UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 10 (Section 2)

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Chapter 10 देश की सीमाएँ एवं सुरक्षा-व्यवस्था (अनुभाग – दो)

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विस्तृत उत्तरीय प्रज

प्रश्न 1.
भारतीय सेना का विस्तारपूर्वक वर्गीकरण कीजिए। भारतीय सेना के तीनों अंगों का वर्णन कीजिए। [2006]
            या
भारतीय सेना की तीनों शाखाओं का उल्लेख कीजिए। इनके मुख्यालय कहाँ स्थित हैं? [2009]
            या
भारतीय थल सेना का संक्षिप्त विवरण दीजिए। [2010]
            या
भारतीय थल सेना का संक्षिप्त विवरण दीजिए। [2010]
या
भारतीय सैन्य संगठन का संक्षिप्त विवरण दीजिए। [2011]
उत्तर :

भारतीय सेना के तीनों अंगों का परिचय

विशाल और, शक्तिशाली भारतीय सेना के तीन प्रमुख अंग हैं-

  • थल सेना,
  • जल सेना (नौ-सेना) और
  • वायु सेना। भारतीय सेनाओं का प्रधान सेनापति राष्ट्रपति होता है। इन तीनों अंगों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है|

1. थल सेना- भारत की थल सेना लगभग 15 लाख है। इसका मुख्य कार्यालय नयी दिल्ली में है।
इसके सर्वोच्च अधिकारी को स्थल सेनाध्यक्ष (जनरल) कहते हैं। भारतीय सेना 6 कमाण्डों में बँटी है-पश्चिम, पूर्वी, उत्तरी, दक्षिणी, दक्षिणी-पश्चिमी तथा केन्द्रीय। प्रत्येक कमाण्ड का सर्वोच्च अधिकारी जनरल कमाण्डिग-इन-चीफ (UPBoardSolutions.com) कहलाता है। प्रत्येक कमाण्ड एरिया, इण्डिपेण्डेण्ट सब-एरिया और सेब-एरिया में विभाजित है, जिसका प्रधान क्रमश: एक मेजर, जनरल और ब्रिगेडियर होता है। थल सेना में कई प्रकार की सेनाएँ सम्मिलित हैं। इनमें इन्फेण्ट्री, बख्तरबन्द कोर, तोपखाना रेजीमेण्ट, इंजीनियरिंग कोर, सिग्नल कोर, आर्मी सेना कोर, आर्मी ऑर्डिनेन्स कोर, आर्मी डेण्टल कोर, इलेक्ट्रिकल तथा मेकैनिकल कोर, सेना शिक्षा कोर आदि सम्मिलित हैं। भारतीय थल सेना नवीनतम युद्ध कला तथा आधुनिकतम अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित है और हर समय शत्रु का सामना करने में
सक्षम है।

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2. नौ-सेना- 
भारत की नौ-सेना का सर्वोच्च अधिकारी नौ-सेनाध्यक्ष कहलाता है। इसका मुख्यालय , नयी दिल्ली में है। हमारी नौ-सेना तीन कमानों में विभाजित है। नौ-सेना के पास दो विशाल बेड़े हैं। इसकी तीन प्रमुख कमानें हैं—

  1. पश्चिमी नौ-सेना कमान,
  2. पूर्वी नौ-सेना कमान तथा
  3. दक्षिणी नौ-सेना कमान। पश्चिमी कमान का कार्यालय मुम्बई में, पूर्वी कमान का विशाखापत्तनम् में तथा दक्षिणी कमान को कार्यालय कोचीन में है। प्रत्येक कमान का अधिकारी फ्लैग ऑफिसर कमाण्डिग-इन-चीफ होता है। नौ-सेना के दोनों बेड़ों में वायुयान वाहक विक्रान्त, क्रूजर, राजपूत और लड़ाकू अवरोधक भी हैं। इसके पास आधुनिकतम पनडुब्बियाँ, विमान भेदी रणपोत तथा गश्ती नौकाएँ हैं। इनके अलावा सर्वे वाले पोत, सर्वे वाली नावें, फ्लीट टैंकर तथा मूविंग पोतों जैसे सहायक पोत हैं। बंगाल की खाड़ी के द्वीपों की रक्षा के लिए पोर्ट ब्लेयर में नौ-सेना का संगठन कार्यरत है। तीन मिसाइल वाली पोतों के आ जाने से भारत की नौ-सेना की कार्यकुशलता अत्यधिक बढ़ गयी है।

3. वायु सेना- वायु सेना का सर्वोच्च अधिकारी वायु सेनाध्यक्ष कहलाता है। इसका मुख्यालय नयी दिल्ली में है। वायु सेना के पाँच लड़ाकू और दो समर्थन देने वाले कमाण्ड हैं–पश्चिमी कमाण्ड, पूवी कमाण्ड, दक्षिणी कमाण्ड, मध्य कनाड, दक्षिणी-पश्चिमी कमाण्ड, प्रशिक्षण कमाण्ड और रख-रखाव कमाण्ड अश्रु सेना के बेड़े में 45 स्क्वाड्रन हैं। प्रत्येक स्क्वाड्रन का अधिकारी स्क्वाड्रन लीडर कहलाता है। प्रत्येक स्क्वाड्रन में नाना प्रकार के लड़ाकू विमान, बमवर्षक तथा यातायात के विमान होते हैं। भारतीय वायु सेना कैनबरा, हंटर, नेट, अजीत, चेतकं, मिग-21, मिग-23, मिग-25, मिग-29, एन-7, एन-32, 11-76, एम० (UPBoardSolutions.com) आई०-8 और मिराज-2000 आदि विमानों से सुसज्जित है। इसके पास जगुआर लड़ाकू तथा बमवर्षक व लड़ाकू अवरोधक जैसे विमान भी हैं। भारतीय वायु सेना युद्ध के समय थल सेना के साथ युद्ध भूमि में कार्यरत रहती है।

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भारत सरकार का ध्यान देश की सुरक्षा की ओर विशेष रूप से रहता है। अतः इसके द्वारा मुख्य सेना के तीनों अंगों के अतिरिक्त अन्य अनेक सैनिक व अर्द्ध-सैनिक बलों की भी स्थापना की गयी है; उदाहरणार्थ-सीमा सुरक्षा बल (B.S.F), केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (C.I.S.E), केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (C.R.PE), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (I.T.B.P), सशस्त्र सीमा बल (S.S.B.) आदि। ये सैनिक संगठन भारतीय सुरक्षा के कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 2.
भारत की सुरक्षा तैयारी पर एक निबन्ध लिखिए।
या
“भारतीय सशस्त्र सेना शत्रुओं को पराजित करने में सक्षम है।” इस कथन की पुष्टि में दो तर्क दीजिए।
उत्तर :

भारत की सुरक्षा तैयारी

भारत एक विशाल देश है। इसकी विस्तृत सीमाएँ 22,000 किमी से भी अधिक लम्बी हैं। दुर्भाग्य से सभी सीमाओं के पार शत्रु राष्ट्र भी हैं। विश्व के अन्य बहुत-से राष्ट्र भी भारत से द्वेष रखते हैं; अत: भारत अपनी सुरक्षा की तैयारी में विशेष रूप से संलग्न रहता है। भारत की सुरक्षा की तैयारी के सन्दर्भ में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं

1. राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा की भावना का विकास- भारत की जनता राष्ट्रप्रेम की भावना से ओत-प्रोत है। सरकार और सामाजिक कल्याण से सम्बन्धित संस्थाओं के द्वारा भी जनता में राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा की भावना जगाने के प्रयास किये जाते हैं। (UPBoardSolutions.com) फलस्वरूप भारतीयों में सुरक्षा की भावना का उत्तरोत्तर विकास हुआ है। बाह्य आक्रमण होने पर अब सम्पूर्ण भारतवासी एकजुट होकर शत्रु के दमन में लग जाते हैं।

2. आर्थिक और औद्योगिक विकास– 
सुरक्षा के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है तथा औद्योगिक विकास के आधार पर ही सुरक्षा के संसाधनों को जुटाया जा सकता है। इसलिए सुरक्षा के कार्यों की पूर्ति हेतु हमारी सरकार ने देश के आर्थिक और औद्योगिक विकास पर विशेष ध्यान दिया है। तथा रक्षा-बजट में वृद्धि कर सुरक्षा को सुदृढ़ किया है।

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3. खाद्यान्नों की उपज में वृद्धि और भण्डारण की व्यवस्था- 
युद्धकाल में आवश्यक वस्तुओं, विशेषतः खाद्यान्नों की बहुत अधिक आवश्यकता होती है; अतः खाद्यान्नों और अन्य वस्तुओं के उत्पादन तथा भण्डारण की समुचित व्यवस्था की ओर भारत सरकार ने विशेष ध्यान दिया है। इससे सुरक्षा की तैयारियों में विशेष सहायता मिली है।

4. रक्षा-उत्पादों में आत्मनिर्भरता- 
रक्षा-उत्पादों में भारत सरकार ने आत्मनिर्भर होने के लिए विशेष प्रयास किये हैं। देशभर में लगभग 33 ऑर्डिनेन्स फैक्ट्रियाँ हैं, जो विविध रक्षा-उत्पादों का निर्माण कर रही हैं। इनमें लगभग दो लाख व्यक्ति कार्यरत हैं। अब उन हजारों वस्तुओं का उत्पादन भारत में ही
होने लगा है, जो पहले विदेशों से मँगाई जाती थीं।

5. अनुसन्धान और विकास- 
रक्षा-उत्पादनों में तेजी लाने और उनकी गुणवत्ता में सुधार करने के लिए रक्षा मन्त्रालय के अधीन 7 मई, 1980 ई० को ‘रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन’ के नाम से एक नया विभाग बनाया गया। यह विभाग रक्षा-उत्पादों के लिए नये अनुसन्धान कर सुरक्षा की तैयारी की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

6. सैन्य प्रशिक्षण– 
भारत में सैन्य प्रशिक्षण की ओर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। सरकार ने योग्य सैनिकों की भर्ती करने तथा उनको उत्कृष्ट प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए विभिन्न नगरों में सैनिको के समुचित प्रशिक्षण के लिए अनेक सैनिक प्रशिक्षण (UPBoardSolutions.com) केन्द्र और प्रशिक्षणशालाएँ स्थापित की हैं। ये सैनिक प्रशिक्षण केन्द्र योग्य, सक्षम एवं कुशल सैनिक अधिकारियों को तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

7. नागरिक सुरक्षा प्रशिक्षण- 
युद्धकाल में आक्रमण के समय नागरिक किस प्रकार अपनी सुरक्षा करें, इसके लिए सरकार विभिन्न प्रचार केन्द्रों के माध्यम से नागरिकों को प्रशिक्षण देती है। आन्तरिक सुरक्षा की तैयारी की दृष्टि से यह भी एक प्रशंसनीय कार्य है।

8. सेना का विकास और आधुनिकीकरण –
सुरक्षा की तैयारी हेतु दिन-प्रतिदिन सभी प्रकार की सेनाओं का अनवरत रूप से विकास और सभी दृष्टियों से आधुनिकीकरण भी किया जा रहा है। अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों और अन्य युद्ध-सामग्री से सेना को सुसज्जित किया जा रहा है। हवाई और समुद्री सेना को भी पहले की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली, सुदृढ़ एवं सक्षम बनाया गया है।

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9. परमाणु शक्तिसम्पन्न– 
भारत पहला परमाणु परीक्षण पोखरन में सन् 1974 ई० में और दूसरा सन् 1998 ई० में कर चुका है। भारतीय सेना के पास पृथ्वी, अग्नि, आकाश, त्रिशूल, नाग, ब्रह्मोस आदि मिसाइलें, अर्जुन टैंक, उन्नत किस्म के राडार, परमाणु पनडुब्बियाँ तथा जंगी जहाज हैं। भारत कई उपग्रह–आर्यभट्ट, भास्कर I व II, रोहिणी आदि–अन्तरिक्ष में भेज चुका है।

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत सुरक्षा के मामले में पूर्णरूपेण आत्मनिर्भर है। हमारे पास अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित एवं पूर्ण रूप से प्रशिक्षित सेना है तथा भारत एक परमाणु शक्तिसम्पन्न राष्ट्र भी है; अतः अब वह किसी भी प्रकार की चुनौती (UPBoardSolutions.com) का सामना करने की पूर्ण .. क्षमता रखता है तथा शत्रुओं को मुंहतोड़ जवाब देने में पूर्णतया समर्थ है।

लघु उत्तरीय प्रा।

प्रश्न 1.
भारतीय सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
या
भारत के किन चार राज्यों की सीमाएँ पाकिस्तान की सीमा को स्पर्श करती हैं? [2015]
या
भारत के उत्तर-पूर्वी तथा उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित देशों के नाम लिखिए। [2018]
उत्तर :
भारत की सीमाएँ दो प्रकार की हैं

  1. स्थल सीमाएँ तथा
  2. समुद्री सीमाएँ।

1. स्थल सीमाएँ- हमारी स्थल सीमाएँ 15,200 किमी लम्बी हैं। उत्तरी सीमा पर चीन, नेपाल तथा भूटान देश स्थित हैं। इन देशों के साथ जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पं० बंगाल, सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश राज्यों की सीमाएँ लगती हैं।

  • उत्तर-पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान देश स्थित हैं। पाकिस्तान के साथ गुजरात, राजस्थान, पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर राज्यों की सीमाएँ लगती हैं।

  • उत्तर-पूर्वी सीमा पर चीन, नेपाल, म्यांमार तथा बांग्लादेश स्थित हैं। म्यांमार के साथ अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, मणिपुर तथा त्रिपुरा राज्यों की सीमाएँ लगती हैं। बांग्लादेश के साथ प० बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा तथा मिजोरम राज्यों की सीमाएँ लगती हैं।

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2. समुद्री सीमाएँ- भारत की समुद्री सीमो 7516.5 किमी है। भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिम में अरब सागर में स्थित लक्षद्वीप, पूर्व में बंगाल की खाड़ी में स्थित अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह तथा दक्षिण । में हिन्द महासागर स्थित है। भारत के (UPBoardSolutions.com) दक्षिण-पूर्व में श्रीलंका स्थित है। पाक स्ट्रेट तथा मन्नार की खाड़ी भारत एवं श्रीलंका को पृथक् करते हैं। । भारत के मुख्य स्थल की तटरेखा 6,100 किमी लम्बी है।

प्रश्न 2.
थल सेना की प्रमुख शाखाएँ लिखिए।
उत्तर :
थल सेना में कई प्रकार की सेनाएँ सम्मिलित हैं। इनमें

  • इन्फेण्ट्री,
  • बख्तरबन्द कोर,
  • तोपखाना रेजीमेण्ट,
  • इंजीनियरिंग कोर,
  • आर्मी सेना कोर,
  • आर्मी मेडिकल कोर,
  • आर्मी डेण्टल कोर,
  • इलेक्ट्रिकल और मेकैनिकल कोर,
  • शिक्षा कोर,
  • सिग्नल कोर,
  • सप्लाई कोर,
  • आर्मी ऑर्डिनेन्स कोर,
  • पशु चिकित्सा कोर आदि सम्मिलित हैं।

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प्रश्न 3.
वायु सेना के मुख्य अधिकारियों के पद (नाम) लिखिए।
उत्तर :
वायु सेना का सर्वोच्च अधिकारी वायु सेनाध्यक्ष कहलाता है। (UPBoardSolutions.com) इसके अधीन सह-सेनाध्यक्ष, उप-सेनाध्यक्ष, एयर ऑफिस-इन-चार्ज (प्रशासन) और ऑफिस इन-चार्ज (रख-रखाव) आदि होते हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की स्थल सीमा कितनी लम्बी है ?
उत्तर :
भारत की स्थल सीमा की लम्बाई 15,200 किमी है।।

प्रश्न 2.
रक्षा विकास एवं अनुसन्धान विभाग की स्थापना कब की गयी ?
उत्तर:
रक्षा विकास एवं अनुसन्धान विभाग की स्थापना 7 मई, 1980 ई० को हुई थी।

प्रश्न 3.
उन दो देशों के नाम लिखिए जिनकी सीमाएँ भारत की उत्तरी सीमा को स्पर्श करती हैं? [2012]
उत्तर :
नेपाल और भूटान की सीमाएँ भारत की उत्तरी सीमा को स्पर्श करती हैं।

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प्रश्न 4.
भारतीय सेना के विभिन्न अंग क्या हैं ? भारत की सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति कौन होता है ? [2012]
उत्तर :
भारतीय सेना के अंग हैं—जल सेना, थल सेना तथा नौ-सेना। भारतीय सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति भारत का राष्ट्रपति होता है।

प्रश्न 5.
भारत की थल सेना का सर्वोच्च अधिकारी कौन होता है ?
उत्तर :
थल सेनाध्यक्ष (जनरल) भारतीय थल सेना का सर्वोच्च अधिकारी होता है।

प्रश्न 6.
भारत के सीमावर्ती किन्हीं दो राष्ट्रों के नाम लिखिए। या भारत के सीमावर्ती देशों के नाम लिखिए।
उत्तर :
भारत के सीमावर्ती देशों के नाम हैं

  • पाकिस्तान,
  • अफगानिस्तान,
  • चीन,
  • नेपाल,
  • भूटान,
  • म्यांमार तथा
  • बांग्लादेश।

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प्रश्न 7.
वायु सेना के सर्वोच्च अधिकारी का पद नाम (रैंक) क्या है ? [2006]
उत्तर :
वायु सेना के सर्वोच्च अधिकारी का (UPBoardSolutions.com) पद नाम (रैंक) एअर मार्शल (वायु सेना अध्यक्ष) है।

प्रश्न 8.
सीमा सुरक्षा बल की स्थापना कब और कहाँ की गयी थी ?
उत्तर :
सीमा सुरक्षा बल की स्थापना दिल्ली में दिसम्बर, 1965 ई० में की गयी थी।

प्रश्न 9.
भारतीय वायु सेना का मुख्यालय कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
भारतीय वायु सेना का मुख्यालय नयी दिल्ली में स्थित है।

प्रश्न 10.
इंण्डियन मिलिट्री अकादमी कहाँ स्थित है ?
उत्तर :
इण्डियन मिलिट्री अकादमी देहरादून में स्थित है।

प्रश्न 11.
भारतीय नौसेना का मुख्यालय कहाँ स्थित है ? उसमें कितनी कमान होती हैं ? [2013]
उत्तर :
भारतीय नौसेना का मुख्यालय नयी दिल्ली (UPBoardSolutions.com) में स्थित है। इसमें तीन कमान होती हैं।

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प्रश्न 12.
सुदूर दक्षिणी सीमा पर कौन-सा देश स्थित है? [2018]
उत्तर :
श्रीलंका।

प्रश्न 13.
उन दो द्वीप-समूहों के नाम लिखिए जो भारत संघ के अभिन्न अंग हैं? [2018]
उत्तर :

  • लक्षद्वीप एवं
  • अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह।

प्रश्न 14.
भारत के दो संस्थानों के नाम लिखिए जहाँ सैन्य अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। [2018]
उत्तर :

  • नेशनल डिफेन्स अकादमी-खड़गवासला।
  • इण्डिया मिलिट्री अकादमी-देहरादून।

बहुविकल्पीय प्रश्न

1. भारतीय वायु सेना का मुख्यालय कहाँ है ? [2012, 13, 14, 15]

(क) बंगलुरु में
(ख) आगरा में
(ग) नयी दिल्ली में
(घ) कानपुर में

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2. भारत ने प्रथम अणु परीक्षण 1974 ई० में किस स्थान पर किया था ?

(क) पोखरन में
(ख) खड़गवासला में
(ग) नरौरा में
(घ) ट्रॉम्बे में

3. भारतीय सेना के तीनों अंगों का अध्यक्ष कौन होता है ?

(क) राष्ट्रपति
(ख) प्रधानमन्त्री
(ग) रक्षामन्त्री
(घ) स्थल सेनाध्यक्ष

4. भारत में परमाणु विस्फोट के लिए कौन-सा स्थान प्रसिद्ध है?

(क) बॉम्बे हाई
(ख) पोखरन
(ग) हरिकोटा
(घ) बंगलुरु

5. भारतीय थल सेना का मुख्यालय कहाँ है ? [2014]

(क) नयी दिल्ली में
(ख) नागपुर में
(ग) बंगलुरु में
(घ) चेन्नई में

6. नौ-सेना का प्रधान कौन होता है ?

(क) एडमिरल
(ख) जनरल
(ग) ब्रिगेडियर
(घ) मेजर जनरल

7. नेशनल डिफेन्स अकादमी कहाँ है ?

(क) देहरादून में
(ख) चेन्नई में
(ग) मऊ में।
(घ) खड़गवासला में

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8. भारत में रक्षा-मन्त्रालय का प्रधान होता है

(क) राष्ट्रपति
(ख) प्रधानमन्त्री
(ग) रक्षामन्त्री
(घ) थल सेनाध्यक्ष

9. भारत में प्रादेशिक सेना कब प्रारम्भ की गयी ?

(क) 1948 ई० में
(ख) 1949 ई० में
(ग) 1950 ई० में।
(घ) 1951 ई० में

10. प्रथम परमाणु-परीक्षण स्थल पोखरन कहाँ स्थित है ?

(क) हरियाणा में
(ख) पंजाब में
(ग) जम्मू-कश्मीर में
(घ) राजस्थान में

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11. भारतीय नौसेना का मुख्यालय कहाँ स्थित है? [2014, 16]

(क) कोचीन में
(ख) विशाखापत्तनम में
(ग) चेन्नई में
(घ) नई दिल्ली में

उत्तरमाला

1. (ग), 2. (क), 3. (क), 4. (ख), 5. (क), 6. (क), 7. (क), 8. (ग), 9. (ग), 10. (घ), 11. (घ)

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UP Board Solutions for Class 10 Maths Chapter 12 Areas Related to Circles

UP Board Solutions for Class 10 Maths Chapter 12 Areas Related to Circles (वृतों से सम्बंधित क्षेत्रफल)

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प्रश्नावली 12.1 (NCERT Page 247)

प्र. 1. दो वृत्तों की त्रिज्या क्रमशः 19 cm और 9 cm हैं| उस वृत्त की त्रिज्या ज्ञात कीजिए जिसकी परिधि इन दोनों वृत्तों की परिधियों के योग के बराबर है|
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प्र. 2. दो वृत्तों की त्रिज्याएँ क्रमशः 8 cm और 6 cm हैं| उस (UPBoardSolutions.com) वृत्त की त्रिज्या ज्ञात कीजिए जिसका क्षेत्रफल इन दोनों वृत्तों के क्षेत्रफलों के योग के बराबर है|
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प्र. 3. आकृति 12.3 एक तीरंदाजी लक्ष्य को दर्शाती है, जिसमें केंद्र से बाहर की ओर पाँच क्षेत्र GOLD, RED, BLUE, BLACK और WHITE चिन्हित हैं, जिनसे अंक अर्जित किए जा सकते हैं | GOLD अंक वाले क्षेत्र का व्यास 21 cm है (UPBoardSolutions.com) तथा प्रत्येक अन्य पट्टी 10.5 cm चौड़ी है | अंक प्राप्त कराने वाले इन पाँचों क्षेत्रों में से प्रत्येक का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए|
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प्र. 4. किसी कार के प्रत्येक पहिये का व्यास 80 cm है| यदि यह (UPBoardSolutions.com) कार 66 km प्रति घंटे की चाल से चाल रही है, तो 10 मिनट में प्रत्येक पहिया कितने चक्कर लगाती है ?
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प्र. 5. निम्नलिखित में सही उत्तर चुनिए तथा अपने उत्तर का औचित्य दीजिए :
यदि एक वृत्त का परिमाप और क्षेत्रफल संख्यात्मक (UPBoardSolutions.com) रूप से बराबर है, तो उस वृत्त की त्रिज्या है:
(A) 2 मात्रक
(B) π मात्रक
(C) 4 मात्रक
(D) 7 मात्रक
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प्रश्नावली 12.2 (NCERT Page 252)

प्र. 1. 6 cm त्रिज्या वाले एक वृत्त के एक त्रिज्यखंड का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए, जिसका कोण 60° है|
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प्र. 2. एक वृत्त, के चतुर्थांश का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए, (UPBoardSolutions.com) जिसकी परिधि 22 cm है|
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प्र. 3. एक घड़ी की मिनट की सुई जिसकी लंबाई 14 cm है| इस सुई द्वारा 5 मिनट में रचित क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए|
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प्र. 4. 10 सेमी त्रिज्या वाले एक वृत्त की कोई जीवा केंद्र (UPBoardSolutions.com) पर समकोण अंतरित करती है| निम्नलिखित के क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए:
(i) संगत लघु वृत्तखंड
(ii) संगत दीर्घ त्रिज्यखंड ( π = 3.14 का प्रयोग कीजिए)
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प्र. 5. त्रिज्या 21 cm वाले वृत्त का एक चाप केंद्र पर 60° का कोण अंतरित करता है| ज्ञात कीजिए :
(i) चाप की लंबाई
(ii) चाप द्वारा बनाए गए त्रिज्यखंड का क्षेत्रफल
(iii) संगत जीवा द्वारा बनाए गए वृत्तखंड (UPBoardSolutions.com) का क्षेत्रफल
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प्र. 6. 15 cm त्रिज्या वाले एक वृत्त की कोई जीवा केंद्र पर 60° (UPBoardSolutions.com) का कोण अंतरित करती है| और दीर्घ वृत्तखंड़ों के क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
(π = 3.14 ओर √3 = 1.73 का प्रयोग कीजिए)
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प्र. 7. त्रिज्या 12 cm वाले एक वृत्त की कोई जीवा (UPBoardSolutions.com) केंद्र पर 120o का कोण अंतरित करती है| संगत वृत्तखंड़ का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए|
(π = 3.14 ओर √3 = 1.73 का प्रयोग कीजिए)
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प्र. 8. 15 cm भुजा वाले एक वर्गाकार घास के मैदान के (UPBoardSolutions.com) एक कोने पर लगे खूँटे से एक घोड़े को 5m लंबी रस्सी से बाँध दिया गया है (देखिए आकृति)| ज्ञात कीजिए :
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(i) मैदान के उस भाग का क्षेत्रफल जहाँ घोडा चार सकता है|
(ii) चरे जा सकने वाले क्षेत्रफल में वृद्धि, यदि घोड़े को 5 m लंबी (UPBoardSolutions.com) रस्सी के स्थान पर 10 m लंबी रस्सी से बाँध दिया जाए| (π = 3.14 का प्रयोग कीजिए)
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प्र. 9. एक वृताकार ब्रुच (brooch) को चाँदी के तार से बनाया जाना है जिसका व्यास 35 mm है| तार को वृत्त के 5 व्यासों को बनाने में भी प्रयुक्त किया गया है जो उसे 10 बराबर त्रिज्यखंडों में विभाजित करता है जैसाकि आकृति 12.12 में दर्शाया गया है| तो ज्ञात कीजिए :
(i) कुल वांछित चाँदी के तार की लंबाई (UPBoardSolutions.com)
(ii) ब्रूच के प्रत्येक त्रिज्यखंड का क्षेत्रफल
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प्र. 10. एक छतरी में आठ ताने हैं, जो बराबर दूरी पर (UPBoardSolutions.com) लगे हुए हैं (देखिए आकृति)| छतरी को 45 cm त्रिज्या वाला एक सपाट वृत्त मानते हुए, इसकी दो क्रमागत तानों के बीच का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए|
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प्र. 11. किसी कार के दो वाइपर (wipers) हैं, परस्पर कभी आच्छादित नहीं होते हैं | प्रत्येक वाइपर की पट्टी की लंबाई 25 cm है और 115° के कोण तक घूम कर सफाई कर सकता है| पट्टियों की प्रत्येक बुहार के साथ जितना (UPBoardSolutions.com) क्षेत्रफल साफ़ हो जाता है, वह ज्ञात कीजिए।
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प्र. 12. जहाजों को समुद्र में जलस्तर के नीचे स्थित चट्टानों की चेतावनी देने के लिए, एक लाइट हाउस (light house ) 80° कोण वाले एक त्रिज्यखंड में 16.5 km की दूरी तक लाल रंग का प्रकाश फैलाता है| समुद्र के उस भाग का क्षेत्रफल (UPBoardSolutions.com) ज्ञात कीजिए जिसमें जहाजों को चेतावनी दी जा सके। (π = 3.14 का प्रयोग कीजिए)
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प्र. 13. एक गोल मेज़पोश पर छः समान डिज़ाइन बने हुए हैं जैसाकि आकृति 12.14 में दर्शाया गया है। यदि मेज़पोश की त्रिज्या 28 cm है, तो 0.35 रू. प्रति वर्ग सेंटीमीटर की दर से इन डिजाइनों को बनाने की लागत ज्ञात कीजिए। (UPBoardSolutions.com) (√3 = 1.73 का प्रयोग कीजिए)
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प्र. 14. निम्नलिखित में सही उत्तर चुनिए :
त्रिज्या R वाले के उस त्रिज्यखंड का क्षेत्रफल जिसका कोण p° है, निम्नलिखित है :
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प्रश्नावली 12.3 (NCERT Page 257)

(जब तक अन्यथा न कहा जाए, π = [latex]\frac { 22 }{ 7 }[/latex] का प्रयोग कीजिए।)
प्र. 1. आकृति में, छायांकित भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए, (UPBoardSolutions.com) यदि PQ = 24 सेमी., PR = 7 सेमी. तथा O वृत्त का केंद्र है।
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प्र. 2. आकृति में, छायांकित भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए, यदि केंद्र O (UPBoardSolutions.com) वाले दोनों सकेंद्रीय वृत्तों की त्रिन्याएँ क्रमशः 7 सेमी. और 14 सेमी. हैं तथा ∠AOC = 40° है।
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प्र. 3. आकृति में, छायांकित भाग का क्षेत्रफल ज्ञात (UPBoardSolutions.com) कीजिए, यदि ABCD भुजा 14 सेमी. का एक वर्ग है तथा APD और BPC दो अर्धवृत्त हैं।
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प्र. 4. आकृति में, छायांकित भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए, जहाँ भुजा 12 सेमी. वाले एक समबाहु त्रिभुज OAB के शीर्ष O को केंद्र मान कर 6 सेमी. त्रिज्या वाला एक वृत्तीय चाप खींचा गया है।
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प्र. 5. भुजा 4 सेमी. वाले एक वर्ग के प्रत्येक कोने से 1 (UPBoardSolutions.com) सेमी. त्रिज्या वाले वृत्त का एक चतुर्थांश काटा गया है तथा बीच में 2 सेमी. व्यास का एक वृत्त भी काटा गया है, जैसाकि आकृति में दर्शाया गया है। वर्ग के शेष भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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प्र. 6. एक वृत्ताकार मेज़पोश, जिसकी त्रिज्या 32 सेमी. है, में बीच में एक (UPBoardSolutions.com) समबाहु त्रिभुज ABC छोड़ते हुए एक डिज़ाइन बना हुआ है, जैसाकि आकृति में दिखाया गया है। इस डिज़ाइन का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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प्र. 7. आकृति में, ABCD भुजा 14 सेमी. वाला एक वर्ग है। A, B, C और D (UPBoardSolutions.com) को केंद्र मानकर, चार वृत्त इस प्रकार खींचे गए हैं कि प्रत्येक वृत्त तीन शेष वृत्तों में से दो वृत्तों को बाह्य रूप से स्पर्श करता है। छायांकित भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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प्र. 8. आकृति एक दौड़ने का पथ (racing track) दर्शाती है, जिसके बाएँ और दाएँ सिरे अर्धवृत्ताकार हैं। दोनों आंतरिक समांतर रेखाखंडों के बीच की दूरी 60 मी. है तथा इनमें से प्रत्येक रेखाखंड 106 मी. लंबा है। यदि यह पथ 10 मी. (UPBoardSolutions.com) चौड़ा है, तो ज्ञात कीजिए।
(i) पथ के आंतरिक किनारों के अनुदिश एक पूरा चक्कर लगाने में चली गई दूरी।
(ii) पथ का क्षेत्रफल।
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प्र. 9. आकृति में, AB और CD केंद्र 0 वाले एक वृत्त के दो परस्पर (UPBoardSolutions.com) लंब व्यास हैं। तथा OD छोटे वृत्त को व्यास है। यदि OA = 7 सेमी. है, तो छायांकित भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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प्र. 10. एक समबाहु त्रिभुज ABC का क्षेत्रफल 17320.5 सेमी. है। इस त्रिभुज के प्रत्येक शीर्ष को केंद्र मानकर त्रिभुज की भुजा के आधे के बराबर की त्रिज्या लेकर एक वृत्त खींचा जाता है ( देखिए आकृति)। छायांकित भाग का क्षेत्रफल (UPBoardSolutions.com) ज्ञात कीजिए। (π = 3.14 और √3 = 1.73205 लीजिए।)
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प्र. 11. एक वर्गाकार रूमाल पर, नौ वृत्ताकार डिजाइन बने हैं, जिनमें से प्रत्येक की त्रिज्या 7 सेमी. है (देखिए आकृति)। रूमाल के शेष भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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प्र. 12. आकृति में, OACB केंद्र 0 और त्रिज्या 3.5 सेमी. वाले एक वृत्त को चतुर्थांश है। यदि OD = 2 सेमी. है, तो । निम्नलिखित के क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए:
(i) चतुर्थांश OACB
(ii) छायांकित भाग।
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प्र. 13. आकृति में, एक चतुर्थांश OPBQ के अंतर्गत एक वर्ग (UPBoardSolutions.com) OABC बना हुआ है। यदि OA = 20 सेमी. है, तो छायांकित भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए। (π = 3.14 लीजिए।) [CBSE Sample Paper 2011] C]
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प्र. 14. AB और CD केंद्र 0 तथा त्रिज्याओं 21 सेमी. और 7 सेमी. (UPBoardSolutions.com) वाले दो संकेंद्रीय वृत्तों के क्रमशः दो चाप हैं ( देखिए आकृति)। यदि ∠AOB = 30° है, तो छायांकित भाग को क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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प्र. 15. आकृति में, ABC त्रिज्या 14 सेमी. वाले एक वृत्त का चतुर्थांश है तथा BC को व्यास मान कर एक अर्धवृत्त खींचा गया है। छायांकित भाग का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए।
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प्र. 16. आकृति में, छायांकित डिजाइन का क्षेत्रफल ज्ञात कीजिए, (UPBoardSolutions.com) जो 8 सेमी. त्रिज्याओं वाले दो वृत्तों के चतुर्थांशों के बीच उभयनिष्ठ है।
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UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 तुलसीदास (काव्य-खण्ड)

UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 तुलसीदास (काव्य-खण्ड)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 तुलसीदास (काव्य-खण्ड).

कवि-परिचय

प्रश्न 1.
तुलसीदास की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए उनकी कृतियों (रचनाओं) का उल्लेख कीजिए। [2009, 10]
या
कवि तुलसीदास का जीवन-परिचय दीजिए तथा उनकी एक रचना का नाम लिखिए। [2011, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
उतर
गोस्वामी तुलसीदास भक्तिकाल की रामभक्ति काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि थे। इनकी भक्ति दास्य भाव की थी। इन्होंने श्रीराम के शील, शक्ति और सौन्दर्य के समन्वित रूप की अवतारणा की। ये एक सिद्ध कवि थे जो देश और काल (UPBoardSolutions.com) की सीमाओं को लाँघ चुके थे। मानव प्रकृति के जितने रूपों का हृदयग्राही वर्णन इनके काव्य में मिलता है, वैसा अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। इनका ‘श्रीरामचरितमानस’ मानव संस्कृति का अमर-काव्य है।

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जीवन-परिचय–गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सन् 1532 ई० (भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, एकादशी, सं० 1589 वि०) में बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान् इनका जन्म एटा जिले के ‘सोरो’ ग्राम में मानते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने राजापुर का ही समर्थन किया है। तुलसी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता आत्माराम दुबे और माता हुलसी ने अभुक्त मूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण इन्हें त्याग दिया था। इनका बचपन अनेकानेक आपदाओं के बीच व्यतीत हुआ। सौभाग्य से इनको बाबा नरहरिदास जैसे गुरु का वरदहस्त प्राप्त हो गया। इन्हीं की कृपा से इनको शास्त्रों के अध्ययन-अनुशीलन का अवसर मिला। स्वामी जी के साथ ही ये काशी आये थे, जहाँ परम विद्वान् महात्मा शेष सनातन जी ने इन्हें वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि में निष्णात कर दिया।

तुलसी का विवाह दीनबन्धु पाठक की सुन्दर और विदुषी कन्या रत्नावली से हुआ था। इन्हें अपनी रूपवती पत्नी से अत्यधिक प्रेम था। एक बार पत्नी द्वारा बिना कहे मायके चले जाने पर अर्द्धरात्रि में आँधी-तूफान का सामना करते हुए ये अपनी ससुराल जा पहुँचे। इस पर पत्नी ने इनकी भर्त्सना की

अस्थि चर्म मय देह मम, तामें ऐसी प्रीति।
तैसी जो श्रीराम महँ, होति न तौ भवभीति॥

अपनी पाली की फटकार से तुलसी को वैराग्य हो गया। अनेक तीर्थों का भ्रमण करते हुए ये राम के पवित्र चरित्र का गायन करने लगे। अपनी अधिकांश रचनाएँ इन्होंने चित्रकूट, काशी और अयोध्या में ही लिखी हैं। काशी के असी घाट पर सन् 1623 ई० (श्रावण, (UPBoardSolutions.com) शुक्ल पक्ष, सप्तमी, सं०1680 वि०) में इनकी पार्थिव लीला का संवरण हुआ। इनकी मृत्यु के सम्बन्ध में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है

संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर ॥

कृतियाँ (रचनाएँ)—तुलसीदास जी द्वारा रचित बारह ग्रन्थ प्रामाणिक माने जाते हैं, जिनमें श्रीरामचरितमानस प्रमुख है। इनकी रचनाओं का विवरण इस प्रकार है-

(1) श्रीरामचरितमानस-तुलसीदास जी का यह सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है। इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पावन चरित्र के द्वारा हिन्दू जीवन के सभी महान् आदर्शों की प्रतिष्ठा हुई है।
(2) विनयपत्रिका-इसमें तुलसीदास जी ने कलिकाल के विरुद्ध रामचन्द्र जी के दरबार में पत्रिका प्रस्तुत की है। यह काव्य तुलसी के भक्त हृदय का प्रत्यक्ष दर्शन है।
(3) कवितावली—यह कवित्त-सवैया में रचित श्रेष्ठ मुक्तक काव्य है। इसमें रामचरित के मुख्य प्रसंगों का मुक्तकों में क्रमपूर्वक वर्णन है। यह ब्रजभाषा में रचित ग्रन्थ है।
(4) गीतावली-यह गेय पदों में ब्रजभाषा में रचित सुन्दर काव्य है। इसमें प्राय: सभी रसों का सुन्दर परिपाक हुआ है तथा अनेक राग-रागिनियों का प्रयोग मिलता है। यह रचना 230 पदों में निबद्ध है।
(5) कृष्ण गीतावली—यह कृष्ण की महिमा को लेकर 61 पदों में लिखा गया ब्रजभाषा का काव्य है।
(6) बरवै रामायण-बरवै छन्दों में रामचरित का वर्णन करने वाला यह एक लघु काव्य है। इसमें अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
(7) रामलला नहछू–संहलोकगीत शैली में सोहर छन्दों को लघु पुस्तिका है, जो इनकी प्रारम्भिक रचना मानी जाती है।
(8) वैराग्य संदीपनी-इसमें सन्तों के लक्षण दिये गये हैं। इसमें तीन प्रकाश हैं। पहले प्रकाश के 6 छन्दों में मंगलाचरण है। दूसरे प्रकाश में संत-महिमा का वर्णन और तीसरे में शान्तिभाव का वर्णन है।
(9) जानकी-मंगल-इसमें सीताजी और श्रीराम के शुभविवाह के उत्सव का वर्णन है।
(10) पार्वती-मंगल—इसमें पूर्वी अवधी में शिव-पार्वती के (UPBoardSolutions.com) विवाह का काव्यमय वर्णन है।
(11) दोहावली-इसमें दोहा शैली में नीति, भक्ति, नाम-माहात्म्य और राम-महिमा का वर्णन है।
(12) रामाज्ञा प्रश्न-यह शकुन-विचार की उत्तम पुस्तक है। इसमें सात सर्ग हैं।

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साहित्य में स्थान–गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी-साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इनके द्वारा हिन्दी कविता की सर्वतोमुखी उन्नति हुई। इन्होंने अपने काल के समाज की विसंगतियों पर प्रकाश डालते हुए उनके निराकरण के उपाय सुझाये। साथ ही अनेक मतों और (UPBoardSolutions.com) विचारधाराओं में समन्वय स्थापित करके समाज में पुनर्जागरण का मन्त्र फेंका। इसीलिए इन्हें समाज का पथ-प्रदर्शक कवि कहा जाता है। इनके सम्बन्ध में अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध’ जी ने उचित ही लिखा है

कविता करके तुलसी न लसे । कविता लसी पा तुलसी की कला ॥

पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या

धनुष-भंग

प्रश्न 1.
उदित उदयगिरि मंच पर, रघुबर बालपतंग।
बिकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन शृंग ॥ [2017]
उतर
[ उदयगिरि = उदयाचल पर्वत। बालपतंग = बाल सूर्य, प्रात:कालीन सूर्य। सरोज = कमल। लोचन = नेत्र। भुंग = भंवरे।]

सन्दर्भ-प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड’ के ‘धनुष-भंग’ कविता शीर्षक से अवतरित हैं। यह अंश हमारी पाठ्य-पुस्तक में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के बालकाएड से संकलित है।

[विशेष—-इस शोक के शेष सभी पद्यांशों के लिए (UPBoardSolutions.com) यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य में धनुष-भंग के लिए बने हुए मंच पर रामचन्द्र जी के चढ़ने का वर्णन किया गया है।

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व्याख्या-श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि उदयाचल पर्वत के समान बने हुए विशाल मंच पर श्रीरामचन्द्र जी के रूप में बाल सूर्य के उदित होते ही सभी सन्त रूपी कमल खिल उठे और नेत्ररूपी भंवरे हर्षित हो उठे। आशय यह है कि श्रीराम के मंच पर चढ़ते ही सभा में उपस्थित सभी सज्जन पुरुष अत्यधिक प्रसन्न हो गये।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. यहाँ पर मंच की विशालता और श्रीरामचन्द्र जी के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है।
  2. भाषा–अवधी।
  3. शैली–प्रबन्ध और चित्रात्मक।
  4. रस-अद्भुत।
  5. छन्द-दोहा।।
  6. अलंकार-उपमा, रूपक और अनुप्रास अलंकार का मंजुल प्रयोग।
  7. गुण-माधुर्य।
  8. भावसाम्य–कविवर बिहारी ने भी श्रीकृष्ण के सौन्दर्य का चित्रण करते हुए लिखा है-“मनौ नीलमनि सैल पर, आतपु पर्यौ प्रभात।”

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प्रश्न 2.
नृपन्ह केरि आसा निसि नासी । बचन नखत अवलीन प्रकासी ॥
मानी महिप कुमुद सकुचाने। कपटी भूप उलूक लुकाने ॥
भए बिसोक कोक मुनि देवा। बरसहिं सुमन जनावहिं सेवा ॥
गुर पद बंदि सहित अनुरागा। राम मुनिन्ह सन आयसु मागा॥
सहजहिं चले सकल जग स्वामी । मत्त मंजु बर कुंजर गामी ॥
चलत राम सब पुर नर नारी । पुलक पूरि तन भए सुखारी ॥
बंदि पितर सुर सुकृत सँभारे । जौं कछु पुन्य प्रभाउ हमारे ॥
तौं सिवधनु मृनाल की नाईं। तोरहुँ रामु गनेस गोसाईं ॥
उतर
[ निसि = रात्रि। नखते = नक्षत्र, तारे। अवली = पंक्ति, समूह। मानी = (UPBoardSolutions.com) अभिमानी। लुकाने = छिपना। कोक = चकवा, कोयल। आयसु – आज्ञा। बर = श्रेष्ठ। कुंजर = हाथी। पुलक = रोमांच। पितर = पूर्वज। मृनाल = कमल की नाल।]।

प्रसंग—प्रस्तुत पद्य में सभा में उपस्थित कतिपय राजाओं की स्थिति, राम की विनम्रता तथा सम्पूर्ण नगरवासियों की मनोवृत्ति का वर्णन किया गया है।

व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीरामचन्द्र जी के मंच पर चढ़ते ही सभा में उपस्थित अन्य राजाओं की आशारूपी रात्रि नष्ट हो गयी और उनके वचनरूपी तारों के समूह का चमकना बन्द हो गया, अर्थात् वे मौन हो गये। अभिमानी राजारूपी कुमुद संकुचित हो गये और कपटी राजारूपी उल्लू छिप गये। मुनि और देवतारूपी चकवे शोकरहित अर्थात् प्रसन्न हो गये। वे फूलों की वर्षा करके अपनी सेवा-अनुग्रह प्रकट करने लगे। इसके पश्चात् श्रीरामचन्द्र जी ने अत्यधिक स्नेह के साथ अपने गुरु विश्वामित्र के चरणों की वन्दना करने के बाद वहाँ उपस्थित अन्य मुनियों से भी आज्ञा माँगी।

पुनः गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि समस्त चराचर जगत के स्वामी श्रीरामचन्द्र जी सुन्दर, मतवाले और श्रेष्ठ हाथी की चाल से चले जो कि उनकी स्वाभाविक चाल थी। श्रीरामचन्द्र जी के चलते ही सभा में उपस्थित नगर के सभी स्त्री-पुरुष प्रसन्न हो गये और उनके शरीर रोमांच से पुलकित हो गये। समस्त स्त्री-पुरुषों ने अपने पूर्वजों की वन्दना की और अपने पुण्य कर्मों का स्मरण करते हुए कहा कि हे गणेश जी! यदि हमारे किये हुए पुण्य कर्मों का किंचित् भी फल मिलता हो तो श्रीरामचन्द्र जी शिवजी के इस प्रचण्ड धनुष को कमल की नाल (दण्ड) के समान तोड़ डालें। आय यह है कि सभा में उपस्थित कुटिल और अभिमानी राजाओं के अतिरिक्त सभी व्यक्ति यह चाहते थे कि श्रीराम इस धनुष को तोड़ दें।

काव्यगत सौन्दर्य–

  1. प्रस्तुत पद्यांश में इस बात का स्पष्ट वर्णन किया गया है कि नगर के समस्त नर-नारी चाहते थे कि सीता को वर रूप में राम ही प्राप्त हों।
  2. भाषा-अवधी।
  3. शैली–प्रबन्ध और वर्णनात्मक।
  4. रस-भक्ति।
  5. छन्द–दोहा।
  6. अलंकार-रूपक और अनुप्रास (UPBoardSolutions.com) अलंकार का मनमोहक प्रयोग।
  7. गुण–प्रसाद।
  8. शब्दशक्ति-अभिधा और व्यंजना।

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प्रश्न 3.
रामहि प्रेम समेत लखि, सखिन्ह समीप बोलाइ।
सीता मातु सनेह बस, बचन कहइ बिलखाइ ।
उतर
[ लखि = देवकर। खस = वशीभूत होकर। बिलखाइ = विलाप करते हुए!]

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य में सीताजी की माता का श्रीरामचन्द्र जी के प्रनि अन्दिय स्नेह व्यक्त हुआ है।

व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि मंच पर अवतरित हुए श्रीरामचन्द्र जी को अत्यधिक वात्सल्य भाव के साथ देखकर जनकनन्दिनी सीताजी की माता ने अपनी सभी सखियों-सहेलियों को अपने समीप बुला लिया और स्नेहवश (UPBoardSolutions.com) विलाप करते हुए के सदृश उनसे कहने लगीं।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. प्रस्तुत पद में सीताजी की माता का राम के प्रति वात्सल्य भाव का वर्णन हुआ है।
  2. भाषा-अवधी
  3. शैली–प्रबन्ध।
  4. रसवात्सल्य।
  5. छन्द-दोहा।
  6. अलंकार– अनुप्रास।
  7. गुण–प्रसाद।।

प्रश्न 4.
सखि सब कौतुकु देखनिहारे । जेउ कहावत हितू हमारे ॥
कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाहीं । ए बालक असि हठ भलि नाहीं ॥
रावन बान छुआ नहिं चापा। हारे सकल भूप करि दापा ॥
सो धनु राजकुर कर देहीं। बाल मराल कि मंदर लेहीं ।
भूप सयानप सकल सिरानी। सखि बिधि गति कछु जाति न जानी ॥
बोली चतुर सखी मृदु बानी। तेजवंत लघु गनिअ न रानी ॥
कहँ कुंभज कहँ सिंधु अपारा। सोषेउ सुजसु सकल संसारा॥
रबि मंडल देखत लघु लागा। उदय तासु तिभुवन तम भागा ॥ [2015]
उतर
[ कौतुकु = तमाशा। हितू = हित की चिन्ता करने वाले। गुर = गुरु। भलि = अच्छा। चापा = धनुष। दापा = घमण्ड। कर = हाथ। मराल = हंस। मंदर = मन्दराचल पर्वत। सिरानी = समाप्त हो जाना। बिधि = भाग्य। तेजवंत = तेज से युक्त। कुंभज = कुम्भ से उत्पन्न, अगस्त्य ऋषि। सुजसु = सुयश। ]

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प्रसंग-प्रस्तुत पद्य में सीताजी की माता का राम के प्रति चिन्ता तथा उनकी सखी के द्वारा उन्हें समझाये जाने का वर्णन किया गया है। |

व्याख्या–गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि सीताजी की माता अपनी सखी से कह रही हैं कि हे सखी! ये जो हमारे हित की चिन्ता करने वाले लोग हैं, वे सब भी तमाशा ही देखने वाले हैं। कोई भी इनके गुरु (विश्वामित्र) को समझाकर यह नहीं कहता है कि ये श्रीराम बालक हैं और इनके लिए ऐसा हठ करना उचित नहीं है। रावण और बाण जैसे असुरों ने भी जिस धनुष को छुआ तक नहीं और यहाँ उपस्थित सभी राजा घमण्ड (UPBoardSolutions.com) करके पराजित हो गये, वही धनुष इस सुकुमार रामचन्द्र के हाथ में दे रहे हैं। कोई इन्हें यह क्यों नहीं समझाता कि हंस के बच्चे भी कहीं मन्दराचल पर्वत को उठा सकते हैं। आशय यह है कि महादेव के जिस धनुष को रावण और बाण जैसे जगद्विजयी वीरों ने छुआ तक नहीं और दूर से ही प्रणाम करके चल दिये, उसे तोड़ने के लिए विश्वामित्र का श्रीराम को आज्ञा देना और उनका उसे तोड़ने के लिए आगे बढ़ना उनका बोल-हठ जान पड़ा। इसीलिए वे कहती हैं कि गुरु विश्वामित्र को कोई समझाता क्यों नहीं है।

गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि सीताजी की माता कहती हैं कि दूसरों की क्या कही जाये, राजा जनक तो स्वयं बड़े समझदार और ज्ञानी हैं, उन्हें तो गुरु विश्वामित्र को समझाने की चेष्टा करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि उनका भी समस्त ज्ञान और सयानापन समाप्त हो गया है। हे सखी ! क्या करू, विधाता (ब्रह्मा) की गति; अर्थात् वे क्या चाहते हैं; कुछ समझ में नहीं आ रही है। इतना कहकर जब वे चुप । हो जाती हैं तब उनकी एक चतुर; अर्थात् श्रीरामचन्द्र जी के महत्त्व को जानने वाली; सखी कोमल वाणी में उनसे कहती है कि “हे रानी ! देखने में छोटा होने पर भी तेज से युक्त मनुष्य को छोटा नहीं मानना चाहिए। कहाँ कुम्भज अर्थात् घड़े से उत्पन्न होने वाले छोटे से मुनि अगस्त्य और कहाँ विशाल समुद्र। लेकिन उन्होंने उस समुद्र को सोख लिया। इस कारण से उनका सुयश सम्पूर्ण संसार में छाया हुआ है। पुनः सूर्यमण्डल भी देखने में कितना छोटा लगता है, लेकिन उसके उदय होते ही तीनों लोकों (भूलोक, भुवक और स्वलोंक) का अन्धकार भाग जाता है।

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काव्यगत सौन्दर्य-

  1. छोटो जानकर योग्यता पर सन्देह नहीं किया जाना चाहिए, इसकी कवि ने तर्कयुक्त अभिव्यक्ति की है।
  2. भाषा-अवधी
  3. शैली-प्रबन्ध और विवेचनात्मक।
  4. रसवात्सल्य।
  5. छन्द-चौपाई।
  6. अलंकार-अनुप्रास।
  7. गुण–प्रसाद।।

प्रश्न 5.
मंत्र परम लघु जासु बस, बिधि हरि हर सुर सर्ब ।
महामत्त गजराज कहुँ, बस कर अंकुस खर्ब ।।। [2015, 16]
उतर
[ बस = वशीभूत। बिधि = ब्रह्मा। हरि = विष्णु। हर = शंकर। सुर = देवता। अंकुस = अंकुश। खर्ब = छोटा।]

प्रसंग—प्रस्तुत पद्य में मन्त्र और अंकुश के द्वारा सभी देवताओं और हाथी को नियन्त्रित किये जाने । का वर्णन है। |

व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि धनुष-भंग के समय जब सीताजी की माता श्रीराम को छोटा समझकर, धनुष तोड़ने में असमर्थ मानकर अपनी सखी से शंका प्रकट करती हैं, तब उनकी सखी विभिन्न उदाहरणों के द्वारा उनको (UPBoardSolutions.com) समझाती हुई कहती हैं कि, “जिस मन्त्र के वश में सभी देवता, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि भी रहने को विवश होते हैं, वह मन्त्र भी अत्यधिक छोटा ही होता है।” अत्यधिक विशाल और मदमत्त गजराज को भी महावत छोटे से अंकुश के द्वारा अपने वश में कर लेता है। |

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. भाषा-अवधी।
  2. शैली–प्रबन्ध और उद्धरण।
  3. छन्द-दोहा।
  4. अलंकार-अनुप्रास।
  5. शब्द-शक्ति-अभिधा और लक्षणा।।

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प्रश्न 6.
काम कुसुम धनु सायक लीन्हे । सकल भुवन अपने बस कीन्हे ॥
देबि तजिअ संसउ अस जानी। भंजब धनुषु राम सुनु रानी ॥
सखी बचन सुनि भै परतीती । मिटा बिषादु बढी अति प्रीती ॥[2016]
तब रामहि बिलोकि बैदेही । सभय हृदयँ बिनवति जेहि तेही ॥
मनहीं मन मनाव अकुलानी । होहु प्रसन्न महेस भवानी ॥
करहु सफल आपनि सेवकाई । करि हितु हरहु चाप गरुआई ॥
गननायक बरदायक देवा । आजु लगें कीन्हिउँ तुझे सेवा ॥
बार बार बिनती सुनि मोरी । करहु चाप गुरुता अति थोरी ॥
उतर
[ कुसुम = पुष्प। सायक = बाण। संसउ = संशय। भंजब = तोड़ेंगे। बिषाद् = उदासी, निराशा। बिलोकि = देखकर। जेहि तेही = जिस किसी की। अकुलानी = व्याकुल होकर। सेवकाई = सेवा। हरहु = हरण कर लीजिए। गरुआई = गुरुता, भारीपन।]

प्रसंग-प्रस्तुत पद में सीताजी की माताजी का राम की क्षमता के सम्बन्ध में विश्वास और सीता द्वारा विभिन्न देवताओं की प्रार्थना किये जाने का वर्णन किया गया है। |

व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि पुनः सीताजी की माताजी की सहेली उनको समझाती हुई कहती है कि कामदेव ने फूलों का ही धनुष-बाण लेकर समस्त लोकों को अपने वशीभूत कर रखा है। हे देवी ! इस बात को अच्छी तरह से समझकर आप अपने सन्देह का त्याग कर दीजिए। हे रानी !

आप सुनिए, श्रीरामचन्द्र जी धनुष को अवश्य ही तोड़ देंगे। सखी के मुख से इस प्रकार के सान्त्वनादायक वचनों को सुनकर जनक-भामिनी को श्रीरामचन्द्र जी की सामर्थ्य के सम्बन्ध में विश्वास हो गया, उनकी उदासी समाप्त हो गयी और श्रीराम के (UPBoardSolutions.com) प्रति उनके मन में स्नेह और भी अधिक बढ़ गया। इसी समय श्रीरामजी को देखकर; अर्थात् उनके सुकोमल बाह्य व्यक्तित्व का अवलोकन कर; सीताजी जो भी देवता उनके ध्यान में आया, उससे रामजी की सहायता हेतु विनती करने लगीं।

गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि जनकनन्दिनी सीताजी व्याकुलचित्त होकर मन-ही-मन में प्रार्थना कर रही हैं कि “हे भगवान् शंकर ! हे माता पार्वती ! मुझ पर प्रसन्न हो जाइए और मैंने आपकी जो कुछ भी सेवा-आराधना की है उसका सुफल प्रदान करते हुए और मुझ पर कृपा करके धनुष की गुरुता अर्थात् भारीपन को बहुत ही कम कर दीजिए।” पुन: गणेश जी की प्रार्थना करती हुई कहती हैं कि “हे गणों के नायक और मन-वांछित वर देने वाले गणेश जी ! मैंने आज ही के दिन के लिए; अर्थात् श्रीराम जैसे पुरुष को पति-रूप में प्राप्त करने की इच्छा से; आपकी पूजा-अर्चना की थी। आप बार-बार की जा रही मेरी विनती को सुनिए और धनुष के भारीपन को बहुत ही कम कर दीजिए।”

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काव्यगत सौन्दर्य-

  1. मनवांछित प्राप्ति के लिए विभिन्न देवताओं की प्रार्थना करने की भारतीय परम्परा को स्पष्ट किया गया है।
  2. भाषा-अवधी।
  3. शैली-प्रबन्ध और वर्णनात्मक।
  4. रस— भक्ति।
  5. छन्द-चौपाई।
  6. अलंकार-अनुप्रास और पुनरुक्तिप्रकाश।
  7. गुण–प्रसाद।
  8. शब्दशक्ति-अभिधा और लक्षणा।

प्रश्न 7.
देखि देखि रघुबीर तन, सुर मनाव धरि धीर।
भरे बिलोचन प्रेम जल, पुलकावली सरीर ॥
उतर
[रघुबीर = रामचन्द्र जी। सुर = देवता। धीर = धैर्य। बिलोचन = नेत्रों में। पुलकावली = प्रेम और हर्ष से उत्पन्न रोमांच।]

प्रसंग-प्रस्तुत पद में सीताजी की श्रीराम के प्रति प्रेमानुरक्ति का वर्णन हुआ है।

व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि सीताजी बार-बार श्रीरामचन्द्र जी की ओर देख रही हैं और धैर्य धारण करके देवताओं को मनोवांछित वर प्रदान करने के लिए मनाती जा रही हैं; अर्थात् अनुनय-विनय कर रही हैं। उनके नेत्रों में (UPBoardSolutions.com) प्रेम के आँसू भरे हुए हैं और शरीर में रोमांच हो रहा है।

काव्यगत सौन्दर्य

  1. सीताजी का श्रीराम के प्रति प्रेम का सजीव चित्रण हुआ है।
  2. भाषाअवधी।
  3. शैली–प्रबन्ध और वर्णनात्मक।.
  4. रस-श्रृंगार।
  5. छन्द-दोहा
  6. अलंकारपुनरुक्तिप्रकाश, रूपक और अनुप्रास।
  7. गुण-माधुर्य।।

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प्रश्न 8.
नीके निरखि नयन भरि सोभा। पितु पनु सुमिरि बहुरि मनु छोभा ॥
अहह तात दारुनि हठ ठानी। समुझत नहिं कछु लाभु न हानी ॥
सचिव सभय सिख देइ न कोई। बुध समाज बड़ अनुचित होई ॥
कहँ धनु कुलिसहु चाहि कठोरा । कहँ स्यामल मृदुगात किसोरा ।।
बिधि केहि भाँति धरौं उर धीरा। सिरस सुमन कन बेधिअ हीरा ॥
सकल सभा कै मति भै भोरी। अब मोहि संभुचाप गति तोरी॥
निज जड़ता लोगन्ह पर डारी । होहि हरुअ रघुपतिहि निहारी॥
अति परिताप सीय मन माहीं । लव निमेष जुर्ग सय सम जाहीं।।
उतर
[ नीके = अच्छी तरह। निरखि = देखकर। पनु := प्रण। छोभा = क्षोभ, दु:ख। दारुनि = कठोर। कुलिसहु = हीरे के समान। उर = हृदय। सिरस = शिरीष। भोरी = भ्रम में पड़ना। जड़ता = कठोरता, मूर्खता। परिताप = सन्ताप, दु:ख। निमेष = पलक झपकने में लगने वाला समय।]

प्रसंग-प्रस्तुत पद में श्रीराम के प्रति सीताजी की अनुरक्ति का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया गया है। |,

व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीरामचन्द्र जी की शोभा-सौन्दर्य को जी भरकर देख लेने के पश्चात् और पिताश्री के प्रण का स्मरण करके सीताजी का मन दु:खी हो जाता है। वे मन-हीमन विचार करने लगती हैं; अर्थात् स्वयं से ही कहने लगती हैं कि “ओह ! पिताजी ने बहुत ही कठोर हठ ठान ली है और वे इसको कुछ भी लाभ-हानि समझ नहीं पा रहे हैं। भयभीत होने के कारण (राजपद से) कोई भी मन्त्री उन्हें उचित सलाह नहीं दे रहा है। वस्तुतः विद्वानों की सभा में यह बड़ा ही अनुचित कार्य हो रहा है। यह धनुष तो वज्र से भी अधिक कठोर है, जिसके समक्ष ये कोमल शरीर वाले श्याम वर्ण किशोर की क्या तुलना; (UPBoardSolutions.com) अर्थात् कोई समानता ही नहीं है। | गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि, जनकनन्दिनी सीताजी ब्रह्मा से कहती हैं कि “भाग्य को लिखने वाले हे विधाता ! मैं अपने हृदय में किस तरह से धैर्य धारण करू, अर्थात् मैं धैर्य भी धारण नहीं कर सकती, क्योंकि सारी सभा की बुद्धि ही फिर गयी है। वे यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि कहीं शिरीष के फूल के कण से हीरे को छेदा जा सकता है। अत: सब ओर से निराश होकर हे शिवजी के धनुष ! अब मुझे केवल तुम्हारा ही सहारा है। अब तुम अपनी कठोरता लोगों पर डाल दो और श्रीरामचन्द्र जी के सुकुमार शरीर को देखकर उतने ही हल्के हो जाओ। इस प्रकार विचार करते-करते सीताजी के मन में इतना सन्ताप हो रहा है कि पलक झपकने में लगने वाले समय (निमेष) का एक अंश भी सौ युगों (समये-मापन का अत्यधिक दीर्घ परिमाण) के समान व्यतीत हो रहा है।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. राम के शरीर की कोमलता का अनुभव कर ईश्वर से उन पर अनुग्रह करने की प्रार्थना की गयी है।
  2. भाषा-अवधी
  3. शैली–प्रबन्ध।
  4. रस-शृंगार और भक्ति।
  5. छन्द– दोहा।
  6. अलंकार-अनुप्रास और उपमा।
  7. गुण–माधुर्य और प्रसाद।।

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प्रश्न 9.
प्रभुहि चितइ पुनि चितव महि, राजत लोचन लोल।
खेलत मनसिज मीन जुग, जनु बिधु मंडल डोल ।।
उतर
[ चितइ व चितव = देखकर। महि = पृथ्वी। राजत = सुशोभित। लोचन = नेत्र। मनसिज = कामदेव। मीन = मछली। बिधु = चन्द्रमा। ]

प्रसंग-प्रस्तुत पद में सीता जी के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है।

व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी सीता जी की वाणी की असमर्थता को व्यक्त करते हुए आलंकारिक रूप में कह रहे हैं कि पहले प्रभु श्रीरामचन्द्र जी की ओर देखकर और तत्पश्चात् लज्जा से पृथ्वी की ओर देखती हुई सीताजी के चंचल नेत्र इस प्रकार (UPBoardSolutions.com) सुशोभित हो रहे हैं मानो चन्द्रमण्डल रूपी डोल में कामदेव की दो मछलियाँ क्रीड़ा कर रही हों।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. नेत्रों की चंचलता की तुलना मछलियों से की गयी है।
  2. भाषा-अवधी।
  3. शैली-प्रबन्ध और वर्णनात्मक।
  4. रस-शृंगार।
  5. छन्द- दोहा
  6. अलंकार-उत्प्रेक्षा और अनुप्रसि।
  7. गुण-माधुर्य।

प्रश्न 10.
गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी। प्रगट न लाज निसा अवलोकी ॥
लोचन जल रह लोचन कोना। जैसे परम कृपन कर सोना ॥
सकुची ब्याकुलता बड़ि जानी। धरि धीरजु प्रीतिति उर आनी ॥
तन मन बचन मोर पनु साचा । रघुपति पद सरोज चितु राचा ॥
तौ भगवानु सकल उर बासी । करिहि मोहि रघुबर कै दासी ॥
जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू । सो तेहि (UPBoardSolutions.com) मिलइ न कछु संदेहू ॥
प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना। कृपानिधान राम सब जाना॥
सियहि बिलोकि तकेउ धनु कैसे । चितव गरुरु लघु ब्यालहि जैसे ॥ (2015)
उतर
[ गिरा = वाणी। अलिनि = भ्रमर का स्त्रीलिंग। कृपन = कंजूस। साचा = सच्चा। राचा = अनुरक्त। तकेउ = देखकर। गरुरु = गरुड़ पक्षी। ब्यालहिं = सर्प।]

प्रसंग-प्रस्तुत पद में सीताजी की राम के प्रति प्रगाढ़ प्रेमानुरक्ति का अत्यधिक सजीव वर्णन किया गया है। |

व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी सीताजी की वाणी की असमर्थता को व्यक्त करते हुए आलंकारिक रूप में कह रहे हैं कि सीताजी की वाणी रूपी भ्रमरी को उनके मुख रूपी कमल ने रोक रखा है। आशय यह है कि उनके मुख से आवाज ही नहीं निकल पा रही है। लज्जा रूपी रात्रि को सम्मुख देखकर भी वह प्रकट नहीं हो पा रही है। नेत्रों का जल नेत्रों के कोने में उसी प्रकार रुक गया है जैसे अत्यधिक कंजूस का गड़ा हुआ सोना गड़ा ही रह जाता है। आशय यह है कि सीता जी अपनी असमर्थता को आँसुओं के द्वारा प्रकट करने में भी अक्षम हैं। अपनी इस बढ़ी हुई व्याकुलता को समझकर सीताजी प्रीतिपूर्वक संकोच करने लगीं। तत्पश्चात् उन्होंने हृदय में धैर्य धारण करके मन में विश्वास किया कि यदि तन, मन और वन से मेरा प्रण सच्चा है और श्रीरामचन्द्र जी के चरण-कमलों में मेरा हृदय वास्तव में अनुरक्त है तो सभी के हृदय में निवास करने वाले ईश्वर मुझे उन रघुकुल श्रेष्ठ श्रीरामचन्द्र जी की दासी अवश्य ही बनाएँगे; क्योंकि जिस किसी पर भी जिस किसी का सच्चा स्नेह होता है, वह उसे मिलता ही है, इसमें कुछ भी सन्देह नहीं है।

गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रभु श्रीरामचन्द्र जी की ओर देखकर सीताजी ने शरीर के द्वारा अपने प्रेम का निश्चय कर लिया; अर्थात् इस बात का निश्चय कर लिया कि अब यह शरीर या तो इन्हीं (श्रीराम) का होकर रहेगा या रहेगा ही नहीं। उनके इस (UPBoardSolutions.com) निश्चय को कृपानिधान श्रीरामचन्द्र जी तुरन्त जान गये। इसके पश्चात् उन्होंने सीताजी की ओर देखकर धनुष की ओर इस प्रकार देखा जैसे गरुड़ छोटे से सर्प की ओर देखता है। |

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काव्यगत सौन्दर्य

  1. राम के प्रति सीता की अनुरक्ति का आलंकारिक वर्णन है।
  2. भाषाअवधी
  3. शैली–प्रबन्ध और चित्रात्मक।
  4. रस-शृंगार व भक्ति।
  5. छन्द-दोहा।
  6. अलंकार-सर्वत्र अनुप्रास, रूपक व उपमा का मंजुल प्रयोग।
  7. गुण-माधुर्य और प्रसाद।
  8. शब्द-शक्ति-अभिधा और लक्षणा।।

प्रश्न 11.
लखन लखेउ रघुबंसमनि, ताकेउ हर कोदंडु। पुलकि गात बोले बचन, चरने चापि ब्रह्मांडु॥ [2018]
उतर
[ लखेउ = देखा। ताकेउ = देखा। कोदंडु = धनुष। गात = शरीर। चरन = चरण, पैर। चापि = दबाकर। ब्रह्मांडु = ब्रह्माण्ड।]

प्रसंग-प्रस्तुत पद में लक्ष्मण का श्रीराम के प्रति स्नेह और उनकी स्वयं की बलवत्ता का वर्णन किया गया है। |

व्याख्या–-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि जब लक्ष्मण (UPBoardSolutions.com) जी ने देखा कि रघुकुलमणि श्रीरामचन्द्र जी ने शिवजी के धनुष की ओर देखा है तो उनका शरीर अत्यधिक पुलकित हो उठा और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने दोनों चरणों से दबाकर वे इस प्रकार बोले।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. लक्ष्मण की सामर्थ्य का वर्णन किया गया है।
  2. भाषा-अवधी।
  3. शैली-प्रबन्ध।
  4. रस-वीर।
  5. छन्द-दोहा।
  6. अलंकार-अनुप्रास का मोहक प्रयोग और अतिशयोक्ति।
  7. गुण-ओज।।

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प्रश्न 12.
दिसिकुंजरहु कमठ अहि कोला। धरहु धरनि धरि धीर न डोला ॥
राम चहहिं संकर धनु तोरा । होहु सजग सुनि आयसु मोरा ॥
चाप समीप रामु जब आए। नर नारिन्ह सुर सुकृत मनाए॥
सब कर संसउ अरु अग्यानू । मंद महीपन्ह कर अभिमानू ॥
भृगुपति केरि गरब गरुआई। सुर मुनिबरन्ह केरि कदाई ॥
सिय कर सोचु जनक पछितावा। रानिह कर दारुन दुख दावा ॥
संभुचाप बड़ बोहितु पाई। चढे जाइ सब संगु बनाई ॥
राम बाहुबल सिंधु अपारू। चहत पारु नहिं कोउ कड़हारू॥ [2018]
उतर
[ दिसिकुंजरहु = दिशाओं के रक्षक हाथी। कमठ = कच्छप। अहि = सर्प यहाँ शेषनाग। कोला = वाराह, सूअर। सजग = सचेत। आयसु = आदेश। चाप = धनुष। सुकृत = पुण्य कर्म। भृगुपति = परशुराम। कदराई = कायरता। कड़हारू = केवट।].

प्रसंग-प्रस्तुत पद में लक्ष्मण की सामर्थ्य और राम के ईश्वरत्व गुणों से युक्त होने का वर्णन किया गया है। |

व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी कह रहे हैं कि लक्ष्मण जी ने कहा-हे दिग्गजो ! हे कच्छप ! हे शेषनाग ! हे वाराह ! धैर्य धारण करके इस पृथ्वी को इस प्रकार पकड़े रखो, जिससे यह हिलने न पाये। श्रीरामचन्द्र जी शंकर जी के धनुष को तोड़ना चाहते हैं, इसलिए आप सभी लोग मेरी इस आज्ञा को सुनकर सावधान हो जाइए। श्रीरामचन्द्र जी जब शंकर जी के धनुष के समीप आये तब सभी उपस्थित स्त्री-पुरुषों ने देवताओं और (UPBoardSolutions.com) अपने पुण्यों को मनाया; अर्थात् उनका स्मरण किया। सभी का सन्देह और अज्ञान, मामूली । अर्थात् तुच्छ राजाओं का अभिमान, परशुराम जी के गर्व की गुरुता, देवताओं और श्रेष्ठ मुनियों की भय कातरता, सीता जी का विचार, जनक का पश्चात्ताप और समस्त रानियों के दारुण दु:ख का दावानल; ये सभी शिवजी के धनुष रूपी बड़े जहाज को प्राप्त करके समूह बनाकर उसके ऊपर चढ़कर और श्रीरामचन्द्र जी की भुजाओं के बले रूपी अपारे समुद्र के पार जाना चाहते हैं, लेकिन उनके साथ कोई नाविक नहीं है। |

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काव्यगत सौन्दर्य

  1. राम-लक्ष्मण देवत्व के गुणों से युक्त थे, इसका आभास कराया गया है।
  2. भाषा-अवधी।
  3. शैली–प्रबन्ध।
  4. रस-वीर और शान्त।
  5. छन्द-चौपाई।
  6. अलंकारअनुप्रास।
  7. शब्दशक्ति-अभिधा और लक्षणा।
  8. गुण-ओज और प्रसाद।

प्रश्न 13.
राम बिलोके लोग सब, चित्र लिखे से देखि।।
चितई सीय कृपायतन, जानी बिकल बिसेषि ॥
उतर
[ बिलोके = देखे। चित्र लिखे = चित्र के समान, मूर्तिवत्। सीय = सीता। बिकल= व्याकुल। बिसेषि = विशेष।]

प्रसंग–प्रस्तुत पद में समस्त सभा के साथ-साथ सीताजी की स्थिति का वर्णन किया गया है।

व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीरामचन्द्र जी ने सभा में उपस्थित सभी लोगों की ओर देखा। ये सभी लोग उन्हें चित्र में लिखे हुए के समान अर्थात् मूर्तिवत दिखाई पड़े। इसके पश्चात् कृपानिधान श्रीरामचन्द्र जी ने सीताजी की (UPBoardSolutions.com) ओर देखा और उनको इन सबसे अधिक अर्थात् विशेष रूप से व्याकुल अनुभव किया।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. भाषा-अवधी।
  2. शैली–प्रबन्ध व चित्रात्मक।
  3. रस—शान्त और श्रृंगार।
  4. छन्द-दोहा।
  5. अलंकार-उपमा और अनुप्रास।
  6. शब्दशक्ति–अभिधा और लक्षणा।
  7. गुण–प्रसाद और माधुर्य।

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प्रश्न 14.
देखी बिपुल बिकल बैदेही । निमिष बिहात कलप सम तेही ॥
तृषित बारि बिन जो तनु त्यागा। मुएँ करइ को सुधा तड़ागा ॥
का बरषा जब कृषी सुखाने । समय चुके पुनि का पछिताने ॥
असे जियें जानि जानकी देखी । प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी ।।
गुरहि प्रनामु मनहिं मन कीन्हा। अति लाघव उठाइ धनु लीन्हा॥
दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ। पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ ।
लेत चढ़ावत बँचत गाढे। काहुँ न लखा देख सबु ठाढे ॥
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा ॥
उतर
[ निमिष = पलक झपकने का समय। तृषित = प्यासा। तड़ागा = तालाब। जिय = हृदय में। लखि = देखकर। लाघव = शीघ्रता से। दामिनि = बिजली। ठाढ़े = खड़े हुए। भुवन = संसार। धुनि = ध्वनि।]

प्रसंग-प्रस्तुत पद में सीता जी का राम के प्रति प्रेम (UPBoardSolutions.com) और शिव-धनुष के टूटने का वर्णन किया गया है। |

व्याख्या—गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीरामचन्द्र जी ने सीताजी को बहुत ही व्याकुल देखा। उन्होंने अनुभव किया कि उनका एक-एक क्षण एक-एक कल्प (चार अरब बत्तीस करोड़ वर्ष : 4,32,00,00,000) के समान व्यतीत हो रहा था। यदि प्यासा व्यक्ति पानी न मिलने पर अपना शरीर छोड़ दे, तो उसके चले जाने पर अमृत का तालाब भी क्या करेगा, सारी खेती के सूख जाने पर वर्षा किस काम की, समय के बीत जाने पर फिर पछताने से क्या लाभ। आशय यह है कि समय के व्यतीत होने पर सब कुछ व्यर्थ हो जाता है। अपने हृदय में ऐसा विचार करके श्रीरामचन्द्र जी ने सीताजी की ओर देखा और उनका अपने प्रति विशेष प्रेम देखकर वे हर्ष से विह्वल हो उठे। मन-ही-मन उन्होंने गुरु विश्वामित्र को प्रणाम किया और अत्यधिक स्फूर्ति के साथ धनुष को उठा लिया। जैसे ही उन्होंने धनुष को अपने हाथ में उठाया, वह उनके हाथ में बिजली की तरह चमका और आकाश में मण्डलाकार हो गया। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि सभा में उपस्थित लोगों में से किसी ने (UPBoardSolutions.com) भी श्रीरामचन्द्र जी को धनुष उठाते, चढ़ाते और जोर से खींचते हुए नहीं देखा; अर्थात् ये तीनों ही काम इतनी शीघ्रता से हुए कि इसका किसी को पता ही नहीं लगा। सभी ने श्रीरामचन्द्र जी को मात्र खड़े देखा और उसी क्षण उन्होंने धनुष को बीच से तोड़ डाला। धनुष के टूटने की ध्वनि इतनी भयंकर हुई कि वह तीनों लोकों में व्याप्त हो गयी। |

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. राम-सीता के पारस्परिक प्रेम की सार्थक अभिव्यक्ति हुई है।
  2. भाषाअवधी।
  3. शैली–प्रबन्ध और सूक्तिपरक।
  4. रस-शृंगार और अद्भुत।
  5. छन्द-दोहा।
  6. अलंकार-अनुप्रास और उत्प्रेक्षा।
  7. गुण-माधुर्य।
  8. शब्दशक्ति–अभिधा और लक्षणा।

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प्रश्न 15.
भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले।
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले ॥
सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।
कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारहीं ॥ [2011, 13]
उतर
[ रव = ध्वनि। बाजि = घोड़ा। महि = पृथ्वी। अहि = शेषनाग, सर्प। कोल = वाराह। कूरुम = कच्छप। कोदंड = धनुष। खंडेउ = तोड़ दिया।]

प्रसंग-प्रस्तुत पदे में तुलसीदास जी ने धनुष टूटने के बाद उत्पन्न हुई स्थिति का अत्यधिक आलंकारिक वर्णन किया है। |

व्याख्या—गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि धनुष टूटने का घोर-कठोर शब्द त्रैलोक्य में व्याप्त हो गया जिससे सूर्य के घोड़े अपना नियत मार्ग छोड़कर चलने लगे, आठों दिशाओं में स्थित आठ दिग्गज अर्थात् दिशाओं की रक्षा करने वाले (UPBoardSolutions.com) आठ हाथी चिंघाड़ने लगे, सम्पूर्ण पृथ्वी डोलने लगी; शेषनाग, वाराह और कछुआ भी बेचैन हो उठे; देवता, राक्षसगण और मुनिजन कानों पर हाथ रखकर (जिससे ध्वनि सुनाई न पड़े) व्याकुल होकर विचार करने लगे कि यह क्या हो रहा है। अन्तत: जब सभी को इस बात का निश्चय हो गया कि श्रीरामचन्द्र जी ने शंकर जी के धनुष को तोड़ दिया है तब सब उनकी जय-जयकार करने लगे।

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काव्यगत सौन्दर्य

  1. धनुष टूटने के बाद की स्थिति का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है।
  2. भाषा-अवधी
  3. शैली–प्रबन्ध व चित्रात्मक।
  4. रसे—अद्भुत।
  5. छन्द-सवैया।
  6. अलंकार-अनुप्रास और अतिशयोक्ति।
  7. गुण-ओज।
  8. शब्दशक्ति-अभिधा और लक्षणा।।

वन-पथ पर
प्रश्न 1.
पुर ते निकसी रघुबीर-बधू, धरि धीर दये मर्ग में डग है ।
झलक भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गये मधुराधर वै ॥
फिरि बूझति हैं-”चलनो अब केतिक, पर्णकुटी करिहौ कित है?”
तिय की लखि आतुरता पिय की अँखिया अति चारु चलीं जल च्वै॥ (2016)
उतर
[ पुर = शृंगवेरपुर। रघुबीर-बधू = सीता जी। धरि धीर = धैर्य धारण करके। मग = रास्ता। द्वै = दोनों। मधुराधर = सुन्दर होंठ। केतिक = कितना। पर्णकुटी = पत्तों से निर्मित झोंपड़ी। तिय = पत्नी। चारु = सुन्दर। च्वै = चूने लगा। ]

सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’ (UPBoardSolutions.com) से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड’ में संकलित ‘वन-पथ पर’ शीर्षक कविता से अवतरित है।

[ विशेष—इस शीर्षक के शेष सभी पद्यांशों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग-कवि ने इन पंक्तियों में अयोध्या से पैदल ही वन को जाती हुई सीताजी की थकावट का मार्मिक वर्णन किया है।

व्याख्या-राम, लक्ष्मण और सीता बड़े धीरज के साथ श्रृंगवेरपुर से आगे दो कदम ही चले थे कि सीताजी के माथे पर पसीने की बूंदें झलकने लगीं और उनके सुन्दर होंठ थकान के कारण सूख गये। तब सीताजी ने अपने प्रियतम राम से पूछा–अभी (UPBoardSolutions.com) हमें कितनी दूर और चलना पड़ेगा? कितनी दूरी पर पत्तों की कुटिया बनाकर रहेंगे? अन्तर्यामी श्रीराम, सीताजी की व्याकुलता का कारण तुरन्त समझ गये कि वे बहुत थक चुकी हैं और विश्राम करना चाहती हैं। राजमहल का सुख भोगने वाली अपनी पत्नी की ऐसी दशा देखकर श्रीराम के सुन्दर नेत्रों से आँसू टपकने लगे।

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काव्यगत सौन्दर्य-

  1. प्रस्तुत पद में सीताजी की सुकुमारता का मार्मिक वर्णन किया गया है।
  2. सीता के प्रति राम के प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है।
  3. भाषा–सरस एवं मधुर ब्रज। ‘दये मग में डग द्वै’ मुहावरे का उत्कृष्ट प्रयोग है। इसी के कारण अत्युक्ति अलंकार भी है।
  4. शैली-चित्रात्मक और मुक्तक।
  5. छन्द-सवैया।
  6. लंकार-माथे पर पसीने की बूंदों के आने, होंठों (UPBoardSolutions.com) के सूख जाने में स्वभावोक्ति तथा ‘केतिक पर्णकुटी करिहौ कित’ में अनुप्रास।
  7. शब्दशक्ति–लक्षण एवं व्यंजना।
  8. रस-शृंगार।
  9. गुण–प्रसाद एवं माधुर्य।

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प्रश्न 2.
“जल को गए लक्खन हैं लरिका, परिखौ, पिय ! छाँह घरीक है ठाढ़े।
पछि पसेउ बयारि करौं, अरु पार्दै पखरिहौं भूभुरि डाढ़े ॥
तुलसी रघुबीर प्रिया स्रम जानि कै बैठि बिलंब ल कंटक काढ़े ।
जानकी नाह को नेह लख्यौ, पुलको तनु बारि बिलोचन बाढे ॥ [2016]
उतर
[ परिखौ = प्रतीक्षा करो। घरीक = एक घड़ी के लिए। ठाढ़े = खड़े होकर। पसेउ = पसीना। बयारि = हवा। भूभुरि = रेत (धूल)। डाढ़े = तपे हुए। बिलंब लौं = देर तक। काढ़े = निकाले। नाह = नाथ, स्वामी। पुलको तनु = शरीर रोमांचित हो गया। बिलोचन := नेत्र।

प्रसंग-इन पंक्तियों में गोस्वामी जी ने सीताजी की सुकुमारता और उनके प्रति राम के असीम प्रेम का सहज चित्रण किया है।

व्याख्या–सीताजी श्रृंगवेरपुर से आगे चलने पर थक जाती हैं। वे विश्राम करने की इच्छा करती हैं। वे श्रीराम से कहती हैं कि लक्ष्मण पानी लेने गये हैं, इसलिए घड़ी भर किसी पेड़ की छाया में खड़े होकर उनकी प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए। इतनी देर मैं आपका पसीना पोंछकर हवा कर देंगी तथा गर्म रेत पर चलने से आपके पाँव जल गये होंगे, उन्हें मैं धो देंगी। श्री रामचन्द्र जी यह सुनकर समझ गये कि सीताजी थक चुकी हैं। और (UPBoardSolutions.com) स्वयं विश्राम करने के लिए कहने में सकुची रही हैं। इसलिए वे बैठ गये और बड़ी देर तक (सीताजी को अधिक समय विश्राम देने के उद्देश्य से) बैठकर उनके पैरों में चुभे हुए काँटे निकालते रहे। अपने प्रति पति का ऐसा प्रेम देखकर सीताजी पुलकित हो गयीं और उनकी आँखों से प्रेम के आँसू टपकने लगे। |

काव्यगत सौन्दर्य–

  1. तुलसीदास जी ने विपत्ति के समय श्रीराम और सीता के एक-दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पित भाव का बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया है, जो कि दाम्पत्य जीवन का एक आदर्श उपस्थित करता है।
  2. गोस्वामी जी ने सीताजी और श्रीराम की भावनाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान बहुत दक्षता से प्रस्तुत किया है।
  3. भाषा-ब्रज।
  4. शैली-मुक्तक।
  5. छन्द-सवैया।
  6. रस-शृंगार।
  7. अलंकार-अनुप्रास।
  8.  गुण-माधुर्य।
  9. शब्दशक्ति–लक्षणा एवं व्यंजना।

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प्रश्न 3.
रानी मैं जानी अजानी महा, पबि पाहन हूँ ते कठोर हियो है ।
राजहु काज अकाज न जान्यो, कह्यो तिय को जिन कान कियो है।
ऐसी मनोहर मूरति ये, बिछुरे कैसे प्रीतम लोग जियो है ?
आँखिन में, सखि ! राखिबे जोग, इन्हें किमि कै बनबास दियो है ?॥ [2010, 12, 15]
उतर
[ अजानी = अज्ञानी। पबि = वज्र। पाहन = पत्थर। (UPBoardSolutions.com) हियो = हृदय। काज अकाज = कार्य-अकार्य या उचित-अनुचित कार्य। तिय = स्त्री। कान कियो है = मान लिया है। प्रीतम = स्नेह करने वाले। जोग = योग्य। किमि = क्यों।]

प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि ने ग्रामीण स्त्रियों के द्वारा कैकेयी और राजा दशरथ की निष्ठुरता पर व्यक्त प्रतिक्रिया को चित्रित किया है।

व्याख्या-वन-गमन के समय रास्ते में स्थित एक गाँव की स्त्रियाँ राम, लक्ष्मण और सीता के सौन्दर्य तथा कोमलता को देखकर रानी कैकेयी को अज्ञानी और वज्र तथा पत्थर से भी कठोर हृदय वाली नारी बताती हैं; क्योंकि उसे सुकुमार राजकुमारों को वनवास देते समय तनिक भी दया न आयी। वे राजा दशरथ को भी विवेकहीन समझकर पत्नी के कहे अनुसार कार्य करने वाला ही समझती हैं और राजा में उचित-अनुचित के ज्ञान की कमी मानती हैं। उन्हें आश्चर्य है कि इन सुन्दर मूर्तियों से बिछुड़कर इनके प्रियजन कैसे जीवित रहेंगे ? हे सखी! ये तीनों तो आँखों में बसाने योग्य हैं, तब इन्हें किस कारण वनवास दिया गया है ?

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. यहाँ कवि ने ग्रामीण बालाओं की श्रीराम के प्रति सहृदयता का सुन्दर चित्रण किया है।
  2. भाषा-ब्रज।
  3. ‘कान भरना’ और ‘आँखों में रखना’ जैसे मुहावरों का समावेश।
  4. शैली-मुक्तक।
  5. छन्द-सवैया।
  6. रस–करुण एवं श्रृंगार।
  7. अलंकार-‘जानी अजानी महा’ में अनुप्रास,काज अकोज’ में सभंगपद यमक।
  8. गुण-माधुर्य।
  9. शब्दशक्ति—अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना।।

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प्रश्न 4.
सीस जटा, उर बाहु बिसाल, बिलोचन लाल, तिरीछी सी भौंहैं।
तून सरासन बान धरे, तुलसी बन-मारग में सुठि सोहैं ॥
सादर बारहिं बार सुभाय चितै, तुम त्यों हमरो मन मोहैं ।
पूछति ग्राम बधूसिय सों’कहौ साँवरे से, सखि रावरे को हैं?’ ॥ [2012, 14, 18]
उतर
[ बिलोचन = नेत्र। तून = तरकस। सरासन = धनुष। सुठि = सुन्दर। सुभाय = स्वाभाविक रूप से। तुम त्यों = तुम्हारी ओर। रावरे = तुम्हारे।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में ग्रामवधुएँ सीता जी को घेरकर (UPBoardSolutions.com) एक ओर बैठे हुए श्रीराम के विषय में विनोद करती हुई उनसे प्रश्न पूछ रही हैं।

व्याख्या-ग्रामवधुएँ सीताजी से पूछ रही हैं कि जो सिर पर जटा धारण किये हुए हैं, जिनके वक्षस्थल और भुजाएँ विशाल हैं, नेत्र लाल हैं तथा भौंहें तिरछी-सी हैं। जो तरकस, धनुष और बाण धारण किये हुए इस वन-मार्ग में बहुत शोभायमान हो रहे हैं, जो सहज-स्वाभाविक रूप में बड़े सम्मान के साथ बार-बार तुम्हारी ओर देखते हुए हमारी मन भी आकर्षित कर रहे हैं। हे सखी! तुम हमें यह बताओ कि ये ” सुन्दर साँवले रूप वाले (राम) तुम्हारे कौन लगते हैं?

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. ग्रामवधुओं ने सीताजी से बहुत सात्विक विनोद से परिपूर्ण स्वाभाविक प्रश्न किया है। ग्राम-वधूटियों का वाक्-चातुर्य दर्शनीय है। स्त्रियों की बातों में जो स्वाभाविक व्यंजना होती है, उसका बड़ा ही मनोवैज्ञानिक चित्रण है।
  2. यहाँ श्रीराम के रूप और मुद्रा का सुन्दर वर्णन हुआ है।
  3. भाषा-सुकोमल ब्रज।
  4. शैली-मुक्तक।
  5. छन्द-सवैया।
  6. रस-शृंगार।
  7. अलंकार– सर्वत्र अनुप्रास।
  8. गुण-माधुर्य।
  9. शब्दशक्ति-व्यंजना।

प्रश्न 5.
सुनि सुन्दर बैन सुधारस-साने, सयानी हैं जानकी जानी भली।
तिरछे करि नैन दै सैन तिन्हें, समुझाइ कछू मुसकाइ चली ॥
तुलसी तेहि औसर सोहै सबै, अवलोकति लोचन-लाहु अली।
अनुराग-तड़ाग में भानु उदै, बिगसीं मनो मंजुल कंज-कली ॥ [2009, 11, 13, 15, 17]
उतर
[ बैन = शब्द। सुधारस-साने = अमृत-रस में सने हुए। सयानी = चतुर। भली = अच्छी तरह से। सैन = संकेत। अवलोकति = देखती है। लाहु = लाभ। अली = सखी। अनुराग-तड़ाग = प्रेम रूपी सरोवर। बिगसीं = खिल रही हैं। मंजुल = सुन्दर। कंज (UPBoardSolutions.com) = कमल।]

प्रसंग-इन पंक्तियों में ग्रामवधुओं के प्रश्न का उत्तर देती हुई सीताजी अपने हाव-भावों से ही राम के विषय में सब कुछ बता देती हैं।

व्याख्या-ग्रामवधुओं ने राम के विषय में सीताजी से पूछा कि ये साँवले और सुन्दर रूप वाले तुम्हारे क्या लगते हैं?’ ग्रामवधुओं के अमृत जैसे मधुर वचनों को सुनकर चतुर सीताजी उनके मनोभाव को समझ गयीं। सीताजी ने उनके प्रश्न का उत्तर अपनी मुस्कराहट तथा संकेत भरी दृष्टि से ही दे दिया, उन्हें मुख से कुछ बोलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। उन्होंने स्त्रियोचित लज्जा के कारण केवल संकेत से ही राम के विषय (UPBoardSolutions.com) में यह समझा दिया कि ये मेरे पति हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि सीताजी के संकेत को समझकर सभी सखियाँ राम के सौन्दर्य को एकटक देखती हुई अपने नेत्रों का लाभ प्राप्त करने लगीं। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो प्रेम के सरोवर में रामरूपी सूर्य का उदय हो गया हो और ग्रामवधुओं के नेत्ररूपी कमल की सुन्दर कलियाँ खिल गयी हों।

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काव्यगत सौन्दर्य

  1. सीता जी का संकेतपूर्ण उत्तर भारतीय नारी की मर्यादा तथा ‘लब्धः नेत्र . निर्वाण:’ की भावना के अनुरूप है।
  2. प्रस्तुत पद में ‘नाटकीयता और काव्य’ का सुन्दर योग है।
  3. भाषा-सुललित ब्रज।
  4. शैली—चित्रात्मक व मुक्तक।
  5. छन्द-सवैया।
  6. रस-श्रृंगार।
  7. अलंकार–‘सुनि सुन्दर बैन सुधारस साने, सयानी हैं (UPBoardSolutions.com) जानकी जानी भली में अनुप्रास, ‘अनुराग-तड़ाग में भानु उदै बिगसीं मनो मंजुल कंज कली’ में रूपक, उत्प्रेक्षा और अनुप्रास की छटा है।
  8. गुणमाधुर्य।
  9. शब्दशक्ति–व्यंजना।।

काव्य-सौदर्य एवं व्याकरण-बोध

प्रश्न 1
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों का नाम लिखकर उनका स्पष्टीकरण भी दीजिए-
(क)
भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले।
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कुरुम कलमले ॥
सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।
कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारहीं ॥
(ख)
सुनि सुन्दर बैन सुधारस-साने, सयानी हैं जानकी जानी भली ।
तिरछे करि नैन दै सैन तिन्हें, समुझाई कछू मुसकाइ चली ॥
तुलसी तेहि औसर सोहैं, सबै अवलोकति लोचन-लाहु अली ।।
अनुराग-तड़ाग में भानु उदै, बिगसीं मनो मंजुल कंज-कली ॥ ॥
उत्तर
(क) विभिन्न वर्गों; यथा—भ, र, ज, ह, क, ल आदि; की आवृत्ति होने के कारण इस पद में सर्वत्र अनुप्रास अलंकार है। मात्र धनुष टूटने के कारण त्रैलोक्य में खलबली मच गयी। इस वर्णन को अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करने के कारण अतिशयोक्ति अलंकार है।

(ख) विभिन्न वर्गों; यथा-स, न, ज, ल, त आदि; की (UPBoardSolutions.com) आवृत्ति होने के कारण इस पद में सर्वत्र अनुप्रास अलंकार है। “अनुराग-तड़ाग में भानु उदै’ में उपमेय और उपमान की अभिन्नता के कारण रूपक तथा ‘‘बिगसीं मनो मंजुल’ में उपमेय की उपमान के रूप में सम्भावना के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है।

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प्रश्न 2
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त रस और उसका स्थायी भाव लिखिए
(क)
देखि देखि रघुबीर तन सुर मराव धरि, धीर।
भरे बिलोचन प्रेम जल पुलकावली सरीर ॥
(ख)
भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले।
चिक्करहिं दिग्गज डोले महि अहि कोल कुरुम कलमले ॥
सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।
कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारहीं ॥
उत्तर
(क) रस-शृंगार, स्थायी भाव–रति।
(ख) रस–अद्भुत, स्थायी भाव-आश्चर्य।

प्रश्न 3
‘वन-पथ पर’ कविता किस छन्द में लिखी गयी है, सलक्षण लिखिए।
उत्तर
यह कविता सवैया छन्द में लिखी गयी है। बाइस से (UPBoardSolutions.com) छब्बीस तक के वर्णवृत्त ‘सवैया’ कहलाते हैं। मत्तगयन्द तथा सुन्दरी इसके भेद हैं।

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प्रश्न 4
निम्नलिखित पदों में सनाम समास-विग्रह कीजिए-
पद कमल, चारिभुज, सुलोचनि, मखशाला, त्रिभुवन, दस बदन, राम-लषन।
उतर
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 तुलसीदास (काव्य-खण्ड) img-1

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UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current

UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current (विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव)

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पाठगत हल प्रश्न

[NCERT IN-TEXT QUESTIONS SOLVED]

खंड 13.1 ( पृष्ठ संख्या 250)

प्रश्न 1.
चुंबक के निकट लाने पर दिक्सूचक की सुई विक्षेपित क्यों हो जाती है?
उत्तर
हम जानते हैं कि दिक्सूचक की सूई एक छोटे छड़ चुंबक की तरह है, जिसमें उत्तर तथा दक्षिण ध्रुव होते हैं। इसलिए दिक्सूचक की सूई चुंबक के निकट लाने पर आकर्षण या प्रतिकर्षण के कारण विक्षेपित हो जाती है, क्योंकि समान ध्रुवों के बीच (UPBoardSolutions.com) प्रतिकर्षण और विपरीत ध्रुवों के बीच आकर्षण बल लगता है।

खंड 13.2 ( पृष्ठ संख्या 255 )।

प्रश्न 1.
किसी छड़ चुंबक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ खींचिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current img-1

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प्रश्न 2.
चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुणों की सूची बनाइए।
उत्तर
चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के निम्नलिखित गुण हैं

  1. चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ चुंबक के उत्तरी (N) ध्रुव से प्रारंभ होकर दक्षिणी (S) ध्रुव पर समाप्त होती है तथा एक बंद वक्र का निर्माण करती हैं। परंतु चुंबक के अंदर क्षेत्र रेखाओं की दिशा दक्षिण ध्रुव से उत्तर ध्रुव की ओर होती है।
  2. किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र रेखा उस बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा दर्शाती है।
  3. जहाँ पर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ अधिक निकट होती हैं, वहाँ चुंबकीय क्षेत्र अधिक प्रबल होते हैं। इसलिए ध्रुवों पर क्षेत्र रेखाएँ निकट होती हैं।
  4. कोई दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ किसी भी बिंदु (UPBoardSolutions.com) पर एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करती हैं।

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प्रश्न 3.
दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद क्यों नहीं करतीं?
उत्तर
यदि दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद करेंगी तब उस बिंदु पर दिक्सूची को रखने पर उसकी सूई दो दिशाओं की ओर संकेत करेगी। चूंकि किसी एक बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ असंभव होती हैं। अत: क्षेत्र रेखाएँ प्रतिच्छेद नहीं कर सकतीं।

खंड 13.3 ( पृष्ठ संख्या 256-257)

प्रश्न 1.
मेज़ के तल में पड़े तार के वृत्ताकार पाश पर विचार कीजिए। मान लीजिए इस पाश में दक्षिणावर्त विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम को लागू करके पाश के भीतर तथा बाहर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात कीजिए।
उत्तर
दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम के अनुसार यदि आप चालक तार को पकड़े हुए हैं तब अँगूठा विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करता है, जबकि अँगुलियाँ चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशी को निरूपित करता है।
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current img-2
स्पष्टत: वृत्ताकार पाश (लूप) के अंदर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा कागज़ के तल (मेज़ के तल) के लंबवत् अंदर की ओर होगी तथा पाश के बाहर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा पाश (मेज़) के तल के लबंवत् ऊपर की ओर होगी।

प्रश्न 2.
किसी दिए गए क्षेत्र में चुंबकीय क्षेत्र एक समान हैं। इसे निरूपित करने के लिए आरेख खींचिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current img-3
एक समान चुंबकीय क्षेत्र परस्पर समान्त और बराबर दूरी वाले चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं जैसा कि निम्न चित्र में दर्शाया गया है।

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प्रश्न 3.
सही विकल्प चुनिए
किसी विद्युत धारावाही सीधी लंबी परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र-
(a) शून्य होता है।
(b) इसके सिरे की ओर जाने पर घटता है।
(c) इसके सिरे की ओर जाने पर बढ़ता है।
(d) सभी बिंदुओं पर समान होता है।
उत्तर
(d) सभी बिंदुओं पर समान होता है।

खंड 13.4 (पृष्ठ संख्या 259)

प्रश्न 1.
किसी प्रोटॉन का निम्नलिखित में से कौन-सा गुण किसी चुंबकीय क्षेत्र में मुक्त गति करते समय परिवर्तित हो जाता है? (यहाँ एक से अधिक सही उत्तर हो सकते हैं।)
(a) द्रव्यमान
(b) चाल
(c) वेग
(d) संवेग
उत्तर
(c) वेग तथा (d) संवेग में परिवर्तन होगा क्योंकि प्रोटॉन धनावेशित होते हैं, जिन पर चुंबकीय क्षेत्र के कारण बल लगेगा और इसकी दिशा बदल जाएगी। चूँकि गति की दिशा परिवर्तित होने पर वेग बदलता है तथा वेग बदलने पर संवेग, (UPBoardSolutions.com) परंतु इसके द्रव्यमान और चाल अपरिवर्तित रहेंगे।

प्रश्न 2.
क्रियाकलाप 13.7 में हमारे विचार से छड़ AB का विस्थापन किस प्रकार प्रभावित होगा यदि
(i) छड़ AB में प्रवाहित विद्युत धारा में वृद्धि हो जाए।
(ii) अधिक प्रबल नाल चुंबक प्रयोग किया जाए और
(iii) छड़ AB की लंबाई में वृद्धि कर दी जाए?
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current img-4
हम जानते हैं कि
अतः प्रत्येक स्थिति में छड़ AB का विस्थापन बढ़ेगा।

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प्रश्न 3.
पश्चिम की ओर प्रक्षेपित कोई धनावेशित कण (अल्फा-कण) किसी चुंबकीय क्षेत्र द्वारा उत्तर की ओर विक्षेपित हो जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?
(a) दक्षिण की ओर
(b) पूर्व की ओर
(c) अधोमुखी
(d) उपरिमुखी
उत्तर
(d) उपरिमुखी।

खंड 13.5 ( पृष्ठ संख्या 261)

प्रश्न 1.
फ्लेमिंग का वामहस्त नियम लिखिए।
उत्तर
फ्लेमिंग का वामहस्त नियम-इस नियम के अनुसार अपने बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा और अँगूठे को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत् हों। यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा प्रदर्शित करें तो अँगूठा चालक की गति की दिशा अथवा चालक पर आरोपित बल की दिशा की ओर संकेत करेगा।
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प्रश्न 2.
विद्युत मोटर का क्या सिद्धांत है?
उत्तर
एक विद्युत मोटर इस सिद्धांत पर कार्य करती है कि जब एक धारावाही चालक को किसी चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो उस चालक पर एक यांत्रिक बल लगता है। चालक पर आरोपित बल की दिशा फ्लेमिंग के वामहस्त नियम द्वारा प्राप्त किया जाता है।

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प्रश्न 3.
विद्युत मोटर में विभक्त वलय की क्या भूमिका है?
उत्तर
विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिक्परिवर्तक का कार्य करता है। यह एक ऐसी युक्ति है जो धारा के प्रवाह की दिशा उत्क्रमित कर देती है। यद्यपि बैट्री से आने वाली विद्युत धारा की दिशा अपरिवर्तित रहती है लेकिन विभक्त वलय के कारण प्रत्येक आधे घूर्णन (UPBoardSolutions.com) के बाद विद्युत धारा के उत्क्रमित होने का क्रम दोहराता रहता है, जिसके कारण कुंडली तथा धुरी का निरंतर घूर्णन होता रहता है। परंतु यदि विद्युत मोटर में विभक्त वलय न लगे हों तो मोटर आधा चक्कर घूमकर रुक जाएगी।

खंड 13.6 (पृष्ठ संख्या 264)

प्रश्न 1.
किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित करने के विभिन्न ढंग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित करने के विभिन्न ढंग निम्नलिखित हैं-

  1. किसी स्थिर कुंडली के पास या उससे दूर चुंबक ले जाकर।
  2. किसी स्थिर चुंबक के पास कुंडली लाकर या उससे दूर ले जाकर।
  3. एक कुंडली के समीप रखी किसी दूसरी कुंडली में विद्युत धारा में परिवर्तन करके पहली कुंडली में धारा प्रेरित की जा सकती है।
  4. कुंडली के फेरों की संख्या में वृद्धि करके।

खंड 13.7 ( पृष्ठ संख्या 265-266 )

प्रश्न 1.
विद्युत जनित्र का सिद्धांत लिखिए।
उत्तर
विद्युत जनित्र में यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग चुंबकीय क्षेत्र में रखे किसी चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया जाता है, जिसके फलस्वरूप विद्युत धारा उत्पन्न होती है। यह मूलत: विद्युत चुंबकीय प्रेरणा के सिद्धांत पर कार्य करता है। प्रेरित (UPBoardSolutions.com) धारा की दिशा फ्लेमिंग के दाएँ-हाथ नियम द्वारा ज्ञात की जाती है।

प्रश्न 2.
दिष्ट धारा के कुछ स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर
दिष्ट धारा के कुछ स्रोत निम्नलिखित हैं-शुष्क सेल, सेलों की बैट्री तथा दिष्ट धारा जनित्र (De generator or DC dynamo)।

प्रश्न 3.
प्रत्यावर्ती विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर
प्रत्यावर्ती विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले स्रोत हैं-प्रत्यावर्ती विद्युत धारा जनित्र (ac जनित्र) तथा बैट्री आधारित उत्क्रमक (इनवर्टर)।

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प्रश्न 4.
सही विकल्प का चयन कीजिए-
ताँबे के तार की एक आयताकार कुंडली किसी चुंबकीय क्षेत्र में घूर्णी गति कर रही है। इस कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा में कितने परिभ्रमण के पश्चात् परिवर्तन होता है?
(a) दो।
(b) एक
(c) आधे
(d) चौथाई
उत्तर
(c) आधे

खंड 13.8 ( पृष्ठ संख्या 267)

प्रश्न 1.
विद्युत परिपथों तथा साधित्रों में सामान्यतः उपयोग होने वाले दो सुरक्षा उपायों के नाम लिखिए।
उत्तर
विद्युत परिपथों तथा साधित्रों में सामान्यत: उपयोग होने वाले दो सुरक्षा उपाय हैं-

  1. विद्युत फ्यूज़
  2. भू-सम्पर्क तार (earthing wire) का उपयोग

प्रश्न 2.
2kW शक्ति अनुमतांक की विद्युत तंदूर किसी घरेलू विद्युत परिपथ (220V) में प्रचालित किया जाता है, जिसका विद्युत अनुमतांक 5A है। इससे आप किस परिणाम की अपेक्षा करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
दिया है-
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current img-10
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current img-6
परिपथ का अनुमतांक 5A है, परंतु विद्युत तंदूर द्वारा 9.09A की धारा ली जा रही है। अतः अनुमतांक से बहुत ज्यादा विद्युत धारा लिए जाने के कारण तार गर्म हो जाएगा तथा अतिभारण (overloading) के कारण फ्यूज का तार पिघल जाएगा, (UPBoardSolutions.com) जिससे परिपथ टूट जाएगा और आग भी लग सकती है।

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प्रश्न 3.
घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचाव के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
उत्तर
घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचाव के लिए हमें निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए-

  1. एक ही सॉकेट से बहुत से विद्युत साधित्रों को नहीं जोड़ना चाहिए।
  2. घरो में दो पृथक-पृथक परिपथों में विद्युत आपूर्ति की जानी चाहिए। इसके लिए 15A विद्युत धारा अनुमतांक वाले तथा 5A विद्युत धारा अनुमतांक वाले दो पृथक-पृथक परिपथों में क्रमशः उच्च शक्ति वाले साधित्रों जैसे गीजर, कूलर आदि तथा (UPBoardSolutions.com) निम्न शक्ति वाले साधित्रों; जैसे-पंखे, बल्ब आदि चलाने चाहिए।
  3. उचित धारा अनुमतांक वाले पृथक-पृथक फ्यूज़ लगवाने चाहिए।
  4. उत्तम गुणवत्ता वाले तार, विद्युतरोधी टेप का उपयोग करना चाहिए।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED]

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन किसी लंबे विद्युत धारावाही तार के निकट चुंबकीय क्षेत्र का सही वर्णन करता है?
(a) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के लंबवत होती हैं।
(b) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के समांतर होती हैं।
(c) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ अरीय होती हैं जिनका उद्भव तार से होता है।
(d) चुंबकीय क्षेत्र की संकेंद्री क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तारे होता है।
उत्तर
(a) चुंबकीय क्षेत्र की संकेंद्री क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है।

प्रश्न 2.
वैद्युत चुंबकीय प्रेरणा की परिघटना
(a) किसी वस्तु को आवेशित करने की प्रक्रिया है।
(b) किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने की प्रक्रिया है।
(c) कुंडली तथा चुंबक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना है।
(d) किसी विद्युत मोटर की कुंडली को घूर्णन कराने की प्रक्रिया है।।
उत्तर
(a) कुंडली तथा चुंबक के बीच आपेक्षिक (UPBoardSolutions.com) गति के कारण कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना है।

प्रश्न 3.
विद्युत धारा उत्पन्न करने की युक्ति को कहते हैं-
(a) जनित्र
(b) गैल्वनोमीटर
(c) ऐमीटर
(d) मोटर
उत्तर
(d) जनित्र

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प्रश्न 4.
किसी ac जनित्र तथा dc जनित्र में एक मूलभूत अंतर यह है कि
(a) ac जनित्र में विद्युत चुंबक होता है जबकि dc मोटर में स्थायी चुंबक होता है।
(b) dc जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है।
(c) ac जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है।
(d) ac जनित्र में सर्दी वलय होते हैं जबकि dc जनित्र में दिक्परिवर्तक होता है।
उत्तर
(d) ac जनित्र में सर्दी वलय होते हैं जबकि dc जनित्र में दिक्परिवर्तक होता है।

प्रश्न 5.
लघुपथन के समय परिपथ में विद्युत धारा का मान-
(a) बहुत कम हो जाता है।
(b) परिवर्तित नहीं होता।
(c) बहुत अधिक बढ़ जाती है।
(d) निरंतर परिवर्तित होता है।
उत्तर
(c) बहुत अधिक बढ़ जाता है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित प्रकथनों में कौन सत्य है तथा कौन असत्य? इसे प्रकथन के सामने अंकित कीजिए
(a) विद्युत मोटर यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करता है।
(b) विद्युत जनित्र वैद्युतचुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
(c) किसी लंबी वृत्ताकर विद्युत धारावाही कुंडली के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र समांतर सीधी क्षेत्र रेखाएँ होती हैं।
(d) हरे विद्युतरोधन वाला तार प्रायः विद्युन्मय तार होता है।
उत्तर
(a) असत्य
(b) सत्य
(c) सत्य
(d) असत्य

प्रश्न 7.
चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने के दो तरीकों की सूची बनाइए।
उत्तर
चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने के दो तरीके निम्न हैं

  1. किसी चुंबक द्वारा; जैसे-छड़ चुंबक, नाल चुंबक आदि।
  2. किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक तार द्वारा; (UPBoardSolutions.com) विद्युत धारावाही पाश (लूप) द्वारा इत्यादि।

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प्रश्न 8.
परिनालिका चुंबक की भाँति कैसे व्यवहार करती है? क्या आप किसी छड़ चुंबक की सहायता से किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के उत्तर ध्रुव तथा दक्षिण ध्रुव का निर्धारण कर सकते हैं?
उत्तर
पास-पास लिपटे विद्युतरोधी ताँबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं। जब इस परिनालिका से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो इसमें छड़ चुंबक की तरह ही चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं का पैटर्न बनता है, जिसका एक सिरा N ध्रुव तथा दूसरा सिरा S ध्रुव की भाँति व्यवहार करता है। परिनालिका के अंदर क्षेत्र रेखाएँ समांतर सरल रेखाओं की भाँति होती हैं, जो यह दर्शाता है कि (UPBoardSolutions.com) परिनालिका के भीतर एक समान चुंबकीय क्षेत्र है। हाँ, हम किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के उत्तर ध्रुव तथा दक्षिण ध्रुव का निर्धारण छड़ चुंबक की सहायता से कर सकते हैं। इसके लिए किसी ज्ञात N ध्रुव वाले छड़ चुंबक को परिनालिका के एक सिरे के समीप लाते हैं। यदि प्रतिकर्षण हुआ तो सिरा N-ध्रुव तथा आकर्षण होने पर S-ध्रुव होगा। इसी प्रकार, परिनालिका के दूसरे सिरे के ध्रुव भी ज्ञात किए जा सकते हैं, क्योंकि समान ध्रुवों के बीच प्रतिकर्षण तथा असमान ध्रुवों के बीच आकर्षण होता है।

प्रश्न 9.
किसी चुंबकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल कब अधिकतम होता है?
उत्तर
फ्लेमिंग के वामहस्त नियम द्वारा किसी चुंबकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल अधिकतम होता है, जब चालक को चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत् रखा जाए। अर्थात् विद्युत धारा की दिशा तथा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा परस्पर लंबवत् हो।

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प्रश्न 10.
मान लीजिए आप किसी चैम्बर में अपनी पीठ को किसी एक दीवार से लगाकर बैठे हैं। कोई इलेक्ट्रॉन पुंज आपके पीछे की दीवार से सामने वाली दीवार की ओर क्षैतिजतः गमन करते हुए किसी प्रबल चुंबकीय क्षेत्र द्वारा आपके दाई ओर विक्षेपित हो जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?
उत्तर
स्पष्टत: फ्लेमिंग के वामहस्त नियम द्वारा, चुंबकीय क्षेत्र की दिशा उर्ध्वाधरत: नीचे (Vertically downward) होगी।
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current img-7

प्रश्न 11.
विद्युत मोटर का नामांकित आरेख खींचिए। इसका सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। विद्युत मोटर में विभक्त वलय का क्या महत्व है?
उत्तर
विद्युत मोटर का आरेख आकृति में दर्शाया गया है:
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current img-8
सिद्धांत-किसी धारावाही चालक को किसी चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत् दिशा में रखने पर वह चालक यांत्रिक बल का अनुभव करता है। इस बल के कारण चालक बल की दिशा में घूर्णन करता है। विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल की दिशा फ्लेमिंग के वामहस्त नियम से ज्ञात करते हैं।
कार्य विधि-चित्र में दर्शाए अनुसार विद्युत धारा चालक ब्रुश X से होते हुए कुंडली ABCD में प्रवेश करती है तथा चालक ब्रुश Y से होते हुए बैट्री के दूसरे टर्मिनल पर वापस आ जाती है।
स्पष्टतः भुजा AB में विद्युत धारा A से B की ओर तथा भुजा CD में C से D की ओर प्रवाहित होती है। अतः धारा की दिशाएँ इन भुजाओं में परस्पर विपरीत होती हैं, इसलिए फ्लेमिंग के वामहस्त नियम द्वारा AB आरोपित बल उसे अधोमुखी धकेलता है जबकि भुजा CD पर आरोपित बल उपरिमुखी धकेलता है। अतः इस बल युग्म के कारण कुंडली तथा धुरी अक्ष पर वामावर्त घूर्णन करते हैं।
विभक्त वलय का कार्य-विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिक्परिवर्तक का कार्य करता है। चित्रानुसार विभक्त वलय P तथा Q का संपर्क क्रमशः ब्रुश X तथा Y से है, परंतु आधे घूर्णन के बाद Q का संपर्क ब्रुश X से होता है तथा P का संपर्क Y से होता है, (UPBoardSolutions.com) जिसके फलस्वरूप कुंडली में धारा उत्क्रमित होकर पथ DCBA के अनुदिश प्रवाहित होती है। फ्लेमिंग के नियम से अब भुजा AB पर उपरिमुखी तथा भुजा CD पर अधोमुखी बल लगता है, जिसके कारण कुंडली तथा धुरी उसी दिशा में अब आधा घूर्णन और पूरा कर लेती हैं। अतः प्रत्येक आधे घूर्णन के बाद धारा के उत्क्रमित होने का क्रम दोहराता रहता है, जिसके कारण कुंडली तथा धुरी निरंतर घूर्णन करते रहते हैं।

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प्रश्न 12.
ऐसी कुछ युक्तियों के नाम लिखिए जिनमें विद्युत मोटर उपयोग किए जाते हैं।
उत्तर
विद्युत मोटर एक ऐसी युक्ति है, जिसमें विद्युत ऊर्जा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण होता है। इसके कुछ उदाहरण निम्न हैं-विद्युत पंखे, ए०सी०, वाशिंग मशीन, मिक्सर ग्राईन्डर, कूलर, कंप्यूटर, जल पंप, गेहूँ पीसने वाली चक्की इत्यादि।

प्रश्न 13.
कोई विद्युत रोधी ताँबे के तार की कुंडली किसी गैल्वनोमीटर से संयोजित है। क्या होगा यदि कोई छड़ चुंबकः
(i) कुंडली में धकेला जाता है।
(ii) कुंडली के भीतर से बाहर खींचा जाता है।
(iii) कुंडली के भीतर स्थिर रखा जाता है।
उत्तर

  1. कुंडली में एक प्रेरित धारा उत्पन्न होता है, जिसके कारण गैल्वनोमीटर में विक्षेप होता है।
  2. प्रेरित धारा उत्पन्न होगी और गैल्वनोमीटर में विक्षेप प्रदर्शित होगा, परंतु विक्षेप की दिशा पहले के विपरीत होगी।
  3. चूंकि चुंबक स्थिर है इसलिए कोई प्रेरित धारा उत्पन्न नहीं होगी। अतः गैल्वनोमीटर में कोई विक्षेप नहीं होती है।

प्रश्न 14.
दो वृत्ताकार कुंडली A तथा B एक-दूसरे के निकट स्थित हैं। यदि कुंडली A में विद्युत धारा में कोई परिवर्तन करें तो क्या कुंडली B में कोई विद्युत धारा प्रेरित होगा? कारण लिखिए।
उत्तर
हाँ, कुंडली B में विद्युत धारी प्रेरित होगी।
जब कुंडली A में प्रवाहित विद्युत धारा में परिवर्तन होता है, तो इसके चुंबकीय क्षेत्र में भी परिवर्तन होता है। चूंकि कुंडली B कुंडली A के निकट है इसलिए कुंडली B के चारों ओर भी. चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं में परिवर्तन होता है, जिसके कारण कुंडली B में प्रेरित धारा उत्पन्न होती है।

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प्रश्न 15.
निम्नलिखित की दिशा को निर्धारित करने वाली नियम लिखिए-
(i) किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र।
(ii) किसी चुंबकीय क्षेत्र में, क्षेत्र के लंबवत् स्थित, विद्युत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल।
(iii) किसी चुंबकीय क्षेत्र में किसी कुंडली के घूर्णन करने पर उस कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा।
उत्तर

  1. किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की दिशा निर्धारित करने के लिए दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम” का प्रयोग किया जाता है, जो इस प्रकार है किसी विद्युत धारावाही चालक को अपने दाहिने हाथ (UPBoardSolutions.com) से पकड़ने पर अँगूठा विद्युत धारा की दिशा को संकेत करता है तथा अँगुलियाँ चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाओं की दिशा में लिपटी होंगी। इसे मैक्सवेल का कार्कस्कू नियम भी कहते हैं।
  2. किसी चुंबकीय क्षेत्र में, क्षेत्र के लंबवत् स्थित, विद्युत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल की दिशा ‘‘फ्लेमिंग
    के वामहस्त नियम” द्वारा ज्ञात करते हैं, जो इस प्रकार है
    संकेत-‘महत्त्वपूर्ण तथ्य’ के अंतर्गत पृष्ठ संख्या-208 देखें।
  3. चुंबकीय क्षेत्र में गतिशील चालक में उत्पन्न प्रेरित धारा की दिशा ज्ञात करने के लिए फ्लेमिंग के दक्षिण-हस्त के नियम का प्रयोग किया जाता है।
    संकेत-‘महत्त्वपूर्ण तथ्य’ (Point 14) देखें।’

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प्रश्न 16.
नामांकित आरेख खींचकर किसी विद्युत जनित्र का मूल सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। इनमें ब्रुश का क्या कार्य है?
उत्तर
विद्युत जनित्र का नामांकित आरेख-
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 13 Magnetic Effects of Electric Current img-9
मूल सिद्धांत-विद्युत जनित्र मूलत: विद्युत-चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करती है। विद्युत जनित्र में यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग चुंबकीय क्षेत्र में रखे किसी चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया। जाता है जिसके कारण प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है, जिसकी दिशा फ्लेमिंग के दक्षिण-हस्त वलय नियम द्वारा ज्ञात की जाती है।

कार्य विधि-मान लीजिए कि प्रारंभिक अवस्था में एक कुंडली ABCD चुंबक के ध्रुवों के बीच उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र में दक्षिणावर्त घुमाया जाता है। भुजा AB ऊपर की ओर तथा भुजा CD नीचे। की ओर गति करती है। फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम लागू (UPBoardSolutions.com) करने पर कुंडली में AB तथा CD दिशाओं के अनुदिश प्रेरित विद्युत धाराएँ प्रवाहित होने लगती हैं। बाह्य परिपथ में B2 से B1 की दिशा में विद्युत धारा प्रवाहित होती है।
अब आधे घूर्णन के बाद CD ऊपर की ओर तथा AB नीचे की ओर जाने लगती है। स्पष्टतः कुंडली के अंदर प्रेरित विद्युत धारा की दिशा बदलकर DCBA के अनुदिश हो जाती है और बाह्य परिपथ में B, से B, की दिशा में प्रवाहित होती है। इस तरह हम देखते हैं कि प्रत्येक आधे घूर्णन के बाद विद्युत धारा की दिशा बदल जाती है।

ब्रुश के कार्य-ब्रुश B1 और B2 वलयों R1 तथा R2 पर दबाकर रखा जाता है, जो कुंडली में प्रेरित धारा को बाह्य परिपथ में पहुँचाने में सहायक होते हैं।

प्रश्न 17.
किसी विद्युत परिपथ में लघुपथन कब होता है?
उत्तर
जब विद्युन्मय तार (धनात्मक तार) तथा उदासीन तार (ऋणात्मक तार) सीधे संपर्क में आ जाते हैं, तब विद्युत परिपथ | में अकस्मात् बहुत अधिक विद्युत धारा हो जाती है और लघुपथन हो जाता है। ऐसा तब होता है जब तारों के विद्युतरोधी आवरण क्षतिग्रस्त हो जाए या साधित्र में कोई दोष हो।

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प्रश्न 18.
भूसंपर्क तार का क्या कार्य है? धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भूसंपर्कत करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर
भूसंपर्क तार किसी विद्युत परिपथ में सुरक्षा उपाय के रूप में प्रयुक्त होते हैं। खासकर उन साधित्रों में जिनका आवरण धात्विक होता है; जैसे-विद्युत इस्तरी, टोस्टर, मेज़ का पंखा, रेफ्रिजरेटर, कूलर, गीजर आदि। धातु के आवरणों से संयोजित भूसंपर्क तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत करता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि साधित्र के धात्विक आवरण में विद्युत धारा का कोई क्षरण होने पर (UPBoardSolutions.com) उस साधित्र का विभेव भूमि के विभव के बराबर हो जाएगा। फलस्वरूप इस साधित्र को उपयोग करने वाला व्यक्ति तीव्र विद्युत आघात से सुरक्षित बचा रहता है।

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 13 are helpful to complete your homework.

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UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 5 Periodic Classification of Elements

UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 5 Periodic Classification of Elements (तत्वों के आवर्त वर्गीकरण)

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Science. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 5 Periodic Classification of Elements.

पाठगत हल प्रश्न

[NCERT IN-TEXT QUESTIONS SOLVED]

खंड 5.1 ( पृष्ठ संख्या 91)

प्रश्न 1.
क्या डॉबेराइनर के त्रिक, न्यूलैंड्स के अष्टक के स्तंभ में भी पाए जाते हैं? तुलना करके पता कीजिए।
उत्तर
हाँ, डॉबेराइनर के त्रिक, न्यूलैंड्स के अष्टक के स्तंभ (UPBoardSolutions.com) में भी पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए-Li, Na, K डॉबेराइनर के त्रिक हैं। परंतु ये न्यूलैंड्स के अष्टक के दूसरे स्तंभ में भी मौजूद हैं।

प्रश्न 2.
डॉबेराइनर के वर्गीकरण की क्या सीमाएँ हैं?
उत्तर
डॉबेराइनर के वर्गीकरण की सीमाएँ निम्नलिखित हैं

  1. उस समय ज्ञात सभी तत्वों का वर्गीकरण  डॉबेराइनर के त्रिक के द्वारा नहीं हो पाया।
  2. वे उस समय ज्ञात 64 तत्वों (UPBoardSolutions.com) में से केवल तीन त्रिक ही बना पाए। अतः उनका वर्गीकरण ज्यादा सफल नहीं रहा।

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प्रश्न 3.
न्यूलैंड्स के अष्टक नियम की क्या सीमाएँ हैं?
उत्तर
संकेत-महत्वपूर्ण तथ्य एवं परिभाषाएँ” देखिए।

खंड 5.2 ( पृष्ठ संख्या 94 )

प्रश्न 1.
मेंडेलीफ की आवर्त सारणी का उपयोग कर निम्नलिखित तत्वों के ऑक्साइड के सूत्र का अनुमान कीजिए: K, C, Al, Si, Ba
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 5 Periodic Classification of Elements img-1

प्रश्न 2.
गैलियम के अतिरिक्त, अब तक कौन-कौन से तत्वों का पता चला है, जिसके लिए मेन्डलीफ ने अपनी आवर्त सारणी में खाली स्थान छोड़ दिया था? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर
गैलियम के अतिरिक्त स्कैंडियम तथा (UPBoardSolutions.com) जर्मेनियम (UPBoardSolutions.com) तत्वों का पता बाद में चला जिसके लिए खाली स्थान छोड़ा गया था।

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प्रश्न 3.
मेंडेलीफ ने अपनी आवर्त सारणी तैयार करने के लिए कौन सा मापदंड अपनाया?
उत्तर
मेंडेलीफ ने अपनी आवर्त सारणी तैयार करने के लिए निम्नलिखित मापदंडों को अपनाया था-

  1. तत्वों को परमाणु द्रव्यमानों के आरोही क्रम (बढ़ता क्रम) में व्यवस्थित किया।
  2. रासायनिक गुणधर्मों की समानता के आधार पर व्यवस्थित किया।
  3. तत्व से बनने वाले हाईड्राइड एवं ऑक्साइड के सूत्र को तत्वों के वर्गीकरण के लिए मूलभूत गुणधर्म माना गया।

प्रश्न 4.
आपके अनुसार उत्कृष्ट गैसों को अलग समूह में क्यों रखा गया?
उत्तर
उत्कृष्ट गैसों को अलग समूह में रखा गया, क्योंकि (UPBoardSolutions.com) ये रासायनिक रूप से अक्रिय होती हैं। सभी उत्कृष्ट गैसों के बाह्यतम कोश पूर्णतः भरे होते हैं तथा इनके गुणों में समानताएँ पाई जाती हैं।

खंड 5.3 ( पृष्ठ संख्या 100)

प्रश्न 1.
आधुनिक आवर्त सारणी द्वारा किस प्रकार से मेंडेलीफ की आवर्त सारणी की विविध विसंगतियों को दूर किया गया?
उत्तर
आधुनिक आवर्त सारणी द्वारा मेंडेलीफ की आवर्त सारणी की तीनों विसंगतियाँ निम्नलिखित तरीकों से दूर की गईं।

(i) हाइड्रोजन का स्थान-हाइड्रोजन को क्षारीय धातुओं से गुणों में समानता के आधार पर ग्रुप 1 में सबसे ऊपर रखा गया था, परंतु यह उचित स्थान नहीं था। यह मेंडेलीफ के आवर्त सारणी की एक कमी थी। लेकिन इलेक्ट्रॉनिक विन्यास क्षार धातु (UPBoardSolutions.com) के समान होने के कारण तथा संयोजकता इलेक्ट्रॉन 1 होने के कारण आधुनिक आवर्त सारणी
में इसे समूह (ग्रुप) 1 में रखा गया। जिससे मेंडेलीफ के आवर्त सारणी की पहली कमी दूर हो गई।

(ii) कोबाल्ट (Co) तथा निकैल (Ni) का स्थान-Co का परमाणु द्रव्यमान 58.9 तथा Ni का परमाणु द्रव्यमान 58.7 है; लेकिन Co को Ni के पहले रखा गया था। परंतु Co की परमाणु संख्या 27 तथा Ni की परमाणु संख्या 28 है। आधुनिक (UPBoardSolutions.com) आवर्त सारणी में तत्वों को बढ़ाते हुए परमाणु संख्या के आधार पर व्यवस्थित किया गया जिससे यह कमी भी दूर हो गई। Co समूह-9 तथा Ni समूह-10 में आ गए। इसी प्रकार Ar (परमाणु संख्या 18) तथा K (परमाणु संख्या 19) के गलत क्रम का भी समाधान हो गया।

(iii) समस्थानिकों का स्थान-मेंडेलीफ के आवर्त सारणी में समस्थानिकों का कोई स्थान नहीं था। चूँकि समस्थानिकों के परमाणु संख्या समान होते हैं। अतः इन्हें आधुनिक आवर्त सारणी में एक ही स्थान पर रखा गया। उदाहरण के लिए Cl-35 और Cl-37 के परमाणु संख्या 17 हैं।

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प्रश्न 2.
मैग्नीशियम की तरह रासायनिक अभिक्रियाशीलता दिखाने वाले दो तत्वों के नाम लिखिए। आपके चयन का क्या आधार है?
उत्तर
बेरिलियम (Be) तथा कैल्शियम (Ca), मैग्नीशियम के समाने रासायनिक अभिक्रियाएँ प्रदर्शित करेंगे। हमारे चयन का आधार निम्न है-

  1. 4Be- 2, 2 तथा 20Ca : 2, 8, 8, 2
  2. इनकी संयोजकता इलेक्ट्रॉन समान हैं। इसलिए ये एक ही वर्ग-2 के तत्व हैं, जिसमें Mg है। तथा एक समान गुणधर्म प्रदर्शित करेंगे।

प्रश्न 3.
नाम बताइए|
(a) तीन तत्वों जिनके सबसे बाहरी कोश में एक इलेक्ट्रॉन उपस्थित हो।
(b) दो तत्वों जिनके सबसे बाहरी कोश में दो इलेक्ट्रॉन उपस्थित हों। |
(c) तीन तत्वों जिनका बाहरी कोश पूर्ण हो।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 5 Periodic Classification of Elements img-2

प्रश्न 4.
(a) लीथियम, सोडियम, पोटैशियम, ये सभी धातुएँ जल से अभिक्रिया कर हाइड्रोजन गैस मुक्त करती हैं। क्या इन तत्वों के परमाणुओं में कोई समानता है?
(b) हीलियम एक अक्रियाशील गैस है, जबकि निऑन की अभिक्रियाशीलता अत्यंत कम है। क्या इनके परमाणुओं में कोई समानता है?
उत्तर
(a) हाँ, इन तत्वों के परमाणुओं में समानता है। Li, Na, तथा K के बाहरी कोश में 1 इलेक्ट्रॉन हैं तथा इनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास एक जैसे हैं। Li : 2, 1, ; Na : 2, 8, 1 तथा K: 2, 8, 8, 1। अतः ये सभी तत्व आसानी से 1 इलेक्ट्रॉन का परित्याग (UPBoardSolutions.com) कर धनायने बना सकते हैं।

(b) हाँ, दोनों के बाहरी कोश पूर्णतः भरे हैं। He : 2, Ne : 2,8 हीलियम में केवल K सेल है, जिसमें अधिक से अधिक 2 इलेक्ट्रॉन रह सकते हैं, जबकि नियॉन के बाहरी कोश (L-कोश) में अधिक से अधिक 8 इलेक्ट्रॉन रह सकते हैं। अत: ये अक्रिय गैसें हैं।

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प्रश्न 5.
आधुनिक आवर्त सारणी में पहले दस तत्वों में कौन-सी धातुएँ हैं?
उत्तर
लीथियम Li, बेरिलियम (Be)।

प्रश्न 6.
आवर्त सारणी में इनके स्थान के आधार पर इनमें से किस तत्व में सबसे अधिक धात्विक अभिलक्षण की विशेषता है? Ga, Ge, As, Se, Be।
उत्तर
हम जानते हैं कि धात्विक अभिलक्षण आवर्त में बाईं ओर से दाईं ओर बढ़ने पर घटता है। अर्थात् अधिकतम धात्विक गुण वाले तत्व सबसे बाईं ओर होंगे। चूँकि Be आवर्त सारणी में सबसे बाईं ओर समूह-2 में रखे गए हैं इसलिए बेरिलियम (Be) (UPBoardSolutions.com) की धात्विक अभिलक्षण दिए गए तत्वों में सबसे अधिक होगी।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

[NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED]

प्रश्न 1.
आवर्त सारणी में बाईं से दाईं ओर जाने पर, प्रवृत्तियों के बारे में कौन सा कथन असत्य है?
(a) तत्वों की धात्विक प्रकृति घटती है।
(b) संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ जाती है।
(C) परमाणु आसानी से इलेक्ट्रॉन का त्याग करते हैं।
(d) इनके ऑक्साइड अधिक अम्लीय हो जाते हैं।
उत्तर
(C) परमाणु आसानी से इलेक्ट्रॉन का त्याग करते हैं।

प्रश्न 2.
तत्व X, XCl, सूत्र वाला एक क्लोराइड बनाता है, जो एक ठोस है तथा जिसका गलनांक अधिक है। आवर्त सारणी में यह तत्व संभवतः किस समूह के अंतर्गत होगा?
(a) Na
(b) Mg
(C) Al
(d) Si
उत्तर
(b) Mg

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प्रश्न 3.
किस तत्व में
(a) दो कोश हैं तथा दोनों इलेक्ट्रॉनों से पूरित हैं?
(b) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 2 हैं?
(c) कुल तीन कोश हैं तथा संयोजकता कोश में चार इलेक्ट्रॉन हैं?
(d) कुल दो कोश हैं तथा संयोजकता कोश में तीन इलेक्ट्रॉन हैं?
(e) दूसरे कोश में पहले कोश से दोगुने इलेक्ट्रॉन हैं?
उत्तर
(a) निऑन- Ne (2, 8)
(b) मैग्नीशियम-Mg (2, 8, 2)
(c) सिलिकॉप Si (2, 8, 4)
(d) बोरॉन-B (UPBoardSolutions.com) (2, 3)
(e) कार्बनः C (2, 4)

प्रश्न 4.
(a) आवर्त सारणी में बोरान के स्तंभ के सभी तत्वों के कौन-से गुणधर्म समान हैं?
(b) आवर्त सारणी में फ्लुओरीन के स्तंभ के सभी तत्वों के कौन-से गुणधर्म समान है?
उत्तर

  1. बोरान की तरह स्तंभ 13 के सभी तत्वों में संयोजकता इलेक्ट्रॉन की संख्या 3 है तथा संयोजकता भी 3 है।
  2. F (2,7) ∴ स्तंभ संख्या = 7 + 10 = 17
    फ्लोरीन (F) की तरह इस ग्रुप (स्तंभ) (UPBoardSolutions.com) के सभी तत्वों की संयोजकता इलेक्ट्रॉन क़ी संख्या 7 है तथा संयोजकता 1 है।

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प्रश्न 5.
एक परमाणु का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 7 है।
(a) इस तत्व की परमाणु-संख्या क्या है?
(b) निम्न में किस तत्व के साथ इसकी रासायनिक समानता होगी? (परमाणु-संख्या कोष्ठक में दी गई है)
N(7) F(9) P(15) Ar(18)
उत्तर
(a) इस तत्व की परमाणु संख्या 17 है।
(b) N(7) = 2, 5, F (9) = 2, 7
P(15) = 2, 8, 5 Ar(18) = 2, 8, 8
F(9) में संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या 7 (UPBoardSolutions.com) है जो दिए गए तत्व के समान है। अतः इस तत्व के रासायनिक गुण F के समान होंगे।

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प्रश्न 6.
आवर्त सारणी में तीन तत्व A, B तथा C की स्थिति निम्न प्रकार है-
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 5 Periodic Classification of Elements img-3
अब बताइए कि
(a) A धातु है या अधातु।
(b) A की अपेक्षा C अधिक अभिक्रियाशील है या कम?
(c) C का साइज़ B से बड़ा होगा या छोटा? ।
(d) तत्व A किस प्रकार के आयन, धनायन या ऋणायन बनाएगा?
उत्तर
(a) A अधातु है [क्योंकि समूह 17 आवर्त सारणी के दाईं ओर है]
(b) C, A से कम अभिक्रियाशील होगी, क्योंकि समूह में ऊपर से नीचे बढ़ने पर हैलोजन की अभिक्रियाशीलता घटती है।
(C) ‘C’ का साइज़ B से छोटा होगा, क्योंकि आवर्त में बाईं ओर से दाईं ओर बढ़ने पर परमाणु का साइज़ घटता है।
(d) A ऋणायन बनाएगा क्योंकि इसके बाहरी कोश (UPBoardSolutions.com) में 7 इलेक्ट्रॉन है। अतः 1 इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋण आवेश (आयन) (A) बनाएगा।

प्रश्न 7.
नाइट्रोजन (परमाणु-संख्या 7) तथा फॉस्फोरस (परमाणु-संख्या 15) आवर्त सारणी के समूह 15. तत्व हैं। इन दोनों | तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए। इनमें से कौन-सा तत्व अधिक ऋण विद्युत होगा और क्यों?
उत्तर
नाइट्रोजन (7) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास-2, 5 फॉस्फोरस (15) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास-2, 8, 5 चूँकि नाइट्रोजन में दो कोश तथा फॉस्फोरस में 3 कोश हैं इसलिए नाइट्रोजन का परमाणे साइज कम होने के कारण नाभिक को आवेश (UPBoardSolutions.com) इलेक्ट्रॉन को आसानी से ग्रहण कर ऋणायन बना लेता है। अतः नाइट्रोजन अधिक विद्युत ऋणात्मक होगा, क्योंकि किसी वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर विद्युत ऋणात्मक घटती है।

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प्रश्न 8.
तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास का आधुनिक आवर्त सारणी में तत्व की स्थिति से क्या संबंध है?
उत्तर
आधुनिक आवर्त सारणी में तत्वों को उसके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर व्यवस्थित किया गया है।
कोशों की संख्या = आवर्त संख्या

बाहरी कोश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या (संयोजकता इलेक्ट्रॉन) से समूह (ग्रुप) संख्या निर्धारित होती है।
संयोजकता इलेक्ट्रॉन 1 वाले तत्वों को ग्रुप 1 में, संयोजकता इलेक्ट्रॉन 2 वाले तत्वों को ग्रुप 2 में तथा संयोजकता इलेक्ट्रॉन 3 वाले तत्वों को ग्रुप 13 में (3 या 3 से ज्यादा संयोजकता इलेक्ट्रॉन के लिए ग्रुप संख्या = संयोजकता इलेक्ट्रॉन + 10 = 3 + 10 =13)
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प्रश्न 9.
आधुनिक आवर्त सारणी में कैल्शियम (परमाणु-संख्या 20) के चारों ओर 12, 19, 21 तथा 38 परमाणु-संख्या वाले तत्व स्थित हैं। इनमें से किन तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्म कैल्शियम के समान हैं।
उत्तर
कैल्शियम (Ca) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 8, 8, 2
दिए गए तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास-
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 5 Periodic Classification of Elements img-5
चूँकि दिए गए तत्वों में से परमाणु संख्या 12 और 38 वाले तत्वों के बाहरी कोश में विद्यमान इलेक्ट्रॉनों की संख्या कैल्शियम के बाहरी कोश में स्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या के समान हैं अर्थात् इन दोनों तत्वों की संयोजकता इलेक्ट्रॉन Ca के समान हैं। इसलिए ये दोनों तत्व Ca की तरह भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्म प्रदर्शित करेंगे।

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प्रश्न 10.
आधुनिक आवर्त सारणी एवं मेंडेलीफ की आवर्त  सारणी में तत्वों की व्यवस्था की तुलना कीजिए।
उत्तर
UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 5 Periodic Classification of Elements img-6

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Science Chapter 5 are helpful to complete your homework.

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