UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 5 गीतामृतम्

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 5
Chapter Name गीतामृतम्
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 5 गीतामृतम्

श्लोकों का ससन्दर्भ अनुवाद

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UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा

UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा are part of UP Board Solutions for Class 12 Computer. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Computer
Chapter Chapter 4
Chapter Name प्रोग्रामिंग अवधारणा
Number of Questions Solved 28
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
कम्प्यूटर समस्या का क्या अर्थ है? [2017]
(a) समस्या जिसे कम्प्यूटर द्वारा हल किया जा सकता है।
(b) हार्डवेयर सम्बन्धी समस्या
(c) सॉफ्टवेयर सम्बन्धी समस्या
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) समस्या जिसे कम्प्यूटर द्वारा हल किया जा सकता है।

प्रश्न 2
प्रोग्रामिंग के ‘कोडिंग स्टेप में वास्तव में हम करते हैं [2016]
(a) प्लानिंग
(b) डिबगिंग
(c) टेस्टिंग
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 3
तैयार किए प्रोग्राम में रन-टाइम त्रुटि किस चरण में दूर की जाता है? [2014]
अथवा
किस चरण में प्रोग्राम त्रुटि सुधारी जा सकती है? [2014]
(a) प्लानिंग
(b) कोडिंग
(C) डिबगिंग
(d) टेस्टिंग
उत्तर:
(c) डिबगिंग

प्रश्न 4
इस बात का निर्धारण किस चरण में होता है कि दिया गया प्रोग्राम समस्त आवश्यकताओं को पूरा कर रहा है? [2013]
(a) प्लानिंग
(b) डिजाइनिंग
(C) कोडिंग
(d) टेस्टिंग
उत्तर:
(4) टेस्टिंग

प्रश्न 5:
यदि प्रोग्राम प्लान में परिवर्तन करना पड़े तो निम्न में से किस। तकनीक के प्लान को परिवर्तित करना सर्वाधिक सरल होगा [2013]
अथवा
किस तकनीक में प्रोग्राम प्लान में परिवर्तन आसान है? [2013]
(a) फ्लोचार्ट
(b) निर्णय तालिका
(C) स्यूडोकोड
(d) एल्गोरिथ्म
उत्तर:
(d) एल्गोरिथ्म

प्रश्न 6
प्रोग्राम प्लान की कौन-सी तकनीक इसे वास्तविक प्रोग्राम के नजदीक बनाती है। [2014]
(a) फ्लोचार्ट
(b) निर्णय तालिका
(C) स्यूडोकोड
(d) एल्गोरिथ्म
उत्तर:
(b) निर्णय तालिका

प्रश्न 7
एक प्रोग्राम में कुल तीन कण्डीशन है। उसकी निर्णय तालिका में अधिकतम नियमों की संख्या क्या होगी? [2017]
(a) 3
(b) 6
(c) 8
(d) 12
उत्तर:
(c) 8

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
एल्गोरिथ्म का अर्थ समझाइए। [2006]
उत्तर:
एल्गोरिथ्म किसी कार्य को करने के लिए एक विशेष क्रम में लिखे गए निर्देशों का समूह होता है।

प्रश्न 2
फ्लोचार्ट को परिभाषित कीजिए। [2016]
उत्तर:
किसी भी समस्या का एल्गोरिथ्म तैयार करने के बाद उसका चित्रों के माध्यम द्वारा प्रदर्शन ही फ्लोचार्ट कहलाता है।

प्रश्न 3
फ्लोचार्ट में प्रयुक्त चिहों के नाम लिखिए। [2012]
उत्तर:
फ्लोचार्ट में प्रयोग होने वाले चिह्नों के नाम इस प्रकार हैं। टर्मिनल बॉक्स, इनपुट-आउटपुट बॉक्स, प्रोसेसिंग बॉक्स, डिसीजन बॉक्स, फ्लो लाइन्स, कनेक्टर्स लाइन आदि।

प्रश्न 4
स्यूडोकोड्स पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए। [2009]
अथवा
स्यूडोकोड शब्द का अर्थ समझाइए। [2008]
उत्तर:
किसी समस्या के समाधान को अंग्रेजी भाषा में बिन्दुबार लिखना स्यूडोकोड कहलाता है।

प्रश्न 5:
निर्णय तालिका शब्द को समझाइए। [2012]
उत्तर:
निर्णय तालिका में प्रोग्राम लॉजिक को एक तालिका के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।

प्रश्न 6
निर्णय तालिका के प्रारूप को ड्रा (Draw) कीजिए। [2018]
उत्तर:
निर्णय तालिका का प्रारूप इस प्रकार है।
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लघु उत्तरीय प्रश्न I (2 अंक)

प्रश्न 1
मॉड्यूलर प्रोग्राम डिजाइन तकनीक की व्याख्या कीजिए॥ [2014, 13]
उत्तर:
मॉड्यूलर प्रोग्राम डिजाइन तकनीक में, एक प्रोग्राम को छोटे-छोटे मॉड्यूलों में विभाजित किया जाता है। इन छोटे मॉड्यूलों को सब–प्रोग्राम भी कहा जाता है। जब किसी प्रोग्राम में त्रुटि आती है, तो पूरे प्रोग्राम को चैक न करके केवल उस मॉड्यूल को जाँचा जाता है, जिसमें त्रुटि है तथा उसे ठीक किया जाता है। इससे प्रोग्राम को बनाने और व्यवस्थित करने में कम समय लगता है।

प्रश्न 2
एल्गोरिथ्म की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए। [2011]
अथवा
एल्गोरिथ्म का वर्णन कीजिए। [2018]
उत्तर:
एल्गोरिथ्म किसी कार्य को करने के लिए एक विशेष क्रम में लिखे गए निर्देशों का समूह होता है। ये निर्देश इस प्रकार लिखे जाते हैं कि कोई यूजर उसे समझकर उसी क्रम में सही तरीके से पालन करता जाए, तो कार्य पूरा हो जाता है। एल्गोरिथ्म जोड़ने, घटाने, गुणा एवं भाग की क्रियाओं के लिए क्रमशः +,,* एवं / चिह्नों का प्रयोग करती है।

उदाहरण
1 से 20 तक के मध्य सभी सम संख्याओं का योग ज्ञात करने के लिए एल्गोरिथ्म इस प्रकार हैं।

चरण 1 प्रारम्भ (Start)
चरण 2 a तथा sum का प्रारम्भिक मान क्रमशः 2 तथा 0 लीजिए।
चरण 3 a में 2 जोड़कर 8um में निर्धारित कीजिए।
चरण 4 यदि sum का मान 20 या 20 से छोटा है तो चरण 3 दोहराएँ।
चरण 5 अन्त (Stop)

प्रश्न 3
फ्लोचार्ट के कोई दो लाभ व दो सीमाएँ लिखिए।
उत्तर:
फ्लोचार्ट के लाभ

(i) किसी प्रोग्राम के फ्लोचार्ट के माध्यम से कोई भी प्रोग्रामर उस प्रोग्राम की कोडिंग सरलता से कर सकता है।
(ii) फ्लोचार्ट में प्रोग्राम की त्रुटि हूँढने और उसे दूर करने में सरलता होती है।

फ्लोचार्ट की सीमाएँ।

(i) फ्लोचार्ट तैयार करने में अधिक समय लगता है।
(ii) एक बार तैयार करने के बाद इसमें परिवर्तन करना कठिन है।

प्रश्न 4
छात्रों के हिन्दी, अंग्रेजी व गणित के अंक इनपुट कराके उनके * पास अथवा फेल होने की जाँच करने हेतु फ्लोचार्ट बनाइए। [2010]
उत्तर:
छात्रों के पास अथवा फेल होने की जाँच हेतु फ्लोचार्ट इस प्रकार है।
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प्रश्न 5.
दी गई तीन संख्याओं का योग निकालने के लिए फ्लोचार्ट बनाइट। [2018]
उत्तर:
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प्रश्न 6
विभिन्न प्रोग्राम तकनीकों के गुण व दोष बताइए। [2018]
उत्तर:
प्रोग्राम प्लानिंग तकनीकों के गुण निम्नलिखित हैं

(i) प्रोग्राम प्लानिंग के माध्यम से प्रोग्राम की कोडिंग करना सरल होता है।
(ii) त्रुटि को ढूंढने और उसे दूर करने में सरलता होती है।

प्रोग्राम प्लानिंग के दोष निम्नलिखित हैं

(i) प्रोग्राम की प्लानिंग करने में अधिक समय लगता है।
(ii) प्रोग्रामर प्रत्येक तकनीक का उपयोग अपने अनुसार करता है, जिसे दूसरे प्रोग्रामर द्वारा समझना कठिन होता है।

प्रश्न 7
स्यूडोकोड तकनीक की सुविधाएँ एवं कमियाँ बताइए। [2017]
उत्तर:
स्यूडोकोड प्रोग्राम प्लानिंग तकनीक के निम्नलिखित लाभ हैं।

(i) यह फ्लोचार्ट, एल्गोरिथ्न तथा डिसीजन टेबल की तुलना में सरल माध्यम है।
(ii) इसे तैयार करने में कम समय लगता है।
(iii) स्यूडोकोड को प्रोग्राम में सरलता से परिवर्तित किया जा सकता है।

स्यूडोकोड की सीमाएँ निम्नलिखित हैं।

(i) इसे लिखने का कोई नियम नहीं है। इस कारण एक प्रोग्रामर द्वारा लिखा गया स्यूडोकोड दूसरे प्रोग्रामर द्वारा सरलता से नहीं समझा जा सकता है।
(ii) एक प्रारम्भिक प्रयोगकर्ता इसे सरलता से नहीं समझ सकता।

लघु उत्तरीय प्रश्न II (3 अंक)

प्रश्न 1
यदि आरम्भ में 3व 5 अंक हों, तो 10 फिबोनेकी (Fibonacci) अंकों को लिखने के लिए फ्लोचार्ट बनाइए। [2004]
उत्तर:
फिबोनेकी अंकों का फ्लोचार्ट
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प्रश्न 2
0 से 20 के मध्य आने वाली सभी सम संख्याओं को जोड़ने तथा अन्त में योगफल प्रिण्ट कराने हेतु पलोचार्ट बनाइए। [2007]
उत्तर:
0 से 20 के मध्य सम संख्याओं के योगफल का फ्लोचार्ट
UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-5

प्रश्न 3
स्यूडोकोड का वर्णन कीजिए। [2010, 09 08, 04]
उत्तर:
किसी समस्या के समाधान को अंग्रेजी भाषा में बिन्दुवार लिखना स्यूडोकोड कहलाता है। स्यूडोकोड प्रोग्राम की प्लानिंग करने तथा प्रोग्राम के लॉजिक को सरल भाषा में लिखने की तकनीक है, इस कोड को लिखने में किसी विशेष नियम का पालन नहीं किया जाता। प्रत्येक प्रोग्रामर अपनी सुविधा के अनुसार प्रोग्राम की प्लानिंग को शीघ्र समझने के लिए इस कोड को लिखता है। इसे प्रोग्राम डिजाइन लैंग्वेज (Program Design Language-PDL) भी कहा जाता है। इस लैंग्वेज में प्रोग्राम को तीन प्रकार से लिखा जा सकता है, जो निम्नलिखित हैं।

  1. सिक्वेन्स लॉजिक इस प्रकार के लॉजिक में निर्देशों को क्रमानुसार ऊपर से नीचे की ओर लिखा जाता है।
    जैसे- UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-6
  2. सिलेक्शन लॉजिक इस लॉजिक में निर्देश का क्रियान्वयन (Execution) डिसीजन से प्राप्त सत्य तथा असत्य रिजल्ट से होता है। यदि कण्डीशन सत्य होती है तो ही निर्देश रन होता है अन्यथा अगला (Next) निर्देश क्रियान्वित होता है।
    UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-7
  3. इटरेशन लॉजिक जब एक से अधिक निर्देशों का क्रियान्वयन करना हो। तब इटरेशन लॉजिक का प्रयोग करते हैं। इसे लूपिंग भी कहते हैं।
    जैसे
    UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-8

प्रश्न 4
डिसीजन टेबल का वर्णन कीजिए। [2009]
अथना
निर्णय तालिका की उपयोगिता का वर्णन कीजिए। [2018]
उत्तर:
डिसीजन टेबल या निर्णय तालिका तकनीक में प्रोग्राम के लॉजिक को एक तालिका के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। यह लॉजिक का ग्राफिक रूप में चित्रण करता है। इसके प्रयोग से कठिन-से-कठिन प्रोग्राम लॉजिक को प्रस्तुत किया जा सकता है। डिसीजन टेबल के प्रारूप को चार भागों में विभाजित किया जाता है ।

  1. कण्डीशन यह डिसीजन टेबल को पहला भाग होता है, जिसमें प्रोग्राम लॉजिक में उपस्थित शत (Conditions) को लिखा जाता है।
  2. कण्डीशन के मार्ग यह डिसीजन टेबल में शर्तों के दो या दो से अधिक मार्गों को दिखाता है।
  3. एक्शन यह भाग डिसीजन टेबल के पहले भाग के नीचे होता है, इसमें प्रोग्राम प्लान में लिए जाने वाले सभी एक्शन पंक्तिबद्ध (Rowwise) होते हैं।
  4. एक्शन एण्ट्री इस भाग में अनेक कॉलम्स तथा पंक्तियाँ होती हैं, जो एक्शन के कॉलम के बराबर होती हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (5 अंक)

प्रश्न 1
‘प्रोग्राम प्लानिंग के चरण के प्रमुख उद्देश्य बताइए। प्रोग्रामिंग के विभिन्न चरणों का उदाहरण देकर वर्णन कीजिए। [2007]
अथवा
प्रोग्रामिंग के विभिन्न चरणों का उदाहरण देकर वर्णन कीजिए। [2007]
अथवा
प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में हुए विकास का वर्णन कीजिए। [2018]
उत्तर:
कम्प्यूटर के लिए प्रोग्राम लिखना एक कला है। किसी कार्य के लिए प्रोग्राम लिखने से पहले पूरी योजना बनानी पड़ती है। प्रोग्राम प्लानिंग को प्रोग्राम विकास प्रक्रिया चक्र भी कहते हैं। इस विकास प्रक्रिया में विभिन्न चरण होते हैं, प्रत्येक चरण (Step) का अनुसरण करते हुए प्रोग्राम को बनाया जाता है।

प्रोग्रामिंग के चरण
कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के चरणों का विवरण इस प्रकार है।

(i) समस्या को समझना कम्प्यूटर द्वारा हल हो सकने वाली समस्याओं को कम्प्यूटर समस्याएँ कहा जाता है। इस चरण में प्रोग्रामर द्वारा क्लाइण्ट से बातचीत करने के उपरान्त प्रोग्राम की सभी आवश्यकताओं को ज्ञात किया जाता है; जैसे प्रोग्राम के इनपुट-आउटपुट, उनकी प्रोसेसिंग का तरीका एवं रेस्पॉन्स टाइम आदि।

(ii) समस्या के समाधान का मॉडल बनाना समस्या के समाधान को समझने के बाद उसका मॉडल तैयार किया जाता है। जब प्रोग्राम का प्रारूप/मॉडल बन जाता है, तो प्रोग्रामर उसी का अनुसरण करता है। उसके लिए एल्गोरिथ्म, फ्लोचार्ट एवं स्यूडोकोड आदि के रूप में प्रारूप तैयार किया जाता है।
जैसे दो अंकों की गुणा ज्ञात करने के लिए एल्गोरिथ्म के निम्न चरण होंगे
चरण 1 दो वैरिएबल्स M, N के प्रारम्भिक मान सेट कीजिए।
चरण 2 M, N का इनपुट ग्रहण कीजिए।
चरण 3 M * N
चरण 4 गुणा प्रिण्ट कीजिए।

(iii) प्रोग्राम को डिजाइन करना प्रोग्राम को प्रारूप के आधार पर डिजाइन किया जाता है। एक प्रोग्राम को डिजाइन करने की विभिन्न तकनीक प्रचलन में है, इनमें से कुछ इस प्रकार हैं।

  • मॉड्यूलर डिजाइन तकनीक इस तकनीक में प्रोग्राम को छोटे मॉड्युल्स में बाँटकर डिजाइनिंग की जाती है।
  • टॉप-डाउन डिजाइन तकनीक इस तकनीक में प्रोग्राम को ऊपर से नीचे की ओर सब-टास्क में विभाजित किया जाता है।
  • बॉटम-अप डिजाइन तकनीक यह तकनीक टॉप-डाउन डिजाइन तकनीक के विपरीत होती है। इसमें प्रोग्राम को सब-टास्क में नीचे से ऊपर की ओर विभाजित किया जाता है।

उदाहरण टॉप-डाउन डिजाइन तकनीक के माध्यम से प्रोग्राम की डिजाइनिंग
UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-9

(iv) प्रोग्राम कोडिंग प्रोग्राम की डिजाइनिंग के बाद उसे प्रोग्रामिंग भाषा के रूप में लिखा जाता है। इस प्रोसेस को प्रोग्राम कोडिंग कहते हैं। प्रोग्राम लिखने के बाद कम्पाइलर उसे कम्पाइल करता है। एक अच्छा कोड लिखने के लिए उसे त्रुटिहीन (Errorlers), स्पष्ट, सरल तथा सार्वजनिक होना चाहिए।

(v) प्रोग्राम परीक्षण इस चरण में, एक परीक्षण डाटा तैयार कर प्रोग्राम का परीक्षण किया जाता है। इसमें हम ऐसा इनपुट लेते हैं, जिसका आउटपुट हमें पहले से पता हो, जिससे हम देख सकें कि प्रोग्राम वही आउटपुट देता। है या नहीं।

प्रश्न 2
कम्प्यूटर प्रोग्राम प्लानिंग तकनीकों का विस्तृत वर्णन कीजिए। [2017]
उत्तर:
प्रोग्राम का प्रारूप तैयार करने के लिए विभिन्न तकनीकें प्रदान की गई। हैं, जो निम्न हैं।

(i) एल्गोरिथ्म किसी कार्य को करने के लिए एक विशेष क्रम में लिखे गए निर्देशों का समूह एल्गोरिथ्म कहलाता है। एल्गोरिथ्म में जोड़ने, घटाने, गुणा एवं भाग की क्रियाओं के लिए क्रमश: +,- * एवं / चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। एल्गोरिथ्म में प्रत्येक निर्देश ऐसा होना चाहिए, जिसका अनुपालन एक निश्चित समय में कियाजा सके। इसका पहला कथन Start तथा अन्तिम कथन Stuop होना चाहिए।

(ii) फ्लोचार्ट किसी भी समस्या का एल्गोरिथ्म तैयार करने के बाद उसका चित्रों के माध्यम द्वारा प्रदर्शन ही फ्लोचार्ट कहलाता है। फ्लोचार्ट मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-प्रोग्राम फ्लोचार्ट तथा सिस्टम फ्लोचार्ट। फ्लोचार्ट बनाने के लिए विभिन्न चिह्नों का प्रयोग किया जाता है;
जैसे – टर्मिनल बॉक्स UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-10, इनपुट/आउटपुट बॉक्स UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-11, प्रोसेसिंग बॉक्स UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-12, डिसीजन बॉक्स UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-13 , फ्लो लाइनस UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-14, कनेक्टर्स UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-15 , कमेण्ट ……[ आदि।

(iii) स्यूडोकोड किसी समस्या के समाधान को अंग्रेजी भाषा में बिन्दुवार लिखना स्युडोकोड कहलाता है। यह प्रोग्रामिंग लॉजिक को परिभाषित एवं उसका अनुसरण करने का एक उत्तम माध्यम है। इसमें नियमबद्ध संरचना की आवश्यकता नहीं होती। स्यूडोकोड को तीन तरीको से लिखा जा सकता है; जैसे-सिक्वेन्स लॉजिक, सिलेक्शन लॉजिक एवं इटरेशन लॉजिक।

(iv) डिसीजन बेल डिसीजन टेबल में प्रोग्राम लॉजिक को टेबल या तालिका के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। डिसीजन टेबल का प्रारूप मुख्यत: चार भागों में बँटा होता है।
UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-16

प्रश्न 3
‘एल्गोरिथ्म’ से आप क्या समझते हैं? इसकी संरचना क्यों करते हैं? समझाइए। [2002]
उत्तर:
एल्गोरिथ्म किसी कार्य को करने के लिए एक विशेष क्रम में लिखे गए निर्देशों का समूह होता है। यह समस्या के समाधान की क्रमबद्ध रूपरेखा देता है। इस चरण में दिए गए इनपुट से आउटपुट तक पहुंचने में सारे चरण क्रमानुसार लिखे जाते हैं।

एक एल्गोरिथ्म को लिखने में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  1. एल्गोरिथ्म का प्रत्येक वाक्य स्पष्ट होना चाहिए।
  2. एल्गोरिथ्म का पहला स्टेटमेण्ट START तथा अन्तिम स्टेटमेण्ट STOP होना चाहिए।
  3. प्रत्येक स्टेटमेण्ट ऐसा होना चाहिए, जिसका एक निश्चित पालन किया जा सके।
  4. एक या एक से अधिक स्टेटमेण्ट्स को बार-बार नहीं दोहराना (Repeat) चाहिए।
  5. एल्गोरिथ्म के अन्त में इच्छित आउटपुट प्राप्त होना चाहिए।

एल्गोरिथ्म में जोड़ने, घटाने, गुणा एवं भाग की क्रियाओं के लिए क्रमशः +,-,* एवं / के चिह्नों का प्रयोग करते हैं।

उदाहरण
किसी वृत्त की त्रिज्या ज्ञात होने पर उसकी परिधि तथा क्षेत्रफल ज्ञात करना। यदि उसकी परिधि (P)2πr, त्रिज्या r तथा क्षेत्रफल (A)πr2 है, जहाँ ॥ का मान लगभग 3.1416 होता है। इसके लिए एल्गोरिथ्म निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है।

चरण 1 प्रारम्भ (Start)
चरण 2 r का मान इनपुट कीजिए।
चरण 3 P के लिए 2, 3.1416 तथा r की गुणा कीजिए।
चरण 4 A के लिए 3.1416 तथा r*r की गुणा कीजिए।
चरण 5 P तथा A को प्रिण्ट कीजिए।
चरण 6 अन्त (End)

प्रश्न 4
‘फ्लोचार्ट’ क्या है? इसमें प्रयुक्त विभिन्न चिह्नों की व्याख्या कीजिए। साथ ही दी हुई तीन संख्याओं में सबसे बड़ी संख्या निकालने हेतु एक फ्लोचार्ट भी बनाइए। [2003, 02]
अथवा
एक फ्लोचार्ट की क्या उपयोगिता है? इसमें प्रयोग किए जाने वाले सिम्बल्स का वर्णन कीजिए। [2015, 2009]
अथवा
फ्लोचार्ट का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। [2017]
उत्तर:
किसी भी समस्या का एल्गोरिथ्म तैयार करने के बाद उसका चित्रों के माध्यम द्वारा प्रदर्शन ही फ्लोचार्ट कहलाता है। फ्लोचार्ट में एल्गोरिथ्म के आदेशों को क्शेिष प्रकार की आकृतियों के रूप में दिखाया जाता है। इसमें हम उन प्रतीकों का प्रयोग करते हैं जो स्टार्ट, इनपुट, प्रोसेस, डिसीजन, कनेक्टर्स, आउटपुट, गति की दिशा एवं स्टॉप का प्रतिनिधित्व करता है।

अलग – अलग कथनों (Statements) के लिए अलग-अलग आकृतियाँ होती हैं तथा उन आकृतियों के भीतर उस कथन को संक्षेप में लिखा जाता है। इन आकृतियों को उनके पालन के क्रम की दिशा में तीर (↓) के चिह्नों द्वारा जोड़ दिया जाता है।

फ्लोचार्ट के चिह्न
फ्लोचार्ट विभिन्न चिह्नों का प्रयोग करता है, जो निम्न है।

  1. टर्मिनल बॉक्स यह प्रत्येक प्रोग्राम का पहला एवं अन्तिम प्रतीक होता है। इसे  UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-17 सिम्बल से प्रदर्शित किया जाता है।
  2. इनपुट/आउटपुट बॉक्स यह बॉक्स इनपुट लेने तथा आउटपुट देने का कार्य करता है। इसे UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-18 सिम्बल से प्रदर्शित करते हैं।
  3. प्रोसेसिंग बॉक्स यह बॉक्स गणना, गणितीय ऑपरेशन, तार्किक ऑपरेशन या किसी अन्य प्रकार की प्रोसेसिंग करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-19 सिम्बल से दर्शाते हैं।
  4. डिसीजन बॉक्स UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-20इसे कण्डीशनल बॉक्स भी कहते हैं। इसका प्रयोग प्रोग्राम में निर्णय लेने के लिए किया जाता है। इसेसिम्बल से दर्शाते हैं।
  5. फ्लो लाइन्सयेUP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-21 लाइनें तीर की भाँति होती हैं, ये डाटा के फ्लो को दर्शाती हैं।
  6. कनेक्टर्स इस सिम्बल को प्रोग्राम की जटिलता को कम करने केUP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-22लिए प्रयोग किया जाता है। कनेक्टर्स को
  7. कमेण्ट इसका प्रयोग फ्लोचार्ट में कमेण्ट, रिमार्क, नोट, संक्षिप्त व्याख्या लिखने के लिए किया जाता है।

उदाहरण
तीन संख्याओं में सबसे बड़ी संख्या प्रिण्ट करने का फ्लोचार्ट
UP Board Solutions for Class 12 Computer Chapter 4 प्रोग्रामिंग अवधारणा img-23

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UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 4 हिमालयः

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Samanya Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name हिमालयः
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 4 हिमालयः

अवतरणों का ससन्दर्भ अनुवाद

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(3) अस्योपत्यकासु ………………………प्रवर्तयति ।

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 4 हिमालयः img-3

(4) अस्योपत्यकायां ……………………………..भ्रमणाय आकर्षन्ति ।
अस्योपत्यकायां ……………………….. अभिधीयते ।

UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 4 हिमालयः img-4

(5) अस्यैव कन्दरासु ……………………. पर्वतराजः इति।।
अस्यैव ……………………………………. स्वीकृतमस्ति।
अस्यैव कन्दरासु ……………………………… तीर्थस्थानानि सन्ति।

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UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 3 श्वासोच्छ्वास

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Board UP Board
Class Class 12
Subject Home Science
Chapter Chapter 3
Chapter Name श्वासोच्छ्वास
Number of Questions Solved 17
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 3 श्वासोच्छ्वास

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
श्वसन क्रिया पूर्ण होती है।
(a) एक चरण में
(b) दो चरण में
(c) चार चरण
(d) ये सभी
उत्तर:
(b) दो चरण में

प्रश्न 2.
मानव शरीर में श्वसन का अंग नहीं है
(a) नासिका
(b) कण्ठ
(c) श्वासनली
(d) पटेला
उत्तर:
(d) पटेला

प्रश्न 3.
नाक के छिद्र को कहा जाता है
(a) नथुने
(b) कुपिकाएँ
(c) कण्ठद्वार
(d) श्वसनी
उत्तर:
(a) नथुने

प्रश्न 4.
ग्रसनी में भोजन निगलने वाला द्वार कहलाता है
(a) नासाद्वार
(b) अवटु
(c) कण्ठद्वार
(d) ये सभी
उत्तर:
(c) कण्ठद्वार

प्रश्न 5.
श्वसन तन्त्र का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है
(a) वायु
(b) प्रश्वसन
(c) स्नायुतन्त्र
(d) फेफड़े
उत्तर:
(d) फेफड़े

प्रश्न 6.
व्यायाम से श्वसन क्रिया होती है
(a) गहरी
(b) उथली
(c) तीव्र
(d) स्फूर्ति
उत्तर:
(a) गहरी

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 1 अंक, 25 शब्द

प्रश्न 1.
श्वासोच्छ्वास किसे कहते हैं?
उत्तर:
वायुमण्डल ‘ से ऑक्सीजन ग्रहण करना और शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालने की क्रिया को श्वासोच्छ्वास कहते हैं।

प्रश्न 2.
मानव के श्वसन तन्त्र में सहायक अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मानव श्वसन तन्त्र के निम्नलिखित अंग हैं- नासिका, कण्ठ, श्वासनली, श्वसनी तथा फेफड़े।

प्रश्न 3.
नासाद्वार किसे कहते हैं?
उत्तर:
वायु के आवागमन के लिए नाक में जो छिद्र होता है, उसे नासाद्वार कहते हैं।

प्रश्न 4.
स्वर यन्त्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कण्ठ को ही स्वर यन्त्र कहते हैं। कण्ठ उपास्थि का बना हुआ एक ढक्कन होता है, जो कण्ठद्वार पर स्थित होता है।

प्रश्न 5.
श्वासनली कितने भागों में विभाजित होती है?
उत्तर:
श्वासनली वक्ष में जाकर दो भागों में विभाजित होती है – श्वसनी तथा ब्रॉन्कस।

लघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक, 50 शब्द

प्रश्न 1.
श्वसन क्रिया की उपक्रियाएँ या चरण की प्रक्रिया समझाइए।
उत्तर:
श्वसन क्रिया की दो उपक्रियाएँ निम्न प्रकार हैं।
1. अन्त:श्वास (Inspiration) इस प्रक्रिया में वायु अन्दर ली जाती है, जिससे डायाफ्राम की पेशियाँ संकुचित होती हैं एवं डायाफ्राम समतल (Flattened) हो जाता हैं। निचली पसलियाँ बाहर एवं ऊपर की ओर फैलती हैं तथा छाती फूल जाती है। फेफड़ों में वायु का दाब कम हो जाता है और वायु फेफड़ों में प्रवेश कर जाती है।।

2. नि:श्वसन/उच्छ्वास (Expiration) नि:श्वसन की क्रिया में वायु फेफड़ों से बाहर निकाली जाती है। इसमें डायाफ्राम एवं पसलियों की पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं तथा डायाफ्राम फिर से गुम्बद आकार (Dome-Shaped) का हो जाता है। छाती संकुचित होती है तथा वायु बाहर की ओर नाक एवं वायुनाल द्वारा निकलती है। मनुष्य एक मिनट में 12-15 बार साँस लेता हैं, जबकि नवजात शिशु एक मिनट में लगभग 40 बार साँस लेता है। सोते समय श्वसन की दर सबसे कम होती है।
मनुष्य में वायु का मार्ग इस प्रकार होता हैं।
नासारन्ध्र + ग्रसनी ने कण्ठ + श्वासनाल —- श्वसनी
कोशिका — रुधिर – वायुकोष्ठक — श्वसनिकाएँ

प्रश्न 2.
श्वसन तन्त्र में श्वासोच्छ्वास का क्या प्रयोजन है?
उत्तर:
मनुष्य में फुफ्फुसीय वायु आयतन और क्षमता को निम्नलिखित रूपों में समझाया जा सकता है
1. अवरीय या प्रवाही आयतन (Tidal Volume or TV) सामान्य श्वसन के दौरान एक बार में ली गई या निकाली गई वायु का आयतन प्रवाहीआयतन कहलाता है। यह लगभग 500 मिली होता है।

2. उच्छ्व सन आरक्षित आयतन (Expiratory Reserve Volume or ERV) उच्छ्व सन के बाद फेफड़ों में कुछ वायु रह जाती है, उसमें से बलपूर्वक निकाली गई वायु के आयतन को उच्छ्व सन आरक्षित आयतन (ERV) कहते हैं। इसका आयतन लगभग 1000 मिली होता है।

3. नि:श्वसन आरक्षित आयतन (Inspiratory Reserve Volume or IRV) एक सामान्य नि:श्वसन के बाद बलपूर्वक फेफड़ों के द्वारा ली जाने वाली वायु के आयतन को नि:श्वसन आरक्षित आयतन (IRV) कहते हैं। इसका आयतन लगभग 2500-3000 मिली होता है।

4. अवशेषी आयतन (Residual Volume or RV) पूरे प्रयास से फेफड़ों से वायु निकालने के बाद फेफड़ों में शेष बची वायु का आयतन अवशेष आयतन (RV) कहलाता है। यह लगभग 1500 मिली होता है।

5. निःश्वसन क्षमता (Inspiratory Capacity or IC) प्रवाही आयतन के अतिरिक्त अभ्यास द्वारा फेफड़ों में अधिक-से-अधिक ली जा सकने वाली वायु की मात्रा को नि:श्वसन क्षमता कहते हैं।
IC = TV + IRV= 500 मिली + 3000 मिली = 3500 मिली

प्रश्न 3.
उचित श्वसन क्रिया के लिए आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी?  (2018)
उत्तर:
श्वसन क्रिया, मानवीय स्वास्थ्य एवं शरीर के लिए लाभकारी होती है, जो मानवीय कार्यक्षमता के साथ-साथ कार्यक्षमता को भी व्यापक रूप से प्रभावित करती हैं। इस प्रकार से सामान्य श्वसन एक आवश्यक क्रिया होती है।
इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता हैं।
1. हमेशा शुद्ध वायु का उपयोग श्वसन क्रिया में हो, इसके लिए शुद्ध वायु में श्वास लेनी चाहिए, जिसमें ऑक्सीजन की मात्रा अधिक तथा कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम होती है। ऐसा वातावरण अधिकांशतः गाँवों, पार्को एवं उद्यानों में मिलता है।

2. श्वास सदैव गहरी लेनी चाहिए, क्योंकि इससे फेफड़े एवं श्वसन अंगों की क्रियाशीलता बढ़ती है, जो स्वास्थ्य के लाभकारी होती है, इसलिए दिन में कई बार गहरी श्वास लेनी चाहिए।

3. श्वास सदैव नाक से ही लेनी चाहिए, क्योंकि श्वास लेने की यह एक उचित विधि है। नाक से श्वास लेने पर अशुद्धियाँ नाक के रोएँ एवं नाक की नम झिल्ली में फंसकर रह जाती हैं और शुद्ध वायु आन्तरिक भाग तक पहुँचती है।

4. धूल के कणों आदि में श्वास हल्की लेनी चाहिए, अन्यथा अशुद्ध वायु का प्रवेश अधिक मात्रा में श्वास के द्वारा शरीर में हो जाता है।
5. बैठने एवं चलने के समय शरीर की उचित स्थिति होनी चाहिए, क्योकि इससे श्वसन क्रिया प्रभावित होती है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 5 अंक, 100 शब्द

प्रश्न 1.
मानव के श्वसन में सहायक अंगों के नाम लिखते हुए उनके कार्यों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
श्वसन तन्त्र के विभिन्न अंगों का नामांकित चित्र सहित वर्णन कीजिए। (2018)
उत्तर:
श्वसन क्रिया सम्पन्न करने के लिए विभिन्न अंगों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। मानव के प्रमुख श्वसनांग फेफड़े होते हैं तथा इनके सहायक अंग नासिका, कण्ठ या स्वर यन्त्र, श्वासनली तथा श्वसनी होते हैं।
श्वसन तन्त्र के मुख्य अंग निम्नलिखित हैं।
1. नासिका श्वसन के लिए वायु सर्वप्रथम नासिका (नाक) में प्रवेश करती है। वायु आवागमन के लिए नाक में जो छिद्र होता है, उसे नासाद्वार या नथुने कहा जाता है। इससे अन्दर की ओर दो मार्ग जाते हैं। दोनों मागों को एक पर्दे के माध्यम से एक-दूसरे से पृथक् किया जाता है। तालु की हड्डी”नासिका को मुँह से पृथक करती है, जो नासागहा के निचले आधार में स्थित होती है। श्लेष्मिक कला द्वारा स्रावित चिपचिपे पदार्थ से नासागुहा को मार्ग चिकना बना रहता है। वायु में उपस्थित धूल के कणों एवं जीवाणुओं को रोकने के लिए नासागुहा की सतह पर छोटे-छोटे रोएँ होते हैं। श्लेष्मिक कला का चिपचिपा पदार्थ भी जीवाणुओं को चिपकाकर अन्दर प्रवेश करने से रोकता है। दोनों नासाद्वारों को मिलाकर एक नली बनती है, जोकि ग्रसनी में खुलती है।
नाक से श्वास लेने के निम्नलिखित लाभ हैं

  • वायु में उपस्थित धूल के कण एवं अन्य प्रकार की गन्दगी को नाक में स्थित बालों द्वारा रोक लिया जाता है, जिससे फेफड़ों तक स्वच्छ वायु पहुँचती है।
  • नाक तथा श्वासनली आदि की रक्त केशिकाओं द्वारा नाक से प्रवेश करने वाली वायु को गर्म किया जाता है, जिससे कि फेफड़ों को गर्म वायु उपलब्ध होती है। अधिक ठण्डी वायु फेफड़ों के लिए हानिकारक होती है।
  • श्लेष्मिक कला से मढ़ी हुई वायु नलिका भित्ति द्वारा वायु में उपस्थित जीवाणुओं एवं धूल के कणों को रोक लिया जाता है। इस कारण फेफड़ों तक पहुँचने वाली वायु जीवाणुओं से मुक्त होती है।

2. कण्ठ या स्वर यन्त्र ग्रसनी में भोजन निगलने वाले द्वार से पहले एक छिद्र होता हैं, जो घाँटी या कण्ठद्वार कहलाता है। कण्ठ उपास्थि का बना हुआ एक ढक्कन होता है, जो कण्ठद्वार पर स्थित होता है। कण्ठ भोजन को श्वासनली में जाने से रोकता है। श्वासनली को बनाने वाली उपास्थि के अधूरे छल्लों में से ऊपरी छल्ला अवटु उपास्थि सामने से चौड़ा तथा उभरा हुआ होता है।

पुरुषों के कण्ठ में इसे बाहर से कर अनुभव किया जा सकता है अर्थात् यह सामने की ओर उभरा हुआ होता है, जिसे टेंटुआ या आदम ऐपल कहा जाता है। दूसरा छल्ला चारों ओर से पूरा होता है तथा मुद्रिका उपास्थि कहलाता है। दोनों छल्लों के बीच रेशेदार तन्तु भरे रहते हैं।

3. श्वासनली या वायुनलिका कण्ठ से होकर वायु श्वासनली अथवा वायुनलिका में प्रवेश करती है। इसकी गोलाई 2.5 सेमी तथा लम्बाई लगभग 10-12 सेमी होती है, जो कण्ठ से लेकर पूर्ण ग्रीवा (Neck) में विद्यमान होती है। यह नली ‘C’ के आकार के रेशेदार तन्तुओं से निर्मित छल्लों से बनी होती हैं, जोकि पीछे की ओर खुले रहते हैं। इनके ऊपर श्लेष्मिक कला ढकी होती है। नली के ऊपर तथा पिछले भाग में श्लेष्मिक कला ढकी होती है। जब भोजन ग्रासनली से गुजरता है, तो प्रासनली फूलती है और श्वासनली की पिछली झिल्ली दब जाती है। इस प्रकार ग्रासनली को फूलने का स्थान मिल जाता हैं।

4. वायु प्रणालियाँ या श्वसनी श्वासनली वक्ष में जाकर दो भागों में विभक्त हो जाती है-श्वसनी तथा ब्रॉन्कस। ये दोनों शाखाएँ ही वायु प्रणालियों कहलाती हैं। दोनों वायु प्रणालियां दोनों भागों के फेफड़ों में अलग-अलग प्रवेश करके असंख्य उप-शाखाओं में बँट जाती हैं।

श्वसनिका के अन्त में छोटे-छोटे थैले लगे रहते हैं, जिनको वायुकोष कहते हैं। वायुकोण लौह तत्त्व के कारण लाल रंग का होता है। इन वायुकोषों में वायु रुकी रहती है, जहाँ पर रक्त का शुद्धिकरण होता है।

5. फेफड़े ये मानव श्वसन तन्त्र के सबसे महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनकी संख्या दो होती है एवं ये वक्षगुहा में दाई तथा बाईं ओर स्थित होते हैं। इनका रंग नीलापन लिए भूरा होता है। जन्म से पहले इनका रंग लाल तथा नवजात शिशु के फेफड़ों का रंग गुलाबी होता है।
Arihant Home Science Class 12 Chapter 3 1

प्रश्न 2.
फेफड़ों का चित्र बनाते हुए इसकी संरचना तथा कार्य लिखिए।.
उत्तर:
फेफड़ों की संरचना
दायाँ फेफड़ा बाएँ फेफड़े की अपेक्षा बड़ा होता है। फेफड़े वक्षगुहा के बाएँ एवं दाएँ स्थित होते हैं तथा तन्तुपट (Diaphragm) पर उभरे हिस्से पर चिपके रहते हैं। इनकी संरचना अत्यन्त कोमल, लचीली, स्पंजी तथा गहरे स्लेटी भूरे रंग की होती है। इनके चारों ओर एक पतली झिल्ली का आवरण होता हैं, जिनके भीतर एक लसदार तरल पदार्थ भरा रहता है, जिसे प्लूरा अथवा फुफ्फुसीय आवरण कहा जाता है। गुहा को फुफ्फुसीय गुहा कहते हैं। ये सब रचनाएँ फेफड़ों की सुरक्षा करती हैं। दायाँ फेफड़ा दो अधूरी खाँचों द्वारा तीन पिण्डों में बँटा रहता है।

बाएँ फेफड़े में एक अधूरी खाँच होती है तथा यह दो पिण्ड़ों में बँटा होता है। फेफड़ों में मधुमक्खी के छत्ते की तरह असंख्य वायुकोष होते हैं। एक वयस्क मनुष्य में इन वायुकोषों की संख्या लगभग 15 करोड़ तक होती है। प्रत्येक वायुकोष का सम्बन्ध एक श्वसन (Bronchue) से होता है। प्रत्येक श्वसनी, जो श्वासनाल के दो भागों में बँटने से बनती है, फेफड़े के अन्दर प्रवेश कर अनेक शाखा अर्थात् उप-शाखाओं में बंट जाती है।
Arihant Home Science Class 12 Chapter 3 2
अत्यन्त महीन उप-शाखाएँ, जो अन्तिम रूप से बनती हैं, कूपिका-नलिकाएँ (Alveolar ducts) कहलाती हैं। प्रत्येक कुपिका नलिका के सिरे पर अंगूर के गुच्छे की भांति अनेक वायुकोष (Alveoli) जुड़े रहते हैं। प्रत्येक वायुकोष अति महीन झिल्ली का बना होता है। इसको बनाने वाली कोशिकाएँ चपटी होती हैं। इसकी बाहरी सतह पर रुधिर केशिकाओं (Blood capillariou) का जाल फैला रहता है। यह जाल फुफ्फुस धमनी के अत्यधिक शाखान्वित होने से बनता है। इन केशिकाओं में शरीर का ऑक्सीजन रहित रक्त आता है तथा इसमें कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अधिक होती है। यह कार्बन डाइऑक्साइड वायुकोष की वायु में विसरित हो जाती है, बाद में ये केशिकाएँ मिलकर फुफ्फुस शिरा बनाती हैं।

फेफड़ों की सामर्थ्य
फेफड़े कभी रिक्त नहीं रहते हैं। इनमें लगभग 2,500 मिली हवा या वायु हमेशा भरी रहती है। यह वायु कार्यात्मक अवशेष वायु (Functional residual air) कहलाती है। सामान्य रूप से प्रत्येक श्वास में लगभग 500 मिली वायु हम फेफड़ों में भरते च निकालते हैं। यह प्रवाही वायु (Tidal hir) कहलाती है। लम्बी श्वास लेकर हम प्रवाही वायु को 3,500 मिली तक अर्थात् सामान्य से 3 मिली अधिक ले सकते हैं। यह प्रश्वसन सामर्थ्य (Inspiratory capacity) कहलाती है। प्रश्वसन सामर्थ्य तथा कार्यात्मक अवशेष वायु का आयतन संयुक्त रूप से लगभग 6,000 मिली हो जाता है। यह फेफड़ों की मूल सामर्थ्य (Total lung capacity) कहलाती है।

मनुष्य प्रश्वसन सामर्थ्य द्वारा वायु से फेफड़ों को पूरी तरह से भरकर एक नि:श्वसन में प्रवाही वायु के अतिरिक्त लगभग 4,000 मिली वायु और बाहर निकाल सकता है। दूसरे शब्दों में, कुल 4,500 मिली वायु बाहर निकाल सकता है। यह फेफड़ों की सजीव सामर्थ्य (Vital capacity) कहलाती है।। सजीव सामर्थ्य प्रश्वसन सामर्थ्य से लगभग 1,000 मिली अधिक होती है, फिर भी फेफड़ों में लगभग 1,500 मिली वायु रह जाती है, जो अवशेष वायु (Reaidual air) कहलाती है। ग्रहण की गई 500 मिली वायु में से 150 मिली वायु श्वासनाल तथा श्वसनी (Bronchioles) में बची रह जाती है। यह मात्रा गैसीय विनिमय में भाग नहीं लेती है। यह मृत स्थान वायु (Dead space air) कहलाती हैं।

फेफड़ों में रुधिर का शुद्धिकरण या फेफड़ों के कार्य
श्वसन क्रिया में दो प्रकार की क्रियाएँ होती हैं–प्रश्वसन व नि:श्वसन।। प्रश्वसन में बाहरी वायु (ऑक्सीजन युक्त) को ग्रहण किया जाता है, जबकि नि:श्वसन में वायु (कार्बन डाइऑक्साइड युक्त) बाहर निकलती है।

रुधिर में पाई जाने वाली असंख्य लाल रुधिर कणिकाओं में हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन होता है। इस पदार्थ में विद्यमान लौह तत्त्व की प्रचुरता के कारण रुधिर का रंग लाल होता है। हीमोग्लोबिन वायु की ऑक्सीजन को सरलता से अपने साथ बन्धित कर लेता है, इस कारण इस पदार्थ को श्वसनरंगा कहते हैं।

अवशोषित ऑक्सीजन के कारण हीमोग्लोबिन तथा सम्पूर्ण रुधिर का रंग अधिक चटकीला लाल हो जाता है। ऐसे रुधिर को शुद्ध रुधिर कहते हैं।

फुफ्फुसीय धमनी के द्वारा आया हुआ रुधिर पर्याप्त कार्बन डाइऑक्साइड से युक्त होता है तथा इसमें ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है। ऐसे रुधिर को अशुद्ध रुधिर कहते हैं। अशुद्ध रुधिर में कार्बन डाइऑक्साइड रुधिर के तरल भाग प्लाज्मा में घुली रहती है। \

जब यह अशुद्ध रुधिर, ग्रहण की गई वायु (ऑक्सीजन युक्त) के सम्पर्क में आता है, तो रुधिर में उपस्थित हीमोग्लोबिन ऑक्सोजन को तुरन्त ग्रहण कर लेता है । रक्त में घुली हुई कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण की गई वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की कमी के कारण, रुधिर से निकलकर फेफड़ों में भरी वायु में आ जाती है तथा नि:श्वसन के दौरान बाहर निकल जाती है।

फेफड़ों द्वारा रक्त को शुद्ध करने की प्रक्रिया को प्रश्वसन तथा नि:श्वसन की प्रक्रिया के दौरान वायु में ऑक्सीजन (O2) तथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की मात्रा देखकर समझा जा सकता है।

प्रश्न 3.
उचित रूप से श्वास का योग पर क्या प्रभाव पड़ता है? (2018)
उत्तर:
योग श्वसन तन्त्र का एक विशेष व्यायाम है, जो फेफड़ों को मजबूत बनाने और रक्तसंचार बढ़ाने में मदद करता है। फिजियोलॉजी के अनुसार, जो वायु हम श्वसन क्रिया के दौरान भीतर खींचते हैं, वह हमारे फेफड़ों में जाती है और फिर पूरे शरीर में फैल जाती है।

इस तरह शरीर को जरूरी ऑक्सीजन मिलती है। यदि श्वसन कार्य नियमित और सुचारु रूप से चलता रहे, तो फेफड़े स्वस्थ रहते हैं, लेकिन सामान्यतः लोग गहरी साँस नहीं लेते, जिसके चलते फेफड़े का एक चौथाई हिस्सा ही काम करता है और बाकि का तीन चौथाई हिस्सा स्थिर रहता है। मधुमक्खी के छत्ते के समान फेफड़े लगभग 75 मिलियन कोशिकाओं से बने होते हैं।

इनकी संरचना स्पंज के समान होती है। सामान्य श्वास जो हम सभी आमतौर पर लेते हैं, उससे फेफड़ों के मात्र 20 मिलियन छिद्रों तक ही ऑक्सीजन पहुँचती है, जबकि 55 मिलियन छिद्र इसके लाभ से वंचित रह जाते हैं। इस कारण से फेफड़ों से सम्बन्धी कई बीमारियाँ; जैसे-ट्यूबरक्युलोसिस, रेस्पिरेटरी डिजीज (श्वसन सम्बन्धी रोग) खाँसी और ब्रॉन्काइटिस आदि पैदा हो जाती हैं।

फेफड़ों के सही तरीके से काम न करने से रक्त शुद्धिकरण की प्रक्रिया प्रभावित होती है। इस कारण हृदय भी कमजोर हो जाता है और असमय मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है, इसलिए लम्बे एवं स्वस्थ जीवन के लिए योग बहुत जरूरी है। नियमित योग से बहुत-सी बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है।

व्यायाम मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है, जो मनुष्य के शरीर को स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनाता है। व्यायाम से श्वसन क्रिया पर पड़ने वाले प्रभावों का विवरण निम्नलिखित हैं।
1. श्वास का गहरा होना व्यायाम से साँस तेजी से चलती हैं, जिसके कारण ऑक्सीजन अधिक मात्रा में तीव्रता से फेफड़े में पहुँचती है, जिससे उसी मात्रा में रक्त भी शुद्ध होता है। अतः यह मानव स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।

2. रक्त प्रवाह की गति को तीव्र होना तीव्र गति से रक्त प्रवाहित होने से शरीर के विभिन्न भागों में उचित मात्रा में ऊर्जा का संचरण होता है और कार्बन डाइऑक्साइड भी जल्दी बाहर निकल जाती है।

3. कोशिकाओं का अधिक क्रियाशील होना व्यायाम से शरीर की विभिन्न कोशिकाएँ अधिक क्रियाशील हो जाती हैं, जिसके फलस्वरूप शरीर से यूरिया, यूरिक एसिड, लवण आदि पसीने के साथ बाहर निकलने से शरीर चुस्त एवं स्वस्थ होता है।

4. अधिक भूख लगना व्यायाम से शरीर की ऊर्जा का ह्रास होता है, जिसके बाद मनुष्य को पर्याप्त भूख लगती है, तत्पश्चात् सन्तुलित भोजन ग्रहण करने के पश्चात् शरीर को आवश्यक पोषक तत्त्व एवं ऊर्जा पुनः प्राप्त होते हैं।

5. स्फूर्ति व्यायाम से अधिक मात्रा में शरीर में प्राण वायु (ऑक्सीजन) का प्रवेश होता है, जिससे मनुष्य का रक्त उचित अनुपात में शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचता है, जिससे मस्तिष्क तो सुचारु रूप से कार्य करता ही है तथा साथ ही मनुष्य भी स्फूर्ति महसूस करता है।

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UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 1 पोषण एवं सन्तुलित आहार

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Board UP Board
Class Class 12
Subject Home Science
Chapter Chapter 1
Chapter Name पोषण एवं सन्तुलित आहार
Number of Questions Solved 22
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 1 पोषण एवं सन्तुलित आहार

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
सन्तुलित आहार के पोषक तत्वों में से कौन-सा तत्त्व सम्मिलित नहीं है?
(a) प्रोटीन
(b) कार्बोहाइड्रेट
(C) खनिज लवण
(d) पोषण
उत्तर:
(d) पोषण

प्रश्न 2.
पोषक तत्वों का वर्गीकरण निम्न में से किस आधार पर किया जाता है?
(a) प्राथमिक आवश्यकताओं के आधार पर
(b) शरीर निर्माणक पोषक तत्वों के आधार पर
(c) जलवायु परिवर्तन के आधार पर
(d) आन्तरिक ऊर्जा प्राप्ति के आधार पर
उत्तर:
(b) शरीर निर्माणक पोषक तत्वों के आधार पर

प्रश्न 3.
किशोरावस्था में लड़के एवं लड़कियों को क्रमशः कितनी कैलोरी ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं?
(a) 2650 से 2080 कैलोरी ऊर्जा
(b) 2250 से 2600 कैलोरी ऊर्जा
(c) 2600 से 2800 कैलोरी ऊर्जा
(d) 2400 से 2800 कैलोरी ऊर्जा
उत्तर :
(a) 2650 से 2080 कैलोरी ऊर्जा

प्रश्न 4.
रतौंधी रोग किस विटामिन की कमी से होता है?
(a) विटामिन A
(b) विटामिन C
(c) विटामिन K
(d) विटामिन D
उत्तर:
(a) विटामिन A

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 1 अंक, 25 शब्द

प्रश्न 1.
सन्तुलित आहार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
वह आहार जो मनुष्य की पोषण सम्बन्धित सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, सन्तुलित आहार कहलाता है।

प्रश्न 2.
सन्तुलित आहार के पोषक तत्वों का नाम बताइए।
उत्तर:
सन्तुलित आहार के पोषक तत्त्व निम्नलिखित हैं

  1. कार्बोहाइड्रेट
  2. वसा एवं तेल
  3. प्रोटीन
  4. विटामिन
  5. खनिज लवण
  6.  जल आदि।

प्रश्न 3.
सन्तुलित आहार का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
सन्तुलित आहार शारीरिक व मानसिक विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है। इसके अभाव में शारीरिक व मानसिक विकास उपयुक्त तरीके से नहीं हो पाता है।

प्रश्न 4.
दूध को सर्वोत्तम आहार क्यों माना गया है?
उत्तर:
पोषण में दुग्ध को सम्पूर्ण एवं सर्वोत्तम आहार माना गया है। दूध ही एकमात्र ऐसा भोज्य पदार्थ है, जिसका स्थान अन्य कोई भोज्य पदार्थ नहीं ले सकता। दूध शिशुओं के शारीरिक व मानसिक विकास में सहायक है।

प्रश्न 5.
आयोडीन की कमी से होने वाला रोग होता है?
उत्तर:
घेघा आयोडीन की कमी से होने वाला रोग है।

प्रश्न 6.
वसा की अधिकता से कौन-सा रोग होता है?
उत्तर:
वसा की अधिकता से मोटापा हो जाता है, इसके अतिरिक्त इससे उच्च रक्त चाप रोग भी हो जाता है।

प्रश्न 7.
सन्तुलित आहार को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सन्तुलित आहार को प्रभावित करने वाले कारक आयु, लिंग, स्वास्थ्य, क्रियाशीलता तथा विशेष शारीरिक अवस्था आदि हैं।

प्रश्न 8.
लकवा किस विटामिन की कमी से होता है?
उत्तर:
विटामिन B1 की कमी से शरीर में लकवा (Paracysis) की शिकायत हो जाती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न 2 अंक, 50 शब्द

प्रश्न 1.
सन्तुलित आहार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भोजन हमारे जीवन का मूल आधार है। वायु और जल के पश्चात् हमारे लिए भोजन ही सबसे आवश्यक है। विभिन्न खाद्य पदार्थों के मिश्रण से बना वह आहार जो हमारे शरीर को सभी पौष्टिक तत्त्व हमारी शारीरिक आवश्यकताओं के अनुसार उचित मात्रा में और साथ ही शरीर के संचय कोष के लिए भी कुछ मात्रा में पौष्टिक तत्व प्रदान करता है, संतुलित आहार कहलाता है। सन्तुलित आहार के अभाव में मनुष्य का शारीरिक व मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।

प्रश्न 2.
नवजात शिशु के लिए तथा स्कूली बच्चों के लिए सन्तुलित आहार का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
प्रत्येक प्राणी के लिए सन्तुलित आधार की मात्रा का निर्धारण अलग-अलग होता है, जो निम्न प्रकार से है

  1. नवजात शिशु के लिए आहार माँ का दूध नवजात शिशु के लिए एक सर्वोत्तम आहार है। यह शिशु के स्वास्थ्य, शारीरिक वृद्धि तथा जीवन शक्ति के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है, क्योंकि माँ के दूध में सभी आवश्यक तत्त्व; जैसे—प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट्स, लवण, जल तथा विटामिन (B,D) उपस्थित होते हैं।
  2. स्कूली बच्चों का आहार स्कूल जाने वाले बच्चों को अधिक मात्रा में | प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट की आवश्यकता होती है, क्योंकि इस अवस्था में बच्चों की वृद्धि की दर भी बढ़ती रहती है। इन बच्चों को आहार में प्रोटीन, विटामिन, दूध, सब्जियाँ, फल एवं अण्डे आदि पर्याप्त मात्रा में देने चाहिए।

प्रश्न 3.
किशोरावस्था, वयस्क पुरुष व महिला तथा प्रौढ़ावस्था के लिए सन्तुलित आहार का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
प्रत्येक अवस्था में सन्तुलित आहार का निर्धारण अलग-अलग होता है, जो निम्न प्रकार से है

  1. किशोरावस्था में आहार किशोरावस्था में शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही प्रकार के परिवर्तन होते हैं। इस अवस्था में लड़के एवं लड़कियों को क्रमशः 2650 से 2080 कैलोरी ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं।
  2. वयस्क पुरुष व महिला का आहार एक वयस्क पुरुष को महिलाओं की अपेक्षा अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है, क्योंकि इन्हें महिलाओं की अपेक्षा अधिक शारीरिक एवं मानसिक कार्य करने होते हैं, किन्तु गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली स्त्रियों को वयस्क पुरुषों के समान ही अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है।
  3. प्रौढावस्था में आहार इस अवस्था में शरीर को कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह अवस्था 45 वर्ष के पश्चात् आती है। इस अवस्था में शरीर के अंग शिथिल पड़ जाते हैं तथा पाचन संस्थान कमजोर होने लगता हैं।

प्रश्न 4.
पोषक तत्वों की कमी से होने वाली कोई दो बीमारियों के बारे में बताइए।
उत्तर:
पोषक तत्वों की कमी से होने वाली दो बीमारियाँ निम्न प्रकार हैं

1. रक्ताल्पता रक्ताल्पता (एनीमिया) से आशय खून की कमी से होता है।यदि मानव शरीर में लौह खनिज की मात्रा कम हो जाती है तो शरीर में रक्ताल्पता नामक बिमारी हो जाती है। यह लौह युक्त भोजन (आहार) के अभाव में होता है। थकान या कमजोरी महसूस करना इसके प्रमुख लक्षण हैं। इस बिमारी के कारण मानव शरीर में जैविक क्रिया, पाचन क्रिया आदिप्रभावित होती हैं।

2. मरास्मस मरास्मस ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका तात्पर्य है- व्यर्थ करना। इस बिमारी से अधिकांशतः बच्चे ग्रसित है। बच्चों में प्रोटीन की कमी के कारण मरास्मस रोग हो जाता है। इस रोग में शरीर का विकास अवरुद्ध हो जाता है। इसके अतिरिक्त भारहीनता, रक्तहीनता, त्वचा का झुरींदार होना, पेचिश(दस्त) आदि की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 5.
पोषक तत्वों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पोषक तत्त्व वह रसायन होता है, जिसकी आवश्यकता किसी जीव को उसके जीवन और वृद्धि के साथ-साथ उसके शरीर की उपापचय की क्रिया संचालन के लिए आवश्यक होता है और जिसे वह अपने वातावरण से ग्रहण करता है। पोषक तत्व जो शरीर को समृद्ध बनाते हैं। ये ऊतकों का निर्माण और उनकी मरम्मत करते हैं साथ ही शरीर को ऊष्मा और ऊर्जा प्रदान करते हैं और यही ऊर्जा शरीर की सभी क्रियाओं को चलाने के लिए आवश्यक होती है।

पोषक तत्वों का प्रभाव मानव द्वारा ग्रहण किए गए भोजन पर निर्भर करता है। इन सभी के अतिरिक्त एक और पोषक तत्त्व है, जिसकी हमारे शरीर को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आवश्यकता होती है, वह है-सेल्युलोज। यह हमारे शरीर में मेल को गति प्रदान करता है तथा आँतों में क्रमांकुचन की गति को सामान्य बनाए रखता है। यह पौष्टिक तत्त्व हमें सब्जियों व फलों के छिलके, साबुत दालों व अनाजों तथा चोकर आदि से प्राप्त होते हैं। जानवरों में विशेष रूप से इसे पचाने वाला एंजाइम होता है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 5 अंक, 100 शब्द

प्रश्न 1.
सन्तुलित आहार क्या है? सन्तुलित आहार को प्रभावित करने वालेकारक लिखिए।
उत्तर:
सन्तुलित आहार
भोजन हमारे शरीर का मूल आधार है। विभिन्न खाद्य पदार्थों, जिनमें विभिन्न प्रकार के पोषक तत्त्व निहित होते हैं, के मिश्रण से बना वह आहार जो शरीर को सभी पौष्टिक तत्त्व सही अनुपात में प्रदान करे, सन्तुलित आहार कहलाता है। सन्तुलित आहार शरीर के संचय कोष के लिए भी कुछ मात्रा में पौष्टिक तत्त्व प्रदान करता है, जो शरीर में आवश्यकतानुसार स्वयं विभिन्न क्रियाओं के माध्यम से उपयुक्त हो जाते हैं।

सन्तुलित आहार को प्रभावित करने वाले कारक
सन्तुलित आहार अनेक प्रकार के कारकों द्वारा प्रभावित होते हैं। ये कारक निम्नलिखित हैं।

1. आयु सन्तुलित आहार को प्रभावित करने वाला मुख्य घटक ‘आयु’ है। बाल्यावस्था में शारीरिक निर्माण व विकास के लिए सन्तुलित आहार की आवश्यकता आयु के अन्य स्तरों में अधिक होती है।
बच्चों को उनके शरीर के भार की तुलना में प्रौढ़ व्यक्तियों से अधिक भोज्य तत्त्वों की आवश्यकता होती है।
बाल्यावस्था में प्रोटीन, वसा तथा कार्बोहाइड्रेट की आवश्यकता अधिक होती है, जबकि वृद्धावस्था में शरीर संवदेनशील होने के कारण, सुरक्षात्मक तत्वों की अधिक आवश्यकता होती हैं।

2. लिंग स्त्रियों एवं पुरुषों के सन्तुलित आहार में अन्तर होता है। पुरुषों में आकार, भार तथा क्रियाशीलता अधिक होने के कारण महिलाओं की अपेक्षा ऊर्जा की अधिक आवश्यकता होती है। इन कारणों से हुई शारीरिक टूट-फूट अधिक होने के कारण पुरुषों को सुरक्षात्मक तत्त्वों की भी अधिक आवश्यकता होती है, किन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों में यथा गर्भावस्था व दुग्धपान की अवस्थाओं में स्त्रियों को अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।

3. स्वास्थ्य व्यक्ति के स्वास्थ्य की परिस्थितियों के अनुसार भी पोषक तत्त्वों की आवश्यकता प्रभावित होती है। एक स्वस्थ व्यक्ति को सन्तुलित आहार की आवश्यकता केवल उसकी दिनचर्या उचित प्रकार से चलाने के लिए चाहिए, परन्तु एक अस्वस्थ व्यक्ति को सन्तुलित आहार की आवश्यकता शरीर की दैनिक दिनचर्या के साथ-साथ टूटे-फूटे ऊतकों आदि की मरम्मत के लिए भी होती है।

4. क्रियाशीलता व्यक्ति की क्रियाशीलता भी उसके सन्तुलित आहार की आवश्यकता को निर्धारित करती है। अधिक क्रियाशील व्यक्ति को कम क्रियाशील व्यक्ति की अपेक्षा अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

5. जलवायु जलवायु तथा मौसम भी आहार की मात्रा को प्रभावित करते हैं।ठण्डे देश के निवासी ऊर्जा का प्रयोग अपने शरीर का ताप बढ़ाने के लिए करते हैं। इसी कारण उन्हें अधिक सन्तुलित आहार की आवश्यकताहोती है।

6. विशेष शारीरिक अवस्था कुछ विशेष शारीरिक अवस्थाएँ; जैसेगर्भावस्था, दुग्धपान की अवस्था, ऑपरेशन के बाद की अवस्था, जल जाने के बाद की अवस्था तथा रोग के उपचार होने के बाद स्वस्थ होने की अवस्था आदि में सन्तुलित आहार की आवश्यकता बढ़ जाती हैं। गर्भावस्था के दौरान भ्रूण निर्माण के कारण एवं माता के शारीरिक भार में परिवर्तन के कारण पोषक तत्वों की अधिक आवश्यकता होती है। दुग्धपान की अवस्था में लगभग 400 से 500 मिली दूध के निर्माण के कारण माता में सन्तुलित आहार की आवश्यकता बढ़ जाती है। ऑपरेशन तथा जले जाने के बाद की अवस्था में भी निर्माणक तत्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है।

प्रश्न 2.
सन्तुलित आहार की अर्थ बताइए व उसके आयोजन में ध्यान रखने योग्य बातें बताइट।
उत्तर:
सन्तुलित आहार का अर्थ इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 देखें।

सन्तुलित आहार का आयोजन
परिवार के सभी सदस्यों की सन्तुलित आहार की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए उनके लिए सन्तुलित आहार का आयोजन करते समय निम्न बातों का भी ध्यान रखना चाहिए।

  1. भोजन में सभी प्रकार के पोषक तत्त्वों; जैसे-कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज लवण, जल आदि तत्त्वों का सामावेश प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकतानुसार होना आवश्यक है। किसी भी पोषक तत्त्व की न्यूनतम मात्रा के साथ साथ अधिकतम मात्रा भी समान रूप से हानिकारक होती हैं।
  2. भोजन का निर्माण करते समय हमें ध्यान रखना चाहिए कि सभी खाद्य पदार्थ पूर्णतः पक जाएँ, तभी वह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होंगे। कम पका हुआ। व अधिक पका हुआ दोनों ही स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं।
  3. भोजन में प्रतिदिन विविधता होना चाहिए, जिससे कि सभी प्रकार के पोषक.तत्त्वों की आपूर्ति हो सके।
  4. व्यक्ति को प्राय: ताजा भोजन ही आहार के रूप में लेना चाहिए, क्योंकि अधिक समय का पका हुआ भोजन विषैला व दुर्गन्ध युक्त हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप शरीर में अनेक प्रकार के विकार के उत्पन्न होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

प्रश्न 3.
विभिन्न पोषक तत्वों के नाम बताइए तथा उनकी प्राप्ति के स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भोजन के वे सभी तत्व जो शरीर में आवश्यक कार्य करते हैं, उन्हें पोषक तत्त्व कहते हैं। यदि ये पोषक तत्त्व हमारे भोजन में उचित मात्रा में न हों, तो हमारा शरीर अस्वस्थ हो जाएगा। ये आवश्यक तत्त्व जब हमारे शरीर में आवश्यकतानुसार (सही अनुपात में) उपस्थित होते हैं, तब उस अवस्था को सर्वोत्तम पोषण या समुचित पोषण की संज्ञा दी जाती है। ये पोषक तत्व निम्नलिखित हैं।

  1. काबोहाइड्रेट
  2. वसा एवं तेल
  3. प्रोटीन
  4. खनिज लवण
  5. विटामिन
  6. जल

पोषकतत्त्वों का वर्गीकरण
कार्यों के आधार पर पोषक तत्वों का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया। जाता है

  1. ऊर्जादायक पोषक तत्त्व कार्बोहाइड्रेट, वसा|
  2. शरीर निर्माणक पोषक तत्त्वं प्रोटीन एवं खनिज लवण।
  3. शरीर संरक्षक पोषक तत्त्व खनिज लवण एवं विटामिन।

पोषक तत्वों के आहारीय स्रोत
पोषक तत्वों के आहारीय स्रोत निम्न प्रकार से हैं

  1. कार्बोहाइड्रेट चावल, गेहूँ, ज्वार, बाजरा, मक्का, साबूदाना, जौ, मैदा, मुरमुरे, चूड़ा, दलिया, बिस्किट, डबल रोटी, गुड़, चीनी, शहद, किशमिश, खजूर, अंजीर, दालें, शकरकन्द, जमींकन्द, अरवी, जैम-जैली, मुरब्बे, मिठाइयाँ आदि।
  2. वसा एवं तेल घी, मक्खन, मलाई, मार्गरीन, चर्बी, चर्बीयुक्त मांस, अण्डे को पीला भाग, मछली, वनस्पति घी, सभी प्रकार के तिलहन तथा खाने योग्य तेल, नारियल, मूंगफली, बादाम, अखरोट, पिस्ता इत्यादि।
  3. प्रोटीन दूध तथा दूध से बनी चीजें, अण्डा, मांस, मछली, यकृत, दालें, फलियाँ, सोयाबीन, राजमा, मटर, मूंगफली, काजू, बादाम, तिल इत्यादि।
  4. खनिज लवण पोषक तत्त्वों के खनिज लवण निम्नलिखित हैं।
    • कैल्शियम दूध, दही, अण्डे, पालक, मैथी, बथुआ, प्रत्येका धनिया, पुदीना, सलाद के पत्ते, सूखी मछली, पनीर, खोआ, तिल इत्यादि।
    • फास्फोरस दूध, अण्डा, मांस, मछली, पनीर, अनाज, दालें, गिरी, पत्तेदार सब्जियाँ एवं तिलहन।
    • लौह-लवण मांस, मछली, अण्डा, यकृत, अनाज, फलियाँ, प्रत्येकी-पत्ती वाली सब्जियाँ, गुड़, किशमिश, खजूर, अंजीर, काष्ठफल इत्यादि।
    • पोटैशियम अनाज, दालें, जड़ वाली सब्जियाँ, दूध, दही, छाछ, पनीर, अण्डा, सोयाबीन, मांस, मछली।
    • सोडियम नमक, जल एवं लगभग सभी खाद्य पदार्थों में विशेषकरअनाज और प्रत्येक पत्तेदार सब्जियों में।
    • आयोडीन जल, प्रत्येके पत्ते वाली सब्जियाँ, मछली व आयोडीनयुक्त नमक।
  5.  विटामिन पोषक तत्वों में विटामिन इस प्रकार हैं
    • विटामिन‘ मछली के यकृत का तेल, मक्खन, घी, अण्डा, दूध, पपीता, कद्दू, आम आदि।
    • विटामिनडी‘ मछली का यकृत, अण्डा, मक्खन, घी, दूध सूर्य की किरणें आदि।
    • विटामिनबी‘ (के अन्तर्गत 12 विटामिन आते हैं, जिनमें कुछप्रमुख हैं- बी1, बी2, बी6, बी12) सम्पूर्ण अनाज, खमीर, साबुत तथा छिलके वाली दालें, सोयाबीन, मूंगफली, तिल, मटर, फलियाँ, मांस, मछली, दूध, अण्डे की जर्दी, पत्तेदार सब्जियाँ आदि।
    • विटामिनसी‘ आँवला में (अत्यधिक), अमरूद, नींबू, सन्तरा, रसभरी, अनन्नास, पपीता, टमाटर, सहजन की पत्तियाँ, धनिया, करमी का साग, चौलाई का साग, अंकुरित मूंग, चना आदि।
    • विटामिन‘ अण्डा, गेहूं, सोयाबीन, तेल आदि ।
    • विटामिनके‘ सोयाबीन, हरी सब्जियाँ, टमाटर, दूध आदि।

प्रश्न 4.
‘दूध एक सम्पूर्ण आहार है। इस कथन की विवेचना कीजिए।
अथवा
दूध सम्पूर्ण आहार है, क्यों?
अथवा
दूध में पाए जाने वाले पोषक तत्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दूध को सम्पूर्ण एवं सर्वोत्तम आहार माना गया है। यह पूर्ण एवं सुपाच्य आहार है। शिशुओं के शारीरिक विकास एवं वृद्धि हेतु उनके सम्पर्क में आने वाला पहला भोज्य पदार्थ दूध ही होता है। शैशवावस्था से लेकर जीवन के प्रत्येक पड़ाव में शारीरिक वृद्धि, विकास एवं संरक्षण हेतु सभी आवश्यक पौष्टिक तत्त्व उचित मात्रा एवं अनुपात में दूध में उपस्थित होते हैं। विभिन्न स्तनधारियों की स्तनग्रन्थि का स्राव ही दूध कहलाता है; जैसे-गाय, भेड़, बकरी, ऊँट आदि।

दूध में अधिकांश मात्रा में जल विद्यमान होता है, जिसकी मात्रा लगभग 87.25% होती है। शेष भाग ठोस पदार्थ होता हैं, जिनमें वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि होते हैं। कुछ मात्रा में दूध में घुलनशील गैस, एंजाइम तथा रंग कण भी विद्यमान होते हैं।

दूध में पोषक तत्वों का अनुपात
पोषक तत्वों का अनुपात दूध के संगठन में निम्न प्रकार से हैं

1. जल दवा में अधिकांश मात्रा में जल होता है। दूध में लगभग 80-90% जल विद्यमान होता है, जिसमें विभिन्न पोषक तत्त्व निहित होते हैं। ये तत्त्व घुलित अवस्था अथवा पायस अवस्था में जल में पाए जाते हैं।

2. वसा दृध में 3.5% -7.5% तक वसा होती है, जिसका गठन जटिल लिपिड्स के मिश्रण से होता है। दूध का विशेष स्वाद दूध में उपस्थित वसा के कारण ही होता है। दूध में संतृप्त (62%) व असंतृप्त (37%) वसीय अम्ल उपस्थित होते हैं, जिनमें 426 कार्बन अणु श्रृंखला तक होते हैं। लघु श्रृंखला वाले वसीय अम्ल; जैसे—पारिटिक, ऑलिक और न्यूटायरिक अम्ल पाए जाते हैं। इसी कारण दूध में विशिष्ट गन्ध व फ्लेवर उत्पन्न होते हैं। वसा पायस के रूप में होने के कारण दूध में सुगमता से पच जाती है। भैंस के दूध में सर्वाधिक वसा होते हैं।

3. प्रोटीन दूध के मुख्य प्रोटीन हैं-केसीन, लैक्टोएल्यूमिन एवं लैक्टोग्लोब्यूलिन। यह प्रोटीन उत्तम प्रकार की प्रोटीन होती है। प्रमुख कार्बोज लैक्टोज शर्करा है। दूध का लैक्टोज शरीर द्वारा कैल्शियम तथा फास्फोरस के अवशोषण में सहायक होता है। लैक्टोज शर्करा आँत में लैक्टोबेसीलस जीवाणु की क्रिया से लैक्टिक अम्ल का निर्माण करती है। इसी कारण दूध से दही जमती है। यह आँतों में कोमल दही बनाती है व दूध की सुपाच्यता को बढ़ाती है। Ph को कम करके कैल्शियम सहित अन्य खनिज लवणों के अवशोषण में सहायता प्रदान करती है। 100 ग्राम दूध में 2.5-3.5 ग्राम प्रोटीन पाई जाती हैं।

4. खनिज तत्व दूध मुख्यतः कैल्शियम व फास्फोरस का उत्कृष्ट साधन है। इसका अवशोषण शीघ्रता से शरीर में हो जाता है। कैल्शियम की आवश्यकता आपूर्ति हेतु हमें प्रतिदिन दूध का सेवन करना चाहिए। दूध में लोहा, ताँबा, जस्ता, मैंगनीज, सिलिका तथा सल्फर भी अल्प मात्रा में घुलनशील अवस्था में पाए जाते हैं। दूध में खनिज लवणों की मात्रा 0.3% से 0.8% तक होती है।

5. विटामिन दूध में लगभग सभी प्रमुख विटामिन उपस्थित रहते हैं। घुलनशील विटामिन ‘ए’, ‘डी’, ‘इ’ एवं ‘के’ दूध की वसा में पाए जाते हैं। दूध में विटामिन ‘बी’ समूह का भी अच्छा साधन हैं। थायमिन साधारण मात्रा में ही पाया जाता है, परन्तु धूप व रोशनी के सम्पर्क में आने से लगभग आधा राइबोफ्लेविन नष्ट हो जाता है। दूध में विटामिन ‘सी’ व ‘डी’ अत्यन्त ही न्यून मात्रा में होता है और गर्म करने अथवा वायु के सम्पर्क में आने से नष्ट हो जाता है।

6. एंजाइम एंजाइम भी कुछ मात्रा में दूध में उपलब्ध होते हैं। एंजाइम एक आंगिक उत्प्रेरक है, जोकि रासायनिक अभिक्रिया को तीव्रता प्रदान करते हैं। इसी कारण ज्यादा देर तक बिना गरम किए दूध को रखने पर वह फट जाता है या खट्टा हो जाता है। दूध में उपस्थित लाइपेज, एंजाइम वसा विघटन में, अमायलेस, काज विघटन में, प्रोटीएस, प्रोटीन विघटन में वे लैक्टोज एंजाइम दूध के लैक्टोज विघटन में सहायक है।

प्रश्न 5.
पोषण को परिभाषित करते हुए कुपोषण के कारण व लक्षण पर प्रकाश डालिए।
अथवा
पोषण व कुपोषण को परिभाषित कीजिए एवं कुपोषण के कारण व लक्षणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
पोषण की परिभाषा देते हुए भोजन के कार्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पोषण का अर्थ एवं परिभाषा
संसार का प्रत्येक व्यक्ति जीवन जीने व अपनी दिनचर्या चलाने के लिए भोजन ग्रहण करता है। उस भोजन की मात्रा प्रत्येक आयु, वर्ग, शारीरिक स्थिति, जलवायु, देश, क्रियाशीलता आदि तत्त्वों से प्रभावित होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति की पोषक तत्वों की माँग, अन्य किसी व्यक्ति से भिन्न होती है।

पोषण विज्ञान द्वारा हम यह ज्ञात कर सकते हैं कि हमें अपनी शारीरिक स्थिति के अनुसार कैसा आहार ग्रहण करना चाहिए, ताकि हमें उस आहार में निहित पोषक तत्त्वों का पूर्ण लाभ मिल सके। आहार विज्ञान पोषण विज्ञान को प्रायोगिक तरीके से अपनाने का ज्ञान प्रदान करता है। अतः इसके द्वारा व्यक्ति किसी भी व्यक्ति के लिए उपयुक्त आहार नियोजन कर सकता है।

टर्नर के अनुसार, “पोषण उन प्रक्रियाओं का संयोजन है, जिनके द्वारा जीवित प्राणी अपनी क्रियाशीलता को बनाए रखने के लिए तथा अपने अंगों की वृद्धि एवं उनके पुनर्निर्माण हेतु आवश्यक पदार्थों को प्राप्त करता है व उनका उपभोग करता है। इस प्रकार पोषण शरीर में भोजन के विभिन्न कार्यों को करने की सामूहिक प्रक्रिया का ही नाम है।

पोषक के प्रकार
शरीर को ऊर्जा एवं पोषण देने वाला आहार में अनेक रासायनिक तत्त्वों का मिश्रण होता है। इन्हीं रासायनिक तत्वों को मनुष्य की आवश्यकताओं की दृष्टि से 6 मुख्य समूहों में बाँटा गया है।

  1. प्रोटीन
  2. कार्बोज (कार्बोहाइड्रेट)
  3. वसा
  4. विटामिन्स
  5. खनिज लवण
  6. जल

कुपोषण
जब व्यक्ति अपनी शारीरिक संरचना के अनुसार भोजन ग्रहण नहीं करता, तब वह उस भोजन के पोषक तत्वों का पूर्णतः लाभ नहीं उठा पाता व उसका शारीरिक विकास उसकी आयु अनुसार नहीं होता और इससे उसकी कार्यक्षमता भी पूरी नहीं होती, तो वह कुपोषण कहलाता है।

भारतवर्ष में कुपोषण व उसके कारण
जब व्यक्ति को उसकी शारीरिक आवश्यकताओं के अनुसार पोषक तत्वों से भरपूर भोजन नहीं मिलता या ऐसा भोजन मिलता हो जिसमें उसकी आवश्यकता से अधिक पोषक तत्त्व हों, तो उसके शरीर में पोषक तत्वों की स्थिति को कुपोषण कहते हैं। दूसरे देशों की अपेक्षा पोषण विज्ञान का हमारे देश की जनसंख्या को ज्ञान न होने के कारण हमारे देश में कुपोषण अधिक है और इसी कारण यहाँ मृत्यु-दर भी अधिक है। पोषक तत्त्वों के अभाव के कारण व्यक्ति अविकसित व रोगग्रस्त हो जाता है।

स्वास्थ्य की इस दशा के प्रमुख कारण निम्न हैं।

  1. खाद्य पदार्थों का अभाव
  2. निर्धनता
  3. अशिक्षा व अज्ञानता
  4. मिलावट
  5. जनसंख्या की अधिकता

कुपोषण के लक्षण

  • शरीर – छोटा, अपर्याप्त रूप से विकसित
  • भार – अपर्याप्त भार, आवश्यकता से अधिक या कम
  • मांसपेशियाँ – छोटी या अविकसित, कम कार्यशील
  • त्वचा तथा रंग-रूप – झुर्रिया युक्त,पीलापन लिए भूरे रंग की त्वचा
  • नेत्र – अन्दर धंसी हुई निर्जीव आँखें ।
  • निद्रा – निद्रा आने में कठिनाई

भोजन के कार्य
मनुष्य जब भोजन ग्रहण करता है, तब वह उस भोजन में निहित पोषक तत्वों को ग्रहण करता है। जब इन पौष्टिक तत्त्वों का सम्पादन शरीर में होता है, तो शरीर में इनका निम्न प्रभाव पड़ता है।

  1. शरीर का सुविकसित निर्माण।
  2. कार्यक्षमता बढ़ाने हेतु ऊर्जा प्रदान करना।
  3. शरीर के प्रत्येक अंग को उसकी आवश्यकता के अनुसार पोषक तत्व पहुँचाकर क्रियाशील बनाए रखना।
  4. विभिन्न कार्यों को करते हुए या आयु अनुसार शरीर में हुई टूट-फूट की पूर्ति करना।
  5. शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना।

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