Class 10 Sanskrit Chapter 13 UP Board Solutions गुरुनानकदेवः Question Answer

UP Board Class 10 Sanskrit Chapter 13 Guru Nanak Deva Question Answer (गद्य – भारती)

कक्षा 10 संस्कृत पाठ 13 हिंदी अनुवाद गुरुनानकदेवः के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 13 गुरुनानकदेवः (गद्य – भारती)

परिचय

गुरु नानकदेव सभी धर्म-संस्थापकों में सबसे अधिक आधुनिक एवं व्यावहारिक सिद्ध होते हैं। इन्होंने लोगों की सेवा, उद्धार और समानता के लिए सिक्ख धर्म की स्थापना की। आज सिक्ख धर्म के अनुयायी सारे विश्व में फैले हुए हैं और अपने श्रम, ईमानदारी, लगन तथा साहस से सभी को चकित कर रहे हैं। इन्होंने धर्म-साधना हेतु गृह-त्याग के स्थान पर घर में रहकर ही धर्म-पालन का उपदेश दिया। इनके समय में हिन्दू धर्म में (UPBoardSolutions.com) जाति-प्रथा और छुआ-छूत का बोलबाला था। नानकदेव को ये दोनों ही प्रथाएँ मानवता के प्रति अपराध लगती थीं, अतः उन्होंने इन्हें दूर करने लिए लंगर’ नाम से एक साथ बैठकर भोजन करने की प्रथा का सूत्रपात्र किया। यह प्रथा आज भी जारी है, जो लोगों में एकता और समानता की भावना जाग्रत करती है।

प्रस्तुत पाठ में गुरु नानकदेव के जीवन-वृत्त के साथ-साथ मानव-सेवा के लिए किये गिये उनके कार्यों का भी उल्लेख किया गया है।

UP Board Solutions

पाठ-सारांश [2006,07,08,09, 12, 13, 14, 15]

जन्म एवं माता-पिता सिक्ख धर्म के आदि संस्थापक गुरु नानक का जन्म पंजाब के तलवण्डी नामक ग्राम में वैशाख शुक्ल तृतीया विक्रम संवत् 1526 में हुआ था। वर्तमान में यह स्थान ननकाना साहेब के नाम से प्रसिद्ध है और पाकिस्तान में है। इनकी माता का नाम तृप्तादेवी और पिता का नाम मेहता कल्याणदास (कालू मेहता) था।

संसार में अनासक्ति गुरु नानक अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र थे। इनका लालन-पालन बड़े लाड़-प्यार में हुआ था। ये बचपन से ही एकान्त में बैठकर कुछ ध्यान-सा करते दिखाई देते थे। एक बार इन्होंने अपनी पढ़ने की तख्ती पर पढ़ाये जाने वाले पाठ के स्थान पर परमात्मा के माहात्म्य का वर्णन लिख दिया था, जिसे देखकर शिक्षक को अत्यधिक आश्चर्य हुआ। इन्होंने यज्ञोपवीत को अनित्य जानकर धारण नहीं किया था। पिता के द्वारा व्यापार के लिए दिये गये बीस रुपयों को ये भूखे-प्यासे साधुओं को देकर घर लौट आये थे और दान से सन्तुष्ट होकर उसे अपने व्यापार की सबसे बड़ी उपलब्धि मान बैठे थे। इस घटना को सुनकर इनके पिता अत्यधिक चिन्तित हुए। पिता के क्रोध करने पर इनके बहनोई इन्हें अपने साथ सुलतानपुर ले गये। वहाँ के नवाब दौलत खाँ ने इनके स्वभाव और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर इन्हें अन्न-भाण्डागार में नियुक्त कर दिया था। वहाँ ये बड़ी ईमानदारी और लगन से अपना कार्य सम्पादित करते थे। उनके यश को सहन न करके राज-कर्मचारी उनके विरुद्ध दौलत खाँ के कान भरते थे, परन्तु (UPBoardSolutions.com) दौलत खाँ पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता था।

विवाह, नानक सायं समय अपने साथी नवयुवकों के साथ परमात्मा का चिन्तन व कीर्तन करते थे। नानक की संसार से विरक्ति को रोकने के लिए इनके बहनोई जयराम ने इनको 19 वर्ष की आयु में सुलक्खिनी नाम की कन्या के साथ विवाह-बन्धन में बाँध दिया।

UP Board Solutions

परमात्मा के दूत एक बार वे स्नान करने के लिए सेवक को अपने वस्त्र देकर नदी में उतर गये, किन्तु वहाँ से नहीं निकले। सेवक ने समझ लिया कि नानक को किसी जल-जन्तु ने खा लिया है। वापस लौटकर उसने सभी को यह बात बतायी और सभी ने उस पर विश्वास भी कर लिया। तीन दिन बाद जब नानक प्रकट हुए और अपने घर वापस पहुँचे तो इनके मुख पर विद्यमान अतुलनीय तेज को देखकर सभी आश्चर्यचकित रह गये। नानकदेव ने गाँववासियों को बताया कि उन्हें परमात्मा के दूत पकड़कर परमात्मा के सामने ले गये थे। वहाँ परमात्मा ने उनसे कहा कि उन्हें दुःखियों के दुःखों को दूर करने और परमात्मतत्त्व का उपदेश देने के लिए संसार में भेजा गया है। इसके बाद उन्होंने समस्त परिजनों से विरक्त जीवन व्यतीत करने की अनुमति प्राप्त की और घर छोड़कर चले गये।

भ्रमण एवं पाखण्डोन्मूलन नानक दीनों का उद्धार करने, मानवों में व्याप्त भेदभाव को दूर करने और तीन तापों से सन्तप्त संसार को उपदेशरूपी अमृत से शीतल करने के लिए बीस वर्ष तक सम्पूर्ण देश में भ्रमण करते रहे। इन्होंने धर्म के बाह्याचारों और पाखण्डों का खण्डन किया और धर्म के सच्चे स्वरूप को बताया। इन्होंने दलितों, पतितों, दीनों और दु:खियों के पास जाकर उन्हें उपदेश देकर सान्त्वना दी। ये दीन-दुःखियों का (UPBoardSolutions.com) ही आतिथ्य स्वीकार करते थे। भारत में भ्रमण करते हुए इन्होंने देश की दयनीय दशा देखी और देश की उन्नति के लिए श्रम की प्रतिष्ठा, दीनता का त्यागे, अपरिग्रह और सेवादि भावों का प्रसार किया। इन्होंने देश को एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयत्न किया और ‘भारत’ को ‘हिन्दुस्तान’ कहकर पुकारा।

उपदेश अपने विचारों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने के लिए ये कर्तारपुर ग्राम में रहने लगे। इन्होंने ज्ञानयोग और कर्मयोग का समन्वय स्थापित किया। निष्काम कर्म, सेवावृत्ति, करुणा, सदाचरण आदि चारित्रिक गुणों को परमात्मा की प्राप्ति का हेतु बताया। यहीं पर इन्होंने लंगर’ नाम की सहभोज प्रथा का प्रचलन किया, जिसमें जाति-पाँति और ऊँच-नीच के भाव को भुलाकर सभी लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। यह प्रणाली गुरुद्वारों में आज भी यथापूर्व चल रही है।

UP Board Solutions

मृत्यु गुरु नानक विक्रम संवत् 1596 में सत्तर वर्ष की आयु भोगकर परमात्मतत्त्व में विलीन हो गये। ये लगातार सेवाभाव, प्रेम, राष्ट्रभक्ति, देश की अखण्डता, परमात्मा और करुणा के गीते गाते रहे। इनका नाम भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा रहेगा।

गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1)
सिक्खधर्मस्याद्यसंस्थापकः गुरुनानकः पञ्जाबप्रदेशे तलवण्डीनाम्नि स्थाने षड्विशत्युत्तरपञ्चादशशततमे वैक्रमे वर्षे वैशाखमासस्य शुक्ले पक्षे तृतीयायान्तिथौ (वै० शु०-3, वि० 1526) क्षत्रियवंशस्य वेदीकुले जन्म लेभे। तस्य जन्मस्थानं ‘ननकानासाहेब’ इति नाम्ना ख्यातमद्यत्वे पाकिस्तानदेशेऽस्ति। अस्य मातुर्नाम (UPBoardSolutions.com) तृप्तादेवी, पितुश्च मेहता कल्याणदासः कालूमेहतेति नाम्ना ख्यातः। शब्दार्थ आद्य = पहले। षड्विशत्युत्तरपञ्चदशशततमे = पन्द्रह सौ छब्बीस में। लेभे = प्राप्त किया। अद्यत्वे = आजकल। ख्यातः = प्रसिद्ध।

सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के गद्य-खण्ड ‘गद्य-भारती’ में संकलित ‘गुरुनानक देवः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

[ संकेत इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा। ]

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में गुरु नानक के जन्म, जन्म-स्थान व माता-पिता के विषय में बताया गया है।

UP Board Solutions

अनुवाद सिक्ख धर्म के प्रथम संस्थापक गुरु नानक ने पंजाब प्रदेश में ‘तलवण्डी’ नामक स्थान पर विक्रम संवत् 1526 में वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को क्षत्रिय वंश के वेदी कुल में जन्में लिया था। उनका जन्म-स्थान ‘ननकाना साहेब’ के नाम से प्रसिद्ध है, जो आजकल पाकिस्तान देश में है। इनकी माता का नाम तृप्तादेवी और पिता का नाम मेहता कल्याणदास था, जो कालू मेहता के नाम से प्रसिद्ध थे।

(2)
गुरुनानकः स्वपित्रोरेक एव पुत्र आसीत्। अतस्तस्य जन्मनाऽऽह्लादातिशयं तावनुभवन्तौ स्नेहाशियेन तस्य लालन पालनं च कृतवन्तौ। बाल्यकालादेव तस्मिन् बालके लोकोत्तराः गुणाः प्रकटिता अभवन्। रहसि एकाकी एवोपविश्य नेत्रे अर्थोन्मील्य किञ्चिद् ध्यातुमिव दृश्यते स्म।।

शब्दार्थ आह्लादातिशयम् = अत्यन्त प्रसन्नता। अनुभवन्तौ = अनुभव करते हुए। रहसि = एकान्त में। उपविश्य = बैठकर अर्थोन्मील्य = आधे खोलकर

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में गुरु नानकदेव के बचपन के विषय में बताया गया है।

अनुवाद गुरु नानक अपने माता-पिता के इकलौते ही पुत्र थे। अत: (UPBoardSolutions.com) उनके जन्म से उन दोनों ने अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव करते हुए अत्यन्त स्नेह से उनका लालन-पालन किया। बचपन से ही उस बालक में अलौकिक गुण प्रकट हो गये थे। एकान्त में अकेले ही बैठकर दोनों नेत्रों को आधे खोलकर (ये) कुछ ध्यान करते से दिखाई देते थे।

UP Board Solutions

(3)
यथाकाले पित्रा विद्याध्ययनाय पाठशालायां स प्रेषितः। अन्यैः सहपाठिभिः सह विद्यालये पठन्नेकदा स्वलेखनपट्टिकायां किञ्चिदुल्लिख्य शिक्षकं प्रादर्शयत्। तल्लेखं दृष्ट्वा शिक्षको विस्मितो जातः। पट्टिकायां परमात्मनो माहात्म्यं तेन वर्णितमासीत्। तथैव यज्ञोपवीतसंस्कारावसरे आचार्येण प्रदत्तं कार्पासं यज्ञोपवीतमनित्यमिति प्रतिपादयन् न तज्जग्राह। तस्य पिता कालूमेहता जगत्प्रति तस्याप्रवृत्तिं दृष्ट्वा भूयसा चिन्तितोऽभवत्। वाणिज्यकर्मणि लिप्तस्तत्पिता कथमपि स जगत्कर्मणि प्रवृत्तो भवेदिति प्रायतत। किं च वहिं पत्रजालैर्पिधातुमाचकाङ्क्ष।

शब्दार्थ यथाकाले = ठीक समय पर। पठन्नेकदा = पढ़ते हुए एक बार। स्वलेखनपट्टिकायां = अपने लिखने की तख्ती पर| प्रादर्शयत् = दिखाया। यज्ञोपवीतसंस्कारावसरे = जनेऊ धारण करने के संस्कार के समय कार्पासम् = कपास का। तज्जग्राह = उसे ग्रहण किया। अप्रवृत्तिम् = उदासीनता को। भूयसा = अत्यन्त प्रायतत् = प्रयत्न किया। पिधातुम् = ढकने के लिए। आचकाङ्क्ष = इच्छा की।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में गुरु नानक की अलौकिक प्रतिभा के विषय में बताया गया है।

अनुवाद समयानुसार पिता ने विद्या अध्ययन के लिए उन्हें पाठशाला में भेजा। दूसरे साथियों के साथ विद्यालय में पढ़ते हुए (उन्होंने) एक दिन अपनी तख्ती पर कुछ लिखकर शिक्षक को दिखाया। उस लेख को देखकर शिक्षक आश्चर्यचकित हो गये। उन्होंने तख्ती पर परमात्मा के माहात्म्य का वर्णन किया था। उसी प्रकार यज्ञोपवीत संस्कार के अवसर पर आचार्य के द्वारा दिया गया कपास का यज्ञोपवीत तो अनित्य है, ऐसा बताते हुए उसे ग्रहण नहीं किया। (UPBoardSolutions.com) उनके पिता कालू मेहता संसार के प्रति उनकी अंनासक्ति को देखकर अत्यधिक चिन्तित हुए। व्यापार के कार्य में लगे हुए उनके पिता ने किसी प्रकार भी वह (नानक) संसार के कार्यों में लग जाये, इस प्रकार के प्रयास किये और आग को पत्तों के समूह से ढकने की इच्छा की।

UP Board Solutions

(4)
एकदा तस्य जनकः विंशतिरूप्यकाणि तस्मैं दत्वा वाणिज्यार्थं तं प्रेषितवान्। पथि क्षुत्पिपासादिभिः क्लिश्यमानान् दुर्बलान् क्षीणकायान् साधून् सोऽपश्यत्। तेषां क्लेशातिशयतापसन्तप्तां दशामवलोक्य तस्य हृदयं नवनीतमिव द्रवीभूतं जातम्। ताभिः मुद्राभिरत्नं क्रीत्वा तेभ्यः समर्थ्य परां शान्तिमनुभूयमानः गृहं प्रत्याजगाम। पित्रा लाभाय रूप्यकाणि प्रदत्तानि। मया तु पूर्णलाभः लब्धः। तस्यादेशस्यानुपालनमेव मया कृतामिति सोऽचिन्तयत्।।

शब्दार्थ क्षुत्पिपासादिभि: क्लिश्यमानान् = भूख-प्यास आदि से क्लेश पाये हुए। क्षीणकायान् = दुर्बल शरीर वालों को। क्लेशातिशयतापसन्तप्तां = क्लेश की अधिकता के दुःख से व्याकुल। नवनीतमिव = मक्खन की भाँति। अनुभूयमानः = अनुभव करते हुए प्रत्याजगाम = वापस आ गये। लब्धः = प्राप्त किया।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में नानकदेव की दोनों की सहायता करने की प्रवृत्ति को दर्शाया गया है।

अनुवाद एक दिन उनके पिता ने उन्हें बीस रुपये देकर व्यापार करने के लिए भेजा। उन्होंने मार्ग में भूख-प्यास आदि से दुःखी, दुर्बल शरीर वाले साधुओं को देखा। उनके कष्ट (दु:ख) की अधिकता से दुःखी दशा को देखकर उनका हृदय मक्खन के समान पिघल गया। उन रुपयों से अन्न (UPBoardSolutions.com) खरीदकर उन्हें देकर अत्यधिक शान्ति का अनुभव करते हुए (वे) घर लौट आये। पिता ने लाभ के लिए रुपये दिये। मैंने तो पूर्ण लाभ प्राप्त कर लिया। मैंने उनके आदेश का पालन ही किया है, ऐसा उन्होंने सोचा।

(5)
पिता तस्य तद्वृत्तं संश्रुत्य खिद्यमानः भृशं चुकोप। तदानीमेव नानकस्य भगिनीपतिः जयराम आगतः। तदखिलमुदन्तं ज्ञात्वा तं स्वनगरं सुलतानपुरमनयत्। तत्रत्यः शासकः नवाबदौलतखाँ युवकनानकस्य व्यवहारकौशलेन शीलेन मधुरया वाचा सन्तुष्टः सन् तं स्वान्नभाण्डागारे नियुक्तवान्। स्वनिस्पृहवृत्या, श्रमेण, कर्मणा च नानकः स्वस्वामिनं दौलतखाँमहाशयं तुतोष।

पिता तस्य तद्वृत्तं ……………………………………… भाण्डागारे नियुक्तवान्।

शब्दार्थ तद्वृत्तं = उस बात को। संश्रुत्य = सुनकर। खिद्यमानः = खिन्न होते हुए। भृशम् = अत्यधिक चुकोप = कुपित हुए। भगिनीपतिः = बहनोई। उदन्तम् = समाचार को। तत्रत्यः = वहाँ का। स्वान्नभाण्डागारे = अपने अनाज के भण्डार में। निस्पृहवृत्या = निर्लोभ स्वभाव से। तुतोष = सन्तुष्ट किया।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में नानक को सुलतानपुर के नवाब द्वारा अपने अन्न भाण्डागार में नियुक्त किये जाने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद उनके पिता उस समाचार को सुनकर दुःखी होते हुए बहुत क्रुद्ध हुए। उसी समय नानक के बहनोई जयराम आ गये। उस समस्त समाचार को जानकर उसे (नानक को) अपने नगर सुलतानपुर ले गये। वहाँ के शासक नवाब दौलत खाँ ने युवक नानक के व्यवहार की कुशलता, शील और मधुर वाणी से सन्तुष्ट होते हुए उन्हें अपने अन्न के भाण्डागार पर नियुक्त कर दिया। अपने नि:स्वार्थ व्यवहार से, परिश्रम से और कार्य से नानक ने अपने स्वामी दौलत खाँ को सन्तुष्ट कर दिया।

UP Board Solutions

(6) नानकः तेन समादृतो जातः। तद्यशोऽसहमानैः बहुभिः दोषादिक्षुभिः राजपुरुषैः कर्णेजपैः बोधितोऽपि दौलतखाँमहाशयः नानके दोषं नाऽपश्यत्। महत्सु दोषदर्शनं राजकुलस्य सहजा रीतिः। आदिवस स्वकार्य सम्पादयन्नसौ सन्ध्याकालेऽन्यैः युवकैः सह (UPBoardSolutions.com) एकत्रोपविश्य परमात्मचिन्तनं तन्नामकीर्तनञ्च करोति स्म। दानादिकं च तस्य कर्म तत्रापि सातत्येन चलति स्म।

शब्दार्थ तद्यशोऽसहमानैः = उनका यश सहन करने वालों ने। दोषादिदृक्षुभिः = दोषों को देखने वालों की इच्छा रखने वालों से। कर्णेजपैः = चुगलखोरों से, कान भरने वालों से। आदिवसैः = सारे दिन। एकत्र उपविश्य = एक स्थान पर बैठकर। सातत्येन = नियमित रूप से, निरन्तर

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में गुरु नानक के द्वारा दौलत खाँ के यहाँ सेवा-वृत्ति किये जाने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद नानक ने उनसे (अपने स्वामी से) अत्यधिक आदर प्राप्त किया। उनके यश को सहन न करने वाले, दोषों को देखने की इच्छा रखने वाले बहुत-से चुगलखोर राजकर्मचारियों के द्वारा बहकाये जाने पर भी दौलत खाँ ने नानक में दोष नहीं देखा।-महान् पुरुषों में दोष निकालना राजकुल का स्वाभाविक रिवाज है। दिनभर अपने कार्य को पूरा करते हुए वे शाम के समय दूसरे युवकों के साथ एक जगह बैठकर परमात्मा का चिन्तन और उसके नाम का कीर्तन करते थे। उनका दान आदि का काम वहाँ भी लगातार चलता रहता था।

(7)
युवकस्य नानकस्य तथाविधां प्रवृत्तिमवेक्ष्य तस्य भगिनीपतिः जयरामः चिन्तितः सन् विवाहबन्धनेन तस्य तां प्रवृत्तिं नियन्तुमियेष। ऊनविंशवर्षे वयसि गुरुदासपुरमण्डलान्तर्गतबहालाग्रामनिवासिनः बाबामूलामहोदयस्य सुलक्षणया ‘सुलक्खिनी’ नाम्न्या कन्यया सह तस्योद्धाहो जातः।।

शब्दार्थ अवेक्ष्य = देखकर। नियन्तुमियेष = रोकने की इच्छा की। ऊनविंश = उन्नीस। तस्य = उनका। उद्वाहः = विवाह। जातः = हो गया।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में नानक के विवाहित होने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद युवक नानक की उस प्रकार की प्रवृत्ति को देखकर उनके बहनोई जयराम ने चिन्तित होते हुए विवाह के बन्धन से उनकी उस प्रवृत्ति को रोकने की इच्छा की। उन्नीस वर्ष की आयु में गुरुदासपुर जिले के “बहाला’ ग्राम के रहने वाले बाबामूला की गुणवती ‘सुलक्खिनी’ नाम की कन्या के साथ उनका विवाह हो गया।

(8)
एकदा सः स्नानाय नदीं प्रति सेवकेनैकेन सह प्रस्थितः। स्ववस्त्रादीनि सेवकाय समर्थ्य सः नद्यामवतीर्णः। बहुकाले व्यतीते स न निष्क्रान्तस्तदा (UPBoardSolutions.com) तस्य सेवकः तं नद्यां निमग्नमित्यनुमाय गृहं प्रतिनिवृत्य वृत्तमिदं सर्वानश्रावयत्। सर्वे विस्मिताः तद्विरहतापसन्तप्ताः परं का गतिरिति चिन्तयन्तो सर्वथा स्तब्धाः जाताः। तस्य भगिनी ‘नानकी’ तुन विश्वसिति स्म। संसारसागराज्जनानुद्धर्तुं जगति यस्य जनिः कथं वा नदीजले निमग्नो भवेदिति तस्याः दृढो विश्वासः आसीत्।। [2015]

UP Board Solutions

एकदा सः स्नानाय ……………………………………… विश्वसिति स्म। [2010]

शब्दार्थ सेवकेनैकेन सह = एक सेवक के साथ प्रस्थितः = गया| अवतीर्णः = उतर गया। निमग्नमित्यनुमाय = डूब गये, ऐसा अनुमान करके प्रतिनिवृत्य = लौटकर वृत्तमिदं = यह समाचार। सर्वानावयत् = सभी को सुनाया। स्तब्धाः = अवाक् विश्वसिति स्म = विश्वास किया। उद्धर्तुं = उद्धार करने के लिए। जनिः = जन्म)

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में गुरु नानक के जीवन से सम्बन्धित उस घटना का वर्णन किया गया है, जिसमें वे नदी में विलुप्त हो गये थे।

अनुवाद एक बार वे (नानक) स्नान करने के लिए एक सेवक के साथ नदी की ओर गये। अपने वस्त्र
आदि सेवक को देकर वे नदी में उतर पड़े। बहुत समय बीतने पर जब वे नहीं लौटे, तब उनके सेवक ने उन्हें ‘नदी में डूब गये ऐसा अनुमान करके, घर लौटकर, सबको यह समाचार सुनाया। सब विस्मित होकर उनके विरह के दु:ख से दुःखी हुए, परन्तु क्या किया जाए, ऐसा सोचते हुए (UPBoardSolutions.com) सभी तरह से अवाक् रह गये। उनकी बहन नानकी ने तो विश्वास नहीं किया। संसार-सागर से लोगों का उद्धार करने के लिए संसार में जिसका जन्म हुआ, वह कैसे नदी के जल में डूब जाएगा, ऐसा उसका दृढ़ विश्वास था।

(9)
दिनत्रयानन्तरं नानकः प्रकटितोऽभूत्। परमाह्लादिताः जनाः ज्योतिषा देदीप्यमानं तस्य मुखमण्डलं दर्श दर्श विस्मिता अभूवन्। मनसो बुद्धेरगोचरं किञ्चिद् दिव्यत्वं तस्मिन् प्रतिष्ठितमिति सर्वेऽन्वभवन्। तस्य मुखादेव दिनत्रयानुपस्थितिरहस्यं जना अशृण्वन्। नदीजले निमग्नं तं परमात्मनो दूताः परमात्मनः समीपमनयन्। जगतः विधाता तस्मैऽमृतोपदेशं प्रादात्। दुःखदैन्यतप्तानां क्लेशान् अपहर्तुं सदुपदेशेन परमात्मतत्त्वं सत्स्वरूपं च व्याख्यातुं जगति पुनः तस्यादेशात् आगतः इति तेनोक्तम्। भक्तः नानकः गुरुः जातः।

शब्दार्थ ज्योतिषा= प्रकाश से। देदीप्यमानं = चमकते हुए। दर्श-दर्शी = देख-देखकर। सर्वेऽन्वभवन् = सभी ने अनुभव किया। अशृण्वन् = सुना। अमृतोऽपदेशं = अमरता का उपदेश। अपहर्तुम् = दूर करने के लिए।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में नानक के नदी में विलुप्त होकर वापस लौट आने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद तीन दिन के बाद नानक प्रकट हुए। अत्यन्त प्रसन्न होकर लोग अत्यधिक तेज से प्रकाशमान् उनके मुखमण्डल को देख-देखकर आश्चर्यचकित हो गये। मन और बुद्धि से न जाना जा सकने वाला कुछ दिव्यत्व उनमें स्थित है, ऐसा सभी ने अनुभव किया। उनके मुख से ही तीन दिन तक की अनुपस्थिति का रहस्य लोगों ने सुना। नदी के जल में डूबे हुए उन्हें परमात्मा के दूत परमात्मा के पास ले गये थे। संसार के विधाता ने उन्हें अमरता का उपदेश दिया। दु:ख और दीनता से दु:खी लोगों के कष्टों को दूर करने के लिए, सुन्दर उपदेश द्वारा परमात्म तत्त्व और सत् स्वरूप की व्याख्या करने के लिए संसार में पुनः उनके आदेश से आया हूँ, ऐसा उन्होंने कहा। भक्त नानक गुरु हो गये।

UP Board Solutions

(10)
लोकरक्षायै दीनानामुद्धाराय मानवजातिषु जातान् वर्णजातिधर्मरूपान् भेदान् अपनेतुं सर्वेषु साम्यं प्रतिष्ठापयितुं त्रिविधतापसन्तप्तं लोकममृतोपदेशेन शीतलयितुं गुरुर्नानकः भारतभ्रमणाय मतिं चकार। स्वमातापितरौ स्वपत्नीं स्वसुतौ स्वभगिनीं नानकीं स्वमित्राणि चे (UPBoardSolutions.com) साधु समाश्वास्य स सुलतानपुरनगरान्निर्जगाम। नगरान्नगरं ग्रामोद् ग्राममटन धर्मस्य बाह्याचारानाडम्बरभूतान् व्यापारान् विखण्डयन् धर्मस्य सत्स्वरूपं स्थापयन् सर्वस्मिन् तदेकमिति प्रतिपादितवान्।

शब्दार्थ अपनेतुम् = दूर करने के लिए, मिटाने के लिए। प्रतिष्ठापयितुं = स्थापित करने के लिए। सन्तप्तं = पीड़िता अमृतोपदेशेन = अमृत के समान उपदेश से। शीतलयितुं = शीतल करने के लिए। मतिं चकार = विचार किया। समाश्वास्य = आश्वासन देकर। निर्जगाम = निकल पड़े। अटन् = घूमते हुए। व्यापारान् = गतिविधियों को। विखण्डयन् = खण्डित करते हुए।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में गुरु नानक द्वारा देश का भ्रमण करने एवं पाखण्ड के उन्मूलन के लिए किये गये अथक प्रयासों का वर्णन है।

अनुवाद लोकरक्षा के लिए, दोनों का उद्धार करने के लिए, मानव-जातियों में उत्पन्न वर्ण, जाति, धर्म के भेदों को दूर करने के लिए, सबमें स्थापित करने के लिए, तीन प्रकार के (दैहिक, दैविक, भौतिक) तापों से पीड़ित संसार को अमृत के समान उपदेश से शीतल करने के लिए गुरु नानक ने भारत में भ्रमण करने हेतु विचार किया। अपने माता-पिता, अपनी पत्नी, अपने दोनों पुत्रों, अपनी बहन नानकी और अपने मित्रों को अच्छी तरह धैर्य देकर सुलतानपुर नगर से निकल पड़े। नगर से नगर में, एक गाँव से दूसरे गाँव में भ्रमण करते हुए धर्म के बाहरी आचरणों, आडम्बरस्वरूप कार्यों को खण्डन करते हुए, धर्म के सच्चे स्वरूप की स्थापना करते हुए ‘सबमें वह एक (ईश्वर) है ऐसा बताया।

(11)
“नेह नानास्ति किञ्चन्” इति जनान् सम्यक् बोधयन् जातिवर्णधर्मजनितोच्चावचभेदानपनयन् देशस्योत्तरदक्षिण-पूर्व-पश्चिमभागानां भ्रमणमसौ कृतवान्। सर्वत्र दलितानां पतितानां अपहृताधिकाराणां दैन्यग्रस्तानां दुःखतप्तहृदयानां जनानामन्तिकं गत्वा स्वप्रेम्णा मधुरया वाचा अमृतोपदेशेन च तान् सान्त्वयामास। भ्रमणकाले दुःखदैन्यग्रस्तानामुपेक्षितानामेवातिथ्यं तेनाङ्गीकृतम्। परपरिश्रमेणार्जितधनेन जनाः धनिनो जायन्ते; अतः ऐश्वर्यवतो निमन्त्रणमपि तस्मै न रोचते स्म। स्वश्रमेणोपार्जिते वित्ते विद्यमाना पवित्रता परपरिश्रमार्जितवित्ते कुत्र इति श्रमं प्रति प्रशस्यभावः तेनोदाहृतः।

शब्दार्थ नेह नानास्ति किञ्चन = यहाँ कुछ भी अनेक नहीं है, अर्थात् एकमात्र परमात्मा ही सब कुछ है। सम्यक् = भली-भाँति बोधयन् = समझाते हुए उच्चावचभेदान् = ऊँचे-नीचे भेदों को। अपनयन् = दूर करते हुए। अपहृताधिकाराणां = अधिकार छीने हुए लोगों का। अन्तिकम् = पास| सान्त्वयामास = धीरज बँधाया। आतिथ्यम् = अतिथि-सत्कार। अङ्गीकृतम् = स्वीकार किया। उपार्जिते वित्ते = कमाये हुए धन में। कुत्र = कहाँ। इति = इस प्रकार प्रशस्यभावः = प्रशंसनीय भाव। उदाहृतः = प्रकट किया।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में गुरु नानक के उच्च विचारों तथा उनके द्वारा किये गये धर्म-प्रचार का वर्णन किया गया है।

अनुवाद “इस संसार में उसके (ईश्वर) के बिना कुछ नहीं है, ऐसा लोगों को भली-भाँति समझाते हुए, जाति-धर्म-वर्ण से उत्पन्न ऊँच-नीच के भेदों को दूर करते हुए उन्होंने देश के उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम भागों का भ्रमण किया। सब जगह दलितों, पतितों, अधिकार छिने, दीनों, दुःख से (UPBoardSolutions.com) पीड़ित हृदय वाले लोगों के पास जाकर, अपने प्रेम से, मधुर वाणी से और अमृत के समान मीठे उपदेशों से उन्हें सान्त्वना दी। भ्रमण के समय उन्होंने दु:खियों, दीनों और उपेक्षितों के ही आतिथ्य को स्वीकार किया। दूसरों के परिश्रम से कमाये गये धन से लोग धनवान हो जाते हैं; अतः वैभवशालियों का निमन्त्रण भी उन्हें अच्छा नहीं लगता था। “अपने श्रम से उपार्जित धन में विद्यमाने पवित्रता दूसरों के श्रम से अर्जित धन में कहाँ है। इस प्रकार श्रम के प्रति उन्होंने श्रेष्ठता को प्रकट किया।

UP Board Solutions

(12)
विंशतिवर्षं यावद् तेन समग्रदेशस्य भ्रमणं कृतम्। भ्रमता तेन देशस्य चिन्तनीया दशा दृष्टा। देशचिन्ताचिन्तितः स देशस्योन्नत्यै श्रमस्य प्रतिष्ठां, दैन्यपरित्यागमपरिग्रहं, सेवाभावादि भावान् प्रसारयामास। समग्रदेशमेकसूत्रे आबद्धं प्रयतमानः स प्रथम भारतीयो महापुरुषः आसीत्। यवनशासकैः कृतानत्याचारान् वीक्ष्य भृशं खिद्यमानः परमात्मानमुपालम्भितवान्। तेनैव महात्मना भारतं ‘हिन्दुस्तान इति नाम्ना सम्बोधितवान्। [2007, 13]

शब्दार्थ समग्रदेशस्य = सम्पूर्ण देश का। चिन्तनीया = शोचनीया दृष्टा = देखी। प्रसारयामास = प्रसारित किया। आबद्धम् = बाँधने के लिए। प्रयतमानः = प्रयत्न करता हुआ। कृतानत्याचारान् = किये हुए अत्याचारों को। वीक्ष्य = देखकर। खिद्यमानः = दुःखी होते हुए। उपालम्भितवान् = उलाहना दिया।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में गुरु नानक के देश-प्रेम सम्बन्धी विचारों तथा कार्यों का उल्लेख किया गया है।

अनुवाद बीस वर्ष तक उन्होंने सम्पूर्ण देश का भ्रमण किया। भ्रमण करते हुए उन्होंने देश की चिन्ता के योग्य दशा देखी। देश की चिन्ता से चिन्तित उन्होंने देश की उन्नति के लिए श्रम की स्थापना, दीनता का त्याग, अपरिग्रह, सेवाभाव आदि भावों का प्रसार किया। सम्पूर्ण देश को एक सूत्र में बाँधने के लिए प्रयत्न करने वाले वे भारत के प्रथम महापुरुष थे। यवन शासकों के द्वारा किये गिये अत्याचारों को देखकर अत्यन्त दु:खी होते हुए उन्होंने ईश्वर को उलाहना दिया। उसी महात्मा ने भारत को ‘हिन्दुस्तान’ नाम से सम्बोधित किया।

(13) अथ स स्वविचारान् यथातथ्ये परिणेतुं पजाबप्रदेशे कर्तारपुरे स्ववसतिं चकार। स्वानुयायिभिः सह कृषिक्षेत्रे कृषिकर्म कुर्वन् वृद्धपितेव तेषु स्थितः परमात्मतत्त्वं चिन्तयन् विदेह इव सुस्थिरं स्थितः। गुरुणा नानकेन ज्ञानयोगस्य कर्मयोगस्य चादभूतं सामञ्जस्यं स्थापितम्। निष्काम-कर्मणा (UPBoardSolutions.com) सेवावृत्या करुणया सच्छीलेन च गुणैः सच्चारित्र्यस्य सृष्टिर्जायते। सच्चारित्र्यमेव परमात्मनो प्राप्तिहेतुरिति तेन प्रतिपादितम्। तत्रैवासौ लंगर’ इति नाम्नीं सहभोजप्रथां प्रारब्धवान्। तत्र स्वेन निर्मितं भोजनमाबालवृद्धं नराः नार्यः जातिधर्मवर्णनिर्विशेषाः सर्वेषु सहैवोपविश्य भुञ्जते स्म। एषा प्रथाऽधुनापि गुरुद्वारेषु प्रचलिता दृश्यते।

UP Board Solutions

अर्थ स स्वविचारान ……………………………………… सामञ्जस्यं स्थापितम्। [2008]
अथ स स्वविचारान ……………………………………… भुजते स्म। [2012]

शब्दार्थ यथातथ्ये परिणेतुम् = वास्तविक रूप में परिणत करने के लिए। स्ववसतिम् = अपना निवास। कृषिक्षेत्रे = खेत में। वृद्धपितेव = बूढे पिता के समान विदेह इवे = राजा जनक के समान। सामञ्जस्यम् = तालमेल, समन्वय सेवावृत्या = सेवा-कार्य के द्वारा। सच्छीलेन (सत् + शीलेन) = उत्तम स्वभाव के द्वारा। सृष्टिर्जायते = निर्माण होता है। तत्रैवासौ (तत्र + एव + असौ) = वहीं पर इन्होंने। सहभोजप्रथाम् = एक साथ भोजन करने की प्रथा को। जातिधर्मवर्णनिर्विशेषाः = जाति, धर्म और वर्ण की विशेषता से रंहिता सह एव उपविश्य = साथ ही बैठकर

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में गुरु नानकदेव द्वारा किये गये व्यावहारिक कार्यों का वर्णन किया गया है।

अनुवाद इसके पश्चात् उन्होंने अपने विचारों को यथार्थ रूप में परिणत करने के लिए पंजाब प्रदेश में कर्तारपुर में अपना निवास बनाया। अपने अनुयायियों के साथ खेत में खेती करते हुए वृद्ध पिता के समान वे उनके मध्य बैठे हुए परमात्म-तत्त्व का चिन्तन करते हुए विदेह (राजा जनक) के समान स्थिर रहते थे। गुरु नानक के द्वारा ज्ञानयोग का और कर्मयोग का अद्भुत समन्वय स्थापित किया गया। निष्काम कर्म से, सेवा व्यवहार से, करुणा से, अच्छे आचरण से और गुणों (UPBoardSolutions.com) से अच्छे चरित्र की सृष्टि हो जाती है। उत्तम चरित्र ही परमात्मा की प्राप्ति का साधन है, ऐसा उन्होंने बताया। वहीं पर इन्होंने ‘लंगर’ नाम से साथ भोजन करने की प्रथा को प्रारम्भ किया। उसमें स्वयं द्वारा निर्मित भोजन को बच्चों से लेकर बूढ़ों तक स्त्री-पुरुष, जाति-धर्म-वर्ण के भेदभाव के बिना सब एक साथ बैठकर खाते थे। यह प्रथा आज भी गुरुद्वारों में प्रचलित दिखाई देती है।

(14)
षण्णवत्युत्तरपञ्चदशशततमे वैक्रमे वर्षे आश्विनमासस्य कृष्णपक्षे दशम्यान्तिौ (आO कृ० 10, वि० 1516) गुरोरात्मतत्त्वं परमात्मतत्त्वे विलीनम्। गुरुः सप्ततिवर्षं यावद् धरामलङकुर्वाणः सेवाभावस्य, परस्परं प्रेम्णः, राष्ट्रभक्तेः, देशानुरागस्य, देशस्याखण्डतायाः परमात्मनः करुणायाश्च गीतं जिगाय। गुरुनानकोऽस्माकमितिहासपृष्ठेषु स्वर्णाक्षरैरङ्कितः सदा स्थास्यति।।

शब्दार्थ षण्णवति = छियानबे। गुरोरात्मतत्त्वम् = गुरु का आत्मतत्त्व। सप्ततिवर्ष = सत्तर वर्ष तका जिगाय = गाया। स्थास्यति = स्थायी रहेंगे।

प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में गुरु नानक के परलोकवास एवं उनकी अमरता का वर्णन किया गया है।

अनुवाद विक्रम संवत् 1596 में आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को गुरु का आत्मतत्त्व परमात्मतत्त्व में विलीन हो गया। गुरु ने सत्तर वर्ष तक पृथ्वी को सुशोभित करते हुए, सेवा-भावना, परस्पर प्रेम, राष्ट्रभक्ति, देशप्रेम, देश की अखण्डता और परमात्मा की करुणा के गीत गाये। गुरु नानक हमारे इतिहास के पृष्ठों में सदा स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेंगे।

UP Board Solutions

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव का परिचय दीजिए। [2007]
या
गुरु नानक का जन्म कहाँ हुआ था और उनके माता-पिता का क्या नाम था? [2006,11,15]
या

सिक्ख धर्म के आदि संस्थापक का नाम लिखिए। [2013]
उत्तर :
सिक्ख धर्म के आदि संस्थापक गुरु नानक का जन्म पंजाब के तलवण्डी (ननकाना साहब, पाकिस्तान) नामक ग्राम में विक्रम संवत् 1526 में हुआ था। इनकी माता का नाम तृप्ता देवी और पिता का नाम मेहता कल्याणदास था। दोनों का उद्धार करने, मानवों में व्याप्त भेदभाव को दूर करने और तीनों तापों से सन्तप्त संसार को उपदेशरूपी अमृत से शीतल करने के लिए माता-पिता, पत्नी-पुत्र, बहन और मित्रों को छोड़कर ये भ्रमण के लिए घर से निकल पड़े। इन्होंने धर्म के बाह्याचारों (UPBoardSolutions.com) और पाखण्डों का खण्डन किया और धर्म के सच्चे स्वरूप को बताया। इन्होंने दलितों, पतितों, दीनों और दु:खियों को उपदेश देकर सान्त्वना प्रदान की। इन्होंने ही भारत को ‘हिन्दुस्तान’ कहकर पुकारा और पूरे देश को एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयत्न किया।

प्रश्न 2.
लंगर-प्रणाली क्या है? इसका प्रारम्भ किसने किया?
उत्तर :
बीस वर्षों तक भ्रमण करने के उपरान्त गुरु नानक पंजाब के कर्तारपुर नामक स्थान पर स्थायी रूप से रहने लगे। यहीं पर इन्होंने लंगर’ नाम से एक साथ भोजन करने की प्रथा को प्रारम्भ किया। इस प्रथा में स्वयं द्वारा निर्मित भोजन को बच्चों से लेकर वृद्धों तक सभी स्त्री-पुरुष जाति-धर्म-वर्ण के भेदभाव के बिना साथ बैठकर ग्रहण करते हैं। गुरुद्वारों में यह प्रथा आज भी प्रचलित है।

प्रश्न 3.
गुरु नानकदेव का ईश्वर से साक्षात्कार किस प्रकार हुआ? विस्तार सहित लिखिए।
या
नानकदेव के नदी में डूबने और वापस आकर परमात्म-तत्त्व-प्राप्ति तक की घटना का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
एक बार गुरु नानकदेव नदी में स्नान करने के लिए एक सेवक के साथ गये। अपने वस्त्रों को सेवक को सौंपकर वे नदी में उतर गये। बहुत समय तक वे जल से बाहर नहीं आये। उनके सेवक ने उन्हें नदी में डूबा हुआ मान लिया और सभी को यह बात बतायी। तीन दिन बाद गुरु नानकदेव पुनः प्रकट हुए। लोगों ने गुरु नानक के मुख पर दिव्यत्व का ऐसा अद्भुत प्रकाश देखा, जो मन एवं बुद्धि से अगम्य एवं अगोचर था। नानक ने उन्हें तीन दिन तक अनुपस्थित रहने का रहस्य सुनाया। उन्होंने बताया कि परमात्मा का दूत उन्हें परमात्मा के पास ले गया था। परमात्मा ने उन्हें अमरत्व का उपदेश देने के साथ-साथ दुःखियों और दोनों के सन्ताप को दूर करने के लिए (UPBoardSolutions.com) भी कहा। इसीलिए वे परमात्मा के आदेश से उसके सत्-स्वरूप की व्याख्या करने के लिए दुबारा संसार में आये हैं।

प्रश्न 4.
गुरु नानकदेव के मुख्य उपदेश बताइए। [2011]
या
गुरु नानक ने किन बातों में समन्वय स्थापित किया? [2009]
उत्तर :
गुरु नानकदेव के मुख्य उपदेश निम्नलिखित हैं

  • जाति-धर्म-वर्ण से उत्पन्न ऊँच-नीच के भेदभाव को दूर करना चाहिए।
  • भारत के पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण भाग एक हैं। इनके निवासियों में कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए।
  • दलितों, पतितों, अधिकार छिने लोगों, दीनों, दु:ख से पीड़ित हृदय वालों और उपेक्षितों को सान्त्वना देनी चाहिए, उनको सम्मान प्रदान करना चाहिए और उनका आतिथ्य भी स्वीकार करना चाहिए।
  • ‘श्रम से उपार्जित धन पवित्र और श्रेष्ठ है, इस भावना की प्रतिष्ठा करनी चाहिए।

प्रश्न 5.
गुरु नानक का विवाह किसके साथ हुआ था? [2006,08,09]
उत्तर :
गुरु नानक का विवाह सुलक्खिनी नाम की कन्या के साथ हुआ था।

प्रश्न 6.
नानक ने बाल्यकाल में कौन-सा सौदा किया?
उत्तर :
एक बार नानक के पिता ने इनको बीस रुपये व्यापार करने के लिए दिये। इन्होंने उन रुपयों से अन्न खरीदकर मार्ग में मिले दीन-दुःखियों में बाँट दिये। इस दान के परिणामस्वरूप मिले सन्तोष को इन्होंने अपने व्यापार की सबसे बड़ी उपलब्धि मान लिया। नानक ने बाल्यकाल में यही सौदा (व्यापार) किया था।

UP Board Solutions

प्रश्न 7.
 नानक देव की बहन का क्या नाम था? [2007, 14]
उत्तर :
नानक देव की बहन का नाम ‘नानकी’ था।

प्रश्न 8.
“दोषदर्शनं राजकुलस्य सहजा रीतिः” का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
राजकुल की यह सबसे साधारण परम्परा है कि वह हर किसी में दोष निकाल देता है, चाहे उसमें दोष हो अथवा नहीं। लेकिन गुरु नानक में मुगल दौलत खाँ ने कोई दोष नहीं देखा, जब कि उनकी सभा के अन्य लोगों ने गुरुनानक के विषय में अनेक शिकायतें की थीं। कहने का (UPBoardSolutions.com) आशय यह है कि जब सभी में दोष निकालने वाले राजकुल के लोगों के द्वारा दिखाये जाने पर भी जब राजा को गुरुनानक में कोई दोष दिखाई नहीं दिया तो इससे यह बात स्वत: प्रमाणित हो जाती है कि गुरु नानक का चरित्र निष्कलंक और अत्यधिक पवित्र था।

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 13 are helpful to complete your homework.
If you have any doubts, please comment below. UP Board Solutions try to provide online tutoring for you

Class 9 Sanskrit Chapter 13 UP Board Solutions विद्यादानम् Question Answer

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 13 विद्यादानम्  (कथा – नाटक कौमुदी) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 13 विद्यादानम्  (कथा – नाटक कौमुदी).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 13
Chapter Name विद्यादानम्  (कथा – नाटक कौमुदी)
Number of Questions Solved 27
Category UP Board Solutions

UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 13 Vidyadhanam Question Answer (कथा – नाटक कौमुदी)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 13 हिंदी अनुवाद विद्यादानम् के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

परिचय- भारतीय वाङ्मय में वेदों और पुराणों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वेदों की अपेक्षा पुराण सरल, सरस और बोधगम्य हैं। पुराणों में उपदेश कथाओं के माध्यम से दिये गये हैं। ये कथाएँ काल्पनिक न होकर वास्तविक हैं। पुराणों को इतिहास भी माना जाता है। पुराण’ शब्द का अर्थ है–पुराना। इसी आधार पर कहा जाता है कि जो व्यतीत हो जाता है, उसी की चर्चा इतिहास और पुराण दोनों में होती है। दोनों में अन्तर मात्र इतना ही होता है कि पुराणों का दृष्टिकोण धार्मिक होता है, जब कि इतिहास का तथ्यपरक। । पुराणों की कुल संख्या अठारह मानी जाती है। इसमें एक महत्त्वपूर्ण विष्णु पुराण’ भी है। विष्णु पुराण में भूगोल, ज्योतिष, कर्मकाण्ड, राजवंश-वर्णन एवं श्रीकृष्ण चरित से सम्बद्ध वर्णन हैं। इसके अन्त में कलियुग का वर्णन भी प्राप्त होता है तथा इसके पश्चात् अध्यात्म-मार्ग की (UPBoardSolutions.com) शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उल्लेख है। । प्रस्तुत पाठ के रूप में जो कथा प्रस्तुत है, उसका आधार इसी ‘विष्णु-पुराण’ का छठा अंश है। ‘केशिध्वज’ और ‘खाण्डिक्य’ दोनों विदेह नाम से प्रसिद्ध राजा जनक के पौत्र थे। दोनों ही समझते थे कि विरोध, शत्रुता और वैमनस्य मन का मैल है जो जीवन को सन्तापमय बनाता है। मन के इस मैल को धोने की सामर्थ्य विद्या में ही है। प्रस्तुत पाठ में विद्या के इसी ध्येय को व्यक्त किया गया है।

UP Board Solutions

पाठ सारांश  

राजा केशिध्वज और खाण्डिक्य आपस में विरोधी होते हुए भी एक-दूसरे की विद्या का आदर करते हैं तथा अवसर आने पर एक-दूसरे को अपनी विद्या दान में देते हैं। ऐसा करने से दोनों के मन का वैमनस्य नष्ट हो जाता है। पाठे का सारांश इस प्रकार है

केशिध्वज और खाण्डिक्य जनक का परिचय- प्राचीनकाल में धर्मध्वजजनक नाम के एक राजा थे। उनके दो पुत्र थे-अमितध्वज और कृतध्वज। कृतध्वज के केशिध्वज नाम का तथा अमितध्वज के खाण्डिक्य-जनक नाम का एक पुत्र था। खाण्डिक्य कर्ममार्ग में तथा केशिध्वज अध्यात्मशास्त्र में निपुण था। दोनों ही एक-दूसरे पर विजय पाना चाहते थे। केशिध्वज के द्वारा राज्य से उतार दिये जाने पर खाण्डिक्य अपने पुरोहित और मन्त्रियों के साथ वन में चले गये। केशिध्वज ने अमरता प्राप्त करने के लिए बहुत-से यज्ञ किये।

केशिध्वज द्वारा यज्ञानुष्ठान– एक बार केशिध्वज ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उसकी धर्मधेनु को एक सिंह ने मार दिया। उसने ऋत्विजों, कशेरु, शुनक आदि आचार्यों से इसके प्रायश्चित का विधान पूछा। कोई भी उसे यथोचित प्रायश्चिते का विधान बताने में समर्थ नहीं हुआ। अन्तत: उसे ‘. शुनक ने बताया कि केवल खाण्डिक्य ही प्रायश्चित का विधान जानता है, अतः आप उसके पास चले जाइए। ‘केशिध्वज’ (UPBoardSolutions.com) ने उसे अपना वैरी समझते हुए अपने मन में निश्चय किया कि खाण्डिक्य के पास जाने पर यदि वह मुझे मार देगी तो मुझे यज्ञ का फल प्राप्त हो जाएगा और यदि वह मुझे प्रायश्चित बताएगा तो मेरा यज्ञ निर्विघ्न समाप्त हो जाएगा।

केशिध्वज का खाण्डिक्य के समीप जाना— केशिध्वज रथ पर सवार होकर खाण्डिक्य के पास पहुँचा। केशिध्वज को देखकर ख़ाण्डिक्य ने समझा कि वह उसे मारने आया है; अतः उसने अपने धनुष पर बाण-चढ़ाकर उसे युद्ध के लिए ललकारा। केशिध्वज ने कहा- मैं तुम्हें मारने नहीं, अपितु एक संशय दूर करने आया हूँ। यह सुनकर खाण्डिक्य शान्त हो गया। मन्त्रियों द्वारा केशिध्वज को मारने की सलाह देने पर भी खाण्डिक्य ने सोचा कि इसको मारकर मैं पृथ्वी का राज्य प्राप्त करूंगा और नहीं मारता हूँ तो पारलौकिक विजय प्राप्त करूंगा। दोनों में पारलौकिक विजय श्रेष्ठ है; अतः मुझे इसे न मारकर इसकी शंका का समाधान करना चाहिए।

खाण्डिक्य द्वारा प्रायश्चित्त– विधान का कथन-केशिध्वज ने अपनी यज्ञ की धर्मधेनु के सिंह द्वारा वध का वृत्तान्त बताकर उसका प्रायश्चित पूछो। खाण्डिक्य ने यथाविधि उसे उचित प्रायश्चित बता दिया। प्रायश्चित ज्ञात होने पर राजा केशिध्वज यज्ञ-स्थान पर लौट आया और सहर्ष यज्ञ सम्पन्न कराकर (UPBoardSolutions.com) यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों, सदस्यों और याचकों को खूब दान दिया। अन्त में उसे स्मरण आया कि उसने खाण्डिक्य को गुरु-दक्षिणा नहीं दी हैं।

केशिध्वज द्वारा गुरु-दक्षिणा- केशिध्वज पुनः रथ पर सवार होकर खाण्डिक्य के पास वन में गया और कहा कि मैं तुम्हें गुरु-दक्षिणा देने आया हूँ। मन्त्रियों द्वारा अपहत राज्य माँगने का परामर्श दिये जाने पर भी खाण्डिक्य ने राज्य की माँग नहीं की वरन् उससे कहा कि आप अध्यात्मविद्या के ज्ञाता हैं। अतः ऐसे कर्म का उपदेश दीजिए, जिससे क्लेश की शान्ति हो। केशिध्वज को आश्चर्य हुआ कि उसने (UPBoardSolutions.com) निष्कण्टक राज्य क्यों नहीं माँगा? उसके इस ‘ल्का स्त्र देते हुए खाण्डिक्य ने कहा कि मूर्खजन राज्य की इच्छा करते हैं, मेरे जैसे नहीं। केशिध्वज ने प्रसन्न होकर उससे कहा कि खाण्डिक्य तुम धन्य हो। मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। तत्पश्चात् उसे आत्मा का स्वरूप और योग-विद्या की शिक्षा दी। इस प्रकार शिक्षा से दोनों के मन की मलिनता समाप्त हो गयी।

चरित्र-चित्रण 

केशिध्वज 

परिचय- केशिध्वज धर्मध्वज-जनक का पौत्र और कृतध्वज का पुत्र था। वह अध्यात्मविद्या का ज्ञाता था और अमरत्व-प्राप्त करने के लिए अनेक यज्ञों का विधान किया करता था। वह खाण्डिक्य से राज्य छीनकर स्वयं राजा बन बैठा था। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) सांसारिक सुखों में आसक्त- केशिध्वज अध्यात्मवेत्ता होते हुए भी सांसारिक सुख-भोगों में आसक्त था। उसने अपने भाई खाण्डिक्य का राज्य छीनकर हड़प लिया था। अन्त में वह स्वयं अनुभव करता है कि वह अज्ञान से मृत्यु को जीतना चाहता है एवं राज्य और भोगों में लिप्त है।

(2) धर्मभीरु- केशिध्वज धर्मभीरु राजा है तभी वह सिंह द्वारा यज्ञधेनु के मार देने पर विद्वानों से उसका प्रायश्चित पूछता है और विहित प्रायश्चित जानने के लिए ही खाण्डिक्य के पास पहुँचता है। जब तक वह प्रायश्चित नहीं कर लेता, उसे शान्ति नहीं मिलती। यज्ञ के पूरा होने पर वह खाण्डिक्य के पास गुरु-दक्षिणा देने के लिए भी जाता है। इन सभी बातों से उसकी धर्मभीरुता प्रकट होती है।

(3) यज्ञ में रुचि- केशिध्वज अमरत्व प्राप्त करने के लिए अनेक यज्ञ करता है। वह यज्ञ को निर्विघ्न समाप्त करना चाहता है। इसीलिए विघ्न आने पर शत्रु से भी पूछकर वह उसका प्रायश्चित करता है। यज्ञ की समाप्ति पर वह ब्राह्मणों, याचकों और सदस्यों को खूब धन दक्षिणी रूप में देता है। प्रायश्चित (UPBoardSolutions.com) पूछने के लिए शत्रु के पास जाने को, यज्ञ के फल और उसकी निर्विघ्न समाप्ति को वह प्राणों से भी अधिक महत्त्व देता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि वह न केवल यज्ञ का विधान करने का इच्छुक है, अपितु वह यज्ञ की निर्विघ्न समाप्ति भी चाहता है।

(4) अध्यात्म विद्या का ज्ञाता– केशिध्वज अध्यात्मपरायण कृतध्वज का पुत्र है; अत: अध्यात्म विद्या का ज्ञान उसे पैतृकदाय के रूप में प्राप्त हुआ है। खाण्डिक्य भी उसे अंध्यात्म विद्या का विद्वान् मानते हुए उससे आत्मा का स्वरूप और योग-विद्या को सीखता है।

(5) गुणग्राही– केशिध्वज गुणों का आदर करना जानता है और शत्रु से भी विद्या-ग्रहण करने में  संकोच नहीं करता। वह खाण्डिक्य से यज्ञधेनु की हत्या का प्रायश्चित पूछने जाता है और उससे नम्रतापूर्वक व्यवहार करता। खाण्डिक्य के क्रोध करने पर भी वह जरा-भी विचलित नहीं होता। उसका यह गुण उसकी गुण-ग्राहकता में अचल आस्था को प्रदर्शित करता है। इसके साथ ही वह अपने गुणों को दूसरों को प्रदान करने वाला भी है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि केशिध्वजे अध्यात्मज्ञानी, विवेकी और गुणग्राही होते हुए भी सांसारिक सुखों में आसक्त और धर्मभीरु राजा है, जिसमें विवेकशीलता, प्रत्युत्पन्नमतित्व, आत्मबले आदि गुण भी विद्यमान हैं।

UP Board Solutions

खाण्डिक्य

परिचय-खाण्डिक्य धर्मध्वज-जनक का पौत्र और अमितध्वज का पुत्र था। राज्य हड़प लेने के कारण वह केशिध्वज को अपना शत्रु मानता था। कर्मकाण्ड में उसकी दृढ़ आस्था थी। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं

(1) विवेकी-खाण्डिक्यजनक विवेकी राजा है। किसी भी कार्य को करने से पहले वह अपने मन्त्रियों और पुरोहितों से सलाह लेकर तत्पश्चात् अपने विवेक से काम करता है। वह मन्त्रियों की सलाह को आँख मूंदकर नहीं मानता। केशिध्वज के वन में आने पर वह दोनों ही बार अपने विवेक से कार्य करता है।

(2) प्रतिशोध की भावना से पीड़ित – केशिध्वज द्वारा परास्त किये जाने और राज्य छीन लेने के बाद से ही खाण्डिक्य उससे प्रतिशोध लेने के अवसर की प्रतीक्षा में रहता था। केशिध्वज को वन में पास आता देखकर वह उसे मारने के लिए क्रोध से धनुष उठा लेता है, लेकिन वह इस प्रकार प्रतिशोध से (UPBoardSolutions.com) पृथ्वी के राज्य को प्राप्त करने की अपेक्षा पारलौकिक विजय को श्रेयस्कर मानकर केशिध्वज को नहीं मारता। इस क्रिया से उसका चरित्र एक आदर्श प्रतिशोधी के रूप में दृष्टिगत होता है।

(3) परमार्थ प्रेमी– खाण्डिक्य परमार्थ प्रेमी है। वह शत्रु को सम्मुख आया हुआ देखकर भी परमार्थ के लोभ से उसे नहीं मारता। वह केशिध्वज से गुरु-दक्षिणा के रूप में राज्य न माँगकर परमार्थ विद्या माँगता है। वह परमार्थ विद्या को क्लेश-शान्ति का उपाय मानता है। सांसारिक सुख या राज्यादि की कामना करने वालों को वह मन्दमति मानता है। वह परमार्थ विद्या को ही शाश्वत और स्थायी आनन्द प्रदान करने वाली मानता है।

(4) सन्तोषी व्यक्ति– खाण्डिक्य परम सन्तोषी व्यक्ति था। इसीलिए वह केशिध्वज से दोनों बार राज्य नहीं माँगता। यदि वह चाहता तो उसे राज्य अनायास ही प्राप्त हो जाता; क्योंकि दोनों बार उसके सम्मुख ऐसे ही अवसर उपस्थित थे; किन्तु उसने ऐसा नहीं किया। ये दोनों ही घटनाएँ उसके सन्तोषी व्यक्ति होने की ओर इंगित करती हैं।

(5) तत्त्वज्ञानी– खांण्डिक्य अपने द्वारा सम्पादित होने वाले समस्त कार्यों के अन्तर्भूत तत्त्वों को जान लेने के पश्चात् ही उनको सम्पादन करता था। वह कर्मकाण्ड के सभी विधानों के (UPBoardSolutions.com) सारभूत तत्त्वों का ज्ञाता और अद्वितीयवेत्ता था। यह बात शुनक द्वारा केशिध्वज को; प्रायश्चित विधान के तत्त्व को जानने के लिए; उनके पास भेजे जाने वाले प्रसंग से भली-भाँति स्पष्ट हो जाती है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि खाण्डिक्य सांसारिक सुखों को महत्त्व न देकर परमार्थ को महत्त्व देता है। केशिध्वज से आत्मज्ञान प्राप्त करके वह अपने मन में वैमनस्य की मलिनता को धो डालता है।

लघु उत्तरीय संस्कृत  प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिएप्रश्

प्रश्‍न 1
केशिध्वजः कस्य सूनुः आसीत्?
उत्तर
केशिध्वजः कृतध्वजस्य सूनुः आसीत्।

प्रश्‍न 2
खाण्डिक्यजनकः कस्य पुत्रः आसीत्?
उत्तर
खाण्डिक्यजनकः अमितध्वजस्य पुत्रः आसीत्।

प्रश्‍न 3
खाण्डिक्यः कथं वनं जगाम?
उत्तर
केशिध्वजेन पराजितः राज्यादवरोपितः सन् खाण्डिक्य: वनं जगाम।

UP Board Solutions

प्रश्‍न 4
केशिध्वजस्य धर्मधेनुं कः जघान?
उत्तर
केशिध्वजस्य धर्मधेनुं एकः सिंह: जघान।

प्रश्‍न 5
प्रायश्चितविषये ऋत्विजः किम् ऊचुः?
उत्तर
प्रायश्चितविषये न वयं जानीमः, अत्र कशेरु: प्रष्टव्यः इति ऋत्विजः ऊचुः।

प्रश्‍न 6
कशेरुः केशिध्वजं किमब्रवीत्?
उत्तर
कशेरुः ‘नाहं जानामि, भार्गवं शुनकं पृच्छ, सः नूनं वेत्स्यति’ इति केशिध्वजम् अब्रवीत्।

प्रश्‍न 7
भार्गवो शुनकः राजानं किमाह?
उत्तर 
भार्गवः शुनकः राजानमाह यत् “न कशेरुः न चाहं, वान्यः कश्चिज्जानाति, केवलं खाण्डिक्य: जानाति, यो भवता पराजितः।”

प्रश्‍न 8
पुरोहितः मन्त्रिणश्च खाण्डिक्यं किमुचुः?
उत्तर
पुरोहितः मन्त्रिणश्च खाण्डिक्यम् ऊचुः यत् वंशगतः शत्रुरेषु हन्तव्यः, हतेऽस्मिन् सर्वा पृथ्वी तव वश्या भविष्यति।।

प्रश्‍न 9
केशिध्वजम् आयान्तं दृष्ट्वा खाण्डिक्यः किमुवाच?
उत्तर
केशिध्वजम् आयान्तं दृष्ट्वा खाण्डिक्यः उवाच यत् त्वं मां हन्तुम् आगतः, त्वाम् अहं हनिष्यामि, त्वं मम राज्यहरो रिपुः इति।।

UP Board Solutions

प्रश्‍न 10
खाण्डिक्येन केशिध्वजः कथं न हेत:?
उत्तर-खाण्डिक्येन पारलौकिकं जयम् अवाप्तं केशिध्वजः न हतः।

प्रश्‍न 11
खाण्डिक्यः केशिध्वजं कां गुरुदक्षिणाम् अयाचत्?
उत्तर
खाण्डिक्यः केशिध्वजम् गुरुदक्षिणारूपेण अध्यात्मविद्याम् अयाचत्।।

वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नोत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है।शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1. विद्यादानम्’ नामक पाठ किस ग्रन्थ से उदधृत है?
(क) “श्रीमद्भागवत् पुराण’ से
(ख) ‘अग्निपुराण’ से
(ग) ‘महाभारत से
(घ) विष्णुपुराण’ से

2. विष्णुपुराण की रचना किसके द्वारा की गयी?
(क) महर्षि वाल्मीकि के द्वारा
(ख) महर्षि वशिष्ठ’ के द्वारा
(ग) “महर्षि विश्वामित्र के द्वारा
(घ) महर्षि वेदव्यास के द्वारा

3. धर्मध्वज के पुत्रों के नाम क्या थे?
(क) केशिध्वज और अमितध्वज
(ख) अमितध्वज और कृतध्वज
(ग) कृतध्वज और केशिध्वज
(घ) केशिध्वज और खाण्डिक्य-जनक

4. खाण्डिक्य-जनक किसके पुत्र थे?
(क) अमितध्वज के
(ख) केशिध्वज के
(ग) धर्मध्वज के .
(घ) कृतध्वज के

5. खाण्डिक्य वन में क्यों चला गया था?
(क) क्योंकि नगर में उसका दम घुटता था
(ख) क्योंकि वह केशिध्वज से पराजित हो गया था।
(ग) क्योंकि वह तपस्या करना चाहता था।
(घ) क्योंकि उसके लिए वन का निवास रुचिकर था

UP Board Solutions

6. सिंह ने किसकी धर्मधेनु को मार डाला था?
(क) केशिध्वज की
(ख) अमितध्वज की
(ग) धर्मध्वज की
(घ) कृतध्वज की

7. केशिध्वज क्या धारण करके खाण्डिक्य के पास पहुँचा था? 
(क) कृष्णाजिन
(ख) वल्कल
(ग) कवच
(घ) राजसी वस्त्र

8. केशिध्वज किसका प्रायश्चित करना चाहता था?
(क) उसने अपने पुरोहित का अपमान किया था
(ख) उसके यज्ञ की यज्ञधेनु को सिंह ने मार डाला था
(ग) वह अधिक यज्ञ नहीं कर सका था।
(घ) उसने अपने भाई का राज्य छीना था ।

9. खाण्डिक्यजनक के मन्त्रियों ने केशिध्वज के प्रायश्चित पूछने के लिए आने पर उसे परामर्श दिया कि
(क) उसे प्रायश्चित बताकर पारलौकिक विजय प्राप्त करनी चाहिए
(ख) प्रायश्चित्त पूछने के लिए आये शत्रु को प्रायश्चित नहीं बताना चाहिए
(ग) विद्या सीखने के लिए आये हुए को नहीं मारना चाहिए
(घ) वंशगत शत्रु केशिध्वज को मार डालना चाहिए।

10. केशिध्वज के मन को सन्तोष क्यों नहीं था?
(क) क्योंकि उसने अपनी प्रजा को कष्ट दिया था।
(ख) क्योंकि उसने खाण्डिक्य को गुरुदक्षिणा नहीं दी थी
(ग) क्योंकि उसने खाण्डिक्य से क्षमायाचना नहीं की थी।
(घ) क्योंकि उसने यज्ञ के पुरोहित को दक्षिणा नहीं दी थी।

11. खाण्डिक्य ने केशिध्वज से गुरुदक्षिणा में राज्य क्यों नहीं माँगा?
(क) क्योंकि खाण्डिक्य को राज्य से घृणा हो गयी थी,
(ख) क्योंकि खाण्डिक्य के पास स्वयं बड़ा राज्य था।
(ग) क्योंकि खाण्डिक्य के मन्त्रियों ने राज्य न लेने की सलाह दी थी
(घ) क्योंकि खाण्डिक्यं आत्मज्ञान को क्लेश शान्त करने वाला समझता था

12. ‘मूर्खाः कामयन्ते राज्यादिकं न तु मादृशाः।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) केशिध्वजः
(ख) अमितध्वजः
(ग) खाण्डिक्यजनकः
(घ) धर्मध्वजः

13. ‘…………..” कर्ममार्गे केशिध्वजश्च अध्यात्मशास्त्रे निपुणः आसीत्।’ वाक्य में रिक्त-पद की पूर्ति होगी।
(क) “खाण्डिक्यः’ से
(ख) ‘कृतध्वजः’ से
(ग) “अमितध्वजः’ से
(घ) “धर्मध्वजः’ से

14. ‘रे मूढ़! किं मृगाः कृष्णचर्मरहिताः भवन्ति?’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) केशिध्वजः
(ख) धर्मध्वजः
(ग) खाण्डिक्यः
(घ) अमितध्वजः

UP Board Solutions

15. किन्तु मया हतोऽयं पारलौकिकविजयं प्राप्स्यति, अहञ्च •••••••” ।’ वाक्य में रिक्त-स्थान की पूर्ति होगी
(क) राजकोषम्’ से ।
(ख) राजसिंहासनम्’ से
(ग) “धनम्’ से
(घ) “पृथिवीम्’ से

16. क्षत्रियः सन्नपि त्वं निष्कण्टकं राज्यं कथं न याचसे?’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(क) केशिध्वजः
(ख) धर्मध्वजः।
(ग) खाण्डिक्यः
(घ) अमितध्वजः

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 13 विद्यादानम्  (कथा – नाटक कौमुदी) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 13 विद्यादानम्  (कथा – नाटक कौमुदी), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Class 9 Sanskrit Chapter 9 UP Board Solutions पण्डितमूढयोर्लक्षणम् Question Answer

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 9
Chapter Name पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्)
Category UP Board Solutions

UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 9 Pandit Amudhayor Lakshanam Question Answer (पद्य-पीयूषम्)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 9 हिंदी अनुवाद पण्डितमूढयोर्लक्षणम् के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

परिचय-भारतीय वाङमय में वेदों के पश्चात् प्राचीन और सर्वमान्य ग्रन्थों में वेदव्यास अथवा कृष्णद्वैपायन व्यास द्वारा रचित महाभारत का सर्वोच्च स्थान है। धार्मिक, राजनीतिक, व्यावहारिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक तथा साहित्यिक दृष्टि से यह ग्रन्थ अत्यधिक गौरवपूर्ण है। भारतवर्ष में ही नहीं अपितु विश्व साहित्य में महाकाव्यों में सर्वप्रथम इसी की गणना की जाती है। महत्त्व की दृष्टि से इसे पाँचवाँ वेद भी कहा जाता है। (UPBoardSolutions.com) प्रस्तुत पाठ के श्लोक महाभारत से संगृहीत किये गये हैं। पाठ के प्रथम छः श्लोकों में पण्डित के और बाद के चार श्लोकों में मूर्ख के लक्षण बताये गये हैं।

[संकेत-श्लोकों की ससन्दर्भ व्याख्या’ शीर्षक से सभी श्लोकों के अर्थ संक्षेप में अपने शब्दों में लिखें।]

UP Board Solutions

(1)
निषेवते प्रशस्तानि निन्दितानि न सेवते ।
अनास्तिकः श्रद्दधानो ह्येतत्पण्डितलक्षणम् ॥

शब्दार्थ
निषेवते = आचरण करता है।
प्रशस्तानि = प्रशंसा करने योग्य।
निन्दितानि = निन्दित, बुरे कार्य।
सेवते = सेवन करता है।
अनास्तिकः = जो नास्तिक (वेद-निन्दक) न हो।
श्रद्दधानः = श्रद्धा रखता हुआ।
ह्येतत् (हि + एतत्) = यह ही।

सन्दर्य
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘पण्डितमूढयोर्लक्षणम्’ शीर्षक पाठ से उधृत है।

[संकेत-इस पाठ के शेष सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में पण्डित (विद्वान्) के लक्षण बताये गये हैं।

[संकेत-आगे के पाँच श्लोकों के लिए भी यही प्रसंग प्रयुक्त होगा।

अन्वय
(य:) प्रशस्तानि निषेवते, निन्दितानि न सेवते (यः) अनास्तिकः श्रद्दधानः (अस्ति)। एतत् हि पण्डित लक्षणम् (अस्ति)।

व्याँख्या
जो शुभ आचरणों का सेवन करता है, निन्दित आचरणों का सेवन नहीं करता है, जो नास्तिक (वेद-निन्दक-ईश्वर को न मानने वाला) नहीं है और श्रद्धालु है, इन सब गुणों से युक्त (UPBoardSolutions.com) होना ही पण्डित का लक्षण है। तात्पर्य यह है कि उत्तम कर्मों को करने वाला, अशुभ कर्मों को न करने वाला, ईश्वर की सत्ता में विश्वास और उसमें श्रद्धा रखने वाला व्यक्ति पण्डित होता है।

UP Board Solutions

(2)
क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च हीः स्तम्भो मान्यमानिता।
यमर्थान्नापर्कषन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥

शब्दार्थ
दर्पः = अहंकार।
हीः = लज्जा।
स्तम्भः= जड़ता।
मान्यमानिता = स्वयं को सम्मान के योग्य मानना।
यम् = जिसको।
अर्थाः = लक्ष्य से।
अपकर्षन्ति = पीछे खींचते हैं।
वै = निश्चय से।
उच्यते = कहा जाता है।

अन्वय
(य:) क्रोधः, हर्षः, दर्पः, हीः, स्तम्भः, मान्यमानिता च यमर्थान् न अपकर्षन्ति, वै स पण्डितः उच्यते।

व्याख्या
जिसको क्रोध, हर्ष, अहंकार, लज्जा, जड़ता, अपने को सम्मान के योग्य मानने की .. भावना ये सब अपने लक्ष्य से पीछे की ओर नहीं खींचते हैं। निश्चय ही पण्डित’कहलाता है। तात्पर्य यह है। 
कि इन सभी मनोविकारों के होने के बावजूद जो अपने उद्देश्य को पूरा करने में पीछे नहीं रहता, वही पण्डित होता है।

(3)
यस्य संसारिणी प्रज्ञा धर्मार्थावनुवर्तते । |
कामादर्थं वृणीते यः सवै पण्डित उच्यते ॥

शब्दार्थ
यस्य = जिसकी।
संसारिणी = व्यावहारिक।
प्रज्ञा = बुद्धि।
धर्मार्थी = धर्म और अर्थ का।
अनुवर्तते = अनुसरण करती है।
कामादर्थं = कार्य की अपेक्षा से अर्थ को।
वृणीते = वरण करता है।

अन्वय
यस्य संसारिणी प्रज्ञा धर्मार्थी अनुवर्तते, य: कामात् अर्थ वृणीते, वै सः पण्डितः उच्यते।।

व्याख्या
जिसकी व्यावहारिक बुद्धि धर्म और अर्थ का अनुसरण करती है, जो काम की अपेक्षा अर्थ का वरण करता है, निश्चय ही वह पण्डित कहा जाता है।

(4)
क्षिप्रं विजानाति चिरं शृणोति विज्ञाय चार्थं भजते न कामात् ।
नासम्पृष्टो व्युपयुङ्क्ते परार्थे तत्प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य ॥

शब्दार्थ
क्षिप्रम् = शीघ्र।
विजानाति = विशेष रूप से जानता है।
चिरम् = देरी से।
शृणोति = सुनता है।
विज्ञाय = अच्छी तरह जानकर।
अर्थम् कार्य को, प्रयोजन को।
भजते = स्वीकार करता है।
कामात् = स्वार्थ से, इच्छा से।
असम्पृष्टः = बिना पूछा गया।
व्युपयुङ्क्ते = अपने को लगाता है।
परार्थे = परोपकार में।
प्रज्ञानम् = लक्षण।

अन्वय
क्षिप्रं विजानाति, चिरं शृणोति, अर्थ विज्ञाय च भजते, कामात् न (भजते) असम्पृष्टः परार्थे न व्युपयुङ्क्ते, तत् पण्डितस्य प्रथमं प्रज्ञानम् (अस्ति)।

व्याख्या
जो किसी बात को संकेतमात्र से शीघ्र समझ जाता है, प्रत्येक तथ्य को बहुत देर तक अर्थात् तब तक सुनता रहता है, जब तक कि अच्छी तरह समझ नहीं लेता है, कार्य को अच्छी तरह जानकर ही कार्य करता है, स्वार्थ से नहीं करता है। भली-भाँति न पूछा गया दूसरों के काम में स्वयं को नहीं लगाता है, पण्डित का यही प्रथम लक्षण है।

UP Board Solutions

(5)
न हृष्यत्यात्मसम्माने नावमानेन तप्यते ।।
गाङ्गो हृद इवाक्षोभ्यो यः स पण्डित उच्यते ॥

शब्दार्थ
हृष्यति = प्रसन्न होता है।
आत्मसम्माने = अपने सम्मान में।
अवमानेन = अपमान से।
तप्यते = दु:खी होता है।
गाङ्गः = गंगा का।
हृदः = कुण्ड।
अक्षोभ्यः = क्षुभित (व्याकुल) न होने वाला।

अन्वय
(यः) आत्मसम्माने न हृष्यति, अवमानेन न तप्यते, यः गङ्गाः हृदः इव अक्षोभ्यः भवति सः पण्डितः उच्यते।।

व्याख्या
जो अपने सम्मान पर प्रसन्न नहीं होता है, अपने अपमान से दु:खी नहीं होता है, जो गंगा के निर्मल जलकुण्ड की तरह क्षुभित नहीं होता है, वह पण्डित कहलाता है। तात्पर्य यह है कि बुद्धिमान् व्यक्ति को न तो अपने सम्मान पर प्रसन्न होना चाहिए और ही अपने अपमान पर दु:खी। उसे । तो गंगाजल की तरह शान्त रहना चाहिए।

(6)
तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञः सर्वकर्मणाम्।।
उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते ॥ 

शब्दार्थ
तत्त्वज्ञः = वास्तविक रूप को जानने वाला।
सर्वभूतानाम् = सब प्राणियों के।
योगज्ञः = योग (समन्वय को जाननेवाला।
सर्व कर्मणाम् = सभी कर्मों के।
उपायज्ञः = हित के उपायों को जानने वाला।

अन्वय
(यः) सर्वभूतानां तत्त्वज्ञः, सर्वकर्मणां योगज्ञः, मनुष्याणाम् उपायज्ञः (भवति सः) नरः पण्डित उच्यते।

व्याख्या
जो मनुष्य सभी प्राणियों के वास्तविक रूप को जानने वाला है, जो सभी कर्मों के समन्वय को जानने वाला है, मनुष्यों के हित के उपायों को जानने वाला होता है, वह मनुष्य पण्डित कहलाता है। तात्पर्य यह है कि जो मनुष्य सभी प्राणियों के वास्तविक स्वरूप को, सभी कर्मों के समन्वय को और मनुष्यों के हित के उपायों को जानता है, वही बुद्धिमान होता है।

(7)
अश्रुतश्च समुन्नद्धो दरिद्रश्च महामनाः।
अर्थाश्चाकर्मणी प्रेप्सुर्मूढ इत्युच्यते बुधैः ॥
शब्दार्थ
अश्रुतः = वेद एवं शास्त्र के ज्ञान से रहित।
समुन्नद्धः = (शास्त्रज्ञ होने का) गर्व करने वाला।
महामनाः = उदार मन वाला, अधिक इच्छा रखने वाला।
अर्थान् = धनों को।
अकर्मणा = बिना कर्म किये।
प्रेप्सुः = प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला।
बुधैः = विद्वानों के द्वारा।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में मूर्ख व्यक्ति के लक्षण बताये गये हैं।

[संकेत–आगे के तीन श्लोकों के लिए यही प्रसंग प्रयुक्त होगा।]

अन्वय
(यः) अश्रुतः (भूत्वा) (अपि) समुन्नद्धः (भवति यः) दरिद्रः च ( भूत्वा) महामनाः (भवति) (य:) अर्थान् च अकर्मणा प्रेप्सुः (भवति सः) बुधैः मूढः इति उच्यते।

व्याख्या
जो शास्त्रवेत्ता न होते हुए भी, अभिमानपूर्वक स्वयं को पण्डित कहता है, जो दरिद्र होकर भी उदार मन वाला (अधिक इच्छाओं वाला) होता है, जो धन को बिना कर्म किये (UPBoardSolutions.com) प्राप्त करने की इच्छा रखता है, विद्वानों ने उसे मूढ़ (विवेकहीन) पुरुष कहा है। तात्पर्य यह है कि अभिमानपूर्वक स्वयं को पण्डित कहने वाला, धनहीन होते हुए भी उदार मन वाला, बिना कर्म किये धन प्राप्ति की इच्छा करने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है।

UP Board Solutions

(8)
स्वमर्थं यः परित्यज्य परार्थमनुतिष्ठति ।।
मिथ्याचरति मित्रार्थे यश्च मूढः स उच्यते ॥

शब्दार्थ
स्वमर्थं = अपने कार्य को।
परित्यज्य = छोड़कर।
परार्थम् = दूसरे के कार्य को।
अनुतिष्ठति = करता है।
मिथ्याचरति = मिथ्या आचरण करता है।
मित्रार्थे = मित्र के साथ भी।

अन्वेय
यः स्वम् अर्थं परित्यज्य परार्थम् अनुतिष्ठति, यः च मित्रार्थे मिथ्या आचरति, सः मूढः उच्यते।

व्याख्या
जो मनुष्य अपने काम को छोड़कर दूसरों के कार्य को करता है; अर्थात् जो अपने अधिकार से बाहर है उन कार्यों को करता है और जो मित्र के साथ भी मिथ्या आचरण करता है, वह मूढ़ कहलाता है। तात्पर्य यह है कि अपने काम को छोड़कर दूसरों के काम को करने वाला और मित्र के साथ मिथ्या आचरण करने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है।

(9)

अमित्रं कुरुते मित्रं मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति च।
कर्म चारभते दुष्टं तमाहुर्मूढचेतसम्॥

शब्दार्थ
अमित्रम् = शत्रु को।
कुरुते = करता है।
द्वेष्टि = द्वेष करता है।
हिनस्ति = नुकसान पहुँचाता है।
चारभते = आरम्भ करता है।
दुष्टम् = निन्दित।
आहुः = कहते हैं।
मूढचेतसम् = मूढ़ चित्त वाला।

अन्वय
(य:) अमित्रं मित्रं कुरुते, (यः) मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति च (यः) दुष्टं कर्म आरभते, तं मूढचेतसम् आहुः।।

व्याख्या
जो शत्रु को मित्र बनाता है, जो मित्र से द्वेष करता है और हानि पहुँचाता है, जो निन्दित कर्म को आरम्भ करता है, उसे (विद्वान्) मूढ़ चित्त वाला (मूर्ख) कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जो व्यवहारहीन व्यक्ति शत्रु के साथ मित्रता का और मित्र के साथ शत्रुता का व्यवहार करता है, उसे विद्वानों ने मूर्ख कहा है।

(10)

अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते ।।
विश्वसिति प्रमत्तेषु मूढचेता नराधमः ॥

शब्दार्थ
अनाहूतः = बिना बुलाया गया।
प्रविशति = प्रवेश करता है।
अपृष्टः = बिना पूछा गया।
बहु भाषते = बहुत बोलता है।
विश्वसिति = विश्वास करता है।
प्रमत्तेषु = पागलों पर।
नराधमः = नीच मनुष्य।।

अन्वय
(यः) अनाहूतः (गृह) प्रविशति, (य:) अपृष्टः बहु भाषते, (य:) प्रमत्तेषु विश्वसिति, (स:) नराधमः मूढचेताः (भवति)।

व्याख्या
जो बिना बुलाये घर में प्रवेश करता है; अर्थात् अनाहूत ही सर्वत्र जाने का इच्छुक होता है, जो बिना पूछे बहुत बोलता है, जो पागलों पर विश्वास करता है, वह नीच मनुष्य मूढ़ चित्त वाला होता है। तात्पर्य यह है कि बिना बुलाये किसी के घर जाने वाला, बिना कुछ पूछे बोलने वाला। और पागल पर विश्वास करने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है।

श्लोक का संस्कृत-अर्थ

(1) निषेवते प्रशस्तानि •••••••••••••••• ह्येतत्पण्डितलक्षणम्॥ (श्लोक 1)
संस्कृतार्थ-
महर्षिव्यासः महाभारते पण्डितस्य लक्षणं कथयति-यः पुरुषः प्रशंसनीयानि कार्याणि कॅरोति, निन्दितानि कर्माणि न करोति, ईश्वरे विश्वसिति वेदानां निन्दकः वा न अस्ति, यश्च श्रद्धां करोति, सः पण्डितः भवति। 

UP Board Solutions

(2) तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां ••••••••••••• पण्डित उच्यते ॥ (श्लोक 6)
संस्कृतार्थः-
य: नरः सर्वेषां प्राणिनां वास्तविकं रूपं जानाति, यः सर्वेषां कर्मणां योगं (समन्वय) जानाति, यः नराणां हितानाम् उपायान् जानाति, सः नरः पण्डितः कथ्यते।।

(3) स्वमर्थम् “••••••••••••••••••••••••••• मूढः स उच्यते ॥ (श्लोक 8 )
संस्कृतार्थः–
महर्षिः वेदव्यासः कथयति यत् यः जनः स्वकीयं कार्यम् उपेक्ष्य परकार्यं कर्तुम् इच्छति, करोति च, स्वमित्रेषु मिथ्याचरणं भजते सः मूर्खः भवति।

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

Class 10 Sanskrit Chapter 1 UP Board Solutions महात्मनः संस्मरणानि Question Answer

UP Board Class 10 Sanskrit Chapter 1 Mahatmana Sansmarnani Question Answer (कथा – नाटक कौमुदी)

कक्षा 10 संस्कृत पाठ 1 हिंदी अनुवाद महात्मनः संस्मरणानि के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1 महात्मनः संस्मरणानि (कथा – नाटक कौमुदी)

परिचय

भारत की पावन-भूमि पर समय-समय पर ऐसे महापुरुष जन्म लेते रहे हैं, जिन्होंने अपने संघर्षशील जीवन से न केवल भारत का कल्याण किया, वरन् सम्पूर्ण विश्व को एक नवीन दिशा प्रदान की। परतन्त्रता की स्थिति में भारत को स्वतन्त्र कराने हेतु इस पावन-भूमि पर (UPBoardSolutions.com) जन्म लेने वाले–लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाषचन्द्र बोस, महात्मा गाँधी, पं० जवाहरलाल नेहरू आदि-स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों एवं बलिदानी वीरों की श्रृंखला बहुत लम्बी है। देश की स्वतन्त्रता के संघर्ष में महात्मा गाँधी का नाम अत्यधिक आदर के साथ लिया जाता है। भारत को स्वतन्त्र कराने का श्रेय इन्हीं गाँधी जी को है। इन्होंने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेज शासकों को भारत छोड़ने पर विवश किया।

UP Board Solutions

प्रस्तुत पाठ के संस्मरण मुख्यतया ‘बापू’ नामक पुस्तक पर आधारित हैं। इसमें महात्मा गाँधी के जीवन सम्बन्धी कुछ संस्मरण दिये गये हैं, जिनमें महात्मा गाँधी की सत्यनिष्ठा, अपूर्व दृढ़ता, अतुलित साहस तथा लक्ष्य-पॅप्ति के लिए प्रत्येक अपमान को सहने की क्षमता आदि विशिष्ट गुणों की झाँकी मिलती है।

पाठ-सारांश

जन्म मोहनदास करमचन्द गाँधी का जन्म पोरबन्दर नामक नगर में हुआ था। इनके पिता का नाम करमचन्द गाँधी तथा माता का नाम पुतलीबाई था। मोहनदास पर अपने माता-पिता के सत्यनिष्ठा, निर्भयता आदि गुणों का प्रभाव पड़ा। प्रारम्भ से ही वे एक अध्ययनशील बालक थे।

सत्यवादिता एक बार गाँधी जी ने ‘हरिश्चन्द्र’ नामक नाटक देखा। इस नाटक से उन्होंने हरिश्चन्द्र (UPBoardSolutions.com) के समान ही सत्यवादी और सच्चरित्र बनने की प्रेरणा प्राप्त की। एक बार विद्यालय में छात्रों के भाषा-ज्ञान की परीक्षा लेने के लिए ‘गाइल्स’ नाम का इंस्पेक्टर आया। गाँधी जी पाँच शब्दों में से एक केटल’ शब्द शुद्ध

नहीं लिख सके। अध्यापकों के कहने पर भी इन्होंने नकल नहीं की। इससे वे शिक्षकों के कोपभाजन और छात्रों में उपहास के पात्र बने, फिर भी ये धोखा देकर सत्य को नहीं छिपाना चाहते थे। बाद में अपनी सत्यनिष्ठा से ये अपने शिक्षकों और सहपाठियों के प्रिय हो गये। सत्य बोलने वालों के लिए मौन शक्तिशाली अस्त्र होता है। मौन’ ने इन्हें अनेक बार झूठ बोलने से बचाया।

UP Board Solutions

अपमान सहने की क्षमता सन् 1893 ईस्वी में गाँधी जी बम्बई नगर से दक्षिण अफ्रीका के नेटाल नगर में गये। वहाँ इन्होंने भारतीयों की उपेक्षा और तिरस्कार को देखा। शिक्षित भारतीय भी यूरोपीय लोगों से मिल नहीं सकते थे। वहाँ भारतीयों को ‘कुली’ कहा जाता था और गाँधी जी कुलियों के वकील’ नाम से जाने जाते थे।

स्वाभिमानी एक बार गाँधी जी रेल से प्रिटोरिया नगर जाने के लिए प्रथम श्रेणी का टिकट लेकर प्रथम श्रेणी के डिब्बे में यात्रा कर रहे थे। उसी समय उस डिब्बे में कोई यूरोपीय यात्री आया। उसने श्याम वर्ण के गाँधी जी को देखकर पहले तो स्वयं ही उनसे बाहर जाने के लिए कहा। जब गाँधी जी ने ऐसा करने से मना कर दिया तो उसने रेल के अधिकारियों से कहकर उन्हें डिब्बे से बाहर निकलवा दिया। गाँधी जी ने ठण्ड में ठिठुरते हुए पूरी रात प्रतीक्षालय में व्यतीत की। उन्हें दक्षिण अफ्रीका में इसी प्रकार के अनेक कटु अनुभव हुए। उन्होंने वहाँ के भारतीयों को एक सूत्र में बाँधने के लिए उन्हें एकजुट किया। उन्होंने विद्वेष के स्थान पर प्रेम-व्यवहार, हिंसा के स्थान पर आत्म-बलिदान, शारीरिक बल के स्थान पर आत्मबल के व्यवहार का उपदेश दिया। गाँधी जी ने जीवन के प्रायः सभी सूत्रों की परीक्षा दक्षिण अफ्रीका में कर ली थी।

उग्रवाद का विरोध गाँधी जी के समय में पंजाब में उग्रवादियों की जटिल समस्या थी। लोगों के साथ अपमानजनक व्यवहार होता था और उन्हें कोड़ों से पीटा जाता था। गाँधी जी ने उनका डटकर विरोध किया।

विदेशी वस्त्रों की होली विदेशी वस्त्र किस प्रकार भारतीय वस्त्र उद्योग का विनाश कर (UPBoardSolutions.com) रहे हैं, इसे दिखाने के लिए गाँधी जी ने बम्बई में स्वदेशी आन्दोलनरूपी अग्नि को प्रज्वलित किया। इसके अन्तर्गत गाँधी जी ने एक बार बम्बई में विदेशी वस्त्रों की होली जलायी। हजारों लोग उसे देखने आये। उन्होंने लोगों को अच्छी तरह समझाया कि विदेशी वस्त्र पहनना पाप है। विदेशी वस्त्रों को जलाकर हमने अपना पाप जला दिया है। गाँधी जी के प्रेरणादायक नेतृत्व में कांग्रेस संस्था ने स्वतन्त्रता का समर्थन किया तथा भारत के इतिहास की धारा को ही मोड़ दिया।

UP Board Solutions

सन् 1914 ई० में गाँधी जी जब दक्षिण अफ्रीका से विदा हुए, तो हजारों भारतीय युवकों ने विदाई में उनका अपूर्व अभिनन्दन किया। ऐसी विदाई इस देश में पहले कभी नहीं हुई थी।

भारत आकर अनेक महीनों तक गाँधी जी ने भारत का भ्रमण किया। इस भ्रमण में पुरोहित, व्यापारी, भिक्षुक आदि सभी प्रकार के लोग सम्मिलित हुए। गाँधी जी गरीबों की कठिनाइयों और कष्टों का अनुभव करने के लिए सदैव तृतीय श्रेणी में यात्रा किया करते थे।

स्वर्गारोहण मातृभूमि की स्वतन्त्रता का प्रेमी यह महात्मा 30 जनवरी, सन् 1948 ई० की सायंकालीन बेला में ‘हे राम’ का उच्चारण करता हुआ स्वर्ग सिधार गया।

चरित्र-चित्रण

गाँधी जी [2006,09, 10, 11, 12, 14]

परिचय ” महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था। इनका जन्म गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर, सन् 1869 ई० को हुआ था। इनके पिता का नाम करमचन्द तथा माता का नाम पुतलीबाई था। इनकी माता एक धर्मपरायणा स्त्री थीं, (UPBoardSolutions.com)जिनका पर्याप्त प्रभाव गाँधी जी के चरित्र पर पड़ा। गाँधी जी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

1. सत्यवादी : गाँधी जी ने बचपन में ‘हरिश्चन्द्र’ नाटक देखा था। इस नाटक का इनके कोमल मन पर बड़ा प्रभाव पड़ा, जिसके फलस्वरूप इन्होंने आजीवन सत्य बोलने का दृढ़-संकल्प कर लिया और आजीवन पालन भी किया। विषम परिस्थितियों में भी इन्होंने सत्य का अवलम्ब नहीं छोड़ा।

2. नैतिकतावादी : गाँधी जी पर्याप्त नैतिकतावादी थे। अनैतिक कार्यों में इनकी रुचि कदापि नहीं होती थी। उनके गुण का पता इसी बात से चलता है कि जब विद्यालय में आये इंस्पेक्टर ने कक्षा के बच्चों से ‘केटल’ शब्द लिखने के लिए कहा, तब इन्होंने ‘केटल’ शब्द को अपनी कॉपी पर गलत ही लिखा। अध्यापक के कहने पर भी इन्होंने इस शब्द को नकल करके सही नहीं किया।

3. उपेक्षितों के नेता : महात्मा गाँधी सदैव ही उपेक्षितों के हितों के पक्षधर रहे। अपने इसी आचरण के कारण इन्हें अनेक बार गोरे लोगों द्वारा अपमानित होना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका में ये ‘कुलियों के वकील’ कहलाते थे।

UP Board Solutions

4. प्रेम और एकता के अग्रदूत : प्रेम और अहिंसा गाँधी जी के अनुपम अस्त्र थे। इन्होंने इनके द्वारा विखण्डित भारतीयों को एकता के सूत्र में पिरो दिया। यही कारण था कि इनके पीछे भारत के ही करोड़ों नागरिक नहीं, अपितु विश्व के अन्य देशों के भी करोड़ों नागरिक खड़े रहते थे; अर्थात् इनका समर्थन करते थे।

5.उग्रवाद के कट्टर विरोधी : उग्रवाद सदैव ही लोगों के मन में घृणा उत्पन्न करता है। इससे लोगों के घर-के-घर नष्ट हो जाते हैं। गाँधी जी ने जब स्वतन्त्रता-प्राप्ति के लिए कभी उग्रवाद का समर्थन नहीं किया, फिर सामान्य जीवन में वे इसको कैसे स्वीकार कर सकते थे। उनके (UPBoardSolutions.com) समय में भी पंजाब में उग्रवादियों की समस्या थी। लोगों के साथ बड़ी क्रूरता का व्यवहार किया जाता था तथा उन्हें कोड़ों से बुरी तरह पीटा जाता था। गाँधी जी ने इसका डटकर विरोध किया।

6. स्वदेशी के पक्षधर : स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर ही हम अपने देश का विकास कर सकते हैं। अपनी इसी विचारधारा के कारण गाँधी जी ने बम्बई में विदेशी वस्त्रों की होली जलायी, जिसमें हजारों लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने भारतीयों को बताया कि विदेशी वस्त्र पहनना पाप है और विदेशी वस्त्रों को जलाकर हमने अपने पाप को जला दिया है।

7. भेदभाव के विरोधी : गाँधी जी व्यक्ति-व्यक्ति में कोई भेदभाव नहीं मानते थे, भले ही वह किसी भी जाति, रंग अथवा लिंग का क्यों न हो। इन्होंने अनेक कष्ट उठाकर इस भेदभाव का कड़ा विरोध किया। दक्षिण अफ्रीका में इन्होंने रंगभेद के विरुद्ध आन्दोलन चलाया और वहाँ से विजयी होकर लौटे।

8. राम के परम भक्त : गाँधी जी राम के परम भक्त थे। सन् 1948 की 30 जनवरी को इन्होंने “हे राम’ कहकर ही अपने प्राण त्यागे थे।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि गाँधी जी सत्यवादी, नैतिकतावादी, रंगभेद विरोधी इत्यादि अनेक चारित्रिक गुणों से युक्त, भारतमाता के सच्चे सपूत तथा मानवता के पुजारी थे। उनके स्थान की पूर्ति सर्वथा असम्भव है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महात्मनः किं नाम आसीत् ? [2011]
उत्तर :
महात्मनः नाम मोहनदासः आसीत्।

प्रश्न 2.
सः कुत्र जन्म लेभे ?
या
महात्मा कुत्र जन्म लेभे ? [2006,09,14]
या
गान्धीमहाशयस्य जन्म कुत्र बभूव (अभवत्)?
उत्तर :
पोरबन्दरनाम्नि नगरे गाँधीमहाशयस्य जन्म बभूव (अभवत्)।

UP Board Solutions

प्रश्न 3.
तस्य (महात्मनः गान्धिनः ) मातुः नाम किम् आसीत् ? [2007, 10, 12, 14]
या
महात्मागान्धिनः मातुर्नाम किम् आसीत्? [2013]
या
मोहनदासः मातुर्नाम किम् आसीत्? [2012]
उत्तर :
तस्य (महात्मनः गान्धिनः) मातुः नाम ‘पुतलीबाई’ आसीत्।

प्रश्न 4.
पुतलीबाई स्वभावेन कीदृशी आसीत् ? [2014]
उत्तर :
पुतलीबाई स्वभावेन मधुरा, धर्मरता, परम पवित्रा च आसीत्।

प्रश्न 5.
केन नाटकेन तस्य(महात्मनः गान्धिनः ) हृदयं परिवर्तितम् जातम् ? [2006, 10]
या
केन नाटकेन महात्मनः गान्धिनः हृदयं परिवर्तितं अभवत् ? [2015]
उत्तर :
हरिश्चन्द्र नाम्ना नाटकेन तस्य (महात्मन: गान्धिन:) (UPBoardSolutions.com) हृदयं परिवर्तितम् जातम्।

UP Board Solutions

प्रश्न 6.
विद्यालयनिरीक्षकः कः आसीत् ? [2007,08,09, 10, 11,14]
या
विद्यालयनिरीक्षकस्य किम् नाम आसीत् ? [2015]
उत्तर :
विद्यालयनिरीक्षकः ‘गाइल्स’ नामा आसीत्।

प्रश्न 7.
विद्यालयनिरीक्षकेन किं अकथयत् ?
उत्तर :
विद्यालयनिरीक्षकेन पञ्चशब्दानां वर्णविन्यासं शुद्धं लिखितुम् अकथयत्।

प्रश्न 8.
महात्मागान्धी नेटालनगरे कदा आगच्छत् ?
उत्तर :
महात्मागान्धी नेटालनगरे 1893 तमे ख्रिष्टाब्दे अप्रैल मासे आगच्छत्।

प्रश्न 9.
गान्धिमहोदयः दक्षिण अफ्रीका देशं कदा व्यसृजत्?
उतर :
गान्धिमहोदय: दक्षिण अफ्रीका देशं 1914 तमे ख्रिष्टाब्दे व्यसृजत्।

प्रश्न 10.
गान्धिमहोदयः केन यानेन कुत्र गतः?
या
धूमयानेन गान्धी कुत्र गतः?
उत्तर :
गान्धिमहोदयः धूमयानेन प्रिटोरियानगरं (UPBoardSolutions.com) प्रति गतः।

UP Board Solutions

प्रश्न 11.
गान्धिमहोदयः विद्वेषस्य स्थाने कम् उपादिशत्?
उत्तर :
गान्धिमहोदयः विद्वेषस्य स्थाने प्रेमाचारम् उपादिशत्।

प्रश्न 12.
गान्धि महोदयः कतमे ख्रिष्टाब्दे स्वर्गं गतः?
उत्तर :
गान्धि महोदयः 1948 तमे ख्रिष्टाब्दे जनवरी मासस्य त्रिंशे दिनाङ्के सन्ध्यायां समये स्वर्गं गतः।

प्रश्न 13.
महात्मा गान्धी किं वाक्यम् उच्चारयन् स्वर्गं जगाम? [2007]
उत्तर :
महात्मा गान्धी “हे राम’ वाक्यम् उच्चारयन् स्वर्गं जगाम।

प्रश्न 14.
महात्मनः पितुः किं नाम आसीत्? [2012, 13]
या
महात्मागान्धिनः पिता कः आसीत्? [2015]
या
महात्मनः पितुर्नाम किम् आसीत्? उत्तर महात्मनः पितुः नाम ‘करमचन्द गाँधी’ आसीत्।

प्रश्न 15.
महात्मनः पूर्ण नाम किम् आसीत् [2011, 15]
उत्तर :
महात्मनः पूर्ण नाम मोहनदासः कर्मचन्द: गाँधी आसीत्।

UP Board Solutions

प्रश्न 16.
गाइल्सः कः आसीत्? [2011,12]
उत्तर :
गाइल्सः विद्यालयनिरीक्षकः (UPBoardSolutions.com) आसीत्।

प्रश्न 17.
महात्मनः गान्धिनः पिता कीदृशः आसीत्? [2008]
उत्तर :
महात्मन: गान्धिनः पिता सद्गुणी आसीत्।

बहुविकल्पीय प्रश्न

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर-रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए –
[संकेत – काले अक्षरों में छपे शब्द शुद्ध विकल्प हैं।]

1. ‘महात्मनः संस्मरणानि’ शीर्षक पाठ का नायक कौन है?

(क) जनक
(ख) महात्मा गाँधी
(ग) जीमूतवाहने
(घ) परशुराम

2. ‘महात्मनः संस्मरणानि’ पाठ की कथा का स्रोत क्या है?

(क) ‘राष्ट्रपिता’ नामक पुस्तक
(ख) ‘महात्मा गाँधी’ नामक पुस्तक
(ग) ‘बापू’ नामक पुस्तक
(घ) इनमें से कोई नहीं

3. विद्यालय-निरीक्षक गाइल्स क्यों आया था ?

(क) अध्यापकों की उपस्थिति देखने
(ख) छात्रों की उपस्थिति देखने
(ग) छात्रों का वर्णविन्यास जानने
(घ) छात्रों को पुरस्कार बाँटने

UP Board Solutions

4. गाँधी जी हमेशा क्या बोलते थे ?

(क) राम नाम
(ख) सत्य
(ग) मधुर वचन
(घ) जयहिन्द

5. महात्मा गाँधी को अपने शिक्षकों का कोपभाजन क्यों बनना पड़ा?

(क) विद्यालय निरीक्षक से झूठ बोलने के कारण
(ख) वर्णविन्यास की नकल करने के कारण
(ग) वर्णविन्यास की नकल न करके उसे गलत लिखने के कारण
(घ) शब्दों का अनुचित वर्णविन्यास लिखने के कारण

6. अप्रैल, 1893 ई० में गाँधी जी कहाँ पहुँचे थे ?

(क) प्रिटोरिया
(ख) पोरबन्दर
(ग) नेटालनगर
(घ) बम्बई (अब मुम्बई)

7. गाँधी जी प्रिटोरिया नगर जाते समय कौन-सा टिकट लेकर रेल में बैठे थे ?

(क) सामान्य श्रेणी का
(ख) प्रथम श्रेणी का
(ग) द्वितीय श्रेणी का
(घ) तृतीय श्रेणी को

UP Board Solutions

8. दक्षिण अफ्रीका से महात्मा गाँधी किस सन् में स्वदेश लौटे ?

(क) 1948 ई० में
(ख) 1893 ई० में
(ग) 1914 ई० में
(घ) 1869 ई० में

9. दक्षिण अफ्रीका से लौटकर महात्मा गाँधी कई महीनों तक क्या करते रहे ?

(क) भारत-भ्रमण
(ख) असहयोग आन्दोलन
(ग) स्वदेशी आन्दोलन
(घ) अहिंसा का प्रचार

10. “पञ्चनदप्रान्ते उग्रवादिनां समस्यासीत्।” वाक्य में ‘पञ्चनद’ प्रान्त किसे कहा गया है?

(क) उत्तर प्रदेश को
(ख) बिहार को
(ग) बंगाल को
(घ) पंजाब को।

11. “अद्यतन इवे गान्धिकालेऽपि …………………………. “प्रान्ते उग्रवादिनां समस्यासीत्।” में वाक्य-पूर्ति होगी

(क) ‘महाराष्ट्र’ से
(ख)‘पञ्चनद’ से।
(ग) “कश्मीर’ से।
(घ) असम से

UP Board Solutions

12. ………………………. “संस्था प्रत्येकजातेः पुरुषवर्गं नारीनिचयं चाकृष्टवती।” में रिक्त स्थान में आएगा –

(क) राष्ट्रीय क्रान्ति
(ख) राष्ट्रीय महासभा
(ग) कांग्रेस
(घ) स्वराज्य

13. मोहनदासः कस्य शब्दस्य वर्णविन्यासं कर्तुं नाशक्नोत् ?

(क) टैकल’ शब्दस्य
(ख) टेबल’ शब्दस्य।
(ग) “गाइल्स’ शब्दस्य।
(घ) ‘केटल’ शब्दस्य

14. “नाटकेनानेन अयं हरिश्चन्द्रः इव सत्यसन्धः “च भवितुमांचकाङ्क्ष।” में रिक्त स्थान में आएगा –

(क) दानवीरः
(ख) सच्चरित्रः
(ग) अहिंसकः
(घ) वीरः

15. महात्मा गान्धी ……………………….. नगरे जन्म लेभे। [2010, 15]

(क) पुणे
(ख) वर्धा
(ग) बम्बई (अब मुम्बई)
(घ) पोरबन्दर

16. मोहनदासः ……………………… सत्यप्रियः निर्भयोजातः। [2006]

(क) मातेव
(ख) भ्रातेव।
(ग) पितेव
(घ) गुरुजनेव

UP Board Solutions

17. पुतली गान्धिन …………………… आसीत्। [2007]

(क) पत्नी
(ख) माता
(ग) पुत्री
(घ) शिष्या

18. महात्मनः पितुर्नाम ………………… आसीत्। [2006,12,13]

(क) करमचन्दः
(ख) धरमचन्द्रः
(ग) कृष्णचन्दः
(घ) रामचन्द्रः

19. विद्यालयनिरीक्षकः …………………….. आसीत्। [2010,11]

(क) स्टालिनः
(ख) गाइल्सः
(ग) पीटर:
(घ) गजेन्द्रः

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1 are helpful to complete your homework.
If you have any doubts, please comment below. UP Board Solutions try to provide online tutoring for you

Class 9 Sanskrit Chapter 4 UP Board Solutions दीनबन्धुर्गन्धी Question Answer

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 4 दीनबन्धुर्गन्धी (पद्य-पीयूषम्) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 4 दीनबन्धुर्गन्धी (पद्य-पीयूषम्).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 4
Chapter Name दीनबन्धुर्गन्धी (पद्य-पीयूषम्)
Category UP Board Solutions

UP Board Class 9 Sanskrit Chapter 4 Dinabandhu Gandhi Question Answer (पद्य-पीयूषम्)

कक्षा 9 संस्कृत पाठ 4 हिंदी अनुवाद दीनबन्धुर्गन्धी के प्रश्न उत्तर यूपी बोर्ड

परिचय–प्रस्तुत पाठ पण्डिता क्षमाराव द्वारा रचित ‘सत्याग्रहगीता’ से उद्धृत है। इस पुस्तके में इन्होंने सरस, सरल और रोचक पद्यों में राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम का तथा महात्मा गाँधी के आदर्श चरित्र, का सुचारु रूप से वर्णन किया है। इस ग्रन्थ में गाँधी जी द्वारा संचालित सत्याग्रह का विशद् वर्णन है। प्रस्तुत पाठ में महात्मा गाँधी के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए दोनों के प्रति उनकी उदारता व उनके उद्धार के लिए खादी-वस्त्रों के उत्पादन की शिक्षा का वर्णन किया गया है। पाठ की समाप्ति पर गाँधी जी को प्रणाम निवेदित कर कवयित्री ने उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की है।

पाठ-सारांश

दीनों और कृषकों के मित्र –गाँधी जी ने सदैव समाज के दुर्बल वर्ग की उन्नति करने के लिए उनकी सहायता की है। उन्होंने कृषकों की दीन-हीन दशा को सुधारने के लिए मित्र की भाँति जीवनपर्यन्त महान् प्रयास किये।।

सम्मान-गाँधी जी अपने अपूर्व गुणों के कारण सम्पूर्ण भारत में पूजे जाते थे। विदेशों में भी उनका अत्यधिक सम्मान हुआ। इसीलिए उन्हें विश्ववन्द्य कहा जाता है। | गुणवान्–गाँधी जी महात्मा कहलाते थे। उनमें महात्मा के समान वीतरागिता, अक्रोध, सत्य, अहिंसा, स्थिर-बुद्धि, स्थितप्रज्ञता आदि सभी गुण विद्यमान थे। वे अनेकानेक गुणों की खान थे।

UP Board Solutions

परम कारुणिक-गाँधी जी ग्रामीणों के भूखे-प्यासे और नग्न रहने के कारण अल्पभोजन और अल्पवस्त्र से शरीर का निर्वाह करते थे। वे भूखे-प्यासे ग्रामीणों के अस्थिपञ्जर मात्र शरीर को देखकर दु:खी हो जाते थे। वे उच्च वर्ग के लोगों द्वारा अपमानित हरिजनों की दीन दशी को देखकर भी द्रवित हो जाते थे।

कृषकों के बन्धु–गाँधी जी ने किसानों की दयनीय स्थिति और उनके कष्ट के कारणों को जानने के लिए भारत के गाँव-गाँव में भ्रमण किया। उन्होंने देखा कि किसान वर्ष में छः महीने बिना काम किये रहते हैं। उन्होंने उनके खाली समयं के उपयोग के लिए सूत कातने और बुनने को सर्वश्रेष्ठ बताया और इस कार्य के माध्यम से धनोपार्जन की शिक्षा दी। ” | जन-जागरण कर्ता-गाँधी जी ने पराधीन भारत में, न केवल ग्रामीण क्षेत्र में जन-जागरण का कार्य किया, अपितु नागरिकों को भी अपने धर्म के पालन के प्रति जाग्रत किया।

खादी के प्रचारक-गाँधी जी ने स्वदेश में स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार पर बल दिया और खादी ग्रामोद्योग की स्थापना की। उन्होंने देश की प्रगति के लिए सूत कातने में श्रम करने की प्रेरणा दी, जिससे वस्त्र बनाने वाले कारीगर लाभ प्राप्त कर सकें और सभी । लोग खादी के वस्त्र प्राप्त कर सकें।

प्रणाम- भारत के रत्न और अपने वंश के दीपकस्वरूप महात्मा गाँधी सदैव प्रणाम किये जाने योग्य हैं।

पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या

(1)
बहुवर्षाणि देशार्थं दीनपक्षावलम्बिना।।
कृषकाणां सुमित्रेण कृतो येन महोद्यमः ॥

शब्दार्थ
बहुवर्षाणि = अनेक वर्षों तक।
देशार्थं = देश के उद्धार के लिए।
दीनपक्षावलम्बिना = दीनों का पक्ष लेने वाले।
कृषकाणां = किसानों के।
सुमित्रेण = अच्छे मित्र।
महोद्यमः = महान् प्रयत्न।।

सन्दर्य
प्रस्तुत श्लोक संस्कृत की परम विदुषी पण्डिता क्षमाराव की प्रसिद्ध कृति ‘सत्याग्रहगीता’ से संगृहीत हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘दीनबन्धुर्गान्धी’ पाठ से उद्धृत है।

[संकेतु-इस पाठ के शेष सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा। अन्वय-दीनपक्षावलम्बिना कृषकाणां सुमित्रेण ये देशार्थं बहुवर्षाणि महोद्यमः कृतः। प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक में गाँधी जी के गुणों का वर्णन किया गया है।

व्याख्या-दीन-दुःखियों का पक्ष लेने वाले, कृषकों के सच्चे मित्र जिन (महात्मा गाँधी) ने देश के उद्धार के लिए बहुत वर्षों तक महान् प्रयत्न किया। तात्पर्य यह है कि महात्मा गाँधी जो दीन-दु:खियों को पक्ष लेने वाले और किसानों के अच्छे मित्र थे, ने देश के उद्धार अर्थात् स्वतन्त्रता के लिए बहुत वर्षों तक लगातार प्रयत्न किया।

(2)
यश्चापूर्वगुणैर्युक्तः पूज्यतेऽखिलभारते।
सतां बहुमतो देशे विदेशेष्वपि मानितः ॥

शब्दार्थ

अपूर्वगुणैः = अद्भुत गुणों से।
पूज्यते = पूजे गये।
अखिल भारते = सम्पूर्ण भारतवर्ष में।
सताम् = सज्जन पुरुषों का।
बहुमतः = सम्मानित।
मानितः = सम्मान को प्राप्त हुए।

अन्वय
अपूर्वगुणैः युक्तः यः अखिलभारते पूज्यते। देशे सतां बहुमतः यः विदेशेषु अपि मानितः अस्ति।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में गाँधी जी के गुणों का वर्णन किया गया है।

व्याख्या
अपने अद्भुत गुणों से युक्त जो (गाँधी जी) सम्पूर्ण भारतवर्ष में पूजे जाते हैं, देश के सज्जनों द्वारा सम्मानित वे विदेशों में भी सम्मान को प्राप्त हुए। तात्पर्य यह है कि अपने अद्भुत गुणे के. द्वारा गाँधी जी केवल अपने देश में ही नहीं, वरन् विदेशों में भी अत्यधिक सम्मानित हुए।

UP Board Solutions

(3)
वीतरागो जितक्रोधः सत्याऽहिंसाव्रती मुनिः।। 
स्थितधीर्नित्यसत्त्वस्थो महात्मा सोऽभिधीयते ॥

शब्दार्थ-
वीतरागः = राग-द्वेष से रहित।
जितक्रोधः = क्रोध को जीतने वाले।
सत्यहिंसाव्रती = सत्य और अहिंसा व्रत वाले।
स्थितधीः = स्थिर बुद्धि वाले।
नित्य सत्त्वस्थः = सदैव आत्मबल में स्थित रहने वाले।
अभिधीयते = कहलाता है।

अन्वय
सः वीतरागः, जितक्रोधः, सत्याहिंसाव्रती, मुनिः, स्थितधीः, नित्यसत्त्वस्थः महात्मा अभिधीयते।।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में गाँधी जी के गुणों का वर्णन किया गया है।

व्याख्या
वे (गाँधी जी) राग-द्वेष से रहित, क्रोध को जीतने वाले, सत्य और अहिंसा का नियमपूर्वक पालन करने वाले, मुनिस्वरूप, स्थिर बुद्धि वाले, अपने आत्मबल में स्थित रहने वाले महात्मा कहलाते हैं। तात्पर्य यह है कि इन (ऊपर उल्लिखित) गुणों से युक्त व्यक्ति महात्मा कहलाते हैं; क्योंकि गाँधी जी भी इन गुणों से युक्त थे, इसलिए वे भी महात्मा कहलाए।

(4)
क्षुत्पिपासाऽभिभूतासु ग्रामीण-जन-कोटिषु ।
अल्पान्नेन निजं देहमस्थिशेषं निनाय सः॥

शब्दार्थ
क्षुत्पिपासाऽभिभूतासु = भूख और प्यास से पीड़ित होने पर।
ग्रामीणजन कोटिषु = करोड़ों ग्रामीण लोगों के।
अल्पान्नेन = थोड़े अन्न से।
अस्थिशेषं निनाय = हड्डीमात्र रूप शेष वाला बना लिया।

अन्वय
स: ग्रामीणजनकोटिषु क्षुत्पिपासाऽभिभूतासु (सतीषु) अल्पान्नेन निज़ देहम् अस्थिशेषं निनाय।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक से गाँधी जी के चरित्र-व्यक्तित्व का ज्ञान होता है।

व्याख्या
वे (महात्मा गाँधी) थोड़े-से अन्न पर ही निर्वाह करते थे; क्योंकि करोड़ों भारतीय ग्रामीण बिना अन्न के ही भूखे-प्यासे रहते थे। इसलिए उनका शरीर हड्डियों का ढाँचामात्र ही रह गया था। तात्पर्य यह है कि अधिकांश भारतीयों को भूखे-प्यासे जीवन व्यतीत करते देखकर गाँधी जी भी बहुत कम अन्न ग्रहण करते थे। इससे उनका शरीर अस्थि-पंजर मात्र रह गया था। |

(5)
ग्रामीणानां क्षुधाऽऽर्तानां क्षेत्रे क्षेत्रेऽपि निर्जले ।।
दृष्ट्वाऽस्थिपञ्जरान् भीमान् विषण्णोऽभू दयाकुलः ॥

शब्दार्थ
ग्रामीणानां = ग्रामवासियों को।
क्षुधाऽऽर्तानां = भूख से पीड़ित।
क्षेत्रे = क्षेत्र में।
निर्जले = जल से रहित।
दृष्ट्वा = देखकर।
अस्थिपञ्जरान् = हड़ियों के ढाँचे रूप शरीर को।
भीमान् = भयंकर रूप से।
विषण्णः = दु:खी।
अभूत = हुए।
दयाकुलः = दया से व्याकुल।

अन्वय
दयाकुलः (स:) निर्जले क्षेत्रे क्षेत्रेऽपि क्षुधार्तानां ग्रामीणानां भीमान् अस्थिपञ्जरान् दृष्ट्वा विषण्णः अभूत्।।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक से गाँधी जी के चरित्र-व्यक्तित्व का ज्ञान होता है।

व्याख्या
वे महात्मा गाँधी अत्यन्त दयालु थे। स्थान-स्थान पर भूखे और प्यासे ग्रामीणों के भयंकर अस्थि-पंजर को देखकर वे अत्यन्त दु:खी हो गये। तात्पर्य यह है कि गाँधी जी ने अनेकानेक स्थानों पर भूख और प्यास से व्याकुल जर्जर शरीर वाले ग्रामीणों को देखा। इससे वे दयालु पुरुष अत्यधिक दु:खी हुए।

UP Board Solutions

(6)
इतरैरवधूतानामन्त्यजानामवस्थया

द्रवीभूतो महात्माऽसौ दीनानां गौतमो यथा ॥

शब्दार्थ
इतरैः = दूसरों के द्वारा।
अवधूतानां = अपमानित किये हुए।
अन्त्यजानाम् = शूद्रों की।
अवस्थया = स्थिति के द्वारा।
द्रवीभूतः = दयापूर्ण हो गये।
गौतमः = गौतम बुद्ध।

अन्वय
असौ महात्मा इतरैः अवधूतानाम् अन्त्यजानाम् अवस्थया दीनानां (अवस्थया) यथा गौतमः (दीनानाम् अवस्थया) द्रवीभूतः।

प्रसंग
प्रस्तुत पद्यांश में उपेक्षितों और अपमानितों के प्रति गाँधी जी के दयाभाव को दर्शाया गया है।

व्याख्या
वह महात्मा दूसरे (उच्च वर्ग के) लोगों के द्वारा अपमानित किये गये शूद्रों की अवस्था से उसी प्रकार दयापूर्ण हो गये, जैसे महात्मा बुद्ध दीनों की अवस्था से द्रवित हो गये थे। विशेष प्रस्तुत श्लोक में महात्मा गाँधी को महात्मा गौतम बुद्ध के समतुल्य सिद्ध किया गया है।

(7)
स्वबान्धवानसौ पौरान मोहसुप्तानबोधयत् ।
स्वधर्मः परमो धर्मो न त्याज्योऽयं विपद्यपि ॥

शब्दार्थ
स्वबान्धवान् = अपने बन्धु-बान्धवों को।
असौ = उन्होंने।
पौरान् = पुरवासियों को।
मोहसुप्तान् = मोह या अज्ञान में पड़े हुए।
अबोधयत् = जगाया, समझाया।
स्वधर्मः = अपना धर्म।
परमः = श्रेष्ठ।
न त्याज्यः = नहीं त्यागना चाहिए।
विपद्यपि (विपदि + अपि) = विपत्ति में भी।

अन्वय
असौ मोहसुप्तान् स्वबान्धवान् पौरान् अबोधयंत्। स्वधर्मः परम: धर्मः (अस्ति), अयं विपदि अपि न त्याज्य:।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में गाँधी जी द्वारा नगरवासियों को प्रोत्साहित किये जाने का वर्णन है।

व्याख्या
उस महात्मा ने मोह (अज्ञान) में सोये हुए अपने नगरवासी बन्धुओं को समझाया कि अपना धर्म उत्तम धर्म है, इसे विपत्ति में भी नहीं त्यागना चाहिए। तात्पर्य यह है कि गाँधी जी ने अज्ञानावस्था में सुप्त जनों को अपने धर्म की महत्ता बैतलायी। अन्यत्र कहा भी गया है-‘स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।

(8)
कर्षकाणां स्थितिं तेषां कष्ट-मूलं च वेदितुम् ।
त्यक्तभोगो विपद्बन्धुग्रमे ग्रामे चचार सः॥

शब्दार्थ
कर्षकाणाम् = किसानों की।
कष्ट-मूलम् = कष्टों के मूल कारण को।
वेदितुम् = जानने के लिए।
त्यक्त भोगः = सुख-भोगों का त्याग किया हुआ।
विपद्बन्धुः = विपत्ति में बन्धु के समान सहायता करने वाले।
ग्रामे-ग्रामे = गाँव-गाँव में।
चचार = विचरण किया।

अन्वय
विपद्बन्धुः सः कर्षकाणां स्थितिं तेषां कष्टमूलं च वेदितुं त्यक्तभोगः (सन्) ग्रामे-ग्रामे चचार।।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में कृषकों के उत्थान के लिए गाँधी जी द्वारा किये गये प्रयास का वर्णन किया गया है।

व्याख्या
विपत्ति के समय में बन्धु के समान सहायता करने वाले उसे महात्मा ने किसानों की दशा को और उनके कष्टों के मूल कारणों को जानने के लिए अपने सुखभोगों का त्याग करते हुए गाँव-गाँव में भ्रमण किया।

UP Board Solutions

(9)
मासषकं निरुद्योगा निवसन्ति कृषीवलाः।
अतएव हि, संवृद्धिर्दारिद्र्यस्य पदे पदे ॥

शब्दार्थ
मासषट्कम् = छः महीने तक।
निरुद्योगाः = बिना काम किये (निठल्ले)।
निवसन्ति = रहते हैं।
कृषीवलाः = कृषि वाले अर्थात् किसान।
संवृद्धिः = बढ़ोत्तरी।
दारिद्र्यस्य = गरीबी की।
पदे-पदे = पग-पग पर।

अन्वय
कृषीवला: मासषट्कं निरुद्योगाः निवसन्ति। अतएव पदे-पदे (तेषां) दारिद्र्यस्य हि संवृद्धिः (भवति)। | प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में गाँधी जी द्वारा कृषकों की निर्धनता के मूल कारण के ज्ञान का वर्णन किया गया है।

व्याख्या
किसान लोग छः महीने तक बिना काम किये निठल्ले रहते हैं। इसी कारण पग-पग पर उनकी दरिद्रता की निश्चय ही बढ़ोत्तरी होती है; क्योंकि बिना कर्म किये धनागम असम्भव है। |

(10)
विधेयं तान्तवं तस्मादल्पलाभमपि ध्रुवम्।।
येन सुषुपयोगः स्यात्कालस्येति जगाद सः ।।

शब्दार्थ
विधेयम् = करना चाहिए।
तान्तवम् = सूत की कताई व बुनाई।
तस्मात् = उससे।
अल्पलाभम् अपि = थोड़े लाभ वाला भी।
धुवं = अवश्य।
सुष्टु = अच्छा, सही।
सत्यात् = होगा।
कालस्य = समय का।
जगाद = कहा।

अन्वय
तस्मात् अल्पलाभम् अपि तान्तवं ध्रुवं विधेयम्। येन कालस्य सुष्ष्ठ उपयोगः । स्यात् इति सः जगाद।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में गाँधी जी ने किसानों को सूत कातने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्या
उन्होंने ग्रामीण कृषकों को समझाया कि थोड़े लाभ वाला होते हुए भी सूत की कताई-बुनाई का कार्य अवश्य करना चाहिए, जिससे उनके समय का उत्तम उपयोग हो सके। तात्पर्य यह है कि गाँधी जी ने किसानों को उनके खाली समय के सदुपयोग हेतु उन्हें कताई-बुनाई की ओर प्रेरित किया।

(11)
उत्तिष्ठत ततः शीघ्रं तान्तवे कुरुतोद्यमम्।
पट-कर्मा जनो येन प्रतिपद्येत तत्फलम् ॥

शाख्दार्थ
उत्तिष्ठत = उठो।
ततः = तब।
शीघ्रम् = शीघ्र।
तान्तवे = सूत कताई-बुनाई के कार्य में।
कुरुत = करो।
उद्यमम् = श्रम।
पटकर्मा = वस्त्र बनाने वाला जुलाहा।
प्रतिपद्येत = प्राप्त करे।

अन्वय
ततः शीघ्रम् उत्तिष्ठत। तान्तवे उद्यमं कुरुत। येन पटकर्मा जनः तत्फलं प्रतिपद्येत।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में गाँधी जी ने किसानों को सूत कातने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्या
इसलिए शीघ्र उठो और सूत की कताई-बुनाई के कार्य में परिश्रम करो, जिससे वस्त्र बनाने वाला कारीगर उसका लाभ प्राप्त कर सके।

UP Board Solutions

(12)
हस्तनिर्मितवासांसि प्राप्स्यत्येवं जनोऽखिलः।।
ततो देशोदय-प्राप्तिरिति भूयो न्यवेदयत् ॥

शब्दार्थ
हस्तनिर्मितवासांसि = हाथ से बने हुँए कपड़े।
प्राप्स्यति = प्राप्त करेगा।
अखिलः = समस्त।
ततः = तब।
देशोदय प्राप्तिः = देश की उन्नति की प्राप्ति।
भूयः = बार-बार।
न्यवेदयत् = निवेदन किया।

अन्वय
एवम् अखिलः जनः हस्तनिर्मित वासांसि प्राप्स्यति। ततः देशोदय प्राप्तिः (भविष्यति) इति सः भय: न्यवेदयत्।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में गाँधी जी ने स्वदेशी वस्त्रों के उपयोग के प्रति लोगों को जाग्रत किया है।

व्याख्या
इस प्रकार सभी मनुष्य हाथ से बने कपड़े प्राप्त कर लेंगे। इसके पश्चात् देश को उन्नति की प्राप्ति होगी। ऐसा उन्होंने बार-बार निवेदन किया। तात्पर्य यह है कि स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने से ही देश की उन्नति होगी, ऐसा गाँधी जी का मानना था।

(13)
भारतावनि-रत्नाय सिद्ध-तुल्य-महात्मने ।
गान्धि-वंश-प्रदीपाय प्रणामोऽस्तु महात्मने ।।

शब्दार्थ
भारतावनि-रत्नाय = भारतभूमि के रत्नस्वरूप के लिए।
सिद्धतुल्यमहात्मने = सिद्ध योगी के समान महान् आत्मा वाले।
गान्धिवंशप्रदीपाय = गाँधी वंश को प्रकाशित करने वाले दीपक के समान।
प्रणामः अस्तु = नमस्कार हो।
महात्मने = महात्मा के लिए।

अन्वय
भारतावनि-रत्नाय, सिद्धतुल्यमहात्मने, गान्धिवंशप्रदीपाय महात्मने (अस्माकं) प्रणामः अस्तु।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में कवयित्री ने गाँधी जी को अपना प्रणाम निवेदित किया है।

व्याख्या
भारतभूमि के रत्नस्वरूप, सिद्ध योगी के समान महान् आत्मा वाले, गाँधी कुल को : प्रकाशित करने वाले दीपक के समान उस महात्मा को प्रणाम हो।

सूक्तिपरक वयवस्या

(1)
स्थितधीर्नित्यसत्त्वस्थो महात्मा सोऽभिधीयते।
सन्दर्य
प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत-पद्य-पीयूषम्’ के ‘दीनबन्धुर्गान्धी’ नामक पाठ से ली गयी है।

[संकेत-इस शीर्षक के अन्तर्गत आयी हुई समस्त सूक्तियों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग
प्रस्तुत सूक्ति में महात्माओं के गुणों पर प्रकाश डाला गया है।

अर्थ
स्थिर बुद्धि वाले और अपने आत्मबल में स्थित रहने वाले महात्मा कहलाते हैं।

व्याख्या
महापुरुषों के लक्षण बताती हुई सुप्रसिद्ध कवयित्री पण्डिता क्षमाराव कहती हैं कि महात्मा पुरुष स्थितप्रज्ञ होते हैं। वे महान् संकट आने पर भी विचलित नहीं होते। महात्मा पुरुष सदैव अपने स्वाभाविक रूप में स्थित रहते हैं। उनके ऊपर सुख और दुःख का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। गाँधी जी में भी उपर्युक्त सभी गुण विद्यमान् थे; इसीलिए वे महात्मा कहे जाते थे।

UP Board Solutions

(2)
द्रवीभूतो महात्माऽसौ दीनानां गौतमो यथा। |

प्रसंग
प्रस्तुत सूक्ति में महात्मा गाँधी के कोमल हृदय की तुलना गौतम बुद्ध से की गयी है।

अर्थ
यह महात्मा (गाँधी) इसी प्रकार दयापूर्ण हो गये जैसे दोनों को देखकर गौतम (द्रवित हो गये 
थे)।

व्याख्या
जिस प्रकार महात्मा गौतम बुद्ध दीन-दुःखियों के दुःखों को देखकर द्रवीभूत हो जाते थे, उसी प्रकार उच्चवर्ग के लोगों से अपमानित शूद्रजनों की अत्यन्त हीन दशा को देखकर उस परम कारुणिक महात्मा गाँधी का हृदय भी दया से भर जाता था। तात्पर्य यह है कि गाँधी जी का हृदय दीन-दुखियों के प्रति अत्यधिक दया से युक्त था।

(3)
स्वधर्मः परमो धर्मो, न त्याज्योऽयं विपद्यपि।

प्रसंग

प्रस्तुत सूक्ति में महात्मा गाँधी द्वारा अपने धर्म को न त्यागने की बात कही गयी है।

अर्थ
अपना धर्म ही श्रेष्ठ धर्म है, उसे विपत्ति में भी नहीं छोड़ना चाहिए।

व्याख्या
जो धारण करने योग्य है, वही धर्म है। धर्म का अर्थ होता है-कर्त्तव्य। व्यक्ति के द्वारा किये जाने वाले सभी कर्तव्यों को धर्म के अन्तर्गत रखा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के कुछ कर्तव्य होते हैं। अपना कर्तव्य करना ही श्रेष्ठ है, उन्हें विपत्ति आने पर भी नहीं त्यागना चाहिए। गाँधी जी ने अज्ञान में पड़े हुए अपने बन्धुओं को विपत्ति में भी स्वधर्म का पालन करने के लिए समझाया। गीता में भी कहा गया है-‘स्वधर्मे निधनं श्रेयः, परधर्मो भयावहः।’ अर्थात् अपने धर्म-पालन करने में यदि मृत्यु भी हो जाती है तो श्रेष्ठ है। दूसरे के धर्म का अवलम्ब नहीं लेना चाहिए।

श्लोक का संस्कृतअर्थ

(1) इतरैरवधूतानां  •••••••••• गौतमो यथा ॥ (श्लोक 6)
संस्कृतार्थः-
सवर्णाः जनाः शूद्रान् जनान् तिरस्कुर्वन्ति, तेषाम् अवस्थां दृष्ट्वा असौ महात्मागान्धी तथा परमकारुणिकः अभवत् यथा गौतम बुद्धः दीनानां दशां दृष्ट्वा परम: दयालुः अभवत्।।

(2) विधेयं तान्तवं.•••••••••••••••• जगांद सः ।। (श्लोक 10 )
संस्कृतार्थः–
कृषीवलाः षट्मासान् निरुद्योगा एव यापयन्ति इयमेव तेषां दरिद्रतायाः कारणं महात्मागान्धी अमन्यत। तेषां समयस्य सदुपयोगाय सः तन्तु निष्कासन रूपं कार्यं युक्तम् अमन्यत, अनेन कार्येण अल्पलाभ एव वरम्। अनेन कार्येण तेषां समयस्य सदुपयोगस्तु भविष्यति इति महात्मागान्धिः अकथयत्।

UP Board Solutions

(3) भारतावनि रत्नाय••••••••••••••••••••••••••••प्रणामोऽस्तु महात्मने ॥ (श्लोक 13 )
संस्कृतार्थः–
भारतदेशस्य रत्नस्वरूपाय, गौतमतुल्यस्वभावाय, गान्धीवंशस्य यशोविस्तारकाय महात्मने पूज्य महात्मागान्धीमहाभागाय भारतीयानां भूयो भूयः प्रणामाः समर्पिताः सन्ति।

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 4 दीनबन्धुर्गन्धी(पद्य-पीयूषम्) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 4 दीनबन्धुर्गन्धी (पद्य-पीयूषम्) , drop a comment below and we will get back to you at the earliest.