UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 20 रोगी का कमरा एवं उसकी व्यवस्था

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 20 रोगी का कमरा एवं उसकी व्यवस्था

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रोगी के कमरे का चुनाव करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
या
रोगी के कमरे का चुनाव करते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी?रोगी के कमरे के आवश्यक सामानों की सूची बनाइए।
उत्तर:
रोगी के कमरे का चयन

रोगग्रस्त व्यक्ति को अधिकांश समय विश्राम करना अनिवार्य होता है; अतः उसके लिए अलग से कमरे की व्यवस्था की जानी चाहिए। रोगी का कमरे का वातावरण शान्त होना चाहिए तथा उसमें किसी प्रकार की गन्दगी नहीं होनी चाहिए। रोगी के कमरे में सूर्य के प्रकाश तथा वायु के पारगमन की (UPBoardSolutions.com) समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। रोगी के लिए कमरे का चुनाव करते समय मुख्य रूप से निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए

  1.  रोगी का कमरा पर्याप्त बड़ा होना चाहिए। सामान्यतः रोगी का कमरा 450-500 घन मीटर स्थान वाला होना आवश्यक है। इस आकार के कमरे में रोगी को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल सकती है।
  2.  रोगी का कमरा मुख्य द्वार तथा सड़क से दूर मकान के पीछे की ओर होना चाहिए। इस प्रकार को कमरा शान्त एवं आरामदायक रहता है तथा सड़क से उठने वाली धूल से सुरक्षित रहता है।
  3.  रोगी के कमरे में खिड़कियाँ, रोशनदान व दरवाजे आदि इस प्रकार होने चाहिए कि वायु का संवातन भली-भाँति बना रहे।
  4. खिड़कियों तथा रोशनदान से सूर्य का प्रकाश आते रहना चाहिए जिससे कि रोगाणुओं के पनपने की आशंका न रहे। स्वच्छ वायु एवं सूर्य का प्रकाश रोगी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ में सहायता करते हैं। दार किवाड़ होना अति आवश्यक है। इनसे मक्खियाँ, मच्छर व वायु में उड़ने वाले अन्य कीड़े कमरे में प्रवेश नहीं कर पाते।
  5.  रोगी का कमरा रसोईघर व अन्य शयन-कक्षों से दूर होना चाहिए।
  6. रोगी का कमरा स्नानगृह तथा शौचालय के पास होना चाहिए ताकि रोगी को स्नान करने व शौच जाने के लिए अधिक दूर न जाना पड़े।
  7.  रोगी के कमरे के बाहर बरामदा होने पर वह इसका उपयोग टहलने तथा खुली वायु में बैठने के लिए कर सकता है। वैसे भी बरामदा होने पर कमरे के अन्दर का वातावरण अधिक उपयुक्त रह संकता है तथा धूल इत्यादि भी कमरे में प्रवेश नहीं करेगी।
  8.  रोगी के कमरे में अन्धकार, दुर्गन्ध, सीलन तथा नमी आदि नहीं रहनी चाहिए, क्योंकि इनकी उपस्थिति में रोगाणु आसानी से पनपते हैं।
  9.  रोगी के कमरे का फर्श पक्का व साफ-सुथरा होना चाहिए। पक्के फर्श को सहज ही कीटाणुनाशक घोल द्वारा धोया जा सकता है। कमरे में पानी के (UPBoardSolutions.com) निकास के लिए नालियों का होना भी आवश्यक है।
  10.  रोगी के कमरे का चयन करते समय मौसम का ध्यान रखना भी आवश्यक है। ग्रीष्म ऋतु में रोगी का कमरा ऐसा होना चाहिए कि यह अधिक गर्म न होता हो, जबकि शरद् ऋतु में गर्म रहने वाला कमरा उपयुक्त रहता है।
  11.  रोगी के कमरे से संलग्न एक छोटे कमरे का होना अच्छा रहता है। इस कमरे को परिचारिका प्रयोग में ला सकती है तथा सहज ही रोगी की परिचर्या कर सकती है। इसके अतिरिक्त इस कमरे में रोगी के उपयोग में आने वाली वस्तुओं को रखा जा सकता है।
  12. रोगी के कमरे की दीवारें स्वच्छ एवं चूने से पुती होनी चाहिए। दीवारों पर रोगी की रुचि के अनुसार चित्र व अन्य सज्जा-सामग्री की व्यवस्था होनी चाहिए।

रोगी के कमरे के सामान की सूची

रोगी की आवश्यकताओं एवं सुविधाओं की पूर्ति के लिए निम्नलिखित सामग्री होनी आवश्यक है

  1.  कसी हुई चारपाई अथवा स्प्रिंगदार पलंग।
  2.  दो छोटी मेज व दो कुर्सियाँ।
  3. दो स्टूल।
  4. भोज्य पदार्थों व औषधियों आदि को रखने के लिए एक जालीदार छोटी अलमारी।
  5.  वस्त्र, तौलिए आदि रखने के लिए एक अन्य अलमारी।
  6. विशेष उपयोग के पात्र; जैसे—मल-मूत्र विसर्जन पात्र, बाल्टी व कूड़ेदान आदि।
  7. मनोरंजन के लिए पत्रिकाए, ट्रांजिस्टर व टी० बी० आदि।
  8.  थर्मामीटर व ताप तथा नाड़ी के लिए चार्ट।
  9.  गिलास, प्याला, चम्मच, चाकू व प्लेट आदि।
  10.  दीवारों के लिए सुन्दर व आकर्षक चित्र एवं मेज के लिए फूलदान।
  11.  साबुन, पेस्ट, डिटॉल, फिनाइल व फिनिट आदि।
  12. थूकने, वमन करने, पेस्ट करने व हाथ धुलाने के लिए चिलमची।

लघु उत्तरीय प्रश्न

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प्रश्न 1:
रोगी व्यक्ति के लिए अलग कमरे की व्यवस्था क्यों की जाती है?
उत्तर:
स्वास्थ्य विज्ञान की सैद्धान्तिक मान्यता है कि रोगी व्यक्ति को सामान्य रूप से अलग कमरे में ही रखा जाना चाहिए। विभिन्न कारणों से रोगी के लिए अलग कमरे की व्यवस्था को आवश्यक माना। जाता है। वास्तव में इस व्यवस्था से जहाँ एक ओर रोगी को लाभ होता है, वहीं दूसरी ओर परिवार के अन्य सदस्यों के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी इसे आवश्यक माना जाता है। रोगी व्यक्ति प्रायः काफी दुर्बल हो जाता है तथा उसे अतिरिक्त विश्राम की आवश्यकता होती है। उसके सोने-जागने का समय भी अनिश्चित हो जाता है। (UPBoardSolutions.com) इस स्थिति में उसे शान्त एवं एकान्त वातावरण की आवश्यकता होती है। इस उद्देश्य से रोगी को अलग कमरे में रखना ही उचित माना जाता है। रोगी के लिए यदि अलग कमरे की व्यवस्था हो जाती है तो उसकी आवश्यकता की समस्त वस्तुओं को वहीं रखा जा सकता है। रोगी के लिए अलग कमरे की व्यवस्था होने की स्थिति में परिवार के अन्य सदस्य भी लाभान्वित होते हैं। इस स्थिति में परिवार के अन्य सदस्य रोग के संक्रमण से कुछ हद तक बच सकते हैं।

प्रश्न 2:
रोगी के कमरे में सफाई की व्यवस्था आप किस प्रकार करेंगी?
उत्तर:
उत्तम स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य लाभ के लिए स्वच्छ वातावरण का होना अति आवश्यक है। गन्दगी सदैव रोगाणुओं को पनपने का अवसर प्रदान करती है; अतः रोगी के कमरे की नियमित सफाई अति आवश्यक है। यह निम्नलिखित प्रकार से की जानी चाहिए

  1.  फर्श की सफाई प्रतिदिन फिनाइल के घोल से की जानी चाहिए। फिनाइल का घोल कीटाणुओं को नष्ट कर देता है।
  2. कमरे की दीवारों से मकड़ी के जाले साफ करें तथा दिन में एक बार कीटनाशक (फ्लिट, बेगौन स्प्रे आदि) का प्रयोग करना चाहिए ताकि रोगी के कमरे में मक्खियाँ व मच्छर न रहें।
  3. रोगी के कमरे के परदे, बैड कवर व अन्य सूती वस्त्रों को खौलते पानी से धोने से वे साफ व कीटाणुरहित हो जाते हैं। कृत्रिम धागों से बने वस्त्रों तथा ऊनी वस्त्रों की शुष्क धुलाई कराएँ।
  4. रोगी के बर्तन, चिलमची वे पीकदान आदि की सफाई के लिए नि:संक्रामकं घोल का प्रयोग करें।
  5. फूलदान आदि में ताजे पुष्प लगाएँ और यदि सम्भव हो, तो दीवारों पर लगे चित्रों को भी बदल दें। स्वच्छ एवं सुसज्जित कमरा रोगी को मानसिक सुख एवं सन्तोष प्रदान करता है।

प्रश्न 3:
रोगी के कमरे में सूर्य का प्रकाश आना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
रोगी के कमरे में दिन में कुछ समय के लिए धूप का आना अत्यावश्यक है, क्योंकि

  1.  सूर्य का प्रकाश कमरे के अन्धकार वे नमी को दूर करता है; अत: रोगाणुओं के पनपने की आशंका कम हो जाती है।
  2. सूर्य का प्रकाश कीटाणुनाशक की तरह कार्य करता है तथा अनेक प्रकार के रोगाणुओं को नष्ट । कर देता है।
  3.  सूर्य के प्रकाश से हमारे शरीर में विटामिन ‘डी’ का निर्माण होता है; अतः धूप की उपस्थिति रोगी के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लाभदायक रहती है। यद्यपि सूर्य के प्रकाश में रोगी को उपर्युक्त लाभ होते हैं, परन्तु तीव्र व चकाचौंध करने वाला प्रकाश रोगी की बेचैनी बढ़ा सकता है (UPBoardSolutions.com) तथा उसके आराम में व्यवधान उत्पन्न कर सकता है। अतः आवश्यक एवं व्यवस्थित प्रकाश के लिए रोगी के कमरे में परदों का प्रयोग किया जाना चाहिए। परदों द्वारा सूर्य के प्रकाश एवं धूप को अपनी इच्छा एवं आवश्यकता के अनुसार नियन्त्रित किया जा सकता है।

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प्रश्न 4:
रोगी के कमरे में प्रकाश-व्यवस्था कैसी होनी चाहिए?
उत्तर:
रोगी के कमरे में रात के समय तीव्र या चकाचौंध करने वाला प्रकाश नहीं होना चाहिए। यदि घर में बिजली हो तो सामान्य रूप से हल्के दूधिया रंग का बल्ब ही इस्तेमाल करना चाहिए। यदि बिजली न हो तो तेल से जलने वाला दीपक या लालटेन जलाई जा सकती है। ध्यान रहे, (UPBoardSolutions.com) इनकी लौ कम : रखनी चाहिए ताकि इनका कच्चा धुआँ न बनने पाए। दीपक या लालटेन को रोगी के पलंग से काफी दूर ही रखना चाहिए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
आपके विचार से रोगी को कमरा कैसा होना चाहिए?
उत्तर:
हमारे विचार से रोगी का कमरा साफ-सुथरा, हवादार तथा प्रकाशयुक्त होना चाहिए।

प्रश्न 2:
रोगी के कमरे की सफाई को अधिक महत्त्व क्यों दिया जाता है?
उत्तर:
नियमित सफाई से रोग के जीवाणुओं को बढ़ने से रोका जा सकता है, इससे रोगी के शीघ्र स्वस्थ होने में योगदान प्राप्त होता है। इसी कारण से रोगी के कमरे की सफाई को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 3:
रोगी के कमरे में पोछा लगाने के लिए पानी में क्या मिलाया जाता है?
उत्तर:
रोगी के कमरे में पोछा लगाने के लिए पानी में फिनाइल आदि निसंक्रामक घोल मिलाया जाता है।

प्रश्न 4:
रोगी के कमरे में धूप का उचित प्रबन्ध क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
सूर्य की किरणें अनेक रोगाणुओं को नष्ट करती हैं तथा रोगी को स्वास्थ्य लाभ करने में सहायता करती हैं।

प्रश्न 5:
रोगी के कमरे में वायु के संवातन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
वायु की उपयुक्त संवातन व्यवस्था से रोगी को शुद्ध वायु प्राप्त होती है तथा कमरे की अशुद्ध वायु बाहर निकल जाती है। इस स्थिति में रोग के जीवाणु भी अधिक नहीं पनप पाते।

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प्रश्न 6:
रोगी के कमरे का तापक्रम क्या रहना चाहिए?
उत्तर:
रोगी के कमरे का तापक्रम सामान्यतः 98° फॉरेनहाइट (लगभग 37° सेन्टीग्रेड) रहना। चाहिए।

प्रश्न 7:
रोगी के कमरे का तापक्रम किस प्रकार नियन्त्रित किया जा सकता है?
उत्तर:
रोगी के कमरे के तापक्रम को नियन्त्रित करने के लिए ग्रीष्म ऋतु में कूलर व वातानुकूलन यन्त्र तथा शरद् ऋतु में रूम-हीटर प्रयोग में लाए जाते हैं।

प्रश्न 8:
रोगी के कमरे से रात्रि में साज-सज्जा वाले पौधे अथवा फूलदान क्यों हटा देने चाहिए?
उत्तर:
रात्रि में पौधों में श्वसन क्रिया अधिक होती है, जिसके फलस्वरूप हानिकारक कार्बन डाइऑक्साइड अधिक निष्कासित होती है; अतः रोगी के कमरे से रात्रि में फूलदान इत्यादि को हटाना उचित रहता है।

प्रश्न 9:
रोगी के कपड़े यथासम्भव सूती होने चाहिए, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि सूती वस्त्रों को खौलते पानी में धोकर सहज ही नि:संक्रमित किया जा सकता है।

प्रश्न 10:
रोगी के कमरे में मनोरंजन की व्यवस्था आप कैसे करेंगी?
उत्तर:
रोगी के मनोरंजन के लिए उसके कमरे में पत्रिकाएँ, ट्रांजिस्टर व टी० बी० इत्यादि रखे जा सकते हैं।

प्रश्न 11:
रोगी के पलंग की विशेषता बताइए।
उत्तर:
रोगी का पलंग ऊँचा, स्प्रिंग वाला तथा लोहे का बना ठीक रहता है।

प्रश्न 12:
मेल-पात्र की आवश्यकता किस दशा में होती है?
उत्तर:
मल-पात्र की आवश्यकता रोगी के उठने-बैठने में असमर्थ होने की दशा में होती है।

वसतुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न-प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) संक्रामक रोगग्रस्त व्यक्ति को आप किस प्रकार रखेंगी?
(क) अलग कमरे में,
(ख) बच्चों के कमरे में,
(ग) किसी के भी कमरे में,
(घ) बरामदे में।

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(2) रोगी का कमरा होना चाहिए
(क) रसोईघर के पास,
(ख) पशुशाला के पास,
(ग) शौचालय एवं स्नान घर के पास,
(घ) बैठक में कमरे के पास।

(3) रोगी के कमरे की दीवारें पुती होनी चाहिए
(क) पेन्ट्स से,
(ख) चूने से,
(ग) डिस्टेम्पर से,
(घ) किसी से भी।

(4) रोगी के मनोरंजन के लिए कमरे में होनी चाहिए
(क) पत्रिकाएँ,
(ख) ट्रांजिस्टर,
(ग) टी० बी०,
(घ) ये सभी।

(5) रोगी के लिए उपयुक्त वस्त्र होते हैं
(क) नायलॉन के,
(ख) सूती,
(ग) टेरीकॉट,
(घ) जरीदार।

(6) रोगी के कमरे के फर्श को प्रतिदिन धोना चाहिए
(क) डिटॉल से,
(ख) फिनिट से,
(ग) फिनाइल से,
(घ) लाल दवा से।

(7) रोगी के कमरे का तापक्रम रहना चाहिए
(क) 90° फॉरेनहाइट,
(ख) 100° फॉरेनहाइट,
(ग) 40° सेन्टीग्रेड,
(घ) 37° सेन्टीग्रेड।

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(8) रोगी के कमरे में प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए
(क) लाल या हरे रंग की,
(ख) तेज एवं चमकदार,
(ग) हल्की तथा दूधिया रंग की,
(घ) किसी भी प्रकार की।

(9) रोगी के इस्तेमाल के लिए उपयोगी पलंग होना चाहिए
(क) तख्त के रूप में,
(ख) सामान्य फोल्डिग चारपाई,
(ग) सिंप्रग द्वारा कसा हुआ पलंग,
(घ) इनमें से कोई भी।

(10) रोगी के बिस्तर पर बिछाई जाने वाली चादर होनी चाहिए
(क) काले या पीले रंग की,
(ख) हरे या नीले रंग की,
(ग) सफेद रंग की,
(घ) किसी भी गहरे रंग की।

उत्तर:
(1) (क) अलग कमरे में,
(2) (ग) शौचालय एवं स्नान घर के पास,
(3) (ख) चूने से,
(4) (घ) ये सभी,
(5) (ख) सूती,
(6) (ग) फिनाइल से,
(7) (घ) 37° सेन्टीग्रेड,
(8) (ग) हल्की तथा दूधिया रंग की,
(9) (ग) सिंप्रग द्वारा कसा हुआ पलंग,
(10) (ग) सफेद रंग की।

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UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 24 महाराजा रणजीत सिंह (महान व्यक्तिव)

UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 24 महाराजा रणजीत सिंह (महान व्यक्तिव)

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पाठ का सारांश

पंजाब के लोक जीवन में प्रचलित लोक कथाओं से महाराजा रणजीत सिंह की उदारता, न्यायप्रियता और सभी धर्मों के प्रति सम्मान प्रदर्शित होता है।

राणजीत सिंह का जन्म सुकरचक्या जागीरदार महासिंह के घर हुआ। पिता की मृत्यु के बाद सन 1797 ई० में रणजीत सिंह ने जागीर का भार सँभाल लिया। सन 1801 ई० में बैशाखी के दिन लाहौर में ये एक स्वतंत्र भारतीय शासक के रूप में प्रतिष्ठित हुए। सन 1839 ई० तक राज्य की सीमाओं को बढ़ाया और उसे शक्तिशाली बनाया। ये महाराजा की उपाधि से विभूषित हुए। कालान्तर , में, शेर-ए-पंजाब के नाम से विख्यात हुए।

महाराजा रणजीत सिंह अनोखे शासक थे। इन्होंने खालसा पंथ के नाम से शासन चलाया। इन्होंने अँग्रेजों की तरह सुशिक्षित सेना रखी और पंजाब को एक शक्तिशाली राज्य के रूप में परिवर्तित कर दिया। (UPBoardSolutions.com) इन्होंने विरोधियों के प्रति भी उदारता और दया का दृष्टिकोण रखा। इस भावना के कारण इन्हें लाखबख्श कहा जाता है।

27 जून, 1839 ई० में इनका देहावसान हो गया। दुर्भाग्यवश, इन्हें कोई योग्य उत्तराधिकारी नहीं मिला।

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अभ्यास

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिरों और मस्जिदों के उत्थान के लिए क्या उल्लेखनीय कार्य किया?
उत्तर :
महाराजा राणजीत सिंह ने मन्दिरों को सोना आदि दान में दिए और अनेक मसजिदों की मरम्मत कराई।

प्रश्न 2.
विभिन्न धर्मों के प्रति महाराजा रणजीत सिंह के क्या विचार थे?
उत्तर :
विभिन्न धर्मों के प्रति महाराजा रणजीत सिंह के विचार सहिष्णुता, समानता व आदरभाव के थे।

प्रश्न 3.
किन गुणों के कारण महाराजा रणजीत सिंह को लोक गाथाओं में स्थान मिला?
उत्तर :
उदारता, न्यायप्रियता, सभी धर्मों के प्रति सम्मान की भावना आदि गुणों के कारण महाराजा रणजीत सिंह को लोक गाथाओं में स्थान मिला।

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प्रश्न 4.
किसने और क्यों कहा –

(क) ईश्वर की इच्छा है कि मैं सभी धर्मों को एक नजर से देखें।
उत्तर :
रणजीत सिंह ने फकीर से कहा, क्योंकि फकीर ने उनसे कहा कि कुरान तो आपके किसी काम का नहीं है।

(ख) उनके चेहरे पर इतना तेज था कि मैंने कभी सीधा उनके चेहरे की ओर देखा ही नहीं।
उत्तर :
फकीर अजीमुद्दीन ने लॉर्ड विलियम बेंटिक से कहा, क्योंकि उससे बेंटिक ने पूछा था कि महाराजा की कौन-सी आँख खराब है।

प्रश्न 5.
सही (✓) अथवा गलत (✗) का चिह्न लगाइए (चिह्न लगाकर) –

(क) महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में किसी को मृत्युदण्ड नहीं दिया गया। (✓)
(ख) इक्कीस वर्ष की उम्र में महाराजा रणजीत सिंह को शेर-ए-पंजाब की उपाधि दी गई। (✗)
(ग) अपने जीवनकाल में महाराजा रणजीत सिंह जनश्रुतियों के केन्द्र बन गए। (✓)
(घ) प्रतिशासक परिषद् में महाराजा रणजीत सिंह और उनकी माँ को सम्मिलित किया गया। (✗)

प्रश्न 6.
उचित शब्द का चयन करके रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए (पूर्ति करके) –

(क) ईश्वर की इच्छा है कि मैं सभी धर्मों को एक ही नजर से देखें। (आँख, विचार, नजर)
(ख) अपने जीवनकाल में ही वे जनश्रुतियों के केन्द्र बन गए थे। (विषय, केन्द्र, क्षेत्र)
(ग) महाराजा रणजीत सिंह को दरबारियों के साथ मसनद के सहारे जमीन पर बैठना अच्छा लगता था। (सोना, खेलना, बैठना)
(घ) महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी सैन्य पद्धति को अँग्रेजी सेना के अनुसार संगठित करने का निश्चय किया। (विचार, निश्चय, काम)

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नोट – प्रश्न 7.
एवं 8 विद्यार्थी अपने शिक्षक/शिक्षिका की सहायता से स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 2 जलवायु

UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 2 जलवायु

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इकाई 2  जलवायु
अभ्यास

प्रश्न 1.
सही उत्तर पर सही (✔) का निशान लगाइये (निशान लगाकर)
उत्तर :

(क) जलवायु किसे कहते हैं?

  1. तापमान को
  2. वर्षा को
  3. सर्दी एवं गर्मी को
  4. मौसम की दशाओं के औसत को     (✔)

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(ख) निम्नलिखित में कौन जलवायु का कारक है?

  1. तापमान
  2. वर्षा
  3. पवन
  4. उपरोक्त सभी      (✔)

(ग) जलवायु का अध्ययन किस विज्ञान के अन्तर्गत आता है?

  1. जीव विज्ञान
  2. सस्य विज्ञान
  3. जलवायु विज्ञान    (✔)
  4. वनस्पति विज्ञान

(घ) तापमान मापते हैं

  1. वर्षामापी से ।
  2. वायुदाबमापी से
  3. तापमापी से     (✔)
  4.  उक्त में से कोई नहीं

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (पूर्ति करके)
उत्तर :

  1. तापमान मापने के लिए तापमापी का प्रयोग करते हैं।
  2. वर्षा मापने के लिए वर्षामापी का प्रयोग करते हैं।
  3. वायुदाब मापने के लिए वायुदाबमापी का प्रयोग करते हैं।
  4. जिन स्थानों पर वर्षा अधिक होती है, वहाँ की जलवायु गर्म व आर्द्र होती है।
  5. जलवायु कारकों के क्रमबद्ध अध्ययन.को जलवायु विज्ञान कहते हैं।

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प्रश्न 3.
उत्तर :
निम्नलिखित में सही के सामने (✔) तथा गलत के सामने (✘) का चिह्न लगाइए (चिह्न लगाकर)

  1. जलवायु के कारकों के क्रमबद्ध अध्ययन को जलवायु विज्ञान कहते हैं। (✔)
  2. जिन स्थानों पर वर्षा अधिक होती है, वहाँ की जलवायु नम व आर्द्र होती है। (✔)
  3. तापमान वायुदाबमापी (UPBoardSolutions.com) से नापा जाता है। (✘)
  4. वर्षा मापने के यन्त्र को तापमापी कहते हैं। (✘)
  5. किसी निश्चित क्षेत्र में वहाँ की जलवायु के अनुसार फसल उगाई जाती है। (✔)

प्रश्न 4.
मौसम के आधार पर फसलें कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर :
मौसम के अनुसार फसलें तीन प्रकार की होती हैं- खरीफ, रबी और जायद।

प्रश्न 5.
जलवायु को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं?
उत्तर :
तापमान, वर्षा तथा पवन जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक हैं।

प्रश्न 6.
वायुदाब मापने के लिए किस यन्त्र का प्रयोग करते हैं?
उत्तर :
वायुदाबमापी यन्त्र।

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प्रश्न 7.
वर्षा मापने वाले यन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर :
वर्षामापी यन्त्र की सहायता से किसी स्थान की निश्चित समय में होने वाली वर्षा की माप की जाती है। एक बेलनाकार खोल में एक शीशे की बोतल होती है। बोतल के व्यास के बराबरे व्यास वाली (UPBoardSolutions.com) एक कीप इस पर रखी होती है। वर्षा में इसे खुला रख देते हैं। वर्षा की बूंदें । बोतल में एकत्र हो जाती हैं। उसे नाप लिया जाता है, जिससे वर्षा की मात्रा ज्ञात हो जाती है।
UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 2 जलवायु image 1

प्रश्न 8.
जलवायु के आधार पर उत्तर प्रदेश में कृषि क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
जलवायु के आधार पर उत्तर प्रदेश को आठ क्षेत्रों में बाँटा गया है
UP Board Solutions for Class 8 Agricultural Science Chapter 2 जलवायु image 2

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UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 23 अहिल्याबाई (महान व्यक्तिव)

UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 23 अहिल्याबाई (महान व्यक्तिव)

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पाठ का सारांश

अहिल्याबाई का जन्म सन 1725 ई० में औरंगाबाद जिले के चौड़ी ग्राम में हुआ। इनके पिता मानकाजी शिंदे सरल स्वभाव के थे। माता सुशीलाबाई धार्मिक प्रवृति की थीं; जिन्होंने अहिल्याबाई को धार्मिक संस्कार दिए। इनकी एकाग्रता व भक्ति से प्रभावित होकर मल्हार राव होल्कर ने इन्हें अपनी पुत्रवधू बनाया। इनके पति खाण्डेराव राजकाज में रुचि नहीं लेते थे। अहिल्याबाई राजकाज में दक्ष थी। इनकी प्रेरणा से खांडेराव अस्त्र-शस्त्र चलाना सीख गए और राजकाज में रुचि लेने लगे; (UPBoardSolutions.com) लेकिन एक युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई। अहिल्याबाई ने प्रजा की देखभाल शुरू कर दी। श्वसुर की मृत्यु के बाद इनका पुत्र मालेराव गद्दी पर बैठा; परन्तु उसकी भी मृत्यु हो गई। अहिल्याबाई ने राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली।

राज्य में चोरों व डाकुओं ने आतंक मचाना शुरू कर दिया। उनका सफाया करने वाले एक वीर युवक यशवंत राव के साथ अहिल्याबाई ने अपनी पुत्री मुक्ताबाई का विवाह कर दिया, लेकिन यशवंत राव की भी मृत्यु हो गई। फिर भी उन्होंने धैर्य नहीं छोड़ा।

अहिल्याबाई कुशल प्रशासिका थीं। इनकी उदारता और स्नेहपूर्ण व्यवहार के कारण प्रजा इन्हें ‘माँ साहब’ कहती थी। इन्होंने अनेक तीर्थ स्थानों पर मन्दिर, घाट और धर्मशालाएँ बनवाईं; गरीबों और (UPBoardSolutions.com) अनाथों के लिए भोजन का प्रबन्ध किया। नाना फड़नवीस के अनुसार, अहिल्याबाई पुरुषार्थ, दूरदर्शिता और महानता में अद्वितीय थीं।

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अभ्यास

प्रश्न 1.
अहिल्याबाई का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर :
अहिल्याबाई का जन्म सन 1725 ई० में (वर्तमान महाराष्ट्र के) औरंगाबाद जिले के चौड़ी ग्राम में हुआ था।

प्रश्न 2.
अहिल्याबाई में धार्मिक संस्कार कैसे पड़े?
उत्तर :
अहिल्याबाई की माता सुशीलाबाई अपनी बेटी को नित्य मन्दिर ले जाती, पूजा-अर्चना कराती और भागवत कथा तथा पुराण सुनाती थीं। इन्हीं क्रियाकलापों से अहिल्याबाई में धार्मिक संस्कार पड़े।

प्रश्न 3.
अहिल्याबाई को प्रजा ‘माँ साहब’ क्यों कहती थी? उत्तर- अहिल्याबाई की उदारता और स्नेहपूर्ण व्यवहार के कारण प्रजा उन्हें ‘माँ साहब’ कहती थी।

प्रश्न 4.
प्रजाहित के लिए अहिल्याबाई ने क्या-क्या कार्य किए?
उत्तर :
अहिल्याबाई ने प्रजाहित के लिए अनेक कार्य किए। उन्होंने तीर्थस्थानों पर मन्दिर, घाट और धर्मशालाएँ बनवाई। प्रजा की सुरक्षा के लिए चोरों एवं डाकुओं का दमन किया। वे स्वयं प्रजा से उनकी कुशलता पूछती थीं। उन्होंने गरीबों के लिए भोजन का प्रबन्ध किया।

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प्रश्न 5.
अहिल्याबाई को किन-किन द:खद परिस्थितियों का सामना करना पड़ा?
उत्तर :
अहिल्याबाई को अपने जीवन काल में कई दुखद परिस्थितियों को सामना करना पड़ा। शादी के कुछ दिनों बाद उनके पति खांडेराव युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए। इसके कुछ दिनों बाद उनके ससुर (UPBoardSolutions.com) मल्हारराव की मृत्यु हो गई। इसके बाद उनके पुत्र मालेराव होल्कर की मृत्यु हो गई। और फिर कुछ दिनों के बाद उनके दामाद यशवंत राव की भी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 6.
सही (✓) अथवा गलत (✗) का निशान लगाइए (निशान लगाकर) –

(अ) अहिल्याबाई ने अपनी पुत्री का विवाह यशवन्त राव के साथ किया।
(ब) अहिल्याबाई ने महिलाओं की सेना तैयार की।
(स) अहिल्याबाई सदैव प्रजा के हित में तत्पर रहीं।
(द) अहिल्याबाई कुशल शासक ने थीं।

प्रश्न 7.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

(क) अहिल्याबाई की सेना की जोरदार तैयारी देखकर राघोवा के हौसले पस्त हो गए।
(ख) अहिल्याबाई ने पुत्र को समझाते हुए कहा – राजा प्रजा का पालक होता है। वह प्रजा के दुख तथा कठिनाइयों को दूर करता है।
(ग) मल्हारराव की मृत्यु के बाद मालेराव होल्कर गद्दी पर बैठा।
(घ) अहिल्याबाई ने अनेक तीर्थ स्थानों पर मंदिरों, घाटों और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया।

प्रश्न 8.
नीचे लिखे प्रश्न के दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनकर लिखिए –
अहिल्याबाई ने अपनी पुत्री का विवाह यशवन्त राव के साथ इसलिए किया –

(क) क्योंकि वह बहुत सुंदर था।
(ख) क्योंकि वह कुशल प्रशासक था।
(ग) क्योंकि वह राजकुमार था।
(घ) क्योंकि वह वीर था।

उत्तर :
(घ) क्योंकि वह वीर था।

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योग्यता विस्तार –
नोट – विद्यार्थी स्वयं करें।

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 19 गृह-परिचर्या और गृह-परिचारिका

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 19 गृह-परिचर्या और गृह-परिचारिका

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Home Science . Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 19 गृह-परिचर्या और गृह-परिचारिका.

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह-परिचर्या की परिभाषा देते हुए उसका महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
या
गृह-परिचर्या का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
गृह-परिचर्या का अर्थ एवं परिभाषा

सामान्य स्वस्थ व्यक्ति अपने सभी दैनिक कार्य स्वयं ही किया करते हैं अर्थात् प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति नहाना-धोना, शौच, कपड़े बदलना तथा भोजन ग्रहण करना आदि कार्य स्वयं ही करता है, परन्तु अस्वस्थ अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति अनेक बार अपने इंन व्यक्तिगत कार्यों को स्वयं करने में असमर्थ हो जाता है। इन परिस्थितियों में व्यक्ति के ये सभी साधारण कार्य भी किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ही किए जाते हैं। रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के इन कार्यों तथा कुछ अन्य सहायक कार्यों को ही सम्मिलित रूप से रोगी की परिचर्या कहते (UPBoardSolutions.com) हैं। रोगी की परिचर्या के अन्तर्गत रोगी व्यक्ति को आवश्यक औषधि देना, उसकी मरहम-पट्टी करना, उठने-बैठने आदि में सहायता प्रदान करना आदि सभी कुछ सम्मिलित होता है। रोगी के इन सेवा-सुश्रूषा सम्बन्धी समस्त कार्यों को रोगी की परिचर्या कहते हैं। यदि रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति अस्पताल में भर्ती हो, तो उसकी परिचर्या का कार्य वहाँ के कर्मचारी ही करते हैं। सामान्य रूप से यह कार्य नस द्वारा किया जाता है। जब रोगी घर पर होता है, उस समय रोगी की परिचर्या या सेवा-सुश्रूषा का कार्य घर पर ही किया जाता है। इस स्थिति में होने वाली परिचर्या को . ‘गृह-परिचय’ कहते हैं। इस प्रकार गृह-परिचय को इन शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है, “घर पर रहने वाले रोगी व्यक्ति की चिकित्सक के निर्देशानुसार की जाने वाली सेवा-सुश्रूषा अथवा परिचर्या को ही गृह-परिचर्या कहते हैं।” रोगी के रोग-काल में गृह-परिचर्या का विशेष महत्व होता है। गृह-परिचर्या के माध्यम से ही रोगी का सफल उपचार सम्भव हो पाता है। उत्तम गृह-परिचर्या के अभाव में चिकित्सक द्वारा रोगी का सफल उपचार कर पाना प्रायः कठिन ही होता है।

गृह-परिचर्या का महत्त्व

रोगी की स्नेहपूर्वक देख-रेख औषधीय चिकित्सा. के समान ही महत्त्वपूर्ण है, बल्कि कई बार (मानसिक रोग आदि में) तो यह औषधियों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है। औषधियाँ यदि रोग का निवारण करती हैं, तो रोगी से किया जाने वाला प्रेमपूर्ण व्यवहार रोगी को साहस एवं धैर्य बँधाता है। गृह-परिचर्या एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है जिसका निर्वाह करने के लिए विनम्र, हँसमुख, बुद्धिमान एवं कार्यकुशल (UPBoardSolutions.com) परिचारिका की आवश्यकता होती है। परिचारिका को स्वास्थ्य के नियमों एवं उनके पालन के महत्त्व को भली-भाँति समझना चाहिए। उसे चिकित्सक से रोगी के लिए देख-रेख एवं औषधि सम्बन्धी आवश्यक निर्देश प्राप्त कर लेने चाहिए, क्योंकि तब ही वह रोगी की नियमित परिचर्या कर सकती है। औषधियों का उचित प्रयोग, विनम्र एवं प्रेमपूर्ण व्यवहार रोगी की रोग की अवधि में अत्यधिक सहायता करता है।
रुग्ण होने की दशा में यदि, उपयुक्त चिकित्सा उपलब्ध हो, तो रोगी को सर्वोत्तम परिचर्या घर पर ही मिलती है। घर पर परिवार के सदस्यों को प्रेमपूर्ण व्यवहार, आस-पास का परिचित वातावरण एवं अन्य सुख-सुविधाएँ रोगी में असुरक्षा की भावनाओं को दूर करती हैं तथा उसकी दशा में सुधार शीघ्रतापूर्वक होता है।
रोग की गम्भीर अवस्था में रोगी डर एवं सदमे का शिकार हो सकता है। इस खतरनाक एवं गम्भीर परिस्थिति में अस्पताल अथवा नर्सिंग होम की परिचारिका की अपेक्षा गृहिणी (गृह-परिचारिका) अधिक प्रभावी ढंग से रोगी को धैर्य बँधा सकती है तथा रोगमुक्त होने के लिए आशान्वित कर सकती है। (UPBoardSolutions.com) गृह-परिचारिका को चिकित्सक के निर्देशों का नियमपूर्वक पालन करना चाहिए अन्यथा हानि होने की सम्भावना भी हो सकती है। उसमें पर्याप्त आत्मविश्वास होना चाहिए। रोगी की गम्भीर अवस्था में भी उसे उत्तेजित अथवा घबराना नहीं चाहिए। इस प्रकार के गुणों से युक्त गृह-परिचारिका रोगी की अस्पताल से भी अच्छी परिचर्या कर सकती है।

आधुनिक काल में रोग एवं दुर्घटनाएँ प्रत्येक घर एवं परिवार के लिए सामान्य घटनाओं के समान बन चुकी हैं। अत: गृह-परिचर्या के महत्त्व को भली-भाँति समझा जा सकता है। प्रत्येक गृहिणी एवं परिवार के अन्य सदस्यों को परिचर्या के आवश्यक नियमों का ज्ञान अनिवार्य रूप से प्राप्त करना चाहिए, क्योंकि गृह-परिचर्या में दक्ष गृहिणी किसी भी प्रकार की आपात स्थिति में घर में अस्पताल की सभी सुविधाएँ सुलभ कर परिवार के पीड़ित सदस्य अथवा सदस्यों की उपयुक्त देख-रेख कर सकती है।

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प्रश्न 2:
अच्छी परिचारिका में क्या गुण होने चाहिए? विस्तार से वर्णन कीजिए।
या
परिचारिका के मुख्य गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
परिचारिका के गुण

रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के उपचार के लिए जितनी अच्छी चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है उतनी ही आवश्यकता अच्छी परिचर्या की भी होती है, इसके लिए एक कुशल एवं बुद्धिमान परिचारिका का होना अत्यन्त आवश्यक है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि यह (UPBoardSolutions.com) अनिवार्य नहीं कि गृह-परिचर्या को कार्य किसी महिला (परिचारिका) द्वारा ही किया जाए। सुविधा एवं परिस्थितियों के अनुसार गृह-परिचर्या का कार्य परिवार का कोई पुरुष सदस्य भी कर सकता है। ऐसे पुरुष को ‘गृह-परिचारक’ कहा जाता है। गृह-परिचर्या का कार्य करने वाले व्यक्ति के लिए आवश्यक गुणों का विवरण निम्नवर्णित है

(1) उत्तम स्वास्थ्य:
परिचारिका को एक लम्बी अवधि तक निरन्तर रोगी की देखभाल करनी होती है; अत: उसका पूर्णतः स्वस्थ होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त पूर्ण रूप से स्वस्थ परिचारिका के रोगी के पास में रहने पर रोग से संक्रमित होने की सम्भावना भी कम रहती है। इसके साथ-साथ (UPBoardSolutions.com) यह भी सत्य है कि यदि परिचारिका स्वयं भी रोग से ग्रस्त हो तो उस स्थिति में सम्बन्धित रोग का संक्रमण रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को भी हो सकता है।

(2) कार्य-कुशल एवं दूरदर्शी होना:
परिचारिका का परिचर्या के कार्यों में दक्ष होना आवश्यक है। उसका दूरदर्शी होना भी अत्यन्त अनिवार्य है ताकि वह रोगी की अवस्था एवं आवश्यकताओं का अनुमान कर आवश्यक प्रबन्ध कर सके।

(3) विनम्र एवं हँसमुख होना:
स्वभाव से कोमल तथा हँसमुख परिचारिका रोगी के चिड़चिड़ेपन को दूर कर मानसिक सन्तोष प्रदान कर सकती है, जिसकी रोगी को अत्यधिक आवश्यकता होती है। सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार से रोगी परिचारिका की सभी बातें मानता है तथा शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है।

(4) सहानुभूति के गुण से परिपूर्ण:
रोगग्रस्त व्यक्ति की सच्चे मन से तथा पूरी लगन से सेवा एवं देखभाल का कार्य वही व्यक्ति कर सकता है जिसके मन में सहानुभूति की भावना प्रबल हो। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही परिचारिका का एक आवश्यक गुण सहानुभूति से परिपूर्ण होना माना गया है।

(5) सहनशीलता:
अधिक समय तक अस्वस्थ रहने पर रोगी प्रायः क्रोधी व चिड़चिड़ा हो जाता है। औषधियों के प्रति उसमें विरक्ति उत्पन्न हो जाती है तथा वह ऊट-पटांग बातें एवं कार्य करने लगता है। उसकी देख-रेख के लिए एक ऐसी सहनशील परिचारिका की आवश्यकता होती है जो कि उसकी उपर्युक्त बातों का बुरा न माने तथा पूर्णरूप से सहज एवं विनम्र रहकर उसकी परिचर्या करती रहे।

(6) अच्छी स्मरण:
शक्ति-रोगी को निश्चित समय पर औषधि सेवन कराना, भोजन एवं फल आदि देना तथा उसकी अन्य दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना परिचारिका के महत्त्वपूर्ण दायित्व हैं। इनका नियमित पालन करने के लिए उसमें अच्छी स्मरण शक्ति का होना अनिवार्य है।

(7) तीव्र निरीक्षणशक्ति एवं निर्णय लेने की क्षमता:
परिचारिका की निरीक्षण शक्ति तीव्र होनी चाहिए ताकि वह रोगी की बिगड़ती अवस्था का तुरन्त अनुमान लगा सके। ऐसी अवस्था में चिकित्सक को अविलम्ब बुलाना, चिकित्सक के उपलब्ध न होने पर चिकित्सक के पूर्व निर्देशों के अनुसार औषधि की मात्रा या प्रकार में परिवर्तन, कृत्रिम श्वसन आदि उपायों को अपनाने के उपयुक्त निर्णय लेने की क्षमता का होना भी एक अच्छी परिचारिका का गुण है।

(8) कर्त्तव्यपरायण एवं आज्ञाकारी:
परिचारिका को रोगी की देख रेख को अपना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कर्तव्य समझना चाहिए। उसे एक आज्ञाकारी व्यक्ति की भाँति चिकित्सक द्वारा दिए गए सभी निर्देशों का पालन करना चाहिए। यदि रोगी किसी औषधि को लेना नहीं चाहता अथवी अपनी भोजन व्यवस्था में परिवर्तन (UPBoardSolutions.com) चाहता है अथवा अन्य किसी प्रकार की इच्छा रखता है तो एक अच्छी परिचारिका स्वयं कोई निर्णय न लेकर चिकित्सक से ही उपयुक्त निर्देश प्राप्त करती है। एक अच्छी परिचारिका अपने कर्तव्य से भली प्रकार परिचित होती है तथा स्वयं चिकित्सक बनने का प्रयास नहीं करती।

(9) स्वच्छता का ध्यान रखना:
परिचारिका को सफाई के प्रति पूर्णतः सचेत रहना चाहिए। रोगी के शरीर की सफाई,बिस्तर व उसके आसपास की सफाई तथा साथ ही रोगी के वस्त्र व भोजन (UPBoardSolutions.com) आदि की स्वच्छता का उसे सदैव ध्यान रखना चाहिए। परिचारिका को रोगी के वस्त्र एवं बर्तन आदि को . समय-समय पर नि:संक्रमित करना चाहिए। इसके साथ-साथ परिचारिका को स्वयं अपने हाथों आदि की सफाई का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि यदि उसके हाथ साफ नहीं हैं, तो उस स्थिति में रोगी का अहित हो सकता है।

(10) प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना:
अनेक बार रोगों या दुर्घटनाओं से पीड़ित व्यक्तियों को तत्काल चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है। ऐसे गम्भीर समय में एक दक्ष परिचारिका पीड़ित व्यक्तियों को आपातकाल चिकित्सा उपलब्ध करा सकती है। अतः परिचारिका को प्राथमिक चिकित्सा का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।

(11) पाक-कला में निपुण होना:
परिचारिका को रुग्णावस्था में दिए जाने वाले सभी आहारों के तैयार करने की विधियाँ आनी चाहिए। रुग्णावस्था में प्रायः रोगियों का स्वाद बिगड़ जाता है तथा वह भिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों की माँग करते हैं। अतः परिचारिका को पाक-कला में निपुण होना चहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह-परिचारिका का रोगी के लिए क्या महत्त्व है?
उत्तर:
रोगी को पूर्ण स्वास्थ्य लाभ कराने में परिचारिका का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। वह रोगी एवं चिकित्सक के बीच की महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जो कि

  1. रोगी की देखभाल करती है।
  2.  रोगी व उसके आस-पास की सफाई की व्यवस्था करती है।
  3.  चिकित्सक के निर्देशानुसार रोगी को औषधि देती है।
  4.  घावों की आवश्यक मरहम-पट्टी करती है।
  5.  रोगी को स्नान व स्पंज कराती है।
  6. रोगी को मल-मूत्र विसर्जन में सहायता करती है।
  7. रोगी के आहार की व्यवस्था करती है।
  8.  रोगी के ताप आदि का चार्ट बनाती है।
  9.  रोगी की निराशा दूर कर उसे धैर्य बँधाती है।
  10.  रोगी से मित्रतापूर्ण व्यवहार करती है तथा उसकी सभी सुख-सुविधाओं का ध्यान रखती है।

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प्रश्न 2:
रोगी की रिपोर्ट लिखना क्यों आवश्यक है? रिपोर्ट में परिचारिका को क्या-क्या बातें लिखनी चाहिए?
उत्तर:
रोगी की रिपोर्ट लिखने की आवश्यकता:

परिचारिका को नियमित रूप से रोगी की रिपोर्ट तैयार करते रहना चाहिए। इससे निम्नलिखित लाभ होते हैं

  1. रुग्णावस्था में रोगी की सही दंशा का अनुमान लगाने में सुविधा रहती है।
  2.  रिपोर्ट के आधार पर चिकित्सक उपयुक्त चिकित्सा सम्बन्धी निर्देश दे सकता है।

रोगी की रिपोर्ट का अभिलेखन:
इसके लिए परिचारिका को निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए

(i)  रोगी की नाड़ी, श्वास गति एवं ताप का चार्ट तैयार करना:
यह एक नियन्त्रित चार्ट होता है, जिसमें समय-समय पर रोगी की नाड़ी की गति, श्वास गति तथा तापक्रम को अंकित किया जाता है। इन तथ्यों को ग्राफ के माध्यम से भी दर्शाया जा सकता है।

(ii) रोगी के मल-मूत्र विसर्जन का चार्ट बनाना:
इसमें रोगी कितनी बार मल-मूत्र विसर्जित करता है, मल-मूत्र की बनावट, रंग व गन्ध तथा इस क्रिया में होने वाले कष्ट आदि का विवरण अंकित किया जाता है।

(iii)  निद्रा एवं भूख की स्थिति का अंकन:
इसमें रोगी सही नींद लेता है अथवा नहीं तथा उसे आवश्यक भूख लगती है अथवा नहीं आदि का अभिलेखन किया जाता है।

 (iv) अन्य बातें:
इसमें औषधियों के प्रति रोगी की प्रतिक्रिया, औषधियों का प्रभाव, रोगी की मानसिक दशा तथा रोगी की जिह्वा का रंग आदि का अभिलेखन किया जाता है।
उपर्युक्त बातों को प्रायः निम्नलिखित तालिका द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 19 गृह-परिचर्या और गृह-परिचारिका

प्रश्न 3:
परिचारिका के रोगी के प्रति मुख्य रूप से क्या कर्तव्य होते हैं?
उत्तर:
परिचारिका के रोगी के प्रति मुख्य रूप से निम्नलिखित कर्तव्य होते हैं।

  1. परिचारिका का कर्तव्य है कि वह रोगी को हर प्रकार से आराम पहुँचाए।
  2. परिचारिका का कर्तव्य है कि वह रोगी के शरीर की स्वच्छता एवं अनिवार्य प्रसाधन को ध्यान रखे। रोगी के बालों में कंघा करके उसे साफ-सुथरे वस्त्र पहनाने का कार्य भी परिचारिका द्वारा ही किया जाता है।
  3.  परिचारिका को रोगी के भोजन की भी व्यवस्था करनी होती है; अतः रोगी के भोजन को पकाना भी उसे आना चाहिए।
  4.  रोगी यदि स्वयं मल-मूत्र का त्याग न कर सकता हो, तो बिस्तर पर ही मल-त्याग कराने की सुविधा होनी चाहिए। यह कार्य भी परिचारिका द्वारा ही किया जाता है।
  5.  रोगी के कमरे एवं आवश्यक सामान को साफ एवं सही ढंग से रखना भी परिचारिका का ही कार्य है।
  6.  परिचारिका का कार्य है कि वह अपने व्यवहार से रोगी को मानसिक रूप से प्रसन्न रखे।
  7. परिचारिका को रोगी के प्रति मित्रता का व्यवहार करना चाहिए।
  8.  यदि रोगी के लिए आराम आवश्यक हो, तो परिचारिका का कर्तव्य है कि वह रोगी से मिलने वाले व्यक्तियों को रोके तथा रोगी को हर प्रकार से आराम पहुँचाए।

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प्रश्न 4:
गृह-परिचारिका का चिकित्सक के प्रति क्या कर्तव्य है?
उत्तर:
परिचारिका रोगी और चिकित्सक के बीच की कड़ी है, अतः जहाँ उसका रोगी के प्रति देखभाल का कर्तव्य है, वहाँ चिकित्सक को उसके कार्यों में सहायता प्रदान (UPBoardSolutions.com) करना भी उसका दायित्व है। ” वह चिकित्सक के निर्देशों के अनुसार रोगी की देख-रेख करते हुए चिकित्सक को निम्नलिखित सूचनाएँ उपलब्ध कराती है

  1. रोगी के दर्द, बेचैनी, वमन, खाँसी आदि के विषय में जानकारी देना।
  2.  रोगी के मल-मूत्र विसर्जन की स्थिति की सूचना देना।
  3.  रोगी की भूख-प्यास सम्बन्धी सूचना देना।
  4.  रोगी का ताप, नाड़ी श्वास इत्यादि का उपयुक्त चार्ट तैयार कर चिकित्सक को दिखाना।
  5.  रोगी पर औषधि के प्रभाव की सूचना देना।
  6.  रोगी की निद्रा तथा अन्य शारीरिक परिवर्तनों के विषय में चिकित्सक को सूचित करना।

प्रश्न 5:
गृह-परिचारिका के अपने स्वयं के प्रति क्या कर्त्तव्य होते हैं?
उत्तर:
परिचारिका के कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य भी हैं जो प्रत्यक्ष रूप से तो स्वयं उसके अपने ही प्रति होते हैं, परन्तु इनका अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव रोगी पर पड़ता है। सर्वप्रथम परिचारिका को अपने शरीर की स्वच्छता का अधिक-से-अधिक ध्यान रखना चाहिए। उसे अपने हाथ आदि सदैव साफ एवं धुले हुए रखने चाहिए। परिचारिका को साफ एवं सफेद रंग के धुले हुए वस्त्र धारण करने चाहिए। परिचारिका को सदैव प्रसन्नचित्त, चुस्त एवं हँसते हुए रहना चाहिए। उसे अपने मनोरंजन एवं स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 6:
परिचारिका का दूरदर्शी होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
परिचारिका को अपने कार्यों में चतुर एवं विवेकशील होना आवश्यक है। उसका दूरदर्शी होना अति अनिवार्य है, क्योंकि

  1. रोगी की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान कर एक दूरदर्शी परिचारिका समय पर ही उनकी पूर्ति कर देती है।
  2. रोगी पर औषधियों का विपरीत प्रभाव पड़ने पर वह उन्हें तत्काल देना बन्द कर चिकित्सक से परामर्श प्राप्त करती है।
  3. रोगी की हालत बिगड़ने पर उसे परिस्थिति के अनसार कृत्रिम श्वसन, हृदय स्पन्दन अथवा ऑक्सीजन देने जैसी आपातकाल सहायता के विषय में तत्काल निर्णय लेकर उनके क्रियान्वयन की अविलम्ब व्यवस्था एक दूरदर्शी परिचारिका ही कर सकती है।

प्रश्न 7:
रोगी को औषधि देते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
रोगी को औषधि देते समय एक अच्छी परिचारिका निम्नलिखित बातों का सदैव ध्यान रखती है

  1. चिकित्सक के निर्देशों का सावधानीपूर्वक पालन करना।
  2.  निश्चित समय पर ही औषधि देना।
  3.  औषधि देते समय रोगी से मधुर व्यवहार करना तथा उसे धैर्य बँधाना।
  4.  रोगी पर औषधि के प्रभाव की सूचना चिकित्सक को उपलब्ध कराना।
  5.  रोगी पर औषधि का विपरीत प्रभाव होने पर उसकी सूचना अविलम्ब चिकित्सक तक पहुँचाना तथा आवश्यकता पड़ने पर रोगी को आपातकाल सहायता देना।

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प्रश्न 8:
परिचारिका को रोगी व चिकित्सक के मध्य की कड़ी क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
परिचारिका रोगी की देख-रेख करती है। वह रोगी के उपचार में चिकित्सक की सहायता करती है। चिकित्सक के निर्देशानुसार रोगी की देख-रेख करती है तथा रोगी की रोग सम्बन्धी स्थिति की जानकारी चिकित्सक को देती है। इस भूमिका के कारण ही परिचारिका को रोगी एवं चिकित्सक के मध्य की कड़ी कहा जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
गृह-परिचर्या से क्या आशय है?
उत्तर:
घर पर रहने वाले रोगी व्यक्ति की चिकित्सक के निर्देशानुसार की जाने वाली सेवा-सुश्रूषा अथवा परिचर्या को ही गृह-परिचर्या कहते हैं।

प्रश्न 2:
गृह-परिचारिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
घर पर रहकर रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की परिचर्या करने वाली स्त्री को गृह-परिचारिका कहते हैं।

प्रश्न 3:
क्या गृह-परिचर्या का कार्य केवल महिलाएँ ही कर सकती हैं?
उत्तर:
नहीं, यह अनिवार्य नहीं है। गृह-परिचर्या का कार्य पुरुष भी कर सकते हैं। गृह-परिचर्या के कार्य को करने वाले पुरुष को ‘गृह-परिचारक’ कहते हैं।

प्रश्न 4:
अच्छी परिचारिका के चार मुख्य गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अच्छी परिचारिका के चार मुख्य गुण हैं

  1.  उत्तम स्वास्थ्य,
  2. विनम्र एवं हँसमुख स्वभाव,
  3.  प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना तथा
  4.  हर प्रकार की स्वच्छता का ध्यान रखना।

प्रश्न 5:
परिचारिका को प्राथमिक चिकित्सा का पूर्ण ज्ञान होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को, चिकित्सक के उपलब्ध न होने पर, तत्काल चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए परिचारिका को प्राथमिक चिकित्सा का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है।

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प्रश्न 6:
गृह-परिचारिका का प्रमुख कर्त्तव्य क्या है?
उत्त:
रोगी को उचित समय पर उचित वस्तु उपलब्ध कराना तथा चिकित्सक के परामर्श के अनुसार कार्य करना गृह-परिचारिका के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कर्तव्य हैं।

प्रश्न 7:
अस्पतालों में परिचर्या का कार्य कौन करता है?
उत्तर:
अस्पतालों में परिचर्या का कार्य नर्स करती हैं।

प्रश्न 8:
रोगी के जीवन में परिचारिका का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
परिचारिका रोगी की शारीरिक व मानसिक क्रियाओं को ध्यान में रखकर उसके कल्याण हेतु कार्य करती है।

प्रश्न 9:
रोगी तथा चिकित्सक के सन्दर्भ में परिचारिका की क्या भूमिका है?
उत्तर:
रोगी तथा चिकित्सक के सन्दर्भ में परिचारिका द्वारा एक सम्पर्क सूत्र या बीच की कड़ी की भूमिका निभाई जाती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) परिचर्या के अन्तर्गत किया जाता है
(क) रोगी व्यक्ति की देख-भाल करना,
(ख) चिकित्सक के निर्देशानुसार औषधि देना,
(ग) समय पर आहार देना तथा अन्य सभी कार्यों में सहायता प्रदान करना,
(घ) ये सभी।

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(2) परिचारिका को नहीं करना चाहिए
(क) रोगी से विनम्र व्यवहार,
(ख) औषधि निर्धारण,
(ग) रोगी की देख-रेख,
(घ) चिकित्सक से परामर्श।

(3) परिचारिका को नहीं होना चाहिए
(क) स्वस्थ,
(ख) हँसमुख,
(ग) दूरदर्शी,
(घ) चिड़चिड़ा।

(4) गृह-परिचर्या से अभिप्राय है
(क) गृहिणी द्वारा रोगी की देख-रेख,
(ख) नर्स द्वारा रोगी की देख-रेख,
(ग) चिकित्सक द्वारा रोगी का उपचार,
(घ) रोगी द्वारा स्वयं की देख-रेख।

(5) परिचारिका को आज्ञापालन करनी चाहिए
(क) रोगी की,
(ख) गृह-स्वामी की,
(ग) चिकित्सक की,
(घ) इन सभी का।

(6) गृह-परिचर्या को कार्य भली-भाँति किया जा सकता है
(क) बच्चों द्वारा,
(ख) गृह-स्वामी द्वारा,
(ग) गृहिणी द्वारा,
(घ) किसी के भी द्वारा।

(7) गृह-परिचारिका को समुचित ज्ञान होना चाहिए
(क) विभिन्न रोगों का,
(ख) विभिन्न रोगों की निर्धारित औषधियों का,
(ग) सामान्य प्राथमिक चिकित्सा का,
(घ) इन सभी का।

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(8) यदि रोगी के स्वास्थ्य में कोई असामान्य लक्षण प्रकट होने लगे तो गृह-परिचारिका को तुरन्त सूचित करना चाहिए
(क) घर के मुखिया को,
(ख) पड़ोसियों को,
(ग) ज्योतिषी को,
(घ) सम्बन्धित चिकित्सक को।

उत्तर:
(1) (घ) ये सभी,
(2) (ख) औषधि निर्धारण,
(3) (घ) चिड़चिड़ा,
(4) (क) गृहिणी द्वारा रोगी की देख-रेख,
(5) (ग) चिकित्सक की,
(6) (ग) गृहिणी द्वारा,
(7) (ग) सामान्य प्राथमिक चिकित्सा का,
(8) (घ) सम्बन्धित चिकित्सक को।

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