी को आन्दोलन चलाने के लिए विवश किया।

5. द्वितीय विश्वयुद्ध के दिनों में अंग्रेजों ने भारत में सब-कुछ जलाने की नीति को अपनाया। इस नीति से बहुत-से हिन्दुस्तानियों की हानि हुई। कई लोगों की जमीनें नष्ट हो गयीं और उनको पर्याप्त मुआवजा न दिया गया। कइयों की रोटी छिन गयी, चीजों की कीमतें (UPBoardSolutions.com) बढ़ गयीं, देश में असन्तोष बढ़ गया। ऐसी स्थिति से लाभ उठाने के लिए गांधी जी ने अपना आन्दोलन आरम्भ किया।

भारत छोड़ो आन्दोलन के परिणाम / प्रभाव
अथवा
असफलता के कारण

भारत छोड़ो आन्दोलन के अग्रलिखित परिणाम/प्रभाव हुए –

1. आन्दोलन का तात्कालिक परिणाम यह था कि ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी और कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्यों को जेल भेज दिया। कांग्रेस संस्था को कानून के विरुद्ध घोषित कर दिया गया। उसके कार्यालय पर पुलिस ने कब्जा कर लिया। यह नीति सरकार ने कांग्रेस को कुचलने के लिए अपनायी।

2. साधारण जनता हाथ-पर-हाथ रखकर बैठी न रही, उसने भी सरकार के विरुद्ध विद्रोह आरम्भ कर दिया। गांधी जी के मन में यह विचार ही न था कि सरकार उन्हें अकस्मात् बन्दी बना लेगी। इसका परिणाम यह हुआ कि गांधी जी और कांग्रेस के अन्य नेताओं (UPBoardSolutions.com) के गिरफ्तार होने के बाद आन्दोलन का पथ-प्रदर्शन करने के लिए कोई नेता न रहा। जैसा लोगों के मन में आया उन्होंने वैसा ही किया।

3. जब सरकार ने निर्दोष पुरुषों, स्त्रियों तथा बच्चों को गोली से उड़ा दिया, तब लोगों ने भी हिंसा की नीति अपनायी। जहाँ कहीं विदेशी मिले, उनको मार डाला गया। बहुत कठिनाइयों के बाद ब्रिटिश सरकार अपनी सत्ता को देश में फिर से स्थापित करने में सफल हुई।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गांधी-इरविन समझौते के मुख्य चार बिन्दुओं पर प्रकाश डालिए।
उतर :
गांधी-इरविन समझौते (दिल्ली पैक्ट) के चार मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं –

  1. जिन राजनीतिक बन्दियों पर हिंसा के आरोप हैं, उन्हें छोड़कर शेष को रिहा कर दिया जाएगा।
  2. भारतीय लोग समुद्र के किनारे नमक बना सकते हैं।
  3. भारतीय लोग शराब व विदेशी वस्त्रों की दुकान पर कानून की सीमा के भीतर धरना दे सकते हैं।
  4. सरकारी नौकरी से त्याग-पत्र देने वालों को सरकार वापस लेने में उदारता दिखाएगी।

प्रश्न 2.
स्वराज पार्टी का गठन क्यों किया गया था ?
उत्तर :
महात्मा गांधी को बन्दी बनाये जाने से जनता का उत्साह क्षीण पड़ गया। उधर कौन्सिल में प्रवेश के प्रश्न को लेकर कांग्रेस दो दलों में विभक्त हो गयी। एक दल का कहना था कि कौन्सिल में प्रवेश कर सरकार के कार्यों में बाधा उत्पन्न करनी चाहिए। यह दल परिवर्तनवादी कहलाया। दूसरा दल अपरिवर्तनवादी कहलाया, जिसका कहना था कि कौन्सिल का परित्याग कर दिया जाए। परिवर्तनवादियों जिनमें मोतीलाल नेहरू तथा (UPBoardSolutions.com) चितरंजनदास प्रमुख थे, ने एक नयी पार्टी ‘स्वराज पार्टी’ का निर्माण किया। स्वराज पार्टी को विधानसभाओं में बहुत स्थान मिले। इस पार्टी ने सरकार के कार्यों में विघ्न डालने प्रारम्भ किये और अपने लक्ष्य में आंशिक सफलता प्राप्त की, किन्तु सन् 1925 ई० में इसके नेता सी०आर० दास की मृत्यु से इस पार्टी का प्रभाव क्षीण हो गया।

प्रश्न 3.
1930-1942 ई० के बीच की प्रमुख घटनाओं को एक चार्ट द्वारा तिथिक्रमबद्ध कीजिए।
उत्तर :
1930-1942 ई० के मध्य घटित हुई प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं –

  1. मार्च, 1930 : दाण्डी मार्च, सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत।
  2. मार्च, 1931 : सविनय अवज्ञा आन्दोलन वापस लिया गया।
  3. दिसम्बर, 1931 : दूसरा गोलमेज सम्मेलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुनः शुरू।
  4. मार्च, 1942 : सर स्टेफर्ड क्रिप्स का भारत आगमन।
  5. अगस्त, 1942 : भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रारम्भ।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत किस कानून को तोड़कर प्रारम्भ की ?
उतर :
गांधी जी ने ‘नमक कानून’ को तोड़कर सविनय (UPBoardSolutions.com) अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की।

प्रश्न 2.
स्वराज पार्टी का गठन किसने किया था ? [2011]
उत्तर :
स्वराज पार्टी का गठन मोतीलाल नेहरू तथा चितरंजन दास ने किया था।

प्रश्न 3.
प्रथम गोलमेज सम्मेलन कहाँ पर आयोजित किया गया ?
उत्तर :
प्रथम गोलमेज सम्मेलन लन्दन में आयोजित किया गया।

प्रश्न 4.
भारत छोड़ो आन्दोलन में गांधी जी ने कौन-सा नारा दिया ? [2017]
उत्तर :
भारत छोड़ो आन्दोलन में गांधी जी ने “करो या मरो’ का नारा दिया।

प्रश्न 5.
गांधी जी द्वारा चलाये गये किन्हीं दो आन्दोलनों के नाम लिखिए। सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ होने के क्या कारण थे? कोई दो कारण लिखिए। [2012]
          या
महात्मा गांधी द्वारा प्रारम्भ किये गये किन्हीं दो आन्दोलनों के नाम लिखिए। (2015)
उत्तर :
गांधी जी द्वारा चलाये गये दो आन्दोलनों के नाम हैं –

  1. सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा
  2. भारत छोड़ो आन्दोलन

सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ होने के दो कारण निम्नलिखित हैं –

  1. साइमन कमीशन में भारतीयों को प्रतिनिधित्व (UPBoardSolutions.com) न मिलने के कारण रोष।
  2. अंग्रेजों ने नेहरू रिपोर्ट के तहत भारतीयों को डोमिनियन स्तर देना अस्वीकार किया।

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बहुविकल्पीय प्रश्न

1. साइमन कमीशन कब भारत पहुँचा ? [2011]

(क) 1923 ई० में
(ख) 1928 ई० में
(ग) 1929 ई० में
(घ) 1930 ई० में

2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन का मुख्य केन्द्र कहाँ था ? [2017]

(क) साबरमती आश्रम
(ख) पोरबन्दर
(ग) खेड़ा
(घ) सूरत

3. गांधी-इरविन समझौता कब हुआ ?

(क) 1932 ई० में
(ख) 1930 ई० में
(ग) 1931 ई० में
(घ) 1928 ई० में

4. भारत छोड़ो आन्दोलन का प्रस्ताव किस स्थान पर स्वीकार किया गया ?
          या
कांग्रेस ने सन् 1942 में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ प्रस्ताव कहाँ पारित किया था ? (2013)

(क) मुम्बई में
(ख) दिल्ली में
(ग) गुजरात में
(घ) वाराणसी में

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5. साइमन कमीशन का विरोध करते हुए निम्नलिखित में से कौन पुलिस की लाठियों के प्रहार से शहीद हुए ? [2011]

(क) मोतीलाल नेहरू
(ख) लाला लाजपत राय
(ग) गोपालकृष्ण गोखले
(घ) देशबन्धु चितरंजन दास

6. गांधी जी ने डाण्डी यात्रा की थी [2011]

(क) रोलेट ऐक्ट के विरोध में
(ख) क्रिप्स प्रस्ताव के विरोध में
(ग) उत्तरदायी शासन की स्थापना हेतु
(घ) नमक कानून तोड़ने हेतु

7. गांधी जी के अतिरिक्त किसका जन्मदिन दो अक्टूबर को मनाया जाता है? [2013]

(क) इन्दिरा गांधी
(ख) लाल बहादुर शास्त्री
(ग) गोविन्द वल्लभ पन्त
(घ) मोरारजी देसाई

8. गांधी जी ने नमक सत्याग्रह कहाँ प्रारम्भ किया था? (2017)

(क) पोरबन्दर
(ख) डाण्डी
(ग) वर्धा
(घ) चम्पारन

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 14 सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा भारत छोड़ो आन्दोलन 1

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 13 (Section 1)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 13 गांधी विचारधारा, असहयोग आन्दोलन (अनुभाग – एक)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 13 गांधी विचारधारा, असहयोग आन्दोलन (अनुभाग – एक)

विरत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
असहयोग आन्दोलन के स्वरूप, कारण एवं उसके परिणामों पर प्रकाश डालिए। [2014]
           या
महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन क्यों चलाया ? इस आन्दोलन के क्या कार्यक्रम थे ? उन्हें यह आन्दोलन क्यों स्थगित करना पड़ा ? (2010, 11, 17)
           या
महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन कब चलाया ? इसके कोई दो मुख्य कारण बताइए। [2013]
           या
महात्मा गांधी ने भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए असहयोग और सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाए। इन दोनों आन्दोलनों का परिचय देते हुए बताइए कि क्या ये दोनों अपने उद्देश्यों में सफल रहे ? [2013]
           या
महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए तीन आन्दोलनों का वर्णन कीजिए। [2016, 18]
           या
महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए किन्हीं दो आन्दोलनों के विषय में संक्षेप में लिखिए। [2015, 17]
           या
गांधी जी द्वारा संचालित तीन प्रमुख आन्दोलनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए। उनके अन्तिम आन्दोलन का विस्तार से वर्णन कीजिए। [2015]
           या
असहयोग आन्दोलन के कोई तीन कारण बताइए। [2017]
उत्तर :
बीसवीं सदी के दूसरे दशक का अन्तिम वर्ष अर्थात् सन् 1920 ई० भारतीय जनता के लिए निराशा और क्षोभ का वर्ष था। जनता उम्मीद लगाये बैठी थी कि प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश हुकूमत उनके लिए कुछ करेगी लेकिन रॉलेट ऐक्ट, (UPBoardSolutions.com) जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड और पंजाब में मार्शल लॉ ने उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। भारतीय जनता समझ गयी कि ब्रिटिश हुकूमत से सिवाय दमन के उन्हें और कुछ मिलने वाला नहीं है।

ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों के विरोध में सितम्बर, 1920 ई० में असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम पर विचार करने के लिए कलकत्ता में कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन बुलाया गया। इसी अधिवेशन में गांधी जी ने ‘असहयोग’ का प्रस्ताव पेश किया। यद्यपि श्रीमती एनीबेसेण्ट ने इस प्रस्ताव का विरोध किया और कहा कि यह प्रस्ताव भारतीय स्वतन्त्रता के लिए बड़ा धक्का है। इससे समाज और सभ्य जीवन के बीच संघर्ष छिड़ सकता है।

सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, मदनमोहन मालवीय, चितरंजन दास, विपिनचन्द्र पाल, जिन्ना आदि ने भी प्रारम्भ में विरोध किया परन्तु अली बन्धुओं तथा मोतीलाल नेहरू के समर्थन से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया।

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असहयोग आन्दोलन का स्वरूप

महात्मा गांधी अंग्रेजों की दमनकारी नीति से बहुत दुःखी हो उठे थे। फलस्वरूप उन्होंने अगस्त, 1920 ई० को अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन शुरू कर दिया। राजनीति के क्षेत्र में यह अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन महात्मा गांधी का अभिनव प्रयोग था।उन्होंने भारतीयों से यह विनती की कि वे अंग्रेजों द्वारा दी गयी उपाधियों और सरकारी पदों को त्याग दें, अंग्रेजी विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में अपने बच्चों को पढ़ने न भेजें, (UPBoardSolutions.com) काउन्सिलो तथा स्थानीय संस्थाओं की सदस्यता त्याग दें और विदेशी वस्तुओं एवं न्यायालयों का बहिष्कार करें। गांधी जी के अहिंसा पर आधारित इस असहयोग आन्दोलन का अच्छा परिणाम निकला। हजारों की संख्या में विद्यार्थियों ने विद्यालयों का परित्याग कर दिया और राष्ट्रीय विद्यापीठों की स्थापना की। लोग खद्दर एवं स्वदेशी वस्तुओं का उपभोग अधिक करने लगे। स्वराज्य का सन्देश अमरबेल की भाँति समस्त भारत में फैल गया।

असहयोग आन्दोलन का रचनात्मक कार्यक्रम-सरकारी पदों व उपाधियों का बहिष्कार, विदेशी माल का बहिष्कार आदि कार्यक्रम; असहयोग आन्दोलन के विरोधात्मक कार्यक्रम थे। इसके अतिरिक्त गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन के रचनात्मक कार्यक्रम की रूपरेखा भी प्रस्तुत की। यह रचनात्मक कार्यक्रम इस प्रकार था—एक करोड़ रुपये का तिलक फण्ड स्थापित करना, एक करोड़ स्वयंसेवकों की भर्ती करना, बीस लाख चर्खा का वितरण करना, राष्ट्रीय शिक्षा की दिशा में प्रयास करना, स्वदेशी माल खरीदने पर बल देना तथा लोक अदालतों की स्थापना करना

आन्दोलन के कारण

कांग्रेस ने सन् 1920 ई० के नागपुर अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन चलाने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –

  1. सरकार का किसी भी क्षेत्र में सहयोग न करना।
  2. सरकार के कार्यों को ठप करना।
  3. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद भारत की स्वतन्त्रता के लिए सरकार के द्वारा पहल न करना।
  4. सन् 1913-18 ई० के बीच कीमतें दोगुनी हो जाना।
  5. दुर्भिक्ष तथा महामारी के कारण लाखों लोगों के मरने पर ब्रिटिश सरकार द्वारा कोई सकारात्मक कदम न उठाना।

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आन्दोलन के परिणाम

कांग्रेस के द्वारा गांधी जी के नेतृत्व में चलाये गये असहयोग आन्दोलन के निम्नलिखित परिणाम हुए

  1. इस आन्दोलन से प्रभावित होकर दो-तिहाई मतदाताओं ने विधानमण्डल के चुनावों का बहिष्कार कर दिया।
  2. अध्यापकों और विद्यार्थियों ने शिक्षण संस्थाओं में जाना छोड़ दिया।
  3. अनेक उत्साही भारतीयों ने अंग्रेजी शासन की सरकारी सेवाओं से त्याग-पत्र दे दिया।
  4. स्थान-स्थान पर विदेशी वस्तुओं की होली जला (UPBoardSolutions.com) दी गयी।
  5. ब्रिटेन के राजकुमार प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन पर उनका हड़तालों और प्रदर्शनों से स्वागत किया गया।
  6. यह आन्दोलन स्वतन्त्रता-प्राप्ति के संघर्ष का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गया।

महात्मा गांधी द्वारा आन्दोलन वापस लेना – यह आन्दोलन दो वर्षों तक सफलतापूर्वक चलता रहा। अंग्रेजों ने आन्दोलन को कुचलने के लिए कांग्रेस के सक्रिय नेताओं को गांधी जी सहित जेल में डाल दिया। जनता ने इसके विरोध में आन्दोलन किया परन्तु 5 फरवरी, 1922 ई० को भड़की हुई जनता ने चौरी- चौरा, नामक स्थान पर एक पुलिस चौकी में आग लगाकर 22 पुलिस कर्मियों को जिन्दा जला दिया। इस भड़की हुई हिंसा के कारण गांधी जी ने दु:खी होकर यह आन्दोलन वापस ले लिया।
[संकेत – अन्य दो आन्दोलनों के लिए अध्याय 14 के विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 व 2 देखें।

प्रश्न 2.
गांधीवादी विचारधारा सत्याग्रह एवं अहिंसात्मक नीति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

सत्याग्रह का विचार

महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में एक नये तरह के आन्दोलन के रास्ते पर चलते हुए वहाँ की नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक लोहा लिया था। इस मार्ग को सत्याग्रह कहा गया। सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह’ और सत्य की खोज पर जोर दिया जाता था। इसका अर्थ यह था कि अगर आपको उद्देश्य सच्चा है और संघर्ष अन्याय के खिलाफ है, तो उत्पीड़क से मुकाबला करने के लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है। प्रतिशोध की भावना या आक्रामकता का सहारा लिये बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे भी अपने संघर्ष में सफल हो सकता है। केवल शत्रु को ही नहीं बल्कि (UPBoardSolutions.com) सभी लोगों को हिंसा के जरिए सत्य को स्वीकार करने पर विवश करने की बजाय सच्चाई को देखने और सहज भाव से स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। इस संघर्ष में अन्ततः सत्य की ही जीत होती है। गांधी जी का विश्वास था कि अहिंसा का यह मार्ग सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है।

भारत आने के बाद गांधी जी ने कई स्थानों पर सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। सन् 1916 ई० मे उन्होंने बिहार के चम्पारण इलाके का दौरा किया और दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ किसानों को संघर्ष के लिए प्रेरित किया। सन् 1917 ई० में उन्होंने गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह का आयोजन किया। फसल खराब हो जाने और प्लेग की महामारी के कारण खेड़ा जिले के किसान लगान चुकाने की हालत में नहीं थे। वे चाहते थे कि लगान वसूली में ढील दी जाए। सन् 1918 ई० में गांधी जी सूती कपड़ा कारखानों के मजदूरों के बीच सत्याग्रह आन्दोलन चलाने अहमदाबाद जा पहुंचे।

गांधी जी केवल राजनैतिक स्वतन्त्रता ही नहीं चाहते थे, अपितु जनता की आर्थिक, सामाजिक, आत्मिक उन्नति भी चाहते थे। इस भावना से प्रेरित होकर उन्होंने ग्रामोद्योग संघ, तालीमी संघ (प्राथमिक शिक्षा) तथा हरिजन संघ की स्थापना की। उन्होंने कुटीर उद्योग के विकास पर बल दिया। ‘खादी’ उनके आत्मनिर्भरता एवं आर्थिक कार्यक्रम का प्रतीक था। उन्होंने कहा कि खादी वस्त्र नहीं, एक विचारधारा है।

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अहिंसा का विचार

प्राचीन काल से ही अहिंसा का अनुपालन करना भारतभूमि के वीरों का प्रमुख उद्देश्य रहा है। हमारे देश के मनीषी-गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरुनानक देव जैसे महर्षियों ने अपनी अमृतवाणी से ही नहीं अपनी कृतियों में भी विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ाया है। आधुनिक युग के महान युगपुरुष, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी अहिंसा के पुरजोर समर्थक थे। वे किसी को भी किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचाना चाहते थे। गांधी जी के शब्दों में, (UPBoardSolutions.com) “इसमें कोई सन्देह नहीं कि भारत विनाशकारी शस्त्रों के मामले में ब्रिटेन या यूरोप का मुकाबला नहीं कर सकता। अंग्रेज युद्ध के देवता की उपासना करते हैं। वे सब हथियारों से लैस हो सकते हैं, होते जा रहे हैं। भारत में करोड़ों लोग कभी हथियार लेकर नहीं चल सकते। उन्होंने अहिंसा के धर्म को आत्मसात् कर लिया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चौरी-चौरा काण्ड से असहयोग आन्दोलन पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
अंग्रेजी सरकार के अत्याचारों से दु:खी होकर गांधी जी ने अगस्त, 1920 में असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। यह आन्दोलन धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया। 5 फ़रवरी, 1922 ई० को असहयोग आन्दोलन के सत्याग्रहियों द्वारा गोरखपुर के चौरी-चौरा गाँव में एक जुलूस निकाला गया। भीड़ ने आक्रोश में आकर एक थाने को अग्नि की भेंट चढ़ा दिया, जिसमें 22 सिपाही जीवित जल गये। असहयोग आन्दोलन का रूप हिंसात्मक होता देख गांधी जी क्षुब्ध हो उठे और उन्होंने इस आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा कर दी। गांधी जी की इस घोषणा से जनता का उत्साह ठण्डा पड़ गया। सरकार ने इस अवसर का लाभ उठाकर 10 मार्च, 1922 ई० को गांधी जी को बन्दी बना लिया और उन्हें छह वर्ष कारावास का कठोर दण्ड देकर जेल भेज दिया।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महात्मा गांधी ने स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए किस आन्दोलन का सहारा लिया ?
उत्तर :
महात्मा गांधी ने स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए असहयोग आन्दोलन का सहारा लिया।

प्रश्न 2.
सत्याग्रह से क्या आशय है ?
उतर :
गांधी जी के शब्दों में – “सत्याग्रह, शारीरिक बल नहीं है। सत्याग्रही शत्रु को कष्ट नहीं पहुँचाता, वह अपने शत्रु का विनाश नहीं चाहता। सत्याग्रह के प्रयोग में दुर्भावना के लिए कोई स्थान नहीं होता है।” सत्याग्रह’ का शाब्दिक अर्थ है – सत्य + आग्रह अर्थात् सत्य के लिए आग्रह करना।

प्रश्न 3.
महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन क्यों स्थगित कर दिया ? [2011]
           या
गांधी जी ने 1922 ई० में असहयोग आन्दोलन क्यों स्थगित कर दिया ? [2011]
उत्तर :
चौरी-चौरा काण्ड को देखकर गांधी जी को लगा कि आन्दोलन हिंसात्मक (UPBoardSolutions.com) होता जा रहा है। इसलिए उन्होंने 12 फरवरी, 1922 को असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया।

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प्रश्न 4.
26 जनवरी, 1950 ई० को भारत गणतन्त्र क्यों घोषित किया गया ? [2011]
उत्तर :
26 जनवरी, 1950 ई० को भारत गणतन्त्र इसलिए घोषित किया गया क्योंकि इस दिन हमारे देश में संविधान लागू हुआ था।

प्रश्न 5.
स्वराज्य पार्टी का गठन कब हुआ ? (2011)
उत्तर :
स्वराज्य पार्टी का गठन 1923 ई० में हुआ।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. महात्मा गांधी का जन्म किस स्थान पर हुआ था ?

(क) सूरत
(ख) पोरबन्दर
(ग) साबरमती आश्रम
(घ) खेड़ा

2. गांधी जी दक्षिण अफ्रीका किस सन् में गये थे ?

(क) 1869 ई० में
(ख) 1885 ई० में
(ग) 1893 ई० में
(घ) 1914 ई० में

3. गांधी जी ने किस व्यक्ति को अपना राजनीतिक गुरु माना?

(क) बाल गंगाधर तिलक को
(ख) सुरेन्द्रनाथ बनर्जी को
(ग) विपिनचन्द्र पाल को
(घ) गोपालकृष्ण गोखले को

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4. गांधी जी ने किस स्थान पर असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव पेश किया ?

(क) मुम्बई में
(ख) दिल्ली में
(ग) कलकत्ता में
(घ) गुजरात में

5. महात्मा गांधी अफ्रीका से भारत कब लौटे ? [2011]

(क) 1914 ई०
(ख) 1916 ई०
(ग) 1918 ई०
(घ) 1920 ई०

6. असहयोग आन्दोलन को नेतृत्व किसने दिया? [2014]

(क) जवाहरलाल नेहरू ने
(ख) मोतीलाल नेहरू ने
(ग) लोकमान्य तिलक ने
(घ) महात्मा गांधी ने

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 13 गांधी विचारधारा, असहयोग आन्दोलन 1

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से (गद्य खंड)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से (गद्य खंड)

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जीवन-परिचय एवं कृतियाँ

प्रश्न 1.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के जीवन-परिचय एवं साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालिए। [2009]
या
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी एक रचना का नामोल्लेख कीजिए। [2012, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि व क्रान्ति-गीतों के अमर गायक श्री रामधारी सिंह हिन्दी-साहित्याकाश के दीप्तिमान् ‘दिनकर’ हैं। इन्होंने अपनी प्रतिभा की प्रखर किरणों से हिन्दी-साहित्य-गगन को आलोकित किया है। ये हिन्दी के महान् विचारक, निबन्धकार, आलोचक और भावुक कवि हैं। इनके द्वारा कई ऐसे ग्रन्थों की रचना की गयी है, जो हिन्दी-साहित्य की अमूल्य निधि हैं।

जीवन-परिचय–दिनकर जी का जन्म सन् 1908 ई० में बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया’ नामक ग्राम में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह तथा माता का नाम श्रीमती मनरूप देवी था। अल्पायु में ही इनके पिता का देहान्त हो गया था। इन्होंने पटना विश्वविद्यालय से बी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की और इच्छा होते हुए भी पारिवारिक कारणों से आगे न पढ़ सके और नौकरी में लग गये। कुछ दिनों तक इन्होंने माध्यमिक विद्यालय मोकामाघाट में प्रधानाचार्य के पद पर कार्य किया। फिर सन् 1934 ई० में बिहार के सरकारी विभाग में सब-रजिस्ट्रार की नौकरी की। इसके बाद (UPBoardSolutions.com) प्रचार विभाग में उपनिदेशक के पद पर स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद तक कार्य करते रहे। सन् 1950 ई० में इन्हें मुजफ्फरपुर के स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। सन् 1952 ई० में ये राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए। इसके बाद इन्होंने भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के गृहविभाग में हिन्दी सलाहकार और आकाशवाणी के निदेशक के रूप में कार्य किया। सन् 1962 ई० में भागलपुर विश्वविद्यालय ने इन्हें डी० लिट्० की मानद उपाधि प्रदान की। सन् 1972 ई० में इनकी काव्य-रचना ‘उर्वशी’ पर इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हिन्दी साहित्य-गगन का यह दिनकर 24 अप्रैल, सन् 1974 ई० को हमेशा के लिए अस्त हो गया।

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रचनाएँ–साहित्य के क्षेत्र में ‘दिनकर’ जी का उदय कवि के रूप में हुआ था। बाद में गद्य के क्षेत्र में भी वे आगे आये। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नवत् हैं|

  1. दर्शन एवं संस्कृति-धर्म’, ‘भारतीय संस्कृति की एकता’, ‘संस्कृति के चार अध्याय’-ये दर्शन और संस्कृति पर आधारित ग्रन्थ हैं। संस्कृति के चार अध्याय ‘साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत रचना
  2. निबन्ध-संग्रह–अर्द्धनारीश्वर’, ‘वट-पीपल’, ‘उजली आग’, ‘मिट्टी की ओर’, रेती के फूल आदि इनके निबन्ध-संग्रह हैं। इसके अतिरिक्त विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित इनके अन्य निबन्ध भी हैं।
  3. आलोचना-ग्रेन्थ-शुद्ध कविता की खोज’, इसमें कविता के प्रति शुद्ध और व्यापक दृष्टिकोण व्यक्त हुआ है।
  4. यात्रा-साहित्य-‘देश-विदेश’।
  5. बाल-साहित्य-‘मिर्च का मजा’, ‘सूरज का ब्याह’ आदि।
  6. काव्य-रेणुका’, ‘हुंकार’, ‘रसवन्ती’, ‘कुरुक्षेत्र’, “सामधेनी’, ‘प्रणभंग’ (प्रथम काव्यरचना), ‘उर्वशी’ (महाकाव्य); ‘रश्मिरथी’ और ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ (खण्डकाव्य)-ये दिनकर जी के राष्ट्रप्रेम और क्रान्ति की ओजस्वी भावना से पूर्ण काव्य-ग्रन्थ हैं।
  7. शुद्ध कविता की खोज-दिनकर जी का एक आलोचनात्मक ग्रन्थ है, जिसमें इन्होंने काव्य के सम्बन्ध में अपना व्यापक दृष्टिकोण व्यक्त किया है।

साहित्य में स्थान-क्रान्ति का बिगुल बजाने वाले दिनकर जी कवि ही (UPBoardSolutions.com) नहीं अपितु एक सफल गद्यकार भी थे। इनकी कृतियों में इनका चिन्तक एवं मनीषी रूप प्रतिबिम्बित होता है। राष्ट्रीय भावनाओं से संकलित इनकी कृतियाँ हिन्दी-साहित्य की अमूल्य निधि हैं, जो इन्हें हिन्दी साहित्याकाश का दिनकर सिद्ध करती हैं।

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“गद्यांशों पर आधारित प्रश्न

प्रश्न-पत्र में केवल 3 प्रश्न (अ, ब, स) ही पूछे जाएँगे। अतिरिक्त प्रश्न अभ्यास एवं परीक्षोपयोगी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण दिए गये हैं।
प्रश्न 1.

ईष्र्या का यही अनोखा वरदान है। जिस मनुष्य के हृदय में ईष्र्या घर बना लेती है, वह उन चीजों से आनन्द नहीं उठाता, जो उसके पास मौजूद हैं, बल्कि उन वस्तुओं से दु:ख उठाता है, जो दूसरों के पास हैं। वह अपनी तुलना दूसरों के साथ करता है और इस तुलना में अपने पक्ष के सभी अभाव उसके हृदय पर दंश मारते रहते हैं। दंश के इस दाह को भोगना कोई अच्छी बात नहीं है। मगर, ईष्र्यालु मनुष्य करे भी तो क्या?  आदत से लाचार होकर उसे यह वेदना भोगनी पड़ती है।
[2011, 13, 15, 18]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने क्या कहा है ?
  2. ईर्ष्यालु मनुष्य क्या करता है ?
  3. ईष्र्यालु मनुष्य को कौन-सी वेदना भोगनी पड़ती है ?
  4. लेखक ने ईष्र्या को अनोखा वरदान क्यों कहा है ?
  5. ईष्र्या का अनोखा (UPBoardSolutions.com) वरदान क्या है ?
  6. ईष्र्यालु व्यक्ति को ईष्र्या से क्या कष्ट मिलता है ?

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[ ईष्र्या = दूसरों से जलन, डाह। दंश मारना = डंक मारना। दाह = जलन। वेदना = पीड़ा। ]
उत्तर
(अ) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड में संकलित एवं श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा लिखित ‘ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से’ नामक मनोवैज्ञानिक निबन्ध से उद्धृत है। अथवा अग्रवत् लिखिए पाठ का नाम-ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से। लेखक का नाम-श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’।
[ विशेष—इस पीठ के शेष सभी गद्यांशों के प्रश्न ‘अ’ के उत्तर के लिए यही उत्तर लिखा जाएगा। ]

(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत अंश में लेखक ने बताया है कि ईष्र्या अपने भक्त को एक विचित्र प्रकार का वरदान देती है और वह सदैव दु:खी रहने का वरदान है। जिस मनुष्य के हृदय में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है, वह अकारण ही कष्ट भोगता है। वह अपने पास विद्यमान अनन्त सुख-साधनों के उपभोग द्वारा भी आनन्द नहीं उठा पाता; क्योंकि वह दूसरों की वस्तुओं को देख-देखकर मन में जलता रहता है।

द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी का कहना है कि जब ईष्र्यालु मनुष्य यह देखता है कि कोई वस्तु किसी अन्य के पास है लेकिन उसके पास नहीं है तो उसके मन में पनपी यह अभाव की भावना सदैव उसे डंक मारती रहती है। लेखक का कहना है कि डंक से उत्पन्न कष्ट को सहन करना उचित नहीं है। लेकिन ईष्र्यालु मनुष्य कष्ट को सहन करने के अतिरिक्त और कुछ कर भी नहीं सकता।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने ईर्ष्या से उत्पन्न पीड़ा का वर्णन किया है और कहा है कि ईष्र्यालु व्यक्ति सदा दु:खी रहता है।
  2. ईष्र्यालु व्यक्ति अपनी तुलना ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों से करता है जो उससे किन्हीं बातों में श्रेष्ठ हैं। जब वह देखता है कि अमुक वस्तु दूसरे के पास तो है, लेकिन उसके पास नहीं है, तब वह स्वयं को हीन समझने लगता है। अपने अभाव उसे खटकने लगते हैं और वह अपने पास मौजूद वस्तुओं अथवा साधनों का भी आनन्द नहीं ले पाता।
  3. ईर्ष्यालु व्यक्ति रात-दिन इसी वेदना में जला करता (UPBoardSolutions.com) है कि अमुक वस्तु दूसरों के पास तो है लेकिन उसके पास नहीं है। ईष्र्या की इस दाह में जलना बहुत बुरा है, लेकिन ईर्ष्यालु व्यक्ति को यह वेदना भोगनी ही पड़ती है।
  4. लेखक ने ईष्र्या को अनोखा वरदान इसलिए कहा है क्योंकि ईष्र्यालु मनुष्य उन वस्तुओं से आनन्द नहीं प्राप्त करता जो उसके पास हैं, वरन् उन वस्तुओं से दु:ख उठाता है, जो दूसरों के पास हैं।
  5. ईर्ष्या का अनोखा वरदान यह है कि ईष्र्यालु व्यक्ति उन वस्तुओं से आनन्द नहीं उठाता जो उसके पास हैं, वरन् वह उन वस्तुओं से दु:ख उठाता है, जो दूसरों के पास हैं।
  6. ईष्र्यालु व्यक्ति को ईर्ष्या के कारण उन वस्तुओं से आनन्द नहीं मिलता जो उसके पास हैं वरन् वह उन वस्तुओं से दु:ख उठाता है, जो दूसरों के पास हैं।

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प्रश्न 2.
एक उपवन को पाकर भगवान को धन्यवाद देते हुए उसका आनन्द नहीं लेना और बराबर इस चिन्ता में निमग्न रहना कि इससे भी बड़ा उपवन क्यों नहीं मिला, एक ऐसा दोष है, जिससे ईष्र्यालु व्यक्ति का चरित्र भी भयंकर हो उठता है। अपने अभाव पर दिन-रात सोचते-सोचते वह सृष्टि की प्रक्रिया को भूलकर विनाश में लग जाता है और अपनी उन्नति के लिए उद्यम करना छोड़कर वह दूसरों को हानि पहुँचाने को ही अपना श्रेष्ठ कर्त्तव्य समझने लगता है। [2012]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?
  2. ईष्र्यालु व्यक्ति का चरित्र क्यों भयंकर हो जाता है ?
  3. ईर्ष्यालु व्यक्ति किस बात को अपना श्रेष्ठ कर्त्तव्य समझता है ?

[ ईर्ष्यालु = वह व्यक्ति जो दूसरे के सुख को देखकर दुःखी होता है। अभाव = कमी। उद्यम = कार्य, रोजगार।]
उत्तर
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत अंश में लेखक ने ईष्र्या से विमुक्ति का यही साधन बताया है कि ईश्वर ने जो वस्तुएँ कम अथवा अधिक, छोटी अथवा बड़ी, मोहक अथवा कुरूप प्रदान की हैं उनके लिए हमें ईश्वर का धन्यवाद (UPBoardSolutions.com) करना चाहिए और उन उपलब्ध वस्तुओं से जीवन को आनन्दमय और सुखमय बनाना चाहिए। इसके विपरीत यदि हम दिन-रात इसी चिन्ता में अपना समय व्यर्थ गॅवाते रहेंगे कि मेरे पड़ोसी के पास सुख-सुविधाओं के साधन मुझसे कहीं अधिक हैं, वे सब मेरे पास क्यों
नहीं हैं; तो ऐसा सोचते रहने से ईर्ष्या बढ़ती जाती है और इस कारण ईर्ष्यालु व्यक्ति का चरित्र भयंकर होता जाता है।

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द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक कहता है कि उत्थान-पतन, जीवन-मृत्यु; ये सब ईश्वर अर्थात् उस अदृश्य शक्ति के अधीन हैं। हमें उसके लिए प्रयास करना चाहिए, लेकिन दिन-रात उसके बारे में चिन्तामग्न रहकर अपने जीवन को दु:खमय और कष्टों से युक्त नहीं बनाना चाहिए। सृष्टि की रचना-प्रक्रिया को भूलकर मनुष्य दिन-रात दूसरे की ईष्र्या में समय गॅवाता है और उद्यम करना छोड़ देता है। वह इसी मन्थन में लगा रहता है कि मैं अमुक व्यक्ति को किस प्रकार हानि पहुँचा सकता हूँ। इसी कार्य को वह अपने जीवन का श्रेष्ठ कर्तव्य समझने लगता है, जो कि एक संकीर्ण विचारधारा है। इससे ऊपर उठकर व्यक्ति को सबके हित की सोच रखनी चाहिए।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहना चाहता है कि ईश्वर ने हमें उपभोग के योग्य जो वस्तुएँ प्रदान की हैं, उन्हीं का उपभोग कर जीवन का आनन्द उठाना चाहिए।
  2. ईष्र्यालु व्यक्ति का चरित्र इसलिए भयंकर हो जाता है क्योंकि वह लगातार इस चिन्ता में डूबा रहता है कि उसे अमुक वस्तु से अच्छी वस्तु क्यों नहीं मिली। इस कारण वह उन वस्तुओं का भी आनन्द नहीं ले पाता, जो उसे प्राप्त हैं।
  3. ईष्र्यालु व्यक्ति यह कभी भी विचार नहीं करता कि सृष्टि की सम्पूर्ण रचना ईश्वर के अधीन है। वह अपनी कमी को सोचते-सोचते विनाश में लग जाता है। अपनी उन्नति के लिए वह कदापि प्रयत्न नहीं करता, वरन् दूसरों को कैसे हानि पहुँचा (UPBoardSolutions.com) सकता है, इसी को अपना सर्वश्रेष्ठ कर्त्तव्य समझता है।

प्रश्न 3.
ईष्र्या की बड़ी बेटी का नाम निन्दा है। जो व्यक्ति ईष्र्यालु होता है, वही बुरे किस्म का निन्दक भी होता है। दूसरों को निन्दा वह इसलिए करता है कि इस प्रकार, दूसरे लोग जनता अथवा मित्रों की आँखों से गिर जाएँगे और जो स्थान रिक्त होगा, उस पर मैं अनायास ही बैठा दिया जाऊँगा। [2013, 14, 16]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. ईष्र्यालु व्यक्ति दूसरों की निन्दा क्या सोचकर करता है ?
  2. ईष्र्या के साथ और कौन-से अवगुण पनपते हैं ?
  3. ईष्र्यालु और निन्दक का क्या सम्बन्ध है?
  4. [निन्दक = निन्दा (बुराई) करने वाला। अनायास = बिना श्रम के।]

उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या–दिनकर जी का मत है कि जैसे ही हमारे मन में ईर्ष्या की भावना जन्म लेती है, वैसे ही निन्दा की भावना भी उत्पन्न हो जाती है। इसीलिए निन्दा को ईर्ष्या की बड़ी बेटी अथवा पहली सन्तान कहा गया है। जो (UPBoardSolutions.com) व्यक्ति किसी के प्रति ईर्ष्यालु होता है, वह अत्यन्त बढ़ा-चढ़ाकर उसकी बुराई करता है। उसकी बुराई करने में उसे आनन्द का अनुभव होता है। वह चाहता है कि अन्य लोग भी उस व्यक्ति की बुराई करें। उसके निन्दा करने का उद्देश्य यह होता है कि वह व्यक्ति दूसरे लोगों की दृष्टि में गिर जाये। जब वह व्यक्ति, जिसकी वह निन्दा कर रहा है, अपने मित्रों अथवा समाज के लोगों की नजरों में गिर जाएगा तो उसके द्वारा किये गये रिक्त और उच्च स्थान पर वह बिना परिश्रम के अधिकार कर लेगा।

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(स)

  1. ईर्ष्यालु व्यक्ति दूसरों की निन्दा यह सोचकर करता है कि जब निन्दित व्यक्ति समाज की नजरों से गिर जाएगा तब उसके स्थान पर वह स्वयं विराजमान हो जाएगा।
  2. ईष्र्या ही निन्दा जैसे अवगुणों की जन्मदात्री है। ईर्ष्या का भाव मन में उत्पन्न होने पर निन्दा का .. अवगुण स्वयमेव पनपने लगता है।
  3. ईष्र्यालु और निन्दक में जनक (जन्म देने वाला) और जन्मा (UPBoardSolutions.com) (जन्म लेने वाला) का सम्बन्ध है। दूसरे शब्दों में, ईष्र्या का भाव मन में उत्पन्न होने पर निन्दा का अवगुण स्वयमेव पनप जाता है।

प्रश्न 4.
मगर ऐसा न आज तक हुआ है और न होगा। दूसरों को गिराने की कोशिश तो अपने को बढ़ाने की कोशिश नहीं कही जा सकती। एक बात और है कि संसार में कोई भी मनुष्य निन्दा से नहीं गिरता। उसके पतन का कारण सद्गुणों का ह्रास होता है। इसी प्रकार कोई भी मनुष्य दूसरों की निन्दा करने से अपनी उन्नति नहीं कर सकता। उन्नति तो उसकी तभी होगी, जब वह अपने चरित्र को निर्मल बनाये तथा अपने गुणों का विकास करे। | [2016, 17]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. किसी व्यक्ति की उन्नति कैसे हो सकती है ?
  2. कौन-सी बात है जो आज तक न हुई है और न होगी ?
  3. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?

उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक का कथन है कि जो व्यक्ति ऊँचा उठना चाहता है, वह अपने ही अच्छे कार्यों से ऊँचा उठ सकता है, दूसरों की निन्दा आदि करके कभी कोई ऊपर नहीं उठ सकता। यदि किसी व्यक्ति का पतन होता है तो किसी की निन्दा से नहीं, अपितु उसके अच्छे गुणों के नष्ट हो जाने के कारण होता है। इसलिए उन्नति के लिए आवश्यक है कि मनुष्य निन्दा करना छोड़ दे और अपने चरित्र को स्वच्छ (UPBoardSolutions.com) बनाये तथा अपने अन्दर मानवीय गुणों का विकास करे।

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(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का कहना है कि व्यक्ति अपने अन्तर्गुणों का विकास करके ही उन्नति कर सकता है, निन्दा से दूसरों को गिराकर नहीं हो सकती। |
  2. दूसरों को नीचा दिखाने के प्रयास द्वारा स्वयं को ऊँचा उठाने की प्रक्रिया न आज तक सफल हुई है। और न होगी।
  3. किसी व्यक्ति की उन्नति तब ही हो सकती है जब वह अपने चरित्र को निर्मल बनाएगा तथा अपने अन्दर सद्गुणों का विकास करेगा। |

प्रश्न 5.
ईर्ष्या का काम जलाना है, मगर सबसे पहले वह उसी को जलाती है, जिसके हृदय में उसका जन्म होता है। आप भी ऐसे बहुत-से लोगों को जानते होंगे, जो ईष्र्या और द्वेष की साकार मूर्ति हैं और जो बराबर । इस फिक्र में लगे रहते हैं कि कहाँ सुनने वाला मिले और अपने दिल का गुबार निकालने का मौका मिले। श्रोता मिलते ही उनका ग्रामोफोन बजने लगता है, और वे बड़ी ही होशियारी के साथ एक-एक काण्ड इस ढंग से सुनाते हैं, मानो विश्व-कल्याण को छोड़कर उनका और कोई ध्येय नहीं हो। अगर जरा उनके अपने इतिहास को देखिए और समझने की कोशिश कीजिए कि जब से उन्होंने इस सुकर्म का आरम्भ किया है, तब से वे अपने क्षेत्र में आगे बढ़े हैं या पीछे हटे हैं। यह भी कि वे निन्दा करने में समय वे शक्ति का अपव्यय नहीं करते तो आज इनका स्थान कहाँ होता ? [2012, 15]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. ईर्ष्या का काम क्या है ? वह सबसे पहले किसे जलाती है ?
  2. ईष्र्यालु व्यक्ति के चरित्र का अध्ययन करने पर क्या निष्कर्ष निकलता है ?
  3. उपर्युक्त गद्यांश में ईर्ष्यालु व्यक्ति की (UPBoardSolutions.com) मनोदशा कैसी बताई गयी है ?

[ श्रोता = सुनने वाला। सुकर्म = अच्छा कर्म, यहाँ पर लक्षणा (शब्द-शक्ति) से दुष्कर्म। अपव्यय = निरर्थक व्यय।]
उत्तर
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या–लेखक का कथन है कि ईर्ष्यालु व्यक्ति किसी सुनने वाले के मिलते ही ग्रामोफोन के रिकॉर्ड की भाँति बजने लगते हैं और किसी अन्य के प्रति अपने हृदय की ईष्र्या के गुबार को निकालना शुरू कर देते हैं। बड़ी चतुरता के साथ वे अपनी कथा को विभिन्न अध्यायों में विभक्त कर प्रत्येक अध्याय की कथा को इस प्रकार सुनाते हैं, मानो वे यह कार्य विश्व-कल्याण की भावना से कर रहे हों और इसके अतिरिक्त उनका कोई अन्य उद्देश्य ही न हो।

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द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक ने ऐसे व्यक्तियों को दयनीय समझते हुए कहा है कि यदि ऐसे व्यक्तियों पर ध्यान दें और उनके सन्दर्भ में यह निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न करें कि जब से उन्होंने ईष्र्या में जलना प्रारम्भ किया है तब से वे स्वयं कितना आगे बढ़े हैं तो हमें ज्ञात होगा कि उनकी अवनति ही हुई है। यदि वे निन्दा-कार्य में समय नष्ट न करके स्वयं उन्नति के मार्ग पर बढ़ते तो निश्चित ही प्रगति कर गये होते। लेखक का मत है कि ऐसे लोग अपनी शक्ति का अपव्यय कर अपनी ही हानि करते हैं।
(स)

  1. ईर्ष्या का काम है जलाना। ईर्ष्या सबसे पहले उस व्यक्ति को जलाती है, जिसके हृदय में उसका जन्म होता है। ईर्ष्यालु व्यक्ति किसी सुनने वाले के मिलते ही; जिस व्यक्ति से वह ईर्ष्या करता है; उसकी किसी अच्छी बात को भी बुराई के दृष्टिकोण से विस्तारपूर्वक सुनाने लगता है।
  2. ईष्र्यालु व्यक्ति के चरित्र का अध्ययन करने पर (UPBoardSolutions.com) यह निष्कर्ष निकलता है कि जब से उसने ईष्र्या में जलना शुरू किया है तब से उसकी प्रगति पूर्णतया अवरुद्ध हो गयी है।
  3. प्रस्तुत गद्यांश में ईष्र्यालु व्यक्ति की मनोदशा के सम्बन्ध में बताया गया है कि वह सदैव इस बात का अवसर हूँढ़ता रहता है कि श्रोता मिलते ही वह उस व्यक्ति की बुराई करना शुरू कर दे, जिससे वह ईर्ष्या करता है।

प्रश्न 6.
चिन्ता को लोग चिता कहते हैं। जिसे किसी प्रचण्ड चिन्ता ने पकड़ लिया है, उस बेचारे की जिन्दगी ही खराब हो जाती है, किन्तु ईष्र्या शायद चिन्ता से भी बदतर चीज है; क्योंकि वह मनुष्य के मौलिक गुणों को ही कुंठित बना डालती है। [2011, 17]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. ईर्ष्यालु और चिन्तातुरे व्यक्ति में कौन अधिक बुरा है और क्यों ?
  2. चिन्ता को लोग चिता क्यों कहते हैं ?

[ प्रचण्ड = तीव्र। बदतर = अधिक बुरी। कुंठित = मन्द, प्रभावहीन।]
उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या–लेखक कहता है कि लोग चिन्ता को चिता के समान जलाने वाली कहते हैं। चिता तो मृत देह को ही जलाती है, परन्तु चिन्ता जीवित व्यक्ति को ही जला देती है। चिन्तित मनुष्य का जीवन अत्यधिक (UPBoardSolutions.com) कष्टप्रद अवश्य हो जाता है, किन्तु ईष्र्या उससे भी अधिक हानिकारक है; क्योंकि वह दया, प्रेम, उदारता जैसे मानवीय गुणों को ही नष्ट कर देती है। इन गुणों के बिना मनुष्य का जीवन ही व्यर्थ हो जाता है।

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(स)

  1. चिन्ताग्रस्त व्यक्ति का जीवन खराब हो जाता है लेकिन ईर्ष्यालु व्यक्ति उससे भी अधिक बुरा है; क्योंकि ईष्र्या तो व्यक्ति के मौलिक गुणों को ही समाप्त कर देती है।
  2. चिन्ता को लोग चिता इसलिए कहते हैं क्योंकि चिन्ता भी व्यक्ति को चिता के समान ही जला डालती है। |

प्रश्न 7.
मृत्यु शायद फिर भी श्रेष्ठ है, बनिस्बत इसके कि हमें अपने गुणों को कुंठित बनाकर जीना पड़े। चिन्तादग्ध व्यक्ति समाज की दया का पात्र है, किन्तु ईष्र्या से जला-भुना आदमी जहर की चलती-फिरती गठरी के समान है, जो हर जगह वायु को दूषित करती फिरती है। [2011]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए। |
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) ईष्र्यालु और चिन्ताग्रस्त व्यक्ति में क्या अन्तर है ?
[ बनिस्बत = अपेक्षाकृत। चिन्तादग्ध = चिन्ता में जला हुआ।]
उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या–लेखक का कथन है कि मनुष्य की मानवता उसके नैतिक गुणों से प्रकट होती है। जिस व्यक्ति में प्रेम, दया, सहानुभूति, परोपकार, त्याग जैसे मानवीय गुण न हों, वह मनुष्य नहीं होता। ईर्ष्या ही वह विष है, जो मनुष्य के इन मानवीय गुणों को नष्ट कर उसका जीवन व्यर्थ कर देती है। ऐसे जीवन से तो मृत्यु कहीं अधिक अच्छी है। चिन्तित व्यक्ति किसी दूसरे का कुछ नुकसान नहीं करता। इसलिए समाज के लोग उस पर दया भी दिखा सकते हैं, पर ईर्ष्या करने वाले पर कोई दया नहीं दिखाता; क्योंकि उसका विचार ही परपीड़क होता है। वह स्वयं जहर की पोटली (UPBoardSolutions.com) की तरह सारे .. समाज को दूषित करता है तथा दूसरों की निन्दा करके समाज का वातावरण गन्दा करता रहता है।
(स) चिन्ताग्रस्त व्यक्ति स्वपीड़क होता है। वह किसी दूसरे का कोई नुकसान नहीं करता। लेकिन ईर्ष्यालु व्यक्ति परपीड़क होता है। वह विष की चलती-फिरती ऐसी गठरी के समान होता है, जो जहाँ भी रहती है, वहाँ के वातावरण को दूषित करती रहती है।

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प्रश्न 8.
ईष्र्या मनुष्य का चारित्रिक दोष नहीं है, प्रत्युत इससे मनुष्य के आनन्द में भी बाधा पड़ती है। जब भी मनुष्य के हृदय में ईष्र्या का उदय होता है, सामने का सुख उसे मद्धिम-सा दिखने लगता है। पक्षियों के गीत में जादू नहीं रह जाता और फूल तो ऐसे हो जाते हैं, मानो वे देखने के योग्य ही न हों। [2015]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. ईष्र्यालु व्यक्ति किन सुखों से वंचित हो जाता है ?
  2. ईष्र्यालु व्यक्ति का सबसे बड़ा पुरस्कार क्या है ?

[ प्रत्युत = वरन्, अपितु। मद्धिम = हल्का।]
उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक का कथन है कि ईर्ष्या मनुष्य के चरित्र का गम्भीर दोष नहीं है। यह भाव व्यक्ति के आनन्द में भी व्यवधान उपस्थित करता है। जिस मनुष्य के हृदय में ईष्र्या का भाव उत्पन्न हो जाती है, उसे अपना सुख ही हल्का प्रतीत होने लगता है। वह सुखद स्थिति में होते हुए भी सुख से वंचित हो जाता है। सुख के साधन समक्ष होने पर भी उसे सुख की अनुभूति नहीं हो पाती। पक्षियों के कलरव अथवा (UPBoardSolutions.com) उनके मधुर स्वर में उसे कोई आकर्षण नहीं दीखता। उसे सुन्दर और खिले हुए पुष्पों से भी ईष्र्या होने लगती है और उनमें भी उसे किसी प्रकार के सौन्दर्य के दर्शन नहीं हो पाते।
(स)

  1. ईष्र्यालु व्यक्ति सुख के समस्त साधन सम्मुख होने पर भी सुख का अनुभव नहीं कर पाता। वह आत्मिक सुख से वंचित होने के साथ-साथ प्राकृतिक सौन्दर्य का भी आनन्द नहीं उठा पाता।।
  2. निन्दा के बाण से अपने प्रतिद्वन्द्रियों को बेधकर हँसने में एक आनन्द है और यह आनन्द ईष्र्यालु व्यक्ति का सबसे बड़ा पुरस्कार है।

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प्रश्न 9.
आप कहेंगे कि निन्दा के बाण से अपने प्रतिद्वन्द्रियों को बेधकर हँसने में एक आनन्द है और यह आनन्द ईर्ष्यालु व्यक्ति का सबसे बड़ा पुरस्कार है। मगर, यह हँसी मनुष्य की नहीं, राक्षस की हँसी होती है। और यह आनन्द भी दैत्यों का आनन्द होता है। [2015]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?
  2. ईष्र्यालु व्यक्ति की हँसी और आनन्द कैसा होता है ?

[ प्रतिद्वन्द्वी = विरोधी।]
उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-प्रस्तुत गद्य-अंश में लेखक ने यह बताया है कि प्रायः निन्दा करने वाला, अपने कटु वचनरूपी बाणों से अपने प्रतिद्वन्द्वी को घायल कर हँसता है और आनन्दित होता है। वह समझता है कि उसने निन्दा करके अपने प्रतिद्वन्द्वी को दूसरों की दृष्टि से नीचे गिरा दिया है और अपना स्थान दूसरों की दृष्टि में ऊँचा बना लिया है। इसीलिए वह प्रसन्न होता है और इसी प्रसन्नता को प्राप्त करना उसका लक्ष्य (UPBoardSolutions.com) होता है; किन्तु सच्चे अर्थ में ईष्र्यालु व्यक्ति की यह हँसी और यह क्रूर आनन्द उसमें छिपे राक्षस की हँसी और आनन्द है। यह न तो मनुष्यता की हँसी है और न ही मानवता का आनन्द।
(स)

  1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहना चाहता है कि ईर्ष्यालु व्यक्ति राक्षस के समान होता है।
  2. ईष्र्यालु व्यक्ति की हँसी और आनन्द सामान्य मनुष्य की हँसी और आनन्द के जैसी नहीं होती वरन्। उसकी हँसी राक्षस की हँसी के समान और आनन्द दैत्यों के आनन्द के समान होता है।

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प्रश्न 10.
ईर्ष्या का सम्बन्ध प्रतिद्वन्द्विता से होता है, क्योंकि भिखमंगा करोड़पति से ईर्ष्या नहीं करता। यह एक ऐसी बात है, जो ईर्ष्या के पक्ष में भी पड़ सकती है; क्योंकि प्रतिद्वन्द्विता से मनुष्य का विकास होता है, किन्तु अगर आप संसारव्यापी सुयश चाहते हैं तो आप रसेल के मतानुसार, शायद नेपोलियन से स्पर्धा करेंगे। मगर याद रखिए कि नेपोलियन भी सीज़र से स्पर्धा करता था और सीज़र सिकन्दर से तथा सिकन्दर हरकुलिस से।. [2017]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. यश की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को क्या करना चाहिए ?
  2. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने ईष्र्या के सम्बन्ध में कौन-सी सकारात्मक बात कही है?
  3. विश्वव्यापी प्रसिद्धि के इच्छुक व्यक्ति किससे स्पर्धा करेंगे और उन्हें क्या याद रखना | चाहिए?
  4. प्रतिद्वन्द्विता से क्या लाभ होता है ?

उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या–लेखक का कहना है कि ईष्र्या मनुष्य का चारित्रिक दोष है; क्योंकि यह आनन्द में बाधा पहुँचाती है, किन्तु यह एक दृष्टि से लाभदायक भी हो सकती है; क्योंकि ईष्र्या के अन्दर प्रतिद्वन्द्विता का भाव निहित होता है। ईष्यवश मनुष्य किसी दूसरे से स्पर्धा करता है और इसके कारण वह अपने जीवन-स्तर को विकसित करता है। यहाँ यह बात विचार करने योग्य है कि यह स्पर्धा समान-स्तर से नहीं, अपितु (UPBoardSolutions.com) अपने से कुछ अधिक स्तर रखने वाले व्यक्ति से की जानी चाहिए। यही कारण है कि भिक्षा-वृत्ति पर जीवन-यापन करने वाला व्यक्ति किसी करोड़पति से ईष्र्या नहीं करता। स्पर्धा या प्रतिद्वन्द्विता से सम्बद्ध यही एक बात ईष्र्या को उचित भी ठहरा सकती है, क्योंकि स्पर्धा से ही कोई भी मनुष्य उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है।
(स)

  1. यश की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को अपने से कुछ अधिक स्तर रखने वाले व्यक्ति से स्पर्धा अथवा प्रतिद्वन्द्विता करनी चाहिए क्योकि सार्थक प्रतिद्वन्द्विता से व्यक्ति उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है।
  2. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने ईष्र्या के सम्बन्ध में एक सकारात्मक बात कही है और वह है उसमें निहित प्रतिद्वन्द्विता की भावना, जो मनुष्य को विकास की ओर ले जाती है।
  3. यदि कोई व्यक्ति विश्वव्यापी प्रसिद्धि प्राप्त करना चाहता है तो उसे नेपोलियन जैसे महत्त्वाकांक्षी शासक से स्पर्धा करनी होगी, ऐसा विद्वान् रसेल का मत है। इसके साथ ही उसे यह बात भी याद रखनी चाहिए कि नेपोलियन जूलियस सीज़र से, सीज़र सिकन्दर से और सिकन्दर हरकुलिस से स्पर्धा करता था। इन सम्राटों को विश्वविख्यात व्यक्ति इस स्पर्धा या प्रतिद्वन्द्विता की भावना ने ही बनाया था।
  4. प्रतिद्वन्द्विता से मनुष्य का विकास होता है।

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प्रश्न 11.
ईष्र्या का एक पक्ष, सचमुच ही लाभदायक हो सकता है, जिसके अधीन हर आदमी, हर जाति और हर दल अपने को अपने प्रतिद्वन्द्वी का समकक्ष बनाना चाहता है, किन्तु यह तभी सम्भव है, जब कि ईर्ष्या से जो प्रेरणा आती हो, वह रचनात्मक हो। अक्सर तो ऐसा ही होता है कि ईर्ष्यालु व्यक्ति यह महसूस करता है कि कोई चीज है, जो उसके भीतर नहीं है, कोई वस्तु है, जो दूसरों के पास है, किन्तु वह यह नहीं समझ पाता कि इस वस्तु को प्राप्त कैसे करना चाहिए और गुस्से में आकर वह अपने किसी पड़ोसी मित्र या समकालीन व्यक्ति को अपने से श्रेष्ठ मानकर उससे जलने लगता है, जबकि ये लोग भी अपने आपसे शायद वैसे ही असन्तुष्ट हों। [2015]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. ईष्र्यालु व्यक्ति लोगों से क्यों ईष्र्या करने लगता है ?
  2. ईष्र्या का लाभदायक पक्ष क्या है और यह कैसे सम्भव है ?
  3. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक द्वारा बताये गये ईष्र्या की उत्पत्ति के कारण को स्पष्ट कीजिए।

[ पक्ष = पहलू। समकक्ष = समान। समकालीन = अपने समय के।]
उत्तर
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक का कथन है कि ईष्र्या का भाव अनेक दृष्टियों से हानिकारक तो है, परन्तु इसका एक लाभदायक पहलू भी है। वह लाभदायक पहलू यह है कि प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक जाति अथवा प्रत्येक दल में (UPBoardSolutions.com) अपने प्रतिद्वन्द्वी को देखकर यह विचार उत्पन्न होता है। कि वह भी अपने प्रतिद्वन्द्वी के समान बने और उसे इसके लिए जो भी प्रयास अपेक्षित हों, उन प्रयासों की ओर प्रवृत्त हो। परन्तु यह तब तक सम्भव नहीं हो सकता, जब तक ईर्ष्या से प्राप्त होने वाली प्रेरणा ध्वंसात्मक होने के स्थान पर रचनात्मक हो।

द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक श्री दिनकर जी का कहना है कि प्राय: ऐसा ही देखने में आता है कि किसी प्रतिद्वन्द्वी को देखकर व्यक्ति अपनी योग्यता, गुण, कौशल अथवा साधनों की वृद्धि अथवा विकास करने के स्थान पर दूसरों में ही उनके अभावों की कामना करने लगता है। उसे ईष्र्यावश दूसरे की समर्थता और अपनी असमर्थता की ही अनुभूति होती रहती है। उसे यह बोध ही नहीं हो पाता कि वह दूसरों की समृद्धि से ईष्र्या करने के स्थान पर अपने अभावों की पूर्ति किस प्रकार करे। अपनी अभावावस्था पर दु:खी और क्रोधित होकर तथा किसी भी व्यक्ति को अपने से अधिक उत्तम मानकर, वह उससे ईष्र्या करने लग जाता है, जबकि सम्भव है कि जिस व्यक्ति से वह ईर्ष्या कर रहा है, वह भी अपने किसी अभाव के कारण स्वयं से सन्तुष्ट न हो।

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(स)

  1. ईर्ष्यालु व्यक्ति लोगों से इसलिए ईर्ष्या करने लगता है कि क्योंकि वह यह नहीं समझ पाता कि जो वस्तु दूसरों के पास है और उसके पास नहीं है, वह उसे किस प्रकार प्राप्त कर सकता है।
  2. ईर्ष्या का एक लाभदायक पक्ष यह है कि प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक जाति में अपने प्रतिद्वन्द्वी को देखकर यह विचार उत्पन्न होता है कि वह भी अपने प्रतिद्वन्द्वी के समान बने और इसके लिए अपेक्षित प्रयासों की ओर प्रवृत्त हो।
  3. जब कोई वस्तु किसी के पास नहीं होती और वह यह नहीं समझ पाता कि इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है तो वह उस व्यक्ति को अपने से श्रेष्ठ समझकर उससे ईष्र्या करने लगता है।

प्रश्न 12.
तो ईष्र्यालु लोगों से बचने का क्या उपाय है? नीत्से कहता है कि “बाजार की मक्खियों को छोड़कर एकान्त की ओर भागो। जो कुछ भी अमर तथा महान् है, उसकी रचना और निर्माण बाजार तथा सुयश से दूर रहकर किया जाता है। जो लोग नये मूल्यों का निर्माण करने वाले होते हैं, वे बाजारों में नहीं बसते, वे शोहरत के पास भी नहीं रहते।” जहाँ बाजार की मक्खियाँ नहीं भिनकतीं, वहाँ एकान्त है। यह तो हुआ ईष्र्यालु लोगों से बचने का उपाय, किन्तु ईष्र्या से आदमी कैसे बच सकता है? [2012]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. ईष्र्यालु व्यक्तियों से बचने का क्या उपाय है ?
  2. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?
  3. ‘बाजार की मक्खियों’ से क्या आशय (UPBoardSolutions.com) है ? स्पष्ट कीजिए।
  4. नये मूल्यों का निर्माण करने वाले लोग कहाँ नहीं रहते हैं ?

[ नीत्से = यूरोप का एक प्रसिद्ध दार्शनिक, विद्वान् व लेखक। शोहरत = यश, प्रसिद्धि।]
उत्तर
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या–लेखक ईर्ष्यालु व्यक्तियों से दूर रहने की सलाह देता है। प्रसिद्ध दार्शनिक नीत्से ने ईष्र्यालु व्यक्तियों को ‘बाजार की मक्खियाँ’ कहा है। जिस प्रकार मक्खियाँ गन्दगी पर बैठकर बीमारियाँ फैलाती हैं, उसी प्रकार ईर्ष्यालु लोग दूसरों की निन्दा कर समाज के वातावरण में जहर घोलकर उसे प्रदूषित करते हैं। यदि मनुष्य अपने जीवन में कोई श्रेष्ठ कार्य करना चाहता है तो उसे एकान्त स्थान में जाना चाहिए, जहाँ ये लोग न पहुँच सकें।

द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी कहते हैं कि ईर्ष्यालु लोगों के साथ रहकर श्रेष्ठ रचना, नये सामाजिक मूल्यों को निर्माण अथवा कोई भी महान् कार्य नहीं किया जा सकता है। रचनात्मक महान् कार्य भीड़ से दूर रहकर ही किये जाते हैं। महान् कार्य करने के लिए प्रसिद्धि के लोभ को छोड़ना पड़ता है। जो व्यक्ति समाज के नये मूल्यों का निर्माण करते हैं, वे बाजार जैसे प्रतिस्पर्धा के स्थानों से दूर रहते हैं। नीत्से के अनुसार एकान्त स्थान वही है, जहाँ ये बाजार की मक्खियाँ (ईर्ष्यालु लोग) नहीं होती हैं।
(स)

  1. ईष्र्यालु व्यक्तियों से बचने का एकमात्र उपाय उनसे दूर रहना है; अर्थात् व्यक्तियों को ऐसे स्थान में रहना चाहिए जहाँ ईर्ष्यालु लोग न पहुँच सकें।
  2. प्रस्तुत गद्यांश में प्रसिद्ध दार्शनिक नीत्से के मत का उल्लेख करते हुए लेखक ने ईष्र्यालु व्यक्ति से दूर रहने की सलाह दी है और कहा है कि विश्व में जो भी महान् कार्य हुए हैं, वे सभी एकान्तसेवियों ने ही किये हैं।
  3. नीत्से के अनुसार बाजार की मक्खियों से आशय ईष्र्यालु व्यक्तियों से है। जिस प्रकार मक्खियाँ मिठाई के आस-पास भिनभिनाती रहती हैं, उसी प्रकार ईष्र्यालु व्यक्ति यश रूपी मिठाई अर्थात् यशस्वी लोगों के आस-पास भिनभिनाते (UPBoardSolutions.com) रहते हैं और मौका मिलते ही उनकी निन्दा करते हैं और समाज के वातावरण में जहर घोलकर उसे प्रदूषित करते हैं।
  4. नये मूल्यों का निर्माण करने वाले लोग बाजार जैसे प्रतिस्पर्धा के स्थानों से और शोहरत से दूर रहते

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प्रश्न 13.
ईष्र्या से बचने का उपाय मानसिक अनुशासन है। जो व्यक्ति ईर्ष्यालु स्वभाव का है, उसे फालतू बातों के बारे में सोचने की आदत छोड़ देनी चाहिए। उसे यह भी पता लगाना चाहिए कि जिस अभाव के कारण वह ईष्र्यालु बन गया है, उसकी पूर्ति का रचनात्मक तरीका क्या है। जिस दिन उसके भीतर यह जिज्ञासा आएगी, उसी दिन से वह ईष्र्या करना कम कर देगा। . [2009, 11, 16]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स)

  1. ईर्ष्या से बचने के लिए क्या उपाय करना चाहिए ?
  2. ईष्र्यालु व्यक्ति कब से ईर्ष्या करना कम कर सकता है ?
  3. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?

[ मानसिक अनुशासन = मन पर नियन्त्रण। जिज्ञासा = जानने की इच्छा।]
उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक कहता है कि ईष्र्या से बचने का एकमात्र उपाय अपने मन पर नियन्त्रण करना है। मन का स्वभाव चंचल होता है। इसको वश में रखकर ही ईर्ष्या से बचा जा सकता है। जो चीजें हमारे पास नहीं हैं, उनके बारे में सोचना व्यर्थ है। जिसके मन में ईष्र्या जन्म ले लेती है, उसे यह जानना चाहिए कि किस अभाव के कारण उसके मन में ईष्र्या उत्पन्न हुई है। उसके बाद उसे उन अभावों (UPBoardSolutions.com) को दूर करने का सकारात्मक प्रयत्न करना चाहिए। उसे ऐसे उपायों का पता लगाना चाहिए, जिससे उन अभावों की पूर्ति हो सके। अपने अभावों को दूर करने के लिए कोई रचनात्मक उपाय करना चाहिए।
(स)

  1. ईष्र्या से बचने के लिए व्यक्ति को अपने आपको मानसिक अनुशासन के अन्तर्गत बाँध लेना चाहिए। ।
  2. जिस दिन ईष्र्यालु व्यक्ति को यह पता चल जाएगा कि किस अभाव के कारण वह ईष्र्यालु बन गया है और उस अभाव की पूर्ति का सकारात्मक उपाय क्या है, उसी दिन से वह ईर्ष्या करना कम कर सकता है।
  3. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने स्पष्ट किया है कि अभाव के कारण ही ईष्र्या की उत्पत्ति होती है। ईष्र्या से बचने का एकमात्र उपाय मन को वश में करना है।

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व्याकरण एवं रचना-बोध

प्रश्न 1
निम्नलिखित शब्दों से उपसर्गों को पृथक् कीजिए-
अत्यन्त, दरअसल, निमग्न, निर्मल, साकार, अपव्यय, समकक्ष, दुर्भावना, अनुशासन।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से (गद्य खंड) img-1

प्रश्न 2
निम्नलिखित शब्दों से प्रत्ययों को पृथक् करके लिखिए-
ईष्र्यालु, लाभदायक, मौलिक, रचनात्मक, समकालीन, अहंकार।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 5 ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से (गद्य खंड) img-2

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प्रश्न 3
निम्नलिखित शब्दों का वाक्य-प्रयोग द्वारा अर्थ स्पष्ट कीजिए-
प्रतिद्वन्द्वी-प्रतिद्वन्द्विता, मूर्ति-मूर्त, जिज्ञासा-जिज्ञासु, चरित्र-चारित्रिक।
उत्तर
प्रतिद्वन्द्वी-प्रतिद्वन्द्विता–स्वस्थ प्रतिद्वन्द्विता उसे ही कहा जा सकता है, जिसमें प्रतिद्वन्द्वी एक-दूसरे से ईर्ष्या न करते हों। |
मूर्ति-मूर्त-मूर्तिकार अपनी कल्पना को अपनी (UPBoardSolutions.com) मूर्ति में मूर्त रूप प्रदान करता है।
जिज्ञासा-जिज्ञासु-अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए जिज्ञासु पता नहीं कहाँ-कहाँ मारा-मारा फिरता है।
चरित्र-चारित्रिक–समाज के चारित्रिक विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने चरित्र को पवित्र बनाये रखना चाहिए।

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