UP Board Solutions for Class 8 Home Craft Chapter 11 गृह प्रबन्ध

UP Board Solutions for Class 8 Home Craft Chapter 11 गृह प्रबन्ध

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 पाठ-11    गृह प्रबन्ध
अभ्यास

1. बहुविकल्पीय
प्रश्न
सही विकल्प के सामने दिए गए गोल घेरे को काला करिए
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उत्तर :
(अ) (iii) घर की वस्तुओं को व्यवस्थित कर उनमें कलात्मकता उत्पन्न करना।
(ब) (i) अनुरूपता, अनुपात, सन्तुलन, दवाव, लय।

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2. अति लघु उत्तरीय
प्रश्न
(क) बैटक की सजावट में कितनी शैलियाँ होती है? नाम लिखिए। उत्तर- वैटक की सजावट की दो शैलियाँ हैं

  1. भारतीय शैली- यह परम्परागत शैली है। बैठक में तख्त पर गद्दा और चादर बिछी होती है। तकिया या मसन्द होते हैं। एक छोटी मेज, एक-दो मूढ़ा रखे होते हैं। बैठक का फर्श कालीन, (UPBoardSolutions.com) दरी या चटाई से ढका होता है। दरवाजे पर पायदान होता है। बैठक में टी०वी०, चित्र, लैंप व किताबों आदि को रखने के लिए उपयुक्त स्थान होते हैं।
  2. पाश्चात्य शैली- यह महँगी शैली है। कमरे में एक-दो सोफे रखे जाते हैं। टेबल, फूलदान, लैम्प, खिलौने आदि उपयुक्त स्थान पर होते हैं। फर्श पर दरी, कालीन बिछे होते हैं। दो-चार कुर्सियाँ होती हैं। बैठक में टी०वी०, म्यूजिक सिस्टम भी होता है।

(ख) बधाई पत्र किन-किन अवसरों पर दिए जाते हैं?
उत्तर : वधाई पत्र- विशेष अवसरों, त्योहारों, जन्मदिन, नए साल आदि पर भेजे जाते हैं।

3. लघु उत्तरीय
प्रश्न
(क) घर की सजावट से क्या लाभ है? किन्हीं चार बिन्दुओं को लिखिए।
उत्तर : घर की सजावट से हमें अनेक प्रकार के लाभ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मिलते हैं।

  1. घर की साज-सज्जा में वस्तुओं का एक व्यवस्थित क्रम होने से किसी भी वस्तु को ढूँढ़ने में अनावश्यक श्रम नहीं करना पड़ता है।
  2. सभी वस्तुएँ साफ-सुथरी व सुन्दर ढंग से व्यवस्थित होने के कारण अधिक दिन तक सुरक्षित रहती हैं।
  3. सुन्दर व सजा घर सभी को आकर्षित करता है।
  4. घर की सजावट उस घर में रहने वाले सदस्यों में स्वानुशासन की प्रवृति का विकास करती है।

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(ख) यात्राओं की तैयारी के लिए हमें क्या ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर : यात्राओं की तैयारी के लिए हमें पूरी जानकारी (UPBoardSolutions.com) प्राप्त करनी चाहिए। पहुँचने के रास्ते, साधन, ठण्डे-गरम कपड़ों , का चयन, रास्ते के लिए खाद्य सामग्री की व्यवस्था आदि। लम्बी यात्रा के लिए टिकट आदि की व्यवस्था भी कर लेनी चाहिए।

(ग) अपने दिक को अपने घर की सजावट के बारे में एक पत्र लिखिए।
उत्तर : विद्यार्थी स्वयं लिखें ।

4. दीर्घ उनीय
प्रश्न

(क) गृह सज्जा के प्रमुख नियम कौन-कौन से हैं? वर्णन करें।
उत्तर : गृह सज्जा के प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं।

  1. अनुरूपता- सजी सामग्रियों में समानता दिखाई देना ही अनुरूपता है। रंगों, बनावट या आकार के आधार पर घर की सज्जा में अनुरूपता लाई जा सकती है।
  2. अनुपात- घर की सजी वस्तुओं के बीच रंग, आकार या बनावट के आधार पर एक निश्चित अनुपात हो।
  3. सन्तुलन- एक वस्तु को केन्द्र मानकर उसके चारों (UPBoardSolutions.com) ओर विभिन्न वस्तुएँ रखकर आकर्षक प्रभाव उत्पन्न करने को सन्तुलन कहते हैं।
  4. दबाव (आकर्षण)- सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण वस्तु को केन्द्र में रखकर उसके चारों ओर कम महत्त्वपूर्ण वस्तु रखी जाती है।
  5. लय या क्रमायोजन- प्रत्येक वस्तु को उपयोगिता के आधार पर उचित स्थान पर रखना। इसका अभाव फूहड़पन को प्रदर्शित करता है।

(ख) गृह सज्जा के लिए उपयुक्त साधन क्या हैं? घर सजाने में इनकी क्या भूमिका है? उत्तर -गृह सज्जा के साधन

  1. फर्नीचर- मेज, कुर्सी, अलमारी, सोफा पलंग आदि फर्नीचर गृह सज्जा के प्रमुख साधन हैं। उन्हें समय-समय पर पोंछते, धोते व पॉलिश करते रहना चाहिए।
  2. कालीन/दरी-चटाई भी घर के फर्श की सज्जा करते हैं।
  3. पायदान- जूट व रबर से बने पायदानों का प्रयोग आज बहुतायत से हो रहा है।
  4. चित्र- पेंटिग- दीवारों को सुन्दर बनाने (UPBoardSolutions.com) के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।
  5. रंगोली- फर्श पर आकर्षक रंगों से रंगोली बनाई जाती है।
  6. परदे- घर की सज्जा में फर्नीचर के बाद परदों का प्रमुख स्थान है। दरवाजे, खिड़कियों पर लगे कल. त्मिक परदे घर की सुन्दरता बढ़ाते हैं।
  7. फूल-पौधे- घर में गमलों में लगे पौधे, फूलों के गुलदस्ते घर को सजाते हैं।
  8. बिजली-उपकरण- आजकल विद्युत चालित सामग्री से सजावट का चलन जोरों
  9. मनोरंजन के साधन-टेप, रेडियो, टी०वी० आदि घर की शोभा बढ़ाते हैं।
  10. पत्र-पत्रिकाएँ- पुस्तकें, दैनिक समाचार पत्र, पत्रिकाएँ ज्ञानवर्धन के साथ-साथ मेज पर सजावट के काम भी आते हैं।

(ग) सन्तुलन, लय एवं दबाव
उत्तर : सन्तुलन, लय और दबाव गृह सज्जा के (UPBoardSolutions.com) नियम हैं, जिन्हें पहले ही वर्णित किया जा चुका है। प्रश्न 4 (क) का उत्तर देखें।

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प्रोजेक्ट कार्य :
नोट : विद्यार्थी स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 16 सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ और उनसे बचाव

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 16 सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ और उनसे बचाव

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सामान्य घरेलू दुर्घटनाओं से क्या आशय है? उनसे बचाव एवं उपचार के मुख्य उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सामान्य घरेलू दुर्घटनाओं का अर्थ

सामान्य घरेलू दुर्घटनाओं में उन दुर्घटनाओं को सम्मिलित किया जाता है जो घर, पास-पड़ोस या कार्य-स्थल पर कभी भी घटित हो सकती हैं तथा उनके परिणामस्वरूप सम्बन्धित व्यक्ति शारीरिक अथवा मानसिक रूप से क्षतिग्रस्त हो जाता है। ये दुर्घटनाएँ मुख्य रूप से लापरवाही, असावधानी अथवा अज्ञानता के कारण घटित हुआ करती हैं। वास्तव में व्यक्ति का जीवन आज के युग में अत्यधिक व्यस्त है। इस स्थिति में हर व्यक्ति को सदैव शीघ्रता एवं जल्दबाजी रहती है। जल्दबाजी में लापरवाही या त्रुटि हो जाना स्वाभाविक ही है। जनसंख्या-वृद्धि, भीड़-भाड़, विभिन्न प्रकार के मानसिक दबाव एवं तनाव, निराशा, कुण्ठा, सामाजिक दबाव आदि कारणों से दुर्घटनाओं (UPBoardSolutions.com) की दर में वृद्धि हो रही है। इसी प्रकार व्यक्ति के अशिक्षित होने के कारण अथवा भावनात्मक असन्तुलन के कारण कुछ विशेष प्रकार की दुर्घटनाओं में वृद्धि हो रही है। कुछ दुर्घटनाएँ शरारतवश अथवा शत्रुता के कारण भी घटित हो जाया करती हैं। इस प्रकार की मुख्य दुर्घटनाएँ हैं-चोट लगना, फिसल कर गिरना, किसी वाहन से टकरा जाना, विषपान, पानी में डूबना तथा आग लगना आदि। कुछ दुर्घटनाएँ विभिन्न पशु-पक्षियों एवं कीट-पतंगों के कारण भी घटित हो जाया करती हैं। इन सभी दुर्घटनाओं को सामान्य घरेलू दुर्घटनाओं की श्रेणी में रखा जाता है।

मुख्य सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ

दैनिक जीवन में किसी भी प्रकार की साधारण अथवा गम्भीर दुर्घटना घटित हो सकती है; अतः व्यक्ति को हर प्रकार की दुर्घटना का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। परन्तु कुछ दुर्घटनाएँ ऐसी होती हैं जो सामान्य रूप से घटित होती रहती हैं। इस प्रकार की दुर्घटनाओं को सामान्य घरेलू दुर्घटना माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि उसे सामान्य घरेलु दुर्घटनाओं की समुचित जानकारी हो। मुख्य (UPBoardSolutions.com) सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ हैं-जलना या झुलसना, चोट लगना तथा रक्तस्राव होना, लू या गर्मी लग जाना, पानी में डूब जाना, साँप, बिच्छू या बर्से द्वारा डंक मार देना, कुत्ते, बन्दर आदि पशुओं द्वारा काटा जाना, बच्चों द्वारा आँख, नाक या कोन आदि में कोई वस्तु हँसा लेना, दम घुटना, बेहोशी या दौरा पड़ जाना या आकस्मिक हृदय का दौरा पड़ना आदि।

सामान्य दुर्घटनाओं से बचाव एवं उपचार

दुर्घटनाएँ आकस्मिक होती हैं तथा उनसे बचने के लिए व्यक्ति को अधिक-से-अधिक ध्यानपूर्वक कार्य करने चाहिए। लापरवाही नहीं करनी चाहिए तथा हर प्रकार की आवश्यक जानकारी प्राप्त करते रहना चाहिए। इन समस्त उपायों के बाद भी दुर्घटनाएँ घट सकती हैं। यदि कोई दुर्घटना (UPBoardSolutions.com) घटित हो जाती है । तो उसे देखकर घबराना नहीं चाहिए। घबराने या हाथ-पैर फुलाने से दुर्घटना की गम्भीरता बढ़ सकती है; अतः दुर्घटना का सामना धैर्यपूर्वक करना चाहिए तथा निम्नलिखित सामान्य उपाय किए जाने चाहिए

  1.  किसी भी दुर्घटना के घटित होते ही सर्वप्रथम उसके कारण को ज्ञात करना चाहिए तथा तुरन्त उस कारण का उन्मूलन करने का उपाय करना चाहिए।
  2.  दुर्घटना की गम्भीरता को बढ़ने से रोकने के उपाय किए जाने चाहिए।
  3.  दुर्घटना की प्रकृति को जानने का प्रयास करना चाहिए तथा उसकी प्रकृति के अनुसार निम्नलिखित उपायों में से आवश्यक उपाय किया जाना चाहिए

(क) यदि शरीर से रक्त बह रहा हो, तो सर्वप्रथम रक्त-स्राव को रोकने का हर सम्भव उपाय किया जाना चाहिए, क्योंकि अधिक रक्तस्राव हो जाना घातक सिद्ध हो सकता है।
(ख) यदि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति पानी में डूबा हो, तो सम्बन्धित व्यक्ति के फेफड़ों तथा पेट में से पानी को निकालने के उपाय किए जाने चाहिए।
(ग) यदि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को श्वसन में कठिनाई हो रही हो, तो सर्वप्रथम कृत्रिम श्वसन के उपाय किए जाने चाहिए।
(घ) यदि व्यक्ति ने विष-पान कर लिया हो, तो सर्वप्रथम विष को शरीर में से निकालने अथवा उसके प्रभाव को घटाने के उपाय किए जाने चाहिए।
(ङ) यदि साँप या बिच्छ आदि ने डंक मार दिया हो तो सर्वप्रथम विष को शरीर में फैलने से रोकने । के उपाय किए जाने चाहिए।
(च) यदि व्यक्ति मूर्छित हो गया हो, तो सर्वप्रथम उसे होश में लाने के उपाय किए जाने चाहिए।
उपर्युक्त सामान्य उपायों के अतिरिक्त दुर्घटना की (UPBoardSolutions.com) प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सूझ-बू द्वार यथाआवश्यक उपाय किए जाने चाहिए। यदि दुर्घटना गम्भीर प्रतीत हो, तो प्राथमिक उपचार के साथ-साथ किसी योग्य चिकित्सक से भी यथाशीघ्र सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

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प्रश्न 2:
जलने व झुलसने में क्या अन्तर है?जलने के विभिन्न प्रकार एवं उनके उपचार बताइए।
उत्तर:
जलना एवं झुलसना-जलना एवं झुलसना प्राय: शरीर पर अधिक ताप का प्रभाव होते हैं। झुलसना; तरल पदार्थों; जैसे-गरम दूध, पानी, घी, तेल व चाय आदि के त्वचा पर गिर जाने से होता है। जलना; भाप, गरम तवा तथा अन्य प्रकार की शुष्क आग के सम्पर्क में त्वचा के आने पर होता है। जलने एवं अधिक झुलस जाने के गम्भीर परिणाम होते हैं। शरीर के 50 प्रतिशत अथवा अधिक जल जाने पर पीड़ित व्यक्ति (UPBoardSolutions.com) पर मृत्यु का संकट हो सकता है। गम्भीर रूप से जलने से शरीर में द्रव पदार्थों की कमी उत्पन्न हो जाती है, शरीर के आन्तरिक अवयव बुरी तरह से कुप्रभावित होते हैं तथा पीड़ित व्यक्ति मानसिक आघात का शिकार हो सकता है।

जलने के प्रकार

जलने के विभिन्न प्रकारों को वर्गीकृत करने के दो आधार हैं
(क) शारीरिक लक्षणों को आधार तथा
(ख) जलने के स्रोतों का आधार।।

(क) शारीरिक लक्षणों के आधार पर जलने के प्रकार:
जलने पर मुख्यत: निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़ते हैं

  1.  त्वचा लाल रंग की हो जाती है, परन्तु नष्ट नहीं होती।
  2.  लालिमा के साथ-साथ शरीर पर फफोले भी पड़ जाते हैं।
  3.  प्रभावित भाग कम हो अथवा अधिक उसके स्नायु तन्तु नष्ट हो जाते हैं।

(ख) विभिन्न स्रोतों से जलना:
यह निम्न प्रकार से हो सकता है

  1.  वस्त्रों में आग लग जाने से जलना।
  2. अम्लों से जलना।
  3. क्षार से जलना।
  4.  बिजली से जलना।

जल जाने पर उपचार

जल जाने की विभिन्न अवस्थाओं में विभिन्न प्रकार से प्राथमिक उपचार किए जाते हैं। इनका क्रमशः विवरण निम्नलिखित है

(1) वस्त्र में आग लग जाने पर उपचार:
यह एक सामान्य दुर्घटना है जो कि घरों में प्रायः खाना आदि पकाते समय घटित हुआ करती है। साधारणत: इसके उपचार निम्न प्रकार से करने चाहिए|

  1. रोगी को तुरन्त भूमि पर लिटाकर लुढ़काना चाहिए। रोगी का मुंह खुला छोड़कर उसकी शेष शरीर किसी कम्बल जैसे कपड़े से ढक देना चाहिए।
  2. जलते हुए व्यक्ति पर पानी नहीं डालना चाहिए, क्योंकि इससे घावों के और अधिक गम्भीर होने का भय रहता है।
  3. रोगी के कपड़े व जूते किसी प्रकार से उतार देने चाहिए।
  4. रोगी को पीने के लिए गरम पानी, दूध, चाय अथवा कॉफी देनी चाहिए।
  5. रोगी के बिस्तर पर गरम पानी की बोतलें भी रख देनी चाहिए।
  6.  यदि त्वचा पर फफोले पड़ गए हों, तो उन्हें फोड़ना नहीं चाहिए।
  7.  एक भाग अलसी का तेल व एक भाग चूने का पानी मिलाकर स्वच्छ रूई अथवा कपड़े के फाये द्वारा जले हुए भाग पर लगाना लाभप्रद रहता है।
  8. जले हुए स्थान पर से सावधानीपूर्वक वस्त्र हटाने का प्रयास करना चाहिए। यदि वस्त्र चिपक गए हैं, तो उस स्थान पर जैतून अथवा नारियल का तेल लगाना चाहिए।
  9.  जले हुए स्थान पर हल्के-हल्के बरनॉल या इसी प्रकार का कोई अन्य मरहम लगाना चाहिए।
  10.  मरहम उपलब्ध न होने पर नारियल का तेल प्रयोग में लाया जा सकता है।
  11.  यदि रोगी होश में है तो उसे सांत्वना एवं धैर्य बँधाना चाहिए।
  12. रोगी को शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल ले जाना चाहिए।

(2) अम्लों से जल जाने पर उपचार:
गन्धक, नमक व शोरे के सान्द्र अम्ल मानव त्वचा के लिए अत्यन्त घातक होते हैं। ये जिस स्थान पर गिरते हैं, उसे तत्काल अन्दर तक जला देते हैं। अम्लों से जलने पर निम्नलिखित उपाय तुरन्त करने चाहिए

  1.  प्रभावित स्थान पर तुरन्त पानी की धार डालें।
  2.  रोगी के वस्त्र उतारते समय पानी डालते रहें।
  3.  जले स्थान को स्वच्छ कपड़े से ढक दें।
  4. जले स्थान पर खाने का सोड़ा पानी में घोलकर लगाएँ। इससे अम्ल का प्रभाव घटने लगता है।
  5.  अधिक जल जाने पर रोगी को इस प्रकार लिटाएँ कि उसका सिर शरीर के अन्य भागों से कुछ ऊँचा रहे।
  6.  यदि रोगी होश में है तो उसे ऐल्कोहॉल रहित पेय पदार्थ पीने के लिए दें।
  7.  शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सक को बुलाएँ।

(3) क्षार से जलने पर उपचार:
चूना, कास्टिक सोड़ा तथा पोटाश आदि क्षार मानव त्वचा को गम्भीर रूप से जला देते हैं। इस प्रकारे जले रोगियों का उपचार निम्न प्रकार से करना चाहिए

  1. प्रभावित स्थान को पानी के तीव्र प्रवाह से धोना चाहिए।
  2. जले हुए भाग पर नींबू के रस अथवा सिरके में पानी मिलाकर लगाने से क्षार के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
  3.  जले हुए स्थान पर ऐल्कोहॉल लगाने से रोगी को आराम होता है।
  4. रोगी को मद्यरहित पेय पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पीने के लिए देने चाहिए।
  5. यदि अधिक भाग जला हो, तो तुरन्त चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

(4) बिजली से जलने पर उपचार:
बिजली के सम्पर्क में आने पर व्यक्ति को घातक झटका लगता है तथा कभी-कभी वह बिजली से चिपक भी जाता है। इस प्रकार का पीड़ित व्यक्ति सदमे के साथ-साथ जलने का शिकार भी हो जाता है। उपयुक्त उपचार के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए

  1.  सर्वप्रथम बिजली का मुख्य स्विच बन्द कर देना चाहिए।
  2.  एक लम्बी लकड़ी अथवा लकड़ी के तख्ते का उपयोग कर पीड़ित व्यक्ति को विद्युत तारों से मुक्त करना चाहिए।
  3. जिन स्थानों पर तार से चिपकने के कारण घाव हो गए हों, वहाँ पर बरनॉल या कोई अन्य ऐसा ही मरहम लगाना चाहिए।
  4. घावों को स्वच्छ कपड़े से ढक देना चाहिए।
  5. श्वास रुकने की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को कृत्रिम श्वास देना चाहिए।
  6.  रोगी को पीने के लिए गरम पानी, दूध, चाय अथवा कॉफी देनी चाहिए।
  7. पीड़ित व्यक्ति के लिए दुर्घटना का सदमा घातक हो सकता है; अतः उसे धैर्य बँधाते रहना चाहिए।
  8.  तत्काल चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए।

प्रश्न 3:
रक्त-स्राव कितने प्रकार का होता है? रक्त-स्राव रोकने के लिए आप क्या प्राथमिक उपचार करेंगी?
उत्तर:
रक्त-साव के कारण एवं प्रकार

तीव्र धार वाले औजारों (चाकू, ब्लेड, आरी आदि) से कट जाना अथवा खरोंच लग जाना रक्त-स्राव के सामान्य कारण हैं।
दुर्घटनाओं के कारण होने वाले गहरे घाव तीव्र, एवं अधिक (UPBoardSolutions.com) रक्तस्राव के कारण होते हैं। मानव शरीर में रक्त प्रवाह रक्त-वाहिनियों द्वारा होता है; अतः रक्त-प्रवाह का मूल कारण उपर्युक्त वर्णित दुर्घटनाओं के कारण रक्तवाहिनियों को फट या कट जाना होता है। रक्त-स्राव प्रायः दो प्रकार का होता है

(क) बाह्य अंगों से रक्तस्रावं,
(ख) आन्तरिक अंगों से रक्त-स्राव।

(क) बाह्य अंगों से रक्त-स्राव:

दुर्घटना के फलस्वरूप कई बार बाह्य अंगों में घाव बन जाते हैं। इन स्थानों पर धमनी अथवा शिरा के कट जाने से तीव्र रक्तस्राव होने लगता है। इसे भली प्रकार से समझने के लिए धमनी व शिरा के फटने से होने वाले रक्त-स्राव का अन्तर जानना आवश्यक है।

धमनी से होने वाला रक्तस्त्राव:
धमनी के कटने अथवा फटने पर अत्यन्त चमकीले लाल रंग का रक्त निकलता है। यदि प्रभावित धमनी हृदय के पास है, तो रक्त रुक-रुक कर हृदय के स्पन्दन के साथ-साथ झटके से बाहर निकलता है। अतः धमनी से होने वाला रक्तस्राव हृदय की ओर से होता है।

दबाव बिन्दु:
रक्त-स्राव को रोकने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को मानव शरीर में स्थित रक्त के अधिक दबाव के बिन्दुओं की जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है। ये संख्या में 6 होते हैं। पहला दबाव बिन्दु श्वास नलिका की बगल में तथा दूसरा कान के ठीक सामने की ओर होता है। तीसरा दबाव बिन्दु जबड़े से (UPBoardSolutions.com) लगभग 2.5 सेन्टीमीटर की दूरी पर होता है। चौथा बिन्दु हँसली की हड्डी के भीतरी भाग के पीछे की ओर, पाँचवाँ भुजाओं के अन्दर की ओर तथा छठा जाँध में मूत्राशय के निकट होता है। जब कभी धमनी अथवा शिरा से अधिक रक्तस्राव हो रहा हो, तो रक्तस्राव के निकट के दबाव बिन्दु पर उचित दबाव डालकर रक्तस्राव को कम किया जाता है।

धमनी से होने वाले रक्त-स्राव को रोकने के उपाय

  1. घायल व्यक्ति को ठीक प्रकार से लिटा देने पर रक्तस्राव कम हो जाता है।
  2. यदि हड्डी नहीं टूटी है, तो घायल अंगों को ऊपर उठा देने से भी रक्तस्राव में कमी आ जाती है।
  3. घाव में जिस धमनी से रक्तस्राव हो रहा हो उसके दबाव बिन्दु को भली प्रकार से दबा देना चाहिए।
  4. यदि घाव छोटा है तो स्वच्छ अंगूठे से उसे दबाना चाहिए।
  5.  घाव को दबाने के तुरन्त बाद रुई रखकर पट्टी बाँध देनी चाहिए।
  6.  यदि घाव में गन्दगी हो, तो उसे चारों ओर से एन्टीसेप्टिक घोल (डिटॉल, सैवलोन व स्प्रिट आदि) द्वारा साफ कर देना चाहिए।
  7. रक्त-स्राव रोकने के लिए टिंचर आयोडीन अथवा फैरिक क्लोराइड का घोल घाव पर छिड़कना चाहिए। फिटकरी को बारीक पीसकर घाव पर लगाने से भी रक्तस्राव को रोका जा सकता है।
  8.  घाव को स्वच्छ रुई, फलालेन अथवा अन्य कोमल वस्त्र से ढक देना चाहिए।
  9.  टूर्नाकेट का प्रयोग: यदि रक्तस्राव हाथ या टाँग जैसे अंगों से हो रहा है तो रक्तस्राव रोकने एवं प्रभावपूर्ण ढंग से धमनियों पर दबाव डालने के लिए टूर्नीकेट का प्रयोग किया जाता है। टूर्नीकेट बाँधने के लिए कई मोटी तह वाला कपड़ा अधिक उपयुक्त रहता है। कपड़े की लम्बी परन्तु कम चौड़ी पट्टियों की तह कर लेनी चाहिए। एक मुलायम कपड़े के पैड को दबाव बिन्दु के ऊपर रखकर (UPBoardSolutions.com) पट्टी कसकर बाँध देनी चाहिए। टूर्नीकेट को प्रभावित अंग पर दो बार लपेटना चाहिए तथा गाँठ लगा देनी चाहिए। अब लकड़ी का एक छोटा टुकड़ा गाँठ पर रखकर दोबारा बाँध दें। लकड़ी के टुकड़े को घुमाकर टूर्नीकेट को कसा जा सकता है जिससे धमनी पर दबाव बढ़ जाता है। टूर्नीकेट को बाँधने के लिए रबर की ट्यूब सर्वोत्तम रहती है।

सावधानियाँ:
टूर्नीकेट प्रयोग करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. टूर्नीकेट को आवश्यकतानुसार ही कसना चाहिए।
  2.  इसे प्रत्येक पन्द्रह मिनट के बाद ढीला करते रहना चाहिए, परन्तु पूर्णरूप से हटाना नहीं चाहिए।
  3. टूर्नीकेट ढीला करने पर रक्त-स्राव के कम होने का पता लगता है। यदि रक्त-स्राव कम न हो, तो टूर्नीकेट को फिर से कस देना चाहिए।
  4. इस बीच रोगी को अस्पताल ले जाने की व्यवस्था का प्रयास करना चाहिए।

शिरा का रक्त-स्राव:
शिरा के कटने अथवा फटने पर रक्त-स्राव समान गति से होता है। शिराओं से बहने वाला रक्त अशुद्ध एवं नीलापन लिए हुए गहरे रंग का होता है।

शिराओं से होने वाले रक्तस्राव को रोकने के उपाय

  1.  घायल अंग को नीचे की ओर झुका देने से रक्त-स्राव में कमी आती है।
  2.  यदि हड्डी नहीं टूटी है तो घाव को अँगूठे से दबाना चाहिए।
  3.  घाव की गन्दगी को ऐन्टीसेप्टिक घोल की सहायता से साफ कर घाव को किसी स्वच्छ कपड़े से ढक दें।
  4.  घाव वाले भाग के ऊपर बर्फ की थैली अथवा ठण्डे पानी से भीगा कपड़ा रखने से रक्तस्राव में कमी आती है।
  5.  टिंचर आयोडीन एवं फैरिक क्लोराइड प्रयोग करके रक्त-स्राव को कम किया जा सकता है।
  6.  टूर्नीकेट को सावधानीपूर्वक उपयोग करें।
  7.  रक्तस्राव बन्द हो जाने के पश्चात् घायल व्यक्ति का कई घण्टे तक ध्यान रखें, क्योंकि थोड़े से झटके से पुन: रक्तस्राव हो सकता है।

(ख) आन्तरिक अंगों से रक्त-स्राव

दुर्घटना के फलस्वरूप कई बार पीड़ित व्यक्तियों के आन्तरिक अंग (हड्डियों, फेफड़े, आँत, आमाशय व गुर्दे आदि) घायल हो जाते हैं। इस प्रकार के रोगियों के घाव बाहर से नहीं दिखाई पड़ते हैं। तथा रक्तस्राव प्राय: शरीर के अन्दर ही होता रहता है। ऐसे रोगियों के थूक व मलमूत्र के (UPBoardSolutions.com) साथ रक्त शरीर के बाहर निकलता है। इस प्रकार के रोगियों में निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़ते हैं

  1. घायल व्यक्ति श्वास लेने में कठिनाई होने के कारण तड़पता रहता है।
  2. रोगी के होंठ व मुँह का रंग पीला अथवा नीला पड़ जाता है।
  3. पीड़ित व्यक्ति दुर्बलता का अनुभव करता है।
  4.  पीड़ित व्यक्ति बेहोश हो सकता है।
  5.  नाड़ी की गति धीमी होने लगती है।
  6.  रोगी को रक्तस्राव के कारण सदमा पहुँच सकता है।

आन्तरिक अंगों से होने वाले रक्तस्राव का उपचार

  1.  रोगी को तत्काल लिटा देना चाहिए तथा उसे पूर्ण विश्राम देना चाहिए।
  2. रोगी को खाने-पीने को कुछ नहीं देना चाहिए।
  3. प्यास लगने पर रोगी को चूसने के लिए बर्फ का टुकड़ा देना चाहिए।
  4.  रक्त निकलने वाले स्थान पर बर्फ की थैली रखनी चाहिए।
  5.  रोगी को उसके वस्त्र ढीले कर हवादार स्थान पर लिटाना चाहिए।
  6. यदि फ़ैक्चर है तो रोगी के रक्त-स्राव को रोकने का तो प्रयास करना चाहिए, परन्तु उसे हिलाना-डुलाना नहीं चाहिए।
  7.  घायल व्यक्ति को सांत्वना एवं धैर्य बँधाना एक अति महत्त्वपूर्ण कार्य है।
  8.  निकट के अस्पताल तक तत्काल सूचना भेजनी अथवा भिजवानी चाहिए।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
हिस्टीरिया एवं मिरगी रोगों के लक्षणों में क्या अन्तर है? इनके उपचार के उपाय सुझाइए।
उत्तर:
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प्रश्न 2:
दम घुटने से क्या अभिप्राय है?इस अवस्था में क्या प्राथमिक चिकित्सा करनी चाहिए?
उत्तर:
दम घुटना-बन्द स्थान तथा दूषित वायु में प्रायः व्यक्ति का दम घुटने लगता है तथा वह बेचैनी का अनुभव करता है। दम घुटने पर मरणान्तक स्थिति प्रायः धुएँ में उपस्थित कार्बन मोनोऑक्साइड गैस के कारण होती है। दम घुटने की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति सामान्यतः सिर दर्द, जी मिचलाना, धुंधला दिखाई देना तथा दुर्बलता का अनुभव करता है। समय पर उपयुक्त चिकित्सा सहायतान मिलने पर पीड़ित व्यक्ति (UPBoardSolutions.com) मूर्च्छित होकर मर भी सकता है। प्राथमिक उपचार-निम्नलिखित उपायों को अपनाकर दम घुटने जैसी घातक स्थिति पर एक सीमा तक नियन्त्रण किया जा सकता है

  1.  दम घुटने की स्थिति से बचने के लिए सोते समय कमरे की खिड़कियाँ व रोशनदान खुले रखें तथा कभी भी बन्द कमरे में अँगीठी अथवा धुआँ उत्पन्न करने वाली अन्य किसी सामग्री का उपयोग नकरें।
  2. पीड़ित व्यक्ति को तुरन्त हवादार स्थान पर ले जाना चाहिए।
  3. यदि पीड़ित व्यक्ति की श्वास गति अवरुद्ध हो रही हो, तो तत्काल उसे कृत्रिम श्वास दें। शीघ्रातिशीघ्र पीड़ित व्यक्ति के लिए ऑक्सीजन गैस की व्यवस्था करें।
  4.  यदि पीड़ित व्यक्ति की हृदय गति रुक गइ हो, तो उसकी वक्ष अस्थि के मध्य भाग के ऊपर प्रति मिनट लगभग 60 बार कृत्रिम हृदय स्पन्दन की क्रिया करें।

प्रश्न 3:
नाक से रक्त-स्राव किन परिस्थितियों में हो सकता है? नाक से रक्त-स्राव रोकने के कुछ कारगर उपाय सुझाइए।
या
नाक के रक्त-स्राव को रोकने के लिए आप क्या उपाय करेंगी?
उत्तर:
नाक से रक्त-स्राव:
नाक अथवा खोपड़ी पर आघात लगने से अथवा अधिक गर्मी से नसीर फूट जाने पर नाक से रक्तस्राव हुआ करता है। कई बार उपयुक्त उपचार देर से उपलब्ध होने पर नाक से होने वाला रक्तस्रावे घातक सिद्ध होता है।

प्राथमिक उपचार:

  1.  रोगी को सीधा बैठाकर मुँह से श्वास दिलाना चाहिए।
  2. रोगी की नाक व गर्दन के पीछे बर्फ की थैली धीरे-धीरे फिराएँ तथा बर्फ चूसने को दें।
  3. रोगी के पैरों को कुछ समय तक गरम पानी में रखने से शरीर के निचले भागों में रक्त प्रवाह अधिक होता है, जिससे नाक से होने वाले रक्तस्राव में कुछ कमी आती है।
  4.  रोगी की नाक को अँगूठे एवं उँगली के बीच में दबा लें। इस प्रकार लगभग पाँच मिनट तक दबाए रखने से रक्त-स्राव प्रायः रुक जाता है।
  5.  यदि खोपड़ी के पास चोट हो अथवा रक्तस्राव न रुक रहा हो तो रोगी को तत्काल अस्पताल पहुँचाने की व्यवस्था करें।

प्रश्न 4:
घाव कितने प्रकार के होते हैं? इनका उपचार आप किस प्रकार करेंगी?
उत्तर:
घाव के प्रकार
साधारणत: घाव निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं

(क) कुचले हुए घावे:
हथौड़े, ईंट, पत्थर आदि वस्तुओं की चोट के कारण उँगलियाँ आदि कुचलकर नीली पड़ जाती हैं। इस प्रकार के घावों से रक्तस्राव कम, परन्तु पीड़ा अधिक होती है।

(ख) कटे धाव:
तेज धार वाले औजारों (चाकू, ब्लेड, छुरी व काँच आदि) से कई बार शरीर के विभिन्न भागों के कटने से इस प्रकार के घाव बनते हैं। अधिक गहरे होने पर धमनी अथवा शिरा के कट जाने से इस प्रकार के घावों से रक्तस्राव अधिक हुआ करता है।

(ग) फटे हुएघाव:
ये घाव सामान्यतः मशीनों, जानवरों के सींगों तथा पंजों आदि के द्वारा होते हैं। इनके किनारे कटे-फटे तथा टेढ़े-मेढ़े होते हैं। इनसे रक्त-स्राव अधिक नहीं होता, परन्तु शरीर में विष फैलने का भय अधिक रहता है।

(घ) गोली का घाव:
इस प्रकार के घाव प्रायः नुकीली वस्तुओं (सुई, काँटे, बल्लम व गोली आदि) के लगने से होते हैं। ऐसे घावों में टिटेनस होने की अधिक आशंका रहती है।

घावों के सामान्य उपचार
उपर्युक्त वर्णित घावों के प्राथमिक उपचार के लिए निम्नलिखित उपाय उपयोगी सिद्ध होते हैं

  1. कुचले हुए घाव को नि:संक्रामक घोल से धोकर बर्फ के पानी में भीगी हुई पट्टी बाँधने से लाभ होता है। पीने के लिए ग्लूकोज देने पर पीड़ित व्यक्ति राहत अनुभव करता है।
  2. कटे हुए घाव को नि:संक्रामक घोल से साफ कर रक्तस्राव रोकने के प्रयास करने चाहिए। इसके लिए टिंचर आयोडीन, पिसी हुई फिटकरी अथवा टूर्नीकेट का प्रयोग करना चाहिए।
  3.  फटे हुए घावों को नि:संक्रामक घोल से साफ करना चाहिए। अब इस पर सल्फोनेमाइड पाउडर छिड़क कर पट्टी बाँधनी चाहिए। रक्तस्राव होने की स्थिति में उसे रोकने के उपर्युक्त वर्णित उपाय करने चाहिए।
  4. गोली के घाव वाले व्यक्ति के घाव को नि:संक्रामक द्वारा साफ कर रक्तस्राव रोकने के उपाय करने चाहिए तथा रोगी को तत्काल अस्पताल भिजवाने की व्यवस्था करनी चाहिए।

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प्रश्न 5:
विष खा लेने पर क्या उपचार करेंगी?
उत्तर:
विष खाए व्यक्ति की प्राथमिक चिकित्सा-विष का सेवन किए व्यक्ति को तत्काल निम्नलिखित प्राथमिक चिकित्सा मिलनी चाहिए.

  1.  रोगी के आस-पास विष की शीशी अथवा पुड़िया की खोज करें जिससे कि विष के प्रकार का पता चल सके तथा उसके अनुसार उपचार प्रारम्भ किया जा सके।
  2.  रोगी को वमन कराना चाहिए, परन्तु क्षारक विष के रोगी को वमन कराना हानिकारक होता है, उसे क्षार प्रतिरोधक का सेवन कराना चाहिए।
  3.  यदि विष अम्लीय है तो रोगी को चूने का पानी, खड़िया मिट्टी अथवा मैग्नीशियम का घोल देना चाहिए।
  4. निद्राकारी विष के उपचार में रोगी को सोने नहीं देना चाहिए। इसके लिए उसे तेज चाय अथवा कॉफी पिलानी चाहिए।
  5.  रोगी को गुदा द्वारा नमक का पानी चढ़ाना चाहिए।
  6.  रोगी को तत्काल चिकित्सालय पहुँचाना चाहिए। चिकित्सालय ले जाते समय विष की खाली शीशी अथवा रोगी के वमन को शीशी में रखकर अवश्य ले जाना चाहिए ताकि विष की शीघ्र पहचान हो । सके तथा उपयुक्त विष प्रतिरोधक रोगी को दिया जा सके।
  7. विष से बचने के लिए घर में कभी भी अनावश्यक औषधियाँ एवं रासायनिक पदार्थ नहीं रखने चाहिए तथा सभी औषधियों एवं रासायनिक पदार्थों को सावधानीपूर्वक नामांकित करके रखना चाहिए।
  8.  सभी औषधियाँ एवं रासायनिक पदार्थ बच्चों की पहुँच से सदैव दूर रहने चाहिए।

प्रश्न 6:
धमनी व शिरा के रक्त-स्राव में क्या अन्तर है? या धमनी एवं शिरा में क्या अन्तर है? समझाइए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 16 सामान्य घरेलू दुर्घटनाएँ और उनसे बचाव

प्रश्न 7:
लू लगने के लक्षण एवं उपचार बताइए।
उत्तर:
लक्षण-ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की तेज किरणों से गरम होकर बहने वाली वायु लू कहलाती है। इसके अधिक समय तक निरन्तर सम्पर्क में आने पर प्रायः व्यक्ति रोगी हो जाते हैं। इस स्थिति को ‘लू लगना’ कहा जाता है। लू से पीड़ित व्यक्तियों में सामान्यत: रोग के निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं

  1. सिर में दर्द होता है तथा चक्कर आते हैं।
  2.  प्यास बहुत लगती है तथा सारे शरीर में खुश्की आ जाती है।
  3.  चेहरा लाल हो जाता है तथा नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है।
  4.  श्वास गति बढ़ जाती है।
  5. रक्तचाप कम हो जाता है।
  6.  तेज ज्वर हो जाता है तथा रोगी को मूच्र्छा आने लगती है।

उपचार:
यदि रोगी को समय पर निम्नलिखित उपचार उपलब्ध हो जाएँ तो उसे रोग के घातक परिणामों से बचाया जा सकता है

  1.  रोगी को तत्काल छायादार ठण्डे स्थान पर ले जाना चाहिए।
  2. रोगी को बार-बार ठण्डे पानी से नहलाना चाहिए।
  3. रोगी के सिर पर बर्फ की टोपी रखनी चाहिए।
  4. यदि ज्वर पुनः चढ़ता है, तो ठण्डे पानी से स्पन्ज करना चाहिए।
  5.  रोगी के हाथ-पैर पर मेंहदी अथवा प्याज पीसकर लगाने से लाभ होता है।
  6. रोगी को बार-बार कच्चे आम का पन्ना पिलाने से अत्यधिक लाभ होता है।
  7.  गम्भीर अवस्था में रोगी को तत्काल किसी योग्य चिकित्सक को दिखाना चाहिए।

प्रश्न 8:
सदमा पहुँचने से आप क्या समझती हैं? सदमे के लक्षणों एवं प्राथमिक उपचार का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
सदमा पहुँचना (shock) भी एक ऐसी दुर्घटना है जो आकस्मिक रूप से घटित हो सकती है। गम्भीर रूप से घायल हो जाने अथवा कोई शोक समाचार सुनते ही व्यक्ति सदमे का शिकार हो सकता है। सदमे की स्थिति में व्यक्ति अत्यधिक शिथिल हो जाता है तथा कभी-कभी मूर्च्छित भी हो, जाता है। व्यक्ति के शरीर की सामान्य क्रियाएँ या तो रुक जाती हैं या धीमी पड़ जाती हैं। ऐसा शरीर में रक्त-संचार के अनियमित हो जाने के कारण होता है।

सदमे के लक्षण:
सदमे के मुख्य सामान्य लक्षण निम्नलिखित होते हैं

  1. सदमाग्रस्त व्यक्ति के मुख पर भय, दुःख अथवा आश्चर्य के भाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते
  2.  रोगी का चेहरा पीला पड़ जाता है तथा आँखों की पतलियाँ फैल जाती हैं।
  3. रोगी का शरीर निष्क्रिय या शिथिल हो जाता है। इसके साथ ही शरीर कुछ ठण्डा भी हो जाती है।
  4.  सदमाग्रस्त व्यक्ति के माथे पर ठण्डा पसीना आने लगता है।
  5.  रोगी की नब्ज की गति कभी तेज तथा कभी मन्द होने लगती है अर्थात् नब्ज अनियमित हो जाती
  6.  व्यक्ति का जी मिचलाने लगता है, उल्टियाँ भी हो सकती हैं। प्यास अधिक लगती है।

उपचार:
सदमाग्रस्त व्यक्ति के निम्नलिखित प्राथमिक उपचार किए जाने चाहिए

  1.  सदमाग्रस्त व्यक्ति को बिना तकिया दिए आराम से लिटा दें ताकि मस्तिष्क की ओर रक्त का उचित संचार हो सके।
  2. यदि ठण्ड का मौसम हो, तो रोगी को अधिक ठण्ड से बचाना आवश्यक होता है। यदि मौसम गर्म हो, तो अधिक गर्मी से भी बचाने का उपाय करना चाहिए।
  3.  यदि व्यक्ति मूच्छित हो गया हो, तो उसकी मूच्र्छा को दूर करने के उपाय करने चाहिए। इसके लिए अमोनिया भी सुंघाया जा सकता है।
  4.  रोगी के कुछ सामान्य होने पर गर्म चाय या कॉफी पिलाई जा सकती है।
  5. यदि डॉक्टर की सुविधा उपलब्ध हो तो उसे तुरन्त बुला लेना चाहिए।

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प्रश्न 9:
आँख में तिनका पड़ जाने पर आप क्या प्राथमिक चिकित्सा करेंगी?
उत्तर:
नेत्र हमारे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनकी नियमित देखभाल एवं सुरक्षा बहुत आवश्यक है। आँख में यदि धूल के कण अथवा तिनका आदि गिर जाएँ तो निम्नलिखित उपचार करने चाहिए

  1. प्रभावित आँख को कभी नहीं मलना चाहिए, क्योंकि इससे आँख घायल हो सकती है।
  2. अप्रभावित अथवा दूसरी आँख को हल्के से मलने से लाभ होता है।
  3. नाक को जोर से साफ करने से आँसुओं के साथ धूल के कण बाहर निकल जाते हैं।
  4. साफ एवं उबालकर ठण्डा किए हुए पानी को आँख धोने के गिलास में डालकर आँख साफ करें।
  5.  आँखों में एक बूंद रेंडी अथवा जैतून का तेल डालने से आँसुओं के साथ तिनका अथवा धूल के कण बाहर निकल जाते हैं।
  6. यदि इतना करने पर आँख साफ न हो सके और पीड़ा बढ़ रही हो, तो तुरन्त नेत्र-चिकित्सक से सम्पर्क करें।

प्रश्न 10:
डूबे मनुष्य को क्या प्राथमिक चिकित्सा देनी चाहिए? या किसी व्यक्ति के पानी में डूबने पर आप क्या उपचार करेंगी? .
उत्तर:
प्रायः मनुष्य या तो तैरते समय अथवा आत्महत्या का प्रयास करने की स्थिति में पानी में डूबते हैं। डूबते हुए व्यक्ति को तत्काल पानी से बाहर निकालकर निम्नलिखित प्राथमिक चिकित्सा सहायता देनी चाहिए

  1. पीड़ित व्यक्ति की नाक, कान, गले तथा मुँह इत्यादि से कीचड़ एवं बालू तत्काल साफ करें।
  2.  वस्त्र उतार कर रोगी को उल्टा लटकाएँ। ऐसा करने से उसके मुंह से कुछ पानी बाहर निकल जाएगा।
  3. अब रोगी को पेट के बल अपनी जाँघ पर लिटाओ। इस प्रकार पेट पर दबाव पड़ने से रोगी का । अधिकांश पानी बाहर निकल जाएगा।
  4. पानी बाहर निकलने के बाद रोगी को कृत्रिम श्वसन प्रदान करें।
  5. होश में आने पर रोगी को सांत्वना एवं धैर्य बँधाएँ।
  6. यदि रोगी की अवस्था अधिक गम्भीर है तो रोगी को तुरन्त अस्पताल स्थानान्तरित करें।

प्रश्न 11:
साँप के काटने पर आप क्या प्राथमिक चिकित्सा करेंगी? या साँप के काटने पर आप क्या उपचार करेंगी?
उत्तर:
साँप के काटने पर प्राथमिक चिकित्सा-यह निश्चित होने पर कि साँप ने काटा है, निम्नलिखित उपचार तुरन्त करने चाहिए

  1.  काटे हुए स्थान से विष निकालने के लिए किसी तेज धार वाले ब्लेड या चाकू से घाव को और काटना चाहिए और रक्तस्राव होने देना चाहिए।
  2. सर्पदंश वाले व्यक्ति को सोने नहीं देना चाहिए।
  3. कटे हुए भाग के ऊपर यदि सम्भव हो तो दो या तीन स्थानों पर टूर्नाकेट, कपड़े, सुतली अथवा अन्य किसी डोरी या टाई से कसकर बन्ध लगा देना चाहिए ताकि रुधिर का प्रवाह रुक जाए और विष शरीर में न फैल सके।
  4. दबाकर भी विष निकाला जा सकता है अथवा मुंह से चूसकर अथवा एक छोटे मुँह की बोतल को गर्म करके उस स्थान पर मुँह की ओर से दबाने और बोतल को ठण्डा होने देने से रक्त बोतल में आएगा।
  5.  कोई सर्प विष-रोधक दवा डॉक्टर की सलाह से देनी चाहिए। टिटेनस प्रतिरोधक इन्जेक्शन भी लगवाना चाहिए।

प्रश्न 12:
टिप्पणी लिखिए-बिच्छू द्वारा डंक मारना।
उत्तर:
बिच्छू द्वारा डंक मारना एक सामान्य घरेलू दुर्घटना है। बिच्छू एक विषैला जन्तु है। वास्तव में बिच्छू काटता नहीं है, बल्कि उसकी पूँछ के सिरे पर डंक रहता है। पूँछ के इसी स्थान में एक थैली के अन्दर विष रहता है। जब किसी व्यक्ति के शरीर में यह अपने डंक को चुभोता है, तो साथ-ही-साथ शरीर में विष को भी प्रवेश करा देता है। बिच्छू के डंक मारने से व्यक्ति को बहुत अधिक पीड़ा होती है, परन्तु कुछ असामान्य दशाओं को छोड़कर सामान्य रूप से बिच्छू का डंक मारना घातक सिद्ध नहीं होता। बिच्छू के डंक मारने के कारण उत्पन्न होने वाले मुख्य लक्षण हैं–तीव्र पीड़ा होना, जी मिचलाना तथा उल्टी होना तथा शरीर में एक प्रकार की (UPBoardSolutions.com) झनझनाहट होना। विष के अधिक फैल जाने की स्थिति में रक्त परिसंचरण धीमा हो जाता है तथा श्वास-गति तेज हो जाती है। शरीर के जिस भाग में बिच्छू द्वारा डंक मारा जाता है, उसके आस-पास अत्यधिक जलन होती है। बिच्छू के डंक मारने की दशा में प्राथमिक उपचार के लिए विष को पूरे शरीर में फैलने से रोकने के लिए टूर्नीकेट बाँध देना चाहिए। डंक के स्थान पर बर्फ लगाने से पीड़ा कम हो सकती है। इसके साथ-साथ डॉक्टर के परामर्श से दवाओं एवं इंजेक्शन का भी प्रयोग करनी चाहिए।

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प्रश्न 13:
टिप्पणी लिखिए-पागल कुत्ते द्वारा काटना।
उत्तर:
कभी-कभी कुत्ते पागल हो जाते हैं। यह पागलपन रेबीज नामक विषाणु के संक्रमण के परिणामस्वरूप होता है। पागल कुत्ते अकारण ही राह चलते व्यक्ति को काट लेते हैं। पागल कुत्ते द्वारा काटा जाना बहुत हानिकारक होता है। पागल कुत्ते की पहचान बड़ी सरलता से की जा सकती है। उसकी पूँछ हमेशा टाँगों के बीच में झुकी रहती है और उसके मुख की आकृति भयानक हो जाती है। पागल कुत्ते के मुँह से सफेद रंग की झाग निकलती रहती है तथा वह अकारण ही भौंकता रहता है। पागल कुत्ते की । लार में रेबीज नामक विषाणु (UPBoardSolutions.com) व्याप्त हो जाते हैं। जब यह कुत्ता किसी व्यक्ति को काट लेता है, तब कुत्ते की लार के माध्यम से ये विषाणु व्यक्ति के रक्त में मिल जाते हैं। ये विषाणु व्यक्ति के मस्तिष्क में पहुँचकर व्यक्ति को रोगग्रस्त कर देते हैं। रेबीज के संक्रमण के परिणामस्वरूप होने वाले रोग को हाइड्रोफोबिया कहते हैं। एक बार हाइड्रोफोबिया हो जाने पर उसका कोई उपचार नहीं है तथा रोगी की शीघ्र ही अनिवार्य रूप से मृत्यु हो जाती है।

प्रश्न 14:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर आप क्या प्राथमिक उपचार करेंगी? हाइड्रोफोबिया के लक्षण भी लिखिए।
उत्तर:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर प्राथमिक चिकित्सा-यदि किसी व्यक्ति को पागल कुत्ता, बन्दर, गीदड़ या लोमड़ी आदि कोई भी पशु काट लेता है, तो उस दशा में हाइड्रोफोबिया नामक रोग के हो जाने की आशंका रहती है। इस स्थिति में निम्नलिखित प्राथमिक उपचार अवश्य किया जाना चाहिए.

  1.  पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर घाव को साबुन से पानी द्वारा खूब अच्छी तरह धोना चाहिए। भली-भाँति धोने के उपरान्त घाव पर कार्बोलिक एसिड लगाना चाहिए। इस घाव को खुला रखना चाहिए। अर्थात् पट्टी नहीं बाँधनी चाहिए।
  2.  कुत्ते द्वारा काटे गए व्यक्ति को टिटेनस से बचाव का टीका अवश्य लगवा देना चाहिए।
  3.  उपर्युक्त प्राथमिक उपचार के उपरान्त चिकित्सक के परामर्श के अनुसार व्यक्ति को हाइड्रोफोबिया से बचाव के टीके भी अवश्य लगाए जाने चाहिए। पारम्परिक रूप (UPBoardSolutions.com) से हाइड्रोफोबिया से बचाव के 14 टीके लगते थे, जो कि व्यक्ति के पेट में लगाए जाते थे तथा काफी कष्टदायक होते थे। अब हाइड्रोफोबिया से बचाव के कुछ आधुनिक टीके तैयार कर लिए गए हैं जो बाँह में लगते हैं तथा कम कष्टकारी होते हैं। ये केवल पाँच टीके ही लगाए जाते हैं।

हाइड्रोफोबिया के लक्षण:
रेबीज विषाणु के संक्रमण के परिणामस्वरूप होने वाले हाइड्रोफोबिया नामक रोग के मुख्य लक्षण निम्नलिखित होते हैं

(i) हाइड्रोफोबिया की दशा में रोगी के गले में तीव्र पीड़ा होती है, गले की मांसपेशियाँ निष्क्रिय होने लगती हैं, कुछ भी खाने-पीने में कठिनाई होती है तथा किसी वस्तु को निगलना असम्भव हो जाता है।
(ii) रोगी व्यक्ति पानी भी नहीं पी पाता तथा कभी-कभी इस दशा में उसे पानी से भय भी लगने लगता है।

प्रश्न 15:
टिप्पणी लिखिए-कीट ( ब ) द्वारा डंक मारना।
उत्तर:
शहद की मक्खी, बरें अथवा कुछ अन्य कीटों द्वारा डंक मारने पर व्यक्ति को असहनीय पीड़ा होती है। इन कीटों के शरीर के पिछले भाग में डंक तथा उससे पहले विष की थैली होती है। ये कीट जब व्यक्ति को डंक मारते हैं, तो प्रायः उनका डंक टूट कर व्यक्ति के शरीर में ही रह जाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए डंक मारने के उपचार के लिए सर्वप्रथम डंक को निकालने का कार्य किया जाना चाहिए। इसके लिए (UPBoardSolutions.com) किसी खोखली नली या चाबी से उस स्थान को दबाने अथवा रगड़ने पर डंक निकल जाता है। काटे गए स्थान पर स्प्रिट लगानी चाहिए। इसके उपरान्त खाने का सोडा गीला करके डंक के स्थान पर मलना चाहिए। इससे बरों का विष निष्क्रिय हो जाता है। यदि कीट अधिक विषैला हो तथा विष के फैलने के लक्षण दिखाई दें तो रक्त प्रवाह को बन्ध लगा कर रोकना चाहिए। यदि स्थिति गम्भीर प्रतीत हो तो तुरन्त चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न:

प्रश्न 1:
सामान्य रूप से घटित होने वाली दुर्घटनाओं के मुख्य कारण क्या होते हैं?
उत्तर:
सामान्य रूप से घटित होने वाली दुर्घटनाओं के मुख्य कारण लापरवाही या असावधानी तथा अज्ञानता होते हैं।

प्रश्न 2:
सामान्य रूप से घटित होने वाली मुख्य घरेलू दुर्घटनाएँ कौन-कौन सी होती हैं?
उत्तर:
सामान्य रूप से घटित होने वाली मुख्य घरेलू दुर्घटनाएँ हैं – जलना या झुलसना, चोट लगना तथा रक्तस्राव होना, लू या गर्मी लग जाना, पानी में डूब ज रा, साँप, बिच्छू या बरों द्वारा डंक मार देना, कुत्ते/बन्दर आदि पशुओं द्वारा काटा जाना, बच्चों द्वारा आँख, नाक या कान में कोई वस्तु हँसा लेना, दम घुटना, बेहोशी या दौरा पड़ना या आकस्मिक हृदय का दौरा पड़ना आदि।

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प्रश्न 3:
लू के रोगी को पीने के लिए क्या देना हितकर रहता है?
उत्तर:
लु के रोगी को कच्चे आम का पन्ना पीने के लिए देना लाभप्रद रहता है।

प्रश्न 4:
लू लगने पर तुरन्त क्या उपचार किया जाना चाहिए?
उत्तर:
रोगी को ठण्डे पानी से नहलाकर प्याज का रस अथवा कच्चे आम का पन्ना पीने को देना चाहिए।

प्रश्न 5:
डबने वाले व्यक्ति को सर्वप्रथम क्या सहायता देनी चाहिए?
उत्तर:
सर्वप्रथम डूबने वाले व्यक्ति के पेट में भरी अतिरिक्त पानी बाहर निकालना चाहिए तथा फिर यदि आवश्यक हो, तो उसे कृत्रिम श्वसन दिलाना चाहिए।

प्रश्न 6:
बच्चे की नाक में कोई वस्तु फैंसने पर आप क्या करेंगी?
उत्तर:
नसवार, मिर्च व तम्बाकू आदि सुंघाने पर छींक के साथ प्रायः नाक में फैंसी वस्तु बाहर निकल जाती है। ऐसा न होने पर चिकित्सक से सहायता प्राप्त करनी चाहिए।

प्रश्न 7:
कटे हुए घावों का क्या प्राथमिक उपचार करोगी?
उत्तर:
कटे हुए घावों को स्वच्छ रुई की सहायता से किसी नि:संक्रामक (एन्टीसेप्टिक) घोल द्वारा साफ कर पट्टी बाँध देनी चाहिए।

प्रश्न 8:
मूच्र्छा दूर करने के प्राथमिक उपाय क्या हैं?
उत्तर:
मूर्च्छित व्यक्ति को हवादार स्थान पर लिटाकर उसके मुंह पर ठण्डे पानी के छींटे लगाने चाहिए अथवा उसे अमोनिया हुँघानी चाहिए।

प्रश्न 9:
रक्त-स्राव होने पर आप क्या प्राथमिक चिकित्सा करेंगी?
उत्तर:
प्रभावित धमनी के दबाव बिन्दु को भली प्रकार दबाना चाहिए। घाव पर पिसी हुई फिटकरी बुकने, टिंचर आयोडीन अथवा फैरिक-क्लोराइड का घोल छिड़कने से रक्त-स्राव को रोका जा सकता है।

प्रश्न 10:
पागल कुत्ते की क्या पहचान है?
उत्तर:
पागल कुत्ते के लक्षण निम्नलिखित हैं

  1.  यह अकारण भौंकती रहता है।
  2. उसके मुंह से झाग निकलते रहते हैं।
  3. उसकी पूँछ दोनों टाँगों के बीच झुकी होती है।

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प्रश्न 11:
पागल कुत्ते द्वारा काटे गए रोगी के क्या लक्षण हैं?
उत्तर:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर हाइड्रोफोबिया नामक रोग हो जाता है। इस रोग की स्थिति में

  1. रोगी को पानी से डर लगता है,
  2. भोजन अथवा पेय पदार्थ नहीं निगला जाता तथा
  3.  गले में दर्द होता है।

प्रश्न 12:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर प्राथमिक उपचार क्या हैं?
उत्तर:
पागल कुत्ते द्वारा काटे जाने पर-

  1.  घाव को स्प्रिट से धोकर तथा कार्बोलिक अम्ल से जलाकर विष समाप्त कर देना चाहिए,
  2. तत्काल अस्पताल जाकर विष निरोधक सुई लगवाएँ तथा
  3.  पागल कुत्ते की सूचना तुरन्त नगर के स्वास्थ्य अधिकारी को दें।

प्रश्न 13:
साँप के काटने पर बन्ध क्यों लगाया जाता है?
उत्तर:
साँप के काटने के स्थान से थोड़ा ऊपर कसकर बन्ध लगाया जाता है ताकि रक्त-प्रवाह रुक जाए तथा विष शरीर के अन्य अंगों तक न पहुंचे।

प्रश्न 14:
किन अम्लों से शरीर जल जाता है?
उत्तर:
गन्धक, नमक व शोरे के सान्द्र अम्लों से शरीर जल जाता है।

प्रश्न 15:
खपच्चियों का प्रयोग कब किया जाना चाहिए?
उत्तर:
दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के अस्थि-भंग वाले अंग के दोनों ओर खपच्चियाँ बाँधना लाभप्रद रहता है, परन्तु कोमल अंगों (पसलियाँ, गर्दन आदि) की अस्थि भंग होने पर खपच्चियाँ प्रयोग में नहीं
लाइ जाती हैं।

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प्रश्न 16:
टूर्नीकेट क्या है? इसका क्या काम है? या टूर्नीकेट से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
निरन्तर हो रहे रक्त-स्राव को रोकने के लिए कपड़ों की पट्टियों से बने पैड द्वारा सम्बन्धित धमनियों पर दबाव डाला जाता है। मुलायम कपड़े का यह पैड टूर्नीकट कहलाता है तथा इसे बाँधकर रक्त-स्राव को रोका जाता है।

प्रश्न 17:
जले हुए स्थान पर लगाने के लिए किन्हीं दो औषधियों के नाम बताओ जो घर पर उपलब्ध हों।
उत्तर:
ये औषधियाँ हैं-बरनॉल तथा नारियल का तेल।

प्रश्न 18:
बिजली का झटका लगने पर तुरन्त उपचार बताइए।
उत्तर:
बिजली की लाइन काटकर रोगी को लकड़ी की मेज या तख्ते पर लिटाना चाहिए।

प्रश्न 19:
एको गृहिणी के पैर में असावधानी के कारण एक सुई घुसकरटूट गइ हो, तो आप क्या व्यवस्था करेंगी?
उत्तर:
चोट लगे स्थान के ऊपर रुधिर प्रवाह रोकने के लिए पानी या बर्फ का भीगा कपड़ा कसकर बाँध देंगे तथा डॉक्टर को बुलाएँगे।

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प्रश्न 20:
यदि किसी व्यक्ति के कान में कीट घुस गया हो, तो उसे आप कैसे निकालेंगी?
उत्तर:
कान में किसी कीट के घुसे जाने पर हाइड्रोजन परॉक्साइड डालने से कीट निकल जाता है। तथा हल्का गर्म सरसों का तेल डालकर उल्टा करने से भी कीट निकल जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) सामान्य दुर्घटनाएँ घटित होती हैं
(क) दैवी कृपा से,
(ख) भाग्यवश,
(ग) लापरवाही तथा अज्ञानतावश,
(घ) अज्ञात कारणों से।

(2) पागल कुत्ते के काटने से होने वाला रोग है
(क) हिस्टीरिया,
(ख) मिरगी,
(ग) रक्तस्राव,
(घ) हाइड्रोफोबिया।

(3) क्षार से जल जाने पर ज़ले हुए भाग पर लगाना चाहिए
(क) बरनॉल,
(ख) डिटॉल,
(ग) प्याज का रस,
(घ) नीबू का रस

(4) अम्ल से जल जाने पर लगाना चाहिए
(क) नींबू का रस,
(ख) सिरका,
(ग) खाने का सोडा,
(घ) कुछ भी नहीं।

(5) जले हुए व्यक्ति को पीने के लिए देना चाहिए
(क) मद्य,
(ख) मद्यरहित पेय,
(ग) दोनों ही,
(घ) दोनों ही नहीं।

(6) हाथ या टाँग के घाव से होने वाले रक्त-स्राव को रोकने का सर्वोत्तम उपाय है
(क) टूर्नीकेट का प्रयोग,
(ख) स्प्रिट का प्रयोग,
(ग) खपच्चियों का प्रयोग,
(घ) इनमें से कोई नहीं।

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(7) आन्तरिक रक्तस्राव को कम करने के लिए क्या प्राथमिक उपचार किया जाता है?
(क) बर्फ की थैली रखना,
(ख) गीले कपड़े में लपेटना,
(ग) टूर्नीकेट का प्रयोग करना।
(घ) कोई उपचार नहीं।

(8) जलने पर रोगी का उपचार है
(क) डिटॉल लगाना,
(ख) पिसी आलू लगाना,
(ग) पिसा नमक लगाना,
(घ) गर्म तेल।

(9) किस रक्त-नलिका के कट जाने से लगातार रक्त बहता है?
(क) शिरा,
(ख) नाड़ी,
(ग) तन्तु,
(घ) धमनी।

(10) सर्प के काटने पर काटे हुए स्थान पर लगाते हैं
(क) बरनॉल,
(ख) लाल मिर्च,
(ग) पोटैशियम परमैंगनेट,
(घ) नौसादर।

(11) डिटॉल का मुख्य कार्य है
(क) जलन को दूर करना,
(ख) घाव को कीटाणु रहित करना,
(ग) मूच्र्छा दूर करना,
(घ) रक्त-स्राव बन्द करना।

(12) मिरगी या हिस्टीरिया के कारण मूच्र्छा आने पर प्रथम उपचार है
(क) रोगी के मानसिक कष्ट को दूर करना,
(ख) पुराना जूता सुंघाना,
(ग) रोगी को शुद्ध वायु में लिटा देना,
(घ) पीली मिट्टी हुँघाना।

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(13) नाक से रक्त-स्त्राव होने पर
(क) जूता सुंघाना चाहिए,
(ख) पीली मिट्टी सुंघा देनी चाहिए,
(ग) कुर्सी पर बैठाकर सिर पीछे की ओर झुका देना चाहिए,
(घ) घायल को उल्टा लिटा देना चाहिए।

उत्तर:

(1) (ग) लापरवाही तथा अज्ञानतावश,
(2) (घ) हाइड्रोफोबिया,
(3) (घ) नीबू का रस,
(4) (ग) खाने : का सोडा
(5) (ख) मद्यरहित पेय,
(6) (क) टूर्नीकेट का प्रयोग,
(7) (क) बर्फ की थैली रखना,
(8) (ख) पिसा आलू लगाना,
(9) (क) शिरा,
(10) (ग) पोटैशियम परमैंगनेट,
(11) (ख) घाव को कीटाणु रहित करना,
(12) (ग) रोगी को शुद्ध वायु में लिटा देना,
(13) (ग) कुर्सी पर बैठाकर सिर पीछे की ओर झुका देना चाहिए।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘संसाधन के रूप में लोग’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी देश के लोग उस देश के लिए बहुमूल्य संसाधन होते हैं, यदि वे स्वस्थ्य, शिक्षित एवं कुशल हों, क्योंकि मानवीय संसाधन के बिना आर्थिक क्रियाएँ संभव नहीं हैं। मानव, श्रमिक, प्रबन्धक एवं उद्यमी के रूप में समस्त आर्थिक क्रियाओं का संपादन करता है। इसे मानव संसाधन भी कहते हैं।

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प्रश्न 2.
मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूँजी जैसे अन्य संसाधनों से कैसे भिन्न है?
उत्तर:
मानवीय संसाधन अन्य संसाधनों से इस प्रकार भिन्न है

  1. मानवीय संसाधन उत्पादन का एक अत्याज्य (Indispensable) साधन है।
  2. मानवीय संसाधन श्रम, प्रबंध एवं उद्यमी के रूप में कार्य करता है।
  3.  मानवीय संसाधन उत्पादन को एक जीवित, क्रियाशील एवं भावुक साधन है।
  4.  मानवीय संसाधन कार्य कराता है और अन्य साधनों को कार्यशील करता है।

प्रश्न 3.
मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है?
उत्तर:
मानव पूंजी (मानव संसाधन) निर्माण में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। शिक्षा एवं कौशल किसी व्यक्ति की आय को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक हैं। किसी बच्चे की शिक्षा और प्रशिक्षण पर किए गए निवेश के बदले में वह भविष्य में अपेक्षाकृत अधिक आय एवं समाज में बेहतर योगदान के रूप में उच्च प्रतिफल दे सकता है। शिक्षित लोग अपने बच्चों की शिक्षा पर अधिक निवेश (UPBoardSolutions.com) करते पाए जाते हैं।

इसका कारण यह है कि उन्होंने स्वयं के लिए शिक्षा का महत्त्व जान लिया है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह शिक्षा ही है जो एक व्यक्ति को उसके सामने उपलब्ध आर्थिक अवसरों का बेहतर उपयोग करने में सहायता करती है। शिक्षा श्रम की गुणवत्ता में वृद्धि करती है और कुल उत्पादकता में वृद्धि करने में सहायता करती है। कुल उत्पादकता देश के विकास में योगदान देती है।

प्रश्न 4.
मानव पूंजी निर्माण में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर:
मानव पूंजी निर्माण अथवा मानव संसाधन विकास में स्वास्थ्य की प्रमुख भूमिका है, जिसे हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं

  1. किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य अपनी क्षमता एवं बीमारी से लड़ने की योग्यता को पहचानने में सहायता करता है।
  2. केवल एक पूर्णतः स्वस्थ व्यक्ति ही अपने काम के साथ न्याय कर सकता है। इस प्रकार यह किसी व्यक्ति के कामकाजी जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
  3. एक अस्वस्थ व्यक्ति अपने परिवार, संगठन एवं देश के लिए दायित्व है। कोई भी संगठन ऐसे व्यक्ति को काम पर नहीं रखेगा जो खराव स्वास्थ्य के कारण पूरी दक्षता से काम न कर सके।
  4.  स्वास्थ्य न केवल किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाता है अपितु मानव संसाधन विकास में वर्धन करता है जिस पर देश के कई क्षेत्रक निर्भर करते हैं।

प्रश्न 5.
किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर:
स्वास्थ्य मानव को स्वस्थ, सक्रिय, शक्तिशाली एवं कार्य कुशल बनाता है। यह सही कहा गया है कि एक स्वस्थ शरीर में एक स्वस्थ दिमाग होता है। अच्छा स्वास्थ्य एवं मानसिक जागरुकता एक मूल्यवान परिसंपत्ति है जो मानवीय संसाधन को देश के लिए एक संपत्ति बनाती है। स्वास्थ्य जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। स्वास्थ्य का अर्थ जीवित रहना मात्र ही नहीं है।

स्वास्थ्य में शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं सामाजिक सुदृढ़ता शामिल हैं। स्वास्थ्य में परिवार कल्याण, जनसंख्या नियंत्रण, दवा नियंत्रण, प्रतिरक्षण एवं खाद्य मिलावट निवारण आदि बहुत से क्रियाकलाप शामिल हैं यदि कोई व्यक्ति अस्वस्थ है तो वह ठीक से काम नहीं कर (UPBoardSolutions.com) सकता। चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में एक अस्वस्थ मजदूर अपनी उत्पादकता और अपने देश की उत्पादकता को कम करता है। इसलिए किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता

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प्रश्न 6.
प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में किस तरह की विभिन्न आर्थिक क्रियाएँ संचालित की जाती
उत्तर:
प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में पृथक्-पृथक संचालित की जाने वाली प्रमुख क्रियाएँ इस प्रकार हैं|

  1.  प्राथमिक क्षेत्र–कृषि, वन एवं मत्स्य पालन, खनन तथा उत्खनन ।
  2. द्वितीयक क्षेत्र—उत्पादन, विद्युत-गैस एवं जल की आपूर्ति, निर्माण, व्यापार, होटल तथा जलपानगृह
  3.  तृतीयक क्षेत्र- परिवहन, भण्डार, संचार, वित्तीय, बीमा, वास्तविक संपत्ति तथा व्यावसायिक सेवाएँ, सामाजिक एवं व्यक्तिगत् सेवाएँ।।

प्रश्न 7.
आर्थिक और गैर आर्थिक क्रियाओं में क्या अन्तर है?
उत्तर:
आर्थिक क्रियाएँ-वह क्रियाएँ जो जीविका कमाने के लिए और आर्थिक उद्देश्य से की जाती हैं, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। यह क्रियाएँ उत्पादन, विनियम एवं वस्तुओं और सेवाओं के वितरण से संबंधित होती हैं। लोगों का व्यवसाय, पेशे और रोज़गार में होना आर्थिक क्रियाएँ हैं। इन क्रियाओं का (UPBoardSolutions.com) मूल्यांकन मुद्रा में किया जाता है। गैर-आर्थिक क्रियाएँ-वह क्रियाएँ जो भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए की जाती हैं। और जिनका कोई आर्थिक उद्देश्य नहीं होता, गैर-आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। यह क्रियाएँ सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षिक एवं सार्वजनिक हित से संबंधित हो सकती हैं।

प्रश्न 8.
महिलाएँ क्यों निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित होती हैं?
उत्तर:
महिलाएँ निम्न कारणों से निम्न वेतन वाले कार्यों में नियोजित होती हैं

  1.  ज्ञान व जानकारी के अभाव में महिलाएं असंगठित क्षेत्रों में कार्य करती हैं जो उन्हें कम मजदूरी देते हैं। उन्हें अपने
    कानूनी अधिकारों की जानकारी भी नहीं है।
  2.  महिलाओं को शारीरिक रूप से कमजोर माना जाता है इसलिए उन्हें प्रायः कम वेतन दिया जाता है।
  3. बाजार में किसी व्यक्ति की आय निर्धारण में शिक्षा महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक है।
  4. भारत में महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा कम शिक्षित होती हैं। उनके पास बहुत कम शिक्षा एवं निम्न कौशल स्तर हैं। इसलिए उन्हें पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है।
  5.  महिलाएँ भौतिक एवं भावनात्मक रूप से कमजोर होती हैं।
  6. महिलाएँ खतरनाक कार्यों (hazardous work) के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं।
  7.  महिलाओं के कार्यों पर सामाजिक प्रतिबंध होता है।
  8. महिलाएँ दूर स्थित, पहाड़ी एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों में कार्य नहीं कर सकती।

प्रश्न 9.
‘बेरोजगारी’ शब्द की आप कैसे व्याख्या करेंगे?
उत्तर:
वह स्थिति जिसके अन्तर्गत कुशल व्यक्ति प्रचलित कीमतों पर कार्य करने के इच्छुक होते हैं किन्तु कार्य नहीं प्राप्त कर पाते, तो ऐसी स्थिति बेरोजगारी कहलाती है, यह स्थिति विकसित देशों की अपेक्षा विकासशील देशों में अधिक देखने को मिलती है।

प्रश्न 10.
प्रच्छन्न एवं मौसमी बेरोजगारी में क्या अन्तर है?
उत्तर:
प्रच्छत्र एवं मौसमी बेरोजगारी में अंतर इस प्रकार है
प्रच्छन्न बेरोजगारी–इस बेरोजगारी में लोग नियोजित प्रतीत होते हैं जबकि वास्तव में वे उत्पादकता में कोई योगदान नहीं कर रहे होते हैं। ऐसा प्रायः किसी क्रिया से जुड़े परिवारों के सदस्यों के साथ होता है। जिस काम में पाँच लोगों की आवश्यकता होती है (UPBoardSolutions.com) किन्तु उसमें आठ लोग लगे हुए हैं, जहाँ 3 लोग अतिरिक्त हैं। यदि इन 3 लोगों को हटा लिया जाए तो भी उत्पादकता कम नहीं होगी। यही बचे 3 लोग प्रच्छन्न बेरोजगारी में शामिल हैं।

मौसमी बेरोजगारी-वर्ष के कुछ महीनों के दौरान जब लोग रोजगार नहीं खोज पाते, तो ऐसी स्थिति मौसमी बेरोजगारी कहलाती है। भारत में कृषि कोई पूर्णकालिक रोजगार नहीं है। यह मौसमी है। इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि में पाई जाती है। कुछ व्यस्त मौसम होते हैं जब बिजाई, कटाई, निराई और गहाई की जाती है। कुछ विशेष महीनों में कृषि पर आश्रित लोगों को अधिक काम नहीं मिल पाता।

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प्रश्न 11.
शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक विशेष समस्या क्यों है?
उत्तर:
शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक कठिन चुनौती के रूप में उपस्थित हुई है। मैट्रिक, स्नातक, स्नातकोत्तर डिग्रीधारक अनेक युवा रोजगार पाने में असमर्थ हैं। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मैट्रिक की अपेक्षा स्नातक एवं स्नातकोत्तर डिग्रीधारकों में बेरोजगारी अधिक तेजी से बढ़ी है। (UPBoardSolutions.com) एक विरोधाभासी जनशक्ति-स्थिति सामने आती है क्योंकि कुछ वर्गों में अतिशेष जनशक्ति अन्य क्षेत्रों में जनशक्ति की कमी के साथ-साथ विद्यमान है। एक ओर तकनीकी अर्हता प्राप्त लोगों में बेरोजगारी व्याप्त है जबकि दूसरी ओर आर्थिक संवृद्धि के लिए जरूरी तकनीकी कौशल की कमी है।

उपरोक्त के प्रकाश में हम कह सकते हैं कि शिक्षित बेरोजगारी भारत के लिए एक विशेष समस्या है। । अधिकांश शिक्षित बेरोज़गारी शिक्षित मानवशक्ति के विनाश को प्रदर्शित करती हैं। बेरोजगारी सदैव बुरी है किन्तु यह हमारी शिक्षित युवाओं की स्थिति में एक अभिशाप है। हम अपने कुशल दिमाग का उपयोग करने योग्य नहीं होते।

प्रश्न 12.
आपके विचार से भारत किस क्षेत्र में रोजगार के सर्वाधिक अवसर सृजित कर सकता है?
उत्तर:
सेवा क्षेत्र भारत में सर्वाधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध करा सकता है। भूमि की अपनी एक निर्धारित सीमा है जिसे बदला नहीं जा सकता है अतः कृषि क्षेत्र में हम अधिक रोजगार के अवसर की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। कृषि में पहले से ही छिपी बेरोजगारी विद्यमान है जबकि दूसरी ओर उद्योग स्थापित करने में बड़े पैमाने पर संसाधन की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति हम सरलता से नहीं कर सकते हैं।(UPBoardSolutions.com) भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है और जिसे उचित शिक्षा, पेशेवर गुणवत्ता एवं कुशल श्रमशक्ति की आवश्यकता है। कुशल लोगों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर माँग होती है। अतः हम कह सकते। हैं कि भारत में सेवा क्षेत्र में रोजगार की असीम सम्भावनायें हैं।

प्रश्न-13.
क्या आप शिक्षा प्रणाली में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए कुछ उपाय सुझा सकते हैं?
उत्तर:
शिक्षा प्रणाली में निम्नलिखित सुधार करके हम शिक्षित बेरोजगारी को दूर कर सकते हैं

  1. शिक्षा द्वारा लोगों को स्वावलंबी एवं उद्यमी बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
  2. शिक्षा के लिए योजना बनाई जानी चाहिए एवं इसकी भावी संभावनाओं को ध्यान में रखकर इसे क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
  3. रोजगार के अधिक अवसर पैदा किए जाने चाहिए।
  4.  केवल किताबी ज्ञान देने की अपेक्षा अधिक तकनीकी शिक्षा दी जाए।
  5. शिक्षा को अधिक कार्योन्मुखी बनाया जाना चाहिए। एक किसान के बेटे को साधारण स्नातक की शिक्षा देने की अपेक्षा इस बात का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि खेत में उत्पादन कैसे बढ़ाया जा सकता है।
  6.  हमारी शिक्षा प्रणाली को रोज़गारोन्मुख (Job oriented) एवं आवश्यकतानुसार होना चाहिए। उच्च स्तर तक सामान्य शिक्षा होनी चाहिए। इसके पश्चात् विभिन्न शैक्षिक शाखाएँ प्रशिक्षण के साथ प्रारंभ करनी चाहिए।

प्रश्न 14.
क्या आप कुछ ऐसे गाँवों की कल्पना कर सकते हैं जहाँ पहले रोज़गार का कोई अवसर नहीं था, लेकिन बाद में बहुतायत में हो गया?
उत्तर:
निश्चय ही हम ऐसे गाँवों की कल्पना कर सकते हैं, क्योंकि हमने अपने गाँव के वयोवृद्ध लोगों से आर्थिक रूप से पिछड़े गाँवों के बारे में काफी कुछ सुना है। लोगों ने बताया है कि देश की स्वतंत्रता के समय गाँव में मूलभूत सुविधाओं जैसे-अस्पताल, स्कूल, सड़क, बाजार, पानी, बिजली, यातायात का अभाव था। लेकिन स्वतंत्रता के बाद सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के माध्यम से गाँवों में आवश्यक सेवाओं का विस्तार हुआ। गाँव के लोगों ने पंचायत का ध्यान इन सभी समस्याओं की ओर आकृष्ट किया। पंचायत ने एक स्कूल खोला जिसमें कई लोगों को रोजगार मिला। (UPBoardSolutions.com) जल्द ही गाँव के बच्चे वहाँ पढ़ने लगे और वहाँ कई प्रकार की तकनीकों का विकास हुआ। अब गाँव वालों के पास बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ एवं पानी, बिजली की भी उचित आपूर्ति उपलब्ध थी। सरकार ने भी जीवन स्तर को सुधारने के लिए विशेष प्रयास किए थे। कृषि एवं गैर कृषि क्रियाएँ भी अब आधुनिक तरीकों से की जाती हैं।

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प्रश्न 15.
किस पूँजी को आप सबसे अच्छा मानते हैं-भूमि, श्रम, भौतिक पूँजी और मानव पूँजी? क्यों?
उत्तर:
जिस तरह जल, भूमि, वन, खनिज आदि हमारे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है उसी प्रकार मानव संसाधन भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है। मानव राष्ट्रीय उत्पादन का उपभोक्ता मात्र नहीं है बल्कि वे राष्ट्रीय संपत्तियों के उत्पादक भी हैं। वास्तव में मानव संसाधनों जैसे-भूमि, जल, वन, खनिज की तुलना में इसलिए श्रेष्ठ है। भूमि, पूँजी, जल एवं अन्य प्राकृतिक संसाधन स्वयं उपयोगी नहीं है, वह मानव ही है जो इसे उपयोग करता है या उपयोग के योग्य बनाता है। यदि हम लोगों में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करें तो जनसंख्या (UPBoardSolutions.com) के बड़े भाग को परिसंपत्ति में बदला जा सकता है। हम जापान का उदाहरण सामने रखते हैं। जापान के पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे। इस देश ने अपने लोगों पर निवेश किया विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में। अंततः इन लोगों ने अपने संसाधनों का दक्षतापूर्ण उपयोग करने के बाद नई तकनीक विकसित करते हुए अपने देश को समृद्ध एवं विकसित बना दिया है।

इस प्रकार मानव-पूँजी अन्य सभी संसाधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है। मानवीय पूँजी को किसी भी सीमा तक बढ़ाया जा सकता है और इसके प्रतिफल को कई बार गुणा किया जा सकता है। भौतिक पूँजी का निर्माण, प्रबंध एवं नियंत्रण मानवीय पूँजी द्वारा किया जाता है। मानवे पूँजी केवल स्वयं के लिए ही कार्य नहीं करती बल्कि अन्य साधनों को भी क्रियाशील बनाती है। मानवीय पूँजी उत्पादन का एक अत्याज्य साधन है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बेरोजगारी को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
बेरोजगारी वह स्थिति है जिसके अंतर्गत कुशल व्यक्ति प्रचलित कीमतों पर कार्य करने के इच्छुक होते हैं लेकिन कार्य नहीं प्राप्त कर पाते।

प्रश्न 2.
महिलाओं एवं पुरुषों के बीच विभेद को कम करने के लिए सरकार द्वारा किए गए चार उपाय बताइए।
उत्तर:
सरकार द्वारा सामज से लिंग-भेद मिटाने के लिए भिन्न उपाय किए गए हैं-

  1.  विधवा का पुनर्विवाह,
  2.  सती प्रथा से सुरक्षा,
  3. बाल अवस्था में विवाह पर रोक,
  4. लिंग के आधार पर सभी विभेद को रोकना।

प्रश्न 3.
चा गैर-आर्थिक क्रियाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वह क्रियाएँ जो भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए की जाती हैं, गैर-आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं, जैसे

  1.  परिवार के सदस्यों के लिए खाना बनाना,
  2. माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को पढ़ाना।
  3. गरीब बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था,
  4.  गरीब लोगों के लिए मुफ्त चिकित्सा व्यवस्था।

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प्रश्न 4.
‘रोजगार से क्या आशय है?’
उत्तर:
रोजगार से अभिप्राय किसी अनुबंध के अंतर्गत दूसरे व्यक्तियों के लिए कार्य करना और उसके बदले पारितोषिक प्रा करना है। इसमें सभी प्रकार की सेवाएँ शामिल हैं। कर्मचारी कुछ निवेश नहीं करते और न ही व्यवसाय में उनका कोई जोखिम होता है।

प्रश्न 5.
व्यवसाय झा अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
वस्तुओं और सेवाओं का लाभ के उद्देश्य से किया गया विक्रय, विनिमय का हस्तांतरण व्यवसाय कहलाता है।
वसाय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. व्यवसाय का उद्देश्य लाभ कमाना है।
  2. व्यवसाय वस्तुओं एवं सेवाओं के विक्रय, विनियम एवं हस्तांतरण से संबंधित है।
  3. व्यवसाय वस्तुओं एवं सेवाओं में व्यापार करता है।
  4. व्यवसाय एक निरंतर क्रिया है।
  5.  व्यवसाय में जोखिम का तत्व होता है।

प्रश्न 6.
प्राथमिक क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रकृति द्वारा प्रदत वस्तु को एकत्र करने या उपलब्ध कराने से जुड़ी क्रियाओं को प्राथमिक क्षेत्र में शामिल किया जाता है।
उदाहरणतः कृषि, वानिकी, पशुपालन, मुर्गीपालन, मत्स्य पालन एवं खनन आदि।

प्रश्न 7.
द्वितीय क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
वे क्रियाएँ जो कच्चे माल या प्राथमिक उत्पाद को और अधिक उपयोगी वस्तुओं में बदलती हैं उन्हें द्वितीयक क्षेत्र के अन्तर्गत शामिल किया जाता है।
उदाहरणतः उद्योग, विद्युत, बाँध, जल आदि।

प्रश्न 8.
तृतीयक क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
इस क्षेत्र में वे क्रियाएँ आती हैं जो आधुनिक कारखानों को चलाने या प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों क्षेत्रों की क्रियाएँको सहारा देने के लिए तथा विभिन्न प्रकार की सेवाएँ शामिल हैं।
उदाहरणतः बैंकिंग, परिवहन, व्यापार, शिक्षा, बीमा आदि।

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प्रश्न 9.
भारत में सभी राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएँ एक समान नहीं हैं। व्याख्या करें।
उत्तर:
भारत में अनेक स्थान हैं जिनमें मौलिक स्वास्थ्य सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं। केवल चार राज्यों जैसे कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र में देश के कुल 181 मेडिकल कॉलेजों में से 81 मेडिकल कॉलेज हैं। दूसरी तरफ बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में निम्न स्वास्थ्य सूचक हैं तथा यहाँ बहुत ही कम मेडिकल कॉलेज हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बाजार क्रियाएँ किस तरह गैर-बाजार क्रियाओं से भिन्न हैं?
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

प्रश्न 2.
भौतिक पूँजी और मानव पूंजी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 संसाधन के रूप में लोग

प्रश्न 3.
अल्प रोजगार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब कोई व्यक्ति पूर्ण समय का कार्य प्राप्त नहीं कर पाता तो यह अल्प रोजगार कहलाता है। यदि कार्य में परिवर्तन से किसी व्यक्ति की आय एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है तो भी उसकी अल्प रोज़गार में गणना की जाती है। अल्प रोजगारी की समुस्या भी ढंकी-छुपी बेरोज़गारी से संबंधित है, जहाँ (UPBoardSolutions.com) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य या नकारात्मक हो जाती है। स्व रोज़गार से संबंधित लोगों में अल्प रोज़गार अधिक होता है। आकस्मिक रोज़गार वाले लोगों में भी यह अधिक पाया जाता है। कृषि एवं इसकी सहायक क्रियाओं में अल्प रोज़गार का दबाव अधिक महसूस किया जाना है। लगभग इस क्षेत्र में 36.3% अल्प रोज़गारी है।

प्रश्न 4.
प्रौढ़ साक्षरता दर किसे कहते हैं?
उत्तर:
15 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के लोगों की दर एवं प्रतिशत जो अपने दैनिक जीवन में छोटे और सरल वाक्य पढ़, लिख और समझ सकते हैं, वह साक्षर कहे जाते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि साक्षर व्यक्ति अवश्य कुछ निश्चित कथन पढ़ने एवं लिखने योग्य होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति हस्ताक्षर करने योग्य है किंतु सरल वाक्यों को पढ़ने एवं लिखने योग्य नहीं है तो वह साक्षर नहीं है।इसी प्रकार केवल पढ़ने की योग्यता या केवल लिखने की योग्यता किसी व्यक्ति को साक्षर नहीं। बनाती है। साक्षरता निःसंदेह लोगों की गुणवत्ता का प्रतीक है।

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प्रश्न 5.
जनसंख्या किसी अर्थव्यवस्था के लिए दायित्व नहीं अपितु एक परिसंपत्ति है; इसे सिद्ध करने के लिए उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कुछ लोग यह मानते हैं कि जनसंख्या एक दायित्व है न कि एक परिसंपत्ति। किन्तु यह सच नहीं है। लोगों को एक परिसंपत्ति बनाया जा सकता है यदि हम उनमें शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करें। जिस प्रकार भूमि, जल, वन, खनिज आदि हमारे बहुमूल्य प्राकृतिक (UPBoardSolutions.com) संसाधन हैं उसी प्रकार मनुष्य भी एक बहुमूल्य संसाधन है। लोग राष्ट्रीय परिसंपत्तियों के उपभोक्ता मात्र नहीं हैं अपितु वे राष्ट्रीय संपत्तियों के उत्पादक भी हैं।
वास्तव में मानव संसाधन अन्य संसाधनों जैसे कि भूमि तथा पूँजी की अपेक्षाकृत श्रेष्ठ हैं क्योंकि वे भूमि एवं पूँजी का प्रयोग करते हैं। भूमि एवं पूँजी स्वयं उपयोगी नहीं हो सकते। हम जापान का उदाहरण दे सकते हैं। इस देश ने मानव संसाधन में ही निवेश किया है क्योंकि इसके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं था। लोगों ने अन्य संसाधनों जैसे कि भूमि एवं पूँजी का दक्षतापूर्ण प्रयोग किया है। लोगों द्वारा विकसित दक्षता एवं तकनीक ने जापान को एक धनी एवं विकसित देश बना दिया।

प्रश्न 6.
यह सिद्ध करने के लिए एक उदाहरण दीजिए कि मानव पूँजी में निवेश समृद्धशाली प्रतिफल देता है।
उत्तर:
लोगों में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सुविधाओं के द्वारा निवेश करने से जनसंख्या के एक बड़े भाग को परिसंपत्ति में बदला जा सकता है। हमें जापान का उदाहरण सामने रखते हैं। जापान के पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे।
इस देश ने अपने लोगों पर निवेश किया विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में।
अंततः इन लोगों ने अपने संसाधनों का दक्षतापूर्ण उपयोग करने के बाद नई तकनीक विकसित करते हुए अपने देश को समृद्ध एवं विकसित बना दिया है। इस प्रकार मानव-पूँजी अन्य सभी संसाधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 7.
बेरोजगारी के प्रमुख परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बेरोजगारी के प्रमुख परिणाम इस प्रकार हैं

  1.  किसी अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोजगारी का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बेरोजगारी में वृद्धि मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था की सूचक है।
  2. बेरोजगार युवा धोखेबाजी, चोरी, कत्ल एवं आतंकवाद जैसी समाजविरोधी गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं।
  3. किसी व्यक्ति के साथ-साथ समाज की जीवन गुणवत्ता पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है जो अंततः स्वास्थ्य स्तर में गिरावट एवं स्कूल प्रणाली में बढ़ती गिरावट का कारण बनती है।
  4.  बेरोजगारी जनशक्ति संसाधन की बर्बादी का कारण बनती है। जो लोग देश के लिए एक परिसंपत्ति होते हैं वे देश के लिए दायित्व बन जाती हैं।
  5.  बेरोजगारी आर्थिक बोझ में वृद्धि करने की कोशिश करती है। बेरोजगारों की कार्यरत जनसंख्या पर निर्भरता बढ़ जाती है।

प्रश्न 8.
भारत में लोगों की जीवन प्रत्याशी बढाने के लिए क्या प्रयास किए गए हैं?
उत्तर:
भारत में लोगों की जीवन प्रत्याशा बढ़ाने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए थे

  1. बच्चों की संक्रमण से रक्षा, जच्चा-बच्चा देख-रेख एवं पोषण के कारण शिशु मृत्युदर में कमी आई है। शिशु मृत्युदर जो सन् 1951 में 147 थी वह कम हो कर 2001 में 63 रह गई।
  2.  जनसंख्या के अल्प-सुविधा प्राप्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण एवं पोषण सेवाओं में सुधार। शिशु मृत्यु दर जो 1951 में 25 प्रति हजार थी वह 2001 में घट कर 8.1 प्रति हजार हो गई।
  3. जीवन प्रत्याशी 2011 में बढ़कर 64 वर्ष से अधिक हो गई है। आयु में वृद्धि होना आत्मविश्वास के साथ जीवन की उच्च गुणवत्ता का सूचक है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि लोग किस प्रकार संपत्ति के रूप में संसाधन होते हैं?
उत्तर:
किसी देश के लोग उस देश के लिए वास्तविक एवं बहुमूल्य संपत्ति होते हैं। इसे निम्नलिखित आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है–

  1. मानव साधन की गुणवत्ता लोगों के आर्थिक एवं सामाजिक स्तर का चिन्ह या पहचान है। इस प्रकार मानव विकास को वृद्धि की आवश्यकता है।
  2. स्वस्थ, शिक्षित, कुशल एवं अनुभवी लोग राष्ट्र की संपत्ति होते हैं जबकि अस्वस्थ, अशिक्षित, अकुशल एवं अनुभवहीन लोग एक बोझ हैं।
  3. मानवीय संसाधन सभी आर्थिक क्रियाओं का अत्याज्य साधन है। सभी उत्पादित क्रियाओं को भूमि, श्रम, पूँजी, संगठन एवं उद्यम जो उत्पादन के साधन हैं और उसकी आवश्यकता होती है।
  4. इन साधनों में से श्रम, संगठन एवं उद्यम मानवीय संसाधन हैं। इसके बिना उत्पादित क्रियाएँ संभव नहीं हैं।
  5. मानवीय साधन उत्पादन का केवल आवश्यक तत्व ही नहीं बल्कि यह अन्य उत्पादन के साधनों को भी कार्यशील बनाता है।

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प्रश्न 2.
संगठित क्षेत्र में महिला रोजगार वृद्धि हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
उत्तर:
संगठित क्षेत्र में महिला रोजगार बढ़ाने के लिए किए जाने वाले प्रमुख प्रयास

  1. महिलाओं की शिक्षा, प्रशिक्षण एवं घर से बाहर कार्य करने के संबंध में पारंपरिक विचार को परिवर्तित करने के लिए समाज में सार्वजनिक चेतना का विकास किया जाना चाहिए।
  2. महिलाओं के कार्य के दौरान उनके बच्चों की देख-रेख के लिए शिशुपालन केन्द्र (creches) की व्यवस्था होनी चाहिए।
  3. महिलाओं को अधिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए।
  4. नियुक्तिकर्ताओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए कि महिलाओं को रोज़गार प्रदान करें।
  5. महिलाओं के कार्य के लिए आवासीय स्थान प्रदान करना चाहिए। कार्य करने वाली महिलाओं के लिए छात्रावास बनाए जाने चाहिए।

प्रश्न 3.
महिलाओं द्वारा किए जाने वाले गैर-भुगतान कार्य को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
महिलाओं द्वारा संपादित गैर भुगतान कार्य निम्नलिखित हैं

  1.  कल्याण क्रियाएँ-मानवीय रूप से कल्याण के लिए दी गई सेवाएँ एवं पिछड़े लोगों को ऊपर उठाने के लिए | किए गए कार्यों का भुगतान नहीं किया जाता।
  2.  सांस्कृतिक क्रियाएँ–सांस्कृतिक क्रियाओं में महिलाओं के योगदान जैसे-नृत्य, नाटक, गीत आदि से उनको कोई कमाई नहीं होती।
  3. धार्मिक क्रियाएँ–कीर्तन, भजन, धार्मिक गान, भगवती जागरण आदि सेवाएँ गैर भुगतान होती हैं।
  4. मनोवैज्ञानिक एवं आवश्यकताओं की संतुष्टि की क्रियाएँ-उपरोक्त क्रियाओं के अतिरिक्त अन्य सेवाएँ जो निजी, भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक खुशी की संतुष्टि के उद्देश्य से की जाती हैं वह भी भुगतान प्राप्त नहीं करती।
  5. घरेलू क्रियाएँ-महिलाओं को घरेलू सेवाएँ प्रदान करने की आवश्यकता होती है जैसे-खाना बनाना, सफाई, धुलाई, कपड़े धोना आदि। जिनके लिए उन्हें भुगतान नहीं किया जाता है। उन्हें सब कार्य उनके उत्तरदायित्व पर करने होते हैं।
  6. दान क्रियाएँ-पड़ोसियों, कमज़ोरों एवं गरीब लोगों को दान के रूप में सेवाएँ प्रदान करने का भी भुगतान नहीं किया जाता।
  7. सामाजिक सेवाएँ समाज के लाभ के लिए प्रदान की गई सेवाएँ जैसे-गरीबों को शिक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा एवं सफाई के लिए भी भुगतान प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 4.
“मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण निवेश है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिक्षा मानव पूँजी निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि जनसंख्या शिक्षित नहीं होगी तो वह उत्तरदायित्व में बदल जाएगी। उचित शिक्षा प्रदान करके हम किसी बच्चे को अच्छी तरह विकसित एवं कोई भी काम करने योग्य बना सकते हैं। इस प्रकार शिक्षा श्रम की गुणवत्ता में सुधार करती हैं। इससे सकल उत्पादकता में वृद्धि होती है जो अर्थव्यवस्था की विकास दर में वृद्धि (UPBoardSolutions.com) करती है।
बदले में यह व्यक्ति को वेतन एवं अन्य विकल्प प्रदान करती है।
मानव संसाधन विकास में शिक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। शिक्षा एवं कौशल किसी व्यक्ति की आय को निर्धारित करने वाले मुख्य कारक हैं। किसी बच्चे की शिक्षा और प्रशिक्षण पर किए गए निवेश के बदले में वह भविष्य में अपेक्षाकृत अधिक आय एवं समाज में बेहतर योगदान
के रूप में उच्च प्रतिफल दे सकता है। शिक्षित लोग अपने बच्चों की शिक्षा पर अधिक निवेश करते पाए जाते हैं। इसका कारण यह है कि उन्होंने स्वयं के लिए शिक्षा का महत्त्व जान लिया है।

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प्रश्न 5.
भारत में बच्चों में शिक्षा के प्रसार हेतु सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
उत्तर:
भारत में बच्चों में शिक्षा के प्रसार हेतु सरकार ने निम्न कदम उठाए हैं-

  1. हमारे संविधान में प्रावधान है कि राज्य सरकारें 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को सार्वभौमिक निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराएगी। हमारी केन्द्र सरकार ने वर्ष 2010 तक 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देने के लिए “सर्व शिक्षा अभियान के नाम से एक योजना प्रारंभ की है।
  2.  लड़कियों की शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है।
  3.  प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय जैसे विशेष स्कूल खोले गए हैं।
  4. उच्च विद्यालय के छात्रों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से व्यावसायिक पाठ्यक्रम विकसित किए गए हैं।
  5. स्कूल उपलब्ध कराने के साथ ही यह लोगों को उनके बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करने एवं बीच में पढ़ाई छोड़ने को हतोत्साहित करने हेतु कुछ गैर-पारंपरिक उपाय कर रही है।
  6. उपस्थिति को प्रोत्साहित करने व बच्चों को स्कूल में बनाए रखने और उनके पोषण स्तर को बनाए रखने के लिए दोपहर की भोजन योजना लागू की गई है।
  7. कामकाजी वयस्कों एवं खानाबदोश परिवारों के बच्चों के लिए रात्रि स्कूल एवं मोबाइल स्कूल उपलब्ध कराए गए हैं।
  8. दसवीं पंचवर्षीय योजना ने इस योजना के अंत तक 18 से 23 वर्ष तक की आयु समूह के युवाओं में उच्चतर शिक्षा हेतु नामांकन वर्तमान 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 9 प्रतिशत करने का प्रयास किया।
  9. यह योजना दूरस्थ शिक्षा, अनौपचारिक, दूरस्थ एवं सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षण संस्थानों के अभिसरण पर भी केंद्रित हैं।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 6 किसान और काश्तकार

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 6 किसान और काश्तकार

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 6 किसान और काश्तकार.

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अठारहवीं शताब्दी में इंग्लैंड की ग्रामीण जनता खुले खेत की व्यवस्था को किस दृष्टि से देखती थी। संक्षेप में व्याख्या करें।
इस व्यवस्था को-

  1. एक संपन्न किसान,
  2. एक मजदूर,
  3. एक खेतिहर स्त्री।

की दृष्टि से देखने का प्रयास करें।
उत्तर:
(1) एक संपन्न किसान की दृष्टि में – 16वीं शताब्दी में जब ऊन की कीमतें बढ़ीं तो संपन्न किंसानों ने साझा भूमि की सबसे अच्छी चरागाहों की निजी पशुओं के बाड़बंदी शुरू कर दी। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था
कि भेड़ी को अच्छा चारा मिल सके। उन्होंने गरीब लोगों को भी बाहर खदेड़ना शुरू कर दिया और उन्हें साझा भूमि पर पशु चराने से भी मना कर दिया। बाद में 18वीं सदी के मध्य (UPBoardSolutions.com) में इस बाड़बंदी को कानूनी मान्यता देने के लिए ब्रिटिश संसद ने 4,000 से अधिक अधिनियम पारित किए।

(2) एक मजदूर की दृष्टि में – गरीब मजदूरों के जीवित बने रहने के लिए साझा भूमि बहुत आवश्यक थी। यहाँ वे अपनी गायें, भेड़े आदि चराते थे और आग जलाने के लिए जलावन तथा खाने के लिए कंद-मूल एवं फल इकट्ठा करते थे। वे नदियों तथा तालाबों में मछलियाँ पकड़ते थे, और साझा वनों में खरगोश का शिकार करते थे।

(3) एक खेतिहर स्त्री की दृष्टि में – खेतिहर महिला प्रायः खुले खेतों पर अपने परिवार के सदस्यों के साथ कार्य करती थी। साझी भूमि से वह घरेलू कार्यों के लिए ईंधन एकत्रित करती थी तथा चरागाहों में पशुओं को चराने में सहयोग करती थी। इस प्रकार खुले खेतों के अतिरिक्त साझी भूमि ही उसके आर्थिक विकास का एकमात्र साधन थी। वे अपने पशुओं को चराने, फल और जलावन एकत्र करने के लिए साझा भूमि का प्रयोग करते थे। यद्यपि खुले खेतों के गायब हो जाने से इन सभी क्रियाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। जब (UPBoardSolutions.com) खुली खेत प्रणाली समाप्त होना प्रारंभ हुई, वनों से जलाने के लिए जलावन एकत्र करना या साझा भूमि पर पशु चराना अब संभव नहीं था। वे कंद-मूल एवं फल इकट्ठा नहीं कर सकते थे या मांस के लिए छोटे जानवरों का शिकार नहीं कर सकते थे।

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प्रश्न 2.
इंग्लैण्ड में हुए बाड़बंदी आंदोलन के कारणों की संक्षेप में व्याख्या करें।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में बाड़बंदी आंदोलन को प्रोत्साहित करने वाले सभी कारण अंततः लाभ कमाने के उद्देश्य से प्रेरित थे।
इनमें से कुछ कारक इस प्रकार थे-

  1. पौष्टिक चारा फसलों की कृषि के लिए-ऊन के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए पौष्टिक चारा फसलों की तथा पशुओं की नस्ल सुधारने की आवश्यकता थी। इसलिए अपने पशुओं को गाँव के अन्य पशुओं से अलग रखने तथा पौष्टिक चारा फसलों के उत्पादन के लिए भी संपन्न किसानों ने अपने खेतों की बाड़ाबंदी आरंभ कर दी।
  2. अनाज की माँग में वृद्धि-18वीं सदी के अंतिम दशकों में बाड़ाबंदी आंदोलन तेजी से सारे इंग्लैण्ड में फैल गया। इसका मूल कारण दुनिया के सभी भागों में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण अनाज की बढ़ती हुई माँग थी। किसानों ने अपनी भूमियों की बाड़ाबंदी आरंभ (UPBoardSolutions.com) कर दी जिससे उनमें अधिक-से-अधिक अनाज उगाना संभव हो सके।
  3. ऊन के मूल्यों में वृद्धि-16वीं सदी के आरंभ से ही ऊन के मूल्यों में होने वाली वृद्धि ने इंग्लैण्ड के किसानों को अधिक-से-अधिक भेड़ों को पालने के लिए प्रोत्साहित किया।
  4. साझा भूमि पर अधिकार संपन्न किसान अपनी भूमि का विस्तार करना चाहते थे जिससे वे अधिक निजी चरागाह बना सकें। इसके लिए उन्होंने साझा भूमियों को काटकर उस पर बाड़ाबंदी आरंभ कर दी।

प्रश्न 3.
इंग्लैण्ड के गरीब किसान थेसिंग मशीन का विरोध क्यों कर रहे थे?
उत्तर:
इंग्लैण्ड के गरीब किसान श्रेसिंग मशीन का विरोध इसलिए कर रहे थे, क्योंकि-

  1. इसने फसल की कटाई के समय कामगारों के लिए रोजगार के अवसर कम कर दिए। इससे पहले मजदूर खेतो ंमें विभिन्न काम करते हुए जमींदार के साथ बने रहते थे। बाद में, उन्हें केवल फसल कटाई के समय ही काम पर रखा जाने लगा।
  2. अधिकतर मजदूर आजीविका के साधन गवाँ कर बेरोजगार हो गए। इसलिए वे औद्योगिक मशीनों का विरोध कर रहे थे।
  3. फ्रांस के विरुद्ध युद्ध समाप्त होने पर गाँवों में वापस लौटे सैनिकों के लिए रोजगार की आवश्यकता थी परन्तु मशीनीकरण ने रोजगार के अवसर सीमित कर दिए थे।

प्रश्न 4.
कैप्टन स्विंग कौन था? यह नाम किस बात का प्रतीक था और वह किन वर्गों का प्रतिनिधित्व करता था?
उत्तर:
कैप्टन स्विंग एक मिथकीय नाम था जिसका प्रयोग धमकी भरे खतों में श्रेसिंग मशीनों और जमींदारों द्वारा मजदूरों को काम देने में आनाकानी के ग्रामीण अंग्रेज विरोध के दौरान किया जाता था। कैप्टन स्विंग के नाम ने जमींदारों को चौकन्ना कर दिया। उन्हें यह खतरा सताने लगा कि कहीं (UPBoardSolutions.com) हथियारबंद गिरोह रात में उन पर भी हमला न बोल दें और इस कारण बहुत सारे जमींदारों ने अपनी मशीनें खुद ही तोड़ डालीं। कैप्टन स्विंग, सम्पन्न किसानों के विरुद्ध मजदूरों तथा बेरोजगारों के उग्र विचारों का प्रतीक था। वह भूमिहीन मजदूरों तथा बेरोजगारों के एक बड़े समूह का प्रतिनिधित्व करता था।

प्रश्न 5.
अमेरिका पर नए अप्रवासियों के पश्चिमी प्रसार को क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अमेरिका पर नए अप्रवासियों के पश्चिमी प्रसार के प्रभाव-

  1. वनों के कटाव तथा घास भूमियों के विनाश ने अमेरिका के पर्यावरण संतुलन को नष्ट कर दिया जिसके कारण देश के दक्षिण-पश्चिमी भागों में धूलभरी आँधियाँ चलने लगीं तथा वर्षा की मात्रा में कमी आने लगी।
  2. नए प्रवासियों के पश्चिमी प्रसार के क्रम में बड़ी संख्या में वनों और घास भूमियों को कृषि क्षेत्रों में बदल दिया गया।
  3. इन क्षेत्रों में रहने वाले मूल निवासियों को (UPBoardSolutions.com) पश्चिमी तथा दक्षिणी भागों की ओर विस्थापित कर दिया गया।
  4. श्वेत आबादी तथा कृषि के पश्चिमी विस्तार के कारण शीघ्र ही अमेरिका विश्व का प्रमुख गेहूँ उत्पादक देश बन गया।

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प्रश्न 6.
अमेरिका में फसल काटने वाली मशीन के फायदे-नुकसान क्या-क्या थे?
उत्तर:
अमेरिका में फसल काटने वाली मशीनों के लाभ-

  1. गेहूं के उत्पादन में तीव्र वृद्धि संभव-फसल काटने की नई मशीनों के प्रयोग से ही गेहूं का बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हो सका जिसके कारण शीघ्र ही अमेरिका विश्व का प्रमुख गेहूँ उत्पादक देश बन गया।
  2. समय की बचत-सन् 1831 में अमेरिका में साइरस मैककार्मिक नामक व्यक्ति ने फसल काटने की एक मशीन बनाई जिससे 15 दिन में 500 एकड़ (UPBoardSolutions.com) भूमि पर कटाई संभव थी।
  3. बड़े फार्मों पर कृषि संभव–कटाई की नई-नई मशीनों के फलस्वरूप ही विशाल आकार के खेतों पर कृषि कार्य संभव हो सका। नई मशीनों की सहायता से 4 आदमी मिलकर एक सीजन में 3,000 से 4,000 एकड़ भूमि पर फसल का उत्पादन कर सकते थे।
    अमेरिका में फसल काटने वाली मशीन से हानि-

    1. निर्धन किसानों के लिए अभिशाप-अनेक छोटे किसानों ने भी बैंकों के ऋण की सहायता से इन मशीनों को खरीदा परंतु अचानक गेहूँ की माँग में कमी ने इन किसानों को बर्बाद कर दिया।
    2. बेरोजगारी में वृद्धि–फसल कटाई की नई-नई मशीनों के कारण मजदूरों की माँग में तेजी से कमी आई जिसके कारण भूमिहीन मजदूरों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट उपस्थित हो गया।

प्रश्न 7.
अमेरिका में गेहूं की खेती में आए उछाल और बाद में पैदा हुए पर्यावरण संकट से हम क्या सबक ले सकते हैं?
उत्तर:
अमेरिका में गेहूं की खेती में आए तेज उछाल के चलते कृषि के अंतर्गत और अधिक क्षेत्रों को शामिल करने के उद्देश्य से बड़े पैमाने पर वन एवं घास भूमियों को साफ किया गया। एक व्यापक प्रयास के चलते अमेरिका शीघ्र ही विश्व का अग्रणी गेहूँ उत्पादक देश बन गया। लेकिन इसके (UPBoardSolutions.com) फलस्वरूप पश्चिम एवं दक्षिण अमेरिका में एक नया पर्यावरण संकट उत्पन्न हो गया जिससे सारा क्षेत्र धूल भरी आँधियों से ढंक गया और यह प्राकृतिक आपदा बड़ी संख्या में मनुष्य एवं पशुओं की मृत्यु का कारण बनी।

इस घटना से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि हमें अपने आर्थिक हितों के लिए पर्यावरण का अनियंत्रित और अवैज्ञानिक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। हमें मानव विकास के ऐसे रास्ते तलाश ने चाहिए जिससे पर्यावरण को क्षति पहुँचाए बिना मानव विकास को उच्च स्तर पर स्थापित किया जा सके।

प्रश्न 8.
अंग्रेज अफीम की खेती करने के लिए भारतीय किसानों पर क्यों दबाव डाल रहे थे?
उत्तर:
अंग्रेज निम्नलिखित कारणों से अफीम की खेती के लिए भारतीय किसानों पर दबाव डाल रहे थे-

  1. भारत के अनेक क्षेत्रों की जलवायु अफीम की खेती के लिए उपयुक्त थी।
  2. इंग्लैण्ड में चाय अत्यधिक लोकप्रिय हो गई। किन्तु इंग्लैण्ड के पास धन देने के अतिरिक्त ऐसी कोई वस्तु नहीं थी जो वे चाय के बदले में चीन में बेच सकें। किन्तु ऐसा करने से इंग्लैण्ड अपने खजाने को हानि पहुँचा रहा था। यह देश के खजाने को हानि पहुँचा कर (UPBoardSolutions.com) इसकी संपत्ति को कम कर रहा था। इसलिए व्यापारियों ने इस घाटे को रोकने के तरीके सोचे। उन्होंने एक ऐसी वस्तु खोज निकाली जिसे वे चीन में बेच सकते थे और चीनियों को उसे खरीदने के लिए मना सकते थे।
  3. अफीम ऐसी वस्तु थी। इसलिए अंग्रेज अफीम की खेती करने के लिए भारतीय किसानों पर दबाव डाल रहे थे।
  4. अंग्रेजों को चीन से चाय खरीदने के लिए उसको मूल्य चाँदी के सिक्कों में चुकाना पड़ता था परंतु अंग्रेज इस चाँदी को बचाने के लिए भारतीय अफीम को चीन में बेचते थे। अफीम से प्राप्त आय से ही वह वहाँ से चाय खरीदते थे और उसे यूरोप में बेचकर दोहरा लाभ कमाते थे।

प्रश्न 9.
भारतीय किसान अफीम की खेती के प्रति क्यों उदासीन थे?
उत्तर:
भारतीय किसान निम्नलिखित कारणों से अफीम की खेती करने के प्रति उदासीन थे-

  1. जिन किसानों के पास अपनी भूमि नहीं थी। वे जमींदारों से भूमि पट्टे पर लेकर खेती करते थे। इसके लिए उन्हें किराया देना पड़ता। गाँव के निकट स्थित अच्छी भूमि के लिए जमींदार बहुत अधिक किराया वसूल करते थे।
  2. अफीम की खेती गाँवों के निकट स्थित सबसे उपजाऊ भूमि पर उगानी पड़ती थी। भूमि में अत्यधिक खाद भी डालनी पड़ती थी। किसान ऐसी भूमि पर प्रायः दालें उगाया करते थे। यदि वे इस भूमि पर अफीम उगाते, तो दालों को घटिया भूमि पर उगाना पड़ता। परिणामस्वरूप दालों का उत्पादन बहुत ही कम होता।
  3. अफीम की खेती करना एक कठिन प्रक्रिया थी। इसका पौधा नाजुक होता था इसलिए फसल को अच्छी तरह पोषण करने के लिए बहुत अधिक (UPBoardSolutions.com) समय लग जाता था। परिणामस्वरूप उनके पास अन्य फसलों की देखभाल करने के लिए समय नहीं बच पाता था।
  4. सरकार किसानों को उनके द्वारा उगाई गई अफीम का बहुत ही कम मूल्य देती थी। इतनी कम कीमत पर अफीम की खेती करने में किसानों को लाभ की बजाय हानि उठानी पड़ती थी। अफीम को बेचने से होने वाला लाभ अंग्रेजों की जेब में जाता था।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अमेरिका के आदिम जनजातीय समुदाय के लोग किस तरह से जीवन-यापन करते थे?
उत्तर:
महान् खोजकर्ता कोलंबस द्वारा अमेरिका की खोज करने से पहले इस भू-भाग पर अनेक आदिम जनजातियाँ निवास करती थीं, जिन्हें भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता था। 15वीं शताब्दी में यूरोपीय लोगों के अमेरिका में आगमन पर मूल जनजातीय समुदाय अमेरिका के पश्चिमी (UPBoardSolutions.com) और दक्षिणी भागों में पीछे हटने लगी। जनजातीय समुदाय के लोग मक्का, फलियों, तंबाकू और कुम्हड़े की कृषि करते थे। इस समुदाय के कुछ लोग शिकार करके, खाद्य पदार्थों का संकलन करके तथा मछलियाँ पकड़कर अपना भरण-पोषण और जीवन-यापन करते थे।

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प्रश्न 2.
यूरोपीय लोग अमेरिका की तरफ क्यूँ आकृष्ट हुए?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों को अमेरिका में अनेक संभावनाएँ नजर आती थीं। अमेरिका में कृषि भूमि विस्तार, वन उत्पादों का निर्यात एवं खनिज संपदा को दोहन आदि के कारण यूरोपीय लोग अमेरिका की ओर आकर्षित हुए।

प्रश्न 3.
चीन में अफीम के व्यापार की शुरुआत किस देश ने की थी?
उत्तर:
पुर्तगाल ने चीन में अफीम व्यापार की शुरुआत की थी।

प्रश्न 4.
अंग्रेज व्यापारी चीन को चाय का मूल्य किस रूप में चुकाते थे?
उत्तर:
अंग्रेज व्यापारी चाय के बदले चाँदी के सिक्के (बुलियन) का भुगतान करते थे।

प्रश्न 5.
1750 से 1900 ई. के मध्य इंग्लैण्ड की जनसंख्या कितने गुना बढ़ी थी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड की जनसंख्या में 1750 से 1900 ई० की अवधि के बीच चार गुना की वृद्धि हुई।

प्रश्न 6.
वे दो फसलें कौन-सी हैं जिनसे मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है?
उत्तर:
मृदा में नाइट्रोजन की वृद्धि करने वाली दो फसलें शलजम और तिपतिया घास है।

प्रश्न 7.
इंग्लैण्ड के किस भाग में सघन कृषि की जाती थी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड के मध्य भाग में सघन कृषि की जाती थी।

प्रश्न 8.
निर्धन किसानों को साझा भूमि से प्राप्त होने वाले दो लाभ बताइए।
उत्तर:

  1. पशुओं के लिए चरागाह की प्राप्ति।
  2. जलावन के लिए लकड़ी की प्राप्ति।

प्रश्न 9.
खलिहान जलने की पहली घटना इंग्लैण्ड के किस भाग में घटित हुई?
उत्तर:
खलिहान जलने की प्रथम घटना इंग्लैण्ड के उत्तर-पश्चिम भाग में घटित हुई।

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प्रश्न 10.
विश्व के किस देश को ‘रोटी की टोकरी’ कहा जाता था?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका को रोटी की टोकरी’ कहा जाता था।

प्रश्न 11.
त्रिकोणीय व्यापार में शामिल देश कौन-से थे?
उत्तर:
भारत, चीन और इंग्लैण्ड त्रिकोणीय व्यापार में शामिल देश थे।

प्रश्न 12.
अंग्रेज सरकार के सरकारी आय का प्रमुख स्रोत क्या था?
उत्तर:
भू-राजस्व अंग्रेज सरकार के सरकारी आय को प्रमुख स्रोत था।

प्रश्न 13.
18वीं सदी के अंत तक अमेरिका के कितने भू-भाग पर वन थे?
उत्तर:
18वीं सदी के अंत तक अमेरिका की 80 करोड़ एकड़ भूमि पर वन थे।

प्रश्न 14.
1830 ई. से पहले फसल की कटाई के लिए किस औजार का प्रयोग होता था?
उत्तर:
1830 ई. से पहले फसल काटने के लिए हंसिए का प्रयोग होता था।

प्रश्न 15.
प्लासी का युद्ध कब हुआ था?
उत्तर:
प्लासी का युद्ध 1757 ई. में हुआ था।

प्रश्न 16.
फसल काटने की पहली मशीन किसने बनायी थी?
उत्तर:
साइरस मैक्कॉर्मिक ने सन् 1831 ई. में प्रथम फसल काटने की मशीन बनाई थी।

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प्रश्न 17.
रेतीला तूफान या काला तूफान क्या है?
उत्तर:
अमेरिका में गेहूं की खेती का विस्तार 1930 ई. के दशक में भयानक रेतीले तूफानों का कारण बना। 1930 ई. के दशक में दक्षिण अमेरिकी मैदानों में आने वाली तबाही फैलाने वाले भयानक रेतीले तूफानों को ‘काला तूफान कहा गया।

प्रश्न 18.
रेतीले तूफानों के परिणाम बताइए।
उत्तर:
रेतीले तूफानों के आने से प्रभावित क्षेत्र में अँधेरा छा जाता था और ऊपर से रेत गिरता था जिससे लोग अन्धे हो जाते थे और लोगों का दम घुटने लगता था। पशु बड़ी संख्या में दम घुटने से मारे जाते थे। ट्रैक्टर और मशीने रेत के ढेरों में फंसकर इतने बेकार हो गए थे कि उनकी मरम्मत कर पाना संभव नहीं था।

प्रश्न 19.
19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में अमेरिका में गेहूँ उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि के लिए उत्तरदायी कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अमेरिका में 19वीं शताब्दी में गेहूं उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि के लिए निम्न कारण उत्तरदायी थे-

  1. गेहूं की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि होना।
  2. अमेरिका की नगरीय जनसंख्या में तेजी से वृद्धि।
  3. निर्यात बाजार को बढ़ावा देना।

प्रश्न 20.
इंग्लैण्ड के किसान 1660 ई. के दशक में किस फसल की खेती करने लगे थे?
उत्तर:
इस अवधि में इंग्लैण्ड के कई हिस्सों में किसान शलजम और तिपतिया घास की खेती करने लगे थे। उन्हें शीघ्र ही यह एहसास हो गया कि इन दोनों फसलों की खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। साथ ही शलजम को पशु बड़े चाव से खाते थे।

प्रश्न 21.
इंग्लैण्ड के ग्रामीण लोगों ने खुले खेतों और कॉमन्स जमीनों का प्रयोग किस प्रकार किया?
उत्तर:
ऐसी सामूहिक भूमि जिस पर सभी ग्रामीणों का अधिकार होता था। यहाँ वे अपने मवेशी और भेड़ बकरियाँ चराते थे। इस भू-भाग पर वे लकड़ियाँ और कंद-मूल फल एकत्रित करते थे। वे लोग जंगल में शिकार करते तथा नदियों एवं तालाबों से मछली पकड़ने का कार्य करते थे। निर्धन वर्ग के लिए यह (UPBoardSolutions.com) सामूहिक भूमि जीवन-यापन का आधारभूत साधन थी। इस भू-भाग के माध्यम से वे लोग अपनी आय बढ़ाते तथा पशुपालन करते थे।

प्रश्न 22.
खुले खेतों और कॉमन्स भूमि का आवंटन किस तरह किया जाता था?
उत्तर:
18वीं सदी के अंतिम वर्षों में इंग्लैण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत खुलापन पाया जाता था। जमीन भू-स्वामियों की निजी संपत्ति नहीं होती है और इस भूमि की बाड़ाबंदी भी नहीं की गयी थी। किसान अपने गाँवों के निकटवर्ती क्षेत्रों में कृषि कार्य करते थे। प्रत्येक वर्ष के आरंभ में एक सभा बुलाई जाती थी जिसमें गाँव के प्रत्येक व्यक्ति की भूमि के टुकड़े बाँट दिए जाते थे।

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प्रश्न 23.
बंगाल और बिहार के किसानों के लिए औपनिवेशिक सरकार द्वारा आरंभ, की गयी पेशगी प्रणाली क्या थी?
उत्तर:
बंगाल व बिहार को औपनिवेशिक सरकार द्वारा अफीम की खेती करने के लिए अग्रिम धन की अदायगी की जाती थी, जिसे पेशगी कहते थे। इस पेशगी की एवज में उन्हें अफीम की खेती करने को विवश किया जाता था। इस तरह इस क्षेत्र के किसान फसल एजेंटों के अधीन हो गए।

प्रश्न 24.
अंग्रेजों द्वारा चीन में अफीम के व्यापार को चीन के लोगों पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
अंग्रेजों द्वारा चीन में अफीम का व्यापार विस्तार करने से चीन के लोग अफीम के आदी हो गए। यह अफीम की लत चीन के समाज के सभी वर्गों जैसे-दुकानदार, सरकारी कर्मचारी, सैनिक, उच्च वर्ग और भिखारियों तक में फैल गयी। 1839 ई० में कैंटन के विशेष आयुक्त लिन जेशू के अनुसार चीन (UPBoardSolutions.com) में 40 लाख लोग अफीम का सेवन कर रहे थे। कैंटन में रहने वाले एक अंग्रेज डॉक्टर के अनुसार उस समय चीन में लगभग 1 करोड़ 20 लाख व्यक्ति अफीम के नशे के आदी थे।

प्रश्न 25.
भारत में अफीम के उत्पादन में वृद्धि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1767 ईo से पहले भारत से मात्र 500 पेटी अफीम निर्यात की जाती थी। अगले चार वर्ष के अंदर यह मात्रा बढ़कर 1,500 पेटी हो गयी। 1870 ई0 तक प्रतिवर्ष भारत से 50,000 पेटी अफीम निर्यात की जाने लगी। इस प्रकार जैसे-जैसे भारत से अफीम का निर्यात चीन में बढ़ता गया वैसे-वैसे, भारत में अफीम के उत्पादन में वृद्धि होती गयी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कृषि मशीनों के विकास को किसानों पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:

  1. नवीन कृषि मशीनें कृषकों के लिए अभिशाप सिद्ध हुईं। अनेक किसानों ने इस आशा के साथ कृषि मशीनों को खरीदा कि गेहूँ के मूल्यों में तेजी बनी रहेगी। इन किसानों को बैंक सरलता पूर्वक ऋण दे देते थे। लेकिन इस ऋण को चुकाना उन किसानों के लिए कठिन होता था। बैंक ऋण समय पर न चुका पाने की स्थिति में किसान अपनी जमीनें गंवा बैठे। ऐसे में जीविकाविहीन किसानों को नए सिरे से रोजगार की तलाश करनी पड़ती थी।
  2. इस समयावधि में निर्धन किसानों को सरलता से रोजगार नहीं मिल पाता था। बिजली से चलने वाली मशीनों के प्रचलन में आने से मजदूरों की माँग (UPBoardSolutions.com) अत्यधिक घट गयी थी।
  3. प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं की माँग घटने लगी, लेकिन उत्पादन ज्यादा होने से बाजार गेहूँ से पट गया। फलस्वरूप गेहूं का मूल्य गिरने लगा। गेहूं का निर्यात लगभग बंद हो गया। ज्यादातर किसानों के सम्मुख ऋणग्रस्तता का संकट उपस्थित हो गया। इस मंदी का प्रभाव समाज के सभी वर्गों पर पड़ा। 1930 ई. की विश्वव्यापी मंदी के लिए कृषि मंदी को महत्त्वपूर्ण कारण माना जाता है।

प्रश्न 2.
चीन के लोगों को अफीम का आदी कैसे बनाया गया?
उत्तर:
चीन के लोग अफीम के आदी हो गए थे, इस बात से वहाँ के लोग चिंतित थे। चीन के शासकों ने औषधीय उपयोग के अतिरिक्त अफीम के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। किन्तु 18वीं सदी के मध्य में पश्चिम के व्यापारियों ने अफीम का अवैध व्यापार करना आरंभ कर दिया। चीन के दक्षिण-पूर्वी बंदरगाहों पर अफीम जहाजों से उतारी जाती थी, और वहाँ से स्थानीय एजेंटों के माध्यम से देश के आंतरिक हिस्सों में इसे पहुँचाया जाता था। 1820 ई0 के दशक की शुरुआत में प्रतिवर्ष लगभग 10,000 क्रेट अवैध रूप से चीन (UPBoardSolutions.com) में मँगवाए जाते थे। 15 वर्ष बाद प्रतिवर्ष अफीम के लगभग 35,000 क्रेट उतारे जाने लगे थे। शीघ्र ही चीन के लगभग सभी वर्ग के लोग अफीम का सेवन करने लगे। संपन्न तो संपन्न भिखारी भी चीन में अफीम के बिना नहीं रह सकते थे। सन् 1839 तक चीन में अफीम का सेवन करने वालों की संख्या बहुत बढ़ गयी थी।

प्रश्न 3.
विशाल मैदानों का पूरा क्षेत्र ‘रेत का कटोरा’ कैसे बन गया?
उत्तर:
अमेरिका में 19वीं सदी की शुरुआत में गेहूं का उत्पादन अत्यधिक बढ़ गया था। ऐसे में किसानों ने लापरवाही से जमीन के यथासंभव हिस्से से समस्त वनस्पति को साफ कर डाली। ट्रैक्टरों की मदद से इस जमीन की मिट्टी को पलट डाला गया और मिट्टी को धूल में बदल दिया। 1930 ई0 के दशक में यह समस्त क्षेत्र विशालकाय रेत के कटोरे में रूपान्तरित हो गया था। इसके पश्चात् अमेरिका के दक्षिणी मैदानों में (UPBoardSolutions.com) भयानक रेतीले तूफान आने लगे। ये तूफान 7,000 से 8,000 फुट की ऊँचाई तक के ऊपरी क्षेत्र आवृत करते हुए गतिशील होते थे। इस तरह अमेरिका का विशाल कृषि क्षेत्र के रूप में परिवर्तित होने का स्वप्न दुःस्वप्न में बदल गया।

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प्रश्न 4.
त्रिकोण व्यापार का अर्थ और विकास स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
18वीं सदी में भारत, चीन और ब्रिटेन के बीच व्यापार को त्रिकोणीय व्यापार की संख्या दी गयी है। अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी चीन से चाय और रेशम खरीद कर उसे इंग्लैण्ड में बेचती थी। जैसे-जैसे चाय लोकप्रिय पदार्थ बन गयी, चाय का व्यापार और महत्त्वपूर्ण बन गया। इस समय तक इंग्लैण्ड कोई भी ऐसी वस्तु नहीं बनाता था जिसे चीन में बेचा जा सके। ऐसी स्थिति में पश्चिमी व्यापारी चाय का व्यापार करने के लिए पैसे का प्रबन्ध नहीं कर सकते थे। वे चाय की खरीद केवल चाँदी के सिक्के (बुलियन) देकर ही कर सकते थे। इसका आशय था कि इंग्लैण्ड का खजाना एक दिन रिक्त हो जाएगा। अंततः अंग्रेजों ने यह निश्चित किया कि अफीम भारत में उगायी जाए और इसे चीन में बेचकर लाभार्जन किया जाए।

प्रश्न 5.
फसल कटाई के यंत्रों में हुए क्रान्तिकारी परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
फसल कटाई के यंत्रों में निम्नलिखित क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए-

  1. अमेरिका में 1830 ई0 के दशक से पूर्व फसल की कटाई के लिए हंसिए का प्रयोग किया जाता था।
  2. खेतों के बड़े आकार के कारण हंसिए की सहायता से फसलों को काटने के लिए बड़ी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता होती थी। इस कार्य में (UPBoardSolutions.com) अत्यधिक पूँजी एवं श्रम की आवश्यकता होती थी। इसलिए किसानों को फसल की कटाई के लिए मशीनों की आवश्यकता हुई।
  3. साइरस मैक्कॉर्मिक नामक व्यक्ति ने 1831 ई0 में एक ऐसी मशीन का आविष्कार किया जो एक साथ 16 मजदूरों के बराबर कटाई कर सकती थी।
  4. 20वीं शताब्दी के आरंभ में ज्यादातर किसान गेहूँ की कटाई के लिए कंबाइंड हार्वेस्टरों का प्रयोग करने लगे। इस मशीन से 15 दिन में 500 एकड़ भूमि पर गेहूं की कटाई की जा सकती थी।

प्रश्न 6.
भारत के अफीम व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत अंग्रेजों द्वारा चीन ले जाकर बेची जाने वाली अफीम का प्रमुख स्रोत था। बंगाल विजय के बाद अंग्रेजों ने अपने कब्जे वाली भूमि पर अफीम की खेती शुरू की। जैसे-जैसे चीन में अफीम की माँग बढ़ती गयी वैसे-वैसे बंगाल के बंदरगाहों से अफीम का निर्यात बढ़ता गया। 1767 ई० से पहले भारत से केवल 500 पेटी (लगभग 2 मन) अफीम का निर्यात होता था, लेकिन 1870 ई0 तक यह निर्यात बढ़कर प्रतिवर्ष 50,000 पेटी हो गया।

प्रश्न 7.
बंगाल के अफीम व्यापार को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने क्या किया?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने 1773 ई0 तक बंगाल में अफीम के व्यापार पर अधिकार कर लिया। ब्रिटिश सरकार के अलावा किसी को अफीम का व्यापार करने की अनुमति नहीं थी। ब्रिटिश सरकार अफीम को सस्ती दरों पर उत्पादित करके इसे कलकत्ता (कोलकाता) स्थित अफीम एजेंटों को ऊँचे दामों पर बेचना चाहती थी जो समुद्री जहाज के माध्यम से इसे चीन भेज सकें। अफीम पैदा करने वाले किसानों को दिया (UPBoardSolutions.com) जाने वाला मूल्य इतना कम होता था कि अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत में किसान बेहतर कीमत की माँग करने लगे थे और पेशगी लेने से मना करने लगे थे।

बनारस के आस-पास के क्षेत्रों में अफीम पैदा करने वाले किसानों ने अफीम की खेती बंद करने का फैसला किया। इसकी अपेक्षा वे अब गन्ने और आलू की खेती करने लगे थे। बहुत से किसानों ने अपनी फसलों को घुमंतू व्यापारियों (पैकारों) को बेच डाला था जो किसानों को बेहतर दाम देते थे। इस स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए सरकार ने रियासतों में तैनात अपने एजेंटों को इन व्यापारियों की अफीम जब्त करने और फसलों को नष्ट करने के आदेश दिए। जब तक अफीम का उत्पादन जारी रहा तब तक ब्रिटिश सरकार, किसानों और स्थानीय व्यापारियों के मध्य यह टकराव चलता रहा।

प्रश्न 8.
भारतीय किसान अफीम की खेती करने को कैसे तैयार हो गए?
उत्तर:

  1. अंग्रेजों ने भारतीय किसानों से अफीम की खेती करवाने के लिए उन्हें अग्रिम धन का भुगतान किया जिसे पेशगी कहते थे। इसका आशय यह है कि अंग्रेजों ने अग्रिम धन भुगतान का प्रलोभन देकर किसानों को अपने जाल में फैंसाया।
  2. उस समय बंगाल और बिहार में किसानों का एक बड़ा वर्ग आर्थिक संकट से गुजर रहा था, ऐसे में पेशगी में दिए धन ने उन्हें कमजोर बनाया।
  3. 1790 ई0 के दशक में सरकार ने गाँव के मुखिया के माध्यम से किसानों को अफीम उगाने के लिए अग्रिम धनराशि (एडवांस) देनी आरंभ कर दी। इससे किसानों की ऋणग्रस्तता में कमी आई परंतु अग्रिम धनराशि लेने के पश्चात् किसान किसी अन्य व्यापारी को अपनी (UPBoardSolutions.com) अफीम नहीं बेच सकते थे।
  4. एक बार फसल को बोने के उपरांत किसान का उसे फसल पर कोई अधिकार नहीं होता था। इस व्यवस्था का सबसे बुरा पक्ष यह था कि फसल के दाम भी एजेंटों द्वारा निर्धारित किए जाते थे जोकि सामान्यतः बाजार भाव से बहुत कम होते थे।

प्रश्न 9.
नवीन कृषि मशीनों से किसानों को क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
नवीन कृषि मशीनों के उपयोग से किसानों को निम्नलिखित लाभ हुए-

  1. नवीन कृषि मशीनों के उपयोग से किसानों का काफी समय बचा। उदाहरण के लिए, 4 आदमी मिलकर एक सीजन में 3,000 से 4,000 एकड़ भूमि में फसल का उत्पादन करते थे।
  2. इन मशीनों से जमीन के बड़े टुकड़ों पर फसल काटने, ढूँठ निकालने, घाट हटाने और भूमि को दोबारा खेती के लिए तैयार करने का काम बहुत आसान हो गया था।
  3. मशीनों के उपयोग से गेहूं के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई जिससे बड़े किसानों को बहुत अधिक लाभ हुआ।

प्रश्न 10.
कृषि में जुताई के यंत्रों ने क्या परिवर्तन किए?
उत्तर:
कृषि में जुताई के यंत्रों के प्रयोग से निम्नलिखित परिवर्तन आए-

  1. अमेरिकी किसान पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ने के क्रम में जब पश्चिमी प्रेयरी के मध्य में पहुँचे तो उनके हल बेकार हो गए जिनका उपयोग वे पूर्वी तटीय प्रदेशों में करते आ रहे थे।
  2. प्रेयरी का प्रदेश घनी घासों से पूरी तरह ढंका हुआ था। इन घासों की जड़े अत्यन्त कठोर थीं। मिट्टी से इन घास की जड़ों को बाहर निकालने के लिए दूसरे प्रकार के हलों का विकास करना पड़ा। इनमें से कुछ हल 12 फुट तक लंबे थे। इन हलों का अग्रभाग छोटे-छोटे पहियों पर टिका हुआ था। इन हलों को खीचने के लिए अधिक शक्ति की आवश्यकता थी, अतः इन्हें 6 (UPBoardSolutions.com) बैल या घोड़े खींचते थे।
  3. 20वीं शताब्दी के आगमन के साथ ही विशाल मैदानों के किसान अपने खेतों को तैयार करने के लिए ट्रैक्टरों तथा डिस्क हलों का प्रयोग करने लगे। इसके पश्चात् कृषि का पूरी तरह यंत्रीकरण हो गया।

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प्रश्न 11.
किस प्रकार अमेरिका में अप्रवासियों का पश्चिम की ओर प्रसार होने के कारण अमेरिकी इण्डियनों को पूरी तरह विनाश हो गया?
उत्तर:
सन् 1775 से 1783 ई0 तक अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम चला। संयुक्त राज्य अमेरिका के गठन के बाद पूर्वी तट से देखने पर अमेरिका पूरी तरह संभावनाओं से भरपूर दिखता था। 1783 ई० तक सात लाख के लगभग श्वेत पश्चिम की ओर दरों के रास्ते अपलेशियन पठारी क्षेत्र में जाकर बस चुके थे। अमेरिका में अप्रवासियों के पश्चिम की ओर प्रसार होने के कारण अमेरिकी इंडियनों का पूरी तरह विनाश हो गया जिन्हें पहले मिसीसिपी नदी के पार और बाद में और भी पश्चिम की ओर खदेड़ दिया गया।

उन्होंने वापसी के लिए संघर्ष किया किन्तु हरा दिए गए। बहुत-सी लड़ाइयाँ लड़ी गईं जिनमें इंडियन लोगों की हत्या किया गया। उनके गाँवों को जला दिया गया और पशुओं को मार डाला गया। | उन्होंने जंगल साफ करके बनाई गई जगहों पर लकड़ी के केबिन बना लिए। फिर उन्होंने बड़े क्षेत्र में जंगलों को साफ करके खेतों के चारों ओर बाड़े लगा दीं इसके बाद इस जमीन की जुताई की और इस जमीन पर उन्होंने मक्का और गेहूँ बो दिया।

प्रश्न 12.
निर्धन लोग बाड़बंद आंदोलन से किस प्रकार प्रभावित हुए?
उत्तर:
बाड़बंद आंदोलन निर्धन लोगों के लिए अभिशाप सिद्ध हुआ क्योंकि-

  1. गरीबों को जमीन से विस्थापित कर दिया गया।
  2. अब उन्हें प्रत्येक चीज को पाने के लिए उसका मूल्य चुकाना पड़ता था।
  3. उनके पारंपरिक अधिकार छीन लिए गए।
  4. उन्हें काम की खोज करनी पड़ी।
  5. गरीब अब न तो जंगल से जलावन की लकड़ी बटोर सकते थे और न ही साझा जमीन पर अपने पशुओं को चरा सकते थे।
  6. वे न तो सेब या कंद-मूल बीन सकते थे और न ही गोश्त के लिए छोटे जानवरों का शिकार कर सकते थे।

प्रश्न 13.
पाठ्य-पुस्तक की पृष्ठ संख्या 129 का ध्यानपूर्वक अवलोकन कीजिए तथा इस चित्र के विश्लेषण पर आधारित निम्न प्रश्नों का उत्तर दीजिए-
UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 6 किसान और काश्तकार
(क) उपर्युक्त चित्र में किस दृश्य को प्रदर्शित किया गया है?
(ख) चित्र में प्रदर्शित घटना कब घटी और इसके क्या कारण थे?
उत्तर:
(क) उपर्युक्त चित्र में काले रेतीले तूफान को दिखाया गया है। 1830 ई0 के दशक में दक्षिण अमेरिका के मैदानों में आने वाले रेतीले तूफानों को ‘काला तूफान’ कहते थे।
(ख) अमेरिका में गेहूं की खेती के लिए वनों का अंधाधुंध विनाश 1930 ई० के दशक में रेतीले तूफानों के लिए उत्तरदायी थे। 19वीं सदी की शुरुआत में महत्त्वाकांक्षी किसानों ने लापरवाही से जमीन के हर संभव हिस्से से सारी वनस्पति साफ कर डाली। ट्रैक्टरों की सहायता से इस जमीन की (UPBoardSolutions.com) मिट्टी को पलट डाला और मिट्टी को धूल में बदल दिया। परिणामतः 1930 के देशक में यह सारा क्षेत्र विशालकाय रेत के कटोरे में बदल गया था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
बाड़बंदी से क्या आशय है? 18वीं सदी में इंग्लैण्ड में जमीन की बाड़बंदी क्यों की गयी?
उत्तर:
इंग्लैण्ड में बाड़बंदी से 18वीं सदी में आशय उस भूमि से था जिसमें भूमि के एक टुकड़े को चारों ओर से बाड़ के माध्यम से घेरा गया हो और जिसके चारों ओर बाड़ लगाई गयी हो। ऐसा करने से एक की भूमि दूसरे से पृथक् हो जाती थी।
जमीन को अन्न के उत्पादन को बढ़ाने के लिए घेरा गया था ताकि इंग्लैण्ड की बढ़ती हुई जनसंख्या का भरण-पोषण किया जा सके जो कि 1750 और 1950 के बीच के समय में चार गुना बढ़कर 1750 में 70 लाख की जनसंख्या से बढ़कर 1850 में 2 करोड़ दस लाख एवं 1900 ई० में 3 करोड़ हो गई थी। इसने जनसंख्या का पेट भरने के लिए अनाज की माँग में वृद्धि कर दी।

ब्रिटेन में औद्योगीकरण के कारण शहरी जनसंख्या में वृद्धि हो गई। ग्रामीण क्षेत्रों से लोग काम की खोज में शहरों में प्रवास कर गए। जिंदा रहने के लिए उन्हें बाजार से अनाज खरीदना पड़ता था जिससे बाजारों का विस्तार हुआ और अंततः अनाज की कीमतें बढ़ गईं।
अठारहवीं सदी के अंत तक फ्रांस का इंग्लैण्ड के साथ युद्ध छिड़ चुका था। इसने यूरोप से आयात किए जाने वाले अनाज एवं व्यापार में व्यवधान डाला। अनाज के दाम बढ़ गए जिसने जमींदारों को बाड़बंदी के लिए प्रोत्साहित किया। लंबे समय के लिए जमीन में निवेश करने एवं भूमि की उर्वरता (UPBoardSolutions.com) को बनाए रखने के लिए अदल-बदल कर फसल बोने की योजना बनाने के लिए बाड़बंद करना जरूरी था। इसलिए संसद ने बाड़बंदी अधिनियम पारित किया।

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प्रश्न 2.
चीन के अफीम व्यापार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
18वीं सदी के अंत तक इंग्लैण्ड में चीन की चाय व रेशम की माँग में अत्यधिक वृद्धि हो गयी थी। इंग्लैण्ड की ईस्ट इंडिया कंपनी चीन से इन वस्तुओं को खरीदकर इंग्लैण्ड में बेचा करती थी। इंग्लैण्ड में चाय की लोकप्रियता बढ़ने के साथसाथ इंग्लैण्ड में इसकी माँग तेजी से बढ़ी। 1785 ई0 के आसपास इंग्लैण्ड में 1.5 करोड़ पौंड चाय का आयात किया जा रहा था।

1830 ई0 तक आते-आते यह आँकड़ा 3 करोड़ पौंड को पार कर चुका था। वास्तव में, इस समय तक ईस्ट इंडिया कंपनी के मुनाफे का एक बहुत बड़ा हिस्सा चाय के व्यापार से पैदा होने लगा था। ईस्ट इंडिया कंपनी की मुख्य समस्या यह थी कि उसके पास चाय के आयात के बदले (UPBoardSolutions.com) चीन को निर्यात करने के लिए कुछ नहीं था। अंग्रेजों को चीनी और चाय का मूल्य सोनेचाँदी में चुकाना पड़ता था। फलस्वरूप इंग्लैण्ड के सोने-चाँदी के भंडार समा; हो रहे थे। वे चाय के बदले में चीन को कोई चीज भेज कर अपने व्यापार को बनाए रखना चाहते थे। यह वस्तु अफीम के रूप में सामने आई।

चीन में सबसे पहले पुर्तगालियों ने अफीम भेजनी शुरू की थी। इसका प्रयोग मुख्यतः कुछ औषधियों में होता था। परंतु चीनी सरकार को भय था कि लोगों को धीरे-धीरे अफीम खाने की लत लग जाएगी। अतः चीनी सम्राट ने अफीम के उत्पादन तथा बिक्री पर रोक लगा दी थी। अब अंग्रेजों ने चीन में अफीम का अवैध व्यापार करने की योजना बनाई ताकि चाय पर खर्च होने वाली राशि को पूरा किया जा सके। अतः भारत में बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के पश्चात् अंग्रेजी सरकार ने वहाँ के किसानों को अफीम उगाने के लिए विवश किया। भारत में पैदा होने वाली अफीम को अंग्रेज अवैध रूप से चीन भेजने लगे।

पश्चिम के व्यापारी चीन के दक्षिण-पूर्वी बंदरगाहों पर अफीम लाते थे और वहाँ से स्थानीय एजेंटों के जरिए देश के आंतरिक हिस्सों में भेज देते थे। 1820 ई० के आस-पास अफीम के लगभग 10,000 क्रेट अवैध रूप से चीन में लाए जा रहे थे। 15 साल बाद गैरकानूनी ढंग से लाए जाने वाली इस अफीम की मात्रा 35,000 क्रेट का आँकड़ा पार कर चुकी थी। इस अवैध व्यापार के कारण शीघ्र ही चीनी जनता (UPBoardSolutions.com) अफीम की लत का शिकार होने लगी। चीन विश्व में अफीम का नशा करने वालों के देश के रूप में जाना जाने लगा। कैंटन शहर के निवासी एक अंग्रेज डॉक्टर के अनुसार चीन के लगभग 1 करोड़, 20 लाख लोगों को अफीम के नशे ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था।

प्रश्न 3.
संयुक्त राज्य अमेरिका में गेहूं के उत्पादन में तेजी से हुई वृद्धि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
19वीं सदी के अंत में संयुक्त राज्य अमेरिका के गेहूँ उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई तथा इसका वैश्विक निर्यात भी बढ़ा। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विश्व बाजार में तेजी आई। रूसी गेहूँ की आपूर्ति बंद कर दी गई और अमेरिका को यूरोप के गेहूँ की आपूर्ति करनी पड़ी। अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन ने किसानों को गेहूं का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। 1910 ई० में अमेरिका की 4.5 करोड़ एकड़ जमीन (UPBoardSolutions.com) पर गेहूं की खेती की जा रही थी। नौ वर्ष के बाद गेहूं उत्पाद का क्षेत्रफल लगभग 65 प्रतिशत से बढ़कर 7.4 करोड़ एकड़ हो गया था।

माँग बढ़ने के साथ गेहूँ के दामों में भी उछाल आ रहा था। इससे उत्साहित होकर किसान गेहूँ उगाने की तरफ झुकने लगे। रेलवे के प्रसार से खाद्यान्नों को गेहूँ उत्पादक क्षेत्रों से निर्यात के लिए पूर्वी तट पर ले जाना आसान हो गया था। अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन ने किसानों से वक्त की पुकार सुनने का आह्वान किया‘खूब गेहूं उपजाओ। गेहूँ ही हमें जंग जिताएगा।”

1910 ई0 में अमेरिका की 4.5 करोड़ एकड़ जमीन पर गेहूं की खेती की जा रही थी। नौ साल बाद 1919 ई. में गेहूँ। उत्पादन का क्षेत्रफल बढ़कर 7.4 करोड़ एकड़ यानी लगभग 65 प्रतिशत ज्यादा हो गया था। इसमें से ज्यादातर वृद्धि विशाल मैदानों (ग्रेट प्लेस) में हुई थी।

प्रश्न 4.
औपनिवेशिक सरकार द्वारा आरंभ की गयी पेशगी प्रणाली का निर्धन किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा।
उत्तर:
बंगाल और बिहार में निर्धन किसानों की बहुत बड़ी जनसंख्या थी जिनके पास रोटी-कपड़ा खरीदने तथा जमींदार को लगान देने के लिए पैसों की कमी थी। 1780 ई० से ऐसे किसानों को यह जानकारी प्राप्त हुई कि गाँव का मुखिया किसानों को अफीम की खेती के लिए अग्रिम धन (पेशगी) देता है। (UPBoardSolutions.com) जब किसानों को ऋण देने की पेशकश की गयी तो उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया क्योंकि इससे उनकी तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरी करने के बाद ऋण चुका पाने की आशा बलवती हो गयी।
किसानों के सामने प्रस्तुत पेशगी प्रणाली के निम्नलिखित परिणाम हुए-

  1. उसके पास इस जमीन पर कोई दूसरी फसल उगाने का विकल्प भी नहीं था और इस फसल को सरकारी एजेंट को छोड़कर कहीं और बेचने की आजादी भी नहीं थी।
  2. उसे उसकी फसल की कम कीमत स्वीकार करनी पड़ती थी।
  3. ऋण वास्तव में किसानों को मुखिया के बंधुआ और उसके जरिए सरकार का बंधुआ बना देते थे।
  4. ऋण लेने के बाद किसान को निर्धारित क्षेत्र में अफीम बोनी पड़ती थी और पूरी फसल को एजेंटों के हवाले करना पड़ता था।

प्रश्न 5.
‘कैप्टन स्विंग आन्दोलन’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कैप्टन स्विंग आन्दोलन – मजदूरों के बढ़ते असन्तोष ने धीरे-धीरे आंदोलन का रूप धारण कर लिया। शुरुआत में यह आन्दोलन रात में किसानों के बाड़ों तथा खलिहानों में आग लगाने तक सीमित था। ईस्ट कैण्ड के मजदूरों ने 28 अगस्त, 1830 ई0 को एक श्रेसिंग मशीन को तोड़ डाला। इस घटना के बाद इंग्लैण्ड के पूर्वी तथा दक्षिणी भागों में श्रेसिंग मशीनों को तोड़ने की घटनाएँ बढ़ने लगीं। इस आंदोलन में लगभग 387 श्रेसिंग मशीनों को तोड़ा गया। किसानों को धमकी भरे पत्र भेजे गए जिनमें उनसे कहा जाता था कि वे अपनी मशीनों को स्वयं ही तोड़ दें अन्यथा आंदोलनकारी उन्हें नष्ट कर देंगे। इन पत्रों पर प्रायः ‘कैप्टन स्विंग’ नामक व्यक्ति के हस्ताक्षर होते थे। आंदोलनकारियों के संभावित आक्रमण से बचने के लिए अनेक लोगों ने अपनी मशीनों को स्वयं ही तोड़ दिया।

आंदोलन का दमन-कैप्टन स्विंग आन्दोलन के बढ़ते प्रभाव से इंग्लैण्ड की सरकार चिंतित हो उठी। सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए सख्त कार्यवाही की। जिन लोगों पर भी सरकार को शक था उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तार किए गए लोगों में से 1976 लोगों पर मुकदमा (UPBoardSolutions.com) चलाया गया जिनमें से 9 लोगों को फाँसी दी गई, 505 लोगों को देश निकाला दिया गया तथा अन्य लोगों को कठोर सजाएँ दी गईं परंतु ‘कैप्टन स्विंग’ सदा सरकार के लिए एक रहस्य ही बना रहा।

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प्रश्न 6.
पश्चिमी अमेरिका में कृषि भूमि विस्तार और रेतीले तूफान का अन्तर्सम्बन्ध प्रकट कीजिए।
उत्तर:
कृषि भूमियों के विस्तार से पूर्व अमेरिका का अधिकांश भाग वनों एवं घास भूमियों से ढका हुआ था। मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इन वनों एवं घास भूमियों को साफ करके गेहूं के खेतों में बदल दिया। इन क्षेत्रों में गेहूँ। के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई जिसके कारण अमेरिका के विशाल मैदानों को ‘रोटी का कटोरा’ कहा जाने लगा। गेहूं की खेती का विस्तार 1930 ई0 के दशक में भयानक रेतीले तूफानों का कारण बना। अमेरिका के दक्षिणी मैदानों पर भयानक रेतीले तूफान आने लगे। इन्हें काले तूफान के नाम से (UPBoardSolutions.com) जाना जाने लगा। काले रेतीले तूफान 7,000 से 8,000 फुट ऊँचे होते थे। ये गंदे पानी की भीमकाय लहरों की तरह प्रकट होते थे। 1930 ई0 के दशक में ऐसे तूफान प्रतिदिन एवं प्रतिवर्ष आते थे।

जैसे ही आसमान में अंधेरा होता और रेत गिरता, रेत के कारण लोग अंधे हो जाते तथा उनका दम घुटने लगती। पशु दम घुटने के कारण मारे जाते, उनके फेफड़ों में रेत और कीचड़ भर जाता। रेत से खेतों की मेड़े (खेतों को एक-दूसरे खेत से अलग करने के लिए) गुम हो जातीं, खेत रेत से पट जाते तथा यह रेत नदी की सतह पर इस तरह जम जाती थी कि मछलियाँ साँस न ले पाने के कारण मर जाती थीं। मैदानों में चारों ओर पक्षियों और पशुओं की हड्डयाँ बिखरी दिखाई देती थीं। ट्रैक्टर और मशीनें अब रेत के ढेरों में फंस कर (UPBoardSolutions.com) इतने बेकार हो गए थे कि उनकी मरम्मत भी नहीं की जा सकती थी। वर्षा में प्रतिवर्ष कमी होती गयी और लोगों को सूखे का सामना करना पड़ा। इस तरह रोटी का कटोरा शीघ्र ही धूल के कटोरे में परिवर्तित हो गया।

ये समस्त मौसमी परिवर्तन वनस्पति आवरण के समाप्त होने का परिणाम थे। किसानों ने अधिक-से-अधिक कृषि-क्षेत्र प्राप्त करने के लालच में वनस्पति के आवरण को बुरी तरह नष्ट कर दिया था। मिट्टी को उलट-पुलट दिया गया था और उसमें फैंसी घास को जड़ों से उखाड़ दिया गया था।

प्रश्न 7.
इंग्लैण्ड में कृषि क्षेत्र में घटित प्रमुख परिवर्तनों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
इंग्लैण्ड में कृषि क्षेत्र में घटित प्रमुख परिवर्तन इस प्रकार हैं-
(1) कृषि क्षेत्र में नवीन तकनीक का प्रयोग – निजी भूमियों की बाड़ाबंदी ने उनके विस्तार की भावना को भी प्रोत्साहित किया। किसान अपनी भूमियों को अधिक-से-अधिक बढ़ाना चाहते थे। इसका अन्य क्रारण यह भी था कि इस काल में जनसंख्या में वृद्धि के कारण गेहूँ की माँग भी तेजी से बढ़ रही थी। खेतों के आकार में वृद्धि के कारण मजदूरों की आवश्यकता भी बढ़ी। मजदूरों की कमी को दूर करने के लिए उन्होंने नई-नई मशीनों का कृषि में उपयोग करना आरंभ कर दिया। इन मशीनों में ट्रैक्टरों तथा श्रेसिंग मशीनों की उल्लेखनीय भूमिका थी।

पहले गेहूं की खेती को काटने तथा उससे गेहूँ निकालने में बड़ी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता होती थी परंतु श्रेसिंग मशीनों के उपयोग ने मजदूरों की कमी की इस समस्या को दूर कर दिया। इन मशीनों के उपयोग से जहाँ किसान ज्यादा-से-ज्यादा भूमि पर खेती करने में सफल हुए वहीं (UPBoardSolutions.com) मजदूरों के रोजगार में कमी हुई। गरीब और मजदूर लोग काम की तलाश में गाँव-गाँव भटकने लगे। अनेक ीग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने लगे जबकि कुछ लोगों ने मशीनों के उपयोग के विरुद्ध आवाज उठानी आरंभ कर दी।

(2) सरल उर्वरक तकनीकों का प्रयोग – इंग्लैण्ड में खेतों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए 19वीं सदी के मध्य तक शलजम तथा तिपतिया घास की कृषि की जाती थी। कृषि कार्य हेतु खेतों को निरंतर उपयोग में लाने से उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ती थी, इसीलिए भूमि नाइट्रोजन और उर्वरता बढ़ाने के लिए शलजम व तिपतिया घास का उपयोग किया गया। पशु भी इन्हें रुचिपूर्वक खाते थे। इस तरह किसानों को दोहरा लाभ होता था। एक ओर भूमि की उर्वरता बढ़ती साथ ही पशुओं को भी पोषण ५ मिलता था। बाड़ाबंदी आन्दोलन के उपरान्त किसान अपनी निजी भूमियों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए आसान तरीकों का इस्तेमाल करने लगे।

(3) कृषि का प्रारंभिक स्वरूप – 18वीं सदी के मध्य तक इंग्लैण्ड में कृषि का मूल स्वरूप पूर्ववत् बना रहा। भूमि पर भूस्वामियों का निजी स्वामित्व नहीं था और न ही खेतों की बाड़ाबंदी की गयी थी। किसान अपने गाँव के आसपास की जमीन पर फसल उगाते थे। साल की शुरुआत में एक सभा बुलाई जाती थी जिसमें गाँव के हर व्यक्ति को जमीन के टुकड़े आबंटित कर दिए जाते थे। जमीन के ये टुकड़े (UPBoardSolutions.com) समान रूप से उपजाऊ नहीं होते थे और कई जगह बिखरे होते थे। कोशिश यह होती थी कि हर किसान को अच्छी और खराब, दोनों तरह की जमीन मिले।

खेती की इस जमीन के परे साझा जमीन होती थी। इस साझा जमीन पर सभी गाँव वालों का हक होता था। यहाँ वे अपने पशु चराते थे, जलावन की लकड़ियाँ और कंदमूल फल आदि । इकट्ठा करते थे। यह साझा भूमि गरीब व्यक्तियों की अनेक प्रकार से सहायता करती थी। किसी प्राकृतिक संकट के कारण फसल न होने की स्थिति में भी यह भूमि उन्हें तथा उनके पशुओं को जीवित रखने में सहायक होती थी।

(4) बाड़ाबंदी – इंग्लैण्ड के कुछ भागों में साझी भूमि की इस परंपरा में 16वीं सदी के उत्तरार्द्ध में परिवर्तन आरंभ हो । गए। इसे काल में विश्व बाजार में ऊन की माँग में वृद्धि आरंभ हुई जिससे उसकी कीमतें बहुत तेजी से बढ़ीं। ऊन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए भेड़ों की गुणवत्ता में सुधार, उचित सफाई व्यवस्था तथा अच्छे चारे की आवश्यकता पर बल दिया जाने लगा। इन्हीं मूलभूत कारणों ने किसानों को निजी खेतों एवं चरागाहों की स्थापना के लिए प्रेरित किया।

किसानों ने साझी भूमि की संकल्पना को त्यागकर साझा भूमि को काट-छाँट कर घेरना आरंभ कर दिया और इस निजी भूमि को चारों ओर से बाड़ लगाकर सुरक्षित करने लगे। इस व्यवस्था को ‘बाड़ाबंदी’ के नाम से जाना जाता है। 1750 ई० के बाद खेतों के चारों ओर बाड़ लगाने की यह परंपरा बहुत तेजी से इंग्लैण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में फैलने लगी जिसके कारण इसे ‘बाड़ाबंदी आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। 1750 ई0 से 1850 ई० के मध्य लगभग 60 लाख एकड़ भूमि पर बाड़े लगाई गईं।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

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( मासिक आन्तरिक मूल्यांकन एवं प्रोजेक्ट कार्य )

शिक्षार्थी भारत के गीत, नृत्य, पर्व और निश्चित मौसम में प्रमुख प्रकार के भोजन की पहचान, साथ ही क्या एक क्षेत्र की दूसरे क्षेत्र से कुछ समानता है? इसकी पहचान करें। शिक्षार्थी द्वारा अपने विद्यालय क्षेत्र के आस-पास की वनस्पति एवं पशुजगत से पदार्थों/सूचनाओं को एकत्र करना। इसमें उन (UPBoardSolutions.com) प्रजातियों की सूची बनाना, जिनका अस्तित्व खतरे में है एवं उनको सुरक्षित करने से सम्बन्धित प्रयासों की सूचना सूचीबद्ध करना।

पोस्टर

नदी-प्रदूषण।
वनों का क्षरण एवं पारिस्थितिकीय असंतुलन।
नोट-कोई समान गतिविधि भी चुनी जा सकती है।

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प्रोजेक्ट कार्य-1

विषय – भारत के राष्ट्रीय गीत एवं राष्ट्रगान का राष्ट्र-प्रेम बढ़ाने में योगदान। )
उद्देश्य – राष्ट्र-गीत और राष्ट्र-गान का उद्देश्य देशवासियों को देश के प्रति सम्मान, एकता, समर्पण के लिए तैयार करना राष्ट्रगान भारत के राष्ट्रीय गान के रचयिता विश्व (UPBoardSolutions.com) कवि रवीन्द्र नाथ ठाकुर हैं। यह गान 52 सेकेण्ड में गाया जाता है और जब तक गाया जाये सभी को सावधान की स्थिति में खड़े रहना चाहिये। यह राष्ट्रगान निम्न प्रकार है

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राष्ट्रीय गीत

बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित ‘वन्दे मातरम्’ हमारा राष्ट्रीय गीत है जिसे ‘जन-गण-मन’ के समान ही राष्ट्रीयगान का दर्जा प्राप्त है। इसका प्रथम पद निम्न प्रकार है

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निष्कर्ष- इस प्रोजेक्ट में राष्ट्रगान के अंतर्गत् भारत के विशाल भू-भाग, विभिन्न जातियों, प्रदेशों, नदियों का वर्णन किया गया है जबकि राष्ट्रीय गीत में भारत माता का मनोरम वर्णन किया गया है।

प्रोजेक्ट कार्य-2

विषय – देशभक्ति के गीत का राष्ट्र-प्रेम बढ़ाने में भूमिका।
उद्देश्य – देशभक्ति का गीत देशवासियों में देश-प्रेम व देश की एकता-अखण्डता को बनाए रखने की ऊर्जा का संचार करता है।

देशभक्ति गीत

सप्ताह में कम-से-कम दो बार प्रसिद्ध शायर इकबाल का निम्नलिखित गीत सामूहिक प्रार्थना-सभा में छात्रों द्वारा मिलकर गाया जाना चाहिये

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निष्कर्ष- किसी भी व्यक्ति के लिए उसका देश सर्वोपरि स्थान रखता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर मुहम्मद इकबाल ने भारत के प्रति अपने प्रेम को प्रदर्शित करने वाली ये कविता लिखी थी।

प्रोजेक्ट कार्य-3

विषय – भारत के प्रमुख लोक-नृत्यों का वर्णन कीजिए।
उद्देश्य – देश के विभिन्न भागों की संस्कृति की जानकारी हासिल करना।

भारत के लोक-नृत्य भारत के लोक-नृत्य निम्नलिखित हैं

  1. कालबेलिया-राजस्थान की कालेबिया जनजाति की महिलाओं का लोक-नृत्य है।
  2. बिदेशिया-भिखारी ठाकुर द्वारा रचित यह लोक-नृत्य उत्तर प्रदेश तथा बिहार के भोजपुरी समाज में प्रचलित है।
  3.  छऊ-बिहार, पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा (ओडिशा) के आदिवासियों द्वारा किये जाने वाला एक युद्धनृत्य है जो प्रमुखतः पुरुषों द्वारा किया जाता है।
  4. भांगड़ा-पंजाब का यह उत्साह भरा लोक-नृत्य मुख्यतः पुरुषों द्वारा ढोल की ताल-लय पर किया जाता है।
  5. गरबा-गुजरात में नवरात्रि के पर्व पर किये जाने वाला यह लोक-नृत्य मिट्टी के घड़े के ऊपर दीपक रखकर उसके चारों ओर घेरा बनाकर किया जाता है। (UPBoardSolutions.com) महिलाओं के सिर पर मिट्टी के पात्र में दीपक भी रखा जाता है।
  6. बिहु-असम का यह लोक-नृत्य कचारी तथा कछारी जनजातियों में प्रचलित है और वर्ष में तीन बार आयोजित किया जाता है।
  7.  घूमर-राजस्थान में महिलाओं द्वारा होली तथा नवरात्रि में किये जाने वाला विशिष्ट लोक-नृत्य है।
  8. रउफ-जम्मू-कश्मीर के इस ग्रामीण लोक-नृत्य में महिलाएँ पंक्तियों में एक-दूसरे के सामने खड़े होकर तथा गले में बाँहें डालकर नृत्य करती हैं।

निष्कर्ष- भारत के अलग-अलग भागों में उन भागों की सांस्कृतिक विशेषता के अनुरूप नृत्यों का प्रचलन है। इन नृत्यों की शैली में हमें पर्याप्त भिन्नता देखने को मिलती है। इन नृत्यों के माध्यम से हमें लोक-संस्कृति को समझने में सहायता मिलती है तथा हम अपनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से भी जुड़े रहते हैं।

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प्रोजेक्ट कार्य-4

विषय- प्रकाश पर्व दीपावली की उपयोगिता।
उद्देश्य- इस पर्व का प्रमुख निहितार्थ क्या है?

दीपावली का त्यौहार भगवान राम के 14 वर्ष का वनवास काटकर अपने राज्य अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। राम के वापस लौटने पर अयोध्यावासियों ने दीपावली मनाई थी। दीपावली को प्रकाश-उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस अवसर पर लक्ष्मी जी घर आती हैं। भगवान राम ने असुरों के राजा रावण को मारकर लोगों की असुरों से रक्षा (UPBoardSolutions.com) की थी। इसे बुराई पर अच्छाई का, असत्य पर सत्य की जीत भी कहते हैं। इस अवसर पर घर-द्वार आदि की सफाई की जाती है। ऐसा विश्वास है कि स्वच्छता रखने से घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है। दीपावली के दिन सूर्यास्त के बाद धन की देवी लक्ष्मी और बुद्धि के देवता गणेश की विशेष रूप से पूजा की जाती है।

निष्कर्ष- यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय और धन की देवी लक्ष्मी के आगमन की कामना के साथ मनाई जाती है।

प्रोजेक्ट कार्य-5

विषय-मकर संक्रान्ति के धार्मिक और भौगोलिक महत्त्व को ज्ञात कीजिए।
उद्देश्य-इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य बच्चों को इस पर्व के धार्मिक एवं भौगोलिक महत्त्व को स्पष्ट करना है।

मकर संक्रान्ति हिन्दू धर्म के प्रमुख त्यौहारों में शामिल है। यह त्यौहार सूर्य के उत्तरायण होने पर मनाया जाता है। प्रायः यह त्यौहार प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन कभी-कभार यह 13 और 15 जनवरी को भी मनाया जाती है। मकर संक्रान्ति का सीधा सम्बन्ध पृथ्वी और सूर्य की स्थिति से है। जब सूर्य मकर रेखा पर आता है तब मकर संक्रान्ति मनायी जाती है। ज्योतिष की दृष्टि से इस दिन (UPBoardSolutions.com) सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है और सूर्य के उत्तरायण की गति आरंभ होती है।

भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में मकर संक्रान्ति के पर्व को अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रान्ति कहा जाता है और तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है, वहीं असम (असोम) में इसे बिहू के रूप में मनाया जाता है। इस तरह देश के प्रत्येक प्रांत में इसे मनाने का तरीका अलग-अलग है।
इस पर्व के पकवान भी अलग-अलग होते हैं, किन्तु दाल और चावल की खिचड़ी इस पर्व की पहचान बन गयी है। इसके अतिरिक्त तिल व गुड़ का भी इस मकर संक्रान्ति में विशेष महत्त्व है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दान आदि देते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए गए दान से सूर्य देवता प्रसन्न होते हैं। इस अवसर पर पतंग उड़ाने की परंपरा रही है।

निष्कर्ष- मकर संक्रान्ति से दिन की अवधि बढ़ने लगती है। यह शीत ऋतु के क्रमिक समापन का आरंभ है। क्रमशः मौसम गर्म होता चला जाता है क्योंकि उत्तरायण होना शुरू हो जाता है। इस अवसर पर लोगों के खान-पान में भी परिवर्तन आता है।

प्रोजेक्ट कार्य-6

विषय-हम होली क्यों मनाते हैं, स्पष्ट कीजिए।
उद्देश्य-होली के त्योहार से हमें क्या सीख मिलती है? इसे ज्ञात कीजिए।

बहुत साल पहले हिरण्यकश्यप नाम के दुष्ट भाई की एक दुष्ट बहन होलिका थी, जो अपने भाई के पुत्र प्रहलाद को अपनी गोद में बैठाकर जलाना चाहती थी। प्रहलाद भगवान विष्णु के भक्त थे जिन्होंने होलिका की आग से प्रहलाद को बचाया। होलिका उस आग में जलकर मर गयी। तभी से हिन्दू धर्म के लोग बुरी शक्तियों पर अच्छाई की जीत के रूप में होली का त्योहार हर्षोल्लासपूर्वक मनाते हैं। रंगों के इस उत्सव (UPBoardSolutions.com) में लोग एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाते हैं। प्रतिवर्ष यह त्योहार चैत्र महीने के पहले दिन मनाया जाता है। होली का यह उत्सव फाल्गुन मास के अंतिम दिन होलिका दहन की शाम से शुरू होता है।

निष्कर्ष- होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इससे यह सन्देश मिलता है कि सत्य की हमेशा जीत होती है। बुरी शक्तियाँ कुछ समय के लिए हमें भले ही सबल लगें किन्तु अंततः उनकी पराजय होती है।

प्रोजेक्ट कार्य-7

विषय- निश्चित मौसम के अनुसार भोजन की पहचान कीजिए।
उद्देश्य- इससे हमें यह ज्ञात होगा कि खाद्य-पदार्थों का मौसम के अनुरूप सेवन व्यक्ति को किस प्रकार स्वस्थ रखता है।

प्रायः भारतीय व्यंजन में चावल, दाल, रोटी, सब्जी सामान्य रूप से प्रचलित है, किन्तु फिर यदि हम मौसम के अनुरूप देखें तो सर्दी के मौसम में हमें हल्दी, अनार, तिल, दालचीनी, गाजर, हरी मिर्च, मीट-अण्डा-चिकन-मछली, शहद, खट्टे फल, बादाम, लहसुन, लौंग, प्याज, ड्राई फूट, मूंगफली, अमरूद, बाजरा, मेथी का साग, गुड़ आदि का सेवन करना चाहिए। इसके साथ मसालेदार और गरिष्ठ भोजन सर्दियों में (UPBoardSolutions.com) सरलता से पच जाता है।

गर्मी का मौसम आते ही कई तरह की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें जैसे-डिहाडेशन, भूख न लगना, अत्यधिक पसीना आना आदि शुरू हो जाती है। इस कारण गर्मियों के मौसम में अपने आपको सन-स्ट्रोक (लू) से बचाना व शरीर के तापमान को नियंत्रित रखना एक चुनौती होती है। शरीर में नमी के स्तर को बनाए रखने के लिए हमें अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए। गर्मी में हमें दही सेवन करना चाहिए। इसके अलावा खीरा, तरबूज, नारियल पानी, गन्ने का रस, फालूदा, लौकी, करेला, तोरी, कद्द, टिंडा, परमल, भिंडी, चौलाई का सेवन करना लाभकारी होता है। गर्मियों में मसालों का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। तैलीय पदार्थों का भी सेवन कम-से-कम (UPBoardSolutions.com) करना चाहिए क्योंकि अधिक तैलीय पदार्थ का सेवन शरीर में गर्मी पैदा करता है और कई तरह की शारीरिक समस्यायें उत्पन्न होती हैं। गर्मियों में जंक-फूड के सेवन से फूड-प्वाइजनिंग का खतरा रहता है अतः इससे बचना चाहिए। चाय और काफी का भी गर्मियों में सेवन कम करना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति शरीर में गर्मी अनुभव करता है। पपीता, अनन्नास जैसे गर्म फलों का सेवन गर्मी में नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष- उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सर्दी के मौसम में ऐसे फल या भोजन लेने की सलाह दी जाती है जो शरीर को गर्म रखे जबकि गर्मी में अधिक पानी वाले फल तथा (UPBoardSolutions.com) शीतल तासीर वाले भोजन को करने की सलाह दी जाती

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प्रोजेक्ट कार्य-8

विषय-एक क्षेत्र के भोजन की दूसरे क्षेत्र के भोजन से समानता ज्ञात कीजिए।
उद्देश्य-विभिन्न क्षेत्रों की भोजन सम्बन्धी आदतों को ज्ञात करना और उसमें अंतर करना।

उत्तर भारत का खाना विश्व भर में प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में दम-आलू, रोगन-जोश, आलू-पराठा, खीर, सरसों का साग, पराठा, फालुदा, लस्सी, छाछ, हलवा-पुरी, तंदूरी चिकन, चिकन रसा, चिकन मसाला, मटन मसाला, मटन रोस्ट, चिकन टिक्का, कबाब बिरयानी, मशरूम की सब्जी, दाल-मखानी, राजमा, छोले, कढ़ी, पकौड़ा, शाही-पनीर, खोया पनीर, फिरिनी, जलेबी, मालपुआ, समोसे आदि उत्तर (UPBoardSolutions.com) भारत में प्रचलित प्रमुख आहार व्यंजन हैं। दक्षिण भारत में प्रचलित भोजनों में पेरुगु पुरी, इडली, डोसा, सांभर, पोंगल, चावल, नारियल, इमली, मीन कोजहमनु, पोलि, इड्डीअपम, रस्म, पारुपु डोसा, पुटू, आपम, इडी आपम, अवीयल, पेड़ी, चिकन स्टू, पायसम, सादया, पेरूगु पुरी, पाचहि पुलुसु, बदाम हलवा, बिरयानी आदि दक्षिण भारत के प्रमुख व्यंजन हैं।

निष्कर्ष- उत्तर और दक्षिण भारतीय भोजन में समानता यह है कि दोनों क्षेत्रों में शाकाहारी और मांसाहारी व्यंजन प्रचलित हैं। क्षेत्रवार अंतर भी है जैसे-उत्तर भारत में चावल और गेहूं दोनों पर्याप्त मात्रा में पैदा होते हैं अतः उत्तर भारतीय खाद्य पदार्थों में गेहूं और चावल दोनों से बने भोज्य पदार्थ पाए जाते हैं जबकि दक्षिण भारत में चावल का उत्पादन अधिक होने से चावल से बने भोज्य पदार्थों की बहुलता है। ऐसे में यदि नामों के अंतर को छोड़ दिया जाए | तो उत्तर और दक्षिण भारत के भोजन में काफी हद तक समानता है।

प्रोजेक्ट कार्य-9

विषय-विद्यार्थी द्वारा अपने विद्यालय क्षेत्र के आस-पास की वनस्पति एवं पशु जगत के पदार्थों/सूचनाओं को एकत्र करना।
उद्देश्य-इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य विद्यार्थी को अपने पर्यावरण, वनस्पति एवं पशु सम्बन्धी ज्ञान को परखना है।

मेरा विद्यालय ग्रामीण अंचल में स्थित है। विद्यालय के चतुर्दिक प्रकृति की मनोरम छटा विद्यमान है। विद्यालय परिसर और उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में आम, जामुन, इमली, पपीता, नीम, पीपल, बरगद, शीशम, सागौन आदि के वृक्ष हैं।
हमारे परिवेश में मानव अधिवास वाले क्षेत्र में गाय, बैल, घोड़े, गधे, बकरी, सुअर, कुत्ते, बिल्ली, भैंस, नीलगाय, सियार, भेड़िया, लोमड़ी, खरगोश आदि पाए जाते हैं। हिंसक वन्य (UPBoardSolutions.com) जीव हमारे क्षेत्र में इसलिए नहीं पाए जाते क्योंकि इस क्षेत्र में वनों को अभाव है। वृक्षों एवं पशुओं का संरक्षण पर्यावरण को सन्तुलित बनाए रखने के लिए आवश्यक है। अतः हमें अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए तथा उसमें भी फलदार वृक्ष अधिक लगाने चाहिए जिससे हमें आवश्यकता अनुसार लकड़ी एवं साथ-ही-साथ फल भी प्राप्त होंगे।

निष्कर्ष-विद्यार्थी को अपने पर्यावरण के प्रति जागरूक रहना चाहिए। उसे अपने आसपास पाए जाने वाली वनस्पतियों और पशु जगत का यथासंभव संरक्षण का प्रयास करना चाहिए। वनस्पतियाँ जहाँ हमारे भरण-पोषण के काम आती। हैं तथा इससे लकड़ियाँ भी प्राप्त होती हैं वहीं पालतू पशुओं से हमें दूध, मांस तथा खाल प्राप्त होती है।

प्रोजेक्ट कार्य-10

विषय-ऐसी जैव और वनस्पतियों की सूची बनाना जिनका अस्तित्व खतरे में है।
उद्देश्य-विलुप्ति की कगार पर खड़ी प्रजातियों के विलुप्ति के कारण जानना और उनके संरक्षण का प्रयास करना।

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Project Work (प्रोजेक्ट कार्य)

निष्कर्ष- लुप्तप्राय वनस्पतियों एवं पशुओं की सूची बनाने से हमें यह ज्ञात होगा कि बदलते पर्यावरण एवं मानवीय क्रियाकलापों का वनस्पति एवं पशु-जगत के अस्तित्व पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। कोई भी प्रजाति तभी विलुप्त होती है जब जीवन या अस्तित्व सम्बन्धी परिस्थितियाँ उसके विपरीत हो जाती हैं।

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