UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 14 रसोईघर की व्यवस्था, देख-रेख तथा सफाई

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रसोईघर से आप क्या समझती हैं ? रसोईघर की व्यवस्था में मुख्य रूप से ध्यान में रखने योग्य बातों का वर्णन कीजिए।
या
रसोईघर की व्यवस्था आप कैसे करेंगी ? विस्तारपूर्वक समझाइए। [2010]
या
रसोईघर की व्यवस्था एवं सजावट आप कैसे करेंगी? वर्णन कीजिए। [2016]
या
आदर्श रसोईघर क्या है? [2008, 11, 12]
या
रसोईघर की सफाई, व्यवस्था एवं देख-रेख के समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी? [2007, 13]
या
एक आदर्श रसोईघर/आधुनिक रसोईघर की व्यवस्था के बारे में लिखिए। [2012, 13, 15, 16]
उत्तर:
रसोईघर का अर्थ

परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए प्रतिदिन भोजन तैयार किया जाता है। भोजन पकाना एवं तैयार करके रखना एक महत्त्वपूर्ण घरेलू कार्य है। इस महत्त्वपूर्ण कार्य को करने के लिए घर पर एक अलग स्थान निर्धारित किया जाता है। इस स्थान को ही रसोईघर (UPBoardSolutions.com) कहते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि घर का वह भाग या कक्ष रसोईघर कहलाता है, जहाँ भोजन पकाया तथा पकाए गए भोजन को संगृहीत किया जाता है। रसोईघर में ही विभिन्न खाद्य-सामग्रियों को एकत्र करके रखा जाता है। रसोईघर, घर का विशेष महत्त्वपूर्ण भाग होता है। इसके मुख्य रूप से दो कारण हैं- प्रथम कारण यह है कि रसोईघर में ही परिवार के सभी सदस्यों के लिए भोजन पकाया जाता है। इसके अतिरिक्त दूसरा कारण है कि गृहिणी को दिनभर में काफी अधिक समय तक रसोईघर में ही रहना पड़ता है। यही कारण है कि अब रसोईघर की व्यवस्था को विशेष महत्त्व दिया जाता है।

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रसोईघर की व्यवस्था के अन्तर्गत ध्यान रखने योग्य बातें

रसोईघर की सुव्यवस्था बनाये रखना गृहिणी का परम कर्तव्य माना जाता है। प्रत्येक सुगृहिणी का रसोईघर अत्यधिक सुव्यवस्थित होता है। रसोईघर की व्यवस्था को देखकर गृहिणी की रुचि एवं कार्य-निपुणता का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। यदि रसोईघर की व्यवस्था सही होती है, तो गृहिणी को भोजन पकाने, परोसने तथा समेटने में पर्याप्त सुविधा होती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही आजकल रसोईघर की व्यवस्था की ओर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। रसोईघर की व्यवस्था के अन्तर्गत मुख्य रूप से निम्नलिखित बातों को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाना चाहिए

1. सभी वस्तुएँ निर्धारित स्थान पर रखें:
रसोईघर की व्यवस्था के अन्तर्गत सबसे मुख्य बात यह है कि सभी वस्तुएँ सही एवं निर्धारित स्थान पर ही रखी जानी चाहिए। प्रत्येक वस्तु ऐसे स्थान पर रखी जानी चाहिए, जहाँ से उसे प्रयोग करने के लिए सुविधापूर्वक उठाया जा सके। उदाहरण के लिए-तवा, चिमटा, चाकू, छलनी, कद्दूकस आदि वस्तुओं का स्थान निर्धारित होना चाहिए तथा प्रयोग करने के उपरान्त पुनः उन्हें उनके निर्धारित स्थान पर रख देना चाहिए। वस्तुओं के अतिरिक्त रसोईघर के कूड़े को भी जहाँ-तहाँ नहीं फेंकना चाहिए। रसोईघर के कूड़े को वहीं कोने में रखे एक ढक्कनदार डिब्बे में डालते रहना चाहिए। चोकर, सब्जी.एवं फलों के छिलके, जूठन आदि को शीघ्र ही इस डिब्बे में डाल देना चाहिए।

2. ईंधन के साधन की उचित व्यवस्था:
रसोईघर की व्यवस्था में चूल्हे अथवा स्टोव या कुकिंग गैस का विशेष महत्त्व है। यदि चूल्हे पर भोजन बनाने की व्यवस्था है तो चूल्हा बिल्कुल ठीक होना चाहिए, उसका कोई एक कोना अथवा अन्य कोई भाग टूटा हुआ नहीं होना चाहिए। चूल्हे को नित्य ही मिट्टी से पोतकर साफ रखना चाहिए। यदि मिट्टी के तेल के स्टोव पर कार्य करना है तो इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि स्टव ठीक हो। प्रायः घरों में स्टोव खराब या बिगड़े ही रहते हैं। स्टोव में मैला तेल डालने से वे बार-बार बन्द हो जाते हैं। स्टोव को खोलने के लिए बार-बार पिन का प्रयोग करना पड़ता है। इससे झुंझलाहट भी होती है तथा परेशानी भी। अत: रसोईघर की व्यवस्था के अन्तर्गत ध्यान रहे कि आपका स्टोव सदैव ठीक रहे। खाना पकाना प्रारम्भ करने से पूर्व ही देख लेना चाहिए कि स्टोव में पर्याप्त तेल है या नहीं। यदि तेल कम हो तो कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व स्टोव में तेल डाल लेना चाहिए। यदि खाना बनाते समय बीच में ही तेल समाप्त हो जाए तो अत्यन्त असुविधा होती है। स्टोव के अतिरिक्त अनेक घरों में गैस के चूल्हे अथवा बिजली के हीटर पर भी खाना बनाया जाता है। गृहिणी को चाहिए कि इन उपकरणों पर कार्य करने से पहले इनकी जॉच भली-भाँति कर लें। इनका प्रयोग करने में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, अन्यथा कभी-कभी दुर्घटना होने की भी आशंका रहती है।

3. खाद्य-सामग्री को सँभालकर रखना:
रसोईघर की व्यवस्था के अन्तर्गत सभी प्रकार की खाद्य-सामग्री को सँभालकर रखने का भी विशेष महत्त्व है। सभी वस्तुओं को ढककर रखना चाहिए। घरों में प्राय: बिल्ली, चूहे अथवा चिड़िया आदि पक्षी रसोईघर के आस-पास मँडराते रहते हैं। अत: यदि आपकी खाद्य-सामग्री सुरक्षित नहीं है तो ये घरेलू-जीव उसमें मुँह मार सकते हैं। इसी प्रकार कॉकरोच, छिपकली आदि कीटों से खाद्य-वस्तुओं को बचाकर रखना भी रसोईघर की व्यवस्था में ही सम्मिलित है। रसोईघर में अनेक (UPBoardSolutions.com) वस्तुएँ डिब्बों में भी रखी जाती हैं। डिब्बे साफ एवं करीने से रखे रहने चाहिए। डिब्बे पर कागज का लेबिल चिपकाकर, उसमें रखी गयी वस्तु का नाम अवश्य लिख देना चाहिए। ऐसा करने से ढूँढ़ने की परेशानी नहीं होती तथा समय भी बच जाता है।

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4. बर्तनों की सफाई:
रसोईघर की व्यवस्था के अन्तर्गत बर्तनों की सफाई की व्यवस्था का भी उल्लेखनीय महत्त्व है। सामान्यतया घरों में, बर्तन रसोईघर में ही या उसके निकट के बरामदे अथवा आँगन में माँजने का स्थान निर्धारित किया जाता है। बर्तन साफ करने का स्थान पक्का होना चाहिए। यदि बैठकर बर्तन साफ करने हों, तो फर्श पर एक हौदी या मुंडेर-सी बना लेनी चाहिए, जिससे बर्तन धोने पर गन्दा पानी सब ओर न फैलने पाये। बर्तन रोख, साबुन, विम अथवा सोडे से साफ किये जाते हैं। स्टील के बर्तनों को विम से ही साफ करना चाहिए। इससे उन पर खरोंचे नहीं पड़तीं तथा उनकी चमक भी फीकी नहीं पड़ती। बर्तन धोने के पाउडर, टिकिया आदि को किसी प्लास्टिक के डिब्बे में रखना चाहिए। विम आदि को गीला होने से बचाकर रखना चाहिए, जिससे वह जमकर गाँठयुक्त न हो जाए। राख को भी सूखा रखने का प्रयास करना चाहिए। वैसे आजकल अधिकांश घरों में बर्तन साफ करने के लिए आधुनिक ढंग ही प्राय: अधिक पसन्द किये जाते हैं जिसके अन्तर्गत खड़े होकर ही बर्तन साफ किये जाते हैं। खड़े होकर बर्तन साफ करने के लिए दीवार के साथ एक सीमेण्ट अथवा चीनी-मिट्टी की साफ-सुथरी सिंक लगी रहती है। सिंक के साथ ही नल होता है। सभी बर्तन सिंक में ही ए जाते हैं। सिंक के निचले भाग में एक पाइप लगा रहता है जहाँ से गन्दा पानी बाहर निकल जाता है। सिंक पर बर्तन साफ करने से बड़ी सुविधा होती है। इससे न तो कपड़े खराब होते हैं और (UPBoardSolutions.com) न ही झुककर बैठना पड़ता है।
उपर्युक्त विवरण द्वारा रसोईघर की व्यवस्था का संक्षिप्त परिचय प्राप्त हो जाता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि वह रसोईघर व्यवस्थित कहलाएगा जिसमें कार्य करना सुविधाजनक हो तथा सब ओर स्वच्छता एवं सुथरापन प्रतीत हो। ऐसे रसोईघर में कार्य करना भी अच्छा लगता है, देखने वालों को प्रसन्नता होती है तथा गृहिणी की भी प्रशंसा होती है।

प्रश्न 2:
भारतीय एवं पाश्चात्य शैली की व्यवस्था के रसोईघरों के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
या
भारतीय व विदेशी शैली के रसोईघर की व्यवस्था में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए। [2011]
या
या
आधुनिक रसोईघर का वर्णन कीजिए। [2016]
या
रसोईघर की देशी और विदेशी शैलियों की व्यवस्था की विवेचना कीजिए। [2009]
या
रसोईघर की आधुनिक शैली और भारतीय शैली में अन्तर बताइए। [2012, 13, 14, 15, 16, 18]
उत्तर:
रसोईघर के प्रकार

घर में अन्य कमरों के समान ही रसोईघर भी मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। प्रथम प्रकार के रसोईघर को भारतीय शैली का रसोईघर तथा द्वितीय प्रकार के रसोईघर को विदेशी या पाश्चात्य शैली का रसोईघर कहा जाता है। रसोईघरों के इन दोनों प्रकारों का सामान्य परिचय निम्नलिखित है

1. भारतीय शैली का रसोईघर:
भारतीय पद्धति में गृहिणी पटरे या भूमि पर बैठकर खाना बनाती थी। खाना पकाने के लिए चूल्हे का प्रयोग किया जाता था। प्राचीनकाल में प्रत्येक घर में इस पद्धति का प्रयोग किया जाता था। आजकल यह पद्धति गाँवों तथा निर्धन परिवारों तक ही सीमित होकर रह गयी है। भारतीय (UPBoardSolutions.com) शैली में सदस्यों को भूमि पर बैठकर भोजन परोसा जाता है। बर्तन इत्यादि की सफाई के लिए रसोईघर में एक ओर नल अथवा पानी का प्रबन्ध होता है, जहाँ पर पटरे पर बैठकर गृहिणी बर्तनों की सफाई करती है। बर्तन, मसाले व खाद्य-सामग्री रखने के लिए कम ऊँचाई की अलमारियाँ प्रयोग में लायी जाती हैं।
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दोष-भारतीय शैली के रसोईघर में निम्नलिखित दोष हैं

  1. पटरे पर बैठकर भोजन पकाने से गृहिणी के पेट पर दबाव पड़ता है।
  2. गृहिणी को बीच-बीच में सामान लेने के लिए उठना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप उसे थकान अधिक होती है।
  3. चूल्हे व अँगीठी के प्रयोग में धुआँ उत्पन्न होता है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा बर्तनों इत्यादि को काला करता है।
  4. घर के सदस्य प्रायः भोजन करने के समय जूते, चप्पल आदि पहनकर रसोईघर में आ जाते हैं, जिससे गन्दगी फैलती है।

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नियम:
भारतीय पद्धति के रसोईघर के उपर्युक्त दोषों के निवारण के लिए निम्नलिखित नियमों का कठोरतापूर्वक पालन किया जाना चाहिए

(i) रसोईघर में वायु के पारगमन की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
(ii) धुएँ के निष्कासन के लिए उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए।
(iii) घर के सदस्यों को जूते वे चप्पल उतारकर रसोईघर में प्रवेश करना चाहिए।

2. विदेशी शैली का रसोईघर:
विदेशी पद्धति में गृहिणी रसोईघर में खड़े होकर भोजन तैयार करती है। रसोईघर के पास भोजन-कक्ष होता है, जहाँ पर घर के सदस्य खामा खाने के लिए मेज व कुर्सियों का उपयोग करते हैं। इस प्रकार के रसोईघर में गृहिणी की कमर की ऊँचाई तक की मेज अथवा स्लैब होती है, जिस पर गैस का चूल्हा रखा होता है। स्लैब के बाईं ओर बर्तन इत्यादि धोने के लिए एक सिंक लगी होती है तथा दूसरी ओर खाद्य-सामग्री, मसाले, दाल इत्यादि रखने के लिए अलमारी अथवा रेक्स (UPBoardSolutions.com) बनी होती हैं। अन्य रेक्स में काँच के बर्तन व अन्य सम्बन्धित सामग्री रखी होती है। सफाई की दृष्टि से स्लैब्स प्रायः चिकने पत्थर के बनाए जाते हैं।
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गुण:
आधुनिक गृहिणी प्रायः विदेशी शैली का रसोईघर ही पसन्द करती है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

  1. खड़े होकर खाना बनाने में थकान कम होती है।
  2. बार-बार उठने-बैठने की बचत होने के कारण गृहिणी को अपेक्षाकृत कम श्रम करना पड़ता है।
  3. सिंक में बर्तन धोने से तथा स्लैब्स चिकने पत्थर के बने होने से रसोईघर में सफाई की उत्तम व्यवस्था रहती है।
  4. खाना पकाने की गैस के उपयोग से रसोईघर में धुआँ नहीं उत्पन्न होता है; अत: बर्तन आदि कम काले होते हैं।

उपर्युक्त विवरण द्वारा भारतीय एवं विदेशी शैली के रसोईघरों का अन्तर स्पष्ट हो जाता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि भारतीय शैली के रसोईघर में सभी कार्य बैठकर किए जाते हैं, जबकि विदेशी शैली के रसोईघर में सभी कार्य खड़े होकर किए जाते हैं। विदेशी शैली को रसोईघर अधिक साफ, सुविधाजनक तथा व्यवस्थित होता है, अत: अधिकांश गृहिणियाँ विदेशी शैली के रसोईघर ही
अधिक पसन्द करती हैं।

प्रश्न 3:
रसोईघर में प्रयुक्त किए जाने वाले चूल्हों का वर्णन कीजिए।
या
विभिन्न प्रकार के ईंधनों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए। दोषपूर्ण ईंधन का गृहिणी के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
या
कुकिंग गैस के प्रयोग में क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए? [2008, 10, 11]
या
गैस स्टोव का प्रयोग करने गैस स्टोव का प्रयोग करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? [2010, 11, 12, 14, 16]
या
गैस के चूल्हे के क्या लाभ हैं? [2008, 10, 12]
या
रसोई गैस की उपयोगिता लिखिए। [2015]
या
गैस स्टोव पर खाना पकाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? [2010, 11, 12, 13, 14, 16]
उत्तर:
भोजन पकाने अर्थात् पाक-क्रिया में सर्वाधिक आवश्यक साधन ईंधन है। ईंधन से उत्पन्न ताप द्वारा ही पाक-क्रिया चलती है। ईंधन व चूल्हे का परस्पर गहन सम्बन्ध होता है। ईंधन के प्रकार के
आधार पर चूल्हे का प्रयोग किया जाता है।

1. चूल्हे:
हमारे देश में विभिन्न प्रकार के चूल्हे प्रयोग में लाए जाते हैं, जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं

(क) साधारण चूल्हा:
यह अंग्रेजी भाषा के अक्षर ‘यू’ के आकार में मिट्टी अथवा ईंटों से बनाया जाता है। चूल्हे के ऊपर पकाने की सामग्री किसी बर्तन में डालकर रखी जाती है तथा नीचे लकड़ियाँ जलाई जाती हैं। यह चूल्हा धुआँ उत्पन्न करने के कारण गृहिणी व अन्य सदस्यों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

(ख) हैदराबादी चूल्हा:
यह चूल्हा अंग्रेजी भाषा के अक्षर ‘एल’ के आकार का होता है। इसको मिट्टी की बन्द नाली के समान बनाया जाता है। इसका एक सिरा लकड़ियाँ लगाने के लिए खुला रखा जाता है तथा दूसरा । सिरा बन्द रहता है। बन्द सिरे के ऊपर एक चिमनी लगाई जाती है, जोकि रसोई की छत से (UPBoardSolutions.com) बाहर तक गई होती है। चिमनी के ऊपरी सिरे पर एक छतरी लगाई जाती है, जोकि पानी तथा कूड़ा-करकट इत्यादि को चिमनी में जाने से रोकती है। इसकी सतह पर तीन या चार स्थानों पर छिद्र होते हैं, जिन पर विभिन्न वस्तुएँ एक ही समय में पकाई जा सकती हैं।
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विशेषताएँ:
यह चूल्हा अन्य सभी चूल्हों से निम्नलिखित विशेषताओं के कारण उत्तम रहता है

  1. इससे उत्पन्न धुआँ चिमनी द्वारा रसोईघर से बाहर निकल जाता है।
  2. इस चूल्हे की सम्पूर्ण ऊष्मा उपयोग में आने के
  3. इस चूल्हे पर एक ही समय में कई वस्तुओं को पकाया जा सकता है। | लकड़ी का चल्हे के ईंधन के रूप में उपयोग-ईंधन का मुख्य स्रोत लकडियाँ सहज ही उपलब्ध हो जाता है तथा अनुपयोगी लकड़ियों का भी ईंधन के रूप में उपयोग हो जाता है, परन्तु लकड़ी का ईंधन धुआँ उत्पन्न करने के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है तथा कई बार उपयोगी लकड़ियों की बर्बादी भी हो जाती है। लकड़ियों का ईंधन के रूप में उपयोग करने से वन उन्मूलन को बढ़ावा मिलता है तथा पर्यावरण असन्तुलन की समस्या में वृद्धि होती है।

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2. अँगीठी:
विभिन्न उपयोगों के लिए छोटे-बड़े आकार की अँगीठियों का उपयोग किया जाता है। अँगीठी प्राय: ढोल के समान होती है जिसकी ऊँचाई के मध्य में लोहे की जाली लगी होती है। जिसको नीचे से ईंधन को जलने के लिए आवश्यक वायु मिलती है। अँगीठी में कच्चा कोयला (लकड़ी का कोयला) तथा पत्थर का कोयला (खनिज कोयला) ईंधन के रूप में प्रयुक्त होता है। प्रारम्भ में यह धुआँ देता है जिसका निष्कासन प्राय: रसोईघर के बाहर किया जाता है। अत: अँगीठी के प्रयोग से धुएँ से होने वाली हानियों से बचा जा सकता है।

कोयले का अँगीठी के ईंधन के रूप में उपयोग:
खनिज कोयला ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। अनेक उद्योग एवं रेलवे खनिज कोयले पर निर्भर करते हैं; अत: इसका अनावश्यक उपयोग समाज के लिए हानिकारक है। घरों तथा होटलों में इसका उपयोग लाभकारी है। कोयला अधिक ऊष्मा देर तक उत्पन्न करता है; अत: भोज्य पदार्थ इसमें पकने में कम समय लेते हैं। कोयले के ज्वलन से कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी विषैली गैस निकलती है; अत: अँगीठी उपयोग करते समय रसोईघर अथवा कमरे की खिड़कियाँ एवं रोशनदान खुले होने चाहिए अन्यथा दुर्घटना की आशंका रहती है।

3. स्टोव:
स्टोव में मिट्टी के तेल (केरोसीन तेल) का ईंधन के रूप में प्रयोग होता है। ये प्रायः दो प्रकार के होते हैं

(क) बत्तियों वाला स्टोव:
यह टिन का बना हुआ ऐसा स्टोव होता है जिसमें लैम्प के समान सूत से बनी एक या कई बत्तियाँ लगी होती हैं। बत्तियों का निचला सिरा तेल में डूबा रहता है तथा । स्टोव में एक ओर बत्तियों को ऊपर-नीचे करने की यान्त्रिक व्यवस्था होती है। स्टोव के मध्य में बत्तियों के घेरे के अन्दर की ओर एक जालीदार डिब्बा तथा बाहर की ओर ऊपर व नीचे की ओर से खुला टिन का छिद्रमय घेरा लगा होता है। एक ओर बड़ा घेरा इससे बाहर होता है, जो कि तेज वायु को (UPBoardSolutions.com) अन्दर जाने से रोकता है। यदि सावधानीपूर्वक व नियमानुसार इस स्टोव का प्रयोग किया। जाए, तो यह धुआँरहित होता है तथा पर्याप्त ऊष्मा देता है।
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(ख) पम्प वाला स्टोव:
इसमें तेल की टंकी के ऊपर एक बर्नर लगा होता है। टंकी में हवा भरने के लिए एक ओर एक पिस्टन लगा होता है। अधिक वायु को निष्कासित करने के लिए टंकी में एक यान्त्रिक वाल्व लगा होता है। स्टोव का प्रयोग करने के समय बर्नर को लाल होने तक गर्म किया जाता है। अब वायु के दबाव के कारण टंकी का तेल बर्नर तक पहुँचकर गैस में बदल जाता है, तो यह नीले रंग की ज्वाला देता है। यह एक धुआँरहित स्टोव है जो कि बर्तन काले नहीं करता है।
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मिटटी के तेल का स्टोव के ईंधन के रूप में उपयोग:
महत्त्वपूर्ण ईंधन होने के कारण मिट्टी के तेल का अनेक उद्योगों में उपयोग होता है। अतः इसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। अत्यधिक ज्वलनशील होने के कारण इसे सावधानीपूर्वक प्रयोग में लाना चाहिए। प्रयोग करते समय यह हाथों में तथा भोज्य पदार्थों में नहीं लगना चाहिए, क्योंकि यह दुर्गन्धयुक्त व स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होता है। मिट्टी के तेल के जलने से विषैली गैस निष्कासित होती है; अतः बन्द कमरे में स्टोव आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।

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4. गैस का चूल्हा:
आधुनिक ईंधन के रूप में कुकिंग गैस का उपयोग सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसके लिए विशेष प्रकार के बर्नर वाला चूल्हा प्रयोग में लाया जाता है। घरेलू चूल्हे में सामान्यतया दो बर्नर होते हैं। चूल्हा रबड़ की नली द्वारा गैस सिलिण्डर से जुड़ा होता है। एक विशिष्ट यान्त्रिक रचना (रेगुलेटर) के द्वारा चूल्हे में गैस का आदान-प्रदान नियन्त्रित किया जाता है। प्रत्येक बर्नर के लिए गैस को कम अथवा अधिक करने की अलग-अलग व्यवस्था होती है।
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कुकिंग गैस (एल० पी०जी०) का ईंधन के रूप में उपयोग:
एल०पी०जी० एक अत्यन्त उपयोगी ईंधन है। धुआँरहित होने के कारण इसके उपयोग से बर्तन काले नहीं होते। गैस के चूल्हे का ताप इच्छानुसार कम अथवा अधिक किया जा सकता है तथा इसकी सफाई करना भी सरल है। कुकिंग गैस एक अत्यन्त ज्वलनशील पदार्थ है; अतः इसे उपयोग
करते समय निम्नलिखित सावधानियों का पालन करना आवश्यक है

  1. बर्नर में गैस प्रवाहित करते समय इसे तुरन्त जलाना चाहिए।
  2. प्रयोग के बाद चूल्हे की नॉब’च रेगुलेटर द्वारा गैस का सिलिण्डर बन्द कर देना चाहिए।
  3. गैस के रिसने की स्थिति में गैस सप्लाई एजेन्सी के किसी जिम्मेदार व्यक्ति को तुरन्त सूचना देनी चाहिए।
  4. गैस की दुर्गन्ध आने पर रसोईघर की खिड़कियाँ व दरवाजे खोल देने चाहिए। इस संमय विद्युत बटन खोलने या बन्द करने का प्रयास नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसे में हल्का-सा भी स्पार्क दुर्घटना का कारण बन सकता है।
  5. छोटे बच्चों को गैस के चूल्हे का प्रयोग नहीं करने देना चाहिए।

5. विद्युत चूल्हा:
विद्युत ऊर्जा ईंधन का सहज ही उपलब्ध स्रोत है; अत: अनेक घरों में इसे भी प्रयोग में लाया जाता है। बाजार में बने-बनाए विद्युत चूल्हे (हीटर) मिलते हैं। इनमें चीनी-मिट्टी की विशेष प्रकार की प्लेट में एक विशिष्ट धातु का फिलामेण्ट लगा होता है। चीनी की प्लेट विभिन्न (UPBoardSolutions.com) आकार एवं प्रकार के टिन अथवा ढले हुए लोहे के खोल में लगी होती है। विद्युत प्रवाह होने पर फिलामेण्ट रक्त-तप्त अथवा लाल होने तक गर्म होकर ऊष्मा देता है, जिससे भोजन पकाना सम्भव हो पाता है।
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विद्युत का ईंधन के रूप में उपयोग-छोटे:
बड़े लगभग सभी प्रकार के उद्योगों में ऊर्जा-प्राप्ति के लिए विद्युत का प्रयोग होता है। घरों में ईंधन के रूप में विद्युत का उपयोग एक सामान्य बात है। विद्युत का उपयोग करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है
(i) हीटर का उपयोग जल्दबाजी में एवं असावधानी से न करें।
(ii) गीले हाथों से अथवा गीले स्थान पर हीटर का उपयोग न करें।
(iii) किसी विद्युत कुचालक (लकड़ी का पटरा) पर बैठकर ही हीटर पर भोजन बनाएँ।
(iv) उपयोग के बाद हीटर का प्लग सॉकेट से निकाल दें।

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प्रश्न 4:
रसोईघर को सुविधाजनक बनाने के लिए आप किन-किन आधुनिक उपकरणों का प्रयोग करेंगी?
या
मिक्सी के प्रयोग के समय एवं श्रम दोनों की बचत होती है। कैसे? [2009, 12]
या
आधुनिक रसोईघर में समय और शक्ति के बचाव के लिए कौन-कौन से उपकरण काम में लाये जाते हैं ? विवेचना कीजिए। [2007, 09, 10, 11, 13, 14, 15, 18]
या
भोजन पकाने में श्रम एवं समय बचाने वा उपकरणों का चित्र सहित वर्णन कीजिए। [2011, 16]
या
रसोईघर में प्रयोग आने वाले समय और शक्ति बचाने वाले प्रमुख उपकरणों के नाम लिखिए। फ्रिज की देखभाल आप किस प्रकार करेंगी? [2009]
या
रेफ्रिजरेटर की उपयोगिता का वर्णन कीजिए। [2018]
उत्तर:
रसोईघर के लिए उपयोगी आधुनिक उपकरण

आधुनिक युग विज्ञान एवं तकनीक का है। अब जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सुविधा एवं सुगमता के लिए नए-नए यन्त्रों एवं उपकरणों को खोजा एवं अपनाया जाने लगा है। आधुनिक युग में रसोईघर के कार्य को भी सरल एवं सुविधाजनक बनाने के लिए विभिन्न आधुनिक उपकरणों को अपनाया जाने लगा है। इनमें से कुछ यन्त्र अथवा उपकरण विद्युतचालित हैं तथा कुछ अन्य साधूनों से। इन उपकरणों को अपनाने से गृहिणी का कार्य वैज्ञानिक ढंग से होता है तथा उसमें समय एवं परिश्रम भी कम लगता है। रसोईघर के लिए उपयोगी मुख्य उपकरणों का संक्षिप्त परिचय अग्रवर्णित है

1. कुकर:
यह खाद्य-पदार्थों को पकाने का आधुनिक एवं लोकप्रिय,उपकरण है जिसके अन्दर के बन्द स्थान में गर्मी अथवा भाप से भोजन पकाया जाता है। ये प्रायः निम्न प्रकार के होते हैं

(क) प्रेशर कुकर:
यह एक विशेष धातु का बना भगोने जैसा बर्तन होता है, जिसर का ढक्कन पूर्ण रूप से वायुरोधक होता है। भगोने व ढक्कन को वायुरोधक रूप में जोड़ने का कार्य रबर के छल्ले को लगाकर किया जाता है। खाद्य-वस्तुओं को कुकर के अन्दर रखकर तथा थोड़ा पानी। डालकर कुकर को वायुरोधक रूप से बन्द कर देते हैं। अब कुकर को चूल्हे पर चढ़ा दिया जाता है। कुकर के। अन्दर भाप बनती है जिसका ताप लगभग 110° सेण्टीग्रेडतथा दाब 15 पौण्ड होता है। भाप का दबाव अधिक बढ़ जाने पर अतिरिक्त भाप सुरक्षा-वाल्व के द्वारा कुकर से बाहर निकल जाती है।
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इस प्रकार प्रेशर कुकर भोजन पकाने का सबसे सुरक्षित उपकरण है। भाप की ऊष्मा से केवल कुछ मिनटों में ही भोजन भली प्रकार से पक जाता है। अतः प्रेशर कुकर के उपयोग से समय एवं ईंधन की पर्याप्त बचत होती है।

(ख) इकमिक कुकर:
यह एक धातु का बना खोल होता है जिसमें पानी डालकर गर्म करने पर भाप बनती है। इसके खाली स्थान में एक से तीन तक की संख्या में भगोने रखे जा सकते हैं, जिसके फलस्वरूप तीन प्रकार तक के भोज्य पदार्थ एक साथ पकाये जा सकते हैं। कुकर के निचले भाग में अँगीठी बनी होती है। इसमें भी ईंधन की बचत होने के साथ ही भोजन भी स्वादिष्ट बनता है।

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(ग) जलरहित आनन्द कुकर:
इसमें भी । इकमिक कुकर के समान कई वस्तुएँ एक साथ पकायी जा सकती हैं। इसके निचले भाग में अँगीठी होती है। जिसके नीचे भूनी (रोस्ट) जाने वाली वस्तुएँ रखी जा सकती हैं। इस कुकर में पानी रखने की कोई व्यवस्था नहीं होती तथा भोजन शुष्क गर्मी द्वारा पकता है।
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2. विद्युत उपकरण:
विद्युतचालित अनेक उपयोगी उपकरण भोजन तैयार करने व उसके संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। इनके मुख्य उदाहरण निम्नलिखित हैं

(क) विद्युत केतली:
पानी गर्म करने तथा चाय इत्यादि बनाने के लिए विद्युत केतली एक उपयोगी उपकरण है। इसमें केतली के निचले भाग में हीटर लगा होता है। विद्युत प्रवाह करने पर हीटर का फिलामेण्ट गर्म होकर केतली में भरे पानी को ऊष्मा प्रदान करता है।
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(ख) विद्युत टोस्टर:
इस यन्त्र में ब्रेड-टोस्ट रखने के लिए जालीदार स्थान होते हैं जिनके बीच में फिलामेण्ट होता है। विद्युत प्रवाह करने पर फिलामेण्ट गर्म हो जाता है, जिससे टोस्ट सिक जाते हैं। इस प्रकार एक बार में अनेक टोस्ट सेंके जा सकते हैं।
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(ग) विद्युत स्टोव:
खाना पकाने के लिए विभिन्न आकार व प्रकार के स्टोव (हीटर) बाजार में मिलते हैं। इसमें चीनी मिट्टी की प्लेट में फिलानेण्ट लगा रहता है, जो कि विद्युत प्रवाह होने पर गर्म होकर भोजन पकाने के लिए ऊष्मा प्रदान करता है।

(घ) बर्तन धोने की मशीन:
इस प्रकार की मशीन का प्रचलन अभी हमारे देश में केवल बड़े-बड़े घरों अथवा पंचसितारा होटलों तक ही सीमित है। जूठी प्लेट व अन्य बर्तन इस मशीन के अन्दर रख दिए जाते हैं तथा इन पर साबुन का पानी डाल दिया जाता है। विद्युत प्रवाह करने पर बर्तन भली प्रकार से (UPBoardSolutions.com) साफ हो जाते हैं। यह मशीन महँगी अवश्य है, परन्तु इससे समय व शक्ति दोनों की बचत होती है।

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(ङ) खाना पकाने की मशीन या कुकिंग रेन्ज:
विद्युत एवं कुकिंग गैस दोनों से चालित कुकिंग रेन्ज बाजार में उपलब्ध है। कुकिंग रेन्ज धातु के बड़े डिब्बे के समान होती है जिसमें एक से अधिक बर्नर लगे होते हैं। इन पर एक अथवा एक साथ कई वस्तुएँ इच्छानुसार पकाई जा सकती हैं। कुकिंग रेन्ज में पकाने की कई विधियों का एक साथ उपयोग किया जा सकता है।
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(च) मिक्सर व ग्राइण्डर:
यह मसाले, चटनी, दाल आदि पीसने अथवा मथने के लिए। एक उपयोगी उपकरण है। इसमें स्टील के ब्लेड लगे होते हैं जो कि विद्युत प्रवाह होने पर तीव्र गति से घूमकर उपर्युक्त कार्य को सम्पन्न करते हैं। ये ब्लेड एक विद्युत मोटर द्वारा घुमाये जाते हैं। मोटर को रेगुलेटर द्वारा नियन्त्रित कर ब्लेडों के घूमने की गति कम अथवा अधिक की जा सकती है। मिक्सर में पीसने एवं मथने के लिए अलग-अलग आकार के जार होते हैं। उत्तम प्रकार के मिक्सर में फलों एवं सब्जियों का रस निकालने की व्यवस्था भी अलग से होती है। इसे रस निकालने का यन्त्र अथवा जूसर कहते मिक्सर एवं ग्राइण्डर एक ऐसा उपकरण है जिसके प्रयोग से मिक्सर-ग्राइण्डर समय एवं श्रम दोनों की बहुत अधिक बचत होती है। इसके अतिरिक्त वस्तु को इच्छानुसार मोटा या बारीक पीसा या मथा जा सकता है।
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(छ) रेफ्रिजरेटर:
विभिन्न प्रकार के भोज्य-पदार्थों को अधिक समय तक सुरक्षित रूप से संगृहीत रखने के लिए रेफ्रिजरेटर एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। रेफ्रिजरेटर के ऊपरी भाग में बृर्फ जमाने का खाना (फ्रीजर) होता है तथा दरवाजे के साथ पानी ठण्डा करने के लिए बोतलों, दूध की बोतल व अण्डे आदि रखने के लिए खाने बने होते हैं। फ्रीजर के नीचे तीन या चार खाने बने होते हैं जिनमें बचा हुआ खाना, दही, फल, मांस मछली व सब्जियाँ सुरक्षित रखी जा सकती हैं। रेफ्रिजरेटर की ठण्डे होने की व्यवस्था स्वयं नियन्त्रित होती है, जिसके अन्तर्गत एक निश्चित तापक्रम हो जाने पर मोटर का संचालन स्वयं रुक जाता है तथा कुछ समय बाद तापक्रम बढ़ जाने पर मोटर फिर से चालू होकर रेफ्रिजरेटर को वांछित तापक्रम तक ठण्डा करती है। इस प्रकार रेफ्रीजरेटर में रखे भोज्य-पदार्थ लम्बी अवधि तक
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प्रश्न 5:
रसोईघर की दैनिक, साप्ताहिक, मासिक एवं वार्षिक सफाई का संक्षेप में परिचय दीजिए।
या
रसोईघर की सफाई क्यों आवश्यक है? रसोईघर की दैनिक व मासिक सफाई कैसे करेंगी? विस्तार से लिखिए। [2008, 09, 13]
या
पाक-कक्ष की सफाई क्यों आवश्यक है? [2011, 16, 18]
या
रसोईघर की सफाई व्यवस्था एवं देख-रेख के विषय में विस्तारपूर्वक लिखिए। [2010, 11]
या
रसोईघर की सफाई कब और कैसे करनी चाहिए ? सफाई में प्रयोग होने वाले चार उपकरणों के नाम लिखिए। [2009]
या
रसोईघर की सफाई का स्वास्थ्य से क्या सम्बन्ध है? [2013]
या
रसोईघर की व्यवस्था कितने भागों में बाँटी जा सकती है? किन्हीं दो का वर्णन कीजिए। [2015]
या
रसोईघर की सफाई क्यों आवश्यक है?[ 2018]
उत्तर:
रसोईघर की सफाई

समस्त घर के साथ रसोईघर की सफाई भी अनिवार्य रूप से आवश्यक है। रसोईघर की स्वच्छता का जहाँ परिजनों के स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है वहीं यह गृहिणी के कौशल का भी द्योतक है। वास्तव में भोजन पकाने का स्थान सर्वाधिक स्वच्छ होना चाहिए। यदि पाक-कक्ष की नियमित रूप से सफाई नहीं होती तो पानी, अन्न-कण एवं सब्जी के छिलके आदि गिरने से गन्दगी बढ़ जाती है। इस गन्दगी में विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया उत्पन्न होने लगते (UPBoardSolutions.com) हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। अतः स्पष्ट है कि पाक-कक्ष की सफाई परम आवश्यक है। यूँ तो रसोईघर की सफाई नित्य-प्रति ही की जाती है, परन्तु फिर भी पूरी सफाई एक ही दिन नहीं हो सकती। इसी कारण से रसोईघर की सफाई साप्ताहिक, मासिक एवं वार्षिक रूप से यथायोग्य की जाती है, जिसका संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है

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दैनिक सफाई:
रसोईघर एक ऐसा स्थान है जहाँ की सफाई कार्योपरान्त प्रतिदिन की जानी चाहिए। नित्य ही खाना बनाने के बाद रसोईघर की पूरी तरह से सफाई की जानी चाहिए। जहाँ खाना बनाया जाता है, वहाँ अन्न-कण एवं सब्जी के छींटे आदि पड़ जाते हैं। इनकी सफाई तुरन्त कर देनी चाहिए। यदि भारतीय शैली का रसोईघर है, तो उसे पटरे को जहाँ बैठकर खाना बनाया जाता है, अवश्य साफ रखना चाहिए। कुछ घरों में रसोईघर में ही बैठकर भोजन ग्रहण भी किया जाता है। ऐसे रसोईघर में बैठने के लिए पीढ़ी अथवा आसन आदि प्रयुक्त किए जाते हैं, उन सबको झाड़कर साफ करके यथास्थान रखना चाहिए। रसोईघर में यदि चूल्हा इस्तेमाल किया जाता है, तो उसे पोतकर साफ रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त, रसोईघर में इस्तेमाल होने वाले अन्य उपकरणों; जैसे चाकू-छुरी, चकला-बेलन एवं कद्दूकस आदि; को धोकर यथास्थान रख देना चाहिए। रसोईघर में सबसे प्रमुख दैनिक सफाई है बर्तनों की। नित्य ही खाने के लिए विभिन्न बर्तन इस्तेमाल होते हैं। इन सभी जूठे बर्तनों को रोज ही माँजकर साफ रखना पड़ता है। बर्तनों को माँजने से पूर्व इनमें पानी डाल देना चाहिए।

इससे जूठने घुल जाती है तथा बर्तनों की सफाई सरलता से हो जाती है। यदि बर्तनों की सफाई के लिए किसी सेविका को नियुक्त किया गया हो, तो उसका समय इस प्रकार से नियोजित होना चाहिए कि यह कार्य घर के सभी सदस्यों के खाना खा चुकने के बाद सम्पन्न हो। जूठे बर्तनों को एक निर्धारित स्थान पर रख देना चाहिए। बर्तनों की जूठन को निकालकर एक डिब्बे में डाल देना चाहिए जिसे बाद में कूड़ेदान में डाल देना चाहिए। बर्तनों को माँजकर, धोकर एवं सुखाकर टाँड पर या अलमारी में यथास्थान रख देना चाहिए। सबसे बाद में रसोईघर के फर्श को साफ करना चाहिए। इसके लिए झाड़ लगाकर सारा कूड़ा साफ कर देना चाहिए। आवश्यकता समझने पर फर्श को पानी से धोकर अथवा गीले कपड़े का पोंछा लगाकर पूरी तरह साफ कर देना चाहिए। यदि रसोईघर की दैनिक सफाई ध्यानपूर्वक कर दी जाए तो बाद में कोई परेशानी नहा हा.

साप्ताहिक सफाई:
रसोईघर की कुछ वस्तुओं की सफाई न तो नित्य-प्रति सम्भव है और न ही नित्य उसकी आवश्यकता होती है। ऐसी वस्तुओं की सफाई सप्ताह में एक बार अवश्५ कर देन चाहिए। उदाहरण के लिए स्टोर को साफ करना, गैस के चूल्हे को साफ करना, दाल आदि के डिब्बों को साफ करना, अचार आदि की बोतलों को साफ करना रसोईघर की साप्ताहिक सफाई के अन्तर्गत आते हैं। सामान्य रूप से यह सफाई साप्ताहिक छुट्टी के दिन ही करनी चाहिए। रसोईघर की। नाली में भी इस दिन फिनायल आदि डाली जा सकती है।

मासिक सफाई:
रसोईघर की मासिक सफाई के अन्तर्गत केवल मुख्य रूप से विभिन्न खाद्यान्नों की सफाई एवं देखभाल की जाती है। दालों एवं मसालों के डिब्बों को खोलकर देखा जाता है। यदि कोई खाद्यान्न खराब होने वाला हो, तो उसे धूप में रखकर सुखा देना चाहिए। इसी दिन भण्डार-गृह का अवलोकन करना चाहिए। सभी वस्तुओं को झाड़-पोंछकर सही रूप में रखना चाहिए। इसी समय यह भी देखना चाहिए कि कोई वस्तु समाप्त तो नहीं हो रही है। यदि कोई वस्तु समाप्त हो चुकी है, तो उसे भी बाजार से मँगाने की व्यवस्था करनी चाहिए। इस अवसर पर अप्रयुक्त खाली बोतल एवं डिब्बे भी कबाड़ी को बेच देने चाहिए।

वार्षिक सफाई:
रसोईघर की कुछ खास प्रकार की सफाई वर्ष में एक बार करवानी ही काफी होती है। वार्षिक सफाई के अन्तर्गत रसोईघर की सभी वस्तुओं को बाहर निकालकर उन्हें पूर्णतः साफ करना चाहिए। इसी समय रसोई की पुताई एवं दरवाजे, खिड़कियों पर रंग-रोगन कर लेना चाहिए। रसोईघर में इस्तेमाल होने वाले सभी डिब्बों का निरीक्षण भी करना चाहिए। यदि कोई डिब्बा टूट गया हो या उसमें जंग लग गया हो, तो उसे भी बदल देना चाहिए। इस अवसर पर रसोईघर का समस्त कूड़ा एवं बेकार की वस्तुएँ भी फेंक देनी चाहिए।

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सफाई के उपकरण: घर की सफाई के कार्य में निम्नलिखित उपकरणों का प्रयोग किया जाता है

  1. झाडू,
  2. कपड़ा व झाड़न,
  3.  ब्रश,
  4. सफाई के यन्त्र।

प्रश्न 6:
रसोईघर के विभिन्न प्रकार के बर्तनों की सफाई की विधियाँ लिखिए। [2009, 11]
या
विभिन्न धातुओं के बर्तनों की सफाई आप किस प्रकार करेंगी? [2008, 10]
या
पीतल व काँच के बर्तनों की सफाई आप कैसे करेंगी? [2015]
उत्तर:
विभिन्न प्रकार के बर्तनों की सफाई की विधियाँ
रसोईघर के विभिन्न प्रकार के बर्तनों की सफाई की विधियाँ निम्नलिखित हैं

(1) पीतल के बर्तन:
पीतल के बर्तन जल्दी गन्दे हो जाते हैं। इनको धोकर बिना पोंछे रख देने से इन पर पानी के धब्बे पड़ जाते हैं, जो कभी-कभी हरे रंग के हो जाते हैं। दागरहित बर्तनों को सूखी राख से रगड़कर साफ करना चाहिए। यदि बर्तनों पर काले व हरे धब्बे पड़ गये हों, तो उनमें खटाई अथवा नींबू मलकर 5-10 मिनट छोड़ देना चाहिए। फिर राख से माँजकर, धोकर, पोंछकर रखना चाहिए। काँसे व फूल के बर्तनों की सफाई भी इसी प्रकार की जाती है।

(2) ताँबे के बर्तन:
इनका प्रयोग रसोईघर में केवल पानी भरने के लिए अथवा पूजा के बर्तनों के रूप में किया जाता है। आजकल भोजन पकाने के बर्तनों को भारी करने के लिए इनके नीचे की सतह पर ताँबे की परत चढ़ाई जाती है। इन्हें यदि कुछ दिनों तक साफ न किया जाए, तो ये काले (UPBoardSolutions.com) पड़ जाते हैं। इन्हें साफ करने के लिए इन पर नींबू व पिसा नमक मलकर थोड़ी देर रख देना चाहिए। इसके पश्चात् राख या विम रगड़कर साफ करना चाहिए, फिर बर्तन को पानी से धोकर साफ कपड़े से पोंछ देना चाहिए। इस विधि से बर्तन चमकने लगते हैं।

(3) ऐलुमिनियम के बर्तन:
इनको साफ करने के लिए सिरके या नींबू को पानी में डालकर उबाल लेते हैं। फिर उस पानी से बर्तन को साफ करके ठण्डे पानी से धो देते हैं। यदि बर्तनों पर दाग
लगे हों, तो इन पर पिसा हुआ नमक अच्छी तरह मलकर ठण्डे पानी से धो देना चाहिए।

(4) स्टील के बर्तन:
आजकल रसोईघर में मुख्यत: स्टील के बर्तनों को ही प्रचलन है। ये सुन्दर व टिकाऊ होते हैं तथा आसानी से साफ भी हो जाते हैं। इन बर्तनों को विम व गर्म पानी से माँजना चाहिए। बड़े बर्तनों को माँजते समय उनके नीचे पटरा या लकड़ी का चौकोर टुकड़ा रख देना चाहिए। इससे बर्तन घिसते नहीं। इसके बाद बर्तनों को कपड़े से पोंछकर यथास्थान रख देना चाहिए।

(5) कॉच व चीनी-मिट्टी के बर्तन:
इनको अन्य धातुओं के बर्तन से अलग हटाकर रखना चाहिए। इनको सबसे पहले साफ करके हटा देना चाहिए। इन्हें विम या सर्फ के गुनगुने पानी से रगड़कर साफ करना चाहिए। नक्काशी के बर्तनों के लिए ब्रश का प्रयोग करना चाहिए। कॉच व चीनी-मिट्टी के बर्तनों को प्रयोग के तुरन्त बाद धो देना चाहिए तथा पतले कपड़े से पोंछकर रख देना चाहिए।

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(6) लोहे के बर्तन:
रसोईघर में तवा, कड़ाही, चिमटा आदि लोहे का होता है। इनको साफ करने के लिए विम व ईंट का प्रयोग किया जाता है। यदि इनमें जंग लग गया हो, तो सरसों का तेल व चूना मलकर कुछ देर के लिए रख देना चाहिए। इसके बाद ईंट से रगड़कर साफ कर देना चाहिए। इसके बाद पानी से धोकर तथा पोंछकर रख देना चाहिए।

(7) मिट्टी के बर्तन:
इनका प्रयोग दही जमाने व मक्खन निकालने में किया जाता है। इन्हें गर्म पानी, नारियल की जटा या प्लास्टिक के जूने से साफ किया जाता है।

(8) प्लास्टिक के बर्तन:
प्लास्टिक के मेग, जग, बाल्टी, कटोरे आदि का प्रयोग आजकल अत्यधिक हो रहा है। इन्हें साबुन या सोडे और गुनगुने पानी से तथा तोरई या प्लास्टिक की जाली से साफ करना चाहिए, फिर ठण्डे पानी से धो देना चाहिए। इससे इनकी पॉलिश खराब नहीं होती है।

(9) थर्मस को साफ करना:
इसको साफ करने के लिए गुनगुने पानी में साबुन, विम या सर्फ के घोल का प्रयोग करना चाहिए। कभी-कभी अमोनिया की दो-चार बूंद भी डाल देनी चाहिए। ब्रश से धीरे-धीरे साफ करके ठण्डे पानी से धो देना चाहिए।

(10) क्रोमियम या कलई के बर्तन:
इन बर्तनों को विम या साबुन के घोल से साफ करना चाहिए। मिट्टी या राख से इनकी सफाई (UPBoardSolutions.com) नहीं करनी चाहिए। यदि बर्तन अधिक गन्दे हों, तो उन्हें कपड़े से छनी हुई राख से साफ करना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
पाक-कक्ष को धुआँरहित रखने के लिए आप क्या उपाय करेंगी?
उत्तर:
पाक-कक्ष को निम्नलिखित उपाय अपनाकर धुएँ से सुरक्षित रखा जा सकता है

  1. धुआँरहित हैदराबादी चूल्हे का प्रयोग करने से ईंधन के जलने से उत्पन्न धुआँ चिमनी द्वारा पाक-कक्ष से बाहर निकल जाता है।
  2.  निर्वातक पंखा (एक्जॉस्ट फैन) लगाने से पाक-कक्ष को धुआँ आसानी से बाहर निकल जाता है।
  3. धुआँरहित ईंधन (विद्युत, कुकिंग गैस आदि) का प्रयोग करने से पाक-कक्ष में धुआँ उत्पन्न नहीं होता है।

प्रश्न 2:
स्टेनलेस स्टील के बर्तनों की सफाई पर एक टिप्पणी लिखिए। [2009, 12]
उत्तर:
स्टेनलेस स्टील के बर्तनों को पहले स्वच्छ व गर्म पानी से धोना चाहिए जिससे कि गन्दगी व चिकनाई सरलता से दूर हो सके। अब इन्हें विम अथवा अन्य किसी साबुन के पाउडर अथवा घोल से धोकर तथा नरेम व शुष्क कपड़े से पोंछकर चमकाना चाहिए। ध्यान रहे कि कड़े व खुरदरे कपड़े से इन पर खरोंच आ जाती है।

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प्रश्न 3:
शीशे के बर्तनों की सफाई आप किस प्रकार करेंगी?
उत्तर:
रसोईघर में धातु इत्यादि के बर्तनों के अतिरिक्त शीशे के बर्तन भी प्रयोग में लाए जाते हैं। इनके टूटने का भय रहता है। इसीलिए इनका प्रयोग करते समय, विशेषकर सफाई करते समय, विशेष ध्यान रखना होता है। ये बर्तन रेत, मिट्टी, राख इत्यादि से साफ नहीं किये जाते हैं। साबुन, सोडा अथवा किसी वाशिंग पाउडर आदि से इन्हें साफ किया जा सकता है। इन बर्तनों की सफाई गर्म पानी से अधिक होती है। अधिक गन्दे होने पर गर्म पानी में अमोनिया की कुछ बूंदें डालकर इन्हें भली-भाँति साफ किया जा सकता है। सँकरे मुंह वाले बर्तनों; जैसे-दूध की बोतल आदि; को साफ करने के लिए गर्म पानी डालकर वाशिंग पाउडर के साथ ब्रश का प्रयोग किया जाना चाहिए।

प्रश्न 4:
पाक-कक्ष की व्यवस्था पर एक टिप्पणी लिखिए। [2008, 09]
उत्तर:
कार्य की सरलता, श्रम व समय की बचत तथा स्वच्छ एवं पौष्टिक आहार तैयार करना आदि पाक-कक्ष की व्यवस्था के मुख्य उद्देश्य होते हैं। पाक-कक्ष की सही स्थितिं एवं बनावट व्यवस्था के दो महत्त्वपूर्ण बिन्दु होते हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति एवं इच्छा के अनुसार (UPBoardSolutions.com) पाक-कक्ष को भारतीय अथवा विदेशी शैली के अनुसार निर्मित किया जाना चाहिए। रसोईघर अथवा पाक-कक्ष की आवश्यक सामग्री (चूल्हा व ईंधन) तथा पाक-क्रिया में सहायक आधुनिक उपकरणों के चयन एवं व्यवस्था को मूल आधार भी सम्बन्धित परिवार की आर्थिक स्थिति ही होती है। इस प्रकार परिवार की आर्थिक स्थिति के अनुसार पाक-कक्ष की व्यवस्था इस प्रकार की जानी चाहिए कि गृहिणी के श्रम व समय की यथेष्ठ बचत हो सके।

प्रश्न 5:
फ्रिज की सुरक्षा आप किस प्रकार करेंगी? [2009, 15, 18]
या
रेफ्रिजरेटर की सफाई और देखभाल आप कैसे करेंगी? [2016]
उत्तर:
रेफ्रिजरेटर एक महँगा परन्तु उपयोगी उपकरण है। निम्नलिखित नियमों का पालन करने से न केवल इसे सुरक्षित रखा जा सकता है, बल्कि एक लम्बी अवधि तक इसे आकर्षक बनाये रखा जा सकता है

  1. रेफ्रिजरेटर को सदैव वोल्टेज-नियन्त्रक का प्रयोग करे चलाना चाहिए।
  2. आवश्यकतानुसार ही इसे खोलना चाहिए।
  3. इसे दीवार से लगभग एक फीट की दूरी पर रखना चाहिए, जिससे कि इसके मोटर को ठण्डा रहने के लिए पर्याप्त वायु मिल सके।
  4. सप्ताह में एक बार इसे डीफ्रॉस्ट कर इसकी सफाई करनी चाहिए।
  5. शीत ऋतु में इसे कम ताप पर चलाना चाहिए परन्तु बन्द नहीं करना चाहिए, क्योंकि एक लम्बी अवधि तक बन्द रखने पर इसकी गैस जम सकती है।
  6. इसे खरोंच लगने से बचाना चाहिए तथा पॉलिश से इसे चमकाते रहना चाहिए।

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प्रश्न 6:
रसोईघर में परिश्रम व समय बचाने के आधुनिक यन्त्रों के नाम बताइए। [2008, 11, 12, 16]
उत्तर:
रसोईघर में परिश्रम व समय बचाने के आधुनिक यन्त्र निम्नलिखित हैं

  1. कुकर (प्रेशर कुकर, इकमिक कुकर आदि),
  2.  विद्युत टोस्टर,
  3. विद्युत केतली,
  4.  बर्तन धोने की मशीन,
  5. कुकिंग रेन्ज,
  6.  मिक्सर तथा
  7. रेफ्रिजरेटर आदि।

प्रश्न 7:
प्रेशर कुकर की क्या उपयोगिता है? [2008, 09, 10, 11, 12, 13, 15, 16]
या
प्रेशर कुकर में भोजन पकाने के लाभ लिखिए। [2012, 14, 15, 17]
या
भोजन पकाने के लिए प्रेशर कुकिंग क्यों उत्तम मानी जाती है? [2012]
या
प्रेशर कुकर से समय और श्रम की बचत होती है, कैसे? [2016]
या
प्रेशर कुकर में भोजन शीघ्र क्यों पक जाता है? [2007, 08, 09, 10, 11, 12, 18]
उत्तर:

  1. प्रेशर कुकर में भाप बनती है जिसका ताप लगभग 110° सेण्टीग्रेड व दाब 15 पौण्ड होता है। यही भाप भोजन पकाती है। इस प्रकार पके भोजन के विटामिन आदि तत्त्व नष्ट नहीं होने पाते।
  2. भाप का दबाव अधिक होने पर अतिरिक्त भाप सुरक्षा वाल्व द्वारा बाहर निकल जाती है;
    अतः प्रेशर कुकर एक सुरक्षित उपकरण है।
  3. प्रेशर कुकर में भोजन शीघ्र पक जाता है; अतः समय व ईंधन दोनों की बचत होती है।

प्रश्न 8:
प्रेशर कुकर के प्रयोग में क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए? [2010, 11, 13, 14, 15, 16, 18]
उत्तर:
प्रेशर कुकर के प्रयोग में निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए

  1. प्रेशर कुकर के ऊपरी ढक्कन की रबड़ के रिंग तथा सेफ्टी वाल्व की उचित देखभाल करना हिए।
  2. चूल्हे पर रखने से पहले यह निश्चित कर लेना चाहिए कि प्रेशर कुकर का ढक्कन ठीक से बन्द हो गया है या नहीं। इसके लिए ढक्कन तथा कुकर पर बने तीर के चिह्नों को मिला लेना चाहिए।
  3. खाद्य सामग्री के पक जाने पर कुकर को आँच से उतारकर नीचे रख देना चाहिए, परन्तु उसके ढक्कन को तब तक खोलने का प्रयास नहीं करना चाहिए जब तक कि उसके अन्दर भाप का दबाव समाप्त न हो जाए।
  4. कुकर के भाप-अवरोधक रिंग तथा सेफ्टी वाल्व आदि की समय-समय पर जाँच करते रहना चाहिए तथा दोषपूर्ण होने की स्थिति में उन्हें बदल देना चाहिए।
  5. कुकर की सफाई का भी सदैव ध्यान रखना चाहिए। कुकर को सदैव किसी अच्छे (UPBoardSolutions.com) पाउडर से ही साफ करना चाहिए।
  6. कुकर के ढक्कन का विशेष ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि यदि गिरने या किसी अन्य कारण से कुकर के ढक्कन को कोई किनारा दब जायेगा, तो कुकर के अन्दर की भाप वहीं से निकलने लगेगी।

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प्रश्न 9:
रसोईघर की व्यवस्था अच्छी होने से गृहिणी को क्या लाभ होता है? [2011, 13, 15, 16]
उत्तर:
रसोईघर की उचित तथा अच्छी व्यवस्था होने से गृहिणी को निम्नलिखित लाभ होते हैं

  1. गृहिणी को कम श्रम करना पड़ता है जिससे उसे थकान कम होती है।
  2. गृहिणी को रसोईघर का काम निपटाने में कम समय लगता है; अत: वह घर के अन्य कामों को भी शीघ्र निपटाकर आराम कर सकती है।
  3. समुचित आराम मिलने से गृहिणी का स्वास्थ्य ठीक रहता है और पारिवारिक माहौल भी खुशनुमा रहता है।
  4. व्यवस्थित रसोई होने से गहिणी के कपड़े भी कम खराब होते हैं।
  5. वह परिवार को समय से भोजन तैयार करके दे सकती है।

प्रश्न 10:
रसोईघर का चयन करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? [2015, 16]
या
रसोईघर में प्रकाश तथा हवा की उचित व्यवस्था क्यों होनी चाहिए? [2012, 14, 15, 16, 17]
उत्तर:
घर में रसोईघर का विशेष महत्त्व होता है; अत: रसोईघर के लिए घर में उपयुक्त स्थान को चुनाव बहुत ही सोच-समझकर किया जाना चाहिए। रसोईघर ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहाँ हवा एवं प्रकाश की समुचित व्यवस्था हो। रसोईघर यदि पूरब-पश्चिम दिशा में स्थित हो तो अच्छा रहता है। इसका कारण यह है कि उत्तरी भारत में अधिकांशतया पूरब-पश्चिम दिशा में ही वायु की गति होती है। इससे रसोईघर में उत्तम संवातन बना रहता है। पाक-कक्ष में सूर्य का प्रकाश अवश्य जाना चाहिए। इससे स्वच्छता बनी रहती है। यदि रसोईघर में धुएँ वाला ईंधन प्रयोग करना हो तो रसोईघर को घर के पिछले भाग में बनाना चाहिए इससे घर में धुआँ नहीं फैलता। (UPBoardSolutions.com) यदि धुआँरहित ईंधन या धुआँरहित चूल्हा प्रयोग करना हो तो रसोईघर को खाने के कमरे के निकट बनाना चाहिए। रसोईघर की एक खिड़की घर के बाहर की ओर खुलनी चाहिए।
रसोईघर का आकार न बहुत छोटा होना चाहिए और न ही अत्यधिक बड़ा। इसका आकार इतना अवश्य होना चाहिए जिसमें आवश्यक सामान रखा जा सके तथा सुविधापूर्वक बैठा जा सके। रसोईघर का फर्श पक्का एवं ढलावदार होना चाहिए, जिससे फर्श पर पानी न रुकने पाये। पाक-कक्ष के दरवाजे में जाली अवश्य लगी होनी चाहिए। इससे मक्खी-मच्छर से बचाव रहता है। रसोईघर में बिजली प्रकाश की भी सही व्यवस्था होनी चाहिए।

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प्रश्न 11:
आकार के अनुसार रसोईघर के विभिन्न प्रकारों के नाम लिखिए। [2014]
उत्तर:
आकार के अनुसार रसोईघर के मुख्य प्रकार हैं

  1. एक दीवार वाला रसोईघर,
  2. दो दीवार वाली रसोईघर,
  3. यू-आकार वाला रसोईघर,
  4.  एल-आकार वाला रसोईघर,
  5. द्वीप रसोईघर,
  6.  प्रायद्वीप रसोईघर,
  7. (तारक योजना रसोईघर तथा
  8. पृथक् केन्द्र रसोईघर।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रसोईघर की व्यवस्था के सिद्धान्त क्या हैं?
उत्तर:
कार्य की सरलता, श्रम व समय की बचत तथा स्वच्छ एवं पौष्टिक आहार तैयार करना रसोईघर की व्यवस्था के मुख्य सिद्धान्त हैं।

प्रश्न 2:
रसोईघर की व्यवस्था पर दो बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
रसोईघर की व्यवस्था में सबसे महत्त्वपर्ण बात है-हर प्रकार की सफाई को ध्यान रखना। इसके अतिरिक्त रसोईघर में सभी वस्तुओं को यथास्थान रखना चाहिए।

प्रश्न 3:
हैदराबादी चूल्हे की क्या विशेषताएँ हैं? [2009]
उत्तर:
हैदराबादी चूल्हे की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  1. यह धुआँरहित होता है,
  2.  इसमें कई. वस्तुओं को एक साथ पकाया जा सकता है तथा
  3. इसके उपयोग से ईंधन की बचत होती है।

प्रश्न 4:
भोजन पकाने में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न ईंधन कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भोजन पकाने में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न ईंधन निम्नलिखित हैं

  1. लकड़ियाँ,
  2.  कोयला,
  3. मिट्टी का तेल,
  4. कुकिंग गैस,
  5.  गोबर गैस तथा
  6. विद्युत आदि।

प्रश्न 5:
फलों व सब्जियों को अधिक समय तक सुरक्षित रखने के लिए कौन-सा उपकरण प्रयुक्त होता है?
उत्तर:
इस उपकरण का नाम है रेफ्रिजरेटर। इसमें फल तथा सब्जियाँ अधिक समय तक तरोताजा रहती हैं।

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प्रश्न 6:
फ्रिज की क्या उपयोगिता है? [2007, 10, 12]
उत्तर:
फ्रिज में दूध, सब्जियाँ, फल आदि भोज्य-पदार्थ अधिक समय तक सुरक्षित रखे जा सकते हैं। इससे ठण्डा पानी, बर्फ तथा आइसक्रीम भी प्राप्त किए जा सकते हैं।

प्रश्न 7:
गीजर क्या है?
या
गीजर की क्या उपयोगिता है? [2013, 12, 13, 16]
उत्तर:
गीजर बिजली से चलने वाला एक उपकरण है जो पानी गर्म करने के काम आता है। यह रसोईघर तथा स्नानगृह के लिए विशेष उपयोगी उपकरण है।

प्रश्न 8:
रसोईघर की व्यवस्था कितने प्रकार की हो सकती है? [2007, 10]
उत्तर:
यह दो प्रकार की होती है

  1.  भारतीय शैली में तथा
  2. विदेशी शैली में।

प्रश्न 9:
खड़े होकर भोजन पकाने से क्या सुविधा है?
उत्तर:
खड़े होकर भोजन पकाने में निम्नलिखित सुविधाएँ होती हैं

  1. गृहिणी के कपड़े खराब नहीं होते।
  2.  बार-बार उठना-बैठना नहीं पड़ता, जिससे थकान कम होती है।
  3.  भोजन परोसने में सुविधा होती है।
  4.  रसोईघर में गन्दगी कम होती है।

प्रश्न 10:
भाप के दबाव में भोजन कैसे पकता है?
उत्तर:
अधिक दबाव पर भोजन कम ताप पर भी शीघ्र पक जात कुकर में भोजन पकाने का सिद्धान्त यही है।

प्रश्न 11:
घर पर ही केक-पेस्ट्री तथा बिस्किट आदि बनाने के लिए उपयोगी उपकरण का नाम बताएँ।
उत्तर:
ओवन नामक उपकरण द्वारा घर पर ही केक-पेस्ट्री तथा बिस्किट आदि बनाए जा सकते हैं।

प्रश्न 12:
रसोईघर में बर्तन धोने की क्या व्यवस्था होनी चाहिए?
उत्तर:
विभिन्न प्रकार से प्रयुक्त होने वाले बर्तनों को अलग-अलग नियमानुसार गर्म पानी, विम, साबुन अथवा राख से तुरन्त साफ कर तथा पोंछकर यथास्थान रखना चाहिए।

प्रश्न 13:
गृहिणी का मुख्य कार्य-क्षेत्र रसोईघर क्यों है?
उत्तर:
शक्ति एवं स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ, पोषक एवं रुचिपूर्ण भोजन आवश्यक है। अतः गृह-संचालिका होने के कारण रसोईघर प्रत्येक गृहिणी का मुख्य कार्य-क्षेत्र है।

प्रश्न 14:
रसोईघर में प्रयुक्त आधुनिक यन्त्रों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
रसोईघर में प्रयुक्त आधुनिक यन्त्रों की सहायता से कम समय एवं श्रम व्यय करके (UPBoardSolutions.com) अधिक शीघ्रता से भोजन पकाया जा सकता है तथा भोजन के आवश्यक तत्त्व, विटामिन आदि भी कम-से-कम नष्ट होते हैं।

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प्रश्न 15:
रसोईघर से सम्बन्धित गृहिणी के दो मुख्य कार्य बताइए। [2008]
उत्तर:
रसोईघर में गृहिणी के अनेक कार्य होते हैं। एक गृहिणी का दिन का आधा भाग तो रसोईघर में ही व्यतीत होता है। रसोई व बर्तन साफ करना तथा भोजन पकाना, ये गृहिणी के दो प्रमुख कार्य हैं।

प्रश्न 16:
आदर्श रसोईघर क्या है? [2015, 17]
उत्तर:
हर प्रकार से सुव्यवस्थित, सही आकार के, साफ-सुथरे तथा प्रकाश एवं संवातनयुक्त रसोईघर को आदर्श रसोईघर माना जाता है।

प्रश्न 17:
ओवन (Oven) की सुरक्षा आप कैसे करेंगी? [2009, 11]
उत्तर:
ओवन का सही ढंग से इस्तेमाल करना चाहिए। इस बात को ध्यान रखना चाहिए कि उसमें पकने वाली वस्तु जल न जाए। ओवन की तार आदि ठीक रखनी चाहिए तथा उसकी सफाई का ध्यान
रखना चाहिए।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न-निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

1. स्टील के बर्तनों की सफाई करनी चाहिए [2007, 08]
(क) राख से
(ख) चूने से
(ग) विम से
(घ) साबुन से

2. पीतल के बर्तनों को साफ करना चाहिए
(क) नींबू पर नमक छिड़ककर
(ख) नारियल की जटा से रगड़कर
(ग) क्षार से धोकर
(घ) विम से रगड़कर

3. रसोईघर की व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य होता है
(क) समय व्यर्थ नष्ट करना
(ख) स्वच्छ एवं पौष्टिक भोजन
(ग) मांसाहारी भोजन
(घ) ऐश्वर्य प्रदर्शन

4. लोकप्रिय आधुनिक ईंधन है [2016]
(क) कुकिंग गैस
(ख) गोबर गैस
(ग) मिट्टी का तेल
(घ) सौर-ऊर्जा

5. रसोईघर में खिड़कियों का होना आवश्यक है।
(क) बाहर के दृश्य देखने के लिए
(ख) सूर्य के प्रकाश के लिए
(ग) वायु के पारगमन के लिए
(घ) पड़ोस में बात करने के लिए

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6. पाक-कक्ष में आधुनिक उपकरण प्रयुक्त करने से अधिक बचत होती है
(क) धन की
(ख) समये व शक्ति की
(ग) ईंधन की
(घ) भोज्य पदार्थों की

7. जूठे बर्तनों को साफ करने के लिए सबसे उत्तम है
(क) पीली मिट्टी
(ख) राख
(ग) साबुन
(घ) विम

8. चीनी-मिट्टी के बर्तनों के दाग साफ करने के लिए
(क) चूने की सफेदी का घोल प्रयोग करते हैं
(ख) सिरका लगाकर साफ करते हैं
(ग) इमली के पानी से साफ करते हैं
(घ) इन सभी से

9. रसोईघर के सबसे अधिक निकट होना चाहिए [2012, 16]
(क) ड्राइंगरूम
(ख) भोजन-कक्ष
(ग) शयन-कक्ष
(घ) बच्चों का कमरा

10. भोजन बनाने के लिए उत्तम उपकरण है
(क) लकड़ी का चूल्हा
(ख) गैस स्टोव
(ग) कुकिंग रेन्ज
(घ) बिजली का स्टोव

11. सब्जियाँ पकाने का सबसे उत्तम माध्यमे कौन-सा है?
(क) उबालकर
(ख) भूनकर
(ग) तलकर
(घ) भाप द्वारी

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12. आदर्श रसोईघर कौन-सा होता है? [2008]
(क) एक दीवार का
(ख) दो दीवार का
(ग) एल-आकार का
(घ) यू-आकार का

13. रसोईघर के निकट नहीं होना चाहिए [2016]
(क) शौचालय
(ख) शयनकक्ष
(ग) बच्चों का कमरा
(घ) भोजन कक्ष

उत्तर:
1. (ग) विम से,
2. (ख) नारियल की जटा से रगड़कर,
3. (ख) स्वच्छ एवं पौष्टिक भोजन,
4. (क) कुकिंग गैस,
5. (ग) वायु के पारगमन के लिए,
6. (ख) समय व शक्ति की,
7. (घ) विम,
8. (ख) सिरका लगाकर साफ करते हैं,
9. (ख) भोजन-कक्ष,
10. (ग) कुकिंग रेन्ज,
11. (घ) भाप द्वारा,
12. (ग) एल-आकार का,
13. (क) शौचालय।

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UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit वाक्य – प्रयोग (रचना)

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प्रश्न-परिचय

वाक्य-प्रयोग से सम्बन्धित प्रश्न के अन्तर्गत आठ-दस शब्द देकर उनमें से किन्हीं चार शब्दों का संस्कृत वाक्यों में प्रयोग करने के लिए कहा जाता है। इसके लिए पाठ्यक्रम में कुल 4 अंक निर्धारित हैं।

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ध्यान दें –

  1. विशेष रूप से हाईस्कूल परीक्षा में पूछे गये शब्दों के वाक्य-प्रयोग यहाँ पर दिये जा रहे हैं। साथ ही अन्य कतिपय महत्त्वपूर्ण शब्दों के प्रयोग भी यथास्थान दिये गये हैं।
  2. शब्दों के वाक्य-प्रयोग के समुचित अभ्यास के लिए अध्याय (UPBoardSolutions.com) 9: हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद, अध्याय 11: वाक्य-प्रयोग एवं परिशिष्ट: प्रथम: वाक्य-शुद्धि के अन्तर्गत दी गयी सामग्री का भली प्रकार से अध्ययन करें।
  3. वर्ष 2010-15 तक के लगभग सभी शब्दों के वाक्य-प्रयोग जोड़ दिये गये हैं। विद्यार्थी स्वयं भी वाक्य-निर्मित करने का प्रयास करें।
  4. प्रत्येक वाक्य को ध्यानपूर्वक पढ़े। एक वाक्य को एक ही शब्द का वाक्य-प्रयोग न समझे। उदाहरणार्थ-‘कवीनां कालिदासः श्रेष्ठः अस्ति।’ वाक्य केवल ‘कवीना’ शब्द का ही वाक्य-प्रयोग नहीं है। अपितु यह ‘कालिदासः ‘श्रेष्ठः’ और ‘अस्ति’ शब्दों का भी वाक्य-प्रयोग है।

UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit वाक्य - प्रयोग (रचना)

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UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit निबन्ध (रचना)

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संस्कृत में वाक्यों की रचना

दसवीं कक्षा में किसी सामान्य विषय पर संस्कृत में आठ वाक्य लिखने होते हैं। विद्यार्थियों को शुद्ध संस्कृत में सरल और छोटे-छोटे वाक्य लिखने चाहिए। इसके लिए सबसे पहले छात्रों को हिन्दी में वाक्य लिखकर उनकी संस्कृत बनाकर क्रम से लिख लेना चाहिए। निबन्ध-रचना के समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए –

  1. वाक्य सरल एवं छोटे-छोटे होने चाहिए।
  2. भावों को सोचकर संक्षेप में लिखना चाहिए।
  3. अपनी बात की पुष्टि के लिए एक-दो श्लोक भी उदाहरण के रूप में दिये जा सकते हैं।
  4. विषय को स्पष्ट करने के लिए पूर्ण कथानकों को देना उचित नहीं है। (UPBoardSolutions.com) कथानकों से सम्बन्धित नामोल्लेख मात्र करना पर्याप्त होता है।
  5. यदि किसी वाक्य के अनुवाद में कठिनाई का अनुभव हो तो उस वाक्य को परिवर्तित करके ऐसा बना लीजिए, जिसका शुद्ध अनुवाद किया जा सके।
  6. निबन्ध लिखवाने का उद्देश्य मात्र यह जानना है कि आप संस्कृत में अपने विचार प्रकट कर सकते हैं या नहीं। इसमें तथ्यों के औचित्य-अनौचित्य, सत्यता-असत्यता, अनुभूतता अन नुभूतता का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

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दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में निर्धारित (23 जुलाई, 2011 के उत्तर प्रदेश गजट के अनुसार) निबन्ध निम्नलिखित हैं –

  1. विद्या
  2. सदाचारः
  3. परोपकारः
  4. सत्सङ्गतिः
  5. अहिंसा परमोधर्मः
  6. मातृभूमिः
  7. वसुधैव कुटुम्बकम्
  8. राष्ट्रिय-एकता
  9. अनुशासनम्
  10. राष्ट्रपिता महात्मागांधी
  11. संस्कृतभाषायाः (UPBoardSolutions.com) महत्त्वम्
  12. भारतीय कृषकः
  13. हिमालयः
  14. तीर्थराज प्रयागः
  15. वनसम्पत्
  16. पर्यावरणम्
  17. परिवार-कल्याणम्
  18. राष्ट्रपक्षी मयूरः
  19. यौतुकम्
  20. दूरदर्शनम्
  21. क्रिकेटक्रीडनम्।

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यहाँ पर कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण निबन्ध भी छात्रों की सुविधा व बोध के लिए दिये जा रहे हैं। इन्हीं के आधार पर छात्रों को अन्य विषयों पर भी निबन्ध लिखने का अभ्यास करना चाहिए।

1. विद्या [2010, 12, 13]

[सम्बद्ध शीर्षकः–विद्वान् सर्वत्र पूज्यते, विद्या विहीनः पशुः (2007), विद्यायाः महत्त्वम् (2009,11), विद्याधनं सर्वधनं प्रधानम् (2010,12,13), विद्या ददाति विनयम् (2010,14), विद्या-महिमा (2011,15)]

  1. अस्मिन् संसारे विद्या एव सर्वप्रधानं धनमस्ति।
  2. विद्याधनं चौरोऽपि चोरयितुं न शक्नोति, नृपः अपहर्तुं न शक्नोति।
  3. विद्या व्ययतो वृद्धिमायाति, सञ्चयात् च क्षयमायाति।
  4. विद्या कल्पलता इव सर्वंकीर्थसाधिका अस्ति।
  5. विद्या माता इव रक्षति, पिता इव (UPBoardSolutions.com) हिते मियुङ्क्ते, कीन्ती इवै खेदम् अपमयति।
  6. विद्या सर्बसुखानां परमं कारणम् अस्ति।
  7. विद्येयी यावज्जीवं तृप्तिर्भवति।
  8. विद्ययाऽमृतम् अश्नुते।
  9. विद्या विनयं ददाति, विनयात् पात्रताम्, पात्रतायाः धनम्, धनाद् धर्म, ततः सुखं प्राप्नोति मनुष्यः।
  10.  विदुषः पुरुषस्य सर्वत्र सम्मानः भवति।
  11. राजा तु स्वदेशे पूज्यते, परन्तु विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।
  12. रूपयौवनसम्पन्नोऽपि विद्याहीनः जनः न शोभते।
  13. राजसु विद्यैव पूज्यते, धनं न पूज्यते।
  14. विद्याविहीनः नर: पशुतुल्यः भवति।
  15. अत: सर्वे नराः स्वपुत्रान् पुत्रींश्च पाठयेयुः।

2. सत्सङ्गतिः [2006, 07,08, 09, 10, 11, 14, 15)

[सम्बद्ध शीर्षकः-सत्सङ्गतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ]

  1. सत्पुरुषाणां सङ्गति सत्सङ्गतिः कथ्यते।
  2. सज्जनांनां सङ्गतिः सुखकरी भवति।
  3. सत्सङ्गत्या जनः उन्नतिपदं प्राप्नोति।
  4. सत्सङ्गतिः धियः जाड्यं हरति, वाचि सत्यं सिञ्चति, पापं दूरी करोति, दिक्षु च यशः तनोति।
  5. अत: सत्सङ्गति एवं जनानां सर्वकार्यसाधिका भवति।
  6. सत्सङ्गत्याः प्रभावेन दुष्टाः सज्जनाः भवन्ति, मूर्खश्च प्रवीणतां याति।
  7. ऋषीणां सङ्गत्या व्याधः वाल्मीकिः महर्षिपदम् अलभत।
  8. काञ्चन-संसर्गात् काचोऽपि मारकतिं (UPBoardSolutions.com) द्युतिं धत्ते, पुष्पसङ्गत्या कीटोऽपि महतां शिर: आरोहति।
  9. सत्सङ्गतिः जनानाम् असाध्यानि कार्याणि अपि साधयति।
  10. मनुष्यः सभ्यतायाः संस्कृतेः च शिक्षाम् अपि सत्सङ्गेन एव लभते।
  11. अस्माकं वेदशास्त्रेषु अपि सत्सङ्गस्य महिमा वर्णितः अस्ति।
  12. अत: वयं दुष्टानां सङ्गं त्यक्त्वा सदैव सतां सङ्गतिः कुर्याम।

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3. सदाचारः [2006,07,08, 12, 13]

[सम्बद्ध शीर्षक:–आचारः परमो धर्मः, सदाचारवान्नरः[2008]]

  1. सताम् आचारः सदाचारः कथ्यते।
  2. सज्जना: यद् आचरन्ति, तदेव आचरणं सदाचारः कथ्यते।
  3. सदाचारी जनः सर्वैः सह शिष्टतापूर्वकम् आचरति।
  4. सः सत्यं वदति, नित्यं मातापितरौ अभिवादयति, गुरुजनानाम् आदरं करोति, परोपकारं च करोति
  5. मानव: सज्जनवत् आचरणेन सदाचारी, धार्मिकः विनीतः च भवति।
  6. सदाचारयुक्तः जनः सर्वत्र आदरं लभते।
  7. सदाचारेणैव बुद्धिः वर्धते, यश: प्रसरति, दुर्गुणाः दूरीभवन्ति, हृदये सद्भाव: जागर्ति आयुश्च वर्धते।
  8. सदाचारः जनान् उन्नतपदे आरोपयति।
  9. सदाचारिणः पापकर्मणिः प्रवृत्तिः न भवति, बुद्धिः निर्दोषा भवति सः च जनानां हितचिन्तने प्रवृत्तः भवति।
  10. अतः महर्षिभिः ‘आचारः परमो धर्मः’ इति उक्तम्।
  11. समस्त धर्मग्रन्थेषु आचारस्य महिमा वर्णितास्ति।
  12. आचारात् जनः आयुः, लक्ष्मीं, कीर्ति च प्राप्नोति।
  13. सदाचारपालनेन हरिश्चन्द्रः, दधीचिः, गान्धिमहोदयश्च यशः (UPBoardSolutions.com) शरीरेण अद्यापि जीवन्ति।
  14. अत: वयं सदा सदाचारिणः भवेम।

4. परोपकारः [2006,07,08, 10, 11, 12, 13, 14, 15]

[सम्बद्ध शीर्षकः–परोपकारः पुण्याय (2007), परोपकाराय सतां विभूतयः(2010]]

  1. परेषाम् उपकारः परोपकारः कथ्यते।
  2. स्वार्थं परित्यज्य अन्येषां कल्याणेच्छया यत् किञ्चित् क्रियते तत् परोपकारः कथ्यते।
  3. परोपकारिणः जनाः परोपकारेणैव प्रसन्नाः भवन्ति।
  4. परोपकारस्य भावना मनुष्येषु एव न, देवेषु, पशु-पक्षिवृक्षादिषु अपि च भवति।
  5. प्रकृतिः अपि परोपकारस्य एव शिक्षां ददाति।
  6. नद्यः स्वयम् एव जलं न पिबन्ति, वृक्षाः स्वयं फलानि न खादन्ति, किन्तु तासां जलं, तेषां फलानि च परोपकाराय एव भवन्ति।
  7. परोपकारिणः हृदये सन्तोष: आनन्दः च जायते।
  8. परोपकारेण जनः सर्वाः सम्पदः लभते।
  9. परोपकाराय एव नरपति: शिविः कपोताये स्वमांसम् अयच्छत्, (UPBoardSolutions.com) दानवीरः कर्णः कवचकुण्डलौ दत्तवान्, रन्तिदेवः ” क्षुधितोऽपि स्वभोजनं चाण्डालाय, प्रायच्छत्।
  10. शास्त्रेषु परोपकारस्य महत्त्वं वर्णितम्-‘परोपकारः पुण्याय’, ‘उपकाराज्जायते सुखम् च इति।

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5. सत्यस्य महिमा

[सम्बद्ध शीर्षकः-सत्यमेव जयते (2010), सत्यम् (2011)]

  1. यद् वस्तु यथा अस्ति, तस्य तथैव कथनं सत्यमस्ति।
  2. भगवता मनुना कथितेषु दशसु धर्मसु एकतमः धर्म: सत्यमस्ति।
  3. त्रिषु लोकेषु सत्यात्परः धर्मः नास्ति।
  4. यः सत्यं वदति, सः निर्भीको भवति, सः पापकर्मसु न प्रवर्तते।
  5. सत्यवादिनः पुरुषाः समाजे आदरं प्राप्नुवन्ति।
  6. ‘सर्वसत्ये प्रतिष्ठितम्’ इत्यनुसारेण सत्यमेव (UPBoardSolutions.com) लोकस्य आधारोऽस्ति।
  7. सत्यवचनात् नरस्य कल्याणं भवति।
  8. सत्यवादिनि मनुष्ये सर्वे विश्वासं कुर्वन्ति।
  9. सत्यवादिनः सरलतया कार्याणि साधयन्ति।
  10. महान् खलु सत्यस्य महिमा अस्ति , अतएव महापुरुषाः स्वप्राणैरपि सत्यं रक्षन्ति।
  11. महाराजः दशरथः सत्यस्य रक्षायै स्व प्राणान् ददौ।
  12. सत्यस्य रक्षायै एव राजा हरिश्चन्द्रः महान्ति कष्टानि असहत्।
  13. सत्यबलेनैव महात्मागान्धि स्वदेशं स्वतन्त्रं कृतवान्।
  14. अतः सर्वैरपि सदा सत्यं भाषणीयम्।

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6. अहिंसा परमो धर्मः [2007,08]

[सम्बद्ध शीर्षकः-अहिंसा]

  1. परेषां हिंसनं पीडनम् एव हिंसा भवति, एतद् विपरीता भावना अहिंसा भवति।
  2. मनसा वाचा कर्मणा कथमपि कस्यचित् कष्टं न देयम् इति एव अहिंसा।
  3. मनुना निर्दिष्टेषु दशसु धर्मलक्षणेषु अहिंसा एव प्रथम: धर्मः अस्ति।
  4. अहिंसापालकाः कारुणिकाः दयावन्तश्च भवन्ति।
  5. अहिंसया एव आत्मा सुखम् अनुभवति मनश्च परां शान्ति लभते।
  6. अहिंसाबलेन शत्रवोऽपि मित्राणि भवन्ति।
  7. सर्वाणि कार्याणि अहिंसया एव सिध्यन्ति अतएव मुनिभिः ‘अहिंसा परमो धर्मः’ इति स्वीकृतः।
  8. जैनबौद्धधर्मी अहिंसाधर्मे परमौ निष्ठावन्तौ।
  9. महात्मागान्धिमहोदयः अहिंसाधर्मस्य परमोपासकः आसीत्।
  10. सः अहिंसाशस्त्रेण भारतं स्वतन्त्रमकरोत्।
  11. अहिंसायां महती शक्तिः वर्तते, अनया अधिकृताः जनाः सदा वशवर्तिनः भवन्ति।
  12. अतः सर्वैः अहिंसा धर्मः पालनीया।

7. उद्यमः [2013,14]

[सम्बद्ध शीर्षकः–उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः, उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि (2011, 12), उद्योगः, उद्योग-महिमा (2010), परिश्रमः (2013), उद्योगः सर्वसाधनम् (2014)]

  1. अस्मिन् संसारे सर्वे जनाः सुखमिच्छन्ति, पुरुषार्थेन एव ते सुखं प्राप्नुवन्ति।
  2. उद्यमेन एव सर्वाणि कार्याणि सिध्यन्ति।
  3. यदि मानव: उद्योगं न कुर्यात्, तस्य किमपि कार्यं न सिध्येत्।
  4. सिंह: महान् बलवान् भवति, सोऽपि उद्यम विना स्वोदरमपि पूरयितुं न समर्थः।
  5. उद्योगिनां पुरुषाणां पाश्र्वे लक्ष्मीः स्वयमायाति।
  6. उद्योगबलेनैव पाण्डवाः नष्टमपि राज्यम् उपलब्धवन्तः।
  7. कालिदासः उद्योगं कृत्वा एव कविकुलगुरुः अभवत्।
  8. लोकमान्यतिलक-गोखले-महात्मागान्धिप्रभृतिभिः देशभक्तैः (UPBoardSolutions.com) पुरुषार्थेनैव भारतभूमिः पारतन्त्र्याद् विमुक्ता कृता।
  9. शास्त्रेषु उद्यमस्य महिमा वर्णित:-नास्ति उद्यमसमो बन्धुः, उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः च इति।
  10. निर्बला पिपीलिका उद्योगस्य बलेन एव स्वजीवनं यापयति।
  11. अत: वयं जीवनसौख्याय उद्योगिनः भवेम।

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8. व्यायामः [2007]

[सम्बद्ध शीर्षकः-स्वास्थ्य महत्त्वम्, शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्, विद्यालयेषु स्वास्थ्य-शिक्षायाः आवश्यकता]

  1. शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ इत्यनुसारेणं सर्वधर्माणां प्रथमं साधनं स्वस्थं शरीरम् अस्ति।
  2. शरीरं तदैव किञ्चित्कर्तुं शक्नोति यदा तत् स्वस्थं भवति।
  3. स्वास्थ्यरक्षायाः सर्वोत्तमः उपाय: व्यायामः अस्ति।
  4. व्यायामेन शरीरं बलवत्, पुष्टं, स्वस्थं च भवति।
  5. शरीरस्य सर्वाङ्गीणविकासाय व्यायाम: आवश्यकीयः।
  6. स्वस्थे शरीरे एवं स्वस्थः मनः वसति; अतः व्यायामशीलस्य मनः सदा प्रसन्नं भवति।
  7. व्यायामाः क्रीडनं, तरणं, कूर्दनं, धावनं, भ्रमणम् इत्यादयः अनेकविधाः भवन्ति।
  8. व्यायामेन शरीरस्य बुद्धेश्च विकासो भवति।
  9. अतः सर्वैः स्वशरीरस्य स्वास्थ्यरक्षार्थं व्यायामः अवश्यं करणीयः।
  10. स्वस्थं शरीरं जीवनसौख्यं प्रदातुं शक्नोति।

9. संस्कृतभाषायाः महत्त्वम् [2006, 11, 12, 13, 14, 15]

[सम्बद्ध शीर्षक:–संस्कृताध्ययनस्य लाभः,संस्कृतस्य-उपयोगिता (2006), सुभारती (2007). राष्ट्रभाषा-संस्कृतम् (2010), संस्कृत नाम दैवी वाक् (2011) संस्कृतवाङ्मयम् (2010), संस्कृतस्य महत्त्वम् (2006,08), संस्कृतभाषा (2012,14), देववाणी (2014)]

  1. संस्कृतभाषा संसारस्य प्राचीनतमा भाषा अस्ति।
  2. व्याकरणादि दोषरहिता भाषा संस्कृतभाषेति कथ्यते।
  3. पुरा सर्वे जनाः संस्कृतभाषायाम् एव वदन्ति स्म।
  4. सर्वे प्राचीनाः ग्रन्थाः; यथा—चत्वारो वेदाः, ब्राह्मणग्रन्थाः, उपनिषद्-ग्रन्थाः, पुराणानि, षड्दर्शनग्रन्थाः, संस्कृतभाषायामेव लिखिताः सन्ति।
  5. आदिकविः महर्षि वाल्मीकि रामस्य चरित्ररूपं रामायणम्, (UPBoardSolutions.com) महर्षिः व्यासश्च विश्वप्रसिद्धं ग्रन्थं महाभारतं संस्कृते एव अलिखत्।
  6. संस्कृतभाषा एव भारतदेशम् ऐक्यसूत्रे बध्नाति।
  7. यथा जननी स्वदुग्धदानेन स्वसन्तत्या: पोषणं करोति, तथैव संस्कृतभाषा सर्वासां भारतीयभाषाणां जननी अस्ति; अत: भारतीयाः इमां मातृवत् पूजयन्ति।
  8. ये भारतीया: हिन्दीभाषायाः विरोधं कुर्वन्ति, ते कदापि संस्कृतभाषायाः विरोधं न कुर्वन्ति।
  9. विशालं मनोज्ञं च अस्याः साहित्यं, परिपूर्ण अस्याः व्याकरणं, श्रुतिमधुरः शब्दभण्डारः, ललिता सामासिकी पदावली च अस्याः महत्त्वं प्रकटयन्ति।
  10. संस्कृतभाषायाः प्रचारेण छात्राणाम् अनुशासनहीनता दूरीकर्तुं शक्यते।
  11. विश्वस्य सुखाय शान्तये चापि संस्कृतस्य प्रचार: लाभप्रदः भविष्यति।
  12. अतः सर्वैः संस्कृतभाषा अवश्यं पठनीया अनुशीलनीया च।

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10. सन्मित्रम्

  1. सुखे दु:खे च सम्पत्तौ विपत्तौ च कस्यामपि अवस्थायां यः स्वमित्रं न त्यजति, स एव सन्मित्रमस्ति।
  2. सन्मित्रं स्वमित्रं दुःखितं दृष्ट्वा कदापि त्यक्तुं न शक्नोति।
  3. आवश्यकतासमये स: धनं दत्वा तस्य सहायतां करोति।
  4. सः तस्य अवगुणान् न प्रकटयति, किन्तु गुणान् एव प्रकाशयति।
  5. सन्मित्रं स्वमित्रं पापात् निवारयति, हिताय योजयते, आपद्गतं न त्यजति।
  6. मित्राय आवश्यकतायां धनं ददाति।
  7. तस्य गोप्याः वार्ताः गोपयति, गुणान् च प्रकटीकरोति।
  8. यत् अविचार्य प्रियं कुर्यात् तत् मित्रं सन्मित्रमुच्यते।
  9. अस्मिन् संसारे सन्मित्रस्य प्राप्ति: दुर्लभः अस्ति। ये (UPBoardSolutions.com) समृद्धिसमये सन्निहिताः भवन्ति, परन्तु विपदि आपदि च साहाय्यभूताः विरला एव भवन्ति।
  10. ये जनाः सन्मित्रं प्राप्नुवन्ति ते एव पुण्यवन्तः धन्याश्च सन्ति।

11. प्रभातवर्णनम् [2009]

  1. प्रातः सूर्य: उदयति, चन्द्रः च अस्तं गच्छति।
  2. इदानीं तमः नश्यति, प्रकाशः च भवति।
  3. प्रात:समये सरोवरेषु कमलानि विकसन्ति, कुमुदानि च निमीलन्ति।
  4. प्रात: समय: उलूकान् दुःखीकरोति, चक्रवाकान् च मुदितान् करोति।
  5. सर्वे मनुष्याः प्रात:काले आलस्यं त्यक्त्वा, शयनादुत्तिष्ठन्ति स्वकार्येषु च निरताः भवन्ति।
  6. पक्षिण: वृक्षेषु कलरवं कुर्वन्ति, मधुपाः च पुष्पेषु गुञ्जन्ति, मकरन्दं च पिबन्ति।
  7. प्रात: शीतलः सुगन्धश्च पवनः मन्दं वहति।
  8. जनाः प्रात:काले भ्रमणाय गच्छन्ति।
  9. प्रातः भ्रमणेन तेषां मतिः विमला भवति।
  10. प्रात:समये मन्दिरेषु भक्तानां सङ्गीतमिश्रः ध्वनिः आकाशे प्रसरित दिशः च मुखरीकरोति।

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12. उद्यानम्

[सम्बद्ध शीर्षकः–उपवनम्]

  1. उद्याने बहुविधाः वृक्षा: लताश्च भवन्ति।
  2. वृक्षेषु लतासु च विविधानि बहुवर्णानि पुष्पाणि मधुराणि च पक्वानि फलानि शोभन्ते।
  3. उद्याने वृक्षेषु खगाः मधुरं कूजन्ति।
  4. उद्याने पुष्पेषु भ्रमरा: गुञ्जन्ति मकरन्दं च पिबन्ति।
  5. तत्र शीतलः सुगन्धश्च पवनः मन्द-मन्दं सञ्चरति।
  6. जनाः प्रात:काले भ्रमणाय उद्यानं गच्छन्ति।
  7. तत्र बालकाः क्रीडन्ति प्रसन्नाः च भवन्ति।
  8. मालाकारः तत्र वृक्षान्, पादपान्, सुपुष्पितांश्च लताः जलेन सिञ्चति, पुष्पाणि चिनोति।
  9. उद्याने वृक्षाणां छायासु श्रान्ताः पथिकाः पशवः च विश्राम कुर्वन्ति।
  10. सर्वत्र रम्याणि दृश्याणि भवन्ति।
  11. उद्यानै: पर्यावरण-शुद्धिरपि सम्भवति।

13. ग्राम-वर्णनम्

[सम्बद्ध शीर्षकः–ग्राम्य-जीवनम्, स्वग्रामवर्णनम्, ग्रामः]

  1. भारतदेश: ग्रामाणां देशः अस्ति।
  2. ग्राम्यजीवनस्य पृथगेव स्ववैशिष्ट्यं भवति।
  3. ग्रामवासिनां जीवनं सरलं निश्चलं च भवति। तेषां जीवने प्रदर्शनस्य कृत्रिमतायाः च अभावः भवति।
  4. ग्रामेषु नगराणां कृत्रिमं चाकचिक्यं न भवति, अपितु तत्र स्वाभाविकी शान्ति, प्राकृतिक सौन्दर्यं भवति।
  5. ग्रामेषु शस्यश्यामलानि क्षेत्राणि, मनोहराणि उपवनानि, कलकल-निनादं कुर्वत्यः नद्यश्च मानवान् मोहयन्ति।
  6. ग्रामेषु स्वच्छः वायुः, निर्मलं कूपजलं, नवं नवनीतं, दुग्धं दधि (UPBoardSolutions.com) च मिलन्ति, यैः जनाः नीरोगाः पुष्टा: बलवन्तः च भवन्ति।
  7. ग्रामेषु जनाः सदैव उद्यमिनः भवन्ति।
  8. ग्रामीणानां भोजनं शुद्धं सात्त्विकं च भवति, येन ते सात्त्विकवृत्तयः भवन्ति।
  9. ग्रामेषु षट्सु ऋतुषु अपूर्वा शोभा सर्वत्र प्रसरति।
  10. ग्रामीणा: स्वयमेव मनोरञ्जनार्थम् अभिनयादिकं महापुरुषाणां चरित्रश्रवणाय वा समवेताः भवन्ति, आनन्दं चानुभवन्ति।
  11. तत्र शिक्षायाः अभावः वर्तते, शिक्षायाः प्रचारे कृते तेषां जीवनं स्वर्गतुल्यं भविष्यति।

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14. भारतवर्षस्य महत्त्वम्

[सम्बद्ध शीर्षक:–मातृभूमिः (2006), जन्मभूमिः (2010), भारतवर्षः (2008, 09), अस्माकं देशः (2006, 10, 11, 13, 14, 15),जननीजन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी, स्वदेशः]

  1. संसारे माता मातृभूमिश्च द्वे एवं सर्वोत्तमे स्तः।
  2. यथा अस्माकं जननी अस्मान् लालयति, तथैव अस्माकं जन्मभूमिरपि स्वजलेन, स्ववायुना, स्वमृत्तिकया च अस्मान् पोषयति।
  3. अतएव स्वदेशं प्रति अस्माकं हृदये स्वाभाविक: आदरः भवति।
  4. अस्माकं जन्मभूमि: भारतवर्षमस्ति।
  5. पर्वतराजः हिमालयः अस्याः मुकुटः अस्ति, समुद्रश्च अस्याः पादान् प्रक्षालयति।
  6. अत्र गङ्गायमुनादायः अनेकाः महानद्यः कृषकाणां क्षेत्राणि सिञ्चन्ति।
  7. अस्माकं देश: सर्वेषु देशेषु सुन्दरतमः प्राचीनतमः च अस्ति।
  8. संसारे सर्वप्रथमं सभ्यतायाः प्रादुर्भावः, प्राचीनतमानां वेदानां रचना, लेखन-कला-काव्यनाटकादीनां च उत्पत्तिः सर्वप्रथमं भारते एवाभूत्।
  9. अनेकाभिः महानदीभिः, प्रचुरैः फलैः, शस्यश्यामलैः क्षेत्रैः सुन्दरतमायाम्। अस्यां भूमौ जन्मग्रहणाय देवता अपि स्पृह्यन्ति।
  10. भारतवर्षेऽस्मिन् अनेके महर्षयः, भक्ताः, चक्रवर्तिनृपतयः, विद्वांस धर्मप्रवर्तकाः, कवयः, राजनीतिज्ञाः नारी मूर्धन्याः च अभवन्।
  11. अयम् अस्माकं देश: सर्वथा प्रशंसनीयः अस्माभिः पूजनीयश्च।
  12. वयं सुजलां, सुफलां, मलयजशीतलां, शस्यश्यामलां मातरं, भारत मातरं नमामः।

15. हिमालयः [2006]

  1. भारतवर्षस्य उत्तरस्यां दिशि एव स्थितः उच्चतमः पर्वतः हिमालयः अस्ति।
  2. अस्य शिखराणि सदैव हिमेन आच्छादितानि तिष्ठन्ति, अतएव अयं हिमस्य आलयः ‘हिमालयः’ इति कथ्यते।
  3. अयं सर्वेषां पर्वतानाम् उच्चतमः अस्ति; अतः ‘पर्वतराजः अपि कथ्यते।
  4. एवरेस्ट’ इति अस्य उच्चतमं शिखरम् अस्ति।
  5. अस्यैव कैलासशिखरम् भगवतः शिवस्य निवासभूमिः अस्ति।
  6. अस्य कन्दरासु तपः कुर्वन्तः मुनयः परां सिद्धि प्राप्नुवन्ति।
  7. हिमालयस्य प्रदेशेषु अति सुन्दराणि तीर्थस्थानानि सन्ति।
  8. कश्मीरप्रदेशः अस्यैव प्रदेशेषु स्थितः स्व सौन्दर्येण ‘भूस्वर्गः’ इति कथ्यते।
  9. हिमालये अनेकाः औषधयः, वनस्पतयः, वनानि, बहुपयोगीनि च काष्ठानि प्राप्यन्ते।
  10. गङ्गा-यमुना-ब्रह्मपुत्रादयः महानद्यः अस्मात्पर्वतात् (UPBoardSolutions.com) निर्गत्य स्वेन पवित्रेण जलेन भारतभुवं सिञ्चन्ति।
  11. महाकविना कालिदासेन हिमालयं ‘देवतात्मा’ इत्युक्तम्।

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16. भारतीयः कृषकः

[सम्बद्ध शीर्षकः–कृषकः (2014)]

  1. भारतदेश: कृषिप्रधानाः देश: अस्ति।
  2. कृषे: उन्नतौ एव भारतस्य उन्नतिः निहितास्ति।
  3. कृषका एवं भारतस्य प्राणभूताः सन्ति।
  4. कृषका: ग्रामेषु वसन्ति।
  5. कृषिकार्यमेव तेषां मुख्योद्योगः।
  6. अत: भारतस्य अर्थव्यवस्थायां कृषकाणां महत्त्वपूर्ण स्थानमस्ति।
  7. तथापि भारतीयः कृषक: अशिक्षितः अति निर्धनः च अस्ति।
  8. कृषक: अस्माकं कृते अन्नम् उत्पादयति।
  9. सः प्रात:काले उत्थाय कठिनं श्रमं करोति।
  10. स दारुणे आतपे, शरीरकम्पे शीते वर्षासु च घोरं श्रमं करोति।
  11. तस्य पत्नी पुत्राश्च कृषिकायें तस्य सहायता कुर्वन्ति।
  12. भारतीय-कृषकस्य पावें कृषेः वैज्ञानिक साधनानाम् अभावः वर्तते। अतः तस्य आर्थिक दशा शोचनीया अस्ति।
  13. सम्प्रति कृषे: कृषकस्य च उन्नतये भारतीयशासनं प्रयत्नशीलं वर्तते।
  14. कालान्तरे तस्य दशा सन्तोषप्रदा भविष्यति।

17. वर्षावर्णनम्

[सम्बद्ध शीर्षकः–वर्षर्तुः, वर्षाः]

  1. भारतवर्षे वसन्तः, ग्रीष्मः, वर्षा, शरद्, हेमन्तः, शिशिरः चेति षड् ऋतवः भवन्ति।
  2. एषु ऋतुषु वर्षतः अतिमहत्त्वमस्ति।
  3. ग्रीष्मादनन्तरं वर्षर्तुः समागच्छति।
  4. वर्षर्ती मेघाः आकाशे आच्छादिताः भवन्ति, प्रचुरमात्रायां जलं च वर्षन्ति।
  5. वर्षतः आगमनेन सन्तप्तः संसारः शान्ति लभते, सन्तप्ताः भूमयः सरसाः भवन्ति, आतपेन दग्धाः वनस्पतयः पुन जीवनं प्राप्नुवन्ति।
  6. तडागः, नद्यः, कृपाश्च जलेन परिपूर्णाः भवन्ति।
  7. प्रसन्नाः कृषकाः क्षेत्रेषु नवानि अन्नबीजानि वपन्ति।
  8. अस्याः ऋतोः विचित्रं दृश्यं भवति। गगनं मेधैः आच्छादितं भवति, (UPBoardSolutions.com) दर्दुराणां कोलाहल:, झिल्लीनां झंकृतं, दंशमशकादीनां ‘भन्–भन्’ स्वरं च श्रूयन्ते।
  9. मयूरा: मेघान् दृष्ट्वा नर्तितुम् आरभन्ते।
  10. सर्वत्र मनोहारिणी हरीतिमा भवति।
  11. इयम् ऋतु: कृषये लाभप्रदा अस्ति।

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18. ग्रीष्म-वर्णनम्

  1. भारतवर्षे वसन्तः, ग्रीष्मः, वर्षा, शरद्, हेमन्त: शिशिरः चेति षड् ऋतवः भवन्ति।
  2. वसन्तस्य अनन्तरं ग्रीष्मस्य आगमनं भवति।
  3. अस्य आरम्भसमये हरितानि धान्यानि पक्वानि भवन्ति।
  4. शनैः शनैः ग्रीष्मेण सह कष्टानि अपि वर्द्धन्ते।
  5. सूर्यरश्मयः अग्निस्फुलिङ्गान् वर्षन्ति।
  6. तडाग-नदी-कूपानां जलं न्यूनतां गच्छति।
  7. जनाः पशवः पक्षिणश्च पिपासाकुलिताः भवन्ति।
  8. शीतलं पेयादिकं, शीतला च छाया एव रुचिकरा भवन्ति।
  9. श्रान्ताः पथिकाः स्वेदक्लिन्नाः सन्तः वृक्षाणां शीतलां छायाम् एव अन्विष्यन्ति।
  10. भूमिगृहेषु, कन्दरासु, वृक्षाणामधः एव च उष्णताभाव: प्रतीयते।

19. वसन्तर्तुः [2009]

  1. भारतवर्षे एकस्मिन वर्षे षड् ऋतवः भवन्ति।
  2. सर्वेषु ऋतुषु वसन्तर्तुः सर्वोत्तमः अस्ति, अतएव अयं ‘ऋतुराज:’ कथ्यते।
  3. वसन्ते सौन्दर्यस्य अभिनवं साम्राज्यं समुल्लसति।
  4. वसन्ते पक्षिकुलं दिशि दिशि धावति कूजति नृत्यति च।
  5. पलाशे रक्तपुष्पाणि विकसन्ति।
  6. तरुषु कोमलानि किसलयानि पुष्पाणि च मन: आकर्षन्ति।
  7. पिका: आग्नमञ्जरीं दृष्ट्वा हर्षातिरेकेन (UPBoardSolutions.com) गायन्ति कूजन्ति च।
  8. कृषका: नवशस्यानि दृष्ट्वा प्रसन्नाः भवन्ति।
  9. बहवः जनाः पीतानि वस्त्राणि धारयन्ति।
  10. अस्मिन् ऋतौ होलिकोत्सवः सम्पद्यते।
  11. अस्मिन् ऋतौ नाधिकः शीतः नाधिक: उष्णता भवति।
  12. सर्वतः क्षेत्रेषु सर्षपपुष्पाणि विकसन्ति।
  13. तडागेषु विविधानि वर्णानि कमलानि विकसन्ति।
  14. वसन्ते भ्रमणेन मन: प्रफुल्लं शरीरं च स्फूर्तियुक्तं भवति।
  15. अयं ऋतु: अस्मभ्यम् आनन्दस्य उल्लासस्य च सन्देशं ददाति।

20. दीपमालिका

[सम्बद्ध शीर्षकः–दीपावल्युत्सवः, दीपावलिः (2006, 12, 14)]

  1. दीपमालिका हिन्दूनां चतुषु मुख्योत्सवेषु एकः पवित्रतम: प्रमुख: महत्त्वपूर्णश्च उत्सवः वर्तते।
  2. अयम् उत्सवः कार्तिकमासस्य अमावस्यायां तिथौ सम्पादितो भवति।
  3. अस्य उत्सवस्य प्रक्रिया अनेकै: अहोभिः पूर्वं प्रारभते।
  4. एतत् ब्रूयते यद् अस्मिन् दिने श्रीरामचन्द्रः रावणं हत्वा लक्ष्मण-सीताभ्यां सह अयोध्या प्रत्यागच्छत्। अत: अयोध्यावासिनः दीपानां मालया तेषां सोल्लासं स्वागतम् अकुर्वन्।
  5. अस्मिन् दिवसे जना: गृहाणि आपणानि च सुधया लेपयन्ति।
  6. आपणवीथय: सज्जिताः भवन्ति।
  7. गृहे गृहे दीपा: पङ्क्तिबद्धाः प्रज्वाल्यन्ते।
  8. जनाः मित्राणां सम्बन्धिनां गृहेषु मिष्टान्नानि प्रेषयन्ति।
  9. रात्रौ लक्ष्म्याः पूजनं भवति।
  10. प्रसन्नाः बालका: विविधानि क्रीडनकानि प्राप्य, मिष्टान्नानि च भुक्त्वा इतस्तत: उच्छलन्ति।
  11. अस्मिन् उत्सवे गृहाणि स्वच्छानि भवन्ति, दीपालोकेन रोगकीटाणव: नश्यन्ति, जनेषु स्नेहस्य सञ्चारः भवति।
  12. केचन मूर्खा: अस्मिन् दिने द्यूतक्रीडया अस्योत्सवस्य (UPBoardSolutions.com) पवित्रतां दूषयन्ति।
  13. वस्तुत: दीपावली ज्ञानस्य सम्पन्नतायाः आराधना च उत्सवः अस्ति।
  14. भारतीय-साहित्ये दीपावल्या: विस्तृत वर्णनम् अस्ति।

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21. होलिकोत्सवः [2013,14]

[सम्बद्ध शीर्षकः-रङ्गपर्वः ]

  1. होलिकोत्सवः हिन्दूनां चतुषु मुख्योत्सवेषु एक: प्रमुखः उत्सवः अस्ति।
  2. अयमुत्सवः फाल्गुनमासस्य पूर्णिमायाः दिने सम्पादितो भवति।
  3. होलिकोत्सवः वसन्तपञ्चमीत: प्रारम्भो भवति।
  4. अस्य उत्सवस्य समय वसन्त ऋतुः समुल्लसति, अत: वातावरणं समशीतोष्णं भवति।
  5. एवं श्रूयते यत् होलिका नाम एका राक्षसी आसीत्। सा हिरण्यकशिपोः आदेशात् प्रह्लादनामकं बालकं निजाङ्के निधाय प्रज्वलितम् अग्नि प्रविष्टा। परम् ईशकृपया होलिका दग्धा जाता, प्रह्लादश्च सुरक्षित: अतिष्ठत्। तस्या स्मृतौ एवं अयम् उत्सवः भवति।
  6. जनाः एकस्मिन् स्थाने काष्ठानां सञ्चयं कुर्वन्ति, रात्रौ च होलिकायाः प्रतिमां विधाय तां दहन्ति।
  7. होलिकोत्सवे जनाः अतीव आनन्दमग्नाः भवन्ति, गायन्ति, (UPBoardSolutions.com) वाद्यन्ति नृत्यन्ति च।
  8. अग्रिमे दिवसे सर्वे मित्राणां गृहेषु यान्ति, तेषाम् उपरि रङ्गम् अबीरं च प्रक्षिपन्ति लेपयन्ति च।
  9. सर्वे जनाः प्रेम्णा मिलन्ति।
  10. अस्मिन् पर्वणि पारस्परिकः द्वेषः शत्रुता च नश्यति, स्नेहस्य सञ्चारः च भवति।

22. विजयदशमी [2006,07]

  1. विजयदशमी भारतस्य प्रमुखः उत्सवः अस्तिः।
  2. इदं कथ्यते यत् अस्मिन्नेव मर्यादापुरुषोत्तमः रामः रावणं हत्वा स्वभार्या सीतां रावणबन्धनात् अमुञ्चत्।
  3. तदा अयोध्यावासिनः प्रसन्ना: भूत्वा इमम् उत्सवम् आयोजितवन्तः।
  4. प्रमुखरूपेण अयम् उत्सवः क्षत्रियाणाम् उत्सवः भवति।
  5. अस्मिन् अवसरे ग्रामे-ग्रामे । नगरे–नगरे रामलीलायाः आयोजनं भवति।
  6. रामलीलायां मर्यादापुरुषोत्तमस्य रामस्य आदर्श जीवनं प्रदर्शयति।
  7. रावण: अन्यायस्य दुराचारस्य च प्रतीकः आसीत्।
  8. श्रीराम: मर्यादायाः सत्यस्य च प्रतीक आसीत्।
  9. अयम् उत्सवः अन्यायस्योपरि न्यायस्य विजयः अस्ति।
  10. दानवतायाः उपरि मानवतायाः विजयः अस्ति।

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23. मम प्रियं पुस्तकम्

[सम्बद्ध शीर्षकः-वाल्मीकि-रामायणम्]

  1. आदिकविना वाल्मीकि महर्षिणा विरचितं ‘रामायणम्’ मम अति प्रियं पुस्तकम् अस्ति।
  2. इदं संस्कृतभाषायाः प्रथमं काव्यम् अस्ति।
  3. अस्मिन् ग्रन्थे भगवतः श्रीरामचन्द्रस्य शक्ति-शील-सौन्दर्याणाम् अति सरलायां भाषायां विस्तृतं वर्णनमस्ति।
  4. अस्मिन् ग्रन्थे श्रीराम: मानवानामादर्शरूपेण वर्णितः।
  5. सः आदर्शः पुत्रः, आदर्श: भ्राता, आदर्शः पतिः, आदर्श: राजा च आसीत्।
  6. सः पितुः आज्ञया चतुर्दशवर्षाणि वने न्यवसत्, रावणं च हत्वा पापानि अनाशयत्।
  7. अस्मिन् ग्रन्थे प्राकृतिकं वर्णनम् अपि अतिशोभनं वर्णितम्।
  8. अयं ग्रन्थः जनान् आदर्श जीवनं यापयितुं प्रेरयति।
  9. अहमपि अस्माद् ग्रन्थात् आदर्श जीवनस्य शिक्षां लभे।
  10. अयं ग्रन्थः मह्यम् अतीव रोचते।

24. ममः प्रियः कविः [2006,07,08, 09, 10, 11, 12, 13,14]

[सम्बद्ध शीर्षकः–कालिदासो महान् कविः (2010), कविकुलगुरुः कालिदासः(2012),महाकविः कालिदासः (2007, 12, 13,14)]

  1. कालिदासः संस्कृतसाहित्यस्य महाकविः अस्ति।
  2. संस्कृतसाहित्ये एवं न, अपितु विश्वसाहित्ये अस्य उच्चस्थानम् अस्ति।
  3. अस्य महाकवेः जीवनस्य विषये किमपि निश्चितं न ज्ञायते।
  4. अनुमानतः अस्य जन्म ईसापूर्वं द्वितीयशतके उज्जयिन्याम् अभूत्।
  5. अयं राज्ञः विक्रमादित्यस्य सभाया: नवरत्नेषु एकं रनम्। आसीत्।
  6. अयं रघुवंशं कुमारसम्भवं चेति द्वे महाकाव्ये, मेघदूतं ऋतुसंहारञ्चेति द्वे (UPBoardSolutions.com) गीतिकाव्ये, विक्रमोर्वशीयं मालविकाग्निमित्रम् अभिज्ञानशाकुन्तलम् चेति त्रीणि नाटकानि अरचयत्।
  7. अभिज्ञानशाकन्तुलम् अस्य अनुपमं नाटकम् अस्ति।
  8. उपमायाः प्रयोगे सः अतीव विशिष्टः अस्ति।
  9. ‘उपमा कालिदासस्य इत्याभणक: अति प्रसिद्धः अस्ति।
  10. तस्य शैली अतीव मनोहारिणी, भाषा च सरसा, कोमला, प्रसाद-गुणयुक्ता च आसीत्।
  11. अस्य प्रकृतिचित्रणम् अपि अद्वितीयम् अस्ति।
  12. अस्य काव्येषु सर्वत्र सरसा: सूक्तयः प्राप्यन्ते।
  13. अस्य काव्यनाटकेषु आसमुद्रं भूस्थानानि वर्णितानि सन्ति

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25. राष्ट्रपिता महात्मा गान्धि [2006, 12, 13,14]

[सम्बद्ध शीर्षकः–महापुरुषस्य जीवनम्]

  1. महात्मागान्धि एकः सदाचारशीलः, सत्यनिष्ठः, अहिंसाव्रती, देशभक्तश्च महापुरुषः आसीत्।
  2. तस्य जन्म एकोनसप्तत्यधिकाष्टादशशततमे ईसवीयाब्दे अक्टूबरमासस्य द्वितारिकायां गुजरात-प्रान्तस्य पोरबन्दरनगरे अभवत्।
  3. अस्य पितुः नाम कर्मचन्द: गान्धि, मातुश्च नाम पुतलीबाई इत्यासीत्।
  4. सः सत्यप्रियः अहिंसायाः पालकश्च बाल्यादेवासीत्।
  5. सः विधिशास्त्रं पठितुम् आङ्ग्लदेशं गतः।
  6. तत्र निवसतः अपि तस्योपरि विदेशीय सभ्यतायाः प्रभाव: नाभवत्।
  7. अफ्रीकादेशं गत्वा सत्याग्रहान्दोलनेन अयं तत्र भारतीयेभ्यः अधिकारान् अदापयत्।
  8. ततः स्वदेशं प्रत्यागत्य सः भारतस्य स्वतन्त्रतायै अहिंसात्मकम् आन्दोलनम् आरब्धवान्।
  9. अहिंसात्मकेन आन्दोलनेन एव सः भारतं पारतन्त्र्य-पाशात् स्वतन्त्रम् अकरोत्।
  10. सः हरिजनानाम् उद्धाराय आजीवनं प्रायतत।
  11. अतः भारतीयाः एनं ‘बापू’ ‘राष्ट्रपिता’ वा इति अभिधातुमारब्धवन्तः।
  12. अस्माकं कर्त्तव्यं यत् वयं महात्मन: गान्धिनः मार्गम् अनुसरेम।

26. गौः

[सम्बद्ध शीर्षकः—गोपालनम्, मदीया गौः, गोसेवा (2014)]

  1. गौः एकः अति सरल: स्वभावः पशुः अस्ति।
  2. अस्याः द्वौ कण, द्वौ शृङ्गौ, एकं पुच्छ, चत्वारः स्तनाः, चत्वारः पादाश्च भवन्ति।
  3. गौः सस्नेहं घासं खादति मिष्टं दुग्धं च ददाति।
  4. धेनोः दुग्धेन देवानां पूजा भवति, घृतेन च हवनं पूर्णं भवति।
  5. अस्याः मूत्रं महद् औषधम् अस्ति।
  6. अस्याः गोमयलेपनेन च रोगा: विनश्यन्ति।
  7. अस्या गोमयेन कृषे: कार्यं भवति, इन्धनं च भवति।
  8. अस्याः वत्सा: वृषभाः भवन्ति, हलं च कर्षन्ति।
  9. शिशवः तस्याः मधुरं दुग्धं पीत्वा हृष्टाः पुष्टाः च भवन्ति, (UPBoardSolutions.com) तेषां बुद्धिश्च निर्मला भवति।
  10. प्राचीनकाले ऋषयः धेनूनां पालनमकुर्वन्।
  11. धेनुः माता इव मान्या, वन्द्या च भवति; अतः जनाः तां गौमाता इति कथयन्ति।

27. राष्ट्रियपक्षी मयूरः

  1. अस्माकं देशे भारतवर्षे राष्ट्रियवैशिष्ट्ययुक्तानि कानिचित् प्रतीकानि स्वीकृतानि सन्ति।
  2. तेषु मयूरः राष्ट्रियपक्षिरूपेण स्वीकृतोऽस्ति।
  3. मयूरोऽतीव शोभन: पक्षी भवति।
  4. अस्य पक्षा: विधात्री अनेकवर्णाः सौन्दर्ययुक्ताश्च निर्मिताः।
  5. वर्षाकाले यदा गगनं मेचकैः मेघेः आच्छादितं भवति, तदा अयं स्वपक्षान् सर्वत: प्रसार्य नृत्यति तदा वने अति भव्यं दृश्यं भवति।
  6. अस्य पक्षिणः धार्मिकम् अपि महत्त्वम् अस्ति।
  7. कार्तिकेयस्य वाहनं मयूर एव अस्ति।
  8. भगवान् कृष्णः मयूरस्य पक्षैः निर्मितं मुकुटं धारयति।
  9. मयूरस्य अतिमनोहारि रूपं दृष्ट्वा एव भारतीयशासनेन मयूरः राष्ट्रियः पक्षी स्वीकृतः।
  10. अयं स्वनर्तनेन सौन्दर्येण केकास्वरेण च जनानां मनांसि विनोदयति।
  11. अयं मानवशत्रून् सर्पादीन् व्यापाद्य प्राकृतिक सन्तुलनं सम्पादयति।
  12. सर्वैः सह मधुरम् आलापनीयं मधुरं व्यवहर्तितव्यम्, परं ये राष्ट्रद्रोहिणः, (UPBoardSolutions.com) अत्याचारपरायणाः राष्ट्रियाखण्डतायाः ऐक्यस्य च विनाशकाः ते सर्पतुल्याः मयूरेण इव राष्ट्रेण व्यापादयितव्याः।
  13. अतः अस्माभिः मयूरः सदा संरक्षणीयः संवर्धनीयश्च।।

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28. यौतुकम्। [2006]

[सम्बद्ध शीर्षकः–यौतुकप्रथा (2009)]

  1. कन्यायाः विवाहे कन्यापक्षात् वरपक्षाय यद् धनं वस्तुजातं वा दीयते, तदेव यौतुकम् कथ्यते।
  2. प्राचीनकाले कन्यायाः विवाहे उपहारदानस्य प्रथा प्रचलिता आसीत्, परमियं प्रथा सम्प्रति दोषपूर्णा अभवत्।
  3. अधुना तु वरस्य योग्यतानुरूपं, निश्चितं धनम् अनिवार्यरूपेण बलात् देयं भवति।
  4. यदि यौतुके काचित् न्यूनता भवति, तदा पत्युगृहे वधूः प्रताडिता भवति।
  5. धनलोलुपाः केचित् नरपिशाचा: वधूनां प्राणान् अपि हरन्ति।
  6. एतस्यायं परिणामः अभवत् यदि कन्यायाः पिताः (UPBoardSolutions.com) निश्चितं यौतुकं दातुमशक्तः भवति तदा तस्य दुहिता अपरिणीता स्वगृहे तिष्ठति।
  7. प्रभूतं यौतुकं दत्वा अपि माता-पितरौ कन्यायाः सुखविषये विश्वस्तौ न भवतः।
  8. प्रतिदिनं वध्वाः यातनायाः वधस्य च समाचाराः श्रूयन्ते।
  9. यौतुककारणात् अति भयङ्करान् परिणामान् दृष्ट्वा अपि जनाः अस्य अवरोधाय न यतन्ते।
  10. एवमेनुभूयते यत् अस्माकं समाज: पतनोन्मुखः सन् यौतुकसुरसामुखे पतिष्यति।
  11. अत: इमं समाजमुखात् इमं कलङ्क परिमाष्टुम् अवश्यं प्रयतनीयम्।

29. दूरदर्शनम् [2005,06,08, 09]

  1. आधुनिकेषु विज्ञानस्य आविष्कारेषु दूरदर्शनं नाम एतादृशं यन्त्रम् आविष्कृतं, येन वयं दूरस्थम् अपि दृश्यं सम्मुखमिव पश्यामः।
  2. एतस्य सहाय्येन वयं सुदूरस्थेषु देशेषु घटिताः घटना: प्रत्यक्षमिव पश्यामः नेतृणां भाषणानि शृणुमः।
  3. अधुना इदं मनोरञ्जनस्य विज्ञापनस्य वा प्रमुखतमं साधनं जातम्।
  4. वयं स्वगृहे उपविष्टा एव देशविदेशीयानां क्रीडनानां प्रतियोगिताः सुखेन पश्यामः, स्वगृहे एव पर्यस्योपरि समासीनाः चलचित्रदर्शनस्यानन्दमनुभवामः।
  5. एवं दूरदर्शनं मनोरञ्जनं करोति ज्ञानं च वर्धयति।
  6. दूरदर्शनयन्त्रं श्वेतश्यामम् अनेकवर्णं च उपलभ्यते।
  7. अनेकवणे दूरदर्शनयन्त्रे दृश्यानि स्वाभाविकरूपेण दृश्यन्ते।
  8. दूरदर्शने अनेके दोषाः अपि समुत्पन्नाः।
  9. अस्य कार्यक्रमेषु कानिचित् अभद्राणि दृश्यानि अपि दृश्यते, येन अपरिपक्वबुद्ध्यः बालकाः विकृतिं प्राप्नुवन्ति।
  10. अतः अश्लीलदृश्यानां प्रदर्शनं परिहरणीयम्।
  11. दूरदर्शने ते एव कार्यक्रमाः प्रदर्शनीयाः ये सामाजिक दृष्ट्या सत्प्रेरणादायकाः स्युः।

30. पर्यावरणम् [2006, 08, 12, 13, 14]

[सम्बद्ध शीर्षकः-पर्यावरणस्य महत्त्वम्, पर्यावरणस्य संरक्षणस्य उपायाः (2010,11), पर्यावरण-प्रदूषणम् (2010, 11, 12, 13, 14, 15), पर्यावरण-समस्या (2006), पर्यावरण शोधनोपायाः (2011), पर्यावरण-सन्तुलनम् (2013, 14)]

  1. प्रकृत्याः तत्त्वजातं परितः आवृत्य संस्थितम्। अस्मात् कारणात् तत्पर्यावरणं कथ्यते।
  2. कस्यापि देशस्य प्राकृतिकं यद् वातावरणं, तदेव तद्देशस्य पर्यावरणमुच्यते।
  3. मृत्स्ना-जल-वायु-वनस्पति-खग-मृगकीट-पतङ्ग-जीवाणवः एते पर्यावरणस्य घटकाः सन्ति।
  4. स्वस्थं पर्यावरणमेव स्वस्थजीवनस्य आधारः अस्ति।
  5. पर्यावरणे मानवसमाजे च सन्तुलनेन मानव-समाजस्य विकासः भवति।
  6. असन्तुलितं विकृतं च पर्यावरणं मानवीय स्वास्थ्यं विनाशयति।
  7. सम्प्रति वैज्ञानिके युगे नवीनानाम् उद्योगानां विकासात् पर्यावरणम्, असन्तुलितं विकृतं च अभवत्।
  8. प्रदूषणं शोधयितुं शासनेन महान्तः प्रयासाः क्रियन्ते।
  9. वृक्षारोपणैः संरक्षणैश्च पर्यावरणं शुद्धं भवति।
  10. अस्माभिरपि पर्यावरणं शोधयितुं यथाशक्यं प्रयासः कर्तव्यः।
  11. पर्यावरणे शुद्धे जाते वयं सुखेन जीवितुं शक्नुमः।

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31. तीर्थराजः प्रयागः [2008, 15]

[सम्बद्ध शीर्षकः-प्रयाग-वर्णनम् (2011,14), प्रयाग-नगरम् (2012)]

  1. प्रयागः सर्वेषु तीर्थेषु श्रेष्ठः अस्ति; अतः अयं तीर्थानां राजा तीर्थराजः अस्ति। अत्र ब्रह्मा श्रेष्ठं यागम् अकरोत्।
  2. प्राचीनकालेऽत्र बहवः अश्वमेधादयः यज्ञाः सम्पन्नाः अभवन्, अतोऽस्य नाम प्रयागोऽस्ति।
  3. अकबरः अस्य नाम स्वकीयस्य इलाहीधर्मस्य अनुसारेण (UPBoardSolutions.com) इलाहाबाद’ इति अकरोत्।
  4. प्रयाग: उत्तरप्रदेशराज्येऽस्ति।
  5. अत्र एव गङ्गा-यमुना-सरस्वतीनां तिसृणां नदीनां सम्मेलनं भवति।
  6. आसां नदीनां पवित्रे सङ्गमे अनेकलक्षाः जनाः स्नानं कुर्वन्ति, आत्मानं च पावयन्ति।
  7. प्रतिद्वादशवर्षम् अत्र कुम्भपर्वः भवति।
  8. अस्मिन् पर्वणि देशस्य सुदूरेभ्यः भागेभ्यः आगत्य तीर्थयात्रिणः सङ्गमे स्नानं कुर्वन्ति।
  9. प्रयागः विविधविद्यानां प्रमुख केन्द्रम् अस्ति।
  10. अत्र प्रयाग-विश्वविद्यालये ज्ञानविज्ञानादीनां शिक्षा दीयते।
  11. यत्र सहस्रशः विद्यार्थिन: ज्ञानार्जनाय सुदूरेभ्यः देशेभ्यः आगच्छन्ति।
  12. उत्तरप्रदेशराज्यस्य उच्चन्यायालयः, माध्यमिक शिक्षा परिषद्, हिन्दी-साहित्य सम्मेलनम्, प्रसिद्धम् आनन्दभवनम् च अत्र विराजन्ते।
  13. भारतवर्षस्य त्रयः प्रधानमन्त्रिणः अत्र जन्म अलभन्त।
  14. महाकविः कालिदासः अपि अस्य नगरस्य महिमानम् अवर्णयत्।

32. अनुशासनम् [2009, 12]

[सम्बद्ध शीर्षक: अनुशासनस्य महत्त्वम्]

  1. निर्धारितानां नियमानां पालनं, गुरूणामाज्ञानुपालनं च अनुशासनं कथ्यते।
  2. अनुशासनेन व्यक्तेः, समाजस्य देशस्य च उन्नतिर्भवति।
  3. मानवजीवने अनुशासनस्य महती आवश्यकता अस्ति।
  4. अनुशासनेन मार्गेषु यानानि सुरक्षितानि चलन्ति, जनाः च स्वगृहेषु निर्भया: वसन्ति।
  5. अनुशासनं विना जीवनं दुःखमयं विघ्नमयं च भवति।
  6. यदा मानवः अनुशासनं त्यजति, तदा विविधानि कष्टानि स्वयम् आगच्छन्ति।
  7. प्रकृतिजीवनेऽपि अनुशासनं दृश्यते।
  8. सूर्यचन्द्रौ यथासमयम् उदयेते, अस्तं च गच्छतः।
  9. आकाशे अनेकानि नक्षत्राणि अनुशासनेन एव स्वमार्गे परिभ्रमन्ति।
  10. जलधिः अनुशासनेन एव स्वसीमानं न लङ्घयते।
  11. अनुशासनमुल्लङ्घ्य प्रकृति: यदा आचरति, तदा अनिष्टं भवति।
  12. अनुशासनहीनानां जनानां जीवनं नारकीयं घृणास्पदं च भवति।
  13. अनुशासिताः जनाः सर्वेषां प्रियाः भवन्ति, निरन्तरम् उन्नतिं च कुर्वन्ति। \
  14. अतः वयं सदा अनुशासिताः भवेम।

33. वन-सम्पद् [2006,09]

[सम्बद्ध शीर्षकः–वनस्यमहत्त्वम्।]

  1. वनेषु वृक्ष-लता-तृण-गुल्मादिकं यदपि भवति सा वनसम्पद् भवति।
  2. कस्यापि देशस्य सम्पत्सु वनसम्पदा महत्स्थानम् अस्ति।
  3. यत्रदेशे वनानि न सन्ति, सः देश: निर्धनः भवति।
  4. अस्माकं देशे बहूनि वनानि सन्ति।
  5. विविधानां तरूणां, सुपुष्पान्वितानां लतानां, खगानां, मृगाणाम्, औषधीनां रूपेण महती वनसम्पत् अस्माकं देशे अस्ति।
  6. वनेषु विविधाः वृक्षाः सुपुष्पिता: लता: कूजन्तः पक्षिणः अस्माकं मनांसि मोहयन्ति।
  7. वनेभ्यः प्रभूतं काष्ठं, फलानि, औषधयः, खनिजाः पदार्थाः च उपलभ्यन्ते।
  8. वनेभ्यः एव आक्सीजनं नामा प्राणवायुः अपि प्राप्यते, येन प्राणिनः जीवनं धारयन्ति।
  9. वृक्षाणां काष्ठैः गृहाणि बहूनि काष्ठोपकरणानि च अपि निर्मीयन्ते।
  10. बहवः उद्योगाः काष्ठनिर्भराः सन्ति।
  11. परन्तु वयं अज्ञानात्। अल्पलोभाच्च वृक्षाणां कर्त्तनैः वनानि विनाशयामः।
  12. वनसम्पदां रक्षणाय वयं वृक्षान् न कर्त्तयेम।
  13. जीवनं निहितं वने” इत्युक्त्वा वनानां रक्षणं मानवजीवनम् रक्षणम् अस्ति।

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34. मम विद्यालयः

[सम्बद्ध शीर्षकः–युष्माकं विद्यालयः, अस्माकं विद्यालयः (2006, 08, 10, 11, 12, 13, 15), विद्यालयः (2011)]

  1. मम विद्यालयः नगरस्य पूर्वस्यां दिशि स्थितः नगरस्य श्रेष्ठः विद्यालयः अस्ति।
  2. मम विद्यालये पञ्चत्रिंशत् कक्षा द्विसहस्र छात्राः च सन्ति।
  3. विद्यालये एकः विशालः सभागारः अस्ति।
  4. अस्मिन् कक्षे विद्यालयस्य विभिन्नोत्सवाः आयोजयन्ति।
  5. मम विद्यालये एकः पुस्तकालयः, एक: वाचनालयः, षड् प्रयोगशाला: च सन्ति; यत्र छात्राः अधीयन्ते।
  6. अत्र सर्वे गुरुजना: परिश्रमेण पाठयन्ति।
  7. छात्राः अनुशासनमनुसरन्तः अध्ययनं कुर्वन्ति।
  8. मम विद्यालयस्य परीक्षा परिणामः सदैव (UPBoardSolutions.com) शत-प्रतिशतं भवति।
  9. क्रीडाक्षेत्रेऽपि मम विद्यालयस्य ख्यातिः अस्ति।
  10. अस्मिन् विद्यालये पठित्वा अहं कथं गर्वं न अनुभविष्यामि?

35. छात्रजीवनम्

[सम्बद्ध शीर्षकः-विद्यार्थि-जीवनम् (2011,12)]

  1. अस्माकं पूर्वजाः मानवजीवनं चतुषु भागेषु विभाजितम् अकरोत्।
  2. पञ्चविंशति वर्षपर्यन्तं ब्रह्मचर्याश्रमः कथ्यते।
  3. इयमेव जीवनं छात्र-जीवनम् अस्ति।
  4. अस्मिन् काले मनुष्यः स्व-इन्द्रियाणि नियम्य विद्याध्ययनं कुर्यात्।
  5. छात्राः सदैव अनुशासिताः भवेयुः।
  6. विनयः छात्राणाम् आभूषणम्।
  7. विनीत: छात्रः सर्वेषां प्रियः भवति।
  8. विद्यायाः सर्वोत्तमः लाभ: विनय एव अस्ति।
  9. विनीत: छात्र: स्वविनयेन सर्वत्र सफलतां प्राप्नोति।
  10. छात्राणां गुणं शास्त्रेषु एव वर्णित:

काक चेष्टा वको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च।
अल्पाहारी गृहत्यागी, विद्यार्थी पञ्चलक्षणम् ॥

36. अयोध्यावर्णनम्

  1. अयोध्या एका धार्मिका नगरी अस्ति।
  2. दशरथः अस्याः राजा आसीत्।
  3. दशरथात्पूर्वमपि अत्र अनेके सूर्यवंशीयाः नृपाः अभवन्।
  4. ये पुत्रवत् प्रजाम् अपालयन्।
  5. अस्यामेव नगर्यां श्रीरामस्य रूपे भगवान् विष्णुः अवतरितवान्।
  6. श्रीरामः मानवजीवनस्य सर्वाः मर्यादाः अपालयत्।
  7. यत् कार्यं केनापि पुत्रेण न कृतः तत् (UPBoardSolutions.com) श्रीरामेण कृतः।
  8. इयं नगरी भगवतः रामस्य जन्मस्थली क्रीडाभूमिश्च अस्ति।
  9. अयोध्या निकटे एवं सरयू नदी वहति, यस्याः वर्णनं रामायणेऽस्ति।
  10. अत: इयं नगरी तीर्थस्थानेषु विख्याता अस्ति।

37. अस्माकं प्रधानाचार्यः [2014]

  1. अहं श्रीमालवीय माध्यमिक विद्यालये पठामि।
  2. अयं विद्यालयः नगरात् बहिरस्ति।
  3. विद्यालयस्य प्रधानाचार्यः श्रीसदाशिव मिश्रः एकः आदर्श: प्रधानाचार्यः अस्ति।
  4. स: सहकर्मीन् अध्यापकान् स्वानुजान् इव व्यक्हरति।
  5. तस्य व्यवहारेण सर्वे गुरवः तम् अग्रज इव आदरं कुर्वन्ति।
  6. प्रार्थनास्थले छात्राः तस्य भाषणम् आदरपूर्वकं शृण्वन्ति।
  7. नगरेऽपि अस्माकं प्रधानाचार्यः सर्वत्र समादृतः अस्ति।
  8. तस्यैव प्रयासेन अस्माकं विद्यालयः अनुशासने शीर्षस्थः अस्ति।
  9. सर्वे छात्राः अध्यापकाश्च मानयन्ति यत् विद्यालयस्य उन्नतिः अस्माकमेव उन्नति अस्ति।
  10. वयं स्वप्रधानाचार्ये गर्वः अस्ति।

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38. गङ्गा नदी

  1. गङ्गाया अखिलविश्वस्य नदीषु महत्त्वपूर्णं स्थानं वर्तते।
  2. सुरधुनीयम्, भागीरथी, विष्णुनदी, जाह्नवी आदि अस्याः अन्यानि नामानि सन्ति।
  3. गङ्गा हिमालयात् नि:सृता।
  4. भारतवर्षस्य धरित्रीं शस्यश्यामला निर्मातुं गङ्गायाः उपकारः अनिर्वचनीयः।
  5. भारतवर्षस्य अनेकानि प्रमुखानि नगराणि अस्याः तटे स्थिताः सन्ति।
  6. गङ्गायाः पावने कूले अमेकानि तीर्थस्थानामि सन्ति।
  7. गङ्गोदकं स्वच्छं शीतलं, तृषीशामकं, रुचिवर्द्धकं, सुस्वादु, रोगापहारि च भवति।
  8. गङ्गायाः जले कीटाणवः न जायन्ते।
  9. जना इमां ‘गङ्गामाता इति सम्बोधयन्ति।
  10. अद्य मानव: अज्ञानवशात् प्रमादात् च सर्वकल्याणकारिणीं गङ्गां प्रदूषयति।

39. राष्ट्रिय-एकता

  1. विविध धर्म-भाषावलम्बिनां जनानां वासस्थानं राष्ट्रं भवति।
  2. परन्तु धर्म-भाषा-वैविध्येऽपि एकस्मिन् राष्ट्रे वसन्तः (UPBoardSolutions.com) जनाः अभिन्ना एव भवन्ति।
  3. यथा एकस्मिन् गृहे वसन्त: बहवः जनाः पृथक् वस्त्राभूषणानि धारयन्ति पृथगेव चिन्तयन्ति च।
  4. परं मूलत: ते एकस्यैव गृहस्यैव अङ्गानि भवन्ति। अत: अभिन्नाः एव तिष्ठन्ति।
  5. एवमेव वयं स्वराष्ट्रे वसन्तः पृथक् भाषा-भाषिणः, पृथक् धर्मावलम्बिनः, पृथक् विचारानुयायिनः। सन्त: अपि अभिन्नाः एव।
  6. यतो हि भारतम् अस्माकं राष्ट्रं वयं च अस्य राष्ट्रस्य नागरिकाः।
  7. राष्ट्रं यदि सुरक्षितम् अस्ति तर्हि वयमपि निस्सन्देहं सुरक्षिताः।
  8. राष्ट्रं यदि विकसितं तर्हि अस्माकमपि विकासः सुनिश्चित: एव।
  9. अतः अस्माकं सर्वेषां भारतीयानाम् इदं प्रथमं कर्त्तव्यम् अस्ति यद् राष्ट्रियैक्यस्य बाधकानि तत्त्वानि निवारयेम राष्ट्रियाम् एकतां च पोषयेम।
  10. एतेनैव राष्ट्रस्य अस्माकं सर्वेषां च समुन्नतिः समृद्धिश्च सुनिश्चिता।

40. वसुधैव कुटुम्बकम्

  1. विश्वस्य स्रष्टा ईश्वरः एकः एव अस्ति।
  2. सर्वे प्राणिनः च तस्य तनया: सन्ति।
  3. अतः विश्वस्य सर्वेषु भागेषु स्थितीः जनाः रूप-वर्ण-भाषा-संस्कृति भेदान् धारयन्तः अपि अभिन्नाः एव।
  4. यतोहि सर्वेषां मूलप्रवृत्तयः समाना: एव; यथा–एकः जनः सम्माने सुखम् अपमाने च दुःखम् अनुभवति तथैव अन्येऽपि।
  5. अतः श्रेष्ठः जनः सः एव यः सर्वेषु प्राणिषु समानं व्यवहारं करोति, सर्वेषु स्निह्यति न कमपि पीडयति।
  6. अद्य तु विज्ञानस्य प्रभावेण देशकालयोः अन्तरं प्रायः समाप्ति गतम्।
  7. भारत स्थितः जनः विदेशेषु स्थितानां जनानां समाचार प्रतिदिनं प्राप्नोति दूरभाषेण च वार्ती करोति।
  8. दूरदर्शनेन तु सर्व विश्वं करतलस्थितमेव जातम्।
  9. एतस्य सहयोगेन कुत्रचिदपि घटितां घटनां क्षणादेव वयं ज्ञातुं समर्थाः भवामः।
  10. अत: उपर्युक्तस्थितौ विश्वबन्धुत्वस्य भावनायाः महती आवश्यकता अस्ति।
  11. अत: महर्षिभिः उक्तम्- उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।

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41. परिवारकल्याणम् [2006]

[सम्बद्ध शीर्षकः–जनसङ्ख्या -समस्या (2007,08, 11,14), जनसङ्ख्या -विस्फोटः (2007, 10, 11, 15),परिवार-नियोजनम् (2011)]

  1. परिवार कल्याणार्थम् इदम् आवश्यक यत् व्ययः आयात् अल्पतरो भवेत्।
  2. यदि परिवारे सदस्यानां सङ्ख्या विशाला स्यात् तर्हि तेषां पालनाय महान् आयः अपि अल्पतरः एव।
  3. अतः परिमित-सदस्यानां परिवारः एव सुखी भवति।
  4. परिवारस्य परिमित्यर्थ प्राचीनकालेऽपि अनेक उपायाः (UPBoardSolutions.com) प्रचलिताः आसन्। तेषु इन्द्रियसंयमः मुख्यः आसीत्।
  5. अस्मिन् भोगविलासयुगे इन्द्रिय-संयमः नास्ति सुकरः।
  6. अतएव अस्मिन् युगे परिवार-परिमित्यर्थं बहवः वैज्ञानिकाः उपायाः आविष्कृताः सन्ति।
  7. तेषु गर्भ: रोधकानाम् ओषधीनां प्रयोग: वन्ध्याकरणं च इमौ द्वौ उपायौ मुख्यौ स्तः।
  8. किन्तु शिक्षाभावात् सामान्यजना: परिवार नियोजन नाङ्गीकुर्वन्ति।
  9. केचित् राजनीतिक-नेतारः अपि अस्मिन् विषये बाधकाः भवन्ति।
  10. यदि अस्माकं देशवासिन: परिवार-निरोधं स्वेच्छया न स्वीकुर्वन्ति तर्हि प्रकृतिः अस्माकं नियोजनं करिष्यति।
  11. अत: अस्माकं सर्वेषाम् इदं कर्त्तव्यं यद् वयं परिवार-निरोधाय मनुष्यान् प्रेरयाम।

42. विद्यालयमहोत्सवः [2009]

[सम्बद्ध शीर्षकः–स्वतन्त्रता दिवसः (2009)]

  1. अगस्त-मासस्य पञ्चदशे दिनाङ्के अस्माकं देशः स्वतन्त्रः अभवत्।
  2. अस्मिन् दिने सम्पूर्ण-भारते स्वतन्त्रता दिवसस्य उत्सवः भवति।
  3. अस्माकं विद्यालये अयं वार्षिक-महोत्सवरूपेण भवति।
  4. अयम् उत्सवः अगस्तमासस्य प्रथम-दिनाङ्केतः प्रारभते।
  5. दिने प्रतिदिनं बहुविधाः क्रीडा-प्रतियोगिताः भवन्ति।
  6. अस्माकं मुख्य: उत्सवः पञ्चदश-दिनाङ्के भवति।
  7. अस्मिन् दिने अनेके यान्याः अतिथयः आगच्छन्ति।
  8. प्रात:काले प्रधानाचार्यः ध्वजारोहणं करोति।
  9. सन्ध्या-काले एका विशाला सभा आयोज्यते।
  10. छात्रा: सांस्कृतिका कार्यक्रमान् प्रस्तुतवन्ति।
  11. प्रधानाचार्यः छात्रेभ्यः मिष्टान्नानि पुरस्कारान् च वितरन्ति।
  12. एवम् अयं स्वतन्त्रता दिवस: विद्यालय-महोत्सवः च सम्पन्नः भवति।।

43. क्रिकेट-क्रीडनम्

  1. भारते क्रीडायाः प्रथा अतिप्राचीना वर्तते।
  2. क्रिकेट-क्रीडनम् कन्दुक-क्रीडायाः स्वरूपम् अस्ति।
  3. इदं क्रीडनं यष्टिभिः कन्दुकः-ताडनारूपे प्रचलितम् अस्ति।
  4. सम्प्रति बहुविधानि क्रीडनानि प्रचलितानि सन्ति।
  5. तेषु क्रिकेट-क्रीडनम् अति लोकप्रियम् अस्ति।
  6. विदेशेषु अपि अस्य क्रीडनस्य अति प्रचलनम्। अस्ति।
  7. प्रायः विश्वस्य सर्वेषु देशेषु इदम् क्रीडनम् क्रीड्यते।
  8. समयानुसारं अन्ताराष्ट्रिया क्रिकेट प्रतियोगितापि आयोज्यते।
  9. क्रिकेट-क्रीडनेन शरीरं स्वस्थ स्फूर्तियुक्तं च भवति।
  10. एतेन स्पर्धा सहयोग-भावना च वर्धेते।
  11. सम्प्रति सहयोग-भावनायाः परमावश्यकता वर्तते।
  12. क्रिकेट-क्रीडनेन सम्प्रति देशस्य युवकानां स्वास्थ्य-विकासः भवति।।

44. अस्माकं प्रधानमन्त्री

  1. भारतः एकः राष्ट्रः अस्ति।
  2. कस्यापि राष्ट्रस्य एकः प्रधानमन्त्री भवति।
  3. भारतराष्ट्रस्य अपि एक: प्रधानमन्त्री अस्ति।
  4. अस्माकं प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्रः दामोदरदास: मोदी महाभागः अस्ति।
  5. सः महान् राष्ट्रभक्तः अस्ति।
  6. सः महान् राजनीतिज्ञः अस्ति।
  7. नरेन्द्रः दामोदर-दासः मोदी महोदयः कुशल प्रशासकः अस्ति।
  8. अयं देशम् उन्नतिमार्गं नेतुं प्रयत्नशीलः अस्ति।
  9. अस्माकं प्रधानमन्त्रिणः विदेशनीति, गृहनीति, अर्थनीति, सुदृढा सन्ति।
  10. अयम् एकः सक्षम: प्रधानमन्त्री अस्ति।

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45. धर्मः

[सम्बद्ध शीर्षकः-धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः]

  1. धर्मः कश्चित् लोकोत्तर: आध्यात्मिकः गुणः अस्ति।
  2. धारणात् धर्मः इत्युच्यते।
  3. धर्मः मानवस्य सदैव संरक्षकः अस्ति।
  4. यः धर्मं रक्षति धर्मः तं रक्षति।
  5. धर्मः एव मानवेषु एक: विशिष्टः गुणः अस्ति।
  6. धर्मेण हीनः जनः पशो: तुल्यः भवति।
  7. धर्मः सदैव पालनीयः (UPBoardSolutions.com) भवति।
  8. स्वधर्मः एव श्रेष्ठः भवति।
  9. धर्मस्य परिभाषा कर्तुम् अशक्या।
  10. मानवैः धर्मः सदैव रक्षणीयः पालनीयश्च।

46. धैर्यम्। [2008]

[सम्बद्ध शीर्षकः-त्याज्यं न धैर्यं विधुरेऽपि काले]

  1. धैर्यम् एकः अद्भुत: गुणः अस्ति।
  2. धीरः सर्वं विधातुं समर्थः अस्ति।
  3. अधीर: स्वकार्यं विनाशयति।
  4. धैर्येण असाध्यमपि कार्यं सरलं भवति।
  5. धैर्यमवलम्ब्य मानवः स्वकार्यं साधयेत्।
  6. मानव-जीवने धैर्यस्य महत्त्वपूर्ण स्थानं स्वीकृतम्।
  7. मानवः धैर्यं कदापि न त्यजेत्।
  8. धैर्यं विना जीवनं दु:खमयं कष्टमयं च भवति।
  9. विपत्सु अपि धैर्यं सज्जनाः न परित्यजन्ति।
  10. वयमपि धीराः भवेम।

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47. प्रियः अध्यापकः [2006,07]

  1. य: अध्यापयति स: अध्यापकः भवति।
  2. मम विद्यालये अनेके अध्यापकाः सन्ति।
  3. सर्व एव अध्यापका समानाः न भवन्ति।
  4. छात्रेषु कश्चित् एव प्रियतमः प्राप्तसम्मानः भवति।
  5. मम अपि श्री कमलेश कुमार जैन: प्रिय: अध्यापकः अस्ति।
  6. छात्राः तं सर्वाधिकं सम्मन्यन्ते।
  7. सः वस्तुतः अस्ति सम्मानस्य योग्यः।
  8. सः सौम्य: व्यवहारकुशल: उदारः स्वविषये च निष्णातः अस्ति।
  9. सवें अध्यापका: छात्रा: अन्ये कर्मचारिणश्च श्री जैन: सम्मानं कुर्वन्ति।
  10. सः छात्रेभ्यः अति रोचते, अत: ममापि सः प्रियः अध्यापकः अस्ति।

48. विज्ञानयुगम्

[सम्बद्ध शीर्षकः-विज्ञानस्य उपयोगिता]

  1. वर्तमानयुगं विज्ञानयुगम् अस्ति।
  2. विशिष्टज्ञानं विज्ञानम् अस्ति।
  3. अस्मिन् युगे विज्ञानं विना कार्यं न सम्भवम्।
  4. विद्युत-व्यजनं, विद्युत-शकटिका, आकाशवाणी, (UPBoardSolutions.com) दूरदर्शनादीनि प्रमुखानि वैज्ञानिक अनुसन्धानानि सन्ति।
  5. आधुनिकयुगे इमानि साधनानि अति आवश्यकानि वर्तन्ते।
  6. मानवजीवने विज्ञानस्य एवं प्रधानता अस्ति।
  7. विज्ञानबलेन अद्य असम्भवम् अपि सम्भवं भवति।
  8. अधुना विज्ञानबलेन एव मनुष्यः चन्द्रादि लोकं गच्छति।
  9. विज्ञानस्य प्रसादेनैव पोतेन नदी समुद्राः च तरामः।
  10. वयं विज्ञानप्रभावेन आकाशे स्वच्छन्दं भ्रमामः।

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UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 11 सामान्य संक्रामक रोगों का परिचय

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 11 सामान्य संक्रामक रोगों का परिचय

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
संक्रामक रोग किसे कहते हैं? संक्रामक रोग किस प्रकार से फैलते हैं? इनसे बचाव के उपायों का वर्णन कीजिए।
या
संक्रामक रोग किसे कहते हैं? कुछ संक्रामक रोगों के नाम लिखिए। [2009, 10, 13, 15, 17, 18]
या
छूत के रोग (संक्रामक रोग) कैसे फैलते हैं। किन्हीं तीन छूत के रोगों के नाम लिखिए। इन्हें फैलने से कैसे रोका जा सकता है?
या
संक्रामक रोग क्या हैं? दो संक्रामक रोगों के लक्षण एवं उपचार बताइए। [2008]
या
वायु द्वारा रोग कैसे फैलते हैं? वर्णन कीजिए। [2013, 15]
या
संक्रामक रोग किन-किन माध्यमों से फैलते हैं? [2007, 09, 11, 15]
या
संक्रामक रोगों की रोकथाम के मुख्य उपाय लिखिए। [2015]
उत्तर:
संक्रामक रोग का अर्थ
रोग अनेक प्रकार के होते हैं। कुछ रोग शरीर के विभिन्न अंगों के सही कार्य न करने के कारण उत्पन्न होते हैं तथा कुछ रोग पोषक तत्वों के अभाव के कारण हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य विशेष प्रकार के रोग भी होते हैं जो विभिन्न प्रकार (UPBoardSolutions.com) के बैक्टीरिया या रोग के जीवाणुओं द्वारा ही पनपते हैं। ऐसे रोग एक व्यक्ति अथवा प्राणी से दूसरे व्यक्ति या प्राणी को लग जाते हैं। इस प्रकार के रोगों को संक्रामक रोग (Infectious diseases) कहा जाता है। इस प्रकार वे रोग जो जीवाणुओं के माध्यम से एक व्यक्ति अथवा प्राणी से दूसरे व्यक्ति अथवा प्राणी को लग जाते हैं, संक्रामक रोग कहलाते हैं। साधारण बोलचाल की भाषा में इन रोगों को छूत के रोग भी कहा जाता है। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक इस प्रकार के रोगों के फैलने को रोग का संक्रमण कहा जाता है।

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संक्रामक रोगों को फैलाने के माध्यम
संक्रामक रोग बड़ी तेजी से व्यापक क्षेत्र में फैल जाते हैं। वास्तव में संक्रामक रोगों को उत्पन्न करने वाले रोगाणु या जीवाणु विभिन्न माध्यमों द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैल जाते हैं। संक्रामक रोग मुख्य रूप से निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा फैलते हैं|

(1) वायु द्वारा:
धूल के कणों के साथ-साथ वायु रोगाणुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाती रहती है। इसके अतिरिक्त अनेक रोगाणु व बीजाणु एक लम्बी अवधि तक वायु में निलम्बित रहते हैं। इस प्रकार की अशुद्ध वायु में साँस लेने से अनेक रोग हो जाते हैं। वायु द्वारा फैलने वाले रोग हैं- चेचक, इन्फ्लुएन्जा, खसरा, काली खाँसी, क्षय रोग इत्यादि।

(2) भोजन तथा जल द्वारा:
जल में संक्रमित होने से, मक्खियों व अन्य कीट-पतंगों द्वारा रोगाणु जल तथा भोजन में पहुँचकर पनप जाते हैं। रोगाणुयुक्त भोजन अथवा जल का सेवन करने से अनेक प्रकार के संक्रामक रोग फैलते हैं। उदाहरण-हैजा, मोतीझरा, पेचिश, अतिसार आदि।

(3) सम्पर्क द्वारा:
कुछ संक्रामक रोग एवं उनके रोगाणु प्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा भी फैलते हैं। जब कोई स्वस्थ व्यक्ति किसी रोगी व्यक्ति के सीधे सम्पर्क में आता है तो रोग के कीटाणु स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में भी प्रवेश कर जाते हैं। सामान्य रूप से त्वचा सम्बन्धी रोग सम्पर्क द्वारा ही फैलते हैं। दाद, खारिश, खुजली तथा एग्जीमा रोग सम्पर्क द्वारा ही फैलते हैं। वर्तमान समय में एड्स तथा हेपेटाइटिस ‘बी’ जैसे गम्भीर एवं घातक रोग भी प्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा ही फैल रहे हैं।

(4) रक्त द्वारा या कीड़ों के काटने के द्वारा:
कुछ संक्रामक रोगों के कीटाणु व्यक्ति के शरीर में सीधे रक्त में प्रवेश करके पहुँचते हैं। ये कीटाणु विभिन्न प्रकार के मच्छरों, पिस्सुओं, मक्खियों अथवा पशुओं के माध्यम से फैलते हैं। सामान्य रूप से ये कीट या मच्छर आदि किसी रोगी व्यक्ति के शरीर का खून चूसते हैं। इस स्थिति में रोग के कीटाणु इनके शरीर में पहुँच जाते हैं। इसके उपरान्त ये कीट जब किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटते हैं, तो इनके शरीर से सम्बन्धित रोग के कीटाणु स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में पहुँच जाते हैं तथा वहाँ पहुँचकर बड़ी तेजी से बढ़ने लगते हैं तथा व्यक्ति रोग का शिकार हो जाता है। मलेरिया, डेंगू, प्लेग तथा पीत-ज्वर इसी प्रकार से फैलने वाले (UPBoardSolutions.com) रोग हैं। इनसे भिन्न हाइड्रोफोबिया नामक भयंकर रोग कुत्ते आदि पशुओं द्वारा काटे जाने पर रक्त में रोगाणु मिल जाने से ही उत्पन्न होता है।

बचाव के उपाय:
संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जाने चाहिए

  1. संक्रांमक रोग से ग्रसित रोगियों को अविलम्ब अस्पताल में ले जाना चाहिए और यदि यह सम्भव न हो, तो उन्हें अन्य व्यक्तियों से पृथक् किसी स्वच्छ कमरे में रखना चाहिए।
  2.  रोग परिचर्या से सम्बन्धित व्यक्तियों को रोग प्रतिरोधक टीके आवश्यक रूप से तत्काल लगवाने चाहिए।
  3. आवासीय स्थानों पर मक्खियों, मच्छरों एवं अन्य कीटों को समय-समय पर नष्ट करने के उपाय करते रहना चाहिए।
  4. ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में रोगाणुमुक्त पेय जल की उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए।
  5. राष्ट्रीय स्तर पर रोग-प्रतिरोधक टीकों की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा जन-सामान्य में इसके प्रति अभिरुचि जाग्रत करने के प्रयास किए जाने चाहिए।
  6. संक्रामक रोग के फैलने की सूचना तुरन्त निकटतम स्वास्थ्य (UPBoardSolutions.com) अधिकारी को दी जानी चाहिए।
  7. विभिन्न उपायों द्वारा रोगाणुनाशन का कार्य यथासम्भव व्यापक स्तर पर किया जाना चाहिए।
  8. सभी बच्चों को विभिन्न संक्रामक रोगों से बचाव के सभी टीके निर्धारित समय पर अवश्य लगवाए जाने चाहिए।

प्रश्न 2:
चेचक (Smallpox) नामक संक्रामक रोग के लक्षणों, फैलने के कारणों, बचाव के उपायों एवं उपचार का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए। [2011]
या
चेचक रोग के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय लिखिए। [2011, 13, 15]
उत्तर:
चेचक

संक्रामक रोगों में चेचक एक अत्यधिक भयंकर एवं घातक रोग है। अब से कुछ वर्ष पूर्व तक भारतवर्ष में इस संक्रामक रोग को काफी अधिक प्रकोप रहता था। प्रतिवर्ष लाखों व्यक्ति इस रोग से पीड़ित हुआ करते थे तथा हजारों की मृत्यु हो जाती थी, परन्तु अब सरकार के व्यवस्थित प्रयास से हमारे देश में चेचक पर काफी हद तक नियन्त्रण पा लिया गया है। चेचक को जड़ से ही समाप्त करना हमारा उद्देश्य है। चेचक को स्थानीय बोलचाल की भाषा में बड़ी माता भी कहा जाता है।

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लक्षण:

  1.  शरीर में चेचक के रोगाणु सक्रिय होते ही व्यक्ति को तेज ज्वर होता है। सारे शरीर में पीड़ा होती है तथा नाक से पानी बहने लगता है।
  2.  इस काल में ही कभी-कभी जी मिचलाने लगता है और उल्टी भी आ जाती है।
  3. चेचक के लक्षण प्रकट होते ही आँखें लाल हो जाती हैं तथा बहुत अधिक बेचैनी अनुभव की जाती है।
  4. इसके बाद चेचक के दाने निकलने लगते हैं। सबसे पहले चेहरे पर लाल रंग के दाने दिखाई देते हैं। धीरे-धीरे ये दाने हाथ-पाँव, पेट तथा सारे ही शरीर पर निकल आते हैं।
  5. चेचक के दाने प्रारम्भ में लाल रंग के होते हैं। धीरे-धीरे ये फूलने लगते हैं तथा इनमें एक प्रकार का तरल पदार्थ भर जाता है जो धीरे-धीरे मवाद में बदल जाता है। दानों का यह भयंकर प्रकोप लगभग एक सप्ताह तक रहता है।
  6. एक सप्ताह बाद चेचक का प्रकोप घटने लगता है, ज्वर भी घट जाता है तथा दाने धीरे-धीरे सूखने लगते हैं, परन्तु शरीर में असह्य पीड़ा, खुजलाहट तथा जलन होती है। कभी-कभी शरीर पर सूजन भी आ जाती है।
  7. इसके बाद चेचक के दानों का मवाद सूखने लगता है तथा दानों पर पपड़ी-सी बन जाती है। जो बाद में सूखकर गिरने लगती है। पूरे शरीर से यह पपड़ी सूखकर गिर जाने के बाद ही रोगी स्वस्थ हो पाता है। |

चेचक का फैलना:
चेचक वायु के माध्यम से फैलने वाला संक्रामक रोग है। यह रोग एक विषाणु (Virus) द्वारा फैलता है, जिसे वरियोला वायरस कहते हैं। रोगी व्यक्ति के साँस, खाँसी, बलगम के अतिरिक्त उसके दानों की मवाद, खुरण्ड, कै, मल एवं मूत्र से भी चेचक के विषाणु वायु में व्याप्त हो जाते हैं तथा शीघ्र ही सब ओर फैल जाते हैं जिससे अनेक व्यक्ति प्रभावित होने लगते हैं। रोगी के सीधे सम्पर्क द्वारा भी चेचक फैल सकती है। चेचक के फैलने का मुख्य काल (UPBoardSolutions.com) नवम्बर से मई तक होता है। चेचक नामक रोग का सम्प्राप्ति काल या उद्भवन अवधि सामान्य रूप से 10 से 12 दिन होती है।

बचाव के उपाय:
यह सत्य है कि चेचक का उपचार नहीं हो सकता, परन्तु इस रोग से बचाव के उपाय किए जा सकते हैं। इस रोग से बचाव के पर्याप्त उपाय कर लिए जाएँ तो इस संक्रामक रोग को फैलने से रोका जा सकता है। चेचक से बचाव तथा इसको फैलने से रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं—-

  1. चेचक के रोग से बचने के लिए चेचक का टीका अवश्य लगवा लेना चाहिए। इस बात का प्रयास करना चाहिए कि हर व्यक्ति को समय पर चेचक का टीका लग जाए।
  2. चेचक के रोगी को बिल्कुल अलग रखना चाहिए, अन्य व्यक्तियों विशेष रूप से बच्चों को उसके सम्पर्क में नहीं आना चाहिए।
  3. चेचक के लक्षण दिखाई देते ही किसी अच्छे चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए तथा चिकित्सक के निर्देश के अनुसार ही परिचर्या करनी चाहिए।
  4. चेचक के रोगी द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तनों एवं अन्य वस्तुओं को बिल्कुल अलग रखना चाहिए।
  5. चेचक के रोगी के मल-मूत्र, थूक तथा कै आदि को अलग रखना चाहिए तथा उसमें कोई तेज विसंक्रामक तत्त्व डालकर या तो जमीन में गाड़ देना चाहिए अथवा जला देना चाहिए।
  6. रोगी की सेवा का कार्य करने वाले व्यक्ति को पहले से ही चेचक का टीका लगवा देना चाहिए। इस व्यक्ति को भी अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क से बचना चाहिए।
  7. रोगी के दानों पर से उतरने वाली पपड़ियों को सावधानी से एकत्र करके जला देना चाहिए।

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उपचार:
सामान्य रूप से चेचक के रोग के निवारण के लिए कोई भी औषधि नहीं दी जाती। यह रोग निश्चित अवधि के उपरान्त अपने आप ही समाप्त होता है, परन्तु कुछ उपचारों द्वारा इस रोग की भयंकरता से बचा जा सकता है तथा रोग से होने वाले अन्य कष्टों को कम किया जा सकता है। चेचक के रोगी को हर प्रकार से अलग रखना अनिवार्य है। उसे हर प्रकार की सुविधा दी जानी चाहिए। रोगी के कमरे में अधिक प्रकाश नहीं होना चाहिए, क्योंकि रोशनी से (UPBoardSolutions.com) आँखों में चौंध लगती है जिसका नजर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। चेचक के रोगी को पीने के लिए उबला हुआ पानी तथा हल्का आहार ही देना चाहिए। रोगी से सहानुभूतिमय व्यवहार करना चाहिए। किसी, चिकित्सक की राय से कोई अच्छी मरहम भी दानों पर लगाई जा सकती है। रोगी को सुझाव देना चाहिए कि वह दानों को खुजलाए नहीं।

प्रश्न 3:
डिफ्थीरिया (Liphtheria) नामक रोग के लक्षणों, संक्रमण, उपचार एवं बचाव के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
डिफ्थीरिया

डिफ्थीरिया भी एक भयंकर रोग है। इस रोग को भी वायु द्वारा संक्रमित होने वाले रोगों की श्रेणी में रखा जाता है। यह रोग प्रायः बच्चों को ही होता है। इस रोग के विषय में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है

कारण:
यह रोग जीवाणु जनित है। कोरीनीबैक्टीरियम डिफ्थीरी नामक जीवाणु इस रोग की उत्पत्ति का कारण है। यह एक भयानक संक्रामक रोग है जोकि प्राय: 2-5 वर्ष की आयु के बच्चों में अधिक होता है। यह रोग बहुधा शीत ऋतु में होता है। इस रोग का उद्भवन काल प्राय: 2-3 दिन तक होता है।

लक्षण:
इस रोग का प्रारम्भ रोगी की नाक व गले से होता है। इसके प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. प्रारम्भ में गले में दर्द होता है और फिर सूजन आ जाती है तथा घाव बन जाते हैं।
  2. शरीर का तापक्रम 101°-104° फारेनहाइट तक हो जाता है, परन्तु रोग बढ़ने पर यह कम हो जाता है।
  3. टॉन्सिल व कोमल तालू पर झिल्ली बन जाती (UPBoardSolutions.com) है, जोकि श्वसन-क्रिया में अवरोधक होती है। इसके कारण रोगी दम घुटने का अनुभव करता है।
  4.  रोगी को बोलने तथा खाने-पीने में कठिनाई होती है।
  5.  रोगी के शरीर के अंगों को लकवा मार जाता है।
  6. जीवाणुओं का अतिक्रमण फेफड़ों तथा हृदय तक होता है, जिससे बहुधा रोगी की मृत्यु हो जाती है।

संक्रमण:
इस रोग की संवाहक वायु है। रोगी के बोलने, खाँसने एवं छींकने से जीवाणु वायु में मिलकर अन्य व्यक्तियों तक पहुंचते हैं। रोगी द्वारा प्रयुक्त वस्त्रों, जूठे बचे पेय एवं खाद्य पदार्थों के
माध्यम से भी यह रोग स्वस्थ व्यक्तियों में संक्रमित हो सकता है।

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बचाव एवं उपचार:
रोग के लक्षण प्रकट होते ही रोगी को तुरन्त पास के अस्पताल में ले जाना चाहिए। रोग से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय करना सदैव लाभप्रद रहता है

  1. स्वस्थ व्यक्तियों विशेष रूप से छोटे बच्चों को रोगी से दूर रहना चाहिए।
  2. रोगी द्वारा प्रयुक्त वस्तुओं को सावधानीपूर्वक नष्ट कर देना चाहिए।
  3.  रोगी की परिचर्या करने वाले व्यक्ति को तथा घर के अन्य बच्चों को डिफ्थीरियाएण्टीटॉक्सिन इन्जेक्शन लगवाने चाहिए।
  4. स्वच्छ एवं स्वस्थ रहन-सहन द्वारा रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है; अतः वातावरण की स्वच्छता एवं निद्रा व विश्राम का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  5. रोगी को उबालकर ठण्डा किया हुआ जल देना चाहिए।
  6. नमक मिले जल से नाक, गले व मुंह को साफ करना चाहिए।
  7. सिरदर्द एवं अधिक तापक्रम होने पर माथे व सिर पर शीतल जल की पट्टी रखना लाभकारी रहता है।
  8. रोगी को पर्याप्त मात्रा में द्रव (Liquid) पिलाना चाहिए।
  9. मधु में लहसुन का रस मिलाकरे रोगी के गले पर लेप करना उचित रहता है।
  10. रोगमुक्त होने के पश्चात् भी रोगी को कम-से-कम दस दिन तक पूर्ण विश्राम करना चाहिए।
  11. रोगी के प्रभावित अंगों की मालिश करना प्रायः लाभप्रद रहता है।

प्रश्न 4:
तपेदिक (Tuberculosis) नामक रोग के फैलने के कारणों, लक्षणों तथा उपचार के उपायों का वर्णन कीजिए। [2007, 09, 10, 13]
या
क्षय रोग के सामान्य लक्षण एवं रोकथाम के उपाय लिखिए। [2007, 09, 10, 11, 12, 16]
या
क्षय रोग के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय लिखिए। क्षय रोग के रोगी को क्या विशेष भोजन देना चाहिए?
या
किसी एक संक्रामक रोग के कारण, लक्षण एवं बचने के उपाय लिखिए। [2007, 12, 13, 14, 18]
उत्तर:
तपेदिक (क्षय रोग)

यह अत्यन्त दुष्कर विश्वव्यापी संक्रामक रोग है जो आधुनिक वैज्ञानिक अनुसन्धानों के बावजूद भी नियन्त्रण में नहीं आ रहा है तथा उत्तरोत्तर वृद्धि कर रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, तपेदिक के विश्व के सम्पूर्ण रोगियों के एक-तिहाई भारत में हैं। इस रोग को ‘Captain of Death’ कहते हैं। इस रोग में मनुष्य के शरीर का शनैः-शनैः क्षय होता रहता है तथा इसमें घुल-घुलकर मनुष्य अन्ततोगत्वा मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। (UPBoardSolutions.com) इसी कारण से इसे क्षय रोग भी कहते हैं। वैसे अब यह रोग असाध्य नहीं रहा। इसका पूर्ण उपचार सम्भव है। नियमित रूप से निर्धारित अवधि तक उचित औषधियाँ लेने तथा आहार-विहार को नियमित करके रोग से छुटकारा पाया जा सकता है। |

इस रोग के कई रूप हैं: फेफड़ों की तपेदिक, आँतों की तपेदिक, अस्थियों की तपेदिक तथा ग्रन्थियों की तपेदिक। इनमें सर्वाधिक प्रचलित फेफड़ों की तपेदिक है, जिसे पल्मोनरी टी० बी० (Pulmonary TB.) भी कहते हैं।

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फैलने के कारण: इस रोग का जीवाणु ट्युबरकल बैसिलस (Tubercle bacillus) कहलाता है। इसका आकार मुड़े हुए दण्ड के समान होता है। सन् 1882 में सर्वप्रथम रॉबर्ट कॉक ने रोगियों के बलगम में इसे देखा तथा इसी जीवाणु को रोग का कारण बताया। ये जीवाणु सीलन वाले तथा अँधेरे स्थानों में बहुत दिन तक जीवित रह सकते हैं, किन्तु धूप लगने से ये शीघ्रता से नष्ट हो जाते हैं। साधारणत: यह रोग वायु या श्वास द्वारा ही फैलता है। रोगी के जूठे भोजन, जूठे सिगरेट-हुक्के, उसके वस्त्रों तथा बर्तनों में भी रोग के कीटाणु आकर रोग को फैला देते हैं। मक्खियाँ भी इस रोग के जीवाणुओं को अपने साथ उड़ाकर ले जाती हैं और साफ भोजन को दूषित कर इस रोग को फैला देती हैं।

तंग स्थानों व बस्तियों में जहाँ प्रकाश की उचित मात्रा नहीं पहुँचती, रहने वाले नागरिक शीघ्रता से इस बीमारी के शिकार बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त, निर्धनता, परदा-प्रथा, बाल-विवाह, अपौष्टिक भोजन और वंश-परम्परा भी इस रोग को फैलाने में सहायक होते हैं। सड़कों पर पत्थर तोड़ने वाले मजदूरों, चमड़े तथा टिन का कार्य करने वाले श्रमिकों तथा भरपेट भोजन न प्राप्त कर सकने वाले व्यक्तियों को भी यह रोग शीघ्रता से ग्रस्त कर लेता है। बहुत अधिक मानसिक क्लेशों के व्याप्त रहने तथा मादक द्रव्यों का अत्यधिक सेवन करने से भी यह रोग जन्म लेता है। गायों को यह रोग शीघ्रता से लता है तथा इस रोग से ग्रस्त गायों का दूध पीने से भी यह रोग हो सकता है।

उदभवन-काल:
इस रोग के जीवाणु शरीर में पहुँचकर धीरे-धीरे बढ़ते तथा अपना प्रभाव जमाते हैं। रोग के काफी बढ़ जाने पर ही इसका पता लगता है।

रूप और लक्षण:
प्रारम्भ में शरीर में हर समय हल्का ज्वर रहता है। शरीर के अंग शिथिल रहते हैं। हल्की खाँसी रहती है। रोगी का भार धीरे-धीरे कम हो जाता है और उसे भूख भी कम लगती है। किसी शारीरिक अथवा मानसिक कार्य को करने से अत्यधिक थकान हो जाती है। रोगी को हर समय आलस्य का अनुभव होता है। कभी-कभी मुख से बलगम के साथ रक्त आता है। फेफड़ों का एक्स-रे (X-Ray) चित्र स्पष्ट रूप से रोग का प्रभाव बतलाता है। (UPBoardSolutions.com) अस्थियों की तपेदिक में रोगी की अस्थियाँ निर्जीव हो जाती हैं तथा उनकी वृद्धि रुक जाती है। आँतों की तपेदिक में आरम्भ में दस्त बहत होते हैं। रोग काफी बढ़ जाने पर ही पहचान में आता है।

उपचार तथा बचाव

  1. (1) इस रोग वाले व्यक्ति को तुरन्त किसी क्षय-चिकित्सालय (T:B. sanatorium) में भेजना चाहिए, परन्तु यदि रोगी को घर में ही रखना पड़े, तो उसके सम्पर्क से दूर रहना चाहिए।
  2. (2) रोगी को शुद्ध वायु तथा धूप से युक्त कमरे में रखना चाहिए। उसके खाने-पीने के बर्तन पृथक् होने चाहिए। रोगी के परिचारकों को अपना मुंह तथा नाक ढककर रोगी के पास जाना चाहिए।
  3. (3) रोगी के आस-पास का वातावरण बिल्कुल स्वच्छ रखना चाहिए। उसका थूक, बलगम आदि ऐसे बर्तन में पड़ना चाहिए जो नि:संक्रामक विलयन से भरा हुआ हो। उसके कपड़ों को भी नि:संक्रामकों से धो देना चाहिए।
  4. (4) B.C.G. का टीका लगवाना चाहिए। इस टीके को लगवाकर सामान्य रूप से क्षय रोग से बचा जा सकता हैं। स्वच्छ वातावरण, सन्तुलित पौष्टिक आहार तथा साधारण व्यायाम भी इस रोग से बचाव में सहायक होते हैं।
  5. (5) रोगी को शुद्ध एवं नियमित जीवन व्यतीत करते हुए ताजे फल तथा उत्तम स्वास्थ्यप्रद एवं सुपाच्य भोजन देना चाहिए।

प्रश्न 5:
टिटनेस (Tetanus) रोग के कारण, लक्षण और इससे बचाव के उपाय बताइए। [2011, 12, 14]
या
टिटनेस होने के क्या कारण हैं? टिटनेस के लक्षण, रोकथाम और उपचार लिखिए। [2011, 12]
उत्तर:
टिटनेस या धनु रोग अथवा हनुस्तम्भ रोग

कारण: यह रोग क्लॉस्ट्रीडियम टिटेनाइ नामक जीवाणु द्वारा होता है। ये जीवाणु घोड़ों की लीद, गोबर, मिट्टी व जंग खाए लोहे पर पनपते हैं। शरीर में कहीं भी चोट लगने, त्वचा के छिलने अथवा फटने पर तथा उपर्युक्त वस्तुओं के सम्पर्क में आने पर (UPBoardSolutions.com) जीवाणु शरीर के अन्दर प्रवेश कर जाते

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सम्प्राप्ति काल: 2 से 14 दिन तक।
लक्षण: इस रोग के निम्नलिखित लक्षण हैं

  1.  रीढ़ की हड्डी धनुष के आकार की हो जाती है। इसी कारण से इसका नाम धनु रोग अथवा हनुस्तम्भ रोग रखा गया है।
  2. मांसपेशियों के फैलने व सिकुड़ने की क्षमता शून्य हो जाती है तथा ये अकड़ जाती हैं।
  3. गर्दन की मांसपेशियाँ निष्क्रिय हो जाती हैं तथा जबड़ा जकड़ जाता है। इस अवस्था को बन्द जबड़ा (लॉक्ड-जॉ) कहते हैं।
  4. अन्तिम अवस्था में रोगी के फेफड़े व हृदय काम करना बन्द कर देते हैं तथा रोगी की मृत्यु हो जाती है।
  5. यह रोग इतना भयानक है कि थोड़ी-सी भी असावधानी होने पर प्रसव के समय माँ व शिशु दोनों को अपना शिकार बना लेता है।

उपचार एवं बचाव: इस रोग के उपचार निम्नलिखित हैं

  1. रोग के प्रथम लक्षण प्रकट होते ही रोगी को तुरन्त पास के अस्पताल में ले जाना चाहिए।
  2.  प्रसव के समय माँ को तथा इसके बाद 3 से 5 माह के बच्चे को टिटनेस का टीका लगवा देना चाहिए।
  3. त्वचा फटने, छिलने व घाव होने पर 24 घण्टों के अन्दर टैटवैक का इन्जेक्शन लगवा लेना चाहिए। इस इन्जेक्शन का प्रभाव लगभग 6 माह तक रहता है।
  4. किसी भी स्थिति में घाव खुला नहीं रहना चाहिए।
  5.  घाव अथवा त्वचा के फटने के स्थान को मिट्टी, लोहे व गोबर आदि के सम्पर्क से सुरक्षित । रखना चाहिए।
  6. घाव अथवा त्वच के फटने अथवा छिलने के स्थान एवं इसके (UPBoardSolutions.com) आस-पास के भाग को सैवलॉन अथवा डेटॉल से अच्छी तरह से साफ करना चाहिए। जीवाणुमुक्त रुई से घाव को ढककर पट्टी बाँध देनी चाहिए।
  7. किसी भी रोग में इन्जेक्शन लगवाते समय इस बात को निश्चित कर लें कि इन्जेक्शन लगाने वाले चिकित्सक अथवा उसके परिचारक ने इन्जेक्शन-निडिल को भली प्रकार जीवाणुरहित (स्टेरीलाइज) कर लिया है।

प्रश्न 6:
विषाक्त भोजन (Food poisoning) से क्या तात्पर्य है? भोजन के विषाक्त होने के कारण, लक्षण एवं उपचार की विधियाँ लिखिए। [2011]
या
भोजन विषैला होने के कारण, लक्षण तथा इससे बचाव के उपाय बताइए। [2007, 10, 11, 12]
या
भोजन दूषित होने के विभिन्न कारणों को लिखिए । मनुष्य में भोज्य विषाक्तता के लक्षण भी लिखिए। [2007]
या
विषाक्त भोजन से आप क्या समझती हैं? विषाक्त भोजन से मानव शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है? [2008, 10, 11, 13, 15, 16]
या
भोजन विषाक्तता से आप क्या समझती हैं? भोजन विषाक्तता के लक्षण बताइए। भोजन विषाक्तता से बचने के लिए क्या उपाय करने चाहिए? [2007, 10, 11, 12, 13]
या
विषाक्त भोजन की हानियाँ लिखिए [2016]
उत्तर:

विषाक्त भोजन:
अर्थपूर्ण रूप से स्वच्छ, पौष्टिक तथा उपयुक्त दिखायी देने वाले भोज्य पदार्थ भी कभी-कभी व्यक्ति को रोगी बना सकते हैं। सामान्यतः ऐसे भोजन में कोई-न-कोई पदार्थ व्यक्ति को ग्राह्य नहीं होता। इसका मुख्य कारण होता है, भोजन के अन्दर उपस्थित ऐसे पदार्थ (UPBoardSolutions.com) जो व्यक्ति के शरीर में जाने के बाद विषैले प्रभाव उत्पन्न करते हैं। यही विषाक्त भोजन है। वास्तव में कुछ जीवाणु आहार में मिलकर उसे विषाक्त बना देते हैं। आहार को विषाक्त बनाने वाले मुख्य जीवाणुओं का सामान्य परिचय निम्नवर्णित है

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(1) साल्मोनेला समूह:
इस समूह के जीवाणु पशु-पक्षियों के शरीर में पाए जाते हैं। मनुष्य जब इनका मांस खाते हैं अथवा दूध पीते हैं, तो जीवाणु उनके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। संक्रमण के छह घण्टों से दो दिन तक के समय में जीवाणु विषाक्तता के लक्षण प्रकट कर देते हैं। भोजन की यह विषाक्तता प्रायः मांस, अण्डे, क्रीम तथा कस्टर्ड आदि द्वारा उत्पन्न होती है। मक्खियाँ भी इन जीवाणुओं के संवाहन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।

लक्षण :
मितली, वमन, पेट में पीड़ा तथा दस्त होते हैं, जिनके कारण रोगी निर्जलीकरण अथवा डी-हाइड्रेशन का शिकार भी हो सकता है। उचित उपचार न मिलने पर रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।

बचाव एवं उपचार

  1. भोजन को मक्खियों से सुरक्षित रखना चाहिए।
  2. भोजन बनाने व करने से पूर्व हाथों को साबुन से भली प्रकार से धो लेना चाहिए।
  3. भोजन को उच्च ताप पर पकाना चाहिए तथा संरक्षित भोजन को खाने से पूर्व लगभग 72° सेण्टीग्रेड तक गर्म कर लेना चाहिए। इससे भोजन के सभी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।
  4. डी-हाइड्रेशन होने पर किसी योग्य चिकित्सक द्वारा ग्लूकोज एवं सैलाइन जल चढ़वा देना चाहिए।

(2) स्टैफाइलोकोकाई समूह:
इस समूह के जीवाणु प्राय: वायु में, मनुष्यों की नाक, गले, फोड़े-फुन्सियों व घावों में पाए जाते हैं। ये भोजन बनाते समय खाँसने व छींकने तथा गन्दे हाथों के माध्यम से भोजन में प्रवेश करते हैं। भोजन के विषाक्त होने का मुख्य कारण भोजन के पकाने के पश्चात् इसे अधिक समय तक गर्म रख छोड़ना है। इस प्रकार का विषाक्त भोजन खाने के एक से छह घण्टों के अन्दर विषाक्तता के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।

लक्षण:
रोगी शिथिल हो जाता है। यह विषाक्तता अधिक भयानक परिणाम नहीं दिखाती है।

बचाव एवं उपचार:

  1. भोजन बनाते समय सावधानी से छींकना अथवा खाँसना चाहिए।
  2. भोजन बनाने से पूर्व हाथों को भली प्रकार साबुन से धोना चाहिए।
  3. भोजन पकाने के बाद ठण्डा कर उसे रेफ्रिजेरेटर में रखने से जीवाणुओं के पनपने की सम्भावना कम रहती है।
  4. अत्यधिक ताप पर देर तक भोजन पकाने पर भोजन का विषैलापन नष्ट हो जाता है।
  5. रोगी को उपवास रखना चाहिए तथा हल्का सुपाच्य भोजन लेना चाहिए।
  6. अधिक विषाक्तता होने पर योग्य चिकित्सक से परामर्श लेना विवेकपूर्ण रहता है।

(3) क्लॉस्ट्रीडियम समूह-क्लॉस्ट्रीडियम परफ्रिजेन्स :
नामक इस समूह का जीवाणु प्रायः डिब्बा बन्द भोज्य पदार्थों को विषाक्त करता है। यह जीवाणु एक प्रकार का हानिकारक टॉक्सिन अथवा विष उत्पन्न करता है।

लक्षण: मानव शरीर में प्रवेश करने पर पेट में पीड़ा व डायरिया के लक्षण (UPBoardSolutions.com) पैदा करता है, परन्तु इस जीवाणु द्वारा उत्पन्न विषाक्तता के कारण मृत्यु की सम्भावना बहुत कम रहती है।

उपचार:
एण्टीटॉक्सिन अथवा विषनाशक तथा पेनीसिलीन का प्रयोग करने से रोगी शीघ्र ही स्वस्थ हो जाता है।

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(4) क्लॉस्ट्रीडियम बौटूलिनम:
इस जीवाणु द्वारा उत्पन्न भोजन की विषाक्तता को बौटूलिज्म कहते हैं। यह जीवाणु भयानक टॉक्सिन उत्पन्न करता है। इसकी भयानकता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि एक औंस टॉक्सिन करोड़ों लोगों की मृत्यु के लिए पर्याप्त है। ये जीवाणु अपनी बीजाणु अवस्था में मछलियों, पक्षियों, गाय व घोड़े जैसे पशुओं व मनुष्यों की आँतों में पाए जाते हैं। जीवाणुओं के ये बीजाणु खाद तथा मल-मूत्र जैसी गन्दगियों के माध्यम से भूमि में पहुँचकर कृषि द्वारा प्राप्त खाद्य पदार्थों से चिपक जाते हैं। ऑक्सीजनविहीन परिस्थितियों में तथा असावधानियों से तैयार किए गए डिब्बा-बन्द खाद्य पदार्थों में ये बीजाणु अंकुरित हो असंख्य को जन्म देते हैं। सेम, मक्का, मटर व चना इत्यादि इस प्रकार के डिब्बा-बन्द खाद्य पदार्थों के उदाहरण हैं। इस अवस्था में जीवाणु टॉक्सिन उत्पन्न करते हैं, जिसके मनुष्यों में होने वाले प्रभाव निम्नलिखित हैं–

प्रभाव:

  1. विषाक्त भोजन के सेवन के केवल कुछ ही घण्टों में रोगी पैरालिसिस अथवा लकवे का अनुभव करने लगता है।
  2. आँखों में धुंधलापन, भोजन चबाने व सटकने में तथा साँस लेने में कठिनाई विषाक्त भोजन के अन्य प्रभाव हैं।।
  3. बोलने में अस्पष्टता के साथ ही भुजाएँ लकवे की स्थिति में हो जाती हैं।
  4. हृदय तथा फेफड़ों तक टॉक्सिन का प्रभाव पहुँचने पर रोगी की मृत्यु निश्चित है।

बचाव एवं उपचार:

  1. एण्टीबायोटिक औषधियों के उपयोग का इस विषाक्तता में कोई लाभ नहीं है।
  2. रोगी को तुरन्त अस्पताल ले जाना चाहिए।
  3. एण्टीटॉक्सिन अथवा विषनाशक की पर्याप्त मात्रा से ही रोग पर नियन्त्रण सम्भव है। यह उपचार भी समय पर उपलब्ध होने पर ही लाभकारी है अन्यथा मृत्यु निश्चित है।
  4. यह विषाक्तता इतनी भयानक है कि ठीक उपचार होने पर भी पीड़ित मनुष्य 6-7 महीनों में पूर्ण स्वस्थ हो पाता है।
  5. अप्राकृतिक लगने वाले दुर्गन्धयुक्त भोजन को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए, क्योंकि विषाक्त भोजन पशु-पक्षियों में भी विषाक्तता उत्पन्न कर सकता है।
  6.  डिब्बों में भोजन बन्द करते समय भाप के दबावयुक्त ताप से डिब्बों व भोजन को । विसंक्रमित करना चाहिए।
  7.  डिब्बा-बन्द भोजन को खाने से पूर्व उच्च ताप पर लगभग दस मिनट तक पकाना चाहिए।

प्रश्न 7:
डेंगू (Dengue) नामक रोग का सामान्य परिचय दें। इस रोग के कारण, लक्षणों, गम्भीरता तथा बचने के उपाय भी लिखिए। [2018]
उत्तर:
डेंगू एक संक्रामक रोग है जो मादा एडीज (Female Aedes) मच्छर के काटने से होता है। यह मच्छर प्रायः दिन में ही सक्रिय होता है तथा मनुष्यों को काटता है। डेंगू का अधिक प्रकोप कुछ वर्षों से अधिक हुआ है। हर वर्ष अनेक व्यक्ति इसके शिकार होते हैं। समुचित उपचार न होने की दशा में यह रोग घातक भी सिद्ध होता है। यह रोग उस समय अधिक गम्भीर हो जाता है, जब रोगी के रक्त के प्लेटलेट्स तेजी से घटने लगते हैं।
डेंगू के लक्षण-डेंगू के लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. इस रोग में तेज बुखार होता है।
  2. रोगी को सिरदर्द, कमरदर्द तथा जोड़ों में दर्द होता है।
  3. हल्की खाँसी तथा गले में खरास की भी शिकायत होती है।
  4. रोगी को काफी थकावट तथा कमजोरी महसूस होती है।
  5. रोग के बढ़ने के साथ-साथ उल्टियाँ होती हैं तथा शरीर पर लाल-लाल दाने निकल आते हैं।
  6. इस रोग में रोगी की नाड़ी कभी तेज तथा कभी धीमी चलने लगती है (UPBoardSolutions.com) तथा प्रायः रक्तचाप भी बहुत घट जाता है।
  7. डेंगू शॉक सिंड्रोम (D.S.S.) के रोगियों में साधारण डेंगू बुखार तथा डेंगू हेमोरेजिक बुखार के लक्षणों के साथ-साथ बेचैनी महसूस होती है।
  8. डेंगू हेमोरेजिक बुखार में अन्य लक्षणों के साथ-ही-साथ रक्त में प्लेटलेट्स की अत्यधिक कमी होने लगती है। इस स्थिति में शरीर में कहीं से भी रक्तस्राव होने लगता है। यह रक्तस्राव दाँतों, मसूड़ों से भी हो सकता है तथा नाक, मुँह या मल से भी हो सकता है।

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डेंगू की गम्भीरता:
डेंगू रोग उस समय गम्भीर रूप ग्रहण कर लेता है जब व्यक्ति के प्लेटलेट्स तेजी से घटने लगते हैं। सामान्य रूप से एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में डेढ़ से दो लाख प्लेटलेट्स होते हैं। यदि ये एक लाख से कम हो जाये तो रोगी को हॉस्पिटल में भर्ती करवाना आवश्यक हो जाता है, क्योंकि इस स्थिति में प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता होती है। यदि प्लेटलेट्स और घट जाते हैं तो रोगी के शरीर से रक्तस्राव होने लगता है। ऐसे में शरीर के विभिन्न मुख्य अंगों के फेल (Multi-organ Failure) होने की भी आशंका रहती है।

डेंगू से बचने के उपाय:
डेंगू से बचने के लिए आवश्यक है कि मच्छरों से बचाव किया जाये। इसके लिए एक उपाय है कि मच्छरों को पनपने न दिया जाये। डेंगू फैलाने वाले मच्छर साफ पानी में पनपते हैं अतः घरों के अन्दर तथा आस-पास कहीं भी साफ पानी एकत्र न होने दें। पानी के बर्तनों को ढककर रखना चाहिए। फूलदानों आदि का पानी प्रतिदिन बदलते रहें। कूलर, पानी की हौदियों, टायर-ट्यूब, टूटे बर्तन, मटके, डिब्बे आदि में पानी एकत्र न होने दें। पक्षियों के खाने-पीने के बर्तनों को भी साफ करते रहें। मच्छरों की रोकथाम के साथ-ही-साथ स्वयं को मच्छरों से बचायें। इसके लिए मच्छरदानी का प्रयोग करें तथा मच्छरों को दूर रखने के लिए क्रीम या तेल का इस्तेमाल करें।

प्रश्न 8:
चिकनगुनिया (Chikungunya) नामक रोग का सामान्य परिचय दें। इस रोग के लक्षणों तथा उपचार के उपायों का वर्णन करें।
उत्तर:
चिकनगुनिया एक वायरसजनित संक्रामक रोग है। यह रोग भी हमारे देश में कुछ वर्षों से प्रबल हो रहा है। इस रोग को फैलाने में एडीज मच्छर एइजिप्टी की मुख्य भूमिका होती है। इस रोग का नाम स्वाहिली भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है-ऐसा जो मुड़ जाता है। इस रोग के मुख्य लक्षण जोड़ों के दर्द के कारण रोगी को शरीर झुक जाता है, को देखकर यह नाम रखा गया है। यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को सीधे तौर पर नहीं होता बल्कि संक्रमित व्यक्ति को मच्छर द्वारा काटने के उपरान्त स्वस्थ व्यक्ति को काटने पर वायरस का संक्रमण हो जाता है।
चिकनगुनिया के लक्षण:
इस रोग में जोड़ों में दर्द होता है तथा साथ ही ज्वर होता है। त्वचा शुष्क हो जाती है तथा प्रायः त्वचा पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं। बच्चों में रोग के संक्रमण से उल्टियाँ भी होने लगती हैं।

चिकनगुनिया का उपचार:
चिकनगुनिया के लक्षण स्पष्ट होते ही योग्य चिकित्सक से तुरन्त सम्पर्क करना चाहिए तथा चिकित्सक के परामर्श से उपचार प्रारम्भ कर देना चाहिए। इसके साथ-ही-साथ निम्नलिखित उपाय भी करने चाहिए

  1. रोगी को अधिक-से-अधिक विश्राम करना चाहिए।
  2. व्यक्ति को अधिक-से-अधिक पानी पीना चाहिए। गुनगुना पानी पीने का भी सुझाव दिया जाता है।
  3. रोग की दशा में व्यक्ति को दूध तथा दूध से बने भोज्य पदार्थों, जैसे कि दही आदि का सेवन करना चाहिए।
  4. रोग को नियन्त्रित करने के लिए नीम के पत्तों का रस दिया जाना चाहिए।
  5. रोग के निवारण में करेला, पपीता और गिलोय के पत्तों के रस के सेवन (UPBoardSolutions.com) से सहायता मिलती
  6. चिकनगुनिया की दशा में रोगी को नारियल पानी का सेवन करना चाहिए। इससे शरीर में पानी की पूर्ति होती है तथा लिवर को भी आराम मिलता है।
  7. रोगी के कपड़ों तथा बिस्तर आदि की सफाई का विशेष ध्यान रखना अति आवश्यक होता है।
  8. चिकनगुनिया के रोगी को जोड़ों का दर्द बहुत अधिक होता है। ऐसे में चिकित्सक के परामर्श से ही दर्द-निवारक दवा लें।
  9. चिकनगुनिया रोग की दशा में ऐस्प्रिन कदापि न लें। इससे समस्या बढ़ सकती है।

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प्रश्न 9:
हाथीपाँव या फाइलेरिया (Elephantiasis or Filaria) नामक रोग का सामान्य परिचय दें। इस रोग के लक्षणों, बचाव के उपायों तथा उपचार का विवरण दीजिए।
उत्तर:
भारत के विभिन्न भागों में पाया जाने वाला एक संक्रामक रोग हाथीपाँव भी है। इस रोग का यह नाम इसके लक्षणों को ध्यान में रखते हुए रखा गया है। वैसे इसे फीलपाँव भी कहा जाता है। इसका चिकित्सीय नाम फाइलेरिया (Filaria) है। इस रोग को हाथीपाँव कहने का मुख्य कारण यह है कि इस , रोग की दशा में व्यक्ति के हाथ या पाँव बहुत अधिक सूज जाते हैं।

फाइलेरिया नामक रोग एक कृमि जनित रोग है। यह कृमि (Worm) व्यक्ति के शरीर के लसिका तन्त्र की नलिकाओं में पहुँचकर उन्हें बन्द कर देते हैं। इस रोग को उत्पन्न करने वाला कृमि फाइलेरिया बैक्रॉफ्टी (Filaria bancrofti) है। इस कृमि को फैलाने का कार्य क्यूलेक्स मच्छर द्वारा किया जाता है। शरीर में ये कृमि स्थायी रूप से लसिका वाहिनियों में रहते हैं, परन्तु ये निश्चित समय पर प्रायः रात के समय रक्त में प्रवेश करके शरीर के अन्य अंगों में भी फैल जाते हैं। ये कृमि शरीर की नसों में सूजन उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार से उत्पन्न सूजन प्रायः घटती-बढ़ती रहती है। परन्तु जब रोग के कृमि लसिका तन्त्र की नलियों के अन्दर मर जाते हैं तब लसिका वाहिनियों का मार्ग सदा के लिए अवरुद्ध हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप शरीर के उस स्थान की त्वचा मोटी तथा कड़ी हो जाती है। इस प्रकार से लसिका वाहिनियों के बन्द हो जाने पर उनके खोलने के लिए कोई औषधि सहायक नहीं होती। ऐसे में शल्य चिकित्सा से ही समस्या को हल किया जा सकता है।

फाइलेरिया रोग का फैलना:
इस रोग को फैलाने का कार्य क्यूलेक्स मच्छर द्वारा किया जाता है। रोग का कारण एक परजीवी माइक्रोफिलारे होता है। सामान्य रूप से जब किसी संक्रमित व्यक्ति को मच्छर काटता है तब मच्छर के शरीर में यह परजीवी प्रवेश कर जाता है तथा वहाँ रहकर बड़ी तेजी से अपनी वृद्धि करता है। इसके उपरान्त जब यह मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तब वह व्यक्ति भी संक्रमित होकर रोगग्रस्त हो जाता है। माइक्रोफिलारे के अतिरिक्त एक अन्य (UPBoardSolutions.com) परजीवी भी फाइलेरिया रोग उत्पन्न करता है। इस परजीवी को बूगिया मलाई कहते हैं। यह मानसोनिया (मानसोनियोजित एबूलीफेरा) द्वारा फैलता है। इस प्रकार का संक्रमण ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है।

फाइलेरिया के लक्षण:
फाइलेरिया या हाथीपाँव के कुछ मुख्य लक्षण निम्नवर्णित हैं

  1. ठण्ड या कँपकँपी के साथ ज्वर होना।।
  2. गले में सूजन आ जाना।
  3. रोग के बढ़ने पर एक या अधिक हाथ तथा पैरों में सूजन आ जाना। यह सूजन पैरों में प्रायः अधिक होती है। इसीलिए इस रोग को हाथीपाँव कहा जाता है। ।
  4. इस रोग में गुप्तांग तथा जाँघों के बीच गिल्टी बन जाती है, जिसमें दर्द होता है। पुरुषों में अंडकोष में भी सूजन आ जाती है जिसे हाइड्रोसिल कहते हैं।
  5. रोगी के पैरों तथा हाथों की लसिका वाहिकाओं का रंग लाल होने लगता है।

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बचाव के उपाय:
फाइलेरिया एक गम्भीर रोग है। इस रोग से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए

  1. हाथीपाँव या फाइलेरिया से बचाव का सबसे अधिक कारगर उपाय है–स्वयं को मच्छरों से बचाना। ये मच्छर सुबह एवं शाम के समय अधिक सक्रिय होते हैं; अतः इस समय विशेष सचेत रहना
    आवश्यक होता है।
  2.  यदि किसी क्षेत्र में फाइलेरिया का प्रकोप हो तो वहाँ विशेष सावधानी की आवश्यकता होती .
  3. मच्छरों से बचाव के लिए ऐसे वस्त्र धारण करने चाहिए जिनसे हाथ-पाँव अच्छी तरह से ढक जायें।।
  4. मच्छरों से बचाव के लिए सुझाव दिया जाता है कि व्यक्ति को पेमेथ्रिन-युक्त कपड़ों को धारण करना चाहिए। पेर्मेथ्रिने एक सिंथेटिक रासायनिक कीटनाशक होता है। ऐसे वस्त्र बाजार में उपलब्ध होते हैं।
  5. मच्छरों के उन्मूलन के सभी उपाय किये जाने चाहिए।

उपचार के उपाय:
फाइलेरिया या हाथीपाँव एक गम्भीर रोग है। इस रोग के कारण जहाँ एक ओर शारीरिक विकलांगता आती है वहीं साथ-ही-साथ मानसिक स्थिति भी बिगड़ जाती है। इससे व्यक्ति आर्थिक संकट का भी शिकार हो जाता है। रोग के व्यवस्थित या चिकित्सीय उपचार के साथ-ही-साथ निम्नलिखित घरेलू उपचार भी किये जा सकते हैं

(1) लौंग का इस्तेमाल:
लौंग में कुछ ऐसे एंजाइम होते हैं जो फाइलेरिया के परजीवी को नष्ट करने की शक्ति रखते हैं। अत: लौंग से तैयार चाय का सेवन करना चाहिए।

(2) काले अखरोट का तेल:
अखरोट के तेल में कुछ ऐसे गुण पाये जाते हैं जो रक्त में पाये जाने वाले कृमियों को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। अत: एक कप गर्म पानी में तीन-चार बूंद काले अखरोट का तेल डालकर पीने से इस रोग के निवारण में सहायता मिलती है।

(3) आँवला का उपयोग:
आँवला विटामिन ‘सी’ का सर्वोत्तम स्रोत है। इसमें एन्थेलमिर्थिक भी होता है जो घाव को शीघ्र भरने में सहायक होता है। अतः आँवले के सेवन से फाइलेरिया को नियन्त्रित करने में सहायता मिलती है।

(4) अदरक:
यदि सूखे अदरक के पाउडर अर्थात् सोंठ को गरम पानी में घोलकर प्रतिदिन सेवन (UPBoardSolutions.com) करें तो फाइलेरिया रोग को नियन्त्रित किया जा सकता है। वास्तव में अदरक में फाइलेरिया के पुरजीवी को नष्ट करने की क्षमता होती है।

(5) अश्वगंधा:
अश्वगंधा एक पौधा होता है। इसके इस्तेमाल से भी फाइलेरिया को नियन्त्रित किया जा सकता है।

(6) शंखपुष्पी:
शंखपुष्पी की जड़ को गरम पानी के साथ पीसकर पेस्ट तैयार किया जाता है। इस पेस्ट को शरीर के प्रभावित स्थान पर लगाने से सूजन घट जाती है।

(7) कुल्ठी:
कुल्ठी या हॉर्सग्रास में चींटियों द्वारा निकाली गई मिट्टी तथा अण्डे की सफेदी मिलाकर सूजन वाले अंग पर प्रतिदिन लगाने से सूजन घटती है।

(8) अगर:
अगर को पानी के साथ मिलाकर लेप तैयार किया जाता है। इस लेप को प्रतिदिन प्रभावित स्थान पर लगाने से सूजन कम होती है, रोग के कृमि मर जाते हैं तथा घाव शीघ्र भरने लगते हैं

(9) रॉक साल्ट:
रॉक साल्ट, शंखपुष्पी एवं सोंठ के पाउडर को मिलाकर तैयार किए गए मिश्रण की एक चुटकी को प्रतिदिन गरम पानी के साथ सेवन करने से रोग नियन्त्रित हो जाता है।

(10) ब्राह्मी:
ब्राह्मी को पानी के साथ पीसकर तैयार लेप को प्रतिदिन प्रभावित अंग पर लगाने से सूजन घट जाती है।

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प्रश्न 10:
हेपेटाइटिस (Hepatitis) नामक रोग का सामान्य परिचय दें। इस रोग के प्रकारों, कारणों, लक्षणों तथा बचाव के उपायों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
यदि आधुनिक संक्रामक रोगों की चर्चा की जाये तो उनमें हेपेटाइटिस नामक रोग को एक गम्भीर रोग के रूप में देखा जाता है। यह रोग जन स्वास्थ्य के लिए एक खतरा बना हुआ है। यह रोग यकृत से सम्बन्धित है। हेपेटाइटिस एक वायरसजनित रोग है। वर्तमान समय में हेपेटाइटिस रोग का प्रकोप निरन्तर बढ़ रहा है।

हेपेटाइटिस : प्रकार एवं कारण:
हेपेटाइटिस रोग के पाँच प्रकार निर्धारित किये गये हैं जिन्हें क्रमशः A, B, C, D तथा E के रूप में जाना जाता है। इनमें से ‘A’ तथा ‘E’ वर्ग के रोग प्रदूषित खाद्य तथा पेय पदार्थों के सेवन से होते हैं। इनसे भिन्न ‘B’ तथा ‘C’ वर्ग के रोगों का संक्रमण रक्त के माध्यम से होता है। इन वर्गों के रोग प्रायः रक्त तथा रक्त के उत्पाद जैसे प्लाज्मा के माध्यम से संक्रमित होते हैं। प्रदूषित सिरिंज के इस्तेमाल से भी इस रोग के संक्रमण की आशंका रहती है। संक्रमित व्यक्ति द्वारा रक्तदान करने की स्थिति में भी रोग का संक्रमण हो सकता है। टैटू गुदवाने, संक्रमित व्यक्ति के टुथब्रश या रेजर को इस्तेमाल करने तथा असुरक्षित यौन (UPBoardSolutions.com) सम्बन्ध स्थापित करने की दशाओं में हेपेटाइटिस रोग के संक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है। इन दशाओं में ‘B’ तथा ‘C’ के संक्रमण का, अधिक खतरा होता है। इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति लम्बे समय तक मदिरापान या अन्य नशों का सेवन करते रहते हैं वे भी हेपेटाइटिस रोग का शिकार हो सकते हैं।

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यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि संक्रमित व्यक्ति के शरीर से निकलने वाले पसीने या आँखों के आँसुओं के माध्यम से इस रोग के फैलने की आशंका प्रायः नहीं होती।
अधिक खतरे वाले वर्ग:
वैसे तो हेपेटाइटिस रोग से कोई भी व्यक्ति संक्रमित हो सकता है। परन्तु कुछ वर्ग ऐसे हैं जिन्हें इस रोग के होने का अधिक खतरा होता है। इस प्रकार के मुख्य वर्ग हैं

  1. डॉक्टर, नर्स तथा अन्य स्वास्थ्य-रक्षक कार्यकर्ता,
  2. बार-बार रक्त लेने वाले हीमोफीलिया या थेलेसीमिया के रोगी तथा डायलिसिस पर आश्रित रहने वाले रोगी व्यक्ति,
  3.  संक्रमित माताओं से जन्मे नवजात शिशु,
  4.  वेश्यावृत्ति में संलग्न व्यक्ति,
  5. समलिंगी एवं एक से अधिक व्यक्तियों से यौन सम्बन्ध रखने वाले व्यक्ति तथा
  6. नशे के आदी तथा इंजेक्शन द्वारा मादक पदार्थ लेने वाले व्यक्ति।।

हेपेटाइटिस के सामान्य लक्षण:
हेपेटाइटिस नामक रोग यकृत के संक्रमित होने पर होता है। इस रोग के कुछ मुख्य सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. पीलिया के लक्षण प्रकट होना। इसमें त्वचा तथा आँखों में पीलापन आ जाता है तथा पेशाब का रंग भी पीला होने लगता है।
  2. रोग के बढ़ने के साथ-साथ भूख कम होने लगती है।
  3. हेपेटाइटिस रोग में व्यक्ति को उल्टियाँ होने लगती हैं।
  4. रोगी के पेट में दर्द होता है।
  5.  इस रोग की स्थिति में रोगी के पेट में पानी आ जाता है।

बचाव के उपाय:
हेपेटाइटिस रोग से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं

  1. हेपेटाइटिस ‘A’ तथा ‘B’ से बचाव के लिए टीके उपलब्ध हैं; अतः निर्धारित रूप में ये टीके लगवाने चाहिए।
  2. पानी की स्वच्छता एवं शुद्धता का विशेष ध्यान रखें। उबालकर अथवा अच्छे फिल्टर से साफ किया गया पानी ही पीयें।
  3. सभी खाद्य-पदार्थों तथा पेय पदार्थों की स्वच्छता का अधिक-से-अधिक ध्यान रखें।

हेपेटाइटिस ‘A’ तथा ‘E’ का उपचार:
हेपेटाइटिस ‘A’ तथा ‘E’ के उपचार के लिए कोई सुनिश्चित औषधि उपलब्ध नहीं है। इस स्थिति में चिकित्सक लक्षणों को ध्यान में रखते हुए ही रोगी का उपचार करते हैं। उदाहरण के लिए, बुखार की अलग से दवा दी जाती है तथा पेटदर्द को नियन्त्रित करने के लिए अलग से उपयुक्त दवा दी जाती है।

हेपेटाइटिस ‘B’ तथा ‘C’ का उपचार:
हेपेटाइटिस ‘B’ तथा ‘C’ नामक रोगों के विकास की चार स्थितियाँ हो सकती हैं, जिनके उपचार का सामान्य विवरण निम्नलिखित है

प्रथम स्थिति :
यह रोग की प्रारम्भिक स्थिति है। इसमें रोग तो होता है परन्तु वह कुछ समय में स्वतः ही ठीक हो जाता है।

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द्वितीय स्थिति:
इस स्थिति में हेपेटाइटिस ‘B’ तथा ‘C’ का वायरस लिवर को लगातार प्रभावित करता है तथा उसमें सूजन पैदा करता रहता है। यदि यह स्थिति लगातार छ: माह तक चलती रहे तो इसे चिकित्सा शास्त्र की भाषा में क्रानिक हेपेटाइटिस कहा जाता है। इस स्थिति में रो नियन्त्रित (UPBoardSolutions.com) करने के लिए दवाओं की आवश्यकता होती है अर्थात् दवाओं से उपचार सम्भव होता है।

तृतीय स्थिति:
इस अवस्था में रोग तो होता है परन्तु व्यक्ति तात्कालिक रूप से उस रोग को महसूस नहीं करता। इस दशा में यदि रोग के वायरस यकृत में लगातार रह जाएँ तो आगे चलकर यह वायरस ही लिवर सिरोसिस तथा लिवर कैंसर का कारण बन जाते हैं।

चतुर्थ स्थिति:
इस स्थिति में अचानक ही लिवर काम करना बन्द कर देता है। चिकित्सा शास्त्र की भाषा में इस स्थिति को ऐक्यूट लिवर फेल्यर कहते हैं। इस स्थिति में कोई उपचार सम्भव नहीं हो पाता। यह स्थिति गम्भीर तथा घातक सिद्ध हो सकती है। केवल लिवर ट्रांसप्लांट द्वारा ही रोगी की जान बचायी जा सकती है।

उपर्युक्त विवरण द्वारा हेपेटाइटिस रोग का सामान्य परिचय प्राप्त हो जाता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि भले ही यह रोग एक संक्रामक रोग है परन्तु यह रोग (‘B’ तथा ‘C’) किसी रोगी व्यक्ति से हाथ मिलाने, खाने के बर्तनों तथा पानी पीने के गिलास का इस्तेमाल करने से नहीं फैलता। यही नहीं इस रोग का संक्रमण छींकने, चूमने तथा गले मिलने से भी नहीं होता।

हेपेटाइटिस रोग में भूख की गम्भीर समस्या होती है। रोगी को भूख नहीं लगती। कुछ भी खाने से पाचन-क्रिया बिगड़ जाती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए रोगी को हल्का एवं सुपाच्य आहार ही दिया जाना चाहिए। इससे रोगी की भूख धीरे-धीरे बढ़ती है। रोगी को थोड़े-थोड़े समय बाद हल्का
आहार देते रहने से लाभ होता है।

प्रश्न 11:
रेबीज या हाइड्रोफोबिया नामक रोग के कारणों, लक्षणों तथा बचाव के उपायों का उल्लेख करें। या रेबीज रोग के लक्षण लिखिए। [2018]
उत्तर:
रेबीज या हाइड्रोफोबिया नामक रोग एक अति भयंकर एवं घातक रोग है। इस रोग के हो जाने के बाद इसका अभी तक कोई पूर्णतः सफल उपचार नहीं है। यदि रोगी पशु के काटने के तुरन्त बाद ही एण्टीरेबीज इन्जेक्शन लगवा लिया जाए तो रोग से बचा जा सकता है। एक बार रोग प्रबल हो जाने कैं बाद रोगी को बचा पाना प्रायः असम्भव है।

रोग के कारण:
रेबीज नामक रोग एक विशिष्ट जीवाणु के शरीर में प्रविष्ट होने के परिणामस्वरूप होता है। इस रोग के विषाणु को न्यूरोरिहाइसिटीज हाइड्रोफोबी’ कहते हैं। यह रोग रोगग्रस्त पशु के काटने के परिणामस्वरूप होता है। सामान्य रूप से कुत्ते, गीदड़, लोमड़ी तथा बन्दर आदि पशुओं को यह रोग हुआ करता है। चमगादड़ भी इस रोग के शिकार हुआ करते हैं। रोगग्रस्त पशु की लार में रेबीज के विषाणु रहते हैं, अतः जब कोई रेबीजयुक्त पशु किसी व्यक्ति को (UPBoardSolutions.com) काटता है तब उसकी लार में विद्यमान विषाणु व्यक्ति के शरीर में पहुँच जाते हैं। शरीर में प्रवेश करने के उपरान्त ये विषाणु व्यक्ति की स्नायु-तन्त्रिकाओं के माध्यम से शरीर में फैलने लगते हैं। रोग के विषाणु जब मस्तिष्क में पहुँच जाते हैं तब रोग प्रबल रूप धारण कर लेता है तथा रोग के समस्त लक्षण प्रकट होने लगते हैं।

रेबीजयुक्त कुत्ते की पहचान:
हम जानते हैं कि हमारे देश में रेबीज का संक्रमण मुख्य रूप से कुत्तों के ही माध्यम से होता है, अतः रेबीजयुक्त कुत्ते की पहचान करनी अति आवश्यक है। प्रथम प्रकार के रेबीजयुक्त कुत्ते शान्त एवं सुस्त बैठे रहते हैं। रोगी कुत्ते की पूँछ प्रायः सीधी हो जाती है। उसके मुँह से झाग-से निकलते रहते हैं, आँखें लाल हो जाती हैं तथा चेहरा असामान्य रूप से भयानक-सा दिखाई देने लगता है। ये कुत्ते खाना-पीना भी बन्द कर देते हैं। ये कुत्ते अकारण ही किसी भी व्यक्ति को काट सकते हैं। दूसरे प्रकार के रेबीजयुक्त कुत्ते अधिक आक्रामक होते हैं। वे अकारण ही भौंकते रहते हैं तथा जहाँ-तहाँ भागते रहते हैं। ये रोगी कुत्ते अकारण ही किसी भी व्यक्ति अथवा पशु को काट लेते हैं। अन्य समस्त लक्षण प्रथम प्रकार के रोगी कुत्तों के ही समान होते हैं। रेबीज के शिकार कुत्ते का जीवन बहुत कम होता है। सामान्य रूप से रोग के लक्षण उत्पन्न होने के उपरान्त 8-10 दिन के अन्दर ही ये कुत्ते अपने आप ही मर जाते हैं।

रोग की उदभवन अवधि:
रेबीज नामक रोग की उद्भवन अवधि कुछ दिन अर्थात् 4-6 दिन से लेकर कुछ वर्ष अर्थात् 4-6 वर्ष तक भी हो सकती है। कुछ व्यक्तियों के विषय में यह काल 10 वर्ष तक भी देखा जा चुका है। वैसे यह सत्य है कि मस्तिष्क से जितना निकट का अंग कुत्ते के द्वारा काटा गया हो उतना ही शीघ्र यह रोग प्रकट होने की आशंका रहती है, क्योंकि रोग के लक्षण तभी प्रकट होते हैं जब रोग के विषाण व्यक्ति के मस्तिष्क में पहुँचकर सक्रिय होते हैं।

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रोग के लक्षण:
रेबीज नामक रोग को प्रभाव व्यक्ति के मस्तिष्क पर होता है। रोग प्रबल होने से पूर्व अन्य संक्रामक रोगों के ही समान व्यक्ति को ज्वर होने लगता है तथा व्याकुलता बढ़ने लगती है। इसके उपरान्त मुख्य रूप से रोगी के गले पर प्रभाव होता है। प्यास अधिक लगती है, किन्तु रोगी किसी भी तरल अथवा ठोस खाद्य-सामग्री को निगलने में नितान्त असमर्थ हो जाता है तथा पानी से दूर भागता है। वह पानी तक नहीं पी सकता और क्रमश: व्याकुलता बढ़ने लगती है तथा गला सूखने लगता है। इस स्थिति में गले से जो आवाज निकलती है वह कुछ असामान्य-सी होने लगती है । जल न पी सकने के कारण शरीर में जल की कमी हो जाती है तथा रोगी की मृत्यु हो जाती है। कुछ लोगों का कहना है कि रेबीज का शिकार व्यक्ति पागल हो जाता है, आक्रामक हो जाता है तथा कुत्ते के समान भौंकने लगता है। ये सब भ्रामक धारणाएँ हैं। (UPBoardSolutions.com) वास्तव में रेबीज का शिकार व्यक्ति अन्त तक चेतन रहता है, वह न तो आक्रामक होता है और न ही पागल, किन्तु वह कुछ असामान्य व्यवहार अवश्य करने लगता है। आवाज में परिवर्तन केवल गले की मांसपेशियों की निष्क्रियता के कारण होता है।

रोग से बचने के उपाय:
यह सत्य है कि रेबीज नामक रोग का कोई उपचार सम्भव नहीं है, परन्तु इस रोग से बचा जा सकता है। इस रोग से बचने के लिए दो प्रकार के उपाय किये जा सकते हैं। प्रथम प्रकार के उपाय के अन्तर्गत इस बात का प्रयास किया जाता है कि रेबीज नामक रोग का संक्रमण ही न हो। इसके लिए कुत्ते को जहाँ तक सम्भव हो एण्टीरेबीज टीके नियमित रूप से लगवाये जाने चाहिए। पालतू कुत्ते के सन्दर्भ में तो यह सम्भव है। द्वितीय प्रकार के उपाय रेबीजयुक्त कुत्ते के काटने के उपरान्त किये जाते हैं। इस प्रकार के मुख्य उपाय निम्नलिखित हैं

  1. कुत्ते अथवा अन्य रेबीज के जीवाणु से युक्त पशु के काटने की स्थिति में काटे गये स्थान को तुरन्त साफ करना चाहिए। इसके लिए साबुन, पानी तथा पोटेशियम परमैंगनेट भी इस्तेमाल किया जा सकता है। कार्बोलिक अम्ल भी घाव पर लगाया जा सकता है। घाव को खुला रखना चाहिए, उस पर पट्टी नहीं बाँधनी चाहिए।
  2. यदि चिकित्सक की सुविधाएँ उपलब्ध न हों तो काटे गये स्थान पर सरसों का तेल एवं पिसी हुई लाल मिर्च भी लगायी जा सकती हैं। यह एक पारम्परिक उपचार है। चिकित्सा शास्त्र इसका अनुमोदन नहीं करता।
  3. काटने वाले कुत्ते के रेबीजयुक्त होने की आशंका की स्थिति में तुरन्त अनिवार्य रूप से रेबीज से बचने के टीके (Anti-rabies vaccine) लगवाने चाहिए। ये टीके अब बाजार में उपलब्ध हैं। सरकारी जिला अस्पताल में ये टीके नि:शुल्क लगाये जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रोग-प्रतिरक्षा क्या है? [2008, 10, 12]
उत्तर:
विभिन्न संक्रामक रोगों के कीटाणु हमारे. वायुमण्डल में सदैव व्याप्त रहते हैं, परन्तु सदैव ही ये रोग अधिक जोर नहीं पकड़ते। इसके अतिरिक्त जब ये रोग फैलते हैं, तब भी सभी व्यक्ति इनके शिकार नहीं होते। इसका क्या कारण है? वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में स्वस्थ रहने की इच्छा एवं क्षमता होती है। इसीलिए प्रत्येक रोग के रोगाणुओं से हमारा शरीर संघर्ष भी करता है। जब हमारा शरीर संघर्ष में हार जाता है तभी हम रोग के शिकार हो जाते हैं। (UPBoardSolutions.com) इस प्रकार रोगों से लड़ने की जो क्षमता हमारे शरीर में होती है, उसे ही रोग-प्रतिरक्षा (Immunity power) कहते हैं। इसे रोग-प्रतिरोध क्षमता या रोग-प्रतिबन्धक शक्ति भी कहते हैं। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के शरीर में भिन्न-भिन्न समय पर यह क्षमता भिन्न-भिन्न होती है।

प्रश्न 2:
रोग-प्रतिरोध क्षमता कितने प्रकार की होती है? संक्षेप में परिचय दीजिए।[2014, 16]
या
टीकाकरण क्या है? दो टीकों के नाम लिखिए। [2013, 16]
उत्तर:
रोग-प्रतिरक्षा अथवा रोग-प्रतिरोध क्षमता दो प्रकार की होती है, जिन्हें क्रमशः
(1) प्राकृतिक रोग-प्रतिरोध क्षमता तथा
(2) कृत्रिम या अर्जित रोग-प्रतिरोध क्षमता कहते हैं। इन दोनों प्रकार की रोग-प्रतिरोध क्षमताओं का सामान्य परिचय निम्नलिखित है

(1) प्राकृतिक रोग:
प्रतिरोध क्षमता प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में प्राकृतिक रूप से ही स्वस्थ रहने तथा विभिन्न रोगों का मुकाबला करने की क्षमता होती है। इसे ही प्राकृतिक रोग-प्रतिरोध क्षमता कहते हैं। अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्तियों व स्वास्थ्य के नियमों का पालन करने वाले व्यक्तियों तथा सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार ग्रहण करने वाले व्यक्तियों की प्राकृतिक रोग-प्रतिरोध क्षमता : होती है। इसके विपरीत दुर्बल, सामान्य से अधिक परिश्रम करने वाले तथा अनियमित जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्तियों की यह क्षमता घट जाती है।

(2) कृत्रिम अथवा अर्जित रोग-प्रतिरोध क्षमता:
कुछ उपायों एवं परिस्थितियोंवश प्राप्त होने वाली रोग-प्रतिरोध क्षमता को कृत्रिम या अर्जित रोग-प्रतिरोध क्षमता कहा जाता है। यह दो प्रकार की होती है तथा इसे दो रूपों में ही अर्जित किया जाता है। एक प्रकार की अर्जित रोग-प्रतिरोध क्षमता केवल कुछ ही रोगों से बचने के लिए होती है। कुछ रोग ऐसे हैं जो यदि व्यक्ति को एक बार हो जाएँ, तो उन रोगों से बचाव के लिए शरीर में अतिरिक्त क्षमता का विकास हो जाता है तथा वे रोग उस : व्यक्ति को पुन: नहीं हुआ करते। ऐसा अर्जित रोग-प्रतिरोध क्षमता के ही कारण होता है। दूसरे प्रकार की कृत्रिम रोग-प्रतिरोध क्षमता कुछ औषधियों द्वारा प्राप्त की जाती है। इसके लिए सम्बन्धित रोग से बचाव के टीके या इन्जेक्शन लगाए जाते हैं। इस पद्धति के अन्तर्गत जिस भी रोग के प्रति रोग-प्रतिबन्धक क्षमता अर्जित करनी होती है, उसी रोग के विष या प्रतिजीव-विष को रुधिर में उत्पन्न किया जाता है। इससे व्यक्ति के शरीर में कृत्रिम रोग-प्रतिरोध क्षमता अर्जित की जाती है।

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इस प्रक्रिया को टीकाकरण कहते हैं। अब प्राय: सभी संक्रामक रोगों से बचाव के टीके खोज लिए गये हैं। जैसे कि क्षय रोग से बचाव का टीका बी०सी०जी० के टीके के नाम से जाना जाता है। इसी प्रकार डी०पी०टी० का टीका डिफ्थीरिया, काली खाँसी तथा टिटनेस से बचाव करता है। (UPBoardSolutions.com) इसी प्रकार पोलियो, टायफाइड, चेचक, खसरा आदि से बचाव के टीके लगाये जाते हैं।

प्रश्न 3:
टिप्पणी लिखिए-उदभवन अवधि।
उत्तर:
उदभवन अवधि

सभी संक्रामक रोग रोगाणुओं द्वारा फैलते हैं। रोग के कीटाणु व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने के बाद निरन्तर बढ़ने लगते हैं। शरीर इन्हें समाप्त करने के लिए संघर्ष भी करता है। यदि रोगाणुओं की विजय होती हैं, तो व्यक्ति रोगी हो जाता है, व्यक्ति में रोग के लक्षण स्पष्ट रूप से दिखायी देने लगते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि शरीर में कीटाणु के प्रवेश तथा रोग के लक्षण प्रकट होने के मध्य कुछ काल होता है। यह काल ही रोग की उदभवन अवधि या सम्प्राप्ति काल (Incubation period) कहलाता है। भिन्न-भिन्न रोगों का यह सम्प्राप्ति काल अथवा उद्भवन अवधि भिन्न-भिन्न होती है। कुछ मुख्य संक्रामक रोगों की उद्भवने अवधि निम्नवर्णित है
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 11 सामान्य संक्रामक रोगों का परिचय 1

प्रश्न 4:
निःसंक्रमण से आप क्या समझती हैं? [2008, 10]
उत्तर:
सभी संक्रामक रोग किसी-न-किसी रोगाणु के कारण ही उत्पन्न होते हैं। रोगाणुओं के एक व्यक्ति से अन्य व्यक्तियों तक पहुँचने की प्रक्रिया को ही रोग का संक्रमण या रोग का फैलना कहा जाता है। जैसे-जैसे रोगाणु बढ़ते हैं वैसे-वैसे रोग का विस्तार होता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए आवश्यक है कि रोगाणुओं को नष्ट करने के यथा-सम्भव उपाय किए जाएँ। रोगाणुओं को समाप्त करने की प्रक्रिया एवं उपायों को लागू करने को ही निःसंक्रमण या विसंक्रमण (Disinfection) कहा जाता है। नि:संक्रमण के लिए भिन्न-भिन्न उपायों को अपनाया जाता है।

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प्रश्न 5:
निःसंक्रामक तत्त्व से आप क्या समझते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं? [2008, 10]
या
निःसंक्रामक से क्या तात्पर्य है? किन्हीं चार रासायनिक निःसंक्रामकों का वर्णन कीजिए। [ 12013, 14]
या
निःसंक्रामक पदार्थ किसे कहते हैं? किन्हीं तीन निःसंक्रामक पदार्थों के नाम लिखिए। [2008]
उत्तर:
विभिन्न प्रकार के रोगाणुओं को नष्ट करने के लिए अर्थात् नि:संक्रमण के लिए अपनाए जाने वाले उपायों एवं साधनों को ही नि:संक्रामक तत्त्व एवं कारक कहा जाता है। व्यवहार में अनेक प्रकार के नि:संक्रामक तत्त्वों को अपनाया जाता है। अध्ययन की सुविधा के लिए समस्त नि:संक्रामक तत्त्वों को तीन वर्गों में बाँटा जाता है। ये वर्ग हैं:-क्रमशः भौतिक नि:संक्रामक, प्राकृतिक नि:संक्रामक तथा रासायनिक नि:संक्रामक। भौतिक नि:संक्रामक उपायों में मुख्य हैं—जलाना, उबालना, भाप तथा गर्म वायु। ये सभी उपाय उच्च ताप से सम्बन्धित हैं। उच्च ताप पाकर सभी प्रकार के रोगाणु शीघ्र ही मर जाते हैं। प्राकृतिक नि:संक्रामकों में सूर्य के प्रकाश, ताप, वायु तथा ऑक्सीजन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। धूप से अधिकांश रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। वायु के प्रवाह से भी सीलन से उत्पन्न होने वाले रोगाणु नष्ट हो (UPBoardSolutions.com) जाते हैं। इसी प्रकार वायु की ऑक्सीजन भी एक उत्तम कीटाणुनाशक है। जहाँ तक रासायनिक नि:संक्रामकों का प्रश्न है, इनके अन्तर्गत तीन प्रकार के रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है। ये पदार्थ हैं–तरल, गैसीय तथा ठोस रासायनिक नि:संक्रामक पदार्थ। मुख्य तरल नि:संक्रामक हैं—फिनाइल, कार्बोलिक एसिड, फार्मेलिन, लाइजोल आदि। गैसीय रासायनिक पदार्थ हैं-सल्फर डाइऑक्साइड गैस तथा क्लोरीन गैस। ठोस रासायनिक नि:संक्रामकों में मुख्य हैं—चूना, ब्लीचिंग पाउडर, पोटैशियम परमैंगनेट तथा नीला थोथा

प्रश्न 6:
टिप्पणी लिखिए-इन्फ्लुएन्जा।
उत्तर:
इन्फ्लुएन्जा या फ्लू आमतौर पर एक फैलने वाला संक्रामक रोग है। सामान्य रूप से मौसम के बदलते समय यह रोग अधिक होता है। इस रोग का प्रसार बड़ी तेजी से होता है; अतः इससे बचाव के लिए विशेष सावधानी रखनी पड़ती है।

कारण तथा प्रसार:
फ्लू नामक रोग एक अति सूक्ष्म जीवाणु द्वारा फैलता है। यह रोगाणु इन्फ्लुएन्जा वायरस कहलाता है। जुकाम के बिगड़ जाने पर फ्लू बन जाता है। फ्लू का रोग बहुत ही शीघ्र फैलता है। यह कुछ ही घण्टों में फैल जाता है।

फ्लू नामक रोग रोगी के सम्पर्क द्वारा भी फैल जाता है। फ्लू के रोगी की छींक, खाँसी तथा थूक आदि द्वारा भी फ्लू फैलता है। रोगी द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले रूमाल, बर्तन तथा अन्य वस्तुओं के सम्पर्क द्वारा भी यह रोग लग सकता है।

लक्षण: फ्लू प्रारम्भ में जुकाम के रूप में प्रकट होता है। नाक से पानी बहने लगता है। इस रोग के शुरू होते ही शरीर में दर्द होने लगता है। सारे शरीर में बेचैनी होती है तथा कमजोरी महसूस होती है। इसके साथ-ही-साथ तेज ज्वर 102° से 104° फारेनहाइट तक हो जाता है।
उपचार: फ्लू के रोगी को आराम से लिटा देना चाहिए। रोगी को चिकित्सक को दिखाकर दवा देनी चाहिए। फ्लू के रोगी को विटामिन ‘सी’ युक्त भोजन देना चाहिए।
बचाव के उपाय: फ्लू के रोगी को अन्य व्यक्तियों से दूर ही रहना चाहिए। उसे भीड़ भरे स्थानों पर नहीं जाना चाहिए। (UPBoardSolutions.com) रोगी को साफ कमरे में रखना चाहिए। पौष्टिक आहार, उचित विश्राम एवं निद्रा का ध्यान रखना चाहिए।

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प्रश्न 7:
मलेरिया रोग फैलने के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय लिखिए। मलेरिया के रोगी को क्या भोजन देना चाहिए? [2009, 10, 13, 15, 16]
या
मलेरिया रोग कैसे फैलता है? इस रोग के लक्षण तथा बचाव के उपाय बताइए। [2008]
या
मलेरिया बुखार से बचने के उपाय लिखिए। [2013]
उत्तर:
मलेरिया (Malaria) एक व्यापक रूप से फैलने वाला संक्रामक रोग है। चिकित्सा सम्बन्धी ज्ञान के भरपूर विकास के उपरान्त भी प्रतिवर्ष हमारे देश में लाखों व्यक्ति इस रोग के शिकार होते हैं। जिनमें से अनेक की इस रोग के कारण मृत्यु तक हो जाती है। मलेरिया फैलाने का कार्य मच्छर करते हैं। ऐनोफेलीज जाति के मादा मच्छर मलेरिया के वाहक होते हैं। इस रोग की उत्पत्ति एक परजीवी या पराश्रयी कीटाणु प्लाज्मोडियम (Plasmodium) से होती है। मलेरिया की उद्भवन अवधि 9 से 12 दिन है। व्यक्ति के रक्त में कीटाणु सक्रिय होकर रोग के लक्षण उत्पन्न करते हैं।

लक्षण:
(1) रोग का संक्रमण होने के साथ-ही-साथ व्यक्ति को कंपकपी के साथ जाड़ा लगता है जिससे शरीर का तापमान बढ़ने लगता है। इस स्थिति में व्यक्ति को 103° से 105° फारेनहाईट तक ज्वर हो सकता है।
(2) संक्रमण के साथ-ही-साथ सिर तथा शरीर के अन्य भागों में तेज दर्द होने लगता है।
(3) कभी-कभी तीव्र संक्रमण की दशा में जी मिचलाने लगता है तथा पित्त के बढ़ जाने से उबकाई या उल्टियाँ भी होने लगती हैं।
(4) जब मलेरिया का ज्वर उतरता है उस समय रोगी को पसीना भी आता है।
(5) छोटे बच्चों में मलेरिया के कारण प्लीहा या तिल्ली भी बढ़ जाती है।

बचाव के उपाय:
मलेरिया से बचाव का प्रमुख उपाय शरीर को मच्छरों से बचाना है। मच्छरों से बचाव के लिए दो प्रकार के उपाय किए जा सकते हैं। प्रथम प्रकार के उपायों के अन्तर्गत मच्छरों को समाप्त करने या भगाने के उपाय किए जाते हैं तथा दूसरे प्रकार के उपायों के अन्तर्गत व्यक्ति स्वयं (UPBoardSolutions.com) को मच्छरों से सुरक्षित करने के प्रयास करता है।

उपचार:
मलेरिया का सन्देह होने पर रक्त की जाँच करवानी चाहिए। मलेरिया का संक्रमण निश्चित हो जाने पर चिकित्सक से उपचार करवाना चाहिए। मलेरिया के उपचार की अनेक औषधियाँ उपलब्ध हैं। रोगी को पूरी तरह से आराम करना चाहिए। रोग पर शीघ्र नियन्त्रण पाया जा सकता है। रोगी को हल्का तथा सुपाच्य आहार दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 8:
काली खाँसी के लक्षण, कारण व बचाव के उपाय लिखिए।
या
कुकुर खाँसी के लक्षण लिखिए। [2015]
उत्तर:
यह रोग साधारणतः 5 वर्ष से कम आयु के शिशुओं को होता है। प्रायः खसरा होने के बाद असावधानी से यह रोग उत्पन्न हो जाता है। इस रोग में बच्चे को रुक-रुककर खाँसी के दौरे पड़ते हैं। जो दिन में पाँच से लेकर बीस बार तक पड़ते हैं। प्रायः खाँसते-खाँसते उल्टी भी हो जाती है। इस रोग का उद्भवन काल 7 से 14 दिन तक होता है।

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रोग फैलने के कारण:
काली खाँसी नामक रोग वायु एवं निकट सम्पर्क द्वारा फैलने वाला एक जीवाणु जनित रोग है। इस रोग की उत्पत्ति का कारण होमोकिट्स परटुसिस बेसिनस नामक रोगाणु होता है। रोगी की साँस में इस रोग के जीवाणु रहते हैं जो उसके सम्पर्क में आने से अथवा वायु (UPBoardSolutions.com) द्वारा स्वस्थ शिशु को लग जाते हैं तथा उसे भी रोगी बना देते हैं। रोगी बच्चे के खिलौनों तथा वस्त्रों से भी यह छूत फैल जाती है। कुत्तों को यह रोग प्रायः होता रहता है; इसलिए इसे कुकुर खाँसी भी कहते हैं।

उपचार: (1) स्वस्थ बच्चों को रोगी बच्चे के सम्पर्क से बचाकर रखना चाहिए,
(2) रोगी के थूक आदि को जला देना चाहिए तथा नि:संक्रामकों से उसके वस्त्रों, खिलौनों व स्थान को साफ कर देना चाहिए,
(3) रोगी को हवादार कक्ष में रखना चाहिए,
(4) किसी अच्छे चिकित्सक के निर्देशानुसार औषधि लेनी चाहिए।

प्रश्न 9:
व्यक्तिगत स्वच्छता क्यों आवश्यक है? आप बच्चों में इसकी आदत कैसे डालेंगी? [2016]
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वच्छता का हमारे जीवन में बहुपक्षीय महत्त्व है। सर्वप्रथम शारीरिक स्वास्थ्य के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता अति आवश्यक है। वास्तव में गन्दगी में विभिन्न रोगों के जीवाणु तेजी से पनपते हैं तथा वे हमें रोगग्रस्त बना देते हैं। अधिकांश चर्म रोग तो मुख्य रूप से व्यक्तिगत स्वच्छता के अभाव में ही पनपते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य के अतिरिक्त मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी व्यक्तिगत स्वच्छता एक अनिवार्य कारक है। व्यक्तिगत स्वच्छता के अभाव में व्यक्ति को समाज में समुचित स्थान प्राप्त नहीं होता तथा वह अलग-थलग पड़ जाता है। ऐसे में वह हीन भावना का शिकार हो जाता है तथा उसका मानसिक स्वास्थ्य सामान्य नहीं रह पाता। बच्चों को समझा-बुझाकर उनमें इसकी आदत डाली जा सकती है।

प्रश्न 10:
टायफाइड रोग के लक्षण और इससे बचने का उपाय लिखिए। [2016]
उत्तर:

लक्षण:
मियादी बखार के प्रारम्भ होते ही सिर में तेज दर्द होता है तथा व्यक्ति अत्यधिक बेचैनी अनुभव करता है। जैसे-जैसे रोग के कीटाणु व्यक्ति पर अपना असर डालते हैं ज्वर तीव्र होने लगता है। कभी-कभी ज्वर के साथ-ही-साथ सारे शरीर पर छोटे-छोटे सफेद रंग के मोती के समान आकार वाले दाने भी निकल आते हैं। इस लक्षण के ही कारण इस रोग को मोतीझरा भी कहते हैं। मियादी बुखार के कारण आँतों में सूजन तथा अन्य विकार भी आ जाते हैं। रक्त-परीक्षण द्वारा इस रोग की निश्चित रूप से पहचान की जाती है। इस परीक्षण को ही विडाल टेस्ट भी कहते हैं।

रोग से बचाव के उपाय: इस रोग से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं।

  1.  सभी व्यक्तियों को चिकित्सक की राय से समय-समय पर टी० ए० बी० का टीका लगवाना चाहिए।
  2. जिस व्यक्ति को मियादी बुखार हो जाए, उसे अलग रखना चाहिए तथा अन्य व्यक्तियों को उसके सम्पर्क से बचाना चाहिए।
  3. रोगी के बर्तनों, बिस्तर एवं अन्य वस्तुओं को अलग रखना चाहिए तथा (UPBoardSolutions.com) उन्हें उबलते हुए गर्म पानी में धोना चाहिए।
  4. गाँवों में रोगी के मल-मूत्र को अलग स्थान पर नष्ट करना चाहिए तथा उसमें किसी रोगाणुनाशक तत्त्व को अवश्य डाल देना चाहिए।
  5. सभी व्यक्तियों को चाहिए कि वे दूध उबालकर पियें; क्योकि इस रोग के रोगाणु दूध के माध्यम से भी संक्रमित हो जाते हैं।
  6. रोगी व्यक्ति का पूर्ण उपचार करवाना चाहिए।

प्रश्न 11:
खसरा (Measles) नामक रोग के लक्षण, उपचार तथा बचाव के उपाय बताइए। [2009, 10, 11, 12, 13]
या
खसरा से बचने के उपाय लिखिए। [2011]
उत्तर:
खसरा

खसरा भी मुख्य रूप से बच्चों में फैलने वाला रोग है। यह रोग सामान्यतया छोटी आयु के बच्चों को होता है तथा कभी-कभी गम्भीर रूप धारण कर लेता है। खसरा को फैलाने का कार्य पैरामाइक्सोविरिडेयी वर्ग के मॉरबिलि वायरस ही करते हैं। ये जीवाणु व्यक्ति की नाक तथा गले पर आक्रमण करते हैं। रोगी बच्चे की छींक, खाँसी तथा साँस से यह रोग एक-दूसरे को लगता है।

लक्षण: खसरा के जीवाणुओं के प्रभाव से सर्वप्रथम व्यक्ति को जोड़ा लगता है तथा बुखार हो जाता है। इससे काफी बेचैनी होती है। रोगी की आँखें लाल हो जाती हैं तथा आँखों से पानी भी बहने लगता है। खाँसी एवं छींकें भी आने लगती हैं। इसके साथ-ही-साथ खसरा के दाने भी निकलने लगते हैं। पहले ये दाने कानों के पीछे निकलते हैं तथा धीरे-धीरे पूरे शरीर पर निकल आते हैं। पूरे शरीर पर दाने निकलने के साथ-ही-साथ बुखार हो जाता है। 4-5 दिन में ये दाने भी मुरझाने लगते हैं तथा बुखार भी उतर जाता है। लगभग 8-10 दिन में रोगी के सारे दाने समाप्त हो जाते हैं तथा वह स्वस्थ हो जाता है।

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उपचार: यदि खसरा बिगड़े नहीं तो किसी खास उपचार की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु खसरा के रोगी की उचित देखभाल अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि कभी-कभी इस बात का डर रहता है कि कहीं निमोनिया न हो जाए। रोगी को अधिक गर्मी एवं अधिक ठण्ड से बचाना चाहिए।

बचाव के उपाय: खसरा से बचाव के लिए गन्दगी एवं अशुद्ध वातावरण से बचना चाहिए। सन्तुलित एवं पौष्टिक भोजन से बच्चों में रोग से बचने की क्षमता विकसित होती है। अब खसरा से बचने का टीका भी विकसित कर लिया गया है जो छोटे शिशुओं को लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त वे सभी उपाय करने चाहिए जो अन्य संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए किए जाते हैं।

प्रश्न 12:
छोटी माता (Chickenpox) नामक रोग का सामान्य परिचय दीजिए। इस रोग के लक्षणों, संक्रमण तथा बचाव एवं उपचार के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
छोटी माता

छोटी माता भी चेचक के समान एक संक्रामक रोग है, परन्तु यह घातक नहीं है। यह शीत ऋतु का रोग है।
लक्षण: (1) रोग का आरम्भ 99° फारेनहाइट तापमान से होता है। कभी-कभी ज्वर नहीं होता है, चेहरा तथा आँखें लाल हो जाती हैं।
(2) सिर, पीठ में दर्द, बेचैनी व कॅपकपी लगती है। शरीर पर छोटे-छोटे सरसों के बराबर दाने निकलने लगते हैं।
(3) 4-5 दिन में दाने सूखने लगते हैं तथा उन पर पपड़ी बन जाती है।
(4) 6-7 दिन बाद पपड़ी सूखकर गिरने लगती है।

संक्रमण: इस रोग के विषाणु नाक और गले के स्राव में होते हैं। इसके अतिरिक्त (UPBoardSolutions.com) फफोले के तरल पदार्थ में भी रहते हैं और यहीं से वायु अथवा सम्पर्क द्वारा स्वस्थ व्यक्तियों तक पहुँचते हैं। अतः दानों की पपड़ी को एकत्र करके जला देना चाहिए।
बचाव एवं उपचार:

  1. त्वचा को स्वच्छ रखना चाहिए। इससे रोग का और अधिक विस्तार नहीं हो पाता।।
  2. रोगी को अलग कमरे में रखना चाहिए।
  3. खुजलाहट दूर करने के लिए मरहम का प्रयोग करना चाहिए।
  4. पपड़ियाँ सूखकर गिर जाने पर रोगी को किसी हल्के नि:संक्रामक विलयन से स्नान करो देना चाहिए।
  5. रोगी के कमरे को रोगाणुनाशक पदार्थ से धो डालना चाहिए।
  6. इस रोग में रोगी को ठण्डी और खट्टी चीजें खाने को नहीं देनी चाहिए। नमक, मिर्च, तेल आदि का परहेज रखना चाहिए।

प्रश्न 13:
डेंगू नामक रोग के घरेलू उपचार बताइये।
उत्तर:
वैसे तो डेंगू का व्यवस्थित उपचार अति आवश्यक होता है परन्तु इससे बचाव तथा रोग नियन्त्रित करने के कुछ घरेलू उपाय भी हैं जिन्हें अपनाया जा सकता है। इस प्रकार के कुछ मुख्य उपाय निम्नवर्णित हैं

  1. धनियापत्ती: डेंगू बुखार में धनिये की पत्ती के रस को एक टॉनिक के रूप में ग्रहण किया जा सकता है। इससे ज्वर कम हो जाता है।
  2. आँवला: डेंगू बुखारे में आँवले का उपयोग लाभदायक सिद्ध होता है। इसमें विटामिन ‘सी’ की भरपूर मात्रा होती है जो कि लोह खनिज के शोषण में सहायक होता है।
  3. तुलसी: तुलसी के पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी का सेवन करने से रोगी को विशेष लाभ होता है।
  4. पपीते के पत्ते: डेंगू रोग के उपचार में पपीते के पत्ते का सेवन विशेष लाभकारी सिद्ध होता है। पपीते के पत्ते के रस के सेवन से प्लेटलेट्स बड़ी तेजी से बढ़ते हैं तथा रोग के नियन्त्रण में सहायता मिलती है।
  5. बकरी का दूध: बकरी का दूध डेंगू रोग को नियन्त्रित करने में बहुत अधिक सहायक होता है। इसके सेवन से प्लेटलेट्स में बड़ी तेजी से वृद्धि होती है। इसके सेवन से जोड़ों के दर्द में भी
    आराम मिलता है।
  6. मेथी के पत्ते: मेथी के पत्तों को उबालकर हर्बल चाय के रूप में सेवन करने से डेंगू बुखार नियन्त्रित हो जाता है।
    उपर्युक्त उपायों के अतिरिक्त अनार, काले अंगूर तथा संतरे का जूस भी डेंगू बुखार में लाभकारी सिद्ध होता है।

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प्रश्न 14:
टिप्पणी लिखिए-पीत ज्वर (Yellow Fever)
उत्तर:
पीत ज्वर तेजी से फैलने वाला एक संक्रामक रोग है। यह एक वायरसजनित रोग है। इस रोग के विषाणु का संक्रमण एडीस ईजिप्टिआई (Aedes Aegypti) जाति के मच्छरों के माध्यम से होता है।
पीत ज्वर एक गम्भीर रोग है। इसके प्रकोप से रोगी के यकृत तथा गुर्दे की कोशिकाओं को क्षति पहुँचती है। जब रोगी का यकृत प्रभावित होने लगता है तब रोगी में पीलिया के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ऐसे में त्वचा का रंग पीला दिखाई देने लगता है। यही कारण है कि इस रोग को पीत ज्वर नाम दिया गया है। सामान्य रूप से पीत ज्वर दस दिन तक रहता है तथा घातक न हो तो धीरे-धीरे रोगी ठीक होने लगता है।

रोग के लक्षण:
1. रोग के बढ़ते ही व्यक्ति को तेज बुखार होता है।
2. प्रायः रोगी को ठंड लगती है तथा कँपकँपी होती है।
3. पीठ में काफी दर्द होता है।
4. रोगी का शरीर पीला पड़ने लगता है।

बचाव के उपाय:
1. रोग से बचाव का सर्वोत्तम उपाय है-मच्छरों से बचाव का हर सम्भव उपाय करना।
2. इस रोग से बचाव का टीका भी है। एक बार लगवाये गये टीके का प्रभाव लगभग चार वर्ष तक रहता है।

सामान्य उपचार: पीत ज्वर के लक्षण प्रकट होते ही तुरन्त चिकित्सक के परामर्श के अनुसार उपचार किया जाना चाहिए। रोग का कोई कारगर घरेलू उपचार नहीं है।

प्रश्न 15:
इन्सेफेलाइटिस (Encephalitis) नामक रोग के लक्षण, बचाव के उपाय तथा उपचार बतायें।
उत्तर:
वायरस से संक्रमित होने वाला एक गम्भीर संक्रामक रोग इन्सेफेलाइटिस या जापानी इन्सेफेलाइटिस (Japanese Encephalitis) भी है। इसे दिमागी बुखार या मस्तिष्कीय ज्वर भी कहा जाता है। इस रोग के वायरस का संक्रमण एक विशेष प्रकार के मच्छर या सूअर के माध्यम (UPBoardSolutions.com) से होता है। सूअर को ही इस रोग का मुख्य वाहक माना जाता है।
यह रोग मुख्य रूप से छोटे बच्चों (1 से 14 वर्ष) तथा 65 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों को हुआ करता है। हमारे देश के 19 राज्यों के 171 जिलों में इस रोग का अधिक प्रकोप रहता है। इस रोग से हर वर्ष अनेक बच्चों एवं बड़े व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है। इस रोग का प्रकोप अगस्त, सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में अधिक होता है।

इन्सेफेलाइटिस रोग के मुख्य लक्षण: इन्सेफेलाइटिस या दिमागी बुखार के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. रोगी अतिसंवेदनशील हो जाता है।
  2. रोगी को दुर्बलता महसूस होती है तथा उल्टियाँ भी होती हैं।
  3. यदि छोटे बच्चे को यह रोग होता है तो वह निरन्तर रोता है।
  4. तेज ज्वर होता है तथा सिरदर्द होता है। रोग के बढ़ने के साथ-ही-साथ सिरदर्द में बढ़ोतरी होती है।
  5. रोगी की गर्दन अकड़ जाती है।
  6. व्यक्ति को भूख कम लगती है।
  7.  रोगी को लकवा मार जाता है। स्थिति बिगड़ने पर व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है।

बचाव के उपाय:

  1. सही समय पर रोग से बचाव के लिए टीकाकरण कराएँ।
  2.  हर प्रकार की सफाई का विशेष ध्यान रखें।
  3. गन्दे पानी के सम्पर्क में आने से बचना आवश्यक है।
  4. मच्छरों से बचाव के हर सम्भव उपाय करने चाहिए।
  5. घरों के आस-पास पानी न जमा होने दें। वर्षा ऋतु में इसका विशेष ध्यान रखना आवश्यक
  6. बच्चों को अच्छा पौष्टिक आहार दें।

उपचार: इन्सेफेलाइटिस रोग का कोई भी लक्षण दिखाई देते ही तुरन्त योग्य चिकित्सक से सम्पर्क करें तथा व्यवस्थित उपचार आरम्भ कर दें।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
संक्रामक रोग किसे कहते हैं? मुख्य संक्रामक रोगों के नाम लिखिए। [2007, 10, 13, 14, 16, 17]
उत्तर:
वे रोग जो जीवाणुओं के माध्यम से एक व्यक्ति अथवा प्राणी से दूसरे व्यक्ति (UPBoardSolutions.com) अथवा प्राणी को लग जाते हैं, उन्हें संक्रामक रोग कहा जाता है। मुख्य संक्रामक रोग हैं-चेचक, तपेदिक, हैजा, मियादी बुखार, डेंगू, चिकनगुनिया, इन्सेफेलाइटिस आदि।

प्रश्न 2:
संक्रामक रोग किन-किन माध्यमों द्वारा फैलते हैं? [2007, 09, 11]
उत्तर:
संक्रामक रोग वायु, जल, भोजन, सम्पर्क तथा रक्त द्वारा या कीड़ों के काटने के द्वारा फैलते हैं।

प्रश्न 3:
वायु द्वारा फैलने वाले रोगों के नाम लिखिए। [2011]
उत्तर:
वायु द्वारा फैलने वाले मुख्य रोग हैं-चेचक, इन्फ्लुएन्जा, खसरा, काली खाँसी, क्षय रोग, डिफ्थीरिया आदि।

प्रश्न 4:
जल एवं भोजन के माध्यम से फैलने वाले मुख्य रोगों के नाम बताइए।
उत्तर:
जल के माध्यम से फैलने वाले मुख्य रोग है हैजा, मोतीझरा या मियादी बुखार, अतिसार, पेचिस तथा पीलिया।

प्रश्न 5:
प्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा फैलने वाले मुख्य रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा फैलने वाले मुख्य रोग हैं-दाद, खाज, खुजली, एग्जीमा, एड्स तथा हेपेटाइटिस ‘बी’ आदि ।

प्रश्न 6:
रोग-प्रतिरक्षा से आप क्या समझती हैं? [2008, 09, 10, 12, 14, 16, 17, 18]
उत्तर:
शरीर में पाई जाने वाली उस शक्ति को रोग-प्रतिरक्षा या रोग प्रतिरोधक-क्षमता कहा जाता है जो विभिन्न रोगों के रोगाणुओं से लड़ने के लिए होती है।

प्रश्न 7:
रोग-प्रतिरोध क्षमता कितने प्रकार की होती है? [2014, 16]
उत्तर:
रोग-प्रतिरोध क्षमता मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है। ये प्रकार हैं-प्राकृतिक रोगप्रतिरोध क्षमता तथा कृत्रिम अथवा अर्जित रोग-प्रतिरोध क्षमता।

प्रश्न 8:
कृत्रिम अथवा अजित रोग-प्रतिरोध क्षमता को प्राप्त करने का मुख्य उपाय क्या है?
उत्तर:
कृत्रिम अथवा अर्जित रोग-प्रतिरोध क्षमता को प्राप्त करने के लिए सम्बन्धित रोग के टीके या इन्जेक्शन लगवाने पड़ते हैं।

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प्रश्न 9:
रोग के उद्भवन काल से आपका क्या तात्पर्य है? [2016]
उत्तर:
किसी भी संक्रामक रोग के रोगाणुओं के शरीर में प्रवेश करने तथा रोग के लक्षण प्रकट होने के मध्य काल को रोग का उद्भवन काल कहते हैं।

प्रश्न 10:
निःसंक्रमण से आप क्या समझती हैं।
उत्तर:
विभिन्न रोगों के रोगाणुओं को समाप्त करने की प्रक्रिया एवं उपायों (UPBoardSolutions.com) को लागू करने को ही नि:संक्रमण कहा जाता है।

प्रश्न 11:
निःसंक्रामक पदार्थ क्या हैं ? [2009]
उत्तर:
वे पदार्थ जो रोगाणुओं को नष्ट करने में इस्तेमाल किए जाते हैं, उन्हें ही नि:संक्रामक पदार्थ कहा जाता है।

प्रश्न 12:
किन्हीं दो रासायनिक निःसंक्रामक तत्वों का उल्लेख कीजिए। [2011]
उत्तर:
ब्लीचिंग पाउडर तथा क्लोरीन गैस रासायनिक नि:संक्रामक हैं।

प्रश्न 13:
सूर्य के प्रकाश का रोगाणुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
सूर्य के प्रकाश से अनेक रोगाणु नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 14:
चेचक उत्पन्न करने वाले रोगाण का नाम लिखिए।
उत्तर:
चेचक उत्पन्न करने वाले रोगाणु को वरियोला वायरस कहते हैं।

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प्रश्न 15:
डिफ्थीरिया उत्पन्न करने वाले रोगाणु का नाम लिखिए।
उत्तर:
डिफ्थीरिया उत्पन्न करने वाले रोगाणु को कोरीनी बैक्टीरियम डिफ्थीरी कहते हैं।

प्रश्न 16:
डिफ्थीरिया नामक रोग किस आयु-वर्ग के बच्चे को होता है?
उत्तर:
डिफ्थीरिया रोग सामान्यतया 2 से 5 वर्ष की आयु के बच्चों को अधिक होता है।

प्रश्न 17:
डी०पी०टी० के तीन टीके लगाने से किन-किन रोगों से प्रतिरक्षा होती है? [2007]
उत्तर:
डी०पी०टी० के टीके लगाने से डिफ्थीरिया, काली खाँसी तथा टिटनेस नामक रोगों से प्रतिरक्षा होती है।

प्रश्न 18:
क्षय रोग के दो लक्षण लिखिए। क्षय रोग से बचाव के लिए कौन-सा टीका लगाया जाता है? [2007]
या
बी०सी०जी० का टीका किस रोग की रोकथाम के लिए लगाया जाता है? [2008, 18]
उत्तर:
क्षय रोग में व्यक्ति का वजन घटने लगता है, दुर्बलता महसूस होती है तथा उसे हल्का ज्वर रहता है। क्षय रोग से बचाव के लिए बी०सी०जी० का टीका लगवाया जाता है।

प्रश्न 19:
टिटनेस नामक रोग किस जीवाणु से फैलता है? [2018]
या
टिटनेस फैलाने वाले सूक्ष्म जीवाणु का नाम क्या है? इस रोग की रोकथाम के दो उपाय लिखिए।
उत्तर:
टिटनेस नामक रोग क्लॉस्ट्रीडियम टिटेनाइ नामक जीवाणु द्वारा फैलता है।
रोकथाम के उपाय
1. प्रसव के समय माँ को तथा 3 से 5 माह के बच्चे को टिटनेस का टीका लगवा देना चाहिए।
2. त्वचा फटने, छिलने व घाव होने पर, तुरन्त टैटवैक का इन्जेक्शन (UPBoardSolutions.com) लगवाना चाहि

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प्रश्न 20:
विषाक्त भोजन से क्या तात्पर्य है? [2011]
उत्तर:
जिस भोजन में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्वों का समावेश हो उसे विषाक्त भोजन कहा जाता है।

प्रश्न 21:
आहार-विषाक्तता के लिए जिम्मेदार जीवाणु समूहों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आहार-विषाक्तता के लिए जिम्मेदार जीवाणु समूह हैं साल्मोनेला समूह, स्टेफाईलोकोकाई समूह, क्लॉस्ट्रीडियम समूह तथा क्लॉस्ट्रीडियम बौटूलिनम समूह।

प्रश्न 22:
मलेरिया उत्पन्न करने वाले जीवाणु का नाम बताइए। इस रोग को फैलाने में किस जीव का मुख्य योगदान होता है?
उत्तर:
मलेरिया उत्पन्न करने वाले जीवाणु का नाम है-प्लाज्मोडियम। इस रोग को फैलाने में मच्छर का योगदान होता है।

प्रश्न 23:
मलेरिया के लक्षण लिखिए। [2011, 16]
उत्तर:
मलेरिया रोग में तेज ज्वर होता है तथा कैंपकपी होने लगती है। इसके साथ ही साथ सिर में दर्द होना, जी मिचलाना तथा थकान होना भी मलेरिया के लक्षण होते हैं।

प्रथम 24:
मच्छर से बचने के उपाय लिखिए। [2007]
उत्तर:
मच्छर से बचने के उपाय दो प्रकार के हैं। इनमें एक प्रकार के मच्छरों को स्वयं से दूर करने या मारने के लिए किए जाते हैं और दूसरी प्रकार के अन्तर्गत व्यक्ति स्वयं को मच्छरों से बचाने के प्रयास करता है। मच्छरों को मारने के लिए बाजार में मच्छरमार क्वायल या घरों में छिड़कने की दवाएँ उपलब्ध हैं। दूसरे उपाय के तौर पर हमें ऐसे उपाय करने होते हैं जिससे मच्छर हमारे घरों व उसके आसपास जमा न हो सकें।

प्रश्न 25:
क्षय रोग के कारण लिखिए। [2008]
उत्तर:
क्षय रोग फैलने के कारणों में सबसे प्रमुख हैं–इसका जीवाणु ट्यूबरकिल बैसिलस। यह रोग प्रायः वायु या श्वास द्वारा फैलता है। इसके अलावा यह रोग अत्यधिक श्रम व कुपोषण के कारण, लम्बे समय तक दुर्गन्ध व सीलनयुक्त कमरों में रहने से और मादक द्रव्यों का अत्यधिक (UPBoardSolutions.com) सेवन करने से फैलता है। क्षय रोग से ग्रस्त गाय का दूध पीने से भी यह रोग फैलता है।

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प्रश्न 26:
खसरा के लक्षण लिखिए। [2009, 18]
उत्तर:
खसरा के जीवाणुओं से प्रभावित व्यक्ति को सर्वप्रथम ठण्ड लगती है, बुखार आ जाता है, काफी बेचैनी महसूस होती है, आँखें लाल हो जाती हैं तथा आँखों से पानी आने लगती है। खाँसी एवं छींकें भी आती हैं, साथ-ही-साथ खसरा के दाने भी निकलने लगते हैं।

प्रश्न 27:
डेंगू कैसे फैलता है?
उत्तर:
डेंगू मादा एडीज मच्छर के काटने से फैलता है।

प्रश्न 28:
डेंगू रोग के मुख्य लक्षण बतायें।
उत्तर:
डेंगू रोग में तेज बुखार होता है तथा रोगी को सिरदर्द, कमरदर्द तथा जोड़ों में दर्द होता है।

प्रश्न 29:
डेंगू रोग में गम्भीर स्थिति क्या होती है?
उत्तर:
डेंगू हेमोरेजिक बुखार में रक्त में प्लेटलेट्स की अत्यधिक कमी होने लगती है। यह स्थिति रोग की गम्भीर स्थिति होती है।

प्रश्न 30:
चिकनगुनिया के मुख्य लक्षण बतायें।
उत्तर:
चिकनगुनिया रोग में जोड़ों में दर्द होता है तथा साथ ही ज्वर होता है। त्चचा शुष्क हो जाती है तथा प्रायः त्वचा पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं। बच्चों में रोग के संक्रमण से उल्टियाँ भी होने लगती
हैं।

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प्रश्न 31:
पीत ज्वर का संक्रमण कैसे होता है?
उत्तर:
पात ज्वर एक वायरसजनित रोग है। इस रोग के विषाणु का संक्रमण एडीस ईजिप्टिआई जाति के मच्छरों के माध्यम से होता है।

प्रश्न 32:
हाथीपाँव नामक रोग को अन्य किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
हाथीपाँव नामक रोग को फाइलेरिया नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 33:
फाइलेरिया रोग कैसे फैलता है?
उत्तर:
फाइलेरिया एक कृमिजनित रोग है। इस कृमि को फाइलेरिया क्रॉफ्टी कहते हैं। इसे कृमि को फैलाने का कार्य क्यूलेक्स मच्छर द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 34:
इन्सेफेलाइटिस रोग का वाहक कौन है?
उत्तर:
इन्सेफेलाइटिस रोग का वाहक सूअर होता है?

प्रश्न 35:
कौन-कौन से हेपेटाइटिस रोग से बचाव के टीके उपलब्ध हैं?
उत्तर:
हेपेटाइटिस ‘A’ तथा ‘B’ से बचाव के लिए टीके उपलब्ध हैं।

प्रश्न 36:
रेबीज या हाइड्रोफोबिया रोग के विषाणु को क्या कहते हैं।
उत्तर:
न्यूरोरिहाइसिटीज हाइड्रोफोबी

प्रश्न 37:
हाइड्रोफोबिया से बचाव का क्या उपाय है?
उत्तर:
संक्रमित कुत्ते आदि के काटने पर ऐण्टीरेबीज इंजेक्शन (UPBoardSolutions.com) लगवाकर हाइड्रोफोबिया नामक रोग
से बचा जा सकता है।

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बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न:
निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

1. स्वस्थ मनुष्य किससे मुक्त रहता है? [2013]
(क) रोग
(ख) धन
(ग) चिन्ता
(घ) भय

2. रोगाणुओं के शरीर में प्रवेश करने के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों को कहते हैं
(क) साधारण रोग
(ख) घातक रोग
(ग) संक्रामक रोग
(घ) गम्भीर रोग

3. सभी संक्रामक फैलते हैं [2012, 16, 17]
(क) गन्दगी द्वारा
(ख) लापरवाही से
(ग) रोगाणुओं द्वारा
(घ) बिना किसी कारण के

4. शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को कहते हैं
(क) नि:संक्रमण क्षमता
(ख) सम्प्राप्ति काल
(ग) शारीरिक क्षमता
(घ) रोग-प्रतिरोध क्षमता

5. सभी व्यक्तियों में रोग-प्रतिरोध क्षमता होती है
(क) समान
(ख) भिन्न-भिन्न
(ग) आवश्यकतानुसार
(घ) नहीं होती।

6. संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए स्वस्थ व्यक्ति को चाहिए कि वह [2010]
(क) टीके लगवाए
(ख) स्वादिष्ट भोजन ग्रहण करे
(ग) धूप में बैठे
(घ) भ्रमण करे

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7. वायु द्वारा फैलने वाले रोग हैं
(क) चेचक
(ख) तपेदिक
(ग) काली खाँसी
(घ) ये सभी

8. कौन-सा रोग जल द्वारा फैलता है?
(क) टिटनेस
(ख) कुकुर खाँसी
(ग) खसरा
(घ) हैजा

9. तपेदिक के रोगाणु को कहते हैं
(क) वरियोला वायरस
(ख) विब्रियो कोलेरी
(ग) ट्यूबरकिल बैसिलस
(घ) बैसिलस टाइफोसिस

10. बी०सी०जी० का टीका किस रोग की रोकथाम के लिए लगाया जाता है? [2007, 08, 13, 17, 18]
(क) कर्णफेर
(ख) तपेदिक
(ग) पोलियो
(घ) पीलिया

11. डिफ्थीरिया नामक रोग में होने वाला विकार है
(क) लार ग्रन्थियों में सूजन
(ख) चेहरे पर लाल दाने निकल आना
(ग) गले में झिल्ली का बन जाना
(घ) टॉन्सिल्स में वृद्धि हो जाना

12. टिटनेस में होने वाला मुख्य विकार है
(क) तेज ज्वर
(ख) शरीर का ऐंठ जाना
(ग) टाँगों का जकड़ जाना
(घ) चेतना का लुप्त हो जाना

13. मच्छरों से कौन-सा रोग फैलता है? [2008, 09, 13, 14, 15, 17, 18]
(क) चेचक
(ख) क्षय रोग
(ग) मलेरिया
(घ) टायफाइड

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14. मक्खी द्वारा फैलता है [2008, 13]
(क) मलेरिया
(ख) प्लेग
(ग) हैजा
(घ) रेबीज

15. कुकुर खाँसी फैलने का कारण है
(क) जीवाणु
(ख) वायु
(ग) जल
(घ) भोजन

16. रेबीपुर की सूई………. काटने पर लगाई जाती है। [2007]
(क) मच्छर के
(ख) खटमल के
(ग) कुत्ते के
(घ) साँप के

17. रोग के रोगाणु शरीर में प्रवेश करने से रोग उत्पन्न होने तक के काल को कहते हैं [2007]
(क) संक्रमण काल
(ख) सम्प्राप्ति काल
(ग) रोग का प्रकोप
(घ) रोग सुधार की अवधि

18. टेटवैक (ए०टी०एस०) का इन्जेक्शन किस रोग से बचाव के लिए लगाया जाता है? [2008, 12, 15, 16]
(क) टिटनेस
(ख) डिफ्थीरिया
(ग) हैजा
(घ) तपेदिक

19. टिटनेस रोग के जीवाणु पाये जाते हैं। [2014]
(क) मिट्टी में
(ख) गोबर में
(ग) जंग लगे लोहे में
(घ) इन सभी में

20. उत्तम स्वास्थ्य का प्रतीक है [2012, 16]
(क) सुन्दर बाल
(ख) चमकती आँखें
(ग) मजबूत मांसपेशियाँ
(घ) ये सभी

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21. क्षय रोग के रोगी को किस प्रकार का भोजन हानि पहुँचाता है? [2015]
(क) मौसमी रस वाले फल
(ख) मिर्च-मसालेदार भोजन
(ग) दूध
(घ) अण्डा

22. डेंगू रोग फैलता है [2018]
(क) दूषित जल से
(ख) दूषित वायु से
(ग) मच्छर के काटने से
(घ) उपरोक्त सभी के द्वारा

23. डेंगू रोग के विषय में सत्य है
(क) यह एक संक्रामक रोग है।
(ख) इसका संक्रमण मादा एडीज मच्छर के काटने से होता है।
(ग) गम्भीर स्थिति में रक्त के प्लेटलेट्स तेजी से घटने लगते हैं।
(घ) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं।

24. चिकनगुनिया के उपचार के उपाय हैं
(क) रोगी को अधिक से अधिक विश्राम करना चाहिए।
(ख) रोगी को अधिक से अधिक पानी पीना चाहिए
(ग) रोगी को दूध तथा दूध से बने भोज्य-पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
(घ) उपर्युक्त सभी उपाय

25. इन्सेफेलाइटिस रोग का लक्षण है
(क) रोगी अतिसंवेदनशील हो जाता है।
(ख) रोगी को दुर्बलता महसूस होती हैं तथा उल्टियाँ भी होती हैं।
(ग) रोगी की गर्दन अकड़ जाती है।
(घ) उपर्युक्त सभी लक्षण

26. हेपेटाइटिस रोग का मुख्य लक्षण है
(क) पीलिया के लक्षण प्रकट होना।
(ख) अधिक भूख लगना
(ग) वजन बढ़ना
(घ) कोई भी लक्षण

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27. किस रोग में रोगी के गले की मांसपेशियाँ निष्क्रिय हो जाती है तथा वह कुछ भी निगल नहीं पाता?
(क) मलेरिया
(ख) फाइलेरिया
(ग) हाइड्रोफोबिया
(घ) इन्सेफेलाइटिस

उत्तर:
1. (क) रोग,
2. (ग) संक्रामक रोग,
3. (ग) रोगाणुओं द्वारा,
4. (घ) रोग-प्रतिरोध क्षमता,
5. (ख) भिन्न-भिन्न,
6. (क) टीके लगवाए,
7. (घ) ये सभी,
8. (घ) हैजा,
9. (ग) यूवकिल बैसिलस,
10. (ख) तपेदिक,
11. (ग) गले में झिल्ली को बन जाना,
12. (ख) शरीर का रेट जाना,
13. (ग) मलेरिया,
14. (ग) हैजा,
15. (क) जीवाण,
16. (ग) कुत्ते के,
17. (ख) सम्प्राप्ति काल,
18. (क) टिटनेस,
19. (घ) इन सभी में,
20. (घ) ये सभी,
21. (ख) मिर्च-मसालेदार भोजन,
22. (ग) मच्छर के काटने से,
23. (घ) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं,
24. (घ) उपर्युक्त सभी उपाय
25. (घ) उपर्युक्त सभी लक्षण,
26. (क) पीलिया के लक्षण प्रकट होना,
27. (ग) हाइड्रोफोबिया।

 

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UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 8 अशुद्ध जल से फैलने वाले रोग (पेचिश, अतिसार, हैजा)

UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 8 अशुद्ध जल से फैलने वाले रोग (पेचिश, अतिसार, हैजा)

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
अशुद्ध जल से रोग किस प्रकार फैलते हैं? इनके नियन्त्रण के उपाय बताइए।
उत्तर:
अशुद्ध जल से रोगों की उत्पत्ति एवं उनका संवाहन

अशुद्ध जल में अनेक प्रकार के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थ पाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त अशुद्ध जल में अनेक प्रकार के जीवाणु, कृमि व उनके अण्डे तथा प्रोटोजोन्स आदि पाए जाते हैं। ये मनुष्यों में अनेक रोगों की उत्पत्ति का कारण होते हैं।
अशुद्ध अथवा दूषित जल प्रायः पेय जल के रूप में रोगों की उत्पत्ति एवं उनके संवाहन का कारण बनता है। अत: दूषित जल पीने से सामान्यत: आहारनाल सम्बन्धी रोग होते हैं, जिससे कि रोग की गम्भीर अवस्था में शरीर के कुछ अन्य अंग या पूर्ण शरीर रोग के अभाव में आ जाता है; जैसे-पेचिश, अतिसार व हैजा आदि में शरीर में पानी में आवश्यक लवणों की कमी हो जाने के कारण रोगी डी-हाइड्रेशन अथवा जल-अल्पता का शिकार होकर  मरने की स्थिति में पहुँच जाता है। जल द्वारा रोगों का संवाहन प्रायः निम्नलिखित अज्ञानताओं एवं असावधानियों के कारण होता है

  1. पेय जल का उपयोग करते समय उसकी शुद्धता पर ध्यान न (UPBoardSolutions.com) देकर हम स्वयं रोगों को आमन्त्रित करते हैं। इसके गम्भीर परिणाम प्रायः वर्षा ऋतु में अधिक होते हैं, क्योंकि वर्षा ऋतु में जल-प्रदूषण अधिक होता है।
  2. रोगी द्वारा प्रयुक्त बर्तनों में बिना उनका उचित नि:संक्रमण किए जल पीने की लापरवाही स्वस्थ व्यक्तियों को भी रोग का शिकार बना देती है।
  3. चिकित्सा के मध्य स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते हुए रोगी को अज्ञानतावश दूषित जल पिला देना उसे दोबारा से रोगी बना देता है।
  4. दूध में अशुद्ध जल की मिलावट होने पर भी यह जल संवाहित रोगों का माध्यम बन जाता है।
  5. कभी-कभी दूषित जल द्वारा भोजन पकाने तथा उस भोजन को ग्रहण करने से भी रोग का संक्रमण हो जाता है।

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जल संवाहित रोगों से बचने के उपाय
जल संवाहित रोगों का मूल कारण दूषित जल होता है। दूषित जल का सेवन करने पर इसमें उपस्थित जीवाणु तथा प्रोटोजोन्स इत्यादि हमारे शरीर में प्रवेश कर रोगों की उत्पत्ति करते हैं। अतः इन रोगों से बचने का एकमात्र उपाय शुद्ध जल का सेवन करना है, परन्तु यह इतना सरल नहीं है। इसके लिए पेय जल को रोगाणु मुक्त करना आवश्यक है। पेय जल को रोगाणुमुक्त करने की सामान्य विधियाँ निम्नलिखित हैं

(1) उबालना:
जल को उबालने से अधिकांश रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। अब इस जल को ठण्डा करके पीने से जल संवाहित रोगों के होने की सम्भावना नहीं रहती है।

(2) आसवन:
यह उबालने की विधि का वैज्ञानिक रूप है। इसमें एक बर्तन में जल को (UPBoardSolutions.com) उबाला जाता है तथा परिणामस्वरूप बनी जल-वाष्प को एक दूसरे बर्तन में ठण्डा करके फिर से जल में परिवर्तित किया जाता है। इसे आसुत जल कहते हैं तथा यह पूर्ण रूप से रोगाणु मुक्त होता है।

(3) जीवाणु अभेद्य निस्यन्दक:
बाजार में विभिन्न क्षमता वाले ,जीवाणु अभेद्य निस्यन्दक लगे उपकरण मिलते हैं। इनमें पेय जल डालने पर जीवाणु व प्रोटोजोन्स निस्यन्दक द्वारा रुक जाते हैं। तथा शुद्ध जल छनकर बर्तन में एकत्रित हो जाता है।

(4) परा-बैंगनी किरणें:
विशिष्ट उपकरणों द्वारा पराबैंगनी अथवा अल्ट्रावॉयलेट किरणें डालने से जल में उपस्थित सभी रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। इस विधि का उपयोग प्राय: जल-संस्थान द्वारा किया जाता है।

(5) पोटैशियम परमैंगनेट:
कुएँ, तालाब, पोखर इत्यादि के जल में (पाँच ग्राम प्रति एक हजार लीटर जल में) पोटैशियम परमैंगनेट (लाल दवा) डालने से कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। हैजा जैसे संक्रामक रोग के प्रसार को रोकने का यह एक प्रभावशाली उपाय है।

(6) आयोडीन:
दो हजार लीटर जल में एक ग्राम पोटैशियम आयोडाइड मिलाने से जल के अधिकांश जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।

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(7) ब्लीचिंग पाउडर:
एक लाख गैलन जल में 250 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर डालने से जल जीवाणुमुक्त हो जाता है। इसका उपयोग प्रायः जल संस्थानों द्वारा बड़े पैमाने पर जल को जीवाणु मुक्त करने के लिए किया जाता है।

(8) क्लोरीन:
क्लोरीन गैस को जल में प्रवाहित करने से जल जीवाणुरहित हो जाता है। जल संस्थानों द्वारा क्लोरीन गैस का उपयोग जीवाणुरहित पेय जल की आपूर्ति के लिए किया जाता है। दस लाख लीटर जल में प्रायः एक लीटर गैस प्रवाहित की जाती है।

प्रश्न 2:
अशुद्ध जल से फैलने वाले रोगों के नाम लिखिए। किसी एक रोग के लक्षण व बचने के उपाय बताइए। [2011, 13, 15, 17, 18]
या
हैजा किस प्रकार फैलता है? इस रोग के लक्षण तथा बचने के उपायों का वर्णन कीजिए। [2007, 10, 13, 14, 17]
या
हैजा नामक रोग के जीवाणु का नाम लिखकर इसका उपचार बताइए।
या
दूषित जल से फैलने वाले प्रमुख रोग कौन-कौन से हैं? ‘हैजे के लक्षण, उपचार तथा बचाव के उपाय लिखिए। [2011,13]
उत्तर:
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 8 अशुद्ध जल से फैलने वाले रोग (पेचिश, अतिसार, हैजा)
जल प्रायः भोजन का एक आवश्यक भाग होता है। अनेक रोग (UPBoardSolutions.com) ऐसे होते हैं कि जिनका संवाहन जल तथा भोजन दोनों से ही होता है।
उदाहरण:  हैजा, टायफाइड आदि।
सामान्यत: निम्नलिखित रोग भोजन के माध्यम से फैलते हैं।
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 8 अशुद्ध जल से फैलने वाले रोग (पेचिश, अतिसार, हैजा)

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हैजा (कॉलरा)

कारण:
यह रोग विब्रियो कोलेरी नामक जीवाणु द्वारा होता है। दूषित जल इस रोग का प्राथमिक अथवा मूल वाहक है। हैजा फैलने के विभिन्न कारणों का संक्षिप्त विवरण अग्रलिखित है

  1. शुद्ध पेय जल की समुचित व्यवस्था न होने पर नदियों, तालाबों अथवा ठहरा हुआ जल पीने को विवश होना। इस प्रकार का जल हैजे के कीटाणुओं से दूषित हो सकता है।
  2. भीड़ के स्थानों (मेलों इत्यादि) में मल-मूत्र विसर्जन की उचित व्यवस्था (UPBoardSolutions.com) न होने पर यह रोग फैलकर महामारी का रूप धारण कर लेता है। रोगी व्यक्ति वाहक का कार्य करते हैं तथा दूर-दूर तक रोग के जीवाणुओं को फैला देते हैं।
  3. मक्खियाँ इस रोग के संवाहक का कार्य करती हैं। चारों ओर फैली गन्दगी पर जब मक्खियाँ बैठती हैं, तो इनके पंखों एवं पैरों में गन्दगी चिपक जाती है जिसे ये खुले हुए भोज्य पदार्थों तक पहुँचा देती हैं। इस प्रकार भोज्य पदार्थ जीवाणुयुक्त गन्दगी से दूषित हो जाते हैं तथा रोग को फैलाने का कार्य करते हैं।

लक्षण:
रोगाणुओं के शरीर में प्रवेश करने के कुछ घण्टे उपरान्त से दो-तीन दिन पश्चात् तक रोग के निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं

  1. चावल के माँड जैसे दस्तों की पुनरावृत्ति।
  2. अत्यधिक मात्रा में तथा बार-बार वमन।
  3. मूत्र विसर्जन में कमी।
  4. शरीर अत्यन्त दुर्बल तथा ज्वर की शिकायत।
  5.  रोगी जल-अल्पता (डी-हाइड्रेशन) से पीड़ित तथा उचित उपचार न मिलने पर कुछ ही घण्टों में मृत्यु की गोद में जा पहुँचता है।

उपचार एवं बचने के उपाय:

  1. मेलों या भीड़ भरे क्षेत्रों में जाने वाले तथा रोगी के आस-पास रहने वाले व्यक्तियों को हैजे से बचाव का टीका अवश्य लगवाना चाहिए।
  2. रोगी को अस्पताल में भर्ती करा देना चाहिए। यदि यह सम्भव न हो, तो उसे पृथक् कमरे में रखना चाहिए।
  3. दूध व जल को उबालकर पीना चाहिए।
  4. भोजन सामग्री को ढककर रखना चाहिए तथा जिन भोज्य पदार्थों पर मक्खियाँ बैठती हों उन्हें कदापि नहीं खाना चाहिए।
  5. घर के आस-पास, गलियों व सड़कों पर स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इनमें गन्दगी के ढेर कभी नहीं रहने देने चाहिए। नगरपालिका व स्वास्थ्य विभाग को समय-समय पर सचेत करते रहना चाहिए।
  6. रोगी के मल-मूत्र व वमन आदि का विधिपूर्वक तुरन्त नि:संक्रमण करना चाहिए।
  7. रोगी द्वारा प्रयुक्त बर्तनों व वस्त्रों को खौलते पानी में डालकर साबुन से धोना चाहिए।
  8. रोगी को योग्य चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ओषधियाँ देना (UPBoardSolutions.com) सदैव विवेकपूर्ण रहता है।
    जल शुद्ध करने की घरेलू विधि-‘उबालना’ जल शुद्ध करने की उत्तम घरेलू विधि है।

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प्रश्न 3:
अतिसार नामक रोग के कारणों, लक्षणों एवं बचने के उपायों का वर्णन कीजिए। [2011, 12, 15, 17]
या
अतिसार रोग के लक्षण लिखिए। अतिसार के रोगी को किस प्रकार को आहार देना चाहिए? [2008, 09, 14]
या
अतिसार और पेचिश में क्या अन्तर है? अतिसार के कारण, लक्षण और उपचार लिखिए। [2008, 17]
या
पेचिश एवं अतिसार में क्या अन्तर है? [2008, 13, 17, 18]
उत्तर:
अतिसार (डायरिया)

कारण-अतिसार जल द्वारा फैलने वाला एक रोग है। इस रोग की उत्पत्ति प्राय: इश्चेरिचिया कोलाई नामक जीवाणु द्वारा होती है। यह रोग प्रायः बच्चों में अधिक पाया जाता है। इस रोग के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

  1. वर्षा-ऋतु में इस रोग के जीवाणु जल में अधिक पाए जाते हैं।
  2. मक्खियों द्वारा इसके जीवाणु दूध में आ जाते हैं जिनके द्वारा यह बच्चों के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
  3. बार-बार वे आवश्यकता से अधिक भोजन करने से, अपच हो जाने (UPBoardSolutions.com) के कारण यह रोग हो सकता है।
  4. समय-असमय भोजन करने से भी यह रोग हो सकता है।

लक्षण:
इस रोग के निम्नलिखित लक्षण हैं

  1. पतले व हरे रंग के दस्त आते हैं।
  2. दस्त अधिक आने पर कभी-कभी दस्त के साथ रक्त भी आता है।
  3. रोगी को हल्का-सा ज्वर भी रहता है।
  4. दस्तों की संख्या एक दिन में 25-30 तक हो सकती है, जिससे रोगी अत्यधिक दुर्बल हो जाता है।

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बचाव के उपाय:
यह एक भयानक रोग है जिसमें उचित चिकित्सा न होने पर लगभग 1-6 वर्ष की आयु तक के बच्चों के मरने का भय बना रहता है; अत: निम्नलिखित उपायों का पालन किया जाना अति आवश्यक है

  1. रोगी को पूर्ण विश्राम करने देना चाहिए।
  2.  योग्य चिकित्सक से तुरन्त परामर्श करना चाहिए।
  3. रोगी को उबालकर ठण्डा किया जल पीने के लिए देना चाहिए।
  4. बोतल से दूध पीने वाले बच्चों की बोतल को समय-समय पर अच्छी तरह से स्वच्छ करना चाहिए।
  5. रोगी बच्चे को व अन्य स्वस्थ बच्चों को सदैव उबालकर ताज़ा दूध देना चाहिए।
  6. भोज्य पदार्थों को मक्खियों से बचाने के लिए ढककर रखना चाहिए।
  7. रोगी बच्चे को खाने में चूने का पानी, मट्ठा तथा अन्य सुपाच्य व हल्के भोज्य पदार्थ (UPBoardSolutions.com) देने चाहिए। फलों में केला खाने के लिए देना इस रोग में लाभप्रद रहता है।।
  8. अतिसार के रोगी को निर्जलीकरण से बचाने के समस्त उपाय करने चाहिए।

अतिसार और पेचिश में अन्तर
प्रायः अतिसार में पेट में पीड़ा होने के लक्षण नहीं पाए जाते। केवल दस्त ही होते हैं। अतिसार पर नियन्त्रण नहीं किया जाता है, तो इसके बाद पेचिश के लक्षण भी दो-एक दिनों में दिखाई देने लगते हैं, अर्थात् दस्तों के साथ पेट में तेज ऐंठन, दस्त के साथ श्लेष्मा (आँव) व रक्त, भी आने लगता है। रोगी को ज्वर भी हो सकता है।

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प्रश्न 4:
मियादी बुखार या टायफाइड नामक रोग के कारणों, लक्षणों, उपचार एवं बचने के उपायों का वर्णन कीजिए। [2007, 08, 09, 10, 14]
या
टायफाइड के कारण एवं लक्षण लिखिए। [2016]
या
मियादी बुखार के कारण तथा रोकथाम के उपाय लिखिए। [2011]
उत्तर:
मियादी बुखार या टायफाइड अथवा मोतीझरा

मियादी बुखार जल एवं भोजन के माध्यम से फैलने वाला एक संक्रामक रोग है। इसे मोतीझरा या टायफाइड भी कहा जाता है। यह बुखार एक अवधि तक अवश्य रहता है। इसीलिए इसे मियांदी बुखार कहा जाता है।

कारण:
यह रोग साल्मोनेला टाइफी नामक जीवाणु द्वारा होता है। यह एक संक्रामक रोग है, जोकि एक निश्चित अवधि (लगभग 4-6 सप्ताह) तक रहता है, परन्तु. अधिक दुर्बल हो जाने के कारण रोगी अन्य रोगों से ग्रस्त हो सकता है। इस रोग के फैलने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

  1. यह रोग दूषित जल व भोज्य पदार्थों से फैलता है।
  2. रोगी के मल-मूत्र के साथ लाखों जीवाणु शरीर से बाहर निकलते हैं, जोकि रोगी के नाखूनों में भर जाते हैं। इस प्रकार का अर्द्ध-स्वस्थ व्यक्ति जीवाणुओं के वाहक का कार्य करता है तथा जल, दूध व अन्य भोज्य पदार्थों को जीवाणुयुक्त बनाता रहता है।
  3. फल, सलाद व तरकारियाँ शुद्ध पानी से अच्छी प्रकार न धोने पर रोग की उत्पत्ति (UPBoardSolutions.com) का कारण बन सकती हैं।
  4. मक्खियाँ भी भोज्य पदार्थों को जीवाणुयुक्त बनाती हैं।
  5.  रोगी द्वारा प्रयुक्त बर्तन व भोज्य पदार्थ नि:संक्रमित न किये जाने पर रोग के प्रसार में सहायक होते हैं।

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सम्प्राप्ति काल: 4 दिन से 40 दिन तक हो सकता है।
लक्षण:
रोग के संक्रमण के एक से तीन सप्ताह के अन्दर रोगी में निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़ते हैं

  1. सिर में असहनीय तीव्र पीड़ा अनुभव होती है।
  2. प्रथम सप्ताह में ज्वर 101°-105° फारेनहाइट तक बढ़ता है।
  3.  द्वितीय सप्ताह में ज्वर समान रहता है, तृतीय सप्ताह में ज्वर घटने लगता है तथा चौथे सप्ताह में सामान्य हो जाता है, परन्तु लगभग छठे सप्ताह तक दुर्बलता रहती है।
  4. जिह्वा मध्य में सफेद तथा सिरों पर लाल रहती है।
  5. दूसरे सप्ताह के लक्षण अधिक भयंकर रहते हैं; जैसे–पेट फूलना, सन्निपात के समान स्थिति, मल-मूत्र विसर्जन सामान्य न रहना इत्यादि।
  6. गर्दन व शरीर पर मोती जैसे दाने निकल आते हैं।
  7. आँतों में सूजन आ जाती है, जिसके कारण आहारनाल सम्बन्धी अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं।

उपचार व बचने के उपाय:
इस रोग से बचने के निम्नलिखित उपाय हैं

  1. रोग निरोधक टीका लगवाने से रोम की सम्भावना बहुत कम रह जाती है, इस रोग से बचाव के लिए टी० ए० बी० का टीका लगवाया जाना चाहिए।
  2. रोगी को पृथक् कमरे में रखना चाहिए।
  3. रोगी द्वारा प्रयुक्त वस्तुओं का विधिपूर्वक नि:संक्रमण होना चाहिए।
  4. जल व दूध को उबाल कर पीना चाहिए।
  5. भोज्य पदार्थों को मक्खियों से सुरक्षित रखना चाहिए।
  6. (रोगी को सुपाच्य एवं हल्का भोजन देना चाहिए।
  7. योग्य चिकित्सक की देख-रेख में ही रोगी का इलाज कराना चाहिए।
  8. पूर्ण स्वस्थ होने तक रोगी को एकान्तवास एवं विश्राम करना चाहिए, क्योंकि अर्द्ध-स्वस्थ (UPBoardSolutions.com) रोगी अन्य व्यक्तियों में रोग फैला सकता है।

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प्रश्न 5:
पेचिश नामक रोग के फैलने के कारणों, लक्षणों तथा उपचार एवं रोग से बचने के उपायों का वर्णन कीजिए। [2007, 10, 11, 12, 13, 14]
उत्तर:
पेचिश (डिसेण्ट्री)

कारण:
यह रोग जीवाणुओं एवं प्रजीवाणुओं (प्रोटोजोन्स) दोनों ही से उत्पन्न होता है। जीवाण बैसिलस द्वारा होने वाली पेचिश को बैसिलरी पेचिश तथा प्रजीवाण ( एण्ट हिस्टोलिटिका) द्वारा होने वाली पेचिश को अमीबायोसिस कहते हैं। पेचिश का उद्भवन काल सामान्य रूप से-1 से 2 दिन तक होता है। इस रोग के फैलने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

  1. दूषित जल में (नदी, तालाब, कुएँ व नलकूप आदि) प्रायः जीवाणु व प्रजीवाणु दोनों पाए जाते हैं। अतः यह जल संवाहित रोग है।
  2. मक्खियाँ इस रोग के वाहक का कार्य करती हैं तथा पेय जल एवं खाद्य पदार्थों तक रोगाणुओं को पहुँचाती रहती हैं।
  3. रोगी के मल-मूत्र व अन्य प्रकार की गन्दगी इस रोग को व्यापक स्तर पर फैलाने में पर्याप्त योगदान देती है।

लक्षण:
संक्रमण के एक या दो दिन पश्चात् ही रोगी में निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़ते हैं

  1. पेट में बार-बार पीड़ादायक ऐंठन होती है।
  2. बार-बार दस्त आते हैं तथा कुछ दिनों बाद दस्त के साथ श्लेष्मा अथवा (UPBoardSolutions.com) आँव तथा रक्त भी आने लगता है।
  3. रोगी को कभी-कभी ज्वर भी रहता है।
  4. प्रजीवाणु प्रायः आँतों की झिल्ली में घावे कर देते हैं।
  5. प्रजीवाणु यकृत एवं झिल्ली को भी कुप्रभावित कर सकते हैं।

उपचार एवं रोग से बचने के उपाय:
पेचिश से बचने एवं उपचार के उपायों का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित हैं

  1. रोगी को अन्य व्यक्तियों से पृथक् रखना चाहिए।
  2. पेय जल की शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए नदी, तालाबों व कुओं के जल में समय-समय पर पोटैशियम परमैंगनेट अथवा ब्लीचिंग पाउडर डालना चाहिए।
  3. रोगी एवं अन्य स्वस्थ व्यक्तियों को जल उबालकर पीना चाहिए।
  4. पेय एवं खाद्य सामग्रियों को मक्खियों से सुरक्षित रखना चाहिए।
  5. गलियों एवं सड़कों की स्वच्छता के प्रति सचेत रहना चाहिए तथा आवश्यकता पड़ने पर नगरपालिका अथवा स्वास्थ्य विभाग को सूचित भी करना चाहिए।
  6. औषधियों का सेवन किसी योग्य चिकित्सक के परामर्श के अनुसार पूर्णतया रोगमुक्त होने तक करना चाहिए।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
अशुद्ध जल से फैलने वाले रोगों के नाम लिखिए। [2011, 16, 17, 18]
उत्तर:
अशुद्ध जल से अनेक प्रकार के सामान्य से लेकर भयंकर रोग तक फैलते हैं। इनमें
आहारनाल सम्बन्धी, गुर्दे सम्बन्धी तथा ज्वर सम्बन्धी अनेक रोग सम्मिलित हैं। पीलिया, टायफाइड, हैजा, अतिसार, पेचिश, गोलकृमि, सूत्रकृमि आदि महामारियों के रूप में भी फैलते हैं।
अनेक अति सामान्य रोग; जैसे—सिरदर्द, नजला, फ्लू, आँखों के रोग, मितली, उल्टी (वमन), दस्त आदि भी दूषित जल से हो सकते हैं।

प्रश्न 2:
मक्खियाँ किस प्रकार रोगों के वाहक का कार्य करती हैं? मक्खियों द्वारा कौन-कौन से रोग फैलते हैं?
उत्तर:
मक्खियों के पैर रोमयुक्त होते हैं। जब ये कूड़े-करकट, वमन, मल-मूत्र, थूक अथवा अन्य प्रकार की गन्दगी पर बैठती हैं तो गन्दगी के साथ रोगाणु भी इनके पैरों पर चिपक जाते हैं। जब ये मक्खियाँ पेय व खाद्य पदार्थों पर बैठती हैं, तो गन्दगी के साथ चिपके रोगाणु इन भोज्य पदार्थों पर चिपक जाते हैं। इस प्रकार मक्खियों द्वारा भोज्य पदार्थ रोगाणुयुक्त हो जाते हैं तथा स्वस्थ व्यक्ति जब भी इस प्रकार के भोज्य पदार्थों का सेवन करते हैं, तो रोगाणु उनके (UPBoardSolutions.com) शरीर में प्रवेश कर उन्हें रोगी बना देते हैं।
मक्खियाँ प्राय: निम्नलिखित रोगों को फैलाती हैं–
(1) हैजा,
(2) टायफाइड,
(3) पेचिश तथा
(4) अतिसार।

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प्रश्न 3:
जल किस प्रकार रोगाणुयुक्त होता है?
या
किन कारणों से जल प्रदूषित होता है? प्रदूषित जल से फैलने वाले रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जल में रोगाणु प्रायः निम्नलिखित विधियों अथवा वाहकों द्वारा प्रवेश करते हैं|
(1) मक्खियों द्वारा:
मक्खियाँ गन्दगी के रोगाणुओं को जल में स्थानान्तरित करती रहती हैं।

(2) अर्द्ध अथवा आंशिक रूप से स्वस्थ रोगियों द्वारा:
इस प्रकार के रोगी जब नदी अथवा तालाब के पास मल-मूत्र विसर्जन करते हैं तथा कुओं आदि के किनारों पर स्नान करते हैं अथवा वस्त्रादि धोते हैं, तो रोगाणु जल में प्रवेश कर जाते हैं, जैसे कि टायफाइड अथवा पेचिश के रोगी।

(3) सार्वजनिक स्वच्छता के प्रति उदासीनता एवं लापरवाही:
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः सार्वजनिक स्वच्छता के प्रति अज्ञानता एवं उदासीनता देखी जा सकती है। गन्दगी को तालाबों वे नदी के किनारों पर डाल दिया जाता है, जहाँ से जीवाणु सरलतापूर्वक जल में पहुँच जाते हैं।

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(4) वायु द्वारा:
वायु गन्दगी, थूक, मल-मूत्र आदि को धूल के साथ उड़ाकर जल तक पहुँचा देती है, (UPBoardSolutions.com) परिणामस्वरूप जल रोगाणुयुक्त हो जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
जल द्वारा फैलने वाले रोग कौन-से हैं? [2008, 11, 12, 13, 17, 18]
उत्तर:
जल द्वारा फैलने वाले मुख्य रोग हैं-हैजा, टायफाइड, पेचिश एवं अतिसार।

प्रश्न 2:
पाचन-तन्त्र सम्बन्धी दो रोगों के नाम बताइए।
उत्तर:
पाचन-तन्त्र सम्बन्धी दो रोग हैं
(1) पेचिश तथा
(2) अतिसार।

प्रश्न 3:
किस रोग में रोगी अत्यधिक वमन करता है?
उत्तर:
हैजे का रोगी अत्यधिक वमन करता है।

प्रश्न 4:
हैजा नामक रोग किस जीवाणु द्वारा फैलता है?
या
हैजा रोग के कारण लिखिए।
उत्तर:
हैजा नामक रोग विब्रियो कोलेरी नामक जीवाणु द्वारा फैलता है। (UPBoardSolutions.com) अशुद्ध जल के कारण वचारों ओर फैली गन्दगी, उन पर बैठने वाली मक्खियों के द्वारा भोजन पर आकर बैठने से।

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प्रश्न 5:
टायफाइड फैलाने वाले रोगाणु का नाम लिखिए। [2010, 14, 18]
उत्तर:
साल्मोनेला टाइफ

प्रश्न 6:
उबालने से जल किस प्रकार रोगमुक्त हो जाता है?
उत्तर:
उबालने से जल के अन्दर उपस्थित सभी जीवाणु इत्यादि मर जाते हैं, क्योंकि जिस तापक्रम पर जल उबलता है अर्थात् 100° सेण्टीग्रेड पर जीवित रहना सामान्यतः सम्भव नहीं रहता।

प्रश्न 7:
कुम्भ के मेले में ज़ल संवाहित कौन-से रोग के लिए टीका लगाया जाता है?
उत्तर:
हैजे से बचाव के लिए टीका लगाया जाता है।

प्रश्न 8:
पाचन-तन्त्र के रोग प्रायः किन माध्यमों द्वारा फैलते हैं?
उत्तर:
दूषित जल एवं भोजन द्वारा।

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प्रश्न 9:
जल में लाल दवा डालने से क्या लाभ हैं?
या
लाल दवा का वैज्ञानिक नाम क्या है? इसकी क्या उपयोगिता है? [2008]
उत्तर:
लाल दवा का वैज्ञानिक नाम पोटैशियम परमैंगनेट है। जल में लाल (UPBoardSolutions.com) दवा अथवा पोटैशियम परमैंगनेट डालने से जल के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 10:
बच्चों में होने वाला भीषण संक्रामक रोग कौन-सा है?
उत्तर:
1-6 वर्ष की आयु के बच्चों में होने वाला प्राणघातक जल संवाहित रोग है–अतिसार।

प्रश्न 11:
अतिसार प्रायः किस ऋतु में अधिक फैलता है? [2013]
उत्तर:
वर्षा-ऋतु में।

प्रश्न 12:
डायरिया के कारण बताइए।
उत्तर:
दूषित जल व भोजन इस रोग के मूल कारण हैं। मक्खियाँ इस रोग के वाहक का कार्य करती हैं।

प्रश्न 13:
दूषित जल से फैलने वाली दो बीमारियों के नाम लिखिए। या, अशुद्ध जल से क्या हानियाँ होती हैं? [2009, 11]
उत्तर:
अशुद्ध जल से अनेक प्रकार के साधारण तथा भयंकर रोग हो सकते हैं; जैसे-हैजा एवं टायफाइड।

प्रश्न 14:
हैजा रोग से बचने के दो उपाय लिखिए।
उत्तर:
हैजा रोग से बचने के लिए खाने-पीने की वस्तुओं को मक्खियों से बचाना चाहिए तथा टीकाकरण भी करवाना चाहिए।

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प्रश्न 15:
पेचिश रोग के प्रकार लिखिए। [2007]
उत्तर:
यह रोग दो प्रकार से उत्पन्न होता है। यह रोग जीवाणुओं एवं (UPBoardSolutions.com) प्रजीवाणुओं, दोनों ही प्रकार से होता है। जीवाणु बैसिलस द्वारा होने वाली पेचिश को बैसिलरी पेचिश तथा प्रजीवाणु एण्ट अमीबा हिस्टोलिका द्वारा होने वाली पेचिश को अमीबियोसिस कहते हैं।

प्रश्न 16:
हैजा किन क्षेत्रों में अधिक फैलता है? [2014]
उत्तर:
हैजा भीड़ वाले तथा सफाई की व्यवस्था न होने वाले क्षेत्रों; जैसे–मेलों, तीर्थस्थानों तथा युद्ध-क्षेत्र में अधिक फैलता है। मक्खियों की अधिकता वाले क्षेत्रों में हैजा फैलने की अधिक आशंका रहती है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न:
निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए

1. मक्खियों द्वारा कौन-सा रोग फैलता है? [2008, 15] 
(क) मलेरिया
(ख) अतिसार (डायरिया)
(ग) हैजा
(घ) तपेदिक

2. आन्त्रशोध (मियादी बुखार) फैलाने वाला जीवाणु है
(क) ट्यूबर कुलोसिस बैसिलस
(ख) साल्मोनेला टाइफी
(ग) बैसिलस पर्टयूसिस
(घ) इनमें से कोई नहीं

3. टाइफाइड में कैसा आहार दिया जाना चाहिए?
(क) पौष्टिक तथा गरिष्ठ
(ख) हल्का तथा सुपाच्य
(ग) मिर्च मसालेदार
(घ) कुछ भी आहार नहीं देना चाहिए।

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4. अशुद्ध जल से रोग हो जाता है। [2007, 11, 14, 15, 17, 18]
या
जल द्वारा कौन-सा रोग हो जाता है ? [2009, 16]
(क) क्षय रोग
(ख) चेचक
(ग) हैजा
(घ) मलेरिया

5. हैजा के जीवाणु का नाम है [2008, 17]
(क) टिटैनी
(ख) टाइफी
(ग) विब्रियो कोलेरी
(घ) बैसिलरी

6. पेचिश में निम्नलिखित लक्षण होते हैं
(क) पेट में पीड़ा तथा ऐंठन
(ख) बार-बार शौच होना
(ग) आँव का होना
(घ) ये सभी

7. मक्खियों को नष्ट करने के लिए छिड़काव किया जाता है
(क) डी० डी० टी० का
(ख) ब्लीचिंग पाउडर का
(ग) आयोडीन घोल का
(घ) लाल दवा का

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8. अतिसार के रोगी को किस प्रकार का आहार देना चाहिए ? [2009]
(क) उच्च प्रोटीन युक्त
(ख) उच्च रेशेयुक्त
(ग) नरम व तरल आहार
(घ) इनमें से कोई नहीं

9. निम्नलिखित में से कौन-सा रोग अशुद्ध जल से नहीं फैलता है?
(क) हैजा
(ख) अतिसार
(ग) क्षय रोग (टी० बी०)
(घ) मोतीझरा (टायफाइड)

10. हैजा किसके द्वारा फैलता है ? [2010, 16, 17]
(क) दूषित हवा
(ख) विटामिन
(ग) शुद्ध जल
(घ) दूषित जल

उत्तर:
1. (ग) हैजा,
2. (ख) साल्मोनेला टाइफी,
3. (ख) हल्का तथा सुपाच्य,
4. (ग) हैजा,
5. (ग) विब्रियो कोलेरी,
6. (घ) ये सभी,
7. (क) डी० डी० टी० का,
8. (ग) नरम व तरल आहार,
9. (ग) क्षय रोग (टी०बी०),
10. (घ) दूषित जल।

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