UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार

UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सन्तुलित आहार (balanced food) से आप क्या समझती हैं? विस्तृत स्पष्टीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
प्राणीमात्र के जीवित रहने के लिए वायु के बाद सर्वाधिक आवश्यक वस्तु भोजन या आहार है। आहार का हमारे जीवन में बहुपक्षीय महत्त्व है। आहार की आवश्यकता एक नैसर्गिक आवश्यकता है; जिसको आभास भूख लगने से होता है। सामान्य रूप से समझा जाता है कि आहार का केवल यही एक कार्य है। वास्तव में इसके अतिरिक्त भी अन्य विभिन्न कार्य आहार द्वारा सम्पन्न होते हैं। स्वास्थ्य विज्ञान एवं आहार-शास्त्र के (UPBoardSolutions.com) विस्तृत अध्ययनों के परिणामस्वरूप निष्कर्ष प्राप्त हुआ है कि आहार के सभी कार्यों को पूरा करने के लिए तथा शरीर की आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आहार को सन्तुलित (balanced) होना चाहिए।

सन्तुलित आहार का अर्थ
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि जिस आहार द्वारा शरीर की आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताएँ पूर्ण हो जाएँ, वह आहार सन्तुलित आहार है।” अब प्रश्न उठता है कि शरीर को आहार की आवश्यकता क्यों और किसलिए होती है? वास्तव में शरीर की वृद्धि, तन्तुओं के निर्माण तथा टूट-फूट की मरम्मत आदि शारीरिक कार्यों हेतु आवश्यक ऊर्जा प्राप्त करने तथा रोगों से बचने के लिए हमें आहार की आवश्यकता होती है। अतः जो आहार इन सब आवश्यकताओं को सन्तुलित रूप से पूरा करता है, वह आहार सन्तुलित आहार (balanced food) कहलाता है। शरीर-विज्ञान के अनुसार हमारे आहार में कार्बोज़, वसा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण तथा जल की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए। इन्हें आहार का अनिवार्य तत्त्व कहा जाता है। सन्तुलित आहार में आहार के ये अनिवार्य तत्त्व पर्याप्त मात्रा एवं सही अनुपात में होते हैं।

सन्तुलित आहार सम्बन्धी स्पष्टीकरण

सन्तुलित आहार का अर्थ जानने के उपरान्त इसके विषय में कुछ प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जैसे कि-क्या भरपेट आहार ही सन्तुलित आहार है? क्या सन्तुलित आहार काफी महँगा होता है? क्या स्वादिष्ट आहार सन्तुलित होता है? क्या ऊर्जादायक एवं वृद्धिकारक आहार ही सन्तुलित होता है? इन प्रश्नों का समुचित स्पष्टीकरण निम्नवर्णित है ।

(1) क्या भरपेट आहार सन्तुलित आहार है?
सामान्य रूप से गरीब देशों में लोगों के सामने भरपेट आहार प्राप्त करने की विकट समस्या रहा करती है। ऐसी स्थिति में यदि व्यक्ति को भरपेट आहार मिल जाए, तो वह सन्तुष्ट हो जाएगा तथा भ्रमवश अपने आहार को सन्तुलित आहार समझने लगेगा, परन्तु वास्तव में यह अनिवार्य नहीं है कि भरपेट या मात्रा में अधिक आहार सन्तुलित भी हो। यदि आहार में अनिवार्य तत्त्व, उचित मात्रा तथा उचित अनुपात में नहीं होते, (UPBoardSolutions.com) तो कितनी भी अधिक मात्रा में आहार ग्रहण कर लेने से आहार सन्तुलित आहार नहीं कहला सकता; ऐसा आहार पेट भर सकता है अर्थात् भूख को शान्त कर सकता है, परन्तु अनिवार्य रूप से स्वास्थ्यवर्द्धक एवं शक्तिदायक नहीं हो सकता; उदाहरण के लिए–पर्याप्त मात्रा में चावल तथा मीट खा लेने से पेट तो भर जाएगा, परन्तु शरीर की अन्य आवश्यकताएँ जैसे कि विटामिन, लवण आदि का तो अभाव बना ही रहेगा। साथ ही यह भी सम्भव है कि शरीर में विभिन्न रोग पैदा हो जाए। सन्तुलित आहार सदैव स्वास्थ्यवर्द्धक तथा शरीर को नीरोग रखने में सहायक होता है।

(2) क्या महँगा आहार सन्तुलित आहार है?
भ्रमवश अनेक लोग महँगे एवं दुर्लभ आहार को अच्छा, सन्तुलित एवं उपयोगी आहार मान लेते हैं। परन्तु वास्तव में आहार की कीमत तथा उसके गुणों और उपयोगिता में कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। महँगे से महँगा आहार भी असन्तुलित आहार हो सकता है, यदि उसमें आहार के अनिवार्य तत्त्व सही मात्रा एवं अनुपात में न हों। इसके विपरीत सस्ते से सस्ता आहार भी सन्तुलित आहार हो सकता है, यदि उसमें सभी आवश्यक तत्त्व अभीष्ट मात्रा में उपस्थित हों; उदाहरण के लिए—हमारे देश में मेवे एवं मीट महँगे खाद्य-पदार्थ हैं, परन्तु यदि हमारे आहार में केवल इन्हीं पदार्थों को ही ग्रहण किया जाए और शाक-सब्जियों, ताजे फलों, अनाज, दूध आदि की (UPBoardSolutions.com) अवहेलना की जाए, तो हमारा आहार अधिक महँगा होने पर भी सन्तुलित आहार की श्रेणी में नहीं आ सकता। इस तथ्य को जान लेने के उपरान्त यह समझ लेना चाहिए कि कम आय एवं सीमित आर्थिक साधनों वाले व्यक्ति भी सन्तुलित आहार ग्रहण कर सकते हैं। सन्तुलित आहार प्राप्त करने के लिए सन्तुलित आहार के अनिवार्य तत्त्वों एवं उसके संगठन को जानना आवश्यक है, न कि अधिक धन व्यय करने की आवश्यकता है। गरीब व्यक्ति भी सन्तुलित आहार ग्रहण कर सकता है।

(3) क्या स्वादिष्ट आहार सन्तुलित आहार है?
आहार का एक उद्देश्य विभिन्न वस्तुओं का स्वाद ग्रहण करके आनन्द प्राप्त करना भी है। कुछ खाद्य-पदार्थ अपने आप में काफी स्वादिष्ट एवं रुचिकर होते हैं। कुछ व्यक्ति इन स्वादिष्ट पदार्थों को अधिक-से-अधिक मात्रा में खाना चाहते हैं। ऐसे व्यक्ति भ्रमवश स्वादिष्ट आहार को ही सन्तुलित आहार मान सकते हैं, परन्तु यह धारणा बिल्कुल गलत है। यह उचित है कि हमारे आहार को स्वादिष्ट भी होना चाहिए, परन्तु स्वादिष्ट (UPBoardSolutions.com) आहार तथा सन्तुलित आहार में कोई प्रत्यक्ष एवं अनिवार्य सम्बन्ध नहीं है। स्वादिष्ट आहार के लिए अनिवार्य रूप से सन्तुलित होना आवश्यक नहीं तथा इसके विपरीत यह भी आवश्यक नहीं है कि सन्तुलित आहार अस्वादिष्ट ही हो; उदाहरण के लिए—कुछ लड़कियों को चटपटे तथा मसालेदार व्यंजन बहुत रुचिकर प्रतीत होते हैं, परन्तु इन व्यंजनों को सन्तुलित आहार की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता।

(4) क्या वृद्धिकारक आहार सन्तुलित आहार है?
शारीरिक वृद्धि के लिए भी आहार ग्रहण किया जाता है। हमारे आहार में कुछ तत्त्व ऐसे होते हैं। जो शरीर की वृद्धि में सहायक होते हैं, परन्तु शरीर की वृद्धि करने वाले आहार को हम सन्तुलित आहार नहीं कह सकते, यदि उसमें अन्य आवश्यक तत्त्वों की कमी या अभाव हो। ऐसे आहार को ग्रहण करने से व्यक्ति के शरीर की तो वृद्धि हो जाती है, परन्तु शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति तथा चुस्ती एवं (UPBoardSolutions.com) मानसिक-शक्ति का पर्याप्त विकास नहीं हो पाता तथा व्यक्ति विभिन्न रोगों का शिकार हो जाता है; उदाहरण के लिए केवल प्रोटीनयुक्त खाद्य-सामग्री को ही ग्रहण करने से हमारा शरीर सुचारु रूप से न तो विकसित हो सकता है और न ही कार्य कर सकता है; अतः हम कह सकते हैं कि शारीरिक वृद्धिकारक आहार अपने आप में सन्तुलित आहार नहीं होता। सन्तुलित आहार शरीर की वृद्धि के साथ-साथं अन्य सभी आवश्यकताओं को भी पूरा करने में सहायक होता है।

(5) क्या ऊर्जादायक आहार सन्तुलित आहार है?
हम ऊर्जा प्राप्त करने के लिए अर्थात् शारीरिक परिश्रम करने के लिए आवश्यक शक्ति प्राप्त करने हेतु भी आहार ग्रहण करते हैं। कुछ खाद्य-पदार्थ शरीर को भरपूर ऊर्जा प्रदान करते हैं, परन्तु इन ऊर्जा प्रदान करने वाले भोज्य पदार्थों को हम सन्तुलित आहार नहीं कह सकते। वास्तव में ऊर्जा प्रदान करने के अतिरिक्त अन्य उद्देश्य भी आहार द्वारा पूरे किए जाते हैं, जैसे कि रोगों से लड़ने की क्षमता, शरीर की वृद्धि तथा चुस्ती आदि प्राप्त करना। ये सब बातें ऊर्जादायक आहार से पूरी नहीं हो सकतीं।

स्पष्टीकरण पर आधारित निष्कर्ष
उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि सन्तुलित आहार की धारणा वास्तव में बहुपक्षीय धारणा है। सन्तुलित आहार से विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति होती है। वास्तव में उसी आहार को सन्तुलित आहार कहा जाएगा, जिससे व्यक्ति की आहार या आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताएँ पूरी हो जाएँ। सन्तुलित आहार की मात्रा पर्याप्त होती है, जिससे कि हमारी भूख शान्त हो जाती है। सन्तुलित आहार ऊर्जादायक होती है, (UPBoardSolutions.com) ताकि हम पर्याप्त शारीरिक परिश्रम कर सकें तथा हमें थकान या कमजोरी महसूस न हो। सन्तुलित आहार शारीरिक वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है तथा इससे शरीर की कोशिकाओं में होने नरन्तर टूट-फूट की मरम्मत होती रहती है। सन्तुलित आहार हमारे शरीर को सम्भावित रोगों से लड़ने के लिए शक्ति प्रदान करता है तथा व्यक्ति में समुचित उत्साह एवं उल्लास बनाए रखता है। इन सबके अतिरिक्त सन्तुलित आहार शरीर में कुछ अतिरिक्त शक्ति . भी संचित करता है जो कि आपातकाल में काम आती है। सन्तुलित आहार ग्रहण करने वाला व्यक्ति सदैव स्वस्थ एवं नीरोग रहता

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प्रश्न 2:
सन्तुलित आहार के निर्धारक कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हम जानते हैं कि सन्तुलित आहार सापेक्ष होता है अर्थात् भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न प्रकार एवं मात्रा वाला आहार सन्तुलित आहार कहलाता है। सन्तुलित आहार के निर्धारक कारक निम्नवर्णित हैं

(1) आयु:
भिन्न-भिन्न आयु वाले व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार का आहार सन्तुलित आहार माना जाता है। बच्चों के लिए निर्धारित सन्तुलित आहार में वृद्धिकारक पोषक तत्वों का अनुपात अधिक होता है। प्रौढ़ व्यक्तियों के आहार में ऊर्जादायक तथा रख-रखाव में सहायक पोषक तत्वों की अधिकता होनी चाहिए। वृद्ध व्यक्तियों के आहार में सुपाच्य तत्त्वों को प्राथमिकता दी जाती है।

(2) लिंग भेद:
स्त्री तथा पुरुष के आहार में भी अन्तर होता है। पुरुषों को सामान्य रूप से शारीरिक श्रम अधिक करना पड़ता है; अतः इनके आहार में ऊर्जादायक तत्त्वों की मात्रा अधिक होती है। इसी प्रकार गर्भावस्था तथा स्तनपान के काल में स्त्रियों के लिए निर्धारित सन्तुलित आहार सामान्य से भिन्न होता है।

(3) शारीरिक आकार:
सन्तुलित आहार का निर्धारण करते समय व्यक्ति के शारीरिक आकार को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है। बड़े आकार वाले व्यक्ति को अधिक मात्रा में आहार की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार सामान्य से कम वजन वाले व्यक्ति को वृद्धिकारक पोषक तत्वों की अधिक आवश्यकता होती है।

(4) जलवायु:
सन्तुलित आहार के निर्धारण में जलवायु का ध्यान रखना भी आवश्यक होता है। ठण्डी जलवायु में गर्म जलवायु की तुलना में अधिक मात्रा में आहार की आवश्यकता होती है। ठण्डी जलवायु में ऊर्जा एवं ऊष्मादायक तत्त्वों की आवश्यकता होती है। इससे भिन्न गर्म जलवायु में पसीना अधिक आने के कारण आहार में खनिज लवणों एवं जल की मात्रा सामान्य से अधिक होनी चाहिए, क्योंकि पसीने के माध्यम से खनिज लवणों तथा जल का अधिक विसर्जन हो जाता है।

(5) शारीरिक श्रम:
सन्तुलित आहार का एक निर्धारक कारक शारीरिक श्रम भी है। अधिक शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्तियों के आहार में ऊर्जा एवं ऊष्मादायक तत्त्वों की अधिक मात्रा का समावेश होना चाहिए। इस वर्ग के व्यक्तियों के आहार में कार्बोहाइड्रेट की अधिक मात्रा का समावेश होना चाहिए। इससे भिन्न कम शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्तियों के आहार में ऊर्जादायक तत्त्वों की कम मात्रा का ही समावेश होना चाहिए।

प्रश्न 3:
कुपोषण से आप क्या समझती हैं? इससे बचने के उपाय बताइए। या कुपोषण का क्या अर्थ है? कुपोषण का क्या कारण है एवं स्वास्थ्य पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुपोषण-आहार में सभी अनिवार्य तत्त्व सम्मिलित होने पर भी यदि स्वास्थ्य में निरन्तर गिरावट हो रही हो तो इसे दोषपूर्ण पोषण अथवा कुपोषण कहते हैं। अतः कुपोषण का अर्थ है आहार का (UPBoardSolutions.com) दोषपूर्ण उपभोग। उदाहरण के लिए-अरुचिपूर्ण आहार चाहे जितना भी पौष्टिक हो, पर्याप्त लाभकारी नहीं होता। इसी प्रकार अनिच्छापूर्वक व अनियमित रूप से आहार का उपयोग करना लाभप्रद न होकर अस्वस्थता को जन्म दे सकती है। कुपोषण को ठीक प्रकार से समझने के लिए सम्बन्धित कारणों को जानना आवश्यक है।

कुपोषण के कारण

कुपोषण की पृष्ठभूमि में अज्ञानता एवं लापरवाही से आहार के उपभोग करने का महत्त्वपूर्ण योगदान है, जिसे निम्नलिखित कारणों का अध्ययन कर भली प्रकार समझा जा सकता है

(1) कार्य की अधिकता:
अनेक बार हम कार्य अधिक करते हैं, परन्तु आहार कम मात्रा में लेते हैं। जिसके फलस्वरूप आहार के पर्याप्त पौष्टिक होने पर भी शरीर में धीरे-धीरे दुर्बलता आने लगती है।

(2) निद्रा में कमी:
उपयुक्त समय तक न सो पाने पर मानसिक व शारीरिक दोनों प्रकार की थकान रहती है। इस प्रकार के व्यक्ति प्रायः कुपोषण से प्रभावित रहते हैं।

(3) अस्वस्थता:
पाचन-क्रिया ठीक न रहने पर अथवा क्षयरोग से ग्रस्त व्यक्ति कुपोषण का शिकार रहते हैं। इसी प्रकार शारीरिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों पर सन्तुलित आहार का स्वास्थ्यवर्द्धक, प्रभाव नहीं पड़ती। पेट में कीड़े होने की दशा में भी व्यक्ति कुपोषण का शिकार हो जाता है।

(4) घर एवं कार्यस्थल पर उपेक्षा:
घर अथवा कार्य करने के स्थान पर उपेक्षित व्यक्ति मानसिक . हीनता का शिकार रहता है। इस स्थिति में भी कुपोषण के लक्षण विकसित हो सकते हैं।

(5) अनुपयुक्त एवं अनियमित आहार:
आयु, लिंग एवं व्यवसाय की दृष्टि से उपयुक्त आहार उपलब्ध न होने से तथा निश्चित समय पर आहार न करने से पोषण दोषपूर्ण हो जाता है।

(6) गरिष्ठ आहार:
अधिक तला हुआ अथवा कब्ज़ उत्पन्न करने वाला आहार शरीर को वांछित शक्ति प्रदान नहीं करती।

कुपोषण के लक्षण (प्रभाव)
कुपोषण के फलस्वरूप शरीर में निम्नलिखित लक्षण (प्रभाव) दिखाई पड़ सकते हैं

  1.  आहार से अरुचि उत्पन्न हो जाती है।
  2.  शारीरिक भार घट जाता है।
  3.  स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है तथा निद्रा कम आती है।
  4.  हर समय थकान अनुभव होती है।
  5.  चेहरा पीला हो जाता है तथा रक्त की कमी हो जाती है।
  6. शरीर पर चर्बी के अभाव में त्वचा में झुर्रियाँ पड़ जाती हैं।
  7.  पाचन-क्रिया में विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
  8.  मनुष्य हीनता से ग्रसित हो जाता है।

कुपोषण से बचने के उपाय

कुपोषण से बचने के लिए पोषण के दोषपूर्ण तरीकों को दूर करने के उपायों पर विचार करना आवश्यक है। कुपोषण का विलोम शब्द है ‘सुपोषण’ अर्थात् अच्छा पोषण आहार के विभिन्न पोषक तत्त्वों, का उपयुक्त मात्रा में शरीर को उपलब्ध होना तथा उनका सही पाचन सुपोषण कहलाता है। सुपोषण के सामान्य नियमों का पालन करना ही कुपोषण से बचने का एकमात्र विकल्प है। सुपोषण के सामान्य नियमों का विवरण निम्नलिखित है

(1) ताजा एवं सुपाच्य आहार:
सदैव ताजा आहार ही उपयोग में लाना चाहिए, क्योंकि रखे हुए आहार में प्रायः जीवाणुओं एवं फफूद के पनपने की सम्भावना रहती है। आहार पौष्टिक तत्त्वों से युक्त होने के साथ-साथ सुपाच्य भी होना चाहिए। सुपाच्य आहार सरलता से शोषित होकर शरीर को
आवश्यक शक्ति एवं ऊर्जा प्रदान करता है।

(2) परोसने की कला:
आहार उपयुक्त स्थान पर स्वच्छ बर्तनों में परोसना चाहिए; इससे आहार ग्रहण करने वालों में आहार के प्रति आकर्षण एवं रुचि उत्पन्न होती है।

(3) पदार्थों एवं रंगों में परिवर्तन:
विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों (मांस, मछली, दाल, तरकारी आदि) को बदल-बदल कर उपयोग करने से शरीर को आहार के सभी तत्त्व वांछित अनुपात में उपलब्ध होते रहते हैं। रंग-बिरंगे भोज्य पदार्थ अच्छे लगने के साथ-साथ पौष्टिक भी होते हैं। जैसे–सफेद भोज्य पदार्थों में प्राय: कार्बोहाइड्रेट्स, भूरे रंग के पदार्थों में प्रोटीन तथा पीले, नारंगी, लाल व हरे पदार्थो । में विटामिन व खनिज लवण पाए जाते हैं।

(4) आहार को नियमित समय:
प्रात:कालीन नाश्ता, दोपहर का आहार तथा रात्रि का आहार इत्यादि यथासम्भव नियमित रूप से निर्धारित समय पर करना चाहिए। ऐसा करने से आहार स्वादिष्ट लगता है तथा पाचन-क्रिया ठीक रहती है।

(5) जल की मात्रा:
आहार के साथ अधिक जल नहीं पीना चाहिए, क्योंकि इसमें आहार अधिक पतला हो जाने के कारण पाचन क्रिया कुप्रभावित होती है।

(6) आहार पकाने की विधि:
आहार पकाते समय सही विधियों का प्रयोग करना चाहिए। अधिक पकाने अथवा ठीक प्रकार से न पकाने से आहार के पौष्टिक तत्त्वों के नष्ट होने की सम्भावना रहती है।
आवश्यकता से अधिक मसालों का प्रयोग पाचन क्रिया को क्षीण करता है।

(7) यथायोग्य आहार:
आहार देते समय लेने वालों की आयु, लिंग व व्यवसाय का ध्यान रखना चाहिए। उदाहरण के लिए अधिक परिश्रम करने वाले व्यक्ति को अधिक पौष्टिक आहार मिलना चाहिए।

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प्रश्न 4:
मानसिक कार्य करने वाले तथा शारीरिक कार्य करने वाले व्यक्ति के लिए सन्तुलित आहार में क्या अन्तर होगा? स्पष्ट कीजिए।
या
एक विद्यार्थी, मजदूर तथा एक छोटे बच्चे के आहार में आप किन बातों का विशेष ध्यान रखेंगी?
उत्तर:

बच्चों का आहार:
बाल्यावस्था में शारीरिक वृद्धि तीव्र गति से होती है; अत: बच्चों को सदैव अधिक प्रोटीनयुक्त आहार देना चाहिए। बच्चों के आहार में दूध की मात्रा अधिक होनी चाहिए।

विद्यार्थियों एवं मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों का आहार:
इस वर्ग के व्यक्तियों को अपेक्षाकृत कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है; अत: इनके आहार में कार्बोहाइड्रेट्स व वसा की मात्रा कम होनी चाहिए। प्रोटीन, विटामिन एवं लवणयुक्त आहार इनके लिए सर्वोत्तम रहता है।

परिश्रमी एवं मजदूर वर्ग के व्यक्तियों का आहार:
इस वर्ग के व्यक्तियों को अधिक श्रम करने के कारण अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है तथा भूख भी अधिक लगती है। इन्हें अधिक आहार मिलना चाहिए तथा इनके आहार में कार्बोहाइड्रेट्स (विशेषतः शक्कर) तथा वसा की मात्रा अधिक होनी चाहिए।
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प्रश्न 5:
दोपहर के आहार की योजना बनाते समय गृहिणी को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? एक वयस्क पुरुष के दोपहर के आहार की तालिका बनाइए जिसमें पोषण की दृष्टि से सभी तत्त्व उपस्थित हों।
या
एक वयस्क व्यक्ति की आहार तालिका बनाइए।
उत्तर:
दोपहर के आहार हेतु ध्यान देने योग्य बातें

हमारे देश में दोपहर का आहार मुख्य आहार होता है; अत: दोपहर का आहार तैयार करते समय प्रत्येक गृहिणी को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

(1) पौष्टिक तत्त्व युक्त आहार:
आहार में सभी आवश्यक तत्त्वों का समावेश होना चाहिए। उदाहरण के लिए—कार्बोहाइड्रेट्स के लिए कोई अनाज, प्रोटीन के लिए कोई एक दाल या अण्डा-मीट खनिज व विटामिन के लिए हरी सब्जी तथा वसा के लिए दही अथवा मक्खन इत्यादि।

(2) रुचिपूर्ण आहार:
आहार खाने वाले की रुचि के अनुसार होना चाहिए, जैसे कि चपाती खाने वाले के लिए चपातियाँ तथा चावल खाने वाले के लिए दाल-भात इत्यादि।

(3) आयु एवं व्यवसाय:
दोपहर के आहार में ऊर्जा प्रदान करने वाले पदार्थों की इतनी मात्रा होनी चाहिए कि व्यक्ति दिनभर बिना दुर्बलता अनुभव किए कार्य कर सके। इसके लिए सम्बन्धित व्यक्ति की आयु एवं उसके व्यवसाय का विशेष ध्यान रखना चाहिए। उदाहरण के लिए-वयस्कों को अधेड़ पुरुषों की अपेक्षा (UPBoardSolutions.com) अधिक आहार की आवश्यकता होती है तथा श्रमिक वर्ग के मनुष्यों को सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक आहार मिलना चाहिए।

(4) भोज्य पदार्थों का परिवर्तन:
दालों व सब्जियों में परिवर्तन करे, चपातियों के स्थान पर चावल तथा दही के स्थान पर रायता प्रयोग कर दोपहर के आहार को रुचिकर बनाना चाहिए। इस प्रकार के परिवर्तन से आहार के पोषक तत्त्व कम नहीं होते तथा सम्बन्धित व्यक्ति को खाने में मन लगता है।

(5) आर्थिक दृष्टिकोण:
यह आवश्यक नहीं है कि महँगा आहार ही पौष्टिक होता है। गृहिणी को चाहिए कि अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार ही आहार की तैयारी करे। उदाहरण के लिए-वसा में घी, दूध के स्थान पर वनस्पति तेल व घी तथा विटामिन के लिए छाछ व हरी पत्तेदार सब्जियाँ प्रयोग में लाई जा सकती हैं।
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प्रश्न 6:
दैनिक आहार को पौष्टिक एवं सस्ता बनाने का प्रबन्ध करने में एक कुशल गृहिणी का क्या योगदान है? इस पर विस्तारपूर्वक उत्तर लिखिए।
या
आहार को सन्तुलित बनाने के लिए गृहिणी को किन-किन खाद्य सामग्री का उपयोग करना चाहिए?
उत्तर:
सन्तुलित आहार के लिए आवश्यक खाद्य सामग्री–सन्तुलित आहार में आहार के सभी आवश्यक तत्त्व उपयुक्त मात्रा में सम्मिलित होते हैं; अत: प्रत्येक गृहिणी को निम्नलिखित बातों की जानकारी होना अत्यन्त आवश्यक है

  1.  आहार के आवश्यक तत्त्व एवं उनके स्रोत।
  2. यदि किसी और किन्हीं तत्त्वों के स्रोत मौसम, अधिक मूल्य अथवा किसी स्थान विशेष के ” कारणं सहज ही उपलब्ध नहीं हैं, तो उन तत्त्वों के वैकल्पिक स्रोतों की जानकारी होना।

आहार के आवश्यक तत्त्व एवं उनके स्रोत

(1) कार्बोहाइड्रेट्स:
अनाज (गेहूँ, चावल आदि), आलू, शकरकन्द, दालें, गुड़, चीनी, मीठे फल, मेवे इत्यादि में विभिन्न प्रकार के कार्बोहाइड्रेट्स पाए जाते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स का प्रमुख कार्य शरीर को ऊर्जा प्रदान करना है।

(2) प्रोटीन:
प्रोटीन प्रायः प्राणियों (प्राणिजन्य प्रोटीन) से तथा वनस्पतियों (वनस्पतिजन्य प्रोटीन) से प्राप्त होती है। इसके प्रमुख स्रोत हैं-अण्डा, मांस, मछली, दूध, दही, पनीर तथा दालें। सोयाबीन में सर्वाधिक (43%) प्रोटीन पाई जाती है।

(3) वसा:
इसके सामान्य स्रोत हैं—घी, दूध, मक्खन, मलाई, अण्डा, मांस, मछली, वनस्पति तेल व घी आदि।

(4) विटामिन:
ये हमें दूध, दही, अण्डा, मांस, मछली, अनाज, फलों व हरी सब्जियों से प्राप्त होते हैं।

(5) खनिज लवण:
इन्हें हम अण्डा, मछली, मेवे, दूध, सब्जी व फलों से प्राप्त कर सकते हैं।

सन्तुलित आहार तैयार करना

उपर्युक्त वर्णित खाद्य सामग्रियों को उपयोग कर एवं निम्नलिखित सामान्य नियमों का पालन कर सन्तुलित आहार तैयार किया जा सकता है|

  1. भिन्न आयु वर्ग के व्यक्तियों के लिए भिन्न प्रकार का सन्तुलित आहार होता है। उदाहरण के लिए–बच्चों में वृद्धि एवं विकास अधिक होता है; अतः इनके आहार में प्रोटीन व विटामिनयुक्त खाद्य सामग्री अधिक होनी चाहिए। इसी प्रकार वयस्क पुरुषों के आहार में परिश्रम अधिक करने के कारण ऊर्जायुक्त खाद्य सामग्री का आधिक्य होना चाहिए।
  2.  लम्बे व शक्तिशाली व्यक्ति को अधिक तथा पतले व छोटे व्यक्ति को कम आहार की आवश्यकता होती है।
  3.  स्त्रियों को पुरुषों की अपेक्षा कम आहार की आवश्यकता होती है।
  4. कार्य एवं व्यवसाय का सन्तुलित आहार पर विशेष प्रभाव पड़ता है। मजदूर वर्ग के पुरुषों को अधिक ऊर्जायुक्त तथा विद्यार्थियों एवं मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों को प्रोटीन, खनिज लवण एवं विटामिनयुक्त आहार चाहिए।
  5.  शाकाहारी व्यक्तियों को दालें, दूध व दूध से बने पदार्थों की अधिक आवश्यकता होती है, जबकि मांसाहारी व्यक्ति प्रोटीन की आवश्यकता की पूर्ति मांस, मछली व अण्डों से कर सकते हैं।
    इस प्रकार उपर्युक्त नियमों का पालन कर एक सुगृहिणी विभिन्न खाद्य सामग्रियों द्वारा सहज ही सन्तुलित आहार तैयार कर सकती है।

पौष्टिक एवं सस्ता दैनिक सन्तुलित आहार: आहार के आवश्यक तत्त्वों के स्रोत कई बार बड़े महँगे होते हैं। निम्नांकित सारणी का अध्ययन कर आहार को सस्ता एवं पौष्टिक बनाया जा सकता है
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प्रश्न 7:
‘आहार की तालिका’या’ मीनू’ बनाने का क्या महत्त्व है? मीनू बनाते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए? सविस्तार समझाइए।
या
सन्तुलित आहार-तालिका बनाते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
आहार की तालिका बनाने के लाभ-एक समझदार गृहिणी प्रायः आहार की दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक तालिकाएँ बनाती है; क्योंकि

  1.  उसे पारिवारिक आय के अनुसार उपयुक्त आहार योजना बनाने में सुविधा रहती है।
  2.  महँगी भोज्य सामग्री की पूरक सस्ती भोज्य सामग्री की जानकारी रहती है।
  3.  आहार संरक्षण के ज्ञान का उपयोग कर वह फसल के समय सस्ते भोज्य पदार्थों; जैसे अनाज व दालें आदि को लम्बी अवधि तक सुरक्षित रख पाती है।
  4. वह सभी सदस्यों की रुचि एवं आवश्यकता के अनुसार आहार उपलब्ध करा पाती है।
  5. वह सहज ही लगभग सभी पौष्टिक तत्त्वों से युक्त आहार कम-से-कम मूल्य में तैयार करने में सफल रहती है।

मीनू बनाते समय ध्यान देने योग्य बातें–प्रश्न 5 का उत्तर देखें।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सन्तुलित आहार तथा पर्याप्त आहार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘सन्तुलित आहार’ तथा ‘पर्याप्त आहार’ दो भिन्न-भिन्न धारणाएँ हैं। इनमें स्पष्ट अन्तर है। पर्याप्त आहार से आशय है आहार का मात्रा में पर्याप्त होना अर्थात् इतना आहार उपलब्ध होना, जिससे व्यक्ति का पेट भर जाए तथा भूख मिट जाए। यहाँ यह स्पष्ट कर देना अनिवार्य है कि ‘पर्याप्त आहार (UPBoardSolutions.com) अनिवार्य रूप से ‘सन्तुलित आहार नहीं होता। इससे भिन्न ‘सन्तुलित आहार’ की धारणा में इसके गुणात्मक पक्ष की प्रधानता होती है। सन्तुलित आहार मात्रा में पर्याप्त होने के साथ-साथ आहार सम्बन्धी सभी उद्देश्यों की पूर्ति करने वाला भी होता है; उसमें आहार के सभी पोषक तत्त्व उचित मात्रा एवं अनुपात में विद्यमान होते हैं।

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प्रश्न 2:
स्पष्ट कीजिए कि सन्तुलित आहार सापेक्ष होता है।
उत्तर:
आहार एवं पोषण विज्ञान की मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति को ‘सन्तुलित आहार ग्रहण करना चाहिए। ‘सन्तुलित आहार’ की अवधारणा का विश्लेषण करने पर स्पष्ट होता है कि सन्तुलित आहार अपने आप में सापेक्ष होता है अर्थात् भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार का एवं भिन्न-भिन्न मात्रा का आहार सन्तुलित आहार होता है। भिन्न-भिन्न प्रकार एवं मात्रा वाला कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न मात्रा एवं अनुपात में आहार ही सन्तुलित आहार कहलाती है। जो आहार एक बच्चे के लिए सन्तुलित होता है, वह एक युवक (UPBoardSolutions.com) के लिए सन्तुलित आहार नहीं कहला सकता। इसी प्रकार खेत अथवा कोयले की खान में दिन भर शारीरिक श्रम करने वाले श्रमिक तथा मेज-कुर्सी पर बैठकर पुस्तक लिखने वाले बुद्धिजीवी लेखक का सन्तुलित आहार एकसमान नहीं हो सकता। स्पष्ट है कि सन्तुलित आहार सापेक्ष होता है तथा इसका निर्धारण व्यक्ति के सन्दर्भ में विभिन्न कारकों को ध्यान में रखकर ही किया जाता है।

प्रश्न 3:
बहुप्रयोजन आहार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
शरीर को स्वस्थ, क्रियाशील, निरोग एवं चुस्त रखने के लिए पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है। पौष्टिक आहार सभी प्रकार के पोषक तत्वों से युक्त होता है। इस प्रकार के आहार के लिए अनेक शोध कार्य किए गए, जिनके परिणामस्वरूप सभी प्रकार के पोषक तत्त्वों से युक्त तथा सस्ता आहार तैयार किया जा सका। इस आहार को बहुप्रयोजन आहार कहते हैं।
बहुप्रयोजन आहार बनाने की विधि-तिलहनों का तेल निकाल लेने के बाद बचा पदार्थ खली कहलाता है। इसमें अनेक पोषक तत्त्व पाए जाते हैं। हमारे देश में बहुप्रयोजन आहार बनाने के लिए मुख्य रूप से सोयाबीन व मूंगफली की खली प्रयोग में लाई जाती है। इसमें चने का आटा तथा कुछ खनिज लवण व विटामिन मिलाए जाते हैं।
बहुप्रयोजन आहार का महत्त्व-यह बच्चों के लिए, गर्भवती तथा शिशु को दूध पिलाने वाली महिलाओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी होता है। इसमें आहार के सामान्य रूप से अनिवार्य सभी तत्त्व समुचित मात्रा में पाए जाते हैं। बच्चों के लिए इसकी दैनिक आवश्यकता लगभग 30 ग्राम तथा बड़ों के लिए 60 ग्राम होती है।

प्रश्न 4:
आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं?
उत्तर:
आहार योजना बनाते समय परिवार की आय को ध्यान में रखा जाता है। इसके अन्तर्गत सभी पौष्टिक तत्त्वों से युक्त आहार कम-से-कम मूल्य में तैयार करने का प्रयास किया जाता है। सभी सदस्यों की रुचि एवं आवश्यकता के अनुसार गृहिणी दैनिक एवं साप्ताहिक मीनू बनाती है। आहार योजना बनाने के लिए गृहिणी को निम्नलिखित बातों की जानकारी होनी चाहिए

  1.  बाजार में उपलब्ध खाद्य पदार्थों का मूल्य।
  2. उत्तम भोज्यं सामग्री उचित मूल्य पर मिलने का स्थान।
  3.  महँगी भोज्य सामग्री के गुणों की पूरक सस्ती भोज्य सामग्री।
  4. भोज्य पदार्थों को पकाने की उचित विधि।
  5. आहार संरक्षण का ज्ञान जिससे कि भोज्य सामग्री को नष्ट होने से बचाया जा सके।

प्रश्न 5:
18 वर्ष केशाकाहारी लड़के अथवा लड़की के लिए रात्रि आहार की तालिका बनाइए।
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार

प्रश्न 6:
प्रमुख भोज्य पदार्थों से हमें कितनी ऊर्जा मिलती है?
उत्तर:
प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स तथा वसा प्रमुख भोज्य पदार्थ हैं जो कि हमें ऊर्जा प्रदान करते हैं। इनकी एक ग्राम मात्रा शरीर में जाने के पश्चात् निम्न प्रकार से ऊर्जा उत्पन्न करती है

प्रोटीन                             4.1 कैलोरी
कार्बोहाइड्रेट                   4.1 कैलोरी
वसा                                9.0 कैलोरी

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प्रश्न 7:
आयु एवं कार्य के अनुसार कैलोरी सम्बन्धी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आयु एवं कार्य के अनुसार कैलोरी की आवश्यकता
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार
कार्य के अनुसार कैलोरी की आवश्यकता
UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 सन्तुलित आहार image - 1

प्रश्न 8:
बड़ों की अपेक्षा बच्चों को अधिक आहार की क्यों आवश्यकता होती है?
उत्तर:
बढ़ते हुए बच्चों को प्रति किलोभार के अनुसार सभी तत्त्वों की आवश्यकता होती है। 5 वर्ष की आयु के पश्चात् कैलोरी की आवश्यकता घट जाती है। अत: बच्चों को बड़ों की अपेक्षा अधिक कैलोरी वाला आहार देना आवश्यक है। इसका प्रमुख कारण उनके शरीर को होने वाला विकास है। (UPBoardSolutions.com) बाद में एक निश्चित समय के बाद शरीर की इस प्रकार की वृद्धि समाप्त हो जाती है। इसलिए बड़ों को केवल टूट-फूट व कार्य शक्ति प्राप्त करने के लिए आहार की आवश्यकता होती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
सन्तुलित आहार से क्या आशय है?
उत्तर:
व्यक्ति की आहार सम्बन्धी समस्त आवश्यकताओं को पूरा करने वाला आहार सन्तुलित आहार कहलाता है।

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प्रश्न 2:
व्यक्ति के सन्दर्भ में सन्तुलित आहार के निर्धारक कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
व्यक्ति के सन्दर्भ में सन्तुलित आहार के निर्धारक कारक हैं—आयु, लिंग-भेद, शरीर का आकार, शारीरिक श्रम तथा जलवायु।।

प्रश्न 3:
क्या सभी व्यक्तियों के लिए सन्तुलित आहार बिल्कुल समान होता है ?
उत्तर:
सभी व्यक्तियों के लिए सन्तुलित आहार समान नहीं होता। यह सापेक्ष होता है। अर्थात् भिन्न-भिन्न श्रम एवं प्रकृति वाले व्यक्तियों का सन्तुलित आहार भिन्न-भिन्न होता है।

प्रश्न 4:
बाल्यावस्था में सन्तुलित आहर में किन पोषक तत्वों की प्राथमिकता दी जानी चाहिए?
उत्तर:
बाल्यावस्था में सन्तुलित आहर वृद्धिकारक तथा ऊर्जादायक तत्त्वों की प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

प्रश्न 5:
आहार से प्राप्त होने वाली ऊर्जा की इकाई क्या है?
उत्तर:
आहार से प्राप्त ऊर्जा की इकाई कैलोरी है।

प्रश्न 6:
सामान्य स्थिति में स्त्रियों को पुरुषों की अपेक्षा कम आहार की आवश्यकता होती है। क्यों?
उत्तर:
इसके प्रमुख कारण हैं

  1.  अपेक्षाकृत कम लम्बाई,
  2.  कम शारीरिक भार,
  3. हल्का कार्य।

प्रश्न 7:
एक सामान्य व्यक्ति के दैनिक आहार में कैल्सियम, फॉस्फोरस व लोहे की मात्रा कितनी होनी चाहिए?
उत्तर:
एक सामान्य व्यक्ति के दैनिक आहार में कैल्सियम 2.02 ग्राम, फॉस्फोरस 1.47 ग्राम तथा लोहा 30 से 40 मिलीग्राम तक होना चाहिए।

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प्रश्न 8:
कुपोषण के कोई दो कारक बताइए।
उत्तर:
(1) कार्य की अधिकता,
(2) अनियमित आहार।

प्रश्न 9:
शाकाहारी व्यक्तियों के लिए प्रोटीन प्राप्ति के कोई तीन स्रोत बताइए।
उत्तर:
(1) दूध,
(2) दालें,
(3) सोयाबीन।

प्रश्न 10:
विटामिन ‘ए’ एवंडी’ के लिए सरलता से उपलब्ध होने वाला स्रोत कौन-सा है?
उत्तर:
दूध में विटामिन ‘ए’ व ‘डी’ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं।

प्रश्न 11:
हरी पत्तेदार सब्जियों की क्या उपयोगिता है?
उत्तर:
हरी पत्तेदार सब्जियाँ रोगों से बचाने में सहायता करती हैं।

प्रश्न 12:
प्रौढ़ावस्था में आहार ग्रहण करने का प्रमुख उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर:
प्रौढ़ावस्था में मुख्य रूप से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए तथा शरीर के रख-रखाव के लिए आहार ग्रहण किया जाता है।

प्रश्न 13:
एक वृद्ध व्यक्ति की अपेक्षा एक युवक के आहार में क्या अन्तर होना चाहिए?
उत्तर:
एक युवक को एक वृद्ध की अपेक्षा अधिक कैलोरी वाले आहार की आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 14:
गर्मियों की अपेक्षा सर्दियों में अधिक आहार की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
सर्दियों में शरीर को उचित ताप पर बनाए रखने के लिए अधिक आहार की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 15:
हरी सब्जियाँ क्यों आहार का मुख्य अंग मानी जाती हैं?
उत्तर:
हरी सब्जियाँ रक्षात्मक खाद्य पदार्थों की श्रेणी में आती हैं; क्योंकि इनमें आवश्यक खनिज लवण एवं विटामिन पाए जाते हैं।

प्रश्न 16:
कॉफी के प्रयोग से क्या हानियाँ हैं?
उत्तर:
यह कार्बोज के पाचन में बाधा उत्पन्न करती है, हृदय की धड़कनें बढ़ाना, नींद में कमी तथा स्नायु-तन्त्र में विकार इनकी अन्य हानियाँ हैं।

प्रश्न 17:
अंकुरित मूंग में कौन-सा विटामिन पाया जाता है?
उत्तर:
अंकुरित मूंग में विटामिन ‘सी’ पाया जाता है।

प्रश्न 18:
प्रोटीन प्राप्त करने के लिए कुछ प्रमुख स्रोत बताइए।
उत्तर:
प्रोटीन, दूध, दही, मांस, मछली, अण्डा, दालें व सोयाबीन आदि से प्राप्त किया जा सकता

प्रश्न 19:
मक्खन में आहार का कौन-सा तत्त्व होता है?
उत्तर:
मक्खन में प्रमुखतः वसा, विटामिन ‘ए’ व ‘डी’ होते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। सही उत्तर का चयन कीजिए

(1) भोज्य पदार्थों को परिवर्तन कर प्रयोग करने से आहार में
(क) पौष्टिक तत्त्वों की कमी हो जाती है,
(ख) रुचि उत्पन्न होती है,
(ग) कोई लाभ नहीं होता है,
(घ) व्यवस्था में कठिनाई होती है।

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(2) सन्तुलित आहार में उपयुक्त मात्रा में होते हैं
(क) विटामिन वे खनिज लवण,
(ख) प्रोटीन,
(ग) कार्बोज व वसा,
(घ) ये सभी।

(3) आहार की उपयोगिता अधिक निर्भर करती है उसके
(क) पौष्टिकता के गुण पर ,
(ख) स्वादिष्ट होने पर,
(ग) पचने पर,
(घ) इनमें से कोई नहीं।

(4) शाकाहारी स्त्री के आहार में मात्रा बढ़ा देनी चाहिए
(क) मांस की,
(ख) अण्डों की,
(ग) अनाज की,
(घ) दूध की।

(5) कुपोषण से बचने का उपाय है
(क) सन्तुलित आहार,
(ख) पर्याप्त आहार,
(ग) मांसाहारी आहार,
(घ) शाकाहारी आहार।

(6) 9-12 माह के शिशु को ऊर्जा चाहिए
(क) 1000 कैलोरी,
(ख) 1400 कैलोरी,
(ग) 1500 कैलोरी,
(घ) 1600 कैलोरी।.

(7) हल्का काम करने वाले व्यक्ति को कितनी कैलोरी की आवश्यकता है?
(क) 3000,
(ख) 2500,
(ग) 3500,
(घ) 2200।

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(8) किसी भी भोज्य पदार्थ से प्राप्त ऊर्जा को नापने की इकाई है
(क) ग्राम,
(ख) औंस,
(ग) डिग्री,
(घ) कैलोरी।

(9) विटामिन ‘डी’ की प्राप्ति का स्रोत है
(क) फल एवं सब्जियाँ,
(ख) हवा एवं पानी,
(ग) सूर्य का प्रकाश,
(घ) ये सभी।

(10) दूध में प्रोटीन किस रूप में होती है?
(क) केसिन,
(ख) ब्लूटिन,
(ग) मायोसिन,
(घ) एल्ब्यूमिन।

(11) शरीर में कार्बोहाइड्रेट्स का प्रमुख कार्य है
(क) विटामिन को निर्माण,
(ख) जीवद्रव्य का संगठन,
(ग) ऊर्जा का उत्पादन,
(घ) इनमें से कोई नहीं।

(12) दालों में सबसे अधिक मिलता है
(क) खनिज लवण,
(ख) प्रोटीन,
(ग) ग्लूकोस,
(घ) इनमें से कोई नहीं।.

(13) सलाद में पाया जाता है
(क) कार्बोहाइड्रेट्स,
(ख) खनिज लवण,
(ग) वसा,
(घ) प्रोटीन।

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(14) श्रमिक के आहार में अधिक मात्रा होनी चाहिए
(क) फल एवं सब्जियों की,
(ख) दूध एवं दूध से बने भोज्य पदार्थों की,
(ग) ऊर्जादायक भोज्य पदार्थों की,
(घ) मादक पदार्थों की।

उत्तर:
(1) (ख) रुचि उत्पन्न होती है,
(2) (घ) ये सभी,
(3) (ग) पचने पर,
(4) (घ) दूध की,
(5) (क) सन्तुलित आहार,
(6) (क) 1000 कैलोरी,
(7) (ख) 2500,
(8) (घ) कैलोरी,
(9) (ग) सूर्य का प्रकाश,
(10) (क) केसिन,
(11) (ग) ऊर्जा का उत्पादन,
(12) (ख) प्रोटीन,
(13) (ख) खनिज लवण,
(14) (ग) ऊर्जादायक भोज्य पदार्थों की।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 3 निर्धनता : एक चुनौती

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत में निर्धनता रेखा का आकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर:
भारत में निर्धनता रेखा का आकलन करने के लिए आय या उपभोग स्तरों पर आधारित एक सामान्य पद्धति का प्रयोग किया जाता है। भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण करते समय जीवन निर्वाह हेतु खाद्य आवश्यकता, कपड़ों, जूतों, ईंधन और प्रकाश, शैक्षिक एवं चिकित्सा सम्बन्धी आवश्यकताओं को प्रमुख माना जाता है। निर्धनता रेखा का आकलन करते समय खाद्य आवश्यकता के लिए वर्तमान सूत्र वांछित कैलोरी आवश्यकताओं पर आधारित है। खाद्य वस्तुएँ जैसे अनाज, दालें, आदि मिलकर इस आवश्यक (UPBoardSolutions.com) कैलोरी की पूर्ति करती है। भारत में स्वीकृत कैलोरी आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन एवं नगरीय क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है। चूंकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग अधिक शारीरिक कार्य करते हैं, अतः ग्रामीण क्षेत्रों में कैलोरी आवश्यकता शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक मानी गई है।

अनाज आदि रूप में इन कैलोरी आवश्यकताओं को खरीदने के लिए प्रति व्यक्ति मौद्रिक व्यय को, कीमतों में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए समयसमय पर संशोधित किया जाना है। इन परिकल्पनाओं के आधार पर वर्ष 2000 में किसी व्यक्ति के लिए निर्धनता रेखा का निर्धारण ग्रामीण क्षेत्रों में १ 328 प्रतिमाह और शहरी क्षेत्रों में २ 454 प्रतिमाह किया गया था।

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प्रश्न 2.
क्या आप समझते हैं कि निर्धनता आकलन का वर्तमान तरीका सही है?
उत्तर:
वर्तमान निर्धनता अनुमान पद्धति पर्याप्त निर्वाह स्तर की बजाय न्यूनतम स्तर को महत्त्व देती है। सिंचाई और क्रान्ति के फैलाव ने कृषि के क्षेत्र में कई नौकरियों के अवसर दिए लेकिन भारत में इसका प्रभाव कुछ भागों तक ही सीमि रहा है। सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के उद्योगों ने नौकरियों के (UPBoardSolutions.com) अवसर दिए हैं। लेकिन ये नौकरी लेने वालों की अपेक्षा बहुत कम है। निर्धनता को विभिन्न संकेतकों के द्वारा जाना जा सकता है। जैसे अशिक्षा का स्तर, कुपोषण के कार मान्य प्रतिरोधक क्षमता में कमी, स्वास्थ्य सेवाओं तक कम पहुँच, नौकरी के कम अवसर, पीने के पानी में कमी, सफाई व्यवस्था आदि। सामाजिक अपवर्जन और असुरक्षा के आधार पर निर्धनता का विश्लेषण अब सामान्य है। गरीबी पर सामाजिक उपेक्षा एवं गरीबी का शिकार होने की प्रवृत्ति के आधार पर भी विचार किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
भारत में 1973 से निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
उत्तर:
भारत में 1973 से निर्धनता की प्रवृत्ति को निम्न तालिका द्वारा प्रदर्शित किया गया है-
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 3 निर्धनता एक चुनौती

प्रश्न 4.
भारत में निर्धनता की अंतर-राज्य असमानताओं का एक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर:
भारत में निर्धनता की अन्तर्राज्य असमानता का वितरण निम्नलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट है
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 3 निर्धनता एक चुनौती
भारत के निश्चित क्षेत्रों के गरीबी अनुपात (1999-2000) से यह स्पष्ट होता है कि ओडिशा भारत का सबसे गरीब राज्य है जिसकी 47.2% जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे रहती है। जम्मू-कश्मीर में सबसे कम 3.5% लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं। भारत में कुल 26.1% लोग निर्धनता की रेखा के नीचे हैं।

प्रश्न 5.
उन सामाजिक और आर्थिक समूहों की पहचान करें जो भारत में निर्धनता के समक्ष निरुपाय हैं।
उत्तर:
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्ग के परिवार उन सामाजिक समूहों में शामिल हैं, जो निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित हैं। इसी प्रकार, आर्थिक समूहों में सर्वाधिक असुरक्षित समूह, ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार और नगरीय अनियमित मजदूर परिवार हैं। इसके अलावा महिलाओं, वृद्ध लोगों और बच्चियों को अति निर्धन माना जाता है क्योंकि उन्हें सुव्यवस्थित ढंग से परिवार के उपलब्ध संसाधनों तक पहुँच से वंचित रखा जाता है।

प्रश्न 6.
भारत में अन्तर्राज्यीय निर्धनता में विभिन्नता के कारण बताइए।
उत्तर:
भारत में अन्तर्राज्यीय निर्धनता में विभिन्नता के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं

  1. केन्द्रीय प्रादेशिक सरकार समान रूप से सभी क्षेत्रों में समान निवेश नहीं करती।
  2.  दूर स्थित ग्रामीण क्षेत्रों, पहाड़ी एवं रेगिस्तानी इलाकों की अवहेलना की जाती है।
  3.  प्राकृतिक आपदा जैसे—बाढ़, तूफान, सूनामी का सभी राज्यों में न होना।
  4.  प्रत्येक राज्य में निर्धन लोगों का अनुपात एकसमान नहीं है।
  5. प्रत्येक राज्य का प्राकृतिक वातावरण, जलवायु, मिट्टी, वर्षा आदि समान नहीं है।
  6.  प्रत्येक राज्य समान रूप से मानव संसाधन अर्थात् शिक्षा और स्वास्थ्य का विकास नहीं कर पाए हैं।
  7.  प्रत्येक राज्य में भूमि सुधार का कार्य समान नहीं हुआ है।

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प्रश्न 7.
वैश्विक निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
उत्तर:
विश्व बैंक के अनुसार सार्वभौमिक निर्धनता जो 1990 में 28% थी, घटकर 2001 में 21% हो गयी। निर्धनता में स्थिरता से चीन एवं दक्षिणी एशिया के देशों में मानवीय संसाधनों में वृद्धि के कारण कम है। भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, भूटान एवं बांग्लादेश में तेजी से निर्धनता में कमी नहीं हुई है।
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 3 निर्धनता एक चुनौती

प्रश्न 8.
निर्धनता उन्मूलन की वर्तमान सरकारी रणनीति की चर्चा करें।
उत्तर:
भारत से निर्धनता उन्मूलन करने हेतु निम्नलिखित उपाय अपनाये गए हैं|

  1. आर्थिक विकास में वृद्धि–आर्थिक विकास की दर में वृद्धि करना निर्धनता उन्मूलन हेतु महत्त्वपूर्ण कदम है। राष्ट्रीय आय में जनसंख्या के अनुपात में वृद्धि तेजी से होनी चाहिए तभी आर्थिक विकास में वृद्धि हो सकती है।
  2. भूमि सुधार-निर्धनता दूर करने के लिए भूमि की हदबंदी कानून के अन्तर्गत प्राप्त भूमि को भूमिहीन एवं गरीब किसानों में बाँट देना चाहिए। भूमि के बिखराव को रोकना चाहिए और खेतों की चकबंदी की जानी चाहिए।
  3. जनसंख्या पर नियंत्रण-गरीबी को अधिक सीमा तक कम किया जा सकता है यदि हम परिवार नियोजन पर जोर दें। जनसंख्या नियंत्रण से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी। यह जनसंख्या वृद्धि की दर में एवं आर्थिक संसाधनों के बीच अन्तर करने में सहायक होगा।
  4. अत्यधिक रोज़गार के अवसर-ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों को बढ़ाकर भारत में बेरोज़गारी को कम किया जा सकता है। इस प्रकार सार्वजनिक कार्य विस्तृत पैमाने (extensive scale) पर प्रारम्भ किया। जाना चाहिए। लघु एवं कुटीर उद्योग को प्रोत्साहित (UPBoardSolutions.com) करना चाहिए। मानवशक्ति का कुशल उपयोग निःसंदेह अर्थव्यवस्था में आय उत्पन्न करेगी और इससे गरीबी को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप में उत्तर दें
(क) मानव निर्धनता से आप क्या समझते हैं?
(ख) निर्धनों में भी सबसे निर्धन कौन हैं?
(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
(क) “मानव निर्धनता’ की अवधारणा मात्र-आय की न्यूनता तक ही सीमित नहीं है। इसका अर्थ है किसी व्यक्ति को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक अवसरों का उचित स्तर न मिलना। अशिक्षा, रोजगार के अवसरों की कमी, स्वास्थ्य सेवा की सुविधाओं और सफाई व्यवस्था में कमी, जाति, लिंग-भेद आदि मानव निर्धनता के कारक हैं।
(ख) महिलाओं, वृद्ध लोगों और बच्चों को अति निर्धन माना जाता है क्योंकि उन्हें सुव्यवस्थित ढंग से परिवार के उपलब्ध संसाधनों तक पहुँच से वंचित रखा जाता है।
(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (एन.आर.ई.जी.ए.) की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. 200 जिलों में प्रत्येक वर्ष गृहस्थ को 100 दिन के रोजगार का आश्वासन प्रदान करना। बाद में यह योजना 600 | जिलों में कर दी गई।
  2. 1/3 आरक्षित कार्य (jobs) महिलाओं के लिए होंगे।
  3.  केन्द्रीय सरकार राष्ट्रीय रोज़गार आश्वासन कोष का निर्माण करेगी।
  4.  यदि कार्य 50 दिन के भीतर प्रदान नहीं कराया गया तो प्रतिदिन रोज़गार भत्ता दिया जाएगा।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत और चीन की निर्धनता में कमी के आँकड़ों के बारे में बताइए।
उत्तर:
भारत में निर्धनता का अनुपात 1990 के 20 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 21 प्रतिशत हो गया है। चीन में निर्धनता की संख्या 1981 के 60.6 करोड़ से घटकर 2001 में 21.2 करोड़ हो गयी।

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प्रश्न 2.
सरकार द्वारा चलाए गए निर्धनता निरोधी कार्यक्रम ज्यादा कारगर साबित क्यों नहीं हो रहा है?
उत्तर:
निर्धनता निरोधी कार्यक्रम के कम प्रभावी होने का एक मुख्य कारण उचित कार्यान्वयन और सही लक्ष्य निश्चित करने की।

प्रश्न 3.
उन पाँच राज्यों के नाम बताएँ जहाँ निर्धनता सबसे कम और सबसे अधिक है।
उत्तर:
भारत के पाँच सबसे कम निर्धन राज्य-जम्मू कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, केरल। भारत के पाँच सबसे अधिक निर्धन राज्य–ओडिशा, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, असम।

प्रश्न 4.
भारत में निर्धनता के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत की दीर्घकालिक बेरोजगारी में वृद्धि होना।
स्वतन्त्रता के पश्चात् भूमि और अन्य संसाधनों का असमान वितरण।

प्रश्न 5.
भारत में निर्धनता सम्बन्धी चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(क) लैंगिक समता तथा निर्धनों में सम्मान ।
(ख) शिक्षा व रोजगार सुरक्षा उपलब्ध कराना
(ग) न्यूनतम आवश्यक आय की उपलब्धता
(घ) सभी को स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराना।

प्रश्न 6.
उन पाँच देशों का उल्लेख कीजिए, जिनकी ज्यादातर जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है।
उत्तर:

  1. नाइजीरिया,
  2. बांग्लादेश,
  3.  भारत,
  4.  पाकिस्तान,
  5.  चीन।।

प्रश्न 7.
उन पाँच राज्यों का नामोल्लेख कीजिए जिनकी अल्पसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे हैं
उत्तर:

  1. जम्मू-कश्मीर,
  2.  गोवा,
  3.  पंजाब,
  4. हरियाणा,
  5. हिमाचल प्रदेश।

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प्रश्न 8.
उन पाँच राज्यों के नाम बताइए जिनमें लोगों का अधिकांश भाग गरीबी रेखा से नीचे है।
उत्तर:

  1. ओडिशा,
  2. बिहार,
  3.  मध्य प्रदेश,
  4. उत्तर प्रदेश,
  5. पश्चिम बंगाल।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
देश में गरीबी दूर करने के लिए सरकार द्वारा शुरू की गयी योजनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार आश्वासन अधिनियम (NREGA), 2005
  2.  राष्ट्रीय कार्य के बदले भोजन योजना (NFWP), 2004
  3.  प्रधानमंत्री रोज़गार योजना (PMRY), 1993
  4. ग्रामीण रोज़गार विकास योजना (REGP), 1995
  5.  स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोज़गार योजना (SGSY), 1999
  6.  प्रधानमंत्री ग्रामोद्योग योजना (PMGY), 2000
  7. अन्त्योदय अन्न योजना (AAY)

प्रश्न 2.
‘आर्थिक संवृद्धि एवं निर्धनता उन्मूलन के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विकास की उच्च दर ने निर्धनता को कम करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1980 के दशक से भारत | की आर्थिक संवृद्धि-दर विश्व में सबसे अधिक रही। संवृद्धि-दर 1970 के दशक के करीब 3.5 प्रतिशत के औसत से बढ़कर 1980 और 1990 के दशक में 6 प्रतिशत के करीब पहुँच गई। अधिक संवृद्धि-दर निर्धनता उन्मूलन को कम करने में सहायक (UPBoardSolutions.com) होती है। इसलिए यह स्पष्ट होता जा रहा है कि आर्थिक संवृद्धि और निर्धनता उन्मूलन के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध है। आर्थिक संवृद्धि अवसरों को व्यापक बना देती है और मानव विकास में निवेश के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराती है। यह शिक्षा में निवेश से अधिक आर्थिक प्रतिफल पाने की आशा में लोगों को अपने बच्चों को लड़कियों सहित स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करती है।

प्रश्न 3.
सरकार की वर्तमान निर्धनता-निरोधी रणनीतियाँ किन दो कारकों पर आधारित हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निर्धनता-उन्मूलन भारत की विकास रणनीति का प्रमुख उद्देश्य रहा है। सरकार की वर्तमान निर्धनता-निरोधी रणनीति मुख्य रूप से निम्न दो कारकों पर आधारित है

लक्षित निर्धनता-निरोधी कार्यक्रम-सरकार ने निर्धनता को समाप्त करने के लिए कई निर्धनता-निरोधी कार्यक्रम चलाए। जैसे-राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005, प्रधानमंत्री रोजगार योजना, ग्रामीण रोजगार सृजन, स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोज़गार योजना, प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना, अंत्योदय अन्न योजना, राष्ट्रीय काम के बदले अनाज।

आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहन-विकास की उच्च दर ने निर्धनता को कम करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1980 के दशक से भारत की आर्थिक संवृद्धि-दर विश्व में सबसे अधिक रही। संवृद्धि-दर 1970 के दशक के करीब 3.5 प्रतिशत के औसत से बढ़कर 1980 और 1990 के (UPBoardSolutions.com) दशक में 6 प्रतिशत के करीब पहुँच गई। इसलिए यह स्पष्ट होता जा रहा है कि आर्थिक संवृद्धि और निर्धनता उन्मूलन के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध है। आर्थिक संवृद्धि अवसरों को व्यापक बना देती है और मानव विकास में निवेश के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 4.
गरीबी की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
गरीब चाहे ग्रामीण हों या शहरी उनकी विशेषताएँ लगभग एक जैसी होती हैं। उनकी सामान्य विशेषताओं को नीचे समझाया गया है–

  1. भूख, भुखमरी एवं कुपोषण-अपर्याप्त भोजन गरीबी की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। यह कुपोषण भूख और भुखमरी को पैदा करती है।
  2.  बुरा स्वास्थ्य एवं शिक्षा-बुरा स्वास्थ्य एवं बुरी शिक्षा सदैव गरीबी का ही परिणाम होता है।
  3. कार्य का निरंतर न होना, सौदेबाजी की क्षमता में कमी-गरीब लोग बेरोज़गारी, अल्प रोज़गार एवं मौसमी बेरोज़गारी के शिकार होते हैं जो उनकी मज़दूरी को कम करता है और इससे दुबारा उनकी गरीबी बढ़ती है। 4. सीमित आर्थिक अवसर-गरीबी संसाधनों की कमी से (UPBoardSolutions.com) पीड़ित होती है। गरीबों को सीमित आर्थिक अवसरों की उपलब्धता के कारण फिर गरीबी का सामना करना पड़ता है। यह गरीब लोगों को निर्धनता के चक्र से निकलने नहीं देती।

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प्रश्न 5.
गरीब कौन है और इसकी पहचान किस आधार पर की जा सकती है?
उत्तर:
सामान्य तौर पर एक व्यक्ति तब तक गरीब माना जाता है यदि वह भूमिहीन है, कृषि मजदूर, शहरी मजदूर, गंभीर ऋणग्रस्तता के शिकार, बुरा स्वास्थ्य, भूख एवं भुखमरी में है। गरीब लोग कुपोषण, बेरोज़गारी, परिवार के बड़े आकार, असहाय एवं दुर्भाग्य के शिकार (UPBoardSolutions.com) होते हैं। योजना आयोग के अनुसार वह व्यक्ति जो गरीबी रेखा से नीचे है, गरीब है। ग्रामीण क्षेत्रों में जिनके पास 2400 से कम एवं शहरी क्षेत्रों में 2100 से कम कैलोरी है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्थिक विकास की दर में वृद्धि के उपाय बताइए।
उत्तर:
आर्थिक विकास की दर में वृद्धि गरीबी को दूर करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसके लिए निम्नलिखित कार्य किए जा सकते हैं

  1. देश के पिछड़े हुए क्षेत्रों में कुटीर एवं लघु उद्योगों का निर्माण करना।
  2.  देश के प्राकृतिक, मानवीय एवं पूँजी संसाधनों का कुशलतम उपयोग करना।
  3. सार्वजनिक अनुत्पादित व्यय के स्थान पर सार्वजनिक उत्पादित व्यय को प्राथमिकता देना।
  4.  गरीब लोगों के लिए पूर्ण एवं अधिक उत्पादित रोज़गार।।
  5. गरीबों को न्यूनतम एवं उपयुक्त मजदूरी।
  6.  समाज के गरीब वर्गों के लिए स्वयं रोज़गार के अवसरों में वृद्धि करना।
  7. गरीब श्रमिकों की श्रम उत्पादकता में वृद्धि के लिए शिक्षा, प्रशिक्षण एवं स्वास्थ्य की व्यवस्था करना।

प्रश्न 2.
ग्रामीण गरीब की विशेषताएँ बताइए तथा शहरी गरीबी के कारण बताइए।
उत्तर:
ग्रामीण गरीब की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

गंभीर ऋणग्रस्तता–एक ग्रामीण गरीब के पास सीमित साधन होते हैं। उसकी आय उसके परिवार की आधारभूत आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने में अपर्याप्त होती है। इस प्रकार वह ऊँची ब्याज दर पर ऋण प्राप्त करने के लिए मजबूर होता है।

बाल श्रम–बच्चों को अपने माता-पिता की कम आय में सहायता करने की आवश्यकता होती है। इसलिए उन्हें ग्रामीण फैक्ट्रियों या ढाबों में श्रमिक के रूप में कार्य करना पड़ता है।

ईंधन के रूप में गोबर एवं लकड़ी का उपयोग करना-गंभीर गरीबी के कारण ग्रामीण लोग अपना खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में गोबर एवं लकड़ी का उपयोग करते हैं। वह ईंधन के रूप में कोयला, मिट्टी का तेल, बिजली एवं गैस के खर्चे को सहन नहीं कर सकते।

भूमिहीन–ग्रामीण गरीबों के पास अपनी भूमि नहीं होती। यदि कोई भूमि का टुकड़ा होता है तो यह बहुत छोटा टुकड़ा होता है जो उसके परिवार की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट नहीं कर सकता।

कृषि श्रमिक–अपर्याप्त एवं भूमि के टुकड़े का नहीं होना ग्रामीण व्यक्ति को कार्य से वंचित रखता है। इस प्रकारउन्हें कृषि श्रमिक के रूप में साहूकारों के पास कार्य करना पड़ता है और वह स्वयं को शोषण के लिए उन्हें समर्पित कर देते हैं। अधिकांश कार्य मौसमी एवं अस्थायी होते हैं एवं परेशानियाँ जारी रहती हैं।

 कच्ची घर-ग्रामीण मज़दूरों का घर कच्चा होता है, जहाँ दीवारें मिट्टी की एवं छत सामान्य तौर पर घास-फूस एवं लकड़ियों से बनी होती है। यह घर तेज हवा, वर्षा एवं ठंड का सामना करने में असमर्थ होते हैं। शहरी गरीबी के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं

  1. बुरा स्वास्थ्य-गरीबी, भुखमरी, ऋणग्रस्तता एवं मानसिक परेशानी को पैदा करती है जो बुरे स्वास्थ्य को बढ़ावा | देती है और जो कार्य की हानि करके गरीबी में दोबारा योगदान देती है।
  2. अस्वच्छता एवं बिजली की अनुपलब्धता-सफाई सुविधाओं का झुग्गी-झोंपड़ी के क्षेत्रों में अभाव है। सामान्य तौर पर बिजली उपलब्ध नहीं है। अस्वच्छता गंभीर बीमारियों एवं बुरे स्वास्थ्य का कारण होती है।
  3.  स्वच्छ पीने के पानी की अनुपलब्धता-यह बहुत दुख की बात है कि इन असहाय एवं दुर्भाग्य लोगों को पीने को स्वच्छ पानी भी उपलब्ध नहीं है।
  4.  झुग्गी-झोंपड़ी के निवासी-शहरी गरीब आवासीय क्षेत्रों में घर का प्रबन्ध नहीं कर सकते। इसलिए वह अपने घर शहर के किनारे एवं झुग्गी-झोंपड़ी के क्षेत्रों में बनाते हैं जो गंदे, अस्वच्छ कीचड़ एवं कूड़ा करकट वाले होते | हैं और मानवीय निवास के लिए अनुपयुक्त हैं।
  5. निरक्षरता-गरीबी एवं निरक्षरता दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं। गरीबी, निरक्षरता को बढ़ाती है और निरक्षरता गरीबी को सामान्य तौर पर गरीब बच्चों को अपने माता-पिता की कम आय में सहायता के लिए कार्य करना पड़ता है। स्कूल जाने के लिए उनके पास समय एवं पैसा नहीं होता।
  6. अनिरन्तर रोज़गार-शहरी गरीबों के पास सामान्य तौर पर निरन्तर कार्य नहीं होता। कुछ समय वह कार्यरत होते हैं और वर्ष के कई महीने तक वह बेरोज़गार होते हैं। वह मौसमी एवं वार्षिक बेरोज़गारी के शिकार होते हैं। जो उनके जीवन को कठिन बनाती है।

प्रश्न 3.
विश्व में प्रत्येक व्यक्ति के लिए भोजन है फिर भी लोग भूख की वजह से क्यों मरते हैं?
उत्तर:
निर्धनता का आशय है भोजन एवं आवास का अभाव। यह एक अवस्था है जहाँ व्यक्ति की मूलभूत सुविधाएँ जैसे–चिकित्सा सुविधा, शैक्षिक सुविधा, आधारभूत नागरिक सुविधायें प्रप्त नहीं कर पाता। यूनाइटेड नेशन के अनुसार लगभग 25000 लोग प्रतिदिन भूख या भूख-सम्बन्धी बीमारियों के कारण मर जाते हैं, जिनमें अधिकतर बच्चे होते हैं। हालांकि विश्व में प्रत्येक व्यक्ति के लिए भोजन है परन्तु उसे खरीदने के लिए पैसों की कमी के कारः लोग कुपोषित हैं, वे कमजोर और बीमार रहते हैं। इस कारण वे कम काम कर पाते हैं (UPBoardSolutions.com) जिससे वे और निर्धन तथा भूखे हाते जाते हैं।

यह चक्र उनके और उनके परिवार वालों के लिए मृत्यु तक चलता रहता है। इस समस्या को सुलझाने के लि। कई कार्यक्रम भी चलाए । ‘खाने के लिए काम कार्यक्रम-जिसमें व्यस्कों को स्कूल बनाने, कुएं खोदने, सड़कें बनाने आदि के काम के लिए रवाना दिया जाता है। इससे निर्धनों को पोषण मिलता है और निर्धनता को समाप्त करने के लिए संरचना तैयार होती है। ‘ग्वाने के लिए शिक्षा कार्यक्रम –जिसमें बच्चों को भोजन दिया जाता है जब वे स्कूल में उपस्थित हो। उनकी शिक्षा उन्हें भूख और वैश्विक निर्धनत बचा सकती है।

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प्रश्न 4.
सरकार द्वारा संचालित निर्धनता निरोधी रणनीतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सरकार द्वारा संचालित निर्धनता निधी रणनीतियों का विवर!

ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम

  • के इस कार्यक्रम को 1995 में आरम्भ किया गया।
  • इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में स्वराजः के अनः जिन ३रन है।\दसवीं पंचवर्षीय योजना में इस कार्यक्रम के अन्तर्गत 2 लाख नए जिगार के अवसर सृजित करने का नक्ष्य गल्ला गया है

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना

  • इस कार्यक्रम का आरम्भ 1999 में किया गया।इस कार्यक्रम का उद्देश्य सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों के सहाय।
  • सही में ३ बैंक ऋण और सरकारी सहायिकी के संयोजन द्वारा निर्धनता रेखा से ऊपर लाना ।

प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना

  • यह योजना 2000 में आरम्भ की गई।
  •  इसके अन्तर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, ग्रामीण आश्रय, ग्रामीण पेयजल और ग्रामीण विद्युतीकरण जैसी मूल सुविधाओं के लिए राज्यों को अतिरिक्त केन्द्रीय महायता प्रदान की जाती है।

राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम

  • यह कार्यक्रम 2004 में देश के सबसे पिछड़े 150 जिलों में लागू किया गया था। यह कार्यक्रम उन सभी ग्रामी निर्धनों के लिए है, जिन्हें मजदूरी पर रोजगार की आवश्यकता है और जो अकुशल शारीरिक काम करने के इच्छुक हैं।
  • इसके लिए राज्यों को खाद्यान्न निःशुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं।

प्रधानमंत्री रोजगार योजना

• इस योजना को 1993 में आरम्भ किया गया।
• इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है।
• इस कार्यक्रम में लघु व्यवसाय और उद्योग स्थापित करने में उनकी सहायता की जाती है।

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005

  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 को सितम्बर, 2005 में पारित किया गया।
  • प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के सुनिश्चित रोजगार का प्रावधान करता है। | प्रारम्भ में यह विधेयक प्रत्येक वर्ष देश के 200 जिलों में और बाद में इस योजना का विस्तार 600 जिलों में किया गया। प्रस्तावित रोजगारों का एक तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए (UPBoardSolutions.com) आरक्षित है। केन्द्र सरकार राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कोष भी स्थापित करेगी।
  • इसी तरह राज्य सरकारें भी योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्य स्वरोजगार गारंटी कोष की स्थापना करेंगी। कार्यक्रम के अन्तर्गत अगर आवेदक को 15 दिन के अंदर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह दैनिक बेरोजगारी भत्ते का हकदार होगा।

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UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 34 डॉ० विश्वेश्वरैया (महान व्यक्तिव)

UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 34 डॉ० विश्वेश्वरैया (महान व्यक्तिव)

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पाठ का सारांश

डॉ० विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर प्रदेश के मुद्देनल्ली गाँव में 15 सितम्बर, सन् 1861 में हुआ था। इनका पूरा नाम मोक्षगुडम् विश्वेश्वरैया था। ये कुशल इंजीनियर, विख्यात स्थापत्यविद् नए नए उद्योगों और धन्धों के जन्मदाता, शिक्षाशास्त्री, राजनीतिज्ञ एवं देशभक्त थे।

1893 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने विश्वेश्वरैया की परीक्षा ली। मुंबई सरकार की सक्कर जल योजना जिसे वह यथाशीघ्र पूरा करना चाहती थी, परन्तु उस काम की देखरेख कर रहे अँग्रेज इंजीनियर की मृत्यु हो गई। तब विश्वेश्वरैया ने बड़ी योग्यता एवं कर्मठता से इस कार्य को समय पर पूरा कर दिया। इन्होंने मूसा नदी पर बाँध बाँधकर जलाशयों का निर्माण कराया, जिससे जन-धन का विनाश करने वाली मूसा नदी हैदराबाद के लिए वरदान सिद्ध हुई। इन्होंने तत्कालीन मैसूर राज्य में बैंक, (UPBoardSolutions.com) मैसूर चैम्बर ऑफ कामर्स, चन्दन तेल कारखाना, सरकारी साबुन कारखाना आदि उद्योगों की स्थापना की। भद्रावती के प्रसिद्ध लोहा और इस्पात कारखाने की योजना डॉ० विश्वेश्वरैया ने ही तैयार की थी। ये जीवन भर शिक्षा के प्रचार-प्रसार के प्रति प्रयत्नशील रहे। इन्होंने ही मैसूर विश्वविद्यालय की नींव डाली। ये बाह्य आडम्बरों का विरोध करते थे। भारतीय संस्कृति और आचार-विचार में इनकी महान आस्था थी।

जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो देश ने इस महान रत्न का हार्दिक सम्मान किया। अँग्रेजों ने इन्हें ‘सर’ की उपाधि दी थी। भारत सरकार ने इन्हें सर्वोच्च ‘भारत रत्न’ की उपाधि से अलंकृत किया। (UPBoardSolutions.com)

सन् 1962 में डॉ० विश्वेश्वरैया का स्वर्गवास हो गया। आज भी इनके महान कार्यों के कारण भारतवासी इन्हें याद करते हैं।

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अभ्यास

प्रश्न 1.
डॉ० विश्वेश्वरैया को आधुनिक भारत का भगीरथ क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
डॉ० विश्वेश्वरैया को आधुनिक भारत का भगीरथ इसलिए कहा जाता है क्योंकि महाराज भगीरथ की भाँति ही डॉ० विश्वेश्वरैया ने अपनी योग्यता और कर्मठता से जन-धन का विनाश करनेवाली मूसा (UPBoardSolutions.com) नदी को हैदराबाद के लिए वरदान बना दिया। उन्होंने करोड़ों एकड़ बंजर धरती को उर्वर बनाया और तेज बहनेवाली अनेक नदियों पर बाँध बँधवाए।

प्रश्न 2.
कृष्णराज सागर कहाँ बना हुआ है?
उत्तर :
मैसूर राज्य में कावेरी नदी पर ‘कृष्णराज’ सागर बना हुआ है।

प्रश्न 3.
हैदराबाद के लिए मूसा नदी को डॉ० विश्वेश्वरैया ने किस प्रकार वरदान बना दिया?
उत्तर :
विश्वेश्वरैया ने मूसा नदी पर बाँध बाँधकर जलाशयों का निर्माण कराया और जन-धन का विनाश करनेवाली मूसा नदी को हैदराबाद के लिए वरदान बना दिया।

प्रश्न 4.
डॉ० विश्वेश्वरैया के जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
डॉ० विश्वेश्वरैया के जीवन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सदैव परिश्रम एवं लगन से अपने कर्तव्य का पालन करते रहना चाहिए। बाधाओं से नहीं घबराना चाहिए। परिश्रम, कर्तव्य-निष्ठा, धैर्य, बल एवं (UPBoardSolutions.com) शिक्षा ही मानव को उन्नति के मार्ग की ओर ले जाने में समर्थ होती है।

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प्रश्न 5.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

(क) डॉ० विश्वेश्वरैया का जीवन साहस, संघर्ष और सफलता की अनुपम कहानी है।
(ख) डॉ० विश्वेश्वरैया की मान्यता थी कि उचित शिक्षा ही देश की आर्थिक दुर्गति दूर करती है।

प्रश्न 6.
नीचे लिखे कथनों का सही मिलान कीजिए (मिलान करके) –
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उत्तर :

(क) भारत कैसे उन्नति कर सकता है; जबकि इसकी अस्सी प्रतिशत जनता अनपढ़ है!
(ख) डॉ० विश्वेश्वरैया देशभक्त और स्वाभिमानी व्यक्ति थे।
(ग) डॉ० विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर प्रदेश के मुद्देनल्ली गाँव में 15 सितम्बर, 1861 में हुआ था।
(घ) डॉ० विश्वेश्वरैया का जीवन साहस, संघर्ष और सफलता की अनुपम कहानी है।

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UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 10 महात्मा बुद्ध (महान व्यक्तिव)

UP Board Solutions for Class 6 Hindi Chapter 10 महात्मा बुद्ध (महान व्यक्तिव)

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पाठ का सारांश

महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। ये कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के पुत्र थे। सिद्धार्थ तीक्ष्ण बुद्धि के थे, ये जिज्ञासु स्वभाव के थे। इनके विषय में विद्वानों ने घोषणा की थी कि ये एक दिन घर-बार त्यागकर संन्यासी हो जाएँगे। पिता नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र संन्यासी हो, अतः उन्होंने इनका विवाह यशोधरा के साथ कर दिया। यशोधरा को एक पुत्र हुआ। पुत्र का नाम राहुल रखा गया। सिद्धार्थ का मन परिवार और राजकार्य में नहीं लगता था।

एक दिन सिद्धार्थ नगर भ्रमण के लिए जा रहे थे। इन्होंने एक वृद्ध को देखा, जो बहुत मुश्किल से चल पा रहा था। इस सम्बन्ध में सारथा से पूछने पर ज्ञात हुआ कि एक दिन सभी की यही दशा होती है। एक दिन इन्होंने देखा कि चार व्यक्ति एक मृतक को लिए जा रहे हैं। सारथी से पूछने पर ज्ञात हुआ कि एक दिन सभी को मरना पड़ेगा। तभी सिद्धार्थ ने इस संसार (UPBoardSolutions.com) के माया-मोह। को छोड़ने का निश्चय कर लिया और एक दिन वे अपनी सुन्दर पत्नी और पुत्र को छोड़ रात्रि में ही घर से निकल गए। संन्यासी की भाँति सिद्धार्थ ज्ञान की खोज में घूमते रहे। कुछ दिनों बाद ये गया पहुँचे और ज्ञान प्राप्ति का संकल्प लेकर एक वट वृक्ष के नीचे बैठ गए। छह वर्ष की कठिन । तपस्या के बाद इन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया, तब ये गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए।

गौतम बुद्ध ने लोगों को उपदेश दिया कि जीवन में किसी बात की अति न करो, सन्तुलित जीवन जीयो, अहिंसा का पालन करो, कभी किसी को मत सताओ। किसी प्राणी की हत्या मत करो। सभी के साथ भाई-चारे का जीवन बिताओ। सत्य का पालन करो।

गौतम बुद्ध कहते थे कि दूसरों की भलाई करो। परोपकार से मित्रता करो। इन्होंने लोगों को बताया कि सागर की तरह गम्भीर बनो। मन में अच्छे विचार रखो। इनका कहना था कि स्वास्थ्य से बढ़कर (UPBoardSolutions.com) कोई लाभ नहीं। जाति-पाँति का भेद-भाव ठीक नहीं। बुद्ध का धर्म बौद्ध धर्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गौतम बुद्ध ने अपने प्रेम बंधन में सभी को बाँध लिया।

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अभ्यास

प्रश्न 1.
सिद्धार्थ हिरण पर तीर क्यों नहीं चला सके?
उत्तर :
सिद्धार्थ हिरण पर तीर इसलिए नहीं चला सके, क्योंकि हिर, की माँ अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से दया-याचना के भावों से सिद्धार्थ की ओर देख रही थी। उसे देखकर सिद्धार्थ का हृदय द्रवित हो गया और वे लौट गए।

प्रश्न 2.
वे कौन-सी घटनाएँ थीं, जिन्हें देखकर सिद्धार्थ को दुनिया से विरक्ति हो गई?
उत्तर :
एक दिन सिद्धार्थ नगर भ्रमण के लिए घर से निकले। रास्ते में उन्हें एक वृद्ध (बूढ़ा मनुष्य) मिला, वह लाठी के सहारे चल रहा था। सारथी से पूछने पर उसने बताया कि वृद्ध होने पर सबकी यही दशा होती है। यह सुनकर ये बहुत दुखी हुए।

इसी प्रकार, एक दिन इन्होंने शिकार पर जाते समय एक मृतक को देखकर सारथी से पूछा। सारथी ने कहा- “सबको एक दिन अवश्य मरना है।” इन दोनों घटनाओं को देखकरे सिद्धार्थ को दुनिया से विरक्ति हो गई।

प्रश्न 3.
सिद्धार्थ बुद्ध कैसे बने?
उत्तर :
सिद्धार्थ गृह त्यागने के बाद संन्यासी की भांति जगह-जगह घूमते रहे। कुछ दिनों बाद वे गया पहुँचे और ज्ञान प्राप्त करने का संकल्प लेकर एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। छह वर्ष की कठिन साधना के (UPBoardSolutions.com) बाद उन्हें अनुभव हुआ कि ज्ञान प्राप्त हो गया है और जीवन की समस्याओं को हल मिल गया है। तभी से सिद्धार्थ बुद्ध कहलाने लगे।

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प्रश्न 4.
गौतम बुद्ध ने संसार को कौन-कौन सी शिक्षाएँ दीं?
उत्तर :
गौतम बुद्ध ने संसार को बताया कि संसार में दुख ही दुख है। दुख का कारण सांसारिक वस्तुओं के लिए इच्छा और कामना है। दुख से छुटकारा पाने के लिए मनुष्य को अष्टमार्ग पर चलना चाहिए। सब भाई-चारे एवं प्रेम से रहें, पवित्रता से जीवन बिताएँ, सत्य का पालन करें। घृणा को घृणा से नहीं, बल्कि प्रेम से जीतना चाहिए। सदैव दूसरों की भलाई करनी चाहिए। दया, स्नेह एवं करुणा को अपनाना चाहिए। मनुष्य को धैर्यवान बनना चाहिए। उसे किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। मनुष्य (UPBoardSolutions.com) को सन्तोष से काम लेना चाहिए तथा स्वास्थ्य को बनाए रखना चाहिए। जाति-पाँति का भेदभाव दूर करना चाहिए।

प्रश्न 5.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (पूर्ति करके) –

(क) सिद्धार्थ की पत्नी का नाम यशोधरा था।
(ख) सिद्धार्थ ने सेवक से कहवा दिया कि अब मैं सत्य की खोज करके ही लौगा।
(ग) उन्हें छह वर्ष की कठिन साधना के बाद ज्ञान प्राप्त हुआ।

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UP Board Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
वैकल्पिक प्रश्न-
(i) रबड़ का संबंध किस प्रकार की वनस्पति से है?
(क) टुंड्रा
(ख) हिमालय
(ग) मैंग्रोव
(घ) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन

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(ii) सिनकोना के वृक्ष कितनी वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं?
(क) 100 सेमी
(ख) 70 सेमी
(ग) 50 सेमी
(घ) 50 सेमी से कम वर्षा

(iii) सिमलीपाल जीवमण्डल निचय कौन से राज्य में स्थित है?
(क) पंजाब
(ख) दिल्ली
(ग) ओडिशा
(घ) पश्चिम बंगाल

(iv) भारत में कौन-से जीवमण्डल निचय विश्व के जीवमण्डल निचयों के लिए गए हैं?
(क) मानस
(ख) मन्नार की खाड़ी
(ग) नीलगिरि
(घ) नंदादेवी
उत्तर:
(i) (घ) उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन
(ii) (क) 100 सेमी
(iii) (ग) ओडिशा
(iv)(घ) नंदा देवी।

प्रश्न 2.
संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्न-

  1. पारिस्थितिक तंत्र किसे कहते हैं?
  2. भारत में पादपों तथा जीवों का वितरण किन तत्त्वों द्वारा निर्धारित होता है?
  3. जीवमण्डल निचय से क्या अभिप्राय है? कोई दो उदाहरण दो।
  4. कोई दो वन्य प्राणियों के नाम बताइए जो कि उष्ण कटिबंधीय वर्षा और पर्वतीय वनस्पति में मिलते हैं।

उत्तर:

  1. किसी भी क्षेत्र के पादप तथा प्राणी आपस में तथा अपने भौतिक पर्यावरण से आपस में संबंधित होते हैं। और एक पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं। इस प्रकार पारिस्थितिक तंत्र भौतिक पर्यावरण एवं इसमें निवास करने वाले जीव-जन्तुओं की पारस्परिक निर्भरता का तंत्र है। मनुष्य भी इस पारिस्थितिक तंत्र का अभिन्न अंग है। मनुष्य वनस्पति एवं वन्य जीवों का उपयोग करता है।
  2. भारत में पादपों एवं जीवों के वितरण को निर्धारित करने वाले तत्त्व इस प्रकार हैं-जलवायु, मृदा, उच्चावच, अपवाह, तापमान, सूर्य का प्रकाश, वर्षण (UPBoardSolutions.com) आदि।
  3. जीवमण्डल निचय-जैवविविधता को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने के लिए स्थापित क्षेत्रों को जीवमण्डल निचय कहते है। एक संरक्षित जीवमण्डल जिसका संरक्षण इस प्रकार किया जाता है कि न केवल इसकी जैविक भिन्नता संरक्षित की जाती है अपितु इसके संसाधनों का प्रयोग भी स्थानीय समुदायों के लाभ हेतु टिकाऊ तरीके से किया जाता है। उदाहरण, नीलगिरी, सुंदरबन।
    1. उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन-लंगूर, बंदर, हाथी।।
    2. पर्वतीय वनस्पति-घने बालों वाली भेड़, लाल पांडा, आइवेक्स।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित में अंतर कीजिए-
(i) वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत।
(ii) सदाबहार और पर्णपाती वन।।
उत्तर:
(i) वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत में अंतर-

प्राणी जगत

वनस्पति जगत

1. भोजन की आदत के आधार पर प्राणियों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-1. शाकाहारी जीव,2. मांसाहारी जीव। 1. पौधों को दो वर्गों-फूल वाले पौधे तथा बिना फूल वाले पौधे के रूप में बाँटा जाता है।
2. कुछ वन्यप्राणी विलुप्त होने की स्थिति में हैं, उनके संरक्षण के लिए विशेष प्रयत्न किए जा रहे हैं। 2. हमारे देश में विविध प्रकार की वनस्पति मिलती है। यहाँ  उष्ण कटिबंधीय वनस्पति से लेकर ध्रुवीय वनस्पति तक के दर्शन होते हैं।
3. सूक्ष्म जीवाणु से लेकर विशालकाय ह्वेल तथा हाथी जीवों की श्रेणी प्राणी जगत कहलाती है। 3. किसी प्रदेश या क्षेत्र में स्वतः ही पैदा होने वाले हरित स्वरूप को वनस्पति जगत कहते हैं।
4. प्राणियों को तीन वर्गों में बाँटा गया है-(i) थल-चर, (ii) जल-चर, (iii) नभ-चर। 4. प्राकृतिक वनस्पति के आवरण में वन, झाड़ियों तथा घास भूमियों को शामिल किया जाता है।
5. हमारे देश के प्राणियों में भी विविधता पाई जाती है। यहाँ लगभग 89,000 जातियों के जीव-जन्तु पाए जाते हैं। 5. भारत में पौधों की 47,000 प्रकार की जातियाँ पाई जाती  हैं।
6. 2,500 जातियों की मछलियाँ तथा 2,000 जातियाँ पक्षियों की पाई जाती हैं।  6. पौधों की 5,000 जातियाँ तो ऐसी हैं जो केवल भारत में  पाई जाती हैं।

(ii) सदाबहार और पर्णपाती वन में अन्तर-

पर्णपाती वन

सदाबहार वन

 1. इन वनों में बहुत से पक्षी, छिपकली, सांप, कछुए आदि पाए जाते हैं। 1. इन वनों में बहुत से पक्षी, चमगादड़, बिच्छु एवं घोंघे आदि पाए जाते हैं।
2. ये वन भारत के पूर्वी भागों, उत्तर-पूर्वी राज्यों, हिमालय के पास की पहाड़ियों, झारखंड, पश्चिम ओडिशा, छत्तीसगढ़ तथा पूर्वी घाट के पूर्वी ढलानों, मध्य प्रदेश तथा बिहार में पाए जाते हैं। 2. ये वन पश्चिमी घाट के ढलानों, लक्षद्वीप, अंडमान-निकोबार, असम के ऊपरी भागों, तटीय तमिलनाडु, पश्चिमी बंगाल, ओडिशा एवं भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाए जाते हैं।
 3. इन वनों में पाए जाने वाले पेड़ों में सागोन, बाँस,साल, शीशम, चंदन, खैर, नीम आदि प्रमुख हैं। 3. इन वनों में प्रायः पाये जाने वाले वृक्षों में आबनूस, महोगनी, रोजवुड आदि हैं।
 4. ये उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 70 से 200 सेमी के बीच होती है।  4. ये उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 200 सेमी  या इससे अधिक होती है।
 5. इने वनों में पौधे अपने पत्ते शुष्क गर्मी के मौसम में 6 से 8 सप्ताह के लिए गिरा देते हैं। 5. इन वनों में पौधे अपने पत्ते वर्ष के अलग-अलग महीनों में  गिराते हैं जिससे ये पूरे वर्ष हरे-भरे नजर आते हैं।
6. इन वनों में प्रायः पाये जाने वाले पशुओं में शेर और बाघ हैं। 6. इन वनों में प्रायः पाये जाने वाले पशुओं में हाथी, बंदर, लैमूर, एक सींग वाले गैंडे और हिरण हैं।

प्रश्न 4.
भारत में विभिन्न प्रकार की पाई जाने वाली वनस्पति के नाम बताएँ और अधिक ऊँचाई पर पाई जाने वाली वनस्पति का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर:
भारत में पायी जाने वाली प्रमुख वनस्पतियाँ इस प्रकार हैं-

  1. उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन,
  2. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन,
  3. उष्ण कटिबन्धीय कैंटीले वन तथा झाड़ियाँ,
  4. पर्वतीय वन,
  5. मैंग्रोव वन।

इन वनों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

  1. पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान की कमी तथा ऊँचाई के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पति में भी अंतर दिखाई देता है। वनस्पति में जिस (UPBoardSolutions.com) प्रकार का अंतर हम उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों से टुंड्रा की ओर देखते हैं उसी प्रकार का अंतर पर्वतीय भागों में ऊँचाई के साथ-साथ देखने को मिलता है।
  2. 1000 मी से 2000 मी तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आई शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं। इनमें चौड़ी पत्ती वाले ओक तथा चेस्टनट जैसे वृक्षों की प्रधानता होती है।
  3. 1500 से 3000 मी की ऊँचाई के बीच शंकुधारी वृक्ष जैसे चीड़, देवदार, सिल्वर-फर, स्पूस, सीडर आदि पाए जाते हैं।
  4. ये वन प्रायः हिमालय की दक्षिणी ढलानों, दक्षिण और उत्तर-पूर्व भारत के अधिक ऊँचाई वाले भागों में पाए जाते हैं।
  5. अधिक ऊँचाई पर प्रायः शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदान पाए जाते हैं। प्रायः 3600 मी से अधिक ऊँचाई पर शीतोष्ण कटिबंधीय वनों तथा घास के मैदानों का स्थान अल्पाइन वनस्पति ले लेती है। सिल्वर-फर, जूनिपर, पाइन व बर्च इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं।

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प्रश्न 5.
भारत में बहुत संख्या में जीव और पादप प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं, उदाहरण सहित कारण दीजिए।
उत्तर:
भारत में बड़ी संख्या में जीव एवं पादप प्रजातियाँ संकटापन्न हैं। लगभग 1300 पादप प्रजातियाँ भारत में संकट में हैं जबकि 20 पादप प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं।
बहुत बड़ी संख्या में पादप और जीव प्रजातियों के संकटग्रस्त होने के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. कृषि, उद्योग एवं आवास हेतु वनों की तेजी से कटाई।
  2. विदेशी प्रजातियों का भारत में प्रवेश।
  3. व्यापारियों द्वारा अपने व्यवसाय के विकास के लिए जंगली जानवरों का बड़े पैमाने पर अवैध शिकार।
  4. रासायनिक और औद्योगिक अवशिष्ट पदार्थों तथा तेजाबी जमाव के कारण जीवों की मृत्य।

वास्तव में मानव द्वारा पर्यावरण से छेड़छाड़ तथा पेड़-पौधों एवं जीवों के अत्यधिक दोहन से पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ गया है। इसी कारण पेड़-पौधों तथा वन्य प्राणियों की कुछ प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा उत्पन्न हो गया है।

प्रश्न 6.
भारत वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत की धरोहर में धनी क्यों है?
उत्तर:
भारत में लगभग प्रकृति की सभी विशेषताएँ विद्यमान हैं जैसे-पर्वत, मैदान, मरुस्थल, पठार, सागरीय तट, सदानीरा नदियाँ, द्वीप एवं मीठे तथा खारे पानी की झीलें। ये सभी कारक भारत में वनस्पति जगत एवं प्राणी जगत की वृद्धि एवं विकास : के लिए अजैविक विविधता के लिए (UPBoardSolutions.com) अनुकूल हैं। विश्व की कुल जैवविविधता का 12 प्रतिशत भारत में पाया जाता है। भारत में लगभग 47,000 विभिन्न जातियों के पौधे पाए जाने के कारण यह देश विश्व में दसवें स्थान पर और एशिया के देशों में चौथे स्थान पर है। भारत में लगभग 15,000 फूलों के पौधे हैं जो कि विश्व में फूलों के पौधे का 6 प्रतिशत है। इस देश में बहुत से बिना फूलों के पौधे हैं जैसे फर्न, शैवाल (एलेगी) तथा कवक (फंजाई) भी पाए जाते हैं।

भारत में लगभग 89,000 जातियों के जानवर तथा ताजे और समुद्री पानी की विभिन्न प्रकार की मछलियाँ पाई जाती हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की मृदा, आर्द्रता एवं तापमान में अत्यधिक भिन्नता के साथ अलग-अलग प्रकार का वातावरण पाया जाता है। पूरे देश में वर्षा का (UPBoardSolutions.com) वितरण भी असमान है। वनस्पति जगत एवं प्राणी जगत की विभिन्न प्रजातियों को अलग-अलग प्रकार की वातावरण संबंधी परिस्थितियाँ एवं विभिन्न प्रकार की मृदा चाहिए होती है। इसलिए भारत वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत की धरोहर में धनी है।

मानचित्र कौशल

प्रश्न 1.
भारत के मानचित्र पर निम्नलिखित दिखाएँ और अंकित करें-

  1. उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन
  2. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन
  3. दो जीवमण्डल निचय भारत के उत्तरी, दक्षिणी, पूर्वी और पश्चिमी भागों में।

उत्तर:
(1) & (2)
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी
(3)
UP Board Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी
परियोजना कार्य

प्रश्न 1.

  1. अपने पड़ोस में पाए जाने वाले कुछ ओषधि पादप का पता लगाएँ।
  2. किन्हीं दस व्यवसायों के नाम ज्ञात करो जिन्हें जंगल और जंगली जानवरों से कच्चा माल प्राप्त होता है।
  3. वन्य प्राणियों का महत्त्व बताते हुए एक पद्यांश या गद्यांश लिखिए।
  4. वृक्षों का महत्त्व बताते हुए एक नुक्कड़ नाटक की रचना करो और उसका अपने गली-मुहल्ले में मंचन करो।
  5. अपने या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के जन्मदिन पर किसी भी पौधे को लगाइए और देखिए कि वह कैसे बड़ा होता है और किस मौसम में जल्दी बढ़ता है?

उत्तर:

  1. अर्जुन, तुलसी, मरबा, करी पत्ता, नीम, जामुन, कीकर आदि।
  2. लकड़ी व्यवसाय, फर्नीचर, कागज, लाख, गोंद, भवन निर्माण, जूते, चमड़े का सामान, सींग, खास, ब्रुस आदि।
  3. यह कार्य स्वयं करें।
  4. विद्यार्थी स्वयं करें।
  5. विद्यार्थी स्वयं करें।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के उत्तरी पश्चिमी भाग में कैंटीले वन पाए जाने के दो कारण बताइए।
उत्तर:
भारत के उत्तरी पश्चिमी भाग में कॅटीले वन पाए जाने के कारण इस प्रकार हैं-

  1. यह प्रदेश मरुस्थलीय है और यहाँ की मिट्टी रेतीली है।
  2. इस प्रदेश में वर्षा बहुत कम होती है।

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प्रश्न 2.
कॅटीले वन में कौन-कौन से वृक्ष और जानवर पाए जाते हैं?
उत्तर:
कॅटीले वनों में खजूर, अकासिया, नागफनी, यूफोरबिया, कीकर, खैर, बबूल आदि वृक्ष पाए जाते हैं। इन वनों में प्रायः चूहे, लोमड़ी, खरगोश, शेर, सिंह, भेड़िए, घोड़े, जंगली गधा तथा ऊँट पाए जाते हैं।

प्रश्न 3.
मैंग्रोव वनों में पाए जाने वाले वृक्ष और जानवरों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मैंग्रोव वन में गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा में सुंदरी वृक्ष पाए जाते हैं जिनसे मजबूत लकड़ी प्राप्त होती है। नारियल, ताड़, क्योड़ा, ऐंगार के वृक्ष भी इन भागों में पाए जाते हैं। (UPBoardSolutions.com) इस क्षेत्र का रॉयल बंगाल टाइगर प्रसिद्ध जानवर है। इसके अतिरिक्त कछुए, मगरमच्छ, घड़ियाल एवं कई प्रकार के साँप भी इन जंगलों में मिलते हैं।

प्रश्न 4.
उष्ण कटिबंधीय वन क्यों पूरे भारत वर्ष में पाए जाते हैं?
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन पूरे भारत में इसलिए पाए जाते हैं क्योंकि उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन, मानसूनी वन के विशिष्ट वन हैं और भारत में भी मानसूनी जलवायु पायी जाती है।

प्रश्न 5.
भारत में शेर व बाघ कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
भारतीय शेरों को प्राकृतिक वास स्थल गुजरात में गिर जंगल है। बाघ मध्य प्रदेश तथा झारखंड के वनों, पश्चिम बंगाल के सुंदरबन तथा हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

प्रश्न 6.
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों की दो विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. ये सदैव हरे-भरे रहते हैं। ये किसी ऋतु विशेष में अपनी पत्तियाँ नहीं गिराते हैं।
  2. ये वन 200 सेमी से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में भली-भाँति पनपते हैं।

प्रश्न 7.
स्पष्ट कीजिए कि भारत एक जैवविविधता वाला देश है?
उत्तर:
भारत विश्व के मुख्य 12 जैवविविधता वाले देशों में से एक है। लगभग 47000 विभिन्न जातियों के पौधे पाए जाने के कारण यह देश विश्व में दसवें स्थान पर और एशिया के देशों में चौथे स्थान पर है। भारत में लगभग 15000 फूलों के पौधे हैं जोकि विश्व में फूलों के पौधों का 6 (UPBoardSolutions.com) प्रतिशत है। भारत में लगभग 89000 जातियों के जानवर तथा विभिन्न प्रकार की मछलियाँ, ताजे तथा समुद्री पानी की पाई जाती हैं।

प्रश्न 8.
भारत में पाए जाने वाले कँटीले वनों की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भारत में पाए जाने वाले कॅटीले वनों की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. इन वृक्षों के वृक्ष छितरे होते हैं।
  2. इन वृक्षों की जड़े लम्बी होती हैं जो अरीय आकृति में फैली होती हैं।

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प्रश्न 9.
देशज और विदेशज पौधों में अंतर बताइए।
उत्तर:
वह वनस्पति जो कि मूलरूप से भारतीय है उसे देशज’ पौधे कहते हैं लेकिन जो पौधे भारत के बाहर से आए हैं उन्हें विदेशज पौधे कहते हैं।

प्रश्न 10.
प्रवासी पक्षियों के बारे में बताइए।
उत्तर:
भारत के कुछ दलदली भाग प्रवासी पक्षियों के लिए प्रसिद्ध हैं। शीत ऋतु में साइबेरियन सारस बहुत संख्या में आते हैं। इन पक्षियों का एक मनपसंद स्थान कच्छ का रन है। जिस स्थान पर मरुभूमि समुद्र से मिलती है वहाँ लाल सुंदर कलंगी वाली फ्लैमिगोए हजारों की संख्या में आती हैं और खारे (UPBoardSolutions.com) कीचड़ के ढेर बनाकर उनमें घोंसले बनाती हैं और बच्चों को पालती हैं। देश में अनेकों दर्शनीय दृश्यों में से यह भी एक है।

प्रश्न 11.
ज्वारीय वनों की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
ज्वारीय वनों की दो विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. सुंदरी नामक वृक्ष इस वन का प्रमुख वृक्ष है।
  2. ज्वारीय वन खारे और ताजे पानी दोनों में पनप सकते हैं।

प्रश्न 12.
भारत के दो संकटापन्न वन्यजीवों के नाम बताइए तथा जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित करने के दो उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
बाघ एवं गैंडा भारत के दो संकटापन्न जीव हैं।
जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित करने के दो उद्देश्य हैं-

  1. पेड़-पौधों की प्रजातियों की रक्षा करना।
  2. वन्य प्राणियों की प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाना।

प्रश्न 13.
पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलित होने को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
मनुष्यों द्वारा पादपों और जीवों के अत्यधिक उपयोग के कारण पारिस्थितिक तन्त्र असंतुलित हो गया है। उदाहरणस्वरूप लगभग 1300 पादप प्रजातियाँ संकट में हैं तथा 20 प्रजातियाँ विनष्ट हो चुकी हैं। काफी वन्य जीवन प्रजातियाँ भी संकट में हैं और कुछ विनष्ट हो चुकी हैं।

प्रश्न 14.
पारिस्थितिकी तंत्र के असन्तुलन का प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्र के असंतुलन का मुख्य कारण लालची व्यापारियों का अपने व्यवसाय के लिए अत्यधिक शिकार करना है। रासायनिक और औद्योगिक अवशिष्ट तथा तेजाबी जमाव के कारण प्रदूषण, विदेशी प्रजातियों का प्रवेश, कृषि तथा निवास के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई पारिस्थितिक तंत्र के असंतुलन के कारण हैं।

प्रश्न 15.
मकाक किस वन्यप्राणी की प्रजाति है? इसकी विशेषता भी बताइए।
उत्तर:
मकाक बंदर की एक प्रजाति है। इसके मुँह पर चारों ओर बाल उगे होते हैं जो एक आभामण्डल जैसा दिखायी देता है।

प्रश्न 16.
पारिस्थितिकी तंत्र को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी पर एक जीव दूसरे जीव से अंतर्संबंधित है, एक के बिना दूसरे की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसे पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं।

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प्रश्न 17.
प्राकृतिक वनस्पति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति का अर्थ है वनस्पति का वह भाग जो कि मनुष्य की सहायता के बिना अपने आप पैदा होता है और लंबे समय तक उस पर मानवी प्रभाव नहीं पड़ता।

प्रश्न 18.
जीवमण्डल निचय से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एक संरक्षित जीवमण्डल जिसका संरक्षण इस प्रकार किया जाता है कि न केवल उसकी जैविक भिन्नता संरक्षित की जाती है अपितु इसके संसाधनों का प्रयोग भी स्थानीय समुदायों के लाभ हेतु टिकाऊ तरीके से किया जाता है।

प्रश्न 19.
राष्ट्रीय उद्यान किसे कहते हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय उद्यान से आशय उन सुरक्षित स्थलों से है जहाँ पर जानवरों को उनकी नस्ले सुरक्षित रखने के लिए रखा जाता है। कार्बेट नेशनल पार्क और काजीरंगा नेशनल पार्क इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न 20.
वन्य प्राणियों का संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:

  1. भारत में विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तु पाए जाते हैं। उनकी देखभाल न होने से जीवों की कई जातियाँ या तो लुप्त हो गयीं या विलुप्ति के कगार पर हैं। इन जीवों के महत्त्व को देखते हुए अब इनका संरक्षण आवश्यक हो गया है।
  2. पारिस्थितिकी संतुलन में भी वन्य प्राणियों का अत्यधिक महत्त्व है। अतः इनका संरक्षण आवश्यक है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वनों के क्षेत्र को बढ़ाना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
भारत में वनों को बढ़ाना निम्न कारणों से आवश्यक है-

  1. वन वन्य प्राणियों को संरक्षण प्रदान करते हैं।
  2. वन अकाल की स्थिति से देश को बचाते हैं।
  3. वनों से मरुस्थल का विस्तार होने पर प्रतिबंध लगता है तथा मृदा अपरदन रुकता है।
  4. वन वायुमंडल से नमी आकर्षित कर वर्षा कराने में सहायक हैं।
  5. भारत में वनों का कुल क्षेत्र (22.5%) है जो वांछनीय सीमा (33.3%) से बहुत कम है।
  6. पारितंत्र को बनाए रखने के लिए तथा कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा वायुमंडल में वांछनीय मात्रा तक रखने के लिए वनों का विस्तार अधिक क्षेत्र पर चाहिए।

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प्रश्न 2.
उन प्रमुख वनस्पति प्रदेशों के नाम लिखिए जिनसे आबनूस और सुंदरी वृक्ष संबंधित हैं। उन दो राज्यों के नाम लिखिए जहाँ हाथी पाए जाते हैं। प्राचीन जलोढ़क (बांगर) की दो विशेषताएँ दीजिए।
उत्तर:
दो वनस्पतियों के नाम-

  1. आबनूस-उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन।
  2. सुंदरी – ज्वारीय वन।

दो राज्यों के नाम जहाँ हाथी पाये जाते हैं-

  1. पश्चिमी बंगाल तथा
  2. केरल

प्राचीन जलोढ़क (बांगर) की दो विशेषताएँ-

  1. प्राचीन जलोढ़क उस क्षेत्र में मिलती है जहाँ अब बाढ़ का पानी नहीं पहुँचता।
  2. यह कम उपजाऊ होती है।

प्रश्न 3.
उन प्रमुख वनस्पति प्रदेशों के नाम लिखिए जिनसे साल तथा रोजवुड वृक्ष संबंधित हैं। एक सींग वाले गैंडे कहाँ पाए जाते हैं? दो क्षेत्रों के नाम बताइए। नवीन जलोढ़क (खादर) की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • वृक्ष : वनस्पति के प्रकार
  • साल : उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन
  • रोजवुड : उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन।

एक सींग वाले गैंडे निम्नलिखित क्षेत्रों में पाए जाते हैं-

  1. काजीरंगा राष्ट्रीय पार्क,
  2. मानस राष्ट्रीय पार्क।

नवीन जलोढ़क की विशेषताएँ-

  1. नवीन जलोढ़क प्रतिवर्ष बाढ़ के समय प्राप्त होती है।
  2. यह बांगर की अपेक्षा अधिक उपजाऊ होती है।
  3. इसमें सिंचाई के बिना भी साक् सब्जियों की खेती की जाती है।

प्रश्न 4.
पारितंत्र के संरक्षण के तीन उपाय लिखिए।
उत्तर:
पारितंत्र के संरक्षण के तीन उपाय इस प्रकार हैं-

  1. हर प्रकार के प्रदूषण जैसे-वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण को रोका जाए। उपर्युक्त उपायों में सरकार के साथ मानवीय प्रयासों का विशेष महत्त्व है। उनको अपने पारितंत्र के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण | भूमिका निभानी है।
  2. जंगली जीवों तथा वन-संपदा के शिकार तथा काटने पर प्रतिबंध लगाया जाए।
  3. मृदा अपरदन पर रोक लगाई जाए।

प्रश्न 5.
ज्वारीय वनों की तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. ज्वारीय क्षेत्र में मिलने के कारण इन वनों को ज्वारीय वन कहा जाता है। ज्वारीय वन सुंदरी नामक वृक्षों के लिए प्रसिद्ध हैं। अतः इन वनों को सुंदरी वन भी कहा जाता है। सुंदरी, ताड़, गरान (मैंग्रोव) आदि इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं। ऐसे वन गंगा, ब्रह्मपुत्र, कावेरी, कृष्णा, गोदावरी और महानदी के डेल्टा प्रदेशों में मिलते हैं। व्यापारिक दृष्टि से इन वनों का विशेष महत्त्व है।
  2. ये वन तट के सहारे नदियों के ज्वारीय क्षेत्र में पाए जाते हैं।
  3. ज्वारीय क्षेत्र में मीठे व ताजे जल का मिलन होता है। अतः इन वनों के वृक्षों में, ऐसे जल में पनपने की क्षमता होती है।

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प्रश्न 6.
गंगा-ब्रह्मपुत्र के डेल्टा में ज्वारीय वन क्यों पाए जाते हैं? इन वनों की दो प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
गंगा और ब्रह्मपुत्र के डेल्टा प्रदेश में उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनों की भाँति ज्वारीय वन पाए जाते हैं।
ज्वारीय वनों की विशेषताएँ-

  1. ज्वारीय क्षेत्र में ताजे पानी एवं खारे पानी की सुलभता निरंतर बनी रहती है।
  2. डेल्टाई क्षेत्र में मृदा की उर्वरता वनों को और अधिक सघन बनाने और समृद्ध करने में सहायक होती है। इन वृक्षों की नीचे की डालियाँ भूमि में पहुँचकर जड़ों का रूप धारण कर लेती हैं। इससे सघनता और बाढ़ जाती है।

प्रश्न 7.
सदाबहार वन पश्चिमी घाटों के पश्चिमी ढालों पर क्यों पाए जाते हैं? दो कारण बताइए।
उत्तर:
भारत में सदाबहार वन पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल पर पाए जाते हैं।
क्योंकि-

  1. यहाँ 200 सेमी से अधिक वार्षिक वर्षा होती है।
  2. यहाँ वर्षभर उच्च तापमान पाया जाता है। वर्षा की अधिकता एवं उच्च तापमान के कारण पश्चिमी घाट में पश्चिमी ढालों पर सदाबहार वन पाए जाते हैं।

प्रश्न 8.
भारत के उत्तर पश्चिमी भाग में कैंटीले वन क्यों पाए जाते हैं? दो कारण बताइए।
उत्तर:
भारत में कॅटीले वन उत्तर-पश्चिमी भागों में ही सीमित हैं।
यहाँ इनके पाए जाने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

  1. जहाँ 75 सेमी से कम वर्षा होती है, साथ ही वार्षिक और दैनिक तापांतर अधिक पाया जाता है।
  2. ये वन कॅटीले इसलिए हैं, जिससे ये पशुओं से तथा मनुष्यों से अपनी रक्षा कर सकें। इन वनों के वृक्षों की किस्में सीमित होती हैं। कीकर, बबूल, खैर और खजूर इन वनों के उपयोगी वृक्ष हैं। इनकी जड़े लंबी और अरीय आकृति में फैली होती हैं।

प्रश्न 9.
उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन शुष्क ऋतु में अपनी पत्तियाँ क्यों गिरा देते हैं?
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन सामान्यतः 75 सेमी से 200 सेमी वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। वर्षा भी 4 महीनों तक ही सीमित रहती है। शुष्क ऋतु के प्रारंभ होते ही पर्णपाती वनों में वृक्ष अपनी पत्तियाँ गिराना प्रारंभ कर देते हैं, जिससे लंबी और शुष्क ऋतु को सहन करने की क्षमता उनमें रहे और वे अपने को जीवित रख सकें। ये शुष्क, ऋतु में 6 से लेकर 8 सप्ताह तक अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं। प्रत्येक जाति के वृक्षों के पतझड़ का समय अलग-अलग होता है।

प्रश्न 10.
वन्य प्राणियों की लुप्त होने वाली जातियों के संरक्षण के लिए क्या-क्या उपाय किए जा रहे हैं? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
भारत में वन्य प्राणियों की लुप्त होने वाली जातियों के संरक्षण हेतु अपनाए गए उपाय इस प्रकार हैं-

  1. विभिन्न वन्य प्राणियों की संख्या की गणना समय-समय पर की जाती है जिससे उनके घटने या बढ़ने की जानकारी प्राप्त की जा सके तथा उपचारिक कदम उठाए जा सकें।
  2. लुप्त होने वाली जातियों का पता लगाकर उनके संरक्षण के लिए विशेष आंदोलन चलाए गए हैं जैसे प्रोजेक्ट टाइगर, प्रोजेक्ट रिनौ, प्रोजेक्ट (UPBoardSolutions.com) बस्टारड आदि।
  3. जीव आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना की जा रही है, जिससे वन्य प्राणियों को सुरक्षित अगली पीढ़ी को सौंपा जा सके।

प्रश्न 11.
पश्चिमी राजस्थान में मिट्टी और प्राकृतिक वनस्पति के संरक्षण के दो उपाय सुझाइए।
उत्तर:
पश्चिमी राजस्थान वर्षा के अभाव में पूर्णतः मरुस्थल है। मरुस्थलों में पवन मृदा को स्थानांतरित करती रहती है।

  1. मिट्टी को पवन के प्रहार से बचाने का एकमात्र उपाय है कि इन क्षेत्रों में पानी पहुँचाया जाए। पानी के पहुँचने से वनस्पति एवं कृषि फसलों का साम्राज्य बन (UPBoardSolutions.com) जाएगा और पवन का प्रहार प्रभावहीन हो जाएगा।
  2. प्राकृतिक वनस्पति का यहाँ लगभग अभाव उसे बनाए रखने के लिए पशुओं से उसे बचाकर रखने की आवश्यकता

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प्रश्न 12.
वनों का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नवीनीकरण, संसाधन वन वातावरण की प्राकृतिक गुणवत्ता को बनाए रखने और उसमें वृद्धि करने में वन महत्त्वपूर्ण वन भूमिका निभाते हैं।
निम्नलिखित कारणों से वन महत्त्वपूर्ण हैं-

  1. ये पवन तथा तापमान को नियंत्रित करते हैं और वर्षा लाने में भी सहायता करते हैं।
  2. इनसे मृदा को जीवाश्म मिलता है और वन्य प्राणियों को आश्रय।
  3. ये विभिन्न उपभोक्ता सामग्री जैसे जलावन, ओषधि तथा जड़ी बूटियाँ उपलब्ध कराते हैं।
  4. ये कई समुदायों को जीविका प्रदान करते हैं।
  5. ये हमारे वातावरण की वायु प्रदूषण से रक्षा करने में सहायता करते हैं।
  6. वन स्थानीय वातावरण को बदल देते हैं।
  7. ये मृदा अपरदन को नियंत्रित करते हैं।
  8. ये नदियों के प्रवाह को रोकते हैं।
  9. ये बहुत सारे उद्योगों के आधार हैं।
  10. ये मनुष्य को जड़ी-बूटी व ओषधियाँ उपलब्ध कराते हैं तथा उन्हें स्वयं को कई बीमारियों से सुरक्षित रखने में सहायता करते हैं।

प्रश्न 13.
घनस्पति एवं प्राणी जगत की सुरक्षा क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से वनस्पति एवं प्राणी जगत की सुरक्षा करना आवश्यक है-

  1. पौधे हमें भोजन, आश्रय तथा अन्य कई लाभदायक चीजें प्रदान करते हैं। औषधीय पादप जैसे सर्पगंधा व जामुन मानव जाति के लिए अत्यधिक महत्त्व के हैं।
  2. प्रत्येक प्रजाति पारिस्थितिक तंत्र में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अतः उनका संरक्षण अति आवश्यक है।
  3. पालतू पशु हमें दूध उपलब्ध कराते हैं। वे हमें मांस, अंडे, मछली आदि भी उपलब्ध कराते हैं तथा परिवहन में सहायता करते हैं।
  4. कीट पतंगे हमारी फसलों तथा फलदार पौधों के परागण में सहायता करते हैं तथा हानिकारक कीटों पर जैविक नियंत्रण करने में सहायक हैं।

प्रश्न 14.
पारिस्थितिकी तंत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए। पारिस्थितिकी तंत्र के अंगों तथा उनकी परस्पर निर्भरता के बारे में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
किसी क्षेत्र विशेष के समस्त पेड़-पौधे एवं जीव-जन्तु उनके भौतिक वातावरण में परस्पर निर्भर तथा एक-दूसरे से संबंधित होते हैं। इस प्रकार एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं। इस प्रकार पारिस्थितिकी तंत्र पारस्परिक निर्भरता से निर्मित भौतिक वातावरण एवं उसमें रहने वाले जीवों का तंत्र है।
पौधे, प्राणी, मनुष्य तथा वातावरण पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न अंग हैं।

पौधे पृथ्वी का प्रमुख प्राकृतिक अंग हैं जो सूर्य के प्रकाश से अपना भोजन बना सकते हैं। पौधे किसी भी देश के प्राकृतिक संसाधनों की रीढ़ हैं। किसी क्षेत्र के पादपों की प्रकृति काफी हद तक उस क्षेत्र के प्राणी जीवन को प्रभावित करती है। जब वनस्पति बदल जाती है तो प्राणी जीवन भी (UPBoardSolutions.com) बदल जाता है। मानव भी पारिस्थितिक तंत्र का एक अभिन्न अंग है। वे वनस्पति तथा वन्य जीवन का उपभोग करते हैं। किसी भी क्षेत्र के पादप तथा प्राणी आपस में तथा अपने भौतिक पर्यावरण से अंतर्संबंधित होते हैं।

दीर्घ उतरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में प्रयुक्त होने वाले कुछ औषधीय पादपों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए। ये औषधीय पादप किन रोगों का उपचार करते हैं?
उत्तर:
भारत में प्रयोग में लाए जाने वाले औषधीय पादपों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

  1. कचनार : फोड़ा (अल्सर) व दमा रोगों के लिए प्रयोग होता है। इस पौधे की जड़ और कली पाचन शक्ति में सहायता करती है।
  2. अर्जुन : ताजे पत्तों को निकाला हुआ रस कान के दर्द के इलाज में सहायता करता है। यह रक्तचाप की नियमितता के लिए भी लाभदायक है।
  3. बबूल : इसके पत्ते आँख की फुसी के लिए लाभदायक हैं। इससे प्राप्त गोंद का प्रयोग शारीरिक शक्ति की वृद्धि के लिए होता है।
  4. नीम : जैव और जीवाणु प्रतिरोधक है।
  5. तुलसी पादप : जुकाम और खाँसी की दवा में इसका प्रयोग होता है।
  6. सर्पगंधा : यह रक्तचाप के निदान के लिए प्रयोग होता है।
  7. जामुन : पके हुए फल से सिरका बनाया जाता है जो कि वायुसारी और मूत्रवर्धक है और इसमें पाचन शक्ति के भी गुण हैं। बीज का बनाया हुआ पाउडर मधुमेह रोग में सहायता करता है।

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प्रश्न 2.
भारत में वन्य जीवन पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
भारत प्राणी संपत्ति में एक सम्पन्न देश है। भारत में उच्चावच, वर्षण तथा तापमान आदि में भिन्नता के कारण जैव एवं वानस्पतिक विविधता पायी जाती है। भारत में जीवों की 89000 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ 1200 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह कुल विश्व का 13 प्रतिशत है। यहाँ मछलियों की 2500 प्रजातियाँ हैं जो विश्व का लगभग 12 प्रतिशत है। भारत में विश्व के 5 से 8 प्रतिशत तक उभयचरी, सरीसृप तथा स्तनधारी जानवर भी पाए जाते हैं। स्तनधारी जानवरों में हाथी सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। ये असोम, कर्नाटक और केरल के उष्ण तथा आर्द्र वनों में पाए जाते हैं। एक सींग वाले गैंडे अन्य जानवर है जो पश्चिमी बंगाल तथा असोम के दलदली क्षेत्रों में रहते हैं। कच्छ के रन तथा थार मरुस्थल में क्रमशः जंगली गधे तथा ऊँट रहते हैं। भारतीय भैंसा, नील गाय, चौसिंघा, गैजल तथा विभिन्न प्रजातियों वाले हिरण आदि कुछ अन्य जानवर हैं जो भारत में पाए जाते हैं।

यहाँ बन्दरों, बाघों एवं शेरों की भी अनेक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। भारतीय बाघों का प्राकृतिक वास स्थल गुजरात में गिर जंगल है। बाघ मध्य प्रदेश तथा झारखंड के वनों, पश्चिमी बंगाल के सुंदरवन तथा हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। लद्दाख की बर्फीली ऊँचाइयों में याक पाए जाते हैं जो गुच्छेदार सींगों वाला बैल जैसा जीव है,जिसका भार लगभग एक टन होता है। तिब्बतीय बारहसिंघा, भारल (नीली भेड़), जंगली भेड़ (UPBoardSolutions.com) तथा कियांग (तिब्बती जंगली गधे) भी यहाँ पाए जाते हैं। कहीं-कहीं लाल पांडा भी कुछ भागों में मिलते हैं। नदियों, झीलों तथा समुद्री क्षेत्रों में कछुए, मगरमच्छ और घड़ियाल पाए जाते हैं। घड़ियाल, मगरमच्छ की प्रजाति का एक ऐसा प्रतिनिधि है जो विश्व में केवल भारत में पाया जाता है। नदियों, झीलों तथा समुद्री क्षेत्रों में कछुए, मगरमच्छ और घड़ियाल पाए जाते हैं। मोर, बत्तख, तोता, सारस, पैराकीट आदि,अन्य जीव हैं जो भारत के वनों तथा आई क्षेत्रों में रहते हैं।

प्रश्न 3.
अल्पाइन एवं मैंग्रोव वनों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
अल्पाइन वन – ये वन हिमालच प्रदेश में 3600 मीटर से अधिक की ऊँचाई पर पाए जाते हैं। अल्पाइन वनों में कम लम्बाई वाले वृक्ष एवं झाड़ियाँ उगती हैं। बर्च इन वनों का मुख्य वृक्ष है। उसके अलावा कहीं-कहीं पर सिल्वर-फर, जूनिपर, देवदार, पाईन आदि के वृक्ष पाए जाते हैं। हिमरेखा के समीप टुण्ड्रा तुल्य वनस्पति पाई जाती है। यहाँ झाड़ियाँ तथा काई उत्पन्न होती है।

मैंग्रोव वन – ये वन तटीय प्रदेशों में नदियों के डेल्टाओं में पाए जाते हैं, इसलिए इनको डेल्टा वन भी कहते हैं। इन वनों में सुंदरी वृक्ष की प्रधानता है। अतः उन्हें सुंदरी वन भी कहते हैं। सबसे अधिक मैंग्रोव सुंदरवन डेल्टा में पाए जाते हैं।

प्रश्न 4.
ऊँचाई के अनुसार पर्वतीय वनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत पर पाए जाने वाले वनों को पर्वतीय वन कहते हैं। इस क्षेत्र की वनस्पति में ऊँचाई के अनुसार अंतर पाया जाता है।
इस क्षेत्र को ऊँचाई के अनुसार निम्न वानस्पतिक क्रमों में बाँटा गया है-

  1. शंकुधारी वन – 1,500 से 3,000 मीटर की ऊँचाई तक शंकुधारी (कोणधारी) वन पाए जाते हैं। इनकी पत्तियाँ नुकीली होती हैं। इन वनों के मुख्य वृक्ष देवदार, सीडर, स्थूस तथा सिल्वर-फर हैं। इन शंकुल वृक्षों के साथ अल्पाइन चरागाह 2,250 से 2,750 मीटर तक की ऊँचाई के मध्य पाए जाते हैं। इन चरागाहों का उपयोग ऋतु-प्रवास चराई के लिए किया जाता है। प्रमुख पशुचारक जातियाँ गुंजर तथा बकरवाल हैं।
  2. उपोष्ण कटिबंधीय पर्वतीय वनस्पति – यह वनस्पति 1,000-2,000 मीटर की ऊँचाई तक उत्तरी-पूर्वी हिमालय एवं पूर्वी हिमालय पर पाई जाती है। इस भाग में वर्षा अधिक होती है। अतः इन वनों में सदाहरित वृक्ष पाए जाते हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के ओक, चेस्टनट और चीड़ (UPBoardSolutions.com) के वृक्ष पाए जाते हैं। ये सदापर्णी वन हैं।
  3. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन – ये वन उत्तरी-पश्चिमी हिमालय पर 1,000 मी की ऊँचाई तक पाए जाते हैं। यहाँ वर्षा की मात्रा कम होती है। इस कारण यह वृक्ष शुष्क मौसम में अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं। इनका मुख्य वृक्ष साखू है।

प्रश्न 5.
वनस्पति जगत एवं प्राणी जगत में भिन्नता के लिए उत्तरदायी कारकों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
उत्तर:
तापमान, आर्द्रता, भूमि-मृदा एवं वर्षण भारत में वानस्पतिक एवं वन्य-प्राणियों में विविधता हेतु उत्तरदायी प्रमुख कारक हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है-
(i) तापमान – हवा में नमी के साथ तापमान, वर्षण तथा मृदा वनस्पति के प्रकार को निर्धारित करते हैं। हिमालय की ढलानों तथा प्रायद्वीपीय पहाड़ियों पर उपोष्ण कटिबंधीय तथा अल्पाइन वनस्पति पाई जाती है।
(ii) सूर्य का प्रकाश – किसी भी स्थान पर सूर्य के प्रकाश का समय उस स्थान के अक्षांश, समुद्र तल से ऊँचाई। एवं ऋतु पर निर्भर करता है। प्रकाश अधिक समय तक मिलने के कारण वृक्ष गर्मी की ऋतु में जल्दी बढ़ते हैं।लंबे समय तक सूर्य का प्रकाश पाने वाले क्षेत्रों में गहन वनस्पति पाई जाती है।

वर्षण – भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून तथा लौटती हुई उत्तर-पूर्वी मानसून द्वारा वर्षा होती है। भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में कम वर्षा वाले क्षेत्रों की अपेक्षा कम गहन वनस्पति पाई जाती है। भूमि-भूमि प्राकृतिक वनस्पति को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रभावित करती है। यह वनस्पति के प्रकार को प्रभावित करती है। उपजाऊ भूमि को कृषि के लिए प्रयोग किया जाता है जबकि वन चरागाहों एवं विभिन्न वन्य प्राणियों को आश्रय प्रदान करते हैं।

विभिन्न प्रकार की मृदा, विभिन्न प्रकार की वनस्पति को उगने में सहायता प्रदान करती है। मरुस्थल की रेतीली जमीन कैक्टस एवं काँटेदार झाड़ियों को उगने में सहायता (UPBoardSolutions.com) प्रदान करती है जबकि गीली, दलदली, डेल्टाई मृदा मैंग्रोव तथा डेल्टाई वनस्पति के उगने में सहायक होती है। कम गहराई वाली पहाड़ी ढलानों की मृदा शंकुधारी वृक्षों के उगने में सहायक होती है।

प्रश्न 6.
हिमालय क्षेत्र की प्रमुख वानस्पतिक पेटियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिमालय क्षेत्र की प्रमुख वानस्पतिक पेटियाँ – ऊँचाई के आधार पर पर्वतीय क्षेत्रों के अनेक विभाग होते हैं। ऊँचाई के साथ-साथ तापमान में भी कमी आती जाती है। इन क्षेत्रों में वर्षा के वितरण में भी अन्तर पाया जाता है। पर्वतीय क्षेत्रों में उष्ण कटिबंधीय सदाहरित वनों से लेकर ध्रुवीय वनस्पति तक पायी जाती है।
हिमालय क्षेत्र की वनस्पति को प्रमुख रूप से चार भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) उष्ण कटिबन्धीय आई पर्णपाती वन – हिमालय की गिरिपाद शिवालिक श्रेणियाँ उष्ण कटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वनों से ढकी हैं। इन वनों का आर्थिक दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण वृक्ष साल है। बाँस भी यहाँ खूब होता है।

(2) उपोष्ण कटिबंधीय पर्वतीय वन – इस क्षेत्र से ऊपर उपोष्ण कटिबंधीय वन मिलते हैं। समुद्र तल से 1000 से 2000 मीटर तक की ऊँचाई वाले भागों में आई पर्वतीय वन पाए जाते हैं। ये वन सदाबहार की श्रेणी में आते हैं। इनमें विभिन्न प्रकार की ओक, चेस्टनट, सेब और चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं। ऐश और बीच यहाँ के अन्य वृक्ष हैं।

(3) शंकुधारी वन – समुद्र तल से 1600 से 3300 मीटर की ऊँचाई के बीच चीड़, सीडर, सिल्वर-फर और स्पूस के वृक्षों की प्रधानता है। ये शीतोष्ण कटिबंध के प्रसिद्ध शंकुधारी वन हैं। हिम वर्षा को सहन करने के कारण इन वृक्षों की पत्तियाँ नुकीली हैं, जो शंकु के समान दिखाई पड़ती हैं। अल्पाइन वन-ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ इन शंकुधारी वनों का स्थान अल्पाइन वन ले लेते हैं। ये हिमालय पर 3,300 से 3,600 मीटर की ऊँचाई तक पाए जाते हैं। इन वनों में छोटे कद के वृक्ष तथा झाड़ियाँ उगती हैं। इन वनों के प्रमुख वृक्ष सिल्वर-फर, चीड़, भुर्ज तथा हपुषा हैं।

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प्रश्न 7.
वनस्पति का अर्थ बताइए। भारतीय वनस्पति आज कितनी प्राकृतिक रह गयी है?
उत्तर:
एक दिए गए पर्यावरण की रूपरेखा में एक-दूसरे से परस्पर मिलकर रहने वाले पादप प्रजातियों के समुदाय को वनस्पति कहते हैं।
वर्तमान भारत में प्राकृतिक वनस्पति प्राकृतिक नहीं रह गयी है, जिसके निम्नलिखित कारण हैं-

  1. भारत के अधिकांश क्षेत्रों (हिमालय तथा थार मरुस्थल के आंतरिक भागों को छोड़कर) में मानवीय हस्तक्षेप के कारण प्राकृतिक वनस्पति या तो नष्ट कर दी गई है या उसे बदल दिया गया है।
  2. भारत में 40% पादप प्रजातियाँ विदेशों से लाकर उत्तर भारत तथा राजस्थान में थार मरुभूमि में लगाई गई हैं।
  3. अधिकांश प्राकृतिक वनस्पति को काटकर उसके स्थान पर कृषि तथा औद्योगिक इकाइयों को लगा दिया गया है। और यह वनस्पति बिल्कुल समाप्त हो गई है।

प्रश्न 8.
भारत में उच्चावच तथा वर्षा ने प्राकृतिक वनस्पति को किस तरह प्रभावित किया है?
उत्तर:
भारत में उच्चावच तथा वर्षा प्राकृतिक वनस्पति के वितरण को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करते हैं –

  1. उच्चावच तथा वर्षा का सीधा संबंध है। पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है। अतः इन क्षेत्रों में सदाबहार वनों का विस्तार पाया जाता है।
  2. जिन भागों में पठारी तथा मैदानी उच्चावच है वहाँ वर्षा सामान्य होती है और इन क्षेत्रों में पर्णपाती वनों का विस्तार मिलता है।
  3. मरुस्थली उच्चावच में वर्षा कम होती है। अतः यहाँ कॅटीले वन तथा झाड़ियों का विस्तार है।
  4. दलदली उच्चावचं तथा खारे और मीठे पानी के मिश्रण के क्षेत्र में सुंदरी वृक्ष उगते हैं।

प्रश्न 9.
भारत में उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वनों में पर्याप्त वर्षा तथा उच्च तापमान के कारण वृक्षों की ऊँचाई 60 मीटर से अधिक होती है। इन वृक्षों के ऊपरी भाग आपस में इतने मिले होते हैं कि सूर्य का प्रकाश ऊपर से नीचे की ओर कठिनाई से ही पहुँच पाता है। इन वृक्षों की जड़ों में बेलें उग आती हैं। ये बेलें पेड़ों पर चढ़ जाती हैं। इस तरह से ये पेड़ इतने सघन होते हैं कि उनमें से गुजरना अत्यन्त कठिन होता है। इन वनों में पतझड़ का एक निश्चित समय न होने से ये सदैव हरे भरे रहते हैं। ये सदाहरित वन 200 सेमी से अधिक वर्षा वाले भागों में पाए जाते हैं। भारत में ये वन पश्चिमी तटीय प्रदेश, पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल, उत्तर-पूर्वी पर्वतीय प्रदेश तथा अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप इत्यादि में पाए जाते हैं।

इन वनों के मुख्य वृक्ष रबड़, बाँस, ताड़, जामुन, महोगनी, आबनूस, रोजवुड, बैंत, नारियल, सिनकोना इत्यादि हैं। इन वृक्षों से मूल्यवान एवं उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। उपयोगी रबड़ के वृक्ष से रबड़, सिनकोना के वृक्ष की छाल से कुनैन और नारियल की लकड़ी से नाव और सजावट का सामान, (UPBoardSolutions.com) इसके फल से तेल तथा रेशे से रस्से, टाट, ब्रश, पायदान आदि बनाए जाते हैं। आर्थिक दृष्टि से इन वनों का महत्त्व बहुत कम है क्योंकि सघनता के कारण इनको काटना बहुत कठिन है तथा इनमें एक ही स्थान पर एक प्रकार के वृक्ष नहीं उगते हैं।

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प्रश्न 10.
भारतीय वनस्पति एवं जैव-विविधता संरक्षण पर संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
भारतीय वनस्पति-

  1. भारत में प्राकृतिक वनस्पति का आवरण साफ करके प्राप्त भूमि पर उद्योग तथा कृषि का विस्तार किया गया है।
  2. भारत में लगभग 49,000 पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इस दृष्टि से भारत का संसार में 10 वाँ स्थान तथा एशिया में चौथा स्थान है।
  3. 15,000 प्रजातियों के फूल वाले पौधे मिलते हैं। यह संसार का 6% है।
  4. बिना फूल वाले पौधों में फर्न, शैवाल तथा फंजाई हैं।
  5. उच्चावच, तापमान तथा वर्षा की विविधता के कारण यहाँ उष्ण कटिबंधीय सदाबहार (वर्षा) वनों से लेकर ध्रुवीय प्रदेश तक की वनस्पति पाई जाती है।
  6. भारत के हिमालय क्षेत्र तथा प्रायद्वीपीय पठार पर देशज वनस्पति का विस्तार है जबकि 40% वनस्पति बाहर से लाकर लगाई गई है। जैव-विविधता

संरक्षण-

  1. वन्य-प्राणियों की सुरक्षा तथा संरक्षण के उपाय किए जा रहे हैं –
    1. संकटापन्न बने जीवों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
    2. इनकी अब गणना की जाने लगी है।
    3. बाघ परियोजना को सफलता मिल चुकी है।
    4. असम में गैंडे के संरक्षण की एक विशेष योजना चलाई जा रही है। सिंहों की घटती संख्या चिंता का विषय बन गई है।
      अतः आरक्षित क्षेत्रों की संख्या और उनके क्षेत्रों के विस्तार पर बल दिया जा रहा है।
  2. वन्य-प्राणियों से हमने बहुत कुछ सीखा है। सभी प्राणी श्रमशील हैं। उनमें प्यार, लगाव, आक्रमण, सुरक्षा, सामंजस्य, साहस, समझदारी, चतुराई, क्रीड़ा, उत्सव आदि सहज भाव से पाया जाता है, जिनको मनुष्य ने उनसे सीखा और अपनाया है। अतः वन्य-जीवों का संरक्षण बहुत की आवश्यक है।
  3. जैव-विविधता प्रकृति की धरोहर है। यह प्राकृतिक धरोहर हमारी ही नहीं अपितु भावी पीढ़ियों की भी है। इस प्राकृतिक धरोहर को भावी पीढ़ियों तक (UPBoardSolutions.com) ज्यों-का-त्यों पहुँचाना प्रत्येक नागरिक का धर्म और कर्तव्य है।
  4. प्राकृतिक परिवर्तन तथा मनुष्य के हस्तक्षेप से अनेक जीव-जातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं और कई के निकट भविष्य में विलुप्त होने का भय बना हुआ है।

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