UP Board Solutions for Class 9 English Suplementary Reader Chapter 4 On A Winter’s Night (Based on Munshi PremChand’s Story) (Poos Ki Raat)

UP Board Solutions for Class 9 English Suplementary Reader Chapter 4 On A Winter’s Night (Based on Munshi PremChand’s Story) (Poos Ki Raat)

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(A) SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS AND THEIR ANSWERS
Answer the following questions in not more than 25 words each :

Question 1.
Why did Halku not buy a blanket?
हल्कू ने कम्बल क्यों नहीं खरीदा?
Answer:
Halku did not buy a blanket because he wanted to pay his debt first.
हल्कू ने कम्बल इसलिए नहीं खरीदा क्योंकि वह पहले अपना कर्ज चुकाना चाहता था।

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Question 2.
Why did Halku want to give the money to Sohana?
हल्कू सोहन के रुपये क्यों देना चाहता था?
Answer:
Halku wanted to give the money to Sohana because he did not like that Sohana should abusehim for debt.
हल्कू सोहन के रुपये इसलिए देना चाहता था क्योंकि (UPBoardSolutions.com) वह नहीं चाहता था कि सोहन उसे कर्ज के लिए गाली दे।

Question 3.
What did Halku’s wife want him to do after giving up farming?
हल्कू की पत्नी उससे खेती छोड़ने के बाद क्या करने को कह रही थी?
Answer:
Halku’s wife wanted him to work as labourer after giving up farming.
हल्कू की पत्नी चाहती थी कि वह खेती का काम छोड़कर मजदूर के रूप में काम करें।

Question 4.
Who enjoyed the fruits of labour of the farmers?
किसानों के परिश्रम के फल का आनन्द कौन उठाता था?
Answer:
The rich land-owners enjoyed the fruits of labour of the farmers.
धनी जमींदार किसानों के परिश्रम के फल का आनन्द उठात थे।

Question 5.
Name three things that Halku did to keep himself warm that night.
वे तीन कार्य बताइये जो हल्कू ने उस रात अपने को पं रखने के लिए किये थे।
Answer:
Halku did the following things to keep himself warın :
हल्कू ने अपने को गर्म रखने के लिए निम्नलिखित कार्य किये–
(i) He smoked his clay-pipe ten times.
उसने अपनी चिलम को दस बार पिया।
(ii) He kept Jhabra sleep next to him.
उसने झबरा को अपने बगल में सुलाया।
(iii) He lit fire in the orchard.
उसने बगीचे में आग जलायी।

Question 6.
Give one example to show that Jhabra loved Halku.
एक उदाहरण देकर बताइये कि झबरा हल्कू से प्यार करता था।
Answer:
Jhabra slept beside Halku and it barked at cattle when they entered his field. This shows that Jhabra loved Halku.
झबरा हल्कू के बगल में सोया और जब जानवर उसके खेत में घुसे थे तब वह उन पर भौंक रहा था। यह प्रदर्शित करता है कि झबरा हल्कू से प्रेम करता था।

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Question 7.
“I had severe stomach ache!” Why did Halku say this to his wife?
मेरे पेट में जोर का दर्द था।” हल्कू ने अपनी पत्नी से क्यों कहा?
Answer:
Halku said these words to his wife so that she might not be angry for not driving the cattle away.
हल्कू ने अपनी पत्नी से इसलिये कहे ताकि वह (UPBoardSolutions.com) जानवरों को न भगाने के लिए उससे नाराज न हो।

(B) MULTIPLE CHOICE QUESTIONS
1.Select the most suitable alternative to complete each of the following statements :
निम्नलिखित कथनों में से प्रत्येक को पूरा करने के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प चुनिए :
(i) Halku’s wife gave three rupees to Halku because :
(a) she wanted to invest them in the land
(b) she wanted to eat her bread in peace
(c) Halku wanted to buy some bread with them
(d) Halku was ill-treated by the money-lender
(ii) Halku’s wife wanted him to :
(a) pay all his debts
(b) give up farming
(c) invest money in the land
(d) work hard
(iii) Halku went out unwillingly because :
(a) he had no money to buy a blanket
(b) his wife had not treated him well
(c) he did not want to part with his savings
(d) he wanted to pay his debts
(iv) Halku could not sleep because :
(a) Jhabra lay under his cot
(b) he had only an old cotton sheet to wrap himself with
(c) the dog was barking
(d) the cattle were eating his crop
Answers:
(i) (d) Halku was ill-treated by the money-lender.
(ii) (b) give up farming
(iii) (d) he wanted to pay bis debts.
(iv) (b) he had only an old cotton sheet to wrap himself with.
(C) Say whether each of the following statements is ‘true’ or ‘false’ :
बताइये कि निम्नलिखित कथनों में से प्रत्येक ‘सत्य’ है अथवा ‘असत्य’ :
(i) Sohana, the money-lender, owed money to Halku.
(ii) Sohana demanded some money from his wife to buy a blanket.
(iii) Halku and his wife were very poor and were under heavy debt.
(iv) Halku’s wife did not want anyone to abuse her husband.
(v) Jhabra and Halku kept on sleeping while the cattle kept on eating his crop.
(vi) Halku could not sleep in the night because he had a stomachache.
(vii) Halku lit a fire in the orchard to frighten away the cattle.
(viii) Jhabra loved his master very much.
(ix) Halku was poor but not dishonest.
Answers:
(i) F, (ii) F, (iii) T,(iv) T, (v) F,(vi) F, (vii) F,(viii) T,(ix) T.

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ASSIGNMENT ( कार्य) :
(D) Fill in the blanks with missing letters to complete the spelling of the following words :
निम्नलिखित शब्दों की वर्तनी को पूरा करने के लिए लुप्त अक्षरों की सहायता से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
sh-v-r; ab-s–; 1-mb; inst–d; rel–f
Answers:
shiver; abuses; numb; instead; relief

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 5 स्मृति (गद्य खंड)

UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 5 स्मृति (गद्य खंड)

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( विस्तृत उत्तरीय प्रश्न )

प्रश्न 1. निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये –
(1) 
जाड़े के दिन थे ही, तिस पर हवा के प्रकोप से कँपकँपी लग रही थी। हवा मज्जा तक ठिठुरा रही थी, इसलिए हमने कानों को धोती से बाँधा। माँ ने भेंजाने के लिए थोड़े-से चने एक धोती में बाँध दिये। हम दोनों भाई अपना-अपना डण्डा लेकर घर से निकल पड़े। उस समय उस बबूल के डण्डे से जितना मोह था, उतना इस उम्र में रायफल से नहीं। मेरा डण्डा अनेक साँपों के लिए नारायण-वाहन हो चुका था। मक्खनपुर (UPBoardSolutions.com) के स्कूल और गाँव के बीच पड़नेवाले आम के पेड़ों से प्रतिवर्ष उससे आम झूरे जाते थे। इस कारण वह मूक डण्डा सजीव-सा प्रतीत होता था। प्रसन्नवदन हम दोनों मक्खनपुर की ओर तेजी से बढ़ने लगे। चिट्ठियों को मैंने टोपी में रख लिया, क्योंकि कुर्ते में जेबें न थीं।
प्रश्न
(1) प्रस्तुत गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) लेखक ने चिट्ठियों को कहाँ रख लिया था?
(4) लेखक ने चिट्ठियों को टोपी में क्यों रख लिया?
(5) लेखक ने डण्डे की तुलना किससे की है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक निबन्ध से उधृत है। प्रस्तुत अवतरण में लेखक ने अपनी बाल्यावस्था का सजीव चित्रण करते हुए बचपन की छोटी-छोटी बारीकियों को स्पष्ट किया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक शीतऋतु का वर्णन करते हुए कहता है कि “जाड़े का दिन था। हाड़ कॅपा देने वाली ठण्ड थी। इसलिए हमने कानों को धोती से बाँध लिया। माँ ने चना भैजाने के लिए उसे एक धोती में बाँध कर मुझे दिया। मैं और छोटा भाई डण्डा लेकर घर से चल पड़े। उस समय उस बबूल के डण्डे से जितना लगाव था उतना आज एक रायफल से नहीं है। मैं उस (UPBoardSolutions.com) डण्डे से अनेक साँपों को मार चुका था। प्रतिवर्ष इसी डण्डे से आम के टिकोरे तोड़े जाते थे। इसीलिए वह डण्डी मुझे अत्यन्त प्रिय था। हम दोनों भाई मक्खनपुरे की ओर आगे बढ़े। कुर्ते में जेब न होने के कारण चिट्ठियों को मैंने टोपी में रख लिया था।”
  3. लेखक ने चिट्ठियों को अपनी टोपी में रख लिया था। “
  4. लेखक के कुर्ते में जेबें न थीं, इसलिए उसने चिट्ठियों को टोपी में रख लिया।
  5. लेखक ने डण्डे की तुलना गरुण से की है।

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(2) साँप से फुसकार करवा लेना मैं उस समय बड़ा काम समझता था। इसलिए जैसे ही हम दोनों उस कुएँ की ओर से निकले, कुएँ में ढेला फेंककर फुसकार सुनने की प्रवृत्ति जागृत हो गयी। मैं कुएँ की ओर बढ़ा। छोटा भाई मेरे पीछे हो लिया, जैसे बड़े मृगशावक के पीछे छोटा मृगशावक हो लेता है। कुएँ के किनारे से एक ढेला उठाया और उझककर एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर ढेलो गिरा दिया, पर मुझ पर तो बिजली-सी गिर पड़ी।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) लेखक को कब लगा कि उस पर बिजली सी गिर पड़ी?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक निबन्ध से उद्धृत है। इन पंक्तियों में लेखक ने अपने बचपन की एक घटना का वर्णन किया है। स्कूल जाते समय एक कुआँ पड़ता, जो सूख गया है। पता नहीं एक काला साँप उसमें कैसे गिर पड़ा था। स्कूल जाते समय बच्चे उसकी फुसकार सुनने के लिए पत्थर मारते थे।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक कहता है कि ”मैं बचपन में साँप से फुसकार करवा लेना महान् कार्य समझता था। मैं और छोटा भाई जब कुएँ की तरफ से गुजरे तो फुसकार सुनने की इच्छा बलवती हुई । मैं कुएँ की तरफ बढ़ा और छोटा भाई मेरे पीछे हो गया। कुएँ के किनारे से मैंने एक ढेला उठाया और एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर प्रहार किया, लेकिन मैं एक अजीब संकट (UPBoardSolutions.com) में फँस गया। टोपी उतारते हुए मेरी तीनों चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। साँप ने फुसकारा था या नहीं मुझे आज भी ठीक से याद नहीं है। मेरी स्थिति उस समय वही हो गयी थी जैसे घास चरते हुए हिरन की आत्मा गोली लगने पर निकल जाती है और वह तड़पता रहता है। चिट्ठियों के कुएँ में गिरने से मेरी भी स्थिति हिरन जैसी हो गयी थी।”
  3. लेखक को टोपी उतारते हुए तीन चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। उस समय लेखक पर बिजली-सी गिर पड़ी।

(3) साँप को चक्षुःश्रवा कहते हैं। मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। अन्य इन्द्रियों ने मानो सहानुभूति से अपनी शक्ति आँखों को दे दी हो। साँप के फन की ओर मेरी आँखें लगी हुई थीं कि वह कब किस ओर को आक्रमण करता है, साँप ने मोहनीसी डाल दी थी । शायद वह मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था, पर जिस विचार और आशा को लेकर मैंने कुएँ में घुसने की ठानी थी, वह तो आकाश-कुसुम था । मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उल्टी निकलती हैं। मुझे साँप का साक्षात् होते ही (UPBoardSolutions.com) अपनी योजना और आशा की असम्भवता प्रतीत हो गयी। डण्डा चलाने के लिए स्थान ही न था। लाठी या डण्डा चलाने के लिए काफी स्थान चाहिए, जिसमें वे घुमाये जा सकें। साँप को डण्डे से दबाया जा सकता था, पर ऐसा करना मानो तोप के मुहरे पर खड़ा होना था।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए। |
(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(3) चक्षुःश्रवा के नाम से कौन-सा जीव जाना जाता है?

उत्तर-

  1. सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण पं० श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक संस्मरणात्मक निबन्ध से अवतरित है। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने कुएँ से पत्र निकालने की योजना का वर्णन किया है।
  2. रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक का कहना है कि “साँप एक ऐसा जीव है जिसे चक्षुःश्रवा के नाम से जाना जाता है। वहाँ मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। मुझे कुएँ में ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अन्य इन्द्रियों ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति नेत्रों को दे दी है। मेरी आँखें साँप के फन पर थीं कि साँप किस तरफ से आक्रमण कर सकता है। इसलिए मैं बिल्कुल चौकन्ना था। उधुर साँप भी मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था। मैंने जिस संकल्प के साथ कुएँ में प्रवेश किया था, लगता था संकल्प अधूरा ही रह जायेगा। (UPBoardSolutions.com) साँप से सामना होते ही मेरी योजना एवं आशा असम्भव-सी प्रतीत होने लगी। लाठी-डण्डा चलाने के लिए पर्याप्त स्थान चाहिए। कुएँ में डण्डा चलाने के लिए स्थान बहुत कम था, वहाँ केवल साँप को डण्डे से दबाया जा सकता था, लेकिन ऐसा करना तोप के आगे खड़ा होना था।”
  3. चक्षुःश्रवा के नाम से साँप को जाना जाता है। माना जाता है कि सर्प कर्णविहीन होने के कारण आँख से सुनता भी है।

प्रश्न 2. श्रीराम शर्मा का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।

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प्रश्न 3. श्रीराम शर्मा की साहित्यिक विशेषताओं को बताते हुए उनकी भाषा-शैली भी स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 4. श्रीराम शर्मा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
अथवा श्रीराम शर्मा को साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

श्रीराम शर्मा
( स्मरणीय तथ्य )

जन्म-सन् 1892 ई० (1949 वि०)। मृत्यु-सन् 1967 ई० । जन्म-स्थान-किरथरा (मैनपुरी) उ० प्र० । शिक्षा-बी० ए० ।
साहित्य सेवा – सम्पादक (विशाल भारत), आत्मकथा लेखक, संस्मरण तथा शिकार साहित्य के लेखक।
भाषा – सरल, प्रवाहपूर्ण, सशक्त, उर्दू एवं ग्रामीण शब्दों का प्रयोग विषयानुकूल।
शैली – वर्णनात्मक रोचक शैली।
रचनाएँ – सन् बयालीस के संस्मरण, सेवाग्राम की डायरी, शिकार साहित्य, प्राणों का सौदा, बोलती प्रतिमा, जंगल के जीव। |

  • जीवन-परिचय- हिन्दी में शिकार साहित्य के प्रणेता पं० श्रीराम शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में 23 मार्च, सन् 1892 ई० को हुआ था। प्रयाग विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् ये पत्रकारिता के क्षेत्र में उतर आये। आपने ‘विशाल भारत’ नामक पत्र का (UPBoardSolutions.com) सम्पादन बहुत दिनों तक किया। इनका जीवन के प्रति दृष्टिकोण मुख्यतः राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत है। आपने राष्ट्रीय आन्दोलनों में बराबर भाग लिया है जिसकी सजीव झाँकियाँ आपकी रचनाओं में परिलक्षित होती हैं। आपकी मृत्यु एक लम्बी बीमारी के पश्चात् सन् 1967 ई० में हो गयी।
  • कृतियाँ –
    • संस्मरण-साहित्य- सेवाग्राम की डायरी’ और ‘सन् बयालीस के संस्मरण’ में इन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन और उस समय के समाज की झाँकी प्रस्तुत की है।
    • शिकार साहित्य- ‘जंगल के जीव’, ‘प्राणों का सौदा’, ‘बोलती प्रतिमा’, ‘शिकार’ में आपका शिकार-साहित्य संगृहीत है। इन सभी रचनाओं में रोमांचकारी घटनाओं का सजीव वर्णन हुआ है । इन कृतियों में घटना-विस्तार के साथसाथ पशुओं के मनोविज्ञान का भी सम्यक् परिचय दिया गया है।
    • जीवनी-‘नेताजी’ और ‘गंगा मैया ।’ । इन कृतियों के अतिरिक्त शर्मा जी के फुटकर लेख अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे।
    • साहित्यिक परिचय– शर्मा जी हिन्दी में शिकार साहित्य प्रस्तुत करने में अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनके शिकार साहित्य में घटना विस्तार के साथ-साथ पशु-मनोविज्ञान को सम्यक् परिचय भी मिलता है। शिकार साहित्य के अतिरिक्त शर्मा जी ने ज्ञानवर्द्धक एवं विचारोत्तेजक लेख भी लिखे हैं जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित हुए हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में तथा संस्मरणात्मक निबन्धों और शिकार सम्बन्धी कहानियों को लिखने (UPBoardSolutions.com) में शर्मा जी का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिकार साहित्य को हिन्दी में प्रस्तुत करनेवाले शर्मा जी पहले साहित्यकार हैं।
    • भाषा-शैली- शर्मा जी की भाषा स्पष्ट और प्रवाहपूर्ण है। भाषा की दृष्टि से ये प्रेमचन्द के अत्यन्त निकट माने जा सकते हैं, यद्यपि ये छायावादी युग के विशिष्ट साहित्यकार रहे हैं। आपकी भाषा में संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी के शब्दों के साथ-साथ लोकभाषा के शब्दों के प्रयोग से भाषा अत्यन्त सजीव एवं सम्प्रेषणीयता के गुण से सम्पन्न हो गयी है।
      इनकी शैली स्पष्ट एवं वर्णनात्मक है जिसमें स्थान-स्थान पर स्थितियों का विवेचन मार्मिक और संवेदनशील होता है। शर्मा जी की शिकार सम्बन्धी, संस्मरणात्मक कहानियों और निबन्धों में शैलीगत विशेषता है जो रोमांच और कौतूहल आद्योपान्त बनाये रखती है।

( लघु उत्तरीय प्रश्न )

प्रश्न 1. ‘स्मृति’ निबन्ध के आधार पर बाल-सुलभ वृत्तियों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- बालमन अत्यन्त चंचल होता है। बाल्यावस्था में अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं होता है। बाल्यावस्था में कभी-कभी बड़े साहसिक कार्य सम्पन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 2. लेखक ने अपने डण्डे के विषय में क्या कहा है? |
उत्तर- लेखक ने अपने डण्डे के विषय में कहा है कि उस उम्र में बबूल के डण्डे से जितना मोह था, उतना इस उम्र में रायफल से नहीं।

प्रश्न 3. लेखक के कुएँ में साँप से संघर्ष के समय उसके छोटे भाई की मनोदशा कैसी थी? |
उत्तर- लेखक ने कहा है कि ”जब मैं कुएँ के नीचे जा रहा था तो छोटा भाई रो रहा था। मैंने उसे ढाँढस दिलाया कि मैं कुएँ में पहुँचते ही साँप को मार दूंगा।”

प्रश्न 4. लेखक की तीन साहित्यिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- लेखक की भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण एवं प्रभावशाली है। भाषा की दृष्टि से इन्होंने प्रेमचन्द जी के समान ही प्रयोग किये हैं। इन्होंने अपनी भाषा को सरल एवं सुबोध बनाने के लिए संस्कृत, उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों के साथ-साथ लोकभाषा के शब्दों का प्रयोग किया है।

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प्रश्न 5. ‘स्मृति ‘ पाठ से आपने क्या समझा? अपने शब्दों में लिखिए। |
उत्तर- ‘स्मृति’ पाठ से यह बात उभरकर सामने आती है कि बच्चे अत्यन्त साहसी होते हैं। उन्हें मृत्यु का भय नहीं होता है। इस उम्र में वे बड़े-बड़े साहसिक कार्य कर बैठते हैं।

प्रश्न 6. ‘स्मृति’ पाठ से दस सुन्दर वाक्य लिखिए।
उत्तर- सन् 1908 ई० की बात है। जाड़े के दिन थे। हवा के प्रकोप से कँपकँपी लग रही थी। हवा मज्जा तक ठिठुरा रही थी। हम दोनों उछलते-कूदते एक ही साँस में गाँव से चार फर्लाग दूर उस कुएँ के पास आ गये । कुआँ कच्चा था और चौबीस हाथ गहरा था। कुएँ की पाट पर बैठे (UPBoardSolutions.com) हम रो रहे थे। दृढ़ संकल्प से दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं। छोटा भाई रोता था और उसके रोने का तात्पर्य था कि मेरी मौत मुझे नीचे बुला रही है। छोटे भाई की आशंका बेजा थी, पर उस फैं और धमाके से मेरा साहस कुछ और बढ़ गया।

प्रश्न 7. चिट्ठियों को कुएँ में गिरता देख लेखक की क्या मनोदशा हुई? |
उत्तर- चिट्ठियों को कुएँ में गिरता देख लेखक की मनोदशा उसी प्रकार हुई जैसे घास चरते हुए हिरन की आत्मा गोली से हत होने पर निकल जाती है और वह तड़पता रह जाता है।

प्रश्न 8. ‘वह कुएँ वाली घटना किसी से न कहे।’ लेखक ने अपने साथी लड़के से क्यों कहा?
उत्तर- ‘वह कुएँ वाली घटना किसी से न कहे।’ ऐसा लेखक ने अपने साथी लड़के से घरवालों के भय से कहा था।

प्रश्न 9. कुएँ में साहसपूर्वक उतरकर चिट्ठियों को निकाल लाने के कार्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर- लेखक पाँच धोतियाँ जोड़कर कुएँ के नीचे उतरा। नीचे कच्चे कुएँ का व्यास बहुत कम था, अत: साँप को डण्डे से मारना आसान नहीं थी। लेखक का कहना है कि डण्डे के मेरी ओर खिंच आने से मेरे और साँप के आसन बदल गये। मैंने तुरन्त ही लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिये।

प्रश्न 10. लेखक और साँप के बीच संघर्ष के विषय में लिखिए।
उत्तर- जब लेखक चिट्ठियाँ लेने कुएँ में उतरा तो साँप ने वार किया और डण्डे से चिपट गया। डण्डा हाथ से छूटा तो नहीं, पर झिझक, सहम अथवा आतंक से अपनी ओर खिंच गया और गुंजल्क मारता हुआ साँप का पिछला भाग मेरे हाथों से छू गया। डण्डे को मैंने एक ओर पटक दिया । यदि (UPBoardSolutions.com) कहीं उसका दूसरा वार पहले होता, तो उछलकर मैं साँप पर गिरता और न बचता। डण्डे के मेरी ओर खिंच आने से मेरे और साँप के आसन बदल गये। मैंने तुरन्त ही लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिये।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. श्रीराम शर्मा किस युग के लेखक थे?
उत्तर- श्रीराम शर्मा शुक्ल एवं शुक्लोत्तर युग के लेखक थे।

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प्रश्न 2. श्रीराम शर्मा ने किस पत्रिका का सम्पादन किया था?
उत्तर- श्रीराम शर्मा ने ‘विशाल भारत’ का सम्पादन किया था।

प्रश्न 3. ‘स्मृति’ लेख किस शैली में लिखा गया है?
उत्तर- ‘स्मृति’ लेख वर्णनात्मक शैली में लिखा गया है।

प्रश्न 4. चिट्ठी किसने लिखी थी?
उत्तर- चिट्ठी श्रीराम शर्मा के बड़े भाई ने लिखी थी।

प्रश्न 5. निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (√) का चिह्न लगाओ
(अ) साँप को चक्षुःश्रवा कहते हैं।                             (√)
(ब) ‘स्मृति’ लेख ‘शिकार’ पुस्तक से लिया गया है।    (√)
(स) कुआँ पक्का और दस हाथ गहरा था।                (×)
(द) ‘स्मृति’ में सन् 1928 की बात है।                        (×)

व्याकरण-बोध

प्रश्न 1. निम्नलिखित समस्त पदों का समास-विग्रह कीजिए तथा समास का नाम बताइए –
विषधर, चक्षुःश्रवा, प्रसन्नवदन, मृग-समूह, वानर-टोली।
उत्तर-
विषधर        –   विष को धारण करनेवाला (सर्प) – बहुब्रीहि समास
चक्षुःश्रवा     –   आँखों से सुननेवाला                    –   बहुब्रीहि समास
प्रसन्नवदन   –   प्रसन्न वदन वाला                       –    कर्मधारय समास
मृग-समूह    –   मृगों का समूह                          –    सम्बन्ध तत्पुरुष
वानर-टोली  –   वानरों की टोली                         –   सम्बन्ध तत्पुरुष

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प्रश्न 2. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ बताते हुए वाक्य-प्रयोग कीजिए –
बेड़ियाँ कट जाना, बेहाल होना, आँखें चार होना, तोप के मुहरे पर खड़ा होना, टूट पड़ना, मोरचे पड़ना।
उत्तर-

  • बेड़ियाँ कट जाना- (मुक्त हो जाना)
    दासता की बेड़ियाँ कट जाने से देश आजाद हो गया।
  • बेहाल होना- (व्याकुल होना)
    राम के वन चले जाने पर दशरथ जी बेहाल हो गये।
  • आँखें चार होना- (प्रेम होना)
    आँखें चार होने पर प्रेम होता है।
  • तोप के मुहरे पर खड़ा होना- (मुकाबले पर डटना)
    हमारे देश के नौजवान तोप के मुहरे पर खड़े होने के लिए तैयार रहते हैं।
  • टूट पड़ना- (धावा बोल देना)
    हमारे देश के नौजवान जब पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़े तो उसके छक्के छूट गये।
  • मोरचे पड़ना- (मुकाबला होना)
    कारगिल युद्ध में भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना से मोरचे पड़ गये।

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UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 (Section 4)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 भारत का विदेशी व्यापार (अनुभाग – चार)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Social Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 भारत का विदेशी व्यापार (अनुभाग – चार)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
या
भारत में निर्यात व्यापार की तीन विशेषताएँ बताइट। [2012]
उत्तर :
भारत के विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषताएँ भारत के विदेशी व्यापार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. अधिकांश भारतीय विदेशी व्यापार (लगभग 90%) समुद्री मार्गों द्वारा किया जाता है। हिमालय पर्वतीय अवरोध के कारण समीपवर्ती देशों एवं भारत के मध्य धरातलीय आवागमन की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसी कारण देश का अधिकांश व्यापारे पत्तनों द्वारा अर्थात् समुद्री मार्गों द्वारा ही किया जाता है।

2. भारत का निर्यात व्यापार 27% पश्चिमी यूरोपीय देशों, 20% उत्तरी अमेरिकी देशों, 51% एशियाई एवं ऑस्ट्रेलियाई देशों तथा 20% अफ्रीकी एवं दक्षिणी अमेरिकी देशों से किया जाता है। कुल निर्यात व्यापार का 61.1% भाग विकसित देशों (UPBoardSolutions.com) (सं० रा० अमेरिका 17.4%, जापान 7.2%, जर्मनी 6.8% एवं ब्रिटेन 5.8%) को किया जाता है। इसी प्रकार आयात व्यापार 26% पश्चिमी यूरोपीय देशों, 39% एशियाई एवं ऑस्ट्रेलियाई देशों, 13% उत्तरी अमेरिकी देशों तथा 7% अफ्रीकी देशों से किया जाता है।

3. यद्यपि भारत में विश्व की लगभग 17% जनसंख्या निवास करती है, परन्तु विश्व व्यापार में भारत का भाग 0.5% से भी कम है, जबकि अन्य विकसित एवं विकासशील देशों का भाग इससे कहीं अधिक है। इस प्रकार देश के प्रति व्यक्ति विदेशी व्यापार का औसत अन्य देशों से बहुत कम है।

4. भारत के विदेशी व्यापार का भुगतान सन्तुलन स्वतन्त्रता के बाद से ही हमारे पक्ष में नहीं रहा है। सन् 1960-61 ई० का तथा 1970-71 ई० में भुगतान सन्तुलन हमारे पक्ष में रहा है। सन् 1980-81 ई० में घाटा ₹ 5,838 करोड़ था, 1990-91 ई० में यह घाटा ₹ 10,635 करोड़ तक पहुँच गया। वर्ष 1999-2000 में व्यापार घाटा १ 55,675 करोड़ हो गया। परन्तु 2000-2001 ई० में इस घाटे में कुछ गिरावट आई और यह घटकर ₹ 27,302 करोड़ हो गया है। तत्पश्चात् पुन: इस घाटे में वृद्धि होनी शुरू हो गयी। वर्ष 2005-06 के आँकड़ों के मुताबिक इस घाटे के ₹ 1,75,727 करोड़ होने का ” अनुमान है। वर्ष 2006-07 में विदेशी व्यापार में घाटा 56 अरब डॉलर से अधिक का रहा। 2011-12 में व्यापार घाटा बढ़कर 8,85,492 करोड़ हो गया। अमेरिकी डॉलर के हिसाब से 184.5 बिलियन डॉलर का हो गया। घाटे में वृद्धि का प्रमुख कारण आयात में भारी वृद्धि का होना है। आयात में भारी वृद्धि पेट्रोलियम पदार्थों के आयात के कारण हुई है।

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5. देश का अधिकांश विदेशी व्यापार लगभग 35 देशों के मध्य होता है, जो विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों के आधार पर किया जाता है।

6. विगत दो दशकों में भारत के आयातों की प्रकृति में भारी परिवर्तन हुए हैं। पहले भारत निर्मित माल का अधिक आयात करता था, किन्तु अब खाद्य तेल, पेट्रोलियम तथा उसके उत्पाद, स्नेहक पदार्थ, उर्वरक, कच्चे माल तथा पूँजीगत वस्तुओं का भी आयात करने लगा है।

7. निर्यातों की प्रकृति में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। पहले भारत के निर्यात पदार्थों में कृषि तथा खनन-आधारित कच्चे मालों की प्रधानता थी, अब भारत सूती वस्त्र, सिले-सिलाये वस्त्र, जूट का ग़मान, चमड़ा निर्मित सामान, अभ्रक, मैंगनीज, लौह-अयस्क, मशीनरी, साइकिल, पंखे, फर्नीचर, रेल के इंजन तथा उपकरण, सीमेण्ट, हौजरी, हस्त निर्मित वस्तुएँ, रत्न-जवाहरात, आभूषण आदि का निर्यात करता है।

8. 31 अगस्त, 2004 ई० में भारत ने नई निर्यात नीति लागू कर दी है। इस नीति के तहत निर्यात क्षेत्र को सेवा कर से मुक्त कर दिया गया है तथा लघुत्तर व कुटीर उद्योगों हेतु निर्यात संवर्द्धन पूँजीगत सामान योजना के तहत निर्यात दायित्व पूरा करने की (UPBoardSolutions.com) समय सीमा को आठ वर्षों की बजाय 12 वर्ष किया गया है।

प्रश्न 2.
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के महत्त्व तथा भारतीय निर्यातों और आयातों की दिशा पर प्रकाश डालिए। [2017]
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के महत्त्व पर एक नोट लिखिए।
या
भारत के विदेशी व्यापार की दिशा लिखिए। किसी देश के लिए विदेशी व्यापार का महत्त्व समझाइए। [2010]
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में निर्यात व्यापार के तीन महत्त्व लिखिए। [2013]
उत्तर :

भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार का महत्त्व

किसी भी देश का विदेशी व्यापार उसके आर्थिक विकास का दर्पण होता है। विदेशी व्यापार के दो घटक होते हैं –

  1. आयात तथा
  2. निर्यात। विदेशी व्यापार से प्रत्येक देश लाभान्वित होता है।

निम्नलिखित तथ्यों से भारत के विदेशी व्यापार का महत्त्व स्पष्ट होता है –

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1. प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग – एक देश ऐसे उद्योगों की स्थापना एवं संचालन करता है, जिनसे उसे अधिकतम तुलनात्मक लाभ प्राप्त होता है और वह उस बाजार (देश) में अपनी उत्पादित वस्तुओं को बेचता है, जहाँ उसे वस्तुओं का सर्वाधिक मूल्य मिलता है। फलत: वह उपलब्ध प्राकृतिक ‘ संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करता है।

2. औद्योगीकरण को प्रोत्साहन – विदेशी व्यापार के माध्यम से देश में (UPBoardSolutions.com) उद्योग-धन्धों को विकसित करने के लिए आवश्यक उपकरण, कच्चा माल व तकनीकी ज्ञान सरलता से उपलब्ध हो जाते हैं। फलतः देश में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है।

3. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सद्भावना में वृद्धि – विदेशी व्यापार के फलस्वरूप विभिन्न देशों के नागरिक एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में आते हैं और एक-दूसरे के विचारों एवं दृष्टिकोणों से परिचित होते हैं। फलस्वरूप सांस्कृतिक सहयोग एवं परस्पर विश्वास में वृद्धि होती है।

4. सस्ती वस्तुओं की उपलब्धि – विदेशी व्यापार के फलस्वरूप विदेशों से सस्ती एवं उत्तम वस्तुएँ उपलब्ध होने लगती हैं। इन वस्तुओं के उपभोग से लोगों के जीवन-स्तर एवं आर्थिक कल्याण में वृद्धि होती है।

5. भौगोलिक श्रम-विभाजन – विदेशी व्यापार के स्वतन्त्र होने पर प्रत्येक देश उन वस्तुओं का उत्पादन करता है, जिनसे उसे सर्वाधिक प्राकृतिक लाभ प्राप्त होता है अथवा जिनकी उत्पादन-लागत न्यूनतम होती है। इस प्रकार विदेशी व्यापार की क्रियाएँ भौगोलिक श्रम-विभाजन को सम्भव बनाती हैं।

6. उपभोक्ताओं को लाभ – उत्पादन अनुकूलतम परिस्थितियों में होने के कारण वस्तु की उत्पादन लागत कम हो जाती है, जिससे उपभोक्ताओं को उत्तम वस्तुएँ कम कीमत पर देश में ही उपलब्ध हो जाती हैं। इससे उनके जीवन-स्तर में वृद्धि होती है।

7. उत्पादन व तकनीकी क्षमता में सुधार – विदेशी व्यापार के कारण देश के उद्योगपतियों को सदैव विदेशी प्रतियोगिता का भय बना रहता है। वे जानते हैं कि यदि वे उच्चकोटि का उत्पादन कम लागत पर न कर सके तो उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की माँग कम हो जाएगी। अतः वे अपनी कार्यकुशलता एवं उत्पादन तकनीकी में सुधार करते रहते हैं।

8. एकाधिकारी प्रवृत्ति पर अंकुश – विदेशी प्रतियोगिता के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में एकाधिकारी प्रवृत्ति पर अंकुश लगा रहता है, जिससे उपभोक्ता की एकाधिकारात्मक शोषण से रक्षा होती है।

9. कच्चे माल की उपलब्धि – विदेशी व्यापार के कारण विभिन्न देशों को आवश्यक कच्चा माल सरलता से उपलब्ध हो जाता है, जिससे देश के औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिलता है।

10. मूल्य-स्तर में समानता की प्रवृत्ति – विदेशी व्यापार के कारण विश्व के प्राय: सभी देशों में वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में समानता की प्रवृत्ति पायी जाती है।

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11. विदेशी विनिमय की उपलब्धि – विदेशी व्यापार विदेशी विनिमय को अर्जित करने का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण साधन है।

12. आय की प्राप्ति – विदेशी व्यापार के कारण सरकार को भारी मात्रा में आयात व निर्यात कर लगाकर आय की प्राप्ति होती है।

भारत के विदेशी व्यापार (आयात-निर्यात) की दिशा

स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के विदेशी व्यापार के स्वरूप में निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं –

  1. भारत का विदेशी व्यापार कॉमनवेल्थ देशों तक सीमित न रहकर विश्वव्यापी हो गया है।
  2. स्वतन्त्रता के पूर्व भारत कच्चे पदार्थों (कृषि तथा खनिजों) का (UPBoardSolutions.com) निर्यातक देश था, किन्तु स्वतन्त्रता के बाद उसके निर्यातों में तैयार माल सम्मिलित हुए तथा उनमें विविधता आ गयी।
  3. स्वतन्त्रता के पूर्व भारत में पर्याप्त अन्नोत्पादन होता था, किन्तु देश के विभाजन के बाद गेहूँ तथा चावल के बड़े उत्पादक क्षेत्र पाकिस्तान में चले जाने से भारत को अन्न का आयात करना पड़ा।
  4. खाद्य एवं कृषिगत पदार्थ भारत के परम्परागत निर्यात पदार्थ रहे हैं, किन्तु अब भारत मशीनरी, सूती वस्त्र, सिले-सिलाये वस्त्र, हस्तनिर्मित वस्तुओं आदि का भी निर्यात करने लगा है।

भारतीय निर्यातों का आधे से अधिक भाग पश्चिमी यूरोप के विकसित देशों, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जापान को, लगभग एक-तिहाई भाग पूर्वी यूरोप तथा अन्य विकासशील देशों को और केवल एक छोटा-सा भाग मध्य-पूर्व के तेल उत्पादक देशों को जाता है। भारत के निर्यातों में रूस और जापान का महत्त्व बढ़ा है तथा ब्रिटेन का एकाधिकार समाप्त हो गया है। भारत का अपने पड़ोसी देशों से व्यापार कम होता जा रहा है तथा पूर्व साम्यवादी देशों-पोलैण्ड, चेकोस्लोवाकिया व रूस से बढ़ा है। भारत जिन देशों को निर्यात करता है, क्रमानुसार उनके नाम हैं—सं० रा० अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, इटली, सऊदी अरब, इराक, कुवैत, हॉलैण्ड, ईरान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया आदि।

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भारतीय आयातों का आधे से अधिक भाग विकसित देशों से होता है। एक-चौथाई भाग पूर्वी यूरोपीय देशों एवं अन्य विकसित देशों से और एक बहुत बड़ा भाग (20%) मध्य-पूर्व के तेल उत्पादक देशों से होता है। भारत के आयात में संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, पश्चिमी जर्मनी, कनाडा तथा जापान से होने वाले आयातों में विशेष वृद्धि हुई है। भारत के आयातों में ब्रिटेन का एकाधिकार समाप्त हो गया है और कुछ नये देशों; जैसे-ईरान और अन्य पूर्व (UPBoardSolutions.com) साम्यवादी देशों के साथ व्यापार बढ़ा है। भारत जिन देशों से आयात करता है, क्रमानुसार उनके नाम हैं—सं० रा० अमेरिका, जापान, सऊदी अरब, इराक, रूस, जर्मनी, ईरान, फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, कुवैत आदि।

प्रश्न 3.
भारत के प्रमुख आयातों का उल्लेख कीजिए। [2018]
या
भारत के आयात की चार प्रमुख मदें लिखिए।
उत्तर :

भारत के प्रमुख आयात

भारत विश्व के 140 देशों से 6,000 से अधिक वस्तुओं का आयात करता है। देश की विकासशील अर्थव्यवस्था की आवश्यकता के अनुरूप आयातों में भी भारी वृद्धि दर्ज हुई है। देश में आयात किये जाने वाले प्रमुख पदार्थ निम्नलिखित हैं –

1. पेट्रोल एवं पेट्रोलियम उत्पाद – भारत के आयात में पेट्रोल एवं पेट्रोलियम उत्पादों का विशिष्ट स्थान है। यह आयात बहरीन, फ्रांस, इटली, अरब, सिंगापुर, संयुक्त राज्य अमेरिका, ईरान, इण्डोनेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, मैक्सिको, अल्जीरिया, म्यांमार, इराक, रूस आदि देशों से किया जाता है।

2. मशीनें – देश के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास के लिए भारी मात्रा में मशीनों का आयात किया जा रहा है। इनमें विद्युत मशीनों का आयात सबसे अधिक किया जाता है। इसके अतिरिक्त सूती वस्त्र उद्योग, कृषि, बुल्डोजर, शीत भण्डारण, चमड़ा, चाय एवं चीनी उद्योग, वायु-सम्पीडक, खनिज आदि अनेक प्रकार के उद्योगों से सम्बन्धित मशीनों का आयात ब्रिटेन, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका, बेल्जियम, फ्रांस, जापान, कनाडा, चेक तथा स्लोवाक गणतन्त्र देशों से किया जाता है।

3. कपास एवं रद्दी रुई – भारत में उत्तम सूती वस्त्र तैयार करने के लिए लम्बे रेशे वाली कपास तथा विभिन्न प्रकार के कपड़ों के लिए रद्दी रुई विदेशों से आयात की जाती है। यह कपास एवं रुई मित्र, संयुक्त राज्य अमेरिका, तंजानिया, कीनिया, सूडान, पीरू, (UPBoardSolutions.com) पाकिस्तान आदि देशों से मँगवायी जाती है।

4. अलौह धातुएँ, लोहे तथा इस्पात का सामान – इन वस्तुओं का कुल आयातित माल में दूसरा स्थान है। ऐलुमिनियम, पीतल, ताँबा, काँसा, सीसा, जस्ता, टिन आदि धातुएँ विदेशों से अधिक मात्रा में मँगवायी जाती हैं। इन वस्तुओं का आयात प्रायः ब्रिटेन, कनाडा, स्विट्जरलैण्ड, स्वीडन, संयुक्त राज्य अमेरिका, बेल्जियम, कांगो गणतन्त्र, मोजाम्बिक, ऑस्ट्रेलिया, म्यांमार, सिंगापुर, मलेशिया, रोडेशिया, जापान आदि देशों से किया जाता है।

5. उर्वरक एवं रसायन – अनेक रासायनिक उद्योगों के लिए रासायनिक कच्चे माल तथा उर्वरक आयात, किये जाते हैं। भारत में कृषि के विकास के लिए उर्वरकों की बहुत आवश्यकता है; क्योंकि देश में इनका उत्पादन यथेष्ट मात्रा में नहीं होता है। भारत इनको आयात संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, कनाडा आदि देशों से करता है।

6. खाद्यान्न एवं अन्य उत्पाद – अतिशय जनसंख्या तथा कुछ वर्षों में प्रतिकूल मौसम के कारण देश में खाद्यान्नों की कमी हो गयी है, जिससे देश को भारी मात्रा में इनका आयात करना पड़ा है। अमेरिका, कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया खाद्यान्नों (मुख्यतः गेहूँ) के आयात के प्रमुख स्रोत हैं। खाद्यान्नों के अतिरिक्त भारत के द्वारा विदेशों से मोती तथा मूल्यवान व विकल्प रत्न भी मँगवाये जाते हैं एवं खाद्य तेल, कागज व गत्ता या लुगदी, कृत्रिम रेशे तथा औषधियों का आयात किया जाता है।

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प्रश्न 4.
भारत के प्रमुख निर्यातों का उल्लेख कीजिए। [2017, 18]
या
भारत से निर्यात की जाने वाली किन्हीं तीन प्रमुख वस्तुओं का उल्लेख कीजिए। [2013]
उत्तर :

भारत के प्रमुख निर्यात

भारत एक विकासशील देश है। इसके निर्यातों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। यह 190 देशों को 7,500 वस्तुओं का निर्यात करता है, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं –

1. जूट का सामान – भारत के निर्यात व्यापार में जूट का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि इसके निर्यात से विदेशी मुद्रा का 35% भाग प्राप्त होता है। इससे निर्मित बोरे, टाट, मोटे कालीन, फर्श, गलीचे, रस्से, तिरपाल आदि निर्यात किये जाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, (UPBoardSolutions.com) ब्रिटेन, अर्जेण्टाइना, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, रूस, अरब गणराज्य इसके मुख्य ग्राहक हैं। पच्चीस वर्ष पूर्व तक इसी के निर्यात को प्रथम स्थान प्राप्त था, किन्तु अब दूसरी वस्तुओं का निर्यात अधिक होने लगा है।

2. चाय – भारत द्वारा अपनी कुल चाय का 59% भाग ब्रिटेन को निर्यात किया जाता हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका (4%), रूस (12%), कनाडा (3%), ईरान (1%), अरब गणराज्य (6%), नीदरलैण्ड (2%) तथा सूडान एवं जर्मनी इसके अन्य प्रमुख ग्राहक हैं।

3. खालें, चमड़ा व चमड़े की वस्तुएँ – भारतीय चमड़े की माँग मुख्यत: ब्रिटेन (45%), जर्मनी (10%), फ्रांस (7%) एवं संयुक्त राज्य अमेरिका (9%) देशों में रहती है। अन्य ग्राहकों. में इटली, जापान, बेल्जियम और यूगोस्लाविया आदि देश हैं। भारत के निर्यात व्यापार की यह भी एक महत्त्वपूर्ण मंद है।

4. तम्बाकू – भारत द्वारा ब्रिटेन, जापान, पाकिस्तान, अदन, चीन, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों को तम्बाकू को निर्यात किया जाता है। भारत तम्बाकू के निर्यात से लगभग ₹ 1,000 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त करता है।

5. रसायन, मछली एवं समुद्री उत्पाद – भारत अमेरिका आदि देशों को प्रॉन, श्रिम्प आदि लोकप्रिय मछली किस्मों तथा अन्य समुद्री उत्पादों का निर्यात करता है। इनके अतिरिक्त भारत द्वारा रसायन, उससे सम्बद्ध उत्पाद, भेषज व प्रसाधन सामग्री का भी निर्यात किया जाता है।

6. खनिज पदार्थ – भारत अभ्रक, मैंगनीज तथा लौह-अयस्क का निर्यात करता है। अमेरिका तथा जर्मनी भारतीय अभ्रक के प्रमुख ग्राहक हैं। लौह धातु का निर्यात मुख्यतः जापान को किया जाता है।

7. सूती वस्त्र – भारत अपने सूती वस्त्रों का निर्यात इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, मलाया, म्यांमार, अदन, इथोपिया, सूडान, अफगानिस्तान, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों को करता है। इस क्षेत्र में जापान एवं चीन भारत से प्रतिस्पर्धा करने वाले देश हैं। अत: इसके निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने निर्यात प्रोत्साहन परिषद् की स्थापना की है।

8. इंजीनियरिंग का सामान – भारत ने इंजीनियरिंग के सामान का निर्यात करना भी प्रारम्भ कर दिया है। इसके अन्तर्गत मोटरें, रेल के डिब्बे, बिजली के पंखे, सिलाई की मशीनें, टेलीफोन, विद्युत उपकरण आदि प्रमुख हैं। भारत इन वस्तुओं का निर्यात-रूस, (UPBoardSolutions.com) अमेरिका, हंगरी, श्रीलंका, इराक आदि देशों को करता है।

9. मसाले – भारत अमेरिका तथा यूरोपीय देशों को मसाले का निर्यात करता है।

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10. आभूषण, रत्न एवं जवाहरात – भारत से स्वर्ण आभूषण, रत्नों तथा जवाहरातों के निर्यात भी किये जाते हैं।

प्रश्न 5.
व्यापार से क्या आशय है? ये कितने प्रकार के होते हैं? भारत के विदेशी व्यापार की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
या
भारत के विदेशी व्यापार की किन्हीं दो अभिवन प्रवृत्तियों की व्याख्या कीजिए। [2018]
उत्तर :
दो पक्षों के मध्य वस्तुओं के ऐच्छिक, पारस्परिक एवं वैधानिक लेन-देन को व्यापार कहते हैं। एक देश के व्यापार को दो भागों में बाँटा जा सकता है-घरेलू व विदेशी। जब किसी देश के विभिन्न स्थानों, प्रदेशों अथवा क्षेत्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है, तो इसे आन्तरिक, घरेलू अथवा अन्तक्षेत्रीय व्यापार कहते हैं और जब विभिन्न राष्ट्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है, तो इसे विदेशी, बाह्य अथवा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं। इस प्रकार विदेशी व्यापार से हमारा अभिप्राय विभिन्न राष्ट्रों के मध्य होने वाले व्यापार से है।

विदेशी व्यापार की विशेषताएँ – [संकेत-इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखें।

प्रश्न 6.
भारत की आयात-निर्यात नीति पर एक लेख लिखिए।
या
भारत की नवीन आयात-निर्यात नीति की चार विशेषताएँ लिखिए।
या
भारत के निर्यात में वृद्धि कैसे की जा सकती है? कोई दो सुझाव दीजिए। [2013]
या
भारत के विदेशी व्यापार की किन्हीं दो अभिनव प्रवृत्तियों की व्याख्यान कीजिए। [2018]
उत्तर :
भारत का आयात दो वित्तीय वर्षों को छोड़कर सदैव निर्यात से अधिक रहा है। इसलिए भारत का विदेशी व्यापार सन्तुलन भी प्रतिकूल ही रहा है। इस प्रतिकूलता को कम करने के लिए ही सरकार आयात-निर्यात नीति की घोषणा करती है, जिसका उद्देश्य आयातों को नियन्त्रित करना और निर्यातों को प्रोत्साहित करना होता है। आयात-निर्यात नीति, 1997-2002 ई० का उद्देश्य गत नीतियों की उपलब्धियों को सुदृढ़ करना और उदारीकरण की प्रक्रिया को आगे ले जाना था। कार्य-प्रणाली को सुचारु और सरल बनाने, परिमाणात्मक प्रतिबन्धों को चरणबद्ध तरीके से हटाने और निर्यातक समुदाय के लिए अनुकूल (UPBoardSolutions.com) वातावरण तैयार करने हेतु ठोस उपाय अपनाये गये तथा सभी मामलों में निर्यात सम्बन्धी अनिवार्यता को पूरा करने की अवधि बढ़ाकर 8 वर्ष कर दी गयी।

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शुल्क में छूट दिये जाने की योजना का विस्तार किया गया है जिससे इसमें निर्यात पश्चात् निःशुल्क पुन:पूर्ति लाइसेन्स-योजना को सम्मिलित किया जा सके। निर्यात पूर्व डी०ई०पी०बी० योजना समाप्त कर दी गयी है। निर्यात पश्चात् डी०ई०पी०बी० योजना अभी चल रही है, किन्तु इसकी दरों को युक्तिसंगत बनाया गया है। इसी प्रकार विश्वसनीय निर्यात लाभों को भी युक्तिसंगत बनाया गया है। निर्यातों को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक प्रतिबन्धों में ढील दी गयी है, बुनियादी सुविधाओं में सुधार लाने की घोषणा की गयी है तथा सभी निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों को मुक्त व्यापार क्षेत्र में बदल दिया गया है। इस प्रकार भारत की आयात-निर्यात नीति में निरन्तर संशोधन किये जा रहे हैं। इसी प्रकार अब पूँजीगत सामान, कच्चा माल, मध्यवर्ती माले, घटक सामान, उपभोज्य वस्तुएँ, कलपुर्जे, सहायक पुजें, औजार और अन्य सामान बिना किसी प्रतिबन्ध के आयात किये जा सकते हैं, बशर्ते कि ऐसा सामान आयात निषेध सूची में सम्मिलित न हो।

भारत ने 1 अप्रैल, 2001 ई० को अपनी नयी विदेशी व्यापार नीति की घोषणा की। नयी व्यापार नीति का उद्देश्य है कि निर्यातक लोग लालफीताशाही, जटिल प्रक्रियाओं और मनमाने निर्णयों से मुक्त होकर उत्पादन, निर्यात वृद्धि, बाजार और व्यापार पर ध्यान दें।

नयी विदेशी व्यापार नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं –

सरकार ने निर्यात की मात्रा में 20% वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य निर्धारित किया है। सात सौ चौदह वस्तुओं के आयात को अप्रैल, 2000 से तथा 715 वस्तुओं के आयात को अप्रैल, 2001 से कोटा पाबन्दी से मुक्त कर दिया है। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 5 हजार से अधिक वस्तुओं को निर्यात-शुल्क से मुक्त करने और उनके लिए निर्यात लाइसेन्स खत्म करने का निश्चय किया है। सरकार का कहना है कि चीन की तरह उदार निवेश की व्यवस्था वाले विशेष आर्थिक क्षेत्र देश में स्थापित किये जाएँगे तथा रत्न, आभूषण, कृषि रसायनों, जैव औषधियों, चमड़ा, सिले हुए वस्त्रों, रेशम और ग्रेनाइट क्षेत्र में निर्यात को बढ़ावा देने के विशेष प्रयास किये जाएँगे। तटकर आयोग को मजबूत बनाया जाएगा।

नयी विदेश व्यापार-नीति देश को उदारीकरण और बाजार-व्यवस्था के लिए (UPBoardSolutions.com) तैयार कर देश को आर्थिक मजबूती प्रदान करेगी।

प्रश्न 7.
भारत के विदेशी व्यापार की संरचना लिखिए।
उत्तर :

विदेशी व्यापार की संरचना

(i) आयात संरचना – भारत की आयात संरचना में तीन प्रकार की वस्तुएँ सम्मिलित हैं –

  1. पूँजी वस्तुएँ; जैसे—मशीन, धातुएँ, अलौह धातुएँ, परिवहन साधन।
  2. कच्चा माल; जैसे-खनिज तेल, कपास, जूट तथा रासायनिक पदार्थ।
  3. उपभोक्ता वस्तुएँ; जैसे-खाद्यान्न, विद्युत उपकरण, औषधियाँ, वस्त्र, कागज आदि।

योजनाकाल में आयात संरचना में निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं –

  1. इस्पात, खनिज तेल वे रासायनिक पदार्थों के आयात में तेजी से वृद्धि हुई है।
  2. मशीनों के आयात में वृद्धि-दर बढ़ी है।
  3. खाद्यान्नों के आयात में कमी हुई है।

(ii) निर्यात संरचना – भारत की निर्यात संरचना में चार प्रकार की वस्तुएँ सम्मिलित हैं –

  1. खाद्यान्न; जैसे—अनाज, चाय, तम्बाकू, कॉफी, मसाले, काजू आदि।
  2. कच्चा माल जैसे—खालें, चमड़ा, ऊन, रुई, कच्चा लोहा, मैंगनीज, खनिज पदार्थ, हीरे-जवाहरात आदि।
  3. निर्मित वस्तुएँ; जैसे-जूट का सामान, कपड़ा, चमड़े का सामान, रेशम के वस्त्र, तैयार कपड़े, सीमेण्ट, रसायन, खेल का सामान, जूते आदि।
  4. पूँजीगत वस्तुएँ; जैसे-मशीनें, परिवहन उपकरण, लोहा-इस्पात, इन्जीनियरिंग वस्तुएँ, सिलाई मशीन आदि।

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योजनाकाल में निर्यात संरचना में निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं

  1. पटसन, वस्त्र, चाय, कच्ची धातु, काजू तथा तम्बाकू आदि परम्परागत वस्तुओं के निर्यात में निरन्तर वृद्धि हुई है।
  2. तम्बाकू, मसाले, अभ्रक, आदि के निर्यात में कमी हुई है।
  3. वनस्पति तेल, गोंद तथा रुई आदि के निर्यात में कमी हुई है।
  4. चमड़ा और चमड़े से बनी वस्तुएँ, खेल का सामान और परियोजनागत सामान के निर्यात की प्रगति में कमी आई है।
  5. गत कुछ वर्षों में निर्मित वस्तुओं के निर्यात में आशातीत वृद्धि हुई है। (UPBoardSolutions.com) इनमें चमड़ा तथा उससे बने माल लोहा और इस्पात, रसायन और इन्जीनियरिंग का समान, शक्कर और हस्तशिल्प का सामान मुख्य हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेशी व्यापार से आप क्या समझते हैं? इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
या
विदेशी व्यापार से होने वाले चार लाभ बताइए।
या
भारत के आर्थिक विकास में विदेशी व्यापार के कोई दो योगदान बताइए।
उत्तर :

विदेशी व्यापार

व्यापार मुख्यत: दो प्रकार का होता है—(1) देशी व्यापार तथा (2) विदेशी व्यापार। विदेशी व्यापार का अर्थ उस व्यापार से है, जिसके अन्तर्गत दो या दो से अधिक राष्ट्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय किया जाता है; उदाहरणार्थ, यदि हम इंग्लैण्ड से मशीनें आयात करें या ऑस्ट्रेलिया को खेल का सामान निर्यात करें, तो इन दोनों को ही विदेशी व्यापार कहा जाएगा।
[संकेत – विदेशी व्यापार के महत्त्व के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न सं० 2 देखें।]

प्रश्न 2.
आयात-निर्यात को स्पष्ट कीजिए तथा उनके एक-एक उदाहरण भारतीय सन्दर्भ में लिखिए।
उत्तर :
देश की आर्थिक समृद्धि एवं विकास आयात-निर्यात पर निर्भर करता है। जब दों या अधिक देश पारस्परिक रूप से वस्तुओं का आयात-निर्यात करते हैं तो इसे विदेशी व्यापार कहते हैं। आयात एवं निर्यात को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है –

आयात – जब कोई देश अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ अन्य देश से मँगाता है, तो इसे आयात कहा जाता है। इस प्रकार कोई भी देश किसी वस्तु का आयात इसलिए करता है कि या तो अमुक वस्तु का उत्पादन उस देश में नहीं किया जाता अथवा उसकी उत्पादन (UPBoardSolutions.com) लागत उसके आयात मूल्य से अधिक पड़ती है। उदाहरण के लिए–भारत विदेशों से पेट्रोलियम का आयात करता है।

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निर्यात – ज़ब कोई देश अपने अधिकतम उत्पादन को अन्य देश को भेजता है, तो उसे निर्यात कहा जाता है। इस प्रकार किसी वस्तु का निर्यात इसलिए किया जाता है कि उस देश में उत्पन्न की गयी उस अतिरिक्त उत्पादित वस्तु की माँग विदेशों में है तथा उसे निर्यात करके विदेशी मुद्रा प्राप्त की जा सकती है। उदाहरण के लिए-भारत द्वारा चाय विदेशों को भेजना निर्यात है।

स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व भारत का विदेशी व्यापार परम्परागत तथा कृषि प्रधान देश की भाँति था। परन्तु स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् हुए औद्योगिक विकास ने भारत के विदेशी व्यापार के स्वरूप को काफी हद तक प्रभावित किया है। वर्तमान में भारत की निर्यात-सूची में 500 से अधिक वस्तुएँ हैं।

देश की औद्योगिक विकास की गति तीव्र होने से आयातों में भारी वृद्धि हुई है। साथ ही आयातों की प्रकृति भी बदलती है। अब मुख्य रूप से मशीनों, दुर्लभ कच्चे माल, तेल, रासायनिक पदार्थ आदि वस्तुओं का आयात होता है। निर्यात की तुलना में आयात अधिक होने के कारण भारत का व्यापार-सन्तुलन प्रतिकूल रहता है।

प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता के बाद भारत में निर्यात की प्रवृत्ति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत के निर्यातों में वृद्धि हुई है, किन्तु आयातों की तुलना में वृद्धि की दर धीमी रही है। निर्यात की मुख्य प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. योजना काल में निर्यातों में भारी वृद्धि हुई है और विविधता आयी है।
  2. हमारे निर्यातों में परम्परागत वस्तुओं व कच्चे माल के स्थान पर निर्मित वस्तुओं का निर्यात बढ़ा है।
  3. निर्यात की जाने वाली मुख्य वस्तुएँ हैं-जूट का सामान, सूती वस्त्र, चाय, (UPBoardSolutions.com) खनिज पदार्थ, तम्बाकू, खाल और चमड़ा, तिलहन, चीनी, मसाले व इंजीनियरिंग का सामान।
  4. सर्वाधिक निर्यात एशिया व ओसोनिया देशों को किये जाते हैं।

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प्रश्न 4
अन्तर्राष्ट्रीय एवं देशीय व्यापार के दो अन्तरों को स्पष्ट कीजिए। [2011]
या
विदेशी व्यापार और आन्तरिक व्यापार में अन्तर बताइए। [2010, 11]
या
राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अन्तर बताइट। [2016]
उत्तर :
अन्तर्राष्ट्रीय और देशीय व्यापार के दो अन्तर निम्नलिखित हैं –

  • जब किसी देश के विभिन्न स्थानों, प्रदेशों अथवा क्षेत्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है तो उसे देशीय व्यापार कहते हैं और जब विभिन्न राष्ट्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दो अंग हैं—आयात और निर्यात। आयात के लिए विदेशी मुद्रा प्रदान करनी होती है और निर्यात करने पर विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है; जब कि देशीय व्यापार में अपने देश की मुद्रा ही प्रयुक्त होती है। इसमें विदेशी मुद्रा का कोई लेन-देन नहीं होता।

प्रश्न 5.
भारत के विदेशी व्यापार की दिशा में क्या मुख्य परिवर्तन हुए हैं?
या
स्वाधीनता के बाद भारत के विदेशी व्यापार के स्वरूप में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए। [2013]
उत्तर :
स्वतन्त्रता के बाद भारत के विदेशी व्यापार के स्वरूप में निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं –

  1. भारत का विदेशी व्यापार कॉमनवेल्थ देशों तक सीमित न रहकर विश्वव्यापी हो गया है।
  2. स्वतन्त्रता के पूर्व भारत कच्चे पदार्थों (कृषि तथा खनिजों) का निर्यातक देश था, किन्तु स्वतन्त्रता के बाद उसके निर्यातों में तैयार माल सम्मिलित हुए तथा उनमें विविधता आ गई।
  3. स्वतन्त्रता के पूर्व भारत में पर्याप्त अन्नोत्पादन होता था, किन्तु (UPBoardSolutions.com) देश के विभाजन के बाद गेहूँ तथा चावल के बड़े उत्पादक क्षेत्र पाकिस्तान में चले जाने से भारत को अन्न का आयात करना पड़ा।
  4. खाद्य एवं कृषिगत पदार्थ भारत के परम्परागत निर्यात पदार्थ रहे हैं, किन्तु अब भारत मशीनरी, सूती – वस्त्र, सिले-सिलाये वस्त्र, हस्तनिर्मित वस्तुओं आदि का भी निर्यात करने लगा है।

भारतीय निर्यातों का आधे से अधिक भाग पश्चिमी यूरोप के विकसित देशों संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जापान को, लगभग एक-तिहाई भाग पूर्वी यूरोप तथा अन्य विकासशील देशों को और केवल एक छोटा-सा भाग मध्य-पूर्व के तेल उत्पादक देशों को जाता है। भारत के निर्यातों में रूस और जापान का महत्त्व बढ़ा है तथा ब्रिटेन का एकाधिकार समाप्त हो गया है। भारत का अपने पड़ोसी देशों से व्यापार कम होता जा रहा है तथा पूर्व साम्यवादी देशों-पोलैण्ड, चेकोस्लोवाकिया व रूस से बढ़ा है। भारत जिन देशों को निर्यात करता है, क्रमानुसार उनके नाम हैं—सं० रा० अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, इटली, सऊदी अरब, इराक, कुवैत, हॉलैण्ड, ईरान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया आदि।

प्रश्न 6.
विदेशी व्यापार के अनुकूल प्रभाव क्या होते हैं ?
उत्तर :
विदेशी व्यापार के प्रमुख अनुकूल प्रभाव निम्नवत् हैं –

  1. विदेशी व्यापार भारत के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करता है, जो विदेशों से लिये हुए ऋणों तथा ब्याजों की अदायगी में काम आती है।
  2. विदेशी व्यापार से भारतीयों के जीवन-स्तर में वृद्धि होती है।
  3. भारत शेष संसार से लाभदायक ढंग से उन वस्तुओं को खरीद सकता है जिनका अपने ही देश में उत्पादन करने पर लागत अधिक आती है, उसकी तुलना में वे विश्व व्यापार में सस्ती उपलब्ध रहती हैं। इन वस्तुओं के उपभोग से लोगों के जीवन-स्तर एवं आर्थिक कल्याण में वृद्धि होती है।
  4. भारत शेष संसार को उन वस्तुओं की बिक्री कर सकता है, जिनका वह (UPBoardSolutions.com) अधिक सफलता से अर्थात् दूसरे देशों की तुलना में सस्ता उत्पादन कर सकता है। इस प्रकार विदेशी व्यापार की क्रियाएँ भौगोलिक श्रम-विभाजन को सम्भव बनाती हैं।
  5. आयातों के द्वारा भारत अनिवार्य वस्तुओं की किसी भी कमी को पूरा कर सकता है।
  6. भारत दूसरे देशों से उन पूँजीगत वस्तुओं को मँगवा सकता है जिन वस्तुओं का वह बिल्कुल उत्पादन नहीं कर सकता अथवा बहुत कुशलता से उत्पादन नहीं कर सकता।

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प्रश्न 7.
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार का क्या महत्त्व या लाभ है?
उत्तर :
भारत के लिए विदेशी व्यापार के महत्त्व या लाभ निम्नलिखित हैं –

1. प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग – एक देश ऐसे उद्योगों की स्थापना एवं संचालन करता है, जिनसे उसे अधिकतम तुलनात्मक लाभ प्राप्त होता है और उस बाजार (देश) में वह अपनी उत्पादित वस्तुओं को बेचता है, जहाँ उसे वस्तुओं का सबसे अधिक मूल्य मिलता है। फलस्वरूप वह उपलब्ध प्राकृतिक संसाधानों को सर्वोत्तम उपयोग करता है।

2. औद्योगीकरण को प्रोत्साहन – विदेशी व्यापार के माध्यम से देश में उद्योग-धन्धों को विकसित करने के लिए आवश्यक उपकरण, कच्चा माल व तकनीकी ज्ञान सरलता से उपलब्ध हो जाते हैं। फलतः देश में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है।

3. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सदभावना में वृद्धि – विदेश व्यापार के (UPBoardSolutions.com) फलस्वरूप विभिन्न देशों के नागरिक एक-दूसरे के निकट सम्पर्क में आते हैं और एक-दूसरे के विचारों एवं दृष्टिकोणों से परिचित होते हैं। फलस्वरूप सांस्कृतिक सहयोग एवं परस्पर विश्वास में वृद्धि होती है।

प्रश्न 8.
निर्यात व्यापार से आप क्या समझते हैं? भारत की चार प्रमुख निर्यात की वस्तुओं का उल्लेख कीजिए। [2014, 18]
उत्तर :
निर्यात व्यापार–किसी देश द्वारा अपने देश से दूसरे देशों को वस्तुएँ बेचने का व्यापार निर्यात व्यापार कहलाता है।

भारत देश की चार प्रमुख निर्यात की वस्तुएँ निम्नवत् हैं –

  1. चाय
  2. तम्बाकू
  3. सूती वस्त्र
  4. चमड़ा व चमड़े से बनी वस्तुएँ।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विदेशी व्यापार का क्या अर्थ है ? [2014]
या
विदेशी व्यापार से आप क्या समझते हैं ? [2010, 11, 18]
या
विदेशी व्यापार को स्पष्ट कीजिए। [2015]
उत्तर :
जब दो या दो से अधिक देश परस्पर एक-दूसरे की वस्तुओं या सेवाओं का क्रय-विक्रय करते हैं तब इसे विदेशी व्यापार कहते हैं।

प्रश्न 2.
व्यापार सन्तुलन का क्या अर्थ है?
उत्तर :
यदि निर्यात आयातों से अधिक होते हैं तो देश का व्यापार-शेष ‘अनुकूल’ होता है। यदि आयात निर्यातों से अधिक होते हैं तो व्यापार-शेष प्रतिकूल’ होता है। यदि निर्यात और आयात बराबर होते हैं तो व्यापार-शेष सन्तुलित होता है। इसी को (UPBoardSolutions.com) व्यापार सन्तुलन भी कहते हैं।

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प्रश्न 3.
भारत के आयात की किन्हीं चार वस्तुओं के नामों का उल्लेख कीजिए। [2010, 11, 14, 16, 18]
उत्तर :
भारत के आयात की चार वस्तुओं के नाम हैं –

  1. खनिज तेल
  2. उर्वरक एवं रसायन
  3. मशीनें तथा
  4. धातुएँ; जैसे-टिन, पीतल, ताँबा।

प्रश्न 4.
भारत के विदेशी व्यापार को अनुकूल बनाने हेतु दो सुझाव दीजिए।
उत्तर :
भारत के विदेशी व्यापार को अनुकूल बनाने हेतु दो सुझाव इस प्रकार हैं-

  1. अधिकतम निर्यात किया जाना चाहिए तथा
  2. न्यूनतम आयात किया जाना चाहिए।

प्रश्न 5.
भारत में निर्यात-वृद्धि के लिए दो सुझाव दीजिए। [2013]
उत्तर :
भारत में निर्यात वृद्धि के लिए दो सुझाव निम्नवत् हैं –

  1. प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति बढ़ाने के लिए (UPBoardSolutions.com) उत्पादन लागत घटायी जानी चाहिए।
  2. निर्यात वस्तुओं की किस्म में सुधार किया जाना चाहिए।

प्रश्न 6.
आन्तरिक व्यापार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
जंब किसी देश के विभिन्न स्थानों, प्रदेशों अथवा क्षेत्रों के बीच वस्तुओं व सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है, तो उसे आन्तरिक व्यापार करते हैं।

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प्रश्न 7.
विदेशी व्यापार के दो उद्देश्य लिखिए।
या
विदेशी व्यापार की आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए। [2015]
उत्तर :
विदेशी व्यापार के दो उद्देश्य निम्नवत् हैं –

  1. औद्योगीकरण को प्रोत्साहन देना।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व सद्भावना में वृद्धि करना।

प्रश्न 8.
आयात एतं निर्यात का अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2015, 16]
उत्तर :
“आयात’ का अर्थ है-विदेशों से माल अपने देश (UPBoardSolutions.com) में मँगाना तथा “निर्यात का अर्थ है–विदेशों में अपने देश का माल भेजना।

प्रश्न 9.
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के दो लाभ लिखिए।
उत्तर :
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के दो लाभ इस प्रकार हैं –

  1. भारत की राष्ट्रीय आय और पूँजी–निर्माण में वृद्धि होती है तथा
  2. देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती हैं।

प्रश्न 10.
भारत से निर्यात की जाने वाली दो वस्तुओं के नाम लिखिए। [2010, 11, 16, 17]
उत्तर :
भारत से निर्यात की जाने वाली दो वस्तुएँ हैं –

  1. चाय तथा
  2. जूट का सामान।

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प्रश्न 11.
भारत के निर्यात व्यापार की दो समस्याएँ लिखिए।
उत्तर :

  1. कच्चे माल की अनुपलब्धता।
  2. हिमालय पर्वतीय अवरोध के समीपवर्ती (UPBoardSolutions.com) देशों एवं भारत के मध्य धरातलीय आवागमन की सुविधा उपलब्ध नहीं है।

प्रश्न 12.
भारत की दो निर्यात की जाने वाली परम्परागत तथा दो गैर-परम्परागत वस्तुओं के नाम लिखिए।
या
भारतीय निर्यात की किन्हीं दो प्रमुख वस्तुओं का उल्लेख कीजिए। [2010, 11, 16]
या
भारत के किन्हीं दो आयात तथा दो निर्यात वस्तुओं का उल्लेख कीजिए। [2015, 16]
उत्तर :
परम्परागत निर्यातक वस्तुएँ – चाय और जूट।
गैर-परम्परागत निर्यातक वस्तुएँ (UPBoardSolutions.com) – सिले वस्त्र, इंजीनियरिंग का सामान।

प्रश्न 13.
भारत से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के नाम लिखिये।
उत्तर :
भारत से जूट का सामान, चाय, तम्बाकू, सूती वस्त्र, चमड़ा व चमड़े से बनी वस्तुएँ आदि निर्यात की जाती हैं।

प्रश्न 14.
भारत में आयात की जाने वाली मुख्य वस्तुएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर :
भारत में पेट्रोल एवं पेट्रोलियम उत्पाद, मशीनें, कपास एवं रद्दी रुई, अलौह धातुएँ, लोहे तथा इस्पात का सामान आयात किया जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. कौन-सा ग्रुप भारत के आयात व्यापार को दर्शाता है?

(क) चाय, खाद्य तेल, तम्बाकू, पेट्रोलियम
(ख) पेट्रोलियम, जूट की वस्तुएँ, कपास, खाद्य तेल
(ग) रसायन, मशीनें, खाद्य तेल, पेट्रोलियम
(घ) रसायन, कपड़े की वस्तुएँ, जूट की वस्तुएँ, कपास

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2. भारत की प्रमुख आयातित वस्तु है।

(क) ऊनी मशीनें
(ख) सूती वस्त्र
(ग) खनिज तेल
(घ) जूट उत्पाद

3. वर्तमान में भारत के निर्यातों का अकेला सबसे बड़ा खरीदार है –

(क) सं० रा० अमेरिका
(ख) इंग्लैण्ड
(ग) अफ्रीकी देश
(घ) तेल उत्पादक देश

4. व्यापार सन्तुलन किसे कहते हैं?

(क) आयात अधिक हो
(ख) निर्यात अधिक हो
(ग) आयात व निर्यात बराबर हों
(घ) आयात व निर्यात न हों।

5. निम्नलिखित में से कौन-से देश-समूह भारत के आयात में प्रमुख हिस्सा रखते हैं?

(क) अफ्रीकी देश
(ख) विकसित देश
(ग) दक्षिणी अमेरिका के देश
(घ) दक्षिण-पश्चिमी एशिया के देश

6. भारत के निर्यात व्यापार में कितने प्रतिशत हिस्सा विकसित देशों का है?

(क) 4%
(ख) 6%
(ग) 61%
(घ) 59%

7. विश्व व्यापार में भारत का कितना अंश है?

(क) 3.6%
(ख) 2.6%
(ग) 1.6%
(घ) 0.6%

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8. निम्नलिखित में से भारत की प्रमुख निर्यात वस्तु कौन-सी है? [2012]

(क) कागज
(ख) खनिज तेल
(ग) खाद्य तेल
(घ) जवाहरात व आभूषण

9. भारत का सर्वाधिक विदेशी व्यापार निम्नलिखित में से किस देश के साथ होता है?

(क) जापान
(ख) रूस
(ग) ब्रिटेन
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका

10. कौन-सा समूह भारत के निर्यात व्यापार को दर्शाता है? [2017]

(क) खनिज तेल, चाय, अभ्रक, खाद्य तेल
(ख) चाय, मशीनरी, खाद्य तेल, लौह-अयस्क
(ग) चाय, लौह-अयस्क, चमड़े की वस्तुएँ, अभ्रक
(घ) लौह-अयस्क, चाय, खनिज-तेल, मशीनरी

11. कौन-सा समूह भारत के आयात व्यापार को दर्शाता है?

(क) खनिज तेल, कच्चा जूट, चाय, लौह-अयस्क
(ख) अभ्रक, चाय, कच्चा जूट, खनिज तेल
(ग) चाय, लौह-अयस्क, खनिज तेल, खाद्य तेल
(घ) खनिज तेल, खाद्य तेल, कच्चा जूट, मशीनरी

12. निम्नलिखित में से भारत के आयातों में सर्वाधिक मूल्य किस वस्तु का है? [2017]

(क) कृषि पदार्थ
(ख) धातु एवं खनिज
(ग) विनिर्मित सामान
(घ) अशुद्ध तेल एवं उत्पाद

13. निम्नलिखित में से कौन-सी वस्तु भारत के निर्यात की वस्तु है? [2009, 13, 18]

(क) खनिज तेल
(ख) जूट निर्मित वस्तुएँ।
(ग) मशीनें
(घ) मशीनों के पुर्जे

14. अपने देश की सीमा के अन्दर व्यापार कहलाता है

(क) आन्तरिक व्यापार
(ख) विदेशी व्यापार
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं

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15. व्यापार घाटे को कम करने का उपाय है

(क) निर्यातों को बढ़ाना
(ख) आयातों को कम करना
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं

16. विदेशी व्यापार नीति लागू की गयी

(क) 1 अप्रैल, 2001 से
(ख) 1 अप्रैल, 2003 से
(ग) 1 अप्रैल, 1951 से
(घ) 1 अप्रैल, 2002 से

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17. भारत में निम्नलिखित वस्तुओं में से सबसे अधिक किस वस्तु का निर्यात किया जाता है? [2014, 17]

(क) मशीनरी
(ख) चाय
(ग) उर्वरक
(घ) खनिज तेल

18. निम्नलिखित में से किसका आयात भारत में किया जाता है? [2016]

(क) चाय
(ख) कॉफी
(ग) पेट्रोलियम
(घ) लौह-अयस्क

उत्तरमाला

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 (Section 4)

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 8 are helpful to complete your homework.

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UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 11 जीव्याद् भारतवर्षम् (पद्य – पीयूषम्)

UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 11 जीव्याद् भारतवर्षम् (पद्य – पीयूषम्)

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परिचय

डॉ० चन्द्रभानु त्रिपाठी संस्कृत के उत्कृष्ट कवि एवं नाटककार हैं। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद में सन् 1925 ई० में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर तथा उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई। प्रयाग विश्वविद्यालय के द्वारा “व्याकरण-दर्शन के विशिष्ट अध्ययन” पर आपको डी० फिल्० की उपाधि प्रदान की गयी। इन्होंने अनेक आलोचनात्मक ग्रन्थ, शोध-लेख, कविताएँ, गीत तथा नाटक लिखे हैं। इनकी रचनाओं में सर्वत्र सरलता, सरसता, लालित्य (UPBoardSolutions.com) एवं स्वाभाविकता परिलक्षित होती है। प्रस्तुत गीत डॉ० चन्द्रभानु त्रिपाठी द्वारा रचित ‘गीताली’ नामक काव्य-संकलन से संकलित है। कवि ने प्रस्तुत गीत के तीन पदों में भारत को मनोरमता और भव्यता का तथा भारतीय समाज को एकजुट होकर देश की उन्नति करने का सन्देश दिया है। इनमें कवि की भारतीय संस्कृति के प्रति पूर्ण आस्था अभिव्यक्त हुई है।

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पाठ-सारांश

हमारा देश भारतवर्ष चिरकाल तक स्वाधीन राष्ट्र के रूप में विद्यमान रहे।
भारत की मनोरमता हिमालय भारत के सिर का मुकुट है। इस पर पड़ती हुई उदीयमान सूर्य की लाल-लाल किरणें मणियों की भ्रान्ति उत्पन्न करती हैं। समुद्र अपनी लहरों से सदैव इसके चरणों को धोता रहता है। नदियाँ इसके वक्षःस्थल पर पड़े हुए हार हैं, विन्ध्यपर्वत इसकी करधनी है तो सघन वनराशि इसके नवीन वस्त्र हैं।

समाज के नव-निर्माण की आवश्यकता सभी ज्ञानी, विद्वान्, सम्मानित लोग, पूँजीपति, श्रेष्ठ व्यापारी, (UPBoardSolutions.com) श्रमिक एवं वीर सभी वर्गों के लोग एक साथ मिलकर नये समाज का निर्माण करें। पुराने धर्म का परिष्कार करके मानवधर्म का यत्र-तत्र सर्वत्र प्रसार करें। भारत का प्रत्येक निवासी आत्म-बल से युक्त होकर उन्नति एवं प्रगति के नये-नये पाठों को पढ़ता रहे।

भारतीय संस्कृति में आस्था पवित्र लहरों वाली गंगा हमारे देश की महिमा को प्रसृत करती हुई सदैव प्रवाहित होती रहे। महावीर की अहिंसा, गौतम की करुणा और सत्य का सन्देश सर्वत्र फैले। भारतवासी गीता के कर्म के महत्त्व पर आस्था रखें और भारत के वीर सपूतों की गाथाओं का सर्वत्र गान हो। हमारे देश के लोग सुखी, स्वस्थ और दीन भाव से रहित हों तथा भारत एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में चिरकाल तक जीवित रहे।

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पद्यांशों की ससन्दर्भ हिन्दी व्याख्या

(1)
भारतवर्ष राष्ट्रं जीव्याच्चिरकालं स्वाधीनम्।
सन्मित्रं भूयाच्च समृद्धं जीयाच्छत्रु-विहीनम् ॥

हिमगिरिरस्य किरीटो मौलेररुण-किरण-मणि-माली।
कर-कल्लोलैर्जलधिविलसति पादान्त-प्रक्षाली
सरितो वक्षसि हारा विन्ध्यो भाति मेखला-मानम्।
पल्लव-लसिता निबिड-वनाली रुचिरं नव-परिधानम् ॥
आस्ते कविकुलमस्य मनोरम-रूप-वर्णने लीनम्। [2006]

शब्दार्थ जीव्यात् = अमर रहे। चिरकालम् = चिरकाल तका स्वाधीनम् = स्वतन्त्र सन्मित्रं = सच्चा मित्र। समृद्धं = समृद्धिशाली। जीयात् = विजयी हो। शत्रु-विहीनम् = शत्रुरहित। हिमगिरिः = हिमालय पर्वत। अस्य = इसके। किरीटः = मुकुट। मौलेः = मस्तक का। (UPBoardSolutions.com) अरुण-किरण-मणि-| (सूर्य की) किरणरूपी मणियों की माला वाला। कर-कल्लोलैः = विशाल लहरोंरूपी हाथों से। जलधिः = समुद्रा विलसति = शोभित होता है। पादान्त प्रक्षाली = पैरों के अग्रभाग को धोने वाला। सरितः = नदियाँ। वक्षसि = वक्षःस्थल पर, छाती पर हारा = हार हैं। विन्ध्य = विन्ध्याचल। भाति = शोभित होता है, सुशोभित है। मेखलामानम् = करधनी की भाँति। पल्लव-लसिता = पत्तों से सुसज्जित। निबिडवनाली = घनी वनपंक्ति रुचिरम् = सुन्दर। परिधानम् = वस्त्र। आस्ते = है। कविकुलम् = कवियों का समूह। मनोरम-रूप-वर्णने = मनोहर सुन्दरता का वर्णन करने में। लीनम् = तल्लीन।

सन्दर्भ प्रस्तुत गीत-पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के पद्य-खण्ड ‘पद्य-पीयूषम्’ के ‘जीव्याद् भारतवर्षम्’ शीर्षक गीत से लिया गया है।

[संकेत इस पाठ के शेष सभी पद्यों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग प्रस्तुत पद में भारत की मनोरमता और भव्यता का सुन्दर चित्र अंकित किया गया है।

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अन्वय भारतवर्ष राष्ट्रं चिरकालं स्वाधीनं जीव्यात्, (इदं) सन्मित्रं समृद्धं भूयात्, (इदं) शत्रुविहीनं जीयात्। अरुण-किरण-मणि-माली हिमगिरिः अस्य किरीटः (अस्ति)। जलधिः कर-कल्लोलैः (अस्य) पादान्त प्रक्षाली (सन्) विलसति। (अस्य) वक्षसि सरितः हाराः (सन्ति)। विन्ध्यः (अस्य) मेखलामानं भाति। पल्लवलसिता निबिडवनाली (अस्य) रुचिरं नवपरिधानम् अस्ति। कविकुलम् अस्य मनोरमरूपवर्णने लीनम् आस्ते।

व्याख्या हमारी राष्ट्र भारतवर्ष चिरकाल तक स्वाधीन होकर अमर रहे। यह अच्छे मित्रों वाला और वैभवपूर्ण हो, यह शत्रुरहित होकर विजयी रहे। सूर्य की लाल किरणों की मणियों की माला वाला हिमालय इसका ( भारतवर्ष का) मुकुट है। समुद्र अपने विशाल लहरोंरूपी हाथों से इसके पैरों के अग्रभाग को धोने वाला सुशोभित होता है। इसके वक्षस्थल पर नदियाँ हार के समान हैं। विन्ध्य पर्वत इसकी मेखला अर्थात् करधनी के समान शोभित होता है। कोमल पत्तों से शोभित घनी (UPBoardSolutions.com) वनपंक्ति इसका सुन्दर नया वस्त्र है। कवियों का समूह इसके सौन्दर्य के वर्णन में लीन हो रहा है।

(2)
सर्वे ज्ञान-धना बुध-वर्या मान-धना रण-धीराः ।।
स्वर्ण-धना व्यवसायि-धुरीणास्तथा श्रम-धना वीराः ॥

कुर्वन्त्वेकीभूय समेता नव-समाज-निर्माणम्।
मान्यो मानव-धर्मः प्रसरतु सम्परिशोध्य पुराणम् ॥
आत्मशक्ति-संवलित-मानवः पाठं पठेन्नवीनम् ॥

शब्दार्थ ज्ञान-धनाः = ज्ञानरूपी धन वाले। बुध-वर्याः = श्रेष्ठ विद्वान्। मानधनाः = यशरूपी धन वाले। रणधीराः = युद्ध में विचलित न होने वाले स्वर्ण-धनाः = स्वर्णरूपी धन वाले व्यवसायि-धुरीणाः = व्यापारियों में अग्रणी, श्रेष्ठ व्यवसायी। श्रमधनाः = परिश्रमरूपी धन वाले। एकीभूय = एक होकर समेताः = एक साथ मिलकर। मान्यः = सबके मानने योग्य मानव-धर्मः = मानवता के मूल्यों को सुरक्षित रखने वाला धर्म। प्रसरतु = फैले। सम्परिशोध्य = परिष्कार करके, सुधार करके। पुराणम् = पुराना। आत्मशक्ति-संवलित-मानवः = आत्मा की शक्ति से युक्त मनुष्य। पाठं पठेत् नवीनम् = नया पाठ पढ़े।

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प्रसंग प्रस्तुत पद में भारतीय समाज के प्रत्येक वर्ग को एकजुट होकर देश की उन्नति करने की सलाह दी गयी है।

अन्वय सर्वे ज्ञानधनाः, बुध-वर्याः, मानधनाः, रणधीराः, स्वर्णधनाः, व्यवसायिधुरीणाः तथा श्रमधंनाः वीराः समेताः एकीभूय नवसमाज-निर्माणः कुर्वन्तु। पुराणं सम्परिशोध्य मान्यः मानव-धर्मः प्रसरतु। आत्मशक्ति-संवलित-मानव: नवीनं पाठं पठेत्।।

व्याख्या सभी ज्ञान को धन समझने वाले (बौद्धिक वर्ग), श्रेष्ठ विद्वान्, प्रतिष्ठा को धन समझने वाले, युद्ध में विचलित न होने वाले, स्वर्णरूपी धन वाले, व्यापारियों में श्रेष्ठ तथा श्रम को धन समझने वाले (श्रमिक वर्ग), वीर लोग एक साथ मिलकर एकजुट होकर नये समाज का निर्माण करें। (UPBoardSolutions.com) (धर्म के) पुराने रूप का परिष्कार करके मानवता के मूल्यों को सुरक्षित रखने वाला धर्म (सर्वत्र) फैले। आत्मशक्ति से युक्त मानव नया पाठ पढ़े।

(3)
प्रवहतु गङ्गा पूततरङ्गा प्रथयन्ती महिमानम्।            [2007]
गायतु गीता कर्ममहत्त्वं योग-क्षेम-विधानम्॥           
भवेदहिंसा करुणासिक्ता तथा सूनृती वाणी।।
प्रसरे भारत-सद्वीराणां गाथा भुवि कल्याणी।।
देशे स्वस्थः सुखितो लोको भावं भजेन्न दीनम्।
भारतवर्षं राष्ट्रं जीव्याच्चिरकालं स्वाधीनम् ॥

शब्दार्थ प्रवहतु = बहे। पूततरङ्गा = पवित्र लहरों वाली। प्रथयन्ती = फैलाती हुई। महिमानम् = महिमा को। गायतु = गाये, गान करे। कर्ममहत्त्वं = कर्म के महत्त्व का। योगक्षेम-विधानम् = योग (अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति) और क्षेम (प्राप्त वस्तु की रक्षा) की व्यवस्था वाले। अहिंसा = जीवों को न सताना। करुणासिक्ता = करुणा से युक्त। सूनृता = सत्य और मनोरम प्रसरेत् = फैल जाए। सद्वीराणाम् = श्रेष्ठ वीरों की। गाथा = कथा। भुवि = पृथ्वी पर कल्याणी = मंगलमयी। देशे = देश में। (UPBoardSolutions.com) सुखितः = सुखी। लोकः = जनता। भावं = भाव को। दीनं = दीनता को। न भजेत् = प्राप्त न हो।

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प्रसंग प्रस्तुत पद में कवि ने भारतीय संस्कृति में अपनी पूर्ण आस्था व्यक्त की है।

अन्वय पूततरङ्गा गङ्गा (भारतवर्षस्य) महिमानं प्रथयन्ती प्रवहतु। गीता योग-क्षेमविधानं कर्ममहत्त्वं गायतु। अहिंसा करुणासिक्ता तथा वाणी सूनृता भवेत्। भारत-सद्वीराणां कल्याणी गाथा भुवि प्रसरेत्। देशे स्वस्थ: सुखितः लोकः दीनं भावं न भजेत्। भारतवर्ष चिरकालस्वाधीनं राष्ट्रं जीव्यात्।।

व्याख्या पवित्र लहरों वाली गंगा (भारतवर्ष की) महिमा को फैलाती हुई प्रवाहित हो। गीता, योग और क्षेम की व्यवस्था वाले कर्म के महत्त्व का गान करे। (देशवासियों के हृदय में) अहिंसा की भावना करुणा से सिंचित हो तथा वाणी सत्य और मनोरम हो। भारत के श्रेष्ठ वीरों की कल्याणमयी कथा पृथ्वी पर फैल जाए। देश में स्वस्थ और सुखी लोग दीनता को प्राप्त न करें। भारतवर्ष एक स्वाधीन राष्ट्र के रूप में चिरकाल तक जीवित रहे।

सूक्तिपरक वाक्यांशों की व्याख्या

(1) भारतवर्षं राष्ट्रं जीव्याच्चिरकालं स्वाधीनम्। [2008,09, 11, 14]

सन्दर्भ प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के पद्य-खण्ड ‘पद्य-पीयूषम्’ के जीव्याद् भारतवर्षम्’ नामक पाठ से अवतरित है।

प्रसंग इस सूक्ति में स्वतन्त्र भारत राष्ट्र के बहुमुखी विकास की कामना की गयी है।

अर्थ भारतवर्ष एक स्वाधीन राष्ट्र के रूप में चिरकाल तक जीवित रहे।

व्याख्या संसार का प्रत्येक व्यक्ति यही चाहता है कि वह और उसका देश बहुमुखी विकास करके अपनी कीर्ति सभी दिशाओं में फैलाये। अपनी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता चाहने के साथ-साथ वह यह भी चाहता है। कि वह जिस देश अथवा जाति का सदस्य है, वह भी स्वतन्त्र हो; अर्थात् उस पर किसी (UPBoardSolutions.com) का अंकुश न हो। उसका नाम सदैव के लिए संसार में अमर हो जाए। प्रस्तुत सूक्ति में भी कवि यही कामना कर रहा है कि हमारा देश भारत कभी किसी के अधीन न हो। वह सदैव स्वतन्त्र रहे और चिरकाल तक विश्व का सिरमौर बना रहे।

(2) आत्मशक्ति-संवलित-मानवः-पाठं-पठेन्नवीनम्। [2007, 14]

सन्दर्भ पूर्ववत्।।

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प्रसंग प्रस्तुत सूक्ति में आत्मा की शक्ति से युक्त मनुष्य को कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया गया है।

अर्थ आत्मशक्ति से युक्त मानव नया पाठ पढ़े।

व्याख्या भारतीय समाज के प्रत्येक वर्ग के व्यक्तियों को एक साथ मिलकर नये समाज का निर्माण करना चाहिए। उन्हें धर्म के पुराने स्वरूप को परिष्कार करके मानवीय मूल्यों को संरक्षित करने वाले धर्म का प्रसार करना चाहिए। इसके लिए भारतीय समाज के प्रत्येक मनुष्य को आत्मशक्ति से युक्त होना आवश्यक है। साथ ही उसे प्रगति और समृद्धि के नित नवीन क्षेत्रों का ज्ञान करने के लिए अध्ययन करते रहना भी आवश्यक है, क्योंकि ज्ञान की नवीनता के बिना परिष्कार सम्भव नहीं है और परिष्कार के लिए व्यक्ति का आत्म-शक्ति से युक्त होना भी अत्यावश्यक है।

(3) गायतु गीता कर्ममहत्त्वं योगक्षेमविधानम्। [2014]

सन्दर्भ पूर्ववत्।।

प्रसंग प्रस्तुत पंक्ति में श्रीमद्भगवद्गीता के महत्त्व का प्रतिपादन .कया गया है।

अर्थ गीता योग और क्षेम की व्यवस्था वाले कर्म के महत्त्व का गान करे।

व्याख्या प्राचीन भारतीय वाङ्मय के समस्त ग्रन्थों में गीता अर्थात् श्रीमद्भगवद्गीता का स्थान सर्वोपरि है और इसे पूजनीय ग्रन्थ माना जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता मुख्य रूप से कर्म के महत्त्व और योग-क्षेम की व्यवस्था का प्रतिपादन करती है। श्रीमद्भगवद्गीता का कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को उचित-अनुचित और कर्मफल की भावना को छोड़कर सतत कर्म करते रहना चाहिए। व्यक्ति को कभी भी अकर्म अथवा कर्महीनता की स्थिति में नहीं रहना चाहिए। कर्महीनता की स्थिति व्यक्ति (UPBoardSolutions.com) के लिए अत्यधिक घातक है। योग और क्षेम के अनेकानेक अर्थों को समाहित करते हुए भी गीता कर्म की श्रेष्ठता को ही सिद्ध करती है। स्वाभाविक है कि जब तक व्यक्ति कर्म में तत्पर नहीं होगा, तब तक स्वयं उसकी उन्नति सम्भव नहीं होगी। व्यक्ति की उन्नति में ही राष्ट्र की उन्नति निहित होती है। एक स्वाधीन राष्ट्र के रूप में भारत चिरकाल तक जीवित रहे, इसके लिए प्रत्येक भारतवासी को योग-क्षेम और कार्य की महत्ता का ज्ञान आवश्यक है।

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श्लोक का संस्कृत-अर्थ

(1) भारतवर्ष राष्टं ………………………………………………………. जीयाच्छत्रुविहीनम् ॥ (श्लोक 1)
संस्कृतार्थः अस्मिन् पद्ये कविः कामनां करोति यत् अस्माकं भारतराष्ट्रं चिरकालं स्वाधीनं जीवेत्। अस्य राष्ट्रस्य सम्मित्राणि भवेयुः। राष्ट्रं शत्रुविहीनं समृद्धं च भूयात्।।

(2)
प्रवहतु गङ्गा”………………………………………………………. कालं स्वाधीनम् ॥ (श्लोक 3)
प्रवहतु गङ्गा”………………………………………………………. योगक्षेमविधानम् ॥ [2008, 12, 13]
संस्कृतार्थः अस्मिन् पद्ये कविः श्री चन्द्रभानु त्रिपाठी कामनां करोति यत् भारतवर्षे भारत महिमानं वर्धन्ति, पवित्र गङ्गा नदी प्रवहतु, योग-क्षेम-विधान कर्म-महत्त्वं प्रतिपादिका गीता भवतु, करुणायुक्ता पवित्रा अहिंसा वाणी सर्वत्र प्रसरतु, भारतस्य वीराणां कल्याणकारी पवित्रा गाथा सर्वत्र प्रसरेत्। (UPBoardSolutions.com) भारतदेशे सर्वे जना: सुखिना: भवन्तु, कोऽपि दीनभावं न प्राप्नुयात्। एतादृशाः अस्माकं भारतवर्ष: स्वाधीन: सन् चिरञ्जीवी भूयात्।

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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 15 पर्यावरणशुद्धि (गद्य – भारती)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 15 पर्यावरणशुद्धि (गद्य – भारती) are the part of UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 15 पर्यावरणशुद्धि (गद्य – भारती).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 15
Chapter Name पर्यावरणशुद्धि (गद्य – भारती)
Number of Questions Solved 2
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 15 पर्यावरणशुद्धि (गद्य – भारती)

पाठ-सारांश

पर्यावरण का स्वरूप-अन्य प्राणियों की भाँति मनुष्य ने भी प्रकृति की गोद में जन्म लिया है। प्रकृति के तत्त्व उसको चारों ओर से घेरे हुए हैं। इन्हीं प्राकृतिक तत्त्वों को पर्यावरण कहा जाता है। मिट्टी, जल, वायु, वनस्पति, पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े आदि जीवाणु पर्यावरण के अंग हैं।.विकास के लिए उतावलापन दिखाते हुए मानव ने पर्यावरण के प्रति जो अनाचार किया है, उससे पर्यावरण अत्यधिक असन्तुलित हो गया है। जिन कारणों से पर्यावरण का असन्तुलन हुआ है, वे कारण निम्नलिखित हैं

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वनस्पति का विनाश-वनों में वनस्पति का अमित भण्डार भरा हुआ है। वनों से मानव को लकड़ी, ओषधि, फल-फूल आदि बहुत-सी दैनिक उपयोग की वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। वृक्ष सूर्य की गर्मी को रोकते हैं, वायु को शुद्ध करते हैं, भूमि के कटाव को रोकते हैं तथा वर्षा कराते हैं। इनकी पत्तियों से खाद बनती है। लकड़ी के लोभ से मनुष्य ने असंख्य वृक्षों को काट डाला है। वृक्षों के अभावु  में वनों की मिट्टी बह जाती है, जिससे भूमि की उर्वरता नष्ट हो जाती है। भूस्खलन से खेत-के-खेत जमीन में धंस जाते हैं। नदियाँ उथली हो जाती हैं, जिसके कारण बाढ़ का संकट उपस्थित हो जाता है। |

वृक्षों के अनेक उपकार-प्राणवायु के उत्पादन में वृक्षों का महान् योगदान है। वृक्ष विषाक्त वायु के विष तत्त्व को पीकर स्वास्थ्य के लिए लाभदायक प्राणवायु को उत्पन्न करते हैं। हमारे पूर्व ऋषि-मुनियों ने वनों में योग और अध्यात्म की साधना की है। वृक्ष सूर्य की गर्मी को दूर करते हैं, वातावरण में आर्द्रता उत्पन्न करते हैं, अपने पत्तों को गिराकर खाद बनाते हैं, भूक्षरण को रोकते हैं। इस प्रकार वे मानव मन के लिए महान् उपकारी हैं। मनुष्य उनको काटकर अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारता है। एक वृक्ष अपने पचास वर्ष के जीवन में मनुष्य का पच्चीस लाख रुपये का उपकार करता है, लेकिन मानव सौ या हजार रुपये की लकड़ी प्राप्त करने के लिए उसे काटकर अपनी ही हानि करता है।

वायु का प्रदूषण-एक ओर तो मानव वायु-प्रदूषण के निवारक वृक्षों को काट रहा है, दूसरी ओर वायु-प्रदूषण के कारणों को उत्पन्न कर रहा है। फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकला हुआ धुआँ, खनिजों के अणु, रसायनों के अंश और दुर्गन्धयुक्त वायु वातावरण को दूषित करते हैं। तेल से चालित वाहनों के तेल मिले हुए धुएँ से वायु दूषित होती है। दूषित वायु में श्वास लेने से फेफड़ों का कार्यभार बढ़ जाता है और वायु को शुद्ध करने के लिए उन्हें अधिक कार्य करना पड़ता है। वायु-प्रदूषण को रोकने के लिए अधिकाधिकं वृक्ष लगाने चाहिए, लकड़ी के कोयलों का कम-से-कम प्रयोग, डीजल से चलने वाले वाहनों के स्थान पर विद्युत से चलने वाले वाहनों का प्रयोग करना चाहिए।

ध्वनि-प्रदूषण-रेलगाड़ियों, मोटरों, बड़ी-बड़ी मशीनों, लाउडस्पीकरों, तेज वाद्यों की आवाज से ध्वनि का प्रदूषण होता है। नगरों में ध्वनि-प्रदूषण की बड़ी समस्या है। ध्वनि-प्रदूषण से बहरापन और कानों के अनेक दूसरे दोष उत्पन्न होते हैं। मस्तिष्क में अनेक दोष उत्पन्न होकर पागलपन तक हो जाता है। ध्वनि-प्रदूषण को रोकने के लिए लाउडस्पीकरों का अनावश्यक प्रयोग रोकना चाहिए तथा मशीनों में ध्वनिशामक यन्त्र (साइलेन्सर) का प्रयोग करना चाहिए। पेड़ों के लगाने और संवर्द्धन से भी ध्वनि की सघनता कम हो जाती है।

पशु-पक्षियों से पर्यावरण में सन्तुलने-सभी पशु-पक्षी पर्यावरण के सन्तुलन में सहायक होते हैं। सिंह, व्याघ्र आदि हिंसक पशु हरिण आदि की वृद्धि को सीमित कर देते हैं; सर्प, अजगर आदि चूहों और खरगोशों को खाते हैं। पक्षी बीजों को इधर-उधर बिखेर देते हैं, जिससे विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों का स्वयमेव विकास होता रहता है। जीवो जीवस्य भोजनम्’ इस प्राकृतिक नियम के अनुसार हिंसक पशु, तृणभक्षी पशुओं को खाकर पर्यावरण का सन्तुलन बनाये रखते हैं।

जल-प्रदूषण-मनुष्य ने जीवन के लिए परमोपयोगी जल को अपने अविवेक से दूषित कर दिया है। गंगा-यमुना जैसी नदियों में बड़े नगरों का अपशिष्ट फेंका जाता है। पशुओं और मनुष्यों के शव तथा विषैला रासायनिक जल उनमें बहाया जाता है, जिससे जल विषाक्त और अपेय हो जाता है तथा अनेक रोगाणु जल में पलने लगते हैं। सरकार ने जल के प्रदूषण को दूर करने के लिए प्राधिकरण की स्थापना की है, लेकिन जनता के सहयोग के बिना इस कार्य में सफलता सम्भव नहीं है।

ताप का प्रदूषण-मानव की अनेक क्रियाओं से उत्पन्न ताप भी पर्यावरण दूषित करता है; जैसे-उद्योगशालाओं का ताप, वातावरण के ताप को बढ़ाता है। पक्की ईंटों के मकान, वर्कशॉप और, सड़कें ताप को स्वयं में संचित करती हैं और स्वयं से सम्बद्ध वातावरण को ताप प्रदान कर पर्यावरण को असन्तुलित करती हैं, जिसका मानव के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

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पर्यावरण के असन्तुलन को रोकने के उपाय-आज के युग में पर्यावरण के प्रदूषण की समस्या समाज और सरकार दोनों के लिए ही चिन्तनीय सिद्ध होती जा रही है। इसके रोकने का एकमात्र साधन वृक्षारोपण ही है; क्योंकि वृक्षों की सघनता ताप को नियन्त्रित करती है। मनुष्य को प्राणवायु वृक्षों से ही प्राप्त होती है; अतः मानवों के कल्याण के लिए अधिकाधिक वृक्ष लगाये जाने चाहिए।

शोंगद्यां का ससन्दर्भ अनुवाद

(1) यथान्ये प्राणिनस्तथैव मनुष्योऽपि प्रकृत्याः क्रोडे जनुरधत्तः। प्रकृत्या एव तत्त्वजातं सर्वमपि परितः आवृत्य संस्थितम्। अतः कारणात् तत्पर्यावरणमित्युच्यते। मनुष्येण स्वबुद्ध्याः प्रभावेण जीवनमुन्नेतुं प्रयतमानेन नानाविधा आविष्काराः कृताः। बहुविधं सौविध्यं सौ फर्यं चाधिगतं किन्तु विकासस्य प्रक्रियायां नैको उपलब्धीः प्राप्तवता तेन यद् हारितं तदपि अन्यूनम्। मृत्स्ना-जल-वायु-वनस्पति-खग-मृग-कीट-पतङ्ग-जीवाणव इति पर्यावरणस्य घटकाः विद्यन्ते। विकासहेतवे क्षिप्रकारिणा मानवेन तान् प्रति विहितेनातिचारेण प्राकृतिकपर्यावरणस्य सन्तुलनमेव नितरां दोलितम्।

शब्दार्थ
क्रोडे = गोद में।
जनुः = जन्म।
अधत्तः = धारण किया है।
परितः = चारों ओर।
आवृत्य = घेरकर।
उन्नेतुम् = उन्नत बनाने के लिए।
सौविध्यं = सुविधा।
सौर्यम् = सरलता।
अधिगतम् = प्राप्त किया।
नैका = अनेक।
हारितम् = खोया।
अन्युनम् = बहुत।
मृत्स्ना : मिट्टी।
घटकाः = इकाइयाँ।
क्षिप्रकारिणा = शीघ्रता करने वाले।
विहितेनातिचारेण = किये गये अत्याचार से।
नितराम् = अत्यधिक।
दोलितम् = विचलित कर दिया।

सन्दर्भ
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य-भारती’ के ‘पर्यावरणशुद्धिः शीर्षक पाठ से उद्धृत है।
[संकेत-इस पाठ के शेष गद्यांशों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में पर्यावरण का स्वरूप और मानव से उसके घनिष्ठ सम्बन्धों को बताते हुए मानव द्वारा पर्यावरण को असन्तुलित करने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
जिस प्रकार दूसरे प्राणियों ने, उसी प्रकार मनुष्य ने भी प्रकृति की गोद में जन्म धारण किया। प्रकृति ही, जो तत्त्व समूह है, उसको भी चारों ओर से घेरकर स्थित है। इस कारण से इसे पर्यावरण कहा जाता है। मनुष्य ने अपनी बुद्धि के प्रभाव से जीवन को उन्नत बनाने का प्रयत्न करते हुए नाना प्रकार के आविष्कार किये। बहुत तरह की सुविधा और सरलता प्राप्त की, किन्तु विकास की प्रक्रिया में अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त करते हुए उसने जो खोया है, वह भी कम नहीं है। मिट्टी, जल, वायु, वनस्पति, पक्षी, पशु, कीड़े, पतंगे, जीवाणु ये पर्यावरण के अंग (इकाईयाँ) हैं। विकास के लिए शीघ्रता करने वाले मानव ने उनके प्रति किये गये अत्याचार से प्राकृतिक पर्यावरण के सन्तुलन को अत्यधिक हिला दिया। |

(2) सर्वाधिकोऽत्ययस्तु वनस्पतीनां जातः। एकपदे एव बहुलाभलोभी मानवो वनानि च क्रर्ति तथा प्रवृत्तो यदधुना वनानां सुमहान् भाग उच्छिन्नः। वनेभ्यो मनुष्यः काष्ठम्, ओषधीः, फलानि, पुष्पाणि एवंविधानि बहूनि वस्तूनि दैनन्दिनजीवनोपयोगीनि प्राप्नोति, किन्तु काष्ठस्य लोभाद् असङ्ख्या हरिता वृक्षा कर्तिताः। मन्ये पर्वतानां पक्षी एव छिन्नाः। येन तेषां मृत्स्ना वर्षाजलेन बलात् प्रबाह्यपनीयते। पर्वतप्रदेशीयभूप्रदेशानामुर्वरत्वं तु विनश्यत्येवं भूस्खलनेन केदाराः अपि लुप्ता भवन्ति, धनजनहानिर्भवति। ग्रामा अपि ध्वंस्यन्ते। वर्षाजलेन नीता मृत्स्ना नदीनां तलमुत्थलं करोति। येन जलप्लावनानि भवन्ति। जनया महांस्त्रास उत्पद्यते।।

शब्दार्थ
अत्ययः = हानि।
एकपदे एव = एक बार में ही।
च कर्तितुम् = अधिक मात्रा में ।
काटने के लिए।
तथा प्रवृत्तो = ऐसा लगा।
उच्छिन्नः = कट गया है।
दैनन्दिनजीवनोपयोगीनि = दैनिकें जीवन के लिए उपयोगी।
कर्तिताः = काटे,गये।
पक्षाः = पंख।
प्रवाह्य = बहाकर।
अपनीयते = दूर ले जायी जाती है।
उर्वरत्वं = उर्वरता, उपजाऊ शक्ति।
भूस्खलनेन = भूमि के खिसकने सै।
केदाराः = खेतों की क्यारियाँ।
ध्वंस्यन्ते = नष्ट कर दिये जाते हैं।
तलमुत्थलम् = तल को उथला।
जलप्लावनानि = बाढ़े।
महांस्त्रास = महान् भय।
उत्पद्यते = उत्पन्न होता है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में वनों से लाभ एवं उनके काटने से होने वाली हानियाँ बतायी गयी हैं।

अनुवाद
सबसे अधिक हानि तो वनस्पतियों की हुई है। एक बार में ही बहुत लाभ के लोभी मानवों ने वनों को ऐसा काटना शुरू किया कि आज वनों का बहुत बड़ा भाग कट चुका है। मनुष्य वनों से लकड़ी, ओषधियाँ, फल, फूल इसी प्रकार की बहुत-सी दैनिक जीवन के उपयोग की वस्तुएँ प्राप्त करता है, किन्तु लकड़ी के लोभ से असंख्य हरे वृक्ष काट डाले गये हैं। मैं समझता हूँ, पर्वतों के पंख ही काट डाले, जिससे उनकी मिट्टी को वर्षा का जल बलपूर्वक दूर बहाकर ले जाता है। पहाड़ी प्रदेशों के भू-भागों की उपजाऊ शक्ति तो नष्ट हो ही रही है, भूमि के खिसकने से खेत भी समाप्त हो जाते हैं ।

तथा धन और जन की हानि होती है। गाँव भी नष्ट हो रहे हैं। वर्षा के जल से बहाकर ले जायी गयी मिट्टी दियों के तल को उथला कर देती है, जिससे बाढ़ आ जाती हैं तथा मनुष्य के लिए भारी भय पैदा हो जाता है।

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(3) एततु सर्वे जानन्त्येव यत् प्राणवायु (ऑक्सीजनेति प्रसिद्धम् ) विना मनुष्यः कतिपयक्षणपर्यन्तमेव जीवितुं शक्नोति। प्राणवायोरुत्पादने वृक्षाणां महान् योगः केन विस्मर्यते। विषाक्तवायोर्विषतत्त्वं नीलकण्ठ इव स्वयं पायं पायं, मानवस्याकारणसुहृदो वृक्षास्तस्य कृते निर्मलं स्वास्थ्यकरं प्राणवायुं समुत्पाद्यन्ति। प्राणायामेन प्राणानां नियमनस्य योगमार्गः,आध्यात्मिकसाधना च वनानां मध्य एवास्माकं पूर्वजैर्महर्षिभिः यद् अनुत्रियते स्म तदस्मादेव कारणात्। प्रत्येकं वृक्षः एका महती प्रयोगशालेव भवति। एष सूर्यस्य तापं हरति, वायुमालिन्यमपनयति, वाष्पोत्सर्गेण वातावरणे आर्द्रतां जनयति, प्रतिवर्षं निजपत्राणि निपात्य उर्वरकमुत्पादयति भूक्षरणं निरुणद्धि, जलवर्षणे कारणं च भवति। एवं स मनुजस्य महानुपकारी भवति तथाविधमुयकारिणमपि मनुष्य उच्छिनत्ति, किन्नासी स्वपादे एवं कुठारं प्रयुनक्ति।

शब्दार्थ
प्राणवायु = ऑक्सीजन।
विस्मर्यते = भुलाया जाता है।
विषाक्तवायोर्विषतत्त्वं (विषाक्तवायोः + विषतत्त्वम्) = जहरीली वायु के विषैले तत्त्व को।
नीलकण्ठः = शिव।
पायंपायं = पी-पीकर।
प्राणायाम = देवगुणों का मन से पाठ करते हुए साँस रोकना।
नियमन = नियन्त्रण करना।
अनुस्रियते स्म = आश्रय (अनुसरण) किया जाता था।
अपनयति = दूर करता है।
वाष्पोत्सर्गेण = भाप निकालने के द्वारा।
आर्द्रताम् =-गीलापन।
निपात्य = गिराकर।
उर्वरकम् = खाद।
निरुणद्धि = रोकता है।
उच्छिनत्ति = नष्ट करता है।
स्वपादे एवं कुठारं प्रयुनक्ति = अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मारता है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में वृक्षों के महान् योगदान और उपकार का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
यह सभी जानते ही हैं कि ऑक्सीजन (प्राणवायु) के बिना मनुष्य कुछ क्षणों तक ही जीवित रह सकता है। ऑक्सीजन के उत्पन्न करने में वृक्षों के महान् योग को कोई नहीं भूल सकता है। विषाक्त (विषैली) वायु के विष-तत्त्व को शिव के समान पी-पीकर मनुष्य के बिना कारण के मित्र वृक्ष उसके लिए साफ, स्वास्थ्यकारी प्राणवायु (ऑक्सीजन) को पैदा करते हैं। प्राणायम से प्राणों के नियमन का योगमार्ग और वनों के मध्य ही आध्यात्मिक साधना हमारे पूर्वज महर्षियों द्वारा जो अनुसरण की गयी थी, वह भी इसी कारण है। प्रत्येक वृक्ष एक बड़ी प्रयोगशाला के समान होता है। यह सूर्य की गर्मी का हरण करता है, हवा की गन्दगी को दूर करता है, भाप छोड़ने से वातावरण में नमी उत्पन्न करता है, प्रत्येक वर्ष अपने पत्ते गिराकर खाद उत्पन्न करता है, पृथ्वी के कटाव को रोकता है और जल बरसाने में कारण बनता है। इस प्रकार वह मनुष्य का बड़ा उपकारी होता है, इस तरह के उपकारी को भी मनुष्य काटता है। क्या वह अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी नहीं चलाता है? |

(4) एको वृक्षः स्वपञ्चाशद्वर्षजीवनकाले मानवजातेः पञ्चविंशतिलक्षरूप्यक- परिमाणाय लाभाय कल्पते, तस्मात्प्राप्तस्योर्वरकस्यैव मूल्यं पञ्चदशलक्षथरिमितं भवति, वायुशुद्धीकरणं पञ्चलक्षरूप्यकतुल्यं, प्रोटीनोत्पादन-माईताजननं वर्षासाहय्यमिति त्रितयमपि पञ्चलक्षरूप्यकार्तम्। एतत्सर्वमपि कलिकाताविश्वविद्यालयीयेन डॉ० टी० एम० दासाभिधानेन वैज्ञानिकेन सुतरां विवेच्य प्रतिपादितमास्ते। तथामहिमानं तरुं निपात्य लुब्धो मानवः किं प्राप्नोति? शतं सहस्त्रं वा रूप्यकाणाम्। सत्यम्, अल्पस्य हेतोर्बहातुमिच्छन्नसौ प्रथमश्रेणीको विचारमूढे एव। पर्यावरणरक्षणायापरपर्यायाय आत्मरक्षणाय मनुष्येणेयं मूढता यथा सत्वरं त्यक्ता स्यात् तथैव वरम्।

शब्दार्थ
पञ्चाशद् = पचास।
कल्पते = समर्थ होता है।
तुल्यम् = बराबर।
रूप्यकाम् = रुपये मूल्य के बराबर।
सुतराम् = अच्छी तरह से।
विवेच्य = विवेचन करके।
लुब्धो = लालची।
अल्पस्य हेतोर्बहुहातुमिच्छन् = थोड़े-से के लिए बहुत छोड़ने की इच्छा करता हुआ।
विचारमूढ = मूर्ख।
यथासत्वरम् = जितना जल्दी।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में वृक्ष का उसके जीवनकाल में लाभ रुपयों में आँककर मनुष्य को. उसके महत्त्व का यथार्थ ज्ञान कराया गया है।

अनुवाद
एक वृक्ष अपने पचास वर्ष के जीवनकाल में मानव-जाति का पचीस लाख रुपयों के बराबर लाभ करने में समर्थ होता है। उससे प्राप्त खाद का मूल्य ही पन्द्रह लाख रुपयों के बराबर होता है। वायु को शुद्ध करना पाँच लाख रुपयों के बराबर, प्रोटीन उत्पन्न करना, नमी पैदा करना, वर्षा में 
सहायता करना तीनों ही पाँच लाख रुपयों के मूल्य के बराबर होता है। यह सब कलकता ‘ विश्वविद्यालय के डॉ० टी० एम० दास नाम के वैज्ञानिक ने अच्छी तरह विवेचन करके सिद्ध किया है। ऐसी महिमा वाले वृक्ष को गिराकर लालची मनुष्य क्या प्राप्त करता है? सौ यो हजार रुपये। वास्तव में थोड़े-से लाभ के लिए बहुत छोड़ने की इच्छा करता हुआ वह प्रथम श्रेणी का मूर्ख है, जो सोचने-समझने में असमर्थ है। पर्यावरण की रक्षा के लिए, दूसरे शब्दों में आत्मरक्षा के लिए, मनुष्य इस मूर्खता को जितना जल्दी छोड़ दे, उतना ही अच्छा है।

(5) एवमेकतो मनुष्यो वायुप्रदूषणनिवारकाणां वृक्षाणां हत्यां विदधाति अपरतश्च विविधैः प्रकारैः स्वयं वायुप्रदूषणस्य कारणान्युत्तरोत्तरमाविष्करोति। उद्योगशालाभ्यो निस्सृता धूमाः,खनिजाणवः, रासायनिकाः, लवाः, पूतिगन्धा वायवो वातावरणं दूषयन्तः प्राणवायुं विशेषतो विकारयन्ति। प्रत्यहं तैलतश्चालितवाहनानां सङ्ख्या सुरसाया मुखमिव परिवर्धते विषमयं तैलधूममुद्गिरभिस्तैरपि वायुरतिशयेन विक्रियते। दूषितवायौ श्वसनाद् अस्मत्फुस्फुसकार्यभारः प्रवर्धते, येन तत्रत्यरोगा हृदयरोगाश्च जायन्ते। अतिप्रदूषितवायोः शुद्धीकरणे पादपैरपि अत्यधिकं कार्यं करणीयं भवति तत्राक्षमत्वात्तेऽपि रुग्णा जायन्ते। एवं वायुप्रदूषणं दुष्चक्रं निरोधातीतं गच्छति। वृक्षाणां प्राचुर्येणारोपणं काष्ठेङ्गालानां न्यूनतमः प्रयोगः पेट्रोलडीजलादितैलवाहनानां स्थाने विद्युद्वाहनानामुपयोगः प्रदूषणरहितशक्तिसाधनानां विकासः, इत्येवं प्रायैरुपायैरिदमुपरोद्धं शक्यते।।

शब्दार्थ
एकतो = एक ओर।
विदधाति = करता है।
आविष्करोति = उत्पन्न करता है।
निस्सृताः = निकले हुए।
लवाः = अंश।
पूतिगन्धाः = दूषित गन्ध वाली।
विकारयन्ति = दूषित करती हैं।
प्रत्यहम् = प्रतिदिन।
सुरसायाः मुखमिव = सुरसा के मुख के समान।
परिवर्धते = बढ़ता है।
उद्गिरभिः = उगलने वाले।
विक्रियते = दूषित की जाती है।
फुफ्फुस कार्यभारः = फेफड़ों पर कार्य का भार।
दुष्चक्रम् = दूषित चक्र।
निरोधातीतम् = नियन्त्रण से बाहर।
आरोपणम् = जमाना, लगाना।
काष्ठेङ्गालानाम् = लकड़ी के कोयलों का।
उपरोधुं शक्यते = रोका जा सकता है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में वायु को प्रदूषित करने वाले कारणों, उनसे होने वाले रोगों और प्रदूषण को रोकने के उपायों का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
इस प्रकार एक ओर मनुष्य वायु के प्रदूषण को रोकने वाले वृक्षों की हत्या करता है, दूसरी ओर स्वयं अनेक प्रकार से वायु प्रदूषण के कारणों को लगातार उत्पन्न कर रहा है। फैक्ट्रियों से निकले धुएँ, खनिजों के अणु, रासायनिक अंश, दूषित गन्ध वाली हवाएँ वातावरण को दूषित करती हुई विशेष रूप से प्राणवायु (ऑक्सीजन) को दूषित करती हैं। प्रतिदिन तेल से चलने वाले वाहनों की संख्या सुरसा के मुख के समान बढ़ रही है। विषैले तेल के धुएँ को उगलते हुए उनसे भी वायु अत्यधिक रूप से दूषित की जा रही है। दूषित हवा में श्वास लेने से हमारे फेफड़ों पर कार्य का बोझ बढ़ जाता है, जिससे वहाँ (फेफड़ों) के रोग और हृदय रोग उत्पन्न होते हैं। अत्यन्त दूषित वायु को शुद्ध करने में वृक्षों को भी अधिक काम करना पड़ता है, उसको करने में असमर्थ होने के कारण (वे भी) बीमार हो जाते हैं। इस प्रकार वायु के प्रदूषण का दुष्चक्र नियन्त्रण से बाहर हो जाता है। वृक्षों को अधिक मात्रा में लगाना, लकड़ी के कोयलों का कम-से-सम प्रयोग, पेट्रोल, डीजल आदि तेल से चलने वाले वाहनों की जगह बिजली से चलने वाले वाहनों का उपयोग, प्रदूषण के रहित शक्ति के साधनों का विकास। इस प्रकार के उपायों से इसे रोका जा सकता है।

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(6) कोलाहलेनापि पर्यावरणे बहवो दोषी उत्पद्यन्ते, रेलयानानां, मोटरवाहनानां, उद्योगशालासु बृहतां यन्त्राणां, यत्र तत्र सर्वत्र अवसरेऽनवसरे ध्वनिविस्तारकयन्त्रण, उत्सवेषु अतिमुखरवाद्यानां च घोषः, जनसम्मर्दकलकलेन मिलितो महान् कोलाहलः सम्पद्यते। विशेषतो नगरेषु ध्वनिप्रदूषणं महती समस्या। अतिकोलाहलेन श्रवणदोषस्तदनं बाधिर्यं च सम्पद्यते। नैतावतैव मुक्तिः , मस्तिष्कदोषा अपि अनेन उत्पाद्यन्ते यच्चरमापरिणतिरुन्मादो भवति। रक्तचापरोगोऽपि पदं निदधाति येन हृदयं रुग्णं जायते। अस्याः समस्यायाः समाधानार्थं ध्वनिविस्तारकयन्त्राणामनावश्यकः प्रयोग रोधनीयः, यन्त्राणां कोलाहलो नव-नव साइलेन्सराणामाविष्कारेण उपलब्धानां च सम्यगनिवार्यप्रयोगेण परिहरणीयः। कोलाहलदोषान् जनसामान्यं सम्बोध्य तद्विरुद्धं जनाः प्रशिक्षणीया जनमतं च प्रवर्तितव्यम्। ,अत्रापि वनस्पतीनामारोपणेन, संवर्धनेन रक्षणेन च सुखकराः परिणामाः कलयितुं शक्याः । एवं खलु दृश्यते यद् वृक्षाणां द्वादशव्यामपरिणाहमिता राजयः कोलाहलस्य सघनतां प्रकामं न्यूनयन्ति। अतः सर्वत्रापि राजपथमभितः, मध्ये-मध्ये चोपनगराणां वनस्पतयः आरामश्च आरोपणीयाः।

शब्दार्थ
उत्पद्यन्ते = उत्पन्न होते हैं।
बृहताम् = बड़े।
अवसरेऽनवसरे = समय-बेसमय
अतिमुखर = तेज आवाज वाले।
घोषः = ध्वनि।
जनसम्पर्दकलकलेन = जन-समूह के कोलाहल से।
सम्पद्यते = उत्पन्न होता है।
महती = बड़ी।
तदनु = उसके बाद।
बाधिर्यम् = बहरापन।
नैतावतैव = इतने से ही नहीं।
चरमपरिणतिः = अन्तिम परिणाम।
उन्मादः = पागलपन।
रक्तचापरोगः = ब्लडे प्रेशर की बीमारी।
पदं निदधाति = स्थान बना लेता है।
रोधनीयः = रोकना चाहिए।
नव-नव साइलेन्सराणामाविष्कारेण = नये-नये ध्वनिशामक यन्त्रों के आविष्कार से।
परिहरणीयः = दूर करना चाहिए।
बोध्य = समझाकर।
प्रशिक्षणीया = प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
प्रवर्तितव्ययम् = प्रवर्तन करना चाहिए।
वनस्पतीनां आरोपणेन = वनस्पतियों के लगाने से।
कलयितुं शक्याः = प्राप्त किये जा सकते हैं।
द्वादशव्यामपरिणाहमिताः = बारह चौके अर्थात् अड़तालीस हाथ की लम्बाई के बराबर।
राजयः = पंक्तियाँ।
प्रकामम् = अधिक।
न्यूनयन्ति = कम करती हैं।
राजपथम् अभितः = राजमार्ग के दोनों ओर।
उपनगराणाम् = क्षेत्रों या मुहल्लों के।
आरामाः = बगीचे, उपवन।
आरोपणीयाः = लगाने चाहिए।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में ध्वनि-प्रदूषण के कारणों, उससे उत्पन्न रोगों और प्रदूषण की रोकथाम के उपायों का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
शोर से ही पर्यावरण में बहुत-से दोष उत्पन्न होते हैं। रेलगाड़ियों, मोटर सवारियों, फैक्ट्रियों में बड़ी-बड़ी मशीनों का, जहाँ-तहाँ सब जगह समय-बेसमय पर लाउडस्पीकरों का और उत्सवों में अत्यन्त तेज बजने वाले बाजों का शब्द, लोगों की भीड़ के कोलाहल से मिला हुआ बहुत शोर उत्पन्न हो जाता है। विशेष रूप से नगरों में ध्वनि के प्रदूषण की अत्यधिक समस्या है। अत्यधिक शोर से सुनने में कमी और उसके बाद बहरापन उत्पन्न हो जाता है। इतने से ही छुटकारा नहीं है, मस्तिष्क की गड़बड़ियाँ भी इसके द्वारा पैदा कर दी जाती हैं, जिसका अन्तिम परिणाम पागलपन होता है। ब्लड प्रेशर की बीमारी भी घर कर लेती है, जिससे हृदय रुग्ण हो जाता है। इस समस्या को सुलझाने के लिए लाउडस्पीकरों का अनावश्यक प्रयोग रोका जाना चाहिए। मशीनों के शोर को भी नये-नये ध्वनिशामक यन्त्रों (साइलेन्सरों) के आविष्कारों से प्राप्त साधनों के उचित और अनिवार्य प्रयोग से रोकना चाहिए। जनसाधारण को शोर की खराबियों को समझाकर, उसके विरुद्ध लोगों को प्रशिक्षित करना चाहिए और जनमत जाग्रत करना चाहिए। इसमें भी वनस्पतियों के लगाने, बढ़ाने और रक्षा करने से सुखद परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं। निश्चय ही ऐसा देखा जाता है कि अड़तालीस हाथ की लम्बाई के बराबर वृक्षों की पंक्तियाँ शोर के घनेपन को अत्यधिक कम कर देती हैं; अतः सभी जगह सड़क के दोनों ओर तथा मोहल्लों के बीच-बीच में वनस्पतियाँ और उपवन लगाये जाने चाहिए।

(7) खगमृगाणां मांसादिलोभिना मानवेन एतादृशी जाल्मता अङ्गीकृता यदधुना तेषां नैकाः प्रजातयो लुप्ता एव, वस्तुतः सर्वेऽपि पशुपक्षिणः पर्यावरणसन्तुलननिर्वाहे यथायोगमुपकारका भवन्ति। सिंहव्याघ्रादयो मांसभक्षका हरिणादीनां वृद्धि परिसमयन्ति। आशीविषाजगरादयो मूषकशशकादीनां भक्षणेन कृषिकराणां सुहृद् एव। पक्षिणो बीजानां विकिरणं कुर्वन्ति, कीटपतङ्गादयः पुष्पाणां प्रजननक्रियायां सहायका भवन्ति येन फलानि बीजानि चोत्पद्यन्ते। पशुपक्षिणां पुरीषेण भूमिरुर्वरा भवति येन वनस्पतीनां विकासो भवति।’जीवो जीवस्य भोजनम्’ इति प्रकृतिनियमस्यानुसारं पक्षिणः कीटपतङ्गान् , केऽपि हिंस्राः पशवश्च तृणचरान् भक्षयन्तः पर्यावरणसन्तुलनं स्वत एव विदधति, तत्रं मनुष्यकृतो लोभप्रवर्तितो हस्तक्षेपो विकारमेवोत्पादयति, स्वैर वधो विध्वंसमेव जनयति।

शब्दार्थ
खगमृगाणां = पक्षियों और पशुओं का।
जाल्मता = नीचता।
परिसीमयन्ति = सीमित कर देते हैं।
आशीविष = सर्प।
कृषिकराणां = किसानों के।
विकिरणम् = बिखेरना।
पुरीषेण = विष्ठा से।
विदधति = करते हैं।
स्वैरं = ब्रिना रोक-टोक के।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में पर्यावरण के सन्तुलन में पशु-पक्षियों के योगदान का वर्णन किया गया

अनुवाद
पशु-पक्षियों के मांस आदि के लोभी मानव ने ऐसी नीचता स्वीकार कर रखी है कि आजकल उनकी अनेक प्रजातियाँ समाप्त प्राय ही हैं। वास्तव में सभी पशु-पक्षी पर्यावरण के सन्तुलन के निर्वाह में शक्ति के अनुसार उपकार करने वाले होते हैं। सिंह, व्याघ्र आदि,मांसभक्षी जीव हिरन 
आदि की वृद्धि को सीमित कर देते हैं। सर्प, अजगर आदि चूहे, खरगोश आदि को खाने के कारण किसानों के मित्र ही हैं। पक्षी बीजों को बिखेर देते हैं। कीड़े, पतंगे आदि फूलों की प्रजनन-क्रिया में ।

सहायक होते हैं, जिससे फल और बीज उत्पन्न होते हैं। पशु-पक्षियों के मल (विष्ठा) से भूमि उपजाऊ ‘होती है, जिससे वनस्पतियों का विकास होता है। ‘जीव, जीव का भोजन है, इस प्रकृति के नियम के अनुसार पक्षी, कीड़े और पतंगों को और कुछ हिंसक पशु घास खाने वाले पशुओं को खाते हुए पर्यावरण का सन्तुलन स्वयं ही करते हैं। उसमें मनुष्यों के द्वारा किया गया लोभ से प्रेरित हस्तक्षेप गड़बड़ी ही उत्पन्न करता है। बुद्धिहीन वध (बिना रोक-टोक के किया गया) विध्वंस को ही उत्पन्न करता है।

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(8) मनुजस्यातिचारो नैतावता परिसमाप्यते नास्ति।. जलं यद्धि जीवनयात्यावश्यकत्वज्जीवनमेव कथ्यते तदपि मनुजस्याविवेकेन दूषितम्। गङ्गायमुनासदृशीषु स्वादुपवित्रपेयसलिलासु नदीषु तटीयतटस्थनगराणां मलमूत्रादिकं सर्वप्रकारकं मालिन्यं नदीषु निंपात्यते। औद्योगिक विषमयरसायनदूषितजलं तासु निपात्यते। नराणां पशूनां च शवास्तत्र प्रवाह्यन्ते। सर्वमेतदतिभीतिकरं प्रदूषणं कुरुते। जलं तथा विषाक्तं जायते यन्मत्स्या अपि म्रियन्ते। तथाविधं जलं मानवानां स्नान-पानादिजनितं रोगमेव प्रकुरुते। यतस्तत्र रोगकारकस्तद्वाहकाश्च जीवाणवः परमं पोषमाप्नुवन्ति। सौभाग्येन सम्प्रति शासेन गङ्गाप्रदूषणनिवारकं प्राधिकरणं घटितं। एष खलु प्रारम्भ एव। अन्यासां नदीनां शोधनाय जलोपलब्धेरन्यान्यपि साधनानि विशोधयितुं च लोकस्य रुचिरुत्साहनीया। जनतायाः स्वयं साहाय्येन विना न अभीप्सितं प्राप्तुं शक्यते।

शब्दार्थ
मनुजस्यातिचारः = मनुष्य का अत्याचार।
नैतावती = इतने से नहीं।
परिसमाप्यते = समाप्त होना।
स्वादुपवित्रपेयसलिलासु = स्वादिष्ट, पवित्र और पीने योग्य जल वाली में।
मालिन्यं = मैला, गन्दगी।
निपात्यते. = गिराया जाता है।
प्रवाह्यन्ते = बहाये जाते हैं।
भीतिकरम् = भय उत्पन्न करने वाले।
विषाक्तम् = विषैला।
पोषम् आप्नुवन्ति = पोषण प्राप्त करते हैं।
सम्प्रति = इस समय।
घटितम् = बनाया गया है।
अभीप्सितम् = इच्छित लक्ष्य। |

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश’ में मानव द्वारा जल को दूषित करने एवं उससे उत्पन्न हानि का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
मनुष्य का अत्याचार यहीं तक समाप्त नहीं होता है। जल को जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक होने के कारण जीवन ही कहा जाता है, वह भी मनुष्य की मूर्खता से दूषित हो गया है। गंगा, यमुना जैसी स्वादिष्ट, पवित्र, पीने योग्य जल वाली नदियों में उनके किनारे पर स्थित नगरों की मल-मूत्र आदि सब प्रकार की गन्दगी डाल दी जाती है। उद्योगों का विषैले रसायनों से दूषित जल उनमें डाल दिया जाता है। मनुष्यों और पशुओं के शव उनमें बहा दिये जाते हैं। यह सब अत्यन्त भयानक प्रदूषण कर देता है। जल इतना विषैला हो जाता है कि मछलियाँ भी मर जाती हैं। इस प्रकार का जल मानवों के स्नान और पीने आदि के रोग को ही उत्पन्न करता है; क्योंकि उसमें रोग उत्पन्न करने वाले 
और उनको (रोग को) लाने वाले जीवाणु खूब पुष्ट हो जाते हैं। सौभाग्य से अब सरकार ने गंगा के प्रदूषण को रोकने वाला प्राधिकरण बनाया है। यह तो प्रारम्भ ही है। दूसरी नदियों को शुद्ध करने के लिए और जल-प्राप्ति के दूसरे भी साधनों को शुद्ध करने के लिए लोगों की रुचि को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। जनता की स्वयं सहायता के बिना इच्छित लक्ष्य प्राप्त होना असम्भव है।

(9) मानवस्य विविधक्रियाभिरुत्पन्नस्तापोऽपि पर्यावरणं दूषयति। परमाणुपरीक्षणैर्महती तापविकृतिर्निष्पाद्यतेऽन्ये च मानवप्राणहरा दोषा उत्पाद्यन्ते। उद्योगशालानां तापोऽपि वातावरणस्य तापं वर्धयति। ग्रीमष्काले पक्वेष्टिकासीमेण्टकङ्क्रीट-निर्मितानि भवनानि, कार्यशालाः, राजमार्गा एवंविधानि चान्यानि लौहनिर्माणानि तापमात्मसात्कृत्य संरक्षन्ति यस्य मानवजीवनेऽस्वास्थ्यकरः प्रभावो भवति। अत्रापि वनस्पतयो मानवस्य त्राणं चर्कर्तुं प्रभवः सन्ति। तेषां यथाप्रसरं सघनमारोपणं तापं नियमयत्येव। प्रतिव्यक्ति सार्धत्रयोदशकिलोपरिमितः प्राणवायुः स्वस्थजीवनयापेक्षते, तस्यैकमात्रं प्राकृतिक स्रोतस्तु वनस्पतिजातम्। अतएवमेव मुहुर्मुहुरनुरुध्यते यन्यानवेनात्मकल्यणाय अधिकाधिकं वृक्षा आरोपणीयाः। समयश्च कार्यों यत्प्रत्येक व्यक्तिरेकं वृक्षमवश्यमारोप्य वर्धयिष्यति, रक्षयिष्यत्यन्यांश्च तथाकर्तुं प्रवर्तयिष्यतीति।।

शब्दार्थ
दूषयति = दूषित करता है।
निष्पाद्यते = की जाती है।
पक्वेष्टिका = पक्की ईंट।
तापम् आत्मसात्कृत्य = गर्मी को अपने में मिलाकर।
त्राणम् = रक्षा।
चर्कर्तुम् = बार-बार करने के लिए।
प्रभवः = समर्थ।
नियमयत्येव = नियमित ही करता है।
अपेक्षते = आवश्यकता है।
वनस्पतिजातम् = वृक्षों का समूह।
अनुरुध्यते = अनुरोध किया जाता है।
आरोपणीयाः = लगाने |
चाहिए। समयः = निश्चय, प्रतिज्ञा।
प्रवर्तयिष्यति = प्रेरित करेगा।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में तोप के प्रदूषण, उससे उत्पन्न हानियों एवं उनको दूर करने के उपाय बताये गये हैं।

अनुवाद
मानव की विविध क्रियाओं से उत्पन्न ताप भी पर्यावरण को दूषित करता है। एएमाणु के परीक्षणों से ताप में बड़ा विकार उत्पन्न किया जाता है, जिससे मनुष्य के प्राणघातक अन्य दोष उत्पन्न होते हैं। उद्योगशालाओं का ताप भी वातावरण के ताप को बढ़ाता है। ग्रीष्म ऋतु में पक्की ईंटों, सीमेंट, कंक्रीट से बने हुए घर, कार्यशालाएँ, सड़कें और इस प्रकार के अन्य लोहे से निर्मित स्थान ताप को अपने में समेटकर रखते हैं, जिसका मानव के जीवन पर अस्वास्थ्यकारी प्रभाव होता है। इसमें भी वनस्पतियाँ मानव की बार-बार रक्षा करने में समर्थ हैं। उनका (वनस्पतियों का) उचित प्रसार और अधिक घनत्व में रोपना ताप को रोकता है। प्रत्येक व्यक्ति को साढ़े तेरह किलो भार के बराबर प्राणवायु की स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यकता होती है। उसका एकमात्र प्राकृतिक स्रोत तो वनस्पतियाँ हैं; अतः ऐसा बार-बार अनुरोध किया जाता है कि मानव को अपने कल्याण के लिए अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाने चाहिए और प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति एक वृक्ष अवश्य लगाकर बढ़ाएगा, रक्षा करेगा और ऐसा करने के लिए दूसरों को भी प्रेरित करेगा।

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन 1 
विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों और मनुष्य पर पड़ने वाले उनके दुष्परिणामों को समझाइए।।
उत्तर
विभिन्न प्रकार के प्रदूषण और मनुष्य पर पड़ने वाले उनके दुष्परिणामों का विवरण इस प्रकार है

(क) वायु-प्रदूषण-कारखानों की चिमनियों से निकलते धुएँ, खनिजों के अणु, रसायनों के अंश, तेल-चालित वाहनों के तेल मिले धुएँ और दुर्गन्धयुक्त वायु वातावरण को दूषित करते हैं। दूषित वायु में साँस लेने से फेफड़ों पर कार्यभार बढ़ जाता है, जिससे मनुष्य सॉस सम्बन्धी बीमारियों का शिकार हो जाता है।

(ख) ध्वनि-प्रदूषण-रेलगाड़ियों, मोटरों, बड़ी-बड़ी मशीनों, तेज वाद्यों की आवाज से ध्वनि का प्रदूषण होता है। ध्वनि-प्रदूषण से बहरापन और कानों के अनेक दोषों के साथ-साथ मस्तिष्क में विकार उत्पन्न हो जाता है, जिससे मनुष्य पागल हो सकता है।

(ग) जल-प्रदूषण-गंगा, यमुना आदि नदियों में महानगरों की गन्दगी, पशुओं-मनुष्यों के शव, रासायनिक जल आदि बहाये जाने के कारण जल विषाक्त और अपेय तो हो ही गया है, साथ ही इसमें अनेक रोगाणु भी पलने लगे हैं।

(घ) ताप-प्रदूषण-मानव की अनेक क्रियाओं; यथा-पारमाणविक; आदि के द्वारा वातावरण का ताप बढ़ता है। पक्की ईंटों-कंकरीट के आवासीय वे कार्य-परिसर, सड़कें आदि स्वयं में ताप को संचित करती हैं। इसका भी मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।

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प्ररन 2 
‘पर्यावरणशुद्धिः पाठ के आधार पर निम्नलिखित पर प्रकाश डालिए
(क) पर्यावरण का आशय,(ख) पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार, (ग) प्रदूषण को रोकने के उपाय। |
उत्तर
(क) पर्यावरण का आशय-सभी जीवधारियों की भाँति मनुष्य ने भी प्रकृति की गोद में जन्म लिया है। प्रकृति के तत्त्व-मिट्टी, जल, वायु, वनस्पति आदि उसको चारों ओर से घेरे हुए हैं। इन्हीं प्राकृतिक तत्त्वों को पर्यावरण कहा.जाता है।

(ख) पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुर-पर्यावरण प्रदूषण के निम्नलिखित चार प्रकार हैं(अ) वायु प्रदूषण (ब) ध्वनि-प्रदूषण(स) जल-प्रदूषण और (द) ताप-प्रदूषण।।
[संकेत-विस्तार के लिए प्रश्न सं० 1 देखिए।]

(ग) प्रदूषण को रोकने के उपाय—सभी प्रकार के प्रदूषणों को रोकने का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपाय अधिकाधिक वृक्षारोपण है। वृक्ष विषाक्त वायु के विष-तत्त्व को पीकर स्वास्थ्य के लिए लाभदायक प्राणवायु को उत्पन्न करते हैं। वायु-प्रदूषण को दूर करने में वृक्षों का महान् योगदान है। वृक्षारोपण करने और उनका भली-भाँति संवर्द्धन करने से ध्वनि की सघनता अर्थात् ध्वनि-प्रदूषण कम होता है। जल-प्रदूषण को रोकने में भी अप्रत्यक्ष रूप से वृक्षारोपण का अत्यधिक योगदान है। वृक्ष वातावरण में आर्द्रता उत्पन्न करते हैं, अपने पत्तों को गिराकर खाद बनाते हैं तथा भू-क्षरण को रोकते . हैं। वृक्षों के माध्यम से ही पृथ्वी के गर्भ में जल का संचय होता है, जो मानव के लिए अत्यधिक उपयोगी है। वृक्ष सूर्य की गरमी को दूर करते हैं। अनेकानेक कारणों से वातावरण का जो ताप बढ़ता है, उसे वृक्षों की सघनता नियन्त्रित कर देती है।। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि एकमात्र वृक्षारोपण ही अनेक प्रकार के पर्यावरण प्रदूषण को रोकने में सहायक है। सरकार के साथ-साथ सामान्य जनता का सक्रिय सहयोग इस कार्य में अत्यधिक सहायक सिद्ध होगा।

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