UP Board Class 10 Social Science Model Papers Paper 2

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 10
Subject Social Science
Model Paper Paper 2
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 10 Social Science Model Papers Paper 2

समय : 3 घण्टे 15 मिनट

सामान्य निर्देश:

  1. प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं।
  2. यह प्रश्न-पत्र दो खण्डों – क एवं ख में विभाजित है। प्रत्येक खण्ड के सभी प्रश्न एक-साथ हल करना आवश्यक है। प्रत्येक खण्ड का उत्तर नए पृष्ठ से प्रारम्भ किया जाए।
  3. प्रत्येक प्रश्न के निर्धारित अंक उनके सम्मुख अंकित हैं।
  4. प्रश्न-पत्र में चार प्रकार के प्रश्न हैं-बहुविकल्पीय, अति लघुउत्तरीय, लघु | उत्तरीय व दीर्घ उत्तरीय, जिनके सम्बन्ध में निर्देश उनके प्रारम्भ में दिए गए हैं।
  5. क तथा ख खण्डों हेतु दिए गए मानचित्रों को उत्तर-पुस्तिका में मज़बूती के साथ संलग्न करना आवश्यक है।
  6. दृष्टिबाधित परीक्षार्थियों के लिए मानचित्र-कार्य के स्थान पर अलग से खण्ड क में प्रश्न संख्या 14 तथा खण्ड ख में प्रश्न संख्या 28 के उत्तर लिखने के लिए दिए गए हैं।

खण्ड क

बहुविकल्पीय प्रश्न
निर्देश निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न के लिए दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनकर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए।

प्रश्न 1.
अमेरिका का स्वतन्त्रता दिवस कब मनाया जाता है? (1)
(अ) 6 जुलाई
(ब) 5 जुलाई
(स) 4 जुलाई
(द) 3 जुलाई

प्रश्न 2.
यूरोप के किस देश ने सर्वप्रथम भारत में अपना उपनिवेश स्थापित किया? (1)
(अ) हॉलैण्ड
(ब) पुर्तगाल
(स) फ्रांस
(द) इंग्लैण्ड

प्रश्न 3.
ब्रह्म समाज की स्थापना कब हुई थी? (1)
(अ) 1825 ई.
(ब) 1826 ई.
(स) 1827 ई.
(द) 1828 ई.

प्रश्न 4.
भारत के किस राज्य में द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका है? (1)
(अ) पंजाब
(ब) राजस्थान
(स) महाराष्ट्र
(द) पश्चिम बंगाल

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय कहाँ है? (1)
(अ) वियना
(ब) वाशिंगटन
(स) न्यूयॉर्क
(द) पेरिस

प्रश्न 6.
वित्त विधेयक लोकसभा में पारित होने के बाद भेजा जाता है (1)
(अ) प्रधानमन्त्री को
(ब) उपराष्ट्रपति को
(स) राज्यसभा को
(द) वित्त मन्त्री को

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 7.
संसद के सदनों के नाम लिखिए। (2)

प्रश्न 8.
फरवरी क्रान्ति’ का क्या अभिप्राय है? (2)

प्रश्न 9.
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड कब और कहाँ हुआ? (2)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 10.
दादाभाई नौरोजी की प्रसिद्धि के क्या कारण थे? (3)
अथवा
जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क का क्या योगदान था? (3)

प्रश्न 11.
राज्यपाल के विवेकाधिकार पर एक टिप्पणी लिखिए। (3)
अथवा
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के सम्बन्ध में टिप्पणी लिखिए। (3)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 12.
भारत में सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आन्दोलनों ने कौन-सी कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया? (3+3)
अथवा
राष्ट्रीय जागरण के तीन सामाजिक तथा तीन राजनीतिक कारण लिखिए। (6)

प्रश्न 13.
राष्ट्रपति के आपातकालीन अधिकारों का उल्लेख कीजिए। (6)
अथवा
जिला स्तरीय अदालतों के गठन पर प्रकाश डालिए तथा उनके कार्यों का उल्लेख कीजिए। मानचित्र-कार्य (6)

प्रश्न 14.
निम्नलिखित स्थानों को आपको दिए गए भारत के रेखा-मानचित्र में चिह्न द्वारा दर्शाइए और उनके नाम भी लिखिए। सही नाम और सही स्थिति (चिह्न) के लिए 4, 4 अंक निर्धारित हैं। (6)

  1. वह स्थान जहाँ महात्मा गाँधी का जन्म हुआ था। (1)
  2. वह स्थान जहाँ सिखों का स्वर्ण मन्दिर है। (1)
  3. वह नगर जहाँ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खण्डपीठ स्थित है। (1)
  4. वह नगर जहाँ ब्रह्म समाज की स्थापना हुई। (1)
  5. वह नगर जहाँ कांग्रेस ने वर्ष 1942 में भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया। (1)

खण्ड ख

बहुविकल्पीय प्रश्न

निर्देश निम्नलिखित विकल्पों में सही उत्तर चुनकर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए।

प्रश्न 15.
भारत का सर्वोच्च पर्वत शिखर कौन-सा है? (1)
(अ) धौलागिरि
(ब) कंचनजंगा
(स) नन्दादेवी
(द) कराकोरम

प्रश्न 16.
सुनामी है। (1)
(अ) एक पवन
(ब) एक पर्वत चोटी
(स) एक प्राकृतिक आपदा
(द) एक नदी

प्रश्न 17.
भारत का मैनचेस्टर’ और ‘पूर्व का बोस्टन’ कहलाता है। (1)
(अ) कानपुर
(ब) अहमदाबाद
(स) मुम्बई
(द) जमशेदपुर

प्रश्न 18.
भारत में मौद्रिक नीति कौन नियन्त्रित करता है? (1)
(अ) भारतीय रिज़र्व बैंक
(ब) पंजाब नेशनल बैंक
(स) भारतीय स्टेट बैंक
(द) विदेशी विनिमय बैंक

प्रश्न 19.
निम्नलिखित में से हथकरघा उद्योग किस श्रेणी में आता है? (1)
(अ) लघु उद्योग
(ब) आधारभूत उद्योग
(स) कुटीर उद्योग
(द) रसायन उद्योग

प्रश्न 20.
पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय कहाँ है? (1)
(अ) मालेगाँव
(ब) कोलकाता
(स) गोरख़पुर
(द) दिल्ली

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 21.
मानसूनी वर्षा की दो विशेषताएँ बताइए। (1+1)

प्रश्न 22.
आधारभूत उद्योग से क्या तात्पर्य है? उदाहरण द्वारा उत्तर की पुष्टि कीजिए। (2)

प्रश्न 23.
व्यापार सन्तुलन से क्या आशय है? (2)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 24.
भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘आर्थिक नियोजन’ क्यों आवश्यक है? (1+2)
अथवा
विनिमय पद्धति की तीन कठिनाइयों का उल्लेख कीजिए। (3)

प्रश्न 25.
भूमण्डलीय तापन से आप क्या समझते हैं? इसके दो कारण और दो प्रभाव लिखिए। (3)
अथवा
लौटते हुए मानसून से आप क्या समझते हैं? यह भारत के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है? (3)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 26.
भारतीय वनों के किन्हीं छ: महत्त्वों की विवेचना कीजिए। (6)
अथवा
विकासशील देशों की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (6)

प्रश्न 27.
मजदूरी का अर्थ लिखिए, मजदूरी का निर्धारण कैसे होता है? (6)
अथवा
भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु और कुटीर उद्योगों के महत्त्व को बताइए। मानचित्र-कार्य । निर्देश भारत के दिए गए मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाइए।

प्रश्न 28.

  1. दामोदर तथा कृष्णा नदियाँ (- चिह्न द्वारा) ( 1/2+1/2)
  2. एक बन्दरगाह नाम सहि चिह्न द्वारा  ( 1/2+1/2)
  3. सतपुड़ा और नीलगिरि पर्वत श्रेणियाँचिह्न द्वारा नाम सहित।  ( 1/2+1/2)
  4. सुन्दरवन चिह्न द्वारा।  ( 1/2+1/2)
  5. सिक्किम चिह्न द्वारा नाम सहित।  ( 1/2+1/2)

Answers

खण्ड क
बहुविकल्पीय प्रश्न

उत्तर 1.
(स) 4 जुलाई

उत्तर 2.
(ब) पुर्तगाल

उत्तर 3.
(द) 1828 ई.

उत्तर 4.
(स) महाराष्ट्र

उत्तर 5.
(स) न्यूयॉर्क

उत्तर 6.
(स) राज्यसभा को

खण्ड ख
बहुविकल्पीय प्रश्न

उत्तर 15.
(ब) कंचनजंगा.

उत्तर 16.
(स) एक प्राकृतिक आपदा

उत्तर 17.
(ब) अहमदाबाद

उत्तर 18.
(अ) भारतीय रिज़र्व बैंक

उत्तर 19.
(स) कुटीर उद्योग

उत्तर 20.
(ब) कोलकाता

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UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 7
Chapter Name Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण)
Number of Questions Solved 28
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म अल्पकाल व दीर्घकाल में उत्पादन व कीमत का निर्धारण | किस प्रकार करती है ? सचित्र व्याख्या कीजिए। [2008]
या
अपूर्ण बाजार में किसी फर्म की सामान्य लाभ, असामान्य लाभ तथा हानि की स्थिति में सन्तुलन को दर्शाने वाले चित्र बनाइए तथा व्याख्या कीजिए। [2006]
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत प्रत्येक उत्पादक अथवा विक्रेता का अपना अलग व स्वतन्त्र क्षेत्र होता है। अपने क्षेत्र में वह कुछ सीमा तक मनचाही कीमत प्राप्त कर सकता है। इसमें बाजार कई भागों में बँटा रहता है जिन पर विभिन्न विक्रेताओं का प्रभुत्व होता हैं। प्रत्येक विक्रेता का उद्देश्य एकाधिकारी की भाँति अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है।

अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत निर्धारण में माँग और पूर्ति की शक्तियों का समुचित ध्यान रखा जाता है। इनमें कीमत-निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर सीमान्त लागत तथा सीमान्त आय दोनों ही बराबर होती हैं।

अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादन में तब तक परिवर्तन करती रहेगी जब तक MC = MR नहीं हो जाता। यदि सीमान्त आय सीमान्त लागत से अधिक है तो फर्म अपने उत्पादन को बढ़ाकर लाभ को अधिकतम करेगी और यदि सीमान्त आय सीमान्त लागत से कम है तो फर्म अपने उत्पादन को कम करके लाभ को अधिकतम करेगी। अतः फर्म का सन्तुलन बिन्दु वहाँ निश्चित होगा जहाँ सीमान्त आय और सीमान्त लागत बराबर होती हैं। इस बिन्दु पर फर्म का लाभ अधिकतम होता है और उसमें विस्तार व संकुचन की प्रवृत्ति नहीं होती है।

अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म की औसत आय व सीमान्त आय रेखाएँ एक माँग के रूप में बाएँ से दाएँ नीचे की ओर गिरती हुई होती हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि फर्म द्वारा एक रूप वस्तु का उत्पादन नहीं किया जाता। प्रत्येक फर्म यद्यपि एकाधिकारी नहीं होती, परन्तु एकाधिकारी प्रवृत्ति रखती है। प्रत्येक फर्म वस्तु की कीमत अपने ढंग से निर्धारित करती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म उद्योग से कीमत ग्रहण नहीं करती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आय औसत आय से कम होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि एक अतिरिक्त इकाई को बेचने के लिए फर्म को वस्तु की कीमत में थोड़ी-सी कमी करनी पड़ती है। इसलिए फर्म की औसत आय सीमान्त आय से अधिक होती है।

1. अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत अल्पकाल में मूल्य व उत्पादन-निर्धारण – अल्पकाल में यह सम्भव हो सकता है कि फर्म अपने उत्पादन का समायोजन माँग के अनुसार न कर सके। इसलिए अल्पकाल में फर्म की कीमत-निर्धारण की स्थिति माँग के अनुरूप होती है। यदि वस्तु की माँग अधिक होती है और वस्तु का निकट-स्थानापन्न नहीं होता तो फर्म वस्तु की कीमत ऊँची निर्धारित करने की स्थिति में होगी। इसके विपरीत, यदि वस्तु की माँग कम होती है तो मुल्य-निर्धारण नीची कीमत पर होगा। यदि माँग अत्यधिक कमजोर है तो कीमत और भी अधिक नीची निर्धारित होगी। इस प्रकार फर्म तीन स्थितियों में पायी जा सकती है
(अ) असामान्य लाभ या लाभ अर्जित करने की स्थिति,
(ब) शून्य लाभ या सामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति तथा
(स) हानि की स्थिति।

उपर्युक्त तीनों स्थितियों की हम निम्नलिखित व्याख्या कर सकते हैं
(अ) असामान्य लाभ या लाभ अर्जित करने की स्थिति – यदि किसी फर्म द्वारा उत्पादित वस्तु की माँग बाजारों में अधिक है और उसकी स्थानापन्न वस्तुएँ नहीं हैं तो फर्म वस्तु की ऊंची कीमत निर्धारित करेगी। अल्पकाल में अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म असामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति में होती है। ऐसी स्थिति में फर्म की औसत आय उसकी औसत लागत से अधिक होती है। कोई भी फर्म ऐसे बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में होती हैं जहाँ पर सीमान्त लागते तथा सीमान्त आय बराबर होती हैं।

रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, OX-अक्ष पर उत्पादन MR की मात्रा तथा OY-अक्ष पर कीमत और लागत दिखायी गयी है। फर्म E बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में है, क्योंकि इस बिन्दु पर फर्म की उत्पादन की मात्रा फर्म द्वारा असामान्य लाभ या सीमान्त आय और सीमान्त लागत (MR = MC) बराबर हैं। सन्तुलन लाभ की स्थिति उत्पादन OS तथा कीमत PO है।।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition 1

(ब) शून्य या सामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति – फर्म में सामान्य लाभ की स्थिति उस समय होती है जब वस्तु की माँग कम होती है तथा फर्म ऊंची कीमत निश्चित करने की स्थिति में नहीं होती। ऐसी स्थिति में फर्म की औसत आय (AR) उसकी औसत लागत (AC) के बराबर होती है, जिसके कारण फर्म न तो लाभ प्राप्त करती है और न हानि ही अर्थात् फर्म सन्तुलन की स्थिति औसत आय में होती है।

रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, OX-अक्ष पर उत्पादन की मात्रा तथा OY-अक्ष पर कीमत व लागत दिखायी गयी है। फर्म E बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में है, क्योंकि यहाँ पर उसकी सामान्य आय और सीमान्त लागत (MR = MC) बराबर हैं। फर्म को औसत आय : और औसत लागत भी बराबर (AR = AC) हैं। इसलिए फर्म केवल सामान्य लाभ अथवा शून्य लाभ प्राप्त कर रही है।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition 2

(स) हानि की स्थिति – जब वस्तु की माँग इतनी अधिक कम हो लाभ की स्थिति कि फर्म को अपनी वस्तु को विवश होकर कम कीमत पर बेचना पड़े हैं। तब फर्म हानि की स्थिति में होती है। इस स्थिति में फर्म की औसत आय औसत लागत से कम होती है। इसलिए फर्म हानि उठाती है।

रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, Ox-अक्ष पर उत्पादन तथा OY-अक्ष पर कीमत और लागत दिखायी गयी हैं। फर्म E। बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में है, क्योंकि यहाँ पर उसकी सीमान्त हैं आय और सीमान्त लागत (MR = MC) बराबर हैं। क्योंकि फर्म की । औसत लागत उसकी औसत आय से अधिक है, इसलिए फर्म को हानि हो रही है।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition 3

2. अपूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में कीमत व उत्पादन-निर्धारण – दीर्घकाल में फर्म स्थिर सन्तुलन की स्थिति में होती है। अतः दीर्घकाल में फर्म केवल सामान्य लाभ अर्जित करती है। यदि दीर्घकाल में कुछ फर्मे अथवा उद्योग असामान्य लाभ अर्जित करते हैं तो ऊँचे लाभ से आकर्षित होकर अन्य फर्ने उद्योग में प्रवेश करने लगती हैं, जिसके कारण उस वस्तु के निकट-स्थानापन्न का उत्पादन प्रारम्भ हो जाता है। लाभ गिरकर सामान्य स्तर पर आ जाता है। प्रतियोगिता के कारण असामान्य लाभ समाप्त हो जाएगा और प्रत्येक फर्म केवल सामान्य लाभ ही अर्जित करेगी।

रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, Ox-अक्ष पर उत्पादन ४ व बिक्री की मात्रा तथा OY-अक्ष पर कीमत दिखायी गयी है। इस चित्र में AR तथा MR क्रमशः औसत आय तथा सीमान्त आय वक्र हैं तथा AC और MC क्रमशः औसत लागत व सीमान्त लागत वक्र हैं। E फर्म का सन्तुलन बिन्दु है जिस पर सीमान्त आय और सीमान्त लागत है (MR = MC) बराबर हैं। OS सन्तुलन उत्पादन तथा ON कीमत है। फर्म – की औसत आय व सीमान्त लागत भी बराबर हैं। अत: फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त हो रहा है।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition 4

प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता को स्पष्ट कीजिए। इस प्रतियोगिता में अल्पकाल में मूल्य-निर्धारण कैसे होता है? [2007]
या
अपूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में फर्म के सन्तुलन की दशाओं का सचित्र वर्णन कीजिए। [2007]
या
अपूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में एक फर्म मूल्य तथा उत्पादन का निर्धारण किस प्रकार करती है? [2007 ]
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता के अर्थ के लिए इसी अध्याय के लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 में अपूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ तथा अपूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में मूल्य-निर्धारण के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न सं० 1 में ‘अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत अल्पकाल में मूल्य व उत्पादन-निर्धारण’ शीर्षक देखिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
अपूर्ण प्रतियोगिता से आप क्या समझते हैं ? अपूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताओं की विवेचना कीजिए। [ 2011, 16]
या
अपूर्ण प्रतियोगी बाजार को परिभाषित कीजिए। [2012]
या
अपूर्ण प्रतियोगिता की मुख्य विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। [2014]
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ
वास्तविक जीवन में न तो पूर्ण प्रतियोगिता की दशाएँ पायी जाती हैं और न एकाधिकार की। प्रायः इन दोनों के बीच की अवस्थाएँ मिलती हैं, जिसे अपूर्ण प्रतियोगिता कहते हैं। अपूर्ण प्रतियोगिता से अभिप्राय पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार के बीच की किसी अवस्था से होता है। अपूर्ण प्रतियोगिता का स्वरूप अंशतः प्रतियोगिता तथा अंशतः एकाधिकारी होता है।

फेयर चाइल्ड के शब्दों में, “यदि बाजार उचित प्रकार से संगठित नहीं होता, यदि क्रेता और विक्रेता एक-दूसरे के सम्पर्क में आने में कठिनाई का अनुभव करते हैं और वे दूसरे के द्वारा क्रय की गयी वस्तुओं और उनके द्वारा दिये गये मूल्यों की तुलना करने में असमर्थ रहते हैं तो ऐसी स्थिति को अपूर्ण प्रतियोगिता कहते हैं।

जे० के० मेहता के शब्दों में, “यह बात भली-भाँति स्पष्ट हो गयी है कि विनिमय की प्रत्येक स्थिति वह स्थिति है जिसको आंशिक एकाधिकार की स्थिति कहते हैं और यदि आंशिक एकाधिकार को दूसरी ओर से देखा जाए तो यह अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति है। प्रत्येक स्थिति में प्रतियोगिता तत्त्व तथा एकाधिकार तत्त्व दोनों का मिश्रण है।”

अपूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएँ

  1.  अपूर्ण प्रतियोगिता में क्रेताओं, विक्रेताओं एवं फर्मों की संख्या पूर्ण प्रतियोगिता की अपेक्षा कम होती है।
  2.  अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत प्रतियोगिता तो होती है, किन्तु वह इतनी अपूर्ण तथा दुर्बल होती है कि माँग और पूर्ति की शक्तियों को कार्य करने का पूर्ण अवसर नहीं मिलता।
  3. क्रेताओं और विक्रेताओं को बाजार की स्थिति का पूर्ण ज्ञान नहीं होता है। परिणामस्वरूप बाजार में कीमतें भिन्न-भिन्न होती हैं।
  4. प्रत्येक विक्रेता को कुछ सीमा तक अपनी वस्तु की मनचाही कीमत वसूल करने की स्वतन्त्रता रहती है।
  5. अपूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु-विभेद होता है। प्रत्येक फर्म अपनी वस्तु की बाजार माँग में अलग पहचान बनाने का प्रयत्न करती है।
  6.  अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों को बाजार में प्रवेश करने व छोड़ने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। अर्थात् बाजार में फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश व बहिर्गमन होता है।
  7. फर्म के माँग वक्र या औसत आगम वक्र (AR) का ढाल ऋणात्मक होता है और फर्म का सीमान्त आगम वक्र (MR) इसके औसत आगम वक्र से नीचा होता है।
  8.  दीर्घकाल में वस्तु का मूल्य सीमान्त आगम (MR) तथा ओसत आगम (AR) के बराबर होता है।
  9. अपूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु की बिक्री बढ़ाने हेतु विज्ञापन में प्रचार आदि का आश्रय लिया जाता है।
  10.  व्यावहारिक जीवन में बाजार में अपूर्ण प्रतियोगिता की ही स्थिति पायी जाती है।
  11. अपूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु का बाजार संगठित नहीं होता।

प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता क्या है ? इसके अन्तर्गत मूल्य-निर्धारण कैसे होता है ?
या
अपूर्ण प्रतियोगिता क्या है? इसकी दशाओं का वर्णन कीजिए तथा इसके अन्तर्गत कीमत-निर्धारण को समझाइए।
उत्तर:
(संकेत – अपूर्ण प्रतियोगिता के अर्थ एवं दशाओं के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 का आरम्भिक भाग देखें। )

अपूर्ण प्रतियोगिता में कीमत या मूल्य-निर्धारण
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत प्रत्येक उत्पादक अथवा विक्रेता का अपना अलग एवं स्वतन्त्र क्षेत्र होता है और वह अपने क्षेत्र में कुछ सीमा तक मनमानी कीमत वसूल कर सकता है। अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक विक्रेता का उद्देश्य एकाधिकारी की भाँति ही अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है; अत: वस्तु की कीमत का निर्धारण ठीक उसी प्रकार होता है जिस प्रकार एकाधिकार की अवस्था में। | अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जिस पर उत्पादन-इकाई की सीमान्त लागत तथा सीमान्त आय दोनों ही बराबर होती हैं। अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए प्रत्येक उत्पादक उत्पादन को तब तक बढ़ाता रहता है जब तक कि उसकी सीमान्त आय सीमान्त लागत से अधिक रहती है, जब ये दोनों बराबर हो जाती हैं तो उसके बाद वह उत्पादन नहीं बढ़ाता। अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत विक्रेता कीमत का निर्धारण करते समय माँग और पूर्ति की शक्तियों का समुचित ध्यान रखता है; अत: अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में कीमत का निर्धारण माँग और पूर्ति दोनों की पारस्परिक क्रियाओं द्वारा होता है।

अपूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादक का पूर्ति पर तो पूर्ण नियन्त्रण होता है, किन्तु माँग पर कोई प्रत्यक्ष नियन्त्रण नहीं होता; अतः अपूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेता माँग की मूल्य सापेक्षता को ध्यान में रखकर कीमत का निर्धारण करता है। यदि वस्तु की मॉग मूल्ये सापेक्ष है तो विक्रेता उसकी कम कीमत निश्चित करेगा, क्योंकि मूल्य सापेक्ष वस्तुओं की कीमत में थोड़ी-सी भी कमी हो जाने पर उनकी माँग बहुत अधिक बढ़ जाती है; अत: कीमत कम निर्धारित होने के कारण यद्यपि प्रति इकाई लाभ तो कम हो जाता है, परन्तु माँग के बढ़ जाने के कारण कुल लाभ की मात्रा अधिक हो जाती है। इसके विपरीत, यदि वस्तु की माँग निरपेक्ष है तो कीमत में बहुत कमी होने पर भी उसकी माँग में विशेष वृद्धि नहीं होती और कीमत में वृद्धि होने पर माँग में कोई विशेष कमी नहीं होती।

अतः ऐसी वस्तुओं की कीमतें ऊँची ही निश्चित की जाती हैं, क्योंकि कीमतें चाहे कुछ भी हों, लोग उन्हें अवश्य खरीदेंगे। पूर्ति पक्ष के सम्बन्ध में यह विचार करना पड़ता है कि वस्तु के उत्पादन में प्रतिफल का कौन-सा नियम लागू हो रहा है ? यदि वस्तु का उत्पादन वृद्धिमान प्रतिफल नियम के अन्तर्गत हो रहा है तब वस्तु की कम कीमत निश्चित की जाएगी, इसके विपरीत, यदि उत्पादन ह्रासमान प्रतिफल नियम के अन्तर्गत हो रहा है तब वह वस्तु की कीमत जितनी अधिक वसूल कर सकता है, करेगा। आनुपातिक प्रतिफल नियम के अन्तर्गत उत्पादित वस्तु की कीमत उसकी माँग के अनुसार निर्धारित की जाएगी अर्थात् माँग के बढ़ने पर कीमत अधिक तथा माँग के घटने पर कम होगी। । संक्षेप में हम कह सकते हैं कि विक्रेता अपनी वस्तु की कीमत को निश्चित करते समय प्रत्येक कीमत पर अपने कुल लाभ का अनुमान लगाता है और वही कीमत निश्चित करता है जिस पर कि उसे अधिकतम कुल निवल लाभ अथवा आय प्राप्त होती हैं।

प्रश्न 3
पूर्ण एवं अपूर्ण प्रतियोगिता में अन्तर (भेद) कीजिए। इनमें से कौन व्यावहारिक है ? [2006,10,11]
या
पूर्ण एवं अपूर्ण प्रतियोगी बाजार की विशेषताओं की तुलना कीजिए। [2013]
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता तथा अपूर्ण प्रतियोगिता में अन्तर (भेद) 

क०स० पूर्ण प्रतियोगिता अपूर्ण प्रतियोगिता
1. पूर्ण प्रतियोगिता में क्रेताओं व विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या पूर्ण प्रतियोगिता की अपेक्षा कम होती हैं। इसमें एकाधिकारी प्रतियोगिता, ‘अल्पाधिकार’ तथा ‘द्वयाधिकारी की स्थितियाँ सम्मिलित होती हैं।
2. पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म के द्वारा उत्पादित तथा बेची जाने वाली वस्तुओं में एकरूपता होती है। अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत वस्तु-विभेद पाया जाता है। प्रत्येक फर्म बाजार में अपनी वस्तु की अलग पहचान बनाने का प्रयास करती है।
3. पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश व बहिर्गमन होता है। अपूर्ण प्रतियोगिता में भी फमों का स्वतन्त्र प्रवेश व बहिर्गमन होता है।
4. पूर्ण प्रतियोगिताओं में क्रेताओं और विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है तथा उनमे परम्पर सम्पर्क होता है। अपूर्ण प्रतियोगिता में क्रेताओं और विक्रेताओं की बाजार का सम्पूर्ण ज्ञान नहीं होता है।
5. पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में वस्तु की कीमत का निर्धारण उद्योग द्वारा माँग और पूर्ति की शक्तियों के सन्तुलन से होता है। इस कीमत को उद्योग में कार्य कर रही फमें दिया हुआ मान लेती हैं। अपूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेता कीमत निर्धारित करते समय माँग व पूर्ति की शक्तियों का ध्यान रखता है, परन्तु प्रत्येक फर्म या विक्रेता का अपना अलग स्वतन्त्र क्षेत्र होता है।
6. पूर्ण प्रतियोगिता में औसत आय तथा सीमान्त आय बराबर होती हैं। औसत आय तथा सीमान्त आय वक्र एक सीधी पड़ी रेखा होती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में औसत आय सीमान्त आय से अधिक होती है। औसत आय वक्र तथा सीमान्त आय वक्र बाएँ से दाएँ नीचे को गिरता हुआ होता है।
7. पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म अल्पकाल में लाभ, सामान्य लाभ व हानि अर्जित करती है तथा दीर्घकाल में फर्म को मात्र सामान्य लाभ ही प्राप्त होता है। अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म अल्पकाल में लाभ, सामान्य लाभ व हानि की स्थिति में हो सकती है। तथा दीर्घकाल में फर्म को केवल सामान्य लाभ ही अर्जित हो पाता है।
8. पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म विज्ञापन व प्रचार आदि में प्रायः बिक्री लागते वहन नहीं करती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म वस्तु की बिक्री बढ़ाने के लिए विज्ञापन व प्रचार व्यय करती है।
9. पूर्ण प्रतियोगिता एक काल्पनिक दशा है। वास्तविक जीवन में यह नहीं पायी जाती है। अतः पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति केवल सैद्धान्तिक है। अपूर्ण प्रतियोगिता व्यावहारिक जीवन में पायी जाती है। अतः यह सैद्धान्तिक न होकर व्यावहारिक है।

प्रश्न 4
अपर्ण प्रतिस्पर्धा में औसत वक्र तथा सीमान्त आय वक्र का रूप कैसा होता है ? इस प्रतिस्पर्धा में सन्तुलन बिन्दु कैसे निर्धारित किया जाता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतिस्पर्धा में औसत आय वक्र तथा सीमान्त आय वक्र का रूप – अपूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में औसत आय और सीमान्त आय रेखाएँ अलग-अलग होती हैं तथा बाएँ से दाएँ नीचे की ओर गिरती हुई होती हैं। अतः स्पष्ट है कि फर्म का उत्पादन बढ़ने पर 14औसत आय (AR) और सीमान्त आय (MR) दोनों ही गिरती हैं, किन्तु सीमान्त आय औसत आय की अपेक्षा तेजी से गिरती है। इसका कारण यह होता है कि विक्रेताओं की संख्या पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में अपेक्षाकृत कम होने से विक्रेता कीमत को प्रभावित कर सकने की स्थिति में होता है अर्थात् वे कीमत में कमी करके वस्तु की बिक्री को बढ़ा सकते हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition 5

अपूर्ण प्रतिस्पर्धा में सन्तुलन बिन्दु का निर्धारण – अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में आय वक्र अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत-निर्धारण में माँग और पूर्ति की शक्तियों का समुचित ध्यान रखा जाता है। इनमें कीमत-निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर सीमान्त लागत तथा सीमान्त आय दोनों ही बराबर होती हैं।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition 6
अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादन में जब तक परिवर्तन करती रहेगी तब तक MR = MC अर्थात् सीमान्त आय = सीमान्त लागत नहीं हो जाता। यदि सीमान्त आय, सीमान्त लागत से अधिक है तो फर्म अपने उत्पादन को बढ़ाकर लाभ को अधिकतम करेगी और यदि सीमान्त आय, सीमान्त लागत से उत्पादन की मात्रा कम है तो फर्म अपने उत्पादन को कम करके लाभ को फर्म द्वारा असामान्य लाभ की स्थिति अधिकतम करेगी। अतः फर्म को सन्तुलन बिन्दु वहाँ निश्चित होगा जहाँ सीमान्त आय और सीमान्त लागत बराबर होती हैं। इस बिन्दु पर फर्म का लाभ अधिकतम होता है और उससे विस्तार व संकुचन की प्रवृत्ति नहीं होती है।

प्रश्न 5
अपूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म के दीर्घकालीन साम्य को समझाइए। [2009]
उत्तर:
दीर्घकाल में अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होता है। इसके विपरीत पूर्ण प्रतियोगिता में लाभ अथवा हानि की स्थिति भी हो सकती है। यही कारण है कि दीर्घकाल में सामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति पूर्ण प्रतियोगिता की अपेक्षा अपूर्ण प्रतियोगिता में पहले आती है।
संलग्न चित्र में,
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition 7
E = सन्तुलन बिन्दु
LM = औसत आय
LM = औसत लागत
(… औसत लाभ = औसत आय)
अत: लाभ की मात्रा शून्य (सामान्य लाभ) है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
नीचे दिये गये रेखाचित्र में दी गयी वक्र रेखाओं के नाम लिखिए तथा यह भी लिखिए कि वक्र रेखाओं की ऐसी प्रवृत्ति फर्म की हानि दर्शाती है अथवा लाभ।
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उत्तर:
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उपर्युक्त रेखाचित्र की स्थिति में फर्म लाभ की स्थिति को दर्शाती है।

प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म को मात्र सामान्य लाभ दर्शाने वाले चित्र को अपनी उत्तर-पुस्तिका में विभिन्न वक्रों के नाम सहित बनाइए।
उत्तर:
फर्म द्वारा सामान्य लाभ का चित्र
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निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आय का औसत आय से कम होने का क्या कारण है?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आय का औसत आय से कम होने का मुख्य कारण यह है कि एक अतिरिक्त इकाई को बेचने के लिए फर्म को वस्तु की कीमत में थोड़ी-सी कमी करनी पड़ती है। इसलिए फर्म की औसत आय सीमान्त आय से अधिक होती है।

प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म को कब हानि उठानी पड़ती है ?
उत्तर:
जब वस्तु की माँग इस सीमा तक कम हो जाती है कि फर्म को अपनी वस्तु को विवश होकर लागत से कम कीमत पर बेचना पड़े, तब फर्म हानि की स्थिति में होती है अर्थात् इस स्थिति में फर्म की औसत आय उसकी औसत लागत से कम होती है। इसलिए फर्म को हानि उठानी पड़ती है।

प्रश्न 3
अपूर्ण प्रतियोगिता की चार विशेषताएँ बताइए। [2006, 09]
या
अपूर्ण प्रतियोगिता की दो प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। [2013, 15]
उत्तर:

  1.  विक्रेताओं की अपेक्षाकृत कम संख्या,
  2.  वस्तु-विभेद पाया जाना,
  3. बाजार का अपूर्ण ज्ञान,
  4. पूर्ण गतिशील न होना।

प्रश्न 4
अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में उत्पादक कब असामान्य लाभ प्राप्त करता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादक केवल उस दशा में असामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति में होता है जब उसकी औसत आय उसकी औसत लागत से अधिक हो।

प्रश्न 5:
अपूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में वस्तु का मूल्य किस स्थिति में निर्धारित होता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में वस्तु का मूल्य सीमान्त आय व सीमान्त लागत की सन्तुलन की स्थिति में निर्धारित होता है। यहाँ फर्म केवल सामान्य लाभ अर्थात् शून्य लाभ की स्थिति में होती है।

प्रश्न 6
अधिकतम बिक्री करने के लिए उत्पादक को क्या करना पड़ता है ?
उत्तर:
उत्पादक को वस्तुओं की अधिकतम बिक्री करने के लिए विज्ञापन व प्रचार आदि पर व्यय करना पड़ता है।

प्रश्न 7
अपूर्ण प्रतियोगिता का स्वरूप कैसा होता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता का स्वरूप अंशत: पूर्ण प्रतियोगिता तथा अंशत: एकाधिकारी होता है।

प्रश्न 8
अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार में औसत ओगम वक्र का ढाल किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में औसत आगम वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर गिरता हुआ होता है।

प्रश्न 9
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत-निर्धारण किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत-निर्धारण में माँग एवं पूर्ति की शक्तियों का समुचित ध्यान रखा जाता है। इस प्रकार कीमत-निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर सीमान्त लागत तथा सीमान्त आय दोनों ही बराबर हों।

प्रश्न 10
अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आगम रेखा का ढाल कैसा होता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आगम रेखा का ढाल बाएँ से दाएँ नीचे की ओर होता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
अपूर्ण प्रतियोगिता है
(क) काल्पनिक
(ख) व्यावहारिक
(ग) काल्पनिक-व्यावहारिक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) व्यावहारिक।

प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता में औसत और सीमान्त आगम के वक्र गिरते हुए होते हैं [2010]
(क) नीचे की ओर
(ख) ऊपर की ओर
(ग) बीच में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) नीचे की ओर।।

प्रश्न 3
अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में दीर्घकाल में विक्रेता केवल प्राप्त करता है
(क) हानि :
(ख) सामान्य लाभ
(ग) अधिकतम लाभ
(घ) शून्य लाभ
उत्तर:
(ख) सामान्य लाभ।

प्रश्न 4
अपूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेताओं की संख्या होती है
(क) शून्य
(ख) कम
(ग) अधिक
(घ) ये सभी
उत्तर:
(ख) कम।

प्रश्न 5
अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादन में परिवर्तन करती रहती है, जब तक
(क) सीमान्त लागत = सीमान्त आय
(ख) सीमान्त आय, सीमान्त लागत से अधिक
(ग) सीमान्त आय, सीमान्त लागत से कम
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(क) सीमान्त लागत = सीमान्त आय।

प्रश्न 6
वस्तु (उत्पाद) विभेद’ एक आधारभूत विशेषता है [2012, 13]
या
वस्तु-विभेद किस बाजार में पाया जाता है? [2015]
(क) पूर्ण प्रतियोगिता की
(ख) अपूर्ण प्रतियोगिता की
(ग) एकाधिकार की
(घ) इनमें से किसी की नहीं
उत्तर:
(ख) अपूर्ण प्रतियोगिता की।

प्रश्न 7
किसी फर्म के अधिकतम लाभ के लिए प्रथम आवश्यकता है
(क) सीमान्त आगम = औसत आगम
(ख) सीमान्त लागत = औसत लागत
(ग) सीमान्त लागते = सीमान्त आगम
(घ) औसत लागत = औसत आगम।
उत्तर:
(ग) सीमान्त लागत = सीमान्त आगम।

प्रश्न 8
कोई फर्म सन्तुलन की स्थिति प्राप्त करती है जब [2013]
(क) सीमान्त आगम एवं सीमान्त लागत बराबर हों।
(ख) सीमान्त आगम सीमान्त लागत से अधिक हो।
(ग) सीमान्त आगम सीमान्त लागत से कम हो।
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) सीमान्त आगम एवं सीमान्त लागत बराबर हों।।

प्रश्न 9
अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म की औसत आय रेखा होती है [2010]
(क) गिरती हुई रेखा
(ख) उठती हुई रेखा
(ग) क्षैतिज रेखो।
(घ) ऊर्ध्व रेखा।
उत्तर:
(क) गिरती हुई रेखा।

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UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2

UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 are part of UP Board Class 12 Maths Model Papers. Here we have given UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2.

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Class Class 12
Subject Maths
Model Paper Paper 2
Category UP Board Model Papers

UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2

समय : 3 घण्टे 15 मिनट
पूर्णांक : 100

निर्देश प्रारम्भ के 15 मिनट परीक्षार्थियों को प्रश्न-पत्र पढ़ने के लिए निर्धारित हैं। इस प्रश्न पत्र में कुल 31 प्रश्न हैं। सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों में अथवा का विकल्प दिया गया है। प्रश्नों के अंक उनके सम्मुख अंकित हैं।

प्रश्न 1
यदि (2x, y) = (x+ 1, 1-y) है, तब x और y के मान क्रमश: हैं। [1]
(a) 1, [latex]\frac { 1 }{ 2 } [/latex]
(b) [latex]\frac { 1 }{ 2 } [/latex], 1
(c) 1, [latex]\frac { 3 }{ 4 } [/latex]
(d) 1, [latex]\frac { 5 }{ 4 } [/latex]

प्रश्न 2
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 1

प्रश्न 3
रैखिक प्रोग्रामन समस्या के ऋणेत्तर व्यवरोध x, y ≥ 0 सहित सभी व्यवरोधों द्वारा नियत उभयनिष्ठ क्षेत्र कहलाता है। [1]
(a) सुसंगत क्षेत्र
(b) अपरिबद्ध क्षेत्र
(c) परिबद्ध क्षेत्र
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 4
x = 4 पर [latex]\sqrt { { x }^{ -3 } } [/latex] का अवकलज है। [1]
(a) [latex]\frac { -3 }{ 32 } [/latex]
(b) [latex]\frac { -32 }{ 3 } [/latex]
(c) [latex]\frac { -3 }{ 64 } [/latex]
(d) [latex]\frac { -4 }{ 29 } [/latex]

प्रश्न 5
∫(3x2 + 4x3) dx का मान है। [1]
(a) x4 + x5 + C
(b) x3 + x4 + C
(c) x3 + x7 + C
(d) x6 + x5 + C

प्रश्न 6
सिद्ध कीजिए कि फलन f(x) = 2x + 3, R में निरन्तर वर्धमान फलन है। [1]

प्रश्न 7
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 2

प्रश्न 8
फलन f(x) = [latex]\frac { 1 }{ x-6 } [/latex] की सतत्ता का परीक्षण कीजिए। [1]

प्रश्न 9
एक वृत्त की त्रिज्या में 0.7 सेमी/से की दर से वृद्धि हो रही है, तब वृत्त की परिधि में परिवर्तन दर ज्ञात कीजिए। [1]

प्रश्न 10
[latex]\int _{ 0 }^{ \pi }{ { cos }^{ 3 }xdx } [/latex] का मान ज्ञात कीजिए। [1]

प्रश्न 11
यदि A = {a,b,c} तथा B= {p,q} है, तब n(A×B) का मान ज्ञात कीजिए। [2]

प्रश्न 12
आव्यूह
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 3
का सहखण्डज आव्यूह ज्ञात कीजिए। [2]

प्रश्न 13
दो बिन्दुओं A(2, 3, 4) और B(4,1,- 2) को मिलाने वाले सदिश का मध्य-बिन्दु ज्ञात कीजिए। [2]

प्रश्न 14
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 4

प्रश्न 15
यदि किसी त्रिभुज के शीर्ष (-2,0), (0,4), (0,k) हैं तथा त्रिभुज का क्षेत्रफल 4 वर्ग इकाई है, सारणिक का प्रयोग करके k का मान ज्ञात कीजिए। [2]

प्रश्न 16
यदि tan-1([latex]\frac { 1 }{ 2 } [/latex])+ tan-1(2) = tan-1 α है, तब दशाईए कि α = ∞ [2]

प्रश्न 17
यदि 2P(A) = P(B) = [latex]\frac { 5 }{ 12 } [/latex] व P([latex]\frac { A }{ B } [/latex]) = [latex]\frac { 1 }{ 5 } [/latex] है, तब P(A∪B) ज्ञात कीजिए। [2]

प्रश्न 18
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 5

प्रश्न 19
यदि x ≠ 0 के लिए f(x) + bf([latex]\frac { 1 }{ x } [/latex]) = ([latex]\frac { 1 }{ x } [/latex])-5, जहाँ a ≠ b है, तब f(x) का मान ज्ञात कीजिए। [5]

प्रश्न 20
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 6

प्रश्न 21
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 7
प्रश्न 22
निम्न व्यवरोधों के अन्तर्गत z = – x + 2y का अधिकतमीकरण कीजिए। [5]
x ≥ 3, x + y ≥ 5, 2y ≥ 6; x, y ≥ 0

प्रश्न 23
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 8
प्रश्न 24
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प्रश्न 25
अवकल समीकरण cos2x[latex]\frac { dy }{ dx }[/latex]+ y = tan x का व्यापक हल ज्ञात कीजिए। [5]

प्रश्न 26
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 10
प्रश्न 27
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 11

प्रश्न 28
बिन्दु (2,3, 4) की समतल 3x + 2y + 2z + 5 = 0 से दूरी ज्ञात कीजिए, जोकि रेखा [latex]\frac { x+3 }{ 3 }[/latex] = [latex]\frac { y-2 }{ 6 }[/latex]= [latex]\frac { z }{ 2 } [/latex] के समान्तर मापी गई है। [5]

प्रश्न 29
एक पासा दो बार फेंका गया। क्या प्रायिकता है कि कम-से-कम एक फेंक में अंक 4 प्रकट हो? [8]
अथवा
52 पत्तों की अच्छी तरह फेंटी गई गड्डी में से एक के बाद एक तीन पत्ते बिना प्रतिस्थापित किए निकाले गए। पहले दो पत्तों का बादशाह तीसरे को इक्का होने की प्रायिकता ज्ञात कीजिए।

प्रश्न 30
28 मी लम्बाई के तार के दो टुकड़े करके एक वर्ग तथा दूसरे को वृत्त के रूप में मोड़ा जाता है। दोनों टुकड़ों की लम्बाई ज्ञात कीजिए, यदि उनके द्वारा निर्मित आकृतियों का संयुक्त क्षेत्रफल न्यूनतम है। [8]
अथवा
सिद्ध कीजिए कि दी गई तिर्यक ऊँचाई के उच्चिष्ठ आयतन वाले शंकु का अर्द्धशीर्ष कोण tan-1√2 है।

प्रश्न 31
समाकलन की सहायता से, परवलय y2 = 4x तथा वृत्त 4x2 + 4y2 = 9 द्वारा घिरे हुए भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए। [8]
अथवा
समाकलन की सहायता से, परवलय y = x2 तथा वक्र y = [latex]\left| x \right| [/latex] द्वारा घिरे हुए भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।

Solutions

उत्तर 1
(a)

उत्तर 2
(b)

उत्तर 3
(a)

उत्तर 4
(c)

उत्तर 5
(b)

उत्तर 7
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 12

उत्तर 9
4.4 सेमी/से

उत्तर 10
0

उत्तर 11
6

उत्तर 12
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 13

उत्तर 13
[latex]3\hat { i } +2\hat { j } +\hat { k } [/latex]

उत्तर 14
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 14

उत्तर 15
k = 0,8

उत्तर 17
[latex]\frac { 13 }{ 24 } [/latex]

उत्तर 18
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 15

उत्तर 19
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 16

उत्तर 20
x = 0, -(a + b + c)

उत्तर 22
Z का कोई अधिकतम मान नहीं है।

उत्तर 24
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 17

उत्तर 25
y = tanx – 1 + Ce-tan x

उत्तर 27
0

उत्तर 28
7

उत्तर 29
[latex]\frac { 11 }{ 36 } [/latex] अथवा [latex]\frac { 2 }{ 24 } [/latex]

उत्तर 30
[latex]\frac { 392 }{ 25 } [/latex] मी, [latex]\frac { 2 }{ 5525 } [/latex] मी

उत्तर 31
UP Board Class 12 Maths Model Papers Paper 2 image 18

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UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 6 Public Opinion

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 6 Public Opinion (जनमत (लोकमत)) are part of UP Board Solutions for Class 12 Civics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 6 Public Opinion (जनमत (लोकमत)).

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Subject Civics
Chapter Chapter 6
Chapter Name Public Opinion (जनमत (लोकमत))
Number of Questions Solved 25
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UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 6 Public Opinion (जनमत (लोकमत))

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
लोकमत से आप क्या समझते हैं? लोकमत की अभिव्यक्ति के कौन-कौन से साधन हैं [2016]
या
जनमत-निर्माण के प्रमुख साधनों का वर्णन कीजिए। [2007, 14]
या
‘जनमत के निर्माण व प्रकट करने के साधन’ पर टिप्पणी लिखिए।
या
जनमत से आप क्या समझते हैं ? स्वस्थ जनमत-निर्माण के आवश्यक साधनों का वर्णन कीजिए। [2007, 09, 12, 13, 14]
या
जनमत के विभिन्न साधनों का उल्लेख कीजिए। [2011, 12, 13, 14]
उत्तर
जनमत (लोकमत) का अर्थ व परिभाषा
साधारण शब्दों में, लोकमत अथवा जनमत का अर्थ सार्वजनिक समस्याओं के सम्बन्ध में जनता के मत से है। आधुनिक प्रजातान्त्रिक युग में लोकमत का विशेष महत्त्व है। डॉ० आशीर्वादम् ने लोकमत के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि “जागरूक व सचेत लोकमत स्वस्थ प्रजातन्त्र की प्रथम आवश्यकता है।”
विभिन्न विद्वानों ने जनमत की परिभाषाएँ निम्नवत् दी हैं-

  1. लॉर्ड ब्राइस का मत है कि “सार्वजनिक हित से सम्बद्ध किसी समस्या पर जनता के सामूहिक विचारों को जनमत कहा जा सकता है।”
  2. डॉ० बेनी प्रसाद के शब्दों में, “केवल उसी राय को वास्तविक जनमत कहा जा सकता है जिसका उद्देश्य जनता का कल्याण हो। हम कह सकते हैं कि सार्वजनिक मामलों पर बहुसंख्यक का वह मत जिसे अल्पसंख्यक भी अपने हितों के विरुद्ध नहीं मानते, जनमत कहलाता है।

उपर्युक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी विषय पर अधिकांश जनता के उस मत को लोकमत अथवा जनमत कहा जाता है जिसमें लोक-कल्याण की भावना निहित हो।

जनमत के निर्माण के साधन
जनमत के निर्माण और उसकी अभिव्यक्ति में अनेक साधन सहायक होते हैं। कुछ मुख्य साधन निम्नलिखित हैं-

  1. समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ – जनमत के निर्माण में सबसे प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण अंग प्रेस है। प्रेस के अन्तर्गत समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ तथा अन्य प्रकार का साहित्य आ जाता है। एक विचारक ने इनको आधुनिक सभ्यता का प्रकाश स्तम्भ और प्रजातन्त्र के धर्म-ग्रन्थ कहकर पुकारा है।
  2. सार्वजनिक भाषण – जनमत के निर्माण में सार्वजनिक मंचों पर नेताओं या व्यक्ति-विशेष द्वारा दिये जाने वाले भाषणों का विशेष महत्त्व होता है। इन भाषणों के द्वारा जनता को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त होती है और वह सार्वजनिक समस्याओं के प्रति जागरूक बनती है।
  3. शिक्षण संस्थाएँ – स्कूल, कॉलेज व विश्वविद्यालय जैसी शिक्षण संस्थाएँ भी प्रबुद्ध जनमत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। शिक्षण संस्थाएँ विद्यार्थियों में नागरिक चेतना जाग्रत करती हैं और उनके चरित्र-निर्माण में सहायक होती हैं।
  4. राजनीतिक दल – राजनीतिक दल जनमत-निर्माण के सशक्त साधन माने जाते हैं। विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने विचारों तथा कार्यक्रमों को जनता के सामने रखते हैं। इससे जनता को अपना मत बनाने में बड़ी सहायता प्राप्त होती है।
  5. रेडियो, सिनेमा व दूरदर्शन – प्रचार की दृष्टि से रेडियो तथा टेलीविजन प्रेस से भी सशक्त माध्यम हैं। किसी महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक घटना की जानकारी रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा करोड़ों लोगों तक पहुँच जाती है। इसके माध्यम से संसार के विभिन्न भागों के लोग एक ही समय में किसी लोकप्रिय नेता का भाषण अथवा किसी सार्वजनिक विषय पर वाद-विवाद सुन सकते हैं।
  6. निर्वाचन – जनमत के निर्माण में निर्वाचन का भी महत्त्व है। निर्वाचन के समय विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने कार्यक्रमों एवं नीतियों के सम्बन्ध में जनता को जानकारी देकर जनमत को अपने पक्ष में करने का प्रयास करते हैं, किन्तु जनता उसी दल के प्रत्याशी को अपना मत देती है जिसके कार्यक्रमों और नीतियों को वह देश-हित में अच्छा समझती है।
  7. व्यवस्थापिका सभाएँ – व्यवस्थापिका सभाएँ भी जनमत के निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। व्यवस्थापिका सभाओं में विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि जाते हैं। व्यवस्थापिका सभाओं में होने वाले वाद-विवाद से सम्पूर्ण जनता को देश की महत्त्वपूर्ण समस्याओं के सभी पक्षों का समुचित ज्ञान प्राप्त होता है, जिसके आधार पर उन्हें अपना मत निर्धारित करने में सहायता मिलती है।
  8. धार्मिक संस्थाएँ – लोकमत के निर्माण में धार्मिक संस्थाएँ भी अपना योगदान देती हैं। इसका प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति के चरित्र, विचारों और उसके कार्यों पर पड़ता है। हमारे देश में आर्य समाज, कैथोलिक चर्च, अकाली दल आदि अनेक संस्थाओं ने भी अपने प्रचार द्वारा लोकमत को प्रभावित किया है।
  9. साहित्य – साहित्य भी जनमत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। साहित्य के अध्ययन से जनता के विचारों की संकीर्णता दूर होती है और स्वस्थ जनमत के निर्माण में सहायता मिलती है।
  10. अफवाहें – आधुनिक युग में अफवाहें भी जनमत–निर्माण में योगदान देती हैं। कभी-कभी सच्चाई का पता लगाने हेतु जान-बूझकर अफवाहें भी फैला दी जाती हैं। पत्रकार ऐसी अफवाहों को फीलर (Feeler) के नाम से पुकारते हैं। 1942 ई० में गाँधी जी को किसी अज्ञात स्थान पर नजरबन्द किया गया था। समाचार-पत्रों ने उनकी बीमारी, अनशन आदि अफवाहें छापना प्रारम्भ कर दिया, जिसका जनमत पर व्यापक प्रभाव पड़ा और बाद में सरकार को यह स्पष्ट करना पड़ा कि गाँधी जी कहाँ पर नजरबन्द हैं।

प्रश्न 2.
जनमत से आप क्या समझते हैं ? स्वस्थ जनमत के विकास के मार्ग की प्रमुख बाधाओं का वर्णन कीजिए। [2007, 09, 12]
या
जनमत से आप क्या समझते हैं ? स्वस्थ जनमत के निर्माण की आवश्यक दशाओं का वर्णन कीजिए। [2007, 09, 12]
या
लोकतन्त्र की सफलता की आवश्यक शर्ते क्या हैं? लोकतन्त्र के विरुद्ध बाधाओं को रेखांकित कीजिए। [2016]
या
स्वस्थ जनमत के निर्माण में कौन-सी बाधाएँ आती हैं ? लिखिए। [2012, 14]
उत्तर
(संकेत-जनमत से अभिप्राय के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखें।)
स्वस्थ जनमत-निर्माण की प्रमुख बाधाएँ।
(लोकतन्त्र के विरूद्ध बाधाएँ)
स्वस्थ जनमत के निर्माण में अनेक बाधाएँ आती हैं, जिनमें प्रमुख बाधाएँ इस प्रकार हैं-

1. निर्धनता और भीषण आर्थिक असमानताएँ – जब समाज के कुछ व्यक्ति बहुत अधिक निर्धन होते हैं, तो इनका सारा समय और शक्ति दैनिक जीवन की आवश्यकताओं के साधन जुटाने में ही चली जाती है और ये सार्वजनिक हित की बातों के सम्बन्ध में विचार नहीं कर पाते। इसी प्रकार जब समाज के अन्तर्गत भीषण आर्थिक असमानताएँ विद्यमान होती हैं, तो इन असमानताओं के परिणामस्वरूप वर्ग-विद्वेष और वर्ग-संघर्ष की भावना उत्पन्न हो जाती है। जब धनी और निर्धन वर्ग एक-दूसरे को अपना निश्चित शत्रु मान लेते हैं तो वे प्रत्येक बात के सम्बन्ध में सार्वजनिक हित की दृष्टि से नहीं, वरन् वर्गीय हित की दृष्टि से विचार करते हैं।

2. निरक्षरता और दूषित शिक्षा-प्रणाली – स्वस्थ लोकमत के निर्माण के लिए यह जरूरी है कि व्यक्ति समाचार-पत्र पढ़े, विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त करे और उनके द्वारा परस्पर विचारों का आदान-प्रदान किया जाए, लेकिन ये सभी कार्य पढ़े-लिखे व्यक्तियों द्वारा ही ठीक प्रकार से किये जा सकते हैं, इसलिए निरक्षरता लोकमत के निर्माण के मार्ग की एक बहुत बड़ी बाधा है। स्वस्थ लोकमत के निर्माण हेतु न केवल शिक्षित, वरन् ऐसे नागरिक होने चाहिए। जो स्वतन्त्र रूप से विचार कर सकें और जिनमें सामान्य सूझबूझ हो। इस दृष्टि से दूषित शिक्षा-प्रणाली भी लोकमत के मार्ग की उतनी ही बड़ी बाधा है जितनी कि निरक्षरता।

3. पक्षपातपूर्ण समाचार-पत्र – समाचार-पत्र स्वस्थ लोकमत के निर्माण का कार्य उसी समय कर सकते हैं, जब वे निष्पक्ष हों, लेकिन यदि समाचार-पत्रों पर सरकार को अधिकार हो अथवा वे किन्हीं धनी व्यक्तियों या राजनीतिक दलों के प्रभाव में हों, तो इन पक्षपातपूर्ण समाचार-पत्रों के द्वारा स्वस्थ लोकमत के निर्माण का कार्य ठीक प्रकार से नहीं किया जा सकता। पक्षपातपूर्ण समाचार-पत्र लोकमत को पूर्णतया विकृत कर देते हैं।

4. दोषपूर्ण राजनीतिक दल – यदि राजनीतिक दल आर्थिक और राजनीतिक कार्यक्रम पर आधारित हों, तो ये राजनीतिक दल लोकमत के निर्माण में बहुत अधिक सहायक सिद्ध होते हैं, लेकिन जब इन राजनीतिक दलों का निर्माण जाति और भाषा के प्रश्नों के आधार पर किया जाता है, तो इन दलों के द्वारा धर्म, जाति और भाषा पर आधारित विभिन्न वर्गों के बीच संघर्षों को जन्म देने का कार्य किया जाता है। ये दोषपूर्ण राजनीतिक दल लोकमत के मार्ग को पूर्णतया भ्रष्ट कर देते हैं।

5. सार्वजनिक जीवन के प्रति उदासीनता और राजनीतिक चेतना का अभाव – स्वस्थ लोकमत के निर्माण हेतु आवश्यक है कि जनता सार्वजनिक जीवन में रुचि ले और जनता द्वारा सार्वजनिक जीवन को अपने पारिवारिक जीवन के समान ही समझा जाए, लेकिन जब जनता सार्वजनिक जीवन में कोई रुचि नहीं लेती, कोऊ नृप होउ, हमें का हानि’ का दृष्टिकोण अपना लेती है और अपने अधिकार तथा कर्तव्यों को नहीं समझती, तो ऐसी स्थिति में स्वस्थ लोकमत के निर्माण की आशा नहीं की जा सकती है।

6. वर्गीयता तथा साम्प्रदायिकता – वर्गीयता, जातिवाद, साम्प्रदायिकता आदि भावनाएँ स्वार्थपरता, असहिष्णुता और संकुचित दृष्टिकोण को जन्म देती हैं, जिनसे स्वस्थ जनमत के निर्माण में बाधा पहुँचती है।

स्वस्थ जनमत के निर्माण की बाधाओं को दूर करने के उपाय
(लोकतन्त्र की सफलता की आवश्यक शर्ते)
स्वस्थ जनमत-निर्माण के लिए विशेष अवस्थाओं की आवश्यकता होती है। स्वस्थ जनमत के निर्माण में जो बाधाएँ आती हैं, उनको दूर करके सही अवस्थाओं को उत्पन्न किया जा सकता है। ऐसा करने के लिए निम्नलिखित अवस्थाएँ आवश्यक है-

  1. शिक्षित नागरिक – शुद्ध जनमत-निर्माण के लिए प्रत्येक नागरिक को शिक्षित होना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक ही देश की समस्याओं को समझ सकता है। वह नेताओं के भड़कीले भाषणों को सुनकर अपने मत का निर्माण नहीं करता।
  2. निष्पक्ष प्रेस – शुद्ध जनमत-निर्माण के लिए निष्पक्ष प्रेस का होना भी आवश्यक है। प्रेस दलों और पूँजीपतियों से स्वतन्त्र होनी चाहिए, ताकि वह सच्चे समाचार दे सके। स्वस्थ जनमत-निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि प्रेस ईमानदार, निष्पक्ष और संकुचित साम्प्रदायिक भावनाओं से ऊपर हो।
  3. गरीबी का अन्त – स्वस्थ जनमत-निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि गरीबी का अन्त किया जाये, जनता को भरपेट भोजन मिले और मजदूरों का शोषण न हो तथा समाज में आर्थिक समानता हो।
  4. आदर्श शिक्षा-प्रणाली – देश की शिक्षा-प्रणाली आदर्श होनी चाहिए ताकि विद्यार्थियों को दृष्टिकोण व्यापक बन सके और वे धर्म, जाति और क्षेत्र से ऊपर उठकर देश के हित में सोच सकें तथा आदर्श नागरिक बन सके।
  5. राजनीतिक दल आर्थिक तथा राजनीतिक सिद्धान्तों पर आधारित – स्वस्थ जनमतनिर्माण में राजनीतिक दलों का विशेष हाथ होता है। राजनीतिक दल धर्म व जाति पर आधारित न होकर आर्थिक तथा राजनीतिक सिद्धान्तों पर आधारित होने चाहिए।
  6. भाषण तथा विचार व्यक्त करने की स्वतन्त्रता – शुद्ध जनमत-निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों को भाषण देने तथा अपने विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता हो। यदि भाषण देने की स्वतन्त्रता नहीं होगी तो साधारण नागरिक को विद्वानों और नेताओं के विचारों का ज्ञान न होगा, जिससे स्वस्थ जनमत का निर्माण नहीं हो सकेगा।
  7. नागरिकों का उच्च चरित्र – स्वस्थ जनमत-निर्माण के लिए नागरिकों का चरित्र ऊँचा होना चाहिए। नागरिकों में सामाजिक एकता की भावना होनी चाहिए और उन्हें प्रत्येक समस्या पर राष्ट्रीय हित से सोचना चाहिए। उच्च चरित्र का नागरिक अपना मत नहीं बेचता और न ही झूठी बातों का प्रचार करता है। वह उन्हीं बातों तथा सिद्धान्तों का साथ देता है, जिन्हें वह ठीक समझता है।
  8. अफवाह के लिए दण्ड की व्यवस्था – मिथ्या प्रचार और अफवाह फैलाने वाले तत्वों के लिए दण्ड की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। झूठी अफवाहों का तत्काल ही खण्डन किया जाना चाहिए।
  9. राष्ट्रीय आदर्शों की समरूपता – स्वस्थ जनमत के निर्माण के लिए एक अनिवार्य तत्त्व यह है कि राष्ट्र के राज्य सम्बन्धी आदर्शों में जनता के मध्य अत्यधिक मतभेद न हो। इसके साथ ही राष्ट्रीय तत्त्वों में विभिन्नता कम होनी चाहिए। जिस राष्ट्र में धर्म, भाषा, संस्कृति, प्राचीन इतिहास तथा राजनीतिक परम्पराओं के मध्य विभिन्नता होगी, वहाँ इन विषयों से सम्बद्ध सार्वजनिक नीतियों के सम्बन्ध में स्वस्थ जनमत के निर्माण में बाधा पहुँचती है।
  10. साम्प्रदायिकता और संकीर्णता का अभाव – जिस देश में लोग जात-पात, धर्म, नस्ल आदि संकीर्ण विचारों को महत्त्व देते हैं वहाँ स्वस्थ लोकमत का विकास नहीं हो सकता।
  11. न्यायप्रिय बहुमत व सहनशील अल्पमत – यदि बहुमत की प्रवृत्ति अपने आपको ध्यान में रखकर विचार करने की हो जाती है तो निश्चय ही अल्पमत उदासीन होकर असंवैधानिक मार्ग को अपना लेते हैं। स्वार्थी बहुमत व विद्रोही अल्पमत लोकमत के स्वरूप को भ्रष्ट कर देता है।

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प्रश्न 3.
जनतन्त्र (लोकतन्त्र) के प्रहरी के रूप में जनमत का महत्त्व समझाइए। [2010, 11, 12, 15]
या
जनमत क्या है? भारतीय राजनीति में इसकी भूमिका का विवेचन कीजिए।
या
प्रजातन्त्रीय शासन व्यवस्था में जनमत के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। [2010, 11, 12, 15]
या
जनमत से आप क्या समझते हैं? आधुनिक लोकतन्त्र में जनमत की भूमिका की विवेचना कीजिए। [2016]
(संकेत-जनमत से अभिप्राय के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 का उत्तर देखें।)
उत्तर
लोकतन्त्र में राज्य-प्रबन्ध सदा लोगों की इच्छानुसार चलता है। अत: प्रत्येक राजनीतिक दल और सत्तारूढ़ दल लोकमत को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करता है। जैसा कि ह्यूम ने कहा है, “सभी सरकारें चाहे वे कितनी भी बुरी क्यों न हों, अपनी सत्ता के लिए लोकमत पर निर्भर होती हैं।” लोकमत के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु को शासन का आधार बनाकर कभी कोई शासन नहीं कर सकता। जिस राजनीतिक दल की विचारधारा लोगों को अच्छी लगती है, लोग उसे शक्ति देते हैं।”
लोकमत या जनमत का महत्त्व : जनतन्त्र के प्रहरी के रूप में

1. लोकतन्त्रात्मक शासन-प्रणाली में सरकार का आधार जनमत होता है- सरकार जनता के प्रतिनिधियों के द्वारा बनायी जाती है। कोई भी सरकार जनमत के विरुद्ध नहीं जा सकती। सरकार सदैव जनमत को अपने पक्ष में बनाये रखने के लिए जनता में अपनी नीतियों का प्रसार करती रहती है। विपक्षी दल जनमत को अपने पक्ष में मोड़ने का सदैव प्रयत्न करते रहते हैं ताकि सत्तारूढ़ दल को हटाकर अपनी सरकार बना सकें। जो सरकार जनमत के विरोध में काम करती है वह शीघ्र ही हटा दी जाती है। यदि लोकतन्त्रीय सरकार लोकमत के विरुद्ध कानून पारित कर देती है तो उस कानून को सफलता प्राप्त नहीं होती है। यदि हम लोकमत को लोकतन्त्रात्मक सरकार की आत्मा कहें तो गलत न होगा।

2. जनमत सरकार का मार्गदर्शन करता है- जनमत लोकतन्त्रात्मक सरकार का आधार ही नहीं, बल्कि लोकतन्त्र सरकार का मार्गदर्शक भी है। डॉ० आशीर्वादम् के अनुसार, “जागरूक और सचेत जनमत स्वस्थ प्रजातन्त्र की प्रथम आवश्यकता है।” जनमत सरकार को रास्ता भी दिखाता है कि उसे क्या करना है और किस तरह करना है। सरकार कानूनों का निर्माण करते समय जनमत का ध्यान अवश्य रखती है। यदि सरकार को पता हो कि किसी कानून का जनमत विरोध करेगा तो सरकार कानून को वापस ले लेती है।

3. जनमत प्रतिनिधियों की निरंकुशता को नियन्त्रित करता है- लोकतन्त्र में जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनकर भेजती है और जनमत जिस दल के पक्ष में होगा उसी दल की सरकार बनती है। कोई भी प्रतिनिधि अथवा मन्त्री अपनी मनमानी नहीं कर सकता। उन्हें सदैव जनमत का डर रहता है। प्रतिनिधि को पता रहता है कि यदि जनमत उसके विरुद्ध हो गया तो वह चुनाव नहीं जीत सकेगा। इसीलिए प्रतिनिधि सदा जनमत के अनुसार कार्य करता है। इस प्रकार जनमत प्रतिनिधियों को तथा सरकार को मनमानी करने से रोकता है।

4. जनमत नागरिक अधिकारों की रक्षा करता है- लोकतन्त्रात्मक शासन-प्रणाली में नागरिकों को राजनीतिक एवं सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं। इन अधिकारों की रक्षा जनमत के द्वारा की जाती है। जनमत सरकार को ऐसा कानून नहीं बनाने देता जिससे जनता के अधिकारों में हस्तक्षेप हो। जब सरकार कोई ऐसा कार्य करती है जिससे जनता की स्वतन्त्रता समाप्त हो तो लोकमत उस सरकार की कड़ी आलोचना करता है।

5. जनमत सरकार को शक्तिशाली एवं दृढ़ बनाता है- जनमत से सरकार को बल मिलता है और वह दृढ़ बन जाती है। जब सरकार को यह विश्वास हो कि जनमत उसके साथ है। तो वह दृढ़तापूर्वक कदम उठा सकती है और प्रगतिशीलता की ओर काम भी कर सकती है। जनमत तो सरकार का आधार होता है और वह शासक को शक्तिशाली बना देता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि लोकतन्त्र शासन-प्रणाली में जनमत का विशेष महत्त्व है। सरकार का आधार जनमत ही होता है और जनमते ही सरकार को रास्ता दिखाता है। सरकार जनमत की अवहेलना नहीं कर सकती और यदि करती है तो उसे आने वाले चुनावों से हटा दिया जाता है। इसीलिए सभी विचारकों का लगभग यही मत है कि लोकतन्त्र के लिए एक सचेत जनमत पहली आवश्यकता है। गैटिल के शब्दों में, “लोकतन्त्रात्मक शासन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि लोकमत कितना सबल है तथा सरकार के कार्यों और नीतियों को किस सीमा तक नियन्त्रित कर सकता है।”

लोकमत के निर्माण में राजनीतिक दलों का योगदान
जनमत के निर्माण में राजनीतिक दल बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। फाइनर के अनुसार, दलों के अभाव में मतदाता या तो नपुंसक हो जायेंगे या विनाशकारी, जो ऐसी असम्भव नीतियों का पालन करेंगे जिससे राजनीतिज्ञ ध्वस्त हो जायेंगे।” जिस राजनीतिक दल के पक्ष में जनमत होता है वही दल शासन पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर लेता है। इसीलिए प्रत्येक दल जनमत को अपने पक्ष में रखने का प्रयत्न करता है। जनमतं के निर्माण में राजनीतिक दल निम्नलिखित विधियों से अपना योगदान देते हैं-

1. देश की विभिन्न समस्याओं पर अपने विचार और कार्यक्रमों का प्रस्तुतीकरण – राजनीतिक दल लोगों के सामने देश की विभिन्न समस्याओं पर अपने विचार रखते हैं। और उन समस्याओं को हल करने के लिए अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार राजनीतिक दल जनता का ध्यान देश की महत्त्वपूर्ण समस्याओं की ओर आकर्षित करते हैं। राजनीतिक दल आकर्षक और रचनात्मक कार्यक्रम बनाकर जनमत को अपनी ओर करने का प्रयत्न करते हैं। राजनीतिक दल जनमत को एक विशेष ढाँचे में ढालने का प्रयास करते

2. सार्वजनिक सभाएँ – राजनीतिक दल जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए सार्वजनिक सभाएँ करते हैं। सत्तारूढ़ दल अपनी नीतियों और किये गये कार्यों की प्रशंसा करता है। और विरोधी दल सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की आलोचना करते हैं। राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा सार्वजनिक सभाओं में दिये गये भाषण समाचार-पत्रों में छपते हैं। इससे जनता को विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के विचारों को पढ़ने-सुनने का अवसर मिलता है। चुनाव के दिनों में विशेषकर राजनीतिक दल विशाल और छोटी-छोटी सार्वजनिक सभाएँ करते हैं, जिससे लोकमत प्रभावित होता है।

3. दल का साहित्य – राजनीतिक दल जनमत का निर्माण करने में केवल भाषणों तक ही सीमित नहीं रहते, बल्कि वे दल का साहित्य भी जनता में बाँटते हैं। इस साहित्य के द्वारा राजनीतिक दल अपने उद्देश्य, अपनी नीतियों और सिद्धान्तों का प्रचार करते हैं। बहुत-से राजनीतिक दल अपने समाचार-पत्र भी निकालते हैं। इन सभी साधनों द्वारा राजनीतिक दल अपने विचार जनता और सरकार तक पहुँचाते हैं और जनमत के निर्माण में सहायता करते

4. जनता को राजनीतिक शिक्षा – राजनीतिक दल जनता में राजनीतिक जागृति उत्पन्न करते हैं तथा जनता को राजनीतिक शिक्षा देते हैं। ये सरकार और जनमत के बीच की कड़ी का काम तथा जनता को राजनीतिक गतिविधियों से भी परिचित कराते हैं।

5. विधानमण्डल में बाद-विवाद – राजनीतिक दल व्यवस्थापिका में वाद-विवाद करते हुए अपने विचार प्रकट करते हैं। यही विचार रेडियो और समाचार-पत्रों द्वारा जनता तक पहुँचते हैं। इन विचारों का भी जनमत के निर्माण में काफी प्रभाव पड़ता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
जनमत-निर्माण में सहायक चार साधनों का उल्लेख कीजिए। [2011, 12, 14]
या
स्वस्थ लोकमत के निर्माण में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (टी०वी० चैनल्स आदि) की भूमिका का परीक्षण कीजिए। [2010, 11, 12, 14]
उत्तर
जनमत-निर्माण में सहायक चार साधन निम्नवत् हैं-

1. शिक्षण संस्थाएँ – जनमत के निर्माण में शिक्षण संस्थाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति लोकहित का महत्त्व समझ चुका होता है तथा स्वस्थ एवं प्रबुद्ध जनमत का निर्माण करने योग्य हो जाता है। शिक्षण संस्थाओं में अनेक प्रकार के समाचार-पत्र व पत्रिकाएँ आती हैं जिनको विद्यार्थी पढ़ते हैं तथा विभिन्न घटनाओं के सम्बन्ध में विचार विमर्श करते हैं एवं अनेक प्रकार की नवीन जानकारी प्राप्त करते हैं। शिक्षण संस्थाओं में प्रमुख राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं पर सेमिनार, सिम्पोजियम तथा वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है।

2. जनसंचार के साधन – रेडियो, सिनेमा और टी०वी० भी जनमत के निर्माण में पर्याप्त सहयोग देते हैं। रेडियो एवं टी०वी० पर समाचारों के प्रसारण के साथ-साथ देश के प्रमुख नेताओं के मत एवं भाषण प्रसारित किये जाते हैं। महत्त्वपूर्ण विषयों पर संगोष्ठियों, परिचर्चाओं आदि का प्रसारण भी प्रबुद्ध जनमत का निर्माण करता है। इस प्रकार साधारण जनता बड़ी सरलता से देश के बड़े नेताओं और विद्वानों के विचारों से अवगत करता है। इस प्रकार साधारण जनता बड़ी सरलता से देश के बड़े नेताओं और विद्वानों के विचारों से अवगत हो जाती है और अपना मत (जनमत) निर्धारित करने का प्रयास करती है।

3. समाचार-पत्र एवं पत्र-पत्रिकाएँ – समाचार-पत्र एवं पत्र-पत्रिकाएँ जनमत को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण सहयोग देते हैं। इनमें देश-विदेश की नीतियों, घटनाओं, शासन व्यवस्थाओं का वर्णन होता है, जिन्हें पढ़कर जनता अपना मत निर्धारित करती है। इस प्रकार समाचारपत्र साधारण जनता के लिए प्रकाश-स्तम्भ का कार्य करते हैं। जैसा कि गैटिल ने लिखा है-“समाचार-पत्र अपने समाचारों और सम्पादकीय शीर्षकों के माध्यम से तथ्यों का उल्लेख करते हैं।” नेपोलियन ने भी कहा था-“एक लाख तलवारों की अपेक्षा मुझे तीन समाचार पत्रों से अधिक भय है।”

4. राजनीतिक साहित्य – जनमत निर्माण एवं उसको अभिव्यक्त करने की दृष्टि से राजनीतिक साहित्य भी एक अच्छा साधन है। अनेक राजनीतिक दल अपने मत, नीतियों तथा देश की. सामाजिक समस्याओं को व्यक्त करने हेतु राजनीतिक साहित्य का प्रकाशन करते हैं। ऐसे साहित्य में निर्वाचन से पहले प्रकाशित होने वाले घोषणा-पत्रों का विशेष महत्त्व होता है क्योंकि जनता उनके माध्यम से दलों की नीतियों एवं योजनाओं से परिचित होकर अपना मत तय करने में सफल होती है। यह मत अन्ततोगत्वा जनादेश या जनमत का निर्माण करता है।

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प्रश्न 2.
जनमत के महत्त्व को लिखिए। [2010, 11, 12, 14]
या
आधुनिक जनतन्त्र में जनमत की भूमिका को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर
आधुनिक जनतन्त्र में जनमत की भूमिका
सामान्य रूप से सभी शासन व्यवस्थाओं में जनमत अथवा लोकमत की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, परन्तु प्रजातन्त्र अथवा जनतन्त्र में इसका विशेष महत्त्व होता है। प्रजातान्त्रिक शासन जनमत से ही अपनी शक्ति प्राप्त करता है तथा उसी पर आधारित होता है। इसीलिए जनमत को जनतन्त्र का आधार कहा जाता है। संगठित जनमत ही जनतन्त्र की सफलता तथा सार्थकता की आधारशिला हैं। जनतन्त्र में जनमत की भूमिका को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है।

  1. शासन की निरंकुशता पर नियन्त्रण – जनतन्त्र में शासन की निरंकुशता पर जनमत के द्वारा नियन्त्रण रखने का कार्य किया जाता है। जनतन्त्र में सरकार को स्थायी बनाने के लिए जनमत के समर्थन तथा सहमति की आवश्यकता होती है। जनमत के बल पर ही सरकारें बनती तथा बिगड़ती हैं।
  2. सरकारी अधिकारियों पर नियन्त्रण – जनमत द्वारा सरकारी अधिकारियों की आलोचना से उन पर नियन्त्रण रखा जाता है।
  3. सरकार का पथ-प्रदर्शन – जनतन्त्र में जनमत सरकार का पथ-प्रदर्शन करता है। जनमत से सरकार को इस बात की जानकारी होती है कि जनता किस प्रकार की व्यवस्था चाहती है। तथा उसके हित में किस प्रकार के कानूनों का निर्माण किया जाए।
  4. सरकार का निर्माण और पतन – जनमत जनतन्त्र का आधार है। जनतन्त्र में सरकार को निर्माण और पतन जनमत पर ही निर्भर करता है। जनमत का सम्मान करने वाला दल सत्ता प्राप्त करता है तथा पुनः सत्ता प्राप्त करने का अवसर बनाए रखता है। जनमत की अवहेलना करने पर शासक दल का स्थान विरोधी दल ले लेता है। ई०बी० शुल्ज के शब्दों में, “जनमत एक प्रबल सामाजिक शक्ति है, जिसकी अवहेलना करने वाला राजनीतिक दल स्वयं अपने लिए संकट आमन्त्रित करता है।”
  5. जनता और सरकार में समन्वय – जनमत जनता और सरकार के विचारों में समन्वय स्थापित करने की एक कड़ी है।
  6. नागरिक अधिकारों का रक्षक – जनमत नागरिकों के अधिकारों और स्वतन्त्रता का भी रक्षक होता है। जागरूक और सचेत जनमत शासक वर्ग को जनता के विचारों से परिचित रखता है। इस प्रकार जनमत नागरिकों के अधिकारों और स्वतन्त्रता की रक्षा करता है। स्वतन्त्रता तथा अधिकारों की रक्षा के लिए जागरूक जनमत की आवश्यकता होती है।
  7. राजनीतिक जागरूकता उत्पन्न करना – जनमत नागरिकों में राजनीतिक जागरूकता उत्पन्न करता है। जनमत से प्रेरित राजनीतिक जागरूकता ही जनतन्त्र का वास्तविक आधार होती है। जनमत द्वारा ही जन-सहयोग प्राप्त किया जाता है।
  8. नैतिक तथा सामाजिक व्यवस्था की रक्षा – जनमत का सामाजिक क्षेत्र में भी अत्यधिक महत्त्व है। जनमत नैतिक तथा सामाजिक व्यवस्था की रक्षा करता है और नागरिकों का ध्यान महत्त्वपूर्ण सामाजिक प्रश्नों तथा समस्याओं की ओर आकृष्ट करता है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जनतन्त्र में जनमत का बहुत अधिक महत्त्व है। गैटिल के अनुसार-“जनतान्त्रिक शासन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि जनमत कितना सबल है। तथा सरकार के कार्यों तथा नीतियों को किस सीमा तक नियन्त्रित कर सकता है।” डॉ० आशीर्वादम् के अनुसार, “जागरूक और सचेत जनमत स्वस्थ जनतन्त्र की प्रथम आवश्यकता है। वास्तव में प्रबुद्ध जनमत लोकतन्त्र का पहरेदार है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
लोकमत की कोई दो विशेषताएँ लिखिए। [2012]
या
जनमत अथवा लोकमत की विशेषताएँ (लक्षण) बताइए।
उत्तर
जनमत अथवा लोकमत की परिभाषाएँ यद्यपि एक-दूसरे से भिन्न हैं फिर भी वे उसकी प्रमुख तीन विशेषताओं को स्पष्ट रूप से प्रकट करती हैं-

1. जनसाधारण का मत – जनमत के लिए यह आवश्यक है कि वह जनसाधारण का मत हो। किसी विशेष वर्ग अथवा व्यक्तियों का मत जनमत नहीं हो सकता। विलहेम बोयर ने ठीक ही कहा है कि, “जनमत किसी गुट विशेष का विचार एवं सिद्धान्त मात्र न होकर जनसाधारण की सामूहिक आस्था और विश्वास होता है।”

2. लोक-कल्याण की भावना से प्रेरित – जनमत की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और आवश्यक विशेषता लोक-कल्याण की भावना होती है। डॉ० बेनी प्रसाद ने कहा है कि “वही मत वास्तविक जनमत होता है जो जन-कल्याण की भावना से प्रेरित हो।” इसी बात को लॉवेल ने इन शब्दों में कहा है कि “जनमत के लिए केवल बहुमत ही पर्याप्त नहीं होता और न ही एक मत की आवश्यकता होती है। किसी भी मत को जनमत का रूप धारण करने के लिए ऐसा होना चाहिए जिसमें चाहे अल्पमत भागीदार न हो, परन्तु भय के कारण नहीं, वरन् दृढ़ विश्वास के कारण स्वीकार करता हो।’

3. विवेक पर आधारित स्थायी विचार – जनमत भावनाओं के अस्थिर आवेग या एक समयविशेष में प्रचलित विचार पर आधारित नहीं होता, अपितु उसका आधार जनता के विवेकपूर्ण और स्थायी विचार होते हैं। स्थायित्व जनमत को अनिवार्य लक्षण है।

प्रश्न 2.
लोकमत की विशेषताओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर
लोकमत अथवा जनमत की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-

  1. यह जनसाधारण के बहुसंख्यक भाग का मत होता है।
  2. यह विवेक पर आधारित मत होता है।
  3. यह लोक-कल्याण की भावना से प्रेरित होता है।
  4. यह सर्वथा निष्पक्ष होता है।
  5. यह नैतिकता और न्याय की भावना पर आधारित होता है।
  6. जनता की संगठित शक्ति का प्रतीक है।

प्रश्न 3.
समाचार-पत्रों को लोकतन्त्र का चतुर्थ स्तम्भ क्यों कहा गया है ?
उत्तर
समाचार-पत्र एवं प्रेस जनमत के निर्माण के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। समाचार-पत्र देशविदेश की विविध घटनाओं, समस्याओं और विचारों को जन-साधारण तक पहुँचाने का कार्य करते हैं। समाचार-पत्र केवल सामयिक घटनाओं का विवरण ही नहीं देते, वरन् निकट भविष्य में होने वाले परिवर्तनों का आभास देकर जनता के विचारों को प्रभावित करते हैं। समाचार-पत्र जनता की भावनाओं को सरकार तक और सरकार के निर्णयों को जनता तक पहुँचाते हैं। इसी कारण समाचारपत्रों को ‘लोकतन्त्र का चतुर्थ स्तम्भ’ कहा गया है।

प्रश्न 4.
जनमत की अभिव्यक्ति के दो साधन बताइए। [2013]
उत्तर
जनमत की अभिव्यक्ति के दो साधनों का विवरण निम्नवत् है-

  1. निर्वाचन – निर्वाचन व्यक्तियों को जनमत अभिव्यक्त करने का सर्वोत्तम साधन उपलब्ध कराते हैं। निर्वाचन में मतदान के द्वारा अपने मत के माफिक उम्मीदवार को विजयी बनाकर, लोग अपने जनमत की अभिव्यक्ति करते हैं।
  2. समाचार-पत्र और पत्रिकाओं – में अपने विचारों की अभिव्यक्ति के द्वारा भी लोग अपना जनमत अभिव्यक्त करते हैं। देश के समक्ष उपस्थित समस्याओं और उनके समाधान के प्रति जनता अपना मत समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं के माध्यम से प्रभावी ढंग से व्यक्त करती है।

प्रश्न 5.
सोशल मीडिया का जनमत निर्माण में क्या योगदान है? [2016]
उत्तर
स्पेशल मीडिया यानि इण्टरनेट, टेलीविजन, दूरसंचार की आधुनिक प्रणालियाँ और कम्प्यूटर-प्रणाली में जो विचार-विमर्श होता है, उससे भी जनमत के रुझान का पता लगाने में सहयोग मिलता है। रेडियो एवं टेलीविजन पर समाचारों के प्रसारण के साथ-साथ देश के प्रमुख नेताओं के मत एवं भाषण प्रसारित किए जाते हैं। महत्त्वपूर्ण विषयों पर संगोष्ठियों, परिचर्चाओं आदि का प्रसारण भी प्रबुद्ध जनमत का निर्माण करता है। इस प्रकार साधारण जनता बहुत सरलता से देश के बड़े नेताओं और विद्वानों के विचारों से अवगत हो जाती है और अपना मत (जनमत) निर्धारित करने का प्रयास करती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
लोकमत की एक परिभाषा लिखिए। उक्ट लॉर्ड ब्राइस के अनुसार, “सार्वजनिक हित से सम्बद्ध किसी समस्या पर जनता के सामूहिक विचारों को जनमत कहा जा सकता है।”

प्रश्न 2.
जनमत के कोई दो तत्त्व लिखिए।
उत्तर

  1. सार्वजनिक हित पर आधारित तथा
  2. व्यापक सहमति।

प्रश्न 3.
लोकतन्त्र में जनमत के कोई दो महत्त्व बताइए।
उत्तर

  1. जनमत शासन-प्रणाली का आधार होता है तथा
  2. जनमत सरकार की निरंकुशता को नियन्त्रित करता है।

प्रश्न 4.
जनमत-निर्माण के किन्हीं दो साधनों के नाम लिखिए। [2007, 10, 11, 13, 14, 16]
उत्तर

  1. राजनीतिक दल तथा
  2. समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएँ।

प्रश्न 5.
स्वस्थ जनमत-निर्माण में किन्हीं दो बाधाओं का वर्णन कीजिए। [2011, 14, 15]
उत्तर

  1. निरक्षरता एवं अज्ञानता तथा
  2. निर्धनता।

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प्रश्न 6.
स्वस्थ जनमत के निर्माण में निर्धनता किस प्रकार बाधक है?
उत्तर
निर्धन व्यक्ति अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति में ही लगा रहता है और उससे सार्वजनिक समस्याओं पर चिन्तन की आशा नहीं की जा सकती जिसके बिना जनमत का निर्माण नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 7.
स्वस्थ जनमत (लोकमत) निर्माण की दो आवश्यक शर्ते बताइए। या स्वस्थ जनमत के विकास की कोई एक शर्त बताइए।
उत्तर

  1. जनमत का शिक्षित होना तथा
  2. प्रेस का निष्पक्ष होना।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

1. लोकतन्त्र का चतुर्थ स्तम्भ है- [2015, 16]
(क) समाचार-पत्र
(ख) निष्पक्ष मतदान
(ग) शिक्षा
(घ) सुशिक्षित नागरिक

2. कौन-सा लोकमत का लक्षण नहीं है ?
(क) सार्वजनिक कल्याण की भावना
(ख) विवेक
(ग) अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा
(घ) जन-इच्छा

3. लोकमत का पर्याय क्या है?
(क) सामान्य चेतना
(ख) सामान्य इच्छा
(ग) सामान्य जागरूकता
(घ) सामान्य ज्ञान

4. लोकमत की अभिव्यक्ति केवल सम्भव है-
(क) लोकतन्त्र में
(ख) निरंकुशतन्त्र में
(ग) सर्वाधिकारवाद तन्त्र में
(घ) कुलीनतन्त्र में

5. निम्नलिखित में से स्वस्थ जनमत के निर्माण में कौन-सी बाधा नहीं है?
(क) भाषावाद
(ख) क्षेत्रवाद
(ग) सम्प्रदायवाद
(घ) राजनीतिक जागृति

6. किसके अनुसार ‘सतर्क एवं सुविज्ञ जनमत’ जनतन्त्र की प्रथम आवश्यकता है? [2007]
(क) ब्राइस
(ख) लॉवेल
(ग) डॉ० आशीर्वादम्।
(घ) विल्की

7. भारत में जनमत निर्माण के लिए निम्न में से कौन-सा कारक सूचना प्रदान करता है? [2013]
(क) छोटे समूहों में वार्तालाप
(ख) टी०वी०पर राष्ट्रव्यापी शैक्षिक कार्यक्रमों को देखना
(ग) विशेषज्ञों के भाषण
(घ) उपर्युक्त सभी

8. स्वस्थ जनमत के निर्माण की सबसे बड़ी बाधा है। [2016]
(क) राजनीतिक दल
(ख) पत्र-पत्रिकाएँ
(ग) निरक्षरता
(घ) राजनीतिक चेतना

उत्तर

  1. (क) समाचार-पत्र,
  2. (घ) जन-इच्छा,
  3. (ख) सामान्य इच्छा,
  4. (क) लोकतन्त्र में,
  5. (घ) राजनीतिक जागृति,
  6. (ग) डॉ० आशीर्वादम्,
  7. (घ) उपर्युक्त सभी,
  8. (ग) निरक्षरता

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UP Board Solutions for Class 12 History Chapter 9 Administrative Policy of Company and Constitutional Development 1773 – 1858 AD

UP Board Solutions for Class 12 History Chapter 9 Administrative Policy of Company and Constitutional Development 1773-1858 AD (कम्पनी की शासन-नीति एवं वैधानिक विकास (1773 – 1858 ई०) are the part of UP Board Solutions for Class 12 History. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 History Chapter 9 Administrative Policy of Company and Constitutional Development 1773 – 1858 AD (कम्पनी की शासन-नीति एवं वैधानिक विकास (1773 – 1858 ई०).

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject History
Chapter Chapter 9
Chapter Name Administrative Policy of
Company and Constitutional
Development 1773-1858 AD
(कम्पनी की शासन-नीति
एवं वैधानिक विकास (1773-1858 ई०)
Number of Questions Solved 13
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 History Chapter 9 Administrative Policy of Company and Constitutional Development 1773 – 1858 AD (कम्पनी की शासन-नीति एवं वैधानिक विकास (1773 – 1858 ई०)

अभ्यास

प्रश्न 1.
निम्नलिखित तिथियों के ऐतिहासिक महत्व का उल्लेख कीजिए|
1. 1773 ई०
2. 1784 ई०
3. 1793 ई०
4. 1833 ई०
5. 1853 ई०
उतर:
दी गई तिथियों के ऐतिहासिक महत्व के लिए पाठ्य-पुस्तक के पृष्ठ संख्या-174 पर तिथि सार का अवलोकन कीजिए।

प्रश्न 2.
सत्य या असत्य बताइए
उतर:
सत्य-असत्य प्रश्नोत्तर के लिए पाठ्य-पुस्तक के पृष्ठ संख्या- 174 का अवलोकन कीजिए।

प्रश्न 3.
बहुविकल्पीय प्रश्न
उतर:
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर के लिए पाठ्य-पुस्तक के पृष्ठ संख्या- 175 का अवलोकन कीजिए।

प्रश्न 4.
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
उतर:
अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर के लिए पाठ्य-पुस्तक के पृष्ठ संख्या- 175 का अवलोकन कीजिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
1833 ई० के चार्टर ऐक्ट की दो विशेषताएँ लिखिए।
उतर:
1833 ई० के चार्टर ऐक्ट की दो विशेषताएँ निम्न्वत् हैं

  1. इस ऐक्ट द्वारा कम्पनी के भारतीय प्रशासन का केन्द्रीकरण किया गया। प्रादेशिक सरकारों की बहुत-सी शक्तियाँ छीनकर गवर्नर की कौंसिल को प्रदान की गई।
  2. इस ऐक्ट द्वारा कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार को पूर्णतया समाप्त कर दिया गया और उसे सुविधापूर्वक अपना हिसाब किताब चुकाने तथा माल आदि समेटने का आदेश दिया गया।

प्रश्न 2.
1833 ई० के चार्टर ऐक्ट का वैधानिक महत्व बताइए।
उतर:
सन् 1833 ई० का चार्टर ऐक्ट भारत के संवैधानिक इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है। इसके द्वारा ब्रिटिश सरकार ने कम्पनी के प्रशासन में बड़े एवं महत्वपूर्ण परिवर्तन किए और भारतीयों के प्रति उदार नीति अपनाने की भी घोषणा की। इसके अतिरिक्त, इस ऐक्ट ने कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार को पूर्णता समाप्त कर दिया।

प्रश्न 3.
पिट्स इण्डिया ऐक्ट,1784 ई० की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उतर:
पिट्स इण्डिया ऐक्ट, 1784 ई० की दो विशेषताएँ निम्नवत् हैं

  1. इस ऐक्ट द्वारा कमिश्नरों की एक समिति बनाई गई, जिसका भारत के शासन सेना तथा लगान सम्बन्धी कार्यों पर नियन्त्रण होता था। इस समिति के सदस्यों को इंग्लैण्ड का सम्राट मनोनित करता था।
  2. संचालक मंडल को नियन्त्रण बोर्ड के अधीन कर दिया गया। भारत में गोपनीय आज्ञा भेजने के लिए तीन सदस्यों की एक गुप्त समिति का गठन हुआ।

प्रश्न 4.
रेग्यूलेटिंग ऐक्ट की दो प्रमुख धाराओं का उल्लेख कीजिए।
उतर:
रेग्यूलेटिंग ऐक्ट की दो प्रमुख धाराएँ निम्नवत् हैं

  1. कम्पनी के डायरेक्टरों का कार्यकाल एक वर्ष की जगह 4 वर्ष कर दिया गया तथा उनकी संख्या बढ़ाकर 24 कर दी गई। इनमें से एक-चौथाई सदस्यों की प्रतिवर्ष अवकाश ग्रहण करने की व्यवस्था की गई।
  2. इस ऐक्ट द्वारा यह निश्चित किया गया कि कम्पनी का कोई भी कर्मचारी भविष्य में लाइसेंस लिए बिना व्यापार नहीं करेगा और वह किसी से भेंट अथवा उपहार भी नहीं लेगा।

प्रश्न 5.
रेग्यूलेटिंग ऐक्ट के दो दोष लिखिए।
उतर:
रेग्यूलेटिंग ऐक्ट के दो दोष निम्नवत् हैं

  1. यद्यपि कम्पनी पर इंग्लैण्ड की सरकार ने अपना अधिकार कर लिया, तदापि व्यावहारिक रूप से उससे कोई लाभ नहीं हुआ। इसका कारण यह था कि ब्रिटिश मंत्रिमंडल को अपने ही कार्यों से फुरसत नहीं थी।
  2. रेग्यूलेटिंग ऐक्ट’ द्वारा कम्पनी के कर्मचारियो के व्यक्तिगत व्यापार करने, उपहार अथवा भेंट लेने पर तो प्रतिबन्ध लगा दिया गया था, परन्तु उनकी आय में वृद्धि के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। अत: प्रशासन में रिश्वत व भ्रष्टचार का समावेश हो गया था।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रेग्यूलेटिंग ऐक्ट की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए तथा उसके गुण-दोष की विवेचना कीजिए।
उतर:
रेग्यूलटिंग ऐक्ट की विशेषताएँ- इस ऐक्ट की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. कम्पनी के डायरेक्टरों का कार्यकाल एक वर्ष की जगह 4 वर्ष कर दिया गया तथा उनकी संख्या बढ़ाकर 24 कर दी गई। इनमें से एक-चौथाई सदस्य प्रतिवर्ष अवकाश ग्रहण करेंगे।
  2. कम्पनी के संचालकों के चुनाव में वही व्यक्ति मत देने का अधिकारी होगा, जिसके पास कम्पनी के 1,000 पौण्ड के शेयर होंगे।
  3. बंगाल के गवर्नर को अब गवर्नर जनरल कहा जाने लगा तथा उसका कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित कर दिया। बम्बई (मुम्बई) तथा मद्रास (चेन्नई) के गवर्नर उसके अधीन कर दिए गए।
  4. शासन कार्य में गवर्नर जनरल की सहायता के लिए चार सदस्यों की एक कौंसिल बनाई गई। कौंसिल के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष रखा गया तथा यह भी कहा गया कि कौंसिल के निर्णय बहुमत के आधार पर होंगे।
  5. गवर्नर जनरल का वेतन 25,000 पौण्ड प्रतिवर्ष निश्चित किया गया।
  6. ऐक्ट में यह भी निश्चित किया गया कि कम्पनी का कोई भी कर्मचारी भविष्य में लाइसेंस लिए बिना निजी व्यापार नहीं करेगा और वह किसी से भेंट अथवा उपहार भी नहीं लेगा।
  7. कलकत्ता (कोलकाता) में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई, जिसमें मुख्य न्यायाधीश व तीन अन्य न्यायाधीश होंगे। इनके फैसलों के विरुद्ध केवल इंग्लैण्ड स्थित प्रिवी कौंसिल में ही अपील की जा सकती थी।
  8. कम्पनी के संचालकों व भारत में स्थित कम्पनी के बीच में जो भी पत्र-व्यवहार होगा, उसकी एक प्रति इंग्लैण्ड की सरकार के पास भेजी जाएगी।

रेग्यूलेटिंग ऐक्ट के दोष- रेग्यूलेटिंग ऐक्ट’ द्वारा इंग्लैण्ड की सरकार ने भारत में वैधानिक विकास का सूत्रपात किया, किन्तु यह अनेक दोषों के कारण एक अपूर्ण कानून था। इसके मुख्य दोष निम्न प्रकार थे

(i) यद्यपि कम्पनी पर इंग्लैण्ड की सरकार ने अपना अधिकार कर लिया, तथापि व्यावहारिक रूप से उससे कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। इसका कारण यह था कि ब्रिटिश मन्त्रिमण्डल को अपने ही कार्यों से फुरसत नहीं मिलती थी।

(ii) यद्यपि इस अधिनियम के अनुसार गवर्नर जनरल ब्रिटिश सरकार का सर्वोच्च अधिकारी था, परन्तु वह कौंसिल के बहुमत की कृपा पर निर्भर था। इस कानून के अनुसार गवर्नर जनरल कार्यकारिणी के निर्णयों को स्वीकार करने के लिए बाध्य था। उसको यह अधिकार नहीं दिया गया था कि वह अपनी कार्यकारिणी’ (कौंसिल) के बहुमत को अस्वीकार कर सके। ऐसी स्थिति में वह अनेक बार उपयुक्त कार्यों को करना चाहकर भी नहीं कर पाता था। चार सदस्यों में से तीन सदस्य समकालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के प्रत्येक कार्य में बाधा डालते थे। इन सदस्यों ने उस पर अनेक झूठे आरोप भी लगाए थे, जिसके कारण वारेन हेस्टिंग्स को कई बार त्याग-पत्र तक देने के विषय में सोचना पड़ा। अतः इस कानून का मुख्य दोष यही था कि इसमें गवर्नर जनरल के अधिकार सीमित रखे गए थे, जबकि वह शासन-प्रबन्ध में सर्वोच्च अधिकारी था।

(iii) मद्रास और बम्बई प्रान्तों के केवल विदेशी मामले ही गवर्नर जनरल और उसकी कार्यकारिणी के अधीन रखे गए थे, आन्तरिक मामलों में वहाँ की स्थानीय सरकारें अपनी इच्छानुसार कार्य करने के लिए स्वतन्त्र थीं। यह एक व्यावहारिक दोष था।

(iv) सर्वोच्च न्यायालय से सम्बन्धित अनेक तथ्य अस्पष्ट थे। कानून में यह विस्तृत रूप से वर्णित नहीं किया गया था कि न्यायालय किस प्रकार के मुकदमों का निर्णय करेगा। न्याय करने में न्यायालय ब्रिटिश कानूनों का पालन करेगा या भारतीय कानूनों का, यह भी स्पष्ट नहीं किया गया था। इसके अतिरिक्त न्यायालय और गवर्नर जनरल तथा कार्यकारिणी में समन्वय स्थापित नहीं किया गया था। अधिकार क्षेत्र के मामले में इनमें प्राय: संघर्ष हो जाता था।

(v) रेग्यूलेटिंग ऐक्ट’ द्वारा कम्पनी के कर्मचारियों के व्यक्तिगत व्यापार करने, उपहार एवं भेंट लेने पर तो प्रतिबन्ध लगा दिया गया था, परन्तु उनकी आय में वृद्धि के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। अतएव प्रशासन में रिश्वत व भ्रष्टचार का समावेश हो गया था।

(vi) इस अधिनियम में कम्पनी के संचालकों के चुनाव में मतदाता बनने की योग्यता का मापदण्ड 500 पौण्ड से 1,000 पौण्ड कर दिए जाने से कम्पनी पर कुछ धनी व्यक्तियों का ही आधिपत्य हो गया।

रेग्यूलेटिंग ऐक्ट’ की त्रुटियों को भारतीय संवैधानिक सुधारों पर प्रतिवेदन में निम्न प्रकार वर्णित किया गया हैइसने (1773 ई० के ऐक्ट ने) ऐसा गवर्नर जनरल बनाया, जो अपनी कौंसिल के समक्ष अशक्त था। इसने ऐसी ‘कार्यकारिणी’ बनाई जो सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अशक्त थी और ऐसा न्यायालय बनाया, जिस पर देश की शान्ति तथा हित का कोई स्पष्ट उत्तरदायित्व नहीं था।”

एडमण्ड बर्क ने ‘रेग्यूलेटिंग ऐक्ट’ को एक अधूरा कदम बताया है, जिसने कई महत्वपूर्ण प्रश्नों को अस्पष्ट ही छोड़ दिया। उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि यह कानून अनेक दोषों से परिपूर्ण था, तथापि इंग्लैण्ड के संवैधानिक इतिहास में ‘रेग्युलेटिंग ऐक्ट’ का महत्वपूर्ण स्थान है।

ऐक्ट के गुण- यद्यपि रेग्यूलेटिंग ऐक्ट में अनेक दोष विद्यमान थे, तथापि यह सर्वथा गुणरहित भी नहीं था। यह पहला अवसर था जब कम्पनी पर संसद के नियन्त्रण की प्रक्रिया आरम्भ हुई। इस ऐक्ट के आधार पर ही धीरे-धीरे कम्पनी पर कठोर नियन्त्रण किया गया और इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप 1858 ई० तक तो कम्पनी की सत्ता ही समाप्त कर दी गई। अतः इस अधिनियम के परिणाम बड़े ही दूरगामी व स्थायी सिद्ध हुए। कम्पनी के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, निजी व्यापार तथा उपहार लेने पर लगाया गया प्रतिबन्ध भी कम महत्वपूर्ण नहीं था। यद्यपि इस ऐक्ट में गुण व दोष दोनों ही विद्यमान थे। इस ऐक्ट के बारे में सप्रे ने ठीक ही लिखा है, “यह अधिनियम संसद द्वारा कम्पनी के कार्यों में प्रथम हस्तक्षेप था, अतः उसकी नम्रतापूर्वक आलोचना की जानी चाहिए।’

प्रश्न 2.
“रेग्यूलेटिंग ऐक्ट एक अधूरा कानून था।” स्पष्ट कीजिए।
उतर:
उत्तर के लिए विस्तृत उत्तरी प्रश्न संख्या-1 के उत्तर में रेग्युलेटिंग ऐक्ट के दोष का अवलोकन कीजिए। |

प्रश्न 3.
पिट्स इण्डिया ऐक्ट ने रेगयुलेटिंग ऐक्ट के दोषों को किस सीमा तक दूर किया? क्या इसे रेग्यूलेटिंग ऐक्ट का पूरक कहना उचित है?
उतर:
रेग्यूलेटिंग ऐक्ट के दोषों को दूर करने के लिए फाक्स ने 1783 ई० में ब्रिटिश पार्लियामेण्ट के समक्ष एक इण्डिया बिल प्रस्तुत किया परन्तु यह बिल अस्वीकृत हो गया। अन्त में 1784 ई० में ब्रिटिश प्रधानमन्त्री विलियम पिट ने कुछ संशोधन के साथ इण्डिया बिल पारित किया। इसे ही पिट्स इण्डिया ऐक्ट कहा जाता है। इस ऐक्ट के द्वारा रेग्यूलेटिंग ऐक्ट के अनेक दोष दूर कर दिए गए। इस ऐक्ट में निम्नालिखित प्रावधान किए गए

  1. सर्वप्रथम गवर्नर जनरल की कौंसिल के सदस्यों की संख्या घटाकर तीन कर दी गई, जिसमें एक सेनापति भी सम्मिलित होना निश्चित हुआ।
  2. बम्बई तथा मद्रास के गवर्नरों को सन्धि, युद्ध तथा लगान के सम्बन्ध में पूर्णतया गवर्नर जनरल के अधीन कर दिया गया।
  3. गृह-सरकार में भी इस ऐक्ट द्वारा कुछ संशोधन किए गए।
  4. कमिश्नरों की एक समिति बनाई गई, जिसका भारत के शासन, सेना तथा लगान सम्बन्धी कार्यों पर नियन्त्रण होता था। इस समिति के सदस्यों को इंग्लैण्ड का सम्राट मनोनीत करता था।
  5. संचालक मण्डल को नियन्त्रण बोर्ड के अधीन कर दिया गया।

भारत में गोपनीय आज्ञाएँ भेजने के लिए एक गुप्त समिति का गठन हुआ, जिसमें तीन सदस्य होते थे। पिट के इण्डिया ऐक्ट में भी कुछ दोष थे। इसके द्वारा द्वैध शासन प्रणाली का जन्म हुआ। संचालक मण्डल तथा नियन्त्रण बोर्ड दोनों के नियन्त्रण तथा अनुशासन में गवर्नर जनरल को कार्य करना पड़ता था। यह व्यवस्था 1886 ई० तक चलती रही। परन्तु इस ऐक्ट को रेग्यूलेटिंग ऐक्ट का पूरक माना जा सकता है क्योंकि रेग्यूलेटिंग ऐक्ट के अनेक दोषों को इस
ऐक्ट ने दूर कर दिया था।

प्रश्न 4.
भारत शासन अधिनियम, 1858 ई० पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उतर:
भारत शासन अधिनियम, 1858 ई०- इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे
(i) गृह सरकार
(क) नियन्त्रण परिषद् तथा निदेशक मण्डल समाप्त कर दिए गए और उनका स्थान भारत सचिव ने ले लिया।
(ख) भारत में सचिव की सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक ‘भारत परिषद् होगी।
(ग) इन सदस्यों में से कम-से-कम आधे ऐसे व्यक्ति होने चाहिए, जो भारत में कम-से-कम दस वर्ष तक सेवा कर चुके हों।
(घ) भारत में सचिव परिषद् की बैठकों की अध्यक्षता करेगा।
(ङ) भारत में सचिव प्रतिवर्ष भारत की प्रगति की रिपोर्ट संसद के समक्ष प्रस्तुत करेगा।

(ii) भारत सरकार
(क) भारत के शासन का उत्तरदायित्व ब्रिटिश क्राउन ने अपने ऊपर ले लिया है और इसकी घोषणा रानी के द्वारा भारतीय राजा-महाराजाओं के समक्ष कर दी जाएगी।
(ख) कम्पनी की सभी सन्धियाँ, समझौते और देनदारियाँ क्राउन पर लागू होंगी।
(ग) भारत के बाहर सैनिक कार्यवाहियों के लिए भारतीय कोष से ब्रिटिश संसद की अनुमति के बिना धन व्यय नहीं किया जाएगा।

अधिनियम का मूल्यांकन- इसमें सन्देह नहीं कि 1858 ई० का अधिनियम आधुनिक भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। वास्तव में 1858 के भारत-शासन अधिनियम ने भारतीय इतिहास में एक युग को समाप्त कर दिया और भारत में एक नए युग का आरम्भ हुआ। रेम्जे म्योर के अनुसार, “भारतीय साम्राज्य का क्राउन को जो हस्तान्तरण किया गया, उसमें ऊपरी दृष्टि से जितना परिवर्तन दिखाई देता था, उतना वास्तव में नहीं था, बल्कि उससे बहुत कम था। वस्तुतः क्राउन कम्पनी के हाथों में प्रादेशिक प्रभुत्व आने के समय से ही उसके मामलों पर अपने नियन्त्रण को निरन्तर कड़ा करता आया था।

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