UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 10 (Section 2)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 10 देश की सीमाएँ एवं सुरक्षा-व्यवस्था (अनुभाग – दो)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 10 देश की सीमाएँ एवं सुरक्षा-व्यवस्था (अनुभाग – दो).

विस्तृत उत्तरीय प्रज

प्रश्न 1.
भारतीय सेना का विस्तारपूर्वक वर्गीकरण कीजिए। भारतीय सेना के तीनों अंगों का वर्णन कीजिए। [2006]
            या
भारतीय सेना की तीनों शाखाओं का उल्लेख कीजिए। इनके मुख्यालय कहाँ स्थित हैं? [2009]
            या
भारतीय थल सेना का संक्षिप्त विवरण दीजिए। [2010]
            या
भारतीय थल सेना का संक्षिप्त विवरण दीजिए। [2010]
या
भारतीय सैन्य संगठन का संक्षिप्त विवरण दीजिए। [2011]
उत्तर :

भारतीय सेना के तीनों अंगों का परिचय

विशाल और, शक्तिशाली भारतीय सेना के तीन प्रमुख अंग हैं-

  • थल सेना,
  • जल सेना (नौ-सेना) और
  • वायु सेना। भारतीय सेनाओं का प्रधान सेनापति राष्ट्रपति होता है। इन तीनों अंगों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है|

1. थल सेना- भारत की थल सेना लगभग 15 लाख है। इसका मुख्य कार्यालय नयी दिल्ली में है।
इसके सर्वोच्च अधिकारी को स्थल सेनाध्यक्ष (जनरल) कहते हैं। भारतीय सेना 6 कमाण्डों में बँटी है-पश्चिम, पूर्वी, उत्तरी, दक्षिणी, दक्षिणी-पश्चिमी तथा केन्द्रीय। प्रत्येक कमाण्ड का सर्वोच्च अधिकारी जनरल कमाण्डिग-इन-चीफ (UPBoardSolutions.com) कहलाता है। प्रत्येक कमाण्ड एरिया, इण्डिपेण्डेण्ट सब-एरिया और सेब-एरिया में विभाजित है, जिसका प्रधान क्रमश: एक मेजर, जनरल और ब्रिगेडियर होता है। थल सेना में कई प्रकार की सेनाएँ सम्मिलित हैं। इनमें इन्फेण्ट्री, बख्तरबन्द कोर, तोपखाना रेजीमेण्ट, इंजीनियरिंग कोर, सिग्नल कोर, आर्मी सेना कोर, आर्मी ऑर्डिनेन्स कोर, आर्मी डेण्टल कोर, इलेक्ट्रिकल तथा मेकैनिकल कोर, सेना शिक्षा कोर आदि सम्मिलित हैं। भारतीय थल सेना नवीनतम युद्ध कला तथा आधुनिकतम अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित है और हर समय शत्रु का सामना करने में
सक्षम है।

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2. नौ-सेना- 
भारत की नौ-सेना का सर्वोच्च अधिकारी नौ-सेनाध्यक्ष कहलाता है। इसका मुख्यालय , नयी दिल्ली में है। हमारी नौ-सेना तीन कमानों में विभाजित है। नौ-सेना के पास दो विशाल बेड़े हैं। इसकी तीन प्रमुख कमानें हैं—

  1. पश्चिमी नौ-सेना कमान,
  2. पूर्वी नौ-सेना कमान तथा
  3. दक्षिणी नौ-सेना कमान। पश्चिमी कमान का कार्यालय मुम्बई में, पूर्वी कमान का विशाखापत्तनम् में तथा दक्षिणी कमान को कार्यालय कोचीन में है। प्रत्येक कमान का अधिकारी फ्लैग ऑफिसर कमाण्डिग-इन-चीफ होता है। नौ-सेना के दोनों बेड़ों में वायुयान वाहक विक्रान्त, क्रूजर, राजपूत और लड़ाकू अवरोधक भी हैं। इसके पास आधुनिकतम पनडुब्बियाँ, विमान भेदी रणपोत तथा गश्ती नौकाएँ हैं। इनके अलावा सर्वे वाले पोत, सर्वे वाली नावें, फ्लीट टैंकर तथा मूविंग पोतों जैसे सहायक पोत हैं। बंगाल की खाड़ी के द्वीपों की रक्षा के लिए पोर्ट ब्लेयर में नौ-सेना का संगठन कार्यरत है। तीन मिसाइल वाली पोतों के आ जाने से भारत की नौ-सेना की कार्यकुशलता अत्यधिक बढ़ गयी है।

3. वायु सेना- वायु सेना का सर्वोच्च अधिकारी वायु सेनाध्यक्ष कहलाता है। इसका मुख्यालय नयी दिल्ली में है। वायु सेना के पाँच लड़ाकू और दो समर्थन देने वाले कमाण्ड हैं–पश्चिमी कमाण्ड, पूवी कमाण्ड, दक्षिणी कमाण्ड, मध्य कनाड, दक्षिणी-पश्चिमी कमाण्ड, प्रशिक्षण कमाण्ड और रख-रखाव कमाण्ड अश्रु सेना के बेड़े में 45 स्क्वाड्रन हैं। प्रत्येक स्क्वाड्रन का अधिकारी स्क्वाड्रन लीडर कहलाता है। प्रत्येक स्क्वाड्रन में नाना प्रकार के लड़ाकू विमान, बमवर्षक तथा यातायात के विमान होते हैं। भारतीय वायु सेना कैनबरा, हंटर, नेट, अजीत, चेतकं, मिग-21, मिग-23, मिग-25, मिग-29, एन-7, एन-32, 11-76, एम० (UPBoardSolutions.com) आई०-8 और मिराज-2000 आदि विमानों से सुसज्जित है। इसके पास जगुआर लड़ाकू तथा बमवर्षक व लड़ाकू अवरोधक जैसे विमान भी हैं। भारतीय वायु सेना युद्ध के समय थल सेना के साथ युद्ध भूमि में कार्यरत रहती है।

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भारत सरकार का ध्यान देश की सुरक्षा की ओर विशेष रूप से रहता है। अतः इसके द्वारा मुख्य सेना के तीनों अंगों के अतिरिक्त अन्य अनेक सैनिक व अर्द्ध-सैनिक बलों की भी स्थापना की गयी है; उदाहरणार्थ-सीमा सुरक्षा बल (B.S.F), केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (C.I.S.E), केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (C.R.PE), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (I.T.B.P), सशस्त्र सीमा बल (S.S.B.) आदि। ये सैनिक संगठन भारतीय सुरक्षा के कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 2.
भारत की सुरक्षा तैयारी पर एक निबन्ध लिखिए।
या
“भारतीय सशस्त्र सेना शत्रुओं को पराजित करने में सक्षम है।” इस कथन की पुष्टि में दो तर्क दीजिए।
उत्तर :

भारत की सुरक्षा तैयारी

भारत एक विशाल देश है। इसकी विस्तृत सीमाएँ 22,000 किमी से भी अधिक लम्बी हैं। दुर्भाग्य से सभी सीमाओं के पार शत्रु राष्ट्र भी हैं। विश्व के अन्य बहुत-से राष्ट्र भी भारत से द्वेष रखते हैं; अत: भारत अपनी सुरक्षा की तैयारी में विशेष रूप से संलग्न रहता है। भारत की सुरक्षा की तैयारी के सन्दर्भ में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

1. राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा की भावना का विकास- भारत की जनता राष्ट्रप्रेम की भावना से ओत-प्रोत है। सरकार और सामाजिक कल्याण से सम्बन्धित संस्थाओं के द्वारा भी जनता में राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा की भावना जगाने के प्रयास किये जाते हैं। (UPBoardSolutions.com) फलस्वरूप भारतीयों में सुरक्षा की भावना का उत्तरोत्तर विकास हुआ है। बाह्य आक्रमण होने पर अब सम्पूर्ण भारतवासी एकजुट होकर शत्रु के दमन में लग जाते हैं।

2. आर्थिक और औद्योगिक विकास– 
सुरक्षा के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है तथा औद्योगिक विकास के आधार पर ही सुरक्षा के संसाधनों को जुटाया जा सकता है। इसलिए सुरक्षा के कार्यों की पूर्ति हेतु हमारी सरकार ने देश के आर्थिक और औद्योगिक विकास पर विशेष ध्यान दिया है। तथा रक्षा-बजट में वृद्धि कर सुरक्षा को सुदृढ़ किया है।

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3. खाद्यान्नों की उपज में वृद्धि और भण्डारण की व्यवस्था- 
युद्धकाल में आवश्यक वस्तुओं, विशेषतः खाद्यान्नों की बहुत अधिक आवश्यकता होती है; अतः खाद्यान्नों और अन्य वस्तुओं के उत्पादन तथा भण्डारण की समुचित व्यवस्था की ओर भारत सरकार ने विशेष ध्यान दिया है। इससे सुरक्षा की तैयारियों में विशेष सहायता मिली है।

4. रक्षा-उत्पादों में आत्मनिर्भरता- 
रक्षा-उत्पादों में भारत सरकार ने आत्मनिर्भर होने के लिए विशेष प्रयास किये हैं। देशभर में लगभग 33 ऑर्डिनेन्स फैक्ट्रियाँ हैं, जो विविध रक्षा-उत्पादों का निर्माण कर रही हैं। इनमें लगभग दो लाख व्यक्ति कार्यरत हैं। अब उन हजारों वस्तुओं का उत्पादन भारत में ही
होने लगा है, जो पहले विदेशों से मँगाई जाती थीं।

5. अनुसन्धान और विकास- 
रक्षा-उत्पादनों में तेजी लाने और उनकी गुणवत्ता में सुधार करने के लिए रक्षा मन्त्रालय के अधीन 7 मई, 1980 ई० को ‘रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन’ के नाम से एक नया विभाग बनाया गया। यह विभाग रक्षा-उत्पादों के लिए नये अनुसन्धान कर सुरक्षा की तैयारी की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

6. सैन्य प्रशिक्षण– 
भारत में सैन्य प्रशिक्षण की ओर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। सरकार ने योग्य सैनिकों की भर्ती करने तथा उनको उत्कृष्ट प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए विभिन्न नगरों में सैनिको के समुचित प्रशिक्षण के लिए अनेक सैनिक प्रशिक्षण (UPBoardSolutions.com) केन्द्र और प्रशिक्षणशालाएँ स्थापित की हैं। ये सैनिक प्रशिक्षण केन्द्र योग्य, सक्षम एवं कुशल सैनिक अधिकारियों को तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

7. नागरिक सुरक्षा प्रशिक्षण- 
युद्धकाल में आक्रमण के समय नागरिक किस प्रकार अपनी सुरक्षा करें, इसके लिए सरकार विभिन्न प्रचार केन्द्रों के माध्यम से नागरिकों को प्रशिक्षण देती है। आन्तरिक सुरक्षा की तैयारी की दृष्टि से यह भी एक प्रशंसनीय कार्य है।

8. सेना का विकास और आधुनिकीकरण –
सुरक्षा की तैयारी हेतु दिन-प्रतिदिन सभी प्रकार की सेनाओं का अनवरत रूप से विकास और सभी दृष्टियों से आधुनिकीकरण भी किया जा रहा है। अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों और अन्य युद्ध-सामग्री से सेना को सुसज्जित किया जा रहा है। हवाई और समुद्री सेना को भी पहले की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली, सुदृढ़ एवं सक्षम बनाया गया है।

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9. परमाणु शक्तिसम्पन्न– 
भारत पहला परमाणु परीक्षण पोखरन में सन् 1974 ई० में और दूसरा सन् 1998 ई० में कर चुका है। भारतीय सेना के पास पृथ्वी, अग्नि, आकाश, त्रिशूल, नाग, ब्रह्मोस आदि मिसाइलें, अर्जुन टैंक, उन्नत किस्म के राडार, परमाणु पनडुब्बियाँ तथा जंगी जहाज हैं। भारत कई उपग्रह–आर्यभट्ट, भास्कर I व II, रोहिणी आदि–अन्तरिक्ष में भेज चुका है।

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत सुरक्षा के मामले में पूर्णरूपेण आत्मनिर्भर है। हमारे पास अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित एवं पूर्ण रूप से प्रशिक्षित सेना है तथा भारत एक परमाणु शक्तिसम्पन्न राष्ट्र भी है; अतः अब वह किसी भी प्रकार की चुनौती (UPBoardSolutions.com) का सामना करने की पूर्ण .. क्षमता रखता है तथा शत्रुओं को मुंहतोड़ जवाब देने में पूर्णतया समर्थ है।

लघु उत्तरीय प्रा।

प्रश्न 1.
भारतीय सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
या
भारत के किन चार राज्यों की सीमाएँ पाकिस्तान की सीमा को स्पर्श करती हैं? [2015]
या
भारत के उत्तर-पूर्वी तथा उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित देशों के नाम लिखिए। [2018]
उत्तर :
भारत की सीमाएँ दो प्रकार की हैं

  1. स्थल सीमाएँ तथा
  2. समुद्री सीमाएँ।

1. स्थल सीमाएँ- हमारी स्थल सीमाएँ 15,200 किमी लम्बी हैं। उत्तरी सीमा पर चीन, नेपाल तथा भूटान देश स्थित हैं। इन देशों के साथ जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पं० बंगाल, सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश राज्यों की सीमाएँ लगती हैं।

  • उत्तर-पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान देश स्थित हैं। पाकिस्तान के साथ गुजरात, राजस्थान, पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर राज्यों की सीमाएँ लगती हैं।

  • उत्तर-पूर्वी सीमा पर चीन, नेपाल, म्यांमार तथा बांग्लादेश स्थित हैं। म्यांमार के साथ अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, मणिपुर तथा त्रिपुरा राज्यों की सीमाएँ लगती हैं। बांग्लादेश के साथ प० बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा तथा मिजोरम राज्यों की सीमाएँ लगती हैं।

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2. समुद्री सीमाएँ- भारत की समुद्री सीमो 7516.5 किमी है। भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिम में अरब सागर में स्थित लक्षद्वीप, पूर्व में बंगाल की खाड़ी में स्थित अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह तथा दक्षिण । में हिन्द महासागर स्थित है। भारत के (UPBoardSolutions.com) दक्षिण-पूर्व में श्रीलंका स्थित है। पाक स्ट्रेट तथा मन्नार की खाड़ी भारत एवं श्रीलंका को पृथक् करते हैं। । भारत के मुख्य स्थल की तटरेखा 6,100 किमी लम्बी है।

प्रश्न 2.
थल सेना की प्रमुख शाखाएँ लिखिए।
उत्तर :
थल सेना में कई प्रकार की सेनाएँ सम्मिलित हैं। इनमें

  • इन्फेण्ट्री,
  • बख्तरबन्द कोर,
  • तोपखाना रेजीमेण्ट,
  • इंजीनियरिंग कोर,
  • आर्मी सेना कोर,
  • आर्मी मेडिकल कोर,
  • आर्मी डेण्टल कोर,
  • इलेक्ट्रिकल और मेकैनिकल कोर,
  • शिक्षा कोर,
  • सिग्नल कोर,
  • सप्लाई कोर,
  • आर्मी ऑर्डिनेन्स कोर,
  • पशु चिकित्सा कोर आदि सम्मिलित हैं।

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प्रश्न 3.
वायु सेना के मुख्य अधिकारियों के पद (नाम) लिखिए।
उत्तर :
वायु सेना का सर्वोच्च अधिकारी वायु सेनाध्यक्ष कहलाता है। (UPBoardSolutions.com) इसके अधीन सह-सेनाध्यक्ष, उप-सेनाध्यक्ष, एयर ऑफिस-इन-चार्ज (प्रशासन) और ऑफिस इन-चार्ज (रख-रखाव) आदि होते हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की स्थल सीमा कितनी लम्बी है ?
उत्तर :
भारत की स्थल सीमा की लम्बाई 15,200 किमी है।।

प्रश्न 2.
रक्षा विकास एवं अनुसन्धान विभाग की स्थापना कब की गयी ?
उत्तर:
रक्षा विकास एवं अनुसन्धान विभाग की स्थापना 7 मई, 1980 ई० को हुई थी।

प्रश्न 3.
उन दो देशों के नाम लिखिए जिनकी सीमाएँ भारत की उत्तरी सीमा को स्पर्श करती हैं? [2012]
उत्तर :
नेपाल और भूटान की सीमाएँ भारत की उत्तरी सीमा को स्पर्श करती हैं।

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प्रश्न 4.
भारतीय सेना के विभिन्न अंग क्या हैं ? भारत की सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति कौन होता है ? [2012]
उत्तर :
भारतीय सेना के अंग हैं—जल सेना, थल सेना तथा नौ-सेना। भारतीय सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति भारत का राष्ट्रपति होता है।

प्रश्न 5.
भारत की थल सेना का सर्वोच्च अधिकारी कौन होता है ?
उत्तर :
थल सेनाध्यक्ष (जनरल) भारतीय थल सेना का सर्वोच्च अधिकारी होता है।

प्रश्न 6.
भारत के सीमावर्ती किन्हीं दो राष्ट्रों के नाम लिखिए। या भारत के सीमावर्ती देशों के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारत के सीमावर्ती देशों के नाम हैं

  • पाकिस्तान,
  • अफगानिस्तान,
  • चीन,
  • नेपाल,
  • भूटान,
  • म्यांमार तथा
  • बांग्लादेश।

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प्रश्न 7.
वायु सेना के सर्वोच्च अधिकारी का पद नाम (रैंक) क्या है ? [2006]
उत्तर :
वायु सेना के सर्वोच्च अधिकारी का (UPBoardSolutions.com) पद नाम (रैंक) एअर मार्शल (वायु सेना अध्यक्ष) है।

प्रश्न 8.
सीमा सुरक्षा बल की स्थापना कब और कहाँ की गयी थी ?
उत्तर :
सीमा सुरक्षा बल की स्थापना दिल्ली में दिसम्बर, 1965 ई० में की गयी थी।

प्रश्न 9.
भारतीय वायु सेना का मुख्यालय कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
भारतीय वायु सेना का मुख्यालय नयी दिल्ली में स्थित है।

प्रश्न 10.
इंण्डियन मिलिट्री अकादमी कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
इण्डियन मिलिट्री अकादमी देहरादून में स्थित है।

प्रश्न 11.
भारतीय नौसेना का मुख्यालय कहाँ स्थित है ? उसमें कितनी कमान होती हैं ? [2013]
उत्तर :
भारतीय नौसेना का मुख्यालय नयी दिल्ली (UPBoardSolutions.com) में स्थित है। इसमें तीन कमान होती हैं।

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प्रश्न 12.
सुदूर दक्षिणी सीमा पर कौन-सा देश स्थित है? [2018]
उत्तर :
श्रीलंका।

प्रश्न 13.
उन दो द्वीप-समूहों के नाम लिखिए जो भारत संघ के अभिन्न अंग हैं? [2018]
उत्तर :

  • लक्षद्वीप एवं
  • अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह।

प्रश्न 14.
भारत के दो संस्थानों के नाम लिखिए जहाँ सैन्य अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। [2018]
उत्तर :

  • नेशनल डिफेन्स अकादमी-खड़गवासला।
  • इण्डिया मिलिट्री अकादमी-देहरादून।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. भारतीय वायु सेना का मुख्यालय कहाँ है ? [2012, 13, 14, 15]

(क) बंगलुरु में
(ख) आगरा में
(ग) नयी दिल्ली में
(घ) कानपुर में

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2. भारत ने प्रथम अणु परीक्षण 1974 ई० में किस स्थान पर किया था ?

(क) पोखरन में
(ख) खड़गवासला में
(ग) नरौरा में
(घ) ट्रॉम्बे में

3. भारतीय सेना के तीनों अंगों का अध्यक्ष कौन होता है ?

(क) राष्ट्रपति
(ख) प्रधानमन्त्री
(ग) रक्षामन्त्री
(घ) स्थल सेनाध्यक्ष

4. भारत में परमाणु विस्फोट के लिए कौन-सा स्थान प्रसिद्ध है?

(क) बॉम्बे हाई
(ख) पोखरन
(ग) हरिकोटा
(घ) बंगलुरु

5. भारतीय थल सेना का मुख्यालय कहाँ है ? [2014]

(क) नयी दिल्ली में
(ख) नागपुर में
(ग) बंगलुरु में
(घ) चेन्नई में

6. नौ-सेना का प्रधान कौन होता है ?

(क) एडमिरल
(ख) जनरल
(ग) ब्रिगेडियर
(घ) मेजर जनरल

7. नेशनल डिफेन्स अकादमी कहाँ है ?

(क) देहरादून में
(ख) चेन्नई में
(ग) मऊ में।
(घ) खड़गवासला में

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8. भारत में रक्षा-मन्त्रालय का प्रधान होता है

(क) राष्ट्रपति
(ख) प्रधानमन्त्री
(ग) रक्षामन्त्री
(घ) थल सेनाध्यक्ष

9. भारत में प्रादेशिक सेना कब प्रारम्भ की गयी ?

(क) 1948 ई० में
(ख) 1949 ई० में
(ग) 1950 ई० में।
(घ) 1951 ई० में

10. प्रथम परमाणु-परीक्षण स्थल पोखरन कहाँ स्थित है ?

(क) हरियाणा में
(ख) पंजाब में
(ग) जम्मू-कश्मीर में
(घ) राजस्थान में

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11. भारतीय नौसेना का मुख्यालय कहाँ स्थित है? [2014, 16]

(क) कोचीन में
(ख) विशाखापत्तनम में
(ग) चेन्नई में
(घ) नई दिल्ली में

उत्तरमाला

1. (ग), 2. (क), 3. (क), 4. (ख), 5. (क), 6. (क), 7. (क), 8. (ग), 9. (ग), 10. (घ), 11. (घ)

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 10 are helpful to complete your homework.

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UP Board Solutions for Class 10 English Poetry Chapter 3 The Village Song (Sarojini Naidu)

UP Board Solutions for Class 10 English Poetry Chapter 3 The Village Song (Sarojini Naidu).

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 English. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 English Poetry Chapter 3 The Village Song (Sarojini Naidu) .

Comprehension Questions 

In the examination paper ,there are asked only two questions from each paragraph .Given below are some more questions for extra practice

Read the following stanzas and answer the questions put there upon:

(1) Honey,child…………………to wed you.

Question .
1. From which poem has the above stanza been taken? Who has composed this poem?
(किस कविता से उपर्युक्त छन्द अवतरित किया गया है? इस कविता की रचना किसने की है?)
2. Which ceremony is about to begin in the above stanza?
(उपर्युक्त छन्द में कौन सा धार्मिक अनुष्ठान प्रारम्भ होने वाला है?)
3. For what the girl’s mother draws her attention?
(उसकी माँ किस बात की  ओर लड़की का ध्यान आकृष्ट करती है?)
Answer:
1. The above stanza has been taken from the poem “The Village Song’. The composer of this poem is Sarojini Naidu.
(उपर्युक्त छन्द ‘ग्राम गीत’ से अवतरित किया गया है। इसकी रचयिता सरोजिनी नायडू हैं।)
2. The wedding ceremony of the daughter is about to begin in the above stanza.
(उपर्युक्त छन्द में पुत्री का विवाह संस्कार/अनुष्ठान होने वाला है।)
3. Girl’s mother draws her attention to the fact that the bridegroom whom she
loves, is coming on horseback to get (UPBoardSolutions.com) wedded with her..
(लड़की की माँ उसका ध्यान इस तथ्य की ओर आकृष्ट करती है कि वह, जिसे कि वह प्रेम करती है, घोड़े पर बैठकर उससे विवाह करने के लिये आ रहा है।)

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(2) Mother mine…………0 listen!

Question .
1. What did the daughter tell her mother?
(पुत्री ने अपनी माँ से क्या कहा?)
2. Why does the girl want to go to the forest?
(लड़की वेन जाना क्यों चाहती है?)
3. Who has tiny islands?
(छोटे-छोटे टापू किसमें है?).
Answer:
1. The girl told her mother that she was going to the wild forest.
(पुत्री अपनी माँ से कहती है कि वह घने वन को जा रही है।)
2. The girl wants to go to the forest because there the champ a buds are blowing on the branches. The cuckoo resounds the isle with its cooing. The fairy folks are calling her.
(पुत्री वन में जाना चाहती है क्योंकि वहाँ चम्पा (UPBoardSolutions.com) की कलियाँ शाखाओं पर झोंके खा रही हैं। कोयल अपनी कूक से टापू को गुंजायमान कर देती है। परियाँ उसे पुकार रही हैं।)
3. The river has tiny islands.
( (छोटे टापू नदी में स्थित हैं।)

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3. Honey, child…………are you going.

Question .
1. What does the mother remind of the girl?
(माँ पुत्री को क्या पुनस्र्मरण कराती है?)
2. Where are the bridal robes?
(वधू के (विवाह) वस्त्र कहाँ हैं?
Answer:
1. The mother reminds the girl of the bridal songs, cradle songs and sandal-scented leisure.
(माँ विवाह के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों व पालने में शिशुओं को सुलाने हेतु गाई जाने वाली लोरियों तथा वैवाहिक सुगन्धित शय्या पर विश्राम का पुनस्र्मरण कराती है।)
2. The silver and saffron glowing (UPBoardSolutions.com) bridal robes are in the loom.
(विवाह को रजत व केसरिया चमक-दमक वाला जोड़ा घे पर है।)

4. The bridal-song………… are calling

Question .
1. Why does the girl seem un impressed?
(पुत्री क्यों अप्रभावित प्रतीत होती है?)
2. Why is the girl leaving home?
(पुत्री गृह त्याग क्यों कर रही है?)
Answer:
1. The girl seems unimpressed because she flatly says that the bridal songs and cradle songs seem to end in sorrow. The laughter of the present day full of sun, will end in the strong wind of death soon after. Thus, she proves that there is no real happiness in worldly life.
(पुत्री अप्रभावित प्रतीत होती है क्योंकि वह यह स्पष्ट कर देती है कि विवाह के उत्सव पर गाये जाने वाले (मंगल) गीत व शिशु को पालने में झुलाते समय गाई जाने वाली लोरियाँ दु:ख के स्वर में समाप्त होती हैं। आज के धूप भरे दिन का हास्य शीघ्र पश्चात् मृत्यु के तूफान में समाप्त हो जायेगा। इस प्रकार वह यह सत्य सिद्ध कर देती है कि सांसारिक जीवन में कोई यथार्थ सुख नहीं है।)
2. The girl is leaving home because the forest notes, where forest steams fall and flow, are far sweeter than the bridal songs and cradle songs. Moreover, the fairies are calling her.
(पुत्री घर छोड़ रही है क्योंकि वन की संगीत लहरी, जहाँ वन झरने प्रवाहित हो रहे हैं, विवाह के उत्सव पर गाये जाने वाले (मंगल) गीतों व शिशु को पालने में झुलाते समय गाई जाने वाली लोरियों से अधिक मधुर हैं। इसके अतिरिक्त, परियाँ उसे पुकार रही हैं।)

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APPRECIATION OF THE POEM

Question 1.
What does the poetess want to tell us?
(कवियत्री हमसे क्या कहना चाहती है?)
Answer:
The poetess wants to tell us that the worldly material pleasures are fake ones. The cycle of life that runs in pleasure some day or the other, ends in the lasting sorrows. The joy of bridal songs, cradle’s songs, lullabiers to make child steep and sandal-scented leisure have underlying sorrow. A time comes when the material pleasures prove hollow and are overpowered by the ultimate sorrows. As such, while living in the world, we should not be materialistic. Nature is our mother.
(कवयित्री हमसे यह कहना चाहती है कि सांसारिक भौतिक आनन्द ढोंग है। जीवन का चक्र जो आनन्द में चलता है, एक न एक दिन, स्थायी दु:खों में समाप्त हो जाता है। वधू-विषयक गीत अर्थात् वे गीत जो विवाह के उत्सव पर गाये (UPBoardSolutions.com) जाते हैं। पालने (शिशु को सुलाने हेतु गाई जाने वाली लोरियों) तथा वैवाहिक सुगन्धित शय्या पर विश्राम में दुःख अन्तर्निहित रहता है। एक समय आता है जब भौतिक आनन्द खोखले सिद्ध होते हैं। तथा स्थायी दुःखों के द्वारा अधीन कर लिये जाते हैं। अतएव संसार में रहते हुए भी हमें भौतिकवादी नहीं होना चाहिए। प्रकृति हमारी माँ है।) माँ विवाह के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों व पालने में शिशुओं को सुलाने हेतु गाई जाने वालीलोरियों तथा वैवाहिक सुगन्धित शय्या पर विश्राम का पुनस्र्मरण कराती है।)

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CENTRAL IDEA OF THE POEM.

The theme of the poem is a comparison between the world of Human beings that abounds in material pleasures and the world of Nature that is contrary to it. The Mother represents the material world. She recounts some of the features of this human’s material world like jewellery, marriage bridal songs, cradle songs sandal-scented leisure. It implies marriage, births of children and honeymoon. The Daughter represents the world of Nature. The blossoming of champa, the islands in the river resounding with cuckoo’s cooing, gurgling of streams attract her. She knows that laughter and all the songs will end in sorrows. (कविता का मुख्य विषय मानव संसार जो भौतिक आनन्दों से पूर्ण है तथा प्रकृति का संसार, जो इसके विपरीत है, के मध्य अन्तर है। माँ भौतिक संसार का प्रतिनिधित्व करती है। वह मानव के भौतिक संसार की कतिपय विशेषताओं, जैसे आभूषण, विवाह, विवाह के समय गाये जाने वाले गीतों, शिशु को सुलाने के लिए गाई गई लोरियों, मधुरमिलन के क्षणों को गिनाती है। (UPBoardSolutions.com) इसका तात्पर्य विवाह, शिशुओं के जन्म व मधुरमिलन के क्षणों से है। पुत्री प्रकृति के संसार का प्रतिनिधित्व करती है। चम्पा का पुष्पित होना, नदी में स्थित कोयल की कूक से गॅजना। टापू-झरनों का कल-कल स्वर उसे आकृष्ट करते हैं। उसे यह विदित है कि हास्य व समस्त गीत दु:ख में समाप्त होते हैं।)

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 (Section 1)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 फ्रांसीसी क्रान्ति–कारण तथा परिणाम (अनुभाग – एक)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 फ्रांसीसी क्रान्ति–कारण तथा परिणाम (अनुभाग – एक).

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस की क्रान्ति के कारण लिखिए। किन प्रमुख दार्शनिकों ने इसे प्रभावित किया ?
        या
फ्रांस की क्रान्ति के समय फ्रांस की राजनीतिक तथा सामाजिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
        या
फ्रांसीसी क्रान्ति (1789) के कारणों और परिणामों की विवेचना कीजिए। (2013)
        या
1789 के फ्रांस की क्रान्ति के एक सामाजिक तथा एक आर्थिक कारण का उल्लेख कीजिए। [2013]
        या
फ्रांसीसी क्रान्ति के किन्हीं तीन कारणों को स्पष्ट कीजिए। उनका क्या प्रभाव पड़ा ? [2013]
        या
फ्रांस की क्रान्ति के दो आर्थिक कारणों का उल्लेख कीजिए। [2016]
        या
फ्रांसीसी क्रान्ति के कारणों का विस्तार से वर्णन कीजिए। (2017, 18)
उत्तर
अठारहवीं सदी में फ्रांस में स्वेच्छाचारी और निरंकुश शासकों की सड़ी-गली पुरातन व्यवस्था चल रही थी। इस व्यवस्था को पुरातन व्यवस्था का नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि यह प्राचीन तानाशाही साम्राज्यवादी व्यवस्था का ही एक अंग (UPBoardSolutions.com) थी। फ्रांस का तत्कालीन तानाशाह शासक लुई सोलहवाँ एवं उसकी विवेकहीन रानी इस व्यवस्था के पक्षधर थे। इसी पुरातन व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से फ्रांस में सन् 1789 ई० में क्रान्ति का उदय हुआ। यह क्रान्ति एक ऐसी बाढ़ थी, जो अपने साथ अधिकांश बुराइयों को बहाकर ले गयी।

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फ्रांस की क्रान्ति के कारण

फ्रांस की क्रान्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
(1) राजनीतिक कारण

  1. राजाओं की मनमानी – फ्रांस के राजा स्वेच्छाचारी तथा निरंकुश थे। वे राजा के ‘दैवी अधिकारों में विश्वास करते थे और स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि मानते थे। इसलिए वे जनता के प्रति अपना कोई कर्तव्ये नहीं समझते थे।
  2. राजाओं द्वारा अपव्यय – राजा जनता पर नये-नये कर लगाते रहते थे तथा करों के रूप में वसूली हुई धनराशि को मनमाने ढंग से विलासिता के कार्यों पर व्यय करते थे। राजा जनता की खून-पसीने की कमाई का अपव्यय कर रहे थे। जनता यह बात सहन न कर सकी।
  3. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अभाव – राजा के दरबारियों के पास अधिकार-पत्र’ होते थे जिन पर राजा की मोहर लगी होती थी। दरबारी जिसे कैद करना चाहते, उसका नाम अधिकार-पत्र पर लिख देते थे। इस प्रकार न जाने कितने लोगों को फ्रांस की जेलों में रहना पड़ा।
  4. प्रान्तों में असमानता – फ्रांस के भिन्न-भिन्न प्रान्तों में भिन्न-भिन्न प्रकार के कानून प्रचलित थे। फिर धनी-निर्धन वर्ग के लिए अलग-अलग कानून थे। इससे जनता को बहुत अधिक परेशानियाँ उठानी पड़ रही थीं तथा उनमें असन्तोष भी पनप रहा (UPBoardSolutions.com) था।
  5. उच्च वर्ग के विशेष अधिकार – फ्रांस में कुलीन वर्ग तथा कैथोलिक चर्च के पादरियों को विशेष अधिकार मिले हुए थे, जिनके द्वारा वे आम जनता पर अनेक अत्याचार करते थे।
  6. सेना में असन्तोष – साधारण सैनिकों के लिए उन्नति के द्वार बन्द थे, जिस कारण सेना में असन्तोष भी फ्रांस की राज्य-क्रान्ति का एक कारण बना।
  7. अमेरिका का स्वाधीनता संग्राम – अमेरिका के स्वाधीनता संग्राम का फ्रांस की जनता पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उस संग्राम में लफायते के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने भी भाग लिया था। इससे फ्रांस के क्रान्तिकारियों ने सशक्त प्रेरणा प्राप्त की।

(2) सामाजिक कारण
फ्रांस की सामाजिक दशा बड़ी खराब थी। वहाँ का समाज निम्नलिखित तीन वर्गों में बँटा हुआ था

  1. पादरी वर्ग – इस वर्ग में कैथोलिक चर्च के उच्च पादरी आते थे। उन दिनों चर्च फ्रांस में एक अलग राज्य के समान था। चर्च की अपनी सरकार तथा कर्मचारी थे। चर्च को लोगों पर कर लगाने के साथ और भी अधिकार प्राप्त थे। उच्च पादरियों का जीवन भोग-विलास से परिपूर्ण था।
  2. कुलीन वर्ग – इस वर्ग में बड़े-बड़े सामन्त, उच्च सरकारी अधिकारी तथा राजपरिवार के सदस्य सम्मिलित थे। उन्हें अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे, जिनके द्वारा वे जनता का शोषण करते थे। इसे जनता से बेगार व भेंट लेने का अधिकार था। जनसाधारण का इस वर्ग के प्रति भारी आक्रोश ही क्रान्ति का प्रमुख कारण बना।
  3. जनसाधारण वर्ग – इस वर्ग में मजदूर, कृषक, सामान्य शिक्षित वर्ग तथा सामान्य जनता आती थी। इसे वर्ग के शिक्षित लोगों को भी शासन में भाग लेने का अधिकार नहीं था, जबकि धनी वर्ग के कम शिक्षित व्यक्तियों को यह अधिकार प्राप्त था। इसी कारण क्रान्ति प्रारम्भ होते ही जनसाधारण ने क्रान्ति का जोरदार समर्थन किया।

(3) आर्थिक कारण

  1. जनता का आर्थिक शोषण – लम्बे तथा खर्चीले युद्धों, राजदरबार की शान-शौकत तथा उच्च वर्ग के विलासप्रिय जीवन हेतु धन प्राप्त करने के लिए आम जनता तथा कृषकों की आय का 80 से 92 प्रतिशत तक करों के रूप में ले लिया जाता था। करों के ऐसे भारी बोझ से जनता कराह उठी।
  2. उच्च वर्ग करों से मुक्त – फ्रांस में उच्च वर्ग तथा पादरियों पर कोई कर नहीं लगाया जाता था, जबकि आम जनता करों के भारी बोझ से दबी जा रही थी।
  3. विलासी और अपव्ययी राजदरबार – फ्रांस के राजा बड़े (UPBoardSolutions.com) ही विलासी और अपव्ययी थे। वे सरकारी धन को पानी की तरह बहाते थे। फलस्वरूप राजकोष खाली हो गया था और फ्रांस पर ऋण का बोझ दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था।
  4. अमेरिका को वित्तीय सहायता – फ्रांस ने इंग्लैण्ड से बदला लेने के लिए अमेरिका को सैनिक तथा वित्तीय सहायता दी। इससे फ्रांस की आर्थिक दशा और खराब हो गयी।

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(4) दार्शनिकों का प्रभाव
रूसो, मॉण्टेस्क्यू तथा वॉल्टेयर जैसे महान् दार्शनिकों-विचारकों ने फ्रांस के निवासियों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक बुराइयों का ज्ञान कराया। इन दार्शनिकों के क्रान्तिकारी विचारों से प्रभावित होकर फ्रांस की जनता में एक बौद्धिक जागृति फैल गयी और यहाँ के निवासी न्याय, स्वतन्त्रता और समानता की स्थापना के लिए प्रयत्नशील हो गये।

(5) तात्कालिक कारण
सन् 1788 ई० में फ्रांस के अनेक भागों में भीषण अकाल पड़ा। लोग भूख से तड़प-तड़प कर मरने लगे। राजकोष की बिगड़ी हुई दशा सुधारने के लिए लुई 16वें ने नये करों का प्रावधान किया। इन करों को ‘पार्लेमां’ (पार्लमेण्ट) ने मंजूरी नहीं दी। उसने सुझाव दिया कि उन्हें एताजेनेरो’ (स्टेट्स जनरल) की सहमति से लागू किया जाए। ‘एताजेनेरो’ के अधिवेशन के दौरान मतदान से सम्बन्धित बात पर विवाद पैदा हो गया। गतिरोध जारी ही था कि लुई 16वें ने भावी तनाव को नियन्त्रित करने के उद्देश्य से सेना एकत्र करने के आदेश दे दिये। इससे पेरिस की जनता भड़क उठी। उसने युद्ध सामग्री एकत्रित की और बास्तोल के किले पर आक्रमण कर दिया।
[संकेत – परिणाम के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 का उत्तर देखें।

प्रश्न 2.
फ्रांस की राष्ट्रीय सभा के कार्यों एवं उसके प्रभावों पर प्रकाश डालिए।
        या
नेशनल असेम्बली या राष्ट्रीय सभा की उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
फ्रांस में पहले सामन्ती सभा स्टेट्स जनरल थी। इसमें तीन वर्गों का प्रतिनिधित्व था, जिनके पृथक्-पृथक् अधिवेशन होते थे। सन् 1789 ई० में नये कर लगाने की अनुमति लेने की दृष्टि से इसका अधिवेशन किया गया। तीनों वर्गों का पृथक्-पृथक् अधिवेशन हुआ। मजदूर बहुसंख्यक वर्ग ने नये कर लगाने का विरोध किया। इस पर राजा तथा विशेष वर्ग ने सभा भंग करनी चाही। जनता वर्ग ने टेनिस कोर्ट के निकट एक सभा की तथा उसे (UPBoardSolutions.com) राष्ट्रीय सभा घोषित किया। राजा ने सेना बुलाकर राष्ट्रीय महासभा को भंग करने का पुन: प्रयास किया, परन्तु वह सफल न हो सका। राजा को राष्ट्रीय महासभा को मान्यता देनी पड़ी। राष्ट्रीय महासभा ने अपने लगभग दो वर्षों (1789-91) के कार्यकाल में बड़े महत्त्वपूर्ण कार्य किये और फ्रांस में सदियों से चली आ रही दूषित संस्थाओं का नामोनिशान मिटा दिया।

राष्ट्रीय महासभा के कार्य

राष्ट्रीय महासभा के निम्नलिखित प्रमुख कार्य थे –

  1. राष्ट्रीय महासभा ने 4 अगस्त, 1789 ई० को सामन्तों तथा पादरियों के विशेषाधिकारों को समाप्त करने के लिए कई प्रस्ताव पास किये।
  2. राष्ट्रीय महासभा ने 27 अगस्त, 1789 ई० को मानव तथा नागरिकों के अधिकारों की घोषणा की, जिसके अनुसार कानून की दृष्टि में सभी व्यक्ति समान थे।
  3. राष्ट्रीय महासभा ने उन सभी लोगों की सम्पत्ति जब्त कर ली, जो फ्रांस छोड़कर विदेश चले गये थे।
  4. राष्ट्रीय महासभा ने यह कानून बनाया कि किसी भी व्यक्ति को बिना कानूनी सहायता के दण्डित नहीं किया जा सकता अथवा कैदी नहीं बनाया जा सकता।
  5. यदि राजा किसी प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं करेगा तो भी तीन बार विधानसभा में पारित होने पर वह कानून का रूप ले लेगा।
  6. राष्ट्रीय महासभा ने चर्च द्वारा कर लेने पर रोक लगा दी तथा चर्च की सम्पत्ति भी जब्त कर ली।
  7. राष्ट्रीय महासभा ने 6 फरवरी, 1790 ई० में धार्मिक मठों को बन्द करवा दिया।
  8. राष्ट्रीय महासभा ने जुलाई, 1790 ई० में पादरियों पर अंकुश लगाने के लिए एक पादरी विधान बनाया। इसके अनुसार फ्रांस के पादरियों को रोम के पोप की अधीनता से मुक्त कर दिया गया। उनकी नियुक्ति तथा वेतन की व्यवस्था कर दी गयी।
  9. राष्ट्रीय महासभा ने देश को 83 प्रान्तों, प्रान्त को कैण्टनों और कैण्टनों को कम्यूनों में बाँटकर एकसमान शासन-व्यवस्था लागू की।
  10. राष्ट्रीय महासभा ने देश में स्थापित प्राचीन न्यायालयों को भंग करके फौजदारी और दीवानी के न्यायालय स्थापित किये। उसने न्यायाधीशों की नियुक्ति और कार्यावधि निश्चित कर दी।
  11. राष्ट्रीय महासभा ने 30 सितम्बर, 1791 ई० को देश के लिए एक संविधान बनाकर स्वयं को भंग कर दिया।

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राष्ट्रीय महासभा का प्रभाव

राष्ट्रीय महासभा के महत्त्वपूर्ण कार्यों के निम्नलिखित प्रभाव पड़े –

  1. शासन की निरंकुशता का अन्त हो गया, जिससे वहाँ गणतन्त्र की स्थापना हो गयी।
  2. कुलीन वंश के विशेषाधिकारों का अन्त हो गया।
  3. राजा-रानी की स्वेच्छाचारिता पर रोक लग गयी।
  4. चर्च के विशेषाधिकार समाप्त होने से जनता का शोषण रुक गया।
  5. क्रान्ति-विरोधियों को गुलोटीन नामक मशीन से फाँसी दे दी गयी।
  6. दास-प्रथा समाप्त हो गयी।
  7. सामन्तवाद का अन्त करके साम्यवाद की स्थापना की गयी।
  8. प्रजातन्त्र का मार्ग प्रशस्त हो गया।

इस प्रकार फ्रांस की महासभा ने दो वर्ष के समय में ही फ्रांस के तूफानी वातावरण के मध्य इतने महत्त्वपूर्ण कार्य कर डाले, जो विश्व में अनेक व्यवस्थापिकाएँ अनेक वर्षों में भी करने में सफल न हो सकीं। राष्ट्रीय महासभा का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य फ्रांस में प्राचीन दूषित शासन-व्यवस्था का अन्त करना था।

प्रश्न 3.
फ्रांस की क्रान्ति का फ्रांस तथा विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा ? उदाहरण सहित प्रस्तुत कीजिए।
        या
फ्रांस की क्रान्ति का प्रभाव यूरोप के अन्य देशों पर किस प्रकार पड़ा ? [2009]
        या
विश्व को फ्रांस की राज्य क्रान्ति की क्या देन है ? किन्हीं दो की चर्चा कीजिए। [2009]
        या
फ्रांस की क्रान्ति के महत्व पर प्रकाश डालिए। [2014]
उत्तर
फ्रांस की क्रान्ति (1789 ई०) विश्व इतिहास की युगान्तकारी (महत्त्वपूर्ण) घटना थी। इस क्रान्ति के फ्रांस तथा विश्व पर बड़े दूरगामी प्रभाव पड़े, जो निम्नलिखित हैं –

  1. फ्रांस की क्रान्ति के फलस्वरूप यूरोप में (UPBoardSolutions.com) निरंकुश शासन का लगभग अन्त हो गया।
  2. फ्रांस की क्रान्ति की देखा-देखी यूरोप के अन्य देशों में भी क्रान्तियाँ हुईं।
  3. फ्रांस की क्रान्ति से प्रेरित होकर अन्य राज्यों के शासकों ने शासन-व्यवस्था में अनेक सुधार किये तथा । जन-कल्याण के कार्य प्रारम्भ किये।
  4. यूरोपीय देशों में लोकतान्त्रिक सिद्धान्तों का प्रसार हुआ।
  5. समानता, स्वतन्त्रता तथा बन्धुत्व के सिद्धान्तों ने विश्व की राजनीति में हलचल मचा दी।
  6. इंग्लैण्ड में लोकतन्त्रीय आन्दोलन को बल मिला, जिससे वहाँ संसदीय सुधारों का ताँता लग गया।
  7. अमेरिका महाद्वीप के अनेक देशों ने पुर्तगाल तथा स्पेन के उपनिवेशों को समाप्त करके गणतन्त्र स्थापित कर लिये।
  8. संसार के अनेक राष्ट्रों में वयस्क मताधिकार का प्रचलन प्रारम्भ हुआ।
  9. फ्रांस की क्रान्ति ने धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा को जन्म दिया और लोकप्रिय सम्प्रभुता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
  10. इस क्रान्ति ने सदियों से चली आ रही यूरोप की पुरातन सामन्ती व्यवस्था का अन्त कर दिया।
  11. फ्रांस के क्रान्तिकारियों द्वारा की गयी ‘मानव और नागरिकों के जन्मजात अधिकारों की घोषणा (27 अगस्त, 1789 ई०) मानव-जाति की स्वाधीनता के लिए बड़ी महत्त्वपूर्ण है।
  12. इस क्रान्ति ने इंग्लैण्ड, आयरलैण्ड तथा अन्य यूरोपीय देशों की विदेश-नीति को प्रभावित किया।
  13. कुछ विद्वानों के अनुसार फ्रांस की क्रान्ति समाजवादी विचारधारा का स्रोत थी, क्योंकि इसने समानता का सिद्धान्त प्रतिपादित कर समाजवादी व्यवस्था का मार्ग भी खोल दिया था।
  14. इस क्रान्ति के फलस्वरूप फ्रांस ने कृषि, उद्योग, कला, साहित्य, राष्ट्रीय शिक्षा तथा सैनिक गौरव के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व प्रगति की।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस के राजकोष के रिक्त होने के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर
फ्रांस के राजकोष के रिक्त होने के दो कारण निम्नलिखित हैं

  1. राजाओं द्वारा अपव्यय – राजा जनता पर नये-नये कर लगाते रहते थे तथा करों के रूप में वसूली गयी धनराशि को मनमाने ढंग से विलासिता के कार्यों पर खर्च करते थे। लुई चौदहवें ने 10 करोड़ की लागत से अपना शानदार महल बनवाया था। जिसमें 18 हजार व्यक्ति रहते थे। राजाओं ने जनता की खून- पसीने की कमाई को भोग-विलास में खर्च करके राजकोष को खाली कर दिया था।
  2. उच्च वर्गों की करों से मुक्ति – तत्कालीन राज्य में जो वर्ग कर चुकाने की स्थिति में थे, उन पर क़र नहीं लगाये जाते थे। उच्च वर्ग के लोग; जैसे-पादरी वर्ग, कुलीन वर्ग। ये लोग शासन को किसी प्रकार का कोई कर नहीं देते थे। उसके स्थान पर जनता का शोषण करते तथा उनसे वसूली गयी रकम से ऐश करते थे। गरीब जनता, जिसे खाने के लिए दो वक्त की रोटी नहीं थी वो कर कहाँ से देती। इस प्रकार कर-वसूली कम होना, खर्च अधिक होना ही राजकोष के खाली होने का प्रमुख कारण था।

प्रश्न 2.
जनसाधारण वर्ग की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर
जनसाधारण वर्ग में मजदूर, कृषक, सामान्य शिक्षित तथा सामान्य जनता आती थी। इन लोगों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी क्योंकि इनसे भरपूर काम तो लिया जाता था लेकिन मजदूरी नहीं दी जाती थी। अगर कोई श्रमिक या मजदूर अस्वस्थ हो जाता था तो भी से अपने निश्चित घण्टों तक कार्य करना पड़ता था। अगर वह काम करने की स्थिति में नहीं होता था तो उसके साथ बेरहमी का व्यवहार किया जाता था।

जनसाधारण वर्ग के लोगों को शिक्षित होने पर भी शासन कार्य में भाग लेने का अधिकार नहीं दिया गया था। इस प्रकार न जाने कितनी प्रतिभाएँ अपने अस्तित्व को अँधरे में ही विलीन कर देती थीं, जबकि कुलीन वर्ग या पादरी वर्ग के लोग कम शिक्षित होने पर (UPBoardSolutions.com) भी शासन-कार्य में भाग लेने के लिए अधिकृत होते थे। इस वर्ग की जनसंख्या 95 प्रतिशत थी।

राजाओं, राजदरबारियों, सामन्तों आदि के भोग-विलासपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए जनता पर तरह-तरह के कर लगाये जाते थे तथा करों की वसूली बड़ी निर्दयता से की जाती थी। कृषकों की आय का 80 से 92 प्रतिशत तक भाग करों के रूप में लिया जाता था। इस प्रकार करों के बोझ से आम जनता कराह रही थी।

उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि फ्रांस के जनसाधारण वर्ग की स्थिति बहुत ही दयनीय थी।

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प्रश्न 3.
फ्रांस की क्रान्ति को प्रेरणा देने वाले तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
फ्रांस की जनता में रोष और असन्तोष तो पहले से ही विद्यमान था। वह जल्दी-से-जल्दी महँगाई, बेरोजगारी और करों के बोझ से मुक्ति चाहती थी। अब क्रान्ति के लिए मात्र प्रेरणा की आवश्यकता थी; अत: वहाँ की क्रान्ति को निम्नलिखित तत्त्वों ने प्रेरणा दो –

  1. अमेरिका की सफल क्रान्ति के पश्चात् लोकतन्त्र की स्थापना।
  2. बुद्धिजीवियों एवं तर्कशास्त्रियों द्वारा विचारों में परिवर्तन होना।
  3. नवीन विचारधाराओं का प्रचलन एवं पुरानी प्रथाओं पर प्रहार।
  4. रूसो द्वारा राजा के विशेषाधिकारों का विरोध और लोकमत को सर्वोच्चता देना।
  5. मॉण्टेस्क्यू द्वारा कुलीनों तथा दैवी अधिकारों से मुक्त जनता के सहयोग पर आधारित लोकतन्त्र की रूपरेखा प्रस्तुत करना।

प्रश्न 4.
फ्रांस में 14 जुलाई को राष्ट्रीय दिवस क्यों मनाया जाता है ?
उत्तर
पेरिस के निकट बास्तोल नामक स्थान पर फ्रांस के प्राचीन राजाओं द्वारा बनाया गया एक दुर्ग स्थित था। 14 जुलाई, 1789 ई० को बास्तोल के दुर्ग के फाटक को तोड़कर क्रान्तिकारियों की एक भीड़ ने सभी कैदियों को मुक्त कर दिया, जिससे फ्रांस की क्रान्ति तेजी से शहरों, कस्बों और गाँवों में फैल गयी। यह घटना फ्रांस में निरंकुश शासन के पतन की श्रृंखला की पहली कड़ी थी, क्योंकि उस समय बास्तोल का दुर्ग राजाओं की (UPBoardSolutions.com) निरंकुशता और स्वेच्छाचारिता के प्रतीक रूप में माना जाता था। इसीलिए 14 जुलाई; जिस दिन बास्तोल के दुर्ग का पतन हुआ था; फ्रांस में प्रतिवर्ष राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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प्रश्न 5.
नेपोलियन बोनापार्ट ने फ्रांस के पुनर्निर्माण के लिए क्या प्रयास किया था ? या नेपोलियन कौन था ? वह क्यों प्रसिद्ध है ? (2011)
उत्तर
नेपोलियन फ्रांस में डाइरेक्टरी का प्रधान था। बाद में वह अपनी वीरता तथा योग्यता के बल पर फ्रांस का तानाशाह बन बैठा। उसने ऑस्ट्रिया, प्रशा तथा रूस को पराजित किया था। वह इंग्लैण्ड को भी हराना चाहता था, किन्तु इंग्लैण्ड की शक्तिशाली नौसेना के कारण वह ऐसा नहीं कर सका। नेपोलियन ने अपनी शक्ति को बढ़ाकर फ्रांस के यश को चारों ओर फैलाया था। अपने शासनकाल में उसने अभूतपूर्व विजय-श्रृंखलाओं का निर्माण किया था, जिसे देखकर सम्पूर्ण यूरोप आतंकित हो उठा था। अपनी आश्चर्यजनक विजयों से उसने फ्रांस की जनता का हृदय जीत लिया था। उसने 10 नवम्बर, 1799 ई० को डाइरेक्टरी को भंग कर स्वयं को फ्रांस का प्रथम कांसल निर्वाचित करवा लिया। सन् 1799 ई० से 1804 ई० तक उसने फ्रांस में अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किये। उसने कानूनों का संहिताकरण किया जो (UPBoardSolutions.com) नेपोलियन कोड के नाम से जाना जाता है। उसके शासनकाल में फ्रांस यूरोप का सबसे समृद्ध और शक्तिशाली देश बन गया था। यूरोप के मित्र-राष्ट्रों ने 18 जून, 1815 ई० में नेपोलियन को वाटरलू नामक स्थान पर परास्त कर सेण्ट हेलेना द्वीप पर जीवन के अन्त तक कैद रखा।

प्रश्न 6.
फ्रांसीसी राज्य-क्रान्ति पर किन दार्शनिकों के विचारों का प्रभाव पड़ा है।
        या
फ्रांस की क्रान्ति के दो दार्शनिकों का परिचय दीजिए। [2010]
        या
उन दार्शनिकों व विचारकों के नाम लिखिए जिनके विचारों से प्रभावित होकर जनता ने फ्रांस में क्रान्ति की। (2009)
        या
रूसो कौन था ? उसके महत्व पर प्रकाश डालिए)
        या
फ्रांस की क्रान्ति में खसो का क्या महत्त्व (योगदान) है ?
उत्तर
फ्रांस की राज्य-क्रान्ति पर उसके जिन दार्शनिकों के विचारों का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था, उनका संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित है –

1. मॉण्टेस्क्यू – मॉण्टेस्क्यू एक महान् विचारक तथा लेखक था। वह गणतन्त्रीय लोकतन्त्र का समर्थक था। राजा के दैवी अधिकार के सिद्धान्त की उसने कटु शब्दों में आलोचना की। इंग्लैण्ड की शासनपद्धति का उस पर गहरा प्रभाव पड़ा और वैसी ही शासन-पद्धति वह फ्रांस में भी स्थापित करना चाहता था। उसके विचारों से फ्रांस की क्रान्ति को अत्यन्त प्रेरणा मिली। ‘दस्पिरिट ऑफ लॉज’ नामक अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ में उसने अपने सिद्धान्तों की विस्तृत व्याख्या की है।

2. वॉल्टेयर – वॉल्टेयर एक प्रसिद्ध विचारक तथा लेखक था। इसके विचारों से फ्रांस की क्रान्ति को बड़ा प्रोत्साहन मिला। वह जनकल्याणकारी निरंकुश शासन की स्थापना करना चाहता था। उसने चर्च की बुराइयों की कटु शब्दों में निन्दा करते हुए (UPBoardSolutions.com) उसे ‘बदनाम वस्तु’ घोषित किया। फ्रांस के सुधारवादी आन्दोलन में उसने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

3. रूसो – रूसो अठारहवीं शताब्दी का एक उच्चकोटि का दार्शनिक था। ‘सोशल कॉण्ट्रैक्ट’ नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ उसी की देन है। उसका विचार था कि राजा को जनभावनाओं के अनुकूल कार्य करने चाहिए। फ्रांस की क्रान्ति को प्रोत्साहित करने में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।

फ्रांस के लोग रूसो, मॉण्टेस्क्यू तथा वॉल्टेयर जैसे महान् दार्शनिकों और लेखकों दिदरो, क्वेसेन के विचारों से प्रभावित होकर स्वतन्त्रता की माँग करने लगे थे। इन विचारकों ने फ्रांस के निवासियों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बुराइयों का ज्ञान कराया। इन दार्शनिकों के क्रान्तिकारी विचारों से प्रभावित होकर फ्रांस की जनता हृदय से इन बुराइयों को उखाड़ फेंकने के लिए उद्यत हो उठी। इस प्रकार फ्रांस में बौद्धिक जागृति फैल गयी और यहाँ के निवासी न्याय, स्वतन्त्रता और समानता की स्थापना के लिए प्रयत्नशील हो गये।

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प्रश्न 7.
फ्रांस की राज्य-क्रान्ति से सम्बन्धित टेनिस कोर्ट की सभा तथा बास्तोल जेल को तोड़ने की घटनाओं का वर्णन कीजिए। इनका क्या प्रभाव पड़ा ?
        या
बास्तील के पतन के क्या कारण थे ? इसका क्या परिणाम हुआ ? (2012)
उत्तर
फ्रांस की राज्य-क्रान्ति में टेनिस कोर्ट की सभा तथा बास्तोल जेल के पतन का विशेष महत्त्व है। इन दोनों घटनाओं का वर्णन निम्नवत् है –

1. टेनिस कोर्ट की सभा – फ्रांस को अपने चिर प्रतिद्वन्द्वी इंग्लैण्ड़ से लगातार युद्ध करने पड़ रहे थे, जिससे राजकोष खाली होता जा रहा था। फ्रांस के राजा लुई सोलहवें ने 1789 ई० में पुरानी सामन्ती सभा ‘स्टेट्स जनरल’ का अधिवेशन इस आशय से बुलाया कि वह नये कर लगाने की अनुमति दे देगी। इस सभा का पिछले 175 वर्षों से कोई अधिवेशन नहीं हुआ था। ‘स्टेट्स जनरल’ में तीनों वर्गों का प्रतिनिधित्व था, जिसमें तीसरा वर्ग बहुसंख्यक था। तीनों वर्गों का पृथक्-पृथक् अधिवेशन होता था। जनता ने करों का कड़ा विरोध करते हुए सभी वर्गों के सम्मिलित अधिवेशन की माँग की। राजा तथा कुलीन वर्ग ने इसका विरोध किया। (UPBoardSolutions.com) तीसरा वर्ग, जनता वर्ग ने तब पास के टेनिस कोर्ट में एक सभा आयोजित की तथा इसे राष्ट्रीय सभा घोषित किया और संविधान बनाने की तैयारी प्रारम्भ कर दी। इसी घटना को इतिहास में टेनिस कोर्ट की सभा के नाम से जाना जाता है। यह प्रत्यक्ष विद्रोह की पहली चिंगारी थी, जिसमें राजा को जनता के समक्ष झुकना पड़ा। यह जनवर्ग की भारी विजय थी। राजा को एक सप्ताह बाद ही नेशनल असेम्बली (राष्ट्रीय महासभा) को मान्यता देनी पड़ी।

2. बास्तील का पतन – जून, 1789 ई० में राष्ट्रीय महासभा को मान्यता मिलने के बाद इसके होने वाले अधिवेशन की गतिविधियों पर पूरे फ्रांस की नजरें टिकी हुई थीं। इसी बीच जुलाई में पेरिस में यह अफवाह फैल गयी कि राजा विदेशी सेना की सहायता से देशभक्तों और क्रान्तिकारियों को कत्ल करने की योजना बना चुका है। 11 जुलाई को सम्राट ने वित्त मन्त्री नेकर को पदच्युत कर दिया। इस घटना ने जनता में पनप रही आशंका को दृढ़ कर दिया। इस पर पेरिस की जनता उत्तेजित हो उठी और तोड़-फोड़ करने लगी। 12 जुलाई, 1789 ई० को पेरिस में हो रहे उपद्रवों की सूचना पाकर बहुत-से सशस्त्र लुटेरे भी नगर में आ गये और उन्होंने सवंत्र लूट-मार, तोड़-फोड़ तथा आतंक फैलाना प्रारम्भ कर दिया। 14 जुलाई को क्रान्तिकारियों की एक भीड़ ने बास्तोल के दुर्ग पर हमला बोल दिया और दुर्ग-रक्षक देलोने की हत्या करके वहाँ पर वन्द कैदियों को रिहा कर दिया तथा वहाँ पर रग्वे हथियार लूटकर दुर्ग को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। यह घटना फ्रांस में निरंकुश शासन के पतन की पहली घटना थी, क्योंकि उस समय बास्तोल का दुर्ग राजाओं की निरंकुशता और स्वेच्छाचारिता का प्रतीक माना जाता था। इस घटना का बहुत बड़ा ऐतिहासिक महत्त्व है। इसीलिए 14 जुलाई को दिन फ्रांस में प्रतिवर्ष राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। इन दोनों घटनाओं ने फ्रांस में क्रान्ति का स्वरूप बदल दिया। प्रतिक्रियावादी सामन्त (UPBoardSolutions.com) तथा पादरी फ्रांस छोड़ने की तैयारी करने लगे, किसानों ने सामन्तों को लूटना आरम्भ कर दिया और प्रशासनिक अधिकारियों के आदेश का उल्लंघन क्रान्ति का पर्याय बन गया।

प्रश्न 8.
1789 में फ्रांस की राष्ट्रीय सभा द्वारा की गई तीन प्रमुख घोषणाओं का वर्णन कीजिए। [2015]
उत्तर
फ्रांस की राष्ट्रीय सभा द्वारा की गई तीन प्रमुख घोषणाएँ निम्नलिखित हैं –

  1. मानव और नागरिक अधिकारों की घोषणा – राष्ट्रीय सभा ने 27 अगस्त, 1789 ई० को मानव और नागरिकों के अधिकारों की घोषणा की जिसके अनुसार कानून की दृष्टि में सभी व्यक्ति समान थे।
  2. विशेषाधिकारों की समाप्ति – 4 अगस्त, 1789 ई० को राष्ट्रीय सभा ने सामन्तीय विशेषाधिकारों की समाप्ति के लिए प्रस्ताव पारित किये।
  3. चर्च द्वारा सम्पत्ति संग्रह पर रोक – 10 अक्टूबर, 1789 ई० को राष्ट्रीय सभा ने कानून बनाकर चर्च द्वारा सम्पत्ति संग्रह पर रोक लगा दी और चर्च की सम्पूर्ण जायदाद को छीनकर नीलाम कर दिया गया तथा इस आय को राष्ट्रीय आय में (UPBoardSolutions.com) सम्मिलित कर लिया गया। अब चर्च किसी व्यक्ति पर किसी प्रकार का कर नहीं लगायेगी।

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प्रश्न 9.
फ्रांस की क्रान्ति में ‘टेनिस कोर्ट की शपथ’ का क्या महत्त्व है? इसके कारण और परिणाम पर प्रकाश डालिए। [2016]
उत्तर
स्टेट्स जनरल फ्रांस की प्राचीन संसद थी जिसमें तीन सदन थे अर्थात् तीन वर्गों का प्रतिनिधित्व था। प्रत्येक वर्ग का अलग-अलग अधिवेशन होता था। 1614 ई० के बाद अब तक इसका कोई अधिवेशन नहीं हुआ था। स्टेट्स जनरल के सदस्यों की कुल संख्या 1214 थी जिसमें 308 पादरी वर्ग के, 285 कुलीन वर्ग के और 621 जनसाधारण वर्ग के सदस्य थे। राजा ने धन की कमी को पूरा करने के लिए इस आशा से 1789 ई० में इसका अधिवेशन बुलाया कि वह नया कर लगाने की अनुमति दे देगी। जनता वर्ग ने करों का विरोध किया और संयुक्त अधिवेशन की माँग की। राजा तथा दरबारी वर्ग ने इसका विरोध किया तथा सभा को भंग करना चाहा। जनता वर्ग ने सभी से हटने से इंकार कर दिया। इसी बीच बैठक में तृतीय सदन क्या है?’ के प्रश्न पर हंगामा होने लगा। फ्रांस के प्रसिद्ध विधिवेत्त ‘एबीसीएज’ ने एक (UPBoardSolutions.com) पुस्तिका वितरित की जिसमें लिखा था-”तृतीय सदन ही राष्ट्र का पर्याय है किन्तु देश की सरकार ने उसकी पूर्णतया उपेक्षा कर रखी है।” 6 मई, 1789 ई० को तीनों वर्गों के सदस्यों ने अलग-अलग भवनों में बैठक की। जनसाधारण वर्ग का नेतृत्व ‘मिराबो’ ने ग्रहण किया।

टेनिस कोर्ट की शपथ – फ्रांस के तत्कालीन राजा लुई सोलहवाँ ने सामन्तों, कुलीनों व. पादरियों के दबाव में आकर साधारण वर्ग के सभा भवन को बन्द करा दिया तथा इस वर्ग को सभा स्थगित रखने का आदेश दिया। राजा ने इस आदेश के विरोध में तृतीय सदन (वर्ग) के सभी सदस्य भवन के निकट स्थित टेनिस कोर्ट के मैदान में एकत्रित हो गये तथा तृतीय वर्ग के नेता मिराबो’ की अध्यक्षता में शपथ ग्रहण की जिसमें संकल्प लिया गया कि “हम यहाँ से उस समय तक नहीं हटेंगे, जब तक हम देश के लिए संविधान का निर्माण नहीं कर लेंगे, भले ही हमारे विरुद्ध संगीनों से ही क्यों न काम लिया जाए।” फ्रांस के इतिहास में (UPBoardSolutions.com) यह संकल्प ‘टेनिस कोर्ट की शपथ के नाम से विख्यात है। तृतीय सदन के सदस्यों की इस घोषणा से लुई सोलहवाँ भयभीत हो गया और उसने 27 जून, 1789 ई० को तीनों सदनों की संयुक्त बैठक (अधिवेशन) की अनुमति दे दी तथा स्टेट्स जनरल को राष्ट्रीय सभा की मान्यता प्रदान की। इस सभा ने 9 जुलाई, 1789 ई०को संविधान सभा का कार्यभार ग्रहण कर लिया।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांसीसी क्रान्ति कब प्रारम्भ हुई ?
उत्तर
पहली फ्रांसीसी क्रान्ति जून, 1789 ई० में आरम्भ हुई। जुलाई, 1830 ई० में फ्रांस में पुन: क्रान्ति का विस्फोट हुआ तथा फरवरी, 1848 ई० में फ्रांस में अन्तिम क्रान्ति हुई।

प्रश्न 2.
फ्रांस की क्रान्ति के दो कारण लिखिए।
उत्तर
फ्रांस की क्रान्ति के दो कारण निम्नलिखित हैं

  1. राजाओं की मनमानी तथा
  2. उच्च वर्ग के विशेष अधिकार।

प्रश्न 3.
फ्रांस की प्राचीन संसद का क्या नाम था ? [2017]
उत्तर
फ्रांस की प्राचीन संसद का नाम ‘स्टेट्स जनरल’ था।

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प्रश्न 4.
क्रान्ति प्रारम्भ होने के समय फ्रांस का राजा कौन था ?
उत्तर
क्रान्ति प्रारम्भ होने के समय फ्रांस का राजा लुई सोलहवाँ था।

प्रश्न 5.
उस सभा का नाम लिखिए जिसके बुलाने से फ्रांस में क्रान्ति का विस्फोट हुआ।
उत्तर
सामन्ती सभा ‘स्टेट्स जनरल के अधिवेशन बुलाने के (UPBoardSolutions.com) साथ ही फ्रांस में क्रान्ति का विस्फोट हो गया।

प्रश्न 6.
रूसो कौन था ? उसने कौन-सी पुस्तक लिखी ? [2011,12]
उत्तर
रूसो फ्रांस का एक महान् दार्शनिक, लेखक और शिक्षाशास्त्री था। उसने ‘सोशल कॉण्ट्रेक्ट’ नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की।

प्रश्न 7.
नेपोलियन का पतन कब और कहाँ हुआ ?
        या
नेपोलियन बोनापार्ट की पराजय कहाँ हुई थी ?
उत्तर
नेपोलियन बोनापार्ट का पतन सन् 1815 ई० में ‘वाटर लू’ के युद्ध में हुआ।

प्रश्न 8.
फ्रांस की क्रान्ति के दो दार्शनिकों के नाम लिखिए। [2010]
        या
फ्रांस की क्रान्ति में भूमिका निभाने वाले दो दार्शनिकों के नाम लिखिए। (2015)
उत्तर

  1. रूसो तथा
  2. वॉल्टेयर, फ्रांस की क्रान्ति के दो दार्शनिक थे।

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प्रश्न 9.
फ्रांस का राष्ट्रीय पर्व कब मनाया जाता है ?
उत्तर
फ्रांस का राष्ट्रीय पर्व 14 जुलाई (UPBoardSolutions.com) को मनाया जाता है।

प्रश्न 10.
स्टेट्स जनरल की राष्ट्रीय महासभा को मान्यता कब दी गयी ?
उत्तर
स्टेट्स जनरल की राष्ट्रीय महासभा को सन् 1789 ई० में मान्यता दी गयी।

प्रश्न 11.
फ्रांस की क्रान्ति के दो आर्थिक कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
फ्रांस की क्रान्ति के दो आर्थिक कारण निम्नलिखित हैं –

  1. उच्च वर्ग की कर” से मुक्ति तथा
  2. विलासी एवं अपव्ययी राजदरबार।

प्रश्न 12.
फ्रांस की क्रान्ति के दो परिणाम लिखिए। [2017, 18]
उत्तर
फ्रांस की क्रान्ति के दो परिणाम निम्नलिखित हैं

  1. इस क्रान्ति ने धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा और लोकप्रिय सम्प्रभुता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
  2. फ्रांसीसी क्रान्ति ने मानव-जाति को (UPBoardSolutions.com) स्वतन्त्रता, समानता और बन्धुत्व का नारा प्रदान किया।

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प्रश्न 13.
फ्रांस की राज्य क्रान्ति से पहले होने वाली दो राज्य क्रान्तियों के नाम लिखिए। [2014]
उत्तर

  1. इंग्लैण्ड की क्रान्ति।
  2. अमेरिका की क्रान्ति।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. फ्रांस की प्राचीन संसद का नाम था

(क) डायट
(ख) स्टेट्स जनरल
(ग) राष्ट्रीय सभा सभा
(घ) डाइरेक्टरी

2. फ्रांस की क्रान्ति कब प्रारम्भ हुई? [2014, 18]

(क) 1889 ई० में
(ख) 1689 ई० में
(ग) 1789 ई० में
(घ) 1779 ई० में

3. फ्रांस की क्रान्ति का तात्कालिक कारण था (2015, 18)

(क) स्टेट्स जनरल का अधिवेशन
(ख) दार्शनिकों की भूमिका
(ग) आर्थिक तंगी
(घ) सम्राट् की निरंकुशता

4. फ्रांस में समाज के तीसरे वर्ग (जनसामान्य) का प्रतिशत था

(क) 5
(ख) 25
(ग) 75
(घ) 95

5. 1789 ई० की राज्य-क्रान्ति के समय फ्रांस का शासक था

(क) चार्ल्स प्रथम
(ख) लुई सोलहवाँ
(ग) लुई फिलिप
(घ) लुई अठारहवाँ

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6. रूसो कौन था?

(क) राजा
(ख) जनरल
(ग) दार्शनिक
(घ) सैनिक

7. फ्रांस के क्रान्तिकारियों ने मानव के मौलिक अधिकारों के घोषणा-पत्र को कब जारी किया?

(क) 15 अगस्त, 1789 ई० में
(ख) 27 अगस्त, 1789 ई० में
(ग) 30 अगस्त, 1789 ई० में
(घ) 24 अक्टूबर, 1789 ई० में

8. फ्रांस में आतंक के शासन का संस्थापक कौन नहीं था?

(क) दान्ते
(ख) डॉ० मारा
(ग) रॉब्सपियरे
(घ) मीराबो

9. मित्र राष्ट्रों ने नेपोलियन को ‘वाटर लू’ नामक स्थान पर किस वर्ष परास्त किया? [2012]

(क) 1789 ई० में
(ख) 1792 ई० में
(ग) 1815 ई० में
(घ) 1830 ई० में

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10. रूसो की पुस्तक का नाम है|

(क) दे स्प्रिट ऑफ ब्याज
(ख) सोशल कॉन्ट्रेक्ट
(ग) दास कैपिटल
(घ) द प्रिन्स

11. किस तिथि को बस्तील का पतन हुआ था? [2011, 14]

(क) 4 जुलाई, 1789 ई०
(ख) 14 जुलाई, 1789 ई०
(ग) 14 सितम्बर, 1789 ई०
(घ) 24 अगस्त, 1789 ई०

12. निम्न में से कौन-सी क्रान्ति ‘टेनिस कोर्ट की सभा’ से सम्बन्धित थी? (2010)

(क) रूस की क्रान्ति
(ख) इंग्लैण्ड की क्रान्ति
(ग) फ्रांस की क्रान्ति
(घ) अमेरिका की क्रान्ति

13. ‘स्पिरिट ऑफ लॉज’ नामक पुस्तक का लेखक कौन था? (2015, 18)

(क) रूसो
(ख) लॉक
(ग) मॉण्टेस्क्यू
(घ) मैकियावली

14. नेपोलियन बोनापार्ट की अन्तिम पराजय कहाँ हुई? [2016]

(क) वाटर लू में
(ख) रूस में
(ग) ऑग्ट्रिया में
(घ) प्रशा में

15. महान दार्शनिक वाल्टेयर ने किस देश की क्रान्ति को प्रभावित किया था? [2016]

(क) अमेरिका
(ख) इंग्लैण्ड
(ग) रूस
(घ) फ्रांस

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 5 फ्रांसीसी क्रान्ति–कारण तथा परिणाम 1

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UP Board Solutions for Class 10 English Poetry Chapter 2 The Psalm of Life (H. W. Longfellow)

UP Board Solutions for Class 10 English Poetry Chapter 2 The Psalm of Life (H. W. Longfellow).

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Comprehension Questions 

In the examination paper, there are asked only two questions from each paragraph. Given below are some more questions for extra practice.

Read the following stanzas and answer the questions put there upon:

(1) Life is real!  Life is earnest ……….. Is not spoken of the soul. [2009, 10, 14]

Question .
1. What is life and what is not its goal ? |
(जीवन क्या है और क्या जीवन का लक्ष्य नहीं है ?)
                     Or
What does the poet say about life ?
(जीवन के विषय में कवि क्या कहता है ?)
                    Or
What is the meaning of life according to the poet ?
(कवि के अनुसार जीवन का क्या अर्थ है?)
                   Or
What is the message of the poet that he gives in this stanza ?
(कवि इस पद्यांश में क्या सन्देश देना चाहता है ?)
2. What was not spoken of the soul ?
(आत्मा के विषय में क्या नहीं कहा गया था ?)
                 Or
How is soul different from body ?
(आत्मा शरीर से किस प्रकार भिन्न है ?)
3. What are the qualities of life ?
(जीवन के क्या गुण हैं?)
4. What does the poet mean by saying Dust thou art, to dust returnest’ ?
(Dust thou art, to dust returnest’ कथन से कवि का क्या तात्पर्य है ?)
5. What are the views of the poet about the body and the soul ?
(शरीर और आत्मा के विषय में कवि के क्या विचार हैं ?)
                  Or
What does the poet say about human ‘body’ and ‘soul ?.
(‘शरीर’ और ‘आत्मा’ के विषय में कवि क्या कहता है ?)
                  Or
How is the soul different from the body?
(आत्मा, शरीर से किस प्रकार भिन्न है ?)
6. What does the word ‘dust stand for in the third line of the stanza ? How does dust return to
the ‘dust’ ?
(पद्यांश की तीसरी पंक्ति में ‘dust’ किसके लिए प्रयोग हुआ है ? dust ‘dust’ में कैसे मिल जाती है ?)
7. Write the name of the poet who has composed the poem from which the above noted stanza has been chosen.
(उस कवि का नाम लिखो जिसने यह कविता लिखी है जिससे ऊपर लिखी पद्यांश चुना गया है।)
8. Point out the rhyming words used in the stanza.
(इस पद्यांश में से समान तुक वाले शब्द छाँटिए।)

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Answer:
1. Life is not simply birth and (UPBoardSolutions.com) death. Life is a reality and should be taken very seriously. Only death is not its goal.
(जीवन मात्र जन्म-मृत्यु ही नहीं है। जीवन एक वास्तविकता है और हमें इसे गम्भीरता से जीना चाहिए। केवल मृत्यु ही इसका लक्ष्य नहीं है।)
2. ‘Dust thou art, to dust returnest’ was not spoken of the soul. Soul is immortal. It
neither originates from dust (body) nor it returns (dies) to dust like our body.
(Dust thou art, to dust returnest’ आत्मा के विषय में नहीं बोला गया था। आत्मा अमर है।
यह हमारे शरीर की भाँति न तो मिट्टी से उत्पन्न होती है और न ही मिट्टी में मिलती है।)
3. Life is real and earnest.
(जीवन वास्तविक है और कुछ प्राप्त करने के लिए है।)
4. The poet means that our body is made of dust and will mix in the dust.
(कवि का तात्पर्य है कि हमारा शरीर मिट्टी का बना है और मिट्टी में ही मिल जाएगा।)
5. The poet says that our body is made of dust and after death mixes in the dust. But soul is not made of dust. It never dies because it is immortal.
(कवि कहता है कि हमारा शरीर मिट्टी का बना है और मृत्यु (UPBoardSolutions.com) के बाद मिट्टी में ही मिल जाता है, किन्तु आत्मा मिट्टी की नहीं बनी है। यह कभी नहीं मरती है, क्योंकि यह अमर है।)
6. Dust stands for five elements :

  1. earth,
  2. water,
  3. sky,
  4. air and
  5. fire.

After death these five elements mix in their own.
(मिट्टी का तात्पर्य पाँच तत्त्वों से है-

  1. मिट्टी,
  2. जल,
  3. आकाश,
  4. वायु तथा
  5. अग्नि।

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मृत्यु के बाद यह पाँचों तत्त्व अपने-अपने में मिल जाते हैं।)
7. H.W. Longfellow has composed the poem “The Psalm of Life’from which the above noted stanza has been chosen.
(H.W. Long fellow ने ‘The Psalm of Life’ नामक कविता लिखी है जिससे यह पद्यांश चुना गया है।).
8. The rhyming words are: earnest and returnest, goal and soul.

(2) Not enjoyment, ……………………….further than today. [2010, 11, 13, 15]

Question .
From which poem has the above stanza been taken ? Who has composed this poem ?
(उपर्युक्त पद्यांश किस कविता से लिया गया है ? इसके रचयिता कौन हैं ?)
2. What does the poet say in the first two lines of the stanza ?
(इस पद्यांश की प्रथम दो पंक्तियों में कवि क्या कहता है?) ,
                        Or
What does the poet say about enjoyment and sorrow ?
(कवि ने आनन्दं और दु:ख के बारे में क्या कहा है ?)

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3. What do you understand by the following expressions :
(निम्नलिखित अभिव्यक्तियों से आपका क्या तात्पर्य है 🙂
(a) destined end,
(b) farther than today.
4. What is the purpose or aim of our life ?
(हमारे जीवन का क्या उद्देश्य अथवा लक्ष्य है ?)
5. What is the meaning of ‘destined in the second line ?
(दूसरी पंक्ति में ‘destined’ शब्द का क्या अर्थ है ?)
6. What is the (UPBoardSolutions.com) advice of the poet to young men in the above stanza ?
(उपर्युक्त पद्यांश में कवि नवयुवकों को क्या सलाह देता है ?)
                           Or
How should we act for better tomorrow ?
(हमें सुनहरे कल के लिए कैसे कार्य करने चाहिए ?)
7.
How should we act in our life ?
(हमें अपने जीवन में कैसे काम करना चाहिए ?)
                         Or
What should we do to progress in life?
(जीवन में उन्नति करने के लिए हमें क्या करना चाहिए ?)
8. How do generally people live their lives ?
(सामान्यत: व्यक्ति अपना जीवन कैसे जीते हैं ?)
Answer:
1. The above stanza has been taken (UPBoardSolutions.com) from the poem ‘The Psalm of Life’. The composer of this poem is ‘H.W. Longfellow’.
(उपर्युक्त पद्यांश “The Psalm of Life’ नामक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता H.W. | Long fellow हैं।)।
2. In the first two lines of the stanza the poet says, “The purpose of our life is not only to
enjoy or be sad.”
(इस पद्यांश की प्रथम दो पंक्तियों में कवि कहता है, “हमारे जीवन का उद्देश्य केवल आनन्द मनाना या दु:खी होना नहीं है।)
3.
(a) ‘destined end means fated or preordained course of life.
(b) ‘farther than today’ means in a better position than today.
(इन अभिव्यक्तियों का क्रमश: अर्थ है-
(a) भाग्य में निश्चित जीवनचर्या तथा
(b) कल का जीवन आज से अच्छा होना।)
4. The purpose of our life is to act for our future betterment.
(हमारे जीवन का उद्देश्य भावी जीवन को उत्तम बनाने का है।)
5. ‘Destined’ means written in fate. (Destined’ का अर्थ है-भाग्य में लिखा हुआ।)
6. The poet advises the young men not to depend on fate but to act for a better tomorrow.
(कवि नवयुवकों को सलाह देता है (UPBoardSolutions.com) कि वे भाग्य के भरोसे न रहें बल्कि सुनहरे कल के लिए कार्य करें।)
7. We should act in our life to make future better.
(हमें अपने भविष्य को अधिक अच्छा बनाने के लिए जीवन में काम करना चाहिए।)
                          Or
We should act to progress in life.
(जीवन में उन्नति करने के लिए हमें काम करना चाहिए।)।
8. Generally the people enjoy their life or feel sorrow.
(सामान्यत: व्यक्ति या तो जीवन का आनन्द लेते हैं या दुःख का अनुभव करते हैं।)

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(3) In the world’s broad………………heroin the strife! [2006, 08, 11, 15]

Question .
1. What has the world been compared to in the given stanza ? What is meant by the word ‘bivouac’ ?
(प्रस्तुत पद्यांश में संसार की तुलना किससे की गयी है ? ‘bivouac’ शब्द का क्या अर्थ है ?)
                       Or
What is this world like according to the poet ?
(लेखक के अनुसार यह संसार किसके समान है ?)
2. What does the poet want us to do?
(कवि हमसे क्या कराना चाहता है ?)
                        Or
What piece of advice has the poet given in this stanza ?
(इस पद्यांश के द्वारा कवि क्या सलाह देना चाहता है?)
3. How can we become a hero?
(हम वीर कैसे बन सकते हैं ?) |
4. What does the poet not want to be?
(कवि क्या बनना नहीं चाहता है ?) :
Answer:
1. The world has been compared to a broad field of battle. Bivouac means temporary camping ground.
(संसार की तुलना युद्ध के बड़े मैदान (UPBoardSolutions.com) से की गयी है। ‘Bivouac’ का अर्थ है अस्थायी पड़ाव।)
2. The poet advises us to face the struggle of life like a brave person.
(कवि शिक्षा देता है कि हम जीवन के संघर्ष का मुकाबला एक बहादुर व्यक्ति के समान करें।)
3. We can become a hero by facing the struggle of life bravely.
(हम जीवन के संघर्ष को बहादुरी से मुकाबला करके वीर बन सकते हैं।)
4. The poet wants not to be like dumb, driven cattle.
(कवि गूंगे भेड़-बकरियों के समान बनना नहीं चाहता है।)

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(4) Let us, then, be …………………..labour and to wait. [2009, 12, 15, 18]

Question .
1. What does the poet mean by the phrase ‘be up and doing’? What do the words heart and fate’ mean here?
(कवि का ‘be up and doing’ नामक वाक्यांश से क्या तात्पर्य है ? Heart तथा fate शब्दों का यहाँ क्या तात्पर्य है ?)
                                      Or
What does the poet mean by the words, with a heart for any fate’?
(“With a heart for any fate’ शब्दों से कवि का क्या तात्पर्य है ?)
2. What should we pursue and then what shall we get ? What should we learn according to the poet ? What should we wait ?
(हमें किस बात में लगे रहना चाहिए और तब हमें क्या प्राप्त होगा ? कवि के अनुसार हमें क्या | सीखना चाहिए? हमें किस बात की प्रतीक्षा करनी चाहिए ?)
                                       Or
What do we learn from the above stanza ?
(हम उपर्युक्त पद्यांश से क्या सीखते हैं ?)
                                       Or
What advice does the poet give us in the above stanza ?
(उपर्युक्त पद्यांश में कवि हमें क्या सलाह देता है ?) (हमें क्या सीखना चाहिए?)
                                      Or
What does the poet mean by ‘learn to labour and to wait ?
(‘मेहनत करना और प्रतीक्षा करना सीखो’ इस वाक्यांश से कवि का क्या आशय है ?)
3. Point out the rhyming words in the stanza.
(पद्यांश से समान तुक वाले शब्द छाँटिए।)
Answer:
1. By this phrase the poet means that we (UPBoardSolutions.com) should be busy in doing work. The word ‘heart’ means courage and the word ‘fate’ means result. |(इस वाक्यांश से कवि का तात्पर्य है कि हमें कार्य करने में व्यस्त रहना चाहिए। heart शब्द का अर्थ ‘साहस’ है तथा fate शब्द का अर्थ ‘परिणाम’ है।)
                                     Or
The poet means by the phrase ‘with a heart for any fate’ that we should continue working with courage without thinking about its result.
(इस वाक्यांश से कवि का तात्पर्य है कि हमें परिणाम के विषय में बिना सोचे साहस के साथ काम करते रहना चाहिए।)
2. We should pursue our work and then we shall get success in our work. According to the poet we should learn to work hard and wait for its result.
(हमें अपने कार्य में लगे रहना चाहिए और तब हम अपने कार्य में सफलता प्राप्त करेंगे। कवि के अनुसार हमें परिश्रम करना और फल की प्रतीक्षा करना सीखना चाहिए।)
3. Rhyming words are: doing and pursuing, fate and wait.

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APPRECIATION OF THE POEM

Question 1.
What should be the aim of our life ?
(हमारे जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिए ?)
Answer:
The aim of our life should be to work for our future betterment.
(अपने भावी जीवन को उत्तम बनाना हमारे (UPBoardSolutions.com) जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।)

Question 2.
what do the people hold about life?
(व्यक्ति जीवन के विषय में क्या विचारधारा रखते हैं ?)
Answer:
The people hold that life is an empty dream. We don’t know when we shall die. (लोग सोचते हैं कि जीवन एक कोरी कल्पना है। हमें नहीं पता कि हम कब मर जाएँगे।)

Question 3.
What does the poet think about life ?
(कवि जीवन के विषय में क्या सोचता है ?)
Answer:
The poet thinks that life is real and has a definite aim.
(कवि सोचता है कि जीवन वास्तविक है और इसका निश्चित लक्ष्य है।)

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Question 4.
How can we make our life wholesome, useful and successful ?
(हम अपने जीवन को सुन्दर, लाभदायक और सफल कैसे बना सकते हैं ?)
Answer:
We can make our life wholesome, useful and successful by doing useful works continuously.
(लगातार लाभदायक कार्यों को करने से ही (UPBoardSolutions.com) हम अपने जीवन को सुन्दर, लाभदायक और सफल बना सकते हैं।)

Question 5.
what is said about body and soul?
(शरीर और आत्मा के विषय में क्या कहा गया है ?)
Answer:
Body is mortal. It is made of dust. After death it mixes in the dust. But soul never dies. It is immortal.
(शरीर नश्वर है। यह मिट्टी का बना हुआ है। मृत्यु के बाद यह मिट्टी में ही मिल जाता है। किन्तु आत्मा कभी नहीं मरती। यह अमर है।)

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Question 6.
Why does the poet warn us against the way of living of sheep and goats ?
(कवि हमें भेड़-बकरियों के रहने के ढंग के विरुद्ध क्यों चेतावनी देता है?)
Answer:
The sheep and goats are dumb. They are driven this way or that. So the poet warns us not to behave in this way under any circumstances. But we should use our intelligence in doing any work.
(भेड़-बकरियाँ पूँगी होती हैं। उन्हें इधर-उधर हाँको (UPBoardSolutions.com) जाता है। इसलिए कवि हमें सचेत करता है कि हमें परिस्थितियों के द्वारा इस प्रकार व्यवहार नहीं करना चाहिए। किन्तु हमें किसी भी कार्य को करने में अपनी बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए।)

CENTRAL IDEA OF THE POEM

[2009, 11, 12, 14, 15, 16, 17, 18]
The poet H. W. Longfellow imparts a high moral in this poem. He says that life is a reality and should be taken quite seriously. Life is full of struggle and difficulties and is like a battlefield. We should face it bravely. To achieve our goals in life we should be patient and hard working.
(कवि H.W. Longfellow इस कविता में एक महान् शिक्षा प्रदान करता (UPBoardSolutions.com) है। वह कहता है कि जीवन एक वास्तविकता है और इसे हमें गम्भीरता से समझना चाहिए। जीवन संघर्षों और कठिनाइयों से भरा हुआ है। और एक युद्ध-क्षेत्र के समान है। हमें इसका मुकाबला वीरता से करना चाहिए। अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमें धैर्यशाली और परिश्रमी होना चाहिए।)

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ADVICE OF THE POET

This poem preaches us a high moral. The poet teaches us to work with a spirit of courage. He says that we should be busy in useful works. We should make our life wholesome, useful and successful. The poet advises the young men that they should always be busy in doing noble deeds. They should make their life wholesome, useful and successful. If all the young men are sincere, country will progress. (यह कविता हमें एक उच्च आचरण का उपदेश देती है। कवि हमें साहस की भावना से कार्य करने की शिक्षा देता है। वह कहता है कि हमें (UPBoardSolutions.com) लाभदायक कार्यों में व्यस्त रहना चाहिए। हमें अपना जीवन हितकर, लाभदायक और सफल बनाना चाहिए। कवि नवयुवकों को शिक्षा देता है कि उन्हें सदा श्रेष्ठ कार्य करने में व्यस्त रहना चाहिए। उन्हें अपने जीवन को सुन्दर, लाभदायक तथा सफल बनाना चाहिए। यदि सभी नवयुवक ईमानदार होंगे तब देश उन्नति करेगा।)

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 (Section 2)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 राज्य सरकार (अनुभाग – दो)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 3 राज्य सरकार (अनुभाग – दो).

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विधानसभा के संगठन तथा उसके अधिकारों की विवेचना कीजिए। [2011]
               या
अपने राज्य के विधानसभा के संगठन पर प्रकाश डालिए।
               या
विधानसभा की सदस्यता की क्या अर्हताएँ (योग्यताएँ) हैं ?
               या
विधानसभा के अध्यक्ष का निर्वाचन कैसे होता है? उसके कोई चार कार्य लिखिए। [2013]
               या
विधानसभा का निर्वाचन कैसे होता है? [2017]
               या
उत्तर प्रदेश की विधानसभा का गत चुनाव कब हुआ था? इसकी चुनाव प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। [2018]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश की विधानसभा का गत चुनाव 2017 में हुआ था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 168 के अनुसार, प्रत्येक राज्य में एक विधानमण्डल होगा। कुछ राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं—विधानसभा (निम्न सदन) तथा (UPBoardSolutions.com) विधान-परिषद् (उच्च सदन)। विधानसभा के सदस्यों को एम० एल० ए० (Member of Legislative Assembly) तथा विधान परिषद् के सदस्यों को एम० एल० सी० (Member of Legislative Council) कहते हैं। कुछ राज्यों में केवल एक सदन होता है, जिसे विधानसभा कहते हैं।

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विधानसभा का संगठन

1. सदस्य संख्या– संविधान के अनुच्छेद 170 के अनुसार राज्यों की विधानसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 तथा न्यूनतम संख्या 60 होती है। किसी राज्य की विधानसभा के सदस्यों की वास्तविक संख्या का निर्धारण राज्य की जनसंख्या के आधार पर संसद द्वारा किया जाता है। कुछ स्थान अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए आरक्षित रखे जाते हैं। राज्यपाल आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व न होने की स्थिति (UPBoardSolutions.com) में इसके एक सदस्य को मनोनीत कर सकता है। उत्तर प्रदेश की विधानसभा के सदस्यों की संख्या वर्तमान में 403 निर्धारित की गयी है।

2. सदस्यों को निर्वाचन- 
विधानसभा के सदस्यों का निर्वाचन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से वयस्क मताधिकार के आधार पर गुप्त मतदान रीति से होता है। वयस्क मताधिकार का अर्थ 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके नागरिकों (स्त्री व पुरुष) के मत देने के अधिकार से है।

3. सदस्यों की योग्यताएँ- 
विधानसभा का सदस्य बनने के लिए किसी स्त्री या पुरुष में इन योग्यताओं का होना आवश्यक है-

  • वह भारत का नागरिक हो।
  • वह 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  • वह भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर न हो।
  • संसद द्वारा निर्धारित अन्य सभी शर्ते पूरी करता हो, किसी न्यायालय द्वारा उसे दण्डित न किया गया हो तथा वह पागल व दिवालिया न हो।

4. सदस्यों का कार्यकाल- विधानसभा का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है, किन्तु राज्यपाल इस अवधि से पूर्व भी विधानसभा को भंग कराकर पुनः नये चुनाव करा सकता है। संकटकाल में विधानसभा की अवधि संसद द्वारा एक बार में एक वर्ष के लिए बढ़ाई जा सकती है।

5. पदाधिकारी –
विधानसभा के सदस्य अपने में से एक अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं। अध्यक्ष का कार्य सदन की बैठकों की अध्यक्षता करना तथा कार्यवाही का संचालन करना है। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में यही कार्य उपाध्यक्ष (UPBoardSolutions.com) करता है।

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विधानसभा के अधिकार/कार्य/शक्तियाँ

विधानसभा के प्रमुख अधिकार निम्नलिखित हैं-
1. विधायिनी अधिकार- विधानसभा का प्रमुख कार्य कानून बनाना है। इसे नये कानून बनाने, पुराने कानूनों में संशोधन करने तथा उन्हें रद्द करने का अधिकार है। राज्य सूची में दिये गये सभी विषयों पर इसे कानून बनाने का अधिकार है। समवर्ती सूची के विषयों पर भी यह कानून बना सकती है, किन्तु संसद द्वारा पारित कानून से विरोध हो जाने की स्थिति में केवल संसद द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है।

2. शासन सम्बन्धी अधिकार- 
राज्य के शासन की वास्तविक बागडोर मन्त्रिपरिषद् के हाथ में रहती है, किन्तु मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है; अर्थात् शासन पर वास्तविक नियन्त्रण विधानसभा का ही रहता है। विधानसभा के सदस्य मन्त्रियों से सम्बन्धित विषयों पर प्रश्न पूछकर, काम रोको प्रस्ताव द्वारा, अविश्वास प्रस्ताव पारित करके, विधेयकों को अस्वीकृत करके, बजट में कटौती करके तथा उनके कार्यों की जाँच करके मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण रखते हैं। मन्त्रिपरिषद् तभी तक अस्तित्व में बनी रह सकती है, जब तक कि उसे विधानसभा में बहुमत का विश्वास प्राप्त होता है।

3 वित्तीय अधिकार राज्य के आय- 
व्यय पर पूर्ण नियन्त्रण विधानसभा को ही प्राप्त होता है। नये कर लगाने, पुराने करों में वृद्धि करने, किसी कर को समाप्त करने तथा करों से प्राप्त आय को व्यय करने के लिए मन्त्रिपरिषद् को विधानमण्डल मुख्यत: विधानसभा से स्वीकृति लेना आवश्यक होता है। मन्त्रिपरिषद् द्वारा तैयार वार्षिक बजट के क्रियान्वयन के लिए विधानसभा की स्वीकृति अनिवार्य है। कुछ मदों को छोड़कर शेष (UPBoardSolutions.com) सभी मदों में कटौती करने या उसे अस्वीकार करने का विधानसभा को अधिकार है। इसकी स्वीकृति के बिना सरकार न तो कोई कर लगा सकती है और न ही राजकोष से एक पैसा खर्च कर सकती है।

4. अन्य अधिकार– 
विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को निम्नलिखित अधिकार भी प्राप्त हैं|

  • राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेना।
  • राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन करना।
  • विधान-परिषद् के 1/3 सदस्यों का निर्वाचन करना।
  • विधान परिषद् की स्थापना अथवा उसकी समाप्ति के बारे में प्रस्ताव पास करना।
  • संविधान के संशोधन में भाग लेना।

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प्रश्न 2.
विधान-परिषद् का संगठन किस प्रकार होता है ? इसके कार्यों एवं अधिकारों का वर्णन कीजिए।
               या
विधानपरिषद् का गठा कैसे होता है ? इसे स्थायी सदन क्यों कहा जाता है ? [2013]
               या
उत्तर प्रदेश विधान-परिषद के गठन का वर्णन कीजिए। [2014]
               या
विधान-परिषद् की किन्हीं दो वित्तीय शक्तियों का उल्लेख कीजिए। [2015]
               या
अपने प्रदेश में विधान-परिषद् की रचना एवं उसके कार्यों का वर्णन कीजिए।[2016, 17]
               या
विधान-परिषद के सदस्यों की योग्यताओं का उल्लेख कीजिए। [2016, 18]
               या
अपने प्रदेश की विधानपरिषद के सदस्यों की संख्या कितनी होती है? इसका गठन कैसे होता है? इसकी विधायिनी (कानून-निर्माण सम्बन्धी) शक्तियों का वर्णन कीजिए। [2016]
               या
विधान-परिषद् में कानून-निर्माण की प्रक्रिया समझाइए। [2016]
उत्तर :

विधान-परिषद् का संगठन

‘विधान-परिषद् राज्य विधानमण्डल का द्वितीय या उच्च सदन है। यह एक स्थायी सदन है। विधान-परिषद् सभी राज्यों के विधानमण्डलों में नहीं है। इस समय केवल छः राज्यों-बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर तथा आन्ध्र प्रदेश में विधान (UPBoardSolutions.com) परिषद् की व्यवस्था है। वर्ष 2007 के चुनावों के पश्चात् आन्ध्र प्रदेश का विधानमण्डल भी दो सदनों वाला हो गया। इसके संगठन सम्बन्धी प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं

1. सदस्य-संख्या- विधान-परिषद् के सदस्यों की संख्या कम-से-कम 40 तथा अधिक-से-अधिक विधानसभा के सदस्यों की संख्या की 1/3 हो सकती है। जम्मू-कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में एक विशेष व्यवस्था के अन्तर्गत वहाँ के विधान परिषद् के सदस्यों की संख्या 36 रखी गयी है।

2. सदस्यों का निर्वाचन एवं मनोनयन- 
विधान-परिषद् के सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से जनता नहीं करती, वरन् इसके सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से जनता के प्रतिनिधियों द्वारा इस प्रकार होता है-परिषद् के समस्त सदस्यों को 1/3 भाग राज्य के स्थानीय निकायों अर्थात् राज्य की नगर महापालिकाओं, जिला परिषदों, पंचायतों तथा अन्य स्थानीय स्वायत्त शासन की संस्थाओं द्वारा, 1/3 भाग राज्य की विधानसभा के सदस्यों द्वारा, 1/12 भाग स्नातकों द्वारा तथा 1/12 भाग शिक्षकों द्वारा पूरा किया जाता है। शेष 1/6 सदस्यों को राज्यपाल मनोनीत करता है। ये मनोनीत सदस्य ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान और समाज-सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान प्राप्त होता है।

3. सदस्यों की योग्यताएँ- 
विधान-परिषद् का सदस्य बनने के लिए किसी व्यक्ति में इन योग्यताओं का होना अनिवार्य है-

  • वह भारत का नागरिक हो।
  • उसकी आयु 30 वर्ष से कम न हो।
  • वह किसी सरकारी लाभ के पद पर न हो।
  • वह संसद द्वारा निर्धारित अन्य शर्ते पूरी करता हो।

4. सदस्यों का कार्यकाल- विधान परिषद् एक स्थायी सदन होता है तथा वह कभी भी पूर्ण रूप से भंग या समाप्त नहीं होता। किन्तु इसके 1/3 सदस्यों का कार्यकाल प्रति दो वर्ष बाद समाप्त हो जाता है। और उनके स्थान पर उतने ही नये सदस्य निर्वाचित कर लिये जाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक सदस्य अपने पद पर 6 वर्ष तक बना रहता है।
5. पदाधिकारी- विधान-परिषद् के दो पदाधिकारी होते हैं-सभापति तथा (UPBoardSolutions.com) उपसभापति। दोनों का निर्वाचन विधान परिषद् के सदस्य अपने सदस्यों में से करते हैं। सभापति का कार्य सदन की बैठक की अध्यक्षता करना तथा उसकी कार्यवाही का संचालन करना होता है। सभापति की अनुपस्थिति में इन्हीं कार्यों को सम्पादन उपसभापति करता है। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद उत्तर प्रदेश की विधानसभा से 22 सदस्य कम हो गये हैं तथा विधान-परिषद् के सदस्यों की संख्या 108 से घटकर 99 + 1 = 100 रह गयी है।

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विधान-परिषद् के कार्य एवं अधिकार

विधान-परिषद् के कार्य एवं अधिकार निम्नलिखित हैं-
1. विधायिनी अधिकार- विधान-परिषद् को कानून निर्माण सम्बन्धी अधिकार प्राप्त हैं। विधानसभा द्वारा पारित विधेयक  विधान परिषद् द्वारा पारित किये जाने पर ही राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है।

2. वित्तीय अधिकार– 
विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को विधान परिषद् 14 दिन तक रोके रख सकती है। वह वित्त विधेयक में आवश्यक संशोधन भी कर सकती है। यह विधानसभा पर निर्भर करता है कि वह विधान-परिषद् की सिफारिशों को माने या नहीं। यदि परिषद् चौदह दिन के अन्दर विधेयक पर कोई निर्णय नहीं लेती, तो वह दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है।

3. कार्यपालिका सम्बन्धी अधिकार- 
विधान-परिषद् के सदस्य राज्य की मन्त्रिपरिषद् में सम्मिलित ।
हो सकते हैं। विधानपरिषद् मन्त्रिपरिषद् के कार्यों की आलोचना कर सकती है तथा सुझाव भी दे सकती है। इस प्रकार वह मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण रखती है।

4. सदस्यों के विशेषाधिकार- 
विधान-परिषद् के सदस्यों को निम्नलिखित विशेषाधिकार भी प्राप्त

  • सदन के नियमों का पालन करते हुए उन्हें सदन में भाषण देने का अधिकार है।
  • सदन में दिये गये भाषण के लिए उनके विरुद्ध किसी (UPBoardSolutions.com) न्यायालय में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
  • अधिवेशन के दिनों में उपस्थित किसी सदस्य को सभापति की आज्ञा के बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

5. अन्य अधिकार- विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को विधान परिषद् तीन माह तक रोककर जनमत जानने का प्रयत्न कर सकती है।

राज्य विधानमण्डल में कानून निर्माण की प्रक्रिया

(i) साधारण विधेयक के सम्बन्ध में

  1. धन विधेयक से विभिन्न विधेयकों को विधानसभा या विधान-परिषद् दोनों में से किसी एक में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  2. यदि विधेयक विधान-परिषद् में प्रस्तुत किया गया है तो वह विधानपरिषद् से पारित होने के पश्चात् विधानसभा को भेजा जाता है।
  3. यदि विधानसभा इस विधेयक को पारित कर देता है तो यह कानून बन जाता है और यदि विधेयक को अस्वीकार कर देती है तो यह विधेयक वहीं पर समाप्त हो जाता है।
  4. यदि विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत किया जाता है तो वह विधानसभा से पारित होने के पश्चात् विधान परिषद् को भेजा जाता है।
  5. विधान परिषद् विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को यदि स्वीकार कर लेती है तो वह राज्यपाल की अनुमति से अधिनियम बन जाता है।
  6. यदि विधान-परिषद्, विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को
  • अस्वीकार कर देती है, या
  • संशोधनों सहित पारित करती है, या
  • विधेयक प्रेषित किये जाने के दिनांक से तीन मास के भीतर पारित करके वापस नहीं करती, तो विधानसभा ऐसे विधान परिषद् द्वारा पारित विधेयक को पुनः संशोधनों सहित या बिना संशोधन के पुनः

पारित करके विधान परिषद् को भेजती है, यदि विधान-परिषद् पुनः–

  • उसे स्वीकार कर लेती है, तो वह विधेयक राज्यपाल (UPBoardSolutions.com) की अनुमति से अधिनियम बन जाता है, लेकिन यदि
  • उसे अस्वीकार कर देती है, या
  • संशोधनों सहित पारित करती है, या
  • विधानसभा द्वारा प्रेषित किये जाने के एक मास तक विधेयक को पारित नहीं करती तो,
  • यह विधेयके उसी रूप में पारित समझा जाएगा जिस रूप में विधानसभा ने पारित किया था।

(ii) धन विधेयक के सम्बन्ध में ।

  • धन विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तुत किया जाता है, विधानपरिषद में नहीं।
  • विधानपरिषद् धन विधेयक को केवल चौदह (14) दिन तक रोक सकती है। चौदह दिन बाद वह स्वतः ही पारित समझा जाता है।
  • विधानसभा विधान-परिषद् के किसी भी संशोधन या सिफारिश को मानने के लिए बाध्य नहीं है। धन विधेयकों के विषय में विधानसभा को ही समस्त वास्तविक अधिकार हैं। अतः धन विधेयकों को लेकर विधानसभा तथा विधान-परिषद् में कोई गतिरोध उत्पन्न नहीं होता है।

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प्रश्न 3.
राज्य की मन्त्रिपरिषद् का गठन किस प्रकार होता है ? उसके प्रमुख कार्य क्या हैं ? [2010, 12]
               या
राज्य की मन्त्रिपरिषद् पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
               या
राज्य मन्त्रिपरिषद् का गठन कैसे होता है ? [2012]
               या
राज्य मन्त्रिपरिषद् के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
मन्त्रिपरिषद् का गठन राज्य की वास्तविक कार्यपालिका राज्य की मन्त्रिपरिषद् होती है। भारत के संविधान के अनुसार, राज्यपाल को सहायता तथा मन्त्रणा देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होती है, जिसका प्रधान मुख्यमन्त्री होता है। मन्त्रिपरिषद् के गठन सम्बन्धी प्रमुख बातें अग्रवत् हैं

मन्त्रिपरिषद् का गठन– विधानसभा के चुनाव के बाद जिस दल का विधानसभा में बहुमत होता है, उस दल के नेता को राज्यपाल मुख्यमन्त्री नियुक्त करता है। मुख्यमन्त्री की सलाह से राज्यपाल अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है तथा उनके विभागों का वितरण करता है। यदि विधानसभा में किसी भी एक दल का बहुमत नहीं है तो राज्यपाल अपने विवेक से उसे मुख्यमन्त्री नियुक्त करता है जो विधानसभा के आधे से अधिक सदस्यों (UPBoardSolutions.com) का विश्वास प्राप्त कर सके तथा अपने द्वारा बनाये गये मन्त्रिपरिषद् का संचालन कर सके। राज्य के मन्त्रिपरिषद् में तीन स्तर के मन्त्री होते हैं-कैबिनेट मन्त्री, राज्यमन्त्री और उपमन्त्री। संविधान के अन्तर्गत यद्यपि मन्त्रियों की संख्या निश्चित नहीं की गयी है तथापि मन्त्रियों की संख्या (मुख्यमन्त्री सहित) विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक नहीं हो सकती।

मन्त्रियों की योग्यताएँ- मुख्यमन्त्री तथा अन्य मन्त्रियों को विधानमण्डल के किसी भी सदन का सदस्य होना आवश्यक है। यदि कोई मन्त्री किसी भी सदन का सदस्य नहीं है तो उसे मन्त्री बनने के छः महीने के अन्दर किसी-न-किसी सदन का सदस्य बन जाना चाहिए अन्यथा उसे मन्त्रि-पद से त्याग-पत्र देना पड़ेगा।

मन्त्रिपरिषद् का कार्यकाल-

  1. मन्त्रिपरिषद् तभी तक कार्यरत रहती है जब तक कि उसे विधानसभा का विश्वास प्राप्त होता है। यदि विधानसभा मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर दे तो उसे अपने पद से हटना पड़ेगा।
  2. मुख्यमन्त्री या कोई मन्त्री अपनी इच्छानुसार त्याग-पत्र देकर अपने पद से अलग हो सकता है। मुख्यमन्त्री द्वारा त्याग-पत्र दिये जाने पर समस्त मन्त्रिपरिषद् का कार्यकाल समाप्त हो जाता है।
  3. यदि राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चल रहा हो तो राज्यपाल अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजकर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किये जाने की सिफारिश कर सकता है।

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मन्त्रिपरिषद् के कार्य

संविधान के अन्तर्गत राज्यपाल को जो शासन सम्बन्धी शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं, व्यवहार में उनका प्रयोग मन्त्रिपरिषद् द्वारा ही किया जाता है। मन्त्रिपरिषद् राज्यपाल के नाम से राज्य का शासन चलाती है। शासन के संचालन हेतु उसे निम्नलिखित कार्य करने होते हैं

1. राज्यपाल को सलाह तथा सहायता प्रदान करना– 
संविधान के अनुसार मन्त्रिपरिषद् के संगठन का एकमात्र उद्देश्य राज्यपाल के कार्यों के निर्वाह में उसे सहायता तथा सलाह देना है।

2. शासन सम्बन्धी नीति का निर्धारण- 
मन्त्रिपरिषद् का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य शासन सम्बन्धी नीति को निर्धारित करना है। इन नीतियों की पुष्टि मन्त्रिपरिषद् विधानमण्डल से कराती है।

3. प्रशासन सम्बन्धी कार्य- 
राज्य का समस्त प्रशासन अनेक विभागों में बँटा होता है तथा प्रत्येक विभाग का भार एक मन्त्री को सौंप दिया जाता है। विधानमण्डल में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर साधारणतया सम्बन्धित विभाग का मन्त्री देता है। वैसे मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से ही विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।

4. कानूनों का निर्माण– 
प्रत्येक मन्त्री अपने विभाग सम्बन्धी विधेयक तैयार कराकर उसे पारित कराने के लिए विधानमण्डल में प्रस्तुत करता है। विधेयक के पारित हो जाने पर वह कानून को रूप धारण कर लेता है, जिसे लागू करवाने का कार्य मन्त्रिपरिषद् करती है।

5. वित्त सम्बन्धी कार्य- 
वित्तीय वर्ष प्रारम्भ होने से पूर्व, पूर्ण वर्ष का आय-व्यय का बजट तैयार करना और उसे विधानमण्डल के समक्ष प्रस्तुत करके उसे पारित करवाने का काम राज्य का वित्त मन्त्री करता है।

6. विभागों के कार्यों में समन्वय- 
विभिन्न प्रशासनिक विभागों में परस्पर झगड़े उत्पन्न हो जाने की स्थिति में मन्त्रिपरिषद् उनका निपटारा करती है।

7. नियुक्तियों सम्बन्धी राज्यपाल का परामर्श- 
लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य, महाधिवक्ता, विश्वविद्यालयों के कुलपतियों आदि जिन उच्च पदों पर राज्यपाल को नियुक्ति करने का अधिकार है उन सभी पदों पर वह नियुक्तियाँ मन्त्रिपरिषद् के परामर्श (UPBoardSolutions.com) से करता है।

8. सूचना देना– 
मन्त्रिपरिषद् अपनी नीतियों तथा कार्यों के बारे में राज्यपाल को समय-समय पर सूचना | देती रहती है। राज्यपाल स्वयं कोई भी प्रशासनिक जानकारी मन्त्रिपरिषद् से प्राप्त कर सकता है।

9. जनमत तैयार करना- 
मन्त्रियों का यह भी कर्तव्य है कि वे सरकारी नीतियों के पक्ष में जनमत तैयार | करें। इसके लिए मन्त्री राज्य के दौरे तथा सरकारी नीतियों का प्रचार करते हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मन्त्रिपरिषद् ही राज्य की वास्तविक कार्यपालिका है। शासन-सम्बन्धी सम्पूर्ण कार्यवाही इन्हीं मन्त्रियों के द्वारा सम्पन्न की जाती है। इसलिए राज्य की वास्तविक शक्ति इसी के हाथ में होती है। मात्र विधानसभा ही इस पर अपना अंकुश रख सकती है।

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प्रश्न 4.
राज्यपाल की नियुक्ति किस प्रकार होती है ? उसके प्रमुख कार्यों/अधिकारों (शक्तियों) का वर्णन कीजिए। [2010, 12]
               या
राज्यपाल के अधिकारों पर प्रकाश डालिए। दो उदाहरण दीजिए। [2015, 16]
               या
राज्यपाल की विधायी शक्तियों का उल्लेख कीजिए।[2010]
               या
राज्यपाल के पद के लिए क्या-क्या योग्यताएँ निर्धारित की गई हैं?
               या
राज्यपाल को न्यायिक क्षेत्र में क्या अधिकार प्राप्त हैं?
राज्यपाल के तीन अधिकारों के विषय में लिखिए। [2017, 18]
उत्तर :

राज्यपाल की नियुक्ति

राज्यपाल राज्य की कार्यपालिका का मुखिया होता है। राज्य की समस्त कार्यकारी शक्तियाँ राज्यपाल में निहित होती हैं तथा राज्य का प्रशासन उसी के नाम से चलता है। संविधान के अनुसार, प्रत्येक राज्य के लिए अथवा दो या अधिक राज्यों के लिए एक राज्यपाल होता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार, “राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति अधिकार-पत्र पर अपने हस्ताक्षर और सील लगाकर करेगा। इस प्रकार राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है, किन्तु व्यवहार में राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की सलाह पर राज्यपाल की नियुक्ति करता है।
कार्यकाल-राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, किन्तु यदि राष्ट्रपति चाहे तो वह इस अवधि से पूर्व भी राज्यपाल को हटा सकता है।
योग्यताएँ–केवल वही व्यक्ति राज्यपाल के पद पर नियुक्त किया जा सकता है, जिसमें निम्नलिखित योग्यताएँ होती हैं

  • वह भारत का नागरिक हो।
  • उसकी आयु 35 वर्ष से कम न हो।
  • वह संसद या विधानमण्डल के किसी भी सदन का सदस्य न हो। यदि ऐसा कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त हो जाता है तो उसे पद-ग्रहण करने से पूर्व सम्बन्धित संसद या विधानमण्डल की सदस्यता से त्याग-पत्र देना होगा।
  • वह किसी लाभ के पद पर न हो।
  • वह उस राज्य का निवासी न हो जिस राज्य को वह (UPBoardSolutions.com) राज्यपाल नियुक्त किया जा रहा है।
  • वह किसी न्यायालय द्वारा दण्डित न किया गया हो।

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राज्यपाल के अधिकार/कार्य/शक्तियाँ

राज्य के शासन एवं सुव्यवस्था का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व राज्यपाल पर होता है। इस दायित्व को पूरा करने के लिए संविधान के अन्तर्गत उसे निम्नलिखित अधिकार दिये गये हैं
1. कार्यपालिका सम्बन्धी अधिकार- कार्यपालिका का प्रधान होने के कारण राज्यपाल को कार्यपालिका सम्बन्धी निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं

  • राज्य के शासन सम्बन्धी कार्य राज्यपाल के नाम से किये जाते हैं।
  • राज्यपाल मुख्यमन्त्री की नियुक्ति करता है तथा मुख्यमन्त्री की सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है एवं उनके विभागों का वितरण करता है।
  • वह मुख्यमन्त्री के परामर्श पर राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य, महाधिवक्ता, विश्वविद्यालयों के कुलपतियों आदि की नियुक्तियाँ करता है।
  • वह मुख्यमन्त्री से शासन सम्बन्धी कोई भी सूचना माँग सकता है।
  • यदि राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चल रहा हो तो राज्यपाल अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजकर राज्य में राष्ट्रपति शासन के लागू किये जाने की सिफारिश कर सकता है।

2. कानून निर्माण (विधायी) सम्बन्धी अधिकार –

  • राज्यपाल को विधानमण्डल के अधिवेशन को बुलाने, स्थगित करने तथा विधानसभा को अवधि से पहले भंग करने का अधिकार है।
  • राज्यपाल को विधानमण्डल के एक सदन या दोनों सदनों को संयुक्त रूप से सम्बोधित करने तथा लिखित सन्देश भेजने का अधिकार है।
  • विधानमण्डल द्वारा पारित कोई भी विधेयक राज्यपाल (UPBoardSolutions.com) के हस्ताक्षर के बिना कानून नहीं बन सकता। कुछ विधेयकों को वह राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख सकता है। जब विधानमण्डल का अधिवेशन न चल रहा हो तब राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार है, जो विधानमण्डल की बैठक आरम्भ होने के छ: सप्ताह तक ही लागू रह सकता है।
  • राज्य विधान-परिषद् की कुल संख्या के 1/6 सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है, जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान, समाज-सेवा, सहकारिता के क्षेत्र में निपुणता प्राप्त हो।
  • राज्यपाल को ऐंग्लो इण्डियन समुदाय का एक सदस्य मनोनीत करने का तथा अध्यक्ष- उपाध्यक्ष की खाली जगह पर नियुक्ति करने का अधिकार भी है।

3. वित्तीय अधिकार- राज्यपाल को निम्नलिखित वित्तीय अधिकार प्राप्त हैं

  • विधानमण्डल के समक्ष राज्यपाल के नाम से वित्तमन्त्री राज्य का बजट प्रस्तुत करता है।
  • राज्यपाल की पूर्व स्वीकृति के बिना कोई भी वित्त विधेयक सदन में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
  • वह आकस्मिक निधि में से सरकार को खर्च के लिए धन दे सकता है।

4. न्याय सम्बन्धी अधिकार|

  • राज्यपाल उच्च न्यायालय के परामर्श से अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों तथा जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। |
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति उस राज्य के राज्यपाल से भी | परामर्श करता है।
  • राज्य विधानमण्डल द्वारा बनाये गये कानूनों को तोड़ने वाले अपराधियों की सजा को (मृत्युदण्ड के अतिरिक्त) माफ कर सकता है, कम कर सकता है तथा बदल सकता है।

5. अन्य अधिकार

  • विधानसभा में किसी भी दले का स्पष्ट बहुमत न होने पर वह अपने विवेक से मुख्यमन्त्री की | नियुक्ति करता है।
  • संकट काल में वह राज्य के शासन का संचालन अपने विवेक से करता है।

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प्रश्न 5. राज्य शासन में राज्यपाल का क्या महत्त्व है? राज्यपाल तथा मुख्यमन्त्री के सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। [2011]
               या
राज्य शासन में राज्यपाल का क्या महत्त्व है ? [2013]
उत्तर :
राज्यपाल की स्थिति एवं महत्त्व राज्यपाल को अपने राज्य के शासन-तन्त्र को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए पर्याप्त अधिकार दिये। गये हैं। राज्यपाल को स्व-विवेक के आधार पर प्रयुक्त शक्तियाँ भी प्राप्त हैं। विधानसभा में किसी दल का स्पष्ट बहुमत न होने पर तथा संविधान की विफलता की स्थिति में भी उसे स्वविवेकी अधिकार प्राप्त हैं। अतः इस स्थिति में वह अपनी वास्तविक शक्ति का उपयोग करता है। संकटकाल की स्थिति में वह केन्द्रीय सरकार के अभिकर्ता (Agent) के रूप में कार्य करता है। इस स्थिति में वह अपनी वास्तविक स्थिति का प्रयोग कर सकता है।

इस पर भी वह केवल वैधानिक अध्यक्ष ही होता है। वास्तविक कार्यपालिका शक्तियाँ तो राज्य की मन्त्रिपरिषद् में निहित होती हैं। राज्यपाल बाध्य है कि वह मन्त्रिपरिषद् के परामर्श से ही कार्य करे। जब तक राज्यपाल मन्त्रिपरिषद् के परामर्श पर कार्य (UPBoardSolutions.com) करता है और विधानमण्डल के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी मन्त्रिमण्डल को उसके शासन-कार्य में सहायता तथा परामर्श देता है, तब तक उनके लिए राज्यपाल के परामर्श की अवहेलना करने की बहुत ही कम सम्भावना है। महाराष्ट्र के भूतपूर्व राज्यपाल (स्वर्गीय) श्रीप्रकाश ने कहा था कि “मुझे पूरा विश्वास है कि संवैधानिक राज्यपाल के अतिरिक्त मुझे कुछ नहीं करना होगा।” इस प्रकार राज्यपाल का पद शक्ति व अधिकार का नहीं, वरन् सम्मान व प्रतिष्ठा का है।

राज्य प्रशासन में राज्यपाल की स्थिति बहुत महत्त्वपूर्ण है। वह राज्य के विभिन्न हितों और दलों के विवादों को मध्यस्थ बनकर दूर करता है। यदि राज्य के शासन द्वारा संविधान का उल्लंघन किया जाए तो राज्यपाल उसकी सूचना तुरन्त राष्ट्रपति को दे सकता है। राज्यपाल के पद का महत्त्व संवैधानिक भी है और परम्परागत भी। इस पद का महत्त्व राज्यपाल के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है।

राज्यपाल और मुख्यमंत्री (मन्त्रिपरिषद्) का सम्बन्ध

संविधान के अनुच्छेद 164 में कहा गया है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा तथा राज्यपाल के प्रासादपर्यन्त मंत्रीगण अपना पद धारण करेंगे। परन्तु वास्तविकता यह है कि राज्यपाल विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को ही मुख्यमंत्री बनने व सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है। राज्य की कार्यपालिका में राज्यपाल और मन्त्रिपरिषद् दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, अत: दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है

  • मुख्यमंत्री की सलाह पर ही राज्यपाल अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
  • राज्यपाल राज्य में नाममात्र का शासक है और मन्त्रिपरिषद् वास्तविक शासक है।
  • राज्यपाल प्रत्येक दशा में मन्त्रिपरिषद् की सलाह को मानने के लिए बाध्य है।
  • राष्ट्रपति शासन के समय राज्यपाल राज्य में वास्तविक शासक हो जाता है।

अनुच्छेद 167 के अनुसार राज्य के मुख्यमंत्री का यह कर्तव्य है कि राज्य प्रशासन से सम्बन्धित मन्त्रिपरिषद् के सभी निर्णयों और विचाराधीन विधेयकों की सूचना राज्यपाल को दे। राज्यपाल इस सम्बन्ध में अन्य
आवश्यक जानकारी माँग सकता है। इस प्रकार राज्य प्रशासन की वास्तविक शक्ति राज्यपाल के हाथ में न होकर मन्त्रिपरिषद्, अर्थात् मुख्यमंत्री के हाथ में होती है।

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प्रश्न 6.
मुख्यमन्त्री का चयन कैसे होता है ? मुख्यमन्त्री के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए। [2011]
               या
राज्य के मुख्यमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार की जाती है? सम्पूर्ण प्रक्रिया समझाइट। [2013, 14]
या

मुख्यमन्त्री के अधिकार और कार्यों का वर्णन कीजिए। राज्य के शासन में उसका क्या महत्त्व है ?
               या
किसी राज्य के मुख्यमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार की जाती है ? राज्य के प्रशासन में उसकी भूमिका की व्याख्या कीजिए। [2013, 16]
               या
मुख्यमंत्री के कार्यों को लिखिए। [2011]
उत्तर :

मुख्यमन्त्री का चयन

राज्य की विधानसभा के चुनाव के बाद जिस दल का विधानसभा में बहुमत होता है उस दल के नेता को राज्यपाल मुख्यमन्त्री नियुक्त करती है। किसी भी एक दल का बहुमत न होने पर दो या दो से अधिक दलों के संयुक्त नेता को मुख्यमन्त्री नियुक्त किया जाता है। (UPBoardSolutions.com) जब किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता तो राज्यपाल अपने विवेक का प्रयोग करके किसी भी ऐसे दल के नेता को मुख्यमन्त्री नियुक्त कर सकता है, जो विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने में सक्षम हो। राज्यपाल मुख्यमन्त्री को पद की गोपनीयता तथा विश्वसनीयता की शपथ दिलाता है। फिर मुख्यमन्त्री की सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है।

योग्यता- मुख्यमन्त्री के लिए विधानमण्डल के किसी भी सदन का सदस्य होना अनिवार्य है। यदि वह पद पर नियुक्ति के समय किसी भी सदन का सदस्य नहीं है तो उसे छ: माह के अन्दर किसी भी सदन का सदस्य बनना आवश्यक है अन्यथा उसे अपने पद से त्याग-पत्र देना पड़ेगा।

कार्यकाल- मुख्यमन्त्री उसी समय तक अपने पद पर रह सकता है, जब तक उसे विधानसभा का विश्वास प्राप्त हो। इसके अतिरिक्त, वह अपनी इच्छानुसार कभी भी त्याग-पत्र देकर अपने पद से अलग हो सकता है।

मुख्यमन्त्री के कार्य तथा अधिकार

मुख्यमन्त्री के प्रमुख कार्य और अधिकार निम्नलिखित हैं –
1. मन्त्रिपरिषद् का गठन- मुख्यमन्त्री का प्रथम महत्त्वपूर्ण कार्य अपने मन्त्रिपरिषद् का गठन करना होता है। मुख्यमन्त्री मन्त्रियों की सूची राज्यपाल के सम्मुख प्रस्तुत करता है और राज्यपाल मन्त्रियों को शपथ दिलाता है। मन्त्रियों की संख्या का निर्धारण भी मुख्यमन्त्री ही करता है।

2. विभागों का वितरण- मुख्यमन्त्री की सलाह से राज्यपाल मन्त्रियों के मध्य विभागों तथा राज्य के अन्य कार्यों का वितरण करता है।

3. नियुक्ति सम्बन्धी अधिकार- 
राज्यपाल को अनेक उच्च पदाधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार होता है; जैसे-कुलपति, महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य आदि की नियुक्ति। वास्तव में इस अधिकार का प्रयोग मुख्यमन्त्री ही करता है, क्योंकि राज्यपाल मुख्यमन्त्री की सलाह से ही इन पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है।

4. नीति-निर्धारण का अधिकार- 
राज्य की शासन-नीति तथा अन्य महत्त्वपूर्ण विषयों सम्बन्धी नीतियों को निर्धारित करने का अधिकार मुख्यमन्त्री को ही होता है।

5. शासन-व्यवस्था का स्वामी- 
संवैधानिक दृष्टि से राज्य की शासन-व्यवस्था का स्वामी राज्यपाल होता है, किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से राज्य के समस्त शासन-तन्त्र का स्वामी मुख्यमन्त्री होता है। वह विभिन्न मन्त्रालयों पर नियन्त्रण रखता है तथा विभागों के मध्य मतभेद (UPBoardSolutions.com) होने पर उनमें समझौता कराता है। अन्य मन्त्रियों के लिए सभी महत्त्वपूर्ण विषयों पर मुख्यमन्त्री से परामर्श लेना आवश्यक होता है। इस प्रकार राज्य की कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख मुख्यमन्त्री ही होता है।

6. विभागों में समन्वय– 
मुख्यमन्त्री का एक प्रमुख कार्य शासन के सभी विभागों में समन्वय स्थापित | करना है, जिससे सभी विभाग एक इकाई के रूप में कार्य करें।

7. मन्त्रिमण्डल का सभापति– 
मुख्यमन्त्री राज्य के मन्त्रिमण्डल (Cabinet) का अध्यक्ष होता है। वह मन्त्रिमण्डल की सभाओं (बैठकों) का सभापतित्व करता है। यदि कोई मन्त्री मुख्यमन्त्री से सहमत नहीं ह्येता तो उसे त्याग-पत्र देना पड़ता है।

8. विधानसभा का नेता मुख्यमन्त्री राज्य की शासन-
व्यवस्था का प्रमुख होने के साथ-साथ विधानसभा का नेता भी होता है। उसके परामर्श से ही राज्यपाल द्वारा विधानसभा के अधिवेशन बुलाये जाते हैं। वह दोनों सदनों में सरकार को अधिकृत वक्ता होता है।

9. राज्यपाल का सलाहकार –
राज्यपाल का प्रमुख परामर्शदाता मुख्यमन्त्री ही होता है। वही
मन्त्रिपरिषद् के निर्णयों से राज्यपाल को अवगत कराता है तथा राज्यपाल के सन्देशों को मन्त्रियों तक पहुंचाता है। इस प्रकार वह राज्यपाल तथा मन्त्रिपरिषद् के मध्य एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। मुख्यमन्त्री राज्यपाल को विधानसभा भंग करने की सलाह भी दे सकता है।

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राज्य के शासन में महत्त्व

केन्द्र में जो स्थिति प्रधानमन्त्री की होती है राज्य में वही स्थिति मुख्यमन्त्री की होती है। प्रधानमन्त्री का कार्यक्षेत्र समूचा देश होता है, किन्तु मुख्यमन्त्री केवल अपने राज्य की सीमा के अन्दर ही कार्य करता है। राज्य के शासन में मुख्यमन्त्री के महत्त्व को निम्नलिखित रूप में आसानी से समझा जा सकता है|

1.
राज्य की शासन-व्यवस्था में वास्तविक कार्यपालिका मन्त्रिपरिषद् होती है और मुख्यमन्त्री राज्य की मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष तथा नेता होता है। इस प्रकार मन्त्रिपरिषद् यदि राज्य के शासन की नौका है तो मुख्यमन्त्री उसका नाविक। (UPBoardSolutions.com) वह मन्त्रिपरिषद् की बैठकों की अध्यक्षता तथा उसकी कार्यवाही का
संचालन करता है। मन्त्रिपरिषद् के निर्णय उसकी इच्छा से प्रभावित होते हैं।

2. राज्यपाल द्वारा मन्त्रियों की नियुक्ति तथा उनमें विभागों का वितरण मुख्यमन्त्री की इच्छानुसार ही किया जाता है। वह जब चाहे किसी भी मन्त्री से त्याग-पत्र माँग सकता है। मन्त्री द्वारा त्याग-पत्रे न दिये जाने | पर, मुख्यमन्त्री के परामर्श पर, राज्यपाल मन्त्री को उसके पद से हटा देता है।

3.
मुख्यमन्त्री ही मन्त्रिपरिषद् के निर्णयों तथा प्रशासनिक कार्यों की सूचना समय-समय पर राज्यपाल कोदेता रहता है।

4.
राज्य विधानमण्डल में भी मुख्यमन्त्री को विशेष स्थान प्राप्त होता है। वह विधानसभा का नेता होता है।
और सरकार की नीतियों का स्पष्टीकरण करता है।

5.
मुख्यमन्त्री, राज्यपाल और मन्त्रिपरिषद् तथा विधानमण्डल एवं मन्त्रिपरिषद् के बीच सम्पर्क बनाये . रखने वाली एक कड़ी का कार्य करता है।

संक्षेप में, राज्य के शासन में मुख्यमन्त्री की स्थिति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा निर्णायक होती है। राज्य प्रशासन में सर्वेसर्वा होने के बावजूद मुख्यमन्त्री तानाशाह नहीं बन सकता, क्योंकि उसकी शक्तियों पर कई प्रतिबन्ध होते हैं; जैसे–संवैधानिक नियमों का प्रतिबन्ध, केन्द्रीय सरकार का नियन्त्रण, राज्यपाल का प्रतिबन्ध, विरोधी दलों का प्रतिबन्ध तथा जनमत का भय।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विधानसभा तथा विधान-परिषद् की निर्वाचन पद्धति में क्या अन्तर है ?
उत्तर :
विधानसभा के सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर गुप्त रीति से होता है। विधान परिषद् के सदस्यों का निर्वाचन जनता प्रत्यक्ष रूप से नहीं करती, वरन् समस्त सदस्यों का 1/3 भाग राज्य के स्थानीय निकायों के द्वारा, 1/3 भाग राज्य की विधानसभा के सदस्यों द्वारा, 1/12 भाग राज्य के स्नातकों द्वारा तथा 1/12 भाग राज्य के शिक्षकों द्वारा किया जाता है। शेष 1/6 सदस्यों को राज्यपाल मनोनीत करता है। ये ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान और समाजसेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान प्राप्त होता है।

प्रश्न 2.
विधान-परिषद् की उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
विधान-परिषद्, विधानसभा की तुलना में एक कमजोर सदन है। कानून-निर्माण के क्षेत्र में साधारण विधेयक राज्य विधानमण्डल के किसी भी सदन में प्रस्तावित किये जा सकते हैं तथा वे विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होने चाहिए। साथ ही यदि कोई विधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद विधान-परिषद् द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाता है या परिषद् विधेयक में ऐसे संशोधन करती है, जो विधायकों को स्वीकार्य नहीं होते या परिषद् के समक्ष विधेयक रखे (UPBoardSolutions.com) जाने की तिथि से तीन माह तक विधेयक पारित नहीं किया जाता है तो विधानसभा उस विधेयक को संशोधन सहित या संशोधन के बिना विधानमण्डल द्वारा पुनः पारित करके विधान परिषद् को भेजती है। इस बार विधान-परिषद् विधेयक को स्वीकृत करे या न करे अथवा ऐसे संशोधन पेश करे, जो विधानसभा को स्वीकार न हों तो भी यह विधेयक एक माह बाद विधान-परिषद् द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है।

विधान परिषद् प्रश्नों, प्रस्तावों तथा वाद-विवाद के आधार पर मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध जनमत तैयार करके उसको नियन्त्रित कर सकती है, किन्तु उसे मन्त्रिपरिषद् को पदच्युत करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि कार्यपालिका केवल विधानसभा के प्रति ही उत्तरदायी होती है।

वित्त विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तावित किये जाते हैं, विधान परिषद् में नहीं। विधानसभा किसी वित्त विधेयक को पारित कर स्वीकृति के लिए विधान परिषद के पास भेजती है तो विधान-परिषद या तो 14 दिन के अन्दर ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर सकती है या फिर अपनी सिफारिशों सहित विधानसभा को वापस लौटा सकती है। यह विधानसभा पर निर्भर है कि वह विधान-परिषद् की सिफारिशों को माने या नहीं। यदि परिषद् 14 दिन के अन्दर विधेयक पर कोई निर्णय नहीं लेती तो वह दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत मान । लिया जाता है।

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प्रश्न 3.
विधानसभा तथा विधान-परिषद् के सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। [2006]
उत्तर :
भारत में वर्तमान समय में मात्र छ: राज्यों में विधानमण्डल में दो सदन हैं और शेष में एक। द्वि-सदनीय विधानमण्डल में निम्न सदन को विधानसभा और उच्च सदन को विधान-परिषद् कहते हैं। विधानसभा विधान परिषद् की अपेक्षा अधिक समर्थ एवं अधिकारसम्पन्न होती है। यह निम्नलिखित शीर्षकों के आधार पर स्पष्ट होता है–

1. वित्तीय क्षेत्र में –
वित्तीय विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं, विधानपरिषद् में नहीं; किन्तु विधान परिषद् की राय जानने के लिए ये विधेयक उसके पास भेजे अवश्य जाते हैं, परन्तु विधेयक पर परिषद् द्वारा दी गयी (UPBoardSolutions.com) राय मानने के लिए विधानसभा बाध्य नहीं है। चौदह दिन के अन्दर विधान-परिषद् को अपनी राय भेज देनी होती है। यदि इस अवधि में वह अपनी राय नहीं भेजता है तो भी विधेयक उसके द्वारा स्वीकृत माना जाता है। इस प्रकार वित्तीय क्षेत्र में विधानसभा शक्तिशाली है और विधान-परिषद् विधेयक को मात्र 14 दिन के लिए विलम्बित कर सकती है।

2. विधायिनी क्षेत्र में- 
साधारण विधेयक राज्य विधानमण्डल के किसी भी सदन में प्रस्तावित किये जा सकते हैं, परन्तु ये विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होने चाहिए। जब कोई साधारण विधेयक विधानसभा द्वारा स्वीकृत हो जाता है, तब उस पर विधान परिषद् की स्वीकृति लेने के लिए उसे विधान परिषद् के पास भेजा जाता है। यदि विधान-परिषद् द्वारा विधेयक रखे जाने की तिथि से तीन माह तक उसे पारित न किया जाए तो विधानसभा पुन: इसे पारित करके विधान परिषद् में भेजती है। इस बार भी यदि विधान-परिषद् इसे अस्वीकृत करती है या उसे संशोधित करती है या एक महीने तक उस पर कोई निर्णय नहीं लेती है तो ऐसी स्थिति में साधारण विधेयक स्वीकृत मान लिया जाता है और उसे राज्यपाल के पास हस्ताक्षर हेतु भेज दिया जाता है। इस प्रकार विधान-परिषद् साधारण विधेयक को चार माह तक विलम्बित अवश्य कर सकती है; किन्तु उसे पारित होने से नहीं रोक सकती।

3. कार्यपालिका के क्षेत्र में – सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् विधानसभा के प्रति ही सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है। विधान परिषद् मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों से प्रश्न एवं पूरक-प्रश्न पूछ सकती है, उनकी आलोचना कर सकती है; किन्तु उसे मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव रखने का अधिकार (UPBoardSolutions.com) नहीं है। वास्तव में विधानसभा को ही मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण रखने का अधिकार प्राप्त होता है और यही उसके विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर सकती है।

प्रश्न 4.
राज्य विधानमण्डल के किन्हीं दो अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
राज्य विधानमण्डल के दो अधिकारों का संक्षिप्त वर्णन निम्नानुसार है-

1.
वित्तीय अधिकार- विधानमण्डल को राज्य के वित्त पर पूर्ण नियन्त्रण प्राप्त होता है। विधानसभा द्वारा आय-व्यय वार्षिक बजट स्वीकृत होने पर ही शासन द्वारा आय-व्यय से सम्बन्धित किसी कार्य को किया जा सकता है। विधानमण्डल द्वारा विनियोग विधेयक पारित होने के बाद ही सरकार संचित निधि से आवश्यक व्यय हेतु धन निकाल सकती है।

2.
प्रशासनिक अधिकार – भारतीय संविधान द्वारा राज्यों के क्षेत्र में भी संसदात्मक व्यवस्था स्थापित की गई है। परिणामत: राज्य की मन्त्रिपरिषद् को अपनी नीतियों एवं कार्यों के लिए विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी रहना होता है। विधानमण्डल द्वारा विभिन्न विभागों के मन्त्रियों से उनके विभागों के बारे में प्रश्न पूछे जा सकते हैं तथा मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध निन्दा का प्रस्ताव पारित किया जा सकता है। यही नहीं, विधानमण्डल द्वारा मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव भी पारित किया जा सकता है, जिसके फलस्वरूप मन्त्रिपरिषद् के मन्त्रियों को अपने पद का त्याग करना पड़ जाता है।

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प्रश्न 5.
राज्यपाल और राष्ट्रपति की कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियों की तुलना कीजिए।
उत्तर :
राज्यपाल और राष्ट्रपति की कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियों की तुलना निम्नलिखित है

  • राज्यपाल राज्य के शासन का तथा राष्ट्रपति देश के शासन का प्रधान होता है। दोनों क्रमश: विधानमण्डल तथा संसद में कार्यपालिका के प्रधान होते हैं।
  • राज्य तथा देश में शासन के सभी कार्य क्रमश: राज्यपाल तथा राष्ट्रपति के नाम से किये जाते हैं।’
  • राज्यपाल राज्य के मुख्यमन्त्री की नियुक्ति करता है तथा राष्ट्रपति देश के प्रधानमन्त्री की। राज्यपाल तथा राष्ट्रपति अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति तथा उनके कार्य (विभाग) विभाजन का बँटवारा क्रमशः मुख्यमन्त्री तथा प्रधानमन्त्री की (UPBoardSolutions.com) सलाह से करते हैं।
  • राज्यपाल मुख्यमन्त्री की सलाह से राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों एवं राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष, सदस्यों, सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों एवं राज्यपालों की नियुक्ति करता है।
  • राज्यपाल राज्य के मुख्यमन्त्री से तथा राष्ट्रपति देश के प्रधानमन्त्री से शासन सम्बन्धी किसी भी सूचना की जानकारी प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 6.
राज्यपाल के विवेकाधिकार पर एक टिप्पणी लिखिए। [2011]
               या
यदि राज्य विधानसभा में किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत न मिले तो राज्यपाल किसे मुख्यमन्त्री नियुक्त करेगा ? [2013]
               या
राज्यों में राज्यपालों के विवेकाधीन अधिकारों की विवेचना कीजिए। [2015]
उत्तर :
केन्द्र में राष्ट्रपति के समान ही राज्य में राज्यपाल की स्थिति संवैधानिक प्रमुख की होती है। वह राज्य के मुख्यमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद् की सलाह पर ही कार्य करता है, परन्तु कुछ ऐसी भी परिस्थितियाँ होती हैं, जहाँ राज्यपाल मुख्यमन्त्री के परामर्श पर कार्य न करके स्वयं अपने विवेक के अनुसार निर्णय लेने के लिए स्वतन्त्र होता है। ऐसी स्थितियों को राज्यपाल के विवेकाधिकार के नाम से जाना जाता है। जब राज्यपाल स्वविवेक से कार्य करता है, उस समय वह मन्त्रियों के परामर्श की अवहेलना भी कर सकता है। उदाहरण के लिए–असोम के राज्यपाल को कबीलों तथा सीमा के प्रदेशों का शासन चलाने में स्वविवेक से कार्य करने (UPBoardSolutions.com) का अधिकार है। दूसरे, जब विधानसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो राज्यपाल को मुख्यमन्त्री की नियुक्ति में स्वविवेक का अधिकार प्राप्त हो जाता है। तीसरे, राज्य में उत्पन्न संवैधानिक संकट की रिपोर्ट को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करने में भी वह स्वविवेक से कार्य करता है। राज्यपाल को विधानसभा के विघटन में भी कुछ सीमा तक स्वविवेक का अधिकार है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्तर प्रदेश के विधानमण्डल के अंग लिखिए।
उत्तर :
उत्तर प्रदेश के विधानमण्डल के तीन अंग हैं

  • राज्यपाल,
  • विधानसभा तथा
  • विधान-परिषद्।

प्रश्न 2.
राज्य विधानमण्डल के दोनों सदनों के नाम लिखिए। [2010]
उत्तर :
राज्य विधानमण्डल के दोनों सदनों के नाम हैं–

  • विधानसभा तथा
  • विधानपरिषद्।

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प्रश्न 3.
विधानसभा का कार्यकाल कितना होता है ?
उत्तर :
विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।

प्रश्न 4.
उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्यों की संख्या कितनी है ?
उत्तर :
उत्तर प्रदेश की विधानसभा में कुल 403 सदस्य तथा 1 राज्यपाल द्वारा नामित अर्थात् 404 सदस्य हैं।

प्रश्न 5.
विधानसभा के एक ऐसे अधिकार का उल्लेख कीजिए जो कि विधान-परिषद् को प्राप्त नहीं है।
उत्तर :
राज्य की मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करने का अधिकार केवल विधानसभा को प्राप्त है; विधान-परिषद् को यह अधिकार प्राप्त नहीं है।

प्रश्न 6.
विधानसभा, विधानपरिषद से अधिक शक्तिशाली है। क्यों ?
उत्तर :
वित्त विधेयक को प्रस्तुत करने, कार्यपालिका पर नियन्त्रण रखने तथा राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेने का अधिकार केवल विधानसभा को है; अतः वह विधानपरिषद् से अधिक शक्तिशाली है।

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प्रश्न 7.
विधान-परिषद् के सदस्यों के लिए न्यूनतम आयु कितनी होनी चाहिए ?
उत्तर :
विधान-परिषद् की सदस्यता के लिए न्यूनतम आयु (UPBoardSolutions.com) 30 वर्ष होनी चाहिए। एन 8 विधान-परिषद् के सदस्यों का कार्यकाल कितना होता है ? उत्तर : विधान-परिषद् के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।

प्रश्न 9.
उन राज्यों के नाम लिखिए, जहाँ विधान-परिषद् का अस्तित्व है।
उत्तर :

  • उत्तर प्रदेश,
  • बिहार,
  • महाराष्ट्र,
  • कर्नाटक,
  • आन्ध्र प्रदेश,
  • जम्मू एवं कश्मीर

प्रश्न 10.
उत्तर प्रदेश विधान-परिषद् में कितने सदस्य हैं ?
उत्तर :
उत्तर प्रदेश विधान-परिषद् में 100 सदस्य हैं।

प्रश्न 11.
विधानपरिषद् में राज्यपाल कितने सदस्यों को मनोनीत करता है ?
उत्तर :
विधान-परिषद् में राज्यपाल को विधान-परिषद् की कुल सदस्य-संख्या के 1/6 सदस्य मनोनीत करने का अधिकार है।

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प्रश्न 12.
विधेयक कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
विधेयक दो प्रकार के होते हैं
(1) साधारण विधेयक तथा
(2) वित्त (धन) विधेयक।

प्रश्न 13.
धन-विधेयक विधानमण्डल के किस सदन में प्रस्तुत किये जाते हैं ?
उत्तर :
धन-विधेयक विधानमण्डल के निचले सदन अर्थात् विधानसभा में प्रस्तुत किये जाते हैं।

प्रश्न 14.
वित्त-विधेयक को विधान-परिषद् अधिक-से-अधिक कितने दिन रोक सकती है ?
उत्तर :
वित्त विधेयक को विधान-परिषद् अधिक-से-अधिक 14 दिनों तक रोक सकती है।

प्रश्न 15.
राज्यपाल-पद पर नियुक्ति हेतु अपेक्षित कोई दो अर्हताएँ लिखिए।
उत्तर :
राज्यपाल-पद पर नियुक्ति हेतु अपेक्षित दो अर्हताएँ निम्नलिखित हैं

  • वह संसद या विधानमण्डले के किसी सदन का सदस्य न हो।
  • वह उस राज्य का निवासी न (UPBoardSolutions.com) हो जिस राज्य में उसे नियुक्त किया गया है।

प्रश्न 16.
किन्हीं चार राज्यों के नाम लिखिए, जहाँ विधानसभा तथा विधान-परिषद् दोनों सदन हैं। [2012, 15, 18]
उत्तर :

  • उत्तर प्रदेश,
  • महाराष्ट्र,
  • बिहार तथा
  • कर्नाटक।

प्रश्न 17.
राज्यपाल की नियुक्ति कौन करता है? उसके कार्यकाल की अवधि क्या है ? [2008]
उत्तर :
राज्यपाल की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री के परामर्श से करता है। राज्यपाल की नियुक्ति सामान्यत: 5 वर्षों के लिए की जाती है।

प्रश्न 18.
राज्यपाल बनने के लिए न्यूनतम आयु क्या होती है ?
उत्तर :
राज्यपाल बनने के लिए न्यूनतम (UPBoardSolutions.com) आयु 35 वर्ष है तथा उसे भारत का नागरिक होना चाहिए।

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प्रश्न 19.
राज्यपाल के किन्हीं दो अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
राज्यपाल के दो अधिकार निम्नलिखित हैं

  • वित्तीय अधिकार-कोई भी धन विधेयक राज्यपाल की अनुमति के बिना विधानसभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
  • विधायी अधिकार राज्यपाल विधानसभा को कार्यकाल की समाप्ति के पूर्व भंग कर सकता है।

प्रश्न 20.
क्या राज्यपाल पर महाभियोग लगाया जा सकता है ?
उत्तर :
हाँ, राज्यपाल पर महाभियोग लगाया जा सकता है।

प्रश्न 21.
राज्य का वैधानिक प्रमुख कौन है? उसकी नियुक्ति किसके द्वारा की जाती है? [2012]
उत्तर :
राज्य का वैधानिक प्रमुख राज्यपाल होता है। इसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

प्रश्न 22.
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमन्त्री के नाम बताए। [2012]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाईक तथा मुख्यमन्त्री श्री योगी आदित्यनाथ हैं।

प्रश्न 23.
राज्य की मन्त्रिपरिषद् के दो प्रमुख कार्य लिखिए। [2013]
उत्तर :
राज्य की मन्त्रिपरिषद् के दो प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

  • राज्य के सम्पूर्ण प्रशासन का कार्य मन्त्रिपरिषद् द्वारा किया जाता है।
  • विधानमण्डल के समक्ष विधेयक प्रस्तुत करना तथा उन्हें पारित कराना मन्त्रिपरिषद् का ही कार्य है।

प्रश्न 24.
विधानसभा तथा विधान-परिषद के किन्हीं दो अन्तरों को स्पष्ट कीजिए। [2014]
उत्तर :
विधानसभा तथा विधान-परिषद् के दो अन्तर निम्नवत् हैं

  • मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है न कि विधान परिषद् के।
  • विधानसभा की सदस्य संख्या (UPBoardSolutions.com) विधान-परिषद् से अधिक होती है।

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प्रश्न 25.
अपने राज्य की विधान-परिषद् में शिक्षकों और स्नातकों के प्रतिनिधित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
विधानपरिषद् राज्य के विधानमण्डल का उच्च सदन और स्थायी सदन है। प्रदेश में अध्यापकों का निर्वाचन-मण्डल कुल सदस्यों के 1/12 भाग को चुनता है। इसी प्रकार स्नातकों को निर्वाचन–मण्डल भी कुल सदस्यों के 1/12 भाग को चुनता है।

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1. विधानसभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए व्यक्ति की आयु कितनी होनी चाहिए?

(क) 18 वर्ष
(ख) 25 वर्ष
(ग) 21 वर्ष ।
(घ) 35 वर्ष

2. विधानसभा के सदस्यों हेतु कौन-सी योग्यता आवश्यक है?

(क) भारत का नागरिक हो
(ख) राज्य सरकार के किसी पद पर अवश्य हो
(ग) आयु 40 वर्ष से अधिक हो
(घ) स्नातक हो

3. राज्यपाल की नियुक्ति कौन करता है? [2018]

(क) उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश
(ख) निर्वाचन आयोग
(ग) प्रधानमन्त्री
(घ) राष्ट्रपति

4. राज्यपाल की नियुक्ति कितने वर्ष के लिए की जाती है?

(क) 4 वर्ष
(ख) 5 वर्ष
(ग) 3 वर्ष
(घ) 6 वर्ष

5. राज्य का मुख्यमन्त्री वही हो सकता है

(क) जिसे सर्वोच्च न्यायालय आदेश दे
(ख) जिसे राष्ट्रपति चाहे।
(ग) जो स्नातक हो
(घ) जो विधानसभा के बहुमत प्राप्त दल का नेता हो

6. भारत के किस राज्य में द्विसदनीय व्यवस्थापिका है? [2011, 18)

(क) बिहार
(ख) मध्य प्रदेश
(ग) पश्चिम बंगाल
(घ) पंजाब

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7. निम्नलिखित राज्यों में से किस एक राज्य में द्विसदनीय व्यवस्थापिका नहीं है? [2013]

(क) कर्नाटक
(ख) पश्चिम बंगाल
(ग) बिहार
(घ) महाराष्ट्र

8. भारत में द्विसदनात्मक विधानमण्डले यहाँ दिए गए राज्य में है [2014]

(क) मध्य प्रदेश
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) पश्चिम बंगाल
(घ) गुजरात

9. राज्य का मुख्यमन्त्री किसके प्रति उत्तरदायी होता है? [2015]

(क) राज्यपाल
(ख) मन्त्रिपरिषद
(ग) विधानसभा
(घ) विधानपरिषद्

उत्तरमाला

1. (ख), 2. (क), 3. (घ), 4. (ख), 5. (घ), 6. (ख), 7. (ख), 8. (ख), 9. (ख)

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